HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

Haryana State Board HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Important Questions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के अन्तर्गत कुछेक वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। ठीक उत्तर का चयन कीजिए

1. ‘अकबरनामा’ का लेखक कौन था?
(A) अकबर
(B) गुलबदन बेगम
(C) अबुल फज्ल
(D) बाबर
उत्तर:
(C) अबुल फज्ल

2. ‘आइन-ए-अकबरी’ रचना है
(A) अकबर की
(B) बाबर की
(C) अबुल फज्ल की
(D) जहाँगीर की
उत्तर:
(C) अबुल फज्ल की

3. ‘आइन-ए-अकबरी’ का लेखन पूरा हुआ
(A) 1556 ई० में
(B) 1565 ई० में
(C) 1590 ई० में
(D) 1598 ई० में
उत्तर:
(D) 1598 ई० में

4. शाह नहर की मरम्मत किसने करवाई थी?
(A) बाबर ने
(B) अकबर ने
(C) जहाँगीर ने
(D) शाहजहाँ ने
उत्तर:
(D) शाहजहाँ ने

5. मुगलकाल में आर्थिक इतिहास की जानकारी देने वाला सबसे प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है
(A) बाबरनामा
(B) अकबरनामा
(C) आइन-ए-अकबरी
(D) तुजक-ए-जहाँगीरी
उत्तर:
(C) आइन-ए-अकबरी

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6. मुगलकालीन स्रोतों में रैयत’ शब्द का अर्थ लिया जाता है
(A) कृषक से
(B) प्रजा से
(C) दोनों से
(D) किसी से नहीं
उत्तर:
(C) दोनों से

7. मुगलकाल में कृषक श्रेणी में नहीं आता था
(A) ज़मींदार
(B) खुद-काश्त
(C) पाहि-काश्त
(D) मुंजारा
उत्तर:
(A) ज़मींदार

8. पानीपत की पहली लड़ाई कब हुई थी?
(A) 1517 ई० में
(B) 1526 ई० में
(C) 1556 ई० में
(D) 1761 ई० में
उत्तर:
(B) 1526 ई० में

9. मुगलकाल में सरकारी भूमि कहलाती थी
(A) जागीर
(B) मदद-ए-मास
(C) खिराज
(D) खालिसा
उत्तर:
(D) खालिसा

10. किसी अधिकारी या मनसबदार को उसकी सेवा के बदले दिया जाने वाला भू-क्षेत्र कहलाता था
(A) जागीर
(B) मदद-ए-मास
(C) खिराज
(D) खालिसा
उत्तर:
(A) जागीर

11. रहट का सामान्य तौर पर सिंचाई के लिए प्रयोग प्रारंभ हुआ
(A) गुप्तकाल में
(B) मौर्य काल में
(C) मुगलकाल में
(D) ब्रिटिश काल में
उत्तर:
(C) मुगलकाल में

12. अकबर की मृत्यु कब हुई थी ?
(A) 1530 ई० में
(B) 1605 ई० में
(C) 1556 ई० में
(D) 1707 ई० में
उत्तर:
(B) 1605 ई० में

13. मुग़लकाल में कौन-सी नई फसल कृषि व्यवस्था का हिस्सा बनी?
(A) तम्बाकू
(B) रेशम
(C) मक्का
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

14. रबी की फसल की कटाई होती थी
(A) जून-जुलाई में
(B) अक्तूबर-नवम्बर में
(C) दिसम्बर-जनवरी में
(D) मार्च-अप्रैल में
उत्तर:
(D) मार्च-अप्रैल में

15. जाति व्यवस्था में महत्त्व दिया जाता था
(A) सामाजिक हैसियत को
(B) पैतृक व्यवसाय को
(C) जातीय बंधनों को
(D) उपर्युक्त सभी को
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी को

16. ‘आईन-ए-अकबरी’ कितने भागों का संकलन है?
(A) 4
(B) 5
(C) 6
(D) 3
उत्तर:
(D) 3

17. ग्राम पंचायत के फैसले प्रायः किए जाते थे
(A) कृषक वर्ग द्वारा
(B) बहुमत द्वारा
(C) गाँव के प्रभावी लोगों द्वारा
(D) सरकार के निर्देशों द्वारा
उत्तर:
(C) गाँव के प्रभावी लोगों द्वारा

18. ग्राम पंचायत के मुखिया का चुनाव प्रायः होता था
(A) बहुमत के आधार पर
(B) पैतृक आधार पर
(C) सर्वसम्मति से
(D) सरकारी अधिकारियों द्वारा
उत्तर:
(B) पैतृक आधार पर

19. मुगल काल में पंचायत का मुखिया कौन होता था?
(A) मनसबदार
(B) आमिल
(C) दीवान
(D) मुकद्दम या मंडल
उत्तर:
(D) मुकद्दम या मंडल

20. जातीय पंचायत का कठोरतम दंड था
(A) मृत्यु दंड देना
(B) ज़मीन से बेदखल करना
(C) सामाजिक बहिष्कार
(D) कैद में डालना
उत्तर:
(C) सामाजिक बहिष्कार

21. निम्न-वर्ग के व्यक्ति को यदि पंचायत में न्याय नहीं मिलता तो वह क्या करता था?
(A) बदले में सामाजिक बहिष्कार
(B) कोतवाल के पास शिकायत
(C) गाँव छोड़कर भाग जाना
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) गाँव छोड़कर भाग जाना

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22. ग्राम समाज में कृषक एवं गैर-कृषक का अन्तर समाप्त हो जाता था
(A) फसल की कटाई, निराई व बुआई के समय
(B) पंचायत के फैसले करते हुए
(C) किसी सामूहिक कार्यक्रम में
(D) ज़मींदार के आगमन पर
उत्तर:
(A) फसल की कटाई, निराई व बुआई के समय

23. गैर-कृषि कार्य की सेवा के बदले अनाज देने की प्रथा के लिए 18वीं शताब्दी में कौन-सा शब्द अधिक प्रयोग होने लगा?
(A) खरायती
(B) जजमानी
(C) सेवा शुल्क
(D) साझीदारी
उत्तर:
(B) जजमानी

24. पश्चिमी स्रोतों में भारतीय गाँव को कहा गया है
(A) शिविरिम
(B) अविकसित व पिछड़े हुए
(C) एक छोटा गणराज्य
(D) ये सभी
उत्तर:
(C) एक छोटा गणराज्य

25. कृषि के कार्य में महिला साथ देती थी
(A) फसल कटाई में
(B) अनाज से दाना निकालने में
(C) फसल की निराई में
(D) उपर्युक्त सभी में
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी में

26. गैर-कृषि कार्य में यह कार्य मात्र महिलाओं का माना जाता था
(A) खाना पकाने का
(B) सूत कातने का
(C) मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए मिट्टी बनाने का
(D) उपर्युक्त सभी का
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी का

27. मुगलकाल में महिलाओं के बारे में प्रमाण मिलते हैं
(A) विधवा पुनर्विवाह के
(B) दुल्हन की कीमत लेने के
(C) महिला का भू-स्वामी होने के
(D) उपर्युक्त सभी के
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी के

28. पंचायतें महिलाओं को न्याय देते समय ध्यान रखती थीं
(A) महिला की जाति का
(B) शिकायतकर्ता का शोषक से रिश्ते का
(C) दोनों का
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) दोनों का

29. जंगलवासी मुगल राज्य को उपलब्ध कराते थे
(A) हाथी
(B) हथियार
(C) लकड़ी
(D) रेशम
उत्तर:
(A) हाथी

30. जंगलवासियों की व्यवस्था में परिवर्तन का कारण था
(A) जंगल के उत्पादनों का वाणिज्यिक होना
(B) जंगल के सरदारों का सरकारी सेवा में जाना
(C) जंगलों की कटाई से कृषि का विस्तार
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

31. कृषि संबंधों में वह वर्ग कौन-सा था जो कृषि उत्पादन पर कब्जा करता था, लेकिन स्वयं कृषि नहीं करता था?
(A) कृषक
(B) ज़मींदार
(C) राजस्व अधिकारी
(D) बिचौलिए
उत्तर:
(B) ज़मींदार

32. निम्नलिखित ज़मींदार की श्रेणी नहीं थी
(A) प्रारंभिक
(B) मध्यस्थ
(C) स्वायत्त मुखिया
(D) खुद-काश्त
उत्तर:
(D) खुद-काश्त

33. मुगलकाल में भूमि की मिल्कियत होती थी
(A) ज़मींदार के पास
(B) कृषक के पास
(C) सरकार के पास
(D) पटवारी के पास
उत्तर:
(A) ज़मींदार के पास

34. जमींदारी प्राप्त करने का मुख्य स्रोत था
(A) पैतृक पद्धति
(B) युद्ध द्वारा क्षेत्र पर अधिकार
(C) जंगल की सफाई
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

35. राज्य की आर्थिक नीतियों के विरुद्ध विद्रोह किया
(A) कृषकों ने
(B) ज़मींदारों ने
(C) दोनों ने
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) दोनों ने

36. अकबर के काल में भू-राजस्व व्यवस्था को नाम दिया जाता था
(A) टोडरमल का बन्दोबस्त
(B) स्थायी बन्दोबस्त
(C) महालवाड़ी
(D) रैयतवाड़ी
उत्तर:
(A) टोडरमल का बन्दोबस्त

37. मुगलकाल में कर एकत्रित व निर्धारित करने वाला अधिकारी था
(A) मीर-ए-अर्ज
(B) मीरबक्शी
(C) अमील गुज़ार
(D) दरोगा
उत्तर:
(C) अमील गुज़ार

38. मुगलकाल में सर्वाधिक उपजाऊ जमीन को कहा जाता था
(A) परौती
(B) चचर
(C) पोलज
(D) बंजर
उत्तर:
(C) पोलज

39. मुगलकाल में कर एकत्रित करने की पद्धति थी
(A) जब्ती
(B) गल्ला बक्शी
(C) कनकूत
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

40. मुगलकाल में यूरोप के साथ भारत का अधिकतर व्यापार होने लगा था
(A) जल मार्ग से
(B) थल मार्ग से
(C) दोनों से
(D) किसी से नहीं
उत्तर:
(A) जल मार्ग से

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41. मुगलकाल में भारत में अधिक चाँदी एकत्रित हई
(A) चाँदी खानों से
(B) विदेशी व्यापार से
(C) पुश्तैनी संपत्ति से
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) विदेशी व्यापार से

42. 1690 ई० के आस-पास आने वाला इटली का यात्री था
(A) बर्नियर
(B) मनूची
(C) कारेरी
(D) तैवर्नियर
उत्तर:
(C) कारेरी

43. मुद्रा के अधिक प्रसार से मुख्य रूप से परिवर्तन आया
(A) राजस्व एकत्रित के तरीकों में
(B) आन्तरिक व्यापार में
(C) ग्राम व शहर के संबंधों में
(D) उपर्युक्त सभी में
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी में

44. तकावी क्या थी?
(A) उर्वर भूमि
(B) किसानों का ऋण
(C) नगदी फसल पर मामूली कर
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) किसानों का ऋण

45. करोड़ी कौन थे?
(A) उत्तर भारत में राजस्व वसूलने वाले वे अधिकारी जिनसे एक करोड़ रुपए का राजस्व राजकोष को प्राप्त होता था
(B) वैसे अधिकारी जो कानूनगो द्वारा उपलब्ध कराए गए तथ्यों और आँकड़ों का निरीक्षण करते थे
(C) उपर्युक्त दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) उपर्युक्त दोनों

46. किस मुग़ल शासक ने सर्वप्रथम अकाल के समय राहत कार्य को शुरू किया था?
(A) जहाँगीर
(B) शाहजहाँ
(C) औरंगजेब
(D) अकबर
उत्तर:
(D) अकबर

47. अकबर के किस दीवान ने भू-राजस्व उपज के स्थान पर नगद जमा करवाने की प्रथा को आरंभ किया था?
(A) टोडरमल
(B) मानसिंह
(C) मुजफ्फर खाँ
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) टोडरमल

48. भू-राजस्व के लिए अकबर ने किस संवत को अपनाया?
(A) विक्रमी संवत्
(B) हिजरी संवत्
(C) इलाही संवत्
(D) ईस्वी
उत्तर:
(C) इलाही संवत्

49. माप और उस पर कर निर्धारण की प्रणाली को क्या कहा जाता है?
(A) काकूत
(B) नसक
(C) गल्ला बख्शी
(D) जब्ती
उत्तर:
(D) जब्ती

50. मुकद्दम को माल गुजारी वसूल करने के बदले में दस्तूरी के रूप में उपज का कितने प्रतिशत मिलता था?
(A) 2 1/2%
(B) 5%
(C) 5 1/2%
(D) 7%
उत्तर:
(A) 2 1/2%

