Class 12

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वैश्वीकरण के राजनैतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक प्रभावों का वर्णन करें।
अथवा
वैश्वीकरण के राजनीतिक एवं आर्थिक आयामों का वर्णन कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण के राजनीतिक तथा सांस्कतिक आयामों का वर्णन करें।
अथवा
वैश्वीकरण के आर्थिक पहलू का वर्णन करें।
उत्तर:
वर्तमान समय में संचार क्रान्ति (Communication Revolution) ने समस्त संसार की दूरियां कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसी कारण सम्पूर्ण विश्व एक ‘विश्व गांव’ (Global Village) में बदल गया है। विश्व में संचार क्रान्ति की प्रभावशाली भूमिका के कारण एक नई विचारधारा का जन्म हुआ, जिसे वैश्वीकरण (Globalisation) कहा जाता है। वैश्वीकरण के आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक पक्षों का वर्णन इस प्रकार है

1. आर्थिक पक्ष (Economic Manifestations):
वैश्वीकरण का आर्थिक पक्ष बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि आर्थिक आधार पर ही वैश्वीकरण की धारणा ने अधिक ज़ोर पकड़ा है। आर्थिक वैश्वीकरण के अन्तर्गत ही अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व व्यापार संगठन तथा विश्व बैंक प्रायः इस प्रकार की नीतियां बनाते हैं, जो विश्व के अधिकांश देशों को प्रभावित करती हैं। वैश्वीकरण के कारण विश्व के अधिकांश देशों में आर्थिक प्रवाह बढ़ा है। इसके अन्तर्गत वस्तुओं, पूंजी तथा जनता का एक देश से दूसरे देश में जाना सरल हुआ है।

विश्व के अधिकांश देशों ने आयात से प्रतिबन्ध हटाकर अपने बाजारों को विश्व के लिए खोल दिया है। वैश्वीकरण के चलते बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपना अधिकांश निवेश विकासशील देशों में कर रही हैं। यद्यपि वैश्वीकरण के समर्थकों के अनुसार वैश्वीकरण के कारण अधिकांश लोगों को लाभ होगा तथा उनका जीवन स्तर सुधरेगा। परन्तु वैश्वीकरण के आलोचक इससे सहमत नहीं हैं, उनके अनुसार विकसित देशों ने अपने वीज़ा नियमों को सरल बनाने की अपेक्षा अधिक कठोर बनाना शुरू कर दिया है। इसके अतिरिक्त वैश्वीकरण का लाभ एक छोटे से भाग में रहने वाले लोगों को मिला है, सभी लोगों को नहीं।

2. सांस्कृतिक पक्ष (Cultural Manifestations):
वैश्वीकरण का सांस्कृतिक पक्ष भी लोगों के सामने आया है। हम विश्व के किसी भी भाग में रहें, वैश्वीकरण के प्रभावों से मुक्त नहीं हो सकते। वर्तमान समय में लोग क्या खाते हैं, क्या देखते हैं, क्या पहनते, क्या सोचते हैं, इन सभी पर वैश्वीकरण का प्रभाव साफ़ देखा जा सकता है। वैश्वीकरण से विश्व में सांस्कृतिक समरूपता का उदय होना शुरू हुआ है, परंतु यह कोई विश्व संस्कृति नहीं है बल्कि यूरोपीय देशों एवं अमेरिका द्वारा अपनी संस्कृति को विश्व में फैलाने का परिणाम है।

लोगों द्वारा पिज्जा एवं बर्गर खाना तथा नीली जीन्स पहनना अमेरिकी संस्कृति का प्रभाव ही है। विश्व के विकसित देश अपनी आर्थिक ताकत के बल पर विकासशील एवं पिछड़े देशों पर अपनी संस्कृति लादने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे कि एक देश विशेष की संस्कृति के पतन होने का डर पैदा हो गया है। परन्तु वैश्वीकरण के समर्थकों का कहना है कि संस्कृति के पतन की आशंका नहीं है, बल्कि इससे एक मिश्रित संस्कृति का उदय होता है, जैसे कि आज भारत तथा कुछ हद तक अमेरिका के युवा नीली जीन्स पर खादी का कुर्ता पहनना पसन्द करते हैं।

3. राजनीतिक पक्ष (Political Manifestations):
वैश्वीकरण का प्रभाव आर्थिक एवं सांस्कृतिक पक्षों से ही नहीं बल्कि राजनीतिक पक्ष से भी देखा जाना चाहिए। राजनीतिक पक्ष पर वैश्वीकरण के प्रभावों का वर्णन तीन आधारों पर किया जा सकता है। प्रथम यह कि वैश्वीकरण के कारण अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं एवं बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों के हस्तक्षेप से राज्य कमजोर हुए हैं। राज्यों के कार्य करने की क्षमता एवं क्षेत्र में कमी आई है।

वर्तमान समय में कल्याणकारी राज्य की धारणा धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ रही है क्योंकि राज्य कई कल्याणकारी कार्यों से अपना हाथ खींच रहा है। वर्तमान समय में पुन: न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य की धारणा का विकास हो रहा है अर्थात् राज्य केवल कुछ महत्त्वपूर्ण कार्यों तक ही अपने आपको सीमित रख रहा है।

दूसरा यह है कि कुछ विद्वानों के अनुसार वैश्वीकरण के प्रभाव के बावजूद भी राज्यों की शक्तियां कम नहीं हुई हैं। राज्य आज की विश्व राजनीति में प्रमुख स्थान रखता है। राज्य जिन कार्यों से अपने आपको अलग कर रहा है वह अपनी इच्छा से कर रहा है किसी के दबाव में नहीं। तीसरे यह कहा जा रहा है कि वैश्वीकरण के कारण राज्य पहले की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली हुए हैं। आधुनिक तकनीक एवं प्रौद्योगिकी की मदद से राज्य अपने नागरिकों को लाभदायक एवं सही सूचनाएं प्रदान करने में सफल हुए हैं। तकनीक एवं सूचना के प्रभाव से राज्यों को अपने कर्मचारियों की मुश्किलों को जानकर उन्हें दूर करने का अवसर मिला है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 2.
भारत में तथा विश्वस्तर पर वैश्वीकरण के प्रतिरोध पर एक निबंध लिखें।
अथवा
भारत तथा विश्व स्तर पर वैश्वीकरण के प्रतिरोध पर एक विस्तृत नोट लिखें।
अथवा
‘विश्व स्तर पर वैश्वीकरण के प्रतिरोध’ पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
भारत वैश्वीकरण के अखाड़े के रूप में (India as an arena of Globalisation):
1991 में नई आर्थिक नीति अपनाकर भारत वैश्वीकरण एवं उदारीकरण की प्रक्रिया से जुड़ गया। 30 दिसम्बर, 1994 को भारत ने एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौतावादी दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए। 1 जनवरी,1995 को विश्व व्यापार संगठन की स्थापना हुई और भारत इस पर हस्ताक्षर करके इसका सदस्य बन गया। समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद भारत ने अनेक नियमों और औपचारिकताओं को समाप्त करना शुरू कर दिया जो वर्षों से आर्थिक विकास में बाधा बनी हुई है।

इन सुधारों के परिणामस्वरूप विश्व के अनेक विकसित देशों एवं बहु राष्ट्रीय कम्पनियों को भारत एक बहुत बड़ी मण्डी के रूप में नज़र आने लगा क्योंकि भारत की जनसंख्या बहुत अधिक है, तथा यहां पर सस्ता श्रम उपलब्ध है। परिणामस्वरूप विश्व के अनेक विकसित देशों तथा बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों में भारत में निवेश करने की होड़-सी लग गई। एनरॉन, कोका कोला, पेप्सी, पास्को, सोनी, पैनासोनिक, इत्यादि इसके कुछ उदाहरण हैं। चीन जैसे देश ने भी भारत में अपने उत्पाद पिछले कुछ वर्षों से बड़ी तेज़ी से उतारे हैं। सभी देश एवं कम्पनियां भारतीय लोगों को आकर्षित करने में लगी हुई हैं।

भारत में वैश्वीकरण के विरुद्ध संघर्ष (Struggle against Globalisation in India):
वैश्वीकरण के दौर में भारत द्वारा उदारीकरण एवं निजीकरण की प्रक्रिया को अपनाने से जहां कुछ लाभ हुआ है, वहीं कुछ हानि भी हुई है। उदाहरण के लिए वैश्वीकरण का लाभ कुछ थोड़े से लोगों को हुआ है। देश के सभी लोगों विशेषकर ग़रीबों तथा किसानों को इसका लाभ नहीं पहुंचा, इसी कारण समय-समय पर कुछ किसानों द्वारा आत्म-हत्या की खबरें आती रहती हैं।

इसलिए भारत में कुछ संगठनों एवं राजनीतिक दलों ने वैश्वीकरण की धारणा का विरोध किया है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव ने वैश्वीकरण का विरोध करते हुए कहा कि, “भारत पर वैश्वीकरण का बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। कृषि, उद्योग एवं दस्तकारी की कीमत पर घरेलू बाजारों को विदेशी कम्पनियों के दोहन के लिए खोल दिया गया है।” भारत में कुछ स्वयंसेवी संगठनों तथा पर्यावरणवादियों द्वारा वैश्वीकरण का विरोध किया जा रहा है। क्योंकि वैश्वीकरण के बढ़ते प्रभाव के कारण देश का पर्यावरण खराब हो रहा है, जो कि लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।

विश्व स्तर पर वैश्वीकरण का प्रतिरोध (Resistance of Globalisation on world level):
भारत की तरह विश्व स्तर पर भी वैश्वीकरण का विरोध हुआ है। उदाहरण के लिए 1999 में सियाटल, 2001 में कत्तर तथा सन् 2001 में ब्राजील में वैश्वीकरण के विरुद्ध व्यापक रूप में विरोध प्रदर्शन हुए। वामपथियों का कहना है कि वैश्वीकरण पूंजीवाद की ही एक विशेष व्यवस्था है। दक्षिण पंथियों ने भी वैश्वीकरण के कारण राज्यों के कमजोर होने पर इसकी आलोचना की है।

प्रश्न 3.
वैश्वीकरण की परिभाषा दीजिये। इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
अथवा
“वैश्वीकरण” को परिभाषित करें। इसकी मुख्य विशेषताओं का उल्लेख करें।
अथवा
वैश्वीकरण क्या है ? इसकी मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वर्तमान समय में संचार क्रान्ति (Communication Revolution):
ने समस्त संसार की दूरियां कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसी कारण सम्पूर्ण विश्व एक ‘विश्व गांव’ (Global Village) में बदल गया है। विश्व में संचार क्रान्ति की प्रभावशाली भूमिका के कारण एक नई विचारधारा का जन्म हुआ, जिसे वैश्वीकरण (Globalization) कहा जाता है। वैश्वीकरण और लोक प्रशासन का परस्पर गहरा सम्बन्ध है, क्योंकि दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं।

वैश्वीकरण का अर्थ एवं परिभाषा-वैश्वीकरण, विश्वव्यापीकरण या भूमण्डलीकरण (Globalization) एक रोमांचक शब्द है जो अर्थव्यवस्था के बाजारीकरण से सम्बन्धित है। यह शब्द व्यापार के अवसरों की जीवन्तता एवं उसके विस्तार का द्योतक है। वैश्वीकरण की अवधारणा को विचारकों ने निम्न प्रकार से परिभाषित किया है

1. एन्थनी गिडेन्स (Anthony Giddens):
के अनुसार वैश्वीकरण की अवधारणा को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है

  • वैश्वीकरण से अभिप्राय विश्वव्यापी सम्बन्धों के प्रबलीकरण से है।
  • वैश्वीकरण एक ऐसी अवधारणा है जो दूरस्थ प्रदेशों को इस प्रकार जोड़ देती है कि स्थानीय घटनाक्रम का प्रभाव मीलों दूर स्थित प्रदेशों की व्यवस्थाओं एवं घटनाओं पर पड़ता है।

2. राबर्टसन (Robertson):
के मतानुसार, “वैश्वीकरण विश्व एकीकरण की चेतना के प्रबलीकरण से सम्बन्धित अवधारणा है।”

3. गाय ब्रायंबंटी के शब्दों में, “वैश्वीकरण की प्रक्रिया केवल विश्व व्यापार की खुली व्यवस्था, संचार के आधुनिकतम तरीकों के विकास, वित्तीय बाज़ार के अन्तर्राष्ट्रीयकरण, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के बढ़ते महत्त्व, जनसंख्या देशान्तरगमन तथा विशेषतः लोगों, वस्तुओं, पूंजी आंकड़ों तथा विचारों के गतिशील से ही सम्बन्धित नहीं है बल्कि संक्रामक रोगों तथा प्रदूषण का प्रसार भी इसमें शामिल है।” साधारण शब्दों में वैश्वीकरण से अभिप्राय है कि किसी वस्तु, सेवा, पूंजी एवं बौद्धिक संपदा का एक देश से दूसरे देशों के साथ अप्रतिबन्धित आदान-प्रदान। वैश्वीकरण तभी सम्भव हो सकता है जब इस प्रकार के आदान-प्रदान में किसी देश द्वारा कोई अवरोध उत्पन्न न किया जाए। वैश्वीकरण के अंग-विद्वानों के मतानुसार वैश्वीकरण के चार प्रमुख अंग हैं

  • व्यापार अवरोधकों (Trade Barriers) को कम करना ताकि विभिन्न देशों में वस्तुओं का निर्बाध रूप से आदान-प्रदान हो सके।
  • ऐसी परिस्थितियां पैदा करना जिससे विभिन्न देशों में तकनीक (Technology) का बेरोक-टोक प्रवाह हो सके।
  • ऐसा वातावरण तैयार करना जिससे विभिन्न देशों में पूंजी (Capital) का प्रवाह स्वतन्त्र रूप से हो सके।
  • ऐसा वातावरण तैयार करना जिससे श्रम (Labour) का निर्बाध रूप से प्रवाह हो सके।

विशेष रूप से विकसित देशों के समर्थक विचारक वैश्वीकरण का अर्थ निर्बाध व्यापार-प्रवाह, निर्बाध पूंजी-प्रवाह और निर्बाध तकनीक प्रवाह तक सीमित कर देते हैं। परन्तु विकासशील देशों के समर्थक विचारकों का मानना है कि यदि समूचे विश्व को सार्वभौम ग्राम (Global Village) में परिभाषित करना है तो श्रम के निर्बाध-प्रवाह की उपेक्षा नहीं की जा सकती। पिछड़े और विकासशील देशों में श्रम की अधिकता है। अत: इनमें श्रम गतिशीलता को मान्यता देना आवश्यक है।

वैश्वीकरण की विशेषताएं-वैश्वीकरण की निम्नलिखित विशेषताएं हैं

  • वैश्वीकरण के कारण यातायात एवं संचार के साधनों का विकास हुआ है, जिससे भूगौलिक दूरियां समाप्त हो गई हैं।
  • वैश्वीकरण के कारण श्रम बाज़ार भी विश्वव्यापी हो गया है, क्योंकि अब बहुत अधिक मात्रा में लोग रोज़गार के लिए दूसरे देश में जाते हैं।
  • वैश्वीकरण के कारण इलैक्ट्रोनिक मीडिया का न्यायक प्रचार एवं प्रसार हुआ है, जिससे एक वैश्विक संस्कृति की स्थापना हुई है।
  • वैश्वीकरण के कारण शिक्षा का भी वैश्विक स्वरूप उभर कर सामने आया है। वैश्वीकरण के अनेक विकासशील देशों के शिक्षा कार्यक्रम भी विश्व स्तरीय हो गए हैं।
  • वैश्वीकरण के कारण वर्तमान समय में बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर रोज़गार प्रदान कर रही हैं।
  • वैश्वीकरण के कारण पेशेवरों (Professionals) की आवाजाही बहुत अधिक हो गई है।
  • श्रम बाजार के कारण लोगों को रोजगार के लिए दूसरे देशों में भेजने के लिए जगह-जगह पर ब्रोकर एवं एजेन्ट सक्रिय हो गए हैं।
  • वैश्वीकरण से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर धन का आदान-प्रदान या हस्तान्तर आसान हो गया है।

प्रश्न 4.
वैश्वीकरण के पक्ष और विपक्ष में चार-चार तर्क दीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण के सकारात्मक पक्ष का वर्णन कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण के नकारात्मक पक्ष का वर्णन करें।
अथवा
वैश्वीकरण के पक्ष में तर्क दीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण के पक्ष व विपक्ष में कोई चार-चार तर्क दीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण का अर्थ-इसके लिए लिए प्रश्न नं0 3 देखें। पक्ष में तर्क-(सकारात्मक पक्ष)

(1) वैश्वीकरण तेजी से बदलते हुए अन्तर्राष्ट्रीय परिवेश में नितान्त अनिवार्य प्रक्रिया है। यह विद्यमान तथा लगातार बढ़ रही अन्तर्राष्ट्रीय अन्तर्निर्भरता का स्वाभाविक विकास है।

(2) वैश्वीकरण के कारण पूंजी की गतिशीलता बढ़ी है और इसका चलन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हुआ है। इससे विकासशील देशों की अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं पर निर्भरता कम हुई है।

(3) यद्यपि वैश्वीकरण की प्रक्रिया में कुछ दोष हैं, लेकिन इससे यह प्रक्रिया व्यर्थ नहीं हो जाती। वास्तव में वैश्वीकरण की प्रक्रिया अभी प्रारम्भिक दौर में है। जब एक बार यह प्रक्रिया पूर्ण होकर सच्चे अर्थों में विश्वव्यापी (Global) बन जाएगी तो यह समूचे विश्व के निरन्तर विकास का साधन बनेगी।

(4) विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation) को वैश्वीकरण के एक उपकरण के रूप में समझना चाहिए। यदि इस संगठन द्वारा विश्व व्यापार को निष्पक्ष रूप से नियमित किया जाए तो वैश्वीकरण की प्रक्रिया अत्यन्त लाभदायक हो सकती है।

(5) पिछड़े देशों में तकनीक एवं प्रौद्योगिकी की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। लेकिन वैश्वीकरण की प्रक्रिया द्वारा इन देशों को उन्नत तकनीक का लाभ मिल सकता है।

(6) वैश्वीकरण ने विश्वव्यापी सूचना क्रान्ति को जन्म दिया है। इससे समाज का प्रत्येक वर्ग जुड़ने लगा है। इससे सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा मिला है।

(7) बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के फैलाव से रोजगार की सम्भावनाएं बढ़ गई हैं। साथ ही रोज़गार की गतिशीलता में भारी वृद्धि हुई है।

(8) वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने उदारवादी विचारों के प्रसार द्वारा शासन व्यवस्थाओं पर गहन प्रभाव डाला है। चीन जैसा कट्टर साम्यवादी देश भी उदारवाद की प्रक्रिया से प्रभावित हुआ है।

विपक्ष में तर्क (नकारात्मक पक्ष)-वैश्वीकरण के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं

(1) वैश्वीकरण की प्रक्रिया का समर्थन विकसित देश विशेषतया अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस, जापान, जर्मनी आदि कर रहे हैं। आलोचकों के अनुसार विकसित देशों को अपना तैयार माल बेचने के लिए बड़े-बड़े बाजारों की आवश्यकता है। ये बाज़ार वैश्वीकरण की प्रक्रिया द्वारा प्राप्त हो सकते हैं।

(2) आलोचकों के अनुसार बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की एकाधिकारवादी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।

(3) वैश्वीकरण की प्रक्रिया का लाभ अधिकांश जनता तक नहीं पहुंच पाया है। इससे आर्थिक असमानता को बढ़ावा मिला है। विशेषतया तीसरी दुनिया में गरीब देशों में बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है।

(4) आलोचकों का मत है कि वैश्वीकरण स्वाभाविक रूप से स्वीकृत नहीं बल्कि एक थोपी हुई प्रक्रिया है।

(5) यह अलोकतान्त्रिक प्रक्रिया है जो लोकतान्त्रिक पर्दे में चलाई जाती है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया का लाभ समाज का उच्च सुविधा सम्पन्न वर्ग उठा रहा है।

(6) सरकार द्वारा निरन्तर सब्सिडी एवं अन्य सहायता राशि में कटौती की जा रही है। इसकी प्रत्यक्ष मार निर्धन वर्ग पर पड़ रही है।

(7) वैश्वीकरण ने एक सांस्कृतिक संकट खड़ा कर दिया है। वैश्वीकरण में बड़ी तेज़ी से उपभोक्तावाद को बढ़ावा दिया जा रहा है।

(8) आलोचकों का विचार है कि वैश्वीकरण का शिक्षा व्यवस्था पर भी गम्भीर प्रभाव पड़ा है।

वैश्वीकरण के कारण अंग्रेजी भाषा का प्रभुत्व स्थापित हो गया है जिससे अन्य भाषाओं पर प्रभाव पड़ा है। शिक्षा का तीव्र गति से वाणिज्यीकरण (Commercialization) हो रहा है और बाज़ारोन्मुखी शिक्षा पर बल दिया जा रहा है। शिक्षा व्यवस्था में मूल्यों एवं नैतिकता के स्तर में गिरावट आई है। निष्कर्ष-वैश्वीकरण के पक्ष और विपक्ष में दिए गए तर्कों के आधार पर हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि वैश्वीकरण को समाप्त करने की आवश्यकता नहीं है। यह तो एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।

समस्या यह है कि वैश्वीकरण के नाम पर कुछ सम्पन्न देशों ने अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया है। विकसित देश अपनी अत्याधुनिक तकनीक, पूंजी व व्यापारिक स्थिति के कारण वैश्वीकरण की प्रक्रिया को दोषपूर्ण बना रहे हैं। अभी तीसरी दुनिया के देशों में वैश्वीकरण की प्रक्रिया ठीक से लागू नहीं हुई है। अतः अभी से इसका मूल्यांकन करना उचित भी नहीं है। आज आवश्यकता इस बात की है कि वैश्वीकरण के नाम पर की जाने वाली संकीर्ण राजनीति को रोका जाए और किसी प्रमुख संस्था द्वारा इस प्रक्रिया को निष्पक्ष एवं बिना किसी दबाव के निर्बाध रूप से संचालित किया जाए।

प्रश्न 5.
वैश्वीकरण या भू-मण्डलीयकरण का अर्थ बताएं। भारत द्वारा भू-मण्डलीयकरण या वैश्वीकरण की नीति को अपनाने के मुख्य लाभ बताएं।
उत्तर:
वैश्वीकरण या भू-मण्डलीयकरण का अर्थ-इसके लिए प्रश्न नं0 3 देखें। भारत द्वारा भू-मण्डलीयकरण या वैश्वीकरण की नीति को अपनाने के लाभ भारत द्वारा भूमण्डलीयकरण या वैश्वीकरण की नीति को अपनाने के निम्नलिखित लाभ प्राप्त हुए हैं

  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया के कारण भारत की आर्थिक विकास दर में वृद्धि हुई है।
  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया से भारत में बुनियादी एवं ढांचागत सुविधाओं का विकास हुआ है।
  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया से भारत को आधुनिकतम तकनीक एवं प्रौद्योगिकी प्राप्त हुई है।
  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया के कारण भारत में विदेशी आर्थिक निवेश बढ़ा है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 6.
वैश्वीकरण की अवधारणा के उदय के विभिन्न कारणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
“वैश्वीकरण”के उदय के मुख्य कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण के उद्भव के निम्नलिखित कारण हैं

  • विश्व में बदलते हुए परिवेश में राष्ट्रों में परस्पर अन्तर्निभरता बढ़ी है, जिसके कारण वैश्वीकरण का विकास हुआ।
  • विकासशील देशों की अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक पर बढ़ती हुई निर्भरता को कम करने के लिए वैश्वीकरण का उद्भव हुआ।
  • विश्व में वर्तमान समय में हो रहे निरन्तर विकास के एक साधन की आवश्यकता थी, जिसे वैश्वीकरण ने पूरा किया है।
  • विकासशील एवं पिछड़े देशों को उन्नत किस्म के बीज और औजार देने के लिए भी वैश्वीकरण का उद्भव हुआ है।
  • विश्व व्यापी सूचना क्रान्ति ने भी वैश्वीकरण के उदय में सहयोग दिया है।
  • वैश्वीकरण के उदय का एक अन्य कारण बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का फैलाव है।
  • विश्व में लगातार उदारवादी एवं प्रजातान्त्रिक विचारों के फैलाव ने भी वैश्वीकरण को बढ़ावा दिया है।

प्रश्न 7.
भू-मण्डलीयकरण या वैश्वीकरण के प्रति भारतीय दृष्टिकोण क्या है ?
अथवा
वैश्वीकरण के प्रति भारत के दृष्टिकोण को स्पष्ट करें।
उत्तर:
भारत एक विकासशील देश है। अन्य विकासशील देशों की तरह भारत में भी वैश्वीकरण की प्रक्रिया को अपनाए हुए अधिक समय नहीं हुआ। 30 दिसम्बर, 1994 को विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बनकर भारत ने आर्थिक उदारीकरण में प्रवेश किया और इसके बाद इस प्रक्रिया को जारी रखा। लेकिन वैश्वीकरण के प्रभावों को इतनी अल्पावधि में स्पष्ट करना अत्यन्त कठिन है।

इसका कारण यह है कि भारत सहित सभी देशों में आर्थिक सुधारों के कार्यक्रम एक समान लागू नहीं किए गए हैं। सभी देशों की परिस्थितियां एक जैसी नहीं हैं और आर्थिक सुधारों की उपलब्धियों पर सर्वत्र सहमति नहीं है। भारतीय सन्दर्भ में वैश्वीकरण के प्रभाव के सम्बन्ध में तीन विचारधाराएं देखी जा सकती हैं।

प्रथम कुछ कट्टरपंथियों का मत है कि वैश्वीकरण के कारण बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत में न केवल आर्थिक क्षेत्र में प्रभुत्व स्थापित कर रही हैं, बल्कि यहां के सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने में भी दखल दे रही हैं। अतः इन कम्पनियों के चंगुल में फंस कर भारत पुनः गुलाम न बन जाए, इसलिए वैश्वीकरण की प्रक्रिया से भारत को दूर रहना चाहिए।

दूसरा, सुधारवादी विद्वानों के अनुसार भारत में फैली व्यापक गरीबी, निरक्षरता और सामाजिक पिछड़ेपन को तब तक दूर नहीं किया जा सकता जब तक भारत भी स्वयं को विश्व अर्थव्यवस्था से नहीं जोड़ता। यदि भारत स्वयं को वैश्वीकरण की प्रक्रिया से नहीं जोड़ता तो उसकी आर्थिक-समाज की कल्पना कभी पूरी नहीं होगी।

इसके अलावा तेजी से बदलती विश्व व्यवस्था में शामिल होने के अलावा भारत के पास कोई विकल्प नहीं है। अन्तर्राष्ट्रीय तकनीक, सहयोग व प्रतिस्पर्धा का लाभ उठाने के लिए भारत को वैश्वीकरण की धारा में प्रवाहित होना होगा। तीसरा विचार जो सार्थक एवं प्रासंगिक है, यह है कि भारत को वैश्वीकरण की प्रक्रिया को अंगीकार करते हुए घरेलू बाज़ार, सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था व राजनीतिक वातावरण के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण आदि को ध्यान में रखना चाहिए। भारत को वैश्वीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि उसकी एक-तिहाई आबादी अभी निर्धनता रेखा से नीचे जीवनयापन कर रही है।

आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक न्याय भी भारत का लक्ष्य होना चाहिए। इस बात को भी सुनिश्चित करना होगा कि कहीं विकसित देश भारत को एक विशाल मंडी के रूप में इस्तेमाल न करें। यहां के लघु और कुटीर उद्योग को बढ़ाना भी सरकार का लक्ष्य होना चाहिए। भारत ने 1980 के प्रारम्भिक दौर में ही तकनीकी विकास के लिए वैश्वीकरण की प्रक्रिया के प्रति अपना सकारात्मक दृष्टिकोण स्पष्ट कर दिया था।

दिवंगत प्रधानमन्त्री श्री राजीव गांधी देश के वैधानिक एवं तकनीकी विकास को सुनिश्चित करने के लिए विदेशी तकनीक के पक्षधर थे। जैसे-जैसे विश्व व्यवस्था में बदलाव आता गया भारत ने भी स्वयं को उदारीकरण और वैश्वीकरण के साथ जोड़ लिया। 1991 में भारत ने नई आर्थिक नीति अपनाई जो इस बात का प्रमाण है कि भारत वैश्वीकरण की प्रक्रिया से अलग नहीं हो सकता। नई आर्थिक नीति भारत के उदारीकरण और वैश्वीकरण के प्रति दृष्टिकोण को स्पष्ट करती है। नई आर्थिक नीति मुख्यतया निम्न विषयों पर बल देती है

1. उद्योग नीति में सुधार (Trade Policy Reforms):
1991 से नई औद्योगिक नीति के अन्तर्गत भारतीय अर्थव्यवस्था को अधिक दक्ष एवं गतिशील तथा प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए कुछ उद्योगों को छोड़कर लगभग सभी उद्योगों को लाइसेंस मुक्त कर दिया गया है।

2. विदेशी निवेश (Foreign Investment):
भारत में विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के अवसरों का पता लगाने के प्रयास तेज़ करने पर बल दिया गया है। उच्च प्राथमिकता वाले उद्योगों में 51 प्रतिशत तक विदेशी पूंजी निवेश की बिना रोक-टोक और अफसरशाही के नियन्त्रणों के बिना अनुमति दी जाएगी। अनिवासी भारतीयों द्वारा भारत में निवेश करने को प्रोत्साहन दिया जाएगा।

3. द्योगिकी समझौते (Foreign Technology Agreements):
भारत सरकार ने औद्योगिक विकास और प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से विदेशों से प्रौद्योगिकी समझौते करने पर विशेष बल दिया है। सरकार ने विदेशी तकनीशियनों की सेवाओं को भाड़े पर लेने की प्रक्रिया को प्रारम्भ कर दिया है।

4. सार्वजनिक क्षेत्र (Public Sector):
सार्वजनिक क्षेत्र ने भारत के आर्थिक विकास विशेषतया आधारभूत एवं ढांचागत उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। नई औद्योगिक नीति में यह कहा गया है कि अब समय आ गया है कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बारे में नया दृष्टिकोण अपनाए। इन उद्योगों को अधिक विकासोन्मुखी बनाने तथा तकनीकी रूप से गतिशील बनाने के उपाय किए जाने चाहिएं। नई नीति में इन क्षेत्रों की इजारेदारी को मात्र 8 क्षेत्रों तक सीमित कर दिया गया है। नई नीति के अन्तर्गत अब वे क्षेत्र भी जो सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुरक्षित थे, निजी क्षेत्र के लिए खोल दिए गए हैं।

5. एकाधिकार तथा प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम (Monopolistic and Restrictions Trade Practices Act-MRTP):
नई औद्योगिक नीति के अन्तर्गत एकाधिकार तथा प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम लागू कर दिया गया है। इसके अन्तर्गत बड़ी कम्पनियों और औद्योगिक घरानों पर से अधिकतम पूंजी की सीमा समाप्त कर दी गई है। अब औद्योगिक घरानों व कम्पनियों को नए उपक्रम लगाने, किसी उद्योग की उत्पादन क्षमता बढ़ाने, कम्पनियों के विलय आदि के बारे में सरकार की अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी।

6. विनिमय दर (Exchange Rate):
1992-93 से भारतीय रुपए को विदेशी मुद्रा में पूर्ण परिवर्तनीय बना दिया गया है।

7. वित्तीय सुधार (Financial Reforms):
निजी क्षेत्र के बैंकों और विदेशी संयुक्त उपक्रमों को भी वित्तीय मामलों में अपना कार्य बढ़ाने की स्वीकृति प्रदान की गई है।

प्रश्न 8.
वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं ? इसके मुख्य उद्देश्यों का वर्णन कीजिये।
अथवा
वैश्वीकरण की परिभाषा दीजिए तथा इसके मुख्य उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा
वैश्वीकरण का क्या अर्थ है ? इसके मुख्य उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण का अर्थ-इसके लिए प्रश्न नं0 3 देखें। वैश्वीकरण का उद्देश्य

  • वैश्विक स्तर पर पूंजी का स्वतंत्र प्रवाह करना।
  • वैश्विक स्तर पर श्रम का स्वतंत्र प्रवाह करना।
  • वैश्विक स्तर पर तकनीक एवं प्रौद्योगिकी का स्वतंत्र प्रवाह करना।
  • वैश्विक संस्कृति को बढ़ावा देना।
  • विश्व को एक गांव के रूप में परिवर्तित करना।
  • संचार साधनों का विकास करके वैश्विक दूरी को कम करना।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
20वीं शताब्दी के अन्तिम दशक में संचार क्रान्ति ने समूचे विश्व की दूरियाँ कम कर दी और समस्त संसार को ‘सार्वभौमिक ग्राम’ (Global Village) में परिवर्तित कर दिया। इस युग में एक नई विचारधारा का सूत्रपात हुआ जिसे वैश्वीकरण (Globalisation) कहा जाता है। यद्यपि भारत इस विचारधारा से अनभिज्ञ नहीं है क्योंकि हमारी संस्कृति ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ को मान्यता प्रदान करती है, लेकिन आधुनिक युग में वैश्वीकरण का विशेष महत्त्व है।

वैश्वीकरण से अभिप्राय है कि किसी वस्तु, सेवा, पूंजी एवं बौद्धिक संपदा का एक देश से दूसरे के साथ अप्रतिबन्धित आदान-प्रदान । वैश्वीकरण तभी सम्भव हो सकता है, जब इस प्रकार के आदान-प्रदान में किसी देश द्वारा कोई अवरोध उत्पन्न न किया जाए।

प्रश्न 2.
वैश्वीकरण को परिभाषित करें।
उत्तर:
1. एन्थनी गिडेन्स (Anthony Giddens) के अनुसार, “वैश्वीकरण की अवधारणा को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है

  • वैश्वीकरण से अभिप्राय विश्वव्यापी सम्बन्धों के प्रबलीकरण से है।
  •  वैश्वीकरण एक ऐसी अवधारणा है जो दूरस्थ प्रदेशों को इस प्रकार जोड़ देती है कि स्थानीय घटनाक्रम का प्रभाव मीलों दूर स्थित प्रदेशों की व्यवस्थाओं एवं घटनाओं पर पड़ता है।

2. राबर्टसन (Robertson) के मतानुसार, “वैश्वीकरण विश्व एकीकरण की चेतना के प्रबलीकरण से सम्बन्धित अवधारणा है।”

3. गाय ब्रायंबंटी के शब्दों में, “वैश्वीकरण की प्रक्रिया केवल विश्व व्यापार की खुली व्यवस्था, संचार के आधुनिकतम तरीकों के विकास, वित्तीय बाज़ार के अन्तर्राष्ट्रीयकरण बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के बढ़ते महत्त्व, जनसंख्या देशान्तरगमन तथा विशेषत: लोगों, वस्तुओं, पूंजी आंकड़ों तथा विचारों के गतिशीलन से ही सम्बन्धित नहीं है बल्कि संक्रामक रोगों तथा प्रदूषण का प्रसार भी इसमें शामिल है।”

प्रश्न 3.
वैश्वीकरण की कोई चार प्रमुख विशेषताएं लिखें।
उत्तर:
वैश्वीकरण की निम्नलिखित विशेषताएं हैं

  • वैश्वीकरण के कारण यातायात एवं संचार के साधनों का विकास हुआ है, जिससे भूगौलिक दूरियां समाप्त हो गई हैं।
  • वैश्वीकरण के कारण श्रम बाज़ार भी विश्वव्यापी हो गया है, क्योंकि अब बहुत अधिक मात्रा में लोग रोज़गार के लिए दूसरे देश में जाते हैं।
  • वैश्वीकरण के कारण इलेक्ट्रोनिक मीडिया का न्यायिक प्रचार एवं प्रसार हुआ है, जिससे एक वैश्विक संस्कृति की स्थापना हुई है।
  • वैश्वीकरण के कारण शिक्षा का भी वैश्विक स्वरूप उभर कर सामने आया है। वैश्वीकरण के अनेक विकासशील देशों के शिक्षा कार्यक्रम भी विश्व स्तरीय हो गए हैं।

प्रश्न 4.
वैश्वीकरण के पक्ष में तर्क दें।
उत्तर:
वैश्वीकरण के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं

(1) वैश्वीकरण तेजी से बदलते हुए अन्तर्राष्ट्रीय परिवेश में नितान्त अनिवार्य प्रक्रिया है। यह विद्यमान तथा लगातार बढ़ रही अन्तर्राष्ट्रीय अन्तर्निर्भरता का स्वाभाविक विकास है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया से जुड़ने के अलावा आज विकासशील राष्ट्रों के पास विकास का कोई अन्य विकल्प नहीं है।

(2) वैश्वीकरण के कारण पूंजी की गतिशीलता बढ़ी है और इसका चलन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हुआ है। इससे विकासशील देशों की अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं पर निर्भरता कम हुई है।

(3) वैश्वीकरण की प्रक्रिया के द्वारा लगातार स्थायी रूप से चलने वाला विकास (Sustainable Development) प्राप्त किया जा सकता है।

(4) पिछड़े देशों में तकनीक एवं प्रौद्योगिकी की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है लेकिन वैश्वीकरण की प्रक्रिया द्वारा इन देशों को उन्नत तकनीक का लाभ मिल सकता है।

प्रश्न 5.
वैश्वीकरण के विपक्ष में तर्क दें।
उत्तर:
वैश्वीकरण के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं

(1) आलोचकों के अनुसार बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की एकाधिकारवादी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियां व्यापार एवं व्यवसाय के नाम पर छोटे एवं पिछड़े देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं में हस्तक्षेप करने लगी हैं।

