Class 12

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 7 बादल राग

Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 7 बादल राग Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 7 बादल राग

HBSE 12th Class Hindi बादल राग Textbook Questions and Answers

कविता के साथ

प्रश्न 1.
अस्थिर सुख पर दुख की छाया पंक्ति में दुख की छाया किसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर:
अस्थिर सुख पर दुख की छाया पंक्ति में दुख की छाया क्रांति अथवा विनाश का प्रतीक है। सुविधा-भोगी लोगों के पास धन होते हैं। इसलिए वे क्रांति से हमेशा डरते रहते हैं। क्रांति से पूँजीपतियों को हानि होगी, गरीबों को नहीं। इसलिए कवि ने अमीर लोगों के सुखों को अस्थिर कहा है। क्रांति की संभावना ही दुख की वह छाया है जिससे वे हमेशा डरे रहते हैं। यही कारण है कि ‘दुख की छाया’ शब्दों का प्रयोग किया गया है।

प्रश्न 2.
‘अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर’ पंक्ति में किसकी ओर संकेत किया गया है?
उत्तर:
‘अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर’ पंक्ति में क्रांति विरोधी अभिमानी पूँजीपतियों की ओर संकेत किया गया है जो क्रांति को दबाने का भरसक प्रयास करते हैं परंतु क्रांति के वज्र के प्रहार से घायल होकर वे क्षत-विक्षत हो जाते हैं। जिस प्रकार बादलों के द्वारा किए गए अशनि-पात से पर्वतों की ऊँची-ऊँची चोटियाँ क्षत-विक्षत हो जाती हैं, उसी प्रकार क्रांति की मार-काट से बड़े-बड़े पूँजीपति, धनी तथा वीर लोग भी धरती चाटने लगते हैं।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 7 बादल राग

प्रश्न 3.
‘विप्लव-व से छोटे ही हैं शोभा पाते’ पंक्ति में विप्लव-रव से क्या तात्पर्य है? छोटे ही हैं शोभा पाते ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तर:
विप्लव-रव से तात्पर्य है क्रांति की गर्जना। क्रांति से समाज के सामान्यजन को ही लाभ प्राप्त होता है। उससे सर्वहारा वर्ग का विकास होता है क्योंकि क्रांति शोषकों और पूँजीपतियों के विरुद्ध होती है। संसार में जहाँ कहीं क्रांति हुई है, वहाँ पूँजीपतियों का विनाश हुआ है और गरीब तथा अभावग्रस्त लोगों की आर्थिक हालत सुधरी है। इसलिए कवि ने इस भाव के लिए ‘छोटे ही हैं शोभा पाते’ शब्दों का प्रयोग किया है।

प्रश्न 4.
बादलों के आगमन से प्रकृति में होने वाले किन-किन परिवर्तनों को कविता रेखांकित करती है?
उत्तर:
बादलों के आगमन से प्रकृति में असंख्य परिवर्तन होते हैं। पहले तो तेज हवा चलने लगती है और बादल गरजने लगते हैं। इसके बाद मूसलाधार वर्षा होती है। ओलों की वर्षा अथवा बिजली गिरने से ऊँचे-ऊँचे पर्वतों की चोटियाँ क्षत-विक्षत हो जाती हैं, परंतु छोटे-से-छोटे पौधे वर्षा का पानी पाकर प्रसन्नता से खिल उठते हैं। इसी प्रकार कमलों से पानी की बूंदें झरने लगती हैं।

व्याख्या कीजिए

1. तिरती हैं समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुख की छाया
जग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया
उत्तर:
यहाँ कवि कहता है कि बादल वायु के रूप में सागर पर मंडराने लगते हैं। वे इस प्रकार उमड़-घुमड़कर सागर पर छा जाते हैं जैसे क्षणिक सखों पर दुखों की छाया मँडराने लगती है। पँजीपतियों के सख क्षणिक हैं. परंत दख की छाया स्थिर और लंबी होती है। इसलिए बादल रूपी क्रांति को देखकर पूँजीपतियों के अस्थिर सुखों पर दुख की छाया फैल जाती है। ये बादल संसार के दुखों से पीड़ित हृदय पर एक विनाशकारी क्रीड़ा करने जा रहे हैं। भाव यह है कि ये बादल संसार के शोषित और दुखी लोगों के दुखों को दूर करना चाहते हैं।

2. अट्टालिका नहीं है रे
आतंक-भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लावन
उत्तर:
यहाँ कवि कहता है कि हमारे समाज में पूँजीपतियों के जो ऊँचे-ऊँचे भवन हैं, वे अट्टालिकाएँ नहीं हैं बल्कि वे तो आतंक के भवन हैं। क्रांति रूपी बादलों को देखकर उन भवनों में भय और त्रास का निवास है। अर्थात् समाज के धनिक लोग क्रांति से डरते रहते हैं। कवि पुनः कहता है कि बादलों की विनाशलीला तो हमेशा कीचड़ में ही होती है। उसमें बाढ़ और विनाश के दृश्य देखे जा सकते हैं। भाव यह है कि समाज के गरीब और शोषित लोग ही क्रांति में खुलकर भाग लेते हैं।

कला की बात

प्रश्न 1.
पूरी कविता में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। आपको प्रकृति का कौन-सा मानवीय रूप पसंद आया और क्यों?
उत्तर:
संपूर्ण कविता में प्रकृति का सुंदर मानवीकरण किया गया है। कवि ने बादल को क्रांतिकारी वीर कहकर संबोधित किया है। मुझे बादल का वह रूप बहुत पसंद है जिसमें कवि उसे शोषित किसान की सहायता करने के लिए आह्वान करता है; जैसे
जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर!
चूस लिया है उसका सार,
हाड़-मात्र ही है आधार,
ऐ जीवन के पारावार!

प्रश्न 2.
कविता में रूपक अलंकार का प्रयोग कहाँ-कहाँ हुआ है? संबंधित वाक्यांश को छाँटकर लिखिए।
उत्तर:

  1. तिरती है समीर-सागर पर
  2. अस्थिर सुख पर दुख की छाया
  3. यह तेरी रण-तरी
  4. भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
  5. विप्लव के बादल
  6. जीवन के पारावार

प्रश्न 3.
इस कविता में बादल के लिए ऐ विप्लव के वीर!, ऐ जीवन के पारावार! जैसे संबोधनों का इस्तेमाल किया गया है। बादल राग कविता के शेष पाँच खंडों में भी कई संबोधनों का इस्तेमाल किया गया है। जैसे-अरे वर्ष के हर्ष!, मेरे पागल बादल!, ऐ निबंध!, ऐ स्वच्छंद!, ऐ उद्दाम!, ऐ सम्राट!, ऐ विप्लव के प्लावन!, ऐ अनंत के चंचल शिशु सुकुमार! उपर्युक्त संबोधनों की व्याख्या करें तथा बताएँ कि बादल के लिए इन संबोधनों का क्या औचित्य है? ।
उत्तर:
(i) अरे वर्ष के हर्ष-यहाँ कवि ने बादलों को साल भर की प्रसन्नता कहा है। यदि बादल अच्छी वर्षा करते हैं तो देश के लोगों को साल भर का पर्याप्त अनाज मिल जाता है और देश का व्यापार भी चलता रहता है।

(ii) मेरे पागल बादल-बादल को पागल कहने से उसकी मस्ती और उल्लास की ओर संकेत किया गया है।

(iii) ऐ निबंध-बादल किसी प्रकार के बंधन या बाधा को नहीं मानते। वे स्वच्छंदतापूर्वक आकाश में विचरण करते हैं। इसीलिए कवि ने बादल को ‘ऐ-स्वच्छंद’ तथा ‘ऐ-उद्दाम’ भी कहा है।

(iv) ऐ सम्राट कवि के अनुसार बादल एक राजा है जो सब पर राज करता है और सबको प्रभावित करता है।

(v) ऐ विप्लव के प्लावन-यहाँ कवि ने बादलों के भयंकर रूप की ओर संकेत किया है। जब बादल मूसलाधार वर्षा करते हैं तो वे अपने साथ विनाशकारी बाढ़ भी लाते हैं।

(vi) ऐ अनंत के चंचल शिशु सकुमार-यहाँ कवि ने बादल को सागर का चंचल एवं कोमल शावक कहा है क्योंकि बादलों को जन्म देने वाला सागर ही है। जब बादल उमड़ता-घुमड़ता हुआ आगे बढ़ता है तो उसमें शिशु जैसी चंचलता देखी जा सकती है।

प्रश्न 4.
कवि बादलों को किस रूप में देखता है? कालिदास ने मेघदूत काव्य में मेघों को दूत के रूप में देखा। आप अपना कोई काल्पनिक बिंब दीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी शिक्षक की सहायता से स्वयं करें। यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

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प्रश्न 5.
कविता को प्रभावी बनाने के लिए कवि विशेषणों का सायास प्रयोग करता है जैसे-अस्थिर सुख। सुख के साथ अस्थिर विशेषण के प्रयोग ने सुख के अर्थ में विशेष प्रभाव पैदा कर दिया है। ऐसे अन्य विशेषणों को कविता से छाँटकर खें तथा बताएं कि ऐसे शब्द-पदों के प्रयोग से कविता के अर्थ में क्या विशेष प्रभाव पैदा हुआ है?
उत्तर:
दग्ध हृदय-कवि ने हृदय के साथ ‘दग्ध’ विशेषण का प्रयोग किया है। इससे शोषित व्यक्ति के मन का संताप व्यक्त होता है। इस शब्द के द्वारा शोषण के फलस्वरूप गरीबों द्वारा झेली गई यातनाएँ सामने आ जाती हैं।

निर्दय विप्लव – यहाँ विप्लव अर्थात् विनाश के साथ निर्दय विशेषण का प्रयोग किया गया है जिससे पता चलता है कि विनाश और अधिक क्रूर हो गया है।

पुप्त अंकर – यहाँ कवि ने अंकुर के साथ सुप्त विशेषण का प्रयोग किया है। जो इस बात का द्योतन करता है कि अंकुर मिट्टी में दबे हुए हैं और वर्षा के बाद फूटकर बाहर आ जाते हैं।

घोर वज्र हुंकार – यहाँ कवि ने हुंकार शब्द के साथ घोर तथा वज्र दो विशेषणों का प्रयोग किया है। इससे यह पता चलता है कि बादल रूपी क्रांति की गर्जना बड़ी भयानक और क्रूर होती है।

क्षत-विक्षत-हत अचल-शरीर – यहाँ कवि ने शरीर के साथ क्षत-विक्षत और हत विशेषणों का प्रयोग किया है। जिससे उनकी दुर्दशा का पता चलता है।

प्रफुल्ल जलज – कमल के साथ प्रफुल्ल विशेषण का प्रयोग करने से कमल रूपी पूँजीपति की प्रसन्नता व्यक्त होती है।

रुद्ध कोष – कोष के साथ रुद्ध विशेषण का प्रयोग करने से यह पता चलता है कि पूँजीपतियों के खजाने भरे हुए हैं और उनके पास अपार धन है।

HBSE 12th Class Hindi बादल राग Important Questions and Answers

सराहना संबंधी प्रश्न

प्रश्न-
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए-
1. हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार-
शस्य अपार,
हिल-हिल
खिल-खिल
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते
विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।
उत्तर:

  1. इन काव्य-पंक्तियों में कवि ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि जिस प्रकार वर्षा से छोटे-छोटे पौधे लाभान्वित होकर हँसते और खिलते हैं, उसी प्रकार क्रांति होने से समाज के शोषित और सर्वहारा वर्ग को लाभ प्राप्त होता है और वे यह सोचकर प्रसन्न होते हैं कि अब उनके शोषण का अंत हो जाएगा।
  2. यहाँ कवि ने प्रकृति का सुंदर मानवीकरण किया है।
  3. हाथ हिलाना, बुलाना आदि में गतिशील बिंब है।
  4. पूरे पद में अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों का सुंदर एवं स्वाभाविक प्रयोग हुआ है।
  5. सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है।
  6. शब्द-चयन सर्वथा उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. संपूर्ण पद में मुक्त छंद का सफल प्रयोग देखा जा सकता है।

2. रुद्ध कोष है, क्षुब्ध तोष
अंगना-अंग से लिपटे भी
आतंक अंक पर काँप रहे हैं।
धनी, वज्र-गर्जन से बादल!
उत्तर:

  1. यहाँ कवि स्पष्ट करता है कि समाज के पूँजीपतियों का खजाना भरा हुआ है, लेकिन फिर भी वे सदा असंतुष्ट रहते हैं।
  2. बादल रूपी क्रांति के कारण पूँजीपति अपनी पत्नी से लिपटे हुए भी डर के मारे काँपते रहते हैं।
  3. यहाँ बादल क्रांति का प्रतीक है।
  4. यह पद्यांश प्रगतिवाद का सूचक है। जोकि पूँजीपतियों पर करारा व्यंग्य करते हैं।
  5. ‘अंगना-अंग’ तथा ‘आतंक-अंक’ में अनुप्रास तथा स्वर मैत्री की छटा दर्शनीय है।
  6. सहज एवं सरल साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  7. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  8. संपूर्ण पद में मुक्त छंद का सफल प्रयोग देखा जा सकता है।

3. अट्टालिका नहीं है रे
आतंक-भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लावन,
क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से
सदा छलकता नीर,
उत्तर:

  1. यहाँ कवि यह स्पष्ट करता है कि समाज के ऊँचे-ऊँचे भवन, जहाँ पूँजीपति रहते हैं, उनमें भय और त्रास का निवास है, क्योंकि अमीर लोग सदा क्रांति से भयभीत रहते हैं।
  2. ‘क्षुद्र प्रफुल्ल जलज’ शोषित वर्ग का प्रतीक है।
  3. प्रतीकात्मक भाषा के प्रयोग के कारण भावाभिव्यक्ति बड़ी प्रभावशाली बन पड़ी है।
  4. अनुप्रास तथा पद मैत्री अलंकारों का सफल प्रयोग हुआ है।
  5. ‘अट्टालिका नहीं है रे आतंक भवन’ में अपहृति अलंकार है।
  6. सहज एवं सरल साहित्यिक हिंदी भाषा है तथा शब्द-चयन सर्वथा सटीक है।
  7. मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 7 बादल राग

4. घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
उर में पृथ्वी के, आशाओं से
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल!
उत्तर:

  1. यहाँ कवि ने बादलों को क्रांति का प्रतीक तथा शोषित वर्ग की आशा का केंद्र सिद्ध किया है।
  2. पृथ्वी के गर्भ में छिपे बीज शोषित वर्ग का प्रतीक हैं जो क्रांति की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
  3. संपूर्ण पद्य में बादल का मानवीकरण किया गया है।
  4. अनुप्रास तथा रूपक अलंकारों का सफल प्रयोग है।
  5. ‘सिर ऊँचा करना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग है।
  6. तत्सम् प्रधान संस्कृतनिष्ठ हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है।
  7. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  8. संबोधन शैली है तथा मुक्त छंद का प्रयोग किया गया है।

5. बार-बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार,
हृदय थाम लेता संसार,
सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।
उत्तर:

  1. यहाँ कवि ने बादल को क्रांति का प्रतीक मानते हुए उसकी भयानकता का प्रभावशाली वर्णन किया है।
  2. मूसलाधार वर्षा का होना क्रांति की तीव्रता को व्यंजित करता है।
  3. ‘बार-बार’, ‘सुन-सुन’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  4. तत्सम् प्रधान साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है तथा शब्द-चयन उचित और भावानुकूल है।
  5. ओजगुण का समावेश किया गया है तथा मुक्त छंद है।

विषय-वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘बादल राग’ कविता का प्रतिपाद्य/मूलभाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
बादल राग’ निराला जी की एक ओजस्वी कविता है, जिसमें कवि ने बादल को क्रांति का प्रतीक माना है। कवि शोषित वर्ग के कल्याण के लिए बादल का आह्वान करता है। क्रांति के प्रतीक बादलों को देखकर समाज का शोषक वर्ग भयभीत हो जाता है। लेकिन शोषित और सर्वहारा वर्ग उसे आशाभरी दृष्टि से देखता है। कवि स्पष्ट करता है कि क्रांति से समाज के धनिक वर्ग को हानि पहुँचती है, परंतु शोषित वर्ग को इससे लाभ होता है। समाज में शोषितों को उनका अधिकार दिलाने के लिए क्रांति नितांत आवश्यक है। प्रस्तुत कविता का मुख्य उद्देश्य देश में व्याप्त सामाजिक और आर्थिक वैषम्य का चित्रण करना है। कवि का विचार है कि इस विषमता को दूर करने के लिए क्रांति ही एकमात्र उपाय है। समाज का शोषित और पीड़ित वर्ग क्रांति की कामना करता है क्योंकि वह आर्थिक स्वतंत्रता और अपनी दशा में सुधार चाहता है।

प्रश्न 2.
विप्लवी बादल की रण-तरी की क्या-क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
विप्लवी बादल की रण-तरी अर्थात् युद्ध की नौका समीर-सागर पर तैरती है। वह असंख्य आकांक्षाओं से भरी हुई है और भेरी-गर्जन से सावधान है। कवि अपनी बात को स्पष्ट करता हुआ कहता है कि क्रांतिकारी बादल की युद्ध रूपी नौका पवन सागर पर ऐसे तैरती है जैसे जीवन के क्षणिक सुखों पर दुखों की छाया मँडराती रहती है। यह युद्ध रूपी नौका नगाड़ों की गर्जना के कारण अत्यधिक सजग है और क्रांति उत्पन्न करने के लिए निरंतर आगे बढ़ रही है। जिस प्रकार युद्ध की नौका में युद्ध का सामान भरा रहता है, उसी प्रकार क्रांतिकारी बादल रूपी इस युद्ध नौका में समाज के सर्वहारा वर्ग की इच्छाएँ और आकांक्षाएँ भरी हुई हैं। क्रांतिकारी बादल की युद्ध नौका को देखकर जहाँ शोषक वर्ग भयभीत हो जाता है, वहाँ शोषित वर्ग प्रसन्न हो उठता है।

प्रश्न 3.
सुप्त अंकुर किसकी ओर ताक रहे हैं और क्यों? सुप्त अंकुरों का प्रतीकार्थ क्या है?
उत्तर:
पृथ्वी के गर्भ में सोये हए अंकर लगातार बादलों की ओर ताकते रहते हैं। वे यह सोचकर आशावान बने हुए हैं कि अच्छी वर्षा होने से वे धरती में से फूटकर बाहर निकल आएँगे और उनके जीवन का विकास होगा। यहाँ सुप्त अंकुर समाज के पीड़ित और शोषित वर्ग का प्रतीक हैं जो सुख-समृद्धि और विकास के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ सका। उनके मन में यह आशा है कि क्रांति होने से उनको उन्नति प्राप्त करने का अवसर मिलेगा क्योंकि क्रांति से पूँजीवाद वर्ग का विनाश होगा और सर्वहारा वर्ग का कल्याण होगा।

प्रश्न 4.
‘बादल राग’ कविता में अट्टालिका को आतंक-भवन क्यों कहा गया है?
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में अट्टालिका को आतंक का भवन इसलिए कहा गया है क्योंकि उसमें समाज का पूँजीपति वर्ग रहता है। समाज के शोषक और अमीर लोग हमेशा ऊँचे-ऊँचे भवनों और महलों में रहते हैं और जीवन की सुख-सुविधाओं को भोगते हैं परंतु इस पूँजीपति वर्ग को क्रांति का भय लगा रहता है। यदि अट्टालिकाएँ हमेशा सुरक्षित बनी रहें तो शोषक वर्ग हमेशा सुख-सुविधाओं को भोगता रहेगा और प्रसन्न रहेगा, परंतु अमीर और गरीब में जब बहुत बड़ी खाई बन जाती है तो गरीब क्रांति का आह्वान करता है। यही कारण है कि अपनी सुरक्षित अट्टालिकाओं में रहने वाला पूँजीपति क्रांति के परिणामों के फलस्वरूप हमेशा भयभीत रहता है। वह जानता है कि उसने शोषण और बेईमानी से सर्वहारा वर्ग का खून चूसा है। अतः यदि शोषित वर्ग क्रांति का मार्ग अपनाता है तो सर्वप्रथम पूँजीपतियों की धन-संपत्ति बलपूर्वक लूट ली जाएगी और उनके ऊँचे-ऊँचे भवन नष्ट-भ्रष्ट कर दिए जाएंगे। इसलिए कवि ने ऊँचे-ऊँचे भवनों को अट्टालिका न कहकर आतंक भवन की संज्ञा दी है।

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प्रश्न 5.
‘बादल राग’ में निहित क्रांति की भावना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कविवर ‘निराला’ की ‘बादल राग’ कविता में उनकी समाज में हो रहे कृषक-शोषण के विरुद्ध क्रांति की भावना अभिव्यक्त हुई है। कृषक शोषण से पीड़ित होने के कारण अधीर होकर विप्लव (क्रांति) के बादल को बुला रहा है। जिस प्रकार बादल जल-प्लावन लाकर पृथ्वी के गर्भ में छिपे हुए बीजों को अंकुरित कर देते हैं उसी प्रकार क्रांति भी समाज में गरीबों तथा कृषकों का शोषण करने वाली व्यवस्था का विनाश कर देती है। जैसे बादल वर्षा द्वारा पौधों में पुनः जीवन का विकास कर देता है; वैसे ही क्रांति से शोषक वर्ग का विनाश हो जाता है और गरीब व कृषक वर्ग को फलने-फूलने का अवसर मिलता है। इसलिए निराला जी ने अपनी इस कविता द्वारा क्रांति का आह्वान किया है।

प्रश्न 6.
विप्लव के बादल की घोर-गर्जना का धनी वर्ग पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
विप्लव के बादल की घोर गर्जना को सुनकर समाज का अमीर और शोषक वर्ग आतंक से काँपने लगता है। वह त्रस्त होकर अपना मुँह ढक लेता है और आँखें बंद कर लेता है। वह भली प्रकार से जानता है कि उसने अपना शोषण चक्र चलाकर गरीबों और मजदूरों का खून चूस कर धन का संग्रह किया है। अतः यह क्रांति उसके लिए विनाशकारी हो सकती है, परंतु वह सोचता है कि क्रांति की अनदेखी करने से वह इसके दुष्प्रभाव से बच जाएगा। विप्लव के बादलों की घोर गर्जना और वज्रपात से पर्वतों की चोटियाँ तक गिर जाती हैं। इसी प्रकार क्रांति का बिगुल बजने से पूँजीपति वर्ग भी त्रस्त और भयभीत हो जाता है और वह इससे बचने का भरसक प्रयास करता है।

प्रश्न 7.
‘बादल राग’ कविता के आधार पर निराला की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भाषा-शैली की दृष्टि से ‘बादल राग’ निराला जी की एक प्रतिनिधि कविता कही जा सकती है। इसमें कवि ने तत्सम प्रधान संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग किया है। आदि से अंत तक इस कविता की भाषा में ओज गुण का समावेश किया गया है। समस्त पदों, संयुक्त व्यंजनों तथा कठोर वर्गों के कारण ओज गुण का सुंदर निर्वाह देखा जा सकता है। कवि द्वारा किया गया शब्द-चयन भावाभिव्यक्ति में पूर्णतया सफल हुआ है। एक उदाहरण देखिए-
अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर,
क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पर्धा धीर
शब्दों की ध्वनि तथा उनका नाद सौंदर्य भी अभिव्यंजना में काफी सहायक सिद्ध हुआ है। शब्द अपनी ध्वनि से शब्द-चित्र प्रस्तुत कर देते हैं। उदाहरण के रूप में हिल-हिल, खिल-खिल शब्दों के जोड़े अपनी ध्वनि द्वारा लहलहाती हुई फसल का बिंब प्रस्तुत करते हैं।

संपूर्ण कविता अपने बिंबों, चित्रों तथा प्रतीकों के लिए प्रसिद्ध है। वर्षा का बिंब, वज्र से आहत क्षत-विक्षत पर्वत का बिंब तथा हँसते हुए सुकुमार पौधों का बिंब सभी इस कविता की काव्य भाषा को आकर्षक बनाते हैं। यहाँ बादल यदि क्रांति का प्रतीक है तो पंक शोषित वर्ग का और जलज पूँजीपति वर्ग का प्रतीक है। इसी प्रकार मुहावरों के प्रयोग से इस कविता की भाषा में अर्थ गम्भीर्य बढ़ गया है। भले ही इस कविता में मुक्त छंद का प्रयोग किया गया है, परंतु सर्वत्र लयात्मकता भी देखी जा सकती है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘निराला’ का जन्म बंगाल की किस रियासत में हुआ?
(A) महिषादल
(B) सुंदरवन
(C) कोलकाता
(D) पटना
उत्तर:
(A) महिषादल

2. ‘निराला’ का जन्म कब हुआ?
(A) सन् 1888 ई० में
(B) सन् 1890 ई० में
(C) सन् 1899 ई० में
(D) सन् 1886 ई० में
उत्तर:
(C) सन् 1899 ई०

3. ‘निराला’ के पिता का क्या नाम था?
(A) रामदास त्रिपाठी
(B) राम सहाय त्रिपाठी
(C) राम लाल त्रिपाठी
(D) राम किशोर त्रिपाठी
उत्तर:
(B) राम सहाय त्रिपाठी

4. ‘निराला’ का विवाह किस आयु में हुआ?
(A) 15 वर्ष की आयु में
(B) 16 वर्ष की आयु में
(C) 17 वर्ष की आयु में
(D) 13 वर्ष की आयु में
उत्तर:
(D) 13 वर्ष की आयु में

5. ‘निराला’ की पत्नी का क्या नाम था?
(A) सुंदरी देवी
(B) गीता देवी
(C) मनोहर देवी
(D) लक्ष्मी देवी
उत्तर:
(C) मनोहर देवी

6. महावीर प्रसाद द्विवेदी ने निराला की किस कविता को लौटा दिया था?
(A) परिमल
(B) जूही की कली
(C) बादल राग
(D) ध्वनि
उत्तर:
(B) जूही की कली

7. ‘निराला’ का निधन किस वर्ष हुआ?
(A) सन् 1961 में
(B) सन् 1962 में
(C) सन् 1963 में
(D) सन् 1964 में
उत्तर:
(A) सन् 1961 में

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8. ‘निराला’ ने सन् 1933 में किस पत्रिका का संपादन किया?
(A) नवनीत
(B) मतवाला
(C) निराला
(D) बाला
उत्तर:
(B) मतवाला

9. ‘निराला’ की बेटी का क्या नाम था?
(A) सरला
(B) नीलम
(C) मनोज
(D) सरोज
उत्तर:
(D) सरोज

10. ‘बादल राग’ कविता के रचयिता का नाम क्या है?
(A) तुलसीदास
(B) जयशंकर प्रसाद
(C) सुमित्रानंदन पंत
(D) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
उत्तर:
(D) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

11. सरोज के निधन के बाद निराला ने बेटी के शोक में कौन-सा गीत लिखा?
(A) सरोज स्मृति
(B) आराधना
(C) अर्चना
(D) अणिमा
उत्तर:
(A) सरोज स्मृति

12. ‘राम की शक्ति पूजा’ के रचयिता का क्या नाम है?
(A) जयशंकर प्रसाद
(B) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
(C) महादेवी वर्मा
(D) राम कुमार वर्मा
उत्तर:
(B) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

13. ‘निराला’ ने किस छंद में रचनाएँ लिखीं?
(A) दोहा छंद
(B) चौपाई छंद
(C) मुक्त छंद
(D) सोरठा छंद
उत्तर:
(C) मुक्त छंद

14. ‘तुलसीदास’ के रचयिता का क्या नाम है?
(A) तुलसीदास
(B) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
(C) सूरदास
(D) कबीरदास
उत्तर:
(B) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

15. ‘बादल राग’ में बादल किसका प्रतीक है?
(A) शांति का
(B) क्रांति का
(C) प्रेम का
(D) सुख का
उत्तर:
(B) क्रांति का

16. ‘रुद्ध कोष है, क्षुब्ध तोष’-यहाँ रुद्ध का अर्थ है-
(A) क्रोधित
(B) रुका हुआ
(C) भरा हुआ
(D) खाली
उत्तर:
(B) रुका हुआ

17. ‘बादल राग’ कविता में बादल क्रांति के क्या हैं?
(A) वाहन
(B) दूत
(C) पोषक
(D) शोषक
उत्तर:
(B) दूत

18. प्रस्तुत कविता में ‘रण-तरी’ किससे भरी हुई है?
(A) धन
(B) आकांक्षाओं से
(C) नवजीवन
(D) गर्जन
उत्तर:
(B) आकांक्षाओं से

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 7 बादल राग

19. शैशव का सुकुमार शरीर किसमें हँसता है?
(A) वर्षा
(B) घायलावस्था
(C) रोग-शोक
(D) गर्मी
उत्तर:
(C) रोग-शोक

20. ‘बादल राग’ कविता में क्रांति संसार में किसकी सृष्टि करती है?
(A) दुख और अशांति की
(B) सुख और शांति की
(C) सुख और अशांति की
(D) दुख और शांति की
उत्तर:
(B) सुख और शांति की

21. ‘रोग-शोक’ में भी किसका सकुमार शरीर हँसता है?
(A) यौवन
(B) शैशव
(C) धनी
(D) कृषक
उत्तर:
(B) शैशव

22. किसान का सार किसने चूस लिया है?
(A) सरकार ने
(B) नेता ने
(C) पत्नी और बच्चों ने
(D) पूँजीपति ने
उत्तर:
(D) पूँजीपति ने

23. ‘बादल राग’ कविता के अनुसार जल-विप्लव-प्लावन हमेशा किस पर होता है?
(A) वायु पर
(B) नभ पर
(C) जमीन पर
(D) कीचड़ पर
उत्तर:
(D) कीचड़ पर

24. ‘शीर्ण शरीर’ किसे कहा गया है?
(A) बालक को
(B) महिला को
(C) सैनिक को
(D) किसान को
उत्तर:
(D) किसान को

25. क्रांति का सबसे अधिक लाभ किस वर्ग को मिलता है?
(A) निम्न वर्ग
(B) धनी वर्ग
(C) पूँजीपति वर्ग
(D) सत्ताधारी वर्ग
उत्तर:
(A) निम्न वर्ग

26. ‘गगन स्पर्शी’, ‘स्पर्द्धा धीर’ किसे कहा गया है?
(A) वृक्षों को
(B) पर्वतों को
(C) बादलों को
(D) बिजली को
उत्तर:
(C) बादलों को

27. ‘बादल राग’ कविता में कवि ने सुखों को कैसा बताया है?
(A) चेतन
(B) जड़
(C) स्थिर
(D) अस्थिर
उत्तर:
(D) अस्थिर

28. ‘निराला’ ने अट्टालिकाओं को क्या कहा है?
(A) अजायबघर
(B) चिकित्सालय
(C) आतंक-भवन
(D) योग-भवन
उत्तर:
(C) आतंक-भवन

29. निराला ने ‘जीर्ण बाहु’ किसे कहा है?
(A) रोगी को
(B) वृद्ध को
(C) कृषक को
(D) बालक को
उत्तर:
(C) कृषक को

30. ‘विप्लव’ शब्द का अर्थ क्या है?
(A) क्षान्ति
(B) शान्ति
(C) भ्रान्ति
(D) क्रान्ति
उत्तर:
(D) क्रान्ति

31. क्रांति के बादलों की गर्जना सुनकर कौन-सा वर्ग भयभीत होता है?
(A) कृषक वर्ग
(B) श्रमिक वर्ग
(C) निम्न वर्ग
(D) पूँजीपति वर्ग
उत्तर:
(D) पूँजीपति वर्ग

बादल राग पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] तिरती है समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुख की छाया
जग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया
यह तेरी रण-तरी
भरी आकांक्षाओं से,
घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
उर में पृथ्वी के, आशाओं से
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल!
फिर-फिर [पृष्ठ-41]

शब्दार्थ-सागर = समद्र। अस्थिर = अस्थायी। जग = संसार। दग्ध = दखी। निर्दय = क्रर। प्लावित = पानी से भरा हुआ। माया = खेल, क्रीड़ा। रण-तरी = युद्ध की नौका। आकांक्षा = इच्छा, कामना। भेरी-गर्जन = युद्ध में बजने वाले नगाड़ों की आवाज़। अंकुर = बीज। उर = हृदय, मन। नवजीवन = नया उत्साह । ताकना = अपेक्षा से निरंतर देखना।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘बादल राग’ से लिया गया है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। यहाँ कवि ने बादलों को विप्लवकारी योद्धा के रूप में चित्रित किया है।

व्याख्या कवि कहता है कि बादल वायु के रूप में समुद्र पर मंडरा रहे हैं। वे इस प्रकार उमड़-घुमड़कर सागर पर छाए हुए हैं जैसे क्षणिक सुखों पर दुखों की छाया मंडराती रहती है। ये बादल संसार के दुखों से पीड़ित हृदय पर एक क्रूर विनाशकारी क्रीड़ा करने जा रहे हैं। भाव यह है कि ये संसार के प्राणी शोषण तथा अभाव के कारण अत्यधिक दुखी हैं। बादल क्रांति का दूत बनकर उन दुःखों को नष्ट करना चाहते हैं।

कवि बादल को संबोधित करता हुआ कहता है हे विनाशकारी बादल! तुम्हारी यह युद्ध रूपी नौका असंख्य संभावनाओं से भरी हुई है। तुम अपनी गर्जना तर्जना के द्वारा क्रांति उत्पन्न कर सकते हो और विनाश भी कर सकते हो परंतु तुम्हारी गर्जना के नगाड़े सुनकर पृथ्वी के गर्भ में छिपे हुए अंकुर नवजीवन की आशा लिए हुए सिर उठाकर तुम्हारी ओर बार-बार देख रहे हैं। कवि कहता है कि हे विनाश के बादल! तुम्हारी क्रांतिकारी वर्षा ही पृथ्वी में दबे हुए अंकुरों को नया जीवन दे सकती है अतः तुम बार-बार गर्जना करके वर्षा करो। इस पद्य से यह अर्थ भी निकलता है कि क्रांति से ही समाज के शोषितों, पीड़ितों तथा दलितों का उद्धार हो सकता है और पूँजीपतियों का विनाश हो सकता है। अतः सामाजिक और आर्थिक विषमता को दूर करने के लिए क्रांति अनिवार्य है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने बादलों को विप्लवकारी योद्धा के रूप में चित्रित किया है।
  2. कविता का मूल स्वर प्रगतिवादी है।
  3. छायावादी कविता होने के कारण इस कविता में लाक्षणिक पदावली का अत्यधिक प्रयोग हुआ है।
  4. ‘समीर-सागर’, ‘रण-तरी’, ‘विप्लव के बादल’ तथा ‘दुःख की छाया’ में रूपक अलंकार का सुंदर प्रयोग हुआ है।
  5. अन्यत्र अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों का भी सफल प्रयोग हुआ है।
  6. संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग किया गया है।
  7. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  8. अंकुरों द्वारा सिर ऊँचा करके बादलों की ओर ताकने में दृश्य-बिंब की सुंदर योजना देखी जा सकती है।
  9. मुक्त छंद का सफल प्रयोग किया गया है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 7 बादल राग

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) अस्थिर सुख पर दुःख की छाया से कवि का क्या अभिप्राय है?
(ग) ‘जग के दग्ध हृदय’ का प्रयोग किस अर्थ में किया गया है?
(घ) बादल निर्दय विप्लव की रचना क्यों कर रहे हैं?
(ङ) घन भेरी की गर्जना सुनकर सोये हुए अंकुरों पर क्या प्रतिक्रिया हुई है?
(च) पृथ्वी के गर्भ में सोये हुए अंकुर ऊँचा सिर करके क्यों ताक रहे हैं?
उत्तर:
(क) कवि-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’। कविता-बादल राग

(ख) वायु अस्थिर है और बादल घने हैं। इसी प्रकार सुख भी अस्थिर होते हैं परंतु दुःख स्थायी होते हैं। इसलिए कवि यह कहना चाहता है कि अस्थायी सुखों पर अनंत दुःखों की काली छाया मंडराती रहती है।

(ग) कवि का यह कहना है कि संसार के शोषित और गरीब लोग अभाव तथा शोषण के कारण दुखी और पीड़ित हैं। वे करुणा का जल चाहते हैं। इसलिए कवि ने बादल रूपी क्रांति से वर्षा करने की प्रार्थना की है।

(घ) बादल क्रांति का प्रतीक हैं। वह लोगों के निर्मम शोषण को देखकर ही विप्लव की रचना कर रहा है।

(ङ) बादलों की घनी गर्जना सुनकर पृथ्वी के गर्भ में अंकुर नवजीवन की आशा से जाग उठे हैं। वे पानी की आकांक्षा के कारण सिर ऊँचा करके बादलों को देख रहे हैं।

(च) पृथ्वी के गर्भ में सोये हुए अंकुर ऊँचा सिर करके इसलिए ताक रहे हैं क्योंकि उन्हें यह आशा है कि बादलों रूपी क्रांति के कारण उन्हें सुखद तथा नवीन जीवन की प्राप्ति होगी तथा उनके सारे कष्ट दूर हो जाएंगे।

[2] बार-बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार,
हृदय थाम लेता संसार,
सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।
अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर,
क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पर्धा धीर।
हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार
शस्य अपार,
हिल-हिल
खिल-खिल,
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते,
विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते। [पृष्ठ-41]

शब्दार्थ-गर्जन = गरजना। मूसलधार = मोटी-मोटी बारिश। हृदय थामना = डर जाना। घोर = घना, भयंकर। वज्र-हुंकार = वज्रपात के समान भीषण आवाज़। अशनि-पात = बिजली का गिरना। उन्नत = बड़ा, विशाल। शत-शत = सैकड़ों। क्षत-विक्षत = घायल। हत = मरा हुआ। अचल = पर्वत। गगन-स्पर्शी = आकाश को छूने वाला। स्पर्द्धा धीर = आगे बढ़ने की होड़ करने के लिए बेचैन। लघुभार = हल्के। शस्य = हरियाली। अपार = बहुत अधिक। विप्लव = क्रांति, विनाश। रख = शोर।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘बादल राग’ से लिया गया है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी हैं। प्रस्तुत कविता में कवि ने बादलों के माध्यम से क्रांति का आह्वान किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि हे बादल! तुम्हारे बार-बार गर्जने तथा मूसलाधार वर्षा करने से सारा संसार डर के कारण अपना कलेजा थाम लेता है क्योंकि तुम्हारी भयंकर गर्जन और वज्र जैसी घनघोर आवाज़ को सुनकर लोग काँप उठते हैं। सभी को तुम्हारी विनाश-लीला का डर लगा रहता है। भाव यह है कि क्रांति का स्वर सुनकर लोग आतंकित हो उठते हैं। कवि पुनः कहता है कि बादलों के भयंकर वज्रपात से उन्नति की चोटी पर पहुँचे हुए सैकड़ों योद्धा अर्थात् पूँजीपति भी पराजित होकर धूलि चाटने लगते हैं। आकाश को छूने की होड़ लगाने वाले ऊँचे-ऊँचे स्थिर पर्वत भी बादलों के भयंकर वज्रपात से घायल होकर खंड-खंड हो जाते हैं। अर्थात् जो पर्वत अपनी ऊँचाई के द्वारा आकाश से स्पर्धा करते हैं वे भी बादलों की बिजली गिरने से खंड-खंड होकर नष्ट हो जाते हैं। जो लोग जितने ऊँचे होते हैं उतने ही वे विनाश के शिकार बनते हैं। परंतु बादलों की इस विनाश-लीला में छोटे-छोटे पौधे हँसते हैं और मुस्कराते हैं, क्योंकि विनाश से उन्हें जीवन मिलता है। वे हरे-भरे होकर लहलहाने लगते हैं। वे छोटे-छोटे पौधे खिलखिलाते हुए और अपने हाथ हिलाते हुए तुम्हें निमंत्रण देते हैं। तुम्हारे आने से उन्हें एक नया जीवन मिलता है। हे बादल! क्रांति के विनाश से हमेशा छोटे तथा गरीब लोगों को ही लाभ होता है।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने बादल को क्रांति का प्रतीक सिद्ध किया है और उन्हें ‘विप्लव के वीर’ की संज्ञा दी है।
  2. कवि ने प्रतीकात्मक शब्दावली अपनाते हुए क्रांति की भीषणता की ओर संकेत किया है। ‘गर्जन’, ‘वज्र-हुंकार’, ‘छोटे-पौधे’ ‘अचल’ आदि सभी प्रतीक हैं।
  3. संपूर्ण पद में मानवीकरण अलंकार का सफल प्रयोग किया गया है तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  4. ‘हाथ हिलाते तुझे बुलाते’ गतिशील बिंब है।
  5. यहाँ कवि ने संस्कृतनिष्ठ शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है।
  6. शब्द-चयन उचित और भावानुकूल है।
  7. ओज गुण है तथा मुक्त छंद का प्रयोग किया गया है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) क्या आप बादल को क्रांति का प्रतीक मानते हैं?
(ख) बादलों की मूसलाधार वर्षा से सृष्टि पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(ग) बादलों के अशनि-पात से किसे हानि होती है और क्यों?
(घ) छोटे पौधे किसके प्रतीक हैं और वे क्यों हँसते हैं?
(ङ) कवि ने गगन-स्पर्शी स्पर्द्धा धीर किसे कहा है और क्यों?
उत्तर:
(क) निश्चित ही बादल क्रांति के प्रतीक हैं। कवि ने बादलों के क्रांतिकारी रूप को स्पष्ट करने के लिए उन्हें ‘विप्लव के वीर’ कहा है। जिस प्रकार क्रांति होने पर चारों ओर गर्जन-तर्जन और विनाश होता है उसी प्रकार विप्लवकारी बादल भी मूसलाधार वर्षा तथा अशनिपात से विनाश की लीला रचते हैं।

(ख) बादलों की मूसलाधार वर्षा से संसार के लोग घबरा जाते हैं और डर के मारे अपना हृदय थाम लेते हैं। बादलों की घोर वज्र हुंकार लोगों में भय उत्पन्न करती है।

(ग) बादलों के अशनि-पात अर्थात् बिजली गिरने से विशाल आकार के ऊँचे-ऊँचे पर्वतों को हानि होती है। निरंतर वर्षा होने से और ओले पड़ने से ये पर्वत क्षत-विक्षत हो जाते हैं।

(घ) छोटे पौधे शोषित तथा अभावग्रस्त लोगों के प्रतीक हैं। बादल रूपी क्रांति से शोषितों को ही लाभ पहुँचता है। पुनः वर्षा का जल पाकर गरीब किसान और मजदूर प्रसन्न हो जाते हैं क्योंकि इससे उन्हें एक नया जीवन मिलता है।

(ङ) कवि ने गगन-स्पर्शी स्पर्धा धीर शब्दों का प्रयोग पूँजीपतियों के लिए किया है। क्योंकि वे अपने धन-वैभव के कारण समाज में ऊँचा स्थान पा चुके हैं। उनके ऊँचे-ऊँचे भवन आकाश को स्पर्श करने में होड़ लगा रहे हैं। धन-वैभव को लेकर उनमें होड़ मची हुई है।

[3] अट्टालिका नहीं है रे
आतंक-भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लावन,
क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से
सदा छलकता नीर,
रोग-शोक में भी हँसता है
शैशव का सुकुमार शरीर।
रुद्ध कोष है, क्षुब्ध तोष
अंगना-अंग से लिपटे भी
आतंक अंक पर काँप रहे हैं।
धनी, वज्र-गर्जन से बादल!
त्रस्त नयन-मुख ढाँप रहे हैं। [पृष्ठ-42-43]

शब्दार्थ-अट्टालिका = महल। आतंक-भवन = भय का निवास। पंक = कीचड़। प्लावन = बढ़ा। क्षुद्र = तुच्छ। रुद्ध = रुका हुआ। कोष = खजाना। अंगना = पत्नी। अंक = गोद। वज्र-गर्जन = वज्र के समान गर्जना। त्रस्त = डरा हुआ। नयन = नेत्र, आँख।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘बादल राग’ से लिया गया है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। यहाँ कवि ने अट्टालिकाओं को आतंक भवन कहा है क्योंकि उनमें रहने वाले अमीर लोग गरीबों का खून चूसकर धन पर कुंडली मारे बैठे हैं। ऐसे लोग ही क्रांति के स्वर से डरते हैं।

व्याख्या कवि कहता है कि हमारे समाज में जो ऊँचे-ऊँचे भवन हैं, ये अट्टालिकाएँ नहीं हैं, बल्कि इनमें तो भय और त्रास का निवास है। इनमें रहने वाले अमीर लोग हमेशा क्रांति से आतंकित रहते हैं। बादलों की विनाश लीला तो हमेशा कीचड़ में ही होती है। उसी में बाढ़ और विनाश के दृश्य देखे जा सकते हैं। कवि के कहने का भाव है कि समाज के गरीब और शोषित लोग ही क्रांति करते हैं। अमीर लोग तो हमेशा भय के कारण डरे रहते हैं। गरीब लोगों को क्रांति से कोई फर्क नहीं पड़ता। कवि कहता है कि पानी में खिले हुए छोटे-छोटे कमलों से हमेशा पानी रूपी आँसू टपकते रहते हैं। यहाँ कमल पूँजीपतियों के प्रतीक हैं जो विप्लव से हमेशा डरते रहते हैं, परंतु समाज का गरीब वर्ग सुकुमार बच्चों के समान है जो रोग और शोक में भी हमेशा हँसता और मुस्कुराता रहता है। अतः क्रांति होने से उन्हें आनंद की प्राप्ति होती है।

परंतु पूँजीपति लोगों ने अपने खजाने को धन से परिपूर्ण करके उसे सुरक्षित रखा हुआ है। जिससे गरीब लोगों का संतोष उबलने को तैयार है। यही कारण है कि अमीर लोग हमेशा आतंकित रहते हैं और वे क्रांति रूपी बादल की गर्जना को सुनकर अपनी सुंदर स्त्रियों के अंगों से लिपटे हुए हैं लेकिन आतंक की गोद में वे काँप रहे हैं। बादलों की भयंकर गर्जना को सुनकर वे अपनी आँखें बंद किए हुए हैं और मुँह को छिपाए हुए हैं। भाव यह है कि क्रांति से पूँजीपति लोग ही डरते हैं, गरीब लोग नहीं डरते।

विशेष-

  1. इस पद में कवि ने समाज के शोषकों के प्रति अपनी घृणा को व्यक्त किया है और शोषितों के प्रति सहानुभूति दिखाई है।
  2. यहाँ कवि क्रांति के प्रभाव को दिखाने में सफल रहा है।
  3. संपूर्ण पद में प्रतीकात्मक शब्दावली का खुलकर प्रयोग किया गया है; जैसे ‘पंक’ निम्न वर्ग का प्रतीक है और ‘जलज’ धनी वर्ग का प्रतीक है।
  4. अनुप्रास, स्वर मैत्री तथा अपहति अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।
  5. तत्सम् प्रधान साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है।
  6. शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  7. ओज गुण है तथा मुक्त छंद का सफल प्रयोग है।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 7 बादल राग

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) ‘अट्टालिका नहीं है रे आतंक-भवन’ का आशय क्या है?
(ख) पंक और अट्टालिका किसके प्रतीक हैं?
(ग) रोग-शोक में कौन हँसता रहता है और क्यों?
(घ) ‘क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से सदा छलकता नीर’ का भावार्थ स्पष्ट करें।
(ङ) कौन लोग आतंक अंक पर काँप रहे हैं और डर कर अपने नयन-मुख ढाँप रहे हैं?
उत्तर:
(क) यहाँ कवि यह स्पष्ट करता है कि बड़े-बड़े पूंजीपतियों के भवन अट्टालिकाएँ नहीं हैं, बल्कि वे तो आतंक के भवन हैं अर्थात् क्रांति का नाम सुनते ही वे डर के मारे काँपने लगते हैं। महलों में रहते हुए भी वे घबराए रहते हैं।

(ख) पंक समाज के शोषित व्यक्ति का प्रतीक है और अट्टालिका शोषक पूँजीपतियों का प्रतीक है।

(ग) समाज का निम्न वर्ग रूपी सुकुमार शिशु ही रोग और शोक में हमेशा हँसता रहता है क्योंकि वह संघर्षशील और जुझारू होता है। क्रांति होने से ही उसे लाभ पहुंचने की संभावना है।

(घ) जब वर्षा रूपी क्रांति होती है तो जल में उत्पन्न कमल रोते हैं और आँसू बहाते हैं। भाव यह है कि क्रांति के फलस्वरूप सुविधाभोगी लोग घबराकर आँसू बहाने लगते हैं। उन्हें इस बात का डर होता है कि उनसे उनकी पूँजी छीन ली जाएगी।

(ङ) पूँजीपति लोग अपने महलों में अपनी पत्नियों से लिपटे हुए भी काँप रहे हैं। उनके मन में क्रांति का डर है। उन्हें इस बात का भय लगा हुआ है कि क्रांति के कारण उनकी सुख-सुविधाएँ छिन जाएँगी। इसलिए वे भयभीत होकर अपने नेत्रों और मुख को छिपाने का प्रयास कर रहे हैं।

[4] जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर!
चूस लिया है उसका सार,
हाड़-मात्र ही है आधार,
ऐ जीवन के पारावार! [पृष्ठ-43]

शब्दार्थ-जीर्ण = जर्जर। शीर्ण = कमज़ोर। कृषक = किसान। अधीर = बेचैन। विप्लव = विनाश। सार = प्राण। पारावार = सागर।

प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘बादल राग’ से लिया गया है। इसके रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी हैं। यहाँ कवि ने किसानों की दुर्दशा का यथार्थ वर्णन किया है। कवि बादलों का आह्वान करता हुआ कहता है कि वह मूसलाधार वर्षा करके गरीब तथा शोषित किसानों की सहायता करें।

व्याख्या कवि बादलों को संबोधित करता हुआ कहता है, हे जीवन के सागर! देखो, यह जर्जर भुजाओं तथा दुर्बल शरीर वाला किसान बेचैन होकर तुम्हें अपनी ओर बुला रहा है। हे विनाश करने में निपुण बादल! तुम वर्षा करके देश के गरीब तथा शोषित किसान की सहायता करो। उसकी भुजाएँ जर्जर हो चुकी हैं तथा शरीर कमज़ोर हो गया है। उसकी भुजाओं के बल को तथा उसके जीवन के रस को पूँजीपतियों ने चूस लिया है। भाव यह है कि देश के धनिक वर्ग ने ही किसान का शोषण करके उसकी बुरी हालत कर दी है। अब उस किसान में केवल हड्डियों का पिंजर शेष रह गया है। आज की पूँजीवादी शोषक अर्थव्यवस्था ने उसके खून और माँस को चूस लिया है। हे बादल! तुम तो जीवन के दाता हो, विशाल सागर के समान हो। तुम वर्षा करके एक ऐसी क्रांति पैदा कर दो जिससे कि वह किसान शोषण से मुक्त हो सके और सुखद जीवनयापन कर सके।

विशेष-

  1. यहाँ कवि ने भारतीय किसानों की दुर्दशा के लिए आज की शोषण-व्यवस्था को उत्तरदायी माना है। देश के पूँजीपतियों और महाजनों ने किसानों का भरपूर शोषण किया है।
  2. पस्तुत पद्यांश से प्रगतिवादी स्वर मुखरित हुआ है। कवि ने बादल को एक क्रांतिकारी योद्धा के रूप में प्रस्तुत किया है।
  3. संपूर्ण पद्य में बादल का सुंदर मानवीकरण किया गया है।
  4. तत्सम् प्रधान संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग है। शब्द-चयन उचित और भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  5. प्रसाद गुण होने के कारण करुण रस का परिपाक हुआ है और मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है।

पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-
(क) जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर, शब्दों का प्रयोग किसके लिए किया गया है और क्यों?
(ख) कृषक को अधीर क्यों कहा गया है?
(ग) कवि ने ‘विप्लव के वीर’ किसे कहा है और क्यों?
(घ) जीवन के पारावर किसे कहा गया है और क्यों?
(ङ) ‘चूस लिया है उसका सार’ का आशय स्पष्ट करो।
उत्तर:
(क) यहाँ कवि ने जीर्ण बाहु और शीर्ण शरीर शब्दों का प्रयोग किसान के लिए किया है। शोषण तथा अभाव के कारण उसकी भुजाएँ जीर्ण हो चुकी हैं और शरीर दुर्बल और हीन हो चुका है। इसलिए कवि ने किसान के लिए जीर्ण बाहु और शीर्ण शरीर शब्दों का प्रयोग किया है।

(ख) शोषण तथा अभावों के कारण भारत का किसान दरिद्र और लाचार है। पूँजीपतियों ने उसका सब कुछ छीन लिया है। उसे आशा है कि क्रांति के फलस्वरूप परिवर्तन होगा और पूँजीवाद का विनाश होगा, इसलिए वह क्रांति के बादलों की ओर बड़ी बेचैनी से देख रहा है।

(ग) कवि ने बादलों को विप्लव के वीर कहा है क्योंकि कवि ने बादलों को क्रांति का प्रतीक माना है। जिस प्रकार बादल मूसलाधार वर्षा से समाज की व्यवस्था को भंग कर देते हैं, उसी प्रकार क्रांति भी पूँजीपतियों का विनाश कर देती है।

(घ) क्रांति रूपी बादल को ही जीवन का पारावार अर्थात् सागर कहा गया है। जिस प्रकार बादल वर्षा करके फसल को नया जीवन देते हैं, उसी प्रकार क्रांति भी पूँजीपतियों का विनाश करके गरीब लोगों को सहारा देती है और उनका विकास करती है।

(ङ) यहाँ कवि यह कहना चाहता है कि धनिक वर्ग ने किसान वर्ग का शोषण करके उसके शरीर के सारे रस को मानों चूस लिया है अर्थात् शोषण के कारण किसान की दशा बुरी हो चुकी है। अब तो किसान हड्डियों का पिंजर मात्र बनकर रह गया है।

बादल राग Summary in Hindi

बादल राग कवि-परिचय

प्रश्न-
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का साहित्यिक परिचय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय-महाकवि ‘निराला’ छायावाद के चार प्रमुख कवियों में से एक थे। आधुनिक हिंदी साहित्य के विकास में उनका महान योगदान है। उनका जन्म सन् 1899 में बंगाल के महिषादल नामक रियासत में बसंत पंचमी के दिन हुआ था। इनके पिता पं० रामसहाय त्रिपाठी उन्नाव जिले के रहने वाले थे, किंतु जीविकोपार्जन के लिए महिषादल नामक रियासत में आकर बस गए थे। बचपन में ही निराला जी की माता का स्वर्गवास हो गया था। उनके पिता अनुशासनप्रिय थे। इसलिए उनके इस स्वभाव के कारण बालक सूर्यकांत को अनेक बार मार खानी पड़ी। 13 वर्ष की आयु में ही निराला जी का विवाह मनोहर देवी नामक कन्या से कर दिया गया था, किंतु वह एक पुत्र और पुत्री को जन्म देकर स्वर्ग सिधार गई। निराला जी को साहित्य जगत् में भी आरंभ में अनेक विरोधों का सामना करना पड़ा। उनकी अनेक रचनाएँ व लेख अप्रकाशित ही लौटा दिए जाते थे। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने उनकी ‘जूही की कली’ कविता लौटा दी थी, किंतु बाद में उनसे मिलने पर द्विवेदी जी भी उनकी प्रतिभा से प्रभावित हुए बिना रह न सके। सन् 1933 में निराला जी ने ‘मतवाला’ नामक पत्रिका का संपादन किया। इसके पश्चात् उन्होंने रामकृष्ण मिशन के दार्शनिक पत्र ‘समन्वय’ का भी संपादन किया। पुत्री सरोज के निधन ने निराला जी को बुरी तरह तोड़ दिया। जीवन के अंतिम दिनों में तो वे विक्षिप्त से हो गए थे। जीवन में संघर्ष करते हुए और माँ भारती का आँचल अपनी रचनाओं से भरते हुए निराला जी सन् 1961 में इस संसार से चल बसे।

2. प्रमुख रचनाएँ निराला जी बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी थे। उन्होंने साहित्य की विविध विधाओं पर सफलतापूर्वक लेखनी चलाई है और अनेक रचनाओं का निर्माण किया है। उनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं
(i) काव्य-संग्रह-‘परिमल’, ‘गीतिका’, ‘तुलसीदास’, ‘अनामिका’, कुकुरमुत्ता’, ‘अणिमा’, ‘बेला’, ‘नए पत्ते’, ‘अपरा’, ‘अर्चना’, ‘आराधना’ आदि।

(ii) कहानी-संग्रह ‘लिली’, ‘सखी’, ‘सुकुल की बीबी’, ‘चतुरी चमार’ आदि।

(iii) उपन्यास-‘अप्सरा’, ‘अलका’, ‘प्रभावती’, ‘निरुपमा’, ‘चोटी की पकड़’, ‘काले कारनामे’, ‘चमेली’ आदि।
‘कुल्ली भाट’ तथा ‘बिल्लेसुर बकरिहा’ उनके रेखाचित्र (आँचलिक उपन्यास) हैं। उन्होंने रेखाचित्र, आलोचना साहित्य, निबंध तथा जीवनी साहित्य की भी रचना की और अनुवाद कार्य भी किया।

HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 7 बादल राग

3. काव्यगत विशेषताएँ-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की काव्य यात्रा बहुत लंबी रही है। उन्होंने एक छायावादी, प्रगतिवादी तथा प्रयोगवादी कवि के रूप में हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। उनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं

(i) वैयक्तिकता की भावना-‘निराला’ जी के काव्य में वैयक्तिकता की भावना की प्रधानता है। ‘अपरा’ की अनेक कविताओं में कवि ने अपनी आंतरिक अनुभूतियों को व्यक्त किया है। यह प्रकृति उनकी ‘राम की शक्ति पूजा’, ‘जूही की कली’ आदि कविताओं में देखी जा सकती है। ‘सरोज स्मृति’ में कवि ने निजी दुख का वर्णन किया है
दुख ही जीवन की कथा रही
क्या कहूँ आज, जो नहीं कही।

(ii) विद्रोह का स्वर-छायावादी कवियों में ‘निराला’ एक ऐसे कवि हैं जिनके काव्य में विद्रोह का स्वर है। एक स्वच्छंदतावादी कवि होने के कारण उन्होंने पुरातन रूढ़ियों तथा जड़ परंपराओं को तोड़ने का प्रयास किया। काव्य जगत में उन्होंने सबसे पहले मुक्त छंद का प्रयोग किया। भले ही इसके लिए उनको तत्कालीन साहित्यकारों तथा संपादकों के विरोध को सहन करना पड़ा। ‘सरोज स्मृति’ नामक कविता में वे अपनी बेटी सरोज के वर से कहते हैं
तुम करो ब्याह, तोड़ता नियम
मैं सामाजिक योग के प्रथम
लग्न के पदँगा स्वयं मंत्र
यदि पंडित जी होंगे स्वतंत्र।

(iii) राष्ट्रीय चेतना-महाकवि ‘निराला’ के काव्य में देश-प्रेम की भावना देखी जा सकती है। वे सही अर्थों में राष्ट्रवादी कवि थे। ‘भारतीय वंदना’. ‘जागो फिर एक बार’, ‘तलसीदास’, ‘छत्रपति शिवाजी का पत्र’ आदि कविताओं में कवि ने देश-प्रेम की भावना को व्यक्त किया है। उनकी कुछ कविताएँ भारत की स्वतंत्रता का संदेश भी देती हैं। ‘खून की होली जो खेली’ उन युवकों के सम्मान में लिखी गई है जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। इसी प्रकार ‘जागो फिर एक बार’ कविता में कवि भारतवासियों को यह संदेश देता है कि वे गुलामी के बंधन तोड़कर देश को आजाद कराएँ। ‘जागो फिर एक बार’ से एक उदाहरण देखिए
समर अमर कर प्राण
गान गाए महासिंधु-से
सिंधु-नद-तीर वासी!
सैंधव तुरंगों पर
चतुरंग चमुसंग
सवा सवा लाख पर
एक को चढ़ाऊँगा,
गोबिंद सिंह निज
नाम जब कहलाऊँगा।

(iv) प्रकृति वर्णन छायावादी कवि होने के कारण ‘निराला’ जी ने प्रकृति के अनेक चित्र अंकित किए हैं। उन्होंने प्रकृति के आलम्बन, उद्दीपन, मानवीकरण आदि विभिन्न रूपों का सुंदर चित्रण किया है। बादलों से ‘निराला’ जी को विशेष लगाव था, अतः ‘बादल राग’ संबंधी उनकी छह कविताएँ उपलब्ध होती हैं। ‘बादल राग’ की पहली कविता में कवि ने प्रकृति के आलंबन रूप का वर्णन करते हुए लिखा है
बार-बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार,
हृदय थाम लेता संसार,
सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।
इसी प्रकार ‘देवी सरस्वती’ नामक कविता में कवि ने सर्वथा नवीन शैली अपनाते हुए शरद् ऋतु का वर्णन किया है।

(v) प्रगतिवादी भावना–’निराला’ जी एक सच्चे प्रगतिवादी कवि थे। उन्होंने जहाँ एक ओर पूँजीपतियों के प्रति अपना तीव्र आक्रोश व्यक्त किया है वहाँ दूसरी ओर शोषितों के प्रति सहानुभूति की भावना भी दिखाई है। ‘कुकुरमुत्ता’, ‘तोड़ती पत्थर’, ‘भिक्षुक’, ‘विधवा’ आदि कविताओं में कवि ने प्रगतिवादी दृष्टिकोण को व्यक्त किया है। ‘भिक्षुक’ से एक उदाहरण देखिए
वह आता दो ट्रक कलेजे के करता, पछताता
पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी-भर दाने को-भूख मिटाने को,
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता

(vi) प्रेम और सौंदर्य का वर्णन-‘निराला’ जी ने अपने आरंभिक काव्य में प्रेम और सौंदर्य का खुलकर वर्णन किया है। ‘जूही की कली’ में कवि ने स्थूल श्रृंगार का वर्णन किया है, परन्तु अन्य कविताओं में उन्होंने बड़े उदात्त और पावन श्रृंगार का वर्णन किया है। कुछ स्थलों पर कवि का प्रेम-वर्णन लौकिक होने के साथ-साथ अलौकिक प्रतीत होने लगता है जिसके फलस्वरूप ‘निराला’ जी एक रहस्यवादी कवि प्रतीत होने लगते हैं। ‘तुम और मैं’, ‘यमुना के प्रति’ आदि कविताओं में कवि की रहस्यवादी भावना देखी जा सकती है।

4. कला-पक्ष-एक सफल छायावादी कवि होने के कारण ‘निराला’ जी ने तत्सम् प्रधान शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है। ‘निराला’ जी का भाषा के बारे में दृष्टिकोण बहुत उदार रहा है। यदि कुछ स्थलों पर वे समास बहुल संस्कृत के शब्दों का प्रयोग करते हैं तो अन्य स्थलों पर वे सामान्य बोलचाल की भाषा का भी प्रयोग करते हैं। उदाहरण के रूप में ‘राम की शक्ति पूजा’ की भाषा संस्कृतनिष्ठ है लेकिन ‘तोड़ती पत्थर’ की भाषा सहज, सरल और सामान्य बोलचाल की भाषा है। ‘कुकुरमुत्ता’ में कवि ने उर्दू तथा अंग्रेज़ी के शब्दों का खुलकर प्रयोग किया है। अन्यत्र कवि ने लाक्षणिक तथा प्रतीकात्मक पदावली का भी प्रयोग किया है। इसके साथ-साथ कवि ने अपनी भाषा में शब्दालंकारों के साथ-साथ अर्थालंकारों का भी प्रयोग किया है। अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपकातिशयोक्ति, विभावना आदि अलंकारों का प्रयोग उनके काव्य में देखा जा सकता है। पुनः निराला जी ने संपूर्ण काव्य मुक्त छंद में ही लिखा है। यही कारण है कि वे मुक्त छंद के प्रवर्तक माने गए हैं।

बादल राग कविता का सार

प्रश्न-
‘बादल राग’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘बादल राग’ नामक कविता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की एक उल्लेखनीय कविता है। इसमें बादल क्रांति का प्रतीक है। कवि कहता है कि वायु रूपी सागर पर क्रांतिकारी बादलों की सेना इस प्रकार छाई हुई है जैसे क्षणिक सुखों पर दुखों के बादल मंडराते रहते हैं। संसार के दुखी लोगों के लिए अनेक संभावनाएँ उत्पन्न होने लगी हैं। लगता है कि एक क्रूर क्रांति होने जा रही है। बादल युद्ध की नौका के संमान गर्जना-तर्जना करते हुए, नगाड़े बजाते हुए उमड़ रहे हैं। दूसरी ओर पृथ्वी की कोख में दबे हुए आशा रूपी नए अंकुर इन बादलों को देख रहे हैं। उन सोये हुए अंकुरों के मन में नवजीवन की आशा है। अतः वे अपना सिर ऊपर उठाकर बार-बार क्रांति के बादलों की ओर देख रहे हैं।

ऐ बादल तुम्हारी घनघोर गर्जन, मूसलाधार वर्षा तथा बिजली की ‘कड़कन’ को सुनकर बड़े-बड़े शूरवीर योद्धा भी धराशायी हो जाते हैं। उनके शरीर क्षत-विक्षत हो जाते हैं और चट्टानें खिसकने लगती हैं। जबकि बादल आपस में होड़ लगाकर निरंतर आगे बढ़ते हैं, परंतु छोटे-छोटे पौधे बादलों को देखकर अत्यधिक प्रसन्न होते हैं। वे बार-बार अपना हाथ हिलाकर बादलों को अपने पास बुलाते हैं। कवि कहता है कि क्रांति की गर्जना से छोटे अथवा गरीब लोगों को लाभ प्राप्त होता है। परंतु ऊँची-ऊँची अट्टालिकाएँ आतंक-भवन के समान हैं। उनमें रहने वाले अमीर लोग समाज का सारा पैसा इकट्ठा करके उस पर कुंडली मारकर बैठे हुए हैं। वे डर के मारे काँप रहे हैं, क्योंकि क्रांति की गर्जना सुनकर वे डर जाते हैं और अपनी पत्नी के अंगों से चिपटकर काँपने लगते हैं। परंतु दूसरी ओर कीचड़ में तो उत्सव मनाया जा रहा है। कीचड़ से पैदा होने वाले कमल से पानी छलकता रहता है क्योंकि वह कमल शोषित और गरीब का प्रतीक है। गरीबों के बच्चे रोग, शोक और इस विप्लव में हँसते रहते हैं। अब कवि भारतीय किसानों की चर्चा करता हुआ कहता है कि किसान की भुजाएँ दुबली-पतली हैं और शरीर कमज़ोर हो चुका है और वह बेचैन होकर बादल को अपने पास बुलाता है। पूँजीपति ने उसके जीवन के रस को छीन लिया है। अब तो उसके शरीर में मात्र हड्डियाँ बची हैं। अतः कवि बादलों को क्रांति का दूत मानकर किसानों की सहायता करने के लिए कहता है।

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HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण

पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति किसे कहते हैं? यह किस प्रकार सीमांत बचत प्रवृत्ति से संबंधित है?
उत्तर:
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति-आय में परिवर्तन के कारण उपभोग में परिवर्तन के अनुपात को सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) कहते हैं। यह बढ़ी हुई आय का वह भाग है जो उपभोग पर खर्च किया जाता है। उपभोग में परिवर्तन (AC) को आय में परिवर्तन (AY) से भाग करके MPC को ज्ञात किया जाता है। सूत्र के रूप में-
MPC = ∆C/∆Y
यहाँ, ∆C = उपभोग में परिवर्तन, ∆Y = आय में परिवर्तन।
सीमांत बचत प्रवृत्ति-आय में परिवर्तन के कारण बचत में परिवर्तन के अनुपात को सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) कहते हैं। यह बढ़ी हुई आय का वह भाग या अनुपात (Proportion) है जो उस बढ़ी हुई आय से बचाई गई है। बचत में परिवर्तन (∆S) को आय में परिवर्तन (∆Y) से भाग करके MPS को ज्ञात किया जा सकता है। सूत्र के रूप में-
MPS = \(\frac { ∆S }{ ∆Y }\)
यहाँ, ∆S = बचत में परिवर्तन, ∆Y = आय में परिवर्तन।
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति और सीमांत बचत प्रवृत्ति का योग (1) इकाई के बराबर होता है। इस प्रकार,
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति + सीमांत बचत प्रवृत्ति = 1 अर्थात्
MPC + MPS = 1

प्रश्न 2.
प्रत्याशित निवेश और यथार्थ निवेश में क्या अंतर है?
उत्तर:
प्रत्याशित अथवा इच्छित (नियोजित) निवेश वह निवेश है जो निवेशकर्ता किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आय तथा रोज़गार के विभिन्न स्तरों पर करने की इच्छा रखते हैं।

यथार्थ अथवा वास्तविक निवेश वह निवेश है जो निवेशकर्ता किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आय तथा रोज़गार के विभिन्न स्तरों पर वास्तव में करते हैं।

उदाहरण – मान लीजिए कि एक उत्पादक वर्ष के अंत तक अपने भंडार में, 100 रुपए के मूल्य की वस्तु जोड़ने की योजना बनाता है। अतः उस वर्ष में उसका प्रत्याशित (नियोजित) निवेश 100 रुपए है। किंतु बाज़ार में उसकी वस्तुओं की माँग में अप्रत्याशित वृद्धि होने के कारण उसकी विक्रय मात्रा में उस परिमाण से अधिक वृद्धि होती है, जितना कि उसने बेचने की योजना बनाई थी। इस अतिरिक्त माँग की पूर्ति के लिए उसे अपने भंडार से 30 रुपए के मूल्य की वस्तु बेचनी पड़ती है। अतः वर्ष के अंत में उसकी माल-सूची (Inventory) में केवल 100-30 रुपए = 70 रुपए की वृद्धि होती है। इस प्रकार, उसका प्रत्याशित (नियोजित) निवेश 100 रुपए है, जबकि उसका यथार्थ निवेश केवल 70 रुपए है।

प्रश्न 3.
‘किसी रेखा में पैरामेट्रिक शिफ्ट’ से आप क्या समझते हैं? रेखा में किस प्रकार शिफ्ट होता है जब इसकी (i) ढाल घटती है और (it) इसके अंतःखंड में वृद्धि होती है?
उत्तर:
किसी रेखा में पैरामेट्रिक शिफ्ट से अभिप्राय एक पैरामीटर (प्राचल) के मूल्य में परिवर्तन के कारण आलेख (ग्राफ) में शिफ्ट से होता है। इकाइयाँ है और m ग्राफ के पैरामीटर होते हैं। ये पैरामीटर परिवतों के समान प्रकट नहीं होतें, बल्कि आलेख (ग्राफ) की स्थिति को नियमित करने के लिए पृष्ठभूमि में कार्य करते हैं।
(i) जब रेखा की ढाल घटती है तो रेखा नीचे की ओर शिफ्ट होती है। इसे हम निम्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
निम्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि b = a+2 प्रारंभिक रेखा है। जब रेखा की ढाल घटती है तो यह रेखा b = 0.5a+2 में शिफ्ट हो जाती है। इसे इस रेखाचित्र का पैरामेट्रिक शिफ्ट कहते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 3

(ii) जब रेखा के अंतःखंड में वृद्धि होती है, तो सरल रेखा ऊपर की ओर समानांतर रूप से शिफ्ट होगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 4
संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि b = 0.5a +2 प्रारंभिक रेखा है। जब अंतःखंड (Intercept) में 2 से 3 तक वृद्धि होती है तो यह रेखा b = 0.5a + 3 रेखा के रूप में ऊपर की ओर समानांतर शिफ्ट हो जाती है। इसी तरह यदि अंतःखंड (Intercept) में 2 से 1 तक कमी होती है, तो यह रेखा b= 0.5a + 1 रेखा के रूप में नीचे की ओर समानांतर रूप में शिफ्ट हो सकती है।

प्रश्न 4.
‘प्रभावी माँग’ क्या है? जब अंतिम वस्तुओं की कीमत और व्याज की दर दी हुई हो, तब आप स्वायत्त व्यय गुणक कैसे प्राप्त करेंगे?
उत्तर:
प्रभावी माँग से अभिप्राय समस्त माँग के उस बिंदु से है जहाँ यह सामूहिक पूर्ति के बराबर होती है। प्रभावी माँग अर्थव्यवस्था की माँग का वह स्तर है जो समस्त पूर्ति से पूर्णतया संतुष्ट होता है और इसलिए इसमें उत्पादकों द्वारा उत्पादन बढ़ाने या घटाने की कोई प्रवृत्ति नहीं पाई जाती। अन्य शब्दों में, समग्र माँग का वह स्तर जो पूर्ण संतुलन उपलब्ध कराता है, प्रभावी माँग कहलाता है। वैकल्पिक रूप में, संतुलन के बिंदु पर समग्र माँग को प्रभावी माँग कहते हैं, क्योंकि राष्ट्रीय आय के निर्धारण में यह प्रभावी होती है। केज के अनुसार, “आय का साम्य (संतुलन) स्तर उस बिंदु पर निर्धारित होता है, जहाँ समग्र माँग, समग्र पूर्ति के बराबर होती है।”

जब अंतिम वस्तुओं की कीमत और ब्याज की दर दी हुई हो तो स्वायत्त व्यय गुणक (Autonomous ExpenditureMultiplier) की गणना निम्नलिखित प्रकार से की जाएगी-
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 1

प्रश्न 5.
जब स्वायत्त निवेश और उपभोग व्यय (A) 50 करोड़ रुपए हो और सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) 0.2 तथा आय का स्तर (Y) 4,000.00 करोड़ रुपए हो, तो प्रत्याशित समस्त माँग ज्ञात करें। यह भी बताएँ कि अर्थव्यवस्था संतुलन में है या नहीं (कारण भी बताएँ)।
उत्तर:
आय का स्तर (Y) = 4,000.00 करोड़ रुपए
स्वायत्त निवेश और उपभोग व्यय (A) = 50 करोड़ रुपए
सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) = 0.2
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 1 – 0.2 = 0.8 (∵ MPC = 1 – MPS)
Y = \(\overline{\mathrm{A}}\) + C.Y
= 50 + 0.8 x 4,000 (∵C = MPC)
= 50 + 3,200
= 3,250 करोड़ रुपए
प्रत्याशित समस्त माँग = 3,250 करोड़ रुपए
चूँकि वर्तमान आय का स्तर 4,000 करोड़ रुपए है जो प्रत्याशित समस्त माँग से 750 करोड़ रुपए अधिक है, तो यह स्थिति अधिपूर्ति की होगी। इसलिए अर्थव्यवस्था संतुलन में नहीं है।

प्रश्न 6.
मितव्ययिता के विरोधाभास की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मितव्ययिता के विरोधाभास से अभिप्राय यह है कि यदि अर्थव्यवस्था के सभी लोग अपनी आय से बचत के अनुपात को बढ़ा दें (अर्थात् यदि अर्थव्यवस्था की बचत की सीमांत प्रवृत्ति में वृद्धि होती है) तो अर्थव्यवस्था में बचत के कुल मूल्य में वृद्धि नहीं होगी। इसका कारण यह है कि सीमांत बचत प्रवृत्ति के बढ़ने से सीमांत उपभोग प्रवृत्ति कम हो जाती है और निवेश गुणक भी मैं कम हो जाता है। फलस्वरूप आय में वृद्धि की दर भी कम हो जाती है। इस प्रकार बचत बढ़ाने से कुल बचत का बढ़ना आवश्यक नहीं है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 आय तथा रोजगार के निर्धारण 2
संलग्न रेखाचित्र में हम देखते हैं कि सीमांत उपभोग प्रवृत्ति के कम होने से समस्त माँग वक्र AD1 नीचे की ओर शिफ्ट होकर AD2 हो जाता है। फलस्वरूप राष्ट्रीय आय भी घटकर OY1 से OY2 हो जाती है, जिससे बचत फिर कम हो जाएगी। इस प्रकार बचत में वृद्धि नहीं हो सकेगी। राष्ट्रीय आय के घटने पर और सीमांत बचत प्रवृत्ति में वृद्धि होने पर बचत के कम होने या पूर्ववत रहने की संभावना है।

आय तथा रोजगार के निर्धारण HBSE 12th Class Economics Notes

→ उपभोग फलन अथवा उपभोग प्रवृत्ति-उपभोग फलन अथवा उपभोग प्रवृत्ति राष्ट्रीय आय और कुल उपभोग व्यय के संबंध को प्रकट करता है। आय के विभिन्न स्तरों पर किस प्रकार परिवर्तन होता है, इसी संबंध को उपभोग फलन अथवा उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।

→ बचत प्रवृत्ति-आय में परिवर्तन के कारण बचत में परिवर्तन की प्रवृत्ति को बचत की प्रवृत्ति कहते हैं।

→ निवेश-यह एक वर्ष की अवधि में उत्पादन के टिकाऊ यंत्रों, नए निर्माण तथा स्टॉक पर किया जाने वाला खर्च है।

→ निजी निवेश-निजी उद्यमियों द्वारा पूँजीगत वस्तुओं, मशीनों, इमारतों, प्लांट आदि पर किया जाने वाला खर्च है।

→ सार्वजनिक निवेश-सरकार द्वारा सार्वजनिक कल्याण पर किया जाने वाला खर्च सार्वजनिक निवेश कहलाता है। यह सड़क, बाँध, पुल, नहरों, बिजलीघरों आदि के निर्माण पर किया जाता है।

→ स्वायत्त अथवा स्वचालित निवेश-यह आय के स्तर अथवा ब्याज की दर से प्रभावित नहीं होता। सरकार द्वारा जन उपयोगी सेवाओं; जैसे रेलवे, सड़क, बिजली, डाक आदि में किया गया निवेश इसी श्रेणी या वर्ग से संबंधित है। यह निवेश सरकार द्वारा किया जाता है। स्वायत्त निवेश, तकनीक में परिवर्तन, नए संसाधनों की खोज, जनसंख्या वृद्धि आदि कारणों से किया जाता है।

→ केज़ का उपभोग का मनोवैज्ञानिक नियम केज के मनोवैज्ञानिक नियम के अनुसार, ‘लोगों की यह मनोवृत्ति होती है कि जब आय बढ़ती है तो उनका उपभोग बढ़ता है किंतु उतना नहीं जितनी कि आय बढ़ती है।

→ गुणक गुणक (K) निवेश में परिवर्तन (AI) तथा आय में परिवर्तन (AY) का अनुपात है अर्थात्
गुणक (K) = \(\frac { ∆Y }{ ∆I }\)

→ गुणक की अनुकूल प्रक्रिया-गुणक की अनुकूल प्रक्रिया से स्पष्ट होता है कि निवेश में होने वाली वृद्धि के फलस्वरूप आय में कई गुना अधिक वृद्धि होगी।

→ गुणक की प्रतिकूल प्रक्रिया-गुणक की प्रतिकूल प्रक्रिया से स्पष्ट होता है कि निवेश में प्रारंभिक कमी होने के फलस्वरूप आय में कई गुना अधिक कमी होती है।

→ न्यून (अभावी) माँग-न्यून (अभावी) माँग समग्र माँग का वह स्तर है जो अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार के लिए आवश्यक समग्र पूर्ति से कम (AD < AS) होता है।

→ अवस्फीतिक अंतराल अवस्फीतिक अंतराल (Deflationary Gap) उस कमी को कहते हैं जो पूर्ण रोज़गार के लिए आवश्यक समग्र माँग तथा वर्तमान समग्र माँग के बीच पाई जाती है।

→ अधिमांग अधिमाँग समग्र माँग का वह स्तर है जो पूर्ण रोज़गार के लिए आवश्यक समग्र पूर्ति के स्तर से अधिक (AD > AS) होता है।

→ स्फीतिक अंतराल–स्फीतिक अंतराल (Inflationary Gap) वह आधिक्य है जो वर्तमान समग्र माँग के पूर्ण रोज़गार के लिए आवश्यक समग्र माँग के अधिक होने के कारण उत्पन्न होता है।

→ अधिमाँग के कारण अधिमाँग (Excess Demand) की स्थिति उत्पन्न होने के मुख्य कारण हैं-

  • घाटे की वित्त व्यवस्था
  • उपभोग व्यय में वृद्धि
  • निर्यात माँग में वृद्धि
  • निवेश माँग में वृद्धि।

→ राजकोषीय नीति-राजकोषीय नीति वह नीति है जिसका संबंध सार्वजनिक आय तथा सार्वजनिक व्यय से है। इसका एक मुख्य उद्देश्य मुद्रास्फीति तथा अवस्फीतिक को नियंत्रित करना है।

→ मौद्रिक नीति मौद्रिक नीति वह नीति है जिसका संबंध अर्थव्यवस्था में साख के प्रवाह को नियंत्रित करना है।

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HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. वर्तमान मुद्रा का आविष्कार हुआ
(A) वस्तु-विनिमय प्रणाली की कठिनाइयाँ दूर
(B) आर्थिक विकास के लिए करने के लिए
(C) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करने के लिए
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) वस्तु-विनिमय प्रणाली की कठिनाइयाँ दूर करने के लिए

2. भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना किस वर्ष में हुई?
(A) सन् 1905 में
(B) सन् 1920 में
(C) सन् 1935 में
(D) सन् 1995 में
उत्तर:
(C) सन् 1935 में

3. निम्नलिखित में से मुद्रा के प्राथमिक कार्य कौन-से हैं?
(A) विनिमय का माध्यम एवं मूल्य का माप
(B) मूल्य का माप एवं साख का आधार
(C) स्थगित भुगतान का मान एवं संचय का साधन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) विनिमय का माध्यम एवं मूल्य का माप

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

4. निम्नलिखित में से मुद्रा के गौण कार्य कौन-से हैं?
(A) साख एवं आय वितरण का आधार
(B) पूँजी को तरलता प्रदान करना व निर्णय का वाहक
(C) स्थगित भुगतान का मान एवं मूल्य का हस्तांतरण
(D) राष्ट्रीय आय का आकलन
उत्तर:
(C) स्थगित भुगतान का मान एवं मूल्य का हस्तांतरण

5. निम्नलिखित में से मुद्रा का कौन-सा कार्य गौण कार्य नहीं है?
(A) स्थगित भुगतानों का मान
(B) मूल्य का मापदंड
(C) मूल्य का संचय
(D) मूल्य का हस्तांतरण
उत्तर:
(B) मूल्य का मापदंड

6. निम्नलिखित में से मुद्रा के प्रकार में क्या शामिल नहीं है?
(A) बैंक साख
(B) पत्र मुद्रा
(C) धातु मुद्रा
(D) सोना
उत्तर:
(D) सोना

7. निम्नलिखित में से वैधानिक मुद्रा का रूप है-
(A) प्रचलन मुद्रा
(B) बैंक चैक
(C) बैंक ड्राफ्ट
(D) विनिमय बिल
उत्तर:
(A) प्रचलन मुद्रा

8. कानूनी मुद्रा का रूप किसे दिया जाता है?
(A) जो सरकार तथा देश के केंद्रीय बैंक द्वारा निकाली जाती है
(B) जो सरकार तथा व्यावसायिक बैकों द्वारा निकाली जाती है
(C) जो व्यावसायिक बैंकों द्वारा निकाली जाती है
(D) जो राज्य सरकारों द्वारा निकाली जाती है
उत्तर:
(A) जो सरकार तथा देश के केंद्रीय बैंक द्वारा निकाली जाती है

9. ‘मुद्रा विनिमय का माध्यम है।’ इससे अभिप्राय है-
(A) देश के समस्त भुगतान मुद्रा द्वारा किए जाते हैं
(B) मुद्रा विनिमय करती है
(C) मुद्रा वस्तुओं की कीमतें बताती हैं
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) देश के समस्त भुगतान मुद्रा द्वारा किए जाते हैं

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

10. निम्नलिखित में से कौन-सी मुद्रा की आवश्यक शर्त नहीं है?
(A) लेखे की इकाई
(B) मूल्य का संचय
(C) इसका आंतरिक मूल्य है
(D) यह विनिमय का माध्यम है
उत्तर:
(A) लेखे की इकाई

11. भारतीय रुपया है-
(A) प्रमाणिक मुद्रा
(B) सांकेतिक मुद्रा
(C) प्रमाणिक तथा सांकेतिक मुद्रा
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) सांकेतिक मुद्रा

12. रुपए के नोट है-
(A) परिवर्तनशील पत्र मुद्रा
(B) अपरिवर्तनशील पत्र मुद्रा
(C) प्रादिष्ट पत्र मुद्रा
(D) प्रतिनिधि पत्र मुद्रा
उत्तर:
(B) अपरिवर्तनशील पत्र मुद्रा

13. भारतीय रुपया है-
(A) विधि ग्राह्य मुद्रा
(B) प्रादिष्ट मुद्रा
(C) ऐच्छिक मुद्रा
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) विधि ग्राह्य मुद्रा

14. भारत में करेंसी नोट
(A) विधि मान्य मुद्रा है
(B) असीमित विधि मान्य मुद्रा है
(C) प्रादिष्ट मुद्रा है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

15. निम्नलिखित में से कौन-सी निकट मुद्रा है?
(A) समय जमा
(B) विनिमय पत्र
(C) ट्रेजरी बिल
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

16. सरकारी प्रतिभूतियाँ हैं-
(A) मुद्रा
(B) निकटवर्ती मुद्रा
(C) गैर मौद्रिक परिसंपत्तियाँ
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) निकटवर्ती मुद्रा

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

17. निम्नलिखित में से कौन-सी मुद्रा सांकेतिक है?
(A) सोने के सिक्के
(B) चाँदी के सिक्के
(C) कागज़ के नोट
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) कागज़ के नोट

18. जब मुद्रा का आंतरिक मूल्य एवं अंकित मूल्य समान हैं, तब इसे कहा जाता है
(A) सांकेतिक मुद्रा
(B) संपूर्णकाय मुद्रा
(C) आभास मुद्रा
(D) आदिष्ट मुद्रा
उत्तर:
(B) संपूर्णकाय मुद्रा

19. विधि ग्राह्य मुद्रा वह होती है, जिसे
(A) सरकार द्वारा वैधानिक स्वीकृति दे दी जाती है
(B) सामान्य जनता स्वीकार कर लेती है
(C) (A) व (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) सरकार द्वारा वैधानिक स्वीकृति दे दी जाती है

20. असीमित विधि ग्राह्य मुद्रा से अभिप्राय है-
(A) जिस मुद्रा का निश्चित मात्रा में सुरक्षित कोष रखकर असीमित मात्रा में निर्गमन किया जा सके
(B) जिस मुद्रा के पीछे शत-प्रतिशत कोष रखा जाता है
(C) जिसे असीमित मात्रा में स्वीकार किया जाता है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) जिस मुद्रा का निश्चित मात्रा में सुरक्षित कोष रखकर असीमित मात्रा में निर्गमन किया जा सके

21. मुद्रा पूर्ति के संबंध में कौन-सा कथन सत्य है?
(A) मुद्रा पूर्ति ब्याज दर से निर्धारित होती है
(B) मुद्रा पूर्ति व्यावसायिक बैंकों से नियंत्रित होती है
(C) मुद्रा पूर्ति में सिक्के, नोट तथा बैंक जमाएँ आती हैं
(D) मुद्रा पूर्ति का नियंत्रण भारतीय रिज़र्व बैंक करता है
उत्तर:
(D) मुद्रा पूर्ति का नियंत्रण भारतीय रिज़र्व बैंक करता है

22. उच्च शक्तिशाली मुद्रा (High Powered Money) है-
(A) भारतीय रिज़र्व बैंक के पास बैंकों की आरक्षित विधि
(B) बैंकों का समस्त ऋण एवं अग्रिम
(C) बैंकों के पास रखी मुद्रा
(D) जनता के पास रखी मुद्रा तथा भारतीय रिज़र्व बैंक के पास आरक्षित विधि
उत्तर:
(D) जनता के पास रखी मुद्रा तथा भारतीय रिज़र्व बैंक के पास आरक्षित विधि

23. भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के अनुसार उच्च शक्तिशाली मुद्रा है-
(A) जनता के पास नोट
(B) RBI के पास व्यावसायिक एवं सहकारी बैंकों की जमाएँ
(C) इन बैंकों का नकद + RBI के पास अन्य जमाएँ
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

24. भारत में एक रुपए के नोट कौन जारी करता है?
(A) भारतीय रिज़र्व बैंक
(B) भारत सरकार
(C) व्यापारिक बैंक
(D) हरियाणा सरकार
उत्तर:
(B) भारत सरकार

25. वर्तमान में भारत में नोट निर्गमन का अधिकार-
(A) सरकार के पास है
(B) RBI के पास है
(C) व्यावसायिक बैंक के पास है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) RBI के पास है

26. भारत में निम्नलिखित में से नोट जारी करने की कौन-सी व्यवस्था है?
(A) आनुपातिक विधि व्यवस्था
(B) न्यूनतम सुरक्षित व्यवस्था
(C) प्रतिशत अनुपात विधि व्यवस्था
(D) उपर्युक्त कोई नहीं
उत्तर:
(C) प्रतिशत अनुपात विधि व्यवस्था

27. भारत में नोट निर्गमन का अधिकार RBI के पास है किंतु यह बैंक नोट निर्गमन हेतु कितनी राशि का कोष स्वर्ण एवं विदेशी विनिमय के रूप में अपने पास रखता है?
(A) 400 करोड़ रुपए
(B) 40 प्रतिशत
(C) 200 करोड़ रुपए
(D) शत-प्रतिशत
उत्तर:
(C) 200 करोड़ रुपए

28. M1 है-
(A) जनता के पास चलन मुद्रा + बैंकों के पास माँग जमाएँ
(B) (A)+ डाकघर बचत बैंकों में बचत जमाएँ
(C) (A) + भारतीय रिज़र्व बैंक की अन्य जमाएँ
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) (A) + भारतीय रिज़र्व बैंक की अन्य जमाएँ

29. भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के अनुसार M2 के अंतर्गत शामिल है
(A) M1 + डाकघर बचत बैंकों में बचत जमाएँ
(B) M1 + बैंकों के पास काल जमाएँ (Call Deposits)
(C) जनता के पास चलन मुद्रा + बैंकों के पास माँग जमाएँ
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) M1 + डाकघर बचत बैंकों में बचत जमाएँ

30. M3 को परिभाषित किया जा सकता है
(A) M1 + डाकघर बचत बैंकों में बचत जमाएँ
(B) M1 + बैंकों की निवल जमाएँ
(C) M2 + बैंकों की समयबद्ध जमाएँ
(D) M2 + डाकघर बचत बैंकों में बचत जमाएँ
उत्तर:
(B) M1 + बैंकों की निवल ज़माएँ

31. M4 को परिभाषित किया जा सकता है-
(A) M3 + डाकघर बचत संगठनों के पास कुल जमाएँ
(B) M3 – डाकघर बचत संगठनों के पास कुल जमाएँ
(C) M2 + डाकघर बचत संगठनों के पास कुल जमाएँ
(D) M2 – डाकघर बचत संगठनों के पास कुल जमाएँ
उत्तर:
(A) M3 + डाकघर बचत संगठनों के पास कुल जमाएँ

32. भारत में 100 रुपए के नोट पर हस्ताक्षर होते हैं-
(A) वित्त मंत्रालय के सचिव के
(B) भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर के
(C) भारत के राष्ट्रपति के
(D) वित्तमंत्री के
उत्तर:
(B) भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर के

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

33. बैंक वह संस्था है जो-
(A) मुद्रा का व्यापार करती है।
(B) शेयर तथा परिसंपत्तियों का व्यापार करती है
(C) न केवल मुद्रा का व्यापार करती है बल्कि मुद्रा का निर्माण भी करती है
(D) वस्तुओं का निर्माण करती है
उत्तर:
(C) न केवल मुद्रा का व्यापार करती है बल्कि मुद्रा का निर्माण भी करती है

34. निम्नलिखित में से बैंकों का प्राथमिक कार्य है-
(A) एजेंट की तरह कार्य करना
(B) लॉकर सुविधाएँ उपलब्ध कराना
(C) संदर्भ पत्र जारी करना
(D) समय जमा स्वीकार करना
उत्तर:
(D) समय जमा स्वीकार करना

35. एक व्यावसायिक बैंक वह है जो-
(A) दीर्घकालीन ऋण देता है
(B) शेयर खरीदता है
(C) अल्पकालीन ऋण देता है
(D) नोट जारी करता है
उत्तर:
(C) अल्पकालीन ऋण देता है

36. बैंकों का एक महत्त्वपूर्ण कार्य-
(A) व्यक्तियों को कानूनी सलाह देना है।
(B) समाज में सहयोग की भावना जागृत करना है
(C) कृषि का विकास करना है
(D) साख निर्माण करना है
उत्तर:
(D) साख निर्माण करना है

37. व्यावसायिक बैंक का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है-
(A) जमाओं को स्वीकार करना
(B) एक एजेंट के रूप में कार्य करना
(C) साख का निर्माण करना
(D) निवेश करना
उत्तर:
(C) साख का निर्माण करना

38. इनमें से किस खाते के विरुद्ध चैक लिया जा सकता है?
(A) डिबेंचर जमा खाता
(B) शेयर जमा खाता
(C) चालू जमा खाता
(D) समय जमा खाता
उत्तर:
(C) चालू जमा खाता

39. निम्नलिखित में से कौन-सा कार्य व्यावसायिक बैंकों का नहीं है?
(A) ऋण प्रदान करना
(B) नोटों का निर्गमन करना
(C) धन का हस्तांतरण करना
(D) मूल्यवान वस्तुओं को सुरक्षित रखना
उत्तर:
(B) नोटों का निर्गमन करना

40. एक व्यावसायिक बैंक अपने उन्हीं ग्राहकों को ओवरड्राफ्ट की सुविधा देता है जिनका उस बैंक में-
(A) बचत बैंक खाता हो
(B) चालू बैंक खाता हो
(C) सावधि संचयी जमा खाता हो
(D) स्थायी जमा खाता हो
उत्तर:
(B) चालू बैंक खाता हो

41. निम्नलिखित में से व्यावसायिक बैंक का कार्य है-
(A) जमा स्वीकार करना
(B) विनिमय बिलों को भुनाना
(C) सरकारी वित्त व्यवस्था
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

42. अधिविकर्ष (Overdraft) सुविधा के अंतर्गत बैंक द्वारा-
(A) जमाओं पर नीची दर से ब्याज दिया जाता है
(B) जमाओं पर ऊँची दर से ब्याज दिया जाता है
(C) जमा रकम से अधिक रकम निकालने की सुविधा दी जाती है जिस पर ग्राहक को ब्याज देना पड़ता है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(C) जमा रकम से अधिक रकम निकालने की सुविधा दी जाती है जिस पर ग्राहक को ब्याज देना पड़ता है

43. व्यावसायिक बैंक का कार्य नहीं है-
(A) साख का निर्माण
(B) नोट निर्गमन
(C) ऋण प्रदान करना
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) नोट निर्गमन

44. अधिविकर्ष (overdraft) तथा नकद साख में मूल अंतर होता है-
(A) अधिविकर्ष अस्थाई व्यवस्था है जबकि नकद साख स्थाई व्यवस्था है
(B) अधिविकर्ष तथा नकद साख एक ही बात है
(C) अधिविकर्ष स्थाई व्यवस्था है जबकि नकद साख अस्थाई व्यवस्था है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) अधिविकर्ष अस्थाई व्यवस्था है जबकि नकद साख स्थाई व्यवस्था है

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

45. निम्नलिखित में से कौन-सा कार्य व्यावसायिक बैंक का नहीं है?
(A) यात्री चैक जारी करना
(B) साख का निर्माण
(C) नोट प्रचलन का कार्य
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) नोट प्रचलन का कार्य

46. यदि साख गुणक का मूल्य 10% है और व्यावसायिक बैंकों के पास 1,000 करोड़ रुपए हैं, तो अर्थव्यवस्था में साख का निर्माण कितना होगा?
(A) 1,000 करोड़ रुपए
(B) 10,000 करोड़ रुपए
(C) 100 करोड़ रुपए
(D) 11,000 करोड़ रुपए
उत्तर:
(B) 10,000 करोड़ रुपए

47. यदि साख गुणक का मूल्य 5% है और व्यावसायिक बैंकों के पास 1,000 करोड़ रुपए हैं, तो अर्थव्यवस्था में साख का निर्माण कितना होगा?
(A) 20,000 करोड़ रुपए
(B) 5,000 करोड़ रुपए
(C) 10,000 करोड़ रुपए
(D) 15,000 करोड़ रुपए
उत्तर:
(A) 20,000 करोड़ रुपए

48. यदि साख गुणक का मूल्य 10% है और व्यावसायिक बैंकों के पास 2,000 करोड़ रुपए हैं, तो अर्थव्यवस्था में साख का निर्माण कितना होगा?
(A) 21,000 करोड़ रुपए
(B) 200 करोड़ रुपए
(C) 2,000 करोड़ रुपए
(D) 20,000 करोड़ रुपए
उत्तर:
(D) 20,000 करोड़ रुपए

49. देश में बैंकिंग व्यवस्था का संरक्षक है-
(A) रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI)
(B) सैंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
(C) स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI)
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया

50. निम्नलिखित में से कौन-सा कार्य केंद्रीय बैंक का नहीं है?
(A) नोट निर्गमन का एकाधिकार
(B) व्यावसायिक बैंकों के नकद कोषों का संरक्षक
(C) साख निर्माण
(D) अंतिम ऋणदाता
उत्तर:
(C) साख निर्माण

51. भारत में कागज़ी मुद्रा जारी करने का एकाधिकार किसे है?
(A) व्यावसायिक बैंक को
(B) भारतीय रिज़र्व बैंक को
(C) वित्तीय बैंक को
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) भारतीय रिज़र्व बैंक को

52. केंद्रीय बैंक निम्नलिखित में से एक कार्य नहीं करता-
(A) जनता की जमा पर ब्याज देना
(B) सरकारी बैंकर के रूप में कार्य करना
(C) अंतिम ऋणदाता के रूप में कार्य करना
(D) समाशोधन गृह के रूप में कार्य करना
उत्तर:
(A) जनता की जमा पर ब्याज देना

53. निम्नलिखित में से केंद्रीय बैंक तथा व्यावसायिक बैंक में कौन-सा अंतर है?
(A) नोट निर्गमन का एकाधिकार
(B) साख नियंत्रण
(C) सरकार का बैंक
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

