Haryana State Board HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता Important Questions and Answers.
Haryana Board 12th Class History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता
बहुविकल्पीय प्रश्न
निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के अन्तर्गत कुछेक वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। ठीक उत्तर का चयन कीजिए
1. मोहनजोदड़ो की खोज कब की गई?
(A) 1910 ई० में
(B) 1922 ई० में
(C) 1932 ई० में
(D) 1947 ई० में
उत्तर:
(B) 1922. ई० में
2. सार्वजनिक स्नानागार के भवन की बाहर की दीवार कितने फुट मोटी है?
(A) 8
(B) 4
(C) 12
(D) 3
उत्तर:
(A) 8
3. मोहनजोदड़ो किस नदी के तट पर स्थित है?
(A) चिनाब
(B) सिन्धु
(C) रावी
(D) सतलुज
उत्तर:
(B) सिन्धु
4. हड़प्पावासी किस धातु से अनभिज्ञ थे?
(A) ताँबा
(B) कांस्य
(C) लोहा
(D) पत्थर
उत्तर:
(C) लोहा
5. मोहनजोदड़ो कराची से लगभग कितने मील दूर है?
(A) 300 मील
(B) 500 मील
(C) 150 मील
(D) 225 मील
उत्तर:
(A) 300 मील
6. किस ई० में पुरातत्व विभाग के महानिदेशक सर जॉन मार्शल ने घोषणा की कि एक नई सभ्यता का पता चला है?
(A) 1912 ई० में
(B) 1900 ई० में
(C) 1924 ई० में
(D) 1928 ई० में
उत्तर:
(C) 1924 ई० में
7. “सिंधुवासियों की सामाजिक प्रणाली मिस्र तथा बेबीलोन के लोगों की सामाजिक प्रणाली से कहीं श्रेष्ठ थी।” ये किसके शब्द हैं?
(A) एन०एन० घोष
(B) आर०पी० त्रिपाठी
(C) एस०आर० शर्मा
(D) वी०ए० स्मिथ
उत्तर:
(C) एस०आर० शर्मा
8. “5000 वर्ष पुराने आभूषण ऐसे दिखाई देते हैं, जैसे किसी जौहरी की दुकान से अभी लाए गए हो।” ये शब्द किसके हैं?
(A) सर जॉन मार्शल
(B) ए०पी० मदान
(C) हेमचन्द्र राय
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) सर जॉन मार्शल
9. “मोहरें ही सिंधुवासियों के एकमात्र लेख हैं जिनसे उनकी लिखाई के बारे में कुछ पता चल सकता है।” यह विचार किसने प्रस्तुत किया?
(A) डॉ० मैके
(B) आर०के० मुकर्जी
(C) एन०एन० घोष
(D) ए०एल० बाशम
उत्तर:
(A) डॉ० मैके
10. हड़प्पा संस्कृति के लोग निम्नलिखित पशु से अनभिज्ञ थे
(A) सूअर
(B) कुत्ता
(C) गाय
(D) घोड़ा
उत्तर:
(D) घोड़ा
11. निम्नलिखित भवन हड़प्पा संस्कृति से सम्बन्धित नहीं था
(A) अन्नागार
(B) पिरामिड
(C) स्नानागार
(D) विशाल गोदाम
उत्तर:
(B) पिरामिड
12. हड़प्पावासी कैसे वस्त्र पहनते थे?
(A) पशुओं की खाल के
(B) वृक्षों की छाल के
(C) सूती तथा ऊनी
(D) कागज के
उत्तर:
(C) सूती तथा ऊनी
13. हड़प्पा की खोज की थी
(A) दयाराम साहनी ने
(B) आर०डी० बैनर्जी ने
(C) सर जॉन मार्शल ने
(D) आर०एस० बिष्ट ने
उत्तर:
(A) दयाराम साहनी ने
14. हड़प्पा संस्कृति के लोग पूजा करते थे
(A) विष्णु की
(B) इन्द्र की
(C) वरुण की
(D) मातृदेवी की
उत्तर:
(D) मातृदेवी की
15. हड़प्पा सभ्यता किस सभ्यता के समकालीन नहीं थी?
(A) रोमन सभ्यता
(B) मेसोपोटामिया की सभ्यता
(C) नील घाटी की सभ्यता
(D) दजला फरात की सभ्यता
उत्तर:
(A) रोमन सभ्यता
16. हड़प्पा संस्कृति के लोग जहाज निर्माण कला में निपुण थे, इसका पता चलता है
(A) मिट्टी के बर्तनों से
(B) खुदाई से प्राप्त
(C) मोहरों पर जहाज के चित्रों से
(D) गोदामों में प्राप्त अवशेषों के सामान से
उत्तर:
(C) मोहरों पर जहाज के चित्रों से
17. मोहनजोदड़ो की खोज की
(A) सर जॉन मार्शल
(B) आर०डी० बैनर्जी
(C) दयाराम साहनी
(D) सूरजभान
उत्तर:
(B) आर०डी० बैनर्जी
18. बनावली स्थित है
(A) पंजाब में
(B) हरियाणा में
(C) उत्तरप्रदेश में
(D) राजस्थान में
उत्तर:
(B) हरियाणा में
19. हड़प्पा सभ्यता के किस स्थान से डकयार्ड के अवशेष मिले हैं?
(A) लोथल
(B) हड़प्पा
(C) मोहनजोदड़ो
(D) धौलावीरा
उत्तर:
(A) लोथल
20. हड़प्पन मुद्राओं पर रूपायन (चित्र) है
(A) बैल
(B) हाथी
(C) गैंडा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी
21. प्रारम्भिक हड़प्पा की प्रमुख बस्ती है
(A) मेहरगढ़
(B) दंबसादात
(C) अमरी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी
22. हड़प्पा सभ्यता का अन्य नाम है
(A) आर्यों की सभ्यता
(B) मिस्र की सभ्यता
(C) उत्तर वैदिक सभ्यता
(D) सिन्धु घाटी की सभ्यता
उत्तर:
(D) सिन्धु घाटी की सभ्यता
23. हड़प्पा संस्कृति के लोग किस अनाज से अनभिज्ञ थे?
(A) दाल
(B) जौ
(C) गेहूँ
(D) चावल
उत्तर:
(A) दाल
24. आर.एस. बिष्ट ने हड़प्पा सभ्यता से संबंधी धौलावीरा स्थल खोजा
(A) 1946 में
(B) 1971 में
(C) 1981 में
(D) 1990 में
उत्तर:
(D) 1990 में
25. धौलावीरा स्थित है
(A) गुजरात में
(B) सिन्ध में
(C) राजस्थान में
(D) महाराष्ट्र में
उत्तर:
(A) गुजरात में
26. चन्हुदड़ो की सर्वप्रथम खोज किसने की?
(A) एच० जी० मजूमदार ने
(B) एन० जी० मजूमदार ने
(C) आर० सी० मजूमदार ने
(D) आर० जी० मजूमदार ने
उत्तर:
(B) एन०जी० मजूमदार ने
27. आर.ई.एम. व्हीलर द्वारा हड़प्पा में खुदाई शुरू की गई
(A) 1941 ई० में
(B) 1931 ई० में
(C) 1946 ई० में
(D) 1951 ई० में
उत्तर:
(C) 1946 ई० में
28. कालीबंगन में बी. बी. लाल तथा बी. के. थापर ने खुदाई कार्य शुरू किया
(A) 1940 ई० में
(B) 1950 ई० में
(C) 1960 ई० में
(D) 1970 ई० में
उत्तर:
(C) 1960 ई० में
29. हड़प्पा किस नदी के तट पर है?
(A) सिंधु
(B) रावी
(C) सरस्वती
(D) झेलम
उत्तर:
(B) रावी
30. हड़प्पा काल में खेतों को हल से जोतने के प्रमाण मिले हैं
(A) मोहनजोदड़ो से
(B) हड़प्पा से
(C) कालीबंगन से
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) कालीबंगन से
31. जलाशय के साक्ष्य मिले हैं
(A) मोहनजोदड़ो से
(B) धौलावीरा से
(C) कालीबंगन से
(D) शोर्तुघई से
उत्तर:
(B) धौलावीरा से
32. भारतीय पुरातत्व का जनक कहा जाता है
(A) कनिंघम को
(B) सर जॉन मार्शल को
(C) व्हीलर को
(D) किसी को नहीं
उत्तर:
(A) कनिंघम को
33. हड़प्पा सभ्यता के शिल्प कार्य थे
(A) मनके बनाना
(B) औजार बनाना
(C) ईंटों का निर्माण
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी
34. कांसे की नर्तकी की मूर्ति कहाँ से प्राप्त हुई है?
(A) हड़प्पा से
(B) मोहनजोदड़ो से
(C) चन्हुदड़ो से
(D) राखीगढ़ी से
उत्तर:
(B) मोहनजोदड़ो से
35. हड़प्पावासी ताँबा आयात करते थे
(A) खेतड़ी से
(B) कोलार से
(C) ओमान से
(D) शोर्तुघई से
उत्तर:
(A) खेतड़ी से
36. पुरातत्वविदों के अनुसार हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा नगर था
(A) हड़प्पा
(B) मोहनजोदड़ो
(C) कालीबंगन
(D) लोथल
उत्तर:
(B) मोहनजोदड़ो
37. हड़प्पा की बस्तियों में पाई गई मोहरों में से अधिकांश बनी थीं
(A) लोहे की
(B) चाँदी की
(C) फिरोजा पत्थर की
(D) सेलखड़ी की
उत्तर:
(D) सेलखड़ी की
38. विशाल स्नानागार स्थित था
(A) हड़प्पा में
(B) लोथल में
(C) मोहनजोदड़ो में
(D) बनावली में
उत्तर:
(C) मोहनजोदड़ो में
39. हड़प्पा संस्कृति के पतन का क्या कारण था?
(A) बाढ़
(B) सूखा
(C) जलवायु परिवर्तन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी
40. मोहनजोदड़ो स्थित ‘प्रथम सड़क’ का माप है
(A) 20 मीटर
(B) 15 मीटर
(C) 10.5 मीटर
(D) 5 मीटर
उत्तर:
(C) 10.5 मीटर
41. हड़प्पा संस्कृति के लोग किस धातु से परिचित नहीं थे?
(A) सोना
(B) ताँबा
(C) लोहा
(D) चाँदी
उत्तर:
(C) लोहा
42. हड़प्पा लिपि लिखी जाती थी
(A) ऊपर से नीचे
(B) बायें से दायें
(C) नीचे से ऊपर
(D) दायें से बायें
उत्तर:
(D) दायें से बायें
43. हड़प्पाई लोग पूजा करते थे
(A) मातृदेवी की
(B) वृक्षों की
(C) पशुओं की
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी
44. हड़प्पा सभ्यता में दफनाए गए शवों की दिशा है
(A) उत्तर:दक्षिण
(B) पूर्व-पश्चिम
(C) उत्तर:पूर्व
(D) दक्षिण-पश्चिम
उत्तर:
(A) उत्तर:दक्षिण
45. हड़प्पा सभ्यता का कौन-सा स्थल हरियाणा में है?
(A) बनावली
(B) राखीगढ़ी
(C) (A) व (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) व (B) दोनों
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
हड़प्पा सभ्यता का ज्ञान पहली बार कब हुआ?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का ज्ञान पहली बार 1921 ई० में हुआ।
प्रश्न 2.
हड़प्पा सभ्यता की जानकारी का मुख्य साधन क्या है?
उत्तर:
हडप्पा सभ्यता की जानकारी का मुख्य साधन खदाई से प्राप्त अवशेष है।
प्रश्न 3.
सिन्धु घाटी सभ्यता के किन्हीं चार बड़े शहरों के नाम बताइए।
उत्तर:
सिन्धु घाटी सभ्यता के चार बड़े शहर हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्हुदड़ो तथा कालीबंगन थे।
प्रश्न 4.
आधुनिक हरियाणा में सिन्धु सभ्यता के दो केन्द्रों के नाम बताइए।
उत्तर:
आधुनिक हरियाणा में सिन्धु सभ्यता के दो केन्द्र बनावली तथा राखीगढ़ी हैं।
प्रश्न 5.
हड़प्पा सभ्यता के लोग किस पशु की पूजा करते थे?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोग कुबड़े बैल की पूजा करते थे।
प्रश्न 6.
हड़प्पा संस्कृति के समय की लिपि बताइए।
उत्तर:
हड़प्पा संस्कृति के समय की लिपि चित्रमय है।
प्रश्न 7.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के समय के दो आभूषणों के नाम बताइए।
उत्तर:
सिन्धु घाटी की सभ्यता के समय के दो आभूषण अंगूठी तथा हार थे।
प्रश्न 8.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के लोग किन वृक्षों की पूजा करते थे?
उत्तर:
सिन्धु घाटी की सभ्यता के लोग नीम तथा पीपल की पूजा करते थे।
प्रश्न 9.
मोहनजोदड़ो व हड़प्पा नगरों से गन्दे पानी को बाहर निकालने की क्या व्यवस्था थी?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो व हड़प्पा नगरों से गन्दे पानी को बाहर निकालने के लिए पक्की नालियों की व्यवस्था थी।।
प्रश्न 10.
हड़प्पा सभ्यता की किसी समकालीन सभ्यता का नाम बताइए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की समकालीन सभ्यता का नाम मेसोपोटामिया था।
प्रश्न 11.
हड़प्पा सभ्यता के लोग किस पशु से अनभिज्ञ माने जाते हैं?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोग घोड़े से अनभिज्ञ माने जाते हैं।
प्रश्न 12.
सिन्धु सभ्यता के लोग किस धातु से परिचित नहीं थे?
उत्तर:
सिन्धु सभ्यता के लोग लोहे से परिचित नहीं थे।
प्रश्न 13.
प्रसिद्ध कांस्य नर्तकी कहाँ से प्राप्त हुई?
उत्तर:
प्रसिद्ध कांस्य नर्तकी मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई।
प्रश्न 14.
हड़प्पा सभ्यता के लोगों का मुख्य भोजन बताइए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोगों का मुख्य भोजन गेहूँ तथा चावल था।
प्रश्न 15.
आजकल मोहनजोदड़ो व हड़प्पा किस देश में हैं?
उत्तर:
आजकल मोहनजोदड़ो व हड़प्पा पाकिस्तान में हैं।
प्रश्न 16.
सिन्धु घाटी के लोग ‘सोना’ कहाँ से प्राप्त करते थे ?
उत्तर:
सिन्धु घाटी के लोग ‘सोना’ कर्नाटक से प्राप्त करते थे।
प्रश्न 17.
मोहनजोदड़ो की खोज किस व्यक्ति द्वारा हुई?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो की खोज आर०डी० बैनर्जी द्वारा हुई।
प्रश्न 18.
हड़प्पा की खोज किसने की?
उत्तर:
हड़प्पा की खोज सर दयाराम साहनी ने की।
प्रश्न 19.
सिन्धु घाटी की सभ्यता की दो सार्वजनिक इमारतों के नाम बताइए।
उत्तर:
सिन्धु घाटी की सभ्यता की दो सार्वजनिक इमारतों के नाम धान्यागार तथा स्नानागार थे।
प्रश्न 20.
हड़प्पा संस्कृति के दो देवताओं के नाम बताइए।।
उत्तर:
हड़प्पा संस्कृति के दो देवताओं के नाम पशपति शिव तथा मातदेवी थे।
प्रश्न 21.
विशाल स्नानागार के भवन की बाहर की दीवार कितने फुट मोटी है?
उत्तर:
विशाल स्नानागार के भवन की बाहर की दीवार 8 फुट मोटी है।
प्रश्न 22.
स्नानागार का भवन बाहर से कितने फुट लम्बा है?
उत्तर:
स्नानागार का भवन बाहर से 180 फुट लम्बा है।
प्रश्न 23.
र्नानागार का भवन बाहर से कितने फुट चौड़ा है?
उत्तर:
स्नानागार का भवन बाहर से 108 फुट चौड़ा है।
प्रश्न 24.
मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ मृतकों का टीला (मोयाँ-दा-दड़ा) है।
प्रश्न 25.
किस स्थान से खुदाई में एक गोदी के भग्नावशेष प्राप्त हुए हैं?
उत्तर:
लोथल से गोदी के भग्नावशेष मिले हैं।
प्रश्न 26.
गुजरात में हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख पुरास्थल कौन-से हैं?
उत्तर:
लोथल, रंगपुर, सुरकोतदा, धौलावीरा आदि गुजरात में प्रमुख पुरास्थल हैं।
प्रश्न 27.
यह कैसे ज्ञात हुआ है कि हड़प्पाई लोगों का दिलमुन तथा मेसोपोटामिया से व्यापारिक संबंध था?
उत्तर:
दिलमुन व मेसोपोटामिया से प्राप्त हड़प्पाई मोहरों से पता चला कि इन क्षेत्रों से हड़प्पाई लोगों का व्यापारिक संबंध था।
प्रश्न 28.
हड़प्पाई लोग किन पशुओं को पालते थे?
उत्तर:
हड़प्पाई लोग बैल, गाय, भैंस, बकरी, भेड़, सूअर, हाथी, ऊँट, कुत्ता आदि पशुओं को पालते थे।
प्रश्न 29.
हड़प्पा सभ्यता में कौन-सी मूर्तियाँ बहुतायत में मिली हैं?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में मृण्मयी मूर्तियाँ बहुतायत में मिली हैं।
प्रश्न 30.
हड़प्पाई लोग उपमहाद्वीप के किस स्थान से ताँबा प्राप्त करते थे?
उत्तर:
हड़प्पाई लोग खेतड़ी (राजस्थान) से ताँबा प्राप्त करते थे।
प्रश्न 31.
हड़प्पा सभ्यता के लोग सिंचाई के लिए किन साधनों का प्रयोग करते थे?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोग सिंचाई के लिए कुओं, नहरों व जलाशयों का प्रयोग करते थे।
प्रश्न 32.
