HBSE 12th Class History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

Haryana State Board HBSE 12th Class History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

HBSE 12th Class History ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
हड़प्पा सभ्यता के शहरों में लोगों को उपलब्ध भोजन सामग्री की सूची बनाइए। इन वस्तुओं को उपलब्ध कराने वाले समूहों की पहचान कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न स्थलों की खुदाई से यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि इस सभ्यता के लोगों की भोजन सामग्री में निम्नलिखित वस्तुएँ या चीजें सम्मिलित थीं

  • अनाज-गेहूँ, जौ, मटर, ज्वार, बाजरा, तिल, सरसों, राई, चावल आदि।
  • पेड़-पौधों के उत्पाद-खजूर, तरबूज आदि।
  • माँस-पालतू पशुओं एवं जंगली जानवरों का।
  • दूध-पशुओं से।

भोजन सामग्री में शामिल इन वस्तुओं/चीजों को निम्नलिखित समूहों द्वारा उपलब्ध करवाया जाता था

  • किसान-शहरी आबादी को गाँवों के लोग अनाज उपलब्ध करवाते थे।
  • व्यापारी-व्यापारी समूह गाँवों से अनाज को शहरों तक पहुँचाते थे जहाँ अन्नागारों में इसे रखा जाता था।
  • पशुचारी समूह कृषक समुदायों के साथ-साथ पशुचारी समूह भी थे जो माँस और दूध उपलब्ध कराते थे।
  • आखेटक व मछुवारे–हड़प्पा क्षेत्र में आखेटक समूह भी थे जो जंगली पशु, शहद, जड़ी-बूटियाँ उपलब्ध कराते थे। मछुवारे भी भोजन की जरूरत पूरी करते थे।

प्रश्न 2.
पुरातत्वविद् हड़प्पाई समाज में सामाजिक-आर्थिक भिन्नताओं का पता किस प्रकार लगाते हैं? वे कौन-सी भिन्नताओं पर ध्यान देते हैं?
उत्तर:
पुरातत्वविद् हड़प्पा सभ्यता के समाज में विद्यमान सामाजिक-आर्थिक भिन्नताओं का पता लगाने के लिए एक निश्चित विधि अपनाते हैं। वे शवाधानों का परीक्षण करते हैं। दूसरा खुदाई में प्राप्त हुए विलासिता संबंधी सामग्री का विश्लेषण करते हैं। इन आधारों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित प्रकार से है

1. शवाधान-हड़प्पा में मृतकों के अन्तिम संस्कार का सबसे ज्यादा प्रचलित तरीका दफनाना ही था। शव सामान्य रूप से उत्तर-दक्षिण दिशा में रखकर दफनाते थे। कब्रों में कई प्रकार के आभूषण तथा अन्य वस्तुएं भी प्राप्त हुई हैं। जैसे कुछ कब्रों में ताँबे के दर्पण, सीप और सुरमे की सलाइयाँ पाई गई हैं। कुछ शवाधानों में बहुमूल्य आभूषण और अन्य सामान मिले हैं। कुछ कब्रों में बहुत ही सामान्य सामान मिला है।

शवाधानों की बनावट से भी विभेद प्रकट होता है। कुछ कळे सामान्य बनी हैं तो कुछ कब्रों में ईंटों की चिनाई की गई है। ऐसा लगता है कि चिनाई वाली कब्रे उच्चाधिकारी वर्ग अथवा अमीर लोगों की हैं। सारांश में हम कह सकते हैं कि शवाधानों से प्राप्त सामग्री से हमें हड़प्पा के समाज की सन्तोषजनक जानकारी अवश्य प्राप्त हो जाती है।

2. विलासिता-हड़प्पा सभ्यता के नगरों से प्राप्त कलातथ्यों (Artefacts) से भी सामाजिक विभेदन का अनुमान लगाया जाता है। इन कलातथ्यों को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जाता है पहले ऐसे अवशेष थे जो दैनिक उपयोग (Utility) के थे तथा दूसरे । विलासिता (Luxury) से जुड़े थे। दैनिक उपयोग की वस्तुएं हड़प्पा सभ्यता के सभी स्थलों से प्राप्त हुई हैं। दूसरा विलासिता की वस्तुओं में महँगी तथा दुर्लभ वस्तुएँ शामिल थीं। इनका निर्माण बाहर से प्राप्त सामग्री/पदार्थों से या जटिल तरीकों द्वारा किया जाता था। उदाहरण के लिए फयॉन्स (घिसी रेत या सिलिका/बालू रेत में रंग और गोंद मिलाकर पकाकर बनाए बर्तन) के छोटे बर्तन इस श्रेणी में रखे जा सकते हैं।

ये फयॉन्स से बने छोटे-छोटे पात्र संभवतः सुगन्धित द्रवों को रखने के लिए प्रयोग में लाए जाते थे। हड़प्पा के कुछ पुरास्थलों से सोने के आभूषणों की निधियाँ (पात्रों में जमीन में दबाई हुई) भी मिली हैं। उल्लेखनीय है कि जहाँ दैनिक उपयोग का सामान हड़प्पा की सभी बस्तियों में मिला है, वहीं विलासिता का सामान मुख्यतः मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे बड़े नगरों में ही मिला है जो संभवतः राजधानियाँ भी थीं। पुरातत्वविद् सामाजिक, आर्थिक स्थिति, खानपान, मकानों, विलासिता आदि भिन्नताओं पर ध्यान देते हैं।

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प्रश्न 3.
क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं कि हड़प्पा सभ्यता के शहरों की जल निकास प्रणाली, नगर-योजना की ओर संकेत करती है? अपने उत्तर के कारण बताइए।
उत्तर:
इस तथ्य से सहमति के पर्याप्त प्रमाण हैं कि हड़प्पा सभ्यता के नगरों की जल निकासी प्रणाली नगर-योजना की ओर संकेत करती है। सारे नगर में नालियों का निर्माण नियोजित और सावधानीपूर्वक किया जाता था।

  • वास्तव में ऐसा लगता है कि नालियों तथा गलियों की संरचना पहले की गई थी तथा बाद में इनके साथ घरों का निर्माण किया जाता था। प्रत्येक घर के गंदे पानी की निकासी एक पाईप (पक्की मिट्टी के) से होती थी जो सड़क और गली की नाली से जुड़ी होती थी।
  • शहरों के नक्शों से जान पड़ता है कि सड़कों और गलियों को लगभग एक ग्रिड प्रणाली से बनाया गया था और वे एक-दूसरे को समकोण काटती थीं।
  • जल निकासी की प्रणाली बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि यह कई छोटी बस्तियों में भी दिखाई पड़ती है। उदाहरण के लिए लोथल में आवासों के बनाने के लिए. जहाँ कच्ची ईंटों का इस्तेमाल हुआ है वहीं नालियाँ पक्की ईंटों से बनाई गई थीं। नालियों के विषय में मैके नामक पुरातत्वविद् (अर्ली इण्डस सिविलाईजेशन) ने लिखा है, “निश्चित रूप से यह अब तक खोजी गई सर्वथा संपूर्ण प्राचीन प्रणाली है।”

