HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

Haryana State Board HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Important Questions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के अन्तर्गत कुछेक वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। ठीक उत्तर का चयन कीजिए

1. ‘भगवद्गीता’ किस धार्मिक पुस्तक का अंग है?
(A) रामायण
(B) ऋग्वेद
(C) महाभारत
(D) मनुस्मृति
उत्तर:
(C) महाभारत

2. रामायण और महाभारत का संस्कृत भाषा में रचनाकाल
(A) लगभग 1000 ई० पू० से 600 ई० पू०
(B) लगभग 600 ई० पू० से 100 ई० पू०
(C) लगभग 500 ई० पू० से 400 ई० पू०
(D) लगभग 200 ई० पू० से 200 ई०
उत्तर:
(C) लगभग 500 ई० पू० से 400 ई० पू०

3. महाभारत का युद्ध किस स्थान पर हुआ था?
(A) इंद्रप्रस्थ
(B) कुरुक्षेत्र
(C) वैशाली
(D) राजगृह
उत्तर:
(B) कुरुक्षेत्र

4. वेदों की संख्या थी
(A) चार
(B) तीन
(C) दो
(D) आठ
उत्तर:
(A) चार

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5. रुद्रदामन किस वंश का था?
(A) कण्व
(B) सातवाहन
(C) मौर्य
(D) शक
उत्तर:
(D) शक

6. प्राचीनतम ग्रन्थों के अनुसार शूद्रों का मुख्य कर्तव्य होता था
(A) ब्राह्मणों की सेवा
(B) वैश्यों की सेवा
(C) क्षत्रियों की सेवा
(D) तीन उच्च वर्गों की सेवा
उत्तर:
(D) तीन उच्च वर्गों की सेवा

7. पांडवों की सहपत्नी थी
(A) प्रभावती
(B) सीता
(C) गौतमी
(D) द्रौपदी
उत्तर:
(D) द्रौपदी

8. बहुपति प्रथा प्रचलित थी
(A) कौरवों में
(B) पांडवों में
(C) सातवाहनों में
(D) शकों में
उत्तर:
(B) पांडवों में

9. ‘मनुस्मृति’ का संकलन कब हुआ था ?
(A) 200 ई० पूर्व – 200 ई० में
(B) 200 ई० पूर्व – 50 ई० में
(C) 100 ई० पूर्व – 100 ई० में
(D) 200 ई०- 300 ई० में
उत्तर:
(A) 200 ई० पूर्व – 200 ई० में

10. एकलव्य की कथा निम्नलिखित में से कौन-से ग्रंथ में मिलती है?
(A) महाभारत
(B) रामायण
(C) मनुस्मृति
(D) जातक कथा
उत्तर:
(A) महाभारत

11. पाणिनि द्वारा लिखित ग्रन्थ का नाम बताएँ
(A) रामायण
(B) महाभारत
(C) अष्टाध्यायी
(D) महावंश
उत्तर:
(C) अष्टाध्यायी

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12. निम्नलिखित में से किस अभिलेख में रेशम बुनकरों की एक श्रेणी द्वारा (437-38 ई० में) सूर्य मंदिर निर्माण का उल्लेख मिलता है?
(A) मंदसौर अभिलेख
(B) गढ़वा अभिलेख
(C) समुद्रगुप्त के प्रयाग अभिलेख
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) मंदसौर अभिलेख

13. हस्तिनापुर गाँव कहाँ स्थित है?
(A) उत्तर:प्रदेश में
(B) मध्यप्रदेश में
(C) बिहार में
(D) बंगाल में
उत्तर:
(A) उत्तर:प्रदेश में

14. महाभारत के लेखक का नाम
(A) महर्षि वेदव्यास
(B) महर्षि वाल्मीकि
(C) महर्षि तुलसीदास
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) महर्षि वेदव्यास

15. गौतमी-पुत्र-सिरी-सातकणि किस वंश का था?
(A) शक
(B) सातवाहन
(C) मौर्य
(D) कण्व
उत्तर:
(B) सातवाहन

16. ‘अष्टाध्यायी’ का लेखक है
(A) मनु
(B) चरक
(C) पाणिनि
(D) शूद्रक
उत्तर:
(C) पाणिनि

17. मनुस्मृति के अनुसार माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् सम्पत्ति का अधिकार किसको दिया जाता था?
(A) ज्येष्ठ पुत्र को
(B) सबसे बड़ी पुत्री को
(C) सबसे छोटे पुत्र को
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) ज्येष्ठ पुत्र को

18. ‘मृच्छकटिकम्’ नाटक का लेखक था
(A) मनु
(B) पाणिनि
(C) शूद्रक
(D) एकलव्य
उत्तर:
(C) शूद्रक

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
गोत्र बहिर्विवाह से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गोत्र से बाहर विवाह करने को गोत्र बहिर्विवाह कहा गया है।

प्रश्न 2. अंतर्विवाह से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
एक ही गोत्र, कुल या जाति में विवाह-संबंध को अंतर्विवाह कहा गया है।

प्रश्न 3.
बहुपत्नी प्रथा क्या होती है?
उत्तर:
एक ही पुरुष द्वारा एक से अधिक पत्नियाँ रखना, बहुपत्नी प्रथा कहलाती है।

प्रश्न 4.
एकलव्य की कथा कौन-से ग्रंथ में मिलती है?
उत्तर:
एकलव्य की कथा ‘महाभारत’ में मिलती है।

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प्रश्न 5.
संस्कृत अभिलेखों व ग्रंथों में व्यापारियों के लिए क्या शब्द प्रयुक्त किया गया है?
उत्तर:
संस्कृत अभिलेखों व ग्रंथों में व्यापारियों के लिए वणिक शब्द प्रयुक्त किया गया है।

प्रश्न 6.
विवाह-संस्कार में वर-वधू द्वारा हाथ पकड़ने की प्रथा को क्या कहा गया?
उत्तर:
विवाह-संस्कार में वर-वधू द्वारा हाथ पकड़ने की प्रथा को पाणिग्रहण कहा गया।

प्रश्न 7.
वर-वधू द्वारा अग्नि के समक्ष सात फेरे लेने को क्या संज्ञा दी गई?
उत्तर:
वर-वधू द्वारा अग्नि के समक्ष सात फेरे लेने को सप्तपदी कहा गया।

प्रश्न 8.
वर्ण-व्यवस्था में असंस्कृतभाषी लोगों को क्या कहकर पुकारा गया?
उत्तर:
वर्ण-व्यवस्था में असंस्कृतभाषी लोगों को म्लेच्छ या असभ्य कहकर पुकारा गया।

प्रश्न 9.
वर्ण-व्यवस्था में चाण्डाल किसे कहा गया?
उत्तर:
शवों की अंत्येष्टि और मृत पशुओं को छूने वालों को चाण्डाल कहा गया।

प्रश्न 10.
पितृवंशिकता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पितृवंशिकता से अभिप्राय वह वंश-परंपरा है जो पिता से पुत्र, फिर पौत्र और प्रपौत्र आदि से चलती है। इसमें पैतृक संपत्ति पुत्रों में विभाजित होती है।

प्रश्न 11.
वर्ण-व्यवस्था वाले समाज में चाण्डाल एवं अपवित्र समझे गए लोगों को कौन-सा स्थान प्राप्त था?
उत्तर:
इनको सबसे निम्न कोटि में रखा गया था।

प्रश्न 12.
मनुस्मृति के अनुसार पैतृक जायदाद का बँटवारा किस प्रकार बताया गया है?
उत्तर:
मनुस्मृति के अनुसार, माता-पिता की मृत्यु के बाद पैतृक जायदाद का सभी पुत्रों में समान रूप से बँटवारा किया जाना. चाहिए, किंतु ज्येष्ठ पुत्र विशेष भाग का अधिकारी था।

