Haryana State Board HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ Important Questions and Answers.
Haryana Board 12th Class History Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ
बहुविकल्पीय प्रश्न
निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के अन्तर्गत कुछेक वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। ठीक उत्तर का चयन कीजिए
1. अल-बिरूनी किसके साथ भारत आया?
(A) कासिम के साथ
(B) महमूद के साथ
(C) गौरी के साथ
(D) बाबर के साथ
उत्तर:
(B) महमूद के साथ
2. अल-बिरूनी का जन्म स्थान वर्तमान में किस देश में है?
(A) अफगानिस्तान में
(B) कजाकिस्तान में
(C) तुर्कमेनिस्तान में
(D) उज्बेकिस्तान में
उत्तर:
(D) उज्बेकिस्तान में
3. अल-बिरूनी की रचना का क्या नाम है?
(A) शाहनामा
(B) तारीख-ए-गज़नवी
(C) किताब-उल-हिन्द
(D) चचनामा
उत्तर:
(C) किताब-उल-हिन्द
4. अल-बिरूनी ने अपने लेखन का आधार बनाया?
(A) वेदों को
(B) पुराणों को
(C) मनुस्मृति को
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी
5. अल-बिरूनी भारत की किस भाषा से अधिक प्रभावित हुआ?
(A) संस्कृत से
(B) पंजाबी से
(C) सिन्धी से
(D) हिन्दी से
उत्तर:
(A) संस्कृत से
6. अल-बिरूनी ज्ञाता था
(A) संस्कृत का
(B) अरबी का
(C) फारसी का
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी
7. अल-बिरूनी के अनुसार जाति-व्यवस्था से परे लोगों को कहा जाता था
(A) वैश्य
(B) शूद्र
(C) अंत्यज
(D) कोई नहीं
उत्तर:
(C) अंत्यज
8. इब्न बतूता कहाँ का रहने वाला था?
(A) अरब क्षेत्र का
(B) स्पेन का
(C) मोरक्को का
(D) चीन का
उत्तर:
(C) मोरक्को का
9. रिहला किस भाषा में लिखी गई?
(A) अरबी
(B) फारसी
(C) तुर्की
(D) संस्कृत
उत्तर:
(B) फारसी
10. इब्न बतूता के आगमन के समय भारत का शासक था
(A) गाजी तुगलक
(B) मुहम्मद तुगलक
(C) फिरोज तुगलक
(D) अलाऊद्दीन खिलजी
उत्तर:
(B) मुहम्मद तुगलक
11. इब्न बतूता भारत कब आया?
(A) 1265 ई० में
(B) 1321 ई० में
(C) 1333 ई० में
(D) 1398 ई० में
उत्तर:
(C) 1333 ई० में
12. इब्न बतूता ने भारत में स्थानों की दूरी बताई है
(A) कि०मी० में
(B) मीलों में
(C) कोसों में
(D) दिन को इकाई मान कर
उत्तर:
(D) दिन को इकाई मान कर
13. मुहम्मद तुगलक ने बतूता को दूत के रूप में कहाँ भेजा?
(A) बर्मा
(B) चीन
(C) रूस
(D) लंका
उत्तर:
(B) चीन
14. इन बतूता ने दिल्ली के किस दरवाजे को सबसे बड़ा बताया है?
(A) बदायूँ
(B) तुगलकाबाद
(C) अजमेरी
(D) गुल
उत्तर:
(A) बदायूँ
15. बतूता की रचना किस नाम से जानी जाती है?
(A) रिला
(B) तजाकिश
(C) मशविरा
(D) तारीख-ए-हिन्द
उत्तर:
(A) रिला
16. बतूता को भारत में विचित्र क्या लगा?
(A) नारियल
(B) पान
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों
17. बतूता ने दिल्ली की प्राचीर में दरवाजों की संख्या बताई है
(A) 20
(B) 28
(C) 35
(D) 49
उत्तर:
(B) 28
18. बतूता ने भारत में कपड़े की किस किस्म का वर्णन अधिक किया है?
(A) सूती कपड़े का
(B) ऊनी कपड़े का
(C) जरी वाले कपड़े का
(D) मलमल का
उत्तर:
(D) मलमल का
19. बतूता के अनुसार पैदल डाक-सेवा कहलाती थी?
(A) उलुक
(B) दावा
(C) फरमान
(D) कोई नहीं
उत्तर:
(B) दावा
20. बतूता ने दौलताबाद के गायकों के बाजार को क्या कहा है?
(A) ताराबबाद
(B) शमशीराबाद
(C) संगीतालय
(D) गुलकेन्द्र
उत्तर:
(A) ताराबबाद
21. बर्नियर भारत कब आया?
(A) 1645 ई० में
(B) 1656 ई० में
(C) 1670 ई० में
(D) 1688 ई० में
उत्तर:
(B) 1656 ई० में
22. ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर किसकी रचना है?
(A) अल-बिरूनी की
(B) बतूता की
(C) बर्नियर की
(D) तैवर्नियर की
उत्तर:
(C) बर्नियर की
23. बर्नियर भारत को किस रूप में वर्णित करता है?
(A) परंपरागत
(B) अविकसित
(C) उद्योग प्रधान
(D) विकसित
उत्तर:
(B) अविकसित
24. बर्नियर के अनुसार व्यापारिक दृष्टि से उन्नत क्षेत्र था
(A) यूरोप
(B) भारत
(C) अरब क्षेत्र.
(D) अफ्रीका
उत्तर:
(B) भारत
25. बर्नियर के विचारों से कौन-सा यूरोपियन लेखक प्रभावित हुआ?
(A) कॉर्ल मार्क्स
(B) मॉन्टेस्क्यू.
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों
26. फ्रांसिस्को पेलसर्ट किस देश का रहने वाला था?
(A) ब्रिटेन का
(B) फ्रांस का
(C) जर्मनी का
(D) हॉलैण्ड का
उत्तर:
(D) हॉलैण्ड का
27. इन बतूता ने भारत में सर्वप्रथम उपहार किसको दिए?
(A) मुल्तान के गवर्नर को
(B) मुहम्मद तुगलक को
(C) शेख निजामुद्दीन औलिया को
(D) जियाऊद्दीन बर्नी को
उत्तर:
(A) मुल्तान के गवर्नर को
28. बर्नियर ने भारत की किस प्रथा को असभ्यता करार दिया है?
(A) जाति प्रथा को
(B) सूदखोरी को
(C) भूमि स्वामित्व को
(D) सती प्रथा को
उत्तर:
(D) सती प्रथा को
29. बर्नियर ने भारत की किस राजनीतिक घटना का वर्णन अधिक विस्तृत किया है?
(A). शाहजहाँ के बेटों में युद्ध
(B) औरंगजेब की ताजपोशी
(C) औरंगजेब का दक्षिण अभियान
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) शाहजहाँ के बेटों में युद्ध
30. महमूद गजनवी ने भारत पर कुल कितने आक्रमण किए?
(A) 15
(B) 17
(C) 20
(D) 23
उत्तर:
(B) 17
31. अल-बिरूनी ने शिक्षा कहाँ प्राप्त की?
(A) ख्वारिज्म में
(B) गजनी में
(C) बगदाद में
(D) मक्का में
उत्तर:
(A) ख्वारिज्म में
32. अल-बिरूनी ने अपना अधिकतर लेखन कार्य किस स्थान पर किया?
(A) ख्वारिज्म में
(B) गजनी में
(C) बगदाद में
(D) मक्का में
उत्तर:
(B) गजनी में
33. अल-बिरूनी ने संस्कृत के अतिरिक्त भारत की कौन सी अन्य भाषाओं का साहित्य पढ़ा?
(A) पाली
(B) प्राकृत
(C) उपर्युक्त दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) उपर्युक्त दोनों
34. अल-बिरूनी ने भारतीय क्षेत्र में आम व्यक्ति द्वारा बोली जाने वाली भाषा को क्या कहा?
(A) संस्कृत
(B) हिन्दवी
(C) पंजाबी
(D) खड़ी बोली
उत्तर:
(B) हिन्दवी
35. अल-बिरूनी ने संस्कृत भाषा को समझने की समस्या का समाधान कैसे किया?
(A) सीखकर
(B) अनुवादित ग्रंथों को पढ़कर
(C) द्वि-भाषिए की मदद से
(D) भाषा को महत्त्व देकर
उत्तर:
(A) सीखकर
36. इब्न बतूता भारत के अतिरिक्त अन्य किस देश में काज़ी के पद पर नियुक्त हुआ?
(A) इरान में
(B) चीन में
(C) लंका में
(D) मालद्वीप में
उत्तर:
(D) मालद्वीप में
37. बतूता ने भारत से चीन जाने के लिए किस क्षेत्र का मार्ग प्रयोग किया?
(A) कश्मीर का मार्ग
(B) मध्य एशिया का मार्ग
(C) लंका व मालद्वीप का मार्ग
(D) बर्मा व सुमात्रा का मार्ग
उत्तर:
(D) बर्मा व सुमात्रा का मार्ग
38. बतूता सर्वप्रथम चीन की किस बन्दरगाह पर गया?
(A) जायतुन
(B) कैंटन
(C) पोर्टस माऊथ
(D) तीनस्तीन
उत्तर:
(A) जायतुन
39. बतूता की तरह का चीन से संबंधित वृत्तांत वेनिस के किस अन्य यात्री का माना जाता है?
(A) दूरते बारबोसा का
(B) मनूची का
(C) फ्रैन्को पेलसर्ट का
(D) मार्को पोलो का
उत्तर:
(D) मार्को पोलो का
40. बतूता के यात्रा अनुभवों को संकलित करने का आदेश किस देश के शासक द्वारा दिया गया?
(A) भारत
(B) मोरक्को
(C) चीन
(D) मालद्वीप
उत्तर:
(B) मोरक्को
41. बतूता ने भारत का सबसे बड़ा शहर किसे कहा है?
(A) देहली को
(B) दौलताबाद को
(C) मुल्तान को
(D) सिन्ध को
उत्तर:
(A) देहली को
42. बतूता ने दिल्ली में फलों का बाजार किस स्थान पर बताया है?
(A) बदायूँ के दरवाजे के पास
(B) मांडवी दरवाजे के पास
(C) गुल दरवाजे के पास
(D) तुगलकाबाद के बाहरी क्षेत्र में
उत्तर:
(C) गुल दरवाजे के पास
43. बतूता के अनुसार सिन्ध से दिल्ली तक जाने में 50 दिन का समय लगता था लेकिन गुप्तचरों को सूचना देने में कितना समय लगता था?
(A) 50 दिन
(B) 20 दिन
(C) 10 दिन
(D) 5 दिन
उत्तर:
(D) 5 दिन
44. भारत में जल मार्ग से पहला पुर्तगाली कौन आया?
(A) वास्कोडिगामा
(B) अल्बुकर्क
(C) मार्निस हस्टमान
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) वास्कोडिगामा
45. वास्कोडिगामा भारत कब आया?
(A) 1484 ई० में
(B) 1498 ई० में
(C) 1509 ई० में
(D) 1520 ई० में
उत्तर:
(B) 1498 ई० में.
46. हीरे-जवाहरात का व्यापार करने के लिए फ्रांस से आने वाला प्रमुख यात्री कौन था, जिसने अपना वृत्तांत भी दिया हो? ..
(A) बर्नियर
(B) तैवर्नियर
(C) मनूची
(D) वान-डी-ब्रूस
उत्तर:
(B) तैवर्नियर
47. भारत में आने वाले उस इटली के यात्री का नाम बताओ जो वापिस नहीं गया?
(A) बर्नियर
(B) तैवर्नियर
(C) मनूची
(D) पेलसर्ट
उत्तर:
(C) मनूची
48. बर्नियर ने भूमि के राजकीय स्वामित्व को किसके लिए हानिकारक बताया है?
(A) शासक के लिए
(B) जनता के लिए
(C) उपर्युक्त दोनों के लिए
(D) किसी के लिए नहीं
उत्तर:
(B) जनता के लिए
49. 18वीं सदी में किस यूरोपीय चिन्तक ने बर्नियर के वृत्तांत को आधार मानकर भारत का अध्ययन किया?