वैदूर्यमणि किस स्थान से अधिक मात्रा में मिलती थी?
उत्तर:
वैदूर्यमणि शोर्तुघई (अफगानिस्तान) में अधिक मात्रा में पाई जाती थी।
प्रश्न 33.
हड़प्पाई नगरों से मेसोपोटामिया को क्या निर्यात किया जाता था?
उत्तर:
ताँबा, हाथी दाँत, वैदूर्यमणि आदि।
प्रश्न 34.
हड़प्पा सभ्यता में मुख्य कृषि फसलें क्या थीं?
उत्तर:
गेहूँ, जौ, चावल, मटर, कपास आदि मुख्य कृषि फसलें थीं।
प्रश्न 35.
हड़प्पा कहाँ स्थित है?
उत्तर:
हड़प्पा पश्चिम पंजाब (पाकिस्तान) के मोंटगुमरी जिले में रावी के बाएँ तट पर स्थित है।
प्रश्न 36.
हड़प्पा सभ्यता में सर्वाधिक चित्र व मूर्तियाँ किसकी मिली हैं?
उत्तर:
सर्वाधिक चित्र व मूर्तियाँ कूबड़दार बैल की मिली हैं।
प्रश्न 37.
कालीबंगन कहाँ स्थित है?
उत्तर:
कालीबंगन राजस्थान में स्थित है।
प्रश्न 38.
मोहनजोदड़ो कहाँ स्थित था?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो सिंध के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के तट पर स्थित था।
प्रश्न 39.
हड़प्पा लिपि में कुल कितने चित्राक्षर थे?
उत्तर:
हड़प्पा लिपि में लगभग 250 से 400 तक चित्राक्षर थे।
अति लघु-उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रारम्भ में हड़प्पा सभ्यता को ‘सिंधु घाटी की सभ्यता’ का नाम क्यों दिया गया?
उत्तर:
हड़प्पा की खोज के बाद अब तक इस सभ्यता से जुड़ी लगभग 2800 बस्तियों की खोज की जा चुकी है। इन बस्तियों की विशेषताएँ हड़प्पा से मिलती हैं। विद्वानों (सर जॉन मार्शल) ने इस सभ्यता को “सिंधु घाटी की सभ्यता” का नाम दिया क्योंकि शुरू में बहुत-सी बस्तियाँ सिंधु घाटी और उसकी सहायक नदियों के मैदानों में पाई गई थीं। ।
प्रश्न 2.
वर्तमान में पुरातत्वविद् इसे ‘हड़प्पा सभ्यता’ संज्ञा देना उपयुक्त क्यों मानते हैं?
उत्तर:
बाद में इस सभ्यता से जुड़े अनेक स्थानों की खोज हुई जो राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा तथा गुजरात में स्थित थे। अतः इस सभ्यता को केवल सिंधु घाटी की सभ्यता कहना सार्थक नहीं लगा। वर्तमान में पुरातत्ववेत्ता इसे “हड़प्पा की सभ्यता” कहना पसंद करते हैं। यह नामकरण इसलिए उचित है कि इस संस्कृति से संबंधित सर्वप्रथम खुदाई हड़प्पा में हुई थी।
प्रश्न 3.
हड़प्पा सभ्यता की तीन अवस्थाओं के नाम लिखें।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की तीन अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं
- आरंभिक हड़प्पा काल 3500-2600 ई.पू.,
- विकसित हड़प्पा काल 2600-1900 ई.पू.,
- उत्तर हड़प्पा काल 1900-1300 ई.पू.।
प्रश्न 4.
मोहनजोदड़ो का क्या अर्थ है? इसकी खोज कब हुई?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो से अभिप्राय है मृतकों का टीला। सिंधी भाषा में इसे ‘मोयां-दा-दड़ा’ कहते हैं। इसकी खोज 1922 में राखालदास बनर्जी ने की।
प्रश्न 5.
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के पालतू पशुओं के नाम बताइए।
उत्तर:
सभ्यता से प्राप्त शिल्प तथ्यों तथा पुरा-प्राणिविज्ञानियों (Archaeo-zoologists) के अध्ययनों से ज्ञात हुआ हैं कि हड़प्पन भेड़, बकरी, बैल, भैंस, सुअर आदि जानवरों का पालन करने लगे थे। कूबड़ वाला सांड उन्हें विशेष प्रिय था। गधे और ऊँट का पालन बोझा ढोने के लिए करते थे।
प्रश्न 6.
‘हड़प्पा के लोग एकांतता (Privacy) पर बहुत ध्यान देते थे।’ इस पर अपने विचार प्रकट करें।
उत्तर:
ऐसा भी प्रतीत होता है कि घरों के निर्माण में एकान्तता (Privacy) का ध्यान रखा जाता था। भूमि स्तर (Ground level) पर दीवार में कोई भी खिड़की नहीं होती थी। इसी प्रकार मुख्य प्रवेश द्वार से घर के अन्दर या आंगन में नहीं झांका/देखा जा सकता था।
प्रश्न 7.
हड़प्पा सभ्यता की जानकारी का सबसे प्रमुख स्रोत कौन-सा है?
उत्तर:
यहाँ से प्राप्त हुई सामग्री में सबसे महत्त्वपूर्ण हड़प्पन मुद्राएँ (Seals) हैं। ये एक विशेष पाषाण (Steatite) से बनी हैं तथा इन पर पशुओं (बैल, सांड, हाथी, गैण्डा) के मुद्रांकन (Sealing) हैं। इन पर लिपि के संकेत भी गोदे हुए हैं जिन्हें अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। ये मुद्राएँ सभी स्थलों पर बड़ी संख्या में प्राप्त हुई हैं। इसके अतिरिक्त शहरों, दस्तकारी केन्द्रों, दुर्ग स्थानों आदि से अनेक महत्त्वपूर्ण अवशेष प्राप्त हुए हैं।
प्रश्न 8.
धौलावीरा कहाँ पर है? इसकी दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
धौलावीरा गुजरात में स्थित है। इस नगर की खोज 1967-68 में जे.पी. जोशी द्वारा की गई। यह भारत में हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा नगर पाया गया है। यह नगर विशेष रूप से मनके बनाने के लिए प्रसिद्ध था।
प्रश्न 9.
हड़प्पा सभ्यता की सड़कों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के नगर सड़कों के लिए प्रसिद्ध हैं। सड़कें और गलियाँ सीधी होती थीं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। मोहनजोदड़ो में निचले नगर में मुख्य सड़क 10.5 मीटर चौड़ी थी, इसे ‘प्रथम सड़क’ कहा गया है। अन्य सड़कें 3.6 से 4 मीटर तक चौड़ी थीं।
गलियाँ एवं गलियारे 1.2 मीटर (4 फुट) या उससे अधिक चौड़े थे। घरों के बनाने से पहले ही सड़कों व गलियों के लिए स्थान छोड़ दिया जाता था। उल्लेखनीय है कि मोहनजोदड़ो के अपने लम्बे जीवनकाल में इन सड़कों पर अतिक्रमण (encroachments) या निर्माण कार्य दिखाई नहीं देता।
प्रश्न 10.
सी. ई. तथा बी.सी.ई. का अर्थ लिखें।
उत्तर:
सी.ई. (CE.)-कॉमन एरा (Common Era) आजकल ए.डी. के बजाए सी.ई. का प्रयोग किया जाने लगा है।
बी.सी.ई. (BCE)-बिफोर कॉमन एरा (Before Common Era) आजकल बी.सी. (ई.पू.) के स्थान पर बी.सी ई. का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 11.
हड़प्पा सभ्यता के कोई दो विशेष पहचान बिंदुओं के नाम लिखें।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के दो विशेष पहचान बिंदुओं के नाम निम्नलिखित हैं
- नगर योजना व चबूतरों पर बने दुर्गों में विशेष भवन तथा समकोण पर काटती सीधी सड़कें, गलियाँ व उत्तम निकासी व्यवस्था।
- चाक से बने पक्के, भारी व मोटी परत वाले मृदभाण्ड (Pottery)। उन पर काले रंग से पीपल के पत्तों, काटते सर्किल व मोर इत्यादि का रूपांकन (Motifs)।
प्रश्न 12.
हड़प्पा सभ्यता से जुड़े किन्हीं तीन उत्पादन केंद्रों की पहचान कीजिए।
उत्तर:
बालाकोट (बलूचिस्तान में समुद्रतट के समीप) व चन्हुदड़ो (सिंध में) सीपीशिल्प और चूड़ियों के लिए प्रसिद्ध थे।
- लोथल (गुजरात) और चन्हुदड़ो में लाल पत्थर (Carmelian) और गोमेद के मनके बनाए जाते थे।
- चन्हुदड़ो में वैदूर्यमणि के कुछ अधबने मनके मिले हैं जिससे अनुमान लगाया जाता है कि यहाँ पर दूर-दराज से बहुमूल्य पत्थर आयात किया जाता था तथा उन पर काम करके उन्हें बेचा जाता था।
प्रश्न 13.
हड़प्पा सभ्यता की खोज कब हुई? वर्तमान में इसका विस्तार क्षेत्र क्या है?
उत्तर:
पंजाब में रावी नदी के किनारे पर स्थित हड़प्पा पहला नगर था जिसकी 1921 में खुदाई हुई। इसका फैलाव उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने तक और पश्चिम में बलूचिस्तान से लेकर उत्तर:पूर्व में मेरठ तक का था। यह सारा क्षेत्र त्रिभुज के आधार का था। इसका पूरा क्षेत्रफल लगभग 1,299,600 वर्ग किलोमीटर आंका जाता है। उल्लेखनीय है कि हड़प्पा सभ्यता का विस्तार इसकी समकालीन मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यताओं से काफी बड़ा था।
प्रश्न 14.
हड़प्पा सभ्यता के किन्हीं चार प्रमुख नगरों के नाम बताइए।
उत्तर:
हड़प्पा व मोहनजोदड़ो इस सभ्यता के मुख्य नगर हैं जहाँ से नाना प्रकार के शिल्प तथ्य (Artefact) प्राप्त हुए। यह दोनों नगर अब पाकिस्तान में पड़ते हैं। दोनों के बीच 483 किलोमीटर की दूरी है। सिन्ध क्षेत्र में चन्हुदड़ो नगर प्रकाश में आया . है। यह मोहनजोदड़ो से 130 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। एक अन्य नगर गुजरात लोथल, (कठियावाड़) है। इस स्थल पर बंदरगाह के अवशेष भी पाए गए हैं।
इसके अतिरिक्त धौलावीरा (गुजरात के कच्छ क्षेत्र में) उत्तरी राजस्थान में कालीबंगन (काले रंग की चूड़ियाँ), हरियाणा में बनावली व राखीगढ़ी, बलूचिस्तान में सुत्कागेंडोर व सुरकोतदा, रंगपुर (गुजरात) आदि इस सभ्यता के महत्त्वपूर्ण स्थल हैं।
प्रश्न 15.
हड़प्पा सभ्यता के विनाश के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के विनाश के दो कारण निम्नलिखित हैं
1. आर्यों के आक्रमण (Aryan’s Invasions)-व्हीलर ने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। इसके पक्ष में वे आक्रमण के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। प्रथम, हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में सड़कों पर मानव कंकाल पड़े मिले हैं। एक कमरे में 13 स्त्री-पुरुषों . तथा बच्चों के कंकाल मिले हैं। मोहनजोदड़ो के अन्तिम चरण में सड़कों पर तथा घरों में मनुष्यों के कत्लेआम के प्रमाण मिले हैं। एक सँकरी गली को जॉन मार्शल ने डैडमैन लेन का नाम दिया है। ये कंकाल इस बात का संकेत करते हैं कि बाहरी आक्रमणकारियों ‘ (आय) ने हमला किया।
2. बाढ़ और भूकम्प (Flood and Earthquake)-कुछ विद्वानों ने हड़प्पा सभ्यता के पतन का कारण बाढ़ बताया है। मोहनजोदड़ो में मकानों और सड़कों पर गाद (कीचड़युक्त मिट्टी) भरी पड़ी थी। बाढ़ का पानी उतर जाने पर यहाँ के निवासियों ने पहले के मकानों के मलबे पर फिर से मकान और सड़कें बना लीं। बाढ़ आने का सिलसिला कई बार घटा। खुदाई से पता चला है कि 70 फुट गहराई तक मकान बने हुए थे। बार-बार आने वाली बाढ़ों से नगरवासी गरीब हो गए तथा तंग आकर बस्तियों को छोड़कर चले गए।
प्रश्न 16.
दुर्ग क्षेत्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो को हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा शहरी केंद्र माना जाता है। इस सभ्यता की नगर-योजना, गृह निर्माण, मुद्रा, मोहरों आदि की अधिकांश जानकारी मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई है। यह नगर दो भागों में बँटा था। एक भाग में ईंटों से बनाए ऊँचे चबूतरे पर स्थित बस्ती है। इसके चारों ओर ईंटों से बना परकोटा (किला) था, जिसे ‘नगर दुर्ग’ (Citadel) कहा जाता है। ‘नगर दुर्ग’ का क्षेत्रफल निचले नगर से कम था। इसमें पकाई ईंटों से बने अनेक बड़े भवन पाए गए हैं। दुर्ग क्षेत्र में शासक वर्ग के लोग रहते थे। .
प्रश्न 17.
हड़प्पा लिपि पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
हड़प्पा की मोहरों पर चित्रों के माध्यम से लिखावट है। विद्वानों का मानना है कि इन चित्रों के रूपांकनों (Motifs) के द्वारा अर्थ समझाया गया था। इन चित्रों से अनपढ़ भी संकेत से अर्थ समझ जाते होंगे। अधिकांश अभिलेख छोटे हैं। सबसे लम्बे अभिलेख में लगभग 26 चिहन हैं। यह लिपि संभवतः वर्णात्मक (Alphabetical) नहीं थी। इसमें बहुत-से चिह्न ही प्रयोग में होते थे जिनकी संख्या 375 तथा 400 के बीच बताई गई है। ऐसा लगता है कि यह लिपि दाईं-से-बाईं ओर लिखी जाती थी।
प्रश्न 18.
हड़प्पा काल में यातायात के दो साधन क्या थे?
उत्तर:
पकाई मिट्टी से बनी बैलगाड़ियों के खिलौने इस बात का संकेत हैं कि बैलगाड़ियों का प्रयोग सामान का आयात करने के लिए होता था। सिन्धु व सहायक नदियों का भी मार्गों के रूप में प्रयोग होता था। समुद्र तटीय मार्गों का इस्तेमाल भी माल लाने के लिए किया जाता था। संभवतः इसके लिए नावों का प्रयोग होता था।
प्रश्न 19.
सर जॉन मार्शल कौन था? उसकी पुस्तक का नाम लिखें।
उत्तर:
सर जॉन मार्शल भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के महानिदेशक थे। उन्होंने हड़प्पा की खुदाई में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। हड़प्पा सभ्यता की खोज की योजना मार्शल द्वारा ही की गई। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक का नाम है ‘मोहनजोदड़ो एंड द इंडस सिविलाईजेशन’।
प्रश्न 20.
आर.ई.एम. व्हीलर कौन थे? उनकी पुस्तक का नाम लिखें।
उत्तर:
आर.ई.एम. व्हीलर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के महानिदेशक थे। उन्होंने यह पद-भार 1944 में सम्भाला। हड़प्पा सभ्यता के खुदाई में व्हीलर ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक का नाम है-‘माई आर्कियोलॉजिकल मिशन टू इंडिया एंड पाकिस्तान’।
प्रश्न 21.
कनिंघम कौन थे?
उत्तर:
कनिंघम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पहले महानिदेशक थे। उनकी रुचि छठी सदी ईसा पूर्व से चौथी सदी ईसा पूर्व तथा इसके बाद के प्राचीन इतिहास के पुरातत्व में थी। उन्होंने बौद्धधर्म से संबंधित चीनी यात्रियों के वृत्तांतों का प्रारंभिक बस्तियों की पहचान करने में प्रयोग किया। सर्वेक्षण के कार्य में शिल्प तथ्य एकत्र किए। उनका रिकॉर्ड रखा तथा अभिलेखों का अनुवाद भी किया।
प्रश्न 22.
हड़प्पा लोगों द्वारा शव के अंतिम संस्कार के दो तरीके बताइए। अथवा हड़प्पाकालीन शवाधानों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
हड़प्पा लोगों द्वारा शव के अंतिम संस्कार के दो तरीके इस प्रकार हैं
- हड़प्पा में भी मृतकों के अन्तिम संस्कार का सबसे ज़्यादा प्रचलित तरीका दफनाना ही था। शव सामान्य रूप से उत्तर:दक्षिण दिशा में रखकर दफनाते थे। कब्रों में कई प्रकार के आभूषण तथा अन्य वस्तुएं भी प्राप्त हुई हैं।
- कालीबंगन में कब्रों में कंकाल नहीं हैं। वहाँ छोटे-छोटे वृत्ताकार गड्ढों में राखदानियाँ तथा मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए हैं। लोथल में कब्रों में साथ-साथ दफनाए गए महिला और पुरुष मुर्दो के कंकालों के जोड़े मिले हैं।
प्रश्न 23.
भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर उन तीन क्षेत्रों के नाम लिखें जिनसे हड़प्पन व्यापार होता था।
उत्तर:
1. मगान (Magan)-ओमान की खाड़ी पर स्थित रसाल जनैज (Rasal-Junayz) भी व्यापार के लिए महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह थी। सुमेर के लोग ओमान को मगान (Magan) के नाम से जानते थे। मगान में हड़प्पा सभ्यता से जुड़ी वस्तुएँ; जैसे मिट्टी का मर्तबान, बर्तन, इन्द्रगोप के मनके, हाथी-दांत व धातु के कला तथ्य मिले हैं।
2. दिलमुन (Dilmun)-फारस की खाड़ी में भी हड़प्पाई जहाज पहुँचते थे। दिलमुन (Dilmun) तथा पास के तटों पर जहाज जाते थे। दिलमुन से हड़प्पा के कलातथ्य तथा लोथल से दिलमुन की मोहरें प्राप्त हुई हैं।
3. मेसोपोटामिया (Mesopotamain)-वस्तुतः दिलमुन (बहरीन के द्वीपों से बना) मेसोपोटामिया का प्रवेश द्वार था। मेसोपोटामिया के लोग सिंधु बेसिन (Indus Basin) को मेलुहा (Meluhha) के नाम से जानते थे (कुछ विद्वानों के मतानुसार मेलुहा सिंधु क्षेत्र का बिगड़ा हुआ नाम है)। मेसोपोटामिया के लेखों (Texts) में मेलुहा से व्यापारिक संपर्क का उल्लेख है।
प्रश्न 24.