प्रश्न 13.
मनुस्मृति के अनुसार पैतृक संपत्ति में स्त्रियों के क्या अधिकार थे?
उत्तर:
मनुस्मृति के अनुसार स्त्रियाँ पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी की माँग नहीं कर सकती थीं।

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प्रश्न 14.
मनुस्मृति के अनुसार स्त्रीधन क्या था?
उत्तर:
विवाह के समय मिले उपहार तथा पति द्वारा दिए गए उपहार स्त्रीधन था, जिस पर स्त्रियों का स्वामित्व माना। जाता था।

प्रश्न 15.
मातृवंशिकता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मातृवंशिकता से अभिप्राय वह वंश-परंपरा है, जो माँ से जुड़ी होती है। ऐसी परंपराओं के उदाहरण अति प्राचीन काल में ही मिलते हैं।

प्रश्न 16.
ब्राह्मणीय ग्रंथों के अनुसार शूद्रों का मुख्य कर्त्तव्य क्या था?
उत्तर:
ब्राह्मणीय ग्रंथों के अनुसार शूद्रों का मुख्य कर्त्तव्य तीन उच्च वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) की सेवा थी।

प्रश्न 17.
मनुस्मृति (संस्कृत में) की रचना का काल कौन-सा है?
उत्तर:
मनुस्मृति की रचना लगभग 200 ई० पू० से लेकर 200 ई० के बीच की गई।

प्रश्न 18.
पाणिनि की अष्टाध्यायी (संस्कृत व्याकरण) कब लिखी गई?
उत्तर:
लगभग 500 ई०पू० में पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी लिखी गई।

प्रश्न 19.
प्रारंभिक अभिलेख किस भाषा में खुदे हुए हैं?
उत्तर:
प्राकृत भाषा में।

प्रश्न 20.
महाभारत के समालोचनात्मक संस्करण का अंग्रेज़ी अनुवाद किसने और कब शुरू किया?
उत्तर:
जे०ए०बी० वैन बियुटेनेन (J.A.B. Van Buitenen) ने महाभारत के समालोचनात्मक संस्करण का अंग्रेजी अनुवाद सन् 1973 में शुरू किया।

प्रश्न 21.
महाभारत की मूल कथा के रचयिता किसे माना जाता है?
उत्तर:
महाभारत की मूल कथा के रचयिता भाट सारथी थे जिन्हें ‘सूत’ कहा जाता था।

प्रश्न 22.
हस्तिनापुर उत्तर प्रदेश के कौन-से जिले में है?
उत्तर:
हस्तिनापुर उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ में स्थित एक गाँव है।

प्रश्न 23.
‘मृच्छकटिकम्’ नामक नाटक का लेखक कौन है?
उत्तर:
शूद्रक ने ‘मृच्छकटिकम्’ नामक नाटक की रचना की।

प्रश्न 24.
‘मृच्छकटिकम्’ का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
‘मृच्छकटिकम्’ का शाब्दिक अर्थ है ‘मिट्टी की गाड़ी’।

प्रश्न 25.
सातवीं शताब्दी में कौन-सा बौद्ध-यात्री चीन से भारत आया?
उत्तर:
ह्यूनसांग नामक चीनी-यात्री राजा हर्षवर्धन के काल में भारत आया।

प्रश्न 26.
‘कुन्ती ओ निषादी’ की लेखिका का नाम बताएँ।
उत्तर:
‘कुन्ती ओ निषादी’ की लेखिका (बांग्ला लेखिका) महाश्वेता देवी हैं।

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प्रश्न 27.
यायावर (घुमन्तु) पशुपालक कबीलों के लोगों को ब्राह्मण ग्रंथों में क्या कहा गया है?
उत्तर:
ब्राह्मण ग्रंथों में ऐसे लोगों को, जिन्हें संस्कृत का ज्ञान नहीं था, म्लेच्छ कहा गया।

प्रश्न 28.
वेदों की भाषा क्या थी?
उत्तर:
संस्कृत।

प्रश्न 29.
महाभारत में कुल कितने पर्व व अध्याय हैं?
उत्तर:
महाभारत में कुल 18 पर्व एवं 1948 अध्याय हैं।

प्रश्न 30.
सुदर्शन सरोवर का जीर्णोद्धार किसने करवाया?
उत्तर:
सुदर्शन सरोवर का जीर्णोद्धार शक शासक रूद्रदामन ने करवाया था।

प्रश्न 31.
महाभारत की प्राप्त पांडुलिपियों को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
महाभारत की पांडुलिपियों को दो भागों, उत्तरी व दक्षिणी भागों में बाँटा गया है।

प्रश्न 32.
विशिष्ट परिस्थितियों में किस स्त्री ने सत्ता का उपभोग किया?
उत्तर:
विशिष्ट परिस्थितियों में प्रभावति गुप्त ने सत्ता का उपभोग किया।

प्रश्न 33.
भारतीय विद्वान् एस०एन० बैनर्जी ने महाभारत पर कौन-सी पुस्तक लिखी?
उत्तर:
एस०एन० बैनर्जी ने महाभारत पर ‘Parties, Politics and the Political ideas of Mahabharata’ नामक पुस्तक लिखी।

प्रश्न 34.
श्रीमद्भगवद् गीता में कितने श्लोक हैं?
उत्तर:
श्रीमद्भगवद् गीता में लगभग 700 श्लोक हैं।

प्रश्न 35.
धर्मशास्त्र (आश्वलायन) में विवाह के कितने प्रकार बताए गए हैं?
उत्तर:
आश्वलायन में विवाह के आठ प्रकार बताए गए हैं।

प्रश्न 36.
रामायण व महाभारत महाकाव्यों की मुख्य कथा का संबंध किससे है?
उत्तर:
रामायण व महाभारत महाकाव्यों की मुख्य कथा का संबंध परिवार में पितृवंशिकता के आदर्श को मजबूत करने से है।

प्रश्न 37.
विवाह संस्कार में ‘पाणिग्रहण’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वर द्वारा वधू का हाथ पकड़ने की प्रथा को ‘पाणिग्रहण’ संस्कार कहा गया।

प्रश्न 38.
धर्मशास्त्रों में किन ग्रंथों को शामिल किया गया है?
उत्तर:
धर्मसूत्र, स्मृतियाँ और टीकाएँ तीन तरह के ग्रंथों को धर्मशास्त्रों में शामिल किया गया है।

प्रश्न 39.
धर्मशास्त्र का संकलन काल क्या है?
उत्तर:
धर्मशास्त्रों का संकलन काल 500 ई०पू० से 600 ई० के बीच का है।

प्रश्न 40.
आश्वलायन गृहसूत्र के अनुसार ब्रह्म विवाह किसे माना गया?
उत्तर:
ऐसा विवाह जिसमें वेदों को जानने वाले शीलवान वर को घर बुलाकर वस्त्र व आभूषण आदि से सुसज्जित कन्या को पिता द्वारा दान दिया जाता था।

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प्रश्न 41.
पैशाच विवाह किसे माना गया?
उत्तर:
ऐसा विवाह जिसमें सोई हुई, घबराई हुई कन्या के साथ बलात्कार या धोखा देकर विवाह किया जाता था।

प्रश्न 42. ‘फा-शियन’ किस देश का रहने वाला था?
उत्तर:
‘फा-शियन’ चीन का रहने वाला था।