(2) वैश्वीकरण की प्रक्रिया का लाभ अधिकांश जनता तक नहीं पहुंच पाया है। इससे आर्थिक समानता को बढ़ावा मिला है। विशेषतया तीसरी दुनिया में गरीब देशों में बेरोजगारी बढ़ती जा रही है।

(3) आलोचकों का मत है कि वैश्वीकरण स्वाभाविक रूप से स्वीकृत नहीं बल्कि एक थोपी हुई प्रक्रिया है। वस्तुतः वैश्वीकरण व्यापारोन्मुखी प्रक्रिया है, जो व्यापारिक उद्देश्यों के लिए कार्य करती है। इनमें जन-कल्याण जैसे उद्देश्य गौण होकर रह गए हैं।

(4) यह अलोकतान्त्रिक प्रक्रिया है जो लोकतान्त्रिक पर्दे में चलाई जाती है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया का लाभ समाज का उच्च सुविधा सम्पन्न वर्ग नहीं उठा रहा है। इसने गैर-योजनाबद्ध प्रभावों द्वारा, श्रम-वेतनों को सीमित रख कर और कल्याणकारी राज्य की भूमिका सीमित करके लोकतन्त्र को कमजोर बना दिया है।

प्रश्न 6.
वैश्वीकरण के प्रति भारत की प्रतिक्रिया स्वरूप उठाए गए किन्हीं चार कदमों का वर्णन करें।
उत्तर:

1. उद्योग नीति में सुधार-1991 से नई औद्योगिक नीति के अन्तर्गत भारतीय अर्थव्यवस्था को अधिक दक्ष एवं गतिशील तथा प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए कुछ उद्योगों को छोड़कर सभी उद्योगों को लाइसेंस मुक्त कर दिया गया है।

2. विदेशी निवेश-भारत में विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के अवसरों का पता लगाने के प्रयास तेज़ करने पर बल दिया गया है। उच्च प्राथमिकता वाले उद्योगों में 51 प्रतिशत तक विदेशी पूंजी निवेश की बिना रोक-टोक और अफसरशाही के नियन्त्रणों के बिना अनुमति दी जाएगी। अनिवासी भारतीयों द्वारा भारत में निवेश करने को प्रोत्साहन दिया जाएगा।

3. विदेशी प्रौद्योगिकी समझौते-भारत सरकार ने औद्योगिक विकास और प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से विदेशों से प्रौद्योगिकी समझौते करने पर विशेष बल दिया है। सरकार ने विदेशी तकनीशियनों को सेवाओं को भाड़े पर लेने की प्रक्रिया को प्रारम्भ कर दिया है।

4. विनिमय दर-1992-93 से भारतीय रुपये को विदेशी मुद्रा में पूर्ण परिवर्तनीय बना दिया गया है।

प्रश्न 7.
वैश्वीकरण के परिणामों की प्रकृति की बहस पर टिप्पणी करें।
उत्तर:
वैश्वीकरण में परिणामों की प्रकृति पर बहस का आधार यह है कि वैश्वीकरण की धारणा को अपनाने से एक देश की अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचा है या हानि। दूसरे विश्व के अधिकांश लोगों को इससे लाभ पहुंचा है, या नहीं। वैश्वीकरण के आलोचकों का यह मानना है कि व्यापक संदर्भ में वैश्वीकरण के लाभ कम हैं, जबकि दोष अधिक हैं।

वैश्वीकरण के कारण कल्याणकारी राज्य की धारणा कमजोर पड़ रही है जिससे अधिकांश लोगों को हानि हो रही है। वृद्धों तथा ग़रीबों को इससे सर्वाधिक हानि हुई है। वैश्वीकरण के कारण प्रवासन की प्रक्रिया में भी तेजी आई है, जिससे प्रवासियों के मानवाधिकारों एवं सम्बन्धित देश की सुरक्षा पर भी बहस होनी शुरू हो गई है।

वैश्वीकरण की धारणा के अन्तर्गत अपनाई गई मुक्त व्यापार व्यवस्था से केवल अमीरों को ही लाभ पहुंचा है, ग़रीबों को नहीं। आलोचक वैश्वीकरण को अमेरिकीकरण भी कहते हैं, क्योंकि वैश्वीकरण को सबसे अधिक बढ़ावा अमेरिका से ही मिला है तथा इसके चलते सर्वाधिक लाभ भी अमेरिका को ही हुआ। आलोचकों के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठन अमेरिकी दिशा-निर्देशों के अनुसार चलकर उसे लाभ पहुंचाते हैं, जबकि इसके नकारात्मक प्रभाव अधिकांश विकासशील देशों को भुगतने पड़ते हैं। अत: वैश्वीकरण के परिणामों की प्रकृति अधिकांशतः नकारात्मक ही रही है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 8.
वैश्वीकरण विरोधी आन्दोलन पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
वैश्वीकरण आशानुरूप सफलता प्राप्त नहीं कर पा रहा है। कई उदाहरणों से यह बात बार-बार स्पष्ट हो रही है, कि वैश्वीकरण से केवल अमीर लोगों या देशों को लाभ पहुंच रहा है, विशेषकर अमेरिका को। अधिकांश विकासशील देशों को वैश्वीकरण से हानि ही हुई है। इसी कारण वैश्वीकरण के विरोध में आन्दोलन होने भी शुरू हो गए हैं।

जो लोग वैश्वीकरण का विरोध कर रहे हैं, उन्हें प्रायः एन्टी ग्लोबलाइजेशन कहा जाता है। परन्तु अधिकांश वैश्वीकरण विरोधी स्वयं ही यह शब्द स्वीकार नहीं करते बल्कि इसके स्थान पर ग्लोबल जस्टिस ‘द मूवमैंट ऑफ़ मूवमेन्टस’ तथा ‘द अल्टर ग्लोबलाइज़ेशन शब्द प्रयोग करना उचित समझते हैं।

वैश्वीकरण के विरोध में वस्तुत: 20वीं शताब्दी के अन्त में आन्दोलनों की शुरुआत हुई तथा धीरे-धीरे यह आन्दोलन अधिक तेज़ हो गए। 1999 में ‘सियाटल’ में हुए विश्व व्यापार संगठन के मन्त्री स्तरीय सम्मेलन में वैश्वीकरण के विरोध में तीव्र आन्दोलन हुए। आन्दोलनकारी वैश्वीकरण के प्रभावों को लोगों के लिए तथा पर्यावरण के लिए हानिकारक मानकर इसके विरुद्ध आन्दोलन चलाते हैं।

प्रश्न 9.
वैश्वीकरण के राजनीतिक पक्ष की व्याख्या करें।
उत्तर:
राजनीतिक पक्ष पर वैश्वीकरण के प्रभावों का वर्णन तीन आधारों पर किया जा सकता है प्रथम यह है कि वैश्वीकरण के कारण अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं एवं बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हस्तक्षेप से राज्य कमजोर हुए हैं। वर्तमान समय में कल्याणकारी राज्य की धारणा धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ रही है। वर्तमान समय में पुन: न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य की धारणा का विकास हो रहा है। दूसरा यह है कि कुछ विद्वानों के अनुसार वैश्वीकरण के प्रभाव के बावजूद भी राज्यों की शक्तियां कम नहीं हुई हैं। राज्य जिन कार्यों से अपने आपको अलग कर रहा है, वह अपनी इच्छा से कर रहा है, किसी के दबाव में नहीं।

तीसरे यह कहा जा रहा है कि वैश्वीकरण के कारण राज्य पहले की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली हुए हैं। आधुनिक तकनीक एवं प्रौद्योगिकी की मदद से राज्य अपने नागरिकों को लाभदायक एवं सही सूचनाएं प्रदान करने में सफल हुए हैं। तकनीक एवं सूचना के प्रभाव से राज्यों को अपनी कमजोरियों को जानकर उन्हें दूर करने का अवसर मिला है।

प्रश्न 10.
वैश्वीकरण के आर्थिक पक्ष की व्याख्या करें।
उत्तर:
वैश्वीकरण का आर्थिक पक्ष बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि आर्थिक आधार पर ही वैश्वीकरण की धारणा ने अधिक जोर पकड़ा है। आर्थिक वैश्वीकरण के अन्तर्गत ही अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व व्यापार संगठन तथा विश्व बैंक प्रायः इस प्रकार की नीतियां बनाते हैं जो विश्व के अधिकांश देशों को प्रभावित करती हैं। वैश्वीकरण के कारण विश्व के अधिकांश देशों में आर्थिक प्रवाह बढ़ा है।

इसके अन्तर्गत वस्तुओं, पूंजी तथा जनता का एक देश से दूसरे देश में जाना सरल हुआ है। विश्व के अधिकांश देशों ने आयात से प्रतिबन्ध हटाकर अपने बाजारों को विश्व के लिए खोल दिया है। वैश्वीकरण के चलते बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपना अधिकांश निवेश विकासशील देशों में कर रही हैं।

यद्यपि वैश्वीकरण के समर्थकों के अनुसार वैश्वीकरण के कारण अधिकांश लोगों को लाभ होगा तथा उनका जीवन स्तर सुधरेगा, परन्तु वैश्वीकरण के आलोचक इससे सहमत नहीं हैं। उनके अनुसार वैश्वीकरण का लाभ एक छोटे से भाग में रहने वाले लोगों को मिला है सभी लोगों को नहीं।

प्रश्न 11.
वैश्वीकरण के सांस्कृतिक पक्ष की व्याख्या करें।
उत्तर:
वैश्वीकरण का सांस्कृतिक पक्ष भी लोगों के सामने आया है। हम विश्व के किसी भी भाग में रहें, वैश्वीकरण के प्रभावों से मुक्त नहीं हो सकते । वर्तमान समय में लोग क्या खाते हैं, क्या देखते हैं, क्या पहनते हैं, क्या सोचते हैं, इन सभी पर वैश्वीकरण का प्रभाव साफ़ देखा जा सकता है। वैश्वीकरण से विश्व में सांस्कृतिक समरूपता का उदय होना शुरू हुआ है, परन्तु यह कोई विश्व संस्कृति नहीं है बल्कि यूरोपीय देशों एव अमेरिका द्वारा अपनी संस्कृति को विश्व में फैलाने का परिणाम है।

लोगों द्वारा पिज्जा एवं बर्गर खाना तथा नीली जीन्स पहनना अमेरिका की. संस्कृति का ही प्रभाव है। विश्व के विकसित देश अपनी आर्थिक ताकत के बल पर विकासशील एवं पिछड़े देशों पर अपनी संस्कृति लादने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे कि एक देश विशेष की संस्कृति के पतन होने का डर पैदा हो गया है। परन्तु वैश्वीकरण के समर्थकों का कहना है कि संस्कृति के पतन की आशंका नहीं है बल्कि इससे एक मिश्रित संस्कृति का उदय होता है जैसे कि आज भारत तथा कुछ हद तक अमेरिका के युवा नीली जीन्स पर खादी का कुर्ता पहनना पसन्द करते हैं। ..

प्रश्न 12.
वैश्वीकरण की कोई दो आलोचनाएं लिखें।
उत्तर:
वैश्वीकरण की दो आलोचनाएं निम्नलिखित हैं

(1) आलोचकों के अनुसार बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की एकाधिकारवादी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियां व्यापार एवं व्यवसाय के नाम पर छोटे एवं पिछड़े देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं में हस्तक्षेप करने लगी हैं।

(2) वैश्वीकरण की प्रक्रिया का लाभ अधिकांश जनता तक नहीं पहुंच पाया है। इससे आर्थिक समानता को बढ़ावा मिला है। विशेषतया तीसरी दुनिया में गरीब देशों में बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है।

प्रश्न 13.
वैश्वीकरण के कोई चार नकारात्मक वास्तविक उदाहरण बताएं।
उत्तर:

  • फसल के खराब होने पर कुछ किसानों ने आत्महत्या कर ली।
  • छात्राओं द्वारा पश्चिमी वेशभषा वाले वस्त्र पहनने के कारण कछ संगठनों ने उन्हें धमकी दी।
  • बालीवुड (भारत) के कई निर्माताओं ने हालीवुड (अमेरिका) की फ़िल्मों की नकल की है।
  • भारत में दुकानदारों को यह भय है कि यदि बड़ी कम्पनियों ने अपने उत्पाद यहां बेचने शुरू कर दिये तो उनकी दुकानदारी समाप्त हो जायेगी.!

प्रश्न 14.
एक कल्याणकारी राज्य में कौन-कौन सी विशेषताएं होनी चाहिए, किन्हीं चार का वर्णन करें।
उत्तर:

  • एक कल्याणकारी राज्य को लोगों के कल्याण के लिए सभी प्रकार के कार्य करने चाहिए।
  • एक कल्याणकारी राज्य को अपने नागरिकों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए।
  • एक कल्याणकारी राज्य को अपने नागरिकों के कार्यों में अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
  • एक कल्याणकारी राज्य को अपने नागरिकों के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं मानसिक विकास में सहयोग देना चाहिए।

प्रश्न 15.
वैश्वीकरण के कोई चार महत्त्वपूर्ण अंग लिखें।
उत्तर:
विद्वानों के मतानुसार वैश्वीकरण के चार प्रमुख अंग हैं

  • व्यापार अवरोधकों (Trade Barriers) को कम करना ताकि विभिन्न देशों में वस्तुओं का निर्बाध रूप से आदान-प्रदान हो सके।
  • ऐसी परिस्थितियां पैदा करना जिससे विभिन्न देशों में तकनीक (Technology) का बेरोक-टोक प्रवाह हो सके।
  • ऐसा वातावरण तैयार करना जिससे विभिन्न देशों में पूंजी (Capital) का प्रवाह स्वतन्त्र रूप से हो सके।
  • ऐसा वातावरण तैयार करना जिससे श्रम (Labour) का निर्बाध रूप से प्रवाह हो सके।

प्रश्न 16.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया से भारत को प्राप्त होने वाले कोई चार लाभ लिखें।
उत्तर:

  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया के कारण भारत की आर्थिक विकास दर में वृद्धि हुई है।
  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया से भारत में बुनियादी एवं ढांचागत सुविधाओं का विकास हुआ है।
  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया से भारत को आधुनिकतम तकनीक एवं प्रौद्योगिकी प्राप्त हुई है।
  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया के कारण भारत में विदेशी आर्थिक निवेश बढ़ा है।

प्रश्न 17.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया से भारत को होने वाली कोई चार हानियां बताएं।
उत्तर:

  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया से भारत के अपने उद्योगों एवं छोटे व्यापारियों को हानि हुई है।
  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया के कारण भारत में निर्धनता एवं बेरोज़गारी बढ़ी है।
  • छात्र-वैश्वीकरण की प्रक्रिया के कारण भारत ने कई क्षेत्रों में दी जाने वाली सब्सिडी समाप्त कर दी है।
  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने सरकार के राजनीतिक एवं आर्थिक निर्णयों को प्रभावित किया है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वैश्वीकरण क्या है ?
उत्तर:
वैश्वीकरण (Globalisation) से अभिप्राय है किसी वस्तु, सेवा, पूंजी एवं बौद्धिक सम्पदा का एक देश से दूसरे देशों के साथ निर्बाध रूप से आदान-प्रदान । वैश्वीकरण के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का संचालन निर्बाध रूप से होता है जो एक सर्वसहमत अन्तर्राष्ट्रीय संस्था द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करता है।

प्रश्न 2.
वैश्वीकरण की दो परिभाषाएं लिखें।
उत्तर:
1. रोबर्टसन के अनुसार, “वैश्वीकरण विश्व एकीकरण की चेतना के प्रबलीकरण से सम्बन्धित अवधारणा है।”

2. गाय ब्रायंबंटी के अनुसार, “वैश्वीकरण की प्रक्रिया केवल विश्व व्यापार की खुली व्यवस्था, संचार के आधुनिकतम तरीकों के विकास, वित्तीय बाज़ार के अन्तर्राष्ट्रीयकरण, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के बढ़ते महत्त्व, जनसंख्या देशान्तरगमन तथा विशेषतः लोगों, वस्तुओं, पूंजी, आंकड़ों तथा विचारों के गतिशीलन से ही सम्बन्धित नहीं है, बल्कि संक्रामक रोगों तथा प्रदूषण का प्रसार भी इसमें शामिल है।”

प्रश्न 3.
वैश्वीकरण के किन्हीं दो अंगों का वर्णन करें।
उत्तर:

  • व्यापार अवरोध को कम करना ताकि विभिन्न देशों में वस्तुओं का निर्बाध रूप से आदान-प्रदान हो सके।
  • ऐसी परिस्थितियां पैदा करना, जिससे विभिन्न देशों में तकनीक का बेरोक-टोक प्रवाह हो सके।

प्रश्न 4.
वैश्वीकरण के पक्ष में कोई दो तर्क दें।
उत्तर:
(1) वैश्वीकरण तेजी से बदलते हुए अन्तर्राष्ट्रीय परिवेश में नितान्त अनिवार्य प्रक्रिया है। यह विद्यमान तथा लगातार बढ़ रही अन्तर्राष्ट्रीय अन्तर्निर्भरता का स्वाभाविक विकास है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया से जुड़ने के अलावा आज विकासशील राष्ट्रों के पास विकास का कोई अन्य विकल्प नहीं है।

(2) वैश्वीकरण के कारण पूंजी की गतिशीलता बढ़ी है और इसका चलन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हुआ है। इससे विकासशील देशों की अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं पर निर्भरता कम हुई है।

प्रश्न 5.
वैश्वीकरण के विपक्ष में कोई दो तर्क दो।
उत्तर:
(1) आलोचकों के अनुसार बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की एकाधिकारवादी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियां व्यापार एवं व्यवसाय के नाम पर छोटे एवं पिछड़े देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं में हस्तक्षेप करने लगी हैं।

(2) वैश्वीकरण की प्रक्रिया का लाभ अधिकांश जनता तक नहीं पहँच पाया है। इससे आर्थिक असमानता को बढ़ावा मिला है। विशेषतया तीसरी दुनिया में ग़रीब देशों में बेरोजगारी बढ़ती जा रही है।

प्रश्न 6.
वैश्वीकरण के राजनीतिक पक्ष की व्याख्या करें।
उत्तर:
राजनीतिक पक्ष पर वैश्वीकरण के प्रभावों का वर्णन तीन आधारों पर किया जा सकता है। प्रथम यह है कि वैश्वीकरण के कारण अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं एवं बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों के हस्तक्षेप से राज्य कमज़ोर हुए हैं। दूसरा यह है कि कुछ विद्वानों के अनुसार वैश्वीकरण के प्रभाव के बावजूद भी राज्यों की शक्तियां कम नहीं हुई हैं। राज्य अपनी इच्छानुसार कार्य को करने या न करने का निर्णय लेते हैं। तीसरे यह कि आधुनिक तकनीक एवं प्रौद्योगिकी की मदद से राज्य अपने नागरिकों को लाभदायक एवं सही सूचनाएं प्रदान करने में सफल हुए हैं।

प्रश्न 7.
वैश्वीकरण के आर्थिक पक्ष की व्याख्या करें।
उत्तर:
वैश्वीकरण का आर्थिक पक्ष बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि आर्थिक आधार पर ही वैश्वीकरण की धारणा ने अधिक जोर पकड़ा है। वैश्वीकरण के कारण विश्व के अधिकांश देशों में आर्थिक प्रयह बढ़ा है। इसके अन्तर्गत वस्तुओं, पूंजी तथा जनता का एक देश से दूसरे देश में जाना सरल हुआ। यद्यपि वैश्वीकरण के समर्थकों के अनुसार वैश्वीकरण के कारण अधिकांश लोगों को लाभ होगा तथा उनका जीवन स्तर सुधरेगा, परन्तु आलोचकों के अनुसार वैश्वीकरण का लाभ एक छोटे से भाग में रहने वाले लोगों को मिला है, सभी को नहीं।

प्रश्न 8.
वैश्वीकरण के सांस्कृतिक पक्ष की व्याख्या करें।
उत्तर:
वैश्वीकरण का सांस्कृतिक पक्ष भी लोगों के सामने आया है। वर्तमान समय में लोग क्या खाते हैं, क्या पीते हैं, क्या देखते हैं, क्या पहनते हैं तथा क्या सोचते हैं ? इन सभी पर वैश्वीकरण का साफ़ प्रभाव देखा जा सकता है। वैश्वीकरण के आलोचकों के अनुसार वैश्वीकरण के कारण एक देश विशेष की संस्कृति के पतन का खतरा हो गया है, परन्तु समर्थकों के अनुसार इससे मिश्रित संस्कृति का उदय होता है, उदाहरण के लिए भारत एवं कुछ हद तक अमेरिका के युवा नीली जीन्स पर खादी का कुर्ता पहनना पसन्द करते हैं।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 9.
भारत की वैश्वीकरण के अखाड़े के रूप में व्याख्या करें।
उत्तर:
1991 में नई आर्थिक नीति अपनाकर भारत, वैश्वीकरण एवं उदारीकरण की प्रक्रिया से जुड़ गया। आर्थिक प्रभावों के परिणामस्वरूप विश्व के अनेक विकसित देशों एवं बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों को भारत एक बड़ी.मण्डी के रूप में नजर आने लगा। अत: अनेक विकसित देशों तथा बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों में भारत में निवेश करने की होड़-सी लग गई। एनरॉन, कोका कोला, पेप्सी, सोनी तथा पैनासोनिक इत्यादि इसके उदाहरण हैं। चीन जैसे देश ने भी भारत में अपने उत्पाद पिछले कुछ वर्षों से बड़ी तेज़ी से उतारे हैं। अतः सभी देश एवं कम्पनियां भारतीय लोगों को आकर्षित करने में लगी हुई हैं।

प्रश्न 10.
भारत में वैश्वीकरण के विरुद्ध संघर्ष पर नोट लिखें।
उत्तर:
वैश्वीकरण के आलोचकों के अनुसार वैश्वीकरण का लाभ कुछ थोड़े-से लोगों को हुआ, देश के सभी लोगों विशेषकर ग़रीबों तथा किसानों को इसका लाभ नहीं पहुंचा, इसी कारण समय-समय पर कुछ किसानों द्वारा आत्महत्या की ख़बरें आती रहती हैं। इसलिए भारत में कुछ संगठनों एवं राजनीतिक दलों ने वैश्वीकरण की धारणा का विरोध किया है। भारत में विरोध करने वालों में वामपन्थी दल, पर्यावरणवादी एवं कुछ स्वयंसेवी संगठन शामिल हैं।

प्रश्न 11.
सांस्कृतिक विभिन्नीकरण का अर्थ लिखें।
उत्तर:
सांस्कृतिक विभिन्नीकरण का अर्थ यह है कि वैश्वीकरण के कारण प्रत्येक संस्कृति कहीं ज्यादा अलग और विशिष्ट होती जा रही है।

प्रश्न 12.
वैश्वीकरण के कोई दो आर्थिक प्रभाव लिखिए।
उत्तर:

  • विकास शील देशों की आर्थिक व्यवस्था विकसित देशों पर निर्भर हो गई है।
  • वैश्वीकरण के कारण विश्व के अधिकांश देशों में आर्थिक प्रवाह बढ़ा है।

प्रश्न 13.
वैश्वीकरण एक बहु आयामी धारणा है। व्याख्या करें।
उत्तर:
वैश्वीकरण को एक बहु आयामी धारणा कहा जा सकता हैं क्योंकि यह कई पक्षों से सम्बन्धित है, जैसे पक्ष, आर्थिक पक्ष एवं सांस्कृतिक पक्ष । वैश्वीकरण केवल एक आर्थिक कारण नहीं है। यह कुछ समाजों को शेष की अपेक्षा और समाज के एक भाग को शेष हिस्सों की अपेक्षा अधिक प्रभावित करता है।

प्रश्न 14.
वैश्वीकरण की लहर के कारण राज्यों पर क्या प्रभाव पड़ा है ?
उत्तर:
वैश्वीकरण की लहर के कारण राज्य कमज़ोर हुए हैं, या शक्तिशाली इसके पक्ष में दो तर्क दिये जाते हैं। वैश्वीकरण प्रथम यह है कि वैश्वीकरण के कारण अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं एवं बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों के हस्तक्षेप से राज्य कमज़ोर हए हैं। दूसरा मत यह है कि वैश्वीकरण के कारण राज्य पहले की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली हए हैं। क्योंकि इसके कारण राज्यों को आधुनिक तकनीक एवं प्रौद्योगिकी प्राप्त हुई है।

प्रश्न 15.
भारत में नई आर्थिक नीति कब और क्यों लागू की गई ?
उत्तर:
भारत में नई आर्थिक नीति जुलाई, 1991 में लागू की गई, ताकि भारत को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में एक प्रतिस्पर्धात्मक राष्ट्र के रूप में विकसित किया जा सके।

प्रश्न 16.
राज्यों पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के कोई दो प्रभाव लिखें।
उत्तर:

  • बहराष्ट्रीय कम्पनियों ने राज्यों में अधिक-से-अधिक निवेश करके राज्यों की आर्थिक शक्ति को कम किया है।
  • बहराष्ट्रीय कम्पनियों ने अपनी आर्थिक शक्ति के कारण राज्यों के राजनीतिक निर्णयों को भी प्रभावित किया है।

प्रश्न 17.
‘वर्ल्ड सोशल फोरम’ में कौन-कौन वैश्वीकरण का विरोध करते हैं ?
उत्तर:
‘वर्ल्ड सोशल फोरम’ के अन्तर्गत मानवाधिकार कार्यकर्ता, पर्यावरणवादी, मजदूर, युवा और महिला कार्यकर्ता एकजुट होकर वैश्वीकरण का विरोध करते हैं।

प्रश्न 18.
वैश्वीकरण के कारण व्यापारिक गतिविधियों पर पड़ने वाले कोई दो प्रभाव लिखो।
उत्तर:

  • वैश्वीकरण के कारण विभिन्न देशों ने मुक्त बाज़ार व्यवस्था को अपनाया है।
  • वैश्वीकरण के कारण राज्यों की संरक्षणवादी नीति समाप्त हो गई है तथा विश्व व्यापार को बढ़ावा मिल रहा है।

प्रश्न 19.
विश्व के मैक्डोनॉल्डीकरण से आप क्या समझते हैं ? व्याख्या करें।
उत्तर:
विश्व के मैक्डोनॉल्डीकरण का अर्थ यह है कि विश्व पर कुछ शक्तिशाली विशेषकर अमेरिका का सांस्कृतिक प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। विश्व में बर्गर तथा नीली जीन्स की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। मैक्डोनॉल्डीकरण के अन्तर्गत विश्व वैसा ही बनता जा रहा है, जैसा अमेरिकी सांस्कृतिक जीवन शैली बनाना चाहती है।

प्रश्न 20.
वैश्वीकरण को पुन:पनिवेशीकरण क्यों कहा जाता है ? व्याख्या करें।
उत्तर:
वैश्वीकरण की प्रक्रिया के कारण विकासशील एवं कमज़ोर राज्यों पर विकसित एवं धनी राज्यों का राजनीतिक एवं आर्थिक प्रभाव बढ़ता ही जा रहा है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियां विकासशील देशों में विकसित देशों के लाभ कार्य कर रही हैं तथा विकासशील देशों को आर्थिक तौर पर अपने अधीन करती जा रही हैं। इसीलिए वैश्वीकरण को पुनर्डपनिवेशीकरण भी कहा जाता है।

प्रश्न 21.
आर्थिक वैश्वीकरण के कोई दो दोष लिखें।
उत्तर:

  • आर्थिक वैश्वीकरण के कारण विकासशील देशों की आर्थिक व्यवस्था विकसित देशों पर निर्भर हो गई है।
  • आर्थिक वैश्वीकरण के कारण विश्व में निर्धनता एवं बेरोज़गारी बढ़ी है।

प्रश्न 22.
भारत में संरक्षणवाद के कोई दो नकारात्मक परिणाम लिखें।।
उत्तर:

  • भारत में संरक्षणवाद की नीति के कारण आर्थिक विकास की दर बहुत कम रही है।
  • संरक्षणवादी नीति के कारण भारत में सामाजिक एवं आर्थिक बुनियादी विकास नहीं हो पाया।

प्रश्न 23.
भारत में वैश्वीकरण के कोई दो दोष लिखें।
उत्तर:

  • वैश्वीकरण के कारण भारत में बेरोज़गारी बढ़ी है।
  • वैश्वीकरण के कारण भारतीय वस्तुओं की मांग कम हुई है।

प्रश्न 24.
वैश्वीकरण के कितने पक्ष हैं ?
उत्तर:
वैश्वीकरण के मुख्यतः तीन पक्ष हैं-

  • आर्थिक पक्ष
  • राजनीतिक पक्ष
  • सांस्कृतिक पक्ष।

प्रश्न 25.
“वर्ल्ड सोशल-फोरम” विश्व व्यापी सामाजिक मंच क्या है?
अथवा
वर्ल्ड सोशल फोरम क्या है ?
उत्तर:
वर्ल्ड सोशल फोरम नव-उदारवादी वैश्वीकरण का विरोध करने वाला मंच है। इसकी पहली बैठक 2001 में ब्राजील में हुई थी। वर्ल्ड सोशल फोरम के अंतर्गत एकत्र होकर मानवाधिकार कार्यकर्ता, मज़दूर, युवक, महिलाएं तथा पर्यावरणवादी नव-उदारवादी वैश्वीकरण का विरोध करते हैं।

प्रश्न 26.
“सांस्कृतिक समरूपता” का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
लोगों के खाने-पीने एवं पहरावे में समानता को सांस्कृतिक समरूपता कहते हैं। वैश्वीकरण के युग में किसी सांस्कृतिक समरूपता का उदय नहीं हुआ है, बल्कि पश्चिमी संस्कृति को शेष विश्व पर थोपा जा रहा है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. वर्तमान समय में निम्नलिखित विचारधारा विश्व में पाई जाती है
(A) नाजीवादी
(B) फ़ासीवादी
(C) वैश्वीकरण
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(C) वैश्वीकरण।

2. वर्तमान में कल्याणकारी राज्य की अवधारणा का स्थान किस अवधारणा ने ले लिया है ?
(A) अहस्तक्षेपी राज्य
(B) पूंजीवादी राज्य
(C) समाजवादी राज्य
(D) सर्वाधिकारवादी राज्य।
उत्तर:
(B) पूंजीवादी राज्य।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 9 वैश्वीकरण

3. भारत में वैश्वीकरण का आरम्भ कब से माना जाता है
(A) 1995
(B) 1991
(C) 1989
(D) 1987.
उत्तर:
(B)1991.

4. वैश्वीकरण के प्रभाव हैं
(A) राजनीतिक
(B) आर्थिक
(C) सांस्कृतिक
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

5. 1999 में विश्व व्यापार संगठन की मन्त्री स्तरीय बैठक कहां हुई ?
(A) नई दिल्ली
(B) टोकियो
(C) सियाटल
(D) लन्दन।
उत्तर:
(C) सियाटल।

6. भारत में वैश्वीकरण का समय-समय पर किसने विरोध किया है ?
(A) वामपन्थियों ने
(B) स्वयंसेवी संगठनों ने
(C) पर्यावरणवादियों ने
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

7. यह किसका कथन है-“वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें सामाजिक सम्बन्ध अपेक्षाकृत दूरी रहित एवं सीमा रहित बन जाते हैं।”
(A) मारगेन्थो
(B) डेविड मूर
(C) वैपलिस एवं स्मिथ
(D) पं० नेहरू।
उत्तर:
(C) वैपलिस एवं स्मिथ।

8. वैश्वीकरण का कारण है
(A) शीत युद्ध का अन्त
(B) सोवियत संघ का पतन
(C) सूचना क्रांति
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

9. वैश्वीकरण के पक्ष में कौन-सा तर्क दिया जा सकता है ?
(A) वैश्वीकरण के द्वारा राष्ट्र एक-दूसरे की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं
(B) वैश्वीकरण राष्ट्रों को अधिक-से-अधिक उत्पादन करने के लिए प्रेरित करता है
(C) वैश्वीकरण संघर्ष एवं युद्ध की सम्भावनाओं को कम करता है
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

10. वैश्वीकरण के विपक्ष में कौन-सा तर्क दिया जा सकता है ?
(A) वैश्वीकरण के कारण बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के एकाधिकार की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है
(B) वैश्वीकरण की प्रक्रिया का लाभ साधारण जनता तक नहीं पहुँच सकता है
(C) वैश्वीकरण एक स्वीकृत नहीं, बल्कि थोपी गई प्रक्रिया है
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

11. भारत द्वारा वैश्वीकरण को अपनाया गया
(A) वर्ष 1992 में
(B) वर्ष 1993 में
(C) वर्ष 1991 में
(D) वर्ष 1994 में।
उत्तर:
(C) वर्ष 1991 में।

12. वैश्वीकरण का उद्देश्य है
(A) पूंजी का स्वतंत्र प्रवाह
(B) श्रम का स्वतंत्र प्रवाह
(C) तकनीक का स्वतंत्र प्रवाह
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

13. वैश्वीकरण (भू-मण्डलीकरण) के अन्तर्गत भारत सरकार द्वारा अपनाई गई रणनीति को नाम दिया गया है
(A) समाजवाद
(B) उदारवाद
(C) नया समाजवाद
(D) नई आर्थिक नीति।
उत्तर:
(D) नई आर्थिक नीति।

14. वैश्वीकरण के युग में कौन-सा संगठन विश्व के देशों के लिए व्यापक नियमावली बनाता है ?
(A) विश्व व्यापार संगठन
(B) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
(C) सामाजिक एवं आर्थिक परिषद्
(D) विश्व बैंक
उत्तर:
(A) विश्व व्यापार संगठन।

15. W.S.F. का क्या अर्थ लिया जाता है
(A) World Social Forum
(B) World Sports Forum
(C) World State Fund
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(A) World Social Forum.