प्रश्न 4.
हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के लिए प्रयुक्त पदार्थों की सूची बनाइए। कोई भी एक प्रकार का मनका बनाने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(A) पदार्थ-हड़प्पा सभ्यता के लोग गोमेद, फिरोजा, लाल पत्थर, स्फटिक (Crystal), क्वार्ट्ज़ (Quartz), सेलखड़ी (Steatite) जैसे बहुमूल्य एवं अर्द्ध-कीमती पत्थरों के अति सुन्दर मनके बनाते थे। मनके व उनकी मालाएं बनाने में ताँबा, कांस्य और सोना जैसी धातुओं का भी प्रयोग किया जाता था। शंख, फयॉन्स (faience), टेराकोटा या पक्की मिट्टी से भी मनके बनाए जाते थे। इन्हें अनेक आकारों चक्राकार, गोलाकार, बेलनाकार और खंडित इत्यादि में बनाया जाता था। कुछ मनके अलग-अलग पत्थरों को जोड़कर बनाए जाते थे। पत्थर के ऊपर सोने के टोप वाले सुन्दर मनके भी पाए गए हैं।
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(B) प्रक्रिया मनके भिन्न-भिन्न प्रक्रिया से बनाए जाते थे। वस्तुतः यह प्रक्रिया पदार्थ (Material) के अनुसार होती थी। जिस प्रकार सेलखड़ी जैसे मुलायम पत्थर के मनके सरलता से बन जाते थे और ये सबसे ज्यादा संख्या में पाए गए हैं। सेलखड़ी के चूर्ण से लेप तैयार कर उसे सांचे में डालकर अनेक आकारों के मनके तैयार किए जाते थे। सेलखड़ी के सूक्ष्म मनके बनाने की कला तकनीक अभी भी पुरातत्ववेत्ताओं के लिए पहेली बनी हुई है।

कठोर पत्थरों के मनके बनाने की प्रक्रिया कठिन थी। उदाहरण के लिए पुरातत्वविदों का विचार है कि लाल इन्द्रगोपमणि (Carnelian) एक जटिल प्रक्रिया द्वारा बनाई जाती थी। इसे पीले रंग के कच्चे माल तथा उत्पादन के विभिन्न चरणों में मनकों को आग में पकाकर प्राप्त किया जाता था। कठोर पत्थरों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता था। आरी से काटकर आयताकार छड़ में बदला जाता था, फिर उसके बेलनाकार टुकड़े करके पॉलिश से चमकाया जाता था। अन्त में चर्ट बरमे या कांसे के नलिकाकार बरमे से उनमें छेद किया जाता था। मनकों में छेद करने के ऐसे उपकरण चन्हदडो, लोथल, धौलावीरा जैसे स्थलों से प्राप्त हुए हैं।

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प्रश्न 5.
नीचे दिए गए चित्र को देखिए और उसका वर्णन कीजिए। शव किस प्रकार रखा गया है? उसके समीप कौन-सी वस्तुएँ रखी गई हैं? क्या शरीर पर कोई पुरावस्तुएँ हैं? क्या इनसे कंकाल के लिंग का पता चलता है?
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उत्तर:
चित्र देखकर शव के संबंध में निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले जाते हैं

  • शव एक गर्त में रखा हुआ है। यह उत्तर-दक्षिण दिशा में रखा हुआ है।
  • शव के समीप सिर की तरफ मृदभाण्ड रखे हैं, इनमें मटका, जार आदि शामिल हैं।
  • शव पर पुरावस्तुएँ हैं विशेषतः कंगन आदि आभूषण हैं। ऐसा लगता है कि ये वस्तुएँ मृतक द्वारा अपने जीवन काल में प्रयोग की गई थीं और हड़प्पाई लोगों का विश्वास था कि वह अगले जीवन में भी उनका प्रयोग करेगा।
  • शव को देखकर उसके लिंग (sex) के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसा लगता है कि यह किसी महिला का शव है।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 500 शब्दों में)

प्रश्न 6.
मोहनजोदड़ो की कुछ विशिष्टताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता इसकी नगर-योजना प्रणाली थी। इसका संबंध विकसित हड़प्पा अवस्था (2600-1900 ई.पू.) से था। नगरों में सड़कें और गलियाँ एक योजना के अनुसार बनाई गई थीं। मुख्य मार्ग उत्तर से दक्षिण की ओर जाते थे। अन्य सड़कें और गलियाँ मुख्य मार्ग को समकोण पर काटती थीं जिससे नगर वर्गाकार या आयताकार खण्डों में विभाजित हो जाते थे। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगन तथा अन्य छोटे नगरों में नगर-योजना प्रणाली में काफी समानताएँ देखने को मिलती हैं। मोहनजोदड़ो नगर में व्यापक खुदाई हुई है, इससे इस नगर की विशिष्टताओं की जानकारी मिलती है। इन विशिष्टताओं से हम अन्य नगरों की विशिष्टताओं को भी समझ सकते हैं।

मोहनजोदड़ो की कुछ विशिष्टताएँ-मोहनजोदड़ो को हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा शहरी केंद्र माना जाता है। इस सभ्यता की नगर-योजना, गृह निर्माण, मुद्रा, मोहरों आदि की अधिकांश जानकारी मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई है।

1. नगर दुर्ग–यह नगर दो भागों में बँटा था। एक भाग में ईंटों से बनाए ऊँचे चबतरे पर स्थित बस्ती है। इसके चारों ओर ईंटों से बना परकोटा (किला) था, जिसे ‘नगर दुर्ग’ (Citadel) कहा जाता है। ‘नगर दुर्ग’ का क्षेत्रफल निचले नगर से कम था। इसमें पकाई ईंटों से बने अनेक बड़े भवन पाए गए हैं। दुर्ग क्षेत्र में शासक वर्ग के लोग रहते थे। निचले नगर के चारों ओर भी दीवार थी। इस क्षेत्र में भी कई भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था। ये चबूतरे भवनों की आधारशिला (Foundation) का काम करते थे। दुर्ग क्षेत्र के निर्माण तथा निचले क्षेत्र में चबूतरों के निर्माण के लिए विशाल संख्या में श्रमिकों को लगाया गया होगा।

2. प्लेटफार्म-इस नगर की यह भी विशेषता रही होगी कि पहले प्लेटफार्म या चबूतरों का निर्माण किया जाता होगा तथा बाद में इस तय सीमित क्षेत्र में निर्माण कार्य किया जाता होगा। इसका अभिप्राय यह हुआ कि पहले योजना बनाई जाती होगी तथा बाद में उसे योजनानुसार लागू किया जाता था। नगर की पूर्व योजना (Pre-planning) का पता ईंटों से भी लगता है। यह ईंटें पकाई हुई (पक्की) तथा धूप में सुखाई हुई होती थीं। इनका मानक (1:2:4) आकार था। इसी मानक आकार की ईंटें हड़प्पा सभ्यता के अन्य नगरों में भी प्रयोग हुई हैं।

3. गृह स्थापत्य-मोहनजोदड़ो से उपलब्ध आवासीय भवनों के नमूनों से सभ्यता के गृह स्थापत्य का अनुमान लगाया जाता है। घरों की बनावट में समानता पाई गई है। ज्यादातर घरों में आंगन (Courtyard) होता था और इसके चारों तरफ कमरे बने होते थे। ऐसा लगता है कि आंगन परिवार की गतिविधियों का केंद्र था। उदाहरण के लिए गर्म और शुष्क मौसम में आंगन में खाना पकाने व कातने जैसे कार्य किए जाते थे। ऐसा भी प्रतीत होता है कि घरों के निर्माण में एकान्तता (Privacy) का ध्यान रखा जाता था।

भूमि स्तर (Ground level) पर दीवार में कोई भी खिड़की नहीं होती थी। इसी प्रकार मुख्य प्रवेश द्वार से घर के अन्दर या आंगन में नहीं झांका/देखा जा सकता था। बड़े घरों में कई-कई कमरे, रसोईघर, शौचालय एवं स्नानघर होते थे। कई मकान तो दो मंजिले थे तथा ऊपर पहुंचने के लिए सीढ़ियाँ बनाई जाती थीं। मोहनजोदड़ो में प्रायः सभी घरों में कुएँ होते थे। विद्वानों ने अनुमान लगाया है कि मोहनजोदड़ो नगर में लगभग सात सौ कुएँ थे।