प्रश्न 43.
श्रीमद्भगवद् गीता की शिक्षा का सार क्या है?
उत्तर:
श्रीमद्भगवद् गीता के अनुसार वर्ण व जाति के अनुरूप जिसका जो कर्त्तव्य निर्धारित हुआ है, उसे उस कर्त्तव्य को बिना किसी प्रतिफल की कामना से करना चाहिए।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बौद्ध परंपरा में सामाजिक अनुबंध से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
बौद्ध परंपरा में ‘सामाजिक अनुबंध’ के अनुसार राजपद दैवीय या पैतृक नहीं था, बल्कि एक सामाजिक समझौते का परिणाम था। ऐसे किसी भी उपयुक्त व्यक्ति को राजा चुना जा सकता था जो न्यायप्रिय हो तथा शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए क्षमता रखता हो।

प्रश्न 2.
फाहियान (Fa-xian) ने चाण्डालों की स्थिति के बारे में क्या बताया है?
उत्तर:
फाहियान एक चीनी यात्री था जो ईसा की पाँचवीं सदी के शुरू में भारत आया। उसने अपने यात्रा वृत्तांत में बताया है कि चाण्डाल शहर और गाँव से बाहर बनी अलग बस्तियों में रहते थे। जब कभी वे नगर या गाँव में आते थे तो उन्हें अपने आने की सूचना किसी वस्तु से आवाज़ करके देनी पड़ती थी।

प्रश्न 3.
लगभग 600 ई०पू० से 600 ई० की अवधि के मध्य भारतीय अर्थव्यवस्था और राजनीति में आए बदलावों के प्रभावों का उल्लेख करें।
उत्तर:
लगभग 600 ई०पू० से 600 ई० के बीच आर्थिक व राजनीतिक जीवन में कई तरह के परिवर्तन हुए, जिनका तत्कालीन समाज पर भी अपना प्रभाव पड़ा। उदाहरण के लिए वन क्षेत्रों में कृषि विस्तार से वहाँ रहने वाले लोगों की जीवन-शैली में परिवर्तन आया। बहुत-से कारीगर समूहों का उदय हुआ। इसके अतिरिक्त संपत्ति के असमान वितरण ने सामाजिक भेदभावों को अधिक प्रखर बनाया।

प्रश्न 4.
कौरव और पांडव कौन थे? उनके बंधुत्व संबंधों में क्या परिवर्तन हुआ?
उत्तर:
कौरव व पांडव बांधव जन (Cousins) थे अर्थात् वे चचेरे भाइयों के समूह थे। यह परिवार कुरु राजवंश का था। महाभारत से पता चलता है कि चचेरे भाइयों में संपत्ति व सत्ता को लेकर युद्ध हुआ। स्पष्ट है कि दोनों समूहों में बंधुत्व के संबंधों में राजसत्ता को लेकर बड़ा भारी परिवर्तन हो गया।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पदों की संक्षिप्त व्याख्या करें (क) बहिर्विवाह, (ख) अंतर्विवाह, (ग) बहुपति प्रथा, (घ) बहुपत्नी प्रथा।
उत्तर:
(क) बहिर्विवाह-बहिर्विवाह से अभिप्राय था, गोत्र से बाहर विवाह करना। (ख) अंतर्विवाह-अंतर्विवाह से अभिप्राय था, वर्ण अथवा जाति के अंदर ही विवाह करना। (ग) बहुपति प्रथा-इस प्रथा में एक स्त्री के एक से अधिक पति होने की प्रथा है। (घ) बहुपत्नी प्रथा-बहुपत्नी प्रथा से अर्थ है एक पुरुष की एक से अधिक पत्नियाँ होने की परिपाटी।

प्रश्न 6.
कौरवों और पांडवों में बंधुत्व मामले का अंततः समाधान कैसे हुआ? इसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
कौरवों और पांडवों में बंधुत्व का मसला अंततः एक युद्ध के द्वारा तय हुआ। यह युद्ध महाभारत का युद्ध कहलाया। इसमें पांडवों की विजय हुई। युद्ध के बाद ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठिर को शासक बनाया गया। इस प्रकार पितृवंशिकता के आदर्श को सुदृढ़ किया गया।

प्रश्न 7.
महाभारत के रचनाकाल के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
महाभारत की रचना लगभग 1000 वर्षों में हुई। शुरू में इसमें मात्र 8800 श्लोक थे और यह ‘जयस’ यानी विजय संबंधी ग्रंथ कहलाया था। कालान्तर में यह 24000 श्लोकों के साथ ‘भारत’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। अंततः यह महाभारत कहलाया और अब इसमें एक लाख श्लोक हैं।

प्रश्न 8.
बौद्ध ग्रंथों में सामाजिक गतिशीलता के उदाहरण लिखें।
उत्तर:
बौद्ध ग्रंथों में कई स्थानों पर क्षत्रियों या वैश्यों द्वारा दर्जी, कुम्हार, टोकरी बनाने वाले शिल्पी, माली और रसोइए का पेशा अपनाए जाने के उदाहरण मिलते हैं। इस सामाजिक गतिशीलता से उनकी प्रतिष्ठा में कमी नहीं आती थी।

प्रश्न 9.
एकलव्य कथा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
एकलव्य कथा के माध्यम से निषादों (जंगल में रहने वाली जनजाति) को धर्म का संदेश दिया जा रहा था। धर्म से अभिप्राय था, अपने-अपने वर्ण कर्त्तव्य का पालन। किसी और जाति/वर्ण के काम को मत अपनाओ। ऐसा करना धर्म विरोधी कार्य होगा।

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प्रश्न 10.
एकलव्य कौन था?
उत्तर:
एकलव्य एक निषाद जनजाति का युवक था जो गुरु द्रोणाचार्य से धनुष चलाने की विद्या सीखना चाहता था। गुरु द्रोण केवल क्षत्रियों (विशेषतः कुरु राजवंश) को ही यह विद्या दे रहे थे, इसलिए उन्होंने एक वनवासी निषाद को यह शिक्षा देने से मना कर दिया, लेकिन एकलव्य ने मन से द्रोण को अपना गुरु मानकर प्रतिदिन अभ्यास किया और निपुण धनुर्धर बन गया।

उसने कुत्ते के भौंकने की आवाज पर उस कुत्ते के मुँह को बाणों से भर दिया जिसे देखकर अर्जुन और आचार्य द्रोण दोनों को आश्चर्य हुआ। द्रोणाचार्य ने जब एकलव्य से उसके गुरु का नाम पूछा तो उसने स्वयं को उन्हीं का शिष्य बताया। इस बात का पता चलने पर द्रोण ने गुरु-दक्षिणा के रूप में एकलव्य से दाहिने हाथ का अंगूठा माँगा। एकलव्य ने अपना अंगूठा देकर अपना कर्त्तव्यपालन किया, परंतु वह पहले जैसा धनुर्धर नहीं रहा।

प्रश्न 11.
‘भारतीय समाज में लिंग भेदभाव था।’ इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर:
प्राचीन भारतीय समाज में भी लिंग के आधार पर लड़कियों के प्रति भेदभाव विद्यमान था। ‘ऋग्वेद’ में पुत्र कामना को प्राथमिकता दी गई। विशेषतः इंद्र जैसे वीर पुत्र की कामना की गई है। पैतृक पारिवारिक संपत्ति में भी भेदभाव का आभास मिलता है। पैतृक संपत्ति का वारिस पुत्र ही था। लड़की की इसमें हिस्सेदारी नहीं स्वीकारी गई।