16. W.S.F. की पहली बैठक कहां हुई थी ?
(A) भारत
(B) जापान
(C) ब्राज़ील
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(C) ब्राज़ील।

17. ‘वर्ल्ड सोशल फोरम’ की पहली बैठक कब हुई थी ?
(A) 2001 में
(B) 2005 में
(C) 2007 में
(D) 2009 में।
उत्तर:
(A) 2001 में।

18. वैश्वीकरण कैसी धारणा है ?
(A) बहुआयामी
(B) एक आयामी
(C) द्वि-आयामी
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(A) बहुआयामी।

19. भारत में नई आर्थिक नीति शुरू हुई ?
(A) सन् 1985 में
(B) सन् 1991 में
(C) सन् 1980 में
(D) सन् 1992 में।
उत्तर:
(B) सन् 1991 में।

रिक्त स्थान भरें

(1) वैश्वीकरण एक ………. अवधारणा है, जिसके राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक आयाम हैं।
उत्तर:
बहुआयामी

(2) कल्याणकारी राज्य की अवधारणा का स्थान अब …………… राज्य ने ले लिया है।
उत्तर:
न्यूनतम हस्तक्षेपकारी

(3) वर्ल्ड सोशल फोरम की पहली बैठक 2001 में ………………… में हुई। (देश का नाम लिखिए)
उत्तर:
ब्राजील

(4) वैश्वीकरण का सम्बन्ध ……………… पारस्परिक जुड़ाव से है।
उत्तर:
विश्वव्यापी

(5) वैश्वीकरण के कारण सम्पूर्ण विश्व एक …………….. में बदल गया है।
उत्तर:
विश्व गांव

(6) विश्व व्यापार संगठन की स्थापना सन् ……………. में हुई।
उत्तर:
1995

(7) सन् 2007 में ‘वर्ल्ड सोशल फोरम’ की सातवीं बैठक ………………. में हुई।
उत्तर:
नैरोबी (कीनिया)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
वर्ल्ड सोशल फोरम की 2001 में पहली बैठक किस देश में हुई ?
उत्तर:
ब्राजील में।

प्रश्न 2.
वैश्वीकरण की शुरुआत किस वर्ष से मानी जाती है ?
उत्तर:
सन् 1991 से।

प्रश्न 3.
भारत ने किस वर्ष “नई आर्थिक नीति” को अपनाया ?
उत्तर:
सन् 1991 में।

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प्रश्न 4.
आधुनिक समय में कौन-सी विचारधारा विश्व में पाई जाती है ?
उत्तर:
वर्तमान समय में विश्व में उदारवादी और वैश्वीकरण विचारधारा का बोल-बाला है।

प्रश्न 5.
WSF का पूरा नाम लिखें।
उत्तर:
विश्व सामाजिक फोरम (World Social Forum)।

प्रश्न 6.
कल्याणकारी राज्य की धारणा का स्थान किस अवधारणा ने ले लिया है ?
उत्तर:
कल्याणकारी राज्य की धारणा का स्थान न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य ने ले लिया है।

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HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 वैश्वीकरण

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 वैश्वीकरण Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 वैश्वीकरण

HBSE 12th Class Political Science वैश्वीकरण Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
वैश्वीकरण के बारे में कौन-सा कथन सही है ?
(क) वैश्वीकरण सिर्फ आर्थिक परिघटना है।
(ख) वैश्वीकरण की शुरुआत 1991 में हुई।
(ग) वैश्वीकरण और पश्चिमीकरण समान हैं।
(घ) वैश्वीकरण एक बहुआयामी परिघटना है।
उत्तर:
(घ) वैश्वीकरण एक बहुआयामी परिघटना है।

प्रश्न 2.
वैश्वीकरण के प्रभाव के बारे में कौन-सा कथन सही है ?
(क) विभिन्न देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव विषम रहा है।
(ख) सभी देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव समान रहा है।
(ग) वैश्वीकरण का असर सिर्फ राजनीतिक दायरे तक सीमित है।
(घ) वैश्वीकरण से अनिवार्यतया सांस्कृतिक समरूपता आती है।
उत्तर:
(क) विभिन्न देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव विषम रहा है।

प्रश्न 3.
वैश्वीकरण के कारणों के बारे में कौन-सा कथन सही है ?
(क) वैश्वीकरण का एक महत्त्वपूर्ण कारण प्रौद्योगिकी है।
(ख) जनता का एक खास समुदाय वैश्वीकरण का कारण है।
(ग) वैश्वीकरण का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ।
(घ) वैश्वीकरण का एकमात्र कारण आर्थिक धरातल पर पारस्परिक निर्भरता है।
उत्तर:
(क) वैश्वीकरण का एक महत्त्वपूर्ण कारण प्रौद्योगिकी है।

प्रश्न 4.
वैश्वीकरण के बारे कौन-सा कथन सही है ?
(क) वैश्वीकरण का सम्बन्ध सिर्फ वस्तुओं की आवाजाही से है।
(ख) वैश्वीकरण में मूल्यों का संघर्ष नहीं होता।
(ग) वैश्वीकरण के अंग के रूप में सेवाओं का महत्त्व गौण है।
(घ) वैश्वीकरण का सम्बन्ध विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव से है।
उत्तर:
(घ) वैश्वीकरण का सम्बन्ध विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव से है।

प्रश्न 5.
वैश्वीकरण के बारे में कौन-सा कथन ग़लत है ?
(क) वैश्वीकरण के समर्थकों का तर्क है कि इससे आर्थिक समृद्धि बढ़ेगी।
(ख) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे आर्थिक असमानता और ज्यादा बढ़ेगी।
(ग) वैश्वीकरण के पैरोकारों का तर्क है कि इससे सांस्कृतिक समरूपता आएगी।
(घ) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे सांस्कृतिक समरूपता आएगी।
उत्तर:
(घ) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे सांस्कृतिक समरूपता आएगी।

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प्रश्न 6.
विश्वव्यापी ‘पारस्परिक जुड़ाव’ क्या है ? इसके कौन-कौन से घटक हैं ?
अथवा
‘विश्वव्यापी जुड़ाव’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
विश्वव्यापी ‘पारस्परिक जुड़ाव’ का अर्थ है, विश्व स्तर पर अधिकांश लोगों का कई पक्षों से सम्बन्ध होना। वैश्वीकरण के कारण विश्व के एक भाग के विचार दूसरे भाग में पहुंच रहे हैं। एक देश विशेष की पूंजी का अनेक देशों में प्रवाह हो रहा है। एक देश विशेष की वस्तुओं का अनेक देशों में पहुँचना तथा खुशहाल जीवन की खोज में विदेशों में जाकर बसना इत्यादि विश्व के पारस्परिक जुड़ाव के अन्तर्गत ही आते हैं। विश्वव्यापी ‘पारस्परिक जुड़ाव’ के मुख्य घटक राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पक्ष हैं।

प्रश्न 7.
वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का क्या योगदान है ?
उत्तर:
वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का बहुत योगदान है। 1990 के दशक में आई प्रौद्योगिकी की क्रान्ति ने विश्व को एक छोटा गांव बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। टेलीफ़ोन, टेलीग्राफ तथा इन्टरनैट जैसे संचार के साधनों ने विश्व को जोड़ने में मुख्य योगदान दिया है। प्रौद्योगिकी के कारण ही विश्व के अनेक भागों में विचार, पूंजी एवं वस्तुओं की आवाजाही आसान हुई है। अतः कहा जा सकता है कि वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का बहुत अधिक योगदान है।

प्रश्न 8.
वैश्वीकरण के सन्दर्भ में विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
अथवा
वैश्वीकरण क्या है ? वैश्वीकरण के संदर्भ में विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका का मूल्यांकन करें।
उत्तर:
वैश्वीकरण का अर्थ-इसके लिए अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों (निबन्धात्मक प्रश्न) में से प्रश्न नं० 3 देखें। वैश्वीकरण के संदर्भ में विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका-वैश्वीकरण के कारण विकासशील देशों में राज्य की भूमिका में अवश्य परिवर्तन आया है। वर्तमान वैश्वीकरण के युग में कोई भी विकासशील देश आत्मनिर्भर नहीं हो सकता। अतः वैश्वीकरण के युग में प्रत्येक विकासशील देश को इस प्रकार की विदेश एवं आर्थिक नीति का निर्माण करना पड़ता है जिससे कि दूसरे देशों से अच्छे सम्बन्ध बनाये जा सकें। पूंजी निवेश के कारण विकासशील देशों ने भी अपने बाजार विश्व के लिए खोल दिये हैं।

राज्य द्वारा बनाई जाने वाली आर्थिक नीतियों पर भी वैश्वीकरण का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। प्रत्येक देश आर्थिक नीति को बनाते समय विश्व में होने वाले आर्थिक घटनाक्रम तथा विश्व संगठनों जैसे विश्व बैंक तथा विश्व व्यापार संगठन के प्रभाव में रहता है। राज्यों द्वारा बनाई जाने वाली निजीकरण की नीतियां. कर्मचारियों की छंटनी. सरकारी अनुदानों में कमी तथा कृषि से सम्बन्धित नीतियों पर वैश्वीकरण का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है।

प्रश्न 9.
वैश्वीकरण की आर्थिक परिणतियाँ क्या हुई हैं ? इस सन्दर्भ में वैश्वीकरण ने भारत पर कैसे प्रभाव डाला है ?
अथवा
वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभाव क्या पड़े हैं ? वैश्वीकरण ने भारत पर कैसे प्रभाव डाला है ?
उत्तर:
वैश्वीकरण के कारण आर्थिक क्षेत्र में बहुत अधिक परिवर्तन हुए हैं। वैश्वीकरण के कारण एक देश की पूंजी का प्रवाह अन्य देशों में हुआ। बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों ने अपने देश से बाहर निकल कर अन्य देशों में निवेश करना शरू कर दिया। रोजगार की तलाश में लोग दसरे देशों में जाकर बसने लगे हैं। वैश्वीकरण की आर्थिक परिणतियों का भारत पर भी प्रभाव पड़ा है। 1991 में नई आर्थिक नीति अपनाकर भारत वैश्वीकरण एवं उदारीकरण की प्रक्रिया से जुड़ गया। नई औद्योगिक नीति द्वारा भारत ने महत्त्वपूर्ण सुधार करने प्रारम्भ कर दिए।

1992-93 से रुपए को पूर्ण परिवर्तनीय बनाया गया है। पूंजी बाज़ार और वित्तीय सुधारों के लिए कदम उठाए गए हैं। आयात-निर्यात नीति को सुधारा गया है और इसमें प्रतिबन्धों को हटाया गया है। 30 दिसम्बर, 1994 को भारत ने एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौतावादी दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए। 1 जनवरी, 1995 को विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation) की स्थापना हुई और भारत इस पर हस्ताक्षर करके इसका सदस्य बन गया।

समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद भारत ने अनेक नियमों और औपचारिकताओं को समाप्त करना शुरू कर दिया जो वर्षों से आर्थिक विकास में बाधक बनी हुई थीं। प्रशासन व्यवस्था । में अनेक सुधार किए गए और नौकरशाही तन्त्र की जटिलताओं को हल्का किया गया। भारतीय प्रशासन अब तेजी से वैश्वीकरण की प्रक्रिया के साथ तादात्म्य स्थापित कर रहा है।

प्रश्न 10.
क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि वैश्वीकरण से सांस्कृतिक विभिन्नता बढ़ रही है ?
उत्तर:
हम इस तर्क से सहमत नहीं हैं कि वैश्वीकरण से सांस्कृतिक विभिन्नता बढ़ रही है। वैश्वीकरण के कारण सांस्कृतिक विभिन्नता नहीं, बल्कि सांस्कृतिक समरूपता बढ़ रही है। यहाँ पर यह बात उल्लेखनीय है कि विश्व में किसी विश्व-संस्कृति का उदय नहीं हो रहा है, बल्कि यूरोपीय देश एवं अमेरिका अपनी तकनीकी एवं आर्थिक शक्ति के बल पर सम्पूर्ण विश्व पर अपनी संस्कृति लादने का प्रयत्न कर रहे हैं।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 9 वैश्वीकरण

प्रश्न 11.
वैश्वीकरण ने भारत को कैसे प्रभावित किया है और भारत कैसे वैश्वीकरण को प्रभावित कर रहा है ?
अथवा
वैश्वीकरण ने भारत को और भारत ने वैश्वीकरण को कैसे प्रभावित किया है ? इसको स्पष्ट करें।
उत्तर:
वैश्वीकरण ने भारत जैसे विकासशील देश को भी बहत अधिक प्रभावित किया है। विश्व के अधिकांश विकसित देश भारत को एक बड़ी मण्डी के रूप में देखते हैं। इसलिए यहाँ के लोगों को आकर्षित करने के लिए तरह तरह के उपाय करते हैं। भारतीय लोगों ने भी वैश्वीकरण के चलते आजीविका के लिए विदेशों में बसना शुरू कर दिया है। यूरोप एवं अमेरिका की पश्चिमी संस्कृति बड़ी तेजी से भारत में फैल रही है।

भारत में नीली जीन्स पहनना, पिज्जा खाना तथा टेलीविज़न पर अनेक विदेशी चैनलों को देखना वैश्वीकरण का ही प्रभाव है। दूसरी ओर भारत ने भी वैश्वीकरण को कुछ हद तक प्रभावित किया है। भारत से अधिक लोग विदेशों में जाकर अपनी संस्कृति एवं रीति रिवाजों को बढ़ावा दे रहे हैं। भारत में उपलब्ध सस्ते श्रम ने विश्व के देशों को इस ओर आकर्षित किया है। भारत ने कम्प्यूटर तथा तकनीकी के क्षेत्र में बड़ी तेज़ी से उन्नति करके विश्व में अपना प्रभुत्व जमाया है।

वैश्वीकरण HBSE 12th Class Political Science Notes

→ 1990 के दशक से वैश्वीकरण की धारणा विश्व में तेजी से फैली है।
→ किसी वस्तु, विचार, सेवा या पूंजी का एक देश से दूसरे देश में निर्बाध आदान-प्रदान वैश्वीकरण कहलाता हैं।
→ वैश्वीकरण के राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पक्ष होते हैं।
→ वैश्वीकरण का नेता अमेरिका को माना जाता है।
→ वैश्वीकरण के समर्थकों के अनुसार वैश्वीकरण से अधिकांश लोगों को लाभ पहुंचा है।
→ वैश्वीकरण के आलोचकों के अनुसार वैश्वीकरण का लाभ केवल एक छोटे से भाग को मिला है, विश्व की – अधिकांश जनता को इससे हानि हुई है।
→ वैश्वीकरण के प्रचार एवं प्रसार के साथ-साथ इसका विरोध भी हआ है।
→ 1999 में सियाटल में हुई विश्व व्यापार संगठन की मन्त्रिस्तरीय बैठक के दौरान व्यापक विरोध हुआ।
→ भारत ने 1991 में आर्थिक सुधारों को लागू करते हुए वैश्वीकरण के युग में प्रवेश किया।
→ अपनी विशाल जनसंख्या के कारण भारत विश्व में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों एवं विकसित देशों के बीच एक अखाड़े के रूप में सामने आया है।
→ भारत में भी वैश्वीकरण का समय-समय पर विरोध हुआ है।

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HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नियोजन से आप क्या समझते हैं ? नियोजन के लक्षणों की व्याख्या करें।
उत्तर:
आधुनिक राज्य पुलिस राज्य न होकर कल्याणकारी राज्य है। आधुनिक राज्य अपने नागरिकों की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक आदि की उन्नति में व्याप्त है। राज्य अपने लक्ष्यों की पूर्ति के लिए नियोजन पद्धति को प्रयोग में ला रहे हैं। आज नियोजन की आवश्यकता को व्यापक रूप से स्वीकार कर लिया गया है।

आर्थिक नियोजन की विधि को सबसे पहले रूस ने 1928 में लागू किया। इन योजनाओं के फलस्वरूप कुछ वर्षों में ही रूस संसार की महान् शक्तियों में गिना जाने लगा। आर्थिक नियोजन की सफलता को देखकर संसार के सभी देशों विशेषकर अल्पविकसित देशों ने योजनाओं के मार्ग को अपनाया है।

फिफ्नर और प्रिस्थस (Pfiffner and Presthus) ने ठीक ही कहा है, “सभी संगठनों को यदि वे अपने उद्देश्यों की सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो योजना का निर्माण करना All organisations must plan if they are to achieve their end.”) लीविस (Lewis) ने कहा है, “आज मुख्य बात यह नहीं कि नियोजन हो अथवा नहीं अपितु यह है कि नियोजन का रूप क्या होना चाहिए।

नियोजन का अर्थ एवं परिभाषाएं (Meaning and Definitions of Planning):
नियोजन निर्माण आम व्यक्ति तथा सामूहिक प्रयत्न का एक स्वाभाविक अंग है। फिफ्नर और प्रिस्थस के अनुसार, “नियोजन एक ऐसी विवेकपूर्ण प्रक्रिया है जो सारे मानव-व्यवहार में पाई जाती है।” साधारण शब्दों में नियोजन का अर्थ कम से कम व्यय द्वारा उपलब्ध साधनों का प्रयोग करते हुए पूर्व निश्चित लक्ष्य को प्राप्त करना है। उर्विक (Urwick) के अनुसार, “नियोजन एक बौद्धिक प्रक्रिया है, साधारण रूप से कार्य करने की एक पूर्व निश्चित मानसिक प्रक्रिया है । कार्य करने से पूर्व विचार तथा अनुमानों की अपेक्षा तथ्यों के प्रकाश में कार्य करना है, यह अनुमान लगाने वाली प्रवृत्ति की प्रतिक्रिया है।”

डिमॉक (Dimock) के शब्दों में, “योजना परिवर्तन के स्थान पर तर्क सम्मत इच्छा का प्रयोग करना है। कार्य करने से पूर्व निर्णय लेना है न कि कार्य आरम्भ करने के बाद सुधारना।” सेक्लर हडसन (Secklar Hudson) के अनुसार, “भावी कार्यक्रम के मार्ग को निश्चित करने के लिए आधार की खोज ही नियोजन है।” (The process of devising a basis for future course of action.) भारतीय विचारक डॉ० अमरेश के अनुसार, “संक्षेप में नियोजन उन भावी कार्यक्रमों के चयन एवं विकास की विधि है जिसके द्वारा एक घोषित लक्ष्य की सहज प्राप्ति होती है।”

जॉन डी० मिलट (John D. Millett) के शब्दों में, “प्रशासकीय प्रयत्न के उद्देश्यों को निश्चित करने तथा उनको प्राप्त करने के लिए उपयुक्त साधनों की व्यवस्था करना ही नियोजन है।” प्रो० के० टी० शाह (K.T. Shah) के अनुसार, “नियोजन एक लोकतन्त्रीय व्यवस्था में उपभोग, उत्पादन, अनुसन्धान, व्यापार तथा वित्त का तकनीकी समायोजन है। यह उन उद्देश्यों के अनुरूप होते हैं जिनका निर्धारण राष्ट्र की प्रतिनिधि संस्थाओं द्वारा होता है।”

डॉ० एम० पी० शर्मा (Dr. M.P. Sharma) के अनुसार, “नियोजन विस्तृत अर्थों में व्यवस्थित क्रिया का स्वरूप है। नियोजन में इस प्रकार समस्त मानवीय क्रियाएं आ जाती हैं भले ही वह व्यक्तिगत हों अथवा सामूहिक।” अमरेश महेश्वरी के अनुसार विभिन्न कार्यक्रमों तथा साधनों के संगठन, संघनन तथा विलीनीकरण की क्रिया को नियोजन कहते हैं। परिभाषाओं से स्पष्ट है कि पूर्व निर्धारित कार्यक्रम को उचित साधनों द्वारा प्राप्त करना ही नियोजन है। व्यापक रूप से नियोजन के अन्तर्गत निम्नलिखित चार क्रम शामिल हैं

  • लक्ष्य का निर्धारण।
  • लक्ष्य की प्राप्ति के लिए नीति का निर्धारण।
  • निश्चित नीति के अनुसार प्रक्रियाओं तथा साधनों का निर्धारण।
  • नियोजन के परिणामों का समुचित रूप से वर्गीकरण तथा विश्लेषण करना।

अच्छे नियोजन के लक्षण (Characteristics of a Good Plan):
एक अच्छी योजना में निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं

1. स्पष्ट उद्देश्य-नियोजन के उद्देश्य की स्पष्ट तथा व्यापक व्यवस्था होनी चाहिए। नियोजन के लक्ष्य का संक्षिप्त तथा निश्चित होना ज़रूरी है। यदि नियोजन के लक्ष्य स्पष्ट न हों तो अधिकारियों को सफलता नहीं मिलती।

2. साधनों की व्यवस्था- उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक साधनों तथा उपायों की व्यवस्था होनी चाहिए।

3. लचीलापन-नियोजन में आवश्यकतानुसार लचीलापन होना चाहिए। नियोजन भविष्य से सम्बन्धित होता है और भविष्य में परिस्थितियां बदल सकती हैं। बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार जिसमें आसानी से परिवर्तन लाया जा सके वही सही नियोजन है।

4. समन्वय-नियोजन के विभिन्न अंगों में सन्तुलन होना चाहिए। विभिन्न नियोजनों के बीच समन्वय स्थापित किया जाना ज़रूरी है। विभिन्न नियोजनों के अनुरूप ही मुख्य नियोजन का होना आवश्यक है।

5. व्यावहारिकता-नियोजन में व्यावहारिकता का होना अति आवश्यक है।

6. सिद्धान्त-नियोजन में कार्यों का स्पष्ट विश्लेषण तथा सफलता को मापने के लिए कुछ सिद्धान्तों का प्रतिपादन होना चाहिए।

7. स्पष्ट विषय-वस्तु-किसी भी नियोजन की विषय-वस्तु स्पष्ट होनी चाहिए।

8. पद-सोपान-नियोजन में उसके पद-सोपान का रहना ज़रूरी है।

9. निरन्तरता-नियोजन की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि उसमें निरन्तरता हो। निरन्तरता न होने पर नियोजन पर किया गया खर्च, समय और श्रम बेकार हो जाता है।

प्रश्न 2.
भारत में आर्थिक नियोजन के मुख्य उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
आर्थिक नियोजन 20वीं शताब्दी की देन है। संसार की लगभग सभी अर्थव्यवस्थाओं ने दसरे महायद्ध के पश्चात् आर्थिक विकास तथा स्थिरता के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए आर्थिक नियोजन की विधि को अपनाया है। भारत ने भी स्वतन्त्रता के पश्चात् आर्थिक नियोजन को अपनाया है। भारत में आर्थिक नियोजन के मुख्य उद्देश्य अग्रलिखित हैं

1. राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि-भारत में आर्थिक नियोजन का प्रथम उद्देश्य देश के विभिन्न क्षेत्रों जैसे कृषि, उद्योग आदि का विकास करके राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना है। जनसंख्या की वृद्धि की दर में कमी करके प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करना भी आर्थिक नियोजन का मुख्य उद्देश्य है।

2. आर्थिक असमानता में कमी-आर्थिक नियोजन का उद्देश्य आर्थिक असमानता को कम करना है। आर्थिक असमानता क्रान्ति एवं संघर्ष को जन्म देती है। अत: नियोजन का ये उद्देश्य होता है कि सभी वर्गों का विकास किया जाए।

3. क्षेत्रीय असमानताओं में कमी-आर्थिक नियोजन का उद्देश्य देश में क्षेत्रीय असमानताओं में कमी करना होता है। इसके लिए देश के पिछड़े क्षेत्रों के विकास की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है।

4. पूर्ण रोज़गार-आर्थिक नियोजन का मुख्य उद्देश्य रोजगार के अवसर बढ़ाना है ताकि प्रत्येक व्यक्ति को रोज़गार दिया जा सके।

5. उपलब्ध साधनों का पूर्ण उपयोग-आर्थिक नियोजन का एक मुख्य उद्देश्य देश के प्राकृतिक साधनों का पूर्ण उपयोग करना होता है। आर्थिक नियोजन द्वारा वन, जल, भूमि, खनिज पदार्थ आदि प्राकृतिक साधनों का उचित प्रयोग करके देश का आर्थिक विकास करने की कोशिश की जाती है।

6. आर्थिक विकास- भारत में आर्थिक नियोजन का मुख्य उद्देश्य आर्थिक विकास की बाधाओं को दूर करके देश का आर्थिक विकास करना है।

7. जीवन स्तर में वृद्धि-आर्थिक नियोजन का उद्देश्य लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा करना है और इसके लिए उत्पादन के समस्त क्षेत्रों में वृद्धि की जाती है।

8. उद्योगों का विकास-आर्थिक नियोजन का उद्देश्य मूल तथा भारी उद्योगों का विकास करना तथा इस प्रकार देश का तेजी से औद्योगिकीकरण करना है।

9. आत्म निर्भरता-आर्थिक नियोजन का उद्देश्य देश को अधिक से अधिक आत्म-निर्भर बनाना है ताकि देश दूसरे देशों पर कम-से-कम निर्भर रहे।

10. सामाजिक उद्देश्य-आर्थिक नियोजन का उद्देश्य मनुष्य का सम्पूर्ण विकास करना होता है। अत: नियोजन का उद्देश्य सामाजिक कल्याण में वृद्धि करना भी है। आर्थिक नियोजन का एक मुख्य उद्देश्य समाज के निर्धन तथा शोषित वर्ग को सुरक्षा प्रदान करना है।

निष्कर्ष (Conclusion):
संक्षेप में भारत में आर्थिक नियोजन का मूल उद्देश्य लोकतन्त्रीय तथा कल्याणकारी कार्य विधियों द्वारा देश का तीव्र गति से आर्थिक विकास करना है। योजना आयोग के शब्दों में, “भारत में योजनाकरण का केन्द्रीय उद्देश्य लोगों के जीवन-स्तर को ऊंचा उठाना तथा उन्हें समृद्ध जीवन व्यतीत करने के लिए अधिकाधिक सुविधाओं की व्यवस्था करना है।”

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 3.
योजना आयोग की रचना तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा
योजना आयोग के प्रमुख कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
रचना (Composition):
योजना आयोग की रचना समय-समय पर बदलती रहती थी। आरम्भ में इसके कुल छः सदस्य थे और इनमें योजना आयोग के अध्यक्ष प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू भी शामिल थे। प्रधानमन्त्री योजना आयोग का अध्यक्ष होता था और इसके अतिरिक्त आयोग का उपाध्यक्ष भी होता था।

योजना आयोग के उपाध्यक्ष का कैबिनेट मन्त्री का स्तर होता था और सदस्यों का स्तर मन्त्री का होता था। योजना आयोग का एक स्थायी सचिव भी होता था जो मन्त्रिमण्डल का सचिव भी होता था। पूर्णकालिक सदस्यों के अतिरिक्त वित्त मन्त्री, गृहमन्त्री आदि भी योजना आयोग के अल्पकाल के सदस्य होते थे। योजना आयोग मुख्य रूप से तीन विभागों द्वारा कार्य करते थे-

  • कार्यक्रम सलाहकार समिति,
  • सामान्य सचिवालय तथा
  • तकनीकी विभाग।

कार्य (Functions):
योजना आयोग जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री थे, भारत में एक शक्तिशाली तथा प्रभावशाली परामर्शदात्री अभिकरण के रूप में प्रकट हुए हैं। इसके कार्य इस प्रकार थे

(1) देश के भौतिक, पूंजीगत, मानवीय, तकनीकी तथा कर्मचारी वर्ग सम्बन्धी साधनों का अनुमान लगाना और साधन राष्ट्रीय आवश्यकता की तुलना में कम प्रतीत होते हों तो उनकी वृद्धि की सम्भावनाओं के सम्बन्ध में अनुसन्धान करना।

(2) देश के साधनों के अधिकतम प्रभावशाली तथा सन्तुलित उपयोग के लिए योजना बनाना।

(3) नियोजन में स्वीकृति कार्यक्रम तथा परियोजनाओं के बारे में प्राथमिकताएं निश्चित करना।

(4) योजना के मार्ग में आने वाली बाधाओं को इंगित करना तथा राष्ट्र की राजनीतिक तथा सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए योजना के लिए स्वस्थ वातावरण उत्पन्न करना।

(5) योजना के लिए विभिन्न यन्त्रों का जुटाना जो उसकी विभिन्न सेवाओं पर काम आ सके।

(6) समय-समय पर योजना की प्रगति का मूल्यांकन करना और नीति तथा उपायों में आवश्यकतालमेल करना।

(7) वर्तमान आर्थिक व्यवस्था, प्रचलित नीतियों, उपायों तथा विकास-कार्यक्रमों के विचार-विमर्श के लिए इसके कर्त्तव्य के पालन को आसान बनाने के लिए आवश्यक सिफ़ारिशें करना अथवा केन्द्रीय या राज्य सरकारों द्वारा सुझावों हेतु भेजी जांच की सिफारिश करना।

(8) राष्ट्र के विकास में लोगों का सहयोग प्राप्त करना।

(9) देश के औद्योगिक विकास के लिए नियोजन करना।

(10) केन्द्र और राज्य सरकारों की विकास योजनाओं का निर्माण करना। (नोट-एक जनवरी 2015 को केन्द्र सरकार ने योजना आयोग को समाप्त करके इसके स्थान पर ‘नीति आयोग’ की स्थापना की थी।)

प्रश्न 4.
नीति आयोग पर एक संक्षिप्त लिखें।
उत्तर:
भारत में स्थापित योजना आयोग की प्रासंगिकता 1990 के दशक में कम होने लगी। लाइसैंस राज समाप्त होने के बाद यह बिना किसी प्रभावी अधिकार के सलाहकार संस्था के तौर पर काम करता रहा। योजना आयोग की रचना, कार्यप्रणाली तथा इसकी प्रासंगिकता पर समय-समय पर सवाल उठते रहे थे। योजना आयोग के अनुसार 28 रु० की आय वाला व्यक्ति ग़रीबी रेखा से ऊपर है, जबकि आयोग ने अपने दो शौचालयों पर 35 लाख रुपये खर्च कर दिये थे।

तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता का कहना था, कि “हम दिल्ली सिर्फ इसलिए आते हैं, ताकि आयोग हमें बता सके कि हम अपना धन कैसे खर्च करें।” पूर्व केन्द्रीय मन्त्री कमल नाथ योजना आयोग को ‘आमचेयर एडवाइजर तथा नौकरशाहों का पार्किंग लॉट’ कहकर व्यंग्य कर चुके हैं। स्वतन्त्र मूल्यांकन कार्यालय (आई०ई०ओ०) ने आयोग को आई०ए०एस० अधिकारियों का अड्डा बताया है।

यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने योजना आयोग को ‘जोकरों का समूह’ कहा था। इन सभी कारणों से योजना आयोग जैसी पुरानी संस्था को समाप्त करके एक नई संस्था बनाने का विचार काफी समय से उठ रहा था। इसलिए भारतीय जनता पार्टी ने 1998 के अपने चुनावी घोषणा पत्र में कहा था, कि “विकास की बदलती आवश्यकताओं के लिए योजना आयोग का फिर गठन होगा।”

भारतीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमन्त्री थे, तब वे कई बार योजना आयोग की अप्रासंगिकता की बात उठा कर एक नयी संस्था की वकालत कर चुके थे। इसलिए जब वे मई, 2014, में देश के प्रधानमंत्री बने, तभी से उन्होंने योजना आयोग के स्थान पर एक नई संस्था या आयोग को बनाने पर जोर दिया।

7 दिसम्बर, 2014 को नई दिल्ली में मुख्यमन्त्रियों की बैठक में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने योजना आयोग के स्थान पर नई व्यवस्था बनाने को समय की ज़रूरत बताया तथा उन्होंने कहा, कि अब योजना की प्रक्रिया ‘ऊपर से नीचे’ की बजाय ‘नीचे से ऊपर’ करने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में ऐसे संगठन की आवश्यकता है जो न केवल सृजनात्मक रूप से चिंतन कर सके, बल्कि संघात्मक ढांचे को मजबूत बनाने के साथ ही राज्यों में नई ऊर्जा का संचार भी कर सके। इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रखकर एक जनवरी, 2015 को योजना आयोग को समाप्त करके नीति आयोग (NITI AAYOG-NATIONAL INSTITUTION FOR TRANSFORMING INDIA) क स्थापना की गई।

नीति आयोग की रचना (Composition of NITI Aayog)-नीति आयोग की रचना निम्नलिखित ढंग से की गई है

  • अध्यक्ष-प्रधानमन्त्री
  • उपाध्यक्ष-इसकी नियुक्ति प्रधानमन्त्री करेंगे।
  • सी०ई०ओ०-सी०ई०ओ० केन्द्र के सचिव स्तर का अधिकारी होगा, जिसकी नियुक्ति प्रधानमन्त्री निश्चित कार्यकाल के लिए करेंगे।
  • गवर्निंग काऊंसिल-इसमें सभी मुख्यमंत्री तथा केन्द्रशासित प्रदेशों के उपराज्यपाल शामिल होंगे।
  • पूर्णकालिक सदस्य- इसमें अधिकतम पांच सदस्य होंगे।
  • अंशकालिक सदस्य- इसमें अधिकतम दो पदेन सदस्य होंगे।
  • पदेन सदस्य- इसमें अधिकतम चार केन्द्रीय मन्त्री होंगे।
  • विशेष आमंत्रित सदस्य-इसमें विशेषज्ञ होंगे, जिन्हें प्रधानमन्त्री मनोनीत करेंगे।

5 जनवरी, 2015 को प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अरविन्द पनगड़िया को नीति आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया, जिन्होंने 14 जनवरी, 2015 को अपना कार्यभार संभाल लिया। प्रधानमंत्री ने 11 जनवरी, 2015 को सिन्धुश्री खुल्लर को आयोग का पहला सी०ई०ओ०, (C.E.O. Chief Executive Officer) मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया। 31 दिसम्बर, 2015 को सिन्धुश्री खुल्लर की सेवानिवृत्ति के पश्चात् श्री अमिताभ कांत को नीति आयोग का सी० ई० ओ० नियुक्त किया गया। 5 अगस्त, 2017 को श्री राजीव कुमार को श्री अरविन्द पनगड़िया के स्थान पर नीति आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया।

विभाग (Department):
नीति आयोग में कुशलतापूर्वक कार्य करने के लिए तीन विभागों की भी व्यवस्था की गई है

  • पहला अन्तर्राज्जीय परिषद् की तरह कार्य करेगा।
  • दूसरा विभाग लम्बे समय की योजना बनाने तथा उसकी निगरानी करने का काम करेगा।
  • तीसरा विभाग डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर तथा यू०आई०डी०ए०आई० (UIDAI) को मिलाकर बनाया जायेगा।

उद्देश्य (Objectives):
नीति आयोग के कुछ महत्त्वपूर्ण उद्देश्य निर्धारित किए गए हैं, जिनका वर्णन इस प्रकार है

  • सशक्त राज्य से सशक्त राष्ट्र-इस सूत्र से सहकारी संघवाद (Co-operative Federalism) को बढ़ाना।
  • रणनीतिक तथा दीर्घावधि के लिए नीति तथा कार्यक्रम का ढांचा बनाना।
  • ग्रामीण स्तर पर योजनाएं बनाने के तन्त्र को विकसित करना।
  • आर्थिक प्रगति से वंचित रहे वर्गों पर विशेष ध्यान देना।
  • राष्टीय सरक्षा के हितों व आर्थिक नीति में तालमेल बिठाना।

नीति आयोग का गठन भी योजना आयोग की तरह मन्त्रिमण्डल के प्रस्ताव से हआ है परन्त दोनों में महत्त्वपूर्ण अन्तर यह है, कि नीति आयोग की गतिविधियों में मुख्यमन्त्री एवं निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। इस प्रकार प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा स्थापित नीति आयोग ‘टीम इण्डिया तथा सहकारी संघवाद’ के विचार को साकार करेगा, जबकि पं० नेहरू के समय के योजना आयोग की प्रकृति केन्द्रीयकृत थी, इसलिए योजना आयोग को सुपर केबिनेट भी कहा जाने लगा था।

नीति आयोग की अध्यक्षता प्रधानमन्त्री करेंगे। इसकी गवर्निंग काऊंसिल में सभी राज्यों के मुख्यमन्त्री तथा केन्द्र शासित प्रदेशों के उप-राज्यपाल सदस्य के रूप में शामिल होंगे। नीति आयोग प्रधानमन्त्री तथा सभी मुख्यमन्त्रियों के लिए विकास का राष्ट्रीय एजेण्डा तैयार करने के लिए एक ‘थिंक टैंक’ की तरह काम करेगा। नीति आयोग जन केन्द्रित, सक्रिय तथा सहभागी विकास एजेण्डा के सिद्धान्त पर आधारित है। इससे सहकारी संघवाद की भावना बढ़ेगी। नीति आयोग की मुख्य भूमिका या कार्य राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के अलग-अलग नीतिगत विषयों पर केन्द्र तथा राज्य सरकारों को जरूरी रणनीतिक व तकनीकी परामर्श देना है।

नीति आयोग की पहली बैठक 6 फरवरी, 2015 को हुई, जिसमें प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी, वित्त मन्त्री श्री अरुण जेटली तथा आयोग के उपाध्यक्ष श्री अरविंद पनगडिया शामिल थे। इनके अतिरिक्त बैठक में विजय केलकर, नितिन देसाई, अशोक गुलाटी, सुबीर गोकर्ण, बिमल जालान, पार्थसारथी सोम, जी०एन० वाजपेयी, राजीव कुमार, राजीव लाल, मुकेश बुरानी, आर० वैद्यनाथन तथा बालाकृष्णन जैसे अर्थशास्त्रियों ने भी भाग लिया। इस बैठक में अर्थव्यवस्था की विकास दर फिर तेज़ करने, रोज़गार के अवसर बढ़ाने तथा ढांचागत संरचना सहित महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने जैसे विषयों पर विचार-विमर्श हुआ।

नीति आयोग की दूसरी महत्त्वपूर्ण बैठक 8 फरवरी, 2015 को हुई, इसमें नीति आयोग के सभी सदस्यों ने भाग लिया। इस बैठक में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने निम्नलिखित बातों पर बल दिया

(1) प्रधानमन्त्री ने आर्थिक सुधारों की धीमी गति, विकास की धीमी गति, मेक इन इण्डिया को मिलते कम समर्थन तथा मैन्यूफैक्चरिंग गतिविधियों में कमी को देखते हुए राज्यों से सक्रिय सहयोग की अपील की।

(2) प्रधानमन्त्री ने राज्यों को आपसी मतभेद भुलाकर विकास दर को तेज़ करने, निवेश बढ़ाने तथा रोजगार पैदा करने की अपील की।

(3) उन्होंने मुख्यमन्त्रियों से अपने-अपने राज्यों में एक नोडल अफसर नियुक्त करने की अपील की ताकि, राज्य लम्बित मुद्दों को हल तथा परियोजनाओं को जल्दी पूरा करने के लिए अवश्यक कदम उठा सकें।

(4) उन्होंने विकास के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा ग़रीबी को बताया तथा इसे दूर करने को सबसे बड़ी चुनौती बताया।

(5) उनके अनुसार नीति आयोग सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद का एक नया मॉडल बनायेगा।

(6) नीति आयोग की इस बैठक में प्रधानमन्त्री ने तीन उप-समितियां बनाने की घोषणा की, जोकि केन्द्र की 66 योजनाओं को ठीक से संगठित करने, कौशल विकास तथा स्वच्छ भारत योजना को निरन्तर चलाए रखने के लिए सुझाव देंगी।

(7) उन्होंने कहा, कि केन्द्र सभी के लिए एक ही नीति के सिद्धान्त से हटकर, नीतियों तथा राज्यों की ज़रूरत के उचित समन्वय पर बल देगा।

(8) उन्होंने मुख्यमन्त्रियों को परियोजनाओं को धीमी करने के कारणों पर खुद ध्यान देने की अपील की। (9) उन्होंने ग़रीबी समाप्त करने के लिए राज्यों से टास्क फोर्स गठित करने की अपील की।

(10) उन्होंने मख्यमन्त्रियों तथा उपराज्यपालों से फ्लैगशिप योजनाओं, ढांचागत योजनाओं, स्वच्छता मिशन, मेक इन इण्डिया अभियान, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना, स्मार्ट सिटी, डिजिटल इण्डिया, स्किल इण्डिया, प्रधानमन्त्री सिंचाई योजना तथा 2022 तक सभी के लिए घर उपलब्ध कराने जैसी केन्द्र की योजनाओं की सफलता के लिए सुझाव मांगे।

स्पष्ट है कि योजना आयोग को समाप्त करके बनाये गये नीति आयोग पर देश के विकास के लिए कारगार नीतियां एवं योजनाएं बनाने का दबाव रहेगा। यह सही है कि योजना आयोग द्वारा पूरे देश के लिए लगभग एक जैसी नीति बनाना सही तरीका नहीं था क्योंकि भारत में कुछ राज्य कृषि प्रधान हैं, तो कुछ राज्यों में उद्योगों की अधिकता है। किसी राज्य की प्रति व्यक्ति आय अधिक है, तो किसी की कम। इसलिए पूरे देश के लिए एक ही तरह की नीति व्यावहारिक सिद्ध नहीं हो रही थी। इसलिए नीति बनाते हुए विभिन्नताओं का सही विचार आवश्यक है। यदि नीति आयोग में ऐसा होना सम्भव हो तो उचित रहेगा।