सिन्धु घाटी की सभ्यता की लिपि की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
सिन्धु घाटी की सभ्यता की लिपि की कोई दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- सिन्धु घाटी की मोहरों पर चित्रों के माध्यम से लिखावट है। इन चित्रों से अनपढ़ भी संकेत से अर्थ समझ लेते होंगे।
- यह लिपि संभवत: वर्णात्मक नहीं थी। इसमें लगभग 375 से 400 चिह्नों का प्रयोग होता होगा। यह लिपि दाईं से बाईं ओर. लिखी जाती थी।
प्रश्न 25.
हड़प्पा सभ्यता का सबसे पहले खोजा गया स्थल कौन था? इसकी दुर्दशा का क्या कारण था?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का सबसे पहले उत्खनन तथा खोजा गया स्थल हड़प्पा था। इसकी खुदाई 1921 में दयाराम साहनी ने की थी। इस स्थल की दुर्दशा का मुख्य कारण इस स्थल से ईंटों की चोरी था। ईंटें चुराने वालों ने इसे बुरी तरह से नष्ट कर दिया था। इससे यहाँ की बहुत-सी संरचनाएँ नष्ट हो गईं।
प्रश्न 26.
मोहनजोदड़ो के नियोजन पर प्रकाश डालने वाले कुछ साक्ष्य बताइए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो की वास्तुकला के कई लक्षण इस बात के साक्ष्य हैं कि यह एक नियोजित नगर था
- नगर का दुर्ग क्षेत्र तथा निचले नगर में विभाजन,
- समकोण काटती सड़क व गलियाँ,
- उत्तम जल निकास प्रणाली,
- समान आकार की ईंटों का प्रयोग,
- विशाल भवनों का वास्तु,
- घरों का निश्चित योजना से निर्माण।
प्रश्न 27.
फयॉन्स क्या था? इससे बने पात्र महंगे क्यों थे?
उत्तर:
फ़यॉन्स बालू (घिसी हुए रेत), रंग तथा किसी चिपचिपे पदार्थ के मिश्रण को पकाकर बनाया गया एक प्रकार का पदार्थ था। इसके पात्र चमकदार होते थे। इससे बने छोटे पात्र कीमती इस कारण माने जाते थे कि इन्हें बनाना कठिन होता था।
प्रश्न 28.
नागेश्वर तथा बालाकोट कहाँ थे और क्यों प्रसिद्ध थे?
उत्तर:
नागेश्वर गुजरात तथा बालाकोट बलूचिस्तान में स्थित थे। ये दोनों बस्तियाँ समुद्र तट पर बसी हुई थी। ये दोनों स्थल शंख से वस्तुएँ बनाने के विशिष्ट केंद्र थे। इसका कारण यह था कि यह समुद्र तट पर थे तथा यहाँ पर शंख पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध थे। शंख से चूड़ियाँ, पच्चीकारी की वस्तुएँ आदि बनाई जाती थीं।
प्रश्न 29.
मोहनजोदड़ों के घरों की कोई दो मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:मोहनजोदड़ों के घरों की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- मोहनजोदड़ों के ज्यादातर घरों में आंगन होता था और चारों तरफ कमरे बने होते थे।
- मोहनजोदड़ों के लगभग सभी घरों में कमरे होते थे।
लघु-उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
हड़प्पा सभ्यता के नामकरण पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
प्रारंभ में विद्वानों ने इस सभ्यता को “सिंधु घाटी की सभ्यता” का नाम दिया था क्योंकि शुरू में बहुत-सी बस्तियाँ सिंधु घाटी और उसकी सहायक नदियों के मैदानों में पाई गई थीं। परंतु बाद में इस सभ्यता से जुड़े अ राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा तथा गुजरात में स्थित थे। अतः इस सभ्यता को केवल सिंधु घाटी की सभ्यता कहना सार्थक नहीं लगा। वर्तमान में पुरातत्ववेत्ता इसे “हड़प्पा की सभ्यता” कहना पसंद करते हैं।
यह नामकरण इसलिए उचित है कि इस संस्कृति से संबंधित सर्वप्रथम खुदाई हड़प्पा में हुई थी। अन्य स्थानों की खुदाई से भी सभ्यता के वही लक्षण प्राप्त हुए जो हड़प्पा से प्राप्त हुए थे। यह भी उल्लेखनीय है कि पुरातत्व-विज्ञान में यह परिपाटी है कि जब किसी प्राचीन सभ्यता या संस्कृति का वर्णन किया जाता है तो उस स्थान के आधुनिक प्रचलित नाम पर उस सभ्यता का नाम रखा जाता है, जहाँ से उसके अस्तित्व का पता चलता है। इसलिए हड़प्पा को आधार मानकर इसे ‘हड़प्पा सभ्यता’ नामकरण देना उपयुक्त है।
प्रश्न 2.
हड़प्पा सभ्यता की पुरातत्वविदों की जानकारी के स्रोतों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की सारी जानकारी पुरातत्वविदों को इस सभ्यता से जुड़ी बस्तियों (नगरों) से प्राप्त विशेष शिल्प तथ्यों (Artefacts) से प्राप्त हुई है। उत्खनन से प्राप्त हुई सामग्री में सबसे महत्त्वपूर्ण हड़प्पन मुद्राएँ (Seals) हैं। ये एक विशेष पाषाण (Steatite) से बनी हैं तथा इन पर पशुओं (बैल, सांड, हाथी, गैण्डा) के मुद्रांकन हैं। इन पर लिपि के संकेत भी गोदे हुए हैं जिन्हें अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। ये मुद्राएँ सभी स्थलों पर बड़ी संख्या में प्राप्त हुई हैं। इसके अतिरिक्त शहरों, दस्तकारी केन्द्रों दुर्ग स्थानों आदि से अनेक महत्त्वपूर्ण अवशेष प्राप्त हुए हैं। कच्ची और पक्की ईंटों से बने घर और घरों में कुएँ मिले हैं।
ऊँचे तथा निचले स्थलों (दो भागों में) पर बसे नगर एवं नगरों में अन्नागार और बड़ी-बड़ी इमारतें हैं। मोटे तथा लाल मिट्टी के अलंकृत बर्तन (मृदभाण्ड) तथा मिट्टी की मुख्य मूर्तियाँ पाई गई हैं। तांबे तथा कांस्य के औजार, मूर्तियाँ तथा बर्तन हैं। पत्थर के बाट और कीमती पत्थरों के मनके हैं। समुद्री शैल तथा हाथी-दाँत के गहने भी हैं। इसके अतिरिक्त कांस्य, सोना तथा चाँदी के आभूषण भी मिले हैं। इस प्रकार पुरातत्वविदों की जानकारी के प्रमुख स्रोत हैं-मुद्राएँ, मुद्रांक, नगर दुर्ग, निचले नगर, नगरों की बसावट, मकान, विशाल इमारतें, ईंटें, मृदभाण्ड, तौल, बर्तन, औजार, मनके, गहने, मूर्तियाँ इत्यादि।
प्रश्न 3.
हड़प्पा के लोगों के जीविका निर्वाह के तरीकों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के आरंभिक चरण में जीविका निर्वाह के तरीके विकसित हो रहे थे। वे अनेक फसलें उगाने लगे थे। इनसे उन्हें खाद्यान्न प्राप्त होते थे। वे कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पाद, जानवरों (मछली सहित) से भोजन प्राप्त करने में सफल थे। अनाज के जले दानों तथा बीजों की खोज से पुरातत्वविदों ने हड़प्पाई लोगों की आहार संबंधी आदतों के बारे में जानकारी प्राप्त की है। पुरावनस्पतिज्ञों के अनुसार हड़प्पाई लोग गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, तिल आदि अनाज के दानों से परिचित थे। बाजरे के दाने गुजरात से मिले। चावल के भी प्रमाण मिले हैं।
हड़प्पा स्थलों से भेड़, बकरी, भैंस, सूअर आदि की हड्डियाँ मिली हैं। पुरा-प्राणिविज्ञानियों के अनुसार ये सभी जानवर पालतू थे। संभवतः वे इनसे दूध तथा मांस प्राप्त करते थे। इसके अलावा जंगली सूअर (वराह), हिरणं तथा घड़ियाल की हड्डियाँ भी मिली हैं। मुर्गे की हड्डियों के प्रमाण भी हैं। कृषि उपज बढ़ाने के लिए खेतों को जोतते होंगे। हल के प्रमाण बनावली तथा जुते हुए खेत के प्रमाण कालीबंगन से मिले हैं। सिंचाई के प्रमाण मिले हैं। कुएँ, जलाशय, झीलों, नहरों से सिंचाई की जाती होगी। यद्यपि सिंचाई के कम ही प्रमाण मिले हैं।
प्रश्न 4.
मोहनजोदड़ो की सड़कों और गलियों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो की सड़कें व गलियाँ पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार बनाई गई थीं। सड़कें और गलियाँ सीधी होती थीं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। सड़कें पूर्व से पश्चिम या उत्तर से दक्षिण दिशा में बिछी हुई थीं। इससे नगर कई भागों में बंट जाते थे। मोहनजोदड़ों में मुख्य सड़क 10.5 मीटर चौड़ी थी, इसे ‘प्रथम सड़क’ कहा गया है। इस ‘प्रथम सड़क’ पर एक साथ पहिए वाले सात वाहन गुजर सकते थे।
अन्य सड़कें 3.6 से 4 मीटर तक चौड़ी थीं। गलियाँ एवं गलियारे 1.2 मीटर (4 फुट) या । उससे अधिक चौड़े थे। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सड़कों, गलियों तथा नालियों की व्यवस्था लागू करने तथा निरंतर देखभाल के लिए नगरपालिका या नगर प्राधिकरण जैसी कोई प्रशासनिक व्यवस्था रही होगी। स्पष्ट है कि नगर में सड़कें व गलियाँ एक योजना के अनुसार बनाई गई थीं। मुख्य मार्ग उत्तर से दक्षिण की ओर जाते थे। अन्य सड़कें और गलियाँ मुख्य मार्ग को समकोण पर काटती थीं जिससे नगर वर्गाकार/आयताकार खंडों में विभाजित होता था।
प्रश्न 5.
‘मोहनजोदड़ो एक नियोजित नगर था।’ इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
इस बात के पुख्ता पुरावशेष हैं कि मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहरी केंद्र था इसको हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा शहरी केंद्र माना जाता है। इस सभ्यता की नगर-योजना, गृह निर्माण, मुद्रा, मोहरों आदि की अधिकांश जानकारी मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई है। यह नगर दो भागों में बँटा था। एक भाग में इंटों से बनाए ऊँचे चबूतरे पर स्थित बस्ती है। इसके चारों ओर ईंटों से बना परकोटा (किला) था, जिसे ‘नगर दुर्ग’ (Citadel) कहा जाता है।
‘नगर दुर्ग’ का क्षेत्रफल निचले नगर से कम था। इसमें पकाई ईंटों से बने अनेक बड़े भवन पाए गए हैं। दुर्ग क्षेत्र में शासक वर्ग के लोग रहते थे। निचले नगर के चारों ओर भी दीवार थी। इस क्षेत्र में भी कई भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था। ये चबूतरे भवनों की आधारशिला (Foundation) का काम करते थे।
दुर्ग क्षेत्र के निर्माण तथा निचले क्षेत्र में चबूतरों के निर्माण के लिए विशाल संख्या में श्रमिकों को लगाया गया होगा। इस नगर की यह भी विशेषता रही होगी कि पहले प्लेटफार्म या चबूतरों का निर्माण किया जाता होगा तथा बाद में इस तय सीमित क्षेत्र में निर्माण कार्य किया जाता होगा। इसका अभिप्राय यह हुआ कि पहले योजना बनाई जाती होगी तथा बाद में उसे योजनानुसार लागू किया जाता था। नगर की पूर्व योजना (Pre-planning) का पता ईंटों से भी लगता है। ये ईंटें पकाई हुई (पक्की) तथा धूप में सुखाई हुई होती थीं। इनका मानक (1:2:4) आकार था। इसी मानक आकार की ईंटें हड़प्पा सभ्यता के अन्य नगरों में भी प्रयोग हुई हैं।
मोहनजोदड़ो का नक्शा हुई हैं। मोहनजोदड़ो के एक नियोजित नगर होने का प्रमाण वहाँ पर सड़कों तथा नालियों की सुव्यवस्था का प्राप्त होना भी है। गृह स्थापत्य से भी स्पष्ट है कि पहले नक्शे बनाए जाते थे तथा बाद में घर का निर्माण किया जाता था।
प्रश्न 6.
हड़प्पा सभ्यता की निकास व्यवस्था (नालियों की व्यवस्था) के बारे में आप क्या जानते हैं? क्या यह नगर योजना की ओर संकेत करती है?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के शहरों की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक थी- ध्यानपूर्वक नियोजित जल निकास व्यवस्था (नालियों की व्यवस्था)। नियोजित और व्यापक नालियों की व्यवस्था हमें अन्य किसी भी समकालीन सभ्यता के नगरों में प्राप्त नहीं होती है। प्रत्येक घर में छोटी नालियाँ होती थीं जो घर के पानी को बाहर गली या सड़क के किनारे बनी नाली में पहुँचाती थीं। प्रमुख सड़कों एवं गलियों के साथ 1 से 2 फुट गहरी ईंटों तथा पत्थरों से ढकी नालियाँ होती थीं।
मुख्य नालियों में कचरा छानने की व्यवस्था भी होती थी। नालियों में ऐसी व्यवस्था करने के लिए बड़े गड्ढे (शोषगत) होते थे, जो पत्थरों या ईंटों से ढके होते थे जिन्हें सफाई करने के लिए आसानी से हटाया और वापस रख दिया जाता था। मुख्य नालियाँ एक बड़े नाले के साथ जुड़ी होती थीं जो सारे गंदे पानी को नदी में बहा देती थीं। हड़प्पाकालीन नगरों की जल निकास प्रणाली पर टिप्पणी करते हुए ए०एल० बाशम ने लिखा है, नालियों की अद्भुत व्यवस्था सिन्धु घाटी के लोगों की महान सफलताओं में से एक थी।
रोमन सभ्यता के अस्तित्व में आने तक किसी भी प्राचीन सभ्यता की नाली व्यवस्था इतनी अच्छी नहीं थी।” जल निकासी की यह व्यवस्था केवल बड़े-बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं थी वरन् छोटी बस्तियों में भी इसके प्रमाण मिले हैं। उदाहरण के लिए लोथल में भी पक्की ईंटों की नालियां हैं। नालियों के विषय में मैके ने लिखा है, “निश्चित रूप से यह अब तक खोजी गई सर्वथा संपूर्ण प्राचीन प्रणाली है। नालियों की व्यवस्था से यह स्पष्ट संकेत होता है कि नगर योजनापूर्वक बनाए जाते थे।”
प्रश्न 7.
हड़प्पा सभ्यता के गृह स्थापत्य पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखि
उत्तर:
मोहनजोदड़ो से उपलब्ध आवासीय भवनों के नमूनों से सभ्यता के गृह स्थापत्य का अनुमान लगाया जाता है। घरों की बनावट में समानता पाई गई है। ज्यादातर घरों में आंगन (Courtyard) होता था और इसके चारों तरफ कमरे बने होते थे। ऐसा लगता है कि आंगन परिवार की गतिविधियों का केंद्र था। उदाहरण के लिए गर्म और शुष्क मौसम में आंगन में खाना पकाने व कातने जैसे कार्य किए जाते थे।
ऐसा भी प्रतीत होता है कि घरों के निर्माण में एकान्तता (Privacy) का ध्यान रखा जाता था। भूमि स्तर (Ground level) पर दीवार में कोई भी खिड़की नहीं होती थी। इसी प्रकार मुख्य प्रवेश द्वार से घर के अन्दर या आंगन में नहीं झांका/देखा जा सकता था। बड़े घरों में कई-कई कमरे, रसोईघर, शौचालय एवं स्नानघर होते थे। कई मकान तो दो मंजिले थे तथा ऊपर पहुंचने के लिए सीढ़ियाँ बनाई जाती थीं। मोहनजोदड़ो में प्रायः सभी घरों में कुएँ होते थे।
प्रश्न 8.