51. डॉ० सतीश चन्द्र के अनुसार मुगलों के पतन का मुख्य कारण क्या था?
(A) औरंगज़ेब की धार्मिक नीति
(B) कमज़ोर उत्तराधिकारी
(C) औरंगज़ेब की दक्षिण नीति
(D) जागीरदारी को चलाने का ढाँचा
उत्तर:
(D) जागीरदारी को चलाने का ढाँचा

52. अकबर की राजधानी थी
(A) आगरा
(B) दिल्ली
(C) फतेहपुर सीकरी
(D) अजमेर
उत्तर:
(C) फतेहपुर सीकरी

53. कनकूत की विशेषता क्या थी?
(A) यह अपेक्षाकृत कम था
(B) इसमें समय कम लगता था
(C) राजस्व अधिकारी की आवश्यकता नहीं थी
(D) अनाज को खलिहान में देखना नहीं पड़ता था
उत्तर:
(D) अनाज को खलिहान में देखना नहीं पड़ता था

54. आसामी क्या था?
(A) बहुत-से जमींदारी गाँवों का समूह
(B) एक अकेला किसान
(C) भू-राजस्व वसूल करने वाले अधिकारी
(D) जिनकी फसल अच्छी हो
उत्तर:
(B) एक अकेला किसान

55. मुगलकाल के अंत में जमींदारी प्रथा में कुछ परिवर्तन हुआ, निम्नलिखित में से कौन-सा उससे सम्बन्धित नहीं था?
(A) जाट, सिक्ख और सतनामी जैसे किसान विद्रोहों के पीछे जमींदारों का ही हाथ था
(B) जब-जब जाट या मराठा जमींदारों को अपने विद्रोहों में सफलता हाथ लगी, उन्होंने जमींदार और शासक दोनों की भूमिका अदा की
(C) दूसरे भू-राजस्व किसानों ने जमींदारी अधिकारों की मांग नहीं की
(D) ब्रिटिश शासन की स्थापना के बाद जमींदारों के अधिकारों में मुगलकाल की अपेक्षा काफी वृद्धि हो गई
उत्तर:
(C) दूसरे भू-राजस्व किसानों ने जमींदारी अधिकारों की मांग नहीं की

56. जमींदारी प्रथा के बारे में कौन-सा कथन सत्य है?
(A) जमींदारों ने छोटे-छोटे दुर्ग बनाए और इनकी देखभाल के लिए छोटी-सी फौज रखी
(B) जमींदारों में भी उप-विभाजन था जो मध्यस्थ जमींदारों के रूप में जाने जाते थे
(C) मध्यस्थ जमींदार बहुत-से लाभों को प्राप्त करते थे यथा लगान रहित भूमि दलाली, उपकर आदि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

57. मुगलकालीन भारत में दो मुख्य कृषक वर्ग थे
(A) खुद-काश्त व पाहि-काश्त
(B) किसान और जमींदार
(C) जमींदार और जागीरदार
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) खुद-काश्त व पाहि-काश्त

58. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है?
(A) जागीर कभी भी स्थानांतरित नहीं होती थी
(B) जागीरदारों का अपनी जागीरों पर स्थायी कब्जा होता था
(C) जागीरदारों के पास न्यायिक अधिकार नहीं थे
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) जागीरदारों के पास न्यायिक अधिकार नहीं थे।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
पानीपत की पहली लड़ाई कब हुई?
उत्तर:
पानीपत की पहली लड़ाई 1526 ई० में हुई।

प्रश्न 2.
मुगलकाल में कितने प्रतिशत लोग गाँव में रहते थे?
उत्तर:
मुगलकाल में 85% से अधिक लोग गाँव में रहते थे।

प्रश्न 3.
अबुल फज्ल की किन्हीं दो पुस्तकों के नाम लिखो।
उत्तर:
‘अकबरनामा’ व ‘आइन-ए-अकबरी’

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प्रश्न 4.
आइन-ए-अकबरी का लेखन कब पूरा हुआ?
उत्तर:
आइन-ए-अकबरी का लेखन 1598 ई० में पूरा हुआ।

प्रश्न 5.
आइन-ए-अकबरी कुल कितने खण्डों में प्रकाशित है?
उत्तर:
आइन-ए-अकबरी कुल तीन खण्डों में प्रकाशित है।

प्रश्न 6.
मुगलकाल में कृषि व्यवस्था को जानने के लिए अधिक पाण्डुलिपियाँ किस क्षेत्र में मिली हैं?
उत्तर:
मुगल साम्राज्य की कृषि व्यवस्था को जानने वाली पाण्डुलिपियाँ गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र व बंगाल से मिली हैं।

प्रश्न 7.
खुद-काश्त कौन थे?
उत्तर:
जो किसान स्वयं अपनी खेती करते थे, खुद-काश्त कहलाते थे।

प्रश्न 8.
तीन तरह के कृषकों के नाम लिखो।
उत्तर:
खुद-काश्त, पाहि व मुंजारा।

प्रश्न 9.
मुगलकाल में भूमि के दो प्रकार कौन-कौन से थे?
उत्तर:
खालिसा व जागीर।

प्रश्न 10.
मुगलकाल में सरकारी जमीन क्या कहलाती थी?
उत्तर:
मुगलकाल में सरकारी ज़मीन खालिसा कहलाती थी।

प्रश्न 11.
‘हिंदुस्तान में गाँव व शहर पलभर में उजड़ जाते थे।’ यह कथन किसका है?
उत्तर:
यह कथन बाबर का है।

प्रश्न 12.
भारत में मुगलकाल में कृषि व्यवस्था सिंचाई के लिए किस पर आश्रित थी?
उत्तर:
मुगलकाल में कृषि सिंचाई के लिए मानसून की वर्षा पर निर्भर थी।

प्रश्न 13.
मुग़लकाल में फसल चक्र को किन दो नामों से जाना जाता था?
उत्तर:
मुगलकाल में फसल चक्र को खरीफ व रबी के नामों से जाना जाता था।

प्रश्न 14.
भारत में तम्बाकू कौन लाए?
उत्तर:
भारत में तम्बाकू पुर्तगाली लाए।

प्रश्न 15.
ग्रामीण व्यवस्था में व्यक्ति के लिए कठोर दण्ड क्या था?
उत्तर:
ग्रामीण व्यवस्था में व्यक्ति को ग्राम तथा जाति से बाहर निकालना सबसे कठोर दंड था।

प्रश्न 16.
मुगलकाल में ग्राम व्यवस्था का संचालन कौन करता था?
उत्तर:
मुगलकाल में ग्राम व्यवस्था का संचालन पंचायत करती थी।

प्रश्न 17.
गाँव में झगड़ों का निपटारा कौन करता था?
उत्तर:
गाँव में झगड़ों का निपटारा पंचायत करती थी।

प्रश्न 18.
ग्रामीण व्यवस्था में जाति व्यवस्था का नियमन कैसे किया जाता था?
उत्तर:
ग्रामीण व्यवस्था में जाति व्यवस्था का नियमन ‘जाति की पंचायत’ द्वारा किया जाता था।

प्रश्न 19.
गाँव में गैर-कृषि कार्य करने वालों की औसत संख्या क्या थी?
उत्तर:
गाँव में गैर-कृषि कार्य करने वालों की औसत संख्या 25 से 30% थी।

प्रश्न 20.
प्रारंभिक पश्चिमी स्रोतों में गाँव को क्या कहा गया है?
उत्तर:
प्रारंभिक पश्चिमी स्रोतों में गाँव को ‘एक छोटा गणराज्य’ कहा गया है।

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प्रश्न 21.
मुगलकाल में गाँव में आपस में विनिमय कैसे होता था?
उत्तर:
मुगलकाल में गाँव के लोग आपस में विनिमय वस्तुओं से करते थे।

प्रश्न 22.
क्या महिलाएँ मुगलकाल में भूमि की मालिक हो सकती थीं?
उत्तर:
हाँ, इस काल में महिलाएँ भूमि की मालिक हो सकती थीं।

प्रश्न 23.
जंगलवासियों का जीवन कैसा था?
उत्तर:
जंगलवासियों का जीवन प्रकृतिमूलक था।

प्रश्न 24.
जंगलवासियों पर राज्य किसके लिए आश्रित था?
उत्तर:
जंगलवासियों पर राज्य हाथियों के लिए आश्रित था।

प्रश्न 25.
मुगलकाल में ज़मींदारों को किन-किन नामों से जाना जाता था?
उत्तर:
मुगलकाल में ज़मींदार प्रारंभिक, मध्यस्थ व स्वायत्त मुखिया के नाम से जाने जाते थे।

प्रश्न 26.
मुगलकाल में ज़मींदारी का मुख्य आधार क्या था?
उत्तर:
मुगलकाल में ज़मींदारी मुख्य रूप से पैतृक आधार पर मिलती थी।

प्रश्न 27.
राज्य के विरुद्ध विद्रोहों में कृषक व ज़मींदार की आपसी स्थिति क्या थी?
उत्तर:
राज्य के विरुद्ध विद्रोहों में कृषक व ज़मींदार साथ-साथ थे।

प्रश्न 28.
अकबर के काल में भू-राजस्व व्यवस्था का मुखिया कौन था?
उत्तर:
अकबर के काल में भू-राजस्व व्यवस्था का मुखिया राजा टोडरमल था।

प्रश्न 29.
मुगलकाल में सबसे अच्छी ज़मीन को क्या कहा गया?
उत्तर:
मुगलकाल में सबसे अच्छी ज़मीन को पोलज कहा गया।

प्रश्न 30.
मुगलकाल में कर एकत्रित करने के लिए सर्वाधिक प्रयोग में आने वाली पद्धति क्या थी?
उत्तर:
मुगलकाल में कर एकत्रित करने के लिए प्रयुक्त होने वाली पद्धति जब्ती थी।

प्रश्न 31.
इटली के किस यात्री ने अपने वृत्तांत में यह बताया है कि विश्व का सारा सोना-चाँदी भारत में एकत्रित होता है?
उत्तर:
यह जानकारी इटली के यात्री जोवान्नी कारेरी ने दी।

प्रश्न 32.
मुगल वंश के समकालीन चीन में कौन-सा वंश था?
उत्तर:
मुगल वंश के समकालीन चीन में मिंग वंश था।

प्रश्न 33.
16वीं व 17वीं शताब्दी में ईरान पर किस वंश का शासन था?
उत्तर:
इस काल में ईरान पर सफावी वंश का शासन था।

प्रश्न 34.
गाँव में लोगों का मुख्य व्यवसाय क्या था?
उत्तर:
गाँव में लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था।

प्रश्न 35.
मुगलकाल में मुख्य फसलें कौन-कौन सी थीं?
उत्तर:
मुख्य फसलें गेहूँ, चावल, जौ, बाजरा, चना, दालें, कपास, गन्ना, नील, तिलहनी फसलें, पोस्त आदि थीं।

प्रश्न 36.
कंधार में किस प्रकार की गेहूँ पैदा होती थी?
उत्तर:
कंधार में एक विशेष प्रकार की श्वेत गेहूँ पैदा होती थी।

प्रश्न 37.
उस समय दलहनी फसलें कौन-कौन सी होती थीं?
उत्तर:
उस समय मूंग, मोठ, माश, अरहर, लोबिया आदि मुख्य दलहनी फसलें पैदा होती थीं।

प्रश्न 38.
सबसे बढ़िया नीलं कहाँ पर पैदा होता था?
उत्तर:
सबसे बढ़िया नील ब्याना तथा खरखेज नामक स्थानों में उत्पन्न होता है।

प्रश्न 39.
उस समय भूमि को कितने भागों में बाँटा जाता था?
उत्तर:
उस समय भूमि को चार भागों में बाँटा जाता था(i) पोलज, (ii) परौती, (ii) चचर, (iv) बंजर।

प्रश्न 40.
पोलज और परौती पर भूमि कर कितना था?
उत्तर:
पोलज और परौती भूमि पर भूमि कर 1/3 भाग था।

प्रश्न 41.
कौन-से शहरों में शाही कारखानों की स्थापना की गई थी?
उत्तर:
उस समय लाहौर, आगरा, फतेहपुर सीकरी, अहमदाबाद आदि नगरों में शाही कारखानों की स्थापना की गई थी।

प्रश्न 42.
उस समय प्रसिद्ध उद्योग कौन-सा था?
उत्तर:
उस समयं सूती कपड़ा उद्योग प्रसिद्ध उद्योग था।

प्रश्न 43.
उस समय दरियाँ कौन-से शहरों में बनाई जाती थीं?
उत्तर:
मुलतान, लाहौर, फतेहपुर सीकरी, अलवर, जौनपुर आदि स्थानों पर दरियाँ बनाई जाती थीं।

प्रश्न 44.
रेशमी कपड़ा तैयार करने के उद्योग कौन-से थे?
उत्तर:
अहमदाबाद, बिहार तथा बंगाल में रेशमी कपड़ा उद्योग थे।