54. भारत का केंद्रीय बैंक निम्नलिखित में से कौन-सा बैंक है?
(A) स्टेट बैंक ऑफ इंडिया
(B) सैंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
(C) रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया
(D) यूनियन बैंक ऑफ इंडिया
उत्तर:
(C) रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

55. सावधि (मियादी) जमाएँ होती हैं-
(A) चैक आहरित जमाएँ
(B) गैर चैक आहरित जमाएँ
(C) (A) और (B) दोनों
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) गैर चैक आहरित जमाएँ

56. निम्नलिखित में से कौन-सा कारण नियंत्रण का मात्रात्मक उपाय नहीं है?
(A) नकद कोष अनुपात (CRR)
(B) वैधानिक तरलता अनुपात (SLR)
(C) बैंक दर (Bank Rate)
(D) साख की राशनिंग
उत्तर:
(D) साख की राशनिंग

57. निम्नलिखित में से साख नियंत्रण की गुणात्मक विधि कौन-सी है?
(A) बैंक दर (Bank Rate)
(B) खुले बाज़ार की क्रियाएँ (OMO)
(C) नकद आरक्षित अनुपात (CRR)
(D) साख की राशनिंग
उत्तर:
(D) साख की राशनिंग

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. ………………. की कठिनाइयों को दूर करने के लिए वर्तमान मुद्रा का आविष्कार हुआ। (आर्थिक विकास/वस्तु-विनिमय प्रणाली)
उत्तर:
वस्तु-विनिमय प्रणाली

2. विनिमय का माध्यम एवं ……………….. मुद्रा के प्राथमिक कार्य हैं। (मूल्य का माप/साख का आधार)
उत्तर:
मूल्य का माप

3. ………………. का मान एवं मूल्य का हस्तांतरण मुद्रा के गौण कार्य हैं। (राष्ट्रीय आय स्थगित भुगतान)
उत्तर:
स्थगित भुगतान

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

4. मुद्रा के प्रकार में ………………. शामिल होती है। (धातु मुद्रा/सोना)
उत्तर:
धातु मुद्रा

5. मुद्रा में ………………. शामिल होते हैं। (केवल सिक्के/करेंसी व बैंक जमा)
उत्तर:
करेंसी व बैंक जमा

6. भारतीय रुपया ………………. मुद्रा है। (प्रमाणिक/सांकेतिक)
उत्तर:
सांकेतिक

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. व्यापारिक बैंकों को नोट निर्गमन का एकाधिकार प्राप्त है।
  2. साख के विस्तार तथा संकुचन की नीति को साख-नियंत्रण कहते हैं।
  3. केंद्रीय बैंक का देश के आर्थिक विकास के साथ कोई सम्बन्ध नहीं होता।
  4. भारतीय स्टेट बैंक की स्थापना वर्ष 1958 में की गई थी।
  5. देश के केंद्रीय बैंक को नोट निर्गमन का एकाधिकार प्राप्त है।
  6. भारत में 1 रुपए के नोट भारत सरकार के द्वारा जारी किए जाते हैं।
  7. भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना अप्रैल, 1935 में की गई थी।
  8. व्यापारिक बैंक साख का निर्माण नहीं कर सकते।
  9. केन्द्रीय बैंक का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना है।
  10. केंद्रीय बैंक साख का निर्माण करता है।
  11. भारत का केन्द्रीय बैंक रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया है।
  12. मुद्रा में केवल करेंसी नोट शामिल किए जाते हैं।
  13. साख निर्माण तथा माँग जमा का सीधा अनुपात होता है।
  14. प्रमाणिक सिक्के का आन्तरिक मूल्य तथा अंकित मूल्य बराबर होते हैं।
  15. मुद्रा की तुलना में निकट मुद्रा कम तरल होती है।
  16. प्राथमिक जमा तथा गौण जमा में कोई अन्तर नहीं होता।
  17. एक रुपए का नोट सीमित विधि ग्राह्य है।
  18. देश के केन्द्रीय बैंक को नोट निर्गमन का एकाधिकार प्राप्त नहीं है।
  19. भारत में RBI द्वारा सिक्के जारी किए जाते हैं।
  20. मुद्रा विनिमय के माध्य’ के रूप में कार्य करती है।

उत्तर:

  1. गलत
  2. सही
  3. गलत
  4. गलत
  5. सही
  6. सही
  7. सही
  8. सही
  9. गलत
  10. सही
  11. सही
  12. गलत
  13. गलत
  14. सही
  15. सही
  16. गलत
  17. गलत
  18. गलत
  19. सही
  20. सही।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आवश्यकताओं के दोहरे संयोग के अभाव से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आवश्यकताओं के दोहरे संयोग के अभाव से हमारा अभिप्राय यह है कि एक व्यक्ति जिसके पास जो अतिरिक्त वस्त; जैसे गेहूँ है और उसे जिस वस्तु; जैसे दाल की ज़रूरत है, तभी विनिमय कर सकेगा जब वह ऐसे व्यक्ति की खोज कर ले जिसे गेहूँ की ज़रूरत हो तथा जो दाल देने के लिए तैयार हो।

प्रश्न 2.
व्यापार लागत (Trading Cost) क्या है?
उत्तर:
व्यापार लागत वस्तु-विनिमय के माध्यम से व्यापार करवाने की लागत है।

प्रश्न 3.
व्यापार लागतों के दो घटक बताइए।
उत्तर:
व्यापार लागतों के दो घटक निम्नलिखित हैं-

  • अन्वेषण (तलाश) लागत।
  • प्रतीक्षा की अनुपयोगिता।

प्रश्न 4.
तलाश लागत (Search Cost) क्या है?
उत्तर:
तलाश लागत उस व्यक्ति को खोजने की लागत है जो उसे उसके पास रखी वस्तु के बदले उसकी इच्छित वस्तु प्रदान कर सके।

प्रश्न 5.
मुद्रा क्या है?
उत्तर:
मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जो विनिमय के माध्यम, मूल्य के मापक, ऋणों के अंतिम भुगतान तथा मूल्यों के संचय के साधन के रूप में स्वतंत्र, विस्तृत तथा सामान्य रूप से व्यक्तियों द्वारा निःसंकोच स्वीकार की जाती है।

प्रश्न 6.
मुद्रा की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
मुद्रा की परिभाषा किसी भी ऐसी वस्तु के रूप में की जा सकती है जिसे साधारणतया विनिमय का माध्यम स्वीकार किया जाता है और इसके साथ ही जो मूल्य के मापक और मूल्य के संचय का भी कार्य करती है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 7.
असीमित विधि ग्राह्य (मान्य) मुद्रा (Unlimited Legal Tender Money) क्या है?
उत्तर:
वह मुद्रा जिसे असीमित मात्रा में भुगतान के रूप में स्वीकार किया जाता है, उसे असीमित विधि ग्राह्य (मान्य) मुद्रा हते हैं। भारत में दो रुपए, पाँच रुपए के सिक्के तथा सभी मूल्यों के कागजी नोट असीमित विधि मान्य मुद्रा है। इन्हें लेने से मना करने पर राजदंड दिया जा सकता है।

प्रश्न 8.
वास्तविक मुद्रा क्या है? उत्तर:वास्तविक मुद्रा, मुद्रा का वह रूप है जो देश में वस्तुओं और सेवाओं के विनिमय के माध्यम के रूप में प्रचलित होती है। प्रश्न 9. साख मुद्रा अथवा बैंक मुद्रा किसे कहते हैं?
उत्तर:
साख मुद्रा, जिसे बैंक मुद्रा भी कहते हैं, वह मुद्रा है जिसे लोगों द्वारा बैंकों में जमा किया जाता है और किसी भी समय माँगने पर इसे प्राप्त किया जा सकता है। यह मुद्रा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को साख पत्रों के माध्यम से हस्तांतरित की जा सकती है।

प्रश्न 10.
ऐच्छिक मुद्रा का अर्थ उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर:
वह मुद्रा जिसको स्वीकार करना भुगतान प्राप्तकर्ता की इच्छा पर निर्भर करे, ऐच्छिक मुद्रा कहलाती है। उदाहरणार्थ चैक, विनिमय पत्र आदि।

प्रश्न 11.
निकट मुद्रा (Near Money) किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह मुद्रा जिसका प्रयोग प्रत्यक्ष लेन-देन के लिए नहीं किया जाता है, किंतु जिसे मुद्रा के रूप में बड़ी सरलता से तथा बिना लागत के परिवर्तित किया जा सकता है, निकट मुद्रा कहलाती है।

प्रश्न 12.
सहायक मुद्रा (Subsidiary Money) क्या है?
उत्तर:
वह मुद्रा जो मुख्य मुद्रा की सहायता करती है, सहायक मुद्रा कहलाती है। भारत में एक रुपया तथा 50 पैसे तक के सिक्के सहायक मुद्रा की श्रेणी में आते हैं। इसे सीमित विधि मान्य मुद्रा भी कहा जाता है क्योंकि भारत में, इनका प्रयोग केवल 25 रुपए के भुगतान तक के लिए किया जा सकता है।

प्रश्न 13.
धात्विक मुद्रा एवं पत्र मुद्रा क्या होती है?
उत्तर:
किसी धातु; जैसे सोना, चाँदी, निकल, ताँबा आदि से बनी मुद्रा को धात्विक मुद्रा तथा कागज़ से बनी मुद्रा को पत्र मुद्रा कहते हैं।

प्रश्न 14.
सांकेतिक (प्रतीक) मुद्रा (Token Money) क्या होती है?
उत्तर:
सांकेतिक मुद्रा वह होती है जिसका अंकित मूल्य धात्विक मूल्य से अधिक होता है।

प्रश्न 15.
मानक मुद्रा (Standard Money) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मानक मुद्रा वह मुद्रा है जिसका अंकित मूल्य, उसके वस्तु मूल्य के बराबर होता है। इसे पूर्णकाय सिक्के (Full Bodies Coins) भी कहते हैं।

प्रश्न 16.
प्रतिनिधि पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा क्या है?
उत्तर:
प्रतिनिधि पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा वह कागज़ी मुद्रा है जिसे मुद्रा पर अंकित मूल्य के बराबर पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा की मात्रा या सोने-चाँदी में परिवर्तित किया जा सकता है।

प्रश्न 17.
समीपवर्ती मुद्रा या मुद्रासम क्या है?
उत्तर:
समीपवर्ती मुद्रा या मुद्रासम वे संपत्तियाँ हैं जो वास्तव में मुद्रा के समान तरल नहीं हैं, परंतु इन्हें मुद्रा के रूप में आसानी से परिवर्तित किया जा सकता है।

प्रश्न 18.
भारत में किस प्रकार की मौद्रिक व्यवस्था का अनुसरण होता है?
उत्तर:
भारत में ‘प्रबंधित कागज़ मुद्रामान’ का प्रयोग होता है, जिसके लिए ‘न्यूनतम सुरक्षित कोष’ के आधार पर नोटों का निर्गम होता है।

प्रश्न 19.
उच्च शक्तिशाली मुद्रा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वह मुद्रा जो केवल मौद्रिक प्राधिकरण (जैसे भारत में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और भारत सरकार) द्वारा उत्पन्न या उत्पादित की जाती है, उच्च शक्तिशाली मुद्रा कहलाती है। इस मुद्रा को मौद्रिक आधार मुद्रा भी कहा जाता है। उच्च शक्तिशाली मुद्रा (H) में, जनता द्वारा अपने पास रखी गई करेंसी (C) बैंकों के नकद कोष [(Cash Reserve (R)] भारतीय रिज़र्व बैंक के पास रखी गई विदेशियों आदि की जमाएँ [Other Deposits (OD)] शामिल की जाती हैं, अर्थात् उच्च शक्तिशाली मुद्रा (H) = C + R+ OD के बराबर होती है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 20.
किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का मुख्य कार्य क्या है?
उत्तर:
किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का मुख्य कार्य वस्तुओं और सेवाओं के लेन-देन को सरल बनाना है अर्थात् व्यापार में लगने वाले समय और परिश्रम को कम करना है।

प्रश्न 21.
आर्थिक प्रणाली में मुद्रा के प्रमुख चार कार्य क्या हैं?
उत्तर:
आर्थिक प्रणाली में मुद्रा के चार प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. मूल्य मान की इकाई
  2. विनिमय का माध्यम
  3. भविष्य के भुगतानों का मानक
  4. मूल्य के भंडार के रूप में।

प्रश्न 22.
मुद्रा के मूल्य से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मुद्रा के मूल्य से तात्पर्य मुद्रा की क्रय-शक्ति से होता है।

प्रश्न 23.
मुद्रामान से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मुद्रामान से तात्पर्य उस मानक मुद्रा से है जिसका अर्थव्यवस्था में प्रयोग होता है।

प्रश्न 24.
मुद्रा को सबसे तरल संपत्ति क्यों माना गया है?
उत्तर:
मुद्रा को सबसे तरल संपत्ति इसलिए माना गया है क्योंकि मुद्रा को किसी दूसरी वस्तु के रूप में कभी भी आसानी से विनिमयः किया जा सकता है।

प्रश्न 25.
लोग मुद्रा में भुगतान प्राप्त करना क्यों पसंद करते हैं?
उत्तर:
जिन लेन-देनों (ऋणों आदि) का भुगतान तत्काल न करके भविष्य के लिए स्थगित कर दिया जाता है, उन्हें स्थगित भुगतान कहा जाता है। लोग स्थगित भुगतानों को मुद्रा में प्राप्त करना पसंद करते हैं, चूँकि-

  1. अन्य वस्तुओं की तुलना में मुद्रा का मूल्य स्थिर रहता है
  2. इसमें सामान्य स्वीकृति का गुण पाया जाता है तथा
  3. अन्य वस्तुओं की तुलना में यह अधिक टिकाऊ होती है।

प्रश्न 26.
क्या भारत में 50 पैसे के सिक्के सीमित विधि ग्राह्य मुद्रा हैं या नहीं?
उत्तर:
जब एक सीमा के अंदर ही मुद्रा का भुगतान कानूनन स्वीकार किया जाता है तो उसे सीमित विधि ग्राह्य (मान्य) मुद्रा (Limited Legal Tender Money) कहा जाता है। भारत में छोटे मूल्य के सिक्के; जैसे कि 50 पैसे का सिक्का सीमित विधि ग्राह्य (मान्य) मुद्रा है, क्योंकि छोटे सिक्के अधिक-से-अधिक 25 रुपए तक ही स्वीकार करने के लिए बाध्य होते हैं।

प्रश्न 27.
क्या भारत में 5 (10) रुपए का सिक्का संपूर्ण मूर्तिमान मुद्रा है? कारण दें।
उत्तर:
संपूर्ण मूर्तिमान मुद्रा (Full-bodied Money) वह मुद्रा होती है जिसका मौद्रिकमान, वस्तुमान के समान होता है अर्थात् जिस मुद्रा का अंकित मूल्य उसके धात्विक मूल्य के समान होता है। भारत में प्रचलित 5 रुपए का सिक्का संपूर्ण मूर्तिमान मुद्रा नहीं है, क्योंकि इसमें प्रयुक्त धातु का वास्तविक मूल्य इस पर अंकित मूल्य के बराबर नहीं है।

प्रश्न 28.
संव्यवहार प्रयोजन के लिए मुद्रा की माँग का सूत्र लिखें।
उत्तर:
मुद्रा की माँग, \(\mathbf{M}_{\mathrm{T}}^{d}\) = k.T
यहाँ, k = धनात्मक अंश
T = एक इकाई समयावधि में संव्यवहारों का मौद्रिक मूल्य।

प्रश्न 29.
सट्टा प्रयोजन के लिए मुद्रा की माँग का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
सट्टा प्रयोजन के लिए मुद्रा की माँग, \(\mathbf{M}_{\mathrm{d}}^{S}\) = kPY
यहाँ,
k = धनात्मक अंश
P = सामान्य कीमत स्तर
Y = वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद।

प्रश्न 30.
मुद्रा की पूर्ति की स्टॉक और प्रवाह धारणाएँ क्या हैं?
उत्तर:
मुद्रा की पूर्ति का स्टॉक तथा प्रवाह दोनों रूपों में अध्ययन किया जाता है। मुद्रा की स्टॉक धारणा से अभिप्राय समय के एक निश्चित बिंदु पर पाई जाने वाली मुद्रा की पूर्ति से है। मुद्रा की प्रवाह धारणा से अभिप्राय समय की एक निश्चित अवधि से मुद्रा की कुल मात्रा तथा उसकी चलन गति (Velocity) की गुणा से है। इस प्रकार मुद्रा पूर्ति प्रवाह के रूप में → MV होती है। यहाँ M से अभिप्राय जनता के पास मुद्रा के स्टॉक से है, जबकि V मुद्रा की चलन गति को प्रदर्शित करती है।

प्रश्न 31.
मुद्रा की पूर्ति के तीन मुख्य घटक कौन-से हैं?
उत्तर:
मुद्रा की पूर्ति = करेंसी (नोट + सिक्के) + माँग जमाएँ + सावधि जमाएँ।

प्रश्न 32.
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा प्रतिपादित मुद्रा के चार विभिन्न माप कौन-से हैं? इनमें सबसे लोकप्रिय माप कौन-सा है?
उत्तर:
M1, M2, M3 तथा M4। इनमें सबसे अधिक लोकप्रिय माप M3 है।

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प्रश्न 33.
M1 के कौन-से घटक हैं?
उत्तर:
M1 = C + DD + OD
अर्थात M2 = जनता के पास धारित करेंसी +बैंकों के पास निवल माँग जमाएँ + भारतीय रिजर्व बैंक के पास अन्य जमाएँ।

प्रश्न 34.
M2 के घटक बताइए।
उत्तर:
M2 = M1 + Deposits in Post Office Saving Bank Accounts
अर्थात् M1 = जनता के पास धारित करेंसी + बैंकों की निवल माँग जमाएँ + भारतीय रिज़र्व बैंक के पास अन्य जमाएँ + डाकघर बचत बैंकों की बचत जमाएँ।

प्रश्न 35.
M3 के घटकों के नाम बताइए।
उत्तर
M4 = M3 + Time Deposits with Banks
अर्थात् M4 = जनता के पास धारित करेंसी + बैंकों की निवल माँग जमाएँ + भारतीय रिज़र्व बैंक के पास अन्य जमाएँ + बैंकों की अवधि जमाएँ।

प्रश्न 36.
M4 के घटक कौन-से हैं?
उत्तर:
M4 = M3 + Total Deposits with Post Offices
अर्थात् M4 = जनता के पास धारित करेंसी + बैंकों की निवल माँग जमाएँ + भारतीय रिज़र्व बैंक के पास अन्य जमाएँ + बैंकों की अवधि जमाएँ + डाकघरों की कुल जमाएँ। (राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्रों (NSCs) को छोड़कर)

प्रश्न 37.
आदर्श मुद्रा पूर्ति (Ideal Money Supply) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आदर्श मुद्रा पूर्ति से अभिप्राय उस मुद्रा राशि से है जो अर्थव्यवस्था की कुल क्रय शक्ति या कुल माँग को कुल पूर्ति के साथ संतुलन की स्थिति में रखती है ताकि अर्थव्यवस्था को किसी भी स्फीतिक या विस्फीतिक दबाव का सामना न करना पड़े।

प्रश्न 38.
भारत में मुद्रा पूर्ति के स्रोत (Sources of Money Supply) कौन-से हैं?
उत्तर:
भारत में मुद्रा पूर्ति के तीन स्रोत हैं-

  1. भारत सरकार का वित्त मंत्रालय
  2. रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया तथा
  3. व्यावसायिक बैंक।

प्रश्न 39.
माँग जमाएँ क्या होती हैं?
उत्तर:
बैंकों की माँग जमाएँ (Demand Deposits) मुद्रा पूर्ति का एक महत्त्वपूर्ण संघटक है। प्रत्येक देश में लोग अपना धन माँग जमा के रूप में रखते हैं। माँग जमा के रूप में रखी गई रकम को जमाकर्ता अपनी इच्छानुसार कभी भी चैक द्वारा निकलवा सकता है। इस प्रकार माँग जमा के रूप में रखी गई रकम उतनी ही तरल (Liquid) है जितनी कि नोट तथा सिक्के।

प्रश्न 40.
माँग जमाओं को मुद्रा क्यों समझा जाता है?
उत्तर:
मुद्रा आधारिक रूप से विनिमय का माध्यम है। माँग जमाएँ विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करती हैं क्योंकि माँग जमा में मुद्रा (खाता धारक द्वारा) अन्य किसी को (चैक द्वारा) वस्तुओं तथा सेवाओं के खरीदने के लिए दी जा सकती है।

प्रश्न 41.
सावधि जमाओं को सामान्यतया मुद्रा की पूर्ति में शामिल नहीं किया जाता, क्यों?
उत्तर:
सावधि जमाएँ निश्चित अवधि जमाएँ (Fixed Deposits) हैं। सावधि जमाओं में मुद्रा माँगी जाने पर निकाली नहीं जा सकती। इसलिए माँग जमाओं की तुलना में सावधि जमाएँ मुद्रा का आधारभूत कार्य विनिमय का माध्यम नहीं करतीं।

प्रश्न 42.
साधारण मुद्रा (M1) तथा उच्च शक्तिशाली मुद्रा (H) में आधारभूत अंतर क्या है?
उत्तर:
उच्च शक्तिशाली मुद्रा (H) में बैंकों के पास माँग जमाओं को शामिल नहीं किया जाता जबकि साधारण मुद्रा (M1) में इन्हें शामिल किया जाता है। अतः उच्च शक्तिशाली मुद्रा वह होती है जो देश के मौद्रिक प्राधिकरणों द्वारा उत्पन्न की जाती है।

प्रश्न 43.
बैंकिंग क्या होती है?
उत्तर:
उधार देने या निवेश करने के ध्येय से जनता से माँगने पर या चैक, धनादेश आदि के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय जमाएँ स्वीकार करने को बैंकिंग कहते हैं।

प्रश्न 44.
व्यावसायिक बैंक की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
व्यावसायिक बैंक वह संस्था है जो लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से जमा स्वीकार करती है जिनका चैक द्वारा भुगतान कर दिया जाता है तथा जो लोगों को ऋण तथा अग्रिम (Loan and Advances) की सुविधा देती है। कलबर्टन (Culberston) के अनुसार, “व्यावसायिक बैंक वे संस्थाएँ हैं जो व्यापार को अल्पकाल के लिए ऋण देती हैं तथा मुद्रा का निर्माण करती हैं।” संक्षेप में, व्यावसायिक बैंक वे बैंक हैं जो लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से मुद्रा तथा साख का व्यापार करते हैं।

प्रश्न 45.
डाकघर बचत बैंक (Post Office Saving Bank) को बैंक क्यों नहीं माना जाता है?
उत्तर:
डाकघर बचत बैंक को बैंक इसलिए नहीं माना जाता है, क्योंकि ये बैंक के दो बुनियादी कार्यों-जनता से जमाएँ स्वीकार करना और ऋण देना में से जमाएँ तो स्वीकार करते हैं परंतु ऋण नहीं देते हैं।

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प्रश्न 46.
बैंक कितने प्रकार की जमाएँ स्वीकार करता है? उनके नाम बताइए।
उत्तर:
बैंक चार प्रकार की जमाएँ स्वीकार करता है। उनके नाम निम्नलिखित हैं-

  1. चालू जमाएँ
  2. बचत जमाएँ
  3. आवृत्ति अथवा संचयी जमाएँ
  4. सावधि जमाएँ।

प्रश्न 47.
बैंक कितने प्रकार के ऋण उपलब्ध कराता है?
उत्तर:
बैंक मुख्य रूप से चार तरह के ऋण देते हैं; जैसे-

  1. नकद साख
  2. ओवरड्राफ्ट
  3. माँग ऋण; काल मनी
  4. अल्पावधि ऋण।

प्रश्न 48.
ओवरड्राफ्ट किसे कहते हैं?
उत्तर:
बैंक द्वारा अपने चालू जमा खाते रखने वाले खाताधारियों को एक समझौते के अनुसार अपनी जमा राशि से अधिक रुपया निकाल लेने की सुविधा को ओवरड्राफ्ट कहते हैं।

प्रश्न 49.
नकद साख (Cash Credit) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
इसके अंतर्गत बैंक द्वारा ऋणी को निश्चित जमानत के आधार पर खाते से एक निश्चित राशि निकलवाने का अधिकार दे दिया जाता है। इस सीमा के अंदर ही ऋणी आवश्यकतानुसार रुपया निकलवाता रहता है तथा जमा भी करवाता रहता है।

प्रश्न 50.
साख निर्माण (Credit Creation) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आजकल साख निर्माण बैंकों का एक प्रमुख कार्य है। बैंकों द्वारा उनकी प्राथमिक जमाओं के आधार पर गौण जमाओं के विस्तार को साख निर्माण कहते हैं। बैंक अपनी प्राथमिक जमा से अधिक रुपया उधार देकर साख का निर्माण करते हैं।

प्रश्न 51.
प्राथमिक जमाओं तथा गौण जमाओं में क्या अंतर है?
उत्तर:
जब कोई बैंक अपने किसी ग्राहक से नकद धनराशि जमा के रूप में स्वीकार करता है, तो यह प्राथमिक जमा कहलाती है। लेकिन जब बैंक किसी व्यक्ति को उधार राशि नकद न देकर उसके खाते में जमा कर देता है तो उसे गौण जमा कहते हैं।

प्रश्न 52.
वैधानिक तरलता अनुपात (Statutory Liquidity Ratio-SLR) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कुल जमाओं का वह भाग जिसे बैंक को अपने पास नकदी के रूप में कानूनन रखना पड़ता है, वैधानिक तरलता अनुपात कहलाता है।

प्रश्न 53.
क्रेडिट कार्ड (Credit Card) क्या होते हैं?
उत्तर:
बैंकों द्वारा क्रेडिट कार्ड जारी किए जाते हैं। उनकी सहायता से उपभोक्ता आवश्यकता की वस्तुएँ खरीद सकते हैं, जिनका भुगतान बैंक करते हैं। क्रेडिट कार्ड उपभोक्ता व्यय को बढ़ाते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में कुल माँग के स्तर में वृद्धि होती है जिससे आय और रोज़गार का स्तर बढ़ता है।

प्रश्न 54.
सरकारी प्रतिभूतियों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
भारतीय रिज़र्व बैंक व राज्य सरकारों द्वारा जारी प्रतिभूतियों को सरकारी प्रतिभूति कहा जाता है। उदाहरण के लिए राजकोषीय पत्र, राष्ट्रीय बचत पत्र आदि।

प्रश्न 55.
स्वीकृत प्रतिभूतियों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
स्वीकृत प्रतिभूतियों से अभिप्राय स्वर्ण, बुलियन सरकारी प्रतिभूतियों तथा आसानी से विक्रय योग्य अंशपत्र व वस्तुओं से है।

प्रश्न 56.
व्यावसायिक बैंक कोषों का अंतरण किस प्रकार करते हैं?
उत्तर:
व्यावसायिक बैंक एक स्थान से दूसरे स्थान पर धनराशि को भेजने में सहायक होते हैं। यह राशि साख पत्रों; जैसे चैक, ड्राफ्ट, विनिमय बिल आदि की सहायता से एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजी जाती है।

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प्रश्न 57.
व्यावसायिक बैंक अर्थव्यवस्था में किस प्रकार पूँजी निर्माण को बढ़ावा देते हैं?
उत्तर:
व्यावसायिक बैंक लोगों की निष्क्रिय बचतों को एकत्रित करके उसे उत्पादक कार्यों में निवेश करने में सफल रहते हैं। इससे देश में पूँजी का निर्माण होता है। हम जानते हैं कि पूँजी का निर्माण आर्थिक विकास की कुंजी कहलाता है। इससे देश का उत्पादन, रोज़गार व आय बढ़ती है।

प्रश्न 58.
केंद्रीय बैंक की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
केंद्रीय बैंक वह बैंक है जो मुद्रा जारी करने का पूर्ण एकाधिकार रखता है और सरकार के प्रमख वित्तीय कार्यों का रता है। प्रो० वीरा स्मिथ के अनुसार, “केंद्रीय बैंक से अभिप्राय, बैंकिंग की उस प्रणाली से होता है जिसके अंतर्गत किसी एक विशेष बैंक को नोट निर्गमन का पूर्ण अधिकार होता है।”

प्रश्न 59.
केंद्रीय बैंक को सरकार का बैंकर क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
केंद्रीय बैंक को सरकार का बैंकर इसलिए कहा जाता है, क्योंकि केंद्रीय बैंक ‘सरकार की ओर से भुगतान स्वीकार करता है, भुगतान करता है और अन्य सभी लेन-देन करता है।

प्रश्न 60.
मौद्रिक प्रबंध (Monetary Management) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मौद्रिक प्रबंध से अभिप्राय मुद्रा की पूर्ति और साख को इस प्रकार नियमित करने से है ताकि व्यापार, व्यावसायिक तथा आर्थिक क्रियाओं के लिए मुद्रा की माँग को संतोषजनक ढंग से पूरा किया जा सके।

प्रश्न 61.
साख नियंत्रण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
केंद्रीय बैंक की साख संकुचन एवं साख विस्तार की नीति को साख नियंत्रण कहते हैं।

प्रश्न 62.
केंद्रीय बैंक द्वारा अपनाई जाने वाली साख नियंत्रण की विभिन्न विधियों का आप किस प्रकार वर्गीकरण करेंगे?
उत्तर:
केंद्रीय बैंक द्वारा अपनाई जाने वाली साख नियंत्रण की विधियों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. मात्रात्मक विधियाँ
  2. गुणात्मक विधियाँ।

प्रश्न 63.
मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मौद्रिक नीति से अभिप्राय किसी देश के केंद्रीय बैंक की उस नीति से है जिसका उपयोग अर्थव्यवस्था में मुद्रा तथा साख की पूर्ति के नियंत्रण के लिए किया जाता है।

प्रश्न 64.
मौद्रिक नीति के उपायों को किन दो वर्गों में बाँटा जाता है?
उत्तर:

  1. परिमाणात्मक उपाय
  2. गुणात्मक उपाय।

प्रश्न 65.
मौद्रिक नीति के परिमाणात्मक उपायों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मौद्रिक नीति के परिमाणात्मक उपायों से अभिप्राय उन उपायों से है जिनके द्वारा एक केंद्रीय बैंक साख की लागत तथा मात्रा को नियंत्रित करता है।

प्रश्न 66.
मौद्रिक नीति के परिमाणात्मक उपाय कौन-से हैं?
उत्तर:

  1. बैंक दर में परिवर्तन
  2. बैंकों के रिज़र्व अनुपात में परिवर्तन
  3. खुले बाज़ार की प्रक्रिया।

प्रश्न 67.
मौद्रिक नीति के गुणात्मक उपायों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मौद्रिक नीति के गुणात्मक उपायों से अभिप्राय उन उपायों से है जिनके द्वारा एक केंद्रीय बैंक साख के प्रयोग और दिशा को नियंत्रित करता है।

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प्रश्न 68.
मौद्रिक नीति के गणात्मक उपाय कौन-से हैं?
उत्तर:

  1. सीमांत अपेक्षाएँ
  2. साख का वितरण नियंत्रण
  3. नैतिक आग्रह

प्रश्न 69.
बैंक दर (Bank Rate) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
बैंक दर से हमारा अभिप्राय उस दर से है जिस पर एक देश का केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों को वित्तीय सुविधाएँ अर्थात् ऋण प्रदान करता है।

प्रश्न 70.
खुले बाज़ार की प्रक्रिया (Process of Open Market) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
खुले बाज़ार की प्रक्रिया से हमारा अभिप्राय देश के केंद्रीय बैंक द्वारा अपने विवेक से खुले बाज़ार में आम जनता तथा बैंकों को सरकारी प्रतिभतियों के क्रय-विक्रय से है।

प्रश्न 71.
बैंक दर और ब्याज दर में क्या अंतर है?
उत्तर:
जिस दर पर केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों को ऋण सुविधाएँ प्रदान करता है, वह बैंक दर होती है जबकि ब्याज दर वह बाज़ार दर होती है जिस पर व्यावसायिक बैंक अपने ग्राहकों को ऋण प्रदान करते हैं।

प्रश्न 72.
केंद्रीय बैंक की प्रत्यक्ष कार्रवाई से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रत्यक्ष कार्रवाई से हमारा अभिप्राय उन सब नियंत्रणों व निर्देशों से है जिसे एक देश का केंद्रीय बैंक समस्त बैंकों पर या किसी एक बैंक पर लागू कर सकता है, ताकि उनके ऋणों और विनियोगों को नियंत्रित किया जा सके।

प्रश्न 73.
समाशोधन गृह (Clearing House) को परिभाषित करें।
उत्तर:
समाशोधन गृह से अभिप्राय देश के केंद्रीय बैंक द्वारा स्थापित उस केंद्र से है जहाँ विभिन्न बैंकों की परस्पर लेनदारियों और देनदारियों का निपटारा होता है। इनका निपटारा केंद्रीय बैंक विभिन्न बैंकों के खातों में अंतरण प्रविष्टियाँ करके करता है। समाशोधन गृह के कार्य के लिए केंद्रीय बैंक कोई शुल्क नहीं लेता।

प्रश्न 74.
नैतिक दबाव (Moral Suasion) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कभी-कभी केंद्रीय बैंक सदस्य बैंकों को समझा-बुझाकर, प्रार्थना करके या नैतिक दबाव डालकर उन्हें अपनी नीति के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य करता है। मुद्रास्फीति की स्थिति में केंद्रीय बैंक, बैंकों के साख संकुचन करने तथा मंदी और बेरोज़गारी की स्थिति में साख का विस्तार करने के लिए बाध्य करता है।

प्रश्न 75.
बैंक दर, साख की उपलब्धता को कैसे प्रभावित करती है?
उत्तर:
बैंक दर वह दर होती है जिस पर देश का केंद्रीय बैंक सदस्य बैंकों को ऋण सुविधाएँ उपलब्ध कराता है। बैंक दर और ब्याज दर में अंतर होता है, ब्याज दर वह दर होती है जिस पर व्यावसायिक बैंक अपने ग्राहकों को ऋण प्रदान करते हैं। बैंक दर और ब्याज दर में सीधा संबंध होता है। बैंक दर में वृद्धि से ब्याज दर बढ़ती है और बैंक दर में कमी से ब्याज दर कम होती है। जब ब्याज दर में कमी की जाती है तो बाज़ार में साख की उपलब्धता बढ़ती है और जब बैंक दर में वृद्धि की जाती है तो साख की उपलब्धता कम होती है।

प्रश्न 76.
बैंकों के किन्हीं दो प्राथमिक कार्यों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. साख का निर्माण
  2. जमा स्वीकार करना

प्रश्न 77.
मुद्रा के दो मुख्य प्राथमिक कार्य क्या हैं?
उत्तर:

  1. मूल्य का मापन
  2. विनिमय का माध्यम।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वस्त-विनिमय के संदर्भ में आवश्यकताओं के दोहरे संयोग के अभाव की समस्या समझाइए।
उत्तर:
वस्तु-विनिमय के लिए आवश्यक है कि एक व्यक्ति जिसके पास एक वस्तु का आधिक्य है, एक ऐसे अन्य व्यक्ति को खोज ले जो न केवल उस वस्तु की इच्छा करता हो, बल्कि उसके पास बदले में देने के लिए कुछ स्वीकार्य वस्तु हो। उदाहरण के लिए, Mr. X के पास अतिरिक्त मात्रा में गेहूँ है और उसे दाल की आवश्यकता है। दूसरी ओर, Mr. Y को गेहूँ की आवश्यकता है लेकिन उसके पास अतिरिक्त दाल नहीं है। ऐसी दशा में विनिमय नहीं होगा। विनिमय तभी संभव होगा जब Mr. Y, Mr. X को दाल देने की स्थिति में होगा। जब तक वस्तु-विनिमय में लगे हुए लोगों की आवश्यकताओं का दोहरा संयोग पूरी तरह से मेल नहीं खाता, वस्तु-विनिमय नहीं होगा।

प्रश्न 2.
वस्तु-विनिमय के संदर्भ में मूल्य के सर्वमान्य मापदंड के अभाव की समस्या समझाइए।
उत्तर:
वस्तु-विनिमय प्रणाली के अंतर्गत वस्तुओं के मूल्य का कोई सर्वमान्य मापदंड नहीं होता। विनिमय वस्तुएँ अलग-अलग मूल्य की होती हैं। वस्तु-विनिमय में यह निर्णय करना कठिन होता है कि दो वस्तुओं का किस अनुपात में आदान-प्रदान किया जाए। इस प्रकार विनिमय की शर्तों को निर्धारित करना कठिन हो जाता है। उदाहरण के लिए, कितने गेहूँ के बदले में कितना मीटर कपड़ा दिया जाएगा। चूँकि वस्तु-विनिमय में कोई सर्वमान्य मापदंड नहीं होता है जिसके संबंध में वस्तुओं के मूल्यों को व्यक्त किया जा वेनिमय अनुपात को पारस्परिक मांग की प्रबलता के अनुसार मनमाने ढंग से निधारित किया जाता है। इस प्रकार हो सकता है कि दो वस्तुओं के बीच प्रत्यक्ष विनिमय से किसी एक पक्ष को नुकसान हो रहा हो।

प्रश्न 3.
वस्तुओं की अविभाज्यता किस प्रकार वस्तु-विनिमय की एक प्रमुख समस्या है? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
हमारे दैनिक जीवन में ऐसी अनेक वस्तुएँ होती हैं जो अविभाज्य होती हैं अर्थात् जिन्हें छोटी इकाइयों में बाँटा नहीं जा सकता क्योंकि विभाजन करने से वस्तु की उपयोगिता या तो कम हो जाती है या समाप्त हो जाती है। इससे वस्तु-विनिमय में बहुत कठिनाई होती है। उदाहरण के लिए, एक घोड़े के बदले में Mr.X 100 किलो दाल ले सकता है जबकि Mr.X को केवल 20 किलो दाल की आवश्यकता है। घोड़े को छोटी इकाइयों में बाँटना मुश्किल है क्योंकि इससे घोड़ा अपना मूल्य खो देता है। अतः यह व्यवहार अकल्पनीय है।

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प्रश्न 4.
वस्तु-विनिमय प्रणाली में संपत्ति के संचयन और स्थानांतरण में कठिनाई की समस्या समझाइए।
उत्तर:
वस्तु-विनिमय प्रणाली में संपत्ति का संचयन कठिन है क्योंकि अधिकतर वस्तुओं की जीवनावधि सीमित होती है। जैसे गेहूँ, चावल आदि बहुत-सी वस्तुएँ समय बीतने के साथ खराब हो जाती हैं अथवा उनके संचयन पर भारी लागत की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरण करने में बहुत परिवहन व्यय करना पड़ता है और कुछ वस्तुओं (अचल संपत्ति) का स्थानांतरण असंभव होता है। इस प्रकार, वस्तु-विनिमय में क्रय-शक्ति का संचयन और स्थानांतरण लगभग असंभव होता है।

प्रश्न 5.
मौद्रिक नीति के मुख्य घटकों का वर्णन करें।
उत्तर:
मौद्रिक नीति के मुख्य घटक निम्नलिखित हैं-
1. बैंक दर-जिस दर पर देश के व्यावसायिक बैंकों को केंद्रीय बैंक, ऋण या अग्रिम (Advance) उपलब्ध करता है, उसे बैंक दर कहते हैं। यह बाज़ार ब्याज दर (जिस पर व्यावसायिक बैंक जनता को ऋण देते हैं) से भिन्न होती है। बैंक दर बढ़ने से ब्याज दर भी बढ़ जाती है और ऋण महँगा हो जाता है। मुद्रास्फीति की अवस्था में केंद्रीय बैंक, बैंक दर को बढ़ाकर साख या ऋण की उपलब्धता को सीमित करता है। ब्याज की ऊँची दर से उपभोग माँग और निवेश माँग में कमी आती है। इस प्रकार बैंक दर, केंद्रीय बैंक के हाथ में एक प्रभावी उपकरण है जिससे वह व्यावसायिक बैंकों की साख निर्माण की क्षमता को नियंत्रित करता है।

2. नकद रिज़र्व अनुपात-प्रत्येक व्यावसायिक बैंक को कानूनी तौर पर अपने पास जमा राशियों का एक न्यूनतम अनुपात केंद्रीय बैंक के पास नकदी के रूप में जमा करना होता है। इसे नकद रिज़र्व अनुपात (CRR) कहते हैं। यह अनुपात बढ़ाने से बैंकों की ऋण देने की क्षमता कम हो जाती है। मुद्रास्फीति की स्थिति में केंद्रीय बैंक इस अनुपात को बढ़ाकर व्यावसायिक बैंकों की साख निर्माण की क्षमता घटा देता है।

3. सांविधिक तरलता अनुपात (SLR)-प्रत्येक व्यावसायिक बैंक को अपनी कुल जमाओं का एक निश्चित अनुपात अपने पास तरल संपत्तियों (जैसे सरकारी प्रतिभूतियों) के रूप में रखना अनिवार्य होता है, इसे SLR कहते हैं। अधिमाँग की स्थिति में केंद्रीय बैंक तरल अनुपात में वृद्धि कर देता है जिसके फलस्वरूप बैंक कम ऋण दे सकते हैं। साख का संकुचन होने से समग्र माँग नियंत्रित हो जाती है।

प्रश्न 6.
वस्तु-विनिमय प्रणाली की किसी एक समस्या की व्याख्या कीजिए। मुद्रा ने इस समस्या का समाधान कैसे किया?
उत्तर:
वस्तु-विनिमय प्रणाली के अंतर्गत वस्तुओं के मूल्य का कोई सर्वमान्य मापदंड नहीं होता। विनिमय वस्तुएँ अलग-अलग मूल्य की होती हैं। वस्तु-विनिमय में यह निर्णय करना कठिन होता है कि दो वस्तुओं का किस अनुपात में आदान-प्रदान किया जाए। इस प्रकार विनिमय की शर्तों को निर्धारित करना कठिन हो जाता है। उदाहरण के लिए, कितने गेहूँ के बदले में कितने मीटर कपड़ा दिया जाएगा। चूँकि वस्तु-विनिमय में कोई सर्वमान्य मापदंड नहीं होता जिसके संबंध में वस्तुओं के मूल्यों को व्यक्त किया जा सके, विनिमय अनुपात को पारस्परिक माँग की प्रबलता के अनुसार मनमाने ढंग से निर्धारित किया जाता है।

मुद्रा का प्राथमिक कार्य वस्तुओं के मूल्य को मापना है। चूंकि मुद्रा व्यापक रूप से स्वीकार्य होती है। मुद्रा एक सामान्य मूल्यमान के रूप में काम करती है जिसमें सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य व्यक्त किए जाते हैं। मुद्रा में व्यक्त कीमतों के आधार पर दो वस्तुओं के सापेक्षिक मूल्यों की तुलना करना सरल हो जाता है। मुद्रा तब तक मूल्य के मापदंड का कार्य सही ढंग से कर सकती है जब तक उसका अपना मूल्यमान स्थिर रहे। मुद्रा के मूल्य से तात्पर्य क्रय-शक्ति से है।

प्रश्न 7.
मुद्रा का अर्थ बताइए। मुद्रा का ‘मूल्य संचय’ कार्य समझाइए।
उत्तर:
मुद्रा से अभिप्राय ऐसी वस्तु से है जो सामान्य रूप से विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार्य है और जो मूल्य के मापक तथा मूल्य संचय या भंडार के रूप में कार्य करती है।

मुद्रा क्रय-शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। जब मुद्रा को मूल्य की इकाई और भुगतान का माध्यम मान लिया जाता है तो मुद्रा सहज ही मूल्य के भंडार का कार्य करने लगती है। यद्यपि संपत्ति को मुद्रा के अतिरिक्त किसी भी रूप में संचित किया जा सकता है, परंतु मुद्रा संपत्ति (क्रय-शक्ति) के संचय करने का सबसे किफायती व सुविधाजनक तरीका है। तरलता और क्रय-शक्ति के कारण इसे भविष्य में आवश्यकतानुसार प्रयोग में लाया जा सकता है। मुद्रा का यह कार्य लोगों को वर्तमान आय के एक भाग की बचत करने और उसे भविष्य में उपयोग के लिए संचित करने की शक्ति देता है।

प्रश्न 8.
वस्तु-विनिमय क्या है? मुद्रा का स्थगित भुगतानों का मानक’ कार्य समझाइए।
उत्तर:
वस्तु-विनिमय से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जिसमें एक वस्तु का लेन-देन दूसरी वस्तु से प्रत्यक्ष रूप में होता है। अनेक अवस्थाओं में किन्हीं कार्यों, ऋणों आदि का भुगतान एक निश्चित अवधि के पश्चात् किया जाता है। चूँकि मुद्रा को निश्चित एवं मानकित इकाइयों में व्यक्त किया जा सकता है और सामान्यतया मुद्रा का मूल्य समय के साथ स्थिर रहता है, मुद्रा स्थगित भुगतान का मानक होती है। मुद्रा का यह कार्य वास्तव में मुद्रा के विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य का एक भाग है। मुद्रा के इस कार्य के कारण ही आधुनिक अर्थव्यवस्था में अधिकांश सौदों में तत्काल भुगतान नहीं किया जाता।

प्रश्न 9.
मुद्रा द्वारा मूल्य के हस्तांतरण का कार्य किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
मुद्रा अपने सामान्य स्वीकृति के गुण के कारण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तथा एक स्थान से दूसरे स्थान पर मूल्यों को हस्तांतरित करने में हमारी मदद करती है। मुद्रा ऐसे सौदों को सरलता से, शीघ्रता से और दक्षता से संपन्न करती है। मुद्रा के इसी गुण के कारण उधार लेने व देने की क्रियाएँ संभव होती हैं। वस्तुओं व सेवाओं को एक स्थान पर बेचकर आय को मुद्रा के रूप में प्राप्त कर इस मुद्रा से किसी अन्य स्थान पर दूसरी आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं को खरीदना भी संभव है।

प्रश्न 10.
कागज़ी मुद्रा ने सोने और चाँदी के सिक्कों को क्यों अप्रचलित कर दिया? कोई तीन कारण बताइए।
उत्तर:
निम्नलिखित कारणों से कागज़ी मुद्रा ने सोने और चांदी के सिक्कों को अप्रचलित कर दिया-
1. सिक्कों को रखना और उपयोग करना असुविधाजनक हो गया था।

2. सोना व चाँदी मूल्यवान धातुएँ थीं और इनकी सुरक्षा समस्या बन गई थी।

3. सोने और चाँदी का उत्पादन सिक्कों के लिए आवश्यक मात्रा से कम था। व्यवसाय और व्यापार की बढ़ती आवश्यकताओं को सोने-चाँदी की मात्रा पूरी नहीं कर सकती थी।

प्रश्न 11.
मुद्रा की माँग क्यों की जाती है? संक्षेप में समझाइए। अथवा मुद्रा को रखने के उद्देश्य कौन-से हैं? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
मुद्रा की माँग निम्नलिखित दो उद्देश्यों के लिए की जाती है-
1. संव्यवहार उद्देश्य अथवा क्रय-विक्रय उद्देश्य मुद्रा की माँग व्यक्तियों और फर्मों द्वारा विभिन्न संव्यवहारों को कार्यान्वित करने के लिए की जाती है। मुद्रा की यह माँग आय पर निर्भर करती है, ब्याज दर पर नहीं।

2. सट्टा उद्देश्य मुद्रा की माँग व्यक्तियों और फर्मों द्वारा लाभ कमाने के लिए भी की जाती है। वे प्रतिभूतियों को कीमतें बढ़ने की आशा से खरीदते हैं और कीमतें गिरने के पूर्वानुमान पर बेच देते हैं। मुद्रा की यह माँग ब्याज की दर पर निर्भर करती है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 12.
माँग जमा और सावधि जमा में अंतर कीजिए।
उत्तर:
माँग जमा और सावधि जमा में अंतर इस प्रकार है-

अंतर का आधारमाँग जमासावधि जमा
1. देयतामाँग जमा जमाकर्त्ता के माँगने पर देय है।सावधि जमा एक निश्चित अवधि के बाद ही देय होती है।
2. ब्याजइस जमा पर सामान्यतया बैंक द्वारा जमाकर्ता को कोई ब्याज नहीं दिया जाता।इस जमा पर बैंक द्वारा जमाकर्ता को ब्याज दिया जाता है।
3. तरलतायह अत्यधिक तरल है।यह तरल नहीं होता।

प्रश्न 13.
संकुचित मुद्रा (Narrow Money) और व्यापक मुद्रा (Broad Money) में भेद कीजिए।
उत्तर:

  1. संकुचित मुद्रा में करेंसी (नोट व सिक्के) C और व्यावसायिक बैंकों में लोगों की माँग जमाएँ (Demand Deposits DD) शामिल की जाती हैं। सांकेतिक रूप में M= C+ DD
  2. व्यापक मुद्रा में, संकुचित मुद्रा (C+ DD) के अतिरिक्त व्यावसायिक बैंकों तथा डाकघर बचत संगठनों में सावधि जमाएँ (Time Deposits-TD) शामिल की जाती हैं। M= C+ DD + TD

प्रश्न 14.
उच्च शक्तिशाली (High Powered Money) अथवा संकुचित मुद्रा (Narrow Money) और व्यापक मुद्रा (Broad Money) में भेद कीजिए।
उत्तर:
भारत की मौद्रिक प्राधिकरण (Monetary Authority) भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की संपूर्ण देयता (Total Liability) की मौद्रिक आधार या उच्च शक्तिशाली मुद्रा कहते हैं। इसमें आम जनता के पास करेंसी (C), व्यावसायिक बैंकों की नकदी रिज़र्व (R) और भारतीय रिज़र्व बैंक में रखी गई अन्य जमाएँ (Other Deposits-DD) शामिल की जाती हैं। सांकेतिक रूप में, M = C + R + OD जबकि व्यापक मुद्रा में उच्च शक्तिशाली मुद्रा के अतिरिक्त व्यावसायिक बैंकों और डाकघर बचत संगठनों में सावधि जमाएँ (Time Deposits-TD) शामिल की जाती हैं। सांकेतिक रूप में, M=C+ R + OD + TD

प्रश्न 15.
लोग अपना धन बैंकों में जमा क्यों करवाते हैं?
उत्तर:
लोग अपना धन बैंकों में निम्नलिखित कारणों से जमा करवाते हैं-

  1. ब्याज की प्राप्ति-घर में रखा पैसा बेकार पड़ा रहता है। बैंक में जमा करवाने से लोगों को ब्याज की प्राप्ति होती है।
  2. तरलता-लोगों को नकदी की आवश्यकता पड़ने पर जमा-राशि को बिना हानि के तुरंत निकलवाया जा सकता है।
  3. सुरक्षा-बैंकों में जमा धन सुरक्षित रहता है, जबकि घर में पड़ा रुपया असुरक्षित होता है।

प्रश्न 16.
साख निर्माण किसे कहते हैं? समझाइए। अथवा बैंक को मुद्रा का निर्माता भी कहा जाता है। समझाइए।
उत्तर:
साख निर्माण साख से अभिप्राय है कि जब कोई व्यक्ति, फर्म या बैंक अन्य व्यक्ति, फर्म या बैंक को उधार देता है या वित्त प्रदान करता है, तो वह साख कहलाती है। व्यावसायिक बैंक अपनी नकद जमाओं, जिन्हें प्राथमिक जमाएँ भी कहा जाता है, के आधार पर कई गुणा साख का निर्माण कर सकता है। जो धनराशि लोगों द्वारा नकदी के रूप में बैंक में जमा करवाई जाती है, उसे ही प्राथमिक जमा कहते हैं। बैंक लोगों की जमा नकदी पर उन्हें ब्याज देता है। इसके साथ ही बैंक उन्हें विश्वास दिलाते हैं कि जब भी उन्हें नकदी की आवश्यकता होगी, तो वे बैंक से अपना रुपया निकलवा सकते हैं।

परंतु बैंक अपनी प्राथमिक जमाओं का एक भाग ही नकदी में आरक्षित रखते हैं, क्योंकि बैंक अपने अनुभव के आधार पर जानते हैं कि सभी व्यक्ति एक ही समय पर धनराशि नहीं निकलवाते और इसलिए वे शेष रकम को उधार दे देते हैं। यह उधार बैंक नकदी में न देकर, ऋणी के नाम जमा खाता खोलकर उनमें जमा कर देते हैं जिनको गौण जमाएँ कहा जाता है। गौण जमाओं को माँग जमाएँ भी कहते हैं क्योंकि ऋण माँग जमाओं के रूप में होते हैं। इसके लिए बैंक उसे (ऋणी को) एक चैक बुक दे देता है। इन माँग जमाओं का निर्माण ही साख निर्माण कहलाता है। जब बैंक उधार देकर गौण जमाओं अथवा माँग जमाओं में वृद्धि कर सकता है, तो वह मुद्रा की पूर्ति (M1) में भी वृद्धि कर सकता है। इसलिए बैंक को मुद्रा का निर्माता भी कहा जाता है।

प्रश्न 17.
साख नियंत्रण के परिमाणात्मक तथा गुणात्मक उपायों में अंतर कीजिए।
उत्तर:
साख नियंत्रण के परिमाणात्मक उपायों तथा गुणात्मक उपायों में अंतर को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है-

अंतर का आधारपरिमाणात्मक उपायगुणात्मक उपाय
1. स्वभाव या प्रकृतिपरिमाणात्मक उपाय साख के आवश्यक और गैर-आवश्यक उपयोगों में अंतर किए बिना साख की कुल मात्रा को प्रभावित करते हैं।गुणात्मक उपाय साख के आवश्यक और गैर-आवश्यक उपयोगों में अंतर करके साख नियंत्रित करते हैं।
2. बैंकों की भूमिकाये उपाय अव्यक्तिगत और अप्रत्यक्ष होते हैं। इसलिए केंद्रीय बैंक को सामान्य निगरानी करनी पड़ती है।ये उपाय व्यक्तिगत और प्रत्यक्ष होते हैं। व्यावसायिक बैंकों तथा केंद्रीय बैंक को अधिक जिम्मेदारी निभानी पड़ती है।
3. प्रभावये उपाय ऋणदाताओं को प्रभावित करते हैं और ॠणियों का प्रभावित होना आवश्यक नहीं है।ये उपाय ऋणदाताओं तथा ऋणियों दोनों को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 18.
खुले बाज़ार की प्रक्रियाओं के द्वारा केंद्रीय बैंक साख उपलब्धता पर नियंत्रण कैसे करता है? समझाइए।
उत्तर:
खुले बाज़ार की प्रक्रियाओं से अभिप्राय एक केंद्रीय बैंक द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय से है। खुले बाज़ार की प्रक्रिया के अंतर्गत केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों को सरकारी प्रतिभूतियाँ बेचता है या उनमें सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय करता है। खुले बाज़ार की प्रक्रियाओं से व्यावसायिक बैंकों के पास उपलब्ध नकदी की मात्रा प्रभावित होती है जिससे बैंक साख उपलब्धता प्रभावित होती है। सरकारी प्रतिभूतियों के बेचने से व्यावसायिक बैंकों के पास नकदी मात्रा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीकों से कम हो जाती है और व्यावसायिक बैंक द्वारा किए गए साख निर्माण भी कम हो जाते हैं। इसके विपरीत जब केंद्रीय बैंक यह महसूस करता है कि व्यावसायिक बैंकों द्वारा किए गए साख निर्माण में वृद्धि हो तो वह व्यावसायिक बैंकों से सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय कर लेता है जिससे बैंकों के पास नकदी की मात्रा बढ़ जाती है और वे अधिक साख का निर्माण करते हैं।

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प्रश्न 19.
अर्थव्यवस्था में ऋण की उपलब्धता पर प्रभाव डालने में सीमा (मार्जिन) अनिवार्यताओं की भूमिका समझाइए।
अथवा
साख नियंत्रण के किसी गुणात्मक उपाय का वर्णन उदाहरण सहित कीजिए।
उत्तर:
साख नियंत्रण का एक गुणात्मक उपाय सीमा अनिवार्यताओं का नियमन है। केंद्रीय बैंक प्रतिभूतियों का क्रय करने या रखने के लिए ऋणों पर न्यूनतम सीमा आवश्यकताएँ निर्धारित कर देता है। यह प्रतिभूतियों के मूल्य का वह प्रतिशत है जो उधार लिया अथवा दिया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि केंद्रीय बैंक सीमा आवश्यकता 40% निर्धारित करता है तो एक व्यावसायिक बैंक 1,00,000 रुपए वाली प्रतिभूति के विरुद्ध केवल 60,000 रुपए ही उधार दे सकेगा। अगर केंद्रीय बैंक इस सीमा को बढ़ाकर 50% कर देता है तो व्यावसायिक बैंक केवल 50,000 रुपए ही ऋण के रूप में दे सकेगा। इस उपाय का उद्देश्य विशिष्ट उद्देश्यों के लिए साख के प्रयोग का नियमन करना है।

प्रश्न 20.
नकद कोष अनुपात (CRR) और साविधिक तरलता अनुपात (SLR) में भेद कीजिए।
उत्तर:
साख नियंत्रण के लिए केंद्रीय बैंक द्वारा अपनाई गई ये दो विधियाँ हैं। CRR वह न्यूनतम अनुपात (Ratio) है जो व्यावसायिक बैंकों को अपने पास जमा कुल राशियों का निर्धारित अनुपात केंद्रीय बैंक के पास कानूनन जमा करना होता है। SLR वह अनुपात है जो व्यावसायिक बैंकों को अपनी कुल जमाओं का एक निश्चित अनुपात अपने पास नकदी या तरल संपत्तियों (जैसे सरकारी प्रतिभूतियाँ) के रूप में रखना अनिवार्य होता है।

प्रश्न 21.
व्यापारिक बैंकों के कोई चार कार्य बताएँ।
उत्तर:
व्यापारिक बैंकों के कोई चार कार्य निम्नलिखित हैं-
1. पूँजी निर्माण-व्यापारिक बैंक लोगों की निष्क्रिय जमा (Idle Savings) को एकत्रित करते हैं तथा उन्हें उत्पादक कार्यों के लिए उपलब्ध कराते हैं। इस प्रकार, उपभोग से उत्पादन की ओर साधनों का हस्तांतरण होता है। परिणामस्वरूप पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि होती है जिससे आर्थिक विकास की गति तीव्र होती है।

2. वित्त एवं साख की व्यवस्था व्यापारिक बैंक उद्योग एवं व्यापार को वित्त एवं साख प्रदान करते हैं। वित्त एवं साख उद्योग एवं व्यापार में चिकनाहट का कार्य करता है। वित्त सुविधा होने पर उद्योगों को मशीनें और अन्य यन्त्र आयात करने में कोई कठिनाई नहीं आती।

3. नव-प्रवर्तन को प्रोत्साहन-बैंक उद्यमियों को साख प्रदान करके नव-प्रवर्तन को प्रोत्साहित करते हैं। फलस्वरूप नई वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि होती है। इसका आर्थिक विकास पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।

4. ब्याज की दर का प्रभाव बैंक ब्याज की दर को इस प्रकार निर्धारित करते हैं जिससे उद्यमियों एवं व्यवसायियों को निवेश करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। फलस्वरूप उत्पादन तथा व्यापार में वृद्धि होती है। इसका आर्थिक विकास पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 22.
केंद्रीय बैंक के कोई चार कार्य बताइए।
उत्तर:
केंद्रीय बैंक के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-
1. मुद्रा निर्गमन केंद्रीय बैंक मुद्रा निर्गमन का बैंक होता है। केंद्रीय बैंक को मुद्रा निर्गमन करने का एकाधिकार होता है। इसके द्वारा जारी किए गए नोट वैध मुद्रा के रूप में प्रचलित रहते हैं। इससे मौद्रिक प्रणाली में स्थिरता आती है।

2. सरकार का बैंकर, प्रतिनिधि और परामर्शदाता केंद्रीय बैंक केंद्र और राज्य सरकारों की जमा रखता है और उनकी ओर से भुगतान करता है। वह सरकार के सभी वित्तीय कार्य करता है। केंद्रीय बैंक सरकार को मौद्रिक एवं आर्थिक मुद्दों पर परामर्श भी देता है।

3. बैंकों का बैंकर बैंकों के बैंकर के रूप में केंद्रीय बैंक अन्य बैंकों के नकदी रिज़र्व का रखवाला होता है। केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों के नकद कोषों के एक अंश को अपने पास रखता है। उन्हें अल्पावधि के लिए नकदी देता है और उन्हें केंद्रीकृत समाशोधन और धन विप्रेषण की सुविधाएँ प्रदान करता है।

4. साख नियंत्रण केंद्रीय बैंक का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य व्यावसायिक बैंकों की साख-निर्माण शक्ति को नियंत्रित करना है।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मुद्रा की परिभाषा दीजिए। मुद्रा के प्रमुख कार्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा का अर्थ एवं परिभाषाएँ मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जो विनिमय के माध्यम, मूल्य के मापक, ऋणों के अंतिम भुगतान, मूल्यों के संचय के साधन के रूप में स्वतंत्र, विस्तृत तथा सामान्य रूप से व्यक्तियों द्वारा स्वीकार की जाती है।
1. रॉबर्टसन के अनुसार, “कोई भी वस्त जो वस्तुओं के बदले भुगतान के रूप में या अन्य व्यावसायिक दायित्वों के लिए स्वीकार की जाए मुद्रा कहलाती है।”

2. क्राउथर के अनुसार, “कोई भी वस्तु जो सामान्य रूप से विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार की जाती है और साथ ही मूल्य के माप व संचय का कार्य भी करती है, मुद्रा कहलाती है।”

मुद्रा के प्रमुख कार्य-मुद्रा के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
1. विनिमय का माध्यम मुद्रा का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करना है। मुद्रा में सामान्य स्वीकृति का गुण होने के कारण विभिन्न वस्तुओं का लेन-देन प्रत्यक्ष न होकर मुद्रा के माध्यम से होता है। विनिमय के माध्यम (Medium of Exchange) का कार्य करके मुद्रा ने वस्तु-विनिमय प्रणाली की कठिनाइयों को समाप्त कर दिया है। मुद्रा से ही वस्तुओं और सेवाओं को खरीदा और बेचा जाता है। आप अपनी वस्तु को मुद्रा के बदले बेच सकते हैं और इससे प्राप्त मुद्रा से अपनी मनचाही कोई अन्य वस्तु खरीद सकते हैं।

2. मूल्य का मापक-यह मुद्रा का दूसरा अनिवार्य कार्य है। मुद्रा के इस कार्य को लेखे अथवा हिसाब की इकाई भी कहा जाता है। मुद्रा अर्थव्यवस्था के सामान्य मूल्य के मापक के रूप में कार्य करती है। यह सभी स्तुओं और सेवाओं के मूल्य आँकती है; जैसे, गेहूँ 1000 रुपए क्विंटल, कपड़ा 120 रुपए मीटर, मकान का किराया 2000 रुपए मासिक इत्यादि। मुद्रा में आँके गए विभिन्न वस्तुओं के मूल्यों को कीमत कहा जाता है। इस प्रकार मुद्रा एक ऐसा सामान्य मापदंड है जिसके द्वारा प्रत्येक वस्तु का मूल्य मापा जाता है।

3. स्थगित (भावी) भुगतान का मानक बहुत-से लेन-देन उधार होते हैं जिनका भुगतान भविष्य में किया जाता है। इस प्रकार का भुगतान वस्तु-विनिमय में कठिन होता है क्योंकि वस्तुओं का मूल्य परिवर्तित होता रहता है तथा इनकी किस्म भी एक-जैसी नहीं रहती, लेकिन उधार का भुगतान मुद्रा में करना और उधार का हिसाब मुद्रा में रखना संभव होता है। इस प्रकार मुद्रा में ऋणों का लेन-देन संभव होता है, क्योंकि मुद्रा के मूल्य में शीघ्र परिवर्तन नहीं आते।

4. मूल्य का संचय–प्रत्येक मनुष्य अपनी आय का कुछ भाग बचत करना चाहता है। धन संचय वस्तुओं के रूप में नहीं हो सकता क्योंकि इनके नष्ट होने का भय रहता है। मुद्रा संचय करने का सर्वोत्तम साधन है। मुद्रा के रूप में बचत करना सुरक्षित होता है। इसके नष्ट होने का भय नहीं होता। इसके लिए अधिक स्थान की आवश्यकता नहीं पड़ती। इस प्रकार मुद्रा पूँजी निर्माण के लिए आधार प्रस्तुत करती है।

5. मूल्य का हस्तांतरण-मुद्रा धन का सर्वाधिक तरल रूप है। मुद्रा द्वारा चल तथा अचल संपत्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान तक एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तांतरित कर सकते हैं। यदि कोई व्यक्ति, पंजाब से दिल्ली में बसना चाहता है तो वह पंजाब बेचकर मुद्रा कमाएगा और प्राप्त मुद्रा से दिल्ली में जायदाद खरीद लेगा। इस प्रकार धन हस्तांतरण में मुद्रा सहायक होती है। इससे साधनों में गतिशीलता बढ़ती है।

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प्रश्न 2.
केंद्रीय बैंक की परिभाषा दीजिए। इसके प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा
केंद्रीय बैंक क्या है? इसके ‘सरकार का बैंकर’ के रूप में कार्य की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
केंद्रीय बैंक का अर्थ एवं परिभाषाएँ- केंद्रीय बैंक देश की मौद्रिक व्यवस्था की सिरमौर (Apex) संस्था है जो नोट जारी करती है, सरकार और अन्य बैंकों का बैंकर है, मुद्रा और साख का नियंत्रण करती है और मौद्रिक स्थिरता बनाए रखती है। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) भारत का केंद्रीय बैंक है।
1. प्रो० वीरा स्मिथ के अनुसार, “केंद्रीय बैंक से अभिप्राय, बैंकिंग की उस प्रणाली से होता है जिसके अंतर्गत किसी एक विशेष बैंक को नोट निर्गमन का पूर्ण अधिकार होता है।”

2. प्रो० डी-कॉक के अनुसार, “केंद्रीय बैंक वह बैंक है जो देश के मौद्रिक तथा बैंकिंग ढाँचे के शिखर पर होता है।” केंद्रीय बैंक के प्रमुख कार्य केंद्रीय बैंक के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
1. नोट जारी करना केंद्रीय बैंक देश में करेंसी जारी करने का एकाधिकार रखता है। चूंकि समस्त मुद्रा का निर्गमन, केंद्रीय होती है, इसलिए केंद्रीय बैंक पर समस्त जारी की गई मुद्रा के मान के बराबर, संपत्तियों (Assets) का सुरक्षित भंडार रखने का भी दायित्व होता है। इन संपत्तियों में सोना, चाँदी व इनके बने सिक्के, विदेशी मुद्रा और राष्ट्रीय सरकार की स्थानीय करेंसी प्रतिभूतियाँ शामिल रहती हैं। केंद्रीय बैंक द्वारा जारी नोट सारे देश में असीमित विधि ग्राह्य (Unlimited Legal Tender) घोषित होते हैं। देश की केंद्रीय सरकार को केंद्रीय बैंक से ऋण लेने का अधिकार होता है। इसके लिए सरकार केंद्रीय बैंक को अपनी स्थानीय करेंसी प्रतिभूतियाँ बेच देती है और केंद्रीय बैंक इनके मान के बराबर मुद्रा जारी कर देता है। इस प्रकार सरकार का यह अधिकार, उसे अपने ऋण की आवश्यकताओं का मौद्रिकरण करने की सविधा प्रदान करता है।।

2. सरकार का बैंकर-यह केंद्र सरकार और राज्य सरकारों का बैंकर होता है। इसलिए यह सरकार के सारे बैंक संबंधी कार्य निपटाता है और सरकार के सारे हिसाब-किताब रखता है। सरकार के फालतू रुपए को अपने पास जमा रखता है और ज़रूरत पड़ने पर सरकार को उधार देता है। किंतु सरकार को दिए गए उधार रुपए पर ब्याज नहीं लेता और न ही सरकार द्वारा दिए गए फालतू रुपए पर ब्याज देता है। इसके अतिरिक्त सरकार के एजेंट के रूप में प्रतिभूतियाँ और खजाना संबंधी बिलों (Treasury Bills) आदि का क्रय-विक्रय करता है। यह सरकार को समय-समय पर मौद्रिक, बैंकिंग व वित्तीय मामलों में परामर्श भी देता है। इस प्रकार यह सरकार का बैंकर होने के अतिरिक्त एजेंट और सलाहकार भी है।

3. बैंकों का बैंकर व पर्यवेक्षक यह देश के अन्य बैंकों के लिए बैंकर का काम करता है अर्थात् अन्य बैंकों के साथ केंद्रीय बैंक का संबंध वैसा होता है जैसे एक साधारण बैंक का अपने ग्राहकों के साथ होता है। ध्यान रहे, केंद्रीय बैंक, अन्य बैंकों की नकद जमा का निश्चित अनुपात अपने पास सुरक्षित रखता है। इसे नकद रिज़र्व अनुपात कहते हैं। इस प्रावधान का मकसद CRR के औज़ार के द्वारा मुद्रा और साख का नियंत्रण करना है। अन्य बैंक, CRR के अतिरिक्त और कुछ-न-कुछ राशि भी केंद्रीय बैंक के पास जमा रखते हैं ताकि संकट के समय अपने ग्राहकों द्वारा अतिशय राशि निकालने की कठिनाइयों से बचा जा सके। केंद्रीय बैंक, व्यावसायिक बैंकों के कोषों का संरक्षक (Custodian) होता है और ज़रूरत के समय उनको ऋण प्रदान करता है। दूसरे बैंकों को अपने हिसाब-किताब का ब्यौरा नियमित रूप से केंद्रीय बैंक को भेजना पड़ता है।

4. मुद्रा की पूर्ति और साख का नियंत्रण केंद्रीय बैंक अपनी मौद्रिक नीति के द्वारा (i) मुद्रा की पूर्ति और (ii) साख का नियंत्रण करता है ता है। जहाँ तक मुद्रा या करेंसी की पूर्ति का संबंध है केंद्रीय बैंक को करेंसी जारी करने का एकाधिकार प्राप्त है इसलिए यह करेंसी की पर्ति प्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित करता है।

साख नियंत्रण के लिए यह मात्रात्मक (Quantitative) और गुणात्मक (Qualitative) उपायों का प्रयोग करता है। जैसे कि-
(i) बैंक दर-बैंक दर वह दर है जिस पर केंद्रीय बैंक, व्यावसायिक बैंकों को ऋण देता है। ध्यान रहे, बैंक दर, बाज़ार की ब्याज दर से भिन्न होती है। ब्याज दर वह दर है जिंस पर व्यावसायिक बैंक, बाज़ार में जनता को ऋण देते हैं। बैंक दर में वृद्धि होने पर ब्याज दर भी बढ़ जाती है जिससे ऋण महँगा हो जाता है और व्यापारियों द्वारा साख (या ऋण) की माँग कम हो जाती है। अतः मुद्रास्फीति व अधिमाँग की स्थिति में केंद्रीय बैंक, बैंक दर बढ़ा देता है और इस प्रकार व्यावसायिक बैंकों द्वारा दिए जाने वाले ऋण या साख को अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित करता है। इसके विपरीत अभावी माँग व मंदी की हालत में केंद्रीय बैंक, बैंक दर घटाकर साख उपलब्धता अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ा देता है।

(ii) खुले बाजार की प्रक्रियाएँ इससे अभिप्राय केंद्रीय बैंक द्वारा खुले बाज़ार (Open Market) में सरकारी प्रतिभूतियों के खरीदने व बेचने से है। जब केंद्रीय बैंक, व्यावसायिक बैंकों को प्रतिभूतियाँ बेचता है तो उतने मूल्य की नकद राशि उनसे खींच लेता है, जिससे व्यावसायिक बैंकों की ऋण देने की क्षमता गिर जाती है। इस प्रकार केंद्रीय बैंक साख की उपलब्धता नियंत्रित करता है। मुद्रास्फीति की दशा में केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों को सरकारी प्रतिभूतियाँ बेचकर, उतने मूल्य की नकद राशि उनसे खींच लेता है, फलस्वरूप व्यावसायिक बैंकों की ऋण देने की क्षमता सीमित हो जाती है। इसके विपरीत आर्थिक मंदी की स्थिति में केंद्रीय बैंक प्रतिभूतियाँ खरीदकर व्यावसायिक बैंकों का नकद कोष बढ़ा देता है जिससे साख की उपलब्धता बढ़ जाती है।

(iii) नकद कोष अनुपात-प्रत्येक व्यावसायिक बैंक को अपने पास कुल जमा राशियों का एक न्यूनतम अनुपात, केंद्रीय बैंक के पास कानूनन जमा करना होता है। इसे नकद कोष अनुपात (Cash Reserve Ratio) कहते हैं। इस अनुपात को बढ़ा-घटाकर केंद्रीय बैंक, व्यावसायिक बैंकों के पास बचे नकद कोष को घटा-बढ़ाकर उनकी साख देने की क्षमता को प्रभावित करता है। यह
बैंकों की ऋण देने की क्षमता कम हो जाती है। मुद्रास्फीति की स्थिति में, केंद्रीय बैंक इस अनुपात को बढ़ाकर बैंकों की साख निर्माण की क्षमता घटा देता है।

(iv) वैधानिक तरलता अनुपात-यह साख नियंत्रण की एक और विधि है जो केंद्रीय बैंक द्वारा प्रयोग किया जाता है। इस विधि के अनुसार प्रत्येक व्यावसायिक बैंक को अपनी कुल जमाओं का एक निश्चित अनुपात (जो केंद्रीय बैंक द्वारा निश्चित होता है) अपने पास तरल परिसंपत्तियों (जैसे सरकारी प्रतिभूतियों) के रूप में रखना अनिवार्य होता है। मुद्रास्फीति की स्थिति में केंद्रीय बैंक तरल अनुपात में वृद्धि कर देता है जिसके फलस्वरूप बैंकों की ऋण देय क्षमता कम हो जाती है।

5. अंतिम ऋणदाता-जब व्यावसायिक बैंक तरलता संकट (Liquidity Crisis) के समय अपने सारे साधन जुटाने के बाद भी नकद राशि का प्रबंध नहीं कर सकते तो वे अंतिम उपाय के रूप में केंद्रीय बैंक का दरवाजा खटखटाते हैं और कठिनाई का . सामना करने के लिए ऋण माँगते हैं। तब केंद्रीय बैंक उन्हें उधार देता है और उनकी जायज माँगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से पूरा करने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले लेता है। इसीलिए केंद्रीय बैंक के इस कार्य के कारण, उसे अंतिम ऋणदाता कहा जाता है।

6. विदेशी मुद्रा कोषों का संरक्षक केंद्रीय बैंक अन्य देशों से प्राप्त विदेशी मुद्रा के कोषों का भी संरक्षक है। देश के नागरिकों को, बाहर से प्राप्त की गई विदेशी मुद्रा, केंद्रीय बैंक के पास जमा करवानी होती है। यदि नागरिकों को विदेशी मुद्रा में बाहर कोई अदायगी करनी है तो उन्हें केंद्रीय बैंक से निवेदन करके विदेशी मुद्रा प्राप्त करनी होती है। अपने देश की मुद्रा इकाई के बाहरी मूल्य को अर्थात् विनिमय दर को स्थिर (Stable) रखना केंद्रीय बैंक का महत्त्वपूर्ण कार्य बन गया है।

प्रश्न 3.
व्यावसायिक बैंक की परिभाषा दीजिए। इसके प्राथमिक कार्यों का विस्तारपूर्वक वर्णन करें।
अथवा
व्यापारिक बैंकों (Commercial Banks) के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यावसायिक बैंक का अर्थ. एवं परिभाषा-व्यावसायिक बैंक (Commercial Bank) एक वित्तीय संस्था है जो लाभ कमाने के उद्देश्य से साधारण जनता से जमा स्वीकार करने और निवेश के लिए ऋण देने का कार्य करती है।

कलबर्टन के शब्दों में, “व्यावसायिक बैंक वे संस्थाएँ हैं जो व्यापार को अल्पकाल के लिए ऋण देती हैं और इस प्रक्रिया में मुद्रा का निर्माण करती हैं।”

व्यावसायिक बैंक के प्राथमिक कार्य-व्यावसायिक बैंक के प्राथमिक कार्य निम्नलिखित हैं-
1. जमा स्वीकार करना-व्यावसायिक बैंकों का प्रथम कार्य लोगों की बचतों को जमा करना है। बैंकों में जमा के लिए हम निम्नलिखित प्रकार के खाते खोल सकते हैं
(i) चालू जमा खाता-इस खाते में सामान्यतः व्यापारी वर्ग तथा उद्योगपति रुपया जमा कराते हैं। इस खाते की विशेषता यह है कि इसमें किसी भी समय कितनी ही मात्रा में रकम जमा कराई जा सकती है और आवश्यकतानुसार किंतनी ही बार निकाली जा सकती है। चालू खातों पर रखी जाने वाली राशि पर सामान्यतः ब्याज नहीं दिया जाता, वरन् कुछ स्थितियों में जमाकर्ताओं से कुछ शुल्क भी वसूल किया जाता है। इन खातों में जमा राशि को बैंक की ‘माँग देनदारियाँ’ (Demand Liabilities) कहा जाता है।

(ii) निश्चित जमा खाता इस प्रकार के खाते में जमा एक निश्चित अवधि के लिए स्वीकार किए जाते हैं। जो प्रायः एक माह से 5 वर्ष या अधिक अवधि के लिए स्वीकार किए जाते हैं। चूँकि बैंक के पास जमा राशि एक निश्चित अवधि के लिए होती है। अतः बैंक निश्चितता के साथ इसका विनियोजन कर सकता है। इस कारण इन जमा राशियों पर ब्याज की दर अधिक होती है। यह खाते उन लोगों के लिए उपयोगी होते हैं जो अपना धन किसी भी प्रकार के जोखिम में नहीं लगाना चाहते। जमावधि की पूर्णता से पूर्व यदि जमाकर्ता जमा राशि वापस लेना चाहे तो कुछ कटौती काटकर बैंक जमा राशि उसे लौटा देता है। इन खातों में जमा राशि को ‘काल देनदारियाँ’ (Time Liabilities) कहते हैं।

(iii) बचत जमा खाता-यह खाता सामान्य जनता में बचतों को प्रोत्साहन देने के लिए होता है। यह खाता चालू और निश्चित अवधि खाते की बीच की स्थिति है। इस खाते में किसी भी समय रुपया जमा कराया जा सकता है, किन्तु रुपया निकलवाने की अवधियाँ प्रायः सीमित होती हैं। बैंक इन खातों में भी चैक द्वारा रुपया निकलवाने की सुविधा देते हैं। इन खातों पर निश्चित अवधि खाते से कम ब्याज दिया जाता है, क्योंकि बैंक के पास रुपया कम अवधि के लिए जमा रहता है। ये खाते नौकरी-पेशे व्यक्तियों तथा लघु व्यापारियों के लिए उचित होते हैं। पश्चिमी देशों में बचत बैंक प्रायः अलग बैंक के रूप में कार्य करते हैं, किन्तु भारत में व्यावसायिक बैंकों में ही खाते खोले जाते हैं।

(iv) आवर्ती जमा खाता-इस प्रकार के खाते में जमाकर्ता एक निश्चित समय के लिए प्रतिमास निश्चित रकम जमा करते हैं। यह रकम कुछ विशेष परिस्थितियों के अलावा साधारणतया निर्धारित समय से पहले नहीं निकाली जा सकती। जमाकर्ताओं की जमा राशि पर मिलने वाली ब्याज की रकम भी खाते में जमा होती जाती है। इस खाते में सावधि खाते की तरह ही अन्य सभी खातों की तुलना में अधिक ब्याज प्राप्त होता है।

2. उधार देना-व्यावसायिक बैंकों का दूसरा प्राथमिक कार्य ऋण देना है। बैंक दूसरे लोगों से जो जमा स्वीकार करता है, उसका एक निश्चित भाग सुरक्षा कोष में रखकर, शेष राशि व्यापारियों व उद्यमियों को उत्पादक कार्यों के लिए उधार दे देता है और उस पर ब्याज कमाता है। वास्तव में बैंक की आय का यही मुख्य स्रोत है। बैंक निम्नलिखित रूपों में ऋण तथा अग्रिम (Advance) प्रदान करता है
(i) नकद साख-इस विधि में पात्र (Eligible) ऋणी के लिए पहले साख सीमा (Credit Limit) निर्धारित कर दी जाती है और इस सीमा के अंदर ही वह दी हुई गारंटी (Security) के आधार पर राशि निकाल सकता है। ऋणी द्वारा पैसा निकालने की क्षमता उसकी साख अर्हता (Credit Worthiness) पर निर्भर करती है। साख अर्हता, ऋणी की वर्तमान परिसंपत्तियों, स्टॉक, हुंडियों आदि का विवरण जो उसे बैंक के पास जमा करना पड़ता है पर निर्भर करती है। बैंक केवल आहरित या स्वीकृत साख की उपयोग की गई राशि पर ब्याज वसूल करता है।

(ii) अल्पावधि ऋण-ऐसे ऋणों में व्यक्तिगत ऋण, कार्यशील पूँजी ऋण व वरीयता वाले क्षेत्रकों को अल्पकाल के लिए दिए हुए ऋण शामिल किए जाते हैं। ये प्रतिभूतियों अथवा धरोहर के आधार पर दिए जाते हैं और ऋण स्वीकार होने पर ऋण की समस्त राशि ऋणी के खाते में हस्तांतरित हो जाती है जिस पर ब्याज तुरंत लगना शुरू हो जाता है। ऋण की वापसी पहले से तय शर्तों के अनुसार ऋण अवधि के बीच किश्तों में अथवा अवधि समाप्ति पर एक मुश्त की जा सकती है।

(iii) ओवरड्राफ्ट कई प्रकार के ग्राहकों को, बैंक उस राशि से अधिक राशि निकलवाने की इजाजत दे देता है, जितनी कि उनकी बैंक में जमा होती है। यह इजाजत वह सभी को नहीं देता है बल्कि उनको देता है जिनका बैंक में चालू खाता होता है और जो जमानत दे सकता है। जमानत का आधार ग्राहक के शेयर, ऋण पत्र, बीमा पॉलिसी आदि वित्तीय परिसंपत्तियाँ होती हैं। इस पर ब्याज भी नकद साख (Cash Credit) के ब्याज से कम होता है, क्योंकि ओवरड्राफ्ट (अधिविकष) में जोखिम और सेवा लागत कम होती है। जैसे वित्तीय परिसंपत्तियों को भुनाना, (नकद साख में प्रस्तुत) भौतिक परिसंपत्तियों की बिक्री कर पाने से अधिक आसान होता है। संक्षेप में ओवरड्राफ्ट, ग्राहक को अपनी जमा से अधिक राशि निकलवाने की एक सुविधा है।।

(iv) विनिमय बिलों पर कटौती-व्यापारिक बैंक सावधि बिलों की कटौती करके तत्काल ऋण दे देते हैं। बिल व्यावसायिक प्रकृति के होने चाहिएँ। बिलों की कटौती, बिल की राशि, अवधि और जोखिम की मात्रा पर निर्भर करती है।

3. साख का निर्माण-बैंक के विषय में प्रायः यह बात देखी गई है कि जितना रुपया उनके पास होता है, उससे कई गुना अधिक वे उधार देते हैं। इसी कारण से बैंक को साख निर्माण का कारखाना कहा जाता है। लोग बैंक में अपना फालतू रुपया जमा करवाते हैं। बैंक उन्हें यह विश्वास दिला देता है कि जब भी उन्हें अपना रुपया चाहिए, वे बैंक से वापिस ले सकते हैं। बैंक शत-प्रतिशत रुपया अपने पास नहीं रखता। इस जमा हुई रकम को बैंक अल्पकालीन ऋण के रूप में व्यापार और उद्योग आदि कार्यों के लिए उधार दे देता है। परंतु जमाकर्ताओं की माँग को पूरा करने के लिए बैंक उनके द्वारा जमा की गई रकम का केवल कुछ ही भाग रोक (Reserve) में रख लेता है।

बैंक ऐसा इसलिए करता है क्योंकि बैंक जानता है कि सभी जमाकर्ता एक ही समय में अपनी सारी जमा रकम लेने नहीं आएँगे। अतः थोड़ी-सी नकद रोक (Cash Reserve) के आधार पर बैंक बहुत अधिक मात्रा में साख का निर्माण कर लेता है। दूसरा, बैंक उधार दी गई रकम नकद नहीं देता, बल्कि उधार लेने वाले के नाम का खाता खोलकर उसमें जमा कर देता है और उधार दी गई रकम तक रुपए प्राप्त करने के लिए उन्हें चैक-बुक देता है। इस प्रकार बैंक के खाते में जमा बढ़ जाती है, जिसको साख जमा (Credit Deposit) कहा जाता है।

4. एजेंसी कार्य-बैंक अपने ग्राहकों के एजेंट के रूप में भी काम करता है जिसके लिए बैंक कुछ कमीशन लेता है। बैंक द्वारा प्रदत्त एजेंसी सेवाएँ निम्नलिखित हैं

  • नकद कोषों का हस्तांतरण-बैंक ड्राफ्ट, उधार खाते की चिट्ठी तथा अन्य साख-पत्रों द्वारा अथवा कंप्यूटर ऑन लाइन सिस्टम द्वारा बैंक एक स्थान से दूसरे स्थान को रकम का स्थानांतरण करता है। ये सेवा कम लागत, शीघ्रता और सुरक्षायुक्त होती है।
  • बैंक अपने ग्राहकों के लिए कंपनियों के शेयर बेचता और खरीदता है। यह कंपनियों के नाम पर हिस्सेदारों में लाभ को बाँटता है।
  • बैंक मृतक की वसीयतों (Wills) और प्रबंधकर्ता (Trustee) का दायित्व निभाता है।
  • ग्राहकों को आय कर संबंधी परामर्श देता है और उनके आय कर का भुगतान करता है।
  • ग्राहकों की ओर से संवाददाता, एजेंट या प्रतिनिधि का कार्य करता है और हवाई तथा जलमार्ग हेतु जरूरी दस्तावेज़ों (Documents) की व्यवस्था करता है।

5. सामान्य उपयोगी सेवाएँ-बैंक द्वारा उपलब्ध अन्य उपयोगी सेवाएँ (Utility services) निम्नलिखित हैं-

  • बैंक, विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय करता है।
  • कीमती वस्तुएँ; जैसे ज़ेवरात, सोना, चाँदी, कागज़-पत्र को सुरक्षित रखने के लिए लॉकर्स (Lockers) उपलब्ध करता है।
  • पर्यटक चैक (Traveller Cheque) और उपहार चैक (Gift Cheque) जारी करता है।
  • बैंक अपने ग्राहकों के आर्थिक हवाले (References) देता है।
  • बैंक बिल्टी के माध्यम से वस्तुओं की ढुलाई (transportation) में सहायता करता है जैसे एक व्यापारी अपने ग्राहक को माल भेजकर उसकी बिल्टी बैंक में भेज देता है और क्रेता बैंक में रुपए जमा करवाकर उस बिल्टी को छुड़वा लेता है जिसके आधार पर वह माल ले लेता है।

प्रश्न 4.
मुद्रा-पूर्ति से क्या अभिप्राय है? मुद्रा-पूर्ति को प्रभावित करने वाले कारकों (तत्त्वों) की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा-पूर्ति का अर्थ-मुद्रा-पूर्ति से अभिप्राय किसी समय बिंदु पर अर्थव्यवस्था में सभी प्रकार की मुद्राओं (कागज़ी मुद्रा, सिक्के, बैंक जमा) के उपलब्ध स्टॉक से है अर्थात् एक निश्चित समय में अर्थव्यवस्था में प्रचलित करेंसी की कुल मात्रा एवं माँग जमा की मात्रा के कुल जोड़ को मुद्रा-पूर्ति कहा जाता है। करेंसी अर्थव्यवस्था में प्रचलित सिक्के एवं कागज़ मुद्रा का कुल जोड़ है। माँग जमा अथवा चेक जमा उस बैंक जमा को कहते हैं जिसे जमाकर्ता माँगने पर बैंक से प्राप्त कर सकता है या जिसे चेक द्वारा बैंक से निकलवा सकता है। मिल्टन फ्रीडमैन के अनुसार, “चलन में करेंसी एवं माँग जमा के अलावा मुद्रा-पूर्ति में बचत एवं समय जमा शामिल होनी चाहिए।”

मुद्रा पूर्ति को प्रभावित करने वाले कारक-एक अर्थव्यवस्था में मुद्रा-पूर्ति मुख्य रूप से निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती है
1. मौद्रिक आधार का आकार–भारत के मौद्रिक प्राधिकरण (Monetary Authority) भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की सम्पूर्ण देयता (Total Liability) को मौद्रिक आधार कहते हैं। इसे ही उच्च शक्ति मुद्रा (High Powered Money) कहा जाता है।
उच्च शक्ति मुद्रा उस मुद्रा को कहते हैं जिसको केन्द्रीय बैंक या सरकार जारी करती है और जिसे जनता तथा बैंक अपने पास रखते हैं। दूसरे शब्दों में,
H = R + C
(यहाँ, H = उच्च शक्ति मुद्रा; R= बैंकों के कुल रिज़र्व; C = चलन में करेंसी।)
दूसरे शब्दों में,
उच्च शक्ति मुद्रा = बैंकों के कुल रिज़र्व + जनता के पास करेंसी (नोट + सिक्के)
मुद्रा तथा उच्च शक्ति मुद्रा में अन्तर यह है कि मुद्रा में करेंसी के अतिरिक्त माँग जमाओं को सम्मिलित किया जाता है, जबकि उच्च शक्ति मुद्रा में करेंसी के अतिरिक्त बैंकों के नकद रिज़र्व को भी सम्मिलित किया जाता है। मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि तब होती है जब उच्च शक्ति मुद्रा में वृद्धि होती है। मुद्रा की पूर्ति का आकार मुद्रा गुणक (Money Multiplier) पर निर्भर करता है।

2. मुद्रा गुणक मुद्रा गुणक, मुद्रा की पूर्ति में परिवर्तन तथा मौद्रिक आधार में परिवर्तन का अनुपात है। मौद्रिक आधार, चलन में करेंसी तथा बैंकों के नकद रिज़र्व का कुल जोड़ है। मान लीजिए कि मौद्रिक आधार में 10 करोड़ रुपए के परिवर्तन के फलस्वरूप मुद्रा की पूर्ति में 30 करोड़ रुपए का परिवर्तन हो जाता है तो मुद्रा गुणक 3 होगा। मुद्रा गुणक का गुणांक निम्नलिखित सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग 1

3. नकदी तथा माँग जमा का अनुपात मुद्रा की पूर्ति पर इस बात का भी प्रभाव पड़ता है कि नकदी और माँग जमाओं का क्या अनुपात है। लोग कुल मुद्रा का जितना अधिक अनुपात जमाओं के रूप में रखना चाहेंगे, उतनी ही बैंकों की उन जमाओं के आधार पर, साख-निर्माण करने की शक्ति अधिक होगी। साख के निर्माण की मात्रा साख गुणक (Credit Multiplier) के आकार पर निर्भर करती है। साख गुणक का आकार नकद कोष अनुपात (Cash Reserve Ratio – CRR) द्वारा प्रभावित होता है।

जितना अनुपात बैंकों को अपने पास नकदी के रूप में रखना पड़ता है, उसको नकद कोष अनुपात (Cash Reserve Ratio) कहा जाता है। नकद कोष अनुपात जितना कम होगा बैंकों की साख-निर्माण करने की शक्ति उतनी ही अधिक होगी तथा मुद्रा की पूर्ति भी उतनी ही अधिक बढ़ जाएगी। अतएव यदि लोग कुल मुद्रा का अधिक भाग बैंक जमाओं के रूप में रखना पसन्द करेंगे तो मुद्रा की पूर्ति अधिक होगी।

4. मुद्रा की चलन गति-मुद्रा की पूर्ति का अनुमान लगाने के लिए अर्थशास्त्रियों के दो विभिन्न दृष्टिकोण निम्नलिखित हैं
(i) समय बिन्दु पर मुद्रा की पूर्ति कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्रियों; जैसे मार्शल, पीगू, रॉबर्टसन तथा केज़ का यह मत था कि किसी निश्चित समय बिन्दु पर मुद्रा की पूर्ति का अनुमान लोगों के पास करेंसी तथा माँग जमा के जोड़ द्वारा लगाया जा सकता है।

(ii) समयावधि में मुद्रा की पूर्ति-मुद्रा परिमाण सिद्धान्त के प्रतिपादकों में इरविंग फिशर (Irving Fisher) की रुचि यह ज्ञात करने में थी कि किसी विशेष समयावधि में मुद्रा की पूर्ति कितनी होती है। एक विशेष समयावधि में मुद्रा की इकाई का प्रयोग कई बार किया जा सकता है। अतः मुद्रा की वह इकाई एक से अधिक इकाइयों का काम करती है। मान लीजिए भारत में मुद्रा की एक इकाई एक वर्ष में औसतन सात बार प्रयोग में लाई जाती है। इसका अर्थ यह हुआ कि मुद्रा की एक इकाई ने सात इकाइयों का काम किया है। इसे कहा जाएगा कि मुद्रा की व्यवसाय चलन गति (Transaction Velocity of Money) अर्थात् ‘V’ सात है। अतएव मुद्रा की चलन गति से अभिप्राय यह है कि “मुद्रा की एक इकाई एक वर्ष में कितनी बार विनिमय के माध्यम के रूप में एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के पास जाती है।”

इस प्रकार एक निश्चित समयावधि में मुद्रा की पूर्ति का अनुमान मुद्रा की मात्रा को चलन गति से गुणा करके लगाया जाता है। अन्य शब्दों में,
मुद्रा की पूर्ति = MV

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 5.
केंद्रीय बैंक तथा व्यावसायिक बैंकों में अंतर बताइए।
उत्तर:
केंद्रीय बैंक तथा व्यावसायिक बैंकों में निम्नलिखित अंतर पाए जाते हैं-

केद्रीय बैंकव्यावसायिक बैंक
1. यह देश का सर्वोच्च बैंक होने के नाते संपूर्ण बैंकिंग व्यवस्था पर नियंत्रण रखता है।1. यह बैंकिंग व्यवस्था का एक अंग मात्र होते हैं और केंद्रीय बैंक के आदेशों का पालन करते हैं।
2. इसका प्रमुख उद्देश्य सेवा या लोकहित करना है, लाभ कमाना इसका एक गौण उद्देश्य होता है।2. इसके लिए लाभ कमाना (Profit Motive) प्राथमिक उद्देश्य है, तभी तो ये जोखिमपूर्ण कार्यों तक में धन लगा देते हैं।
3. यह जनता से प्रत्यक्ष व्यवसाय नहीं करता, केवल अन्य बैंकों और सरकार से करता है।3. ये जनता से प्रत्यक्ष व्यवसाय करते हैं।
4. यह मुद्रा निर्गमन करने वाली संस्था है। इसे वास्तव में नोटों के निर्गमन का एकाधिकार होता है।4. इन्हें ऐसा अधिकार नहीं होता।
5. यह सरकार के बैंकर के रूप में कार्य करता है और इसलिए इसे सरकार से अनेक विशेष सुविधाएँ प्राप्त होती हैं।5. इनकी राज्य के प्रति ऐसी ज़िम्मेवारी नहीं है।
6. यह अंतिम ऋणदाता है। आवश्यकता पड़ने पर अन्य बैंक इससे ऋण लेते हैं।6. ये केंद्रीय बैंक से ऋण लेते हैं किंतु केंद्रीय बैंक इनसे ऋण नहीं लेता।
7. केंद्रीय बैंक देश में एक ही होता है, उसकी शाखाएँ अधिक हो सकती हैं।7. व्यावसायिक बैंक सभी देशों में अनेक होते हैं।
8. केंद्रीय बैंक एक सरकारी संस्था होती है।8. व्यावसायिक बैंक का स्वामित्व सरकारी तथा गैर-सरकारी भी हो सकता है।
9. केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंकों से किसी प्रकार की प्रतियोगिता नहीं करता।9. व्यावसायिक बैंक अपने कार्य को बढ़ाने के लिए अन्य बैंकों से प्रतिस्पर्धा करते हैं।
10. केंद्रीय बैंक देश के विदेशी विनिमय का संरक्षक होता है।10. व्यावसायिक बैंक विदेशी विनिमय संबंधी कार्यों के लिए केंद्रीय बैंक की स्वीकृति पर निर्भर करते हैं।

प्रश्न 6.
साख-नियंत्रण से क्या अभिप्राय है? साख-नियंत्रण के विभिन्न उपायों का वर्णन करें।
अथवा
साख-नियंत्रण की मात्रात्मक विधियों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
साख-नियंत्रण की चयनात्मक विधियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
साख नियंत्रण से अभिप्राय देश के केंद्रीय बैंक द्वारा निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए साख के संकुचन तथा साख के विस्तार का नियंत्रण करना है।
साख नियंत्रण की विधियाँ-साख नियंत्रण की विधियाँ या उपाय निम्नलिखित हैं-
(क) साख नियंत्रण के मात्रात्मक उपाय-साख नियंत्रण के इन उपायों द्वारा एक अर्थव्यवस्था की कुल मुद्रा पूर्ति/साख को प्रभावित किया जा सकता है। इसके मुख्य उपाय निम्नलिखित हैं-
1. बैंक दर-बैंक दर ब्याज की वह न्यूनतम दर है जिस पर देश का केंद्रीय बैंक (अंतिम ऋणदाता होने के कारण) वाणिज्यिक बैंकों को ऋण देने के लिए तैयार होता है। बैंक दर के बढ़ने से ब्याज की दर बढ़ती है तथा ऋण महँगा होता है। इसके फलस्वरूप साख की माँग कम हो जाती है। इसके विपरीत, बैंक दर कम करने पर व्यावसायिक बैंकों द्वारा अपने उधारकर्ताओं से लिए जाने वाले ब्याज की बाज़ार दर कम हो जाती है अर्थात् साख (ऋण) सस्ती हो जाती है। इसके फलस्वरूप साख की माँग बढ़ जाती है। मुद्रास्फीति के समय जब साख का संकुचन जरूरी होता है तब केंद्रीय बैंक महँगी साख नीति (Dear Money Policy) को अपनाता है। अवस्फीति के समय जब साख का विस्तार करना जरूरी होता है तब केंद्रीय बैंक सस्ती साख नीति (Cheap Money Policy) को अपनाता है अर्थात् बैंक दर को कम कर देता है।

