HBSE 12th Class History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर

Haryana State Board HBSE 12th Class History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर

HBSE 12th Class History एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
पिछली दो शताब्दियों में हम्पी के भवनावशेषों के अध्ययन में कौन-सी पद्धतियों का प्रयोग किया गया है? आपके अनुसार यह पद्धतियाँ विरुपाक्ष मन्दिर के पुरोहितों द्वारा प्रदान की गई जानकारी का किस प्रकार पूरक रहीं?
उत्तर:
विजयनगर की जानकारी का मुख्य स्रोत हम्पी से प्राप्त पुरातात्विक सामग्री है। यह पुरातात्विक सामग्री एक खुदाई या खनन प्रक्रिया के बाद ही प्रयोग हो सकी है। संक्षेप में हम इस प्रक्रिया को इस तरह समझ सकते हैं।

1. खनन मानचित्र-सर्वप्रथम पूरे क्षेत्र के फोटोग्राफ लिए गए तथा मानचित्र का निर्माण किया गया। इसके पहले चरण में संपूर्ण क्षेत्र को 25 वर्गाकार भागों में बांटा गया। फिर उस प्रत्येक भाग को 25 भागों में बांटा गया। उसके बाद फिर इन टुकड़ों को अन्य छोटी इकाइयों में आगे-से-आगे विभाजित किया जाता रहा। जब तक प्रत्येक फुट का क्षेत्र मानचित्र के दायरे में नहीं आ गया।

2. खनन कार्य-पूरे क्षेत्र को इस तरह विभाजित करके खनन कार्य प्रारंभ किया गया। इसके बाद अलग-अलग क्षेत्र को अलग-अलग विशेषज्ञ की देखरेख में बांटा गया तथा फिर गहन खनन का कार्य प्रारंभ हुआ। अलग-अलग क्षेत्रों में संरचनाएँ बाहर आने लगीं, लेकिन इन्होंने आकार तब लिया जब आपस में इन टुकड़ों को जोड़ दिया गया। फिर यहाँ से देवस्थल, मंडप, विशाल गोपुरम्, शाही स्थल, धार्मिक केंद्र, सड़क, बरामदे, बाजार इत्यादि के अवशेष सामने आए।

जॉन एम. फ्रिट्ज (John M. Fritz), जॉर्ज मिशेल (George Michell) तथा एम.एस. नागराज राव (M.S. Nagraja Rao) वे व्यक्ति थे जो प्रारंभ से अंत तक खुदाई के कार्य से जुड़े रहे। पुरातात्विक सामग्री से प्राप्त इस भव्य नगर के बारे में सर्वप्रथम जानकारी कॉलिन मैकेन्जी ने दी। उसे इस बारे में ज्ञान विरुपाक्ष मन्दिर के पुजारियों से हुआ था। वे पुजारी बताते थे कि इस क्षेत्र में कभी भव्य साम्राज्य था इस तरह यह सत्य है कि दो शताब्दियों के खनन ने पुजारियों द्वारा दी गई जानकारी की पुष्टि की है।

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प्रश्न 2.
विजयनगर की जल-आवश्यकताओं को किस प्रकार पूरा किया जाता था?
उत्तर:
विजयनगर की जल-आवश्यकताओं की पूर्ति जल प्रबंधन की एक निश्चित योजना के अनुरूप थी। शासकों ने इस ओर विशेष ध्यान दिया। विजयनगर प्राकृतिक दृष्टि से पहाड़ियों के बीच था। इसके उत्तर:पूर्व में तुंगभद्रा नदी बहती थी। पहाड़ियों की जल धाराओं से यहाँ एक प्राकृतिक कुण्ड बना है। वहीं पर शासकों ने बाँधों का निर्माण किया। इन बाँधों से पानी लेकर बड़े-बड़े कुण्डों में एकत्रित किया जाता था।