4. दुर्ग क्षेत्र में भवन-हमने जाना कि मोहनजोदड़ो, हड़प्पा और कालीबंगन जैसे नगर दो भागों में बँटे हुए थे। एक भाग कच्ची ईंटों से बने ऊँचे चबूतरे पर बना होता था तथा इसके चारों ओर मोटी दीवार होती थी। इसे दुर्ग कहा जाता है। मोहनजोदड़ो दुर्ग क्षेत्र में सार्वजनिक महत्त्व अनेक भवनों के भग्नावशेष प्राप्त हुए हैं

(i) विशाल स्नानागार-यह मोहनजोदड़ो का सबसे महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल है। यह ईंटों के स्थापत्य का सुन्दर नमूना है। आयताकार में बना यह स्नानागार 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.45 मीटर गहरा है। इसके उत्तर और दक्षिण में सीढ़ियाँ बनी हैं। ये सीढ़ियाँ स्नानागार के तल तक जाती हैं। यह स्नानागार पक्की ईंटों से बना है। इसे बनाने में चूने तथा तारकोल का प्रयोग किया गया था। इसके साथ ही कुआँ था जिससे इसे पानी से भरा जाता था। साफ करने के लिए इसकी पश्चिमी दीवार में तल पर नालियाँ बनी थीं। स्नानागार के तीन ओर मंडप एवं कक्ष बने हुए थे। विद्वानों का मानना है कि इस स्नानागार और भवन का प्रयोग धार्मिक समारोहों के लिए किया जाता था।
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(ii) विशाल भवन-विशाल स्नानागार के समीप ही एक विशाल इमारत के अवशेष हैं। यह भवन 69 x 23.5 मीटर आकार का है। इसके बारे में अनुमान है कि यह किसी उच्चाधिकारी (पुरोहित) का निवास स्थान रहा होगा। इसमें 33 वर्ग फुट का खुला आंगन है और इसमें तीन बरांडे खुलते हैं।

(iii) अन्नागार-मोहनजोदड़ो में स्नानागार के साथ (पश्चिम में) एक विशाल अन्नागार भी मिला है। इस अन्नागार में ईंटों से निर्मित 27 खण्ड (Blocks) हैं। इन खंडों में प्रकाश के लिए आड़े-तिरछे रोशनदान बने हुए हैं। हड़प्पा में भी इसी प्रकार का अन्नागार मिला है। इस भवन का आकार 50 x 40 मीटर है। इस भवन के बीच में सात मीटर चौड़ा गलियारा था। इसमें अनाज, कपास तथा व्यापारिक वस्तुओं का भण्डारण किया जाता था।

5. सड़कें और गलियाँ-जैसा हमने बताया कि सड़कें और गलियाँ सीधी होती थीं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। मोहनजोदड़ो में निचले नगर में मुख्य सड़क 10.5 मीटर चौड़ी थी, इसे ‘प्रथम सड़क’ कहा गया है। अन्य सड़कें 3.6 से 4 मीटर तक चौड़ी थीं। गलियाँ एवं गलियारे 1.2 मीटर (4 फुट) या उससे अधिक चौड़े थे। घरों के बनाने से पहले ही सड़कों व गलियों के लिए स्थान छोड़ दिया जाता था। उल्लेखनीय है कि मोहनजोदड़ो के अपने लम्बे जीवनकाल में इन सड़कों पर अतिक्रमण (encroachments) या निर्माण कार्य दिखाई नहीं देता।

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6. नालियों की व्यवस्था-मोहनजोदड़ो नगर में नालियों का निर्माण भी बहुत सावधानीपूर्वक किया गया था। ऐसा लगता है कि नालियों तथा गलियों की संरचना पहले की गई थी तथा बाद में इनके साथ घरों का निर्माण किया गया था। प्रत्येक घर के गन्दे पानी (Waste Water) की निकासी एक पाईप (Terracotta Pipe) से होती थी जो सड़क गली की नाली से जुड़ा होता था। जल निकासी की प्रणाली बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि यह कई छोटी बस्तियों में भी दिखाई पड़ती है।

प्रश्न 7.
हड़प्पा सभ्यता में शिल्प उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल की सूची बनाइए तथा चर्चा कीजिए कि ये किस प्रकार प्राप्त किए जाते होंगे?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता अपने हस्तशिल्प उत्पादों के लिए विख्यात थी। हड़प्पा के लोगों ने इन शिल्प उत्पादों में महारत हासिल कर ली थी। मनके बनाना (bead-making), सीपी उद्योग (Shell Cutting Industry), धातु-कर्म (सोना-चांदी के आभूषण, ताँबा, कांस्य के बर्तन, खिलौने उपकरण आदि), तौल निर्माण, प्रस्तर उद्योग, मिट्टी के बर्तन बनाना (Pottery), ईंटें बनाना (Brick Laying), मुद्रा निर्माण (Seal-making) आदि हड़प्पा के लोगों के प्रमुख शिल्प उत्पाद थे। कई बस्तियाँ तो इन उत्पादों के लिए ही प्रसिद्ध थीं। उदाहरण के लिए चन्हुदड़ो बस्ती में मुख्यतः शिल्प उत्पादों का ही कार्य होता था। .

(A) सूची-इन उत्पादों के लिए कच्चे माल की आवश्यकता थी। कच्चे माल की सूची निम्नलिखित प्रकार की है-चिकनी मिट्टी, पत्थर, तांबा, जस्ता, कांसा, सोना, शंख, कार्नीलियन (सुन्दर लाल रंग), स्फटिक, क्वार्टज़, सेलखड़ी, लाजवर्द मणि (नीले रंग के अफगानी पत्थर), कीमती लकड़ी, कपास, ऊन, सुइयाँ, फयॉन्स, जैस्पर, चक्कियाँ आदि।

(B) माल प्राप्त करने के तरीके कच्चे माल की सूची में से कई चीजें स्थानीय तौर पर मिल जाती थीं परंतु अधिकतर; जैसे पत्थर, धातु, लकड़ी इत्यादि बाहर से मंगवाई जाती थीं। पकाई मिट्टी से बनी बैलगाड़ियों के खिलौने इस बात का संकेत हैं कि बैलगाड़ियों का प्रयोग सामान का आयात करने के लिए होता था। सिन्धु व सहायक नदियों का भी मार्गों के रूप में प्रयोग होता था। समुद्र तटीय मार्गों का इस्तेमाल भी माल लाने के लिए किया जाता था।
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1. अंतर्खेत्रीय संपर्कों से माल की प्राप्ति-हड़प्पावासी भारतीय उपमहाद्वीप व आसपास के क्षेत्रों से माल उत्पादन के लिए वस्तुएँ (कच्चा माल) प्राप्त करते थे।

1. बस्तियों की स्थापना-सिन्ध, बलूचिस्तान के समुद्रतट, गुजरात, राजस्थान तथा अफगानिस्तान तक के क्षेत्र से कच्चा माल प्राप्त करने के लिए उन्होंने बस्तियों का निर्माण किया हुआ था। इन क्षेत्रों में प्रमुख बस्तियां थीं-नागेश्वर (गुजरात), बालाकोट, शोर्तुघई (अफगानिस्तान), लोथल आदि। नागेश्वर और बालाकोट से शंख प्राप्त करते थे। शोर्तुघई (अफगानिस्तान) से कीमती लाजवर्द मणि (नीलम) आयात करते थे। लोथल के संपर्कों से भड़ौच (गुजरात) में पाई जाने वाली इन्द्रगोपमणि (Carnelian) मँगवाई जाती थी। इसी प्रकार उत्तर गुजरात व दक्षिण राजस्थान क्षेत्र से सेलखड़ी का आयात करते थे।

स्थान/बस्ती आयातित कच्चा माल
नागेश्वर शंख
बालाकोट शंख
शोर्तुघई नीलम (लाजवर्द मणि)
लोथल इन्द्रगोपमणि
दक्षिण राजस्थान व उत्तर गुजरात सेलखड़ी
खेतड़ी तांबा
दक्षिण भारत सोना

