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HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर

Haryana State Board HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Important Questions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के अन्तर्गत कुछेक वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। ठीक उत्तर का चयन कीजिए

1. विजयनगर साम्राज्य की स्थापना किसके काल में हुई?
(A) अलाऊद्दीन खिलजी
(B) मुहम्मद तुगलक
(C) बाबर
(D) अकबर
उत्तर:
(B) मुहम्मद तुगलक

2. विजयनगर साम्राज्य का पहला शासक था
(A) हरिहर राय
(B) बुक्का राय
(C) कृष्णदेव राय
(D) देवराय प्रथम
उत्तर:
(A) हरिहर राय

3. विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक थे
(A) हसन गंगू
(B) कृष्णदेव राय
(C) विजालय
(D) हरिहर राय एवं बुक्का राय
उत्तर:
(D) हरिहर राय एवं बुक्का राय

4. हम्पी के अवशेषों की जानकारी सर्वप्रथम किस व्यक्ति ने दी?
(A) जॉन मार्शल
(B) आर०जी०बैनर्जी
(C) डी०आर० साहनी
(D) कॉलिन मैकेन्जी
उत्तर:
(D) कॉलिन मैकेन्जी

5. ‘गजपति’ की उपाधि किस क्षेत्र के शासक लेते थे?
(A) विजयनगर
(B) बहमनी
(C) उड़ीसा
(D) महाराष्ट्र
उत्तर:
(C) उड़ीसा

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6. किस हथियार के प्रयोग ने पुर्तगालियों को भारत के तटीय क्षेत्रों में शक्तिशाली बनाया?
(A) तलवार
(B) बंदूक
(C) तोपखाना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) बंदूक

7. विजयनगर का पहला राजवंश था
(A) संगम वंश
(B) सुलुव वंश
(C) तुलुव वंश
(D) अराविदु वंश
उत्तर:
(A) संगम वंश

8. तालीकोटा का युद्ध कब लड़ा गया?
(A) 1526 ई० में
(B) 1556 ई० में
(C) 1565 ई० में
(D) 1576 ई० में
उत्तर:
(C) 1565 ई० में

9. विजयनगर के शासकों को कहा जाता था
(A) सुल्तान
(B) राय
(C) सम्राट
(D) महाराजा
उत्तर:
(B) राय

10. संस्कृत साहित्य में यूनानियों तथा उत्तर:पश्चिम से आने वालों को कहा गया है
(A) तुर्क
(B) मलेच्छ
(C) यवन
(D) मंगोल
उत्तर:
(C) यवन

11. विजयनगर साम्राज्य में स्थानीय सैनिक प्रमुखों को कहा जाता था
(A) नायक
(B) विजेता
(C) कुलीन
(D) शहजादा
उत्तर:
(A) नायक

12. 15वीं शताब्दी के प्रारंभ में विजयनगर में किस जलाशय का निर्माण किया गया?
(A) कमल पुरम
(B) शाही जलाशय
(C) विरुपाक्ष
(D) हम्पी जलाशय
उत्तर:
(A) कमल पुरम

13. अब्दुर रज्जाक ने विजयनगर में दुर्गों की कितनी पंक्तियाँ बताई हैं?
(A) 5
(B) 7
(C) 8
(D) 10
उत्तर:
(B) 7

14. शहरी क्षेत्र विजयनगर साम्राज्य में कहाँ स्थित था?
(A) पूर्व में
(B) पश्चिम में
(C) मध्य में
(D) उत्तर:पूर्व में
उत्तर:
(D) उत्तर:पूर्व में

15. डोमिंगो पेस द्वारा ‘विजय का भवन’ किसे कहा गया है?
(A) अस्तबल क्षेत्र को
(B) शाही महल को
(C) महानवमी डिब्बे को
(D) धार्मिक स्थल को
उत्तर:
(C) महानवमी डिब्बे को

16. हम्पी का नाम किस स्थानीय देवी-देवता से माना जाता है?
(A) विरुपाक्ष से
(B) विठ्ठल से
(C) पम्पा देवी से
(D) विष्णु से
उत्तर:
(C) पम्पा देवी से

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17. मंदिरों का प्रवेश द्वार कहलाता था
(A) देव द्वार
(B) शाही द्वार
(C) नगरालय
(D) गोपुरम्
उत्तर:
(D) गोपुरम्

18. धार्मिक केंद्र में सबसे ऊँची इमारत होती थी
(A) गोपुरम्
(B) गर्भ गृह
(C) मंडप
(D) देव स्थल
उत्तर:
(A) गोपुरम्

19. विजयनगर में सबसे बड़ा मंदिर था
(A) विरुपाक्ष का
(B) विष्णु का
(C) विठ्ठल का
(D) जिन्जी का
उत्तर:
(A) विरुपाक्ष का

20. रथ की आकृति वाला मंदिर किस देवता का माना जाता है?
(A) विरुपाक्ष का
(B) विष्णु का
(C) विट्ठल का
(D) पम्पा देवी का
उत्तर:
(C) विठ्ठल का

21. नायकों द्वारा विजयनगर साम्राज्य में कहाँ गोपुरम् बनवाया गया था?
(A) हम्पी में
(B) मदुरई में
(C) धार्मिक केंद्र में
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) मदुरई में

22. विजयनगर की खुदाई में मुख्य रूप से शामिल थे
(A) जॉन एम० फ्रिटज
(B) जॉर्ज मिशेल
(C) एम०एस० नागराज
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

23. बाजार का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है
(A) अब्दुर रज्जाक ने
(B) डोमिंगो पेस ने
(C) वास्कोडिगामा ने
(D) बरबोसा ने
उत्तर:
(B) डोमिंगो पेस ने

24. विजयनगर का सबसे प्रतापी शासक माना जाता है
(A) हरिहर राय
(B) बुक्का राय
(C) कृष्णदेव राय
(D) देवराय प्रथम
उत्तर:
(C) कृष्णदेव राय

25. विजयनगर का समकालीन दक्षिण भारतीय राज्य कौन-सा था?
(A) वारंगल
(B) काकतिया
(C) चोल
(D) बहमनी
उत्तर:
(D) बहमनी

26. किस मुगल शासक ने विजयनगर के शासक कृष्णदेव राय का वर्णन किया है?
(A) बाबर ने
(B) अकबर ने
(C) जहांगीर ने
(D) शाहजहाँ ने
उत्तर:
(A) बाबर ने

27. विजयनगर साम्राज्य की स्थापना कब हुई?
(A) 1320 ई० में
(B) 1336 ई० में
(C) 1350 ई० में
(D) 1380 ई० में
उत्तर:
(B) 1336 ई० में

28. ‘हम्पी’ क्षेत्र में साम्राज्य होने की बात सबसे पहले कब सामने आई?
(A) 1800 ई० में
(B) 1850 ई० में
(C) 1920-21 ई० में
(D) 1956 ई० में
उत्तर:
(A) 1800 ई० में

29. विजयनगर का वर्तमान नाम है
(A) हम्पी
(B) विजयनगर
(C) विजयवाड़ा
(D) बीजापुर
उत्तर:
(A) हम्पी

30. विजयनगर साम्राज्य काल में घोड़ों के व्यापारियों को कहा जाता था
(A) नगर सेठ
(B) तवरम
(C) अश्वपालक
(D) कुदिरई चेट्टी
उत्तर:
(D) कुदिरई चेट्टी

31. भारत में बंदूक लाने का श्रेय दिया जाता है
(A) अंग्रेज़ों को
(B) फ्रांसीसियों को
(C) पुर्तगालियों को
(D) डचों को
उत्तर:
(C) पुर्तगालियों को

32. विजयनगर साम्राज्य का अन्तिम राजवंश कौन-सा था?
(A) संगम वंश
(B) सुलुव वंश
(C) तुलुव वंश
(D) अराविदु वंश
उत्तर:
(C) तुलुव वंश

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33. तालीकोटा के युद्ध में विजयनगर की सेना का नेतृत्व किसने किया?
(A) हरिहर ने
(B) बुक्का राय ने
(C) कृष्णदेव राय ने
(D) राम राय ने
उत्तर:
(D) राम राय ने

34. 1565 ई० में युद्ध तालीकोटा के किस क्षेत्र में हुआ?
(A) राक्षसी-तांगड़ी में
(B) चन्द्रगिरी में
(C) पेनुकोण्डा में
(D) गोलकुण्डा में
उत्तर:
(A) राक्षसी-तांगड़ी में

35. तालीकोटा की हार के बाद विजयनगर के शासकों ने अपनी राजधानी बनाई
(A) विजयनगर
(B) पेनुकोण्डा
(C) गोलकुण्डा
(D) मैसूर
उत्तर:
(B) पेनुकोण्डा

36. कृष्णदेव राय की मृत्यु के बाद विजयनगर में उत्तराधिकार की समस्या सुलझाने में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका थी
(A) मुगल शासकों की
(B) विजयनगर के दरबारियों की
(C) बीजापुर के सुल्तान की
(D) जनता की
उत्तर:
(C) बीजापुर के सुल्तान की

37. सैनिक प्रमुख के साथ-साथ प्रशासनिक कार्य करने वाले वर्ग को विजयनगर में क्या नाम दिया जाता था?
(A) राय
(B) अमीर
(C) नायक
(D) अमर-नायक
उत्तर:
(D) अमर-नायक

38. तुंगभद्रा नदी विजयनगर से किस दिशा में थी?
(A) दक्षिण
(B) दक्षिण पूर्व
(C) पश्चिम
(D) उत्तर पूर्व
उत्तर:
(D) उत्तर पूर्व

39. कालीकट का वर्तमान नाम है
(A) कोजीकोड
(B) मालाबर
(C) त्रिअनन्तपुरम
(D) कोलकट्यम
उत्तर:
(A) कोजीकोड

40. विजयनगर के शासक जल प्रबंधन करते थे
(A) राजकीय क्षेत्र के लिए
(B) धार्मिक केंद्र के लिए
(C) कृषि क्षेत्र के लिए
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

41. सुरक्षा दृष्टि से विजयनगर का आश्चर्यजनक पहलू है
(A) मन्दिरों की बेजोड़ सुरक्षा
(B) शाही क्षेत्र की किलेबंदी
(C) कृषि क्षेत्र की किलेबंदी
(D) हथियारों में बंदूक का प्रयोग
उत्तर:
(C) कृषि क्षेत्र की किलेबंदी

42. “लोगों के अन्य आवास छप्पर के हैं, पर फिर भी सुदृढ़ हैं” ये पंक्तियां किस यात्री ने लिखीं?
(A) डोमिंगो पेस मे
(B) बरबोसा ने
(C) अब्दुर रज्जाक ने
(D) नूनिज़ ने
उत्तर:
(B) बरबोसा ने

43. 11000 वर्ग फीट के आधार पर 40 फीट ऊँचे विशाल मंच को पुरातत्वविदों ने क्या नाम दिया है?
(A) महानवमी डिब्बा
(B) शाही केंद्र
(C) कल्याण मंडप
(D) सिंहासन मंडप
उत्तर:
(A) महानवमी डिब्बा

44. राजकीय केंद्र में सबसे सुन्दर भवन किसे माना जाता है?
(A) हजार राम मन्दिर को
(B) कमल महल को
(C) महानवमी डिब्बे को
(D) कल्याण मंडप को
उत्तर:
(B) कमल महल को

45. कमल भवन के नजदीक बहुत बड़ी संख्या में किस पशु की रख-रखाव की व्यवस्था विजयनगर के शासकों ने की?
(A) हाथी
(B) घोड़ा
(C) ऊँट
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) हाथी

46. धार्मिक केंद्र में लोगों की श्रद्धा सबसे अधिक किस मन्दिर में थी?
(A) विठ्ठल
(B) विरुपाक्ष
(C) चन्नकेशव
(D) वृहदेश्वर
उत्तर:
(B) विरुपाक्ष

47. विरुपाक्ष मन्दिर का कौन-सा प्रवेश द्वार सबसे ऊँचा, भव्य व मुख्य है?
(A) पूर्वी
(B) पश्चिमी
(C) उत्तरी
(D) दक्षिणी
उत्तर:
(A) पूर्वी

48. विट्ठल देवता का संबंध किस देवता के साथ जोड़ा जाता है?
(A) सूर्य के साथ
(B) शिव के साथ
(C) विष्णु के साथ
(D) जगन्नाथ के साथ
उत्तर:
(C) विष्णु के साथ

49. हम्पी को राष्ट्रीय महत्त्व स्थल कब घोषित किया गया?
(A) 1952 ई० में
(B) 1968 ई० में
(C) 1976 ई० में
(D) 1986 ई० में
उत्तर:
(C) 1976 ई० में

50. यूनेस्को द्वारा हम्पी को विश्व विरासत में कब शामिल किया गया?
(A) 1960 ई० में
(B) 1968 ई० में
(C) 1976 ई० में
(D) 1986 ई० में
उत्तर:
(D) 1986 ई० में

51. वर्तमान में हम्पी को कौन संरक्षित कर रहा है?
(A) भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग
(B) कर्नाटक पुरातात्विक एवं संग्रहालय विभाग
(C) (A) व (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) व (B) दोनों

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना किसने की?
उत्तर:
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना हरिहर एवं बुक्का ने की।

प्रश्न 2.
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 ई० में हुई।

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प्रश्न 3.
विजयनगर के शासकों को क्या कहा जाता था?
उत्तर:
विजयनगर के शासकों को राय कहा जाता था।

प्रश्न 4.
विजयनगर के पतन में सबसे अधिक भूमिका किस घटना की मानी जाती है?
उत्तर:
विजयनगर के पतन में सबसे अधिक भूमिका तालीकोटा के युद्ध की मानी जाती है।

प्रश्न 5.
विजयनगर साम्राज्य में इटली के किस यात्री ने यात्रा की?
उत्तर:
विजयनगर साम्राज्य में इटली के अब्दुर रज्जाक ने यात्रा की।

प्रश्न 6.
विजयनगर शहर का सबसे अधिक वर्णन किसने किया?
उत्तर:
विजयनगर शहर का सबसे अधिक वर्णन डोमिंगो पेस ने किया।

प्रश्न 7.
विजयनगर साम्राज्य में शाही केंद्र पर बना विशाल मंच क्या कहलाता था?
उत्तर:
विजयनगर साम्राज्य में शाही केंद्र पर बना विशाल मंच ‘महानवमी डिब्बा’ कहलाता था।

प्रश्न 8.
विजयनगर शहर में ‘कमल महल’ के नजदीक बड़ा भवन किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
विजयनगर शहर में ‘कमल महल’ के नजदीक बड़ा भवन हाथियों का अस्तबल के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 9.
विजयनगर साम्राज्य में सबसे महत्त्वपूर्ण मंदिर किस देवता का था?
उत्तर:
विजयनगर साम्राज्य में सबसे महत्त्वपूर्ण मंदिर विरुपाक्ष देवता का था।

प्रश्न 10.
महाराष्ट्र में किस देवता को ‘विट्ठल देव’ कहा जाता था?
उत्तर:
महाराष्ट्र में विष्णु को ‘विठ्ठल देव’ कहा जाता था।

प्रश्न 11.
विजयनगर में विरुपाक्ष के साथ किस देवी का विवाह उत्सव प्रतिवर्ष मनाया जाता है?
उत्तर:
विजयनगर में विरुपाक्ष के साथ पम्पा देवी का विवाह उत्सव प्रतिवर्ष मनाया जाता है।

प्रश्न 12.
विजयनगर के मानचित्र में किस अंग्रेजी वर्ण को प्रयोग में नहीं लाया गया है?
उत्तर:
विजयनगर के मानचित्र में I (आई) अंग्रेजी वर्ण को प्रयोग में नहीं लाया गया है।

प्रश्न 13.
‘हम्पी’ शहर को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत में कब शामिल किया गया?
उत्तर:
‘हम्पी’ शहर को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत में सन् 1986 में शामिल किया गया।

प्रश्न 14.
विजयनगर को विश्व का सबसे समृद्ध शहर कौन बताता है?
उत्तर:
विजयनगर को विश्व का सबसे समृद्ध शहर डोमिंगो पेस बताता है।

प्रश्न 15.
विजयनगर का क्या अर्थ है?
उत्तर:
विजयनगर का अर्थ है-विजय का शहर।

प्रश्न 16.
कॉलिन मैकेन्ज़ी को विजयनगर की प्रारम्भिक जानकारी किससे मिली?
उत्तर:
कॉलिन मैकेन्जी को विजयनगर की प्रारम्भिक जानकारी विरुपाक्ष व पम्पा देवी के पुजारियों से मिली।

प्रश्न 17.
कॉलिन मैकेन्ज़ी भारत का सर्वेयिर कब बना?
उत्तर:
कॉलिन मैकेन्ज़ी भारत का सर्वेयिर 1815 ई० में बना।

प्रश्न 18.
दक्षिण (बहमनी) के शासक क्या कहलाते थे?
उत्तर:
दक्षिण (बहमनी) के शासक सुल्तान कहलाते थे।

प्रश्न 19.
तंजावुर का ऐतिहासिक मन्दिर किस देवता से जुड़ा है?
उत्तर:
तंजावुर का ऐतिहासिक मन्दिर बृहदेश्वर देवता से जुड़ा है।

प्रश्न 20.
कुदिरई चेट्टी कौन थे?
उत्तर:
कुदिरई चेट्टी घोड़ों के व्यापारी थे।

प्रश्न 21.
विजयनगर साम्राज्य के प्रथम राजवंश का नाम बताइए।
उत्तर:
विजयनगर का पहला वंश संगम वंश था।

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प्रश्न 22.
कृष्णदेव राय किस वंश से संबंधित था?
उत्तर:
कृष्णदेव राय तुलुव वंश से संबंधित था।

प्रश्न 23.
विजयनगर का अंतिम वंश कौन-सा था?
उत्तर:
विजयनगर का अंतिम वंश अराविदु वंश था।

प्रश्न 24.
कृष्णदेव राय की मृत्यु के बाद विजयनगर में उत्तराधिकार की समस्या का समाधान किसने करवाया?
उत्तर:
कृष्णदेव राय की मृत्यु के बाद विजयनगर में उत्तराधिकार की समस्या का समाधान बीजापुर के सुल्तान ने करवाया।

प्रश्न 25.
कृष्णदेव राय द्वारा जलाशय बनवाने का वर्णन किस यात्री ने दिया है?
उत्तर:
कृष्णदेव राय द्वारा जलाशय बनवाने का वर्णन डोमिंगो पेस ने दिया है।

प्रश्न 26.
नगर में प्रवेश के लिए बने प्रवेश द्वारों की स्थापत्य कला को विशेषज्ञों ने क्या नाम दिया है?
उत्तर:
नगर में प्रवेश के लिए बने प्रवेश द्वारों की स्थापत्य कला को विशेषज्ञों ने इंडो-इस्लामिक नाम दिया है।

प्रश्न 27.
राजकीय केंद्र में लगभग कितने मन्दिर थे?
उत्तर:
राजकीय केंद्र में लगभग 60 से अधिक मन्दिर थे।

प्रश्न 28.
राजकीय केंद्र में सबसे भव्य मन्दिर कौन-सा है?
उत्तर:
राजकीय केंद्र में सबसे भव्य मन्दिर हजारराम मन्दिर है।

प्रश्न 29.
विजयनगर के शासकों द्वारा सबसे अधिक ऊँची इमारत कौन-सी बनाई जाती थी?
उत्तर:
विजयनगर के शासकों द्वारा सबसे अधिक ऊँची इमारत गोपुरम् बनाई जाती थी।

प्रश्न 30.
हम्पी को राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल कब घोषित किया गया?
उत्तर:
हम्पी को राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल 1976 ई० में घोषित किया गया।

प्रश्न 31.
हम्पी को विश्व पुरातत्व स्थल कब घोषित किया गया?
उत्तर:
हम्पी को विश्व पुरातत्व स्थल 1986 ई० में घोषित किया गया।

प्रश्न 32.
‘विजयनगर में आप हर वस्तु पा सकते हैं, यह बात किसने कही?
उत्तर:
विजयनगर में आप हर वस्तु पा सकते हैं’ यह बात यात्री डोमिंगो पेस ने कही।

प्रश्न 33.
‘गजपति’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
‘गजपति’ का अर्थ हाथियों का स्वामी है।

प्रश्न 34.
विजयनगर के शासक कौन-सी उपाधि धारण करते थे?
उत्तर:
विजयनगर के शासक ‘हिन्दू सूरतराणा’ की उपाधि धारण करते थे।

अति लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विजयनगर साम्राज्य की खोज में कॉलिन मैकेन्ज़ी की क्या भूमिका है?
उत्तर:
कॉलिन मैकेन्जी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में अभियंता व पुरातत्वविद था। उसने विरुपाक्ष तथा पम्पा देवी के मंदिरों के पुजारियों से जानकारी प्राप्त की। उसने विजयनगर के क्षेत्र का सर्वेक्षण करवाया तथा रिपोर्ट प्रकाशित की। उसने इसके बाद इस क्षेत्र का मानचित्र भी तैयार करवाया। उसकी रिपोर्ट व मानचित्र ने इतिहासकारों को आकर्षित किया जिसके फलस्वरूप विजयनगर की खोज हुई।

प्रश्न 2.
अमर-नायक कौन थे? उनके क्या कार्य थे?
उत्तर:
अमर शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के समर शब्द से हुई है जिसका अर्थ युद्ध व लड़ाई से लिया जाता है। इससे स्पष्ट है कि अमर-नायक प्रशासन व सेना में प्रमुख व्यक्ति होते थे। वे किसानों, दस्तकारों व व्यापारियों से भू-राजस्व व अन्य कर वसूलते थे। इस वसूली राशि में से एक हिस्सा अपने व्यक्तिगत खर्च, सेना, हाथी व घोड़ों के रख-रखाव के लिए रख लेते थे। शेष राजस्व राशि राय के खजाने में जमा करवाते थे।

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प्रश्न 5.
विजयनगर शहर की आवास व्यवस्था की चर्चा करें।
उत्तर:
विजयनगर में आवास क्षेत्र शहर के किलेबन्द क्षेत्र में था। सारे शहर में एक जैसी बस्ती नहीं थी। शहर में विभिन्न धर्मों के लोग अलग-अलग क्षेत्रों में रहते थे। इस शहर के उत्तर:पूर्व क्षेत्र में साधन-सम्पन्न वर्ग के लोग रहते थे।

प्रश्न 6.
विजयनगर साम्राज्य के शाही स्थल की जानकारी दें।
उत्तर:
विजयनगर साम्राज्य की सारी प्रशासनिक व्यवस्था का संचालन जिस स्थल से होता था उसे शाही स्थल कहा गया है। शाही निवास, दरबार के अति महत्त्वपूर्ण भवनों के अतिरिक्त यहाँ 60 से अधिक मंदिर थे। यह इस बात का प्रमाण है कि शासक इन मन्दिरों व उपासना स्थलों को बनाकर जनता में यह संदेश देना चाहता था कि वह सबका शासक है इसलिए सभी उसे स्वीकार करें। इस तरह शाही स्थल पर मंदिरों का होना शासक द्वारा वैधता को प्राप्त करने का एक तरीका कहा जा सकता है।

प्रश्न 7.
मंदिरों के मंडपों के प्रकार व महत्त्व पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
मंदिरों के अंदर विभिन्न तरह के मंडप होते थे। जिनकी पहचान, उत्सव व अनुष्ठान के आधार पर की जाती थी। ताजपोशी तथा शादी उत्सव का मंडप बड़े सभागार में होता था। समाज के कार्यक्रमों व सामान्य अवसरों की परंपराओं, विवाह, दान, सामाजिक कार्यों सभा इत्यादि के लिए मंडप अलग होते थे। कुछ मंडप धार्मिक केंद्र के बाह्य क्षेत्र में भी थे।

प्रश्न 8.
विजयनगर शहर की खुदाई का नेतृत्व किन-किन लोगों द्वारा किया गया?
उत्तर:
विजयनगर के उत्खनन (खुदाई) कार्य को करने वाले जॉन एम. फ्रिट्ज (John M. Fritz), जॉर्ज मिशेल (George Michell) तथा एम.एस. नागराज राव (M.S. Nagraja Rao) थे जो प्रारंभ से अंत तक खुदाई के कार्य से जुड़े रहे। इन्होंने पत्थरों की बीच की जगह, दरवाजों के छज्जों तथा मीनारों के बीच के विभिन्न बिन्दुओं की कल्पना की। .

प्रश्न 9.
डोमिंगो पेस विजयनगर शहर का वर्णन किस तरह करता है?
उत्तर:
डोमिंगो एक विदेशी यात्री था। उसने 16वीं शताब्दी में विजयनगर की यात्रा की। उसने शहर की बनावट, सड़कों व गलियों को बहुत अच्छा बताया। उसने विजयनगर के बाजार के बारे में लिखा कि यहाँ प्रत्येक वस्तु मिलती थी; जैसे कि अनाज, बहुमूल्य धातुएं तथा मोम इत्यादि।

प्रश्न 10.
विजयनगर शहर में कृषि क्षेत्र की किलेबंदी के लाभ व हानियाँ बताएँ।
उत्तर:
विजयनगर के खेतों को किलेबन्दी में लेने का सबसे बड़ा लाभ यह था कि लोगों के साथ-साथ फसलों की भी सुरक्षा हो जाती थी। इससे युद्ध काल में खाद्यान्न का संकट नहीं आता था। लेकिन इस व्यवस्था का दोष यह था कि यह महँगी थी। दूर-दराज तक के क्षेत्रों को किलेबन्दी में काफी खर्च करना पड़ता था।

प्रश्न 11.
विजयनगर के बाजार में मिलने वाली चीज़ों का वर्णन करें।
उत्तर:
विजयनगर का बाजार उपयोगी वस्तुओं की दृष्टि से काफी समृद्ध था। इसमें अनाज, दालें विभिन्न तरह के फल व सब्जियाँ, मांस तथा पशु-पक्षी मिलते थे। विभिन्न तरह के आभूषण, कपड़ा तथा अश्व भी यहाँ मिलते थे।

प्रश्न 12.
विजयनगर के हाथियों के अस्तबल के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
शाही क्षेत्र में हाथियों का अस्तबल बहुत बड़ा था। यह कमल महल के समीप था। इतने बड़े अस्तबल को देखकर यह अनुमान लगाया जाना सरल है कि रायों की सेना में हाथियों की संख्या काफी थी।

प्रश्न 13.
विजयनगर साम्राज्य में शासकों व व्यापारियों के संबंधों पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
विजयनगर साम्राज्य को संपन्न बनाने में व्यापारी वर्ग ने अपना योगदान दिया। इन व्यापारियों को शासकों द्वारा संरक्षण दिया गया था। व्यापारी साम्राज्य के लिए अश्व अरब व मध्य-एशिया से आते थे। प्रारंभ से ही राय अश्वों के लिए अरब व्यापारियों पर निर्भर थे। परंतु समय के साथ-साथ यहाँ कुदिरई चेट्टी (घोड़ों के व्यापारियों) का वर्ग पैदा हो गया। इन्होंने राज्य को पर्याप्त मात्रा में घोड़े उपलब्ध करवाए। 1498 ई० में पुर्तगालियों के भारत के पश्चिमी तट पर आने के बाद इन्होंने व्यापारिक प्रतिस्पर्धा में भाग लिया।
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विजयनगर मसालों, रत्नों एवं आभूषणों के बाजार व व्यापार के लिए जाना जाता था। यहाँ की जनता की समृद्धि का ज्ञान उनकी जीवन-शैली, विदेशी वस्तुओं की माँग तथा रत्न व आभूषणों से होता था। इसके कारण व्यापारी लगातार उन्नति के मार्ग पर थे। इसके साथ ही राज्य के राजस्व में भी निरंतर वृद्धि हो रही थी।

प्रश्न 14.
कृष्णदेव राय के व्यापार व व्यापारियों के बारे में क्या विचार थे?
उत्तर:
कृष्णदेव राय विजयनगर का सबसे प्रतापी शासक था। उसने तेलुगु भाषा में ‘अमुक्त मल्यद’ नामक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में उसने व्यापारियों के बारे में लिखा–“एक राजा को अपने बन्दरगाहों को सुधारना चाहिए और वाणिज्य को इस प्रकार प्रोत्साहित करना चाहिए कि घोड़ों, हाथियों, रत्नों, चंदन, मोती तथा अन्य वस्तुओं का खुले तौर पर आयात हो सके। उसके अनुसार शासक को रोज बैठक में बुलाकर, व्यापारियों को तोहफे देकर तथा उचित मुनाफे की स्वीकृति देकर उन्हें अपने साथ जोड़ना चाहिए। कृष्णदेव राय के इस चिन्तन से पता चलता है कि राय व्यापारियों को किस तरह प्रोत्साहित कर, व्यापार को बढ़ावा देना चाहता था।

प्रश्न 15.
हरिहर व बुक्का राय के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हरिहर व बुक्का राय विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक थे। उन्होंने 1336 ई० में इसकी स्थापना की। इस साम्राज्य का प्रथम शासक हरिहर (1336-56) बना तथा उसने राज्य के लिए नियम कानून बनाए। उसकी मृत्यु के पश्चात् बुक्का राय (1356-1377) शासक बना। उसने प्रशासन व राज्य की समृद्धि की ओर ध्यान दिया। उसके समय में ही पड़ोसी राज्य बहमनी के साथ संघर्ष की शुरुआत हुई।

प्रश्न 16.
विजयनगर का पतन कैसे हुआ?
अथवा विजयनगर साम्राज्य के पतन के क्या कारण थे?
उत्तर:
कृष्णदेव राय की मृत्यु के बाद विजयनगर में दरबारी तनाव, गुटबंदी व षड्यंत्रों की शुरुआत हो गई। कृष्णदेव राय के उत्तराधिकारियों को दरबारियों तथा सेनापतियों से चुनौतियों का सामना करना पड़ा। 1542 ई० में विजयनगर साम्राज्य का एक हिस्सा अराविदु वंश के हाथों में आ गया। उन्होंने पेनुकोण्डा को राजधानी बनाया। बहमनी साम्राज्य के तीन राज्यों-बीजापुर, अहमदनगर व गोलकुण्डा की संयुक्त सेना ने 1565 ई० में विजयनगर पर आक्रमण किया। इस तालीकोटा के युद्ध में विजयनगर की हार हुई तथा विजयी सेना ने विजयनगर शहर में भारी लूटमार की, जिससे यह क्षेत्र पूरी तरह उजड़ गया।

प्रश्न 17.
विजयनगर साम्राज्य में नायक कौन थे? उनकी गतिविधियाँ क्या थीं?
उत्तर:
विजयनगर साम्राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत सेना प्रमुखों को नायक कहा जाता था। इन सेना प्रमुखों का किलों पर नियंत्रण होता था। इनके पास शस्त्रधारी सैनिक भी होते थे। ये प्रायः भ्रमणशील होते थे तथा हमेशा उपजाऊ भूमि पर नियंत्रण करना चाहते थे। इनकी भाषा प्रायः तेलुगु या कन्नड़ थी। इन्हें स्थानीय किसानों का समर्थन मिलता रहता था। ये नायक सामान्यतः विद्रोही प्रवृत्ति के होते थे।

प्रश्न 18.
विजयनगर शहर का वृत्तांत देने वाले प्रमुख यात्री कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
विजयनगर शहर का वृत्तांत देने वाले यात्रियों में इटली के निकोलो दे कॉन्ती (Nicolo-De-Konti), फारस के अब्दुर रज्जाक (Abdur Razak) तथा रूस के अफानासी निकितिन (Afanaci Niktian), डोमिंगो पेस (Domingo Pesh) तथा पुर्तगाल के फर्नावो नूनिज़ (Fernao Nuniz) है। इन सभी ने इस शहर में प्रवास किया तथा अलग-अलग पक्षों की जानकारी दी।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर

प्रश्न 19.
विजयनगर की सुरक्षा व्यवस्था कैसी थी?
उत्तर:
विजयनगर साम्राज्य के रायों ने सुरक्षा व्यवस्था की ओर विशेष ध्यान दिया। नगर की किलेबंदी बेजोड़ थी। फारस का दूत तथा यात्री अब्दुर रज्जाक सुरक्षा व्यवस्था से प्रभावित होकर लिखता है कि यहाँ दुर्गों की सात पंक्तियाँ हैं। इन दुर्गों की पंक्तियों में केवल शहर का आवासी क्षेत्र नहीं है, बल्कि कृषि क्षेत्र, जंगलों व जलाशयों के क्षेत्र को चारदीवारी के अंदर लिया गया है। उसके अनुसार इस दीवार को बनाने के लिए मिट्टी, चूना या किसी अन्य जोड़ने वाली चीज का प्रयोग नहीं किया गया, बल्कि पत्थरों को फानाकार बनाकर आपस में जोड़ा गया। दीवार में आयताकार व वर्गाकार बुर्ज भी बने थे। इस किलेबंदी में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात खेतों की दीवार द्वारा घेराबंदी थी।

प्रश्न 20.
विजयनगर में सड़कों की व्यवस्था की संक्षिप्त जानकारी दें।
उत्तर:
विजयनगर के शासकों ने सड़कों को विशेष महत्त्व दिया। विजयनगर की चारदीवारी के अंदर प्रवेश करने के लिए प्रवेश द्वार थे। ये सुरक्षित तो थे ही साथ में स्थापत्य कला की दृष्टि से भी विशेष थे। प्रत्येक प्रकार की दीवार पर अलग-अलग स्थापत्य कला से प्रवेश द्वार बने थे। किलेबंद बस्ती के प्रवेश द्वार पर मेहराब थी जिसके ऊपर गुंबद था। कला इतिहासकार इसे तुर्की प्रभाव का होने के कारण इंडो-इस्लामिक (हिंद-इस्लामी) संस्कृति बताते हैं।

प्रवेश द्वार से होकर आंतरिक भाग तक पक्की सड़कें थीं। ये सड़कें पहाड़ी व मैदानी दोनों क्षेत्रों में थीं। नगरीय क्षेत्र, धार्मिक व राजकीय क्षेत्र को सड़कों से जोड़ा गया था। इन सड़कों के दोनों ओर बाजार थे। मंदिरों के प्रवेश द्वारों के साथ सड़कों की चौड़ाई थोड़ी अधिक होती थी। सड़कों को पत्थरों द्वारा पक्का किया गया था।

प्रश्न 21.
शाही केंद्र में कौन-कौन से प्रमुख भवन थे?
उत्तर:
शाही केंद्र में शाही महल केंद्र था। विभिन्न अनुष्ठानों का आयोजन स्थल महानवमी डिब्बा भी इसी क्षेत्र में था। सबसे सुंदर भवन कमल (लोटस) महल है। इसकी मेहराबों पर बहुत सुंदर डिज़ाइन बनाए गए हैं तथा इन मेहराबों को दूर से देखने के बाद कमल जैसी आकृति बनती है। शाही क्षेत्र में हाथियों का अस्तबल भवन बहुत बड़ा है। यह कमल महल के समीप था।

प्रश्न 22.
विजयनगर शहर के धार्मिक केंद्र के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
विजयनगर के राय शासकों ने कई मंदिरों का निर्माण विजयनगर शहर के तुंगभद्रा नदी से सटे क्षेत्र में करवाया। एक स्थान पर काफी मात्रा में मंदिर व उपासना स्थल होने के कारण इस क्षेत्र को धार्मिक केंद्र के नाम से जाना जाता था। यह क्षेत्र पहाड़ियों के बीच था। स्थानीय लोक मान्यताओं के अनुसार, ये पहाड़ियाँ बाली व सुग्रीव के राज्य की रक्षा करती थीं। अन्य लोक परंपरा इस क्षेत्र का संबंध स्थानीय मातृदेवी, पम्पा देवी से जोड़ती है।

बरबोसा का उल्लेख
बरबोसा ने विजयनगर की प्रजा के धर्म संबंधी आचरण को लिखा है। प्रस्तुत है उसका एक अंश “राजा ने उन्हें इतनी स्वतंत्रता दी है कि प्रत्येक व्यक्ति  अपने उपासना स्थल, पर आ-जा सके और बिना कोई परेशानी झेले अपने धर्म का पालन कर सके। चाहे वह ईसाई हो या यहूदी मूर हो या कोई अन्य। न केवल शासक बल्कि लोग भी एक दूसरे के साथ बराबरी व न्याय का बर्ताव रखते थे।”

धार्मिक केंद्र में इतने अधिक उपासना स्थलों का मिलना इस  बात की पुष्टि करता है कि विभिन्न आस्थाओं व विचारधाराओं के | लोग आपस में मिल-जुल कर रहते थे तथा शासक भी यह दिखाने का |  प्रयास करता था कि वह किसी एक विशेष मत का शासक नही हैं।

प्रश्न 23.
गोपुरम् क्या थे? इनका क्या महत्त्व था?
उत्तर:
मंदिर के प्रवेश द्वार को गोपुरम् या राजकीय प्रवेश द्वार कहा जाता था। गोपुरम् किसी भी मंदिर एवं शहर की पहचान थे। ये कई मील से देखे जा सकते थे। शासक सबसे अधिक खर्च इसी पर करते थे। गोपुरम् शासक की पहचान तथा प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता था। इसलिए शासक स्थापत्य कला, तकनीक, ऊँचाई सभी दृष्टिकोणों से इसे विशिष्ट बनाना चाहते थे। विरुपाक्ष मंदिर, जिसका निर्माण शताब्दियों तक चलता रहा था, इसका महत्त्वपूर्ण द्वार पूर्वी क्षेत्र में है, जिसे पूर्वी गोपुरम् कहा जाता है। इसका निर्माण कृष्णदेव राय के द्वारा कराया गया था।

प्रश्न 24. विरुपाक्ष मन्दिर का संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर:
विरुपाक्ष स्थानीय परंपराओं के अनुरूप शिव के रूप में सबसे महत्त्वपूर्ण देवता था। इस मंदिर का देवस्थल, वर्गाकार था तथा दो प्रवेश द्वार थे। मंदिर का अपना एक जलाशय था। मंदिर में दो बड़े सभागार व मंडप थे जिनको स्तंभों वाले बरामदे से जोड़ा गया था। इस मंदिर का मंडप कृष्णदेव राय के द्वारा राज्यरोहण के अवसर पर बनाया गया था। इसके स्तंभों पर चित्रों को विशेष कलात्मक ढंग से उत्कीर्ण किया गया था। मंदिर का देवालय बीच में था। भले ही वह छोटे से क्षेत्र में था लेकिन आस्था व उपासना की दृष्टि से यही सबसे महत्त्वपूर्ण था क्योंकि यह मंदिर का गर्भ गृह था तथा देवता की परंपरागत मूर्ति भी यहीं थी। .

प्रश्न 25.
विट्ठल मन्दिर के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
विट्ठल महाराष्ट्र क्षेत्र में विष्णु के रूप में पूजे जाते थे। महाराष्ट्र के बाद यह देवता कर्नाटक में भी लोकप्रिय हुआ। यह मंदिर सांस्कृतिक समन्वय का प्रतीक था। इसमें भी सभागार, मंडप व देवालय था। इसकी विशेष महत्ता इसका स्थापत्य था। यह मंदिर रथ के आकार पर आधारित था।

प्रश्न 26.
मन्दिर क्षेत्र में सभागार की क्या भूमिका थी?
उत्तर:
मंदिर में सर्वाधिक प्रयोग स्थल सभागार थे। सभागार का आकार उसकी मान्यता व आवश्यकता के अनुरूप था। इन सभागारों में संगीत, नृत्य व नाटक इत्यादि के कार्यक्रम चलते रहते थे। देवताओं की मूर्तियों को स्थापना के समय या विशेष उत्सवों पर बाहर नहीं लाया जाता था। देवी-देवताओं के विवाह उत्सव के अवसर पर सभागारों की छटा बेहद सुंदर होती थी। देवी-देवताओं के सार्वजनिक दर्शन तथा झूला इत्यादि झुलाने के लिए विशिष्ट मूर्तियों का प्रयोग होता था।

प्रश्न 27.
हम्पी का खनन मानचित्र कैसे तैयार किया गया?
उत्तर:
सर्वप्रथम पूरे हम्पी क्षेत्र के फोटोग्राफ लिए गए तथा मानचित्र का निर्माण किया गया। इसके पहले चरण में संपूर्ण क्षेत्र को 25 वर्गाकार भागों में बांटा गया जिन्हें अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर A से Z का नाम दिया गया। इसमें I (आई) शब्द का प्रयोग नहीं किया गया फिर उस प्रत्येक भाग को 25 भागों में बांटा गया। फिर उन्हें क्रमशः AA, AB, AC या BA, BB, BC की क्रिया अपनाते हुए ZAसे ZZ तक अर्थात् 25 टुकड़ों को आगे 25 छोटे वर्गाकार टुकड़ों में बांटा गया। फिर इन टुकड़ों को अन्य छोटी इकाइयों में आगे-से-आगे विभाजित किया जाता रहा। जब तक प्रत्येक फुट का क्षेत्र मानचित्र के दायरे में नहीं आ गया।

प्रश्न 28.
हम्पी की खनन प्रक्रिया से हमें किस-किस चीज की जानकारी मिल पाई?
उत्तर:
हम्पी की खनन प्रक्रिया द्वारा हम विजयनगर साम्राज्य के युग को समझ सके। इस क्रिया में हम विभिन्न भवनों, मार्गों, क्षेत्रों व जलाशयों के बारे में जानकारी भी ले सके। स्थापत्य कला तथा उसकी विभिन्न शैली तक भी पहुँच सके। इन भवनों के उद्देश्य तथा सांस्कृतिक महत्त्व के साथ-साथ हम निर्माणकर्ताओं की सोच इत्यादि के बारे में भी अनुमान लगा पाए। साम्राज्य की राजधानी की किलेबंदी तथा प्रतिरक्षा के बारे में भी काफी हद तक हमारी समझ बनी है। शासक तथा नायक वर्ग की विभिन्न चीजें व भवनों के आधार पर उनकी जीवन-शैली का अनुमान लगाया जा सका।

प्रश्न 29.
विजयनगर की जानकारी हेतु अभी किन-किन प्रश्नों का जवाब ढूँढ़ना बाकी है?
उत्तर:
विजयनगर की अभी तक शाही परिवार व भवनों के बारे में मिली जानकारी द्वारा हम उस स्थान पर बसे लोगों, उनके आपसी संबंधों, बच्चों के जीवन तथा उनकी गतिविधियों को नहीं जान पाए हैं, शहरी केंद्र के आस-पास ग्रामीण क्षेत्रों व इनके आपसी संबंधों को समझना अभी बाकी है। भवनों को बनाने वाले विशेषज्ञों की सोच, उनकी दैनिक मजदूरी व समाज में उनका स्थान, की स्थिति भी अभी स्पष्ट नहीं है। भवन निर्माण में उनका साथ देने वाले कारीगर, राजगीर, पत्थर काटने वाले व्यक्तियों की जानकारी भी हमारे पास नहीं है, मजदूर, निर्माण सामग्री का स्थल, यातायात व संचार के मुख्य साधन इत्यादि अनेक पक्ष ऐसे हैं जिनकी जानकारी अभी अधूरी है।

लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विजयनगर की खोज पर नोट लिखें।
उत्तर:
विजयनगर का नाम वर्तमान में हम्पी है जो दक्षिण के एक ऐतिहासिक साम्राज्य विजयनगर की धरोहर से समृद्ध था। परन्तु समय बीतने के साथ यह विस्मृति के गर्भ में चला गया। कंपनी के एक अभियंता कॉलिन मैकेन्जी ने एक प्राचीन स्थल के बारे में खोज-बीन शुरू की। वहाँ पर विरुपाक्ष तथा पम्पादेवी के दो प्राचीन मंदिर थे। इन्हीं मंदिरों के पुजारियों से उसे इस स्थान के बारे में जानकारी प्राप्त हुई जिसके आधार पर उसने विस्तृत सर्वेक्षण करवाया और उसकी रिपोर्ट को प्रकाशित किया। उसने इस क्षेत्र का प्रथम मानचित्र तैयार किया।

उसकी हम्पी संबंधी रिपोर्ट और मानचित्र ने इतिहासकारों को आकर्षित किया। इस क्षेत्र की खोज के प्रति उनका रुझान बढ़ गया। 1836 ई० में पुरातत्वविदों व अभिलेखज्ञाताओं ने इस क्षेत्र (हम्पी) के मंदिरों तथा अन्य स्थानों से अभिलेख एकत्रित किए। सन् 1856 में छाया चित्रकारों ने यहाँ के भवनों के चित्र संकलित करने आरंभ किए। इस प्रकार परत-दर-परत विस्मृत नगर सामने आने लगे। इतिहासकारों ने उपलब्ध पुरातात्विक सामग्री तथा यात्रियों के वृत्तांत और स्थानीय साहित्य (तेलुगु, तमिल, कन्नड़ व संस्कृत में) के आधार पर इस नगर के इतिहास का पुनर्निर्माण किया।
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प्रश्न 2.
विजयनगर के शासकों व व्यापारियों के बीच संबंधों पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
विजयनगर के शासकों के व्यापारियों से संबध काफी अच्छे थे। इस साम्राज्य को संपन्न बनाने में व्यापारी वर्ग ने अपना योगदान दिया। इन व्यापारियों को रायों द्वारा संरक्षण दिया गया था। रायों की सफलता में अश्व सेना की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी। इनके अश्व अरब व मध्य-एशिया से आते थे। प्रारंभ में राय अश्वों के लिए अरब व्यापारियों पर निर्भर थे। परंतु समय के साथ-साथ यहाँ कुदिरई चेट्टी (घोड़ों के व्यापारियों) का वर्ग पैदा हो गया। इन्होंने राज्य को पर्याप्त मात्रा में घोड़े उपलब्ध करवाए।

विजयनगर मसालों, रत्नों एवं आभूषणों (रत्नों) के बाजार व व्यापार के लिए जाना जाता था। यहाँ की जनता की समृद्धि का ज्ञान उनकी जीवन-शैली, विदेशी वस्तुओं की माँग तथा रत्न व आभूषणों से होता था। इस जीवन-शैली व माँग के कारण व्यापारी लगातार उन्नति के मार्ग पर थे। इसके साथ ही राज्य के राजस्व में भी निरंतर वृद्धि हो रही थी। कृष्णदेव राय विजयनगर का सबसे प्रतापी शासक कहा जाता है। उसने तेलुगु भाषा में ‘अमुक्त मल्यद’ नामक पुस्तक लिखी। कृष्णदेव राय के चिन्तन से पता चलता है कि राय व्यापारियों को किस तरह प्रोत्साहित कर व्यापार को बढ़ावा देना चाहते थे।

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प्रश्न 3.
कृष्णदेव राय का विजयनगर साम्राज्य के विकास में क्या योगदान था?
उत्तर:
1336 ई० में हरिहर व बुक्का राय दो भाइयों ने विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की। इस साम्राज्य का प्रथम शासक हरिहर (1336-56) बना तथा उसने राज्य के लिए नियम कानून बनाए। उसकी मृत्यु के पश्चात् बुक्का (1356-1377) शासक बना। उसने प्रशासन व राज्य की समृद्धि की ओर ध्यान दिया। उसके समय में ही पड़ोसी राज्य बहमनी के साथ संघर्ष की शुरुआत हुई। उसके पश्चात् हरिहर द्वितीय (1377-1405) तथा देवराय प्रथम (1406-22) शासक बने। इन्होंने बहमनी से संघर्ष जारी रखा। साथ ही आर्थिक विकास, कृषि व व्यापार को भी प्रोत्साहन दिया। उनके बाद देवराय द्वितीय (1422-46) शासक बना। उसने इस साम्राज्य की सीमा का खूब विस्तार किया। फारसी यात्री अब्दुर रज्जाक ने उसकी खुले मन से प्रशंसा की है।

इसके बाद इस साम्राज्य में कई कमजोर शासक आए जिनको बहमनी के शासकों ने पराजित कर इनकी सीमा को छोटा कर दिया। विजयनगर अपने चरमोत्कर्ष पर कृष्णदेव राय (1509-29) के शासन काल में पहुँचा। उसने सुलुवों के राज्य को नष्ट कर सत्ता पर अधिकार कर लिया। उसने 1512 ई० में तुंगभद्रा व कृष्णा नदियों के बीच के क्षेत्र रायचूर, दोआब, 1514 ई० में उड़ीसा तथा 1520 ई० में बीजापुर के शासक को पराजित कर साम्राज्य का विस्तार किया। साथ ही उसने आंतरिक दृष्टि से भी राज्य को सुदृढ़ किया। उसका काल शांति, समृद्धि तथा मंदिरों के निर्माण के लिए जाना जाता है।
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प्रश्न 4.
विजयनगर के पतन की स्थितियों को अपने शब्दों में लिखें। ,
उत्तर:
कृष्णदेव राय की मृत्यु के बाद विजयनगर में दरबारी तनाव, गुटबंदी व षड्यंत्रों की शुरुआत हो गई। कृष्णदेव राय के उत्तराधिकारियों को दरबारियों तथा सेनापतियों से चुनौतियों का सामना करना पड़ा। 1542 ई० में विजयनगर साम्राज्य का एक हिस्सा अराविदु वंश के हाथों में आ गया। उन्होंने पेनुकोण्डा को राजधानी बनाया। बाद में उन्होंने राजधानी चन्द्रगिरी (तिरुपति के पास) से 17वीं शताब्दी तक शासन किया। दक्षिण में कई नई शक्तियाँ भी उभरीं जिन्होंने विजयनगर के राजनैतिक समीकरण को काफी कमजोर किया।

अन्ततः बहमनी साम्राज्य के तीन राज्यों-बीजापुर, अहमदनगर व गोलकुण्डा की संयुक्त सेना ने 1565 ई० में विजयनगर पर आक्रमण किया। विजयनगर का नेतृत्व रामराय ने किया। यह युद्ध तालीकोटा (वास्तव में राक्षसी-तांगड़ी क्षेत्र) में हुआ। इस युद्ध में विजयनगर की हार हुई तथा विजयी सेना ने विजयनगर शहर में भारी लूटमार की। जिससे यह क्षेत्र पूरी तरह उजड़ गया तथा अराविदु वंश नाम-मात्र के लिए पेनुकोण्डा व चन्द्रगिरी से शासन चलाता रहा।
अतः विजयनगर के पतन का मुख्य कारण बहमनी राज्यों से उसकी हार थी।

प्रश्न 5.
विजयनगर के राय, नायकों व अमर-नायकों के आपसी संबंधों का वर्णन करें।
उत्तर:
विजयनगर साम्राज्य में शासन का प्रमुख राय होता था। राय अपने साम्राज्य में आंतरिक व बाह्य तौर पर शांति व सुरक्षा के लिए सेना पर निर्भर था। इस साम्राज्य में सेना अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग प्रमुखों के नियंत्रण में होती थी। इन सेना प्रमुखों का किलों पर नियंत्रण होता था। इनके पास शस्त्रधारी सैनिक भी होते थे। ये प्रायः भ्रमणशील होते थे तथा हमेशा उपजाऊ भूमि पर नियंत्रण करना चाहते थे।

इनकी भाषा प्रायः तेलुगु या कन्नड़ थी। इन्हें स्थानीय किसानों का समर्थन मिलता रहता था। सेना के प्रमुखों या सेनापतियों के वर्ग को नायक कहा जाता था। ये नायक सामान्यतः विद्रोही प्रवृत्ति के होते थे। नायक से ही अमर-नायक बना है। अमर-नायक सैनिक प्रमुख तो थे ही, साथ ही उन्हें राय द्वारा प्रशासनिक शक्ति भी दी गई थी। जबकि नायक के पास प्रशासनिक शक्तियाँ नहीं थीं। इस तरह अमर-नायक, नायक की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण थे। अमर-नायक प्रशासन व सेना में प्रमुख व्यक्ति होते थे। वे किसानों, दस्तकारों व व्यापारियों से भू-राजस्व व अन्य कर वसूलते थे।

इस वसूली राशि में से एक हिस्सा अपने व्यक्तिगत खर्च, सेना, हाथी व घोड़ों के रख-रखाव के लिए रख लेते थे। शेष राजस्व राशि राय के खजाने में जमा करवाते थे। इन्हीं नायकों के सहारे रायों ने साम्राज्य का विस्तार किया तथा आंतरिक तौर पर शांति स्थापित कर समृद्धि का वातावरण बनाया। अमर-नायक व नायक तथा राय में कुछ औपचारिक रिश्ते थे। वे वर्ष में एक बार उपहारों सहित दरबार में उपस्थित होकर स्वामीभक्ति प्रकट करते थे। राय अपनी शक्ति-प्रदर्शन तथा शक्ति संतुलन के लिए इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानातंरित कर देता था।

प्रश्न 6.
विजयनगर साम्राज्य की राजधानी कौन-सी थी? उसका वृत्तांत किन यात्रियों ने दिया है? किसी एक का वर्णन करें।
उत्तर:
विजयनगर साम्राज्य की राजधानी स्वयं विजयनगर शहर था। इसकी संरचना व स्थापत्य कला की दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण शहर था। यह शहर वे सारी विशेषताएँ रखता था जो किसी भी शक्तिशाली राज्य की राजधानी की जरूरत होती थी। इस शहर के मन्दिर, भवन तथा अन्य अवशेष व्यापक रूप में मिले हैं। नायक व अमर-नायकों के अभिलेख तथा यात्रियों का वृत्तांत ने शहर के बारे में विस्तृत प्रकाश डाला है।

15वीं शताब्दी के यात्रियों में इटली के निकोलो दे कॉन्ती (Nicolo-De-Konti), फारस के अब्दुर रज्जाक (Abdur Razak) तथा रूस के अफ़ानासी निकितिन (Afanaci Niktian) मुख्य हैं। 16वीं शताब्दी के यात्रियों में दुआर्ते बरबोसा (Duarate Barbosa), डोमिंगो पेस (Domingo Pesh) तथा पुर्तगाल के फर्नावो नूनिज़ (Fernao Nuniz) के नाम आते हैं।

इन सभी ने इस शहर में प्रवास किया तथा अलग-अलग पक्षों की जानकारी दी। उदाहरण के लिए डोमिंगो पेस के वृत्तांत को दिया जा सकता है। उसके अनुसार, “इस शहर का परिमाप मैं यहाँ लिख नहीं रहा हूँ, क्योंकि यह एक स्थान से पूरी तरह नहीं देखा जा सकता, पर मैं एक पहाड़ पर चढ़ा जहाँ से मैं इसका एक बड़ा भाग देख पाया। मैं इसे पूरी तरह नहीं देख पाया, क्योंकि यह कई पर्वत शृंखलाओं के बीच स्थित है। वहाँ से मैंने जो देखा वह मुझे रोम जितना विशाल प्रतीत हुआ और देखने में अत्यंत सुन्दर। इसमें पेड़ों के कई उपवन हैं। आवासों के बगीचों में तथा पानी की कई नालियाँ जो इसमें आती हैं। इसमें कई स्थानों पर झीलें भी हैं तथा राजा के महल के समीप ही खजूर के पेड़ों का बगीचा तथा अन्य फल प्रदान करने वाले वृक्ष थे।”

प्रश्न 7.
विजयनगर साम्राज्य की जल आवश्यकताओं को किस प्रकार पूरा किया जाता था?
उत्तर:
विजयनगर में जल प्रबंधन की एक निश्चित योजना थी। इस ओर शासकों ने विशेष ध्यान दिया। विजयनगर प्राकृतिक दृष्टि से पहाड़ियों के बीच था। इसके उत्तर:पूर्व में तुंगभद्रा नदी बहती थी। पहाड़ियों की जल धाराओं से यहाँ एक प्राकृतिक कुण्ड बना है। वहाँ पर शासकों ने बाँधों (जलाशयों) का निर्माण किया। इन बाँधों से पानी लेकर बड़े-बड़े कुण्डों में एकत्रित किया जाता था। इस क्षेत्र में आज भी कमलपुरम् नामक एक जलाशय है जिसका निर्माण 15वीं सदी में किया गया था। इन जलाशयों से कृषि में सिंचाई की जरूरत को पूरा किया।

इसके साथ ही शासकों द्वारा नहर के माध्यम से इस जलाशय का पानी शहर के मुख्य हिस्से ‘राजकीय केंद्र’ तक पहुँचाया गया। इस नहर को संगम वंश के शासकों द्वारा तैयार करवाया गया। यह नहर नगर के शहरी व धार्मिक केंद्र की पानी की आवश्यकता की पूर्ति करती थी। साथ ही यह कृषि क्षेत्र की सिंचाई भी करती थी। शासक विभिन्न जलाशयों का निर्माण करवाना गौरव की बात समझते थे। इसके लिए आर्थिक साधन कहीं बाधा नहीं बनते थे। डोमिंगो पेस ने कृष्णदेव राय द्वारा जलाशय निर्माण पर भी जानकारी दी जिसमें स्पष्ट किया गया है कि 15 से 20 हजार व्यक्ति वहीं कार्य करते थे। जलाशय एक निश्चित योजना के अनुरूप बना था।

प्रश्न 8.
विजयनगर की सुरक्षा व्यवस्था के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
विजयनगर साम्राज्य व नगर की किलेबंदी बेजोड़ थी, जिसके बारे में हमें जानकारी फारस के दूत तथा यात्री अब्दुर रज्जाक से मिलती है। वह सुरक्षा व्यवस्था से प्रभावित होकर लिखता है कि यहाँ दुर्गों की सात पंक्तियाँ हैं। इन दुर्गों की पंक्तियों में केवल शहर का आवासी क्षेत्र नहीं है, बल्कि कृषि क्षेत्र, जंगलों व जलाशयों के क्षेत्र को चारदीवारी के अंदर लिया गया है। वह बताता है कि सबसे बाहरी दीवार चारों ओर बनी पहाड़ियों को आपस में जोड़ती है।

उसके अनुसार यह संरचना विशाल तथा शुण्डाकार थी। इस दीवार को बनाने के लिए मिट्टी, चूना या किसी अन्य जोड़ने वाली चीज का प्रयोग नहीं किया गया, बल्कि पत्थरों को फानाकार बनाकर आपस में जोड़ा गया। ये पत्थर खिसकते नहीं थे। दीवारों का आंतरिक भाग मिट्टी व मलबे के मिश्रण से बना था। दीवार में आयताकार व वर्गाकार बुर्ज भी बने थे। उसे इस किलेबंदी में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात खेतों की दीवार द्वारा घेराबंदी लगी।

विजयनगर भारतीय ऐतिहासिक संदर्भ में पहला ऐसा साम्राज्य है जिसने खेतों की भी किलेबंदी की। यह व्यवस्था महँगी जरूर थी, लेकिन इसके परिणाम सुखद थे। कृषि क्षेत्र के बाद दूसरी किलेबंदी नगरीय केंद्र के आंतरिक भाग की होती थी तथा तीसरी शासकीय केंद्र की जिसमें शाही महल, दरबार, सेना व अस्तबल इत्यादि होते थे। इस किलेबंदी की विशेष बात यह होती थी कि ज्यों-ज्यों अंदर की ओर आते थे त्यों-त्यों दीवारों की ऊँचाई बढ़ती जाती थी।

प्रश्न 9. विजयनगर शहर की आवास व्यवस्था कैसी थी? वर्णन करें।
उत्तर:
शहर की आवास व्यवस्था-किलेबंद चारदीवारी के अंदर थी। पुरातत्वविदों को सारे शहर में एक जैसी बस्ती नहीं मिली है बल्कि भवन निर्माण पद्धति के आधार पर उन्हें आसानी से समझा जा सकता है। पुरातत्वविदों ने शहर के उत्तर:पूर्वी कोने को भवन-निर्माण के आधार पर ही मुस्लिम रिहायशी मोहल्ला घोषित किया है। इसी क्षेत्र में अच्छी किस्म की चीनी मिट्टी की वस्तुएँ भी मिली हैं। जो इस बात को प्रमाणित करती हैं कि यहाँ साधन सम्पन्न लोग रहते होंगे। भवन चाहे मंदिर हों या मस्जिद एक जैसे सामान से बने हैं। मंदिर व मस्जिद की मौलिक विशेषताओं को छोड़कर ये सभी हम्पी के मन्दिरों जैसे ही हैं।

शहरी आवास व्यवस्था में पुरातत्वविदों ने एक नई चीज पाई कि इस क्षेत्र में बहुत-से विविध उपासना स्थल मिले हैं। स्थापत्य कला व शहर की बसावट से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यहाँ कई संप्रदायों के लोग रहते थे जो अपने-अपने उपासना स्थलों में उपासना करते थे। वे इनका रख-रखाव भी करते थे। स्थापत्य अवशेषों में कुओं, बरसात के पानी के जलाशयों तथा मंदिर के जलाशयों का काफी मात्रा में मिलना, इस बात का उदाहरण है कि ये पानी के स्रोत स्थानीय लोगों की जल से संबंधित आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे।

प्रश्न 10.
विजयनगर साम्राज्य के शाही आवास पर नोट लिखें।
उत्तर:
विजयनगर साम्राज्य की सारी प्रशासनिक व्यवस्था का संचालन जिस स्थल से होता था उसे शाही स्थल कहा गया है। पुरातत्वविदों ने इसे शाही केंद्र तथा राजकीय केंद्र इत्यादि नाम भी दिए हैं। शाही निवास, दरबार के अति महत्त्वपूर्ण भवनों के अतिरिक्त यहाँ 60 से अधिक मंदिर थे। यह इस बात का प्रमाण है कि शासक इन मन्दिरों व उपासना स्थलों को बनाकर जनता में यह संदेश देना चाहता था कि वह सबका शासक है इसलिए सभी उसे स्वीकार करें। इस तरह शाही स्थल पर मंदिरों का होना शासक द्वारा वैधता को प्राप्त करने का एक तरीका कहा जा सकता है।

विजयनगर के खनन में 30 ऐसे भवन मिले हैं जो आकार में काफी बड़े हैं। इन्हें पुरातत्वविदों ने महलों का नाम दिया है। इन भवनों में धर्म से संबंधित कार्य नहीं किए जाते थे। इन भवनों व उपासना स्थलों के बीच मुख्य अंतर यह था कि उपासना स्थलों में ईंट-पत्थर इत्यादि प्रयोग में लाए गए हैं जबकि इनमें विभिन्न प्रकार की सामग्री का पुनः प्रयोग भी किया गया है। इन भवनों में सामग्री की पवित्रता की अपेक्षा मजबूती पर ध्यान दिया गया है। शाही आवास में महानवमी डिब्बा, सभा मंडप, कमल महल व हाथियों के अस्तबल जैसे भवन थे।
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प्रश्न 11.
शाही आवास में राजमहल या महानवमी डिब्बे के अतिरिक्त कौन-कौन से भवन थे? वर्णन करें।
उत्तर:
शाही केंद्र या राजकीय केंद्र राजमहल या महानवमी डिब्बे के अतिरिक्त बहुत-से ऐसे भवन हैं जिनके प्रयोग के बारे में तो निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता। अनुमान आकार, स्थापत्य निर्माण शैली व भवन की स्थिति के अनुरूप लगाए गए हैं। इन भवनों में सबसे सुंदर भवन कमल (लोटस) महल है।

इसकी मेहराबों पर बहुत सुंदर डिज़ाइन बनाए गए हैं तथा इन मेहराबों को दूर से देखने के बाद कमल जैसी आकृति बनती है, इसलिए पुरातत्वविदों, इतिहासकारों व यात्रियों (अंग्रेज) ने इसे यह नाम दिया। इसके उद्देश्य के बारे में स्पष्टता नहीं है, परंतु यह स्वीकार किया जाता है कि शासक यहाँ अपने सलाहकारों को मिलता था। अतः यह एक तरह का परिषदीय भवन था।

विजयनगर में सर्वाधिक मंदिरों वाले स्थल को धार्मिक केंद्र कहा गया है लेकिन राजकीय केंद्र में भी एक अत्यंत दर्शनीय व भव्य स्थल ‘हज़ार राम मंदिर’ है। यह मंदिर केवल शाही परिवार के सदस्यों द्वारा प्रयोग में लाया जाता था। मन्दिर के देवस्थल पर आज मूर्तियाँ नहीं हैं, लेकिन दीवारों पर उत्कीर्ण चित्र सुरक्षित हैं। इन चित्रों में कुछ रामायण के दृश्यों को अभिव्यक्त करते हैं इसलिए इस मंदिर का नाम राम के साथ जोड़ा गया। इसकी दीवारों पर घोड़े व हाथियों के चित्र बने हैं। शाही क्षेत्र में हाथियों का अस्तबल बहुत बड़ा है। यह कमल महल के समीप था।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर

प्रश्न 12.
गोपुरम् क्या थे? ऐतिहासिक दृष्टि से इनका क्या महत्त्व था?
उत्तर:
मन्दिर का प्रवेश द्वार गोपुरम् कहा जाता था। गोपुरम् किसी भी मंदिर एवं शहर की पहचान थे। ये कई मील से देखे जा सकते थे। शासक सबसे अधिक खर्च इसी पर करते थे। गोपुरम् शासक की पहचान तथा प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता था। इसलिए शासक स्थापत्य कला, तकनीक, ऊँचाई सभी दृष्टिकोणों से इसे विशिष्ट बनाना चाहते थे। विरुपाक्ष मंदिर, जिसका निर्माण शताब्दियों तक चलता रहा था, इसका महत्त्वपूर्ण द्वार पूर्वी क्षेत्र में है, जिसे पूर्वी गोपुरम् कहा जाता है।

इसका निर्माण कृष्णदेव राय के द्वारा कराया गया था। गोपुरम् की ऊँचाई के समान मंदिर या नगर का कोई और भवन नहीं होता था। उदाहरण के लिए विरुपाक्ष मंदिर के मुख्य गोपुरम् को कह सकते हैं कि यह 15 मंजिलों में बना है जिसमें पहली मंजिल की ऊँचाई 23 फीट है तथा सबसे ऊपरी मंजिल 11 फीट ऊँचाई रखती है।

दीर्घ-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विजयनगर साम्राज्य के धार्मिक केंद्र पर नोट लिखो।
उत्तर:
विजयनगर के शासकों ने अधिकतर मंदिरों का निर्माण विजयनगर शहर के तुंगभद्रा नदी से सटे क्षेत्र में करवाया। इस स्थान पर काफी मात्रा में मंदिर व उपासना स्थल होने के कारण इस क्षेत्र को धार्मिक केंद्र के नाम से जाना जाता था। यह क्षेत्र पहाड़ियों के बीच था। स्थानीय लोक मान्यताओं के अनुसार, ये पहाड़ियाँ बाली व सुग्रीव के राज्य की रक्षा करती थीं। अन्य लोक परंपरा इस क्षेत्र का संबंध स्थानीय मातृदेवी, पम्पा देवी से जोड़ती है। परंपरा अनुसार इस देवी ने इन्हीं पहाड़ियों में शिव के एक रूप माने जाने वाले देवता ‘विरुपाक्ष’ से शादी करने के लिए तपस्या की थी जिसमें वह अन्ततः सफल भी रही।
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इसलिए इस क्षेत्र में आज भी विरुपाक्ष मंदिर में इस विवाह को स्मरण करने के लिए विवाह का आयोजन होता है। इन पहाड़ियों में कुछ जैन मंदिर भी मिले हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यह क्षेत्र कई मतों में विश्वास करने वाले लोगों (हिंदू, मुस्लिम, जैन इत्यादि) की आस्था का केंद्र था लेकिन स्थानीय तौर पर सबसे अधिक महत्त्व विरुपाक्ष के मंदिर को दिया जाता है।

धार्मिक केंद्र में इतने अधिक उपासना स्थलों का मिलना इस बात की पुष्टि करता है कि विभिन्न आस्थाओं व विचारधाराओं के लोग आपस में मिल-जुल कर रहते थे तथा शासक भी यह दिखाने का प्रयास करता था कि वह किसी एक विशेष मत का शासक नही हैं। वह मंदिरों के माध्यम से अपनी सत्ता की राजनैतिक वैधता प्राप्त करता था। वह इन मंदिरों को दान, धन व जमीन दोनों रूपों में देता था।

मंदिर केवल आस्था को ही दिशा नहीं देते थे, बल्कि शिक्षा का केंद्र भी थे। इन स्थानों पर विभिन्न तरह की सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी होती थीं। इन कार्यक्रमों के कारण समाज का एक बड़ा वर्ग इनसे जुड़ा रहता था। शासकों की देखा-देखी नायक भी अपने क्षेत्रों के मंदिरों का निर्माण करवाते व दान देते थे। इसी तरह जनता भी उनकी नकल करती थी। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि विजयनगर का धार्मिक केंद्र एक महत्त्वपूर्ण स्थल था।

प्रश्न 2.
विजयनगर की जानकारी के स्रोत कौन-कौन से हैं? इसके खनन की प्रक्रिया पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
विजयनगर की जानकारी के स्रोत हमें विभिन्न रूपों में मिलते हैं। इनमें पुरातात्विक सामग्री, साहित्यिक स्रोत तथा विदेशी यात्रियों के वृत्तांत शामिल हैं। इनमें से अध्ययनकर्ताओं ने फोटोग्राफ, मानचित्र, उपलब्ध भवनों की खड़ी संरचनाएँ व मूर्तियों की ओर विशेष ध्यान दिया है। मैकेन्जी द्वारा प्रारंभ के सर्वेक्षण के पश्चात् जो रिपोर्ट दी गई, उसको अभिलेखों के वर्णन तथा यात्रियों के वृत्तांत के साथ जोड़ा गया। 1976 ई० में हम्पी को राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल घोषित करवा दिया।

1980 के दशक में खनन कार्य और अधिक गहन, व्यापक, योजनाबद्ध किया गया। इसके परिणामस्वरूप विजयनगर के अवशेष सामने आए। विजयनगर की जानकारी का मुख्य स्रोत पुरातात्विक सामग्री है। यह पुरातात्विक सामग्री एक खुदाई या खनन प्रक्रिया के बाद ही प्रयोग हो सकी है। संक्षेप में हम इस प्रक्रिया को इस तरह समझ सकते हैं

1. खनन मानचित्र–सर्वप्रथम पूरे क्षेत्र के फोटोग्राफ लिए गए तथा मानचित्र का निर्माण किया गया। इसके पहले चरण में संपूर्ण क्षेत्र को 25 वर्गाकार भागों में बांटा गया। जिन्हें अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर A से Z का नाम दिया गया। इसमें (I) (आई) अक्षर का प्रयोग नहीं हुआ। फिर उस प्रत्येक भाग को 25 भागों में बांटा गया। फिर उन्हें क्रमशः AA, AB, AC या BA, BB, BC की क्रिया अपनाते हुए ZAसे .ZZ तक अर्थात् 25 टुकड़ों को आगे 25 छोटे वर्गाकार टुकड़ों में बांटा गया फिर इन टुकड़ों को अन्य छोटी इकाइयों में आगे-से-आगे विभाजित किया जाता रहा। जब तक प्रत्येक फुट का क्षेत्र मानचित्र के दायरे में नहीं आ गया।

2. खनन कार्य-पूरे क्षेत्र को इस तरह विभाजित करके खनन कार्य प्रारंभ किया गया। इसके बाद अलग-अलग क्षेत्र को अलग-अलग विशेषज्ञ की देख-रेख में बांटा गया तथा फिर गहन खनन का कार्य प्रारंभ हुआ। अलग-अलग क्षेत्रों में संरचनाएँ बाहर आने लगीं, लेकिन इन्होंने आकार तब लिया जब आपस में इन टुकड़ों को जोड़ दिया गया। फिर यहाँ से देवस्थल, मंडप, विशाल गोपुरम्, शाही स्थल, धार्मिक केंद्र, सड़क, बरामदे, बाजार इत्यादि के अवशेष सामने आए। इन सभी स्थलों की पहचान स्तंभों के आधार पर की गई। प्राप्त अवशेषों में लकड़ी की कोई भी चीज उपलब्ध नहीं हो सकी।

प्रश्न 3.
नायक व अमर नायक व्यवस्था के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
नायक व अमर नायक व्यवस्था (The System of Nayak and Amar Nayak)-विजयनगर साम्राज्य में शासन का प्रमुख राय होता था। राय अपने साम्राज्य में आंतरिक व बाह्य तौर पर शांति व सुरक्षा के लिए सेना पर निर्भर था। इस साम्राज्य में सेना अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग प्रमुखों के नियंत्रण में होती थी। इन सेना प्रमुखों का किलों पर नियंत्रण होता था। इनके पास शस्त्रधारी सैनिक भी होते थे।

ये प्रायः भ्रमणशील होते थे तथा हमेशा उपजाऊ भूमि पर नियंत्रण करना चाहते थे। इनकी भाषा प्रायः तेलुगु या कन्नड़ थी। इन्हें स्थानीय किसानों का समर्थन मिलता रहता था। सेना के प्रमुखों या सेनापतियों के वर्ग को नायक कहा जाता था। ये नायक सामान्यतः विद्रोही प्रवृत्ति के होते थे। अतः इन्हें शक्ति के सहारे ही नियंत्रित किया जाता था।

नायक से ही अमर-नायक बना है। अमर-नायक सैनिक प्रमुख तो थे ही, साथ ही उन्हें राय द्वारा प्रशासनिक शक्ति भी दी गई थी। जबकि नायक के पास प्रशासनिक शक्तियाँ नहीं थीं। इस तरह अमर-नायक, नायक की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण थे। अमर शब्द फारसी के अमीर शब्द से मिलता-जुलता है जिसका अर्थ ऊँचे पद के कुलीन व्यक्ति से लिया जाता है। मान्यता अनुसार अमर शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के समर शब्द से हुई है जिसका अर्थ युद्ध व लड़ाई से लिया जाता है। इससे स्पष्ट है कि अमर-नायक प्रशासन व सेना में प्रमुख व्यक्ति होते थे।

वे किसानों, दस्तकारों व व्यापारियों से भू-राजस्व व अन्य कर वसूलते थे। इस वसूली राशि में से एक हिस्सा अपने व्यक्तिगत खर्च, सेना, हाथी व घोड़ों के रख-रखाव के लिए रख लेते थे। शेष राजस्व राशि राय के खजाने में जमा करवाते थे। इन्हीं नायकों के सहारे रायों ने साम्राज्य का विस्तार किया तथा आंतरिक तौर पर शांति स्थापित कर समृद्धि का वातावरण बनाया। रायों के भवन निर्माण व स्थापत्य कला के विकास के लिए धन इन्हीं के द्वारा जुटाया गया।

अमर-नायक व नायक तथा राय में कुछ औपचारिक रिश्ते थे। वे वर्ष में एक बार उपहारों सहित दरबार में उपस्थित होकर स्वामीभक्ति प्रकट करते थे। राय अपनी शक्ति-प्रदर्शन तथा शक्ति संतुलन के लिए इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानातंरित कर देता था। बाद में कई अमर-नायक बहुत शक्तिशाली हो गए थे। उन्होंने अपनी शक्ति को बढ़ाकर स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए थे। इससे जहाँ रायों की राज्य पर पकड़ कमजोर हुई, वहीं राज्य विघटन की ओर गया।

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HBSE 12th Class History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर

Haryana State Board HBSE 12th Class History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर

HBSE 12th Class History एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
पिछली दो शताब्दियों में हम्पी के भवनावशेषों के अध्ययन में कौन-सी पद्धतियों का प्रयोग किया गया है? आपके अनुसार यह पद्धतियाँ विरुपाक्ष मन्दिर के पुरोहितों द्वारा प्रदान की गई जानकारी का किस प्रकार पूरक रहीं?
उत्तर:
विजयनगर की जानकारी का मुख्य स्रोत हम्पी से प्राप्त पुरातात्विक सामग्री है। यह पुरातात्विक सामग्री एक खुदाई या खनन प्रक्रिया के बाद ही प्रयोग हो सकी है। संक्षेप में हम इस प्रक्रिया को इस तरह समझ सकते हैं।

1. खनन मानचित्र-सर्वप्रथम पूरे क्षेत्र के फोटोग्राफ लिए गए तथा मानचित्र का निर्माण किया गया। इसके पहले चरण में संपूर्ण क्षेत्र को 25 वर्गाकार भागों में बांटा गया। फिर उस प्रत्येक भाग को 25 भागों में बांटा गया। उसके बाद फिर इन टुकड़ों को अन्य छोटी इकाइयों में आगे-से-आगे विभाजित किया जाता रहा। जब तक प्रत्येक फुट का क्षेत्र मानचित्र के दायरे में नहीं आ गया।

2. खनन कार्य-पूरे क्षेत्र को इस तरह विभाजित करके खनन कार्य प्रारंभ किया गया। इसके बाद अलग-अलग क्षेत्र को अलग-अलग विशेषज्ञ की देखरेख में बांटा गया तथा फिर गहन खनन का कार्य प्रारंभ हुआ। अलग-अलग क्षेत्रों में संरचनाएँ बाहर आने लगीं, लेकिन इन्होंने आकार तब लिया जब आपस में इन टुकड़ों को जोड़ दिया गया। फिर यहाँ से देवस्थल, मंडप, विशाल गोपुरम्, शाही स्थल, धार्मिक केंद्र, सड़क, बरामदे, बाजार इत्यादि के अवशेष सामने आए।

जॉन एम. फ्रिट्ज (John M. Fritz), जॉर्ज मिशेल (George Michell) तथा एम.एस. नागराज राव (M.S. Nagraja Rao) वे व्यक्ति थे जो प्रारंभ से अंत तक खुदाई के कार्य से जुड़े रहे। पुरातात्विक सामग्री से प्राप्त इस भव्य नगर के बारे में सर्वप्रथम जानकारी कॉलिन मैकेन्जी ने दी। उसे इस बारे में ज्ञान विरुपाक्ष मन्दिर के पुजारियों से हुआ था। वे पुजारी बताते थे कि इस क्षेत्र में कभी भव्य साम्राज्य था इस तरह यह सत्य है कि दो शताब्दियों के खनन ने पुजारियों द्वारा दी गई जानकारी की पुष्टि की है।

