Haryana State Board HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन Important Questions and Answers.
Haryana Board 12th Class History Important Questions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन
बहुविकल्पीय प्रश्न
निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के अन्तर्गत कुछेक वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। ठीक उत्तर का चयन कीजिए.
1. वास्कोडिगामा भारत पहुँचा-
(A) 1857 ई० में
(B) 1498 ई० में
(C) 1492 ई० में
(D) 1600 ई० में
उत्तर:
(B) 1498 ई० में
2. प्लासी की लड़ाई हुई
(A) 1757 ई० में
(B) 1857 ई० में
(C) 1850 ई० में
(D) 1764 ई० में
उत्तर:
(A) 1757 ई० में
3. प्लासी की लड़ाई में हार हुई
(A) नवाब सिराजुद्दौला
(B) नवाब वाजिद अली शाह
(C) अलीवर्दी खाँ
(D) लॉर्ड क्लाइव
उत्तर:
(A) नवाब सिराजद्दौला
4. बक्सर की लड़ाई हुई
(A) 1757 ई० में
(B) 1764 ई० में
(C) 1773 ई० में
(D) 1784 ई० में
उत्तर:
(B) 1764 ई० में
5. इलाहाबाद की संधि कब हुई?
(A) 1757 ई० में
(B) 1773 ई० में
(C) 1765 ई० में
(D) 1764 ई० में
उत्तर:
(C) 1765 ई० में
6. ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, बिहार व उड़ीसा की दीवानी का अधिकार कब प्राप्त हुए?
(A) 1765 ई० में
(B) 1773 ई० में
(C) 1784 ई० में
(D) 1800 ई० में
उत्तर:
(A) 1765 ई० में
7. भारत में औपनिवेशिक शासन-व्यवस्था की शुरुआत हुई
(A) गोवा से
(B) बंगाल प्रांत से
(C) मद्रास से
(D) बंबई से
उत्तर:
(B) बंगाल प्रांत से
8. बंगाल में ठेकेदारी प्रणाली की शुरुआत की
(A) लॉर्ड क्लाइव ने
(B) वारेन हेस्टिंग्ज़ ने
(C) लॉर्ड कॉनवालिस ने
(D) लॉर्ड डलहौजी ने
उत्तर:
(B) वारेन हेस्टिंग्ज़ ने
9. ब्रिटिश काल में लागू की जाने वाली भू-राजस्व प्रणालियाँ कौन-सी थीं ?
(A) स्थाई बन्दोबस्त
(B) रैयतवाड़ी व्यवस्था
(C) महालवाड़ी प्रणाली
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी
10. कलेक्टर का मुख्य काम था
(A) दंड देना
(B) चुनाव करवाना
(C) कर एकत्र करवाना
(D) धन बाँटना
उत्तर:
(C) कर एकत्र करवाना
11. बंगाल में स्थायी बन्दोबस्त किसने लागू किया?
(A) लॉर्ड कॉर्नवालिस ने
(B) लॉर्ड डलहौजी ने
(C) लॉर्ड विलियम बैंटिंक ने
(D) लॉर्ड वेलेज्ली ने
उत्तर:
(A) लॉर्ड कॉर्नवालिस ने
12. बंगाल में स्थायी बंदोबस्त कब लागू किया गया?
(A) 1765 ई० में
(B) 1773 ई० में
(C) 1793 ई० में
(D) 1820 ई० में
उत्तर:
(C) 1793 ई० में
13. स्थायी बन्दोबस्त किसके साथ किया गया?
(A) जमींदारों के साथ
(B) मुजारों के साथ
(C) किसानों के साथ
(D) गाँवों के साथ
उत्तर:
(A) जमींदारों के साथ
14. वसूल किए गए लगान में से ज़र्मींदार को मिलता था-
(A) \(\frac{1}{2}\) भाग
(B) \(\frac{1}{11}\) भाग
(C) \(\frac{10}{11}\) भाग
(D) बिल्कुल भी नहीं
उत्तर:
(B) \(\frac{1}{11}\) भाग
15. वसूल किए गए लगान में से ज़र्मींदार को सरकारी खजाने में जमा करवाना होता था
(A) \(\frac{1}{5}\) भाग
(B) \(\frac{10}{11}\) भाग
(C) \(\frac{1}{11}\) भाग
(D) \(\frac{1}{2}\) भाग
उत्तर:
(B) \(\frac{10}{11}\) भाग
16. बंगाल में जोतदार थे
(A) गाँव के मुखिया
(B) प्रांत के नवाब
(C) भूमि पर काम करने वाले
(D) कर एकत्र करने वाले
उत्तर:
(A) गाँव के मुखिया
17. जमींदार का वह अधिकारी जो गाँव से भू-राजस्व इकट्ठा करता था, क्या कहलाता था?
(A) मंडल
(B) अमला
(C) लठियात
(D) साहूकार
उत्तर:
(B) अमला
18. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए एक्ट पास किया गया
(A) रेग्यूलेटिंग एक्ट
(B) पिट्स इंडिया एक्ट
(C) 1858 ई० का एक्ट
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) रेग्यूलेटिंग एक्ट
19. रेग्यूलेटिंग एक्ट पास किया गया
(A) 1858 ई० में
(B) 1784 ई० में
(C) 1773 ई० में
(D) 1757 ई० में
उत्तर:
(C) 1773 ई० में
20. रेग्यूलेटिंग के दोषों को दूर करने के लिए एक्ट पास किया गया
(A) पिट्स इंडिया एक्ट
(B) रेग्यूलेटिंग एक्ट
(C) चार्टर एक्ट
(D) रोलेट एक्ट
उत्तर:
(A) पिट्स इंडिया एक्ट
21. पिट्स इंडिया एक्ट पास किया गया
(A) 1773 ई० में
(B) 1784 ई० में
(C) 1813 ई० में
(D) 1850 ई० में
उत्तर:
(B) 1784 ई० में
22. मद्रास प्रेसीडेंसी में मुख्यतः कौन-सी भू-राजस्व प्रणाली लागू की गई?
(A) स्थायी बंदोबस्त
(B) ठेकेदारी प्रणाली
(C) महालवाड़ी प्रणाली
(D) रैयतवाड़ी प्रणाली
उत्तर:
(D) रैयतवाड़ी प्रणाली
23. दक्कन में किसान विद्रोह कब हुआ?
(A) 1818 ई० में
(B) 1820 ई० में
(C) 1875 ई० में
(D) 1855 ई० में
उत्तर:
(C) 1875 ई० में
24. मद्रास में रैयतवाड़ी बन्दोबस्त किसने लागू किया?
(A) लॉर्ड कॉर्नवालिस
(B) थॉमस मुनरो
(C) लॉर्ड विलियम बैंटिंक
(D) लॉर्ड वेलेजली
उत्तर:
(B) थॉमस मुनरो
25. रैयत कौन थे?
(A) किसान
(B) ज़मींदार
(C) साहूकार
(D) जोतदार
उत्तर:
(A) किसान
26. औपनिवेशिक काल में लागू किए जाने वाले भू-राजस्व थे
(A) इस्तमरारी बंदोबस्त
(B) रैयतवाड़ी बंदोबस्त
(C) महालवाड़ी बंदोबस्त
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी
27. रैयतवाड़ी बन्दोबस्त को कहाँ लागू किया गया?
(A) बंगाल में
(B) पंजाब में
(C) असम में
(D) मद्रास में
उत्तर:
(D) मद्रास में
28. रैयतवाड़ी बन्दोबस्त कब लागू किया गया?
(A) 1820 ई० में
(B) 1793 ई० में
(C) 1795 ई० में
(D) 1850 ई० में
उत्तर:
(A) 1820 ई० में
29. ब्रिटिश संसद में पाँचवीं रिपोर्ट कब प्रस्तुत की गई?
(A) 1813 ई० में
(B) 1713 ई० में
(C) 1613 ई० में
(D) 1913 ई० में
उत्तर:
(A) 1813 ई० में
30. पहाड़िया लोग कहाँ रहते थे?
(A) कश्मीर की पहाड़ियों में
(B) राजमहल की पहाड़ियों में
(C) मनाली की पहाड़ियों में
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) राजमहल की पहाड़ियों में
31. पहाड़िया लोग खेती के लिए क्या प्रयोग करते थे?
(A) हल
(B) कुदाल
(C) नहर
(D) ट्रैक्टर
उत्तर:
(B) कुदाल
32. संथालों ने दामिन-इ-कोह की स्थापना कब की?
(A) 1812 ई० में
(B) 1832 ई० में
(C) 1822 ई० में
(D) 1932 ई० में
उत्तर:
(B) 1832 ई० में
33. संथार्लों का अंग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह कब हुआ?
(A) 1845 ई० में
(B) 1855 ई० में
(C) 1865 ई० में
(D) 1875 ई० में
उत्तर:
(B) 1855 ई० में
34. संथाल किन लोगों को घृणा से ‘दिकू’ कहते थे?
(A) साहूकार
(B) जमींदार
(C) जोतदार
(D) सभी बाहरी लोगों को
उत्तर:
(D) सभी बाहरी लोगों को
35. डेविड रिकॉर्डो कौन था?
(A) इंग्लैण्ड का चिकिस्सक
(B) कम्पनी का इंजीनियर
(C) इंग्लैण्ड का अर्थशास्त्री
(D) फ्रांस का समाजशास्त्री
उत्तर:
(C) इंग्लैण्ड का अर्थशास्त्री
36. परितीमन कानून कब पारित किया गया?
(A) 1858 ई० में
(B) 1875 ई० में
(C) 1850 ई० में
(D) 1859 ई० में
उत्तर:
(D) 1859 ई० में
37. अमेरिका में गृह युद्ध कब आरंभ हुआ था?
(A) 1857 ई० में
(B) 1864 ई० में
(C) 1861 ई० में
(D) 1865 ई० में
उत्तर:
(C) 1861 ई० में
38. 1875 ई० का दक्कन विद्योह कहाँ से प्रारंभ हुआ?
(A) सूपा से
(B) हम्पी से
(C) अहमदनगर से
(D) बम्बई से
उत्तर:
(A) सूपा से
39. रैयतवाड़ी प्रणाली में भूमि का मालिक माना गया-
(A) ज़मींदार को
(B) रैयत को
(C) नवाब को
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) रैयत को
40. रैयतवाड़ी बंदोबस्त कितने समय के लिए किया?
(A) 30 वर्षों के लिए
(B) 50 वर्षों के लिए
(C) 20 वर्षों के लिए
(D) हमेशा के लिए
उत्तर:
(A) 30 वर्षों के लिए
41. बंबई दक्कन में रैयतवाड़ी बंदोबस्त शुरू किया-
(A) 1793 ई० में
(B) 1818 ई० में
(C) 1773 ई० में
(D) 1784 ई० में
उत्तर:
(B) 1818 ई० में
42. ब्रिटेन में ‘कपास आपूर्ति संघ’ की स्थापना की गई-
(A) 1850 ई० में
(B) 1853 ई० में
(C) 1857 ई० में
(D) 1858 ‘ई० में
उत्तर:
(C) 1857 ई० में
43. मैनचेस्टर कॉटन कंपनी बनी-
(A) 1853 ई० में
(B) 1857 ई० में
(C) 1858 ई० में
(D) 1859 ई० में
उत्तर:
(D) 1859 ई० में
44. अमेरिका का गृह युद्ध समाप्त हुआ-
(A) 1861 ई० में
(B) 1865 ई० में
(C) 1857 ई० में
(D) 1850 ई० में
उत्तर:
(B) 1865 ई० में
45. पहाड़िया लोग खेती करते थे-
(A) स्थायी खेती
(B) झूम खेती
(C) बागों की खेती
(D) मिश्रित खेती
उत्तर:
(B) झूम खेती
46. दामिन-इ-कोह नामक भू-भाग पर बसाया गया-
(A) संथालों को
(B) ज़मींदारों को
(C) पहाड़ियों को
(D) अंग्रेज़ों को
उत्तर:
(A) संथालों को
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के अन्तर्गत कुछेक वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। ठीक उत्तर का चयन कीजिए
प्रश्न 1.
वास्कोडिगामा भारत कब आया?
उत्तर:
वास्कोडिगामा 1498 ई० में भारत पहुंचा।
प्रश्न 2.
प्लासी की लड़ाई कब हुई?
उत्तर:
प्लासी की लड़ाई 1757 ई० में हुई।
प्रश्न 3.
प्लासी की लड़ाई किस-किसके मध्य हुई?
उत्तर:
प्लासी की लड़ाई बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला व अंग्रेजों के बीच लड़ी गई।
प्रश्न 4.
बक्सर का युद्ध कब हुआ?
उत्तर:
बक्सर का युद्ध 1764 ई० में हुआ।
प्रश्न 5.
भारत में औपनिवेशिक शासन-व्यवस्था की शुरुआत किस प्रांत में हुई?
उत्तर:
भारत में बंगाल प्रांत में औपनिवेशिक शासन-व्यवस्था की शुरुआत हुई।
प्रश्न 6.
अंग्रेजों को दीवानी का अधिकार किस संधि से प्राप्त हुआ?
उत्तर:
1765 ई० में इलाहाबाद की संधि से अंग्रेज़ों को दीवानी का अधिकार प्राप्त हुआ।
प्रश्न 7.
दीवानी के अधिकार का क्या अर्थ था?
उत्तर:
दीवानी के अधिकार का अर्थ था-राजस्व वसूली का अधिकार।
प्रश्न 8.
बंगाल में स्थायी बंदोबस्त कब व किसने शुरू किया?
उत्तर:
बंगाल में 1793 ई० में गवर्नर जनरल लॉर्ड कार्नवालिस ने स्थायी बंदोबस्त शुरू किया। इसे ज़मींदारी बंदोबस्त भी कहा जाता है।
प्रश्न 9.
बंगाल में भू-राजस्व की ठेकेदारी प्रणाली किसने लागू की?
उत्तर:
बंगाल के गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स ने भू-राजस्व की ठेकेदारी प्रणाली शुरू की।
प्रश्न 10.
ठेकेदारी (इजारेदारी) प्रणाली को और अन्य किस नाम से पुकारा गया?
उत्तर:
ठेकेदारी प्रणाली को फार्मिंग प्रणाली (Farming System) भी कहा गया।
प्रश्न 11.
ठेकेदारी प्रणाली का नियंत्रण किसे सौंपा गया?
उत्तर:
ठेकेदारी प्रणाली जिला कलेक्टरों के नियंत्रण में लागू की गई।
प्रश्न 12.
कलेक्टर का मुख्य काम क्या था?
उत्तर:
कलेक्टर का मुख्य काम कर ‘इकट्ठा’ करना था।
प्रश्न 13.
बंगाल में ग्राम-मुखिया को क्या कहा जाता था?
उत्तर:
बंगाल में ग्राम-मुखिया को जोतदार या मंडल कहा जाता था।
प्रश्न 14.
बंगाल में सरकार ने स्थायी बंदोबस्त किसके साथ किया?
उत्तर:
बंगाल में सरकार ने स्थायी बंदोबस्त बंगाल के छोटे राजाओं एवं ताल्लुकेदारों के साथ किया।
प्रश्न 15. बंगाल में स्थायी बंदोबस्त किसने लागू किया?