प्रश्न 45.
ऊनी गलीचों तथा शालों का प्रसिद्ध उद्योग कहाँ पर था?
उत्तर:
कश्मीर में।

प्रश्न 46.
रेशमी कागज़ तैयार करने का उद्योग कहाँ पर था?
उत्तर:
रेशमी कागज़ तैयार करने का उद्योग स्यालकोट में था।

प्रश्न 47.
युद्ध शस्त्र बनाने का कारखाना कहाँ पर था?
उत्तर:
लाहौर तथा गुजरात में युद्ध शस्त्र बनाने के उद्योग थे।

प्रश्न 48.
भारत का व्यापार किन-किन देशों से होता था?
उत्तर:
भारत का व्यापार लंका, बर्मा, जावा, सुमात्रा, तिब्बत, नेपाल, ईरान, मध्य एशिया, मिस्र, पूर्वी अफ्रीका, यूरोप आदि देशों से होता था।

अति लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आइन-ए-अकबरी क्यों लिखी गई?
अथवा
आइन-ए-अकबरी’ का लेखन क्यों किया गया?
उत्तर:
आइन-ए-अकबरी अकबर के दरबारी अबुल फज़्ल द्वारा लिखी गई। इसका मुख्य उद्देश्य अकबर के शासन काल की घटनाओं के साथ-साथ सामाजिक व आर्थिक पक्ष को जानना था। दूसरों शब्दों में आइन-ए-अकबरी के लेखन का उद्देश्य अकबर के शासन काल के शाही कानूनों को सारांश में लिखना था।

प्रश्न 2.
आइन-ए-अकबरी के खण्डों के नाम लिखो।
उत्तर:
आइन-ए-अकबरी के तीन खण्ड हैं। इसके पहले खण्ड का नाम मंजिल आबादी, दूसरे खण्ड का नाम सिपह आबादी तथा तीसरे का नाम मुल्क आबादी है।

प्रश्न 3.
आइन-ए-अकबरी की किन्हीं दो सीमाओं या दोषों का वर्णन करो।
उत्तर:
आइन-ए-अकबरी की दो सीमाओं का वर्णन इस प्रकार से है
(i) आइन-ए-अकबरी पूरी तरह से दरबारी संरक्षण में लिखी गई है। लेखक कहीं भी अकबर के विरुद्ध कोई शब्द प्रयोग नहीं कर पाया। उसने विभिन्न विद्रोहों के कारणों व दमन को भी एकपक्षीय ढंग से प्रस्तुत किया है।

(ii) आइन-ए-अकबरी में विभिन्न स्थानों पर जोड़ में गलतियाँ पाई गई हैं। यहाँ यह माना जाता है कि गलतियाँ अबुल फज़्ल के सहयोगियों की गलती से हुई होगी या फिर नकल उतारने वालों की गलती से।

प्रश्न 4.
खुद-काश्त कौन थे? उनका समाज में क्या स्थान था?
उत्तर:
खुद-काश्त दो शब्दों के मेल से बना है खुद एवं काश्त। जिसका अर्थ है वह व्यक्ति जो अपनी भूमि को स्वयं जोतता हो अर्थात् अपनी भूमि पर स्वयं खेती करने वाला। इस व्याख्या के अनुसार कृषक अपनी भूमि का मालिक होता था। वह अपने गाँव में ही परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर खेती करता था। वह अपनी भूमि को बेचने, गिरवी रखने या हस्तान्तरित करने का अधिकार रखता था। उसे ज़मीन से बेदखल नहीं किया जा सकता था। वे गाँव में सबसे ऊँचे स्थान पर थे।

प्रश्न 5.
मुगलकाल में मिल्कियत के आधार पर भूमि के दो प्रकार लिखें।
उत्तर:
मुगलकाल में भूमि को खालिसा व जागीर में बाँटा गया है।
(i) खालिसा-खालिसा सरकारी भूमि को कहा जाता था अर्थात् ऐसी भूमि जिसका भू-राजस्व सीधे सरकारी कोष में जमा होता था। इस ज़मीन पर कृषि खुद-काश्त, पाहि-काश्त या मुंजारे करते थे तथा राजस्व सरकारी अधिकारी एकत्रित करते थे।

(ii) जागीर-जागीर उस भू-क्षेत्र को कहा जाता था जिसका राजस्व किसी सरकारी अधिकारी या मनसबदार को उसकी सेवा के बदले दिया जाता था। मनसबदार या जागीरदार, इस जमीन के प्रायः मालिक नहीं होते थे। उन्हें राज्य द्वारा समय-समय पर स्थानान्तरित किया जाता था।

प्रश्न 6.
मुगलकाल में कौन-कौन सी नई फसलें कृषि व्यवस्था का हिस्सा बनीं?
उत्तर:
मुगलकाल में कुछ नई फसलें भी उत्पादित की जाने लगी थीं। इन फसलों में पहला नाम रेशम का था। इस फसल का जीव (कीड़ा) चीन से लाया गया तथा यह बंगाल में बहुत अधिक प्रचलन में आयी। इस काल में नई दूसरी फसल तम्बाकू थी। यह फसल पुर्तगालियों द्वारा 17वीं सदी के प्रारंभ (1603) में अफ्रीकी क्षेत्र से लाई गई। इस काल में अन्य आने वाली फसलों में मक्का, जई, पटसन इत्यादि थीं।

प्रश्न 7.
ग्राम पंचायत का गठन कैसे होता था?
उत्तर:
ग्राम पंचायत में मुख्य रूप से गाँव के सम्मानित बुजुर्ग होते थे। इन बुजुर्गों में भी उनको महत्त्व दिया जाता था जिनके पास पुश्तैनी ज़मीन या सम्पत्ति होती थी। प्रायः गाँव में कई जातियाँ होती थीं इसलिए पंचायत में भी इन विभिन्न जातियों के प्रतिनिधि होते थे। परन्तु इसमें विशेष बात यह है कि साधन सम्पन्न व उच्च जातियों को ही पंचायत में महत्त्व दिया जाता था। खेती पर आश्रित भूमिहीन वर्ग को पंचायत में शामिल अवश्य किया जाता था, लेकिन उन्हें महत्त्व नहीं दिया जाता था।

प्रश्न 8.
मुगलकाल के आर्थिक इतिहास की जानकारी के बाह्य स्रोतों का वर्णन करो।
उत्तर:
बाह्य स्रोतों में मुख्य रूप से ईस्ट इंडिया कम्पनी व अन्य यूरोपीय कम्पनियों व व्यापारियों के दस्तावेज हैं। ये दस्तावेज प्रत्यक्ष तौर पर आर्थिक पक्ष की जानकारी कम ही देते हैं, लेकिन बीच-बीच में अच्छा प्रकाश डालते हैं। इन दस्तावेजों में डायरी, संस्मरण, सरकारी व निजी दस्तावेज हैं। इनमें भारत के व्यापार, आयात-निर्यात, विभिन्न क्षेत्रों में होने वाला कृषि व गैर-कृषि उत्पादन का वर्णन भी है। स्थानीय लोगों की जीवन-शैली व आर्थिक जरूरतों पर ये अधिक प्रकाश डालते हैं। इनका वर्णन दरबारी प्रभाव से मुक्त है।

प्रश्न 9.
पाहि-काश्त से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पाहि का अर्थ होता है-पड़ोसी अर्थात् वह व्यक्ति जो पड़ोस के गाँव की ज़मीन पर खेती करता था। वह दूसरे गाँव की ज़मीन ठेके पर लेता था या खरीद लेता था। इसका कारण दूसरे गाँव की भूमि का अच्छा होना था। कृषक अकाल इत्यादि के समय मजबूरी में कृषि करता था। कुछ स्रोतों में पाहि शब्द की व्याख्या अपने ही गाँव में पड़ोसी की खेती जोतने के रूप में भी की गई है। इस कृषक को शर्तों के अनुरूप खेती करनी होती थी।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

प्रश्न 10.
मुगलकाल में व्यापारिक फसलों या जिन्स-ए-कामिल के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
मुगलकाल में जिन्स-ए-कामिल शब्द का अर्थ उन फसलों से लगाया जाता है जिससे राज्य को कर अधिक मिलता था। गन्ना व कपास सबसे अच्छी फसल कही जाती थी। राज्य के द्वारा भी इन फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए प्रयास किया जाता था। कपास मध्य भारत, दक्षिणी क्षेत्र, बंगाल, गुजरात एवं राजपूताना के क्षेत्रों में उगाई जाती थी। गन्ना पंजाब, दिल्ली, आगरा, बंगाल व अवध क्षेत्र में अधिक मिलता था। तिलहन की फसलें संपूर्ण उत्तरी भारत में उगती थीं। अलीगढ़, ब्याना, आगरा, पटना व बनारस क्षेत्र के नील की विश्व में बहुत अधिक माँग थी। दक्षिण के क्षेत्र में गर्म मसाले पैदा होते थे।

प्रश्न 11.
एक ‘छोटा गणराज्य’ क्या था? इसकी प्रमुख विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर:
एक ‘छोटा गणराज्य’ भारतीय गाँव था, जिसे पश्चिमी लेखकों द्वारा यह शब्द दिया गया है। उनके अनुसार भारत में गाँव आत्मनिर्भर, बहुसंस्कृतीय, अपनी आवश्यकताओं की सभी चीजों का उत्पादन करने वाले थे। यह आन्तरिक प्रशासन के लिए किसी पर निर्भर नहीं थे। इस तरह उनका मानना है कि गाँव छोटी इकाई अवश्य है, लेकिन इनका अस्तित्व स्वतंत्र है। गाँव के लोग सामूहिक स्तर पर संसाधनों व श्रम का बँटवारा करते थे, जबकि सभी को मालूम था कि उनमें सामाजिक बराबरी नहीं है। इस समाज में कुछ ज़मीन के मालिक थे, जबकि कुछ दूसरों की कृषि पर सेवा देकर जीवन-यापन करते थे।

प्रश्न 12.
मुगलकाल में जातीय पंचायत की संक्षिप्त जानकारी दें।
उत्तर:
मुगल काल में लगभग सभी गाँव में कई जातियाँ होती थीं। प्रत्येक जाति की अपनी एक पंचायत होती थी। ये जातीय पंचायत गाँव की परिधि के बाहर भी महत्त्व रखती थीं। इनका अस्तित्व क्षेत्रीय आधार पर भी होता था। ये बहुत शक्तिशाली होती थीं। ये पंचायतें अपनी जाति (बिरादरी) के झगड़ों का निपटारा करती थीं। जातीय परंपरा व बन्धनों के दृष्टिकोण से ये ग्रामीण पंचायतों की तुलना में अधिक कठोर थीं। दीवानी झगड़ों का निपटारा, शादियों के जातिगत मानदंड, कर्मकांडीय गतिविधियों का आयोजन तथा अपने व्यवसाय को मजबूत करना इनके काम थे।

प्रश्न 13.
ग्राम समाज में कृषक व गैर-कृषक वर्ग के आपसी संबंधों का उल्लेख करें।
उत्तर:
मुगलकाल में कृषक व गैर-कृषक समुदाय ग्रामीण संरचना का अटूट हिस्सा था। कृषक समुदाय, फसल की कटाई, जुताई, बिजाई इत्यादि के कार्य स्वयं नहीं कर पाता था। वह इस कार्य के लिए गैर-कृषकों का सहयोग लेता था और ये गैर-कृषक कृषि के मुख्य काम के समय अपने सारे कार्य छोड़कर कृषि कार्य में जुट जाते थे।

प्रश्न 14.
मुगलकाल में ग्रामीण व्यवस्था में क्या-क्या परिवर्तन हुए?
उत्तर:
मुगलकाल में ग्रामीण व्यवस्था में बदलाव आए। इस काल में शहरीकरण का थोड़ा विकास हुआ जिसके चलते गाँव व शहर के बीच व्यापारिक रिश्ते बढ़े। इस कड़ी में वस्तु-विनिमय की बजाय नकद धन का अधिक प्रयोग होने लगा। इसी तरह मुग़ल शासकों ने भू-राजस्व की वसूली जिन्स के साथ-साथ नकदी में भी प्रारंभ की।

प्रश्न 15.
दस्तकार के रूप में महिलाएँ क्या-क्या करती थीं?
उत्तर:
मुगलकाल में महिलाएँ सूत कातने, बर्तन बनाने के लिए मिट्टी को साफ करने, भिगोने तथा गँधने का कार्य करती थीं। वे कपड़े की बुनाई-कढ़ाई भी करती थीं। सामान्य तौर पर जब कृषि कार्य का अधिक दबाव नहीं होता था तो महिलाएँ कुछ-न-कुछ दस्तकारी के कार्य करती रहती थीं।