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प्रश्न 2.
विजयनगर की जल-आवश्यकताओं को किस प्रकार पूरा किया जाता था?
उत्तर:
विजयनगर की जल-आवश्यकताओं की पूर्ति जल प्रबंधन की एक निश्चित योजना के अनुरूप थी। शासकों ने इस ओर विशेष ध्यान दिया। विजयनगर प्राकृतिक दृष्टि से पहाड़ियों के बीच था। इसके उत्तर:पूर्व में तुंगभद्रा नदी बहती थी। पहाड़ियों की जल धाराओं से यहाँ एक प्राकृतिक कुण्ड बना है। वहीं पर शासकों ने बाँधों का निर्माण किया। इन बाँधों से पानी लेकर बड़े-बड़े कुण्डों में एकत्रित किया जाता था।

इन कुण्डों से कृषि में सिंचाई की जरूरत को पूरा किया जाता था। इसके साथ ही शासकों द्वारा नहर के माध्यम से इस जलाशय का पानी शहर के मुख्य हिस्से ‘राजकीय केंद्र’ तक पहुँचाया जाता था। अवशेषों के आधार पर कहा जा सकता है कि तुंगभद्रा नदी पर बाँध बनाकर कर हिरिया नहर का निर्माण करवाया गया।

प्रश्न 3.
शहर के किलेबंद क्षेत्र में कृषि क्षेत्र को रखने के आपके विचार में क्या फायदे और नुकसान थे?
उत्तर:
खेतों को किलेबंदी क्षेत्र में लाने के फायदे व नुकसान देखने से पहले जरूरी है कि प्रश्न उठाया जाए कि इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी? इसका जवाब ढूँढने के लिए हमें मध्यकालीन युद्ध पद्धति को समझना होगा। इस काल में युद्ध मुख्य रूप से घेरा बंदियों से जीते जाते थे। यह घेराबंदी महीनों तक चलती थी तथा शत्रु खाद्यान्न व जल का संकट पैदा किया करता था जिससे बचने के लिए शासक किलों के अंदर बड़े-बड़े अन्नागारों का निर्माण करवाया करते थे।

विजयनगर व बहमनी में संघर्ष महीनों नहीं वर्षों चला करते थे। इसलिए विजयनगर के शासकों ने न केवल अन्नागारों बल्कि पूरे कृषि क्षेत्र को ही किलेबंद कर दिया। यह व्यवस्था महँगी जरूर थी, लेकिन इसके परिणाम सुखद थे।

प्रश्न 4.
आपके विचार में महानवमी डिब्बा से संबद्ध अनुष्ठानों का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
विजयनगर शहर में सबसे आकर्षक एवं ऊँचा स्थान ‘महानवमी डिब्बा’ था। यह 11000 वर्ग फीट वाले विशाल मंच पर 40 फीट की ऊँचाई वाला मंच था। इस विशाल मंच पर लकड़ी की संरचना बनी होने के प्रमाण मिलते हैं।
HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 7 Img 1
इतिहासकार व पुरातत्वविद ‘महानवमी’ का अर्थ महान ‘नौवें दिवस’ से लेते हैं। यह कब आता था, इस बारे में साक्ष्य कोई जानकारी नहीं देते। इसलिए इसे अनुमानतः दशहरा, दुर्गा पूजा तथा नवरात्रों इत्यादि त्यौहारों से जोड़ा गया है। इनके आयोजन की कोई तिथि निर्धारित नहीं की जा सकती। लेकिन इस बात का अनुमान लगाया जाता है कि शासक इस दिन को अपनी शक्ति प्रदर्शन, पहचान व संपन्नता इत्यादि के रूप में देखते थे।

इस दिन विभिन्न तरह के अनुष्ठान किए जाते थे। अनुष्ठान के अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों के नायक एवं अधीनस्थ राजा विजयनगर के राय व अतिथियों को भेंट देते थे। इस माध्यम से वे अपनी स्वामीभक्ति का प्रदर्शन भी करते थे। शासक इस कार्यक्रम के अंतिम दिन शाही सेना तथा नायकों की सेना का निरीक्षण भी करता था। अतः स्पष्ट है कि महानवमी डिब्बा अनुष्ठानों का केन्द्र बिन्दु था। ये अनुष्ठान शासक की शक्ति प्रदर्शन का प्रतीक होते थे।

प्रश्न 5.
दिया गया चित्र विरुपाक्ष मन्दिर के एक अन्य स्तंभ का रेखाचित्र है। क्या आप कोई पुष्प-विषयक रूपांकन देखते हैं? किन जानवरों को दिखाया गया है? आपके विचार में उन्हें क्यों चित्रित किया गया है? मानव आकृतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दिखाया गया स्तम्भ रेखाचित्र काफी महत्त्वपूर्ण है। इस स्तंभ पर उत्कीर्ण की गई चीजें कई पक्षों को स्पष्ट करती हैं। इस स्तम्भ रेखाचित्र को कलाकारी के अनुरूप 8 भागों में बांटा जा सकता है। इसके प्रत्येक भाग में वनस्पति, मनुष्य या किसी-न-किसी जीव-जन्तु को दिखाया गया है। इसमें विभिन्न चार तरह के फूल दिखाए गए हैं।

जबकि पशुओं व बड़े जंतुओं में हाथी, घोड़ा, शेर व मगरमच्छ अधिक स्पष्ट उभरकर सामने आते हैं। इन पशुओं में शेर राज्य की शक्ति का प्रतीक है जबकि हाथी व घोड़ा थल सेना में इनके महत्त्व को इंगित करता है। मगरमच्छ इनकी समुद्री सीमा के सुदृढ़ पक्ष को बताता है। चित्र में वर्णित नाचता हुआ मोर साम्राज्य की समृद्धि को अभिव्यक्त करता है।
HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 7 Img 2
चित्र में दिखाई गई मानव आकृतियों में तीन किसी-न-किसी देवता को अभिव्यक्त करती हैं जबकि एक में एक व्यक्ति शिवलिंग के सम्मुख विशेष नृत्य करता हुआ दिखाया गया है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह स्तम्भ चित्र विजयनगर साम्राज्य की समृद्धि, सुरक्षा व सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन की सजीव प्रस्तुति है।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में)

प्रश्न 6.
“शाही केंद्र” शब्द शहर के जिस भाग के लिए प्रयोग किए गए हैं, क्या वे उस भाग का सही वर्णन करते हैं।
उत्तर:
पुरातत्वविदों को विजयनगर की खुदाई के दौरान विभिन्न प्रकार के अवशेष मिले। शहर के केन्द्र में कुछ भवन बड़े भव्य तथा अन्य स्थानों की तुलना में अधिक सुरक्षात्मक ढंग से बनाए गए थे। इनकी बनावट को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इसी स्थल से विजयनगर साम्राज्य का प्रशासन चलता था इसलिए पुरातत्वविदों ने इसे शाही या राजकीय केंद्र कहा है। इस क्षेत्र में शासक का आवास, 60 से अधिक मन्दिर तथा बड़े-बड़े सभा स्थल हैं।

शहर के इसी हिस्से में ‘महानवमी डिब्बा’ जैसा भव्य चबूतरा है जहाँ शासक अपनी भव्यता, शक्ति का प्रदर्शन करते थे। हर तरह के शाही उत्सवों का आयोजन स्थल भी यही स्वीकारा जाता है। विभिन्न मंडपों के आंगन भी यहाँ हैं। शासक द्वारा सलाहकारों की सभा का आयोजन जिस कमल महल में होता है वह भी इसी क्षेत्र में है।

शाही केंद्र में हजार राम मंदिर जैसा दर्शनीय भव्य स्थल है जिसके बारे में यह कहा जाता है कि यह मंदिर केवल शाही परिवार के सदस्यों के लिए था। यह क्षेत्र राज्य के बीच में था। विजयनगर शहर सात दुर्गों की दीवारों के अन्दर था तो केवल यही क्षेत्र सातवें दुर्ग में था। इस केंद्र के बाहर राज्य की सबसे अधिक शक्तिशाली मानी जाने वाली सेना (अर्थात् हाथी सेना) का अस्तबल भी यहीं था। इस तरह के विभिन्न पक्षों को देखने के उपरांत तथा भवनों के अवशेषों के मूल्यांकन से स्पष्ट है कि यह शाही केंद्र था। इस बारे में जो वर्णन जिस तरह दिया गया है वह सही अर्थों में इसकी पुष्टि करता है।

प्रश्न 7.
कमल महल और हाथियों के अस्तबल जैसे भवनों का स्थापत्य हमें उनके बनवाने वाले शासकों के विषय में क्या बताता है?
उत्तर:
विजयनगर शहर के अवशेषों का नामकरण पुरातत्वविदों व इतिहासकारों ने उनकी बनावट, स्थिति व प्रयोग के आधार पर दिया है। विजयनगर शहर के शाही केंद्र में स्थित दो भवन अधिक चर्चा का मुद्दा है। जिनमें पहला है कमल महल तथा दूसरा है हाथियों का अस्तबल। इन दोनों भवनों का स्थापत्य अलग-अलग तरह का है। ऐसे में इनके बनाने के बारे में शासकों का दृष्टिकोण भी एक नहीं कहा जा सकता। इन दोनों को अलग-अलग करके ठीक समझा जा सकता है

(क) कमल महल-यह शाही केंद्र की सबसे सुन्दर इमारत है। किसी लिखित साक्ष्य । में इसके प्रयोग की जानकारी नहीं मिलती। यह भवन विभिन्न मंडपों के बीच बना है। इसके स्तम्भों पर चारों ओर नक्काशी की गई है। इसकी मेहराबों को चाहे किसी भी कोने से देखें तो यह कमल जैसी दिखती हैं। इसलिए अंग्रेज यात्रियों, पुरातत्वविदों ने इसे कमल (लोटस) महल का नाम दे दिया।

इसकी स्थिति के विभिन्न पक्षों को देखकर पता चलता है कि शासक इसके माध्यम से अपनी समृद्धि तथा राज्य के वास्तुविदों के कौशल को दुनिया के सामने रखना चाहता थी ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि शासक यहाँ अपने सलाहकारों से भेंट किया करता था। विभिन्न राजदूतों का स्वागतकक्ष भी यही था।
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(ख) हाथियों का अस्तबल हाथियों का अस्तबल भी शाही केंद्र में है तथा कमल महल के पास है। शाही केंद्र क्षेत्र में यह सबसे बड़ी इमारत है। हाथियों के अस्तबल के आकार को देखने से इस बात का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि विजयनगर के शासकों की सेना में हाथी काफी थे एवं उनका महत्त्व भी काफी अधिक था।

इसके निर्माण के पीछे शासकों का उद्देश्य अपनी हाथी सेना को सुरक्षा देना था। इसके साथ इस भवन की निर्माण शैली का अन्य कोई उदाहरण नहीं मिलता। शाही निवास के अति नजदीक होने के कारण यह भी कहा जा सकता है कि शासक हाथियों की सेना से शाही महल की सुरक्षा भी करवाता था।
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सारांश में यह कहा जा सकता है कि शासकों के इसे बनवाने के उद्देश्य को लिखित साक्ष्यों के अभाव में शत-प्रतिशत नहीं बताया जा सकता। लेकिन निर्माण शैली भवनों की स्थिति के आधार पर निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर

प्रश्न 8.
स्थापत्य की कौन-कौन सी परंपराओं ने विजयनगर के वास्तुविदों को प्रेरित किया? उन्होंने इन परंपराओं में किस प्रकार बदलाव किए?
उत्तर:
विजयनगर साम्राज्य दक्षिण भारत के जिस क्षेत्र में स्थापित हुआ। वह स्थापत्य कला की दृष्टि से काफी समृद्ध था। इस क्षेत्र में पल्लव, चालुक्य, होयसल व चोलों का शासन रहा। इन सभी वंशों के शासकों ने पिछली कई शताब्दियों से विभिन्न तरह के भवनों का निर्माण करवाया। इन भवनों में सबसे अधिक मात्रा में मन्दिर थे। विजयनगर के वास्तुविदों को इन्हीं भवनों विशेषकर मन्दिरों को देखकर भवन बनाने की प्रेरणा मिली।

इसके अतिरिक्त विजयनगर के शासकों के अरब क्षेत्र के साथ लगातार संबंध रहे। वहाँ से वस्तुओं का आदान-प्रदान निरंतर होता रहा। विजयनगर के वास्तुविदों को अरब क्षेत्र विशेषकर ईरान के भवन देखने का मौका मिला। उत्तर भारत के भवनों तथा उड़ीसा के गजपति शासकों के भवनों ने भी उन्हें मार्गदर्शन दिया।

विजयनगर के वास्तुविदों ने अपनी सांस्कृतिक विरासत से सीख लेकर भारत के अन्य स्थानों के भवनों जैसे भवन बनाने प्रारंभ किए। उन्होंने अरब क्षेत्र की भवन निर्माण शैली का भी प्रचूर भाषा में प्रयोग किया। उनका यह प्रयोग शाही भवनों, महलों, शहरी क्षेत्र की इमारतों के साथ-साथ बाजारों इत्यादि में भी दिखाई देता है।

विजयनगर में वास्तुविदों ने इस मिश्रित वास्तुकला का प्रयोग जल प्रबंधन में किया। इसमें मैदानी व पर्वतीय दोनों शैलियाँ प्रयोग की। राज्य को सुरक्षा देने की सोचते हुए इन्होंने दुर्गों की सात पंक्तियाँ बनाईं। दुर्गों की दीवारें, दरवाज़े व गुंबद तुर्की प्रभाव

आनुष्ठानिक दृष्टि से इस काल के दो भवन महत्त्वपूर्ण कहे जा सकते हैं। पहला है निजामुद्दीन औलिया की खानकाह जो बाद में दरगाह बनी और दूसरी है दिल्ली की जामा मस्ज़िद जो मक्का के बाद इस्लाम जगत की सबसे बड़ी मस्ज़िद है। ये सभी भवन सामान्य आवास व्यवस्था से दूर तथा सुरक्षा की दृष्टि से विशेष चारदीवारी से घिरे थे।

संकेत 2-इन भवनों के स्थापत्य के लिए प्राध्यापक के निर्देशन में भ्रमण करें। साथ में ‘इंटरनेट’ पर उपलब्ध जानकारी का लाभ उठाएँ।

प्रश्न 11.
अपने आस-पास के किसी धार्मिक भवन को देखिए। रेखाचित्र के माध्यम से छत, स्तंभों, मेहराबों, यदि हों तो, गलियारों, रास्तों, सभागारों, प्रवेशद्वारों, जलआपूर्ति आदि का वर्णन कीजिए। इन सभी की तुलना विरुपाक्ष मन्दिर के अभिलक्षणों से कीजिए। वर्णन कीजिए कि भवन का हर भाग किस प्रयोग में लाया जाता था। इसके इतिहास के विषय में पता कीजिए।
उत्तर:
संकेत 1-हरियाणा के क्षेत्र में हम कई महत्त्वपूर्ण धार्मिक भवनों को देखते हैं, जिनमें ऐतिहासिक दृष्टि से कुरुक्षेत्र में छटी पातशाही का गुरुद्वारा, पानीपत में बू अली कलंदर की दरगाह, नारनौल में इब्राहिम सूर द्वारा बनाई गई मस्ज़िद तथा हिसार की लाट की मस्ज़िद प्रमुख हैं। कलायत के दो प्राचीन मंदिर भी उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त आधुनिक काल में बनी बहुत-सी इमारतें हर शहर में देखी जा सकती हैं।

यह सभी भवन स्थापत्य की दृष्टि से जहाँ महत्त्वपूर्ण हैं, अपने युग की जीवन-शैली को भी कुछ हद तक स्पष्ट करते हैं। जैसे कि हम विरुपाक्ष के मंदिर में पाते हैं। इसकी मुख्य विशेषताएँ हैं

  • इसमें दो प्रवेश द्वार हैं। पूर्वी द्वार विशाल गोपुरम् है।
  • गोपुरम् से तीन प्रवेश द्वारों से गुजरकर हम बरामदे से होकर देवालय तक पहुँचते हैं जहाँ विरुपाक्ष की मूर्ति स्थापित है।
  • गोपुरम् से देवालय तक चार मंडप बने हैं।
  • मंदिर के उत्तर में कमलपुरम् जलाशय है।

संकेत 2-इस मंदिर की विशेषताओं तथा ऊपर बताई गई हरियाणा की इमारतों की विशेषताओं की तुलना करें। कुछ स्थानों का स्वयं भ्रमण करें। स्थापत्य की विशेषताओं को नोट करें। उसके ऐतिहासिक पक्ष की जानकारी लें।

एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर HBSE 12th Class History Notes

→ शास्त्ररूढ़ शास्त्रों से संबंधित

→ विजयनगर-विजय का शहर

→ राय-विजयनगर के शासकों की उपाधि

→ तेलुगु-आन्ध्र प्रदेश क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा

→ कुदिरई चेट्टी-घोड़ों के व्यापारी

→ संगम वंश-विजयनगर का पहला राजवंश

→ सर्वेयर-सर्वेक्षण करने वाला

→ कन्नड़ कर्नाटक क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा

→ गजपति-उड़ीसा के शासकों की उपाधि

→ रायचूर दोआब-तुंगभद्रा व कृष्णा नदियों के बीच का क्षेत्र

→ गोपुरम्-मन्दिर का प्रवेश द्वार

→ नायक-सैनिक टुकड़ी के प्रमुख (क्षेत्र-विशेष में)

→ अमर-नायक-प्रशासन तथा सैनिक प्रमुख

→ इंडो-इस्लामिक-हिंद-इस्लामी

→ महानवमी-महान् नौवां दिन

→ पम्पादेवी-कर्नाटक क्षेत्र में स्थानीय देवी

→ देवस्थल-मन्दिर में देवता की मूर्ति स्थापित करने वाला स्थान

→ हिन्दू सूरतराणा-हिन्दू सुलतान

→ विरुपाक्ष-विजयनगर क्षेत्र का सबसे प्रमुख देवता

→ बिसनगर-विजयनगर के लिए डोमिंगो पेस द्वारा प्रयुक्त शब्द

→ हम्पी-विजयनगर का वर्तमान नाम

→ महानवमी डिब्बा-विजयनगर शहर में मंच पर बनाया गया एक भवन

→ विट्ठल महाराष्ट्र क्षेत्र में विष्णु के रूप में पूजा जाने वाला देवता

→ दक्षिण क्षेत्र में चोल व चालुक्यों के पतन के बाद देवगिरी, वारंगल द्वारसमुद्र तथा मदुरई जैसे राज्यों का उत्थान हुआ। इन राज्यों पर दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों (विशेषकर अलाऊद्दीन खलजी) द्वारा अधिकार कर लिया गया। दिल्ली से दूर होने के कारण दिल्ली के सुल्तान इस क्षेत्र को सुगमता से नियंत्रित नहीं कर पाए। मुहम्मद तुगलक ने दूरी की बाधा को पार करते हुए वर्तमान महाराष्ट्र के देवगिरी नामक स्थान का नाम दौलताबाद बदलकर इसे अपनी राजधानी बनाया।

→ परन्तु उसे वापिस दिल्ली पर ही केंद्रित करना पड़ा तथा दक्षिण अव्यवस्था के दौर में उलझ गया। यहाँ दो राज्यों का उत्थान हुआ, जिन्हें विजयनगर व बहमनी के नाम से जाना जाता है।

→ 1336 ई० में हरिहर व बुक्का राय दो भाइयों ने विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की। इस साम्राज्य का प्रथम शासक हरिहर (1336-56) बना तथा उसने राज्य के लिए नियम कानून बनाए। उसकी मृत्यु के पश्चात् बुक्का (1356-1377) शासक बना। उसने प्रशासन व राज्य की समृद्धि की ओर ध्यान दिया। उसके समय में ही पड़ोसी राज्य बहमनी के साथ संघर्ष की शुरुआत हुई वह साम्राज्य को सही दिशा दे पाया। उसके पश्चात् हरिहर द्वितीय (1377-1405) तथा देवराय प्रथम (1406-22) शासक बने।

→ इन्होंने बहमनी से संघर्ष जारी रखा। साथ ही आर्थिक विकास, कृषि व व्यापार को भी प्रोत्साहन दिया। उनके बाद देवराय द्वितीय (1422-46) शासक बना। उसने इस साम्राज्य की सीमा का खूब विस्तार किया। फारसी यात्री अब्दुर रज्जाक ने उसकी खुले मन से प्रशंसा की है। इसके बाद इस साम्राज्य में कई कमजोर शासक आए जिनको बहमनी के शासकों ने पराजित कर इनकी सीमा को छोटा कर दिया। विजयनगर अपने चरमोत्कर्ष पर कृष्णदेव राय (1509-29) के शासन काल में पहुँचा।

→ बहमनी साम्राज्य के तीन राज्यों-बीजापुर, अहमदनगर व गोलकुण्डा की संयुक्त सेना ने 1565 ई० में विजयनगर पर आक्रमण किया। विजयनगर का नेतृत्व रामराय ने किया। यह युद्ध तालीकोटा (वास्तव में राक्षसी-तांगड़ी क्षेत्र) में हुआ। इस युद्ध में विजयनगर की हार हुई तथा विजयी सेना ने विजयनगर शहर में भारी लूटमार की।

→ जिससे यह क्षेत्र पूरी तरह उजड़ गया। विजयनगर शहर ही साम्राज्य की राजधानी था। इसकी संरचना व स्थापत्य कला को देखने से यह ज्ञात होता है कि यह महत्त्वपूर्ण शहर था। यह शहर वे सारी विशेषताएँ रखता था जो किसी भी शक्तिशाली राज्य की राजधानी की जरूरत होती थी।

→  इस शहर के मन्दिर, भवन तथा अन्य अवशेष व्यापक रूप में मिलते हैं। नायक व अमर-नायकों के अभिलेख तथा यात्रियों का वृत्तांत शहर के बारे में विस्तृत प्रकाश डालता है। 15वीं शताब्दी के यात्रियों में इटली के निकोलो दे कॉन्ती (Nicolo-De-Konti), फारस के अब्दुर रज्जाक (Abdur Razak) तथा रूस के अफानासी निकितिन (Afanaci Niktian) मुख्य हैं। 16वीं शताब्दी के यात्रियों में दुआर्ते बरबोसा (Duarate Barbosa), डोमिंगो पेस (Domingo Pesh) तथा पुर्तगाल के फर्नावो नूनिज़ (Fernao Nuniz) के नाम आते हैं।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर

→ विजयनगर साम्राज्य के रायों ने जहाँ जल प्रबंधन उच्चकोटि का किया, वहीं सुरक्षा व्यवस्था तथा सड़कों के निर्माण की ओर विशेष ध्यान दिया। नगर की किलेबंदी बेजोड़ थी। जिसके बारे में हमें जानकारी फारस के दूत तथा यात्री अब्दुर रज्जाक से मिलती है। वह सुरक्षा व्यवस्था से प्रभावित होकर लिखता है कि यहाँ दुर्गों की सात पंक्तियाँ हैं। इन दुर्गों की पंक्तियों में केवल शहर का आवासी क्षेत्र नहीं है, बल्कि कृषि क्षेत्र, जंगलों व जलाशयों के क्षेत्र को चारदीवारी के अंदर लिया गया है।

→ विजयनगर साम्राज्य की सारी प्रशासनिक व्यवस्था का संचालन जिस स्थल से होता था उसे शाही स्थल कहा गया है। पुरातत्वविदों ने इसे शाही केंद्र तथा राजकीय केंद्र इत्यादि नाम भी दिए हैं। शाही निवास, दरबार के अति महत्त्वपूर्ण भवनों के अतिरिक्त यहाँ 60 से अधिक मंदिर थे।

→ यह इस बात का प्रमाण है कि शासक इन मन्दिरों व उपासना स्थलों को बनाकर जनता में यह संदेश देना चाहता था कि वह सबका शासक है इसलिए सभी उसे स्वीकार करें। इस तरह शाही स्थल पर मंदिरों का होना शासक द्वारा वैधता को प्राप्त करने का एक तरीका कहा जा सकता है।

→ विजयनगर की जानकारी के स्रोत हमें विभिन्न रूपों में मिलते हैं। इनमें पुरातात्विक सामग्री, साहित्यिक स्रोत तथा विदेशी यात्रियों के वृत्तांत शामिल हैं। इनमें से अध्ययनकर्ताओं ने फोटोग्राफ, मानचित्र, उपलब्ध भवनों की खड़ी संरचनाएँ व मूर्तियों की ओर विशेष ध्यान दिया है। मैकेन्जी द्वारा प्रारंभ के सर्वेक्षण के पश्चात् जो रिपोर्ट दी गई, उसको अभिलेखों के वर्णन तथा यात्रियों के वृत्तांत के साथ जोड़ा गया।

→ इस क्षेत्र के अध्ययन का कार्य भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण तथा कर्नाटक पुरातात्विक एवं संग्रहालय विभाग द्वारा बड़े स्तर पर निरंतर ही किया गया। इस कड़ी में मिली सफलता ने सन् 1976 में हम्पी को राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल घोषित करवा दिया। 1980 के दशक में खनन कार्य और अधिक गहन, व्यापक, योजनाबद्ध किया गया। इसके परिणामस्वरूप विजयनगर के अवशेष सामने आए।

समय रेखा
क्रम संख्याकालघटना का विवरण
1.1206 ई०दिल्ली सल्तनत की स्थापना
2.1290 ई०खलजी वंश की स्थापना
3.1320 ईoतुगलक वंश की स्थापना
4.1325 ईoमुहम्मद तुगलक का सत्ता पर आना
5.1336 ई०विजयनगर साम्राज्य की स्थापना
6.1347 ई०बहमनी साम्राज्य की स्थापना
7.1435 ई०उड़ीसा के गजपति राज्य की स्थापना
8.1486 ई०विजयनगर में सुलुव वंश की सत्ता
9.1490 ईoगुजरात, बीजापुर व बरार में स्वतंत्र राज्यों का उदय
10.1509-29 ई०विजयनगर में कृष्णदेव राय का शासन
11.1518 ई०बहमनी राज्य का अन्त, गोलकुण्डा का उत्थान
12.1526 ईभारत में मुगल वंश की स्थापना
13.1565 ई०तालीकोटा के युद्ध में विजयनगर की हार व पतन का प्रांरभ
14.1707 ई०औरंगजेब की मृत्यु व मुगलों का पतन
15.1800 ई०कॉलिन मैकेन्जी की विजयनगर यात्रा
16.1815 ई०कॉलिन मैकेन्जी भारत में प्रथम सर्वेयर बना
17.1821 ई०कॉलिन मैकेन्जी की मृत्यु
18.1836 ई०पुरातत्वविदों द्वारा हम्पी के अभिलेखों का संकलन प्रारंभ
19.1856 ईअलेक्जैंडर ग्रनिलो द्वारा हम्पी के चित्र लेना
20.1876 ई०जे०एफ० फ्लीट द्वारा अभिलेखों का प्रलेखन प्रारंभ
21.1902 ईसर जॉन मार्शल द्वारा संरक्षण कार्य की शुरुआत
22.1986 ई०यूनेस्को द्वारा हम्पी को विश्व विरासत में शामिल करते हुए पुरातत्व स्थल घोषित

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HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

Haryana State Board HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के अन्तर्गत कुछेक वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। ठीक उत्तर का चयन कीजिए

1. अल-बिरूनी किसके साथ भारत आया?
(A) कासिम के साथ
(B) महमूद के साथ
(C) गौरी के साथ
(D) बाबर के साथ
उत्तर:
(B) महमूद के साथ

2. अल-बिरूनी का जन्म स्थान वर्तमान में किस देश में है?
(A) अफगानिस्तान में
(B) कजाकिस्तान में
(C) तुर्कमेनिस्तान में
(D) उज्बेकिस्तान में
उत्तर:
(D) उज्बेकिस्तान में

3. अल-बिरूनी की रचना का क्या नाम है?
(A) शाहनामा
(B) तारीख-ए-गज़नवी
(C) किताब-उल-हिन्द
(D) चचनामा
उत्तर:
(C) किताब-उल-हिन्द

4. अल-बिरूनी ने अपने लेखन का आधार बनाया?
(A) वेदों को
(B) पुराणों को
(C) मनुस्मृति को
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

5. अल-बिरूनी भारत की किस भाषा से अधिक प्रभावित हुआ?
(A) संस्कृत से
(B) पंजाबी से
(C) सिन्धी से
(D) हिन्दी से
उत्तर:
(A) संस्कृत से

6. अल-बिरूनी ज्ञाता था
(A) संस्कृत का
(B) अरबी का
(C) फारसी का
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

7. अल-बिरूनी के अनुसार जाति-व्यवस्था से परे लोगों को कहा जाता था
(A) वैश्य
(B) शूद्र
(C) अंत्यज
(D) कोई नहीं
उत्तर:
(C) अंत्यज

8. इब्न बतूता कहाँ का रहने वाला था?
(A) अरब क्षेत्र का
(B) स्पेन का
(C) मोरक्को का
(D) चीन का
उत्तर:
(C) मोरक्को का

9. रिहला किस भाषा में लिखी गई?
(A) अरबी
(B) फारसी
(C) तुर्की
(D) संस्कृत
उत्तर:
(B) फारसी

10. इब्न बतूता के आगमन के समय भारत का शासक था
(A) गाजी तुगलक
(B) मुहम्मद तुगलक
(C) फिरोज तुगलक
(D) अलाऊद्दीन खिलजी
उत्तर:
(B) मुहम्मद तुगलक

11. इब्न बतूता भारत कब आया?
(A) 1265 ई० में
(B) 1321 ई० में
(C) 1333 ई० में
(D) 1398 ई० में
उत्तर:
(C) 1333 ई० में

12. इब्न बतूता ने भारत में स्थानों की दूरी बताई है
(A) कि०मी० में
(B) मीलों में
(C) कोसों में
(D) दिन को इकाई मान कर
उत्तर:
(D) दिन को इकाई मान कर

13. मुहम्मद तुगलक ने बतूता को दूत के रूप में कहाँ भेजा?
(A) बर्मा
(B) चीन
(C) रूस
(D) लंका
उत्तर:
(B) चीन

14. इन बतूता ने दिल्ली के किस दरवाजे को सबसे बड़ा बताया है?
(A) बदायूँ
(B) तुगलकाबाद
(C) अजमेरी
(D) गुल
उत्तर:
(A) बदायूँ

15. बतूता की रचना किस नाम से जानी जाती है?
(A) रिला
(B) तजाकिश
(C) मशविरा
(D) तारीख-ए-हिन्द
उत्तर:
(A) रिला

16. बतूता को भारत में विचित्र क्या लगा?
(A) नारियल
(B) पान
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

17. बतूता ने दिल्ली की प्राचीर में दरवाजों की संख्या बताई है
(A) 20
(B) 28
(C) 35
(D) 49
उत्तर:
(B) 28

18. बतूता ने भारत में कपड़े की किस किस्म का वर्णन अधिक किया है?
(A) सूती कपड़े का
(B) ऊनी कपड़े का
(C) जरी वाले कपड़े का
(D) मलमल का
उत्तर:
(D) मलमल का

19. बतूता के अनुसार पैदल डाक-सेवा कहलाती थी?
(A) उलुक
(B) दावा
(C) फरमान
(D) कोई नहीं
उत्तर:
(B) दावा

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

20. बतूता ने दौलताबाद के गायकों के बाजार को क्या कहा है?
(A) ताराबबाद
(B) शमशीराबाद
(C) संगीतालय
(D) गुलकेन्द्र
उत्तर:
(A) ताराबबाद

21. बर्नियर भारत कब आया?
(A) 1645 ई० में
(B) 1656 ई० में
(C) 1670 ई० में
(D) 1688 ई० में
उत्तर:
(B) 1656 ई० में

22. ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर किसकी रचना है?
(A) अल-बिरूनी की
(B) बतूता की
(C) बर्नियर की
(D) तैवर्नियर की
उत्तर:
(C) बर्नियर की

23. बर्नियर भारत को किस रूप में वर्णित करता है?
(A) परंपरागत
(B) अविकसित
(C) उद्योग प्रधान
(D) विकसित
उत्तर:
(B) अविकसित

24. बर्नियर के अनुसार व्यापारिक दृष्टि से उन्नत क्षेत्र था
(A) यूरोप
(B) भारत
(C) अरब क्षेत्र.
(D) अफ्रीका
उत्तर:
(B) भारत

25. बर्नियर के विचारों से कौन-सा यूरोपियन लेखक प्रभावित हुआ?
(A) कॉर्ल मार्क्स
(B) मॉन्टेस्क्यू.
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

26. फ्रांसिस्को पेलसर्ट किस देश का रहने वाला था?
(A) ब्रिटेन का
(B) फ्रांस का
(C) जर्मनी का
(D) हॉलैण्ड का
उत्तर:
(D) हॉलैण्ड का

27. इन बतूता ने भारत में सर्वप्रथम उपहार किसको दिए?
(A) मुल्तान के गवर्नर को
(B) मुहम्मद तुगलक को
(C) शेख निजामुद्दीन औलिया को
(D) जियाऊद्दीन बर्नी को
उत्तर:
(A) मुल्तान के गवर्नर को

28. बर्नियर ने भारत की किस प्रथा को असभ्यता करार दिया है?
(A) जाति प्रथा को
(B) सूदखोरी को
(C) भूमि स्वामित्व को
(D) सती प्रथा को
उत्तर:
(D) सती प्रथा को

29. बर्नियर ने भारत की किस राजनीतिक घटना का वर्णन अधिक विस्तृत किया है?
(A). शाहजहाँ के बेटों में युद्ध
(B) औरंगजेब की ताजपोशी
(C) औरंगजेब का दक्षिण अभियान
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) शाहजहाँ के बेटों में युद्ध

30. महमूद गजनवी ने भारत पर कुल कितने आक्रमण किए?
(A) 15
(B) 17
(C) 20
(D) 23
उत्तर:
(B) 17

31. अल-बिरूनी ने शिक्षा कहाँ प्राप्त की?
(A) ख्वारिज्म में
(B) गजनी में
(C) बगदाद में
(D) मक्का में
उत्तर:
(A) ख्वारिज्म में

32. अल-बिरूनी ने अपना अधिकतर लेखन कार्य किस स्थान पर किया?
(A) ख्वारिज्म में
(B) गजनी में
(C) बगदाद में
(D) मक्का में
उत्तर:
(B) गजनी में

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33. अल-बिरूनी ने संस्कृत के अतिरिक्त भारत की कौन सी अन्य भाषाओं का साहित्य पढ़ा?
(A) पाली
(B) प्राकृत
(C) उपर्युक्त दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) उपर्युक्त दोनों

34. अल-बिरूनी ने भारतीय क्षेत्र में आम व्यक्ति द्वारा बोली जाने वाली भाषा को क्या कहा?
(A) संस्कृत
(B) हिन्दवी
(C) पंजाबी
(D) खड़ी बोली
उत्तर:
(B) हिन्दवी

35. अल-बिरूनी ने संस्कृत भाषा को समझने की समस्या का समाधान कैसे किया?
(A) सीखकर
(B) अनुवादित ग्रंथों को पढ़कर
(C) द्वि-भाषिए की मदद से
(D) भाषा को महत्त्व देकर
उत्तर:
(A) सीखकर

36. इब्न बतूता भारत के अतिरिक्त अन्य किस देश में काज़ी के पद पर नियुक्त हुआ?
(A) इरान में
(B) चीन में
(C) लंका में
(D) मालद्वीप में
उत्तर:
(D) मालद्वीप में

37. बतूता ने भारत से चीन जाने के लिए किस क्षेत्र का मार्ग प्रयोग किया?
(A) कश्मीर का मार्ग
(B) मध्य एशिया का मार्ग
(C) लंका व मालद्वीप का मार्ग
(D) बर्मा व सुमात्रा का मार्ग
उत्तर:
(D) बर्मा व सुमात्रा का मार्ग

38. बतूता सर्वप्रथम चीन की किस बन्दरगाह पर गया?
(A) जायतुन
(B) कैंटन
(C) पोर्टस माऊथ
(D) तीनस्तीन
उत्तर:
(A) जायतुन

39. बतूता की तरह का चीन से संबंधित वृत्तांत वेनिस के किस अन्य यात्री का माना जाता है?
(A) दूरते बारबोसा का
(B) मनूची का
(C) फ्रैन्को पेलसर्ट का
(D) मार्को पोलो का
उत्तर:
(D) मार्को पोलो का

40. बतूता के यात्रा अनुभवों को संकलित करने का आदेश किस देश के शासक द्वारा दिया गया?
(A) भारत
(B) मोरक्को
(C) चीन
(D) मालद्वीप
उत्तर:
(B) मोरक्को

41. बतूता ने भारत का सबसे बड़ा शहर किसे कहा है?
(A) देहली को
(B) दौलताबाद को
(C) मुल्तान को
(D) सिन्ध को
उत्तर:
(A) देहली को

42. बतूता ने दिल्ली में फलों का बाजार किस स्थान पर बताया है?
(A) बदायूँ के दरवाजे के पास
(B) मांडवी दरवाजे के पास
(C) गुल दरवाजे के पास
(D) तुगलकाबाद के बाहरी क्षेत्र में
उत्तर:
(C) गुल दरवाजे के पास

43. बतूता के अनुसार सिन्ध से दिल्ली तक जाने में 50 दिन का समय लगता था लेकिन गुप्तचरों को सूचना देने में कितना समय लगता था?
(A) 50 दिन
(B) 20 दिन
(C) 10 दिन
(D) 5 दिन
उत्तर:
(D) 5 दिन

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44. भारत में जल मार्ग से पहला पुर्तगाली कौन आया?
(A) वास्कोडिगामा
(B) अल्बुकर्क
(C) मार्निस हस्टमान
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) वास्कोडिगामा

45. वास्कोडिगामा भारत कब आया?
(A) 1484 ई० में
(B) 1498 ई० में
(C) 1509 ई० में
(D) 1520 ई० में
उत्तर:
(B) 1498 ई० में.

46. हीरे-जवाहरात का व्यापार करने के लिए फ्रांस से आने वाला प्रमुख यात्री कौन था, जिसने अपना वृत्तांत भी दिया हो? ..
(A) बर्नियर
(B) तैवर्नियर
(C) मनूची
(D) वान-डी-ब्रूस
उत्तर:
(B) तैवर्नियर

47. भारत में आने वाले उस इटली के यात्री का नाम बताओ जो वापिस नहीं गया?
(A) बर्नियर
(B) तैवर्नियर
(C) मनूची
(D) पेलसर्ट
उत्तर:
(C) मनूची

48. बर्नियर ने भूमि के राजकीय स्वामित्व को किसके लिए हानिकारक बताया है?
(A) शासक के लिए
(B) जनता के लिए
(C) उपर्युक्त दोनों के लिए
(D) किसी के लिए नहीं
उत्तर:
(B) जनता के लिए

49. 18वीं सदी में किस यूरोपीय चिन्तक ने बर्नियर के वृत्तांत को आधार मानकर भारत का अध्ययन किया?
(A) कार्ल मार्क्स ने
(B) मॉन्टेस्क्यू ने
(C) (A) और (B) दोनों
(D) किसी ने नहीं
उत्तर:
(C) (A) और (B) दोनों

50. “विश्व की सभी बहुमूल्य वस्तुएँ यहाँ आकर समा जाती हैं।” बर्नियर ने ये पक्तियाँ किस देश के लिए कही हैं?
(A) फ्रांस के लिए
(B) ब्रिटेन के लिए
(C) रूस के लिए
(D) भारत के लिए
उत्तर:
(A) फ्रांस के लिए

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51. विभिन्न शहरों में व्यापारी वर्ग के मुखिया को मुगल काल में क्या कहा जाता था?
(A) नगर सेठ
(B) महाजन
(C) मालिक
(D) वोहरा
उत्तर:
(A) नगर सेठ

52. दासों के बारे में बतूता को भारत में क्या आश्चर्यपूर्ण लगा?
(A) दासों के सांस्कृतिक कार्यक्रम
(B) दासों के कार्य
(C) दासों द्वारा गुप्तचरी करना
(D) दासों का बाजार में बिकना
उत्तर:
(D) दासों का बाजार में बिकना

53. बतूता ने दासों के कार्य को प्रमुख रूप से बताया है
(A) गृह कार्य
(B) कृषि कार्य
(C) गुप्तचर का कार्य करना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

54. बर्नियर को भारत में सर्वाधिक अमानवीय कार्य क्या लगा?
(A) सती प्रथा
(B) दासों की खरीद-बेच
(C) कारीगरों की कार्य प्रणाली
(D) कृषक की दशा
उत्तर:
(A) सती प्रथा

55. बतूता को किस शताब्दी का विश्व यात्री कहा जाता है?
(A) 13वीं शताब्दी का
(B) 14वीं शताब्दी का
(C) 15वीं शताब्दी का
(D) 16वीं शताब्दी का
उत्तर:
(B) 14वीं शताब्दी का

56. अल-बिरूनी की पुस्तक ‘किताब-उल-हिन्द’ की भाषा है
(A) फारसी
(B) तुर्की
(C) अरबी
(D) उर्दू
उत्तर:
(C) अरबी

57. इब्न बतूता का मोरक्को में जन्म स्थान था
(A) ओवल
(B) गाजा
(C) तैंजियर
(D) रियाद
उत्तर:
(C) तैंजियर

58. बर्नियर को भारत आने के बाद प्रारंभ में किसका संरक्षण मिला?
(A) औरंगजेब का
(B) दारा का
(C) शाहजहाँ का
(D) मुराद का
उत्तर:
(B) दारा का

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

59. मुगल काल में शाही कारखाने थे
(A) शासकों की आवश्यकता की चीजें उत्पादन
(B) सेना के रख-रखाव का स्थल करने वाले स्थल
(C) दरबारी प्रबंध व्यवस्था का स्थल
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) शासकों की आवश्यकता की चीजें उत्पादन करने वाले स्थल

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
अल-बिरूनी का जन्म कब हुआ?
उत्तर:
अल-बिरूनी का जन्म 973 ई० में हुआ।

प्रश्न 2.
अल-बिरूनी का जन्म कहाँ हुआ?
उत्तर:
अल-बिरूनी.का जन्म ख्वारिज्म (उज़्बेकिस्तान) में हुआ।

प्रश्न 3.
अल-बिरूनी ने किताब-उल-हिन्द किस भाषा में लिखी?
उत्तर:
अल-बिरूनी ने किताब-उल-हिन्द अरबी भाषा में लिखी।

प्रश्न 4.
अल-बिरूनी की मृत्यु कब हुई?
उत्तर:
अल-बिरूनी की मृत्यु 1048 ई० में हुई।

प्रश्न 5.
अल-बिरूनी के अनुसार भारतीय समाज में श्रेष्ठ स्थान पर कौन थे?
उत्तर:
अल-बिरूनी के अनुसार भारतीय समाज में श्रेष्ठ स्थान पर ब्राह्मण थे।

प्रश्न 6.
इन बतूता का जन्म कब हुआ?
उत्तर:
इन बतूता का जन्म 1304 ई० में हुआ।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

प्रश्न 7.
इन बतूता कहाँ का रहने वाला था?
उत्तर:
इब्न बतूता मोरक्को का रहने वाला था।

प्रश्न 8.
इब्न बतूता भारत कब आया?
उत्तर:
इन बतूता 1333 ई० में भारत आया।

प्रश्न 9.
भारत से महम्मद तगलक का दूत बनकर चीन कौन गया?
उत्तर:
भारत से मुहम्मद तुगलक का दूत बनकर इब्न बतूता चीन गया।

प्रश्न 10.
बर्नियर भारत में कब-से-कब तक रहा?
उत्तर:
बर्नियर भारत में 1656 से 1668 ई० तक भारत में रहा।

प्रश्न 11.
अल-बिरूनी ने भारत को समझने के लिए किस भाषा को सीखना अनिवार्य बताया?
उत्तर:
अल-बिरूनी ने भारत को समझने के लिए संस्कृत भाषा को अनिवार्य बताया।

प्रश्न 12.
संस्कृत को अल-बिरूनी कैसी भाषा बताता है?
उत्तर:
संस्कृत को अल-बिरूनी विशाल पहुँच वाली भाषा बताता है।

प्रश्न 13.
इन बतूता नारियल की तुलना किससे करता है?
उत्तर:
इब्न बतूता नारियल की तुलना मानव के सिर से करता है।

प्रश्न 14.
इब्न बतूता दिल्ली के मुकाबले में शहर किसे कहता है?
उत्तर:
इन बतूता दौलताबाद को दिल्ली के मुकाबले में शहर कहता है।

प्रश्न 15.
इन बतूता के अनुसार अश्व डाक व्यवस्था क्या कहलाती थी?
उत्तर:
इब्न बतूता के अनुसार अश्व डाक व्यवस्था उलुक कहलाती थी।

प्रश्न 16.
बतूता ने किस क्षेत्र के संगीत बाजार का वर्णन किया है?
उत्तर:
बतूता ने दौलताबाद क्षेत्र के संगीत बाजार का वर्णन किया है।

प्रश्न 17.
बर्नियर ने अपना भारत से संबंधित वृत्तांत किस रचना में दिया?
उत्तर:
बर्नियर ने अपना भारत से संबंधित वृत्तांत ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर में किया।

प्रश्न 18.
बर्नियर के अनुसार भारत में भूमि का स्वामी कौन था?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार भारत में भूमि का स्वामी शासक था।

प्रश्न 19.
बर्नियर किस देश का रहने वाला था?
उत्तर:
बर्नियर फ्रांस का रहने वाला था।

प्रश्न 20.
तैवर्नियर ने भारत की यात्रा कितनी बार की?
उत्तर:
तैवर्नियर ने भारत की यात्रा 6 बार की।

प्रश्न 21.
बर्नियर ने ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर की रचना किस उद्देश्य से की?
उत्तर:
बर्नियर ने ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर की रचना यूरोप को भारत से श्रेष्ठ दिखाने के उद्देश्य से की।

प्रश्न 22.
बतूता सर्वप्रथम भारत में कहाँ पहुँचा?
उत्तर:
बतूता सर्वप्रथम सिन्ध में पहुंचा।

प्रश्न 23.
बतूता ने सुल्तान मुहम्मद तुगलक को उपहार में क्या दिया?
उत्तर:
बतूता ने सुल्तान मुहम्मद तुगलक को उपहार में घोड़े, ऊँट व दास दिए।

प्रश्न 24.
बर्नियर ने किसानों की दुर्दशा का मुख्य कारण क्या बताया है?
उत्तर:
बर्नियर ने किसानों की दुर्दशा का मुख्य कारण भूमि पर राजकीय स्वामित्व बताया है।

प्रश्न 25.
फिरदौसी की रचना का क्या नाम है?
उत्तर:
फिरदौसी की रचना का नाम शाहनामा है।

प्रश्न 26.
अल-बिरूनी किसके साथ भारत आया?
उत्तर:
अल-बिरूनी महमूद के साथ भारत आया।

प्रश्न 27.
इन बतूता ने अपने देश के बाद सबसे पहले किस स्थान की यात्रा की?
उत्तर:
इन बतूता ने अपने देश के बाद सबसे पहले मक्का की यात्रा की।

प्रश्न 28.
सर टॉमस रो किस देश का यात्री था?
उत्तर:
सर टॉमस रो ब्रिटेन का यात्री था।

प्रश्न 29.
दूरते बारबोसा का संबंध किस देश से है?
उत्तर:
दूरते बारबोसा का संबंध पुर्तगाल से है।

प्रश्न 30.
बर्नियर ने अपनी भारत संबंधित रचना को फ्रांस में किसे भेंट किया?
उत्तर:
बर्नियर ने अपनी भारत संबंधित रचना को शासक लुई XIV को भेंट किया।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

प्रश्न 31.
अल-बिरूनी को बन्दी किसने बनाया?
उत्तर:
अल-बिरूनी को महमूद गज़नी ने बन्दी बनाया।

प्रश्न 32.
अल-बिरूनी ने यूनानी भाषा में अनुवादित किस-किस का साहित्य पढ़ा?
उत्तर:
अल-बिरूनी ने यूनानी भाषा में अनुवादित अरस्तु व प्लेटो का साहित्य पढ़ा।

प्रश्न 33.
अल-बिरूनी की भारत के बारे में समझ के मुख्य आधार क्या थे?
उत्तर:
अल-बिरूनी की भारत के बारे में समझ के मुख्य आधार ब्राह्मणवादी ग्रन्थ थे।

प्रश्न 34.
अल-बिरूनी समाज में किन दो वर्गों की स्थिति एक जैसी बताते हैं?
उत्तर:
अल-बिरूनी समाज में वैश्य व शूद्र वर्गों की स्थिति एक जैसी बताते हैं।

प्रश्न 35.
बर्नियर ने भारतीय कृषक की दुर्दशा का क्या कारण बताया है?
उत्तर:
बर्नियर ने भारतीय कृषक की दुर्दशा का कारण भारत में भूमि का राजकीय स्वामित्व बताया है।

प्रश्न 36.
बतूता ने भारत में सर्वप्रथम किस स्थान के गवर्नर को उपहार दिए?
उत्तर:
बतूता ने भारत में सर्वप्रथम मुल्तान के गवर्नर को उपहार दिए।

प्रश्न 37.
बतूता के संस्मरणों को किसने लिखा?
उत्तर:
बतूता के संस्मरणों को इब्न जुजाई ने लिखा।

प्रश्न 38.
बतूता ने किस तरह के कपड़े को केवल अमीरों के प्रयोग में आने वाला बताया है?
उत्तर:
बतूता ने मलमल के कपड़ों को केवल अमीरों के प्रयोग में आने वाला बताया है।

प्रश्न 39.
बतूता किस तरह की डाक को अधिक तेज बताता है?
उत्तर:
बतूता पैदल डाक को अधिक तेज बताता है।

प्रश्न 40.
बतूता के अनुसार खुरासान के फल प्रायः भारत कैसे पहुँचते थे?
उत्तर:
बतूता के अनुसार खुरासान के फल पैदल डाक द्वारा भारत पहुँचते थे।

प्रश्न 41.
बतूता ने दौलताबाद में सबसे महत्त्वपूर्ण जगह कौन-सी बताई?
उत्तर:
बतूता ने दौलताबाद में सबसे महत्त्वपूर्ण जगह संगीत बाजार (ताराबबाद) बताई।

प्रश्न 42.
वह कौन-सा यूरोपीय यात्री था जो चिकित्सक के रूप में भारत आया था, लेकिन वापिस नहीं गया?
उत्तर:
मनूची नामक यूरोपीय यात्री जो चिकित्सक के रूप में भारत आया था लेकिन वापिस नहीं गया।

प्रश्न 43.
बर्नियर ने भारत व यूरोप की तुलना के लिए मुख्य रूप से किन शब्दों का प्रयोग किया है?
उत्तर:
बर्नियर ने भारत व यूरोप की तुलना के लिए मुख्य पूर्व व पश्चिम शब्दों का प्रयोग किया है।

प्रश्न 44.
बर्नियर किस तरह के भूमि स्वामित्व को अच्छा मानता है?
उत्तर:
बर्नियर निजी स्वामित्व को अच्छा मानता है।

प्रश्न 45.
बर्नियर के विचार किस विचारधारा से प्रभावित लगते हैं?
उत्तर:
बर्नियर के विचार यूरोप में पूंजीवादी धारणा से प्रभावित लगते हैं।

प्रश्न 46.
बर्नियर ने भारतीय नगरों के लिए क्या शब्द प्रयोग किया है?
उत्तर:
बर्नियर ने भारतीय नगरों के लिए शिविर नगर का प्रयोग किया है।

प्रश्न 47.
अल-बिरूनी ने किस-किस भारतीय भाषा के साहित्य को मौलिक या अनुवादित रूप में पढ़ा?
उत्तर:
अल-बिरूनी ने संस्कृत, पाली, प्राकृत नामक भारतीय भाषा के साहित्य को मौलिक या अनुवादित रूप में पढ़ा।

प्रश्न 48.
बतूता ने मुहम्मद तुगलक को कैसा शासक बताया है?
उत्तर:
बतूता ने मुहम्मद तुगलक विद्वान, कला, साहित्य का संरक्षक बताया है।

प्रश्न 49.
जौहरी के रूप में भारत आने वाले प्रमुख यात्री का नाम बताओ।
उत्तर:
जौहरी के रूप में भारत आने वाले प्रमुख यात्री का नाम ज्यौं बैप्टिस्ट तैवर्नियर था।

प्रश्न 50.
अल-बिरूनी ने समाज की जाति व्यवस्था से बाहर वाले वर्ग को क्या लिखा है?
उत्तर:
अल-बिरूनी ने समाज की जाति व्यवस्था से बाहर वाले वर्ग को अंत्यज लिखा है।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

प्रश्न 51.
इन बतूता को भारत में वनस्पति के तौर पर कौन-कौन से पौधे आश्चर्यजनक लगे?
उत्तर:
इन बतूता को भारत में वनस्पति के तौर पर नारियल व पान के पौधे आश्चर्यजनक लगे।

प्रश्न 52.
‘रिहला’ तथा ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एंपायर’ के लेखक कौन थे?
उत्तर:
‘रिहला’ के लेखक इब्नबतूता तथा ‘ट्रेवलस इन द मुगल एंपायर’ के लेखक बर्नियर थे।

अति लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विदेशी यात्रियों के भारत आने का उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
प्राचीनकाल से ही अनेक यात्री भारत में आते रहे हैं। ये एक देश से लोग दूसरे देशों में व्यापार व रोजगार के लिए जाते थे। कई लोग धर्म-प्रचार या तीर्थ यात्रा के उद्देश्य से दूसरे देश में जाते थे। कई बार ये यात्री विद्या अध्ययन के लिए भी जाते थे। भारत में भी यात्री इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आए।

प्रश्न 2.
इब्न बतूता विश्व यात्रा क्यों करता है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
इब्न बतूता साहित्यिक व शास्त्रीय ज्ञान से सन्तुष्ट नहीं था। उसके मन में यात्राओं के माध्यम से प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करने की लालसा उत्पन्न हुई। इसी की पूर्ति हेतु वह 22 वर्ष की आयु में घर से निकला तथा विश्व के विभिन्न स्थानों तथा दूर-दराज क्षेत्रों की यात्रा की। 1325-1332 ई० तक उसने मक्का व मदीना की यात्रा की तथा इसके बाद सीरिया, इराक, फारस, यमन, ओमान तथा पूर्वी अफ्रीका के देशों की यात्रा की। उसने अपनी यात्राएँ जल एवं थल दोनों मार्गों से की। भारत व चीन की यात्रा करने के उपरांत वह स्पेन, मोरक्को गया।

प्रश्न 3.
फ्रांस्वा बर्नियर कौन था? उसने भारत के बारे में क्या जानकारी दी है?
उत्तर:
बर्नियर का जन्म फ्रांस के अजों नामक प्रान्त के नामक स्थान पर 1620 ई० में हुआ। उसका परिवार कृषि का कार्य करता था। उसने मुगल काल में भारत की यात्रा की। 1656 से 1668 तक का समय उसने भारत में बिताया। वह इन वर्षों में दरबार से भी जुड़ा रहा तथा विभिन्न क्षेत्रों की यात्रा भी करता रहा। उसने जो कुछ देखा व समझा उसे ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ नामक रचना में लिखा।

प्रश्न 4.
अल-बिरूनी ने भारत की जाति-व्यवस्था का वर्णन कैसे किया है?
उत्तर:
अल-बिरूनी की भारतीय समाज के बारे में समझ उसी ऋग्वैदिक पर आधारित थी जिसमें वर्णों की उत्पत्ति बताई गई है। इस समझ के अनुसार ब्राह्मण इस समाज में सर्वोच्च स्थान था। उनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के सिर से हुई। उसके बाद क्षत्रियों का स्थान था जिनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के कंधों व हाथों से हुई। क्षत्रियों के बाद वैश्यों का स्थान था। इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा की जंघाओं से हुई है। इस कड़ी में चौथा स्थान शूद्रों का है। इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के चरणों से हुई है। वह यह भी लिखता है कि तीसरे व चौथे वर्ण में कोई अधिक अंतर नहीं है।

प्रश्न 5.
इन बतूता ने भारत में नारियल व पान के बारे में क्या वर्णन किया है?
उत्तर:
बतूता ने भारतीय नारियल व पान की विशेष चर्चा की है। नारियल के बारे में वह लिखता है कि, “ये हू-ब-हू खजूर के वृक्ष जैसे दिखते हैं। नारियल के वृक्ष का फल मानव के सिर से मेल खाता है, क्योंकि इसमें मानों दो आँखें तथा एक मुख है और अन्दर का भाग हरा होने के कारण मस्तिष्क जैसा दिखता है। पान के बारे में बतूता बताता है कि, “पान एक ऐसा वृक्ष है जिसे अंगूर-लता की तरह उगाया जाता है। पान का कोई फल नहीं होता और इसे केवल पत्तियों के लिए ही उगाया जाता है।”

प्रश्न 6.
इन बतूता के दिल्ली से संबंधित वृत्तांत का उल्लेख करें।
उत्तर:
दिल्ली को बतूता ने देहली कहा है। उसके अनुसार, “देहली बड़े क्षेत्र में फैला घनी आबादी वाला शहर है। शहर के चारों ओर बनी प्राचीर अतुलनीय है, दीवार की चौड़ाई ग्यारह हाथ है। प्राचीर के अन्दर खाद्य सामग्री, ह घेरेबंदी में काम आने वाली मशीनों के संग्रह के लिए भंडार गृह बने हुए थे।”

प्रश्न 7.
बतूता भारतीय डाक व्यवस्था से क्यों प्रभावित हुआ तथा उसने इसका वर्णन कैसे किया?
उत्तर:
इब्न बतूता भारत की संचार व्यवस्था से बहुत अधिक प्रभावित हुआ। उसने इसके बारे में विस्तृत जानकारी दी। वह इसे अद्भुत या अनूठी बताता है। उसके अनुसार उस समय दो प्रकार की डाक व्यवस्था थी जिसे उलुक तथा दावा कहा जाता था। उलुक घोड़ों की डाक सेवा थी। हर चार मील की दूरी पर स्थापित चौंकी में शाही सेना के घोड़े होते थे। इस तरह एक घोड़ा एक समय में चार मील ही जाया करता था।

दूसरी तरह की डाक सेवा दावा थी जिसका पैदल व्यवस्था से संबंध था। इस व्यवस्था में प्रति मील तीन व्यक्ति बदले जाते थे। प्रारंभ में एक संदेशवाहक एक हाथ में छड़ी तथा दूसरे में पत्र या माल लेकर अपनी अधिकतम . क्षमतानुसार भागता था। यह क्रिया पत्र में गंतव्य स्थान तक पहुंचने तक चलती रहती थी।

प्रश्न 8.
बर्नियर ने भारतीय किसानों की स्थिति के बारे में क्या लिखा है?
उत्तर:
बर्नियर ने कृषकों के विषय में काफी कुछ लिखा है। उसके अनुसार, “हिंदुस्तान के ग्रामीण अंचलों में काफी भूमि रेतीली या बंजर है। यहाँ की खेती भी अच्छी नहीं है। कृषक जीवन-निर्वहन के साधनों से वंचित कर दिया जाता था। निरंकुशता से हताश हो किसान गाँव छोड़कर चले जाते थे।”

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

प्रश्न 9.
बर्नियर ने भारत में भूमि स्वामित्व के बारे में क्या विचार दिए हैं?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार भारत में भूमि पर निजी स्वामित्व नहीं था, बल्कि सारे साम्राज्य की भूमि का मालिक स्वयं सम्राट था। उसका यह विचार सोलहवीं व सत्रहवीं सदी के अन्य कुछ यात्रियों ने भी अपनाया है। वर्णन के अनुसार यह व्यवस्था यूरोप से भिन्न थी क्योंकि वहाँ भूमि पर निजी स्वामित्व था। बर्नियर के अनुसार निजी स्वामित्व का अभाव राज्य व जनता दोनों के लिए हानिकारक था। क्योंकि कृषक न तो अपनी जमीन अपनी संतान को दे सकते थे, न ही वे किसी तरह का निवेश कृषि में करते थे। इसके कारण भारत में कृषि व्यवस्था पिछड़ी हुई रही तथा किसानों का असीम शोषण हुआ।

प्रश्न 10.
बर्नियर का भारतीय अर्थव्यवस्था से संबंधित वृत्तांत विरोधाभासपूर्ण क्यों हैं?
उत्तर:
बर्नियर अपने वृत्तांत के द्वारा यूरोप के शासकों को चेतावनी देता है कि वे निजी स्वामित्व में हस्तक्षेप न करें क्योंकि राज्य के स्वामित्व का सिद्धांत यूरोप के खेतों को विनाश के कगार पर ले जाएगा तथा उनकी पहचान के लिए भी घातक होगा। इसलिए वह भारत की ऐसी तस्वीर बनाता है लेकिन अपने वर्णन में अन्य स्थान पर भारत में व्यापार, कृषि के उद्योगों की प्रशंसा करता है।

प्रश्न 11.
अल-बिरूनी कौन था? उसे कौन-सी दो समस्याओं का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
अल-बिरूनी एक विदेशी यात्री था। वह महमूद गज़नवी के साथ भारत आया। उसका वास्तविक नाम अबू रेहान था। उसका जन्म मध्य-एशिया में स्थित आधुनिक उज्बेकिस्तान के ख्वारिज्म (वर्तमान नाम खीवा) नामक स्थान पर 973 ई० में हुआ। अल-बिरूनी ने ख्वारिज्म में शिक्षा प्राप्त की। अल-बिरूनी द्वारा वर्णित की गई दो समस्याएँ निम्नलिखित प्रकार से हैं

  • वह बताता है कि सबसे पहली समस्या संस्कृत भाषा थी। जो लिखने, पढ़ने व अनुवाद करने में अरबी व फारसी से बहुत – भिन्न थी। यह भाषा ऊँची पहुँच वाली थी।
  • दूसरी समस्या यहाँ की धार्मिक अवस्था तथा रीति-रिवाज़ थी। जो उसके समाज से भिन्न थी। उन्हें समझना कठिन था।

प्रश्न 12.
इब्न बतूता के भारत में प्रवास की जानकारी दें।
उत्तर:
बतूता 1334 ई० में दिल्ली पहुँचा तथा उसने सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक से भेंट की। सुल्तान ने बतूता को दिल्ली का काज़ी (न्यायाधीश) नियुक्त कर उसे शाही सेवा में ले लिया। उसने 8 वर्षों तक इस पद पर कार्य किया। इसी दौरान सुल्तान के साथ उसका मतभेद हो गया। लेकिन बाद में सुल्तान ने एक बार फिर उस पर विश्वास कर शाही सेवा में ले लिया। इस बार उसे चीन में सुल्तान की ओर से दूत बन कर जाने का आदेश दिया। इस तरह 1342 ई० में इन बतूता ने चीन की ओर प्रस्थान किया।

प्रश्न 13.
इब्न बतूता का वृत्तांत किन अन्य लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना?
उत्तर:
इन बतूता का वृत्तांत उच्च लेखकों व यात्रियों के लिए यह मार्गदर्शक पहलू बन गया। इनमें सबसे अधिक प्रभावित होने वाले यात्रियों में समरकंद का अब्दुर रज्जाक (यात्रा लगभग 1440), महमूद वली बलखी (यात्रा लगभग 1620) तथा शेख अली हाजिन (यात्रा लगभग 1740) के नाम लिए जा सकते हैं। इनमें बलखी तो भारत से इतना प्रभावित हुआ।

प्रश्न 14.
इब्न बतूता के दौलताबाद के बारे में वृत्तांत का वर्णन दें।
उत्तर:
दौलताबाद के बारे में बतूता बताता है कि यह दिल्ली से किसी तरह कम नहीं था और आकार में उसे चुनौती देता था। यहाँ पुरुष व महिला गायकों के लिए एक बाजार है जिसे ताराबबाद कहते हैं। यह सबसे बड़े एवं सुन्दर बाजारों में से एक है। यहाँ बहुत सी दुकानें हैं और प्रत्येक दुकान में एक ऐसा दरवाजा है जो मालिक के आवास में खुलता है। इस बाजार में इबादत के लिए मस्जिदें बनी हुई हैं।

प्रश्न 15.
बर्नियर की ‘अविकसितं पूर्व की धारणा की व्याख्या करें।
उत्तर:
बर्नियर ने अपनी रचना में भारत का वृत्तांत तुलनात्मक ढंग से किया है। उसने अपनी रचना को आलोचनात्मक, अंतर्दृष्टिपूर्ण व गहन चिन्तन पर आधारित किया है। वह वर्णन में उन चीजों को विशेष महत्त्व देता है जो यूरोप से विपरीत थी। वह यूरोप को भारत से श्रेष्ठ दिखाने पर विशेष जोर देता है। इस आधार पर वह भारत को ‘अविकसित पूर्व के रूप में वर्णित करता है। .

प्रश्न 16.
यात्रियों के वृत्तांत के दो कमजोर पक्ष बताओ।
उत्तर:

  • यात्री वृत्तांत देते समय अपने क्षेत्र, धर्म व देश की परम्पराओं व रीति-रिवाजों को अन्य से श्रेष्ठ बताते हैं।
  • वे स्थानीय लोगों की भाषा से परिचित नहीं होते तथा इन्हें क्षेत्र-विशेष को समझने के लिए द्विभाषीय पर निर्भर रहना पड़ता है।

प्रश्न 17.
यात्रियों के वृत्तांत का सकारात्मक पक्ष क्या होता है?
उत्तर:
यात्रियों के वृत्तांत में स्थानीय व्यक्तियों का प्रभाव नहीं होता, वे जैसा देखते हैं वैसा वर्णन कर देते हैं। जिसमें सच्चाई व यथार्थ की जानकारी की अधिक संभावना रहती है।

प्रश्न 18.
अल-बिरूनी के प्रारंभिक जीवन का वर्णन करें।
उत्तर:
अल-बिरूनी का वास्तविक नाम अबू रेहान था। उसका जन्म मध्य एशिया में स्थित आधुनिक उज्बेकिस्तान के ख्वारिज्म (वर्तमान नाम खीवा) नामक स्थान पर 973 ई० में हुआ। अल-बिरूनी ने ख्वारिज्म में शिक्षा ली। उसने यहाँ पर सीरियाई, हिब्रू, फारसी, अरबी व संस्कृत भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। अपनी योग्यता व प्रतिभा के बल पर वह मामूनी राज व्यवस्था में मंत्री के पद तक पहुँच गया।1017 ई० में महमूद गजनी ने ख्वारिज्म पर आक्रमण किया तथा जीत हासिल की। विजय के बाद उसने यहाँ पर कुछ लोगों को बंदी बनाया। अल-बिरूनी भी इन्हीं बंदी लोगों में एक था, उसे गजनी लाया गया। बाद में अल-बिरूनी महमूद गज़नी का राजकवि भी बना।

प्रश्न 19.
अल-बिरूनी ने अपनी समस्याओं का समाधान कैसे किया? क्या वह उसमें सफल रहा?
उत्तर:
अल-बिरूनी ने अपनी समस्याओं के समाधान के लिए ब्राह्मणों द्वारा रचित पुस्तकों व अनुवादों को अधिक-से-अधिक पढ़ा। उसका यह पक्ष कमजोर रहा क्योंकि उसने निजी विचारों व अनुभवों को महत्त्व नहीं दिया बल्कि वह पूरी तरह ब्राह्मणों द्वारा रचित साहित्य पर आश्रित रहा। उसने भारतीय समाज के बारे में जानकारी देते हुए वेदों, पुराणों, भगवद्गीता, पतंजलि की रचनाओं तथा मनुस्मृति के अंश यथावत् ही लिख दिए।

प्रश्न 20.
‘हिन्दू’ शब्द की उत्पत्ति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
हिंदू शब्द की उत्पत्ति सिन्धु से हुई है। फारसी भाषा में ‘स’ शब्द का उच्चारण ‘ह’ से किया जाता है। जिसके कारण वे सिन्धु को हिन्दू या सप्ताह को हप्ताह बोलते हैं। फारस क्षेत्र के लोग सिन्धु नदी के पूर्व रहने वाले लोगों के लिए हिन्दू का प्रयोग करते हैं तथा उनका क्षेत्र हिन्दोस्तान ईरानी अभिलेखों में ‘हिन्द’ शब्द का प्रयोग छठी सदी ई०पू० में सिन्धु क्षेत्र के लिए मिलता है।

प्रश्न 21.
अल-बिरूनी ने फारस के समाज के विभाजन को किस तरह समझा?
उत्तर:
अल-बिरूनी के अनुसार फारस (वर्तमान ईरान) क्षेत्र चार सामाजिक वर्गों में विभाजित था। इन चार वर्गों में वह पहले वर्ग में शासक व घुड़सवार, दूसरे वर्ग में भिक्षु, तीसरे वर्ग में आनुष्ठानिक पुरोहित, चिकित्सक, खगोल शास्त्री व वैज्ञानिक तथा चौथे में कृषक व शिल्पकार को बताता है।

प्रश्न 22.
इब्न बतूता के प्रारंभिक जीवन का परिचय दें।
उत्तर:
इब्न बतूता का जन्म अफ्रीका महाद्वीप के मोरक्को नामक देश के तैंजियर नामक स्थान पर 24 फरवरी, 1304 ई० को हुआ। उसने पारिवारिक परंपरा के अनुरूप साहित्यिक व धार्मिक ज्ञान अच्छी तरह से प्राप्त किया। इस तरह वह कम आयु में ही उच्चकोटि का धर्मशास्त्री बन गया। – इब्न बतूता साहित्यिक व शास्त्रीय ज्ञान से सन्तुष्ट नहीं था। उसके मन में यात्राओं के माध्यम से प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करने की लालसा उत्पन्न हुई। इसी की पूर्ति हेतु वह 22 वर्ष की आयु में घर से निकला तथा विश्व के विभिन्न स्थानों तथा दूर-दराज क्षेत्रों की यात्रा की।

प्रश्न 23.
इब्न बतूता की रिहला का संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर:
रिला या किताब-ए-रला इब्न बतूता के संस्मरणों पर आधारित रचना है। इसे ‘सफरनामा’ के नाम से अनुवादित किया गया है। बतूता के मोरक्को वापिस पहुँचने पर वहाँ के शासक ने इब्न जुज़ाई नामक व्यक्ति को यह कार्य दिया कि वह बतूता से बातचीत करे तथा उसकी स्मृति को एक रचना के रूप में प्रस्तुत करे। इब्न जुज़ाई ने बतूता से जानकारी लेकर इसे लिखा। इसमें कुल 13 अध्याय हैं।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

प्रश्न 24.
इब्न बतूता ने भारतीय शहरों के बारे में क्या लिखा है?
उत्तर:
इब्न बतूता के अनुसार भारतीय शहर घनी आबादी वाले तथा समृद्ध थे। यहाँ सड़कें तंग, भीड़-भाड़ वाली, रंगीन बाजार तथा बड़े-बड़े भवन थे। इन शहरों में जीवन-यापन की सारी चीजें मिल जाती थीं। वह बताता है कि ये शहर मात्र व्यापार या आर्थिक विनिमय के केन्द्र नहीं थे बल्कि सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र भी थे। प्रत्येक शहर में मन्दिर व मस्जिद देखने को मिलते थे। अधिकतर नगरों में संगीत एवं नृत्य के लिए विशेष स्थल भी थे।
HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 5 Img 1

प्रश्न 25.
इब्न बतूता ने भारतीय गाँवों के बारे में क्या बताया है?
उत्तर:
इब्न बतूता बताता है कि भारतीय गाँवों की व्यवस्था कृषि पर निर्भर है। यहाँ कृषि उन्नत है। इसके उन्नत होने का मुख्य कारण भूमि का उपजाऊपन है। यहाँ कृषक वर्ष में दो फसलें उगाते हैं। उसके अनुसार शहर की सम्पन्नता का कारण गाँव हैं। उसके अनुसार अधिकतर भारतीय गाँव कच्चे तथा घास-फूस की झोंपड़ी वाले थे। वह गाँवों के लोगों के आपसी सम्बन्ध काफी अच्छे बताता है।

प्रश्न 26.
इब्न बतूता ने भारतीय व्यापार व वाणिज्य के बारे में क्या विचार दिए हैं?
उत्तर:
बतूता के अनुसार भारत में व्यापार व वाणिज्य काफी विकसित अवस्था में था। मध्य पश्चिमी एशिया व दक्षिण पूर्वी एशिया, जिसमें वह स्पष्ट करता है कि इनके साथ भारत लगभग प्रत्येक चीज का व्यापार करता था। यह व्यापार कारवाँ में होता था। उसके अनुसार भारतीय कपड़ा (सूती, महीन मलमल, रेशमी, जरी वाला व काटन) तथा शिल्पकारी की चीज़ों की लगभग इस . क्षेत्र में पूरी माँग थी जिसमें व्यापारियों को खूब मुनाफा होता था। वह भारतीय मलमल की विभिन्न किस्मों (गंगाजल, मलमलखास, सरकार-ए-आली, शबनम) इत्यादि के बारे में बताता है।

प्रश्न 27.
बर्नियर का संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर:
बर्नियर का जन्म फ्रांस में 1620 ई० में हुआ। उसने कृषि के साथ-साथ पढ़ाई की तथा पेशे से चिकित्सक बन गया। वह चिकित्सक के रूप में 1656 ई० में सूरत पहुँचा। उसे दारा शिकोह ने अपना चिकित्सक बना दिया। दारा की मृत्यु के बाद उसे आर्मीनियाई अमीर (सामन्त) डानिश खान ने संरक्षण दिया। उसने भारत में सूरत, आगरा, लाहौर, कश्मीर, कासिम बाजार, मसुलीपट्टम व गोलकुण्डा इत्यादि स्थानों का भ्रमण किया। वह 1668 ई० में भारत से फ्रांस लौट गया 1688 ई० में उसके पैतृक स्थान पर ही उसकी मृत्यु हो गई।
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प्रश्न 28.
बर्नियर की रचना ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
फ्रांस्वा बर्नियर ने 1656 से 1668 तक का समय भारत में बिताया। वह इन वर्षों में मुगल दरबार से भी जुड़ा रहा तथा विभिन्न क्षेत्रों की यात्रा भी करता रहा। उसने जो कुछ देखा व समझा उसे ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ नामक रचना में लिखता गया। उसकी यह रचना फ्रांस में 1670-71 में प्रकाशित हुई तथा इसे फ्रांस के शासक लुई XIV को समर्पित किया गया।

प्रश्न 29.
मॉन्टेस्क्यू ने बर्नियर के वृत्तांत से क्या प्रेरणा ली?
उत्तर:
मॉन्टेस्क्यू 18वीं शताब्दी का फ्रांसीसी चिन्तक था। उसने बर्नियर के वृत्तांत का प्रयोग करके यूरोप में निरंकुशता के सिद्धांत को स्थापित करने का प्रयास किया, साथ ही शासकों को अति निरंकुशता से बचने की सलाह दी क्योंकि एशिया के शासकों की अति निरंकुशता के कारण प्रजा को गरीबी व दासता की स्थिति का जीवन जीनां पड़ता है। उसने अपने लेखन में स्पष्ट किया कि एशिया में सारी भूमि का स्वामित्व राजा के पास था तथा निजी सम्पत्ति अस्तित्व में नहीं थी।
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प्रश्न 30.
कार्ल मार्क्स ने बर्नियर के वृत्तांत का प्रयोग करके एशिया को किस प्रकार समझा?
उत्तर:
कार्ल मार्क्स ने बर्नियर के वृत्तांत का प्रयोग एशियाई उत्पादन शैली तथा व्यवस्था (ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर) को समझने में किया। उसके अनुसार उपनिवेशवाद से पहले भारत एवं अन्य एशियाई देशों में अधिशेष का अधिग्रहण राज्य करता था। जिसके कारण एक ऐसे समाज का निर्माण हुआ जो काफी हद तक स्वायत्त था तथा आन्तरिक दृष्टि से सामन्तवादी था। वास्तव में यह प्रणाली गतिहीन तथा निष्क्रिय थी क्योंकि शासक व समाज में यह एक समझौता था।

प्रश्न 31.
बर्नियर भारत के ग्रामीण समाज का वर्णन किस तरह देता है?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार भारत के ग्रामीण समाज में सामाजिक व आर्थिक अन्तर बड़े स्तर पर थे। इस समाज में एक ओर बड़े-बड़े जमींदार थे जो भूमि पर उच्चाधिकारों का प्रयोग करते थे, दूसरी ओर अस्पृश्य भूमि विहीन श्रमिक थे। इन दोनों के मध्य कृषक था जो किराए के श्रम का प्रयोग करके माल (उपज) उत्पादित करता था। कृषकों में भी एक वर्ग छोटे किसानों के रूप में था जो मुश्किल से अपने गुजारे योग्य उत्पादन कर पाता था।

प्रश्न 32.
बर्नियर ने राजकीय कारखानों के बारे में क्या लिखा है?
उत्तर:
भारत में शाही आवश्यकता की पूर्ति की चीजें जिस स्थान पर बनती थीं, उन्हें राजकीय कारखाने कहा जाता था। इन कारखानों के विभिन्न कक्षों में कारीगर अपना-अपना काम करते थे। ये कारीगर या शिल्पकार अपने कारखानों में हर रोज सुबह आते हैं, जहाँ वे पूरा दिन कार्यरत रहते हैं और शाम को अपने-अपने घर चले जाते हैं। ये कारीगर जीवन की उन स्थितियों में सुधार करने के इच्छुक नहीं हैं जिनमें वह पैदा हुए हैं।