2. अभियानों से माल प्राप्ति हड़प्पा सभ्यता के लोग उपमहाद्वीप के दूर-दराज क्षेत्रों तक अभियानों (Expeditions) का आयोजन कर कच्चा माल प्राप्त करने का तरीका भी अपनाते थे। इन अभियानों से वे स्थानीय क्षेत्रों के लोगों से संपर्क स्थापित करते थे। इन स्थानीय लोगों से वे वस्तु विनिमय से कच्चा माल प्राप्त करते थे। ऐसे अभियान भेजकर राजस्थान के खेतड़ी क्षेत्र से तांबा तथा दक्षिण भारत में कर्नाटक क्षेत्र से सोना प्राप्त करते थे। उल्लेखनीय है कि इन क्षेत्रों से हड़प्पाई पुरा वस्तुओं तथा कला तथ्यों के साक्ष्य मिले हैं। पुरातत्ववेत्ताओं ने खेतड़ी क्षेत्र से मिलने वाले साक्ष्यों को गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति का नाम दिया है जिसके विशिष्ट मृदभांड हड़प्पा के मृदभांडों से भिन्न हैं।

2. दूरवर्ती क्षेत्रों से संपर्क-हड़प्पा सभ्यता के नगरों व्यापारियों का पश्चिम एशिया की सभ्यताओं के साथ संपर्क था। उल्लेखनीय है कि मेसोपोटामिया हड़प्पा सभ्यता के मुख्य क्षेत्र से बहुत दूर स्थित था फिर भी इस बात के साक्ष्य मिल रहे हैं कि इन दोनों सभ्यताओं के बीच व्यापारिक संबंध था।

1. तटीय बस्तियाँ–यह व्यापारिक संबंध समुद्रतटीय क्षेत्रों के समीप से (समुद्री मार्गों से) यात्रा करके स्थापित हुए थे। मकरान (बलूचिस्तान) तट पर सोटकाकोह बस्ती तथा सुत्कागेंडोर किलाबन्द बस्ती इन यात्राओं के लिए आवश्यक राशन-पानी प्रदान करती होगी।

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2. मगान-ओमान की खाड़ी पर स्थित रसाल जनैज (Rasal-Junayz) भी व्यापार के लिए महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह थी। सुमेर के लोग ओमान को मगान (Magan) के नाम से जानते थे। मगान में हड़प्पा सभ्यता से जुड़ी वस्तुएँ; जैसे मिट्टी का मर्तबान, बर्तन, इन्द्रगोप के मनके, हाथी-दांत व धातु के कला तथ्य मिले हैं। हाल ही में पुरातात्विक खोजों से संकेत प्राप्त होते हैं कि हड़प्पा के लोग संभवतः ओमान (अरब प्रायद्वीप के दक्षिण-पश्चिम छोर पर स्थित) से ताँबा मँगवाते थे। हड़प्पाई कला तथ्यों (Artefacts) और ओमानी ताँबे दोनों में निकिल (Nickel) के अंशों का मिलना दोनों के सांझा उद्भव (Origin) की ओर संकेत करता है।

3. दिलमुन–फारस की खाड़ी में भी हड़प्पाई जहाज पहुँचते थे। दिलमुन (Dilmun) तथा पास के तटों पर जहाज जाते थे। दिलमुन से हड़प्पा के कलातथ्य तथा लोथल से दिलमुन की मोहरें प्राप्त हुई हैं।

4. मेसोपोटामिया-वस्तुतः दिलमुन (बहरीन के द्वीपों से बना) मेसोपोटामिया का प्रवेश द्वार था। मेसोपोटामिया के लोग सिंधु बेसिन (Indus Basin) को मेलुहा (Meluhha) के नाम से जानते थे (कुछ विद्वानों के मतानुसार मेलुहा सिंधु क्षेत्र का बिगड़ा हुआ नाम है)। मेसोपोटामिया के लेखों (Texts) में मेलुहा से व्यापारिक संपर्क का उल्लेख है। पुरातात्विक साक्ष्यों से ज्ञात हुआ है कि मेसोपोटामिया में हड़प्पा की मुद्राएँ, तौल, मनके, चौसर के नमूने (dice), मिट्टी की छोटी मूर्तियाँ मिली हैं। इसका अभिप्राय है कि हड़प्पाई लोग मेसोपोटोमिया से व्यापार संपर्क रखते थे तथा संभवतः वे यहाँ से चाँदी एवं बढ़िया किस्म की लकड़ी प्राप्त करते थे।

प्रश्न 8.
चर्चा कीजिए कि पुरातत्वविद् किस प्रकार अतीत का पुनर्निर्माण करते हैं।
उत्तर:
पुरातत्वविदों को खुदाई के दौरान अनेक प्रकार के शिल्प तथ्य प्राप्त होते हैं। वे इन शिल्प तथ्यों को अन्य वैज्ञानिकों की मदद से अन्वेषण व विश्लेषण करके व्याख्या करते हैं। इस कार्य में वे वर्तमान में प्रचलित प्रक्रियाओं, विश्वासों आदि का भी सहारा लेते हैं। हड़प्पा सभ्यता के संबंध में पुरातत्वविदों के अग्रलिखित निष्कर्षों से यह बात और भी स्पष्ट हो जाती है कि वे किस प्रकार अतीत का पुनर्निर्माण करते हैं

1. जीवन-निर्वाह का आधार कृषि-पुरावशेषों तथा पुरावनस्पतिज्ञों की मदद से पुरातत्वविद् हड़प्पा सभ्यता की जीविका निर्वाह प्रणाली के संबंध में निष्कर्ष निकलते हैं। उनके अनुसार नगरों में अन्नागारों का पायां जाना इस बात का प्रमाण है कि इस सभ्यता के लोगों के जीवन-निर्वाह या भरण पोषण का मुख्य आधार कृषि व्यवस्था थी। सिंधु नदी के जलोढ़ मैदानों में यहाँ के किसान अनेक फसलें उगाते थे। पुरा-वनस्पतिज्ञों (Archaeo-botanists) के अध्ययनों से इस क्षेत्र में उगाई जाने वाली अनेक फसलों की जानकारी मिली है।

सभ्यता के विभिन्न स्थलों से गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, राई और मटर जैसे अनाज के दाने मिले हैं। गेहूँ की दो किस्में पैदा की जाती थीं। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगन से गेहूँ और जौ प्राप्त हुए हैं। गुजरात में ज्वार और रागी का उत्पादन होता था। सौराष्ट्र में बालाकोट में बाजरा व ज्वार के प्रमाण मिले हैं। 1800 ई.पू. में लोथल में चावल उगाने के प्रमाण मिले हैं। हड़प्पा सभ्यता के लोग सम्भवतः दुनिया में पहले थे जो कपास का उत्पादन करते । इसके साक्ष्य मेहरगढ़, मोहनजोदड़ो आदि स्थानों से मिले हैं। .