प्रश्न 5.
खाद्य संकट से आपका क्या अभिप्राय है? खाद्य संकट के प्रमुख परिणामों का वर्णन करें।
उत्तर:
खाद्य संकट से अभिप्राय खाने पीने की वस्तुओं का कम होना है। 1960 के मध्य में भारत को राजनीतिक एवं आर्थिक मोर्चे पर कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। राजनीतिक मोर्चे पर पाकिस्तान से युद्ध के बाद पैदा हुई स्थिति राजनीतिक बदलाव तथा आर्थिक मोर्चे पर भारत में पड़ने वाला भयंकर अकाल था। इन सभी परिस्थितियों ने भारत की अर्थव्यवस्था को काफी हद तक प्रभावित किया। भारत में आर्थिक विकास में कमी आने लगी तथा विशेषकर खाद्य पदार्थों की कमी होने लगी।

खाद्य संकट के प्रमुख परिणाम

  • खाद्य संकट के कारण भारत में बड़े पैमाने पर कुपोषण फैला।
  • बिहार के कई भागों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन का आहार 2200 कैलोरी से घटकर 1200 कैलोरी रह गया।
  • 1967 में बिहार में मृत्यु दर पिछले साल की तुलना में 34% बढ़ गई।
  • खाद्य संकट के कारण देश में खाद्यान्न की कीमतें बढ़ने लगीं।
  • खाद्यान्न संकट ने देश की राजनीतिक परिस्थितियों को भी प्रभावित किया।
  • देश को चावल एवं गेहूं का आयात करना पड़ा। जिससे भारत की विदेशी पूंजी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
  • नियोजन के प्रति नागरिकों का विश्वास हिलने लगा।
  • योजना बनाने वालों को अपनी नीतियों में बदलाव करना पड़ा ताकि खाद्य संकट को टाला जा सके।

प्रश्न 6.
हरित क्रान्ति से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रभावों का वर्णन करो।
अथवा
हरित क्रांति क्या है ? हरित क्रांति की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
1960 के मध्य में भारत को राजनीतिक एवं आर्थिक मोर्चे पर कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। राजनीतिक मोर्चे पर पाकिस्तान से युद्ध के बाद पैदा हुई स्थिति, राजनीतिक बदलाव तथा आर्थिक मोर्चे पर भारत में पड़ने वाला भयंकर अकाल। इन सभी परिस्थितियों ने भारत की अर्थव्यवस्था को काफ़ी हद तक प्रभावित किया।

भारत के आर्थिक विकास में कमी आने लगी तथा विशेषकर खाद्य पदार्थों की कमी होने लगी जिसने भारतीय नेतृत्व को चिन्ता में डाल दिया कि किस प्रकार इन स्थितियों से बाहर निकला जाए। अतः भारतीय नीति निर्धारकों ने कृषि उत्पादन में तेजी से वृद्धि करने का निर्णय किया, ताकि भारत खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्म-निर्भर हो जाए। यहीं से भारत में हरित क्रान्ति की शुरुआत मानी जाती है। हरित क्रान्ति का मुख्य उद्देश्य देश में पैदावार को बढ़ाकर भारत को खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्म-निर्भर बनाना था। हरित क्रांति की मुख्य विशेषताएं या तत्त्व निम्न प्रकार से हैं

1. कृषि का निरन्तर विस्तार (Continued Expansion of Agriculture Sector):
हरित क्रान्ति का सबसे महत्त्वपूर्ण उद्देश्य या तत्त्व भारत में कृषि क्षेत्र का निरन्तर विस्तार एवं विकास करना था। यद्यपि स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय से ही भारत में कृषि क्षेत्र का विस्तार जारी था परन्तु 1960 के मध्य में इस ओर अधिक ध्यान दिया गया और यह कार्य हरित क्रान्ति के अन्तर्गत किया गया।

2. दोहरी फसल का उद्देश्य (Aim of Double Cropping):
हरित क्रान्ति का एक अन्य महत्त्वपूर्ण तत्त्व या उद्देश्य यह था कि साल में दो मौसमी फ़सलें बोई जाएं। साधारण रूप से भारत में प्रतिवर्ष एक मौसमी फसल ही काटी जाती थी, इसका प्रमुख कारण यह था कि प्रतिवर्ष भारत में एक ही मौसमी वर्षा होती थी। हरित क्रान्ति के अन्तर्गत अब प्रतिवर्ष दो मौसमी वर्षा करके दो मौसमी फ़सलें काटने का निर्णय लिया गया।

एक फ़सल प्राकृतिक वर्षा के आधार पर होनी तथा दूसरी कृत्रिम वर्षा के आधार होगी। कृत्रिम वर्षा के लिए सिंचाई सुविधाओं एवं यन्त्रों की ओर विशेष ध्यान दिया गया। प्राकृतिक वर्षा के समय जो पानी व्यर्थ चला जाता है उसे अब एक जगह एकत्र किया जाने लगा तथा नी का प्रयोग उस मौसमी फ़सल के लिए किया जाने लगा जब प्राकृतिक वर्षा नहीं होती थी। इस तरह भारत में अब एक वर्ष में दो मौसमी फ़सलें होने लगीं तथा खाद्यान्न पदार्थों की अधिकाधिक पैदावार होने लगी।

3. अच्छे बीजों का प्रयोग (Use of Good Qualities Seeds):
हरित क्रान्ति का एक तत्त्व या उद्देश्य अच्छे बीजों का प्रयोग करना था ताकि फ़सल ज्यादा हो। इसके लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (Indian Council for Agriculture Research) का 1965 एवं 1973 में पुनर्गठन किया गया। भारत में चावल, गेहूं, मक्का तथा बाजरा की विशेष किस्में तैयार की गईं।

4. भारत में कृषि का मशीनीकरण भी किया गया। इसके अन्तर्गत किसानों को कृषि यन्त्र खरीदने के लिए कृषि ऋण प्रदान किया गया।

5. हरित क्रांति के अन्तर्गत कृषि क्षेत्रों में सिंचाई की व्यवस्था का प्रबन्ध एवं विस्तार किया गया। 6. हरित क्रांति के अन्तर्गत खेतों में कीटानाशक दवाओं एवं रासायनिक खादों का प्रयोग किया जाने लगा। तीसरी पंचवर्षीय योजना में हरित क्रान्ति को सफल बनाने के लिए विशेष जोर दिया गया। तीसरी पंचवर्षीय योजना में अच्छी किस्म के बीजों पर ध्यान दिया गया। सिंचाई साधनों का विस्तार किया गया। किसानों को कृषि के विषय में और अधिक शिक्षित किया गया।

हरित क्रान्ति की सफलताएं (Achievements of Green Revolution):
भारत में हरित क्रान्ति के कुछ अच्छे परिणाम सामने आए जिनका वर्णन इस प्रकार है

1. उत्पादन में रिकार्ड वृद्धि (Record Increasement in Production) हरित क्रान्ति की सबसे बड़ी सफलता यह थी कि इससे भारत में रिकार्ड पैदावार हुई। 1978-79 में भारत में लगभग 131 मिलियन टन गेहूँ का उत्पादन हुआ तथा जो देश गेहूँ का आयात करता था, वह अब गेहूँ को निर्यात करने की स्थिति में आ गया।

2. फ़सल क्षेत्र में वृद्धि (Increasement in Crop Field)-हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप भारत में फ़सल क्षेत्र में व्यापक वृद्धि हुई।

3. औद्योगिक विकास को बढ़ावा (Promotion of Industrial Development) हरित क्रान्ति के कारण भारत में न केवल कृषि क्षेत्र को ही फायदा हुआ बल्कि इसने औद्योगिक विकास को भी बढ़ावा दिया। हरित क्रान्ति के अन्तर्गत अच्छे बीजों, अधिक पानी, खाद तथा कृत्रिम यन्त्रों की आवश्यकता थी, जिसके लिए उद्योग लगाए गए। इससे लोगों को रोजगार भी प्राप्त हुआ है।

4. बांधों का निर्माण (Making of Bandh)हरित क्रान्ति के लिए वर्षा के पानी को संचित करने की आवश्यकता अनुभव हुई जिसके लिए कई जगहों पर बांधों का निर्माण किया गया जिससे कई लोगों को रोजगार मिला।

5. जल विद्युत् शक्ति को बढ़ावा (Promotion Water Energy)-बांधों द्वारा संचित किए गए पानी का जल विद्युत् शक्ति के उत्पादन में प्रयोग किया गया।

6. विदेशों में भारतीय किसानों की मांग (Demand of Indian Farmers in Foreign)-भारत की हरित क्रान्ति से कई देश इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने भारतीय किसानों को अपने देश में बसाने के लिए प्रोत्साहित किया। कनाडा जैसे देश ने भारत सरकार से किसानों की मांग की। जिसके कारण पंजाब एवं हरियाणा से कई किसान कनाडा में जाकर बस गए।

7. विदेशी कों की वापसी-हरित क्रान्ति के समय या उससे पहले भारत ने विदेशी संस्थाओं से जो भी कर्जे लिए थे, उन्हें वापिस कर दिया गया।

8. राजनीतिक स्थिति में बढ़ोत्तरी (Increasement of Political Status)-भारत में हरित क्रान्ति का एक सकारात्मक प्रभाव यह पड़ा कि भारत की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर और अधिक अच्छी छवि बन गई। हरित क्रान्ति के परिणाम भारत खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्म-निर्भर हो गया, जिससे भारत को अमेरिका पर खाद्यान्न के लिए निर्भर नहीं रहना पडा और इसका प्रभाव 1971 की पाकिस्तान के साथ लडाई में देखा गया।

9. बुनियादी ढांचे में विकास (Development of Infrastructure) हरित क्रान्ति की एक सफलता यह रही कि इसके परिणामस्वरूप भारत में बुनियादी ढांचे में उत्साहजनक विकास देखने को मिला। हरित क्रान्ति द्वारा पैदा हुई समस्याएं (Problems Emerged by Green Revolution) हरित क्रान्ति से भारत में जहां विकास के नये द्वार खुले, वहीं इससे सम्बन्धित कई समस्याएं भी पैदा हुईं

  • हरित क्रान्ति के कारण भारत में चाहे खाद्यान्न संकट समाप्त हो गया, परन्तु वह थोड़े समय के लिए ही था। आज भी भारत में खाद्यान्न संकट पैदा हो जाता है।
  • भारत में 1980 के दशक में वर्षा न होने से हरित क्रान्ति से कुछ विशेष लाभ प्राप्त नहीं हो पाया।
  • हरित क्रान्ति के बावजूद 1998 में भारत को प्याज आयात करना पड़ा।
  • भारत को 2004 में चीनी आयात करनी पड़ी।
  • हरित क्रान्ति की सफलता पूरे भारत में न होकर केवल उत्तरी राज्यों में ही दिखाई पड़ती है।
  • कालाहाण्डी जैसे क्षेत्रों में लोग आज भी भूख के कारण मर रहे हैं।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 7.
हरित क्रान्ति तथा इसके राजनीतिक कुप्रभावों का वर्णन करें।
अथवा
हरित क्रान्ति किसे कहते हैं ? इसके राजनैतिक प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति का अर्थ-इसके लिए प्रश्न नं० 6 देखें। हरित क्रान्ति के राजनीतिक प्रभाव-हरित क्रान्ति के निम्नलिखित राजनीतिक प्रभाव पड़े

  • हरित क्रान्ति के कारण पंचवर्षीय योजना को कुछ समय के लिए रोक दिया गया।
  • हरित क्रान्ति के समय भारत में राजनीतिक अस्थिरता का दौर रहा।
  • हरित क्रान्ति के दौरान होने वाले चुनावों के परिणामस्वरूप अनेक राज्यों में गठबन्धन सरकारों का निर्माण हुआ।
  • हरित क्रान्ति के दौरान दल-बदल को बढ़ावा मिला।
  • हरित क्रांन्ति के दौरान प्रशासनिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला।

प्रश्न 8.
विकास का अर्थ बताइये। विकास के मुख्य उद्देश्य क्या हैं ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विकास का अर्थ (Meaning of Development)-विकास एक व्यापक एवं सार्वभौमिक धारणा है, जिसको विभिन्न सन्दर्भो में विभिन्न अर्थों में इस्तेमाल किया जाता है। वर्तमान भौतिकवादी युग में व्यक्ति व समाज के विकास की अवधारणा का अर्थ प्रायः आर्थिक विकास से ही लिया जाता है। विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर ये कहा जा सकता है कि विकास एक बहुपक्षीय प्रक्रिया है जिसमें ढांचों में, दृष्टिकोणों और संस्थाओं में परिवर्तन, आर्थिक सम्पदा में वृद्धि, असमानताओं में कमी और निर्धनता का उन्मूलन शामिल है। परम्परागत समाज से आधुनिक विकसित समाज में परिवर्तन करने की प्रक्रिया को विकास कहते हैं।

1. एल्फ्रेड डायमेन्ट (Alfred Diamant) के अनुसार, “राजनीतिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक राजनीतिक व्यवस्था के नए प्रकार के लक्ष्यों को निरन्तर सफल रूप में प्राप्त करने की क्षमता बनी रहती है।”

2. चुतर्वेदी (Chaturvedi) के अनुसार, “विकास एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज के उद्देश्यों को प्राप्त किया जाता है। विकास का उद्देश्य है-एक प्राचीन एवं पिछड़ी हुई व्यवस्था को आधुनिक व्यवस्था में बदलना।”

3. लूसियन पाई (Lucian Pye) के अनुसार, “राजनीतिक विकास संस्कृति का वितरण और जीवन के प्रतिमानों के नए भागों के अनुकूल बनाना, उन्हें उनके साथ मिलाना या उनके साथ सामंजस्य बिठाना है।”

विकास के उद्देश्य (Objectives of Development)-विकास के निम्नलिखित उद्देश्य होते हैं

1. न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति-विकास का प्रथम महत्त्वपूर्ण लक्ष्य गरीब जनता की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करना है। चिकित्सा सुविधाएं, स्वास्थ्य, पेयजल, कपड़ा, मकान, भोजन आदि आवश्यक पदार्थों की सुविधाएं आम जनता को दी जाएंगी।

2. गरीबी व बेरोज़गारी को दूर करना-पिछड़े तथा विकासशील देशों का एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य आर्थिक पुनर्निर्माण करके गरीबी तथा बेरोज़गारी को दूर करना है। विकसित देश भी बेरोज़गारी की समस्या को हल करने के लिए प्रयास कर रहे हैं।

3. प्राकृतिक साधनों का विकास-विकासशील देशों का लक्ष्य प्राकृतिक साधनों का शोषण करके देश का आर्थिक विकास करना है।

4.विकास की ऊंची दर-आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए आर्थिक विकास की ऊंची दर को प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके लिए यह आवश्यक है कि राष्ट्रीय आय तथा शुद्ध प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि की जाए।

5. आत्म-निर्भरता-अल्पविकसित तथा विकासशील देशों का लक्ष्य अपने देश को आत्म-निर्भर बनाना है।

6. समाज कल्याण के कार्य-विकासशील देश लोगों के आर्थिक तथा समाज कल्याण के कार्यों को निम्न स्तर के लोगों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखते हैं। गरीब वर्गों और विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए सरकार को भारी निवेश का रास्ता अपनाना पड़ेगा। विश्व के अनेक देशों में बेकारी भत्ता (Unemployment Allowance) दिया जाता है। विश्व के अनेक विकसित देशों में बेरोजगारों को बेकारी भत्ता, नि:शुल्क तथा अनिवार्य प्राइमरी शिक्षा, वृद्धों को पेंशन इत्यादि अनेक सुविधाएं दी गई हैं और विकासशील देश इन सुविधाओं को देने का प्रयास कर रहे हैं।

7. लोकतन्त्रीय पद्धति से विकास-लोकतन्त्र पद्धति के द्वारा ही विकास कार्य किए जाने चाहिए। लोकतन्त्र विकास का विरोधी नहीं है। यह ठीक है कि अधिनायकवादी देशों में विकास की गति तीव्र होती है और अधिनायक विकास की जो दिशा तय करता है उसी दिशा में विकास होता है।

परन्तु अधिनायकवादी देशों ने जनसहयोग के अभाव में विकास में जनता की न तो रुचि होती है और न ही विकास के लाभ आम जनता तक पहुंचते हैं। उदाहरण के तौर पर साम्यवादी देशों में विकास के प्रतिमानों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता था जबकि वास्तविकता बिल्कुल उसके विपरीत थी। अत: विकास जनसहयोग से ही होना चाहिए ताकि विकास या लाभ आम जनता में समानता के आधार पर वितरित किया जा सके।

लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1.
प्रथम पंचवर्षीय योजना के कोई चार उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
(1) प्रथम योजना का सर्वप्रथम उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध तथा देश के विभाजन के फलस्वरूप देश में जो आर्थिक अव्यवस्था तथा असन्तुलन पैदा हो चुका था उसको ठीक करना था।

(2) प्रथम योजना का दूसरा उद्देश्य देश में सर्वांगीण सन्तुलित विकास का प्रारम्भ करना था ताकि राष्ट्रीय आय निरन्तर बढ़ती जाए और लोगों के रहन-सहन का स्तर ऊंचा उठ सके। यह आर्थिक विकास, प्रचलित सामाजिक-आर्थिक ढांचे में सुधार लाकर किया जाना था।

(3) योजना का तीसरा मुख्य उद्देश्य उत्पादन-क्षमता में वृद्धि तथा आर्थिक विषमता को यथासम्भव कम करना था।

(4) प्रथम योजना का एक उद्देश्य मुद्रा-स्फीति के दबाव को कम करना भी था।

प्रश्न 2.
दूसरी पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • राष्ट्रीय आय में पर्याप्त वृद्धि की जाए ताकि लोगों के रहन-सहन के स्तर में सुधार हो सके।
  • देश का औद्योगिक विकास तीव्र गति से किया जाए और इसके लिए आधारभूत तथा भारी उद्योगों के विकास पर विशेष बल दिया जाए।
  • रोज़गार के अवसरों में अधिक-से-अधिक विस्तार किया जाए।
  • धन तथा आय के बंटवारे में असमानता को कम किया जाए तथा आर्थिक सत्ता को विकेन्द्रित किया जाए।

प्रश्न 3.
तीसरी पंचवर्षीय योजना के कोई चार उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
(1) राष्ट्रीय आय में वार्षिक वृद्धि दर 5 प्रतिशत से अधिक किया जाए तथा विनियोग इस प्रकार हो कि यह विकास दर आगामी पंचवर्षीय योजनाओं में उपलब्ध हो सके।

(2) खाद्यान्नों में आत्म-निर्भरता प्राप्त की जाए तथा कृषि उत्पादन में इतना विकास किया जाए जिससे उद्योगों तथा निर्यात की आवश्यकताएं पूरी हो सकें।

(3) आधारभूत उद्योगों जैसे इस्पात, कैमिकल उद्योग, ईंधन तथा विद्युत् उद्योगों का विस्तार किया जाए तथा मशीन निर्माण की क्षमता को इस प्रकार बढ़ाया जाए कि आगामी दस वर्षों में इस क्षेत्र में लगभग आत्म-निर्भर हो जाएं तथा औद्योगिक विकास के लिए भविष्य में मशीनरी की आवश्यकताएं देश में पूरी हो सकें।

(4) देश की मानव शक्ति का अधिक-से-अधिक प्रयोग किया जाए तथा रोजगार के अवसरों में पर्याप्त वृद्धि की जाए।

प्रश्न 4.
विकास का समाजवादी मॉडल क्या है?
अथवा
विकास के समाजवादी मॉडल का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
(1) विकास का समाजवादी मॉडल उत्पादन तथा वितरण के साधनों को समस्त समाज की सम्पत्ति मानता है। अतः समाजवादी उत्पादन तथा वितरण के साधनों पर राज्य का नियन्त्रण स्थापित करना चाहते हैं।

(2) विकास का समाजवादी मॉडल व्यक्ति की अपेक्षा समाज के विकास को अधिक महत्त्व देता है।

(3) विकास का समाजवादी मॉडल नियोजित अर्थव्यवस्था का समर्थन करता है। नियोजित अर्थव्यवस्था के द्वारा ही देश का विकास किया जा सकता है।

(4) विकास का समाजवादी मॉडल आर्थिक क्षेत्र में स्वतन्त्र प्रतियोगिता समाप्त करके सहयोग की भावना पैदा करने के पक्ष में है।

प्रश्न 5.
विकास के पूंजीवादी मॉडल से आपका क्या तात्पर्य है ?
अथवा
विकास का पूंजीवादी मॉडल क्या है ?
उत्तर:

  • विकास का पूंजीवादी मॉडल खुली प्रतिस्पर्धा और बाज़ार मूलक अर्थव्यवस्था में विश्वास रखता है।
  • विकास का पूंजीवादी मॉडल अर्थव्यवस्था में सरकार के गैर-ज़रूरी हस्तक्षेप को उचित नहीं मानता।
  • विकास का पंजीवादी मॉडल लाइसेंस/परमिशन को समाप्त करने के पक्ष में है।
  • विकास का पूंजीवादी मॉडल भौतिक विकास में विश्वास रखता है।

प्रश्न 6.
पांचवीं पंचवर्षीय योजना के कोई चार उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
1. निर्धनता को दूर करना-पांचवीं योजना का मुख्य उद्देश्य निर्धनता को दूर करना था। निर्धनता दूर करने का अभिप्राय यह है कि देशवासियों की कम-से-कम इतनी आय अवश्य होनी चाहिए कि वे अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।

2. आधारभूत न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति- पांचवीं योजना का एक मुख्य उद्देश्य देशवासियों की आधारभूत न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति की व्यवस्था करना था।

3. रोज़गार की अधिकाधिक व्यवस्था–उत्पादन बढ़ाने वाले रोजगार का विस्तार करना ताकि अधिक लोगों को रोज़गार दिया जा सके।

4. आर्थिक स्वावलम्बन-पांचवीं योजना का एक मुख्य लक्ष्य आर्थिक आत्म-निर्भरता की प्राप्ति है। विदेशी सहायता को 1978-79 तक बिल्कुल शून्य करना इस योजना का लक्ष्य था।

प्रश्न 7.
छठी पंचवर्षीय योजना के मुख्य चार उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • राष्ट्रीय आय की विकास दर का लक्ष्य 5.2 % निर्धारित किया गया। प्रति व्यक्ति आय की विकास दर का लक्ष्य 3.3 % रखा गया।
  • कृषि की विकास दर का लक्ष्य 4 प्रतिशत, उद्योगों का 7 प्रतिशत प्रतिवर्ष तथा निर्यात का 10 प्रतिशत प्रतिवर्ष निर्धारित किया गया था।
  • बचत की दर 24.5 प्रतिशत तथा निवेश की दर 25 प्रतिशत प्रतिवर्ष निर्धारित की गई थी।
  • जनसंख्या की वृद्धि दर को 2.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष से कम करके 1.86 प्रतिशत प्रतिवर्ष करने का लक्ष्य रखा गया।

प्रश्न 8.
सातवीं पंचवर्षीय योजना के चार मुख्य उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • योजना का विकेन्द्रीकरण होगा और विकास के काम में सब लोगों का सहयोग लिया जाएगा।
  • ग़रीबी और बेरोजगारी कम की जाएगी। रोजगार के अवसरों में 4 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य रखा गया।
  • क्षेत्रीय असमानता कम की जाएगी।
  • शिक्षा, स्वास्थ्य तथा पोषण की सुविधाएं अधिक-से-अधिक लोगों तक पहुंचाई जाएंगी।

प्रश्न 9.
आठवीं पंचवर्षीय योजना के चार उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • देश में पर्याप्त रोजगार अवसर पैदा करना।
  • जनसंख्या की वृद्धि दर को कम करना।
  • प्राथमिक शिक्षा को सर्वव्यापक बनाना।
  • कृषि क्षेत्र में विविधता को बढ़ावा देना।

प्रश्न 10.
नौवीं पंचवर्षीय योजना के चार उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • बचत दर को बढ़ाकर 28.6% करना।
  • विकास दर को सात प्रतिशत प्रतिवर्ष करना।
  • कीमतों को स्थिर रखना।
  • जनसंख्या वृद्धि दर को कम करना।

प्रश्न 11.
10वीं पंचवर्षीय योजना के चार उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • प्रति व्यक्ति आय को दुगुनी करना।
  • विकास दर को 8% प्रतिवर्ष करना।
  • निर्धनता को बढ़ावा देना।
  • कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देना।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 12.
नियोजन का अर्थ बताओ।
उत्तर:
वर्तमान समय में नियोजन का विशेष महत्त्व है। नियोजन से अभिप्राय किसी कार्य को व्यवस्थित ढंग से करने के लिए तैयारी करना है। कुछ विशेष उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विधि निर्धारित करना ही नियोजन कहलाता है। हडसन ने नियोजन की परिभाषा देते हुए कहा है, “भावी कार्यक्रम के मार्ग को निश्चित करने के लिए आधार की खोज नियोजन है।” मिलेट के अनुसार, “प्रशासकीय कार्य के उद्देश्यों को निर्धारित करना तथा उनकी प्राप्ति के साधनों पर विचार करने को नियोजन कहते हैं।” हैरिस के शब्दों में, “आय तथा कीमत के सन्दर्भ की गति में साधनों के बंटवारे को प्रायः नियोजन कहते हैं।”

प्रश्न 13.
भारत में नियोजन के कोई चार मुख्य उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
1. राष्ट्रीय आय में वृद्धि-भारत में नियोजन का मुख्य उद्देश्य देश की राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना है।

2. क्षेत्रीय असन्तुलन में कमी-विभिन्न योजनाओं का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य क्षेत्रीय असन्तुलन को कम करना रहात अर्थव्यवस्था का निर्माण किया जा सके। इस दिशा में भारत सरकार ने योजना अवधि में पिछड़े क्षेत्रों के विकास हेतु विशेष कार्यक्रम लागू किए हैं।

3. आर्थिक असमानता में कमी-नियोजन का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य आर्थिक असमानता को कम करना है। रोज़गार-नियोजन का मुख्य उद्देश्य रोज़गार के अवसर बढ़ाना है।

प्रश्न 14.
भारत में आर्थिक नियोजन को अपनाने के कोई चार कारण लिखिये।
अथवा
भारत में योजना पद्धति को क्यों अपनाया गया ?
उत्तर:
नियोजन की आवश्यकता मुख्यतः निम्नलिखित कारणों से अनुभव की जाती है

  • नियोजन के द्वारा आर्थिक तथा सामाजिक जीवन के विभिन्न अंगों में समन्वय स्थापित करके समाज की उन्नति की जा सकती है।
  • आर्थिक न्याय तथा सामाजिक समता पर आधारित अच्छे समाज के निर्माण को सम्भव बनाने के लिए नियोजन ‘अति आवश्यक है।
  • नियोजन से श्रमिकों तथा निर्धनों की शोषण से सुरक्षा की जा सकती है।
  • नियोजन से राष्ट्र की पूंजी थोड़े-से व्यक्तियों के हाथों में एकत्रित नहीं होती।

प्रश्न 15.
अच्छे नियोजन की किन्हीं चार विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
अच्छे नियोजन की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं

  • नियोजन के उद्देश्य की स्पष्ट तथा व्यापक व्यवस्था होनी चाहिए।
  • उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक साधनों तथा उपायों की व्यवस्था होनी चाहिए।
  • नियोजन में आवश्यकतानुसार लचीलापन होना चाहिए।
  • नियोजन के विभिन्न अंगों में सन्तुलन होना चाहिए।

प्रश्न 16.
योजना आयोग के कोई चार कार्य लिखिए।
उत्तर:
योजना आयोग के मख्य कार्य निम्नलिखित थे

(1) देश के भौतिक, पूंजीगत, मानवीय, तकनीकी तथा कर्मचारी वर्ग सम्बन्धी साधनों का अनुमान लगाना और जो साधन राष्ट्रीय आवश्यकता की तुलना में कम प्रतीत होते हों उनकी वृद्धि की सम्भावनाओं के सम्बन्ध में अनुसन्धान करना।

(2) देश के साधनों का अधिकतम प्रभावशाली तथा सन्तुलित उपयोग के लिए योजना बनाना।

(3) नियोजन में स्वीकृत कार्यक्रम तथा परियोजनाओं के बारे में प्राथमिकताएं निश्चित करना।

(4) योजना के मार्ग में आने वाली बाधाओं को इंगित करना तथा राष्ट्र की राजनीतिक तथा सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए योजना के लिए स्वस्थ वातावरण उत्पन्न करना।

प्रश्न 17.
योजना आयोग की कार्यप्रणाली की आलोचना क्यों की जाती थी ?
उत्तर:
भारत में स्थापित योजना आयोग की प्रासंगिकता 1990 के दशक में कम होने लगी। लाइसैंस राज समाप्त होने के बाद यह बिना किसी प्रभावी अधिकार के सलाहकार संस्था के तौर पर काम करता रहा। योजना आयोग की रचना, कार्यप्रणाली तथा इसकी प्रासंगिकता पर समय-समय पर सवाल उठते रहे थे। योजना आयोग के अनुसार 28 रु० की आय वाला व्यक्ति ग़रीबी रेखा से ऊपर है, जबकि आयोग ने अपने दो शौचालयों पर 35 लाख रुपये खर्च कर दिये थे।

तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता का कहना था, कि “हम दिल्ली सिर्फ इसलिए आते हैं, ताकि आयोग हमें बता सके कि हम अपना धन कैसे खर्च करें।” पूर्व केन्द्रीय मन्त्री कमल नाथ योजना आयोग को ‘आमचेयर एडवाइजर तथा नौकरशाहों का पार्किंग लॉट’ कहकर व्यंग्य कर चुके हैं।

स्वतन्त्र मूल्यांकन कार्यालय (आई०ई०ओ०) ने आयोग को आई०ए०एस० अधिकारियों का अड्डा बताया है। यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने योजना आयोग को ‘जोकरों का समूह’ कहा था। इन सभी कारणों से योजना आयोग जैसी पुरानी संस्था को समाप्त करके एक नई संस्था बनाने का विचार काफी समय से उठ रहा था।

प्रश्न 18.
नीति आयोग की स्थापना कब की गई ? इसकी रचना का वर्णन करें।
उत्तर:
एक जनवरी, 2015 को योजना आयोग को समाप्त करके नीति आयोग (NITI AAYOG NATIONAL INSTITUTION FOR TRANSFORMING INDIA) की स्थापना की गई।

नीति आयोग की रचना (Composition of NITI Aayog)-नीति आयोग की रचना निम्नलिखित ढंग से की गई है

  • अध्यक्ष–प्रधानमन्त्री
  • उपाध्यक्ष- इसकी नियुक्ति प्रधानमन्त्री करेंगे।
  • सी०ई०ओ०-सी०ई०ओ० केन्द्र के सचिव स्तर का अधिकारी होगा, जिसकी नियुक्ति प्रधानमन्त्री निश्चित कार्यकाल के लिए करेंगे।
  • गवर्निंग काऊंसिल- इसमें सभी मुख्यमंत्री तथा केन्द्रशासित प्रदेशों के उपराज्यपाल शामिल होंगे।
  • पूर्णकालिक सदस्य- इसमें अधिकतम पांच सदस्य होंगे।
  • अंशकालिक सदस्य- इसमें अधिकतम दो पदेन सदस्य होंगे।
  • पदेन सदस्य-इसमें अधिकतम चार केन्द्रीय मन्त्री होंगे।
  • विशेष आमंत्रित सदस्य-इसमें विशेषज्ञ होंगे, जिन्हें प्रधानमन्त्री मनोनीत करेंगे।

प्रश्न 19.
नीति आयोग में कितने विभागों की व्यवस्था की गई है ?
उत्तर:
नीति आयोग में कुशलतापूर्वक कार्य करने के लिए तीन विभागों की भी व्यवस्था की गई है

  • पहला अन्तर्राज्जीय परिषद् की तरह कार्य करेगा।
  • दूसरा विभाग लम्बे समय की योजना बनाने तथा उसकी निगरानी करने का काम करेगा।
  • तीसरा विभाग डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर तथा यू०आई०डी०ए०आई० (UIDAI) को मिलाकर बनाया जायेगा।

प्रश्न 20.
नीति आयोग के उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
नीति आयोग के कुछ महत्त्वपूर्ण उद्देश्य निर्धारित किए गए हैं, जिनका वर्णन इस प्रकार है

  • सशक्त राज्य से सशक्त राष्ट्र-इस सूत्र से सहकारी संघवाद (Co-operative Federalism) को बढ़ाना।
  • रणनीतिक तथा दीर्घावधि के लिए नीति तथा कार्यक्रम का ढांचा बनाना।
  • ग्रामीण स्तर पर योजनाएं बनाने के तन्त्र को विकसित करना।
  • आर्थिक प्रगति से वंचित रहे वर्गों पर विशेष ध्यान देना।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों व आर्थिक नीति में तालमेल बिठाना।

प्रश्न 21.
विकास के किन्हीं तीन उद्देश्यों का वर्णन करें।
अथवा
विकास के किन्हीं चार उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विकास के निम्नलिखित उद्देश्य हैं

  • विकास का प्रथम महत्त्वपूर्ण उद्देश्य ग़रीब जनता की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करना हैं।
  • आर्थिक पुनर्निर्माण करके ग़रीबी तथा बेरोज़गारी को दूर करना है।
  • विकास का लक्ष्य प्राकृतिक साधनों का विकास करना है।
  • विकास की ऊँची दर प्राप्त करना।

प्रश्न 22.
भारत में योजना पद्धति को क्यों अपनाया गया ?
उत्तर:
भारत में योजना पद्धति को निम्नलिखित कारणों से अपनाया गया

  • नियोजन के द्वारा आर्थिक तथा सामाजिक जीवन के विभिन्न अंगों में समन्वय स्थापित करके समाज की उन्नति की जा सकती है।
  • आर्थिक न्याय तथा सामाजिक समता पर आधारित अच्छे समाज के निर्माण को सम्भव बनाने के लिए नियोजन अति आवश्यक है।
  • आर्थिक नियोजन से श्रमिकों तथा निर्धनों की शोषण से सुरक्षा की जा सकती है।
  • आर्थिक नियोजन से राष्ट्र की पूंजी थोड़े से व्यक्तियों के हाथों में एकत्रित नहीं होती।

प्रश्न 23.
राष्ट्रीय विकास परिषद् के मुख्य कार्य लिखें।
उत्तर:
राष्ट्रीय विकास परिषद् के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं

  • समय-समय पर राष्ट्रीय योजना के कार्य की समीक्षा करना।
  • राष्ट्रीय विकास को प्रभावित करने वाली सामाजिक व आर्थिक नीति के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार करना।
  • राष्ट्रीय योजना के अन्तर्गत निश्चित लक्ष्यों और उद्देश्यों की सफलता के लिए उपायों की सिफ़ारिश करना।

इसके अन्तर्गत जनता से सक्रिय सहयोग प्राप्त करना. प्रशासकीय सेवाओं की कार्यकशलता में सधार करना। पिछडे प्रदेशों तथा वर्गों का पूर्ण विकास करना तथा सभी नागरिकों द्वारा समान मात्रा में बलिदान के माध्यम से राष्ट्रीय विकास के लिए साधनों का निर्माण करने के उपायों की सिफ़ारिश करना भी सम्मिलित है।

प्रश्न 24.
सार्वजनिक क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र से अभिप्राय उन व्यवसायों तथा आर्थिक क्रिया-कलापों से है जिनके साधनों पर सरकार का स्वामित्व होता है और जिनका प्रबन्ध व नियन्त्रण सरकार के हाथों में ही होता है। सार्वजनिक क्षेत्र में आर्थिक क्रियाओं का संचालन मुख्य रूप से सार्वजनिक हित को ध्यान में रखकर ही किया जाता है।

सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत राज्य द्वारा सार्वजनिक उद्यमों की स्थापना की जाती है। वे सभी उद्योग-धन्धे तथा व्यावसायिक गतिविधियां जिन पर सरकार का स्वामित्व होता है, सार्वजनिक क्षेत्र कहलाता है। प्रो० ए० एच० हैन्सन के अनुसार, “सरकार के स्वामित्व और संचालन के अन्तर्गत आने वाले औद्योगिक, कृषि एवं वित्तीय संस्थानों से है।”

राय चौधरी एवं चक्रवर्ती के अनुसार, “लोक उद्यम या आधुनिक उपक्रम व्यवसाय का वह स्वरूप है जो सरकार द्वारा नियन्त्रित और संचालित होता है तथा सरकार उसकी या तो स्वयं एकमात्र स्वामी होती है अथवा उसके अधिकांश हिस्से सरकार के पास होते हैं।” इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में लोक उद्यमों का वर्णन इस प्रकार मिलता है, “लोक उद्योग का आशय ऐसे उपक्रम से है जिस पर केन्द्रीय, प्रान्तीय अथवा स्थानीय सरकार का स्वामित्व होता है। ये उद्योग अथवा उपक्रम मूल्य के बदले वस्तुओं एवं सेवाओं की पूर्ति करते हैं तथा सामान्यतया स्वावलम्बी आधार पर चलाए जाते हैं।”

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 25.
सार्वजनिक क्षेत्र की विशेषताएं लिखें।
उत्तर:

  • सार्वजनिक क्षेत्र एक व्यापक धारणा है जिसमें सरकार की समस्त आर्थिक तथा व्यावसायिक गतिविधियां शामिल की जाती हैं।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत स्थापित किए जाने वाले विभिन्न उद्यमों, निगमों तथा अन्य संस्थाओं पर सरकार का स्वामित्व, प्रबन्ध तथा संचालन होता है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों पर पूर्ण रूप से राष्ट्रीय नियन्त्रण होता है और सार्वजनिक क्षेत्र में एकाधिकार की प्रवृत्ति पाई जाती है।