प्रश्न 33.
यात्रियों के वृत्तांत में दास व दासियों के मुख्य रूप से क्या कार्य बताए गए हैं?
उत्तर:
यात्रियों के अनुसार, पुरुष दास का प्रयोग घरेलू कार्यों; जैसे बाग-बगीचों की देखभाल, पशुओं की देखरेख, महिलाओं … व पुरुषों को पालकी या डोली में एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने के लिए होता था। दासियाँ शाही महल, अमीरों के आवास पर घरेलू कार्य करने व संगीत गायन के लिए खरीदी जाती थीं। सुल्तान अपने अमीरों व दरबारियों पर नियंत्रण रखने के लिए भी दासियों का प्रयोग करता था।

लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अल-बिरूनी कौन था? वह भारत कैसे आया?
उत्तर:
अल-बिरूनी एक विदेशी यात्री था। वह महमूद गज़नवी के साथ भारत आया। उसका वास्तविक नाम अबू रेहान था। उसका जन्म मध्य-एशिया में स्थित आधुनिक उज़्बेकिस्तान के ख्वारिज्म (वर्तमान नाम खीवा) नामक स्थान पर 973 ई० में हुआ। अल-बिरूनी ने ख्वारिज्म में शिक्षा प्राप्त की। उसने यहाँ पर सीरियाई, हिब्रू, फारसी, अरबी व संस्कृत भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। वह यूनानी भाषा को नहीं समझता था। इसी कारण वह प्लेटो व अरस्तु के दर्शन व ज्ञान को अनुवादित रूप में पढ़ पाया। वह अपनी योग्यता व प्रतिभा के बल पर मामूनी राज व्यवस्था में मंत्री के पद तक पहुँच गया।

1017 ई० में महमूद गजनवी ने खारिज़्म पर आक्रमण किया तथा जीत हासिल की। विजय के बाद उसने यहाँ पर कुछ लोगों को बंदी बनाया। इनमें कुछ विद्वान तथा कवि भी थे। अल-बिरूनी भी इन्हीं बंदी लोगों में एक था तथा वह इसी अवस्था में गजनी लाया गया। गजनी में रहते हुए महमूद उसकी प्रतिभा से प्रभावित हुआ। फलतः न केवल महमूद ने उसे मुक्त किया वरन् उसे दरबार में सम्मानजनक पद भी दिया।

बाद में अल-बिरूनी उसका राजकवि भी बना। गजनी प्रवास के दौरान उसने खगोल-विज्ञान, गणित व चिकित्सा से संबंधित पुस्तकें पढ़ीं। वह महमूद के साथ भारत में कई बार आया तथा उसने इस क्षेत्र में ब्राह्मणों, पुरोहितों व विद्वानों के साथ काफी समय बिताया। उनके साथ रहने के कारण वह संस्कृत भाषा में और प्रवीण हो गया। अब वह न केवल इसे समझ सकता था बल्कि अनुवाद करने में भी सक्षम हो गया। उसने सहारा रेगिस्तान से लेकर वोल्गा नदी तक की यात्रा के आधार पर लगभग 20 पुस्तकों की रचना की। इन रचनाओं में सबसे महत्त्वपूर्ण ‘किताब-उल-हिन्द’ है। गजनी में ही 1048 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 2.
अल-बिरूनी की प्रमुख समस्याएँ क्या थीं? उसने इनका समाधान कैसे किया?
उत्तर:
अल-बिरूनी को भारत में कई समस्याएँ आईं। उसने इनका वर्णन इस प्रकार किया
(i) वह बताता है कि सबसे पहली बाधा संस्कृत भाषा थी। जो लिखने, पढ़ने व अनुवाद करने में अरबी व फारसी से बहुत भिन्न थी। यह भाषा ऊँची पहुँच वाली थी। इस भाषा में एक चीज के लिए कई शब्द (मूल तथा व्युत्पन्न) प्रयोग होते थे तथा एक शब्द कई चीजों के लिए प्रयुक्त होता था।

(ii) उसके अनुसार दूसरी बाधा यहाँ की धार्मिक अवस्था तथा रीति-रिवाज़ व प्रथाएँ थीं। जो उसके समाज से भिन्न थीं। एक अपरिचित के रूप में उन्हें समझना कठिन था।

(iii) तीसरी बाधा स्थानीय लोगों का अभिमान तथा अलग रहने की प्रवृत्ति थी जिसके कारण वे बाह्य व्यक्ति के साथ इतनी आसानी से नहीं घुलते-मिलते थे।
इन समस्याओं के समाधान के लिए उसने ब्राह्मणों द्वारा रचित पुस्तकों व अनुवादों को अधिक-से-अधिक समझा। वह पूरी तरह ब्राह्मणों द्वारा रचित साहित्य पर आश्रित रहा। उसने भारतीय ग्रन्थों, वेदों, पुराणों, भगवद्गीता, पतंजलि की रचनाओं तथा मनुस्मृति का अध्ययन किया। उसने इसी आधार पर अपनी समस्याएँ सुलझाईं।

प्रश्न 3.
इब्न बतूता कौन था? उसके जीवन के बारे में आप क्या जानते हो? वह भारत क्यों आया?
उत्तर:
इब्न बतूता चौदहवीं शताब्दी का एक यात्री था। उसने विश्व के विभिन्न क्षेत्रों का 1325 से 1354 ई० तक भ्रमण किया। अफ्रीका, एशिया व यूरोप के कुछ हिस्से की यात्रा करने के कारण उसे एक प्रारंभिक विश्व यात्री की संज्ञा दी जाती है। इब्न बतूता का जन्म अफ्रीका महाद्वीप के मोरक्को नामक देश के तैंजियर नामक स्थान पर 24 फरवरी, 1304 ई० को हुआ। बतूता का परिवार मोरक्को क्षेत्र में सबसे सम्मानित, शिक्षित व इस्लामी कानूनों का विशेषज्ञ माना जाता था। पारिवारिक परंपरा विरासत में मिलने व अपनी लगन के कारण वह कम आयु में ही उच्चकोटि का धर्मशास्त्री बन गया। इब्न बतूता साहित्यिक व शास्त्रीय ज्ञान से सन्तुष्ट नहीं था।

उसके मन में यात्राओं के माध्यम से प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करने की लालसा उत्पन्न हुई। इसी की पूर्ति हेतु वह 22 वर्ष की आयु में घर से निकला तथा विश्व के विभिन्न स्थानों तथा दूर-दराज क्षेत्रों की यात्रा की। 1325-1332 ई० तक उसने मक्का व मदीना की यात्रा की। उसने अपनी यात्राएँ जल एवं थल दोनों मार्गों से की। वह मध्य-एशिया के रास्ते । से भारत की ओर बढ़ा तथा 1333 ई० में सिन्ध पहुँचने में सफल रहा।

वह 1334 ई० में दिल्ली पहुँचा तथा सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक से भेंट की। ये दोनों एक दूसरे की विद्वता से प्रभावित हुए। सुल्तान ने बतूता को दिल्ली का काज़ी (न्यायाधीश) नियुक्त कर उसे शाही सेवा में ले लिया। उसने 8 वर्षों तक इस पद पर कार्य किया। 1342 ई० में उसे मुहम्मद तुगलक ने चीन में भारत का दूत नियुक्त किया।

उसने चीन पहुँचकर विभिन्न स्थानों की यात्रा की। चीनी शासक ने उसे दूत के रूप में स्वीकार किया। 1347 ई० में वहाँ से वापिस अपने देश मोरक्को के लिए चल दिया। वह 8 नवम्बर, 1349 ई० को अपने पैतृक स्थान तैंजियर पहुँच गया। उसने अपनी स्मृति के आधार पर यह सारी जानकारी शासक को उपलब्ध कराई जिसे संकलित कर रिला या रह्ला या सफरनामा नामक पुस्तक के रूप में सुरक्षित किया गया। इसमें 1325-1354 के बीच की उसकी यात्राओं का वर्णन है। इब्न बतूता की मृत्यु 1377 ई० तैंजियर में हुई।

प्रश्न 4.
इब्न बतूता के ‘रिहला’ पर नोट लिखो।
उत्तर:
रिहला या किताब-ए-रला इब्न बतूता के संस्मरणों पर आधारित रचना है। इसे ‘सफरनामा’ के नाम से अनुवादित किया गया है। बतूता के मोरक्को वापिस पहुँचने पर वहाँ के शासक ने इब्न जुजाई नामक व्यक्ति को यह कार्य दिया कि वह बतूता से बातचीत करे तथा उसकी स्मृति को एक रचना के रूप में प्रस्तुत करे। इब्न जुजाई रिहला की प्रस्तावना में लिखता है कि मोरक्को में राजा के द्वारा एक निर्देश दिया गया कि वे (इब्न बतूता) अपनी यात्रा में देखे गए शहरों का तथा अपनी स्मृति में बैठ गई रोचक घटनाओं का एक वृत्तांत लिखवाएँ और साथ ही विभिन्न देशों के शासकों में से जिनसे वे मिले, उनके महान साहित्यकारों के तथा उनके धर्मनिष्ठ संतों के बारे में बताएं।

तदनुसार उन्होंने इन सभी विषयों पर एक कथानक लिखवाया जिसने मस्तिष्क को मनोरंजन तथा कान और आँख को प्रसन्नता दी। साथ ही उन्होंने कई प्रकार के असाधारण विवरण जिनके प्रतिपादन से लाभप्रद उपदेश मिलते हैं, दिए तथा असाधारण चीजों के बारे में बताया जिनके सन्दर्भ से अभिरुचि जगी।

रिहला में भारत के बारे में विस्तृत वर्णन दिया गया है। इस वर्णन में भारत की प्रकृति, पशु-पक्षी, वन, नदियों, गाँव व शहरों के बारे में बताया गया है। उसने मुहम्मद तुगलक के बारे में भी विस्तृत प्रकाश डाला है। बतूता मुहम्मद तुगलक को सन्तुलित, शिक्षित, न्यायप्रिय, प्रतिभाशाली व दूरदर्शी शासक बताता है।

इब्न बतूता ने भारत में लगभग 14 वर्ष का समय लगाया तथा राज्य, समाज, धर्म, प्रकृति तथा अर्थव्यवस्था से संबंधित हर प्रकार की सूचना एकत्रित की। उसका वृत्तांत उसके समकालीन लेखकों की तुलना में अधिक विश्वसनीय है। उसने सूचनाओं को काफी हद तक दरबार से मुक्त भी रखा है। वह कृषि, उद्योग व व्यापार की दृष्टि से भारत को उन्नत बताता है। सड़कों को असुरक्षित लिखता है। परिवहन के साधनों में पशुओं के प्रयोग को विशेष महत्त्व देता है। भारतीय बाजार के बारे में रिहला का विवरण उल्लेखनीय है।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

प्रश्न 5.
इब्न बतूता ने भारतीय शहरों व शहरी जीवन पर क्या प्रकाश डाला है? अथवा इब्न बतूता द्वारा वर्णित भारतीय शहरों की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
इब्न बतूता ने भारत में अपना अधिक समय शहरों में बिताया इसलिए उसके वर्णन में शहरों का विशेष उल्लेख है। उसने सिन्ध, मुल्तान, लाहौर, दिल्ली, अजमेर, उज्जैन, काबुल, कन्धार, दौलताबाद इत्यादि; शहरों में अधिक समय बिताया। इसलिए वह इन स्थानों का वर्णन और स्थानों से अलग करता है। उसके अनुसार भारतीय शहर घनी आबादी वाले तथा समृद्ध थे। यहाँ सड़कें तंग, भीड़-भाड़ वाली, रंगीन बाजार तथा बड़े-बड़े भवन थे। इन शहरों में जीवन-यापन की सारी चीजें मिल जाती थीं। वह बताता है कि ये शहर मात्र व्यापार या आर्थिक विनिमय के केन्द्र नहीं थे बल्कि सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र भी थे। प्रत्येक शहर में मन्दिर व मस्जिद देखने को मिलते थे।
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अधिकतर नगरों में संगीत एवं नृत्य के लिए विशेष स्थल भी थे। जहाँ पर विशेष तरह के आयोजन चलते रहते थे।
इब्न बतूता मुहम्मद तुगलक के शासन काल में भारत आया था। इसलिए वह स्पष्ट करता है कि उसकी दो राजधानियाँ थीं। दोनों ही आकार व सुविधाओं की दृष्टि से एक-दूसरे का पूरा मुकाबला करती थीं। वह यह भी बताता है कि दिल्ली पुराना शहर था जबकि दौलताबाद एक नया शहर था।

दिल्ली-दिल्ली को उसने अन्य तत्कालीन स्रोतों की भाँति देहली कहा है। उसके अनुसार, “देहली बड़े क्षेत्र में फैला घनी आबादी वाला शहर है। शहर के चारों ओर बनी प्राचीर अतुलनीय है, दीवार की चौड़ाई ग्यारह हाथ है। प्राचीर का निचला भाग पत्थर से बना है जबकि ऊपरी भाग ईंटों से। इस शहर में कुल 28
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द्वार हैं जिन्हें दरवाजा कहा जाता है। इनमें सबसे विशाल बदायूँ दरवाजा है।” दौलताबाद-दौलताबाद के बारे में बतूता बताता है कि यह दिल्ली से किसी तरह कम नहीं था और आकार में उसे चुनौती देता था। यहाँ पुरुष व महिला गायकों के लिए एक बाजार है जिसे ताराबबाद कहते हैं। यह सबसे बड़े एवं सुन्दर बाजारों में से एक है। यहाँ बहुत सी दुकानें हैं और प्रत्येक दुकान में एक ऐसा दरवाजा है जो मालिक के आवास में खुलता है। दुकानों को कालीन से सजाया जाता था। बाजार के मध्य में एक विशाल गुंबद खड़ा है।
इस प्रकार कहा जा सकता है उसने भारतीय शहरों को अलग-अलग ढंग से देखा तथा उसी के अनुरूप वर्णन किया है।

प्रश्न 6.
इब्न बतूता ने भारत की संचार प्रणाली की क्या जानकारी दी है?
उत्तर:
इब्न बतूता भारत की संचार व्यवस्था से बहुत अधिक प्रभावित हुआ। वह इसे अद्भुत या अनूठी प्रणाली बताता है। उसके अनुसार इस संचार प्रणाली के दो उद्देश्य थे। पहला एक राज्य क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक तत्काल सूचना भेजना तथा दूसरा अल्प सूचना पर सामान भेजना। राज्य के द्वारा इसका विशेष प्रबन्ध किया गया था। बतूता के अनुसार उस समय दो प्रकार की डाक व्यवस्था थी जिसे उलुक तथा दावा कहा जाता था। उलुक घोड़ों की डाक सेवा थी। हर चार मील की दूरी पर स्थापित चौंकी में शाही सेना के घोड़े होते थे। इस तरह एक घोड़ा एक समय में चार मील ही जाया करता था। दूसरी तरह की डाक सेवा दावा थी जिसका पैदल व्यवस्था से संबंध था। इस व्यवस्था में प्रति मील तीन व्यक्ति बदले जाते थे। उसके अनुसार भारत में औसतन तीन मील की दूरी पर गाँव थे। गाँव के बाहर तीन मंडप होते थे।

वहाँ लोग समूह में बैठे होते थे। उनमें से प्रत्येक के पास दो हाथ लम्बी एक छड़ी होती थी जिसके ऊपर तांबे की घंटियाँ लगी होती थीं। जब डाक प्रारंभ होती थी तो एक संदेशवाहक एक हाथ में छड़ी तथा दूसरे में पत्र या माल लेकर अपनी अधिकतम क्षमतानुसार भागता था। मंडप में बैठे लोग घंटी की आवाज सुनते ही तैयार हो जाते थे। जैसे ही संदेशवाहक उनके पास पहुँचता तो उनमें से एक उससे पत्र लेता तथा अगले दावा तक तेज दौड़ता था। यह क्रिया पत्र में गंतव्य स्थान तक पहुँचने तक चलती रहती थी। उसके अनुसार पैदल डाक अश्व डाक से पहले पहुँचती थी। वह स्पष्ट कहता है कि सिन्ध से दिल्ली तक आने के लिए सामान्य रूप से पचास दिन का समय लगता था, लेकिन सुल्तान के पास गुप्तचरों की सूचना मात्र पाँच दिन में पहुँच जाती थी।

प्रश्न 7.
बर्नियर कौन था? उसकी रचना ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ के बारे में आप क्या जानते हैं? अथवा बर्नियर कौन था? उसने भारत के बारे में क्या जानकारी दी है?
उत्तर:
बर्नियर मुगल काल का एक यात्री था। वह फ्रांस से भारत आया। बर्नियर का जन्म फ्रांस के अजों नामक प्रान्त के जं नामक स्थान पर 1620 ई० में हुआ। उसका परिवार कृषि का कार्य करता था। उसने कृषि के साथ-साथ पढ़ाई की तथा पेशे से चिकित्सक बन गया। इसी व्यवसाय को करते हुए वह 1656 ई० में सूरत पहुँचा तथा इसी वर्ष दारा शिकोह ने उसे अपना चिकित्सक बना दिया। उसने शाहजहाँ के शासनकाल में उत्तराधिकार के युद्ध की कुछ घटनाएँ देखीं हैं। दारा की मृत्यु के बाद उसे आर्मीनियाई अमीर (सामन्त) डानिश खान ने संरक्षण दिया। उसने भारत में सूरत, आगरा, लाहौर, कश्मीर, कासिम बाजार, मसुलीपट्टम व गोलकुण्डा इत्यादि स्थानों का भ्रमण किया। वह 1668 ई० में भारत से फ्रांस लौट गया। 1688 ई० में उसके पैतृक स्थान पर ही उसकी मृत्यु हो गई।

उसने भारत में 1656 से 1668 तक का समय बिताया। वह इन वर्षों में दरबार से भी जुड़ा रहा तथा विभिन्न क्षेत्रों की यात्रा भी करता रहा। उसने जो कुछ देखा व समझा उसे ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ नामक रचना में लिखता गया। उसकी यह रचना फ्रांस में 1670-71 में प्रकाशित हुई तथा इसे फ्रांस के शासक लुई XIV को समर्पित किया गया। इस रचना में दिए गए वृत्तांत की विशेष बात यह है कि उसने भारत व यूरोप अर्थात् पूर्व व पश्चिम की तुलना बड़े स्तर पर की है। वह भारत की स्थिति को यूरोप की तुलना में दयनीय बताया है। उसने अपनी रचना में प्रभावशाली लोगों व अधिकारियों के मंत्रियों के पद को विशेष महत्त्व दिया है।

प्रश्न 8.
बर्नियर के भूमि स्वामित्व संबंधी दृष्टिकोण की आलोचनात्मक व्याख्या करें।
उत्तर:
बर्नियर के वृत्तांत में सर्वाधिक चर्चा का मुद्दा उसका भूमि स्वामित्व संबंधी वर्णन है। उसके अनुसार भारत में निजी स्वामित्व नहीं था, बल्कि सारे साम्राज्य की भूमि का मालिक स्वयं सम्राट था। उसके वर्णन के अनुसार भारत में भूमि स्वामित्व व्यवस्था यूरोप से . भिन्न थी क्योंकि वहाँ भूमि पर निजी स्वामित्व था। बर्नियर के अनुसार भारतीय व्यवस्था राज्य व जनता दोनों के लिए हानिकारक थी। बर्नियर इस वर्णन के माध्यम से भारत के बारे में इस तरह की समझ रखने वाले यूरोप के शासकों को चेतावनी देता है कि क्षेप न करें क्योंकि राज्य के स्वामित्व का सिद्धांत यूरोप के खेतों को विनाश के कगार पर ले जाएगा तथा उनकी पहचान के लिए भी घातक होगा।

बर्नियर के इस वृत्तांत से इस बात की पुष्टि होती है कि फ्रांस में निजी स्वामित्व के अधिकार को जारी रखने के लिए वह मुगल साम्राज्य की नकारात्मक तस्वीर खींच रहा है। बर्नियर का वृत्तांत देखकर भारत की दुर्दशा का चित्र आँखों के सामने आता है परन्तु यह स्पष्ट तौर पर एक पक्षीय भी दिखाई देता है। आलोचनात्मक ढंग से देखें तो हमें मुगलकालीन किसी भी दस्तावेज व अन्य स्थानीय स्रोत में इस तरह की जानकारी नहीं मिलती कि शासक ही सारी भूमि का मालिक था। बर्नियर से पहले दबाव में यूरोपीय यात्रियों ने भारत की ऐसी तस्वीर नहीं दी है। अतः बर्नियर का वृत्तांत एक पक्षीय है तथा वह भारत को निम्न तथा यूरोप को श्रेष्ठ बताना चाहता है।

प्रश्न 9.
बर्नियर के वृत्तांत में विरोधाभासपूर्ण सच्चाई क्या है? अपने शब्दों में व्यक्त करो।
उत्तर:
बर्नियर का वर्णन सामाजिक व आर्थिक स्थिति के बारे में काफी विरोधाभासपूर्ण है। वह भारत में दस्तकारी व कृषि उत्पादन प्रणाली को पतनशील मानता है। इसके लिए वह यहाँ की राज्य व्यवस्था को उत्तरदायी मानता है। कृषि इसलिए विकसित नहीं थी क्योंकि राजकीय स्वामित्व था। कृषकों को समुचित प्रोत्साहन नहीं था। इसी तरह दस्तकारों के लिए भी अपने उत्पादन को अच्छा बनाने के लिए प्रोत्साहन की परिस्थितियाँ नहीं थीं क्योंकि उनका अधिकांश मुनाफा भी राज्य ले लेता था।

इन सबके बाद भी वह यह भी उल्लेख करता है कि भारत का बड़ा-भू-भाग मिस्र से भी उपजाऊ है तथा यहाँ के शिल्पकार आलसी होते हुए भी अपने बहुत सारे उत्पादन का निर्यात करते हैं। इसके कारण भारत में बड़े पैमाने पर सोना-चाँदी आता है। उल्लेखनीय है कि बर्नियर यूरोप में प्रचलित वाणिज्यवादी विचारधारा से प्रभावित है जो सोना-चाँदी के संचय को प्राथमिकता देती है। भारत में सोना-चाँदी के संचय की बात को इसी पृष्ठभूमि में समझने की आवश्यकता है। अतः भारत की अर्थ-व्यवस्था को पतनशील बताना तथा भारत में धन के संचय की बात करना उसके विरोधाभास को स्पष्ट करती है।

प्रश्न 10.
बर्नियर ने राजकीय कारखाने का वर्णन किस तरह किया है?
उत्तर:
राजकीय कारखाने मुगल काल में शाही आवश्यकता की पूर्ति की चीजें एक स्थान पर बनती थीं जिन्हें राजकीय कारखाने कहा जाता था। वह इन कारखानों की कार्यप्रणाली पर भी अपने विचार देता है जो इस प्रकार हैं, “कई स्थानों पर बड़े कक्ष दिखाई देते हैं जिन्हें कारखाना या शिल्पकारों की कार्यशाला कहा जाता है। एक कक्ष में कसीदाकार एक मास्टर के निरीक्षण में व्यस्तता से कार्यरत रहते हैं।

एक अन्य में आप सुनारों को देखते हैं, तीसरे में चित्रकार, चौथे में प्रलाक्षा रस का रोगन लगाने वाले, पाँचवें में बढ़ई, खरादी, दर्जी तथा जूते बनाने वाले, छठे में रेशम, जरी तथा महीन मलमल का कार्य करने वाले शिल्पकार अपने कारखानों में हर रोज सुबह आते हैं, जहाँ वे पूरा दिन कार्यरत रहते हैं और शाम को अपने-अपने घर चले जाते हैं। इसी प्रकार निश्चेष्ट नियमित ढंग से उनका समय बीतता जाता है, कोई भी जीवन की उन स्थितियों में सुधार करने का इच्छुक नहीं है जिनमें वह पैदा हुआ है।”
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प्रश्न 11.
बर्नियर ने भारतीय शहरों का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
बर्नियर शहर से संबंधित वृत्तांत में बताता है कि भारत में लगभग 15% आबादी नगरों में रहती है। यह शहरी जनसंख्या अनुपात तत्कालीन पश्चिमी यूरोप से अधिक था। वह भारतीय नगरों को शिविर नगर कहता है क्योंकि उसका मानना है कि इन नगरों का अस्तित्व शाही शिविर के साथ था, शिविर लगते ही ये विकसित हो जाते थे जबकि प्रस्थान से नगरों का पतन भी हो जाता था। बर्नियर का शहर से संबंधित वृत्तांत अधूरा तथा अति सरलीकृत प्रतीत होता है, क्योंकि अन्य सभी साक्ष्यों से इस बात की पुष्टि होती है कि भारत में नगर उत्पादन केन्द्र, व्यापारिक, नगर, बन्दरगाह नगर, धार्मिक केन्द्र, तीर्थ स्थान व प्रशासन के केन्द्र थे। इन नगरों में समृद्ध व्यापारिक व व्यावसायिक वर्ग, प्रशासनिक अधिकारी, अमीर (सामन्त) तथा विद्वान स्थायी रूप में रहते थे।

इन नगरों में व्यापारी व व्यावसायिक वर्ग समुदाय में रहते थे। यह संस्थाओं के माध्यम से व्यवस्था को चलाते थे। पश्चिमी भारत में व्यापारिक समूह महाजन कहलाता था तथा उनका मुखिया सेठ। अहमदाबाद, सूरत, भड़ौच जैसे व्यापारिक केन्द्रों पर सभी महाजनों का सामूहिक प्रतिनिधि भी होता था जिसे ‘नगर सेठ’ कहा जाता था। व्यवसायी तथा व्यापारी वर्ग के अतिरिक्त हकीम, वैद्य (चिकित्सक), पंडित व मौलवी (शिक्षक), वकील, चित्रकार, वास्तुकार, संगीतकार, लेखक इत्यादि भी होते थे। इनमें से कुछ तो शाही संरक्षण में होते थे। कुछ अन्य अमीर वर्गों की सहायता से अपना जीवन-यापन करते थे।

अतः बर्नियर का भारतीय नगरों को ‘शिविर नगर’ कहना उसके सीमित ज्ञान की प्रस्तुति है। उसका यह दृष्टिकोण अन्य यात्रियों के वर्णन से मेल नहीं खाता, जिन्होंने भारत में दिल्ली, आगरा, इलाहाबाद, लाहौर, अजमेर, सूरत इत्यादि नगरों को यूरोप के नगरों से बड़े तथा विकसित बताया है।

दीर्घ-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अल-बिरूनी कौन था? अल-बिरूनी की रचना ‘किताब-उल-हिन्द’ पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
अल-बिरूनी का वास्तविक नाम अबू रेहान था। उसका जन्म मध्य-एशिया में स्थित आधुनिक उज्बेकिस्तान के ख्वारिज्म (वर्तमान नाम खीवा) नामक स्थान पर 973 ई० में हुआ। ख्वारिज्म पर उस समय मामूनी वंश का राज था। इस समय स्थान शिक्षा का अति महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। अल-बिरूनी को इसी स्थान पर शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला। उसने यहाँ पर सीरियाई, हिब्रू, फारसी, अरबी व संस्कृत भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया।

इसलिए वह इन भाषाओं में लिखित मौलिक ग्रन्थों को पढ़ पाया। वह यूनानी भाषा को नहीं समझता था लेकिन इस भाषा के सभी प्रमुख ग्रन्थ अनुवादित हो चुके थे। इसी कारण वह प्लेटो व अरस्तु के दर्शन व ज्ञान को अनुवादित रूप में पढ़ पाया। इस तरह वह अपने जीवन के प्रारंभिक दौर में ही विभिन्न भाषाओं के साहित्य से परिचित हो गया। उल्लेखनीय यह है कि अपनी योग्यता व प्रतिभा के बल पर वह मामूनी राज व्यवस्था में मंत्री के पद तक पहुंच गया।

1017 ई० में महमूद ने ख्वारिज्म पर आक्रमण किया तथा जीत हासिल की। विजय के बाद उसने यहाँ पर कुछ लोगों को बंदी बनाया। इनमें कुछ विद्वान तथा कवि भी थे। अल-बिरूनी भी इन्हीं बंदी लोगों में एक था तथा वह इसी अवस्था में गजनी लाया गया। गजनी में रहते हुए महमूद उसकी प्रतिभा से प्रभावित हुआ। फलतः न केवल महमूद ने उसे मुक्त किया वरन् उसे दरबार में सम्मानजनक पद भी दिया।

बाद में अल-बिरूनी उसका राजकवि भी बना। गजनी प्रवास के दौरान उसने खगोल-विज्ञान, गणित व चिकित्सा से संबंधित पुस्तकें पढ़ीं। वह महमूद के साथ भारत में कई बार आया तथा उसने इस क्षेत्र में ब्राह्मणों, पुरोहितों व विद्वानों के साथ काफी समय बिताया। उनके साथ रहने के कारण वह संस्कृत भाषा में और प्रवीण हो गया। अब वह न केवल इसे समझ सकता था बल्कि अनुवाद करने में भी सक्षम हो गया।

उसने सहारा रेगिस्तान से लेकर वोल्गा तक की यात्रा के आधार पर लगभग 20 पुस्तकों की रचना की। इन रचनाओं में सबसे महत्त्वपूर्ण ‘किताब-उल-हिन्द’ है जिसे ‘अल बरूनीज इण्डिया’ के नाम से जाना जाता है। उसने अपनी रचनाएँ गजनी में लिखीं। गजनी में ही 1048 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

अल-बिरूनी ने जो कुछ लिखा वह भारत में बहुत बाद में पहुँचा परन्तु मध्य एशिया के क्षेत्र में यह पहले चर्चा में आ गया। भारत में यह लगभग 1500 ई० में सामने आया। महमूद की ‘1030 ई० में’ मृत्यु के बाद उसके पुत्र मसूद ने भी उसे राजकीय संरक्षण दिया तथा उसके लेखन को सुरक्षित करने की दिशा में कदम उठाए।

किताब-उल-हिन्द (The Kitab-ul-Hind)-‘किताब-उल-हिन्द’, अल-बिरूनी द्वारा रचित सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसे ‘तहकीक-ए-हिन्द’ के नाम से भी जाना जाता है। मौलिक तौर पर यह ग्रंथ अरबी भाषा में लिखा गया है तथा बाद में यह विश्व की प्रमुख भाषाओं में अनुवादित हुआ। इसमें कुल 80 अध्याय हैं जिनमें भारत के धर्म, दर्शन, समाज, परंपराओं, रीति-रिवाज़ों, नाप-तोल, खगोल-विज्ञान, . चिकित्सा, ज्योतिष, मूर्तिकला, कानून, न्याय इत्यादि विषयों को विस्तृत ढंग से लिखा गया है।

भाषा की दृष्टि से लेखक ने इसे सरल व स्पष्ट बनाने का प्रयास किया है। अल-बिरूनी ने इस रचना-लेखन का उद्देश्य इन शब्दों में स्पष्ट किया है कि “यह उन लोगों के लिए सहायक हो जो उनसे (हिन्दुओं से) धार्मिक विषयों पर चर्चा करना चाहते हैं और ऐसे लोगों के लिए सूचना का संग्रह, जो उनके साथ संबद्ध होना चाहते हैं।” इससे स्पष्ट होता है कि अल-बिरूनी ने इस पुस्तक की रचना इस उपमहाद्वीप के सीमान्त क्षेत्र के लिए की थी, क्योंकि उनका इस क्षेत्र से किसी-न-किसी रूप में संबंध होता रहता था।

अल-बिरूनी ने इस रचना के लेखन में विशेष शैली का प्रयोग किया है। वह प्रत्येक अध्याय को एक प्रश्न से प्रारंभ करता है, फिर उसका उत्तर संस्कृतवादी परंपराओं के अनुरूप विस्तृत वर्णन के साथ करता है। फिर उसका अन्य संस्कृतियों के साथ तुलनात्मक अध्ययन करता है। वह इस कार्य में पाली, प्राकृत इत्यादि भाषाओं के अनुवाद का प्रयोग करता है। वह विभिन्न दन्त कथाओं से लेकर विभिन्न वैज्ञानिक विषयों खगोल-विज्ञान व चिकित्सा विज्ञान इत्यादि विषयों की रचनाएँ हैं। वह प्रत्येक पक्ष का वर्णन आलोचनात्मक ढंग से करता है। जिससे यह स्पष्ट होता है कि वह उनमें सुधार करना चाहता था। उसके लेखन में ज्यामितीय संरचना, स्पष्टता तथा पूर्वानुमान की धारणा विशेष रूप से उभरकर आती है।

हिंदू शब्द की उत्पत्ति सिन्धु से हुई है। फारसी भाषा में ‘स’ शब्द का उच्चारण ‘ह’ से किया जाता है। जिसके कारण वे सिन्धु को हिन्दू या सप्ताह को हप्ताह बोलते हैं। फारस क्षेत्र के लोग सिन्धु नदी के पूर्व रहने वाले लोगों के लिए हिन्दू का प्रयोग करते हैं तथा उनका क्षेत्र हिन्दोस्तान तथा उनकी भाषा को ‘हिंदवी’ के नाम से जानते हैं।

ईरानी अभिलेखों में ‘हिन्द’ शब्द का प्रयोग छठी सदी ई०पू० में सिन्धु क्षेत्र के लिए मिलता है। इसी प्रकार ‘हिन्दुस्तान’ शब्द पहली बार तीसरी सदी ई० में ईरानी के शासानी शासकों के अभिलेखों में मिलता है। अल-बिरूनी ने अपनी इस रचना में ‘हिंदू’ शब्द का प्रयोग किया है।

प्रश्न 2.
इन बतूता का जीवन परिचय दें एवं उसकी पुस्तक ‘रिला’ पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय (Life Sketch)-इब्न बतूता का संक्षिप्त जीवन परिचय निम्न प्रकार से है

(i) पारिवारिक परंपरा (Family Tradition)-इन बतूता का जन्म अफ्रीका महाद्वीप के मोरक्को नामक देश के तैंजियर नामक स्थान पर 24 फरवरी, 1304 ई० को हुआ। बतूता का परिवार इस क्षेत्र में सबसे सम्मानित, शिक्षित व इस्लामी कानूनों का विशेषज्ञ माना जाता था। पारिवारिक परंपरा के अनुसार साहित्यिक व धार्मिक ज्ञान उसे विरासत में मिला जिसको उसने न तथा ज्ञान प्राप्त करने की लालसा के कारण और अच्छी तरह से प्राप्त किया। इस तरह वह कम आयु में ही उच्चकोटि का धर्मशास्त्री बन गया।

(ii) यात्रा पर (On Pilgrimage)-इन बतूता साहित्यिक व शास्त्रीय ज्ञान से सन्तुष्ट नहीं था। उसके मन में यात्राओं के माध्यम से प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करने की लालसा उत्पन्न हुई। इसी की पूर्ति हेतु वह 22 वर्ष की आयु में घर से निकला तथा विश्व के विभिन्न स्थानों तथा दूर-दराज क्षेत्रों की यात्रा की। 1325-1332 ई० तक उसने मक्का व मदीना की यात्रा की तथा इसके बाद सीरिया, इराक, फारस, यमन, ओमान तथा पूर्वी अफ्रीका के देशों की यात्रा की।

उसने अपनी यात्राएँ जल एवं थल दोनों मार्गों से की। इन देशों की यात्रा के उपरांत वह मध्य-एशिया के रास्ते से भारत की ओर बढा तथा । रास्ते से भारत की ओर बढ़ा तथा 1333 ई० में सिन्ध पहुँचने में सफल रहा। भारत आने का उसका मुख्य कारण दिल्ली सल्तनत के सुल्तान मुहम्मद-बिन-तुगलक की ख्याति थी। उसने सुल्तान के कला व साहित्य को संरक्षण देने वाले गुण, विद्वता तथा दया भाव के बारे में सुना था इसलिए वह सिन्ध से दिल्ली की ओर मुल्तान व उच्च के रास्ते से आगे बढ़ा।

(iii) भारत आगमन (Arrived in India)-बतूता सिन्ध से 50 दिन तथा मुल्तान से 40 दिन की यात्रा करने के बाद 1334 ई० में दिल्ली पहुँचा तथा सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक से भेंट की। ये दोनों एक दूसरे की विद्वता से प्रभावित हुए। सुल्तान ने बतूता को दिल्ली का काज़ी (न्यायाधीश) नियुक्त कर उसे शाही सेवा में ले लिया। उसने 8 वर्षों तक इस पद पर कार्य किया।

इसी दौरान सुल्तान के साथ उसका मतभेद हो गया जिसके कारण उसे पद से हटाकर जेल में डाल दिया गया। परन्तु यह स्थिति अधिक समय तक नहीं रही तथा सुल्तान ने एक बार फिर उस पर विश्वास कर शाही सेवा में ले लिया। इस बाद समाज के बारे में उनकी समझ बार उसे चीन में सुल्तान की ओर से दूत बन कर जाने का आदेश दिया। इस समय चीन में मंगोलों का राज्य था। इस तरह 1342 ई० में इन बतूता ने नई नियुक्ति स्वीकार कर चीन की ओर प्रस्थान किया।

(iv) चीन में (To China)-बतूता ने चीन जाने के लिए मालाबार से प्रस्थान किया फिर वहाँ से वह मालद्वीप पहुंचा। वहाँ पर उसने 18 महीनों तक काज़ी के पद पर कार्य किया। मालद्वीप से वह श्रीलंका गया तथा फिर मालाबार लौट आया। उसने एक बार फिर चीन जाने का फैसला किया। परन्तु इस बार उसने बंगाल की खाड़ी का मार्ग पकड़ा तथा बंगाल व असम में भी कुछ समय बिताया।

इसके पश्चात् वह सुमात्रा पहुँचा एवं वहाँ से चीनी बन्दरगाह जायतुन (वर्तमान नाम क्वानझू) उतरा। उसने यहाँ से चीन के विभिन्न स्थानों की यात्रा की तथा मंगोल शासक को बीजिंग में मुहम्मद तुगलक का पत्र सौंपा। शासक ने उसे दूत के रूप में स्वीकार किया लेकिन बतूता, स्वयं वहाँ लम्बे समय तक नहीं रुक सका।

(v) वतन को वापसी (Returned to the Watan)-1347 ई० में वहाँ से वापिस अपने देश मोरक्को के लिए चल दिया। वह 8 नवम्बर, 1349 ई० को अपने पैतृक स्थान तैंजियर पहुँच गया। इसके बाद उसने कुछ समय आधु में बिताया तथा मोरक्को के समीपवर्ती देशों की यात्राएँ भी की। मोरक्को के शासक ने उससे अपने अनुभव तथा विभिन्न स्थानों की जानकारी देने के लिए कहा।

उसने अपनी स्मृति के आधार पर यह सारी जानकारी शासक को उपलब्ध कराई जिसे संकलित कर रिला या रह्ना या सफरनामा नामक पुस्तक के रूप में सुरक्षित किया गया। इसमें 1325-1354 के बीच की उसकी यात्राओं का वर्णन है। इन बतूता ने अपनी मृत्यु 1377 ई० तक का बाकी समय अपने पैतृक स्थान तैंजियर में बिताया तथा शासक ने उसे हर प्रकार की मदद दी।

(vi) संस्मरण (Memoir)-इन बतूता की यात्राओं के बारे में पढ़ते समय हम अहसास कर सकते हैं कि इस विश्व यात्री ने लगभग 30 वर्ष तक विभिन्न महाद्वीपों की यात्रा की। उस युग में यात्राएँ कितनी कठिन थीं, कितनी तरह के संकट थे, यह केवल कल्पना ही की जा सकती है। वह बताता है कि यात्राओं के दौरान उसने कई बार डाकुओं के आक्रमणों को झेला क्योंकि डाकू कारवों पर भी आक्रमण कर देते थे।

मुल्तान से दिल्ली मार्ग पर उनके कारवां पर एक खतरनाक आक्रमण हुआ, जिनमें से कई यात्रियों की मृत्यु हो गई तथा कई घायल हो गए। वह स्वयं भी इसमें घायल हुआ। इसके अतिरिक्त उस युग में आवागमन के साधन नहीं के बराबर थे। प्रायः यात्रा पैदल या पशुओं की गाड़ी में होती थी। इससे बहुत समय लगता था। वह बताता है कि उसने मुल्तान से दिल्ली तथा दिल्ली से दौलताबाद की दूरी 40-40 दिन में तय की। इसी तरह ग्वालियर से दिल्ली 10 दिन में तय की।

इन कठिनाई भरी यात्राओं के बाद भी उसने विभिन्न नई-नई संस्कृतियों, लोगों, आस्थाओं, मान्यताओं, चीजों व परम्पराओं को कुशलतापूर्वक लिखा। जो विश्व के बड़े हिस्से की जानकारी का स्रोत बन गया। चीन के वृत्तांत के बारे में तो उसकी तुलना वेनिस (13वीं सदी का) यात्री मार्को पोलो से की जाती है, जिसने हिन्द महासागर के रास्ते चीन व भारत की यात्रा की। भारत व चीन के अतिरिक्त बतूता का वर्णन उत्तरी अफ्रीका, पश्चिम एशिया व मध्य-एशिया के बारे में विस्तृत जानकारी देता है। उससे सुनकर बतूता के अनुभवों का लेखक इन जुजाई लिखता है कि उसकी जानकारी बताने का तरीका इतना अच्छा था कि ऐसा लगता था कि वह उसके साथ यात्रा कर रहा है।

2. रिहला : एक परिचय (Rihla : An Introduction)-रिला या किताब-ए-रला इब्न बतूता के संस्मरणों पर आधारित रचना है। इसे ‘सफरनामा’ के नाम से अनुवादित किया गया है। बतूता के मोरक्को वापिस पहुंचने पर वहाँ के शासक ने इन जुजाई नामक व्यक्ति को यह कार्य दिया कि वह बतूता से बातचीत करे तथा उसकी स्मृति को एक रचना के रूप में प्रस्तुत करे। इन जुजाई रिला की प्रस्तावना में लिखता है

(राजा के द्वारा) एक शालीन निर्देश दिया गया कि वे (इब्न बतूता) अपनी यात्रा में देखे गए शहरों का तथा अपनी स्मृति में बैठ गई रोचक घटनाओं का एक वृत्तांत लिखवाएँ और साथ ही विभिन्न देशों के शासकों में से जिनसे वे मिले, उनके महान् साहित्यकारों के तथा उनके धर्मनिष्ठ संतों के बारे में बताएं। तदनुसार उन्होंने इन सभी विषयों पर एक कथानक लिखवाया जिसने मस्तिष्क को मनोरंजन तथा कान और आँख को प्रसन्नता दी। साथ ही उन्होंने कई प्रकार के असाधारण विवरण जिनके प्रतिपादन से लाभप्रद उपदेश मिलते हैं, दिए तथा असाधारण चीजों के बारे में बताया जिनके सन्दर्भ से अभिरुचि जगी।”

इन जुजाई के इस लेखन से इस बात का ज्ञान होता है कि बतूता का वृत्तांत किस तरह, क्यों लिखवाया गया तथा उसने किस-किस प्रकार की जानकारी दी।

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रिला में भारत के बारे में विस्तृत वर्णन दिया गया है। इस वर्णन में भारत की प्रकृति, पशु-पक्षी, वन, नदियों, गाँव व शहरों के बारे में बताया गया है। उसने मुहम्मद तुगलक के बारे में भी विस्तृत प्रकाश डाला है। उसकी जानकारी कई अर्थों में जियाऊद्दीन बर्नी की तारीख-ए-फिरोज शाही से भिन्न है। बतूता मुहम्मद तुगलक को सन्तुलित, शिक्षित, न्यायप्रिय, प्रतिभाशाली व दूरदर्शी शासक बताता है जबकि बर्नी उसे जल्दबाज, अन्यायी, मूर्ख, जिद्दी तथा अपरिपक्व बताता है।

इब्न बतूता ने जो कुछ बताया वह बाद में इस रचना के रूप में आया जो उच्च लेखकों व यात्रियों के लिए यह मार्गदर्शक पहलू बन गया। इनमें सबसे अधिक प्रभावित होने वाले यात्रियों में समरकंद का अब्दुर रज्जाक (यात्रा लगभग 1440), महमूद वली बलखी (यात्रा लगभग 1620) तथा शेख अली हाजिन (यात्रा लगभग 1740) के नाम लिए जा सकते हैं। इनमें बलखी तो भारत से इतना प्रभावित हुआ कि कुछ समय के लिए संन्यासी बन गया।

दूसरी ओर हाजिन भारत से निराश हुआ तथा घृणा भी करने लगा क्योंकि उसे भारत में आशा के अनुरूप स्वागत नहीं मिला। इन सभी यात्रियों के बारे में सामान्य बात यह है कि इन्होंने भारत का वर्णन अचंभों के देश के रूप में किया। इनको इस क्षेत्र के आम व्यक्ति की गतिविधियाँ भी विचित्र लगती थीं। उदाहरण के तौर पर भारतीय किसान का खेती का कार्य करते हुए मात्र लंगोटी बांधना या फिर लोटे से बिना मुँह लगाए पानी-पीना इत्यादि।

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Haryana Board 12th Class History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

HBSE 12th Class History यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
किताब-उल-हिन्द पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
‘किताब-उल-हिन्द’, अल-बिरूनी द्वारा रचित सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसे ‘तहकीक-ए-हिन्द’ के नाम से भी जाना जाता है। मौलिक तौर पर यह ग्रंथ अरबी भाषा में लिखा गया है तथा बाद में यह विश्व की कई प्रमुख भाषाओं में अनुवादित हुआ। इसमें कुल 80 अध्याय हैं जिनमें भारत के धर्म, दर्शन, समाज, परंपराओं, चिकित्सा, ज्योतिष इत्यादि विषयों को विस्तृत ढंग से लिखा गया है। भाषा की दृष्टि से लेखक ने इसे सरल व स्पष्ट बनाने का प्रयास किया है।

अल-बिरूनी ने इस रचना के लेखन में विशेष शैली का प्रयोग किया है। वह प्रत्येक अध्याय को एक प्रश्न से प्रारंभ करता है, फिर उसका उत्तर संस्कृतवादी परंपराओं के अनुरूप विस्तृत वर्णन के साथ करता है। फिर उसका अन्य संस्कृतियों के साथ तुलनात्मक अध्ययन करता है। वह इस कार्य में पाली, प्राकृत इत्यादि भाषाओं के अनुवाद का प्रयोग करता है। वह विभिन्न दन्त कथाओं से लेकर विभिन्न वैज्ञानिक विषयों खगोल-विज्ञान व चिकित्सा विज्ञान इत्यादि विषयों की रचनाएँ है। वह प्रत्येक पक्ष का वर्णन आलोचनात्मक ढंग से करता है।

प्रश्न 2.
इब्न बतूता और बर्नियर ने जिन दृष्टिकोणों से भारत में अपनी यात्राओं के वृत्तांत लिखे थे, उनकी तुलना कीजिए तथा अंतर बताइए।
उत्तर:
इब्न बतूता और बर्नियर दोनों ही विदेशी यात्री हैं। इन दोनों ने ही भारत के बारे में अपना वृत्तांत विस्तार से लिखा है। तुलनात्मक दृष्टि से इनके वृत्तांत में कुछ समानता है तो कुछ अंतर भी है।

इब्न बतूता अफ्रीका में मोरक्को देश का रहने वाला था। वह धर्मशास्त्री था। उसने साहित्यिक व शास्त्रीय यात्राओं के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने के उद्देश्य से 1325 ई० में यात्रा प्रारंभ की। मध्य-एशिया में उसने भारत के शासक मुहम्मद-बिन-तुगलक की प्रशंसा सुनी। इससे उसके मन में शासक से मिलने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई। वह 1334 ई० में दिल्ली पहुँचा।

मुहम्मद-बिन-तुगलक व इब्न बतूता दोनों एक-दूसरे की विद्वता से प्रभावित हुए। शासक ने उसे दिल्ली का काज़ी नियुक्त किया तथा बाद में दूत बनाकर चीन भी भेजा। चीन जाने के बाद वह 1349 ई० में स्वदेश चला गया। मोरक्को के शासक के निर्देश पर इन जुजाई ने उससे अनुभव लेकर ‘रिला’ नामक ग्रंथ की रचना की।

दूसरी ओर बर्नियर फ्रांस का रहने वाला था। वह व्यवसाय से चिकित्सक था। वह शाहजहाँ के शासन काल के अंतिम दिनों 1656 ई० में भारत आया तथा 1668 में स्वदेश चला गया। उसने ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ नामक पुस्तक लिखी। . दोनों में समानता यह है कि दोनों ने अपने-अपने समय के शासकों के दरबार, सामंतों व अन्य उच्च वर्ग के लोगों के जीवन की जानकारी दी। दोनों ने समाज की परंपराओं विशेषकर विवाह प्रणाली, सती प्रथा तथा त्योहारों इत्यादि का वर्णन किया है। दोनों का वृत्तांत अन्य लोगों के लिए प्रेरणा बना है।

दोनों में अंतर मुख्य रूप से उद्देश्य को लेकर है। बतूता अधिक-से-अधिक जानकारी लेकर जिज्ञासा को शांत करना चाहता है जबकि बर्नियर पूर्व (भारत) तथा पश्चिम (यूरोप) की तुलना करते हुए, भारत को निम्न बताना चाहता है। वह यूरोप में पूंजीवाद के उत्थान की स्थितियों के अनुरूप लिखता है। इब्न बतूता ने स्वयं कुछ नहीं लिखा जबकि बर्नियर ने रचना स्वयं लिखी है।

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प्रश्न 3.
बर्नियर के वृत्तांत से उभरने वाले शहरी केंद्रों के चित्र पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर ने मुगल काल के नगरों का वर्णन किया है। उसके अनुसार भारत की जनसंख्या का लगभग पंद्रह प्रतिशत भाग मनपात यूरोप की नगरीय जनसंख्या के अनुपात से अधिक था। मुगलकालीन नगरों को बर्नियर शिविर नगर’ कहता था अर्थात् ऐसे नगर जो अपने अस्तित्व के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर करते थे। ये ‘शिविर नगर’ तभी बनते थे जब राजकीय दरबार का आगमन होता था। राजकीय कारवाँ के निकल जाने के बाद इन शिविर नगरों का आविर्भाव समाप्त हो जाता था। यह सामाजिक और आर्थिक रूप से राजकीय प्रश्रय पर निर्भर करते थे।

बर्नियर के अनुसार उस काल में सभी प्रकार के नगर अस्तित्व में थे। ये नगर उत्पादन केंद्र, व्यापारिक नगर, बंदरगाह नगर, धार्मिक केंद्र, तीर्थ स्थान आदि श्रेणियों में विभाजित थे। वास्तव में इनका अस्तित्व समृद्ध व्यापारिक समुदायों तथा व्यावसायिक वर्गों के अस्तित्व का परिचायक था। . इस काल में नगरों की एक विशेषता और भी उभरकर सामने आई। घ्यापारी वर्ग मजबूत सामुदायिक एवं बंधुत्व के संबंधों से जुड़े हुए थे।

वे व्यावसायिक और जातिगत संस्थाओं के माध्यम से संगठित थे। पश्चिमी भारत में ऐसे समूहों को महाजन कहा. जाता था और उनके मुखिया को सेठ। अहमदाबाद जैसे शहरी केंद्रों के सभी महाजनों का सामूहिक प्रतिनिधित्व व्यापारिक समुदाय के मुखिया या सेठ द्वारा होता था। शहर के अन्य समुदायों के व्यावसायिक वर्ग में चिकित्सक (हकीम-वैद्य), अध्यापक (मुल्ला-पंडित), अधिवक्ता (वकील) चित्रकार, वास्तुविद, संगीतकार, सुलेखक आदि सम्मलित थे। ये राजकीय आश्रय अथवा अन्य के संरक्षण में रहते थे।

प्रश्न 4.
इब्न बतूता द्वारा दास प्रथा के संबंध में दिए गए साक्ष्यों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
इब्न बतूता द्वारा दास प्रथा के बारे में कई साक्ष्य दिए गए हैं। उसके अनुसार भारत में दास बाजार में उसी तरह बिकते हैं जैसी कि अन्य दैनिक प्रयोग की वस्तुएँ। लोग इन दास-दासियों को घरेलू कार्यों तथा उपहार इत्यादि के लिए खरीदते हैं। वह जब स्वयं सिन्ध पहुँचा तो उसने सुल्तान मुहम्मद-बिन-तुगलक को भेंट देने के लिए दास खरीदे। उसने मुल्तान पहुँचकर, वहाँ के गवर्नर को किशमिश व बादाम के साथ एक दास और कुछ घोड़े भेंट किए। सुल्तान मुहम्मद तुगलक ने नसीरुद्दीन नामक एक धर्मोपदेशक को उसके ज्ञान व प्रवचन से प्रभावित होकर एक लाख टके तथा दो सौ दास दिए।

इब्न बतूता के अनुसार, पुरुष दास का प्रयोग घरेलू कार्यों; जैसे बाग-बगीचों की देखभाल, पशुओं की देखरेख, महिलाओं व पुरुषों को पालकी या डोली में एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने के लिए होता था। दासियाँ शाही महल, अमीरों के आवास पर घरेलू कार्य करने व संगीत गायन के लिए खरीदी जाती थीं। वह बताता है कि शासक की बहन की शादी में इन दासियों ने बहुत उच्चकोटि के कार्यक्रम प्रस्तुत किए थे। सुल्तान अपने अमीरों व दरबारियों पर नियंत्रण रखने के लिए भी दासियों का प्रयोग करता था।

प्रश्न 5.
सती प्रथा के कौन से तत्वों ने बर्नियर का ध्यान अपनी ओर खींचा?
उत्तर:
बर्नियर ने अपने वृत्तांत में सती प्रथा के बारे में काफी विस्तार से लिखा है। उसने 12 वर्ष की आयु की एक लड़की के सती होने का मार्मिक वर्णन किया है। उसने सती होने या करने की विधि भी लिखी है। बर्नियर अपने वर्णन में सती के विभिन्न पक्षों का उल्लेख करते हुए जिस तरह लिखता है उससे स्पष्ट होता है कि कई तत्वों ने उसका ध्यान इस दिशा में खींचा। इनका संक्षेप में वर्णन इस प्रकार है

  • सती प्रथा यूरोप की प्रथाओं से अलग थी। किसी जीवित व्यक्ति को जलाने की प्रथा उसे अमानवीय लगी।
  • उसे भारत में अल्पवयस्क शादी आश्चर्यजनक लगी और अल्पावस्था में विधवा को सती करना और अधिक आश्चर्यजनक लगा।
  • उसे सती होने जा रही बच्ची की मनोदशा पर तरस आ रहा था।
  • उसे परिवार की बूढ़ी महिला व ब्राह्मणों का व्यवहार अजीब लगा। क्योंकि वे किसी जीवित व्यक्ति को जलाने को महसूस नहीं कर रहे थे, बल्कि प्रथा का पालन करने में व्यस्त थे।
  • विधवा के हाथ-पाँव बाँधना तथा फिर ढोल-नगाड़ों की आवाज में मरने वाले प्राणी की आवाज को दबाने से अधिक आश्चर्यजनक पहलू और क्या हो सकता था।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में)

प्रश्न 6.
जाति व्यवस्था के संबंध में अल-बिरूनी की व्याख्या पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
अल-बिरूनी की भारतीय समाज के बारे में समझ उसी वैदिक ज्ञान पर आधारित थी जिसमें वर्गों की उत्पत्ति बताई गई है। इस समझ के अनुसार ब्राह्मण का इस समाज में सर्वोच्च स्थान था। उनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के सिर से हुई, उसके बाद क्षत्रियों का स्थान था जिनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के कंधों व हाथों से हुई। क्षत्रियों के बाद वैश्यों का स्थान था। इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा की जंघाओं से हुई है। इस कड़ी में चौथा स्थान शूद्रों का है। इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के चरणों से हुई है। वह यह भी लिखता है कि तीसरे व चौथे वर्ण में कोई अधिक अंतर नहीं है।

अल-बिरूनी इस विभाजन को ब्राह्मण वर्ग द्वारा संचालित बताता है, परन्तु वह अपवित्रता की धारणा को स्वीकार नहीं कर पाता। वह लिखता है कि हर वह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है वह पूर्णतया स्थायी नहीं होती बल्कि वह अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को प्राप्त करने का प्रयास करती है तथा अन्ततः सफल भी होती है। वह अपने मत के पक्ष में उदाहरण देकर स्पष्ट करता है कि हवा कितनी भी प्रदूषित क्यों न हो, सूर्य उसे स्वच्छ कर देता है। इसी तरह समुद्र के पानी में नमक की उपस्थिति भी उसे गंदा होने से बचाती है। उसके अनुसार यदि प्रकृति में अशुद्ध को शुद्ध करने का गुण नहीं होता तो पृथ्वी पर जीवन सम्भव नहीं होता।

इसी तरह जाति-व्यवस्था में अपवित्रता की व्याख्या प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है। अल-बिरूनी भारतीय समाज की जाति प्रथा की तुलना फारस से करता है। वह यह भी स्पष्ट करता है कि भारत में वर्गों की उत्पत्ति का संबंध ब्रह्मा से माना जाता है लेकिन फारस में विभाजन का आधार कार्य है। वहाँ पहले वर्ग में शासक व घुड़सवार (अर्थात सैनिक), दूसरे वर्ग में भिक्षु, तीसरे में चिकित्सक, शिक्षक, पुरोहित थे, जबकि चौथे में कृषक व शिल्पकार थे। इन सभी में व्यवसायों में बदलाव से समाज में इनकी पहचान भी बदल जाती थी।

अल-बिरूनी बताता है कि भारतीय समाज में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र के अतिरिक्त भी एक वर्ग था जिससे व्यवस्था से बाहर माना जाता था। उसे लोग अंत्यज कहते थे। यह वर्ग सामाजिक दृष्टि से व्यवस्था से बाहर अवश्य था, लेकिन आर्थिक तौर पर कृषि इत्यादि में अपनी सेवा निरंतर देता रहता था।

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प्रश्न 7.
क्या आपको लगता है कि समकालीन शहरी केंद्रों में जीवन-शैली की सही जानकारी प्राप्त करने में इब्न बतूता का वृत्तांत सहायक है? अपने उत्तर के कारण दीजिए।
उत्तर:
इन बतूता ने भारत के विभिन्न शहरों में अपना काफी समय बिताया। उसने जो कुछ वहाँ देखा, उसका वर्णन कर दिया। उसने अपना वर्णन इतनी कुशलता से किया है कि पाठक को यह एहसास होता है जैसे वह उस स्थान पर हो। उसके वृत्तांत से तत्कालीन शहर की बसावट तथा जीवन-शैली की विस्तार से जानकारी मिल जाती है। इस बात की पुष्टि उसके द्वारा दिल्ली व दौलताबाद के वृत्तांत से हो जाती है। उदाहरण के लिए इस वृत्तांत को लिया जा सकता है।

दिल्ली-बतूता के अनुसार “देहली बड़े क्षेत्र में फैला घनी आबादी वाला शहर है………. शहर के चारों ओर बनी प्राचीर अतुलनीय है, दीवार की चौड़ाई ग्यारह हाथ है; और इसके भीतर रात्रि के पहरेदार तथा द्वारपालों के कक्ष हैं। प्राचीर के अन्दर खाद्य सामग्री, हथियार, बारूद, प्रक्षेपास्त्र तथा घेरेबंदी में काम आने वाली मशीनों के संग्रह के लिए भंडार गृह बने हुए थे……….. प्राचीर के भीतरी भाग में घुड़सवार तथा पैदल सैनिक शहर की ओर से दूसरे छोर तक आते-जाते हैं।

प्राचीर में खिड़कियाँ बनी हुई हैं जो शहर की ओर खुलती हैं और इन्हीं खिड़कियों के माध्यम से प्रकाश अंदर आता है। प्राचीर का निचला भाग पत्थर से बना है जबकि ऊपरी भाग ईंटों से। इस शहर में कुल 28 द्वार हैं जिन्हें दरवाजा कहा जाता है। इनमें सबसे विशाल बदायूँ दरवाजा है। मांडवी दरवाजे के अन्दर अनाज मण्डी है, गुल दरवाजे के बगल में फलों का एक बगीचा है…….देहली शहर में एक बेहतरीन कब्रगाह है जिसमें : बनी कब्रों के ऊपर गुंबद बनाई गई है और जिन कब्रों पर गुंबद नहीं हैं उनमें निश्चित रूप से मेहराब है। कब्रगाह में कंदाकार, चमेली

तथा जंगली गुलाब जैसे फूल उगाए जाते हैं और ये फूल सभी मौसमों में खिले रहते हैं।” दौलताबाद-दौलताबाद के बारे में बतूता बताता है कि यह दिल्ली से किसी तरह कम नहीं था और आकार में उसे चुनौती देता था। यहाँ पुरुष व महिला गायकों के लिए एक बाजार था जिसे ताराबंबाद कहते थे। यह सबसे बड़े एवं सुन्दर बाजारों में से एक था। यहाँ बहुत सी दुकानें थीं। दुकानों को कालीन से सजाया जाता था। बाजार के मध्य में एक विशाल गुंबद खड़ा था जिसमें कालीन बिछाए गए थे। प्रत्येक गुरुवार सुबह की इबादत के बाद संगीतकारों के प्रमुख अपने सेवकों और दासों के साथ स्थान ग्रहण करते थे।

गायिकाएँ एक के बाद एक झुण्डों में उनके समक्ष आकर सूर्यास्त का गीत गाती और नाचती थीं। इन बतूता के दोनों शहरों के वृत्तांत को जानने के बाद शहरी जन-जीवन की विस्तृत झांकी आँखों के सामने आती है जिससे स्पष्ट होता है कि शहर की बनावट कैसी थी। उसकी सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाए गए थे। वहाँ बाजार में क्या मिलता था। शहरों में सांस्कृतिक गतिविधियाँ किस तरह चलती थीं। अतः स्पष्ट है कि इन बतूता का वृत्तांत समकालीन शहरी केंद्रों की जानकारी का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

प्रश्न 8.
चर्चा कीजिए कि बर्नियर का वृत्तांत किस सीमा तक इतिहासकारों को समकालीन ग्रामीण समाज को पुनर्निर्मित .. करने में सक्षम करता है?
उत्तर:
बर्नियर ने अपने वृत्तांत में भारतीय ग्रामीण समाज के बारे में बहुत कुछ लिखा है। वह इस बारे में स्पष्ट करता है कि भारत में ग्रामीण समाज पिछड़ा हुआ है। उसके अनुसार “हिंदुस्तान के साम्राज्य के विशाल ग्रामीण अंचलों में अधिकतर रेतीली या बंजर हैं। यहाँ की खेती अच्छी नहीं है और इन इलाकों में आबादी भी कम है। यहाँ तक कि कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा हिस्सा श्रमिकों के अभाव में कृषि विहीन रह जाता है, गरीब लोग अपने लोभी स्वामियों की माँगों को पूरा करने में प्रायः असमर्थ रहते हैं।

वे अत्यंत निरंकुशता से हताश हो गाँव छोड़कर चले जाते हैं।” बर्नियर का यह वृत्तांत एक पक्षीय है। इस बात को समझने के लिए इतिहासकार को उसके लेखन का उद्देश्य समझना होगा। जिसमें यह स्पष्ट है कि वह यूरोप में निजी स्वामित्व जारी रखना चाहता है। वह भारत के कृषक व ग्रामीण समाज की दुर्दशा के लिए भूमि स्वामित्व को जिम्मेदार ठहराता है। यह भारत में स्वामित्व निजी के स्थान पर शासकीय मानता है।

इतिहासकार उसके वृत्तांत को पढ़कर सामान्य रूप से यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि भारतीय ग्राम पिछड़े हुए थे। ऐसा कार्ल मार्क्स व मॉन्टेस्क्यू ने भी कहा है। इसके लिए जरूरी है कि इतिहासकार अन्य तुलनात्मक स्रोतों का अध्ययन करें। वह बर्नियर की स्थिति तथा लेखन के उद्देश्य को भी समझे। इतिहासकार ग्रामीण समाज के अन्य पक्षों विशेषकर लोगों की जीवन शैली के बारे में भी जानने का प्रयास करे। इन बिंदुओं पर ध्यान रखकर 17वीं शताब्दी के गाँवों के बारे में इतिहासकार समझ बना सकता है।

इसी कदम पर आगे बढ़ते हुए इतिहासकार समकालीन ग्रामीण समाज को भी समझ सकता है। वह बर्नियर की तरह के स्रोतों का जब मूल्यांकन कर लेगा तथा अन्य स्रोतों का अध्ययन उसकी विषय-वस्तु में होगा तो निश्चित तौर पर समकालीन समाज को अच्छी तरह समझ सकता है। अतः बर्नियर का वृत्तांत इतिहास को समकालीन ग्रामीण समाज समझने का मार्ग तो देता है लेकिन उसके दोषों के प्रति भी उसे सचेत होना होगा।

यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ HBSE 12th Class History Notes

→ शास्त्ररूढ़-शास्त्रों से संबंधित

→ शरिया (शरियत)-इस्लामी कानून

→ कारवाँ-बड़ी सामूहिक यात्रा

→ श्रुतलेख-सुनकर लिखना

→ इतालवी-इटली का निवासी

→ ऑटोमन साम्राज्य-तुर्की का साम्राज्य

→ अमीर (मध्यकाल में) सामंत

→ डच हॉलैण्ड के निवासी

→ पुनः मुद्रित दोबारा प्रकाशन

→ हस्तलिपियाँ हाथ से लिखे गए ग्रन्थ

→ अवरोध-समस्या

→ पतंजलि की कृति–पतंजलि की रचना

→ अंत्यज-सामाजिक वर्ण व्यवस्था से बाहर के लोग

→ काज़ी-न्याय करने वाला इस्लाम धर्म का विशेषज्ञ

→ ताराबबाद-गायकों का बाजार

→ उलुक-अश्व वाली डाक सेवा

→ दावा-पैदल डाक सेवा

→ कालीकट-वर्तमान कोजीकोड (केरल)

→ द्वि-विपरीतता दोनों को एक-दूसरे के विपरीत

→ बेहतर-भूमि धारकों का वर्ग

→ बलाहार-भूमिहीन कृषक

→ टका-सल्तनत काल की मुद्रा

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

→ भारत में प्राचीन काल से विदेशी यात्री आते रहे हैं। ये यात्री व्यापार, रोजगार, तीर्थ यात्रा या धर्म प्रचार इत्यादि उद्देश्यों से आए। इन यात्रियों में से कुछ ने अपने वृत्तांत पुस्तक, व्यक्तिगत डायरी व संस्मरण के रूप में लिखे हैं। उनके यही लिखित साक्ष्य हमें भारतीय इतिहास के विभिन्न पक्षों को समझने का आधार देते हैं।

→ प्रस्तुत अध्याय में भारतीय उपमहाद्वीप में आने वाले उन यात्रियों का वर्णन है जिन्होंने मध्यकालीन समाज के बारे में विस्तृत वर्णन दिया है। इस बारे में भी सभी यात्रियों का वर्णन सम्भव नहीं है अतः केवल तीन यात्रियों पर अपना ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं। ये यात्री ग्यारहवीं शताब्दी में मध्य-एशिया वर्तमान उज्बेकिस्तान से आने वाले अल-बिरूनी, चौदहवीं शताब्दी में मोरक्को (अफ्रीका) से आने वाले इब्न बतूता तथा सत्रहवीं शताब्दी में फ्रांसीसी यात्री फ्रांस्वा बर्नियर हैं।

→ इन यात्रियों ने जिस तरह सामाजिक स्थिति का वर्णन किया है उससे कालक्रम के अनुरूप लगभग पूरे मध्यकाल की समझ बनती है। अरब लेखकों में सबसे महत्त्वपूर्ण व विस्तृत जानकारी देने वाला व्यक्ति अल-बिरूनी है जो महमूद क देने वाला व्यक्ति अल-बिरूनी है जो महमूद के साथ भारत आया, जिसने तत्कालीन भारत की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व धार्मिक स्थिति पर प्रकाश डाला।

→ अल-बिरूनी का वास्तविक नाम अबू रेहान था। उसका जन्म मध्य-एशिया में स्थित आधुनिक उज्बेकिस्तान के ख्वारिज्म (वर्तमान नाम खीवा) नामक स्थान पर 973 ई० में हुआ। ख्वारिज्म इस समय शिक्षा का अति महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। अल-बिरूनी को इसी स्थान पर शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला। उसने यहाँ पर सीरियाई, हिब्रू, फारसी, अरबी व संस्कृत भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। इसलिए वह इन भाषाओं में लिखित मौलिक ग्रन्थों को पढ़ पाया। वह यूनानी भाषा को नहीं समझता था लेकिन इस भाषा के सभी प्रमुख ग्रन्थ अनुवादित हो चुके थे। इसी कारण वह प्लेटो व अरस्तु के दर्शन व ज्ञान को अनुवादित रूप में पढ़ पाया। इस तरह वह अपने जीवन के प्रारंभिक दौर में ही विभिन्न भाषाओं के साहित्य से परिचित हो गया।

→1017 ई० में महमूद ने ख्वारिज्म पर आक्रमण किया तथा जीत हासिल की। विजय के बाद उसने यहाँ पर कुछ लोगों को बंदी बनाया। इनमें कुछ विद्वान तथा कवि भी थे। अल-बिरूनी भी इन्हीं बंदी लोगों में एक था तथा वह इसी अवस्था में गजनी लाया गया। गजनी में रहते हुए महमूद उसकी प्रतिभा से प्रभावित हुआ। फलतः न केवल महमूद ने उसे मुक्त किया वरन् उसे दरबार में सम्मानजनक पद भी दिया। बाद में अल-बिरूनी उसका राजकवि भी बना। गजनी प्रवास के दौरान उसने खगोल-विज्ञान, गणित व चिकित्सा से संबंधित पुस्तकें पढ़ीं। वह महमूद के साथ भारत में कई बार आया तथा उसने इस क्षेत्र में ब्राह्मणों, पुरोहितों व विद्वानों के साथ काफी समय बिताया।

→ उनके साथ रहने के कारण वह संस्कृत भाषा में और प्रवीण हो गया। अब वह न केवल इसे समझ सकता था बल्कि अनुवाद करने में भी सक्षम हो गया। उसने सहारा रेगिस्तान से लेकर वोल्गा नदी तक की यात्रा के आधार पर लगभग 20 पुस्तकों की रचना की। इन रचनाओं में सबसे महत्त्वपूर्ण ‘किताब-उल-हिन्द’ है जिसे ‘अल बरूनीज इण्डिया’ के नाम से जाना जाता है। गजनी में ही 1048 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

→ इब्न बतूता चौदहवीं शताब्दी का यात्री था। उसने विश्व के विभिन्न क्षेत्रों का भ्रमण 1325 से 1354 ई० तक किया। अफ्रीका, एशिया व यूरोप के कुछ हिस्से की यात्रा करने के कारण इसे, एक प्रारंभिक विश्व यात्री की संज्ञा दी जाती है। इब्न बतूता का जन्म अफ्रीका महाद्वीप के मोरक्को नामक देश के तैंजियर नामक स्थान पर 24 फरवरी, 1304 ई० को हुआ। बतूता का परिवार इस क्षेत्र में सबसे सम्मानित, शिक्षित व इस्लामी कानूनों का विशेषज्ञ माना जाता था। बतूता कम आयु में ही उच्चकोटि का धर्मशास्त्री बन गया।

→ इन बतूता साहित्यिक व शास्त्रीय ज्ञान से सन्तुष्ट नहीं था। उसके मन में यात्राओं के माध्यम से प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करने की लालसा उत्पन्न हुई। इसी की पूर्ति हेतु वह 22 वर्ष की आयु में घर से निकला तथा विश्व के विभिन्न स्थानों तथा दूर-दराज क्षेत्रों की यात्रा की। 1325-1332 ई० तक उसने मक्का व मदीना की यात्रा की तथा इसके बाद सीरिया, इराक, फारस, यमन, ओमान तथा पूर्वी अफ्रीका के देशों की यात्रा की। उसने अपनी यात्राएँ जल एवं थल दोनों मार्गों से की। इन देशों की यात्रा के उपरांत वह मध्य-एशिया के रास्ते से भारत की ओर बढ़ा तथा 1333 ई० में सिन्ध पहुँचने में सफल रहा।

→ बतूता 1334 ई० में दिल्ली पहुँचा तथा सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक से भेंट की। ये दोनों एक दूसरे की विद्वता से प्रभावित हुए। सुल्तान ने बतूता को दिल्ली का काजी (न्यायाधीश) नियुक्त कर उसे शाही सेवा में ले लिया। उसने 8 वर्षों तक इस पद पर कार्य किया। इसी दौरान सुल्तान के साथ उसका मतभेद हो गया जिसके कारण उसे पद से हटाकर जेल में डाल दिया गया।

→ परन्तु यह स्थिति अधिक समय तक नहीं रही तथा सुल्तान ने एक बार फिर उस पर विश्वास कर शाही सेवा में ले लिया। इस बार उसे चीन में सुल्तान की ओर से दूत बन कर जाने का आदेश दिया। इस समय चीन में मंगोलों का राज्य था। इस तरह 1342 ई० में इन बतूता ने नई नियुक्ति स्वीकार कर चीन की ओर प्रस्थान किया। . वह सुमात्रा होते हुए चीनी बन्दरगाह जायतुन (वर्तमान नाम क्वानझू) उतरा। उसने यहाँ से चीन के विभिन्न स्थानों की यात्रा की तथा मंगोल शासक को बीजिंग में महम्मद तगलक का पत्र सौंपा। शासक ने उसे दूत के रूप में स्वीकार किया, लेकिन बतता स्वयं वहाँ लम्बे समय तक नहीं रुक सका।

→ 1347 ई० में वहाँ से वापिस अपने देश मोरक्को के लिए चल दिया। वह 8 नवम्बर, 1349 ई० को अपने पैतृक स्थान तेंजियर मोरक्को के शासक ने उससे अपने अनुभव तथा विभिन्न स्थानों की जानकारी देने के लिए कहा। उसने अपनी स्मृति के आधार पर यह सारी जानकारी शासक को उपलब्ध कराई जिसे संकलित कर रिला या रला या सफरनामा नामक पुस्तक के रूप में सुरक्षित किया गया। इब्न बतूता की अपने पैतृक स्थान तैंजियर में 1377 ई० में मृत्यु हो गई।

→ बर्नियर एक राजनीतिज्ञ, दार्शनिक तथा इतिहासकार था। उसने बारह वर्ष (1656-68) का समय भारत में लगाया। वह शाहजहाँ के बड़े बेटे दारा शिकोह का चिकित्सक था। बर्नियर का जन्म फ्रांस के अजों नामक प्रान्त के जुं नामक स्थान पर 1620 ई० में हुआ। उसका परिवार कृषि का कार्य करता था। उसने कृषि के साथ-साथ पढ़ाई की तथा पेशे से चिकित्सक बन गया। इसी व्यवसाय को करते हुए उसने फिलिस्तीन, सीरिया व मिस्र की यात्रा की। वह 1656 ई० में सूरत पहुँचा तथा इसी वर्ष दारा शिकोह ने उसे अपना चिकित्सक बना दिया।

→ उसने शाहजहाँ के शासनकाल में उत्तराधिकार के युद्ध की कुछ घटनाएँ देखी जिसका उसने विस्तार से वर्णन किया है। दारा की मृत्यु के बाद उसे आर्मीनियाई अमीर (सामन्त) डानिश मंडखान ने संरक्षण दिया। उसने भारत में सूरत, आगरा, लाहौर, कश्मीर, कासिम बाजार, मसुलीपट्टम व गोलकुण्डा इत्यादि स्थानों का भ्रमण किया। वह 1668 ई० में भारत से फ्रांस लौट गया। 1688 ई० में उसके पैतृक स्थान पर ही उसकी मृत्यु हो गई।

→ फ्रांस्वा बर्नियर ने मुगल काल में भारत की यात्रा की। उसने जो कुछ देखा व समझा उसे ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ नामक रचना में लिखता गया। उसकी यह रचना फ्रांस में 1670-71 में प्रकाशित हुई तथा इसे फ्रांस के शासक लुई XIV को समर्पित किया गया। प्रारंभिक पाँच वर्षों 1670-75 के बीच यह रचना अंग्रेजी, डच, जर्मन तथा इतालवी में अनुवादित हो गई तथा आठ बार फ्रांसीसी में इसका पुनर्मुद्रण हुआ। इन तीनों ही यात्रियों ने भारत के बारे में वृत्तांत दिया है। यह वृत्तांत काफी सूचनाप्रद तथा रोचक है।

क्रम संख्याकालयात्रीदेश/क्षेत्र
1.711-12मोहम्मद-बिन-कासिमअरब क्षेत्र
2.973-1048अल-बिरूनीउज्बेकिस्तान
3.1254-1323मार्को पोलोइटली
4.1304-1377इब्न बतूतामोरक्को (अफ्रीका)
5.1413-82अंब्दुर-रज़्ज़ाकसमरकन्द
6.1498वास्कोडिगामापुर्तगाल
7.1518दूरते बारबोसापुर्तगाल
8.1580-84फादर मान्सरेतस्पेन
9.1582-91राल्फ फिचइंग्लैड
10.1615-19सर टॉमस रोइंग्लैंड
111617-20एडवर्ड टेरीइंग्लैंड
121626-31महमूदवली बलखीबल्ख
131620-27फ्रेन्को पेलसर्टइंग्लैंड
141600-1667पीटर मुंडीइंग्लैंड
151605-1689तैवर्नियरफ्रांस
161620-1688फ्रांस्वा बर्नियरफ्रांस
171653-1708मनूकीइटली

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HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 10 परिवहन तथा संचार

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 10 परिवहन तथा संचार Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Solutions Chapter 10 परिवहन तथा संचार

अभ्यास केन प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. भारतीय रेल प्रणाली को कितने मंडलों में विभाजित किया गया है?
(A) 9
(B) 16
(C) 12
(D) 17
उत्तर:
(D) 17