प्रश्न 12.
मनुस्मृति के अनुसार पुरुष के धन अर्जन के साधन कौन-से थे?
उत्तर:
औरत के अधिकार में मात्र उपहार से प्राप्त धन ही शामिल था परंतु पुरुष, मनु के अनुसार, सात तरीकों से धन अर्जित कर सकता था। ये तरीके थे- उत्तराधिकार, खोज, खरीद, विजित करके, निवेश करके, कार्य द्वारा तथा सज्जन मित्रों से उपहारस्वरूप भेंट स्वीकार करके।

प्रश्न 13.
कुलीन परिवारों में स्त्री की स्थिति पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
कुलीन परिवारों में स्त्रियों के लिए भौतिक सुविधाएं तो अधिक थीं, परंतु स्वतंत्रता कम थी। उन पर पुरुष का नियंत्रण अपेक्षाकृत अधिक था, यहाँ तक कि उसे ‘वस्तु-सम’ ही समझा जाता था।

प्रश्न 14.
किसी व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा को दानशीलता कैसे प्रभावित करती थी?
उत्तर:
दानशीलता धनी व्यक्ति के लिए सामाजिक प्रतिष्ठा अर्जित करने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम रही है। समाज में कंजूस व्यक्ति का सम्मान नहीं था। चारण/कवि दानी व्यक्तियों की प्रतिष्ठा में गीत-काव्य रचते थे। इससे धनी दानदाता की जय-जयकार होती थी।

प्रश्न 15.
विवाह संस्कार में ‘मधुपर्क’ किसे कहा गया?
उत्तर:
वर-वधू की चुनाव की प्रक्रिया के बाद वधू का पिता वर को बारात सहित आमंत्रित करता और उसका सम्मान करता था जिसे ‘मधुपर्क’ कहा गया।

प्रश्न 16.
धर्म-ग्रंथों में विवाह के कितने प्रकार बताए गए हैं?
उत्तर:
धर्म-ग्रंथों में विवाह के आठ प्रकार बताए गए हैं-

  1. ब्रह्म विवाह,
  2. प्रजापत्य विवाह,
  3. आर्ष विवाह,
  4. दैव विवाह,
  5. असुर विवाह,
  6. गांधर्व विवाह,
  7. राक्षस विवाह,
  8. पैशाच विवाह ।

प्रश्न 17.
‘गोत्र’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
‘गोत्र’ से अभिप्राय है एक ही पूर्वज की संतान या उत्तराधिकारियों का समूह । ऐसा समूह रक्त संबंधों पर आधारित माना जाता है। इसके सदस्य स्वयं को एक ही पूर्वज की संतान स्वीकारते हैं। ब्राह्मण ग्रंथों में ऐसे समूहों के सदस्यों में विवाह संबंधों के वर्जित होने के प्रमाण मिलते हैं।

प्रश्न 18.
महाभारत की विषय-वस्तु को इतिहासकार कैसे बाँटते हैं?
उत्तर:
महाभारत की विषय-वस्तु को इतिहासकार मुख्यतः दो भागों में बाँटते हैं। पहला आख्यान, जिसके अंतर्गत कहानियों का संग्रह है। दूसरा उपदेशात्मक, जिसके अंतर्गत सामाजिक व्यवहार के मानदंड आते हैं।

प्रश्न 19.
स्त्रीधन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मनु के अनुसार स्त्रीधन में शामिल था-

  1. कन्यादान के समय मिला धन;
  2. माता-पिता व भाई से मिले उपहार;
  3. विदाई के समय मिली भेंट;
  4. विवाह के बाद पति से मिलने वाले उपहार; और
  5. विभिन्न अवसरों पर मिलने वाली भेंट अर्थात् उपहार।

प्रश्न 20.
‘वर्ण’ शब्द के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
‘वर्ण’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘वरी’ धातु से हुई बताई गई है, जिसका अर्थ है वरण (चयन) करना। यानी व्यवसाय का चयन करना। कुछ विद्वान ‘वर्ण’ शब्द की उत्पत्ति का संबंध ‘रंग’ से भी जोड़ते हैं। उनके अनुसार वर्ण (रंग) का प्रयोग गौण वर्ण के आर्यों को श्याम वर्णीय अनार्यों से अलग करने के संदर्भ में आया।

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प्रश्न 21.
वैदिक कालीन ‘यज्ञ परम्परा’ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
‘यज्ञ’ एक वैदिक कर्मकांड है जिसमें अग्नि के हवन कुंड के समक्ष बैठकर मंत्रोच्चारण के साथ किसी निश्चित उद्देश्य . की प्राप्ति के लिए हवन कुंड में आहुतियाँ डाली जाती हैं।

प्रश्न 22.
‘आश्रम प्रणाली’ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
उत्तर वैदिक काल में व्यक्ति की आयु 100 वर्ष मानकर उसे निम्नलिखित चार भागों (आश्रमों) में बाँटा गया है

  • ब्रह्मचर्य आश्रम पहले 25 वर्ष की आयु तक।
  • गृहस्थ आश्रम 25 से 50 वर्ष की आयु तक।
  • वानप्रस्थ आश्रम 50 से 75 वर्ष की आयु तक।
  • संन्यास आश्रम 75 से 100 वर्ष की आयु तक।

प्रश्न 23.
महाभारत का रचनाकार किसे माना जाता है?
उत्तर:
महाभारत का रचनाकार महर्षि वेदव्यास को माना जाता है। जनश्रुतियों के अनुसार मुनि वेदव्यास ने यह ग्रंथ श्रीगणेश जी से लिखवाया था।

प्रश्न 24.
ऋग्वेद के ‘दसवें मंडल’ के ‘पुरुषसूक्त’ में दिए वर्ण विभाजन को स्पष्ट करें।
उत्तर:
‘पुरुषसूक्त’ के एक मंत्र में कहा गया है कि देवताओं ने आदि पुरुष के चार भाग किए। ब्राह्मण उसका मुख, राजन्य बाहु और जंघा वैश्य थे तथा शूद्र उसके पाँव से उत्पन्न हुए।

प्रश्न 25.
जाति-व्यवस्था की दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
जाति-व्यवस्था की. दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • किसी जाति में सदस्यता केवल उन व्यक्तियों तक ही सीमित थी, जिन्होंने उसी जाति में जन्म लिया हो।
  • एक जाति के सदस्यों का विवाह उसी जाति में अनिवार्य था।

प्रश्न 26.
मौर्य काल में श्रेणियों की स्थिति पर संक्षिप्त टिप्पणी करें।
उत्तर:
मौर्य काल में श्रेणियाँ सरकार के नियंत्रण में काम करती थीं। इन्हें सरकार से लाइसेंस लेना पड़ता था। लगभग प्रत्येक श्रेणी पर एक सरकारी अधिकारी होता था, जिसे श्रेणी का अध्यक्ष कहा जाता था। श्रेणी में शिल्पकारों के प्रधान को ज्येष्ठक कहा जाता था।

प्रश्न 27.
भारत में परिवार व्यवस्था की कोई दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • परिवार के सदस्यों का वैवाहिक या रक्त-संबंधों का होना अनिवार्य है।
  • परिवार के सदस्य प्रायः पारिवारिक परंपरा और रीति-रिवाज़ों में बँधे होते हैं। वे धार्मिक अनुष्ठानों (यज्ञ, पूजा, अर्चना आदि) को मिलकर संपादित करते हैं।

प्रश्न 28.
मातृवंशीय परंपरा से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मातवंशीय परिवारों में वंश परंपरा माँग से जुड़ी होती है। परिवार में लड़की का महत्त्व अधिक होता है।

प्रश्न 29.
भारत में विवाह संस्था का मूल उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
विवाह संस्था का मूल उद्देश्य विवाह-संबंधों में स्थायित्व कायम करना और पितृवंश को आगे बढ़ाना था। साथ ही भारत में जातीय-व्यवस्था को स्थायित्व प्रदान करने में भी इस संस्था की मुख्य भूमिका रही है।