प्रश्न 26.
हरित क्रान्ति की मुख्य चार विशेषताएं बताइये।
उत्तर:
1. उत्पादन में रिकार्ड वृद्धि-हरित-क्रान्ति की सबसे बड़ी सफलता यह थी कि इससे भारत में रिकार्ड पैदावार हुई। 1978-79 में भारत में लगभग 131 मिलियन टन गेहूँ का उत्पादन हुआ तथा जो देश गेहूँ का आयात करता था, वह अब गेहूँ को निर्यात करने की स्थिति में आ गया।

2. फ़सल क्षेत्र में वृद्धि-हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप भारत में फ़सल क्षेत्र में व्यापक वृद्धि हुई।

3. औद्योगिक विकास को बढ़ावा-हरित क्रान्ति के कारण भारत में न केवल कृषि क्षेत्र को ही फायदा हुआ बल्कि इसने औद्योगिक विकास को भी बढ़ावा दिया। हरित क्रान्ति के अन्तर्गत अच्छे बीजों, अधिक पानी, खाद तथा कृत्रिम यन्त्रों की आवश्यकता थी, जिसके लिए उद्योग लगाए गए। इससे लोगों को रोज़गार भी प्राप्त हुआ।

4. बांधों का निर्माण-हरित क्रान्ति के लिए वर्षा के पानी को संचित करने की आवश्यकता अनुभव हुई जिसके लिए कई जगहों पर बाँधों का निर्माण किया गया जिससे कई लोगों को रोजगार मिला।

प्रश्न 27.
‘मिश्रित अर्थव्यवस्था’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था उस व्यवस्था को कहते हैं, जहां पर पूंजीवादी तथा समाजवादी अर्थव्यवस्था का मिश्रित रूप पाया जाता है। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में वैयक्तिक क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र दोनों की व्यवस्था की जाती है। सार्वजनिक क्षेत्र वाले उद्योगों का प्रबन्ध राजकीय निगम और व्यक्तिगत क्षेत्र के उद्योगों का प्रबन्ध व्यक्तिगत रूप से उद्योगपतियों द्वारा किया जाता है। भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था पाई जाती है।

प्रश्न 28.
हरित क्रान्ति की आवश्यकता पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
1960 के मध्य में भारत को राजनीतिक एवं आर्थिक मोर्चे पर कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। राजनीतिक मोर्चे पर पाकिस्तान से युद्ध के बाद पैदा हुई स्थिति तथा राजनीति बदलाव तथा आर्थिक मोर्चे पर भारत में पड़ने वाला भयंकर अकाल था। इन सभी परिस्थितियों ने भारत की अर्थव्यवस्था को काफ़ी हद तक प्रभावित किया।

भारत में आर्थिक विकास में कमी आने लगी तथा विशेषकर खाद्य पदार्थों की कमी होने लगी, जिसने भारतीय नेतृत्व को चिन्ता में डाल दिया कि किस प्रकार इन स्थितियों से बाहर निकला जाए। अतः भारतीय नीति निर्धारकों ने कृषि उत्पादन में तेजी से वृद्धि करने का निर्णय किया ताकि भारत खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्म-निर्भर बन जाए। यहीं से भारत में हरित क्रान्ति की शुरुआत मानी जाती है। हरित क्रान्ति का मुख्य उद्देश्य देश में पैदावार को बढ़ाकर भारत को खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्म-निर्भर बनाना था।

प्रश्न 29.
आर्थिक विकास के भारतीय मॉडल की मुख्य विशेषताएं क्या हैं ?
उत्तर:

  • भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया है।
  • भारत के आर्थिक विकास में नियोजन को महत्त्व प्रदान किया गया है।
  • भारत में आर्थिक विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण किया जाता है।
  • भारत में कृषि के साथ-साथ औद्योगिकीकरण पर भी बल दिया गया है।

प्रश्न 30.
‘नियोजित विकास’ की कोई चार उपलब्धियां लिखें।
अथवा
भारत में नियोजन की कोई चार उपलब्धियों का वर्णन करें।
उत्तर:

  • नियोजन विकास से देश का संतुलित विकास सम्भव हो पाया है।
  • नियोजित विकास से श्रमिकों एवं कमजोर वर्गों का शोषण कम हुआ है।
  • नियोजित विकास से भारत खाद्यान्न क्षेत्र में आत्म-निर्भर हो पाया है।
  • इससे राष्ट्र की पूंजी थोड़े-से व्यक्तियों के हाथों में एकत्रित नहीं हो पाई है।

प्रश्न 31.
भारत में ‘खाद्य संकट’ के क्या परिणाम हुए थे ?
उत्तर:

  • खाद्य संकट से भारत में बड़े स्तर पर कुपोषण फैला।
  • बिहार के कई भागों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन का आहार 2200 कैलोरी से घटकर 1200 कैलोरी रह गया।
  • 1967 में बिहार में मृत्यु दर पिछले साल की तुलना में 34% बढ़ गई।
  • खाद्य संकट के कारण देश में खाद्यान्न की कीमतें बढ़ गईं।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विकास का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
विकास एक बहुपक्षीय प्रक्रिया है जिसमें ढांचों में, दृष्टिकोणों और संस्थाओं में परिवर्तन, आर्थिक सम्पदा में वृद्धि, असमानताओं में कमी और निर्धनता का उन्मूलन शामिल है। परम्परागत समाज से आधुनिक विकसित समाज में परिवर्तन करने की प्रक्रिया को विकास कहते हैं।

प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था किस प्रकार की थी ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत ही पिछड़ी अवस्था में थी। भारत की कृषि व्यवस्था खराब अवस्था में थी। स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था थी। अंग्रेजों ने भारतीय संसाधनों का इतनी बुरी तरह से शोषण किया कि भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह खराब हो गई। परिणामस्वरूप स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था गतिहीन, अर्द्ध सामन्ती तथा असन्तुलित अर्थव्यवस्था बन कर रह गई।

प्रश्न 3.
‘हरित क्रान्ति’ का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति से अभिप्राय कृषि उत्पादन में होने वाली उस भारी वृद्धि से है, जो कृषि की नई नीति अपनाने के कारण हुई है। जे० जी० हारर के अनुसार, “हरित क्रान्ति शब्द 1968 में होने वाले उन आश्चर्यजनक परिवर्तनों के लिए प्रयोग में लाया जाता है, जो भारत के खाद्यान्न उत्पादन में हुआ था तथा अब भी जारी है।” हरित क्रान्ति से न केवल आर्थिक एवं सामाजिक बल्कि राजनीतिक ढांचा भी प्रभावित हुआ।

प्रश्न 4.
भारत में नियोजन का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर:
भारत में नियोजन का मुख्य उद्देश्य क्षेत्रीय असन्तुलन को कम करके राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना है, ताकि लोगों के जीवन स्तर में सुधार किया जा सके।

प्रश्न 5.
भारत में हरित क्रान्ति को अपनाने के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:

  • हरित क्रान्ति अपनाने का प्रथम कारण खाद्य संकट को दूर करना था।
  • हरित क्रान्ति अपनाने का दूसरा कारण कृषि के लिए आधुनिक यन्त्रों एवं साधनों का प्रयोग करना था।

प्रश्न 6.
भारतीय विकास की योजना में सर्वोच्च प्राथमिकता किसे दी जाती है ?
उत्तर:
भारतीय विकास की योजना में सर्वोच्च प्राथमिकता कृषि विकास को दी जाती है।

प्रश्न 7.
हरित क्रान्ति की कोई दो असफलताएं या सीमाएं लिखें।
उत्तर:
(1) हरित क्रान्ति के कारण भारत में चाहे खाद्यान्न संकट समाप्त हो गया, परन्तु वह थोड़े समय के लिए ही था। आज भी भारत में खाद्यान्न संकट पैदा हो जाता है।
(2) हरित क्रान्ति की सफलता पूरे भारत में न होकर केवल उत्तरी राज्यों में ही दिखाई पड़ती है।

प्रश्न 8.
हरित क्रान्ति की कोई दो मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
1. उत्पादन में रिकार्ड वृद्धि-हरित क्रान्ति की सबसे बड़ी सफलता यह थी कि इससे भारत में रिकार्ड पैदावार हुई। 1978-79 में भारत में लगभग 131 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन हुआ तथा जो देश गेहूं का आयात करता था, वह अब गेहूं को निर्यात करने की स्थिति में आ गया।

2. फ़सल क्षेत्र में वृद्धि-हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप भारत में फ़सल क्षेत्र में व्यापक वृद्धि हुई।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 9.
सन् 2015 में, योजना आयोग की जगह कौन-सा आयोग बनाया गया ? उसके उपाध्यक्ष का नाम लिखिए।
उत्तर:
सन् 2015 में योजना आयोग की जगह नीति आयोग बनाया गया तथा इसके पहले उपाध्यक्ष का नाम श्री अरविंद पनगड़िया था। वर्तमान समय में नीति आयोग के उपाध्यक्ष श्री राजीव कुमार हैं।

प्रश्न 10.
विकास के मुख्य उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर:
विकास का मुख्य उद्देश्य ग़रीब जनता की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करना है, तथा प्राकृतिक संसाधनों का विकास करके देश को आत्मनिर्भर बनाता है।

प्रश्न 11.
मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy) से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
‘मिश्रित अर्थव्यवस्था’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था के प्रायः दो रूप माने जाते हैं। एक रूप पूंजीवादी अर्थव्यवस्था तथा दूसरे को समाजवादी अर्थव्यवस्था कहा जाता है। जहां अर्थव्यवस्था के इन दोनों रूपों का अस्तित्व हो उस अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था का नाम दिया जाता है।

प्रश्न 12.
योजना आयोग के कोई दो कार्य लिखिए।
उत्तर:
(1) देश के भौतिक, पूंजीगत, मानवीय, तकनीकी तथा कर्मचारी वर्ग सम्बन्धी साधनों का अनुमान लगाना और जो साधन राष्ट्रीय आवश्यकता की तुलना में कम प्रतीत होते हों उनकी वृद्धि की सम्भावनाओं के सम्बन्ध में अनुसन्धान करना।
(2) देश के साधनों का अधिकतम प्रभावशाली तथा सन्तुलित उपयोग के लिए योजना बनाना।

प्रश्न 13.
कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए क्या प्रयत्न किए गए ?
उत्तर:

  • कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए सिंचाई साधनों का विस्तार किया गया।
  • कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए उन्नत किस्म के बीजों के प्रयोग पर बल दिया गया।

प्रश्न 14.
नियोजन का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
नियोजन से अभिप्राय किसी कार्य को व्यवस्थित ढंग से करने के लिए तैयारी करना है। हडसन के अनुसार, “भावी कार्यक्रम के मार्ग को निश्चित करने के लिये आधार की खोज नियोजन है।”

प्रश्न 15.
भारत में पहली पंचवर्षीय योजना कब लागू हुई ? अब तक कितनी पंचवर्षीय योजनाएँ पूरी हो चुकी हैं ?
उत्तर:
भारत में पहली पंचवर्षीय योजना सन् 1951 में लागू हुई। अब तक 12 पंचवर्षीय योजनाएँ पूरी हो चुकी हैं। 12वीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल अप्रैल 2012 से मार्च 2017 तक था।

प्रश्न 16.
निजी क्षेत्र में क्या-क्या शामिल है ?
उत्तर:
निजी क्षेत्र में खेती-बाड़ी, व्यापार एवं उद्योग शामिल हैं।

प्रश्न 17.
भारत में योजना आयोग का गठन करने का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:
भारत में योजना आयोग का गठन करने का मुख्य उद्देश्य नियोजित विकास करना था।

प्रश्न 18.
भारत में खाद्य संकट के क्या परिणाम हुए थे ?
उत्तर:

  • सरकार को गेहूं का आयात करना पड़ा।
  • सरकार को अमेरिका जैसे देशों से विदेशी मदद भी स्वीकार करनी पड़ी।

प्रश्न 19.
विकास का पूंजीवादी मॉडल क्या है ?
उत्तर:

  • विकास का पूंजीवादी मॉडल खुली प्रतिस्पर्धा और बाज़ार मूलक अर्थव्यवस्था में विश्वास रखता है।
  • विकास का पूंजीवादी मॉडल अर्थव्यवस्था में सरकार के गैर-ज़रूरी हस्तक्षेप को उचित नहीं मानता।

प्रश्न 20.
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद विकास के लिए किस प्रकार की अर्थव्यवस्था का चुनाव किया गया था?
उत्तर:
आज़ादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद कायम था। विकास के सम्बन्ध में मुख्य मुद्दा यह था कि विकास के लिए कौन-सा मॉडल अपनाया जाए ? विकास का पूंजीवादी मॉडल या विकास का साम्यवादी मॉडल। पूंजीवादी मॉडल के समर्थक देश के औद्योगीकरण पर अधिक बल दे रहे थे, जबकि साम्यवादी मॉडल के समर्थक कृषि के विकास एवं ग्रामीण क्षेत्र की ग़रीबी को दूर करना आवश्यक समझते थे। इन परिस्थितियों में सरकार दुविधा में पड़ गई, कि विकास का कौन-सा मॉडल अपनाया जाए। परन्तु आपसी बातचीत तथा सहमति के बीच का रास्ता अपनाते हुए मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया।

प्रश्न 21.
निजी क्षेत्र क्या हैं ?
उत्तर:
निजी क्षेत्र उसे कहा जाता है, जिसे सरकार द्वारा न चलाकर व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा अपने लाभ के लिए चलाया जाता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. भारत में प्रथम पंचवर्षीय योजना किस वर्ष लागू की गई ?
(A) 1951
(B) 1960
(C) 1957
(D) 1962
उत्तर:
(A) 1951

2. अब तक कितनी पंचवर्षीय योजनाएं लागू की जा चुकी हैं ?
(A) 7
(B) 8
(C) 11
(D) 12
उत्तर:
(D) 12

3. 11वीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल क्या था ?
(A) 1992-1997
(B) 1997-2002
(C) 2002-2007
(D) 2007-2012
उत्तर:
(D) 2007-2012

4. योजनाबद्ध विकास की प्रेरणा भारत को मिली
(A) सोवियत रूस से
(B) अमेरिका से
(C) ब्रिटेन से
(D) पाकिस्तान से।
उत्तर:
(A) सोवियत रूस से।

5. ‘बाम्बे योजना’ कब प्रकाशित की गई ?
(A) वर्ष 1942 में
(B) वर्ष 1944 में
(C) वर्ष 1945 में
(D) वर्ष 1950 में।
उत्तर:
(B) वर्ष 1944 में।

6. भारत में किस वर्ष घोर अकाल पड़ा था ?
(A) वर्ष 1965-67 में
(B) वर्ष 1967-69 में
(C) वर्ष 1967-71 में
(D) वर्ष 1967-73 में।
उत्तर:
(A) वर्ष 1965-67 में।

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7. उच्च उत्पादकता के लिए फसल क्षेत्र मांग करता है :
(A) अधिक पानी की
(B) अधिक उर्वरक की
(C) अधिक कीटनाशकों की
(D) उपर्युक्त सभी की।
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी की।

8. “नियोजन विस्तृत अर्थों में व्यवस्थित क्रिया का स्वरूप है, नियोजन में इस प्रकार समस्त मानवीय क्रियाएं आ जाती हैं, भले ही वह व्यक्तिगत हों अथवा सामूहिक।” यह किसका कथन है ?
(A) प्रो० के० टी० शर्मा
(B) डॉ० एम० पी० शर्मा
(C) उर्विक
(D) बैंथम।
उत्तर:
(B) डॉ० एम० पी० शर्मा।

9. योजना आयोग का अध्यक्ष कौन होता था ?
(A) राष्ट्रपति
(B) प्रधानमन्त्री
(C) वित्त मन्त्री
(D) योजना मन्त्री।
उत्तर:
(B) प्रधानमन्त्री।

10. भारत में योजना आयोग की कब नियुक्ति की गई थी ?
(A) 1952
(B) 1950
(C) 1956
(D) 1960
उत्तर:
(B) 1950

11. योजना आयोग किस तरह की संस्था थी ?
(A) असंवैधानिक
(B) गैर-संवैधानिक
(C) संवैधानिक
(D) अति-संवैधानिक।
उत्तर:
(D) अति-संवैधानिक।

12. निम्नलिखित में से कौन नियोजन की उपलब्धि है ?
(A) राष्ट्रीय आय में वृद्धि
(B) सामाजिक विकास
(C) उत्पादन में आत्मनिर्भरता
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी।

13. “समाजवाद हमारी समस्याओं का एकमात्र समाधान है।” ये शब्द किसने कहे थे ?
(A) महात्मा गांधी ने
(B) सरदार पटेल ने
(C) जवाहर लाल नेहरू ने
(D) डॉ० लॉस्की ने।
उत्तर:
(C) जवाहर लाल नेहरू ने।

14. 1992 तक भारत में किस प्रकार की अर्थव्यवस्था थी ?
(A) साम्यवादी अर्थव्यवस्था
(B) पूंजीवादी अर्थव्यवस्था
(C) समाजवादी अर्थव्यवस्था
(D) मिश्रित अर्थव्यवस्था।
उत्तर:
(D) मिश्रित अर्थव्यवस्था।

15. सोवियत रूस ने विकास का कौन-सा मॉडल अपनाया था ?
(A) समाजवादी मॉडल
(B) पूंजीवादी मॉडल
(C) मिश्रित मॉडल
(D) कल्याणकारी मॉडल।
उत्तर:
(A) समाजवादी मॉडल।

16. एक जनवरी 2015 को योजना आयोग के स्थान पर किस नये आयोग की स्थापना हुई. ?
(A) नीति आयोग
(B) पानी आयोग
(C) केन्द्र आयोग
(D) राज्य आयोग।
उत्तर:
(A) नीति आयोग।

17. भारत की विकास योजना का उद्देश्य है
(A) आर्थिक विकास
(B) आत्मनिर्भरता
(C) सामाजिक विकास
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

18. ‘जनता-योजना’ के जनक थे
(A) मोंटेक सिंह
(B) मनमोहन सिंह
(C) मोरारजी देसाई
(D) एम० एन० राय।
उत्तर:
(D) एम० एन० राय।

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

(1) स्वतन्त्रता के समय भारत के समक्ष विकास के दो ही मॉडल थे, पहला उदारवादी-पूंजीवादी मॉडल तथा दूसरा . ………… मॉडल था।
उत्तर:
समाजवादी

(2) योजना आयोग की स्थापना मार्च, …………. में की गई।
उत्तर:
1950

(3) योजना आयोग का अध्यक्ष ………… होता है।
उत्तर:
प्रधानमन्त्री

(4) 1944 में उद्योगपतियों ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया, जिसे …………. के नाम से जाना जाता है।
उत्तर:
बाम्बे प्लान

(5) ……….. में प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रारूप जारी हुआ।
उत्तर:
1951

(6) दूसरी पंचवर्षीय योजना में भारी उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया। ………….. के नेतृत्व में अर्थशास्त्रियों और योजनाकारों के एक समूह ने यह योजना तैयार की थी।
उत्तर:
पी०सी० महालनोबिस

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
हरित क्रान्ति किस दशक में हुई ?
उत्तर:
हरित क्रान्ति 1960 के दशक में हुई।

प्रश्न 2.
भारत में योजना आयोग की स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर:
योजना आयोग की स्थापना मार्च 1950 में की गई।

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प्रश्न 3.
भारत में कैसी अर्थव्यवस्था लागू की गई ?
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था।

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Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति Textbook Exercise Questions and Answers.

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HBSE 12th Class Political Science नियोजित विकास की राजनीति Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘बॉम्बे प्लान’ के बारे में निम्नलिखित में कौन-सा बयान सही नहीं है ?
(क) यह भारत के आर्थिक भविष्य का एक ब्लू-प्रिन्ट था।
(ख) इसमें उद्योगों के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था।
(ग) इसकी रचना कुछ अग्रणी उद्योगपतियों ने की थी।
(घ) इसमें नियोजन के विचार का पुरजोर समर्थन किया गया था।
उत्तर:
(ख) इसमें उद्योगों के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था।

प्रश्न 2.
भारत ने शुरुआती दौर में विकास की जो नीति अपनाई उसमें निम्नलिखित में से कौन-सा विचार शामिल नहीं था ?
(क) नियोजन
(ख) उदारीकरण
(ग) सहकारी खेती
(घ) आत्मनिर्भरता।
उत्तर:
(ख) उदारीकरण

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प्रश्न 3.
भारत में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का विचार-ग्रहण किया गया था
(क) बॉम्बे प्लान से
(ख) सोवियत खेमे के देश के अनुभवों से
(ग) समाज के बारे में गांधीवादी विचार से ।
(घ) किसान संगठनों की मांगों से।

(क) सिर्फ ख और घ
(ख) सिर्फ क और ख
(ग) सिर्फ घ और ग
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(ख) सिर्फ क और ख

प्रश्न 4.
निम्नलिखित का मेल करें
(क) चरण सिंह – (i) औद्योगीकरण
(ख) पी० सी० महालनोबिस – (ii) जोनिंग
(ग) बिहार का अकाल – (iii) किसान
(घ) वर्गीज कूरियन – (iv) सहकारी डेयरी।
उत्तर:
(क) चरण सिंह – (iii) किसान
(ख) पी० सी० महालनोबिस – (i) औद्योगीकरण
(ग) बिहार का अकाल – (ii) जोनिंग
(घ) वर्गीज कूरियन – (iv) सहकारी डेयरी।

प्रश्न 5.
आज़ादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद क्या थे ? क्या इन मतभेदों को सुलझा लिया गया ?
उत्तर:
आज़ादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद कायम था। विकास के सम्बन्ध में मुख्य मुद्दा यह था कि विकास के लिए कौन-सा मॉडल अपनाया जाए? विकास का पूंजीवादी मॉडल या विकास का साम्यवादी मॉडल। पूंजीवादी मॉडल के समर्थक देश के औद्योगीकरण पर अधिक बल दे रहे थे, जबकि साम्यवादी मॉडल के समर्थक कृषि के विकास एवं ग्रामीण क्षेत्र की गरीबी को दूर करना आवश्यक समझते थे। इन परिस्थितियों में सरकार दुविधा में पड़ गई, कि विकास का कौन-सा मॉडल अपनाया जाए। परन्तु आपसी बातचीत तथा सहमति के बीच का रास्ता अपनाते हुए मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया।

प्रश्न 6.
पहली पंचवर्षीय योजना का किस चीज़ पर सबसे ज्यादा ज़ोर था ? दूसरी पंचवर्षीय योजना पहली से किन अर्थों में अलग थी ?
उत्तर:
पहली पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र पर अधिक जोर दिया गया। क्योंकि भारत के विभाजन का सबसे बुरा प्रभाव कृषि पर पड़ा था, अतः प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि के विकास को सर्वाधिक महत्त्व दिया। प्रथम पंचवर्षीय एवं दूसरी पंचवर्षीय योजना में प्रमुख अन्तर यह था कि जहां प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र पर अधिक जोर दिया गया, वहीं दूसरी योजना में भारी उद्योगों के विकास पर अधिक जोर दिया गया।

प्रश्न 7.
हरित क्रान्ति क्या थी ? हरित क्रान्ति के दो सकारात्मक और दो नकारात्मक परिणामों का उल्लेख करें।
उत्तर:
इसके लिए अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में (निबन्धात्मक प्रश्न) प्रश्न नं० 6 देखें।

प्रश्न 8.
दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान औद्योगिक विकास बनाम कृषि विकास का विवाद चला था। इस विवाद में क्या-क्या तर्क दिए गए थे ?
उत्तर:
पहली पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र पर अधिक जोर दिया। क्योंकि भारत के विभाजन का सबसे बुरा प्रभाव कृषि पर पड़ा था। अतः प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि के विकास को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया। प्रथम पंचवर्षीय एवं दूसरी पंचवर्षीय योजना में प्रमुख अन्तर यह था कि जहां प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र पर अधिक जोर दिया गया, वहीं दूसरी योजना में भारी उद्योगों के विकास पर अधिक जोर दिया गया। आलोचकों का मत था कि नियोजित ढंग से कृषि को पीछे धकेलने के प्रयास किये जा रहे थे।

इन योजनाओं में औद्योगीकरण पर बल देने के कारण कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों को क्षति पहुंचाई गई थी। इस विषय में योजना आयोग के सदस्य और प्रसिद्ध गांधीवादी अर्थशास्त्री जे० सी० कुमारप्पा ने अपनी पुस्तक ‘इकॉनोमी ऑफ परमानेस’ (Economy of Permanance) में एक वैकल्पिक योजना का प्रारूप प्रस्तत किया गया था जिसमें उन्होंने ग्रामीण औद्योगीकरण पर अधिक बल दिया। इसी तरह चौधरी चरण सिंह जो कि वरिष्ठ कांग्रेसी नेता थे, ने योजना के अन्तर्गत कृषि को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की जोरदार वकालत की थी।

उन्होंने यह विचार प्रकट किया था कि शहरी और औद्योगिक वर्ग को लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से ही द्वितीय एवं तृतीय पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण किया गया है, जिसकी कीमत ग्रामीण जनता और कृषकों को चुकानी पड़ रही है। इसके विपरीत औद्योगिकीकरण के समर्थकों का मत था कि औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि दर को तेज़ किए बिना भारत में विद्यमान ग़रीबी और बेरोज़गारी को दूर नहीं किया जा सकता है। उन विचारकों ने औद्योगिकीकरण को कृषि अपेक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता देने की नीति को निम्नलिखित आधारों पर उचित ठहराया था

(1) राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में तीव्र वृद्धि के लिए औद्योगिक विकास आवश्यक है।

(2) कृषि की तुलना में औद्योगिक विकास की दर अधिक तीव्र है।

(3) औद्योगिक वस्तुओं की मांग की आय लोच (Income elasticity) बहुत अधिक है और निर्मित वस्तुओं में निर्यात के अवसर अधिक मात्रा में उपलब्ध हो सकते हैं।

(4) विदेशी निवेशक, कृषि की अपेक्षा उद्योगों में निवेश को प्राथमिकता देते हैं।

(5) भारत में विद्यमान ग़रीबी और बेरोज़गारी को दूर करने में औद्योगिकीकरण महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है।

(6) कृषि के क्षेत्र में हम अभी आत्मनिर्भर नहीं है और इससे अभी हम अपनी आवश्यकता के लिए ही अनाज नहीं कर पाते हैं तो विदेशी में खाद्यान्न का निर्यात करके कैसे विदेशी मुद्रा अर्जित कर सकते हैं।

प्रश्न 9.
“अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका पर जोर देकर भारतीय नीति-निर्माताओं ने गलती की। अगर शुरुआत से ही निजी क्षेत्र को खुली छूट दी जाती तो भारत का विकास कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से होता।” इस विंचार के पक्ष या विपक्ष में अपने तर्क दीजिए।
उत्तर:
आजादी के समय अर्थव्यवस्था पर राज्य की भूमिका पर अधिक ज़ोर दिया गया था, अर्थात् आर्थिक गतिविधियों को राज्य नियन्त्रित करता था, अत: कई विद्वानों द्वारा यह तर्क दिया जाता है, कि भारत निजी क्षेत्र को खुली छूट दी जानी चाहिए थी, परन्तु इस कथन से सहमत नहीं हुआ जा सकता, क्योंकि आजादी के समय देश की आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियां ऐसी नहीं थीं कि सरकार निजी क्षेत्र को खुली छूट दे देती। उस समय कृषि क्षेत्र के विकास का कार्यक्रम सर्वप्रथम था तथा कृषि क्षेत्र का विकास राज्य के नियन्त्रणाधीन ही अधिक ढंग से हो सकता है।

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें आज़ादी के बाद के आरम्भिक वर्षों में कांग्रेस पार्टी के भीतर दो परस्पर विरोधी प्रवृत्तियां पनपीं। एक तरफ राष्ट्रीय पार्टी कार्यकारिणी ने राज्य के स्वामित्व का समाजवादी सिद्धान्त अपनाया, उत्पादकता को बढ़ाने के साथ-साथ आर्थिक संसाधनों के संकेन्द्रण को रोकने के लिए अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों का नियन्त्रण और नियमन किया। दूसरी तरफ कांग्रेस की राष्ट्रीय सरकार ने निजी निवेश के लिए उदार आर्थिक नीतियां अपनाईं और उसके बढ़ावे के लिए विशेष कदम उठाए। इसे उत्पादन में अधिकतम वृद्धि की अकेली कसौटी पर ज़ायज़ ठहराया गया। फ्रैंकिन फ्रैंकल

(क) यहां लेखक किस अन्तर्विरोध की चर्चा कर रहा है ? ऐसे अन्तर्विरोध के राजनीतिक परिणाम क्या होंगे ?
(ख) अगर लेखक की बात सही है तो फिर बताएं कि कांग्रेस इस नीति पर क्यों चल रही थी ? क्या इसका सम्बन्ध विपक्षी दलों की प्रकृति से था ?
(ग) क्या कांग्रेस पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व और इसके प्रान्तीय नेताओं के बीच भी कोई अन्तर्विरोध था ?
उत्तर:
(क) लेखक कांग्रेस पार्टी के अन्तर्विरोध की चर्चा कर रहा है कि जहां कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समाजवादी सिद्धान्तों में विश्वास रखती थी, वहीं कांग्रेस की राष्ट्रीय सरकार निजी निवेश को बढ़ावा दे रही थी। इस प्रकार के अन्तर्विरोध से देश में राजनीतिक अस्थिरता फैलने की सम्भावना रहती है।

(ख) कांग्रेस इस नीति पर इसलिए चल रही थी, कि कांग्रेस में सभी विचारधाराओं के लोग शामिल थे तथा सभी लोगों के विचारों को ध्यान में रखकर ही कांग्रेस पार्टी इस प्रकार का कार्य कर रही थी। इसके साथ-साथ कांग्रेस पार्टी ने इस प्रकार की नीति इसलिए भी अपनाई ताकि विपक्षी दलों के पास आलोचना का कोई मुद्दा न रहे। केन्द्रीय नेतत्व एवं प्रान्तीय नेताओं में कछ हद तक अन्तर्विरोध पाया जाता था, जहां केन्द्रीय नेतृत्व राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों को महत्त्व देता था, वही प्रान्तीय नेता प्रान्तीय एवं स्थानीय मुद्दों को महत्त्व देते थे।

नियोजित विकास की राजनीति HBSE 12th Class Political Science Notes

→ नियोजन का अर्थ कम-से-कम व्यय द्वारा उपलब्ध साधनों का प्रयोग करते हुए पूर्व निश्चित लक्ष्य को प्राप्त करना है।
→ अच्छे नियोजन के लक्षण स्पष्ट उद्देश्य, साधनों की व्यवस्था, लचीलापन, समन्वय व्यावहारिकता, पद सोपान तथा निरन्तरता हैं।
→ भारत में सर्वांगीण विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाएं अपनाई गई हैं।
→ भारत में अब तक 12 पंचवर्षीय योजनाएं पूरी हो चुकी हैं।
→12वीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल अप्रैल, 2012 से मार्च, 2017 तक था।
→ भारत में नये सार्वजनिक क्षेत्रों का विस्तार हुआ है और नये आर्थिक हितों की उत्पत्ति हुई हैं।
→ भारत में सार्वजनिक क्षेत्रों के उदय के कई कारण रहे हैं, जैसे-राज्य के बढ़ते हुए दायित्व, मिश्रित अर्थव्यवस्था, निजी क्षेत्र से लाभ प्राप्ति की प्रेरणा, सन्तुलित आर्थिक विकास तथा मांग और पूर्ति में सन्तुलन इत्यादि।
→ भारत में सार्वजनिक क्षेत्रों ने विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
→ सार्वजनिक क्षेत्र की कुछ समस्याएं भी हैं; जैसे-कुशल प्रबन्ध की समस्या, कर्मचारियों में अनुशासनहीनता, कार्यकुशलता में कमी, प्रतिस्पर्धा का अभाव तथा उत्तरदायित्व की कमी इत्यादि।
→ भारत में हरित क्रान्ति की शुरुआत 1960 के दशक में हुई।
→ हरित क्रान्ति पद्धति के तीन तत्त्व थे-कृषि का निरन्तर विस्तार, दोहरी फसल का उद्देश्य तथा अच्छे बीजों का प्रयोग।
→ हरित क्रान्ति से उत्पादन में रिकार्ड वृद्धि, फसल क्षेत्र में वृद्धि हुई तथा औद्योगिक विकास एवं बुनियादी ढांचे में विकास हुआ।
→ हरित क्रान्ति की कुछ कमियां भी रही हैं जैसे खाद्यान्न संकट का बने रहना तथा केवल उत्तरी राज्यों को ही लाभ मिलना इत्यादि।
→ जनवरी 2015 में योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग की स्थापना की गई थी।

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HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की दलीय प्रणाली की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय दलीय प्रणाली की निम्नलिखित विशेषताएं हैं
1. भारत में बहु-दलीय प्रणाली-भारत में बहु-दलीय प्रणाली है।

2. एक दल के प्रभुत्व युग का अन्त-भारत में लम्बे समय तक विशेषकर 1977 तक कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व रहा, परन्तु वर्तमान समय में कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व समाप्त हो चुका है और उसकी जगह अन्य दलों ने ले ली है।

3. सैद्धान्तिक आधारों का अभाव-राजनीतिक दलों का सैद्धान्तिक आधारों पर संगठित होना अनिवार्य है, परन्तु हमारे देश में ऐसे दलों का अभाव है जो ठोस राजनीतिक तथा आर्थिक सिद्धान्तों पर संगठित हों।

4. क्षेत्रीय दलों की बढ़ रही महत्ता-वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में क्षेत्रीय दलों की महत्ता निरन्तर बढ़ती जा रही है।

5. क्षेत्रीय दलों की बढ़ रही महत्ता-भारतीय दलीय प्रणाली की एक अन्य विशेषता यह है कि इसमें क्षेत्रीय दलों की महत्ता लगातार बढ़ती जा रही है।

6. व्यक्तित्व का प्रभाव-लगभग प्रत्येक भारतीय राजनीतिक दल में किसी विशेष प्रतिनिधित्व की अति महानता है। कांग्रेस में सर्वप्रथम पण्डित जवाहर लाल नेहरू, फिर श्रीमती इन्दिरा गांधी तथा बाद में श्री राजीव गांधी दल का केन्द्र बिन्दु बने हुए थे तथा वर्तमान में श्रीमती सोनिया गांधी एवं श्री राहुल गांधी दल का केन्द्र बिन्दु हैं। भारतीय जनता पार्टी में श्री अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण अडवाणी का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। वर्तमान समय में यह पार्टी श्री नरेन्द्र मोदी एवं श्री अमित शाह के नेतृत्व में चल रही है। भारतीय राजनीतिक दलों में सिद्धान्तों की अपेक्षा व्यक्तित्व की अधिक महत्ता है।

7. दलों में गुटबन्दी-कोई भी ऐसा भारतीय राजनीतिक दल नहीं है, जो गुटबन्दी का शिकार न हो। दलों में यह गुटबन्दी विभिन्न राजनीतिक के व्यक्तित्व की महानता का कारण है।

8. घोषित सिद्धान्तों का बलिदान-भारतीय राजनीतिक दल अपने सिद्धान्तों को कोई अधिक महत्ता नहीं देते। राजनीतिक लाभ के लिए ये दल अपने घोषित सिद्धान्तों का शीघ्र ही बलिदान कर देते हैं।

प्रश्न 2.
भारत में विरोधी दल की क्या भमिका है? इसका संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
भारत में विरोधी दल निम्नलिखित भूमिका निभाता है

1. आलोचना-भारत में विरोधी दल का मुख्य कार्य सरकार की नीतियों की आलोचना करना है। विरोधी दल संसद् के अन्दर और संसद के बाहर सरकार की आलोचना करते हैं। विरोधी दल यह आलोचना मन्त्रिमण्डल सदस्यों से विभिन्न प्रश्न पूछ कर, वाद-विवाद तथा अविश्वास प्रस्ताव पेश करके करते हैं।

2. वैकल्पिक सरकार- भारत में संसदीय शासन प्रणाली होने के कारण विरोधी दल वैकल्पिक सरकार बनाने के लिए तैयार रहता है। यद्यपि विरोधी दल को सरकार बनाने के ऐसे अवसर बहुत ही कम मिलते हैं।

3. शासन नीति को प्रभावित करना-विरोधी दल सरकार की आलोचना करके सरकार की नीतियों को प्रभावित करता है। कई बार सत्तारूढ़ दल विरोधी दल के सुझावों को ध्यान में रखकर अपनी नीति में परिवर्तन
करते हैं।

4. लोकतन्त्र की रक्षा-विरोधी दल सरकार के तानाशाह बनने से होकर लोकतन्त्र की रक्षा करता है।

5. उत्तरदायी आलोचना-विरोधी दल केवल सरकार की आलोचना करने के लिए आलोचना नहीं करते बल्कि सरकार को विभिन्न समस्याओं को हल करने के लिए सुझाव भी देते हैं। आवश्यकता पड़ने पर विरोधी दल सरकार को पूर्ण सहयोग देता है।

6. अस्थिर मतदाता को अपील करना-विरोधी दल सत्तारूढ़ दल को आम चुनाव में हराने का प्रयत्न करता है। इसके लिए विरोधी दल सत्तारूढ़ दल की आलोचना करके मतदाताओं के सामने यह प्रमाणित करने का प्रयत्न करता है कि यदि उसे अवसर दिया जाए तो वह देश का शासन सत्तारूढ़ दल की अपेक्षा अच्छा चला सकता है। विरोधी दल अस्थायी मतदाताओं को अपने पक्ष में करके चुनाव जीतने का प्रयत्न करता है।

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प्रश्न 3.
भारत में एक दल की प्रधानता के कारण लिखें।
उत्तर:
प्रारम्भिक वर्षों में भारत में एक दल की प्रधानता के निम्नलिखित कारण थे