2. निम्नलिखित में से कौन-सा भारत का सबसे लंबा राष्ट्रीय महामार्ग है?
(A) एन एच-1
(B) एन एच-7
(C) एन एच-6
(D) एन एच-8
उत्तर:
(D) एन एच-8

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 10 परिवहन तथा संचार

3. राष्ट्रीय जल मार्ग संख्या-1 किस नदी पर तथा किन दो स्थानों के बीच पड़ता है?
(A) ब्रह्मपुत्र-सादिया-धुबरी
(B) गंगा-हल्दिया-इलाहाबाद
(C) पश्चिमी तट नहर-कोट्टापुरम से कोल्लाम
(D) राजपुरम-मालिकपुर-राजहंस
उत्तर:
(B) गंगा-हल्दिया-इलाहाबाद

4. निम्नलिखित में से किस वर्ष में पहला रेडियो कार्यक्रम प्रसारित हुआ था?
(A) 1911
(B) 1927
(C) 1936
(D) 1923
उत्तर:
(D) 1923

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
परिवहन किन क्रियाकलापों को अभिव्यक्त करता है? परिवहन के तीन प्रमुख प्रकारों के नाम बताएँ।
उत्तर:
परिवहन तीन प्रकार के क्रियाकलापों को अभिव्यक्त करता है। परिवहन के तीन प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं-

  1. स्थल परिवहन
  2. जल परिवहन
  3. वायु परिवहन।

प्रश्न 2.
पाइप लाइन परिवहन से लाभ एवं हानि की विवेचना करें।
उत्तर:
लाभ-

  • तरल और गैस पदार्थों के लिए पाइप लाइनें सर्वश्रेष्ठ साधन हैं।
  • पाइप लाइनों को ऊबड़-खाबड़ भू-भागों तथा पानी के नीचे भी बिछाया जा सकता है।

हानि-

  • एक बार पाइप लाइन बिछ जाने के बाद उसकी क्षमता में वृद्धि नहीं की जा सकती।
  • भूमिगत पाइप लाइन की मरम्मत करना कठिन होता है।

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प्रश्न 3.
‘संचार’ से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
एक-स्थान से दूसरे स्थान पर सूचना एवं संदेश भेजने या प्राप्त करने की विस्तृत व्यवस्था को संचार कहा जाता है। रेडियो, दूरदर्शन, दूरभाष, उपग्रह संचार के मुख्य साधन हैं।

प्रश्न 4.
भारत में वायु परिवहन के क्षेत्र में ‘एयर इंडिया’ तथा ‘इंडियन’ के योगदान की विवेचना करें।
उत्तर:
एयर इण्डिया-एयर इण्डिया विदेशी उड़ानों की व्यवस्था करता है। यह यात्रियों व नौयार यातायात दोनों के लिए अंतर्राष्ट्रीय वायु सेवाएँ उपलब्ध कराता है। यह अपनी सेवाओं द्वारा विश्व के सभी महाद्वीपों को जोड़ता है।

इण्डियन इण्डियन देश में प्रमुख घरेलू उड़ानें भरती है। एयरलाइंस एयर के साथ मिलकर यह देश के 63 स्थानों से अधिक को वायु सेवा उपलब्ध कराती है। 8 दिसंबर, 2005 को इण्डियन एयरलाइंस ने अपने नाम से ‘एयरलाइंस’ शब्द को अलग कर दिया और अब इसे केवल ‘इण्डियन’ के नाम से ही जाना जाता है। अब इसे नए लोगों द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
भारत में परिवहन के प्रमुख साधन कौन-कौन से हैं? इनके विकास को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना करें।
उत्तर:
भारत में परिवहन के प्रमुख साधन निम्नलिखित हैं-
HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 10 परिवहन तथा संचार 1
परिवहन के विभिन्न साधनों के विकास को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
1. भौगोलिक कारक-तकनीकी दृष्टि से रेलमार्गों व सड़क के निर्माण के लिए समतल मैदानी क्षेत्र सर्वश्रेष्ठ होते हैं। जबकि पठारी क्षेत्रों में असमतल धरातल के कारण रेल की पटरियों को बिछाना व सड़कें बनाना महंगा और कठिन होता है। इसलिए मैदानी क्षेत्रों में सड़कों का घनत्व तथा गुणवता दोनों ही ऊँचे होते हैं। असमतल धरातल के कारण ही उत्तर की ओर हिमालय पर्वत श्रेणियों पर रेलमार्ग नहीं बनाए जा सके।

2. आर्थिक कारक-सड़क व रेलमार्गों के विकास के लिए आर्थिक परिस्थितियों का अनुकूल होना भी आवश्यक है। यही कारण है कि सघन जनसंख्या, विकसित कृषि क्षेत्र तथा औद्योगिक प्रदेशों में परिवहन के साधनों का सबसे अधिक विकास हुआ है।

3. राजनीतिक कारक-स्वतंत्रता-प्राप्ति से पहले अंग्रेजों ने परिवहन के साधनों का विकास अपने शासन को दृढ़ करने, सैनिक शक्ति को बढ़ाने और भारत के कच्चे माल का शोषण करने के उद्देश्य से ही किया था। उन्होंने बंदरगाहों को उनके संपूर्ण पृष्ठ प्रदेश से इसलिए जोड़ा ताकि गाँवों से अधिशेष उत्पाद छोटे नगरों, वहाँ से बड़े नगरों और फिर बंदरगाहों तक लाया जा सके। रेलमार्गों के विकास ने अंतर्देशीय जल परिवहन का महत्त्व कम किया है। भारी और कम मूल्य के पदार्थों की पूर्ति के लिए जलमार्ग सस्ते व उपयुक्त साधन हैं।

विशाल दूरियों और विभिन्न भू-आकारों वाले देश में वायुयान जैसे परिवहन के आधुनिक साधन का महत्त्व दिनो-दिन बढ़ता जा रहा है।

प्रश्न 2.
पाइप लाइन परिवहन से लाभ एवं हानि की विवेचना करें।
उत्तर:
परिवहन के विभिन्न साधनों में से पाइप लाइन परिवहन एक आधुनिक परिवहन का साधन है। यह एक सस्ती एवं सुगम परिवहन प्रणाली है। इस साधन का उपयोग खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस को एक-स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए किया जाता है। वस्तुतः खनिज तेल और प्राकृतिक गैस जिन स्थानों से निकाले जाते हैं वहाँ उनका उपभोग नहीं हो सकता, इसीलिए इन तरल पदार्थों का परिवहन पाइप लाइनों के द्वारा उपभोग के स्थान पर तथा तेल शोधनशालाओं तक पहुँचाया जाता है। पाइप लाइनों से पूर्व यह कार्य सड़कों तथा रेलों द्वारा किया जाता था जिससे अधिक व्यय के साथ-साथ कठिनाई भी होती थी, लेकिन बाद में पाइप लाइनों का प्रयोग किए जाने से कई समस्याओं का समाधान हो गया।

पाइप लाइन परिवहन के लाभ-पाइप लाइन परिवहन के लाभ निम्नलिखित हैं-

  • पाइप लाइनों को ऊबड़-खाबड़ भूमि पर बिछाया जा सकता है।
  • पाइप लाइनों को पानी के नीचे भी बिछाया जा सकता है।
  • तरल व गैस पदार्थों के परिवहन का सबसे उत्तम माध्यम है।
  • पाइप लाइनों के रख-रखाव में बहुत कम खर्चा होता है।
  • इनमें ऊर्जा का उपयोग भी कम होता है।
  • यह परिवहन पर्यावरण अनुकूलन है।

पाइप लाइन परिवहन की हानियाँ-पाइप लाइन परिवहन की हानियाँ निम्नलिखित हैं-

  • पाइप लाइनों को बिछाने के बाद इसकी क्षमता को घटाया या बढ़ाया नहीं जा सकता।
  • लोचशीलता के अभाव के कारण पाइप लाइन परिवहन को निश्चित स्थानों के लिए ही प्रयोग किया जा सकता है।
  • पाइप लाइनों की सुरक्षा व्यवस्था करना कठिन होता है।
  • पाइप लाइनों के मरम्मत में भी बहुत कठिनाई आती है।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 10 परिवहन तथा संचार

प्रश्न 3.
भारत के आर्थिक विकास में सड़कों की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:
आदिकाल से ही भारत में स्थल मार्ग परिवहन के अन्तर्गत सड़कों का अधिक महत्त्व रहा है। इसे परिवहन के अन्य सभी प्रकारों का आधार स्तम्भ भी कहा जा सकता है। सड़क परिवहन अपनी लचक, माल की सुरक्षा, समय की बचत, सेवा का व्यापक क्षेत्र तथा सस्ती सेवा के कारण सर्वाधिक लोकप्रिय साधन माना जाता है। भारत में सड़कों की व्यवस्था बहुत पुरानी है। यह मोहनजोदड़ो और हड़प्पा काल के क्षेत्रों की खुदाई के पश्चात् भी पाई गई थी। भारतीय शासकों ने अपने राज्यों को दूसरे राज्यों से जोड़ने के लिए अनेक सड़कों का निर्माण करवाया। इन पक्की सड़कों पर जल के बहकर चले जाने की व्यवस्था भी रखी गई थी। सम्राट अशोक ने इन राजकीय राजमार्गों को सुधारा तथा उनका विस्तार किया।

मुगल बादशाहों में शेरशाह सूरी का योगदान सड़कें बनाने में अत्यधिक माना जाता है। उन्होंने ढाका से वाराणसी, आगरा, दिल्ली होते हुए लाहौर तक और वहाँ से सिन्धु नदी तक ग्रांड ट्रंक रोड (G.T. Road) बनवाई जो आगरा से जोधपुर, आगरा से इन्दौर, आगरा से चित्तौड़गढ़ तथा लाहौर से मुल्तान तक जाती थी। बाद में अंग्रेजों द्वारा इस ग्रांड ट्रंक रोड की मुरम्मत वर्ष 1880 में करवाई गई। यह राष्ट्रीय राजमार्ग शेरशाह सूरी मार्ग के नाम से जाना जाता है। सन् 1870 के पश्चात् अंग्रेजों का ध्यान रेलमार्गों के विकास की ओर होने के कारण सड़कों का विकास तीव्र गति से नहीं हो पाया। केवल उन्हीं सड़क मार्गों के निर्माणों पर ध्यान दिया गया जिनका आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से अधिक महत्त्व था।

भारत के आर्थिक विकास में सड़कों की भूमिका इस प्रकार है
1. राष्ट्रीय राजमार्ग ये राजमार्ग राज्य की राजधानियों, बड़े-बड़े औद्योगिक तथा व्यापारिक नगरों, मुख्य बंदरगाहों, खनन क्षेत्रों तथा राष्ट्रीय महत्त्व के शहरों तथा कस्बों को आपस में जोड़ते हैं जो न केवल आर्थिक दृष्टि से, अपितु सैनिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण, सुधार, रख-रखाव तथा विकास की जिम्मेदारी पूर्णतः केन्द्र सरकार की है। ये भारत को म्यांमार, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, चीन तथा पाकिस्तान से भी जोड़ता है। भारत में कुल सड़क परिवहन का लगभग 40% राष्ट्रीय राजमार्गों से होकर गुजरता है, जबकि कुल सड़क तंत्र में इनका हिस्सा केवल 15% है।

2. प्रांतीय अथवा राजकीय राजमार्ग-ये राज्यों की प्रमुख सड़कें हैं। ये व्यापार, उद्योग तथा सवारी यातायात की दृष्टि से राज्यों के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। ये सड़कें राज्य के प्रत्येक कस्बे, जिला मुख्यालयों, राज्य के महत्त्वपूर्ण व्यापारिक-औद्योगिक नगरों तथा राज्य की राजधानी को आपस में जोड़ती हैं। ये राष्ट्रीय राजमार्गों तथा निकटवर्ती राज्यों से मिली होती हैं। इन राजमार्गों के निर्माण तथा रख-रखाव की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर होती है।

3. जिला सड़कें-ये सड़कें जिले के बड़े गांवों, विभिन्न कस्बों, प्रमुख नगरों, उत्पादक केन्द्रों और मण्डियों को आपस में तथा जिला मुख्यालय से जोड़ती हैं। इनमें से अधिकांश सड़कें कच्ची होती हैं जो वर्षा काल में अनुपयुक्त हो जाती हैं। अनेक स्थानों पर ये बड़ी सड़कों से भी जुड़ी होती हैं। इनके निर्माण तथा देखभाल का दायित्व जिला बोर्ड, जिला परिषदों या संबंधित सार्वजनिक निर्माण विभाग का होता है।

4. ग्रामीण सड़कें विभिन्न गांवों को आपस में जोड़ने वाली ये सड़कें गांवों को जिला एवं राज्य सड़कों से भी जोड़ती हैं। ये सड़कें प्रायः कच्ची संकरी तथा पगडण्डियाँ मात्र होती हैं। ग्राम पंचायत इन सड़कों का निर्माण तथा रख-रखाव करती है। जिला प्रशासन भी इन सड़कों के निर्माण में सहायता करता है। आजकल इन्हें पक्का करने की प्राथमिकता दी जा रही है।

5. द्रुत राजमार्ग-देश में व्यापारिक यातायात के त्वरित संचलन के लिए इन राजमार्गों का निर्माण किया जाता है।

प्रमुख द्रुत राजमार्ग हैं-

  • पूर्वी एक्सप्रेस राजमार्ग
  • पश्चिमी एक्सप्रेस राजमार्ग
  • कोलकाता से दमदम हवाई अड्डे के बीच द्रुत राजमार्ग
  • सुकिन्दा खानों से पारा बन्दरगाह के बीच द्रुत राजमार्ग
  • दुर्गा-कोलकाता द्रुत राजमार्ग
  • दिल्ली-आगरा द्रुत राजमार्ग
  • अहमदाबाद-वडोदरा द्रुत राजमार्ग।

6. अन्तर्राष्ट्रीय राजमार्ग-ये राजमार्ग एशिया-प्रशान्त आर्थिक एवं सामाजिक आयोग के साथ किए गए करार के अधीन विश्व बैंक की सहायता से बनाए गए हैं। इनका उद्देश्य भारत के राष्ट्रीय राजमार्गों को इन राजमार्गों से जोड़ना है, जिससे ये पड़ोसी देशों पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, म्यांमार तथा बांग्लादेश के साथ जुड़ सकें।

7. सीमा सड़कें देश की सीमाओं पर सीमावर्ती सड़कों के निर्माण व रख-रखाव के लिए सन् 1960 में सीमा सड़कें विकास बोर्ड की स्थापना की गई। इसकी स्थापना का उद्देश्य अल्प-विकसित जंगली, पर्वतीय तथा मरुस्थलीय सीमा क्षेत्रों में आर्थिक विकास को गति देने के साथ-साथ रक्षा सैनिकों के लिए अनिवार्य आपूर्ति को भी बनाए रखना था। देश की प्रतिरक्षा तथा सुरक्षा में इन सड़कों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह संगठन हिमालय, पूर्वोत्तर के पहाड़ी इलाकों तथा राजस्थान के मरुस्थलीय भागों में सड़कों के निर्माण तथा रख-रखाव के लिए उत्तरदायी है।

परिवहन तथा संचार HBSE 12th Class Geography Notes

→ परिवहन तंत्र (Transport System) : यह एक ऐसा तंत्र है जिसमें यात्रियों तथा माल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाया और ले जाया जाता है।

→ परिवहन के साधन (Sources of Transport) : परिवहन के साधनों को सामान्यतया तीन वर्गों में बाँटा गया है-

  • स्थल परिवहन : स्थल परिवहन के अंतर्गत सड़क और रेल परिवहन आते हैं।
  • जल परिवहन : जल परिवहन के अंतर्गत नदियाँ तथा अंतःस्थलीय परिवहन आता है।
  • वायु परिवहन : वायु परिवहन देश के आधुनिक परिवहन का साधन है।

HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 10 परिवहन तथा संचार

→ भारत की मुख्य सड़कें (Main Roads of India):

  • स्वर्णिम चतुर्भुज महा राजमार्ग : दिल्ली-कोलकाता, चेन्नई-मुंबई व दिल्ली को जोड़ने वाले 6 लेन वाले महामार्ग।
  • राष्ट्रीय राजमार्ग : देश के दूरस्थ भागों को जोड़ने वाले मार्ग; जैसे दिल्ली-अमृतसर मार्ग (राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-1)।
  • राज्य राजमार्ग : राज्यों की राजधानियों को जिला मुख्यालयों से जोड़ने वाले मार्ग।
  • जिला मार्ग : जिले के विभिन्न प्रशासनिक केंद्रों को जिला मुख्यालय से जोड़ने वाले मार्ग।
  • ग्रामीण सड़कें : ग्रामीण क्षेत्रों तथा गाँवों को शहरों से जोड़ने वाली सड़कें।
  • सीमांत सड़कें : सीमा सड़क संगठन द्वारा देश के सीमावर्ती दुर्गम क्षेत्रों में बनाई गई सड़कें।

→ संचार तंत्र (Communication System): एक-स्थान से दूसरे स्थान पर सूचना एवं संदेश भेजने या प्राप्त करने की विस्तृत व्यवस्था को संचार तंत्र कहा जाता है।

→ संचार के साधन (Sources of Communication) : रेडियो, टी०वी०, दूरभाष, उपग्रह, यंत्र, पोस्टकार्ड, समाचार-पत्र व पत्रिकाएँ, चलचित्र आदि। नोट : भारतीय रेल प्रणाली में पहले 16 रेल मंडल होते थे, लेकिन वर्तमान में 17 रेल मंडल हो चुके हैं। मैट्रो रेल मण्डल नया मण्डल बना है।

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HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. वर्ष 2010-2011 में निम्नलिखित में से कौन-सा भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था?
(A) जापान
(B) यूरोप
(C) संयुक्त राज्य अमेरिका
(D) यू०ए०ई०
उत्तर:
(D) यू०ए०ई०

2. आयात और निर्यात का अंतर कहलाता है
(A) व्यापार
(B) व्यापार-संतुलन
(C) आयात
(D) निर्यात
उत्तर:
(B) व्यापार-संतुलन

3. जब आयात निर्यात से कम हो तो व्यापार संतुलन होता है-
(A) पक्ष में
(B) विपक्ष में
(C) शून्य में
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) पक्ष में

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

4. जब आयात निर्यात से अधिक हो तो व्यापार संतुलन होता है-
(A) पक्ष में
(B) विपक्ष में
(C) शून्य में
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) विपक्ष में

5. निम्नलिखित में से किस वस्तु का भारत आयात करता है?
(A) ईंधन
(B) मशीनें
(C) उर्वरक
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी

6. निम्नलिखित में से भारत निर्यात करता है-
(A) चाय
(B) पेट्रोलियम
(C) मशीनें
(D) उर्वरक
उत्तर:
(A) चाय

7. भारत में सबसे ज्यादा मूल्य का आयात किस मद में होता है?
(A) पेट्रोलियम
(B) मशीनें
(C) उर्वरक
(D) रत्न
उत्तर:
(A) पेट्रोलियम

8. तूतीकोरिन पत्तन भारत के किस राज्य में स्थित है?
(A) तमिलनाडु
(B) पश्चिमी बंगाल
(C) उड़ीसा
(D) आंध्र प्रदेश
उत्तर:
(A) तमिलनाडु

9. जवाहरलाल नेहरू पत्तन का निर्माण किस पत्तन के भार को कम करने के लिए किया गया है?
(A) कोच्चि
(B) मार्मागाओ
(C) मुंबई
(D) कांडला
उत्तर:
(C) मुंबई

10. निम्नलिखित में से भारत के प्रमुख पत्तन/बंदरगाह कितने हैं?
(A) 10
(B) 11
(C) 12
(D) 8
उत्तर:
(C) 12

11. भारत की नवीन बंदरगाह है
(A) न्हावाशेवा
(B) चेन्नई
(C) हल्दिया
(D) विशाखापत्तनम
उत्तर:
(A) न्हावाशेवा

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

12. भारत के कुल अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का कितना प्रतिशत भाग समुद्री मार्ग द्वारा होता है?
(A) लगभग 70%
(B) लगभग 75%
(C) लगभग 80%
(D) लगभग 90%
उत्तर:
(D) लगभग 90%

13. निम्नलिखित में से कौन-सा पत्तन पूर्वी तट पर स्थित नहीं है?
(A) कोलकाता
(B) पारादीप
(C) मार्मागाओ
(D) विशाखापट्टनम
उत्तर:
(C) मार्मागाओ

14. निम्नलिखित में से कौन-सा पत्तन पश्चिमी तट पर स्थित नहीं है?
(A) मुंबई
(B) कोच्चि
(C) न्हावाशेवा
(D) पारादीप
उत्तर:
(D) पारादीप

15. किस बंदरगाह को भारत का प्रवेश द्वार कहा जाता है?
(A) कोलकाता को
(B) चेन्नई को
(C) कोच्चि को
(D) मुंबई को
उत्तर:
(D) मुंबई को

16. भारत का कृत्रिम बंदरगाह है-
(A) मुंबई
(B) चेन्नई
(C) कोलकाता
(D) कोच्चि
उत्तर:
(B) चेन्नई

17. जुआरी नदमुख के मुँहाने पर अवस्थित बंदरगाह है-
(A) मुंबई
(B) हल्दिया
(C) मार्मागाओ
(D) पारादीप
उत्तर:
(C) मार्मागाओ

18. किस पत्तन का पोताश्रय सबसे गहरा है?
(A) मुंबई
(B) हल्दिया
(C) मार्मागाओ
(D) पारादीप
उत्तर:
(D) पारादीप

19. भारत का विशालतम कंटेनर पत्तन है-
(A) मुंबई पत्तन
(B) कोच्चि पत्तन
(C) जवाहरलाल नेहरू पत्तन
(D) एन्नौर पत्तन
उत्तर:
(C) जवाहरलाल नेहरू पत्तन

B. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में दीजिए

प्रश्न 1.
भारत में सबसे ज्यादा मूल्य का आयात किस मद में होता है?
उत्तर:
पेट्रोलियम एवं संबद्ध उत्पादों का।

प्रश्न 2.
विदेशी व्यापार में भारत का सबसे बडा भागीदार कौन है?
उत्तर:
यू०ए०ई० और संयुक्त राज्य अमेरिका।

प्रश्न 3.
देश की सबसे ज्यादा मध्यम और छोटी पत्तनें भारत के किस तटीय राज्य में हैं?
उत्तर:
महाराष्ट्र।

प्रश्न 4.
भारत की सबसे गहरी और स्थल रुद्ध पत्तन कौन-सी है?
उत्तर:
विशाखापट्टनम।

प्रश्न 5.
भारत के उस राज्य का नाम लिखिए जहाँ दो प्रमुख समुद्री पत्तन हैं?
उत्तर:
तमिलनाडु (चेन्नई, तूतीकोरिन)।

प्रश्न 6.
भारत की सबसे नवीन बंदरगाह कौन-सी है?
उत्तर:
न्हावाशेवा।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

प्रश्न 7.
भारत के कोई दो अंतर्राष्ट्रीय विमान पत्तनों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय विमान पत्तन (नई दिल्ली)।
  2. दमदम अंतर्राष्ट्रीय विमान पत्तन (कोलकात्ता)।

प्रश्न 8.
भारत की तट रेखा पर अच्छे पोताश्रय की कमी क्यों है?
उत्तर:
तट रेखा सामान्यतः सीधी और सपाट होने के कारण।

प्रश्न 9.
भारत के पूर्वी तट पर स्थित दो पत्तनों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. पारादीप पत्तन
  2. विशाखापट्टनम पत्तन।

प्रश्न 10.
कौन-सा बंदरगाह ‘भारतीय सामुद्रिक व्यापार का पूर्वी द्वार’ कहलाता है?
उत्तर:
कोलकाता-हल्दिया।

प्रश्न 11.
सन् 2003-2004 में कौन-सा देश भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका।

प्रश्न 12.
भारत में विमान पत्तनों का प्रबंध कौन करता है?
उत्तर:
भारतीय विमान पत्तन प्राधिकरण।

प्रश्न 13.
पारादीप बंदरगाह किस राज्य में है?
उत्तर:
ओडिशा में।

प्रश्न 14.
वर्तमान में कांडला पत्तन का क्या नाम रखा गया है?
उत्तर:
दीनदयाल पत्तन।

प्रश्न 15.
किसे अरब सागर की रानी (क्वीन ऑफ अरेबियन सी) के लोकप्रिय नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
बेंवानद कायाल को।

प्रश्न 16.
परंपरागत वस्तुओं के व्यापार में गिरावट का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा।

प्रश्न 17.
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रवेश द्वार के रूप में किसे जाना जाता है?
उत्तर:
समुद्री पत्तनों को।

प्रश्न 18.
देश का सबसे पुराना या प्राचीन बंदरगाह/पत्तन कौन-सा है?
उत्तर:
चेन्नई पत्तन।

प्रश्न 19.
भारत का निगमीकृत बंदरगाह पत्तन कौन-सा है?
उत्तर:
एन्नौर पत्तन (तमिलनाडु)।

प्रश्न 20.
देश का सबसे गहरा, प्राकृतिक एवं स्थलरुद्ध पत्तन कौन-सा है?
उत्तर:
विशाखापट्टनम पत्तन (आंध्र प्रदेश)।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार क्या है?
उत्तर:
विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं व सेवाओं के आयात-निर्यात को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कहते है।

प्रश्न 2.
भारत से निर्यात की जाने वाली चार प्रमुख वस्तुओं के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. चाय
  2. रत्न और आभूषण
  3. सूती धागे और वस्त्र
  4. औषधियाँ और दवाइयाँ
  5. चमड़ा और चमड़े का सामान
  6. लोहा और इस्पात।

प्रश्न 3.
आयात (Import) क्या है?
उत्तर:
किसी देश से किसी वस्तु को अपने देश में लाने की क्रिया को आयात कहा जाता है। उदाहरण के लिए, भारत विदेशों से पेट्रोलियम संबंधित उत्पाद, मशीनें अथवा पूंजीगत माल और रसायन व उर्वरक आदि उत्पादों को मंगवाता है। ये ही आयात है।

प्रश्न 4.
निर्यात (Export) क्या है?
उत्तर:
किसी वस्तु को दूसरे देश में भेजने की क्रिया को निर्यात कहा जाता है। उदाहरण के लिए, भारत विदेशों को चाय, रत्न, आभूषण, सूती धागे व वस्त्र और चमड़ा और उससे संबंधित सामान आदि को भेजता है। ये ही निर्यात है।

प्रश्न 5.
व्यापार संतुलन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आयात और निर्यात का अंतर व्यापार संतुलन (Balance of Trade) कहलाता है।

प्रश्न 6.
विदेशी व्यापार क्या है? अथवा विदेशी व्यापार को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
जब वस्तुओं व सेवाओं का क्रय-विक्रय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होता है, उसे विदेशी व्यापार कहते हैं, जैसे भारत चाय, रत्न, आभूषण, सिले-सिलाए वस्त्रों का निर्यात करता है और उर्वरक, कच्चा तेल और मशीनें दूसरे देशों से आयात करता है।

रॉबर्टसन के अनुसार, “विदेशी व्यापार वृद्धि का इंजन है।” यह किसी देश के प्राकृतिक साधनों के उपयोग और अतिरेक उत्पादन के निर्यात में सहायता करता है अर्थात् यह किसी देश की अर्थव्यवस्था में निर्णायक भूमिका निभाता है।

प्रश्न 7.
शुद्ध कच्चे माल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ऐसी अर्ध-निर्मित वस्तुएँ जिन्हें उद्योगों में कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके पश्चात् उससे शुद्ध उपभोग योग्य वस्तुएँ जैसे चप्पल, थैलियाँ आदि बनाई जाती हैं।

प्रश्न 8.
भुगतान संतुलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भुगतान संतुलन एक नियत समय में किसी देश द्वारा शेष विश्व से हुए लेन-देन का सुव्यवस्थित विवरण है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

प्रश्न 9.
हल्दिया पत्तन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हल्दिया पत्तन कोलकाता से 105 कि०मी० अंदर अनुप्रवाह पर स्थित है। इस पत्तन का निर्माण कोलकाता पत्तन की संकुलता को घटाने के लिए किया गया।

प्रश्न 10.
तूतीकोरिन पत्तन की कोई दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  1. यह एक प्राकृतिक पोताश्रय है तथा इसकी पृष्ठभूमि भी अत्यंत समृद्ध है।
  2. यह विभिन्न प्रकार के नौभार का निपटान करता है।

प्रश्न 11.
न्यू-मंगलौर पत्तन कहाँ स्थित है? यह किन वस्तुओं का निपटान करता है?
उत्तर:
न्यू-मंगलौर पत्तन कर्नाटक में स्थित है। यह पत्तन कुद्रेमुख खानों से निकले लौह-अयस्क का निर्यात करता है। यह पत्तन उर्वरकों, पेट्रोलियम उत्पादों, खाद्य तेलों, चाय-कॉफी, सूत, ग्रेनाइट पत्थर आदि वस्तुओं का निपटान करता है।

प्रश्न 12.
भारत के पश्चिमी तट पर स्थित पत्तनों के नाम लिखें।
अथवा
भारत के पश्चिमी तट पर स्थित दो पत्तनों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. कांडला पत्तन
  2. मुंबई पत्तन
  3. मार्मागाओ पत्तन
  4. न्यू मंगलौर पत्तन
  5. कोच्चि पत्तन आदि।

प्रश्न 13.
भारत के किन्हीं छः अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. सुभाषचंद्र बोस हवाई अड्डा (दमदम)-कोलकाता।
  2. कोच्चि अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा-कोच्चि।
  3. इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा-नई दिल्ली।
  4. जवाहरलाल नेहरू हवाई अड्डा (सांताक्रुज)-मुंबई।
  5. मीनाम्बक्कम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा-चेन्नई।
  6. राजा सांसी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अडड़ा-अमृतसर।

प्रश्न 14.
भारत के किन्हीं छः व्यापारिक साझेदार देशों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. संयुक्त अरब अमीरात
  2. अमेरिका
  3. जापान
  4. ब्रिटेन
  5. जर्मनी
  6. सिंगापुर आदि।

प्रश्न 15.
घरेलू व्यापार तथा विदेशी व्यापार में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
घरेलू व्यापार-जब वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय देश के एक भाग में किया जाता है, उसे घरेलू व्यापार कहते हैं; जैसे सोनीपत की साइकिल तथा असम की चाय सारे देश में बिकती हैं।

विदेशी व्यापार-जब वस्तुओं व सेवाओं का क्रय-विक्रय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होता है, उसे विदेशी व्यापार कहते हैं; जैसे भारत चाय, रत्न, आभूषण, सिले-सिलाए वस्त्रों का निर्यात करता है और उर्वरक, कच्चा तेल और मशीनें दूसरे देशों से आयात करता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के बदलते विदेशी व्यापार के संघटन दिशा पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर:
भारत का विदेशी व्यापार विश्व के लगभग सभी देशों के साथ होता है, परंतु फिर भी कुछ देश ऐसे हैं, जिनका इस संबंध में महत्त्व अपेक्षतया अधिक है। स्वतंत्रता-प्राप्ति से पहले हमारा विदेशी व्यापार ब्रिटेन से अधिक होता था, क्योंकि हम अंग्रेजों के अधीन थे, परंतु अब स्थिति बदल गई है। अब हमारा अधिक व्यापार संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ होता है। इसके बाद जापान, ब्रिटेन तथा रूस का नंबर है। पिछले कई वर्षों से संयुक्त राज्य अमेरिका हमारे आयात व्यापार का स्रोत है। जर्मनी,भी हमारे आयात व्यापार का स्रोत है। जापान पिछले कुछ वर्षों से हमारे आयात का स्रोत बना हुआ है। भारत के निर्यात व्यापार में भी स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद बहुत परिवर्तन आए हैं। हमारे निर्यात व्यापार की दिशा रूस, पूर्वी यूरोप तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों की ओर बढ़ रही है।

प्रश्न 2.
मुंबई को भारत का प्रवेश-द्वार कहा जाता है, क्यों?
अथवा
मुंबई भारत का सबसे महत्त्वपूर्ण पत्तन क्यों हैं? अथवा मुंबई पत्तन का भारतीय अर्थव्यवस्था में क्या योगदान है?
उत्तर:
यह सत्य है कि मुंबई को भारत का प्रवेश-द्वार कहा जाता है। यह एक प्राकृतिक पत्तन है तथा यहाँ पानी गहरा है। यह विश्व की प्राकृतिक पत्तनों में से एक है। यहाँ हर प्रकार के जलयान सुरक्षित रूप से लंगर डाल सकते हैं। इस पत्तन से विश्व के विभिन्न देशों को माल भेजा जाता है तथा विभिन्न देशों से भारत के लिए यहाँ माल आकर उतरता है। भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का 1/4 भाग इसी पत्तन द्वारा होता है। यहाँ भारी मशीनों तथा औद्योगिक माल उतारने-चढ़ाने के लिए आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं। पालघाट तथा भोरघाट दरों में से रेलों द्वारा मुंबई को भारत के दूसरे नगरों से जोड़ा गया है। इस तरह देश के विभिन्न भागों से इस पत्तन से विदेशों को आसानी से माल निर्यात किया जाता है। इन सब कारणों से मुंबई को भारत का प्रवेश-द्वारा कहा जाता है।

प्रश्न 3.
भारत के चार प्रमुख समुद्री पत्तनों के नाम बताइए।
उत्तर:
भारत के चार प्रमुख समुद्री पत्तन निम्नलिखित हैं-

  1. मुंबई-यह पत्तन भारत के प्रमुख पत्तनों में सबसे बड़ा है। भारत का एक-चौथाई से भी अधिक विदेशी व्यापार इसी पत्तन से होता है।
  2. चेन्नई-यह पूर्वी तट पर स्थित सबसे पुराने पत्तनों में से एक है। इसका पोताश्रय भी प्राकृतिक है। यहाँ से सामान्य वस्तुओं का आयात-निर्यात होता है।
  3. कांडला-यह एक ज्वारीय पत्तन है। इस पत्तन से खनिज तेल, पेट्रोलियम, उत्पाद, उर्वरक, खाद्यान्न, नमक, कपास, चीनी आदि का व्यापार होता है।
  4. कोच्चि-यह भारत का चौथा प्रमुख पत्तन है। इसका पोताश्रय प्राकृतिक है। यहाँ से पेट्रोलियम उत्पाद, उर्वरक तथा कुछ सामान्य वस्तुओं का निर्यात किया जाता है।

प्रश्न 4.
भारत के विदेशी या अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में असंतुलन के कारण लिखें।
उत्तर:
भारत के निर्यात में पिछड़ने के कारण निम्नलिखित हैं-

  1. भारतीय वस्तुओं की उत्पादन लागत अधिक है। हम समय, श्रम, कच्चे-माल का पूरी तरह से उपयोग नहीं कर पाते।
  2. भारतीय वस्तुओं की गुणवत्ता का स्तर निम्न है।
  3. भारत के परम्परागत निर्यातों की विदेशों में कम माँग है।
  4. भारतीय रुपए का बार-बार अवमूल्यन एक हथियार के रूप में प्रयोग हो रहा है।
  5. यदि कोई देश विकसित राष्ट्रों से आयात करता है तो उसे कम आयात शुल्क देना होता है। यदि वही देश, वही माल किसी
  6. विकासशील देश से ले तो उसे अधिक आयात शुल्क देना पड़ता है।

प्रश्न 5.
1960-61 से 2000-2001 के बीच भारत में किन वस्तुओं के आयात में परिवर्तन हुए?
उत्तर:
1960-61 से 2000-2001 के बीच भारत में निम्नलिखित वस्तुओं के आयात में परिवर्तन हुए-
(1) कृषि उत्पादों/वस्तुओं के आयात में गिरावट आई। 1960-61 में लगभग 187 करोड़ रुपयों के खाद्य अनाज आयात किए गए जो 2000-2001 में 50 करोड़ रुपयों से भी कम हो गए।

(2) 1970-71 में 504 करोड़ रुपयों की पूंजीगत वस्तुएँ आयात की गई। 2000-2001 में पूंजी वस्तुओं के आयात में पर्याप्त वृद्धि हुई है।

(3) उर्वरकों पर आयात व्यय सन् 1960-61 में 60 करोड़ से भी कम था जो 2000-2001 में बढ़कर 15000 करोड़ रुपयों से अधिक हो गया।

(4) पेट्रोलियम के आयात व्यय पर पर्याप्त वृद्धि हुई। इस वृद्धि के दो कारण हैं-

  • पेट्रोलियम की कीमतों में वृद्धि
  • औद्योगिक व यातायात क्षेत्र के विस्तार के लिए पेट्रोलियम पदार्थों की अधिक माँग।

प्रश्न 6.
1960-61 से 2000-2001 के बीच भारत में किन वस्तुओं के निर्यात में परिवर्तन हुए?
उत्तर:
भारत में वर्ष 1960-61 में कल निर्यात 642 करोड़ रुपए था। वर्ष 1990-91 में 32553 करोड रुपए हो गया। वर्ष 2000-2001 में यह 203571 करोड़ रुपए तक बढ़ गया। अतः 1960-61 से 2000-2001 के बीच भारत में निम्नलिखित वस्तुओं के निर्यात में परिवर्तन हुए

  1. कुल निर्यातों में कृषि उत्पादों की प्रतिश्ता में गिरावट आई।
  2. परम्परागत वस्तुओं; पटसन, चाय, अनाज व खनिज पदार्थ के भाग में गिरावट आई।
  3. कुल निर्यातों में निर्मित वस्तुओं के भाग में पर्याप्त वृद्धि हुई।
  4. कुल निर्यातों में रत्नों और रेडीमेड कपड़ों के भाग में पर्याप्त वृद्धि हुई।

प्रश्न 7.
कांडला पत्तन की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
कांडला पत्तन खाड़ी कच्छ पर स्थित है। इसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. यह प्राकृतिक तथा सुरक्षित पत्तन है।
  2. इसकी पृष्ठभूमि में उत्तर-पश्चिमी भारत के उपजाऊ मैदान सम्मिलित हैं।
  3. यह स्वेज़ नहर के समुद्री मार्ग के निकट है।
  4. यहाँ से सूती कपड़ा, सीमेंट, मशीनें तथा दवाइयाँ आयात होती हैं तथा सीमेंट, अभ्रक, तिलहन तथा नमक निर्यात होता है।

प्रश्न 8.
मुम्बई पत्तन की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मुम्बई पत्तन पश्चिमी तट (कोंकण तट) के मध्यवर्ती भाग में एक द्वीप पर स्थित है, जिसे एक पुल द्वारा भारतीय मुख्य स्थल से जोड़ा गया है। इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  1. यह देश की सबसे बड़ी प्राकृतिक तथा सुरक्षित पत्तन है।
  2. इसकी पृष्ठभूमि में काली मिट्टी के कपास क्षेत्र तथा विकसित औद्योगिक क्षेत्र सम्मिलित हैं।
  3. यहाँ उत्तम गोदामों की व्यवस्था है।
  4. यहाँ ट्रांबे में भाभा अणु शक्ति केंद्र, ऐलीफेंटा की गुफाएँ तथा मैरीन ड्राइव दर्शनीय स्थल हैं।
  5. यहाँ से मशीनें, पेट्रोलियम, कोयला, कागज़ तथा फिल्में आयात की जाती हैं तथा सूती कपड़ा, तिलहन, मैंगनीज, चमड़ा तथा तंबाकू निर्यात किए जाते हैं।

प्रश्न 9.
विशाखापट्टनम पत्तन की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विशाखापट्टनम पत्तन पूर्वी तट पर आंध्र प्रदेश में स्थित है। इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  1. यह प्राकृतिक तथा सुरक्षित पत्तन है।
  2. यह डॉल्फिन नोज़ नामक कठोर चट्टानों से घिरी हुई है।
  3. इसकी पृष्ठभूमि में लोहा, कोयला तथा मैंगनीज़ के महत्त्वपूर्ण क्षेत्र सम्मिलित हैं।
  4. यहाँ जलयान निर्माण का सबसे बड़ा कारखाना स्थित है।
  5. यहाँ कोयला, तेल तथा ईंधन उपलब्ध हैं।
  6. यहाँ से चावल, खाद्यान, पेट्रोलियम तथा मशीनें आयात की जाती हैं तथा लोहा, मैंगनीज़, तिलहन, चमड़ा, लाख तथा तंबाकू निर्यात किया जाता है।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के विदेशी व्यापार की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के विदेशी व्यापार की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
1. प्रतिकूल व्यापार-संतुलन-स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद भारत को अपने उद्योगों के विकास के लिए भारी मात्रा में मशीनों का आयात करना पड़ा। कृषि के विकास के लिए कृषि-यंत्र, उर्वरक तथा खनिज तेल का भी आयात करना पड़ा, परंतु निर्यात उस गति से नहीं बढ़ पाया। इस प्रकार हमारे व्यापार का संतुलन प्रतिकूल हो गया।

2. निर्यात में विविधता हमारे देश में प्राचीन समय में चाय, चमड़ा तथा चमड़े का सामान, पटसन तथा सूती वस्त्र का निर्यात होता था, परंतु अब हम विभिन्न प्रकार की निर्मित वस्तुओं का निर्यात करते हैं।

3. विश्वव्यापी व्यापार-आज़ादी प्राप्त होने से पहले हमारा व्यापार मुख्यतः ब्रिटेन के साथ होता था लेकिन आज विश्व के लगभग सभी देशों के साथ हमारे व्यापारिक संबंध हैं।

4. आयात में परिवर्तन पहले हम मुख्यतः खाद्यान्न तथा निर्मित वस्तुओं का आयात करते थे, परंतु आज सबसे अधिक आयात खनिज तेल का किया जाता है। अन्य महत्त्वपूर्ण आयात की वस्तुएँ लोहा-इस्पात, उर्वरक, कागज़, खाने के तेल आदि हैं।

5. समुद्री मार्ग द्वारा व्यापार–भारत का लगभग 95 प्रतिशत व्यापार समुद्री मार्गों द्वारा होता है। स्थलीय व्यापार केवल हमारे पड़ोसी देशों तक ही सीमित है। हमारे पड़ोसी देश निर्धन तथा पिछड़े हुए हैं, अतः हमारा अधिकतर विदेशी दूर स्थित देशों से समुद्री मार्ग द्वारा किया जाता है। हमारा स्थलीय व्यापार लाभदायक नहीं है।

6. कुछ चुनी हुई बंदरगाहों द्वारा ही व्यापार–बेशक भारत की तट-रेखा 7,516.6 कि०मी० लंबी है, परंतु यह अधिक कटी-फटी नहीं है तथा प्राकृतिक बंदरगाहों का यहाँ अभाव है। भारत में कुछ चुनी हुई बंदरगाहों से ही व्यापार होता है; जैसे मुंबई, कांडला, कोच्चि, चेन्नई, कोलकाता आदि। इसलिए माल-लादने तथा उतारने की इन बंदरगाहों पर गहनता पाई जाती है। अतः अधिक भीड़-भाड़ के कारण, यहाँ कठिनाई पेश आती है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

प्रश्न 2.
भारत के विदेशी व्यापार की दिशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किसी देश के विदेशी व्यापार की दिशा का अभिप्राय यह होता है कि वह देश किन देशों को निर्यात करता है और किन देशों से आयात करता है अर्थात् उसके व्यापारिक संबंध किन देशों के साथ हैं। भारत का विदेशी व्यापार निम्नलिखित देशों के साथ होता है
1. एंग्लो अमेरिका-एंग्लो अमेरिका में संयुक्त राज्य अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। भारत इसको रत्न, आभूषण, सूती-वस्त्र, हस्त-शिल्प आदि उत्पाद निर्यात और इलेक्ट्रॉनिक सामान, मशीनें, उर्वरक, रसायन आदि उत्पादों का आयात करता है।

2. पश्चिमी यूरोप यह भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक प्रदेश है। 2005-06 की अवधि में कुल आयात में 21.17% तथा कुल निर्यात में 24.06% की भागीदारी थी। पश्चिमी यूरोप में लगभग 28 देश आते हैं जिन्हें सामूहिक रूप से यूरोपियन यूनियन (EU) कहा जाता है। भारत रत्न, आभूषण, सिले-सिलाए वस्त्र, चमड़ा, चमड़े का सामान, मशीनें, दवाइयाँ, हस्तशिल्प, प्लास्टिक उत्पाद, कालीन आदि उत्पादन निर्यात करता है और बहुमूल्य और अल्पमूल्य रत्न, चाँदी, मशीनें, उपकरण व औषधीय उत्पाद आदि का आयात करता है।

3. स्वतंत्र राज्यों के परिसंघ एवं बाल्टिक देश-स्वतंत्र राज्यों का परिसंघ सोवियत संघ के विघटन के बाद ही अस्तित्व में आया। सन् 1990-1991 में भारत का पूर्व सोवियत संघ के साथ कुल व्यापार 78.03 अरब रुपए का हुआ था जबकि इस प्रदेश के देशों के साथ भारत का कुल व्यापार 80.61 अरब रुपयों का हुआ था। अकेले रूस के साथ निर्यात में 1.20% और आयात में 2.03% भागीदारी थी।

4. पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका-भारत के पश्चिमी एशिया के 12 और उत्तरी अफ्रीका के 7 देशों से संबंध हैं। यद्यपि इन देशों के साथ भारत का व्यापार तेजी से बढ़ा है, लेकिन व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में नहीं रहा है। भारत से इन देशों को मुख्यतः दवाइयाँ, रत्न, आभूषण निर्यात किए जाते हैं।

5. दक्षिण-पूर्वी तथा पूर्वी एशिया दक्षिणी-पूर्वी एशियाई राष्ट्र संघ तथा पूर्वी एशियाई देशों के साथ भारत के व्यापारिक समझौते हैं। भारत इन्हें रत्न, आभूषण, सूती वस्त्र, सिले-सिलाए वस्त्र, दवाइयाँ, माँस उत्पाद, सामुद्रिक उत्पाद निर्यात करता है और इन देशों से कोकिंग, मशीनें, बिजली की मशीनें, लकड़ी के उत्पाद, अलौह धातुएँ आदि आयात करता है।

6. अफ्रीका-इस महाद्वीप में भारत का व्यापार मुख्य रूप से दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, मॉरीशस, आइवरी कोस्ट, कीनिया, घाना, इथोपिया, बैनिन, सेनेगल के साथ है।

प्रश्न 3.
भारत के प्रमुख पत्तनों या बंदरगाहों का वर्णन करें।
अथवा
भारत के प्रमुख बंदरगाहों/पत्तनों की विशेषताओं का वर्णन करें। अथवा भारत के पूर्वी तट पर स्थित पत्तनों का वर्णन करें। अथवा भारत के पश्चिमी तट पर स्थित पत्तनों का वर्णन करें।
उत्तर:
जल परिवहन यातायात का एक सस्ता साधन है। भारी सामान ढोने के लिए यह एक उपयुक्त साधन है। सागरीय पत्तन सागर के किनारे जलयानों के ठहरने के स्थान होते हैं। कटा-फटा तट, जल की अधिक गहराई, संपन्न पृष्ठभूमि तथा उत्तम जलवायु एक आदर्श पत्तन की उपयुक्त. परिस्थितियाँ हैं। भारत में लक्षद्वीप, अंडमान तथा निकोबार की तटीय रेखा सहित तट की लंबाई 7516.6 कि०मी० है।

भारत के पश्चिमी तट पर स्थित पत्तन/बंदरगाह भारत के पश्चिमी तट पर स्थित प्रमुख पत्तन/बंदरगाह निम्नलिखित हैं-
1. कांडला-यह पत्तन गुजरात के खाड़ी कच्छ पर स्थित है। वर्तमान में भारत सरकार ने इस पत्तन का नाम बदलकर ‘दीन दयाल पत्तन’ कर दिया है। इसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • यह प्राकृतिक तथा सुरक्षित पत्तन है।
  • इसकी पृष्ठभूमि में उत्तर-पश्चिमी भारत के उपजाऊ मैदान सम्मिलित हैं।
  • यहाँ सागर की गहराई लगभग दस मीटर है।
  • यहाँ बड़े-बड़े जहाज़ों के ठहरने की प्राप्त व्यवस्था है।
  • यह स्वेज़ नहर के समुद्री मार्ग के निकट है।
  • यहाँ से सूती कपड़ा, सीमेंट, मशीनें तथा दवाइयाँ आयात होती हैं तथा सीमेंट, अभ्रक, तिलहन तथा नमक निर्यात होता है।

2. मुंबई-यह पत्तन महाराष्ट्र के पश्चिमी तट (कोंकण तट) के मध्यवर्ती भाग में एक द्वीप पर स्थित है, जिसे एक पुल द्वारा भारतीय मुख्य स्थल से जोड़ा गया है। इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

  • यह देश की सबसे बड़ी प्राकृतिक तथा सुरक्षित पत्तन है।
  • यह स्वेज़ नहर के समुद्री मार्ग के निकट है।
  • इसकी पृष्ठभूमि में काली मिट्टी के कपास क्षेत्र तथा विकसित औद्योगिक क्षेत्र सम्मिलित हैं।
  • यहाँ बड़े-बड़े जहाज़ आकर ठहर सकते हैं।
  • यहाँ उत्तम गोदामों की व्यवस्था है।
  • यहाँ ट्रांबे में भाभा अणु शक्ति केंद्र, ऐलीफेंटा की गुफाएँ तथा मैरीन ड्राइव दर्शनीय स्थल हैं।
  • यह भारतीय जल सेना का प्रमुख केंद्र है।
  • यहाँ से मशीनें, पेट्रोलियम, कोयला, कागज़ तथा फिल्में आयात की जाती हैं तथा सूती कपड़ा, तिलहन, मैंगनीज, चमड़ा तथा तंबाकू निर्यात किए जाते हैं।

3. मार्मागाओ-यह गोवा में स्थित है। इसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • यह प्राकृतिक पत्तन है।
  • इसकी पृष्ठभूमि में पश्चिमी महाराष्ट्र तथा पश्चिमी कर्नाटक सम्मिलित हैं।
  • यहाँ पचास जलयानों के खड़े होने की व्यवस्था है।
  • यहाँ से खाद्यान्न, रासायनिक खादें, खनिज तेल तथा मशीनें आयात की जाती हैं तथा नारियल, मैंगनीज, खनिज लोहा तथा मूंगफली निर्यात की जाती है।

4. कोच्चि-यह केरल राज्य में स्थित है। इसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • यह एक प्राकृतिक तथा सुरक्षित पत्तन है।
  • यह लैगून झील के किनारे स्थित है।
  • यह पूर्वी एशिया तथा ऑस्ट्रेलिया जलमार्गों पर स्थित है।
  • यह अपनी पृष्ठभूमि से जलमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है।
  • यहाँ भारत का दूसरा जलयान निर्माण केंद्र स्थित है।
  • यहाँ से चावल, पेट्रोलियम, रसायन, मशीनें आदि आयात की जाती हैं तथा कहवा, गर्म मसाले, इलायची, रबड़, काजू, चाय तथा सूती कपड़ा निर्यात किया जाता है।

भारत के पूर्वी तट पर स्थित पत्तन/बंदरगाह-भारत के पूर्वी तट पर स्थित प्रमुख बंदरगाह/पर्तन निम्नलिखित हैं-
1. चेन्नई-यह पत्तन कोरोमंडल तट पर तमिलनाडु में स्थित है। इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  • यह कृत्रिम पत्तन है।
  • दो मोटी जल-तोड़ दीवारें बनाकर इसे सुरक्षित बनाया गया है।
  • इसकी पृष्ठभूमि में तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक का उपजाऊ क्षेत्र तथा औद्योगिक प्रदेश सम्मिलित हैं।
  • यहाँ कोयले का अभाव है।
  • यहाँ से चावल, पेट्रोलियम, मशीनें, लौह-इस्पात तथा कोयला आयात किए जाते हैं तथा कहवा, चाय, गर्म मसाले, तिलहन, रबड़ तथा चमड़ा निर्यात किए जाते हैं।

2. विशाखापट्टनम-यह पत्तन पूर्वी तट पर आंध्र प्रदेश में स्थित है। इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  • यह प्राकृतिक तथा सुरक्षित पत्तन है।
  • यह डॉल्फिन नोज़ नामक कठोर चट्टानों से घिरी हुई है।
  • इसकी पृष्ठभूमि में लोहा, कोयला तथा मैंगनीज़ के महत्त्वपूर्ण क्षेत्र सम्मिलित हैं।
  • यहाँ जलयान निर्माण का सबसे बड़ा कारखाना स्थित है।
  • यहाँ कोयला, तेल तथा ईंधन उपलब्ध हैं।
  • यहाँ से चावल, खाद्यान, पेट्रोलियम तथा मशीनें आयात की जाती हैं तथा लोहा, मैंगनीज़, तिलहन, चमड़ा, लाख तथा तंबाकू निर्यात किया जाता है।

3. पारादीप-यह पत्तन पूर्वी तट पर ओडिशा राज्य में स्थित है। इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  • यह नई तथा आधुनिक पत्तन है।
  • यह प्राकृतिक तथा सुरक्षित पत्तन है।
  • यहाँ जल की गहराई अधिक है, इसलिए बड़े-बड़े जलयान यहाँ आकर ठहरने में समर्थ हैं।
  • इसकी पृष्ठभूमि में ओडिशा के खनिज क्षेत्र सम्मिलित हैं।
  • यहाँ से मशीनें, चावल, तेल आदि आयात किया जाता है तथा लोहा, मैंगनीज़, अभ्रक आदि खनिज पदार्थ निर्यात किए जाते हैं।

4. कोलकाता-यह पत्तन पश्चिम बंगाल के गंगा के डेल्टा प्रदेश में हुगली नदी के किनारे बंगाल की खाड़ी से 128 किलोमीटर अंदर की ओर स्थित है। इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

  • यह एक कृत्रिम पत्तन है।
  • यहाँ जल की गहराई कम है।
  • नदियों की तलछट हटाने के लिए काफी धन खर्च होता है।
  • ज्वार-भाटा के समय यहाँ जहाज़ आ-जा सकते हैं।
  • यहाँ से पेट्रोलियम, रबड़, चावल, मशीनें तथा मोटरें आयात की जाती हैं तथा पटसन, चाय, खनिज लोहा, कोयला, चीनी तथा अभ्रक निर्यात किया जाता है।।

इस पत्तन ने विशाखापट्टनम, पारादीप और उसकी अनुषंगी पत्तन हल्दिया जैसी अन्य पत्तनों की ओर निर्यात के दिकपरिवर्तन के कारण अपनी सार्थकता काफ़ी हद तक खो दी है। कोलकाता पत्तन हुगली नदी द्वारा लाई गई गाद की समस्या से भी जूझता रहा . है जो कि उसे समुद्र से जुड़ने का मार्ग प्रदान करती है।

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HBSE 12th Class History Solutions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

Haryana State Board HBSE 12th Class History Solutions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Solutions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

HBSE 12th Class History राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
आरंभिक ऐतिहासिक नगरों में शिल्पकला के उत्पादन के प्रमाणों की चर्चा कीजिए। हड़प्पा के नगरों के प्रमाण से ये प्रमाण कितने भिन्न हैं?
उत्तर:
आरंभिक ऐतिहासिक नगरों का उदय छठी सदी ई→पू→ में हुआ। इनके शिल्प उत्पाद निम्नलिखित प्रकार से थे

(1) इस काल में मिट्टी के उत्तम श्रेणी के कटोरे व थालियाँ बनाई जाती थीं। इन बर्तनों पर चिकनी कलई चढ़ी होती थी। इन्हें उत्तरी काले पॉलिश मृदभांड (N.B.P.W.) के नाम से जाना जाता है।

(2) नगरों में लोहे के उपकरण, सोने, चाँदी के गहने, लोहे के हथियार, बर्तन (कांस्य व ताँबे के), हाथी दाँत का सामान, शीशे, शुद्ध व पक्की मिट्टी की मूर्तियाँ भी बनाई जाती थीं।।

(3) भूमि अनुदान पत्रों से जानकारी मिलती है कि नगरों में वस्त्र बनाने का कार्य, बढ़ई का कार्य, आभूषण बनाने का कार्य, मृदभांड बनाने का कार्य, लोहे के औजार बनाने का कार्य होता था। हड़प्पा के नगरों से तुलना-हड़प्पा के शिल्प उत्पादों तथा आरंभिक ऐतिहासिक नगरों के शिल्प उत्पादों में काफी भिन्नता पाई जाती है। हड़प्पा सभ्यता के शिल्प कार्यों में मनके बनाना, शंख की कटाई, धातु-कर्म, मुहर बनाना तथा बाट बनाना सम्मिलित थे। परंतु हड़प्पा के लोग लोहे के उपकरण नहीं बनाते थे। उनके उपकरण पत्थर, कांस्य व ताँबे के थे। दूसरी ओर, प्रारंभिक नगरों के लोग बड़ी मात्रा में लोहे के औजार, उपकरण और वस्तुएँ बनाते थे।

प्रश्न 2.
महाजनपदों के विशिष्ट अभिलक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
छठी सदी ई→पू→ के बौद्ध और जैन ग्रंथों में हमें 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है। बौद्ध ग्रंथ अंगुतर निकाय में हमें इन राज्यों के नामों का उल्लेख मिलता है।
विशिष्ट अभिलक्षण-इन महाजनपदों के विशिष्ट अभिलक्षण निम्नलिखित प्रकार से हैं

(1) अधिकांश जनपदों में राजतंत्रात्मक प्रणाली थी जिसमें राजा सर्वोच्च व वंशानुगत था, लेकिन निरंकश नहीं था। मन्त्रिपरिषद – अयोग्य राजा को पद से हटा दिया करती थी।

(2) कुछ महाजनपदों में गणतंत्रीय व्यवस्था थी। इन्हें गण या संघ कहते थे। गणराज्यों का मुखिया ‘गणमुख्य’ कहलाता था। जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि शासन करते थे। ये ‘राजन’ (राजा) कहलाते थे। वह अपनी परिषद् के सहयोग से राज्य करता था। वस्तुतः इन गण राज्यों में कुछ लोगों के समूह (Oligarchies) का शासन होता था।

(3) प्रत्येक महाजनपद की अपनी राजधानी थी जिसकी किलेबंदी की जाती थी।

(4) इस काल में रचित धर्मशास्त्रों में शासक तथा लोगों के लिए नियमों का निर्धारण किया गया है। इन शास्त्रों में राजा को यह सलाह दी गई कि वह कृषकों, व्यापारियों और दस्तकारों से कर प्राप्त करे। पड़ोसी राज्य पर हमला कर धन लूटना या प्राप्त करना वैध (Legitimate) उपाय बताया गया।
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(5) धीरे-धीरे इनमें से कई राज्यों ने स्थायी सेना और नौकरशाही तंत्र का गठन कर लिया था परंतु कुछ राज्य अभी भी अस्थायी सेना पर निर्भर थे।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

प्रश्न 3.
सामान्य लोगों के जीवन का पुनर्निर्माण इतिहासकार कैसे करते हैं?
उत्तर:
सामान्य लोगों के जीवन का पुनर्निर्माण करने में इतिहासकारों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि सामान्य लोगों ने अपने विचारों और अनुभवों के संबंध में शायद ही कोई वृत्तांत छोड़ा हो। फिर भी इतिहासकार सामान्य लोगों के जीवन का पुनर्निर्माण करने का प्रयास करते हैं क्योंकि इतिहास निर्माण में इन लोगों के द्वारा ही अहम् भूमिका निभाई गई। इस कार्य को पूरा करने के लिए इतिहास विभिन्न प्रकार के स्रोतों का सहारा लेते हैं।

(1) विभिन्न स्थानों पर खुदाई से अनाज के दाने तथा जानवरों की हड्डियाँ मिलती हैं जिससे यह पता चलता है कि वे किन फसलों से परिचित थे तथा किन पशुओं का पालन करते थे।

(2) भवनों और मृदभांडों से उनके घरेलू जीवन का पता चलता है।

(3) अभिलेखों से शिल्प उत्पादों का पता चलता है।

(4) भूमि अनुदान पत्रों से भी ग्रामीण जीवन की झांकी का पता चलता है। इनमें ग्राम के उत्पादन तथा ग्राम के वर्गों की जानकारी मिलती है।

(5) कुछ साहित्य भी सामान्य लोगों के जीवन पर प्रकाश डालते हैं। उदाहरण के लिए जातक कथाओं और पंचतंत्र की कहानियों से इस प्रकार के संदर्भ निकाले जाते हैं।

(6) विभिन्न ग्रन्थों में नगरों में रहने वाले सर्वसाधारण लोगों का पता चलता है। इन लोगों में धोबी, बुनकर, लिपिक, बढ़ई, कुम्हार, स्वर्णकार, लौहार, छोटे व्यापारी आदि होते थे।

प्रश्न 4.
पांड्य सरदार (स्रोत 3) को दी जाने वाली वस्तुओं की तुलना दंगुन गाँव (स्रोत 8) की वस्तुओं से कीजिए। आपको क्या समानताएँ और असमानताएँ दिखाई देती हैं?
उत्तर:
पांड्य सरदार को भेंट की गई वस्तुओं की जानकारी हमें शिल्पादिकारम् में दिए वर्णन से प्राप्त होती है तथा दंगुन गाँव वह गाँव है जिसे प्रभावती गुप्त ने एक भिक्षु को भूमि अनुदान में दिया था। इस अनुदान पत्र से हमें गाँव में पैदा होने वाली वस्तुओं की जानकारी मिलती है। पांडय सरदार को प्राप्त वस्तओं व दंगन गाँव की वस्तओं की सची निम्नलिरि

(1) पहाड़ी लोग वञ्जि के राजा के लिए हाथी दाँत, शहद, चंदन, सिंदूर के गोले, काजल, हल्दी, इलायची, काली मिर्च, कंद का आटा वगैरह भेंट लाए। उन्होंने राजा को बड़े नारियल, आम, दवाई में काम आने वाली हरी पत्तियों की मालाएँ, तरह-तरह के फल, प्याज़, गन्ना, फूल, सुपारी के गुच्छे, पके केलों के गुच्छे, जानवरों व पक्षियों के बच्चे आदि का अर्पण किया।

(2) दंगुन गाँव की वस्तुओं में घास, जानवरों की खाल, कोयला, मदिरा, नमक, खनिज-पदार्थ, खदिर वृक्ष के उत्पाद, फूल, दूध आदि सम्मिलित थे।

समानताएँ-दोनों सूचियों की वस्तुओं में बहुत कम समानता है। दोनों सूचियों में मात्र फूल का नाम पाया गया है। ऐसा लगता है कि पांड्य राजा भी उपहार मिलने के बाद जानवरों की खाल का प्रयोग करते थे।

असमानताएँ-इन दोनों सूचियों में अधिकतर असमानताएँ ही दिखाई देती हैं। वस्तुएँ प्राप्त करने के तरीकों में भी बहुत । असमानताएँ दिखती हैं। एक ओर जहाँ पांड्य सरदार को लोग खुशी से नाच गाकर वस्तुएँ भेंट कर रहे हैं तो दूसरी ओर दंगुन गाँव के लोगों को दान प्राप्तकर्ता को ये वस्तुएँ देनी ही पड़ती थीं। अनुदान पत्र से स्पष्ट है कि ऐसा करने के लिए वे बाध्य थे।

प्रश्न 5.
अभिलेखशास्त्रियों की कुछ समस्याओं की सूची बनाइए।
उत्तर:
अभिलेखों के अध्ययनकर्ता तथा विश्लेषणकर्ता को अभिलेखशास्त्री कहते हैं। अपने कार्य के संपादन में अभिलेखशास्त्रियों ‘को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है

(1) अभिलेखशास्त्रियों को कभी-कभी तकनीकी सीमा का सामना करना पड़ता है। अक्षरों को हल्के ढंग से उत्कीर्ण किया जाता है जिन्हें पढ़ पाना कठिन होता है। कभी-कभी अभिलेखों के कुछ भाग नष्ट हो जाते हैं। इससे अक्षर लोप हो जाते हैं जिस कारण शब्दों/वाक्यों का अर्थ समझ पाना कठिन हो जाता है।

(2) कई अभिलेख विशेष स्थान या समय से संबंधित होते हैं, इससे भी हम वास्तविक अर्थ को नहीं समझ पाते।

(3) एक सीमा यह भी रहती है कि अभिलेखों में उनके उत्कीर्ण करवाने वाले के विचारों को बढ़ा-चढ़ाकर व्यक्त किया जाता है। अतः तत्कालीन सामान्य विचारों से इनका संबंध नहीं होता। फलतः कई बार ये जन-सामान्य के विचारों और कार्यकलापों पर प्रकाश नहीं डाल पाते। अतः स्पष्ट है कि सभी अभिलेख राजनीतिक और आर्थिक इतिहास की जानकारी प्रदान नहीं कर पाते।

(4) अनेक अभिलेखों का अस्तित्व नष्ट हो गया है या अभी प्राप्त नहीं हुए हैं। अतः अब तक जो अभिलेख प्राप्त हुए हैं वे कुल अभिलेखों का एक अंश हैं।

(5) अभिलेखशास्त्रियों को अनेक सूचनाएँ अभिलेखों पर नहीं मिल पातीं। विशेष तौर पर जनसामान्य से जुड़ी गतिविधियों पर अभिलेखों में बहुत कम या नहीं के बराबर लिखा गया है।

(6) अभिलेखों में सदा उन्हीं के विचारों को व्यक्त किया जाता है जो उन्हें उत्कीर्ण करवाते हैं। ऐसे में अभिलेखशास्त्री को अत्यंत सावधानी तथा आलोचनात्मक अध्ययन से इनकी सूचनाओं को परखना जरूरी होता है।

प्रश्न 6.
मौर्य प्रशासन के प्रमुख अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए। अशोक के अभिलेखों में इसमें से कौन-कौन से तत्त्वों के प्रमाण मिलते हैं?
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य भारत में प्रथम ऐतिहासिक साम्राज्य था। मगध महाजनपद ने अन्य जनपदों पर अधिकार स्थापित कर साम्राज्य का निर्माण किया। साम्राज्य की अवधारणा चंद्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य में फलीभूत हुई। बिंदुसार तथा सम्राट अशोक इस साम्राज्य के अन्य प्रमुख शासक रहे। मौर्य साम्राज्य के अभिलक्षणों की जानकारी हमें उस काल के ग्रंथों तथा अशोक के अभिलेखों से मिलती है। मौर्य साम्राज्य के प्रमुख अभिलक्षण निम्नलिखित प्रकार हैं

1. राजा-मौर्य राज्य भारत में प्रथम सर्वाधिक विस्तृत और शक्तिशाली साम्राज्य था। साम्राज्य में समस्त शक्ति का स्रोत सम्राट था। वास्तव में राजा और राज्य का भेद कम रह गया था। अर्थशास्त्र में लिखा है कि ‘राजा ही राज्य’ है। वह सर्वाधिकार संपन्न (Supreme Authority) था। वह सर्वोच्च सेनापति व सर्वोच्च न्यायाधीश था।

2. मंत्रि परिषद्-चाणक्य ने कहा है, “रथ केवल एक पहिए से नहीं चलता इसलिए राजा को मंत्रियों की नियुक्ति करनी चाहिए और उनकी सलाह के अनुसार कार्य करना चाहिए। मंत्रिपरिषद् के सदस्यों को अमात्य क थे-प्रधानमंत्री, पुरोहित और सेनापति। समाहर्ता (वित्त मंत्री) और संधिधाता (कोषाध्यक्ष) अन्य महत्त्वपूर्ण मंत्री थे।”

3. प्रांतीय प्रशासन विस्तृत साम्राज्य को पाँच प्रांतों (राजनीतिक केंद्रों) में बाँटा हुआ था।

  • उत्तरापथ-इसमें कम्बोज, गांधार, कश्मीर, अफगानिस्तान तथा पंजाब आदि के क्षेत्र शामिल थे। इसकी राजधानी . तक्षशिला थी।
  • पश्चिमी प्रांत-इसमें काठियावाड़-गुजरात से लेकर राजपूताना-मालवा आदि के सभी प्रदेश शामिल थे। इसकी राजधानी उज्जयिनी थी।
  • दक्षिणपथ इसमें विंध्याचल से लेकर दक्षिण में मैसूर (कर्नाटक) तक सारा प्रदेश शामिल था। इसकी राजधानी सुवर्णगिरी थी।
  • कलिंग-इसमें दक्षिण-पूर्व का उड़ीसा का क्षेत्र शामिल था, जिसमें दक्षिण की ओर जाने के महत्त्वपूर्ण स्थल व समुद्री मार्ग थे। इसकी राजधानी तोशाली थी।
  • प्राशी (पूर्वी प्रदेश) इसमें मगध तथा समस्त उत्तरी भारत का प्रदेश था। इसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी। यह प्रदेश पूर्ण रूप से सम्राट के नियन्त्रण में ही था।
    प्रांतों का शासन-प्रबन्ध राजा का प्रतिनिधि (वायसराय) करता था, जिसे कुमार या आर्यपुत्र कहते थे।

4. नगर का प्रबन्ध-मैगस्थनीज़ के अनुसार नगर का प्रशासन 30 सदस्यों की एक परिषद् करती थी, जो 6 उपसमितियों में विभाजित थी।

(1) पहली समिति-यह शिल्प उद्योगों का निरीक्षण करती थी। शिल्पकारों के अधिकारों की रक्षा भी करती थी।

(2) दूसरी समिति-यह विदेशी अतिथियों का सत्कार, उनके आवास का प्रबंध तथा उनकी गतिविधियों पर नजर रखने का कार्य करती थी। उनकी चिकित्सा का प्रबंध भी करती थी।

(3) तीसरी समिति-यह जनगणना तथा कर निर्धारण के लिए, जन्म-मृत्यु का ब्यौरा रखती थी।

(4) चौथी समिति-यह व्यापार की देखभाल करती थी। इसका मुख्य काम तौल के बट्टों तथा माप के पैमानों का निरीक्षण तथा सार्वजनिक बिक्री का आयोजन यानी बाजार लगवाना था।

(5) पाँची समिति-यह कारखानों और घरों में बनाई गई वस्तुओं के विक्रय का निरीक्षण करती थी। विशेषतः यह ध्यान रखती थी कि व्यापारी नई और पुरानी वस्तुओं को मिलाकर न बेचें। ऐसा करने पर दण्ड की व्यवस्था थी।

(6) छठी समिति-इसका कार्य बिक्री कर वसूलना था। जो वस्तु जिस कीमत पर बेची जाती थी, उसका दसवां भाग बिक्री कर के रूप में दुकानदार से वसला जाता था। यह कर न देने पर मृत्यु दण्ड की व्यवस्था थी।

5. असमान शासन व्यवस्था-मौर्य साम्राज्य अति विशाल साम्राज्य था। साम्राज्य में शामिल क्षेत्र बड़े विविध और भिन्न-भिन्न . प्रकार के थे। इसमें अफगानिस्तान का पहाड़ी क्षेत्र शामिल था, वहीं उड़ीसा जैसा तटवर्ती क्षेत्र भी था। स्पष्ट है कि इतने बड़े तथा विविधताओं से भरपूर साम्राज्य का प्रशासन एक-समान नहीं होगा। साम्राज्य के सभी भागों पर नियंत्रण भी समान नहीं था। मगध प्रांत व पाटलिपुत्र में अधिक नियंत्रण होगा तथा प्रांतीय राजधानियों में भी सख्त नियंत्रण होगा। परंतु अन्य भागों में नियंत्रण उतना कठोर नहीं था।

6. आवागमन की सुव्यवस्था साम्राज्य के संचालन के लिए भू-तल और नदी मार्गों से आवागमन होता था। इनकी सुव्यवस्था की जाती थी। राजधानी से प्रांतों तक पहुँचने में भी समय लगता था। अतः मार्ग में ठहरने व खान-पान की व्यवस्था की जाती थी। अशोक ने मार्गों पर सराएँ बनवाईं, कुएँ खुदवाए तथा पेड़ लगवाए।

7. धम्म महामात्र-अशोक के अभिलेखों से जानकारी मिलती है कि अशोक ने धम्म नीति से अपने साम्राज्य में शांति-व्यवस्था तथा एकता बनाने का प्रयास किया। उसने लोगों में सार्वभौमिक धर्म के नियमों का प्रचार-प्रसार किया। अशोक के अनुसार, धर्म के प्रसार का लक्ष्य, लोगों के इहलोक तथा परलोक को सुधारना था। इसके लिए उसने राज्य की ओर से विशेष अधिकारी नियुक्त किए जो ‘धम्म महामात्र’ के नाम से जाने जाते थे। इन्हें व्यापक अधिकार दिए गए थे। उन्हें समाज के सभी वर्गों के कल्याण और सुख के लिए कार्य करना था।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

प्रश्न 7.
यह बीसवीं शताब्दी के एक सुविख्यात अभिलेखशास्त्री, डी.सी. सरकार का वक्तव्य है : भारतीयों के जीवन, संस्कृति और गतिविधियों का ऐसा कोई पक्ष नहीं है जिसका प्रतिबिंब अभिलेखों में नहीं है : चर्चा कीजिए।
उत्तर:
सुप्रसिद्ध अभिलेखशास्त्री डी→सी→ सरकार ने मत व्यक्त किया है कि अभिलेखों से भारतीयों के जीवन, संस्कृति और . सभी गतिविधियों से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी प्राप्त होती है। अभिलेखों से मिलने वाली जानकारी का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित प्रकार से है

1. शासकों के नाम-अभिलेखों से हमें राजाओं के नाम का पता चलता है। साथ ही हम उनकी उपाधियों के बारे में भी जान पाते हैं। उदाहरण के लिए अशोक का नाम अभिलेखों में आया है तथा उसकी दो उपाधियों (देवनाम् प्रिय तथा पियदस्स) का भी उल्लेख मिलता है। समुद्रगुप्त, खारवेल, रुद्रदामा आदि के नाम भी अभिलेखों में आए हैं।

2. राज्य-विस्तार-उत्कीर्ण अभिलेखों की स्थापना वहीं पर की जाती थी जहाँ पर उस राजा का राज्य विस्तार होता था। उदाहरण के लिए मौर्य साम्राज्य का विस्तार जानने के लिए हमारे पास सबसे प्रमुख स्रोत अशोक के अभिलेख हैं।

3. राजा का चरित्र-ये अभिलेख शासकों के चरित्र का चित्रण करने में भी सहायक हैं। उदाहरण के लिए अशोक जनता के . बारे में क्या सोचता था। अनेक विषयों पर उसने स्वयं के विचार व्यक्त किए हैं। इसी प्रकार समुद्रगुप्त के चरित्र-चित्रण के लिए प्रयाग प्रशस्ति उपयोगी है। यद्यपि इनमें राजा के चरित्र को बढ़ा-चढ़ाकर लिखा गया है।

4. काल-निर्धारण-अभिलेख की लिपि की शैली तथा भाषा के आधार पर शासकों के काल का भी निर्धारण कर लिया जाता है।

5. भाषा व धर्म के बारे में जानकारी-अभिलेखों की भाषा से हमें उस काल के भाषा के विकास का पता चलता है। इसी प्रकार अभिलेखों पर धर्म संबंधी जानकारी भी प्राप्त होती है। उदाहरण के लिए, अशोक के धम्म की जानकारी के स्रोत उसके अभिलेख हैं। भूमि अनुदान पत्रों से भी धर्म व संस्कृति के बारे में जानकारी मिलती है।

6. कला-अभिलेख कला के भी नमूने हैं। विशेषतौर पर मौर्यकाल के अभिलेख विशाल पाषाण खंडों को पालिश कर चमकाया गया तथा उन पर पशुओं की मूर्तियाँ रखवाई गईं। ये मौर्य कला के उत्कृष्ट नमूने हैं।

7. सामाजिक वर्गों की जानकारी-अभिलेखों से हमें तत्कालीन वर्गों के बारे में भी जानकारी मिलती है। हमें पता चलता है कि शासक एवं राज्याधिकारियों के अलावा नगरों में व्यापारी व शिल्पकार (बुनकर, सुनार, धोबी, लौहकार, बढ़ई) आदि भी रहते थे।

8. भू-राजस्व व प्रशासन-अभिलेखों से हमें भू-राजस्व प्रणाली तथा प्रशासन के विविध पक्षों की जानकारी भी प्राप्त होती है। विशेषतौर पर भूदान पत्रों से हमें राजस्व की जानकारी मिलती है। साथ ही जब भूमि अनुदान राज्याधिकारियों को दिया जाने लगा तो धीरे-धीरे स्थानीय सामंतों की शक्ति में वृद्धि हुई। इस प्रकार भूमि अनुदान पत्र राजा की घटती शक्ति जानकारी भी देते हैं। उक्त सभी बातों के साथ हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इन अभिलेखों का सावधानीपूर्वक अध्ययन करना चाहिए। अभिलेखों की सीमाएँ भी होती हैं। विशेषतौर पर जनसामान्य से संबंधित जानकारी इन अभिलेखों में कम पाई जाती है। तथापि अभिलेखों से समाज के विविध पक्षों से काफी जानकारी मिलती है।

प्रश्न 8.
उत्तर:मौर्य काल में विकसित राजत्व के विचारों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
उत्तर:मौर्य काल में राजत्व का एक नया विचार जोर पकड़ने लगा। यह नया विचार या सिद्धांत दिव्य राजत्व का सिद्धांत था। इस सिद्धांत के तहत राजा अपने आपको ईश्वर से जोड़ने लगे। स्रोतों से जानकारी प्राप्त होती है कि श देवता या देवताओं से उत्पन्न बताया। इस माध्यम से वे प्रजा में अपना रुतबा बहुत ऊँचा कर लेना चाहते थे। प्रजा के दिलो-दिमागों में अपना नेतृत्व (Hegemony) स्थापित करना चाहते थे।