इन कुण्डों से कृषि में सिंचाई की जरूरत को पूरा किया जाता था। इसके साथ ही शासकों द्वारा नहर के माध्यम से इस जलाशय का पानी शहर के मुख्य हिस्से ‘राजकीय केंद्र’ तक पहुँचाया जाता था। अवशेषों के आधार पर कहा जा सकता है कि तुंगभद्रा नदी पर बाँध बनाकर कर हिरिया नहर का निर्माण करवाया गया।

प्रश्न 3.
शहर के किलेबंद क्षेत्र में कृषि क्षेत्र को रखने के आपके विचार में क्या फायदे और नुकसान थे?
उत्तर:
खेतों को किलेबंदी क्षेत्र में लाने के फायदे व नुकसान देखने से पहले जरूरी है कि प्रश्न उठाया जाए कि इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी? इसका जवाब ढूँढने के लिए हमें मध्यकालीन युद्ध पद्धति को समझना होगा। इस काल में युद्ध मुख्य रूप से घेरा बंदियों से जीते जाते थे। यह घेराबंदी महीनों तक चलती थी तथा शत्रु खाद्यान्न व जल का संकट पैदा किया करता था जिससे बचने के लिए शासक किलों के अंदर बड़े-बड़े अन्नागारों का निर्माण करवाया करते थे।

विजयनगर व बहमनी में संघर्ष महीनों नहीं वर्षों चला करते थे। इसलिए विजयनगर के शासकों ने न केवल अन्नागारों बल्कि पूरे कृषि क्षेत्र को ही किलेबंद कर दिया। यह व्यवस्था महँगी जरूर थी, लेकिन इसके परिणाम सुखद थे।

प्रश्न 4.
आपके विचार में महानवमी डिब्बा से संबद्ध अनुष्ठानों का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
विजयनगर शहर में सबसे आकर्षक एवं ऊँचा स्थान ‘महानवमी डिब्बा’ था। यह 11000 वर्ग फीट वाले विशाल मंच पर 40 फीट की ऊँचाई वाला मंच था। इस विशाल मंच पर लकड़ी की संरचना बनी होने के प्रमाण मिलते हैं।
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इतिहासकार व पुरातत्वविद ‘महानवमी’ का अर्थ महान ‘नौवें दिवस’ से लेते हैं। यह कब आता था, इस बारे में साक्ष्य कोई जानकारी नहीं देते। इसलिए इसे अनुमानतः दशहरा, दुर्गा पूजा तथा नवरात्रों इत्यादि त्यौहारों से जोड़ा गया है। इनके आयोजन की कोई तिथि निर्धारित नहीं की जा सकती। लेकिन इस बात का अनुमान लगाया जाता है कि शासक इस दिन को अपनी शक्ति प्रदर्शन, पहचान व संपन्नता इत्यादि के रूप में देखते थे।

इस दिन विभिन्न तरह के अनुष्ठान किए जाते थे। अनुष्ठान के अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों के नायक एवं अधीनस्थ राजा विजयनगर के राय व अतिथियों को भेंट देते थे। इस माध्यम से वे अपनी स्वामीभक्ति का प्रदर्शन भी करते थे। शासक इस कार्यक्रम के अंतिम दिन शाही सेना तथा नायकों की सेना का निरीक्षण भी करता था। अतः स्पष्ट है कि महानवमी डिब्बा अनुष्ठानों का केन्द्र बिन्दु था। ये अनुष्ठान शासक की शक्ति प्रदर्शन का प्रतीक होते थे।