1. कांग्रेस में सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व प्राप्त था (Congress as Respresentative of all Shades of Opinion):
कांग्रेस पार्टी की प्रधानता का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यह था, कि इसमें देश के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व प्राप्त था। वास्तव में कांग्रेस स्वयं में एक ‘महान् गठबन्धन’ (Grand Alliance) था। कांग्रेस पार्टी उग्रवादी, उदारवादी, दक्षिण पंथी, साम्यवादी तथा मध्यमार्गी नेताओं का एक महान् मंच था, जिसके कारण लोग इसी पार्टी को मत दिया करते थे।

2. विरोधी दल कांग्रेस में से ही निकले हुए थे (Opposition Parties as Disgruntled children of the Congress Party):
स्वतन्त्रता प्राप्ति के प्रारम्भिक वर्षों में जितने भी विरोधी राजनीतिक दल थे, उनमें से अधिकांश राजनीतिक दल कांग्रेस में से ही निकले हुए थे। समाजवादी पार्टी, प्रजा समाजवादी पार्टी, संयुक्त समाजवादी पार्टी, 29 जनसंघ, राम राज्य परिषद् तथा हिन्दू महासभा जैसी पार्टियों के सम्बन्ध कभी-न-कभी कांग्रेस से ही रहे हैं। अत: लोगों ने उस समय कांग्रेस से अलग हुए दलों को वोट देने की अपेक्षा कांग्रेस को ही वोट देना उचित समझा।

3. 1967 के पश्चात् भी केन्द्र में कांग्रेस की प्रधानता (Dominance of Congress at the Centre level even after 1967 Elections):
यद्यपि 1967 के चुनावों के पश्चात् राज्यों में से कांग्रेस की प्रधानता समाप्त हो गई, परन्तु केन्द्र में अभी भी कांग्रेस की शक्तिशाली सरकार थी, जो राज्यों की राजनीति में प्रभावशाली भूमिका रखती थी।

4. राजनीतिक दलों के कार्यक्रमों में समानता (Similarity of Programmes of all Parties):
कांग्रेस एवं उसकी विरोधी पार्टियों के कार्यक्रमों एवं नीतियों में कोई बहुत अधिक अन्तर नहीं था, बल्कि उनमें समानताएं अधिक थीं। जिसके कारण मतदाताओं ने अन्य पार्टियों को वोट देने की अपेक्षा कांग्रेस पार्टी को ही वोट देना उचित समझा।

5. गठबन्धन सरकारों की असफलता (Failure of Coalition govt.):
कांग्रेस की प्रधानता का एक कारण राज्यों में गठबन्धन सरकारों की असफलता थी। 1967 के आम चुनावों के पश्चात् आधे राज्यों में गैर-कांग्रेसी गठबन्धन सरकारें बनीं, परन्तु गैर-कांग्रेसी नेता अपने निजी स्वार्थों के लिए आपस में ही उलझते रहे, जिस कारण गठबन्धन सरकारें सफल न हो सकी तथा लोगों का गैर-कांग्रेसी सरकारों से मोहभंग हो गया।

6. राजनीतिक दल-बदल (Political Defection):
1967 के आम चुनावों के पश्चात् जो राजनीतिक दल-बदल हुए, उससे परोक्ष रूप में आगे चलकर कांग्रेस पार्टी ही अधिक शक्तिशाली हुई।

प्रश्न 4.
भारत में ‘एक दल के प्रभुत्व वाली प्रणाली’ किसी दूसरे देश की एक दल के प्रभुत्व वाली प्रणाली से किस प्रकार भिन्न है ? एक दल के प्रभुत्व का अर्थ क्या यह है कि भारत में वास्तविक प्रजातन्त्र नहीं है ? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दें।
उत्तर:
भारत में एक दल के प्रभुत्व वाली प्रणाली किसी दूसरे देश की इसी तरह की प्रणाली से सर्वथा भिन्न है। क्योंकि भारत में उस दल में भी प्रजातान्त्रिक तत्त्व पाये जाते हैं तथा भारत में एक दल के प्रभुत्व के होते हुए भी वास्तविक तौर पर प्रजातन्त्र पाया जाता है, जिसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं

  • भारत में निर्धारित तौर पर चुनाव होते रहे हैं।
  • भारत में सभी दलों को चुनावों में भाग लेने का अधिकार है।
  • भारत के सभी वयस्क नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के मतदान का अधिकार प्राप्त है।
  • भारत में विरोधी दल पाया जाता है।
  • विरोधी दलों एवं लोगों को सरकार की आलोचना करने का अधिकार प्राप्त है।
  • चुनावों के पश्चात् उसी दल की सरकार बनती है, जिसे बहुमत प्राप्त हो।
  • भारतीय नागरिकों को संविधान के अन्तर्गत मौलिक अधिकार प्रदान किये गए हैं।
  • मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए स्वतन्त्र न्यायपालिका की व्यवस्था की गई है।

प्रश्न 5.
भारत में 1952 के आम चुनाव पूरी दुनिया के लोकतंत्र के लिए किस प्रकार मील का पत्थर साबित हुए ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में 1952 के प्रथम आम चुनाव दुनिया के लोकतन्त्र के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुए, क्योंकि यह चुनाव कई पक्षों से अनूठा तथा इसको सफलतापूर्वक करवाने में कई बाधाएं थीं। स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए चुनाव आयोग के पास मतदाता सूची का होना आवश्यक था तथा चुनाव क्षेत्रों का सीमांकन भी आवश्यक था। भारतीय चुनाव आयोग ने इन कार्यों को सफलतापूर्वक पूरा किया। 1952 में लगभग 17 करोड़ मतदाताओं ने 3200 विधायक और लोकसभा के 489 सांसदों का चुनाव करना था। इस प्रकार का कार्य हिमालय पर चढ़ाई करने जैसा था।

भारतीय मतदाताओं में केवल 15 प्रतिशत मतदाता ही साक्षर थे। अतः चुनाव आयोग को विशेष मतदान पद्धति के बारे में सोचना पड़ा। भारत में चुनाव करवाने केवल इसलिए ही मुश्किल नहीं थे, बल्कि अधिकांश भारतीय मतदाता अनपढ़ ग़रीब एवं प्रजातान्त्रिक प्रक्रियाओं से अनभिज्ञ थे, जबकि जिन देशों में लोकतान्त्रिक चुनाव सफलतापूर्वक होते थे, वे अधिकांश विकसित देश थे और उन विकसित देशों में भी महिलाओं को मताधिकार प्राप्त नहीं था।

जबकि भारत में 1952 में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के सिद्धान्त को अपनाया गया था। अतः भारत में स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव करवाना बहुत मुश्किल कार्य था। एक भारतीय सम्पादक ने “इस चुनाव को इतिहास का सबसे बड़ा जुआ कहा था। आर्गनाइजर पत्रिका के अनुसार, “पं. जवाहर लाल नेहरू अपने जीवित रहते ही यह देख लेंगे कि सार्वभौम मताधिकार का सिद्धान्त असफल रहा है।”

1952 में हुए प्रथम चुनाव की सम्पूर्ण प्रक्रिया पूरे होने में लगभग छ: महीने लगे। अधिकांश सीटों पर मुकाबला भी हुआ तथा हराने वाले उम्मीदवारों ने भी माना, कि चुनाव निष्पक्ष हुए। विदेशी आलोचकों ने भी चुनावों की निष्पक्षता को स्वीकार किया। चुनावों के बाद हिन्दुस्तान टाइम्स ने लिखा कि “सर्वत्र यह बात स्वीकृत की जा रही है, कि भारतीय जनता ने विश्व के इतिहास में लोकतन्त्र के सबसे बड़े प्रयोग को सफलतापूर्वक पूरा किया।” इसीलिए कहा जाता है. कि 1952 के चुनाव दुनिया के लोकतन्त्र के इतिहास के लिए मील का पत्थर साबित हुए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय दलीय व्यवस्था की कोई चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
1. भारत में बहु-दलीय प्रणाली-भारत में बहु-दलीय प्रणाली है।

2. एक दल के प्रभुत्व युग का अन्त-भारत में लम्बे समय तक विशेषकर 1977 तक कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व रहा, परन्तु वर्तमान समय में कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व समाप्त हो चुका है और उसकी जगह अन्य दलों ने ले ली है।

3. सैद्धान्तिक आधारों का अभाव-राजनीतिक दलों का सैद्धान्तिक आधारों पर संगठित होना अनिवार्य है, परन्तु हमारे देश में ऐसे दलों का अभाव है जो ठोस राजनीतिक तथा आर्थिक सिद्धान्तों पर संगठित हों।

4. क्षेत्रीय दलों की बढ़ रही महत्ता-वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में क्षेत्रीय दलों की महत्ता निरन्तर बढ़ती जा रही है।

प्रश्न 2.
एक प्रजातन्त्रीय राज्य के लिए राजनीतिक दल क्यों अनिवार्य हैं ?
उत्तर:
आधुनिक युग राष्ट्रीय राज्यों का युग है। आधुनिक समय के ऐसे राज्यों में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र असम्भव है क्योंकि इन राज्यों की जनसंख्या तथा आकार अत्यधिक है। आधुनिक समय में अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र अथवा प्रतिनिधि लोकतन्त्र ही सम्भव है। राजनीतिक दलों के बिना इस प्रकार के लोकतन्त्र की सम्भावना नहीं हो सकती। संयुक्त कार्यक्रम के आधार पर चुनाव लड़ने के लिए, सरकार का निर्माण करने के लिए और विपक्षी दल की भूमिका अभिनं करने के लिए राजनीतिक दलों की आवश्यकता है। इसी कारण कहा जा सकता है “राजनीतिक दल नहेंद्र नहीं।” (No political parties, no democracy.)

प्रश्न 3.
लोकतन्त्र में राजनीतिक दलों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  • लोकतन्त्रीय सिद्धान्तों के अनुसार चुनाव में भाग लेना।
  • शासक दल अथवा विपक्षी दल के रूप में भूमिका निभाना।
  • लोगों को राजनीतिक रूप में जागृत करना।
  • सरकार तथा लोगों में एक योजक का काम करना।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 4.
91वें संशोधन द्वारा दल-बदल को रोकने के लिए क्या उपाय किए गए हैं ?
उत्तर:
दल-बदल को रोकने के लिए 52वें संशोधन द्वारा बनाया गया कानून पूरी तरह दल-बदल रोकने में सफल नहीं रहा। इसी कारण दल-बदल कानून को और अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए दिसम्बर, 2003 में संविधान में 91वां संशोधन किया गया।

इस कानून (संवैधानिक संशोधन) द्वारा यह व्यवस्था की गई, कि दल-बदल करने वाला कोई सांसद या विधायक सदन की सदस्यता खोने के साथ-साथ अगली बार चुनाव जीतने तक अथवा सदन के शेष कार्यकाल तक (जो भी पहले हो), मन्त्री पद या लाभ का कोई अन्य पद प्राप्त नहीं कर सकेगा। इस कानून के अन्तर्गत सांसदों या विधायकों के दल-बदल करने के लिए एक तिहाई सदस्य संख्या की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया गया।

प्रश्न 5.
कांग्रेस पार्टी को ‘छतरी संगठन’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
कांग्रेस पार्टी की स्थापना सन् 1885 में की गई। कांग्रेस पार्टी की स्थापना के समय भारत में राजनीतिक परिस्थितियां ऐसी थीं, कि समाज का प्रत्येक वर्ग भारत को स्वतन्त्र देखना चाहता था। इसीलिए जब 1885 में कांग्रेस पार्टी की स्थापना की गई, तब समाज का प्रत्येक वर्ग अपने छोटे-मोटे मतभेद भुलाकर कांग्रेस के मंच पर आ गया। कांग्रेस में सभी धर्मों, जातियों, भाषाओं, क्षेत्रों तथा समुदायों के लोग शामिल थे। इसीलिए पामर (Palmer) ने कांग्रेस पार्टी को एक ‘छाता संगठन’ कहा है। आगे चलकर डॉ० अम्बेदकर ने कांग्रेस पार्टी की तुलना एक सराय से की थी जिसके द्वार समाज के सभी वर्गों के लिए खुले हुए थे।

प्रश्न 6.
भारत में एक दल के प्रभुत्व के किन्हीं चार कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर:
1. सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व-कांग्रेस पार्टी की प्रधानता का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि इसमें देश के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व प्राप्त था।

2. विरोधी दल कांग्रेस में से ही निकले हुए थे-स्वतन्त्रता प्राप्ति के प्रारम्भिक वर्षों में जितने भी विरोधी दल थे उनमें से अधिकांश दल कांग्रेस में से ही निकले हुए थे। अत: लोगों ने अलग हुए गुटों को वोट देने की अपेक्षा कांग्रेस पार्टी को ही वोट देना उचित समझा।

3. राजनीतिक दलों के कार्यक्रमों में समानता-कांग्रेस एवं उसकी विरोधी पार्टियों के कार्यक्रमों में काफ़ी समानता पाई जाती थी। इसलिए भी मतदाता अन्य दलों की अपेक्षा कांग्रेस पार्टी को ही वोट देते थे।

4. गठबन्धन सरकारों की असफलता-कांग्रेस की प्रधानता का एक कारण राज्यों में गठबन्धन सरकारों की असफलता थी। जिसके कारण लोगों का गैर-कांग्रेसी सरकारों से मोह भंग हो गया।

प्रश्न 7.
कांग्रेस पार्टी की राज्य स्तर पर असमान प्रधानता की व्याख्या करें।
उत्तर:
कांग्रेस पार्टी की राज्य स्तर पर असमान प्रधानता का अर्थ यह है, कि केन्द्र की तरह राज्यों में कांग्रेस पार्टी . सदैव प्रधान नहीं रही। 1977 तक कांग्रेस पार्टी की केन्द्र स्तर पर प्रधानता बनी रही। परन्तु इसी दौरान राज्य स्तर पर कांग्रेस पार्टी की पूरी प्रधानता नहीं रही। क्योंकि कुछ राज्यों में क्षेत्रीय या अन्य दलों का उदय हो चुका था।

जैसे, भारतीय साम्यवादी दल, मार्क्सवादी दल, अकाली दल, द्रविड़ कड़गम, क्रान्तिकारी समाजवादी पार्टी, फारवर्ड ब्लॉक तथा नेशनल कान्फ्रेंस। इन दलों ने समय-समय पर अपने-अपने राज्यों में सरकार बनाकर राज्य स्तर पर कांग्रेस पार्टी की प्रधानता को चुनौती थी। इसीलिए कहा जाता है, कि राज्य स्तर पर कांग्रेस पार्टी की असमान प्रधानता थी।

प्रश्न 8.
कांग्रेस के गठबन्धनवादी स्वरूप की व्याख्या करें।
उत्तर:
कांग्रेस पार्टी यद्यपि 1977 तक केन्द्र में शासन करती रही। परन्तु राज्यों में कांग्रेस की पूरी प्रधानता नहीं रही तथा समय-समय पर क्षेत्रीय तथा अन्य दलों ने कांग्रेस पार्टी को चुनावों में पराजित भी किया। इसी कारण कांग्रेस पार्टी ने कई राज्यों में अन्य दलों से समझौता करके अपनी सरकारें बनवाने का प्रयास किया।

1954 में कांग्रेस पार्टी ने कोचीन में पी० एस० पी० की अल्पमत सरकार भी बनवाई। 1957 में उड़ीसा में कांग्रेस पार्टी ने दूसरे आम चुनावों में एक स्थानीय दल गणतन्त्र परिषद् से गठबन्धन किया। 1970 के अन्त में केन्द्र में भी कांग्रेस ने अपनी सरकार को चलाने के लिए साम्यवादी दलों का सहारा लिया। इन सब उदाहरणों से स्पष्ट है, कि यद्यपि कांग्रेस की प्रधानता रही है, परन्तु समय-समय पर उसे गठबन्धन राजनीति को स्वीकार करना पड़ा है।

प्रश्न 9.
भारत में एक पार्टी का प्रभत्व विश्व के और देशों में एक पार्टी के प्रभत्व से किस प्रकार भिन्न था ?
उत्तर:
भारत में एक पार्टी का प्रभुत्व विश्व के और देशों में एक पार्टी के प्रभुत्व से सर्वथा भिन्न था। उदाहरण के लिए भारत और मैक्सिको में दोनों देशों में एक खास समय में एक ही दल का प्रभुत्व था। परन्तु दोनों देशों में एक दल के प्रभुत्व के स्वरूप में मौलिक अन्तर था, जहां भारत में लोकतान्त्रिक आधार पर एक दल का प्रभुत्व कायम था, वहीं मैक्सिको में एक दल की तानाशाही पाई जाती थी तथा लोगों को अपने विचार रखने का अधिकार नहीं था।

इसी प्रकार सोवियत संघ एवं चीन में भी एक पार्टी का प्रभुत्व पाया जाता था, परन्तु इन देशों में भी राजनीतिक दल प्रजातान्त्रिक आधारों पर संगठित नहीं हुए थे, जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस प्रजातान्त्रिक आधार पर संगठित हुई थी।

प्रश्न 10.
स्वतन्त्रता के शुरू के वर्षों में विपक्षी दलों को यद्यपि कहने भर का प्रतिनिधित्व मिल पाया, फिर भी इन दलों ने हमारी शासन-व्यवस्था के लोकतान्त्रिक चरित्र को बनाये रखने में किस प्रकार निर्णायक भूमिका निभाई ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता के शुरू के वर्षों में विपक्षी दलों को यद्यपि कहने भर का प्रतिनिधित्व मिल पाया फिर भी इन दलों ने हमारी शासन-व्यवस्था को लोकतान्त्रिक चरित्र को बनाये रखने में निर्णायक भूमिका निभाई है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के शुरुआती वर्षों में सी०पी०आई०, जनसंघ, स्वतन्त्र पार्टी तथा सोशलिस्ट पार्टी जैसी पार्टियां भारत में विपक्षी दल की भूमिका निभाती थीं।

इन दलों ने समयानुसार एवं आवश्यकतानुसार सत्ताधारी कांग्रेस दल की अनुचित नीतियों एवं कार्यक्रमों की आलोचना की। ये आलोचनाएं सैद्धान्तिक तौर पर सही होती थीं। इन विपक्षी दलों ने अपनी सक्रिय गतिविधियों से कांग्रेस दल पर अंकुश बनाये रखा तथा लोगों को राजनीतिक स्तर पर एक विकल्प प्रदान करते रहे।

प्रश्न 11.
प्रथम तीन चुनावों में मुख्य विपक्षी दल कौन-से थे ?
उत्तर:
प्रथम तीन आम चुनावों में मुख्य विपक्षी दलों में सी० पी० आई०, एस० पी०, प्रजा समाजवादी पार्टी, जनसंघ तथा स्वतंत्र पार्टी शामिल हैं।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 12.
‘भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना सन् 1924 में हुई। इस पार्टी को 1952 के लोकसभा चुनावों में 16 सीटें, 1957 के चुनावों में 27 सीटें एवं 1962 के चुनावों में 29 सीटें प्राप्त हुईं। इस पार्टी ने 1957 में केरल में विश्व की पहली लोकतांत्रिक साम्यवादी सरकार का निर्माण किया। 1959 में चीन के साथ सम्बन्ध के बारे में भारतीय साम्यवादी दल में दो गुट बन गए और 1962 में चीन के आक्रमण ने इस मतभेद को और अधिक बढ़ा दिया।

एक गुट ने चीन के आक्रमण को आक्रमण कहा और इसका मुकाबला करने के लिए भारत सरकार के देने का वचन दिया, परन्तु दूसरे गुट ने जो चीन के प्रभाव में था, इसे सीमा सम्बन्धी विवाद कह कर पुकारा, परिणामस्वरूप 1964 में वामपंथी सदस्य जिनकी संख्या लगभग एक तिहाई थी, भारतीय साम्यवादी दल से अलग हो गए और मार्क्सवादी दल की स्थापना की।

प्रश्न 13.
‘भारतीय जनसंघ’ पार्टी पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
भारतीय जनसंघ पार्टी की स्थापना सन् 1951 में हुई थी। इसके संस्थापक श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे। जनसंघ अपनी विचारधारा, सिद्धांत एवं कार्यक्रम के आधार पर अन्य दलों से भिन्न था। यह दल एक देश, एक संस्कृति एवं राष्ट्र पर जोर देता था। जनसंघ का कहना था, कि भारत एवं पाकिस्तान को मिलाकर ‘अखण्ड भारत’ बनाया जाए।

यह दल अंग्रेज़ी को हटाकर हिन्दी को राजभाषा बनाने के पक्ष में था। इस दल ने धार्मिक एवं सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों को ‘विशेष सुविधाएं देने का विरोध किया। सन् 1952 के चुनावों में इस दल को 3 सीटें मिली, 1957 के चुनावों में इस दल को 4 सीटें मिलीं। इस दल के मुख्य नेताओं में श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी, श्री दीनदयाल उपाध्याय एवं श्री बलराम मधोक शामिल थे।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीतिक दल किसे कहते हैं ?
उत्तर:
राजनीतिक दल ऐसे नागरिकों का समूह है जो सार्वजनिक मामलों पर एक-से विचार रखते हों और संगठित होकर अपने मताधिकार द्वारा सरकार पर अपना नियन्त्रण स्थापित करना चाहते हों ताकि अपने सिद्धान्तों को लागू कर सकें। गिलक्राइस्ट के शब्दानुसार, “राजनीतिक दल ऐसे नागरिकों का संगठित समूह है जिनके राजनीतिक विचार एक से हों और एक राजनीतिक इकाई के रूप में कार्य करके सरकार पर नियन्त्रण रखने का प्रयत्न करते हों।”

प्रश्न 2.
भारत में कांग्रेस पार्टी की स्थापना कब हुई ? इसके मुख्य संस्थापक का नाम लिखिए।
उत्तर:
कांग्रेस की स्थापना सन् 1885 में हुई तथा इसके संस्थापक का नाम ए० ओ० ह्यूम था।

प्रश्न 3.
भारत में साम्यवादी दल की स्थापना कब हुई? इसका विभाजन कब हुआ ?
उत्तर:
भारत में साम्यवादी दल की स्थापना सन् 1924 में हुई और इसका विभाजन सन् 1964 में हुआ।

प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता के बाद भारत द्वारा किस शासन प्रणाली को चुना गया था ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता के बाद भारत द्वारा संसदीय शासन प्रणाली को चुना गया था।

प्रश्न 5.
भारतीय संविधान में चुनाव कराने की जिम्मेवारी किसे सौंपी गई है ?
अथवा
भारत में चुनाव कराने की जिम्मेवारी किसे सौंपी गई है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में चुनाव कराने की जिम्मेवारी चुनाव आयोग को सौंपी गई है।

प्रश्न 6.
भारतीय कम्यनिस्ट पार्टी का 1964 में विभाजन हआ। इसका क्या कारण था ?
उत्तर:
भारतीय साम्यवादी दल की स्थापना 1924 में की गई थी। 1959 में चीन के साथ सम्बन्ध के बारे में भारतीय साम्यवादी दल में दो गुट बन गए और 1962 के चीन के आक्रमण ने इस मतभेद को और अधिक बढ़ा दिया। एक गुट ने चीन के आक्रमण को आक्रमण कहा और इसका मुकाबला करने के लिए भारत सरकार को पूरी सहायता देने का वचन दिया, परन्तु दूसरे गुट ने जो चीन के प्रभाव में था, इसे सीमा सम्बन्धी विवाद कह कर पुकारा। परिणामस्वरूप 1964 में वामपंथी सदस्य जिनकी संख्या लगभग एक तिहाई थी, भारतीय साम्यवादी दल से अलग हो गए और मार्क्सवादी दल की स्थापना की।

प्रश्न 7.
भारतीय जनसंघ की स्थापना कब हुई ? इसके संस्थापक कौन थे ?
उत्तर:
भारतीय जनसंघ की स्थापना सन् 1951 में हुई। इसके संस्थापक श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे।

प्रश्न 8.
किस विद्वान् ने कांग्रेस पार्टी को एक सराय कहा और क्यों ?
उत्तर:
डॉ० भीम राव अम्बेदकर ने कांग्रेस पार्टी को सराय कहा था, क्योंकि कांग्रेस पार्टी के द्वार समाज के सभी वर्गों के लिए खुले हुए थे। डॉ० अम्बेदकर के अनुसार कांग्रेस पार्टी के द्वार मित्रों, दुश्मनों, चालाक व्यक्तियों, मूों तथा यहां तक कि सम्प्रदायवादियों के लिए भी खुले हुए थे।

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प्रश्न 9.
भारतीय जनसंघ ने किस विचारधारा पर जोर दिया था ?
उत्तर:

  • भारतीय जनसंघ ने एक देश, एक संस्कृति और एक राष्ट्र के विचार पर जोर दिया।
  • जनसंघ का विचार था कि भारतीय संस्कृति और परम्परा के आधार पर भारत आधुनिक प्रगतिशील और ताकतर बन सकता है।

प्रश्न 10.
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
मौलाना अबुल कलाम का पूरा नाम अबुल कलाम मोहियुद्दीन अहमद था। इनका जन्म 1888 में हुआ तथा निधन 1958 में हुआ। अबुल कलाम इस्लाम के प्रसिद्ध विद्वान् थे। वे प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी, कांग्रेसी नेता तथा हिन्दू मुस्लिम एकता के समर्थक थे। उन्होंने भारत विभाजन का विरोध किया। वे संविधान सभा के सदस्य थे, तथा स्वतन्त्र भारत के पहले शिक्षा मन्त्री थे।

प्रश्न 11.
भारत की दलीय व्यवस्था के कोई दो लक्षण दीजिए।
उत्तर:

  • भारत में बहुदलीय व्यवस्था पाई जाती है।
  • भारत में राजनीतिक दलों का चुनाव आयोग के पास पंजीकरण होता है।

प्रश्न 12.
डॉ० भीम राव अम्बेदकर पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
डॉ० भीम राव अम्बेदकर का जन्म महाराष्ट्र में 1891 में हुआ। डॉ० अम्बेदकर कानून के विशेषज्ञ एवं संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। डॉ० अम्बेदकर जाति विरोधी आन्दोलन के नेता तथा पिछड़े वर्गों को न्याय दिलाने के संघर्ष के प्रेरणा स्रोत माने जाते थे। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् नेहरू मन्त्रिमण्डल में मन्त्री बने, परन्तु 1951 में हिन्दू कोड बिल के मुद्दे पर असहमति जताते हुए पद से इस्तीफा दिया। 1956 में उनका निधन हो गया।

प्रश्न 13.
राजकुमारी अमृतकौर के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
राजकुमारी अमृतकौर गांधीवादी स्वतन्त्रता सेनानी थीं, उनका जन्म 1889 में कपूरथला के राजपरिवार में हुआ। उन्होंने अपनी माता के अनुसार ईसाई धर्म अपनाया। वह संविधान सभी की सदस्य भी रहीं तथा नेहरू मन्त्रिमण्डल में स्वास्थ्य मन्त्री का कार्यभार सम्भाला। सन् 1964 में उनका निधन हो गया।

प्रश्न 14.
सी० राजगोपालाचारी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।।
उत्तर:
सी० राजगोपालाचारी का जन्म 1878 में हुआ। सी० राजगोपालाचारी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं प्रसिद्ध साहित्यकार थे। वे संविधान सभा के सदस्य थे, वे भारत के प्रथम भारतीय गवर्नर-जनरल बने। वे केन्द्र सरकार में मन्त्री तथा मद्रास के मुख्यमन्त्री भी रहे। उन्होंने 1959 में स्वतन्त्र पार्टी की स्थापना की। उनकी सेवाओं के लिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 1972 में उनका देहान्त हो गया।

प्रश्न 15.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 1901 में हुआ। श्यामा प्रसाद मुखर्जी संविधान सभा के सदस्य थे। वे हिन्द महासभा के महत्त्वपूर्ण नेता तथा भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे। उन्होंने 1950 में पाकिस्तान के साथ सम्बन्धों को लेकर मतभेद होने पर नेहरू मन्त्रिमण्डल से इस्तीफा दिया। वे कश्मीर को स्वायत्तता देने के विरुद्ध थे। कश्मीर नीति पर जनसंघ के प्रदर्शन के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तथा 1953 में हिरासत में ही उनकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 16.
चुनाव से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
चुनाव एक ऐसी विधि है, जिसके द्वारा मतदाता अपने प्रतिनिधि चुनते हैं। चुनाव प्रत्यक्ष भी हो सकते हैं, और अप्रत्यक्ष भी हो सकते हैं।

प्रश्न 17.
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार किसे कहते हैं ?
उत्तर:
सार्वभौम वयस्क मताधिकार का अभिप्राय यह है कि निश्चित आयु के वयस्क नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार देना है। वयस्क होने की आय राज्य द्वारा निश्चित की जाती है। भारत में मताधिकार की आयु पहले 21 वर्ष थी, परन्तु 61वें संशोधन एक्ट द्वारा यह आयु 18 वर्ष कर दी गई है।

प्रश्न 18.
साम्यवादी दल, सन् 1964 में हुए विभाजन के बाद किन दो राजनीतिक दलों में बंटा था ?
उत्तर:
साम्यवादी दल, सन् 1964 में हुए विभाजन के भारतीय साम्यवादी दल तथा भारतीय साम्यवादी (मार्क्सवादी) दल में बंटा हुआ था।

प्रश्न 19.
गठबन्धन से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
गठबन्धन सरकार का साधारण अर्थ है, कई दलों द्वारा मिलकर सरकार का निर्माण करना। चुनावों से पूर्व या चुनावों के बाद कई दल मिलकर अपना साझा कार्यक्रम तैयार करते हैं। उसके आधार पर वे मिलकर चुनाव लड़ते . हैं अथवा अपनी सरकार बनाते हैं। भारत में सबसे पहले केन्द्र में 1977 में गठबन्धन सरकार बनी।

प्रश्न 20.
‘एक दलीय प्रभत्व’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
एक दलीय प्रभुत्व व्यवस्था उसे कहते हैं, जहां बहुदलीय पद्धति के अन्तर्गत किसी एक दल की प्रधानता होती है। एक दलीय प्रभुत्व व्यवस्था में यद्यपि अन्य भी कई दल होते हैं, परंतु उनका राजनीतिक महत्व अधिक नहीं होता, क्योंकि लोगों का उन्हें अधिक समर्थन प्राप्त नहीं होता। ऐसी व्यवस्था में मतदाता केवल एक ही दल को अधिक महत्त्व देते हैं। भारत एक दलीय प्रभुत्व व्यवस्था का एक प्रत्यक्ष उदाहरण रहा है।

प्रश्न 21.
‘एक दल की प्रधानता का युग’ कौन-से काल को कहा जाता है ?
उत्तर:
एक दल की प्रधानता का युग सन् 1952 से 1962 तक के काल को कहा जाता है, क्योंकि इन तीनों चुनावों में केन्द्र एवं राज्य स्तर पर कांग्रेस का ही प्रभुत्व था।

प्रश्न 22.
भारत में एक दल की प्रधानता का युग कब समाप्त हुआ ?
उत्तर:
भारत में एक दल की प्रधानता का युग सन् 1967 में हुए चौथे आम चुनाव के बाद समाप्त हुआ।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

1. दूसरा आम चुनाव कब हुआ?
(A) 1950 में
(B) 1952 में
(C) 1957 में
(D) 1962 में।
उत्तर:
(C) 1957 में।

2. निम्नलिखित में से किसने कांग्रेस को छाता संगठन (Umbrella organisation) की संज्ञा दी ?
(A) महात्मा गांधी ने
(B) जवाहर लाल नेहरू ने
(C) पामर ने
(D) बाल गंगाधर तिलक ने।
उत्तर:
(C) पामर ने।

3. किसने कांग्रेस की तुलना सराय से की है ?
(A) गोपाल कृष्ण गोखले
(B) लाला लाजपत राय
(C) डॉ० अम्बेदकर
(D) सरदार पटेल।
उत्तर:
(C) डॉ० अम्बेदकर।

4. निम्न में से एक दल को ‘छाता संगठन’ के नाम से सम्बोधित किया गया।
(A) सोशलिस्ट पार्टी
(B) कांग्रेस दल
(C) भारतीय जनसंघ
(D) हिन्दू महासभा।
उत्तर:
(B) कांग्रेस दल।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

5. भारत में चुनाव कराने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है
(A) राष्ट्रपति को
(B) संसद् को
(C) मुख्य न्यायाधीश को
(D) चुनाव आयोग को।
उत्तर:
(D) चुनाव आयोग को।

6. निम्नलिखित में से किस नेता ने कांग्रेस को जन-आन्दोलन का रूप दिया ?
(A) पं० जवाहर लाल नेहरू ने
(B) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ने
(C) विनोबा भावे
(D) महात्मा गांधी ने।
उत्तर:
(D) महात्मा गांधी ने।

7. भारत के प्रथम मुख्य चुनाव उपयुक्त कौन थे ?
(A) टी० एन० शेषन
(B) सुकुमार सेन
(C) एम० एस० गिल
(D) हुकुम सिंह।
उत्तर:
(B) सुकुमार सेन।

8. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कब हुई ?
(A) 1885 में
(B) 1886 में
(C) 1905 में
(D) 1895 में।
उत्तर:
(A) 1885 में।

9. भारत में एक दल की प्रधानता का युग किस नेता से जुड़ा है ?
(A) सरदार पटेल
(B) पं० नेहरू
(C) महात्मा गांधी
(D) लाल बहादुर शास्त्री
उत्तर:
(B) पं० नेहरू।

10. प्रथम तीन आम चुनावों में किस राजनीतिक दल का प्रभुत्व बना रहा ?
(A) कम्युनिस्ट पार्टी का
(B) समाजवादी पार्टी का
(C) कांग्रेस पार्टी का
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(C) कांग्रेस पार्टी का।

11. स्वतन्त्र भारत में एक दल की प्रधानता का युग निम्नलिखित वर्ष से आरम्भ होता है
(A) 1952 में
(B) 1957 में
(C) 1950 में
(D) 1951 में।
उत्तर:
(A) 1952 में।

12. प्रथम आम चुनावों में कांग्रेस को लोकसभा में कितने स्थान प्राप्त हुए थे?
(A) 361
(B) 401
(C) 364
(D) 370
उत्तर:
(C) 364

13. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में विभाजन कब हुआ ?
(A) 1962 में
(B) 1964 में
(C) 1975 में
(D) 1970 में।
उत्तर:
(B) 1964 में।

14. 1952 के पहले आम चुनाव में लोकसभा के साथ-साथ निम्न के लिए भी चुनाव कराए गए थे
(A) भारत के राष्ट्रपति का चुनाव
(B) राज्य विधानसभा का चुनाव
(C) राज्य सभा का चुनाव
(D) प्रधानमन्त्री का चुनाव।
उत्तर:
(B) राज्य विधानसभा का चुनाव।

15. भारतीय जनसंघ के संस्थापक कौन थे ?
(A) सी० राजगोपालाचारी
(B) डॉ० श्यामा प्रसाद
(C) पं० नेहरू
(D) सरदार पटेल।
उत्तर:
(B) डॉ० श्यामा प्रसाद।

16. राष्ट्रीय मंच पर किस नेता के आगमन से कांग्रेस पार्टी एक जन आन्दोलन में बदल गई ?
(A) महात्मा गांधी
(B) गोपाल कृष्ण गोखले
(C) डॉ० अम्बेदकर
(D) पं० नेहरूं।
उत्तर:
(A) महात्मा गांधी।

17. भारतीय जनता पार्टी की जड़ें किस पार्टी में पाई जाती हैं ?
(A) साम्यवादी पार्टी
(B) स्वतन्त्र पार्टी
(C) भारतीय जनसंघ
(D) कांग्रेस पाटी।
उत्तर:
(C) भारतीय जनसंघ।

18. सन् 1957 के चुनावों के बाद निम्नलिखित किस राज्य में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ ?
(A) राजस्थान में
(B) मद्रास में
(C) आन्ध्र प्रदेश में
(D) केरल में।
उत्तर:
(D) केरल में।

19. भारतीय जनसंघ की स्थापना निम्नलिखित वर्ष में हुई :
(A) 1950 में
(B) 1951 में
(C) 1952 में
(D) 1949 में।
उत्तर:
(B) 1951 में।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

20. स्वतन्त्र भारत में पहला आम चुनाव कब हुआ ?
(A) 1952 में
(B) 1957 में
(C) 1948 में
(D) 1950 में।
उत्तर:
(A) 1952 में।

21. सन् 1952 से 1966 तक भारत के राजनीतिक मंच पर
(A) एक दल की प्रधानता रही
(B) दो-दलीय प्रधानता रही
(C) तीन दलीय प्रधानता रही
(D) बहु-दलीय प्रधानता रही।
उत्तर:
(A) एक दल की प्रधानता रही।

22. भारत में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना निम्नलिखित किस वर्ष में हुई-
(A) 1950 में
(B) 1924 में
(C) 1964 में
(D) 1934 में।
उत्तर:
(B) 1924 में।

23. ‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना किस वर्ष हुई ?
(A) 1950 में
(B) 1951 में
(C) 1957 में
(D) 1960 में।
उत्तर:
(B) 1951 में।

24. प्रथम आम चुनाव में लोकसभा में 16 स्थान प्राप्त करके कौन-सा दल कांग्रेस के बाद दूसरे स्थान पर रहा ?
(A) जनसंघ
(B) समाजवार्दी पार्टी
(C) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(D) हिन्दू महासभा।
उत्तर:
(C) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी।

25. 1957 में केरल विधानसभा में किस दल की सरकार बनी ?
(A) साम्यवादी दल
(B) कांग्रेस पार्टी
(C) स्वतन्त्र पार्टी
(D) जनसंघ
उत्तर:
(A) साम्यवादी दल।