उल्लेखनीय है कि धर्म या धार्मिक रीतियों का प्रयोग कर, स्वयं को ईश्वर का प्रतिनिधि या दैवीय उत्पत्ति बताकर प्रजा में राजा के प्रति आस्था पैदा करना शासकों की प्राचीन काल से ही रणनीति रही थी। उत्तरवैदिक काल में शासक अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिए यज्ञों का सहारा लेते थे। यह यज्ञ बहुत-से ब्राह्मणों द्वारा लंबे समय तक करवाए जाते थे। इन यज्ञों में राजसूय यज्ञ (राज्यारोहण पर), वाजपेय (शक्तिप्रदपेय) तथा अश्वमेध यज्ञ प्रमुख थे जिसके माध्यम से राजाओं को दैवीय शक्तियाँ प्राप्त होती थीं।

मौर्य शासक अशोक ने भी दैवीय सिद्धांत का सहारा लिया। वह अपने आपको ‘देवानाम् प्रियदर्शी’ (देवों का प्यारा) की उपाधि से विभूषित करता है। मौर्योतर काल में कुषाण शासकों ने भी बड़ी-बड़ी उपाधियों को धारण किया तथा दिव्य राजत्व को अपनाया। कुषाणों ने मध्य एशिया से मध्य भारत तक के विशाल भू-क्षेत्र पर लगभग प्रथम सदी ई→पू→ से प्रथम ई→ सदी तक शासन किया। उनके द्वारा प्रचलित दैवत्व की परिकल्पना उनके सिक्कों और मूर्तियों से बेहतर रूप में अभिव्यक्त होती है।

मथुरा (उत्तरप्रदेश) के समीप माट (Mat) के एक देवस्थान से स्थापित की गई कुषाण शासकों की विशालकाय मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।

इसी प्रकार की मूर्तियाँ अफगानिस्तान में एक देवस्थान से प्राप्त हुई हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि देवस्थानों में विशाल मूर्तियों की स्थापना का विशेष उद्देश्य रहा होगा। वस्तुतः वे अपने आपको ‘देवतुल्य’ प्रस्तुत करना चाहते होंगे। उल्लेखनीय है कि कुषाण शासकों ने भारतीय धर्मों (शैव, बौद्ध, वैष्णव आदि) को अपनाया तथा इन धर्म के प्रतीकों को अपने सिक्कों पर भी खुदवाया। विम ने अपने सिक्कों पर शिव की आकृति, नंदी और त्रिशूल आदि का प्रयोग किया। कुषाण शासकों ने ‘देवपुत्र’ (Son of God) की उपाधि धारण की। ऐसा करने की प्रेरणा कुषाणों को चीनी शासकों से मिली होगी जो स्वयं को ‘स्वर्गपुत्र’ (Sons of Heaven) मानते थे।

प्रश्न 9.
वर्णित काल में कृषि के तौर-तरीकों में किस हद तक परिवर्तन हुए?
उत्तर:
600 ई→पू→ से 600 ई→ के लंबे कालखंड में भारत में अनेक परिवर्तन आए। इन परिवर्तनों का प्रमुख आधार कृषि प्रणाली का विकसित होना था। इस काल में शासक अधिक मात्रा में कर वसूल करना चाहते हैं। करों की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए किसान उपज बढ़ाने के उपाय ढूँढने लगे। शासकों ने भी इसमें योगदान दिया। उन्होंने सिंचाई कार्यों को बढ़ावा दिया। फलतः कृषि के तौर-तरीकों में निम्नलिखित बदलाव आए

1. सिंचाई कार्य मौर्य शासकों ने खेती-बाड़ी को बढ़ाने की ओर विशेष ध्यान दिया। राज्य किसानों के लिए सिंचाई व्यवस्था/जल वितरण का कार्य करता था। मैगस्थनीज़ ने ‘इंडिका’ में लिखा है कि मिस्र की तरह मौर्य राज्य में भी सरकारी अधिकारी जमीन की पैमाइश करते थे। नहरों का निरीक्षण करते थे जिनसे होकर पानी छोटी नहरों में पहुँचता था।

जूनागढ़ अभिलेख से पता चलता है कि चंद्रगुप्त मौर्य के एक गवर्नर पुष्यगुप्त ने सौराष्ट्र (गुजरात) में गिरनार के पास सुदर्शन झील पर एक बाँध बनवाया था जो सिंचाई के काम आता था। … पाँचवीं सदी में स्कंदगुप्त ने भी इसी झील का जीर्णोद्धार करवाया था। कुँओं व तालाबों से सिंचाई कर कृषि उपज बढ़ाई जाती थी। नहरों का निर्माण शासक या संपन्न लोग ही करवा पाते थे। परंतु कुओं तालाबों के निर्माण में समुदाय तथा व्यक्तिगत प्रयास भी प्रमुख भूमिका निभाते थे।

2. हल से खेती-कृषि उपज बढ़ाने का एक उपाय हल का प्रचलन था। अधिक बरसात वाले क्षेत्रों में हल के लोहे के फाल का प्रयोग प्रचलन में आया। इसकी मदद से मिट्टी को गहराई तक जोता जाने लगा। उल्लेखनीय है कि गंगा व कावेरी की घाटियों के उपजाऊ क्षेत्र में छठी सदी ई→ पू→ से लोहे वाले फाल सहित हल का प्रयोग होने लगा था। प्राचीन पालि ग्रंथों में कृषि के लिए लोहे के औजारों का उल्लेख है। अष्टाध्यायी में भी आयोविकर कुशि (लोहे की फाल) का उल्लेख है। उत्तरी भारत में इस संबंध में कुछ पुरातात्विक साक्ष्य भी मिलते हैं। इसका परिणाम कृषि क्षेत्र में वृद्धि, कृषक बस्तियों का प्रसार और उत्पादन का बढ़ना है, जिसका लाभ राज्य को भी मिला।

3. धान रोपण की विधि की शुरुआत-कृषि क्षेत्र में पैदावार बढ़ाने में एक अन्य महत्त्वपूर्ण उपाय धान रोपण की शुरुआत है। भारत में धान रोपण की शुरुआत 500 ई→पू→ में स्वीकार की जाती है। धान लगाने की प्रक्रिया के लिए रोपण और रोपेति जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है। सालि का तात्पर्य उखाड़कर लगाए जाने वाली जाड़े की फसलों से है। पालि ग्रंथों में इस प्रक्रिया को बीजानि पतितापेति के नाम से जाना जाता है। ज्ञातधर्म कोष में प्राकृत वाक्यांश उक्खाय निहाए का अर्थ है “उखाड़ना और । प्रतिरोपित करना” प्रतिरोपण की इस प्रणाली से पैदावार बढ़ी। इससे गाँवों में परिवर्तन आया।

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प्रश्न 10.
मानचित्र 1 और 2 की तुलना कीजिए और उन महाजनपदों की सूची बनाइए जो मौर्य साम्राज्य में शामिल रहे होंगे। क्या इस क्षेत्र में अशोक के कोई अभिलेख मिले हैं?
उत्तर:
(1) अशोक के साम्राज्य में शामिल महाजनपदों के नाम-(i) अंग, (ii) मगध, (iii) काशी, (iv) कौशल, (v) वज्जि, (vi) मल्ल, (vii) चेदी (चेटी), (viii) वत्स, (ix) कुरू, (x) पांचाल, (xi) मत्स्य, (xii) शूरसेन, (xiii) अश्मक, (xiv) (rv) गांधार, (xvi) कम्बोज।

(2) अशोक के साम्राज्य में महाजनपदीय क्षेत्रों में मिले अभिलेख-लौरिया अराराज, लौरिया नंदगढ़, रामपुरवा, सहसराम, बैरार, भाबू, टोपरा, शाहबाजगढ़ी, मानसेहरा, सारनाथ, कौशाम्बी तथा कई अन्य अभिलेख मिले हैं।
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प्रश्न 11.
एक महीने के अखबार एकत्रित कीजिए। सरकारी अधिकारियों द्वारा सार्वजनिक कार्यों के बारे में दिए गए वक्तव्यों को काटकर एकत्रित कीजिए। समीक्षा कीजिए कि इन परियोजनाओं के लिए आवश्यक संसाधनों के बारे में खबरों में क्या लिखा है। संसाधनों को किस प्रकार से एकत्र किया जाता है और परियोजनाओं का उद्देश्य क्या है। इन वक्तव्यों को कौन जारी करता है और उन्हें क्यों और कैसे प्रसारित किया जाता है? इस अध्याय में चर्चित अभिलेखों के साक्ष्यों से इनकी तुलना कीजिए। आप इनमें क्या समानताएँ और असमानताएँ पाते हैं?
उत्तर:
विद्यार्थी अपने अध्यापक के दिशा-निर्देश में परियोजना रिपोर्ट तैयार करें।

प्रश्न 12.
आज प्रचलित पाँच विभिन्न नोटों और सिक्कों को इकट्ठा कीजिए। इनके दोनों ओर आप जो देखते हैं उनका वर्णन कीजिए। इन पर बने चित्रों, लिपियों और भाषाओं, माप, आकार या अन्य समानताओं और असमानताओं के बारे में एक रिपोर्ट तैयार कीजिए। इस अध्याय में दर्शित सिक्कों में प्रयुक्त सामग्रियों, तकनीकों, प्रतीकों, उनके महत्त्व और सिक्कों के संभावित कार्य की चर्चा करते हुए इनकी तुलना कीजिए।
उत्तर:
संकेत-(1) आधुनिक प्रचलित 10 रुपए, 50 रुपए, 100 रुपया, 500 रुपए तथा 1000 रुपए के नोटों पर देखकर विवरण लिखें। जैसे कि भारत सरकार, रिजर्व बैंक, गवर्नर, चित्र (राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, नोट नम्बर, रिजर्व बैंक की मोहर, राष्ट्रीय चिह्न, गवर्नर क्या वचन देता है, इत्यादि। इन सारे तथ्यों के आधार पर स्वतन्त्र भारत के नोटों की विशेषताओं पर विचार करें।

(2) 1 रुपया, 2 रुपए तथा 5 रुपए के सिक्कों पर अंकित चिह्नों की तुलना उन सिक्कों से करें जो प्राचीनकालीन सिक्के अध्याय में दिखाए गए हैं।

राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ HBSE 12th Class History Notes

→ मुद्राशास्त्र-सिक्कों के अध्ययन को मुद्राशास्त्र कहते हैं। प्राचीनकाल में धातु के बने सिक्के होते थे। इन सिक्कों पर पाए जाने वाले चित्रों, लिपि तथा सिक्कों की धातु का विश्लेषण किया जाता है। जिन संदर्भो में ये सिक्के पाए जाते हैं, उनका अध्ययन भी मुद्राशास्त्र में किया जाता है।

→ अभिलेख-अभिलेख उन्हें कहते हैं जो पत्थर, धातु, मिट्टी के बर्तन इत्यादि जैसी कठोर सतह पर खुदे होते हैं।

→ अभिलेखशास्त्र-अभिलेखों के अध्ययन को अभिलेखशास्त्र कहते हैं।

→ पंचमार्क सिक्के-चाँदी और ताँबे के आयताकार या वृत्ताकार टुकड़े बनाकर उन पर ठप्पा मारकर विभिन्न चिह्न (जैसे सूर्य, वृक्ष, मानव आदि) खोदे जाते थे। इन्हें पंचमार्क या आहत सिक्के कहते हैं।

→ धान की रोपाई धान की रोपाई उन क्षेत्रों में की जाती है जहाँ पानी काफी मात्रा में न की रोपाई उन क्षेत्रों में की जाती है जहाँ पानी काफी मात्रा में पाया जाता है। पहले बीज अंकुरित किए जाते हैं तथा पानी से भरे खेत में पौधों की रोपाई की जाती है। इस प्रक्रिया से उपज में वृद्धि होती है।

→ गहपति-गहपति घर का मुखिया होता था। घर में रहने वाली महिलाओं, बच्चों और दासों पर उसका नियंत्रण होता था। घर से जुड़ी भूमि, पशुओं और अन्य सभी वस्तुओं का वह स्वामी होता था। कभी-कभी गहपति शब्द शहरों में रहने वाले संभ्रांत व्यक्तियों और व्यापारियों के लिए भी होता था।

→ संगम साहित्य-प्रारंभिक तमिल साहित्य को संगम साहित्य कहते हैं। दक्षिण भारत में पाण्ड्य राजाओं की राजधानी मदुरा में तमिल कवियों के सम्मेलन हुए। इन सम्मेलनों को संगम के नाम से जाना जाता है। ये तीन सम्मेलन (संगम) लगभग 300 ई→ पूर्व से 300 ई→ के बीच बुलाए गए। इन संगमों के फलस्वरूपं वृहद् संगम साहित्य की रचना हुई।

→ जातक-महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथाओं को जातक कहते हैं। प्रत्येक कथा एक प्रकार की लोककथा है। इसमें 549 लोककथाएँ हैं। ये पाली भाषाएँ हैं।

→ अग्रहार-अग्रहार से अभिप्राय उस भूमि से है जो अनुदान पत्रों के माध्यम से ब्राह्मणों को दी जाती थी। इस भूमि में ब्राह्मणों को सभी प्रकार के करों से मुक्त रखा गया था।

→ तमिलकम् प्राचीन काल में भारत के सुदूर दक्षिणी क्षेत्रों को तमिलकम् नाम से जाना जाता था। इसमें तमिलनाडु तथा आंध्र व केरल के कुछ प्रदेश शामिल थे।

→ जनपद-वह भूखंड या क्षेत्र जहाँ पर कोई जन (कबीला, लोग या कुल) अपना पाँव रखता था या बस जाता था, जनपद कहलाता था। इस शब्द का प्रयोग प्राकृत और संस्कृत दोनों भाषाओं में मिलता है।

→ महाजनपद-एक बड़ा और शक्तिशाली राज्य जैसे मगध।

→ अल्पतन्त्रीय राज्य (ओली गाकी) यह एक ऐसा राज्य होता है जिसमें सत्ता कुछ गिने चुने लोगों के हाथों में होती है। उदाहरण के लिए रोम में गणतन्त्र या अल्पतन्त्र की स्थापना हुई थी।

→ दानात्मक अभिलेख (अनुदान पत्र)-धार्मिक संस्थाओं या ब्राह्मणों, भिक्षुओं आदि को दिया गया दान तथा दान के प्रमाण के रूप में प्रदान किए ताम्रपत्र को ‘अनुदान पत्र’ कहते हैं।

→ पेरिप्लस व एरीशियन-यह यूनानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है समुद्री यात्रा। एरीथ्रियन यूनानी भाषा में लाल सागर को कहते हैं।

→ प्रतिवेदक मौर्य विशेष तौर पर अशोक के काल में रिपोर्टर (सूचना देने वाले) को प्रतिवेदक कहा जाता था। अभिलेखशास्त्री इसे संवाददाता बताते हैं।

→ हड़प्पा सभ्यता के पतन के बाद डेढ़ हजार वर्षों का लंबा काल अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण था। इस काल में भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में अनेक विकास (Developments) हुए। सिंधु और उसकी सहायक नदियों के किनारे रहने वाले लोगों ने ऋग्वेद की रचना की। उत्तर भारत, दक्कन के पठार और कर्नाटक के क्षेत्रों में कृषक बस्तियों की शुरुआत हुई।

→ इसके साथ ही दक्कन और दक्षिण भारत में चरवाहा समुदाय के प्रमाण मिलते हैं। ईसा पूर्व की प्रथम सहस्राब्दी के दौरान मध्य और दक्षिण भारत में महापाषाणीय संस्कृति अस्तित्व में आई। वस्तुतः यह शवों के अंतिम संस्कार का नया तरीका था, जिसमें दफनाने के लिए बड़े-बड़े पाषाणों का प्रयोग किया जाता था। कई स्थानों पर इन शवाधानों में शवों के साथ लोहे के बने उपकरण और हथियारों को भी दफनाया गया था। इसका अर्थ था कि इन क्षेत्रों में लोहे का प्रयोग हो रहा था जो भौतिक संस्कृति के विकास में महत्त्वपूर्ण कदम था।

→ छठी शताब्दी ई→पू→ से अनेक प्रवाहों (Trends) के भी प्रमाण मिलते हैं। सम्भवतः इनमें सबसे ज्यादा मुखर आरंभिक राज्यों, साम्राज्यों और रजवाड़ों (kingdoms) का विकास है। इन राजनीतिक प्रक्रियाओं की पृष्ठभूमि में भी अनेक परिवर्तन कार्य कर रहे थे। कृषि क्षेत्र का विस्तार और उत्पादन बढ़ाने के अनेक तरीके अपनाए जा रहे थे, अर्थात् भारत में कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था की स्थापना हो रही थी और किसानों का महत्त्व बढ़ता जा रहा था। इसके साथ-साथ व्यापार और वाणिज्य का भी उदय और विकास हो रहा था। मुद्रा का प्रचलन बढ़ रहा था। फलतः उपमहाद्वीप पर नए नगरों का उत्कर्ष हुआ। वस्तुतः 600 ई→पू→ से 600 ई→ का काल ‘राजा, किसान और नगरों के उदय और उनके अन्तर्संबंधों का काल था।

→ अभिलेख मोहरों, प्रस्तर स्तंभों, स्तूपों, चट्टानों और ताम्रपत्रों (भूमि अनुदानपत्र) इत्यादि पर मिलते हैं। ये ईंटों या मूर्तियों पर भी मिलते हैं। अभिलेख का महत्त्व इसलिए भी है कि इन पर इनके निर्माताओं की उपलब्धियों, क्रियाकलापों और विचारों को उत्कीर्ण किया जाता है। अभिलेख स्थायी प्रमाण होते हैं तथा इनमें फेर-बदल नहीं किया जा सकता।

→ अशोक के अभिलेख ब्राह्मी लिपि में हैं। यह लिपि बाएँ से दाएँ लिखी जाती थी। यह आधुनिक भारतीय लिपियों की उद्गम लिपि भी है। ब्राह्मी लिपि को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में एक अधिकारी जेम्स प्रिंसेप ने 1838 में पढ़ने (Decipher) में सफलता पाई।

→ भूमि अनुदान पत्र अभिलेखों में ही सम्मिलित किए जाते हैं। इन दान पत्रों में राजाओं, राज्याधिकारियों, रानियों, शिल्पियों, व्यापारियों इत्यादि द्वारा दिए गए धर्मार्थ धन, मवेशी, भूमि आदि का उल्लेख मिलता है। राजाओं और सामंतों द्वारा दिए गए भूमि अनुदान पत्र का विशेष महत्त्व है क्योंकि इनमें प्राचीन भारत की व्यवस्था और प्रशासन से संबंधित जानकारी मिलती है।

→ पुरातात्विक सामग्री में सिक्कों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। शासकों की राज्य सीमा, राज्यकाल, आर्थिक स्थिति तथा धार्मिक विश्वासों के संबंध में सिक्के महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। इनसे सांस्कृतिक और सामाजिक महत्त्व की जानकारी भी प्राप्त होती है। मुद्रा प्रणाली का आरंभ मानव की आर्थिक प्रगति का प्रतीक है। सिक्कों के अध्ययन को मुद्राशास्त्र (Numismatics) कहा जाता है।

→ सबसे पहले छठी शती ई→पू→ में चाँदी और ताँबे के आयताकार या वृत्ताकार टुकड़े बनाए गए। इन टुकड़ों पर ठप्पा मारकर अनेक प्रकार के चिह्न जैसे कि सूर्य, वृक्ष, मानव, खरगोश, बिच्छु, साँप आदि खोदे हुए थे। इन्हें पंचमार्क या आहत सिक्के कहते हैं।

→ प्रत्येक महाजनपद की अपनी राजधानी (Capital) थी जिसकी किलेबंदी की जाती थी। राज्य को किलेबंद शहर, सेना और नौकरशाही के लिए आर्थिक संसाधनों की आवश्यकता होती थी। इस काल में रचित इन धर्मशास्त्रों में शासक तथा लोगों के लिए नियमों का निर्धारण किया गया है। इन शास्त्रों में राजा को यह सलाह दी गई कि वह कृषकों, व्यापारियों और दस्तकारों से कर तथा अधिकार (Tribute) प्राप्त करे।

HBSE 12th Class History Solutions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

→ प्रारंभ में मगध की राजधानी राजगृह (राजगीर का प्राकृत नाम) थी जिसका अभिप्राय था राजा का घर (House of King)। राजगृह पहाड़ियों के बीच स्थित एक किलेबंद था। बाद में 4 शताब्दी ई→पू→ में पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) मगध की राजधानी बना। पाटलिपुत्र का गंगा नदी के संपर्क मार्गों पर नियंत्रण था। उल्लेखनीय है कि छठी शताब्दी ई→पू→ से चौथी शताब्दी ई→पू→ के मध्य में 16 महाजनपदों में से मगध महाजनपद सबसे शक्तिशाली होकर उभरा।

→ अन्ततः मगध महाजनपद विस्तार करते हुए भारत में प्रथम साम्राज्य का रूप धारण कर गया। यह प्रथम साम्राज्य मौर्य साम्राज्य था जिसकी स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने लगभग 321 ई→पू→ में की। चंद्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य का विस्तार उत्तर:पश्चिम में . अफगानिस्तान तथा बलूचिस्तान तक फैला हुआ था। भारतीय इतिहास का महान शासक अशोक चंद्रगुप्त मौर्य का पौत्र (Grandson) था जिसने कलिंग (वर्तमान ओडिशा) को जीता।

→ अशोक ने प्रजा में सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना पैदा करने का प्रयास किया। सामूहिक रूप से उसकी इसी नीति को धम्म कहा गया है।

→ मौर्य राज्य भारत में प्रथम सर्वाधिक विस्तृत और शक्तिशाली साम्राज्य था। साम्राज्य में समस्त शक्ति का स्रोत सम्राट था। वास्तव में राजा और राज्य का भेद कम रह गया था। अर्थशास्त्र में लिखा है कि ‘राजा ही राज्य’ है। वह सर्वाधिकार संपन्न (Supreme Authority) था। वह सर्वोच्च सेनापति व सर्वोच्च न्यायाधीश था। सभी पदों पर वही नियुक्ति करता था।

→ अशोक के अनुसार, धर्म के प्रसार का लक्ष्य, लोगों के इहलोक तथा परलोक को सुधारना था। इसके लिए उसने राज्य की ओर से विशेष अधिकारी नियुक्त किए जो ‘धम्म महामात्र’ के नाम से जाने जाते थे।

→ मौर्य शासकों के पास एक शक्तिशाली सेना थी, जिसकी सहायता से राज्य का क्षेत्रीय विस्तार किया गया, साथ ही उस पर नियन्त्रण बनाए रखने में भी उसकी विशेष भूमिका रही। प्लिनी (Pliny) के अनुसार उनके पास 9,000 हाथी, 30,000 अश्वारोही और 6,00,000 पैदल सैनिक थे। इसके अलावा बड़ी संख्या में रथ भी उनकी सेना में थे।

→ इतिहासकारों को यह जानकर भी सुखानुभूति हुई कि अशोक के अभिलेखों के संदेश दूसरे शासकों के आदेशों के बिल्कुल भिन्न थे। ये अभिलेख उन्हें बताते थे कि अशोक बहुत ही शक्तिर्शाली तथा मेहनती सम्राट था जो विनम्रता से (बिना बड़ी-बड़ी उपाधियों को धारण किए) जनता को पुत्रवत मानकर उनके नैतिक उत्थान में लगा रहा। इस प्रकार इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इन इतिहासकारों ने अशोक को प्रेरणादायक व्यक्तित्व स्वीकारा तथा मौर्य साम्राज्य को अत्यधिक महत्त्व दिया।

→ सुदूर दक्षिण में इस काल में तीन राज्यों का उदय हुआ। यह क्षेत्र तमिलकम् (इसमें आधुनिक तमिलनाडु तथा आंध्र प्रदेश व केरल के भाग शामिल थे) कहलाता था। तीन राज्यों के नाम हैं-चोल, चेर और पाण्ड्य । दक्षिण के ये राज्य संपन्न थे तथा लंबे समय तक अस्तित्व में रहे।

→ संगम साहित्य बहुत ही विपुल -कुछ विद्वान इसे महासंग्रह कहते हैं। इस काव्य को भ्रमणशील भाट और विद्वान कवि दोनों ने लिखा। यह साहित्य चोल, चेर, पाण्ड्य शासकों तथा अनेक छोटे-मोटे राजाओं या नायकों की जानकारी देता है।

→ प्रारम्भिक चोल शासकों में कारिकाल सबसे प्रसिद्ध है। कारिकाल का अर्थ ‘जले हुए पैर वाला व्यक्ति’ होता है।

→ पाण्ड्य शासकों में सबसे महान नेडुजेलियन था। इसकी उपाधि से ज्ञात होता है कि इसने किसी आर्य (उत्तर भारत) सेना को पराजित किया। वह तलैयालंगानम् के युद्ध को जीतने के कारण बहुत प्रसिद्ध हुआ।

→ स्रोतों से जानकारी प्राप्त होती है कि शासकों ने अपने आपको देवता या देवताओं से उत्पन्न बताया। इस माध्यम से वे प्रजा में अपना रुतबा बहुत ऊँचा कर लेना चाहते थे। प्रजा के दिलो-दिमागों में अपना नेतृत्व (Hegemony) स्थापित करना चाहते थे। उल्लेखनीय है कि धर्म या धार्मिक रीतियों का प्रयोग कर, स्वयं को ईश्वर का प्रतिनिधि या दैवीय उत्पत्ति बताकर प्रजा में राजा के प्रति आस्था पैदा करना शासकों की प्राचीन काल से ही रणनीति रही थी।
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→ कुषाण शासकों ने भारतीय धर्मों (शैव, बौद्ध, वैष्णव आदि) को अपनाया तथा इन धर्मों के प्रतीकों को अपने सिक्कों पर भी खुदवाया। विम ने अपने सिक्कों पर शिव की आकृति, नंदी और त्रिशूल आदि का प्रयोग किया। कुषाण शासकों ने ‘देवपुत्र’ (Son of God) की उपाधि धारण की।

→ कृषि व्यवस्था के उदय के आरंभ से ही उपज बढ़ाने के अनेक उपाय किए जाते रहे थे। फलतः नई फसलों को उगाना, मिट्टी को उपजाऊ बनाना, खेती में हल तथा धातु का प्रयोग इत्यादि तरीके प्रचलन में आए। फसल की सिंचाई कर उपज बढ़ाना भी प्रमुख तरीका था।

→ कृषि क्षेत्र में पैदावार बढ़ाने में एक अन्य महत्त्वपूर्ण उपाय धान रोपण की शुरुआत है। भारत में धान रोपण की शुरुआत 500 ई→पू→ में स्वीकार की जाती है। धान लगाने की प्रक्रिया के लिए रोपण और रोपेति जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है।

→ गुप्तकाल में अनेक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि सम्राटों ने धार्मिक कार्यों या परोपकार के लिए अनेक गाँव अनुदान में दिए। सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त द्वारा दिए अनुदानपत्र का विवरण भी हमें प्राप्त होता है। प्रभावती ने अभिलेख में ग्राम कुटुंबिनों (गृहस्थ और कृषक), ब्राह्मणों और दंगुन गांव के अन्य निवासियों को स्पष्ट आदेश दिया।

→ भारतीय उपमहाद्वीप में लगभग छठी शताब्दी ई→पू→ में विभिन्न क्षेत्रों में कई नगरों का उदय हुआ। ये नगर हड़प्पा सभ्यता के काफी समय बाद हड़प्पा क्षेत्रों से उत्तर:पूर्व में मुख्यतः गंगा-यमुना की घाटी में पैदा हुए। इनमें से अधिकांश नगर महाजनपदों की राजधानियाँ थीं। इस काल के प्रमुख नगर तक्षशिला अस्सपुर, वैशाली, कुशीनगर, उज्जयिनी, कपिलवस्तु, मिथिला, शाकल, साकेत, चम्पा, पाटलिपुत्र आदि थे।

→ नगरों में शिल्पकारों एवं व्यापारियों की श्रेणियों या संघों का भी उल्लेख मिलता है। प्रत्येक श्रेणी का एक अध्यक्ष होता था। इन श्रेणियों में विभिन्न व्यवसायों से जुड़े कारीगर सम्मिलित होते थे। प्रमुख शिल्पकार श्रेणियाँ थीं-धातुकार (लुहार, स्वर्णकार, ताँबा, कांसा व पीतल का काम करने वाले), बढ़ई, राजगीर, जुलाहे, कुम्हार, रंगसाज, बुनकर, कसाई, मछुआरे इत्यादि। ये श्रेणियाँ अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करती थीं।

→ तमिल व संस्कृत साहित्य तथा विदेशी वृत्तांतों से जानकारी मिलती है कि भारत में अनेक प्रकार का सामान एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जाता था। इन वस्तुओं में प्रमुख थीं-नमक, अनाज, वस्त्र, लोहे का सामान, कीमती पत्थर, लकड़ी, औषधीय पौधे इत्यादि। भारत का विदेशी व्यापार रोमन साम्राज्य तक फैला हुआ था।

क्रम संख्याकालघटना का विकरण
1.लगभग 600 ई०पू०उत्तर प्रदेश और पश्चिम बिहार में लोहे का बड़े पैमाने पर प्रयोग
2.लगभभग 600 ई०पू०धान रोपण विधि, गंगा द्रोणी में नगरीकरण और महाजनपदों का उदय, आहत सिक्कों का प्रयोग
3.लगभग 500 ई०पू० से 400 ई० पू०मगध शासकों द्वारा सत्ता का सुदृढ़ीकरण करना
4.लगभग 327-325 ई०पू०सिकंदर का भारत पर आक्रमण
5.लगभग 321 ई०पू०चंद्रगुप्त मौर्य का राज्यारोहण
6.268-231 ई०पू०अशोक का शासन काल
7.लगभग 200 ई०पू०मध्य एशिया से घनिष्ठ व्यापार संपर्क प्रारंभ
8.लगभग 100 ई०पू० से 200 ई०पू०उत्तर-पश्चिम में शक शासक, रोम से व्यापार
लगभग 78 ई०पू०कनिष्क का राज्यारोहण; शक संवत् आरंभ
10.लगभग 320 ई०पू०गुप्त शासन का आरंभ
11.लगभग $335-375$ ई० पू०समुद्रगुप्त का शासनकाल
12.लगभग $375-415$ ई० पू०चंद्रगुप्त II, दक्षिण में वाकाटक
13.लगभग $500-600$ ई० पू०चालुक्य (कर्नाटक में) व पल्लव (तमिलनाडु में)
14.लगभग $606-647$ ई० पू०हर्षवर्धन कन्नौज में शासक, ह्यनसांग का भारत आना।
15.1784 ईoबंगाल एशियाटिक सोसायटी का गठन
16.1838 ई०जेम्स प्रिंसेप अशोक के अभिलेख पढ़ने में सफल हुआ
17.1877 ईoअलेक्जैंडर कनिंघम द्वारा अशोक के अभिलेखों के अंक अंश का प्रकाशन
18.1886 ई०एपिग्राफिआ कर्नाटिका (Ephigraphia Carnatica) का प्रथम अंक प्रकाशित
19.1888 ई०एपिग्राफिआ इंडिका (Ephigraphia Indica) का प्रथम अंक प्रकाशित
20.1965-66 ई०डी. सी. सरकार द्वारा ‘इंडियन एपिग्राफी एंड इंडियन एपिग्राफ़िकल ग्लोसरी (Indian Ephigraphy and Indian Ephigraphical Glossary) का प्रकाशन

 

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HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. संसाधनों के संरक्षण के आधार पर रैनर ने कब वर्गीकरण प्रस्तुत किया?
(A) सन् 1921 में
(B) सन् 1951 में
(C) सन् 1961 में
(D) सन् 1981 में
उत्तर:
(B) सन् 1951 में

2. भौतिक पर्यावरण से प्राप्त संसाधन कहलाते हैं
(A) भौतिक संसाधन
(B) समाप्य संसाधन
(C) असमाप्य संसाधन
(D) संरक्षित भंडार
उत्तर:
(A) भौतिक संसाधन

3. वे संसाधन जिनका बार-बार उपयोग किया जा सकता है, कहलाते हैं-
(A) भौतिक संसाधन
(B) नवीकरणीय संसाधन
(C) संरक्षित भंडार
(D) समाप्य संसाधन
उत्तर:
(B) नवीकरणीय संसाधन

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

4. सौर ऊर्जा किस संसाधन के अंतर्गत आता है?
(A) प्राकृतिक संसाधन
(B) समाप्य संसाधन
(C) असमाप्य संसाधन
(D) संरक्षित भंडार
उत्तर:
(C) असमाप्य संसाधन

5. ज्ञान और कौशल किस प्रकार के संसाधनों के अंतर्गत आते हैं?
(A) सांस्कृतिक संसाधन
(B) समाप्य संसाधन
(C) भौतिक संसाधन
(D) चक्रीय संसाधन
उत्तर:
(A) सांस्कृतिक संसाधन

6. वे संसाधन जिनका आर्थिक दृष्टि से विकास संभव है, कहलाते हैं-
(A) भौतिक संसाधन
(B) संरक्षित संसाधन
(C) समाप्य संसाधन
(D) नवीकरणीय संसाधन
उत्तर:
(B) संरक्षित संसाधन

7. भारत में सबसे अधिक शस्य गहनता वाला राज्य है-
(A) उत्तर प्रदेश
(B) कर्नाटक
(C) पंजाब
(D) मिज़ोरम
उत्तर:
(C) पंजाब

8. भारत में सबसे कम शस्य गहनता वाला राज्य है-
(A) उत्तर प्रदेश
(B) कर्नाटक
(C) पंजाब
(D) मिज़ोरम
उत्तर:
(D) मिज़ोरम

9. कौन-सी खाद्य फसल देश में प्रथम स्थान पर है?
(A) चावल
(B) गेहूँ
(C) मक्का
(D) ज्वार
उत्तर:
(A) चावल

10. हरित क्रान्ति से सबसे अधिक लाभ किस फसल को हुआ?
(A) चावल
(B) गेहूँ
(C) चाय
(D) गन्ना
उत्तर:
(B) गेहूँ

11. भारत में गेहूँ उत्पादक सबसे बड़ा राज्य कौन-सा है?
(A) पंजाब
(B) हरियाणा
(C) उत्तर प्रदेश
(D) पश्चिमी बंगाल
उत्तर:
(C) उत्तर प्रदेश

12. रबड़ उत्पादन में भारत का कौन-सा राज्य अग्रणी है?
(A) केरल
(B) असम
(C) हरियाणा
(D) कर्नाटक
उत्तर:
(A) केरल

13. भारत किस फसल का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है?
(A) चावल
(B) गेहूँ
(C) चाय
(D) गन्ना
उत्तर:
(C) चाय

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

14. भारत में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है-
(A) पंजाब
(B) हरियाणा
(C) उत्तर प्रदेश
(D) पश्चिमी बंगाल
उत्तर:
(D) पश्चिमी बंगाल

15. कृषि क्षेत्र की नई तकनीक है-
(A) पैकेज टेक्नोलॉजी
(B) जैव-प्रौद्योगिकी
(C) वैश्वीकरण
(D) ड्रीप इरीगेशन
उत्तर:
(B) जैव-प्रौद्योगिकी

16. भारत का संसार में कपास उत्पादन में कौन-सा स्थान है?
(A) पहला
(B) दूसरा
(C) तीसरा
(D) चौथा
उत्तर:
(D) चौथा

17. 75 सें०मी० से अधिक वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाने वाली कृषि कहलाती है
(A) वर्धनकाल
(B) आर्द्र भूमि कृषि
(C) शुष्क भूमि कृषि
(D) शस्य गहनता
उत्तर:
(B) आर्द्र भूमि कृषि

18. 75 सें०मी० से कम वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाने वाली कृषि कहलाती है-
(A) वर्धनकाल
(B) आर्द्र भूमि कृषि
(C) शुष्क भूमि कृषि
(D) शस्य गहनता
उत्तर:
(C) शुष्क भूमि कृषि

19. गहन कृषि की विशेषता है-
(A) भूमि पर जनसंख्या का अधिक दबाव
(B) रासायनिक निवेश
(C) सिंचाई का प्रयोग
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

20. निम्नलिखित में से कौन-सी रोपण फसल नहीं है?
(A) चाय
(B) गेहूँ
(C) कॉफी
(D) रबड़
उत्तर:
(B) गेहूँ

21. भारत में कौन-सी फसल शस्य ऋतु में पाई जाती है?
(A) रबी
(B) खरीफ़
(C) जायद
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

22. रबी की फसलें कब बोई जाती हैं?
(A) अक्तूबर से मध्य दिसंबर
(B) नवंबर से मध्य जनवरी
(C) दिसंबर से मध्य फरवरी
(D) अप्रैल से मई
उत्तर:
(A) अक्तूबर से मध्य दिसंबर

23. ‘काटो व जलाओ’ और ‘झाड़-झंकार परत’ वाली खेती के रूप में निम्नलिखित में से किसे जाना जाता है?
(A) स्थानांतरी कृषि
(B) रोपण कृषि
(C) बागानी कृषि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) स्थानांतरी कृषि

24. खरीफ की फसलें कब बोई जाती हैं?
(A) जून-जुलाई में
(B) अगस्त-सितंबर में
(C) मार्च-अप्रैल में
(D) अप्रैल-मई में
उत्तर:
(A) जून-जुलाई में

25. निम्नलिखित में से कौन-सी खरीफ की फसल नहीं है?
(A) मक्का
(B) ज्वार-बाजरा
(C) सरसों
(D) अरहर
उत्तर:
(C) सरसों

26. भारत की प्रमुख खाद्य फसल निम्नलिखित में से कौन-सी है?
(A) गेहूँ
(B) चावल
(C) बाजरा
(D) जौ
उत्तर:
(B) चावल

27. भारत की दूसरी मुख्य खाद्य फसल निम्नलिखित में से कौन-सी है?
(A) गेहूँ
(B) चावल
(C) जो
(D) बाजरा
उत्तर:
(A) गेहूँ

28. निम्नलिखित में से कौन-सा उस कृषि प्रणाली को दर्शाता है जिसमें एक ही फसल लंबे-चौड़े क्षेत्र में उगाई जाती है?
(A) बागवानी कृषि
(B) रोपण कृषि
(C) झूम कृषि
(D) गहन कृषि
उत्तर:
(B) रोपण कृषि

29. भारत का विश्व में गन्ना उत्पादन में कौन-सा स्थान है?
(A) प्रथम
(B) दूसरा
(C) सातवाँ
(D) आठवाँ
उत्तर:
(B) दूसरा

30. भारत में गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन-सा है?
(A) बिहार
(B) उत्तर प्रदेश
(C) पंजाब
(D) हरियाणा
उत्तर:
(B) उत्तर प्रदेश

31. निम्नलिखित में से कौन-सी फसल तिलहन है?
(A) सरसों
(B) सूरजमुखी
(C) तिल
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

32. भारत का विश्व में मूंगफली उत्पादन में कौन-सा स्थान है?
(A) पहला
(B) दूसरा
(C) तीसरा
(D) पाँचवाँ
उत्तर:
(A) पहला

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

33. इनमें से कौन-सी फसल फलीदार है?
(A) दालें
(B) कपास
(C) ज्वार
(D) मक्का
उत्तर:
(A) दालें

34. कौन-सी फसलें शीत ऋतु की शुरुआत के साथ अक्तूबर से दिसंबर में बोई जाती हैं?
(A) रबी की फसलें
(B) खरीफ की फसलें
(C) जायद फसलें
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) रबी की फसलें

35. कौन-सी फसलें मानसून की शुरुआत के साथ जून-जुलाई में बोई जाती हैं?
(A) रबी की फसलें
(B) खरीफ की फसलें
(C) जायद फसलें
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) खरीफ की फसलें

36. सुनहरा रेशा कहा जाता है
(A) जूट को
(B) कपास को
(C) शहतूत को
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) जूट को

37. शुष्क फसल है-
(A) बाजरा
(B) मूंग
(C) चना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

38. झूम कृषि भारत के किस क्षेत्र में होती है?
(A) उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में
(B) दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्र में
(C) उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में
(D) दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र में
उत्तर:
(A) उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में

39. निम्नलिखित में से कौन-सी फसल खरीफ की फसल के अंतर्गत आती है?
(A) गेहूँ
(B) कपास
(C) चना
(D) सरसों
उत्तर:
(B) कपास

40. निम्नलिखित में से कौन-सी फसल रबी की फसल के अंतर्गत आती है?
(A) चावल
(B) गेहूँ
(C) खरबूजा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) गेहूँ

41. इनमें से कौन-सी फसल सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण अनाज है?
(A) मक्का
(B) बाजरा
(C) जौ
(D) चावल
उत्तर:
(D) चावल

42. इनमें से कौन-सी फसल जायद ऋतु में उगाई जाती है?
(A) मूंगफली
(B) खरबूजा
(C) सोयाबीन
(D) सरसों
उत्तर:
(B) खरबूजा

43. भारत किस फसल का विश्व का सबसे बड़ा निर्यातक है?
(A) जूट
(B) चाय
(C) कॉफी
(D) रबड़
उत्तर:
(B) चाय

44. फलों और सब्जियों की कृषि को क्या कहा जाता है?
(A) कृषि उत्पादन
(B) बागवानी फसलें
(C) रेशम उत्पादन
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) बागवानी फसलें

45. वह भूमि जिस पर फसलें उगाई व काटी जाती हैं, वह कहलाता है-
(A) निवल बोया क्षेत्र
(B) स्थायी चरागाह क्षेत्र
(C) वनों के अधीन क्षेत्र
(D) वर्तमान परती भूमि
उत्तर:
(A) निवल बोया क्षेत्र

46. कृषि किस आर्थिक क्रियाकलाप के अंतर्गत आती है?
(A) चतुर्थ क्रियाकलाप
(B) तृतीयक क्रियाकलाप
(C) द्वितीयक क्रियाकलाप
(D) प्राथमिक क्रियाकलाप
उत्तर:
(D) प्राथमिक क्रियाकलाप

47. भारतीय अर्थव्यवस्था है-
(A) कृषि प्रधान
(B) पूँजी प्रधान
(C) उद्योग प्रधान
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) कृषि प्रधान

48. पश्चिम बंगाल में चावल की बोई जाने वाली फसल है-
(A) औस
(B) अमन
(C) बोरो
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

B. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में दीजिए

प्रश्न 1.
वे संसाधन जिनका बार-बार उपयोग किया जा सकता है, क्या कहलाते हैं?
उत्तर:
नवीकरणीय संसाधन।

प्रश्न 2.
संसाधनों के संरक्षण के आधार पर रैनर ने कब वर्गीकरण प्रस्तुत किया?
उत्तर:
सन् 1951 में।

प्रश्न 3.
सौर ऊर्जा किस संसाधन के अंतर्गत आती है?
उत्तर:
असमाप्य संसाधन।

प्रश्न 4.
पेट्रोलियम किस प्रकार का संसाधन है?
उत्तर:
समाप्य संसाधन।

प्रश्न 5.
भारत व विश्व में अजैविक संसाधनों का वितरण कैसा है?
उत्तर:
असमान।

प्रश्न 6.
भारत में कॉफी का अधिकतम उत्पादक राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
कर्नाटक।

प्रश्न 7.
ज्ञान और कौशल किस प्रकार के संसाधनों के अंतर्गत आते हैं?
उत्तर:
सांस्कृतिक संसाधन।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

प्रश्न 8.
वे संसाधन जिनका आर्थिक दृष्टि से विकास संभव है, क्या कहलाते हैं?
उत्तर:
संरक्षित संसाधन।

प्रश्न 9.
75 सें०मी० से कम वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाने वाली कृषि क्या कहलाती है?
उत्तर:
शुष्क भूमि कृषि।

प्रश्न 10.
फ़सल (शस्य) गहनता ज्ञात करने का सूत्र क्या है?
उत्तर:
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि 1

प्रश्न 11.
औस, अमन और बोरो किस खाद्य फसल के नाम हैं?
उत्तर:
चावल (पश्चिम बंगाल)।

प्रश्न 12.
देश के सर्वाधिक शस्य गहनता वाले राज्य का नाम बताइए।
उत्तर:
पंजाब।

प्रश्न 13.
भारत में अधिकतम गेहूँ पैदा करने वाला राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
भारत में अधिकतम गेहूँ पैदा करने वाला राज्य उत्तर प्रदेश है।

प्रश्न 14.
भारत में चाय का अधिकतम उत्पादन करने वाला राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
भारत में चाय का अधिकतम उत्पादन करने वाला राज्य असम है।

प्रश्न 15.
सन् 2001 में देश की कितने प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी?
उत्तर:
लगभग 53 प्रतिशत।

प्रश्न 16.
फल-सब्जियों के उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर:
दूसरा।

प्रश्न 17.
भारतीय कृषि में विशेषकर असिंचित क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर किस प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है?
उत्तर:
अल्प बेरोजगारी।

प्रश्न 18.
अंग्रेज़ी शासन के दौरान की कोई दो भू-राजस्व प्रणालियाँ बताएँ।
उत्तर:

  1. महालवाड़ी
  2. रैयतवाड़ी।

प्रश्न 19.
अरेबिका, रोबस्ता व लिबेरिका किस फसल की किस्में हैं?
उत्तर:
कॉफी।

प्रश्न 20.
भारत अधिकतर किस किस्म की कॉफी का अधिक उत्पादन करता है?
अथवा
सबसे उत्तम किस्म की कॉफी का क्या नाम है?
उत्तर:
अरेबिका।

प्रश्न 21.
भारत के किस राज्य में सोयाबीन की खेती का सर्वाधिक क्षेत्रफल है?
उत्तर:
मध्य प्रदेश में।

प्रश्न 22.
भारत का कौन-सा (राज्य) सबसे बड़ा मुँगफली उत्पादक राज्य है?
उत्तर:
गुजरात।

प्रश्न 23.
ग्रीन गोल्ड किस फसल की किस्म है?
उत्तर:
चाय की।

प्रश्न 24.
भारत का मुख्य खाद्यान्न कौन-सा है?
उत्तर:
चावल।

प्रश्न 25.
सोयाबीन उत्पादक किन्हीं दो राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. मध्य प्रदेश
  2. महाराष्ट्र।

प्रश्न 26.
चना उत्पादक किन्हीं दो राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. मध्य प्रदेश
  2. राजस्थान।

प्रश्न 27.
वह कौन-सी फसल है जो महाराष्ट्र में ‘श्वेत स्वर्ण’ के नाम से जानी जाती है?
उत्तर:
कपास।

प्रश्न 28.
भारत में किस फसल को सर्वाधिक क्षेत्रफल में पैदा किया जाता है?
उत्तर:
धान या चावल को।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

प्रश्न 29.
राजस्थान में स्थानांतरित कृषि को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
वालरा के नाम से।

प्रश्न 30.
जैविक खाद एवं परम्परागत तरीकों से की जाने वाली कृषि को क्या कहते हैं?
उत्तर:
जैविक कृषि।

प्रश्न 31.
रबी की फसल ऋतु के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. गेहूँ
  2. जौ।

प्रश्न 32.
खरीफ की फसल ऋतु के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. चावल
  2. कपास।

प्रश्न 33.
जायद की फसल ऋतु के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. तरबूज
  2. खीरा।

प्रश्न 34.
रेशेदार फसलों के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. कपास
  2. जूट।

प्रश्न 35.
किस फसल को हरित क्रांति का सर्वाधिक लाभ हुआ?
उत्तर:
गेहूँ।

प्रश्न 36.
किस दाल को लाल चना तथा पिजन पी० के नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
अरहर (तुर) को।

प्रश्न 37.
केरल में स्थानांतरित कृषि को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
पोनम।

प्रश्न 38.
चावल किस प्रकार के क्षेत्र की फसल है?
उत्तर:
उष्ण आर्द्र कटिबंधीय क्षेत्र।

प्रश्न 39.
चना किस प्रकार के क्षेत्र की फसल है?
उत्तर:
उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र।

प्रश्न 40.
कौन-सी फसल गर्म एवं शुष्क जलवायु में बोई जाती है? एक उदाहरण दें।
उत्तर:
बाजरा।

प्रश्न 41.
भारत की प्रमुख तिलहन फसलों के उदाहरण दें।
उत्तर:
तोरिया, सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी आदि।

प्रश्न 42.
मध्य प्रदेश में स्थानांतरित कृषि को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
बेवर के नाम से।

प्रश्न 43.
आंध्र प्रदेश में स्थानांतरित कृषि को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
पोदू के नाम से।

प्रश्न 44.
चावल के उत्पादन में देश का प्रथम राज्य कौन-सा है?
अथवा
भारत में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
पश्चिम बंगाल।

प्रश्न 45.
गन्ने के उत्पादन में देश के किस राज्य का प्रथम स्थान है?
उत्तर:
उत्तर-प्रदेश का।

प्रश्न 46.
चावल के उत्पादन में तमिलनाडु का कौन-सा जिला अग्रणी है?
उत्तर:
तंजावूर।

प्रश्न 47.
केंद्र सरकार ने गहन कृषि विकास कार्यक्रम कब आरंभ किया?
उत्तर:
सन् 1960 में।

प्रश्न 48.
भारत में सब्जी का अधिकतम उत्पादक राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
पश्चिम बंगाल।

प्रश्न 49.
भारत में कपास का अधिकतम उत्पादक राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
महाराष्ट्र।

प्रश्न 50.
भारत के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थानांतरित कृषि को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
झूम कृषि के नाम से।

प्रश्न 51.
हरित क्रांति का जनक किसे माना जाता है?
उत्तर:
नॉर्मन अर्नेस्ट बोरलॉग को।

प्रश्न 52.
हरियाणा के दो प्रमुख कपास उत्पादक जिलों के नाम बताइए।
उत्तर:
हिसार, सिरसा।

प्रश्न 53.
राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान कहाँ स्थित है?
उत्तर:
कटक (ओडिशा) में।

प्रश्न 54.
राष्ट्रीय गन्ना अनुसंधान संस्थान कहाँ स्थित है?
उत्तर:
कोयम्बटूर।

प्रश्न 55.
भारत के किस राज्य में प्रति हैक्टेयर चावल का उत्पादन सर्वाधिक है?
उत्तर:
पंजाब का।

प्रश्न 56.
किस रूसी विद्वान ने भारत को एक कृषि उद्भव केंद्र माना है?
उत्तर:
वेविलोव ने।

प्रश्न 57.
अप्रैल से जून के मध्य का समय किस कृषि ऋतु का होता है?
उत्तर:
जायद का।

प्रश्न 58.
भारत में मानसून का जुआ किसे कहा जाता है?
उत्तर:
भारतीय कृषि को।

प्रश्न 59.
भारत का प्रथम पूर्ण जैविक कृषि वाला राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
सिक्किम।

प्रश्न 60.
भारत का कपास के उत्पादन में विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर:
चौथा।

प्रश्न 61.
भारत में मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
गुजरात।

प्रश्न 62.
तीन ऐसी फसलों के नाम बताइए जिनके उत्पादन में संसार में भारत को प्रथम स्थान प्राप्त है।
उत्तर:
चाय, पटसन और मसाले।

प्रश्न 63.
कच्चा माल किन दो प्रकार के संसाधनों से प्राप्त किया जाता है?
उत्तर:

  1. खनिज
  2. वनस्पति।

प्रश्न 64.
भारतीय कृषि को मानसन का जआ क्यों कहते हैं?
उत्तर:
मानसून या वर्षा पर निर्भरता के कारण।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संसाधन क्या है?
उत्तर:
कोई भी वस्तु अथवा पदार्थ जिसका उपयोग संभव हो और उसके रूपांतरण से उसकी उपयोगिता और मूल्य बढ़ जाए, संसाधन कहलाता है।

प्रश्न 2.
जैव-भौतिक पर्यावरण के ‘उदासीन उपादान’ संसाधन कैसे बन जाते हैं?
उत्तर:
इन उदासीन उपादानों को वस्तुओं और सेवाओं में बदलकर उनका प्राकृतिक संसाधन के रूप में उपयोग करके।

प्रश्न 3.
अहस्तांतरणीय संसाधनों से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वे प्राकृतिक संसाधन जिन्हें अपनी जगह से हटाया नहीं जा सकता और उनका वहीं विकास किया जा सकता है जहाँ वे विद्यमान हैं; जैसे भूमि, भू-दृश्य, समुद्री तट इत्यादि।

प्रश्न 4.
जैव और अजैव संसाधनों के तीन-तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
जैव संसाधन-वन्य पशु, पक्षी तथा वन। अजैव संसाधन-जल, चट्टानें तथा खनिज पदार्थ।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

प्रश्न 5.
खाद्य पदार्थ प्रदान करने वाले संसाधनों के तीन वर्ग बताएँ।
उत्तर:

  1. खनिज जैसे नमक
  2. वनस्पति जैसे खाद्यान्न
  3. पशु एवं जीव-जंतु जैसे मांस और अंडे।

प्रश्न 6.
शुष्क कृषि किसे कहते हैं?
उत्तर:
75 सें०मी० से कम वार्षिक वर्षा वाले प्रदेशों में की जाने वाली कृषि शुष्क कृषि कहलाती है। इस कृषि की मुख्य फसलें गेहूँ, चना, ज्वार, बाज़रा आदि हैं।

प्रश्न 7.
शस्य गहनता का क्या अर्थ है?
उत्तर:
एक खेत में एक कृषि वर्ष में जितनी फसलें उगाई जाती हैं, उसे फसलों की गहनता अथवा शस्य गहनता कहते हैं।

प्रश्न 8.
चकबंदी से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसान को उसके कई छोटे-छोटे खेतों के बदले एक ही स्थान पर बड़ा खेत दे दिए जाने को चकबंदी कहा जाता है।

प्रश्न 9.
शस्यावर्तन क्यों किया जाना चाहिए?
उत्तर:
बार-बार एक ही फसल बोते रहने से मिट्टी की उर्वरा-शक्ति क्षीण हो जाती है। फसलों को हेर-फेर करके बोने से पहली फसल द्वारा समाप्त किए गए मिट्टी के पोषक तत्त्वों की भरपाई दूसरे प्रकार की फ़सल बोने से हो जाती है।

प्रश्न 10.
मिश्रित शस्यन से किसानों को क्या लाभ पहुँचता है?
उत्तर:
दो या तीन फसलों को एक-साथ मिलाकर बोने से मिट्टी में जिन पोषक तत्त्वों को एक फसल कम करती है तो दूसरी फ़सल उन्हें पूरा कर देती है।

प्रश्न 11.
भूमि उपयोग को कौन-से तत्त्व निर्धारित करते हैं?
उत्तर:
किसी देश के भूमि उपयोग को स्थलाकृति, जलवायु, मृदा तथा अनेक प्रकार के सामाजिक-आर्थिक कारक निर्धारित करते हैं।

प्रश्न 12.
वर्तमान परती भूमि किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह भूमि जो उपजाऊ शक्ति बढ़ाने के लिए वर्तमान में खाली पड़ी हो वर्तमान परती भूमि कहलाती है। इस प्रकार की भूमि में निरंतर बदलाव होते रहते हैं।

प्रश्न 13.
जायद क्या है?
उत्तर:
जायद एक अल्पकालिक ग्रीष्मकालीन फसल ऋत है जिसमें तरबूज, खीरा, ककडी व चारे की फसलें उगाई जाती हैं।

प्रश्न 14.
प्राकृतिक संसाधन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आर्थिक तंत्र के बाहर से प्राप्त होने वाले जैव और अजैव पदार्थ ही प्राकृतिक संसाधन हैं जिन्हें मनुष्य अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कच्चे माल के रूप में उपयोग करता है। भौतिक लक्षण; जैसे भूमि, जलवायु, जल तथा जैविक पदार्थ; जैसे प्राकृतिक वनस्पति, वन्य-जीव, मत्स्य क्षेत्र आदि।

प्रश्न 15.
मानव संसाधन तथा सांस्कृतिक संसाधन में क्या अंतर है?
उत्तर:

  1. मानव संसाधन-लोगों की संख्या और गुणवत्ता से मानव संसाधन का निर्माण होता है। निरक्षरं और कुपोषित जनसंख्या विकास में बाधा बन जाती है।
  2. सांस्कृतिक संसाधन – ज्ञान, अनुभव, कौशल और प्रौद्योगिकी के माध्यम से हम अपने उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। इन्हें सांस्कृतिक संसाधन कहते हैं।

प्रश्न 16.
जैव उर्वरक क्या है?
उत्तर:
ऐसे सूक्ष्म जीवाणु जो पौधों के विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व उपलब्ध करवाते हैं, जैव उर्वरक कहलाते हैं।

प्रश्न 17.
भारत में रोपण कृषि की शुरुआत कब हुई? इसकी मुख्य फसलें कौन-कौन-सी हैं?
उत्तर:
भारत में रोपण कृषि की शुरुआत ब्रिटिश सरकार द्वारा 19वीं शताब्दी में की गई। इस कृषि में नकदी फसलों को उगाया जाता है। इसमें उगाई जाने वाली मुख्य फसलें हैं-रबड़, चाय या कॉफी, कोको, मसाले आदि।

प्रश्न 18.
झूम खेती उत्पादक क्षेत्र और फसलों के नाम बताएँ।
उत्तर:
झूम खेती मुख्यतः असम, मेघालय, नागालैण्ड, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम, ओडिशा, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश में रहने वाली जनजातियों द्वारा अपनाई जाती है। इसके अंतर्गत धान, बाजरा, गन्ना, मक्का आदि की खेती की जाती है।

प्रश्न 19.
भारत के ज्वार एवं मक्का उत्पादक तीन-तीन प्रमुख राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर:
ज्वार उत्पादक राज्य-

  • महाराष्ट्र
  • कर्नाटक
  • मध्य प्रदेश।

मक्का उत्पादक राज्य-

  • कर्नाटक
  • आंध्र प्रदेश
  • महाराष्ट्र।

प्रश्न 20.
भारत के गेहूँ एवं चावल उत्पादक तीन-तीन प्रमुख राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर:
गेहूँ उत्पादक राज्य-

  • उत्तर प्रदेश
  • पंजाब
  • हरियाणा।

चावल उत्पादक राज्य-

  • पश्चिम बंगाल
  • उत्तर प्रदेश
  • पंजाब।

प्रश्न 21.
भारत के चाय एवं कहवा उत्पादक तीन-तीन प्रमुख राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर:
चाय उत्पादक राज्य-

  • असम
  • पश्चिम बंगाल
  • तमिलनाडु।

कहवा उत्पादक राज्य-

  • कर्नाटक
  • केरल
  • तमिलनाडु।

प्रश्न 22.
भारत के जूट एवं कपास उत्पादक तीन-तीन प्रमुख राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर:
जूट उत्पादक राज्य-

  • पश्चिम बंगाल
  • बिहार
  • असम

कपास उत्पादक राज्य-

  • महाराष्ट्र
  • गुजरात
  • आंध्र प्रदेश।

प्रश्न 23.
भारत के गन्ना एवं बाजरा उत्पादक तीन-तीन प्रमुख राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर:
गन्ना उत्पादक राज्य-

  • उत्तर प्रदेश
  • महाराष्ट्र
  • कर्नाटक।

बाजरा उत्पादक राज्य-

  • राजस्थान
  • उत्तर प्रदेश
  • गुजरात।

प्रश्न 24.
नकदी फसल क्या है?
उत्तर:
नकदी फसल वह फसल है जो व्यापार के उद्देश्य से किसानों द्वारा उगाई जाती है; जैसे कपास, गन्ना, जूट आदि।

प्रश्न 25.
गैर जैविक या रासायनिक कृषि क्या है?
उत्तर:
रासायनिक खादों और कीटनाशक दवाइयों के प्रयोग से की जाने वाली खेती, रासायनिक कृषि कहलाती है। इसको गैर जैविक कृषि भी कहते हैं।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

प्रश्न 26.
जैविक कृषि क्या है?
उत्तर:
जैविक खाद और परम्परागत तरीकों से की जाने वाली कृषि को जैविक कृषि कहते हैं।

प्रश्न 27.
भारतीय अर्थव्यवस्था को मानसून का जुआ क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था कषि प्रधान है। यहाँ की जलवाय मानसनी है और कषि मानसन या वर्षा पर निर्भर करती है। भारतीय मानसूनी वर्षा अनियमित एवं अनिश्चित है, जिससे वर्षा के आरंभ का समय निश्चित नहीं है। कहीं पर वर्षा बहुत अधिक और कहीं पर बहुत कम होती है। इससे कुछ क्षेत्रों में बाढ़ तो कुछ क्षेत्रों में सूखे की स्थिति पैदा हो जाती है। ये परिस्थितियाँ प्रतिवर्ष बदलती रहती हैं। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव बना रहता है। इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था को मानसून का जुआ कहते हैं।

प्रश्न 28.
भारत में कृषि उत्पादन के कम होने के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:

  • कृषि पर मौसम या जलवायु की मार
  • सिंचाई साधनों का सीमित विकास।

प्रश्न 29.
भूमि उपयोग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी भू-भाग का उसकी वर्तमान उपयोगिता के आधार पर किया जाने वाला वर्गीकरण भूमि उपयोग कहलाता है।

प्रश्न 30.
भारतीय कृषि की कोई दो समस्याएँ लिखें।
उत्तर:

  1. अनिश्चित मौसम या वर्षा पर निर्भरता
  2. कृषि भूमि का निम्नीकरण

प्रश्न 31.
गेहूँ की कृषि के लिए आवश्यक दशा कैसी होनी चाहिए?
उत्तर:
गेहूँ की कृषि के लिए सामान्यतः तापमान 10°-15°C के मध्य होना चाहिए। इसके लिए 50-75 सें०मी० वार्षिक वर्षा की और हल्की-दोमट, बलुआ व चिकनी मिट्टी की आवश्यकता होती है?

प्रश्न 32.
उपयोग के आधार पर फसलों को कितने वर्गों में बाँटा गया है?
अथवा
फसलों का संक्षेप में वर्गीकरण करें।
उत्तर:
उपयोग के आधार पर फसलों को चार वर्गों में बाँटा गया है-

  1. खाद्यान्न फसलें-चावल, गेहूँ, ज्वार, बाजरा आदि।
  2. रोपण फसलें-चाय, कहवा, रबड़, मसाले आदि।
  3. बागानी फसलें सेब, आम, केला आदि।
  4. नकदी व रेशेदार फसलें-कपास, जूट, गन्ना, मूंगफली आदि।

प्रश्न 33.
झूम या कर्तन दहन कृषि प्रणाली किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब किसान जमीन के टुकड़े साफ करके उन पर अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए अनाज उत्पन्न करता है, उसे झूम या कर्तन दहन कृषि प्रणाली कहते हैं।

प्रश्न 34.
आर्द्र कृषि किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिस कृषि को करने के लिए अधिक मात्रा में जल की आवश्यकता होती है उसे आर्द्र कृषि कहते हैं। चावल तथा गन्ना इस प्रकार की कृषि उपज के प्रमुख उदाहरण हैं।

प्रश्न 35.
रोपण कृषि किसे कहते हैं?
उत्तर:
रोपण कृषि एक प्रकार की वाणिज्यिक खेती है। इस प्रकार की कृषि में लंबे-चौड़े क्षेत्र में एक ही फसल बोई जाती है। चाय, कॉफी, रबड़ इस प्रकार की कृषि की प्रमुख उपजें हैं।

प्रश्न 36.
रबी फसलें किन्हें कहते हैं?
उत्तर:
रबी फसलों को शीत ऋतु में अक्तूबर से दिसम्बर के मध्य बोया जाता है और ग्रीष्म ऋतु में अप्रैल से जून के मध्य काट लिया जाता है। गेहूँ, जौ, मटर, चना तथा सरसों रबी की मुख्य फसलें हैं।

प्रश्न 37.
खरीफ फसलें किन्हें कहते हैं?
उत्तर:
खरीफ फसलें देश के विभिन्न क्षेत्रों में मानसून आगमन के साथ जून-जुलाई में बोई जाती हैं और सितम्बर-अक्तूबर में काट ली जाती हैं। चावल, मक्का, कपास, ज्वार तथा बाजरा खरीफ की मुख्य फसलें हैं।

प्रश्न 38.
श्वेत क्रांति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पशुओं में नस्ल सुधार करके और उत्तम चारा देने वाली फसलें पैदा करके दूध के उत्पादन में अप्रत्याशित वृद्धि करने को श्वेत क्रांति कहा जाता है।

प्रश्न 39.
हरित क्रांति या पैकेज टेक्नोलॉजी किसे कहते हैं?
उत्तर:
हरित क्रांति का अर्थ कृषि उत्पादन में हुई उस वृद्धि से है जो नई तकनीक तथा अधिक उपज देने वाले बीजों के उपयोग से हो रही है। यद्यपि हरित क्रांति शब्द का सर्वप्रथम उपयोग विलियम गॉड ने सन् 1968 में किया था किन्तु हरित क्रांति के जन्मदाता होने का श्रेय नोबल पुरस्कार विजेता डॉ० नॉर्मन ई० बोरलॉग को जाता है। भारत में हरित क्रांति की शुरूआत सन् 1966-67 से हुई। भारत में यह क्रांति लाने का रेय एम० स्वामी नाथन को जाता है।

प्रश्न 40.
प्रारंभिक जीविका निर्वाह कृषि से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्रारंभिक जीविका निर्वाह कृषि भूमि के छोटे टुकड़ों परं आदिम कृषि औजारों; जैसे लकड़ी के हल, डाओ और खुदाई करने वाली छड़ी के साथ परिवार के सदस्यों के द्वारा की जाती है।

प्रश्न 41.
चाय की कृषि पहाड़ियों के निचले ढालों पर क्यों की जाती है?
उत्तर:
चाय उष्ण कटिबंधीय रोपण कृषि है। चाय की कृषि पहाड़ियों के निचले ढालों पर इसलिए की जाती है, क्योंकि चाय के पौधों की जड़ों के लिए एकत्रित पानी हानिकारक है। पहाड़ी ढालों पर इसकी खेती करने से वर्षा का पानी आसानी से बह जाता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘प्राकृतिक संसाधनों की संकल्पना संस्कृतिबद्ध है।’ चर्चा कीजिए।
उत्तर:
प्रकृति ने मनुष्य को जल, वाय, भूमि, वन, खनिज पदार्थ तथा शक्ति के साधन निःशुल्क उपहार के रूप में दिए हैं। सांस्कृतिक विकास तथा संसाधनों में परस्पर गहरा संबंध है। प्राचीनकाल में आदिमानव प्रौद्योगिकी के ज्ञान से वंचित होने के कारण खनिज पदार्थों तथा जल-विद्यत का प्रयोग नहीं कर सका। उदाहरणतया चीन निवासियों के लिए कोयला एकमात्र कठोर चट्टान था तथा पेंसिलवेनिया तथा असम में खनिज तेल का कोई महत्त्व नहीं था। यद्यपि आधुनिक मनुष्य ने अपनी बद्धि तथा कार्य-कशलता से इन्हें अपने उपयोग के लिए विकसित कर लिया।

सांस्कृतिक विकास के कारण ही संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस तथा जापान उन्नत देश हैं, जबकि एशिया के विकासशील देश तथा अफ्रीका महाद्वीप पिछड़े हुए क्षेत्र हैं। प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किसी देश द्वारा प्राप्त प्रौद्योगिकी की उन्नति पर निर्भर है। इस तरह संसाधनों का विकास प्रकृति, मानव तथा संस्कृति के संयोग पर आधारित है। मनुष्य अपनी क्षमता के अनुसार प्राकृतिक संसाधनों को आर्थिक संसाधनों में बदल सकता है। उदाहरण के लिए, प्रौद्योगिकी की अविकसितता के कारण ही भारत में बस्तर तथा छोटा नागपुर का पठार संसाधन से धनाढ्य होते हुए भी पिछड़े हुए हैं। इस प्रकार यह कथन सत्य है कि प्राकृतिक संसाधनों की संकल्पना संस्कृतिबद्ध है।

प्रश्न 2.
संसाधन संरक्षण की संकल्पना की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वातावरण के वे सभी तत्त्व, जो मानव के लिए उपयोगी हैं, प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं। ये मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। प्राकृतिक संसाधन वह बहुमूल्य संपत्ति है, जो हमारे पास आने वाली पीढ़ियों की धरोहर है। विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के विकास के कारण वर्तमान युग में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन काफी मात्रा में हो रहा है तथा इनका उपयोग बढ़ रहा है। इससे भविष्य में समाप्य संसाधनों के समाप्त होने का भय बना हुआ है। इसलिए यह हमारा कर्त्तव्य बनता है कि हम संसाधनों का प्रयोग इस प्रकार योजना-बद्ध ढंग से करें कि ये कम-से-कम नष्ट हों तथा अधिक समय तक मानव के हित के लिए इनका प्रयोग हो सके तथा आधुनिक सभ्यता का अस्तित्व बना रहे। मानव की सभी आर्थिक क्रियाएँ इन संसाधनों पर निर्भर करती हैं। तेल, कोयला, खनिज पदार्थों आदि प्राकृतिक संसाधनों के बिना मानव सभ्यता की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसलिए इसे मूल रूप से सुरक्षित रखने के लिए संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता है।

प्रश्न 3.
यह कहना कहाँ तक सही है कि संसाधन केवल प्राकृतिक पदार्थ हैं?
उत्तर:
वातावरण के वे सभी तत्त्व, जो मनुष्य के लिए उपयोगी हैं, उन्हें प्राकृतिक संसाधन कहते हैं। वायु, भूमि, जल, प्राकृतिक वनस्पति, खनिज पदार्थ, मिट्टी, जलवायु तथा वन्य प्राणी मुख्य प्राकृतिक संसाधन हैं, जो मनुष्य को बिना किसी मूल्य के प्राप्त होते हैं। इसलिए इन्हें प्राकृतिक उपहार भी कहते हैं।

प्राकृतिक संसाधन किसी राष्ट्र की आधारशिला हैं, क्योंकि ये राष्ट्र के विकास में सहायक हैं। वनों से लकड़ी तथा कई उद्योगों को कच्चा माल प्राप्त होता है। जल तथा उपजाऊ मिट्टी कृषि के विकास में सहायक हैं। मानव की सभी आर्थिक क्रियाएँ प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित हैं।

प्रश्न 4.
संसाधन और आर्थिक विकास के अंतर्संबंधों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
किसी भी देश की आर्थिक विकास प्रक्रिया अनेक कारकों पर निर्भर करती है और प्राकृतिक संसाधन उनमें से एक महत्त्वपूर्ण कारक हैं। संसाधनों के दोहन और उपयोग के आधार पर विश्व में निम्नलिखित तीन प्रकार की परिस्थितियाँ पाई जाती हैं

  • ऐसे देश जिनमें संसाधनों के विशाल भंडार होते हुए भी आर्थिक विकास कम है। इनमें भारत सहित अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकतर देश इस वर्ग में सम्मिलित किए जाते हैं।
  • कुछ देश प्राकृतिक संसाधनों में संपन्न नहीं हैं। फिर भी अत्यधिक विकसित हैं; जैसे जापान, युनाइटेड किंगडम और स्विट्जरलैंड इत्यादि।
  • कुछ देश ऐसे हैं जिनमें संसाधनों की संपन्नता के साथ-साथ अत्यधिक विकसित अर्थव्यवस्था पाई जाती है; जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस तथा दक्षिणी अफ्रीका इत्यादि।

आर्थिक विकास की प्रारंभिक अवस्था में स्थानीय संसाधनों की उपलब्धता एक महत्त्वपूर्ण कारक है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि संसाधनों का दोहन और उपयोग आर्थिक विकास के अनिवार्य कारक हैं। प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता ही विकास की गारंटी नहीं है। कई बार संपन्न देश बाहर से संसाधनों का आयात करने में समर्थ होते हैं और आर्थिक विकास के क्षेत्र में आगे निकल जाते हैं।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

प्रश्न 5.
संसाधन संरक्षण और संसाधन प्रबंधन में क्या अंतर है?
अथवा
संसाधन प्रबंधन के संरक्षण का नवीन रूप क्यों मानना चाहिए?
उत्तर:
संरक्षण एक व्यापक संकल्पना है जिसमें न केवल वैज्ञानिक अपितु नैतिक, आर्थिक और राजनीतिक पहल भी शामिल हैं। संरक्षण का अर्थ है-मितव्ययिता और बिना बर्बादी के उपयोग। संरक्षण संसाधनों के विवेकपूण अत्यधिक उपयोग, दुरुपयोग और असामयिक उपयोग को छोड़ने के लिए प्रेरित करता है।

आजकल ‘संसाधन संरक्षण’ के स्थान पर ‘संसाधन प्रबंधन’ वाक्यांश अधिक प्रयुक्त किया जाता है। संसाधन प्रबंधन संसाधनों को दीर्घायु और इसका उपयोग प्रारूप में सुधार लाने के लिए किया जाता है। प्रबंधन संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग पर बल दिया जाता है। इसका उद्देश्य वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करना तथा पारितंत्रीय संतुलन को भी बनाए रखना है। इसके अतिरिक्त भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं को भी पूरा करना है। संसाधन प्रबंधन संरक्षण का एक नवीन रूप है। इसमें भावुकता के स्थान पर विवेक, अर्थशास्त्र की जगह नैतिकता और इंजिनियरी के स्थान पर पारिस्थितिकी पर बल दिया जाता है।

प्रश्न 6.
भारत के भू-उपयोग के परिवर्तन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
किसी क्षेत्र में भू-उपयोग मुख्यतः वहाँ की आर्थिक क्रियाओं की प्रवृत्ति पर निर्भर है। समय के साथ-साथ आर्थिक क्रियाएँ बदलती रहती हैं लेकिन भूमि संसाधन क्षेत्रफल की दृष्टि से स्थायी है। भू-उपयोग को प्रभावित करने वाले अर्थव्यवस्था के परिवर्तन निम्नलिखित हैं
(1) अर्थव्यवस्था का आकार समय के साथ बढ़ता है; जो बढ़ती जनसंख्या, बदलता हुआ आय का स्तर, प्रौद्योगिकी की उपलब्धता जैसे कारकों पर निर्भर करता है। फलस्वरूप समय के साथ भूमि पर दबाव बढ़ता है और सीमांत भूमि को भी प्रयोग में लाया जाता है।

(2) अर्थव्यवस्था की संरचना भी समय के साथ बदलती है। प्राथमिक सेक्टर की अपेक्षा द्वितीयक और तृतीयक सेक्टर में तेजी से वृद्धि होती है। इस प्रकार कृषि भूमि, गैर-कृषि संबंधी कार्यों में प्रयुक्त होती है।

(3) समय के साथ कृषि क्रियाकलापों का अर्थव्यवस्था में योगदान कम होता जा रहा है, जबकि भूमि पर कृषि क्रियाकलापों का दबाव कम नहीं होता।

प्रश्न 7.
भारत में कितनी फसल ऋतएँ या शस्य मौसम पाए जाते हैं?
अथवा
भारत में तीन ऋतु फसलों के नाम लिखें।
खरीफ, रबी और जायद फसल ऋतुओं का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
भारत में तीन प्रमुख फसल ऋतुएँ पाई जाती हैं-
1. खरीफ-खरीफ की फसलें अधिकतर दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के साथ बोई जाती हैं। इसकी प्रमुख फसलें चावल, कपास, जूट, ज्वार, बाजरा, अरहर आदि होती हैं। इस ऋतु का समय जून से सितम्बर के मध्य माना जाता है।

2. रबी-रबी की ऋतु अक्तूबर-नवंबर में शरद ऋतु से आरंभ होकर मार्च-अप्रैल में समाप्त होती है। इसकी प्रमुख फसलें गेहूँ, चना, सरसों, जौ, मूंगफली आदि होती हैं। इस ऋतु में वे फसलें उगाई जाती हैं जो कम तापमान और कम वर्षा में उगती है।

3. ज़ायद यह एक अल्पकालिक ग्रीष्मकालीन फसल ऋतु है जो रबी की कटाई के बाद प्रारंभ होती है। इस ऋतु में तरबूज, खीरा, ककड़ी, सब्जियाँ व चारे आदि की फसलें उगाई जाती हैं। इस ऋतु में विभिन्न फसलों की कृषि सिंचित भूमि पर की जाती है।

प्रश्न 8.
कृषि के प्रकारों का वर्गीकरण आर्द्रता के प्रमुख उपलब्ध स्रोत के आधार पर कीजिए।
उत्तर:
आर्द्रता के स्रोत की उपलब्धता के आधार पर कृषि को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
1. सिंचित कृषि में सिंचाई के उद्देश्य के आधार पर अंतर पाया जाता है; जैसे-रक्षित व उत्पादक सिंचाई कृषि। रक्षित सिंचाई का मुख्य उद्देश्य आर्द्रता की कमी के कारण फसलों को नष्ट होने से बचाना है अर्थात् वर्षा के अतिरिक्त जल की कमी को सिंचाई के साधनों द्वारा पूरा किया जाता है। उत्पादक सिंचाई का उद्देश्य फसलों का पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध कराकर अधिकतम उत्पादकता प्राप्त करना है।

2. वर्षा निर्भर कृषि को कृषि ऋतु में उपलब्ध आर्द्रता की मात्रा के आधार पर दो वर्गों में विभाजित किया जाता है; जैसे (i) शुष्क भूमि कृषि (ii) आर्द्र भूमि कृषि। शुष्क भूमि कृषि क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा 75 सें०मी० से कम होती है। इन क्षेत्रों में मुख्यतः रागी, बाजरा, मूंग, चना आदि फसलें उगाई जाती हैं। आर्द्र भूमि कृषि क्षेत्र में मुख्यतः वे फसलें उगाई जाती हैं जिनको अधिक मात्रा में पानी की जरूरत होती है; जैसे-चावल, गन्ना, जूट आदि।