प्रश्न 5.
दिया गया चित्र विरुपाक्ष मन्दिर के एक अन्य स्तंभ का रेखाचित्र है। क्या आप कोई पुष्प-विषयक रूपांकन देखते हैं? किन जानवरों को दिखाया गया है? आपके विचार में उन्हें क्यों चित्रित किया गया है? मानव आकृतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दिखाया गया स्तम्भ रेखाचित्र काफी महत्त्वपूर्ण है। इस स्तंभ पर उत्कीर्ण की गई चीजें कई पक्षों को स्पष्ट करती हैं। इस स्तम्भ रेखाचित्र को कलाकारी के अनुरूप 8 भागों में बांटा जा सकता है। इसके प्रत्येक भाग में वनस्पति, मनुष्य या किसी-न-किसी जीव-जन्तु को दिखाया गया है। इसमें विभिन्न चार तरह के फूल दिखाए गए हैं।

जबकि पशुओं व बड़े जंतुओं में हाथी, घोड़ा, शेर व मगरमच्छ अधिक स्पष्ट उभरकर सामने आते हैं। इन पशुओं में शेर राज्य की शक्ति का प्रतीक है जबकि हाथी व घोड़ा थल सेना में इनके महत्त्व को इंगित करता है। मगरमच्छ इनकी समुद्री सीमा के सुदृढ़ पक्ष को बताता है। चित्र में वर्णित नाचता हुआ मोर साम्राज्य की समृद्धि को अभिव्यक्त करता है।
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चित्र में दिखाई गई मानव आकृतियों में तीन किसी-न-किसी देवता को अभिव्यक्त करती हैं जबकि एक में एक व्यक्ति शिवलिंग के सम्मुख विशेष नृत्य करता हुआ दिखाया गया है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह स्तम्भ चित्र विजयनगर साम्राज्य की समृद्धि, सुरक्षा व सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन की सजीव प्रस्तुति है।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में)

प्रश्न 6.
“शाही केंद्र” शब्द शहर के जिस भाग के लिए प्रयोग किए गए हैं, क्या वे उस भाग का सही वर्णन करते हैं।
उत्तर:
पुरातत्वविदों को विजयनगर की खुदाई के दौरान विभिन्न प्रकार के अवशेष मिले। शहर के केन्द्र में कुछ भवन बड़े भव्य तथा अन्य स्थानों की तुलना में अधिक सुरक्षात्मक ढंग से बनाए गए थे। इनकी बनावट को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इसी स्थल से विजयनगर साम्राज्य का प्रशासन चलता था इसलिए पुरातत्वविदों ने इसे शाही या राजकीय केंद्र कहा है। इस क्षेत्र में शासक का आवास, 60 से अधिक मन्दिर तथा बड़े-बड़े सभा स्थल हैं।

शहर के इसी हिस्से में ‘महानवमी डिब्बा’ जैसा भव्य चबूतरा है जहाँ शासक अपनी भव्यता, शक्ति का प्रदर्शन करते थे। हर तरह के शाही उत्सवों का आयोजन स्थल भी यही स्वीकारा जाता है। विभिन्न मंडपों के आंगन भी यहाँ हैं। शासक द्वारा सलाहकारों की सभा का आयोजन जिस कमल महल में होता है वह भी इसी क्षेत्र में है।

शाही केंद्र में हजार राम मंदिर जैसा दर्शनीय भव्य स्थल है जिसके बारे में यह कहा जाता है कि यह मंदिर केवल शाही परिवार के सदस्यों के लिए था। यह क्षेत्र राज्य के बीच में था। विजयनगर शहर सात दुर्गों की दीवारों के अन्दर था तो केवल यही क्षेत्र सातवें दुर्ग में था। इस केंद्र के बाहर राज्य की सबसे अधिक शक्तिशाली मानी जाने वाली सेना (अर्थात् हाथी सेना) का अस्तबल भी यहीं था। इस तरह के विभिन्न पक्षों को देखने के उपरांत तथा भवनों के अवशेषों के मूल्यांकन से स्पष्ट है कि यह शाही केंद्र था। इस बारे में जो वर्णन जिस तरह दिया गया है वह सही अर्थों में इसकी पुष्टि करता है।