शवाधान के आधार पर सभ्यता में पाई गई चित्र : एक घर का स्थापत्य, मोहनजोदड़ो सामाजिक भिन्नता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में शवाधानों में पाए गए अवशेषों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि इस सभ्यता में सामाजिक तथा आर्थिक भिन्नताएँ मौजूद थीं। आपको जानकारी होगी कि मिस्र के विशाल पिरामिड वस्तुतः वहाँ के राजाओं की कबें हैं। इन कब्रों में राजाओं के मृत शरीर हैं तथा इनको सोने या अन्य धातुओं के ताबूत में रखा जाता था। उनके साथ बहुमूल्य सामग्री, वस्तुएँ और धन-संपत्ति भी रखी जाती थी।
हड़प्पा की सभ्यता मिस्र की सभ्यता के समकालीन थी। हड़प्पा में भी मृतकों के अन्तिम संस्कार का सबसे ज़्यादा प्रचलित तरीका दफनाना ही था। शव सामान्य रूप से उत्तर:दक्षिण दिशा में रखकर दफनाते थे। कब्रों में कई प्रकार के आभूषण तथा अन्य वस्तुएं भी प्राप्त हुई हैं। जैसे कुछ कब्रों में ताँबे के दर्पण, सीप और सुरमे की सलाइयाँ पाई गई हैं। कुछ शवाधानों में बहुमूल्य आभूषण और अन्य सामान मिले हैं। कुछ कब्रों में बहुत ही सामान्य सामान मिला है। हड़प्पा की एक कब्र में ताबूत भी मिला है।
यहाँ पर एक कब्र में एक आदमी की खोपड़ी के पास से एक आभूषण मिला है जो शंख के तीन छल्लों, जैस्पर (उपरत्न) के मनकों और सैकड़ों छोटे-छोटे मनकों से बनाया गया है। कालीबंगन में कब्रों में कंकाल नहीं हैं। वहाँ छोटे-छोटे वृत्ताकार गड्ढों में राखदानियाँ तथा मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए हैं। शवाधानों की बनावट से भी विभेद प्रकट होता है। कुछ कळे सामान्य बनी हैं तो कुछ कब्रों में ईंटों की चिनाई की गई है। ऐसा लगता है कि चिनाई वाली कā उच्चाधिकारी वर्ग अथवा अमीर लोगों की हैं। सारांश में हम कह सकते हैं कि शवाधानों से प्राप्त सामग्री से हमें हड़प्पा के समाज की सन्तोषजनक जानकारी अवश्य प्राप्त हो जाती है।
प्रश्न 9.
हड़प्पा सभ्यता के स्थलों से प्राप्त विलासिता की वस्तुओं के आधार पर सामाजिक विभेदन का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के नगरों से प्राप्त कलातथ्यों (Artefacts) से भी सामाजिक विभेदन का अनुमान लगाया जाता है। इन कलातथ्यों को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जाता है-पहले ऐसे अवशेष थे जो दैनिक उपयोग (Utility) के थे तथा दूसरे विलासिता (Luxury) से जुड़े थे। दैनिक उपयोग के सामान में चक्कियाँ, बर्तन, सुइयाँ, झाँवा आदि को शामिल किया जा सकता है। इन्हें मिट्टी या पत्थर से आसानी से बनाया जा सकता था।
सामान्य उपयोग की ये वस्तुएं हड़प्पा सभ्यता के सभी स्थलों से प्राप्त हुई हैं। दूसरा विलासिता की वस्तुओं में महँगी तथा दुर्लभ वस्तुएँ शामिल थीं। इनका निर्माण बाहर से प्राप्त सामग्री/पदार्थों से या जटिल तरीकों द्वारा किया जाता था। उदाहरण के लिए फ़यॉन्स (घिसी रेत या सिलिका/बालू रेत में रंग और गोंद मिलाकर पकाकर बनाए बर्तन) के छोटे बर्तन इस श्रेणी में रखे जा सकते हैं। ये फयॉन्स से बने छोटे-छोटे पात्र संभवतः सुगन्धित द्रवों को रखने के लिए प्रयोग में लाए जाते थे।
हड़प्पा के कुछ पुरास्थलों से सोने के आभूषणों की निधियाँ (पात्रों में जमीन में दबाई हुई) भी मिली हैं। उल्लेखनीय है कि जहाँ दैनिक उपयोग का सामान हड़प्पा की सभी बस्तियों में मिला है, वहीं विलासिता का सामान मुख्यतः मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे बड़े नगरों में ही मिला है जो संभवतः राजधानियाँ भी थीं। उदाहरण के लिए कालीबंगन जैसी छोटी-छोटी बस्तियों से फ़यॉन्स (Faience) से बने कोई भी पात्र नहीं मिले हैं। इस सबका अभिप्राय है कि विलासिता से संबंधित या महँगा सामान अमीर वर्ग के लोगों के पास होता था तथा मुख्यतः बड़े नगर में ही होता था।
प्रश्न 10.
मोहरों व मुद्रांकनों पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
हल्की चमकदार सतह वाली सफेद रंग की आकर्षक मोहरें (Seals) हड़प्पा सभ्यता की अति महत्त्वपूर्ण कलातथ्य हैं। सेलखड़ी की वर्गाकार व आयताकार मुद्राएँ सभी स्थलों से मिली हैं। अकेले मोहनजोदड़ो में 1200 मुद्राएँ प्राप्त हुई हैं। इन पर लेख भी अंकित थे। कूबड़ वाला बैल, कूबड़ रहित बैल, सिंह, हाथी, गैंडे आदि पशु इन मुद्राओं पर चित्रित हैं। पशुपति वाली मुद्रा सबसे अधिक उल्लेखनीय है।
इतने बड़े पैमाने पर मुद्रा तथा मुद्रांकनों की प्राप्ति इस तथ्य की ओर संकेत करती है कि इन मोहरों और मुद्रांकनों का प्रयोग लम्बी दूरी के साथ व्यापार संपर्कों को सुविधाजनक बनाने के लिए किया जाता था। सामान से भरे थैले के मुँह को रस्सी से बाँधकर या सिलकर उन पर गीली मिट्टी लगाई जाती थी। इसके बाद इस पर मुद्रांकन छापा जाता था जिसका संबंध सामान की सही व सुरक्षित पहुँच तथा भेजने वाले की पहचान से होता था।
प्रश्न 11.
माप-तौल के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की एक अन्य विशेषता माप और तौल व्यवस्था में समरूपता का पाया जाना था। दूर-दूर तक फैली बस्तियों में एक ही प्रकार के बाट-बट्टे पाए गए हैं। हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने तौल की इस प्रणाली से आपसी व्यापार और विनिमय को नियन्त्रित किया होगा। ये बाट (तौल) निम्न मूल्यांकों (Lower Denominations) में द्विचर (binary) प्रणाली के अनुसार हैं-1, 2, 4, 8, 16, 32……… से 12,800 तक। ऊपरी मूल्यांकों (Higher Denominations) में दशमलव प्रणाली का अनुसरण किया जाता था।
ये बाट चकमकी पत्थर, चूना पत्थर, सेलखड़ी आदि से बने होते थे। यह आकार में घनाकार या गोलाकार होते थे। छोटे बाट भी थे जिनका प्रयोग संभवतः आभूषण व मनके तोलने के लिए किया जाता था। धातु के पैमाने जैसे कला तथ्य भी पाए गए हैं। जिनकी लम्बाई 37.6 सेंटीमीटर की एक फुट की इकाई पर आधारित होती थी। ऐसे डंडे भी पाए गए हैं जिन पर माप के निशान लगे हुए हैं। इनमें एक डंडा कांसे का भी है।
प्रश्न 12.
पुरातत्वविद् एक उत्पादन केंद्र की पहचान कैसे करते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
1. पहचान का तरीका-पुरातत्वविद् किसी उत्पादन केंद्र को पहचानने में कुछ चीजों का प्रमाण के रूप में सहारा लेते हैं। पत्थर के टुकड़ों, पूरे शंखों, सीपी के टुकड़ों, तांबा, अयस्क जैसे कच्चे माल, अपूर्ण वस्तुओं, छोड़े गए माल और कूड़ा-कर्कट आदि चीजों से उत्पादन केंद्रों की पहचान की जाती है। कारीगर वस्तुओं को बनाने के लिए पत्थर को काटते समय या शंख-सीपी को काटते हुए अनुपयोगी सामग्री छोड़ देते थे। कार्यस्थलों (Work Shops) से प्राप्त ऐसी सामग्री के ढेर होने पर अनुमान लगाया जाता है कि वह स्थल उत्पादन केंद्र रहा होगा।
2. प्रमुख उत्पादन केंद्र
- बालाकोट (बलूचिस्तान में समुद्रतट के समीप) व चन्हुदड़ो (सिंध में) सीपीशिल्प और चूड़ियों के लिए प्रसिद्ध थे।
- लोथल (गुजरात) और चन्हुदड़ो में लाल पत्थर (Carnelian) और गोमेद के मनके बनाए जाते थे।
- चन्हुदड़ो में वैदूर्यमणि के कुछ अधबने मनके मिले हैं जिससे अनुमान लगाया जाता है कि यहाँ पर दूर-दराज से बहुमूल्य पत्थर आयात किया जाता था तथा उन पर काम करके उन्हें बेचा जाता था।
प्रश्न 13.
हड़प्पाई लोगों द्वारा माल प्राप्ति की क्या नीतियाँ थीं?
उत्तर:
हड़प्पाई शिल्प उत्पादों के लिए अनेक प्रकार के कीमती व अर्द्ध कीमती पत्थरों, ताँबा, जस्ता, कांसा, सोना, चाँदी, टिन, लकड़ी, कपास आदि सामान की जरूरत पड़ती थी। इसके लिए उन्हें भारतीय उपमहाद्वीप तथा इससे दूरस्थ क्षेत्रों से माल प्राप्त करना पड़ता था। इसके लिए निम्नलिखित नीतियाँ अपनाई जाती थीं
1. बस्तियों की स्थापना-सिन्ध, बलूचिस्तान के समुद्रतट, गुजरात, राजस्थान तथा अफ़गानिस्तान तक के क्षेत्र से कच्चा माल प्राप्त करने के लिए उन्होंने बस्तियों का निर्माण किया हुआ था। इन क्षेत्रों में प्रमुख बस्तियां थीं-नागेश्वर (गुजरात), बालाकोट, शोर्तुघई (अफगानिस्तान), लोथल आदि। नागेश्वर और बालाकोट से शंख प्राप्त करते थे। शोर्तुघई (अफगानिस्तान) से कीमती लाजवर्द मणि (नीलम) आयात, करते थे। लोथल के संपर्कों से भड़ौच (गुजरात) में पाई जाने वाली इन्द्रगोपमणि (Carnelian) मँगवाई जाती थी। इसी प्रकार उत्तर गुजरात व दक्षिण राजस्थान क्षेत्र से सेलखड़ी का आयात करते थे।
2. अभियानों से माल प्राप्ति-हड़प्पा सभ्यता के लोग उपमहाद्वीप के दूर-दराज क्षेत्रों तक अभियानों (Expeditions) का आयोजन कर कच्चा माल प्राप्त करने का तरीका भी अपनाते थे। इन अभियानों से वे. स्थानीय क्षेत्रों के लोगों से संपर्क स्थापित करते थे। इन स्थानीय लोगों से वे वस्तु विनिमय से कच्चा माल प्राप्त करते थे। ऐसे अभियान भेजकर राजस्थान के खेतड़ी क्षेत्र से तांबा तथा दक्षिण भारत में कर्नाटक क्षेत्र से सोना प्राप्त करते थे। उल्लेखनीय है कि इन क्षेत्रों से हड़प्पाई पुरा वस्तुओं तथा कला तथ्यों के साक्ष्य मिले हैं। पुरातत्ववेत्ताओं ने खेतड़ी क्षेत्र से मिलने वाले साक्ष्यों को गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति का नाम दिया है जिसके विशिष्ट मृदभांड हड़प्पा के मृदभांडों से भिन्न हैं।
3. दूरस्थ व्यापार-हड़प्पावासी समुद्री मार्गों से दूरस्थ प्रदेश से व्यापार का आयोजन करते थे। इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि हड़प्पा के व्यापारी मगान, दिलमुन तथा मेसोपोटामिया से व्यापार कर ताँबा, सोना, चाँदी, कीमती लकड़ी आदि आयात करते थे।
प्रश्न 14.
हड़प्पाई ‘रहस्यमय लिपि’ पर टिप्पणी करें।
उत्तर:
हड़प्पा की मोहरों पर चित्रों के माध्यम से लिखावट है। मुद्राओं के अतिरिक्त ताम्र उपकरणों व पट्टिकाओं, मिट्टी की लघु पट्टिकाओं, कुल्हाड़ियों, मृदभांडों आभूषणों, अस्थि छड़ों और एक प्राचीन सूचनापट्ट पर भी हड़प्पा लिपि के कई नमूने प्राप्त हुए हैं। उल्लेखनीय है कि यह लिपि अभी तक पढ़ी न जा सकने के कारण रहस्य बनी हुई है। अतः यह नहीं कहा जा सकता कि हड़प्पा निवासी कौन-सी भाषा बोलते.थे और उन्होंने क्या लिखा। विद्वानों का मानना है कि इन चित्रों के रूपाकंनों (Motifs) के द्वारा अर्थ समझाया गया था। इन चित्रों से अनपढ़ भी संकेत से अर्थ समझ जाते होंगे।
अधिकांश अभिलेख छोटे हैं। सबसे लम्बे अभिलेख में लगभग 26 चिहन हैं। यह लिपि संभवतः वर्णात्मक (Alphabetical) नहीं थी। इसमें बहुत-से चिह्न ही प्रयोग में होते थे जिनकी संख्या 375 तथा 400 के बीच बताई गई है। ऐसा लगता है कि यह लिपि दाईं-से-बाईं ओर लिखी जाती थी। ऐसा अनुमान इसलिए भी लगाया जाता है कि कुछ मोहरों पर दाईं तरफ चौड़ा अंतराल (Space) है और बाईं तरफ काफी कम अंतराल है।
प्रश्न 15.
हड़प्पा सभ्यता की खोज कैसे हुई?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के प्रकाश में आने की कहानी रोचक है। इस सभ्यता को खोज निकालने में अनेक व्यक्तियों का योगदान है। 1826 में चार्ल्स मेसेन हड़प्पा गाँव में आया तथा उसने यहाँ किसी प्राचीन स्थल के विद्यमान होने का सबसे पहले उल्लेख किया। इसी प्रकार 1834 में बर्नेस ने सिन्धु के किनारे किसी ध्वस्त किले के होने की बात की। 1853 तथा पुनः 1856 में कनिंघम (भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक) ने हड़प्पा की यात्रा की तथा वहाँ टीले के नीचे किसी प्राचीन सभ्यता के दबे होने की सम्भावना जताई। कनिंघम ने उक्त स्थल की सीमित खुदाई भी करवाई तथा प्राप्त अवशेषों (मोहरों) एवं उत्खनन स्थल मानचित्र का प्रकाशन भी किया।
1886 में एम०एल० डेम्स एवं 1912 में पलीट ने भी हड़प्पाकालीन कुछ मुद्राओं के चित्र प्रकाशित किए। 1920 के प्रारम्भिक दशक में सिन्ध में जब रेलवे लाईन बिछाई जा रही थी तब खुदाई के दौरान अज्ञात सभ्यता के अवशेष प्रकाश में आए। 1921 में दयाराम साहनी द्वारा हड़प्पा और 1922 में राखाल दास बनर्जी द्वारा मोहनजोदड़ो में किए गए खुदाई कार्यों से इस सभ्यता का अस्तित्व निर्णायक रूप से सिद्ध हो गया।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तत्कालीन महानिदेशक सर जॉन मार्शल ने इस उत्खनन में रुचि ली तथा 1924 में लंदन से प्रकाशित एक साप्ताहिक पत्र में इस सभ्यता की खोज के बारे में घोषणा की। इससे पुरातत्वविदों में सनसनी फैल गई। इन उत्खननों से यह बात उभरकर आई कि यह एक विशिष्ट सभ्यता थी। जिसके अज्ञात निर्माताओं ने नगरों का निर्माण किया। यह सभ्यता मिस्र एवं मेसोपोटामिया की सभ्यताओं के समकालीन थी।
प्रश्न 16.
खोज में कनिंघम के प्रयासों तथा उसकी उलझन पर नोट लिखें।
उत्तर:
कनिंघम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पहले महानिदेशक थे। 1853 तथा पुनः 1856 में कनिंघम ने हड़प्पा की यात्रा की तथा वहाँ टीले के नीचे किसी प्राचीन सभ्यता के दबे होने की संभावना जताई। उन्होंने वहाँ पर कुछ खुदाई भी करवाई। इसकी रिपोर्ट तथा एक मोहर का चित्र भी छापा। परंतु वे हड़प्पा के स्वतंत्र अस्तित्व को नहीं आंक सके। उनकी रुचि छठी सदी ईसा पूर्व से चौथी सदी ईसा पूर्व तथा इसके बाद के प्राचीन इतिहास के पुरातत्व में थी। उन्होंने बौद्धधर्म से संबंधित चीनी यात्रियों के वृत्तांतों का प्रारंभिक बस्तियों की पहचान करने में प्रयोग किया। सर्वेक्षण के कार्य में शिल्प तथ्य एकत्र किए। उनका रिकॉर्ड रखा। कनिंघम ने उपलब्ध कलातथ्यों के सांस्कृतिक अर्थों को भी समझने का प्रयास किया।
परंतु हड़प्पा जैसे स्थल की इन चीनी वृत्तांतों में न तो विवरण था, न ही इन नगरों की ऐतिहासिकता की कोई जानकारी। अतः यह नगर ठीक प्रकार से उनकी खोजों के दायरे में नहीं समा पा रहे थे। वस्तुतः वे यहाँ से प्राप्त कला-तथ्यों की पुरातनता नगा पाए। उदाहरण के लिए एक अंग्रेज ने कनिंघम को हड़प्पा की एक मोहर दी। कनिंघम ने अपनी रिपोर्ट में इसका चित्र भी दिया परंतु वह इसे इसके समय-संदर्भ में रख पाने में असफल रहे। इसका कारण यह रहा होगा कि अन्य विद्वानों की भांति वह भी यह मानते थे कि भारत में पहली बार नगरों का अभ्युदय गंगा-घाटी में 6 वीं, 7वीं सदी ई०पू० से हुआ। अतः यह आश्चर्य की बात नहीं है कि वे हड़प्पा के महत्त्व को नजरअंदाज कर गए।
प्रश्न 17.