उत्तर:
बंगाल के गवर्नर जनरल लॉर्ड कार्नवालिस ने स्थायी बंदोबस्त लागू किया।
प्रश्न 16.
बंगाल में स्थायी बंदोबस्त कब लागू किया गया?
उत्तर:
1793 ई० में बंगाल में स्थायी बंदोबस्त लागू किया गया।
प्रश्न 17.
स्थायी बंदोबस्त (इस्तमरारी प्रथा) कहाँ-कहाँ लागू किया गया?
उत्तर:
बंगाल, बिहार, उड़ीसा, बनारस व उत्तरी कर्नाटक में स्थायी बंदोबस्त लागू किया गया।
प्रश्न 18.
स्थायी बंदोबस्त में बंगाल के छोटे राजाओं और ताल्लुकेदारों को किस रूप में वर्गीकृत किया गया?
उत्तर:
स्थायी बंदोबस्त में छोटे राजाओं व ताल्लुकेदारों को ‘ज़मींदारों’ के रूप में वर्गीकृत किया गया।
प्रश्न 19.
स्थायी बंदोबस्त की मुख्य विशेषता क्या थी?
उत्तर:
स्थायी बंदोबस्त में ज़मींदारों द्वारा सरकार को दी जाने वाली वार्षिक भूमि कर राशि स्थायी रूप से निश्चित कर दी गई।
प्रश्न 20.
ज़मींदार को वसूल किए गए लगान में से कितना भाग अपने पास रखना होता था?
उत्तर:
ज़मींदार को किसानों से वसूल किए गए लगान में से \(\frac{1}{11}\) भाग अपने पास रखना होता था।
प्रश्न 21. जमींदार को वसूल किए लगान में से कितना भाग सरकारी खजाने में जमा करवाना पड़ता था?
उत्तर:
ज़मींदार को किसानों से वसूल किए गए लगान में से \(\frac{10}{11}\) भाग कंपनी सरकार को देना होता था।
प्रश्न 22.
ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत की गई फरमिंगर रिपोर्ट किस नाम से जानी जाती है?
उत्तर:फरमिंगर रिपोर्ट पाँचवीं रिपोर्ट के नाम से जानी जाती है।
प्रश्न 23.
फरमिंगर रिपोर्ट का संबंध किससे था?
उत्तर:
फरमिंगर रिपोर्ट भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन व क्रियाकलापों के संदर्भ में एक विस्तृत रिपोर्ट थी।
प्रश्न 24.
सूर्यास्त विधि (Sunset Law) से क्या तात्पर्य था?
उत्तर:
सूर्यास्त विधि का तात्पर्य था कि निश्चित तारीख को सूर्य छिपने तक देय राशि भुगतान न कर पाने पर ज़मींदारी नीलाम कर दी जाती थी।
प्रश्न 25.
जोतदार कौन थे?
उत्तर:
बंगाल में ग्राम के मुखियाओं को जोतदार (मंडल) कहा जाता था।
प्रश्न 26.
जमीदार का कर एकत्र करने वाला अधिकारी क्या कहलाता था?
उत्तर:
ज़मींदार का कर एकत्र करने वाला अधिकारी ‘अमला’ कहलाता था।
प्रश्न 27.
बंगाल में बटाईदार को क्या कहा जाता था?
उत्तर:
बटाईदार को अधियार या बरगादार कहा जाता था।
प्रश्न 28.
शास्त्रीय (क्लासिकल) अर्थशास्त्री एडम स्मिथ की प्रसिद्ध पुस्तक का नाम बताओ।
उत्तर:
शास्त्रीय अर्थशास्त्रीय एड्म स्मिथ की प्रसिद्ध पुस्तक का नाम ‘राष्ट्रों की सम्पत्ति’ (Wealth of Nations) थी।
प्रश्न 29.
‘राष्ट्रों की सम्पत्ति’ पुस्तक में किस प्रकार के व्यापार का विरोध किया गया?
उत्तर:
‘राष्ट्रों की सम्पत्ति’ पुस्तक में व्यापारिक एकाधिकार का विरोध किया गया।
प्रश्न 30.
ब्रिटेन से लौटे कंपनी के कर्मचारियों की क्या कहकर खिल्ली उड़ाई जाती थी?
उत्तर:
ब्रिटेन से लौटे कंपनी के कर्मचारियों को ‘नवाब’ कहकर उनकी खिल्ली उड़ाई जाती थी।
प्रश्न 31.
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए कौन-सा एक्ट पास किया गया?
उत्तर:
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया पर नियंत्रण के लिए सन् 1773 में ‘रेग्यूलेटिंग एक्ट’ पास किया गया।
प्रश्न 32.
‘इलाहाबाद की संधि’ कब की गई थी?
उत्तर:
‘इलाहाबाद की संधि’ 12 अगस्त, 1765 को की गई थी।
प्रश्न 33.
रैयत’ शब्द से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘रैयत’ शब्द को किसान के लिए प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 34.
पहाड़िया लोगों के जीविकापार्जन के साधन क्या थे?
उत्तर:
झूम की खेती, जंगल के उत्पाद व शिकार पहाड़िया लोगों के जीविकापार्जन के साधन थे।
प्रश्न 35.
चार्टर एक्ट पास करने का क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
चार्टर एक्ट के माध्यम से कंपनी को बाध्य किया गया कि वह भारत में अपने राजस्व, प्रशासन इत्यादि के संबंध में नियमित रूप से ब्रिटिश सरकार को सूचना प्रदान करे।
प्रश्न 36.
पहाडिया लोगों की खेती का तरीका क्या था?
उत्तर:
पहाड़िया लोग झूम खेती करते थे।
प्रश्न 37.
कुछ वर्षों के लिए खाली छोड़ी गई ज़मीन का पहाड़िया लोग किस रूप में प्रयोग करते थे?
उत्तर:
कुछ वर्षों के लिए खाली छोड़ी गई परती भूमि को पहाड़िया लोग पशु चराने के लिए प्रयोग करते थे।
प्रश्न 38.
ईस्ट इंडिया कंपनी ने पहाड़िया क्षेत्रों में घुसपैठ क्यों शुरू की?
उत्तर:
संसाधनों का दोहन व प्रशासनिक दृष्टि से कंपनी ने पहाड़िया क्षेत्रों में घुसपैठ शुरू की।
प्रश्न 39. किस ब्रिटिश अधिकारी ने पहाड़िया लोगों से संधि के प्रयास शुरू किए?
उत्तर:
भागलपुर के कलेक्टर ऑगस्टस क्लीवलैंड (Augustus Cleveland) ने पहाड़िया लोगों से संधि के प्रयास शुरू किए।
प्रश्न 40.
रैयतवाड़ी व्यवस्था कब और कहाँ अपनाई गई ?
उत्तर:
रैयतवाड़ी व्यवस्था सन् 1820 में मद्रास प्रेसीडेंसी में अपनाई गई। इस व्यवस्था का जन्मदाता थॉमस मुनरो को माना जाता है। यह व्यवस्था 30 वर्षों के लिए लागू की गई।
प्रश्न 41.
फ्रांसिस बुकानन ने पहाड़िया क्षेत्र की यात्रा कब की?
उत्तर:
फ्रांसिस बुकानन ने 1810-11 ई० की सर्दियों में पहाड़िया क्षेत्र की यात्रा की।
प्रश्न 42.
पहाड़िया लोगों की जीवन-शैली का प्रतीक क्या था?
उत्तर:
पहाड़िया लोगों की जीवन-शैली का प्रतीक कुदाल था।
प्रश्न 43.
‘दामिन-इ-कोह’ किसे कहा गया?
उत्तर:
‘दामिन-इ-कोह’ उस विस्तृत भू-भाग को कहा गया जो कंपनी सरकार द्वारा संथालों को दिया गया।
प्रश्न 44.
कंपनी सरकार का संथालों के साथ क्या अनुबंध हुआ?
उत्तर:
कंपनी सरकार ने संथाल कृषकों के साथ यह अनुबंध किया कि उन्हें पहले दशक के अंदर प्राप्त भूमि के कम-से-कम दसवें भाग को कृषि योग्य बनाकर खेती करनी थी।
प्रश्न 45.
संथाल लोग दिकू किसे कहते थे?
उत्तर:
सरकारी अधिकारियों, ज़मींदारों व साहूकारों को संथाल दिकू (बाहरी लोग) कहते थे।
प्रश्न 46.
संथाल विद्रोह का मुख्य नेता कौन था?
उत्तर:
संथाल विद्रोह का मुख्य नेता सिधू मांझी था।
प्रश्न 47.
सीदो (सिधू) ने स्वयं को क्या बताया?
उत्तर:
सीदो ने स्वयं को देवी पुरुष और संथालों के भगवान् ‘ठाकुर’ का अवतार घोषित किया।
प्रश्न 48.
सीदो की हत्या कब की गई?
उत्तर:
1855 ई० में सीदो को पकड़कर मार दिया गया।
प्रश्न 49.
दक्कन क्षेत्र किसे कहा गया?
उत्तर:
बंबई व महाराष्ट्र के क्षेत्र को दक्कन कहा गया।
प्रश्न 50.
साहूकार किसे कहा गया?
उत्तर:
साहूकार, उसे कहा गया जो महाजन और व्यापारी दोनों हो, यानी धन उधार भी देता हो तथा व्यापार भी करता हो।
प्रश्न 51.
दक्कन को अंग्रेज़ी राज क्षेत्र में कब मिलाया गया?
उत्तर:
1818 ई० में पेशवा को हराकर दक्कन को अंग्रेजी राज क्षेत्र में मिला लिया गया।
प्रश्न 52.
रैयतवाड़ी राजस्व प्रणाली का जन्मदाता किसे माना जाता है?
उत्तर:
थॉमस मुनरो को रैयतवाड़ी राजस्व प्रणाली का जन्मदाता माना जाता है।
प्रश्न 53.
रैयतवाड़ी प्रणाली किन प्रांतों में लागू की गई?
उत्तर:
रैयतवाड़ी राजस्व प्रणाली को मद्रास प्रेसीडेंसी में लागू किया गया।
प्रश्न 54.
रैयतवाड़ी प्रणाली में बंदोबस्त किसके साथ किया गया?
उत्तर:
रैयतवाड़ी प्रणाली में सीधा किसानों या रैयत से ही बंदोबस्त किया गया।
प्रश्न 55.
रैयतवाड़ी प्रणाली में भूमि का मालिक किसे माना गया?
उत्तर:
रैयतवाड़ी प्रणाली में किसान को कानूनी तौर पर भूमि का मालिक मान लिया गया। जिस पर वह खेती कर रहा था।
प्रश्न 56.
रैयतवाड़ी बंदोबस्त कितने समय के लिए किया गया?
उत्तर:
रैयतवाड़ी बंदोबस्त 30 वर्षों के लिए किया गया।
प्रश्न 57.
बंबई दक्कन में रैयतवाड़ी बंदोबस्त कब शुरु किया गया?
उत्तर:
बंबई दक्कन में 1818 ई० में रैयत बंदोबस्त शुरु किया गया।
प्रश्न 58.
दक्कन में भयंकर अकाल कब पड़ा?
उत्तर:
1832-34 में दक्कन में भयंकर अकाल पड़ा।
प्रश्न 59.
औद्योगिक युग में सबसे अधिक महत्त्व की वाणिज्यिक फसल कौन-सी थी?
उत्तर:
औद्योगिक युग में सबसे अधिक महत्त्व की वाणिज्यिक फसल कपास थी।
प्रश्न 60.
ब्रिटेन में ‘कपास आपूर्ति संघ’ की स्थापना कब की गई?
उत्तर:
ब्रिटेन में 1857 ई० में ‘क़पास आपूर्ति संघ’ की स्थापना की गई।
प्रश्न 61.
‘मैनचेस्टर कॉटन कंपनी’ कब बनाई गई?
उत्तर:
मैनचेस्टर कॉटन कंपनी’ 1859 ई० में बनाई गई।
प्रश्न 62.
अमेरिका में गृह युद्ध कब शुरु हुआ?
उत्तर:
अमेरिका में सन् 1861 में गृह युद्ध छिड़ गया जो उत्तरी व दक्षिणी अमेरिका के बीच था।
प्रश्न 63.
अमेरिका का गृह युद्ध कब समाप्त हुआ?
उत्तर:
सन् 1865 में अमेरिका का गृह युद्ध समाप्त हो गया।
प्रश्न 64.
ब्रिटिश सरकार ने परिसीमन कानून कब बनाया?
उत्तर:
1859 ई० में सरकार ने परिसीमन कानून पास किया।
प्रश्न 65.
परिसीमन कानून का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
परिसीमन कानून का मुख्य उद्देश्य ब्याज के संचित होने से रोकना था।
प्रश्न 66.
परिसीमन कानून के अनुसार ऋणपत्रों को कितने समय के लिए मान्य माना गया?
उत्तर:
परिसीमन कानून के अनुसार किसान व ऋणदाता के बीच हस्ताक्षरित ऋण पत्र तीन वर्ष के लिए मान्य माना गया।
प्रश्न 67.
‘दक्कन दंगा आयोग’ ने ब्रिटिश संसद में अपनी रिपोर्ट कब प्रस्तुत की?
उत्तर:
‘दक्कन दंगा आयोग’ ने 1878 ई० में अपनी रिपोर्ट ‘दक्कन दंगा रिपोर्ट’ के नाम से प्रस्तुत की।
अति लघु-उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
ठेकेदारी प्रणाली के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
बंगाल के नए गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स (1772-85) ने भूमि-कर वसूली की ठेकेदारी प्रणाली शुरू की। इसे ‘फार्मिंग प्रणाली’ (Farming System) भी कहा गया है। इसके अंतर्गत उच्चतम बोली लगाने वालों (Bidders) को कर वसूल करने का ठेका दे दिया जाता था। शुरू में ये ठेके पाँच वर्षों के लिए दिए गए, परंतु बाद में वार्षिक ठेके नीलाम किए जाने लगे।
प्रश्न 2.
‘दीवानी’ शब्द से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘दीवानी’ मुगल कालीन प्रशासन में एक महत्त्वपूर्ण पद था। इसका मुख्य कार्य आय-व्यय की व्यवस्था को सुनिश्चित करना था। भू-राजस्व प्रणाली निर्धारण भी दीवान ही करता था। अकबर काल में राजा टोडरमल एक बड़े चतुर, बुद्धिमान दीवान थे।
प्रश्न 3.
स्थायी बंदोबस्त के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
सन् 1793 में गवर्नर-जनरल लॉर्ड कार्नवालिस ने बंगाल में भू-राजस्व की एक नई प्रणाली अपनाई जिसे ‘ज़मींदारी प्रथा’ ‘स्थायी बंदोबस्त’ अथवा ‘इस्तमरारी-प्रथा’ कहा गया। यह प्रणाली बंगाल, बिहार, उडीसा तथा बनारस व उत्तरी कर्नाटक में लाग की गई थी।
प्रश्न 4.