26. भारत में तीसरा आम चुनाव सम्पन्न हुआ
(A) 1961 में
(B) 1962 में
(C) 1960 में
(D) 1963 में।
उत्तर:
(B) 1962 में।

27. भारतीय कम्यनिस्ट पार्टी में विभाजन कब हुआ ?
(A) 1962 में
(B) 1964 में
(C) 1957 में
(D) 1970 में।
उत्तर:
(B) 1964 में।

28. विश्व में सबसे पहले कहां पर निर्वाचित ढंग से साम्यवादी दल की सरकार बनी ?
(A) केरल
(B) मास्को
(C) हवाना
(D) गुजरात।
उत्तर:
(A) केरल।

29. भारत में वयस्क मताधिकार की आयु निश्चित की गई है
(A) 20 वर्ष
(B) 21 वर्ष
(C) 18 वर्ष
(D) 19 वर्ष।
उत्तर:
(C) 18 वर्ष।

30. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना किस स्थान पर हुई ?
(A) दिल्ली में
(B) बम्बई में
(C) लखनऊ में
(D) कलकत्ता में।
उत्तर:
(B) बम्बई में।

31. 1984 में कांग्रेस ने लोकसभा का चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ा?
(A) इंदिरा गांधी
(B) मोरार जी देसाई
(C) राजीव गांधी
(D) देवराज अर्स।
उत्तर:
(C) राजीव गांधी।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

32. भारत के प्रथम चुनाव आयुक्त थे :
(A) बलराम जाखड़
(B) हुकुम सिंह
(C) सुकुमार सेन
(D) शिवराज पाटिल।
उत्तर:
(C) सुकुमार सेन।

33. मुख्य रूप से कांग्रेस की स्थापना का श्रेय निम्नलिखित को जाता है
(A) जवाहर लाल नेहरू
(B) राजेन्द्र प्रसाद
(C) गोपाल कृष्ण गोखले
(D) ए० ओ० ह्यम।
उत्तर:
(D) ए० ओ० ह्यूम।

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

(1) साम्यवादी पार्टी की स्थापना वर्ष ………… में हुई।
उत्तर:
1924

(2) भारत में एक दल की प्रधानता का युग ……….. भारतीय नेता से जुड़ा हुआ है।
उत्तर:
पं० जवाहर लाल नेहरू

(3) केन्द्र स्तर पर कांग्रेस पार्टी की प्रधानता वर्ष …………… में समाप्त हो गई।
उत्तर:
1977

(4) पामर ने कांग्रेस को एक …………. संगठन कहा।
उत्तर:
छाता

(5) एस० ए० डांगे …………… पार्टी के नेता थे।
उत्तर:
साम्यवादी

(6) भारत के चुनाव आयोग का गठन ………… में हुआ।
उत्तर:
1950

(7) स्वतंत्र भारत में पहला आम चुनाव सन् …………….. में हुआ।
उत्तर:
1952

(8) सन् 1957 के चुनावों के पश्चात् पहली गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन ……….. राज्य में हुआ।
उत्तर:
केरल

(9) भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष ……………… थे।
उत्तर:
श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
भारत में किस प्रकार की दलीय प्रणाली पाई जाती है ?
उत्तर:
भारत में बहु-दलीय प्रणाली पाई जाती है।

प्रश्न 2.
मख्य रूप से कांग्रेस की स्थापना का श्रेय किस व्यक्ति को जाता है ?
उत्तर:
मुख्य रूप से कांग्रेस की स्थापना का श्रेय ए० ओ० ह्यूम को जाता है।

प्रश्न 3.
भारत में एक दल की प्रधानता किस दल से सम्बन्धित रही है ?
उत्तर:
भारत में एक दल की प्रधानता कांग्रेस दल से सम्बन्धित रही है।

प्रश्न 4.
किस युग में कांग्रेस पार्टी ने मध्यवर्गीय व्यापारियों, पाश्चात्य शिक्षित व्यापारियों, वकीलों एवं भू-स्वामियों को एक मंच प्रदान किया ?
उत्तर:
उदारवादी युग में।

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प्रश्न 5.
कांग्रेस दल किस सन् में राष्ट्रीय चरित्र वाले एक जनसभा के रूप में अस्तित्व में आया ?
उत्तर:
कांग्रेस दल 1905 से 1918 तक के काल में राष्ट्रीय चरित्र वाले एक जनसभा के रूप में अस्तित्व में आया।

प्रश्न 6.
राष्ट्रीय मंच पर किस नेता के आगमन से कांग्रेस पार्टी एक जन आन्दोलन में बदल गई ?
उत्तर:
राष्ट्रीय मंच पर महात्मा गांधी के आगमन से कांग्रेस पार्टी एक जन आन्दोलन में बदल गई।

प्रश्न 7.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का विभाजन कब हुआ ?
उत्तर:
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का विभाजन सन् 1964 में हुआ।

प्रश्न 8.
प्रथम आम चुनावों के समय कितने राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय दल विद्यमान थे ?
उत्तर:
प्रथम आम चुनावों में 14 राष्ट्रीय स्तर एवं 52 राज्य स्तर के दल विद्यमान थे।

प्रश्न 9.
कांग्रेस पार्टी की स्थापना किस वर्ष हुई ?
उत्तर:
कांग्रेस पार्टी की स्थापना सन् 1885 में हुई।

प्रश्न 10.
भारत में मतदाता दिवस कब मनाया जाता है ?
उत्तर:
भारत में मतदाता दिवस 25 जनवरी को मनाया जाता है।

प्रश्न 11.
भारत में चुनाव कराने की जिम्मेदारी किसे सौंपी गई है ?
उत्तर:
चुनाव आयोग को।

प्रश्न 12.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर:
ए० ओ० ह्यम।

प्रश्न 13.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का विभाजन कब हुआ ?
उत्तर:
सन् 1964 में।

प्रश्न 14.
भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष कौन थे ?
उत्तर:
भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे।

प्रश्न 15.
श्री एस० ए० डांगे किस दल के प्रमुख नेता थे ?
उत्तर:
भारतीय साम्यवादी दल।

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HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

HBSE 12th Class Political Science एक दल के प्रभुत्व का दौर Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
सही विकल्प को चुनकर खाली जगह को भरें
(क) 1952 के पहले आम चुनाव में लोकसभा के साथ-साथ ……….. के लिए भी चुनाव कराए गए थे। (भारत के राष्ट्रपति पद/राज्य विधानसभा/राज्यसभा/प्रधानमन्त्री)
(ख) ………… लोकसभा के पहले आम चुनाव में 16 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर रही। (प्रजा सोशलिस्ट पार्टी/भारतीय जनसंघ/भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी/भारतीय जनता पार्टी)
(ग) स्वतन्त्र पार्टी का एक निर्देशक सिद्धान्त था। (कामगार तबके का हित/रियासतों का बचाव/राज्य के नियन्त्रण से मुक्त अर्थव्यवस्था/संघ के भीतर राज्यों की स्वायत्तता)
उत्तर:
(क) 1952 के पहले आम चुनाव में लोकसभा के साथ-साथ राज्य विधानसभा के लिए भी चुनाव कराए गए थे।
(ख) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी लोकसभा के पहले आम चुनाव में 16 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर रही।
(ग) राज्य के नियन्त्रण से मुक्त अर्थव्यवस्था स्वतन्त्र पार्टी का एक निर्देशक सिद्धान्त था।

प्रश्न 2.
यहां दो सूचियां दी गई हैं। पहले में नेताओं के नाम दर्ज हैं और दूसरे में दलों के। दोनों सूचियों में मेल बैठाएं
(क) एस० ए० डांगे – (i) भारतीय जनसंघ
(ख) श्यामा प्रसाद मुखर्जी – (ii) स्वतन्त्र पार्टी
(ग) मीनू मसानी – (iii) प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
(घ) अशोक मेहता – (iv) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी।
उत्तर:
(क) एस० ए० डांगे – (iv) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(ख) श्यामा प्रसाद मुखर्जी – (i) भारतीय जनसंघ
(ग) मीनू मसानी – (ii) स्वतन्त्र पार्टी
(घ) अशोक मेहता – (iii) प्रजा सोशलिस्ट पार्टी।

प्रश्न 3.
एकल पार्टी के प्रभुत्व के बारे में यहां चार बयान लिखे गए हैं। प्रत्येक के आगे सही या ग़लत का चिह्न लगाएं
(क) विकल्प के रूप में किसी मज़बूत राजनीतिक दल का अभाव एकल पार्टी-प्रभुत्व का कारण था।
(ख) जनमत की कमजोरी के कारण एक पार्टी का प्रभुत्व कायम हुआ।
(ग) एकल पार्टी-प्रभुत्व का सम्बन्ध राष्ट्र के औपनिवेशिक अतीत से है।
(घ) एकल पार्टी-प्रभुत्व से देश में लोकतान्त्रिक आदर्शों के अभाव की झलक मिलती है।
उत्तर:
(क) सही
(ख) सही
(ग) ग़लत
(घ) सही।

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प्रश्न 4.
अगर पहले आम चुनाव के बाद भारतीय जनसंघ अथवा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनी होती तो किन मामलों में इस सरकार ने अलग नीति अपनाई होती ? इन दोनों दलों द्वारा अपनाई गई नीतियों के बीच तीन अन्तरों का उल्लेख करें।
उत्तर:

भारतीय जनसंघभारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(1) जनसंघ पाकिस्तान को भारत में मिलाने का प्रयास करता।(1) कम्युनिस्ट पार्टी पाकिस्तान के स्वतन्त्र स्वरूप को बनाये रखती।
(2) जनसंघ अल्पसंख्यकों को दी जाने वाली रियायतों को समाप्त कर देता।(2) कम्युनिस्ट पार्टी इन रियायतों को जारी रखती।
(3) जनसंघ आण्विक हथियार बनाने का प्रयास करता।(3) कम्युनिस्ट पार्टी इस प्रकार का कोई प्रयास नहीं करती।

प्रश्न 5.
कांग्रेस किन अर्थों में एक विचारधारात्मक गठबन्धन थी ? कांग्रेस में मौजूद विभिन्न विचारधारात्मक उपस्थितियों का उल्लेख करें।
उत्तर:
कांग्रेस एक विचारधारात्मक गठबन्धन थी, क्योंकि कांग्रेस में ऐसे बहुत व्य क्ति या व्यक्तियों के समूह थे, जो अपनी पहचान को कांग्रेस के साथ मिला नहीं पाए तथा अपने-अपने विचारों एवं मूल्यों को मानते हुए भी कांग्रेस में बने रहे। कांग्रेस में नरमपंथी, गरमपंथी, दक्षिणी पंथी, वामपंथी, क्रान्तिकारी और शान्तिवादी तथा कंजरवेटिव एवं रेंडीकल जैसे विचारधारात्मक गठबन्धन पाए जाते थे।

प्रश्न 6.
क्या एकल पार्टी प्रभुत्व की प्रणाली का भारतीय राजनीति के लोकतान्त्रिक चरित्र पर खराब असर हुआ ?
उत्तर:
इस कथन में सच्चाई है, कि एकल पार्टी प्रभुत्व की प्रणाली का भारतीय राजनीति के लोकतान्त्रिक चरित्र पर खराब असर हुआ। क्योंकि इस कारण कोई भी अन्य विचारधारात्मक गठबन्धन या पार्टी उभर कर सामने नहीं आ पाई तथा मतदाताओं के पास भी कांग्रेस को समर्थन देने के अतिरिक्त कोई और विकल्प नहीं था।

प्रश्न 7.
समाजवादी दलों और कम्युनिस्ट पार्टी के बीच के तीन अन्तर बताएं। इसी तरह भारतीय जनसंघ और स्वतन्त्र पार्टी के बीच के तीन अन्तरों का उल्लेख करें।
अथवा
समाजवादी दलों और कम्युनिस्ट पार्टी के बीच कोई चार अन्तर बताएं।
उत्तर:

समाजवादो दलकम्युनिस्ट पाटी
(1) समाजवादी दल लोकतान्त्रिक समाजवाद में विश्वास करता था।(1) कम्युनिस्ट पार्टी क्रान्तिकारी समाजवाद में विश्वास करती थी।
(2) समाजवादी दल कांग्रेस की कड़ी आलोचना करता था।(2) कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस की कड़ी आलोचना से बचती थी।
(3) समाजवादी दल में उदारवादी नेता अधिक थे।(3) कम्युनिस्ट पार्टी में क्रान्तिकारी नेता अधिक थे।
भारतीय जनसघस्वतन्त्र पार्टी
(1) जनसंघ एक देश, एक संस्कृति तथा एक राष्ट्र के पक्ष में थी।(1) स्वतन्त्र पार्टी इस प्रकार के विचार के पक्ष में नहीं थी।
(2) जनसंघ भारत और पाकिस्तान को मिलाकर ‘अखण्ड भारत’ बनाने के पक्ष में था।(2) स्वतन्त्र पार्टी इस प्रकार के ‘अखण्ड भारत’ को व्यावहारिक नहीं मानती थी।
(3) जनसंघ आण्विक हथियार बनाने के पक्ष में था।(3) स्वतन्त्र पार्टी आण्विक हथियारों की अपेक्षा विकास पर अधिक ज़ोर दे रही थी।

प्रश्न 8.
भारत और मैक्सिको दोनों ही देशों में एक खास समय तक एक पार्टी का प्रभुत्व रहा। बताएं कि मैक्सिको में स्थापित एक पार्टी का प्रभुत्व कैसे भारत के एक पार्टी के प्रभुत्व से अलग था ?
उत्तर:
भारत और मैक्सिको में दोनों देशों में एक खास समय में एक ही दल का प्रभुत्व था। परन्तु दोनों देशों में एक दल के प्रभुत्व के स्वरूप में मौलिक अन्तर था, जहां भारत में लोकतान्त्रिक आधार पर एक दल का प्रभुत्व कायम था वहीं मैक्सिको में एक दल की तानाशाही पाई जाती है तथा लोगों को अपने विचार रखने का अधिकार नहीं था।
HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 Img 1

प्रश्न 9.
भारत का एक राजनीतिक नक्शा लीजिए (जिसमें राज्यों की सीमाएं। दिखाई गई हों) और उसमें निम्नलिखित को चिन्हित कीजिए
(क) ऐसे दो राज्य जहां 1952-67 के दौरान कांग्रेस सत्ता में नहीं थी।
(ख) दो ऐसे राज्य जहां इस पूरी अवधि में कांग्रेस सत्ता में रही।
उत्तर:
(क) ऐसे दो राज्य जहां 1952-67 के दौरान कांग्रेस सत्ता में नहीं रही-केरल एवं जम्मू-कश्मीर।
(ख) ऐसे दो राज्य जहां इस पूरी अवधि में कांग्रेस सत्ता में रही-पंजाब एवं उत्तर प्रदेश।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़कर इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए कांग्रेस के संगठनकर्ता पटेल कांग्रेस को दूसरे राजनीतिक समूह से निसंग रखकर उसे एक सर्वांगसम तथा अनुशासित राजनीतिक पार्टी बनाना चाहते थे। वे चाहते थे कि कांग्रेस सबको समेटकर चलने वाला स्वभाव छोड़े और अनुशासित कॉडर से युक्त एक सगुंफित पार्टी के रूप से उभरे। यथार्थवादी’ होने के कारण पटेलगह अनुशासन को ज्यादा तरजीह देते थे।

अगर “आन्दोलन को चलाते चले जाने” के बारे में गांधी के ख्याल हद से ज्यादा रोमानी थे तो कांग्रेस को किसी एक विचारधारा पर चलने वाली अनुशासित तथा धुरंधर राजनीतिक पार्टी के रूप में बदलने की पटेल की धारणा भी उसी तरह कांग्रेस की उस समन्वयवादी भूमिका को पकड़ पाने में चूक गई जिसे कांग्रेस को आने वाले दशकों में निभाना था। रजनी कोठारी

(क) लेखक क्यों सोच रहा है कि कांग्रेस को एक सर्वांगसम तथा अनुशासित पार्टी नहीं होना चाहिए ?
(ख) शुरुआती सालों में कांग्रेस द्वारा निभाई गई समन्वयवादी भूमिका के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(क) लेखक का यह विचार है, कि कांग्रेस को एक सर्वांगसम तथा अनुशासित पार्टी नहीं होना चाहिए, क्योंकि एक अनुशासित पार्टी में किसी विवादित विषय पर स्वस्थ विचार-विमर्श सम्भव नहीं हो पाता, जोकि देश एवं लोकतन्त्र के लिए अच्छा होता है। लेखक का यह विचार है कि कांग्रेस पार्टी में सभी धर्मों, जातियों, भाषाओं एवं विचारधाराओं के नेता शामिल हैं, उन्हें अपनी बात कहने का पूरा हक है, तभी देश का वास्तविक लोकतन्त्र उभर कर सामने आएगा। इसलिए लेखक कहता है कि कांग्रेस पार्टी को सर्वांगसम एवं अनुशासित पार्टी नहीं होना चाहिए।

(ख) कांग्रेस पार्टी की स्थापना 1885 में हुई। अपने शुरुआती वर्षों में इस पार्टी ने कई विषयों में महत्त्वपूर्ण समन्वयकारी भूमिका निभाई। इस पार्टी ने देश के नागरिकों एवं ब्रिटिश सरकार के मध्य एक कड़ी का कार्य किया।

एक दल के प्रभुत्व का दौर HBSE 12th Class Political Science Notes

→ भारत में बहुदलीय प्रणाली पाई जाती है।
→ भारत में हुए प्रथम तीन आम चुनावों में केन्द्र एवं राज्य स्तर पर कांग्रेस की प्रधानता रही।
→ 1967 के चौथे आम चुनावों में राज्य स्तर पर कांग्रेस की प्रधानता समाप्त हो गई।
→ 1977 के चुनावों में केन्द्र स्तर पर भी कांग्रेस की प्रधानता समाप्त हो गई।
→ कांग्रेस पार्टी की स्थापना 1885 में हुई।
→ कांग्रेस पार्टी के अतिरिक्त भारत में भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, तृणमूल पार्टी, मार्क्सवादी दल, साम्यवादी दल, नेशनल पीपल पार्टी तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी राष्ट्रीय स्तर के दल हैं।
→ भारत में वर्तमान समय में 53 राज्य स्तरीय दल हैं।
→ भारतीय जनता पार्टी की स्थापना 1980 में हुई।
→ साम्यवादी पार्टी की स्थापना 1924 में हुई।
→ 1964 में साम्यवादी पार्टी में फूट पड़ गई, जिसके परिणामस्वरूप मार्क्सवादी दल का उदय हुआ।
→ बहुजन समाज पार्टी की स्थापना 1984 ई० में हुई।
→ भारत में संगठित विरोधी दल पाया जाता है।
→ पामर ने कांग्रेस पार्टी को ‘छाता संगठन’ के नाम से सम्बोधित किया है।
→ डॉ० अम्बेदकर ने कांग्रेस की तुलना एक सराय से की है।

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HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ

HBSE 12th Class Sociology सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
सांस्कृतिक विविधता का क्या अर्थ है? भारत को एक अत्यंत विविधतापूर्ण देश क्यों माना जाता है?
अथवा
सांस्कृतिक विविधता के दो कारकों (कारणों) की व्याख्या कीजिए।
अथवा
भारत में सांस्कृतिक विविधता की झलक का परिचय दें।
उत्तर:
शब्द विविधता में असमानताओं के स्थान पर अंतरों पर जोर दिया जाता है। जब हम यह कहते हैं कि हमारा देश भारत एक महान् सांस्कृतिक विविधताओं से भरपूर राष्ट्र है तो इसका अर्थ यह होता है कि यहाँ बहुत से सामाजिक समूह तथा समुदाय रहते हैं। इन समुदायों को सांस्कृतिक चिह्नों जैसे कि भाषा, धर्म, पंथ, प्रजाति या जाति के द्वारा परिभाषित किया जाता है।

भारत में कई प्रकार की जातियों व धर्मों के लोग रहते हैं जिस कारण उनकी भाषा, खान-पान, रहन-सहन, परंपराएं, रीति-रिवाज़ इत्यादि अलग-अलग हैं। हरेक समूह के विवाह के ढंग, जीवन प्रणाली इत्यादि भी अलग अलग हैं। प्रत्येक धर्म के धार्मिक ग्रंथ अलग-अलग हैं तथा उनको सभी अपने माथे से लगाते हैं। यहां नृत्य, वास्तुकला, चित्रकला, त्योहार, मेले इत्यादि अलग-अलग हैं। इस कारण ही भारत को अत्यंत विविधतापूर्ण देश माना जाता है।

प्रश्न 2.
सामुदायिक पहचान क्या होती है और वह कैसे बनती है?
उत्तर:
सामुदायिक पहचान जन्म तथा संबंधों पर आधारित होती है न कि किसी की अर्जित योग्यता अथवा उपलब्धि के आधार पर। यह इस बात का सूचक है कि ‘हम क्या हैं न कि हम क्या बन गए हैं। किस समुदाय में हमने जन्म लेना है यह हमारे हाथ में नहीं होता है। असल में यह हमारे वश में नहीं है कि हमारा जन्म किस परिवार, समुदाय या देश में होता है। इस प्रकार सामुदायिक पहचान प्रदत्त होती है अर्थात् यह जन्म के अनुसार निर्धारित होती है तथा संबंधित लोगों की पसंद या ना पसंद इसमें शामिल नहीं होती।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ

प्रश्न 3.
राष्ट्र को परिभाषित करना क्यों कठिन है? आधुनिक समाज में राष्ट्र और राष्ट्र कैसे संबंधित हैं?
उत्तर:
आज के समय में राष्ट्र को परिभाषित करना एक कठिन कार्य है तथा इसके संबंध में यही कहा जा सकता है कि राष्ट्र एक ऐसा समुदाय होता है जिसने अपना राज्य बना लिया है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इसके विपरीत रूप भी अधिक मात्रा में सच हो गए हैं। जिस प्रकार आज भावी राष्ट्रीयताएँ अपना राज्य बनाने के प्रयास कर रही हैं वैसे ही मौजदा राज्य यह दावा कर रहे हैं कि वे एक राष्ट्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

आप महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें राजनीतिक वैधता के प्रमुख स्रोतों के रूप में लोकतंत्र तथा राष्ट्रवाद स्थापित हुए हैं। इसका अर्थ यह है कि आज एक राज्य के लिए राष्ट्र एक सबसे अधिक स्वीकृत आवश्यकता है। जबकि लोग राष्ट्र की वैधता के सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। अगर दूसरे शब्दों में कहा जाए तो राज्यों को राष्ट्र की उतनी ही आवश्यकता होती है जितनी राष्ट्रों को राज्य की।

प्रश्न 4.
राज्य अक्सर सांस्कृतिक विविधता के बारे में शंकालु क्यों होते हैं?
उत्तर:
सांस्कृतिक विविधता का अर्थ है देश में अलग-अलग धर्मों, समुदायों, प्रजातियों, संस्कृतियों, परंपराओं, रीति-रिवाज़ों का मौजूद होना। परंतु सांस्कृतिक विविधता के कारण देश में बहुत-सी समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं जैसे कि जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, सांप्रदायिकता, आतंकवाद, जातीय दंगे इत्यादि। इससे देश का माहौल काफ़ी खराब हो जाता है। इस कारण ही राज्य अक्सर सांस्कृतिक विविधता के बारे में शंकालु होते हैं।

प्रश्न 5.
क्षेत्रवाद क्या होता है? आमतौर पर यह किन कारकों पर आधारित होता है?
अथवा
क्षेत्रवाद की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
अथवा
क्षेत्रवाद के कोई दो कारण बताइए।
अथवा
भारतीय समाज में संदर्भ में क्षेत्रवाद पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
जब कोई अपने क्षेत्र को प्यार करने लगे तथा दूसरे क्षेत्रों से नफरत करने लगे तो उसे क्षेत्रवाद कहते हैं। अपने क्षेत्र के लोगों को बढ़ावा देना भी क्षेत्रवाद का एक रूप है। इसमें दूसरे क्षेत्र के लोगों को विदेशी समझा जाता है। उदाहरण के लिए पंजाब में बिहारी को विदेशी समझा जाता है। इस प्रकार अपने ही क्षेत्र के हितों की माँग करने को क्षेत्रवाद कहते हैं। क्षेत्रवाद का संकल्प स्वतंत्रता के पश्चात् सामने आया। स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने राज्यों को अंग्रेजों द्वारा स्थापित स्थिति के अनुसार बना कर रखा।

इससे देश के अलग-अलग भागों से भाषायी आधार पर अलग अलग राज्य बनाने की माँग उठने लगी। मद्रास राज्य में कई भाषाएं बोलने वाले लोग रहते थे जिस कारण उनमें काफ़ी समस्याएँ उत्पन्न होती थीं इसलिए ही भारत सरकार ने 1956 में राज्यों का भाषायी आधार पर पुनर्गठन किया तथा भाषा के आधार पर 19 राज्यों का गठन किया। इसके बाद भी भाषा के आधार पर अथवा क्षेत्र के आधार पर राज्यों का गठन किया गया। यहीं से क्षेत्रवाद की भावना उत्पन्न हुई।

क्षेत्रवाद के कारक-अलग-अलग क्षेत्रों में मौजूद असंतुलन क्षेत्रवाद का प्रमुख कारण है। किसी क्षेत्र को केंद्र की अधिक सहायता प्राप्त होती है तथा किसी को कम, किसी क्षेत्र के स्वयं के संसाधन अधिक हैं किसी में कम।। अलग क्षेत्रों में अलग-अलग भाषाएं इत्यादि ऐसे कारण हैं जो क्षेत्रवाद को जन्म देते हैं। इस कारण राजनीतिक दल सामने आते हैं तथा वह क्षेत्रवाद की भावनाओं को भड़काते हैं जिससे क्षेत्रवाद को प्रोत्साहन मिलता है। इस प्रकार क्षेत्रीय असंतुलन के कारण क्षेत्रवाद उत्पन्न होता है।

प्रश्न 6.
आपकी राय में, राज्यों के भाषायी, पुनर्गठन ने भारत का हित या अहित किया है?
उत्तर:
1956 में भारत सरकार ने राज्यों का भाषा के आधार पर पुनर्गठन किया था। इससे सरकार को प्रशासन चलाने में काफ़ी सुविधा हुई तथा उसने अलग-अलग क्षेत्रों की भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की बात भी मान ली थी। परंतु उसने इसके नकारात्मक प्रभाव के बारे में नहीं सोचा। राज्यों के भाषाई पुनर्गठन ने देश का अहित ही किया है। इससे क्षेत्रवाद की भावना उत्पन्न हुई। अलगाववाद की भावना को बल मिली, भाषा के आधार पर और राज्यों के गठन की मांग शुरू हुई। दक्षिण भारत के लोग तो आज भी हिंदी को अपनी भाषा नहीं मानते हैं। वह अपनी मातृ भाषा के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करना ही पसंद करते हैं।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ

प्रश्न 7.
‘अल्पसंख्यक’ (वर्ग) क्या होता है? अल्पसंख्यक वर्गों को राज्य से संरक्षण की क्यों ज़रूरत होती है?
अथवा
अल्पसंख्यकों को परिभाषित करें।
उत्तर:
किसी समाज में जब जनसंख्या में कुछ लोगों का कम प्रतिनिधित्व होता है उन्हें अल्पसंख्यक कहते हैं। इसका अर्थ यह है कि कुल जनसंख्या में से कोई समूह जो धर्म, जाति या किसी और आधार पर कम संख्या में होते हैं वे अल्पसंख्यक होते हैं। भारत में मुसलमान, सिक्ख, बौद्ध, ईसाई, जैन धर्मों के लोग अल्पसंख्यक समूह हैं।

अल्पसंख्यक वर्गों को राज्य से संरक्षण की ज़रूरत काफ़ी अधिक होती है क्योंकि वह कम संख्या में होते हैं। अगर उन्हें सरकार का संरक्षण प्राप्त न हो तो हो सकता है कि उन्हें बहुसंख्यक वर्ग द्वारा तंग किया जाए तथा उनका हरेक प्रकार से शोषण किया जाए। यह भी हो सकता है कि उनमें श्रीलंका की तरह जातीय संघर्ष उत्पन्न ह्ये जाए। इसलिए ही भारत में अल्पसंख्यकों को राज्य द्वारा हरेक प्रकार का संरक्षण दिया जाता है।

प्रश्न 8.
सांप्रदायवाद या सांप्रदायिकता क्या है?
अथवा
सांप्रदायिकता से आप क्या समझते हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सांप्रदायवाद अथवा सांप्रदायिकता का अर्थ है धार्मिक पहचान पर आधारित आक्रामक उग्रवाद। उग्रवाद, अपने आप में एक ऐसी अभिवृत्ति है जो अपने समूह को ही वैध या श्रेष्ठ समूह मानती है और अन्य समूहों को निम्न, अवैध अथवा विरोधी समझती हैं। सरल शब्दों में सांप्रदायिकता एक आक्रामक राजनीतिक विचारधारा है जो धर्म स प्रकार हम कह सकते हैं कि सांप्रदायिकता और कुछ नहीं बल्कि एक विचारधारा है जो जनता में एक धर्म के धार्मिक विचारों का प्रचार करने का प्रयास करता है तथा यह धार्मिक विचार और धार्मिक स विचारों से बिल्कुल ही विपरीत होते हैं। सांप्रदायिकता का मूल विचार है कि एक विशेष धर्म का और धर्मों की कीमत पर उत्थान। यह एक विचारधारा है जो यह कहती है कि एक धर्म के सदस्य एक समुदाय के सदस्य हैं तथा अलग-अलग धर्मों के सदस्य एक समुदाय का निर्माण नहीं करते हैं।

प्रश्न 9.
भारत में वह विभिन्न भाव (अर्थ) कौन-से हैं जिनमें धर्म निरपेक्षता या धर्म निरपेक्षतावाद को समझा जाता है?
उत्तर:
भारतीय समाज 20 वीं शताब्दी से ही पवित्र समाज से एक धर्म-निरपेक्ष समाज में परिवर्तित हो रहा है। इस शताब्दी के अनेक विद्वानों ने यह देश महसूस किया कि धर्म-निरपेक्षता के आधार पर ही विभिन्न धर्मों का देश भारत संगठित रह पाया है। धर्म-निरपेक्षता के आधार पर राज्य के सभी धार्मिक समूहों एवं धार्मिक विश्वासों को एक समान माना जाता है।

निरपेक्षता का अर्थ समानता या तटस्थता से है। राज्य सभी धर्मों को समानता की नज़र से देखता है तथा किसी के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता है। धर्म-निरपेक्षता ऐसी नीति या सिद्धांत है जिसके अंतर्गत लोगों को किसी विशेष धर्म को मानने या पालन के लिए बाध्य नहीं किया जाता है।

प्रश्न 10.
आज नागरिक समाज संगठनों की क्या प्रासंगिकता है?
उत्तर:
नागरिक समाज उस व्यापक कार्यक्षेत्र को कहते हैं जो परिवार के निजी क्षेत्र से दूर होता है, परंतु राज्य और बाज़ार दोनों के क्षेत्र से बाहर होता है। नागरिक समाज सार्वजनिक अधिकार का गैर-राजकीय तथा गैर बाजारी भाग होता है जिसमें अलग-अलग व्यक्ति संस्थाओं और संगठनों का निर्माण करने के लिए स्वेच्छा से परस्पर आ जुड़ते हैं।

यह सक्रिय नागरिकता का क्षेत्र है जहाँ व्यक्ति मिलकर सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करते हैं, राज्य को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं अथवा उसके समक्ष अपनी माँगें रखते हैं, अपने सामूहिक हितों को पूर्ण करने की कोशिश करते हैं या अलग-अलग कार्यों के लिए समर्थन चाहते हैं। इस क्षेत्र में नागरिकों के समूहों द्वारा बनाए गए स्वैच्छिक संघ, संगठन अथवा संस्थाएँ सम्मिलित होते हैं। इसमें राजनीतिक दल, जनसंचार की संस्थाएँ, मजदूर संघ, गैर-सरकारी संगठन, धार्मिक संगठन और अन्य प्रकार के सामूहिक तत्त्व सम्मिलित होते हैं।

नागरिक समाज में शामिल मुख्य कसौटियाँ यह हैं कि संगठन पर राज्य का नियंत्रण नहीं होना चाहिए तथा यह विशुद्ध रूप से मुनाफ़ा कमाने वाले तत्त्व न हों। उदाहरण के लिए दूरदर्शन नागरिक समाज का हिस्सा नहीं हैं जबकि निजी टी०वी० चैनल है। इसी प्रकार कार निर्माता कंपनी नागरिक समाज का अंग नहीं है, परंतु उसके मजदूरों के मज़दूर संघ इसका हिस्सा हैं। असल में यह कसौटियां बहुत सारे क्षेत्रों को स्पष्ट नहीं कर पाती हैं। जैसे एक समाचार पत्र को विशुद्ध रूप से एक वाणिज्यिक उद्यम के रूप में चलाया जा सकता है अथवा एक गैर-सरकारी संगठन को सरकारी खजाने में से मदद की जा सकती है।

सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ HBSE 12th Class Sociology Notes

→ हमारा देश भारत एक सांस्कृतिक विविधताओं से भरपूर देश है जहां पर समुदायों को सांस्कृतिक चिह्नों जैसे कि भाषा, धर्म, पंथ, प्रजाति या जाति द्वारा परिभाषित किया जाता है। इसी कारण ही देश में सांस्कृतिक विविधता कठोर चुनौतियां पेश करती है।

→ सामुदायिक पहचान जन्म तथा संबंध पर आधारित होती है न कि किसी अर्जित उपलब्धि पर। इसका अर्थ है कि व्यक्ति की सामाजिक स्थिति मुख्यतः उसके परिवार पर आधारित प्रदत्त होती है न कि उसके द्वारा अर्जित की होती है।

→ प्रत्येक व्यक्ति में अपने समुदाय के प्रति एक भावना अर्थात् सामुदायिक भावना होती है तथा यह सामुदायिक भावना सर्वव्यापक होती है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी सामुदायिक पहचान तथा सामुदायिक भावना के साथ गहरे रूप से जुड़ा हुआ होता है।

→ राष्ट्र एक प्रकार का बड़े स्तर का समुदाय होता है जो कई समुदायों से मिलकर बनता है। राष्ट्र के सदस्य एक ही राजनीतिक सामूहिकता का हिस्सा बनने की इच्छा रखते हैं। राजनीतिक एकता की यह इच्छा स्वयं को एक राज्य बनाने की आकांक्षा के रूप में अभिव्यक्त करती है।

→ राज्य एक ऐसा अमूर्त सत्य है जिसका अपना ही एक भौगोलिक क्षेत्र होता है, अपनी प्रभुसत्ता होती है, अपनी ही जनसंख्या होती है तथा प्रशासन चलाने के लिए सरकार होती है। इन चारों तत्त्वों में से किसी एक के न होने की स्थिति में राष्ट्र स्थापित नहीं हो पाएगा। इस प्रकार राष्ट्र तथा राज्य दो अलग-अलग संकल्प हैं।

→ भारत एक ऐसा राष्ट्र राज्य है जहां पर सांस्कृतिक विविधता मौजूद है। यहां 1632 अलग-अलग भाषाएं हैं, कई प्रकार के धर्म हैं, बहुसंख्यक तथा अल्पसंख्यक लोग रहते हैं। अलग-अलग धर्मों के मौजूद होने के कारण भारत को धर्म-निरपेक्ष राज्य घोषित किया हुआ है।

→ भारत में क्षेत्रवाद भारत की भाषाओं, संस्कृतियों, जनजातियों तथा धर्मों की विविधता के कारण पाया जाता है। क्षेत्रवाद का अर्थ है अपने क्षेत्र के हितों के सामने अन्य क्षेत्रों को तुच्छ समझना तथा उन हितों को प्राप्त करने के लिए लड़ना।

→ हमारा देश भारत एक संघ है जिसमें एक संघीय सरकार तथा अलग-अलग राज्यों की अलग-अलग सरकारें होती हैं। संविधान ने संघीय सरकार तथा राज्य सरकारों के बीच शक्तियों तथा वित्तीय साधनों का साफ़ तौर पर बँटवारा किया हुआ है ताकि उनमें कोई समस्या उत्पन्न न हो सके।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ

→ धर्म-निरपेक्षता का अर्थ है किसी विशेष धर्म को न मानकर सभी धर्मों को समान महत्त्व देना। अगर किसी विशेष धर्म को अधिक महत्त्व दिया जाएगा तो सांप्रदायिकता के बढ़ने का ख़तरा उत्पन्न हो जाता है।

→ हमारे देश में कई धर्मों के लोग रहते हैं। इनमें से कई तो बहुसंख्या में हैं तथा कई अल्पसंख्यक हैं। अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए संविधान में प्रावधान रखे गए हैं तथा सभी को कानून की दृष्टि में समान माना गया है। अल्पसंख्यकों को अपनी संस्कृति का प्रचार करने की आज्ञा भी दी गई है।

→ सांप्रदायिकता का अर्थ है धार्मिक पहचान पर आधारित आक्रामक उग्रवाद। उग्रवाद अपने आप में एक ऐसी अभिवृत्ति है जो अपने समूह को ही वैध या श्रेष्ठ समूह मानती है तथा अन्य समूहों को निम्न, अवैध या विरोधी समझती है। यह एक आक्रामक राजनीतिक विचारधारा है जो धर्म से जुड़ी होती है।

→ सांप्रदायिकता की एक प्रमुख विशेषता उसका यह दावा है कि धार्मिक पहचान अन्य सभी की तुलना में उच्च होती है। चाहे व्यक्ति अमीर हो या निर्धन, किसी भी व्यवसाय, जाति या राजनीतिक विश्वास का हो, धर्म ही सब कुछ होता है, उसी के आधार पर उसकी पहचान है।