प्रश्न 16.
जंगलवासियों के जीवन में बदलाव के किन्हीं दो कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
मुगलकाल में जंगलवासियों के जीवन में बदलाव के दो कारक इस प्रकार हैं

  • वाणिज्यिक खेती व व्यापार के कारण जंगलों की सफाई की गई तथा शहद, मधु व लाख की खरीद-बेच ने उनकी परम्परागत जीवन-शैली को बदला।
  • राज्यों की विस्तारवादी नीति व हाथियों की आवश्यकता ने जंगलवासियों को प्रभावित किया। राज्य ने उन्हें संरक्षण दिया और उन्होंने राज्य को हाथी दिए।

प्रश्न 17.
मुगलकाल में ज़मींदार के अधिकार व कर्त्तव्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
मुगलकाल में जमींदारों के पास अपनी ज़मीन की खरीद, बेच, हस्तांतरण, गिरवी रखने का अधिकार था। विभिन्न तरह के प्रशासनिक पदों पर इन्हें नियुक्त किया जाता था। अपने क्षेत्र में विशेष पोशाक, घोड़ा, वाद्य यन्त्र बजाने का अधिकार इनके पास था। भू-राजस्व से इन्हें एक निश्चित मात्रा में कमीशन मिलता था। इनके पास अपनी सेना होती थी। ज़मींदारों के कर्त्तव्यों के बारे में कहा जा सकता है कि अपने क्षेत्र में शांति व्यवस्था स्थापित करने की जिम्मेदारी इनकी थी।

इनके क्षेत्र से शासक व शाही परिवार का कोई सदस्य गुजरता था तो उन्हें वहाँ उपस्थित होना पड़ता था। राज्य के प्रति स्वामीभक्ति इनका सबसे बड़ा कर्त्तव्य था। कुछ ज़मींदार अपने क्षेत्र में धर्मशालाएँ बनवाना व कुएँ खुदवाना भी जरूरी समझते थे।

प्रयन 18.
ज़मींदार व कृषकों के संबंधों पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
मुगलकाल के कुछ साक्ष्यों के अध्ययन से यह बात स्पष्ट होती है कि जमींदार वर्ग अपने अधीन कृषक वर्ग का शोषण करता था, जिसके कारण इस वर्ग की छवि शोषक वर्ग के रूप में उभरकर सामने आती है। इसके साथ-साथ साक्ष्य इस बात पर भी प्रकाश डालते हैं कि कृषकों के साथ इस वर्ग के संबंधों में पैतृकवाद व संरक्षणवाद भी था। इस बात के पक्ष में हम दो तर्क दे सकते हैं

(i) मुगलकाल में भक्ति व सूफी आन्दोलन के संतों व फकीरों ने अपने उपदेशों व गीतों में समाज की बुराइयों, जातिगत समस्याओं व अत्याचारों की कड़ी निन्दा की है। उन्होंने कहीं भी ज़मींदार वर्ग की शोषक के रूप में आलोचना नहीं की, बल्कि राजस्व अधिकारियों के प्रति सामान्य कृषक वर्ग को विद्रोही बताया है।

(ii) 17वीं शताब्दी में भारत के विभिन्न हिस्सों में कृषकों के विद्रोह हुए। इन विद्रोहों में कृषकों ने ज़मींदारों के विरुद्ध कभी बगावत नहीं की, बल्कि इन विद्रोहों में ज़मींदार कृषक के साथ दिखे।

प्रश्न 19.
अकबर के काल में भूमि के विभाजन को स्पष्ट करें।
उत्तर:
अकबर के काल में उपजाऊपन के आधार पर भूमि को निम्नलिखित चार हिस्सों में विभाजित किया गया

  • पोलज-कृषक की सबसे उपजाऊ भूमि को पोलज कहा गया। इस ज़मीन पर वर्ष में नियमित फसल होती थी। इस पर सिंचाई व्यवस्था भी ठीक थी।
  • परौती यह वह ज़मीन थी जो एक फसल के बाद कुछ दिनों के लिए खाली छोड़ दी जाती थी अर्थात् यह ज़मीन वर्ष में केवल एक फसल देती थी।
  • चाचर (छाछर) यह ज़मीन 2 से 4 वर्षों में एक फसल अच्छी देती थी। प्रायः जब काफी बरसात होती थी तब इसमें फसल ठीक होती थी।
  • बंजर-इस ज़मीन पर कभी-कभार फसल होती थी। कई बार पाँच वर्ष तक जोत में नहीं आती थी। यह ज़मीन रेतीली, उबड़-खाबड़ तथा चरागाह क्षेत्र वाली थी।

प्रश्न 20.
16वीं व 17वीं सदी के एशिया के प्रमुख राजवंशों के नाम लिखें।
उत्तर:
16वीं व 17वीं शताब्दी में एशिया के अलग-अलग क्षेत्रों में शक्तिशाली साम्राज्यों की स्थापना हुई। इस काल में चीन में मिंग साम्राज्य, ईरान में सफावी साम्राज्य, तुर्की में आटोमन साम्राज्य तथा भारत में मुग़ल साम्राज्य स्थापित हुआ।

प्रश्न 21.
मुग़लों की टकसालों पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
मुग़ल शासकों के द्वारा शुद्ध-चाँदी की मुद्रा का प्रचलन किया गया। इनकी टकसाल शाही राजधानी दिल्ली व आगरा के अतिरिक्त लाहौर, इलाहाबाद, अजमेर, बुरहानपुर में स्थापित की।

प्रश्न 22.
मुद्रा प्रणाली के प्रसार के मजदूरों पर क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
मुगलकाल में मुद्रा-प्रणाली के प्रचलन से वस्तु-विनिमय के स्थान पर मुद्रा विनिमय अधिक प्रचलन में आई। गाँवों से बिकने के लिए फसलें व अन्य उत्पादन शहर में आने लगा तथा इसी तरह शहर की चीजें गाँवों में जाने लगीं। इससे गाँव व शहर के बीच अन्तर कम हुआ, इसी तरह राज्य द्वारा भी कर एकत्रित करने के लिए जिन्स की तुलना में मुद्रा (नकद) को महत्त्व दिया गया।

लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आइन-ए-अकबरी कब व क्यों लिखी गई? इसके विभिन्न भागों का वर्णन करें।
उत्तर:
आइन-ए-अकबरी अकबर के शासन काल में अबुल फज्ल द्वारा लिखी गई रचना है। अबुल फज्ल अकबर का दरबारी लेखक था। अकबर के आदेश से अबुल फज़्ल ने ‘अकबरनामा’ को लिखना प्रारम्भ किया। अकबरनामा के तीन खण्ड हैं। इन खण्डों में तीसरा खण्ड आइन-ए-अकबरी है। विस्तृत जानकारी होने के कारण इसे अलग रचना मान लिया गया तथा इस रचना के ही तीन खण्ड बन गए। आइन-ए-अकबरी के लेखन का उद्देश्य अकबर के शासन काल के शाही कानूनों को सारांश में लिखना था। इस तरह आइन-ए-अकबरी इतिहास लेखन का एक हिस्सा थी जो बाद में अकबर के साम्राज्य, प्रान्तों, क्षेत्रों व शाही कानूनों का एक दस्तावेज बन गई।

अकबर के शासनकाल के 42वें वर्ष में अर्थात् 1598 में अबुल फज्ल ने इसे पाँच संशोधनों के बाद पूरा किया। आइन-ए-अकबरी पाँच भागों में विभाजित है जिसमें से पहले तीन का एक खण्ड है तथा शेष दो अलग-अलग खण्डों में प्रकाशित है। पाँचों भागों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है

(i) पहला भाग-आइन-ए-अकबरी के पहले भाग को ‘मंजिल आबादी’, का नाम दिया गया है। इस हिस्से में शाही-आवास, दरबार, कोष, मुद्रा, मूल्यवान वस्तुओं के रख-रखाव व उनके नाप-तोल इत्यादि के बारे में बताया गया है।

(ii) दूसरा भाग-आइन के दूसरे भाग को ‘सिपह आबादी’ के नाम से जाना जाता है। इस भाग में मुगल सेना व उसके विभिन्न अंगों, नागरिक प्रशासन, मनसबदारी व्यवस्था व मनसबों की संख्या के बारे में बताया गया है। इस भाग में विद्वानों, कवियों तथा कलाकारों की जीवनियों को भी संक्षिप्त में दर्ज किया गया है।

(iii) तीसरा भाग-आइन के तीसरे भाग को ‘मुल्क आबादी’ का नाम दिया गया है। इसमें मुग़ल साम्राज्य के 12 प्रान्तों (उत्तर भारत) के बारे में जानकारी दी गई है। इस जानकारी में राजस्व की दरें, उनको एकत्रित करने की पद्धति व प्रान्तों की भौगोलिक स्थिति को विस्तार से स्पष्ट किया है। उसने प्रत्येक प्रान्त को अलग-अलग अध्यायों में विभाजित किया है। बीच-बीच में उसने प्रान्तों की स्थलाकृति व रेखाचित्र भी बनाए हैं।

(iv) चौथा व पाँचवाँ भाग आइन के चौथे व पाँचवें भाग में भारत की धार्मिक, सांस्कृतिक व साहित्यिक परम्पराओं का उल्लेख किया गया है। इन दोनों भागों के लिए अबुल फज़्ल ने अधिकतर जानकारी अलबेरुनी के वृत्तांत से ली है। अबुल फज्ल ने आइन के अन्त में अकबर के शुभ वचनों को संकलित किया है।

प्रश्न 2.
आइन-ए-अकबरी कृषि एवं आर्थिक इतिहास लेखन का महत्त्वपूर्ण स्रोत है, इस पर अपने विचार दें।
उत्तर:
आइन-ए-अकबरी सूचना व जानकारी की दृष्टि से बेजोड़ है। इसके लेखन में अबुल-फज़्ल अन्य मध्यकालीन लेखकों की तुलना में काफी आगे निकल गया। उस समय के ज्यादातर लेखक प्रायः युद्ध, राजनीति, दरबारी गतिविधियों व वंशों के गुणगान को महत्त्व देते हैं। जबकि अबुल-फज़्ल ने राजनीति, अर्थव्यवस्था, धर्म, समाज सभी विषयों को बड़ी कुशलता से प्रस्तुत किया है। आइन के महत्त्वपूर्ण पक्ष को निम्नलिखित बिन्दुओं के रूप में समझ सकते हैं

(i) अबुल-फल स्वयं स्वीकार करता है कि उसने पुस्तक को त्रुटि रहित बनाने का प्रयास किया। इस हेतु उसने यह पुस्तक पाँच बार लिखी तथा हर बार जानकारी में संशोधन किया है अर्थात् उसने इसे जल्दी की बजाय अच्छा करने पर जोर दिया।

(ii) उसने सूचनाओं को बड़े स्तर पर एकत्रित किया एवं करवाया। इसके लिए उसने हर तरह के प्रयास किए। उसने उन्हें संकलित कर जिस तरह क्रमबद्ध ढंग से प्रस्तुत किया, वह कोई सरल कार्य नहीं था।

(iii) राज्य की आर्थिक नीतियों, भू-राजस्व को निर्धारित करने की पद्धति, फसलों, सिंचाई इत्यादि पर प्रकाश डालने वाला यह एकमात्र ग्रन्थ है। इस अभाव में मध्यकाल को ठीक तरह से समझना बेहद कठिन कार्य है।

(iv) मुगलकाल में गैर-कृषि उत्पादन, उनका विनिमय, उनके मिलने के स्थल तथा शासक द्वारा उनके प्रोत्साहन के बारे में उसकी जानकारी हमें तत्कालीन व्यापार व उद्योग व्यवस्था को समझने में सहायता करती है।

(v) मुगलकालीन ग्रामीण समाज, मनसबदारी प्रणाली, कृषक-ज़मींदार व राज्य के सम्बन्धों, वस्तुओं के भावों का वर्णन उसने जिस तरह किया है, वह तत्कालीन भारत को समझने में तो मदद करता ही है, साथ में विश्व के अन्य भागों से तुलना करने का आधार भी देता है।

आइन-ए-अकबरी के बारे में यह कहा जा सकता है कि अबुल-फज़्ल द्वारा रचित यह ग्रन्थ हर प्रकार की जानकारी से भरपूर है। इसकी कुछ सीमाएँ भी रहीं, परन्तु ये बहुत कम हैं। इस तरह की कमियाँ लगभग प्रत्येक तरह के स्रोत में होती हैं। निस्सन्देह अबुल-फल अपने समकालीन व अन्य मध्यकालीन लेखकों से आगे था। अपने लेखन में जहाँ वह अच्छी जानकारी दे पाया वही स्वयं का एवं अकबर का नाम भी उचित ढंग से उभार पाया है। आइन-ए-अकबरी ने मुगलकाल के पुनर्निर्माण के लिए शोधकर्ताओं व इतिहासकारों को प्रचुर मात्रा में सामग्री उपलब्ध कराई है।