हड़प्पा की खोज में सर जॉन मार्शल के योगदान का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1921 में दयाराम साहनी ने हड़प्पा स्थल से अनेक मोहरें उत्खनन में प्राप्त की। ऐसा ही कार्य 1922 में राखालदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो में किया। दोनों स्थलों की मोहरों में समानता थी। इससे यह निष्कर्ष निकाल पुरातात्विक संस्कृति का हिस्सा है। इन खोजों के आधार पर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के तत्कालीन महानिदेशक सर जॉन मार्शल ने 1924 ई० में (लन्दन में प्रकाशित एक साप्ताहिक पत्र में) सारी दुनिया के समक्ष इस नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की।
सारी दुनिया में इससे सनसनी फैल गई। इस बारे में एस.एन.राव ने ‘द स्टोरी ऑफ़ इंडियन आर्कियोलॉजी’ में लिखा, “मार्शल ने . भारत को जहाँ पाया था, उसे उससे तीन हजार वर्ष पीछे छोड़ा।” उल्लेखनीय है कि हड़प्पा जैसी मोहरें मेसोपोटामिया से भी मिली थीं। अब यह स्पष्ट हुआ कि यह एक नई सभ्यता थी जो मेसोपोटामिया के समकालीन थी।
सर जॉन मार्शल द्वारा हड़प्पा सभ्यता की घोषणा के साथ-साथ उन्होंने उत्खनन प्रणाली में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। वे भारत में कार्य करने वाले पेशेवर पुरातत्वविद् थे। उनके पास यूनान व क्रिट में उत्खननों का अनुभव था। उन्हें आकर्षक खोजों में रुचि थी परंतु वे इन खोजों में दैनिक जीवन पद्धतियों को जानना चाहते थे। सर जॉन मार्शल ने उत्खनन की नई तकनीक को शुरू किया। उन्होंने पुरास्थल के स्तर विन्यास को पूरी तरह अनदेखा कर । पूरे टीले में समान परिमाण वाली नियमित क्षैतिज इकाइयों के साथ-साथ उत्खनन करने का प्रयास किया।
प्रश्न 18.
हड़प्पा सभ्यता से जुड़े उत्खनन में व्हीलर के योगदान को स्पष्ट करें।
उत्तर:
1944 ई० में व्हीलर महोदय भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (Archeological Survey and India) के महानिदेशक बने। उन्होंने पुरानी खुदाई तकनीक व उससे जुड़ी समस्या को ठीक करने का प्रयास किया। उनसे पहले सर जॉन मार्शल ने पुरा स्थल की स्तर विन्यास (Stratigraphy) पर ध्यान न देकर सारे टीले को समान आकार की क्षैतिज इकाइयों में उत्खनन करवाया। फलतः अलग-अलग स्तरों से संबंधित पुरावशेषों को एक इकाई विशेष में वर्गीकृत कर दिया गया।
इसका नतीजा यह हुआ कि इन खोजों के संदर्भ से जुड़ी महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ सदैव के लिए खो गईं। उन्होंने एक समान क्षैतिजीय इकाइयों के आधार पर खुदाई की अपेक्षा स्तर विन्यास (Stratigraphy) का ध्यान रखना भी जरूरी माना। वे सेना में ब्रिगेडियर रह चुके थे। अतः उन्होंने पुरातत्व प्रणाली में एक सैन्य परिशुद्धता (Precision) का भी समावेश किया।
व्हीलर महोदय ने अत्यंत मेहनत व साहस की भावना से कार्य किया। वे सबह 5:30 बजे अपनी टीम के साथ कार्य पर लगते थे तथा गर्मी में सूर्य की तेज रोशनी में कुदालियों और चाकुओं के साथ कठिन परिश्रम करते रहते थे। उन्होंने इस प्रकार संस्मरण अपनी पुस्तक ‘माई आर्कियोलॉजिकल मिशन टू इंडिया एंड पाकिस्तान (1976)’ में दिए हैं।
प्रश्न 19.
शिल्प तथ्यों के वर्गीकरण के आधार स्पष्ट करें।
उत्तर:
पुरातत्वविद् भौतिक अवशेषों को प्राप्त कर, उनका विश्लेषण करते हैं। इससे इस सभ्यता के जीवन का पुनर्निर्माण करते हैं। ये भौतिक अवशेष या कला तथ्य मृदभाण्ड (बर्तन), औजार, गहने, घर का सामान आदि हैं। इसके अलावा कपड़ा, चमड़ा, लकड़ी का सामान जैसे जैविक पदार्थ हमारे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में गल (Decompose) गए हैं। जो बचे हैं वे हैं पाषाण, जली मिट्टी से बनी टेराकोटा की (मृण्य) मूर्तियाँ, धातु आदि।
शिल्प तथ्यों को खोज लेना पुरातत्व के कार्य में मात्र शुरुआत होती है। बाद में पुरातत्वविद् इन्हें विभिन्न आधार पर वर्गीकृत करते हैं। सामान्यतः निम्नलिखित आधारों पर इनका वर्गीकरण किया जाता है
(i) सामान्यतः वर्गीकरण सामग्री के आधार पर होता है; जैसे पत्थर, मिट्टी, धातु, हड्डी, हाथीदांत आदि।
(ii) वर्गीकरण का अन्य तरीका प्राप्त वस्तु के कार्य (Function) के आधार पर होता है; जैसे एक कला तथ्य औजार है या गहना या वह किसी अनुष्ठान के लिए प्रयोग का एक उपकरण है। यह वर्गीकरण सरल अनुष्ठान नहीं है।
(iii) कई बारं यह वर्गीकरण वर्तमान में चीजों के प्रयोग के आधार पर भी किया जाता है; जैसे मनके, चक्कियाँ, पत्थर के ब्लेड या पात्र आदि।
(iv) मिलने के स्थान के आधार पर भी पुराविद् इनका वर्गीकरण करते हैं। क्या वस्तु घर में मिली है या निकासी या अन्य स्थान पर।
(v) कभी-कभार पुरातत्वविद् परोक्ष तथ्यों का सहारा लेकर वर्गीकरण करते हैं। उदाहरण के लिए कुछ हड़प्पा स्थलों पर कपड़ों के अंश मिले हैं। तथापि कपड़ा होने के प्रमाण के लिए दूसरे स्रोत जैसे मूर्तियों का सहारा लिया जाता है। किसी भी शिल्प तथ्य को समझने के लिए पुरातत्ववेत्ता को उसके संदर्भ की रूपरेखा विकसित करनी पड़ती है। उदाहरण के लिए हड़प्पा की मोहरों को तब तक नहीं समझा जा सका जब तक उन्हें सही संदर्भ में नहीं रख पाए। वस्तुतः इन मोहरों को उनके सांस्कृतिक अनुक्रम (Cultural Sequence) एवं मेसोपोटामिया में हुई खोजों की तुलना के आधार पर ही सही अर्थों में समझा जा सका।
प्रश्न 20.
हड़प्पा सभ्यता के धर्म के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के धार्मिक विश्वासों का पता लगाने के लिए पुरातत्वविदों व इतिहासकारों को उपलब्ध पुरावशेषों से निष्कर्ष निकालने पड़ते हैं। इस प्रकार के पुरावशेषों में विशेषतौर पर मोहरों और मृण्मूर्तियों का सहारा लिया जाता है। मिट्टी की बनी मूर्ति, जिसे मातृदेवी की मूर्ति बताया जाता है, उससे अनुमान लगाया जाता है कि यह भूमि की उर्वरता से जुड़ी है. तथा यह धरती देवी की मूर्ति है। एक पत्थर की मोहर पर पुरुष देवता को विशेष मुद्रा में बैठा दिखाया गया है तथा उसके आसपास कई जानवर हैं, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि यह पशुपति की मूर्ति है जो बाद में शिव के रूप में उभरकर आए। लिंग तथा योनि की पूजा के भी संकेत मिले हैं।
कुछ वृक्षों को पवित्र माना जाता था। कूबड़ सांडों की भी सम्भवतः पूजा की जाती थी। आज भी भारत में सांडों को पवित्र दृष्टि से देखा जाता है। हड़प्पावासी मृतकों को दफनाने के ऐसे प्रमाण कुछ नगरों (हड़प्पा) के समीप प्राप्त कब्रिस्तानों से लगाए जाते हैं जहाँ कब्रों में घर का सामान, गहने तथा शीशे आदि प्राप्त हुए हैं। परंतु मिस्र सभ्यता के समान कब्रों पर किसी प्रकार के बड़े ढाँचे (पिरामिड जैसे) देखने को नहीं मिलते हैं।
प्रश्न 21.
हड़प्पा सभ्यता का आविर्भाव (उदय) किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
यह प्रश्न.रोचक और महत्त्वपूर्ण है कि हड़प्पा सभ्यता के नगरों का आविर्भाव कैसे हुआ। मोर्टियर व्हीलर महोदय ने यह व्याख्या दी थी कि कुछ बाहर से आई जातियों द्वारा इस क्षेत्र को जीतकर नगरों की स्थापना की गई। परंतु बाद के अन्वेषणों के आधार पर विद्वानों ने इस व्याख्या को अस्वीकार कर दिया तथा अब यह आम धारणा बन गई है कि हड़प्पा के नगरों के स्थापित होने से पहले (प्राक हड़प्पा काल में) यहाँ पर कृषि समुदायों के विकास की एक दीर्घ प्रक्रिया रही है। इस प्रक्रिया को समझने के लिए अग्रलिखित प्राक बस्तियों के उदय को जानना जरूरी है
1. मेहरगढ़ (Mehargarh)-ऐसे समुदाय के विकास के प्रमाण मेहरगढ़ नामक स्थान से मिले हैं। यहाँ पर ईसा से पाँच हजार वर्ष पूर्व लोग गेहूँ तथा जौ की खेती करते थे एवं भेड़-बकरियाँ पालते थे। धीरे-धीरे इन्होंने सिंधु की बाढ़ पर नियंत्रण करना सीखा। इसके मैदानों का खेती के लिए उपयोग किया। इससे जनसंख्या में वृद्धि हुई। यह लोग पशु चराने के लिए दूर-दूर तक जाते थे। इससे परस्पर आदान-प्रदान बढ़ा तथा व्यापार शुरू हुआ। मेहरगढ़ के लोग कई प्रकार की मालाएँ बनाते थे। यहाँ से मोहरें भी मिली हैं। इसके अलावा यहाँ से डिजाइनदार मिट्टी के बर्तन, मिट्टी की मूर्तियाँ व तांबे तथा पत्थर की वस्तुएँ भी मिली हैं।
2. दंबसादात (Dambsadat)-मेहरगढ़ की भांति क्वेटाघाटी में दंबसादात से भी प्राक-हड़प्पन सभ्यता के प्रमाण मिले हैं। इनमें चित्रधारी किए बर्तन, पक्की मिट्टी की मोहरें, ईंटें आदि मुख्य हैं।
3. रहमान ढेरी (Rahman Dheri) यहाँ से भी हड़प्पा सभ्यता की शुरुआत के प्रमाण मिलते हैं। यह स्थल सिंधु मैदान के पश्चिम भाग में है। यहाँ योजनाबद्ध बने मकान, सड़कें और गलियाँ मिली हैं। इसके चारों ओर ऊँची दीवार है। टूटे-फूटे बर्तनों की चित्रकला हड़प्पा लिपि की ओर संकेत करती है।
4. अमरी (Amri)-सिंधु मैदान के निचले भाग में अमरी (Amri) नामक स्थल से भी शिल्प तथ्य मिले हैं। यहाँ के लोगों ने अन्नागार बनाए। बर्तनों पर कूबड़ बैल की आकृति भी है। वे अपनी बस्ती की दुर्गबन्दी करने लगे थे। बाद में यही स्थल हड़प्पा सभ्यता के नगर के रूप में उभरा। कुछ अन्य स्थलों, जैसे कोटडीजी (Kot Diji), कालीबंगन (Kalibangn) से भी आरंभिक हड़प्पा काल के प्रमाण मिले हैं।
स्पष्ट है कि प्राक हड़प्पा काल में सिंधु क्षेत्र में रहने वाले विभिन्न कृषक समुदायों में सांस्कृतिक परम्पराओं में समानता लगती है। इन छोटी-छोटी परंपराओं के मेल से एक बड़ी परंपरा प्रकट हुई। परंतु यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि ये समुदाय कृषक व पशुचारी थे। कुछ शिल्पों में पारंगत थे। इनकी बस्तियाँ सामान्यतः छोटी थीं तथा कोई भी बड़ी इमारतें नहीं थीं। कुछ प्राक हड़प्पा बस्तियों का परित्याग भी हुआ तथा कुछ स्थलों पर जलाये जाने के भी प्रमाण मिले हैं। तथापि यह स्पष्ट लगता है कि हड़प्पा सभ्यता का आविर्भाव लोक संस्कृति के आधार पर हुआ।
प्रश्न 22.
‘परातत्वविदों को अतीत का पनर्निर्माण करते हए कला तथ्यों (Artefacts) की व्याख्या संबंधी समस्या का सामना करना पड़ता है। उदाहरण सहित इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
यह सत्य है कि पुरातत्वविदों को अतीत का पुनर्निर्माण करते हुए कला तथ्यों की व्याख्या संबंधी समस्या का सामना करना पड़ता है। विशेष तौर पर यह समस्या धार्मिक प्रथाओं के पुनर्निर्माण में ज्यादा आती है। आरंभिक पुरातत्वविदों को लगता था कि कुछ वस्तुएँ, जो असामान्य और अपरिचित लगती थीं, संभवतः धार्मिक महत्त्व की होती थीं। कुछ कलातथ्य की धार्मिक व्याख्याओं के उदाहरण निम्नलिखित प्रकार से हैं
(i) हड़प्पा से नारी की मृण्मूर्तियाँ प्राप्त हुईं। ये आभूषणों (हार) से लदी हुई थीं। सिर पर विस्तृत प्रसाधन (मुकुट जैसा) धारण किया हुआ है। इन्हें मातृदेवी की संज्ञा दी गई। इसी प्रकार दुर्लभ पाषाण से बनी पुरुष की मूर्तियाँ, जिनमें उन्हें एक मानकीकृत मुद्रा में एक साथ घुटने पर रख बैठा हुआ दिखाया गया था, ‘पुरोहित राजा’ की भांति, धर्म से जोड़कर वर्गीकृत कर दिया गया।
(ii) इसी प्रकार विशाल ढाँचों को भी धार्मिक आनुष्ठानिक महत्त्व का करार दे दिया गया। इसमें विशाल स्नानागार तथा कालीबंगन और लोथल से मिली वेदियाँ शामिल हैं।
(iii) इसी प्रकार कुछ मोहरों का विश्लेषण कर धार्मिक आस्थाओं व प्रथाओं का पुनर्निर्माण किया गया। इनमें से कुछ मोहरों की आनुष्ठानिक क्रियाओं के रूप में.व्याख्या की गई। दूसरी मोहरें (जिन पर पेड़ों के चित्र उत्कीर्ण किए हुए थे) को प्रकृति की पूजा का संकेत स्वीकार किया गया इसी प्रकार कुछ मोहरों की देवता और पूज्य पशुओं के रूप में व्याख्या दी है।
आद्य शिव-एक मोहर पर एक पुरुष देवता को योगी की मुद्रा में दिखाया गया है। इसके दाईं ओर हाथी तथा बाघ एवं बाईं ओर गैंडा तथा भैंसा हैं। पुरुष देवता के सिर पर दो सींग हैं। पुरातत्वविदों ने इस देवता को ‘आद्य शिव’ की संज्ञा दी है। इस ‘आद्य शिव’ वाली मोहर की ऋग्वेद में उल्लेखित रुद्रदेवता से सम तुलना की गई है।
• एक श्रृंगी पशु-एक मोहर में एक शृंगी पशु उत्कीर्णित है। यह घोड़े जैसा पशु है, जिसके सिर के बीच में एक सींग निकला हुआ है। यह कल्पित तथा संश्लिष्ट लगता है। ऐसा बाद में हिन्दू धर्म के अन्य देवता (नरसिंह देवता) के बारे में कहा जा सकता है।
पुरातत्वविद् ज्ञात से अज्ञात की ओर अर्थात् वर्तमान के ज्ञान के आधार पर अतीत को पुनर्निर्मित करने का तरीका भी अपनाते हैं। हड़प्पा के धर्म की व्याख्या में बाद के काल की परंपराओं के समानांतरों (उसी प्रकार की मिलती-जुलती परंपराओं) का सहारा भी लिया जाता है। पात्रों आदि के संबंध में तो इस प्रकार का सहारा लेना ठीक लगता है परंतु धार्मिक पहचान बिंदुओं (Religion Symbols) को समझने में इस प्रकार का तरीका अपनाना अधिक कल्पनाशील (Speculative) हो जाता है।
प्रश्न 23.
हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न केंद्रों से जो मोहरें प्राप्त हुई हैं, उनका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न स्थलों से व्यापक पैमाने पर मोहरें प्राप्त हुई हैं। यह इस सभ्यता की सर्वोत्तम कलाकृतियाँ स्वीकार की गई हैं। अब तक लगभग 2000 से अधिक मोहरें प्राप्त हुई हैं। इनमें से अधिकांश मोहरों पर लघु लेख के साथ-साथ जानवरों (कूबड़ सांड, एक सिंगी जानवर, बाघ, बकरी, हाथी आदि) की आकृतियाँ उकेरी हुई हैं। इन मोहरों का महत्त्व यह है कि इनसे हमें हड़प्पा सभ्यता के संबंध में अनेक प्रकार की जानकारी प्राप्त होती है। विशेषतौर पर यह हड़प्पा के लोगों के धार्मिक विश्वासों पर प्रकाश डालती है। इनमें से कुछ मोहरों की आनुष्ठानिक क्रियाओं के रूप में व्याख्या की गई।
दूसरी मोहरों (जिन पर पेड़ों के चित्र उत्कीर्ण किए हुए थे) को प्रकृति की पूजा का संकेत स्वीकार किया गया इस कुछ मोहरों की देवता और पूज्य पशुओं के रूप में व्याख्या दी है। एक मोहर पर एक पुरुष देवता को योगी की मुद्रा में दिखाया गया है। इसके दाईं ओर हाथी तथा बाघ एवं बाईं ओर गैंडा तथा भैंसा हैं। पुरुष देवता के सिर पर दो सींग हैं। पुरातत्वविदों ने इस देवता को ‘आद्य शिव’ की संज्ञा दी है। एक अन्य मोहर में एक श्रृंगी पश उत्कीर्णित है। यह घोड़े जैसा पश है, जिसके सिर के बीच में एक सींग निकला हुआ है। यह कल्पित तथा संश्लिष्ट लगता है।
ऐसा बाद में हिन्दू धर्म के अन्य देवता (नरसिंह देवता) के बारे में कहा जा सकता है। कला की दृष्टि से भी इनका महत्त्व बताया जाता है। मोहरों पर खुदे हुए सांड, हाथी, बारहसिंगा आदि के चित्र देखते ही बनते हैं। ये चित्र अपनी सुंदरता और वास्तविकता में अद्वितीय हैं। मोहरों का एक अन्य महत्त्व यह है कि इन पर अभिलेख खुदे हुए हैं जो ऐतिहासिक दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण हैं। यह ठीक है कि अभी तक इन्हें पढ़ा नहीं जा सका है। भविष्य में यदि इन्हें पढ़ लिया जाता है तो इन मोहरों का महत्त्व और भी बढ़ जाएगा।
प्रश्न 24.
मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा के अतिरिक्त हड़प्पा सभ्यता से जुड़े किन्हीं पाँच स्थलों का विवरण कीजिए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा इस सभ्यता के सबसे महत्त्वपूर्ण स्थल हैं। सबसे पहले खुदाई भी इन्हीं नगरों की हुई है। हमारी अधिकतर जानकारी का आधार इन स्थानों से प्राप्त पुरावशेष ही हैं। इन स्थानों के अतिरिक्त इस सभ्यता से जुड़े अनेक स्थल प्रकाश में आए हैं। कुछ स्थलों का विवरण निम्नलिखित प्रकार से है
1. चन्हुदडो-सिन्ध क्षेत्र में यह स्थान सिन्धु नदी के बाएँ तट पर स्थित है। इस स्थान पर दुर्ग नहीं था। यह एक शिल्प उत्पादन केन्द्र था। यहाँ मोहरें बनाई जाती थीं। यहाँ से मिट्टी की बनी गाड़ियाँ, काँसे का खिलौना, हड्डियों की वस्तुएँ, सीपी की चूड़ियाँ आदि प्राप्त हुए हैं। मोहनजोदड़ो की तरह यहाँ पर कई बार बाढ़ आने के चिहन हैं।
2. कालीबंगन-यह स्थान राजस्थान में गंगानगर जिले में है। यह सूखे घग्घर नदी के दक्षिणी तट पर था। यहाँ से प्राक हड़प्पा के प्रमाण मिले हैं। यहाँ पर खेत जोते जाने के प्रमाण हैं। यहाँ पर अग्निकुंड के अवशेष खोजे गए हैं। इसके अलावा यहाँ पर गोमेद तथा स्फटिक फलक, बर्तन तथा चूड़ियों के अवशेष मिले हैं।
3. लोथल-यह स्थल भोगवा तथा साबरमती नदी के मध्य घोलका तालुका (गुजरात) में खंभात खाड़ी से 12 किलोमीटर दूर के प्रमाण भी लोथल से मिले हैं। यहाँ पर एक अन्नागार भी मिला है। इसके अलावा सुमेरियन सभ्यता से संबंधित सोने के मनके, मनका कारखाना, कब्रिस्तान आदि भी यहाँ मिले हैं।
4. बनावली-हरियाणा में फतेहाबाद जिले में सरस्वती तट पर स्थित है। यहाँ पर पूर्व हड़प्पा तथा उत्तर हड़प्पा के अवशेष मिले हैं। यहाँ प्राप्त हुए कलातथ्यों में मिट्टी का हल, हल के टुकड़े, चक्के, ताँबे का मछली पकड़ने का काँटा, सोना परखने की कसौटी आदि प्रमुख हैं।
5. धौलावीरा-हड़प्पा सभ्यता से जुड़ा यह नवीनतम स्थल है, जहाँ हाल ही में खुदाई हुई है। यह इस सभ्यता का एक मात्र स्थल है जो तीन भागों में विभाजित है। यहाँ पर जलाशय के अवशेष मिले हैं। यहाँ पर मनके बनाने की कार्यशालाएँ थीं। यहाँ पर खेल का मैदान भी मिला है। इसके अलावा पत्थर की बनी नेवले की मूर्ति भी प्राप्त हुई है।
दीर्घ-उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
हड़प्पा सभ्यता के शिल्प उत्पादों पर लेख लिखें।
उत्तर:
हड़प्पा के लोगों ने शिल्प उत्पादों में महारत हासिल कर ली थी। मनके बनाना, सीपी उद्योग, धातु-कर्म (सोना-चांदी के आभूषण, ताँबा, कांस्य के बर्तन, खिलौने उपकरण आदि), तौल निर्माण, प्रस्तर उद्योग, मिट्टी के बर्तन बनाना, ईंटें बनाना, मद्रा निर्माण आदि हड़प्पा के लोगों के प्रमुख शिल्प उत्पाद थे। कई बस्तियाँ तो इन उत्पादों के लिए ही प्रसिद्ध थीं।
1. मनके बनाना-हड़प्पा सभ्यता के लोग गोमेद, फिरोजा, लाल पत्थर, स्फटिक (Crystal), क्वार्ट्ज (Quartz), सेलखड़ी (Steatite), जैसे बहुमूल्य एवं अर्द्ध-कीमती पत्थरों के अति सुन्दर मनके बनाते थे। मनके व उनकी मालाएं बनाने में ताँबा, कांस्य और सोना जैसी धातुओं का भी प्रयोग किया जाता था। शंख, फयॉन्स (faience), टेराकोटा या पक्की मिट्टी से भी मनके बनाए जाते थे। इन्हें अनेक आकारों चक्राकार, गोलाकार, बेलनाकार और खंडित इत्यादि में बनाया जाता था। कई पर चित्रकारी की जाती थी। रेखाचित्र उकेरे जाते थे। कुछ मनके अलग-अलग पत्थरों को जोड़कर बनाए जाते थे। पत्थर के ऊपर सोने के टोप वाले सुन्दर मनके भी पाये गए हैं।
2. धातुकर्म हड़प्पा सभ्यता के लोगों को अनेक धातुओं की जानकारी थी। वे इन धातुओं से विविध सामान बनाते थे। तांबे का प्रयोग सबसे ज्यादा किया गया है। इसके उपकरण उस्तरा, छैनी, चाकू, तीर व भाले का अग्रभाग, कुल्हाड़ी, मछली पकड़ने के कांटे, आरी तलवार आदि बनाए जाते थे। तांबे में संखिया व टिन मिलाकर काँसा बनाया जाता था। ताँबे और काँसे के बर्तन भी बनाए जाते थे। कांस्य की मूर्तियाँ भी बनाई जाती थीं। सोने के आभूषणों के संचय मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा से मिले हैं।
सोना हल्के रंग का था। इसमें चाँदी की मिलावट काफी मात्रा में थी। भारत में चाँदी का सर्वप्रथम प्रयोग हड़प्पा काल में हुआ। चाँदी के आभूषण और बर्तन बनाए जाते थे। सर जॉन मार्शल लिखते हैं कि सोने-चांदी के आभूषणों को देखकर ऐसा महसूस होता है कि यह पांच हजार वर्ष पूर्व की कला कृतियाँ नहीं, अपितु इन्हें अभी-अभी लन्दन स्थित जौहरी बाजार (बांडस्ट्रीट) से खरीदा गया है।
3. पाषाण उद्योग-इस काल में पत्थर के उपकरण भी बनाए जाते थे। सुक्कूर में इसके प्रमाण मिले हैं। पत्थर के विशेष प्रकार के बरमें, खुरचनियाँ, काटने के उपकरण, दरांती, फलक आदि बनाए जाते थे। ये उपकरण खेती, मणिकारी, दस्तकारी, नक्काशी (लकड़ी, सीपी) छेद करने में प्रयोग किए जाते थे। पत्थर की मूर्तियाँ भी बनाई जाती थीं। इसमें सेलखड़ी तथा चूना पत्थर का उपयोग होता था।
4. मिट्टी के बर्तन-हड़प्पा सभ्यता के सभी स्थलों से सादे और अलंकृत बर्तन प्राप्त हुए हैं। इन बर्तनों पर पहले लाल रंग का घोल चढ़ाया जाता था, फिर काले रंग के गाढ़े घोल से डिजाइन बनाए जाते थे। ये बर्तन चाक पर बनाए जाते थे तथा भट्ठियों में पकाए जाते थे। बर्तनों पर नदी तल की चिकनी मिट्टी का प्रयोग होता था। इस मिट्टी में बालू, अभ्रक या चूना के कण मिलाए जाते थे। बर्तनों पर वृक्ष व. पशु की आकृतियाँ बनी मिली हैं।
विकसित हड़प्पा काल में उच्चकोटि के चमकदार मृदभाण्डों का उत्पादन होने लगा था। बर्तनों के अतिरिक्त मिट्टी की मूर्तियाँ, खिलौने, घरेलू सामान, चूड़ियाँ, छोटे मनके एवं पशुओं की छोटी मूर्तियाँ भी बनाई जाती थीं।
5. ईंटें बनाना तथा राजगिरी-हड़प्पा सभ्यता के नगरों में विशाल भवनों का निर्माण तथा बड़े पैमाने पर ईंटों का प्रयोग इस बात की तरफ संकेत करता है कि वहाँ पर ईंटों का निर्माण करने का अलग उद्योग रहा होगा। परकोटों तथा भवनों को बनाने वाले मिस्त्री का काम करने वाला समुदाय भी रहा होगा।
6. सीपी उद्योग-इस सभ्यता के समय सीपी के कई उत्पाद बनाए जाते थे। समुद्री शंख का प्रयोग चूड़ियाँ, मनके, जड़ाऊ वस्तुएँ एवं छोटी आकृतियाँ बनाने में किया जाता था। बालाकोट, लोथल एवं कुतांसी स्थलों से कच्चा माल प्राप्त किया जाता था। यहाँ पर स्थानीय कार्यशालाएँ थीं।
7. कताई और बुनाई-घरों में तकुए तथा तकलियाँ मिली हैं। इनका प्रयोग सूती ऊनी वस्त्रों की बुनाई में किया जाता था। तकलियों को मिट्टी, सीपी और ताँबे से बनाया हुआ था। यहाँ से कपड़े का कोई टुकड़ा नहीं मिला है। परंतु यह तथ्य सत्य है कि कपास का उत्पादन होता था तथा वस्त्रों का प्रयोग किया जाता था। कपड़ों की रंगाई भी की जाती थी।
प्रश्न 2.
हड़प्पा सभ्यता के अंतर्खेत्रीय व दूरस्थ प्रदेशों से व्यापार-वाणिज्य संबंधी संपर्कों का विवरण दीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के नगरीकरण (Urbanisation) में व्यापार का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा होगा। हड़प्पाकालीन नगर हस्तशिल्प उद्योगों के केन्द्र थे। इन हस्तशिल्पों को कच्चा माल उपलब्ध करवाने तथा पक्के माल को विभिन्न नगरों में पहुँचाने में व्यापारी वर्ग की भूमिका थी।
इस रूप में ये नगर व्यापारिक केन्द्र भी थे। ये नगर नदियों के किनारे, समुद्र तटों तथा अन्य व्यापार मार्गों पर बसे थे। अन्तर्खेत्रीय व्यापार तथा बाह्य व्यापार के पर्याप्त प्रमाण मिले हैं। मोहरों पर अंकित चित्र, माप-तौल की समान प्रणाली, पत्थरों तथा धातुओं के उपकरण और औजारों का सभी क्षेत्रों में मिलना, मिट्टी की छोटी नावें, लोथल में गोदी (डॉकयाडी सभी उन्नत व्यापार के संकेत हैं।
1. अन्तक्षेत्रीय व्यापार-पत्थर व धातु के उपकरण, सीपियों का सामान, मोहरें, बाट, रसोई का सामान, कलात्मक वस्तुएं, कीमती मनके, अनाज व कपास आदि एक स्थान से दूसरे स्थान (शहरों तथा ग्राम्य बस्तियों में) पर भेजे जाते थे। वस्तु विनिमय पर आधारित इस व्यापार में व्यापारी वर्ग तथा खानाबदोश व्यापारी शामिल होते थे। रोहड़ी तथा सूक्कूर में चकमक पत्थर मिलता था। नदी मार्गों से यह प्रमुख नगरों में भेजा जाता था।
यहाँ पर इस पत्थर से औज़ार और हथियार बनाए जाते थे। बालाकोट और चन्हुदड़ो में सीपियों की चूड़ियाँ तथा अन्य सामान बनता था। यहाँ से सामान अन्य नगरों तथा बस्तियों में भेजा जाता था। मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा में बाट, मोहरें तथा ताँबे का सामान बनाया जाता था।
ये वस्तुएं भी सारे क्षेत्र में बेची जाती थीं। औज़ारों और हथियारों के अलावा यहाँ पर रसोई के उपयोग की वस्तुएँ तथा विभिन्न कलात्मक वस्तुएँ भी बनती थीं। लोथल तथा सुरकोतदा से कपास हड़प्पा, मोहनजोदड़ो आदि नगरों को भेजी जाती थी। अनाज का भी व्यापार होता था। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में बने गोदामों से यह संकेत मिलता है कि आन्तरिक भागों से अनाज को नदी मार्गों से यहाँ पर पहुँचाया जाता था।
2. दूरस्थ प्रदेशों से व्यापार-हड़प्पा सभ्यता के नगरों का एशियाई देशों से व्यापारिक संबंध था, इसके पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं। मेसोपोटामिया के सूसा, उए, निप्पुर, किश और उम्मा शहरों से दो दर्जन से अधिक हड़प्पा की मोहरें प्राप्त हुई हैं। फारस की खाड़ी में स्थित फैलका और बैहरेन नामक स्थानों से भी मोहरें मिली हैं। इसके अतिरिक्त हड़प्पाकालीन बाट, मृण्य मूर्तियाँ, कीमती पत्थर आदि अनेक प्रकार का सामान भी फारस की खाड़ी तथा मेसोपोटामिया से प्राप्त हुआ है।
मेसोपोटामिया के सम्राट् सारगॉन (Sargon, 2350 B.C.) का यह दावा था कि दिलमुन (Dilmun), मगान (Magan) और मेलुहा (Meluhha) के जहाज उसकी राजधानी में लंगर डालते थे। विद्वान इन नामों (स्थानों) को हड़प्पा सभ्यता के नगरों से जोड़ते हैं। माना जाता है कि मगान तथा मकरान समुद्रतट एक ही था।
(i) निर्यात-हड़प्पाकालीन व्यापारी इन बाह्य देशों में अपने यहाँ उत्पादित पत्थरों के फलकों, मोहरों, मनकों, ताँबे का सामान, हाथी-दाँत व सीपी आदि का निर्यात करते थे। तेल असमार (Tel Asmar) में नक्काशी किए हुए लाल पत्थर के मनके पाए गए हैं। मेसोपोटामिया के नगर निप्पुर में मृण्य मूर्तियाँ मिली हैं। हड़प्पा जैसे बाट भी मिले हैं।
तालिका हड़्पांकाल में आयातित वस्ताएँ एवं क्षेत्र | |||
आयात की जाने वाली वस्ताएँ | क्षेत्र | आयात की जाने वाली वस्तुएँ | क्षेत्र |
टिन | ईरान, मध्य एशिया, अफ़गानिस्तान । | चांदी | ईरान, अफगानिस्तान । |
स्वर्ण | अफ्गानिस्तान, दक्षिण भारत (कर्नाटक)। | लाजवर्द | मेसोपोटामिया, बदख्शां। |
फिरोजा | ईरान। | सीसा | ईरान, दक्षिण भारत, अफगानिस्तान । |
शिलाजीत | हिमालय क्षेत्र । | शंख एवं कौड़ियाँ | दक्षिणी भारत। |
नील रल | बदख्शां-अफगानिस्तान। |
(ii) आयात-हड़प्पा सभ्यता के व्यापारी बाहर के क्षेत्रों से कीमती धातुओं का आयात करते थे। चाँदी का आयात अफगानिस्तान या ईरान से किया जाता था। अफगानिस्तान एवं कर्नाटक से सोना लाया जाता था। ताँबे का आयात अरब देशों, पश्चिमी बलूचिस्तान तथा राजस्थान में खेतड़ी से किया जाता होगा। टिन ईरान, मध्य एशिया तथा अफगानिस्तान से मँगाया जाता था। सीसे को ईरान पूर्वी या दक्षिण भारत तथा अफगानिस्तान से लाया जाता होगा। फिरोजा मध्य एशिया या ईरान से मंगाया जाता था। नीलम अफगानिस्तान के बदख्शां से लाया जाता था। सेलखड़ी पत्थर बलूचिस्तान, अरावली एवं दक्षिण भारत से प्राप्त होता था।
गोमेद, स्फटिक एवं इन्द्रगोप जैसे कीमती पत्थर भी बाहर से आयात किए जाते थे। अफगानिस्तान से कीमती पत्थर प्राप्त करने के लिए शोर्तुघई नामक स्थान पर हड़प्पा के व्यापारियों ने एक बस्ती बसा रखी थी। बाह्य व्यापार स्थल तथा समुद्री मार्ग दोनों से होता था। लोथल, सुरकोतदा तथा बालाकोट जैसे तटीय नगरों से बाहर देशों से समुद्री व्यापार होता होगा।
3. परिवहन के साधन- परिवहन के साधनों में नौकाएँ, मस्तूल वाले छोटे जहाज, बैलगाड़ियाँ तथा लद्रू जानवर प्रमुख थे। . हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से पाई गई मोहरों में जहाजों और नावों को चित्रित किया गया है। लोथल में पक्की मिट्टी से बने जहाज का नमूना पाया गया है जिसमें मस्तूल के लिए एक लकड़ी तथा मस्तूल लगाने के लिए छेद हैं। लोथल में बनी गोदी को जहाजीमाल घाट के रूप में पहचाना जाता है।
अरब सागर के तट पर अन्य भी अनेक बन्दरगाह थे; जैसे रंगपुर, सोमनाथ तथा बालाकोट । नदियों में भी छोटी नौकाओं का प्रयोग अनाज लाने के लिए किया जाता होगा। बैलगाड़ी अंतर्देशीय यातायात का साधन थी। बस्तियों से मिट्टी के बने बैलगाड़ी के अनेक नमूने पाए गए हैं। हड़प्पा में एक कांसे की गाड़ी का नमूना पाया गया है जिसमें एक चालक बैठा है। छोटी गाड़ियों के नमूने भी मिले हैं। हाथी, बैल, ऊँटों का भी भार ढोने में प्रयोग होता था। ऐतिहासिक काल में खानाबदोश चरवाहे सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजते थे। शायद हड़प्पावासी भी ऐसा करते होंगे। परन्तु उस समय नौ परिवहन ..