2. खुले बाज़ार की क्रियाएँ-खुले बाज़ार की क्रियाओं से अभिप्राय केंद्रीय बैंक द्वारा प्रतिभूतियों का खुले बाज़ार में बेचना तथा खरीदना है। प्रतिभूतियों (जैसे राष्ट्रीय बचत सर्टीफिकेट-NSC) को बेचने से केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में मौजूद नकद कोषों को अपनी ओर खींच लेता है। ये नकद कोष, उच्च शक्तिशाली मुद्रा होती है जिसके आधार पर व्यावसायिक बैंक साख का निर्माण करते हैं। अतः खुले बाज़ार की क्रियाओं (Open Market Operations-OMO) द्वारा यदि नकद कोषों में वृद्धि की जाती है तो साख का प्रवाह कई गुणा अधिक बढ़ जाएगा और यदि नकद कोषों में कमी की जाती है तो साख प्रवाह में कई गणा कमी हो जाएगी।

3. नकद कोष अनुपात-इसका अर्थ बैंक की कुल जमाओं का वह न्यूनतम अनुपात है जो उसे केंद्रीय बैंक के पास जमा रखना पड़ता है। व्यावसायिक बैंकों को कानूनी तौर पर अपनी जमाओं का एक निश्चित प्रतिशत केंद्रीय बैंक के पास नकद निधि के रूप में रखना पड़ता है। उदाहरण के लिए, यदि न्यूनतम निधि अनुपात 10 प्रतिशत है और किसी बैंक की कुल जमाएँ 100 करोड़ रुपए हैं तो इस बैंक को 10 करोड़ रुपए केंद्रीय बैंक के पास रखने होंगे। यदि न्यूनतम निधि अनुपात को बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया जाता है तो बैंक को 20 करोड़ रुपए केंद्रीय बैंक के पास रखने होंगे। यदि केंद्रीय बैंक को साख या नकद प्रवाह का संकचन करना होगा तो वह न्यूनतम नकद निधि अनुपात को बढ़ा देगा और यदि उसको साख या नकद प्रवाह का विस्तार करना होगा तो इसे घटा देगा।

4. वैधानिक तरलता अनुपात-प्रत्येक बैंक को अपनी परिसंपत्तियों के एक निश्चित प्रतिशत को अपने पास नकद रूप में या अन्य तरल परिसंपत्तियों (जैसे सरकारी प्रतिभूतियों) के रूप में कानूनी तौर पर रखना पड़ता है. जिसे वैधानिक तरलता अनुपात (Statutory Liquidity Ratio) कहते हैं। बाज़ार में साख के प्रवाह को कम करने के लिए केंद्रीय बैंक तरलता अनुपात को बढ़ा देता है और यदि केंद्रीय बैंक साख का विस्तार करना चाहता है तो वह तरलता अनुपात को घटा देता है।

(ख) साख नियंत्रण के गुणात्मक उपाय-साख नियंत्रण (Credit Control) गुणात्मक के उपाय वे उपाय हैं जो किसी विशेष उद्देश्यों के लिए दी जाने वाली तथा विशेष बैंकों द्वारा दी जाने वाली साख को नियंत्रित करते हैं। इसे चयनात्मक साख नियंत्रण (Selective Credit Control) भी कहा जाता है। इसका प्रभाव साख की कुल मात्रा पर नहीं पड़ता। इसका उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों की दी जाने वाली साख को नियंत्रित करना है। साख नियंत्रण के मुख्य गुणात्मक उपाय निम्नलिखित हैं

1. सीमांत आवश्यकता-सीमांत आवश्यकता से अभिप्राय, बैंक द्वारा किसी वस्तु की जमानत पर दिए गए ऋण तथा जमानत वाली वस्तु के वर्तमान मूल्य के अंतर से है। मान लीजिए किसी व्यक्ति ने 100 रुपए मूल्य का माल बैंक के पास जमानत के रूप में रखा है तो बैंक उसे 80 रुपए का ऋण देता है। इस स्थिति में सीमांत आवश्यकता 20 प्रतिशत होगी। यदि अर्थव्यवस्था की किसी विशेष व्यावसायिक क्रिया के लिए साख के प्रवाह को सीमित करना है तो उस क्रिया के लिए सीमांत आवश्यकता को बढ़ा दिया जाएगा। इसके विपरीत, यदि साख का विस्तार किया जाना है तो सीमांत आवश्यकता को कम कर दिया जाता है।

2. साख की राशनिंग-साख राशनिंग से अभिप्राय विभिन्न व्यावसायिक क्रियाओं के लिए साख की मात्रा का कोटा निर्धारित करना है। साख की राशनिंग (Rationing of Credit) तब की जाती है जब अर्थव्यवस्था में विशेष रूप से सट्टे की क्रियाओं के लिए दी जाने वाले ऋणों पर रोक लगानी होती है। केंद्रीय बैंक विभिन्न व्यावसायिक क्रियाओं के लिए साख का कोटा निर्धारित कर देता है। ऋण देते समय व्यावसायिक बैंक कोटे की सीमा से अधिक ऋण नहीं दे सकते।

3. प्रत्यक्ष कार्रवाई केंद्रीय बैंक को उन बैंकों के विरुद्ध प्रत्यक्ष कार्रवाई करनी पड़ती है जो उसकी साख नीति का पालन नहीं करते। प्रत्यक्ष कार्रवाई के अंतर्गत ऐसे व्यावसायिक बैंकों की देश की बैंकिंग प्रणाली के सदस्यों के रूप में मान्यता को रद्द कर दिया जाता है।

4. नैतिक दबाव कभी-कभी केंद्रीय बैंक सदस्य बैंकों को समझा-बुझाकर, प्रार्थना करके या नैतिक दबाव डालकर उन्हें साख नियंत्रण के लिए अपनाई गई नीति के अनुसार काम करने के लिए सहमत कर लेता है। केंद्रीय बैंक का लगभग सभी व्यावसायिक बैंकों पर नैतिक प्रभाव होता है। अतः सामान्यतया ये बैंक केंद्रीय बैंक द्वारा साख के विस्तार या संकुचन करने की सलाह को मान लेते हैं।

प्रश्न 7.
मुद्रा-पूर्ति से क्या अभिप्राय है? मुद्रा-पूर्ति को प्रभावित करने वाले कारकों (तत्त्वों) की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा-पूर्ति का अर्थ-मुद्रा-पूर्ति से अभिप्राय किसी समय बिंदु पर अर्थव्यवस्था में सभी प्रकार की मुद्राओं (कागजी मुद्रा, सिक्के, बैंक जमा) के उपलब्ध स्टॉक से है अर्थात एक निश्चित समय में अर्थव्यवस्था में प्रचलित करेंसी की कुल मात्रा एवं माँग जमा की मात्रा के कुल जोड़ को मुद्रा-पूर्ति कहा जाता है। करेंसी अर्थव्यवस्था में प्रचलित सिक्के एवं कागज़ मुद्रा का कुल जोड़ है। माँग जमा अथवा चेक जमा उस बैंक जमा को कहते हैं जिसे जमाकर्ता माँगने पर बैंक से प्राप्त कर सकता है या जिसे चेक द्वारा बैंक से निकलवा सकता है। मिल्टन फ्रीडमैन के अनुसार, “चलन में करेंसी एवं माँग जमा के अलावा मुद्रा-पूर्ति में बचत एवं समय जमा शामिल होनी चाहिए।”

मुद्रा पूर्ति को प्रभावित करने वाले कारक-एक अर्थव्यवस्था में मुद्रा-पूर्ति मुख्य रूप से निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती है
1. मौद्रिक आधार का आकार भारत के मौद्रिक प्राधिकरण (Monetary Authority) भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की सम्पूर्ण देयता (Total Liability) को मौद्रिक आधार कहते हैं। इसे ही उच्च शक्ति मुद्रा (High Powered Money) कहा जाता
उच्च शक्ति मुद्रा उस मुद्रा को कहते हैं जिसको केन्द्रीय बैंक या सरकार जारी करती है और जिसे जनता तथा बैंक अपने पास रखते हैं। दूसरे शब्दों में,
H = R + C
(यहाँ, H= उच्च शक्ति मुद्रा; R = बैंकों के कुल रिज़र्व; C = चलन में करेंसी।)
दूसरे शब्दों में,
उच्च शक्ति मुद्रा = बैंकों के कुल रिज़र्व + जनता के पास करेंसी (नोट + सिक्के)
मुद्रा तथा उच्च शक्ति मुद्रा में अन्तर यह है कि मुद्रा में करेंसी के अतिरिक्त माँग जमाओं को सम्मिलित किया जाता है, जबकि उच्च शक्ति मुद्रा में करेंसी के अतिरिक्त बैंकों के नकद रिज़र्व को भी सम्मिलित किया जाता है। मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि तब होती है जब उच्च शक्ति मुद्रा में वृद्धि होती है। मुद्रा की पूर्ति का आकार मुद्रा गुणक (Money Multiplier) पर निर्भर करता है।

2. मुद्रा गुणक-मुद्रा गुणक, मुद्रा की पूर्ति में परिवर्तन तथा मौद्रिक आधार में परिवर्तन का अनुपात है। मौद्रिक आधार, चलन में करेंसी तथा बैंकों के नकद रिज़र्व का कुल जोड़ है। मान लीजिए कि मौद्रिक आधार में 10 करोड़ रुपए के परिवर्तन के फलस्वरूप मुद्रा की पूर्ति में 30 करोड़ रुपए का परिवर्तन हो जाता है तो मुद्रा गुणक 3 होगा। मुद्रा गुणक का गुणांक निम्नलिखित सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग 2

3. नकदी तथा माँग जमा का अनुपात मुद्रा की पूर्ति पर इस बात का भी प्रभाव पड़ता है कि नकदी और माँग जमाओं का क्या अनुपात है। लोग कुल मुद्रा का जितना अधिक अनुपात जमाओं के रूप में रखना चाहेंगे, उतनी ही बैंकों की उन जमाओं के आधार पर, साख-निर्माण करने की शक्ति अधिक होगी। साख के निर्माण की मात्रा साख गुणक (Credit Multiplier) के आकार पर निर्भर करती है। साख गुणक का आकार नकद कोष अनुपात (Cash Reserve Ratio – CRR) द्वारा प्रभावित होता है। कुल जमाओं का जितना अनुपात बैंकों को अपने पास नकदी के रूप में रखना पड़ता है, उसको नकद कोष अनुपात (Cash Reserve Ratio) कहा जाता है। नकद कोष अनुपात जितना कम होगा बैंकों की साख-निर्माण करने की शक्ति उतनी ही अधिक होगी तथा मुद्रा की पूर्ति भी उतनी ही अधिक बढ़ जाएगी। अतएव यदि लोग कुल मुद्रा का अधिक भाग बैंक जमाओं के रूप में रखना पसन्द करेंगे तो मुद्रा की पूर्ति अधिक होगी।

4. मुद्रा की चलन गति-मुद्रा की पूर्ति का अनुमान लगाने के लिए अर्थशास्त्रियों के दो विभिन्न दृष्टिकोण निम्नलिखित हैं
(i) समय बिन्दु पर मुद्रा की पूर्ति कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्रियों; जैसे मार्शल, पीगू, रॉबर्टसन तथा केज का यह मत था कि किसी निश्चित समय बिन्दु पर मुद्रा की पूर्ति का अनुमान लोगों के पास करेंसी तथा माँग जमा के जोड़ द्वारा लगाया जा सकता है।

(ii) समयावधि में मुद्रा की पूर्ति मुद्रा परिमाण सिद्धान्त के प्रतिपादकों में इरविंग फिशर (Irving Fisher) की रुचि यह ज्ञात करने में थी कि किसी विशेष समयावधि में मुद्रा की पूर्ति कितनी होती है। एक विशेष समयावधि में मुद्रा की इकाई का प्रयोग कई बार किया जा सकता है। अतः मुद्रा की वह इकाई एक से अधिक इकाइयों का काम करती है। मान लीजिए भारत में मुद्रा की एक इकाई एक वर्ष में औसतन सात बार प्रयोग में लाई जाती है। इसका अर्थ यह हुआ कि मुद्रा की एक इकाई ने सात इकाइयों का काम किया है। इसे कहा जाएगा कि मुद्रा की व्यवसाय चलन गति (Transaction Velocity of Money) अर्थात् ‘V’ सात है। अतएव मुद्रा की चलन गति से अभिप्राय यह है कि “मुद्रा की एक इकाई एक वर्ष में कितनी बार विनिमय के माध्यम के रूप में एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के पास जाती है।”

इस प्रकार एक निश्चित समयावधि में मुद्रा की पूर्ति का अनुमान मुद्रा की मात्रा को चलन गति से गुणा करके लगाया जाता है। अन्य शब्दों में,
मुद्रा की पूर्ति = Mv

संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित सूचना के आधार पर M1 और M3 का आकलन कीजिए

(मदें)(करोड़ रुपए में)
(i) जनता के पास धारित करेंसी3,16,660
(ii) बैंक के पास निवल माँग जमाएँ2,50,371
(iii) केंद्रीय बैंक के पास अन्य जमाएँ5,041
(iv) बैंकों के पास शुद्ध सावधि जमाएँ13,27,179

हल:
M1 = C + DD + OD
= जनता के पास धारित करेंसी + बैंक के पास निवल माँग जमाएँ + केंद्रीय बैंक के पास अन्य जमाएँ
= 3,16,660 + 2,50,371 + 5,041 करोड़ रुपए
M1 = 5,72,072 करोड़ रुपए उत्तर
M1 = M1 + बैंकों की सावधि जमाएँ
M1 = 5,72,072 + 13,27,179 करोड़ रुपए
= 18,99,251 करोड़ रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 2.
निम्नलिखित सूचना के आधार पर M1 और M3 का आकलन कीजिए

(मदें)(करोड़ रुपए में)
(i) जनता के पास धारित करेंसी3,16.758
(ii) बैंक के पास निवल माँग जमाएँ2,51,271
(iii) केंद्रीय बैंक के पास अन्य जमाएँ5,041
(iv) बैंकों के पास शुद्ध सावधि जमाएँ14,27,179

हल:
M1 = C + DD + OD
= जनता के पास धारित करेंसी + बैंक के पास निवल माँग जमाएँ + केंद्रीय बैंक के पास अन्य जमाएँ
= 3,16,758 + 2,51, 271 + 5,041 करोड़ रुपए
M1 = 5,73, 070 करोड़ रुपए उत्तर
M3 = M1 + बैंकों की सावधि जमाएँ
M3 = 5,73,070 + 14,27,179
= 20,00, 249 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 3.
निम्नलिखित सूचना के आधार पर M1, M2, M3 तथा M4 की गणना करें

(मदें)(रुपए करोड़ में)
(i) जनता के पास धारित करेंसी2,65,325
(ii) बैंकों के पास निवल माँग जमाएँ1,87,841
(iii) केंद्रीय बैंक के पास अन्य जमाएँ2,609
(iv) डाकघर के बचत खातों में जमा5,041
(v) बैंकों की समय जमा12,37,975
(vi) डाकघरों के बचत खातों की कुल जमाएँ25,969

हल:
M1 = C + DD + OD
= जनता के पास धारित करेंसी + बैंक के पास निवल माँग जमाएँ + केंद्रीय बैंक के पास अन्य जमाएँ
= 2,65,325 + 1,87,841 + 2,609 करोड़ रुपए
= 4,55,775 करोड़ रुपए
M2 = M1 + डाकघर बचत बैंकों में बचत जमा राशियाँ
M2 = 4,55,775+ 5,041 करोड़ रुपए
M2 = 4,60,816 करोड़ रुपए
M3 = M1 + बैंकों के पास अन्य जमाएँ
M3 = 4,55,775+ 12,37,975 करोड़ रुपए
M4 = 16,93,750 करोड़ रुपए
M4 = M3 + डाकघर बचत बैंकों के पास समस्त जमा राशियाँ
M4 = 16,93,750 + 25,969 करोड़ रुपए
M4 = 17,19,719 करोड़ रुपए

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HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए

1. वास्तविक प्रवाह से तात्पर्य है –
(A) परिवारों से फर्मों को संसाधनों का प्रवाह
(B) फर्मों से परिवारों को वस्तुओं और सेवाओं का प्रवाह
(C) (A) और (B) दोनों।
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

2. मौद्रिक प्रवाह का अर्थ है-
(A) फर्मों से परिवारों को कारक सेवाओं के बदले मौद्रिक भुगतान
(B) परिवारों से फर्मों को वस्तुओं और सेवाओं के बदले मौद्रिक भुगतान
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) फर्मों से परिवारों को कारक सेवाओं के बदले मौद्रिक भुगतान

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

3. आय के चक्रीय (वर्तुल) प्रवाह से अभिप्राय है-
(A) अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में वस्तुओं का प्रवाहित होना
(B) अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में वस्तुओं और सेवाओं का प्रवाहित होना
(C) अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में सेवाओं का प्रवाहित होना
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में वस्तुओं और सेवाओं का प्रवाहित होना

4. आय के चक्रीय प्रवाह को निम्नलिखित में से किन रूपों में देखा जा सकता है?
(A) आय का वास्तविक प्रवाह
(B) आय का मौद्रिक प्रवाह
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

5. आय का वर्तुल प्रवाह निम्नलिखित में से किन में होता है?
(A) अर्थव्यवस्था के दो क्षेत्रों में
(B) अर्थव्यवस्था के तीन क्षेत्रों में
(C) अर्थव्यवस्था के चार क्षेत्रों में
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

6. निम्नलिखित में से कौन-सा आय के चक्रीय प्रवाह का क्षरण (Leakage) है?
(A) फर्मों द्वारा लिए गए ऋण
(B) सार्वजनिक व्यय
(C) निवेश
(D) परिवारों द्वारा की गई बचतें
उत्तर:
(D) परिवारों द्वारा की गई बचतें

7. राष्ट्रीय आय के प्रवाह का संतुलन वहाँ होता है जहाँ
(A) भरण = क्षरण होते हैं
(B) भरण > क्षरण होते हैं
(C) भरण < क्षरण होते हैं
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) भरण = क्षरण होते हैं

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

8. राष्ट्रीय आय को मापने की आय विधि के संघटक हैं
(A) मज़दूरी आय
(B) गैर-मज़दूरी आय
(C) अन्य आय
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

9. निम्नलिखित में से सकल राष्ट्रीय उत्पाद में शामिल है।
(A) मूल्यह्रास
(B) लॉटरी से प्राप्त आय
(C) पुराने मकान की बिक्री
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) मूल्यह्रास

10. यदि आर्थिक कल्याण की जानकारी प्राप्त करनी हो तो राष्ट्रीय आय गणना की कौन-सी विधि श्रेष्ठ रहेगी?
(A) उत्पाद विधि
(B) आय विधि
(C) व्यय विधि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) व्यय विधि

11. सकल घरेलू उत्पाद में से कौन-सी रकम घटाकर शुद्ध घरेलू उत्पाद ज्ञात किया जा सकता है?
(A) हस्तांतरण भुगतान
(B) अप्रत्यक्ष कर
(C) मूल्यह्रास
(D) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज
उत्तर:
(C) मूल्यह्रास

12. निम्नलिखित में से दोहरी गणना की समस्या कौन-सी विधि में होती है?
(A) आय विधि में
(B) व्यय विधि में
(C) उत्पाद विधि में
(D) उपरोक्त सभी में
उत्तर:
(C) उत्पाद विधि में

13. देशीय/घरेलू उत्पाद (Domestic Product) बराबर है-
(A) राष्ट्रीय उत्पाद + विदेशों से निवल कारक आय
(B) राष्ट्रीय उत्पाद – विदेशों से निवल कारक आय
(C) राष्ट्रीय उत्पाद विदेशों से निवल कारक आय
(D) राष्ट्रीय उत्पाद – विदेशों से निवल कारक आय
उत्तर:
(B) राष्ट्रीय उत्पाद – विदेशों से निवल कारक आय

14. राष्ट्रीय आय में निम्नलिखित में से कौन-सी मद शामिल नहीं होती?
(A) गृहिणी की सेवाएँ
(B) विदेशों से दान
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

15. निम्नलिखित में से कौन-सी मद शामिल करके सकल घरेलू उत्पाद से कुल राष्ट्रीय उत्पाद का अनुमान लगाया जा सकता है?
(A) अप्रत्यक्ष कर से
(B) शुद्ध विदेशी आय से
(C) घिसावट व्यय से
(D) हस्तांतरण भुगतान से
उत्तर:
(B) शुद्ध विदेशी आय से

16. निम्नलिखित में से कौन-सा सही नहीं है?
(A) NNPMP = GNPMP – मूल्यह्रास
(B) NDPMP = NNPMP + विदेशों से निवल कारक आय
(C) NDPFC = NDPMP + अप्रत्यक्ष कर
(D) GDPFC = NDPFC – मूल्यह्रास
उत्तर:
(A) NNPMP = GNPMP – मूल्यह्रास

17. बाज़ार कीमत पर निवल घरेलू उत्पाद (NDP)
(A) GDPMP – घिसावट
(B) GDPMP + घिसावट
(C) GDPMP – अप्रत्यक्ष कर
(D) GDPMP + आर्थिक सहायता
उत्तर:
(A) GDPMP – घिसावट

18. कारक लागत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPFC) =
(A) GDPMP – निवल अप्रत्यक्ष कर
(B) GDPMP + निवल प्रत्यक्ष कर
(C) GDPMP + आर्थिक सहायता
(D) GDPMP – अप्रत्यक्ष कर
उत्तर:
(A) GDPMP – निवल अप्रत्यक्ष कर

19. निम्नलिखित में से सही विकल्प चुनिए
(A) NDPFC = GNPFC – मूल्यह्रास
(B) GNPMP = NNPFC + विदेशों से शुद्ध कारक आय
(C) GDP = GNP – विदेशों से शुद्ध कारक आय
(D) NNPFC = NDPMP – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
उत्तर:
(C) GDP = GNP – विदेशों से शुद्ध कारक आय

20. निम्नलिखित में से सही विकल्प चुनिए
(A) NDPFC = GDPMP – मूल्यह्रास
(B) GNPMP = GNPFC + निवल अप्रत्यक्ष कर
(C) GDP = GNP + विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय
(D) NNPFC = NDPMP – निवल अप्रत्यक्ष कर
उत्तर:
(D) NNPFC = NDPMP – निवल अप्रत्यक्ष कर

21. बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) =
(A) GDPMP – घिसावट
(B) GDPMP + विदेशों से निवल कारक आय
(C) GDPMP + घिसावट
(D) GDPMP – अप्रत्यक्ष कर
उत्तर:
(B) GDPMP + विदेशों से निवल कारक आय

22. बिस्कुट निर्माता कंपनी के लिए कौन-सी मध्यवर्ती वस्तु होगी?
(A) आटा
(B) घी
(C) चीनी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

23. कारक लागत में निम्नलिखित में से किसे शामिल किया जाता है?
(A) बाज़ार कीमत – अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता
(B) बाज़ार कीमत – अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता
(C) बाज़ार कीमत + अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता
(D) बाज़ार कीमत + अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता
उत्तर:
(B) बाज़ार कीमत – अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता

24. बाज़ार कीमत पर GNP = ?
(A) बाज़ार कीमत पर GDP – घिसावट
(B) बाज़ार कीमत पर GDP + विदेशों से निवल कारक आय
(C) बाज़ार कीमत पर GNP + आर्थिक सहायता
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) बाज़ार कीमत पर GDP + विदेशों से निवल कारक आय

25. बाज़ार कीमत पर NNP = ?
(A) बाज़ार कीमत पर GNP – घिसावट
(B) बाज़ार कीमत पर GNP + घिसावट
(C) बाज़ार कीमत पर GNP + अप्रत्यक्ष कर
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) बाज़ार कीमत पर GNP – घिसावट

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

26. प्रयोज्य आय ज्ञात करने के लिए व्यक्तिगत आय में से कौन-सी मद घटाई जाती है?
(A) बिक्री कर
(B) अप्रत्यक्ष कर
(C) प्रत्यक्ष कर
(D) हस्तांतरण भुगतान
उत्तर:
(C) प्रत्यक्ष कर

27. निम्नलिखित में से निवल अप्रत्यक्ष कर है-
(A) अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता
(B) अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता
(C) प्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता

28. विदेशों में काम करने वाले भारतीयों की आय ……………… का भाग होती है।
(A) भारत की घरेलू आय
(B) विदेशों से प्राप्त आय
(C) भारत के निवल घरेलू उत्पाद
(D) भारत के सकल घरेलू उत्पाद
उत्तर:
(B) विदेशों से प्राप्त आय

B. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

1. अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में वस्तुओं, सेवाओं और मुद्रा का प्रभावित होना, आय का …………….. प्रवाह कहलाता है। (चक्रीय/वास्तविक)
उत्तर:
चक्रीय

2. सकल घरेलू उत्पाद में ……………… पदार्थों का मूल्य शामिल किया जाता है। (मध्यवर्ती/अंतिम)
उत्तर:
अंतिम

3. सकल घरेलू उत्पाद में से ……………. घटाकर शुद्ध घरेलू उत्पाद ज्ञात किया जा सकता है। (मूल्यहास/हस्तांतरण भुगतान)
उत्तर:
मूल्यह्रास

4. छात्रवृत्ति ……………. आय है। (हस्तांतरण/वास्तविक)
उत्तर:
हस्तांतरण

5. राष्ट्रीय आय लेखांकन में राष्ट्रीय आय और उससे संबंधित ……………… आर्थिक चरों का अध्ययन किया जाता है। (समष्टि/व्यष्टि)
उत्तर:
समष्टि

6. दोहरी गणना से बचने के लिए ……………. विधि अपनाई जाती है। (आय/मूल्यवर्धित)
उत्तर:
मूल्यवर्धित

7. GDP = ……………. (Gross Domestic Product/Gross Demand Product)
उत्तर:
Gross Domestic Product

8. USA में काम कर रहे भारतीयों की आय …………………. का भाग है। (विदेशी शुद्ध कारक आय/भारत की घरेलू आय)
उत्तर:
विदेशी शुद्ध कारक आय

C. बताइए कि निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत

  1. यदि अवैध क्रियाओं को वैध घोषित कर दिया जाए तो GDP में वृद्धि होती है।
  2. एक देश की खनिज सम्पदा को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।
  3. यदि शुद्ध निर्यात धनात्मक है तो सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP), सकल घरेलू उत्पाद (GDP) से अधिक होता है।
  4. व्यय विधि को औद्योगिक उद्गम विधि भी कहा जाता है।
  5. अमेरिका में काम कर रहे भारतीयों की आय भारत की घरेलू आय का भाग है।
  6. राष्ट्रीय आय की संरचना से अभिप्राय उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की प्रकृति से है।
  7. व्यय विधि के अनुसार सकल घरेलू आय साधन लागत पर प्राप्त होती है।
  8. राष्ट्रीय आय लेखांकन राष्ट्रीय आय से सम्बन्धित लेखों को संकलित करने व प्रस्तुत करने की एक प्रणाली है।
  9. सरकार द्वारा दी जाने वाली वृद्धावस्था पेंशन भारत की घरेलू साधन आय का हिस्सा होती है।
  10. हस्तांतरण आय का सम्बन्ध उत्पादन से नहीं होता।
  11. सकल निवेश = शुद्ध निवेश + मूल्य हास
  12. ‘पूँजी पर ब्याज’ एक प्रवाह चर है।
  13. वृद्धावस्था पेंशन राष्ट्रीय आय में शामिल होती है।

उत्तर:

  1. सही
  2. सही
  3. सही
  4. गलत
  5. गलत
  6. सही
  7. गलत
  8. सही
  9. सही
  10. सही
  11. सही
  12. सही
  13. गलत

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय लेखांकन क्या है?
उत्तर:
राष्ट्रीय आय लेखांकन राष्ट्रीय आय से संबंधित लेखों को संकलित करने व प्रस्तुत करने की एक विधि है।

प्रश्न 2.
आय का चक्रीय (वर्तुल) प्रवाह क्या है?
उत्तर:
राष्ट्रीय आय में चक्रीय प्रवाह पाया जाता है। आय के चक्रीय प्रवाह से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में मौद्रिक आय के प्रवाह या वस्तुओं और सेवाओं के चक्रीय प्रवाह से है। आय का पहले फर्मों (उत्पादकों) से कारक स्वामियों (परिवारों) की ओर कारक भुगतानों के रूप में और फिर परिवारों से फर्मों के पास उपभोग व्यय के रूप में हस्तांतरण होना आय का चक्रीय प्रवाह कहलाता है।

प्रश्न 3.
प्रवाह चर की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
वे चर जो समय की एक निश्चित समयावधि (Period of Time) के संदर्भ में मापे जाते हैं, प्रवाह कहलाते हैं। उदाहरण के लिए-आय, व्यय, बचत, निवेश, मूल्यह्रास, ब्याज, आयात-निर्यात, माल-सूची में परिवर्तन आदि प्रवाह चर हैं।

प्रश्न 4.
स्टॉक की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
जो मात्रा समय के किसी निश्चित बिंदु (Point of Time) के संदर्भ में मापे जाते हैं, स्टॉक कहलाते हैं। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय पूँजी, संपत्ति, विदेशी ऋण, माल-सूची (Inventory), खाद्यान्न भंडार आदि स्टॉक हैं।

प्रश्न 5.
उपभोक्ता वस्तुओं से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उपभोक्ता वस्तुओं से हमारा अभिप्राय उन वस्तुओं से है जिनका प्रयोग लोगों द्वारा अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए किया जाता है; जैसे पहनने के लिए कपड़े, खाने के लिए खाद्य पदार्थ आदि ।

प्रश्न 6.
मध्यवर्ती वस्तुओं से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मध्यवर्ती वस्तुओं से हमारा अभिप्राय उन गैर-टिकाऊ वस्तुओं से है जिनकी माँग उत्पादकों द्वारा उत्पादन करने अथवा पुनर्बिक्री के लिए की जाती है।

प्रश्न 7.
उत्पादक वस्तुओं से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उत्पादक वस्तुओं से हमारा अभिप्राय उन मध्यवर्ती वस्तुओं तथा अंतिम वस्तुओं से है जिनका उपयोग अन्य वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन के लिए किया जाता है।

प्रश्न 8.
टिकाऊ उत्पादक वस्तुएँ क्या हैं?
उत्तर:
टिकाऊ उत्पादक वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती हैं जिनका उपयोग उत्पादन क्रिया में एक से अधिक बार किया जा सकता है।

प्रश्न 9.
आय के वास्तविक प्रवाह से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आय के वास्तविक प्रवाह से अभिप्राय है कि परिवार क्षेत्र द्वारा कारक सेवाओं का प्रवाह उत्पादक क्षेत्र की ओर होता है और उत्पादक क्षेत्र अथवा फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का प्रवाह परिवार क्षेत्र की ओर होता है।

प्रश्न 10.
आय के मौद्रिक प्रवाह से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आय के मौद्रिक प्रवाह से हमारा अभिप्राय उस प्रवाह से है जिसमें अर्थव्यवस्था का उत्पादक क्षेत्र (फम), परिवार क्षेत्र को कारक सेवाएँ जुटाने के बदले, कारक भुगतान नकदी के रूप में करता है। फिर परिवार क्षेत्र ‘उत्पादक क्षेत्र में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का मुद्रा के माध्यम से क्रय करता है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 11.
उत्पादन प्रवाह कब उत्पन्न होता है?
उत्तर:
उत्पादन प्रवाह उस समय उत्पन्न होता है जब एक देश के लोग देश में उपलब्ध तकनीकी और सामाजिक संगठन के अंतर्गत उपलब्ध संसाधनों, वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करने के लिए उपयोग करते हैं। उत्पादन प्रक्रिया में उत्पादन प्रवाह द्वारा आय का सृजन होता है।

प्रश्न 12.
राष्ट्रीय आय के चक्रीय प्रवाह के तीन छिद्र (क्षरण) (Leakages) बताइए।
उत्तर:

  1. बचत
  2. आयात और
  3. सरकार द्वारा लगाए गए कर।

प्रश्न 13.
राष्ट्रीय आय के चक्रीय प्रवाह के तीन समावेश (भरण) (Injections) बताइए।
उत्तर:

  1. निवेश
  2. निर्यात और
  3. सरकार एवं परिवार क्षेत्र द्वारा किए गए उपभोग व्यय।

प्रश्न 14.
राष्ट्रीय उत्पाद के रूप में राष्ट्रीय आय क्या है?
उत्तर:
राष्ट्रीय आय को राष्ट्रीय उत्पाद अर्थात् एक वर्ष की अवधि में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के बाज़ार मूल्य के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है। राष्ट्रीय उत्पाद (आय) एक देश के सामान्य निवासियों द्वारा एक वर्ष में उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के बाज़ार मूल्य का जोड़ है।

प्रश्न 15.
सकल घरेलू उत्पाद (GDP) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सकल घरेलू उत्पाद से अभिप्राय एक वर्ष में एक अर्थव्यवस्था की घरेलू सीमा में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं व सेवाओं के मूल्य से है, जिसमें अचल (स्थाई) पूँजी का उपभोग भी सम्मिलित है।

प्रश्न 16.
निवल घरेलू उत्पाद (NDP) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बाज़ार कीमत पर निवल घरेलू उत्पाद वह राशि है जो सकल घरेलू उत्पाद में से मूल्यह्रास घटाकर शेष रहती है।

प्रश्न 17.
स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय से हमारा अभिप्राय एक वर्ष में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं के आधार वर्ष की कीमतों पर आकलित मूल्य से है।
स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय = वर्ष में उत्पादित वस्तुएँ और सेवाएँ x आधार वर्ष की कीमतें।

प्रश्न 18.
हस्तांतरण आय क्या है? उदाहरण दें। अथवा. हस्तांतरण आय के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
हस्तांतरण आय वह आय होती है जो उनके प्राप्तकर्ताओं को बिना किसी उत्पादक सेवा के बदले प्राप्त होती है; जैसे बेरोज़गारी भत्ता, वजीफा, वृद्धावस्था पेंशन।।

प्रश्न 19.
दोहरी गणना का क्या अर्थ है?
उत्तर:
दोहरी गणना का अर्थ यह है कि किसी वस्तु का मूल्य राष्ट्रीय आय में एक से अधिक बार गिना जाता है।

प्रश्न 20.
पूँजी हस्तांतरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पूँजी हस्तांतरण से अभिप्राय उस हस्तांतरण से है जिन्हें हस्तांतरणकर्ता द्वारा अपनी बचतों या संपत्ति में से किया जाता है और जिन्हें प्राप्तकर्ता पूँजी निर्माण या दीर्घकालीन व्यय के लिए प्रयोग करता है।

प्रश्न 21.
चालू हस्तांतरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
चालू हस्तांतरण से अभिप्राय उस हस्तांतरण से है जिन्हें हस्तांतरणकर्ता द्वारा अपनी आय में से किया जाता है और जिन्हें प्राप्तकर्ता की वर्तमान आय में जोड़ा जाता है।

प्रश्न 22.
अवितरित लाभ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कंपनी अपने लाभ में से लाभांश और लाभ कर देने के बाद, शेष राशि को सुरक्षित कोष के रूप में अपने पास रख लेती है, उसे अवितरित लाभ कहते हैं।

प्रश्न 23.
हस्तांतरण भुगतान से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
हस्तांतरण भुगतान से अभिप्राय ऐसे भुगतान से है जो बिना किसी आर्थिक क्रिया के दिए जाते हैं। हस्तांतरण भुगतान एकतरफा भुगतान है।

प्रश्न 24.
प्रचालन अधिशेष (Operating Surplus) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रचालन अधिशेष से अभिप्राय लगान, ब्याज तथा लाभ के योग से है। इस प्रकार,
प्रचालन अधिशेष = लगान + ब्याज + लाभ

प्रश्न 25.
प्राथमिक क्षेत्रक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्राथमिक क्षेत्रक से अभिप्राय उन उद्यमों से है जो प्राकृतिक संसाधनों; जैसे भूमि, जल, कोयला, कच्चा लोहा तथा अन्य खनिज के दोहन से वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। प्राथमिक क्षेत्रक के अंतर्गत खेती तथा उससे संबद्ध क्रियाएँ, मछली उद्योग, खनिज व उत्खनन आदि शामिल हैं।

प्रश्न 26.
द्वितीयक क्षेत्रक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
द्वितीयक क्षेत्रक से अभिप्राय उन उद्यमों से है जो एक प्रकार की वस्तु को दूसरे प्रकार की वस्तु में परिवर्तित करते हैं; जैसे चीनी उद्योग गन्ने को चीनी में परिवर्तित करते हैं। इसके अंतर्गत सभी प्रकार के उद्योग आते हैं।

प्रश्न 27.
तृतीयक क्षेत्रक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
तृतीयक क्षेत्रक से अभिप्राय उन उद्यमों से है जो केवल सेवाओं का उत्पादन करते हैं; जैसे बीमा, बैंकिंग, परिवहन और संचार।

प्रश्न 28.
आय विधि से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आय विधि वह विधि है जो एक देश में, एक लेखा वर्ष में उत्पादन के प्राथमिक कारकों को उनकी उत्पादक सेवाओं के बदले में किए गए भुगतानों का जोड़ करके राष्ट्रीय आय की गणना करती है।

प्रश्न 29.
उत्पाद विधि अथवा मूल्यवृद्धि विधि (Value Added Method) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उत्पाद विधि या मूल्यवृद्धि विधि वह विधि है जो एक देश में, एक लेखा वर्ष में देश की घरेलू सीमा के अंतर्गत प्रत्येक उत्पादक उद्यम के योगदान की गणना करके राष्ट्रीय आय का माप करती है। इसमें विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय को भी जोड़ा जाता है।

प्रश्न 30.
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय (National Disposable Income) क्या है?
उत्तर:
इसे बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद और शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तांतरण के रूप में परिभाषित किया जाता है। इस प्रकार,
NDI = NNPMP + शेष विश्व के शुद्ध चालू हस्तांतरण |

प्रश्न 31.
देश की राष्ट्रीय आय उसकी घरेलू कारक आय से कब कम होगी?
उत्तर:
देश की राष्ट्रीय आय उसकी घरेलू कारक आय से उस समय कम होगी, जब विदेशों से निवल कारक आय ऋणात्मक होगी।

प्रश्न 32.
अंतिम व्यय से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अंतिम व्यय वह व्यय है जो अंतिम उपभोग या पूँजी निर्माण के लिए बेची गई वस्तुओं और सेवाओं पर किया जाता है।

प्रश्न 33.
मध्यवर्ती व्यय से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मध्यवर्ती व्यय वह व्यय है जो उन वस्तुओं तथा सेवाओं पर किया जाता है जिन्हें दोबारा बेचा जाता है या जिनका आगे उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 34.
गैर-बाज़ार (Non-Market) गतिविधियों का अर्थ समझाइए।
उत्तर:
संगठित बाज़ार में क्रय-विक्रय; जैसे सौदों के बिना, वस्तुएँ व सेवाएँ प्राप्त करने की क्रियाओं को गैर-बाज़ार क्रियाएँ कहते हैं; जैसे गृहिणियों की सेवाएँ, वस्तु-विनिमय, घरेलू बगीचे में सब्जियाँ उगाना आदि।।

प्रश्न 35.
कर्मचारियों के पारिश्रमिक से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कर्मचारियों के पारिश्रमिक से हमारा अभिप्राय मालिकों द्वारा अपने कर्मचारियों को नकद और किस्म के रूपों में मजदूरी के भुगतान तथा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में अंशदान से है। इस प्रकार,
कर्मचारियों का पारिश्रमिक = नकद मज़दूरी + किस्म में मज़दूरी + मालिक द्वारा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में अंशदान

प्रश्न 36.
घरेलू सीमा (आर्थिक सीमा) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
घरेलू सीमा में राजनीतिक सीमाओं के अतिरिक्त, समुद्री सीमा, जलयान, वायुयान, मछली पकड़ने के जहाज, तेल व प्राकृतिक गैस निकालने वाले रिंग तथा तैरते प्लेटफार्म, विदेशों में स्थित दूतावास, वाणिज्य दूतावास (Consulates), सैनिक प्रतिष्ठान शामिल होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ जो देश की सीमा में कार्य करती हैं, घरेलू सीमा में शामिल नहीं की जाती क्योंकि उनके कार्यालय अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र के भाग माने जाते हैं।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 37.
मूल्यहास क्या होता है?
उत्तर:
एक वर्ष के दौरान उत्पादन प्रक्रिया में अचल (स्थाई) पूँजी के प्रयोग से उनके मूल्य में जो कमी आती है उसे अचल पूँजी का उपभोग या मूल्यह्रास कहते हैं।

प्रश्न 38.
GNP अवस्फीतिक (Deflator) क्या होता है?
उत्तर:
यह सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) में शामिल वस्तुओं और सेवाओं की औसत कीमत का मान है। सांकेतिक रूप में-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 1

प्रश्न 39.
हरित GNP किसे कहते हैं?
उत्तर:
हरित GNP से अभिप्राय उस GNP से है जो प्राकृतिक संसाधनों के निरंतर विदोहन (Sustainable Use) और विकास के लोगों के समान वितरण की प्राप्ति में सहायक होती है।

प्रश्न 40.
विश्रामावकाश (Leisure) को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं करने के कारण बताइए।।
उत्तर:

  1. विश्रामावकाश अदृश्य और वैयक्तिक होने के कारण इसका ठीक-ठीक मूल्यांकन करना कठिन होता है।
  2. इसका मूल्य आरोपित (Imputed) करना भी असंभव है।

प्रश्न 41.
एक ‘सामान्य निवासी’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
एक ‘सामान्य निवासी’ अथवा सामान्य व्यक्ति से हमारा अभिप्राय उस व्यक्ति से है जो सामान्यतया एक देश में निवास करता है तथा उसकी रुचि और हित उस देश में केंद्रित होते हैं। इस प्रकार, भारत के सामान्य निवासी = भारत में रह रहे नागरिक + भारत में हित रखने वाले गैर-नागरिक

प्रश्न 42.
मूल्यहास प्रावधान से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
एक वर्ष में उत्पादन के दौरान स्थाई पूँजी में होने वाली कमी को पूरा करने के लिए एक उद्यमकर्ता वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री में से अलग कोष का आबंटन करता है जिसे मूल्यह्रास प्रावधान कहा जाता है।

प्रश्न 43.
सकल मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सकल मूल्यवर्धित से अभिप्राय उत्पाद के मूल्य का मध्यवर्ती उपभोग पर आधिक्य से है और जिसमें मूल्यह्रास सम्मिलित होता है अर्थात्
सकल मूल्यवर्धित = उत्पाद का मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग

प्रश्न 44.
निवल मूल्यवर्धित (शुद्ध मूल्यवृद्धि) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
निवल मूल्यवर्धित से अभिप्राय उस राशि से है जिसे सकल मूल्यवर्धित से मूल्यह्रास घटाने पर प्राप्त किया जाता है अर्थात्
निवल मूल्यवर्धित = सकल मूल्यवर्धित – मूल्यह्रास

प्रश्न 45.
बाज़ार कीमत पर निवल मूल्यवृद्धि से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बाज़ार कीमत पर निवल मूल्यवृद्धि से अभिप्राय उस राशि से है जिसे वर्ष के चालू कीमतों पर निकाले गए सकल मूल्यवृद्धि से मूल्यह्रास घटाने पर प्राप्त किया जाता है अर्थात्
बाज़ार कीमत पर निवल मूल्यवृद्धि = बाज़ार कीमत पर सकल मूल्यवृद्धि – मूल्यह्रास

प्रश्न 46.
थोक कीमत सूचकांक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
थोक कीमत सूचकांक से अभिप्राय उन वस्तुओं की भारित औसत कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से है जिनकी खरीद-बिक्री थोक में की जाती है।

प्रश्न 47.
मिश्रित आय की धारणा की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
स्वरोज़गार (Self-Employed) व्यक्ति; जैसे किसान, छोटे दुकानदार, डॉक्टर आदि अपने साधनों; जैसे श्रम, पूँजी, भूमि आदि की सहायता से वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करते हैं। अतएव उन्हें ब्याज, लाभ, लगान, मज़दूरी आदि के रूप में मिली-जुली आय प्राप्त होती है। इसलिए इसको मिश्रित आय कहा जाता है। इस आय को भी राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सकल निवेश व शुद्ध निवेश की अवधारणाओं से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
निवेश-निवेश से अभिप्राय पूँजीगत वस्तुओं; जैसे मशीनें, इमारतें, उपकरणों के स्टॉक में वृद्धि से है जो भविष्य में अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता बढ़ाते हैं। दूसरे शब्दों में, अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता बढ़ाने वाली भौतिकी पूँजी के स्टॉक में वृद्धि को निवेश या पूँजी निर्माण कहते हैं। इसमें भौतिक परिसंपत्तियों का निर्माण व वृद्धि शामिल की जाती है। ध्यान रहे, आम भाषा में मुद्रा द्वारा शेयर्ज व वित्तीय परिसंपत्तियों की खरीद को भी निवेश कहा जाता है जिसका उपरोक्त परिभाषा से कोई संबंध नहीं। अर्थशास्त्र में निवेश का अर्थ हमेशा पूँजी-निर्माण से है अर्थात् पूँजीगत स्टॉक में सकल या शुद्ध वृद्धि से है।

सकल निवेश-अंतिम उत्पाद का वह भाग जो पूँजीगत वस्तुओं के रूप में निर्मित होता है, अर्थव्यवस्था का सकल निवेश कहलाता है। इसमें विद्यमान पूँजीगत वस्तुओं की टूट-फूट व रख-रखाव की प्रतिस्थापन लागत (Replacement cost) शामिल होती है। दूसरे शब्दों में, सकल निवेश में मूल्यह्रास सम्मिलित होता है।

मूल्यहास-सामान्य टूट-फूट व प्रत्याशित अप्रचलन के कारण अचल परिसंपत्तियों के मूल्य में गिरावट (हास) को मूल्यह्रास (Depreciation) या ‘अचल पूँजी का उपभोग’ कहते हैं। हम जानते हैं कि अचल पुँजी; जैसे मशीनरी, ट्रैक्टर, रेल-इंजन, इमारत, रेलवे लाइन में समय के साथ-साथ टूट-फूट होती रहती है और इनके जीवनकाल के अंत में इन्हें बदलने (प्रतिस्थापन करने) की जरूरत पड़ती है। इस प्रकार स्थाई पूँजीगत वस्तुओं के मूल्य में होने वाली गिरावट (मूल्यह्रास) को ‘अचल पूँजी का उपभोग’ कहते हैं। संक्षेप में, सकल निवेश में मूल्यह्रास शामिल रहता है।

शुद्ध निवेश-सकल निवेश में मूल्यह्रास घटाने पर शुद्ध निवेश प्राप्त होता है। सांकेतिक रूप में-
निवल निवेश = सकल निवेश – मूल्यह्रास
ध्यान रहे, अर्थव्यवस्था के पूँजीगत स्टॉक में नई वृद्धि निवल निवेश के आधार पर मापी जाती है न कि सकल निवेश के आधार पर।

प्रश्न 2.
चालू और स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय के बीच अंतर बताइए। आर्थिक संवृद्धि मापने में इनमें से कौन अधिक उपयोगी है?
उत्तर:
चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय की गणना वर्तमान वर्ष में प्रचलित मूल्यों के आधार पर की जाती है। एक अर्थव्यवस्था के अंतर्गत एक वर्ष में बेची या खरीदी गई समस्त अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के बाज़ार मूल्य के जोड़ को ही प्रचलित कीमतों पर राष्ट्रीय आय कहते हैं। एक अर्थव्यवस्था के अंतर्गत एक वर्ष में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य जब किसी आधार वर्ष की कीमत के अनुसार आँका जाता है, तो इसे हम स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय कहते हैं। सांकेतिक रूप में
चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय = घरेलू उत्पाद x चालू कीमत
स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय = घरेलू उत्पाद x आधार वर्ष की कीमत
आर्थिक संवृद्धि के मापक के रूप में स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय अधिक उपयुक्त है क्योंकि चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय अर्थव्यवस्था के वास्तविक विकास को प्रदर्शित नहीं करती। चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय से जो आँकड़े उपलब्ध होते हैं उन्हें हम तुलनात्मक अध्ययन के लिए प्रयोग नहीं कर सकते, क्योंकि चालू कीमतों में राष्ट्रीय आय की वृद्धि वास्तविक नहीं होती।

प्रश्न 3.
‘निवासी’ (सामान्य निवासी) की अवधारणा राष्ट्रीय आय के आकलन के संदर्भ में समझाइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय के आकलन में सामान्य निवासी अवधारणा का विशेष अर्थ और महत्त्व है। निवासी से अभिप्राय उस व्यक्ति से है जो साधारणतया उस देश में रहता है और जिसका आर्थिक हित उसी देश में केंद्रित है क्र में रहता है। साधारण (सामान्य) निवासी के अंतर्गत व्यक्ति व संस्थाएँ दोनों आते हैं। साधारण निवासी में एक देश के निवासी व उस देश में रहने वाले गैर-निवासी दोनों ही प्रकार के व्यक्ति शामिल होते हैं। जैसे
(i) भारतीय काफी संख्या से इंग्लैंड के गैर-निवासी हैं क्योंकि वे वहाँ अब भी भारतीय पासपोर्ट पर हैं। वे भारत की नागरिकता रखते हैं फिर भी इंग्लैंड के सामान्य निवासी हैं क्योंकि वे वहाँ बस गए हैं और उनका आर्थिक हित उसी देश (इंग्लैंड) में है।

(ii)अंतर्राष्ट्रीय संगठनों; जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन आदि के कर्मचारी अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र के निवासी हैं न कि उस देश के जहाँ वे स्थापित हैं। इन संगठनों के कार्यालय भारत में भी स्थित हैं फिर भी इनके कर्मचारी भारत के सामान्य निवासी नहीं हैं, परंतु इन कार्यालयों में कार्य करने वाले भारतीय नागरिक भारत के सामान्य निवासी हैं।

(iii) ऐसे व्यक्ति जो थोड़े समय (प्रायः एक वर्ष से कम) के लिए विदेश जाते हैं, अपने देश के ही सामान्य निवासी माने जाते हैं; जैसे भारतीयों का अमरीका में सैर-सपाटे के लिए जाना, खेलों के मैच या कांफ्रेंस में भाग लेने जाना, बीमारी का इलाज करवाने जाना आदि। ऐसे व्यक्ति भारत के ही सामान्य निवासी माने जाएँगे।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय आय के आकलन के संदर्भ में आर्थिक सीमा (घरेल सीमा) की अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
आर्थिक सीमा अथवा घरेलू सीमा की अवधारणा का प्रयोग राष्ट्रीय आय की गणना के संदर्भ में किया जाता है। आर्थिक सीमा की अवधारणा के अनुसार इसके अंतर्गत निम्नलिखित तथ्यों को सम्मिलित किया जाता है
(i) देश की राजनीतिक सीमाएँ (समुद्री सीमाओं सहित)।

(ii) देश के निवासियों द्वारा दो या दो से अधिक देशों के मध्य चलाए जाने वाली जलयान तथा वायुयान सेवाएँ।

(iii) देश के निवासियों द्वारा चलाई जाने वाली मछली पकड़ने की नौकाएँ, तेल व प्राकृतिक गैस के रिंग तथा तैरते हुए प्लेटफार्म (Floating Platforms)जिनके द्वारा अंतर्राष्ट्रीय जल सीमाओं में अथवा देश की सर्वाधिकारी जल सीमाओं में गैस या तेल का दोहन कार्य (Exploitation) किया जाता है।

(iv) एक देश के विदेशों में राजनयिक संस्थान दूतावास (Embassies), वाणिज्य दूतावास (Consulates)तथा सैनिक प्रतिष्ठान।

(v) अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ जो देश की सीमा में कार्य करती हैं, घरेलू सीमा में सम्मिलित नहीं की जाती। उनके कार्यालय अंतर्राष्ट्रीय ‘क्षेत्र के भाग माने जाते हैं। स्पष्ट है कि घरेलू सीमा की अवधारणा राजनीतिक सीमा की अवधारणा से अधिक विस्तृत है।

प्रश्न 5.
“क्रय की गई मशीन सदैव अंतिम वस्तु होती है।” क्या आप सहमत हैं?
उत्तर:
क्रय की गई मशीन सदैव अंतिम वस्तु नहीं होती। क्रय की गई मशीन मध्यवर्ती वस्तु भी हो सकती है। यदि एक मशीन का क्रय एक फर्म द्वारा अन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिए अथवा दूसरी फर्म को पुनर्बिक्री के लिए किया जाता है, तो वह मशीन मध्यवर्ती वस्तु होगी। यदि एक मशीन का क्रय एक फर्म द्वारा पूँजी निर्माण के लिए अथवा उपभोक्ता द्वारा उपभोग के लिए किया जाता है, तो वह मशीन अंतिम वस्तु होगी।

प्रश्न 6.
टिकाऊ तथा गैर-टिकाऊ वस्तुओं में अंतर कीजिए। उन दो टिकाऊ वस्तुओं को बताइए जिन्हें मध्यवर्ती उपभोग में शामिल किया जाता है।
उत्तर:
टिकाऊ वस्तुओं से हमारा अभिप्राय उन वस्तुओं से है जिन्हें निरंतर कई वर्षों तक प्रयोग में लाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, मकान, फर्नीचर, मशीन, मोटरकार, वायुयान, टेलीविजन, कंप्यूटर आदि। गैर-टिकाऊ वस्तुओं से हमारा अभिप्राय उन वस्तुओं से है जिनका प्रयोग केवल एक बार किया जा सकता है। गैर-टिकाऊ वस्तुओं का जैसे ही प्रयोग किया जाता है, उनका अस्तित्व और मूल्य समाप्त हो जाता है। उदाहरण के लिए, गेहूँ, आटा, दूध आदि।

निम्नलिखित दो टिकाऊ वस्तुएँ मध्यवर्ती उपभोग में शामिल होती हैं-

  • सरकार द्वारा सैनिक उद्देश्य से खरीदी गई कार
  • सरकार द्वारा सैनिक उद्देश्य से खरीदे गए वायुयान।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 7.
‘स्वनियोजित की मिश्रित आय की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
‘स्वनियोजित की मिश्रित आय’ की अवधारणा से हमारा अभिप्राय स्व-लेखा श्रमिकों की आय और अनिगमित उद्यमों के लाभ और लाभांश से है। उदाहरण के लिए, एक छोटे दुकानदार की आय स्वनियोजित की मिश्रित आय है। वह अपने व्यवसाय का समुचित लेखा-जोखा नहीं रखता। उसकी कुल आय लगान/किराया, मज़दूरी, ब्याज और लाभ का जोड़ है, क्योंकि वह आय को मज़दूरी, ब्याज आदि में विभाजित नहीं करता।

प्रश्न 8.
हस्तांतरण भगतान क्या हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
वे भुगतान जो व्यक्तियों या समुदायों को बिना कोई उत्पादन कार्य या सेवा के उपलब्ध होते हैं, हस्तांतरण भुगतान कहलाते हैं। उदाहरण के लिए, बुढ़ापा पेंशन, छात्रवृत्ति, बेरोज़गारी भत्ता आदि। कारक भुगतान विभिन्न कारकों को उत्पादन में योगदान देने के बदले में दिए जाते हैं, लेकिन हस्तांतरण भुगतान में प्राप्तकर्ता उत्पादन में कोई योगदान देने के लिए बाध्य नहीं होता है।

हस्तांतरण भुगतान के प्रकार-हस्तांतरण दो प्रकार के होते हैं-

  • चालू हस्तांतरण
  • पूँजीगत हस्तांतरण

1. चालू हस्तांतरण चालू हस्तांतरण से हमारा अभिप्राय उन हस्तांतरणों से है जो उपभोग के लिए होते हैं तथा जिनसे राष्ट्रीय आय प्रभावित होती है। वर्तमान या चालू हस्तांतरण के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-

  • देश के अंतर्गत हस्तांतरण; जैसे छात्रवृत्ति, उपहार, पुरस्कार, बेकारी भत्ता, कर आदि।
  • देशों के बीच हस्तांतरण; जैसे एक देश द्वारा दूसरे देश के निवासियों को दिए गए उपहार; जैसे-वस्त्र, दवाइयाँ, भोजन आदि।

2. पूँजीगत हस्तांतरण-पूँजीगत हस्तांतरण वे हस्तांतरण होते हैं जो पूँजीगत खाते के अंतर्गत आते हैं। इन हस्तांतरणों से पूँजी का निर्माण होता है। एक देश के अंतर्गत पूँजी हस्तांतरण सरकार से परिवारों और उद्यमों के बीच और इसके विपरीत दिशा में होते हैं। परिवारों पर लगाए गए मृत्यु कर तथा उत्तराधिकारी कर परिवारों और उद्यमों से सरकार को दिए गए पूँजीगत हस्तांतरण के उदाहरण हैं। दो देशों के बीच पूँजीगत हस्तांतरण के उदाहरण इस प्रकार हैं-युद्ध में विनाश की पूर्ति, आर्थिक सहायता, पूँजीगत वस्तुओं का एकतरफा हस्तांतरण।

प्रश्न 9.
साधन आय और हस्तांतरण आय के बीच अंतर बताइए।
उत्तर:
साधनं (कारक) आय से हमारा अभिप्राय कारक आगतों; जैसे भूमि, श्रम, पूँजी और उद्यमियों की आय से है। साधन आय का भुगतान उत्पादकों द्वारा विभिन्न साधनों के स्वामियों को उनके द्वारा दी गई उत्पादक सेवाओं के बदले किया जाता है। लगान/किराया, मज़दूरी, ब्याज, लाभ आदि कारक आय के उदाहरण हैं। हस्तांतरण आय से हमारा अभिप्राय उन आयों से है जो व्यक्तियों या समुदायों को बिना कोई उत्पादन कार्य या सेवा के उपलब्ध होती हैं। हस्तांतरण आय में प्राप्तकर्ता उत्पादन में कोई योगदान देने के लिए बाध्य नहीं होता। पेंशन, छात्रवृत्ति, बेरोज़गारी भत्ता आदि हस्तांतरण आय के उदाहरण हैं।

प्रश्न 10.
विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय की अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
विदेशों से प्राप्त निवल कारक (शुद्ध साधन) आय का अर्थ-मोटे तौर पर यह देश में बाहर से आने वाली कारक आय और देश से बाहर जाने वाली कारक आय का अंतर होता है। दूसरे शब्दों में, अन्य देशों को कारक सेवाएँ प्रदान करने से अर्जित आय और दूसरे देशों द्वारा प्रदत्त सेवाओं के बदले उन्हें किए गए कारक भुगतान के अंतर को विदेशों से प्राप्त निवल कारक (शुद्ध साधन) आय कहते हैं।
निवल विदेशी कारक आय = देश के सामान्य निवासियों द्वारा शेष विश्व से प्राप्त कारक आय – देश में गैर-निवासियों द्वारा प्राप्त कारक आय
हम जानते हैं कि भारत के सामान्य निवासी न केवल अपने देश की घरेलू सीमा (Domestic territory) में कारक आय (काम से आय + संपत्ति से आय) अर्जित करते हैं, बल्कि देश से बाहर विदेशों में भी ऐसी आय अर्जित करते हैं। (i) काम से आय; जैसे भारत के वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, नर्तक, बढ़ई आदि विदेशों में काम करके वेतन व मजदूरी (कर्मचारियों का पारिश्रमिक) कमाते हैं, (ii) संपत्ति से आय; जैसे-भारत के निवासी विदेशों में अचल परिसंपत्तियों (दुकानें, मकान, फैक्टरियों) के मालिक बन जाते हैं तथा वित्तीय संपत्तियाँ (शेयर, ब्रांड) खरीद लेते हैं और इन पर ब्याज, लगान/किराया, लाभ कमाते हैं। उद्यमी के रूप में पदार्थ व सेवाओं की उत्पादन प्रक्रियाओं से लाभ भी कमाते हैं। इसी प्रकार विदेशी भी भारत में काम से आय व संपत्ति से आय अर्जित करते हैं। इन दोनों की आय के अंतर को भारत की विदेशों से प्राप्त निवल कारक (शुद्ध साधन) आय कहेंगे।

प्रश्न 11.
राष्ट्रीय आय और घरेलू आय में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
घरेलू आय एक देश की घरेलू सीमा के अंतर्गत उत्पादित की गई वस्तुओं व सेवाओं के मूल्य को कहते हैं। इस प्रकार घरेलू आय एक भौगोलिक तथ्य है। घरेलू आय में विदेशों में देश के नागरिकों द्वारा किए गए उत्पादन अथवा विदेशियों द्वारा देश में किए गए उत्पादन को शामिल नहीं किया जाता। राष्ट्रीय आय देश के सामान्य नागरिकों द्वारा किए गए उत्पादन के मूल्य के बराबर होती है चाहे वह उत्पादन देश की सीमा में किया गया हो अथवा विदेशों में। इस प्रकार, राष्ट्रीय आय एक विस्तृत अवधारणा है जिसमें घरेलू आय भी शामिल होती है। सूत्र के रूप में
राष्ट्रीय आय = घरेलू आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय

प्रश्न 12.
शुद्ध अप्रत्यक्ष कर क्या है? राष्ट्रीय आय लेखांकन में शुद्ध अप्रत्यक्ष कर का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
शुद्ध अप्रत्यक्ष कर, अप्रत्यक्ष कर और आर्थिक सहायता का अंतर है।
1. अप्रत्यक्ष कर-सरकार वस्तुओं के उत्पादन व बिक्री पर अनेक प्रकार के अप्रत्यक्ष कर लगाती है; जैसे उत्पादन शुल्क, बिक्री कर, सीमा शुल्क, मनोरंजन कर आदि। कर लगाने से वस्तु की कीमत बढ़ जाती है।

2. आर्थिक सहायता-यह सरकार द्वारा उद्यमों को दिया जाने वाला आर्थिक सहायता या अनुदान होता है ताकि (i) उद्यमी बाज़ार कीमत से कम कीमत पर वस्तु बेचें, (ii) वस्तु का निर्यात बढ़ाएँ, (iii) रोज़गार बढ़ाने के लिए उत्पादन में श्रम-प्रधान तकनीक का प्रयोग करें। आर्थिक सहायता से वस्तु की कीमत कम हो जाती है; जैसे आर्थिक सहायता के फलस्वरूप ही खादी ग्राम उद्योग, खादी का कपड़ा सस्ता बेचता है, राशन की दुकानों से गेहूँ, चीनी व मिट्टी का तेल बाज़ार कीमत के मुकाबले सस्ता मिलता है।

महत्त्व – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता) का प्रयोग बाज़ार कीमत और कारक लागत में अंतर जानने के लिए किया जाता है। समीकरण के रूप में
बाज़ार कीमत = कारक लागत + अप्रत्यक्ष कर — आर्थिक सहायता
= कारक लागत + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
साधन लागत = बाज़ार कीमत + अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता
= बाज़ार कीमत – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
स्पष्ट है कि बाज़ार कीमत, अप्रत्यक्ष कर लगने से, कारक लागत से अधिक हो जाती है और आर्थिक सहायता मिलने से साधन लागत से कम हो जाती है। अप्रत्यक्ष कर और आर्थिक सहायता न होने पर कारक लागत और बाज़ार कीमत बराबर होते हैं। राष्ट्रीय आय निकालने के लिए हमें कारक लागत पर मूल्यांकन की जरूरत होती है। अतः कारक लागत निकालने के लिए बाज़ार कीमत में से शुद्ध अप्रत्यक्ष कर घटा देते हैं। राष्ट्रीय आय लेखांकन की दृष्टि से यही ‘शुद्ध अप्रत्यक्ष कर’ का महत्त्व है।

प्रश्न 13.
मूल्यवर्धित से क्या अभिप्राय है? सामान्य सरकार क्षेत्र में शुद्ध मूल्यवृद्धि का आकलन कैसे किया जाता है?
उत्तर:
मूल्यवर्धित से अभिप्राय उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मौद्रिक मूल्य तथा मध्यवर्ती वस्तुओं की लागत के अंतर से है। अर्थात्
मूल्यवर्धित = उत्पादन का मूल्य – मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य
निवल मूल्यवर्धित = मूल्यवृद्धि – अचल पूँजी का उपभोग
सामान्य सरकार क्षेत्र द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का कोई विक्रय नहीं होता। इसलिए सामान्य सरकार क्षेत्र में शुद्ध मूल्यवृद्धि उत्पाद का मूल्य वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन लागत के बराबर होता है। वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन लागत में निम्नलिखित दो बातें शामिल होती हैं

  • मध्यवर्ती उपभोग का मूल्य
  • कर्मचारियों का पारिश्रमिक।

प्रश्न 14.
उत्पाद के सकल मूल्य और बाज़ार कीमतों पर शुद्ध मूल्यवृद्धि में अंतर बताइए।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था में एक वर्ष के अंतर्गत उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मौद्रिक मूल्य को उत्पाद का सकल मूल्य कहते हैं। इसमें चालू कार्य (Work-in-progress) में शुद्ध वृद्धि और स्व-लेखा पर उत्पादित वस्तुएँ भी शामिल हैं। बाज़ार कीमतों पर शुद्ध मूल्यवृद्धि अर्थात् सृजित आय का अर्थ, अर्थव्यवस्था द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं पर होने वाले व्ययों से है। शुद्ध मूल्यवृद्धि का संबंध केवल अंतिम वस्तुओं से है। इसलिए हमें कुल उत्पादन मूल्य में से मध्यवर्ती वस्तुओं के मूल्य को घटाना होगा। सूत्र के रूप में,
बाज़ार मूल्य पर शुद्ध (निवल) मूल्यवर्धित = उत्पादन का मूल्य – मध्यवर्ती वस्तुओं की लागत – अचल पूँजी का उपभोग

प्रश्न 15.
कारक लागत पर शुद्ध मूल्यवृद्धि क्या होती है? क्या यह सदैव कुल कारक आय के समान होती है?
उत्तर:
कारक लागत पर शुद्ध मूल्यवृद्धि से अभिप्राय उत्पादन प्रक्रिया के दौरान कारक लागत पर उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मौद्रिक मूल्य से है। सकल मूल्यवृद्धि उत्पादन की विभिन्न अवस्थाओं में वस्तु के कुल मूल्य में होने वाली वृद्धि से है। अर्थात्
सकल मूल्यवृद्धि = उत्पादन का कुल मूल्य – मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य
सकल मूल्यवृद्धि में मशीनों की टूट-फूट व घिसावट अर्थात् मूल्यह्रास शामिल होते हैं। यदि सकल मूल्यवृद्धि में से स्थाई पूँजी का उपयोग निकाल दिया जाए तो वह शुद्ध मूल्यवृद्धि कहलाता है। अर्थात्
शुद्ध मूल्यवृद्धि = उत्पादन का सकल मूल्य – मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य – स्थाई पूँजी का उपभोग
बाज़ार मूल्य पर शुद्ध मूल्यवृद्धि में से शुद्ध अप्रत्यक्ष कर घटाने पर कारक लागत पर शुद्ध मूल्यवृद्धि प्राप्त होती है। कारक लागत पर शुद्ध मूल्यवृद्धि सदैव कुल कारक आय के बराबर होती है क्योंकि ये दोनों ही एक सिक्के के दो पहलू हैं। कारक लागत पर शुद्ध मूल्यवृद्धि उत्पाद विधि द्वारा अनुमानित राष्ट्रीय आय है जबकि कुल कारक आय, आय विधि द्वारा अ राष्ट्रीय आय है। विभिन्न कारक आयों, जैसे लगान/किराया, मज़दूरी, ब्याज और लाभ का योग मूल्यवृद्धि के बराबर होता है। शुद्ध मूल्यवृद्धि से विभिन्न कारकों को उनकी आयों के रूप में बाँट दिया जाता है।

प्रश्न 16.
‘ऐसे बहुत से उत्पाद हैं जिन्हें राष्ट्रीय आय में सम्मिलित नहीं किया जाता परंतु वे एक देश के कल्याण में योगदान देते हैं।’ एक उदाहरण की सहायता से इस कथन को समझाइए।
उत्तर:
ऐसे बहुत से उत्पाद होते हैं जिन्हें समुचित आँकड़ों के अभाव तथा मूल्यांकन की समस्या के कारण राष्ट्रीय आय में सम्मिलित नहीं किया जाता, परंतु ये उत्पाद एक देश के कल्याण को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय आय में उन निःशुल्क सेवाओं को सम्मिलित नहीं किया जाता जो अनेक व्यक्ति अपने परिवारों तथा मित्रों के लिए करते हैं। इसी प्रकार, राष्ट्रीय आय में उन वस्तुओं और सेवाओं, जिन्हें विशुद्ध रूप से आत्मसंतुष्टि; जैसे-व्यायाम, बागवानी, खेल आदि के लिए उत्पादित किया जाता है, को सम्मिलित नहीं किया जाता परंतु ये सभी क्रियाएँ कल्याण में वृद्धि करती हैं। यही कारण है कि राष्ट्रीय आय को कल्याण का अच्छा सूचक नहीं माना जाता।

प्रश्न 17.
‘ऐसे बहुत से उत्पाद हैं जिन्हें राष्ट्रीय आय में सम्मिलित किया जाता है परंतु वे कल्याण को कम करते हैं।’ एक उदाहरण की सहायता से इस कथन को समझाइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय में हर प्रकार की वस्तओं तथा सेवाओं के उत्पादन को सम्मिलित किया जाता है लेकिन राष्ट्रीय आय में सम्मिलित सभी वस्तुओं तथा सेवाओं से आर्थिक कल्याण होना आवश्यक नहीं है। उदाहरण के लिए, अफीम, शराब आदि का उत्पादन कल्याण को कम करता है। इसी प्रकार, यदि एक देश के उत्पादन में युद्ध सामग्री और औद्योगिक मशीनरी का एक बड़ा भाग है तो उस देश के निवासियों का रहन-सहन का स्तर ऊँचा नहीं होगा जिससे आर्थिक कल्याण में वृद्धि नहीं होगी।

प्रश्न 18.
घरेलू साधन आय से क्या अभिप्राय है? इसके प्रमुख संघटकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
घरेलू साधन आय से अभिप्राय एक वर्ष में एक देश की घरेलू सीमा के अंदर उत्पादन के साधनों द्वारा अर्जित आय से है। घरेलू साधन आय के प्रमुख संघटक निम्नलिखित हैं-
1. कर्मचारियों का पारिश्रमिक-इसमें मालिकों द्वारा अपने कर्मचारियों को नकद और किस्म के रूप में दिए गए सभी भुगतान, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए किए गए भुगतान और निःशुल्क सुविधाओं का आरोपित मूल्य शामिल हैं।

2. प्रचालन अधिशेष-यह संपत्ति और उद्यमवृत्ति से प्राप्त आय का जोड़ है। इसमें लगान, ब्याज और लाभ शामिल हैं। यदि शुद्ध घरेलू कारक (साधन) आय में से श्रमिकों का पारिश्रमिक और मिश्रित आय को घटा दिया जाए तो प्रचालन अधिशेष रह जाता है।

3. स्वनियोजन से आय-जब कोई व्यक्ति दूसरे के यहाँ नौकरी करने की बजाय अपना धंधा स्वयं करता है तो उसे स्वनियोजित व्यक्ति कहते हैं और उसकी आय को मिश्रित आय कहते हैं। ऐसे लोग उत्पादन में प्रायः अपने कारक स्वयं जुटाते हैं जिससे इनकी आय, लगान/किराया, मज़दूरी, ब्याज व लाभ का मिश्रण होती है; जैसे छोटे दुकानदार, किसान, बढ़ई, वकील, डॉक्टर आदि स्वनियोजित व्यक्ति हैं क्योंकि वे अपना धंधा स्वयं करते हैं। ऐसे व्यक्तियों की आय स्वनियोजितों की मिश्रित आय कहलाती है। भारत में मिश्रित आय के महत्त्व को देखते हुए इसे एक अलग स्रोत के रूप में दिखाया जाता है। समीकरण के रूप में-
घरेलू आय = कर्मचारियों का पारिश्रमिक + प्रचालन अधिशेष + मिश्रित आय

प्रश्न 19.
वैयक्तिक आय (Personal Income) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वैयक्तिक आय-व्यक्तियों या गृहस्थों (Households) द्वारा समस्त स्रोतों से प्राप्त कारक आय व हस्तांतरण आय का ग, वैयक्तिक आय कहलाती है। इसमें कारक आय (उत्पादक सेवाएँ प्रदान करने के बदले अर्जित आय) और हस्तांतरण आय (उत्पादक सेवा दिए बिना प्राप्त आय) दोनों शामिल होती हैं चाहे ये देश की घरेलू सीमाओं में हों या विदेश से प्राप्त हुई हों। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय आय, वैयक्तिक आय (Personal income) का योग नहीं होती हैं, क्योंकि राष्ट्रीय आय एक कमाई की संकल्पना (Earning concept) है जिसमें केवल अर्जित कारक आय शामिल होती है जबकि वैयक्तिक आय एक प्राप्ति की अवधारणा (Receipt concept) है जिसमें कारक आय के अतिरिक्त हस्तांतरण आय (Transfer income) भी शामिल होती है। वैयक्तिक आय निकालने के लिए राष्ट्रीय आय में से आय की कुछ मदें (जो व्यक्ति को प्राप्त नहीं होती हैं; जैसे लाभ कर, अवितरित लाभ, सरकारी क्षेत्र का अधिशेष) घटाई जाती हैं और हस्तांतरण आय जोड़ी जाती है। निजी आय से ‘लाभ कर’ और ‘अवितरित लाभ’ घटाने पर वैयक्तिक आय प्राप्त होती है।

प्रश्न 20.
वैयक्तिक प्रयोज्य आय क्या है?
उत्तर:
वैयक्तिक प्रयोज्य आय-यह वैयक्तिक आय का वह भाग है जो परिवारों को अपनी इच्छानुसार व्यय करने के लिए उपलब्ध होती है। निस्संदेह व्यक्ति ऐसी आय को अपनी इच्छानुसार उपभोग पर व्यय करने या बचत करने के लिए स्वतंत्र होते हैं। हम जानते हैं कि सरकार वैयक्तिक आय का एक भाग करों (जैसे आय कर, संपत्ति कर आदि) के रूप में ले जाती है। इसी प्रकार व्यक्ति को कुछ अनिवार्य भुगतान (जैसे फीस, जुर्माना आदि) करने पड़ते हैं जिन्हें सरकार की विविध प्राप्तियाँ कहते हैं। वैयक्तिक आय में से वैयक्तिक (प्रत्यक्ष) कर और सरकार की विविध प्राप्तियाँ घटाने से वैयक्तिक प्रयोज्य आय निकल आती है। समीकरण के रूप में
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय – वैयक्तिक (प्रत्यक्ष) कर
चूँकि वैयक्तिक प्रयोज्य आय या तो उपभोग पर व्यय होती है या बचत के लिए प्रयोग होती है, इसलिए-
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक व्यय + वैयक्तिक बचत

प्रश्न 21.
राष्ट्रीय आय की संरचना और वितरण का आर्थिक कल्याण पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
राष्ट्रीय आय की संरचना और वितरण का आर्थिक कल्याण पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है।
1. राष्ट्रीय आय की संरचना राष्ट्रीय आय की संरचना से अभिप्राय उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की प्रकृति से है। राष्ट्रीय आय में सम्मिलित किए गए कुछ उत्पादों; जैसे औद्योगिक मशीनरी, युद्ध सामग्री आदि का आर्थिक कल्याण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि ये लोगों के जीवन स्तर अर्थात् उपभोग के लिए उपलब्ध नहीं होते।

2. राष्ट्रीय आय का वितरण-यदि राष्ट्रीय आय का वितरण समान है तो आर्थिक कल्याण में वृद्धि होगी। राष्ट्रीय आय के असमान वितरण की स्थिति में कुछ धनी व्यक्तियों का जीवन स्तर तो ऊँचा हो जाएगा परंतु देश की अधिकतर निर्धन जनता का जीवन स्तर ऊँचा नहीं होगा। इस प्रकार पूरे समाज की दृष्टि से आर्थिक कल्याण में कोई वृद्धि नहीं होगी।

प्रश्न 22.
निजी आय तथा राष्ट्रीय आय में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निजी आय तथा राष्ट्रीय आय में निम्नलिखित अंतर हैं-

निजी आयराष्ट्रीय आय
1. निजी आय में केवल निजी क्षेत्र की आय शामिल होती है।1. राष्ट्रीय आय में निजी क्षेत्र एवं सरकारी क्षेत्र दोनों की आय शामिल होती है।
2. निजी आय में अर्जित आय तथा अनार्जित आय जैसे सभी प्रकार के चालू हस्तांतरण शामिल होते हैं।2. राष्ट्रीय आय में केवल अर्जित आय शामिल होती है। इसमें किसी प्रकार के हस्तांतरण शामिल नहीं होते।
3. निजी आय = निवल घरेलू उत्पाद से निजी क्षेत्र की आय + सभी प्रकार के चालू हस्तांतरण + विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय।3. राष्ट्रीय आय = निवल घरेलू कारक आय + विदेशों से अर्जित निवल कारक आय।
4. इसमें राष्ट्रीय ऋणों पर ब्याज को भी शामिल किया जाता है।4. इसमें राष्ट्रीय ऋणों पर ब्याज को शामिल नहीं किया जाता।
5. यह अपेक्षाकृत संकुचित धारणा है।5. यह अपेक्षाकृत विस्तृत धारणा है।

प्रश्न 23.
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय की धारणा को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय को बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) और शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तांतरण के योग के रूप में परिभाषित किया जाता है अर्थात् NDI = NNP.MP+ शुद्ध विदेशी चालू हस्तांतरण। इस अवधारणा के पीछे उद्देश्य यह जानना है कि घरेलू अर्थव्यवस्था के पास वस्तुओं और सेवाओं की अधिक-से-अधिक कितनी मात्रा है जिसे राष्ट्र जैसे चाहे वैसे ही व्यय कर सकता है। शेषं विश्व से चालू हस्तांतरण (Current Transfers), नकदी, किस्म और उपहार के रूप में होते हैं। राष्ट्रीय प्रयोज्य आय में देश के भीतर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र को चालू हस्तांतरण शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि इसका देश की प्रयोज्य आय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसमें केवल विदेशों से प्राप्त या उनको दिए गए चालू हस्तांतरण शामिल किए जाते हैं। NDI में शुद्ध अप्रत्यक्ष कर इसलिए शामिल है क्योंकि यह सरकार की हस्तांतरण आय है जिसे वह जैसा चाहे वैसा प्रयोग कर सकती है। राष्ट्रीय प्रयोज्य आय, राष्ट्रीय आय से कम भी हो सकती है और अधिक भी। जब कोई देश अपनी राष्ट्रीय आय का एक भाग दूसरे देशों को दान या उपहार के रूप में देता है तो इसकी उपभोग पर व्यय करने और बचत करने की क्षमता कम हो जाएगी। इसके विपरीत यदि अन्य देश इस देश को उपहार के रूप में कुछ देते हैं तो देश की व्यय करने व बचत करने की क्षमता बढ़ जाएगी। समीकरण के रूप में-
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय = बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद + शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तांतरण
= साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + शुद्ध विदेशी साधन आय + शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तांतरण

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 24.
राष्ट्रीय आय के चक्रीय प्रवाह के तीन चरण समझाइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय के चक्रीय प्रवाह के तीन चरण हैं-उत्पादन, आय और व्यय। प्रत्येक चरण पर इसे मापने के लिए हमें भिन्न-भिन्न आँकड़ों और विधियों की आवश्यकता पड़ती है। यदि हम इसे उत्पादन के चरण पर मापते हैं तो हमें देश में सभी उत्पादक उद्यमों द्वारा शुद्ध मूल्यवृद्धि के कुल जोड़ को जानना होगा। यदि हम इसे आय के वितरण चरण पर मापना चाहते हैं तो हमें वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में उत्पादित कुल आय के जोड़ को मालूम करना होगा।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 2
यदि हम इसे व्यय चरण पर मापना चाहते हैं तो हमें अर्थव्यवस्था की तीन व्यय करने वाली इकाइयों अर्थात् सामान्य सरकार, उपभोक्ता परिवार तथा उत्पादक उद्यमों के कुल व्यय के जोड़ को ज्ञात करना होगा। राष्ट्रीय आय ‘के चक्रीय प्रवाह के विभिन्न चरणों को संलग्न चित्र की सहायता से समझा जा सकता है।

प्रश्न 25.
तीन-क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में आय का चक्रीय प्रवाह समझाइए।
उत्तर:
सरकार द्वारा फर्मों से वस्तुएँ और परिवारों से कारक सेवा खरीदने के कारण सरकारी क्षेत्रक में फर्म क्षेत्रक और परिवार क्षेत्रक को मौद्रिक प्रवाह होता है। इसी प्रकार जब सरकार फर्मों को अनुदान सब्सिडी तथा परिवारों को हस्तांतरण भुगतान करती है तब भी मौद्रिक प्रवाह फर्मों और परिवारों की ओर होते हैं। सरकार अपने खर्चों को पूरा करने के लिए तरह-तरह के करों के माध्यम से भी पैसों की उगाही करती है, जिसके कारण मौद्रिक प्रवाह फर्म क्षेत्रक तथा परिवार क्षेत्रक से सरकारी क्षेत्रक की ओर होते हैं। संलग्न चित्र के माध्यम से इन मौद्रिक प्रवाहों को स्पष्ट रूप से समझाया जा सकता है। सभी कर चक्रीय प्रवाह से क्षरण होते हैं और सरकारी व्यय इस प्रवाह में भरण का कार्य करते हैं।
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प्रश्न 26.
मध्यवर्ती तथा अंतिम वस्तुओं में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मध्यवर्ती तथा अंतिम वस्तुओं में निम्नलिखित अंतर हैं-

मध्यवर्ती वस्तुएँअंतिम वस्तुएँ
1. ये वस्तुएँ जिनका एक लेखा वर्ष में आगे उत्पादन करने या पुनर्बिक्री के लिए प्रयोग होता है, मध्यवर्ती वस्तुएँ कहलाती हैं।1. वे वस्तुएँ जिनका प्रयोग उपभोग के लिए या स्टॉक के लिए होता है, अंतिम वस्तुएँ कहलाती हैं।
2. इन वस्तुओं का प्रयोग और अधिक उत्पादन के लिए किया जाता है।2. इन वस्तुओं का प्रयोग अंतिम उपभोग के लिए होता है।
3. इन वस्तुओं को राष्ट्रीय आय क्री गणना में शामिल नहीं किया जाता है।3. इन वस्तुओं को राष्ट्रीय आय की गणना में शामिल किया जाता है।
4. ये वस्तुएँ उत्पादन प्रक्रिया में से गुजरती हैं।4. ये वस्तुएँ उत्पादन प्रक्रिया में से नहीं गुजरती हैं।

प्रश्न 27.
निजी आय तथा वैयक्तिक आय में क्या अन्तर है?
उत्तर:
निजी आय तथा वैयक्तिक आय में निम्नलिखित अन्तर हैं-

निजी आयवैयक्तिक आय
1. निजी आय की धारणा वैयक्तिक आय से अधिक व्यापक है।1. वैयक्तिक आय की धारणा निजी आय से कम व्यापक है।
2. निजी आय में निगम कर, निजी उद्यमों की बचतें शामिल होती हैं।2. वैयक्तिक आय में निगम कर, निजी उद्यमों की बचतें शामिल नहीं होती हैं।
3. निजी आय में अर्जित आय तथा अनार्जित आय जैसे सभी प्रकार के चालू हस्तांतरप्प शामिल होते हैं।3. वैयक्तिक आय में कारक आय और हस्तांतरण आय दोनों शामिल होते हैं।
4. निजी आय = निवल घरेलू उत्पाद से निजी क्षेत्र की आय + सभी प्रकार के चालू हस्तांतरण + विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय4. वैयक्तिक आय = निजी आय – लाभ कर – अवितरित लाभ

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय लेखांकन से क्या अभिप्राय है? इसके महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय लेखांकन का अर्थ-राष्ट्रीय आय लेखांकन राष्ट्रीय आय से संबंधित लेखों को संकलित करने व प्रस्तुत करने की एक प्रणाली है। फ्रैंक जॉन (Franc John) के शब्दों में, “राष्ट्रीय आय लेखांकन वह विधि है जिसके द्वारा सामूहिक आर्थिक क्रियाओं को पहचाना तथा मापा जाता है।” यह व्यापार लेखा विधि (Business Accounting) की भाँति ‘दोहरी खाता प्रणाली’ (Double Entry System) पर आधारित है। इसके अंतर्गत प्रत्येक सौदा (या संव्यवहार) दो बार प्रविष्ट होता है एक बार भुगतान के रूप में और दूसरी बार प्राप्ति के रूप में। भुगतान तथा प्राप्ति सदा बराबर रहते हैं। राष्ट्रीय आय लेखा प्रणाली (लेखांकन) द्वारा उपलब्ध आर्थिक पहलुओं की जानकारी के आधार पर सरकार लोगों के भौतिक कल्याण के लिए नीतियाँ व कार्यक्रम बनाती है। यही राष्ट्रीय आय लेखांकन का मूल उद्देश्य है।

राष्ट्रीय आय लेखांकन का महत्त्व समष्टि अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री के रूप में राष्ट्रीय आय लेखांकन का महत्त्व निम्नलिखित है
1. आर्थिक विकास का सूचक-किसी देश की आर्थिक उन्नति का सूचक मोटे रूप में राष्ट्रीय आय मानी जाती है जो राष्ट्रीय आय लेखांकन द्वारा ही जानी जाती है। संक्षेप में, राष्ट्रीय आय लेखों द्वारा देश की आर्थिक उन्नति व संवृद्धि का सही अनुमान लगाया जा सकता है।

2. नीति निर्धारण में सहायक सरकार किसी प्रकार की आर्थिक नीति बनाते समय देश की राष्ट्रीय आय लेखांकन के आंकड़ों को सामने रखती है। राष्ट्रीय आय लेखा किसी भी अर्थव्यवस्था की मुद्रा, वित्त, व्यापार आदि संबंधी सूचनाएँ ऐसे सुव्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत करता है कि आर्थिक नीति निर्धारण में इन सूचनाओं का अच्छे ढंग से प्रयोग किया जा सकता है।

3. अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तनों का ज्ञान राष्ट्रीय आय लेखांकन के आंकड़े अर्थव्यवस्था में हुए संरचनात्मक परिवर्तनों (जैसे कृषि, उद्योग, सेवा क्षेत्रों की स्थिति) की जानकारी देते हैं। राष्ट्रीय आय के आंकड़ों से उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रों के पारस्परिक संबंधों और राष्ट्रीय आय में इनके योगदान का ज्ञान होता है। इनसे किसी देश के आय रहन-सहन के स्तर के बारे में भी पूरी सूचना प्राप्त होती है।

4. अर्थव्यवस्था की उपलब्धियों की समीक्षा का आधार यह एक देश की आर्थिक उपलब्धियों की समीक्षा करने का आधार है। यह हमें एक देश के प्राकृतिक, मानवीय एवं पूँजीगत कारकों (साधनों) के उपयोग से प्राप्त उपलब्धियों को बताता है।

5. विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं से तुलना-राष्ट्रीय आय लेखांकन के आंकड़े देश की आर्थिक स्थिति की अन्य देशों के साथ तुलना में उपयोगी सिद्ध होते हैं।

6. आर्थिक दोषों को दूर करने में सहायक-राष्ट्रीय आय लेखांकन के आंकड़े आर्थिक दोषों की जानकारी देते हैं जिन्हें दूर करने के लिए उचित उपाय अपनाए जा सकते हैं।

7. राष्ट्रीय आय के उचित वितरण में सहायक राष्ट्रीय आय के आंकड़े उत्पादन के विभिन्न कारकों के बीच कारक-आय के वितरण के बारे में भी आवश्यक सूचनाएँ प्रदान करते हैं। इसकी सहायता से हम देश की कुल राष्ट्रीय आय में लगान, मजदूरी, ब्याज और लाभ के तुलनात्मक भाग के बारे में भी जान सकते हैं। अतः राष्ट्रीय आय के आंकड़े अर्थव्यवस्था में मानवीय गतिविधियों के भौतिक परिणामों का मौद्रिक प्रतिरूप होते हैं। आधुनिक युग में ये आंकड़े मानकों अथवा कसौटियों की रचना करते हैं जिनके आधार पर आर्थिक नीतियों की उपलब्धियों का मूल्यांकन होता है।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय आय को मापने की आय विधि की व्याख्या कीजिए। अथवा
आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय मापने के विभिन्न चरण संक्षेप में समझाइए। इस विधि की सावधानियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
आय विधि-आय विधि वह विधि है जो एक लेखा वर्ष में उत्पादन के प्राथमिक कारकों (श्रम, भूमि, पूँजी तथा उद्यम) को उनकी उत्पादक सेवाओं के बदले में क्रमशः मज़दूरी, लगान, ब्याज तथा लाभ के रूप में किए गएं भुगतान की गणना करके राष्ट्रीय आय का माप करती है।

आय विधि के प्रमुख चरण या कदम-इस विधि द्वारा राष्ट्रीय आय की गणना उठाए गए निम्नलिखित कदमों से होती है-
(क) उत्पादक उद्यमों की पहचान-उत्पादक उद्यमों को तीन क्षेत्रों में बाँटा गया है
1. प्राथमिक क्षेत्र यह वह क्षेत्र है जिसमें प्राकृतिक कारकों का प्रयोग करके वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है; जैसे कृषि क्षेत्र में।
2. द्वितीयक क्षेत्र-यह वह क्षेत्र है जिसमें उद्यम कच्चे माल को निर्मित वस्तुओं में परिवर्तित करते हैं।
3. तृतीयक क्षेत्र-वह क्षेत्र जो सेवाओं का उत्पादन करता है; जैसे बैंकिंग, बीमा, परिवहन आदि।

(ख) कारक आय का वर्गीकरण-
1. कर्मचारियों का पारिश्रमिक इसके अंतर्गत नकद मज़दूरी और वेतन, किस्म के रूप में आय, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में मालिकों का योगदान तथा सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेंशन को शामिल किया जाता है।

2. प्रचालन अधिशेष-इसमें लगान या किराया, रॉयल्टी, ब्याज, लाभ (लाभांश + निगम कर + अवितरित लाभ) आदि शामिल हैं।

3. मिश्रित आय-स्वरोजगार व्यक्ति; जैसे किसान, डॉक्टर, दुकानदार आदि को अपने कारकों से जो आय प्राप्त होती है, उसे मिश्रित आय कहते हैं।
निवल घरेलू आय = CE + OS + MI

4. विदेशों से निवल कारक आय-किसी देश के निवासियों द्वारा विदेशों में प्रदान की गई कारक सेवाओं के बदले में प्राप्त आय तथा एक देश की घरेलू सीमा में गैर-निवासियों द्वारा प्रदान की गई सेवाओं के बदले में भुगतान की गई आय के अंतर को विदेशों से निवल कारक आय (NFIA) कहा जाता है।
राष्ट्रीय आय = NFIA + निवल घरेलू आय
अतः निवल घरेलू आय या कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद = CE + OS + स्वनियोजितों की MI
निवल राष्ट्रीय आय या कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद = निवल घरेलू आय + NFIA
सकल राष्ट्रीय आय या कारक लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = निवल राष्ट्रीय आय + मूल्यह्रास
बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = सकल राष्ट्रीय आय + NIT

सावधानियाँ – आय विधि से राष्ट्रीय आय की गणना करते समय निम्नलिखित सावधानियाँ बरती जाती हैं
(i) सभी हस्तांतरण भुगतानों को इसमें शामिल नहीं किया जाना चाहिए, केवल कारक आय ही शामिल की जाती है।

(ii) स्व-उपभोग के लिए रखी गई वस्तुओं का मूल्य तथा आरोपित किराया इसमें शामिल किया जाना चाहिए।

(iii) गैर-कानूनी आय; जैसे तस्करी, जमाखोरी, रिश्वत, काला-बाजारी आदि से प्राप्त आय को शामिल नहीं किया जाना चाहिए।

(iv) आकस्मिक लाभ; जैसे लॉटरी से आय, घुड़-दौड़ आदि से प्राप्त आय को शामिल नहीं किया जाना चाहिए।

(v) लाभों को निगम करों का भुगतान करने से पहले शामिल किया जाना चाहिए। इसी प्रकार कर्मचारियों के पारिश्रमिक को आय कर तथा सामाजिक सुरक्षा योजना में अंशदान घटाने से पहले जोड़ा जाना चाहिए।

(vi) मृत्यु कर, उपहार कर, संपत्ति कर और आकस्मिक लाभों पर कर को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि ये करदाता की वर्तमान आय से नहीं दिए जाते, बल्कि भूतकालीन बचतों में से भुगतान किए जाते हैं। इसलिए ये राष्ट्रीय आय का भाग नहीं हैं। इन्हें पूँजीगत हस्तांतरण भुगतान माना जाता है।

(vii) पुरानी संपत्तियों का विक्रय मूल्य, राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं करना चाहिए, क्योंकि वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन नहीं हुआ। केवल बेची गई या खरीदी गई पुरानी वस्तुओं के स्वामित्व में परिवर्तन हुआ है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 3.
राष्ट्रीय आय को मापने की व्यय विधि की व्याख्या कीजिए।
अथवा
व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का मापन कैसे किया जाता है? व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय को मापते समय कौन-सी सावधानियाँ बरतनी चाहिएँ?
उत्तर:
व्यय विधि-व्यय विधि जिसे ‘उपभोग निवेश विधि’ भी कहते हैं के अंतर्गत एक लेखा वर्ष में अर्थव्यवस्था के समस्त अंतिम व्ययों का योग करके राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है। एक अर्थव्यवस्था में सृजित आय दो प्रकार से प्रयोग में लाई जाती है। एक, परिवारों एवं सामान्य सरकार द्वारा उपभोग हेतु (जिसे अंतिम उपभोग कहते हैं) तथा दूसरे, अर्थव्यवस्था के उद्यमों (पारिवारिक उद्यम, निगमित एवं अर्द्ध-निगमित उद्यम तथा सामान्य सरकार) द्वारा पूँजी-निर्माण हेतु। इसलिए व्यय विधि को ‘आय वितरण विधि’ (Income Disposal Method) भी कहते हैं। अतः इस विधि के अनुसार एक लेखा वर्ष में बाज़ार कीमत पर सकल अंतिम व्यय को मापा जाता है। यह अतिम व्यय बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) कहलाता है।

व्यय विधि के प्रमुख कदम-व्यय विधि के अनुसार राष्ट्रीय आय के आकलन में निम्नलिखित कदम उठाए जाते हैं-

कदम 1 : अंतिम व्यय करने वाली आर्थिक इकाइयों की पहचान-सर्वप्रथम देश की घरेलू सीमा में उन समस्त आर्थिक इकाइयों की पहचान कर ली जाती है जो अंतिम व्यय (अंतिम उपभोग व्यय तथा अंतिम निवेश व्यय) करती हैं। अंतिम व्यय करने वाली प्रमुख इकाइयाँ हैं-

  • परिवार क्षेत्र की इकाइयाँ
  • उत्पादक क्षेत्र की इकाइयाँ
  • सरकारी क्षेत्र की इकाइयाँ तथा
  • विश्व क्षेत्र की इकाइयाँ।

कदम 2 : अंतिम व्यय का वर्गीकरण-दूसरे कदम के अंतर्गत अंतिम व्यय को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जाता है

  • निजी अंतिम उपभोग व्यय
  • सरकारी अंतिम उपभोग व्यय
  • सकल अचल पूँजी निर्माण
  • स्टॉक परिवर्तन
  • मूल्यवान वस्तुओं का निवल अर्जन
  • निवल निर्यात।

कदम 3 : अंतिम व्यय की गणना-अंतिम व्यय के वर्गीकरण के पश्चात् इसके विभिन्न अंगों की गणना की जाती है। इसके लिए दो प्रकार के आँकड़ों की आवश्यकता पड़ती है-

  • सकल बिक्री मूल्य तथा
  • परचून कीमतें।

विक्रय की जाने वाली वस्तुओं की मात्रा को उनकी संबंधित परचून कीमतों से गुणा करके तथा फिर उनका योग करके बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMI) प्राप्त हो जाता है।

कदम 4 : विदेशों से निवल कारक आय का आकलन-अंत में विदेशों से निवल कारक आय के मूल्य का आकलन किया जाता है। इससे GDPMP में जोड़ने से GNPMP का मूल्य प्राप्त हो जाता है।

कदम 5 : राष्ट्रीय आय का अनुमान-कारक लागत पर राष्ट्रीय आय ज्ञात करने के लिए घिसावट व्यय तथा निवल अप्रत्यक्ष कर घटा दिए जाते हैं।

संक्षेप में, राष्ट्रीय आय का अनुमान:

  • GDPMP = निजी अंतिम उपभोग व्यय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + सकल अचल (स्थाई) पूँजी-निर्माण + स्टॉक में परिवर्तन + मूल्यवान वस्तुओं का निवल अर्जन + निवल निर्यात
  • GNPMP = GDPMP + NFIA
  • NNPFC = GDPMP – घिसावट – निवल अप्रत्यक्ष कर

सावधानियाँ-व्यय विधि के अनुसार राष्ट्रीय आय की गणना करते समय हमें निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी चाहिएँ-
(i) पुरानी वस्तुओं की बिक्री पर व्यय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाएगा।

(ii) अंशपत्र, ऋण-पत्र आदि पर किए जाने वाले व्यय भी राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किए जाने चाहिएँ, क्योंकि ये मात्र कागज़ी दावे हैं जिनके क्रय-विक्रय से किसी भौतिक परिसंपत्ति का निर्माण नहीं होता।

(iii) हस्तांतरण भुगतानों के रूप में समस्त सरकारी व्यय; जैसे बेकारी भत्ता, वृद्धावस्था पेंशन, वजीफे आदि पर व्यय इसके क्षेत्र से बाहर रखे जाते हैं।

(iv) मध्यवर्ती और अर्द्ध-निर्मित वस्तुओं और सेवाओं पर होने वाले व्यय को इसके क्षेत्र से बाहर रखा जाना चाहिए।