स्थायी बंदोबस्त लागू करने के दो कारण बताओ।
उत्तर:
स्थायी बंदोबस्त लागू करने के निम्नलिखित कारण थे
1. व्यापार व राजस्व संबंधी समस्याओं का समाधान (Solution of Problems Relating to Trade and Land Revenue)-कंपनी के अधिकारियों को यह आशा थी कि भू-राजस्व को स्थायी करने से व्यापार तथा राजस्व से संबंधित उन सभी समस्याओं का समाधान निकल आएगा जिनका सामना वे बंगाल विजय के समय से ही करते आ रहे थे।
2. बंगाल की अर्थव्यवस्था में संकट (Crisis in the Bengal Economy)-1770 के दशक से बंगाल की अर्थव्यवस्था अकालों की मार झेल रही थी। कृषि उत्पादन में निरंतर कमी आ रही थी। अर्थव्यवस्था संकट में फँसती जा रही थी और ठेकेदारी प्रणाली में इससे निकलने के लिए कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था।
प्रश्न 5.
स्थायी बंदोबस्त में भू-राजस्व की दर ऊँची रखने के क्या कारण थे?
उत्तर:
स्थायी बंदोबस्त में भू-राजस्व की दर शुरू से ही अपेक्षाकृत काफी ऊँची तय की गई थी। इसके दो कारण थे : पहला भू-राजस्व किसानों के अधिशेष (surplus) को हड़पने का मुख्य स्रोत था। किसानों से प्राप्त यह धन प्रशासन चलाने के साथ-साथ व्यापार करने के लिए भी उपयोगी था। दूसरा, राजस्व की दर स्थायी तौर पर निर्धारित करते समय कंपनी के अधिकारियों ने इस तथ्य को ध्यान में रखा कि आगे चलकर खेती के विस्तार तथा कीमतों में बढ़ोतरी होने से आय में वृद्धि होगी, उसमें कंपनी सरकार अपना दावा कभी नहीं कर सकेगी। अतः भविष्य की भरपाई वे शुरू से ही करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अधिकतम स्तर तक भू-राजस्वों की माँग को निर्धारित किया।
प्रश्न 6.
सूर्यास्त विधि क्या थी?
उत्तर:
सूर्यास्त विधि से तात्पर्य था कि निश्चित तारीख को सूर्य छिपने तक देय राशि का भुगतान न कर पाने पर ज़मींदारियों की नीलामी की जा सकती थी। इसमें राजस्वों की माँग निश्चित थी। फसल हो या न हो या फिर ज़मींदार रैयत से लगान एकत्र कर पाए या ना कर पाए उसे तो निश्चित तिथि तक सरकारी माँग पूरी करनी होती थी।
प्रश्न 7.
औपनिवेशिक शासन-व्यवस्था से पहले बंगाल में ज़मींदारों के पास क्या-क्या अधिकार थे?
उत्तर:
बंगाल में ज़मींदार छोटे राजा थे। उनके पास न्यायिक अधिकार थे और सैन्य टुकड़ियाँ भी। साथ ही उनकी अपनी पुलिस व्यवस्था थी। कंपनी की सरकार ने उनकी यह शक्तियाँ उनसे छीन लीं। उनकी स्वायत्तता को सीमित कर दिया।
प्रश्न 8.
बंगाल में ज़मींदारों की शक्ति सीमित करने के लिए कंपनी सरकार ने क्या किया?
उत्तर:
ज़मींदारों के सैनिक दस्तों को भंग कर दिया गया। साथ ही उनके सीमा शुल्क के अधिकार को भी खत्म कर दिया गया। उनके न्यायालयों को कंपनी द्वारा नियुक्त कलेक्टर के नियंत्रण में रख दिया गया। स्थानीय पुलिस प्रबंध भी कलेक्टर ने अपने हाथ में ले लिया। इस प्रकार ज़मींदार शक्तिहीन होकर पूर्णतः सरकार की दया पर निर्भर हो गया।
प्रश्न 9.
बंगाल के जोतदारों के शक्तिशाली होने के दो कारण बताओ।
उत्तर:
बंगाल के जोतदारों के शक्तिशाली होने के कारण निम्नलिखित थे
1. विशाल ज़मीनों के मालिक (Became Owner of VastAreas of Land)-जोतदार गाँव में ज़मीनों के वास्तविक मालिक थे। कईयों के पास तो हजारों एकड़ भूमि थी। वे बटाइदारों से खेती करवाते थे।
2. व्यापार व साहूकारी पर नियंत्रण (Control over Trade and Money Landing)-जोतदार केवल भू-स्वामी ही नहीं थे। उनका स्थानीय व्यापार व साहूकारी पर भी नियंत्रण था। वे एक व्यापारी, साहूकार तथा भूमिपति के रूप में अपने क्षेत्र के प्रभावशाली लोग थे।
प्रश्न 10.
बंगाल में बटाईदारों को क्या कहा जाता था?
उत्तर:
बंगाल में बटाइदारों को अधियार अथवा बरगादार कहा जाता था। वे जोतदार के खेतों में अपने हल और बैल के साथ काम करते थे। वे फसल का आधा भाग अपने पास और आधा जोतदार को दे देते थे।
प्रश्न 11.
बेनामी खरीददारी क्या थी?
उत्तर:
बंगाल में ज़मींदारों ने अपनी ज़मींदारी की भू-संपदा बचाने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण हथकंडा बेनामी खरीददारी का अपनाया। इसमें प्रायः जमींदार के अपने ही आदमी नीलाम की गई संपत्तियों को महँगी बोली देकर खरीद लेते थे और फिर देय राशि सरकार को नहीं देते थे।
प्रश्न 12.
इतिहासकार या एक विद्यार्थी को सरकारी रिपोर्ट या दस्तावेजों का अध्ययन करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
इतिहासकार या एक विद्यार्थी को सरकारी रिपोर्ट एवं दस्तावेजों को काफी ध्यान से और सावधानीपूर्वक पढ़ना चाहिए। विशेषतः यह सवाल मस्तिष्क में सदैव रहना चाहिए कि यह किसने एवं किस उद्देश्य के लिए लिखी है। बिना सवाल उठाए तथ्यों को वैसे-के वैसे स्वीकार नहीं कर लिया जाना चाहिए।
प्रश्न 13.
ईस्ट इंडिया कंपनी पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने कौन-कौन से कदम उठाए?
उत्तर:
भारत में कंपनी शासन पर नियंत्रण एवं उसे रेग्युलेट’ करने के लिए सबसे पहले सन् 1773 में ‘रेग्यूलेटिंग एक्ट’ पास किया गया। फिर 1784 ई० में ‘पिट्स इंडिया एक्ट’ तथा आगे हर बीस वर्ष के बाद ‘चार्टर एक्टस’ पास किए गए। इन अधिनियमों के माध्यम के कंपनी को बाध्य किया गया कि वह भारत में अपने राजस्व, प्रशासन इत्यादि के संबंध में नियमित रूप से ब्रिटिश सरकार को सूचना प्रदान करे।
प्रश्न 14.
पहाडिया लोगों द्वारा मैदानी क्षेत्रों पर आक्रमण के दो कारण बताओ।
उत्तर:
पहाड़िया जनजाति के लोग मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों विशेषतः ज़मींदारों, किसानों व व्यापारियों इत्यादि पर बराबर आक्रमण करते रहते थे। इन आक्रमणों के मुख्य कारण निम्नलिखित थे
1. अभाव अथवा अकाल (Famine)-प्रायः ये आक्रमण पहाड़िया लोगों द्वारा अभाव अथवा अकाल की परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए किए जाते थे। मैदानी भागों में, जहाँ सिंचाई से खेती होती थी, वहाँ यह लोग खाद्य-सामग्री की लूट-पाट करके ले जाते थे।
2.शक्ति-प्रदर्शन (To Show Power)-उनका एक लक्ष्य शक्ति-प्रदर्शन कर अपनी धाक जमाना भी रहता था। इस शक्ति-प्रदर्शन का लाभ उन्हें आक्रमणों के बाद भी मिलता रहता था।
प्रश्न 15.
पहाड़िया लोगों के प्रति कंपनी अधिकारियों का दृष्टिकोण कैसा था?
उत्तर:
कंपनी अधिकारी पहाड़िया लोगों को असभ्य, बर्बर और उपद्रवी समझते थे। अतः तब तक उनके इलाकों में शासन करना आसान नहीं था जब तक उन्हें सभ्यता की परिधि में न लाया जाए। ऐसे जनजाति लोगों को सुसभ्य बनाने के लिए वो समझते थे कि उनके क्षेत्रों में कृषि-विस्तार किया जाए।
प्रश्न 16.
संथालों और पहाड़िया लोगों के संघर्ष को क्या नाम दिया जाता है?
उत्तर:
संथालों और पहाड़िया जनजाति के इस संघर्ष को कुदाल और हल का संघर्ष का नाम दिया जाता है। कुदाल पहाड़िया जनजाति की जीवन-शैली का प्रतीक था तो हल संथालों के जीवन का प्रतीक था। पहाड़िया की तुलना में संथालों में स्थायी जीवन की ओर बढ़ने की प्रवृत्ति अधिक थी।
प्रश्न 17.
दीवानी का अधिकार मिलने पर कंपनी को क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
दीवानी का अधिकार मिलने पर कंपनी को निम्नलिखित लाभ हुए
- दीवानी मिलने पर कंपनी बंगाल में सर्वोच्च शक्ति बन गई।
- कंपनी की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। उसके व्यापार में भी वृद्धि हुई। सुदृढ़ आर्थिक स्थिति के कारण कंपनी के पास विशाल सेना हो गई।
प्रश्न 18.
विलियम होजेज कौन था?
उत्तर:
विलियम होजेज कैप्टन कुक के साथ प्रशांत महासागर की यात्रा करते हुए भारत आया था। वह भागलपुर के कलेक्टर आगस्टस क्लीवलैंड के जंगल के गाँवों पर भ्रमण पर गया था। इन गाँवों और प्राकृतिक सौंदर्य स्थलों के उसने कई एक्वाटिंट (Aquatint) तैयार किए थे। यह ऐसी तस्वीर होती है जो ताम्रपट्टी में अम्ल (Acid) की सहायता से चित्र के रूप में कटाई करके बनाई जाती है।
प्रश्न 19.
कंपनी अधिकारी ने संथाल जनजाति को राजमहल की पहाड़ियों की तलहटी में बसने का निमंत्रण क्यों दिया ?
उत्तर:
कंपनी अधिकारी कृषि क्षेत्र का विस्तार राजमहल की पहाड़ियों की घाटियों और निचली पहाड़ियों पर करना चाहते थे। पहाड़िया लोग हल को हाथ लगाना ही पाप समझते थे। वह बाज़ार के लिए खेती नहीं करना चाहते थे। ऐसी परिस्थितियों में ही अंग्रेज़ अधिकारियों का परिचय संथाल जनजाति के लोगों से हुआ जो पूरी ताकत के साथ ज़मीन में काम करते थे। उन्हें जंगल काटने में भी कोई हिचक नहीं थी। वे पहाड़िया लोगों की अपेक्षाकृत अग्रणी बाशिंदे थे। कंपनी अधिकारियों ने संथालों को राजमहल की पहाड़ियों की तलहटी में बसे महालों (गाँवों) में बसने का निमंत्रण दिया।
प्रश्न 20.
राजमहल की पहाड़ियों में संथालों की विजय के क्या कारण थे?
उत्तर:
राजमहल की पहाड़ियों में संथालों के आगमन तथा बसाव का पहाड़िया जनजाति के लोगों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा। पहाड़िया लोगों ने संथालों का प्रबल प्रतिरोध किया। परन्तु उन्हें संथालों के मुकाबले पराजित होकर पहाड़ियों की तलहटी वाला उपजाऊ क्षेत्र छोड़कर जाना पड़ा। इस संघर्ष में संथालों की विजय हुई क्योंकि कंपनी सरकार के सैन्यबल उन्हें कब्जा दिलवा रहे थे। संथाल जनजाति के लोग शक्तिशाली लड़ाकू थे।
प्रश्न 21.
संथालों के आगमन का पहाड़िया लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
संथालों के आगमन से पहाड़िया लोगों के जीवन-निर्वाह का आधार ही उनसे छिन गया था। जंगल नहीं रहे तो वे शिकार पर्याप्त घास व वन-उत्पादों से वंचित हो गए। ऊँचे पहाड़ी क्षेत्रों में झूम की खेती भी संभव नहीं थी। वें बंजर, चट्टानी और शुष्क क्षेत्रों में धकेले जा चुके थे। इस सबके परिणामस्वरूप पहाड़िया लोगों के रहन-सहन पर प्रभाव पड़ा। आगे चलकर वह निर्धनता तथा भुखमरी के शिकार रहे।
प्रश्न 22.
संथाल विद्रोह के दो कारण बताओ।
उत्तर:
संथाल विद्रोह के दो कारण निम्नलिखित थे
- बंगाल में अपनाई गई स्थायी भू-राजस्व प्रणाली के कारण संथालों की जमीनें धीरे-धीरे उनके हाथों से निकलकर ज़मींदारों और साहूकारों के हाथों में जाने लगीं।
- सरकारी अधिकारी, पुलिस, थानेदार सभी महाजनों का पक्ष लेते थे। वे स्वयं भी संथालों से बेगार लेते थे। यहाँ तक कि संथाल कृषकों की स्त्रियों की इज्जत भी सुरक्षित नहीं थी। अतः दीकुओं (बाहरी लोगों) के विरुद्ध संथालों का विद्रोह फूट पड़ा।
प्रश्न 23.
विद्रोह के दौरान संथालों ने महाजनों और साहूकारों को निशाना क्यों बनाया?
उत्तर:
संथालों ने महाजनों एवं ज़मींदारों के घरों को जला दिया, उन्होंने जमकर लूटपाट की तथा उन बही-खातों को भी बर्बाद कर दिया जिनके कारण वे गुलाम हो गए थे। चूंकि अंग्रेज़ सरकार महाजनों और ज़मींदारों का पक्ष ले रही थी। अतः संथालों ने सरकारी कार्यालयों, पुलिस कर्मचारियों पर भी हमले किए।
प्रश्न 24.
कंपनी सरकार ने संथाल विद्रोह का दमन कैसे किया?
उत्तर:
कंपनी सरकार ने विद्रोहियों को कुचलने के लिए एक मेजर जनरल के नेतृत्व में 10 टुकड़ियाँ भेजीं। विद्रोही नेताओं को पकड़वाने पर 10 हजार का इनाम रखा गया। सेना ने कत्लेआम मचा दिया। गाँव-के-गाँव जलाकर राख कर दिए।
प्रश्न 25.
बुकानन विवरण की दो विशेषताएँ लिखिए। उत्तर:बुकानन विवरण की विशेषताएँ इस प्रकार हैं
(1) बुकानन ने अपने विवरण में उन स्थानों को रेखांकित किया जहाँ लोहा, ग्रेनाइट, साल्टपीटर व अबरक इत्यादि खनिजों के भंडार थे। यह सारी जानकारी कंपनी के लिए वाणिज्यिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण थी।
(2) बुकानन मात्र भू-खंडों का वर्णन ही नहीं करता अपितु वह सुझाव भी देता है कि इन्हें किस तरह कृषि-क्षेत्र में बदला जा सकता है। कौन-सी फसलें बोई जा सकती हैं।
प्रश्न 26.
दक्कन विद्रोह को दबाने के लिए ब्रिटिश अधिकारियों ने क्या किया?