प्रश्न 3.
हड़प्पा सभ्यता के लोगों की जीविका निर्वाह प्रणाली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
परिपक्व हड़प्पा अवस्था में लोगों की आजीविका निर्वाह का मुख्य आधार कृषि प्रणाली थी। साथ ही वे मांस, मछली, फल, दूध भी प्राप्त करते थे। हड़प्पाई जीविका निर्वाह प्रणाली का विवरण निम्नलिखित प्रकार से है
1. कृषि-इस सभ्यता के लोगों के जीवन-निर्वाह या भरण पोषण का मुख्य आधार कृषि व्यवस्था थी। सिंधु नदी बड़ी मात्रा में जलोढ़ मिट्टी बहाकर लाती तथा इसे बाढ़ वाले मैदानों में छोड़ देती थी। इन मैदानों में यहाँ के किसान अनेक फसलें उगाते थे। सभ्यता के विभिन्न स्थलों से गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, राई और मटर जैसे अनाज के दाने मिले हैं। गेहूँ की दो किस्में पैदा की जाती थीं। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगन से गेहूँ और जौ प्राप्त हुए हैं। गुजरात में ज्वार और रागी का उत्पादन होता था। सौराष्ट्र में बालाकोट में बाजरा व ज्वार के प्रमाण मिले हैं। 1800 ई.पू. में लोथल में चावल उगाने के प्रमाण मिले हैं। हड़प्पा सभ्यता के लोग सम्भवतः दनिया में पहले थे जो कपास का उत्पादन करते थे।
2. कृषि तकनीक-खेती करने के तरीकों को समझना ज़्यादा कठिन है। क्या जोते हुए खेतों में बीजों को बिखेरा जाता था . या अन्य तरीके थे? उपलब्ध साक्ष्यों से कृषि तकनीक से संबंधित कुछ निष्कर्ष निकाले गए हैं। उदाहरण के लिए बनावली (हरियाणा) से मिट्टी के हल का नमूना मिला है। बहावलपुर से भी ऐसा नमूना मिला है। कालीबंगन (राजस्थान) में प्रारंभिक हड़प्पा काल के खेत को जोतने के प्रमाण मिले हैं। पक्की मिट्टी से बनाए वृषभ (बैल) के खिलौनों के साक्ष्य तथा मोहरों पर पशुओं के चित्रों से अनुमान लगाया जा सकता है कि वे बैलों का खेतों की जुताई के लिए प्रयोग करते थे।
3. सिंचाई-क्या हड़प्पा के लोग फसलों को सींचते थे? यदि हाँ तो उनके सिंचाई के साधन क्या थे। संभवतः हड़प्पन लोगों ने भूमिगत जल का विश्व में पहले-पहल कुओं के द्वारा प्रयोग किया। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि गाँवों में कच्चे कुएँ खोदे जाते थे। कारीगरों द्वारा निर्मित पक्के कुएँ भी मिले हैं। परंतु इन कुओं का प्रयोग खेतों की सिंचाई के लिए होता था, इसमें सन्देह है। नदियों, ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ झीलों तथा तालाबों के पानी का ढेकली (lever lift) के माध्यम से खेतों में सिंचाई करने की संभावना है।
शोर्तुघई (अफगानिस्तान) में नहर के अवशेष उपलब्ध हुए हैं। इससे अनुमान लगाया जाता है कि संभवतः सिंधु मैदानों में भी इसी प्रकार की नहरें खोदी गई होंगी। जलाशयों का निर्माण भी सिंचाई के उद्देश्य से किया जाता होगा। धौलावीरा (गुजरात) से ऐसे जलाशय का साक्ष्य मिला है।
4. फसल काटने के औजार-पुरातत्ववेत्ताओं ने फसल काटने के औजारों की पहचान करने का भी प्रयास किया है। संभवतः लकड़ी के हत्थों में लगाए गए पत्थर के फलकों (Stone blades) का प्रयोग फसलों को काटने के लिए किया जाता था। धातु के औजार (तांबे की हँसिया) भी मिले हैं परंतु महंगी होने की वजह से इसका प्रयोग कम होता होगा।
5. पशुपालन-सभ्यता से प्राप्त शिल्प तथ्यों तथा पुरा-प्राणिविज्ञानियों (Archaeo-zoologists) के अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि हड़प्पन भेड़, बकरी, बैल, भैस, सुअर आदि जानवरों का पालन करने लगे थे। कूबड़ वाला सांड उन्हें विशेष प्रिय था। गधे और ऊँट का पालन बोझा ढोने के लिए करते थे। ऊँटों की हड्डियाँ बड़ी मात्रा में पाई गई है परंतु मोहरों पर उनके चित्र नहीं हैं। इसके अतिरिक्त भालू, हिरण, घड़ियाल जैसे पशुओं की हड्डियाँ भी मिली हैं। मछली व मुर्गे की हड्डियाँ भी प्राप्त हुई हैं। परंतु हमें यह जानकारी नहीं मिलती कि वे इनका स्वयं शिकार करते थे या इन्हें शिकारी समुदायों से प्राप्त करते थे।
प्रश्न 4.
हड़प्पा सभ्यता की राजसत्ता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा समाज में राजसत्ता के संबंध में विद्वान एक मत नहीं हैं। परन्तु हड़प्पा समाज के सभी पक्षों का अध्ययन करने पर इस बात के पत्ता संकेत मिलते हैं कि समाज से जड़े जटिल निर्णय लेने और उन्हें लागू करवाने के लिए कोई राजसत्ता और उससे जुड़ा अधिकारी वर्ग भी रहा होगा। उल्लेखनीय है कि सारे सभ्यता क्षेत्र (जम्मू से गुजरात तथा पश्चिम उत्तर प्रदेश से बलूचिस्तान) में मानक ईंटें, मानक माप-तौल पाया गया है। विशेष मुद्रा/मुद्रांक, (मृदभांड) तथा उन पर रूपायन (Motifs) विद्यमान है। योजनाबद्ध नगर, नालियों की उत्तम व्यवस्था और व्यापक व्यापार है।
यह सब तथ्य इस बात को सुझाते हैं कि कोई जिम्मेदार केंद्रीकृत राजसत्ता रही होगी। हमने यह भी पढ़ा है कि हड़प्पावासियों ने कच्चा माल प्राप्त करने, पक्का माल तैयार करने, व्यापार में सहायता के लिए विशेष स्थलों पर बस्तियों का निर्माण किया हुआ था। साथ ही नगरों में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य करवाने के लिए मानव संसाधनों को संचालित करने के लिए अधिकारी वर्ग अवश्य रहा होगा। कुल मिलाकर इस बारे में विद्वानों ने निम्नलिखित विचार प्रकट किए हैं
1. राजा और राजप्रासाद-पुरातत्वविदों ने पुरावशेषों से सत्ता के चिह्नों को पहचानने का प्रयास किया है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल भवन को ‘राजप्रासाद’ का नाम दिया जाता है। यद्यपि विशाल इमारत में अन्य कोई अद्भुत अवशेष नहीं मिले हैं। इसी प्रकार मोहनजोदड़ो से प्राप्त पत्थर की प्रतिमा प्राप्त हुई है। इसे ‘पुरोहित-राजा’ का नाम दिया जाता रहा है। व्हीलर महोदय ने तो इस आधार पर हड़प्पा की शासन प्रणाली को ‘धर्मतन्त्र’ नाम दिया है।
पुरातत्ववेत्ताओं द्वारा ऐसा निष्कर्ष इसलिए भी निकाला जाता है क्योंकि मेसोपोटामिया की सभ्यता हड़प्पा सभ्यता के समकालीन थी। वहाँ राजा ही सर्वोच्च पुरोहित होते थे। लेकिन हड़प्पा के संबंध में इस निष्कर्ष पर पहुँच पाना कठिन है क्योंकि हड़प्पा से जुड़े रीति-रिवाजों को अभी तक पूरी तरह नहीं समझा जा सका है। दूसरा, यहाँ पर धार्मिक रीति-रिवाज निभाने वाले लोगों के पास राजसत्ता भी थी यह कह पाना भी कठिन है।
2. एक अन्य मत यह है कि हड़प्पा सभ्यता में कोई एक शासक नहीं था, वरन् कई शासक थे। जैसे मोहनजोदड़ो का अलग शासक था। हड़प्पा का अलग शासक था तथा अन्य नगरों के भी अलग-अलग राजा थे।
3. कुछ विद्वानों का तो यह भी मानना है कि हड़प्पा समाज में कोई राजा ही नहीं था। सभी लोग बराबर की स्थिति में खुश थे। परंतु विलासिता से जुड़े कला तथ्यों व दुर्ग क्षेत्रों में भवनों से ऐसा मान लेना कठिन है।
4. अधिकतर विद्वानों का यह मत है कि कला तथ्यों में समरूपता को देखते हुए यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि यहाँ एक राज्य व्यवस्था विद्यमान थी। शासक वर्ग ने क्षेत्र के संसाधनों पर नियन्त्रण रखने के लिए विशेष बस्तियाँ बसाईं। व्यापार को विनियमित किया। वस्तुतः यह विचार सबसे ठीक लगता है क्योंकि इतने विशाल क्षेत्र में फैले इतने बड़े समाज के समस्त लोगों द्वारा एक साथ जटिल राजनैतिक निर्णय ले पाना तथा उन्हें लागू करवा पाना आसान नहीं था।
प्रश्न 5.
हड़प्पा सभ्यता के अवसान/पतन के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1800 B.C.E. के आसपास हड़प्पा नगरों का पतन होने लगा था। लोग नगरों को छोड़कर जाने लगे थे। हड़प्पाई नाप-तौल, मोहरें तथा लिपि गायब होने लगी। पक्की ईंटों के योजनाबद्ध घर बनने बंद हो गए। दस्तकारियाँ; जैसे मनकों तथा अन्य उद्योग समाप्त होने लगे थे। दूरस्थ व्यापार बंद होने लगे थे। वस्तुतः सभ्यता का अवसान शुरू हो चुका था। हड़प्पा सभ्यता के अंत के निम्नलिखित कारण बताए जा सकते हैं
1. बाढ़ और भूकम्प कुछ विद्वानों ने हड़प्पा सभ्यता के पतन का कारण बाढ़ बताया है। मोहनजोदड़ो में मकानों और सड़कों पर गाद (कीचड़युक्त मिट्टी) भरी पड़ी थी। बाढ़ का पानी उतर जाने पर यहाँ के निवासियों ने पहले के मकानों के मलबे पर फिर से मकान और सड़कें बना लीं। बाढ़ आने का सिलसिला कई बार घटा। खुदाई से पता चला है कि 70 फुट गहराई तक मकान बने हुए थे। बार-बार आने वाली बाढ़ों से नगरवासी गरीब हो गए तथा तंग आकर बस्तियों को छोड़कर चले गए।
आर०एल० रेइक्स ने 1965 में अपने लेख ‘The Mohanjodaro Floods’ में लिखा है कि हड़प्पा सभ्यता के ह्रास का कारण महाभयंकर बाढ़ थी। इस बाढ़ से 30 फुट तक पानी भर गया। इस बाढ़ से सिंधु नदी घाटी के नगर लम्बे समय तक डूबे रहे। रेइक्स ने यह बताया कि यह क्षेत्र अशांत भूकम्प क्षेत्र है। बाढ़ के साथ भूकम्प भी आया होगा। इस भूकम्प से नदी का मार्ग भी अवरुद्ध हो गया। इस महाभयंकर बाढ़ तथा भूकम्प ने नदियों का मार्ग रोक दिया, शहर जलमग्न हो गए, व्यापार और वाणिज्य गतिविधियाँ भंग हो गईं। इससे हड़प्पा सभ्यता नष्ट हो गई। परंतु यह व्याख्या सिंधु घाटी के बाहर की बस्तियों के ह्रास को स्पष्ट नहीं करती।।
2. सिंधु नदी का मार्ग बदलना-एच०टी० लैमब्रिक (H.T. Lambrick) का कहना है कि सिंधु नदी मार्ग में परिवर्तन मोहनजोद नगर के विनाश का कारण हो सकता है। यह नदी अपना मार्ग बदलती रहती थी। स्पष्ट है कि नदी नगर से 30 किलोमीटर दूर चली गई। पानी की कमी के कारण शहर और आस-पास के अनाज पैदा करने वाले गाँवों के लोग क्षेत्र छोड़कर पलायन कर गए। इससे मोहनजोदड़ो के लोगों का शहर छोड़ना तो समझाया जा सकता है, परंतु हड़प्पा सभ्यता के पूरी तरह हास को स्पष्ट नहीं किया जा सकता।
3. क्षेत्र में बढ़ती शुष्कता और घग्घर नदी का सूख जाना- डी०पी० अग्रवाल और कुछ अन्य विद्वानों का विचार है कि इस सभ्यता का ह्रास इस क्षेत्र में शुष्कता के बढ़ने के कारण और घग्घर नदी (हाकड़ा क्षेत्र) के सूख जाने के कारण हुआ। ऐसी स्थिति में हड़प्पा जैसे अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र पर सबसे अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ा होगा। इससे कृषि की पैदावार पर प्रभाव पड़ा। पैदावार में कमी आई। परिणामस्वरूप नगरों की अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ा।
साथ ही यह भी व्याख्या दी जाती है कि धरती में हुए आन्तरिक परिवर्तनों के कारण इस क्षेत्र के नदी तरंगों (मार्गों) पर भी प्रभाव पड़ा। घग्घर एक शक्तिशाली नदी होती थी तथा पंजाब, राजस्थान, कच्छ रन से गुजरकर समुद्र में गिरती थी। सतलुज और यमुना इसकी सहायक नदियाँ थीं। विवर्तनिक विक्षोभ (पृथ्वी के धरातल के बहुत बड़े क्षेत्र का ऊपर उठ जाना) के कारण सतलुज सिंधु में मिल गई तथा यमुना मार्ग बदलकर गंगा में मिल गई। इससे घग्घर जलविहीन हो गई। इससे हाकड़ा क्षेत्र सूख गया जिससे इस क्षेत्र में बसे नगरों के लिए समस्याएँ पैदा हो गईं और ये नगर समाप्त हो गए।
4. आर्यों के आक्रमण-व्हीलर ने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। इसके पक्ष में वे आक्रमण के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। प्रथम, हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में सड़कों पर मानव कंकाल पड़े मिले हैं। एक कमरे में 13 स्त्री-पुरुषों तथा बच्चों के कंकाल मिले . हैं। मोहनजोदड़ो के अन्तिम चरण में सड़कों पर तथा घरों में मनुष्यों के कत्लेआम के प्रमाण मिले हैं। एक संकरी गली को जॉन लि ने डैडमैन लेन का नाम दिया है। दूसरा, ऋग्वेद में आर्यों के देवता इन्द्र को ‘पुरन्धर’ कहा जाता था अर्थात् ‘किले तोड़ने वाला’।
तीसरा, ऋग्वेदकालीन आर्यों के आवास क्षेत्र में पंजाब एवं घग्घर क्षेत्र भी शामिल था तथा ऋग्वेद में एक स्थान पर ‘हरियूपिया’ नामक स्थान का उल्लेख है। व्हीलर ने कहा है कि यह स्थान हड़प्पा ही है और आर्यों ने यहाँ पर एक युद्ध लड़ा था। अतः हड़प्पा के शहरों को आर्यों ने ही आक्रमण करके नष्ट कर दिया। परंतु यह सिद्धान्त अब मान्य नहीं है। पहली बात तो यह है कि हड़प्पा सभ्यता के ह्रास का समय 1800 ई०पू० माना जाता है। आर्यों के आने का काल लगभग 1500 ई०पू० बताया जाता है।
5. पर्यावरण असन्तुलन तथा आर्थिक-राजनीतिक प्रणाली का ढहना-हाल ही में पुरातत्वविदों ने हड़प्पा सभ्यता के ह्रास को पारिस्थितिक (Ecological) कारणों में ढूँढना शुरु किया है। पुरातत्त्वविदों द्वारा दिए गए तर्कों की संक्षेप में जानकारी इस प्रकार है
(i) फेयर सर्विस ने हड़प्पा सभ्यता के नगरों की जनसंख्या तथा उसकी खाद्य आवश्यकता का हिसाब लगाया। उनका मानना है कि एक ओर तो जनसंख्या और पशु संख्या बढ़ रही थी, दूसरी ओर इसके दबाव से जंगल समाप्त होने लगे। इससे बाढ़ और सूखे जैसी समस्याएँ बढ़ीं। इसका अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ा। लोग इस क्षेत्र को छोड़कर जीविका के लिए अच्छे स्थानों पर चले गए।
(ii) बी०के० थापर और रफीक मुगल का विचार है कि घग्घर-हाकड़ा नदी प्रणाली के धीरे-धीरे सूखने या विलुप्त हो जाने से समस्याएँ बढ़ीं। वनों का विनाश होने लगा। पशुओं द्वारा अधिक चराई से जमीन का कटाव तथा क्षारीयता बढ़ी। साथ-ही-साथ जल संसाधनों का सीमा से अधिक प्रयोग हुआ। सरीन रत्नाकर का मानना है कि उत्थापक सिंचाई प्रणाली (Lift Irrigation) द्वारा जल का सीमाओं से अधिक उपयोग से जल-स्तर कम हो गया अर्थात् जिन अनुकूल परिस्थितियों और संसाधनों के कारण सभ्यता का उदय और विकास हुआ, उन्हीं के अभाव में सभ्यता का विनाश हो गया।
(iii) जंगलों की कटाई को भी हड़प्पा सभ्यता के विनाश का कारण बताया गया है। यह सभ्यता कांस्ययुगीन थी। ताँबे तथा काँसे के उत्पादन के लिए बड़ी मात्रा में लकड़ी का प्रयोग होता था। रत्नागर का कहना है कि लकड़ी के बड़े पैमाने पर प्रयोग के कारण वन नष्ट हो गए होंगे। वनों की कटाई का प्रकृति की छटा, वर्षा, जमीन की उत्पादकता पर प्रभाव पड़ा होगा। इससे पारिस्थितिक असन्तुलन (Ecological Imbalance) हो गया होगा।
एम० केनोयर ने भी इसका समर्थन किया है तथा लिखा है, “हड़प्पाकालीन लोग पर्यावरण के प्रति सचेत नहीं थे। उन्होंने अन्य लोगों की भाँति घने वनों को बेपरवाही से कांटकर उनकी लकड़ी का प्रयोग कर लिया।” स्पष्ट है कि हड़प्पा सभ्यता का पतन अनेक कारणों की वजह से हुआ।
प्रश्न 6.