(v) यहाँ पर यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय की गणना बाज़ार कीमत पर की जाती है। अतः कारक लागत पर राष्ट्रीय आय ज्ञात करने के लिए NNPMP में से निवल अप्रत्यक्ष कर घटाने होंगे।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय आय को मापने की उत्पाद विधि की व्याख्या कीजिए।
अथवा
राष्ट्रीय आय को मापने की मूल्यवर्धित विधि की व्याख्या कीजिए।
अथवा
राष्ट्रीय आय के आकलन की उत्पाद विधि अथवा मूल्यवृद्धि विधि का वर्णन करते हुए इसकी सावधानियों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
उत्पाद अथवा मूल्यवृद्धि विधि-राष्ट्रीय आय को मापने की उत्पाद विधि को औद्योगिक उद्गम विधि या मूल्यवृद्धि (मूल्यवर्धित) या सूची गणना विधि आदि भी कहा जाता है। इस विधि से अभिप्राय एक लेखा वर्ष में एक देश की घरेलू सीमा में प्रत्येक उत्पादक उद्यम के योगदान की गणना करके राष्ट्रीय आय को ज्ञात करने से है। इस विधि के द्वारा उत्पादन के स्तर पर राष्ट्रीय आय को मापा जाता है। उत्पादन के स्तर पर राष्ट्रीय आय एक देश की घरेलू सीमाओं में एक वर्ष में अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के निवल प्रवाह के मौद्रिक मूल्य तथा विदेशों से अर्जित आय कारक आय के योग के समान है। उत्पादन के स्तर पर राष्ट्रीय आय के माप को राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं।

उत्पाद अथवा मूल्यवृद्धि विधि के प्रमुख कदम-मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) विधि के द्वारा राष्ट्रीय माप की गणना करते समय निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिएँ-
(i) इस विधि में सबसे पहले उन उद्यमों की पहचान की जाती है जो उत्पादन करते हैं। सर्वप्रथम अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों को प्राथमिक क्षेत्र, द्वितीयक क्षेत्र तथा तृतीयक क्षेत्र या सेवा क्षेत्र में वर्गीकृत किया जाता है। प्राथमिक क्षेत्र के अंतर्गत कृषि एवं संबंधित क्रियाएँ; जैसे मछली पालन, पशु-पालन, वनारोपण आदि आते हैं। द्वितीयक क्षेत्र को विनिर्माण क्षेत्र भी कहते हैं। इसमें सभी प्रकार के उद्योग आते हैं। तृतीयक क्षेत्र, जिसे सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है, के अंतर्गत उत्पादक सेवाएँ प्रदान करने वाले सभी प्रकार के उद्यम आते हैं; जैसे बैंकिंग, बीमा, परिवहन, संचार, व्यापार, वाणिज्य आदि।

(ii) सकल उत्पाद मूल्य की गणना के लिए तीनों क्षेत्रों द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का मौद्रिक मूल्य ज्ञात किया जाता है।

(iii) निवल मूल्यवर्धित को ज्ञात करने के लिए सकल मूल्यवर्धित में से घिसावट व्यय को घटा दिया जाता है। इस प्रकार बाज़ार कीमत पर निवल मूल्यवर्धित ज्ञात हो जाती है। इसमें से निवल अप्रत्यक्ष कर घटाने पर कारक लागत पर निवल मूल्यवर्धित ज्ञात हो जाती है। कारक लागत पर निवल मूल्यवर्धित को NDPFC कहा जाता है जो कि कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद के बराबर है।
NDPFC = प्राथमिक क्षेत्र द्वारा की गई मूल्यवर्धित + द्वितीयक क्षेत्र द्वारा की गई मूल्यवर्धित + तृतीयक क्षेत्र द्वारा की गई मूल्यवर्धित

(iv) राष्ट्रीय आय अर्थात् NNPFC को ज्ञात करने के लिए NDPFC में विदेशों से अर्जित निवल कारक आय को जोड़ लिया जाता है।

संक्षेप में, राष्ट्रीय आय का अनुमान-

  • बाज़ार कीमत पर सकल मूल्यवर्धित (GVAMP) या सकल घरेलू उत्पाद = तीनों क्षेत्रों में बाज़ार कीमत पर सकल मूल्यवर्धित
  • बाज़ार कीमत पर निवल मूल्यवर्धित या निवल घरेलू उत्पाद = GVAMP – मूल्यहास
  • कारक लागत पर निवल मूल्यवर्धित (NVAFC) या निवल घरेलू आय = NVAMP – NIT
  • राष्ट्रीय आय = NVAFC + विदेशों से निवल कारक आय

उत्पाद विधि अथवा मूल्यवृद्धि विधि से संबंधित सावधानियाँ-

  • पुरानी वस्तुओं के क्रय-विक्रय को मूल्यवर्धित में शामिल नहीं किया जाता।
  • पुरानी वस्तुओं पर दलाली या कमीशन को मूल्यवर्धित में शामिल किया जाता है।
  • सभी उत्पादक उद्यमों द्वारा किए गए स्वलेखा उत्पादन को मूल्यवर्धित में शामिल किया जाता है।
  • मध्यवती वस्तुओं के मूल्य को मूल्यवर्धित में शामिल नहीं किया जाता।
  • स्व-उपभोग के लिए उत्पादन का आरोपित मूल्य शामिल किया जाता है।
  • स्व-उपभोग सेवाओं के मूल्य को मूल्यवर्धित में शामिल नहीं किया जाता।

प्रश्न 5.
चार क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में आय के चक्रीय प्रवाह की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
आज सभी अर्थव्यवस्थाएँ खुली अर्थव्यवस्थाएँ (Open Economies) हैं। खुली अर्थव्यवस्था का अर्थ है वे सभी अर्थव्यवस्थाएँ जो कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भाग लेती हैं। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के दो पहलू हैं-(i) आयात (Import) तथा (ii) निर्यात (Export)। शेष विश्व के साथ ये आयात-निर्यात परिवारों, फर्मों तथा सरकारों तीनों क्षेत्रों द्वारा किए जाते हैं। इसी प्रकार विदेशी बाजारों से भी ऋण लिया जाता है और उनमें पूँजी जमा की जाती है। इसलिए अपने मॉडल को और भी वास्तविक बनाने के लिए हमें इस मॉडल में शेष विश्व क्षेत्र (Rest of the World Sector) को भी शामिल कर लेना चाहिए। जैसाकि चित्र में दर्शाया गया है
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 4
अर्थव्यवस्था का उत्पादन क्षेत्र शेष संसार से वस्तुएँ और सेवाएँ आयात करता है और इनके लिए भुगतान करता है। उत्पादन क्षेत्र वस्तुओं और सेवाओं का शेष संसार को निर्यात भी करता है। इन निर्यातों के बदले में उत्पादन क्षेत्र को शेष संसार से मुद्रा द्वारा भुगतान होता है। परिवार क्षेत्र शेष संसार को सेवाएँ प्रदान करने के लिए मुद्रा, उपहार, दान आदि के रूप में मुद्रा प्राप्त करता है। परिवार क्षेत्र शेष संसार से प्राप्त वस्तुओं और सेवाओं के बदले मुद्रा भुगतान करता है। सरकारी क्षेत्र शेष संसार को वस्तुएँ और सेवाएँ निर्यात करके शेष संसार से मुद्रा प्राप्त करता है तथा सरकारी क्षेत्र विदेशों से वस्तुएँ और सेवाएँ आयात करके मुद्रा भुगतान करता है।

जब एक अर्थव्यवस्था शेष विश्व से आयात करती है तो आयात की वस्तुओं का भुगतान होता है। इससे मुद्रा का प्रवाह देश से बाहर होता है। दूसरी ओर, जब एक देश शेष विश्व को वस्तुओं का निर्यात करता है तो दूसरे देश उसे भुगतान करते हैं। इस प्रकार शेष विश्व से उस देश की ओर मुद्रा का प्रवाह होता है। अर्थव्यवस्था की शेष विश्व से सभी लेनदारियों तथा देनदारियों को देश के भुगतान शेष (Balance of Payments) के खाते में दर्ज किया जाता है।

यदि निर्यात को X और आयात को M माना जाए तो विदेशी व्यापार के शुद्ध (निवल) प्रवाह को X-M के द्वारा प्रकट किया जा सकता है। यदि देश के X = M हो तो भुगतान शेष संतुलित होगा और मुद्रा-प्रवाह निरंतर एक गति से चलता रहेगा। इसके विपरीत, यदि X > M हो या M > X हो तो मुद्रा के प्रवाह का स्तर बदल जाता है। पहली अवस्था में भुगतान शेष देश के पक्ष में होगा और मुद्रा प्रवाह का स्तर बढ़ेगा। इसके विपरीत, दूसरी स्थिति में, भुगतान शेष विपक्ष (Adverse Balance of Payments) में होगा, इसमें मुद्रा प्रवाह का स्तर गिर जाता है।

प्रश्न 6.
दोहरी गणना की समस्या क्या है? इससे बचने के उपाय बताएँ।
अथवा
‘दोहरी गणना की समस्या’ क्या होती है? इससे किस प्रकार बचा जा सकता है?
उत्तर:
दोहरी गणना की समस्या-जब किसी देश की राष्ट्रीय आय की गणना में किसी वस्तु के मूल्य को एक से अधिक बार जोड़े जाने की आशंका बनी रहती है, तो इसे दोहरी गणना की समस्या कहते हैं, क्योंकि उत्पाद विधि द्वारा राष्ट्रीय आय की गणना करते समय केवल अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को जोड़ा जाता है लेकिन कौन-सी वस्तु अंतिम है और कौन-सी मध्यवर्ती, यह जानना कभी-कभी कठिन हो जाता है। प्रत्येक उत्पादक के द्वारा की गई बिक्री उसके लिए वस्तु की अंतिम बिक्री है। उदाहरण के लिए, एक फर्म कपास का उत्पादन करती है और उसे फर्म B को 100 रुपए में बेच देती है। फर्म A के लिए यहाँ पर कपास की बिक्री अंतिम वस्तु है।

मान लीजिए फर्म B कपास से धागा बनाकर (जो यहाँ मध्यवर्ती उपभोग है) फर्म C को 160 रुपए में बेच देती है। यहाँ पर फर्म Bधागे को अंतिम बिक्री के रूप में लेती है, क्योंकि वह इसे बेचने के बाद उस वस्तु से संबंधित नहीं है। फर्म c धागे से कपड़ा बनाकर उपभोक्ताओं को 200 रुपए में बेच देती है लेकिन यहाँ पर फर्म C के लिए धागा मध्यवर्ती वस्तु है। इस प्रकार फर्म A, फर्म B तथा फर्म C के अनुसार उत्पाद का मूल्य 460 रुपए (100+ 160+ 200) होगा।

यदि घरेलू उत्पाद या राष्ट्रीय उत्पाद की गणना करते समय दोहरी गणना की समस्या से बचाव नहीं किया जाएगा तो राष्ट्रीय या घरेलू आय का अधि-मूल्यन (Over estimation) हो जाता है, इससे किसी देश की वास्तविक स्थिति की जानकारी मिलना कठिन हो जाता है। इस प्रकार यदि हम कपास धागा और कपड़ा तीनों के बिक्री मूल्य को लेते हैं तो यहाँ पर कपास का मूल्य तीन बार, धागे का मूल्य दो बार राष्ट्रीय आय में शामिल हो जाएगा। अतः एक वस्तु के मूल्य की गणना जब एक से अधिक बार होती है, तो इसे ही दोहरी गणना कहते हैं।

दोहरी गणना से बचने के उपाय-यदि हम राष्ट्रीय आय की सही गणना करना चाहते हैं या दोहरी गणना की समस्या से बचना चाहते हैं तो इसके लिए निम्नलिखित दो उपाय या विधियाँ हैं-
1. अंतिम उत्पाद विधि-दोहरी गणना से बचने के लिए केवल अंतिम वस्तु का मूल्य शामिल किया जाना चाहिए। इस विधि के अनुसार, उत्पादन के मूल्य में से मध्यवर्ती वस्तुओं के मूल्य को घटा देना चाहिए। उपर्युक्त उदाहरण के अनुसार राष्ट्रीय आय में केवल कपड़े के मूल्य (यानि 200 रुपए) को जोड़ा जाना चाहिए अर्थात्
अंतिम वस्तु का मूल्य = अंतिम वस्तु की मात्रा x कीमत
लेकिन इस विधि के अंतर्गत एक और समस्या सामने आती है। प्रत्येक उत्पादक अपने उत्पाद को अंतिम उत्पाद के रूप में लेता है। वह यह नहीं जानता कि उसके द्वारा उत्पादन को बेचने के बाद उस उत्पादन का कौन प्रयोग करेगा। अतः इस समस्या से बचने का दूसरा वैकल्पिक एवं प्रभावी उपाय मूल्यवर्धित विधि है।

2. मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) विधि-दोहरी गणना से बचने के लिए दूसरा उपाय है, मूल्यवर्धित विधि द्वारा राष्ट्रीय आय की गणना करना। इसके अंतर्गत प्रत्येक फर्म की मूल्यवर्धित को जोड़कर घरेलू उत्पाद ज्ञात कर लिया जाता है। उसमें से घिसावट घटाने के पश्चात् निवल मूल्यवर्धित की गणना की जा सकती है अर्थात्
कारक लागत पर मूल्यवर्धित = उत्पादन का मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग का मूल्य – घिसावट – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर

प्रश्न 7.
व्यय के संदर्भ में GDP के संघटक (Components) लिखिए।
उत्तर:
अंतिम व्यय-एक वर्ष में उत्पादित अंतिम वस्तुओं व सेवाओं की खरीद पर विभिन्न वर्गों (गृहस्थ, फळं, सरकार) द्वारा किया गया व्यय, अंतिम व्यय कहलाता है। ध्यान रहे व्यय विधि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) पर किए गए अंतिम व्यय को मापती है। अंतिम व्यय को दो वर्गों उपभोग व्यय व निवेश व्यय में बाँटा जाता है परंतु अंतिम व्यय करने वाले विभिन्न वर्गों को ध्यान में रखते हुए इसके निम्नलिखित पाँच संघटक हो सकते हैं जिनका योग करने से GDPMP निकल आता है। समीकरण के रूप में-
GDPMP = निजी अंतिम उपभोग व्यय + सकल अचल पूँजी निर्माण + स्टॉक में परिवर्तन + शुद्ध निर्यात
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 5
1. निजी अंतिम उपभोग व्यय-इसमें गृहिणीयों तथा गृहस्थों की सेवा में लगी गैर-लाभकारी संस्थाओं द्वारा वर्तमान उपभोग हेतु वस्तुओं व सेवाओं को खरीदकर किया गया व्यय मापा जाता है। व्यय विभिन्न प्रकार के उपभोग वस्तुओं व सेवाओं पर किया जाता है। जैसे (क) टिकाऊ वस्तुएँ (कार, फ्रिज, टीवी सेट), (ख) अर्ध-टिकाऊ वस्तुएँ (कपड़े, जूते, पेन), (ग) गैर-टिकाऊ या एकल उपयोगी वस्तुएँ (भोजन, साबुन, पेट्रोल) और (घ) सेवाएँ (शिक्षा, चिकित्सा, यातायात आदि)। इन्हें निजी अंतिम उपभोग व्यय के संघटक कहते हैं। ऐसे व्यय को मापने के लिए दो प्रकार के आँकड़ों की जरूरत होती हैं (i) बाज़ार में बिक्री की कुल मात्रा (ii) फुटकर (retail) कीमतें। अंतिम बिक्री की कुल मात्रा को फुटकर कीमतों से गुणा करने पर घरेलू बाज़ार में ‘निजी अंतिम उपभोग व्यय’ निकल आता है।

2. सरकारी अंतिम उपभोग व्यय इससे अभिप्राय “सरकारी प्रशासनिक विभागों द्वारा सुविधाएँ उपलब्ध करने में वस्तुओं व सेवाओं पर चालू व्यय घटा (-) विक्रय” से है। सरकार न केवल उत्पादक होती है बल्कि उपभोक्ता भी होती है। समाज की सामूहिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जब सामान्य सरकार सड़कें, पुल, पार्क, शिक्षा, चिकित्सा, पुलिस आदि की सेवाएँ लोगों को उपलब्ध कराती है तो नागरिकों द्वारा इनका उपभोग, सार्वजनिक उपभोग (या सरकारी उपभोग) माना जाता है। सरकार इस दृष्टि से उपभोक्ता मानी जाती है। फलस्वरूप सामान्य सरकार का उत्पादन, स्व-उपभोग हेतु उत्पादन माना जाता है, क्योंकि सरकार इसका विक्रय नहीं करती, बल्कि इसे मुफ्त या नाममात्र कीमत पर जनता को उपलब्ध करती है।

बिक्री न होने के कारण सरकारी अंतिम उपभोग व्यय को सरकार की उत्पादन लागत के बराबर मान लिया जाता है। इसमें शामिल की जाने वाली दो मुख्य मदें हैं (i) कर्मचारियों का पारिश्रमिक और (ii) मध्यवर्ती उपभोग अर्थात् सरकार द्वारा वर्तमान उत्पादित वस्तुओं की खरीद पर व्यय। इसके अतिरिक्त (iii) विदेशों से प्रत्यक्ष रूप से की गई खरीद पर व्यय जोड़ा जाता है जो विदेशों में स्थित दूतावासों के लिए पेट्रोल, स्टेशनरी, साबुन, तेल व संचार सेवाओं की खरीद पर व्यय है और (iv) जनता को नाममात्र कीमत पर उपलब्ध की गई सेवाओं से प्राप्त राशि घटाई जाती है। इन मदों के जोड़ से सरकारी अंतिम उपभोग व्यय प्राप्त होता है।

3. सकल अचल पूँजी निर्माण इसमें निम्नलिखित तीन मुख्य मदों पर किया गया व्यय शामिल होता है

  • व्यावसायिक स्थिर निवेश-इसमें फर्मों द्वारा मशीनों, संयंत्रों व फैक्टरी इमारत के निर्माण व खरीद पर व्यय शामिल है सकल व्यावसायिक स्थिर निवेश में मूल्यह्रास शामिल होता है, जबकि शुद्ध निवेश, मूल्यह्रास के बिना होता है।
  • गृह-निर्माण निवेश-यह नए मकानों के निर्माण पर व्यय की गई राशि होती है।
  • सार्वजनिक (सरकारी) निवेश-इसमें सरकार द्वारा सड़कों, पुलों, स्कूलों, अस्पतालों आदि के निर्माण पर किया गया व्यय शामिल होता है।

4. स्टॉक (माल-सूची) में परिवर्तन लेखा वर्ष के आरंभिक और अंतिम स्टॉक में अंतर को स्टॉक में परिवर्तन कहते हैं। इसमें कच्चा माल, अर्धनिर्मित माल व निर्मित माल के स्टॉक में भौतिक (Physical) परिवर्तन को लिया जाता है। स्टॉक में भौतिक परिवर्तन को बाज़ार कीमतों से गुणा करके, स्टॉक में परिवर्तन पर व्यय ज्ञात किया जाता है। ध्यान रहे इसमें उपभोक्ताओं के पास पड़े हुए माल के स्टॉक में परिवर्तन को शामिल नहीं किया जाता है, क्योंकि समस्त उपभोक्ता वस्तुओं का अंतिम उपभोग उसी समय मान लिया जाता है जिस समय उपभोक्ता उन्हें खरीद या प्राप्त कर लेते हैं।

(नोट-SNA, 1993 के अनुसार मूल्यवान पत्थरों व धातुओं (जैसे सोना, चाँदी, प्लेटिनम) का शुद्ध अर्जन (Net acquisition), सकल घरेलू पूँजी निर्माण का एक भाग है। इसलिए इसे भी GDP का एक संघटक मानना चाहिए।)

5. शुद्ध निर्यात-ध्यान रहे, यहाँ शुद्ध निर्यात (निर्यात-आयात) पर विचार, व्यय की दृष्टि से किया जाता है। निर्यात हमारे घरेलू उत्पादन का एक हिस्सा है। अतः इस पर विदेशियों द्वारा किया गया व्यय हमारे सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में जोड़ा जाना चाहिए। इस प्रकार निर्यात का मूल्य जोड़ा जाता है और आयात का मूल्य (भारतीयों द्वारा विदेशी माल पर प्रत्यक्ष व्यय) घटाया जाता है। इसे एक उदाहरण से स्पष्ट किया सकता है। मान लो, भारत ने एक वर्ष में 60 करोड़ रुपए मूल्य की साइकिलें बनाईं और फलस्वरूप उतने ही मूल्य (60 करोड़ रुपए) की आय सृजित हुई।

मान लो, 50 करोड़ रुपए की साइकिलें भारत ने स्वयं प्रयोग व उपभोग कर लीं और शेष 10 करोड़ रुपए की साइकिलें अमेरिका को निर्यात की। ऐसी स्थिति में भारत का अंतिम व्यय 50 करोड़ रुपए है जबकि सृजित आय 60 करोड़ रुपए है। परंतु यदि भारतीय साइकिलों (निर्यात) पर अमेरिका का व्यय जोड़ा जाए तो भारत का अंतिम व्यय 60 करोड़ रुपए (50 + 10) होगा जो भारत की सृजित आय के बराबर होगा। संक्षेप में, निर्यात घरेलू उत्पाद का भाग होने के कारण इस पर विदेशियों द्वारा किया गया व्यय जोड़ना चाहिए और आयात का मूल्य घटाना चाहिए। ध्यान रहे जब आयात का मूल्य, निर्यात के मूल्य से अधिक होता है तो इसे ‘शुद्ध आयात’ कहते हैं।

क्या निर्यात GDP का भाग है? हाँ, निर्यात GDP का भाग है। कैसे? जब विदेशी भारत में उत्पादित चाय, कॉफ़ी, जूट की बनी वस्तुएँ आदि खरीदते हैं तो यह भारत का निर्यात कहलाता है। इसी प्रकार भारत गैर-कारक सेवाओं (जैसे बीमा, बैंकिंग, वायु व समुद्री यातायात, पर्यटक सेवाओं) का भी निर्यात करता है। जब विदेशी, एयर इंडिया से यात्रा करते हैं या विदेशी पर्यटक भारत में आकर होटल, परिवहन, चिकित्सा, संचार आदि भारतीय सेवाओं का प्रयोग करते हैं। चूँकि निर्यात की गई ये सभी वस्तुएँ व सेवाएँ भारत की घरेलू सीमा में उत्पादकों द्वारा घरेलू कारकों से उत्पादित की गई हैं इसलिए वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का भाग है। ध्यान रहे सेवाओं के निर्यात-आयात से तात्पर्य गैर-कारक सेवाओं (जैसे बीमा, बैंकिंग, पर्यटक सेवाओं) से होता है न कि कारक सेवाओं (भूमि, श्रम, पूँजी आदि की सेवाओं) से।

(नोट-उपरोक्त पाँच संघटकों के जोड़ने से GDPM निकल आता है। मूल्यह्रास और शुद्ध अप्रत्यक्ष कर घटाने से NDPRO प्राप्त होता है। इसमें शुद्ध विदेशी कारक आय जोड़ने से राष्ट्रीय आय अर्थात् NNPR निकल आती है।

प्रश्न 8.
(क) वास्तविक व मौद्रिक GDP में अंतर कीजिए। इनमें भेद का महत्त्व बताइए। (ख) मौद्रिक GDP का वास्तविक GDP में रूपांतरण समझाइए।
उत्तर:
(क) वास्तविक व मौद्रिक GDP-GDP का मूल्यांकन दो प्रकार से किया जाता है-(i) चालू कीमतों पर और (ii) स्थिर कीमतों पर। जब GDP का मूल्यांकन प्रचलित बाज़ार कीमतों के आधार पर किया जाता है तो उसे चालू कीमतों पर GDP या मौद्रिक GDP कहते हैं। उदाहरण के लिए यदि वर्ष 2010-11 के उत्पादन का मूल्य, वर्ष 2010-11 की प्रचलित बाज़ार कीमतों पर आँका जाए तो इसे चालू कीमतों पर (at current prices) GDP कहेंगे। इसे ही मौद्रिक (Nominal) GDP कहते हैं। इसके विपरीत, जब GDP का मूल्यांकन आधार वर्ष (Base year) की कीमतों पर किया जाता है इसे स्थिर कीमतों पर (at constant prices)GDP या वास्तविक (Real) GDP कहते हैं। उल्लेखनीय है भारत में आजकल स्थिर कीमतों पर GDP (या अन्य समुच्चय) मापने के लिए 1999-2000 को आधार वर्ष माना जाता है।

भेद का महत्त्व (या वास्तविक GDP के लाभ)
(i) मौद्रिक GDP (चालू कीमतों पर GDP) दो कारकों से प्रभावित होती है-उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन से और कीमतों में परिवर्तन से जबकि वास्तविक GDP (स्थिर कीमतों पर GDP) केवल एक कारक उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन से प्रभावित होती है। चूंकि प्रत्येक देश अपने भौतिक उत्पादन में रुचि रखता है, इसलिए वास्तविक GDP देश के भौतिक उत्पादन व आर्थिक संवृद्धि
का ठीक-ठाक चित्रण करता है।

(ii) देश के विभिन्न वर्षों के भौतिक उत्पादन की तुलना करने के लिए वास्तविक GDP अधिक विश्वसनीय कसौटी है।

(iii) एक देश के आर्थिक निष्पादन (Performance) का दूसरे देशों के आर्थिक विकास से तुलना करने के लिए वास्तविक GDP अर्थात स्थिर कीमतों पर GDP का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि ऐसे अनुमान कीमतों में परिवर्तन से अप्रभावित रहते हैं।

(ख) मौद्रिक GDP का वास्तविक GDP में रूपांतरण-वास्तव में स्थिर कीमतों पर GDP के प्रयोग का उद्देश्य कीमतों में । उतार-चढ़ाव के प्रभाव को समाप्त करना है। इसलिए मौद्रिक GDP को वास्तविक GDP में अर्थात चालू कीमतों पर GDP को स्थिर कीमतों पर GDP में परिवर्तित किया जाता है। इस कार्य के लिए GDP अवस्फीतिक (GDP Deflator) का प्रयोग किया जाता है। GDP अवस्फीतिक, GDP की संघटक वस्तुओं और सेवाओं की औसत कीमत का मान है। इसे मौद्रिक और वास्तविक GDP के अनुपात को 100 से गुणा करके ज्ञात किया जाता है। अर्थात्
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 5
मौद्रिक GDP को वास्तविक GDP में निम्नलिखित सूत्र द्वारा परिवर्तित किया जाता है।
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 6

प्रश्न 9.
क्या GDP आर्थिक कल्याण का मापक है? GDP की आर्थिक कल्याण के रूप में सीमाएँ बताइए।
उत्तर:
कल्याण का अर्थ है-सखी व बेहतर अनभव करना। आर्थिक कल्याण सकल कल्याण का वह भाग है जिसे मुद्रा में मापा जा सकता है। क्या GDP आर्थिक संवृद्धि और विकास (Economic Growth and Development) का मापक है? बहुत समय . से GDP को आर्थिक संवृद्धि और विकास का प्रधान मापक माना जाता था, क्योंकि वास्तविक GDP में वृद्धि का अर्थ है भौतिक उत्पादन में वृद्धि जिसके फलस्वरूप उपभोग के लिए अधिक वस्तु व सेवाएँ उपलब्ध होती हैं और जीवन स्तर उन्नत होता है। इसलिए GDP में वृद्धि को अच्छा और कमी को खराब माना जाता था परंतु ऐसा निष्कर्ष (अर्थात् GDP और आर्थिक कल्याण में प्रत्यक्ष संबंध है) निम्नलिखित कारणों से अधूरा है। यद्यपि वास्तविक GDP आर्थिक कल्याण का एक अच्छा सूचक है परंतु निम्नलिखित सीमाओं के कारण पर्याप्त सूचक नहीं है।

GDP की आर्थिक कल्याण के सूचक के रूप में सीमाएँ-
1. सकल घरेलू उत्पाद का वितरण-आर्थिक कल्याण के लिए आवश्यक है कि सकल घरेलू उत्पाद का वितरण समान हो। सकल घरेलू उत्पाद के असमान वितरण की स्थिति में केवल कुछ ही लोगों का जीवन-स्तर ऊँचा होगा, परंतु देश की अधिकतर निर्धन जनता का जीवन-स्तर ऊँचा नहीं होगा। इस प्रकार असमान वितरण से आर्थिक कल्याण में वृद्धि नहीं होगी।

2. गैर-मौद्रिक द्रिक विनिमय-सकल घरेलू उत्पाद केवल मौद्रिक लेन-देनों के आधार पर निकाला जाता है। इसलिए इसमें गैर-मौद्रिक लेन-देनों को शामिल नहीं किया जाता। अनेक विकासशील व अल्पविकसित अर्थव्यवस्था में वस्तु विनिमय के माध्यम से अनेक लेन-देन होते हैं जिससे सकल घरेलू उत्पाद का मूल्यांकन कम होता है। इस प्रकार सकल घरेलू उत्पाद आर्थिक कल्याण का अच्छा सूचक नहीं।

3. बाह्य कारण-बाह्य कारणों से तात्पर्य किसी फर्म या व्यक्ति के लाभ (हानि) से है जिससे दूसरा पक्ष प्रभावित होता है जिसे भुगतान नहीं किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि सकल घरेलू उत्पाद प्रदूषण की अवहेलना करता है तो आर्थिक कल्याण कम होगा।

निष्कर्ष – यद्यपि उपरोक्त कारणों से GDP आर्थिक कल्याण का पर्याप्त सूचक न हो फिर भी यह आर्थिक कल्याण की दशा बहुत हद तक दर्शाता है। इसीलिए कुछ अर्थशास्त्रियों ने ‘हरित GDP’ को आर्थिक कल्याण का वैकल्पिक माप सुझाया है।

हरित GDP – किसी भी कीमत पर मात्र GDP में वृद्धि होने से गरीबी तथा प्रदूषण जैसे आर्थिक दोष उत्पन्न हो जाते हैं। कारण यह है कि GDP, उत्पादन से पैदा होने वाले (i) प्रदूषित वातावरण और (ii) प्राकृतिक संसाधनों के ह्रास की परवाह नहीं करता। इसलिए आर्थिक विकास की प्रक्रिया ऐसी होनी चाहिए जिससे प्रदूषण रहित प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट होने से सुरक्षित रखा जा सके। इसीलिए हरित GDP को आर्थिक कल्याण का माप सुझाया गया है। हरित GDP का अर्थ है प्राकृतिक कारकों का उचित विदोहन और विकास के लाभों का समतापूर्ण बँटवारा होना।

प्रश्न 10.
राष्ट्रीय आय लेखांकन किसे कहते हैं? एक देश के सामान्य निवासी की धारणा की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय लेखांकन का अर्थ-राष्ट्रीय आय लेखांकन राष्ट्रीय आय से संबंधित लेखों को संकलित करने तथा प्रस्तुत करने की एक विधि है।

एक देश के सामान्य निवासी की धारणा राष्ट्रीय लेखा विधि में ‘सामान्य निवासी’ संकल्पना का बार-बार प्रयोग किया जाता – है; जैसे राष्ट्रीय आय से अभिप्राय “एक वर्ष में, एक देश के सामान्य निवासियों (Normal Residents) द्वारा अर्जित कारक आय के योग” से लिया जाता है। अतः राष्ट्रीय लेखा में घरेलू सीमा की भाँति, सामान्य निवासियों (Normal Residents) की अवधारणा का भी विशेष महत्त्व है।

एक देश का सामान्य निवासी “वह व्यक्ति है जो सामान्यतया उस देश में रहता है जिस देश में उसके आर्थिक हित केंद्रित रहते हैं।” क्योंकि वह सामान्यतया अपनी रुचि या आर्थिक हित वाले देश में रहता है, इसलिए उसे उस देश का सामान्य निवासी कहा जाता है। उसके निवास का काल कम-से-कम एक वर्ष या उससे अधिक होना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक वर्ष या उससे अधिक अवधि के लिए जब कोई व्यक्ति एक देश में रहता है तो उसके आर्थिक हित उसी देश में माने जाते हैं। ‘सामान्य निवासी’ अवधारणा में व्यक्ति और संस्था दोनों सम्मिलित हैं। संक्षेप में, देश के सामान्य निवासियों से अंभिप्राय उन व्यक्तियों एवं संस्थाओं से है जिनकी आर्थिक रुचि उस देश में है जहाँ वे रहते हैं या स्थित हैं। सामान्य निवासियों में निम्नलिखित को शामिल किया जाता है-
(1) इसमें व्यक्ति और संस्थाएँ दोनों शामिल होते हैं बशर्त कि उनके आर्थिक हित उसी देश में हों।

(2) अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ (जैसे विश्व बैंक (World Bank), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) आदि) उस देश के निवासी नहीं समझी जाती जिस देश में वे कार्यरत होती हैं बल्कि वे अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र की निवासी मानी जाती हैं। परंतु इन संस्थाओं के कर्मचारी अपने गृह-देश के निवासी माने जाते हैं। उदाहरण के लिए, भारत में कार्यरत ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ यद्यपि भारत के सामान्य निवासी नहीं मानी जाएगी परंतु उस संस्था में काम करने वाले भारत के सामान्य निवासी समझे जाएँगे।

(3) ऐसे व्यक्ति जो थोड़े समय (प्रायः एक वर्ष से कम) के लिए विदेश जाते हैं, अपने देश के ही सामान्य निवासी माने जाते हैं। जैसे भारतीयों का अमरीका में सैर-सपाटे के लिए जाना, खेलों के मैच या कांफ्रेंस में भाग लेने जाना, बीमारी का इलाज करवाने जाना आदि। ऐसे व्यक्ति भारत के ही सामान्य निवासी माने जाएँगे।

(4) नागरिक (National) के अतिरिक्त गैर-नागरिक (Non-national) भी देश के सामान्य निवासी हो सकते हैं। जैसे इंग्लैंड में रहने वाले बहुत-से भारतीय वहाँ के सामान्य निवासी तो हैं परंतु नागरिक नहीं हैं। सामान्य निवासी इसलिए हैं क्योंकि वे एक वर्ष से अधिक अवधि के लिए इंग्लैंड में रह रहे हैं जहाँ उनके आर्थिक हित केंद्रित हैं। साथ ही वे भारत के नागरिक (इंग्लैंड के गैर-नागरिक) हैं क्योंकि उनके पास भारतीय पासपोर्ट (Passport) तथा भारतीय नागरिकता (Citizenship) है।

(5) अन्य देशों में स्थित विदेशी दूतावासों (Embassies) में काम करने वाले कर्मचारी अपने ही देश के सामान्य निवासी समझे जाते हैं; जैसे भारत में स्थित अमरीकी दूतावास में काम करने वाले भारतीय कर्मचारी भारत के निवासी माने जाएंगे।

राष्ट्रीय आय की गणना करने में विभिन्न मदों के साथ व्यवहार

प्रश्न 1.
(क) निम्नलिखित को राष्ट्रीय आय में शामिल क्यों नहीं किया जाता है?
(i) एक घरेलू फर्म से पुरानी मशीन का क्रय
(ii) एक घरेलू फर्म के नए शेयर्ज का क्रय
(iii) सरकार द्वारा विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति
(iv) संपत्ति कर
(v) अप्रत्यक्ष कर
(vi) वृद्धावस्था पेंशन।

(ख) क्या निम्नलिखित को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है?
(i) शेयर्ज की बिक्री से प्राप्त धनराशि
(ii) पुरानी वस्तुएँ खरीदने पर उनके व्यापारी को दिया गया कमीशन।
उत्तर:
(क)

  • क्योंकि इससे चालू उत्पादन में वृद्धि नहीं हुई है। यह संपत्ति का केवल हस्तांतरण है।
  • क्योंकि इससे वस्तुओं व सेवाओं के प्रवाह में वृद्धि नहीं हुई है। यह मात्र वित्त पूँजी का लेन-देन है।
  • क्योंकि उत्पादन में योगदान दिए बिना प्राप्त यह हस्तांतरण आय है।
  • क्योंकि यह कर का अनिवार्य भुगतान है।
  • क्योंकि यह मात्र कर का अनिवार्य भुगतान है। पुनः राष्ट्रीय आय, कारक लागत पर निकाली जाती है।
  • क्योंकि उत्पादन में योगदान के बगैर किया गया यह हस्तांतरण भुगतान है।

(ख)

  • नहीं, क्योंकि इससे उत्पादन प्रक्रिया में कोई प्रत्यक्ष योगदान नहीं हुआ है।
  • हाँ, क्योंकि कमीशन एजेंट (व्यापारी) ने सौदा कराने में उत्पादक सेवा प्रदान की है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित को राष्ट्रीय आय में शामिल क्यों नहीं किया जाता?
(i) संपत्ति कर
(ii) उपभोक्ता गृहस्थ द्वारा अदा किया गया ब्याज।
उत्तर:
(i) क्योंकि संपत्ति कर गत वर्षों की बचतों और धन से अदा किया गया माना जाता है। यह करदाता द्वारा सरकार को अनिवार्य पूँजी हस्तांतरण है।

(ii) क्योंकि उपभोक्ता द्वारा लिया गया ऋण उपभोग (जैसे विवाह, उत्सव) हेतु इस्तेमाल किया गया ऋण माना जाता है। इससे उत्पादन में कोई योगदान नहीं हुआ है।

प्रश्न 3.
क्या निम्नलिखित को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाएगा?
(i) विदेशों से प्राप्त उपहार
(ii) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज की अदायगी
(iii) एक उत्पादन इकाई द्वारा नई मशीन की खरीद
(iv) एक नई कंपनी के शेयरों की खरीद
(v) संपत्ति कर।
उत्तर:
(i) नहीं, क्योंकि हस्तांतरण आय है।
(ii) नहीं, क्योंकि सरकार द्वारा लिया गया ऋण उपभोग हेतु लिया गया ऋण माना जाता है।
(iii) हाँ, क्योंकि नई मशीन, चालू (current) वर्ष के उत्पादन का भाग है।।
(iv) नहीं, क्योंकि शेयर्ज केवल कागज़ी दावे या स्वामित्व दर्शाते हैं और उत्पादन में प्रत्यक्ष कोई योगदान नहीं देते हैं।
(v) नहीं, क्योंकि संपत्ति कर, सरकार को किया गया अनिवार्य पूँजी हस्तांतरण माना जाता है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित को भारत की घरेलू कारक आय में शामिल किया जाएगा या नहीं? अपने उत्तर के कारण बताइए।
(i) सिंगापुर में भारतीय कंपनी में काम करने वाले गैर-निवासी भारतीय को मज़दूरी का भुगतान
(ii) भारतीय दूतावास में काम करने वाले गैर-निवासियों का वेतन
(iii) गैर-निवासियों के स्वामित्व वाली भारत में स्थित एक कंपनी द्वारा अर्जित आय
(iv) इंग्लैंड में भारतीय स्टेट बैंक की एक शाखा द्वारा अर्जित आय।
उत्तर:
(नोट-भारत की घरेलू कारक आय में वहीं आय शामिल की जाएगी जो भारत की घरेलू (आर्थिक) सीमा में सृजित या अर्जित हुई हो।
(i) नहीं, क्योंकि यह भारत की घरेलू सीमा (Domestic territory) में सृजित नहीं हुई है।
(ii) हाँ, क्योंकि भारतीय दूतावास जो भारत की घरेलू सीमा का भाग माना जाता है, में आय सृजित हुई है।
(iii) हाँ, क्योंकि यह आय भारत की घरेलू सीमा में स्थित कंपनी द्वारा सृजित हुई है चाहे कंपनी के मालिक गैर-निवासी या विदेशी क्यों न हों।
(iv) नहीं, क्योंकि लाभ भारत की घरेलू सीमा से बाहर इंग्लैंड में अर्जित किया गया है।

प्रश्न 5.
क्या निम्नलिखित को भारत की घरेलू कारक आय में शामिल किया जाएगा? अपने उत्तर के लिए कारण बताइए।
(i) भारत में स्थित एक विदेशी कंपनी द्वारा दिया गया कर्मचारियों का पारिश्रमिक
(ii) विदेश में स्थित एक भारतीय कंपनी द्वारा अर्जित लाभ
(iii) भारत में अमरीका के दूतावास द्वारा निवासी भारतीयों को दिया गया कर्मचारियों का पारिश्रमिक
(iv) भारत में स्थित एक ऐसी कंपनी द्वारा अर्जित लाभ जिसका स्वामित्व अंशतः निवासियों के पास और अंशतः गैर-निवासियों के पास है।
उत्तर:
(i) हाँ, क्योंकि इसका सृजन भारत की घरेलू सीमा में हुआ है चाहे कंपनी विदेशी हो।
(ii) नहीं, क्योंकि लाभ भारत की घरेलू सीमा में अर्जित नहीं हुआ है।
(iii) नहीं, क्योंकि भारत में अमरीकी दूतावास, अमरीका की घरेलू सीमा का भाग है, चाहे दूतावास भारत में स्थित हो।
(iv) हाँ, क्योंकि यह लाभ भारत में स्थित कंपनी द्वारा अर्जित किया गया है. चाहे कंपनी के मालिक कोई भी हों।

प्रश्न 6.
क्या निम्नलिखित भारत की घरेलू (देशीय) कारक आय का हिस्सा है? अपने उत्तर के लिए कारण दीजिए।
(i) सरकार द्वारा दी जाने वाली वृद्धावस्था पेंशन
(ii) विदेशों से प्राप्त कारक आंय
(iii) भारत में रूसी दूतावास में काम करने वाले भारत के निवासियों को मिलने वाला वेतन
(iv) एक गैर-आवासी (Non-resident) की भारत में कंपनी द्वारा अर्जित लाभ।
उत्तर:
(i) नहीं, क्योंकि वृद्धावस्था पेंशन उत्पादन में योगदान के बिना देने से हस्तांतरण भुगतान है।

(ii) नहीं, क्योंकि यह कारक आय देश की घरेलू सीमा से बाहर अर्जित की गई है।

(iii) नहीं, क्योंकि यह वेतन भारत के निवासियों द्वारा रूसी दूतावास में काम करने से अर्जित किया गया है। ध्यान रहे भारत में रूसी दूतावास, रूस की घरेलू सीमा का भाग है न कि भारत की घरेलू सीमा का।

(iv) हाँ, क्योंकि यह लाभ भारत की घरेलू सीमा में अर्जित हुआ है चाहे लाभ पाने वाली कंपनी विदेशी हो।

प्रश्न 7.
क्या निम्नलिखित को भारत की घरेलू कारक आय में शामिल किया जाएगा? अपने उत्तर के लिए कारण दीजिए।
(i) एक विदेशी बैंक की भारत में शाखाओं द्वारा अर्जित लाभ
(ii) भारत सरकार द्वारा दी गई छात्रवृत्तियाँ
(iii) भारत के निवासी की सिंगापुर में स्थित कंपनी द्वारा अर्जित लाभ
(iv) भारत में अमरीकी दूतावास में काम करने वाले भारतीयों को मिलने वाला वेतन।
उत्तर:
(i) हाँ, क्योंकि लाभ भारत की घरेलू सीमा में अर्जित हुआ है चाहे बैंक विदेशी हो।

(ii) नहीं, क्योंकि छात्रवृत्तियाँ मात्र हस्तांतरण भुगतान हैं जो उत्पादन में योगदान किए बिना दी जाती हैं।

(iii) नहीं, क्योंकि यह लाभ भारत की घरेलू सीमा के बाहर (अर्थात् विदेश में) अर्जित किया गया है।

(iv) नहीं, क्योंकि यह वेतन भारतीयों द्वारा अमरीकी दूतावास, जो अमरीका की घरेलू सीमा का भाग है, में अर्जित किया गया है।

प्रश्न 8.
क्या निम्नलिखित कारक आय, भारत की घरेलू कारक आय में शामिल की जाएगी? अपने उत्तर के लिए कारण दीजिए।
(i) जापान में भारतीय दूतावास में कार्यरत जापान के निवासियों को दिया गया कर्मचारियों का पारिश्रमिक
(ii) भारत में एक विदेशी बैंक की शाखा द्वारा अर्जित लाभ
(iii) एक भारतीय निवासी को भारत में रूसी दूतावास से प्राप्त किराया
(iv) भारतीय स्टेट बैंक की इंग्लैंड में एक शाखा द्वारा अर्जित लाभ।
उत्तर:
ध्यान रहे, भारत की घरेलू आय में केवल वही कारक आय शामिल की जाएगी जो भारत की घरेलू (आर्थिक) सीमा में अर्जित सृजित हुई हो। पुनः किसी देश जैसे भारत का विदेशों में दूतावास अपने देश (जैसे भारत) की घरेलू सीमा का भाग होता है।
(i) यह शामिल होगा, क्योंकि जापान में भारतीय दूतावास, भारत की घरेलू सीमा का भाग है।
(ii) यह शामिल होगा, क्योंकि लाभ भारत की घरेलू सीमा में अर्जित हुआ है।
(iii) यह शामिल नहीं होगा, क्योंकि किराया रूसी दूतावास जो रूस की घरेलू सीमा का भाग है, से प्राप्त हुआ है।
(iv) यह शामिल नहीं होगा, क्योंकि लाभ भारत की घरेलू सीमा से बाहर अर्थात् इंग्लैंड में अर्जित हुआ है।

प्रश्न 9.
क्या निम्नलिखित कारक आय भारत की कारक आय का एक भाग होंगी? अपने उत्तर के लिए कारण दीजिए।
(i) विदेशी बैंकों की भारत में उनकी शाखाओं द्वारा अर्जित लाभ
(ii) भारत में अमरीकी दूतावास में कार्यरत भारतीय निवासियों को प्राप्त वेतन
(iii) एक भारतीय कंपनी की सिंगापुर में उसकी शाखा द्वारा अर्जित लाभ
(iv) चीन में भारतीय दूतावास में कार्यरत चीन के निवासियों को दिया जाने वाला कर्मचारियों का पारिश्रमिक।
उत्तर:
(i) यह शामिल होगा, क्योंकि यह लाभ भारत की घरेलू सीमा में अर्जित किया गया है।
(ii) यह शामिल नहीं होगा, क्योंकि भारत में अमरीकी दूतावास, अमरीका की घरेलू सीमा का भाग है न कि भारत की घरेलू सीमा का भाग है।
(iii) यह शामिल नहीं होगा, क्योंकि यह लाभ विदेश में अर्जित किया गया है।
(iv) यह शामिल होगा, क्योंकि चीन में भारतीय दूतावास, भारत की घरेलू सीमा का अंग माना जाता है।

प्रश्न 10.
कारण बताते हुए समझाइए कि राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाते समय निम्नलिखित के साथ क्या व्यवहार किया जाता है?
(i) एक फर्म द्वारा वकील की सेवाएँ लेना
(ii) नियोजक द्वारा कर्मचारी को दिया गया किराया-मुफ्त मकान
(iii) विदेशी पर्यटकों द्वारा खरीदारी।
उत्तर:
(i) फर्म द्वारा वकील को किया गया भुगतान राष्ट्रीय आय में शामिल होगा, क्योंकि यह वकील की उत्पादक (कानूनी) सेवाओं का पारिश्रमिक है।

(ii) किराया-मुफ्त मकान का आरोपित किराया (Imputed rent) राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाएगा, क्योंकि यह श्रमिक द्वारा प्रदत्त उत्पादक सेवाओं का किस्म (kind) में दिया गया मुआवजा है।

(iii) देश में विदेशी पर्यटकों द्वारा खरीदारी एक प्रकार से घरेलू उत्पाद का निर्यात है। चूंकि निर्यात घरेलू उत्पाद का एक भाग होता है इसलिए विदेशी पर्यटकों द्वारा खरीदारी पर किया गया व्यय राष्ट्रीय आय की व्यय विधि से गणना में शामिल किया जाएगा।

प्रश्न 11.
भारत के घरेलू (देशीय) कारक आय (Domestic factor income) का आकलन लगाते समय आप निम्नलिखित के साथ क्या व्यवहार करेंगे? अपने उत्तर के लिए कारण दीजिए।
(i) अनिवासी भारतीयों द्वारा भारत में अपने परिवारों को भेजी गई राशि
(ii) भारत में जापान के दूतावास द्वारा निवासी भारतीयों को दिया गया किराया
(iii) भारत में विदेशी बैंक की शाखाओं द्वारा अर्जित लाभ।
उत्तर:
(i) अनिवासी भारतीयों द्वारा भेजी गई राशि भारत की घरेलू आय में शामिल नहीं होगी, क्योंकि यह राशि भारत की घरेलू सीमा में सृजित नहीं हुई है बल्कि बाहर से आई है।

(ii) यह किराया शामिल नहीं किया जाएगा, क्योंकि किराया जापानी दूतावास से प्राप्त हुआ है जो जापान की घरेलू सीमा का भाग है।

(iii) यह लाभ भारत की घरेलू आय में शामिल किया जाएगा, क्योंकि विदेशी बैंक की शाखाओं का लाभ भारत की घरेलू सीमा में अर्जित किया गया है।

प्रश्न 12.
भारत की राष्ट्रीय आय का आकलन करते समय आप निम्नलिखित के साथ क्या व्यवहार करेंगे? अपने उत्तर के लिए कारण दीजिए।
(i) रूस में भारतीय दूतावास में कार्यरत रूसी नागरिकों को दिया गया वेतन
(ii) एक भारतीय कंपनी द्वारा सिंगापुर में स्थित अपनी शाखा से अर्जित लाभ
(iii) भारतीय निवासियों को विदेशी कंपनी के शेयर बेचने से पूँजीगत लाभ।
उत्तर:
(i) रूस में भारतीय दूतावास में कार्यरत रूसी नागरिकों को दिया गया वेतन विदेशों को दी गई कारक आय है जो विदेशों से शुद्ध कारक आय का एक भाग है। चूंकि विदेशों से शुद्ध कारक आय राष्ट्रीय आय का एक भाग होती है। अतः उपर्युक्त मद भारत की राष्ट्रीय आय में सम्मिलित होगी।

(ii) एक भारतीय कंपनी द्वारा सिंगापुर में स्थित अपनी शाखा से अर्जित लाभ भारत की राष्ट्रीय आय में शामिल होगा क्योंकि यह विदेशों से शुद्ध कारक आय है, जो राष्ट्रीय आय का एक भाग है।

(iii) भारतीय निवासियों को विदेशी कंपनी के शेयर बेचने से पूँजीगत लाभ विदेशों से कारक आय है, इसलिए इसे भारत की राष्ट्रीय आय में सम्मिलित किया जाएगा।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 13.
भारत की राष्ट्रीय आय का आकलन करते समय आप निम्नलिखित के साथ क्या व्यवहार करेंगे? अपने उत्तर के लिए कारण दीजिए।
(i) भारत में रूसी दूतावास में कार्यरत भारतीय निवासियों द्वारा प्राप्त वेतन
(ii) एक भारतीय बैंक द्वारा विदेशों में अपनी शाखाओं से अर्जित लाभ
(iii) सरकार द्वारा प्राप्त किया गया मनोरंजन कर।।
उत्तर:
(i) भारत में रूसी दूतावास में कार्यरत भारतीय निवासियों द्वारा प्राप्त वेतन राष्ट्रीय आय में सम्मिलित होगा, क्योंकि यह विदेशों से प्राप्त कारक आय है जो भारतीय नागरिकों ने अर्जित की है।

(ii) एक भारतीय बैंक द्वारा विदेशों में अपनी शाखाओं से अर्जित लाभ राष्ट्रीय आय में सम्मिलित होगा, क्योंकि यह एक भारतीय नागरिक (संस्था) की विदेशों से प्राप्त कारक आय है।

(iii) सरकार द्वारा प्राप्त मनोरंजन कर राष्ट्रीय आय में सम्मिलित नहीं होगा, क्योंकि मनोरंजन कर हस्तांतरण भुगतान है, कारक आय नहीं।

प्रश्न 14.
कारण बताइए, निम्नलिखित को घरेलू आय में शामिल क्यों नहीं किया जाता जबकि राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।
(i) भारतीय स्टेट बैंक की एक शाखा द्वारा फ्रांस में अर्जित लाभ
(ii) एक भारतीय निवासी (Resident) द्वारा हांगकांग में स्थित कंपनी से लाभ
(iii) एक भारतीय को रूसी दूतावास से प्राप्त किराया
(iv) जर्मन दूतावास से भारतीयों को प्राप्त वेतन।
उत्तर:
(i) क्योंकि बैंक द्वारा अर्जित यह लाभ भारत की घरेलू सीमा में अर्जित नहीं किया गया है।

(ii) क्योंकि यह लाभ भारतीय घरेलू सीमा से बाहर अर्जित किया गया है।

(ii) क्योंकि रूसी दूतावास रूस की घरेलू सीमा का भाग है (न कि भारत की घरेलू सीमा का जिसका संचालन रूस सरकार द्वारा किया जाता है।)

(iv) क्योंकि जर्मन दूतावास अपने देश (जर्मन) की घरेलू सीमा का भाग है जिसमें जर्मन सरकार का कानून लागू होता है चाहे दूतावास भारत में स्थित हो।

प्रश्न 15.
बताइए कि निम्नलिखित कथन सत्य है या असत्य। अपने उत्तर के लिए कारण बताइए।
(i) पूँजी निर्माण प्रवाह है
(ii) ब्रेड सदैव एक उपभोक्ता वस्तु है।
(ii) मौद्रिक GDP वास्तविक GDP से कभी कम नहीं हो सकती
(iv) सकल घरेलू पूँजी निर्माण सदैव सकल स्थिर पूँजी निर्माण से अधिक होता है।
उत्तर:
(i) सत्य। पूँजी निर्माण एक प्रवाह है क्योंकि इसे एक समयावधि में मापा जाता है।

(ii) असत्य। ब्रेड सदैव एक उपभोक्ता वस्त नहीं होती। ब्रेड को जब एक उपभोक्ता खरीदता है तो यह उपभोक्ता वस्तु होगी। ब्रेड को जब एक उत्पादक (होटल, रेस्टोरेंट) खरीदता है तो ब्रेड मध्यवर्ती वस्तु अर्थात् उत्पादक वस्तु बन जाएगी।

(iii)असत्य। मौद्रिक GDP वास्तविक GDP से कम भी हो सकती है यदि चालू वर्ष की कीमतें आधार वर्ष की कीमतों की तुलना में कम हैं।

(iv) असत्य। सकल घरेलू पूँजी निर्माण सकल स्थाई पूँजी निर्माण से कम भी हो सकता है यदि स्टॉक में परिवर्तन ऋणात्मक है अर्थात् प्रारंभिक स्टॉक अंतिम स्टॉक से अधिक है।

प्रश्न 16.
राष्ट्रीय आय का आकलन करते समय, निम्नलिखित के साथ क्या व्यवहार करेंगे? अपने उत्तर के लिए कारण दीजिए।
(i) स्वयं के मकान में रहने वालों के मकानों का आरोपित (अनुमानित) किराया
(ii) ऋणपत्रों पर प्राप्त ब्याज
(iii) बाढ़-पीड़ितों को प्राप्त आर्थिक सहायता।
उत्तर:
(i) स्वयं के मकान में रहने वालों के मकानों का आरोपित (अनुमानित) किराया देश की राष्ट्रीय आय में सम्मिलित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि स्वयं के मकान में रहने वालों ने आरोपित किराये की राशि आय के रूप में स्वयं ही प्राप्त की है अर्थात् उन्होंने स्वयं को मकान किराये पर देकर कारक आय अर्जित की है।

(ii) ऋणपत्रों पर ब्याज को राष्ट्रीय आय में सम्मिलित किया जाता है। ऋणपत्र से एक कंपनी लोगों से ऋण प्राप्त करती है और उस ऋण की राशि का उपयोग संपत्तियाँ खरीदने तथा अपनी उत्पादन क्षमता में वृद्धि के लिए करती है। इसलिए कंपनी द्वारा ऋणपत्रधारी को दिया गया ब्याज कारक आय है।

(iii) बाढ़ पीड़ितों को आर्थिक सहायता राष्ट्रीय आय में सम्मिलित नहीं किया जाता, क्योंकि यह कारक आय नहीं है बल्कि हस्तांतरण आय है। इस प्राप्ति का देश की उत्पादक गतिविधियों से कोई संबंध नहीं है।

प्रश्न 17.
राष्ट्रीय आय का आकलन में निम्नलिखित को किस प्रकार व्यवहार में लाया जाता है?
(i) कारखाने में श्रमिकों को सस्ते दाम पर भोजन की व्यवस्था
(ii) वृद्धावस्था पेंशन
(iii) गृहिणी की सेवाएँ
(iv) परिवार द्वारा टिकाऊ उपभोग वाली वस्तुओं की खरीद
(v) विदेशों में अपनी शाखाओं से भारतीय कंपनियों द्वारा अर्जित आय
(vi) सड़क की रोशनी पर सरकारी व्यय।
उत्तर:
(i) कारखाने में श्रमिकों को सस्ते दाम पर भोजन की व्यवस्था को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाएगा, क्योंकि यह उत्पादन है और साथ-ही-साथ बिक्री भी है यद्यपि बिक्री सस्ते दामों पर हो रही है।

(ii) वृद्धावस्था पेंशन हस्तांतरण भुगतान है। इसलिए इसे राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता। ये अनुपार्जित प्राप्तियाँ हैं अर्थात् इनकी प्राप्ति बिना किसी वस्तु या सेवा के उत्पादन के हुई है।

(iii) गृहिणी की सेवाओं का मूल्य राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि गृहिणी की सेवाएँ बिक्री योग्य नहीं होतीं। गृहिणी की सेवाओं का आधार प्रेम व त्याग है न कि आर्थिक लाभ।

(iv) परिवार द्वारा टिकाऊ उपभोग वाली वस्तुओं की खरीद को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है क्योंकि इन्हें उपभोग माना जाता है।

(v) विदेशों में अपनी शाखाओं से भारतीय कंपनियों द्वारा अर्जित आय भारत की राष्ट्रीय आय है।

(vi) सड़क की रोशनी पर सरकारी व्यय को उस देश की राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाएगा, क्योंकि यह सकल पूँजी निर्माण है और यह सरकारी व्यय एक वर्ष की अवधि से अधिक समय के लिए किया गया है।

प्रश्न 18.
क्या निम्नलिखित को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है? कारण बताइए।
(i) उपभोक्ता परिवारों द्वारा नए मकानों का क्रय
(ii) पुराने भवन पर एक नई मंजिल का निर्माण
(ii) सरकार द्वारा एक गैर-कानूनी निर्माण को गिराने में किया गया व्यय
(iv) सार्वजनिक ऋण पर ब्याज
(v) निगम-लाभों पर कर
(vi) पुराने शेयरों की बिक्री से आय।
उत्तर:
(i) उपभोक्ता परिवारों द्वारा नए मकानों का क्रय राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है, क्योंकि यह निजी अंतिम उपभोग व्यय का एक भाग है। यह चालू वर्ष के उत्पादन का ही एक भाग है।

(ii) पुराने भवन पर एक नई मंजिल का निर्माण राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है, क्योंकि यह सकल घरेलू पूँजी निर्माण का एक भाग है। यह भी चालू वर्ष के उत्पादन का ही एक भाग है।

(iii) सरकार द्वारा एक गैर-कानूनी निर्माण को गिराने में किया गया व्यय राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि इसमें अंतिम वस्तु का कोई उत्पादन नहीं होता।

(iv) सार्वजनिक ऋण पर ब्याज एक हस्तांतरण आय है अर्थात् सरकार द्वारा लोगों को बिना किसी उत्पादक कार्य के बदले में किया जाने वाला भुगतान है। इसलिए इसे राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।

(v) निगम-लाभों पर कर लाभ का एक भाग है और लाभ उद्यमी की कारक आय है। इसलिए निगम-लाभों पर कर राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता।

(vi) पुराने शेयर्ज की बिक्री से होने वाली आय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि यह एक वित्तीय लेन-देन है और इससे किसी आय का सृजन नहीं होता।

प्रश्न 19.
किसी देश की राष्ट्रीय आय के आकलन में क्या निम्नलिखित मदों को शामिल किया जाता है? अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए।
(i) विदेशों से प्राप्त उपहार
(ii) शेयर्ज पर प्राप्त लाभांश
(iii) गृहिणी की सेवाएँ
(iv) भिखारियों को भोजन कराने पर व्यय
(v) मालिकों द्वारा खुद-काबिज मकान की सेवाएँ
(vi) भारत में विदेशी बैंकों द्वारा अर्जित लाभ।
उत्तर:
(i) विदेशों से प्राप्त उपहार कारक आय नहीं है बल्कि हस्तांतरण आय है और हस्तांतरण आय को राष्ट्रीय आय के आकलन में शामिल नहीं किया जाता।

(ii) शेयर्ज पर प्राप्त लाभांश वित्तीय पूँजी की आय है, उत्पादक क्रियाओं की आय नहीं। इसलिए शेयर्ज पर प्राप्त लाभांश को राष्ट्रीय आय के आकलन में शामिल नहीं किया जाता।

(iii) गृहिणी की सेवाएँ आर्थिक क्रियाएँ नहीं हैं, क्योंकि ये स्नेह (प्रेम) व कर्त्तव्य (त्याग) के लिए की जाती हैं, उत्पादन के लिए नहीं। इसलिए गृहिणी की सेवाओं को राष्ट्रीय आय के आकलन में शामिल नहीं किया जाता।

(iv) भिखारियों को भोजन कराने का व्यय अनुत्पादक है, क्योंकि यह हस्तांतरण भुगतान है इसलिए इसे राष्ट्रीय आय के आकलन में शामिल नहीं किया जाता।

(v) मालिकों द्वारा खुद-काबिज मकान की सेवाओं को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है, क्योंकि यह उत्पादन के समान है। यद्यपि मालिक वास्तव में कोई किराया अदा नहीं कर रहा है फिर भी हम मकान की सेवाओं को आरोपित मूल्य राष्ट्रीय आय में शामिल करेंगे।

(vi) भारत में विदेशी बैंकों द्वारा अर्जित लाभ भारत की घरेलू आय है परंतु भारत की राष्ट्रीय आय नहीं।

प्रश्न 20.
राष्ट्रीय आय के आकलन में निम्नलिखित को किस प्रकार व्यवहार में लाया जाता है?
(i) विदेश में कार्य कर रहे संबंधी से प्राप्त धनराशि
(ii) व्यापारी के पास रखे स्टॉक की कीमतों में हुई वृद्धि
(iii) पुरानी मोटरगाड़ियों के व्यापारी को प्राप्त कमीशन
(iv) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज
(v) स्व-उपभोग के लिए उत्पादन
(vi) पुरानी मोटरकार की बिक्री।
उत्तर:
(i) विदेश में कार्य कर रहे संबंधी से प्राप्त धनराशि को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि यह एक हस्तांतरण भुगतान है और हस्तांतरण भुगतान को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।

(i) व्यापारी के पास रखे स्टॉक की कीमतों में हुई वृद्धि को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि इससे राष्ट्रीय आय में कोई योगदान नहीं होता।

(iii) पुरानी मोटरगाड़ियों के व्यापारी को प्राप्त कमीशन को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है, क्योंकि व्यापारी ने अपनी सेवाओं द्वारा आय का अर्जन किया है।

(iv) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि यह ऋण का पुरस्कार है परंतु राष्ट्रीय ऋण के ब्याज को वैयक्तिक आय और निजी आय के अनुमान लगाने में शामिल किया जाता है।

(v) स्व-उपभोग के लिए उत्पादन को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है, क्योंकि यह उत्पादन राष्ट्रीय आय का एक भाग है।

(vi) पुरानी मोटरकार की बिक्री को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि इसका वर्तमान वर्ष की उत्पादन प्रक्रिया से कोई संबंध नहीं है।

प्रश्न 21.
क्या निम्नलिखित को देश की राष्ट्रीय आय के आकलन में शामिल किया जाता है? कारण सहित उत्तर दीजिए।
(i) जमीन की बिक्री से प्राप्त राशि
(ii) विदेश में काम कर रहे श्रमिक द्वारा उसके परिवार को मिली रकम
(iii) शेयर्ज पर लाभांश की प्राप्ति
(iv) सुरक्षा पर सरकारी व्यय
(v) भिखारियों को भोजन कराने पर व्यय
(vi) आकस्मिक लाभ।
उत्तर:
(i) जमीन की बिक्री से प्राप्त राशि को देश की राष्ट्रीय आय के आकलन में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि यह प्राप्ति पहले से ही मौजूद वस्तु के हस्तांतरण से हुई है न कि इस चालू वर्ष में उत्पादित वस्तु के हस्तांतरण से।

(ii) विदेश में काम कर रहे श्रमिक द्वारा उसके परिवार को मिली रकम को देश की राष्ट्रीय आय के आकलन में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि यह एक हस्तांतरण प्राप्ति है और हस्तांतरण प्राप्ति को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।

(iii) शेयर्ज पर लाभांश की प्राप्ति को देश की राष्ट्रीय आय के आकलन में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि लाभांश वित्तीय पूँजी का पारिश्रमिक है, वर्ष में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं का प्रतिफल नहीं।

(iv) सुरक्षा पर सरकारी व्यय को देश की राष्ट्रीय आय के आकलन में शामिल किया जाता, क्योंकि इससे देश में वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन होता है।

(v) भिखारियों को भोजन कराने पर व्यय को देश की राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाएगा, क्योंकि यह एक हस्तांतरण भुगतान है और इसका देश में होने वाले उत्पादन से कोई संबंध नहीं है।

(vi) आकस्मिक लाभ को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि इसका देश में होने वाले उत्पादन से कोई संबंध नहीं है।

प्रश्न 22.
क्या निम्नलिखित को सकल राष्ट्रीय आय उत्पाद में सम्मिलित किया जाएगा? अपने उत्तर में कारण बताइए।
(i) भारत में एक विदेशी कंपनी द्वारा अर्जित लाभ
(ii) अंशों की बिक्री से प्राप्त राशि
(iii) अमरीका में स्थित भारतीय दूतावास में कार्य कर रहे अमरीकन निवासियों को दिया गया वेतन
(iv) पुराने मकान की बिक्री से प्राप्त राशि
(v) एक विद्यार्थी द्वारा प्राप्त छात्रवृत्ति
(vi) विदेशों से प्राप्तियाँ (Remittances)।
उत्तर:
(i) भारत में एक विदेशी कंपनी द्वारा अर्जित लाभ को सकल राष्ट्रीय उत्पाद में सम्मिलित नहीं किया जाएगा, क्योंकि यह भारतवर्ष में अनिवासी द्वारा अर्जित आय है। सकल राष्ट्रीय उत्पाद में केवल सामान्य निवासियों द्वारा अर्जित आय को ही शामिल किया जाता है। इसलिए एक विदेशी कंपनी द्वारा अर्जित लाभ को सकल राष्ट्रीय उत्पाद में सम्मिलित नहीं किया जाएगा।

(ii) अंशों की बिक्री से प्राप्त राशि को सकल राष्ट्रीय उत्पाद में सम्मिलित नहीं किया जाएगा, क्योंकि अंश एक वित्तीय संपत्ति है और अंशों के क्रय-विक्रय से वस्तुओं और सेवाओं से उत्पादन पर कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ता। अंश एक कागजी मुद्रा है, उत्पादनीय संपत्ति नहीं।

(iii) अमरीका में स्थित भारतीय दूतावास में कार्य कर रहे अमरीकन निवासियों को दिया गया वेतन सकल राष्ट्रीय उत्पाद में सम्मिलित नहीं किया जाएगा क्योंकि यह भारतवर्ष में अनिवासी व्यक्तियों की आय है।

(iv) पुराने मकान की बिक्री से प्राप्त राशि को सकल राष्ट्रीय उत्पाद में सम्मिलित नहीं किया जाएगा, क्योंकि पुराना मकान वर्ष में उत्पादित वस्तु नहीं है। पुराने मकान को उस वर्ष के राष्ट्रीय उत्पाद में सम्मिलित कर लिया गया होगा जिस वर्ष उसका निर्माण हुआ होगा।

(v) एक विद्यार्थी द्वारा प्राप्त छात्रवृत्ति को सकल राष्ट्रीय उत्पाद में सम्मिलित नहीं किया जाएगा, क्योंकि प्राप्त छात्रवृत्ति एक हस्तांतरण आय है, कारक आय नहीं। एक हस्तांतरण आय को राष्ट्रीय उत्पाद में सम्मिलित नहीं किया जाता, क्योंकि हस्तांतरण आय अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के प्रवाह को प्रभावित नहीं करता।

(vi) विदेशों से प्राप्तियों को सकल राष्ट्रीय उत्पाद में सम्मिलित नहीं किया जाएगा, क्योंकि विदेशों में प्राप्तियाँ हस्तांतरण प्राप्ति हैं, कारक आय नहीं।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 23.
राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाते समय निम्नलिखित को किस प्रकार व्यवहार में लाया जाता है?
(i) भारत में विदेशी बैंकों द्वारा अर्जित लाभ,
(ii) भारत में विदेशी दूतावासों को किराए पर दी गई इमारतों से भारतीय निवासियों को प्राप्त किराया,
(iii) अप्रत्याशित लाभ,
(iv) विदेश में काम कर रहे संबंधी से प्राप्त धनराशि,
(v) व्यापारी के पास रखे स्टॉक की कीमतों में वृद्धि,
(vi) सड़क की रोशनी पर सरकारी व्यय,
(vii) भिखारियों को भोजन कराने पर व्यय,
(vii) व्यावसायिक बैंक से गृहस्थों को ब्याज की प्राप्ति,
(ix) जमीन की बिक्री से प्राप्त राशि,
(x) विदेश में काम कर रहे श्रमिक द्वारा उसके परिवार को मिली रकम,
(xi) शेयर्ज से लाभांश की गृहस्थों को प्राप्ति,
(xii) सुरक्षा सरकारी व्यय,
(xiii) लंदन में भारतीय बैंक द्वारा अर्जित लाभ,
(xiv) पाकिस्तान में काम कर रहे भारतीयों को मज़दूरी,
(xv) कंपनी के शेयरों की कीमतों में वृद्धि,
(xvi) भूकंप पीड़ितों को आर्थिक सहायता,
(xvii) सरकारी दवाखाने की निःशुल्क सेवाएँ,
(xviii) पिता द्वारा पुत्र को दिया गया जेब खर्च।
उत्तर:
1. निम्नलिखित को राष्ट्रीय आय में जोड़ा जाएगा-
(ii), (vi), (vii), (viii), (x), (xi), (xii), (xiii), (xiv), (xvii)

2. निम्नलिखित को राष्ट्रीय आय में नहीं जोड़ा जाएगा-
(i), (iii), (iv), (v), (ix), (xv), (xvi), (xviii)

प्रश्न 24.
क्या निम्नलिखित मदों को GNP में सम्मिलित किया जाएगा? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
(i) पुरानी कार की बिक्री,
(ii) तस्कर की आय,
(iii) अप्रत्यक्ष कर,
(iv) सरकारी अनुदान,
(v) कमीशन,
(vi) अवितरित लाभ,
(vi) पूँजीगत लाभ,
(vil) लाभ कर,
(ix) राष्ट्रीय ऋणों पर ब्याज,
(x) विदेशों से अर्जित शुद्ध आय,
(xi) मकान मालिकों द्वारा अपने मकान का स्व-उपभोग,
(xii) मध्यवर्ती वस्तुएँ,
(xii) गृहिणी की सेवाएँ,
(xiv) हस्तांतरण भुगतान,
(xv) घिसावट,
(xvi) नए मकान का निर्माण,
(xvii) संसद सदस्य को मिलने वाला भत्ता।
उत्तर:
(i) नहीं, क्योंकि इसका उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

(ii) नहीं, क्योंकि गैर-कानूनी आय, GNP में सम्मिलित नहीं की जाती।

(iii) यदि GNP की गणना बाज़ार-कीमतों पर की जाती है, तो अप्रत्यक्ष करों को शामिल किया जाता है, परंतु यदि GNP की गणना कारक लागत पर की जाए तो ये GNP में शामिल नहीं होंगे।

(iv) सरकारी अनुदान, GNPFC में शामिल होते हैं, जबकि GNPMP में नहीं होते।

(v) हाँ, कमीशन से प्राप्त आय को GNP में सम्मिलित किया जाएगा, क्योंकि इससे आय का सृजन होता है।

(vi) हाँ, क्योंकि अवितरित लाभ सृजित आय का ही एक भाग होता है।

(vii) नहीं, क्योंकि पूँजीगत लाभों के रूप में प्राप्त आय से उत्पादन में कोई वृद्धि नहीं होती।

(viii) हाँ, क्योंकि लाभ कर कंपनी की सृजित आय पर लगाया जाता है।

(ix) नहीं, क्योंकि यह एक हस्तांतरण भुगतान है।

(x) हाँ, क्योंकि यह देश के नागरिकों द्वारा कमाई हुई आय है।

(xi) हाँ, ऐसे मकानों के आरोपित किराए (Imputed Rent) को राष्ट्रीय आय में जोड़ा जाता है।

(xii) नहीं, क्योंकि इससे दोहरी गणना की समस्या उत्पन्न हो जाएगी।

(xiii) नहीं, क्योंकि गृहिणी की सेवाओं का कोई मौद्रिक मूल्य नहीं होता।

(xiv) नहीं, हस्तांतरण भुगतान सदैव GNP से बाहर रखे जाते हैं। ये भुगतान एक-पक्षीय होते हैं और उत्पादन को प्रभावित नहीं करते।

(xv) हाँ, घिसावट GNP में सम्मिलित होती है।

(xvi) यह सकल घरेलू पूँजी निर्माण का अंग है। अतः इसे राष्ट्रीय आय में जोड़ा जाएगा।

(xvii) क्योंकि सरकारी अंतिम उपभोग का अंग है। अतः इसे राष्ट्रीय आय में सम्मिलित किया जाएगा।

संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आँकड़ों से कर्मचारियों के पारिश्रमिक का आकलन कीजिए-

(हज़ार रुपए में)
(i) कर्मचारियों द्वारा नकद रूप में प्राप्त मज़दूरी व वेतन720
(ii) मालिक द्वारा सामाजिक सुरक्षा योजना में अंशदान80
(iii) बीमा कंपनी से एक दुर्घटनाग्रस्त कर्मचारी का प्राप्त मुआवजा25
(iv) मुफ्त चिकित्सा सुविधाओं का मूल्य120
(v) बिक्री विभाग के कर्मचारियों द्वारा प्राप्त कमीशन80

हल:
कर्मचारियों का पारिश्रमिक = कर्मचारियों द्वारा प्राप्त मज़दूरी व वेतन + मालिक द्वारा सामाजिक सुरक्षा योजना में अंशदान + मुफ्त चिकित्सा सुविधाओं का मूल्य + बिक्री विभाग के कर्मचारियों द्वारा
प्राप्त कमीशन
= 720 + 80 + 120 + 80
= 1,000 रुपए

I. GDP, GNP, NNPMP, NNPFC पर आधारित संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय अर्थव्यवस्था के चालू कीमतों पर निम्नलिखित वास्तविक आँकड़ों के आधार पर NNPFC, GNPMP, GNPFC और NDPMP ज्ञात कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) NNPFC1,33,151
(ii) मूल्यहास11,242
(iii) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर19,183
(iv) शद्ध विदेशी कारक आय– 681

हल:
NNPFC = NDPFC + शुद्ध विदेशी कारक (साधन) आय = 1,33,151 + (-)681 = 1,32,470 करोड़ रुपए
NNPMP = NNPFC + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = 1,32,470 + 19,183 = 1,51,653 करोड़ रुपए
GNPFC = NNPMP + मूल्यहास = 1,51,653 + 11,242 = 1,62,895 करोड़ रुपए
GNPFC = GNPMP – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = 1,62,895 – 19,183 = 1,43,712 करोड़ रुपए
NDPMP = NNPMP – शुद्ध विदेशी कारक (साधन) आय = 1,51,653 – (-681)= 1,52,334 करोड़ रुपए

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आँकड़ों से गणना कीजिए-(i) NDP, (ii) NNPMP, (iii) NNPFC, (iv) GNP।

(करोड़ रुपए में)
(i) मूल्यहास100
(ii) शुद्ध विदेशी कारक आय300
(iii) सकल घरेलू उत्पाद (GDP)15,000
(iv) सरकार द्वारा आर्थिक सहायता50
(v) अप्रत्यक्ष कर75

हल:
(i) NDP = GDP – मूल्यह्रास = 15,000 – 100 = 14,900 करोड़ रुपए
(ii) NNPMP = NDPMP + शुद्ध विदेशी कारक (साधन) आय = 14,900 + 300 = 15,200 करोड़ रुपए
(iii) NNFC = NNPMP – अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता = 15,200 – 75 + 50 = 15,175 करोड़ रुपए
(iv) GNP = GDP + शुद्ध विदेशी कारक (साधन) आय = 15,000+ 300 = 15,300 करोड़ रुपए

प्रश्न 3.
निम्नलिखित सूचना के आधार पर गणना कीजिए-(i) कारक लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय आय (NNPFC), (ii) बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP)।

(करोड़ रुपए में)
(i) बाज़ार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDP<sub>MP</sub>)74,905
(ii) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर8,344
(iii) घरेलू उत्पाद से सरकार को अर्जित आय1,972
(iv) विदेशों से शुद्ध कारक आय-232
(v) मूल्यहास4,486

हल:
(i) NNPFC = बाज़ार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + विदेशों से शुद्ध कारक आय – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
= 74,905 + (-232) – 8,344
= 66,329 करोड़ रुपए

(ii) GDPMP = बाज़ार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + मूल्यह्रास = 74,905 + 4,486 = 79,391 करोड़ रुपए

प्रश्न 4.
दिए हुए आँकड़ों से निवल घरेलू उत्पाद (NDP) ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद97,503
(ii) विदेशों से निवल कारक आय– 201
(iii) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर10,576
(iv) अचल पूँजी का उपभोग (मूल्यहास)5,699

हल:
NDPMP = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद- अचल (स्थाई) पूँजी का उपभोग-विदेशों से निवल कारक आय
= 97,503 – 5,699 – (-201) = 92,005 करोड़ रुपए

प्रश्न 5.
एक काल्पनिक अर्थव्यवस्था का बाज़ार मूल्य पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) 1,12,000 करोड़ रुपए है। उसकी पूँजी स्कंध (stock) 3,00,000 करोड़ रुपए है। यदि उसकी पूँजी स्कंध में 20% प्रति वर्ष का ह्रास होता है, अप्रत्यक्ष कर 30,000 करोड़ रुपए के होते हैं और उपदान की राशि (आर्थिक सहायता) 15,000 करोड़ रुपए होती है, तो उसकी राष्ट्रीय आय क्या होगी?
हल:
राष्ट्रीय आय (NNPFC) = 1,12,000 – 60,000 (मूल्यह्रास 3,00,000 का 20%) — 30,000 + 15,000
= 37,000 करोड़ रुपए

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आँकड़ों से GDPFC – ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) उत्पादन का मूल्य500
(ii) अचल पूँजी का उपभोग20
(iii) मध्यवर्ती उपभोग का मूल्य200
(iv) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर20

हल:
GDPFC = उत्पादन का मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग का मूल्य – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
= 500 – 200 – 20
= 280 करोड़ रुपए

II. मूल्यवर्धित विधि (अथवा उत्पाद विधि) पर आधारित संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित से कारक लागत पर निवल मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) ज्ञात कीजिए-

(लाख रुपए में)
(i) कच्चे माल का क्रय30
(ii) मूल्यहास12
(iii) बिक्री200
(iv) उत्पाद कर20
(v) आरंभिक स्टॉक15
(vi) मध्यवर्ती उपभोग48
(vii) अंतिम स्टॉक10

हल:
NVA at FC = बिक्री + अंतिम स्टॉक – कच्चे माल का क्रय- मूल्यह्रास – उत्पाद कर – आरंभिक स्टॉक – मध्यवर्ती उपभोग
= 200 + 10 – 30 – 12 – 20 – 15 – 48
= 85 लाख रुपए

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आँकड़ों से फर्म x द्वारा की गई मूल्यवर्धित की गणना कीजिए

(लाख रुपए में)
(i) विक्रय600
(ii) कच्चे माल का क्रय200
(iii) कच्चे माल का आयात100
(iv) मशीर्नों का आयात200
(v) अंतिम स्टॉक40
(vi) प्रारंभिक स्टॉक10

हल:
फर्म X द्वारा की गई मूल्यवर्धित = विक्रय + अंतिम स्टॉक – प्रारंभिक स्टॉक – कच्चे माल का क्रय – कच्चे माल का आयात
= 600 + 40 – 10 – 200 – 100
= 640 – 310 = 330 लाख रुपए
(नोट मशीनों के आयात को मूल्यवर्धित की गणना में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि मशीनें स्थाई संपत्ति है।)

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 3.
‘X’ फर्म के बारे में दिए गए निम्नलिखित आँकड़ों से उनके द्वारा किया गया कारक (साधन) लागत पर सकल मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) का परिकलन कीजिए

(हज़ार रुपए में)
(i) बिक्री500
(ii) प्रारंभिक स्टॉक30
(iii) अंतिम स्टॉक20
(iv) मध्यवर्ती उत्पारों का क्रय300
(v) मशीनों का क्रय150
(vi) आर्थिक सहायता40

हल:
फर्म X द्वारा कारक लागत पर सकल मूल्यवृद्धि = बिक्री + अंतिम स्टॉक – प्रारंभिक स्टॉक. – मध्यवर्ती उत्पादों का क्रय + आर्थिक सहायता
= 500 + 20 – 30 – 300 + 40
= 560 – 330 = 230 हज़ार रुपए
(नोट-मशीनों का क्रय कारक लागत पर सकल मूल्यवृद्धि की गणना के लिए प्रासंगिक नहीं है।)

प्रश्न 4.
फर्म ‘x’ के बारे में दी गई निम्नलिखित सूचना में उसके द्वारा बाज़ार मूल्य पर की गई सकल मूल्यवृद्धि निकालिए

(लाख रुपए में)
(i) घरेलू बिक्री300
(ii) निर्यात100
(iii) स्व-उपभोग के लिए उत्पादन50
(iv) फर्म A से क्रय110
(v) फर्म B से क्रय70
(vi) कच्चे माल का आयात30
(vii) स्टॉक में परिवर्तन60

हल:
बाज़ार मूल्य पर की गई सकल मूल्यवृद्धि = घरेलू बिक्री + निर्यात + स्व-उपभोग के लिए उत्पादन + स्टॉक में परिवर्तन – फर्म A से क्रय – फर्म B से क्रय – कच्चे माल का आयात
= 300 + 100 + 50 + 60 – 110 – 70 – 30
= 510 – 210
= 300 लाख रुपए।

प्रश्न 5.
एक फर्म ‘A’ के बारे में दिए गए निम्नलिखित आँकड़ों से उसके द्वारा किए गए बाज़ार मूल्य पर निवल मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) का परिकलन कीजिए-

(रुपए हज़ारों में)
(i) बिक्री700
(ii) स्टॉक में परिवर्तन40
(iii) मूल्यह्रस80
(iv) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर100
(v) मशीनों का क्रय250
(vi) मध्यवर्ती उत्पादों का क्रय400

हल:
बाज़ार मूल्य पर निवल मूल्यवर्धित = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन – मध्यवर्ती उत्पादों का क्रय – मूल्यह्रास
= 700 + 40 – 400 – 80
= 740 – 480
= 260 हज़ार रुपए
(नोट-बाज़ार मूल्य पर निवल मूल्यवर्धित के परिकलन में मशीनों का क्रय तथा शुद्ध अप्रत्यक्ष कर प्रासंगिक नहीं है।)

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आँकड़ों से कारक लागत पर सकल मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) का परिकलन कीजिए-

(लाख रुपए में)
(i) अचल पूँजी का उपभोग5
(ii) बिक्री100
(iii) आर्थिक सहायता2
(iv) अंतिम स्टॉक10
(v) कच्चे माल का स्टॉक50
(vi) आरंभिक स्टॉक15

हल:
MP पर सकल मूल्यवृद्धि = बिक्री + अंतिम स्टॉक – आरंभिक स्टॉक – कच्चे माल का स्टॉक
= 100 + 10 – 15-50 = 45 लाख रुपए
FC पर सकल मूल्यवृद्धि = MP पर सकल मूल्यवृद्धि + आर्थिक सहायता – अप्रत्यक्ष कर
= 45 + 2 – 10 = 37 लाख रुपए

प्रश्न 7.
निम्नलिखित आँकड़ों से कारक (साधन) लागत पर सकल मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) ज्ञात कीजि-

(लाख रुपए में)
(i) बिक्री180
(ii) किराया5
(iii) आर्थिक सहायता10
(iv) स्टॉक में परिवर्तन15
(v) कच्चे माल का क्रय100
(vi) लाभ25

हल:
कारक (साधन) लागत पर सकल मूल्यवर्धित (मल्यवृद्धि)
= बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन + आर्थिक सहायता – कच्चे माल का क्रय
= 180 + 15 + 10 – 100
= 205 – 100
= 105 लाख रुपए
(नोट-किराया और लाभ यहाँ पर प्रासंगिक नहीं हैं।)

प्रश्न 8.
निम्नलिखित आँकड़ों से कारक (साधन) लागत पर सकल मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) का परिकलन कीजिए-

(लाख रुपए में)
(i) निवल अप्रत्यक्ष कर20
(ii) मध्यवर्ती उत्पादों का क्रय120
(iii) मशीनों का क्रय300
(iv) बिक्री250
(v) अचल (स्थाइ) पूँजी का उपभोग (अवक्षय)20
(vi) स्टॉक में परिवर्तन30

हल:
कारक लागत पर सकल मूल्यवर्धित = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन-निवल अप्रत्यक्ष कर – मध्यवर्ती उत्पादों का क्रय
= 250 + 30 – 20 – 120
= 280 – 140
= 140 लाख रुपए
(नोट-कारक लागत पर सकल मूल्यवर्धित की गणना हेतु मशीनों का क्रय और अचल पूँजी का उपभोग प्रासंगिक नहीं है।)

प्रश्न 9.
निम्नलिखित आँकड़ों से MP पर निवल मूल्यवर्धित (शुद्ध मूल्यवृद्धि) की गणना कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) मूल्यहास5
(ii) बिक्री100
(iii) आरंभिक स्टॉक20
(iv) मध्यवर्ती उपभोग70
(v) उत्पादन शुल्क10
(vi) स्टॉक में परिवर्तन-10

हल:
MP पर निवल मूल्यवर्धित (शुद्ध मूल्यवृद्धि) = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन – मध्यवर्ती उपभोग – मूल्यह्रास
= 100 + (- 10) – 70 – 5
= 15 करोड़ रुपए

प्रश्न 10.
एक फर्म के निम्नलिखित आँकड़ों से कारक (साधन) लागत पर निवल मूल्यवर्धित ज्ञात कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) आर्थिक सहायता40
(ii) बिक्री1000
(iii) मूल्यहास30
(iv) निर्यात100
(v) अंतिम स्टॉक20
(vi) आरंभिक स्टॉक50
(vii) मध्यवर्ती उत्पादों का क्रय500

हल:
FC पर शुद्ध मूल्यवृद्धि = बिक्री + अंतिम स्टॉक – आरंभिक स्टॉक – मध्यवर्ती उत्पादों का क्रय + आर्थिक सहायता – मूल्यह्रास
= 1000 + 20 – 50 – 500 + 40 – 30
= 480 करोड़ रुपए
(नोट-निर्यात को बिक्री में शामिल माना गया है।)

प्रश्न 11.
एक फर्म से संबंधित निम्नलिखित आँकड़ों से उसकी कारक लागत पर निवल मूल्यवर्धित (शुद्ध मूल्यवृद्धि) की गणना कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) आर्थिक सहायता40
(ii) बिक्री800
(iii) मूल्यहास30
(iv) निर्यात100
(v) अंतिम स्टॉक20
(vi) प्रारंभिक स्टॉक50
(vii) मध्यवर्ती क्रय500
(viii) स्व-उपभोग के लिए मशीनरी का क्रय200
(ix) कच्चे माल का आयात60

हल:
कारक लागत पर निवल मूल्यवर्धित = बिक्री + अंतिम स्टॉक – प्रारंभिक स्टॉक – मध्यवर्ती क्रय – मूल्यह्रास + आर्थिक सहायता
= 800 + 20-50 – 500 – 30 + 40
= 860 – 580
= 280 करोड़ रुपए

नोट-

  • निर्यात को बिक्री में शामिल मान लिया गया है।
  • कच्चे माल का आयात मध्यवर्ती क्रय में शामिल मान लिया गया है।
  • स्व-उपभोग के लिए मशीनरी का क्रय शुद्ध मूल्यवर्धित की गणना के लिए प्रासंगिक नहीं है।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित आँकड़ों से उत्पादन के मूल्य (Value of output) का परिकलन कीजिए-

(लाख रुपए में)
(i) कारक लागत पर निवल मूल्यवर्धित100
(ii) मध्यवर्ती लागत75
(iii) उत्पादक शुल्क20
(iv) आर्थिक सहायता5
(v) मूल्यहास10

हल:
उत्पादन का मूल्य = कारक लागत पर निवल मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) + मध्यवर्ती लागत + उत्पादक शुल्क- आर्थिक सहायता + मूल्यह्रास
= 100 + 75 + 20 – 5 + 10
= 200 लाख रुपए

प्रश्न 13.
निम्नलिखित आँकड़ों से उत्पादन के मूल्य (Value of output) का परिकलन कीजिए-

(लाख रुपए में)
(i) कारक (साधन) लागत पर शुद्ध मूल्यवर्धित200
(ii) मध्यवर्ती उपभोग150
(iii) उत्पादन शुल्क40
(iv) आर्थिक सहायता10
(v) मूल्यहास20

हल:
उत्पादन का मूल्य = कारक लागत पर शुद्ध मूल्यवर्धित + मध्यवर्ती उपभोग + उत्पादन शुल्क- आर्थिक सहायता + मूल्यह्रास
= 200 + 150+ 40- 10 + 20 = 400 लाख रुपए
(उत्पादन के मूल्य का अर्थ होता है ‘बाज़ार कीमत पर सकल उत्पादन का मूल्य’।)

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 14.
निम्नलिखित आँकड़ों से मध्यवर्ती उपभोग का परिकलन कीजिए

(लाख रुपए में)
(i) उत्पादन का मूल्य200
(ii) कारक लागत पर निवल मूल्यवर्धित80
(iii) बिक्री कर15
(iv) आर्थिक सहायता5
(v) मूल्यहास20

हल:
सकल मूल्यवृद्धि = उत्पादन का मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग
मध्यवर्ती उपभोग = 200 – (80 + 20 + 15-5) = 90 लाख रुपए

प्रश्न 15.
निम्नलिखित आँकड़ों से बिक्री का परिकलन कीजिए

(लाख रुपए में)
(i) कारक लागत पर निवल मूल्यवर्धित300
(ii) मध्यक्ती उपभोग200
(iii) अप्रत्यक्ष कर20
(iv) मूल्यहास30
(v) स्टॉक में परिवर्तन-50

हल:
MP पर सकल मूल्यवर्धित = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन – मध्यवर्ती उपभोग
बिक्री = (300 + 30+ 20)- (-50) + 200
= 600 लाख रुपए

प्रश्न 16.
निम्नलिखित आँकड़ों से बिक्री (Sales) का परिकलन कीजिए

(लाख रुपए में)
(i) कारक लागत पर निवल मूल्यवर्धित600
(ii) मध्यवर्ती उपभोग400
(iii) अप्रत्यक्ष कर40
(iv) मूल्यहास60
(v) स्टॉक में परिवर्तन-100

हल:
बाज़ार कीमत पर सकल मूल्यवर्धित = कारक लागत पर शुद्ध मूल्यवर्धित + अप्रत्यक्ष कर + मूल्यह्रास
= 600 + 40 + 60 = 700
बिक्री = 700 + 400 – (-100) = 700 + 400 + 100 = 1200 लाख रुपए

प्रश्न 17.
निम्नलिखित आँकड़ों से कारक (साधन) लागत पर निवल मूल्यवर्धित का परिकलन कीजिए

(लाख रुपए में)
(i) मूल्यहास20
(ii) मध्यवर्ती लागत90
(iii) आर्थिक सहायता5
(iv) बिक्री140
(v) निर्यात7
(vi) स्टॉक में परिवर्तन– 10
(vii) कच्चे माल का आयात3

हल:
FC पर निवल मूल्यवर्धित = बिक्री– मध्यवर्ती लागत + स्टॉक में परिवर्तन – मूल्यह्रास + आर्थिक सहायता
= 140 – 90 + (- 10) – 20 + 5
= 25 लाख रुपए
(नोट-निर्यात को बिक्री में और कच्चे माल के आयात को मध्यवर्ती लागत में शामिल माना गया है।)

प्रश्न 18.
निम्नलिखित आँकड़ों के आधार पर फर्म A तथा फर्म B द्वारा की गई मूल्यवर्धित का आकलन कीजिए-

(लाख रुपए में)
(i) फर्म A द्वारा शेष विश्व से खरीद30
(ii) फर्म B की बिक्री90
(iii) फर्म A द्वारा B से खरीद50
(iv) फर्म A की बिक्री110
(v) फर्म A द्वारा निर्यात30
(vi) फर्म A का आरंभिक स्टॉक35
(vii) फर्म A का अंतिम स्टॉक20
(vii) फर्म B का आरंभिक स्टॉक30
(ix) फर्म B का वास्तविक स्टॉक20
(x) फर्म B द्वारा फर्म A से खरीद50

हल:
फर्म A का उत्पादन मूल्य = बिक्री + निर्यात + स्टॉक में परिवर्तन (अंतिम स्टॉक – आरंभिक स्टॉक)
= 110 + 30 + 20 – 35
= 160 – 35
= 125 लाख रुपए।

फर्म B का उत्पादन मूल्य = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन (अंतिम स्टॉक – आरंभिक स्टॉक)
= 90 + 20 – 30
= 110 – 30
= 80 लाख रुपए।

फर्म A द्वारा मूल्यवृद्धि = उत्पादन का मूल्य – क्रय – आयात
= 125 – 50 – 30
= 125 – 80
= 45 लाख रुपए।

फर्म B द्वारा मूल्यवृद्धि = उत्पादन का मूल्य – क्रय
= 80 – 50
= 30 लाख रुपए

प्रश्न 19.
निम्नलिखित आँकड़ों से फर्म X फर्म तथा Y द्वारा की गई मूल्यवर्धित ज्ञात कीजिए

(लाख रुपए में)
(i) फर्म x का अंतिम स्टॉक20
(ii) फर्म Y का अंतिम स्टॉक15
(iii) फर्म Y का आरंभिक स्टॉक10
(iv) फर्म x का आरंभिक स्टॉक5
(v) फर्म X द्वारा बिक्री300
(vi) फर्म X द्वारा फर्म Y से क्रय100
(vii) फर्म Y द्वारा फर्म x से क्रय80
(viii) फर्म Y द्वारा बिक्री250
(ix) फर्म x द्वारा कच्चे माल का आयात50
(x) फर्म Y द्वारा निर्यात30

हल:
फर्म X का उत्पादन मूल्य = फर्म X द्वारा बिक्री + फर्म X का अंतिम स्टॉक – फर्म X का आरंभिक स्टॉक
= 300 + 20 – 5
= 320 – 5
= 315 लाख रुपए

फर्म X की मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) = फर्म X के उत्पादन का मूल्य – फर्म X द्वारा फर्म Y से क्रय – फर्म X द्वारा कच्चे माल का आयात
= 315 – 100 – 50
= 315 – 150
= 165 लाख रुपए

फर्म Y के उत्पादन का मूल्य = फर्म Y द्वारा बिक्री + फर्म Y का अंतिम स्टॉक – फर्म Y का आरंभिक स्टॉक + फर्म Y द्वारा निर्यात
= 250 + 15 – 10+ 30
= 295 – 10
= 285 लाख रुपए

फर्म Y की मूल्यवर्धित (मूल्यवृद्धि) = फर्म Y के उत्पादन का मूल्य – फर्म Y द्वारा फर्म X से क्रय
= 285 – 80
= 205 लाख रुपए

प्रश्न 20.
निम्नलिखित आँकड़ों से सकल अचल पूँजी निर्माण की गणना कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) निजी अंतिम उपभोग व्यय1,000
(ii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय500
(iii) निवल निर्यात-50
(iv) विदेशों से निवल कारक (साधन) आय20
(v) बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद2,500
(vi) प्रारंभिक स्टॉक300
(vii) अंतिम स्टॉक200

हल:
सकल अचल पूँजी निर्माण = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद – निजी अंतिम उपभोग व्यय – सरकारी अंतिम उपभोग व्यय – निवल निर्यात – अंतिम स्टॉक + प्रारंभिक स्टॉक
= 2,500 – 1,000-500 – (-)50 – 200 + 300
= 2,850 – 1,700
= 1,150 करोड़ रुपए
(नोट-विदेशों से निवल कारक आय यहाँ प्रासंगिक नहीं है।)

III. आय विधि पर आधारित संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आँकड़ों के आधार पर ज्ञात कीजिए-
(i) घरेलू आय, (ii) राष्ट्रीय आय, (ii) वैयक्तिक आय, (iv) वैयक्तिक प्रयोज्य आय।

(रुपए में)
(i) लगान5,000
(ii) मज़दूरी30,000
(iii) ब्याज8,000
(iv) अधिशेष15,000
(v) अवितरित लाभ3,000
(vi) हस्तांतरण भुगतान (सरकार द्वारा)1,000
(vii) लाभ कर2,000
(viii) लाभांश12,000
(ix) मिश्रित आय4,000
(x) वैयक्तिक कर1,500
(xi) विदेशों से शुद्ध परिसंपत्ति आय7,000
(xii) उपहार व प्रेषणाएँ (विदेशों से)2,500

हल:
(i) घरेलू आय = लगान + मज़दूरी + ब्याज + अधिशेष + लाभ कर + लाभांश + मिश्रित आय + अवितरित लाभ
= 5,000 + 30,000 + 8,000 + 15,000 + 2,000 + 12,000 + 4,000 + 3,000
= 79,000 रुपए

(ii) राष्ट्रीय आय = घरेलू आय + शुद्ध विदेशी परिसंपत्ति आय
= 79,000 + 7,000 = 86,000 रुपए

(iii) वैयक्तिक आय = राष्ट्रीय आय – अधिशेष – लाभ कर – अवितरित लाभ + अंतरण भुगतान + उपहार व प्रेषणाएँ
= 86,000 – 15,000 – 2,000 – 3,000 + 1,000 + 2,500
= 69,500 रुपए

(iv) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय – वैयक्तिक कर
= 69,500 – 1,500
= 68,000 रुपए

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आँकड़ों से ज्ञात कीजिए-(क) बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP at MP), (ख) निजी आय, (ग) वैयक्तिक प्रयोज्य आय।