उत्तर:
इस विद्रोह के फैलने से ब्रिटिश अधिकारी घबरा गए। विद्रोही गाँवों में पुलिस चौकियाँ बनाई गईं। यहाँ तक कि इस इलाके को सेना के हवाले करना पड़ा। 95 किसानों को गिरफ्तार करके दंडित किया गया। विद्रोह पर नियंत्रण के बाद भी स्थिति पर नज़र रखी गई।
प्रश्न 27.
दामिन-इ-कोह के निर्माण से संथालों के जीवन में आए दो परिवर्तनों को बताइए।
उत्तर:
दामिन-इ-कोह के निर्माण से संथालों के जीवन में आए दो परिवर्तन इस प्रकार थे
- दामिन-इ-कोह में संथालों ने खानाबदोश जिंदगी छोड़ दी और स्थायी रूप से बस गए।
- वे कई प्रकार की वाणिज्यिक फसलों का उत्पादन करने लगे और साहूकारों तथा व्यापारियों से लेन-देन करने लगे।
प्रश्न 28.
ब्रिटेन में ‘कपास आपूर्ति संघ’ व मैनचेस्टर कॉटन कंपनी की स्थापना के क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:
1857 ई० में ‘कपास आपूर्ति संघ’ तथा 1859 ई० में मैनचेस्टर कॉटन कंपनी (Menchester Cotton Company) बनाई गई जिसका उद्देश्य दुनिया के प्रत्येक भाग में कपास के उत्पादन को प्रोत्साहित करना था।
प्रश्न 29.
रैयतवाड़ी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
रैयतवाड़ी भू-राजस्व व्यवस्था की वह प्रणाली थी जिसके अन्तर्गत रैयत (किसानों) का सरकार से सीधा सम्बन्ध होता था। इस व्यवस्था में बिचौलिये समाप्त कर दिए गए।
प्रश्न 30.
डेविड रिकार्डो कौन था?
उत्तर:
डेविड रिकार्डो 1820 के दशक में इंग्लैण्ड का अर्थशास्त्री था। उसके अनुसार भू-स्वामी को उस समय प्रचलित ‘औसत लगानों’ को प्राप्त करने का हक होना चाहिए। जब भूमि से ‘औसत लगान’ से अधिक प्राप्त होने लगे तो वह भू-स्वामी की अधिशेष आय होगी। जिस पर सरकार को कर लगाने की आवश्यकता होगी।
प्रश्न 31.
पहाड़िया लोग मैदानी क्षेत्रों पर आक्रमण क्यों करते रहते थे?
उत्तर:
पहाड़िया लोगों द्वारा मैदानी क्षेत्रों पर आक्रमण अभाव व अकाल से बचने के लिए, मैदानों में बसे समुदायों पर अपनी शक्ति दिखाने के लिए तथा बाहरी लोगों के साथ राजनीतिक संबंध स्थापित करने के लिए भी किए जाते थे।
प्रश्न 32.
जमींदारों पर नियन्त्रण के उद्देश्य से कम्पनी ने कौन-से कदम उठाए?
उत्तर:
ज़मींदारों की शक्ति पर नियंत्रण रखने के लिए उनकी सैन्य टुकड़ियों को भंग कर दिया गया। ज़मींदारों से पुलिस एवं न्याय व्यवस्था का अधिकार छीन लिया गया तथा उनके द्वारा लिया जाने वाला सीमा शुल्क समाप्त कर दिया गया।
प्रश्न 33.
‘पाँचवीं रिपोर्ट’ महत्त्वपूर्ण क्यों थी?
उत्तर:
1813 में ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत की गई फरमिंगर की एक रिपोर्ट है। यह ‘पाँचवीं रिपोर्ट’ के नाम से जानी गई, यह स्वयं में पहली चार रिपोर्टों से अधिक महत्त्वपूर्ण बन गई क्योंकि भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन व क्रियाकलापों के संदर्भ में यह एक विस्तृत रिपोर्ट थी।
प्रश्न 34.
पहाड़िया लोग कौन थे?
उत्तर:
बंगाल में राजमहल की पहाड़ियों के क्षेत्र में रहने वाले लोगों को ‘पहाड़िया’ के नाम से जाना जाता था। ये लोग सदियों से प्रकृति की गोद में निवास करते आ रहे थे। झूम की खेती, जंगल के उत्पाद तथा शिकार उनके जीविकोपार्जन के साधन थे।
प्रश्न 35.
स्थायी बन्दोबस्त की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
स्थायी बन्दोबस्त की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(1) यह समझौता बंगाल के राजाओं और ताल्लुकेदारों के साथ कर उन्हें ‘ज़मींदारों’ के रूप में वर्गीकृत किया गया।
(2) ज़मींदारों द्वारा सरकार को दी जाने वाली वार्षिक भूमि-कर राशि स्थायी रूप से निश्चित कर दी गई। इसीलिए इसे ‘स्थायी बंदोबस्त’ से भी पुकारा गया। .
प्रश्न 36.
स्थायी बन्दोबस्त की दो हानियाँ लिखो।
उत्तर:
स्थायी बन्दोबस्त की दो हानियाँ निम्नलिखित हैं
(1) इस व्यवस्था में, सरकार और रैयत के बीच कोई सीधा संबंध नहीं था। उन्हें ज़मींदारों की दया पर छोड़ दिया गया था। उनके हितों की पूरी तरह उपेक्षा की गई।
(2) इस व्यवस्था में समय-समय पर भूमिकर में वृद्धि का अधिकार सरकार के पास नहीं था। इसलिए शुरू में तो यह व्यवस्था सरकार के लिए लाभकारी रही परंतु बाद में कृषि उत्पादों में हुई वृद्धि के बावजूद भी सरकार अपने भूमि-कर में वृद्धि नहीं कर सकी।
प्रश्न 37.
पहाड़िया लोगों द्वारा अपनाई गई झूम खेती क्या थी?
उत्तर:
पहाड़िया लोग जंगल में झाड़ियों को काटकर व घास-फूस को जलाकर ज़मीन का एक छोटा-सा टुकड़ा निकाल लेते थे। यह छोटा-सा खेत पर्याप्त उपजाऊ होता था। घास व झाड़ियों के जलने से बनी राख उसे और भी उपजाऊ बना देती थी। कुछ वर्षों तक उसमें खाने के लिए विभिन्न तरह की दालें और ज्वार-बाजरा उगाते और फिर कुछ वर्षों के लिए उसे खाली (परती) छोड़ देते। ताकि यह पुनः उर्वर हो जाए। ऐसी खेती को स्थानांतरित खेती (Shifting Cultivation) अथवा झूम की खेती कहा जाता है।
प्रश्न 38.
संथाल परगना क्यों बनाया गया?
उत्तर:
संथाल विद्रोह को दबाने के बाद अलग संथाल परगना बनाया गया ताकि आक्रोश कम हो सके। इस परगने में भागलपुर और वीरभूम जिलों का 5500 वर्गमील शामिल किया गया। संथाल परगना में कुछ विशेष कानून लागू किए गए जैसे कि यहाँ यूरोपीय मिशनरियों के अतिरिक्त अन्य बाहरी लोगों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई।
प्रश्न 39.
फ्रांसिस बुकानन कौन था?
उत्तर:
फ्रांसिस बुकानन एक चिकित्सक था। इसने 1794 से 1815 तक एक चिकित्सक के रूप में बंगाल में कंपनी सरकार में नौकरी की। कुछ वर्ष वह लॉर्ड वेलजली (गवर्नर-जनरल) का शल्य चिकित्सक भी रहा। उसने कलकत्ता में अलीपुर चिड़ियाघर की स्थापना की।
प्रश्न 40.
जंगलों के विनाश के सम्बन्ध में स्थानीय लोगों व बुकानन के दृष्टिकोण में क्या अन्तर था?
उत्तर:
स्थानीय लोग जंगलों के विनाश में अपना हित नहीं देखते थे। उनका दृष्टिकोण जीवनयापन तक सीमित था। जबकि बुकानन का दृष्टिकोण आधुनिक पश्चिमी विचारधारा तथा कंपनी के वाणिज्यिक हितों से प्रेरित था।
प्रश्न 41.
महालवाड़ी प्रणाली के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
महालवाड़ी प्रणाली मुख्यतः संयुक्त प्रांत, आगरा, अवध, मध्य प्रांत तथा पंजाब के कुछ भागों में लागू की गई थी। ब्रिटिश भारत की कुल 30 प्रतिशत भूमि इसके अंतर्गत आती थी। इस बंदोबस्त में महाल अथवा गाँव को इकाई माना गया। भू-राजस्व देने के लिए यह इकाई उत्तरदायी थी। .
प्रश्न 42.
‘पूना सार्वजनिक सभा’ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
सन् 1873 में मध्यजीवी बुद्धिजीवियों का एक नया संगठन ‘पूना सार्वजनिक सभा’ ने किसानों के मामले में हस्तक्षेप किया। भू-राजस्व दरों पर पुनः विचार करने के लिए एक याचिका दायर की गई। नई भू-राजस्व दरों के विरुद्ध कुनबी कृषकों को जागृत करने के लिए इस संगठन के कार्यकर्ता दक्कन देहात के गाँवों में भी गए।।
लघु-उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
बंगाल में स्थायी बंदोबस्त (इस्तमरारी) के दो लाभ बताएँ।।
उत्तर:
स्थायी बंदोबस्त (ज़मींदारी प्रथा) काफी विचार-विमर्श के बाद शुरू की गई थी। इसलिए इससे कुछ अपेक्षित लाभ हुए, जो इस प्रकार हैं
1. सरकार की आय का निश्चित होना-सरकार की वार्षिक आय निश्चित हो गई जिससे प्रशासन व व्यापार दोनों को नियमित करने में लाभ हुआ।
2. धन व समय की बचत-इससे कंपनी सरकार को धन व समय दोनों की बचत हुई। प्रतिवर्ष बंदोबस्त निश्चित करने में धन व समय दोनों ही बर्बाद होते. थे।
3. वफादार वर्ग-स्थायी बंदोबस्त से ज़मींदारों का वर्ग अंग्रेजों की नीतियों से धनी हुआ। अतः यह उनका एक वफादार सहयोगी बनता गया। लेकिन यह बात सभी ज़मींदारों पर लागू नहीं हुई।
4. कंपनी के व्यापार में वृद्धि-स्थायी बंदोबस्त से बंगाल में कंपनी की आय सुनिश्चित हो गई। अब वह अपना ध्यान व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ाने में लगा पाई। फलतः इससे उसे व्यापारिक लाभ मिला।
5. ज़मींदारों की समृद्धि-जो ज़मींदार सख्ती के साथ किसानों से लगान वसूलने में सफल हुए, वे समृद्ध होते गए।
प्रश्न 2.
स्थायी बंदोबस्त की हानियों का वर्णन करें।
उत्तर:
स्थायी बंदोबस्त के कुछ लाभ कंपनी को मिले। परन्तु यह बंगाल की अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं कर सकी। कालांतर में यह कंपनी के लिए भी आर्थिक तौर पर घाटे का सौदा सिद्ध हुई। अतः कुछ विद्वानों ने इस बंदोबस्त की कड़ी आलोचना की है। इसके कुछ निम्नलिखित दुष्परिणाम हुए
1. सरकार को हानि-निःसंदेह इससे सरकार को एक निश्चित वार्षिक आय तो होने लगी। परंतु इस व्यवस्था में समय-समय पर भूमिकर में वृद्धि का अधिकार सरकार के पास नहीं था। इसलिए शुरू में तो यह व्यवस्था सरकार के लिए लाभकारी रही परंतु बाद में सरकार अपने भूमि-कर में वृद्धि नहीं कर सकी।
2. रैयत के हितों की अनदेखी-इस व्यवस्था में, सरकार और रैयत के बीच कोई सीधा संबंध नहीं था। उन्हें ज़मींदारों की दया पर छोड़ दिया गया था। उनके हितों की पूरी तरह उपेक्षा की गई। वे किसान की संपत्ति को बेचकर लगान की पूरी रकम वसूल कर सकते थे। तथापि यह तरीका आसान नहीं था क्योंकि कानूनी प्रक्रिया काफी लंबी थी।
3. कृषि में पिछड़ापन-ज़मींदारी प्रथा से कृषि अर्थव्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुआ बल्कि उसका पिछड़ापन और भी बढ़ता गया। ज़मींदार वर्ग ने कृषि सुधारों में कोई रुचि नहीं दिखाई। दूसरी ओर किसान पर लगान का बोझ बढ़ता गया। उसे चुकाने के लिए वह साहूकारों के चंगुल में फँसता गया। किसान के पास कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए कुछ बच ही नहीं पाता था। फलतः कृषि का पिछड़ापन बढ़ता गया।
4. अनुपस्थित ज़मींदार-इस व्यवस्था में नए जमींदार वर्ग का उदय हुआ। यह पहले के ज़मींदारों से कई मायनों में अलग था। इन्होंने उन पुराने ज़मींदारों की ज़मींदारियां खरीद ली थीं जो समय पर लगान वसूल करके सरकार को जमा नहीं करवा सके थे। इन नए ज़मींदारों ने अपनी सहूलियत के लिए किसानों से लगान वसूली का काम आगे अन्य इच्छुक लोगों को ज्यादा धन लेकर पट्टे अथवा ठेके पर दे दिया। इस प्रकार खेतिहर किसान और वास्तविक ज़मींदार के मध्य परजीवी ज़मींदारों की एक लंबी श्रृंखला (चेन) पैदा हो गई। इस लगानजीवी वर्ग का सारा भार अन्ततः किसान पर ही पड़ता था।
5. जमींदारों को हानि-प्रारंभ में स्थायी बंदोबस्त ज़मींदारों के लिए भी काफी हानिप्रद सिद्ध हुआ। बहुत-से ज़मींदार सरकार को निर्धारित भूमि-कर का भुगतान समय पर नहीं कर सके। परिणामस्वरूप उन्हें उनकी ज़मींदारी से वंचित कर दिया गया। समकालीन स्रोतों से ज्ञात होता है कि बर्दवान के राजा (शक्तिशाली ज़मींदार) की ज़मींदारी के अनेक महाल (भू-संपदाएँ) सार्वजनिक तौर पर नीलाम किए गए थे। उस पर राजस्व की एक बड़ी राशि बकाया थी। लेकिन यह कहानी अकेले बर्दवान (अब बर्द्धमान) ” की नहीं थी। 18वीं सदी के अंतिम वर्षों में काफी बड़े स्तर पर ऐसी भू-संपदाओं की नीलामी हुई थी।
प्रश्न 3.
स्थायी बंदोबस्त में ज़मींदार राजस्व राशि के भुगतान में क्यों असमर्थ हुए?