हड़प्पा सभ्यता के अनुसंधान की कहानी पर लेख लिखिए।
उत्तर:
हड़प्पा की खोज की कहानी काफी रोचक है कि आखिर हड़प्पा सभ्यता की खोज हुई कैसे? हड़प्पा के पतन के बाद – लोग धीरे-धीरे इन नगरों को भूल गए। फिर सैकड़ों वर्षों बाद इस क्षेत्र में लोग पुनः रहने लगे। बाढ़, मृदा क्षरण या भूमि जोतते हुए यहाँ से कला-तथ्य निकलने पर स्थानीय लोग यह समझ नहीं पाते थे कि इनका क्या करें। अन्ततः पुरातत्वविदों ने हड़प्पा सभ्यता को खोज निकाला। खोज की कहानी निम्नलिखित प्रकार से है
1. चार्ल्स मोसन तथा बर्नेस के कार्य-हड़प्पा सभ्यता को खोज निकालने में अनेक व्यक्तियों का योगदान है। 1826 ई० में चॉर्ल्स मोसन नामक एक अंग्रेज पश्चिमी पंजाब में हड़प्पा नामक गाँव में आया। उसने वहाँ बहुत पुरानी बस्ती के बुों और अद्भुत ऊँची-ऊँची दीवारों को देखा। उसने यह समझा कि यह शहर सिकन्दर महान् के समय का है। दूसरा, बर्नेस नामक व्यक्ति ने भी . 1834 में सिंधु क्षेत्र की यात्रा की। उसने भी सिंधु नदी के किनारे किसी ध्वस्त किले की बात कही।
2. कनिंघम के प्रयास, रिपोर्ट और उलझन-कनिंघम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पहले महानिदेशक थे। उनकी रूचि छठी सदी ईसा पूर्व से चौथी सदी ईसा पूर्व तथा इसके बाद के प्राचीन इतिहास के पुरातत्व में थी। उन्होंने बौद्धधर्म से संबंधित चीनी यात्रियों के वृत्तांतों का प्रारंभिक बस्तियों की पहचान करने में प्रयोग किया। सर्वेक्षण के कार्य में शिल्प तथ्य एकत्र किए। उनका रिकॉर्ड रखा तथा अभिलेखों का अनुवाद भी किया।
कनिंघम ने उपलब्ध कला-तथ्यों के सांस्कृतिक अर्थों को भी समझने का प्रयास किया। परंतु हड़प्पा जैसे स्थल की इन चीनी वृत्तांतों में न तो विवरण था, न ही इन नगरों की ऐतिहासिकता की कोई जानकारी। अतः यह नगर ठीक प्रकार से उनकी खोजों के दायरे में नहीं समा पा रहे थे।
वस्तुतः वे यहाँ से प्राप्त कला-तथ्यों की पुरातनता का अनुमान नहीं लगा पाए। उदाहरण के लिए एक अंग्रेज ने कनिंघम को हड़प्पा की एक मोहर दी (चित्र देखें)। कनिंघम ने अपनी रिपोर्ट में इसका चित्र भी दिया परंतु वह इसे इसके समय-संदर्भ में रख पाने में असफल । रहे। इसका कारण यह रहा होगा कि अन्य विद्वानों की भांति वह भी यह मानते । थे कि भारत में पहली बार नगरों का अभ्युदय गंगा-घाटी में 6 वीं, 7वीं सदी ई०पू० से हुआ। अतः यह आश्चर्य की बात नहीं है कि वे हड़प्पा के महत्त्व को नजरअंदाज कर गए।
3. नवीन सभ्यता की खोज-1921 में दयाराम साहनी ने हड़प्पा स्थल से । अनेक मोहरें उत्खनन में प्राप्त की। ऐसा ही कार्य 1922 में राखालदास बनर्जी चित्र : कनिंघम द्वारा दिया मोहर का चित्र ने मोहनजोदड़ो में किया। दोनों स्थलों की मोहरों में समानता थी। इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि यह स्थल एक ही पुरातात्विक संस्कृति का हिस्सा है। इन खोजों के आधार पर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के तत्कालीन महानिदेशक सर जॉन मार्शल ने 1924 ई० में (लन्दन में प्रकाशित एक साप्ताहिक पत्र में) सारी दुनिया के समक्ष इस नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की।
सारी दुनिया में इससे सनसनी फैल गई। इस बारे में एस.एन.राव ने ‘द स्टोरी ऑफ इंडियन आर्कियोलॉजी’ में लिखा, “मार्शल ने भारत को जहाँ पाया था, उसे उससे तीन हजार वर्ष पीछे छोड़ा।” उल्लेखनीय है कि हड़प्पा जैसी मोहरें मेसोपोटामिया से भी मिली थीं। अब यह स्पष्ट हुआ कि यह एक नई सभ्यता थी जो मेसोपोटामिया के समकालीन थी।
प्रश्न 7.
हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना व भवन निर्माण प्रणाली पर लेख लिखिए।
उत्तर:
नगरीय प्रणाली हड़प्पा की विकसित अवस्था (Mature Stage) से सम्बन्ध रखती है। इस नगरीकरण को विद्वानों ने नगरीय क्रान्ति की संज्ञा दी है। इसका विकास किसी शक्तिशाली केन्द्रीय सत्ता के बिना नहीं हो सकता था। सड़कों की व्यवस्था, बड़े पैमाने पर जल निकास प्रणाली का विकास एवं उसकी देख-रेख, विशाल नगर, किले आदि सभी एक शक्तिशाली केन्द्रीय शासन प्रणाली के मौजूद होने का संकेत देते हैं। हड़प्पा सभ्यता के नगरीकरण की दूसरी मुख्य बात यह थी कि इन नगरों में बड़े पैमाने पर दक्ष शिल्पकार थे। तीसरा इन नगरों के एशिया के सुदूर देशों के साथ व्यापार सम्पर्क थे। मेसोपोटामिया के साथ समुद्री व्यापार उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा था।
1. नगर योजना-हड़प्पा सभ्यता की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता उसकी नगर योजना तथा सफाई व्यवस्था है। नगरों में सड़कें और गलियाँ एक योजना के अनुसार बनाई गई थीं। मुख्य मार्ग उत्तर से दक्षिण की ओर जाते थे। उनको काटती सड़कें और गलियाँ मुख्य मार्ग को समकोण पर काटती थीं जिससे नगर वर्गाकार या आयताकार खण्डों में विभाजित हो जाते थे।
मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगन जैसे नगर दो भागों (पूर्वी तथा पश्चिमी) में बंटे थे। पूर्वी भाग में ईंटों से बनाए ऊँचे चबूतरे पर स्थित बस्ती के चारों ओर परकोटा (किला) होता था जिसे ‘नगर दुर्ग’ कहा जाता है। इसके पश्चिम की ओर के आवासीय क्षेत्र को निचला नगर कहा जाता है। नगर दुर्ग का क्षेत्रफल निचले नगर से कम था। मोहनजोदड़ो के नगर दुर्ग में पकाई ईंटों से बने अनेक बड़े भवन पाए गए हैं, जैसे विशाल स्नानागार, प्रार्थना भवन, सभा भवन एवं अन्नागार। हड़प्पा में ‘नगर-दुर्ग’ के उत्तर में कारीगरों के मकान, उनके कार्य-स्थान (चबूतरे) और एक अन्नागार था।
कालीबंगन की नगर योजना में दुर्ग क्षेत्र तथा निचले नगर दोनों के परकोटा (मोटी दीवार) था। सुरकोतदा की नगर-योजना कालीबंगन के समान थी। नगर दुर्ग तथा निचला नगर आपस में जुड़े हैं तथा दोनों के चारों ओर परकोटा है। धौलावीरा (कच्छ में) नगर तीन मुख्य भागों (नगर दुर्ग, मध्यम नगर तथा निचला नगर) में विभाजित था। हड़प्पा के नगरों में नगर दुर्ग में पुरोहित एवं शासक रहते थे तथा निचले नगर में व्यापारी, दस्तकार, शिल्पकार एवं अन्य लोग रहते थे।
2. नगर द्वार-जैसा कि ऊपर बताया गया है कि अधिकांश में विशेषकर दुर्ग-नगर के चारों ओर मोटी दीवार होती थी। इस परकोटे में स्थान-स्थान पर प्रवेश द्वार बने होते थे। धौलावीरा और सुरकोतदा में नगर प्रवेश द्वार काफी विशाल एवं सुन्दर थे, जबकि अन्य नगरों में प्रवेश द्वार साधारणं थे। कुछ नगर द्वारों के निकट सुरक्षाकर्मियों के कक्ष भी बने हुए थे जो साधारणतः बहुत छोटे होते थे। हड़प्पा सभ्यता के नगरों के चारों ओर दीवारों तथा नगर द्वारों के निर्माण का उद्देश्य शत्रुओं के आक्रमण से रक्षा, लुटेरों एवं पशुचोरों से सुरक्षा करना तथा बाढ़ों से नगरों की रक्षा करना रहा होगा।
3. सड़कें और गलियाँ-हड़प्पा कालीन नगर पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार बनाए जाते थे। सड़कें और गलियाँ सीधी होती थीं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। सड़कें पूर्व से पश्चिम या उत्तर से दक्षिण दिशा में बिछी हुई थीं। इससे नगर कई भागों में बंट जाते थे। मोहनजोदड़ो में मुख्य सड़क 10.5 मीटर चौड़ी थी, इसे ‘प्रथम सड़क’ कहा गया है। इस ‘प्रथम सड़क’ पर . एक साथ पहिए वाले सात वाहन गुजर सकते थे। अन्य सड़कें 3.6 से 4 मीटर तक चौड़ी थीं। गलियाँ एवं गलियारे 1.2 मीटर (4 फुट) या उससे अधिक चौड़े थे। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सड़कों, गलियों और नालियों की व्यवस्था लागू करने तथा निरन्तर देखभाल के लिए नगरपालिका या नगर प्राधिकरण जैसी कोई प्रशासनिक व्यवस्था रही होगी।
4. नालियों की व्यवस्था व्यापक नालियों की व्यवस्था हड़प्पा सभ्यता की अद्वितीय विशेषता थी, जो हमें अन्य किसी भी समकालीन सभ्यता के नगरों में प्राप्त नहीं होती है। प्रत्येक घर में छोटी नालियाँ होती थीं जो घर के पानी को बाहर गली या सड़क के किनारे बनी नाली में पहुँचाती थीं। प्रमुख सड़कों एवं गलियों के साथ 1 से 2 फुट गहरी ईंटों तथा पत्थरों से ढकी नालियाँ होती थीं। मुख्य नालियों में कचरा छानने की व्यवस्था भी होती थी।
नालियों में ऐसी व्यवस्था करने के लिए बड़े गड्ढे (शोषगत) होते थे, जो पत्थरों या ईंटों से ढके होते थे जिन्हे सफाई करने के लिए आसानी से हटाया और वापस रख दिया जाता था। मुख्य नालियाँ एक बड़े नाले के साथ जुड़ी होती थीं जो सारे गदे पानी को नदी में बहा देती थीं। हड़प्पाकालीन नगरों की जल निकास प्रणाली पर टिप्पणी करते हुए ए०एल० बाशम ने लिखा है, नालियों की अद्भुत व्यवस्था सिन्धु घाटी के लोगों की महान सफलताओं में से एक थी। रोमन सभ्यता के अस्तित्व में आने तक किसी भी प्राचीन सभ्यता की नाली व्यवस्था इतनी अच्छी नहीं थी।”
5. ईंटें-हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और अन्य प्रमुख नगरों में ईंटों का व्यापक पैमाने पर प्रयोग हुआ है। ये ईंटें कच्ची और पक्की दोनों प्रकार की थीं। मोहदजोदड़ो में चबूतरों पर धूप में सुखाई गई ईंटों का प्रयोग किया गया है। हड़प्पा में कच्ची ईंटों की पर्त पर पक्की ईंटों का इस्तेमाल हुआ है। कालीबंगन में पक्की ईंटों का प्रयोग कुओं, नालियों एवं स्नानगृहों के बनाने में किया गया है। इन ईंटों का मुख्य आकार 20%2″× 10/2″× 31/4″ होता था जो 1 : 2 : 4 अनुपात में है। नालियों को ढकने के लिए काफी बड़ी ईंटों का प्रयोग हुआ है।
6. भवन-हड़प्पा सभ्यता के नगरों के भवन निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं
- आवासीय मकान,
- विशाल भवन,
- सार्वजनिक स्नानागार,
- अन्नागार,
- जलाशय तथा डॉकयार्ड आदि।
1. आवासीय मकान-हड़प्पा तथा मोहदजोदड़ो स्थानों में नागरिक निचले नगर में भवन समूहों में रहते थे। ये मकान योजनापूर्वक बनाए जाते थे। प्रत्येक मकान के बीच एक खला आंगन तथा चारों तरफ छोटे-बड़े कमरे होते थे। बाढ से सरक्षा हेत मकान ऊँचे चबूतरे पर तथा गहरी नींव के होते थे। दीवारें मोटी एवं पक्की ईंटों तथा गारे की थीं। छतों में लकड़ी और ईंटों तथा फर्श में भी ईंटों का प्रयोग था। प्रकाश व हवा के लिए दरवाजे, खिड़कियाँ तथा रोशनदान बनाए जाते थे।
दरवाजे खिड़कियाँ मुख्य सड़क की तरफ न खुलकर गली की तरफ खुलती थी। घर में रसोईघर, शौचालय एवं स्नानघर होते थे। बड़े घरों में कुआँ भी होता था। कई मकान तो दो मंजिलों के बने होते थे। मकानों में भी विविधता थी। गरीब लोगों के मकान छोटे थे। छोटी बैरकों में मजदूर तथा दास रहते थे। निचले शहर के मकानों में बड़ी संख्या में कर्मशालाएँ (कारखाने) (Workshops) भी थीं।
2. विशाल भवन-हड़प्पाकालीन नगरों के दुर्ग वाले भाग में विशाल भवन प्राप्त हुए हैं। मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा में ऐसे अनेक विशाल भवन मिले हैं जो शायद शासक वर्ग के लोगों द्वारा प्रयोग में लाए जाते होंगे।
3. सार्वजनिक स्नानागार-हड़प्पाकालीन सबसे प्रसिद्ध भवन मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार है। आयताकार में बना यह स्नानागार 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.45 मीटर गहरा है। इसके उत्तर और दक्षिण में सीढ़ियाँ बनी हैं। ये सीढ़ियाँ स्नानागार के तल तक जाती हैं। यह स्नानागार पक्की ईंटों से बना है। इसे बनाने में चूने तथा तारकोल का प्रयोग किया गया था। इसके साथ ही कुआँ था जिससे इसे पानी से भरा जाता था। साफ करने के लिए इसकी पश्चिमी दीवार में तल पर नालियाँ बनी थीं। स्नानागार के चारों ओर मंडप एवं कक्ष बने हुए थे। विद्वानों का मानना है कि इस स्नानागार और भवन का धार्मिक समारोहों के लिए प्रयोग किया जाता था।
4. अन्नागार-हड़प्पा में 50 × 40 मीटर के आकार का एक भवन मिला है जिसके बीच में 7 मीटर चौड़ा गलियारा था। पुरातत्ववेत्ताओं ने इसे विशाल अन्नागार बताया है जो अनाज, कपास तथा व्यापारिक वस्तुओं के गोदाम के काम आता था।
5. जलाशय तथा डॉकयार्ड-धौलावीरा में एक विशाल जलाशय के अवशेष मिले हैं। यह जलाशय 80.4 मीटर लम्बा, 12 मीटर चौड़ा तथा 7.5 मीटर गहरा था। कच्छ क्षेत्र में पानी की कमी रहती थी अतः ऐसे जलाशय का प्रयोग जल संग्रहण के लिए किया जाता होगा। इसी प्रकार लोथल में अन्नागार तथा डॉकयार्ड (गोदी) मिला है। पक्की ईंटों से बना यह स्थल 214 मीटर लम्बा, 36 मीटर चौड़ा तथा 4.5 मीटर गहरा है। यह डॉकयार्ड एक जलमार्ग से पास की खाड़ी से जुड़ा है।