(A) कार्ल मार्क्स ने
(B) मॉन्टेस्क्यू ने
(C) (A) और (B) दोनों
(D) किसी ने नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों
50. “विश्व की सभी बहुमूल्य वस्तुएँ यहाँ आकर समा जाती हैं।” बर्नियर ने ये पक्तियाँ किस देश के लिए कही हैं?
(A) फ्रांस के लिए
(B) ब्रिटेन के लिए
(C) रूस के लिए
(D) भारत के लिए
उत्तर:
(A) फ्रांस के लिए
51. विभिन्न शहरों में व्यापारी वर्ग के मुखिया को मुगल काल में क्या कहा जाता था?
(A) नगर सेठ
(B) महाजन
(C) मालिक
(D) वोहरा
उत्तर:
(A) नगर सेठ
52. दासों के बारे में बतूता को भारत में क्या आश्चर्यपूर्ण लगा?
(A) दासों के सांस्कृतिक कार्यक्रम
(B) दासों के कार्य
(C) दासों द्वारा गुप्तचरी करना
(D) दासों का बाजार में बिकना
उत्तर:
(D) दासों का बाजार में बिकना
53. बतूता ने दासों के कार्य को प्रमुख रूप से बताया है
(A) गृह कार्य
(B) कृषि कार्य
(C) गुप्तचर का कार्य करना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी
54. बर्नियर को भारत में सर्वाधिक अमानवीय कार्य क्या लगा?
(A) सती प्रथा
(B) दासों की खरीद-बेच
(C) कारीगरों की कार्य प्रणाली
(D) कृषक की दशा
उत्तर:
(A) सती प्रथा
55. बतूता को किस शताब्दी का विश्व यात्री कहा जाता है?
(A) 13वीं शताब्दी का
(B) 14वीं शताब्दी का
(C) 15वीं शताब्दी का
(D) 16वीं शताब्दी का
उत्तर:
(B) 14वीं शताब्दी का
56. अल-बिरूनी की पुस्तक ‘किताब-उल-हिन्द’ की भाषा है
(A) फारसी
(B) तुर्की
(C) अरबी
(D) उर्दू
उत्तर:
(C) अरबी
57. इब्न बतूता का मोरक्को में जन्म स्थान था
(A) ओवल
(B) गाजा
(C) तैंजियर
(D) रियाद
उत्तर:
(C) तैंजियर
58. बर्नियर को भारत आने के बाद प्रारंभ में किसका संरक्षण मिला?
(A) औरंगजेब का
(B) दारा का
(C) शाहजहाँ का
(D) मुराद का
उत्तर:
(B) दारा का
59. मुगल काल में शाही कारखाने थे
(A) शासकों की आवश्यकता की चीजें उत्पादन
(B) सेना के रख-रखाव का स्थल करने वाले स्थल
(C) दरबारी प्रबंध व्यवस्था का स्थल
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) शासकों की आवश्यकता की चीजें उत्पादन करने वाले स्थल
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
अल-बिरूनी का जन्म कब हुआ?
उत्तर:
अल-बिरूनी का जन्म 973 ई० में हुआ।
प्रश्न 2.
अल-बिरूनी का जन्म कहाँ हुआ?
उत्तर:
अल-बिरूनी.का जन्म ख्वारिज्म (उज़्बेकिस्तान) में हुआ।
प्रश्न 3.
अल-बिरूनी ने किताब-उल-हिन्द किस भाषा में लिखी?
उत्तर:
अल-बिरूनी ने किताब-उल-हिन्द अरबी भाषा में लिखी।
प्रश्न 4.
अल-बिरूनी की मृत्यु कब हुई?
उत्तर:
अल-बिरूनी की मृत्यु 1048 ई० में हुई।
प्रश्न 5.
अल-बिरूनी के अनुसार भारतीय समाज में श्रेष्ठ स्थान पर कौन थे?
उत्तर:
अल-बिरूनी के अनुसार भारतीय समाज में श्रेष्ठ स्थान पर ब्राह्मण थे।
प्रश्न 6.
इन बतूता का जन्म कब हुआ?
उत्तर:
इन बतूता का जन्म 1304 ई० में हुआ।
प्रश्न 7.
इन बतूता कहाँ का रहने वाला था?
उत्तर:
इब्न बतूता मोरक्को का रहने वाला था।
प्रश्न 8.
इब्न बतूता भारत कब आया?
उत्तर:
इन बतूता 1333 ई० में भारत आया।
प्रश्न 9.
भारत से महम्मद तगलक का दूत बनकर चीन कौन गया?
उत्तर:
भारत से मुहम्मद तुगलक का दूत बनकर इब्न बतूता चीन गया।
प्रश्न 10.
बर्नियर भारत में कब-से-कब तक रहा?
उत्तर:
बर्नियर भारत में 1656 से 1668 ई० तक भारत में रहा।
प्रश्न 11.
अल-बिरूनी ने भारत को समझने के लिए किस भाषा को सीखना अनिवार्य बताया?
उत्तर:
अल-बिरूनी ने भारत को समझने के लिए संस्कृत भाषा को अनिवार्य बताया।
प्रश्न 12.
संस्कृत को अल-बिरूनी कैसी भाषा बताता है?
उत्तर:
संस्कृत को अल-बिरूनी विशाल पहुँच वाली भाषा बताता है।
प्रश्न 13.
इन बतूता नारियल की तुलना किससे करता है?
उत्तर:
इब्न बतूता नारियल की तुलना मानव के सिर से करता है।
प्रश्न 14.
इब्न बतूता दिल्ली के मुकाबले में शहर किसे कहता है?
उत्तर:
इन बतूता दौलताबाद को दिल्ली के मुकाबले में शहर कहता है।
प्रश्न 15.
इन बतूता के अनुसार अश्व डाक व्यवस्था क्या कहलाती थी?
उत्तर:
इब्न बतूता के अनुसार अश्व डाक व्यवस्था उलुक कहलाती थी।
प्रश्न 16.
बतूता ने किस क्षेत्र के संगीत बाजार का वर्णन किया है?
उत्तर:
बतूता ने दौलताबाद क्षेत्र के संगीत बाजार का वर्णन किया है।
प्रश्न 17.
बर्नियर ने अपना भारत से संबंधित वृत्तांत किस रचना में दिया?
उत्तर:
बर्नियर ने अपना भारत से संबंधित वृत्तांत ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर में किया।
प्रश्न 18.
बर्नियर के अनुसार भारत में भूमि का स्वामी कौन था?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार भारत में भूमि का स्वामी शासक था।
प्रश्न 19.
बर्नियर किस देश का रहने वाला था?
उत्तर:
बर्नियर फ्रांस का रहने वाला था।
प्रश्न 20.
तैवर्नियर ने भारत की यात्रा कितनी बार की?
उत्तर:
तैवर्नियर ने भारत की यात्रा 6 बार की।
प्रश्न 21.
बर्नियर ने ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर की रचना किस उद्देश्य से की?
उत्तर:
बर्नियर ने ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर की रचना यूरोप को भारत से श्रेष्ठ दिखाने के उद्देश्य से की।
प्रश्न 22.
बतूता सर्वप्रथम भारत में कहाँ पहुँचा?
उत्तर:
बतूता सर्वप्रथम सिन्ध में पहुंचा।
प्रश्न 23.
बतूता ने सुल्तान मुहम्मद तुगलक को उपहार में क्या दिया?
उत्तर:
बतूता ने सुल्तान मुहम्मद तुगलक को उपहार में घोड़े, ऊँट व दास दिए।
प्रश्न 24.
बर्नियर ने किसानों की दुर्दशा का मुख्य कारण क्या बताया है?
उत्तर:
बर्नियर ने किसानों की दुर्दशा का मुख्य कारण भूमि पर राजकीय स्वामित्व बताया है।
प्रश्न 25.
फिरदौसी की रचना का क्या नाम है?
उत्तर:
फिरदौसी की रचना का नाम शाहनामा है।
प्रश्न 26.
अल-बिरूनी किसके साथ भारत आया?
उत्तर:
अल-बिरूनी महमूद के साथ भारत आया।
प्रश्न 27.
इन बतूता ने अपने देश के बाद सबसे पहले किस स्थान की यात्रा की?
उत्तर:
इन बतूता ने अपने देश के बाद सबसे पहले मक्का की यात्रा की।
प्रश्न 28.
सर टॉमस रो किस देश का यात्री था?
उत्तर:
सर टॉमस रो ब्रिटेन का यात्री था।
प्रश्न 29.
दूरते बारबोसा का संबंध किस देश से है?
उत्तर:
दूरते बारबोसा का संबंध पुर्तगाल से है।
प्रश्न 30.
बर्नियर ने अपनी भारत संबंधित रचना को फ्रांस में किसे भेंट किया?
उत्तर:
बर्नियर ने अपनी भारत संबंधित रचना को शासक लुई XIV को भेंट किया।
प्रश्न 31.
अल-बिरूनी को बन्दी किसने बनाया?
उत्तर:
अल-बिरूनी को महमूद गज़नी ने बन्दी बनाया।
प्रश्न 32.
अल-बिरूनी ने यूनानी भाषा में अनुवादित किस-किस का साहित्य पढ़ा?
उत्तर:
अल-बिरूनी ने यूनानी भाषा में अनुवादित अरस्तु व प्लेटो का साहित्य पढ़ा।
प्रश्न 33.
अल-बिरूनी की भारत के बारे में समझ के मुख्य आधार क्या थे?
उत्तर:
अल-बिरूनी की भारत के बारे में समझ के मुख्य आधार ब्राह्मणवादी ग्रन्थ थे।
प्रश्न 34.
अल-बिरूनी समाज में किन दो वर्गों की स्थिति एक जैसी बताते हैं?
उत्तर:
अल-बिरूनी समाज में वैश्य व शूद्र वर्गों की स्थिति एक जैसी बताते हैं।
प्रश्न 35.
बर्नियर ने भारतीय कृषक की दुर्दशा का क्या कारण बताया है?
उत्तर:
बर्नियर ने भारतीय कृषक की दुर्दशा का कारण भारत में भूमि का राजकीय स्वामित्व बताया है।
प्रश्न 36.
बतूता ने भारत में सर्वप्रथम किस स्थान के गवर्नर को उपहार दिए?
उत्तर:
बतूता ने भारत में सर्वप्रथम मुल्तान के गवर्नर को उपहार दिए।
प्रश्न 37.
बतूता के संस्मरणों को किसने लिखा?
उत्तर:
बतूता के संस्मरणों को इब्न जुजाई ने लिखा।
प्रश्न 38.
बतूता ने किस तरह के कपड़े को केवल अमीरों के प्रयोग में आने वाला बताया है?
उत्तर:
बतूता ने मलमल के कपड़ों को केवल अमीरों के प्रयोग में आने वाला बताया है।
प्रश्न 39.
बतूता किस तरह की डाक को अधिक तेज बताता है?
उत्तर:
बतूता पैदल डाक को अधिक तेज बताता है।
प्रश्न 40.
बतूता के अनुसार खुरासान के फल प्रायः भारत कैसे पहुँचते थे?
उत्तर:
बतूता के अनुसार खुरासान के फल पैदल डाक द्वारा भारत पहुँचते थे।
प्रश्न 41.
बतूता ने दौलताबाद में सबसे महत्त्वपूर्ण जगह कौन-सी बताई?
उत्तर:
बतूता ने दौलताबाद में सबसे महत्त्वपूर्ण जगह संगीत बाजार (ताराबबाद) बताई।
प्रश्न 42.
वह कौन-सा यूरोपीय यात्री था जो चिकित्सक के रूप में भारत आया था, लेकिन वापिस नहीं गया?
उत्तर:
मनूची नामक यूरोपीय यात्री जो चिकित्सक के रूप में भारत आया था लेकिन वापिस नहीं गया।
प्रश्न 43.
बर्नियर ने भारत व यूरोप की तुलना के लिए मुख्य रूप से किन शब्दों का प्रयोग किया है?
उत्तर:
बर्नियर ने भारत व यूरोप की तुलना के लिए मुख्य पूर्व व पश्चिम शब्दों का प्रयोग किया है।
प्रश्न 44.