उत्तर:
राजस्व राशि का भुगतान करने में ज़मींदार कई कारणों से असमर्थ रहे। ये कारण सरकार की नीतियों एवं ज़मींदारों की स्थिति से जुड़े हुए थे। संक्षेप में ये कारण इस प्रकार थे
1. राजस्व की ऊँची दर-भू-राजस्व की दर शुरू से ही अपेक्षाकृत काफी ऊँची तय की गई थी क्योंकि राजस्व की दर स्थायी तौर पर निर्धारित करते समय कंपनी के अधिकारियों ने इस तथ्य को ध्यान में रखा कि आगे चलकर खेती के विस्तार तथा कीमतों में बढ़ोत्तरी होने से ज़मींदारों की आय में वृद्धि होगी, लेकिन सरकार अपना दावा उसमें से कभी नहीं कर सकेगी। अतः भविष्य की भरपाई वे शुरू से ही करना चाहते थे। उनकी यह दलील थी कि शुरू-शुरू में यह माँग ज़मींदारों को कुछ अधिक लगेगी परन्तु आगे आने वाले वर्षों में धीरे-धीरे यह सहज हो जाएगी।
2. मंदी में ऊँचा राजस्व-स्थायी बंदोबस्त के लिए राजस्व दर का निर्धारण 1790 के दशक में किया गया। यह मंदी का दशक था। कृषि उत्पादों की कीमतें अपेक्षाकृत कम थीं। ऐसे में रैयत (किसानों) के लिए ऊँची दर का राजस्व चुकाना कठिन था। इस प्रकार ज़मींदार किसानों से राजस्व इकट्ठा नहीं कर पाए और वह सरकार को देय राशि का भुगतान करने में भी असमर्थ रहे।
3. सूर्यास्त विधि-इस व्यवस्था में केवल राजस्वों की दर ही ऊँची नहीं थी वरन वसूली के तरीके भी अत्यंत सख्त थे। इसके लिए सूर्यास्त विधि का अनुसरण किया गया, जिसका तात्पर्य था कि निश्चित तारीख को सूर्य छिपने तक देय राशि का भुगतान न कर पाने पर ज़मींदारियों को नीलाम कर दिया जाए। ध्यान रहे इसमें राजस्वों की माँग निश्चित थी। फसल हो या न हो जमींदार को तो निश्चित तिथि तक सरकारी माँग पूरी करनी होती थी। इसलिए लगान एकत्र न करने वाले बर्बाद हो गए।
4. ज़मींदारों की शक्तियों में कमी-बंगाल में ज़मींदार छोटे राजा थे। उनके पास न्यायिक अधिकार थे और सैन्य टुकड़ियाँ भी थीं। उनकी अपनी पुलिस व्यवस्था थी। कंपनी की सरकार ने उनकी यह शक्तियाँ उनसे छीन लीं। उनकी शक्तियाँ मात्र किसानों से लगान इकट्ठा करने और अपनी ज़मींदारी का प्रबंध करने तक ही सीमित कर दी गईं। उनके सैनिक दस्तों को भंग कर दिया गया।
उनके न्यायालयों को कंपनी द्वारा नियुक्त कलेक्टर के नियंत्रण में रख दिया गया। स्थानीय पुलिस प्रबंध भी कलेक्टर ने अपने हाथ में ले लिया। इस प्रकार प्रशासन का केंद्र बिंदु ज़मींदार नहीं बल्कि कलेक्टर बनता गया। ज़मींदार शक्तिहीन होकर पूर्णतः सरकार की दया पर निर्भर हो गया। समकालीन सरकारी दस्तावेजों से पता चलता है कि किस प्रकार सरकारी माँग पूरी न कर पाने वाले ज़मींदारों को ज़मींदारी से वंचित कर दिया जाता था।
5. ग्राम मुखियाओं का व्यवहार-बंगाल में ग्राम के मुखियाओं को जोतदार अथवा मंडल कहा जाता था। यह काफी सम्पन्न किसान (रैयत) थे। कुछ गरीब किसान भी इनके प्रभाव में होते थे। इस सम्पन्न ग्रामीण वर्ग का ज़मींदारों के प्रति व्यवहार काफी नकारात्मक रहता था। जब ज़मींदार का अधिकारी गाँव में लगान एकत्र करने में असफल रहता और ज़मींदार सरकार को भुगतान न कर पाता तो जोतदारों को बड़ी खुशी होती थी।
अच्छी फसल न होने या फिर सम्पन्न रैयत जान-बूझकर समय पर ज़मींदार को लगान का भुगतान नहीं करते थे। दोनों ही अवसरों पर ज़मींदार मुसीबत में फंसता था। शक्तियाँ सीमित कर दिए जाने के कारण अब वे आसानी से बाकीदारों के विरुद्ध शक्ति का प्रयोग भी नहीं कर सकते थे। वह बाकीदारों के विरुद्ध न्यायालय में तो जा सकता था। परन्तु न्याय की प्रक्रिया इतनी लंबी थी कि वर्षों चलती रहती थी।
प्रश्न 4.
‘पाँचवीं रिपोर्ट’ क्या थी?
उत्तर:
कंपनी के प्रशासन और बंगाल की स्थिति पर सन् 1813 में ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत की गई विशेष रिपोर्ट ‘पाँचवीं रिपोर्ट’ के नाम से जानी गई। क्योंकि इससे पूर्व चार रिपोर्ट इस संदर्भ में पहले भी प्रस्तुत हो चुकी थीं। लेकिन यह स्वयं में पहली चार रिपोर्टों से अधिक महत्त्वपूर्ण बन गई क्योंकि भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन व क्रियाकलापों के बारे में यह एक विस्तृत रिपोर्ट थी। इसमें 1002 पृष्ठ थे जिनमें से 800 से अधिक पृष्ठों में परिशिष्ट लगाए गए थे। इन परिशिष्टों में भू-राजस्व से संबंधित आंकड़ों की तालिकाएँ, अधिकारियों की बंगाल व मद्रास में राजस्व व न्यायिक प्रशासन पर लिखी गई टिप्पणियाँ शामिल थीं।
साथ ही जिला कलेक्टरों की अपने अधीन भू-राजस्व व्यवस्था पर रिपोर्ट तथा ज़मींदारों एवं रैयतों के आवेदन पत्रों को सम्मिलित किया गया था। यह साक्ष्य इतिहास लेखन के लिए बहुमूल्य हैं। उल्लेखनीय है कि 1760 से 1800 ई० के बीच चार दशकों में बंगाल के देहात में हुए विभिन्न परिवर्तनों की जानकारी का आधार पाँचवीं रिपोर्ट में शामिल यह तथ्य ही रहे हैं। यह रिपोर्ट हमारे विचारों एवं अवधारणाओं का एक मुख्य आधार रही है।
प्रश्न 5.
ब्रिटिश संसद में ‘पाँचवीं रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने के क्या कारण थे?
उत्तर:
‘पाँचवीं रिपोर्ट’ भारत में कंपनी के प्रशासन तथा क्रियाकलापों पर एक विस्तृत रिपोर्ट थी। ब्रिटिश संसद में ‘पाँचवीं रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने के निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण कारण थे
1. कंपनी का सत्ता बनना-ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी एक व्यापारिक कंपनी थी। परन्तु वे बक्सर के युद्ध के पश्चात् भारत में एक राजनीतिक सत्ता बन गई। फलस्वरूप उसकी गतिविधियों पर सूक्ष्म नज़र रखी जाने लगी। इंग्लैंड में अनेक राजनीतिक समूहों का मत था कि बंगाल की विजय का लाभ केवल ईस्ट इंडिया कंपनी को नहीं मिलना चाहिए, बल्कि ब्रिटिश राष्ट्र को भी मिलना चाहिए।
2. अन्य व्यापारियों का दबाव-ब्रिटेन के अनेक व्यापारिक समूह कंपनी के व्यापार के एकाधिकार का विरोध कर रहे थे। निजी व्यापार करने वाले ऐसे व्यापारियों की संख्या बढ़ रही थी। वे भी भारत के साथ व्यापार में हिस्सेदारी के इच्छुक थे। वे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को एकाधिकार प्रदान करने वाले शाही फरमान को रद्द करवाना चाहते थे। ब्रिटेन के उद्योगपति भी भारत में ब्रिटिश विनिर्माताओं के लिए अवसर देख रहे थे। अतः वे भी भारत के बाजार उनके लिए खुलवाने को उत्सुक थे।
3. कंपनी के भ्रष्टाचार व प्रशासन पर बहस कंपनी के कर्मचारी तथा अधिकारी निजी व्यापार तथा रिश्वतखोरी से बहुत-सा धन लेकर ब्रिटेन लौटते थे। उनकी यह धन संपत्ति अन्य निजी व्यापारियों के मन में ईर्ष्या उत्पन्न करती थी क्योंकि यह व्यापारी भी भारत से शुरू हुई लूट में हिस्सा पाने के इच्छुक थे। कई राजनीतिक समूह ब्रिटिश संसद में भी इस मुद्दे को उठा रहे थे। साथ ही ब्रिटेन के समाचार पत्रों में भी कंपनी अधिकारियों के लोभ व लालच का पर्दाफाश कर रहे थे। इंग्लैंड में कंपनी के बंगाल में अराजक व अव्यवस्थित शासन की सूचनाएँ भी पहुँच रही थी। अतः कंपनी के अधिकारियों में भ्रष्टाचार तथा कुशासन पर इंग्लैंड में बहस छिड़ चुकी थी।
4. कंपनी पर नियंत्रण-स्पष्ट है कि ब्रिटेन में आर्थिक एवं राजनीतिक दबावों के चलते भारत में कंपनी शासन पर नियंत्रण आवश्यक हो गया था। इसके लिए सबसे पहले सन् 1773 में ‘रेग्यूलेटिंग एक्ट’ फिर 1784 में ‘पिट्स इंडिया एक्ट’ तथा आगे और कई एक्ट पास किए गए। इन अधिनियमों के माध्यम से कंपनी को बाध्य किया गया कि वह भारत में अपने राजस्व, प्रशासन इत्यादि के संबंध में नियमित रूप से ब्रिटिश सरकार को सूचना प्रदान करे। साथ ही कंपनी के काम-काज का निरीक्षण करने के लिए कई समितियों का गठन किया गया। ‘पाँचवीं रिपोर्ट’ भी एक ऐसी ही रिपोर्ट थी जिसे एक प्रवर समिति (Select Committee) द्वारा तैयार किया गया था।
प्रश्न 6.
क्या ‘पाँचवीं रिपोर्ट’ पूर्णतः निष्पक्ष थी?
अथवा
‘पाँचवी रिपोर्ट’ की आलोचना के कोई दो बिन्दु लिखिए।
उत्तर:
पाँचवीं रिपोर्ट साक्ष्यों की दृष्टि से काफी समृद्ध थी, लेकिन पूर्णतः निष्पक्ष नहीं थी। 8वीं सदी के अंतिम दशकों में यह बंगाल में कंपनी सत्ता के बारे में जानकारी का महत्त्वपूर्ण आधार भी रही। इस आधार पर यह समझा जाता रहा कि बड़े स्तर पर बंगाल के परंपरागत ज़मींदार बर्बाद हो गए थे। उनकी ज़मींदारियाँ नीलाम हो गई थीं। इन पर देय राशि का बकाया सदैव बना रहता था। परन्तु ऐसे सारे निष्कर्ष ठीक नहीं थे। शोधकर्ताओं ने ‘पाँचवीं रिपोर्ट’ के अतिरिक्त समकालीन बंगाल के ज़मींदारों के अभिलेखागारों तथा कलेक्टर कार्यालयों के अन्य अभिलेखों का गहन और सावधानीपूर्वक अध्ययन करके रिपोर्ट के बारे में निम्नलिखित नए निष्कर्ष निकाले
1. पहला–यह रिपोर्ट निष्पक्ष नहीं थी। जो प्रवर समिति के सदस्य इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले थे उनका प्रमुख उद्देश्य कंपनी के कुप्रशासन की आलोचना करना था। राजस्व प्रशासन की कमियों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया गया।
2. दूसरा-परंपरागत ज़मींदारों की शक्ति का पतन काफी बढ़ा-चढ़ाकर और आंकड़ों के जोड़-तोड़ के साथ पेश किया गया।
3. तीसरा-इसमें ज़मींदारों द्वारा ज़मीनें गँवाने और उनकी बर्बादी का उल्लेख भी अतिशयोक्तिपूर्ण है। ऊपर बताया गया है ज़मींदार नीलामी में अपनी जमीन को बचाने के लिए भी कई तरह के हथकंडे अपनाता था।
प्रश्न 7.
पहाड़िया लोगों के मैदानी लोगों के साथ संबंधों की चर्चा करें।
उत्तर:
पहाड़िया जनजाति के लोग मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों विशेषतः ज़मींदारों, किसानों व व्यापारियों इत्यादि पर बराबर आक्रमण करते रहते थे। मुख्यतः यह संबंध निम्नलिखित तीन बातों पर आधारित थे
1. अभाव अथवा अकाल-प्रायः ये आक्रमण पहाड़िया लोगों द्वारा अभाव अथवा अकाल की परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए किए जाते थे। मैदानी भागों में, जहाँ सिंचाई से खेती होती थी, वहाँ यह लोग खाद्य-सामग्री की लूट-पाट करके ले जाते थे।
2. शक्ति-प्रदर्शन-पहाड़िया जनजाति के लोग जब बाहरी लोगों पर आक्रमण करते थे तो उनमें एक लक्ष्य शक्ति-प्रदर्शन कर अपनी धाक जमाना भी रहता था। इस शक्ति-प्रदर्शन का लाभ उन्हें आक्रमणों के बाद भी मिलता रहता था।
3. राजनीतिक संबंध-इन आक्रमणों का लाभ पहाड़िया मुखियाओं अथवा सरदारों को बाहरी लोगों के साथ राजनीतिक संबंध स्थापना में मिलता था। आक्रमणों से वे मैदानी ज़मींदारों व व्यापारियों में भय उत्पन्न करते थे। भयभीत हुए ज़मींदार बचाव के लिए मुखियाओं को नियमित खिराज़ का भुगतान करते थे। इसी प्रकार व्यापारियों से वह पथ-कर वसूल करते थे। जो व्यापारी उन्हें यह कर देते थे उनकी जान-माल की सुरक्षा का आश्वासन दिया जाता था। इस प्रकार पहाड़िया और मैदानी लोगों के बीच कुछ संघर्ष और कुछ अल्पकालीन शांति-संधियों से संबंध चलते आ रहे थे।
18वीं सदी के अंतिम दशकों से संबंध परिवर्तन-18वीं सदी के अंतिम दशकों में पहाड़िया और मैदानी लोगों के बीच संबंधों में बदलाव आने लगा। इसका मुख्य कारण ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के आर्थिक हित थे। यह पूर्वी बंगाल में अधिक-से-अधिक कृषि क्षेत्र का विस्तार करना चाहती थी। इसके लिए जंगलों को साफ करके कृषि क्षेत्र के विस्तार को प्रोत्साहन दिया। परिणाम यह हुआ कि जमींदारों और जोतदारों ने उन क्षेत्रों पर अधिकार जमा लिया जो पहले पहाड़िया लोगों के पास थे। यह लोग उनके परती खेतों पर कब्जा करके उनमें धान की खेती करने लगे। इसके लिए उन्हें कंपनी सत्ता का समर्थन प्राप्त था।
प्रश्न 8.
कंपनी सरकार ने राजमहल के पहाड़ी क्षेत्र में स्थायी कृषि के विस्तार को प्रोत्साहन क्यों दिया ?