प्रश्न 9.
भारत में कृषि का क्या महत्त्व है? अथवा भारतीय कृषि के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार व धूरी कृषि है, क्योंकि यह भारतवासियों का प्रमुख व्यवसाय है। भारत की 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या कृषि से ही आजीविका कमाती है अर्थात् यह सर्वाधिक रोजगार का साधन प्रदान करती है। देश की कुल राष्ट्रीय आय का काफी भाग कृषि से प्राप्त होता है। कृषि देश के सामाजिक और आर्थिक जीवन का आधार है। कृषि से भोजन ही नहीं, बल्कि उद्योग-धंधों के लिए कच्चा माल भी प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त कृषि उपजों के निर्यात से विदेशी मुद्रा भी प्राप्त होती है। यह पौष्टिक तत्त्वों की प्रमुख स्रोत है।

प्रश्न 10.
भारत में उद्यान कृषि की फसलों के वितरण प्रतिरूप का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कृषि जलवायु में विविधता के कारण भारत में अनेक प्रकार की उद्यान कृषि की जाती है। भारत की प्रमुख उद्यान फसलें हैं-फल, सब्जियाँ, कंद फसलें, औषधीय पौधे, सुगंधित पौधे और मसाले । भारत विश्व में फलों और सब्जियों का दूसरा बड़ा उत्पादक देश है। आम के उत्पादन में उत्तर प्रदेश का मुख्य स्थान है। नागपुर को संतरों का शहर कहा जाता है। तमिलनाडु, महाराष्ट्र और अनेक दक्षिणी राज्य केलों के लिए प्रसिद्ध हैं। उत्तर:प्रदेश और बिहार के लीची और अमरूद बहुत प्रसिद्ध हैं।

आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में अंगूर का उत्पादन बढ़ रहा है। कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में सेब, नाशपाती, खुबानी तथा अखरोट आदि बहुतायत में होते हैं। केरल का पश्चिमी घाट काली मिर्च के लिए प्रसिद्ध है। अदरक देश के पूर्वी राज्यों में होता है। केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश काजू तथा नारियल के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। भारत काजू का सबसे बड़ा निर्यातक देश है तथा संसार का सबसे अधिक नारियल उत्पादक देश है।

प्रश्न 11.
फसलों की गहनता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
एक खेत में एक कृषि-वर्ष में जितनी फसलें उगाई जाती हैं, उसे फसलों की गहनता अथवा शस्य गहनता कहते हैं। यदि किसी खेत में एक वर्ष में केवल एक ही फसल उगाई जाती है, तो फसल का सूचकांक 100% होगा। मान लो 5 एकड़ के एक खेत में रबी की फसल पूरे 5 एकड़ में की जाती है तथा उसी वर्ष खरीफ की फसल उसी खेत में 3 एकड़ में की जाती है, तो कुल बोया क्षेत्र 8 एकड़ होगा और सूचकांक 160% हो जाएगा। इसको अग्रलिखित सूत्र से निकाला जाता है
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि 2
शस्य गहनता का सूचकांक जितना अधिक होगा, भूमि उपयोग की क्षमता भी उतनी ही अधिक होगी। सन् 1983-84 में समस्त भारत के लिए शस्य सूचकांक 126% था तथा अधिकतम पंजाब में 160%, हरियाणा में 158% तथा गुजरात में केवल 109% शस्य सूचकांक था। सूचकांक को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक सिंचाई, उर्वरक, उन्नत बीज, यंत्रीकरण और कीटनाशक दवाइयों का फसलों में प्रयोग है।

प्रश्न 12.
शस्य गहनता को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं?
उत्तर:
शस्य गहनता के बढ़ने से फसलों के उत्पादन में वृद्धि होती है। यह निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है-

  1. एक बार से अधिक बोए हुए क्षेत्र का विस्तार
  2. सिंचाई क्षेत्र का विस्तार
  3. उर्वरक का प्रयोग
  4. शीघ्र पकने वाली फसलों के उगाने से कृषि-वर्ष में अधिक फसलें उगाना
  5. कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग
  6. यंत्रीकरण कृषि।

प्रश्न 13.
परती भूमि का क्या अर्थ है? यह कितने प्रकार की होती है?
उत्तर:
यह वह भूमि है जिस पर पहले कृषि की जाती थी, परंतु अब इस भाग पर कृषि नहीं की जाती। इस जमीन पर यदि लगातार खेती की जाए तो भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है और ऐसी जमीन पर कृषि करना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं रहता। अतः इसे कुछ समय के लिए खाली छोड़ दिया जाता है। इस प्रक्रिया से जमीन में फिर से उपजाऊ शक्ति आ जाती है और यह कृषि के लिए उपयुक्त हो जाती है। परती भूमि दो प्रकार की होती है-

  1. वर्तमान परती भूमि
  2. पुरानी परती भूमि।

प्रश्न 14.
खाद्यान्न और खाद्य-फसलों में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
खाद्यान्न और खाद्य-फसलों में निम्नलिखित अंतर हैं-

खाद्यान्नखाद्य-फसल
1. खाद्यान्न मनुष्य के भोजन का प्रमुख अंग हैं।1. खाद्य-फसल फसलों का प्रयोग मनुष्य के भोजन में कम होता है।
2. ये मुख्य रूप से खरीफ तथा रबी के मौसम में बोए जाते हैं।2. दालें खरीफ के मौसम में तथा तिलहन रबी के मौसम में बोए जाते हैं।
3. खाद्यान्न के मुख्य उदाहरण गेहूँ, ज्वार, बाजरा, रागी आदि हैं।3. खाद्य फसल के प्रमुख उदाहरण दालें, तिलहन, चना, मूँगफली, फल आदि हैं।

प्रश्न 15.
खरीफ तथा रबी की फसलों में क्या अंतर है?
उत्तर:
खरीफ तथा रबी की फसलों में निम्नलिखित अंतर हैं-

खरीफ की फसलेंरबी की फसलें
1. खरीफ की फसलें वर्षा ऋतु के प्रारंभ में ग्रीष्म काल में बोई जाती हैं।1. रबी की फसलें वर्षा ऋतु के पश्चात् शीत ऋतु में बोई जाती हैं।
2. ये फसलें शीत ऋतु से पहले पक जाती हैं।2. ये फसलें ग्रीष्म ऋतु में पक जाती हैं।
3. ये फसलें उष्ण जलवायु प्रदेशों की महत्त्वपूर्ण फसलें हैं।3. ये फसलें शीतोष्ण जलवायु प्रदेशों की महत्त्वपूर्ण फसलें हैं।
4. इनके प्रमुख उदाहरण चावल, मक्का, कपास, तिलहन आदि हैं।4. इनके प्रमुख उदाहरण गेहूँ, जौ, चना आदि हैं।

प्रश्न 16.
गन्ने की उपज उत्तर भारत में अधिक है, जबकि भौगोलिक परिस्थितियाँ दक्षिण भारत में गन्ने के अनुकूल हैं, कारण दें।
अथवा
भारत में उत्तर प्रदेश गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है? कारण स्पष्ट करें।
उत्तर:
गन्ने की खेती के लिए जलवायु संबंधी परिस्थितियाँ दक्षिण भारत में अनुकूल पाई जाती हैं, क्योंकि वहाँ सारा साल उच्च तापमान रहता है तथा गन्ने के लिए वर्धनकाल भी काफी मिल जाता है। कर्नाटक, तमिलनाडू तथा आंध्र प्रदेश राज्य 15° उत्तरी अक्षांश के दक्षिण में स्थित हैं तथा गन्ने की उपज के लिए उपयुक्त हैं। यहाँ 80 क्विंटल प्रति हैक्टेयर से भी अधिक गन्ना पैदा होता है, जबकि उत्तर भारत में 40 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से उपज होने के बावजूद भी भारत का 60% गन्ना उत्तर भारत में ही पैदा होता है। इसके निम्नलिखित कारण हैं
(1) गन्ने की उपज के लिए बहुत उपजाऊ मिट्टी की जरूरत होती है जो उत्तर भारत के मैदान में हर जगह उपलब्ध है तथा सिंचाई की विस्तृत सुविधाएँ भी प्राप्त हैं, जबकि दक्षिण भारत में इन दोनों सुविधाओं की कमी है।

(2) गन्ना एक भारी तथा भारह्रास वस्तु है। इसको उद्योगों तक पहुँचाने के लिए गहन तथा तीव्र परिवहन के साधनों की जरूरत है। उत्तर भारत के मैदानों में परिवहन का गहन जाल बिछा हुआ है। ये सुविधाएँ दक्षिणी भारत में नहीं हैं।

(3) गन्ने की कृषि के लिए समतल मैदानों का होना जरूरी है, क्योंकि इसको लगातार सिंचाई की आवश्यकता रहती है। यह परिस्थिति उत्तर भारत के मैदान में है, इसलिए यहाँ गन्ना अधिक पैदा होता है।

प्रश्न 17.
भारत के पूर्वी भाग में जूट (पटसन) तथा पश्चिमी भाग में कपास पैदा होती है, क्यों?
उत्तर:
भारत के पूर्वी राज्यों-पश्चिमी बंगाल तथा असम में जूट (पटसन) की खेती खूब की जाती है। इसका कारण यह है कि यहाँ उच्च तापमान है, भारी वर्षा होती है तथा गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी से ये क्षेत्र निर्मित हैं, जो बहुत उपजाऊ हैं। इन नदियों के डेल्टों में खूब जूट पैदा होता है। अतः जूट के लिए सभी अनुकूल दशाएँ मिलने के कारण यहाँ जूट अधिक पैदा होता है।

इसके विपरीत, भारत के पश्चिमी भाग-महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब तथा हरियाणा के कुछ भागों में कपास खूब पैदा होती है। यहाँ की जलवायु आर्द्र-शुष्क है। महाराष्ट्र तथा गुजरात की काली मिट्टी इसके लिए बहुत अनुकूल है। सिंचाई की सुविधाएँ तथा उचित वर्धनकाल उपलब्ध हैं, इसलिए यहाँ कपास अधिक पैदा की जाती है।

प्रश्न 18.
गेहूँ की उत्पादकता कुछ प्रदेशों में अधिक तथा कुछ प्रदेशों में कम है, क्यों?
उत्तर:
गेहूँ मुख्य रूप से उत्तरी तथा पश्चिमी भारत की फसल है। भारत की कुल गेहूँ का लगभग 50% भाग पंजाब तथा उत्तर प्रदेश उत्पन्न करते हैं। पंजाब में गेहूँ की प्रति हैक्टेयर उपज 30 क्विंटल के लगभग है जो देश की सबसे अधिक उत्पादकता है। इसके अतिरिक्त उपजाऊ मिट्टी, जल सिंचाई के विकसित साधन, शीतकालीन वर्षा तथा अधिक उर्वरक के प्रयोग के कारण हरियाणा, गंगा-यमुना दोआब तथा उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में गेहूँ की उत्पादकता अधिक है। परंतु दक्षिणी भारत में अधिक गर्मी के कारण तथा पूर्वी भारत में अधिक आर्द्र जलवायु के कारण गेहूँ की उत्पादकता बहुत कम है।

प्रश्न 19.
पंजाब तथा हरियाणा में वार्षिक वर्षा कम होते हुए भी चावल की खेती की जाती है, क्यों?
उत्तर:
पंजाब तथा हरियाणा में वार्षिक वर्षा कम होती है। परंतु पिछले कुछ वर्षों में यहाँ चावल के कृषि-क्षेत्र में आधारभूत वृद्धि हुई है। ये प्रदेश देश के अन्य प्रदेशों को चावल भेजते हैं। इसलिए ये ‘चावल का कटोरा’ कहलाते हैं। पंजाब तथा हरियाणा में वर्षा की कमी को जल सिंचाई द्वारा पूरा कर लिया जाता है। यहाँ की मिट्टी उपजाऊ है। उत्तम किस्म के बीजों, अपेक्षाकृत अधिक खाद व कीटनाशकों का प्रयोग और शुष्क जलवायु के कारण फसलों में रोग प्रतिरोधकता आदि कारकों ने इन राज्यों में चावल की पैदावार बढ़ाने में सहायता की है। इसलिए यहाँ चावल की उत्पादकता प्रति हैक्टेयर अधिक है।

प्रश्न 20.
“हरित क्रांति का प्रभाव भारत के सभी भागों में एक जैसा नहीं पड़ा।” व्याख्या कीजिए।
अथवा
हरित क्रांति की योजना भारत में हर जगह क्यों नहीं लागू की जा सकती?
उत्तर:
हरित क्रांति की योजना के भारत में हर जगह न लागू किए जाने के निम्नलिखित कारण हैं-

  1. यह योजना सिंचित क्षेत्रों तक ही सीमित है और बहुत-से भारत के लोगों में सिंचाई के साधन कम हैं।
  2. उर्वरकों का उत्पादन, मांग की पूर्ति के लिए अपर्याप्त है।
  3. नए कृषि साधनों पर अधिक खर्च करने के लिए पूंजी की कमी है, अतः यह योजना केवल बड़े जमींदारों तक ही सीमित रही है। छोटे किसान इससे अप्रभावित हैं।
  4. जहां जल-सिंचाई के पर्याप्त साधन थे, वहीं पर यह योजना सफल रही है।
  5. भारत में अधिकतर खेत बहुत छोटे आकार के हैं। इन पर कृषि यंत्रों का प्रयोग सफल नहीं हो सकता।
  6. अधिक उपज प्रदान करने वाली विधियाँ केवल कुछ ही फसलों के लिए प्रयोग में लाई गई हैं। इसलिए यह योजना भारत में हर जगह नहीं लागू की जा सकती।

प्रश्न 21.
हरित क्रांति के कोई चार सकारात्मक परिणाम बताइए।
अथवा
हरित क्रांति की मुख्य उपलब्धियाँ लिखें।
उत्तर:
हरित क्रांति के चार सकारात्मक परिणाम निम्नलिखित हैं-

  1. देश के सकल घरेलू उत्पाद (G.D.P.) में वृद्धि हुई है।
  2. हरित क्रान्ति से औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिला, रोज़गार उत्पन्न हुआ और ग्रामवासियों के जीवन में गुणात्मक परिवर्तन हुआ।
  3. भारत की साख विश्व बैंक एवं अन्य कर्ज देने वाली संस्थाओं की नज़रों में बढ़ी क्योंकि भारत ने कर्ज को समय रहते चुका दिया था।
  4. भारत खाद्यान्न निर्यात करने वाले देश के रूप में उभरा, जिससे विश्व में उसकी प्रतिष्ठा बढ़ी।

प्रश्न 22.
हरित क्रांति के कोई चार नकारात्मक परिणाम बताइए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति के चार नकारात्मक परिणाम निम्नलिखित हैं-

  1. हरित क्रान्ति से किसानों और भू-स्वामियों के बीच का अन्तर मुखर हो उठा।
  2. हरित क्रान्ति से किसानों और कृषि मजदूरों को कोई विशेष लाभ नहीं पहुंचा।
  3. हरित क्रान्ति से कुछ राज्यों को अधिक आर्थिक लाभ पहुँचा जिससे क्षेत्रीय असन्तुलन की समस्या उत्पन्न हो गई।
  4. इससे देश के विभिन्न हिस्सों में वामपंथी संगठनों के लिए किसानों को लाभबन्द करने की दृष्टि से अनुकूल स्थिति पैदा हुई।

प्रश्न 23.
भारत में कृषि क्षेत्र में हुए नवीनतम विकास का उल्लेख कीजिए।
अथवा
कृषि उत्पादन में वृद्धि और प्रौद्योगिकी के विकास के महत्त्व का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
देश में सन् 1980 के बाद कृषि क्षेत्र में अनेक विकासात्मक परिवर्तन हुए। इन नवीन परिवर्तनों, प्रगति एवं उपलब्धियों को निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत रखा जा सकता है

  1. हरित क्रान्ति के फलस्वरूप फसलों की उत्पादकता में काफी वृद्धि हुई। खाद्यान्न के उत्पादन में अपार वृद्धि के कारण भारत ने आत्म-निर्भरता की ओर कदम बढ़ाया।
  2. सिंचाई साधनों में निरंतर वृद्धि हो रही है। सिंचाई की नई पद्धति ‘ड्रिप सिंचाई’ और स्प्रिंकल सिंचाई द्वारा कृषि क्षेत्र और उत्पादन में सुधार हआ है।
  3. कृषि साख व्यवस्था की ओर ध्यान दिया जा रहा है। यह कार्य अनेक वाणिज्यिक बैंकों एवं संस्थाओं द्वारा किया जा रहा है।
  4. किसान क्रेडिट कार्ड योजना और राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना को लागू किया गया है। इसके अंतर्गत किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
  5. नई राष्ट्रीय कृषि नीति-2000 को लागू किया गया। इसके अंतर्गत कृषि क्षेत्र में हर वर्ष 4% की वृद्धि का लक्ष्य रखा गया।
  6. कृषि खाद्यान्नों के उत्पादन बढ़ाने के साथ अन्य सहायक खाद्य पदार्थों के उत्पादन में वृद्धि हेतु भी अनेक प्रयास किए गए-
    • दूध के उत्पादन में तीव्र वृद्धि को ऑपरेशन फ्लड कहते हैं। यह सबसे बड़ा समन्वित डेयरी विकास कार्यक्रम है।
    • श्वेत क्रांति।
    • नीली क्रांति।
    • पीली क्रांति आदि।

प्रश्न 24.
फसलों का समूह या फसल संयोजन से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
फसल संयोजन से तात्पर्य उस भौगोलिक इकाई अथवा कृषि क्षेत्र से है, जहाँ एक कैलेंडर वर्ष के अंतर्गत उत्पन्न की गई फसलों की संख्या का पता चलता है। इसके निर्धारण के लिए एक वर्ष में उत्पन्न फसलों की सूची बनाना आवश्यक है। इसी सूची के आधार पर फसल संयोजन निर्धारित किया जाता है। कृषि प्रादेशीकरण के निर्धारण में फसल संयोजन एक ऐसी प्रक्रिया है जो उत्पन्न हो रही फसलों में अनुकूलतम समूह को निर्धारित करता है।

प्रश्न 25.
भारतीय कृषि के पिछड़ेपन के क्या कारण हैं?
उत्तर:
भारतीय कृषि के पिछड़ेपन के निम्नलिखित कारण हैं-

  1. भूमि पर लगातार एक ही कृषि के परिणामस्वरूप मिट्टियों की उर्वरा शक्ति कम हो गई है।
  2. वनों की अंधाधुंध कटाई के परिणामस्वरूप मिट्टियों का कटाव हुआ है।
  3. खेतों का आकार अधिक छोटा है जिससे वे आर्थिक रूप से लाभकारी नहीं रहीं।
  4. खेती के ढंग एवं उपकरण पुराने हैं जिसके कारण प्रति हैक्टेयर उपज बहुत कम है।

प्रश्न 26.
गहन कृषि और झूम कृषि में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
गहन कृषि और झूम कृषि में निम्नलिखित अंतर हैं-

गहन कृषिझूम कृषि
1. कृषि करने का ऐसा ढंग जिसमें किसान भूमि के छोटे-छोटे टुकड़ों पर अधिक परिश्रम करके और अच्छे कृषि-साधनों का प्रयोग करके अधिक-से-अधिक उत्पादन करता है, उसे गहन कृषि कहते हैं।1. कृषि करने का ऐसा ढंग जिसमें किसान भूमि के नए-नए तथा विस्तृत क्षेत्रों को हल के नीचे लाकर अधिक उत्पादन करता है, उसे झूम कृषि कहते हैं।
2. गहन कृषि उन भू-भागों में की जाती है, जो घने आबाद हों और कृषि कार्य के लिए जहां नई भूमियाँ उपलब्ध न हों।2. झूम कृषि उन भू-भागों में की जाती है जहाँ जनसंख्या कम हो और कृषि करने के लिए नई भूमि उपलब्ध हो।
3. इस प्रकार की कृषि में जोतों का आकार छोटा होता है।3. इस प्रकार की कृषि में जोतों का आकार बड़ा होता है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

प्रश्न 27.
भारत में फलों की खेती पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
भारत संसार में सबसे अधिक फलों और सब्जियों का उत्पादन करता है। भारत उष्ण और शीतोष्ण कटिबंधीय दोनों ही प्रकार के फलों का उत्पादन करता है। भारतीय फलों जिनमें महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बंगाल के आम, नागपुर और चेरापूँजी के संतरे, केरल, मिजोरम, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के केले, उत्तर प्रदेश और बिहार की लीची, मेघालय के अनानास, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के अंगूर तथा हिमाचल प्रदेश और जम्मू व कश्मीर के सेब, नाशपाती, खूबानी और अखरोट की सारे संसार में बहुत माँग है।

प्रश्न 28.
भारत में तिलहन उत्पादन पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
भारत संसार में सबसे बड़ा तिलहन उत्पादक देश है। देश में कुल बोए गए क्षेत्र के 12 प्रतिशत भाग पर तिलहन की कई फसलें उगाई जाती हैं। मूंगफली, सरसों, नारियल, तिल, सोयाबीन, अरंडी, बिनौला, अलसी और सूरजमुखी भारत में उगाई जाने वाली मुख्य तिलहन फसलें हैं। इनमें से ज्यादातर खाद्य हैं और खाना बनाने में प्रयोग में लाए जाते हैं, किंतु इनमें से कुछ बीज के तेलों को साबुन, श्रृंगार का सामान और ज्यादातर उबटन उद्योग में कच्चे माल के रूप में भी प्रयोग में लाया जाता है।

प्रश्न 29.
एक पेय फसल का नाम बताएँ तथा उसको उगाने के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
चाय एक प्रमुख पेय फसल है। चाय की फसल को उगाने के लिए निम्नलिखित अनुकूल भौगोलिक दशाओं की आवश्यकता है

  1. चाय के पौधों के लिए उष्ण और उपोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है।
  2. ह्यूमस और जीवांश युक्त गहरी मिट्टी होनी चाहिए।
  3. भूमि ढलानदार होनी चाहिए जिससे पौधों की जड़ों में पानी न ठहरे।
  4. वर्ष भर नम और पालारहित जलवायु होनी चाहिए।
  5. वर्ष भर समान रूप से वर्षा की हल्की बौछारें पड़ती रहनी चाहिएँ।

प्रश्न 30.
जैविक एवं गैर जैविक कृषि में क्या अंतर है?
अथवा
जैविक तथा रासायनिक कृषि में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जैविक एवं गैर जैविक कृषि में निम्नलिखित अंतर हैं-

जैविक कृषिरासायनिक/गैर जैविक कृषि
1. जैविक खाद और परम्परागत तरीकों से की जाने वाली कृषि को जैविक कृषि कहते हैं।1. रासायनिक खादों और कीटनाशक दवाइयों के प्रयोग से की जाने वाली खेती को रासायनिक कृषि या गैर जैविक कृषि कहते हैं।
2. इसमें जैव पदार्थों से प्राप्त खादों का प्रयोग किया जाता है।2. इसमें रासायनिक एवं वैज्ञानिक विधियों से निर्मित खाद का प्रयोग किया जाता है।
3. जैव पदार्थों वाली खाद घर या फार्म पर तैयार की जाती है।3. रसायनिक खाद कारखानों में तैयार की जाती है।
4. जैविक कृषि मानव श्रम प्रधान कृषि है।4. रासायनिक कृषि वैज्ञानिक तकनीक प्रधान कृषि है।
5. यह प्रकृति पर आधारित होती है।5. यह पूर्णतः बाजार पर निर्भर करती है।
6. इसमें पानी की कम आवश्यकता होती है।6. इसमें पानी की अधिक आवश्यकता होती है।

प्रश्न 31.
भारत में सब्जियों की कृषि पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
भारत का सब्जियों के उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है। भारत में प्राकृतिक विविधता के कारण लगभग सभी तरह की सब्जियाँ उगाई जाती हैं। इनमें प्रमुख सब्जियाँ हैं–आलू, प्याज, गाजर, भिण्डी, मटर, पालक, लौकी, करेला, बैंगन, शलगम, धनियाँ, पुदीना, फूलगोभी आदि। कुछ सब्जियों के उत्पादन में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है; जैसे मटर।

प्रश्न 32.
स्थानांतरित तथा स्थाई कृषि में क्या अंतर है?
उत्तर:
स्थानांतरित तथा स्थाई कृषि में निम्नलिखित अंतर हैं-

स्थानांतरित कृषिस्थाई कृषि
1. इस कृषि में केवल परिवार की जरूरतों के अनुसार खेती की जाती है।1. इस कृषि में आवश्यकता से अधिक कृषि या खेती की जाती है।
2. इसमें कृषि करने की जगह बदलती रहती है।2. इसमें कृषि करने की जगह नहीं बदलती।
3. इसमें वनों को जलाकर खाद प्राप्त की जाती है।3. इसमें पशुओं से खाद प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 33.
भारत में शुष्क भूमि कृषि की मुख्य विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
भारत में शुष्क भूमि कृषि की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. इसमें वर्षा से खेत जोत दिए जाते हैं।
  2. प्रत्येक वर्षा के बाद गहरी जुताई की जाती है।
  3. इसमें शुष्कता को सहन करने वाली फसलों को ही बोया जाता है।
  4. जोती हुई भूमि में नमी बनाए रखने के लिए उसके ऊपर सूखी मिट्टी की एक परत बिछा दी जाती है।

प्रश्न 34.
चावल की प्रमुख किस्में बताइए।
उत्तर:
भारत में मुख्य रूप से चावल की दो प्रकार की किस्में पाई जाती हैं-

  1. पहाड़ी चावल-यह पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ीदार खेत बनाकर उगाया जाता है। इसकी उपज वर्षा पर निर्भर है। यह जल्दी पक जाता है। यह खाने में सख्त लगता है। इसको उच्च भूमि चावल भी कहते हैं।
  2. मैदानी चावल मैदानी भागों में उत्पन्न किया गया चावल स्वादिष्ट होता है। इसकी प्रति हैक्टेयर उपज जल की पूर्ति के कारण अधिक होती है। इसको निम्न भूमि चावल भी कहते हैं। भारत का अधिकांश चावल इसी किस्म का होता है।

प्रश्न 35.
भारतीय कृषि की कोई चार विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
भारतीय कृषि की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. भारतीय कृषि पर अधिक जनसंख्या की निर्भरता।
  2. इसकी मानसून या वर्षा पर अधिक निर्भरता।
  3. सिंचाई सुविधाओं और तकनीकी का अभाव।
  4. कृषि जोतों का छोटा आकार।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
हरित क्रांति से आपका क्या अभिप्राय है? इसकी विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
हरित क्रांति का अर्थ हरित क्रांति का अर्थ कृषि उत्पादन में हुई उस वृद्धि से है जो नई तकनीक तथा अधिक उपज देने वाले बीजों के उपयोग से हो रही है। यद्यपि हरित क्रांति शब्द का सर्वप्रथम उपयोग विलियम गॉड ने सन् 1968 में किया था किन्तु हरित क्रांति के जन्मदाता होने का श्रेय नोबल पुरस्कार विजेता डॉ० नॉर्मन ई० बोरलॉग को जाता है। भारत में हरित क्रांति की शुरुआत सन् 1966-67 से हुई। भारत में यह क्रांति लाने का श्रेय एम० स्वामी नाथन को जाता है।

हरित क्रांति की विशेषताएँ इस क्रांति की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) अधिक उपज देने वाली तथा शीघ्र पकने वाली फसलों के बीज तैयार करना।

(2) नई कृषि नीति के अंतर्गत रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को प्रोत्साहन देना। भारत अपनी आवश्यकता के 50% उर्वरक पैदा करता है तथा शेष का आयात करता है। सिंचाई क्षेत्र के विस्तार से हरित-क्रांति को बहुत सफलता मिली है। भारत जैसे मानसून प्रदेश में सिंचाई का बड़ा महत्त्व है। भारत में नहरें, कुएँ, नलकूप तथा तालाब सिंचाई के महत्त्वपूर्ण कारक हैं।

(3) अधिक उत्पादन लेने के लिए फसलों को कीड़ों तथा बीमारियों से बचाना है।

(4) आधुनिक मशीनों के प्रयोग को बढ़ावा देना।

(5) भूमि कटाव को रोकने तथा भूमि की उर्वरता शक्ति को बनाए रखने के प्रयास करना।

प्रश्न 2.
भारत में निम्नलिखित फसलों या कृषि उत्पादन के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाओं का उल्लेख करते हुए प्रमुख उत्पादक राज्यों का उल्लेख कीजिए
(क) जूट या पटसन
(ख) कहवा या कॉफी
(ग) रबड़।
उत्तर:
(क) जूट या पटसन-जूट (पटसन) भारत की कपास के पश्चात् दूसरी महत्त्वपूर्ण रेशेदार फसल है। इसका रेशा सस्ता तथा मजबूत होता है। जूट (पटसन) के लिए निम्नलिखित दशाएँ आवश्यक हैं

  • तापमान-जूट की कृषि के लिए 25° से 35° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। यह एक खरीफ की फसल है।
  • वर्षा-जूट की फसल के लिए 90° सापेक्षित आर्द्रता तथा 150 से 200 सें०मी० तक वर्षा की आवश्यकता होती है।
  • मिट्टी-जूट के लिए चीकायुक्त मिट्टी लाभदायक है। नदियों के बाढ़ क्षेत्र तथा डेल्टा प्रदेश जूट के लिए उपयोगी हैं। जूट की फसल मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को शीघ्र क्षीण कर देती है। इसलिए खाद का भी अधिक प्रयोग किया जा है।
  • श्रम-जूट की कृषि के लिए अधिक श्रमिकों की आवश्यकता होती है। इसलिए सस्ते एवं कुशल श्रमिक आवश्यक हैं।

प्रमुख उत्पादक राज्य-जूट पैदा करने वाले प्रमुख उत्पादक राज्य हैं-

  • पश्चिमी बंगाल-यहाँ जूट मुर्शिदाबाद, नादिया, चौबीस-परगना, मालदा, बर्दमान, कूचबिहार, वीरभूम, हुगली आदि जिलों में उत्पादित किया जाता है।
  • असम यहाँ जूट ब्रह्मपुत्र घाटी में बोया जाता है। यहाँ के प्रमुख जूट उत्पादक क्षेत्र हैं-कामरूप, गोलपाड़ा आदि।
  • अन्य राज्य–बिहार में तराई प्रदेश, दक्षिणी भारत में महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टा, उत्तर प्रदेश में गोरखपुर क्षेत्र, आंध्र प्रदेश में विशाखापत्तनम क्षेत्र, मध्य प्रदेश में रायपुर क्षेत्र, केरल में मालाबार तट तथा उत्तर पूर्वी भारत में मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर राज्यों में जूट उगाया जाता है।

(ख) कहवा या कॉफी-कहवा चाय की भांति एक पेय पदार्थ है। यह उष्ण कटिबंध प्रदेश का पौधा है। यह एक प्रकार की झाड़ी के फलों से बीजों को निकालकर तथा सुखाकर पीसकर बनाया जाता है। इसके लिए निम्नलिखित दशाओं की आवश्यकता है

  • तापमान-कहवा के लिए सारा वर्ष उच्च तापमान की आवश्यकता होती है। कहवा के लिए 15° से 20° सेल्सियस तापमान आवश्यक है।
  • वर्षा-कहवा के लिए 150 सें०मी० से 200 सें०मी० वर्षा उपयुक्त है।
  • छायादार वृक्ष कहवे की उपज के लिए सूर्य की सीधी तथा तेज प्रकाश की किरणें हानिकारक होती हैं। इसलिए कहवे के पौधों के आस-पास छाया के लिए केले तथा अन्य छायादार वृक्ष लगाए जाते हैं।
  • मिट्टी कहवा के लिए लोहा, चूना तथा ह्यूमस-युक्त मिट्टी लाभदायक है। लावा की मिट्टी तथा दोमट मिट्टी भी कहवे के लिए अनुकूल होती है।
  • धरातल कहवे के वृक्ष पठारों तथा पर्वतीय ढलानों पर लगाए जाते हैं।
  • श्रमिक कहवे के पेड़ों को छांटने, बीज तोड़ने तथा कहवा तैयार करने के लिए सस्ते तथा कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है।

प्रमुख उत्पादक राज्य कहवा या कॉफी के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं-

  • कर्नाटक-भारत में सबसे अधिक कहवा कर्नाटक में होती है। यहाँ कहवा के प्रमुख उत्पादक जिले काटूर, शिमोगा, हसन, मैसूर, कुर्ग तथा चिकमंगलूर हैं।
  • तमिलनाडु-यहाँ कहवा नीलगिरी की पहाड़ियों तथा पलनी की पहाड़ियों में उगाया जाता है। यहाँ कहवा के प्रमुख उत्पादक जिले कोयंबटूर, सेलम, उत्तरी अर्काट तथा नीलगिरी हैं।
  • केरल-यहाँ कहवा की खेती कोजीकोड़, इदुक्की तथा पालाघाट जिलों में की जाती है।
  • अन्य राज्य-महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश तथा ओडिशा में भी कुछ मात्रा में कहवा की खेती की जाती है।

(ग) रबड़ रबड़ एक लेसदार पदार्थ है जो हैविया वृक्ष के दूध से प्राप्त होता है। इससे वाहनों (मोटर-साइकिल) के ट्यूब, टायर, खिलौने तथा बिजली का सामान आदि बनाया जाता है। इसके लिए निम्नलिखित भौगोलिक परिस्थितियों की आवश्यकता है

  • तापमान रबड़ के पौधों के उत्पादन के लिए 25° से 32° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता है।
  • वर्षा-रबड़ के पौधे के लिए 200 सें०मी० से 250 सें०मी० वर्षा की आवश्यकता है।
  • मिट्टी-रबड़ के पौधे के लिए गहरी, चिकनी तथा दोमट मिट्टी उपयुक्त है।
  • धरातल-साधारण ढाल वाले मैदानी क्षेत्र रबड़ के पौधे के लिए उचित हैं। दलदली भूमि रबड़ के पौधों के लिए हानिकारक है।
  • श्रम-रबड़ इकट्ठा करने के लिए कुशल तथा सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है।

प्रमुख उत्पादक राज्य-रबड़ पैदा करने वाले प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।

  • केरल-यहाँ भारत की सबसे अधिक रबड़ उत्पन्न होती है। यहाँ रबड़ मालाबार तट पर उत्पन्न होती है।
  • तमिलनाडु-यहाँ रबड़ कन्याकुमारी जिले में उत्पन्न की जाती है।
  • अन्य राज्य-कर्नाटक, असम, पश्चिमी बंगाल तथा अंडमान द्वीप में भी कुछ मात्रा में रबड़ की खेती की जाती है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

प्रश्न 3.
भारत में निम्नलिखित फसलों या कृषि के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाओं का उल्लेख कर प्रमुख उत्पादक राज्यों का उल्लेख कीजिए
(क) मक्का, (ख) ज्वार, (ग) बाजरा।
अथवा
भारत में मक्का के विकास के लिए किस प्रकार की भौगोलिक परिस्थितियों की आवश्यकता होती हैं?
उत्तर:
(क) मक्का-मक्का एक खाद्य तथा चारा फसल है जो निम्न कोटिं मिट्टी व अर्ध-शुष्क जलवायवी परिस्थितियों में उगाई जाती है। इसके लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएँ निम्नलिखित हैं

  • तापमान मक्का की फसल के लिए 25°-30° सेल्सियस तक तापमान की आवश्यकता होती है। अधिक तापमान और अधिक सर्दी मक्का की फसल के लिए हानिकारक है।
  • वर्षा भारत में मक्का खरीफ की फसल के रूप में उगाया जाता है। इसके लिए 50-75 सें०मी० वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
  • मिट्टी-इसकी फसल के लिए हल्की दोमट या बलुई मिट्टी की आवश्यकता होती है। जिस मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा अधिक होती है। वह मिट्टी इसके लिए उपयुक्त मानी जाती है।

प्रमुख उत्पादक राज्य – मक्का उत्तर-पूर्वी भाग को छोड़कर देश के लगभग सभी भागों में उगाया जाता है परन्तु उत्तर व मध्य भारत में देश का 80% मक्का उगाया जाता है। इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं

  • महाराष्ट्र देश का सबसे अधिक मक्का महाराष्ट्र में होता है। परन्तु प्रत्येक वर्ष इसके उत्पादन में उतार-चढ़ाव होता रहता है।
  • आंध्र प्रदेश-आंध्र प्रदेश का मक्का उत्पादन में देश में महत्त्वपूर्ण स्थान है। यहाँ देश का लगभग 24% मक्का पैदा होता है।
  • कर्नाटक कर्नाटक में देश का लगभग 19% मक्का की पैदावार होती है।
  • अन्य राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब आदि हैं।

(ख) ज्वार-ज्वार दक्षिण व मध्य भारत के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों की प्रमुख फसल है। यह रबी और खरीफ दोनों ऋतुओं में होती है। जिन क्षेत्रों में आर्द्रता की कमी है, उनमें ज्वार की खेती की जाती है। प्रायद्वीपीय भारत के आंतरिक भागों में जहाँ गेहूँ व चावल नहीं उगाए जा सकते, वहाँ ज्वार की खेती की जाती है। इसका प्रयोग खाद्यान्नों के अतिरिक्त पशुओं के चारे के रूप में भी किया जाता है। ज्वार की फसल के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएँ निम्नलिखित हैं

  • तापमान-ज्वार उष्ण एवं शुष्क प्रदेशों की फसल है। इसके लिए 25°- 30° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है।
  • वर्षा-ज्वार की खेती के लिए 30-100 सें०मी० वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। इसकी खेती अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में नहीं की जाती।
  • मिट्टी-इसकी फसल के लिए हल्की दोमट और काली चिकनी मिट्टी की आवश्यकता होती है।

उत्पादक राज्य – ज्वार उत्पादक राज्यों में प्रथम स्थान महाराष्ट्र का है। यहाँ देश की उपज की लगभग 38% ज्वार की पैदावार होती है। इसके बाद मध्य प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश आदि हैं। ज्वार की सर्वाधिक उत्पादकता आंध्र प्रदेश में पाई जाती है।

(ग) बाजरा-यह अफ्रीकी मूल का पौधा है। भारत के पश्चिम तथा उत्तर:पश्चिम भागों में गर्म और शुष्क जलवायु में बाजरा बोया जाता है। यह एकल एवं मिश्रित फसल के रूप में बोया जाता है। इसकी फसल के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएँ निम्नलिखित हैं

  • तापमान-बाजरे की फसल के लिए 25-30 सेल्सियस तक तापमान की आवश्यकता होती है। इसके लिए ज्वार की अपेक्षा गर्म शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है।
  • वर्षा-इसकी फसल के लिए 30-60 सें०मी० तक वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
  • मिट्टी–इसकी उपज के लिए मरुस्थलीय एवं अर्द्ध-मरुस्थलीय क्षेत्रों की हल्की रेतीली मिट्टी उपयुक्त रहती है।

उत्पादक राज्य – देश में बाजरे के सिंचित क्षेत्र की दृष्टि से राजस्थान का प्रथम स्थान है और उत्पादन की दृष्टि से गुजरात का प्रथम स्थान है। अन्य उत्पादक राज्य -उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा आदि हैं।

प्रश्न 4.
भारत के भूमि संसाधनों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भू-उपयोग संसाधनों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
भूमि एक सीमित किंतु अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। इस भूक्षेत्र में मैदान, पर्वत, पठार, वन, नदियाँ तथा अन्य जलीय इकाइयों को सम्मिलित किया जाता है। जीव-जंतु इस पर अपना जीवनयापन करते हैं। भूमि पर रहते हुए मानव अनेक प्रकार की सामाजिक तथा आर्थिक क्रियाएँ करता है। अनेक उद्देश्यों के लिए भूमि का उपयोग किया जाता है जिसमें आवास, परिवहन, कृषि, खनन, उद्योग आदि प्रमुख हैं।

भूमि संसाधन की वृद्धि संभव नहीं, अतः इसका उपयोग अत्यंत सावधानीपूर्वक तथा योजनाबद्ध तरीके से होना चाहिए। भारत के कल भक्षेत्र का 43% भाग मैदानी, 28% भाग पठारी तथा शेष भाग में पर्वत, पहाड़ियाँ तथा अन्य आते हैं। कुल मिलाकर समस्त भू-क्षेत्रफल का 62% भाग स्थलाकृति के विचार से काम में आने के लिए उपयुक्त है।

किसी भूभाग का उसकी उपयोगिता के आधार पर किया जाने वाला उपयोग भूमि उपयोग कहलाता है। किसी क्षेत्र का भूमि उपयोग उस क्षेत्र के भौतिक तत्त्वों; जैसे स्थलाकृति, जलवायु, मृदा तथा सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था का परिणाम होता है। किसी क्षेत्र के भूमि उपयोग से उस क्षेत्र की आर्थिक दशा का अनुमान लगाया जा सकता है।

देश के विभिन्न भागों में प्राकृतिक तथा मानवीय परिस्थितियों में भिन्नता के कारण भूमि उपयोग के विभिन्न संवर्गों के अंतर्गत क्षेत्रफल के पारस्परिक अनुपात में भी तदानुसार प्रादेशिक भिन्नता मिलती है। भू-राजस्व विभाग द्वारा अपनाए गए सामान्य भूमि उपयोग के प्रमुख संवर्गों के अंतर्गत भूमि का वितरण तथा उसका स्वरूप निम्नलिखित प्रकार से है

1. वनों के अधीन क्षेत्र भारत के लगभग 7,50,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर किसी-न-किसी प्रकार के वन फैले हुए हैं जो देश के समस्त क्षेत्रफल का लगभग 21% से कुछ ही अधिक हैं। विगत वर्षों में वनाच्छादित भूमि में काफी कमी हुई है। भारत की वन नीति के अनुसार, परिस्थिति का संतुलन बनाए रखने के लिए देश के समतल क्षेत्र में एक-तिहाई तथा पर्वतीय क्षेत्र में लगभग 66% भूभाग पर वन का होना आवश्यक है।

इस नीति के अनुसार देश में वन क्षेत्र की अत्यंत कमी है। भारत के उत्तरी-पूर्वी राज्यों; जैसे सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर, मिज़ोरम, नागालैंड एवं अण्डमान निकोबार तथा ओडिशा आदि राज्यों में वनाच्छादित भूमि अधिक है, जबकि उत्तरी मैदान के राज्यों पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में वन भूमि देश के औसत के आधे से भी कम है।

2. गैर-कृषि कार्यों में प्रयुक्त भूमि या गैर-कृषित भूमि इस संवर्ग में वह भूमि आती है जो कृषि-कार्यों के अलावा अन्य कार्यों में उपयोग आ रही है; जैसे नगरीय तथा ग्रामीण अधिवास, औद्योगिक क्षेत्र, सड़कें, रेलमार्ग, नहरें तथा अन्य अवसंरचनात्मक विकास संबंधी क्रियाएँ। भूमि उपयोग के इस संवर्ग में तेजी से वृद्धि हो रही है।

3. बंजर तथा अकृषित भूमि मरुस्थल, बंजर, पहाड़ी क्षेत्र, खड्ड, पथरीला अथवा मृदा रहित भूभाग आदि को इस संवर्ग में शामिल किया जाता है। यद्यपि किसी भी प्रकार से यह भूमि कृषि योग्य नहीं बनाई जा सकती, परंतु इसे गैर-कृषि कार्यों के लिए तैयार किया जा रहा है, जिसके फलस्वरूप भारत में यह भूमि कम हो रही है।

4. परती भूमि-यह वह भूमि है जिसे एक लंबे कृषि उपयोग के पश्चात् कुछ समय के लिए खाली छोड़ दिया जाता है। खाली छोड़ने से इस भूमि की उपजाऊ शक्ति तथा नमी आदि में वृद्धि होती है, परती भूमि कहलाती है। यह भी दो प्रकार की होती है
(i) वर्तमान परती भूमि-इस संवर्ग में उस कृषि भूमि को शामिल किया जाता है जिसे पिछले एक अथवा उससे कम समय से कृषि के उपयोग में नहीं लिया गया हो। बीच-बीच में भूमि को परती रखने की विधि से भूमि की क्षीण हुई पौष्टिकता तथा उर्वरकता प्राकृतिक रूप से बनी रहती है।

(ii) पुरातन परती भूमि-इस संवर्ग में उस कृषि योग्य भूमि को सम्मिलित किया जाता है जो एक वर्ष से अधिक किंतु पांच वर्षों से कम समय तक कृषि रहित रहती है। इस प्रकार भूमि को इतने लंबे समय तक कृषिविहीन रखने के अनेकों कारण हैं।

5. निवल बोया क्षेत्र-वह क्षेत्र या भूमि जिस पर फसलें उगाई व काटी जाती हैं, निवल बोया क्षेत्र कहलाता है।

6. परती भूमि के अलावा अन्य अकृषित भूमि-न तो इस भूमि पर कृषि अथवा कृषि कार्य किए जाते हैं न ही इस भूमि को परती भूमि में शामिल किया जा सकता है। इसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित तीन संवर्ग शामिल हैं

  • स्थाई चरागाह तथा अन्य गोचर भूमि
  • विविध वृक्षों तथा कुंजों के अधीन भूमि
  • कृषि योग्य बंजर भूमि।

प्रश्न 5.
चावल उगाने के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए तथा भारत में इसके उत्पादन एवं वितरण का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में चावल की कृषि का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में चावल की कृषि के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन करते हुए इसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
चावल एक उष्ण आर्द्र कटिबंधीय फसल है। यह भारत की मुख्य खाद्य फसल है। विश्व में इसके उत्पादन में भारत का चीन के बाद दूसरा स्थान है। यह देश के कुल बोए क्षेत्र के एक-चौथाई भाग पर बोया जाता है। दक्षिणी और पूर्वी भागों के अधिकांश निवासियों का मुख्य भोजन चावल है।

रूसी विद्वान वेविलोव के अनुसार चावल का मूल स्थान भारत है, यहाँ से इसका प्रसार पूर्व व चीन की ओर हुआ। वैदिक काल से चावल भारत में धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यों में उपयोग किया जा रहा है।

भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions)-इसकी उपज के लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएँ अनुकूल हैं-
1. तापमान-चावल की बुआई के समय 20° – 21° सेंग्रे०, बढ़ने के समय 22° – 25° सेंग्रे० और पकते समय 27° सेंग्रे० तापमान की आवश्यकता होती है। यही मौसम पौधे के विकास के लिए उपयुक्त है।

2. जल व वर्षा-चावल एक अंकुरित पौधा होने के कारण इसके बोते समय खेत में लगभग 20-30 सें०मी० गहरा जल भरा होना चाहिए। इसकी फसल के समय 100-200. सें०मी० वर्षा होनी चाहि वर्षा कम होती है वहाँ पानी की पूर्ति सिंचाई द्वारा की जाती है।

3. मिट्टी-चावल की कृषि के लिए चिकनी, दोमट मृदा बहुत अच्छी होती है क्योंकि इसमें अधिक समय तक नमी धारण ‘करने की शक्ति होती है और क्षारयुक्त मृदाओं को भी सहन कर सकता है। भारत के डेल्टाई व तटवर्ती भाग इसकी खेती के लिए बहुत उत्तम हैं।

4. भूमि या धरातल-चावल की कृषि के लिए भूमि समतल या हल्के ढाल वाली होनी चाहिए। समतल भूमि में पानी रोकने के लिए मेढ़बंदी करनी पड़ती है। पहाड़ी इलाकों में सीढ़ीदार खेत बनाए जाते हैं।

5. श्रम चावल की कृषि में मशीनी शक्ति की बजाय मानवीय शक्ति की अधिक आवश्यकता होती है, इसलिए श्रम सस्ता होना चाहिए। इसमें ज्यादातर काम हाथों से किया जाता है।

उत्पादन (Production) – चावल के उत्पादन में भारत का विश्व में चीन के बाद दूसरा स्थान है। भारत में कल कृषित भूमि के लगभग 25% भाग पर चावल पैदा होता है। भारत विश्व का लगभग 22% चावल उत्पन्न करता है। भारत की कुल कृषि-भूमि के 23% भाग पर तथा खाद्यान्नों के क्षेत्र के 33.6% भाग पर चावल की खेती की जाती है। चावल के कृषित क्षेत्र का लगभग 47% भाग सिंचित है। 2015-16 में चावल उत्पादन क्षेत्र 434.99 लाख हैक्टेयर था जो 2017-18 में बढकर 437.89 लाख हैक्टेयर हो गया है।

देश में 104.41 मिलियन टन का उत्पादन हुआ जो 2017-18 में बढ़कर 112.91 मिलियन टन हो गया। 2018-19 में चावल का उत्पादन 116.50 मिलियन टन हुआ जो अब तक का रिकॉर्ड है। 2019-20 के दौरान चावल का उत्पादन लगभग 117.40 मिलियन टन होने का अनुमान है।

वितरण (Distribution) – भारत में बोई गई भूमि के अंतर्गत सबसे अधिक क्षेत्रफल चावल का है। भारत के ऊंचे भागों को छोड़कर समस्त भारत में यदि जल उपलब्ध हो तो कृषि की जा सकती है। भारत के मुख्य उत्पादक क्षेत्र उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, पंजाब, मध्य प्रदेश आदि हैं। कई भागों में चावल वर्ष में दो बार उगाया जाता है। गंगा-सतलुज मैदान इसका प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है।
1. पश्चिम बंगाल-पश्चिम बंगाल में चावल का उत्पादन सबसे अधिक होता है। इस राज्य की तीन-चौथाई कृषि भूमि पर देश का 14% से अधिक चावल पैदा होता है। उत्पादन की दृष्टि से इसका भारत में प्रथम स्थान है। जलपाईगुड़ी, बाँकुड़ा, मिदनापुर, पश्चिमी दीनाजपुर, बर्दमान, दार्जिलिंग आदि में चावल का उत्पादन होता है। यहाँ कई क्षेत्रों में चावल की कृषि वर्ष में तीन बार की जाती है जिन्हें अमन, ओस तथा ब्योरो कहा जाता है।

2. उत्तर प्रदेश-देश में चावल के उत्पादन में उत्तर प्रदेश का दूसरा स्थान है। यहाँ देश का लगभग 12% चावल उत्पन्न होता है। प्रमुख उत्पादक जिलों में सहारनपुर, देवरिया, लखनऊ, गोंडा, बलिया, पीलीभीत, गोरखपुर आदि हैं। हर वर्ष इसके कुल उत्पादन में उतार-चढ़ाव होता रहता है।

3. आंध्र प्रदेश-यह राज्य भारत का लगभग 11% चावल पैदा करता है। यहाँ कृष्णा और गोदावरी नदियों के डेल्टाई और निकटवर्ती तटीय मैदानी क्षेत्रों में चावल की पैदावार अच्छी होती है।

4. पंजाब-पंजाब में पिछले कुछ सालों में गेहूँ की तुलना में चावल का उत्पादन बढ़ा है। हरित क्रांति के बाद चावल उत्पादन में देश में सबसे ज्यादा वृद्धि यही दर्ज की गई। सन् 2011-12 में पंजाब में लगभग 108.3 लाख टन चावल पैदा किया गया था। होशियारपुर, गुरदासपुर, अमृतसर, जालंधर, कपूरथला, लुधियाना आदि पंजाब के प्रमुख चावल उत्पादक जिले हैं।

5. बिहार-बिहार में वर्ष में चावल की दो फसलें बोई जाती हैं। यहाँ लगभग 40% सिंचित कृषि पर चावल की पैदावार होती है। यहाँ के प्रमुख उत्पादक जिले हैं सारन, चम्पारन, गया, दरभंगा, मुंगेर, पूर्णिया आदि।
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि 3

6. तमिलनाडु-चिंगलेपुर, दक्षिणी अर्काट, नीलगिरि, रामनाथपुरम्, तंजावूर, कोयम्बटूर, सेलम आदि जिलों में चावल पैदा किया जाता है। कावेरी नदी का डेल्टा इसका प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है। राज्य का 25% चावल अकेला तंजावूर जिला पैदा करता है।

7. ओडिशा इस राज्य में भारत का लगभग 6-7% चावल पैदा किया जाता है। कटक, पुरी, सम्बलपुर, बालासोर, मयूरभंज .. आदि जिलों में इसका उत्पादन होता है। कटक में तो भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान स्थित है।

8. मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़-रायपुर, जबलपुर, बस्तर, दुर्ग, गोदिया, देवास आदि जनपदों में चावल की कृषि की जाती है। यहाँ भारत का लगभग 5-7% चावल पैदा होता है। नर्मदा नदी, ताप्ती नदी की घाटियाँ और छत्तीसगढ़ का मैदान चावल की कृषि के लिए बहुत उपयोगी है।

9. अन्य राज्य–अन्य उत्पादक राज्यों में महाराष्ट्र, असम, कर्नाटक, हरियाणा, राजस्थान, गोवा, मणिपुर तथा केरल प्रमुख हैं। हरियाणा में अम्बाला, कुरुक्षेत्र, करनाल, कैथल, जींद मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं।

प्रश्न 6.
गेहूँ की कृषि के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाओं का वर्णन करें। भारत में इसके उत्पादन व वितरण की व्याख्या करें।
अथवा
भारत में गेहूँ की कृषि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में गेहूँ चावल के बाद अन्य प्रमुख खाद्यान्न फसल है। इसकी देश की कुल 14% भाग पर खेती की जाती है। यह मुख्यतः शीतोष्ण कटिबंधीय फसल है इसे शरद् अर्थात् खरीफ ऋतु में बोया जाता है। इस फसल का 85% क्षेत्र भारत के उत्तरी मध्य भाग तक केंद्रित है।

भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions)-भौगोलिक दशाएँ निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती हैं-
1. तापमान-गेहूँ की कृषि के लिए अधिक तापमान एवं वर्षा की आवश्यकता नहीं होती। इसको ते समय औसत तापमान 10° सेंटीग्रेड और बढ़ते व पकते समय 15°-25° सेंटीग्रेड तक होना चाहिए।

2. वर्षा इसकी खेती के लिए वार्षिक वर्षा 50-75 सें०मी० तक होनी चाहिए। अधिक वर्षा इसकी खेती के लिए नुकसानदायक है। लेकिन पौधों की वृद्धि के लिए मृदा में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।

3. मिट्टी-इसको उगाने के लिए जलोढ़, दोमट व चिकनी मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसे काली मिट्टी में भी उगाया जा सकता है।

4. भूमि या धरातल-इसकी खेती के लिए समतल तथा लगातार उतार-चढ़ाव वाले मैदानी भाग उपयुक्त हैं।

5. श्रम विभिन्न कार्यों हेतु सस्ते श्रम की आवश्यकता होती है, लेकिन गेहूँ की कृषि यांत्रिक होने के कारण अब अधिक श्रम की आवश्यकता नहीं है।

उत्पादन (Production) – गेहूँ की कृषि में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। भारत विश्व के कुल गेहूँ क्षेत्र के लगभग 12% एवं कुल उत्पादन का लगभग 11.7% उत्पादन करता है। देश के कुल बोए क्षेत्र के लगभग 14% भाग पर गेहूँ की कृषि की जाती हैं। 2003-04 में देश में गेहूँ का उत्पादन लगभग 72.16 मिलियन टन था। 2015-16 में देश में उत्पादन क्षेत्र 304.18 लाख हैक्टेयर था जो 2017-18 में घटकर 295.76 लाख हैक्टेयर रह गया। 2015-16 में देश में गेहूँ का उत्पादन 92.29 मिलियन टन था जो र 99.70 मिलियन टन हुआ। 2018-19 में देश में गेहूँ का कुल उत्पादन 103.6 मिलियन टन हुआ। कृषि मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2019-20 के दौरान देश में गेहूँ का कुल उत्पादन 106.2 मिलियन टन होने का अनुमान है।

वितरण (Distribution) – भारत में सबसे ज्यादा गेहूँ की कृषि उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा तथा मध्य प्रदेश में की जाती है। यहाँ देश का तीन-चौथाई भाग गेहूँ उत्पन्न होता है। इनके अलावा राजस्थान, बिहार एवं उनके निकटवर्ती क्षेत्रों में गेहूँ की अच्छी कृषि की जाती है।
1. उत्तर प्रदेश गेहूँ के उत्पादन में उत्तर प्रदेश का देश में प्रथम स्थान है। गंगा, घाघरा, दोआब यहाँ के महत्त्वपूर्ण उत्पादक क्षेत्र हैं। इस राज्य के मुख्य उत्पादक जिले मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, रामपुर, बुलंदशहर, इटावा, कानपुर आदि हैं। उत्तर प्रदेश में गंगा-यमुना दोआब तथा गंगा-घाघरा दोआब गेहूँ की खेती के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ राज्य का 75% गेहूँ पैदा होता है।

2. पंजाब हरित क्रांति के पश्चात् से पंजाब में गेहूँ की कृषि में बहुत उन्नति हो रही है। गेहूँ की कृषि अब पंजाब की अर्थव्यवस्था का महत्त्वपूर्ण अंग बन गई है। गेहूँ के उत्पादन में इस राज्य का भारत में दूसरा स्थान है। यहाँ कुल कृषि भूमि के 30% भाग पर गेहूँ की कृषि की जाती है। इसके मुख्य उत्पादक जिले अमृतसर, लुधियाना, पटियाला, संगरूर, जालंधर, भटिण्डा, फिरोजपुर हैं।

3. मध्य प्रदेश-गेहूँ उत्पादन में मध्य प्रदेश का देश में तीसरा स्थान है। राज्य के मालवा क्षेत्र में उपजाऊ मिट्टी और नर्मदा घाटी की गहरी कछारी मिट्टी होने के कारण गेहूँ की अच्छी कृषि की जाती है। ग्वालियर, उज्जैन, भोपाल, जबलपुर आदि जिले प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं।

4. हरियाणा सिंचाई सुविधाओं के कारण यहाँ भी पंजाब की तरह प्रति हैक्टेयर उपज अधिक है। इस राज्य के मुख्य उत्पादक जिले रोहतक, हिसार, करनाल, कुरुक्षेत्र, पानीपत, महेंद्रगढ़, रेवाड़ी हैं। देश के कुल उत्पादन में इस राज्य का महत्त्वपूर्ण योगदान है।

5. राजस्थान राजस्थान की कुल भूमि के लगभग 18% भाग पर गेहूँ की खेती की जाती है। इन्दिरा गाँधी नहर बनने के बाद यहाँ गेहूँ की उपज में वृद्धि हुई है। श्रीगंगानगर, अलवर, भरतपुर, कोटा, जयपुर, भीलवाड़ा, सवाई, माधोपुर आदि यहाँ के प्रमुख गेहूँ उत्पादक जिले हैं।

6. बिहार-बिहार के उत्तरी मैदानी भागों में गेहूँ उत्पादन किया जाता है। इस राज्य की कृषीय भूमि के 14% भाग पर गेहूँ की खेती होती है। यहाँ के प्रमुख गेहूँ उत्पादक जिले चम्पारन, दरभंगा, पटना, सहरसा, गया, मुजफ्फरपुर व शाहबाद इत्यादि हैं।
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि 4

7. अन्य राज्य-भारत के अन्य गेहूँ उत्पादक राज्यों में छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और कर्नाटक आदि हैं। इन राज्यों में समतल उपजाऊ भू-भागों में गेहूँ की कृषि की जाती है।

प्रश्न 7.
गन्ने की कृषि के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाओं का वर्णन करें। भारत में इसके उत्पादन व वितरण की व्याख्या करें।
अथवा
भारत में गन्ने की फसल के लिए आवश्यक परिस्थितियों का वर्णन करते हुए इसके उत्पादन एवं वितरण का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गन्ने के उत्पादन में भारत का संसार में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। हमारा देश संसार के कुल उत्पादन का लगभग एक-चौथाई भाग पैदा करता है। गन्ना एक उष्ण कटिबंधीय फसल है और यह देश की सबसे महत्त्वपूर्ण नकदी फसल है। इस फसल की बुआई का समय फरवरी से मई तथा कटाई का समय नवम्बर से मार्च तक का है। कच्चे माल के रूप में कई उद्योगों में इसका प्रयोग होता है; जैसे चीनी उद्योग, गत्ता उद्योग आदि।

भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions)-गन्ने की कृषि के लिए जरूरी भौगोलिक दशाएँ निम्नलिखित हैं-
1. तापमान-गन्ने का वर्धनकाल लगभग 1 वर्ष होता है। इसके लिए 20° से 30° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता रहती है। 40° सेंटीग्रेड से अधिक और 15° सेंटीग्रेड से कम तापमान पर गन्ना पैदा नहीं होता। अत्यधिक सर्दी, पाला इसके लिए हानिकारक होता है।

2. वर्षा-गन्ना 100 से 150 सें०मी० वर्षा वाले क्षेत्रों में खूब उगाया जाता है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में यह सिंचाई की सहायता से उगाया जाता है। इसकी कटाई के समय शुष्क मौसम होना चाहिए।

3. मिट्टी-गहरी दोमट और लावायुक्त काली मिट्टी इसके लिए उपयुक्त होती है। मिट्टी में चूने की मात्रा होनी चाहिए। बाढ़ के मैदानों तथा डेल्टाई प्रदेशों में यह खब पैदा होता है। इसके लिए बड़ी मात्रा में खाद की जरूरत रहती है, क्योंकि यह मिट्टी के पोषक तत्त्वों को अधिक समाप्त करता है।

4. भूमि-गन्ने की खेती के लिए मैदानी भाग उपयुक्त होते हैं, क्योंकि यहाँ परिवहन के सस्ते साधन सुलभ होते हैं तथा मशीनों का भी इसकी कटाई में प्रयोग हो सकता है।

5. श्रम गन्ने की खेती का अधिकांश काम हाथों से होता है। अतः सस्ते श्रम की जरूरत पड़ती है।

उत्पादन (Production)-भारत में उत्पादित गन्ने का 40% गुड़ और 50% चीनी बनाने में प्रयुक्त होता है। भारत में गन्ने। की प्रति हैक्टेयर उपज बहुत कम है। इसका कारण यह है कि भारत का अधिकांश गन्ना उत्तर भारत में पैदा किया जाता है, जबकि इसके लिए भौगोलिक दशाएँ दक्षिण भारत में अधिक पाई जाती हैं। विश्व में गन्ना उत्पादन में भारत का दूसरा स्थान है।

यहाँ लगभग 22% गन्ना पैदा किया जाता है। 2015-16 में देश में गन्ने की खेती या उत्पादन क्षेत्र 49.27 लाख हैक्टेयर और 2017-18 में 47.32 लाख हैक्टेयर था। सन् 2015-16 में देश में गन्ने का उत्पादन 348.45 मिलियन टन और 2017-18 में 376.90 मिलियन टन था। वर्ष 2018-19 के दौरान गन्ने का उत्पादन 380.83 मिलियन टन अनुमानित है।

वितरण (Distribution)-भारत का लगभग 75% गन्ना उत्तरी मैदानों में पैदा होता है। भारत में प्रमुख गन्ना उत्पादक क्षेत्र हैं-
1. उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश भारत का लगभग 40% गन्ना पैदा करता है। इसके मुख्य उत्पादक जिले सहारनपुर, मुरादाबाद, मेरठ, फैजाबाद, बुलंदशहर, शाहजहाँपुर, बलिया, आजमगढ़ और गोरखपुर आदि हैं। यहाँ के तराई क्षेत्र और दोआब क्षेत्र में गन्ने की अच्छी पैदावार होती है।

2. महाराष्ट्र महाराष्ट्र देश का दूसरा सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य है। यहाँ उच्च कोटि का गन्ना पैदा होता है और मुख्य उत्पादक जिले नासिक, पुणे, शोलापुर, रत्नागिरि तथा अहमदनगर, सतारा आदि हैं।

3. कर्नाटक यहाँ गन्ने की कृषि नदी-घाटियों में की जाती है। यह राज्य भारत का लगभग 13% गन्ना पैदा करता है। यहाँ के महत्त्वपूर्ण जिले मैसूर, कोलार, रायचूर, बेलारी, तुमकुर तथा बेलगाँव आदि हैं।

4. तमिलनाड-तमिलनाड़ कल उत्पादन और प्रति हैक्टेयर उत्पादन की दृष्टि से देश में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यहाँ देश का लगभग 10% गन्ना पैदा होता है। यहाँ के मुख्य उत्पादक जिले कोयम्बटूर, मदुरई, उत्तरी अर्काट, दक्षिणी अर्काट तथा चेन्नई आदि हैं।

5. आंध्र प्रदेश-यहाँ गन्ने की कृषि गोदावरी तथा कृष्णा नदियों के डेल्टाई क्षेत्रों में की जाती है। यहाँ के मुख्य उत्पादक जिले पश्चिमी गोदावरी, श्री काकुलम, निजामाबाद, विशाखापट्टनम तथा चित्तूर आदि हैं।

6. पंजाब-पंजाब की मिट्टी उपजाऊ है। यह राज्य देश का लगभग 2% गन्ना पैदा करता है। यहाँ के मुख्य उत्पादक जिले जालंधर, अमृतसर, फिरोजपुर तथा गुरदासपुर आदि हैं।

7. हरियाणा-पंजाब की तरह हरियाणा में भी उपजाऊ मृदा और सिंचाई साधनों की सुविधाओं के कारण गन्ना क्षेत्र, उत्पादन और प्रति हैक्टेयर में निरंतर वृद्धि हो रही है। यहाँ के मुख्य उत्पादक जिले अम्बाला, करनाल, रोहतक, सोनीपत, पानीपत और यमुनानगर आदि हैं।
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि 5
8. गुजरात-सूरत, जामनगर, जूनागढ़, राजकोट तथा भावनगर गुजरात के प्रमुख गन्ना उत्पादक जिले हैं।

9. बिहार-निम्न गंगा के मैदान में स्थित होने के कारण बिहार में गन्ने की खेती के लिए सभी अनुकूल दशाएँ विद्यमान हैं। गोपालगंज, सिवान, बक्सर, रोहतास, गया, औरंगाबाद, सारन व वैशाली बिहार के प्रमुख गन्ना उत्पादक जिले हैं।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

प्रश्न 8.
कपास की कृषि के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाओं का वर्णन करें। भारत में कपास के उत्पादन व वितरण की व्याख्या करें।
अथवा
भारत में कपास की कृषि का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में कपास की फसल के लिए आवश्यक भौगोलिक परिस्थितियों और वितरण का वर्णन कीजिए। अथवा भारत में कपास की खेती के लिए तीन भौगोलिक दशाओं और तीन उत्पादक राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर:
कपास के पौधे का मूल स्थान भारत है। यहाँ प्राचीनकाल से लोग सूती कपड़ों का इस्तेमाल कर रहे हैं। ऋग्वेद में भी कई जगहों पर कपास के बारे में वर्णन मिलता है। कपास एक उष्ण कटिबंधीय फसल है जो देश के अर्ध-शुष्क भागों में खरीफ ऋतु में बोई जाती है।

भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions)-कपास की कृषि के लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएँ आवश्यक हैं-
1. तापमान-कपास के लिए ऊँचे तापमान की आवश्यकता रहती है। इसके लिए 20° से 25° सेल्सियस तापमान उपयुक्त रहता है। पाला इसके लिए हानिकारक होता है।

2. वर्षा कपास की खेती के लिए 50 से 80 सें०मी० तक वर्षा अधिक उपयोगी रहती है। कपास पर फूल आने के समय आकाश बादल रहित होना चाहिए। इसके पकते समय शुष्क मौसम होना चाहिए। कम वर्षा वाले क्षेत्र में सिंचाई की सहायता से इसे उगाया जाता है।

3. मिट्टी-जल को अधिक सोख लेने वाली दोमट मिट्टी इसके लिए उपयुक्त होती है। मिट्टी में चूने के अंश होने चाहिएँ। इसकी उपज के लिए लावा से बनी मिट्टी सर्वोत्तम होती है। कपास की खेती के लिए गहरी एवं मध्यम काली मिट्टी आदर्श मानी जाती है। देश में इसकी उपज गंगा मैदान की काँप मिट्टी और लाल या लैटेराइट मिट्टी में भी की जाती है।

4. श्रम कपास की खेती के लिए सस्ते तथा कुशल श्रम की आवश्यकता होती है। कपास डोंडियों से इसको चुनने का काम हाथों से ही किया जाता है।

उत्पादन (Production) – भारत का कपास के उत्पादन में विश्व में चौथा स्थान है। यह विश्व के समस्त कपास उत्पादन के 8.3% भाग का उत्पादन करता है। देश के समस्त बोए क्षेत्र के लगभग 4.7% क्षेत्र पर कपास बोया जाता है। भारत दो प्रकार की छोटे रेशे वाली (भारतीय) और लंबे रेशे वाली (अमेरिकी) कपास का उत्पादन करता है। अमेरिकी कपास को देश के उत्तर:पश्चिमी भाग में ‘नरमा’ के नाम से जाना जाता है। भारत की लगभग 60% से अधिक कपास दक्षिण भारत में उगाई जाती है।

2015-16 में देश में कपास की खेती उत्पादन क्षेत्र 122.92 लाख हैक्टेयर था और 2017-18 में यह 124.29 लाख हैक्टेयर हो गया। 2019-20 में कपास का उत्पादन क्षेत्र 127.67 लाख हैक्टेयर हो गया। 2015-16 में कपास का उत्पादन 30.01 मिलियन गाँठ था और 2017-18 में यह 34.89 मिलियन गाँठ हो गया। 2019-20 के दौरान कपास का उत्पादन 36.0 मिलियन गाँठ होने की उम्मीद की जा रही है।

1. महाराष्ट्र महाराष्ट्र में देश की लगभग 21% कपास की पैदावार होती है। यहाँ लम्बे रेशे वाली कपास भी उगाई जाती है। यहाँ लावा निर्मित मिट्टी कपास की कृषि के लिए बहत उपयुक्त है। यहाँ के मुख्य कपास उत्पादक जिले नागपर, अमरावती, अंकोला, जलगाँव, वर्धा, शोलापुर और नांदेड़ आदि हैं।

2. गुजरात यह राज्य देश की लगभग 35% कपास का उत्पादन करता है। यहाँ के महत्त्वपूर्ण जिले अहमदाबाद, बड़ौदा, सूरत, साबरमती, भावनगर, राजकोट, पंचमहल, भड़ौंच तथा सुरेंद्रनगर आदि हैं।

3. पंजाब-पंजाब में दोमट तथा उपजाऊ मिट्टी पाई जाती है तथा सिंचाई की सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं। यहाँ के महत्त्वपूर्ण उत्पादक जिले फिरोजपुर, भटिण्डा, लुधियाना, अमृतसर तथा संगरूर आदि हैं। .