प्रश्न 3.
मुगलकाल में कृषकों की विभिन्न श्रेणियों पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
मुगलकाल में कृषक के लिए मोटे तौर पर रैयत या मुज़रियान शब्द का प्रयोग होता था। कई स्थानों पर कृषक के लिए किसान व आसामी शब्द भी प्रचलन में थे। 17वीं शताब्दी के स्रोतों में खुद-काश्त व पाहि-काश्त इत्यादि शब्दों का प्रयोग कृषकों के लिए मिलता है। यह शब्द उनकी प्रकृति में अन्तर को स्पष्ट करता है। कहीं-कहीं यह विभिन्न क्षेत्रों के भाषायी अन्तर के कारण हैं। इन अन्तरों को समझने के लिए इनकी संक्षिप्त व्याख्या को जानना आवश्यक है।

(i) रैयत-रैयत शब्द प्रारम्भिक स्रोतों में प्रजा के लिए प्रयोग हुआ। फिर यह कृषक के लिए ही प्रयुक्त किया जाने लगा तथा कृषक शब्द के बहुवचन (अर्थात् अधिक संख्या) के लिए रिआया शब्द का प्रयोग हुआ। यह शब्द सभी तरह के कृषकों के लिए प्रयोग में लाया गया।
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(ii) खुद-काश्त-कृषक श्रेणी में यह शब्द ऊँचे दर्जे के किसानों के लिए प्रयोग होता है। खुद-काश्त दो शब्दों के मेल से बना है-खुद एवं काश्त। जिसका अर्थ है वह व्यक्ति जो अपनी भूमि को स्वयं जोतता हो अर्थात् अपनी भूमि पर स्वयं खेती करने वाला। इस व्याख्या के अनुसार कृषक अपनी भूमि का मालिक होता था। वह अपने गाँव में ही परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर खेती करता था। वह अपनी भूमि को बेचने, गिरवी रखने या हस्तान्तरित करने का अधिकार रखता था। उसे ज़मीन से बेदखल नहीं किया जा सकता था।

(iii) पाहि-काश्त-पाहि का अर्थ होता है-पड़ोसी अर्थात् वह व्यक्ति जो पड़ोस के गाँव की ज़मीन पर खेती करता था। वह दूसरे गाँव की ज़मीन ठेके पर लेता था या खरीद लेता था। इसका कारण दूसरे गाँव की भूमि का अच्छा होना था। अकाल इत्यादि के समय मजबूरी में कृषि करता था। कुछ स्रोतों में पाहि शब्द की व्याख्या अपने ही गाँव में पड़ोसी की खेती जोतने के रूप में भी की गई है। इस कृषक को शर्तों के अनुरूप खेती करनी होती थी।

(iv) मुज़रियान या मुंजारा-यह कृषकों की श्रेणी में सबसे निचले दर्जे पर था। उसके पास हल व बैल तो अपने थे लेकिन वह ज़मीन का मालिक नहीं था। उसके पास भूमि खरीदने व ठेके पर लेने की क्षमता भी नहीं थी। अतः वह किसी भी किसान के साथ हिस्सेदार व बँटाईदार के रूप में खेती करता था। उत्पादन को बाद में एक निश्चित मात्रा में बाँट लिया जाता था। इस वर्ग की संख्या काफी थी व इसकी स्थिति हमेशा दयनीय थी। ज़मीन का मालिक उसे प्रतिवर्ष अपनी शर्तों के अनुरूप खेती करने को देता था।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

प्रश्न 4.
मुगलकाल की सिंचाई तकनीक के बारे में आप क्या जानते हैं? अथवा 16वीं-17वीं शताब्दी में कृषि के लिए कौन-से सिंचाई साधनों का इस्तेमाल होता था?
उत्तर:
मुगलकाल में कृषि प्रकृति पर निर्भर थी। जिन क्षेत्रों में जिस तरह की वर्षा होती थी लोग उसी तरह की फसलें पैदा करते थे। कहीं-कहीं नदियों का पानी भी सिंचाई के लिए प्रयोग में आता था। कम वर्षा वाले क्षेत्र में सिंचाई के लिए कृषक को कृत्रिम साधनों का प्रयोग भी करना पड़ा। सिंचाई के कृत्रिम साधन निम्नलिखित थे

(i) रहट-यह रहट लकड़ी या लोहे के पहियों वाला था। स्रोतों में रहट के लिए प्रशियिन बहिल’ शब्द का प्रयोग किया गया है। बाबर ने अपनी आत्मकथा में भारत में सिंचाई प्रणाली व रहट के प्रयोग के बारे में विस्तार से जानकारी दी है।

(ii) जलाशयों से सिंचाई-कृषक कुछ स्थानों पर प्राकृतिक जलाशयों के साथ-साथ कृत्रिम जलाशय भी खोद लेते थे। इन जलाशयों में वर्षा का पानी एकत्रित हो जाता था जो एक सीमित क्षेत्र की सिंचाई करता था।

(iii) नहरों से सिंचाई-राज्य के द्वारा भी जोत क्षेत्र को बढ़ाने के लिए सिंचाई हेतु कुछ मदद की गई। उदाहरण के लिए शाहजहाँ ने पंजाब में शाह नहर का निर्माण करवाया। इसी तरह फिरोज शाह द्वारा जिस नहर का निर्माण करवाकर हिसार पानी लाया गया था उसकी अकबर व शाहजहाँ के काल में फिर से खुदाई करवाई गई।

प्रश्न 5.
मुगलकाल में कौन-कौन सी फसलें किस-किस क्षेत्र में उत्पादित होती थीं?
उत्तर:
मुगलकाल की मुख्य फसलें गेहूँ, चावल, जौ, ज्वार, कपास, बाजरा, तिलहन, ग्वार इत्यादि थीं। सामान्यतः कृषक खाद्यान्नों का ही उत्पादन करते थे। ये फसलें भौगोलिक स्थिति के अनुरूप उगाई जाती थीं। चावल मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में होता था जहाँ अधिक वर्षा होती थी। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में जौ, ज्वार, बाजरा इत्यादि बोए जाते थे, जबकि गेहूँ लगभग भारत के प्रत्येक क्षेत्र में बोई जाती थी। फसलों के उत्पादन में सर्वाधिक महत्त्व मानसून पवनों का था। ‘आइन-ए-अकबरी’ में भारत के विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादित होने वाली फसलों पर प्रकाश डाला गया है। उसके अनुसार आगरा व मालवा क्षेत्र में 39 फसलें तथा दिल्ली, लाहौर, मुलतान व गुजरात क्षेत्र में 43 फसलें प्रचलन में थीं।

मुगलकाल में कुछ फसलों के लिए जिन्स-ए-कामिल शब्द का प्रयोग हुआ है। इसका अर्थ उन फसलों से लगाया जाता है जिससे राज्य को कर अधिक मिलता था। गन्ना व कपास सबसे अच्छी फसल कही जाती थी। राज्य के द्वारा भी इन फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए प्रयास किया जाता था। कपास मध्य भारत, दक्षिणी क्षेत्र, बंगाल, गुजरात एवं राजपूताना के क्षेत्रों में उगाई जाती थी। गन्ना पंजाब, दिल्ली, आगरा, बंगाल व अवध क्षेत्र में अधिक मिलता था। .

मुगलकाल में कुछ नई फसलें भी व्यापार के लिए उत्पादित की जाने लगी थीं। इन फसलों में पहला नाम रेशम का था। इस फसल का जीव (कीड़ा) चीन से लाया गया तथा यह बंगाल में बहुत अधिक प्रचलन में आई। इसी फसल के कारण बंगाल का रेशमी कपड़ा विश्वविख्यात हो गया। इस काल में नई दूसरी फसल तम्बाकू थी। यह फसल पुर्तगालियों द्वारा 17वीं सदी के प्रारंभ (1603) में अफ्रीकी क्षेत्र से लाई गई। इस काल में अन्य आने वाली फसलों में मक्का, जई, पटसन इत्यादि थीं। 17वीं शताब्दी में आने वाली फसलों में टमाटर, आलू व हरी मिर्च कही जा सकती हैं। भारत में ये नई फसलें व सब्जियाँ अफ्रीका, स्पेन व अरब क्षेत्र से आईं।

प्रश्न 6.
ग्राम पंचायत में निम्न वर्ग की स्थिति पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
ग्राम पंचायतों पर मुख्य रूप से उच्च वर्ग का प्रभुत्व था। वह वर्ग अपनी मनमर्जी के फैसले पंचायत के माध्यम से लागू करवाता था। सामान्य-तौर पर निम्न वर्ग के लोग पंचायत की इस तरह की कार्रवाई को झेल लेते थे। परन्तु स्रोतों में विशेषकर महाराष्ट्र व राजस्थान से प्राप्त दस्तावेजों में इस तरह के प्रमाण मिले हैं जिनमें निम्न वर्ग ने विरोध किया हो। इन दस्तावेज़ों में ऊँची जातियों व सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध जबरन कर वसूली या गार की शिकायत है। जिसके अनुसार निम्न वर्ग के लोग स्पष्ट करते हैं कि उनका शोषण किया जा रहा है तथा उन्हें उनसे न्याय की उम्मीद भी नहीं है। ये शिकायतें बड़े ज़मींदार तथा अधिकारियों के नाम लिखी गई हैं।

शिकायत के अनुसार पंचायत की बैठक होती थी। सबसे पहले पंचायत शिकायतकर्ता को समझाने का प्रयास करती थी। उसके विरोध करने की स्थिति में समझौता करवाने का प्रयास किया जाता। पंचायत के फैसले सभी स्थितियों में एक जैसे नहीं होते थे बल्कि व्यक्ति की जाति व सामाजिक हैसियत का ध्यान रखा जाता था। पंचायत के फैसले से यदि शिकायतकर्ता सन्तुष्ट नहीं होता था तो वह विरोध के कठोर रास्ते अपनाता था।

विरोध की शैली में वह विद्रोही हो जाता था या फिर गाँव छोड़कर भाग जाता था। खेतिहर का गाँव से भागना कृषक समुदाय के लिए नुकसानदायक था, क्योंकि इन्हीं मजदूरों के सहारे तो खेती सम्भव थी। इस काल में जमीन की कमी नहीं थी, बल्कि मेहनत करने वाले अर्थात् श्रम शक्ति की कमी थी। श्रम शक्ति कम होने का भय ग्राम के उच्च वर्ग को सताता था। इस तरह पंचायत इस बात का ध्यान रखती थी कि निम्न वर्ग के लोगों को विद्रोही न होना पड़े, इसके लिए विभिन्न तरह के दबाव प्रयोग में लाकर खेतिहरों पर अंकुश रखती थी।

प्रश्न 7.
मुग़लकाल में ग्रामीण दस्तकार से क्या आशय है? इनके कृषक वर्ग से संबंध कैसे होते थे?
उत्तर:
ग्रामीण दस्तकार से अभिप्राय उन लोगों से है जो गाँव में रहकर बुनाई, कताई, रंगरेजी, कपड़े की छपाई, मिट्टी के बर्तनों का बनाना, कृषि के उपकरणों का निर्माण करना, जूते एवं चमड़े की चीज़ों का निर्माण करते थे। 18वीं शताब्दी के दस्तावेज़ों से यह पुष्टि होती है कि ऐसे ग्रामीण दस्तकारों की संख्या काफी थी। औसत रूप में यह संख्या 25 से 30 प्रतिशत तक होती थी।

जैसा कि स्पष्ट है कि कृषक व गैर-कृषक समुदाय (ग्रामीण दस्तकार) ग्रामीण संरचना का अटूट हिस्सा था। इनके बीच में इस तरह के संबंध थे कि कई बार इनमें अन्तर करना कठिन होता था। ऐसा इसलिए था क्योंकि कृषक समुदाय, फसल की कटाई, जुताई, बिजाई इत्यादि के कार्य स्वयं नहीं कर पाता था। वह इस कार्य के लिए इन दस्तकारों का सहयोग लेता था और ये दस्तकार भी कृषि के मुख्य काम के समय अपने सारे कार्य छोड़कर कृषि कार्य में जुट जाते थे।
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ग्रामीण दस्तकार अपनी सेवाएँ पूरे ग्रामीण समुदाय को देता था। इन दस्तकारों को सेवा के बदले नकद वेतन नहीं मिलता था, बल्कि कृषक फसल आने के बाद एक हिस्सा इन्हें दे देता था। कई बार दस्तकार को स्थायी तौर पर गाँव में बसाने के लिए उसे ज़मीन दे दी जाती थी। ज़मीन कितनी तथा किस तरह की शर्तों में दी जाएगी, यह फैसला गाँव की पंचायत करती थी।