उत्तर:
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार ने निम्नलिखित कारणों से राजमहल के पहाड़ी क्षेत्र में स्थायी कृषि के विस्तार को प्रोत्साहन दिया
1. राजस्व वृद्धि-उस काल में बंगाल की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित थी। इसलिए राजस्व का स्रोत भी कृषि उत्पादन ही था। अतः राजस्व में वृद्धि के लिए उन्होंने कृषि विस्तार पर जोर दिया।
2. कृषि उत्पादों का निर्यात-18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति हो रही थी। बड़े-बड़े उद्योग लग रहे थे। इनमें काम करने वाले लोगों के भोजन व अन्य जरूरतों के लिए कृषि उत्पादों की जरूरत थी। इसलिए कंपनी सरकार कृषि क्षेत्र के विस्तार में रुचि ले रही थी।
3. पहाड़िया के प्रति अधिकारियों का दृष्टिकोण-कंपनी के अधिकारी पहाड़िया लोगों को बर्बर और उपद्रवी समझते थे। ऐसे जनजाति लोगों को सभ्य बनाने के लिए वे समझते थे कि उनके क्षेत्रों में कृषि-विस्तार किया जाए। ताकि पहाड़िया लोग कृषि जीवन अपना सकें, जो उनकी दृष्टि में एक सभ्य सामाजिक जीवन था। वास्तविकता यह थी कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने आर्थिक (संसाधनों का दोहन) और प्रशासनिक दोनों उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए पहाड़िया के क्षेत्रों में घुसपैठ शुरू की।
प्रश्न 9.
अधिकारियों ने पहाड़िया क्षेत्र में संथालों को प्राथमिकता क्यों दी?
उत्तर:
कंपनी अधिकारी कृषि क्षेत्र का विस्तार राजमहल की पहाड़ियों के क्षेत्रों में करना चाहते थे। इसके लिए पहाड़ियों की तुलना में संथाल उन्हें अग्रणी बाशिंदे लगे। इसलिए उन्होंने संथालों को प्राथमिकता दी। उन्होंने पहले ज़मींदारों से इस क्षेत्र में खेती करवाना चाहा परन्तु पहाड़ियों के उपद्रव होने लगे। वे इसके लिए पहाड़िया लोगों को भी स्थायी किसान बनाना चाहते थे। परन्तु इसमें भी उन्हें सफलता नहीं मिली।
क्योंकि पहाड़िया लोग प्रकृति-प्रेमी थे। प्रकृति के प्रति उनका दृष्टिकोण आक्रामक नहीं था। वे जंगलों को बर्बाद करके उस क्षेत्र में हल नहीं चलाना चाहते थे। वे छोटे-छोटे खेतों में कुदाली से ही खुरच कर थोड़ी-बहुत फसल लगाने के अभ्यस्त थे। इस फसल से ही उनका जीवन निर्वाह हो जाता था। वह बाज़ार के लिए खेती नहीं करना चाहते थे। वे हल को हाथ लगाना ही पाप समझते थे।
अतः अंग्रेजों को पहाड़ियों को कृषक बनाने में सफलता नहीं मिली। ऐसी परिस्थितियों में अंग्रेज़ अधिकारियों का परिचय संथाल जनजाति के लोगों से हुआ। यह पूरी ताकत के साथ ज़मीन में काम करते थे। उन्हें जंगल काटने में भी कोई हिचक नहीं थी। वे अपेक्षाकृत अग्रणी बाशिदे थे। कंपनी अधिकारियों ने संथालों को राजमहल की पहाड़ियों की तलहटी में बसे महालों (गाँवों) में बसने का निमंत्रण दिया। संथालों के गीतों और मिथकों से पता चलता है कि वे तो खेती के लिए ज़मीन की तलाश में ही भटक रहे थे। अतः उन्होंने अधिकारियों के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया। राजमहल की पहाड़ियों की तलहटी में उन्हें बड़े स्तर पर जंगल क्षेत्र की ज़मीनें आबंटित की गईं।
प्रश्न 10.
‘दामिन-इ-कोह का सीमांकन’ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
दामिन-इ-कोह नाम उस विस्तृत भू-भाग को दिया गया था जो संथालों को दिया गया था। सन् 1832 तक इस पूरे क्षेत्र का नक्शा बनाया गया। इसके चारों ओर खंबे गाड़कर इसकी परिसीमा निर्धारित की गई। इस परिसीमित क्षेत्र को संथाल भूमि घोषित किया गया। संथालों को इसी में रहते हुए हल से खेती करनी थी। उन्हें अपने जनजातीय जीवन को त्यागना था। कंपनी सरकार ने संथाल कृषकों से एक अनुबंध किया था। इसके अनुसार उन्हें पहले दशक के अंदर प्राप्त भूमि के कम-से-कम दसवें भाग को कृषि योग्य बनाकर उसमें खेती करनी थी।
संथालों को यह अनुबंध पसंद आया। सीमांकन के बाद दामिन-इ-कोह में काफी तेजी से संथालों की बस्तियों में वृद्धि हुई। सन् 1851 में मात्र 13 वर्षों में उनके गाँवों की संख्या 40 से बढ़कर 1473 तक पहुँच चुकी थी। इसी अवधि में उनकी जनसंख्या 3000 से 82,000 तक पहुंच गई। इस प्रकार संथालों को मानो उनकी दुनिया ही मिल गई थी। वे अलग सीमांकित क्षेत्र में काफी परिश्रम से जमीन निकालकर कृषि करने लगे।
प्रश्न 11.
संथालों के आगमन का पहाड़िया लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
राजमहल की पहाड़ियों में संथालों के आगमन का पहाड़िया जनजाति के लोगों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा। जब उनके जंगल, खेतों तथा गाँवों पर कब्जा किया जा रहा था तो उन्होंने संथालों का तीव्र विरोध किया। परन्तु वे संथालों के मुकाबले पराजित हो गये। उन्हें पहाड़ियों की तलहटी वाला उपजाऊ क्षेत्र छोड़कर जाना पड़ा। इस संघर्ष में संथालों की विजय का कारण यह भी था कि कंपनी सरकार के सैन्यबल उन्हें कब्जा दिलवा रहे थे।
पहाड़िया लोगों के जीवन-निर्वाह का आधार ही उनसे छिन गया था। जंगल नहीं रहे तो उन्हें शिकार संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा। उनके पशुओं के लिए पर्याप्त घास नहीं रही। वे अन्य वन-उत्पादों से भी वंचित हो गए। ऊँचे पहाड़ी क्षेत्रों में झूम की खेती भी संभव नहीं थी क्योंकि वहाँ ज़मीन गीली नहीं रहती थी। उपजाऊ जमीनें अब उनके लिए दुर्लभ हो गईं क्योंकि उन्हें संथाल क्षेत्र में शामिल कर दिया गया था। वे बंजर, चट्टानी और शुष्क क्षेत्रों में धकेले जा चुके थे। इस सबके परिणामस्वरूप पहाड़िया लोगों के रहन-सहन पर प्रभाव पड़ा। आगे चलकर वह निर्धनता तथा भुखमरी के शिकार रहे।
प्रश्न 12.
बुकानन के विवरण की मुख्य विशेषताओं पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
फ्रांसिस बुकानन एक कंपनी कर्मचारी था। उसने भारत में 1810-11 में कंपनी के भू-क्षेत्र का सर्वे करके विवरण तैयार किया था। इस विवरण में निम्नलिखित मुख्य विशेषताएँ झलकती हैं
1. खनिजों के बारे में-बुकानन ने अपने विवरण में उन स्थानों को रेखांकित किया. जहाँ लोहा, ग्रेनाइट, साल्टपीटर व अभ्ररक इत्यादि खनिजों के भंडार थे। लोहा व नमक बनाने की स्थानीय पद्धतियों का भी उसने अध्ययन किया। यह सारी जानकारी कंपनी के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण थी।
2. कृषि विस्तार के बारे में-बुकानन ने सुझाव दिए कि किस तरह भू-खंडों को कृषि क्षेत्र में बदला जा सकता है। कौन-सी फसलें बोई जा सकती हैं। कीमती इमारती लकड़ी के पेड़ों का जंगल कहाँ है, उसे कैसे काटा जा सकता है। नए पेड़ कौन-से लगाए जा सकते हैं जिनसे कंपनी को लाभ होगा।
3. स्थानीय निवासियों से अलग दृष्टिकोण-इस विवरण में उसका दृष्टिकोण स्थानीय लोगों से भिन्न था। उदाहरण के लिए स्थानीय लोग जंगलों के विनाश में अपना हित नहीं देखते थे। जबकि बुकानन का दृष्टिकोण कंपनी के वाणिज्यिक हितों से प्रेरित था। इसलिए वह वनवासी लोगों की जीवन-शैली का आलोचक था। वह जंगल के भू-भागों को कृषि क्षेत्र में बदलने का पक्षधर था।
प्रश्न 13.
डेविड रिकार्डो का भू-राजस्व सिद्धांत क्या था?
उत्तर:
डेविड रिकार्डो (David Ricardo) एक प्रमुख अर्थशास्त्री थे। 19वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों से उनके आर्थिक सिद्धांत विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जाते थे। ईस्ट इंडिया कंपनी के नए अधिकारी इन सिद्धांतों से प्रभावित थे। अतः बंबई प्रांत (दक्कन) में नई राजस्व प्रणाली अपनाते समय उन्होंने रिकाडों के लगान सिद्धांत को भी ध्यान में रखा। इस सिद्धांत के अनुसार एक भू-स्वामी (चाहे किसान हो या फिर जमींदार) को किसी तत्कालिक अवधि में प्रचलित ‘औसत लगान’ (Average Rent) ही मिलना चाहिए। उसके अनुसार लगान एक भूमिपति की फसल पर हुए कुल खर्च को (श्रम तथा बीज, खाद, पानी सभी तरह का) अलग करने के बाद शुद्ध आय (Net Profit) था। इसलिए इस पर सरकार द्वारा कर लगाना वैध माना गया।
इस सिद्धांत के अनुसार ज़मींदारों को एक किरायाजीवी (Rentier) के रूप में देखा गया। ऐसा वर्ग जो अपनी संपत्ति पर मिलने वाले लगान से विलासी जीवन बिताता है। इसे प्रगति विरोधी प्रवृत्ति माना गया क्योंकि ज़मीन से होने वाले अधिशेष का यह उचित उपयोग नहीं था। रिकार्डो का विचार था कि इस आय पर कर लगाकर उस धन से सरकार स्वयं कृषि विकास को प्रोत्साहन दे। अर्थात् यह उपयोगितावादी विचारधारा (Utilitarianism) के अंतर्गत उत्पन्न एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत था। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि ब्रिटेन में हो रहे औद्योगिकीकरण के लिए भारत में कृषि विकास महत्त्वपूर्ण होता जा रहा था।
प्रश्न 14.
रैयतवाड़ी प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
रैयतवाड़ी बंदोबस्त सीधा रैयत (किसानों) से ही किया गया था। सरकार और किसान के बीच कोई बिचौलिया ज़मींदार नहीं था। किसान को कानूनी तौर पर उस भूमि का मालिक मान लिया गया था जिस पर वह खेती कर रहा था। ज़मीन की उपजाऊ शक्ति के अनुरूप सरकार का हिस्सा तय किया गया। यह बंदोबस्त 30 वर्षों के लिए किया गया था। इस अवधि के बाद सरकार पुनः ‘एसैसमेंट’ के द्वारा इसे बढ़ा सकती थी।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि इसमें ज़मींदारों की भूमिका तो नहीं थी, फिर भी व्यवहार में किसानों को इससे कोई लाभ नहीं पहुँचा। क्योंकि इसमें ज़मींदार का स्थान स्वयं सरकार ने ले लिया था अर्थात् सरकार ही ज़मींदार बन गई थी। किसान को अपनी उपज का लगभग आधा भाग कर के रूप में सरकार को देना पड़ता था। इतना भूमिकर (Revenue) नहीं लगान (Rent) ही होता है। इस अर्थ में तो सरकार ही भूमि की वास्तविक स्वामी थी। जिसे बाद में सरकार ने स्वयं भी स्वीकार कर लिया था।
प्रश्न 15.
अमेरिकी गृह-युद्ध का भारत के कृषि उत्पादकों पर क्या प्रभाव पड़ा?
अथवा
अमेरिकी गृह-युद्ध का भारत के कपास उत्पादकों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
औद्योगिक युग में वाणिज्यिक फसलों में सबसे अधिक महत्त्व कपास का था। ब्रिटेन के वस्त्र उद्योगों के लिए इसे अधिकतर अमेरिका से मँगवाया जाता था। ब्रिटेन में आयात की जाने वाली कुल कपास का लगभग 3/4 भाग यहीं से आता था। वस्त्र निर्माताओं के लिए यह एक चिंता का विषय भी था। यदि कभी अमेरिका से आपूर्ति बंद हो गई तो क्या होगा। इसलिए 1857 ई० में कपास आपूर्ति संघ तथा 1859 ई० में मानचेस्टर कॉटन कंपनी बनाई गई। इनका उद्देश्य दुनिया के प्रत्येक भाग में कपास के उत्पादन को बढ़ाने के लिए प्रयास करना था। इस उद्देश्य के लिए भारत को विशेषतौर पर रेखांकित किया गया।
अब तक भारत इंग्लैंड का उपनिवेश बन चुका था। इसके कुछ भागों में कपास के लिए उपयुक्त मिट्टी और जलवायु मौजूद थी। उदाहरण के लिए दक्कन की काली मिट्टी और पंजाब के कुछ भाग में कपास पैदा होती थी। इसके साथ-साथ यहाँ सस्ता श्रम भी था। अतः किसी भी स्थिति में अमेरिका से कपास आपूर्ति बंद होने पर भारत से आपूर्ति की जा सकती थी।
अमेरिका में गृह युद्ध-अमेरिका में सन् 1861 में गृह युद्ध छिड़ गया। इससे ब्रिटेन की कपास आपूर्ति को अचानक आघात पहुँचा। ब्रिटेन के वस्त्र उद्योगों में तहलका मच गया। 1862 ई० में अमेरिका से मात्र 55000 गाँठों का आयात हुआ। जबकि 1861 ई० में 20 लाख कपास की गाँठों का आयात हुआ था। इस स्थिति में भारत से ब्रिटेन को कपास निर्यात के लिए सरकारी आदेश दिया गया।
कपास सौदागरों की तो मानों चाँदी ही हो गई। बंबई दक्कन के जिलों में उन्होंने कपास उत्पादन का आँकलन किया। किसानों को अधिक कपास उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया। कपास निर्यातकों ने शहरी साहूकारों को पेशगी राशियाँ दी ताकि वे ये राशियाँ ग्रामीण ऋणदाताओं को उपलब्ध करवा सकें और वे आगे किसानों की आवश्यकताओं के अनुरूप उन्हें उधार दे सकें।
ऋण समस्या का समाधान-अब किसानों के लिए ऋण की समस्या नहीं थी। साहूकार भी अपनी उधर राशि की वापसी के लिए आश्वस्त था। दक्कन के ग्रामीण क्षेत्रों में इसका महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। किसानों को लंबी अवधि के ऋण प्राप्त हुए। कपास उगाई जाने वाली प्रत्येक एकड़ भूमि पर सौ रुपये तक की पेशगी राशि किसानों को दी गई। चार साल के अंदर ही कपास पैदा करने वाली ज़मीन दोगुणी हो गई। 1862 ई० तक स्थिति यह थी कि इंग्लैंड में आयात होने वाले कुल कपास आयात का 90% भाग भारत से जा रहा था। बंबई में दक्कन में कपास उत्पादक क्षेत्रों में इससे समृद्धि आई। यद्यपि इस समृद्धि का लाभ मुख्य तौर पर धनी किसानों को ही हुआ।
प्रश्न 16.