2. पशुपालन व शिकार-इसी प्रकार सभ्यता से प्राप्त शिल्प तथ्यों तथा पुरा-प्राणिविज्ञानियों (Archaeo-zoologists) के अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि हड़प्पन भेड़, बकरी, बैल, भैंस, सुअर आदि जानवरों का पालन करने लगे थे। कूबड़ वाला सांड उन्हें विशेष प्रिय था। गधे और ऊँट का पालन बोझा ढोने के लिए करते थे। ऊँटों की हड्डियाँ बड़ी मात्रा में पाई गई हैं। इसके अतिरिक्त भालू, हिरण, घड़ियाल जैसे पशुओं की हड्डियाँ भी मिली हैं। मछली व मुर्गे की हड्डियाँ भी प्राप्त हुई हैं। वे हाथी, गैंडा जैसे पशुओं से भी परिचित थे।

3. सामाजिक-आर्थिक भिन्नताओं की पहचान-पुरातत्वविद् विभिन्न प्रकार की सामग्री से विभिन्न तरीकों से यह जानने की। कोशिश करते हैं कि अध्ययन किए जाने वाले समाज में सामाजिक-आर्थिक विभेदन मौजद था या नहीं। उदाहरण के लिए हड के समाज में सामाजिक-आर्थिक स्थिति में भेद को जानने के लिए कई विधियाँ अपनाई गई हैं। शवाधानों से प्राप्त सामग्री के आधार पर इस भेद का पता लगाया जाता है। आप संभवतः मिस्र के विशाल पिरामिडों (जिनमें से कुछ हड़प्पा के समकालीन थे) से परिचित हैं। इनमें से कई राजकीय शवाधान थे जहाँ बड़ी मात्रा में धन-संपत्ति दफनाई गई थी। इसी प्रकार पुरातत्वविद् दैनिक प्रयोग तथा विलासिता से संबंधी सामग्री की पहचान कर सामाजिक-आर्थिक भिन्नता का पता लगाते थे।

4. शिल्प उत्पादन केंद्रों की पहचान-हड़प्पा के शिल्प उत्पादन केंद्रों की पहचान के लिए भी विशेष विधि अपनाई जाती है। पुरातत्वविद् किसी उत्पादन केंद्र को पहचानने में कुछ चीजों का प्रमाण के रूप में सहारा लेते हैं। पत्थर के टुकड़ों, पूरे शंखों, सीपी के ट्रकडों, तांबा, अयस्क जैसे कच्चे माल, अपूर्ण वस्तुओं, छोड़े गए माल और कडा-कर्कट आदि चीजों से उत्पादन केंद्रों की पहचान की जाती है। कारीगर वस्तुओं को बनाने के लिए पत्थर को काटते समय या शंख-सीपी को काटते हुए अनुपयोगी सामग्री छोड़ देते थे। कार्यस्थलों (Work Shops) से प्राप्त ऐसी सामग्री के ढेर होने पर अनुमान लगाया जाता है कि वह स्थल उत्पादन केंद्र रहा होगा।

5. परोक्ष तथ्यों के आधार पर व्याख्या कभी-कभार पुरातत्वविद् परोक्ष तथ्यों का सहारा लेकर वर्गीकरण करते हैं। उदाहरण के लिए कुछ हड़प्पा स्थलों पर कपड़ों के अंश मिले हैं। तथापि कपड़ा होने के प्रमाण के लिए दूसरे स्रोत जैसे मूर्तियों का सहारा लिया जाता है। किसी भी शिल्प तथ्य को समझने के लिए पुरातत्ववेत्ता को उसके.संदर्भ की रूपरेखा विकसित करनी पड़ती है। उदाहरण के लिए हड़प्पा की मोहरों को तब तक नहीं समझा जा सका जब तक उन्हें सही संदर्भ में नहीं रख पाए। वस्तुतः इन मोहरों को उनके सांस्कृतिक अनुक्रम (Cultural Sequence) एवं मेसोपोटामिया में हुई खोजों की तुलना के आधार पर ही इन्हें सही अर्थों में समझा जा सका।

निष्कर्ष व्यापक तथ्यों के अभाव, विस्तृत खुदाई न होने, लिपि न पढ़े जाने के कारण हड़प्पा सभ्यता के संबंध में पुरातत्वविदों के कई निष्कर्ष संदिग्ध बने हुए हैं। जैसे विशाल स्नानागार का संबंध आनुष्ठानिक क्रिया से था या नहीं। नारी मृण्मूर्तियों का क्या उपयोग था। साक्षरता कितनी थी। फिर भी पुरातत्वविद् उपलब्ध साक्ष्यों से इतिहास का पुनर्निर्माण करने का प्रयास करते हैं।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 9.
हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा किए जाने वाले संभावित कार्यों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के समय में राजनीतिक सत्ता का क्या स्वरूप था तथा वे क्या-क्या कार्य करते थे। इस संबंध में पुरातत्वविदों तथा इतिहासकारों में एक मत नहीं है। विशेषतौर पर हड़प्पा लिपि के नहीं पढ़ पाने के कारण यह पक्ष अभी तक अस्पष्ट है। फिर भी उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि वहाँ पर शासक वर्ग अवश्य था। चाहे वह कुलीनतंत्र हो या धर्मतंत्र। ऐसा निष्कर्ष इसलिए भी निकाला जाता है कि इतने बड़े पैमाने पर नगर तथा उसमें उत्तम व्यवस्था के लिए शासक वर्ग होना जरूरी है।

इसी प्रकार अन्नागारों, विशाल भवनों, औजारों, हथियारों, मोहरों में समरूपता से लगता है कि शासक अवश्य होंगे। व्यापार को नियंत्रण करने के लिए भी कोई प्रशासन की व्यवस्था रही होगी। हड़प्पा सभ्यता के सभी साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि हड़प्पाई समाज में शासक थे तथा उनके द्वारा किए जाने वाले संभावित कार्यों का विवरण निम्नलिखित प्रकार से दिया जा सकता है

1. शासकों के द्वारा जटिल फैसले लिए जाते होंगे तथा उन्हें लागू करवाने जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य भी किए जाते होंगे। हड़प्पा स्थलों पर प्राप्त पुरावशेषों में असाधारण एकरूपता इस बात का सूचक है कि इस बारे में नियम रहे होंगे। मृदभाण्ड, मोहरें, बाट तथा ईंटों में यह असाधारण एकरूपता शासकों के आदेशों पर ही रही होगी।

2. बस्तियों की स्थापना व नियोजन का निर्णय लेना, बड़ी संख्या में ईंटों को बनवाना, शहरों में विशाल दुर्ग/दीवारें, सार्वजनिक भवन, दुर्ग क्षेत्र के लिए चबूतरे का निर्माण कार्य, लाखों की संख्या में विभिन्न कार्यों के लिए मजदूरों की व्यवस्था करना ; जैसे कार्य शासकों के द्वारा ही करवाए जाते रहे होंगे। नगरों की सारी व्यवस्था की देखभाल शासक वर्ग द्वारा की जाती थी।

3. कुछ पुरातत्वविदों का कहना है कि मेसोपोटामिया के समान हड़प्पा में भी पुरोहित शासक रहे होंगे। पाषाण की एक मूर्ति की पहचान ‘पुरोहित राजा’ के रूप में की जाती है जो एक प्रासाद महल में रहता था। लोग उसे पत्थर की मूर्तियों में आकार देकर सम्मान करते थे। यह संभावना भी व्यक्त की जाती है कि यह पुरोहित राजा धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन करते थे। यह भी कहा जाता है कि विशाल स्नानागार एक आनुष्ठानिक क्रिया के आयोजन के लिए बनवाया गया होगा। यद्यपि हड़प्पा सभ्यता की आनुष्ठानिक प्रथाओं को अभी तक ठीक प्रकार से नहीं समझा जा सका है।

4. कुछ विद्वानों का मत है कि हड़प्पाई समाज में एक राजा नहीं था बल्कि कई शासक थे जैसे मोहनजोदड़ो हड़प्पा आदि के अपने अलग-अलग शासक होते थे। वे अपने-अपने क्षेत्र में व्यवस्था को देखते थे।

5. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि हड़प्पा राज्य कांस्य युग का था तथा यह लोह युग के राज्य से भिन्न था। न इसकी स्थायी सेना थी और न स्थायी नौकरशाही। भू-राजस्व भी वसूल नहीं किया जाता था। शासक वर्ग में विभिन्न समुदायों के प्रमुख लोग शामिल थे जो आपस में मिलकर इसे चलाते थे। इन लोगों का तकनीकी, शिल्पों तथा व्यापार पर अधिकार था। ये शिल्पकारों से उत्पादन करवाते थे। दूर-दूर तक व्यापार करते थे। किसानों से अनाज शहरों तक आता था तथा इसे अन्नागारों में रखा जाता था।