प्रश्न 30.
गांधारी द्वारा अपने सबसे बड़े पुत्र दुर्योधन को दिए गए परामर्श का उल्लेख करें। इसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
गांधारी कौरवों की माँ थी। वह अपने ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन को युद्ध न करने का परामर्श देती है और युद्ध न करने की विनती भी करती है। उसने कहा, “शांति की संधि करके तुम अपने पिता, मेरा और अपने शुभइच्छकों का सम्मान करोगे…….. विवेकी पुरुष जो अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखता है वही अपने राज्य की रखवाली करता है।

लालच और क्रोध आदमी को लाभ से दूर खदेड़ ले जाते हैं। इन दोनों शत्रुओं को पराजित कर राजा समस्त पृथ्वी को जीत सकता है …………. युद्ध में कुछ भी शुभ नहीं होता, न धर्म और न अर्थ की प्राप्ति होती है, और न ही प्रसन्नता की; युद्ध के अंत में सफलता मिले यह भी जरूरी नहीं …………… अपने मन को युद्ध में लिप्त मत करो।” स्पष्ट है कि अपनी माँ की इस सलाह को दुर्योधन ने नहीं माना, फलतः युद्ध हुआ और कौरव परिवार का समूल नाश हो गया।

प्रश्न 31.
‘परिवार’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सामाजिक संगठनों में परिवार समाज की एक महत्त्वपूर्ण मूल इकाई है। संस्कृत ग्रंथों में इसके लिए ‘कल’ शब्द का प्रयोग किया गया है। सामान्यतया रक्त संबंधों पर आधारित परिवार को एक स्वाभाविक सामाजिक इकाई मान लिया जाता है, जो कि ठीक नहीं होता क्योंकि रक्त संबंधों की परिधि में कौन-कौन से सगे-संबंधी शामिल हैं, इस बात से परिवार की परिभाषा भिन्न हो जाती है। आज भी हम देखते हैं कि कुछ लोग चचेरे या मौसेरे भाई-बहनों को रक्त-संबंधों में शामिल करते हैं जबकि कुछ अन्य उन्हें शामिल नहीं करते।

प्रश्न 32.
रामायण महाकाव्य के दो प्रमुख नैतिक तत्त्व कौन-से हैं?
उत्तर:
रामायण महाकाव्य के दो नैतिक तत्त्व हैं

  • भलाई की बुराई पर विजय। कथा में राम भलाई के और रावण बुराई के प्रतीक हैं।
  • परिवार रूपी संस्था का आदर्श।

इसमें किसी भी परिस्थिति में पुत्र को पिता की आज्ञा तथा छोटे भाई को बड़े भाई की आज्ञा का पालन करना और स्त्री को पति के प्रति निष्ठावान होना है।

प्रश्न 33.
प्राचीन भारत में पितृवंशिक आदर्श के अपवाद किन स्थितियों में मिलते हैं?
उत्तर:
पितृवंशिक आदर्श को लेकर यदा-कदा अपवाद भी मिलते हैं। पुत्र के न होने पर कई बार तो एक भाई दूसरे का धेकारी हो जाता था तो कभी चचेरे भाई भी राजगद्दी पर अपना अधिकार कर लेते थे। कई बार कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में स्त्रियाँ भी सत्ता की उत्तराधिकारी बनीं। प्रभावती गुप्त का शासिका बनने का उदाहरण मिलता है।

प्रश्न 34.
उत्तर भारत में नगरीकरण के विकास का धर्मशास्त्रों से क्या संबंध है?
उत्तर:
उत्तर भारत में 600 ई०पू० से 600 ई० के मध्य नगरों का विकास हुआ। नए नगर हस्तशिल्प उत्पादन व व्यापार के केंद्र थे। इस कारण से यह नगर दूर एवं निकट से आने वाले व्यापारी व अन्य अनेक लोगों के मिलन-स्थल बन गए। फलतः इनमें वस्तुओं के क्रय-विक्रय व उत्पादन के साथ-साथ लोगों में परस्पर विचारों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया भी चली।

इससे परंपरागत विचारों एवं विश्वासों पर कई तरह के सवाल उठे। इस कारण से समाज में उथल-पुथल मची। पारिवारिक बंधन कमजोर होने लगे। वर्ण-संकर विवाह (जाति से बाहर दूसरी जाति में) होने लगे तथा प्रेम-विवाह (गांधर्व विवाह) होने लगे। समाज में बढ़ रही इस उथल-पुथल को रोकने के लिए धर्मशास्त्र रचे गए, जिनमें सामाजिक परंपराओं को बनाए रखने पर जोर दिया गया।

प्रश्न 35.
मनुस्मृति में चाण्डालों के क्या कर्त्तव्य बताए गए हैं?
उत्तर:
मनुस्मृति में चाण्डालों के ‘कर्तव्यों’ (Duties) पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। जिन कामों को घृणित माना गया उन्हें करना मनुस्मृति में चाण्डालों के लिए ‘कर्त्तव्य’ बताया गया; जैसे कि वधिक कार्य, चर्म कार्य, मृत पशु उठाना, सफाई, श्मशान कर्म इत्यादि। उनके लिए नियम था कि वे मृतकों के वस्त्र, लोहे के आभूषण व बर्तनों का प्रयोग करें। रात के समय नगर व गाँवों में उनका प्रवेश वर्जित था। नगर व गाँव में उनका निवास भी वर्जित था।

लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
धर्मशास्त्र में कितने प्रकार के विवाहों का वर्णन मिलता है? इनमें से चार उत्तम विवाह कौन-से थे?
उत्तर:
आश्वलायन नामक ग्रंथ में प्राचीन भारत में आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन मिलता है। इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है

  • ब्रह्म विवाह में वेदों को जानने वाले शीलवान वर को घर बुलाकर वस्त्र एवं आभूषण आदि से सुसज्जित कन्या को पिता द्वारा दान दिया जाता था।
  • दैव विवाह में यज्ञ करने वाले पुरोहित को यजमान अपनी कन्या का दान करता था।
  • आर्ष विवाह में लड़की का पिता वर पक्ष से गाय और बैल का एक जोड़ा लेकर अपनी कन्या का विवाह करता था।
  • प्रजापत्य विवाह में लड़की का पिता यह आदेश देता था तुम दोनों (वर-वधू) एक साथ रहकर आजीवन धर्म का आचरण करो। इसके बाद कन्यादान करता था।
  • असुर विवाह में वर कन्या के पिता को धन देकर विवाह करता था।
  • गांधर्व विवाह एक प्रकार से युवक-युवती में पारस्परिक प्रेम के आधार पर हुआ विवाह था।
  • राक्षस विवाह में कन्या को जबरन उठाकर विवाह किया जाता था अर्थात् उसे जीतकर अपने अधिकारों में लाया जाता था।
  • पैशाच विवाह में सोई हुई, प्रमत्त, घबराई हुई कन्या के साथ बलात्कार कर या धोखा देकर विवाह किया जाता था।

विवाह के इन आठ प्रकारों में से पहले चार विवाहों-ब्रह्म, प्रजापत्य, आर्ष व दैव को उत्तम माना गया। इन्हें धर्मानुकूल और आदर्श बताया गया है क्योंकि यह ब्राह्मणीय नियमों के अनुकूल थे। जबकि असुर, गांधर्व, राक्षस और पैशाच विवाहों को अच्छा नहीं माना गया परंतु ये प्रचलन में थे। यह इस बात का प्रमाण है कि ब्राह्मणीय नियमों से बाहर विवाह प्रथाएँ अस्तित्व में थीं।