4. हरियाणा-पश्चिमी हरियाणा में बलुई मिट्टी में सिंचाई की व्यवस्था हो जाने से यहाँ कपास की कृषि में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। हिसार और सिरसा हरियाणा की लगभग 80 प्रतिशत कपास पैदा करते हैं। जींद, फतेहाबाद और भिवानी कपास के अन्य उत्पादक जिले हैं।

5. कर्नाटक यहाँ भारत की लगभग 4% कपास पैदा होती है। यहाँ भी काली मिट्टी और लाल मिट्टी का कुछ क्षेत्र है जो कपास के लिए उपयुक्त है। महत्त्वपूर्ण उत्पादक जिले धारवाड़, बेलगाँव, बीजापुर तथा बेलारी आदि हैं।

6. राजस्थान-सिंचाई की सहायता से यहाँ कपास पैदा की जाती है। यहाँ के मुख्य उत्पादक जिले भीलवाड़ा, अलवर, श्री गंगानगर, बूंदी, टोंक, कोटा और झालावाड़ आदि हैं।

7. आंध्र प्रदेश-सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि तथा सरकार की अनुकूल नीतियों के कारण आंध्र प्रदेश में कपास के उत्पादन स वर्ष अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। यहाँ छोटे तथा लम्बे दोनों प्रकार के रेशों वाली कपास उगती है। यहाँ के प्रमुख कपास उत्पादक जिले गुंटूर, कृष्णा, पश्चिमी गोदावरी व कर्नूल आदि हैं।

8. मध्य प्रदेश मध्य प्रदेश के पश्चिमी और दक्षिणी भाग कपास की खेती के लिए उपयुक्त हैं। यहाँ के मुख्य उत्पादक जिले हैं-देवास, छिदवाड़ा, खलाम, पश्चिमी नीमाड़ और धार आदि।

9. अन्य उत्पादक क्षेत्र अन्य उत्पादक राज्य तमिलनाडु, केरल, बिहार, ओडिशा, असम आदि हैं जो सभी मिलकर देश की 4% से अधिक कपास पैदा करते हैं।
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि 6

प्रश्न 9.
हरित क्रांति के भारतीय समाज पर पड़े सामाजिक और आर्थिक प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
कृषि क्षेत्र में नई कृषि नीति और तकनीकी परिवर्तनों के कारण उत्पादन में होने वाली वृद्धि को ‘हरित क्रांति’ कहते हैं। यह भारतीय कृषि में उन्नति का प्रतीक है। हरित क्रांति के भारतीय समाज पर निम्नलिखित सामाजिक व आर्थिक प्रभाव पड़े हैं
1. कृषि उत्पादन में वृद्धि हरित क्रांति के फलस्वरूप कृषि उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई है। हरित क्रांति के कारण ही देश खाद्यान्नों के उत्पादन में आत्म-निर्भर बन सका है।

2. कृषि का मशीनीकरण हरित क्रांति के परिणामस्वरूप ही भारतीय कृषि का मशीनीकरण हो रहा है। जुताई से लेकर गहाई तक के लगभग सारे कार्यों का पूरी तरह मशीनीकरण हो चुका है।

3. सुनिश्चित सिंचाई विद्युत् चालित नलकूपों द्वारा सिंचाई को सुनिश्चित कर लिया गया है। अब पूरा साल किसानों को केवल वर्षा की ओर नहीं देखना पड़ता। इन नलकूपों द्वारा कुल सिंचित क्षेत्र में भी अत्यधिक मात्रा में वृद्धि हुई है।

4. ग्रामीण आय में वृद्धि हरित क्रांति के फलस्वरूप कृषि उत्पादन में वृद्धि से ग्रामीण लोगों की आय में अधिक मात्रा में वृद्धि हुई है।

5. ग्रामीण जीवन-स्तर में सुधार हरित क्रांति के कारण लोगों की आय में काफी वृद्धि हुई है, जिससे ग्रामीण जीवन में बहुत ज्यादा सुधार हुआ है। वे अब पक्के, अच्छे, साफ-सुथरे मकानों में रहते हैं। उनमें साक्षरता भी बढ़ी है।

6. कृषि का व्यवसायीकरण भारतीय कृषि अब निर्वाह कृषि का रूप त्यागकर व्यापारिक कृषि बन गई है। किसानों की व्यापारिक फसलों के उत्पादन में काफी रुचि बढ़ी है। उनका उत्पादन सरकार की विभिन्न एजेंसियों द्वारा खरीद लिया जाता है।

7. किसानों के दृष्टिकोण में परिवर्तन हरित क्रांति के कारण किसानों के दृष्टिकोण में महान परिवर्तन आया है। अब किसान कृषि की नई तकनीक अपनाने लगे हैं। अच्छी उपज देने वाले बीजों का ज्यादा-से-ज्यादा प्रयोग होने लगा है। किसानों ने फसलों के वैज्ञानिक हेर-फेर को अपना लिया है।

8. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हरित क्रांति के फलस्वरूप प्रति व्यक्ति आय में काफी वृद्धि हुई है।

9. कीटनाशकों का प्रयोग हरित क्रांति के कारण कृषि में उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग में काफी वृद्धि हुई है।

प्रश्न 10.
‘भारतीय कृषि निर्वाह का स्वरूप त्यागकर व्यापारिक कृषि बन गई है’ इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पहले किसानों की निर्धनता, साधारण खादों और बीजों की पुरानी किस्मों का उपयोग, सिंचाई की सुविधाओं का अभाव और जोतों के छोटे आकार के कारण उत्पादन बहुत कम होता था, जो उत्पादन होता था, वह उसके परिवार में ही खप जाता था। परंतु जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के कारण अब कृषि उत्पादों की माँग बढ़ रही है। इसलिए कृषि अपने निर्वाह स्वरूप को त्यागकर व्यापारिक कृषि बन रही है। इसके बारे में अनेक संकेत मिल रहे हैं।
1. जोतों के आकार में परिवर्तन-चकबंदी ने छोटी जोतों को बड़ी जोतों में बदल दिया है। छोटी जोतों में भारी कमी हुई है। बड़ी जोतें व्यापारिक कृषि के लिए उपयुक्त होती हैं।

2. भूमि संबंधी अधिकार-सरकार ने जमींदारी प्रथा का उन्मूलन करके किसानों को भूमि संबंधी अधिकार दे दिए। इससे कृषि में उनकी रुचि बढ़ गई और अधिक उत्पादन होने लगा।

3. कृषि का मशीनीकरण-कृषि-कार्यों में पशुओं का स्थान मशीनों ने ले लिया। जुताई, बुआई, कटाई, सिंचाई आदि का मशीनीकरण हो गया है। कृषि के आधुनिक उपकरणों, ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, ट्रैक्टर-ट्रॉली, जलपंप और स्प्रिंकलर आदि ने न केवल उपज में वृद्धि की है बल्कि समय की भी बहुत बचत की है।

4. नए बीजों और उर्वरकों का उपयोग–अब अधिक उपज देने वाले नए-नए बीजों का प्रयोग किया जा रहा है। अब उर्वरकों के उपयोग में वृद्धि के कारण अधिक उपज होने लगी।

5. कृषि में वैज्ञानिक तकनीक का प्रयोग-व्यापारिक कृषि के लिए वैज्ञानिक तकनीक की जानकारी और उसका प्रयोग जरूरी होता है। इस तकनीक के प्रयोग में काफी वृद्धि हुई है। यही व्यापारिक कृषि का संकेत है। कृषि के नए-नए ढंगों ने उपज में काफी ज्यादा वृद्धि की है।

6. कीटनाशकों का प्रयोग फसलों को खरपतवार, फफूंदी और अनेक प्रकार के कीड़ों से बचाने के लिए आजकल कीटनाशक आदि दवाइयों का प्रयोग किया जा रहा है।

7. सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीद-अब मंडियों में कृषि उत्पादन की खरीद सरकारी एजेंसियों द्वारा की जाती है। इससे किसानों को अपनी उपज के ठीक दाम मिलते हैं। यह कदम कृषि के व्यापारिक स्वरूप की ओर संकेत है।

प्रश्न 11.
भारतीय कृषि की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय कृषि निम्नलिखित समस्याओं से ग्रस्त है
1. अनियमित व अनिश्चित मानसून पर निर्भरता भारतीय कृषि मानसूनी वर्षा पर निर्भर है। भारत में कृषि क्षेत्र का केवल एक-तिहाई भाग ही सिंचित है। शेष क्षेत्र मानसूनी वर्षा पर निर्भर है। दक्षिणी-पश्चिमी मानसून अनिश्चित व अनियमित होने से नहरों में जल की आपूर्ति प्रभावित होती है। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति व कम वर्षा वाले स्थानों में सूखा एक सामान्य परिघटना है।

2. निम्न उत्पादकता भारत में फसलों की उत्पादकता कम है। भारत में अधिकतर फसलें: जैसे चावल, गेहूँ. कपास व तिलहन की प्रति हैक्टेयर उपज अमेरिका, रूस, जापान से कम है। देश के विस्तृत वर्षा पर निर्भर शुष्क क्षेत्रों में अधिकतर मोटे अनाज, दालें, तिलहन की खेती की जाती है। इनकी उत्पादकता बहुत कम है।

3. छोटी जोतें भारत में छोटे किसानों की संख्या अधिक है। बढ़ती जनसंख्या के कारण खेतों का आकार और भी सिकुड़ रहा है। कुछ राज्यों में तो चकबंदी भी नहीं हुई है। विखंडित व छोटी जोतें आर्थिक दृष्टि से लाभकारी नहीं हैं।

4. भूमि सुधारों की कमी-भूमि के असमान वितरण के कारण भारतीय किसान लंबे समय से शोषण का शिकार रहे है। स्वतन्त्रता से पूर्व किसानों का बहुत शोषण हुआ। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भूमि सुधारों को प्राथमिकता दी गई, लेकिन ये सुधार पूरी तरह से फलीभूत नहीं हुए। भूमि सुधारों के लागू न होने के कारण कृषि योग्य भूमि का असमान वितरण जारी रहा जिससे कृषि विकास में बाधा रही है।

5. कृषि योग्य भूमि का निम्नीकरण-निम्नीकरण एक गंभीर समस्या है, क्योंकि इससे मृदा का उपजाऊपन कम होता है। सिंचित क्षेत्रों में यह समस्या और भी अधिक भयंकर है। कृषि भूमि का एक बड़ा भाग लवणता और मृदा क्षारता के कारण बंजर हो चुका है। कीटनाशक रसायनों के अत्यधिक प्रयोग से भी मृदा का उपजाऊपन नष्ट होता है।

6. वाणिज्यीकरण का अभाव-भारतीय किसान अपनी जीविका के लिए फसलें उगाते हैं, क्योंकि इन किसानों के पास अपनी जरूरत से अधिक फसल उत्पादन के लिए पर्याप्त भू-संसाधन नहीं है इसलिए अधिकतर किसान खाद्यान्नों की कृषि करते हैं ताकि वे अपने परिवार की जरूरतों को पूरा कर सकें। वर्तमान समय में सिंचित क्षेत्रों का कृषि का आधुनिकीकरण तथा वाणिज्यीकरण हो रहा है।

प्रश्न 12.
भारत में चाय की कृषि का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में चाय की कृषि के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन कीजिए। भारत में इसका उत्पादन और विवरण का उल्लेख करें।
अथवा
भारत में चाय की खेती के लिए तीन भौगोलिक दशाओं और तीन उत्पादक राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर:
चाय-भारत संसार की कुल उत्पादित चाय का लगभग एक-तिहाई भाग का उत्पादन करता है। संसार की उत्पादित होने वाली चाय का लगभग 21.1% भाग भारत उत्पादन करता है। चाय का पौधा झाड़ीदार होता है जिसकी कृषि बागानी कृषि कहलाती है। इसके पत्तों में थीन (Theine) नामक तत्त्व होता है जिसके इस्तेमाल से हमारे शरीर में स्फूर्ति आ जाती है। भारत में चाय के पौधे को चीन से लाया गया है। इसके पौधे को शुरू में किसी स्थान पर अंकुरित करके पर्वतीय ढलानों में प्रत्यारोपित किया जाता है। इसे डेढ़ मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। कभी-कभी इस पौधे की ऊंचाई 2 मीटर से भी ऊँची हो जाती है। समय-समय पर इसकी पत्तियों की कटाई-छटाई होती रहती है। समय पर कटाई-छटाई करने से इसका पौधा अधिक पत्तियाँ प्रदान करता है।

भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions) चाय की कृषि के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएँ निम्नलिखित हैं-
1. तापमान-चाय उष्ण एवं आर्द्र जलवायु का पौधा है। इस पौधे के लिए औसत 25° से 30° सेंग्रे० तापमान उपयुक्त रहता है। चाय के पौधों की वृद्धि के लिए अनुकूल व शुष्क हवा प्रतिकूल रहती है।

2. वर्षा-चाय के पौधे के लिए अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है। सामान्यतः इसके लिए 200 से 250 सें०मी० वर्षा उपयुक्त रहती है। बौछारों वाली वर्षा में पौधों में निरंतर नई कोपलें फूटती रहती हैं।

3. भूमि-चाय के पौधे की कृषि के लिए भूमि ढलवाँ होनी चाहिए ताकि पानी इसकी जड़ों में न ठहर सके। पहाड़ी प्रदेश इसकी कृषि के लिए उपयुक्त होते हैं। इसके लिए ऐसी उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है, जिसमें लोहे का अंश पर्याप्त मात्रा में हो और पानी सोखने की क्षमता अधिक हो।

4. श्रम-इसके लिए अधिक श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि अधिकतर कार्य हाथों से करना पड़ता है।
उत्पादन (Production)-भारत विश्व की 21.1 प्रतिशत से अधिक चाय का उत्पादन करता है। चाय-निर्यातक देशों में भारत का चीन के बाद दूसरा स्थान आता है। चाय के उत्पादन में चीन की भूमिका भी भारत के लगभग समान है। भारत में सबसे अधिक चाय की पैदावार असम में होती है। इसके बाद पश्चिम बंगाल का स्थान आता है। सन 2014-15 में देश का औसत उत्पादन 2170 कि०ग्रा० था। बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय चाय का हिस्सा कम हुआ है।

वितरण (Distribution)-भारत में चाय की खेती लगभग 16 राज्यों में की जाती है। इनमें से प्रमुख उत्पादक राज्य हैं-
1. असम यह चाय के उत्पादन में देश का सबसे बड़ा राज्य है। यहाँ देश की लगभग 53.2% चाय का उत्पादन होता है। कुल चाय-क्षेत्र का 50% भाग पाया जाता है। इस राज्य के मुख्य उत्पादक जिले शिवसागर, लखीमपुर, दरांग, नौगाँव, कामरूप, गोलपाड़ा तथा सिलचर आदि हैं। असम में कृषि पर आधारित उद्योग में चाय का प्रमुख स्थान है।
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि 7

2. पश्चिम बंगाल-यहाँ भारत की लगभग 22% चाय पैदा होती है तथा मुख्य उत्पादक जिले दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी तथा कूच बिहार आदि हैं। यहाँ बढ़िया किस्म की चाय पैदा की जाती है तथा देश में इसकी माँग अधिक है।

3. तमिलनाडु-यह राज्य भारत की लगभग 15% चाय का उत्पादन करता है। यहाँ नीलगिरि तथा अन्नामलाई की पहाड़ियों में चाय के बागान लगे हुए हैं। यहाँ के मुख्य उत्पादक जिले नीलगिरि, अन्नामलाई, मदुरई, कोयम्बटूर तथा कन्याकुमारी आदि हैं। नीलगिरि की चाय सर्वोत्तम मानी जाती है। इसकी माँग यूरोप में बहुत अधिक है।

4. केरल-इस राज्य में देश की लगभग 8% चाय का उत्पादन होता है।

5. यहाँ प्रमुख उत्पादक जिले पालघाट, मालापुरम, त्रिवेंद्रम, वायनाड और मालाबार आदि हैं।

6. अन्य राज्य हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, कर्नाटक, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश में चाय का उत्पादन लगभग 1.04% होता है।

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HBSE 12th Class History Important Questions and Answers

Haryana Board HBSE 12th Class History Important Questions and Answers

HBSE 12th Class History Important Questions in Hindi Medium

HBSE 12th Class History Important Questions in English Medium

  • Chapter 1 Bricks, Beads and Bones: The Harappan Civilisation Important Questions
  • Chapter 2 Kings, Farmers and Towns: Early States and Economies Important Questions
  • Chapter 3 Kinship, Caste and Class: Early Societies Important Questions
  • Chapter 4 Thinkers, Beliefs and Buildings: Cultural Developments Important Questions
  • Chapter 5 Through the Eyes of Travellers: Perceptions of Society Important Questions
  • Chapter 6 Bhakti-Sufi Traditions: Changes in Religious Beliefs and Devotional Texts Important Questions
  • Chapter 7 An Imperial Capital: Vijayanagara Important Questions
  • Chapter 8 Peasants, Zamindars and the State: Agrarian Society and the Mughal Empire Important Questions
  • Chapter 9 Kings and Chronicles: The Mughal Courts Important Questions
  • Chapter 10 Colonialism and the Countryside: Exploring Official Archives Important Questions
  • Chapter 11 Rebels and the Raj: 1857 Revolt and its Representations Important Questions
  • Chapter 12 Colonial Cities: Urbanisation, Planning and Architecture Important Questions
  • Chapter 13 Mahatma Gandhi and The Nationalist Movement: Civil Disobedience and Beyond Important Questions
  • Chapter 14 Understanding Partition: Politics, Memories, Experiences Important Questions
  • Chapter 15 Framing the Constitution: The Beginning of a New Era Important Questions

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HBSE 12th Class History Solutions Haryana Board

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HBSE 12th Class History Solutions in Hindi Medium

HBSE 12th Class History Solutions in English Medium

  • Chapter 1 Bricks, Beads and Bones: The Harappan Civilisation
  • Chapter 2 Kings, Farmers and Towns: Early States and Economies
  • Chapter 3 Kinship, Caste and Class: Early Societies
  • Chapter 4 Thinkers, Beliefs and Buildings: Cultural Developments
  • Chapter 5 Through the Eyes of Travellers: Perceptions of Society
  • Chapter 6 Bhakti-Sufi Traditions: Changes in Religious Beliefs and Devotional Texts
  • Chapter 7 An Imperial Capital: Vijayanagara
  • Chapter 8 Peasants, Zamindars and the State: Agrarian Society and the Mughal Empire
  • Chapter 9 Kings and Chronicles: The Mughal Courts
  • Chapter 10 Colonialism and the Countryside: Exploring Official Archives
  • Chapter 11 Rebels and the Raj: 1857 Revolt and its Representations
  • Chapter 12 Colonial Cities: Urbanisation, Planning and Architecture
  • Chapter 13 Mahatma Gandhi and The Nationalist Movement: Civil Disobedience and Beyond
  • Chapter 14 Understanding Partition: Politics, Memories, Experiences
  • Chapter 15 Framing the Constitution: The Beginning of a New Era

HBSE 12th Class History Question Paper Design

Class: 12th
Subject: History
Paper: Annual or Supplementary
Marks: 80
Time: 3 Hours

1. Weightage to Objectives:

ObjectiveKUASTotal
Percentage of Marks504010100
Marks4032880

2. Weightage to Form of Questions:

Forms of QuestionsESAVSAOTotal
No. of Questions45101635
Marks Allotted2420201680
Estimated Time72483525180

3. Weightage to Content:

Units/Sub-UnitsMarks
1. ईंट, मनके तथा अस्थियाँ (हड़प्पा सभ्यता)9
2. राजा, किसान और नगर (आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्था)6
3. बंधुत्व जाति तथा वर्ग (आरंभिक समाज)3
4. विचारक, विश्वास और इमारतें (सांस्कृतिक विकास)3
5. यात्रियों के नजरिए (समाज के बारे में उनकी समझ)6
6. भक्ति सूफी परंपराएं, धार्मिक विश्वासों में बदलाव9
7. एक साम्राज्य की राजधानी (विजयनगर)5
8. किसान, जमींदार और राज्य6
9. शासक और इतिवृत (मुगल दरबार)3
10. उपनिवेशवाद और देहात4
11. विद्रोह राज और 1857 का विद्रोह6
12. औपनिवेशक शहर और नगरीकरण5
13. महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आन्दोलन9
14. विभाजन को समझना3
15. संविधान का निर्माण3
Total80

4. Scheme of Sections:

5. Scheme of Options: Internal Choice in Long Answer Questions i.e. Essay Type
in Two Questions.

6. Difficulty Level:
Difficult: 10% Marks
Average: 50% Marks
Easy: 40% Marks

Abbreviations: K (Knowledge of elements of language), C (Comprehension), E (Expression), A (Appreciation), S (Skill), E (Essay Type), SA (Short Answer Type), VSA (Very Short Answer Type), O (Objective Type)

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HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

Haryana State Board HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के अन्तर्गत कुछेक वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। ठीक उत्तर का चयन कीजिए

1. मोहनजोदड़ो की खोज कब की गई?
(A) 1910 ई० में
(B) 1922 ई० में
(C) 1932 ई० में
(D) 1947 ई० में
उत्तर:
(B) 1922. ई० में

2. सार्वजनिक स्नानागार के भवन की बाहर की दीवार कितने फुट मोटी है?
(A) 8
(B) 4
(C) 12
(D) 3
उत्तर:
(A) 8

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

3. मोहनजोदड़ो किस नदी के तट पर स्थित है?
(A) चिनाब
(B) सिन्धु
(C) रावी
(D) सतलुज
उत्तर:
(B) सिन्धु

4. हड़प्पावासी किस धातु से अनभिज्ञ थे?
(A) ताँबा
(B) कांस्य
(C) लोहा
(D) पत्थर
उत्तर:
(C) लोहा

5. मोहनजोदड़ो कराची से लगभग कितने मील दूर है?
(A) 300 मील
(B) 500 मील
(C) 150 मील
(D) 225 मील
उत्तर:
(A) 300 मील

6. किस ई० में पुरातत्व विभाग के महानिदेशक सर जॉन मार्शल ने घोषणा की कि एक नई सभ्यता का पता चला है?
(A) 1912 ई० में
(B) 1900 ई० में
(C) 1924 ई० में
(D) 1928 ई० में
उत्तर:
(C) 1924 ई० में

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

7. “सिंधुवासियों की सामाजिक प्रणाली मिस्र तथा बेबीलोन के लोगों की सामाजिक प्रणाली से कहीं श्रेष्ठ थी।” ये किसके शब्द हैं?
(A) एन०एन० घोष
(B) आर०पी० त्रिपाठी
(C) एस०आर० शर्मा
(D) वी०ए० स्मिथ
उत्तर:
(C) एस०आर० शर्मा

8. “5000 वर्ष पुराने आभूषण ऐसे दिखाई देते हैं, जैसे किसी जौहरी की दुकान से अभी लाए गए हो।” ये शब्द किसके हैं?
(A) सर जॉन मार्शल
(B) ए०पी० मदान
(C) हेमचन्द्र राय
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) सर जॉन मार्शल

9. “मोहरें ही सिंधुवासियों के एकमात्र लेख हैं जिनसे उनकी लिखाई के बारे में कुछ पता चल सकता है।” यह विचार किसने प्रस्तुत किया?
(A) डॉ० मैके
(B) आर०के० मुकर्जी
(C) एन०एन० घोष
(D) ए०एल० बाशम
उत्तर:
(A) डॉ० मैके

10. हड़प्पा संस्कृति के लोग निम्नलिखित पशु से अनभिज्ञ थे
(A) सूअर
(B) कुत्ता
(C) गाय
(D) घोड़ा
उत्तर:
(D) घोड़ा

11. निम्नलिखित भवन हड़प्पा संस्कृति से सम्बन्धित नहीं था
(A) अन्नागार
(B) पिरामिड
(C) स्नानागार
(D) विशाल गोदाम
उत्तर:
(B) पिरामिड

12. हड़प्पावासी कैसे वस्त्र पहनते थे?
(A) पशुओं की खाल के
(B) वृक्षों की छाल के
(C) सूती तथा ऊनी
(D) कागज के
उत्तर:
(C) सूती तथा ऊनी

13. हड़प्पा की खोज की थी
(A) दयाराम साहनी ने
(B) आर०डी० बैनर्जी ने
(C) सर जॉन मार्शल ने
(D) आर०एस० बिष्ट ने
उत्तर:
(A) दयाराम साहनी ने

14. हड़प्पा संस्कृति के लोग पूजा करते थे
(A) विष्णु की
(B) इन्द्र की
(C) वरुण की
(D) मातृदेवी की
उत्तर:
(D) मातृदेवी की

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

15. हड़प्पा सभ्यता किस सभ्यता के समकालीन नहीं थी?
(A) रोमन सभ्यता
(B) मेसोपोटामिया की सभ्यता
(C) नील घाटी की सभ्यता
(D) दजला फरात की सभ्यता
उत्तर:
(A) रोमन सभ्यता

16. हड़प्पा संस्कृति के लोग जहाज निर्माण कला में निपुण थे, इसका पता चलता है
(A) मिट्टी के बर्तनों से
(B) खुदाई से प्राप्त
(C) मोहरों पर जहाज के चित्रों से
(D) गोदामों में प्राप्त अवशेषों के सामान से
उत्तर:
(C) मोहरों पर जहाज के चित्रों से

17. मोहनजोदड़ो की खोज की
(A) सर जॉन मार्शल
(B) आर०डी० बैनर्जी
(C) दयाराम साहनी
(D) सूरजभान
उत्तर:
(B) आर०डी० बैनर्जी

18. बनावली स्थित है
(A) पंजाब में
(B) हरियाणा में
(C) उत्तरप्रदेश में
(D) राजस्थान में
उत्तर:
(B) हरियाणा में

19. हड़प्पा सभ्यता के किस स्थान से डकयार्ड के अवशेष मिले हैं?
(A) लोथल
(B) हड़प्पा
(C) मोहनजोदड़ो
(D) धौलावीरा
उत्तर:
(A) लोथल

20. हड़प्पन मुद्राओं पर रूपायन (चित्र) है
(A) बैल
(B) हाथी
(C) गैंडा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

21. प्रारम्भिक हड़प्पा की प्रमुख बस्ती है
(A) मेहरगढ़
(B) दंबसादात
(C) अमरी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

22. हड़प्पा सभ्यता का अन्य नाम है
(A) आर्यों की सभ्यता
(B) मिस्र की सभ्यता
(C) उत्तर वैदिक सभ्यता
(D) सिन्धु घाटी की सभ्यता
उत्तर:
(D) सिन्धु घाटी की सभ्यता

23. हड़प्पा संस्कृति के लोग किस अनाज से अनभिज्ञ थे?
(A) दाल
(B) जौ
(C) गेहूँ
(D) चावल
उत्तर:
(A) दाल

24. आर.एस. बिष्ट ने हड़प्पा सभ्यता से संबंधी धौलावीरा स्थल खोजा
(A) 1946 में
(B) 1971 में
(C) 1981 में
(D) 1990 में
उत्तर:
(D) 1990 में

25. धौलावीरा स्थित है
(A) गुजरात में
(B) सिन्ध में
(C) राजस्थान में
(D) महाराष्ट्र में
उत्तर:
(A) गुजरात में

26. चन्हुदड़ो की सर्वप्रथम खोज किसने की?
(A) एच० जी० मजूमदार ने
(B) एन० जी० मजूमदार ने
(C) आर० सी० मजूमदार ने
(D) आर० जी० मजूमदार ने
उत्तर:
(B) एन०जी० मजूमदार ने

27. आर.ई.एम. व्हीलर द्वारा हड़प्पा में खुदाई शुरू की गई
(A) 1941 ई० में
(B) 1931 ई० में
(C) 1946 ई० में
(D) 1951 ई० में
उत्तर:
(C) 1946 ई० में

28. कालीबंगन में बी. बी. लाल तथा बी. के. थापर ने खुदाई कार्य शुरू किया
(A) 1940 ई० में
(B) 1950 ई० में
(C) 1960 ई० में
(D) 1970 ई० में
उत्तर:
(C) 1960 ई० में

29. हड़प्पा किस नदी के तट पर है?
(A) सिंधु
(B) रावी
(C) सरस्वती
(D) झेलम
उत्तर:
(B) रावी

30. हड़प्पा काल में खेतों को हल से जोतने के प्रमाण मिले हैं
(A) मोहनजोदड़ो से
(B) हड़प्पा से
(C) कालीबंगन से
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) कालीबंगन से

31. जलाशय के साक्ष्य मिले हैं
(A) मोहनजोदड़ो से
(B) धौलावीरा से
(C) कालीबंगन से
(D) शोर्तुघई से
उत्तर:
(B) धौलावीरा से

32. भारतीय पुरातत्व का जनक कहा जाता है
(A) कनिंघम को
(B) सर जॉन मार्शल को
(C) व्हीलर को
(D) किसी को नहीं
उत्तर:
(A) कनिंघम को

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33. हड़प्पा सभ्यता के शिल्प कार्य थे
(A) मनके बनाना
(B) औजार बनाना
(C) ईंटों का निर्माण
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

34. कांसे की नर्तकी की मूर्ति कहाँ से प्राप्त हुई है?
(A) हड़प्पा से
(B) मोहनजोदड़ो से
(C) चन्हुदड़ो से
(D) राखीगढ़ी से
उत्तर:
(B) मोहनजोदड़ो से

35. हड़प्पावासी ताँबा आयात करते थे
(A) खेतड़ी से
(B) कोलार से
(C) ओमान से
(D) शोर्तुघई से
उत्तर:
(A) खेतड़ी से

36. पुरातत्वविदों के अनुसार हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा नगर था
(A) हड़प्पा
(B) मोहनजोदड़ो
(C) कालीबंगन
(D) लोथल
उत्तर:
(B) मोहनजोदड़ो

37. हड़प्पा की बस्तियों में पाई गई मोहरों में से अधिकांश बनी थीं
(A) लोहे की
(B) चाँदी की
(C) फिरोजा पत्थर की
(D) सेलखड़ी की
उत्तर:
(D) सेलखड़ी की

38. विशाल स्नानागार स्थित था
(A) हड़प्पा में
(B) लोथल में
(C) मोहनजोदड़ो में
(D) बनावली में
उत्तर:
(C) मोहनजोदड़ो में

39. हड़प्पा संस्कृति के पतन का क्या कारण था?
(A) बाढ़
(B) सूखा
(C) जलवायु परिवर्तन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

40. मोहनजोदड़ो स्थित ‘प्रथम सड़क’ का माप है
(A) 20 मीटर
(B) 15 मीटर
(C) 10.5 मीटर
(D) 5 मीटर
उत्तर:
(C) 10.5 मीटर

41. हड़प्पा संस्कृति के लोग किस धातु से परिचित नहीं थे?
(A) सोना
(B) ताँबा
(C) लोहा
(D) चाँदी
उत्तर:
(C) लोहा

42. हड़प्पा लिपि लिखी जाती थी
(A) ऊपर से नीचे
(B) बायें से दायें
(C) नीचे से ऊपर
(D) दायें से बायें
उत्तर:
(D) दायें से बायें

43. हड़प्पाई लोग पूजा करते थे
(A) मातृदेवी की
(B) वृक्षों की
(C) पशुओं की
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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44. हड़प्पा सभ्यता में दफनाए गए शवों की दिशा है
(A) उत्तर:दक्षिण
(B) पूर्व-पश्चिम
(C) उत्तर:पूर्व
(D) दक्षिण-पश्चिम
उत्तर:
(A) उत्तर:दक्षिण

45. हड़प्पा सभ्यता का कौन-सा स्थल हरियाणा में है?
(A) बनावली
(B) राखीगढ़ी
(C) (A) व (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) व (B) दोनों

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
हड़प्पा सभ्यता का ज्ञान पहली बार कब हुआ?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का ज्ञान पहली बार 1921 ई० में हुआ।

प्रश्न 2.
हड़प्पा सभ्यता की जानकारी का मुख्य साधन क्या है?
उत्तर:
हडप्पा सभ्यता की जानकारी का मुख्य साधन खदाई से प्राप्त अवशेष है।

प्रश्न 3.
सिन्धु घाटी सभ्यता के किन्हीं चार बड़े शहरों के नाम बताइए।
उत्तर:
सिन्धु घाटी सभ्यता के चार बड़े शहर हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्हुदड़ो तथा कालीबंगन थे।

प्रश्न 4.
आधुनिक हरियाणा में सिन्धु सभ्यता के दो केन्द्रों के नाम बताइए।
उत्तर:
आधुनिक हरियाणा में सिन्धु सभ्यता के दो केन्द्र बनावली तथा राखीगढ़ी हैं।

प्रश्न 5.
हड़प्पा सभ्यता के लोग किस पशु की पूजा करते थे?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोग कुबड़े बैल की पूजा करते थे।

प्रश्न 6.
हड़प्पा संस्कृति के समय की लिपि बताइए।
उत्तर:
हड़प्पा संस्कृति के समय की लिपि चित्रमय है।

प्रश्न 7.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के समय के दो आभूषणों के नाम बताइए।
उत्तर:
सिन्धु घाटी की सभ्यता के समय के दो आभूषण अंगूठी तथा हार थे।

प्रश्न 8.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के लोग किन वृक्षों की पूजा करते थे?
उत्तर:
सिन्धु घाटी की सभ्यता के लोग नीम तथा पीपल की पूजा करते थे।

प्रश्न 9.
मोहनजोदड़ो व हड़प्पा नगरों से गन्दे पानी को बाहर निकालने की क्या व्यवस्था थी?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो व हड़प्पा नगरों से गन्दे पानी को बाहर निकालने के लिए पक्की नालियों की व्यवस्था थी।।

प्रश्न 10.
हड़प्पा सभ्यता की किसी समकालीन सभ्यता का नाम बताइए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की समकालीन सभ्यता का नाम मेसोपोटामिया था।

प्रश्न 11.
हड़प्पा सभ्यता के लोग किस पशु से अनभिज्ञ माने जाते हैं?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोग घोड़े से अनभिज्ञ माने जाते हैं।

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प्रश्न 12.
सिन्धु सभ्यता के लोग किस धातु से परिचित नहीं थे?
उत्तर:
सिन्धु सभ्यता के लोग लोहे से परिचित नहीं थे।

प्रश्न 13.
प्रसिद्ध कांस्य नर्तकी कहाँ से प्राप्त हुई?
उत्तर:
प्रसिद्ध कांस्य नर्तकी मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई।

प्रश्न 14.
हड़प्पा सभ्यता के लोगों का मुख्य भोजन बताइए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोगों का मुख्य भोजन गेहूँ तथा चावल था।

प्रश्न 15.
आजकल मोहनजोदड़ो व हड़प्पा किस देश में हैं?
उत्तर:
आजकल मोहनजोदड़ो व हड़प्पा पाकिस्तान में हैं।

प्रश्न 16.
सिन्धु घाटी के लोग ‘सोना’ कहाँ से प्राप्त करते थे ?
उत्तर:
सिन्धु घाटी के लोग ‘सोना’ कर्नाटक से प्राप्त करते थे।

प्रश्न 17.
मोहनजोदड़ो की खोज किस व्यक्ति द्वारा हुई?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो की खोज आर०डी० बैनर्जी द्वारा हुई।

प्रश्न 18.
हड़प्पा की खोज किसने की?
उत्तर:
हड़प्पा की खोज सर दयाराम साहनी ने की।

प्रश्न 19.
सिन्धु घाटी की सभ्यता की दो सार्वजनिक इमारतों के नाम बताइए।
उत्तर:
सिन्धु घाटी की सभ्यता की दो सार्वजनिक इमारतों के नाम धान्यागार तथा स्नानागार थे।

प्रश्न 20.
हड़प्पा संस्कृति के दो देवताओं के नाम बताइए।।
उत्तर:
हड़प्पा संस्कृति के दो देवताओं के नाम पशपति शिव तथा मातदेवी थे।

प्रश्न 21.
विशाल स्नानागार के भवन की बाहर की दीवार कितने फुट मोटी है?
उत्तर:
विशाल स्नानागार के भवन की बाहर की दीवार 8 फुट मोटी है।

प्रश्न 22.
स्नानागार का भवन बाहर से कितने फुट लम्बा है?
उत्तर:
स्नानागार का भवन बाहर से 180 फुट लम्बा है।

प्रश्न 23.
र्नानागार का भवन बाहर से कितने फुट चौड़ा है?
उत्तर:
स्नानागार का भवन बाहर से 108 फुट चौड़ा है।

प्रश्न 24.
मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ मृतकों का टीला (मोयाँ-दा-दड़ा) है।

प्रश्न 25.
किस स्थान से खुदाई में एक गोदी के भग्नावशेष प्राप्त हुए हैं?
उत्तर:
लोथल से गोदी के भग्नावशेष मिले हैं।

प्रश्न 26.
गुजरात में हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख पुरास्थल कौन-से हैं?
उत्तर:
लोथल, रंगपुर, सुरकोतदा, धौलावीरा आदि गुजरात में प्रमुख पुरास्थल हैं।

प्रश्न 27.
यह कैसे ज्ञात हुआ है कि हड़प्पाई लोगों का दिलमुन तथा मेसोपोटामिया से व्यापारिक संबंध था?
उत्तर:
दिलमुन व मेसोपोटामिया से प्राप्त हड़प्पाई मोहरों से पता चला कि इन क्षेत्रों से हड़प्पाई लोगों का व्यापारिक संबंध था।

प्रश्न 28.
हड़प्पाई लोग किन पशुओं को पालते थे?
उत्तर:
हड़प्पाई लोग बैल, गाय, भैंस, बकरी, भेड़, सूअर, हाथी, ऊँट, कुत्ता आदि पशुओं को पालते थे।

प्रश्न 29.
हड़प्पा सभ्यता में कौन-सी मूर्तियाँ बहुतायत में मिली हैं?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में मृण्मयी मूर्तियाँ बहुतायत में मिली हैं।

प्रश्न 30.
हड़प्पाई लोग उपमहाद्वीप के किस स्थान से ताँबा प्राप्त करते थे?
उत्तर:
हड़प्पाई लोग खेतड़ी (राजस्थान) से ताँबा प्राप्त करते थे।

प्रश्न 31.
हड़प्पा सभ्यता के लोग सिंचाई के लिए किन साधनों का प्रयोग करते थे?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोग सिंचाई के लिए कुओं, नहरों व जलाशयों का प्रयोग करते थे।

प्रश्न 32.
वैदूर्यमणि किस स्थान से अधिक मात्रा में मिलती थी?
उत्तर:
वैदूर्यमणि शोर्तुघई (अफगानिस्तान) में अधिक मात्रा में पाई जाती थी।

प्रश्न 33.
हड़प्पाई नगरों से मेसोपोटामिया को क्या निर्यात किया जाता था?
उत्तर:
ताँबा, हाथी दाँत, वैदूर्यमणि आदि।

प्रश्न 34.
हड़प्पा सभ्यता में मुख्य कृषि फसलें क्या थीं?
उत्तर:
गेहूँ, जौ, चावल, मटर, कपास आदि मुख्य कृषि फसलें थीं।

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प्रश्न 35.
हड़प्पा कहाँ स्थित है?
उत्तर:
हड़प्पा पश्चिम पंजाब (पाकिस्तान) के मोंटगुमरी जिले में रावी के बाएँ तट पर स्थित है।

प्रश्न 36.
हड़प्पा सभ्यता में सर्वाधिक चित्र व मूर्तियाँ किसकी मिली हैं?
उत्तर:
सर्वाधिक चित्र व मूर्तियाँ कूबड़दार बैल की मिली हैं।

प्रश्न 37.
कालीबंगन कहाँ स्थित है?
उत्तर:
कालीबंगन राजस्थान में स्थित है।

प्रश्न 38.
मोहनजोदड़ो कहाँ स्थित था?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो सिंध के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के तट पर स्थित था।

प्रश्न 39.
हड़प्पा लिपि में कुल कितने चित्राक्षर थे?
उत्तर:
हड़प्पा लिपि में लगभग 250 से 400 तक चित्राक्षर थे।

अति लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रारम्भ में हड़प्पा सभ्यता को ‘सिंधु घाटी की सभ्यता’ का नाम क्यों दिया गया?
उत्तर:
हड़प्पा की खोज के बाद अब तक इस सभ्यता से जुड़ी लगभग 2800 बस्तियों की खोज की जा चुकी है। इन बस्तियों की विशेषताएँ हड़प्पा से मिलती हैं। विद्वानों (सर जॉन मार्शल) ने इस सभ्यता को “सिंधु घाटी की सभ्यता” का नाम दिया क्योंकि शुरू में बहुत-सी बस्तियाँ सिंधु घाटी और उसकी सहायक नदियों के मैदानों में पाई गई थीं। ।

प्रश्न 2.
वर्तमान में पुरातत्वविद् इसे ‘हड़प्पा सभ्यता’ संज्ञा देना उपयुक्त क्यों मानते हैं?
उत्तर:
बाद में इस सभ्यता से जुड़े अनेक स्थानों की खोज हुई जो राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा तथा गुजरात में स्थित थे। अतः इस सभ्यता को केवल सिंधु घाटी की सभ्यता कहना सार्थक नहीं लगा। वर्तमान में पुरातत्ववेत्ता इसे “हड़प्पा की सभ्यता” कहना पसंद करते हैं। यह नामकरण इसलिए उचित है कि इस संस्कृति से संबंधित सर्वप्रथम खुदाई हड़प्पा में हुई थी।

प्रश्न 3.
हड़प्पा सभ्यता की तीन अवस्थाओं के नाम लिखें।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की तीन अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं

  • आरंभिक हड़प्पा काल 3500-2600 ई.पू.,
  • विकसित हड़प्पा काल 2600-1900 ई.पू.,
  • उत्तर हड़प्पा काल 1900-1300 ई.पू.।

प्रश्न 4.
मोहनजोदड़ो का क्या अर्थ है? इसकी खोज कब हुई?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो से अभिप्राय है मृतकों का टीला। सिंधी भाषा में इसे ‘मोयां-दा-दड़ा’ कहते हैं। इसकी खोज 1922 में राखालदास बनर्जी ने की।

प्रश्न 5.
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के पालतू पशुओं के नाम बताइए।
उत्तर:
सभ्यता से प्राप्त शिल्प तथ्यों तथा पुरा-प्राणिविज्ञानियों (Archaeo-zoologists) के अध्ययनों से ज्ञात हुआ हैं कि हड़प्पन भेड़, बकरी, बैल, भैंस, सुअर आदि जानवरों का पालन करने लगे थे। कूबड़ वाला सांड उन्हें विशेष प्रिय था। गधे और ऊँट का पालन बोझा ढोने के लिए करते थे।

प्रश्न 6.
‘हड़प्पा के लोग एकांतता (Privacy) पर बहुत ध्यान देते थे।’ इस पर अपने विचार प्रकट करें।
उत्तर:
ऐसा भी प्रतीत होता है कि घरों के निर्माण में एकान्तता (Privacy) का ध्यान रखा जाता था। भूमि स्तर (Ground level) पर दीवार में कोई भी खिड़की नहीं होती थी। इसी प्रकार मुख्य प्रवेश द्वार से घर के अन्दर या आंगन में नहीं झांका/देखा जा सकता था।

प्रश्न 7.
हड़प्पा सभ्यता की जानकारी का सबसे प्रमुख स्रोत कौन-सा है?
उत्तर:
यहाँ से प्राप्त हुई सामग्री में सबसे महत्त्वपूर्ण हड़प्पन मुद्राएँ (Seals) हैं। ये एक विशेष पाषाण (Steatite) से बनी हैं तथा इन पर पशुओं (बैल, सांड, हाथी, गैण्डा) के मुद्रांकन (Sealing) हैं। इन पर लिपि के संकेत भी गोदे हुए हैं जिन्हें अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। ये मुद्राएँ सभी स्थलों पर बड़ी संख्या में प्राप्त हुई हैं। इसके अतिरिक्त शहरों, दस्तकारी केन्द्रों, दुर्ग स्थानों आदि से अनेक महत्त्वपूर्ण अवशेष प्राप्त हुए हैं।

प्रश्न 8.
धौलावीरा कहाँ पर है? इसकी दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
धौलावीरा गुजरात में स्थित है। इस नगर की खोज 1967-68 में जे.पी. जोशी द्वारा की गई। यह भारत में हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा नगर पाया गया है। यह नगर विशेष रूप से मनके बनाने के लिए प्रसिद्ध था।

प्रश्न 9.
हड़प्पा सभ्यता की सड़कों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के नगर सड़कों के लिए प्रसिद्ध हैं। सड़कें और गलियाँ सीधी होती थीं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। मोहनजोदड़ो में निचले नगर में मुख्य सड़क 10.5 मीटर चौड़ी थी, इसे ‘प्रथम सड़क’ कहा गया है। अन्य सड़कें 3.6 से 4 मीटर तक चौड़ी थीं।

गलियाँ एवं गलियारे 1.2 मीटर (4 फुट) या उससे अधिक चौड़े थे। घरों के बनाने से पहले ही सड़कों व गलियों के लिए स्थान छोड़ दिया जाता था। उल्लेखनीय है कि मोहनजोदड़ो के अपने लम्बे जीवनकाल में इन सड़कों पर अतिक्रमण (encroachments) या निर्माण कार्य दिखाई नहीं देता।

प्रश्न 10.
सी. ई. तथा बी.सी.ई. का अर्थ लिखें।
उत्तर:
सी.ई. (CE.)-कॉमन एरा (Common Era) आजकल ए.डी. के बजाए सी.ई. का प्रयोग किया जाने लगा है।
बी.सी.ई. (BCE)-बिफोर कॉमन एरा (Before Common Era) आजकल बी.सी. (ई.पू.) के स्थान पर बी.सी ई. का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 11.
हड़प्पा सभ्यता के कोई दो विशेष पहचान बिंदुओं के नाम लिखें।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के दो विशेष पहचान बिंदुओं के नाम निम्नलिखित हैं

  • नगर योजना व चबूतरों पर बने दुर्गों में विशेष भवन तथा समकोण पर काटती सीधी सड़कें, गलियाँ व उत्तम निकासी व्यवस्था।
  • चाक से बने पक्के, भारी व मोटी परत वाले मृदभाण्ड (Pottery)। उन पर काले रंग से पीपल के पत्तों, काटते सर्किल व मोर इत्यादि का रूपांकन (Motifs)।

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प्रश्न 12.
हड़प्पा सभ्यता से जुड़े किन्हीं तीन उत्पादन केंद्रों की पहचान कीजिए।
उत्तर:
बालाकोट (बलूचिस्तान में समुद्रतट के समीप) व चन्हुदड़ो (सिंध में) सीपीशिल्प और चूड़ियों के लिए प्रसिद्ध थे।

  • लोथल (गुजरात) और चन्हुदड़ो में लाल पत्थर (Carmelian) और गोमेद के मनके बनाए जाते थे।
  • चन्हुदड़ो में वैदूर्यमणि के कुछ अधबने मनके मिले हैं जिससे अनुमान लगाया जाता है कि यहाँ पर दूर-दराज से बहुमूल्य पत्थर आयात किया जाता था तथा उन पर काम करके उन्हें बेचा जाता था।

प्रश्न 13.
हड़प्पा सभ्यता की खोज कब हुई? वर्तमान में इसका विस्तार क्षेत्र क्या है?
उत्तर:
पंजाब में रावी नदी के किनारे पर स्थित हड़प्पा पहला नगर था जिसकी 1921 में खुदाई हुई। इसका फैलाव उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने तक और पश्चिम में बलूचिस्तान से लेकर उत्तर:पूर्व में मेरठ तक का था। यह सारा क्षेत्र त्रिभुज के आधार का था। इसका पूरा क्षेत्रफल लगभग 1,299,600 वर्ग किलोमीटर आंका जाता है। उल्लेखनीय है कि हड़प्पा सभ्यता का विस्तार इसकी समकालीन मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यताओं से काफी बड़ा था।

प्रश्न 14.
हड़प्पा सभ्यता के किन्हीं चार प्रमुख नगरों के नाम बताइए।
उत्तर:
हड़प्पा व मोहनजोदड़ो इस सभ्यता के मुख्य नगर हैं जहाँ से नाना प्रकार के शिल्प तथ्य (Artefact) प्राप्त हुए। यह दोनों नगर अब पाकिस्तान में पड़ते हैं। दोनों के बीच 483 किलोमीटर की दूरी है। सिन्ध क्षेत्र में चन्हुदड़ो नगर प्रकाश में आया . है। यह मोहनजोदड़ो से 130 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। एक अन्य नगर गुजरात लोथल, (कठियावाड़) है। इस स्थल पर बंदरगाह के अवशेष भी पाए गए हैं।

इसके अतिरिक्त धौलावीरा (गुजरात के कच्छ क्षेत्र में) उत्तरी राजस्थान में कालीबंगन (काले रंग की चूड़ियाँ), हरियाणा में बनावली व राखीगढ़ी, बलूचिस्तान में सुत्कागेंडोर व सुरकोतदा, रंगपुर (गुजरात) आदि इस सभ्यता के महत्त्वपूर्ण स्थल हैं।

प्रश्न 15.
हड़प्पा सभ्यता के विनाश के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के विनाश के दो कारण निम्नलिखित हैं

1. आर्यों के आक्रमण (Aryan’s Invasions)-व्हीलर ने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। इसके पक्ष में वे आक्रमण के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। प्रथम, हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में सड़कों पर मानव कंकाल पड़े मिले हैं। एक कमरे में 13 स्त्री-पुरुषों . तथा बच्चों के कंकाल मिले हैं। मोहनजोदड़ो के अन्तिम चरण में सड़कों पर तथा घरों में मनुष्यों के कत्लेआम के प्रमाण मिले हैं। एक सँकरी गली को जॉन मार्शल ने डैडमैन लेन का नाम दिया है। ये कंकाल इस बात का संकेत करते हैं कि बाहरी आक्रमणकारियों ‘ (आय) ने हमला किया।

2. बाढ़ और भूकम्प (Flood and Earthquake)-कुछ विद्वानों ने हड़प्पा सभ्यता के पतन का कारण बाढ़ बताया है। मोहनजोदड़ो में मकानों और सड़कों पर गाद (कीचड़युक्त मिट्टी) भरी पड़ी थी। बाढ़ का पानी उतर जाने पर यहाँ के निवासियों ने पहले के मकानों के मलबे पर फिर से मकान और सड़कें बना लीं। बाढ़ आने का सिलसिला कई बार घटा। खुदाई से पता चला है कि 70 फुट गहराई तक मकान बने हुए थे। बार-बार आने वाली बाढ़ों से नगरवासी गरीब हो गए तथा तंग आकर बस्तियों को छोड़कर चले गए।

प्रश्न 16.
दुर्ग क्षेत्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो को हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा शहरी केंद्र माना जाता है। इस सभ्यता की नगर-योजना, गृह निर्माण, मुद्रा, मोहरों आदि की अधिकांश जानकारी मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई है। यह नगर दो भागों में बँटा था। एक भाग में ईंटों से बनाए ऊँचे चबूतरे पर स्थित बस्ती है। इसके चारों ओर ईंटों से बना परकोटा (किला) था, जिसे ‘नगर दुर्ग’ (Citadel) कहा जाता है। ‘नगर दुर्ग’ का क्षेत्रफल निचले नगर से कम था। इसमें पकाई ईंटों से बने अनेक बड़े भवन पाए गए हैं। दुर्ग क्षेत्र में शासक वर्ग के लोग रहते थे। .

प्रश्न 17.
हड़प्पा लिपि पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
हड़प्पा की मोहरों पर चित्रों के माध्यम से लिखावट है। विद्वानों का मानना है कि इन चित्रों के रूपांकनों (Motifs) के द्वारा अर्थ समझाया गया था। इन चित्रों से अनपढ़ भी संकेत से अर्थ समझ जाते होंगे। अधिकांश अभिलेख छोटे हैं। सबसे लम्बे अभिलेख में लगभग 26 चिहन हैं। यह लिपि संभवतः वर्णात्मक (Alphabetical) नहीं थी। इसमें बहुत-से चिह्न ही प्रयोग में होते थे जिनकी संख्या 375 तथा 400 के बीच बताई गई है। ऐसा लगता है कि यह लिपि दाईं-से-बाईं ओर लिखी जाती थी।

प्रश्न 18.
हड़प्पा काल में यातायात के दो साधन क्या थे?
उत्तर:
पकाई मिट्टी से बनी बैलगाड़ियों के खिलौने इस बात का संकेत हैं कि बैलगाड़ियों का प्रयोग सामान का आयात करने के लिए होता था। सिन्धु व सहायक नदियों का भी मार्गों के रूप में प्रयोग होता था। समुद्र तटीय मार्गों का इस्तेमाल भी माल लाने के लिए किया जाता था। संभवतः इसके लिए नावों का प्रयोग होता था।

प्रश्न 19.
सर जॉन मार्शल कौन था? उसकी पुस्तक का नाम लिखें।
उत्तर:
सर जॉन मार्शल भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के महानिदेशक थे। उन्होंने हड़प्पा की खुदाई में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। हड़प्पा सभ्यता की खोज की योजना मार्शल द्वारा ही की गई। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक का नाम है ‘मोहनजोदड़ो एंड द इंडस सिविलाईजेशन’।

प्रश्न 20.
आर.ई.एम. व्हीलर कौन थे? उनकी पुस्तक का नाम लिखें।
उत्तर:
आर.ई.एम. व्हीलर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के महानिदेशक थे। उन्होंने यह पद-भार 1944 में सम्भाला। हड़प्पा सभ्यता के खुदाई में व्हीलर ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक का नाम है-‘माई आर्कियोलॉजिकल मिशन टू इंडिया एंड पाकिस्तान’।

प्रश्न 21.
कनिंघम कौन थे?
उत्तर:
कनिंघम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पहले महानिदेशक थे। उनकी रुचि छठी सदी ईसा पूर्व से चौथी सदी ईसा पूर्व तथा इसके बाद के प्राचीन इतिहास के पुरातत्व में थी। उन्होंने बौद्धधर्म से संबंधित चीनी यात्रियों के वृत्तांतों का प्रारंभिक बस्तियों की पहचान करने में प्रयोग किया। सर्वेक्षण के कार्य में शिल्प तथ्य एकत्र किए। उनका रिकॉर्ड रखा तथा अभिलेखों का अनुवाद भी किया।

प्रश्न 22.
हड़प्पा लोगों द्वारा शव के अंतिम संस्कार के दो तरीके बताइए। अथवा हड़प्पाकालीन शवाधानों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
हड़प्पा लोगों द्वारा शव के अंतिम संस्कार के दो तरीके इस प्रकार हैं

  • हड़प्पा में भी मृतकों के अन्तिम संस्कार का सबसे ज़्यादा प्रचलित तरीका दफनाना ही था। शव सामान्य रूप से उत्तर:दक्षिण दिशा में रखकर दफनाते थे। कब्रों में कई प्रकार के आभूषण तथा अन्य वस्तुएं भी प्राप्त हुई हैं।
  • कालीबंगन में कब्रों में कंकाल नहीं हैं। वहाँ छोटे-छोटे वृत्ताकार गड्ढों में राखदानियाँ तथा मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए हैं। लोथल में कब्रों में साथ-साथ दफनाए गए महिला और पुरुष मुर्दो के कंकालों के जोड़े मिले हैं।

प्रश्न 23.
भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर उन तीन क्षेत्रों के नाम लिखें जिनसे हड़प्पन व्यापार होता था।
उत्तर:
1. मगान (Magan)-ओमान की खाड़ी पर स्थित रसाल जनैज (Rasal-Junayz) भी व्यापार के लिए महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह थी। सुमेर के लोग ओमान को मगान (Magan) के नाम से जानते थे। मगान में हड़प्पा सभ्यता से जुड़ी वस्तुएँ; जैसे मिट्टी का मर्तबान, बर्तन, इन्द्रगोप के मनके, हाथी-दांत व धातु के कला तथ्य मिले हैं।

2. दिलमुन (Dilmun)-फारस की खाड़ी में भी हड़प्पाई जहाज पहुँचते थे। दिलमुन (Dilmun) तथा पास के तटों पर जहाज जाते थे। दिलमुन से हड़प्पा के कलातथ्य तथा लोथल से दिलमुन की मोहरें प्राप्त हुई हैं।

3. मेसोपोटामिया (Mesopotamain)-वस्तुतः दिलमुन (बहरीन के द्वीपों से बना) मेसोपोटामिया का प्रवेश द्वार था। मेसोपोटामिया के लोग सिंधु बेसिन (Indus Basin) को मेलुहा (Meluhha) के नाम से जानते थे (कुछ विद्वानों के मतानुसार मेलुहा सिंधु क्षेत्र का बिगड़ा हुआ नाम है)। मेसोपोटामिया के लेखों (Texts) में मेलुहा से व्यापारिक संपर्क का उल्लेख है।

प्रश्न 24.
सिन्धु घाटी की सभ्यता की लिपि की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
सिन्धु घाटी की सभ्यता की लिपि की कोई दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • सिन्धु घाटी की मोहरों पर चित्रों के माध्यम से लिखावट है। इन चित्रों से अनपढ़ भी संकेत से अर्थ समझ लेते होंगे।
  • यह लिपि संभवत: वर्णात्मक नहीं थी। इसमें लगभग 375 से 400 चिह्नों का प्रयोग होता होगा। यह लिपि दाईं से बाईं ओर. लिखी जाती थी।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 25.
हड़प्पा सभ्यता का सबसे पहले खोजा गया स्थल कौन था? इसकी दुर्दशा का क्या कारण था?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का सबसे पहले उत्खनन तथा खोजा गया स्थल हड़प्पा था। इसकी खुदाई 1921 में दयाराम साहनी ने की थी। इस स्थल की दुर्दशा का मुख्य कारण इस स्थल से ईंटों की चोरी था। ईंटें चुराने वालों ने इसे बुरी तरह से नष्ट कर दिया था। इससे यहाँ की बहुत-सी संरचनाएँ नष्ट हो गईं।

प्रश्न 26.
मोहनजोदड़ो के नियोजन पर प्रकाश डालने वाले कुछ साक्ष्य बताइए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो की वास्तुकला के कई लक्षण इस बात के साक्ष्य हैं कि यह एक नियोजित नगर था

  • नगर का दुर्ग क्षेत्र तथा निचले नगर में विभाजन,
  • समकोण काटती सड़क व गलियाँ,
  • उत्तम जल निकास प्रणाली,
  • समान आकार की ईंटों का प्रयोग,
  • विशाल भवनों का वास्तु,
  • घरों का निश्चित योजना से निर्माण।

प्रश्न 27.
फयॉन्स क्या था? इससे बने पात्र महंगे क्यों थे?
उत्तर:
फ़यॉन्स बालू (घिसी हुए रेत), रंग तथा किसी चिपचिपे पदार्थ के मिश्रण को पकाकर बनाया गया एक प्रकार का पदार्थ था। इसके पात्र चमकदार होते थे। इससे बने छोटे पात्र कीमती इस कारण माने जाते थे कि इन्हें बनाना कठिन होता था।

प्रश्न 28.
नागेश्वर तथा बालाकोट कहाँ थे और क्यों प्रसिद्ध थे?
उत्तर:
नागेश्वर गुजरात तथा बालाकोट बलूचिस्तान में स्थित थे। ये दोनों बस्तियाँ समुद्र तट पर बसी हुई थी। ये दोनों स्थल शंख से वस्तुएँ बनाने के विशिष्ट केंद्र थे। इसका कारण यह था कि यह समुद्र तट पर थे तथा यहाँ पर शंख पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध थे। शंख से चूड़ियाँ, पच्चीकारी की वस्तुएँ आदि बनाई जाती थीं।

प्रश्न 29.
मोहनजोदड़ों के घरों की कोई दो मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:मोहनजोदड़ों के घरों की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • मोहनजोदड़ों के ज्यादातर घरों में आंगन होता था और चारों तरफ कमरे बने होते थे।
  • मोहनजोदड़ों के लगभग सभी घरों में कमरे होते थे।

लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हड़प्पा सभ्यता के नामकरण पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
प्रारंभ में विद्वानों ने इस सभ्यता को “सिंधु घाटी की सभ्यता” का नाम दिया था क्योंकि शुरू में बहुत-सी बस्तियाँ सिंधु घाटी और उसकी सहायक नदियों के मैदानों में पाई गई थीं। परंतु बाद में इस सभ्यता से जुड़े अ राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा तथा गुजरात में स्थित थे। अतः इस सभ्यता को केवल सिंधु घाटी की सभ्यता कहना सार्थक नहीं लगा। वर्तमान में पुरातत्ववेत्ता इसे “हड़प्पा की सभ्यता” कहना पसंद करते हैं।

यह नामकरण इसलिए उचित है कि इस संस्कृति से संबंधित सर्वप्रथम खुदाई हड़प्पा में हुई थी। अन्य स्थानों की खुदाई से भी सभ्यता के वही लक्षण प्राप्त हुए जो हड़प्पा से प्राप्त हुए थे। यह भी उल्लेखनीय है कि पुरातत्व-विज्ञान में यह परिपाटी है कि जब किसी प्राचीन सभ्यता या संस्कृति का वर्णन किया जाता है तो उस स्थान के आधुनिक प्रचलित नाम पर उस सभ्यता का नाम रखा जाता है, जहाँ से उसके अस्तित्व का पता चलता है। इसलिए हड़प्पा को आधार मानकर इसे ‘हड़प्पा सभ्यता’ नामकरण देना उपयुक्त है।

प्रश्न 2.
हड़प्पा सभ्यता की पुरातत्वविदों की जानकारी के स्रोतों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की सारी जानकारी पुरातत्वविदों को इस सभ्यता से जुड़ी बस्तियों (नगरों) से प्राप्त विशेष शिल्प तथ्यों (Artefacts) से प्राप्त हुई है। उत्खनन से प्राप्त हुई सामग्री में सबसे महत्त्वपूर्ण हड़प्पन मुद्राएँ (Seals) हैं। ये एक विशेष पाषाण (Steatite) से बनी हैं तथा इन पर पशुओं (बैल, सांड, हाथी, गैण्डा) के मुद्रांकन हैं। इन पर लिपि के संकेत भी गोदे हुए हैं जिन्हें अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। ये मुद्राएँ सभी स्थलों पर बड़ी संख्या में प्राप्त हुई हैं। इसके अतिरिक्त शहरों, दस्तकारी केन्द्रों दुर्ग स्थानों आदि से अनेक महत्त्वपूर्ण अवशेष प्राप्त हुए हैं। कच्ची और पक्की ईंटों से बने घर और घरों में कुएँ मिले हैं।

ऊँचे तथा निचले स्थलों (दो भागों में) पर बसे नगर एवं नगरों में अन्नागार और बड़ी-बड़ी इमारतें हैं। मोटे तथा लाल मिट्टी के अलंकृत बर्तन (मृदभाण्ड) तथा मिट्टी की मुख्य मूर्तियाँ पाई गई हैं। तांबे तथा कांस्य के औजार, मूर्तियाँ तथा बर्तन हैं। पत्थर के बाट और कीमती पत्थरों के मनके हैं। समुद्री शैल तथा हाथी-दाँत के गहने भी हैं। इसके अतिरिक्त कांस्य, सोना तथा चाँदी के आभूषण भी मिले हैं। इस प्रकार पुरातत्वविदों की जानकारी के प्रमुख स्रोत हैं-मुद्राएँ, मुद्रांक, नगर दुर्ग, निचले नगर, नगरों की बसावट, मकान, विशाल इमारतें, ईंटें, मृदभाण्ड, तौल, बर्तन, औजार, मनके, गहने, मूर्तियाँ इत्यादि।

प्रश्न 3.
हड़प्पा के लोगों के जीविका निर्वाह के तरीकों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के आरंभिक चरण में जीविका निर्वाह के तरीके विकसित हो रहे थे। वे अनेक फसलें उगाने लगे थे। इनसे उन्हें खाद्यान्न प्राप्त होते थे। वे कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पाद, जानवरों (मछली सहित) से भोजन प्राप्त करने में सफल थे। अनाज के जले दानों तथा बीजों की खोज से पुरातत्वविदों ने हड़प्पाई लोगों की आहार संबंधी आदतों के बारे में जानकारी प्राप्त की है। पुरावनस्पतिज्ञों के अनुसार हड़प्पाई लोग गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, तिल आदि अनाज के दानों से परिचित थे। बाजरे के दाने गुजरात से मिले। चावल के भी प्रमाण मिले हैं।

हड़प्पा स्थलों से भेड़, बकरी, भैंस, सूअर आदि की हड्डियाँ मिली हैं। पुरा-प्राणिविज्ञानियों के अनुसार ये सभी जानवर पालतू थे। संभवतः वे इनसे दूध तथा मांस प्राप्त करते थे। इसके अलावा जंगली सूअर (वराह), हिरणं तथा घड़ियाल की हड्डियाँ भी मिली हैं। मुर्गे की हड्डियों के प्रमाण भी हैं। कृषि उपज बढ़ाने के लिए खेतों को जोतते होंगे। हल के प्रमाण बनावली तथा जुते हुए खेत के प्रमाण कालीबंगन से मिले हैं। सिंचाई के प्रमाण मिले हैं। कुएँ, जलाशय, झीलों, नहरों से सिंचाई की जाती होगी। यद्यपि सिंचाई के कम ही प्रमाण मिले हैं।

प्रश्न 4.
मोहनजोदड़ो की सड़कों और गलियों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो की सड़कें व गलियाँ पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार बनाई गई थीं। सड़कें और गलियाँ सीधी होती थीं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। सड़कें पूर्व से पश्चिम या उत्तर से दक्षिण दिशा में बिछी हुई थीं। इससे नगर कई भागों में बंट जाते थे। मोहनजोदड़ों में मुख्य सड़क 10.5 मीटर चौड़ी थी, इसे ‘प्रथम सड़क’ कहा गया है। इस ‘प्रथम सड़क’ पर एक साथ पहिए वाले सात वाहन गुजर सकते थे।

अन्य सड़कें 3.6 से 4 मीटर तक चौड़ी थीं। गलियाँ एवं गलियारे 1.2 मीटर (4 फुट) या । उससे अधिक चौड़े थे। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सड़कों, गलियों तथा नालियों की व्यवस्था लागू करने तथा निरंतर देखभाल के लिए नगरपालिका या नगर प्राधिकरण जैसी कोई प्रशासनिक व्यवस्था रही होगी। स्पष्ट है कि नगर में सड़कें व गलियाँ एक योजना के अनुसार बनाई गई थीं। मुख्य मार्ग उत्तर से दक्षिण की ओर जाते थे। अन्य सड़कें और गलियाँ मुख्य मार्ग को समकोण पर काटती थीं जिससे नगर वर्गाकार/आयताकार खंडों में विभाजित होता था।

प्रश्न 5.
‘मोहनजोदड़ो एक नियोजित नगर था।’ इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
इस बात के पुख्ता पुरावशेष हैं कि मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहरी केंद्र था इसको हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा शहरी केंद्र माना जाता है। इस सभ्यता की नगर-योजना, गृह निर्माण, मुद्रा, मोहरों आदि की अधिकांश जानकारी मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई है। यह नगर दो भागों में बँटा था। एक भाग में इंटों से बनाए ऊँचे चबूतरे पर स्थित बस्ती है। इसके चारों ओर ईंटों से बना परकोटा (किला) था, जिसे ‘नगर दुर्ग’ (Citadel) कहा जाता है।

‘नगर दुर्ग’ का क्षेत्रफल निचले नगर से कम था। इसमें पकाई ईंटों से बने अनेक बड़े भवन पाए गए हैं। दुर्ग क्षेत्र में शासक वर्ग के लोग रहते थे। निचले नगर के चारों ओर भी दीवार थी। इस क्षेत्र में भी कई भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था। ये चबूतरे भवनों की आधारशिला (Foundation) का काम करते थे।

दुर्ग क्षेत्र के निर्माण तथा निचले क्षेत्र में चबूतरों के निर्माण के लिए विशाल संख्या में श्रमिकों को लगाया गया होगा। इस नगर की यह भी विशेषता रही होगी कि पहले प्लेटफार्म या चबूतरों का निर्माण किया जाता होगा तथा बाद में इस तय सीमित क्षेत्र में निर्माण कार्य किया जाता होगा। इसका अभिप्राय यह हुआ कि पहले योजना बनाई जाती होगी तथा बाद में उसे योजनानुसार लागू किया जाता था। नगर की पूर्व योजना (Pre-planning) का पता ईंटों से भी लगता है। ये ईंटें पकाई हुई (पक्की) तथा धूप में सुखाई हुई होती थीं। इनका मानक (1:2:4) आकार था। इसी मानक आकार की ईंटें हड़प्पा सभ्यता के अन्य नगरों में भी प्रयोग हुई हैं।
HBSE 12th Class History Important Questions chapter 1 Img 1

मोहनजोदड़ो का नक्शा हुई हैं। मोहनजोदड़ो के एक नियोजित नगर होने का प्रमाण वहाँ पर सड़कों तथा नालियों की सुव्यवस्था का प्राप्त होना भी है। गृह स्थापत्य से भी स्पष्ट है कि पहले नक्शे बनाए जाते थे तथा बाद में घर का निर्माण किया जाता था।

प्रश्न 6.
हड़प्पा सभ्यता की निकास व्यवस्था (नालियों की व्यवस्था) के बारे में आप क्या जानते हैं? क्या यह नगर योजना की ओर संकेत करती है?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के शहरों की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक थी- ध्यानपूर्वक नियोजित जल निकास व्यवस्था (नालियों की व्यवस्था)। नियोजित और व्यापक नालियों की व्यवस्था हमें अन्य किसी भी समकालीन सभ्यता के नगरों में प्राप्त नहीं होती है। प्रत्येक घर में छोटी नालियाँ होती थीं जो घर के पानी को बाहर गली या सड़क के किनारे बनी नाली में पहुँचाती थीं। प्रमुख सड़कों एवं गलियों के साथ 1 से 2 फुट गहरी ईंटों तथा पत्थरों से ढकी नालियाँ होती थीं।

मुख्य नालियों में कचरा छानने की व्यवस्था भी होती थी। नालियों में ऐसी व्यवस्था करने के लिए बड़े गड्ढे (शोषगत) होते थे, जो पत्थरों या ईंटों से ढके होते थे जिन्हें सफाई करने के लिए आसानी से हटाया और वापस रख दिया जाता था। मुख्य नालियाँ एक बड़े नाले के साथ जुड़ी होती थीं जो सारे गंदे पानी को नदी में बहा देती थीं। हड़प्पाकालीन नगरों की जल निकास प्रणाली पर टिप्पणी करते हुए ए०एल० बाशम ने लिखा है, नालियों की अद्भुत व्यवस्था सिन्धु घाटी के लोगों की महान सफलताओं में से एक थी।

रोमन सभ्यता के अस्तित्व में आने तक किसी भी प्राचीन सभ्यता की नाली व्यवस्था इतनी अच्छी नहीं थी।” जल निकासी की यह व्यवस्था केवल बड़े-बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं थी वरन् छोटी बस्तियों में भी इसके प्रमाण मिले हैं। उदाहरण के लिए लोथल में भी पक्की ईंटों की नालियां हैं। नालियों के विषय में मैके ने लिखा है, “निश्चित रूप से यह अब तक खोजी गई सर्वथा संपूर्ण प्राचीन प्रणाली है। नालियों की व्यवस्था से यह स्पष्ट संकेत होता है कि नगर योजनापूर्वक बनाए जाते थे।”

प्रश्न 7.
हड़प्पा सभ्यता के गृह स्थापत्य पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखि
उत्तर:
मोहनजोदड़ो से उपलब्ध आवासीय भवनों के नमूनों से सभ्यता के गृह स्थापत्य का अनुमान लगाया जाता है। घरों की बनावट में समानता पाई गई है। ज्यादातर घरों में आंगन (Courtyard) होता था और इसके चारों तरफ कमरे बने होते थे। ऐसा लगता है कि आंगन परिवार की गतिविधियों का केंद्र था। उदाहरण के लिए गर्म और शुष्क मौसम में आंगन में खाना पकाने व कातने जैसे कार्य किए जाते थे।

ऐसा भी प्रतीत होता है कि घरों के निर्माण में एकान्तता (Privacy) का ध्यान रखा जाता था। भूमि स्तर (Ground level) पर दीवार में कोई भी खिड़की नहीं होती थी। इसी प्रकार मुख्य प्रवेश द्वार से घर के अन्दर या आंगन में नहीं झांका/देखा जा सकता था। बड़े घरों में कई-कई कमरे, रसोईघर, शौचालय एवं स्नानघर होते थे। कई मकान तो दो मंजिले थे तथा ऊपर पहुंचने के लिए सीढ़ियाँ बनाई जाती थीं। मोहनजोदड़ो में प्रायः सभी घरों में कुएँ होते थे।
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प्रश्न 8.
शवाधान के आधार पर सभ्यता में पाई गई चित्र : एक घर का स्थापत्य, मोहनजोदड़ो सामाजिक भिन्नता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में शवाधानों में पाए गए अवशेषों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि इस सभ्यता में सामाजिक तथा आर्थिक भिन्नताएँ मौजूद थीं। आपको जानकारी होगी कि मिस्र के विशाल पिरामिड वस्तुतः वहाँ के राजाओं की कबें हैं। इन कब्रों में राजाओं के मृत शरीर हैं तथा इनको सोने या अन्य धातुओं के ताबूत में रखा जाता था। उनके साथ बहुमूल्य सामग्री, वस्तुएँ और धन-संपत्ति भी रखी जाती थी।

हड़प्पा की सभ्यता मिस्र की सभ्यता के समकालीन थी। हड़प्पा में भी मृतकों के अन्तिम संस्कार का सबसे ज़्यादा प्रचलित तरीका दफनाना ही था। शव सामान्य रूप से उत्तर:दक्षिण दिशा में रखकर दफनाते थे। कब्रों में कई प्रकार के आभूषण तथा अन्य वस्तुएं भी प्राप्त हुई हैं। जैसे कुछ कब्रों में ताँबे के दर्पण, सीप और सुरमे की सलाइयाँ पाई गई हैं। कुछ शवाधानों में बहुमूल्य आभूषण और अन्य सामान मिले हैं। कुछ कब्रों में बहुत ही सामान्य सामान मिला है। हड़प्पा की एक कब्र में ताबूत भी मिला है।

यहाँ पर एक कब्र में एक आदमी की खोपड़ी के पास से एक आभूषण मिला है जो शंख के तीन छल्लों, जैस्पर (उपरत्न) के मनकों और सैकड़ों छोटे-छोटे मनकों से बनाया गया है। कालीबंगन में कब्रों में कंकाल नहीं हैं। वहाँ छोटे-छोटे वृत्ताकार गड्ढों में राखदानियाँ तथा मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए हैं। शवाधानों की बनावट से भी विभेद प्रकट होता है। कुछ कळे सामान्य बनी हैं तो कुछ कब्रों में ईंटों की चिनाई की गई है। ऐसा लगता है कि चिनाई वाली कā उच्चाधिकारी वर्ग अथवा अमीर लोगों की हैं। सारांश में हम कह सकते हैं कि शवाधानों से प्राप्त सामग्री से हमें हड़प्पा के समाज की सन्तोषजनक जानकारी अवश्य प्राप्त हो जाती है।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 9.
हड़प्पा सभ्यता के स्थलों से प्राप्त विलासिता की वस्तुओं के आधार पर सामाजिक विभेदन का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के नगरों से प्राप्त कलातथ्यों (Artefacts) से भी सामाजिक विभेदन का अनुमान लगाया जाता है। इन कलातथ्यों को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जाता है-पहले ऐसे अवशेष थे जो दैनिक उपयोग (Utility) के थे तथा दूसरे विलासिता  (Luxury) से जुड़े थे। दैनिक उपयोग के सामान में चक्कियाँ, बर्तन, सुइयाँ, झाँवा आदि को शामिल किया जा सकता है। इन्हें मिट्टी या पत्थर से आसानी से बनाया जा सकता था।

सामान्य उपयोग की ये वस्तुएं हड़प्पा सभ्यता के सभी स्थलों से प्राप्त हुई हैं। दूसरा विलासिता की वस्तुओं में महँगी तथा दुर्लभ वस्तुएँ शामिल थीं। इनका निर्माण बाहर से प्राप्त सामग्री/पदार्थों से या जटिल तरीकों द्वारा किया जाता था। उदाहरण के लिए फ़यॉन्स (घिसी रेत या सिलिका/बालू रेत में रंग और गोंद मिलाकर पकाकर बनाए बर्तन) के छोटे बर्तन इस श्रेणी में रखे जा सकते हैं। ये फयॉन्स से बने छोटे-छोटे पात्र संभवतः सुगन्धित द्रवों को रखने के लिए प्रयोग में लाए जाते थे।

हड़प्पा के कुछ पुरास्थलों से सोने के आभूषणों की निधियाँ (पात्रों में जमीन में दबाई हुई) भी मिली हैं। उल्लेखनीय है कि जहाँ दैनिक उपयोग का सामान हड़प्पा की सभी बस्तियों में मिला है, वहीं विलासिता का सामान मुख्यतः मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे बड़े नगरों में ही मिला है जो संभवतः राजधानियाँ भी थीं। उदाहरण के लिए कालीबंगन जैसी छोटी-छोटी बस्तियों से फ़यॉन्स (Faience) से बने कोई भी पात्र नहीं मिले हैं। इस सबका अभिप्राय है कि विलासिता से संबंधित या महँगा सामान अमीर वर्ग के लोगों के पास होता था तथा मुख्यतः बड़े नगर में ही होता था।

प्रश्न 10.
मोहरों व मुद्रांकनों पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
हल्की चमकदार सतह वाली सफेद रंग की आकर्षक मोहरें (Seals) हड़प्पा सभ्यता की अति महत्त्वपूर्ण कलातथ्य हैं। सेलखड़ी की वर्गाकार व आयताकार मुद्राएँ सभी स्थलों से मिली हैं। अकेले मोहनजोदड़ो में 1200 मुद्राएँ प्राप्त हुई हैं। इन पर लेख भी अंकित थे। कूबड़ वाला बैल, कूबड़ रहित बैल, सिंह, हाथी, गैंडे आदि पशु इन मुद्राओं पर चित्रित हैं। पशुपति वाली मुद्रा सबसे अधिक उल्लेखनीय है।

इतने बड़े पैमाने पर मुद्रा तथा मुद्रांकनों की प्राप्ति इस तथ्य की ओर संकेत करती है कि इन मोहरों और मुद्रांकनों का प्रयोग लम्बी दूरी के साथ व्यापार संपर्कों को सुविधाजनक बनाने के लिए किया जाता था। सामान से भरे थैले के मुँह को रस्सी से बाँधकर या सिलकर उन पर गीली मिट्टी लगाई जाती थी। इसके बाद इस पर मुद्रांकन छापा जाता था जिसका संबंध सामान की सही व सुरक्षित पहुँच तथा भेजने वाले की पहचान से होता था।
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प्रश्न 11.
माप-तौल के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की एक अन्य विशेषता माप और तौल व्यवस्था में समरूपता का पाया जाना था। दूर-दूर तक फैली बस्तियों में एक ही प्रकार के बाट-बट्टे पाए गए हैं। हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने तौल की इस प्रणाली से आपसी व्यापार और विनिमय को नियन्त्रित किया होगा। ये बाट (तौल) निम्न मूल्यांकों (Lower Denominations) में द्विचर (binary) प्रणाली के अनुसार हैं-1, 2, 4, 8, 16, 32……… से 12,800 तक। ऊपरी मूल्यांकों (Higher Denominations) में दशमलव प्रणाली का अनुसरण किया जाता था।

ये बाट चकमकी पत्थर, चूना पत्थर, सेलखड़ी आदि से बने होते थे। यह आकार में घनाकार या गोलाकार होते थे। छोटे बाट भी थे जिनका प्रयोग संभवतः आभूषण व मनके तोलने के लिए किया जाता था। धातु के पैमाने जैसे कला तथ्य भी पाए गए हैं। जिनकी लम्बाई 37.6 सेंटीमीटर की एक फुट की इकाई पर आधारित होती थी। ऐसे डंडे भी पाए गए हैं जिन पर माप के निशान लगे हुए हैं। इनमें एक डंडा कांसे का भी है।
HBSE 12th Class History Important Questions chapter 1 Img 3

प्रश्न 12.
पुरातत्वविद् एक उत्पादन केंद्र की पहचान कैसे करते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
1. पहचान का तरीका-पुरातत्वविद् किसी उत्पादन केंद्र को पहचानने में कुछ चीजों का प्रमाण के रूप में सहारा लेते हैं। पत्थर के टुकड़ों, पूरे शंखों, सीपी के टुकड़ों, तांबा, अयस्क जैसे कच्चे माल, अपूर्ण वस्तुओं, छोड़े गए माल और कूड़ा-कर्कट आदि चीजों से उत्पादन केंद्रों की पहचान की जाती है। कारीगर वस्तुओं को बनाने के लिए पत्थर को काटते समय या शंख-सीपी को काटते हुए अनुपयोगी सामग्री छोड़ देते थे। कार्यस्थलों (Work Shops) से प्राप्त ऐसी सामग्री के ढेर होने पर अनुमान लगाया जाता है कि वह स्थल उत्पादन केंद्र रहा होगा।

2. प्रमुख उत्पादन केंद्र

  • बालाकोट (बलूचिस्तान में समुद्रतट के समीप) व चन्हुदड़ो (सिंध में) सीपीशिल्प और चूड़ियों के लिए प्रसिद्ध थे।
  • लोथल (गुजरात) और चन्हुदड़ो में लाल पत्थर (Carnelian) और गोमेद के मनके बनाए जाते थे।
  • चन्हुदड़ो में वैदूर्यमणि के कुछ अधबने मनके मिले हैं जिससे अनुमान लगाया जाता है कि यहाँ पर दूर-दराज से बहुमूल्य पत्थर आयात किया जाता था तथा उन पर काम करके उन्हें बेचा जाता था।

प्रश्न 13.
हड़प्पाई लोगों द्वारा माल प्राप्ति की क्या नीतियाँ थीं?
उत्तर:
हड़प्पाई शिल्प उत्पादों के लिए अनेक प्रकार के कीमती व अर्द्ध कीमती पत्थरों, ताँबा, जस्ता, कांसा, सोना, चाँदी, टिन, लकड़ी, कपास आदि सामान की जरूरत पड़ती थी। इसके लिए उन्हें भारतीय उपमहाद्वीप तथा इससे दूरस्थ क्षेत्रों से माल प्राप्त करना पड़ता था। इसके लिए निम्नलिखित नीतियाँ अपनाई जाती थीं

1. बस्तियों की स्थापना-सिन्ध, बलूचिस्तान के समुद्रतट, गुजरात, राजस्थान तथा अफ़गानिस्तान तक के क्षेत्र से कच्चा माल  प्राप्त करने के लिए उन्होंने बस्तियों का निर्माण किया हुआ था। इन क्षेत्रों में प्रमुख बस्तियां थीं-नागेश्वर (गुजरात), बालाकोट, शोर्तुघई (अफगानिस्तान), लोथल आदि। नागेश्वर और बालाकोट से शंख प्राप्त करते थे। शोर्तुघई (अफगानिस्तान) से कीमती लाजवर्द मणि (नीलम) आयात, करते थे। लोथल के संपर्कों से भड़ौच (गुजरात) में पाई जाने वाली इन्द्रगोपमणि (Carnelian) मँगवाई जाती थी। इसी प्रकार उत्तर गुजरात व दक्षिण राजस्थान क्षेत्र से सेलखड़ी का आयात करते थे।

2. अभियानों से माल प्राप्ति-हड़प्पा सभ्यता के लोग उपमहाद्वीप के दूर-दराज क्षेत्रों तक अभियानों (Expeditions) का आयोजन कर कच्चा माल प्राप्त करने का तरीका भी अपनाते थे। इन अभियानों से वे. स्थानीय क्षेत्रों के लोगों से संपर्क स्थापित करते थे। इन स्थानीय लोगों से वे वस्तु विनिमय से कच्चा माल प्राप्त करते थे। ऐसे अभियान भेजकर राजस्थान के खेतड़ी क्षेत्र से तांबा तथा दक्षिण भारत में कर्नाटक क्षेत्र से सोना प्राप्त करते थे। उल्लेखनीय है कि इन क्षेत्रों से हड़प्पाई पुरा वस्तुओं तथा कला तथ्यों के साक्ष्य मिले हैं। पुरातत्ववेत्ताओं ने खेतड़ी क्षेत्र से मिलने वाले साक्ष्यों को गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति का नाम दिया है जिसके विशिष्ट मृदभांड हड़प्पा के मृदभांडों से भिन्न हैं।