6. हड़प्पा सभ्यता के काल में उभरे क्षेत्रीय, अन्तक्षेत्रीय तथा बाह्य व्यापार को सुचारू रूप से चलाने का कार्य भी शासक के हाथों में ही होगा। शासक बहुमूल्य धातुओं व मणिकों के व्यापार पर नियंत्रण रखते होंगे। इस व्यापार से उन्हें धन प्राप्त होता था। बड़े पैमाने पर शिल्प उत्पादों, माप-तोल प्रणाली, कलाओं का संचालन भी शासक करते होंगे।

स्पष्ट है कि नगर नियोजन, भवन निर्माण, दुर्ग निर्माण, निकास प्रणाली, गलियों का निर्माण, मानव संसाधन को कार्य पर लगाना, शिल्प उत्पाद, खाद्यान्न प्राप्ति, व्यापारिक कार्य, धार्मिक अनुष्ठान जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यों का संपादन हड़प्पाई शासकों द्वारा किया जाता होगा।

ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता HBSE 12th Class History Notes

→ पुरातात्विक साक्ष्य-पुरानी ऐतिहासिक वस्तुओं को पुरातात्विक साक्ष्य कहते हैं। इनमें भौतिक अवशेष; जैसे मकान, घर, इमारतें आदि तथा मृदभांड, मोहरें, औजार, सिक्के आदि सम्मिलित हैं।

→ सेलखड़ी-एक प्रकार का पत्थर जिसका प्रयोग हड़प्पा सभ्यता में मोहरें बनाने के लिए होता था।

→ कांस्य युग-इस युग का अर्थ है जब ताँबा व टिन को मिलाकर कांसा बनाया जाता था तथा इस धातु के बर्तन, औजार, उपकरण, हथियार आदि बनाए जाते थे।

→ शिल्प तथ्य-मनुष्य की कारीगरी का नमूना । पुरातत्वविद् इससे इतिहास का पुनर्निर्माण करते हैं।

→ मोहर-पत्थर या लाख अथवा अन्य किसी वस्तु का टुकड़ा। इस पर कोई आकृति बनी होती थी। इसे प्रमाणीकरण के लिए प्रयोग में लाया जाता था।

→ रेडियो कार्बन डेटिंग इसे सी-14 (कार्बन-14) भी कहते हैं। यह निर्जीव कार्बनिक पदार्थ में रेडियोधर्मी आइसोटोप को मापने की विधि है। सी-14 का आधा जीवन 5568 वर्ष तथा पूर्ण कार्बन जीवन 111,36 वर्ष होता है। मृत वस्तु में कार्बन घटता रहता है।

→ खानाबदोशी-पशुचारी और चारे की तलाश में घूमने वाले समुदायों से जुड़ी जीवन-शैली। ये एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं।

→ कछारी मैदान-नदी किनारे के आस-पास वह क्षेत्र जिस पर बाढ़ के कारण नदी की गाद जमा होती है।

→ उत्खनन-प्राचीन स्थल की खुदाई करना।

→ अन्नागार-अनाज रखने के लिए भंडार गृह।

→ चित्रलिपि-जिस लिपि में चित्रों को प्रतीक के रूप में प्रयोग में लाया जाता है।

→ टेराकोटा-मूर्तियाँ बनाने के लिए चिकनी मिट्टी तथा रेत का मिश्रण कर आग में पकाना। यह भूरे लाल रंग का बन जाता है।

→ मनका-पत्थर का छोटा टुकड़ा जिसके बीच में धागा पिरोने के लिए छेद होता था।

→ मेसोपोटामिया-इराक का प्राचीन नाम।

→ अग्निवेदियां कालीबंगन में पाए गए ईंटों से बने गड्ढे। इनमें जानवरों की हड्डियाँ तथा राख मिली है।

→ पारिस्थितिकी पौधों का पशुओं या मनुष्यों या संस्थाओं का पर्यावरण के संबंध में अध्ययन।

→ विवर्तनिक विक्षोभ-वह प्रक्रिया जिससे पृथ्वी के धरातल के बहुत बड़े क्षेत्र ऊपर उठ जाते हैं।

→ शमन-वे महिलाएँ या पुरुष जो जादुई तथा इलाज करने की शक्ति होने के साथ ही दूसरी दुनिया से संपर्क बनाने की सामर्थ्य का दावा करते हैं।

→ बी.सी. (B.C.)-बिफोर क्राइस्ट (Before Christ) ईसा पूर्व (ई.पू.)।

→ ए.डी. (A.D.)-ऐनो डॉमिनी (Anno-Domini) लैटिन भाषा में अभिप्राय है इन द इयर आफ लॉर्ड (In the Year of Lord) अर्थात् ईसा के जन्म के वर्ष से।

→ सी.ई. (CE.)-कॉमन एरा (Common Era) आजकल ए.डी. के बजाए सी.ई. का प्रयोग किया जाने लगा है।

→ बी.सी.ई. (BCE)-बिफोर कॉमन एरा (Before Common Era) आजकल बी.सी. (ई.पू.) के स्थान पर बी.सी.ई. का प्रयोग किया जाता है।

→ सी. (Circa)-सिरका (Circa) लैटिन भाषा का शब्द है। इसका प्रयोग अनुमानतः के अर्थ में किया जाता है।

→ बी.पी. (B.P.)-बी.पी. (Before Present) अर्थात् वर्तमान से पहले।

→ हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में हुई खुदाई तथा नवीन नगरीय सभ्यता की घोषणा ने भारतीय इतिहास की हमारी धारणा को बदल दिया। इससे पूर्व ऋग्वेद व अन्य वैदिक साहित्य के आधार पर लगभग 15वीं सदी ई.पू. से वैदिक समाज से भारतीय इतिहास का प्रारंभ माना जाता था। शहरों के विषय में यह विचार था कि भारत में इनका उद्भव 6वीं सदी ई.पू. में गंगा-यमुना की द्रोणी से हुआ। हड़प्पा सभ्यता की खोज ने इस धारणा को पूर्णतः बदल दिया।

→ ऐसा इसलिए हुआ कि अब जिन नगरों व सभ्यता का पता चला वह लगभग 2500 ई.पू. के थे। इनका विशाल क्षेत्र सिंधु व सहायक नदियों तथा उससे बाहर तक फैला हुआ था। पुरातत्वविदों की दृष्टि से इस नगरीय सभ्यता के विशिष्ट पहचान बिंदु थे-ईंटें (पक्की व कच्ची), कीमती व अर्द्धकीमती पत्थर के मनके, मानव व पशुओं की अस्थियाँ, मोहरें आदि। उल्लेखनीय है कि नई बस्तियों की खोजों, खुदाइयों तथा अनुसंधानों ने इस सभ्यता के संबंध में हमारे ज्ञान में वृद्धि की है।

→ आज भी नए-नए स्थलों की खोज हो रही है और हो सकता है कि भविष्य में और भी नए-नए कला तथ्यों (Artefacts) के प्रकाश में आने पर हड़प्पावासियों के बारे में हमारे विचारों में बदलाव आए। प्रस्तुत अध्याय में इन प्रथम नगरों की कहानी के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला गया है। हम इन शहरी केंद्रों की आर्थिक और सामाजिक संस्थाओं को समझने का प्रयास करेंगे। अध्याय में हम यह जान पाएँगे कि पुरातत्वविद् प्राप्त शिल्प तथ्यों का विश्लेषण किस प्रकार करते हैं। साथ ही हम यह भी जानेंगे कि नई सामग्री (Material) तथा तथ्य (Data) मिलने पर किस प्रकार इतिहास की स्थापित अवधारणाओं (exisiting notions) में परिवर्तन आता है।

→ हड़प्पा की खोज के बाद अब तक इस सभ्यता से जुड़ी लगभग 2800 बस्तियों की खोज की जा चुकी है। इन बस्तियों की विशेषताएँ हडप्पा से मिलती हैं। विद्वानों (सरजॉन मार्शल) ने इस सभ्यता को “सिंध घाटी की सभ्यता” का नाम दिया क्योंकि शुरू में बहुत-सी बस्तियाँ सिंधु घाटी और उसकी सहायक नदियों के मैदानों में पाई गई थीं।