प्रश्न 7.
कमल महल और हाथियों के अस्तबल जैसे भवनों का स्थापत्य हमें उनके बनवाने वाले शासकों के विषय में क्या बताता है?
उत्तर:
विजयनगर शहर के अवशेषों का नामकरण पुरातत्वविदों व इतिहासकारों ने उनकी बनावट, स्थिति व प्रयोग के आधार पर दिया है। विजयनगर शहर के शाही केंद्र में स्थित दो भवन अधिक चर्चा का मुद्दा है। जिनमें पहला है कमल महल तथा दूसरा है हाथियों का अस्तबल। इन दोनों भवनों का स्थापत्य अलग-अलग तरह का है। ऐसे में इनके बनाने के बारे में शासकों का दृष्टिकोण भी एक नहीं कहा जा सकता। इन दोनों को अलग-अलग करके ठीक समझा जा सकता है

(क) कमल महल-यह शाही केंद्र की सबसे सुन्दर इमारत है। किसी लिखित साक्ष्य । में इसके प्रयोग की जानकारी नहीं मिलती। यह भवन विभिन्न मंडपों के बीच बना है। इसके स्तम्भों पर चारों ओर नक्काशी की गई है। इसकी मेहराबों को चाहे किसी भी कोने से देखें तो यह कमल जैसी दिखती हैं। इसलिए अंग्रेज यात्रियों, पुरातत्वविदों ने इसे कमल (लोटस) महल का नाम दे दिया।

इसकी स्थिति के विभिन्न पक्षों को देखकर पता चलता है कि शासक इसके माध्यम से अपनी समृद्धि तथा राज्य के वास्तुविदों के कौशल को दुनिया के सामने रखना चाहता थी ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि शासक यहाँ अपने सलाहकारों से भेंट किया करता था। विभिन्न राजदूतों का स्वागतकक्ष भी यही था।
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(ख) हाथियों का अस्तबल हाथियों का अस्तबल भी शाही केंद्र में है तथा कमल महल के पास है। शाही केंद्र क्षेत्र में यह सबसे बड़ी इमारत है। हाथियों के अस्तबल के आकार को देखने से इस बात का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि विजयनगर के शासकों की सेना में हाथी काफी थे एवं उनका महत्त्व भी काफी अधिक था।

इसके निर्माण के पीछे शासकों का उद्देश्य अपनी हाथी सेना को सुरक्षा देना था। इसके साथ इस भवन की निर्माण शैली का अन्य कोई उदाहरण नहीं मिलता। शाही निवास के अति नजदीक होने के कारण यह भी कहा जा सकता है कि शासक हाथियों की सेना से शाही महल की सुरक्षा भी करवाता था।
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सारांश में यह कहा जा सकता है कि शासकों के इसे बनवाने के उद्देश्य को लिखित साक्ष्यों के अभाव में शत-प्रतिशत नहीं बताया जा सकता। लेकिन निर्माण शैली भवनों की स्थिति के आधार पर निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।

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प्रश्न 8.
स्थापत्य की कौन-कौन सी परंपराओं ने विजयनगर के वास्तुविदों को प्रेरित किया? उन्होंने इन परंपराओं में किस प्रकार बदलाव किए?
उत्तर:
विजयनगर साम्राज्य दक्षिण भारत के जिस क्षेत्र में स्थापित हुआ। वह स्थापत्य कला की दृष्टि से काफी समृद्ध था। इस क्षेत्र में पल्लव, चालुक्य, होयसल व चोलों का शासन रहा। इन सभी वंशों के शासकों ने पिछली कई शताब्दियों से विभिन्न तरह के भवनों का निर्माण करवाया। इन भवनों में सबसे अधिक मात्रा में मन्दिर थे। विजयनगर के वास्तुविदों को इन्हीं भवनों विशेषकर मन्दिरों को देखकर भवन बनाने की प्रेरणा मिली।