बर्नियर किस तरह के भूमि स्वामित्व को अच्छा मानता है?
उत्तर:
बर्नियर निजी स्वामित्व को अच्छा मानता है।
प्रश्न 45.
बर्नियर के विचार किस विचारधारा से प्रभावित लगते हैं?
उत्तर:
बर्नियर के विचार यूरोप में पूंजीवादी धारणा से प्रभावित लगते हैं।
प्रश्न 46.
बर्नियर ने भारतीय नगरों के लिए क्या शब्द प्रयोग किया है?
उत्तर:
बर्नियर ने भारतीय नगरों के लिए शिविर नगर का प्रयोग किया है।
प्रश्न 47.
अल-बिरूनी ने किस-किस भारतीय भाषा के साहित्य को मौलिक या अनुवादित रूप में पढ़ा?
उत्तर:
अल-बिरूनी ने संस्कृत, पाली, प्राकृत नामक भारतीय भाषा के साहित्य को मौलिक या अनुवादित रूप में पढ़ा।
प्रश्न 48.
बतूता ने मुहम्मद तुगलक को कैसा शासक बताया है?
उत्तर:
बतूता ने मुहम्मद तुगलक विद्वान, कला, साहित्य का संरक्षक बताया है।
प्रश्न 49.
जौहरी के रूप में भारत आने वाले प्रमुख यात्री का नाम बताओ।
उत्तर:
जौहरी के रूप में भारत आने वाले प्रमुख यात्री का नाम ज्यौं बैप्टिस्ट तैवर्नियर था।
प्रश्न 50.
अल-बिरूनी ने समाज की जाति व्यवस्था से बाहर वाले वर्ग को क्या लिखा है?
उत्तर:
अल-बिरूनी ने समाज की जाति व्यवस्था से बाहर वाले वर्ग को अंत्यज लिखा है।
प्रश्न 51.
इन बतूता को भारत में वनस्पति के तौर पर कौन-कौन से पौधे आश्चर्यजनक लगे?
उत्तर:
इन बतूता को भारत में वनस्पति के तौर पर नारियल व पान के पौधे आश्चर्यजनक लगे।
प्रश्न 52.
‘रिहला’ तथा ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एंपायर’ के लेखक कौन थे?
उत्तर:
‘रिहला’ के लेखक इब्नबतूता तथा ‘ट्रेवलस इन द मुगल एंपायर’ के लेखक बर्नियर थे।
अति लघु-उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
विदेशी यात्रियों के भारत आने का उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
प्राचीनकाल से ही अनेक यात्री भारत में आते रहे हैं। ये एक देश से लोग दूसरे देशों में व्यापार व रोजगार के लिए जाते थे। कई लोग धर्म-प्रचार या तीर्थ यात्रा के उद्देश्य से दूसरे देश में जाते थे। कई बार ये यात्री विद्या अध्ययन के लिए भी जाते थे। भारत में भी यात्री इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आए।
प्रश्न 2.
इब्न बतूता विश्व यात्रा क्यों करता है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
इब्न बतूता साहित्यिक व शास्त्रीय ज्ञान से सन्तुष्ट नहीं था। उसके मन में यात्राओं के माध्यम से प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करने की लालसा उत्पन्न हुई। इसी की पूर्ति हेतु वह 22 वर्ष की आयु में घर से निकला तथा विश्व के विभिन्न स्थानों तथा दूर-दराज क्षेत्रों की यात्रा की। 1325-1332 ई० तक उसने मक्का व मदीना की यात्रा की तथा इसके बाद सीरिया, इराक, फारस, यमन, ओमान तथा पूर्वी अफ्रीका के देशों की यात्रा की। उसने अपनी यात्राएँ जल एवं थल दोनों मार्गों से की। भारत व चीन की यात्रा करने के उपरांत वह स्पेन, मोरक्को गया।
प्रश्न 3.
फ्रांस्वा बर्नियर कौन था? उसने भारत के बारे में क्या जानकारी दी है?
उत्तर:
बर्नियर का जन्म फ्रांस के अजों नामक प्रान्त के नामक स्थान पर 1620 ई० में हुआ। उसका परिवार कृषि का कार्य करता था। उसने मुगल काल में भारत की यात्रा की। 1656 से 1668 तक का समय उसने भारत में बिताया। वह इन वर्षों में दरबार से भी जुड़ा रहा तथा विभिन्न क्षेत्रों की यात्रा भी करता रहा। उसने जो कुछ देखा व समझा उसे ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ नामक रचना में लिखा।
प्रश्न 4.
अल-बिरूनी ने भारत की जाति-व्यवस्था का वर्णन कैसे किया है?
उत्तर:
अल-बिरूनी की भारतीय समाज के बारे में समझ उसी ऋग्वैदिक पर आधारित थी जिसमें वर्णों की उत्पत्ति बताई गई है। इस समझ के अनुसार ब्राह्मण इस समाज में सर्वोच्च स्थान था। उनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के सिर से हुई। उसके बाद क्षत्रियों का स्थान था जिनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के कंधों व हाथों से हुई। क्षत्रियों के बाद वैश्यों का स्थान था। इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा की जंघाओं से हुई है। इस कड़ी में चौथा स्थान शूद्रों का है। इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के चरणों से हुई है। वह यह भी लिखता है कि तीसरे व चौथे वर्ण में कोई अधिक अंतर नहीं है।
प्रश्न 5.
इन बतूता ने भारत में नारियल व पान के बारे में क्या वर्णन किया है?
उत्तर:
बतूता ने भारतीय नारियल व पान की विशेष चर्चा की है। नारियल के बारे में वह लिखता है कि, “ये हू-ब-हू खजूर के वृक्ष जैसे दिखते हैं। नारियल के वृक्ष का फल मानव के सिर से मेल खाता है, क्योंकि इसमें मानों दो आँखें तथा एक मुख है और अन्दर का भाग हरा होने के कारण मस्तिष्क जैसा दिखता है। पान के बारे में बतूता बताता है कि, “पान एक ऐसा वृक्ष है जिसे अंगूर-लता की तरह उगाया जाता है। पान का कोई फल नहीं होता और इसे केवल पत्तियों के लिए ही उगाया जाता है।”
प्रश्न 6.
इन बतूता के दिल्ली से संबंधित वृत्तांत का उल्लेख करें।
उत्तर:
दिल्ली को बतूता ने देहली कहा है। उसके अनुसार, “देहली बड़े क्षेत्र में फैला घनी आबादी वाला शहर है। शहर के चारों ओर बनी प्राचीर अतुलनीय है, दीवार की चौड़ाई ग्यारह हाथ है। प्राचीर के अन्दर खाद्य सामग्री, ह घेरेबंदी में काम आने वाली मशीनों के संग्रह के लिए भंडार गृह बने हुए थे।”
प्रश्न 7.
बतूता भारतीय डाक व्यवस्था से क्यों प्रभावित हुआ तथा उसने इसका वर्णन कैसे किया?
उत्तर:
इब्न बतूता भारत की संचार व्यवस्था से बहुत अधिक प्रभावित हुआ। उसने इसके बारे में विस्तृत जानकारी दी। वह इसे अद्भुत या अनूठी बताता है। उसके अनुसार उस समय दो प्रकार की डाक व्यवस्था थी जिसे उलुक तथा दावा कहा जाता था। उलुक घोड़ों की डाक सेवा थी। हर चार मील की दूरी पर स्थापित चौंकी में शाही सेना के घोड़े होते थे। इस तरह एक घोड़ा एक समय में चार मील ही जाया करता था।
दूसरी तरह की डाक सेवा दावा थी जिसका पैदल व्यवस्था से संबंध था। इस व्यवस्था में प्रति मील तीन व्यक्ति बदले जाते थे। प्रारंभ में एक संदेशवाहक एक हाथ में छड़ी तथा दूसरे में पत्र या माल लेकर अपनी अधिकतम . क्षमतानुसार भागता था। यह क्रिया पत्र में गंतव्य स्थान तक पहुंचने तक चलती रहती थी।
प्रश्न 8.
बर्नियर ने भारतीय किसानों की स्थिति के बारे में क्या लिखा है?
उत्तर:
बर्नियर ने कृषकों के विषय में काफी कुछ लिखा है। उसके अनुसार, “हिंदुस्तान के ग्रामीण अंचलों में काफी भूमि रेतीली या बंजर है। यहाँ की खेती भी अच्छी नहीं है। कृषक जीवन-निर्वहन के साधनों से वंचित कर दिया जाता था। निरंकुशता से हताश हो किसान गाँव छोड़कर चले जाते थे।”
प्रश्न 9.
बर्नियर ने भारत में भूमि स्वामित्व के बारे में क्या विचार दिए हैं?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार भारत में भूमि पर निजी स्वामित्व नहीं था, बल्कि सारे साम्राज्य की भूमि का मालिक स्वयं सम्राट था। उसका यह विचार सोलहवीं व सत्रहवीं सदी के अन्य कुछ यात्रियों ने भी अपनाया है। वर्णन के अनुसार यह व्यवस्था यूरोप से भिन्न थी क्योंकि वहाँ भूमि पर निजी स्वामित्व था। बर्नियर के अनुसार निजी स्वामित्व का अभाव राज्य व जनता दोनों के लिए हानिकारक था। क्योंकि कृषक न तो अपनी जमीन अपनी संतान को दे सकते थे, न ही वे किसी तरह का निवेश कृषि में करते थे। इसके कारण भारत में कृषि व्यवस्था पिछड़ी हुई रही तथा किसानों का असीम शोषण हुआ।
प्रश्न 10.
बर्नियर का भारतीय अर्थव्यवस्था से संबंधित वृत्तांत विरोधाभासपूर्ण क्यों हैं?
उत्तर:
बर्नियर अपने वृत्तांत के द्वारा यूरोप के शासकों को चेतावनी देता है कि वे निजी स्वामित्व में हस्तक्षेप न करें क्योंकि राज्य के स्वामित्व का सिद्धांत यूरोप के खेतों को विनाश के कगार पर ले जाएगा तथा उनकी पहचान के लिए भी घातक होगा। इसलिए वह भारत की ऐसी तस्वीर बनाता है लेकिन अपने वर्णन में अन्य स्थान पर भारत में व्यापार, कृषि के उद्योगों की प्रशंसा करता है।
प्रश्न 11.
अल-बिरूनी कौन था? उसे कौन-सी दो समस्याओं का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
अल-बिरूनी एक विदेशी यात्री था। वह महमूद गज़नवी के साथ भारत आया। उसका वास्तविक नाम अबू रेहान था। उसका जन्म मध्य-एशिया में स्थित आधुनिक उज्बेकिस्तान के ख्वारिज्म (वर्तमान नाम खीवा) नामक स्थान पर 973 ई० में हुआ। अल-बिरूनी ने ख्वारिज्म में शिक्षा प्राप्त की। अल-बिरूनी द्वारा वर्णित की गई दो समस्याएँ निम्नलिखित प्रकार से हैं
- वह बताता है कि सबसे पहली समस्या संस्कृत भाषा थी। जो लिखने, पढ़ने व अनुवाद करने में अरबी व फारसी से बहुत – भिन्न थी। यह भाषा ऊँची पहुँच वाली थी।
- दूसरी समस्या यहाँ की धार्मिक अवस्था तथा रीति-रिवाज़ थी। जो उसके समाज से भिन्न थी। उन्हें समझना कठिन था।
प्रश्न 12.
इब्न बतूता के भारत में प्रवास की जानकारी दें।
उत्तर:
बतूता 1334 ई० में दिल्ली पहुँचा तथा उसने सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक से भेंट की। सुल्तान ने बतूता को दिल्ली का काज़ी (न्यायाधीश) नियुक्त कर उसे शाही सेवा में ले लिया। उसने 8 वर्षों तक इस पद पर कार्य किया। इसी दौरान सुल्तान के साथ उसका मतभेद हो गया। लेकिन बाद में सुल्तान ने एक बार फिर उस पर विश्वास कर शाही सेवा में ले लिया। इस बार उसे चीन में सुल्तान की ओर से दूत बन कर जाने का आदेश दिया। इस तरह 1342 ई० में इन बतूता ने चीन की ओर प्रस्थान किया।
प्रश्न 13.