→ वर्तमान में पुरातत्ववेत्ता इसे “हड़प्पा की सभ्यता” कहना पसंद करते हैं। यह नामकरण इसलिए उचित है कि इस संस्कृति से संबंधित सर्वप्रथम खुदाई हड़प्पा में हुई थी। अन्य स्थानों की खुदाई से भी सभ्यता के वही लक्षण प्राप्त हुए जो हड़प्पा से प्राप्त हुए थे।

→ यद्यपि परिपक्व हड़प्पा सभ्यता का केंद्र स्थल सिन्ध और पंजाब में (मुख्यतः सिंधु घाटी में) दिखाई पड़ता है, तथापि यह सभ्यता बलूचिस्तान, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू, उत्तरी राजस्थान, गुजरात तथा उत्तरी महाराष्ट्र तक फैली हुई थी अर्थात् इसका फैलाव उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने तक और पश्चिम में बलूचिस्तान से लेकर उत्तर-पूर्व में मेरठ तक का था। यह सारा क्षेत्र त्रिभुज के आधार का था। इसका पूरा क्षेत्रफल लगभग 1,299,600 वर्ग किलोमीटर आंका जाता है। हड़प्पा सभ्यता का विस्तार इसकी समकालीन मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यताओं से काफी बड़ा था।

→ पूर्ण विकसित सभ्यता का समय लगभग 2600 ई.पू. से 1900 ई.पू. माना जाता है। इस सभ्यता के पूर्ण विकसित रूप से पहले तथा बाद में भी इसका काल माना जाता है। विकसित स्वरूप को अलग दर्शाने के लिए इन्हें आरंभिक हड़प्पा (Early Harappan) तथा उत्तर हड़प्पा (Late Harappan) नाम दिया जाता है।

→ प्राक हड़प्पा काल में सिंधु क्षेत्र में रहने वाले विभिन्न कृषक समुदायों में सांस्कृतिक परम्पराओं में समानता लगती है। इन छोटी-छोटी परंपराओं के मेल से एक बड़ी परंपरा प्रकट हुई। परंतु यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि ये समुदाय कृषक व पशुचारी थे। कुछ शिल्पों में पारंगत थे। इनकी बस्तियाँ सामान्यतः छोटी थीं तथा कोई भी बड़ी इमारतें नहीं थीं। कुछ प्राक हड़प्पा बस्तियों का परित्याग भी हुआ तथा कुछ स्थलों पर जलाये जाने के भी प्रमाण मिले हैं। तथापि यह स्पष्ट लगता है कि हड़प्पा सभ्यता का आविर्भाव लोक संस्कृति के आधार पर हुआ।

→ नगरों में अन्नागारों का पाया जाना इस बात का प्रमाण है कि इस सभ्यता के लोगों के जीवन-निर्वाह या भरण पोषण का मुख्य आधार कृषि व्यवस्था थी।

→ उपलब्ध साक्ष्यों से कृषि तकनीक से संबंधित कुछ निष्कर्ष निकाले गए हैं। उदाहरण के लिए बनावली (हरियाणा) से मिट्टी के हल का नमूना मिला है। बहावलपुर से भी ऐसा नमूना मिला है। कालीबंगन (राजस्थान) में प्रारंभिक हड़प्पा काल के खेत को जोतने के प्रमाण मिले हैं। शोर्तुघई (उत्तरी अफगानिस्तान) से भी जुते हुए खेत (Plough and field) प्राप्त हुए हैं। पक्की मिट्टी से बनाए वृषभ (बैल) के खिलौनों के साक्ष्य तथा मोहरों पर पशुओं के चित्रों से अनुमान लगाया जा सकता है कि वे बैलों का खेतों की जुताई के लिए प्रयोग करते थे।

→ संभवतः लकड़ी के हत्थों में लगाए गए पत्थर के फलकों (Stone blades) का प्रयोग फसलों को काटने के लिए किया जाता था। धातु के औजार (तांबे की हँसिया) भी मिले हैं परंतु महंगी होने की वजह से इसका प्रयोग.क्रम होता होगा।

→ सभ्यता से प्राप्त शिल्प तथ्यों तथा पुरा-प्राणिविज्ञानियों (Archaeo-zoologists) के अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि हड़प्पन भेड़, बकरी, बैल, भैंस, सुअर आदि जानवरों का पालन करने लगे थे। कूबड़ वाला सांड उन्हें विशेष प्रिय था।

→ हड़प्पा सभ्यता की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता इसकी नगर योजना प्रणाली थी। इसका संबंध विकसित हड़प्पा अवस्था (2600-1900 ई.पू.) से था। नगरों में सड़कें और गलियाँ एक योजना के अनुसार बनाई गई थीं। मुख्य मार्ग उत्तर से दक्षिण की ओर जाते थे। अन्य सड़कें और गलियाँ मुख्य मार्ग को समकोण पर काटती थीं जिससे नगर वर्गाकार या आयताकार खण्डों में विभाजित हो जाते थे।

→ सड़कें और गलियाँ सीधी होती थीं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। मोहनजोदड़ो में निचले नगर में मुख्य सड़क 10.5 मीटर चौड़ी थी, इसे ‘प्रथम सड़क’ कहा गया है।

→ अन्य सड़कें 3.6 से 4 मीटर तक चौड़ी थीं। जिस प्रकार मोहनजोदड़ो में गृहों का निर्माण नियोजित तथा सावधानीपूर्वक किया गया था, उसी प्रकार सारे नगर में नालियों का निर्माण भी बहुत सावधानीपूर्वक किया गया था।

→ मोहनजोदड़ो का सबसे महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल विशाल स्नानागार है। यह ईंटों के स्थापत्य का सुन्दर नमूना है। आयताकार में बना यह स्नानागार 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.45 मीटर गहरा है। इसके उत्तर और दक्षिण में सीढ़ियाँ बनी हैं। ये सीढ़ियाँ स्नानागार के तल तक जाती हैं। यह स्नानागार पक्की ईंटों से बना है।

→ पुरातत्ववेत्ता किसी सभ्यता में विद्यमान सामाजिक-आर्थिक भेदभाव को जानने के लिए कई प्रकार के अवशेषों का प्रमाण के तौर पर प्रयोग करते हैं। कब्रों में पाई जाने वाली सामग्री इसमें प्रमुख होती है जिनसे इस प्रकार के भेदभाव का पता चलता है।

→ हड़प्पा के लोगों ने शिल्प उत्पादों में महारत हासिल कर ली थी। मनके बनाना, सीपी उद्योग, धातु-कर्म (सोना-चांदी के आभूषण, ताँबा, कांस्य के बर्तन, खिलौने उपकरण आदि), तौल निर्माण, प्रस्तर उद्योग, मिट्टी के बर्तन बनाना, ईंटें बनाना, मुद्रा निर्माण आदि हड़प्पा के लोगों के प्रमुख शिल्प उत्पाद थे। कई बस्तियाँ तो इन उत्पादों के लिए ही प्रसिद्ध थीं।

→ हड़प्पा सभ्यता के लोग गोमेद, फिरोजा, लाल पत्थर, स्फटिक (Crystal), क्वार्ट्ज़ (Quartz), सेलखड़ी (Steatite) जैसे . बहुमूल्य एवं अर्द्ध-कीमती पत्थरों के अति सुन्दर मनके बनाते थे। मनके व उनकी मालाएं बनाने में ताँबा, कांस्य और सोना जैसी धातुओं का भी प्रयोग किया जाता था। शंख, फयॉन्स (faience), टेराकोटा या पक्की मिट्टी से भी मनके बनाए जाते थे।