परिसीमन कानून (1859) क्या था?
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार ने रैयत की शिकायतों पर विचार करते हुए 1859 ई० में एक परिसीमन कानून पास किया। जिसका उद्देश्य ब्याज के संचित होने से रोकना था। इसलिए इसमें प्रावधान किया गया कि किसान व ऋणदाता के बीच हस्ताक्षरित ऋणपत्र तीन वर्ष के लिए ही मान्य होगा। यह रैयत को साहूकार के शिकंजे से निकालने का प्रयास था। परन्तु इस कानून का व्यवहार में लाभ रैयत को नहीं, बल्कि साहूकार को होने लगा। क्योंकि ऋण लेना किसान की मजबूरी थी। इसलिए तीन साल के बाद जब वह साहूकार से आगे उधार की माँग करता था तो साहूकार किसान से नए ऋण अनुबंध पर हस्ताक्षर करवाता था।
इसमें वह पिछले तीन साल का ब्याज जोड़कर मूलधन में शामिल कर देता था और फिर इस पर नए सिरे से ब्याज शुरू हो जाता था। इस प्रकार साहूकार ने बड़ी चालाकी से इस नए कानून का दुरुपयोग अपने हित के लिए करना शुरू कर दिया। इस प्रक्रिया की जानकारी भी रैयत ने ‘दक्कन दंगा आयोग’ को दी। ‘दक्कन दंगा आयोग’ में किसानों ने दर्ज अपनी शिकायतों में जबरन वसूली से संबंधित अन्याय को भी दर्ज करवाया।
प्रश्न 17.
दक्कन दंगा आयोग की रिपोर्ट के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
1857 के जन-विद्रोह की यादें अभी पुरानी नहीं पड़ी थीं। इसलिए कोई भी कृषक-विद्रोह ब्रिटिश सरकार को खतरे की घंटी जान पड़ता था। दक्कन में हुए कृषक विद्रोह (1875) को बंबई सरकार ने सफलतापूर्वक कुचल दिया था। यद्यपि शांति स्थापित करने में उसे कई महीने लगे। बंबई सरकार में प्रारंभ में तो 1875 के इस कृषक विद्रोह को इतनी गंभीरता से नहीं लिया। परन्तु जब तत्कालिक भारत सरकार (ब्रिटिश) ने दबाव डाला तो इसके लिए एक जाँच आयोग बैठाया गया। इसे ‘दक्कन दंगा आयोग’ नाम दिया गया। 1878 में ब्रिटिश संसद से प्रस्तुत इसकी रिपोर्ट को ‘दक्कन दंगा रिपोर्ट’ कहा गया। यह रिपोर्ट काफी जाँच-पड़ताल के बाद तैयार की गई थी। इसमें मुख्यतः निम्नलिखित सूचनाएँ जुटाई गईं
- दंगाग्रस्त जिलों में किसानों, साहूकारों तथा चश्मदीद गवाहों के बयान दर्ज किए गए;
- फसल मूल्यों, मूलधन तथा ब्याज से संबंधित आँकड़े जुटाए गए;
- भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की राजस्व दरों का अध्ययन किया गया;
- प्रशासन की भूमिका तथा जिला कलेक्टरों द्वारा भेजी गई रिपोर्टों को संकलित किया गया।
अतः यह रिपोर्ट दक्कन विद्रोह को समझने के लिए एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
प्रश्न 18.
इतिहास-लेखन में इतिहासकार सरकारी अभिलेखों का उपयोग किस प्रकार करते हैं?
उत्तर:
इतिहास लेखन के लिए स्रोत आवश्यक हैं। कानून संबंधी रिपोर्ट, दंगा आयोगों की रिपोर्ट तथा अन्य सभी तरह की सरकारी रिपोर्ट इतिहासकार के लिए महत्त्वपूर्ण स्रोत होते हैं। अंग्रेजी राज व्यवस्था के काल की ये रिपोर्ट इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि इस काल में ‘फाइल कल्चर’ आ चुका था। संविदाओं और अनुबंधों का महत्त्व बढ़ गया था। सरकारी अभिलेखों के बारे में यह बात महत्त्वपूर्ण है कि ये स्वयं में इतिहास नहीं होते। ये इतिहास के पुनर्निर्माण के स्रोत होते हैं। इसलिए इनका उपयोग करते समय इतिहासकार अग्रलिखित बातों को ध्यान में रखते हैं
(1) वे सरकारी रिपोर्टों का अध्ययन अत्यधिक सावधानीपूर्वक करते हैं। विशेषतः इस बात को देखते हैं कि कोई रिपोर्ट किन परिस्थितियों में और क्यों तैयार की गई है। तैयार करने वाले की सोच क्या रही होगी।
(2) सरकारी रिपोर्टों का तुलनात्मक अध्ययन जरूरी होता है अर्थात् किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले इन रिपोर्टों से प्राप्त साक्ष्यों को गैर-सरकारी विवरणों, समाचार-पत्रों, संबंधित मामले की ‘कोर्ट’ में दर्ज याचिकाओं व न्यायाधीशों के निर्णयों इत्यादि के ‘साथ मिलान कर लेना चाहिए।
प्रश्न 19.
बेनामी खरीददारी पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
ज़मींदारों ने अपनी ज़मींदारी की भू-संपदा बचाने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण हथकंडा बेनामी खरीददारी को अपनाया। इसमें प्रायः ज़मींदार के अपने ही आदमी नीलाम की गई संपत्तियों को महँगी बोली देकर खरीद लेते थे और फिर देय राशि सरकार को नहीं देते थे। ऐसे बेनामी सौदों का विस्तृत विवरण बर्दवान के राजा की ज़मींदारी के मिलते हैं। इस राजा ने सबसे पहले तो अपनी ज़मींदारी का कुछ भाग अपनी माता के नाम कर दिया था क्योंकि कंपनी ने यह घोषित कर रखा था कि स्त्रियों की संपत्ति । नहीं छीनी जाएगी। दूसरा जान-बूझकर भू-राजस्व सरकार के खजाने में जमा नहीं करवाया। फलतः बकाया राशि में वृद्धि होती रही।
अन्ततः नीलामी की नौबत आ गई तो राजा ने अपने ही कुछ आदमियों को बोली के लिए खड़ा कर दिया। उन्होंने सबसे अधिक बोली देकर संपत्ति को खरीद लिया और फिर खरीद की राशि सरकार को देने से मना कर दिया। सरकार को पुनः उस ज़मीन की नीलामी करनी पड़ी और इस बार ज़मींदार के दूसरे एजेंटों ने वैसा ही किया और सरकार को फिर राशि जमा नहीं करवाई। यह प्रक्रिया तब तक दोहराई जाती रही जब तक सरकार और बोली लगाने वाले दोनों ने हार नहीं मान ली।
बोली लगाने वाले नीलामी के समय आना ही छोड़ गए। अन्ततः सरकार को यह संपदा कम कीमत पर पुनः उसी राजा (बर्दवान के ज़मींदार) को ही देनी पड़ी। लेकिन यह तरीका केवल बर्दवान के ज़मींदार ने ही नहीं अपनाया था। बेनामी खरीददारों के सहारे अपनी भू-संपदा दचाने वाले और भी ज़मींदार थे। उल्लेखनीय है कि 1790 के दशक में बंगाल में 12 बड़ी ज़मींदारियाँ थीं। स्थायी बंदोबस्त लागू होने के पहले 8 वर्षों (1793-1801) में इनमें से उत्तरी बंगाल की बर्दवान सहित 4 ज़मींदारियों की बहुत-सी सम्पत्ति नीलाम हुई। लेकिन जितने सौदे हुए, उनमें से 85 प्रतिशत असली थे। सरकार को कुल मिलाकर इनसे 30 लाख की प्राप्ति हुई।
प्रश्न 20.
अनुपस्थित ज़मींदार व्यवस्था क्या थी?
उत्तर:
स्थायी बंदोबस्त के अंतर्गत नए ज़मींदार वर्ग का उदय हुआ। यह पहले के ज़मींदारों से कई मायनों में अलग था। नए ज़मींदारों में बहुत से लोग शहरी धनिक वर्ग से थे। इन्होंने उन पुराने ज़मींदारों की ज़मींदारियाँ खरीद ली थीं जो समय पर लगान वसूल करके सरकार को जमा नहीं करवा सके थे। प्रो० बिपिन चन्द्र के अनुसार, “1815 ई० तक बंगाल की लगभग आधी भू-संपत्ति पुराने ज़मींदारों के हाथ से निकलकर सौदागरों तथा अन्य धनी वर्गों के पास जा चुकी थी।”
इन नए ज़मींदारों ने अपनी सहूलियत के लिए किसानों से लगान वसूली का काम आगे अन्य इच्छुक लोगों को ज्यादा धन लेकर पट्टे अथवा ठेके पर दे दिया। इस प्रकार खेतिहर किसान और वास्तविक जमींदार के मध्य परजीवी जमींदारों की एक लंबी श्रृंखला (चेन) पैदा हो गई। यह श्रृंखला बंगाल में कई बार तो 50 तक पहुँच गई थी। इस लगानजीवी वर्ग का सारा भार अन्ततः किसान पर ही पड़ता था।
प्रश्न 21.
‘स्थायी बंदोबस्त के कारण बंगाल के जोतदारों की शक्ति में वृद्धि हुई।’ स्पष्ट करें।
उत्तर:
जोतदार बंगाल के गाँवों में संपन्न किसानों के समूह थे। गाँव के मुखिया भी इन्हीं में से होते थे। 18वीं सदी के अंत में ज्यों-ज्यों परंपरागत ज़मींदार स्थायी बंदोबस्त के कारण संकटग्रस्त हुए, त्यों-त्यों इन संपन्न किसानों को शक्तिशाली होने का अवसर मिलता गया।
आर्थिक व सामाजिक दोनों स्तरों में यह गाँवों में प्रभावशाली वर्ग था। कुछ गरीब किसान भी इनके प्रभाव में होते थे। इस सम्पन्न ग्रामीण वर्ग का ज़मींदारों के प्रति व्यवहार काफी नकारात्मक रहता था। जब ज़मींदार का अधिकारी, जिसे सामान्यतः ‘अमला’ कहा जाता था, गाँव में लगान एकत्र करने में असफल रहता और ज़मींदार सरकार को भुगतान न कर पाता तो जोतदारों को बड़ी खुशी होती थी। सम्पन्न रैयत जान-बूझकर भी समय पर ज़मींदार को लगान का भुगतान नहीं करते थे।
ज़मींदार की इस स्थिति के लिए मुख्य तौर पर स्थायी बंदोबस्त उत्तरदायी था। इसमें राजस्व की ऊँची दर तय की गई थी। जमींदार को निश्चित समय पर राजस्व सरकारी खजाने में जमा करवाना होता था। इसके लिए सूर्यास्त विधि कानून लागू किया गया था।
साथ ही ज़मींदारों की शक्तियाँ उनसे छीन ली गईं। उनकी स्वायत्तता को सीमित कर दिया गया। उनकी शक्तियाँ मात्र किसानों से लगान इकट्ठा करने और अपनी ज़मींदारी का प्रबंध करने तक ही सीमित कर दी गईं। वास्तव में अंग्रेज़ सरकार ज़मींदारों को महत्त्व तो दे रही थी लेकिन साथ ही वह इन्हें अपने पूर्ण नियंत्रण में रखना चाहती थी। परिणामस्वरूप उनके सैनिक दस्तों को भंग कर दिया गया।
उनके न्यायालयों को कंपनी द्वारा नियुक्त कलेक्टर के नियंत्रण में रख दिया गया। स्थानीय पुलिस प्रबंध भी कलेक्टर ने अपने हाथ में ले लिया। अब वे बाकीदारों के विरुद्ध शक्ति का प्रयोग भी नहीं कर सकते थे। वह बाकीदारों के विरुद्ध न्यायालय में तो जा सकता था परन्तु न्याय की प्रक्रिया इतनी लंबी थी कि वर्षों चलती रहती थी। इसका अहसास इस तथ्य से किया जा सकता है कि अकेले बर्दवान जिले में ही सन् 1798 में 30,000 से अधिक मुकद्दमें बकायेदारों के विरुद्ध लंबित थे।
दीर्घ-उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
बंगाल में स्थायी बंदोबस्त लागू करने के क्या कारण थे? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
लॉर्ड कॉर्नवालिस ने निम्नलिखित कारणों से स्थायी बंदोबस्त (इस्तमरारी प्रणाली) को लागू किया
1. बंगाल की अर्थव्यवस्था में संकट-1770 के दशक से बंगाल की अर्थव्यवस्था अकालों की मार झेल रही थी। कृषि उत्पादन में निरंतर कमी आ रही थी। अर्थव्यवस्था संकट में फँसती जा रही थी और ठेकेदारी प्रणाली में इससे निकलने के लिए कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था।
2. कृषि में निवेश को प्रोत्साहन अधिकारी वर्ग यह सोच रहा था कि कृषि में निजी रुचि और निवेश के प्रोत्साहन से खेती, व्यापार और राज्य के राजस्व संसाधनों को विकसित किया जा सकता है।
3. कंपनी सरकार की नियमित आय-कंपनी सरकार अपनी वार्षिक आय को सुनिश्चित करना चाहती थी ताकि प्रशासन व व्यापार की व्यवस्था को वार्षिक बजट बनाकर व्यवस्थित किया जा सके।
4. उद्यमकर्ताओं को लाभ-इससे यह भी उम्मीद थी कि राज्य (कंपनी सरकार) के साथ-साथ उद्यमकर्ता (भूमि व साधनों का मालिक) को भी पर्याप्त लाभ होगा। राज्य की आय नियमित हो जाएगी और वह उद्यमकर्ता से और अधिक माँग नहीं करेगी तो उसका लाभ भी सुनिश्चित होगा।
5. वसूली सुविधाजनक-ज़मींदारी बंदोबस्त लागू करने के पीछे एक व्यावहारिक कारण यह भी था कि रैयत की बजाय ज़मींदारों से कर वसूलना सुविधाजनक था। इसके लिए कम अधिकारियों व कर्मचारियों से भी व्यवस्था की जा सकती थी।
6. वफादार वर्ग-अधिकारियों को यह कारियों को यह उम्मीद थी कि सरकार की नीतियों से पोषित और प्रोत्साहित छोटे (Yeomen Farmers) व बड़े शक्तिशाली ज़मींदारों का वर्ग, सरकार के प्रति वफादार रहेगा।
विशेषताएँ-स्थायी बंदोबस्त (इस्तमरारी) की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं
(1) यह समझौता बंगाल के राजाओं और ताल्लुकेदारों के साथ कर उन्हें ‘ज़मींदारों’ के रूप में वर्गीकृत किया गया।
(2) ज़मींदारों द्वारा सरकार को दी जाने वाली वार्षिक भूमि-कर राशि स्थायी रूप से निश्चित कर दी गई। इसीलिए इसे ‘स्थायी बंदोबस्त’ से भी पुकारा गया।
(3) ये ज़मींदार अपनी ज़मींदारी अथवा ‘इस्टेट’ के तब तक पूर्ण तौर पर मालिक थे जब तक वे सरकार को निर्धारित भूमि-कर नियमित रूप से अदा करते रहते थे। उनका यह अधिकार वंशानुगत तौर पर स्वीकार कर लिया गया।
(4) निर्धारित भूमि-कर राशि का समय पर भुगतान न किए जाने पर सरकार उनकी ज़मींदारी अथवा उसका कुछ भाग नीलाम कर सकती थी और इससे वह लगान की वसूली कर सकती थी।
(5) ज़मींदार अपनी ज़मींदारी का मालिक तो था परन्तु व्यवहार में वह गाँव में भू-स्वामी नहीं था बल्कि राजस्व-संग्राहक (समाहत्ता) मात्र था। उसे किसानों से वसूल किए गए लगान में से \(\frac { 1 }{ 11 }\) भाग अपने पास रखना होता था और शेष \(\frac { 10 }{ 11 }\) भाग कंपनी सरकार को देना होता था।
(6) एक ज़मींदारी में बहुत-से गाँव और कभी-कभी तो 400 गाँव तक होते थे। कुल मिलाकर यह ज़मींदारी की एक ‘राजस्व-संपदा’ (Revenue Estate) थी, जिस पर कंपनी सरकार कर निश्चित करती थी।
(7) अलग-अलग गाँवों पर कर निर्धारण व उसे एकत्र करने का कार्य ज़मींदार का था।
(8) इस व्यवस्था में सरकार का रैयत (किसानों) से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं था। उसका संबंध ज़मींदारों से था।
प्रश्न 2.