इब्न बतूता का वृत्तांत किन अन्य लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना?
उत्तर:
इन बतूता का वृत्तांत उच्च लेखकों व यात्रियों के लिए यह मार्गदर्शक पहलू बन गया। इनमें सबसे अधिक प्रभावित होने वाले यात्रियों में समरकंद का अब्दुर रज्जाक (यात्रा लगभग 1440), महमूद वली बलखी (यात्रा लगभग 1620) तथा शेख अली हाजिन (यात्रा लगभग 1740) के नाम लिए जा सकते हैं। इनमें बलखी तो भारत से इतना प्रभावित हुआ।
प्रश्न 14.
इब्न बतूता के दौलताबाद के बारे में वृत्तांत का वर्णन दें।
उत्तर:
दौलताबाद के बारे में बतूता बताता है कि यह दिल्ली से किसी तरह कम नहीं था और आकार में उसे चुनौती देता था। यहाँ पुरुष व महिला गायकों के लिए एक बाजार है जिसे ताराबबाद कहते हैं। यह सबसे बड़े एवं सुन्दर बाजारों में से एक है। यहाँ बहुत सी दुकानें हैं और प्रत्येक दुकान में एक ऐसा दरवाजा है जो मालिक के आवास में खुलता है। इस बाजार में इबादत के लिए मस्जिदें बनी हुई हैं।
प्रश्न 15.
बर्नियर की ‘अविकसितं पूर्व की धारणा की व्याख्या करें।
उत्तर:
बर्नियर ने अपनी रचना में भारत का वृत्तांत तुलनात्मक ढंग से किया है। उसने अपनी रचना को आलोचनात्मक, अंतर्दृष्टिपूर्ण व गहन चिन्तन पर आधारित किया है। वह वर्णन में उन चीजों को विशेष महत्त्व देता है जो यूरोप से विपरीत थी। वह यूरोप को भारत से श्रेष्ठ दिखाने पर विशेष जोर देता है। इस आधार पर वह भारत को ‘अविकसित पूर्व के रूप में वर्णित करता है। .
प्रश्न 16.
यात्रियों के वृत्तांत के दो कमजोर पक्ष बताओ।
उत्तर:
- यात्री वृत्तांत देते समय अपने क्षेत्र, धर्म व देश की परम्पराओं व रीति-रिवाजों को अन्य से श्रेष्ठ बताते हैं।
- वे स्थानीय लोगों की भाषा से परिचित नहीं होते तथा इन्हें क्षेत्र-विशेष को समझने के लिए द्विभाषीय पर निर्भर रहना पड़ता है।
प्रश्न 17.
यात्रियों के वृत्तांत का सकारात्मक पक्ष क्या होता है?
उत्तर:
यात्रियों के वृत्तांत में स्थानीय व्यक्तियों का प्रभाव नहीं होता, वे जैसा देखते हैं वैसा वर्णन कर देते हैं। जिसमें सच्चाई व यथार्थ की जानकारी की अधिक संभावना रहती है।
प्रश्न 18.
अल-बिरूनी के प्रारंभिक जीवन का वर्णन करें।
उत्तर:
अल-बिरूनी का वास्तविक नाम अबू रेहान था। उसका जन्म मध्य एशिया में स्थित आधुनिक उज्बेकिस्तान के ख्वारिज्म (वर्तमान नाम खीवा) नामक स्थान पर 973 ई० में हुआ। अल-बिरूनी ने ख्वारिज्म में शिक्षा ली। उसने यहाँ पर सीरियाई, हिब्रू, फारसी, अरबी व संस्कृत भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। अपनी योग्यता व प्रतिभा के बल पर वह मामूनी राज व्यवस्था में मंत्री के पद तक पहुँच गया।1017 ई० में महमूद गजनी ने ख्वारिज्म पर आक्रमण किया तथा जीत हासिल की। विजय के बाद उसने यहाँ पर कुछ लोगों को बंदी बनाया। अल-बिरूनी भी इन्हीं बंदी लोगों में एक था, उसे गजनी लाया गया। बाद में अल-बिरूनी महमूद गज़नी का राजकवि भी बना।
प्रश्न 19.
अल-बिरूनी ने अपनी समस्याओं का समाधान कैसे किया? क्या वह उसमें सफल रहा?
उत्तर:
अल-बिरूनी ने अपनी समस्याओं के समाधान के लिए ब्राह्मणों द्वारा रचित पुस्तकों व अनुवादों को अधिक-से-अधिक पढ़ा। उसका यह पक्ष कमजोर रहा क्योंकि उसने निजी विचारों व अनुभवों को महत्त्व नहीं दिया बल्कि वह पूरी तरह ब्राह्मणों द्वारा रचित साहित्य पर आश्रित रहा। उसने भारतीय समाज के बारे में जानकारी देते हुए वेदों, पुराणों, भगवद्गीता, पतंजलि की रचनाओं तथा मनुस्मृति के अंश यथावत् ही लिख दिए।
प्रश्न 20.
‘हिन्दू’ शब्द की उत्पत्ति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
हिंदू शब्द की उत्पत्ति सिन्धु से हुई है। फारसी भाषा में ‘स’ शब्द का उच्चारण ‘ह’ से किया जाता है। जिसके कारण वे सिन्धु को हिन्दू या सप्ताह को हप्ताह बोलते हैं। फारस क्षेत्र के लोग सिन्धु नदी के पूर्व रहने वाले लोगों के लिए हिन्दू का प्रयोग करते हैं तथा उनका क्षेत्र हिन्दोस्तान ईरानी अभिलेखों में ‘हिन्द’ शब्द का प्रयोग छठी सदी ई०पू० में सिन्धु क्षेत्र के लिए मिलता है।
प्रश्न 21.
अल-बिरूनी ने फारस के समाज के विभाजन को किस तरह समझा?
उत्तर:
अल-बिरूनी के अनुसार फारस (वर्तमान ईरान) क्षेत्र चार सामाजिक वर्गों में विभाजित था। इन चार वर्गों में वह पहले वर्ग में शासक व घुड़सवार, दूसरे वर्ग में भिक्षु, तीसरे वर्ग में आनुष्ठानिक पुरोहित, चिकित्सक, खगोल शास्त्री व वैज्ञानिक तथा चौथे में कृषक व शिल्पकार को बताता है।
प्रश्न 22.
इब्न बतूता के प्रारंभिक जीवन का परिचय दें।
उत्तर:
इब्न बतूता का जन्म अफ्रीका महाद्वीप के मोरक्को नामक देश के तैंजियर नामक स्थान पर 24 फरवरी, 1304 ई० को हुआ। उसने पारिवारिक परंपरा के अनुरूप साहित्यिक व धार्मिक ज्ञान अच्छी तरह से प्राप्त किया। इस तरह वह कम आयु में ही उच्चकोटि का धर्मशास्त्री बन गया। – इब्न बतूता साहित्यिक व शास्त्रीय ज्ञान से सन्तुष्ट नहीं था। उसके मन में यात्राओं के माध्यम से प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करने की लालसा उत्पन्न हुई। इसी की पूर्ति हेतु वह 22 वर्ष की आयु में घर से निकला तथा विश्व के विभिन्न स्थानों तथा दूर-दराज क्षेत्रों की यात्रा की।
प्रश्न 23.
इब्न बतूता की रिहला का संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर:
रिला या किताब-ए-रला इब्न बतूता के संस्मरणों पर आधारित रचना है। इसे ‘सफरनामा’ के नाम से अनुवादित किया गया है। बतूता के मोरक्को वापिस पहुँचने पर वहाँ के शासक ने इब्न जुज़ाई नामक व्यक्ति को यह कार्य दिया कि वह बतूता से बातचीत करे तथा उसकी स्मृति को एक रचना के रूप में प्रस्तुत करे। इब्न जुज़ाई ने बतूता से जानकारी लेकर इसे लिखा। इसमें कुल 13 अध्याय हैं।
प्रश्न 24.
इब्न बतूता ने भारतीय शहरों के बारे में क्या लिखा है?
उत्तर:
इब्न बतूता के अनुसार भारतीय शहर घनी आबादी वाले तथा समृद्ध थे। यहाँ सड़कें तंग, भीड़-भाड़ वाली, रंगीन बाजार तथा बड़े-बड़े भवन थे। इन शहरों में जीवन-यापन की सारी चीजें मिल जाती थीं। वह बताता है कि ये शहर मात्र व्यापार या आर्थिक विनिमय के केन्द्र नहीं थे बल्कि सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र भी थे। प्रत्येक शहर में मन्दिर व मस्जिद देखने को मिलते थे। अधिकतर नगरों में संगीत एवं नृत्य के लिए विशेष स्थल भी थे।
प्रश्न 25.
इब्न बतूता ने भारतीय गाँवों के बारे में क्या बताया है?
उत्तर:
इब्न बतूता बताता है कि भारतीय गाँवों की व्यवस्था कृषि पर निर्भर है। यहाँ कृषि उन्नत है। इसके उन्नत होने का मुख्य कारण भूमि का उपजाऊपन है। यहाँ कृषक वर्ष में दो फसलें उगाते हैं। उसके अनुसार शहर की सम्पन्नता का कारण गाँव हैं। उसके अनुसार अधिकतर भारतीय गाँव कच्चे तथा घास-फूस की झोंपड़ी वाले थे। वह गाँवों के लोगों के आपसी सम्बन्ध काफी अच्छे बताता है।
प्रश्न 26.
इब्न बतूता ने भारतीय व्यापार व वाणिज्य के बारे में क्या विचार दिए हैं?
उत्तर:
बतूता के अनुसार भारत में व्यापार व वाणिज्य काफी विकसित अवस्था में था। मध्य पश्चिमी एशिया व दक्षिण पूर्वी एशिया, जिसमें वह स्पष्ट करता है कि इनके साथ भारत लगभग प्रत्येक चीज का व्यापार करता था। यह व्यापार कारवाँ में होता था। उसके अनुसार भारतीय कपड़ा (सूती, महीन मलमल, रेशमी, जरी वाला व काटन) तथा शिल्पकारी की चीज़ों की लगभग इस . क्षेत्र में पूरी माँग थी जिसमें व्यापारियों को खूब मुनाफा होता था। वह भारतीय मलमल की विभिन्न किस्मों (गंगाजल, मलमलखास, सरकार-ए-आली, शबनम) इत्यादि के बारे में बताता है।
प्रश्न 27.
बर्नियर का संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर:
बर्नियर का जन्म फ्रांस में 1620 ई० में हुआ। उसने कृषि के साथ-साथ पढ़ाई की तथा पेशे से चिकित्सक बन गया। वह चिकित्सक के रूप में 1656 ई० में सूरत पहुँचा। उसे दारा शिकोह ने अपना चिकित्सक बना दिया। दारा की मृत्यु के बाद उसे आर्मीनियाई अमीर (सामन्त) डानिश खान ने संरक्षण दिया। उसने भारत में सूरत, आगरा, लाहौर, कश्मीर, कासिम बाजार, मसुलीपट्टम व गोलकुण्डा इत्यादि स्थानों का भ्रमण किया। वह 1668 ई० में भारत से फ्रांस लौट गया 1688 ई० में उसके पैतृक स्थान पर ही उसकी मृत्यु हो गई।
प्रश्न 28.
बर्नियर की रचना ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
फ्रांस्वा बर्नियर ने 1656 से 1668 तक का समय भारत में बिताया। वह इन वर्षों में मुगल दरबार से भी जुड़ा रहा तथा विभिन्न क्षेत्रों की यात्रा भी करता रहा। उसने जो कुछ देखा व समझा उसे ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ नामक रचना में लिखता गया। उसकी यह रचना फ्रांस में 1670-71 में प्रकाशित हुई तथा इसे फ्रांस के शासक लुई XIV को समर्पित किया गया।
प्रश्न 29.
मॉन्टेस्क्यू ने बर्नियर के वृत्तांत से क्या प्रेरणा ली?