(करोड़ रुपाए में)
(i) कारक लागत पर सकल घरेलू उत्पाद2,570
(ii) अप्रत्यक्ष कर850
(iii) आर्थिक सहायता125
(iv) विदेशों से निवल कारक आय-5
(v) गैर-विभागीय सार्वजनिक उद्यमों की बचत15
(vi) सरकारी विभागों को उद्यमवृत्ति व संपत्ति से आय100
(vii) अचल पूँजी का उपभोग290
(viii) सार्वजनिक ऋण पर ब्याज60
(ix) सरकार से वर्तमान (चालू) हस्तांतरण245
(x) शेष विश्व से अन्य वर्तमान हस्तांतरण310
(xi) निगम कर190
(xii) निजी निगमित क्षेत्र की बचत85
(xiii) परिवारों द्वारा दिए गए प्रत्यक्ष कर500

हल:
(क) NNP at MP (Set I) = (i) + (ii) – (iii) + (iv) – (vii)
= 2570 + 850 – 125 + (- 5) – 290
= 3,000 करोड़ रुपए

(ख) निजी आय (Set I) = NNP at MP – (ii) + (iii) – (v) – (vi) + (viii) + (ix) + (x)
= 3000 – 850 + 125 – 15 – 100 + 60 + 245 + 310 = 2,775 करोड़ रुपए

(ग) वैयक्तिक प्रयोज्य आय (Set I) = निजी आय – (xi) – (xii) – (xiii)
= 2775- 190 – 85-500 = 2,000 करोड़ रुपए

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 3.
निम्न आँकड़ों से राष्ट्रीय आय ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) मजदूरी व वेतन150
(ii) सामाजिक सुरक्षा में मालिकों का योगदान25
(iii) लाभ40
(iv) ब्याज25
(v) अप्रत्यक्ष कर30
(vi) अनुदान10
(vii) किराया12
(viii) मिश्रित आय40
(ix) घिसावट व्यय35

हल:
राष्ट्रीय आय = मजदूरी व वेतन + सामाजिक सुरक्षा में मालिकों का योगदान + लाभ + ब्याज + अप्रत्यक्ष कर + अनुदान + किराया + मिश्रित आय – घिसावट व्यय
= 150 + 25 + 40 + 25 + 30 + 10 + 12 + 40 – 35
= 297 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आँकड़ों से राष्ट्रीय आय का परिकलन कीजिए-

(i) लगान(₹ करोड़ रुपए में)
(ii) ब्याज80
(iii) लाभ100
(iv) लाभ कर210
(v) कर्मचारियों का सामाजिक सुरक्षा में अंशदान30
(vi) स्वनियोजितों की मिश्रित आय25
(vii) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर250
(viii) नियोजकों का सामाजिक सुरक्षा में अंशदान60
(ix) कर्मचारियों का पारिश्रमिक50
(x) विदेशों से शद्ध कारक आय500
(i) लगान-20

हल:
राष्ट्रीय आय = लगान + ब्याज + लाभ + स्वनियोजितों की मिश्रित आय+ कर्मचारियों का पारिश्रमिक + विदेशों से शुद्ध कारक आय
= 80 + 100 + 210 + 250 + 500 + (- 20)
= 1120 करोड़ रुपए

IV. व्यय विधि पर आधारित संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित सूचना की सहायता से बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) की गणना कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) निजी उपभोग व्यय50,000
(ii) सरकारी उपभोग व्यय15,000
(iii) सकल स्थाई पूँजी निर्माण10,000
(iv) स्कंध (स्टॉक) में वृद्धि2,000
(v) वस्तुओं व सेवाओं का निर्यात5,000
(vi) वस्तुओं व सेवाओं का आयात7,000
(vii) पूँजी उपभोग भत्ता6,500
(viii) शुद्ध (निवल) अप्रत्यक्ष कर5,000

हल:
GDPMP = निजी उपभोग व्यय + सरकारी उपभोग व्यय + सकल स्थाई पूँजी निर्माण + स्कंध (स्टॉक) में वृद्धि + वस्तुओं व सेवाओं का निर्यात – वस्तुओं व सेवाओं का आयात
= 50,000 + 15,000 + 10,000 + 2,000 + 5,000 – 7,000
GDPMP = 75,000 करोड़ रुपए

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आँकड़ों के आधार पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) निकालिए

परिकल्पित आँकड़े (रुपए में)
(i) वैयक्तिक उपभोग व्यय45,000
(ii) सरकारी उपभोग व्यय5,000
(iii) सकल घरेलू स्थाई निवेश5,000
(iv) स्टॉक में वृद्धि1,000
(v) वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात6,000
(vi) वस्तुओं और सेवाओं का आयात7,000
(vii) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर3,500
(viii) मूल्यहास4,500

हल:
GNP = वैयक्तिक उपभोग व्यय + सरकारी उपभोग व्यय + सकल घरेलू स्थाई निवेश + स्टॉक में वृद्धि + वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात – वस्तुओं और सेवाओं का आयात
= 45,000 + 5,000 + 5,000 + 1,000 + 6,000 – 7,000
= 55,000 रुपए।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित व्यवहारों से शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP) मालूम कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) उपभोग पर पारिवारिक व्यय1,00,000
(ii) सरकारी उपभोग व्यय12,500
(iii) कुल पूँजी निर्माण25,000
(iv) मूल्यहास6,000
(v) निर्यात6,000
(vi) आयात9,000
(vii) विदेशों से अर्जित शुद्ध आय750

हल:
NNP = उपभोग पर पारिवारिक व्यय + सरकारी उपभोग व्यय कुल पूँजी निर्माण- मूल्यह्रास + निर्यात – आयात + विदेशों से अर्जित शुद्ध आय
= 1,00,000 + 12,500 + 25,000 – 6,000 + 6,000 – 9,000 + 750
= 1,29,250 करोड़ रुपए

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) और (ख) साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) निकालिए

(करोड़ रुपए में)
(i) सकल घरेलू पूँजी निर्माण94
(ii) शुद्ध निर्यात-6
(iii) निजी अंतिम उपभोग व्यय260
(iv) विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय-3
(v) अचल पूँजी का उपभोग39
(vi) स्टॉक में शुद्ध परिवर्तन11
(vii) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर43
(viii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय47

हल:
(क) GNPMP = सकल घरेलू पूँजी निर्माण + शुद्ध निर्यात + निजी अंतिम उपभोग व्यय + विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय
= 94+ (- 6) + 260 + (- 3) + 47 = 392 करोड़ रुपए

(ख) NNPFC = GNPMP – (v) – (vii)
= 392 – 39 – 43 = 310 करोड़ रुपए

प्रश्न 5.
निम्नलिखित आँकड़ों की सहायता से बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP at MP) ज्ञात कीजिए

(करोड़ रुपए में)
Set ISet IISet III
(i) अचल पूँजी का उपभोग605030
(ii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय200180100
(iii) विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक साधन आय-10-5-10
(iv) निजी अंतिम उपभोग व्यय800700400
(v) निर्यात505025
(vi) प्रारंभिक स्टॉक302015
(vii) आयात606035
(viii) अंतिम स्टॉक201510
(ix) सकल पूँजी निर्माण230200120

हल:
GNP at MP-
Set I = (ii) + (iv) + (v) – (vi)- (vii) + (viii) + (ix) + (ii)
= 200 + 800 + 50 – 30 – 60 + 20 + 230 + (-10)
= 1200 करोड़ रुपए

Set II = (ii) + (iv) + (v)- (vi) – (vii) + (viii) + (ix) + (iii)
= 180 + 700 + 50 – 20-60 + 15 + 200 + (-5)
= 1060 करोड़ रुपए

Set III = (ii) + (iv) + (v)- (vi)- (vii) + (viii) + (ix) + (iii)
= 100 + 400 + 25 – 15 – 35 + 10 + 120 + (- 10)
= 595 करोड़ रुपए

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आँकड़ों की सहायता से बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद GDP at MP ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
Set ISet IISet III
(i) शुद्ध आयात-30-10-15
(ii) निजी अंतिम उपभोग व्यय400500300
(iii) अनुदान5105
(iv) शुद्ध घरेलू अचल पूँजी निर्माण5010030
(v) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय10015070
(vi) विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय-10-15-20
(vii) अंतिम स्टॉक102010
(viii) अचल (स्थाई) पूँजी का उपभोग405040
(ix) अप्रत्यक्ष कर556050
(x) आरंभिक स्टॉक203025

हल:
GDP at MP = (ii) + (v) + (iv) + (viii) + (vii) – (x) + (i)
Set I = 400 + 100 + 50 + 40 + 10 – 20 + (-30) = 550 करोड़ रुपए
Set II = 500 + 150 + 100 + 50 + 20-30 + (-10) = 780 करोड़ रुपए
Set III = 300 + 70 + 30+ 40 + 10–25 + (- 15) = 410 करोड़ रुपए

प्रश्न 7.
निम्नलिखित आँकड़ों से राष्ट्रीय आय (NNPFC) ज्ञात कीजिए
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 7
हल:
(Set I) GDPMP = 500 + (- 5) + सरकारी उपभोग व्यय (100 + 10 + 100) + 60 + 10
= 775 करोड़ रुपए
NNPFC = 775 – 10 – 50 + (-10) = 705 करोड़ रुपए

(Set II) GDPMP= 50 + 750 + (- 25) + 50 + 100 + 300 – 100
= 1125 करोड़ रुपए
NNPFC = 1125 – 25 – 100 + (- 20) = 980 करोड़ रुपए

(Set III) GDPMP = 400 + 30-40+ 30+ 200 + 100 + 20 (मूल्यह्रास)
= 740 करोड़ रुपए

NNPFC = 740 – 20 + 20 – 40 + (- 20) = 680 करोड़ रुपए

प्रश्न 8.
निम्नलिखित आँकड़ों से राष्ट्रीय आय (NNPFC) निकालिए

(करोड़ रुपए में)
Set ISet II
(i) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय100150
(ii) प्रारंभिक स्टॉक5080
(iii) सकल अचल पूँजी निर्माण120130
(iv) विदेर्शों से शुद्ध कारक आय-10-10
(v) अप्रत्यक्ष कर6070
(vi) अंतिम स्टॉक80100
(vii) अनुदान1010
(viii) लगान, ब्याज और लाभ350500
(ix) अचल पूँजी का उपभोग2020
(x) निजी अंतिम उपभोग व्यय400600
(xi) निर्यात5060
(xii) आयात4070

हल:
(Set I) GDPMP = (i) + (vi) – (ii) + (iii) + (x) + (xi) – (xii)
= 100 + 80 – 50 + 120 + 400 + 50 – 40 = 660 करोड़ रुपए
राष्ट्रीय आय (NNPFC) = GDPMP – (ix) + (iv) – (v) + (vii)
= 660 – 20 + (- 10) – 60 + 10
= 580 करोड़ रुपए

(Set II) GDPMP = (i) + (vi) – (ii) + (iii) + (x) + (xi) – (xii)
= 150 + 100 – 80 + 130 + 600 + 60 – 70 = 890 करोड़ रुपए

राष्ट्रीय आय (NNPFC) = GDPMP – (ix) + (iv) – (v) + (vii)
= 890 – 20 + (-10)- 70 + 10 = 800 करोड़ रुपए

प्रश्न 9.
निम्नलिखित आँकड़ों से कारक लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPFC) निकालिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) निवल घरेलू पूँजी निर्माण350
(ii) अंतिम स्टॉक100
(iii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय200
(iv) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर50
(v) आरंभिक स्टॉक60
(vi) अचल पूँजी का उपभोग50
(vii) शुद्ध निर्यात-10
(viii) निजी अंतिम उपभोग व्यय1500
(ix) आयात20
(x) विदेशों से शुद्ध कारक आय-10

हल:
GDP at MP = निवल घरेलू पूँजी निर्माण + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + अचल पूंजी का उपभोग + शुद्ध निर्यात + निजी अंतिम उपभोग व्यय
= 350 + 200 + 50 + (-10) + 1500 = 2090 करोड़ रुपए
GNP at FC = GDP at MP – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + विदेशों से शुद्ध कारक आय
= 2090 – 50 + (-10) = 2030 करोड़ रुपए

प्रश्न 10.
निम्नलिखित आँकड़ों से NDP at FC का परिकलन कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) घरेलू बाज़ार में निजी अंतिम उपभोग व्यय400
(ii) सकल घरेलू पूँजी निर्माण100
(iii) स्टॉक में परिवर्तन20
(iv) निवासी परिवारों द्वारा विदेशों से प्रत्यक्ष क्रय50
(v) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर60
(vi) विदेशों से निवल (शुद्ध) कारक आय10
(vii) घरेलू बाज़ार में गैर-निवासियों द्वारा प्रत्यक्ष क्रय150
(viii) शुद्ध निर्यात-20
(ix) अचल पूँजी का उपभोग20
(x) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय100

हल:
GDP at MP = घरेलू बाजार में निजी अंतिम उपभोग व्यय + सकल घरेलू पूँजी निर्माण + निवासी परिवारों द्वारा विदेशों से प्रत्यक्ष क्रय – घरेलू बाज़ार में गैर निवासियों द्वारा प्रत्यक्ष क्रय + शुद्ध निर्यात + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय
= 400 + 100 + 50 – 150 + (-20) + 100
= 480 करोड़ रुपए
NDP at FC = GDP at MP – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर – अचल पूंजी का उपभोग
= 480 – 60 – 20 = 400 करोड़ रुपए।

V. मूल्यवर्धित विधि, आय विधि, व्यय विधि पर आधारित मिश्रित संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) व्यय विधि तथा (ख) आय विधि द्वारा बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP at MP) ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) शुद्ध पूँजी निर्माण200
(ii) निजी अंतिम उपभोग व्यय1,000
(iii) प्रचालन अधिशेष360
(iv) मज़दूरी तथा वेतन900
(v) किराया100
(vi) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय300
(vii) अचल पूँजी का उपभोग50
(viii) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर200
(ix) विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय-10
(x) नियोजकों का सामाजिक सुरक्षा में अंशदान50
(xi) शुद्ध निर्यात10

हल:
(क) GNP at MP (व्यय विधि द्वारा) = शुद्ध पूँजी निर्माण + निजी अंतिम उपभोग व्यय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + अचल पूँजी का उपभोग + विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय + शुद्ध निर्यात
= 200 + 1000 + 300 + 50 + (-10) + 10
= 1550 करोड़ रुपए

(ख) GNP at MP (आय विधि द्वारा) = प्रचालन अधिशेष + मजदूरी तथा वेतन + अचल पूँजी का उपभोग + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय + नियोजकों का सामाजिक सुरक्षा में अंशदान
= 360 + 900 + 50 + 200 + (-10)+ 50
= 1550 करोड़ रुपए

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा GNP at MP की गणना कीजिए–

(करोड़ रुपए में)
(i) शुद्ध निर्यात10
(ii) किराया20
(iii) निजी अंतिम उपभोग व्यय400
(iv) ब्याज30
(v) लाभांश45
(vi) अवितरित लाभ5
(vii) निगम कर10
(viii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय100
(ix) शुद्ध घरेलू पूँजी निर्माण50
(x) कर्मचारियों का पारिश्रमिक400
(xi) अचल पूँजी का उपभोग10
(xii) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर50
(xiii) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय-10

हल:
(क) GNP at MP (आय विधि द्वारा) = किराया + ब्याज + लाभांश + अवतरित लाभ + निगम कर + कर्मचारियों का पारिश्रमिक + अचल पूँजी का उपभोग+ शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + विदेशों से प्राप्त साधन आय
= 20 + 30 + 45 + 5 + 10 + 400 + 10 + 50+ (-10)
= 560 करोड़ रुपए

(ख) GNP at MP (व्यय विधि द्वारा) = शुद्ध निर्यात + निजी अंतिम उपभोग व्यय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + शुद्ध घरेलू पूँजी निर्माण + अचल पूँजी का उपभोग + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय
= 10 + 400 + 100 + 50 + 10 + (-10)
= 560 करोड़ रुपए

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 3.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय और (ख) व्यय विधियों द्वारा राष्ट्रीय आय (NI) ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) मज़दूरी और वेतन500
(ii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय120
(iii) रॉयल्टी20
(iv) ब्याज40
(v) पारिवारिक अंतिम उपभोग व्यय600
(vi) स्टॉक में परिवर्तन10
(vii) अप्रत्यक्ष कर100
(viii) किराया50
(ix) परिवारों की सेवारत निजी अलाभकारी संस्थाओं का अंतिम उपभोग व्यय30
(x) शुद्ध घरेलू अचल पूँजी निर्माण60
(xi) कर पश्चात लाभ100
(xii) निगम कर20
(xiii) शुद्ध निर्यात-20
(xiv) आर्थिक सहायता30
(xv) विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय-5

हल:
(क) राष्ट्रीय आय (आय विधि द्वारा) = मज़दूरी और वेतन + रॉयल्टी + ब्याज + किराया + अप्रत्यक्ष कर + निगम कर + विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय
= 500 + 20 + 40 + 50 + 100 + 20 + (- 5)
= 725 करोड़ रुपए

(ख) राष्ट्रीय आय (व्यय विधि द्वारा) = सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + पारिवारिक अंतिम उपभोग व्यय + स्टॉक में परिवर्तन-अप्रत्यक्ष कर + परिवारों की सेवारत निजी अलाभकारी संस्थाओं का अंतिम उपभोग व्यय + शुद्ध घरेलू अचल पूँजी निर्माण + शुद्ध निर्यात + आर्थिक सहायता + विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय
= 120 + 600 + 10 — 100 + 30 + 60 + (-20) + 30 + (-5)
= 725 करोड़ रुपए

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा कारक लागत पर GNP (GNPFC) का परिकलन कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) मज़दूरी और वेतन800
(ii) स्वनियोजितों की मिश्रित आय160
(iii) प्रचालन अधिशेष600
(iv) अवितरित लाभ150
(v) सकल पूँजी निर्माण330
(vi) स्टॉक में परिवर्तन25
(vii) निवल पूँजी निर्माण300
(viii) सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में नियोजर्कों का अंशदान100
(ix) विदेशों से शुद्ध कारक आय-20
(x) निर्यात30
(xi) आयात60
(xii) निजी अंतिम उपभोग व्यय1000
(xiii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय450
(xiv) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर60
(xv) सरकार द्वारा दिया गया कर्मचारियों का पारिश्रमिक75

हल:
(क) GNP at FC (आय विधि द्वारा) मज़दूरी और वेतन + स्वनियोजितों की मिश्रित आय + प्रचालन अधिशेष + सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में नियोजकों का अंशदान + विदेशों से शुद्ध कारक आय + मूल्यह्रास (सकल पूँजी निर्माण-निवल पूँजी निर्माण)
= 800 + 160 + 600 + 100 + (- 20) + 30
= 1670 करोड़ रुपए

(ख) GNP at FC (व्यय विधि द्वारा) = सकल पूँजी निर्माण + विदेशों से शुद्ध कारक आय + निर्यात – आयात + निजी अंतिम उपभोग व्यय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
= 330 + (-20)+ 30 – 60 + 1000 + 450-60 = 1670 करोड़ रुपए

प्रश्न 5.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा बाज़ार मूल्य पर NNP (NNPMP) का परिकलन कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) सरकार द्वारा दिया गया कर्मचारियों का पारिश्रमिक40
(ii) स्वनियोजितों की मिश्रित आय50
(iii) मज़दूरी और वेतन400
(iv) नियोजकों का सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में अंशदान80
(v) प्रचालन अधिशेष300
(vi) अप्रत्यक्ष कर30
(vii) आर्थिक सहायता10
(viii) शुद्ध पूँजी निर्माण150
(ix) विदेशों से शुद्ध साधन आय10
(x) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय230
(xi) निजी अंतिम उपभोग व्यय500
(xii) निर्यात15
(xiii) आयात45
(xiv) अचल (स्थाइ) पूँजी का उपभोग20
(xv) लाभ130

हल:
(क) NNP at MP (आय विधि द्वारा) = स्वनियोजितों की मिश्रित आय + मजदूरी और वेतन + नियोजितों का सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में अंशदान + प्रचालन अधिशेष + अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता + विदेशों से निवल साधन आय
= 50 + 400 + 80 + 300 + 30 – 10 + (- 10)
= 840 करोड़ रुपए

(ख) NNP at MP (व्यय विधि द्वारा) = शुद्ध पूँजी निर्माण + विदेशों से शुद्ध साधन आय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + निजी अंतिम उपभोग व्यय + निर्यात – आयात
= 150 + (-10) + 230 + 500 + 15 – 45 = 840 करोड़ रुपए

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा बाज़ार मूल्य पर GNP (GNPMP) का परिकलन कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय250
(ii) स्टॉक में परिवर्तन65
(iii) निवल घरेलू पूँजी निर्माण150
(iv) ब्याज90
(v) लाभ210
(vi) निगम कर50
(vii) लगान100
(viii) विदेशों से कारक आय20
(ix) अप्रत्यक्ष कर55
(x) विदेशों को कारक आय40
(xi) निर्यात60
(xii) आर्थिक सहायता25
(xiii) आयात80
(xiv) अचल पूँजी का उपभोग20
(xv) निजी अंतिम उपभोग व्यय500
(xvi) कर्मचारियों का पारिश्रमिक450
(xvii) कर्मचारियों को मुफ़्त आवास का किराया मूल्य40

हल:
(क) GNP at MP (आय विधि द्वारा) = ब्याज + लाभ + लगान + विदेशों से साधन आय+ अप्रत्यक्ष कर-विदेशों को साधन आय – आर्थिक सहायता + अर मी का उपभोग + कर्मचारियों का पारिश्रमिक
= 90 + 210 + 100 + 20 + 55 – 40 – 25 + 20 + 450
= 880 करोड़ रुपए

(ख) GNP at MP (व्यय विधि द्वारा) = सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + निवल घरेलू पूँजी निर्माण + विदेशों से कारक आय–विदेशों को कारक आय + निर्यात – आयात + अचल पूँजी का उपभोग+ निजी अंतिम उपभोग व्यय
= 250 + 150 + 20 – 40 + 60 – 80 + 20 + 500 = 880 करोड़ रुपए

प्रश्न 7.
निम्नलिखित आँकड़ों से GNP का आय विधि और व्यय विधि द्वारा परिकलन कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) लगान40
(ii) निजी अंतिम उपभोग व्यय800
(iii) शुद्ध निर्यात20
(iv) ब्याज60
(v) लाभ120
(vi) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय200
(vii) शुद्ध घरेलू पूँजी निर्माण100
(viii) कर्मचारियों का पारिश्रमिक800
(ix) अचल पूँजी का उपभोग20
(x) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर100
(xi) विदेशों से शुद्ध साधन आय-20

हल:
(क) GNP at MP (आय विधि द्वारा) = लगान + ब्याज + लाभ + कर्मचारियों का पारिश्रमिक + अचल पूँजी का उपभोग + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + विदेशों से शुद्ध कारक आय
= 40 + 60 + 120 + 800 + 20 + 100 + (- 20) = 1120 करोड़ रुपए

(ख) GNP at MP (व्यय विधि द्वारा) = निजी अंतिम उपभोग व्यय + कुल निर्यात + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + शुद्ध घरेलू पूँजी निर्माण + अचल पूँजी का उपभोग + विदेशों से शुद्ध कारक आय
= 800 + 20 + 200 + 100 + 20 + (-20)
= 1120 करोड़ रुपए

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 8.
निम्नलिखित आँकड़ों से सकल राष्ट्रीय आय (NI) का (क) आय विधि, (ख) व्यय विधि द्वारा परिकलन कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) विदेशों से साधन आय10
(ii) कर्मचारियों का पारिश्रमिक150
(iii) शुद्ध घरेलू पूँजी निर्माण50
(iv) निजी अंतिम उपभोग व्यय220
(v) विदेशों को साधन आय15
(vi) स्टॉक में परिवर्तन15
(vii) सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में नियोजकों का अंशदान10
(viii) स्थाई पूँजी का उपभोग15
(ix) ब्याज40
(x) निर्यात20
(xi) आयात25
(xii) अप्रत्यक्ष कर30
(xiii) आर्थिक सहायता10
(xiv) लगान40
(xv) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय85
(xvi) लाभ100

हल:
(क) सकल राष्ट्रीय आय (आय विधि द्वारा) = NNP at FC + मूल्यह्रास
= 10 + 150 – 15 + 15 + 40+ 40+ 100
= 340 करोड़ रुपए

(ख) सकल राष्ट्रीय आय (व्यय विधि द्वारा) = GDP at MP – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + NFIA
= 10+ 50 + 220 – 15 + 15+ 20 – 25 – 30 + 10 + 85
= 340 करोड़ रुपए

प्रश्न 9.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा बाज़ार मूल्य पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
Set ISet IISet III
(i) स्वनियोजितों की मिश्रित आय400300500
(ii) कर्मचारियों का पारिश्रमिक500400600
(iii) निजी अंतिम उपभोग व्यय9007001100
(iv) विदेशों से शुद्ध कारक आय-20-10-15
(v) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर10060150
(vi) अचल (स्थाइ) पूँजी का उपभोग (मूल्यह्मस)120100115
(vii) शुद्ध घरेलू पूँजी निर्माण280120375
(viii) निवल शुद्ध निर्यात-30-10-25
(ix) लाभ350250450
(x) किराया10080200
(xi) ब्याज15070250
(xii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय450350700

हल:
(क) आय विधि द्वारा GNPMP =
Set I = स्वनियोजितों की मिश्रित आय + कर्मचारियों का पारिश्रमिक + विदेशों से शुद्ध साधन आय + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + अचल (स्थाई) पूँजी का उपभोग (मूल्यह्रास) + लाभ + किराया + ब्याज
= 400 + 500 + (-20) + 100 + 120 + 350 + 100 + 150 = 1700 करोड़ रुपए
Set II = 300 + 400 + (- 10) + 60 + 100 + 250 + 80 + 70 = 1250 करोड़ रुपए
Set III = 500 + 600 + (- 15) + 150 + 115 + 450 + 200 + 250 = 2250 करोड़ रुपए

(ख) व्यय विधि द्वारा GNPMP =
Set I = निजी अंतिम उपभोग व्यय + विदेशों से शुद्ध साधन आय + अचल (स्थाई) पूँजी का उपयोग (मूल्यह्रास) + शुद्ध घरेलू पूँजी निर्माण + शुद्ध निर्यात + सरकारी अंतिम उपयोग व्यय
900 + (-20) + 120 + 280 + (-30) + 450 = 1700 करोड़ रुपए

Set II = 700 + (-10) + 100 + 120 + (-10) + 350 = 1250 करोड़ रुपए

Set III = 1100 + (- 15) + 115 + 375 + (-25) + 700 = 2250 करोड़ रुपए

प्रश्न 10.
निम्नलिखित आँकड़ों की सहायता से आय विधि द्वारा कारक (साधन) लागत पर राष्ट्रीय आय (NNPFC) ज्ञात कीजिए-
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 8
हल:
आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय = घरेलू आय + शुद्ध विदेशी कारक आय
Set I = कर्मचारियों का पारिश्रमिक + विदेशों से शुद्ध साधन आय + लाभ + किराया + ब्याज + स्वनियोजित की मिश्रित आय
= 1200 + (-20) + 800 + 400 + 620 + 700 = 3700 करोड़ रुपए
Set II = 600 + (-10) + 400 + 200 + 310 + 350 = 1850 करोड़ रुपए
Set III = 500 + (-10) + 220 + 90 + 100 + 400 = 1300 करोड़ रुपए

प्रश्न 11.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय (NI) ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) निजी अंतिम उपभोग व्यय2000
(ii) सकल पूँजी निर्माण400
(iii) स्टॉक में परिवर्तन50
(iv) कर्मचारियों का पारिश्रमिक1900
(v) किराया200
(vi) ब्याज150
(vii) प्रचालन अधिशेष720
(viii) शुद्ध प्रत्यक्ष कर400
(ix) सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में नियोजन का योगदान100
(x) शुद्ध निर्यात20
(xi) विदेशों से निवल कारक आय-20
(xii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय600
(xiii) अचल पूँजी का उपभोग100

हल:
(क) राष्ट्रीय आय (NNPFC ) (आय विधि द्वारा) = कर्मचारियों का पारिश्रमिक + प्रचालन अधिशेष + विदेशों से निवल कारक आय
= 1900 + 720 + (-20) = 2600 करोड़ रुपए

(ख) राष्ट्रीय आय (NNPEO) (व्यय विधि द्वारा) = निजी अंतिम उपभोग व्यय + सकल पूँजी निर्माण + शुद्ध निर्यात + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + विदेशों से निवल साधन आय शुद्ध प्रत्यक्ष कर
= 2000 + 400 + 20 + 600 + (-20)- 400 = 2600 करोड़ रुपए

नोट –

  • सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में नियोजकों का योगदान कर्मचारियों के पारिश्रमिक में पहले से ही सम्मिलित है। अतः यह प्रासंगिक नहीं है।
  • चूँकि किराया और ब्याज प्रचालन अधिशेष के अंग है। अतः ये यहाँ प्रासंगिक नहीं हैं।
  • स्टॉक में परिवर्तन यहाँ प्रासंगिक नहीं है क्योंकि यह सकल पूँजी निर्माण का ही एक भाग है।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा NNP at FC ज्ञात कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) शेष संसार से चालू हस्तांतरण100
(ii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय1000
(iii) मज़दूरी और वेतन3800
(iv) लाभांश500
(v) लगान200
(vi) ब्याज150
(vii) शुद्ध घरेलूं पूँची निर्माण500
(viii) लाभ800
(ix) नियोजकों द्वारा सामाजिक सुरक्षा अंशदान200
(x) शुद्ध निर्यात50
(xi) विदेशों से शुद्ध साधन आय30
(xii) अचल पूँजी का उपभोग40
(xiii) निजी अंतिम उपभोग व्यय4000
(xiv) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर300

हल:
(क) NNP at FC (आय विधि द्वारा) = मज़दूरी और वेतन + लगान + ब्याज + लाभ + नियोजकों द्वारा सामाजिक सुरक्षा अंशदान + विदेशों से शुद्ध साधन आय
= 3800 + 200 + 150 + 800 + 200 + (-30)
= 5120 करोड़ रुपए

(ख) NNP at FC (व्यय विधि द्वारा) = सरकारी अंतिम उपभोग क्रय + शुद्ध घरेलू पूँजी निर्माण + निजी अंतिम उपभोग क्रय + शुद्ध निर्यात + विदेशों से शुद्ध साधन आय – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
= 1000 + 500 + 4000 + (- 50) + (-30)-300
= 5120 करोड़ रुपए
(नोट-यहाँ अचल पूँजी का उपभोग प्रासंगिक नहीं है।)

प्रश्न 13.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय (NI) ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) ब्याज250
(ii) विदेश्ं से निवल कारक आय-50
(iii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय1400
(iv) स्वनियोजितों की मिश्रित आय1500
(v) कर्मचारियों का पारिश्रमिक3000
(vi) निजी अंतिम उपभोग व्यय4500
(vii) लाभ1000
(viii) अचल पूँजी का उपभोग60
(ix) किराया300
(x) सकल घरेलू पूँजी निर्माण600
(xi) निवल निर्यात-30
(xii) शेष विश्व से निवल चालू हस्तांतरण40
(xiii) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर420

हल:
(क) राष्ट्रीय आय (आय विधि द्वारा) = ब्याज + विदेशों से निवल कारक आय + स्वनियोजितों की मिश्रित आय + कर्मचारियों का पारिश्रमिक + लाभ + किराया
= 250 + (- 50) + 1500 + 3000 1000 + 300
= 6000 करोड़ रुपए

(ख) राष्ट्रीय आय (व्यय विधि द्वारा) = सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + निजी अंतिम उपभोग व्यय + सकल घरेलू पूँजी निर्माण + निवल निर्यात + विदेशों से निवल कारक आय – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
= 1400 + 4500 + 600 + (-30) + (-50)- 420
= 6000 करोड़ रुपए

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 14.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा कारक लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPFC) का परिकलन कीजिए।

(करोड़ रुपए में)
(i) निवल घरेलू पूँजी निर्माण500
(ii) कर्मचारियों का पारिश्रमिक1850
(iii) अचल पूँजी का उपभोग100
(iv) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय1100
(v) निजी अंतिम उपभोग व्यय2600
(vi) किराया400
(vii) लाभांश200
(viii) ब्याज500
(ix) निवल निर्यात-100
(x) लाभ1100
(xi) विदेशों से निवल कारक आय-50
(xii) निवल अप्रत्यक्ष कर250

हल:
(क) आय विधि द्वारा कारक लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = किराया + ब्याज + कर्मचारियों का पारिश्रमिक + लाभ + विदेशों से निवल कारक आय + अचल पूँजी का उपभोग।
= 400 + 500 + 1850 + 1100 + (-)50+ 100
= 3950 – 50
= 3900 करोड़ रुपए

(ख) व्यय विधि द्वारा कारक लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = निजी अंतिम उपभोग व्यय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + निवल घरेलू पूँजी निर्माण + अचल पूँजी का उपभोग + निवल निर्यात + विदेशों से निवल कारक आय – निवल अप्रत्यक्ष कर।
= 2600 + 1100 + 500 + 100 + (-100) + (-50) – 250
= 4300 – 400
= 3900 करोड़ रुपए

प्रश्न 15.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय (NI) का परिकलन कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) ब्याज150
(ii) किराया250
(iii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय600
(iv) निजी अंतिम उपभोग व्यय1200
(v) लाभ640
(vi) कर्मचारियों का पारिश्रमिक1000
(vii) विदेर्शों को निवल कारक आय30
(viii) निवल अप्रत्यक्ष कर60
(ix) निवल निर्यात-40
(x) अचल पूँजी का उपभोग50
(xi) निवल (घरेलू) देशीय पूँजी निर्माण340

हल:
(क) आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय = ब्याज + किराया + लाभ + कर्मचारियों का पारिश्रमिक – विदेशों को शुद्ध कारक आय
= 150 + 250 + 640 + 1000 – 30
= 2040 – 30
= 2010 करोड़ रुपए

(ख) व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय = सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + निजी अंतिम उपभोग व्यय निर्यात +निवल निर्यात + निवल घरेलू पूँजी निर्माण – विदेशों को शुद्ध कारक आय – निवल अप्रत्यक्ष कर
= 600 + 1200 + (- 40) + 340 – 30 – 60
= 2140 – 130
= 2010 करोड़ रुपए

प्रश्न 16.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा कारक लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPFC) का परिकलन कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) निजी अंतिम उपभोग व्यय1000
(ii) निवल घरेलू (देशीय) पूँजी निर्मा200
(iii) लाभ400
(iv) कर्मचारियों का पारिश्रमिक800
(v) किराया250
(vi) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय500
(vii) अचल पूँजी का उपभोग60
(viii) ब्याज150
(ix) शेष दिश्व से चालू हस्तांतरण-80
(x) विदेशों से निवल कारक आय-10
(xi) निवल निर्यात-20
(xii) निवल अप्रत्यक्ष कर80

हल:
(क) आय विधि द्वारा कारक लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = लाभ + कर्मचारियों का पारिश्रमिक + ब्याज + विदेशों से निवल कारक आय + अचल पूँजी का उपभोग
= 400 + 800 + 250 + 150 + (- 10) + 60
= 1660 – 10
= 1650 करोड़ रुपए

(ख) व्यय विधि द्वारा कारक लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = निजी अंतिम उपभोग व्यय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + निवल घरेलू पूँजी निर्माण + अचल पूँजी का उपभोग+निवल निर्यात + विदेशों से निवल कारक आय

प्रश्न 17.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) आय विधि और (ख) व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय (NI) की गणना कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय100
(ii) आर्थिक सहायता10
(iii) किराया200
(iv) मज़दूरी व वेतन600
(v) अप्रत्यक्ष कर60
(vi) निजी अंतिम उपभोग व्यय800
(vii) सकल घरेलू पूँजी निर्माण110
(viii) नियोक्ता द्वारा सामाजिक सुरक्षा में अंशदान55
(ix) रॉयल्टी25
(x) विदेशों को चुकाई गई निवल कारक आय30
(xi) ब्याज20
(xii) अचल पूँजी का उपभोग10
(xiii) लाभ130
(xiv) शुद्ध निर्यात70
(xv) स्टॉक में परिवर्तन50

हल:
(क) आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय = किराया + मज़दूरी व वेतन + नियोक्ता द्वारा सामाजिक सुरक्षा में अंशदान + रॉयल्टी + ब्याज + लाभ – विदेशों को चुकाई गई निवल कारक आय
= 200 + 600 + 55 + 25 + 20 + 130 – 30
= 1030 – 30 = 1000 करोड़ रुपए

(ख) व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय = निजी अंतिम उपभोग व्यय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + आर्थिक सहायता + सकल घरेलू पूँजी निर्माण + शुद्ध निर्यात – अप्रत्यक्ष कर – विदेशों को चुकाई गई निवल कारक आय
= 800 + 100 + 10+ 110 + 70 – 60 – 30
= 1090 – 90
= 1000 करोड़ रुपए

(नोट-(i) रॉयल्टी किराए का ही एक भाग है। यहाँ यह मान लिया गया है कि चूँकि रॉयल्टी एक पृथक मद के रूप में दी गई है, यह किराए में सम्मिलित नहीं है। अतः इसे आय विधि में आय माना गया है।

(ii) मज़दूरी व वेतन और नियोक्ता द्वारा सामाजिक सुरक्षा में अंशदान कर्मचारियों के दो भाग हैं। इसलिए इन दोनों मदों को राष्ट्रीय आय में शामिल किया गया है।

VI. निजी आय पर आधारित संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आँकड़ों से निजी आय ज्ञात कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पाद से आय4000
(ii) गैर-विभागीय सार्वजनिक उद्यमों की बचत200
(iii) सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण150
(iv) निजी निगमित क्षेत्र की बचत400
(v) शेष विश्व से चालू हस्तांतरण50
(vi) विदेशों से निवल कारक आय-40
(vii) निगम कर60
(viii) वैयक्तिक प्रत्यक्ष कर140

हल:
निजी आय = निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पाद से आय + सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण + शेष विश्व से चालू हस्तांतरण + विदेशों से निवल कारक आय
= 4000 + 150 + 50 + (- 40)
= 4160 करोड़ रुपए

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आँकड़ों से निजी आय का परिकलन कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज30
(ii) बाज़ार मूल्य पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP at MP)400
(iii) सरकार से चालू हस्तांतरण20
(iv) निवल अप्रत्यक्ष कर40
(v) शेष विश्व से निवल चालू हस्तांतरण-10
(vi) सरकार को प्राप्त कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद50
(vii) अचल पूँजी का उपभोग70

हल:
निजी आय = बाज़ार मूल्य पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – निवल अप्रत्यक्ष कर – अचल पूँजी का उपभोग – सरकार को प्राप्त कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद + राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज + सरकार .. से चालू हस्तांतरण + शेष विश्व से निवल चालू हस्तांतरण
= 400 – 40 – 70 – 50 + 30 + 20 + (-)10
= 450 – 170 = 280 करोड़ रुपए

प्रश्न 3.
निम्नलिखित आँकड़ों से राष्ट्रीय आय और निजी आय का परिकलन कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) शेष विश्व को निवल चालू हस्तांतरण10
(ii) निजी अंतिम उपभोग व्यय600
(iii) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज15
(iv) निवल निर्यात-20
(v) सरकार से चालू हस्तांतरण5
(vi) सरकार को प्राप्त कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद25
(vii) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय100
(viii) निवल अप्रत्यक्ष कर30
(ix) शुद्ध घरेलू पूँजी निर्माण70
(x) विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय10

हल:
NDP at MP (व्यय विधि द्वारा) = निजी अंतिम उपभोग व्यय + निवल निर्यात + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + शुद्ध घरेलू पूँजी निर्माण
= 600 + (- 20) + 100 + 70 = 750
NDP at FC = 750 – 30 = 720 करोड़ रुपए
NNP at FC (आय विधि द्वारा) = 720 + 10 = 730 करोड़ रुपए
Private sector income = 720-25 = 695 करोड़ रुपए
Private income = 695 + विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय + चालू हस्तांतरण
= 695 + 10 – 10 + 5 = 700 करोड़ रुपए

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) निजी आय और (ख) वैयक्तिक प्रयोज्य आय ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) निजी निगमित क्षेत्र की बचत500
(ii) गैर-विभागीय सार्वजनिक उद्यमों की बचत200
(iii) शेष विश्व से पूँजीगत हस्तांतरण50
(iv) सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण100
(v) निगम कर150
(vi) घरेलू उत्पाद से निजी क्षेत्र को होने वाली आय3500
(vii) निवल अप्रत्यक्ष कर300
(viii) विदेशों से निवल कारक आय-30
(ix) शेष विश्व से चालू हस्तांतरण40
(x) वैयक्तिक प्रत्यक्ष कर110

हल:
(क) निजी आय = घरेलू उत्पाद से निजी क्षेत्र को होने वाली आय + विदेशों से निवल कारक आय + सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण + शेष विश्व से चालू हस्तांतरण
= 3500 + (-30) + 100 + 40 = 3610 करोड़ रुपए

(ख) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = निजी आय-निजी निगमित क्षेत्र की बचत -निगम कर – वैयक्तिक प्रत्यक्ष कर
= 3610 – 500 – 150 – 110 = 2850 करोड़ रुपए

प्रश्न 5.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) निजी आय और (ख) वैयक्तिक प्रयोज्य आय ज्ञात कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) सरकारी प्रशासनिक विभागों को संपत्ति व उद्यमवृत्ति से आय500
(ii) गैर-विभागीय सार्वजनिक उद्यमों की बचत100
(iii) निगम कर80
(iv) घरेलू (देशीय) उत्पाद से निजी क्षेत्र को आय4500
(v) सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण200
(vi) विदेशों से निवल साधन आय-50
(vii) वैयक्तिक प्रत्यक्ष कर150
(viii) अप्रत्यक्ष कर220
(ix) शेष विश्व से चालू हस्तांतरण80
(x) निजी निगमित क्षेत्र की बचत500

हल:
(क) निजी आय = घरेलू उत्पाद से निजी क्षेत्र को आय + सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण + विदेशों से निवल कारक आय + शेष विश्व से चालू हस्तांतरण
= 4500 + 200 + (-50) + 80 = 4730 करोड़ रुपए

(ख) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = निजी आय-निगम कर – निजी निगमित क्षेत्र की बचत – वैयक्तिक प्रत्यक्ष कर
= 4730 – 80 – 500 – 150 = 4000 करोड़ रुपए

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) निजी आय और (ख) वैयक्तिक प्रयोज्य आय ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) निजी क्षेत्र की घरेलू उत्पाद से आय4000
(ii) गैर-विभागीय सार्वजनिक उद्यमों की बचत200
(iii) सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण150
(iv) निजी निगमित क्षेत्र की बचत400
(v) शेष विश्व से चालू हस्तांतरण50
(vi) विदेशों से निवल साधन आय-40
(vii) निगम कर60
(viii) वैयक्तिक अप्रत्यक्ष कर140

हल:
(क) निजी आय = निजी क्षेत्र की घरेलू उत्पाद से आय + सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण + शेष विश्व से चालू हस्तांतरण + विदेशों से निवल कारक आय
= 4000 + 150 + 50 + (-40)
= 4160 करोड़ रुपए

(ख) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = निजी आय – निजी निगमित क्षेत्र की बचत – निगम कर – वैयक्तिक अप्रत्यक्ष कर
= 4160 – 400 -60 – 140 = 3560 करोड़ रुपए

VII. वैयक्तिक प्रयोज्य आय पर आधारित संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) निजी आय, (ख) वैयक्तिक आय और (ग) वैयक्तिक प्रयोज्य आय का अनुमान लगाइए-

(करोड़ रुपए में)
(i) निजी क्षेत्रक को घरेलू उत्पाद से होने वाली आय79,096
(ii) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज964
(iii) निजी कंपनी क्षेत्रक की बचत (अवितरित लाभ)464
(iv) विदेशों से शुद्ध उत्पादन (कारक) आय-201
(v) सरकारी प्रशासकीय विभागों से चालू हस्तांतरण1981
(vi) निगम (लाभ) कर1251
(vii) परिवारों द्वारा दिए गए प्रत्यक्ष कर2100
(viii) संसार के अन्य भागों से शुद्ध चालू हस्तांतरण1271

हल:
(क) निजी आय = निजी क्षेत्रक को घरेलू उत्पाद से होने वाली आय + राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज + विदेशों से शुद्ध उत्पादन आय + सरकारी प्रशासकीय विभागों से चालू हस्तांतरण + संसार के अन्य भागों से शुद्ध चालू हस्तांतरण
= 79,096 + 964 + (-)201 + 1981 + 1271 = 83,111 करोड़ रुपए

(ख) वैयक्तिक आय = निजी आय – निजी कंपनी क्षेत्रक की बचत – निगम कर
= 83,111 – 464 – 1251 = 81,396 करोड़ रुपए

(ग) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय – परिवारों द्वारा दिए गए अप्रत्यक्ष कर
= 81,396 – 2100 = 79,296 करोड़ रुपए

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आँकड़ों से परिकलन कीजिए-(क) निजी आय, (ख) वैयक्तिक आय और (ग) वैयक्तिक प्रयोज्य आय।

(करोड़ रुपए में)
(i) निवल घरेलू उत्पाद से निजी क्षेत्र को प्राप्त कारक आय300
(ii) उद्यमवृत्ति और संपत्ति से सरकारी प्रशासनिक विभागों को आय70
(iii) गैर-विभागीय उद्यमों की बचत60
(iv) विदेशों से कारक आय20
(v) अचल पूँजी का उुपभोग35
(vi) शेष विश्व से चालू हस्तांतरण15
(vii) निगम कर25
(viii) विदेशों को कारक आय30
(ix) सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण40
(x) परिवारों द्वारा दिए गए प्रत्यक्ष कर20
(xi) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज5
(xii) निजी निगमित क्षेत्र की बचत80

हल:
(क) निजी आय = निवल घरेलू उत्पाद से निजी क्षेत्र को प्राप्त कारक आय + विदेशों से कारक आय – विदेशों को कारक आय + शेष विश्व से चालू हस्तांतरण + सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण + राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज
= 300 + (20 – 30) + 15 + 40 + 5 = 350 करोड़ रुपए

(ख) वैयक्तिक आय = निजी आय – निगम कर – निजी निगमित क्षेत्र की बचत
= 350 – 25 – 80 = 245 करोड़ रुपए

(ग) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय – परिवारों द्वारा दिए गए प्रत्यक्ष कर
= 245-20 = 225 करोड़ रुपए

प्रश्न 3.
निम्नलिखित आँकड़ों से परिकलन कीजिए-(क) निजी आय, (ख) वैयक्तिक आय और (ग) वैयक्तिक प्रयोज्य आय।

(करोड़ रुपए में)
(i) संपत्ति और उद्यमवृत्ति से सरकारी प्रशासनिक विभागों को प्राप्त आय100
(ii) गैर-विभागीय उद्यमों की बचत80
(iii) निजी क्षेत्र को निवल घरेलू उत्पाद से प्राप्त कारक आय500
(iv) निगम कर30
(v) निजी निगमित क्षेत्र की बचत, विदेशी कंपनियों की प्रतिधारित आय सहित65
(vi) परिवारों द्वारा दिए गए प्रत्यक्ष कर20
(vii) सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण10
(viii) शेष विश्व से चालू हस्तांतरण20
(ix) विदेशों, से कारक आय5
(x) प्रचालन अधिशेष150
(xi) विदेशों को कारक आय15

हल:
(क) निजी आय = निजी क्षेत्र को निवल घरेलू उत्पाद से प्राप्त कारक आय + विदेशों से कारक आय – विदेशों को कारक आय+सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण + शेष विश्व से चालू हस्तांतरण
= 500 + (5 – 15) + 10 + 20 = 520 करोड़ रुपए

(ख) वैयक्तिक आय = निजी आय – निगम कर – निजी निगमित क्षेत्र की बचत, विदेशी कंपनियों की प्रतिधारित आय सहित
= 520 – 30 – 65 = 425 करोड़ रुपए

(ग) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय – परिवारों द्वारा दिए गए प्रत्यक्ष कर
= 425 – 20 = 405. करोड़ रुपए

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) वैयक्तिक प्रयोज्य आय (PDI) और (ख) राष्ट्रीय आय का परिकलन कीजिए
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 9
हल:
(क) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = निजी आय – निजी उद्यमों की शुद्ध प्रतिधारित आय – निगम कर – परिवारों द्वारा दिया गया प्रत्यक्ष कर
Set I = 3000-600-350 – 300 = 1750 करोड़ रुपए
Set II = 4000 – 800 – 450 – 400 = 2350 करोड़ रुपए
Set III = 4000 – 200-400 – 150 = 3250 करोड़ रुपए

(ख) राष्ट्रीय आय = कर्मचारियों का पारिश्रमिक + स्वनियोजितों की मिश्रित आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय किराया + लाभ + ब्याज
Set I = 800 + 900 + (-50)+ 350 + 600 + 450 = 3050 करोड़ रुपए
Set II = 1500 + 1400 + (-60)+ 300 + 1000 + 400 = 4540 करोड़ रुपए
Set III = 1300 + 1200 + (-50)+ 600+ 800 + 700 = 4550 करोड़ रुपए
(नोट-यहाँ निवल निर्यात, निवल अप्रत्यक्ष कर और अचल पँजी उपभोग प्रासंगिक नहीं है।)

प्रश्न 5.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) राष्ट्रीय आय और (ख) वैयक्तिक प्रयोज्य आय का परिकलन कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) कर्मचार्यिं का पारिश्रमिक1200
(ii) किराया400
(iii) लाभ800
(iv) अचल पूँजी का उपभोग300
(v) स्वनियोजितों की मिश्रित आय1000
(vi) निजी आय3600
(vii) विदेशों से शुद्ध साधन आय-50
(viii) निजी उद्यमियों की शुद्ध अवितरित आय200
(ix) ब्याज250
(x) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर350
(xi) शुद्ध निर्यात-60
(xii) परिवारों द्वारा दिए गए प्रत्यक्ष कर150
(xiii) निगम कर100

हल:
(क) राष्ट्रीय आय (NNP at FC) = कर्मचारियों का पारिश्रमिक + किराया + लाभ + स्वनियोजितों की मिश्रित आय + विदेशों से शुद्ध कारक आय + ब्याज
= 1200 + 400 + 800 + 1000 + (-50) + 250 = 3600 करोड़ रुपए

(ख) वैयक्तिक आय = राष्ट्रीय आय – निजी उद्यमियों की शुद्ध अवितरित आय-निगम कर
= 3600 – 200 – 100 = 3300 करोड़ रुपए
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय – परिवारों द्वारा दिए गए प्रत्यक्ष कर
= 3300 – 150 = 3150 करोड़ रुपए
(नोट-राष्ट्रीय आय और वैयक्तिक प्रयोज्य आय के परिकलन के लिए अचल पूँजी का उपभोग तथा शुद्ध निर्यात प्रासंगिक नहीं है।)

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आँकड़ों से वैयक्तिक प्रयोज्य आय का परिकलन कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) वैयक्तिक कर60
(ii) निजी क्षेत्र को होने वाला कारक लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद600
(iii) अवितरित लाभ10
(iv) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज50
(v) निगम (लाभ) कर100
(vi) शेष विश्व से निवल चालू हस्तांतरण-20
(vii) सरकार से चाल हस्तांतरण30

हल:
निजी क्षेत्र की कारक आय = 600
वैयक्तिक आय = निजी क्षेत्र को होने वाला कारक लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद – अवितरित लाभ-निगम (लाभ) कर + राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज + शेष विश्व से निवल चालू हस्तांतरण + सरकार से चालू हस्तांतरण
= 600 – 10 – 100 + 50+ (-20) + 30 = 550 करोड़ रुपए
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = 550-60 = 490 करोड़ रुपए

प्रश्न 7.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) कारक लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDP at FC) तथा (ख) वैयक्तिक आय का परिकलन कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) निजी अंतिम उपभोग व्यय700
(ii) गैर-विभागीय उद्यमों की बचतें20
(iii) शुद्ध घरेलू अचल पूँजी निर्माण100
(iv) अवितरित लाभ5
(v) स्टॉक में परिवर्तन10
(vi) निगम कर35
(vii) शुद्ध निर्यात40
(viii) संपत्ति और उद्यमशीलता से प्रशासनिक विभागों को प्राप्त आय30
(ix) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज40
(x) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय150
(xi) सरकार द्वारा चालू हस्तांतरण25
(xii) विदेर्शों से शुद्ध कारक आय-10
(xiii) शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तांतरण10
(xiv) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर60
(vv) वैयक्तिक कर35

हल:
(क) NDP at MP (व्यय विधि द्वारा) = निजी अंतिम उपयोग व्यय + शुद्ध घरेलू अचल पूँजी निर्माण + शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तांतरण + राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज + सरकारी अंतिम उपयोग व्यय
= 700 + 100 + 10 + 40 + 150 = 1000 करोड़ रुपए
NDP at FC = 1000 -60 = 940 करोड़ रुपए

(ख) वैयक्तिक आय = NDO at FC-(ii) – (viii) – (iv) + (xv) + (ix + xi + xiii) + (xii)
= 940 – 20 – 30 – 5 – 35 + (40 + 25 + 10) + (-10)
= 915 करोड़ रुपए

प्रश्न 8.
निम्नलिखित आँकड़ों से बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) और वैयक्तिक प्रयोज्य आय की गणना कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) आर्थिक सहायता20
(ii) विदेशों से शुद्ध कारक आय-60
(iii) सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय1050
(iv) वैयक्तिक कर110
(v) निजी उद्यमों की बचतें40
(vi) राष्ट्रीय आय900
(vii) अप्रत्यक्ष कर100
(viii) निगम कर90
(ix) शुद्ध राष्ट्रीय प्रयोज्य आय1000
(x) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज30
(xi) विदेशों से चालू हस्तांतरण20
(xii) सरकार से चालू हस्तांतरण50
(xiii) सरकारी प्रशासनिक विभागों की विविध प्राप्तियाँ30
(xiv) निजी आय700
(xv) निजी अंतिम उपभोग व्यय380

हल:
बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय – विदेशों से चालू हस्तांतरण
= 1050 – 20 = 1030 करोड़ रुपए
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = निजी आय – निगम कर – निजी उद्यमियों की बचतें – वैयक्तिक कर – सरकार प्रशासनिक विभागों की विविध प्राप्तियाँ
= 700 – 90 – 40 – 110 – 30
= 700 – 270
= 430 करोड़ रुपए

नोट-(i) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद की गणना निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = राष्ट्रीय आय + अप्रत्यक्ष कर + अचल पूँजी का उपभोग – आर्थिक सहायता
= 900 + 100 + 50 – 20
= 1050 – 20 = 1030 करोड़ रुपए

(ii) अचल पूँजी का उपभोग = सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय – शुद्ध राष्ट्रीय प्रयोज्य आय
= 1050 – 1000
= 50 करोड़ रुपए

प्रश्न 9.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) निजी आय और (ख) वैयक्तिक प्रयोज्य आय ज्ञात कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) निजी क्षेत्र को देशीय उत्पाद से होने वाली आय4000
(ii) गैर-विभागीय सार्वजनिक उद्धमों की बचत200
(iii) सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण150
(iv) निजी निगमित क्षेत्र की बचत400
(v) शेष विश्व से चालू हस्तांतरण50
(vi) विदेशौं से निवल साधन आय-40
(vii) निगम कर60
(viii) वैयक्तिक प्रत्यक्ष कर140

हल:
(क) निजी आय = निजी क्षेत्र को देशीय (घरेलू) उत्पाद से होने वाली आय + विदेशों से निवल कारक (साधन) आय + सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण + शेष विश्व से चालू हस्तांतरण
= 4000 + (-40) + 150 + 50 = 4200 – 40 = 4160 करोड़ रुपए

(ख) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = निजी आय –निगम कर – वैयक्तिक प्रत्यक्ष कर– निजी निगमित क्षेत्र की बचत
= 4160-60 – 140 – 400 = 4160 — 600 = 3560 करोड़ रुपए
नोट-गैर-विभागीय सार्वजनिक उद्यमों की बचत यहाँ प्रासंगिक नहीं है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) निजी आय और (ख) वैयक्तिक प्रयोज्य आय ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) सरकारी प्रशासनिक विभागों को संपत्ति व उद्यमवृत्ति से अर्जित आय500
(ii) गैर-विभागीय सार्वजनिक उद्यमों की बचतें100
(iii) निगम कर80
(iv) घरेलू उत्पाद से निजी क्षेत्र को होने वाली आय4,500
(v) सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण200
(vi) विदेशों से निवल साधन आय-50
(vii) वैयक्तिक प्रत्यक्ष कर150
(viii) अप्रत्यक्ष कर220
(ix) शेष विश्व से चालू हस्तांतरण80
(x) निजी निगमित क्षेत्र की बचत500

हल:
(क) निजी आय = घरेलू (देशीय) उत्पाद से निजी क्षेत्र को होने वाली आय + विदेशों से निवल कारक (साधन) आय + शेष विश्व से चालू हस्तांतरण + सरकारी प्रशासनिक विभागों से चालू हस्तांतरण
= 4,500 + (-50) + 80 + 200 = 4,780 -50
= 4,730 करोड़ रुपए

(ख) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = निजी आय + निगम कर – निजी निगमित क्षेत्र की बचत – वैयक्तिक प्रत्यक्ष कर
= 4,730 – 80 – 500 – 150
= 4,730 – 730
= 4,000 करोड़ रुपए
(नोट-निम्नलिखित मदें निजी आय और वैयक्तिक प्रयोज्य आय की गणना के लिए प्रासंगिक नहीं हैं-

  • सरकारी प्रशासनिक विभागों की संपत्ति व उद्यमवृत्ति से अर्जित आय
  • अप्रत्यक्ष कर
  • गैर-विभागीय सार्वजनिक उद्यमों की बचत)

VIII. राष्ट्रीय प्रयोज्य आय पर आधारित संख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आँकड़ों से सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय (GNDI) ज्ञात कीजिए
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 10
हल:
GNDI = NNP at FC + मूल्यह्रास + शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तांतरण
Set I = 2000 + 250 + 100 + 200 = 2550 करोड़ रुपए
Set II = 3000 + 250 + 150 + 300 = 3700 करोड़ रुपए
Set III = 1000 + 80 + 100 + 150 = 1330 करोड़ रुपए
नोट-विदेशों से निवल कारक आय यहाँ पर अप्रासंगिक है क्योंकि यह राष्ट्रीय आय में पहले से ही शामिल है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आँकड़ों से शुद्ध राष्ट्रीय प्रयोज्य आय (NNDI) ज्ञात कीजिए
HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 11
हल:
NNDI = GNP at FC – मूल्यह्रास + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + शुद्ध चालू हस्तांतरण
Set I = 800 -60 + 70+ 50 = 860 करोड़ रुपए
Set II = 1000 – 100 + 120 + 50 = 1070 करोड़ रुपए
Set III = 1500 – 100 + 120 + (-30) = 1490 करोड़ रुपए
नोट-विदेशों से निवल कारक आय यहाँ पर अप्रासंगिक है, क्योंकि यह कारक लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद में पहले से ही शामिल है।

HBSE 12th Class Economics Important Questions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 3.
निम्नलिखित आँकड़ों से राष्ट्रीय आय और सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय (GNDI) का परिकलन कीजिए-

(करोड़ों रुपए)
(i) सरकार द्वारा पूँजी हस्तांतरण15
(ii) निजी अंतिम उपभोग व्यय400
(iii) शेष विश्व से चालू हस्तांतरण20
(iv) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय100
(v) विदेशों से निवल कारक आय-10
(vi) निवल घरेलू पूँजी निर्माण80
(vii) अचल पूँजी का उपभोग50
(viii) निवल निर्यात40
(ix) निबल प्रत्यक्ष कर60

हल:
(i) राष्ट्रीय आय = निजी अंतिम उपभोग व्यय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + निवल घरेलू पूँजी निर्माण + निवल निर्यात + विदेशों से निवल कारक आय – निवल प्रत्यक्ष कर
= 400 + 100 + 80+ 40 + (-) 10 – 60
= 620 – 70
= 550 करोड़ रुपए

(ii) सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय = राष्ट्रीय आय + निवल प्रत्यक्ष कर + शेष विश्व से चालू हस्तांतरण
= 550 + 60 + 20
= 630 करोड़ रुपए

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आँकड़ों से राष्ट्रीय आय तथा निवल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय (NNDI) का परिकलन कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) सरकार से चालू हस्तांतरण35
(ii) निजी अंतिम उपभोग व्यय500
(iii) शेष विश्व से निवल चालू हस्तांतरण-10
(iv) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय150
(v) विदेशों से निवल कारक आय-20
(vi) निवल घरेलू पूँजी निर्माण100
(vii) निवल अप्रत्यक्ष कर120
(viii) निवल निर्यात50

हल:
NDP at MP (व्यय विधि द्वारा) = निजी अंतिम उपभोग व्यय + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + निवल घरेलू पूँजी निर्माण + निवल निर्यात।
= 500 + 150 + 100 + 50 = 800
NDP at FC = 800 – 120 = 680 करोड़ रुपए

  • राष्ट्रीय आय NNP at FC = 680 + (-20) = 660 करोड़ रुपए
  • NNDI = 660+ 120+ (-10) = 770 करोड़ रुपए

प्रश्न 5.
निम्नलिखित आँकड़ों से कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद (NDP.) और सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय (GNDI) का परिकलन कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(i) विदेशों से शुद्ध चालू हस्तांतरण-5
(ii) निजी अंतिम उपभोग व्यय250
(iii) विदेशों से निवल कारक आय15
(iv) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय50
(v) अचल (स्थाई) पूँजी का उपभोग (अवक्षय)25
(vi) शुद्ध निर्यात-10
(vii) आर्थिक सहायता10
(viii) निवल घरेलू पूँजी निर्माण30
(ix) अप्रत्यक्ष कर20

हल:
GDPMP (व्यय विधि द्वारा)= निजी अंतिम उपभोग व्यय+ सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + निवल घरेलू पूँजी निर्माण + शुद्ध निर्यात + अचल (स्थाई) पूँजी का उपभोग (अवक्षय)
= 250 + 50+30+ (-10)+ 25 = 345 करोड़ रुपए
(i) NDPFC = GDPMP – मूल्यह्रास + आर्थिक सहायता – अप्रत्यक्ष कर
= 345 – 25 + 10 – 20 = 310 करोड़ रुपए

(ii) GNDI = GDPMP + विदेशों से निवल कारक आय + विदेशों से शुद्ध चालू हस्तांतरण
= 345 + 15 + (- 5) = 355 करोड़ रुपए

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) राष्ट्रीय आय, और (ख) सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय (GNDI) ज्ञात कीजिए-

(करोड़ रुपए में)
(i) निजी अंतिम उपभोग व्यय400
(ii) शेष विश्व से शुद्ध हस्तांतरण-5
(iii) अप्रत्यक्ष कर65
(iv) निवल घरेलू पूँजी निर्माण120
(v) सरकारी अंतिम उपभोग व्यय100
(vi) अचल (स्थाइ) पूँजी का उपभोग (मूल्यह्नास)20
(vii) आर्थिक सहायता5
(viii) निर्यात30
(ix) विदेशों से शुद्र कारक आय-10
(x) आयात40

हल:
GDP at MP = निजी अंतिम उपभोग व्यय + निवल घरेलू पूँजी निर्माण + सरकारी अंतिम उपभोग व्यय + अचल पूँजी का उपभोग + निर्यात – आयात
= 400 + 120 + 100 + 20+ 30 – 40 = 630

(क) राष्ट्रीय आय (NNPFC) = GDPMP – मूल्यह्रास + NFIA – आर्थिक सहायता
= 630 – 20 + (- 10) – 65 + 5
= 540 करोड़ रुपए

(ख) GNDI = GDPMP + NFIA + शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तांतरण
= 630 + (-10) + (-5)
= 615 करोड़ रुपए

प्रश्न 7.
निम्नलिखित आँकड़ों से (क) शुद्ध राष्ट्रीय प्रयोज्य आय (NNDI), और (ख) निजी आय ज्ञात कीजिए

(करोंड़ रुपए में)
(i) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर90
(ii) कर्मचारियों का पारिश्रमिक400
(iii) वैयक्तिक कर100
(iv) प्रचालन अधिशेष200
(v) निगम लाभ कर80
(vi) स्वनियोजितों की मिश्रित आय500
(vii) राष्ट्रीय ऋण ब्याज70
(viii) गैर-विभागीय उद्यमों की बचतें40
(ix) सरकार से चालू हस्तांतरण60
(x) सरकारी विभागों को संपत्ति व उद्यमवृत्ति से आय30
(xi) शेष संसार को शुद्ध चालू अंतरण20
(xii) विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय-50

हल:
घरेलू आय= कर्मचारियों का पारिश्रमिक + प्रचालन अधिशेष + स्वनियोजितों की मिश्रित आय = 400+ 200+ 500 = 1,100 करोड़ रुपए
राष्ट्रीय आय (NNP at FC) = घरेलू आय + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय = 1100 + (- 50) = 1,050 करोड़ रुपए

(क) NNDI = राष्ट्रीय आय + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + शेष संसार को शुद्ध चालू अंतरण = 1,050 + 90 + (-20) = 1,120 करोड़ रुपए

(ख) निजी आय = राष्ट्रीय आय – गैर-विभागीय उद्यमों की बचतें- सरकार विभागों को संपत्ति व उद्यमवृत्ति से आय + राष्ट्रीय ऋण ब्याज + सरकार से चालू हस्तांतरण + शेष विश्व को चालू हस्तांतरण
= 1,050 – 40 – 30 + (70 + 60 – 20)
= 1,090 करोड़ रुपए

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Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन Textbook Exercise Questions and Answers.

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पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्पादन के चार कारक कौन-कौन से हैं और इनमें से प्रत्येक के पारिश्रमिक को क्या कहते हैं?
उत्तर:
उत्पादन के चार कारक (साधन) और उनके पारिश्रमिक निम्नलिखित हैं।

उत्पादन के कारकपारिश्रमिक
(i) भूमि (भूपति)किराया
(ii) श्रम (श्रमिक)मज़दूरी
(iii) पूँजी (पूँजीपति)ब्याज
(iv) (उद्यमी/साहसी)लाभ

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 2.
किसी अर्थव्यवस्था में समस्त अंतिम व्यय समस्त कारक अदायगी के बराबर क्यों होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था में समस्त अंतिम व्यय समस्त कारक अदायगी के बराबर होता है क्योंकि आय का वर्तुल (चक्रीय) प्रवाह होता है। अंतिम व्यय और कारक अदायगी दोनों ही एक सिक्के के दो पहलू हैं। प्रत्येक अर्थव्यवस्था में मुख्य रूप से दो बाज़ार होते हैं

  • उत्पादन बाज़ार
  • संसाधन बाजार।

परिवार फर्मों को संसाधनों (जैसे म, पूँजी, उद्यमी आदि) की आपूर्ति करते हैं और फर्मे परिवारों से ये संसाधन क्रय करती हैं और बदले में लगान/किराया, मज़दूरी, ब्याज, लाभ के रूप में कारक अदायगी करती हैं। परिवारों को जो आय प्राप्त होती है उससे वे अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए फर्मों से अंतिम वस्तुएँ और सेवाएँ क्रय करते हैं। इस प्रकार, अर्थव्यवस्था में उत्पादकों का व्यय लोगों की आय और लोगों का व्यय उत्पादकों की आय बनता है।

एक अर्थव्यवस्था के दो बाज़ारों में चक्रीय प्रवाह को हम निम्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 1

प्रश्न 3.
स्टॉक और प्रवाह में भेद स्पष्ट कीजिए। निवल निवेश और पूँजी में कौन स्टॉक है और कौन प्रवाह? हौज में पानी के प्रवाह से निवल निवेश और पूँजी की तुलना कीजिए।
उत्तर:
स्टॉक और प्रवाह चर में भेद का आधार समयावधि (Period of Time) या समय बिंदु पर किया जाने वाला माप है। प्रवाह-वे चर जो समय की एक निश्चित अवधि के संदर्भ में पाए जाते हैं, प्रवाह चर कहलाते हैं। समयावधि घंटे, दिन, सप्ताह, मास या वर्ष हो सकती है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय आय एक प्रवाह चर है क्योंकि यह एक वर्ष में देश में उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के शुद्ध प्रभाव को दर्शाता है। प्रवाह चर के अन्य उदाहरण हैं-आय, व्यय, बचत, ब्याज, आयात-निर्यात, मूल्यह्रास, माल-सूची में परिवर्तन आदि क्योंकि इन सभी चरों का संबंध एक निश्चित समयावधि से होता है।

स्टॉक-वे चर जो समय के किसी निश्चित बिंदु (Point of Time) के संदर्भ में पाए जाते हैं, स्टॉक चर कहलाते हैं; जैसे-दिन मार्च, 2016, वीरवार आदि। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय पूँजी स्टॉक चर है जो बताती है कि किसी समय बिंदु री, 2016) पर देश में पूँजी (मशीनें, औजार, इमारतें, सड़कें, पुल, कच्चे माल) का कितना स्टॉक है। स्टॉक चर के अन्य उदाहरण हैं संपत्ति, विदेशी ऋण, माल सूची (Inventory) खाद्यान्न भंडार आदि।

स्टॉक और प्रवाह के अंतर को निम्नलिखित सारणी द्वारा व्यक्त किया गया है-

अंतर का आधारस्टॉकप्रवाह
1. मापस्टॉक एक समय बिंदु या निश्चित समय पर मापा जाने वाला चर है।प्रवाह वह चर है जो एक निश्चित समयावधि पर मापा जाता है।
2. समय-कालस्टॉक का समय-काल नहीं होता है।प्रवाह का समय-काल होता है।
3. प्रकृतिस्टॉक की प्रकृति स्थाई (अचल) है।प्रवाह की प्रकृति गत्यात्मक (चल) है।
4. उदाहरण(i) संपत्ति, (ii) दूरी, (iii) टैंक में जल, (iv) मुद्रा की मात्रा(i) आय, (ii) गति, (iii) नदी में जल, (iv) मुद्रा का व्यय

निवल निवेश प्रवाह है और पूँजी स्टॉक है क्योंकि निवल निवेश का संबंध एक समय-काल से है जबकि पूँजी एक निश्चित समय पर एक व्यक्ति की संपत्ति का भंडार बताती है। पूँजी एक हौज़ के समान है जबकि निवल निवेश उस हौज में बहता हुआ पानी है। बहते हुए पानी का संबंध एक समय-काल से है जबकि हौज में पानी का स्तर एक निश्चित समय पर मापा जाता है।

प्रश्न 4.
नियोजित और अनियोजित माल-सूची संचय में क्या अंतर है? किसी फर्म की माल-सूची और मूल्यवर्धित के बीच संबंध बताइए।
उत्तर:
नियोजित माल-सूची पूर्व निश्चित और नियोजित (प्रत्याशित) तरीके से होता है जबकि अनियोजित माल-सूची संचय अप्रत्याशित और अनियोजित (यथार्थ) होता है। उदाहरण के लिए, आदिनाथ टैक्सटाइल्स लि०, जो कपड़ा बनाती है, अपनी माल-सूची को 1 लाख से 2 लाख मीटर तक करना चाहती है। यह माल-सूची का नियोजित संचय है। कारण 50 हज़ार मीटर कपड़ा नहीं बिक पाता है, तो आदिनाथ टैक्सटाइल्स के पास इच्छित माल-सूची के संचय के अलावा 50 हज़ार मीटर कपड़ा और बढ़ जाएगा। यह माल-सूची में अनियोजित संचय होगा।
मूल्यवर्धित से हमारा अभिप्राय वस्तुओं और सेवाओं के वर्तमान प्रवाह में फर्म के निवल योगदान से है। इस प्रकार,
सकल मूल्यवर्धित = कुल उत्पादन – मध्यवर्ती उपभोग
वैकल्पिक रूप से,
सकल मूल्यवर्धित = बिक्री + माल-सूची में परिवर्तन – मध्यवर्ती उपभोग
माल-सूची में परिवर्तन मूल्यवर्धित की मात्रा को दर्शाता है। यदि एक वर्ष में माल-सूची में परिवर्तन धनात्मक हैं तो मूल्यवर्धित अधिक होगा, क्योंकि माल-सूची में धनात्मक परिवर्तन वर्ष में हुए उत्पादन अथवा मूल्यवर्धित का ही परिणाम है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 5.
तीनों विधियों से किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद की गणना करने की कोई तीन निष्पत्तियाँ लिखिए। संक्षेप में यह भी बताइए कि प्रत्येक विधि से सकल घरेलू उत्पाद का एक-सा मूल्य क्या आना चाहिए?
उत्तर:
सकल घरेलू उत्पाद के आकलन की तीन विधियाँ और उसकी निष्पत्तियाँ (Identities) अग्रलिखित हैं-

विधियाँनिष्पत्तियाँ
(i) उत्पाद अथवा मूल्यवर्धित विधिGDP = \(\sum_{i-1}^{\mathrm{N}} \mathrm{GV} \mathrm{A}{ }_{i}\)
(ii) आय विधिGDP = \(\sum_{i-1}^{\mathrm{N}} \mathrm{RV}_{i}\)
= W + P + I + R
(iii) व्यय विधिGDP = \(\sum_{i-1}^{N} \mathrm{GV} \mathrm{A}_{i}\)
= C + I + G + X – M

प्रत्येक अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय के चक्रीय (वर्तुल) प्रवाह के तीन चरण-उत्पाद, आय और व्यय एक-दूसरे के बराबर होते हैं। इसलिए तीनों विधियाँ घरेलू उत्पाद का एक जैसा मूल्य ही प्रदान करेंगी।

प्रश्न 6.
बजटीय घाटा और व्यापार घाटा को परिभाषित कीजिए। किसी विशेष वर्ष में किसी देश की कुल बचत के ऊपर निजी निवेश का आधिक्य 2000 करोड़ रुपए था। बजटीय घाटे की राशि 1500 करोड़ रुपए थी। उस देश के बजटीय घाटे का परिमाण क्या था?
उत्तर:
बजटीय घाटे से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें सरकार का कुल व्यय उसकी कुल प्राप्तियों से अधिक होता है। व्यापार घाटे से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें एक देश का आयात उसके निर्यात से अधिक होता है। अर्थात्
बजटीय घाटा = सरकारी व्यय – सरकारी प्राप्तियाँ
व्यापार घाटा = आयात – निर्यात
एक अर्थव्यवस्था में बजटीय घाटा और व्यापार घाटा एक-दूसरे से संबंधित हैं। इस प्रकार बजटीय घाटे से हम व्यापार घाटा निकाल सकते हैं।
व्यापार घाटा = आयात (M) – निर्यात (X)
व्यापार घाटा = निवेश (I) – बचत (S)
इस प्रकार,
M – X = (I – S) + G – T
= 2,000 + 1,500 = 3,500 करोड़ रुपए
व्यापार घाटा = 3,500 करोड़ रुपए

प्रश्न 7.
मान लीजिए कि किसी विशेष वर्ष में किसी देश का सकल घरेलू उत्पाद बाज़ार कीमत पर 1100 करोड़ रुपए था। विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय 100 करोड़ रुपए था। अप्रत्यक्ष कर मूल्य-उपदान का मूल्य 150 करोड़ रुपए और राष्ट्रीय आय 850 करोड़ रुपए है, तो मूल्यहास के समस्त मूल्य की गणना कीजिए।
हल:
बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद = 1,100 करोड़ रुपए
विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय = 100 करोड़ रुपए
शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = 150 करोड़ रुपए
राष्ट्रीय आय = 850 करोड़ रुपए
राष्ट्रीय आय = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद + विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर – मूल्यह्रास 850
= 1,100 + 100 – 150 – मूल्यह्रास
मूल्यह्रास = 1,100 + 100 – 150 – 850
= 1,200 – 1,000
= 200 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 8.
किसी देश विशेष में एक वर्ष में कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद 1900 करोड़ रुपए है। फर्मों/सरकार के द्वारा परिवार को अथवा परिवार के द्वारा सरकार/फर्मों को किसी भी प्रकार की ब्याज अदायगी नहीं की जाती है, परिवारों की वैयक्तिक प्रयोज्य आय 1200 करोड़ रुपए है। उनके द्वारा अदा किया गया वैयक्तिक आय कर 600 करोड़ रुपए है और फर्मों तथा सरकार द्वारा अर्जित आय का मूल्य 200 करोड़ रुपए है। सरकार और फर्मों द्वारा परिवार को की गई अंतरण अदायगी का मूल्य क्या है?
हल:
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद – अवितरित लाभ – वैयक्तिक आय कर + सरकार और फर्मों द्वारा परिवार को की गई अंतरण अदायगी
1,200 = 1,900-600-200 + अंतरण अदायगी
1,200 = 1,100 + अंतरण अदायगी
अंतरण अदायगी = 1,200-1,100
= 100 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 9.
निम्नलिखित आँकड़ों से वैयक्तिक आय और वैयक्तिक प्रयोज्य आय की गणना कीजिए

(करोड़ रुपए में)
(a) कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद8000
(b) विदेर्शों से प्राप्त निवल कारक आय200
(c) अवितरित लाभ1000
(d) निगम कर500
(e) परिवारों द्वारा प्राप्त ब्याज1500
(f) परिवारों द्वारा भुगतान किया गया ब्याज1200
(g) अंतरण आय300
(h) वैयक्तिक कर500

हल:
वैयक्तिक आय = कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद + विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय – अवितरित लाभ + परिवारों द्वारा प्राप्त ब्याज + अंतरण आय – परिवारों द्वारा भुगतान किया गया ब्याज – निगम कर
= 8,000 + 200 – 1,000 + 1,500 + 300 – 1,200 – 500
= 10,000 – 2,700
वैयक्तिक आय = 7,300 करोड़ रुपए उत्तर
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय – वैयक्तिक कर
= 7,300 – 500
= 6,800 करोड़ रुपए उत्तर

प्रश्न 10.
हजाम राजू एक दिन में बाल काटने पर 500 रुपए का संग्रह करता है। इस दिन उसके उपकरण में 50 रुपए का मूल्यहास होता है। इस 450 रुपए में से राजू 30 रुपए बिक्री कर अदा करता है। 200 रुपए घर ले जाता है और 220 रुपए उन्नति और नए उपकरणों का क्रय करने के लिए रखता है। वह अपनी आय में से 20 रुपए आय कर के रूप में अदा करता है। इन पूरी सूचनाओं के आधार पर निम्नलिखित में राजू का योगदान ज्ञात कीजिए-(a) सकल घरेलू उत्पाद (b) बाज़ार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद (c) कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद (a) वैयक्तिक आय (e) वैयक्तिक प्रयोज्य आय।
उत्तर:
(a) सकल घरेलू उत्पाद बाज़ार कीमत पर
= कुल प्राप्ति
= 500 रुपए उत्तर
सकल घरेलू उत्पाद कारक लागत पर = सकल घरेलू उत्पाद बाज़ार कीमत पर – अप्रत्यक्ष कर
= 500 – 30
= 470 रुपए उत्तर

(b) बाज़ार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद
= सकल घरेलू उत्पाद बाज़ार कीमत पर – मूल्यह्रास
= 500 – 50
= 450 रुपए उत्तर

(c) कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद
= बाज़ार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद – अप्रत्यक्ष कर
= 450 – 30
= 420 रुपए उत्तर

(d) वैयक्तिक आय
= कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद – अवितरित लाभ
= 420 – 220
= 200 रुपए उत्तर

(e) वैयक्तिक’प्रयोज्य आय
= वैयक्तिक आय – वैयक्तिक कर
= 200 – 20
= 180 रुपए उत्तर

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 11.
किसी वर्ष एक अर्थव्यवस्था में मौद्रिक सकल राष्ट्रीय उत्पाद का मूल्य 2500 करोड़ रुपए था। उसी वर्ष, उस देश के सकल राष्ट्रीय उत्पाद का मूल्य किसी आधार वर्ष की कीमत पर 3000 करोड़ रुपए था। प्रतिशत के रूप में वर्ष के सकल घरेलू उत्पाद अवस्फीतिक के मूल्य की गणना कीजिए। क्या आधार वर्ष और उल्लेखनीय वर्ष के बीच कीमत स्तर में वृद्धि हुई?
हल:
सकल घरेलू उत्पाद अवस्फीतिक (GDP Deflator) का मूल्य-
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन 2
चूंकि सकल घरेलू उत्पाद अवस्फीतिक का मान 100% से कम है तो इसका अभिप्राय यह है कि कीमत स्तर में कोई वृद्धि नहीं हुई है, बल्कि कीमत स्तर में गिरावट आई है।

प्रश्न 12.
किसी देश के कल्याण के निर्देशांक के रूप में सकल घरेलू उत्पाद की कुछ सीमाओं को लिखो।
उत्तर:
किसी देश के कल्याण के निर्देशांक के रूप में सकल घरेलू उत्पाद की सीमाएँ निम्नलिखित हैं
1. GDP की संरचना-यदि GDP में वृद्धि युद्ध सामग्री (टैंक, बम, अस्त्र-शस्त्र आदि) के उत्पादन में वृद्धि के कारण है या जैसे मशीनरी, उपस्कर आदि के उत्पादन में वृद्धि के फलस्वरूप है तो इससे आर्थिक कल्याण में वृद्धि नहीं होगी।

2. कीमतों में वृद्धि-यदि GDP में वृद्धि केवल कीमतों में वृद्धि के फलस्वरूप हुई है तो यह आर्थिक कल्याण का सूचक (या मापक) नहीं होगा।

3. जनसंख्या वृद्धि की दर-यदि जनसंख्या में वृद्धि की दर GDP वृद्धि की दर से अधिक है तो प्रति व्यक्ति वस्तुओं व सेवाओं की उपलब्धि और आर्थिक कल्याण कम हो जाएगा।

4. बाह्य कारण इससे तात्पर्य व्यक्ति या फर्म द्वारा की गई क्रियाओं से है जिनका बुरा (या अच्छा) प्रभाव दूसरों पर पड़ता है लेकिन इसके दोषी दंडित नहीं होते। उदाहरण के लिए कारखानों द्वारा छोड़े गए धुएँ से पर्यावरण का दूषित होना, तेलशोधक कारखानों के गंदे तरल पदार्थों का तटवर्ती नदी में बहना और जल प्रदूषित करना। इन हानिकारक प्रभावों का GDP में मूल्यांकन नहीं किया जाता।

5. GDP (या राष्ट्रीय आय) का वितरण-मात्र GDP में वृद्धि आर्थिक कल्याण में वृद्धि प्रकट नहीं कर सकती क्योंकि इसके वितरण से अमीर अधिक अमीर और गरीब अधिक गरीब हो गए हैं। GDP में वृद्धि आर्थिक कल्याण का सूचक तभी बन पाएगी जब गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों की संख्या में निरंतर कमी हो।

6. GDP में कई वस्तुओं व सेवाओं का शामिल न होना-GDP में आर्थिक कल्याण बढ़ाने वाली विशेष रूप से गैर-बाज़ारी सौदों (Non-market Transactions) को शामिल नहीं किया जाता; जैसे गृहिणी की सेवाएँ, घरेलू बगीचे में सब्जियाँ उगाना, अध्यापक द्वारा अपने बेटे को पढ़ाना आदि।

राष्ट्रीय आय का लेखांकन HBSE 12th Class Economics Notes

→ प्रवाह-प्रवाह (Flow) से अभिप्राय ऐसे आर्थिक चरों (आय, उपभोग, बचत आदि) से है जिनका संबंध एक समयावधि (Time Period); जैसे प्रति सप्ताह, प्रतिमास, प्रतिवर्ष से होता है। आय एक प्रवाह धारणा है चूँकि यह प्रतिमास या प्रतिवर्ष समयावधि के रूप में मापी जाती है।

→ स्टॉक-स्टॉक (Stock) से अभिप्राय ऐसे आर्थिक चरों (राष्ट्रीय पूँजी, संपत्ति, देश की जनसंख्या, विदेशी ऋण, माल-सूची, खाद्यान्न भंडार आदि) से है जिनका संबंध समय के एक निश्चित बिंदु से है।

→ आय का चक्रीय प्रवाह-आय/उत्पाद के चक्रीय (Circular Flow of Income) प्रवाह से अभिप्राय यह है कि अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में वस्तुओं और सेवाओं तथा मुद्रा का प्रवाहित होना। प्रत्येक प्रवाह से ज्ञात होता है कि एक क्षेत्र दूसरे क्षेत्र पर कैसे निर्भर करता है।

→ आय के चक्रीय प्रवाह के दो मूल सिद्धांत-

  • विनिमय की किसी प्रक्रिया में उत्पादक-विक्रेता को मिली राशियाँ उतनी ही होती हैं जितनी उपभोक्ता-क्रेता खर्च करता है
  • वस्तुओं और सेवाओं का प्रवाह एक दिशा में और मुद्रा का प्रवाह दूसरी दिशा में होता है।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

→ अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रक-चक्रीय प्रवाह की दृष्टि से एक अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रक हैं-

  • गृहस्थ परिवार क्षेत्रक
  • उत्पादक क्षेत्रक
  • मुद्रा बाज़ार
  • सरकारी क्षेत्रक
  • शेष विश्व क्षेत्रक अथवा बाह्य क्षेत्रक।

→ दो क्षेत्रीय मॉडल-दो क्षेत्रीय मॉडल में अर्थव्यवस्था के दो क्षेत्रों-(i) परिवार क्षेत्र और (ii) उत्पादक क्षेत्र के बीच में होने वाली आय के चक्रीय प्रवाह का अध्ययन किया जाता है।

→ तीन क्षेत्रीय मॉडल-तीन क्षेत्रीय मॉडल में अर्थव्यवस्था के तीन क्षेत्रों (i) परिवार क्षेत्र, (ii) उत्पादक क्षेत्र और (iii) सरकारी क्षेत्र के बीच होने वाले आय के चक्रीय प्रवाह का अध्ययन किया जाता है।

→ चार क्षेत्रीय मॉडल-चार क्षेत्रीय मॉडल में अर्थव्यवस्था के चार क्षेत्रों-(i) परिवार क्षेत्र. (ii) उत्पादक क्षेत्र. (iii) सरकारी क्षेत्र और (iv) शेष विश्व क्षेत्र के बीच होने वाले आय के चक्रीय प्रवाह का अध्ययन किया जाता है।

→ चक्रीय प्रवाह के भरण-उपभोग, निवेश, निर्यात तथा सरकारी व्यय चक्रीय प्रवाह के महत्त्वपूर्ण भरण हैं। इन चरों में होने वाली वृद्धि अर्थव्यवस्था की आर्थिक क्रियाओं के स्तर में वृद्धि करती है।

→ चक्रीय प्रवाह के क्षरण-बचत, कर और आयात चक्रीय प्रवाह के मुख्य क्षरण हैं। इन चरों में होने वाली वृद्धि अर्थव्यवस्था की आर्थिक क्रियाओं के स्तर को कम कर देती है।

→ बंद अर्थव्यवस्था-ऐसी अर्थव्यवस्था जिसका शेष विश्व से कोई संबंध न हो, बंद अर्थव्यवस्था (Closed Economy) कहलाती है। यह एक अवास्तविक अवधारणा है।

→ खुली अर्थव्यवस्था-ऐसी अर्थव्यवस्था जिसका शेष विश्व से संबंध होता है, खुली अर्थव्यवस्था (Open Economy) कहलाती है। यह एक वास्तविक अवधारणा है। आयात आय के चक्रीय प्रवाह में छिद्र अथवा क्षरण का काम करते हैं तथा निर्यात भरण अथवा समावेश का कार्य करते हैं।

→ राष्ट्रीय आय लेखांकन-राष्ट्रीय आय लेखांकन राष्ट्रीय आय, उत्पाद तथा व्यय के संबंध का संख्यात्मक विवरण प्रस्तुत करने की विधि है।

→ पूँजीगत हस्तांतरण-ऐसे भुगतान देने वाले की संपत्ति और बचत से दिए जाते हैं तथा प्राप्तकर्ता की संपत्ति या बचत में जोड़ दिए जाते हैं। ये हस्तांतरण भुगतान पूँजी निर्माण के लिए दिए जाते हैं; जैसे सरकार द्वारा गृहस्थों को मकानों की क्षति के लिए मुआवजा और उद्यमों को निवेश अनुदान, दो देशों के बीच आर्थिक सहायता आदि।

→ पँजी उपभोग या मल्यहास-उत्पादन प्रक्रिया में जब पुँजीगत वस्तओं को बार-बार प्रयोग में लिया जाता है तो उसे सामान्य-फट और घिसावट के रूप में जाना जाता है। उत्पादक उत्पादन प्रक्रिया को लगातार चलाए रखने के लिए एक घिसावट कोष (Depreciation Fund) की स्थापना करता है।

→ विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय किसी देश के सामान्य निवासी विदेशों से जो कारक आय कमाते हैं तथा गैर-निवासी उस देश से जो कारक आय प्राप्त करते हैं, उसके अंतर को विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय (Net Factor Income Earned From Abroad-NFIA) कहते हैं।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

→ निवल अप्रत्यक्ष कर-निवल अप्रत्यक्ष कर (Net Indirect Taxes) अप्रत्यक्ष करों और आर्थिक सहायता (अनुदानों) का अंतर होता है अर्थात्
निवल अप्रत्यक्ष कर = अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता

→ बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद-सकल घरेलू उत्पाद एक लेखा वर्ष में एक देश की घरेलू सीमा में सभी उत्पादकों द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के बाज़ार मूल्य का जोड़ है।

→ बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद-यह किसी अर्थव्यवस्था की घरेलू सीमा में किसी देश के सामान्य निवासियों द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं के बाज़ार मूल्य तथा विदेशों से निवल कारक आय का जोड़ है।

→ बाज़ार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद बाज़ार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद किसी अर्थव्यवस्था की घरेलू सीमा में एक लेखा वर्ष में सामान्य निवासियों द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के बाज़ार मूल्य और मूल्यह्रास के अंतर तथा विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय का जोड़ है।

→ बाज़ार कीमत पर निवल घरेलू उत्पाद यह एक देश की घरेलू सीमा में सामान्य निवासियों तथा गैर-निवासियों द्वारा एक लेखा वर्ष में उत्पादित अंतिम वस्तुओं तथा सेवाओं के बाज़ार मूल्य तथा मूल्यह्रास का अंतर है।

→ कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद एक देश की घरेलू सीमा में भी सभी उत्पादकों द्वारा एक लेखा वर्ष में कारक लागत पर की गई निवल मूल्यवृद्धि है।

→ कारक लागत पर सकल घरेलू उत्पाद-यह एक लेखा वर्ष में किसी देश की घरेलू सीमा में सभी उत्पादकों द्वारा कारक लागत पर निवल मूल्यवृद्धि और अचल पूँजी के उपभोग के मूल्य का जोड़ है।

→ कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय आय-राष्ट्रीय आय एक देश के सामान्य निवासियों द्वारा देश की घरेलू सीमा तथा शेष विश्व से एक वर्ष में मजदूरी लगान, ब्याज और लाभ के रूप में अर्जित कारक आय के जोड़ से है तथा इसमें विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय सम्मिलित है।

→ आधार वर्ष-एक ऐसा वर्ष जिसमें कीमतें प्रायः स्थिर रही हों और कोई असाधारण घटनाएँ न हुई हों।

→ वैयक्तिक आय–वैयक्तिक आय व्यक्तियों द्वारा सभी स्रोतों से वास्तव में प्राप्त कारक आय तथा वर्तमान हस्तांतरण भुगतान का जोड़ है। वैयक्तिक प्रयोज्य आय-वैयक्तिक प्रयोज्य आय वह आय है जो परिवारों को सभी स्रोतों से वास्तव में प्राप्त होती है तथा उनके पास सरकार द्वारा उनकी आय तथा संपत्तियों पर लगाए गए सभी प्रकार के करों का भुगतान करने के बाद बचती है।

→ राष्ट्रीय आय को मापने की प्रमुख विधियाँ-

  • आय विधि (Income Method)
  • उत्पाद अथवा मूल्यवृद्धि विधि (Product or Value Added Method)
  • व्यय विधि (Expenditure Method)।

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HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Pathit Avbodhanam पठित-अवबोधनम् Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

(क) श्लोकस्य हिन्दीभाषायां व्याख्या

अधोलिखितश्लोकस्य हिन्दीभाषायां व्याख्या कार्या

1. अधोलिखितश्लोकस्य हिन्दीभाषया सरलार्थं कार्यम्
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्॥

प्रसंग-प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शाश्वती द्वितीयो भागः’ के ‘कर्मगौरवम्’ नामक पाठ से लिया गया है। यह श्लोक महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित ‘श्रीमदभगवद्गीता’ से संकलित है। इसमें कर्म के गौरव को प्रतिपादित किया गया है।

सरलार्थ-हे अर्जुन! बुद्धियुक्त अर्थात् समत्व बुद्धि को प्राप्त मनुष्य, इस संसार में पुण्य और पाप दोनों प्रकार के कार्यों में आसक्ति को छोड़ देता है। इसलिए तू समत्व योग के लिए प्रयत्न कर । कर्मों में कुशलता का नाम ही योग (अनासक्तिनिष्काम योग) है।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

2. तं भूपतिर्भासुरहेमराशिं लब्धं कुबेरादभियास्यमानात्।
दिदेश कौत्साय समस्तमेव पादं सुमेरोरिव वज्रभिन्नम्॥

व्याख्या-प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘रघुकौत्ससंवाद:’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ महाकवि कालिदास द्वारा रचित ‘रघुवंशमहाकाव्यम्’ के पञ्चम सर्ग से सम्पादित किया गया है। प्रस्तुत श्लोक में वर्णन किया गया है कि कुबेर ने राजा रघु के आक्रमण के भय से उसके खजाने को सुवर्ण मुद्राओं से भर दिया।

राजा रघु ने आक्रमण किए जाने वाले कुबेर से प्राप्त, वज्र के द्वारा टुकड़े किए गए सुमेरु पर्वत के चतुर्थ भाग के समान प्रतीत हो रही, उन चमकती हुई समस्त सुवर्ण मुद्राओं को कौत्स के लिए दे दिया।

भावार्थ यह है कि कुबेर ने रघु के आक्रमण के भय से उसके खजाने को सुवर्ण मुद्राओं से भर दिया। वे सुवर्ण मुद्राएँ परिमाण में इतनी अधिक थी कि ऐसा लगता था मानो सुमेरु पर्वत को ही वज्र से काटकर उसका चौथा हिस्सा खजाने में रख दिया। महाराज रघु ने कुबेर से प्राप्त हुई सभी सुवर्ण मुद्राएँ याचक कौत्स को प्रदान कर दी अर्थात् चौदह करोड़ ही न देकर पूरा खजाना ही कौत्स को सौंप दिया।

3. तथेति तस्यावितथं प्रतीतः प्रत्यग्रहीत्सङ्गममग्रजन्मा।
गामात्तसारां रघुरप्यवेक्ष्य निष्क्रष्टुमर्थं चकमे कुबेरात्॥

व्याख्या- प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘रघुकौत्ससंवादः’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ महाकवि कालिदास द्वारा रचित ‘रघुवंशमहाकाव्यम्’ के पञ्चम सर्ग से सम्पादित किया गया है। प्रस्तुत श्लोक में वर्णन किया गया है कि राजा रघु ने कौत्स की याचना को पूर्ण करने के लिए धन के स्वामी कुबेर पर आक्रमण कर उसका धन हरण कर लेने की इच्छा की।

ब्राह्मण कौत्स ने प्रसन्न होकर उस राजा रघु के सत्यवचन / प्रतिज्ञा को ‘ठीक है’ यह कहकर स्वीकार किया। रघु ने भी पृथिवी को प्राप्तधन वाली देखकर कुबेर से धन छीन लेने की इच्छा की।

भावार्थ यह है कि याचक कौत्स और दाता रघु दोनों को परस्पर विश्वास है। कौत्स ने रघु के वचनों को सत्य प्रतिज्ञा के रूप में ग्रहण किया। रघु ने कौत्स की याचना के पूर्ण करने हेतु धन के स्वामी कुबेर पर आक्रमण कर उसका धन हरण कर लेने की इच्छा की।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

4. निर्बन्धसञ्जातरुषार्थकार्यमचिन्तयित्वा गुरुणाहमुक्तः।
वित्तस्य विद्यापरिसंख्यया मे कोटीश्चतस्रो दश चाहरेति॥

व्याख्या-प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘रघुकौत्ससंवादः’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ महाकवि कालिदास द्वारा रचित ‘रघुवंशमहाकाव्यम्’ के पञ्चम सर्ग से सम्पादित किया गया है। प्रस्तुत श्लोक में ऋषि वरतन्तु ने शिष्य कौत्स को चौदह करोड़ सुवर्ण मुद्राएँ गुरुदक्षिणा में समर्पित करने का आदेश दिया है।

कौत्स महाराज रघु से शेष वृत्तान्त निवेदन करते हुए कहता है-“मेरे बार-बार प्रार्थना (जिद्द) करने से क्रोधित हुए गुरु जी ने मेरी निर्धनता का विचार किए बिना मुझे कहा कि चौदह विद्याओं की संख्या के अनुसार तुम चौदह करोड़ सुवर्ण मुद्राएँ ले आओ।”

भावार्थ यह है कि गुरुदेव वरतन्तु को न धन का लोभ था, न विद्या का अभिमान। परन्तु शिष्य कौत्स की बार-बार जिद्द ने उन्हें क्रोधित कर दिया और उन्होंने कौत्स को पढ़ाई गई चौदह विद्याओं के प्रतिफल में चौदह करोड़ सुवर्ण मुद्राएँ गुरुदक्षिणा में समर्पित करने का आदेश दे दिया।

5. अन्धन्तमः प्रविशन्ति येऽविद्यामुपासते।
ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायां रताः॥

प्रसंगः-प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘विद्ययाऽ-मृतमश्नुते’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ ‘ईशोपनिषद्’ से संकलित है। इस मन्त्र में बताया गया है कि केवल अविद्या = भौतिक विद्या अथवा केवल विद्या = अध्यात्म विद्या में लगे रहना अन्धकार में पड़े रहने के समान है।

व्याख्या-जो लोग केवल अविद्या अर्थात् भौतिक साधनों की प्राप्ति कराने वाले ज्ञान की उपासना करते हैं, वे घोर अन्धकार में प्रवेश करते हैं। परन्तु उनसे भी अधिक घोर अन्धकारमय जीवन उन लोगों का होता है, जो केवल विद्या अर्थात् अध्यात्म ज्ञान प्राप्त करने में ही लगे रहते हैं।