प्रश्न 2.
ब्राह्मणीय पद्धति ‘गोत्र’ के बारे में आप क्या जानते हैं? क्या यह सर्वत्र समान रूप से लागू थी?
उत्तर:
लगभग 1000 ई०पू० के आस-पास से एक ब्राह्मणीय पद्धति अस्तित्व में आई जिसके अनुसार लोगों की पहचान गोत्रों से भी होने लगी। विशेष रूप से यह ब्राह्मणों में पहले प्रचलन में आई। गोत्र का नामकरण किसी वैदिक ऋषि के नाम से होता था। उस गोत्र के सदस्य उस ऋषि के वंशज समझे जाते थे। गोत्र व्यवस्था की दो महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ थीं

  • विवाह के पश्चात् महिला को पिता के गोत्र का नहीं, अपितु पति के गोत्र का माना जाता था।
  • एक ही गोत्र के सदस्य परस्पर विवाह संबंध नहीं कर सकते थे।

उपर्युक्त इन दोनों नियमों का अनुसरण भी अन्य ब्राह्मणीय नियमों की तरह, सभी लोगों द्वारा हर स्थान पर नहीं होता था। व्यवहार में यहाँ भी भिन्नता थी। उदाहरण के लिए यदि हम अभिलेखों से सातवाहन नरेशों के नामों का अध्ययन करें तो यह बात स्पष्ट हो जाती है। इन शासकों की रानियों के नामों से यह प्रतीत होता है कि उनके नाम गौतम और वशिष्ठ गोत्रों से जुड़े थे जो उनके पिता के गोत्र थे।

विवाह के बाद भी उन्होंने संभवतः अपने पिता का गोत्र नाम ही कायम रखा। जैसे कि राजा गोतमी-पुत्त सिरी-सातकनि, राजा वसिथि-पुत सिरी-पुलुमायि। संभवतः इन्होंने अपने पति का गोत्र नहीं अपनाया जैसा कि ब्राह्मणीय व्यवस्था में अपेक्षित था। इन नामों के अध्ययन से यह भी पता चलता है कि कुछ रानियाँ एक ही गोत्र से थीं अर्थात बहिर्विवाह पद्धति की बजाय एक अन्य विवाह पद्धति यहाँ प्रचलन में थी। .

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग : आरंभिक समाज

प्रश्न 3.
धर्मशास्त्रों ने ‘जाति व्यवस्था’ को किस प्रकार स्थायित्व प्रदान किया? स्पष्ट करें।
उत्तर:
धर्मशास्त्रों ने वर्ण और जाति-व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में विशेष भूमिका निभाई, उसे ‘उचित’ सामाजिक कर्तव्य बताया। उसे व्यवहार में लाने के लिए सामाजिक नियम बनाए। साथ ही उपदेशात्मक शैली में लोक-कथाओं की रचना की। संक्षेप में, धर्मशास्त्रों ने मुख्यतः निम्नलिखित उपायों का अनुसरण किया

1. दैवीय उत्पत्ति-इस सिद्धांत से जन-सामान्य को यह विश्वास दिलाया गया कि जातियों की उत्पत्ति का कारण ईश्वर है। ब्राह्मण ग्रंथों में पुरुष सूक्त को बार-बार दोहराया गया ताकि लोग अपनी-अपनी जातियों में अपना कर्त्तव्य बिना किसी विरोध के निभाते रहें।

2. आत्मा, कर्म व पुनर्जन्म का सिद्धांत-उपनिषद ग्रंथों में आत्मा, कर्म और पुनर्जन्म का सिद्धांत प्रतिपादित हुआ। इसने जाति-व्यवस्था के लिए एक धार्मिक औचित्य प्रस्तुत किया। किसी विशेष जाति (ऊँची या नीची) में जन्म को पूर्व जन्म के कर्मों का फल बताया गया।

3. राजा का कर्त्तव्य-शास्त्रों में वर्ण-व्यवस्था की रक्षा करना राजा का एक प्रमुख कर्त्तव्य बताया गया। साथ ही इस व्यवस्था की आचार-संहिता दी और शासकों को अपने-अपने राज्य में इसका अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित किया। मनुस्मृति में विभिन्न वर्गों के संबंध में न्याय व दंड-विधान मिलता है।

4. उपदेशात्मक उपाय-वर्णाश्रम धर्म को विभिन्न कथा-गाथाओं के माध्यम से भी व्यवहार में बनाए रखने का प्रयास किया गया। साहित्यिक परंपरा के ग्रंथों में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं। गुरु द्रोण व एकलव्य की कथा इस संदर्भ में उल्लेखनीय है।

प्रश्न 4.
‘जाति व्यवस्था’ की कोई पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
‘जाति व्यवस्था’ की निम्नलिखित सामान्य विशेषताएँ हैं …

1. पैतृक व्यवसाय-जाति की पहचान व्यवसाय से हुई। ये व्यवसाय वंशानुगत थे अर्थात् ये पिता से पुत्र तक पहुँचते रहते थे। इसीलिए जाति को आनुवंशिकता (Hereditary) पर आधारित एक वर्ग (Class) बताया गया है।

2. सदस्यता-किसी जाति में सदस्यता केवल उन व्यक्तियों तक ही सीमित थी, जिन्होंने उसी जाति में जन्म लिया। किसी एक जाति से दूसरी जाति में सदस्यता संभव नहीं थी।

3. सजातीय विवाह-एक जाति के सदस्यों का विवाह उसी जाति में अनिवार्य था। जाति से बाहर विवाह पर रोक थी। यद्यपि अनुलोम और प्रतिलोम विवाहों का उल्लेख मिलता है, परंतु इन्हें अच्छा नहीं समझा जाता था। ऐसे विवाहों से अनेक वर्णसंकर जातियों का भी वर्णन ग्रंथों में आया है।

4. श्रेणीबद्धता-जाति-व्यवस्था श्रेणीबद्ध (सोपानात्मक) संगठन है अर्थात् यह सीढ़ीनुमा है, जिसमें ऊपर से नीचे की ओर प्रत्येक जाति का स्थान निर्धारित होता है।

5. पवित्रता व अपवित्रता की धारणा-जाति-व्यवस्था में पवित्रता तथा अपवित्रता की धारणा निहित थी। निचले स्तर की जातियों को अपवित्र माना गया। चर्म कर्म, मरे पशुओं को उठाना तथा साफ़-सफाई करने वाली जातियों को अपवित्र माना गया। यहाँ तक कि उन्हें अछूत कहा गया। उनके स्पर्श और दर्शन-मात्र से अपवित्र होने की बात कही गई।

प्रश्न 5.
क्या जाति व्यवस्था वाले भारतीय समाज में किसी तरह की सामाजिक गतिशीलता थी? यदि थी, तो उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर:
वर्ग अथवा जाति-व्यवस्था पूर्णतयाः एक जड़-व्यवस्था नहीं रही। इसमें आवश्यकतानुसार कुछ गतिशीलता भी रही है। उदाहरण के लिए, शुरू में वैश्य पशुचारक और किसान थे और शूद्र सेवक थे। धीरे-धीरे उन्नति करके वैश्य व्यापारी व जमींदार हो गए और शूद्र कृषक बन गए, परंतु इस पर भी उन्हें वर्ण-व्यवस्था में द्विज का दर्जा नहीं मिला। विचाराधीन काल के अंत तक आते-आते उन्हें रामायण, महाभारत और पुराण जैसे ग्रंथों को सुनने का अधिकार मिला। उनकी स्थिति में कुछ सुधार आया।