उत्तर:
मॉन्टेस्क्यू 18वीं शताब्दी का फ्रांसीसी चिन्तक था। उसने बर्नियर के वृत्तांत का प्रयोग करके यूरोप में निरंकुशता के सिद्धांत को स्थापित करने का प्रयास किया, साथ ही शासकों को अति निरंकुशता से बचने की सलाह दी क्योंकि एशिया के शासकों की अति निरंकुशता के कारण प्रजा को गरीबी व दासता की स्थिति का जीवन जीनां पड़ता है। उसने अपने लेखन में स्पष्ट किया कि एशिया में सारी भूमि का स्वामित्व राजा के पास था तथा निजी सम्पत्ति अस्तित्व में नहीं थी।
प्रश्न 30.
कार्ल मार्क्स ने बर्नियर के वृत्तांत का प्रयोग करके एशिया को किस प्रकार समझा?
उत्तर:
कार्ल मार्क्स ने बर्नियर के वृत्तांत का प्रयोग एशियाई उत्पादन शैली तथा व्यवस्था (ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर) को समझने में किया। उसके अनुसार उपनिवेशवाद से पहले भारत एवं अन्य एशियाई देशों में अधिशेष का अधिग्रहण राज्य करता था। जिसके कारण एक ऐसे समाज का निर्माण हुआ जो काफी हद तक स्वायत्त था तथा आन्तरिक दृष्टि से सामन्तवादी था। वास्तव में यह प्रणाली गतिहीन तथा निष्क्रिय थी क्योंकि शासक व समाज में यह एक समझौता था।
प्रश्न 31.
बर्नियर भारत के ग्रामीण समाज का वर्णन किस तरह देता है?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार भारत के ग्रामीण समाज में सामाजिक व आर्थिक अन्तर बड़े स्तर पर थे। इस समाज में एक ओर बड़े-बड़े जमींदार थे जो भूमि पर उच्चाधिकारों का प्रयोग करते थे, दूसरी ओर अस्पृश्य भूमि विहीन श्रमिक थे। इन दोनों के मध्य कृषक था जो किराए के श्रम का प्रयोग करके माल (उपज) उत्पादित करता था। कृषकों में भी एक वर्ग छोटे किसानों के रूप में था जो मुश्किल से अपने गुजारे योग्य उत्पादन कर पाता था।
प्रश्न 32.
बर्नियर ने राजकीय कारखानों के बारे में क्या लिखा है?
उत्तर:
भारत में शाही आवश्यकता की पूर्ति की चीजें जिस स्थान पर बनती थीं, उन्हें राजकीय कारखाने कहा जाता था। इन कारखानों के विभिन्न कक्षों में कारीगर अपना-अपना काम करते थे। ये कारीगर या शिल्पकार अपने कारखानों में हर रोज सुबह आते हैं, जहाँ वे पूरा दिन कार्यरत रहते हैं और शाम को अपने-अपने घर चले जाते हैं। ये कारीगर जीवन की उन स्थितियों में सुधार करने के इच्छुक नहीं हैं जिनमें वह पैदा हुए हैं।
प्रश्न 33.
यात्रियों के वृत्तांत में दास व दासियों के मुख्य रूप से क्या कार्य बताए गए हैं?
उत्तर:
यात्रियों के अनुसार, पुरुष दास का प्रयोग घरेलू कार्यों; जैसे बाग-बगीचों की देखभाल, पशुओं की देखरेख, महिलाओं … व पुरुषों को पालकी या डोली में एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने के लिए होता था। दासियाँ शाही महल, अमीरों के आवास पर घरेलू कार्य करने व संगीत गायन के लिए खरीदी जाती थीं। सुल्तान अपने अमीरों व दरबारियों पर नियंत्रण रखने के लिए भी दासियों का प्रयोग करता था।
लघु-उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
अल-बिरूनी कौन था? वह भारत कैसे आया?
उत्तर:
अल-बिरूनी एक विदेशी यात्री था। वह महमूद गज़नवी के साथ भारत आया। उसका वास्तविक नाम अबू रेहान था। उसका जन्म मध्य-एशिया में स्थित आधुनिक उज़्बेकिस्तान के ख्वारिज्म (वर्तमान नाम खीवा) नामक स्थान पर 973 ई० में हुआ। अल-बिरूनी ने ख्वारिज्म में शिक्षा प्राप्त की। उसने यहाँ पर सीरियाई, हिब्रू, फारसी, अरबी व संस्कृत भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। वह यूनानी भाषा को नहीं समझता था। इसी कारण वह प्लेटो व अरस्तु के दर्शन व ज्ञान को अनुवादित रूप में पढ़ पाया। वह अपनी योग्यता व प्रतिभा के बल पर मामूनी राज व्यवस्था में मंत्री के पद तक पहुँच गया।
1017 ई० में महमूद गजनवी ने खारिज़्म पर आक्रमण किया तथा जीत हासिल की। विजय के बाद उसने यहाँ पर कुछ लोगों को बंदी बनाया। इनमें कुछ विद्वान तथा कवि भी थे। अल-बिरूनी भी इन्हीं बंदी लोगों में एक था तथा वह इसी अवस्था में गजनी लाया गया। गजनी में रहते हुए महमूद उसकी प्रतिभा से प्रभावित हुआ। फलतः न केवल महमूद ने उसे मुक्त किया वरन् उसे दरबार में सम्मानजनक पद भी दिया।
बाद में अल-बिरूनी उसका राजकवि भी बना। गजनी प्रवास के दौरान उसने खगोल-विज्ञान, गणित व चिकित्सा से संबंधित पुस्तकें पढ़ीं। वह महमूद के साथ भारत में कई बार आया तथा उसने इस क्षेत्र में ब्राह्मणों, पुरोहितों व विद्वानों के साथ काफी समय बिताया। उनके साथ रहने के कारण वह संस्कृत भाषा में और प्रवीण हो गया। अब वह न केवल इसे समझ सकता था बल्कि अनुवाद करने में भी सक्षम हो गया। उसने सहारा रेगिस्तान से लेकर वोल्गा नदी तक की यात्रा के आधार पर लगभग 20 पुस्तकों की रचना की। इन रचनाओं में सबसे महत्त्वपूर्ण ‘किताब-उल-हिन्द’ है। गजनी में ही 1048 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।
प्रश्न 2.
अल-बिरूनी की प्रमुख समस्याएँ क्या थीं? उसने इनका समाधान कैसे किया?
उत्तर:
अल-बिरूनी को भारत में कई समस्याएँ आईं। उसने इनका वर्णन इस प्रकार किया
(i) वह बताता है कि सबसे पहली बाधा संस्कृत भाषा थी। जो लिखने, पढ़ने व अनुवाद करने में अरबी व फारसी से बहुत भिन्न थी। यह भाषा ऊँची पहुँच वाली थी। इस भाषा में एक चीज के लिए कई शब्द (मूल तथा व्युत्पन्न) प्रयोग होते थे तथा एक शब्द कई चीजों के लिए प्रयुक्त होता था।
(ii) उसके अनुसार दूसरी बाधा यहाँ की धार्मिक अवस्था तथा रीति-रिवाज़ व प्रथाएँ थीं। जो उसके समाज से भिन्न थीं। एक अपरिचित के रूप में उन्हें समझना कठिन था।
(iii) तीसरी बाधा स्थानीय लोगों का अभिमान तथा अलग रहने की प्रवृत्ति थी जिसके कारण वे बाह्य व्यक्ति के साथ इतनी आसानी से नहीं घुलते-मिलते थे।
इन समस्याओं के समाधान के लिए उसने ब्राह्मणों द्वारा रचित पुस्तकों व अनुवादों को अधिक-से-अधिक समझा। वह पूरी तरह ब्राह्मणों द्वारा रचित साहित्य पर आश्रित रहा। उसने भारतीय ग्रन्थों, वेदों, पुराणों, भगवद्गीता, पतंजलि की रचनाओं तथा मनुस्मृति का अध्ययन किया। उसने इसी आधार पर अपनी समस्याएँ सुलझाईं।
प्रश्न 3.
इब्न बतूता कौन था? उसके जीवन के बारे में आप क्या जानते हो? वह भारत क्यों आया?
उत्तर:
इब्न बतूता चौदहवीं शताब्दी का एक यात्री था। उसने विश्व के विभिन्न क्षेत्रों का 1325 से 1354 ई० तक भ्रमण किया। अफ्रीका, एशिया व यूरोप के कुछ हिस्से की यात्रा करने के कारण उसे एक प्रारंभिक विश्व यात्री की संज्ञा दी जाती है। इब्न बतूता का जन्म अफ्रीका महाद्वीप के मोरक्को नामक देश के तैंजियर नामक स्थान पर 24 फरवरी, 1304 ई० को हुआ। बतूता का परिवार मोरक्को क्षेत्र में सबसे सम्मानित, शिक्षित व इस्लामी कानूनों का विशेषज्ञ माना जाता था। पारिवारिक परंपरा विरासत में मिलने व अपनी लगन के कारण वह कम आयु में ही उच्चकोटि का धर्मशास्त्री बन गया। इब्न बतूता साहित्यिक व शास्त्रीय ज्ञान से सन्तुष्ट नहीं था।
उसके मन में यात्राओं के माध्यम से प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करने की लालसा उत्पन्न हुई। इसी की पूर्ति हेतु वह 22 वर्ष की आयु में घर से निकला तथा विश्व के विभिन्न स्थानों तथा दूर-दराज क्षेत्रों की यात्रा की। 1325-1332 ई० तक उसने मक्का व मदीना की यात्रा की। उसने अपनी यात्राएँ जल एवं थल दोनों मार्गों से की। वह मध्य-एशिया के रास्ते । से भारत की ओर बढ़ा तथा 1333 ई० में सिन्ध पहुँचने में सफल रहा।
वह 1334 ई० में दिल्ली पहुँचा तथा सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक से भेंट की। ये दोनों एक दूसरे की विद्वता से प्रभावित हुए। सुल्तान ने बतूता को दिल्ली का काज़ी (न्यायाधीश) नियुक्त कर उसे शाही सेवा में ले लिया। उसने 8 वर्षों तक इस पद पर कार्य किया। 1342 ई० में उसे मुहम्मद तुगलक ने चीन में भारत का दूत नियुक्त किया।
उसने चीन पहुँचकर विभिन्न स्थानों की यात्रा की। चीनी शासक ने उसे दूत के रूप में स्वीकार किया। 1347 ई० में वहाँ से वापिस अपने देश मोरक्को के लिए चल दिया। वह 8 नवम्बर, 1349 ई० को अपने पैतृक स्थान तैंजियर पहुँच गया। उसने अपनी स्मृति के आधार पर यह सारी जानकारी शासक को उपलब्ध कराई जिसे संकलित कर रिला या रह्ला या सफरनामा नामक पुस्तक के रूप में सुरक्षित किया गया। इसमें 1325-1354 के बीच की उसकी यात्राओं का वर्णन है। इब्न बतूता की मृत्यु 1377 ई० तैंजियर में हुई।
प्रश्न 4.