अविद्या और विद्या वेद के विशिष्ट शब्द हैं। ‘अविद्या’ से तात्पर्य है शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायता करने वाला ज्ञान। ‘विद्या’ का अर्थ है, आत्मा के रहस्य को प्रकट करने वाला अध्यात्म ज्ञान। वेद मन्त्र का तात्पर्य है कि यदि व्यक्ति केवल भौतिक साधनों को जुटाने का ज्ञान ही प्राप्त करता है और ‘आत्मा’ के स्वरूपज्ञान को भूल जाता है तो बहुत बड़ा अज्ञान है, उसका जीवन अन्धकारमय है। परन्तु जो व्यक्ति केवल अध्यात्म ज्ञान में ही मस्त रहता है, उसकी दुर्दशा तो भौतिक ज्ञान वाले से भी अधिक दयनीय होती है। क्योंकि भौतिक साधनों के अभाव में शरीर की रक्षा भी कठिन हो जाएगी। अतः वेदमन्त्र का स्पष्ट संकेत है कि भौतिक ज्ञान तथा अध्यात्म ज्ञान से युक्त सन्तुलित जीवन ही सफल और आनन्दित जीवन है।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

6. स्वायत्तमेकान्तगुणं विधात्रा विनिर्मितं छादनमज्ञतायाः।
विशेषतः सर्वविदां समाजे विभूषणं मौनमपण्डितानाम्॥

प्रसंग-प्रस्तुत पद्य ‘सूक्ति-सुधा’ नामक पाठ से संगृहीत है। इस पद्य के रचयिता महाकवि भर्तृहरि हैं। इस पद्य में मौन का महत्त्व बताया गया है।
व्याख्या-विधाता ने स्वतन्त्र, अद्वितीय गुण वाला, अज्ञान को ढकने वाला मौन नामक गुण बनाया है। विशेष रूप से विद्वानों की सभा में तो यह मौन मूों का आभूषण बन जाता है।

“एक चुप सो सुख’ हिन्दी की इस कहावत का मूल भाव इस पद्य में है। यह मौन अद्वितीय विशेषताओं वाला है। यह अज्ञान को ढक देता है। विद्वानों की सभा में यदि कोई मूर्ख मनुष्य बैठा हो और वह वहाँ बैठकर चुप रहे तब यह मौन उस मूर्ख का आभूषण बन जाता है और दूसरे लोग इस चुप रहने वाले मूर्ख को विद्वान् ही समझते हैं।

7. विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह।
अविद्यया मृत्यु तीा विद्ययाऽमृतमश्नुते॥

प्रसंग-प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ ‘ईशोपनिषद्’ से संकलित है। इस मन्त्र में अध्यात्मज्ञान तथा व्यावहारिक ज्ञान द्वारा सन्तुलित जीवन यापन करने का आदेश दिया है।

व्याख्या-जो मनुष्य विद्या अर्थात् अध्यात्मज्ञान तथा अविद्या अर्थात् अध्यात्म ज्ञान से भिन्न सभी प्रकार का व्यावहारिक ज्ञान, दोनों को एक साथ जानता है। वह व्यावहारिक ज्ञान द्वारा मृत्यु को पारकर अध्यात्म ज्ञान द्वारा जन्ममृत्यु के दुःख से रहित अमरत्व को प्राप्त करता है।

‘विद्या’ और ‘अविद्या’-ये दोनों शब्द विशिष्ट वैदिक प्रयोग हैं। ‘विद्या’ शब्द का प्रयोग यहाँ ‘अध्यात्म ज्ञान’ के अर्थ में हुआ है। इस जड़-चेतन जगत् में सर्वत्र व्याप्त परमात्मा तथा शरीर में व्याप्त जीवात्मा के ज्ञान को अध्यात्म ज्ञान कहा जाता है। यह मोक्षदायी यथार्थ ज्ञान ही ‘विद्या’ है। इससे भिन्न सभी प्रकार के ज्ञान को ‘अविद्या’ नाम दिया गया है।

अध्यात्म ज्ञान से भिन्न सृष्टिविज्ञान, यज्ञविज्ञान, भौतिकविज्ञान, आयुर्विज्ञान, गणितविज्ञान, अर्थशास्त्र, प्रौद्योगिकी, सूचनातन्त्र आदि सभी प्रकार का ज्ञान ‘अविद्या’ शब्द में समाहित हो जाता है। यह अध्यात्मेतर ज्ञान मनुष्य को मृत्यु दुःख से छुड़वाता है और इसी अध्यात्म ज्ञान द्वारा मनुष्य फिर अमरत्व अर्थात् मोक्ष को प्राप्त कर लेता है, जन्म-मरण के चक्र से छूट जाता है। इस प्रकार यह दोनों प्रकार का ज्ञान ही मनुष्य के लिए आवश्यक है, तभी वह इहलोक तथा परलोक दोनों को सिद्ध कर सकता है।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

8. तमध्वरे विश्वजिति क्षितीशं निःशेषविश्राणितकोषजातम्।
उपात्तविद्यो गुरुदक्षिणार्थी कौत्सः प्रपेदे वरतन्तुशिष्यः॥

प्रसंग-प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘रघुकौत्ससंवादः’ नामक पाठ से लिया गया है। यह श्लोक महाकवि कालिदास द्वारा रचित ‘रघुवंशमहाकाव्यम्’ के पञ्चम सर्ग से सम्पादित किया गया है। यह श्लोक ऋषि वरतन्तु के शिष्य कौत्स तथा महाराजा रघु के बीच हुए संवाद का अंश है।

व्याख्या-‘विश्वजित्’ नामक यज्ञ में अपनी सम्पूर्ण धनराशि दान कर चुके उस राजा रघु के पास वरतन्तु ऋषि का विद्यासम्पन्न शिष्य कौत्स गुरुदक्षिणा देने की इच्छा से धनयाचना करने के लिए पहुँचा।।

प्राचीन काल में राजा लोग ‘विश्वजित्’ यज्ञ करते थे। राजा रघु ने भी यह यज्ञ किया और अपना सम्पूर्ण खजाना (राजकोष-धनधान्य) दान कर दिया। तभी वरतन्तु का शिष्य कौत्स भी राजा के पास इस आशा में पहुँचा कि वह अपने गुरु को गुरुदक्षिणा में देने के लिए चौदह करोड़ स्वर्णमुद्राएँ राजा रघु से माँग लेगा।

9. न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥

प्रसंग-प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘कर्मगौरवम्’ नामक पाठ से लिया गया है। यह श्लोक महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ से संकलित है। इसमें कर्म के गौरव को प्रतिपादित किया गया है।

व्याख्या-हे अर्जुन ! कोई भी पुरुष कभी भी थोड़ी देर के लिए भी, बिना कर्म किए नहीं रहता है। नि:संदेह सब लोग प्रकृति से उत्पन्न हुए (स्वभाव अनुसार) गुणों द्वारा विवश होकर कर्म करते हैं।

कर्म करना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। जब मनुष्य शरीर से कर्म नहीं करता, निठल्ला पड़ा रहता है, तब भी वह मन से तो कार्य करता ही है। अतः पूर्ण चेतना से निष्काम कर्म ही करना चाहिए। निठल्ले कभी नहीं रहना चाहिए।

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(ख) गद्यांशस्य हिन्दीभाषायां व्याख्या
अधोलिखित गद्यांशस्य हिन्दीभाषायां व्याख्या कार्या

1. राजवचनमनुगच्छति जनो भयात्।उपदिश्यमानमपि ते न शृणवन्ति।
अवधीरयन्तः खेदयन्ति हितोपदेशदायिनो गुरून्।

व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शाश्वती’ द्वितीयो भागः’ के शुकनासो पदेश: नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ संस्कृत के महान् गद्यकार बाणभट्ट की प्रसिद्ध रचना ‘कादम्बरी’ से सम्पादित है। प्रस्तुत अंश में मन्त्री शुकनास युवराज चन्द्रापीड को उपदेश करते हुए कहते हैं कि- हे राजकुमार चन्द्रापीड, लोग प्रायः भय के कारण राजा के वचनों का ही अनुसरण करते हैं। उपदेश देते हुए (विद्वान्) को भी वे सुनते नहीं हैं। हितकारी उपदेश करने वाले गुरुओं का तिरस्कार करते हुए उन्हें खिन्न कर देते हैं।

2. यौवनारम्भे च प्रायः शास्त्रजलप्रक्षालन-निर्मलापि
कालुष्यमुपयाति बुद्धिः। नाशयति च पुरुषमत्यासङ्गो विषयेषु।

व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक शाश्वती द्वितीयो भाग का ‘शुकनासो पदेशः’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ संस्कृत के महान् गद्यकार बाणभट्ट की सुप्रसिद्ध रचना ‘कादम्बरी’ से सम्पादित है। प्रस्तुत अंश में मन्त्री शुकनास युवराज चन्द्रापीड को उपदेश देते हुए कहते हैं कि-युवावस्था के आरम्भ में मनुष्य की बुद्धि शास्त्ररूपी जल में घुलने के कारण स्वच्छ होती हुई भी प्रायः दोषपूर्ण हो जाती है और विषयों में अति आसक्ति मनुष्य का विनाश कर देती है।

3. तदतिकुटिलचेष्टादारुणे राज्यतन्त्रे, अस्मिन् महामोहकारिणि च यौवने कुमार। तथा प्रयतेथाः यथा नोपहस्यसे जनैः, न निन्द्यसे साधुभिः, न धिविक्रयसे गुरुभिः, नोपालभ्यसे सुहृद्भिः, न वञ्च्यसे धूतैः।

व्याख्या-प्रस्तुत पाठ्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘शुकनाशोपदेशः’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ संस्कृत के महान् गद्यकार बाणभट्ट की प्रसिद्ध रचना ‘कादम्बरी’ से सम्पादित है। प्रस्तुत अंश में मन्त्री शुकनास युवराज चन्द्रापीड को उपदेश करते हुए कहते हैं कि हे राजकमार चन्द्रापीड ! इसीलिए अत्यन्त कुटिल चेष्टाओं से युक्त इस कठोर राज्यतन्त्र में और इस महामूर्छा पैदा करने वाली युवावस्था में तुम वैसा प्रयत्न करना जिससे तुम जनता की हँसी के पात्र न बनो। सज्जन तुम्हारी निन्दा न करें। गुरु लोग तुम्हें धिक्कार न कहें। मित्र लोग तुम्हें उपालम्भ (लाम्भा, उलाहना) न दें। धूर्त तुम्हें ठग न सकें। अर्थात् तुम राजसुख में डूब कर अपने कर्तव्य से कभी विमुख मत होना।

4. अपरे तु स्वार्थनिपादनपरैः दोषानपि गुणपक्षमध्यारोपयद्भिः प्रतारणकुशलैयूं तैः प्रतार्यमाणा वित्तमदमत्तचित्ता सर्वजनोपहास्यतामुपयान्ति। न मानयन्ति मान्यान्, जरावैक्लव्यप्रलपितमिति पश्यन्ति वृद्धोपदेशम्।

व्याख्या-प्रस्तुत पाठ्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘शुकनाशोपदेशः’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ संस्कृत के महान् गद्यकार बाणभट्ट की प्रसिद्ध रचना ‘कादम्बरी’ से सम्पादित है। प्रस्तुत अंश में मन्त्री शुकनास युवराज चन्द्रापीड को उपदेश करते हुए कहते हैं कि हे राजकमार चन्द्रापीड ! कुछ राजा लोग तो स्वार्थ सिद्ध करने में तत्पर, दोषों में गुणों को आरोपित करने वाले, ठग-विद्या में अतिनिपुण, धूर्तबुद्धि लोगों के द्वारा ठगे जाते हुए धन के मद से उन्मत्त चित्त वाले होकर सब लोगों की हँसी के पात्र बनते हैं। वे मानवीय लोगों का सम्मान नहीं करते। वृद्धों के उपदेश को, यह मानकर देखते हैं कि यह तो उनका बुढ़ापे में बड़बड़ाना है।
भाव यह है कि राजा को अपने विवेक से ही प्रजा के हित में कार्य करने चाहिए तथा स्वार्थी मन्त्रियों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए।

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5. गर्भेश्वरत्वमभिनवयौवनत्वम् अप्रतिमरूपत्वममानुषंशक्तित्वञ्चेति महतीयं खल्वनर्थपरम्परा। यौवनारम्भे घ प्रायः शास्त्रजलप्रक्षालननिर्मलापि कालुष्यमुपयाति बुद्धिः। नाशयति च पुरुषमत्यासङ्गो विषयेषु।

व्याख्या-प्रस्तुत पाठ्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘शुकनाशोपदेशः’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ संस्कृत के महान् गद्यकार बाणभट्ट की प्रसिद्ध रचना ‘कादम्बरी’ से सम्पादित है। प्रस्तुत अंश में मन्त्री शुकनास युवराज चन्द्रापीड को उपदेश करते हुए अनर्थ के चार कारणों की ओर ध्यान दिला रहे हैं। मन्त्री शुकनास कहते हैं कि अनर्थ की परम्परा के चार कारण हैं
(i) जन्म से ही प्रभुता
(ii) नया यौवन
(iii) अति सुन्दर रूप
(iv) अमानुषी शक्ति।
इन चारों में से मनुष्य का विनाश करने के लिए कोई एक कारण भी पर्याप्त होता है। जिसके जीवन में ये चारों ही कारण उपस्थित हों, उसके बिनाश को कौन रोक सकता है ? इसीलिए प्रत्येक मनुष्य को घोर अनर्थ से बचने के लिए उक्त चारों वस्तुएँ पाकर से कभी अहंकार नहीं करना चाहिए। युवावस्था के प्रारम्भ में मनुष्य की बुद्धि शास्त्ररूपी जल से धुलने के कारण स्वच्छ होती हुई भी प्राय: दोषपूर्ण हो जाती है। और विषयों में अति आसक्ति मनुष्य का विनाश कर देती है।

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6. एवं समतिक्रामत्सु दिवसेषु राजा चन्द्रापीडस्य यौवराज्याभिषेकं चिकीर्षुः प्रतीहारानुपकरण सम्भारसंग्रहार्थमादिदेश। समुपस्थितयौवराज्याभिषेकं च तं कदाचिद् दर्शनार्थमागतमारूढविनयमपि विनीततरमिच्छन् कर्तुं शुकनासः सविस्तरमुवाच।

प्रसंग-प्रस्तुत पाठ्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘शुकनाशोपदेशः’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ संस्कृत के महान् गद्यकार बाणभट्ट की प्रसिद्ध रचना ‘कादम्बरी’ से सम्पादित है। इस पाठ में राजा तारापीड का अनुभवी मन्त्री राजकुमार चन्द्रापीड को राज्याभिषेक से पूर्व हितैषी भाव से उपदेश देते हैं। वे उसे युवावस्था में रूप, यौवन, प्रभुता तथा ऐश्वर्य से उत्पन्न होने वाले स्वाभाविक दोषों के विषय में सावधान कर देना अपना कर्तव्य समझते हैं।

व्याख्या-इस प्रकार कुछ दिन बीत जाने पर राजा तारापीड ने राजकुमार चन्द्रापीड को राजतिलक करने की इच्छा से द्वारपालों को आवश्यक सामग्री-समूह के संग्रह करने के लिए आदेश दिया। जिसके राजतिलक समय निकट ही आ चुका था, जो कदाचित् मन्त्री शुकनास का दर्शन करने के लिए आया था-ऐसे उस विनयसम्पन्न (विशेष नीति से युक्त) राजकुमार चन्द्रापीड को और भी अधिक विनयवान् बनाने की इच्छा वाले शुकनास ने विस्तारपूर्वक कहा।

7 भवादृशा एव भवन्ति भाजनान्युपदेशानाम्। अपगतमले हि मनसि विशन्ति सुखेनोपदेशगुणाः। हरति अतिमलिनमपि दोषजातं गुरूपदेशः गुरूपदेशश्च नाम अखिलमलप्रक्षालनक्षमम् अजलं स्नानम्। विशेषेण तु राज्ञाम्। विरला हि तेषामुपदेष्टारः।

प्रसंग-प्रस्तुत पाठ्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘शुकनाशोपदेशः’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ संस्कृत के महान् गद्यकार बाणभट्ट की प्रसिद्ध रचना ‘कादम्बरी’ से सम्पादित है। इस पाठ में राजा तारापीड का अनुभवी मन्त्री राजकुमार चन्द्रापीड को राज्याभिषेक से पूर्व हितैषी भाव से उपदेश देते हैं। वे उसे युवावस्था में रूप, यौवन, प्रभुता तथा ऐश्वर्य से उत्पन्न होने वाले स्वाभाविक दोषों के विषय में सावधान कर देना अपना कर्तव्य समझते हैं।

व्याख्या-मन्त्री शुकनास राजकुमार चन्द्रापीड से कहते हैं-हे बेटा, चन्द्रापीड! आप जैसे व्यक्ति ही उपदेशों के पात्र होते हैं। निर्दोष मन में ही उपदेश के गुण सुखपूर्वक प्रवेश करते हैं। गुरु का उपदेश अत्यन्त मलिन दोषसमूह को भी दूर कर देता है। गुरु का उपदेश सम्पूर्ण मलों को धोने में समर्थ जलरहित स्नान है। (अर्थात् जैसे पानी से स्नान करने पर बाहर के सब मैल धुल जाते हैं, वैसे ही गुरु के उपदेश से सब आन्तरिक दोष दूर हो जाते हैं।) ये उपदेश राजाओं के लिए तो विशेष रूप से लाभकारी होते है; क्योंकि उन्हें उपदेश देने वाले बहुत कम लोग होते हैं।

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8. आलोकयतु तावत् कल्याणाभिनिवेशी लक्ष्मीमेव प्रथमम्। न ह्येवं-विधमपरिचितमिह जगति किञ्चिदस्ति यथेयमनार्या। लब्धापि खलु दुःखेन परिपाल्यते। परिपालितापि प्रपलायते। न परिचयं रक्षति। नाभिजनमीक्षते। न रूपमालोकयते। न कुलक्रममनुवर्तते। न शीलं पश्यति। न वैदग्ध्यं गणयति। न श्रुतमाकर्णयति। न धर्ममनुरुध्यते। न त्यागमाद्रियते।

प्रसंग-प्रस्तुत पाठ्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘शुकनाशोपदेशः’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ संस्कृत के महान् गद्यकार बाणभट्ट की प्रसिद्ध रचना ‘कादम्बरी’ से सम्पादित है। इस पाठ में राजा तारापीड का अनुभवी मन्त्री राजकुमार चन्द्रापीड को राज्याभिषेक से पूर्व हितैषी भाव से उपदेश देते हैं। वे उसे युवावस्था में रूप, यौवन, प्रभुता तथा ऐश्वर्य से उत्पन्न होने वाले स्वाभाविक दोषों के विषय में सावधान कर देना अपना कर्तव्य समझते हैं।

व्याख्या-हे चन्द्रापीड ! तुम कल्याण (मंगल) के लिए प्रयत्नशील हो, इसलिए पहले लक्ष्मी को ही विचार कर देखो। इस जैसी अपरिचित इस संसार में अन्य कोई वस्तु नहीं जैसी यह अनार्या लक्ष्मी है। इस लक्ष्मी को प्राप्त कर लेने पर भी, इसका महाकष्ट से पालन (रक्षण) करना पड़ता है और यह लक्ष्मी न परिचय की परवाह करती है, न कुलीन की ओर देखती है, न सौन्दर्य (रूप) को देखती है, न कुल-परम्परा का अनुगमन करती है। न सच्चरित्र को देखती है, न कुशलता (पाण्डित्य) की परवाह करती है। न शास्त्रज्ञान को सुनती है, न धर्म से रोकी जाती है, न त्याग (दान) को आदर देती है।

9. जनकः अये, शिष्टानध्याय इत्यस्खलितं खेलतां वटूनां कोलाहलः।
कौसल्याः सुलभसौख्यमिदानी बालत्वं भवति।
अहो, एतेषां मध्ये क एष रामभद्रस्य मुग्धललितैरङ्गैर्दारकोऽस्माकं लोचने
शीतलयति ?

प्रसंग-प्रस्तुत अंश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘बालकौतुकम्’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ संस्कृत के महान् नाटककार भवभूति के प्रसिद्ध नाटक ‘उत्तररामचरितम्’ के चतुर्थ अंक से सम्पादित किया गया है।

व्याख्या-वाल्मीकि आश्रम में अतिथि के रूप में, राजा जनक, महारानी कौशल्या तथा वशिष्ठ की पत्नी अरुन्धति आए हैं। वे आश्रम में बालकों के क्रीड़ा कौतूहल को देख रहे हैं। उन बालकों में सीता का पुत्र लव भी है, जिसका उन्हें पता नहीं है। यह अंश उनके वार्तालाप का ही है।

जनक कौशल्या से कहते हैं-अरे, बड़े लोगों के आने पर पढ़ाई में अवकाश होने के कारण, बेरोकटोक खेलते हुए छात्र-ब्रह्मचारियों का यह शोर है अर्थात् छुट्टी होने के कारण, सभी ब्रह्मचारी अनियन्त्रित होकर खेल रहे हैं।

कौसल्या जनकसे कहती हैं-इस बचपन में सुख सुलभ होता है अर्थात् बाल्यकाल में क्रीड़ा आदि सामान्य साधनों से ही सुख मिल जाता है। ओह, इन बालकों के बीच में यह कौन बालक, रामचन्द्र के समान सुन्दर और कोमल अंगों से हमारी आँखों को ठण्डा कर रहा है अर्थात् बाल्यावस्था में जैसा सुन्दर और कोमल रामभद्र था, वैसी ही आकृति वाला यह कौन बालक हमें आनन्द दे रहा है ?

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10. लवः (प्रविश्य, स्वगतम्) अविज्ञातवय:-क्रमौचित्यात् पूज्यानपि सतः कथमभिवादयिष्ये ? (विचिन्त्य) अयं पुनरविरुद्धप्रकार इति वृद्धेभ्यः श्रूयते। (सविनयमुपसृत्य) एष वो लवस्य शिरसा प्रणामपर्यायः।

प्रसंग-प्रस्तुत अंश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘बालकौतुकम्’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ संस्कृत के महान् नाटककार भवभूति के प्रसिद्ध नाटक ‘उत्तररामचरितम्’ के चतुर्थ अंक से सम्पादित किया गया है।

व्याख्या-वाल्मीकि आश्रम में अतिथि के रूप में, राजा जनक, महारानी कौशल्या तथा वशिष्ठ की पत्नी अरुन्धति आए हैं। वे आश्रम में बालकों के क्रीड़ा कौतूहल को देख रहे हैं। उन बालकों में सीता का पुत्र लव भी है, जिसका उन्हें पता नहीं है। यह अंश उनके वार्तालाप का ही है।

लव प्रवेश करके अपने मन में ही कहता है-आयु क्रम अर्थात् आयु में छोटे-बड़े का क्रम और उचितता का ज्ञान न होने से, पूजनीय होते हुए भी इनको मैं कैसे प्रणाम करूँ अर्थात् इनमें कौन वयोवृद्ध है और किसे प्रथम प्रणाम करना चाहिए ? यह मैं नहीं जानता, तो इन्हें कैसे प्रणाम करूँ? (सोच विचारकर) यह प्रणाम की विरोधहीन पद्धति है। ऐसा गुरुजनों से सुना जाता है। विनयपूर्वक राजा जनक तथा महारानी कौशल्या के पास जाकर कहता है कि यह आपको ‘लव’ का औचित्य क्रम के अनुसार प्रणाम है।

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(ग) पद्यांशं/पठित्वा-आधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि

अधोलिखितश्लोकं पठित्वा एतदाधारितानाम् प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत
1. कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः|
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे।
प्रश्ना:
(क) शतं समाः कथं जिजीविषेत् ?
(ख) अस्ति’ इति पदस्य कः पदपरिचयः ?
उत्तराणि
(क) शतं समाः कर्माणि कुर्वन् एव जिजी विषेत।
(ख) ‘अस्ति’ इतिपदस्य पद परिचयः-अस्धातु लटलकार प्रथमपुरुष एकवचने।

2. अन्धन्तमः प्रविशन्ति येऽविद्यामुपासते।
ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायां रताः।
प्रश्ना:
(क) के अन्धन्तमः प्रविशन्ति ?
(ख) ‘विद्यायाम्’ इति पदे कः शब्दः का विभक्तिश्च ?
उत्तराणि
(क) येऽविद्यामुपासते ते अन्धन्तमः प्रविशन्ति।।
(ख) ‘विद्यायाम्’ इति पदे – ‘विद्या’ शब्दः, ‘सप्तमी’ विभक्तिश्च ।

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3. विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः।
यशसि चाभिरुचिर्व्यसनं श्रुतौ प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम्।।
प्रश्नाः
(क) महात्मनाम् प्रकृतिसिद्धं किं भवति ?
(ख) ‘यशसि’ इति पदे का विभक्तिः कः शब्दश्च ?
उत्तराणि
(क) विपदि धैर्यम् महात्मनाम् प्रकृतिसिद्धं भवति ।
(ख) ‘यशसि’ इति पदे – ‘यशस्’ शब्दः, ‘सप्तमी’ विभक्तिश्च ।

4. स्वायत्तमेकान्तगुणं विधात्रा विनिर्मितं छादनमज्ञतायाः।
विशेषतः सर्वविदां समाजे विभूषणं मौनमपण्डितानाम्॥
प्रश्नाः
(क) अपण्डितानां विभूषणं किम् ?
(ख) ‘विधात्रा’ – इति पदे कः शब्दः का विभक्तिश्च ?
उत्तराणि
(क) अपण्डितानां विभूषणं मौनम् ।
(ख) ‘विधात्रा’ – इति पदे – ‘विधातृ’ शब्दः, ‘तृतीया’ विभक्तिश्च ।

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5. ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्।
(क) जगत्सर्वं कीदृशम् अस्ति?
(ख) सर्वम्’ इति पदे कः शब्दः का विभक्तिश्च ?
उत्तराणि:
(क) जगत्सर्वम् ईशावास्यम् अस्ति।
(ख) ‘सर्वम्’ – सर्व शब्दः प्रथमा विभक्तिश्च।

6. तदन्यतस्तावदनन्यकार्यो गुर्वर्थमाहर्तुमहं यतिस्ये।
स्वस्त्यस्तु ते निर्गलिताम्बुग) शरद्घनं नादति चातकोऽपि।
(क) चातकोऽपि कं न याचते ?
(ख) अहम्’ इति पदे का विभक्तिः किं वचनञ्च ?
उत्तराणि
(क) चातकोऽपि शरद्घनं न याचते।
(ख) ‘अहम्’ – प्रथमा विभक्तिः एकवचनञ्च।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

7. कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे।
(क) शतं समाः कथं जिजीविषेत् ?
(ख) त्वयि’ पदे कः शब्दः का विभक्तिश्च ?
उत्तराणि
(क) शतं समाः कर्माणि कुर्वन् एव जिजीविषेत् ।
(ख) ‘त्वयि’ – युष्मद् शब्दः सप्तमी विभक्तिश्च। ।

8. बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् ॥
(क) बुद्धियुक्तः के जहाति?
(ख) तस्मात्’ इति पदे कः शब्दः का विभक्तिश्च?
उत्तराणि
(क) बुद्धियुक्तः सुकृतदुष्कृते जहाति।
(ख) ‘तस्मात्’ – तद् शब्द: पञ्चमी विभक्तिश्च।

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9. पापान्निवारयति योजयते हिताय गुह्यं निगृहति गुणान् प्रकटीकरोति।
आपद्गतं च न जहाति ददाति काले सन्मित्रलक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्तः॥
(क) सन्मित्रं कस्मात् निवारयति ?
(ख) कः गुणान् प्रकटीकरोति ?
उत्तराणि
(क) सन्मित्रं पापात् निवारयति।
(ख) सन्मित्रं गुणान् प्रकटीकरोति ।

10. केयूराणि न भूषयन्ति पुरुषं द्वारा न चन्द्रोण्वलाः
न स्नानं न विलेपनं न कुसुमं नालंकृता मूर्धजाः।
वाण्येका समलंकरोति पुरुषं या संस्कृता धार्यते
क्षीयन्ते खलु भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम्॥
(क) पुरुषं का एका समलङ्करोति ?
(ख) कीदृशं भूषणं न क्षीयते ?
उत्तराणि
(क) एका संस्कृता वाणी पुरुषं समलङ्करोति ।
(ख) वाग्भूषणं न क्षीयते।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

11. सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्।
वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः॥
(क) परमापदां पदं कः ?
(ख) सम्पदः कं वृणते ?
उत्तराणि
(क) परमापदां पदम् अविवेकः ।
(ख) सम्पदः विमृश्यकारिणं वृणते।

12. कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः।
लोकसंग्रहमेवापि संपश्यन्कर्तुमर्हसि।।
(क) जनकादयः केन सिद्धिम् आस्थिता ?
(ख) संपश्यन् किम् कर्तुम् अर्हसि ?
उत्तराणि
(क) जनकादयः कर्मणा सिद्धिम् आस्थिताः ।
(ख) लोसंग्रहं पश्यन् कर्म कर्तुम् अर्हसि।

(घ) पठित गद्यांश पर आधारित प्रश्नोत्तर
अधोलिखित गद्यांशं पठित्वा एतदाधारितानाम् प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत

1. कदाचित् कदाचित्त्वयं क्रूरः ‘किन्तुः’मुखस्य कवलमप्याच्छिनत्ति।स्वल्पदिनानामेव वर्तास्ति।आयुर्वेदमार्तण्डस्य श्रीमतः स्वामिमहाभगस्य औषधिं निषेव्य अधुनैवाहं नीरोगोऽभवम्।
प्रश्ना:
(क) ‘किन्तुः’ कं आच्छिनत्ति ?
(ख) कस्य औषधि निषेव्य अधुनैवाह नीरोगोऽभवम् ?
उत्तराणि:
(क) ‘किन्तुः’ मुखस्य कवलमपि आच्छिन्नत्ति।
(ख) श्रीमतः स्वामिमहाभागस्य औषधिं निषेव्य अघुनैवाहं निरोगोऽभवत्।

2. अहं देशसेवां कर्तुं गृहान बहिरभवम्। मया निश्चितमासीत् ‘एतावन्ति दिनानि स्वोदरसेवायै क्लिष्टोऽभवम्। इदानीं कियन्तं कालं देशसेवायामपि लक्ष्यं ददामि।
प्रश्ना:
(क) किमर्थं बहिरभवम् ?
(ख) किमर्थं क्लिष्टोऽभवम् ?
उत्तराणि
(क) देशसेवां कर्तुं बहिरभवम्।
(ख) स्वोदरसेवायै क्लिष्टोऽभवम्।

3. मनुष्याणां हिंसावृत्तिस्तु निरवधिः । पशुहत्या तु तेषाम् आक्रीडनम्। केवलं विक्लान्तचित्तविनोदाय महारण्यम् उपगम्य ते यथेच्छं निर्दयं च पशुघातं कुर्वन्ति।
प्रश्ना:
(क) हिंसावृत्तिः कीदृशी ?
(ख) तेषाम् आक्रीडनं का ?
उत्तराणि
(क) हिंसावृत्तिः निरवधिः।
(ख) तेषाम् आक्रीडनं पशुहत्या।

4. एवं चतुर्णां परस्परं विवादो लग्नः। ततो ब्राह्मणो राजसमीपमागत्य चतुर्णां विवादवृत्तान्तमकथयत्। राजापि तच्छ्रुत्वा तस्मै ब्राह्मणाय चत्वार्यपि रत्नानि ददौ।
प्रश्नाः
(क) केषां विवादो लग्न: ?
(ख) रत्नानि कः ददौ ?
उत्तराणि
(क) चतुर्णां विवादो लग्नः।
(ख) रत्नानि राजा ददौ।

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5. अस्माभिः पर्वताः शंकवः कृताः। एतेषां सप्तद्वीपानां प्रत्येकमावेष्टनरूपाः सप्तसमुद्राः।
(क) सप्तसमुद्राः केषाम् आवेष्टनरूपाः सन्ति ?
(ख) ‘अस्माभिः’ इति पदे कः शब्दः का विभक्तिश्च ?
उत्तराणि
(क) सप्तसमुद्राः सप्तद्वीपानाम् आवेष्टनरूपाः सन्ति।
(ख) ‘अस्माभिः’ – अस्मद् शब्दः तृतीया विभक्तिश्च ।

6. इत्येवं विचार्य सर्वस्वदक्षिणं यज्ञं कर्तुमुपक्रान्तवान्। ततः शिल्पिभिरतीव मनोहरो मण्डपः कारितः। सर्वापि यज्ञसामग्री समहता। देवमुनिगन्धर्वयक्षसिद्धादयश्च समाहूताः।
(क) यज्ञे के के समाहूताः ?
(ख) सर्वा इति पदे कः शब्दः का विभक्तिश्च ?
उत्तराणि
(क) यज्ञे देवमुनिगन्धर्वयक्षसिद्धादयश्च समाहूताः ।
(ख) सर्वा – सर्व शब्दः प्रथमा विभक्तिश्च ।

7. श्रीनायारस्य दायित्वग्रहणस्य एकमासाभ्यन्तरे बहुदिनेभ्यः स्थगितानां विविधसमस्यानामपि समाधानं जातम्। स्वकार्यं त्यक्त्वा अपरस्य सहकारस्तस्य परमधर्मः।
(क) श्रीनायारस्य परमधर्मः कः आसीत् ?
(ख) ‘तस्य’ इति पदे का विभक्तिः किं वचनञ्च ?
उत्तराणि
(क) श्रीनायारस्य परमधर्मः अपरस्य सहकारः आसीत् ।
(ख) ‘तस्य’ – षष्ठी विभक्तिः एकवचनञ्च ।

8. मनुष्याणां हिंसावृत्तिस्तु निरवधिः। पशुहत्या तु तेषाम् आक्रीडनम्। केवलं विक्लान्तचित्तविनोदाय महारण्यम् उपगम्य ते यथेच्छं निर्दयं च पशुघातं कुर्वन्ति।
(क) पशुहत्या केषाम् आक्रीडनम्?
(ख) ‘ते’ इति पदे का विभक्तिः किं वचनञ्च ?
उत्तराणि
(क) पशुहत्या मनुष्याणाम् आक्रीडनम्।
(ख) ‘ते’ – प्रथमा विभक्तिः बहुवचनञ्च ।

HBSE 12th Class Sanskrit व्याकरणम् पठित-अवबोधनम्

9. श्रीनायारस्य दायित्वग्रहणस्य एकमासाभ्यन्तरे बहुदिनेभ्यः स्थगितानां विविध-समस्यानामपि समाधानं जातम्। स्वकार्यं त्यक्त्वा अपरस्य सहकारस्तस्य परमधर्मः।
(क) अयं गद्यांशः कस्मात् पाठात् सङ्कलितः ?
(ख) श्रीनायारस्य परमधर्मः कः?
उत्तराणि
(क) अयं गद्यांशः दीनबन्धुः श्रीनायारः’ इति पाठात् सङ्कलितः ।
(ख) श्रीनायारस्य परमधर्मः अपरस्य सहकारः।

10. मासोऽयमाषाढः, अस्ति च सायं समयः, अस्तं जिगमिषुर्भगवान् भास्करः सिन्दूर-द्रव-स्नातानामिव वरुणदिगवलम्बिनामरुण-वारिवाहानामभ्यन्तरं प्रविष्टः।
(क) अयं गद्यांशः कस्मात् पाठात् संकलितः ?
(ख) सायं समये भगवान् भास्करः कुत्र जिगमिषुः भवति?
उत्तराणि
(क) अयं गद्यांश: ‘कार्यं वा साधयेयं देहं वा पातयेयम्’ इति पाठात् संकलितः?
(ख) सायं समये भगवान् भास्करः कुत्र जिगमिषुः भवति?

11. तस्मै राज्ञे व्याया) रत्नचतुष्टयं दास्यामि। एतेषां महात्म्यम्-एक रत्तं यद्वस्तु स्मर्यते तद्ददाति। द्वितीयरत्नेन भोजनादिकममृततुल्यमुत्पद्यते। तृतीयरत्नाच्चतुरङ्गबलं भवति। चतुर्थादत्लादिव्याभरणानि जायन्ते।
(क) अयं गद्यांशः कस्मात् पाठात् संकलित:?
(ख) चतुर्थाद् रत्नात् कानि जायन्ते ?
उत्तराणि
(क) अयं गद्यांश: ‘विक्रमस्यौदार्यम्’ इति पाठात् संकलितः।
(ख) चतुर्थाद् रत्नात् दिव्याभरणानि जायन्ते। …

12. अहो असारोऽयं संसारः, कदा कस्य किं भविष्यतीति न ज्ञायते। यच्चोपार्जितानां वित्तं तदपि दानभोगैर्विना सफलं न भवति।
(क) अयं संसारः कीदृशः ?
(ख) दानभोगैर्विना किं सफलं न भवति ?
उत्तराणि
(क) अयं संसारः असारः।
(ख) दानभोगै विना उपार्जितानां वित्तं सफलं न भवति।

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(ङ) सूक्तीनां हिन्दीभाषायां व्याख्या

1. कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।
(मनुष्य इस संसार में कर्तव्य कर्म करता हुआ ही सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करे) एवं त्वमि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे। (मनुष्य में कर्मों का लेप नहीं होता है, इसे छोड़कर कोई दूसरा रास्ता नहीं है।)

प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्रांश ‘ईशावास्योपनिषद्’ से संगृहीत ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ पाठ के दूसरे मन्त्र से लिया गया है। इसमें बताया गया है कि निष्काम कर्म बन्धन का कारण नहीं होते।

भावार्थ:-मन्त्रांश का अर्थ है-‘मनुष्य में कर्मों का लेप नहीं होता है’, इसे छोड़कर कोई दूसरा रास्ता नहीं है। वे कौन से कर्म हैं, उन कर्मों की क्या विधि है, जिनसे कर्म मनुष्य के बन्धन का कारण नहीं बनते। पूरे मन्त्र में इस भाव . को अच्छी प्रकार स्पष्ट किया गया है। मन्त्र में कहा गया है कि मनुष्य अपनी पूर्ण इच्छाशक्ति से जीवन भर कर्म करे, निठल्ला-कर्महीन-अकर्मण्य बिल्कुल न रहे, पुरुषार्थी बने। जिन पदार्थों को पाने के लिए हम कर्म करते हैं, उनका वास्तविक स्वामी सर्वव्यापक ईश्वर है। वही प्रतिक्षण हमारे अच्छे बुरे कर्मों को देखता हैं। अतः यदि मनुष्य पदार्थों के ग्रहण में त्याग भाव रखते हुए, ईश्वर को सर्वव्यापक समझते हुए कर्तव्य भाव से (अनासक्त भाव से) कर्म करता है तो ऐसे निष्काम कर्म मनुष्य को सांसारिक बन्धन में नहीं डालते अपितु उसे जीवन्मुक्त बना देते हैं।

2. अविद्यया मृत्युं तीा विद्ययाऽमृतमश्नुते।
प्रसंग:-प्रस्तुत मन्त्रांश ‘ईशोवास्य-उपनिषद्’ से संकलित ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ नामक पाठ में संगृहीत मन्त्र से उद्धृत है। इस मन्त्रांश में व्यावहारिक ज्ञान द्वारा मृत्यु को जीतकर अध्यात्म ज्ञान द्वारा अमरत्व प्राप्ति का रहस्य उद्घाटित किया गया है।

भावार्थ:-‘विद्या’ और ‘अविद्या’-ये दोनों शब्द विशिष्ट वैदिक प्रयोग हैं। ‘विद्या’ शब्द का प्रयोग यहाँ ‘अध्यात्म ज्ञान’ के अर्थ में हुआ है। इस जड़-चेतन जगत् में सर्वत्र व्याप्त परमात्मा तथा शरीर में व्याप्त जीवात्मा के ज्ञान को अध्यात्म ज्ञान कहा जाता है। यह मोक्षदायी यथार्थ ज्ञान ही ‘विद्या’ है। इससे भिन्न सभी प्रकार के ज्ञान को ‘अविद्या’ नाम दिया गया है। अध्यात्म ज्ञान से भिन्न सृष्टिविज्ञान, यज्ञविज्ञान, भौतिकविज्ञान, आयुर्विज्ञान, गणितविज्ञान, अर्थशास्त्र, प्रौद्योगिकी, सूचनातन्त्र आदि सभी प्रकार का ज्ञान ‘अविद्या’ शब्द में समाहित हो जाता है। यह अध्यात्मेतर ज्ञान मनुष्य को मृत्यु दुःख से छुड़वाता है और इसी अध्यात्म ज्ञान द्वारा मनुष्य फिर अमरत्व अर्थात् मोक्ष को प्राप्त कर लेता है, जन्ममरण के चक्र से छूट जाता है। इस प्रकार यह दोनों प्रकार का ज्ञान ही मनुष्य के लिए आवश्यक है, तभी वह इहलोक तथा परलोक दोनों को सिद्ध कर सकता है।

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3 कोटीश्चतस्त्रो दश चाहर।
प्रसंग:-प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ से ‘रघुकौत्ससंवादः’ नामक पाठ से ली गई है। यह पाठ कविकुलशिरोमणि महाकवि कालिदास द्वारा रचित ‘रघुवंशमहाकाव्यम्’ के पञ्चम सर्ग में से सम्पादित किया गया है। इसमें महर्षि वरतन्तु के शिष्य कौत्स का गुरुदक्षिणा के लिए आग्रह, बार-बार के आग्रह से क्रोधित ऋषि द्वारा पढ़ाई गई चौदह विद्याओं की संख्या के अनुरूप चौदह करोड़ मुद्राएँ देने का आदेश, सर्वस्वदान कर चुके राजा रघु से कौत्स की धनयाचना ‘रघु के द्वार से’ याचक खाली हाथ लौट गया-इस अपकीर्ति के भय से रघु का कुबेर पर आक्रमण का विचार तथा भयभीत कुबेर द्वारा रघु के खजाने में धन वर्षा करने को संवाद रूप में वर्णित किया गया है।

भावार्थ:-महर्षि वरतन्तु मन्त्रद्रष्टा ऋषि थे। न उनमें विद्या का अभिमान था, न गुरुदक्षिणा में धन का लोभ । कौत्स नामक एक शिष्य ने ऋषि से चौदह विद्याएँ अत्यन्त भक्ति भाव से ग्रहण की। विद्याप्राप्ति के पश्चात् कौत्स ने गुरुदक्षिणा स्वीकार करने का आग्रह किया। ऋषि ने कौत्स के भक्तिभाव को ही गुरुदक्षिणा मान लिया। परन्तु कौत्स गुरुदक्षिणा देने के लिए जिद्द करता रहता रहा और इस जिद्द से रुष्ट होकर कवि ने उसे पढ़ाई गई एक विद्या के लिए एक करोड़ सुवर्णमुद्राओं के हिसाब से चौदह करोड़ सुवर्ण मुद्राएँ भेंट करने का आदेश दे दिया-‘कोटीश्चतस्रो दश चाहर’।

4.
(i) मा भूत्परीवादनवावतारः।
(किसी निन्दा का नया प्रादुर्भाव न हो जाए।)
(ii) द्वित्राण्यहान्यर्हसि सोढुमर्हन्।
(हे पूजनीय ! दो-तीन तक आप मेरे पास ठहर जाएँ।)
(iii) निष्क्रष्टुमर्थं चकमे कुबेरात्।
(रघु ने कुबेर से धन ग्रहण करने की इच्छा की।)
(iv) दिदेश कौत्साय समस्तमेव।
(रघु ने कुबेर से प्राप्त सारा धन कौत्स के लिए दे दिया।)
उत्तरम्:
(i), (ii), (iii) तथा (iv) के लिए संयुक्त भावार्थ

भावार्थ:-महर्षि वरतन्तु का शिष्य कौत्स राजा रघु के पास गुरुदक्षिणार्थ धन याचना के लिए आता है। रघु विश्वजित् यज्ञ में सर्वस्व दान कर चुके हैं, अत: वे सुवर्णपात्र के स्थान पर मिट्टी के पात्र में जल आदि लेकर कौत्स का स्वागत करते हैं। कौत्स मिट्टी का पात्र देखकर अपने मनोरथ की पूर्ति में हताश हो जाता है और वापस लौटने लगता है। राजा रघु खाली हाथ लौटते हुए कौत्स को रोकते हैं क्योंकि सम्मानित व्यक्ति के लिए अपयश मृत्यु से बढ़कर होता है अत: उन्हें भय यह है कि कहीं प्रजा में यह निन्दा न फैल जाए कि कोई याचक रघु के पास आया था और खाली हाथ लौट गया था। वे कौत्स से उसका मनोरथ पूछते हैं।

कौत्स सारा वृत्तान्त सुनाते हुए कहता है कि गुरु के आदेश के अनुसार चौदह करोड़ सुवर्ण मुद्राएँ गुरुदक्षिणा में भेंट करनी हैं। रघु कौत्स से दो-तीन के लिए आदरणीय अतिथि के रूप में ठहरने का अग्रह करते हैं, जिससे उचित धन का प्रबन्ध किया जा सके। कौत्स राजा की प्रतिज्ञा को सत्य मानकर ठहर जाता है। रघु भी उसकी याचना पूर्ति के लिए धन के स्वामी कुबेर पर आक्रमण, का विचार करते हैं। कुबेर रघु के पराक्रम से भयभीत होकर रघु के खजाने में सुवर्ण वृष्टि कर देते हैं। उदार रघु यह सारा धन कौत्स को दे देते हैं, परन्तु निर्लोभी कौत्स उनमें से केवल 14 करोड़ सुवर्ण मुद्राएँ लेकर लौट जाता है।

दाता सम्पूर्ण धनराशि देकर अपनी उदारता प्रकट करते हैं और याचक आवश्यकता से अधिक एक कौड़ी भी ग्रहण न करके उत्तम याचक का आदर्श उपस्थित करते हैं। इस प्रकार दोनों ही यशस्वी हो जाते हैं।

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5. सर्वक्षत्रपरिभावी महान् उत्कर्षनिकषः।
प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्ति ‘बालकौतुकम्’ पाठ से संकलित है। वाल्मीकि आश्रम में ‘लव’ के साथ ब्रह्मचारी-सहपाठी खेल रहे हैं। इसी समय कुछ बटुगण आकर, लव को आश्रम के निकट अश्वमेध घोड़े की सूचना देते हैं। यह अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा रक्षकों से घिरा हुआ है। लव उस अश्वमेध यज्ञ के महत्त्व को अपने मन में विचार करता हुआ कहता है

भावार्थ:-यह अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा है । यह क्षत्रियों की शक्ति का सूचक होता है। क्षत्रिय राजा, अपने बलवान् शत्रु राजा पर अपनी विजय की धाक जमाने के लिए इसे छोड़ता है। वास्तव में यह घोड़ा सभी शत्रुओं पर प्रभाव डालने वाले उत्कर्ष श्रेष्ठपन का सूचक होता है।

6. सुलभं सौख्यम् इदानीं बालत्वं भवति।
प्रसंग:-प्रस्तुत पंक्ति ‘बालकौतुकम्’ पाठ से उद्धृत है। वाल्मीकि आश्रम में अतिथि के रूप में जनक, कौशल्या और अरुन्धती आए हुए हैं। उनके आने से आश्रम में अवकाश कर दिया गया है और सभी छात्रगण खेलते हुए शोर मचा रहे हैं। इस शोर को सुनकर, कौशल्या जनक को बता रही हैं

भावार्थ:-बाल्यकाल में सुख के साधन सुलभ होते हैं। बच्चों को मजा लेने के लिए किसी खिलौने आदि की आवश्यकता नहीं होती। वे तो साधारण से खेल-कूद और हँसी-मजाक द्वारा ही सुख प्राप्त कर लेते हैं। सुख प्राप्ति के लिए उन्हें बड़े बहुमूल्य क्रीडा-साधनों की आवश्यकता नहीं होती। ये ब्रह्मचारी अपने बचपन का आनन्द ले रहे हैं।

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7. योगः कर्मसु कौशलम्
भावार्थ:- यह सूक्ति कर्मगौरवम्’ पाठ से ली गई है। गीता की इस सूक्ति में कहा गया है कि जो कार्य लोकहित की दृष्टि से किया जाता है तथा पूरी निष्ठा से किया जाता है, वही सही कर्म है, यही कर्मों की कुशलता है तथा यही योग है। प्रत्येक कार्य को अनासक्तेिभावना से तथा पूरी तत्परता से करना ही योग है।

8. विशेषतः सर्वविदां समाजे विभूषणं मौनमपण्डितानाम्।
(समाज में मौन मूरों का आभूषण बन जाता है)
भावार्थ:-प्रस्तुत पंक्ति कवि भर्तृहरि द्वारा रचित ‘नीतिशतकम्’ से ली गई है। इसमें मौन के महत्त्व के बारे में बताया गया है लोग प्रायः आवश्यक्ता से अधिक बोलकर न केवल गंभीर से गंभीर बात का महत्त्व कम कर देते हैं अपितु कई बार तो उपहास का पात्र भी बन जाते हैं। हिन्दी में एक कहावत प्रसिद्ध है। ‘एक चुप सौ सुख’ ये कहावत

भी मौन के महत्त्व को दर्शाती है। विद्वानों की सभा में यदि कोई मूर्ख बैठा हो और कुछ भी न बोले तो लोग उसे विद्वान् ही समझते हैं। इस तरह से उस मूर्ख का मौन रहना उसका आभूषण बन जाता है। परन्तु जैसे ही वह मूर्ख अपना मौन तोड़कर कुछ बात कहेगा तो उसकी मूर्खता उजागर हो जाएगी। इसीलिए तो मौन को मूों का आभूषण कहा गया है।

9. हरति अतिमलिनमपि दोषजातं गुरूपदेशः।
भावार्थ:–प्रस्तुत पंक्ति शुकनासोपदेश नामक पाठ से ली गई है। यह पाठ संस्कृत के महान् गद्यकार बाणभट्ट द्वारा रचित कादम्बरी से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्ति में शुकनास युवराज चन्द्रापीड को गुरु के उपदेश का महत्त्व समझा रहे हैं। मन्त्री शुकनास कहते हैं कि गुरु का उपदेश मनुष्य के जीवन में बहुत अधिक उपयोगी तथा हितकारी होता है। मनुष्य में यदि अत्यधिक गहरे दोषों का समूह हो तो गुरु का उपदेश उन गहरे से गहरे दोषों को भी दूर कर देता है और उन दोषों के स्थान पर अति उत्तम गुण प्रवेश कर जाते हैं। मनुष्य का जीवन उज्वल हो जाता है। सब जगह ऐसे व्यक्ति का यश फैलता है, इसीलिए गुरु का उपदेश प्रत्येक मनुष्य के लिए परम कल्याणकारी तथा आवश्यक है।

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10. सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्।
अथवा
वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः॥

प्रसंग:-प्रस्तुत पद्य ‘सूक्ति-सुधा’ नामक पाठ से उद्धृत है। इसके रचयिता महाकवि भारवि हैं। कवि ने इस श्लोक में सोच-विचार कर ही कार्य करने के लिए प्रेरित किया है।

भावार्थ:-मनुष्यों को अचानक ही (बिना सोचे-विचारे) कोई कार्य नहीं करना चाहिए। क्योंकि विवेकहीनता घोर विपत्तियों का स्थान होती है। सम्पत्तियाँ गुणों की लोभी होती हैं; अतः सोच-विचार कर कार्य करने वाले मनुष्य को वे स्वयं ही चुन लेती है।

‘बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताए’ हिन्दी की इस कहावत का मूल भाव इस सूक्ति में है। मनुष्य को सोचविचार कर ही प्रत्येक कार्य करना चाहिए। बिना सोचे-समझे कार्य करने से घोर विपत्तियों का सामना करना पड़ता है। मनुष्य सम्पत्ति पाने के लिए कार्य करता है, सम्पत्तियाँ गुणों के पीछे चलती हैं । गुणवान् मनुष्य विवेकपूर्वक कार्य करता है और सम्पत्तियाँ भी ऐसे विचारशील मनुष्य के पास स्वयं दौड़कर चली आती हैं।

11. ‘पश्येह मधुकरीणां सञ्चितमर्थं हरन्त्यन्ये’
(देखो, इस संसार में मधुमक्खियों के एकत्रित शहद को दूसरे लोग चुरा कर ले जाते हैं।

व्याख्या-प्रस्तुत पंक्ति ‘विक्रमस्यौदार्यम्’ नामक पाठ से उधत है। यह पाठ ‘सिंहासनद्वात्रिशशिंका’ नामक कथासंग्रह से संकलित है। इस पाठ में राजा विक्रम की उदारता को दर्शाया गया है। राजा विक्रम की मान्यता है कि व्यक्ति के पास जो भी धन होता है, यदि उसकी सच्चे अर्थों में रक्षा करनी हो तो उसका एक ही उपाय है कि परोपकार के कार्यों के लिए उस धन का त्याग अर्थात् दान कर देना चाहिए। क्योंकि संसार में देखा जाता है कि जो लोग धन को केवल इकट्ठा ही करते हैं उसका दान या भोग नहीं करते उनका धन या तो तिजौरियों में ही नष्ट हो जाता है, या उसे चोर आदि चुरा ले जाते हैं। मधुमक्खियाँ अपने छत्तों में शहद इकट्ठा करती हैं, न वे किसी को देती हैं और न स्वयं ही उसका भोग करती हैं। इस शहद को पाने के लिए दूसरे लोग आकर मक्खियों को उड़ा देते हैं और सारा शहद चुरा कर ले जाते हैं। अतः सञ्चित धन का सदुपयोग उस धन का परोपकार के कार्यों में खर्च कर देना ही है।

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12. तटाकोदरसंस्थानां परीवाह इवाम्भसाम्।।
उत्तरम्

प्रसंग:-प्रस्तुत पंक्ति विक्रमस्यौदार्यम् नामक पाठ से ली गई है। यह कथा किसी अज्ञात लेखक द्वारा रचित ‘सिंहासनद्वात्रिंशिका’ कथा संग्रह से संकलित है। प्रस्तुत अंश में धन के दान को ही धन का सच्चा संरक्षण कहा गया है।

व्याख्या-मनुष्य जो भी धन अपने परिश्रम से इकट्ठा करता है। उसका संरक्षण खजाना भरकर नहीं हो सकता। अपितु असहायों की सहायता के लिए उस धन को दान कर देना ही उसकी सच्ची रक्षा है। तालाब में जल भरा होता है यदि वह जल तालाब में ही पड़ा रहे और किसी के काम न आएँ तो वह जल व्यर्थ है अपितु तालाब में ही पड़ेपड़े वह जल दुर्गन्धयुक्त हो जाता है, इसीलिए तालाब के जल को बाहर निकाल दिया जाता है, नया जल आ जाता है और उसका पानी उपयोगी बना रहता है। इसी प्रकार धन का दान करना ही धन का सच्चा उपयोग है।

13. षड्विधं प्रीतिलक्षणम्।
उत्तरम्:
प्रसंगः-प्रस्तुत पङ्क्ति ‘विक्रमस्यौदार्यम्’ नामक पाठ से ली गई है। यह कथा किसी अज्ञात लेखक द्वारा रचित ‘सिंहासनद्वात्रिंशिका’ कथासंग्रह से संकलित है। प्रस्तुत अंश में समुद्र ने ब्राह्मण को मित्रता का लक्षण बताया है।
व्याख्या-सच्ची मित्रता की पहचान के छह सूत्र हैं
1. मित्र मित्र को धन आदि प्रदान करता है।
2. मित्र मित्र से धन आदि स्वीकार करता है।
3. अपनी गोपनीय (छिपाने योग्य) बात मित्र को बताता है।
4. मित्र की गोपनीय बात उससे पूछता है।
5. मित्र के साथ बैठकर भोजन करता है।
6. मित्र को भोजन खिलाता है।
जिन दो मित्रों के बीच उक्त छ: प्रकार के आचरण बिना किसी औपचारिकता के सम्पन्न होते हैं उन्हीं में सच्ची मित्रता समझनी चाहिए।

14. दूरस्थितानां मैत्री नश्यति समीपस्थानां च वर्धते इति न वाच्यम्।
(दूर रहने वालों की मित्रता नष्ट हो जाती है और पास रहने वालों की मित्रता बढ़ती है- यह करना उचित नहीं)
‘यो यस्य मित्रं नहि तस्य दूरम्’
(जो जिसका मित्र होता है, वह दूर होकर भी दूर नहीं होता)
व्याख्या-प्रस्तुत पंक्ति ‘विक्रमस्यौदार्यम्’ नामक पाठ से उदधृत है। यह पाठ ‘सिंहासनद्वात्रिंशिका’ नामक कथासंग्रह से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्ति में बताया गया है स्थान सम्बन्धी दूरी मित्रता में बाधक नहीं होती। जो जिसका मित्र होता है, वह दूर होकर भी दूर नहीं होता।

मित्रता के इस रहस्य को हम सरलता से अनुभव कर सकते हैं। बरसात के दिनों में बादल आकाश में गरजते हैं और उसके गर्जन को सुनकर धरती पर बादल के मित्र मोर खुशी से नाचने लगते हैं। इसी प्रकार आकाश में सूर्य उदित होता है। उसके उदय होते ही उसके मित्र कमल सरोवरों में खिल उठते हैं। अतः यह कहना उचित नहीं कि दूर रहने वालों की मित्रता नष्ट हो जाती है और समीप रहने वालों की मित्रता बढ़ती है।

15. ‘अद्यैव परोपकारविचाराणाम् इतिश्रीरभूत्’
(आज ही परोपकार के विचारों की इतिश्री हो गई)

व्याख्या–प्रस्तुत पंक्ति ‘किन्तोः कुटिलता’ नामक पाठ से ली गई है। इस पाठ में लेखक श्री भट्ट मथुरानाथ शास्त्री ने नित्य-प्रति के जीवन में ‘किन्तु’ की कुटिलता पर कठोर व्यंग्य किया है।

एक बार लेखक देशसेवा करने के विचार से घर बाहर चला गया और उसने दृढ़ निश्चय किया कि अपना पेट पालने की स्वार्थवृत्ति से ऊपर उठकर आज से यह जीवन देशसेवा में अर्पित कर दूंगा परन्तु मार्ग में उसके बचपन के अध्यापक मिल गये और उन्होंने लेखक से कहा कि देशसेवा का विचार तो उत्तम है किन्तु अपने घर-परिवार पर भी ध्यान देना चाहिए जिनके भरण-पोषण का भार तुम पर है और इस प्रकार ‘किन्तु’ ने बीच में टपक कर लेखक के परोपकार के विचार की इतिश्री कर दी।

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16. ‘शूरं कृतज्ञं दृढ़साहसं च लक्ष्मी: स्वयं वाञ्छति वासहेतोः
(शूरवीर, कृतज्ञ और दृढ़ साहस रखने वाले मनुष्यों के पास स्वयं ही स्थायी रूप से रहने के लिए आ जाती है)

व्याख्या-प्रस्तुत पंक्ति ‘विक्रमस्यौदार्यम्’ नामक पाठ से ली गई है। यह पाठ ‘सिंहासनद्वात्रिंशिका’ नामक कथा संग्रह से संकलित है। इस पाठ में पुत्तलिका के माध्यम से राजा विक्रम की उदारता और शूरवीरता का वर्णन है।

प्रस्तुत अंश में बताया गया है कि लक्ष्मी कभी भी कृतघ्न, कमज़ोर, कायर या ढुलमुल नीति वाले लोगों के पास नहीं रहती अपितु जो लोग शूरवीर, साहसी दृढनिश्चयी तथा कृतज्ञ होते हैं उन्हीं के पास रहती है। उनके पास रहती ही नहीं है अपितु स्वयं उनके पास रहने के लिए खिंची चली जाती है क्योंकि लक्ष्मी शूरवीरता, साहस, दृढ़निश्चय तथा कृतज्ञता को पसन्द करती है और कायर-डरपोक लोगों से घृणा करती है।

17. ‘श्वापदानां हिंसाकर्म किल जठरानलनिवार्णमात्रप्रयोजकम्’
(पशुओं का हिंसाकर्म केवल अपना पेट भरने के लिए होता है)
व्याख्या-प्रस्तुत पंक्ति ‘उद्भिज्जपरिषद्’ नामक पाठ से ली गई है। इस पाठ में लेखक पं० हृषीकेश भट्टाचार्य ने मनुष्यों की हिंसक प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला है।

सिंह आदि कुछ पशु भी हिंसक होते हैं, परन्तु उनकी हिंसा उनकी पेट पूर्ति तक सीमित रहती है, भूख मिटाने का साधन मात्र है, यही उनकी हिंसा की सीमा है। परन्तु मनुष्यों की हिंसा तो उनके मनोविनोद का साधन है और इस मनोविनोद का कोई अन्त नहीं। अतः वनस्पति सभा के सभापति अवश्त्थ देव (बड़ का वृक्ष) के मल में हिंसा की दृष्टि मनुष्य इस सृष्टि में पशुओं से भी निकृष्ट है। लेखक का तात्पर्य इस निरर्थक पशुहिंसा को रोकने के लिए युवा पीढ़ी को प्रेरित करना है।

18. कार्यं वा साधयेयम्, देहं वा पातयेयम्
उत्तरम्
(कार्य सिद्ध करूँगा या शरीर त्याग दूंगा) प्रस्तुति सूक्ति पं० अम्बिकादत्त व्यास द्वारा रचित ‘शिवराजविजयम्’ नामक संस्कृत के उपन्यास से ली गई है। जिसमें शिवाजी का एक गुप्तचर भारी आंधी-बरसात होने पर शिवाजी के पास पहुँचने के लिए प्रस्तुत सूक्ति द्वारा अपनी दृढ़ प्रतिज्ञा प्रकट करता है।

भावार्थ-संसार में बिना दृढ़ संकल्प लिए कोई महान् कार्य नहीं किया जा सकता। संकल्प में ही वह शक्ति है, जिसके बल पर एक सैनिक मौत को गले लगा लेता है, साधारण मनुष्य भी तूफान से टक्कर ले लेता है। बिना दृढ़ संकल्प लिए सफलता के ऊँचे आकाश में उन्मुक्त उड़ान नहीं भरी जा सकती। संकल्प ने ही मनुष्य को चाँद पर पहुँचा दिया है। मनुष्य का संकल्प जितना प्रबल होता है, उसकी बुद्धि उतनी ही तीव्रता से काम करने लगती है। प्रभु भी दृढ़ संकल्पी के ही सहायी होते हैं।

शिवाजी के गुप्तचर का भी दृढ़ संकल्प है-‘कार्य की सिद्धि या मौत’। वह इन दोनों में से केवल एक को चुनता है। उसे न आँधी की परवाह है, न तूफानी बरसात की। वह आकाश में चमकती हुई बिजली के प्रकाश में ही अपना रास्ता ढूँढता हुआ घोड़े पर सवार होकर ऊबड़-खाबड़ रास्तों से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ा जा रहा है। एक सच्चे वीर की यही पहचान है। इस दृढ़ संकल्प ने ही शिवाजी के गुप्तचर को उसके लक्ष्य तक पहुंचा दिया था।

19. उपार्जितानां वित्तानां त्याग एव हि रक्षणम्।
उत्तरम्:
(अर्जित धन की रक्षा उस धन के त्याग से ही होती है)

प्रस्तुत पंक्ति ‘विक्रमस्यौदार्यम्’ नामक पाठ से उद्धृत है। यह पाठ ‘सिंहासनद्वात्रिशशिंका’ नामक कथासंग्रह से संकलित है। इस पाठ में राजा विक्रम की उदारता को दर्शाया गया है। राजा विक्रम की मान्यता है कि व्यक्ति के पास जो भी धन होता है, यदि उसकी सच्चे अर्थों में रक्षा करनी हो तो उसका एक ही उपाय है कि परोपकार के कार्यों के लिए उस धन का त्याग अर्थात् दान कर देना चाहिए। क्योंकि परोपकार के कार्यों में जब धन को खर्च कर दिया जाता है तो उससे मनुष्य का यश चारों ओर फैलता है और जिसका यश होता है संसार में वस्तुतः वही मनुष्य युग-युगों तक जीवित रहता है। भामाशाह ने राष्ट्रहित के लिए महाराणा प्रताप को अपना सारा धन दान में दिया था, आज भी लोग धनी और परोपकारी व्यक्ति को ‘भामाशाह’ कहकर पुकारते हैं। सूक्ति का भाव यही है कि धन का वास्तविक उपयोग धन का परोपकार के लिए दान कर देना ही है।

20. ‘उपभोक्तृणामपि अभियोगो नास्ति विभागस्य विपक्षे।
प्रसंगः-प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘दीनबन्धुः श्रीनायार:’ नामक पाठ से ली गई है। यह पाठ उड़िया के प्रख्यात साहित्यकार श्री चन्द्रशेखरदास वर्मा द्वारा रचित ‘पाषाणीकन्या’ नामक कथासंग्रह के संस्कृत अनुवाद से संकलित है। यह संस्कृत अनुवाद डॉ० नारायण दाश ने किया है।

भावार्थ:-प्रस्तुत पंक्ति में दीनबन्धु श्रीनायार की सत्यनिष्ठा एवं कर्तव्यनिष्ठा के फलस्वरूप खाद्य-आपूर्ति विभाग के विरोध में उपभोक्ताओं की ओर से किसी प्रकार के अभियोग न होने का उल्लेख किया गया है।

श्रीनायार एक सत्यनिष्ठ तथा मानवीय संवेदना से ओत-प्रोत कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी थे। उड़ीसा सरकार के खाद्यआपूर्ति विभाग के सचिव पद को सम्भालते ही इस विभाग का कायाकल्प हो गया। खाद्यान्न में मिलावट या हेरा-फेरी नाममात्र रह गई, अत: श्रीनायार के कार्यकाल में उपभोक्ताओं को विभाग पर किसी प्रकार का अभियोग चलाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। श्रीनायार के आने से विभाग की न केवल सक्रियता बढ़ी अपितु ईमानदारी से काम करने का भी वातावरण बना। परिणामतः उपभोक्ता विभाग की कार्यप्रणाली से सन्तुष्ट हुए और कोर्ट-कचहरी के विवादों से विभाग मुक्त हो गया। इस पंक्ति से श्रीनायार की कर्तव्यनिष्ठ एवं ईमानदारी का संकेत मिलता है।

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21. सर्वे अथूलहृदयैः सौप्रस्थानिकी ज्ञापितवन्तः।
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती द्वितीयो भागः’ के ‘दीनबन्धुःश्रीनायार:’ नामक पाठ से ली गई है। यह पाठ उड़िया के प्रख्यात साहित्यकार श्री चन्द्रशेखरदास वर्मा द्वारा रचित ‘पाषाणीकन्या’ नामक कथासंग्रह के संस्कृत अनुवाद से संकलित है। यह संस्कृत अनुवाद डॉ० नारायण दाश ने किया है।

भावार्थ:–‘सभी ने आँसु भरे हृदय से श्रीनायार को विदाई दी’ प्रस्तुतपंक्ति का सम्बन्ध श्रीनायार के जीवन के उस क्षण से है, जब केरल राज्य में श्रीनायार द्वारा स्थापित अनाथ आश्रम की संचालिका सुश्री मेरी ने श्रीनायार को एक पत्र लिखा कि अब उनका अन्तिम समय आ चुका है और उन्हें स्वयं यह आश्रम सँभाल लेना चाहिए।

एक दिन श्रीनायार अपने कार्यालय में बैठे एक पत्र पढ़ रहे थे, उनकी आँखों से अश्रुधारा बह रह थी, जिससे पत्र भी भीग चुका था। उसी क्षण श्रीनायार के क्लर्क श्रीदास का प्रवेश हुआ और उन्होंने श्रीदास को कहा कि अब उनका छुट्टी लेकर चले जाने का समय आ गया है। यदि मुझसे कोई रूखा व्यवहार किसी के साथ अनजाने में हुआ हो तो उसके लिए मैं क्षमा चाहता हूँ। श्रीनायार का व्यवहार विभाग के सभी सहकर्मियों के साथ पूर्णतया मानवीय, मित्रतापूर्ण तथा अत्यन्त मधुर था। विभाग के सभी लोग श्रीनायार के स्वभाव और व्यवहार से सन्तुष्ट थे। आज जब श्रीनायार केरल वापस जाने लगे तो सहकर्मियों के हृदय को चोट पहुँची और न चाहते हुए भी उन्हें भीगी पलकों से विदाई की।

इस पंक्ति से विभाग के लोगों का श्रीनायार के प्रति सच्चा आदर-भाव तथा श्रीनायार की सद्-व्यवहारशीलता प्रकट होती है।

22. त्वया निर्मितोऽयं क्षुद्रोऽनाथाश्रमोऽधुना महाद्रुमेण परिणतः।
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती द्वितीयो भागः’ के ‘दीनबन्धुःश्रीनायारः’ नामक पाठ से ली गई है। यह पाठ उड़िया के प्रख्यात साहित्यकार श्री चन्द्रशेखरदास वर्मा द्वारा रचित ‘पाषाणीकन्या’ नामक कथासंग्रह के संस्कृत अनुवाद से संकलित है। यह संस्कृत अनुवाद डॉ० नारायण दाश ने किया है।

भावार्थः-प्रस्तुत पंक्ति सुश्री मेरी के उस पत्र की है, जो श्रीनायार के केरल वापस चले जाने के बाद उनके क्लर्क श्रीदास ने खोलकर पढ़ा था।
श्रीनायार ने एक अनाथ आश्रम की स्थापना केरल राज्य में की थी। जिसका संचालन सुश्री मेरी किया करती थी। मेरी अब मृत्यु के निकट थी, अतः उसने श्रीनायार को

स्वयं यह अनाथ आश्रम सँभालने तथा अन्तिम क्षणों में श्रीनायार के दर्शन करने की इच्छा प्रकट की थी। मेरी ने इस पत्र में यह भी बताया था कि यह आश्रम कभी बहुत छोटे रूप में था परन्तु आज यह बहुत बड़े वृक्ष का रूप धारण कर चुका है। अब इसमें सौ से भी अधिक अनाथ शिशु पल रहे हैं। श्रीनायार इसी आश्रम के संचालन के लिए अपने वेतन का आधे से भी अधिक भाग प्रतिमास की एक तारीख को ही मनीआर्डर द्वारा सुश्री मेरी के पास भेज दिया करते थे। इस घटना से श्रीनायार का दीनों के प्रति सच्चा दया-भाव प्रकट होता है। इसीलिए पाठ का नाम भी ‘दीनबन्धु श्रीनायार’ उचित ही दिया गया है।

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23. मनुष्याणां हिंसावृत्तिस्तु निरवधिः। (मनुष्यों की हिंसावृत्ति की कोई सीमा नहीं) मानवा नाम सृष्टि धारायु निकृष्ट धारासु निकृष्टतम सृष्टिः
(इस सृष्टि मानव नामक दृष्टि सबसे निकट हैं)
उत्तरम्:
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘उद्भिज्ज-परिषद्’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ पण्डित हृषीकेश भट्टाचार्य के निबन्धसंग्रह ‘प्रबन्ध-मञ्जरी’ से संकलित है। इस निबन्ध में वृक्षों की सभा के सभापति पीपल ने मनुष्य की हिंसक प्रवृत्ति के प्रति तीखा व्यंग्य-प्रहार किया गया है।

भावार्थ: – हिंसा के दो प्रमुख रूप हैं-
(1) स्वाभाविक भूख की शान्ति के लिए हिंसा
(2) मन बहलाने के लिए हिंसा। मांस मनुष्य का स्वाभाविक भोजन नहीं है।

परन्तु सिंह-व्याघ्र आदि पशुओं का स्वाभाविक भोजन मांस ही है। अतः ऐसे पशुओं को न चाहते हुए भी केवल पेट की भूख शान्त करने हेतु पशुवध करना पड़ता है। परन्तु इन पशुओं की यह विशेषता भी है कि भूख शान्त होने पर पास खड़े हुए हिरण आदि का भी ये वध नहीं करते। पशुओं का पशुवध भूख शान्ति तक ही सीमित होता है। परन्तु मनुष्य की पशुहिंसा असीम है। क्योंकि वह तो अपने बेचैन मन की प्रसन्नता के लिए ही पशुवध करता है। ‘मानव’ नामक सृष्टिः को सबसे निकृष्ट कहा गया है।

(च) कथनानि आश्रित्य प्रश्ननिर्माणम्

1. रेखाङ्कितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) अतिजवेन दूरमतिक्रान्तः स चपलः दृश्यते ?
(ख) कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
उत्तराणि:
(क) केन दूरमतिक्रान्तः स चपलः दृश्यते।
(ख) किं ज्यायो हि अकर्मणः।।

2. रेखाङ्कितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) विस्फारितशरासनाः आयुधीयश्रेणयः कुमारं तर्जयन्ति।
(ख) कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः।
उत्तराणि:
(क) विस्फारितशरासनाः आयुधीय श्रेणयः कं तर्जयन्ति?
(ख) केन हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः ।

3. रेखाङ्कितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क)अश्वमेध इति नाम क्षत्रियाणां महान् उत्कर्षनिकषः।
(ख)बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।
उत्तराणि:
(क) अश्वमेध इति नाम केषां महान उत्कर्षनिकषः?
(ख) बुद्धियुक्तो जहातीह के सुकृतदुष्कृते?

4. रेखाङ्कितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क)निपुणं निरुध्यमाण: लवः मुखचन्द्रेण सीतया संवदत्येव ।
(ख)नाशयति च पुरुषस्यासङ्गो विषयेषु
उत्तराणि:
(क) निपुणं निरुध्यमाणः लव: मुखचन्द्रेण कया संवदत्येव ?
(ख) नाशयति च पुरुषस्यासङ्गो केषु ?

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5. रेखांकितपद्माधृत्य प्रश्ननिर्माण कुरुत
(क) शब्दैः प्रतीयते यद् गृहे चौरः अस्ति।
(ख) पशुहत्या तु तेषाम् आक्रीडनम्।
उत्तराणि:
(क) कैः प्रतीयते यद् गृहे चौरः अस्ति?
(ख) का तु तेषाम् आक्रीडनम्?

6. रेखांकितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) स्वर्गभूमिं कुर्शीति वदन्ति।
(ख) असौ शिववीरचरः निजकार्यात् न विरमति।
उत्तराणि:
(क) कां कुर्शीति वदन्ति?
(ख) असौ शिववीरचरः कस्मात् न विरमति?

7. रेखांकितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) पृथिव्याः सप्तभेदाः।
(ख) दिदेश कौत्साय समस्तमेव।
उत्तराणि:
(क) कस्याः सप्तभेदाः?
(ख) दिदेश कस्मै समस्तमेव?

8. रेखांकितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क)निष्क्रष्टुमर्थं चकमे कुबेरात्
(ख) अतिजवेन दूरमतिक्रान्तः।
उत्तराणि:
(क) निष्क्रष्टुमर्थं चकमे कस्मात्
(ख) कथं दूरमतिक्रान्तः?

9. रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) दीर्घग्रीवः स भवति।
(ख) लोक स्तदनुवर्तते।
उत्तराणि:
(प्रश्ननिर्माणम्)
(क) कीदृशः स भवति?
(ख) कः तदनुवर्तते?

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10. रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) प्राज्ञः खलु कुमारः।।
(ख) कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
उत्तराणि:
(प्रश्ननिर्माणम्)
(क) कः खलु कुमारः?
(ख) किं ज्यायो ह्यकर्मणः?

11. रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) जीवने नियतं कर्म कुरु।
(ख) लवः मुखचन्द्रेण सीतया संवदत्येव।
उत्तराणि:
(प्रश्ननिर्माणम्)
(क) जीवने नियतं किं कुरु?
(ख) लव: मुखचन्द्रेण कया संवदत्येव?

12. रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) उत्पथैः मम मनः पारिप्लवं धावति।
(ख) रामभद्रस्य एष दारकः अस्माकं लोचने शीतलयति।
उत्तराणि:
(प्रश्ननिर्माणम्)
(क) उत्पथैः कस्य मनः पारिप्लवं धावति ?
(ख) कस्य एष दारक: अस्माकं लोचने शीतलयति ?

13. रेखाङ्कितपदानि आधृत्य-प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) विस्फारितशरासनाः आयुधीयश्रेणयः कुमारं तर्जयन्ति।
(ख) योगः कर्मसु कौशलम्।
उत्तराणि:
(प्रश्ननिर्माणम्)
(क) विस्फारितशरासनाः आयुधीयश्रेणयः कं तर्जयन्ति ?
(ख) कः कर्मसु कौशलम् ?

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14. रेखाङ्कितपदानि आधृत्य-प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) अश्वमेध इति नाम क्षत्रियाणाम् महान् उत्कर्षनिकषः।
(ख) अतिजवेन दूरमतिक्रान्तः स चपलः दृश्यते।
उत्तराणि:
(प्रश्ननिर्माणम्)
(क) अश्वमेधः इति नाम केषां महान् उत्कर्षनिकषः ?
(ख) अतिजवेन दूरमतिक्रान्तः सः कीदृशः दृश्यते ?

15. रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) तस्याः दार्शनिकैः सप्तधा विभागः कृतः।
(ख) अयं सादी न स्वकार्याद् विरमति।
उत्तराणि:
(प्रश्ननिर्माणम्)
(क) तस्याः कैः सप्तधा विभागः कृतः?
(ख) अयं सादी न कस्माद् विरमति?

16. रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) सः धनं धनादेशेन प्रेषयति स्म।
(ख) मनुष्याणां हिंसावृत्तिस्तु निरवधिः ।
उत्तराणि:
(प्रश्ननिर्माणम्)
(क) सः धनं केन प्रेषयति स्म?
(ख) केषां हिंसावृत्तिस्तु निरवधिः?

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HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 6 सूक्तिसुधा

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 6 सूक्तिसुधा Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 6 सूक्तिसुधा

HBSE 12th Class Sanskrit सूक्तिसुधा Textbook Questions and Answers

1. संस्कृतभाषया प्रश्नोत्तराणि लिखत
(क) सर्वत्र कीदृशं नीरम् अस्ति ?
(ख) मरालस्य मानसं कं विना न रमते।
(ग) विद्वान् कम् अपेक्षते ?
(घ) सत्कविः कौ द्वौ अपेक्षते ?
(ङ) यः यस्य प्रियः सः तस्य कृते किं भवति ?
(च) सहसा किं न विदधीत ?
(छ) विधात्रा किं विनिर्मितम् ?
(ज) अपण्डितानां विभूषणं किम् ?
(झ) महात्मनां प्रकृतिसिद्धं किं भवति ?
(ब) पापात् कः निवारयति ?
(ट) सन्तः कान् पर्वतीकुर्वन्ति ?
(ठ) कीदृशं भूषणं न क्षीयते ?.
(ड) कूपखननं कदा न उचितम् ?
उत्तरम्:
(क) सर्वत्र नीरजराजितं नीरम् अस्ति।
(ख) मरालस्य मानसं मानसं विना न रमते।
(ग) विद्वान् दैष्टिकतां पौरुषं च अपेक्षते।
(घ) सत्कविः शब्दार्थों द्वौ अपेक्षते।
(ङ) यः यस्य प्रियः सः तस्य कृते प्रियः भवति।
(च) सहसा क्रियां न विदधीत।
(छ) विधात्रा अज्ञानस्य आच्छादनं मौनं विनिर्मितम्।
(ज) अपण्डितानां विभूषणं मौनम्।
(झ) विपदि धैयम्, अभ्युदये क्षमा, सदसि वाक्पटुता, यशसि अभिरुचिः श्रुतौ व्यसनं च महात्मनां प्रकृतिसिद्धं भवति।
(ञ) पापात् सन्मित्रं निवारयति।
(ट) सन्तः परगुणपरमाणून पर्वतीकुर्वन्ति ?
(ठ) वाग्-भूषणं न क्षीयते ?
(ड) कूपखननं प्रोद्दीप्ते भवने न उचितम् ?

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2. अधोलिखितपद्यांशानां सप्रसङ्ग हिन्दीभाषया व्याख्या विधेया
(क) वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः।
(ख) क्षीयन्ते खलु भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम्।
(ग) प्रोद्दीप्ते भवने च कूपखननं प्रत्युद्यमः कीदृशः।
उत्तरम्:
व्याख्या के लिए श्लोक संख्या 6, 11 तथा 12 के प्रसंग तथा भावार्थ का उपयोग करें।

3. रिक्तस्थानपूर्तिः क्रमशः करणीया
(क) सत्कविरिव विद्वान् शब्दार्थों …………….. अपेक्षते।
(ख) सन्तः …………….. प्रवदन्ति ।
उत्तरम्:
(क) सत्कविरिव विद्वान् शब्दार्थों द्वयम् अपेक्षते।
(ख) सन्तः सन्मित्रलक्षणं प्रवदन्ति।

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4. निम्नलिखितश्लोकयोः अन्वयं लिखत
यथा-यद्यपि नीरज-राजितं नीरं सर्वत्र अस्ति।
(परं) मरालस्य मानसं मानसं विना न रमते।
(क) नीरक्षीरविवेके …………..।
(ख) विपदि धैर्यमथाभ्युदये …………..
उत्तरम्:
दूसरे तथा सातवें श्लोक का अन्वय देखें।

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5. निम्नलिखितशब्दानाम् अर्थ लिखित्वा वाक्यप्रयोगं कुरुत
नीरजम्, रसालः, पौरुषः, विमृश्यकारिणः, जरा।
उत्तरम:
(क) नीरजम् = कमलम् (कमल)-सरसि नीरजं शोभते।
(ख) रसालः = आम्रवृक्षः (आम का वृक्ष)-प्राङ्गणे रसालः शोभते।
(ग) पौरुषः = पुरुषार्थः (परिश्रम, कर्म)-सदा पौरुषः कर्तव्यः।
(घ) विमृश्यकारिणः = विचिन्त्यकारिणः (विचार कर कार्य करने वाले)विमश्यकारिणः कदापि पश्चात्तापं न प्राप्नुवन्ति।
(ङ) जरा = वृद्धत्वम् (बुढ़ापा)-यावत् जरा न आयाति तावत् आत्महितं कुरु ।

6. निम्नलिखितशब्दानां सार्थकं मेलनं क्रियताम्
(क) मरालस्य (i) आश्रयते
(ख) अवलम्बते (ii) ब्रह्मणा
(ग) अधुना (iii) विशदीकृत्य
(घ) विधात्रा (iv) हंसस्य
(ङ) पर्वतीकृत्य (v) साम्प्रतम्
(च) नीरजम् (vi) आम्रः
(छ) रसालः (vii) विभूतयः
(ज) सम्पदः (viii) कमलम्
(झ) यशसि (ix) कीर्ती
उत्तरम्:
(क) मरालस्य (iv) हंसस्य
(ख) अवलम्बते (i) आश्रयते
(ग) अधुना (v) साम्प्रतम्
(घ) विधात्रा (ii) ब्रह्मणा
(ङ) पर्वतीकृत्य (iii) विशदीकृत्य
(च) नीरजम् (viii) कमलम्
(छ) रसालः (vi) आम्रः
(ज) सम्पदः (vii) विभूतयः
(झ) यशसि (ix) कीर्ती

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7. अधोलिखितशब्दानां पाठात् विलोमपदं चित्वा लिखत
(क) मूर्खः ………………….
(ख) अप्रियः ………………….
(ग) पुण्यात् ………………….
(घ) यौवनम् ………………….
(ङ) उपेक्षते ………………….
उत्तरम्:
(क) मूर्खः – विद्वान्
(ख) अप्रियः – प्रियः
(ग) पुण्यात् – पापात्
(घ) यौवनम् – जरा
(ङ) उपेक्षते – अपेक्षते

8. सन्धिच्छेदः क्रियताम्
उत्तरसहितम्:
(क) नालम्बते = न + आलम्बते
(ख) विश्वस्मिन्नधुनान्यः = विश्वस्मिन् + अधुना + अन्यः
(ग) कोऽपि = कः + अपि
(घ) चाभिरुचिर्व्यसनं = च + अभिरुचिः + व्यसनम्
(ङ) चन्द्रोज्ज्वलाः = चन्द्र + उज्ज्वला:

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9. (अ) अधोलिखितशब्दानां समासविग्रहः कार्य:
यथा-नीरज-राजितम् = नीरजैः राजितम्।
उत्तरसहितम्:
(क) अलिमालः = अलीनां माला यस्मिन् सः (बहुव्रीहिः)
(ख) वाक्पटुता = वाचि पटुता (सप्तमी-तत्पुरुषः)
(ग) चन्द्रोज्ज्वला: = चन्द्रः इव उज्ज्वलः यः, ते (बहुव्रीहिः)
(घ) अप्रतिहता = न प्रतिहता (अव्ययीभावः)
(ङ) वाग्भूषणम् = वाग् एव आभूषणम् (कर्मधारयः)
(आ) अधोलिखित-विग्रहपदानां समस्तपदानि रचयत
यथा-कुलस्य व्रतं ………. -कुलव्रतम् ।
उत्तरसहितम्:
(क) वनस्य अन्तरे -वनान्तरे (षष्ठी-तत्पुरुषः)
(ख) गुणानां लुब्धाः -गुणलुब्धाः (षष्ठी-तत्पुरुषः)
(ग) प्रकृत्या सिद्धम् -प्रकृतिसिद्धम् (तृतीया-तत्पुरुषः)
(घ) उपकारस्य श्रेणिभिः -उपकारश्रेणिभिः (षष्ठी-तत्पुरुषः)
(ङ) आत्मनः श्रेयसि -आत्मश्रेयसिः (सप्तमी-तत्पुरुषः)

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10. अधोलिखितशब्देषु प्रकृतिप्रत्ययानां विभागः करणीयम्
यथा-राजितम् – राज् + क्त
उत्तरसहितम्:
(क) दैष्टिकताम् – दैष्टिक + तल्
(ख) कुर्वाणः – √कृ + शानच् (आत्मनेपदे)
(ग) पटुता – पटु + तल्
(घ) सिद्धम् – √सिध् + क्त
(ङ) विमृश्य – वि √मृश् + ल्यप्

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11. अधोलिखितश्लोकेषु छन्दो निर्दिश्यताम्
यथा-अस्ति यद्यपि …………… ॥ अनुष्टुप् छन्दः।
उत्तरसहितम्
(क) तावत् कोकिल …………… समुल्लसति ॥ – आर्या-छन्दः।
(ख) स्वायत्तमेकान्त ………………. मौनमपण्डितानाम्॥ – उपजाति-छन्दः।
(ग) विपदिधैर्यमथा …………. महात्मनाम्॥ द्रुतविलम्बित-छन्दः।
(घ) पापान्निवारयति ………………….. प्रवदन्ति सन्तः॥ – वसन्ततिलका-छन्दः।
(ङ) केयूराणि न …………… भूषणम्॥ शार्दूलविक्रीडित-छन्दः।

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12. अधोलिखितपंक्तिषु कोऽलङ्कारः ? लिख्यताम्
उत्तरसहितम्
(क) शब्दार्थौ सत्कविरिव द्वयं विद्वानपेक्षते। – ‘उपमा’ – अलङ्कारः।
(ख) वाग्भूषणं भूषणम्। ‘रूपक’ – अलङ्कारः।
(ग) निजहृदि विकसन्तः सन्ति सन्तः कियन्तः। ‘अनुप्रास’ – अलङ्कारः।
(घ) रमते न मरालस्य मानसं मानसं विना। “यमक’ – अलङ्कारः।
(ङ) यावन्मिलंदलिमालः कोऽपि रसालः समुल्लसति। – ‘अनुप्रास’ – अलङ्कारः।

योग्यताविस्तारः

(अ) समानार्थकश्लोकाः-
1. हंसः श्वेतो बकः श्वेतः को भेदो बकहंसयोः।
नीरक्षीरविवेके तु हंसो हंसो बको बकः॥

2. महाजनस्य संसर्गः कस्य नोन्नतिकारकः।
पद्मपत्रस्थितं वारि धत्ते मुक्ताफलश्रियम्।

3. आत्मार्थे जीवलोकेऽस्मिन् को न जीवति मानवः।
परं परोपकारार्थं यो जीवति स जीवति॥

4. अज्ञः सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः।
ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्माऽपि तं नरं न रञ्जयति॥

5. यावत्स्वस्थो हयं देहो यावन्मृत्यश्च दूरतः।
तावदात्महितं कुर्यात् प्राणान्ते किं करिष्यति॥

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(ब) छन्दसां लक्षणोदाहरणानि
1. शार्दूलविक्रीडितम्
लक्षणम्-“सूर्याश्वैर्मसजास्तताः सगुरवः शार्दूलविक्रीडितम्’।
उदाहरणम्
(i) केयूराणि न भूषयन्ति….. ।
(ii) यावत्स्वस्थमिदं कलेवरगृहम्……।

2. अनुष्टुप् छन्दः
लक्षणम् – “श्लोके षष्ठं गुरुज्ञेयं सर्वत्र लघु पञ्चमम्।
द्विःचतुष्पादयोर्हस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः॥”
उदाहरणम्
अस्ति यद्यपि सर्वत्र नीरं नीरजमण्डितम्……।

3. वसन्ततिलका
लक्षणम्–“उक्ता वसन्ततिलका तभजा जगौ गः।”
उदाहरणम्
पापान्निवारयति योजयते हिताय।

4. उपजातिः-इन्द्रवज्रा उपेन्द्रवज्रा इति वृत्तयोः संयोगेन उपजाति: वृत्तं भवति।
लक्षणम् – “स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः।
उपेन्द्रवज्रा जतजास्ततो गौ॥”
उदाहरणम्
स्वायत्तमेकान्तगुणं ………….

5. मालिनी
लक्षणम्-“ननमयययुतेयं मालिनी भोगिलोकैः।”
उदाहरणम्
मनसि वचसि काये पुण्यपीयूषपूर्णा…।

6. आर्या
लक्षणम्-“यस्याः प्रथमे पादे द्वादशमात्रास्तथा तृतीयेऽपि।
अष्टादश द्वितीये चतुर्थके पञ्चदश साऽऽर्या॥”
उदाहरणम्:
(i) नीरक्षीर विवेक …..।
(ii) तावत् कोकिल …..।

आर्याच्छन्दसि विशिष्टः लयः गेयता च भवति।
तदनुसारेण आर्यायाः गानस्य अभ्यास: कार्यः।

(स) अधोलिखितानां हिन्दीभाषायाः आभाणकानां समानार्थकाः संस्कृत
पक्तयः अन्वेष्टव्या:
1. आग लगने पर कुआँ खोदना
2. सबसे भली चुप ।
3. दूध का दूध पानी का पानी
उत्तरम:
1. प्रोद्दीप्ते भवने च कूपखननं प्रत्युद्यमः कीदृशः।
2. विभूषणं मौनमपण्डितानाम् (मौनं सर्वार्थसाधनम्)।
3. नीरक्षीरविवेके हंसालस्यं त्वमेव तनुषे चेत्।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 6 सूक्तिसुधा

HBSE 9th Class Sanskrit सूक्तिसुधा Important Questions and Answers

I. पुस्तकानुसारं समुचितम् उत्तरं चित्वा लिखत
(i) सर्वत्र कीदृशं नीरम् अस्ति ?
(A) मलिनम्
(B) अपगतमलिनम्
(C) नीरजराजितम्
(D) कमलभूषितम्।
उत्तराणि:
(A) नीरजराजितम्

(ii) मरालस्य मानसं कं विना न रमते।
(A) मनः
(B) मानसम्
(C) सरोवरम्
(D) पुण्यतालम्।
उत्तराणि:
(B) मानसम्

(iii) कीदृशं भूषणं न क्षीयते ?
(A) स्वर्णभूषणम्
(B) ताम्रभूषणम्
(C) रजतभूषणम्
(D) वाग्भूषणम्।
उत्तराणि:
(D) वाग्भूषणम्

(iv) पापात् कः निवारयति ?
(A) सन्त्रिमम्
(B) कुमित्रम्
(C) राजपुरुषः
(D) महाबलिः
उत्तराणि:
(A) सन्मित्रम्

(v) सत्कविः कौ द्वौ अपेक्षते ?
(A) शब्दौ
(B) अर्थों
(C) शब्दार्थों
(D) स्वरव्यञ्जने
उत्तराणि:
(C) शब्दार्थों

(vi) सहसा किं न विदधीत ?
(A) भोजनम्
(B) पठनम्
(C) क्रियाम्
(D) शय्याम्।
उत्तराणि:
(C) क्रियाम्

(vii) अपण्डितानां विभूषणं किम् ?
(A) धनम्
(B) मौनम्
(C) कलङ्कः
(D) दोषः।
उत्तराणि:
(B) मौनम्

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 6 सूक्तिसुधा

II. रेखाङ्कितपदम् आधृत्य प्रश्ननिर्माणाय समुचितं पदं चित्वा लिखत
(i) विद्वान् दैष्टिकतां पौरुषं च अपेक्षते।
(A) कान्
(B) कः
(C) कस्य
(D) केषाम्।
उत्तराणि:
(A) कान्

(ii) सम्पदः विमृश्यकारिणं स्वयं वृणुते।।
(A) केषाम्
(B) कस्याम्
(C) कस्यै
(D) कम्।
उत्तराणि:
(D) कम्

(iii) विपदि धैर्य महात्मनां प्रकृतिसिद्धम्।।
(A) कः
(B) केषाम्
(C) कम्
(D) काम्।
उत्तराणि:
(B) केषाम्

(iv) केयूराणि न भूषयन्ति पुरुषम्।
(A) कानि
(B) किम्
(C) कः
(D) कम्
उत्तराणि:
(A) कानि

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 6 सूक्तिसुधा

सूक्तिसुधा पाठ्यांशः

1. अस्ति यद्यपि सर्वत्र नीरं नीरज-राजितम्।
रमते न मरालस्य मानसं मानसं विना॥ 1 ॥ (पण्डितराजजगन्नाथः)

अन्वयः-यद्यपि सर्वत्र नीरज-राजितं नीरम् अस्ति, (परन्तु) मरालस्य मानसं मानसं विना न रमते।

प्रसंग:-प्रस्तुत पद्य पण्डितराज जगन्नाथ द्वारा रचित तथा ‘सूक्ति-सुधा’ नामक पाठ में संकलित है, जिसमें हंस के बहाने से यह बताया गया है कि ऊँची सोच के लोगों (सज्जनों) का मन तुच्छ वस्तुओं में आनन्दित नहीं होता।

सरलार्थः-यद्यपि सभी जगह कमलों से सुशोभित जल (सरोवर) होते हैं, परन्तु हंस का मन मानसरोवर के बिना कहीं नहीं रमता।

भावार्थ:-सरोवरों में जल भी होता है और कमलपुष्प भी। परन्तु उन सरोवरों का जल बरसात में गन्दा हो जाता है, जबकि मानसरोवर का जल सदा ही निर्मल-स्वच्छ रहता है। अतः हंस मानसरोवर में ही क्रीड़ा करना चाहता है, साधारण सरोवरों में नहीं। यह अन्योक्ति है। जिसके द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि ऊँची सोच के लोग तुच्छ वस्तुओं में आनन्दित नहीं होते। विशेष:-इस पद्य में ‘अनुष्टुप्’ छन्द है। ‘अन्योक्ति’ तथा ‘यमक’ अलंकार हैं।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
नीरम् =जलम् (सरः); जल (सरोवर)। मरालस्य = हंसस्य; हंस का। नीरजराजितम् = कमलशोभितम, कमलों से सुशोभित । मानसम् = मनः मानसरोवरं वा; मन/ मानसरोवर । रमते = प्रसीदति; आनन्दित होता है।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 6 सूक्तिसुधा

2. नीरक्षीरविवेके हंसालस्य त्वमेव तनुषे चेत्।
विश्वस्मिन्नधुनान्यः कुलव्रतं पालयिष्यति कः ॥2॥ (पण्डितराजजगन्नाथः)

अन्वयः-(हे) हंस! चेत् त्वम् एव नीरक्षीरविवेके आलस्यं तनुषे (तर्हि) विश्वस्मिन् अधुना अन्यः कः कुलव्रतं पालयिष्यति।

प्रसंग:-प्रस्तुत पद्य ‘सूक्ति-सुधा’ नामक पाठ में संकलित है जिसके रचयिता पण्डितराज जगन्नाथ हैं। इस अन्योक्ति में हंस के माध्यम से यह बताया गया है कि यदि विद्वान् लोग ही अपने कर्तव्य का पालन नहीं करेंगे तो कौन करेगा ?

सरलार्थ:-हे हंस! यदि दूध का दूध और पानी का पानी करने में तुम ही आलसी हो जाओगे तो संसार में अब दूसरा कौन है, जो कुल-परम्परा का पालन करेगा ? अर्थात् कोई नहीं।

भावार्थ:-हंस के बारे में यह प्रसिद्ध है कि वह पानी मिले हुए दूध में से केवल दूध को ही पीता है और पानी छोड़ देता है। हंस को विद्वान् का प्रतीक माना गया है क्योंकि वह भी दूध का दूध और पानी का पानी करने में समर्थ होता है अर्थात् कर्तव्य-अकर्तव्य और सत्य-असत्य का निर्णय विद्वान् ही कर सकता है। यदि विद्वान् भी लोभ के वशीभूत होकर विवेकहीन आचरण करने लगेंगे तो संसार का मार्गदर्शन कौन करेगा ?