→ हल्की चमकदार सतह वाली सफेद रंग की आकर्षक मोहरें (Seals) हड़प्पा सभ्यता के लोगों का उच्चकोटि का योगदान कही जा सकती हैं। सेलखड़ी की वर्गाकार व आयताकार मुद्राएँ सभी सभ्यता स्थलों पर मिली हैं।

→पुरातत्वविद् किसी उत्पादन केंद्र को पहचानने में कुछ चीजों का प्रमाण के रूप में सहारा लेते हैं। पत्थर के टुकड़ों, पूरे शंखों, सीपी के टुकड़ों, तांबा, अयस्क जैसे कच्चे माल, अपूर्ण वस्तुओं, छोड़े गए माल और कूड़ा-कर्कट आदि चीजों से उत्पादन केंद्रों की पहचान की जाती है। कारीगर वस्तुओं को बनाने के लिए पत्थर को काटते समय या शंख-सीपी को काटते हुए अनुपयोगी सामग्री छोड़ देते थे।

→ हड़प्पा सभ्यता के लोग अपने उत्पादों के लिए विविध प्रकार का कच्चा माल प्रयोग में लाते थे। शिल्प उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल में शामिल वस्तुएँ थीं-चिकनी मिट्टी, पत्थर, तांबा, जस्ता, कांसा, सोना, शंख, कार्नीलियन (सुन्दर लाल रंग), स्फटिक, क्वार्टज, सेलखड़ी, लाजवर्द मणि (नीले रंग के अफगानी पत्थर), कीमती लकड़ी, कपास, ऊन इत्यादि। इनमें से कई चीजें स्थानीय तौर पर मिल जाती थीं परंतु अधिकतर; जैसे पत्थर, धातु, लकड़ी इत्यादि बाहर से मंगवाई जाती थीं।

→ हड़प्पा सभ्यता के नगरों/व्यापारियों का पश्चिम एशिया की सभ्यताओं के साथ संपर्क था। उल्लेखनीय है कि मेसोपोटामिया हड़प्पा सभ्यता के मुख्य क्षेत्र से बहुत दूर स्थित था फिर भी इस बात के साक्ष्य मिल रहे हैं कि इन दोनों सभ्यताओं के बीच व्यापारिक संबंध था। हड़प्पा की मोहरों पर चित्रों के माध्यम से लिखावट है। मुद्राओं के अतिरिक्त ताम्र उपकरणों व पट्टिकाओं, मिट्टी की लघु पट्टिकाओं, कुल्हाड़ियों, मृदभांडों आभूषणों, अस्थि छड़ों और एक प्राचीन सूचनापट्ट पर भी हड़प्पा लिपि के कई नमूने प्राप्त हुए हैं। उल्लेखनीय है कि यह लिपि अभी तक पढ़ी न जा सकने के कारण रहस्य बनी हुई है।

→ हड़प्पा सभ्यता की एक अन्य विशेषता माप और तौल व्यवस्था में समरूपता का पाया जाना था। दूर-दूर तक फैली . बस्तियों में एक ही प्रकार के बाट-बट्टे पाए गए हैं। हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने तौल की इस प्रणाली से आपसी व्यापार और विनिमय को नियन्त्रित किया होगा।

→ मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल भवन को ‘राजप्रासाद’ का नाम दिया जाता है। यद्यपि विशाल इमारत में अन्य कोई अद्भुत अवशेष नहीं मिले हैं। इसी प्रकार मोहनजोदड़ो से प्राप्त पत्थर की प्रतिमा प्राप्त हुई है। इसे ‘पुरोहित-राजा’ का नाम दिया जाता रहा है। व्हीलर महोदय ने तो इस आधार पर हड़प्पा की शासन प्रणाली को ‘धर्मतन्त्र’ नाम दिया है।

→ हड़प्पा सभ्यता के पतन के बारे में अनेक व्याख्याएँ दी जाती हैं। जलवायु परिवर्तन, नदियों में बाढ़ व भूकम्प या नदियों का सूख जाना या मार्ग बदलना इसके कारण बताए जाते हैं। इसी प्रकार कुछ विद्वानों ने बर्बर आक्रमणों को सभ्यता के अवसान का कारण बताया है। हाल ही में सभ्यता-क्षेत्र में पर्यावरणीय-असन्तुलन (Environmental Imbalances) से जोड़कर परिवर्तनों की व्याख्या प्रस्तुत की है।

→ मार्शल ने भारतीय पुरातत्व को महत्त्वपूर्ण दिशा प्रदान की। भारत में वह पहला पुरातत्वविद् था। वह यूनान तथा क्रीट के अनुभव भी अपने साथ लेकर आया था। साथ ही यह भी उल्लेखनीय है कि वह न केवल कनिंघम की तरह ही अद्भुत खोज करना चाहता था बल्कि वह दैनिक जीवन की पद्धतियों को भी जानना चाहता था। मार्शल ने पुरा स्थल की स्तर विन्यास (Stratigraphy) पर ध्यान न देकर सारे टीले को समान आकार की क्षैतिज इकाइयों में उत्खनन करवाया।

→ 1980 के दशक के बाद हड़प्पा-पुरातत्व में अन्तर्राष्ट्रीय रुचि लगातार बढ़ी है। भारतीय उपमहाद्वीप तथा बाहर के पुरातत्वविद् .. सांझे रूप से हड़प्पा व मोहनजोदड़ो में कार्यरत हैं। ये लोग आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक का प्रयोग करके मिट्टी, पत्थर, धातु, पादप (Plant)तथा पशुओं के अवशेषों को प्राप्त करने के लिए सतहों के अन्वेषण एवं प्राप्त तथ्यों के प्रत्येक सूक्ष्म हिस्से के विश्लेषण में लगे हैं।

→ एक मोहर पर एक पुरुष देवता को योगी की मुद्रा में दिखाया गया है। इसके दाईं ओर हाथी तथा बाघ एवं बाईं ओर गैंडा तथा भैंसा हैं। पुरुष देवता के सिर पर दो सींग हैं। पुरातत्वविदों ने इस देवता को ‘आद्य शिव’ की संज्ञा दी है।

→ एक मोहर में एक शृंगी पशु उत्कीर्णित है। यह घोड़े जैसा पशु है, जिसके सिर के बीच में एक सींग निकला हुआ है। यह कल्पित तथा संश्लिष्ट लगता है। ऐसा बाद में हिन्दू धर्म के अन्य देवता (नरसिंह देवता) के बारे में कहा जा सकता है।
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काल-रेखा

हड़प्पाई पुरातत्व के विकास के प्रमुख चरण
19 वीं सदी 1875 हड़प्पा की मोहर पर कनिंघम की रिपोर्ट
20 वीं सदी 1921 दयाराम साहनी द्वारा हड़प्पा की खोज एवं माधो स्वरूप वत्स द्वारा हड़प्पा में खुदाई का आरंभ राखालदास बनर्जी द्वारा मोहनजोदड़ो की खोज
1922 सर जॉन मार्शल द्वारा नवीन सभ्यता की घोषणा
1924 मोहनजोदड़ो में उत्खननों का प्रारंभ
1925 क्रीलर महोदय द्वारा हड़प्पा में खुदाई
1946 एस. आर. राव द्वारा लोथल में खुदाई का आरंभ
1955 बी.बी. लाल तथा बी. के थापर द्वारा कालीबंगन में उत्खननों का आरंभ
1960 एम.आर. मुगल द्वारा बहावलपुर में उत्खनन व अन्वेषण शुरू
1974 जर्मन-इतालवी संयुक्त दल द्वारा मोहनजोदड़ो में सतह-अन्वेषणों का कार्य शुरू
1980 अमेरिकी दल द्वारा हड़प्पा में उत्खनन शुरू
1986 धौलावीरा में आर. एस. बिष्ट द्वारा खुदाई कार्य आरंभ
1990 हड़प्पाई पुरातत्व के विकास के प्रमुख चरण

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