सन् 1875 के दक्कन विद्रोह का वर्णन करें। यहाँ के किसान साहूकार के कर्जदार क्यों होते जा रहे थे?
उत्तर:
यह विद्रोह 12 मई, 1875 को महाराष्ट्र के एक बड़े गाँव सूपा (Supe) से शुरू हुआ। यह गाँव जिला पूना (अब पुणे) में पड़ता था। दो महीनों के अंदर यह विद्रोह पूना और अहमदनगर के दूसरे बहुत-से गाँवों में फैल गया। उत्तर से दक्षिण के बीच लगभग 6500 वर्गकिलोमीटर का क्षेत्र इसकी चपेट में आ गया। हर जगह गुजराती और मारवाड़ी महाजनों और साहूकारों पर आक्रमण हुए। उन्हें ‘बाहरी’ और अधिक अत्याचारी समझा गया।
सूपा में व्यापारी और साहूकार रहते थे। यहीं सबसे पहले ग्रामीण क्षेत्र के कुनबे किसान एकत्र हुए और उन्होंने साहूकारों से उनके ऋण-पत्र (debt bonds) और बही-खाते (Account books) छीन लिए और उन्हें जला दिया। जिन साहूकारों ने बही-खाते और ऋण-पत्र देने का विरोध किया, उन्हें मारा-पीटा गया। उनके घरों को भी जला दिया गया। इसके अलावा अनाज की दुकानें लूट ली गईं। आश्चर्य की बात यह थी कि सूपा के अतिरिक्त दूसरे गाँवों व कस्बों में भी किसानों की यही प्रतिक्रिया सामने आई। इससे साहूकार भयभीत हो गए। वे अपना गाँव छोड़कर भाग गए। यहाँ तक कि वे अपनी संपत्ति और धन भी पीछे छोड़ गए।
स्पष्ट है कि यह मात्र ‘अनाज के लिए दंगा’ (Grain Riots) नहीं था। किसानों का निशाना साफ तौर पर ‘कानूनी दस्तावेज’ अर्थात् बहीखाते और ऋण पत्र थे। इस विद्रोह के फैलने से ब्रिटिश अधिकारी भी घबराए। विशेषतः उन्हें 1857 की जनक्रांति की याद ताजा हो आई। विद्रोही गाँवों में पुलिस चौकियाँ बनाई गईं। यहाँ तक कि इस इलाके को सेना के हवाले करना पड़ा। 95 किसानों को गिरफ्तार करके दंडित किया गया।
विद्रोह पर नियंत्रण के बाद भी स्थिति पर नज़र रखी गई। उस समय के समाचार पत्रों की रिपोर्ट से पता चलता है कि किसान योजना बनाकर अपनी कार्यवाही करते थे ताकि अधिकारियों की पकड़ में न आए। क्योंकि किसान अवसर मिलते ही साहूकार के घरों पर हमला बोल देते थे। वास्तव में अंग्रेज़ों की नीतियों के चलते साहूकारों और कृषकों के मध्य परंपरागत संबंध समाप्त हो गए। बदली हुई परिस्थितियों में साहूकार ग्रामीण क्षेत्रों में एक शोषक तत्त्व बनकर उभरा।
ऋणग्रस्तता के कारण-दक्कन में किसान कर्ज के बोझ तले दबता चला गया। सन् 1840 तक स्थिति यह पैदा हो गई थी किसान फसल का खर्च पूरा करने तथा दैनिक उपयोग की वस्तुओं के लिए भी साहूकार से ऊँची दर पर कर्ज़ के लिए विवश हो गया, जो वापिस करना आसान नहीं था। कर्ज़ बढ़ने के कारण किसान की स्थिति खराब होती गई। वह साहूकार पर निर्भर होता गया। संक्षेप में किसान के ऋणग्रस्त होने के निम्नलिखित कारण थे
1. ऊँची भू-राजस्व दर-सन् 1818 में बंबई दक्कन में पहला रैयत से बंदोबस्त किया गया। इसमें राजस्व की माँग इतनी अधिक थी कि लोग अनेक स्थानों पर अपने गाँव छोड़कर भाग गए। वे अपेक्षाकृत बंजर और कम उपजाऊ भूमि पर जाकर खेती करने लगे। वर्षा न होने पर अकाल पड़ जाता और बिना फसल के भूमिकर चुकाना संभव नहीं था। फसल हो या न हो यह कर तो सरकार को चुकाना ही होता था।
2. राजस्व वसूली में सख्ती-कर एकत्रित करवाने वाले जिला कलेक्टरों की किसानों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं थी। उनकी फसलें बेचकर राजस्व वसूल किया जाता था। यहाँ तक कि गाँव पर सामूहिक तौर पर जुर्माना भी कर दिया जाता था। प्रायः कलेक्टर अपने जिले का सारा भूमि-कर एकत्रित करके बड़े अधिकारियों के समक्ष अपनी कार्यकुशलता का परिचय देता था। इसके लिए उसकी नीति सदैव कठोर रहती थी। अतः मुसीबत के दिनों में भूमि-कर चुकाने के लिए किसानों को साहूकार की शरण में जाना पड़ा।
3. कृषि-उत्पाद मूल्यों में गिरावट-1830 के आस-पास तक रैयतवाड़ी प्रथा बंबई दक्कन में शुरू हुई जिसमें भूमि-कर की माँग काफी ऊँची थी। इसी दशक में ही मंदी का दौर आ गया जो लगभग 1845 तक चला। फसलों की कीमतों में भारी गिरावट आ गई। यह किसान के लिए बड़ी समस्या के रूप में आया। इसलिए वह कर्ज लेने के लिए विवश हुआ।
4. 1832-34 का अकाल-इस अकाल में लगभग एक-तिहाई पशु धन दक्कन में खत्म हो गया। यहाँ तक कि 50 प्रतिशत मानव जनसंख्या मौत का ग्रास बन गई। जो किसान इस अकाल से किसी तरह जीवित बच गए थे, उन्हें बीज खरीदने, बैल खरीदने, राजस्व चुकाने तथा जीविका चलाने के लिए ऋण लेना ही पड़ा।
सन् 1840 के बाद स्थिति में कुछ परिवर्तन आया। राजस्व की माँग में कुछ कमी की गई। मंदी का दौर भी खत्म हुआ। धीरे-धीरे कृषि उत्पादों की कीमतें बढ़ने लगी, तो किसानों ने नए खेत निकालकर खेती में अधिक रुचि ली। परन्तु इसके लिए भी किसानों को बीज व बैलों की जरूरत थी। अतः साहूकार से ऋण उसे इन परिस्थितियों में भी लेना पड़ा।
प्रश्न 3.
दक्कन में किसान विद्रोह के क्या कारण थे? इसमें किसानों ने साहूकारों के बहीखाते क्यों जला डाले?
उत्तर:
दक्कन मुख्यतः बंबई और महाराष्ट्र के क्षेत्र को कहा गया है। बंबई दक्कन में किसानों ने साहूकारों तथा अनाज के व्यापारियों के खिलाफ़ अनेक विद्रोह किए। इनमें से 1875 का विद्रोह सबसे भयंकर था। यह विद्रोह महाराष्ट्र के एक बड़े गाँव सूपा (Supe) से शुरु हुआ। दो महीनों के अंदर यह विद्रोह पूना और अहमदनगर के दूसरे बहुत-से गाँवों में फैल गया। 100 कि०मी० पूर्व से पश्चिम तथा 65 कि०मी० उत्तर से दक्षिण के बीच लगभग 6500 वर्गकिलोमीटर का क्षेत्र इसकी चपेट में आ गया। हर जगह गुजराती और मारवाड़ी महाजनों और साहूकारों पर आक्रमण हुए। दक्कन के इन किसान विद्रोहों के निम्नलिखित कारण थे
1. रैयतवाड़ी प्रणाली-इस प्रणाली में किसानों को उस भूमि का मालिक माना गया था जिन पर वे खेती करते आ रहे थे। इसमें ज़मींदार तो नहीं थे परंतु सरकार फसल का लगभग आधा भाग किसानों से वसूलती थी। इस प्रणाली में भू-राजस्व की दर भी बहुत ऊँची थी।
2. किसान का ऋणग्रस्त होना-सरकार का लगान किसान पूरा नहीं कर पाता था। इसलिए उसे साहूकार से उधार लेना पड़ता था। कई बार तो उसे दैनिक उपयोग की वस्तुओं के लिए भी ऋण लेना पड़ता था जो उसके लिए वापिस करना आसान नहीं था।
अमेरिका के गृह-युद्ध (1861-65) के दिनों में कपास की माँग में अचानक उछाल आया। कपास के मूल्य में जबरदस्त वृद्धि हुई। इस स्थिति में साहूकार व्यापारियों ने किसानों को खूब अग्रिम धनराशि दी। लेकिन ज्योंहि युद्ध समाप्त हुआ ‘ऋण का यह स्रोत सूख गया’ । युद्ध के बाद कपास के निर्यात में गिरावट आ गई। कपास की माँग खत्म हो गई। किसानों को ऋण मिलना बन्द हो गया और पहले दिए हुए ऋण को लौटाने के लिए दबाव बढ़ गया। 1870 ई० के आस-पास यह स्थिति किसान विद्रोहों के लिए काफी हद तक उत्तरदायी कही जा सकती है।
3. अन्याय का अनुभव-जब साहूकारों ने उधार देने से मना किया तो किसानों को बहुत गुस्सा आया। क्योंकि परंपरागत ग्रामीण व्यवस्था में न तो अधिक ब्याज लिया जाता था और न ही मुसीबत के समय उधार से मनाही की जाती थी। किसान विशेषतः इस बात पर अधिक नाराज़ थे कि साहूकार वर्ग इतना संवेदनहीन हो गया है कि वह उनके हालात पर रहम नहीं खा रहा है। सन् 1874 में साहूकारों ने भू-राजस्व चुकाने के लिए किसानों को उधार देने से स्पष्ट इंकार कर दिया था। वे सरकार के इस कानून को नहीं मान रहे थे कि चल-सम्पत्ति की नीलामी से यदि उधार की राशि पूरी न हो तभी साहूकार जमीन की नीलामी करवाएँ। अब उधार न मिलने से मामला और भी जटिल हो गया और किसान विद्रोही हो उठे।
बही-खातों का जलना-दक्कन विद्रोह तथा देश के अन्य भागों में भी किसानों ने विद्रोहों में बही-खातों को निशाना बनाया। वास्तव में ऋण-प्राप्ति और उसकी वापसी दोनों ही दक्कन के किसानों के लिए एक जटिल प्रक्रिया थी। परंपरागत साहूकारी कारोबार में कानूनी दस्तावेजों का इतना झंझट नहीं था। जुबान अथवा वायदा ही पर्याप्त था। क्योंकि किसी सौदे के लिए परस्पर सामाजिक दबाव रहता था। ब्रिटिश अधिकारी वर्ग बिना विधिसम्मत अनुबंधों के सौदों को संदेह की दृष्टि से देखते थे। विवाद छिड़ने की स्थिति में न्यायालयों में भी ऐसे बंधपत्रों, संविदाओं और दस्तावेजों का ही महत्त्व होता था, जिनमें शर्ते साफ-साफ हस्ताक्षरित होती थीं।
जुबानी लेन-देन कानून के दायरे में कोई महत्त्व नहीं रखता था जबकि परंपरागत प्रणाली में गाँव की पंचायत महत्त्व देती थी। कर्ज़ से डूबे किसान को जब और उधार की जरूरत पड़ती तो केवल एक ही तरीके से यह संभव हो पाता कि वह ज़मीन, गाड़ी, हल-बैल ऋण दाता को दे दे। फिर भी जीवन के लिए तो उसे कुछ-न-कुछ साधन चाहिए थे। अतः वह इन साधनों को साहूकार से किराए पर लेता था। जो वास्तव में उसके अपने ही होते थे। अब उसे अपने ही साधनों का किराया साहूकार को देना होता था। अपनी विवशता के कारण उसे भाडापत्र अथवा किराया नामा में स्पष्ट करना होता कि यह पशु, बैलगाड़ी उसके अपने नहीं हैं।
उसने इन्हें किराए पर लिया है और इसके लिए वह इनका निश्चित किराया प्रदान करेगा। स्पष्ट है कि यह दस्तावेज न्यायालय में साहूकार का पक्ष ही सुदृढ़ करता था। गगजिन अनुबंधों पर वह हस्ताक्षर करता था या अंगूठा लगाता था उनमें क्या लिखा है, वह नहीं जानता था। उधार लेने के लिए हस्ताक्षर जरूरी थे। इसके बिना उन्हें कहीं कर्ज नहीं मिल सकता था। हस्ताक्षरित दस्तावेज़ कोर्ट में प्रायः साहूकार के ही पक्ष में जाता था।
अतः इस नई व्यवस्था के कारण किसान बंधपत्रों और दस्तावेजों को अपनी दुःख-तकलीफों का मुख्य कारण मानने लगा। वह तो लिखे हुए शब्दों से डरने लगा। यही वह कारण था कि जब भी कृषक विद्रोह होता था तभी किसान दस्तावेजों को जलाते थे। बहीखाते व ऋण अनुबंध पत्र, उनका पहला निशाना होता था। उसने साहूकार का घर बाद में जलाया, पहले दस्तावेजों को फूंका।