विशेषः-‘इस पद्य में ‘आर्या’ छन्द है तथा ‘अन्योक्ति’ अलंकार है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च नीरक्षीरविवेके = दूध का दूध पानी का पानी करने में। हंसालस्यम् = हंस + आलस्यम्। तनुषे = विस्तृत कर रहे हो, विस्तारयसि, तिन् + आत्मनेपदे लट् मध्यमपुरुषः, एकवचनम्। विश्वस्मिन्नधुनान्यः = विश्वस्मिन् + अधुना + अन्यः ।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 6 सूक्तिसुधा

3. तावत् कोकिल विरसान् यापय दिवसान् वनान्तरे निवसन्।
यावन्मिलदलिमालः कोऽपि रसालः समुल्लसति ॥ 3 ॥ (पण्डितराजजगन्नाथः)

अन्वयः-हे कोकिल वनान्तरे निवसन् तावत् विरसान् दिवसान् यापय यावत् कोऽपि मिलदलिमालः रसालः समुल्लसति।

प्रसंग:-प्रस्तुत पद्य ‘सूक्ति-सुधा’ नामक पाठ से लिया गया है इस पद्य के रचयिता पण्डितराज जगन्नाथ हैं। इस अन्योक्ति में कोयल के माध्यम से उचित अवसर की प्रतीक्षा करने के लिए कहा गया है।

सरलार्थ:-हे कोयल ! इस वन में निवास करते हुए तब तक रसहीन रूखे सूखे दिन व्यतीत करो। जब तक कोई आम का वृक्ष, जिस पर झुण्ड बने हुए भौरों का समूह मँडराता हुआ हो, (आम्रमंजरी से) सुशोभित होता है।

भावार्थ:-कोयल की मधुर कूक सुनने के लिए सभी के कान आतुर रहते हैं, परन्तु कोयल हर समय नहीं कूकती। वसन्त ऋतु आती है, आम के पौधे सुगन्धित आम्र-मंजरी से झूम उठते हैं। उनकी सुगन्ध से आकृष्ट होकर भौरों का समूह गुंजार करता है। कोयल कूक उठती है। यह कोयल के जीवन की स्वाभाविक घटना है, परन्तु कवि का उद्देश्य इस प्रकृति वर्णन से नहीं है, अपितु इस वर्णन के बहाने कवि कहना चाहता है कि प्रत्येक व्यक्ति में कोई न कोई स्वाभाविक गुण होता है। परन्तु उस गुण के प्रकट होने, फलने-फूलने के लिए उचित वातावरण की आवश्यकता होती है, जिसकी प्रतीक्षा मनुष्य को बड़े धैर्य के साथ करनी चाहिए। जैसे आम के पौधे पर बेर आने की प्रतीक्षा कोयल किया करती है और बसन्त ऋतु के आने पर जब आम का वृक्ष आम्र-मंजरी से महक उठता है तो कोयल भी अपने स्वाभाविक कूह-कूह के स्वर से सारे वातावरण को मदमस्त कर देती है।

विशेषः-प्रस्तुत पद्य में ‘आर्या’ छन्द है। अन्योक्ति’ तथा ‘अनुप्रास’ अलंकार हैं।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च विरसान् = रसरहित (शुष्क); रसरहितान्। यापय = व्यतीत करो; व्यतीतं कुरु। निवसन् = निवास करते हुए; वासं कुर्वन् नि = √वस् + शतृ। मिलदलिमालः (मिलत् + अलिमालः) = झुण्ड बनाते हुए भ्रमरों का समूह, जिस वृक्ष पर है, ऐसा वृक्ष (‘रसालः’ पद का विशेषण)। रसालः = आम का वृक्ष; आम्रपादपः। समुल्लसति = सुशोभित होता है, सुशोभते, (सम् + उत् + √लस् + लट्लकार, प्रथमपुरुष, एकवचन)।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 6 सूक्तिसुधा

4. नालम्बते दैष्टिकतां न निषीदति पौरुषे।
शब्दार्थों सत्कविरिव द्वयं विद्वानपेक्षते॥ 4 ॥ (माघः-शिशुपालवधम्)

अन्वयः-विद्वान् दैष्टिकतां न आलम्बते न पौरुषे (अपितु) सत्कविः इव शब्दार्थों द्वयम् अपेक्षते।

प्रसंग:-प्रस्तुत पद्य ‘सूक्ति-सुधा’ नामक पाठ से संग्रहीत है। जिसके रचयिता महाकवि माघ हैं। प्रस्तुत श्लोक में कवि ने भाग्य और पुरुषार्थ दोनों का समान रूप से आश्रय लेने की बात कही है।

सरलार्थ:-विद्वान् मनुष्य न तो भाग्य का ही सहारा लेता है और न पुरुषार्थ के भरोसे ही रहता है। वह तो दोनों का आश्रय लेता है, जिस प्रकार कोई श्रेष्ठ कवि शब्द और अर्थ दोनों का आश्रय लेकर सुन्दर कविता रचता है।

भावार्थ:-अकेले शब्द अथवा अकेले अर्थ को ध्यान में रखकर कभी भी सुन्दर कविता रची नहीं जा सकती। श्रेष्ठ कविता वही होती है जिसमें शब्द और अर्थ दोनों का सामञ्जस्य हो, कोमल अर्थ के लिए कोमल शब्दों का प्रयोग तथा कठोर अर्थ को प्रकट करने के लिए कठोर शब्दों का प्रयोग ही श्रेष्ठ कवि की पहचान है। इसी प्रकार भाग्य और पुरुषार्थ दोनों के सुन्दर सामञ्जस्य से ही जीवन सुन्दर बनता है। इसीलिए विद्वान् लोग अकेले भाग्य या अकेले पुरुषार्थ के भरोसे अपना जीवन नहीं चलाते। .

विशेषः-प्रस्तुत पद्य में ‘अनुष्टुप्’ छन्द है तथा ‘उपमा’ अलंकार है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च दैष्टिकताम् = भाग्यत्व को; भाग्यत्वम्, निषीदति = आश्रय लेता है; अवलम्बते, पौरुषे = पुरुषार्थ/कर्म में; पुरुषार्थे। सत्कविरिव (सत्कविः + इव) = श्रेष्ठकवि की भाँति। अपेक्षते = अपेक्षा करता है, आश्रम लेता है; आश्रयते।

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5. न किञ्चिदपि कुर्वाणः सौख्यैर्दुःखान्यपोहति।
तत्तस्य किमपि द्रव्यं यो हि यस्य प्रियो जनः॥ 5 ॥ (भवभूतिः)

अन्वयः- यः हि यस्य प्रियः जनः, तत् तस्य किमपि द्रव्यम् (सः) किञ्चित् अपि न कुर्वाणः (उपस्थितिमात्रेण) सौख्यैः दुःखानि अपोहति।

प्रसंगः-प्रस्तुत पद्य ‘सूक्ति-सुधा’ नामक पाठ से उद्धृत है, जिसके रचयिता महाकवि भवभूति हैं। इस पद्य में प्रियजन की उपस्थितिमात्र को दुःख दूर करने वाला बताया गया है।

सरलार्थ:-जो जिसका प्रियजन होता है, वह उसके लिए कोई (बहुमूल्य) वस्तु होता है। वह कुछ भी न करता . हुआ (अपनी उपस्थितिमात्र से) सुखों के द्वारा दुःखों को दूर कर देता है। भावार्थ:-प्रियजन बहुमूल्य वस्तु के समान होता है, जो अपनी उपस्थितिमात्र से ही दुःखों को दूर कर देता है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च कुर्वाणः = करते हुए; कुर्वन् (√कृ + शानच्) । सौख्यैः = सुखों के द्वारा; सुखपूर्वकैः । अपोहति = दूर करता है; दूरीकरोति।

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6. सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्।
वृणते हि विमश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः॥ 6 ॥ (भारविः-किरातार्जुनीयम्)

अन्वयः-सहसा क्रियां न विदधीत, (यतः) अविवेकः परमापदां पदं (भवति)। सम्पदः गुणलुब्धाः (भवन्ति, अतः) स्वयमेव हि विमृश्यकारिणं वृणते।

प्रसंग:-प्रस्तुत पद्य ‘सूक्ति-सुधा’ नामक पाठ से उद्धृत है। इसके रचयिता महाकवि भारवि हैं। कवि ने इस श्लोक में सोच-विचार कर ही कार्य करने के लिए प्रेरित किया है।

सरलार्थः-मनुष्यों को अचानक ही (बिना सोचे-विचारे) कोई कार्य नहीं करना चाहिए। क्योंकि विवेकहीनता घोर विपत्तियों का स्थान होती है। सम्पत्तियाँ गुणों की लोभी होती हैं; अतः सोच-विचार कर कार्य करने वाले मनुष्य को वे स्वयं ही चुन लेती है।

भावार्थ:-‘बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताए’ हिन्दी की इस कहावत का मूल भाव इस सूक्ति में है। मनुष्य को सोच-विचार कर ही प्रत्येक कार्य करना चाहिए। बिना सोचे-समझे कार्य करने से घोर विपत्तियों का सामना करना पड़ता है। मनुष्य सम्पत्ति पाने के लिए कार्य करता है, सम्पत्तियाँ गुणों के पीछे चलती हैं । गुणवान् मनुष्य विवेकपूर्वक कार्य करता है और सम्पत्तियाँ भी ऐसे विचारशील मनुष्य के पास स्वयं दौड़कर चली आती हैं। विशेष:-इस पद्य में ‘आर्या’ छन्द है तथा ‘अर्थान्तरन्यास’ अलंकार है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
विदधीत = करो ; कुर्वीत, (वि उपसर्ग + √डुधाञ् (धा) विधिलिङ् प्रथम पुरुष एकवचन)। वृणते = वरण करती है ; वरणं कुर्वन्ति। विमृश्यकारिणम् = विचार कर कार्य करने वाले को ; विचिन्त्यकारिणम्।

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7. स्वायत्तमेकान्तगुणं विधात्रा विनिर्मितं छादनमज्ञतायाः।।
विशेषतः सर्वविदां समाजे विभूषणं मौनमपण्डितानाम्॥7॥ (भर्तृहरिः नीतिशतकम्)

अन्वयः विधात्रा स्वायत्तम्, एकान्तगुणम्, अज्ञतायाः छादनं मौनं विनिर्मितम्। विशेषतः सर्वविदां समाजे (एतत् मौनम्) अपण्डितानां विभूषणम् (अस्ति)।

प्रसंग:-प्रस्तुत पद्य ‘सूक्ति-सुधा’ नामक पाठ से संगृहीत है। इस पद्य के रचयिता महाकवि भर्तृहरि हैं। इस पद्य में मौन का महत्त्व बताया गया है।

सरलार्थ:-विधाता ने स्वतन्त्र, अद्वितीय गुण वाला, अज्ञान को ढकने वाला मौन नामक गुण बनाया है। विशेष रूप से विद्वानों की सभा में तो यह मौन मूल् का आभूषण बन जाता है।

भावार्थ:-‘एक चुप सो सुख’ हिन्दी की इस कहावत का मूल भाव इस पद्य में है। यह मौन अद्वितीय विशेषताओं वाला है। यह अज्ञान को ढक देता है। विद्वानों की सभा में यदि कोई मूर्ख मनुष्य बैठा हो और वह वहाँ बैठकर चुप रहे तब यह मौन उस मूर्ख का आभूषण बन जाता है और दूसरे लोग इस चुप रहने वाले मूर्ख को विद्वान् ही समझते हैं। विशेष:-इस पद्य में उपजाति छन्द है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च स्वायत्तम् = स्वयं के अधीन ; निजाधीनम्। विधात्रा = ब्रह्मा के द्वारा ; ब्रह्मणा। छादनम् = आवरण ; आवरणम्। सर्वविदाम् = सर्वज्ञानाम् ; सर्वज्ञों के।

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8. विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः।
यशसि चाभिरुचिर्व्यसनं श्रुतौ प्रकृतिसिद्धिमिदं हि महात्मनाम्॥ 8 ॥ (भर्तृहरिः-नीतिशतकम्)

अन्वयः-विपदि धैर्यम्, अथ अभ्युदये क्षमा, सदसि वाक्पटुता, युधि विक्रमः, यशसि च अभिरुचिः, श्रुतौ व्यसनम्, इदं हि महात्मनां प्रकृतिसिद्धम्।

प्रसंग:-प्रस्तुत पद्य ‘सूक्ति-सुधा’ नामक पाठ से संगृहीत है। इस पद्य के रचयिता महाकवि भर्तृहरि हैं। इस पद्य में महापुरुषों के स्वाभाविक गुणों की चर्चा की गई है। –

सरलार्थः-विपत्ति के समय धीरता, अधिक समृद्धि होने पर क्षमा (सहनशीलता) सभा में बोलने की चतुराई, संग्राम में पराक्रम, यश प्राप्त करने में इच्छा एवं वेदादिशास्त्रों में आसक्ति-ये सभी गुण महापुरुषों में स्वभाव से ही होते हैं।

भावार्थ:-महापुरुषों के ये स्वाभाविक गुण हैं कि वे विपत्ति में व्याकुल नहीं होने, उन्नति होने पर भी सब को क्षमा करते हैं, सभा में अपनी वचन-कुशलता से सबको मोहित कर लेते हैं, युद्ध में डर कर नहीं भागते, यश के लिए प्रयत्नशील रहते हैं तथा ज्ञान अर्जित करने में निरन्तर प्रवृत्त रहते हैं। विशेष:-इस पद्य में द्रुतविलम्बित छन्द है।।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च अभ्युदये = उन्नति में ; उन्नतौ (अभि + उदये, यण् सन्धि)। सदसि = सभा में ; सभायाम् (सदस् शब्द नपुंसकलिंग सप्तमी विभक्ति एकवचन)। वाक्पटुता = वाणी में कुशलता ; वाचि पटुता, युधि = युद्ध में ; युद्धे।

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9. पापान्निवारयति योजयते हिताय
गुह्यं निगृहति गुणान् प्रकटीकरोति।
आपद्गतं च न जहाति ददाति काले
सन्मित्रलक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्तः॥ १ ॥ (भर्तृहरिः-नीतिशतकम्)

अन्वयः-पापात् निवारयति, हिताय योजयते, गुह्यं निगृहति, गुणान् प्रकटीकरोति, आपद्गतं च न जहाति, काले ददाति। सन्तः इदं सन्मित्रलक्षणं प्रवदन्ति।

प्रसंग:-प्रस्तुत पद्य ‘सूक्ति-सुधा’ नामक पाठ से संगृहीत है। इस पद्य के रचयिता महाकवि भर्तृहरि हैं। इस . पद्य में श्रेष्ठ मित्र के लक्षण बताए गए हैं।

सरलार्थः-जो पाप करने से मित्र को रोकता है, हितकर्म (अच्छे काम) में लगाता है, मित्र की गुप्त बात को छिपाता है, उसके गुणों को प्रकट कर देता है, आपत्ति में पड़े हुए को भी नहीं छोड़ता, समय पड़ने पर (धन आदि से) सहायता प्रदान करता है। सज्जन लोग इसे ही अच्छे मित्र का लक्षण बतलाते हैं।

भावार्थ:-सुमित्र वही है जो मित्र को हानिकारक कर्म से हटाकर कल्याण मार्ग में लगाए, उसके दोषों को छिपाकर गुणों को प्रकाशित करे, विपत्ति में भी उसका साथ न छोड़े तथा यथाशक्ति धनादि से उसकी सहायता करे।

विशेषः- इस पद्य में वसन्ततिलका छन्द है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च निवारयति = रोकता है। गुह्यम् = गुप्त बात। योजयते = लगाता है। आपद्गतम् = आपत्ति में पड़ा हुआ। जहाति = छोड़ता है; त्यजति। काले = समय पड़ने पर। निगृहति = छिपाता, आच्छादयति। प्रवदन्ति = कहते हैं।

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10. मनसि वचसि काये पुण्यपीयूषपूर्णाः
त्रिभुवनमुपकारश्रेणिभिः प्रीणयन्तः।
परगुणपरमाणून् पर्वतीकृत्य नित्यं,
निजहृदि विकसन्तः सन्ति सन्तः कियन्तः॥ 10 ॥ (भर्तृहरिः-नीतिशतकम्)

अन्वयः-मनसि वचसि काये पूण्यपीयूषपूर्णाः, उपकारश्रेणिभिः त्रिभुवनं प्रीणयन्तः परगुण-परमाणून् पर्वतीकृत्य निजहदि विकसन्तः कियन्तः सन्तः सन्ति ?

प्रसंग:-प्रस्तुत पद्य ‘सूक्ति-सुधा’ नामक पाठ से संगृहीत है। इस पद्य के रचयिता महाकवि भर्तृहरि हैं। इस पद्य में बताया गया है कि दूसरों के छोटे से गुण को अपने हृदय में ग्रहण करके उसका बहुत अधिक विस्तार करने वाले लोग बहुत कम होते है।

सरलार्थ:-जिनके मन, वाणी और शरीर में पुण्य रूपी अमृत भरा हो, जो अपने उपकारों से तीनों लोकों को प्रसन्न करते हों और दूसरों के परमाणु-समान अति सूक्ष्म गुणों को सदा पर्वत के समान बहुत बढ़ा-चढ़ा कर अपने हृदय में उनका विकास करते हों, ऐसे सज्जन इस संसार में कितने हैं अर्थात् ऐसे लोग विरले ही होते हैं।

भावार्थ:-सत्पुरुष अपने तन, मन और वचन से सदा परोपकार में लगे रहते हैं। वे दूसरे मनुष्यों के छोटे से छोटे गुण को भी अपने हृदय में धारण कर उसे पर्वत के समान अति विस्तृत रूप देकर बड़े सन्तुष्ट रहते हैं। ऐसे पुरुषरत्न धरती पर विरले ही होते हैं। विशेषः-इस पद्य में ‘मालिनी’ छन्द है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च वचसि = वाणी में ; वाचि (वचस्-सप्तमी विभक्ति एकवचन)। प्रीणयन्तः = प्रसन्न करते हुए ; प्रसन्नं कुर्वन्तः। परगुणपरमाणून् = दूसरों के अति सूक्ष्मगुणों को ; अन्येषाम् अतिसूक्ष्मान् गुणान्। पर्वतीकृत्य = बढ़ा-चढ़ा कर ; विशालतां नीत्वा। हृदि = हृदय में ; हृदये (हृत् शब्द सप्तमी विभक्ति एकवचन)। विकसन्तः = खिलते हुए ; विकासं कुर्वन्तः। सन्तः = सज्जन ; विकासं कुर्वन्तः (‘सत्’ शब्द प्रथमा विभक्ति बहुवचन)।

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11. केयूराणि न भूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्ज्वलाः,
न स्नानं न विलेपनं न कुसुमं नालंकृता मूर्धजाः।
वाण्येका समलड्करोति पुरुषं या संस्कृता धार्यते,
क्षीयन्ते खलु भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम्॥ 11 ॥ (भर्तृहरिः नीतिशतकम्)

अन्वयः-पुरुषं केयूराणि न भूषयन्ति । न चन्द्रोज्ज्वला: हाराः (भूषयन्ति)। न स्नानम्, न विलेपनम्, न कुसुमम्, न अलंकृताः मूर्धजा: भूषयन्ति । एका वाणी या संस्कृता धार्यते (सा एव) पुरुषं समलकरोति। भूषणानि खलु सततं क्षीयन्ते, वाग्भूषणं भूषणम्।

प्रसंगः-प्रस्तुत पद्य ‘सूक्ति-सुधा’ नामक पाठ से संगृहीत है। इस पद्य के रचयिता कवि भर्तृहरि हैं। इस पद्य में सभ्यता पूर्ण वाणी को मनुष्य का सबसे बड़ा आभूषण बताया गया है।

सरलार्थः-मनुष्य को बाजू-बन्ध सुशोभित नहीं करते हैं। चन्द्रमा के समान उज्ज्वल हार भी सुशोभित नहीं करते। न स्नान करने से, न चन्दन आदि का लेप करने से, न पुष्पमाला धारण करने से और न ही सिर के सजे-धजे बालों से मनुष्य शोभायमान होता है। एक वाणी ही, जो संस्कारपूर्वक (सभ्यतापूर्ण ढंग से) धारण की गई हो, मनुष्य को सुशोभित करती है। संसार के अन्य सभी आभूषण समय के प्रवाह से नष्ट हो जाते हैं, केवल वाणी का आभूषण ही सच्चा आभूषण है, जो सदा बना रहता है।

भावार्थः-शरीर के बाह्य आभूषण मनुष्य की थोड़ी देर के लिए ही शोभा बन पाते हैं। बाद में ये आभूषण नष्ट हो जाते हैं। परन्तु शिष्टाचार पूर्ण सुसंस्कृत वाणी सदैव मनुष्य की शोभा बढ़ाती रहती है, इसीलिए वाणी को ही सच्चा आभूषण कहा गया है। विशेषः-‘इस पद्य में ‘शार्दूलविक्रीडित’ छन्द है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
केयूराणि = बाजूबन्ध, भुजबन्ध ; विशिष्टाभूषणानि। मूर्धजाः = सिर के बाल ; केशाः । क्षीयन्ते = नष्ट हो जाते हैं ; विनश्यन्ते। संस्कृता = शुद्ध, परिष्कृत, संस्कारयुक्त, शिष्टाचारपूर्ण।

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12. यावत्स्वस्थमिदं कलेवरगृहं यावच्च दूरे जरा,
यावच्चेन्द्रियशक्तिरप्रतिहता यावत्क्षयो नायुषः।
आत्मश्रेयसि तावदेव विदुषा कार्यः प्रयत्नो महान्,
प्रोद्दीप्ते भवने च कूपखननं प्रत्युद्यमः कीदृशः ॥ 12॥ (भर्तृहरिः)

अन्वयः-यावत् इदं कलेवरगृहं स्वस्थम्, यावत् च जरा दूरे (तिष्ठति), यावत् च इन्द्रियशक्तिः अप्रतिहता (अस्ति), यावत् आयुषः, क्षयः न (अस्ति), तावत् विदुषा आत्मश्रेयसि महान् प्रयत्नः कार्यः। प्रोद्दीप्ते च भवने कूपखननं प्रति उद्यमः कीदृशः।

प्रसंग:-प्रस्तुत पद्य ‘सूक्ति-सुधा’ नामक पाठ से उद्धृत है। इस पद्य के रचयिता भर्तृहरि हैं। इस पद्य में बताया गया है कि आत्मकल्याण के लिए युवा अवस्था में ही प्रयत्नशील होना चाहिए तथा विपत्ति के आने से पहले ही उसका उपाय खोज लेना चाहिए।

सरलार्थ:-जब तक मनुष्य का यह शरीर रूपी घर स्वस्थ है, जब तक बुढ़ापा इससे दूर है, जब तक इन्द्रियों की शक्तिपूर्ण रूप से बनी हुई है, जब तक आयु क्षीण नहीं हुई है-उससे पूर्व ही विद्वान् मनुष्य को आत्मकल्याण के लिए महान् प्रयास करना चाहिए। घर में आग लग जाने पर कुआँ खोदने के परिश्रम का क्या लाभ है ?

भावार्थ:-कवि भर्तृहरि के कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य को आत्मकल्याण के लिए युवा अवस्था में ही प्रयत्न करना चाहिए। बुढ़ापा आने पर तो शरीर ही साथ नहीं देता, उसकी सारी शक्ति क्षीण हो जाती है। फिर अध्यात्मसाधना नहीं हो सकती। जो लोग बुढ़ापा आने पर प्रभु भजन का प्रयास करते हैं, वे तो मानो ऐसे प्रयास में लगे हैं जैसे घर में आग लग जाने पर कोई मूर्ख मनुष्य पानी के लिए कुआँ खोदने का प्रयास करता है। विशेष:-इस पद्य में ‘शार्दूलविक्रीडित’ छन्द है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च कलेवरगृहम् = शरीर ; शरीरम् एव गृहम् (कर्मधारय समास)। जरा = बुढ़ापा ; वृद्धत्वम्। प्रोद्दीप्ते = जलने पर ; प्रज्ज्वलिते। उद्यमः = मेहनत ; परिश्रम।

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सूक्तिसुधा (सुन्दर वचन रूपी अमृत) Summary in Hindi

सूक्तिसुधा पाठ परिचय

संस्कृत साहित्य में सूक्तियों एवं सदुपदेशों का समृद्ध भण्डार है। इनमें भारतीय संस्कृति एवं जीवन के उदात्त मूल्यों का सन्देश प्राप्त होता है। अभ्युदय, सौख्य, शान्ति, समरसता, सामञ्जस्य आदि विषयों के अचूक मोती इनमें पिरोए गए हैं। सूक्ति का अर्थ है सुन्दर वचन, सुधा का अर्थ है अमृत, ‘सूक्तिसुधा’ का अर्थ है ‘सुन्दर वचन रूपी अमृत’। इस पाठ में पण्डितराज जगन्नाथ, महाकवि माघ, भारवि, प्रसिद्ध नाटककार भवभूति तथा महाकवि भर्तृहरि की सूक्तियाँ संकलित हैं। ये सूक्तियाँ आज भी हमारे जीवन के लिए बहुमूल्य, उपयोगी एवं पथप्रदर्शक हैं। विभिन्न विषयों से सम्बद्ध सूक्तियाँ निश्चित रूप से छात्रों का मार्गदर्शन करेंगी।

सूक्तिसुधा पाठस्य सारः

‘सूक्तिसुधा’ पाठ में संस्कृत साहित्य की सूक्तियाँ संकलित की गई हैं। जीवनप्रद सुभाषितों का जैसा समृद्ध भण्डार संस्कृत वाङ्मय में मिलता है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। इस पाठ में पण्डितराज जगन्नाथ, माघ, भारवि, भवभूति तथा भर्तृहरि की सूक्तियाँ संगृहीत की गई हैं। ये सूक्तियाँ आज भी हमारे जीवन के लिए बहुमूल्य, प्रेरणाप्रद, उपयोगी तथा मार्गदर्शक हैं।

प्रथम पद्य में महाकवि पण्डितराज जगन्नाथ ने हंस के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि ऊँची सोच के लोगों (सज्जनों) का मन तुच्छ वस्तुओं में नहीं लगता, जैसे हंस सामान्य सरोवरों को छोड़कर मानस सरोवरों में ही आनन्दित रहता है।

द्वितीय श्लोक में महाकवि पण्डितराज जगन्नाथ ने हंस के माध्यम से यह बताया है कि विद्वान् लोगों को अपनी विवेकशक्ति का उपयोग अवश्य करना चाहिए क्योंकि वे ही समाज के पथप्रदर्शक होते हैं।

तृतीय पद्य में कोयल के माध्यम से महाकवि पण्डितराज जगन्नाथ ने यह बताने का प्रयास किया है कि व्यक्ति को अपने स्वाभाविक गुणों के विकास के लिए उचित अवसर की प्रतीक्षा करनी चाहिए। जैसे कोयल मधुर कूहकूह के लिए आम्रवृक्षों पर बोर आने की प्रतीक्षा करती है।
चतुर्थ श्लोक में महाकवि माघ ने जीवन में भाग्य और पुरुषार्थ दोनों का सामञ्जस्य करके जीवन को आनन्दमय बनाने का सन्देश दिया है। जैसे श्रेष्ठकवि शब्द और अर्थ दोनों के सुन्दर सामञ्जस्य से श्रेष्ठ कविता का सृजन करता

पञ्चम श्लोक में महाकवि भवभूति ने प्रियजन को ऐसी अमूल्य वस्तु बताया है जो कुछ न करते हुए भी मनुष्य को सुखों से भर देता है और दुःखों को दूर करता है।
छठे श्लोक में महाकवि भारवि ने प्रत्येक कार्य को सोच-विचार कर करने के लिए प्रेरित किया है और अविवेकपूर्ण कार्य की विपत्तियों का घर बताया है।

‘सूक्तिसुधा’ पाठ के अन्तिम छः श्लोक महाकवि भर्तृहरि के गीतिकाव्यों से संगृहीत हैं। एक श्लोक में मौन का महत्त्व समझाते हुए मौन को अज्ञानता का ढकने वाला तथा मूर्यों का आभूषण कहा गया है। एक श्लोक में विपत्ति में धैर्य, समृद्धि में सहनशीलता, सभा में वाक्चातुर्य, युद्ध में पराक्रम, यश अर्जित करने में तत्परता, शास्त्र-ज्ञान

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 6 सूक्तिसुधा

अर्जित करने की आदत को महापुरुषों का स्वाभाविक गुण बताया है। . अन्य श्लोक में सच्चे मित्र की पहचान के छ: सूत्र बताए हैं। पाप से रोकना, हित में लगाना, गुप्त बात को छिपाना, गुणों को प्रकट करना, विपत्ति में साथ न छोड़ना, समय पर धन आदि से सहायता करना-ये श्रेष्ठ मित्र के छह लक्षण हैं।
एक सुभाषित में भर्तृहरि ने बताया है कि संसार में उन लोगों की संख्या बहुत कम होती है, जो दूसरों के गुणों को अपने अन्दर ग्रहण करते हैं और उस गुण का विस्तार करते हैं।

एक सुभाषित में शिष्टाचारपूर्ण सुसंस्कृत वाणी को मनुष्य का सच्चा और सदा रहने वाला आभूषण बताया है, क्योंकि शेष सभी आभूषण तो समय के प्रवाह के साथ अपनी चमक खो देते हैं और नष्ट हो जाते हैं।

अन्तिम सुभाषित में भर्तृहरि ने इस बात पर बल दिया है, की मनुष्य को आत्मकल्याण के लिए प्रयत्न युवावस्था में स्वस्थ रहते हुए ही कर लेना चाहिए। बुढ़ापे में आत्मकल्याण का प्रयत्न घर में आग लगने पर कुआँ खोदने जैसा निरर्थक है।

इस प्रकार ये सूक्तियाँ जीवन के लिए उपयोगी तथा महत्त्वपूर्ण हैं। इनके अनुसार आचरण करने से हमारा जीवन सफल एवं सुन्दर बन सकता है।

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HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 5 शुकनासोपदेशः

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 5 शुकनासोपदेशः Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 5 शुकनासोपदेशः

HBSE 12th Class Sanskrit शुकनासोपदेशः Textbook Questions and Answers

1. संस्कृतेन उत्तरं दीयताम्
(क) लक्ष्मीमदः कीदृशः ?
(ख) चन्द्रापीडं कः उपदिशति ?
(ग) अनर्थपरम्परायाः किं कारणम् ?
(घ) कीदृशे मनसि उपदेशगुणाः प्रविशन्ति ?
(ङ) लब्धापि दुःखेन का परिपाल्यते ?
(च) केषाम् उपदेष्टारः विरलाः सन्ति ?
(छ) लक्ष्म्या परिगृहीताः राजानः कीदृशाः भवन्ति ?
(ज) वृद्धोपदेशं ते राजानः किमिति पश्यन्ति ?
उत्तरम्:
(क) लक्ष्मीमदः अपरिणामोपशमः दारुणः अस्ति।
(ख) चन्द्रापीडं मन्त्री शुकनासः उपदिशति ?
(ग) अनर्थपरम्परायाः कारणानि-गर्भेश्वरत्वम्, अभिनवयौवनत्वम्, अप्रतिम-रूपत्वम्, अमानुषशक्तित्वं चेति।
(घ) अपगतमले मनसि उपदेशगुणाः प्रविशन्ति।
(ङ) लब्धापि दुःखेन लक्ष्मीः परिपाल्यते।
(च) राज्ञाम् उपदेष्टारः विरलाः सन्ति ?
(छ) लक्ष्म्या परिगृहीताः राजानः विक्लवाः भवन्ति ?
(ज) वृद्धोपदेशं ते राजानः जरावैक्लव्यप्रलपितम् इति पश्यन्ति ?

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 5 शुकनासोपदेशः

2. विशेषणानि विशेष्यैः सह योजयत
विशेषणम् – विशेष्यम्
(क) समतिक्रामत्सु – ते
(ख) अधीतशास्त्रस्य – विद्वांसम्
(ग) दारुणो – दिवसेषु
(घ) गहनं तमः – दोषजातम्
(ङ) अतिमलिनम् – लक्ष्मीमदः
(च) सचेतसम् – यौवनप्रभवम्
उत्तरम्:
(क) समतिक्रामत्सु – दिवसेषु
(ख) अधीतशास्त्रस्य – ते
(ग) दारुणो – लक्ष्मीमदः
(घ) गहनं तमः – यौवनप्रभवम्
(ङ) अतिमलिनम् – दोषजातम्
(च) सचेतसम् – विद्वांसम्

3. अधोलिखितपदानि स्वरचित-संस्कृत-वाक्येषु प्रयुग्ध्वम्
संग्रहार्थम्, समुपस्थितम्, विनयम्, परिणमयति, शृण्वन्ति, स्पृशति।
उत्तरम्:
(वाक्यप्रयोगः)
(क) संग्रहार्थम्-सद्गुणानां संग्रहणार्थं सदा यत्नः करणीयः।
(ख) समुपस्थितम्-राजा समुपस्थितं सेवकं शस्त्रम् आनेतुम् आदिशत्।
(ग) विनयम्-विद्या विनयं ददाति।
(घ) परिणमयति-लक्ष्मीमदः सज्जनम् अपि दुष्टभावेषु परिणमयति।
(ङ) शृण्वन्ति-अहंकारिणः राजानः गुरूपदेशान् न शृण्वन्ति।
(च) स्पृशति-लक्ष्मी: गुणवन्तं न स्पृशति।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 5 शुकनासोपदेशः

4. अधोलिखितानां पदानां सन्धिच्छेदं कुरुत
उत्तरसहितम्:
(क) एवातिगहनम् = एव + अतिगहनम्
(ख) गर्भेश्वरत्वम् = गर्भ + ईश्वरत्वम्
(ग) गुरूपदेशः = गुरु + उपदेशः
(घ) ह्येवम् = हि + एवम्
(ङ) नाभिजनम् = न + अभिजनम्
(च) नोपसर्पति = न + उपसर्पति

5. प्रकृति-प्रत्ययविभागः क्रियताम्
उत्तरसहितम्
HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 5 शुकनासोपदेशः img-2

6. समासविग्रहं कुरुत
उत्तरसहितम्:
(क) अमानुषशक्तित्वम् – न मानुषशक्तित्वम् (नञ्-तत्पुरुषः)
(ख) अत्यासाः अतिशयेन आसङ्गः (उपपद-तत्पुरुषः)
(ग) अनार्या न आर्या (नञ्-तत्पुरुषः)
(घ) स्वार्थनिष्पादनपरैः – स्वार्थस्य निष्पादने परैः (तत्परैः) तत्पुरुषः
(ङ) अहर्निशम् – निशायां निशायाम् (अव्ययीभावः)
(च) वृद्धोपदेशम् – वृद्धानाम् उपदेशम् (षष्ठी-तत्पुरुषः)

7. रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) लक्ष्मी : …………………. न रक्षति।
(ख) ………………. दुःस्वप्नमिव न स्मरति।
(ग) सरस्वतीपरिगृहीतं ……………….
(घ) उपदिश्यमानमपि ………………… न शृण्वन्ति।
(ङ) अवधीरयन्तः ………………….. हितोपदेशदायिनो गुरून्।
(च) तथा प्रयतेथाः ……………… नोपहस्यसे जनैः।
(छ) चन्द्रापीड: प्रीतहृदयो ………………… आजगाम।
उत्तरम्:
(क) परिचयम्
(ख) दातारम्
(ग) नालिङ्गति
(घ) राजानः
(ङ) खेदयन्ति
(च) यथा
(छ) स्वभवनम्।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 5 शुकनासोपदेशः

8. सप्रसङ्गं हिन्दीभाषया व्याख्या कार्या
(क) गर्भेश्वरत्वभिनवयौवनत्वमप्रतिमरूपत्वममानुषशक्तित्वञ्चेति महतीयं खल्वनर्थपरम्परा।
(ख) हरति अतिमलिनमपि दोषजातं गुरूपदेशः ।
(ग) विद्वांसमपि सचेतसमपि, महासत्त्वमपि, अभिजातमपि, धीरमपि, प्रयत्नवन्तमपि पुरुषं दुर्विनीता खलीकरोति
लक्ष्मीरिति। उत्तरम् -(व्याख्या)
(क) गर्भेश्वरत्वभिनवयौवनत्वमप्रतिमरूपत्वममानुषशक्तित्वज्येति महतीयं खल्वनर्थपरम्परा।

व्याख्या-प्रस्तुत पंक्ति शुकनासोपदेश नामक पाठ से ली गई है। यह पाठ संस्कृत के महान् गद्यकार बाणभट्ट द्वारा रचित कादम्बरी से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्ति में मन्त्री शुकनास युवराज चन्द्रापीड को उपदेश करते हुए अनर्थ के चार कारणों की ओर ध्यान दिला रहे हैं। मन्त्री शुकनास कहते हैं कि अनर्थ की परम्परा के चार कारण हैं… (i) जन्म से ही प्रभुता
(ii) नया यौवन
(iii) अति सुन्दर रूप
(iv) अमानुषी शक्ति।

इन चारों में से मनुष्य का विनाश करने के लिए कोई एक कारण भी पर्याप्त होता है। जिसके जीवन में ये चारों ही कारण उपस्थित हों, उसके विनाश को कौन रोक सकता है ? इसीलिए प्रत्येक मनुष्य को घोर अनर्थ से बचने के लिए उक्त चारों वस्तुएँ पाकर भी कभी अहंकार नहीं करना चाहिए।

(ख) हरति अतिमलिनमपि दोषजातं गुरूपदेशः।
व्याख्या-प्रस्तुत पंक्ति शुकनासोपदेश नामक पाठ से ली गई है। यह पाठ संस्कृत के महान् गद्यकार बाणभट्ट द्वारा रचित कादम्बरी से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्ति में शुकनास युवराज चन्द्रापीड को गुरु के उपदेश का महत्त्व समझा रहे हैं । मन्त्री शुकनास कहते हैं कि गुरु का उपदेश मनुष्य के जीवन में बहुत अधिक उपयोगी तथा हितकारी होता है। मनुष्य में यदि अत्यधिक गहरे दोषों का समूह हो तो गुरु का उपदेश उन गहरे से गहरे दोषों को भी दूर कर देता है और उन दोषों के स्थान पर अति उत्तम गुण प्रवेश कर जाते हैं। मनुष्य का जीवन उज्ज्वल हो जाता है। सब जगह ऐसे व्यक्ति का यश फैलता है, इसीलिए गुरु का उपदेश प्रत्येक मनुष्य के लिए परम कल्याणकारी तथा आवश्यक है।

(ग) विद्वांसमपि सचेतसमपि, महासत्त्वमपि, अभिजातमपि, धीरमपि, प्रयत्न-वन्तमपि पुरुषं दुर्विनीता खलीकरोति लक्ष्मीरिति।
व्याख्या-प्रस्तुत पंक्ति शुकनासोपदेश नामक पाठ से ली गई है। यह पाठ संस्कृत के महान् गद्यकार बाणभट्ट द्वारा रचित कादम्बरी से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्ति में मन्त्री शुकनास लक्ष्मी अर्थात् धन के गुणों पर प्रकाश डाल रहे हैं।

मन्त्री शुकनास कहते हैं कि लक्ष्मी इतनी शक्तिशाली होती है कि अत्यन्त जागरूक रहने वाले विद्वान्, महान् बलशाली, उच्चकुल में उत्पन्न, धैर्यशील तथा अत्यन्त परिश्रमी मनुष्य को भी यह लक्ष्मी दुष्ट आचरण वाला बना देती है। शुकनास के कहने का तात्पर्य है कि जिस मनुष्य के पास धन होता है, वह धन के अहंकार में कर्तव्य-अकर्तव्य के विवेक को खो बैठता है और कुमार्गगामी हो जाता है।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 5 शुकनासोपदेशः

योग्यताविस्तारः
‘उप’ उपसर्गपूर्वकात् अतिसर्जनार्थकात् ‘दिश्’ धातोः ‘घञ्’ प्रत्यये उपदेशशब्दः निष्पद्यते। समुचितकार्येषु मित्रं, बन्धु, आश्रितजनं, विद्यार्थिनं वा सन्मार्गे प्रवर्तयितुं केनचित् हितचिन्तकेन सुहृद्वरेण ज्ञानिना वा दीयमानः परामर्शः मार्गनिर्देशः हितवचनं वा ‘उपदेश’ इति उच्यते। संस्कृतवाङ्मये लोकप्रबोधकानि सदाचारप्रतिपादकानि च सूत्राणि नानाग्रन्थेषु, काव्येषु सुभाषितेषु च समुपलभ्यन्ते। तानि उपदेशसूत्राणि बालकान्, युवकान्, प्रौढान्, वृद्धान विविधेषु क्षेत्रेषु कार्याणि कुर्वतः च अधिकृत्य सामान्येन प्रकारेण प्रणीतानि सन्ति।

अत्र उद्धृते भागे शुकनासोपदेशाख्ये राजकुमारं चन्द्रापीडं प्रति शुकनासस्य उपदेशः संगृहीतः। तथाहि-ऐश्वर्य, यौवनं, सौन्दर्य, शक्तिश्चेति प्रत्येकं अनर्थकारणमिति मत्त्वा चन्द्रापीडम् उपदेष्टुं प्रक्रान्तः शुकनासः । यद्यपि चन्द्रापीडः विनीतः गृहीतविद्यश्च तथापि ऐश्वर्यादिभिः अस्य मनः खलीकृतं न भवेत् इति धिया शुकनासः चन्द्रापीडम् उपदिशति। अत: उपदेशोऽयं न केवलं चन्द्रापीडं प्रति अपितु तन्माध्यमेन सर्वेषां जनानां कृतेऽपि।

पञ्चतन्त्रेऽपि यत्र-तत्र ईदृश एव हृदयङ्गमः उपदेशः प्राप्यते। यौवनादिकारणैः सम्भाव्यमानमनर्थं पञ्चतन्त्रम् एवमुल्लिखति

यौवनं धनसम्पत्तिः प्रभुत्वमविवेकिता।
एकैकमप्यनर्थाय किमु यत्र चतुष्टयम्॥

महाभारतस्य उद्योगपर्वणः भागे विदुरनीतौ अपि एवमभिहितमस्ति
अष्टौ गुणाः पुरुषं दीपयन्ति
प्रज्ञा च कौल्यं च दमः श्रुतं च॥
पराक्रमश्चाबहुभाषिता च
दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च॥
न क्रोधिनोऽर्थो न नृशंसमित्रं
क्रूरस्य न स्त्री सुखिनो न विद्या।
न कामिनो ह्रीरलसस्य न श्रीः
सर्वं तु न स्यादनवस्थितस्य॥

अन्यत्रापि हितोपदेश-नीतिशतकादौ च एवमुपदिष्टम् अस्ति। तत्र-तत्रापि योग्यता विस्तरार्थमवश्यं पठनीयम्।
1. बाणभट्टस्य रीतिः पाञ्चाली रीतिरिति कथ्यते । तस्याः लक्षणम् “शब्दार्थयोः समो गुम्फः पाञ्चालीरीतिरिष्यते।”
2. बाणभट्टस्य गद्ये या लयात्मकता वर्तते, पाठपुरस्सरं तस्याः सन्धानं कार्यम्।

बाणविषयकसूक्तयः प्रशस्तयश्च
1. बाणोच्छिष्टं जगत्सर्वम्।

2. केवलोऽपि स्फुरन् बाणः करोति विमदान् कवीन्।
किं पुनः क्लृप्तसन्धानः पुलिन्दकृतसन्निधिः॥ (धनपालः-तिलकमञ्जरी)

3. सुबन्धुर्बाणभट्टश्च कविराज इतित्रयः।
वक्रोक्तिमार्गनिपुणाश्चतुर्थो विद्यते न वा॥ (मङ्खक:-श्रीकण्ठचरितम्)

4. श्लेषे केचन शब्दगुम्फविषये केचिद्रसे चापरेऽ
लड़कारे कतिचित्सदर्थविषये चान्ये कथावर्णने।
आः सर्वत्र गभीरधीरकविताविन्ध्याटवी चातुरी
सञ्चारी कविकुम्भिकुम्भभिदुरां बाणस्तु पञ्चाननः॥ (चन्द्रदेवः-शार्ङ्गधरपद्धतिः)

5. शब्दार्थयोः समो गुम्फः पाञ्चालीरीतिरिष्यते।
शीलाभारिकावाचि बाणोत्तिषु च सा यदि॥ (राजशेखर-कल्हण-सूक्तिमुक्तावली)

6. रुचिरस्वरवर्णपदा रसभावती जगन्मनो हरति।
सा किं तरुणी ? नहि नहि वाणी बाणस्य मधुरशीलस्य॥ (धर्मदासः-विदग्धमुखमण्डनम्)

7. बाणः कवीनामिह चक्रवर्ती चकास्ति यस्योज्ज्वलवर्णशोभम्।
एकातपत्रं भुवि पुण्यभूमिवंशाश्रयं हर्षचरित्रमेव॥ (सोड्ढलः)

8. हृदि लग्नेन बाणेन यन्मन्दोऽपि पदक्रमः।
भवेत्कविकुरगणां चापलं तत्र कारणम्॥ (त्रिलोचनः-शार्ङ्गधरपद्धतिः)

9. यस्याश्चौरश्चिकुरनिकरः कर्णपूरो मयूरो
भासो हासः कविकुलगुरुः कालिदासो विलासः।
हर्षो हर्षो हृदयवसतिः पञ्चबाणस्तु बाणः
केषां नैषा कथय कविताकामिनी कौतुकाय॥(जयदेवः-प्रसन्नराघवः)

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 5 शुकनासोपदेशः

HBSE 9th Class Sanskrit शुकनासोपदेशः Important Questions and Answers

I. पुस्तकानुसारं समुचितम् उत्तरं चित्वा लिखत
(i) लक्ष्मीमदः कीदृशः ?
(A) उपशमः
(B) अपरिणामः
(C) अपरिणामोपशमः
(D) सुखावहः।
उत्तराणि:
(B) अपरिणामोपशमः

(ii) चन्द्रापीडं कः उपदिशति?
(A) शुकनासः
(B) शुकः
(C) तारापीडः
(D) बृहस्पतिः।
उत्तराणि:
(A) शुकनासः

(iii) कीदृशे मनसि उपदेशगुणाः प्रविशन्ति।
(A) मलिने
(B) अपगतमले
(C) छलयुक्ते
(D) छलान्विते।
उत्तराणि:
(B) अपंगतमले

(iv) लब्धापि दुःखेन का परिपाल्यते?
(A) लक्ष्मीः
(B) विद्या
(C) गौः
(D) स्त्री।
उत्तराणि:
(A) लक्ष्मी

(v) केषाम् उपदेष्टारः विरलाः सन्ति ?
(A) गुरूणाम्
(B) शठानाम्
(C) राज्ञाम्
(D) अल्पज्ञानाम्।
उत्तराणि:
(C) राज्ञाम्

(vi) लक्ष्म्या परिगृहीताः राजानः कीदृशाः भवन्ति?
(A) प्रसन्नाः
(B) विक्लवाः
(C) सुप्ताः
(D) यशस्विनः।
उत्तराणि:
(B) विक्लवाः।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 5 शुकनासोपदेशः

II. रेखाकितपदम् आधृत्य प्रश्ननिर्माणाय समुचितं पदं चित्वा लिखत
(i) लक्ष्मीः लब्धाऽपि खलु दुःखेन परिपाल्यते।
(A) कथम्
(B) काः
(C) कः
(D) किम्।

(ii) अधीतसर्वशास्त्रस्य नाल्पमपि उपदेष्टव्यम् अस्ति।
(A) कम्
(B) कस्मात्
(C) कस्य
(D) कः।
(B) कस्मै

(iii) अपरिणामोपशमः लक्ष्मीमदः।
(A) कीदृशः
(B) किम्
(C) काः
(D) कस्मैः

(iv) लक्ष्मीः शूरं कण्टकमिव परिहरति।
(A) कः
(C) कस्य
(D) कम्।

(v) राजानः कुप्यन्ति हितवादिने
(A) कस्य
(B) कस्मै
(C) कस्मात्
(D) केषाम्।
उत्तराणि
(A) कथम्
(C) कस्य
(A) कीदृशः
(D) कम्
(B) कस्मै।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 5 शुकनासोपदेशः

शुकनासोपदेशः पाठ्यांशः
1. एवं समतिक्रामत्सु दिवसेषु राजा चन्द्रापीडस्य यौवराज्याभिषेकं चिकीर्षुः प्रतीहारानुपकरण सम्भारसंग्रहार्थमादिदेश। समुपस्थितयौवराज्याभिषेकं च तं कदाचिद् दर्शनार्थमागतमारूढविनयमपि विनीततरमिच्छन् कर्तुं शुकनासः सविस्तरमुवाच
HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 5 शुकनासोपदेशः img-1
“तात! चन्द्रापीड! विदितवेदितव्यस्याधीतसर्वशास्त्रस्य ते नाल्पमप्युपदेष्टव्यमस्ति। केवलं च निसर्गत एवातिगहनं तमो यौवनप्रभवम्। अपरिणामोपशमो दारुणो लक्ष्मीमदः। अप्रबोधा घोरा च राज्यसुखसन्निपातनिद्रा भवति, इत्यतः विस्तरेणाभिधीयसे।”

प्रसंग:-प्रस्तुत पाठ्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती-द्वितीयो भागः’ के ‘शुकनाशोपदेशः’ नामक पाठ से लिया गया है। यह पाठ संस्कृत के महान् गद्यकार बाणभट्ट की प्रसिद्ध रचना ‘कादम्बरी’ से सम्पादित है। इस पाठ में राजा तारापीड का अनुभवी मन्त्री राजकुमार चन्द्रापीड को राज्याभिषेक से पूर्व हितैषी भाव से उपदेश देते हैं। वे उसे युवावस्था में रूप, यौवन, प्रभुता तथा ऐश्वर्य से उत्पन्न होने वाले स्वाभाविक दोषों के विषय में सावधान कर देना अपना कर्तव्य समझते हैं।

हिन्दी-अनुवादः
इस प्रकार कुछ दिन बीत जाने पर राजा तारापीड ने राजकुमार चन्द्रापीड को राजतिलक करने की इच्छा से द्वारपालों को आवश्यक सामग्री-समूह के संग्रह करने के लिए आदेश दिया। जिसके राजतिलक समय निकट ही आ चुका था, जो कदाचित् मन्त्री शुकनास का दर्शन करने के लिए आया था-ऐसे उस विनयसम्पन्न (विशेष नीति से युक्त) राजकुमार चन्द्रापीड को और भी अधिक विनयवान् बनाने की इच्छा वाले शुकनास ने विस्तारपूर्वक कहा-हे बेटा, चन्द्रापीड! जो कुछ विषय जानना चाहिए, वह सब तुम जानते हो। तुम वेदादि सब शास्त्रों को पढ़े हुए हो, इसलिए तुम्हें थोड़ी भी उपदेश देने की आवश्यकता नहीं है। केवल यही कहना है कि जवानी में स्वभाव से ही जो अन्धकार पैदा होता है, वह अन्धकार अत्यन्त घना (घोर) होकर रहता है। धनसम्पत्ति का (नशा) मद ऐसा भयानक होता है कि वह आयु के परिणाम अर्थात् वृद्धावस्था में भी शान्त नहीं होता। राज्यसुख रूपी सन्निपात ज्वर से उत्पन्न निद्रा इतनी गहरी होती है कि प्रबोध (जागरण) ही नहीं हो पाता-इसीलिए तुम्हें विस्तारपूर्वक कहा जा रहा है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
चिकीर्षुः = करने की इच्छावाला, कर्तुमिच्छु:, √कृ + सन् + उ, प्रथमा विभक्ति एकवचन। विनयम् आरुढः = विशिष्ट नय (नीति) से सम्पन्न, विशेष रूप से नीतिमान् । प्रतीहारान् = द्वारपालों को। उपकरणसम्भारसंग्रहार्थम् = आवश्यक सामग्री-समूह के संग्रह के लिए, उपक्रियन्ते एभिः इति उपकरणानि, उपकरणानाम् सम्भारः = उपकरणसम्भारः (षष्ठी-तत्पुरुष) उपकरणसम्भारस्य संग्रहार्थम्। उप + कृ + ल्युट् = उपकरणम्, सम्भारः = सम् + √भृ + घञ्। अधीतसर्वशास्त्रस्य = जिसने सभी शास्त्रों का अध्ययन कर लिया है। अधीतं सर्वं शास्त्रं येन सः, तस्य (बहुब्रीहि समास)। निसर्गतः= स्वाभाविक रूप से। यौवनप्रभवम् = युवावस्था के कारण उत्पन्न। यौवनेन प्रभवम् (तृतीयातत्पुरुष)। अपरिणामोपशमः = वृद्धावस्था में भी न शान्त होने वाला। परिणामे उपशम: परिणामोपशमः । न परिणामोपशम: अपरिणामोपशमः (नञ् तत्पुरुष)। विदितवेदितव्यस्य = जिसने ज्ञातव्य को जान लिया है। विदितं वेदितव्यं येन असौ विदितवेदितव्यः तस्य (बहुव्रीहि), √विद् + क्त = विदितम्, √विद् + तव्यत् = वेदितव्यम्।

2. गर्भेश्वरत्वमभिनवयौवनत्वम्, अप्रतिमरूपत्वममानुषशक्तित्वञ्चेति महतीयं खल्लवनर्थ-परम्परा। यौवनारम्भे च प्रायः शास्त्रजलप्रक्षालन-निर्मलापि कालुष्यमुपयाति बुद्धिः। नाशयति च पुरुषमत्यासगो विषयेषु। भवादृशा एव भवन्ति भाजनान्युपदेशानाम्। अपगतमले हि मनसि विशन्ति सुखेनोपदेशगुणाः। हरति अतिमलिनमपि दोषजातं गुरूपदेशः गुरूपदेशश्च नाम अखिलमलप्रक्षालनक्षमम् अजलं स्नानम्। विशेषेण तु राज्ञाम्। विरला हि तेषामुपदेष्टारः। राजवचनमनुगच्छति जनो भयात्। उपदिश्यमानमपि ते न शृण्वन्ति।अवधीरयन्तः खेदयन्ति हितोपदेशदायिनो गुरून्।

हिन्दी-अनुवादः
जन्म से ही अधिकार सम्पन्नता, नया यौवन, अनुपम सौन्दर्य और अमानुषी शक्ति का होना-यह महान् अनर्थ की परम्परा (शंखला) है। युवावस्था के प्रारम्भ में मनुष्य की बुद्धि शास्त्ररूपी जल से धुलने के कारण स्वच्छ होती हुई भी प्रायः दोषपूर्ण हो जाती है। और विषयों में अति आसक्ति मनुष्य का विनाश कर देती है।
आप जैसे व्यक्ति ही उपदेशों के पात्र होते हैं। निर्दोष मन में ही उपदेश के गुण सुखपूर्वक प्रवेश करते हैं। गुरु का उपदेश अत्यन्त मलिन दोषसमूह को भी दूर कर देता है। गुरु का उपदेश सम्पूर्ण मलों को धोने में समर्थ जलरहित स्नान है। (अर्थात् जैसे पानी से स्नान करने पर बाहर के सब मैल धुल जाते हैं, वैसे ही गुरु के उपदेश से सब आन्तरिक दोष दूर हो जाते हैं।) ये उपदेश राजाओं के लिए तो विशेष रूप से लाभकारी होते है; क्योंकि उन्हें उपदेश देने वाले बहुत कम लोग होते हैं। लोग प्राय: भय के कारण राजा के वचनों का ही अनुकरण करते हैं। उपदेश देते हुए (विद्वान्) को भी वे सुनते नहीं हैं। वे हितकारी उपदेश करने वाले गुरुओं का तिरस्कार करते हुए उन्हें खिन्न कर देते हैं।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
गर्भेश्वरत्वम् = जन्म से प्राप्त प्रभुत्व। गर्भतः एव ईश्वरः = गर्भेश्वरः तस्य भावः गर्भेश्वरत्वम्। भवादृशाः = आप जैसे ही, भवत् + दृश् + क्विप्, प्रथमा विभक्ति । शास्त्रजलप्रक्षा-लननिर्मला = शास्त्ररूपी जल द्वारा धोने से निर्मल। शास्त्रमेव जलं शास्त्रजलम्, तेन प्रक्षालनेन निर्मला। अपगतमले = दोषरहित होने पर, अपगतः मलः यस्मात् तत् अपगतमलम् तस्मिन् अपगतमले (पञ्चमी तत्पुरुष)। उपदेष्टारः = उपदेश देने वाले, उप + दिश् + तृच् प्रथमा विभक्ति बहुवचन। अवधीरयन्तः =तिरस्कृत करते हुए, अव + धीर + णिच् + शतृ प्रथमा विभक्ति बहुवचन।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 5 शुकनासोपदेशः

3. आलोकयतु तावत् कल्याणाभिनिवेशी लक्ष्मीमेव प्रथमम्। न ह्येवं-विधमपरिचितमिह जगति किञ्चिदस्ति यथेयमनार्या। लब्धापि खलु दुःखेन परिपाल्यते। परिपालितापि प्रपलायते। न परिचयं रक्षति । नाभिजनमीक्षते। न रूपमालोकयते। न कुलक्रममनुवर्तते। न शीलं पश्यति। न वैदग्ध्यं गणयति। न श्रुतमाकर्णयति। न धर्ममनुरुध्यते। न त्यागमाद्रियते।न विशेषज्ञतां विचारयति। नाचारं पालयति। न सत्यमवबुध्यते। पश्यत एव नश्यति। सरस्वतीपरिगृहीतं नालिगति जनम्। गणवन्तं न स्पशति। सुजनं न पश्यति। शूरं कण्टकमिव परिहरति। दातारं दुःस्वप्नमिव न स्मरति। विनीतं नोपसर्पति। तृष्णां संवर्धयति। लघिमानमापादयति। एवंविधयापि चानया कथमपि दैववशेन परिगृहीताः विक्लवाः भवन्ति राजानः, सर्वाविनयाधिष्ठानतां च गच्छन्ति।

हिन्दी-अनुवादः
हे चन्द्रापीड ! तुम कल्याण (मंगल) के लिए प्रयत्नशील हो, इसलिए पहले लक्ष्मी को ही विचार कर देखो। इस जैसी अपरिचित इस संसार में अन्य कोई वस्तु नहीं जैसी यह अनार्या लक्ष्मी है। इस लक्ष्मी को प्राप्त कर लेने पर भी, इसका महाकष्ट से पालन (रक्षण) करना पड़ता है और यह लक्ष्मी न परिचय की परवाह करती है, न कुलीन की ओर देखती है, न सौन्दर्य (रूप) को देखती है, न कुल-परम्परा का अनुगमन करती है। न सच्चरित्र को देखती है, न कुशलता (पाण्डित्य) की परवाह करती है। न शास्त्रज्ञान को सुनती है, न धर्म से रोकी जाती है, न त्याग (दान) को आदर देती है। न विशेष ज्ञान का विचार करती है। न सदाचार का पालन करती है। न सत्य को जानती है। यह देखते ही देखते नष्ट हो जाती है। सरस्वती से युक्त (विद्यावान्, विद्वान्) मनुष्य को यह ईर्ष्यावश ही मानो आलिंगन (स्वीकार) नहीं करती है। शौर्य आदि गुणों वाले व्यक्ति का स्पर्श नहीं करती है। सज्जन की ओर यह देखती भी नहीं है। शूरवीर को काँटे के समान छोड़ देती है। दानी का, दुःस्वप्न के समान स्मरण भी नहीं करती है। विनम्र व्यक्ति के पास फटकती भी नहीं है। यह तृष्णा (= लालसा) को बढ़ाती है। मनुष्य को छोटा (तुच्छ) बना देती है। ऐसी दुराचारिणी इस लक्ष्मी द्वारा जैसे-तैसे भाग्य के कारण, पकड़े गए (जकड़े गए) राजा लोग, अत्यन्त व्याकुल बने रहते हैं और सब प्रकार के दुराचारों (दुष्कृत्यों) के निवास स्थान को प्राप्त कर लेते हैं।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्य
कल्याणाभिनिवेशी = मङ्गल के अभिलाषी, कल्याणे अभिनिवेष्टुं शीलं यस्य सः (बहुब्रीहि)। परिपाल्यते = रखी जा सकती है, परि + /पाल् + कर्मणि यक् + लट् लकार प्रथम पुरुष एकवचन। प्रपलायते = भाग जाती है। वैदग्धयम् = पाण्डित्य को, विदग्धस्य भावो वैदग्ध्यम्, विदग्ध + ष्यञ्। अनुरुध्यते = अनुरोध करती है, अनु + /रुध् + लट्, प्रथम पुरुष एकवचन। अवबुध्यते = जानी जाती है, पहचानी जाती है। नोपसर्पति = समीप नहीं जाती, पार्वे न गच्छति।

संवर्धयति = बढ़ाती है। लघिमानमापादयति = निम्नता प्रदान करती है, लघिमानम् = लघोर्भावः लघिमा (लघु + इमनिच्) तम् आपादयति = आ + Vपद् + णिच् + लट् प्रथम पुरुष एकवचन। विक्लवाः = विह्वल-विकल। सर्वाविनयाधिष्ठानताम् = सभी प्रकार के अविनयों (दुष्कृत्यों, दुष्ट आचरणों) के निवास स्थान को सर्वेषाम् अविनयानाम् अधिष्ठानताम् (षष्ठी-तत्पुरुष)।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 5 शुकनासोपदेशः

4. अपरे तु स्वार्थनिष्पादनपरैः दोषानपि गुणपक्षमध्यारोपयद्भिः प्रतारणकुशलैधूर्तेः प्रतार्यमाणा वित्तमदमत्तचित्ता सर्वजनोपहास्यतामुपयान्ति। न मानयन्ति मान्यान्, जरावैक्लव्यप्रलपितमिति पश्यन्ति वृद्धोपदेशम्। कुप्यन्ति हितवादिने। सर्वथा तमभिनन्दन्ति, तं संवर्धयन्ति, तस्य वचनं शृण्वन्ति, तं बहु मन्यन्ते योऽहर्निशम् अनवरतं विगतान्यकर्तव्यः स्तौति, यो वा माहात्म्यमुद्भावयति। 

हिन्दी-अनुवादः
कुछ राजा लोग तो स्वार्थ सिद्ध करने में तत्पर, दोषों में गुणों को आरोपित करने वाले, ठग-विद्या में अतिनिपुण, धूर्तबुद्धि लोगों के द्वारा ठगे जाते हुए धन के मद से उन्मत्त चित्त वाले होकर सब लोगों की हँसी के पात्र बनते हैं। वे मानवीय लोगों का सम्मान नहीं करते। वृद्धों के उपदेश को, यह मानकर देखते हैं कि यह तो उनका बुढ़ापे में बड़बड़ाना है। हितकारी वचन बोलने वाले पर क्रोध करते हैं। सभी प्रकार से उसका वे अभिनन्दन करते हैं, उसे ही सहायता करके बढ़ाते हैं; उसका ही वचन (कहना) सुनते हैं, उसी का बहुत आदर करते हैं, जो दिन-रात निरन्तर अन्य सब काम छोड़कर, उनकी प्रशंसा करता है अथवा, जो उनकी महिमा को प्रकट करता है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
अध्यारोपयद्भिः = आरोपित करने वाले। प्रतारणकुशलैः = ठगने में कुशल-निपुण, प्रतारणासु कुशलाः प्रतारणकुशलाः तैः, सप्तमी तत्पुरुष। प्रतार्यमाणाः = ठगे गए, प्र + √तु + कर्मणि यक् + शानच् + प्रथमा विभक्ति एकवचन। जरावैक्लव्यप्रलपितम् = वृद्धावस्था की विकलता से निरर्थक वचन के रूप में, जरसः वैक्लव्यं = जरावैक्लव्यम् (षष्ठी तत्पुरुष) तेन प्रलपितम्। विगतान्यकर्तव्यः = अन्य सब कर्तव्य कर्मों को छोड़कर। विगतम् अन्यकर्तव्यं यस्य सः (बहुव्रीहि)। अहर्निशम् = दिन-रात । उद्भावयति = प्रकट करता है। उद् + √भू + णिच् + लट्, प्रथम पुरुष एकवचन।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 5 शुकनासोपदेशः

5. तदतिकुटिलचेष्टादारुणे राज्यतन्त्रे, अस्मिन् महामोहकारिणि च यौवने कुमार! तथा प्रयतेथाः यथा नोपहस्यसे जनैः, न निन्द्यसे साधुभिः, न धिक्क्रियसे गुरुभिः, नोपालभ्यसे सुहृद्भिः, न वञ्च्यसे धूर्तेः, न विडम्ब्यसे लक्ष्या, नाक्षिप्यसे विषयैः, नापहयिसे सुखेन।

हिन्दी-अनुवादः
हे राजकमार चन्द्रापीड ! इसीलिए अत्यन्त कुटिल चेष्टाओं से युक्त इस कठोर राज्यतन्त्र में और इस महामूर्छा पैदा करने वाली युवावस्था में तुम वैसा प्रयत्न करना जिससे तुम जनता की हँसी के पात्र न बनो। सज्जन तुम्हारी निन्दा न करें। गुरु लोग तुम्हें धिक्कार न कहें। मित्र लोग तुम्हें उपालम्भ (लाम्भा, उलाहना) न दें। धूर्त तुम्हें ठग न सकें। लक्ष्मी तुम्हारे साथ धोखा न कर सके। विषयों से तुम आक्षिप्त न हो जाओ अर्थात् तुम विषयासक्त न बन सको। सुख तुम्हारा अपहरण न कर ले अर्थात् तुम राजसुख में डूब कर कर्तव्य से विमुख न हो जाओ।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
महामोहकारिणि = अत्यन्त मोह रूप अज्ञान अन्धकार को पैदा करने वाले, ‘यौवने’ पद का विशेषण। प्रयतेथाः = प्रयत्न कीजिए। प्र + √यत् + विधिलिङ् मध्यमपुरुष एकवचन। विडम्ब्यसे = धोखे में न डाले जा सको। उपालभ्यसे = उपालम्भ / उलाहना न दिए जा सको। उप + आ + √लभ् (कर्मवाच्य) + लट्, मध्यमपुरुष, एकवचन। नोपहस्यसे जनैः = लोगों के द्वारा उपहास के पात्र न बनो, उप + √हिस् + यक् + लट्, मध्यम पुरुष एकवचन, यहाँ ‘उपहस्यसे’ क्रिया में कर्मणि यक् प्रत्यय हुआ है। अतः ‘जनाः’ कर्ता के अनुक्त होने से अनुक्त कर्ता ‘कर्तृकर्मणोस्तृतीया’ से तृतीया विभक्ति हो गई है।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 5 शुकनासोपदेशः

6. इदमेव च पुनः पुनरभिधीयसे-विद्वांसमपि सचेतसमपि, महासत्त्वमपि, अभिजातमपि, धीरमपि, प्रयत्लवन्तमपि पुरुषं दुर्विनीता खलीकरोति लक्ष्मीरित्येता-वदभिधायोपशशाम। चन्द्रापीडस्ताभिरुपदेशवाग्भिः प्रक्षालित इव, उन्मीलित इव, स्वच्छीकृत इव, पवित्रीकृत इव, उद्भासित इव, प्रीतहृदयो स्वभवनमाजगाम।

हिन्दी-अनुवादः
यही उपदेश बार-बार दोहराया (कहा) जाता है कि विद्वान् को भी, ज्ञानवान् को भी, महाबलवान् को भी, कुलीन को भी, धैर्यवान् को भी और पुरुषार्थी मनुष्य को भी यह दुराचारिणी लक्ष्मी दुष्ट बना देती है। इतना कहकर वे (मन्त्री शुकनास) शान्त (चुप) हो गए।

राजकुमार चन्द्रापीड इन उपदेश वचनों के कारण मानो पूर्णतया धुला हुआ-सा, मानो नींद से खुली हुई आँखों वालासा, मानों स्वच्छ किया हुआ-सा, मानो पवित्र किया हुआ-सा, मानो चमकाया हुआ-सा तथा प्रसन्नहृदय होकर अपने भवन की ओर आ गया।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
अभिजातम् = कुलीन को, अभि + √जन् + क्त, द्वितीया विभक्ति, एकवचन। प्रशस्तं जातं यस्य स अभिजातः तम् अभिजातम्, (बहुव्रीहि समास)। अभिधीयसे = हा जा रहा है। अभि + √धा + यक् + लट्, मध्यमपुरुष एकवचन। खलीकरोति = दुष्ट बना देती है। न खलम् अखलम्, अखलं खलं करोति इति, खल + च्चि + √कृ + लट्, प्रथमपुरुष एकवचन। उपशशाम = चुप हो गए, उप + √शम् + लिट्, प्रथमपुरुष एकवचन। प्रक्षालित इव = पूर्णतया धोए हुए। प्र + √क्षाल् + क्त्, प्रथमपुरुष एकवचन। आजगाम = आ गया। आ + / गम् + लिट्, प्रथमपुरुष एकवचन।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 5 शुकनासोपदेशः

शुकनासोपदेशः (शुकनास का उपदेश) Summary in Hindi

शुकनासोपदेशः पाठ परिचय

महाकवि बाणभट्ट संस्कृत के सर्वाधिक प्रतिभाशाली गद्यकार हैं। इन्होंने कान्यकुब्ज (कन्नौज) के राजा हर्षवर्धन के जीवन पर ‘हर्षचरितम्’ लिखा है। हर्षवर्द्धन का राज्यकाल 606 ई० से 648 ई० तक रहा। अतः बाणभट्ट का भी यही समय होना चाहिए। इनकी दो रचनाएँ सुप्रसिद्ध हैं-हर्षचरितम् और कादम्बरी।

‘हर्षचरितम्’ बाणभट्ट की प्रथम गद्य कृति है। स्वयं बाणभट्ट ने इसे आख्यायिका कहा है। ‘हर्षचरितम्’ में एक ऐतिहासिक तथ्य को अलंकृत शैली में बाण ने प्रस्तुत किया है। हर्ष के समकालीन युग की सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं धार्मिक परिस्थितियों के अध्ययन के लिए ‘हर्षचरितम्’ से उत्तम अन्य कोई ग्रन्थ नहीं है। कादम्बरी संस्कृत साहित्य का सर्वोत्कृष्ट गद्य काव्य है। यह ‘कथा’ श्रेणी का काव्य है। चन्द्रापीड-कादम्बरी तथा पुण्डरीकमहाश्वेता के प्रणय का चित्रण करने वाली कथा ‘कादम्बरी’ के दो भाग हैं। पूर्वार्ध तथा उत्तरार्ध इसका कथानक जटिल होते हुए भी मनोरम है। इसमें कथा का प्रारम्भ राजा शूद्रक के वर्णन से होता है। शूद्रक के यहाँ चाण्डालकन्या वैशम्पायन नामक शुक को लेकर पहुंचती है। शुक सभा में आत्म-वृत्तान्त सुनाता है। इस ग्रन्थ में तीन-तीन जन्मों की घटनाएँ गुम्फित हैं।

कादम्बरी संस्कृत साहित्य का सर्वोत्तम उपन्यास है। यद्यपि इसका कथानक जटिल है। परन्तु इसके वर्णन इतने सजीव हैं कि पाठक को कथाप्रवाह के विच्छेद का आभास ही नहीं हो पाता और वह वह उन वर्णनों में ही आनन्दित होने लगता है। यह काव्य रसिकों को मस्त कर देने वाली मदिरा के समान है। इसका रसास्वादन करने वालों को भोजन भी अच्छा नहीं लगता

‘कादम्बरी रसज्ञानामाहारोऽपि न रोचते’।

शुकनासोपदेशः पाठस्य सारः
महाकवि बाणभट्ट संस्कृत साहित्य के सर्वाधिक समर्थ गद्यकार हैं। कादम्बरी उनका प्रसिद्ध गद्यकाव्य है। ‘शुकनासोपदेशः’ यह पाठ कादम्बरी से ही लिया गया है। इस अंश का नायक राजकुमार चन्द्रापीड है। जो शूरवीर तथा विनयशील है। चन्द्रापीड के पिता तारापीड युवराज चन्द्रापीड का राजतिलक कर देना चाहते हैं। सेवकों को आवश्यक सामग्री इकट्ठी करने का आदेश दे दिया गया है। राजा तारापीड का एक अनुभवी मन्त्री शुकनास है। राजतिलक से पहले युवराज चन्द्रापीड मन्त्री शुकनास का दर्शन करने के लिए जाता है। शुकनास स्नेह भाव से उसे समय के अनुकूल उपदेश करते हैं। उसी उपदेश का संक्षेप प्रस्तुत पाठ में है।

मन्त्री शुकनास चन्द्रापीड को उपदेश करते हुए कहते हैं-“पुत्र चन्द्रापीड ! यद्यपि तुम सभी जानने योग्य बातें जानते हो, तुमने सभी शास्त्रों को पढ़ा है। तुम्हें किसी उपदेश की आवश्यकता नहीं। लेकिन युवा अवस्था में स्वभाव से ही जवानी के कारण अज्ञान बढ़ जाता है। धन का नशा बुढ़ापा आने पर भी शान्त नहीं होता। राज्य सुख ऐसे ज्वर के समान होता है, जिसकी नींद खुलने में नहीं आती। जीवन में चार वस्तुएँ अनर्थ करने वाली होती हैं
(i) जन्म से ही प्रभुता होना
(ii) नया यौवन
(iii) अति सुन्दर रूप
(iv) अमानुषी शक्ति

जवानी में शास्त्र के जल से पवित्र हुई बुद्धि भी दोषपूर्ण हो जाती है। मनुष्य विषयों में फँस जाता है और उसका नाश हो जाता है। तुम्हारे जैसे कुछ विरले लोग होते हैं, जो उपदेश के अधिकारी होते हैं। तुम्हारा मन पवित्र है इसलिए

आसानी से उपदेश ग्रहण कर सकते हो। गुरु के उपदेश में बहुत गुण होते हैं। राजाओं को तो उपदेश की और भी आवश्यकता होती है। परन्तु राजा को उपदेश देने वाले भी विरले होते हैं और गुरु का उपदेश सुनने वाले राजा भी विरले होते हैं। प्रायः राजा लोग गुरु के उपदेश का तिरस्कार ही करते हैं।

अपना कल्याण चाहने वाले मनुष्य को सबसे पहले लक्ष्मी के विषय में विचार करना चाहिए यह लक्ष्मी बड़ी अनर्थकारी होती है। बड़ी कठिनता से धन इकट्ठा होता है और इसकी सँभाल के लिए भी दुःख उठाना पड़ता है। लक्ष्मी चंचल है। यह किसी के पास स्थायी रूप में नहीं ठहरती। यह मनुष्य के परिचय, उच्च कुल, सुन्दर रूप, सदाचार, चतुराई, विद्या, धर्म आदि श्रेष्ठ गुणों की ओर कोई ध्यान नहीं देती। राजा लोग इस लक्ष्मी के कारण ही व्याकुल रहते हैं और सभी प्रकार के दुर्गुणों और दुर्व्यसनों का शिकार हो जाते हैं।

कुछ स्वार्थी लोग ऐसे भी होते हैं जो राजा के दोषों को गुण बताया करते हैं, ऐसे धूर्त लोग धन के नशे में चूर राजा को धोखा दिया करते हैं और ऐसे राजा सारी जनता के उपहास का पात्र बन जाते हैं। ऐसे घमंडी राजा वृद्धों के उपदेशों को बुढ़ापे की बड़बड़ाहट कहते हैं। उन्हें हितचिन्तकों की पहचान नहीं होती, अत: उन पर क्रोध करते हैं। चापलूसों को अपने अंग-संग रखते हैं। हे राजकुमार ! इसीलिए भयंकर मोह को पैदा करने वाली इस युवावस्था में कुटिल राजतन्त्र की बागडोर सँभालकर तुम ऐसा आचरण करना कि लोग तुम्हारी हँसी न उड़ाएँ, सज्जन निन्दा न करें, गुरु तुम्हें धिक्कार न दे, धूर्त लोग तुम्हें ठग न सकें, लक्ष्मी का मद तुम्हें डावाँडोल न कर दे, विषयसुख तुम्हारे जीवन को नरक न बना दें।”

मन्त्री शुकनास के इस उपदेश को सुनकर चन्द्रापीड का चित्त धुल-सा गया था। उसकी आँखें ज्ञान के प्रकाश से खुल गई थी। उसका हृदय पवित्रता के प्रकाश से भर गया था। इस सारगर्भित उपदेश को पाकर चन्द्रापीड अत्यन्त प्रसन्न एवं सन्तुष्ट होकर राजभवन की ओर लौट गया। शुकनास का यह उपदेश जवानी की दहलीज़ पर पाँव रखने वाले हर नवयुवक के लिए ग्रहण करने योग्य है।

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HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 4 कर्मगौरवम्

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 4 कर्मगौरवम् Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 4 कर्मगौरवम्

HBSE 12th Class Sanskrit कर्मगौरवम् Textbook Questions and Answers

1. संस्कृतभाषया उत्तरत
(क) अयं पाठः कस्मात् ग्रन्थात् सङ्कलित: ?
(ख) अकर्मणः किं ज्यायः ?
(ग) जनकादयः केन सिद्धिम् आस्थिताः ?
(घ) लोकः कम् अनुवर्तते ?
(ङ) बुद्धियुक्तः अस्मिन् संसारे के जहाति ?
(च) केषाम् अनारम्भात् पुरुषः नैष्कर्म्यं न प्राप्नोति ?
उत्तरम्:
(क) भगवद्गीता’ ग्रन्थात् सङ्कलितः।
(ख) अकर्मणः कर्म ज्यायः।
(ग) जनकादयः कर्मणा एव सिद्धिम् आस्थिताः ।
(घ) यद् यद् आचरति श्रेष्ठ: लोकः तत् अनुवर्तते।
(ङ) बुद्धियुक्तः अस्मिन् संसारे सुकृतदुष्कृते जहाति।
(च) कर्मणाम् अनारम्भात् पुरुषः नैष्कर्म्यं न प्राप्नोति।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 4 कर्मगौरवम्

2. नियतं कुरु कर्म त्वं …. प्रसिद्ध्येदकर्मणः अस्य श्लोकस्य आशयं हिन्दीभाषया स्पष्टीकुरुत।
उत्तरम्:
द्वितीय श्लोक के सरलार्थ एवं भावार्थ का उपयोग करें।

3. ‘यद्यदाचरति ……. लोकस्तदनुवर्तते’ अस्य श्लोकस्य अन्वयं लिखत।
उत्तरम्:
सप्तम श्लोक का अन्वय देखें।

4. अधोलिखितानां शब्दानां विलोमान् पाठात् चित्वा लिखतयथा
वशः – अवशः
उत्तरसहितम्
(क) बुद्धिहीनः – बुद्धियुक्तः
(ख) दुष्कृतम् – सुकृतम्
(ग) अकौशलम् – कौशलम्
(घ) न्यूनः – ज्यायः
(ङ) कर्मणः – अकर्मणः
(च) दुर्गुणैः — गुणैः
(छ) कदाचित् – सततम्
(ज) निकृष्टः – श्रेष्ठः

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 4 कर्मगौरवम्

5. अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिच्छेदं कुरुत
जहातीह, ह्यकर्मणः, शरीरयात्रापि, पुरुषोऽश्नुते, तिष्ठत्यकर्मकृत्, प्रकृतिजैर्गुणैः, कर्मणैव, लोकस्तदनुवर्तते, जनयेदज्ञानाम्
(क) जहातीह = जहाति + इह
(ख) ह्यकर्मणः = हि + अकर्मणः
(ग) शरीरयात्रापि = शरीरयात्रा + अपि
(घ) पुरुषोऽश्नुते = पुरुषः + अश्नुते
(ङ) तिष्ठत्यकर्मकृत् = तिष्ठति + अकर्मकृत्
(च) प्रकृतिजैर्गुणैः = प्रकृतिजैः + गुणैः
(छ) कर्मणैव = कर्मणा + एव
(ज) लोकस्तदनुवर्तते = लोकः + तत् + अनुवर्तते
(झ) जनयेदज्ञानाम् = जनयेत् + अज्ञानाम्

6. अधोलिखितक्रियापदानां लकारपुरुषवचननिर्देशं कुरुत
जहाति, युज्यस्व, कुरु, अश्नुते, समधिगच्छति, तिष्ठति, आप्नोति, अनुवर्तते, जनयेत्, जोषयेत्। उत्तरम्
(i) जहाति – (√हा) लट्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन।
(ii) युज्यस्व – (√युज्) लोट्लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन।
(iii) कुरु – (√कृ) लोट्लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन।
(iv) अश्नुते – (√अश्) लट्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन।
(v) समधिगच्छति (सम् + अधि√गम्) लट्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन।
(vi) तिष्ठति – (√स्था) लट्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन।
(vii) आप्नोति – (√आप) लट्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन।
(viii) अनुवर्तते – (अनु √वृत्) लट्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन।
(ix) जनयेत् – (√जन्) विधिलिङ्, प्रथम पुरुष, एकवचन।
(x) जोषयेत् । – (√जुष्) विधिलिङ् , प्रथम पुरुष, एकवचन।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 4 कर्मगौरवम्

7. अधोलिखतवाक्येषु रेखाङ्कितपदानां विभक्तीनां निर्देशं कुरुत
(क) योगः कर्मसु कौशलम्।
(ख) जीवने नियतं कर्म कुरु।
(ग) कर्मणा एव जनकादयः संसिद्धिम् आस्थिताः ।
(घ) अकर्मणः कर्म ज्यायः ।
(ङ) कर्मणाम् अनारम्भात् पुरुषः नैष्कर्म्यं न अश्नुते ।
उत्तरम्:
(क) कर्मसु – कर्मन्, षष्ठी-विभक्तिः , एकवचनम्।
(ख) कर्म – कर्मन्, द्वितीया-विभक्तिः, एकवचनम्।
(ग) कर्मणा – कर्मन्, तृतीया-विभक्तिः , एकवचनम्।
(घ) अकर्मणः – अकर्मन्, पञ्चमी-विभक्तिः , एकवचनम्।
(ङ) कर्मणाम् – कर्मन्, षष्ठी-विभक्तिः, एकवचनम्।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 4 कर्मगौरवम्

8. प्रदत्तमञ्जूषायाः समुचितपदानां चयनं कृत्वा अधोदत्तशब्दानां प्रत्येकपदस्य त्रीणि समानार्थकपदानि लिखन्तु
अनारतम्, मनीषा, गात्रम्, दुष्कर्म, प्राज्ञः, कलुषम्, शेमुषी, अविरतम्, कोविदः, कायः, मतिः, पातकम् , देहः, मनीषी, अश्रान्तम्।
उत्तरसहितम्

(क) विद्वान्प्राज्ञ:कोविद:मनीषी
(ख) शरीरम्गात्रम्काय:देह:
(ग) बुद्धि:मनीषाशेमुषीमति:
(घ) सततम्अनारतम्अविरतम्अश्रान्तम्
(ङ) दुष्कृतम्दुष्कर्मकलुषम्पातकम्

9. कर्म आश्रित्य संस्कभाषायां पञ्च वाक्यानि लिखत
उत्तरम्
(i) अकर्मणः कर्म ज्यायः भवति।
(ii) अकर्मणः शरीरयात्रा अपि न सम्भवति।
(iii) अतः असक्तः सततं कर्तव्यं कर्म समाचरेत।
(iv) जनकादयः कर्मणा एव संसिद्धिम् आस्थिताः।
(v) योगः कर्मसु कौशलम्।

10. पाठे प्रयुक्तस्य छन्दसः नाम लिखत
उत्तरम्
‘अनुष्टुप्’ छन्दः।

11. जनः कीदृशैः गुणैः कार्यं करोति ? अधोलिखितं श्लोकमाधृत्य लिखत
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः॥
उत्तरम्
जनः प्रकृतिजैः गुणैः कार्यं करोति। अतः कश्चित् अपि क्षणमपि अकर्मकृत् न तिष्ठति।

योग्यताविस्तारः

अधोलिखितानां सूक्तीनामध्ययनं कृत्वा प्रस्तुतपाठेन भावसाम्यम् अवधत्त
(1) गच्छन् पिपीलको याति योजनानां शतान्यपि।
अगच्छन्वैनतेयोऽपि पदमेकं न गच्छति॥

(2) उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रवशन्ति मुखे मृगाः॥ पज्चतन्त्रम् / मित्रसम्प्राप्ति: – 129

(3) कर्मणा जायते सर्वं, कर्मैव गतिसाधनम्।
तस्मात् सर्वप्रयत्नेन, साध कर्म समाचरेत्॥ विष्णुपुराण:- 1/18/32

(4) चरन्वै मधु विन्दति, चरन् स्वादुमुदम्बरम्।
सूर्यस्य पश्य श्रेमाणं, यो न तन्द्रयते चरन्॥ ऐतरेयब्राहमणम् – 33.3.5

(5) जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः।।
स हेतुः सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च॥ चाणक्यनीति: – 12/22

(6) दुष्कराण्यपि कार्याणि, सिध्यन्ति प्रोद्यमेन वै।
शिलापि तनुतां याति, प्रपातेनार्णसो मुहुः॥ बुद्धचरितम् – 26/63

(7) कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति, न कर्म लिप्यते नरे॥ यजुर्वेद: 40 / 27

अधोनिर्मिततालिकां दृष्ट्वा समस्तपदैः सह विग्रहान् मेलयत
HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 4 कर्मगौरवम् img-2
विग्रहा: – उत्तरम्
(1) बुद्ध्या युक्त: (तृतीया तत्पुरुष) – बुद्धियुक्तः
(2) न वशः (नज्ञ् तत्पुरुष समास) – अवशः
(3) बुद्धै: भेदम् (षष्ठी तत्पुरुष समास) – बुद्धिभेदम्
(4) सर्वाणि कर्माणि (कर्मधारय समास) – सर्वकर्माणि
(5) कर्मणि रतः (सप्तमी तत्पुरुष समास) – कर्मरतः
(6) (अ) न कर्मण: (नज् तत्पुरुष) – अकर्मण:
(ब) न आरम्भात् (नज् तत्पुरुष) – अनारमभात्
(7) कर्मफलस्य हेतु: (षष्ठी तत्पुरुष समास) – कर्मफलहेतु:
(8) शरीरस्य यात्रा (षष्ठी तत्पुरुष समास) – शरीरयात्रा
(9) लोकाय संग्रहम् (चतुर्थी तत्पुरुष समास) – लोकसंग्रहम्
(10) (अ) न सक्तः (नञ् तत्पुरुष) – असक्तः
(ब) न ज्ञानानाम् (नञ् तत्पुरुष) – अज्ञानानाम्
(11) न चरन् (नञ् तत्पुरुष) – अचरन्
(12) कर्मसु सङ्गिनाम् (सप्तमी तत्पुरुष) – कर्मसङ्गिनाम्
(13) सुकृतं दृष्कृतं च (द्वन्द्व समास) – सुकृतदुष्कृते।

अधोलिखितादर्शवाक्यानि सम्बद्धसंस्थाभिः योजयत
आदर्शवाक्यम् – संस्था
(क) सत्यमेव जयते – राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद्
(ख) विद्ययाऽमृतमश्नुते – भारतसर्वकारः
(ग) असतो मा सद्गमय – कतिपयविद्यालयेषु
(घ) सा विद्या या विमुक्तये – केन्द्रीयमाध्यमिक शिक्षा परिषद्
(ङ) योगः कर्मसु कौशलम् – राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद्
(च) गुरुः गुरुतमो धामः – भारतीय प्रशासनिक सेवा अकादमी, मसूरी
(छ) तत्त्वं पूषन्नपावृणु – डाकतारविभागः
(ज) अहर्निशं सेवामहे – केन्द्रीय विद्यालय संगठन
(झ) श्रम एव जयते – भारतस्य सर्वोच्च न्यायालयः
(ञ) यतो धर्मस्ततो जयः

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 4 कर्मगौरवम्

श्रममन्त्रालयः

श्रीमद्भगवद्गीता श्रीमद्भगवद्गीता महाभारतस्य भीष्मपर्वणि विद्यते । अत्र सप्तशतश्लोकाः अष्टादशाध्यायेषु उपनिबद्धाः सन्ति। युद्धभूमौ विषादग्रस्तार्जुनाय निष्कामकर्मणः उपदेशं प्रयच्छता भगवता श्रीकृष्णेन अत्र ज्ञान-भक्ति-कर्मणां समन्वयः प्रस्तुतः। ।

पूर्ववर्तिनो अनेके मनीषिण: जीवने उदात्तगुणानां विकासार्थं गीताशास्त्रेण प्रेरणां प्राप्तवन्तः । तेषु विद्वत्सु लोकमान्यतिलक: महर्षि अरविन्दः, महात्मागान्धी, विनोबाभावे इत्यादयः प्रमुखाः सन्ति। एतैः विद्धद्भिः गीताशास्त्रस्य स्वभावाभिव्यक्तिस्वरूपाः व्याख्या: विलिखिताः। गीताशास्त्रस्य ज्ञान-भक्ति-कर्मयोगान् स्वजीवने अवतारयन्तः उन्नतादर्शान् उदात्तजीवनमूल्यान् एते मनीषिणः चरितार्थयन्ति स्म।

श्रीमद्भगवद्गीतायाः केचन अन्येऽपि श्लोका उद्धरणीयाः। तद्यथा
अनाश्रित्य कर्मफलं कार्यं कर्म करोतिः यः।
स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः॥ 6.1
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि॥ 2.38
यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः
समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते॥ 4.22
सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः ।। 6.29
अनेकैः कविभिः गीतायाः महत्त्वं प्रतिपादितम्। तन्महत्त्वं यत्र-तत्र अध्येतव्यम्। उदाहरणार्थम्
मलनिर्मोचनं पुंसां जलस्नानं दिने दिने।
सकृद्गीताम्भसि स्नानं संसारमलनाशनम्॥
अधोलिखितानां पदानामाशयोऽन्वेष्टव्यः
लोकसंग्रहम्, नैष्कर्म्यम्, प्रकृतिजः, सन्न्यसनम्

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 4 कर्मगौरवम्

HBSE 9th Class Sanskrit कर्मगौरवम् Important Questions and Answers

I. समुचितम् उत्तरं चित्वा लिखत
(i) अकर्मणः किं ज्यायः
(A) कर्म
(B) विकर्म
(C) सत्कर्म
(D) कुकर्म।
उत्तराणि
(A) कर्म

(ii) जनकादयः केन सिद्धिम् आस्थिताः?
(A) अकर्मणा
(B) विकर्मणा
(C) कर्मणा
(D) सत्कर्मणा।
उत्तराणि
(C) कर्मणा

(iii) बुद्धियुक्तः अस्मिन् संसारे के जहाति?
(A) सुकृते
(B) दुष्कृते
(C) अकर्मणी
(D) सुकृतदुष्कृते।
उत्तराणि
(D) सुकृतदुष्कृते

(iv) केषाम् अनारम्भात् पुरुषः नैष्कर्म्यं न प्राप्नोति?
(A) निष्कर्मताम्
(B) कर्मणाम
(C) निष्कर्मणाम्
(D) स्वार्थकर्मणाम्।
उत्तराणि
(B) कर्मणाम्

(v) कैः गुणैः सर्वः अवशः कर्म कार्यते?
(A) प्रकृतिजैः
(B) पूर्वसञ्चितैः
(C) प्रारब्धैः
(D) सुसंस्कारैः।
उत्तराणि
(A) प्रकृतिजैः

II. रेखाकितपदम् आधृत्य प्रश्ननिर्माणाय समुचितं पदं चित्वा लिखत
(i) अस्माकम् कर्मणि अधिकारः वर्तते।
(A) केषाम्
(B) कस्य
(C) कस्मिन्
(D) कस्याः ।
उत्तराणि:
(C) कस्मिन

(ii) अकर्मणः कर्म ज्यायः।
(A) केषाम्
(B) कस्मात्
(C) कुत्र
(D) केन।
उत्तराणि:
(B) कस्मात्

(iii) जनकादयः कर्मणा एव सिद्धिम् आस्थिताः।
(A) केन
(B) कस्मात्
(C) कस्यै
(D) कस्मै।
उत्तराणि:
(A) केन

(iv) योगः कर्मसु कौशलम्।
(A) कः
(B) किम्
(C) केषु
(D) कम्।
उत्तराणि:
(C) केषु

(v) जीवने नियतं कर्म कुरु।
(A) कीदृशम्
(B) किम्
(C) कुत्र
(D) कुतः।
उत्तराणि:
(A) कीदृशम्।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 4 कर्मगौरवम्

कर्मगौरवम् पाठ्यांशः
1. बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् ॥1॥

अन्वयः – बुद्धियुक्तः सुकृतदुष्कृते उभे इह जहाति, तस्मात् योगाय युज्यस्व, कर्मसु कौशलं योगः।

सरलार्थ: – हे अर्जुन ! बुद्धियुक्त अर्थात् समत्व बुद्धि को प्राप्त मनुष्य, इस संसार में पुण्य और पाप दोनों प्रकार के कर्मों में आसक्ति को छोड़ देता है। इसलिए तू समत्व योग के लिए प्रयत्न कर। कर्मों में कुशलता का नाम ही योग (अनासक्ति-निष्काम योग) है।

भावार्थ: – जिसे अनासक्ति योग की बुद्धि प्राप्त हो गई, वह पुण्य के बाधक दुष्कृत और सुकृत इन दोनों को छोड़ देता है। शास्त्रीय गुत्थी को सुलझाने का नाम योग नहीं है, किन्तु जीवन में लोकहित के लिए, कौन-सा कर्म त्याज्य है, तथा कौन-सा स्वीकार्य है-इस धर्म के तत्त्व निरूपण में कुशलता का नाम ही योग है। यह बुद्धियोग अनासक्ति के बिना प्राप्त नहीं हो सकता।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च बुद्धियुक्तः = समत्वबुद्धि से युक्त पुरुष। सुकृत-दुष्कृते = पुण्य और पाप। उभे = दोनों को। इह = इस लोक में। जहाति = छोड़ देता है, अर्थात् उनमें लिप्त नहीं होता। हा + लट्, प्रथम पुरुष एकवचन। तस्मात् = इसलिए। योगाय = समत्वबुद्धि योग के लिए। युज्यस्व = प्रयत्न कर। युज् (आत्मनेपद) + लोट्, मध्यम पुरुष, एकवचन । कर्मसु = कर्मो में। कौशलम् = चतुरता है, अर्थात् कर्मबन्धन से छूटने का मार्ग है।

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2. नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः ॥2॥

अन्वयः-त्वं नियतं कर्म कुरु; हि अकर्मणः कर्म ज्यायः। अकर्मणः ते शरीरयात्रा अपि च न प्रसिद्ध्येत्।

सरलार्थ: – हे अर्जुन ! तुम अपने क्षत्रिय धर्म के अनुसार क्षत्रियोचित कर्म करो, क्योंकि कर्म न करने से कर्म करना श्रेष्ठ है। बिना कर्म किए हुए तुम्हारे लिए, शरीर निर्वाह (लौकिक-व्यवहार) भी सिद्ध नहीं होगा।

भावार्थ: – भाव यह है कि तुम्हें अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। शस्त्र छोड़कर, निठल्ला होकर बैठने से काम नहीं चलेगा। तुम्हारे लिए युद्ध करना ही श्रेष्ठ है। .
शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च नियतम् = निश्चित, क्षत्रिय के लिए उचित। कुरु = करो, कृ + लोट, मध्यम पुरुष, एकवचन। ज्यायः = प्रशस्य + ईयसुन्, नपुं०; प्रथमा एकवचन = श्रेष्ठ। हि अकर्मणः = क्योंकि कर्म न करने से। शरीरयात्रा अपि = लौकिक व्यवहार भी, शरीर निर्वाह भी। प्रसिद्ध्येदकर्मणः = प्रसिद्ध्येत् + अकर्मणः, कर्म न करने से सिद्ध नहीं होगा।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 4 कर्मगौरवम्

3. न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते।
न च सन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति ॥3॥

अन्वयः-पुरुषः, न कर्मणाम् अनारम्भात् नैष्कर्म्यम् अश्नुते, न च संन्यसनात् एव सिद्धिम् समधिगच्छति।

सरलार्थः- मनुष्य न तो कर्मों का आरम्भ किए बिना निष्कर्मता को प्राप्त करता है, और न कर्मों को त्यागने मात्र से ही भगवत् साक्षात्कार रूप सफलता को प्राप्त करता है।

भावार्थ:-भाव यह है कि कर्मों का बिल्कुल ही न करना अथवा मध्य में ही छोड़ देना, दोनों ही स्थितियाँ उचित नहीं हैं; अपितु कर्तव्य कर्म अनासक्ति भाव से अवश्य करना चाहिए।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च अनारम्भात् = आरम्भ किए बिना, आरम्भ न करने से। नैष्कर्म्यम् = निष्कर्मता को।अश्नुते = प्राप्त करता है। अश् + लट्, प्रथम पुरुष, एकवचन । संन्यसनात् = छोड़ देने से। सिद्धिम् = सफलता को। समधिगच्छति = प्राप्त करता है। सम् + अधि + गम् + लट्, प्रथम पुरुष, एकवचन।।

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4. न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥ 4 ॥

अन्वयः-हि कश्चित् जातु क्षणम् अपि अकर्मकृत् न तिष्ठति, हि सर्वः प्रकृतिजैः गुणैः अवशः कर्म कार्यते।

सरलार्थ:-हे अर्जुन ! कोई भी पुरुष कभी भी थोड़ी देर के लिए भी, बिना कर्म किए नहीं रहता है। निःसंदेह सब लोग प्रकृति से उत्पन्न हुए (स्वभाव अनुसार) गुणों द्वारा विवश होकर कर्म करते हैं।

भावार्थ:-कर्म करना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। जब मनुष्य शरीर से कर्म नहीं करता, निठल्ला पड़ा रहता है, तब भी वह मन से तो कार्य करता ही है। अत: पूर्ण चेतना से निष्काम कर्म ही करना चाहिए। निठल्ले कभी नहीं रहना चाहिए।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
हि = क्योंकि, निःसन्देह, निश्चय से। कश्चित् = कोई भी। जातु = कभी भी। क्षणम् = थोड़ी देर के लिए। अकर्मकृत् = बिना कर्म किए। सर्वः = सब लोग। अवशः = पराधीन होकर । कार्यते = करते हैं-कराया जाता है।

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5. तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः ॥5॥

अन्वयः-तस्मात् असक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर, हि असक्तः पुरुषः कर्म आचरन् परम् आप्नोति।

सरलार्थ:-इसलिए, हे अर्जुन ! तुम अनासक्त होकर निरन्तर अपने कर्तव्य कर्म का अच्छी प्रकार भली-भाँति आचरण करो। क्योंकि अनासक्त पुरुष कर्म करता हुआ, परमात्मा को प्राप्त करता है।

भावार्थ:-निष्काम कर्मयोग ही परमात्मा की प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
असक्तः = अनासक्त होकर, न सक्तः। सङ्ग् + क्त, न सक्तः असक्त । नञ् तत्पुरुष । सततम् = निरन्तर, लगातार। कार्यम् = कर्तव्य, स्वधर्म रूप। समाचर = भली-भाँति करो। सम् + आ + /चर्, लोट् मध्यम-पुरुष, एकवचन।

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6. कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः ।
लोक सङ्ग्रहमेवापि संपश्यन्कर्तुमर्हसि॥6॥

अन्वयः-जनक-आदयः कर्मणा एव संसिद्धिम् आस्थिताः, हि लोकसङ्ग्रहम् संपश्यन् अपि कर्तुम् एव अर्हसि।

सरलार्थः-राजा जनक आदि राजर्षि भी (अनासक्त होकर) कर्म द्वारा ही परम सिद्धि को प्राप्त हुए हैं। निश्चय ही तुम भी लोक कल्याण को देखते हुए ही कर्म करने के योग्य हो।

भावार्थ:-जैसे जनक आदि ने अनासक्ति भाव से अपने कर्तव्यों का पालन किया, ऐसे ही तुम्हें भी आचरण करना चाहिए । इससे तुम्हें सफलता प्राप्त होगी।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
संसिद्धिम् = परम सफलता को। आस्थिताः = प्राप्त हुए थे। आ + स्था + क्त पुंल्लिंग प्रथमा, बहुवचन। लोकसङ्ग्रहम् = लोक कल्याण को। अर्हसि = योग्य हो। अर्ह + लट् प्रथम पुरुष, एकवचन।

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7. यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥7॥

अन्वयः-श्रेष्ठ: यत् आचरति, इतरः जनः तत् तत् एव (आचरति), सः यत् प्रमाणं कुरुते, लोकः तत् अनुवर्तते।

सरलार्थ:-श्रेष्ठ व्यक्ति जो जो आचरण करता है। दूसरा व्यक्ति भी उस-उस ही कर्म को करता है, अर्थात् वैसा ही अनुसरण दूसरे लोग भी करते हैं। वह व्यक्ति, जो कुछ प्रमाण कर देता है लोग भी उसके अनुसार आचरण करते हैं।

भावार्थ:-भाव यह है कि प्रजाजन, श्रेष्ठ व्यक्तियों के आचरण को आदर्श मानकर, उसके अनुसार ही व्यवहार करते हैं। अत: तुम्हें भी श्रेष्ठ लोगों के आचरण का आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च यत् यत् = जो जो कर्म। यत् शब्द नपुं० द्वितीया, एकवचन। आचरति = आचरण करता है। आ + √चर् + लट् प्रथम पुरुष, एकवचन। प्रमाणम् = प्रमाण को, आदर्श को। इतरः = अन्य लोग, सब लोग । अनुवर्तते = अनुसरण करता है। अनु + √वृत् + लट् प्रथम पुरुष + एकवचन।

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8. न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम्।
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन्॥8॥

अन्वयः-विद्वान् कर्मसङगिनाम् अज्ञानां बुद्धिभेदं न जनयेत्, (किन्तु) युक्तः सर्वकर्माणि समाचरन् जोषयेत्।

सरलार्थ:-विद्वान् मनुष्य को चाहिए कि वह कर्म में आसक्ति रखने वाले अज्ञानी मनुष्यों में, कर्मों के प्रति अश्रद्धा . उत्पन्न न करे किन्तु स्वयं धर्मरूप कर्म में स्थित होकर सब कर्तव्य कर्मों का पालन भली-भाँति करता हुआ, दूसरों से भी वैसा ही कराए।

भावार्थ:-भाव यह है कि मनुष्य को, कर्तव्य कर्म करके समाज के प्रति एक उदाहरण बनना चाहिए। वह स्वयं भी विधिपूर्वक कर्तव्य कर्म करे तथा दूसरों को भी वैसे ही कर्म में प्रवृत्त करे।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
बुद्धिभेदम् = कर्तव्यबोध में अश्रद्धा। विद्वान् = ज्ञानवान् पुरुष। कर्मसङ्गिनाम् = कर्म में आसक्त लोगों के। अज्ञानाम् = अज्ञानियों के। युक्तः = अपने कर्तव्य कर्म में स्थित, निष्काम कर्म में लगा हुआ। समाचरन् = भली-भाँति आचरण करता हुआ। जोषयेत् = कराए, करवाना चाहिए, लगाना चाहिए। /जुष् + णिच् + विधिलिङ् प्रथम पुरुष, एकवचन।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 4 कर्मगौरवम्

कर्मगौरवम् (कर्म का महत्व) Summary in Hindi

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 4 कर्मगौरवम् img-1

कर्मगौरवम् पाठ परिचय

‘कर्मयोगः’ यह पाठ ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ के दूसरे एवं तीसरे अध्याय से संकलित है। श्रीमद्भगवद्गीता विश्व का सुप्रसिद्ध ग्रन्थ है। ‘गीता’ महाभारत के ‘भीष्मपर्व’ से उद्धृत है। इसमें 18 अध्याय हैं, 700 श्लोक हैं। तथा 18 प्रकार के योग का वर्णन है। समस्त योगों में कर्मयोग श्रेष्ठ है। मनुष्य कर्म करने के लिए संसार में आया है। किन्तु निष्काम कर्म करना ही मनुष्य को बन्धन से मुक्त करता है। सभी प्रकार की कामनाओं और फल की इच्छा से रहित कर्म ही निष्काम कर्म कहलाता है। इसी को ‘अनासक्ति’ कहा गया है। प्राणिमात्र का अधिकार केवल कर्म करने में निहित है, फल में नहीं। गीता के दूसरे-तीसरे अध्याय में इसी कर्मयोग की विस्तृत चर्चा है। .