बौद्ध ग्रंथों में सामाजिक गतिशीलता के उदाहरण-बौद्ध-ग्रंथों में कई स्थानों पर क्षत्रियों व वैश्यों द्वारा दर्जी, कुम्हार, टोकरी बनाने वाले शिल्पी, माली और रसोइए आदि का पेशा अपनाए जाने का उल्लेख मिलता है। इससे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी नहीं आती थी।

श्रेणी व्यवस्था व सामाजिक गतिशीलता-श्रेणी-व्यवस्था सामाजिक गतिशीलता का एक अन्य उल्लेखनीय उदाहरण है। सामान्य व्यवसाय करने वाली जातियाँ स्वयं को कई बार अपनी ज़रूरतों के अनुरूप श्रेणियों में संगठित कर लेती थीं। ये श्रेणियाँ शिल्पकारों को समाज में प्रतिष्ठा का स्थान प्रदान करती थीं। लगभग पाँचवीं सदी के मंदसौर (मध्य प्रदेश) अभिलेख से रेशम बुनकरों की एक श्रेणी का उल्लेख मिलता है।

इस श्रेणी के बुनकर पहले मूलतः गुजरात के लता (Lata) नाम स्थान के रहने वाले थे फिर वे मंदसौर चले आए। इतिहास के इस तथ्य से यह पता चलता है कि श्रेणी जैसे व्यावसायिक संगठन अधिक लाभ की इच्छा से स्थानांतरण भी करते थे अर्थात् इस दृष्टि से भी उनमें गतिशीलता थी।

प्रश्न 6.
वर्ण व्यवस्था का वनवासियों से संपर्क की प्रक्रिया पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
वर्ण व जाति की विचारधारा का प्रभाव भारत में बड़े स्तर पर पड़ा। फिर भी ऐसे बहुत-से वनवासी कबीले थे जो इसके प्रभाव से वंचित थे। संस्कृत ग्रंथों में ऐसे लोगों का उल्लेख प्रायः विचित्र, असभ्य और यहाँ तक कि पशुवत् जैसे विशेषणों के साथ किया गया। मुख्यतः ये ऐसे समुदाय थे जो इसके प्रभाव से वंचित थे। वे पशुपालन और खेतीबाड़ी के व्यवसाय से नहीं जुड़े थे। इनका जीवन मुख्यतः शिकार और कंद-मूल पर निर्भर था।

उदाहरण के लिए निषाद इसी वर्ग के अंतर्गत आते थे। एकलव्य संभवतः इसी समुदाय से संबंधित था। इन कबीलों के लोगों की जीवन-शैली भी अलग थी। उनकी भाषा भिन्न थी। ग्रामीण और शहरी लोग प्रायः इन्हें शंका की दृष्टि से देखते थे।

इन लोगों का यदा-कदा ‘सभ्य समाज के लोगों से भी संपर्क होता था। महाभारत व रामायण की कुछ कथाओं से विद्वान ऐसा निष्कर्ष निकालते हैं कि कई बार वर्ण-व्यवस्था के दायरे में आने वाले लोगों तथा जंगल में रहने वाली जनजातियों के मध्य विचारों का आदान-प्रदान होता था। उदाहरण के लिए महाभारत के आदिपर्वन में हिडिंबा और भीम गाथा से यही निष्कर्ष निकाला जाता है।

प्रश्न 7.
प्राचीन भारत में स्त्री के संपत्ति संबंधी अधिकार पर चर्चा करते हुए उसकी स्थिति पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
प्राचीन भारत में रचे गए अधिकांश धर्मशास्त्र पति व पिता की संपत्ति में औरत की हिस्सेदारी को स्वीकार नहीं करते। समाज पुरुष प्रधान था। इसमें लैंगिक आधार पर भेदभाव था। पैतृक संपत्ति के उत्तराधिकारी पुत्र थे। स्वाभाविक तौर पर इससे समाज में स्त्री की स्थिति पुरुष की तुलना में गौण हो गई।

मनुस्मृति में पिता की मृत्यु के बाद पैतृक संपत्ति में सभी पुत्रों का समान अधिकार स्वीकारा गया है। लेकिन पुत्री को पैतृक संपत्ति में कोई अधिकार नहीं दिया है। यहाँ तक कि पुत्र के अभाव व कोई उत्तराधिकारी न होने की स्थिति में भी यह अधिकार पुत्री को नहीं दिया गया है। मनु ने तो ऐसी संपत्ति को धार्मिक संस्थाओं को देने की बात कही है। सामान्यतया इन शास्त्रकारों ने पति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति में विधवा के अधिकार को भी नहीं माना है।

केवल मात्र स्त्रीधन यानी उपहार के रूप में मिलने वाले धन पर स्त्री के अधिकार को स्वीकृति दी गई है। राजपरिवारों तथा अन्य कुलीन परिवारों में औरतों के पास सुविधाओं की कमी नहीं थी, परंतु इस पर भी पुरुष की तुलना में उनकी स्थिति गौण ही रहती थी, क्योंकि सामान्य रूप से धन अर्जन के साधनों (औज़ार, भूमि, पशु, खान, जंगल इत्यादि) पर त्रण पुरुषों का ही रहता था। विद्वानों का मानना है कि जनसाधारण में स्त्रियों की स्थिति’ (Status) कुलीन परिवारों की महिलाओं की तुलना में अच्छी थी, क्योंकि साधारण परिवारों की औरतें अपने परिवार के पुरुष सदस्यों के साथ मिलकर खेत-खलिहानों में काम करती थीं। उन पर ‘पुरुष-नियंत्रण’ अपेक्षाकृत कम था। वे अधिक स्वतंत्र थीं।

प्रश्न 8.
भारत में दानशीलता और सामाजिक प्रतिष्ठा के बीच क्या संबंध रहा है? तमिल साहित्य से कुछ उदाहरणों से स्पष्ट करें।
उत्तर:
भारत में दान देने की परंपरा रही है। धनी व्यक्तियों के लिए सामाजिक प्रतिष्ठा अर्जित करने का यह एक महत्त्वपूर्ण माध्यम रही है। समाज में कंजूस व्यक्ति का सम्मान नहीं था। उसके पास धन होने के बावजूद भी लोग उसे महत्त्व नहीं देते थे, बल्कि उनसे घृणा करते थे। दानशील व्यक्ति की प्रशंसा की जाती थी। यह काम मुख्यतः उनके चारण एवं कवि करते थे। दानशील व्यक्तियों की प्रतिष्ठा में गीत-काव्य रचे गए।

प्राचीन तमिल साहित्य में भी इसके उदाहरण मिलते हैं। प्राचीन तमिलकम् क्षेत्र में (लगभग 2000 वर्ष पहले) अनेक सरदारियाँ (Chiefdoms) थीं। इनके सरदारों ने चारणों एवं कवियों को आश्रय दिया और उन्होंने अपने आश्रयदाताओं का खूब बखान किया।

कुछ गीत/कविताएँ इनमें से संगम साहित्य में शामिल हुईं जो प्राचीन दक्षिण भारत के सामाजिक व आर्थिक संबंधों को समझने के लिए काफी महत्त्वपूर्ण हैं। दानशीलता पर रचे गए प्राचीन चारण साहित्य से दो बातें स्पष्ट होती हैं-पहली, समाज में व्यापक विषमता उत्पन्न हो चुकी थी। कुछ लोग काफी धनी थे तो कुछ भुखमरी से ग्रस्त थे। दूसरी बात यह स्पष्ट होती है कि समृद्ध लोग निर्धन लोगों की कुछ सहायता करते थे। लोगों की कुछ भूख मिटती थी तो धनवान को जय-जयकार मिलती थी।