इसके अतिरिक्त विजयनगर के शासकों के अरब क्षेत्र के साथ लगातार संबंध रहे। वहाँ से वस्तुओं का आदान-प्रदान निरंतर होता रहा। विजयनगर के वास्तुविदों को अरब क्षेत्र विशेषकर ईरान के भवन देखने का मौका मिला। उत्तर भारत के भवनों तथा उड़ीसा के गजपति शासकों के भवनों ने भी उन्हें मार्गदर्शन दिया।

विजयनगर के वास्तुविदों ने अपनी सांस्कृतिक विरासत से सीख लेकर भारत के अन्य स्थानों के भवनों जैसे भवन बनाने प्रारंभ किए। उन्होंने अरब क्षेत्र की भवन निर्माण शैली का भी प्रचूर भाषा में प्रयोग किया। उनका यह प्रयोग शाही भवनों, महलों, शहरी क्षेत्र की इमारतों के साथ-साथ बाजारों इत्यादि में भी दिखाई देता है।

विजयनगर में वास्तुविदों ने इस मिश्रित वास्तुकला का प्रयोग जल प्रबंधन में किया। इसमें मैदानी व पर्वतीय दोनों शैलियाँ प्रयोग की। राज्य को सुरक्षा देने की सोचते हुए इन्होंने दुर्गों की सात पंक्तियाँ बनाईं। दुर्गों की दीवारें, दरवाज़े व गुंबद तुर्की प्रभाव

आनुष्ठानिक दृष्टि से इस काल के दो भवन महत्त्वपूर्ण कहे जा सकते हैं। पहला है निजामुद्दीन औलिया की खानकाह जो बाद में दरगाह बनी और दूसरी है दिल्ली की जामा मस्ज़िद जो मक्का के बाद इस्लाम जगत की सबसे बड़ी मस्ज़िद है। ये सभी भवन सामान्य आवास व्यवस्था से दूर तथा सुरक्षा की दृष्टि से विशेष चारदीवारी से घिरे थे।

संकेत 2-इन भवनों के स्थापत्य के लिए प्राध्यापक के निर्देशन में भ्रमण करें। साथ में ‘इंटरनेट’ पर उपलब्ध जानकारी का लाभ उठाएँ।

प्रश्न 11.
अपने आस-पास के किसी धार्मिक भवन को देखिए। रेखाचित्र के माध्यम से छत, स्तंभों, मेहराबों, यदि हों तो, गलियारों, रास्तों, सभागारों, प्रवेशद्वारों, जलआपूर्ति आदि का वर्णन कीजिए। इन सभी की तुलना विरुपाक्ष मन्दिर के अभिलक्षणों से कीजिए। वर्णन कीजिए कि भवन का हर भाग किस प्रयोग में लाया जाता था। इसके इतिहास के विषय में पता कीजिए।
उत्तर:
संकेत 1-हरियाणा के क्षेत्र में हम कई महत्त्वपूर्ण धार्मिक भवनों को देखते हैं, जिनमें ऐतिहासिक दृष्टि से कुरुक्षेत्र में छटी पातशाही का गुरुद्वारा, पानीपत में बू अली कलंदर की दरगाह, नारनौल में इब्राहिम सूर द्वारा बनाई गई मस्ज़िद तथा हिसार की लाट की मस्ज़िद प्रमुख हैं। कलायत के दो प्राचीन मंदिर भी उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त आधुनिक काल में बनी बहुत-सी इमारतें हर शहर में देखी जा सकती हैं।

यह सभी भवन स्थापत्य की दृष्टि से जहाँ महत्त्वपूर्ण हैं, अपने युग की जीवन-शैली को भी कुछ हद तक स्पष्ट करते हैं। जैसे कि हम विरुपाक्ष के मंदिर में पाते हैं। इसकी मुख्य विशेषताएँ हैं