श्रीकृष्ण ने गीता में, अर्जुन को इसी निष्काम कर्मयोग की शिक्षा प्रदान की है। श्रीकृष्ण ने युद्धक्षेत्र में, विषाद में पड़े हुए अर्जुन को स्व-क्षत्रियोचित कर्तव्य का उपदेश देकर धर्मयुद्ध के लिए उद्यत किया था। अर्जुन के माध्यम से मानवमात्र को निष्काम कर्म का उपदेश दिया गया है।

‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ यह गीता का संदेश है।

कर्मगौरवम् पाठस्य सारः
श्री कृष्ण अर्जुन को कर्म का रहस्य समझाते हुए कहते हैं कि कर्म करने तक ही मनुष्य का अधिकार है अर्थात् कर्म को करने-न करने या उलट करने की स्वतन्त्रता है। फल पाने में ऐसी स्वतन्त्रता नहीं क्योंकि शुभ-अशुभ जैसा भी कर्म किया है, उसका फल तो ईश्वरीय व्यवस्था के अधीन होकर अवश्य ही भोगना पड़ता है। कर्तव्य बुद्धि से आसक्ति रहित होकर कर्म में कुशलता प्राप्त करने का नाम ही निष्काम कर्मयोग है।

जो जीवन में शास्त्र-प्रोक्त कर्म हैं, उन्हें छोड़ना नहीं हैं, क्योंकि कर्म करना, न कर्म करने की अपेक्षा श्रेष्ठ होता है। बिना कर्म किए तो शरीर यात्रा भी नहीं हो सकती।

मनुष्य प्रकृति के अधीन है, अत: वह कर्म किए बिना क्षणभर भी नहीं रह सकता। अनासक्ति भावना से कर्म करने वाला पुरुष ही भगवान् को प्राप्त करता है।

जनक आदि महापुरुष इस कर्तव्य-कर्म करने से ही जीवन में सफलता को प्राप्त हुए हैं। हे अर्जुन! तुम्हें भी उन्हीं के समान, कर्तव्य कर्म निभाना चाहिए और अन्यायियों से युद्ध करना चाहिए। क्योंकि जैसे आचरण श्रेष्ठ लोग करते हैं, वैसे ही आचरण उन्हें देखकर सामान्य लोग भी करते हैं।

अत: पाप-पुण्य की चिन्ता किए बिना कर्म में आसक्त लोगों का तुम्हें आचरण नहीं करना चाहिए। हे अर्जुन ! फलासक्ति छोड़कर नि:संग भाव से तुम्हें सर्वहित कार्य में लगना चाहिए।

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HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 3 बालकौतुकम्

Haryana State Board HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 3 बालकौतुकम् Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 3 बालकौतुकम्

HBSE 12th Class Sanskrit बालकौतुकम् Textbook Questions and Answers

1. संस्कृतभाषया उत्तराणि लिखत
(क) ‘उत्तररामचरितम्’ इति नाटकस्य रचयिता कः ?
(ख) नेपथ्ये कोलाहलं श्रुत्वा जनक: किं कथयति ?
(ग) लवः कौशल्यां रामभद्रं च कथमनुसरति ?
(घ) बटवः अश्वं कथं वर्णयन्ति ?
(ङ) लवः कथं जानाति यत् अयम् आश्वमेधिकः अश्वः?
(च) राजपुरुषस्य तीक्ष्णतरा आयुधश्रेण्यः किं न सहन्ते ?
उत्तरम्:
(क) भवभूति: ‘उत्तररामचरितम्’ इति नाटकस्य रचयिता।
(ख) नेपथ्ये कोलाहलं श्रुत्वा जनकः कथयति-“शिष्टानध्यायः इति क्रीडतां वटूनां कोलाहलः”।
(ग) लवः कौशल्यां रामभद्रं च देहबन्धनेन स्वरेण च अनुसरति।
(घ) बटवः अश्वं भूतविशेषं वर्णयन्ति।
(ङ) लवः अश्वमेध-काण्डेन जानाति यत् अयम् आश्वमेधिकः अश्वः ।
(च) राजपुरुषस्य तीक्ष्णतराः आयुधश्रेण्यः दृप्तां वाचं न सहन्ते।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 3 बालकौतुकम्

2. रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) अश्वमेध इति नाम क्षत्रियाणां महान् उत्कर्षनिकषः।
(ख) हे बटवः! लोष्ठैः अभिघ्नन्तः उपनयत एनम् अश्वम्।
(ग) रामभद्रस्य एषः दारकः अस्माकं लोचने शीतलयति।
(घ) उत्पथैः मम मनः पारिप्लवं धावति।
(ङ) अतिजवेन दूरमतिक्रान्तः स चपल: दृश्यते ।
(च) विस्फारितशरासनाः आयुधश्रेण्यः कुमारं तर्जयन्ति।
(छ) निपुणं निरूप्यमाणः लवः मुखचन्द्रेण सीतया संवदत्येव ।
उत्तरम्:
(प्रश्ननिर्माणम्)
(क) अश्वमेध इति नाम केषां महान् उत्कर्ष-निकषः ?
(ख) हे बटवः ! कथं अभिघ्नन्त: उपनयत एनम् अश्वम् ?
(ग) रामभद्रस्य एष दारकः अस्माकं किं शीतलयति ?
(घ) उत्पथैः कस्य मनः पारिप्लवं धावति ?
(ङ) अतिजवेन दूरम् अतिक्रान्तः सः कथं दृश्यते ?
(च) विस्फारित-शरासनाः आयुधश्रेण्यः कं तर्जयन्ति ?
(छ) निपुणं निरुप्यमाणः लवः मुखचन्द्रेण कया संवदति एव ?

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 3 बालकौतुकम्

3. सप्रसङ्ग-व्याख्यां कुरुत
(क) सर्वक्षत्रपरिभावी महान् उत्कर्षनिकषः।
(ख) किं व्याख्यानैव्रजति स पुनर्दूरमेह्यहि याम।
(ग) सुलभसौख्यमिदानी बालत्वं भवति
(घ) झटिति कुरुते दृष्टः कोऽयं दृशोरमृताञ्जनम् ?
उत्तरम्:
(क) सर्वक्षत्रपरिभावी महान् उत्कर्षनिकषः।
प्रसंग:-प्रस्तुत पंक्ति ‘लवकौतुकम्’ पाठ से संकलित है। वाल्मीकि आश्रम में ‘लव’ के साथ ब्रह्मचारी-सहपाठी खेल रहे हैं। इसी समय कुछ बटुगण आकर, लव को आश्रम के निकट अश्वमेध घोड़े की सूचना देते हैं। यह अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा रक्षकों से घिरा हुआ है। लव उस अश्वमेध यज्ञ के महत्त्व को अपने मन में विचार करता हुआ कहता है

व्याख्या-यह अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा है । यह क्षत्रियों की शक्ति का सूचक होता है। क्षत्रिय राजा, अपने बलवान् शत्रु राजा पर अपनी विजय की धाक जमाने के लिए इसे छोड़ता है। वास्तव में यह घोड़ा सभी शत्रुओं पर प्रभाव डालने वाले उत्कर्ष श्रेष्ठपन का सूचक होता है।

(ख) किं व्याख्यानैव्रजति स पुन(रमेयेहि यामः।
प्रसंग:-प्रस्तुत पंक्ति ‘लवकौतुकम्’ पाठ से संकलित है। वाल्मीकि आश्रम के निकट राम के अश्वमेध का घोड़ा घूमते-घूमते आ गया है। वहाँ खेलते हुए ब्रह्मचारी उस विशेष प्राणी को देखकर भागते हुए आश्रम में आते हैं और ‘लव’ के सामने उसका वर्णन करते हैं

व्याख्या-यह प्राणिविशेष लम्बी पूँछ को बारबार हिला रहा है। घास खाता है, लीद करता है, लम्बी गर्दन है, चार खुरों वाला है। अधिक कहने का समय नहीं है, यह जन्तु तेजी से आश्रम से दूर भागा जा रहा है, चलो आओ हम भी उसे देखते हैं। भाव यह है कि उसे बताने की अपेक्षा उसे देखना अधिक आनन्ददायक होगा।

(ग) सुलभं सौख्यम् इदानीं बालत्वं भवति।
प्रसंग:-प्रस्तुत पंक्ति लवकौतुकम्’ पाठ से उद्धृत है। वाल्मीकि आश्रम में अतिथि के रूप में जनक, कौशल्या और अरुन्धती आए हुए हैं। उनके आने से आश्रम में अवकाश कर दिया गया है और सभी छात्रगण खेलते हुए शोर मचा रहे हैं। इस शोर को सुनकर, कौशल्या जनक को बता रही हैं

व्याख्या-बाल्यकाल में सुख के साधन सुलभ होते हैं। बच्चों को मजा लेने के लिए किसी खिलौने आदि की आवश्यकता नहीं होती। वे तो साधारण से खेल-कूद और हँसी-मजाक द्वारा ही सुख प्राप्त कर लेते हैं। सुख प्राप्ति के लिए उन्हें बड़े बहुमूल्य क्रीडा-साधनों की आवश्यकता नहीं होती। ये ब्रह्मचारी अपने बचपन का आनन्द ले रहे हैं।

(घ) झटिति कुरुते दृष्टः कोऽयं दृशोः अमृताञ्जनम्।
प्रसंग:-प्रस्तुत पंक्ति ‘लवकौतुकम्’ पाठ से संकलित है। वाल्मीकि आश्रम में, राम के पुत्र ‘लव’ को देखकर, अरुन्धती (वशिष्ठ की पत्नी) अत्यन्त प्रभावित है। वह उसके रूप सौन्दर्य को देखकर, राम के बचपन को स्मरण करती हुई जनक तथा कौशल्या से कहती है

व्याख्या-यह बालक मेरे हृदय में अत्यन्त स्नेहभाव पैदा कर रहा है। इसे देखकर मुझे ऐसा लग रहा है, जैसे कि बचपन के राम को देख रही हूँ। यह प्रिय बालक देखने पर मुझे इतना आकृष्ट कर रहा है, मानो मेरी आँखों में अमृत का अंजन लगा दिया है। इसे देखकर मुझे अत्यन्त तृप्ति मिल रही है।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 3 बालकौतुकम्

4. अधोलिखितानि कथनानि कः कं कथयति ?
उत्तरसहितम्

कथनानिकःकं प्रति
(क) अस्ति ते माता ? स्मरसि वा तातम् ?कौसल्यालवम्
(ख) दिष्ट्या न केवलम् उत्सड्ग: मनोरथोऽपि मे पूरितः ।अरुन्धतीलवम्
(ग) वत्सायाश्च रघूद्वहस्य च शिशावस्मिन्नभिव्यज्यते।जनक:कौशल्याम्
(घ) सोऽयमधुनाइस्माभि: स्वयं प्रत्यक्षीकृतः।बटल:लवम्
(ङ) इतोडन्यतो भूत्वा प्रेक्षामहे तावत् पलायमानं दीर्घायुषम्।कौशल्याअरुन्तीम्
(च) धिक् चपल ! किमुक्तवानसि ?राजपुरुष:लवम्

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5. अधोलिखितवाक्यानां रिक्तस्थानपूर्ति निर्देशानुसारं कुरुत
(क) क एषः ……. रामभद्रस्य मुग्धललितैरङ्गैरिकोऽस्माकं लोचने ……. । (क्रियापदेन)
(ख) एष …………. मे सम्मोहनस्थिरमपि मनः हरति। (कर्तृपदेन)
(ग) …………….! इतोऽपि तावदेहि ! (सम्बोधनेन)
(घ) ‘अश्वोऽश्व’ ………… नाम पशुसमाम्नाये सामामिके च पठ्यते। (अव्ययेन)
(ङ) युष्माभिरपि तत्काण्डं ….. ……………….. एव हि। (कृदन्तपदेन)
(च) एष वो लवस्य …………….. प्रणामपर्यायः । (करणपदेन)
उत्तरम्:
(क) क एषः अनुसरति रामभद्रस्य मुग्धललितैरङ्गैर्दारकोऽस्माकं लोचने शीतलयति।
(ख) एष बलवान् मे सम्मोहनस्थिरमपि मनः हरति।
(ग) जात! इतोऽपि तावदेहि !
(घ) ‘अश्वोऽश्व’ इति नाम पशुसमाम्नाये साङ्ग्रामिके च पठ्यते।
(ङ) युष्माभिरपि तत्काण्डं पठितम् एव हि।
(च) एष वो लवस्य शिरसा प्रणामपर्यायः ।

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6. अधः समस्तपदानां विग्रहाः दत्ताः। उदाहरणमनुसृत्य समस्तपदानि रचयत, समासनामापि च लिखतउदाहरणम्-पशूनां समाम्नायः, तस्मिन् पशुसमाम्नाये- षष्ठीतत्पुरुषः. उत्तरसहितम्:

(क) विनयेन शिशिर:विनयशिशिर:तृतीयातत्युरुष:
(ख) अयस्कान्तस्य (धातो:) शकल:अयस्कान्तशकलःषष्ठीतत्पुरुष:
(ग) दीर्घा ग्रीवा यस्य स:दीर्घग्रीव:बहुव्रीहि:
(घ) मुखम् एव पुण्डरीकम्मुखपुण्डरीकम्कर्मधारयः
(ङ) पुण्य: चासौ अनुभाव:पुण्यानुभाव:कर्मधारय:
(च) न स्खलितम्असखलितम्नअ्तत्पुरुष:

7. अधोलिखित पारिभाषिक शब्दानां समुचितार्थेन मेलनं कुरुत
(क) नेपथ्ये (क) प्रकटरूप में
(ख) आत्मगतम् (ख) देखकर
(ग) प्रकाशम् (ग) पर्दे के पीछे
(घ) निरूप्य (घ) अपने मन में
(ङ) उत्सङ्गे गृहीत्वा (ङ) प्रवेश करे
(च) प्रविश्य (च) अपने मन में
(छ) सगर्वम् (छ) गोद में बिठा कर
(ज) स्वगतम् (ज) गर्व के साथ
उत्तरम्:
(क) नेपथ्ये – पर्दे के पीछ
(ख) आत्मगतम् – अपने मन में
(ग) प्रकाशम् – प्रकट रूप में
(घ) निरूप्य – देखकर
(ङ) उत्सङ्गे गृहीत्वा – गोद में बिठा कर
(च) प्रविश्य – प्रवेश करके
(छ) सगर्वम् – गर्व के साथ
(ज) स्वगतम् – अपने मन में

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8. पाठमाश्रित्य हिन्दीभाषया लवस्य चारित्रिकवैशिष्ट्यं लिखत
उत्तरम्-(बालक लव का चरित्र चित्रण)
लव महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में पालित-पोषित, राजा राम द्वारा निर्वासित भगवती सीता के जुड़वा पुत्रों में से एक है। वह आकृति में बिल्कुल राम जैसा है, उसकी आँखों में राम की आँखों जैसी चमक है। यही कारण है कि जब महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में राजर्षि जनक, कौशल्या और अरुन्धती अतिथि के रूप में पधारते हैं; तब खेलते हुए बालकों के बीच कौशल्या बालक लव को देखकर राम के बचपन की याद में खो जाती है। तीनों की बातचीत से पता लगता है कि लव का मुख सीता के मुखचन्द्र की भाँति है। उसका मांसल और तेजस्वी शरीर राम के तुल्य है। उसका स्वर बिल्कुल राम से मिलता-जुलता है।

लव शिष्टाचार में कुशल है। वह गुरुजनों का आदर करना जानता है और जनक आदि के आश्रम में पधारने पर उन्हें सिर झुकाकर प्रणाम करता है। लव ने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में शस्त्र और शास्त्र दोनों की शिक्षा प्राप्त की है। इसीलिए जब चन्द्रकेतु द्वारा रक्षित राजा राम का अश्वमेधीय अश्व आश्रम में प्रवेश करता है; तब लव इस घोड़े को देखते ही पहचान जाता है कि यह अश्वमेधीय अश्व है, क्योंकि उसने युद्धशास्त्र तथा पशु-समाम्नाय में इस अश्व के बारे में पढ़ा हुआ है।

लव स्वभाव से वीर है, उसका स्वाभिमान क्षत्रियोचित है। इसीलिए अश्व के रक्षक सैनिकों के द्वारा जब अश्व के सम्बन्ध में गर्वपूर्ण शब्दावली का प्रयोग किया जाता है; तब वह उन सैनिकों को ललकारता है और अपने साथी बालकों को आदेश करता है कि पत्थर मार मारकर इस घोड़े को पकड़ लो, यह भी हमारे हिरणों के बीच रहकर घास चर लिया करेगा। इतना ही नहीं वह विजयपताका को छीनने की घोषणा करता है। अन्य बालक युद्ध के लिए चमकते हुए अस्त्रों को देखकर आश्रम में भाग जाना चाहते हैं परन्तु लव उनका सामना करने के लिए धनुष पर बाण चढ़ा लेता है।

इस प्रकार लव राम और सीता की आकृति से मेल रखता हुआ, गंभीर स्वर वाला, शिष्टाचार में निपुण, वीर, .. स्वाभिमानी, और तेजस्वी बालक है।

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9. अधोलिखितेषु श्लोकेषु छन्दोनिर्देशः क्रियताम्
(क) महिम्नामेतस्मिन् विनयशिशिरो मौग्ध्यमसृणो।
(ख) वत्सायाश्च रघूद्वहस्य च शिशावमिस्मन्नभिव्यज्यते।
(ग) पश्चात्पुच्छं वहति विपुलं तच्च धूनोत्यजस्रम्।
उत्तरम्:
(क) शिखरिणी छन्दः।
(ख) शार्दूलविक्रीडितम् छन्दः ।
(ग) मन्दाक्रान्ता छन्दः।

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10. पाठमाश्रित्य उत्प्रेक्षालड्कारस्य उपमालकारस्य च उदाहरणं लिखत
उत्तरम्:
(क) उत्प्रेक्षालकारस्य उदाहरणम्
वत्सायाश्च रघूद्वहस्य च शिशावस्मिन्नभिव्यज्यते,
संवृत्तिः प्रतिबिम्बितेव निखिला सैवाकृतिः सा द्युतिः।
(ख) उपमालकारस्य उदाहरणम्
मनो मे संमोहस्थिरमपि हरत्येष बलवान्,
अयोधातुर्यद्वत्परिलघुरयस्कान्तशकलः॥

योग्यताविस्तारः

(क) भवभूतिः संस्कृतसाहित्यस्य प्रमुखो महाकविरासीत्।
“कविर्वाक्पतिराज श्रीभवभूत्यादिसेवितः।
जितो ययौ यशोवर्मा तद्गुणस्तुतिवन्दिताम्॥”
इति कल्हणरचितराज-तरङ्गिणीस्थश्लोकेन परिज्ञायते यदयम् अष्टमशताब्द्यां वर्तमानस्य कान्यकुब्जेश्वरस्य यशोवर्मणः समसामयिक आसीत्।

अनेन महाकविना त्रीणि नाटकानि रचितानि
मालतीमाधवम्, महावीरचरितम् उत्तररामचरितं च।
उत्तररामचरितं भवभूतेः सर्वोत्कृष्टा रचनास्तीति विद्वत्समुदाये इयमुक्तिः प्रसिद्धा वर्तते –
“उत्तरे रामचरिते भवभूतिविशिष्यते।”

अस्य नाटकस्य कथावस्तु रामयाणाधारितमस्ति। अत्र श्रीरामस्य राज्याभिषेकानन्तरमुत्तरं चरितं वर्णितम्, पूर्वचरितन्तु भवभूतिविरचिते महावीरचरिते प्रतिपादितम्। अत एव उत्तरं रामस्य चरितं यस्मिन् तत् उत्तररामचरितम्। अथवा उत्तरम् = उत्कृष्टं रामस्य चरितं यस्मिन् तत् उत्तररामचरितम् इति नाटकस्य नामकरणं समीचीनं वर्तते। सीतापरित्यागेनात्र रामस्योत्कृष्टराज्यधर्मपालनव्रतत्वं सूच्यते।

यद्यपि भवभूतिः करुणरसस्याभिव्यक्तये सविशेष प्रशस्यते, परन्तु प्रस्तुते नाट्यांशे वात्सल्यस्य भावः मर्मस्पृशं प्रकटितः । तथैव हास्यरसस्यापि रुचिरा अभिव्यक्तिरत्र सञ्जाता।

(ख) अश्वमेधः-अश्वमेधयज्ञः प्राचीनकाले राज्यविस्ताराय राष्ट्र-समृद्धये च करणीयः यज्ञः आसीत्। अस्मिन् यज्ञे राज्ञां बलस्य पराक्रमस्य च परीक्षा भवति स्म। यज्ञकर्ता नृपः स्वराष्ट्रियप्रतीकमश्वं च सैन्यबलैः सह भूमण्डल-भ्रमणाय प्रेषयति स्म। यो नृपः स्वराज्ये समागतमश्वं निर्बाधं गन्तु प्रादिशत, स यज्ञकर्ड राज्ञे करदेयतां स्वीकरोति स्म। यः तमश्वमरुणत् स आश्वमेधिक-नृपस्याधीनतां नाङ्गीकरोति स्म। तदा उभयोर्बलयोर्मध्ये युद्धं भवति स्म तत्रैव च नृपाणां पराक्रमः परीक्ष्यते स्म। शतपथब्राह्मणे ‘अश्वः’ इति पदं राष्ट्रार्थे प्रयुक्तम् ‘राष्ट्रं वै अश्वः ‘ इति.

(ग) ‘बालकौतुकम्’ इतिपाठस्य साभिनयं नाट्यप्रयोगं कुरुत।

(घ) गुरुकुलपरम्परायां बालकानां कृते गुरून् प्रति अभिवानदस्य कीदृशः शिष्टाचारः अत्र चित्रितः इति निरूप्यताम्। तथैव गुरवः कथम् आशीर्वचांसि अयच्छन्, इत्यपि ज्ञेयम्।

(ङ) वार्तालापार्थं संस्कृतभाषायाः सुचारुप्रयोगस्य उदाहरणानि पाठात् अन्वेष्टव्यानि।

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HBSE 9th Class Sanskrit बालकौतुकम् Important Questions and Answers

I. समुचितम् उत्तरं चित्वा लिखत
(i) ‘उत्तररामचरितम्’ इति नाटकस्य रचयिता कः ?
(A) भासः
(B) कालिदासः
(C) भवभूतिः
(D) अश्वघोषः।
उत्तराणि:
(B) कालिदासः

(ii) बटवः अश्वं कथं वर्णयन्ति ?
(A) भूतविशेषम्
(B) भूतम्
(C) राजाश्वम्
(D) विशेषम्।
उत्तराणि:
(A) भूतविशेषम्

(iii) लवः कथं जानाति यत् अयम् आश्वमेधिकः अश्वः ?
(A) उत्तरकाण्डेन
(B) युद्धकाण्डेन
(C) पूर्वकाण्डेन
(D) अश्वमेधकाण्डेन।
उत्तराणि:
(D) अश्वमेधकाण्डेन

(iv) राजपुरुषस्य तीक्ष्णतरा आयुधश्रेण्यः कीदृशीं वाचं न सहन्ते ?
(A) दृप्ताम्
(B) सुप्ताम्
(C) मधुराम्
(D) असत्ययुक्ताम्।
उत्तराणि:
(A) दृप्ताम्।

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II. रेखाकितपदम् आधृत्य-प्रश्ननिर्माणाय समुचितं पदं चित्वा लिखत
(i) अश्वमेध इति नाम क्षत्रियाणां महान् उत्कर्षनिकषः।
(A) कः
(B) केषाम्
(C) कस्मै
(D) कस्मात्।
उत्तराणि:
(B) केषाम्

(ii) हे बटवः ! लोष्ठैः अभिजन्तः उपनयत एनम् अश्वम्।
(A) काः
(B) कस्मात्
(C) कुत्र
(D) कैः।
उत्तराणि:
(D) कैः

(iii) रामभद्रस्य एषः दारकः अस्माकं लोचने शीतलयति।
(A) के
(B) कैः
(C) कस्मिन्
(D) कथम्।
उत्तराणि:
(A) के

(iv) उत्पथैः मम मनः पारिप्लवं धावति।
(A) कस्य
(B) कस्मै
(C) कस्याम्
(D) किम्।
उत्तराणि:
(A) कस्य

(v) अतिजवेन दूरमतिक्रान्तः स चपलः दृश्यते।
(A) केन
(B) कम्
(C) कः
(D) काः
उत्तराणि:
(C) कः

(vi) विस्फारितशरासनाः आयुधश्रेण्यः कुमारं तर्जयन्ति।
(A) किम्
(B) कथम्
(C) केन
(D) कम्।
उत्तराणि:
(D) कम्

(vii) निपुणं निरूप्यमाणः लवः मुखचन्द्रेण सीतया संवदत्येव।
(A) कस्मात्
(B) कस्याः
(C) कया
(D) कस्याम्।
उत्तराणि:
(C) कया।

बालकौतुकम्पा ठ्यांशः
1. (नेपथ्ये कलकलः । सर्वे आकर्णयन्ति)
जनकः अये, शिष्टानध्याय इत्यस्खलितं खेलतां वटूनां कोलाहलः।
कौसल्याः सुलभसौख्यमिदानीं बालत्वं भवति।
अहो, एतेषां मध्ये क एष रामभद्रस्य मुग्धललितैरङ्गैर्दारकोऽस्माकं लोचने शीतलयति ?
अरुन्धती
कुवलयदल-स्निग्धश्यामः शिखण्डक-मण्डनो,
वटुपरिषदं पुण्यश्रीकः श्रियैव सभाजयन्।
पुनरपि शिशुभूतो वत्सः स मे रघुनन्दनो,
झटिति कुरुते दृष्टः कोऽयं दशोरमृताञ्जनम्॥1॥

अन्वयः-कुवलयदल-स्निग्धश्यामः शिखण्डक-मण्डनः, पुण्यश्रीकः श्रिया वटुपरिषदं सभाजयन् एव, पुनः शिशुः भूत्वा स मे वत्सः रघुनन्दन इव कः अयम् दृष्टः झटिति दृशोः अमृत-अञ्जनं कुरुते ?

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जनकः (चिरं निर्वर्ण्य) भोः किमप्येतत् !
महिम्नामेतस्मिन् विनयशिशिरो मौग्ध्यमसृणो,
विदग्धैर्निर्ग्राह्यो न पुनरविदग्धैरतिशयः।
मनो मे संमोहस्थिरमपि हरत्येष बलवान्,
अयोधातुर्यद्वत्परिलघुरयस्कान्तशकलः ॥ 2 ॥

अन्वयः-एतस्मिन्, विनय-शिशिरः, मौग्ध्यमसृणः, महिम्नाम् अतिशयः, विदग्धै : निर्ग्राह्यः, अविदग्धैः न, (निर्ग्राह्यः) बलवान् एषः, संमोह-स्थिरम् अपि मे मनः हरति। यद्वत् परिलघुः अयस्कान्तशकल: अयोधातुः (हरति)।

लवः (प्रविश्य, स्वगतम्) अविज्ञातवय:-क्रमौचित्यात् पूज्यानपि सतः कथमभिवादयिष्ये ? (विचिन्त्य) अयं पुनरविरुद्धप्रकार इति वृद्धेभ्यः श्रूयते। (सविनयमुपसृत्य) एष वो लवस्य शिरसा प्रणामपर्यायः।

हिन्दी-अनुवादः

प्रसंगः- वाल्मीकि आश्रम में अतिथि के रूप में, राजा जनक, महारानी कौशल्या तथा वशिष्ठ की पत्नी अरुन्धति आए हैं। वे आश्रम में बालकों के क्रीड़ा कौतूहल को देख रहे हैं। उन बालकों में सीता का पुत्र लव भी है, जिसका उन्हें पता नहीं है। उनके वार्तालाप से पाठ का प्रारम्भ है (नेपथ्य में कोलाहल होता है। सब सुनते हैं।)

जनक – अरे, बड़े लोगों के आने पर पढ़ाई में अवकाश होने के कारण, बेरोकटोक खेलते हुए छात्रब्रह्मचारियों का यह शोर है अर्थात् छुट्टी होने के कारण, सभी ब्रह्मचारी अनियन्त्रित होकर खेल रहे

कौसल्या – इस बचपन में सुख सुलभ होता है अर्थात् बाल्यकाल में क्रीड़ा आदि सामान्य साधनों से ही सुख मिल जाता है। ओह, इन बालकों के बीच में यह कौन बालक, रामचन्द्र के समान सुन्दर और कोमल अंगों से हमारी आँखों को ठण्डा कर रहा है अर्थात् बाल्यावस्था में जैसा सुन्दर और कोमल रामभद्र था, वैसी ही आकृति वाला यह कौन बालक हमें आनन्द दे रहा है ?

अरुन्धती – नीलकमल के समान कोमल (चिकना) तथा श्याम रंग वाला, घुघराले बालों से अलंकृत, अलौकिक (पुण्य) शोभायुक्त, अपने शरीर की कान्ति से ही, ब्रह्मचारियों के समूह को अलंकृत करने वाला, यह कौन है ? जो कि देखने पर फिर से वह शिशु रूपधारी राम की भाँति मेरी आँखों में झट से अमृतयुक्त काजल का लेप-सा कर रहा है ? भाव यह है कि इस बालक को देखने से मैं प्रिय शिशु राम को ही फिर से बालक के रूप में देख रही हूँ॥1॥

जनक – (बहुत देर तक देखकर) ओह, यह क्या (अपूर्व-सा अनुभव) है ? इस बालक में, विनय के कारण शीतलता तथा भोले स्वभाव के कारण कोमलता विद्यमान है। यह अतिशय महिमावाला है और यह विवेकियों (सूक्ष्मबुद्धि मनुष्यों) के द्वारा ही ग्राह्य है, स्थूलबुद्धि अविवेकियों के द्वारा ग्राह्य नहीं है। यह बलवान् बालक, जैसे चुम्बक का छोटा-सा टुकड़ा लोहे को अपनी ओर खींच लेता है, वैसे ही मेरे सीता निर्वासन के कारण शोकाघात से संज्ञा-शून्य जड़ (स्थिर) हृदय को अपनी ओर खींच रहा है। भाव यह है कि यह इतना प्रभावशाली बालक कौन है ॥ 2 ॥

लव – (प्रवेश करके, अपने मन में ही) आयु क्रम (आयु में छोटे-बड़े का क्रम) और उचितता का ज्ञान न होने से, पूजनीय होते हुए भी इनको मैं कैसे प्रणाम करूँ अर्थात् इनमें कौन वयोवृद्ध है और किसे प्रथम प्रणाम करना चाहिए ? यह मैं नहीं जानता (तो इन्हें कैसे प्रणाम करूँ) ? (सोच विचारकर) यह प्रणाम की विरोधहीन पद्धति है। ऐसा गुरुजनों से सुना जाता है। (विनयपूर्वक पास जाकर) यह आपको ‘लव’ का औचित्य क्रम के अनुसार प्रणाम है।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
शिष्टानध्यायः = शिष्टेषु (आप्तेषु) अनध्यायः । बड़े लोगों के आने पर अध्ययन से अवकाश। अस्खलितम् = अनियन्त्रितम्; बेरोकटोक। सुलभ-सौख्यम् = सुलभं सौख्यम् अस्मिन् । इसमें (बाल्यकाल में) सुख सुलभ होता है। मुग्ध-ललितैः = सुन्दर और कोमल। कुवलयदल-स्निग्ध-श्यामः = नील कमल के पत्र के समान कोमल और श्याम। कुवलय-दलम् इव स्निग्धः श्यामः च । शिखण्डक-मण्डनः = काकपक्ष-शोभितः । घुघराले बालों से अलंकृत । पुण्यश्रीकः = पुण्य-अलौकिक शोभा वाला। पुण्या श्रीः यस्य सः। दृशोः = आँखों के अथवा आँखों में। अमृताञ्जनम् = अमृतमयकाजल। विनय-शिशिरः = विनयेन शिशिरः शीतल:- विनय के कारण शीतल। विनय के कारण क्रोध न आने से स्वभाव में शीतलता रहती है। महिम्नाम् अतिशयः का विशेषण है (अत्यधिक महिमा वाला)। मौग्ध्य-मसृणः = मौग्ध्येन-मधुर स्वभाव (अथवा भोलेपन) के कारण मसृणः-कोमल। मुग्ध + ण्यत्। विदग्धैः = सूक्ष्मबुद्धि विद्वानों; विवेकियों द्वारा। सम्मोह-स्थिरम् = सम्मोहेन- शोकाघातेन स्थिरम्-जडीभूतम्-सीता निर्वासन के कारण शोक के प्रहार से संज्ञाशून्य-सा, जड़। अयस्कान्तशकलः = अयस्कान्तधातो:- चुम्बकस्य, शकल:-अवयवः (खण्डः) चुम्बक का छोटा-सा टुकड़ा। अविज्ञातवयः-क्रम-औचित्यात् = आयु में छोटे-बड़े के क्रम की उचितता का ज्ञान न होने से। अविज्ञातं वयः क्रमौचित्यम् तस्मात्। अवस्था, ज्येष्ठता एवं औचित्य का क्रमज्ञान न होने से। प्रणामपर्यायः = औचित्यक्रम के अनुसार प्रणाम। अविरुद्धप्रकारः = निर्विरोध पद्धति।

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2. अरुन्धतीजनको : कल्याणिन् ! आयुष्मान् भूयाः।
कौसल्या : जात ! चिरं जीव।
अरुन्धती : एहि वत्स ! (लवमुत्सङ्गे गृहीत्वा आत्मगतं दिष्ट्या न केवलमुत्सङ्गश्चिरान्मनोरथोऽपि मे पूरितः)
कौसल्या : जात ! इतोऽपि तावदेहि । (उत्सङ्गे गृहीत्वा) अहो, न केवलं मांसलोज्ज्वलेन देहबन्धनेन, कलहंसघोषघर्घ-रानुनादिना स्वरेण च रामभद्रमनुसरति। जात ! पश्यामि ते मुखपुण्डरीकम्। (चिबुकमुन्नमय्य, निरूप्य, सवाष्पाकूतम्) राजर्षे ! किं न पश्यसि ? निपुणं निरूप्यमाणो वत्साया मे वध्वा मुखचन्द्रेणापि संव-दत्येव।

हिन्दी-अनुवादः
अरुन्धती और जनक-हे कल्याण सम्पन्न ! चिरंजीव होओ। कौशल्या-बेटा ! दीर्घजीवी बनो। अरुन्धती-आओ बेटा । (लव को गोद में लेकर अपने मन में, सौभाग्य से केवल मेरी गोद ही नहीं अपितु मेरा बहुत दिनों का मनोरथ भी पूरा हो गया।) ।

कौशल्या-बेटा, इधर (मेरी गोद में) भी आओ। (गोद में लेकर) ओह, यह केवल बलिष्ठ और तेजस्वी शरीर के गठन से ही नहीं, अपितु मधुर कण्ठ वाले हंस के स्वर का अनुसरण करने वाले स्वर से भी ‘रामभद्र ‘ का अनुसरण कर रहा है। बेटा ! ज़रा तुम्हारा मुख कमल तो देखू ? (ठोड़ी को ऊपर उठाकर, देखकर, आँसुओं सहित अभिप्रायपूर्वक देखकर) हे राजर्षे जनक ! क्या आप नहीं देखते कि ध्यान से देखने पर इस बालक का मुख मेरी प्रिय वधू सीता के मुख-चन्द्र से भी मिल रहा है?

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
कल्याणिन् = हे कल्याण वाले। भूयाः = होओ, बनो। जात = वत्स, बेटा। उत्सङ्गे = गोद में। दिष्ट्या = सौभाग्य से। पूरितः = पूरा हो गया। एहि = आओ। मांसल-उज्ज्वलेन = मांसलेन-बलवता, उज्ज्वलेन-तेजस्विना बलवान् और तेजस्वी। देहबन्धनेन = शरीर के गठन से। कलहंस-घोष-घर्घर-अनुनादिना = कलहंसस्य घोषस्य अनुनादिना-अनुकारिणा। मधुर कण्ठ वाले हंस के स्वर का अनुसरण करने वाले (स्वर से)। मुखपुण्डरीकम् = श्वेत कमल के समान मुख को।चिबुकम् = ठोड़ी को।उन्नमय्य = ऊपर उठाकर । सवाष्प-आकूतम् = आँसुओं के साथ अभिप्रायपूर्वक।निरूप्य = देखकर।निरूप्यमाण: = देखा गया। निपुणम् = ध्यान से। वध्वा = बहू सीता से। संवदति = मिलता है।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 3 बालकौतुकम्

3. जनकः पश्यामि, सखि ! पश्यामि (निरूप्य)
वत्सायाश्च रघूद्वहस्य च शिशावस्मिन्नभिव्यज्यते,
संवृत्तिः प्रतिबिम्बितेव निखिला सैवाकृतिः सा द्युतिः।
सा वाणी विनयः स एव सहजः पुण्यानुभावोऽप्यसौ
हा हा देवि किमुत्पथैर्मम मनः पारिप्लवं धावति॥3॥

अन्वयः-अस्मिन् शिशौ, वत्साया: रघूद्वहस्य च संवृत्तिः प्रतिबिम्बिता इव अभिव्यज्यते, सा एव निखिला आकृतिः, सा धुतिः, सा वाणी, स एव सहजः विनयः, (स एव) असौ पुण्यानुभावः अपि, हा हा देवि ! मम मनः पारिप्लवं (सत्) उत्पथैः किं धावति ?
कौसल्या – जात ! अस्ति ते माता ? स्मरसि वा तातम् ?
लवः – नहि।
कौसल्या – ततः कस्य त्वम् ?
लवः – भगवतः सुगृहीतनामधेयस्य वाल्मीकेः।
कौसल्या – अयि जात ! कथयितव्यं कथय।
लवः – एतावदेव जानामि। (प्रविश्य सम्भ्रान्ताः)

हिन्दी-अनुवादः
जनक- देख रहा हूँ सखि (कौशल्ये), देख रहा हूँ।
इस बालक में बेटी सीता एवं रघुकुल-श्रेष्ठ राम का (पवित्र) सम्बन्ध प्रतिबिम्बित हो रहा है, और वही सारी शक्ल, वही कान्ति, वही वाणी, वही स्वाभाविक विनम्रता तथा पवित्र प्रभाव भी ठीक वैसा ही है। हा हा देवि ! (इसको देखकर) मेरा मन, चंचल होकर उन्मार्गों से (उबड़खाबड़ रास्तों से) क्यों दौड़ रहा है ? (यह सीता और राम का ही पुत्र है, ऐसी कल्पना क्यों कर रहा है ?)

कौसल्या – वत्स ! क्या तुम्हारी माता है? क्या तुम अपने पिता को याद करते हो ?
लव – नहीं
कौसल्या – तब, तुम किसके (पुत्र) हो ?
लव – स्वनामधन्य भगवान् वाल्मीकिके।
कौशल्या – प्यारे पुत्र ! कहने योग्य बात कहो अर्थात् आजन्म ब्रह्मचारी भगवान् वाल्मीकि तुम्हारे पिता कैसे हो सकते हैं ?
लव – मैं तो इतना ही जानता हूँ। (प्रवेश करके, घबराए हुए ब्रह्मचारीगण)

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
वत्सायाः = बेटी सीता का। रघूद्वहस्य = रघुवंश को वहन करने वाले राम का। शिशौ अस्मिन् = इस बालक में। अभिव्यज्यते = प्रकट हो रही है। अभि + वि + √अ०्ज् + लट् (कर्मवाच्य) प्रथम पुरुष, एकवचन । संवृत्तिः = सम्पर्क: सम्बन्ध। सम् + √वृत् + क्तिन्। निखिला = सम्पूर्ण । आकृतिः = शक्ल, रूप। द्युतिः = कान्ति। सहजः = स्वाभाविक। पुण्य-अनुभावः = पवित्र प्रभाव (माहात्म्य) वाला। उत्पथैः = उन्मार्गों से । पारिप्लवम् = चंचलता युक्त। परि + √प्लु + अच् परिप्लवम् एव पारिप्लवम्। परिप्लव + स्वार्थिक अण् प्रत्यय। सुगृहीत-नामधेयः = स्वनामधन्य। सुगृहीतं नामधेयं यस्य सः । कथयितव्यम् = कहने योग्य को, √कथ् + णिच् + तव्यत्।

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4. बटवः कुमार ! कुमार! अश्वोऽश्व इति कोऽपि भूतविशेषो जनपदेष्व-नुश्रूयते, सोऽयमधुनाऽस्माभिः स्वयं प्रत्यक्षीकृतः।
लव: – ‘अश्वोऽश्व’ इति नाम पशुसमाम्नाये साङ्ग्रामिके च पठ्यते, तद् ब्रूत-कीदृशः ?
बटतः – अये, श्रूयताम्
‘पश्चात्पुच्छं वहति विपुलं तच्च धूनोत्यजत्रम्
दीर्घग्रीवः स भवति, खुरास्तस्य चत्वार एव।
शष्याण्यत्ति, प्रकिरति शकृत्-पिण्डकानाम्र-मात्रान्।
किं व्याख्यानैव्रजति स पुनर्दूरमेयेहि याम॥
अन्वयः- पश्चात् विपुलं पुच्छं वहति, तत् च अजस्रं धूनोति। सः दीर्घग्रीवः भवति, तस्य खुराः चत्वारः एव। (सः) शष्पाणि अत्ति, आम्र-मात्रकान् शकृत्-पिण्डकान् प्रकिरति। किं व्याख्यानैः सः दूरं व्रजति। एहि एहि, याम। (इत्यजिने हस्तयोश्चाकर्षति)
लवः – (सकौतुकोपरोधविनयम्।) आर्याः ! पश्यत। एभिर्नीतोऽस्मि। (इति त्वरितं परिक्रामति।)

हिन्दी-अनुवादः
बटुगण (ब्रह्मचारी)-कुमार, कुमार, जनपदों में जो ‘घोड़ा-घोड़ा’ नामक कोई प्राणी विशेष सुना जाता है, अब हमने उसे स्वयं प्रत्यक्ष देख लिया है।
लव – ‘घोड़ा-घोड़ा’ यह पशु-शास्त्र तथा संग्राम शास्त्र में पढ़ा जाता है। तो बतलाओ-वह कैसा है ?
बटुगण – अरे, सुनिए!
उसकी पिछली ओर बहुत लम्बी पूँछ लटकती है और वह उसे निरन्तर हिलाता रहता है। उसकी गर्दन लम्बी और उसके खुर भी चार ही हैं। वह घास खाता है और आम्र-फलों जैसा, मलत्याग (लीद) करता है। अब अधिक वर्णन करने की आवश्यकता नहीं-वह घोड़ा दूर निकला जा रहा है। आओ, आओ। चलें ॥ 4 ॥
(ऐसा कहकर उस लव के हाथ और मृगचर्म पकड़कर खींचते हैं)
लव – (बटुकों के आग्रह और विनय के साथ) हे आर्य लोगो ! देखिए ! मैं इनके द्वारा ले जाया जा रहा हूँ। (ऐसा कहकर शीघ्रता से घूमता है)

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
भूतविशेषः = विशेष प्राणी। जनपदेषु = नगरों में। अनुसूयते = सुना जाता है। पशुसमाम्नाये = पशु-शास्त्र में पशुप्रतिपादित-शब्दकोश में। सम् + आ + √म्ना + घञ्। साङ्ग्रामिके = संग्रामशास्त्र में। युद्धशास्त्र धनुर्वेद में। अजस्त्रम् = निरन्तर । पुच्छम् = पूँछ । वहति = धारण करता है। विपुलम् = अत्यधिक। धूनोति = हिला रहा है। √धूञ् + लट् प्रथम पुरुष, एकवचन। दीर्घग्रीवः = लम्बी गर्दन वाला। दीर्घा ग्रीवा यस्य सः = बहुव्रीहि समास।शष्याणि = घास को। अत्ति = खाता है। √अद् + लट् + प्रथमा पुरुष, एकवचन। प्रकिरति = बिखेरता है। प्र + √कृ+ लट् (श विकरण) लट् । प्रथम पुरुष, एकवचन। शकृत् = लीद को, मल को। पिण्डकान् = समूहों को। आममात्रान् = आम्र-फल के आकार वाले, आम्रफलों जैसा। सकौतुक-उपरोध-विनयम् = कौतुकेन, उपरोधेन विनयेन च सहितम् । कौतूहल, आग्रह और विनय के साथ। याम = चलें। √या + लोट् – उत्तम पुरुष, बहुवचन। अजिने = मृगचर्म, द्वितीया द्विवचन। नीतः = ले जाया गया। त्वरितम् = शीघ्र।

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5. अरुन्धतीजनको : महत्कौतुकं वत्सस्य।
कौसल्या : अरण्यगर्भेरुपालापै!यं तोषिता वयं च। भगवति ! जानामि तं पश्यन्ती वञ्चितेव। तस्मादितोऽन्यतो भूत्वा प्रेक्षामहे तावत् पलायमानं दीर्घायुषम्।
अरुन्धती : अतिजवेन दूरमतिक्रान्तः स चपलः कथं दृश्यते ? (प्रविश्य)
बटव: : पश्यतु कुमारस्तावदाश्चर्यम्।
लवः : दृष्टमवगतं च। नूनमाश्वमेधिकोऽयमश्वः।
बटवः : कथं ज्ञायते ?
लवः : ननु मूर्खा: ! पठितमेव हि युष्माभिरिपि तत्काण्डम्। किं न पश्यथ ? प्रत्येकं शतसंख्याः कवचिनो दण्डिनो निषडगिणश्च रक्षितारः। यदि च विप्रत्ययस्तत्पृच्छत।

हिन्दी-अनुवादः
अरुन्धती और जनक : बालक को (घोड़ा देखने का) बड़ा कौतूहल है।
कौशल्या : वनवासी बालकों के रूप और बातचीत से आप और हम लोग बड़े सन्तुष्ट हुए हैं। भगवति अरुन्धती ! मुझे तो ऐसा लगता है कि, मानो मैं उसे देखती हुई ठगी-सी रह गई हूँ। इसलिए यहाँ से दूसरी ओर होकर, इस भागते हुए दीर्घायु बालक को देखें।
अरुन्धती : अत्यन्त वेग से दूर निकलने वाला वह चंचल (बालक) कैसे देखा जा सकता है ? (प्रवेश कर)
बटुगण : (आप) कुमार, इस आश्चर्य को देखें।
लव : देख लिया और समझ भी लिया। निश्चय ही यह ‘अश्वमेध’ यज्ञ का घोड़ा है।
बटुगण : कैसे जानते हो ?
लव : अरे मूर्यो ! तुम लोगों ने भी वह काण्ड’ (अश्वमेध-प्रतिपादक वेद का अध्याय) पढ़ा ही है। फिर क्या तुम सैंकड़ों की संख्या में कवचधारी दण्डधारी तथा तरकसधारी सैनिकों को नहीं देखते ? और यदि तुम्हें विश्वास नहीं होता, तो (इन अनुयायी रक्षकों से) पूछ लो।

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
कौतुकम् = कौतूहल। अरण्यगर्भेरुपालापैः = अरण्यगर्भाणां-वनवासिनाम्-बालकानाम् उपालापैः । वनवासी बालकों की बातचीत से। तोषिताः = सन्तुष्ट हो गए। वञ्चिताः इव = मानो ठगी गई (हूँ)। अन्यतः भूत्वा = दूसरी ओर होकर (जाकर)। प्रेक्षामहे = देखते हैं, देखें। प्र + √ईक्ष् + लक्ष् + उत्तम पुरुष, बहुवचन । पलायमानम् = दौड़ते (भागते)
हुए को, परा + √अय् + लट् + शानच्। दीर्घायुषम् = दीर्घम् आयुः यस्य सः-दीर्घजीवी को। अतिजवेन = अत्यन्त वेग से। अवगतम् = समझ लिया। काण्डम् = अध्याय को। कवचिनः = कवच वाले। दण्डिनः = दण्ड (डंडे, लाठी) लिए हुए। निषङ्गिणः = तरकस लिए हुए. निषड्गाः सन्ति येषां ते। प्रथमा बहुवचन। विप्रत्ययः = अविश्वास, संदेह । वि + प्रति + √इण् + अच्।

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6. बटवः : भो भोः! किंप्रयोजनोऽयमश्वः परिवृतः पर्यटति ?
लवः : (सस्पृहमात्मगतम्) ‘अश्वमेध’ इति नाम विश्व-विजयिनां क्षत्रियाणामूर्जस्वल: सर्वक्षत्रपरिभावी महान् उत्कर्षनिकषः। (नेपथ्ये) योऽयमश्वः पताकेयमथवा वीरघोषणा। सप्तलोकैकवीरस्य दशकण्ठकुलद्विषः॥5॥
अन्वयः- यः अयं अश्वः, इयं पताका अथवा वीरघोषणा (अस्ति) (सः) सप्तलोक एकवीरस्य दशकण्ठकुलद्विषः (रामस्य) अस्ति।
लवः : (सगर्वम्) अहो ! सन्दीपनान्यक्षराणि।
बटवः : किमुच्यते ? प्राज्ञः खलु कुमारः।
लवः : भो भोः! तत्किमक्षत्रिया पृथिवी ? यदेवमुद्घोष्यते ?
(नेपथ्ये) रे, रे, महाराज प्रति कः क्षत्रियः ?

हिन्दी-अनुवादः
बटु-गण : अरे ! रक्षकों (सैनिकों) से घिरा हुआ यह घोडा, क्यों घूम रहा है ?
लवः : (अभिलाषापूर्वक, मन में) ‘अश्वमेध यज्ञ’ यह विश्व को जीतने वाले क्षत्रियों की शक्तिशाली तथा समस्त (शत्रु) राजाओं को पराजित करने वाली श्रेष्ठता की कसौटी है।
(नेपथ्य में) यह जो घोड़ा (दिखाई दे रहा है) वह सातों लोकों में, एकमात्र वीर रावण के कुल के शत्रु, (भगवान् राम) की विश्व विजय-पताका है अथवा वीर घोषणा है ।। 5 ।
लवः : (गर्व के साथ) ओह, ये शब्द तो बहुत क्रोध पैदा करने वाले हैं।
बटुगण : क्या कह रहे हो (कि यह अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा है) तब तो कुमार बहुत जानकार हैं।
(क्योंकि बिना पूछे ही समझ लिया था कि यह अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा है।)
लव : अरे, अरे, सैनिको ! तो क्या पृथ्वी क्षत्रिय-शून्य है ? जो इस प्रकार घोषणा कर रहे हो ? (नेपथ्य में) अरे, रे, महाराज के सामने कौन क्षत्रिय है ? अर्थात् ऐसा कौन-सा क्षत्रिय है, जो कि भगवान् राम की तुलना में आ सकता है ?

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
परिवृतः = (रक्षकों से) घिरा हुआ। पर्यटति = घूम रहा है। उर्जस्वलः = शक्तिशाली, बलवान् । सर्वक्षत्रपरिभावी = सारे (शत्रु) राजाओं को पराजित करने वाली। उत्कर्ष-निकषः = श्रेष्ठता की कसौटी। सप्त-लोक-एकवीरस्य = सातों लोकों में एकमात्र वीर। दशकण्ठ-कुलद्विषः = रावण के कुल के शत्रु-दशकण्ठस्य कुलं द्वेष्टि इति तस्य। सन्दीपनानि = भड़काने वाले, क्रोध पैदा करने वाले। प्राज्ञः = बुद्धिमान, विज्ञ।

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7. लवः : धिग् जाल्मान्।
यदि नो सन्ति सन्त्येव केयमद्य विभीषिका।
किमुक्तैरेभिरधुना, तां पताकां हरामि वः॥6॥
अन्वयः – यदि (क्षत्रियाः) नो सन्ति, सन्ति एव, अद्य इयं विभीषिका का ? अधुना एभिः उक्तैः किम् ? (अहम्) वः तां पताकां हरामि॥ हे बटवः ! परिवृत्य लोष्ठैरभिजन्त उपनयतैनमश्वम्। एष रोहितानां मध्येचरो भवतु। (प्रविश्य सक्रोधः)
पुरुष: : धिक् चपल ! किमुक्तवानसि ? तीक्ष्णतरा ह्यायुधश्रेणयः शिशोरपि दृप्तां वाचं न सहन्ते। राजपुत्रश्चन्द्रकेतुर्दुर्दान्तः, सोऽप्यपूर्वारण्यदर्श-नाक्षिप्तहृदयो न यावदायाति, तावत् त्वरितमनेन तरुगहनेनापसर्पत।
बटव: : कुमार ! कृतं कृतमश्वेन। तर्जयन्ति विस्फारित-शरासनाः कुमारमायुधश्रेण्यः। दूरे चाश्रमपदम्। इतस्तदेहि। हरिणप्लुतैः पलायामहे।
लवः : किं नाम विस्फुरन्ति शस्त्राणि ? (इति धनुरारोपयति)

हिन्दी-अनुवादः
लवः : तुम, नीचों को धिक्कार है। यदि क्षत्रिय नहीं हैं, (ऐसा कहते हो तो) मैं कहता हूँ कि वे क्षत्रिय हैं ही। फिर यह व्यर्थ का भय क्यों दिखा रहे हो ? अब इन बातों को कहने से क्या लाभ ? मैं तुम्हारी उस पताका का हरण कर रहा हूँ (यदि तुममें शक्ति हो तो मुझे रोको) ॥6॥ अरे बटुको ! इस घोड़े को घेरकर ढेलों से मारते हुए (आश्रम में) ले आओ। यह घोड़ा भी मृगों के बीच विचरण करे। (मृगों के साथ ही यह भी घास खाया करे)।

पुरुष : चुप, चपल बालक ! क्या कह रहे हो ? “तीखे शस्त्र बच्चे की भी गर्वीली वाणी नहीं सहते। (अर्थात् हमारे शस्त्रधारी तुम्हारी कटु गर्वभरी वाणी नहीं सहन करते)। राजकुमार चन्द्रकेतु बड़े दुःसाहसी (दुर्दमनीय) हैं। वह परम रमणीय वन की शोभा देखने में उत्सुक (आकर्षित हुए), जब तक नहीं आते हैं, तब तक तुम इन सघन (घने) वृक्षों में छिपकर भाग जाओ।” बटुगण कुमार ! घोड़े को रहने दो। धनुष ताने हुए शस्त्रधारियों के समूह तुम्हें धमका रहे हैं और आश्रम यहाँ से दूर है। अतः आओ, हरिणों की भाँति कूद-कूद कर भाग चलें। लव

बटुगण : क्या (अश्व रक्षकों के) शस्त्र चमक रहे हैं ? (अपना धनुष चढ़ाता है)

शब्दार्थाः टिप्पण्यश्च
जाल्मान् = नीचों को। विभीषिका = भय। वः = तुम्हारी। युष्माकम्-षष्ठी बहुवचनस्य विकल्पे शब्दः। परिवृत्य = . घेरकर। लोष्ठैः = ढेलों से। अभिनन्तः = मारते हुए। उपनयत= ले आओ। रोहितानाम् = हरिणों के। चपल = चंचल ! आयुध-श्रेण्यः = शस्त्र समूह। शस्त्रधारी लोग। दृप्ताम् = गर्वीली को, कटु। दुर्दान्तः = दुर्दमनीय। अपूर्व-अरण्यदर्शनआक्षिप्त-हृदयः = अपूर्वम् अरण्यस्य दर्शनेन आक्षिप्तं हृदयं यस्य सः। बहुब्रीहि समास। अपूर्व वन की शोभा देखने में संलग्न मन वाला। त्वरितम् = शीघ्र।अपसर्पत = भाग जाओ। अप + √सृप् + लोट् + मध्यम पुरुष, बहुवचन । कृतं कृतम् = रहने दो, बस करो। तर्जयन्ति = धमका रहे हैं, डाँट रहे हैं। विस्फारित शरासनाः = धनुषों को ताने हुए। विस्फारितानि शर-आसनानि यैः ते। बहुव्रीहि समास। इतः = यहाँ से। एहि = आओ। हरिणप्लुतैः = हरिणों सी छलांगों से। हरिणानां प्लुतैः इव। पलायामहे = (हम) भाग जाएँ। भाग चलें । परा (पला) + √अय् + लट् + उत्तम पुरुष, बहुवचन । विस्फुरन्ति = चमक रहे हैं। वि + √स्फुर् + लट् + प्रथम पुरुष, बहुवचन। आरोपयति = (धनुष) चढ़ाता है।

HBSE 12th Class Sanskrit Solutions Shashwati Chapter 3 बालकौतुकम्

बालकौतुकम् (बालकों की उत्सुकता) Summary in Hindi

बालकौतुकम् पाठ परिचय

प्रस्तुत नाट्यांश ‘बालकौतुकम्’ संस्कृत के महान् नाटककार भवभूति के प्रसिद्ध नाटक ‘उत्तररामचरितम्’ के चतुर्थ अंक से सम्पादित किया गया है।

संस्कृत के नाटककारों में भवभूति को कालिदास जैसा गौरव प्राप्त है। भवभूति पद्मपुर के निवासी थे तथा उदुम्बरकुल के ब्राह्मण थे। इनके पितामह का नाम भट्ट गोपाल था, जो स्वयं एक महाकवि थे। इनके पिता का नाम नीलकण्ठ तथा माता का नाम जतुकर्णी था। भवभूति का दूसरा नाम ‘श्रीकण्ठ’ था। भवभूति शिव के उपासक थे, इनके गुरु का नाम ज्ञाननिधि था। भवभूति का स्थितकाल कतिपय पुष्ट प्रमाणों के आधार पर 700 ई० के आस-पास माना जाता है।

रचनाएँ-भवभूति की तीन रचनाएँ (नाटक) उपलब्ध होती हैं
1. मालतीमाधवम्
2. महावीरचरितम् तथा
3. उत्तररामचरितम् ।

मालतीमाधवम्-यह 10 अंकों का नाटक है। इसमें नाटक की नायिका मालती तथा नायक माधव के प्रेम और विवाह की कल्पित कथा चित्रित है। यह एक शृंगार प्रधान रचना है। मालतीमाधव में पाठकों की उत्सुकता जगाए रखने के पूरी चेष्टा की गई है, जिसमें भवभूति सफल हुए हैं। रोचक कथानक यथार्थ चित्रण तथा प्रभावपूर्ण भाषा के कारण यह नाटक प्रसिद्धि को प्राप्त हुआ है। पाँचवें अंक में शमशान का वर्णन तथा नौवें अंक में वन का वर्णन दर्शनीय है। पत्नी के आदर्श सम्बन्ध का वर्णन भी अद्वितीय है। काव्य की दृष्टि से मालतीमाधव एक उत्कृष्ट कृति कही जा सकती

महावीरचरितम्-यह सात अंकों का नाटक है। इसमें राम के विवाह से लेकर राम के राज्याभिषेक की कथा को नाटकीय रूप दिया गया है। कवि ने रामायण की कथा को रोचक रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है और उसे अधिकाधिक नाटकीय बनाने के लिए कथा में स्वेच्छा से परिवर्तन भी किया गया है। नाटकीय तत्त्वों के अभाव तथा लम्बे संवादों के कारण यह नाटक सामाजिकों की ओर आकृष्ट नहीं कर सका। महावीरचरितम् में मुख्य रूप से वीररस का परिपाक हुआ है।

उत्तररामचरितम्-उत्तररामचरित भवभूति का अन्तिम और सवश्रेष्ठ नाटक है। यह कृति भवभूति के जीवन के प्रौढ़ अनुभवों की देन है। कवि के अन्य दोनों नाटकों की अपेक्षा उत्तररामचरित की कथावस्तु तथा नाटकीय कौशल अधिक प्रौढ़ हैं। भवभूति की अत्यधिक भावुकता ने इस ‘उत्तररामचरितम्’ को नाटक के स्थान पर गीति नाट्य बना दिया है। इसमें कुल सात अंक हैं। राम के उत्तरकालीन जीवन की कथा पर जितने भी ग्रन्थ लिखे गए हैं, उनमें उत्तररामचरित जैसी प्रसिद्धि किसी भी ग्रन्थ को नहीं मिल पाई।

यद्यपि उत्तररामचरित का मूल आधार वाल्मीकि रामायण है परन्तु भवभूति ने इसमें अनेक मौलिक परिवर्तन किए हैं। उत्तररामचरित का प्रमुख रस करुण है। करुण रस की अभिव्यंजना में भवभूति इतने सिद्धहस्त हैं कि मनुष्य तो क्या निर्जीव पत्थर भी रो पड़ते हैं। भवभूति की स्थापना है कि एक करुण रस ही है, अन्य शृंगार आदि तो उसी के निमित्त रूप है-‘एको रसः करुण एवं निमित्तभेदात्’। ‘उत्तररामचरितम्’ के तीसरे अंक में करुण रस की जो अजस्र धारा बही है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। करुण रस की इस अद्भुत अभिव्यजंना के कारण ही ये उक्तियाँ प्रसिद्ध हो गई है

‘कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते’
उत्तरे रामचरिते भवभूतिः विशिष्यते।

बालकौतुकम् पाठस्य सारः
‘लवकौतुकम्’ यह पाठ ‘भवभूति’ द्वारा रचित ‘उत्तररामचरितम्’ नाटक से लिया गया है। उत्तररामचरितम् के चौथे अंक से यह अंश उद्धृत है। भवभूति के तीनों नाटकों-‘मालतीमाधवम्’ ‘महावीरचरितम्’ तथा ‘उत्तररामचरितम्’ में उत्तररामचरित सर्वोत्कृष्ट रचना है। इसमें काव्य और नाट्य दोनों का संगम हुआ है। श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद का (उत्तरकाल का) चरित्र इसमें वर्णित है, अतः इसका नाम ‘उत्तररामचरितम्’ रखा गया है। यह नाटक करुणरस से ओतप्रोत है। इसमें कवि ने करुणरस से पत्थरों को भी रुला दिया है। श्रीराम के त्याग और वियोग से पूर्ण यह नाटक, नाट्यकला की चरमोत्कर्ष रचना है।

राजा बनने पर, श्रीराम ने सीता का वन में निर्वासन कर दिया। निर्वासिता सीता, महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रह रही है। वहीं पर ही उसके दो जुड़वाँ पुत्र लव-कुश उत्पन्न होते हैं। उनका पालन-पोषण भी आश्रम में ही हो रहा है। उन्हें शस्त्रों और शास्त्रों की विधिवत् शिक्षा दी जा रही है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा स्वयं रचित रामायण का सस्वर गान उन्हें सिखाया गया

एक बार वाल्मीकि आश्रम में, अतिथि के रूप में राजर्षि जनक, कौशल्या तथा अरुन्धती पधारते हैं। वहाँ खेलते हुए बालकों में उन्हें, एक बालक में राम और सीता की छाया दिखाई पड़ती है। वे बालक को गोद में बिठाकर अपने स्नेह को प्रकट करते हैं। इसी मध्य राजा राम का अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा आश्रम में प्रवेश कर जाता है, जिसकी रक्षा स्वयं चन्द्रकेतु (लक्ष्मण-पुत्र) कर रहे हैं। उस शहरी घोड़े को देखने की उत्सुकता आश्रम के बालकों में जागती है और वे उसे देखने के लिए अपने साथ लव को भी बुला लेते हैं। लव पहचान जाता है कि यह अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा है। सामान्य अश्व नहीं है। घोड़े के रक्षक सैनिक घोषणा द्वारा सबको भयभीत कर रहे हैं कि यह राम का घोड़ा है, इसे पकड़ने का साहस मत करना। लव कुमार इस घोषणा को सुनकर, उस घोड़े को आश्रम में बाँधने का आदेश देते हैं। इस प्रसंग का अत्यन्त मार्मिक चित्रण पाठ में प्रस्तुत है।

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HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

Haryana State Board HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

पाठयपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. क्रेताओं तथा विक्रेताओं की बहुत बड़ी संख्या पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या बहुत बड़ी होती है। प्रत्येक क्रेता या विक्रेता कुल बिक्री का बहुत ही छोटा भाग खरीदता अथवा बेचता है।

2. समरूप वस्तु पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में सभी फर्मे एक प्रकार की वस्तु का ही उत्पादन करती हैं। सभी विक्रेताओं द्वारा बेची गई वस्तुएँ, गुण, आकार व रंग-रूप से एक-समान होती हैं।

3. पूर्ण स्वतंत्रता पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार के अंतर्गत किसी भी फर्म को उद्योग में प्रवेश करने तथा उसे छोड़कर बाहर जाने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। जब उद्योग में लाभ हो रहे हों, तो नई फर्मे उद्योग में प्रवेश कर सकती हैं और जब हानि की अवस्था हो, तो कुछ फर्मे उद्योग छोड़कर जा सकती हैं।

4. एक-समान कीमत–पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाज़ार में सभी फर्मे मूल्य स्वीकारक होती हैं। अतः समग्र बाज़ार में उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत ही प्रचलित रहती है। एक क्रेता या विक्रेता कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता।

5. पूर्ण ज्ञान-पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाज़ार में क्रेताओं और विक्रेताओं को बाज़ार का पूर्ण ज्ञान होता है।

6. विक्रय लागत का अभाव-पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में वस्तुएँ समरूप होती हैं, इसलिए एक फर्म को वस्तु के प्रचार, विज्ञापन आदि पर व्यय करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। अतः पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में बिक्री और परिवहन लागतें शून्य होती हैं।

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 2.
एक फर्म की संप्राप्ति, बाज़ार कीमत तथा उसके द्वारा बेची गई मात्रा में क्या संबंध है?
उत्तर:
एक फर्म की संप्राप्ति, बाज़ार कीमत तथा उसके द्वारा बेची गई मात्रा का गुणनफल है। अर्थात्
फर्म की कुल संप्राप्ति = बिक्री की मात्रा – बाज़ार कीमत
अथवा
TR = q x p
यहाँ TR = कुल संप्राप्ति, q = बिक्री की मात्रा तथा p = कीमत।

प्रश्न 3.
कीमत रेखा क्या है?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 1
कीमत रेखा से अभिप्राय पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में एक फर्म के माँग वक्र से है जो x-अक्ष के समानांतर एक सीधी रेखा होती है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है। रेखाचित्र में PD रेखा वस्तु की माँग रेखा है। रेखाचित्र से स्पष्ट है कि OP कीमत पर माँग की मात्रा OQ या OQ1 कुछ भी हो सकती है। अन्य शब्दों में, पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में फर्म Q Q1 की औसत व सीमांत संप्राप्ति वक्र OX-अक्ष के समानांतर होती है।

प्रश्न 4.
एक कीमत-स्वीकारक फर्म का कुल संप्राप्ति वक्र, ऊपर की ओर प्रवणता वाली सीधी रेखा क्यों होता है? यह वक्र उद्गम से होकर क्यों गुजरता है?
उत्तर:
एक कीमत-स्वीकारक फर्म का कुल संप्राप्ति वक्र ऊपर की ओर प्रवणता वाली सीधी रेखा इसलिए होता है क्योंकि बाज़ार कीमत स्थिर होती है अर्थात् कुल संप्राप्ति समान दर से बढ़ती है। कुल संप्राप्ति वक्र उद्गम से होकर इसलिए गुजरता है क्योंकि शून्य बिक्री की मात्रा पर कुल संप्राप्ति भी शून्य होती है और बाद में AR = P स्थिर रहने के कारण कुल संप्राप्ति में वृद्धि समान दर पर होती है।
जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है।
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प्रश्न 5.
एक कीमत-स्वीकारक फर्म का बाज़ार कीमत तथा औसत संप्राप्ति में क्या संबंध है?
उत्तर:
एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाज़ार कीमत तथा औसत संप्राप्ति सदैव बराबर होती है क्योंकि बेची गई प्रत्येक इकाई के मूल्य में कोई परिवर्तन नहीं होता। अर्थात्
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प्रश्न 6.
एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाज़ार कीमत तथा सीमांत संप्राप्ति में क्या संबंध है?
उत्तर:
एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाज़ार कीमत तथा सीमांत संप्राप्ति एक-दूसरे के बराबर होते हैं क्योंकि बेची गई हर अतिरिक्त इकाई की कीमत एक-समान होती है।
अर्थात्
सीमांत संप्राप्ति = औसत संप्राप्ति = कीमत

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 7.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म की सकारात्मक उत्पादन करने की क्या शर्ते हैं?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म की सकारात्मक उत्पादन करने की शर्ते निम्नलिखित हैं-

  • बाज़ार कीमत (p) = अल्पकालीन सीमांत लागत।
  • अल्पकालीन दीर्घकालीन सीमांत लागत घट नहीं रही है।
  • बाज़ार कीमत ≥ औसत परिवर्ती लागत अथवा दीर्घकालीन औसत लागत।

प्रश्न 8.
क्या प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाज़ार कीमत सीमांत लागत के बराबर नहीं है, उसका निर्गत का स्तर सकारात्मक हो सकता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाज़ार कीमत सीमांत लागत के बराबर नहीं है, उसके निर्गत का स्तर सकारात्मक नहीं हो सकता है, यदि बाज़ार कीमत सीमांत लागत और औसत परिवर्ती लागत से कम है। यदि बाज़ार कीमत सीमांत लागत से कम है, लेकिन औसत परिवर्ती लागत से अधिक है तो उसके निर्गत का स्तर सकारात्मकं हो सकता है। ऐसा इसलिए होता है कि फर्म का उद्देश्य हानि को न्यूनतम करना भी होता है। यदि बाजार कीमत सीमांत लागत और औसत परिवर्ती लागत से कम है तो उत्पादन व बिक्री से हानि अधिक होगी। इसलिए उत्पादन बंद करना अधिक लाभदायक होगा। यदि बाजार कीमत सीमांत लागत से कम, लेकिन औसत परिवर्ती लागत से अधिक है तो उत्पादन जारी रखने पर फर्म को हानि कम होगी। एक फर्म का अधिकतम लाभ तभी होगा जब बाज़ार कीमत (p) सीमांत लागत (MC) के बराबर होगी।

प्रश्न 9.
क्या एक प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कोई लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक निर्गत स्तर पर उत्पादन कर सकती है, जब सीमांत लागत घट रही हो? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 4
एक प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है यदि सीमांत लागत घट रही हो। अधिकतम लाभ की आवश्यक शर्त यह है कि बाज़ार कीमत (p) सीमांत लागत (MC) से अधिक हो या बराबर हो। इस प्रकार बाज़ार कीमत के MC से कम होने पर लाभ नहीं होगा। यदि एक फर्म बाज़ार कीमत की तुलना में घटती हुई सीमांत लागत पर उत्पादन करती है तो फर्म को लाभ होगा. परंत अधिकतम लाभ नहीं होगा। अधिकतम लाभ के लिए यह आवश्यक है कि बाज़ार कीमत (p) और सीमांत लागत (MC) बराबर हो। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।

संलग्न रेखाचित्र में फर्म की सीमांत लागतं E1 और E के बीच बाज़ार कीमत से कम है जो लाभ की स्थिति दर्शाता है, परंतु फर्म को अधिकतम लाभ E बिंदु पर प्राप्त होगा।

प्रश्न 10.
क्या अल्पकाल में प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है? यदि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है, व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 5
अल्पकाल में प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन नहीं करेगी, क्योंकि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है। यदि फर्म ऐसी स्थिति में उत्पादन बंद कर देती है, तो उसकी हानि स्थिर लागत के बराबर होगी। यदि फर्म उत्पादन जारी रखती है, तो उसकी हानि स्थिर लागत और कीमत पर औसत परिवर्ती लागत के आधिक्य के योग के बराबर होगी। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।

संलग्न रेखाचित्र में औसत परिवर्ती लागत की तुलना में कीमत कम है फिर भी फर्म उत्पादन करेगी क्योंकि B बिंदु पर उसकी हानि स्थिर लागत के बराबर है। अन्य किसी बिंदु पर फर्म की हानि A, B, E, P से अधिक होगी।

प्रश्न 11.
क्या दीर्घकाल में स्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है? यदि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत लागत से कम है, व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यदि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत लागत से कम है तो दीर्घकाल में प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन नहीं करेगी। यदि एक फर्म इस स्तर पर उत्पादन करती है तो उसकी कुल लागत कुल संप्राप्ति से अधिक होगी, जिसके फलस्वरूप फर्म को हानि उठानी पड़ेगी। इसलिए दीर्घकाल में फर्म की कीमत औसत लागत के बराबर या अधिक होनी चाहिए। दीर्घकाल में एक फर्म बाज़ार छोड़कर जा सकती है। अतः वह हानि उठाना पसंद नहीं करेगी।

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प्रश्न 12.
अल्पकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होती है?
उत्तर:
अल्पकाल में, एक फर्म का पूर्ति वक्र उसके अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र का न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत (AVC) से ऊपर को उठता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम सभी कीमतों पर निर्गत स्तर शून्य होता है।

अल्पकालीन पूर्ति वक्र-हम जानते हैं कि अल्पकाल में AVC की भरपाई होनी अनिवार्य है अन्यथा उत्पादन बंद हो जाएगा। हम यह भी जानते हैं कि अल्पकाल में कीमत, सीमांत लागत के बराबर होती है। इसलिए SMC वक्र ही फर्म का पूर्ति वक्र होता है। तथापि SMC वक्र का केवल उठता हुआ भाग ही पूर्ति वक्र होता है, इसका सारा भाग नहीं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 6
SMC के बढ़ते हुए भाग का केवल वही हिस्सा किसी फर्म का पूर्ति वक्र है जो AVC के ऊपर स्थित है। इसलिए जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में मोटी रेखा द्वारा दिखाया गया है। SMC, E बिंदु के पहले से ही बढ़ना शुरू कर देती है, परंतु पूर्ति वक्र केवल बिंदु E, AVC का न्यूनतम बिंदु से आरंभ होता है। यदि यह बिंदु F से आरंभ हो, तो SMC का FE हिस्सा पूर्ति वक्र का हिस्सा नहीं हो सकता, क्योंकि यह AVC से कम है।

प्रश्न 13.
दीर्घकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होता है?
उत्तर:
दीर्घकाल में, एक फर्म का पूर्ति वक्र उसके दीर्घकालीन सीमांत लागत वक्र का न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत से ऊपर को उठता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत से कम सभी कीमतों पर निर्गत का स्तर शून्य होता है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 7
दीर्घकालीन पूर्ति वक्र दीर्घकालीन पूर्ति वक्र, अल्पकालीन पूर्ति वक्र से अलग होता है। दीर्घकाल में कोई स्थिर लागतें नहीं होती। इसलिए सारी लागत परिवर्ती है तथा इसकी भरपाई होनी अनिवार्य है। यदि कीमत LAC की भरपाई नहीं करती, उत्पादन बंद हो जाएगा। इसलिए पूर्ति वक्र LMC का वह हिस्सा है जो LAC के न्यूनतम स्तर से ऊपर है। जैसाकि रेखाचित्र में दिखाया गया है, LMC का मोटा हिस्सा दीर्घकालीन पूर्ति वक्र है।

प्रश्न 14.
प्रौद्योगिकीय प्रगति एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 8
प्रौद्योगिकीय प्रगति एक फर्म के पूर्ति वक्र को प्रभावित करती है। यदि प्रौद्योगिकी में सुधार होता है तो उन्हीं पूर्ववत संसाधनों से अधिक इकाइयों का उत्पादन संभव हो जाता है। फलस्वरूप उत्पादन लागत में कमी आती है और पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है। आरंभ में OP कीमत पर पूर्ति PE है, प्रौद्योगिकी प्रगति के बाद समान कीमत पर पूर्ति बढ़कर PE, हो जाती है। प्रौद्योगिकीय प्रगति से वस्तु की पूर्ति में वृद्धि के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं

  • कंप्यूटरों के प्रयोग से लागत में कमी आना।
  • स्वचालित मशीनों से वस्तु का अधिक उत्पादन।

प्रश्न 15.
इकाई कर लगाने से एक फर्म का पूर्ति वक्र किस प्रकार प्रभावित होता है?
उत्तर:
इकाई कर लगने से वस्तु की प्रति इकाई (औसत) व सीमांत लागत में भी वृद्धि होती है। फलस्वरूप वस्तु की पूर्ति कम हो जाती है और पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र द्वारा दर्शाया गया है। आरंभ में OP कीमत पर उत्पादक PE मात्रा की पूर्ति करने को तैयार था। इकाई कर के लगने के पश्चात् वह प्रचलित कीमत पर केवल PE1 मात्रा की पूर्ति ही करता है। पूर्ति वक्र अब S1S1 से पीछे को खिसककर SMS बन जाता है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 9

प्रश्न 16.
किसी आगत की कीमत में वृद्धि एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
सामान्यतया वस्तु की पूर्ति और लागत में ऋणात्मक संबंध होता है। आगतों (Inputs) की कीमत में वृद्धि (जैसे कच्चे माल की कीमत में वृद्धि, श्रमिकों। की मजदूरी में वृद्धि) से वस्तु की लागत में वृद्धि होने के फलस्वरूप वस्तु की पूर्ति। कम हो जाएगी और पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है। रेखाचित्र में SS प्रारंभिक पूर्ति वक्र है। आगत में वृद्धि होने पर यह बाईं ओर खिसककर S1S1 हो जाता है।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 10

प्रश्न 17.
बाज़ार में फर्मों की संख्या में वृद्धि, बाज़ार पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
बाज़ार में फर्मों की संख्या में वृद्धि से बाज़ार पूर्ति में वृद्धि होगी क्योंकि बाज़ार पूर्ति बाज़ार में पाई जाने वाली फर्मों द्वारा की गई पूर्ति का योगफल है। फर्मों की संख्या में वृद्धि से बाज़ार पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है। इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 11
संलग्न रेखाचित्र में प्रारंभिक पूर्ति वक्र SS है, जिस पर OP कीमत पर OQ1 पूर्ति है। फर्मों की संख्या में वृद्धि से पूर्ति वक्र S1S1 हो जाता है जिससे उसी कीमत OP पर पूर्ति बढ़कर OQ1 हो जाती है।

प्रश्न 18.
पूर्ति की कीमत लोच का क्या अर्थ है? हम इसे कैसे मापते हैं?
उत्तर:
पूर्ति की कीमत लोच का अर्थ-अन्य बातें समान रहते हुए, वस्तु की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप वस्तु की पूर्ति की मात्रा में जिस दर से परिवर्तन होता है, उसे पूर्ति की कीमत लोच कहते हैं।
पूर्ति की कीमत लोच को मापने की निम्नलिखित विधियाँ हैं-
1.प्रतिशत विधि-प्रतिशत विधि के अंतर्गत पूर्ति की कीमत लोच को मापने के लिए पूर्ति की गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन को कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से भाग दिया जाता है। सूत्र के रूप में,
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 12
इस विधि को हम एक उदाहरण द्वारा समझ सकते हैं। माना कि आम की कीमत 10 रु० प्रति किलोग्राम है और इस कीमत पर आम की 600 किलोग्राम है। यदि आम की कीमत बढ़कर 12 रु० प्रति किलोग्राम हो जाती है तो आम की पूर्ति बढ़कर 800 किलोग्राम हो जाती है। इस उदाहरण में आम की पूर्ति की कीमत लोच होगी।
आम की पूर्ति की कीमत लोच = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
इस उदाहरण में, P0 = 10, Ap = 2, q0 = 600, ∆q = 200
= \(\frac{200}{2} \times \frac{10}{600}\)
= 1.67
अर्थात् es >1 है। अतः पूर्ति अधिक लोचदार है।

2. ज्यामितीय विधि-ज्यामितीय विधि के अंतर्गत पूर्ति की कीमत लोच की गणना पूर्ति वक्र को उद्गम बिंदु (Point of origin) अर्थात् अक्ष केंद्र की ओर विस्तार करके किया जाता है। पूर्ति वक्र को अक्ष केंद्र.से विस्तार करने पर निम्नलिखित स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं

  • यदि पूर्ति वक्र y-अक्ष को पार कर x-अक्ष के ऋणात्मक पक्ष पर पहुँचता है तो पूर्ति की कीमत लोच का मान एक से अधिक होगा।
  • यदि पूर्ति वक्र x-अक्ष के धनात्मक अंश पर पहुँचता है तो पूर्ति की कीमत लोच का मान एक से कम होगा।
  • यदि पूर्ति वक्र अक्ष केंद्र को स्पर्श करता है तो पूर्ति की कीमत लोच का मान एक के बराबर होगा।

ज्यामितीय विधि को हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शित कर सकते हैं।
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 13

  • वस्तु-A की पूर्ति वक्र इकाई से कम लोचदार है अर्थात् e < 1
  • वस्तु-B की पूर्ति वक्र इकाई के बराबर है अर्थात् e = 1
  • वस्तु-C की पूर्ति वक्र इकाई से अधिक लोचदार है अर्थात् es > 1

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 19.
निम्न तालिका में कुल संप्राप्ति, सीमांत संप्राप्ति तथा औसत संप्राप्ति का परिकलन कीजिए। वस्तु की प्रति इकाई बाज़ार कीमत 10 रु० है।

बेची गई मात्राकुल संप्राप्तिसीमांत संप्राप्तिऔसत संप्राप्ति
0
1
2
3
5
6

हल:
(i) कुल संप्राप्ति = बेची गई मात्रा x प्रति इकाई कीमत
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 14
प्रयोग किए गए सूत्र-
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 15

प्रश्न 20.
निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल संप्राप्ति तथा कुल लागत सारणियों को दर्शाया गया है। प्रत्येक उत्पादन स्तर के लाभ की गणना कीजिए। वस्तु की बाज़ार कीमत भी निर्धारित कीजिए।

बेची गई मात्राकुल संप्राप्ति (र०)कुल लागत (रु०)लाभ (रु०)
005
157
21010
31512
52015
62523
73033

हल:
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 16
प्रयोग किए गए सूत्र-
(i) लाभ = कुल संप्राप्ति – कुल लागत
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 17

प्रश्न 21.
निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल लागत सारणी को दर्शाया गया है। वस्तु की कीमत 10 रु० दी हुई है। प्रत्येक उत्पादन स्तर पर लाभ की गणना कीजिए। लाभ-अधिकतमीकरण निर्गत स्तर ज्ञात कीजिए।

उत्पादनकुल लागत (इकाई) रु०
0 5
115
222
327
431
538
649
763
881
9101
10123

हल:

उत्पादनकीमत (रु०)कुल संप्राप्ति (रु०)कुल लागत (रु०)लाभ (रु०)
01005-5
1101015-5
2102022-2
3103027+3
4104031+9
5105038+12
6106049+11
7107063+7
8108081-1
91090101-11
1010100123-23

प्रयोग किए गए सूत्र

  • कुल संप्राप्ति = उत्पादन x कीमत
  • लाभ = कुल संप्राप्ति – कुल लागत।

प्रश्न 22.
दो फर्मों वाले एक बाज़ार को लीजिए। निम्न तालिका दोनों फर्मों के पूर्ति सारणियों को दर्शाती है। SS1, कालम में फर्म-1 की पूर्ति सारणी, कालम SS2 में फर्म-2 की पूर्ति सारणी है। बाज़ार पूर्ति अनुसूची सारणी का परिकलन कीजिए।

कीमतSS1 इकाइयाँSS2 इकाइयाँ
000
100
210
3– 11
422
533
644

हल:

कीमतSS1
इकाइयाँ
SS2
इकाइयाँ
MSS
(इकाइयाँ)
0000
1000
2100
3– 112
4224
5336
6448

नोट-बाज़ार पूर्ति (MSS) (इकाइयाँ) = SS1 (इकाइयाँ) + SS2 (इकाइयाँ)

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 23.
दो फर्मों वाले एक बाज़ार को लीजिए। निम्न तालिका में कालम SS1 तथा कालम SS2 क्रमशः फर्म-1 तथा फर्म-2 के पूर्ति सारणियों को दर्शाते हैं। बाज़ार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।

कीमतSS1 इकाइयाँSS2 इकाइयाँ
000
100
200
310
420.5
531
641.5
752
862.5

हल:

कीमतSS1 इकाइयाँSS2 इकाइयाँMSS(इकाइयाँ)
0000
1000
2000
3101
420.52.5
5314
641.55.5
7527
862.58.5

नोट-बाज़ार पूर्ति (MSS) = SS1 (किलो) + SS2 (किलो)

प्रश्न 24.
एक बाज़ार में 3 समरूपी फर्मे हैं। निम्नलिखित तालिका फर्म-1 की पूर्ति सारणी दर्शाती है। बाज़ार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।

कीमत (रु०)SS1 (इकाई)
00
10
22
34
46
58
610
712
814

हल:
चूँकि तीनों फ समरूप हैं, हम बाज़ार पूर्ति अनुसूची को फर्म-1 की अनुसूची को 3 से गुणा करके प्राप्त कर सकते हैं।

कीमत (रु०)SS1 (इकाई)MSS(इकाई)
000
100
226
3412
4618
5824
61030
71236
81442

वैकल्पिक विधि-
HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 18
नोट-बाज़ार पूर्ति (MSS) = SS1 + SS2 + SS3

प्रश्न 25.
10 रु० प्रति इकाई बाज़ार कीमत पर एक फर्म की संप्राप्ति 50 रु० है। बाज़ार कीमत बढ़कर 15 रु० हो जाती है और अब फर्म को 150 रु० की संप्राप्ति होती है। पूर्ति वक्र की कीमत लोच क्या है?
हल:
कुल संप्राप्ति = 50 रु०
वस्तु की पुरानी कीमत = 10 रु०
वस्तु की बेची गई पुरानी इकाइयाँ = \(\frac{50}{10}\) = 5 इकाइयाँ
वस्तु की नई कीमत = 15 रु०
वस्तु की कुल संप्राप्ति = 150 रु०
वस्तु की बेची गई नई इकाइयाँ = \(\frac{150}{15}\) = 10 इकाइयाँ
पूर्ति की कीमत लोच (es) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
= p0 = 10, ∆p = 15 – 10 = 5, q0 = 5, ∆q = 10 – 5 = 5
= \(\frac{5}{5} \times \frac{10}{5}\)
= \(\frac{50}{25}\)
= 2 उत्तर

प्रश्न 26.
एक वस्तु की बाज़ार कीमत 5 रु० से बदलकर 20 रु० हो जाती है। फलस्वरूप फर्म पूर्ति की मात्रा 15 इकाई बढ़ जाती है। फर्म के पूर्ति वक्र की कीमत लोच 0.5 है। फर्म का आरंभिक तथा अंतिम निर्गत स्तर ज्ञात करें।
हल:
पूर्व कीमत (p0) = 5 रु०
वर्तमान कीमत (p1) = 20 रु०
कीमत में परिवर्तन (Ap) = 20 – 5 = 15 रु०
पूर्ति में परिवर्तन (Aq) = 15 इकाइयाँ
पूर्ति की कीमत लोच (e) = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
0.5 = \(\frac{15}{q^{0}} \times \frac{5}{15}\)
0.5 = \(\frac{75}{15 q^{0}}\)
0.5 = \(\frac{5}{q^{0}}\)
q0 = 10
इस प्रकार, पुरानी पूर्ति (q0) = 10
नई पूर्ति (q1) = 10 + 15 = 25
फर्म का आरंभिक निर्गत स्तर = 10
फर्म का अंतिम निर्गत स्तर = 25 उत्तर

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 27.
10 रु० बाज़ार कीमत पर एक फर्म निर्गत की 4 इकाइयों की पूर्ति करती है। बाज़ार कीमत बढ़कर 30 रु० हो जाती है। फर्म की पूर्ति की कीमत लोच 1.25 है। नई कीमत पर फर्म कितनी मात्रा की पूर्ति करेगी?
हल:
p0 = 10 रु०
q0 = 4 इकाइयाँ
p1 = 30 रु०
पूर्ति की कीमत लोच (es) = 1.25
125 = \(\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{p^{0}}{q^{0}}\)
125 = \(\frac{\Delta q}{30-10} \times \frac{10}{4}\)
125 = \(\frac{\Delta q}{20} \times \frac{10}{4}\)
125 = \(\frac{\Delta q}{8}\)
∆q = 10
पूर्ति की नई मात्रा = पूर्ति की पुरानी मात्रा + पूर्ति में परिवर्तन
= 4+ 10 = 14 इकाइयाँ उत्तर

पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत HBSE 12th Class Economics Notes

→ पूर्ण प्रतिस्पर्धा-पूर्ण प्रतिस्पर्धा (प्रतियोगिता) उस बाज़ार को कहते हैं जिसमें असंख्य क्रेता तथा समरूप वस्तु के असंख्य विक्रेता होते हैं और वस्तु की कीमत का निर्धारण उद्योग द्वारा किया जाता है। बाज़ार में केवल एक ही कीमत प्रचलित होती है और सभी फर्मों को अपनी वस्तु इसी प्रचलित कीमत पर बेचनी होती है।

→ एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में फर्म कीमत-स्वीकारक होती है। * फर्म की कुल संप्राप्ति (आगम), फर्म की कुल निर्गत बाज़ार कीमत का गुणनफल होती है।
TR = P.Q.
अथवा
उत्पादन की सभी इकाइयों के MR को जोड़कर भी TR प्राप्त हो जाता है। अतः
TR = ∑MR

→ औसत संप्राप्ति (आगम) औसत संप्राप्ति से अभिप्राय है उत्पादक को प्रति इकाई उत्पादन बेच कर प्राप्त होने वाली मौद्रिक राशि।
AR = \(\frac { TR }{ Q }\)

→ कीमत-स्वीकारक फर्म की औसत संप्राप्ति (AR) बाज़ार कीमत के बराबर होती है।

→ सीमांत संप्राप्ति-सीमांत संप्राप्ति (MR) से अभिप्राय है किसी वस्तु की एक इकाई अधिक बेचने से कुल संप्राप्ति (आगम) में होने वाला परिवर्तन।
MR = \(\frac { ∆TR }{ ∆Q }\); TRn – TR-1

→ कीमत स्वीकारक फर्म के लिए सीमांत संप्राप्ति बाज़ार कीमत के बराबर होती है।

→ पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में फर्म की माँग वक्र पूर्णतया लोचदार होती है। यह बाज़ार कीमत पर एक सीधी समस्तरीय रेखा होती है।

→ औसत संप्राप्ति वक्र फर्म की माँग वक्र है-AR वक्र फर्म के माँग वक्र को प्रदर्शित करता है, क्योंकि AR को Y-अक्ष पर और उत्पादन/बिक्री को X-अक्ष पर दिखाया जाता है। हम जानते हैं कि AR = कीमत, अतएव AR वक्र वस्तु की कीमत (Y-अक्ष पर) और वस्तु की बिक्री या माँग (X-अक्ष पर) के बीच संबंध को प्रकट करता है।

→ पूर्ण प्रतिस्पर्धा में AR वक्र पड़ी सीधी रेखा और AR तथा MR बराबर होती है-यह इसलिए क्योंकि पूर्ण प्रतिस्पर्धा में एक फर्म कीमत स्वीकारक (Price-Taker) होती है, जिसका अर्थ है कि फर्म के उत्पादन के समस्त स्तरों के लिए AR समान होती है। पूर्ण प्रतिस्पर्धा की अवस्था में दी हुई कीमत पर फर्म वस्तु की जितनी भी मात्रा चाहे बेच सकती है।

→ फर्म का लाभ, कुल आगम जो वह अर्जित करती है तथा कुल लागत जो वह उठाती है, इनके बीच का अंतर होता है।
π (लाभ) = कुल आगम – कुल लागत

HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

→ यदि अल्पकाल में किसी फर्म के लाभ का अधिकतमीकरण निर्गत के किसी धनात्मक स्तर पर होता है, तो उस निर्गत स्तर पर तीन शर्ते पूरी होनी चाहिए
(i) p = अल्पकालीन सीमांत लागत
(ii) अल्पकालीन सीमांत लागत घट नहीं रही है
(iii) p > औसत परिवर्ती लागत

→ किसी फर्म अल्पकालीन पूर्ति वक्र, अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र का न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत तथा उससे ऊपर उठता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम सभी कीमतों पर निर्गत स्तर शून्य होता है।

→ किसी फर्म का दीर्घकालीन पूर्ति वक्र, दीर्घकालीन सीमांत लागत वक्र का न्यूनतम दीर्घकालीन सीमांत लागत तथा – उससे ऊपर, उठता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम दीर्घकालीन सीमांत लागत से कम, सभी कीमतों पर निर्गत स्तर शून्य होता है।

→ प्रौद्योगिकीय प्रगति से फर्म का पूर्ति वक्र दाहिनी ओर शिफ्ट हो जाती है।

→ आगतों की कीमतों में वृद्धि (कमी) से फर्म का पूर्ति वक्र बायीं (दाहिनी) ओर शिफ्ट हो जाती है।

→ प्रति इकाई कर लगाने से फर्म का पूर्ति वक्र बायीं ओर शिफ्ट हो जाती है।

→ बाज़ार में फर्मों की संख्या में वृद्धि से बाज़ार पूर्ति वक्र दाहिनी ओर शिफ्ट हो जाती है।

→ बाज़ार पूर्ति वक्र सभी व्यक्तिगत फर्मों के पूर्ति वक्रों के समस्तरीय योग द्वारा प्राप्त होता है।

→ वस्तु की पूर्ति की कीमत लोच वस्तु की बाज़ार कीमत में एक प्रतिशत परिवर्तन के फलस्वरूप पूर्ति की गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन है।

→ पर्ति की कीमत लोच (es) = HBSE 12th Class Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत 19

→ लाभ-अलाभ-किसी फर्म का समविच्छेद बिंदु (Break Even Point) तब होता है जब TR = TC (कुल संप्राप्ति (आगम) = कुल लागत)। इस स्थिति में उत्पादक के लाभ तथा हानि दोनों शून्य होते हैं। पूर्ति वक्र के जिस बिंदु पर एक फर्म साधारण लाभ अर्जित करती है, वह फर्म का लाभ-अलाभ बिंदु कहलाता है। अतः न्यूनतम औसत लागत का वह बिंदु जिस पर पूर्ति वक्र LRAC (अल्पकाल में SRAC) को काटता है फर्म का लाभ-अलाभ बिंदु कहलाता है। दीर्घकाल में एक फर्म को इस बिंदु को अवश्य प्राप्त करना चाहिए।

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