3. दूरस्थ व्यापार-हड़प्पावासी समुद्री मार्गों से दूरस्थ प्रदेश से व्यापार का आयोजन करते थे। इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि हड़प्पा के व्यापारी मगान, दिलमुन तथा मेसोपोटामिया से व्यापार कर ताँबा, सोना, चाँदी, कीमती लकड़ी आदि आयात करते थे।

प्रश्न 14.
हड़प्पाई ‘रहस्यमय लिपि’ पर टिप्पणी करें।
उत्तर:
हड़प्पा की मोहरों पर चित्रों के माध्यम से लिखावट है। मुद्राओं के अतिरिक्त ताम्र उपकरणों व पट्टिकाओं, मिट्टी की लघु पट्टिकाओं, कुल्हाड़ियों, मृदभांडों आभूषणों, अस्थि छड़ों और एक प्राचीन सूचनापट्ट पर भी हड़प्पा लिपि के कई नमूने प्राप्त हुए हैं। उल्लेखनीय है कि यह लिपि अभी तक पढ़ी न जा सकने के कारण रहस्य बनी हुई है। अतः यह नहीं कहा जा सकता कि हड़प्पा निवासी कौन-सी भाषा बोलते.थे और उन्होंने क्या लिखा। विद्वानों का मानना है कि इन चित्रों के रूपाकंनों (Motifs) के द्वारा अर्थ समझाया गया था। इन चित्रों से अनपढ़ भी संकेत से अर्थ समझ जाते होंगे।
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अधिकांश अभिलेख छोटे हैं। सबसे लम्बे अभिलेख में लगभग 26 चिहन हैं। यह लिपि संभवतः वर्णात्मक (Alphabetical) नहीं थी। इसमें बहुत-से चिह्न ही प्रयोग में होते थे जिनकी संख्या 375 तथा 400 के बीच बताई गई है। ऐसा लगता है कि यह लिपि दाईं-से-बाईं ओर लिखी जाती थी। ऐसा अनुमान इसलिए भी लगाया जाता है कि कुछ मोहरों पर दाईं तरफ चौड़ा अंतराल (Space) है और बाईं तरफ काफी कम अंतराल है।

प्रश्न 15.
हड़प्पा सभ्यता की खोज कैसे हुई?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के प्रकाश में आने की कहानी रोचक है। इस सभ्यता को खोज निकालने में अनेक व्यक्तियों का योगदान है। 1826 में चार्ल्स मेसेन हड़प्पा गाँव में आया तथा उसने यहाँ किसी प्राचीन स्थल के विद्यमान होने का सबसे पहले उल्लेख किया। इसी प्रकार 1834 में बर्नेस ने सिन्धु के किनारे किसी ध्वस्त किले के होने की बात की। 1853 तथा पुनः 1856 में कनिंघम (भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक) ने हड़प्पा की यात्रा की तथा वहाँ टीले के नीचे किसी प्राचीन सभ्यता के दबे होने की सम्भावना जताई। कनिंघम ने उक्त स्थल की सीमित खुदाई भी करवाई तथा प्राप्त अवशेषों (मोहरों) एवं उत्खनन स्थल मानचित्र का प्रकाशन भी किया।

1886 में एम०एल० डेम्स एवं 1912 में पलीट ने भी हड़प्पाकालीन कुछ मुद्राओं के चित्र प्रकाशित किए। 1920 के प्रारम्भिक दशक में सिन्ध में जब रेलवे लाईन बिछाई जा रही थी तब खुदाई के दौरान अज्ञात सभ्यता के अवशेष प्रकाश में आए। 1921 में दयाराम साहनी द्वारा हड़प्पा और 1922 में राखाल दास बनर्जी द्वारा मोहनजोदड़ो में किए गए खुदाई कार्यों से इस सभ्यता का अस्तित्व निर्णायक रूप से सिद्ध हो गया।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तत्कालीन महानिदेशक सर जॉन मार्शल ने इस उत्खनन में रुचि ली तथा 1924 में लंदन से प्रकाशित एक साप्ताहिक पत्र में इस सभ्यता की खोज के बारे में घोषणा की। इससे पुरातत्वविदों में सनसनी फैल गई। इन उत्खननों से यह बात उभरकर आई कि यह एक विशिष्ट सभ्यता थी। जिसके अज्ञात निर्माताओं ने नगरों का निर्माण किया। यह सभ्यता मिस्र एवं मेसोपोटामिया की सभ्यताओं के समकालीन थी।

प्रश्न 16.
खोज में कनिंघम के प्रयासों तथा उसकी उलझन पर नोट लिखें।
उत्तर:
कनिंघम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पहले महानिदेशक थे। 1853 तथा पुनः 1856 में कनिंघम ने हड़प्पा की यात्रा की तथा वहाँ टीले के नीचे किसी प्राचीन सभ्यता के दबे होने की संभावना जताई। उन्होंने वहाँ पर कुछ खुदाई भी करवाई। इसकी रिपोर्ट तथा एक मोहर का चित्र भी छापा। परंतु वे हड़प्पा के स्वतंत्र अस्तित्व को नहीं आंक सके। उनकी रुचि छठी सदी ईसा पूर्व से चौथी सदी ईसा पूर्व तथा इसके बाद के प्राचीन इतिहास के पुरातत्व में थी। उन्होंने बौद्धधर्म से संबंधित चीनी यात्रियों के वृत्तांतों का प्रारंभिक बस्तियों की पहचान करने में प्रयोग किया। सर्वेक्षण के कार्य में शिल्प तथ्य एकत्र किए। उनका रिकॉर्ड रखा। कनिंघम ने उपलब्ध कलातथ्यों के सांस्कृतिक अर्थों को भी समझने का प्रयास किया।

परंतु हड़प्पा जैसे स्थल की इन चीनी वृत्तांतों में न तो विवरण था, न ही इन नगरों की ऐतिहासिकता की कोई जानकारी। अतः यह नगर ठीक प्रकार से उनकी खोजों के दायरे में नहीं समा पा रहे थे। वस्तुतः वे यहाँ से प्राप्त कला-तथ्यों की पुरातनता नगा पाए। उदाहरण के लिए एक अंग्रेज ने कनिंघम को हड़प्पा की एक मोहर दी। कनिंघम ने अपनी रिपोर्ट में इसका चित्र भी दिया परंतु वह इसे इसके समय-संदर्भ में रख पाने में असफल रहे। इसका कारण यह रहा होगा कि अन्य विद्वानों की भांति वह भी यह मानते थे कि भारत में पहली बार नगरों का अभ्युदय गंगा-घाटी में 6 वीं, 7वीं सदी ई०पू० से हुआ। अतः यह आश्चर्य की बात नहीं है कि वे हड़प्पा के महत्त्व को नजरअंदाज कर गए।

प्रश्न 17.
हड़प्पा की खोज में सर जॉन मार्शल के योगदान का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1921 में दयाराम साहनी ने हड़प्पा स्थल से अनेक मोहरें उत्खनन में प्राप्त की। ऐसा ही कार्य 1922 में राखालदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो में किया। दोनों स्थलों की मोहरों में समानता थी। इससे यह निष्कर्ष निकाल पुरातात्विक संस्कृति का हिस्सा है। इन खोजों के आधार पर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के तत्कालीन महानिदेशक सर जॉन मार्शल ने 1924 ई० में (लन्दन में प्रकाशित एक साप्ताहिक पत्र में) सारी दुनिया के समक्ष इस नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की।

सारी दुनिया में इससे सनसनी फैल गई। इस बारे में एस.एन.राव ने ‘द स्टोरी ऑफ़ इंडियन आर्कियोलॉजी’ में लिखा, “मार्शल ने . भारत को जहाँ पाया था, उसे उससे तीन हजार वर्ष पीछे छोड़ा।” उल्लेखनीय है कि हड़प्पा जैसी मोहरें मेसोपोटामिया से भी मिली थीं। अब यह स्पष्ट हुआ कि यह एक नई सभ्यता थी जो मेसोपोटामिया के समकालीन थी।

सर जॉन मार्शल द्वारा हड़प्पा सभ्यता की घोषणा के साथ-साथ उन्होंने उत्खनन प्रणाली में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। वे भारत में कार्य करने वाले पेशेवर पुरातत्वविद् थे। उनके पास यूनान व क्रिट में उत्खननों का अनुभव था। उन्हें आकर्षक खोजों में रुचि थी परंतु वे इन खोजों में दैनिक जीवन पद्धतियों को जानना चाहते थे। सर जॉन मार्शल ने उत्खनन की नई तकनीक को शुरू किया। उन्होंने पुरास्थल के स्तर विन्यास को पूरी तरह अनदेखा कर । पूरे टीले में समान परिमाण वाली नियमित क्षैतिज इकाइयों के साथ-साथ उत्खनन करने का प्रयास किया।

प्रश्न 18.
हड़प्पा सभ्यता से जुड़े उत्खनन में व्हीलर के योगदान को स्पष्ट करें।
उत्तर:
1944 ई० में व्हीलर महोदय भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (Archeological Survey and India) के महानिदेशक बने। उन्होंने पुरानी खुदाई तकनीक व उससे जुड़ी समस्या को ठीक करने का प्रयास किया। उनसे पहले सर जॉन मार्शल ने पुरा स्थल की स्तर विन्यास (Stratigraphy) पर ध्यान न देकर सारे टीले को समान आकार की क्षैतिज इकाइयों में उत्खनन करवाया। फलतः अलग-अलग स्तरों से संबंधित पुरावशेषों को एक इकाई विशेष में वर्गीकृत कर दिया गया।

इसका नतीजा यह हुआ कि इन खोजों के संदर्भ से जुड़ी महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ सदैव के लिए खो गईं। उन्होंने एक समान क्षैतिजीय इकाइयों के आधार पर खुदाई की अपेक्षा स्तर विन्यास (Stratigraphy) का ध्यान रखना भी जरूरी माना। वे सेना में ब्रिगेडियर रह चुके थे। अतः उन्होंने पुरातत्व प्रणाली में एक सैन्य परिशुद्धता (Precision) का भी समावेश किया।

व्हीलर महोदय ने अत्यंत मेहनत व साहस की भावना से कार्य किया। वे सबह 5:30 बजे अपनी टीम के साथ कार्य पर लगते थे तथा गर्मी में सूर्य की तेज रोशनी में कुदालियों और चाकुओं के साथ कठिन परिश्रम करते रहते थे। उन्होंने इस प्रकार संस्मरण अपनी पुस्तक ‘माई आर्कियोलॉजिकल मिशन टू इंडिया एंड पाकिस्तान (1976)’ में दिए हैं।

प्रश्न 19.
शिल्प तथ्यों के वर्गीकरण के आधार स्पष्ट करें।
उत्तर:
पुरातत्वविद् भौतिक अवशेषों को प्राप्त कर, उनका विश्लेषण करते हैं। इससे इस सभ्यता के जीवन का पुनर्निर्माण करते हैं। ये भौतिक अवशेष या कला तथ्य मृदभाण्ड (बर्तन), औजार, गहने, घर का सामान आदि हैं। इसके अलावा कपड़ा, चमड़ा, लकड़ी का सामान जैसे जैविक पदार्थ हमारे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में गल (Decompose) गए हैं। जो बचे हैं वे हैं पाषाण, जली मिट्टी से बनी टेराकोटा की (मृण्य) मूर्तियाँ, धातु आदि।

शिल्प तथ्यों को खोज लेना पुरातत्व के कार्य में मात्र शुरुआत होती है। बाद में पुरातत्वविद् इन्हें विभिन्न आधार पर वर्गीकृत करते हैं। सामान्यतः निम्नलिखित आधारों पर इनका वर्गीकरण किया जाता है

(i) सामान्यतः वर्गीकरण सामग्री के आधार पर होता है; जैसे पत्थर, मिट्टी, धातु, हड्डी, हाथीदांत आदि।

(ii) वर्गीकरण का अन्य तरीका प्राप्त वस्तु के कार्य (Function) के आधार पर होता है; जैसे एक कला तथ्य औजार है या गहना या वह किसी अनुष्ठान के लिए प्रयोग का एक उपकरण है। यह वर्गीकरण सरल अनुष्ठान नहीं है।

(iii) कई बारं यह वर्गीकरण वर्तमान में चीजों के प्रयोग के आधार पर भी किया जाता है; जैसे मनके, चक्कियाँ, पत्थर के ब्लेड या पात्र आदि।

(iv) मिलने के स्थान के आधार पर भी पुराविद् इनका वर्गीकरण करते हैं। क्या वस्तु घर में मिली है या निकासी या अन्य स्थान पर।

(v) कभी-कभार पुरातत्वविद् परोक्ष तथ्यों का सहारा लेकर वर्गीकरण करते हैं। उदाहरण के लिए कुछ हड़प्पा स्थलों पर कपड़ों के अंश मिले हैं। तथापि कपड़ा होने के प्रमाण के लिए दूसरे स्रोत जैसे मूर्तियों का सहारा लिया जाता है। किसी भी शिल्प तथ्य को समझने के लिए पुरातत्ववेत्ता को उसके संदर्भ की रूपरेखा विकसित करनी पड़ती है। उदाहरण के लिए हड़प्पा की मोहरों को तब तक नहीं समझा जा सका जब तक उन्हें सही संदर्भ में नहीं रख पाए। वस्तुतः इन मोहरों को उनके सांस्कृतिक अनुक्रम (Cultural Sequence) एवं मेसोपोटामिया में हुई खोजों की तुलना के आधार पर ही सही अर्थों में समझा जा सका।

प्रश्न 20.
हड़प्पा सभ्यता के धर्म के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के धार्मिक विश्वासों का पता लगाने के लिए पुरातत्वविदों व इतिहासकारों को उपलब्ध पुरावशेषों से निष्कर्ष निकालने पड़ते हैं। इस प्रकार के पुरावशेषों में विशेषतौर पर मोहरों और मृण्मूर्तियों का सहारा लिया जाता है। मिट्टी की बनी मूर्ति, जिसे मातृदेवी की मूर्ति बताया जाता है, उससे अनुमान लगाया जाता है कि यह भूमि की उर्वरता से जुड़ी है. तथा यह धरती देवी की मूर्ति है। एक पत्थर की मोहर पर पुरुष देवता को विशेष मुद्रा में बैठा दिखाया गया है तथा उसके आसपास कई जानवर हैं, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि यह पशुपति की मूर्ति है जो बाद में शिव के रूप में उभरकर आए। लिंग तथा योनि की पूजा के भी संकेत मिले हैं।

कुछ वृक्षों को पवित्र माना जाता था। कूबड़ सांडों की भी सम्भवतः पूजा की जाती थी। आज भी भारत में सांडों को पवित्र दृष्टि से देखा जाता है। हड़प्पावासी मृतकों को दफनाने के ऐसे प्रमाण कुछ नगरों (हड़प्पा) के समीप प्राप्त कब्रिस्तानों से लगाए जाते हैं जहाँ कब्रों में घर का सामान, गहने तथा शीशे आदि प्राप्त हुए हैं। परंतु मिस्र सभ्यता के समान कब्रों पर किसी प्रकार के बड़े ढाँचे (पिरामिड जैसे) देखने को नहीं मिलते हैं।

प्रश्न 21.
हड़प्पा सभ्यता का आविर्भाव (उदय) किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
यह प्रश्न.रोचक और महत्त्वपूर्ण है कि हड़प्पा सभ्यता के नगरों का आविर्भाव कैसे हुआ। मोर्टियर व्हीलर महोदय ने यह व्याख्या दी थी कि कुछ बाहर से आई जातियों द्वारा इस क्षेत्र को जीतकर नगरों की स्थापना की गई। परंतु बाद के अन्वेषणों के आधार पर विद्वानों ने इस व्याख्या को अस्वीकार कर दिया तथा अब यह आम धारणा बन गई है कि हड़प्पा के नगरों के स्थापित होने से पहले (प्राक हड़प्पा काल में) यहाँ पर कृषि समुदायों के विकास की एक दीर्घ प्रक्रिया रही है। इस प्रक्रिया को समझने के लिए अग्रलिखित प्राक बस्तियों के उदय को जानना जरूरी है

1. मेहरगढ़ (Mehargarh)-ऐसे समुदाय के विकास के प्रमाण मेहरगढ़ नामक स्थान से मिले हैं। यहाँ पर ईसा से पाँच हजार वर्ष पूर्व लोग गेहूँ तथा जौ की खेती करते थे एवं भेड़-बकरियाँ पालते थे। धीरे-धीरे इन्होंने सिंधु की बाढ़ पर नियंत्रण करना सीखा। इसके मैदानों का खेती के लिए उपयोग किया। इससे जनसंख्या में वृद्धि हुई। यह लोग पशु चराने के लिए दूर-दूर तक जाते थे। इससे परस्पर आदान-प्रदान बढ़ा तथा व्यापार शुरू हुआ। मेहरगढ़ के लोग कई प्रकार की मालाएँ बनाते थे। यहाँ से मोहरें भी मिली हैं। इसके अलावा यहाँ से डिजाइनदार मिट्टी के बर्तन, मिट्टी की मूर्तियाँ व तांबे तथा पत्थर की वस्तुएँ भी मिली हैं।

2. दंबसादात (Dambsadat)-मेहरगढ़ की भांति क्वेटाघाटी में दंबसादात से भी प्राक-हड़प्पन सभ्यता के प्रमाण मिले हैं। इनमें चित्रधारी किए बर्तन, पक्की मिट्टी की मोहरें, ईंटें आदि मुख्य हैं।

3. रहमान ढेरी (Rahman Dheri) यहाँ से भी हड़प्पा सभ्यता की शुरुआत के प्रमाण मिलते हैं। यह स्थल सिंधु मैदान के पश्चिम भाग में है। यहाँ योजनाबद्ध बने मकान, सड़कें और गलियाँ मिली हैं। इसके चारों ओर ऊँची दीवार है। टूटे-फूटे बर्तनों की चित्रकला हड़प्पा लिपि की ओर संकेत करती है।

4. अमरी (Amri)-सिंधु मैदान के निचले भाग में अमरी (Amri) नामक स्थल से भी शिल्प तथ्य मिले हैं। यहाँ के लोगों ने अन्नागार बनाए। बर्तनों पर कूबड़ बैल की आकृति भी है। वे अपनी बस्ती की दुर्गबन्दी करने लगे थे। बाद में यही स्थल हड़प्पा सभ्यता के नगर के रूप में उभरा। कुछ अन्य स्थलों, जैसे कोटडीजी (Kot Diji), कालीबंगन (Kalibangn) से भी आरंभिक हड़प्पा काल के प्रमाण मिले हैं।

स्पष्ट है कि प्राक हड़प्पा काल में सिंधु क्षेत्र में रहने वाले विभिन्न कृषक समुदायों में सांस्कृतिक परम्पराओं में समानता लगती है। इन छोटी-छोटी परंपराओं के मेल से एक बड़ी परंपरा प्रकट हुई। परंतु यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि ये समुदाय कृषक व पशुचारी थे। कुछ शिल्पों में पारंगत थे। इनकी बस्तियाँ सामान्यतः छोटी थीं तथा कोई भी बड़ी इमारतें नहीं थीं। कुछ प्राक हड़प्पा बस्तियों का परित्याग भी हुआ तथा कुछ स्थलों पर जलाये जाने के भी प्रमाण मिले हैं। तथापि यह स्पष्ट लगता है कि हड़प्पा सभ्यता का आविर्भाव लोक संस्कृति के आधार पर हुआ।

प्रश्न 22.
‘परातत्वविदों को अतीत का पनर्निर्माण करते हए कला तथ्यों (Artefacts) की व्याख्या संबंधी समस्या का सामना करना पड़ता है। उदाहरण सहित इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
यह सत्य है कि पुरातत्वविदों को अतीत का पुनर्निर्माण करते हुए कला तथ्यों की व्याख्या संबंधी समस्या का सामना करना पड़ता है। विशेष तौर पर यह समस्या धार्मिक प्रथाओं के पुनर्निर्माण में ज्यादा आती है। आरंभिक पुरातत्वविदों को लगता था कि कुछ वस्तुएँ, जो असामान्य और अपरिचित लगती थीं, संभवतः धार्मिक महत्त्व की होती थीं। कुछ कलातथ्य की धार्मिक व्याख्याओं के उदाहरण निम्नलिखित प्रकार से हैं

(i) हड़प्पा से नारी की मृण्मूर्तियाँ प्राप्त हुईं। ये आभूषणों (हार) से लदी हुई थीं। सिर पर विस्तृत प्रसाधन (मुकुट जैसा) धारण किया हुआ है। इन्हें मातृदेवी की संज्ञा दी गई। इसी प्रकार दुर्लभ पाषाण से बनी पुरुष की मूर्तियाँ, जिनमें उन्हें एक मानकीकृत मुद्रा में एक साथ घुटने पर रख बैठा हुआ दिखाया गया था, ‘पुरोहित राजा’ की भांति, धर्म से जोड़कर वर्गीकृत कर दिया गया।
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(ii) इसी प्रकार विशाल ढाँचों को भी धार्मिक आनुष्ठानिक महत्त्व का करार दे दिया गया। इसमें विशाल स्नानागार तथा कालीबंगन और लोथल से मिली वेदियाँ शामिल हैं।

(iii) इसी प्रकार कुछ मोहरों का विश्लेषण कर धार्मिक आस्थाओं व प्रथाओं का पुनर्निर्माण किया गया। इनमें से कुछ मोहरों की आनुष्ठानिक क्रियाओं के रूप में.व्याख्या की गई। दूसरी मोहरें (जिन पर पेड़ों के चित्र उत्कीर्ण किए हुए थे) को प्रकृति की पूजा का संकेत स्वीकार किया गया इसी प्रकार कुछ मोहरों की देवता और पूज्य पशुओं के रूप में व्याख्या दी है।

आद्य शिव-एक मोहर पर एक पुरुष देवता को योगी की मुद्रा में दिखाया गया है। इसके दाईं ओर हाथी तथा बाघ एवं बाईं ओर गैंडा तथा भैंसा हैं। पुरुष देवता के सिर पर दो सींग हैं। पुरातत्वविदों ने इस देवता को ‘आद्य शिव’ की संज्ञा दी है। इस ‘आद्य शिव’ वाली मोहर की ऋग्वेद में उल्लेखित रुद्रदेवता से सम तुलना की गई है।
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• एक श्रृंगी पशु-एक मोहर में एक शृंगी पशु उत्कीर्णित है। यह घोड़े जैसा पशु है, जिसके सिर के बीच में एक सींग निकला हुआ है। यह कल्पित तथा संश्लिष्ट लगता है। ऐसा बाद में हिन्दू धर्म के अन्य देवता (नरसिंह देवता) के बारे में कहा जा सकता है।

पुरातत्वविद् ज्ञात से अज्ञात की ओर अर्थात् वर्तमान के ज्ञान के आधार पर अतीत को पुनर्निर्मित करने का तरीका भी अपनाते हैं। हड़प्पा के धर्म की व्याख्या में बाद के काल की परंपराओं के समानांतरों (उसी प्रकार की मिलती-जुलती परंपराओं) का सहारा भी लिया जाता है। पात्रों आदि के संबंध में तो इस प्रकार का सहारा लेना ठीक लगता है परंतु धार्मिक पहचान बिंदुओं (Religion Symbols) को समझने में इस प्रकार का तरीका अपनाना अधिक कल्पनाशील (Speculative) हो जाता है।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 23.
हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न केंद्रों से जो मोहरें प्राप्त हुई हैं, उनका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न स्थलों से व्यापक पैमाने पर मोहरें प्राप्त हुई हैं। यह इस सभ्यता की सर्वोत्तम कलाकृतियाँ स्वीकार की गई हैं। अब तक लगभग 2000 से अधिक मोहरें प्राप्त हुई हैं। इनमें से अधिकांश मोहरों पर लघु लेख के साथ-साथ जानवरों (कूबड़ सांड, एक सिंगी जानवर, बाघ, बकरी, हाथी आदि) की आकृतियाँ उकेरी हुई हैं। इन मोहरों का महत्त्व यह है कि इनसे हमें हड़प्पा सभ्यता के संबंध में अनेक प्रकार की जानकारी प्राप्त होती है। विशेषतौर पर यह हड़प्पा के लोगों के धार्मिक विश्वासों पर प्रकाश डालती है। इनमें से कुछ मोहरों की आनुष्ठानिक क्रियाओं के रूप में व्याख्या की गई।

दूसरी मोहरों (जिन पर पेड़ों के चित्र उत्कीर्ण किए हुए थे) को प्रकृति की पूजा का संकेत स्वीकार किया गया इस कुछ मोहरों की देवता और पूज्य पशुओं के रूप में व्याख्या दी है। एक मोहर पर एक पुरुष देवता को योगी की मुद्रा में दिखाया गया है। इसके दाईं ओर हाथी तथा बाघ एवं बाईं ओर गैंडा तथा भैंसा हैं। पुरुष देवता के सिर पर दो सींग हैं। पुरातत्वविदों ने इस देवता को ‘आद्य शिव’ की संज्ञा दी है। एक अन्य मोहर में एक श्रृंगी पश उत्कीर्णित है। यह घोड़े जैसा पश है, जिसके सिर के बीच में एक सींग निकला हुआ है। यह कल्पित तथा संश्लिष्ट लगता है।

ऐसा बाद में हिन्दू धर्म के अन्य देवता (नरसिंह देवता) के बारे में कहा जा सकता है। कला की दृष्टि से भी इनका महत्त्व बताया जाता है। मोहरों पर खुदे हुए सांड, हाथी, बारहसिंगा आदि के चित्र देखते ही बनते हैं। ये चित्र अपनी सुंदरता और वास्तविकता में अद्वितीय हैं। मोहरों का एक अन्य महत्त्व यह है कि इन पर अभिलेख खुदे हुए हैं जो ऐतिहासिक दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण हैं। यह ठीक है कि अभी तक इन्हें पढ़ा नहीं जा सका है। भविष्य में यदि इन्हें पढ़ लिया जाता है तो इन मोहरों का महत्त्व और भी बढ़ जाएगा।

प्रश्न 24.
मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा के अतिरिक्त हड़प्पा सभ्यता से जुड़े किन्हीं पाँच स्थलों का विवरण कीजिए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा इस सभ्यता के सबसे महत्त्वपूर्ण स्थल हैं। सबसे पहले खुदाई भी इन्हीं नगरों की हुई है। हमारी अधिकतर जानकारी का आधार इन स्थानों से प्राप्त पुरावशेष ही हैं। इन स्थानों के अतिरिक्त इस सभ्यता से जुड़े अनेक स्थल प्रकाश में आए हैं। कुछ स्थलों का विवरण निम्नलिखित प्रकार से है

1. चन्हुदडो-सिन्ध क्षेत्र में यह स्थान सिन्धु नदी के बाएँ तट पर स्थित है। इस स्थान पर दुर्ग नहीं था। यह एक शिल्प उत्पादन केन्द्र था। यहाँ मोहरें बनाई जाती थीं। यहाँ से मिट्टी की बनी गाड़ियाँ, काँसे का खिलौना, हड्डियों की वस्तुएँ, सीपी की चूड़ियाँ आदि प्राप्त हुए हैं। मोहनजोदड़ो की तरह यहाँ पर कई बार बाढ़ आने के चिहन हैं।

2. कालीबंगन-यह स्थान राजस्थान में गंगानगर जिले में है। यह सूखे घग्घर नदी के दक्षिणी तट पर था। यहाँ से प्राक हड़प्पा के प्रमाण मिले हैं। यहाँ पर खेत जोते जाने के प्रमाण हैं। यहाँ पर अग्निकुंड के अवशेष खोजे गए हैं। इसके अलावा यहाँ पर गोमेद तथा स्फटिक फलक, बर्तन तथा चूड़ियों के अवशेष मिले हैं।

3. लोथल-यह स्थल भोगवा तथा साबरमती नदी के मध्य घोलका तालुका (गुजरात) में खंभात खाड़ी से 12 किलोमीटर दूर के प्रमाण भी लोथल से मिले हैं। यहाँ पर एक अन्नागार भी मिला है। इसके अलावा सुमेरियन सभ्यता से संबंधित सोने के मनके, मनका कारखाना, कब्रिस्तान आदि भी यहाँ मिले हैं।

4. बनावली-हरियाणा में फतेहाबाद जिले में सरस्वती तट पर स्थित है। यहाँ पर पूर्व हड़प्पा तथा उत्तर हड़प्पा के अवशेष मिले हैं। यहाँ प्राप्त हुए कलातथ्यों में मिट्टी का हल, हल के टुकड़े, चक्के, ताँबे का मछली पकड़ने का काँटा, सोना परखने की कसौटी आदि प्रमुख हैं।

5. धौलावीरा-हड़प्पा सभ्यता से जुड़ा यह नवीनतम स्थल है, जहाँ हाल ही में खुदाई हुई है। यह इस सभ्यता का एक मात्र स्थल है जो तीन भागों में विभाजित है। यहाँ पर जलाशय के अवशेष मिले हैं। यहाँ पर मनके बनाने की कार्यशालाएँ थीं। यहाँ पर खेल का मैदान भी मिला है। इसके अलावा पत्थर की बनी नेवले की मूर्ति भी प्राप्त हुई है।

दीर्घ-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हड़प्पा सभ्यता के शिल्प उत्पादों पर लेख लिखें।
उत्तर:
हड़प्पा के लोगों ने शिल्प उत्पादों में महारत हासिल कर ली थी। मनके बनाना, सीपी उद्योग, धातु-कर्म (सोना-चांदी के आभूषण, ताँबा, कांस्य के बर्तन, खिलौने उपकरण आदि), तौल निर्माण, प्रस्तर उद्योग, मिट्टी के बर्तन बनाना, ईंटें बनाना, मद्रा निर्माण आदि हड़प्पा के लोगों के प्रमुख शिल्प उत्पाद थे। कई बस्तियाँ तो इन उत्पादों के लिए ही प्रसिद्ध थीं।

1. मनके बनाना-हड़प्पा सभ्यता के लोग गोमेद, फिरोजा, लाल पत्थर, स्फटिक (Crystal), क्वार्ट्ज (Quartz), सेलखड़ी (Steatite), जैसे बहुमूल्य एवं अर्द्ध-कीमती पत्थरों के अति सुन्दर मनके बनाते थे। मनके व उनकी मालाएं बनाने में ताँबा, कांस्य और सोना जैसी धातुओं का भी प्रयोग किया जाता था। शंख, फयॉन्स (faience), टेराकोटा या पक्की मिट्टी से भी मनके बनाए जाते थे। इन्हें अनेक आकारों चक्राकार, गोलाकार, बेलनाकार और खंडित इत्यादि में बनाया जाता था। कई पर चित्रकारी की जाती थी। रेखाचित्र उकेरे जाते थे। कुछ मनके अलग-अलग पत्थरों को जोड़कर बनाए जाते थे। पत्थर के ऊपर सोने के टोप वाले सुन्दर मनके भी पाये गए हैं।

2. धातुकर्म हड़प्पा सभ्यता के लोगों को अनेक धातुओं की जानकारी थी। वे इन धातुओं से विविध सामान बनाते थे। तांबे का प्रयोग सबसे ज्यादा किया गया है। इसके उपकरण उस्तरा, छैनी, चाकू, तीर व भाले का अग्रभाग, कुल्हाड़ी, मछली पकड़ने के कांटे, आरी तलवार आदि बनाए जाते थे। तांबे में संखिया व टिन मिलाकर काँसा बनाया जाता था। ताँबे और काँसे के बर्तन भी बनाए जाते थे। कांस्य की मूर्तियाँ भी बनाई जाती थीं। सोने के आभूषणों के संचय मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा से मिले हैं।

सोना हल्के रंग का था। इसमें चाँदी की मिलावट काफी मात्रा में थी। भारत में चाँदी का सर्वप्रथम प्रयोग हड़प्पा काल में हुआ। चाँदी के आभूषण और बर्तन बनाए जाते थे। सर जॉन मार्शल लिखते हैं कि सोने-चांदी के आभूषणों को देखकर ऐसा महसूस होता है कि यह पांच हजार वर्ष पूर्व की कला कृतियाँ नहीं, अपितु इन्हें अभी-अभी लन्दन स्थित जौहरी बाजार (बांडस्ट्रीट) से खरीदा गया है।
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3. पाषाण उद्योग-इस काल में पत्थर के उपकरण भी बनाए जाते थे। सुक्कूर में इसके प्रमाण मिले हैं। पत्थर के विशेष प्रकार के बरमें, खुरचनियाँ, काटने के उपकरण, दरांती, फलक आदि बनाए जाते थे। ये उपकरण खेती, मणिकारी, दस्तकारी, नक्काशी (लकड़ी, सीपी) छेद करने में प्रयोग किए जाते थे। पत्थर की मूर्तियाँ भी बनाई जाती थीं। इसमें सेलखड़ी तथा चूना पत्थर का उपयोग होता था।

4. मिट्टी के बर्तन-हड़प्पा सभ्यता के सभी स्थलों से सादे और अलंकृत बर्तन प्राप्त हुए हैं। इन बर्तनों पर पहले लाल रंग का घोल चढ़ाया जाता था, फिर काले रंग के गाढ़े घोल से डिजाइन बनाए जाते थे। ये बर्तन चाक पर बनाए जाते थे तथा भट्ठियों में पकाए जाते थे। बर्तनों पर नदी तल की चिकनी मिट्टी का प्रयोग होता था। इस मिट्टी में बालू, अभ्रक या चूना के कण मिलाए जाते थे। बर्तनों पर वृक्ष व. पशु की आकृतियाँ बनी मिली हैं।

विकसित हड़प्पा काल में उच्चकोटि के चमकदार मृदभाण्डों का उत्पादन होने लगा था। बर्तनों के अतिरिक्त मिट्टी की मूर्तियाँ, खिलौने, घरेलू सामान, चूड़ियाँ, छोटे मनके एवं पशुओं की छोटी मूर्तियाँ भी बनाई जाती थीं।
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5. ईंटें बनाना तथा राजगिरी-हड़प्पा सभ्यता के नगरों में विशाल भवनों का निर्माण तथा बड़े पैमाने पर ईंटों का प्रयोग इस बात की तरफ संकेत करता है कि वहाँ पर ईंटों का निर्माण करने का अलग उद्योग रहा होगा। परकोटों तथा भवनों को बनाने वाले मिस्त्री का काम करने वाला समुदाय भी रहा होगा।

6. सीपी उद्योग-इस सभ्यता के समय सीपी के कई उत्पाद बनाए जाते थे। समुद्री शंख का प्रयोग चूड़ियाँ, मनके, जड़ाऊ वस्तुएँ एवं छोटी आकृतियाँ बनाने में किया जाता था। बालाकोट, लोथल एवं कुतांसी स्थलों से कच्चा माल प्राप्त किया जाता था। यहाँ पर स्थानीय कार्यशालाएँ थीं।

7. कताई और बुनाई-घरों में तकुए तथा तकलियाँ मिली हैं। इनका प्रयोग सूती ऊनी वस्त्रों की बुनाई में किया जाता था। तकलियों को मिट्टी, सीपी और ताँबे से बनाया हुआ था। यहाँ से कपड़े का कोई टुकड़ा नहीं मिला है। परंतु यह तथ्य सत्य है कि कपास का उत्पादन होता था तथा वस्त्रों का प्रयोग किया जाता था। कपड़ों की रंगाई भी की जाती थी।

प्रश्न 2.
हड़प्पा सभ्यता के अंतर्खेत्रीय व दूरस्थ प्रदेशों से व्यापार-वाणिज्य संबंधी संपर्कों का विवरण दीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के नगरीकरण (Urbanisation) में व्यापार का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा होगा। हड़प्पाकालीन नगर हस्तशिल्प उद्योगों के केन्द्र थे। इन हस्तशिल्पों को कच्चा माल उपलब्ध करवाने तथा पक्के माल को विभिन्न नगरों में पहुँचाने में व्यापारी वर्ग की भूमिका थी।

इस रूप में ये नगर व्यापारिक केन्द्र भी थे। ये नगर नदियों के किनारे, समुद्र तटों तथा अन्य व्यापार मार्गों पर बसे थे। अन्तर्खेत्रीय व्यापार तथा बाह्य व्यापार के पर्याप्त प्रमाण मिले हैं। मोहरों पर अंकित चित्र, माप-तौल की समान प्रणाली, पत्थरों तथा धातुओं के उपकरण और औजारों का सभी क्षेत्रों में मिलना, मिट्टी की छोटी नावें, लोथल में गोदी (डॉकयाडी सभी उन्नत व्यापार के संकेत हैं।

1. अन्तक्षेत्रीय व्यापार-पत्थर व धातु के उपकरण, सीपियों का सामान, मोहरें, बाट, रसोई का सामान, कलात्मक वस्तुएं, कीमती मनके, अनाज व कपास आदि एक स्थान से दूसरे स्थान (शहरों तथा ग्राम्य बस्तियों में) पर भेजे जाते थे। वस्तु विनिमय पर आधारित इस व्यापार में व्यापारी वर्ग तथा खानाबदोश व्यापारी शामिल होते थे। रोहड़ी तथा सूक्कूर में चकमक पत्थर मिलता था। नदी मार्गों से यह प्रमुख नगरों में भेजा जाता था।

यहाँ पर इस पत्थर से औज़ार और हथियार बनाए जाते थे। बालाकोट और चन्हुदड़ो में सीपियों की चूड़ियाँ तथा अन्य सामान बनता था। यहाँ से सामान अन्य नगरों तथा बस्तियों में भेजा जाता था। मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा में बाट, मोहरें तथा ताँबे का सामान बनाया जाता था।

ये वस्तुएं भी सारे क्षेत्र में बेची जाती थीं। औज़ारों और हथियारों के अलावा यहाँ पर रसोई के उपयोग की वस्तुएँ तथा विभिन्न कलात्मक वस्तुएँ भी बनती थीं। लोथल तथा सुरकोतदा से कपास हड़प्पा, मोहनजोदड़ो आदि नगरों को भेजी जाती थी। अनाज का भी व्यापार होता था। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में बने गोदामों से यह संकेत मिलता है कि आन्तरिक भागों से अनाज को नदी मार्गों से यहाँ पर पहुँचाया जाता था।

2. दूरस्थ प्रदेशों से व्यापार-हड़प्पा सभ्यता के नगरों का एशियाई देशों से व्यापारिक संबंध था, इसके पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं। मेसोपोटामिया के सूसा, उए, निप्पुर, किश और उम्मा शहरों से दो दर्जन से अधिक हड़प्पा की मोहरें प्राप्त हुई हैं। फारस की खाड़ी में स्थित फैलका और बैहरेन नामक स्थानों से भी मोहरें मिली हैं। इसके अतिरिक्त हड़प्पाकालीन बाट, मृण्य मूर्तियाँ, कीमती पत्थर आदि अनेक प्रकार का सामान भी फारस की खाड़ी तथा मेसोपोटामिया से प्राप्त हुआ है।

मेसोपोटामिया के सम्राट् सारगॉन (Sargon, 2350 B.C.) का यह दावा था कि दिलमुन (Dilmun), मगान (Magan) और मेलुहा (Meluhha) के जहाज उसकी राजधानी में लंगर डालते थे। विद्वान इन नामों (स्थानों) को हड़प्पा सभ्यता के नगरों से जोड़ते हैं। माना जाता है कि मगान तथा मकरान समुद्रतट एक ही था।

(i) निर्यात-हड़प्पाकालीन व्यापारी इन बाह्य देशों में अपने यहाँ उत्पादित पत्थरों के फलकों, मोहरों, मनकों, ताँबे का सामान, हाथी-दाँत व सीपी आदि का निर्यात करते थे। तेल असमार (Tel Asmar) में नक्काशी किए हुए लाल पत्थर के मनके पाए गए हैं। मेसोपोटामिया के नगर निप्पुर में मृण्य मूर्तियाँ मिली हैं। हड़प्पा जैसे बाट भी मिले हैं।
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तालिका

हड़्पांकाल में आयातित वस्ताएँ एवं क्षेत्र

आयात की जाने वाली वस्ताएँक्षेत्रआयात की जाने वाली वस्तुएँक्षेत्र
टिनईरान, मध्य एशिया, अफ़गानिस्तान ।चांदीईरान, अफगानिस्तान ।
स्वर्णअफ्गानिस्तान, दक्षिण भारत (कर्नाटक)।लाजवर्दमेसोपोटामिया, बदख्शां।
फिरोजाईरान।सीसाईरान, दक्षिण भारत, अफगानिस्तान ।
शिलाजीतहिमालय क्षेत्र ।शंख एवं कौड़ियाँदक्षिणी भारत।
नील रलबदख्शां-अफगानिस्तान।

(ii) आयात-हड़प्पा सभ्यता के व्यापारी बाहर के क्षेत्रों से कीमती धातुओं का आयात करते थे। चाँदी का आयात अफगानिस्तान या ईरान से किया जाता था। अफगानिस्तान एवं कर्नाटक से सोना लाया जाता था। ताँबे का आयात अरब देशों, पश्चिमी बलूचिस्तान तथा राजस्थान में खेतड़ी से किया जाता होगा। टिन ईरान, मध्य एशिया तथा अफगानिस्तान से मँगाया जाता था। सीसे को ईरान पूर्वी या दक्षिण भारत तथा अफगानिस्तान से लाया जाता होगा। फिरोजा मध्य एशिया या ईरान से मंगाया जाता था। नीलम अफगानिस्तान के बदख्शां से लाया जाता था। सेलखड़ी पत्थर बलूचिस्तान, अरावली एवं दक्षिण भारत से प्राप्त होता था।

गोमेद, स्फटिक एवं इन्द्रगोप जैसे कीमती पत्थर भी बाहर से आयात किए जाते थे। अफगानिस्तान से कीमती पत्थर प्राप्त करने के लिए शोर्तुघई नामक स्थान पर हड़प्पा के व्यापारियों ने एक बस्ती बसा रखी थी। बाह्य व्यापार स्थल तथा समुद्री मार्ग दोनों से होता था। लोथल, सुरकोतदा तथा बालाकोट जैसे तटीय नगरों से बाहर देशों से समुद्री व्यापार होता होगा।

3. परिवहन के साधन- परिवहन के साधनों में नौकाएँ, मस्तूल वाले छोटे जहाज, बैलगाड़ियाँ तथा लद्रू जानवर प्रमुख थे। . हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से पाई गई मोहरों में जहाजों और नावों को चित्रित किया गया है। लोथल में पक्की मिट्टी से बने जहाज का नमूना पाया गया है जिसमें मस्तूल के लिए एक लकड़ी तथा मस्तूल लगाने के लिए छेद हैं। लोथल में बनी गोदी को जहाजीमाल घाट के रूप में पहचाना जाता है।

अरब सागर के तट पर अन्य भी अनेक बन्दरगाह थे; जैसे रंगपुर, सोमनाथ तथा बालाकोट । नदियों में भी छोटी नौकाओं का प्रयोग अनाज लाने के लिए किया जाता होगा। बैलगाड़ी अंतर्देशीय यातायात का साधन थी। बस्तियों से मिट्टी के बने बैलगाड़ी के अनेक नमूने पाए गए हैं। हड़प्पा में एक कांसे की गाड़ी का नमूना पाया गया है जिसमें एक चालक बैठा है। छोटी गाड़ियों के नमूने भी मिले हैं। हाथी, बैल, ऊँटों का भी भार ढोने में प्रयोग होता था। ऐतिहासिक काल में खानाबदोश चरवाहे सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजते थे। शायद हड़प्पावासी भी ऐसा करते होंगे। परन्तु उस समय नौ परिवहन ..

प्रश्न 3.
हड़प्पा सभ्यता के लोगों की जीविका निर्वाह प्रणाली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
परिपक्व हड़प्पा अवस्था में लोगों की आजीविका निर्वाह का मुख्य आधार कृषि प्रणाली थी। साथ ही वे मांस, मछली, फल, दूध भी प्राप्त करते थे। हड़प्पाई जीविका निर्वाह प्रणाली का विवरण निम्नलिखित प्रकार से है

1. कृषि-इस सभ्यता के लोगों के जीवन-निर्वाह या भरण पोषण का मुख्य आधार कृषि व्यवस्था थी। सिंधु नदी बड़ी मात्रा में जलोढ़ मिट्टी बहाकर लाती तथा इसे बाढ़ वाले मैदानों में छोड़ देती थी। इन मैदानों में यहाँ के किसान अनेक फसलें उगाते थे। सभ्यता के विभिन्न स्थलों से गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, राई और मटर जैसे अनाज के दाने मिले हैं। गेहूँ की दो किस्में पैदा की जाती थीं। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगन से गेहूँ और जौ प्राप्त हुए हैं। गुजरात में ज्वार और रागी का उत्पादन होता था। सौराष्ट्र में बालाकोट में बाजरा व ज्वार के प्रमाण मिले हैं। 1800 ई.पू. में लोथल में चावल उगाने के प्रमाण मिले हैं। हड़प्पा सभ्यता के लोग सम्भवतः दनिया में पहले थे जो कपास का उत्पादन करते थे।

2. कृषि तकनीक-खेती करने के तरीकों को समझना ज़्यादा कठिन है। क्या जोते हुए खेतों में बीजों को बिखेरा जाता था . या अन्य तरीके थे? उपलब्ध साक्ष्यों से कृषि तकनीक से संबंधित कुछ निष्कर्ष निकाले गए हैं। उदाहरण के लिए बनावली (हरियाणा) से मिट्टी के हल का नमूना मिला है। बहावलपुर से भी ऐसा नमूना मिला है। कालीबंगन (राजस्थान) में प्रारंभिक हड़प्पा काल के खेत को जोतने के प्रमाण मिले हैं। पक्की मिट्टी से बनाए वृषभ (बैल) के खिलौनों के साक्ष्य तथा मोहरों पर पशुओं के चित्रों से अनुमान लगाया जा सकता है कि वे बैलों का खेतों की जुताई के लिए प्रयोग करते थे।
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3. सिंचाई-क्या हड़प्पा के लोग फसलों को सींचते थे? यदि हाँ तो उनके सिंचाई के साधन क्या थे। संभवतः हड़प्पन लोगों ने भूमिगत जल का विश्व में पहले-पहल कुओं के द्वारा प्रयोग किया। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि गाँवों में कच्चे कुएँ खोदे जाते थे। कारीगरों द्वारा निर्मित पक्के कुएँ भी मिले हैं। परंतु इन कुओं का प्रयोग खेतों की सिंचाई के लिए होता था, इसमें सन्देह है। नदियों, ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ झीलों तथा तालाबों के पानी का ढेकली (lever lift) के माध्यम से खेतों में सिंचाई करने की संभावना है।

शोर्तुघई (अफगानिस्तान) में नहर के अवशेष उपलब्ध हुए हैं। इससे अनुमान लगाया जाता है कि संभवतः सिंधु मैदानों में भी इसी प्रकार की नहरें खोदी गई होंगी। जलाशयों का निर्माण भी सिंचाई के उद्देश्य से किया जाता होगा। धौलावीरा (गुजरात) से ऐसे जलाशय का साक्ष्य मिला है।
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4. फसल काटने के औजार-पुरातत्ववेत्ताओं ने फसल काटने के औजारों की पहचान करने का भी प्रयास किया है। संभवतः लकड़ी के हत्थों में लगाए गए पत्थर के फलकों (Stone blades) का प्रयोग फसलों को काटने के लिए किया जाता था। धातु के औजार (तांबे की हँसिया) भी मिले हैं परंतु महंगी होने की वजह से इसका प्रयोग कम होता होगा।
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5. पशुपालन-सभ्यता से प्राप्त शिल्प तथ्यों तथा पुरा-प्राणिविज्ञानियों (Archaeo-zoologists) के अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि हड़प्पन भेड़, बकरी, बैल, भैस, सुअर आदि जानवरों का पालन करने लगे थे। कूबड़ वाला सांड उन्हें विशेष प्रिय था। गधे और ऊँट का पालन बोझा ढोने के लिए करते थे। ऊँटों की हड्डियाँ बड़ी मात्रा में पाई गई है परंतु मोहरों पर उनके चित्र नहीं हैं। इसके अतिरिक्त भालू, हिरण, घड़ियाल जैसे पशुओं की हड्डियाँ भी मिली हैं। मछली व मुर्गे की हड्डियाँ भी प्राप्त हुई हैं। परंतु हमें यह जानकारी नहीं मिलती कि वे इनका स्वयं शिकार करते थे या इन्हें शिकारी समुदायों से प्राप्त करते थे।

प्रश्न 4.
हड़प्पा सभ्यता की राजसत्ता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा समाज में राजसत्ता के संबंध में विद्वान एक मत नहीं हैं। परन्तु हड़प्पा समाज के सभी पक्षों का अध्ययन करने पर इस बात के पत्ता संकेत मिलते हैं कि समाज से जड़े जटिल निर्णय लेने और उन्हें लागू करवाने के लिए कोई राजसत्ता और उससे जुड़ा अधिकारी वर्ग भी रहा होगा। उल्लेखनीय है कि सारे सभ्यता क्षेत्र (जम्मू से गुजरात तथा पश्चिम उत्तर प्रदेश से बलूचिस्तान) में मानक ईंटें, मानक माप-तौल पाया गया है। विशेष मुद्रा/मुद्रांक, (मृदभांड) तथा उन पर रूपायन (Motifs) विद्यमान है। योजनाबद्ध नगर, नालियों की उत्तम व्यवस्था और व्यापक व्यापार है।

यह सब तथ्य इस बात को सुझाते हैं कि कोई जिम्मेदार केंद्रीकृत राजसत्ता रही होगी। हमने यह भी पढ़ा है कि हड़प्पावासियों ने कच्चा माल प्राप्त करने, पक्का माल तैयार करने, व्यापार में सहायता के लिए विशेष स्थलों पर बस्तियों का निर्माण किया हुआ था। साथ ही नगरों में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य करवाने के लिए मानव संसाधनों को संचालित करने के लिए अधिकारी वर्ग अवश्य रहा होगा। कुल मिलाकर इस बारे में विद्वानों ने निम्नलिखित विचार प्रकट किए हैं

1. राजा और राजप्रासाद-पुरातत्वविदों ने पुरावशेषों से सत्ता के चिह्नों को पहचानने का प्रयास किया है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल भवन को ‘राजप्रासाद’ का नाम दिया जाता है। यद्यपि विशाल इमारत में अन्य कोई अद्भुत अवशेष नहीं मिले हैं। इसी प्रकार मोहनजोदड़ो से प्राप्त पत्थर की प्रतिमा प्राप्त हुई है। इसे ‘पुरोहित-राजा’ का नाम दिया जाता रहा है। व्हीलर महोदय ने तो इस आधार पर हड़प्पा की शासन प्रणाली को ‘धर्मतन्त्र’ नाम दिया है।

पुरातत्ववेत्ताओं द्वारा ऐसा निष्कर्ष इसलिए भी निकाला जाता है क्योंकि मेसोपोटामिया की सभ्यता हड़प्पा सभ्यता के समकालीन थी। वहाँ राजा ही सर्वोच्च पुरोहित होते थे। लेकिन हड़प्पा के संबंध में इस निष्कर्ष पर पहुँच पाना कठिन है क्योंकि हड़प्पा से जुड़े रीति-रिवाजों को अभी तक पूरी तरह नहीं समझा जा सका है। दूसरा, यहाँ पर धार्मिक रीति-रिवाज निभाने वाले लोगों के पास राजसत्ता भी थी यह कह पाना भी कठिन है।

2. एक अन्य मत यह है कि हड़प्पा सभ्यता में कोई एक शासक नहीं था, वरन् कई शासक थे। जैसे मोहनजोदड़ो का अलग शासक था। हड़प्पा का अलग शासक था तथा अन्य नगरों के भी अलग-अलग राजा थे।
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3. कुछ विद्वानों का तो यह भी मानना है कि हड़प्पा समाज में कोई राजा ही नहीं था। सभी लोग बराबर की स्थिति में खुश थे। परंतु विलासिता से जुड़े कला तथ्यों व दुर्ग क्षेत्रों में भवनों से ऐसा मान लेना कठिन है।

4. अधिकतर विद्वानों का यह मत है कि कला तथ्यों में समरूपता को देखते हुए यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि यहाँ एक राज्य व्यवस्था विद्यमान थी। शासक वर्ग ने क्षेत्र के संसाधनों पर नियन्त्रण रखने के लिए विशेष बस्तियाँ बसाईं। व्यापार को विनियमित किया। वस्तुतः यह विचार सबसे ठीक लगता है क्योंकि इतने विशाल क्षेत्र में फैले इतने बड़े समाज के समस्त लोगों द्वारा एक साथ जटिल राजनैतिक निर्णय ले पाना तथा उन्हें लागू करवा पाना आसान नहीं था।

प्रश्न 5.
हड़प्पा सभ्यता के अवसान/पतन के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1800 B.C.E. के आसपास हड़प्पा नगरों का पतन होने लगा था। लोग नगरों को छोड़कर जाने लगे थे। हड़प्पाई नाप-तौल, मोहरें तथा लिपि गायब होने लगी। पक्की ईंटों के योजनाबद्ध घर बनने बंद हो गए। दस्तकारियाँ; जैसे मनकों तथा अन्य उद्योग समाप्त होने लगे थे। दूरस्थ व्यापार बंद होने लगे थे। वस्तुतः सभ्यता का अवसान शुरू हो चुका था। हड़प्पा सभ्यता के अंत के निम्नलिखित कारण बताए जा सकते हैं

1. बाढ़ और भूकम्प कुछ विद्वानों ने हड़प्पा सभ्यता के पतन का कारण बाढ़ बताया है। मोहनजोदड़ो में मकानों और सड़कों पर गाद (कीचड़युक्त मिट्टी) भरी पड़ी थी। बाढ़ का पानी उतर जाने पर यहाँ के निवासियों ने पहले के मकानों के मलबे पर फिर से मकान और सड़कें बना लीं। बाढ़ आने का सिलसिला कई बार घटा। खुदाई से पता चला है कि 70 फुट गहराई तक मकान बने हुए थे। बार-बार आने वाली बाढ़ों से नगरवासी गरीब हो गए तथा तंग आकर बस्तियों को छोड़कर चले गए।

आर०एल० रेइक्स ने 1965 में अपने लेख ‘The Mohanjodaro Floods’ में लिखा है कि हड़प्पा सभ्यता के ह्रास का कारण महाभयंकर बाढ़ थी। इस बाढ़ से 30 फुट तक पानी भर गया। इस बाढ़ से सिंधु नदी घाटी के नगर लम्बे समय तक डूबे रहे। रेइक्स ने यह बताया कि यह क्षेत्र अशांत भूकम्प क्षेत्र है। बाढ़ के साथ भूकम्प भी आया होगा। इस भूकम्प से नदी का मार्ग भी अवरुद्ध हो गया। इस महाभयंकर बाढ़ तथा भूकम्प ने नदियों का मार्ग रोक दिया, शहर जलमग्न हो गए, व्यापार और वाणिज्य गतिविधियाँ भंग हो गईं। इससे हड़प्पा सभ्यता नष्ट हो गई। परंतु यह व्याख्या सिंधु घाटी के बाहर की बस्तियों के ह्रास को स्पष्ट नहीं करती।।

2. सिंधु नदी का मार्ग बदलना-एच०टी० लैमब्रिक (H.T. Lambrick) का कहना है कि सिंधु नदी मार्ग में परिवर्तन मोहनजोद नगर के विनाश का कारण हो सकता है। यह नदी अपना मार्ग बदलती रहती थी। स्पष्ट है कि नदी नगर से 30 किलोमीटर दूर चली गई। पानी की कमी के कारण शहर और आस-पास के अनाज पैदा करने वाले गाँवों के लोग क्षेत्र छोड़कर पलायन कर गए। इससे मोहनजोदड़ो के लोगों का शहर छोड़ना तो समझाया जा सकता है, परंतु हड़प्पा सभ्यता के पूरी तरह हास को स्पष्ट नहीं किया जा सकता।

3. क्षेत्र में बढ़ती शुष्कता और घग्घर नदी का सूख जाना- डी०पी० अग्रवाल और कुछ अन्य विद्वानों का विचार है कि इस सभ्यता का ह्रास इस क्षेत्र में शुष्कता के बढ़ने के कारण और घग्घर नदी (हाकड़ा क्षेत्र) के सूख जाने के कारण हुआ। ऐसी स्थिति में हड़प्पा जैसे अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र पर सबसे अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ा होगा। इससे कृषि की पैदावार पर प्रभाव पड़ा। पैदावार में कमी आई। परिणामस्वरूप नगरों की अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ा।

साथ ही यह भी व्याख्या दी जाती है कि धरती में हुए आन्तरिक परिवर्तनों के कारण इस क्षेत्र के नदी तरंगों (मार्गों) पर भी प्रभाव पड़ा। घग्घर एक शक्तिशाली नदी होती थी तथा पंजाब, राजस्थान, कच्छ रन से गुजरकर समुद्र में गिरती थी। सतलुज और यमुना इसकी सहायक नदियाँ थीं। विवर्तनिक विक्षोभ (पृथ्वी के धरातल के बहुत बड़े क्षेत्र का ऊपर उठ जाना) के कारण सतलुज सिंधु में मिल गई तथा यमुना मार्ग बदलकर गंगा में मिल गई। इससे घग्घर जलविहीन हो गई। इससे हाकड़ा क्षेत्र सूख गया जिससे इस क्षेत्र में बसे नगरों के लिए समस्याएँ पैदा हो गईं और ये नगर समाप्त हो गए।

4. आर्यों के आक्रमण-व्हीलर ने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। इसके पक्ष में वे आक्रमण के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। प्रथम, हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में सड़कों पर मानव कंकाल पड़े मिले हैं। एक कमरे में 13 स्त्री-पुरुषों तथा बच्चों के कंकाल मिले . हैं। मोहनजोदड़ो के अन्तिम चरण में सड़कों पर तथा घरों में मनुष्यों के कत्लेआम के प्रमाण मिले हैं। एक संकरी गली को जॉन लि ने डैडमैन लेन का नाम दिया है। दूसरा, ऋग्वेद में आर्यों के देवता इन्द्र को ‘पुरन्धर’ कहा जाता था अर्थात् ‘किले तोड़ने वाला’।

तीसरा, ऋग्वेदकालीन आर्यों के आवास क्षेत्र में पंजाब एवं घग्घर क्षेत्र भी शामिल था तथा ऋग्वेद में एक स्थान पर ‘हरियूपिया’ नामक स्थान का उल्लेख है। व्हीलर ने कहा है कि यह स्थान हड़प्पा ही है और आर्यों ने यहाँ पर एक युद्ध लड़ा था। अतः हड़प्पा के शहरों को आर्यों ने ही आक्रमण करके नष्ट कर दिया। परंतु यह सिद्धान्त अब मान्य नहीं है। पहली बात तो यह है कि हड़प्पा सभ्यता के ह्रास का समय 1800 ई०पू० माना जाता है। आर्यों के आने का काल लगभग 1500 ई०पू० बताया जाता है।

5. पर्यावरण असन्तुलन तथा आर्थिक-राजनीतिक प्रणाली का ढहना-हाल ही में पुरातत्वविदों ने हड़प्पा सभ्यता के ह्रास को पारिस्थितिक (Ecological) कारणों में ढूँढना शुरु किया है। पुरातत्त्वविदों द्वारा दिए गए तर्कों की संक्षेप में जानकारी इस प्रकार है

(i) फेयर सर्विस ने हड़प्पा सभ्यता के नगरों की जनसंख्या तथा उसकी खाद्य आवश्यकता का हिसाब लगाया। उनका मानना है कि एक ओर तो जनसंख्या और पशु संख्या बढ़ रही थी, दूसरी ओर इसके दबाव से जंगल समाप्त होने लगे। इससे बाढ़ और सूखे जैसी समस्याएँ बढ़ीं। इसका अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ा। लोग इस क्षेत्र को छोड़कर जीविका के लिए अच्छे स्थानों पर चले गए।

(ii) बी०के० थापर और रफीक मुगल का विचार है कि घग्घर-हाकड़ा नदी प्रणाली के धीरे-धीरे सूखने या विलुप्त हो जाने से समस्याएँ बढ़ीं। वनों का विनाश होने लगा। पशुओं द्वारा अधिक चराई से जमीन का कटाव तथा क्षारीयता बढ़ी। साथ-ही-साथ जल संसाधनों का सीमा से अधिक प्रयोग हुआ। सरीन रत्नाकर का मानना है कि उत्थापक सिंचाई प्रणाली (Lift Irrigation) द्वारा जल का सीमाओं से अधिक उपयोग से जल-स्तर कम हो गया अर्थात् जिन अनुकूल परिस्थितियों और संसाधनों के कारण सभ्यता का उदय और विकास हुआ, उन्हीं के अभाव में सभ्यता का विनाश हो गया।

(iii) जंगलों की कटाई को भी हड़प्पा सभ्यता के विनाश का कारण बताया गया है। यह सभ्यता कांस्ययुगीन थी। ताँबे तथा काँसे के उत्पादन के लिए बड़ी मात्रा में लकड़ी का प्रयोग होता था। रत्नागर का कहना है कि लकड़ी के बड़े पैमाने पर प्रयोग के कारण वन नष्ट हो गए होंगे। वनों की कटाई का प्रकृति की छटा, वर्षा, जमीन की उत्पादकता पर प्रभाव पड़ा होगा। इससे पारिस्थितिक असन्तुलन (Ecological Imbalance) हो गया होगा।

एम० केनोयर ने भी इसका समर्थन किया है तथा लिखा है, “हड़प्पाकालीन लोग पर्यावरण के प्रति सचेत नहीं थे। उन्होंने अन्य लोगों की भाँति घने वनों को बेपरवाही से कांटकर उनकी लकड़ी का प्रयोग कर लिया।” स्पष्ट है कि हड़प्पा सभ्यता का पतन अनेक कारणों की वजह से हुआ।

प्रश्न 6.
हड़प्पा सभ्यता के अनुसंधान की कहानी पर लेख लिखिए।
उत्तर:
हड़प्पा की खोज की कहानी काफी रोचक है कि आखिर हड़प्पा सभ्यता की खोज हुई कैसे? हड़प्पा के पतन के बाद – लोग धीरे-धीरे इन नगरों को भूल गए। फिर सैकड़ों वर्षों बाद इस क्षेत्र में लोग पुनः रहने लगे। बाढ़, मृदा क्षरण या भूमि जोतते हुए यहाँ से कला-तथ्य निकलने पर स्थानीय लोग यह समझ नहीं पाते थे कि इनका क्या करें। अन्ततः पुरातत्वविदों ने हड़प्पा सभ्यता को खोज निकाला। खोज की कहानी निम्नलिखित प्रकार से है

1. चार्ल्स मोसन तथा बर्नेस के कार्य-हड़प्पा सभ्यता को खोज निकालने में अनेक व्यक्तियों का योगदान है। 1826 ई० में चॉर्ल्स मोसन नामक एक अंग्रेज पश्चिमी पंजाब में हड़प्पा नामक गाँव में आया। उसने वहाँ बहुत पुरानी बस्ती के बुों और अद्भुत ऊँची-ऊँची दीवारों को देखा। उसने यह समझा कि यह शहर सिकन्दर महान् के समय का है। दूसरा, बर्नेस नामक व्यक्ति ने भी . 1834 में सिंधु क्षेत्र की यात्रा की। उसने भी सिंधु नदी के किनारे किसी ध्वस्त किले की बात कही।

2. कनिंघम के प्रयास, रिपोर्ट और उलझन-कनिंघम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पहले महानिदेशक थे। उनकी रूचि छठी सदी ईसा पूर्व से चौथी सदी ईसा पूर्व तथा इसके बाद के प्राचीन इतिहास के पुरातत्व में थी। उन्होंने बौद्धधर्म से संबंधित चीनी यात्रियों के वृत्तांतों का प्रारंभिक बस्तियों की पहचान करने में प्रयोग किया। सर्वेक्षण के कार्य में शिल्प तथ्य एकत्र किए। उनका रिकॉर्ड रखा तथा अभिलेखों का अनुवाद भी किया।

कनिंघम ने उपलब्ध कला-तथ्यों के सांस्कृतिक अर्थों को भी समझने का प्रयास किया। परंतु हड़प्पा जैसे स्थल की इन चीनी वृत्तांतों में न तो विवरण था, न ही इन नगरों की ऐतिहासिकता की कोई जानकारी। अतः यह नगर ठीक प्रकार से उनकी खोजों के दायरे में नहीं समा पा रहे थे।
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वस्तुतः वे यहाँ से प्राप्त कला-तथ्यों की पुरातनता का अनुमान नहीं लगा पाए। उदाहरण के लिए एक अंग्रेज ने कनिंघम को हड़प्पा की एक मोहर दी (चित्र देखें)। कनिंघम ने अपनी रिपोर्ट में इसका चित्र भी दिया परंतु वह इसे इसके समय-संदर्भ में रख पाने में असफल । रहे। इसका कारण यह रहा होगा कि अन्य विद्वानों की भांति वह भी यह मानते । थे कि भारत में पहली बार नगरों का अभ्युदय गंगा-घाटी में 6 वीं, 7वीं सदी ई०पू० से हुआ। अतः यह आश्चर्य की बात नहीं है कि वे हड़प्पा के महत्त्व को नजरअंदाज कर गए।

3. नवीन सभ्यता की खोज-1921 में दयाराम साहनी ने हड़प्पा स्थल से । अनेक मोहरें उत्खनन में प्राप्त की। ऐसा ही कार्य 1922 में राखालदास बनर्जी चित्र : कनिंघम द्वारा दिया मोहर का चित्र ने मोहनजोदड़ो में किया। दोनों स्थलों की मोहरों में समानता थी। इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि यह स्थल एक ही पुरातात्विक संस्कृति का हिस्सा है। इन खोजों के आधार पर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के तत्कालीन महानिदेशक सर जॉन मार्शल ने 1924 ई० में (लन्दन में प्रकाशित एक साप्ताहिक पत्र में) सारी दुनिया के समक्ष इस नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की।

सारी दुनिया में इससे सनसनी फैल गई। इस बारे में एस.एन.राव ने ‘द स्टोरी ऑफ इंडियन आर्कियोलॉजी’ में लिखा, “मार्शल ने भारत को जहाँ पाया था, उसे उससे तीन हजार वर्ष पीछे छोड़ा।” उल्लेखनीय है कि हड़प्पा जैसी मोहरें मेसोपोटामिया से भी मिली थीं। अब यह स्पष्ट हुआ कि यह एक नई सभ्यता थी जो मेसोपोटामिया के समकालीन थी।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 7.
हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना व भवन निर्माण प्रणाली पर लेख लिखिए।
उत्तर:
नगरीय प्रणाली हड़प्पा की विकसित अवस्था (Mature Stage) से सम्बन्ध रखती है। इस नगरीकरण को विद्वानों ने नगरीय क्रान्ति की संज्ञा दी है। इसका विकास किसी शक्तिशाली केन्द्रीय सत्ता के बिना नहीं हो सकता था। सड़कों की व्यवस्था, बड़े पैमाने पर जल निकास प्रणाली का विकास एवं उसकी देख-रेख, विशाल नगर, किले आदि सभी एक शक्तिशाली केन्द्रीय शासन प्रणाली के मौजूद होने का संकेत देते हैं। हड़प्पा सभ्यता के नगरीकरण की दूसरी मुख्य बात यह थी कि इन नगरों में बड़े पैमाने पर दक्ष शिल्पकार थे। तीसरा इन नगरों के एशिया के सुदूर देशों के साथ व्यापार सम्पर्क थे। मेसोपोटामिया के साथ समुद्री व्यापार उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा था।

1. नगर योजना-हड़प्पा सभ्यता की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता उसकी नगर योजना तथा सफाई व्यवस्था है। नगरों में सड़कें और गलियाँ एक योजना के अनुसार बनाई गई थीं। मुख्य मार्ग उत्तर से दक्षिण की ओर जाते थे। उनको काटती सड़कें और गलियाँ मुख्य मार्ग को समकोण पर काटती थीं जिससे नगर वर्गाकार या आयताकार खण्डों में विभाजित हो जाते थे।

मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगन जैसे नगर दो भागों (पूर्वी तथा पश्चिमी) में बंटे थे। पूर्वी भाग में ईंटों से बनाए ऊँचे चबूतरे पर स्थित बस्ती के चारों ओर परकोटा (किला) होता था जिसे ‘नगर दुर्ग’ कहा जाता है। इसके पश्चिम की ओर के आवासीय क्षेत्र को निचला नगर कहा जाता है। नगर दुर्ग का क्षेत्रफल निचले नगर से कम था। मोहनजोदड़ो के नगर दुर्ग में पकाई ईंटों से बने अनेक बड़े भवन पाए गए हैं, जैसे विशाल स्नानागार, प्रार्थना भवन, सभा भवन एवं अन्नागार। हड़प्पा में ‘नगर-दुर्ग’ के उत्तर में कारीगरों के मकान, उनके कार्य-स्थान (चबूतरे) और एक अन्नागार था।

कालीबंगन की नगर योजना में दुर्ग क्षेत्र तथा निचले नगर दोनों के परकोटा (मोटी दीवार) था। सुरकोतदा की नगर-योजना कालीबंगन के समान थी। नगर दुर्ग तथा निचला नगर आपस में जुड़े हैं तथा दोनों के चारों ओर परकोटा है। धौलावीरा (कच्छ में) नगर तीन मुख्य भागों (नगर दुर्ग, मध्यम नगर तथा निचला नगर) में विभाजित था। हड़प्पा के नगरों में नगर दुर्ग में पुरोहित एवं शासक रहते थे तथा निचले नगर में व्यापारी, दस्तकार, शिल्पकार एवं अन्य लोग रहते थे।

2. नगर द्वार-जैसा कि ऊपर बताया गया है कि अधिकांश में विशेषकर दुर्ग-नगर के चारों ओर मोटी दीवार होती थी। इस परकोटे में स्थान-स्थान पर प्रवेश द्वार बने होते थे। धौलावीरा और सुरकोतदा में नगर प्रवेश द्वार काफी विशाल एवं सुन्दर थे, जबकि अन्य नगरों में प्रवेश द्वार साधारणं थे। कुछ नगर द्वारों के निकट सुरक्षाकर्मियों के कक्ष भी बने हुए थे जो साधारणतः बहुत छोटे होते थे। हड़प्पा सभ्यता के नगरों के चारों ओर दीवारों तथा नगर द्वारों के निर्माण का उद्देश्य शत्रुओं के आक्रमण से रक्षा, लुटेरों एवं पशुचोरों से सुरक्षा करना तथा बाढ़ों से नगरों की रक्षा करना रहा होगा।

3. सड़कें और गलियाँ-हड़प्पा कालीन नगर पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार बनाए जाते थे। सड़कें और गलियाँ सीधी होती थीं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। सड़कें पूर्व से पश्चिम या उत्तर से दक्षिण दिशा में बिछी हुई थीं। इससे नगर कई भागों में बंट जाते थे। मोहनजोदड़ो में मुख्य सड़क 10.5 मीटर चौड़ी थी, इसे ‘प्रथम सड़क’ कहा गया है। इस ‘प्रथम सड़क’ पर . एक साथ पहिए वाले सात वाहन गुजर सकते थे। अन्य सड़कें 3.6 से 4 मीटर तक चौड़ी थीं। गलियाँ एवं गलियारे 1.2 मीटर (4 फुट) या उससे अधिक चौड़े थे। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सड़कों, गलियों और नालियों की व्यवस्था लागू करने तथा निरन्तर देखभाल के लिए नगरपालिका या नगर प्राधिकरण जैसी कोई प्रशासनिक व्यवस्था रही होगी।

4. नालियों की व्यवस्था व्यापक नालियों की व्यवस्था हड़प्पा सभ्यता की अद्वितीय विशेषता थी, जो हमें अन्य किसी भी समकालीन सभ्यता के नगरों में प्राप्त नहीं होती है। प्रत्येक घर में छोटी नालियाँ होती थीं जो घर के पानी को बाहर गली या सड़क के किनारे बनी नाली में पहुँचाती थीं। प्रमुख सड़कों एवं गलियों के साथ 1 से 2 फुट गहरी ईंटों तथा पत्थरों से ढकी नालियाँ होती थीं। मुख्य नालियों में कचरा छानने की व्यवस्था भी होती थी।

नालियों में ऐसी व्यवस्था करने के लिए बड़े गड्ढे (शोषगत) होते थे, जो पत्थरों या ईंटों से ढके होते थे जिन्हे सफाई करने के लिए आसानी से हटाया और वापस रख दिया जाता था। मुख्य नालियाँ एक बड़े नाले के साथ जुड़ी होती थीं जो सारे गदे पानी को नदी में बहा देती थीं। हड़प्पाकालीन नगरों की जल निकास प्रणाली पर टिप्पणी करते हुए ए०एल० बाशम ने लिखा है, नालियों की अद्भुत व्यवस्था सिन्धु घाटी के लोगों की महान सफलताओं में से एक थी। रोमन सभ्यता के अस्तित्व में आने तक किसी भी प्राचीन सभ्यता की नाली व्यवस्था इतनी अच्छी नहीं थी।”

5. ईंटें-हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और अन्य प्रमुख नगरों में ईंटों का व्यापक पैमाने पर प्रयोग हुआ है। ये ईंटें कच्ची और पक्की दोनों प्रकार की थीं। मोहदजोदड़ो में चबूतरों पर धूप में सुखाई गई ईंटों का प्रयोग किया गया है। हड़प्पा में कच्ची ईंटों की पर्त पर पक्की ईंटों का इस्तेमाल हुआ है। कालीबंगन में पक्की ईंटों का प्रयोग कुओं, नालियों एवं स्नानगृहों के बनाने में किया गया है। इन ईंटों का मुख्य आकार 20%2″× 10/2″× 31/4″ होता था जो 1 : 2 : 4 अनुपात में है। नालियों को ढकने के लिए काफी बड़ी ईंटों का प्रयोग हुआ है।

6. भवन-हड़प्पा सभ्यता के नगरों के भवन निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं

  1. आवासीय मकान,
  2. विशाल भवन,
  3. सार्वजनिक स्नानागार,
  4. अन्नागार,
  5. जलाशय तथा डॉकयार्ड आदि।

1. आवासीय मकान-हड़प्पा तथा मोहदजोदड़ो स्थानों में नागरिक निचले नगर में भवन समूहों में रहते थे। ये मकान योजनापूर्वक बनाए जाते थे। प्रत्येक मकान के बीच एक खला आंगन तथा चारों तरफ छोटे-बड़े कमरे होते थे। बाढ से सरक्षा हेत मकान ऊँचे चबूतरे पर तथा गहरी नींव के होते थे। दीवारें मोटी एवं पक्की ईंटों तथा गारे की थीं। छतों में लकड़ी और ईंटों तथा फर्श में भी ईंटों का प्रयोग था। प्रकाश व हवा के लिए दरवाजे, खिड़कियाँ तथा रोशनदान बनाए जाते थे।

दरवाजे खिड़कियाँ मुख्य सड़क की तरफ न खुलकर गली की तरफ खुलती थी। घर में रसोईघर, शौचालय एवं स्नानघर होते थे। बड़े घरों में कुआँ भी होता था। कई मकान तो दो मंजिलों के बने होते थे। मकानों में भी विविधता थी। गरीब लोगों के मकान छोटे थे। छोटी बैरकों में मजदूर तथा दास रहते थे। निचले शहर के मकानों में बड़ी संख्या में कर्मशालाएँ (कारखाने) (Workshops) भी थीं।

2. विशाल भवन-हड़प्पाकालीन नगरों के दुर्ग वाले भाग में विशाल भवन प्राप्त हुए हैं। मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा में ऐसे अनेक विशाल भवन मिले हैं जो शायद शासक वर्ग के लोगों द्वारा प्रयोग में लाए जाते होंगे।

3. सार्वजनिक स्नानागार-हड़प्पाकालीन सबसे प्रसिद्ध भवन मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार है। आयताकार में बना यह स्नानागार 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.45 मीटर गहरा है। इसके उत्तर और दक्षिण में सीढ़ियाँ बनी हैं। ये सीढ़ियाँ स्नानागार के तल तक जाती हैं। यह स्नानागार पक्की ईंटों से बना है। इसे बनाने में चूने तथा तारकोल का प्रयोग किया गया था। इसके साथ ही कुआँ था जिससे इसे पानी से भरा जाता था। साफ करने के लिए इसकी पश्चिमी दीवार में तल पर नालियाँ बनी थीं। स्नानागार के चारों ओर मंडप एवं कक्ष बने हुए थे। विद्वानों का मानना है कि इस स्नानागार और भवन का धार्मिक समारोहों के लिए प्रयोग किया जाता था।

4. अन्नागार-हड़प्पा में 50 × 40 मीटर के आकार का एक भवन मिला है जिसके बीच में 7 मीटर चौड़ा गलियारा था। पुरातत्ववेत्ताओं ने इसे विशाल अन्नागार बताया है जो अनाज, कपास तथा व्यापारिक वस्तुओं के गोदाम के काम आता था।

5. जलाशय तथा डॉकयार्ड-धौलावीरा में एक विशाल जलाशय के अवशेष मिले हैं। यह जलाशय 80.4 मीटर लम्बा, 12 मीटर चौड़ा तथा 7.5 मीटर गहरा था। कच्छ क्षेत्र में पानी की कमी रहती थी अतः ऐसे जलाशय का प्रयोग जल संग्रहण के लिए किया जाता होगा। इसी प्रकार लोथल में अन्नागार तथा डॉकयार्ड (गोदी) मिला है। पक्की ईंटों से बना यह स्थल 214 मीटर लम्बा, 36 मीटर चौड़ा तथा 4.5 मीटर गहरा है। यह डॉकयार्ड एक जलमार्ग से पास की खाड़ी से जुड़ा है।

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