  • इसमें दो प्रवेश द्वार हैं। पूर्वी द्वार विशाल गोपुरम् है।
  • गोपुरम् से तीन प्रवेश द्वारों से गुजरकर हम बरामदे से होकर देवालय तक पहुँचते हैं जहाँ विरुपाक्ष की मूर्ति स्थापित है।
  • गोपुरम् से देवालय तक चार मंडप बने हैं।
  • मंदिर के उत्तर में कमलपुरम् जलाशय है।

संकेत 2-इस मंदिर की विशेषताओं तथा ऊपर बताई गई हरियाणा की इमारतों की विशेषताओं की तुलना करें। कुछ स्थानों का स्वयं भ्रमण करें। स्थापत्य की विशेषताओं को नोट करें। उसके ऐतिहासिक पक्ष की जानकारी लें।

एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर HBSE 12th Class History Notes

→ शास्त्ररूढ़ शास्त्रों से संबंधित

→ विजयनगर-विजय का शहर

→ राय-विजयनगर के शासकों की उपाधि

→ तेलुगु-आन्ध्र प्रदेश क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा

→ कुदिरई चेट्टी-घोड़ों के व्यापारी

→ संगम वंश-विजयनगर का पहला राजवंश

→ सर्वेयर-सर्वेक्षण करने वाला

→ कन्नड़ कर्नाटक क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा

→ गजपति-उड़ीसा के शासकों की उपाधि

→ रायचूर दोआब-तुंगभद्रा व कृष्णा नदियों के बीच का क्षेत्र

→ गोपुरम्-मन्दिर का प्रवेश द्वार

→ नायक-सैनिक टुकड़ी के प्रमुख (क्षेत्र-विशेष में)

→ अमर-नायक-प्रशासन तथा सैनिक प्रमुख

→ इंडो-इस्लामिक-हिंद-इस्लामी

→ महानवमी-महान् नौवां दिन

→ पम्पादेवी-कर्नाटक क्षेत्र में स्थानीय देवी

→ देवस्थल-मन्दिर में देवता की मूर्ति स्थापित करने वाला स्थान

→ हिन्दू सूरतराणा-हिन्दू सुलतान

→ विरुपाक्ष-विजयनगर क्षेत्र का सबसे प्रमुख देवता

→ बिसनगर-विजयनगर के लिए डोमिंगो पेस द्वारा प्रयुक्त शब्द

→ हम्पी-विजयनगर का वर्तमान नाम

→ महानवमी डिब्बा-विजयनगर शहर में मंच पर बनाया गया एक भवन

→ विट्ठल महाराष्ट्र क्षेत्र में विष्णु के रूप में पूजा जाने वाला देवता

→ दक्षिण क्षेत्र में चोल व चालुक्यों के पतन के बाद देवगिरी, वारंगल द्वारसमुद्र तथा मदुरई जैसे राज्यों का उत्थान हुआ। इन राज्यों पर दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों (विशेषकर अलाऊद्दीन खलजी) द्वारा अधिकार कर लिया गया। दिल्ली से दूर होने के कारण दिल्ली के सुल्तान इस क्षेत्र को सुगमता से नियंत्रित नहीं कर पाए। मुहम्मद तुगलक ने दूरी की बाधा को पार करते हुए वर्तमान महाराष्ट्र के देवगिरी नामक स्थान का नाम दौलताबाद बदलकर इसे अपनी राजधानी बनाया।

→ परन्तु उसे वापिस दिल्ली पर ही केंद्रित करना पड़ा तथा दक्षिण अव्यवस्था के दौर में उलझ गया। यहाँ दो राज्यों का उत्थान हुआ, जिन्हें विजयनगर व बहमनी के नाम से जाना जाता है।

→ 1336 ई० में हरिहर व बुक्का राय दो भाइयों ने विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की। इस साम्राज्य का प्रथम शासक हरिहर (1336-56) बना तथा उसने राज्य के लिए नियम कानून बनाए। उसकी मृत्यु के पश्चात् बुक्का (1356-1377) शासक बना। उसने प्रशासन व राज्य की समृद्धि की ओर ध्यान दिया। उसके समय में ही पड़ोसी राज्य बहमनी के साथ संघर्ष की शुरुआत हुई वह साम्राज्य को सही दिशा दे पाया। उसके पश्चात् हरिहर द्वितीय (1377-1405) तथा देवराय प्रथम (1406-22) शासक बने।