इब्न बतूता के ‘रिहला’ पर नोट लिखो।
उत्तर:
रिहला या किताब-ए-रला इब्न बतूता के संस्मरणों पर आधारित रचना है। इसे ‘सफरनामा’ के नाम से अनुवादित किया गया है। बतूता के मोरक्को वापिस पहुँचने पर वहाँ के शासक ने इब्न जुजाई नामक व्यक्ति को यह कार्य दिया कि वह बतूता से बातचीत करे तथा उसकी स्मृति को एक रचना के रूप में प्रस्तुत करे। इब्न जुजाई रिहला की प्रस्तावना में लिखता है कि मोरक्को में राजा के द्वारा एक निर्देश दिया गया कि वे (इब्न बतूता) अपनी यात्रा में देखे गए शहरों का तथा अपनी स्मृति में बैठ गई रोचक घटनाओं का एक वृत्तांत लिखवाएँ और साथ ही विभिन्न देशों के शासकों में से जिनसे वे मिले, उनके महान साहित्यकारों के तथा उनके धर्मनिष्ठ संतों के बारे में बताएं।
तदनुसार उन्होंने इन सभी विषयों पर एक कथानक लिखवाया जिसने मस्तिष्क को मनोरंजन तथा कान और आँख को प्रसन्नता दी। साथ ही उन्होंने कई प्रकार के असाधारण विवरण जिनके प्रतिपादन से लाभप्रद उपदेश मिलते हैं, दिए तथा असाधारण चीजों के बारे में बताया जिनके सन्दर्भ से अभिरुचि जगी।
रिहला में भारत के बारे में विस्तृत वर्णन दिया गया है। इस वर्णन में भारत की प्रकृति, पशु-पक्षी, वन, नदियों, गाँव व शहरों के बारे में बताया गया है। उसने मुहम्मद तुगलक के बारे में भी विस्तृत प्रकाश डाला है। बतूता मुहम्मद तुगलक को सन्तुलित, शिक्षित, न्यायप्रिय, प्रतिभाशाली व दूरदर्शी शासक बताता है।
इब्न बतूता ने भारत में लगभग 14 वर्ष का समय लगाया तथा राज्य, समाज, धर्म, प्रकृति तथा अर्थव्यवस्था से संबंधित हर प्रकार की सूचना एकत्रित की। उसका वृत्तांत उसके समकालीन लेखकों की तुलना में अधिक विश्वसनीय है। उसने सूचनाओं को काफी हद तक दरबार से मुक्त भी रखा है। वह कृषि, उद्योग व व्यापार की दृष्टि से भारत को उन्नत बताता है। सड़कों को असुरक्षित लिखता है। परिवहन के साधनों में पशुओं के प्रयोग को विशेष महत्त्व देता है। भारतीय बाजार के बारे में रिहला का विवरण उल्लेखनीय है।
प्रश्न 5.
इब्न बतूता ने भारतीय शहरों व शहरी जीवन पर क्या प्रकाश डाला है? अथवा इब्न बतूता द्वारा वर्णित भारतीय शहरों की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
इब्न बतूता ने भारत में अपना अधिक समय शहरों में बिताया इसलिए उसके वर्णन में शहरों का विशेष उल्लेख है। उसने सिन्ध, मुल्तान, लाहौर, दिल्ली, अजमेर, उज्जैन, काबुल, कन्धार, दौलताबाद इत्यादि; शहरों में अधिक समय बिताया। इसलिए वह इन स्थानों का वर्णन और स्थानों से अलग करता है। उसके अनुसार भारतीय शहर घनी आबादी वाले तथा समृद्ध थे। यहाँ सड़कें तंग, भीड़-भाड़ वाली, रंगीन बाजार तथा बड़े-बड़े भवन थे। इन शहरों में जीवन-यापन की सारी चीजें मिल जाती थीं। वह बताता है कि ये शहर मात्र व्यापार या आर्थिक विनिमय के केन्द्र नहीं थे बल्कि सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र भी थे। प्रत्येक शहर में मन्दिर व मस्जिद देखने को मिलते थे।
अधिकतर नगरों में संगीत एवं नृत्य के लिए विशेष स्थल भी थे। जहाँ पर विशेष तरह के आयोजन चलते रहते थे।
इब्न बतूता मुहम्मद तुगलक के शासन काल में भारत आया था। इसलिए वह स्पष्ट करता है कि उसकी दो राजधानियाँ थीं। दोनों ही आकार व सुविधाओं की दृष्टि से एक-दूसरे का पूरा मुकाबला करती थीं। वह यह भी बताता है कि दिल्ली पुराना शहर था जबकि दौलताबाद एक नया शहर था।
दिल्ली-दिल्ली को उसने अन्य तत्कालीन स्रोतों की भाँति देहली कहा है। उसके अनुसार, “देहली बड़े क्षेत्र में फैला घनी आबादी वाला शहर है। शहर के चारों ओर बनी प्राचीर अतुलनीय है, दीवार की चौड़ाई ग्यारह हाथ है। प्राचीर का निचला भाग पत्थर से बना है जबकि ऊपरी भाग ईंटों से। इस शहर में कुल 28
द्वार हैं जिन्हें दरवाजा कहा जाता है। इनमें सबसे विशाल बदायूँ दरवाजा है।” दौलताबाद-दौलताबाद के बारे में बतूता बताता है कि यह दिल्ली से किसी तरह कम नहीं था और आकार में उसे चुनौती देता था। यहाँ पुरुष व महिला गायकों के लिए एक बाजार है जिसे ताराबबाद कहते हैं। यह सबसे बड़े एवं सुन्दर बाजारों में से एक है। यहाँ बहुत सी दुकानें हैं और प्रत्येक दुकान में एक ऐसा दरवाजा है जो मालिक के आवास में खुलता है। दुकानों को कालीन से सजाया जाता था। बाजार के मध्य में एक विशाल गुंबद खड़ा है।
इस प्रकार कहा जा सकता है उसने भारतीय शहरों को अलग-अलग ढंग से देखा तथा उसी के अनुरूप वर्णन किया है।
प्रश्न 6.
इब्न बतूता ने भारत की संचार प्रणाली की क्या जानकारी दी है?
उत्तर:
इब्न बतूता भारत की संचार व्यवस्था से बहुत अधिक प्रभावित हुआ। वह इसे अद्भुत या अनूठी प्रणाली बताता है। उसके अनुसार इस संचार प्रणाली के दो उद्देश्य थे। पहला एक राज्य क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक तत्काल सूचना भेजना तथा दूसरा अल्प सूचना पर सामान भेजना। राज्य के द्वारा इसका विशेष प्रबन्ध किया गया था। बतूता के अनुसार उस समय दो प्रकार की डाक व्यवस्था थी जिसे उलुक तथा दावा कहा जाता था। उलुक घोड़ों की डाक सेवा थी। हर चार मील की दूरी पर स्थापित चौंकी में शाही सेना के घोड़े होते थे। इस तरह एक घोड़ा एक समय में चार मील ही जाया करता था। दूसरी तरह की डाक सेवा दावा थी जिसका पैदल व्यवस्था से संबंध था। इस व्यवस्था में प्रति मील तीन व्यक्ति बदले जाते थे। उसके अनुसार भारत में औसतन तीन मील की दूरी पर गाँव थे। गाँव के बाहर तीन मंडप होते थे।
वहाँ लोग समूह में बैठे होते थे। उनमें से प्रत्येक के पास दो हाथ लम्बी एक छड़ी होती थी जिसके ऊपर तांबे की घंटियाँ लगी होती थीं। जब डाक प्रारंभ होती थी तो एक संदेशवाहक एक हाथ में छड़ी तथा दूसरे में पत्र या माल लेकर अपनी अधिकतम क्षमतानुसार भागता था। मंडप में बैठे लोग घंटी की आवाज सुनते ही तैयार हो जाते थे। जैसे ही संदेशवाहक उनके पास पहुँचता तो उनमें से एक उससे पत्र लेता तथा अगले दावा तक तेज दौड़ता था। यह क्रिया पत्र में गंतव्य स्थान तक पहुँचने तक चलती रहती थी। उसके अनुसार पैदल डाक अश्व डाक से पहले पहुँचती थी। वह स्पष्ट कहता है कि सिन्ध से दिल्ली तक आने के लिए सामान्य रूप से पचास दिन का समय लगता था, लेकिन सुल्तान के पास गुप्तचरों की सूचना मात्र पाँच दिन में पहुँच जाती थी।
प्रश्न 7.
बर्नियर कौन था? उसकी रचना ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ के बारे में आप क्या जानते हैं? अथवा बर्नियर कौन था? उसने भारत के बारे में क्या जानकारी दी है?
उत्तर:
बर्नियर मुगल काल का एक यात्री था। वह फ्रांस से भारत आया। बर्नियर का जन्म फ्रांस के अजों नामक प्रान्त के जं नामक स्थान पर 1620 ई० में हुआ। उसका परिवार कृषि का कार्य करता था। उसने कृषि के साथ-साथ पढ़ाई की तथा पेशे से चिकित्सक बन गया। इसी व्यवसाय को करते हुए वह 1656 ई० में सूरत पहुँचा तथा इसी वर्ष दारा शिकोह ने उसे अपना चिकित्सक बना दिया। उसने शाहजहाँ के शासनकाल में उत्तराधिकार के युद्ध की कुछ घटनाएँ देखीं हैं। दारा की मृत्यु के बाद उसे आर्मीनियाई अमीर (सामन्त) डानिश खान ने संरक्षण दिया। उसने भारत में सूरत, आगरा, लाहौर, कश्मीर, कासिम बाजार, मसुलीपट्टम व गोलकुण्डा इत्यादि स्थानों का भ्रमण किया। वह 1668 ई० में भारत से फ्रांस लौट गया। 1688 ई० में उसके पैतृक स्थान पर ही उसकी मृत्यु हो गई।
उसने भारत में 1656 से 1668 तक का समय बिताया। वह इन वर्षों में दरबार से भी जुड़ा रहा तथा विभिन्न क्षेत्रों की यात्रा भी करता रहा। उसने जो कुछ देखा व समझा उसे ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ नामक रचना में लिखता गया। उसकी यह रचना फ्रांस में 1670-71 में प्रकाशित हुई तथा इसे फ्रांस के शासक लुई XIV को समर्पित किया गया। इस रचना में दिए गए वृत्तांत की विशेष बात यह है कि उसने भारत व यूरोप अर्थात् पूर्व व पश्चिम की तुलना बड़े स्तर पर की है। वह भारत की स्थिति को यूरोप की तुलना में दयनीय बताया है। उसने अपनी रचना में प्रभावशाली लोगों व अधिकारियों के मंत्रियों के पद को विशेष महत्त्व दिया है।
प्रश्न 8.
बर्नियर के भूमि स्वामित्व संबंधी दृष्टिकोण की आलोचनात्मक व्याख्या करें।
उत्तर:
बर्नियर के वृत्तांत में सर्वाधिक चर्चा का मुद्दा उसका भूमि स्वामित्व संबंधी वर्णन है। उसके अनुसार भारत में निजी स्वामित्व नहीं था, बल्कि सारे साम्राज्य की भूमि का मालिक स्वयं सम्राट था। उसके वर्णन के अनुसार भारत में भूमि स्वामित्व व्यवस्था यूरोप से . भिन्न थी क्योंकि वहाँ भूमि पर निजी स्वामित्व था। बर्नियर के अनुसार भारतीय व्यवस्था राज्य व जनता दोनों के लिए हानिकारक थी। बर्नियर इस वर्णन के माध्यम से भारत के बारे में इस तरह की समझ रखने वाले यूरोप के शासकों को चेतावनी देता है कि क्षेप न करें क्योंकि राज्य के स्वामित्व का सिद्धांत यूरोप के खेतों को विनाश के कगार पर ले जाएगा तथा उनकी पहचान के लिए भी घातक होगा।
बर्नियर के इस वृत्तांत से इस बात की पुष्टि होती है कि फ्रांस में निजी स्वामित्व के अधिकार को जारी रखने के लिए वह मुगल साम्राज्य की नकारात्मक तस्वीर खींच रहा है। बर्नियर का वृत्तांत देखकर भारत की दुर्दशा का चित्र आँखों के सामने आता है परन्तु यह स्पष्ट तौर पर एक पक्षीय भी दिखाई देता है। आलोचनात्मक ढंग से देखें तो हमें मुगलकालीन किसी भी दस्तावेज व अन्य स्थानीय स्रोत में इस तरह की जानकारी नहीं मिलती कि शासक ही सारी भूमि का मालिक था। बर्नियर से पहले दबाव में यूरोपीय यात्रियों ने भारत की ऐसी तस्वीर नहीं दी है। अतः बर्नियर का वृत्तांत एक पक्षीय है तथा वह भारत को निम्न तथा यूरोप को श्रेष्ठ बताना चाहता है।
प्रश्न 9.