प्रश्न 9.
एक साहित्यिक स्रोत के तौर पर इतिहासकार महाभारत को कैसे पढ़ते हैं?
उत्तर:
इतिहासकार साहित्यिक स्रोतों का उपयोग बड़ी सावधानी से करते हैं। वे इस बात का ध्यान करते हैं कि अमुक ग्रंथ का लेखक कौन है, उसका सामाजिक दृष्टिकोण क्या है, क्योंकि इनका लेखक भी अपने पूर्वाग्रहों से प्रभावित हो सकता है। वे ग्रंथ की भाषा पर भी विचार करते हैं। इतिहासकारों को महाभारत जैसे विशाल और जटिल ग्रंथ के सामाजिक इतिहास के पुनर्निर्माण में इस्तेमाल करते हुए इन सभी बातों को ध्यान में रखना पड़ता है। दो तथ्य उल्लेखनीय हैं
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  • भाषा-महाभारत मूलतः संस्कृत में लिखा गया है, परंतु इसकी संस्कृत वेदों और प्रशस्तियों की भाँति जटिल नहीं है। यह उनकी अपेक्षा काफी सरल है।
  • विषय-वस्तु-महाभारत की विषय-वस्तु को इतिहासकार सामान्यतः दो भागों में बाँटते हैं-आख्यान तथा उपदेशात्मक। आख्यान के अंतर्गत कहानियों का संग्रह रखा गया है। जबकि उपदेशात्मक के अंतर्गत सामाजिक आचार-विचार के मानदंड आते हैं। महाभारत का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपदेशात्मक अंश भगवद्गीता है। इसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया।

दीर्घ-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
महाभारत की ऐतिहासिकता के संदर्भ में ‘हस्तिनापुर की खोज’ पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
संस्कृत साहित्य परंपरा में महाभारत को ‘इतिहास’ (ऐसा ही हुआ) माना गया है। अतः विद्वानों ने इसकी ऐतिहासिकता के पहलुओं पर विचार किया है, यहाँ तक कि उत्खनन के माध्यम से भी साक्ष्यों की तलाश की। आओ ‘हस्तिनापुर की खोज’ पर विचार करें-

सदृश्यता के आधार पर महाभारत में वर्णित जिन स्थानों की पहचान की जाती है उनमें ‘हस्तिनापुर’ नामक आधुनिक उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में स्थित ग्राम भी है। दावा यह किया जाता है कि यह वही स्थान है जहाँ कभी कुरु राज्य की राजधानी होती थी। ऐसा मानने वालों का यह भी तर्क है कि नाम का तो संयोग संभव है लेकिन इसका कुरु राज्य क्षेत्र में पड़ना मात्र संयोग नहीं हो सकता।

‘हस्तिनापुर’ की ऐतिहासिकता की जाँच के लिए (1951-52) प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता बी.बी. लाल के नेतृत्व में उत्खनन कार्य शुरू किया गया। उन्हें यहाँ आबादी के बसावट के पाँच स्तर मिले। जिनमें दूसरा और तीसरा स्तर विचाराधीन विषय पर महत्त्वपूर्ण है। दूसरे स्तर का काल निर्धारण 12वीं से 7वीं शताब्दी ई०पू० के बीच किया गया है। यह लगभग वही अवधि है जिसमें कभी ‘सूत रचनाकारों’ ने महाभारत की मूल गाथा रची थी। इस दूसरे ‘स्तर’ पर तैयार अपनी रिपोर्ट में प्रो० बी.बी. लाल लिखते हैं, “जिस सीमित क्षेत्र का उत्खनन हुआ वहाँ से घरों की कोई निश्चित परियोजना नहीं मिलती किंतु मिट्टी की बनी दीवारें और कच्ची मिट्टी की ईंटें अवश्य मिलती हैं।

सरकंडे की छाप वाले पलस्तर की खोज इस बात की ओर संकेत करती है कि कुछ घरों की दीवारें सरकंडे की बनी थीं जिन पर मिट्टी का पलस्तर चढ़ा दिया जाता था।” तीसरे स्तर, जिसका काल छठी से तीसरी शताब्दी ई०पू० माना गया, के विषय में बी.बी. लाल निष्कर्ष निकालते हैं, “इस स्तर के घर कच्ची ईंटों तथा पक्की ईंटों से बने हुए थे। गंदे पानी की निकासी के लिए शोषक-घट (Soakage Jar) तथा ईंटों के नालों का प्रयोग किया जाता था। वलय-कूपों (Ring-Wells) का उपयोग कुओं (पीने के पानी के लिए) और मल की निकासी वाले गों, दोनों ही रूपों में किया जाता था।”
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बी.बी. लाल के इन दोनों निष्कर्षों को यदि हम ध्यान से पढ़ें तो पाते हैं कि 7वीं शताब्दी ई०पू० तक तो इस स्थान पर पक्की ईंटों का प्रयोग ही नहीं था। ऐसे में जिस भव्य नगर का वर्णन साहित्य में मिलता है, उसकी संभावना पुरातात्विक साक्ष्यों में दिखाई नहीं पड़ती। या तो यह वर्णन कवियों की कल्पना मात्र था या फिर यह मूल गाथा के साथ बाद के काल (ईसा पूर्व छठी शताब्दी के बाद) में जोड़ा गया जब इस क्षेत्र में नगरीय विकास हुआ।

प्रश्न 2.
महाभारत के समालोचनात्मक संस्करण का परिचय देते हुए इसकी दो मुख्य विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
शुरू में महाभारत की गाथा मौखिक तौर पर एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में चलती रही। कालांतर में इसे ब्राह्मण विद्वानों ने लिखित रूप दिया। वर्तमान में महाभारत के संपूर्ण आदिपर्वन् की कुल 235 हस्तलिपियाँ हैं। इनमें 107 देवनागरी और 26 कन्नड़ लिपि में हैं। शेष कश्मीरी, मैथिली (नेपाल से) बांग्ला, तेलुगु व मलयालम आदि में हैं। इन हस्तलिपियों की अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं और कोई भी दो हस्तलिपियाँ एक जैसी नहीं हैं। इसीलिए इस ग्रंथ के एक समालोचनात्मक संस्करण की जरूरत पड़ी।

संस्कृत साहित्य में समालोचनात्मक कार्य मूलकथा के निकट पहुँचने का प्रयास होता है। महाभारत के मूल पाठ (शुद्ध रूप) को स्थापित करने का कार्य साधारण नहीं था। यह एक भारी चुनौती थी।

इस चुनौती को सन् 1919 में संस्कृत के सुप्रसिद्ध विद्वान वी.एस. सुकथांकर ने स्वीकार किया। एकत्रित ग्रंथों का वर्गीकरण किया गया और फिर संपूर्ण उपलब्ध साक्ष्यों का अध्ययन करके 13000 पृष्ठों का एक समालोचनात्मक संस्करण तैयार किया गया। इन्हें 19 खंडों में प्रकाशित किया। इसे पूरा होने में 47 वर्ष लगे। इस परियोजना से महाभारत की निम्नलिखित दो विशेषताएँ उभरकर सामने आईं

  • समानता-संस्कृत के मूल पाठों (ग्रंथों) के बहुत से अंशों में समानता थी।
  • क्षेत्रीय प्रभेद-समानता के साथ इन पांडुलिपियों में काफी अंतर भी हैं। वस्तुतः यह ग्रंथ जैसे-जैसे भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों में प्रसारित हुआ तो धीरे-धीरे इसमें क्षेत्रीय लोक परंपराओं और विश्वासों का समावेश होता गया।

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