→ इन्होंने बहमनी से संघर्ष जारी रखा। साथ ही आर्थिक विकास, कृषि व व्यापार को भी प्रोत्साहन दिया। उनके बाद देवराय द्वितीय (1422-46) शासक बना। उसने इस साम्राज्य की सीमा का खूब विस्तार किया। फारसी यात्री अब्दुर रज्जाक ने उसकी खुले मन से प्रशंसा की है। इसके बाद इस साम्राज्य में कई कमजोर शासक आए जिनको बहमनी के शासकों ने पराजित कर इनकी सीमा को छोटा कर दिया। विजयनगर अपने चरमोत्कर्ष पर कृष्णदेव राय (1509-29) के शासन काल में पहुँचा।

→ बहमनी साम्राज्य के तीन राज्यों-बीजापुर, अहमदनगर व गोलकुण्डा की संयुक्त सेना ने 1565 ई० में विजयनगर पर आक्रमण किया। विजयनगर का नेतृत्व रामराय ने किया। यह युद्ध तालीकोटा (वास्तव में राक्षसी-तांगड़ी क्षेत्र) में हुआ। इस युद्ध में विजयनगर की हार हुई तथा विजयी सेना ने विजयनगर शहर में भारी लूटमार की।

→ जिससे यह क्षेत्र पूरी तरह उजड़ गया। विजयनगर शहर ही साम्राज्य की राजधानी था। इसकी संरचना व स्थापत्य कला को देखने से यह ज्ञात होता है कि यह महत्त्वपूर्ण शहर था। यह शहर वे सारी विशेषताएँ रखता था जो किसी भी शक्तिशाली राज्य की राजधानी की जरूरत होती थी।

→  इस शहर के मन्दिर, भवन तथा अन्य अवशेष व्यापक रूप में मिलते हैं। नायक व अमर-नायकों के अभिलेख तथा यात्रियों का वृत्तांत शहर के बारे में विस्तृत प्रकाश डालता है। 15वीं शताब्दी के यात्रियों में इटली के निकोलो दे कॉन्ती (Nicolo-De-Konti), फारस के अब्दुर रज्जाक (Abdur Razak) तथा रूस के अफानासी निकितिन (Afanaci Niktian) मुख्य हैं। 16वीं शताब्दी के यात्रियों में दुआर्ते बरबोसा (Duarate Barbosa), डोमिंगो पेस (Domingo Pesh) तथा पुर्तगाल के फर्नावो नूनिज़ (Fernao Nuniz) के नाम आते हैं।

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→ विजयनगर साम्राज्य के रायों ने जहाँ जल प्रबंधन उच्चकोटि का किया, वहीं सुरक्षा व्यवस्था तथा सड़कों के निर्माण की ओर विशेष ध्यान दिया। नगर की किलेबंदी बेजोड़ थी। जिसके बारे में हमें जानकारी फारस के दूत तथा यात्री अब्दुर रज्जाक से मिलती है। वह सुरक्षा व्यवस्था से प्रभावित होकर लिखता है कि यहाँ दुर्गों की सात पंक्तियाँ हैं। इन दुर्गों की पंक्तियों में केवल शहर का आवासी क्षेत्र नहीं है, बल्कि कृषि क्षेत्र, जंगलों व जलाशयों के क्षेत्र को चारदीवारी के अंदर लिया गया है।

→ विजयनगर साम्राज्य की सारी प्रशासनिक व्यवस्था का संचालन जिस स्थल से होता था उसे शाही स्थल कहा गया है। पुरातत्वविदों ने इसे शाही केंद्र तथा राजकीय केंद्र इत्यादि नाम भी दिए हैं। शाही निवास, दरबार के अति महत्त्वपूर्ण भवनों के अतिरिक्त यहाँ 60 से अधिक मंदिर थे।