बर्नियर के वृत्तांत में विरोधाभासपूर्ण सच्चाई क्या है? अपने शब्दों में व्यक्त करो।
उत्तर:
बर्नियर का वर्णन सामाजिक व आर्थिक स्थिति के बारे में काफी विरोधाभासपूर्ण है। वह भारत में दस्तकारी व कृषि उत्पादन प्रणाली को पतनशील मानता है। इसके लिए वह यहाँ की राज्य व्यवस्था को उत्तरदायी मानता है। कृषि इसलिए विकसित नहीं थी क्योंकि राजकीय स्वामित्व था। कृषकों को समुचित प्रोत्साहन नहीं था। इसी तरह दस्तकारों के लिए भी अपने उत्पादन को अच्छा बनाने के लिए प्रोत्साहन की परिस्थितियाँ नहीं थीं क्योंकि उनका अधिकांश मुनाफा भी राज्य ले लेता था।
इन सबके बाद भी वह यह भी उल्लेख करता है कि भारत का बड़ा-भू-भाग मिस्र से भी उपजाऊ है तथा यहाँ के शिल्पकार आलसी होते हुए भी अपने बहुत सारे उत्पादन का निर्यात करते हैं। इसके कारण भारत में बड़े पैमाने पर सोना-चाँदी आता है। उल्लेखनीय है कि बर्नियर यूरोप में प्रचलित वाणिज्यवादी विचारधारा से प्रभावित है जो सोना-चाँदी के संचय को प्राथमिकता देती है। भारत में सोना-चाँदी के संचय की बात को इसी पृष्ठभूमि में समझने की आवश्यकता है। अतः भारत की अर्थ-व्यवस्था को पतनशील बताना तथा भारत में धन के संचय की बात करना उसके विरोधाभास को स्पष्ट करती है।
प्रश्न 10.
बर्नियर ने राजकीय कारखाने का वर्णन किस तरह किया है?
उत्तर:
राजकीय कारखाने मुगल काल में शाही आवश्यकता की पूर्ति की चीजें एक स्थान पर बनती थीं जिन्हें राजकीय कारखाने कहा जाता था। वह इन कारखानों की कार्यप्रणाली पर भी अपने विचार देता है जो इस प्रकार हैं, “कई स्थानों पर बड़े कक्ष दिखाई देते हैं जिन्हें कारखाना या शिल्पकारों की कार्यशाला कहा जाता है। एक कक्ष में कसीदाकार एक मास्टर के निरीक्षण में व्यस्तता से कार्यरत रहते हैं।
एक अन्य में आप सुनारों को देखते हैं, तीसरे में चित्रकार, चौथे में प्रलाक्षा रस का रोगन लगाने वाले, पाँचवें में बढ़ई, खरादी, दर्जी तथा जूते बनाने वाले, छठे में रेशम, जरी तथा महीन मलमल का कार्य करने वाले शिल्पकार अपने कारखानों में हर रोज सुबह आते हैं, जहाँ वे पूरा दिन कार्यरत रहते हैं और शाम को अपने-अपने घर चले जाते हैं। इसी प्रकार निश्चेष्ट नियमित ढंग से उनका समय बीतता जाता है, कोई भी जीवन की उन स्थितियों में सुधार करने का इच्छुक नहीं है जिनमें वह पैदा हुआ है।”
प्रश्न 11.
बर्नियर ने भारतीय शहरों का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
बर्नियर शहर से संबंधित वृत्तांत में बताता है कि भारत में लगभग 15% आबादी नगरों में रहती है। यह शहरी जनसंख्या अनुपात तत्कालीन पश्चिमी यूरोप से अधिक था। वह भारतीय नगरों को शिविर नगर कहता है क्योंकि उसका मानना है कि इन नगरों का अस्तित्व शाही शिविर के साथ था, शिविर लगते ही ये विकसित हो जाते थे जबकि प्रस्थान से नगरों का पतन भी हो जाता था। बर्नियर का शहर से संबंधित वृत्तांत अधूरा तथा अति सरलीकृत प्रतीत होता है, क्योंकि अन्य सभी साक्ष्यों से इस बात की पुष्टि होती है कि भारत में नगर उत्पादन केन्द्र, व्यापारिक, नगर, बन्दरगाह नगर, धार्मिक केन्द्र, तीर्थ स्थान व प्रशासन के केन्द्र थे। इन नगरों में समृद्ध व्यापारिक व व्यावसायिक वर्ग, प्रशासनिक अधिकारी, अमीर (सामन्त) तथा विद्वान स्थायी रूप में रहते थे।
इन नगरों में व्यापारी व व्यावसायिक वर्ग समुदाय में रहते थे। यह संस्थाओं के माध्यम से व्यवस्था को चलाते थे। पश्चिमी भारत में व्यापारिक समूह महाजन कहलाता था तथा उनका मुखिया सेठ। अहमदाबाद, सूरत, भड़ौच जैसे व्यापारिक केन्द्रों पर सभी महाजनों का सामूहिक प्रतिनिधि भी होता था जिसे ‘नगर सेठ’ कहा जाता था। व्यवसायी तथा व्यापारी वर्ग के अतिरिक्त हकीम, वैद्य (चिकित्सक), पंडित व मौलवी (शिक्षक), वकील, चित्रकार, वास्तुकार, संगीतकार, लेखक इत्यादि भी होते थे। इनमें से कुछ तो शाही संरक्षण में होते थे। कुछ अन्य अमीर वर्गों की सहायता से अपना जीवन-यापन करते थे।
अतः बर्नियर का भारतीय नगरों को ‘शिविर नगर’ कहना उसके सीमित ज्ञान की प्रस्तुति है। उसका यह दृष्टिकोण अन्य यात्रियों के वर्णन से मेल नहीं खाता, जिन्होंने भारत में दिल्ली, आगरा, इलाहाबाद, लाहौर, अजमेर, सूरत इत्यादि नगरों को यूरोप के नगरों से बड़े तथा विकसित बताया है।
दीर्घ-उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
अल-बिरूनी कौन था? अल-बिरूनी की रचना ‘किताब-उल-हिन्द’ पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
अल-बिरूनी का वास्तविक नाम अबू रेहान था। उसका जन्म मध्य-एशिया में स्थित आधुनिक उज्बेकिस्तान के ख्वारिज्म (वर्तमान नाम खीवा) नामक स्थान पर 973 ई० में हुआ। ख्वारिज्म पर उस समय मामूनी वंश का राज था। इस समय स्थान शिक्षा का अति महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। अल-बिरूनी को इसी स्थान पर शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला। उसने यहाँ पर सीरियाई, हिब्रू, फारसी, अरबी व संस्कृत भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया।
इसलिए वह इन भाषाओं में लिखित मौलिक ग्रन्थों को पढ़ पाया। वह यूनानी भाषा को नहीं समझता था लेकिन इस भाषा के सभी प्रमुख ग्रन्थ अनुवादित हो चुके थे। इसी कारण वह प्लेटो व अरस्तु के दर्शन व ज्ञान को अनुवादित रूप में पढ़ पाया। इस तरह वह अपने जीवन के प्रारंभिक दौर में ही विभिन्न भाषाओं के साहित्य से परिचित हो गया। उल्लेखनीय यह है कि अपनी योग्यता व प्रतिभा के बल पर वह मामूनी राज व्यवस्था में मंत्री के पद तक पहुंच गया।
1017 ई० में महमूद ने ख्वारिज्म पर आक्रमण किया तथा जीत हासिल की। विजय के बाद उसने यहाँ पर कुछ लोगों को बंदी बनाया। इनमें कुछ विद्वान तथा कवि भी थे। अल-बिरूनी भी इन्हीं बंदी लोगों में एक था तथा वह इसी अवस्था में गजनी लाया गया। गजनी में रहते हुए महमूद उसकी प्रतिभा से प्रभावित हुआ। फलतः न केवल महमूद ने उसे मुक्त किया वरन् उसे दरबार में सम्मानजनक पद भी दिया।
बाद में अल-बिरूनी उसका राजकवि भी बना। गजनी प्रवास के दौरान उसने खगोल-विज्ञान, गणित व चिकित्सा से संबंधित पुस्तकें पढ़ीं। वह महमूद के साथ भारत में कई बार आया तथा उसने इस क्षेत्र में ब्राह्मणों, पुरोहितों व विद्वानों के साथ काफी समय बिताया। उनके साथ रहने के कारण वह संस्कृत भाषा में और प्रवीण हो गया। अब वह न केवल इसे समझ सकता था बल्कि अनुवाद करने में भी सक्षम हो गया।
उसने सहारा रेगिस्तान से लेकर वोल्गा तक की यात्रा के आधार पर लगभग 20 पुस्तकों की रचना की। इन रचनाओं में सबसे महत्त्वपूर्ण ‘किताब-उल-हिन्द’ है जिसे ‘अल बरूनीज इण्डिया’ के नाम से जाना जाता है। उसने अपनी रचनाएँ गजनी में लिखीं। गजनी में ही 1048 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।
अल-बिरूनी ने जो कुछ लिखा वह भारत में बहुत बाद में पहुँचा परन्तु मध्य एशिया के क्षेत्र में यह पहले चर्चा में आ गया। भारत में यह लगभग 1500 ई० में सामने आया। महमूद की ‘1030 ई० में’ मृत्यु के बाद उसके पुत्र मसूद ने भी उसे राजकीय संरक्षण दिया तथा उसके लेखन को सुरक्षित करने की दिशा में कदम उठाए।
किताब-उल-हिन्द (The Kitab-ul-Hind)-‘किताब-उल-हिन्द’, अल-बिरूनी द्वारा रचित सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसे ‘तहकीक-ए-हिन्द’ के नाम से भी जाना जाता है। मौलिक तौर पर यह ग्रंथ अरबी भाषा में लिखा गया है तथा बाद में यह विश्व की प्रमुख भाषाओं में अनुवादित हुआ। इसमें कुल 80 अध्याय हैं जिनमें भारत के धर्म, दर्शन, समाज, परंपराओं, रीति-रिवाज़ों, नाप-तोल, खगोल-विज्ञान, . चिकित्सा, ज्योतिष, मूर्तिकला, कानून, न्याय इत्यादि विषयों को विस्तृत ढंग से लिखा गया है।
भाषा की दृष्टि से लेखक ने इसे सरल व स्पष्ट बनाने का प्रयास किया है। अल-बिरूनी ने इस रचना-लेखन का उद्देश्य इन शब्दों में स्पष्ट किया है कि “यह उन लोगों के लिए सहायक हो जो उनसे (हिन्दुओं से) धार्मिक विषयों पर चर्चा करना चाहते हैं और ऐसे लोगों के लिए सूचना का संग्रह, जो उनके साथ संबद्ध होना चाहते हैं।” इससे स्पष्ट होता है कि अल-बिरूनी ने इस पुस्तक की रचना इस उपमहाद्वीप के सीमान्त क्षेत्र के लिए की थी, क्योंकि उनका इस क्षेत्र से किसी-न-किसी रूप में संबंध होता रहता था।
अल-बिरूनी ने इस रचना के लेखन में विशेष शैली का प्रयोग किया है। वह प्रत्येक अध्याय को एक प्रश्न से प्रारंभ करता है, फिर उसका उत्तर संस्कृतवादी परंपराओं के अनुरूप विस्तृत वर्णन के साथ करता है। फिर उसका अन्य संस्कृतियों के साथ तुलनात्मक अध्ययन करता है। वह इस कार्य में पाली, प्राकृत इत्यादि भाषाओं के अनुवाद का प्रयोग करता है। वह विभिन्न दन्त कथाओं से लेकर विभिन्न वैज्ञानिक विषयों खगोल-विज्ञान व चिकित्सा विज्ञान इत्यादि विषयों की रचनाएँ हैं। वह प्रत्येक पक्ष का वर्णन आलोचनात्मक ढंग से करता है। जिससे यह स्पष्ट होता है कि वह उनमें सुधार करना चाहता था। उसके लेखन में ज्यामितीय संरचना, स्पष्टता तथा पूर्वानुमान की धारणा विशेष रूप से उभरकर आती है।
हिंदू शब्द की उत्पत्ति सिन्धु से हुई है। फारसी भाषा में ‘स’ शब्द का उच्चारण ‘ह’ से किया जाता है। जिसके कारण वे सिन्धु को हिन्दू या सप्ताह को हप्ताह बोलते हैं। फारस क्षेत्र के लोग सिन्धु नदी के पूर्व रहने वाले लोगों के लिए हिन्दू का प्रयोग करते हैं तथा उनका क्षेत्र हिन्दोस्तान तथा उनकी भाषा को ‘हिंदवी’ के नाम से जानते हैं।
ईरानी अभिलेखों में ‘हिन्द’ शब्द का प्रयोग छठी सदी ई०पू० में सिन्धु क्षेत्र के लिए मिलता है। इसी प्रकार ‘हिन्दुस्तान’ शब्द पहली बार तीसरी सदी ई० में ईरानी के शासानी शासकों के अभिलेखों में मिलता है। अल-बिरूनी ने अपनी इस रचना में ‘हिंदू’ शब्द का प्रयोग किया है।
प्रश्न 2.