महाराष्ट्र में दस्तकारों को पुश्तैनी तौर पर दी जाने वाली भूमि मीरास या (वतन) कहलाती थी। जब कोई दस्तकार इस तरह भूमि का मालिक बन जाता था, तो उसकी सामाजिक हैसियत भी बदल जाती थी। ग्रामीण समाज में दस्तकारों की सेवा-शर्तों का फैसला मुख्य रूप से पंचायत करती थी। कई बार दस्तकार, कृषक व खेतिहर मजदूर आपस में बैठकर फैसला कर लेते थे कि अदायगी कैसे तथा कब होगी।

प्रश्न 8.
ग्राम ‘एक छोटा गणराज्य’ था। इस आशय को स्पष्ट करें।
उत्तर:
भारतीय ग्राम व्यवस्था को पश्चिमी इतिहासकारों ने अलग-अलग ढंग से अध्ययन की विषय-वस्तु बनाया है। उन्होंने अपने अध्ययनों में गाँव के लिए ‘छोटा गणराज्य’ शब्द का प्रयोग किया है। ‘छोटा गणराज्य’ कहने वाले लेखकों ने गाँव के बारे में कहा कि भारत में गाँव आत्मनिर्भर, बहुसंस्कृतीय, अपनी आवश्यकताओं की सभी चीज़ों का उत्पादन करने वाले थे। ये आन्तरिक प्रशासन के लिए किसी पर निर्भर नहीं थे। इस तरह उनका मानना है कि गाँव छोटी इकाई अवश्य है, लेकिन इनका अस्तित्व स्वतंत्र है।

प्राचीनकाल से ही ग्रामों की यह व्यवस्था चली आ रही थी। इन लेखकों का मानना है कि गाँव के लोग सामूहिक स्तर पर संसाधनों व श्रम का बँटवारा करते थे, जबकि सभी को मालूम था कि उनमें सामाजिक बराबरी नहीं है। इस समाज में कुछ ज़मीन के मालिक थे, जबकि कुछ दूसरों की कृषि पर सेवा देकर जीवन-यापन करते थे। जाति व सामाजिक चिन्तन (स्त्री-पुरुष) के आधार पर ग्राम में विषमताएँ थीं। गाँव में शक्तिशाली लोग साधनों पर भी नियंत्रण रखते थे, गाँव के फैसले करते थे तथा शोषण भी करते थे। फिर भी सामान्य तौर पर एक-दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार करते थे।

भारतीय ग्राम प्राचीनकाल से छोटे गणराज्य के रूप में कार्य कर रहे थे। मुगलकाल में इस व्यवस्था में थोड़ा-बहुत बदलाव आना शुरू हो गया था। इस काल में शहरीकरण का थोड़ा विकास हुआ जिसके चलते गाँव व शहर के बीच व्यापारिक रिश्ते बढ़े। इस कड़ी में वस्तु-विनिमय की बजाय नकद धन का अधिक प्रयोग होने लगा। इसी तरह मुग़ल शासकों ने भू-राजस्व की वसूली जिन्स के साथ-साथ नकदी में भी प्रारंभ की।

शासक की ओर से नकदी को अधिक महत्त्व दिया जाता था। इस काल में विदेशी व्यापार में भी वृद्धि हुई। विदेशों को निर्यात होने वाली चीजें गाँव में बनती थीं। इस व्यापार से नकद धन मिलता था। इस तरह धीरे-धीरे मजदूरी का भुगतान भी नकद किया जाने लगा। इस काल में खाद्यान्न फसलों के साथ-साथ नकदी फसलें भी उगाई जाने लगीं, जिसमें कृषक को पर्याप्त मात्रा में लाभ होता था। रेशम तथा नील मुगलकाल में अत्यधिक लाभ देने वाली फसलें मानी जाती थीं।

प्रश्न 9.
मुगलकालीन कृषि समाज में महिलाओं की स्थिति पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
मुगलकालीन समाज में स्त्री व पुरुष दोनों के बीच श्रम विभाजन काफी हद तक नियोजित था। महिलाएँ पुरुषों के साथ कन्धे-से-कन्धा मिलाकर कार्य किया करती थीं। इस व्यवस्था में पुरुष खेत जोतने व हल चलाने का कार्य करते थे, जबकि महिलाएँ निराई, कटाई व फसल से अनाज निकालने के कार्य में हाथ बँटाती थीं। फसल की कटाई व बिजाई के अवसर पर जहाँ श्रम शक्ति की आवश्यकता होती थी तो परिवार का प्रत्येक सदस्य उसमें शामिल होता था ऐसे में महिला कैसे पीछे रह सकती थी। सामान्य दिनचर्या में भी कृषक व खेतिहर मजदूर प्रातः जल्दी ही काम पर जाता था तो खाना, लस्सी व पानी इत्यादि को उसके पास पहुँचाना महिला के कार्य का हिस्सा माना जाता था। इसी तरह जब पुरुष खेत में होता था तो घर पर पशुओं की देखभाल का सारा कार्य महिलाएँ करती थीं।

मुगलकाल में दस्तकार महिलाएँ सूत कातने, बर्तन बनाने के लिए मिट्टी को साफ करने, भिगोने तथा गूंधने का कार्य करती थीं। वे कपड़े की बुनाई-कढ़ाई भी करती थीं। सामान्य तौर पर जब कृषि कार्य का अधिक दबाव नहीं होता था तो महिलाएँ कुछ-न-कुछ दस्तकारी के कार्य करती रहती थीं। इस काल में इनकी गैर-कृषि कार्यों में माँग लगातार बढ़ी थी।

जिन-जिन चीज़ों का वाणिज्यीकरण हो रहा था तथा लाभ के साथ जुड़ती जा रही थीं, उसी के अनुरूप महिलाओं की श्रम शक्ति की माँग भी बढ़ रही थी। इस माँग की पूर्ति के लिए अब महिलाएँ नियोक्ता के घर जाकर काम करने लग गई थीं। यहाँ तक कि बाजारों में भी ऐसी व्यवस्था होने लगी थी, जहाँ महिलाएँ सामूहिक तौर पर बैठकर कार्य करने लगी थीं। इस तरह से महिलाओं के लिए चारदीवारी के बंधन कुछ कमजोर होने लगे थे।

प्रश्न 10.
मुगलकाल में जमींदार कौन थे? उनकी प्रमुख श्रेणियों का वर्णन करो।
उत्तर:
मुगलकाल में जो व्यक्ति कृषि व्यवस्था का केंद्र था तथा भूमि का मालिक था, जमींदार कहलाता था। उसे ज़मीन के बारे में सारे अधिकार प्राप्त थे अर्थात् वह अपनी जमीन को बेच सकता था या किसी को हस्तांतरित कर सकता था। वह अपनी भूमि से कर एकत्रित करके राज्य को देता था। इस तरह यह वर्ग अपने से ऊपर तथा नीचे वाले दोनों वर्गों पर प्रभाव रखता था। ज़मींदार के सन्दर्भ में एक खास बात यह भी है कि वह खेती की कमाई खाता था, लेकिन स्वयं खेती नहीं करता था।

बल्कि वह अपने अधीन कृषकों व मजदूरों से कृषि करवाता था। . जमींदार अपने अधिकारों के कारण गाँव व क्षेत्र में सामाजिक तौर पर भी पहचान रखता था। उसकी यह स्थिति पैतृक थी तथा राज्य उसकी इस स्थिति में सामान्य-तौर पर बदलाव नहीं कर सकता था। मुगलकाल में ज़मींदार की तीन श्रेणियाँ थीं। इनका संक्षेप में वर्णन इस प्रकार है

(i) प्रारंभिक ज़मींदार-ये ज़मींदार वो थे जो अपनी ज़मीन का राजस्व स्वयं कोष में जमा कराते थे। एक गाँव में प्रायः ऐसे ज़मींदार 4 या 5 ही हुआ करते थे।

(ii) मध्यस्थ ज़मींदार-ये ज़मींदार वो थे जो अपने आस-पास के क्षेत्रों के ज़मींदारों से कर वसूल करते थे तथा उसमें से कमीशन के रूप में एक हिस्सा अपने पास रखकर कोष में जमा कराते थे। ऐसे ज़मींदार या तो एक गाँव में एक या फिर दो या तीन गाँवों का एक होता था।

(iii) स्वायत्त मुखिया ये ज़मींदार बहुत बड़े क्षेत्र के मालिक होते थे। कई बार इनके पास 200 या इससे अधिक गाँव भी होते थे। इनकी पहचान स्थानीय राजा की तरह होती थी। सरकारी तन्त्र भी उनके प्रभाव में होता था। इनके क्षेत्र में कर एकत्रित करने में सरकार के अधिकारी भी सहयोग देते थे। ये बहुत साधन सम्पन्न होते थे।

प्रश्न 11.
मुगलकाल में ज़मींदारी कैसे-कैसे प्राप्त की जाती थी? इस बारे में किन्हीं पाँच पहलुओं पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
मुगलकाल में कोई व्यक्ति ज़मींदार कैसे बनता था एवं किस तरह से शक्तियाँ हासिल करता था, इस बारे में साक्ष्य प्रकाश डालते हैं। इनमें से कुछ का वर्णन इस प्रकार है

(i) ज़मींदारी प्राप्त करने का पहला कारण पैतृक माना जाता है, जिसके अनुसार वंशीय व जातीय आधार पर जिन लोगों को यह अधिकार था वह पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता था। अबुल-फल इस बारे में स्पष्ट करता है कि ब्राह्मण, राजपूत व अन्य उच्च जातियों की यह स्थिति थी। कुछ मुस्लिम ज़मींदार भी इस श्रेणी में आ गए थे।

(ii) पश्चिमी भारत के कुछ दस्तावेज युद्ध में जीत कर इसकी उत्पत्ति से जोड़ते हैं। इनके अनुसार शक्तिशाली वर्ग युद्ध जीतकर क्षेत्र पर कब्जा कर लेता था तथा कमजोर लोगों को वहाँ से बेदखल कर देता था। उसके बाद अपनी ताकत के सहारे ये लोग राज्य से मिल्कियत का प्रमाण-पत्र भी ले लेते थे।

(iii) कुछ लोगों ने अपने सहयोगियों से मिलकर जंगलों की सफाई कर अपनी बस्तियाँ बसाईं तथा धीरे-धीरे इनका विस्तार कर लिया। इस तरह इन्हें ज़मींदारी अधिकार मिल गए। ये ज़मींदार प्रायः छोटे रहे।

(iv) कुछ जातियों व परिवारों ने स्वयं को संगठित कर ऐसी राजनीति बनाई कि बड़े भू-क्षेत्र पर उनका कब्जा हो। उसके बाद राज्य को सहयोग देकर उन क्षेत्रों से कर एकत्रित करने का अधिकार ले लिया। इसके बाद अपने-अपने क्षेत्र में जमींदारियाँ स्थापित करने में कामयाब रहे। उत्तर भारत में कुछ राजपूत व जाट परिवार तथा बंगाल में किसान पशुचारी वर्ग से सदगोप जैसी जातियों के लोगों ने ऐसा ही किया।

(v) इनके अतिरिक्त कुछ लोगों ने शाही सेवा करके, व्यापार इत्यादि में लाभ कमाकर ज़मीन खरीदकर, अन्य व्यक्ति से हस्तांतरण करवाकर भी जमींदारियाँ लीं। किसी-किसी व्यक्ति को राज्य द्वारा उसकी सैनिक व असैनिक सेवा से प्रभावित होकर उन्हें जमींदारियाँ दीं। आर्थिक स्थिति के अच्छा होने से कुछ सामान्य वर्ग की जातियों के लोगों द्वारा भी जमींदारियाँ खरीदी गईं।

प्रश्न 12.
मुगलकाल में अकबर ने किस तरह की भू-राजस्व व्यवस्था को महत्त्व दिया? उसने भूमि को किस तरह विभाजित करवाया?
उत्तर:
मुगलकाल में राज्य की आय का प्रमुख स्रोत भू-राजस्व था। मुगल शासक अकबर को विरासत में आर्थिक दृष्टि से कमजोर राज्य मिला था। उसने अपने राज्य की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए एक प्रशासन तंत्र को खड़ा किया। इस कार्य में उसे टोडरमल जैसा दीवान मिला। उसने जिस तरह से कार्य किए उससे राज्य आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न हो गया। तत्कालीन साक्ष्यों में इस व्यवस्था को टोडरमल का बन्दोबस्त बताया है।

अकबर के निर्देशानुसार उसके दीवान टोडरमल ने प्राप्त सूचनाओं का अध्ययन कर विशेषज्ञों की राय ली। फिर उसने यह फैसला किया कि सरकार को पता चले कि उसके साम्राज्य में जोत क्षेत्र कितना है। इसके लिए सारे साम्राज्य की ज़मीन की नपाई की गई। (इसमें काफी जंगली क्षेत्र व पहाड़ी क्षेत्र नहीं आ पाया।) इस नपाई के आधार पर साम्राज्य को 182 परगनों में बाँटा गया। प्रत्येक परगने की आय लगभग एक करोड़ रुपए थी।