→ यह इस बात का प्रमाण है कि शासक इन मन्दिरों व उपासना स्थलों को बनाकर जनता में यह संदेश देना चाहता था कि वह सबका शासक है इसलिए सभी उसे स्वीकार करें। इस तरह शाही स्थल पर मंदिरों का होना शासक द्वारा वैधता को प्राप्त करने का एक तरीका कहा जा सकता है।

→ विजयनगर की जानकारी के स्रोत हमें विभिन्न रूपों में मिलते हैं। इनमें पुरातात्विक सामग्री, साहित्यिक स्रोत तथा विदेशी यात्रियों के वृत्तांत शामिल हैं। इनमें से अध्ययनकर्ताओं ने फोटोग्राफ, मानचित्र, उपलब्ध भवनों की खड़ी संरचनाएँ व मूर्तियों की ओर विशेष ध्यान दिया है। मैकेन्जी द्वारा प्रारंभ के सर्वेक्षण के पश्चात् जो रिपोर्ट दी गई, उसको अभिलेखों के वर्णन तथा यात्रियों के वृत्तांत के साथ जोड़ा गया।

→ इस क्षेत्र के अध्ययन का कार्य भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण तथा कर्नाटक पुरातात्विक एवं संग्रहालय विभाग द्वारा बड़े स्तर पर निरंतर ही किया गया। इस कड़ी में मिली सफलता ने सन् 1976 में हम्पी को राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल घोषित करवा दिया। 1980 के दशक में खनन कार्य और अधिक गहन, व्यापक, योजनाबद्ध किया गया। इसके परिणामस्वरूप विजयनगर के अवशेष सामने आए।

समय रेखा
क्रम संख्याकालघटना का विवरण
1.1206 ई०दिल्ली सल्तनत की स्थापना
2.1290 ई०खलजी वंश की स्थापना
3.1320 ईoतुगलक वंश की स्थापना
4.1325 ईoमुहम्मद तुगलक का सत्ता पर आना
5.1336 ई०विजयनगर साम्राज्य की स्थापना
6.1347 ई०बहमनी साम्राज्य की स्थापना
7.1435 ई०उड़ीसा के गजपति राज्य की स्थापना
8.1486 ई०विजयनगर में सुलुव वंश की सत्ता
9.1490 ईoगुजरात, बीजापुर व बरार में स्वतंत्र राज्यों का उदय
10.1509-29 ई०विजयनगर में कृष्णदेव राय का शासन
11.1518 ई०बहमनी राज्य का अन्त, गोलकुण्डा का उत्थान
12.1526 ईभारत में मुगल वंश की स्थापना
13.1565 ई०तालीकोटा के युद्ध में विजयनगर की हार व पतन का प्रांरभ
14.1707 ई०औरंगजेब की मृत्यु व मुगलों का पतन
15.1800 ई०कॉलिन मैकेन्जी की विजयनगर यात्रा
16.1815 ई०कॉलिन मैकेन्जी भारत में प्रथम सर्वेयर बना
17.1821 ई०कॉलिन मैकेन्जी की मृत्यु
18.1836 ई०पुरातत्वविदों द्वारा हम्पी के अभिलेखों का संकलन प्रारंभ
19.1856 ईअलेक्जैंडर ग्रनिलो द्वारा हम्पी के चित्र लेना
20.1876 ई०जे०एफ० फ्लीट द्वारा अभिलेखों का प्रलेखन प्रारंभ
21.1902 ईसर जॉन मार्शल द्वारा संरक्षण कार्य की शुरुआत
22.1986 ई०यूनेस्को द्वारा हम्पी को विश्व विरासत में शामिल करते हुए पुरातत्व स्थल घोषित

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