इन बतूता का जीवन परिचय दें एवं उसकी पुस्तक ‘रिला’ पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय (Life Sketch)-इब्न बतूता का संक्षिप्त जीवन परिचय निम्न प्रकार से है
(i) पारिवारिक परंपरा (Family Tradition)-इन बतूता का जन्म अफ्रीका महाद्वीप के मोरक्को नामक देश के तैंजियर नामक स्थान पर 24 फरवरी, 1304 ई० को हुआ। बतूता का परिवार इस क्षेत्र में सबसे सम्मानित, शिक्षित व इस्लामी कानूनों का विशेषज्ञ माना जाता था। पारिवारिक परंपरा के अनुसार साहित्यिक व धार्मिक ज्ञान उसे विरासत में मिला जिसको उसने न तथा ज्ञान प्राप्त करने की लालसा के कारण और अच्छी तरह से प्राप्त किया। इस तरह वह कम आयु में ही उच्चकोटि का धर्मशास्त्री बन गया।
(ii) यात्रा पर (On Pilgrimage)-इन बतूता साहित्यिक व शास्त्रीय ज्ञान से सन्तुष्ट नहीं था। उसके मन में यात्राओं के माध्यम से प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करने की लालसा उत्पन्न हुई। इसी की पूर्ति हेतु वह 22 वर्ष की आयु में घर से निकला तथा विश्व के विभिन्न स्थानों तथा दूर-दराज क्षेत्रों की यात्रा की। 1325-1332 ई० तक उसने मक्का व मदीना की यात्रा की तथा इसके बाद सीरिया, इराक, फारस, यमन, ओमान तथा पूर्वी अफ्रीका के देशों की यात्रा की।
उसने अपनी यात्राएँ जल एवं थल दोनों मार्गों से की। इन देशों की यात्रा के उपरांत वह मध्य-एशिया के रास्ते से भारत की ओर बढा तथा । रास्ते से भारत की ओर बढ़ा तथा 1333 ई० में सिन्ध पहुँचने में सफल रहा। भारत आने का उसका मुख्य कारण दिल्ली सल्तनत के सुल्तान मुहम्मद-बिन-तुगलक की ख्याति थी। उसने सुल्तान के कला व साहित्य को संरक्षण देने वाले गुण, विद्वता तथा दया भाव के बारे में सुना था इसलिए वह सिन्ध से दिल्ली की ओर मुल्तान व उच्च के रास्ते से आगे बढ़ा।
(iii) भारत आगमन (Arrived in India)-बतूता सिन्ध से 50 दिन तथा मुल्तान से 40 दिन की यात्रा करने के बाद 1334 ई० में दिल्ली पहुँचा तथा सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक से भेंट की। ये दोनों एक दूसरे की विद्वता से प्रभावित हुए। सुल्तान ने बतूता को दिल्ली का काज़ी (न्यायाधीश) नियुक्त कर उसे शाही सेवा में ले लिया। उसने 8 वर्षों तक इस पद पर कार्य किया।
इसी दौरान सुल्तान के साथ उसका मतभेद हो गया जिसके कारण उसे पद से हटाकर जेल में डाल दिया गया। परन्तु यह स्थिति अधिक समय तक नहीं रही तथा सुल्तान ने एक बार फिर उस पर विश्वास कर शाही सेवा में ले लिया। इस बाद समाज के बारे में उनकी समझ बार उसे चीन में सुल्तान की ओर से दूत बन कर जाने का आदेश दिया। इस समय चीन में मंगोलों का राज्य था। इस तरह 1342 ई० में इन बतूता ने नई नियुक्ति स्वीकार कर चीन की ओर प्रस्थान किया।
(iv) चीन में (To China)-बतूता ने चीन जाने के लिए मालाबार से प्रस्थान किया फिर वहाँ से वह मालद्वीप पहुंचा। वहाँ पर उसने 18 महीनों तक काज़ी के पद पर कार्य किया। मालद्वीप से वह श्रीलंका गया तथा फिर मालाबार लौट आया। उसने एक बार फिर चीन जाने का फैसला किया। परन्तु इस बार उसने बंगाल की खाड़ी का मार्ग पकड़ा तथा बंगाल व असम में भी कुछ समय बिताया।
इसके पश्चात् वह सुमात्रा पहुँचा एवं वहाँ से चीनी बन्दरगाह जायतुन (वर्तमान नाम क्वानझू) उतरा। उसने यहाँ से चीन के विभिन्न स्थानों की यात्रा की तथा मंगोल शासक को बीजिंग में मुहम्मद तुगलक का पत्र सौंपा। शासक ने उसे दूत के रूप में स्वीकार किया लेकिन बतूता, स्वयं वहाँ लम्बे समय तक नहीं रुक सका।
(v) वतन को वापसी (Returned to the Watan)-1347 ई० में वहाँ से वापिस अपने देश मोरक्को के लिए चल दिया। वह 8 नवम्बर, 1349 ई० को अपने पैतृक स्थान तैंजियर पहुँच गया। इसके बाद उसने कुछ समय आधु में बिताया तथा मोरक्को के समीपवर्ती देशों की यात्राएँ भी की। मोरक्को के शासक ने उससे अपने अनुभव तथा विभिन्न स्थानों की जानकारी देने के लिए कहा।
उसने अपनी स्मृति के आधार पर यह सारी जानकारी शासक को उपलब्ध कराई जिसे संकलित कर रिला या रह्ना या सफरनामा नामक पुस्तक के रूप में सुरक्षित किया गया। इसमें 1325-1354 के बीच की उसकी यात्राओं का वर्णन है। इन बतूता ने अपनी मृत्यु 1377 ई० तक का बाकी समय अपने पैतृक स्थान तैंजियर में बिताया तथा शासक ने उसे हर प्रकार की मदद दी।
(vi) संस्मरण (Memoir)-इन बतूता की यात्राओं के बारे में पढ़ते समय हम अहसास कर सकते हैं कि इस विश्व यात्री ने लगभग 30 वर्ष तक विभिन्न महाद्वीपों की यात्रा की। उस युग में यात्राएँ कितनी कठिन थीं, कितनी तरह के संकट थे, यह केवल कल्पना ही की जा सकती है। वह बताता है कि यात्राओं के दौरान उसने कई बार डाकुओं के आक्रमणों को झेला क्योंकि डाकू कारवों पर भी आक्रमण कर देते थे।
मुल्तान से दिल्ली मार्ग पर उनके कारवां पर एक खतरनाक आक्रमण हुआ, जिनमें से कई यात्रियों की मृत्यु हो गई तथा कई घायल हो गए। वह स्वयं भी इसमें घायल हुआ। इसके अतिरिक्त उस युग में आवागमन के साधन नहीं के बराबर थे। प्रायः यात्रा पैदल या पशुओं की गाड़ी में होती थी। इससे बहुत समय लगता था। वह बताता है कि उसने मुल्तान से दिल्ली तथा दिल्ली से दौलताबाद की दूरी 40-40 दिन में तय की। इसी तरह ग्वालियर से दिल्ली 10 दिन में तय की।
इन कठिनाई भरी यात्राओं के बाद भी उसने विभिन्न नई-नई संस्कृतियों, लोगों, आस्थाओं, मान्यताओं, चीजों व परम्पराओं को कुशलतापूर्वक लिखा। जो विश्व के बड़े हिस्से की जानकारी का स्रोत बन गया। चीन के वृत्तांत के बारे में तो उसकी तुलना वेनिस (13वीं सदी का) यात्री मार्को पोलो से की जाती है, जिसने हिन्द महासागर के रास्ते चीन व भारत की यात्रा की। भारत व चीन के अतिरिक्त बतूता का वर्णन उत्तरी अफ्रीका, पश्चिम एशिया व मध्य-एशिया के बारे में विस्तृत जानकारी देता है। उससे सुनकर बतूता के अनुभवों का लेखक इन जुजाई लिखता है कि उसकी जानकारी बताने का तरीका इतना अच्छा था कि ऐसा लगता था कि वह उसके साथ यात्रा कर रहा है।
2. रिहला : एक परिचय (Rihla : An Introduction)-रिला या किताब-ए-रला इब्न बतूता के संस्मरणों पर आधारित रचना है। इसे ‘सफरनामा’ के नाम से अनुवादित किया गया है। बतूता के मोरक्को वापिस पहुंचने पर वहाँ के शासक ने इन जुजाई नामक व्यक्ति को यह कार्य दिया कि वह बतूता से बातचीत करे तथा उसकी स्मृति को एक रचना के रूप में प्रस्तुत करे। इन जुजाई रिला की प्रस्तावना में लिखता है
(राजा के द्वारा) एक शालीन निर्देश दिया गया कि वे (इब्न बतूता) अपनी यात्रा में देखे गए शहरों का तथा अपनी स्मृति में बैठ गई रोचक घटनाओं का एक वृत्तांत लिखवाएँ और साथ ही विभिन्न देशों के शासकों में से जिनसे वे मिले, उनके महान् साहित्यकारों के तथा उनके धर्मनिष्ठ संतों के बारे में बताएं। तदनुसार उन्होंने इन सभी विषयों पर एक कथानक लिखवाया जिसने मस्तिष्क को मनोरंजन तथा कान और आँख को प्रसन्नता दी। साथ ही उन्होंने कई प्रकार के असाधारण विवरण जिनके प्रतिपादन से लाभप्रद उपदेश मिलते हैं, दिए तथा असाधारण चीजों के बारे में बताया जिनके सन्दर्भ से अभिरुचि जगी।”
इन जुजाई के इस लेखन से इस बात का ज्ञान होता है कि बतूता का वृत्तांत किस तरह, क्यों लिखवाया गया तथा उसने किस-किस प्रकार की जानकारी दी।
रिला में भारत के बारे में विस्तृत वर्णन दिया गया है। इस वर्णन में भारत की प्रकृति, पशु-पक्षी, वन, नदियों, गाँव व शहरों के बारे में बताया गया है। उसने मुहम्मद तुगलक के बारे में भी विस्तृत प्रकाश डाला है। उसकी जानकारी कई अर्थों में जियाऊद्दीन बर्नी की तारीख-ए-फिरोज शाही से भिन्न है। बतूता मुहम्मद तुगलक को सन्तुलित, शिक्षित, न्यायप्रिय, प्रतिभाशाली व दूरदर्शी शासक बताता है जबकि बर्नी उसे जल्दबाज, अन्यायी, मूर्ख, जिद्दी तथा अपरिपक्व बताता है।
इब्न बतूता ने जो कुछ बताया वह बाद में इस रचना के रूप में आया जो उच्च लेखकों व यात्रियों के लिए यह मार्गदर्शक पहलू बन गया। इनमें सबसे अधिक प्रभावित होने वाले यात्रियों में समरकंद का अब्दुर रज्जाक (यात्रा लगभग 1440), महमूद वली बलखी (यात्रा लगभग 1620) तथा शेख अली हाजिन (यात्रा लगभग 1740) के नाम लिए जा सकते हैं। इनमें बलखी तो भारत से इतना प्रभावित हुआ कि कुछ समय के लिए संन्यासी बन गया।
दूसरी ओर हाजिन भारत से निराश हुआ तथा घृणा भी करने लगा क्योंकि उसे भारत में आशा के अनुरूप स्वागत नहीं मिला। इन सभी यात्रियों के बारे में सामान्य बात यह है कि इन्होंने भारत का वर्णन अचंभों के देश के रूप में किया। इनको इस क्षेत्र के आम व्यक्ति की गतिविधियाँ भी विचित्र लगती थीं। उदाहरण के तौर पर भारतीय किसान का खेती का कार्य करते हुए मात्र लंगोटी बांधना या फिर लोटे से बिना मुँह लगाए पानी-पीना इत्यादि।