जमीन की नपाई के बाद यह सोचा गया कि कर का निर्धारण कैसे हो? इसके लिए दीवान ने कर एकत्रित करने वाले अधिकारी अमील-गुजार को स्पष्ट किया कि राज्य नकद वसूली को महत्त्व देता है। परन्तु यह कृषक की मर्जी पर है कि वह जिन्स (फसल) के रूप में भुगतान करता है तो भी उसे कष्ट नहीं होना चाहिए। इसके बाद कर निर्धारण सभी क्षेत्रों व कृषकों से एक समान नहीं किया गया बल्कि यह भूमि के उपजाऊपन के आधार पर था। उपजाऊपन के आधार पर भूमि को चार हिस्सों में विभाजित किया।

  • पोलज-कृषक की सबसे उपजाऊ भूमि को पोलज कहा गया। इस ज़मीन पर वर्ष में नियमित फसल होती थी। इस पर सिंचाई व्यवस्था भी ठीक थी।
  • परौती-यह वह ज़मीन थी जो एक फसल के बाद कुछ दिनों के लिए खाली छोड़ दी जाती थी अर्थात् यह ज़मीन वर्ष में केवल एक फसल देती थी।
  • चचर (छाछर)-यह ज़मीन 2 से 4 वर्षों में एक फसल अच्छी देती थी। प्रायः जब काफी बरसात होती थी तब इसमें फसल ठीक होती थी।
  • बंजर-इस ज़मीन पर कभी-कभार फसल होती थी। कई बार पाँच वर्ष तक जोत में नहीं आती थी। यह ज़मीन रेतीली, उबड़-खाबड़ तथा चरागाह क्षेत्र वाली थी।

ज़मीन के इस बँटवारे के बाद पहली दोनों किस्म की ज़मीन को फिर तीन भागों में बाँटा जाता था जिसे उत्तम, मध्यम व खराब का नाम दिया जाता था।

प्रश्न 13.
मुगलकाल में कर एकत्रित करने की प्रमुख विधियाँ कौन-सी थीं? वर्णन करें।
उत्तर:
अकबर के काल में भूमि की नपाई व बँटवारे के बाद टोडरमल ने कर एकत्रित करने की ओर ध्यान दिया। सबसे पहले उसने जमा व हासिल के बीच अन्तर के कारणों को समझा, फिर उसके समाधान के लिए कदम उठाए ताकि निर्धारित व वसूल किए. गए कर के बीच का अन्तर समाप्त हो। मुगलकाल में कर एकत्रित करने के लिए तीन प्रणालियाँ अपनाई गईं

(i) जन्ती प्रणाली-मुगलकाल में सर्वाधिक प्रचलन इस प्रणाली का रहा। यह प्रणाली पंजाब, दिल्ली, आगरा, इलाहाबाद, मालवा, अजमेर, अवध व मुलतान क्षेत्र में अपनाई गई। इस प्रणाली के अनुसार सरकार कृषक से आगामी 5 से 10 वर्ष का समझौता कर लेती थी कि वह आगामी इन दिनों में प्रतिवर्ष इतना कर देता रहेगा। इसके लिए कृषक का पिछले 5 वर्ष का रिकार्ड देखा जाता था। इस नीति से सरकार की आय आगामी कुछ वर्षों के लिए निश्चित हो जाती थी।

(ii) गल्ला बख्शी-कर एकत्रित करने की यह प्रणाली सिंध, कश्मीर, काबुल व गुजरात में अपनाई गई। यह थोड़ी-सी कठिन थी, लेकिन फिर भी इसे अपनाया जाता था। इस प्रणाली के अनुसार कृषक फसल के रोपने के बाद पटवारी को सूचना देता था कि उसने अपने खेत में यह फसल बोई है। सूचना प्राप्ति के महीने तक पटवारी अन्न संबंधित अधिकारियों को लेकर खेत में जाता था तथा खड़ी फसल की स्थिति को देखकर अनुमान लगाता था कि प्रति एकड़ कितनी फसल हो जाएगी। उसी आधार पर कृषक से समझौता किया जाता था।

(iii) कनकूत (नसक) कर एकत्रित करने की यह प्रणाली सबसे अधिक जोखिम वाली थी तथा फसल कटाई के समय अपनाई जाती थी। इसमें एक तो कृषक द्वारा सूचना न देने का भय रहता था। दूसरा फसल पूरे क्षेत्र में एक साथ कटती थी। इससे कई बार अधिकारी मौके पर पहुँच नहीं पाते थे। इस बारे में अलग-अलग साक्ष्य अलग-अलग ढंग से जानकारी देते हैं। परन्तु इन सब में यह स्पष्ट है कि यह मुख्य रूप से फसल कटने पर ली जाती थी। मौके पर सरकारी अधिकारी अपना हिस्सा ले जाते थे और किसान अपना।

प्रश्न 14.
16वीं व 17वीं शताब्दी में व्यापार संबंधी परिवर्तन पर नोट लिखो।
उत्तर:
16वीं व 17वीं शताब्दी में एशिया व यूरोप, दोनों में हो रहे आर्थिक परिवर्तनों से भारत को काफी लाभ हो रहा था। जल व स्थल मार्ग के व्यापार से भारत की चीजें पहले से अधिक दुनिया में फैली तथा नई-नई वस्तुओं का व्यापार भी प्रारंभ हुआ। इस व्यापार की खास बात यह थी कि भारत से विदेशों को जाने वाली मदों में उपयोग की चीजें थीं तथा बदले में भारत में चाँदी आ रही थी। भारत में चाँदी की प्राकृतिक दृष्टि से कोई खान नहीं थी। उसके बाद भी विश्व की चाँदी का बड़ा हिस्सा भारत में ‘एकत्रित हो रहा था। चाँदी के साथ-साथ व्यापार विनिमय से भारत में सोना भी आ रहा था।

भारत में विश्व-भर से सोना-चाँदी आने के कारण मुगल साम्राज्य समृद्ध हुआ। इसके चलते हुए अर्थव्यवस्था में कई तरह के बदलाव आए। मुग़ल शासकों के द्वारा शुद्ध चाँदी की मुद्रा का प्रचलन किया गया। सूरत इस काल में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के बहुत बड़े (यूरोपीय यात्रियों के अनुसार सबसे बड़े) केन्द्र के रूप में उभरा। बाह्य व्यापार में मुद्रा के प्रचलन का प्रभाव आन्तरिक व्यापार पर भी पड़ा। इसमें भी अब वस्तु-विनिमय के स्थान पर मुद्रा विनिमय अधिक प्रचलन में आने लगी। शहरों में बाजार बड़े आकार के होने लगे। गाँवों से बिकने के लिए फसलें व अन्य उत्पादन शहर में आने लगा तथा इसी तरह शहर की चीजें गाँवों में जाने लगीं।

इससे गाँव व शहर के बीच अन्तर ही कम नहीं हुआ, बल्कि मुद्रा का विस्तार भी तेजी से हुआ। इसी कारण राज्य द्वारा भी कर एकत्रित करने के लिए जिन्स की तुलना में मुद्रा (नकद) को महत्त्व दिया जाने लगा। इस मुद्रा के प्रसार ने, मजदूरों को भी नकद मजदूरी देने की स्थितियाँ दीं। इन सारी स्थितियों में अर्थव्यवस्था को स्थिरता मिली। इसके कारण कृषक वर्ग ने भी खाद्यान्न फसलों के साथ-साथ नकदी फसलों का उत्पादन करना शुरू किया। इससे कृषक भी समृद्ध हुए जिनके कारण गाँव की स्थिति में भी बदलाव आना प्रारंभ हुआ।

दीर्घ-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मुगलकालीन समाज में ग्राम पंचायतों के कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर:
ग्रामीण समुदाय में एक अति महत्त्वपूर्ण पंचायत व्यवस्था थी। गाँव की सारी व्यवस्था, आपसी संबंध तथा स्थानीय प्रशासन का संचालन पंचायत द्वारा ही किया जाता था। ग्राम पंचायत में मुख्य रूप से गाँव के सम्मानित बुजुर्ग होते थे। इन बुजुर्गों में भी उनको महत्त्व दिया जाता था जिनके पास पुश्तैनी ज़मीन या सम्पत्ति होती थी। प्रायः गाँव में कई जातियाँ होती थी इसलिए पंचायत में भी इन विभिन्न जातियों के प्रतिनिधि होते थे।

परन्तु इसमें विशेष बात यह है कि साधन सम्पन्न व उच्च जातियों को ही पंचायत में महत्त्व दिया जाता था। खेती पर आश्रित भूमिहीन वर्ग को पंचायत में शामिल अवश्य किया जाता था, लेकिन उन्हें महत्त्व नहीं दिया जाता था। हाँ, इतना अवश्य है कि पंचायत में लिए गए फैसले को मानना सभी के लिए जरूरी था। प्रायः सामान्य दर्जे के काम करने वालों को पंचायत में निर्णय के लिए नहीं बुलाया जाता था, बल्कि फैसले की जानकारी देने व उसे लागू करने के लिए ही बुलाया जाता था।

गाँव की पंचायत मुखिया के नेतृत्व में कार्य करती थी। इसे मुख्य रूप से मुकद्दम या मंडल कहते थे। मुकद्दम या मंडल का चुनाव पंचायत द्वारा किया जाता था। इसके लिए गाँव के पंचायती बुजुर्ग बैठकर किसी एक व्यक्ति के नाम पर सहमत हो जाते थे। मुखिया के कार्यों में पटवारी मदद करता था। गाँव की आमदनी, खर्च व अन्य विकास कार्यों को करवाने की जिम्मेदारी उसकी होती थी। गाँव की जातीय व्यवस्था तथा सामाजिक बंधनों को लागू करने में वह अधिक समय लगाता था।

पंचायत के कार्य-ग्राम पंचायत को गाँव के विकास तथा व्यवस्था की देख-रेख में कार्य करने होते थे। इनका संक्षेप में वर्णन इस प्रकार है

(a) गाँव की आय व खर्च का नियंत्रण पंचायत करती थी। गाँव का अपना एक खजाना होता था जिसमें गाँव के प्रत्येक परिवार का हिस्सा होता था। इस खजाने से पंचायत गाँव में विकास कार्य कराती थी। इसके साथ-साथ पंचायत उन मुख्य अधिकारियों की सेवा (खातिरदारी) पर खर्च करती थी जो गाँव के दौरे पर आते थे।

(b) गाँव में प्राकृतिक आपदाओं विशेषकर बाढ़ व अकाल की स्थिति में भी पंचायत विशेष कदम उठाती थी। इसके लिए वह अपने कोष का प्रयोग तो करती ही थी साथ में सरकार से तकावी (विशेष आर्थिक सहायता) के लिए भी कार्य करती थी।

(c) गाँव के सामुदायिक कार्य जिन्हें कोई एक व्यक्ति या कृषक नहीं कर सकता था तो वह कार्य पंचायत द्वारा किए जाते थे। इनमें छोटे-छोटे बाँध बनाना, नहरों व तालाबों की खुदाई करवाना, गाँव के चारों ओर मिट्टी की बाड़ बनवाना तथा सुरक्षा के लिए कार्य करना इत्यादि प्रमुख थे।

(d) गाँव की सामाजिक संरचना विशेषकर जाति व्यवस्था के बंधनों को लागू करवाना भी पंचायत का मुख्य काम था। पंचायत किसी व्यक्ति को जाति की हदों को पार करने की आज्ञा नहीं देती थी। पंचायत शादी के मामले व व्यवसाय के मामले में इन बंधनों को कठोरता से लागू करती थी।
HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 8 Img 7

(e) गाँव में न्याय करना पंचायत का अति महत्त्वपूर्ण कार्य था। गाँव में हर प्रकार के झगड़े व सम्पत्ति-विवाद का समाधान पंचायत करती थी। पंचायत दोषी व्यक्ति को कठोर दण्ड दे सकती थी, जिसमें व्यक्ति का सामाजिक बहिष्कार तक होता था। किसी व्यक्ति को एक सीमित समय (विशेष अवस्था में असीमित भी) के लिए गाँव से बाहर निकाल दिया जाता था। संबंधित व्यक्ति को निर्धारित समय अवधि में गाँव को छोड़ना पड़ता था। इस दण्ड के कारण वह मात्र गाँव में अपमानित नहीं होता था बल्कि उसे जातीय पेशे को भी त्यागना पड़ता था।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य

प्रश्न 2.
मुगलकाल में जंगलवासियों का जीवन कैसा था? उसमें किस तरह के परिवर्तन आ रहे थे?
उत्तर:
मुगलकाल में भारत का विशाल भू-क्षेत्र जंगलों से सटा था तथा यहाँ के लोग आदिवासी थे, जो कबीलों की जिन्दगी जीते थे। तत्कालीन स्रोतों व रचनाओं में इन आदिवासियों के लिए ‘जंगली’ शब्द का प्रयोग किया गया है। मुगलकालीन स्रोतों व साहित्य में यह शब्द उन लोगों के लिए प्रयोग किया जाता था, जो जंगलों में प्राकृतिक जीवन-शैली के अनुरूप रह रहे थे। जंगलों के उत्पादों, शिकार व स्थानांतरित कृषि के सहारे वे लोग अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। उनके कार्य मौसम (जलवायु) के अनुकूल होते थे अर्थात् उन्हें प्रकृति जो उपलब्ध कराती थी, उसे ही ये स्वीकार कर लेते थे। उदाहरण के लिए हम मध्य भारत में रहने वाले भीलों की बात कर सकते हैं।

ये लोग मानसून के दिनों में खेती करते, बसंत के दिनों में जंगल के उत्पाद एकत्रित करते, गर्मियों में मछलियों को पकड़ते तथा सर्दियों के दिनों में शिकार करते थे। ये अपनी इस तरह की गतिविधियाँ सैकड़ों सालों से जंगलों से घूमते-फिरते करते आ रहे थे। सरकार व राज्य का जंगलों व आदिवासियों के बारे में विचार अच्छा नहीं था, क्योंकि राज्य मानता था कि जंगल में राज्य विरोधी व अराजकता वाली गतिविधियाँ चलती थीं। राज्य कभी भी जंगली जीवन जीने वालों को नियंत्रित नहीं कर पाया।
HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 8 Img 8

मुगलकाल में जंगल की व्यवस्था व जीवन-शैली में तेजी से बदलाव आया। विभिन्न तरह के व्यापारियों, सरकारी अधिकारियों एवं स्वयं शासक भी विभिन्न अवसरों पर जंगलों में जाया करते थे। इस तरह अब जंगल का जीवन पहले की तरह स्वतंत्र व शान्त नहीं रहा, बल्कि समाज के आर्थिक व सामाजिक परिवर्तनों से प्रभावित होने लगा। 16वीं व 17वीं सदी में राज्यों की विस्तारवादी नीति से भी जंगली जनजातियों का जीवन प्रभावित हुआ। वे कबीले शिकार बने जिसके दोनों ओर शक्तिशाली राज्य थे। आइन-ए-अकबरी में स्पष्ट किया गया है कि विभिन्न स्थानीय राजाओं का जोत क्षेत्र बढ़ा। इसका कारण साफ था कि अकबर के शासन काल में राजनीतिक दृष्टि से शान्ति स्थापित हुई तथा राज्य स्थायी भी हुआ। इस बात का लाभ क्षेत्रीय शक्तियों ने उठाकर विभिन्न जंगली क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया।

जंगल के क्षेत्र में सांस्कृतिक गतिविधियों में तेजी आई। जिस तरह से सूफी सन्तों व फकीरों की कार्य प्रणाली से कृषक समुदाय प्रभावित हुआ वैसे ही जंगलवासी भी प्रभावित हुए। इस तरह इस्लाम धीरे-धीरे इन क्षेत्रों में भी फैलने लगा। इस्लाम अपनाने के बाद इन लोगों की परंपराएँ इत्यादि भी बदलीं। इस तरह जंगलवासियों के जीवन व व्यवस्था में काफी बदलाव आया। इस काल में जंगलवासियों की दूरियाँ गाँव व नगरों से कम हुई वहीं राज्य के साथ भी संबंधों में बदलाव आया।

प्रश्न 3.
मुग़ल काल की उत्पादन प्रक्रिया में महिलाओं की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:
सामान्य तौर पर किसी भी काल का अध्ययन करते समय पुरुषों का वर्णन मिलता है। महिलाओं के बारे में जानकारी बहुत सीमित होती है। विभिन्न स्रोतों से इस बात का पता चलता है कि मुगल काल की उत्पादन प्रक्रिया में महिलाओं की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी। कृषक, खेतिहर या दस्तकारों के परिवारों की महिलाएँ विभिन्न कामों में अपनी सेवाएँ देती थीं।

1. कृषि में भूमिका-मुगलकालीन समाज में स्त्री व पुरुष दोनों के बीच श्रम विभाजन काफी हद तक नियोजित था। महिलाएँ पुरुषों के साथ कन्धे-से-कन्धा मिलाकर कार्य किया करती थीं। कार्य विभाजन की कड़ी में सामाजिक तौर पर यह माना जाता था कि पुरुष बाहर के कार्य करेंगे तथा महिलाएँ चारदीवारी के अन्दर। यहाँ विभिन्न स्रोतों में महिलाएँ कृषि उत्पादन व विशेष कार्य अवसरों पर साथ-साथ चलती हुई प्रतीत होती हैं। इस व्यवस्था में पुरुष खेत जोतने व हल चलाने का कार्य करते थे, जबकि महिलाएँ निराई, कटाई व फसल से अनाज निकालने के कार्य में हाथ बँटाती थीं।

फसल की कटाई व बिजाई के अवसर पर जहाँ श्रम शक्ति की आवश्यकता होती थी तो परिवार का प्रत्येक सदस्य उसमें शामिल होता था ऐसे में महिला कैसे पीछे रह सकती थी। सामान्य दिनचर्या में भी कृषक व खेतिहर मजदूर प्रातः जल्दी ही काम पर जाता था तो खाना, लस्सी व पानी इत्यादि को उसके पास पहुँचाना महिला के कार्य का हिस्सा माना जाता था। इसी तरह जब पुरुष खेत में होता था तो घर पर पशुओं की देखभाल का सारा कार्य महिलाएँ करती थीं। अतः स्पष्ट है कि कृषि उत्पादन में महिला की भागीदारी काफी महत्त्वपूर्ण थी।

जहाँ महिलाएँ कृषि उत्पादन में बराबर की हिस्सेदारी लेती थीं, वहीं समाज के लोगों के मन में कुछ पूर्वाग्रह देखे जा सकते हैं। जैसे राजस्थान व गुजरात से प्राप्त स्रोतों से पता चलता है कि रजस्वला (मासिक धम) की स्थिति में महिलाओं को हल या कुम्हार का चाक छूने नहीं दिया जाता था। इसी तरह वे बंगाल में इन्हीं दिनों में पान के बागान में नहीं जा सकती थीं। समाज की इस बारे में धारणा का यह पक्ष हो सकता है कि इस तरह के प्रतिबन्ध के कारण महिला को उन दिनों में अधिक कार्य नहीं करना पड़ता होगा। इसलिए उन पर सामाजिक व धार्मिक बंधन लगा दिए गए।

2. दस्तकार महिलाएँ दस्तकार महिलाएँ सूत कातने, बर्तन बनाने के लिए मिट्टी को साफ करने, भिगोने तथा गूंधने का कार्य करती थीं। वे कपड़े की बुनाई-कढ़ाई भी करती थीं। सामान्य तौर पर जब कृषि कार्य का अधिक दबाव नहीं होता था तो महिलाएँ कुछ-न-कुछ दस्तकारी के कार्य करती रहती थीं। मुग़ल काल में इनकी गैर-कृषि कार्यों में माँग लगातार बढ़ी थी। जिन-जिन चीज़ों का वाणिज्यीकरण हो रहा था तथा लाभ के साथ जुड़ती जा रही थीं, उसी के अनुरूप महिलाओं की श्रम शक्ति की माँग भी बढ़ रही थी।

इस माँग की पूर्ति के लिए अब महिलाएँ नियोक्ता के घर जाकर काम करने लग गई थीं। यहाँ तक कि बाजारों में भी ऐसी व्यवस्था होने लगी थी, जहाँ महिलाएँ सामूहिक तौर पर बैठकर कार्य करने लगी थीं। इस तरह से महिलाओं के लिए चारदीवारी के बंधन कुछ कमजोर होने लगे थे।

3. परिवार की श्रम शक्ति की वृद्धि-मुग़ल काल में मानव की श्रम शक्ति का बहुत अधिक महत्त्व था। ऐसे में महिलाओं का महत्त्व और अधिक बढ़ गया था क्योंकि उसमें परिवार वृद्धि की क्षमता थी। इसी कारण इस समाज में लोग उसे वंश-वृद्धि (श्रम वृद्धि) के संसाधन के तौर पर देखते थे। दूसरी ओर, बार-बार बच्चों को जन्म देने व कुपोषण के कारण महिलाओं की मृत्यु-दर काफी अधिक थी।

इस मृत्यु के कारण महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में कम थी। इस कम संख्या के कारण कृषक व दस्तकारी जातियों में तलाकशुदा महिलाओं व विधवाओं को पुनर्विवाह का अधिकार प्राप्त था। जबकि साधन-सम्पन्न परिवारों में इस तरह की प्रथा नहीं के बराबर थी। उनमें तो सती प्रथा का प्रचलन काफी अधिक था।

इससे पता चलता है कि साधन-सम्पन्न परिवारों की तुलना में सामान्य वर्ग की महिलाएँ उत्पादन प्रक्रिया में अधिक हिस्सा लेती थीं। इसलिए उनका महत्त्व भी अधिक था। यह इस बात से भी स्पष्ट होता है कि तात्कालिक स्रोतों में दहेज का वर्णन कम है जबकि ‘दुल्हन की कीमत’ का वर्णन अधिक है, अर्थात् वर पक्ष द्वारा शादी करने के लिए खर्च करना एक सामान्य बात थी।

इस तरह महिला का महत्त्व परिवार की श्रम शक्ति में वृद्धि के लिए काफी माना जाता था। इस महत्त्व के कारण परिवार में महिला पर नियंत्रण रखना जरूरी समझा जाता था। यह समाज भी वर्तमान की भाँति पुरुष प्रधान समाज था। इसलिए सामाजिक तौर पर परिवार व समुदाय द्वारा महिला पर प्रतिबन्ध लगाए जाते थे। चारित्रिक दृष्टि से मात्र शक के आधार पर ही उन्हें भारी दण्डों का सामना करना पड़ता था।

4. महिलाओं द्वारा अधिकार माँगना-पश्चिमी भारत विशेषकर राजस्थान, गुजरात व महाराष्ट्र से इस तरह के स्रोत मिले हैं जिनमें महिलाओं ने अन्याय व शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई। महिलाओं ने ग्राम पंचायत के पास प्रार्थना-पत्र भेजकर उससे न्याय व मुआवजे की माँग की है। महिलाओं द्वारा अपने पतियों की बेवफाई का विरोध भी किया गया है। इस तरह की शिकायतों में वे स्पष्ट करती हैं कि पति उनका व बच्चों का ध्यान नहीं रखता है और न ही उन्हें भरण-पोषण की चीजें उपलब्ध कराता है।

महिलाओं के प्रार्थना-पत्रों पर उनके नाम अंकित नहीं मिलते बल्कि वे अपना हवाला परिवार के मुखिया की माँ, पत्नी व बहन के रूप में देती हैं। पंचायत फैसले देते समय उनका कितना पक्ष लेती थी यह विभिन्न स्थितियों में अलग-अलग था। सामान्य तौर पर पुरुषों को पंचायतें दण्ड नहीं देती थीं। हाँ, इस बात का दबाव जरूर डालती थी कि वे परिवार की देखभाल की सही जिम्मेदारी निभाए।

5. महिला : भू-स्वामिनी के रूप में मुग़ल काल में विभिन्न स्रोतों से यह स्पष्ट है कि यह समाज पुरुष प्रधान था। वहीं कुछ साक्ष्य विशेषकर पंजाब से ऐसे भी मिले है जिनमें महिला को ज़मीन व पुश्तैनी सम्पत्ति का मालिक बताया गया है। इन स्रोतों से स्पष्ट है कि महिलाएँ अपनी सम्पत्ति व ज़मीन के क्रय-विक्रय में अपनी भूमिका निभाती थीं व सक्रिय हिस्सेदारी रखती थीं। कुछ परिवारों (हिन्दू व मुस्लिम) में ज़मींदारी उत्तराधिकार में मिलती थी।

वे पूरी सक्रियता के साथ अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करती थीं। उस जमींदारी में वे कृषकों, खेतिहरों व कर एकत्रित करने वाले कारिन्दों को दिशा-निर्देश देती थीं। ऐसे मामलों में वे पंचायत के फैसलों में हिस्सा लेने को छोड़कर हर तरह के कार्य करती थीं। बंगाल के कुछ साक्ष्य भी महिलाओं के कुछ स्थानों पर ज़मींदार होने की पुष्टि करते हैं। 18वीं सदी के राज्यों में भी सबसे बड़ी व मशहूर जमींदारियों का वर्णन है। उनमें भी राज-परिवार की एक महिला को सर्वप्रमुख बताया गया है।

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