→ नागरिक समाज उस व्यापक कार्यक्षेत्र को कहते हैं जो पारिवारिक क्षेत्र से दूर होता है, परंतु राज्य और बाज़ार दोनों क्षेत्रों से बाहर होता है। ছাত্রাবলী

→ सांस्कृतिक विविधता-देश में अलग-अलग समूहों की संस्कृति में अंतर होना सांस्कृतिक विविधता है।

→ सांस्कृतिक समुदाय-वह समुदाय जो जाति, नृजातीय समूह, क्षेत्र अथवा धर्म जैसी सांस्कृतिक पहचानों पर आधारित होते हैं।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ

→ नागरिक समाज-वह व्यापक कार्यक्षेत्र जो परिवार के निजी क्षेत्र से परे होता है, परन्तु राज्य और बाजार दोनों क्षेत्र से बाहर होता है।

→ सांप्रदायिकता-धार्मिक पहचान पर आधारित आक्रामक उग्रवाद।

→ अल्पसंख्यक-वह समुदाय जो राष्ट्र में कम संख्या में होता है।

→ बहुसंख्यक-वह समुदाय जो राष्ट्र में अधिक संख्या में होता है।

→ संघवाद-वह प्रक्रिया जिसमें कई छोटे-छोटे राज्य इकट्ठे मिलकर एक बड़े संघ का निर्माण करते हैं।

→ राष्ट्र-एक प्रकार का बड़े स्तर का समुदाय जो कई समुदायों से मिलकर बना एक समुदाय है।

→ प्रदत्त पहचान-वह पहचान जो व्यक्ति को जन्म के अनुसार प्राप्त होती है।

→ अर्जित पहचान-वह पहचान जो व्यक्ति अपनी योग्यता तथा उपलब्धि के आधार पर प्राप्त करता है।

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HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

HBSE 12th Class Political Science राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
भारत-विभाजन के बारे में निम्नलिखित कौन-सा कथन ग़लत है ?
(क) भारत-विभाजन “द्वि-राष्ट सिद्धान्त” का परिणाम था।
(ख) धर्म के आधार पर दो प्रान्तों-पंजाब और बंगाल-का बंटवारा हुआ।
(ग) पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान में संगति नहीं थी।
(घ) विभाजन की योजना में यह बात भी शामिल थी कि दोनों देशों के बीच आबादी की अदला-बदली होगी।
उत्तर:
(घ) विभाजन की योजना में यह बात भी शामिल थी कि दोनों देशों के बीच आबादी की अदला-बदली होगी।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित सिद्धान्तों के साथ उचित उदाहरणों का मेल करें
(क) धर्म के आधार पर देश की सीमा का – 1. पाकिस्तान और बांग्लादेश निर्धारण
(ख) विभिन्न भाषाओं के आधार पर देश – 2. भारत और पाकिस्तान की सीमा का निर्धारण
(ग) भौगोलिक आधार पर किसी देश के – 3. झारखण्ड और छत्तीसगढ़ क्षेत्रों का सीमांकन
(घ) किसी देश के भीतर प्रशासनिक और राजनीतिक आधार पर क्षेत्रों का सीमांकन – 4. हिमाचल प्रदेश और उत्तराखण्ड
उत्तर:
(क) धर्म के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण – (2) भारत और पाकिस्तान
(ख) विभिन्न भाषाओं के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण – (1) पाकिस्तान और बांग्लादेश
(ग) भौगोलिक आधार पर किसी देश के क्षेत्रों का सीमांकन – (4) हिमाचल प्रदेश और उत्तराखण्ड
(घ) किसी देश के भीतर प्रशासनिक और राजनीतिक आधार पर क्षेत्रों का सीमांकन। – (3) झारखण्ड और छत्तीसगढ़

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

प्रश्न 3.
भारत का कोई समकालीन राजनीतिक नक्शा लीजिए (जिसमें राज्यों की सीमाएं दिखाई गई हों) और नीचे लिखी रियासतों के स्थान चिह्नित कीजिए
(क) जूनागढ़
(ख) मणिपुर
(ग) मैसूर
(घ) ग्वालियर।
उत्तर:
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प्रश्न 4.
नीचे दो तरह की राय लिखी गई है :
विस्मय : रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने से इन रियासतों की प्रजा तक लोकतन्त्र का विस्तार हुआ।
इंद्रप्रीत : यह बात मैं दावे के साथ नहीं कह सकता। इसमें बल प्रयोग भी हुआ था जबकि लोकतन्त्र में आम सहमति से काम लिया जाता है। देशी रियासतों के विलय और ऊपर के मशवरे के आलोक में इस घटनाक्रम पर आपकी क्या राय है ?
उत्तर:
इस बात में पूर्ण रूप से सच्चाई है कि रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने से इन रियासतों की प्रजा तक लोकतन्त्र का विस्तार हुआ अर्थात् इन रियासतों के लोग अब स्वयं अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करने लगे तथा उन्हें अपने विचार व्यक्त करने तथा सरकार की आलोचना का भी अधिकार हो गया।

यद्यपि कुछ रियासतों (हैदराबाद एवं जूनागढ़) को भारत में मिलाने के लिए कुछ बल प्रयोग किया गया, परन्तु तात्कालिक परिस्थितियों में इन रियासतों पर बल प्रयोग करना आवश्यक था, क्योंकि इन रियासतों ने भारत में शामिल होने से मना कर दिया था तथा इनकी भौगोलिक स्थिति ऐसी थी, कि इससे भारत की एकता एवं अखण्डता को सदैव खतरा बना रहता।

दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जो बल प्रयोग किया गया, वह इन रियासतों की जनता के विरुद्ध नहीं, बल्कि शासकों के विरुद्ध किया गया, और जब ये रियासतें भारत में शामिल हो गईं, तब इन रियासतों के लोगों को भी सभी लोकतान्त्रिक अधिकार प्रदान कर दिये गए।

प्रश्न 5.
नीचे 1947 के अगस्त के कुछ बयान दिए गए हैं जो अपनी प्रकृति में अत्यन्त भिन्न हैं –
आज आपने अपने सर पर कांटों का ताज पहना है। सत्ता का आसन एक बुरी चीज़ है। इस आसन पर आपको बड़ा सचेत रहना होगा………. आपको और ज्यादा विनम्र और धैर्यवान बनना होगा……. अब लगातार आपकी परीक्षा ली जाएगी। मोहनदास करमचन्द गांधी ….. भारत आज़ादी की ज़िन्दगी के लिए जागेगा….. हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ाएंगे…….. आज दुर्भाग्य के एक दौर का खात्मा होगा और हिन्दुस्तान अपने को फिर से पा लेगा…….. आज हम जो जश्न मना रहे हैं वह एक कदम भर है, सम्भावनाओं के द्वार खुल रहे हैं……….जवाहरलाल नेहरू इन दो बयानों से राष्ट्र निर्माण का जो एजेंडा ध्वनित होता है उसे लिखिए। आपको कौन-सा एजेंडा ऊंच रहा है और क्यों?
उत्तर:
मोहन दास करमचन्द गांधी एवं जवाहर लाल नेहरू दोनों के बयान राष्ट्र निर्माण से सम्बन्धित हैं, परन्तु प्रकृति में सर्वथा भिन्न हैं। जहां गांधी जी ने देश के नये शासकों को यह कह कर आगाह किया है, कि भारत पर स्वयं शासन करना आसान नहीं होगा, क्योंकि भारत में कई प्रकार की समस्याएं हैं, जिन्हें हल करना होगा, वहीं पं० नेहरू के बयान में भविष्य के राष्ट्र की कल्पना की गई है जिसमें उन्होंने एक ऐसे राष्ट्र की कल्पना की है, जो आत्म निर्भर एवं स्वाभिमानी बनेगा। हम यहां पर पं० नेहरू के बयान से अधिक तौर पर सहमत हैं, क्योंकि उनके बयान में भविष्य के समृद्ध एवं शक्तिशाली राष्ट्र के दर्शन होते हैं।

प्रश्न 6.
भारत को धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र बनाने के लिए नेहरू ने किन तर्कों का इस्तेमाल किया ? क्या आपको लगता है कि ये केवल भावनात्मक और नैतिक तर्क हैं अथवा इनमें कोई तर्क युक्तिपरक भी है ?
उत्तर:
पं० जवाहर लाल नेहरू जीवन की समस्याओं के प्रति सदैव धर्म-निरपेक्ष दृष्टिकोण रखते थे। उनकी मानसिक प्रवृत्ति वैज्ञानिक थी। उन्होंने रूढ़िगत प्रथाओं तथा परम्पराओं का विरोध किया था। वे धर्म को राजनीति से दूर रखना चाहते थे। वह प्रजातन्त्र को तभी सफल कहते थे जब उसका आधार धर्म-निरपेक्षता हो। उन्हें रहस्यवाद से चिढ़ थी क्योंकि उसे वह अस्पष्ट तथा पारलौकिक समझते थे। उनका दृष्टिकोण वैज्ञानिक तथा यथार्थवादी था।

उन्होंने आध्यात्मिक विषयों जैसे आत्मा व जीवन मृत्यु आदि को महत्त्व की दृष्टि से नहीं देखा था। उनकी धर्म निरपेक्षता के प्रति गहन निष्ठा थी। उनका विचार था कि राज्य का अपना कोई विशेष धर्म नहीं होना चाहिए, न ही उसे किसी धर्म विशेष को प्रोत्साहित करना चाहिए और न ही उसका विरोध करना चाहिए।

राज्य को सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए और सभी धर्मों को उनके क्षेत्र में पूर्ण स्वतन्त्रता देनी चाहिए। अपनी आत्मकथा में वे लिखते हैं “धर्म, विशेषत: एक संगठित धर्म, का जो रूप मैं भारत में तथा अन्यत्र देखता हूं वह मुझे भयभीत कर देता है, मैं प्रायः इसकी राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां बE निन्दा करता हूं, और इसका उन्मूलन कर देना चाहता हूं।

धर्म ने सदैव अन्धविश्वास, मतान्धता, कट्टरता, प्रतिक्रियावाद, शोषण तथा निहित स्वार्थों को पुष्ट किया है। धर्म-निरपेक्षता पर विचार प्रकट करते हुए अपने एक भाषण में नेहरू जी कहा था कि, “भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है, इसका अर्थ धर्म हीनता नहीं इसका अर्थ सभी धर्मों के प्रति समान आदर भाव तथा सभी व्यक्तियों के लिए समान अवसर हैं-चाहे कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म का अनुयायी क्यों न हो। इसलिए हमें अपने दिमाग, अपनी संस्कृति के आदर्शमय पहलू ही को सदा ध्यान में रखना चाहिए जिसका आज के भारत में सबसे अधिक महत्त्व है।

यद्यपि नेहरू जी धर्म-निरपेक्षता में पूर्ण विश्वास रखते थे परन्तु वह धर्म विरोधी या नास्तिक नहीं थे। धर्म शब्द के उच्चतर अर्थ में तो उन्हें एक अत्यन्त धार्मिक व्यक्ति समझा जा सकता है। उनकी धर्म सम्बन्धी अवधारणा संकुचित न होकर अत्यधिक विशाल थी। उन्होंने स्वयं ही कहा था कि मैं, “कोई धार्मिक व्यक्ति नहीं हूं, परन्तु मैं किसी वस्तु में विश्वास अवश्य करता हूं जो मनुष्य को उसके सामान्य स्तर से ऊंचा उठाती है तथा मानव के व्यक्तित्व को आध्यात्मिक गुण तथा नैतिक गहराई का एक नवीन प्रमाण प्रदान करती है। हम इस धर्म या जो चार कह सकते हैं।” इसे ध्यान में रखकर ही वह भारत को धर्म निरपेक्ष राज्य बनाना पसन्द करते थे।

प्रश्न 7.
आज़ादी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में राष्ट्र निर्माण की चुनौती के लिहाज से दो मुख्य अन्तर क्या थे ?
उत्तर:
आज़ादी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में राष्ट्र निर्माण की चुनौती के लिहाज़ से दो मुख्य अन्तर निम्नलिखित हैं

  • पूर्वी क्षेत्र में सांस्कृतिक एवं आर्थिक सन्तुलन की समस्या थी, जबकि पश्चिमी क्षेत्र में विकास की चुनौती थी।
  • पूर्वी क्षेत्र में भाषायी समस्या अधिक थी, जबकि पश्चिमी क्षेत्र में धार्मिक एवं जातिवादी समस्याएं अधिक थीं।

प्रश्न 8.
राज्य पुनर्गठन आयोग का काम क्या था ? इसकी प्रमुख सिफ़ारिश क्या थी ?
उत्तर:
राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना सन् 1953 में की गई थी। इस आयोग का मुख्य कार्य राज्यों के सीमांकन के विषय पर गौर करना था। इस आयोग ने सिफ़ारिश की, कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहां बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए।

प्रश्न 9.
कहा जाता है कि राष्ट्र एक व्यापक अर्थ में ‘कल्पित समुदाय’ होता है और सर्वसामान्य विश्वास, इतिहास, राजनीतिक आकांक्षा और कल्पनाओं से एकसूत्र में बंधा होता है। उन विशेषताओं की पहचान करें जिनके आधार पर भारत एक राष्ट्र है ?
उत्तर:
भारतीय राष्ट की निम्नलिखित विशेषताएं हैं

1. सामान्य मातृभूमि-प्रत्येक मनुष्य को अपनी मातृभूमि अर्थात् अपने जन्म-स्थान से प्यार होना स्वाभाविक ही है। एक ही स्थान या प्रदेश पर जन्म लेने वाले व्यक्ति मातृभूमि से प्यार करते हैं और इस प्यार के कारण वे आपस में एक भावना के अन्दर बन्ध जाते हैं। भारत से लाखों की संख्या में सिक्ख इंग्लैण्ड, कनाडा आदि दूसरे देशों में गए हुए हैं परन्तु मातृभूमि के प्यार के कारण वे अपने आपको सदा भारतीय राष्ट्रीयता का अंग मानते हैं।

2. भौगोलिक एकता- भौगोलिक एकता में भी राष्ट्रवाद का विकास होता है। जब मनुष्य कुछ समय के लिए एक निश्चित प्रदेश में रह जाता है तो उसे उस प्रदेश से प्रेम हो जाता है और यदि उसका जन्म भी उसी प्रदेश में हुआ हो तो प्यार की भावना और तीव्र हो जाती है। खानाबदोश कबीलों में राष्ट्रीय भावनाएं उत्पन्न नहीं होती क्योंकि वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते-फिरते रहते हैं।

3. सामान्य इतिहास-सामान्य इतिहास भी भारतीय राष्ट्र का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। जिन लोगों का सामान्य इतिहास होता है, उनमें एकता की भावना का आना स्वाभाविक है।

4. सामान्य हित-भारतीय राष्ट्र के लिए सामान्य हित महत्त्वपूर्ण तत्त्व है यदि लोगों के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा धार्मिक हित समान हों तो उनमें एकता की उत्पत्ति होना स्वाभाविक ही है। 18वीं शताब्दी में अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए अमेरिका के विभिन्न राज्य आपस में संगठित हो गए और उन्होंने स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी।

5. सामान्य राजनीतिक आकांक्षाएं-भारतीय राष्ट्र में सामान्य राजनीतिक आकांक्षाएं महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं। स्वतन्त्रता की भावना तथा अपनी सरकार की भावना प्रत्येक व्यक्ति में होती है। जब लोगों के समूह में विदेशी राज्य को समाप्त करने की भावना होती है तो राष्ट्रीयता की भावना उत्पन्न होती है। भारत अंग्रेज़ों के अधीन था, परन्तु स्वतन्त्रता की इच्छा इतना बल पकड़ गई कि विभिन्न धर्मों तथा विभिन्न भाषाओं के लोग भी इकट्ठे हो गए और एक राष्ट्रीयता में बन्ध गए और इकट्ठे होकर स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ी। आज भी भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना का एक कारण राजनीतिक आकांक्षाएं हैं।

6. लोक इच्छा-भारतीय राष्ट्र में एक अन्य महत्त्वपूर्ण तत्त्व लोगों में ‘राष्ट्रवाद बनने की इच्छा’ है। मैज़िनी ने लोक इच्छा को राष्ट्र का आधार बताया है।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

प्रश्न 10.
नीचे लिखे अवतरण को पढ़िए और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए राष्ट्र निर्माण के इतिहास के लिहाज से सिर्फ़ सोवियत संघ में हुए प्रयोगों की तुलना भारत से की जा सकती है। सोवियत संघ में भी विभिन्न और परस्पर अलग-अलग जातीय समूह, धर्म, भाषाई समुदाय और सामाजिक वर्गों के बीच एकता का भाव कायम करना पड़ा।

जिस पैमाने पर यह काम हुआ, चाहे भौगोलिक पैमाने के लिहाज़ से देखें या जनसंख्यागत वैविध्य के लिहाज़ से, वह अपने आप में बहुत व्यापक कहा जाएगा। दोनों ही जगह राज्य को जिस कच्ची सामग्री से राष्ट्र निर्माण की शुरुआत करनी थी वह समान रूप से दुष्कर थी। लोक धर्म के आधार पर बंटे हुए और कर्ज तथा बीमारी से दबे हुए थे। रामचन्द्र गुहा

(क) यहां लेखक ने भारत और सोवियत संघ के बीच जिन समानताओं का उल्लेख किया है, उनकी एक सूची बनाइए। इनमें से प्रत्येक के लिए भारत से एक उदाहरण दीजिए।

(ख) लेखक ने यहां भारत और सोवियत संघ में चली राष्ट्र निर्माण की प्रक्रियाओं के बीच की असमानता का उल्लेख नहीं किया है। क्या आप दो असमानताएं बता सकते हैं?

(ग) अगर पीछे मुड़कर देखें तो आप क्या पाते हैं ? राष्ट्र निर्माण के इन दो प्रयोगों में किसने बेहतर काम किया और क्यों?
उत्तर:
(क) सोवियत संघ की तरह भारत में भी जातीय समूह, धर्म, भाषाई समुदाय और सामाजिक वर्गों में एकता का भाव पाया जाता है।

(ख) (i) सोवियत संघ में साम्यवादी आधार पर राष्ट्र निर्माण हुआ, जबकि भारत में लोकतान्त्रिक समाजवादी आधार पर राष्ट्र-निर्माण हुआ।
(ii) सोवियत संघ ने राष्ट्र निर्माण के लिए आत्म निर्भरता का सहारा लिया था जबकि भारत ने कई तरह से बाहरी मदद से राष्ट्र निर्माण के कार्य को पूरा किया।

(ग) अगर हम पीछे मुड़कर देखें, तो हम पायेंगे कि भारत में किये गए राष्ट्र निर्माण के प्रयोग बेहतर रहे, परन्तु 1991 में सोवियत संघ के विघटन ने उसके राष्ट्र निर्माण के प्रयोगों पर प्रश्न चिह्न लगा दिया।

राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ HBSE 12th Class Political Science Notes

→ राष्ट्र निर्माण एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा कुछ समूहों में राष्ट्रीय चेतना प्रकट होती है।
→ राष्ट्र निर्माण के प्रमुख तत्त्व औद्योगीकरण, नगरीकरण, शिक्षा तथा राजनीतिक भागीदारी है।
→ राष्ट्र निर्माण के मार्ग में मुख्य बाधा साम्प्रदायिकता, जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, गरीबी तथा निरक्षरता
→ राष्ट्र निर्माण के लिए बाधाओं को दूर करना आवश्यक है।
→ राष्ट्र निर्माण में राज्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
→ भारतीय सन्दर्भ में राष्ट्र निर्माण के सम्बन्ध में पं० जवाहर लाल नेहरू का दृष्टिकोण सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
→ पं० जवाहर लाल नेहरू ने राष्ट्र निर्माण को बढ़ावा देने के लिए वैज्ञानिक एवं सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया।
→ भारत की विभाजन की विरासतों में शरणार्थियों के पुनर्वास की समस्या, कश्मीर की समस्या तथा राज्यों के पुनर्गठन की समस्या शामिल है।
→ स्वतन्त्रता प्राप्ति से ही भाषा एक विवाद का विषय बनी रही है।
→ भाषा की समस्या को हल करने के लिए त्रिभाषायी फार्मूले को अपनाया गया है।

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HBSE 12th Class Sociology Important Questions and Answers

Haryana Board HBSE 12th Class Sociology Important Questions and Answers

HBSE 12th Class Sociology Important Questions in Hindi Medium

HBSE 12th Class Sociology Important Questions: भारतीय समाज

HBSE 12th Class Sociology Important Questions: भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास

HBSE 12th Class Sociology Important Questions in English Medium

HBSE 12th Class Sociology Important Questions: Indian Society

  • Chapter 1 Introducing Indian Society Important Questions
  • Chapter 2 The Demographic Structure of the Indian Society Important Questions
  • Chapter 3 Social Institutions: Continuity and Change Important Questions
  • Chapter 4 The Market as a Social Institution Important Questions
  • Chapter 5 Patterns of Social Inequality and Exclusion Important Questions
  • Chapter 6 The Challenges of Cultural Diversity Important Questions
  • Chapter 7 Suggestions for Project Work Important Questions

HBSE 12th Class Sociology Important Questions: Social Change and Development in India

  • Chapter 1 Structural Change Important Questions
  • Chapter 2 Cultural Change Important Questions
  • Chapter 3 The Story of Indian Democracy Important Questions
  • Chapter 4 Change and Development in Rural Society Important Questions
  • Chapter 5 Change and Development in Industrial Society Important Questions
  • Chapter 6 Globalisation and Social Change Important Questions
  • Chapter 7 Mass Media and Communications Important Questions
  • Chapter 8 Social Movements Important Questions

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HBSE 12th Class Sociology Solutions Haryana Board

Haryana Board HBSE 12th Class Sociology Solutions

HBSE 12th Class Sociology Solutions in Hindi Medium

HBSE 12th Class Sociology Part 1 Indian Society (भारतीय समाज भाग-1)

HBSE 12th Class Sociology Part 2 Social Change and Development in India (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास भाग-2)

HBSE 12th Class Sociology Solutions in English Medium

HBSE 12th Class Sociology Part 1 Indian Society

  • Chapter 1 Introducing Indian Society
  • Chapter 2 The Demographic Structure of the Indian Society
  • Chapter 3 Social Institutions: Continuity and Change
  • Chapter 4 The Market as a Social Institution
  • Chapter 5 Patterns of Social Inequality and Exclusion
  • Chapter 6 The Challenges of Cultural Diversity
  • Chapter 7 Suggestions for Project Work

HBSE 12th Class Sociology Part 2 Social Change and Development in India

  • Chapter 1 Structural Change
  • Chapter 2 Cultural Change
  • Chapter 3 The Story of Indian Democracy
  • Chapter 4 Change and Development in Rural Society
  • Chapter 5 Change and Development in Industrial Society
  • Chapter 6 Globalisation and Social Change
  • Chapter 7 Mass Media and Communications
  • Chapter 8 Social Movements

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HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ : निरन्तरता एवं परिवर्तन

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ : निरन्तरता एवं परिवर्तन Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ : निरन्तरता एवं परिवर्तन

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कौन-सा कथन असत्य है?
(A) वर्ग का मुख्य आधार आर्थिक है
(B) वर्ग में स्थिति अर्जित की जाती है
(C) वर्ग परिवर्तन असंभव नहीं है
(D) उपर्युक्त सभी कथन असत्य है।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी कथन असत्य है।

प्रश्न 2.
पूँजीपति और सर्वहारा वर्ग विभाजन किसकी देन है?
(A) मैक्स वैबर
(B) इमाइल दुर्थीम
(C) कार्ल मार्क्स
(D) स्वामी दयानंद।
उत्तर:
कार्ल मार्क्स।

प्रश्न 3.
निम्न में से कौन-सी विशेषता जनजाति की नहीं है?
(A) सामान्य नाम
(B) सामान्य क्षेत्र
(C) सामान्य बोली
(D) बहिर्विवाह।
उत्तर:
बहिर्विवाह।

प्रश्न 4.
कौन-सा कथन असत्य है?
(A) जाति में सामाजिक परिस्थिति अर्जित की जाती है
(B) वर्ग में सामाजिक स्थिति प्रदत्त होती है
(C) जनजाति एक अर्जित समूह है
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ : निरन्तरता एवं परिवर्तन

प्रश्न 5.
जाति को बनाए रखने में कौन-सी विशेषता सर्वाधिक अनिवार्य है?
(A) अंतर्विवाह वंशानुगत सदस्यता
(B) जातिगत व्यवसाय
(C) जातिगत विशेषधिकार
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 6.
किस वेद में पुरुष सूक्त में जाति की उत्पत्ति का वर्णन मिलता है?
(A) ऋग्वेद
(B) यजुर्वेद
(C) अथर्ववेद
(D) सामवेद।
उत्तर:
ऋग्वेद।

प्रश्न 7.
अस्पृश्यता अपराध अधिनियम कब पास हुआ था?
(A) 1956
(B) 1954
(C) 1955
(D) 1957
उत्तर:
1955

प्रश्न 8.
भारत की सबसे बड़ी जनजाति कौन-सी है?
(A) संथाल
(B) मुंडा
(C) टोडा
(D) हो।
उत्तर:
मुंडा।

प्रश्न 9.
किस संस्था ने भारतीय समाज को बुरी तरह विघटित किया है?
(A) जाति व्यवस्था
(B) वर्ग व्यवस्था
(C) संयुक्त परिवार
(D) दहेज प्रथा।
उत्तर:
जाति व्यवस्था।

प्रश्न 10.
इनमें से कौन-सा वर्ग का आधार है?
(A) पैसा
(B) पेशा
(C) जन्म
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 11.
जाति व्यवस्था का एक प्रकार्य बताइए।
(A) सामाजिक स्थिति को निश्चित करना
(B) अपनी योग्यताओं व क्षमताओं से प्राप्त करना
(C) सामाजिक संबंध स्वतंत्र रूप से रखना
(D) व्यवस्था को इच्छानुसार चुनना।
उत्तर:
सामाजिक स्थिति को निश्चित करना।

प्रश्न 12.
नातेदारी संगठन व्यक्तियों के उस समूह को कहते हैं, जो परस्पर-
(A) रक्त संबंधी होते हैं
(B) वैवाहिक संबंधी होते हैं
(C) रक्त और वैवाहिक संबंधी होते हैं
(D) रक्त या वैवाहिक संबंधी होते हैं
उत्तर:
रक्त संबंधी होते हैं।

प्रश्न 13.
सभी सगोत्रीय व्यक्ति रक्त संबंधी होने के कारण
(A) बहिर्विवाही होते हैं
(B) अंतर्विवाही होते हैं
(C) एकविवाही होते हैं
(D) उपर्युक्त सभी होते हैं।
उत्तर:
बहिर्विवाही होते हैं।

प्रश्न 14.
निम्न में से कौन-सा धर्म विधवा व तलाकशुदा स्त्री से विवाह को प्रोत्साहन देता है?
(A) ईसाई
(B) मुस्लिम
(C) हिंदू
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
ईसाई।

प्रश्न 15.
निम्न में से कौन-सा कार्य परिवार से संबंधित नहीं है?
(A) वैध यौन संबंध
(B) समाज स्वीकृत संतोनत्पत्ति
(C) नातेदारी समूह निर्माण
(D) औपचारिक शिक्षा देना।
उत्तर:
वैध यौन संबंध।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ : निरन्तरता एवं परिवर्तन

प्रश्न 16.
हिंदू विवाह के उद्देश्यों का सही क्रम क्या है?
(A) धर्म, प्रजनन, रीत
(B) प्रजनन, धर्म, रीत
(C) रीत, प्रजनन, धर्म
(D) उपर्युक्त कोई नहीं।
उत्तर:
धर्म, प्रजनन, रीत।

प्रश्न 17.
अपने ही समूह में विवाह को क्या कहते हैं?
(A) समूह विवाह
(B) एक विवाह
(C) अंतर्विवाह
(D) बहिर्विवाह।
उत्तर:
अंतर्विवाह।

प्रश्न 18.
परिवार के स्वरूप में परिवर्तन क्यों आ रहा है?
(A) नगरीकरण तथा औद्योगीकरण के कारण
(B) स्त्रियों के घर से बाहर निकलने के कारण
(C) स्त्रियों की शिक्षा बढ़ने के कारण
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 19.
बच्चे का समाजीकरण सबसे पहले कहाँ शुरू होता है?
(A) परिवार में
(B) स्कूल में
(C) पड़ोस में
(D) खेल समूह में।
उत्तर:
परिवार में।

प्रश्न 20.
हिंदू विवाह को क्या समझा जाता है?
(A) समझौता
(B) धार्मिक संस्कार
(C) मित्रता
(D) सहयोग की प्रक्रिया।
उत्तर:
धार्मिक संस्कार।

प्रश्न 21.
हिंदू विवाह अधिनियम कब लागू हुआ?
(A) 1950
(B) 1952
(C) 1955
(D) 1953
उत्तर:
1955

प्रश्न 22.
एक व्यक्ति के जीवन में परिवार सबसे महत्त्वपूर्ण समूह है क्योंकि-
(A) सदस्यों का एक-दूसरे के प्रति निःस्वार्थ समर्पण होता है।
(B) सदस्य रक्त, विवाह तथा दत्तक ग्रहण द्वारा संबंधित होते हैं।
(C) परिवार अपने सदस्यों को आर्थिक तथा सामाजिक समर्थन प्रदान करता है।
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
उपरोक्त सभी।

प्रश्न 23.
वह नातेदारी व्यवहार जिसमें मामा महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
(A) साहप्रसीवता
(B) परिहार
(C) मातुलेय
(D) परिहास संबंध।
उत्तर:
मातुलेय।

प्रश्न 24.
दहेज निषेध कानून प्रथम बार कब लागू हुआ?
(A) 1960
(B) 1959
(C) 1958
(D) 1961
उत्तर:
1961

प्रश्न 25.
परिवार का महत्त्वपूर्ण प्रकार्य है
(A) भौतिक सुरक्षा प्रदान करना
(B) आर्थिक समर्थन प्रदान करना
(C) सामाजिक मानदंडों के अनुसार बच्चे का समाजीकरण करना।
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
उपरोक्त सभी।

प्रश्न 26.
एक गोत्र ऐसा नातेदारी (स्वजन) समूह होता है-
(A) जिसके सदस्य अपने आपको किसी ज्ञात पूर्वज के वंशज मानते हैं।
(B) जिसके सदस्यों का विश्वास होता है कि वे एक ही मिथकीय पूर्वज के वंशज हैं।
(C) जिसके उदाहरण हैं माता-पिता तथा बच्चे
(D) उपरोक्त कोई नहीं।
उत्तर:
जिसके सदस्य अपने आपको किसी ज्ञात पूर्वज के वंशज मानते हैं।

प्रश्न 27.
संयुक्त परिवार में-
(A) परिवार में मुखिया के आदेशों का पालन करना होता है।
(B) सदस्यों की प्रस्थिति उनकी आय या व्यावसायिक उपलब्धि पर आधारित नहीं होती।
(C) प्रत्येक सदस्य, दूसरे सदस्य के सुख-दुःख को बाँटता है।
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
उपरोक्त सभी।

प्रश्न 28.
नातेदारी व्यक्ति के लिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि-
(A) यह उसे स्थिति एवं पहचान प्रदान करती है
(B) यह मनोवैज्ञानिक सुरक्षा प्रदान करती है
(C) यह उसके व्यवहार तथा भूमिका को परिभाषित सुनिश्चित करती है
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
उपरोक्त सभी।

प्रश्न 29.
भारत में लिंग निर्धारण परीक्षणों को एक अधिनियम द्वारा कब निषिद्ध किया गया?
(A) 1990
(B) 1993
(C) 1994
(D) 1991
उत्तर:
1990

प्रश्न 30.
निम्न में से कौन-सा मानव समाज की मूल संस्थाओं में से नहीं है?
(A) नातेदारी
(B) आर्थिक
(C) राजनीति
(D) खेलकूद।
उत्तर:
खेलकूद।

प्रश्न 31.
निम्नलिखित में से कौन केंद्रक (एकांकी) परिवार का सदस्य नहीं है?
(A) माता
(B) पिता
(C) नाना
(D) भाई।
उत्तर:
नाना।

प्रश्न 32.
जनजाति निम्नोकत में से कौन-सा समूह है?
(A) भौगोलिक
(B) भाषाई
(C) संजातीय
(D) इनमें से सभी।
उत्तर:
इनमें से सभी।

प्रश्न 33.
पति-पत्नी और उनके अविवाहित बच्चे कैसे परिवार का निर्माण करते हैं?
(A) केंद्रक परिवार
(B) नगरीय परिवार
(C) संयुक्त परिवार
(D) ग्रामीण परिवार।
उत्तर:
केंद्रक परिवार।

प्रश्न 34.
विधवा पुनर्विवाह अधिनियम कब पास किया गया?
(A) 1852 में
(B) 1856 में
(C) 1860 में
(D) 1864 में
उत्तर:
1856 में।

प्रश्न 35.
निम्नलिखित में से कौन सी विशेषता संयुक्त परिवार की नहीं है?
(A) बड़ा आकार
(B) छोटा आकार
(C) सामान्य रसोई
(D) मुखिया की भूमिका।
उत्तर:
छोटा आकार।

प्रश्न 36.
निम्न में से वर्ग एक क्या है?
(A) समाज
(B) समिति
(C) खुली व्यवस्था
(D) बंद व्यवस्था।
उत्तर:
खुली व्यवस्था।

प्रश्न 37.
मातृ-वंशीय परिवार प्रथा प्रचलित है :
(A) खासी परिवारों में
(B) भील
(C) संथाल
(D) ओरांव।
उत्तर:
खासी परिवारों में।

प्रश्न 38.
जब कोई वंश पूर्णतः वंशानुक्रम पर आधारित होता है तो कहलाता है:
(A) वर्ण
(B) वर्ग
(C) समूह
(D) जाति।
उत्तर:
जाति।

प्रश्न 39.
निम्न में से कम-से-कम किस आयु का बच्चा सामाजिक संबंधों के बारे में जानता है?
(A) 6 वर्ष का
(B) 10 वर्ष का
(C) 18 वर्ष का
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
……………… व्यवस्था ने हमारे समाज को बाँट दिया है।
उत्तर:
जाति व्यवस्था ने हमारे समाज को बाँट दिया है।

प्रश्न 2.
शब्द Caste किस भाषा के शब्द से निकला है?
उत्तर:
शब्द Caste पुर्तगाली भाषा के शब्द से निकला है।

प्रश्न 3.
जाति किस प्रकार का वर्ग है?
उत्तर:
बंद वर्ग।

प्रश्न 4.
जाति प्रथा में किसे अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त थी?
उत्तर:
जाति प्रथा में ब्राह्मणों को अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त थी।

प्रश्न 5.
अंतर्विवाह का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जब व्यक्ति को अपनी ही जाति में विवाह करवाना पड़ता है तो उसे अंतर्विवाह कहते हैं।

प्रश्न 6.
जाति में व्यक्ति का पेशा किस प्रकार का होता है?
उत्तर:
जाति में व्यक्ति का पेशा जन्म पर आधारित होता है अर्थात् व्यक्ति को अपने परिवार का परंपरागत पेशा अपनाना पड़ता है।

प्रश्न 7.
जाति में आपसी संबंध किस पर आधारित होते हैं?
उत्तर:
जाति में आपसी संबंध उच्चता तथा निम्नता पर आधारित होते हैं।

प्रश्न 8.
अगर जाति आवृत्त है तो वर्ग ………………. है।
उत्तर:
अगर जाति आवृत्त है तो वर्ग अनावृत्त है।

प्रश्न 9.
आवृत्त जाति व्यवस्था का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जो वर्ग बदला नहीं जा सकता उसे आवृत्त जाति व्यवस्था कहते हैं।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ : निरन्तरता एवं परिवर्तन

प्रश्न 10.
कच्चा भोजन तथा पक्का भोजन बनाने के लिए क्या प्रयोग होता है?
उत्तर:
कच्चा भोजन बनाने के लिए पानी तथा पक्का भोजन बनाने के लिए घी का प्रयोग होता है।

प्रश्न 11.
अस्पृश्यता अपराध अधिनियम तथा नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम कब पास हुए थे?
उत्तर:
अस्पृश्यता अपराध अधिनियम 1955 में तथा नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1976 में पास हुआ था।

प्रश्न 12.
हिंदू विवाह अधिनियम …………….. में पास हुआ था।
उत्तर:
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 में पास हुआ था।

प्रश्न 13.
अस्पृश्यता अपराध अधिनियम, 1955 में किस बात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था?
उत्तर:
इस अधिनियम में किसी भी व्यक्ति को अस्पृश्य कहने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

प्रश्न 14.
सामाजिक स्तरीकरण का क्या अर्थ है?
उत्तर:
समाज को उच्च तथा निम्न वर्गों में विभाजित करने की प्रक्रिया को सामाजिक स्तरीकरण कहते हैं।

प्रश्न 15.
भारत में लगभग कितनी जातियाँ पाई जाती हैं?
उत्तर:
भारत में लगभग 3000 जातियाँ पाई जाती हैं।

प्रश्न 16.
जनजातियों के व्यवसाय किस पर आधारित होते हैं?
उत्तर:
जनजातियों के व्यवसाय जंगलों पर आधारित होते हैं।

प्रश्न 17.
जाति किस प्रकार के विवाह की अनुमति देती है?
उत्तर:
जाति अंतर्विवाह की अनुमति देती है।

प्रश्न 18.
जनजातीय समाज का आकार कैसा होता है?
उत्तर:
जनजातीय समाज छोटे आकार के होते हैं।

प्रश्न 19.
जो लोग आम जीवन से दूर जंगलों पहाड़ों में रहते हैं उन्हें क्या कहते हैं?
उत्तर:
जो लोग आम जीवन से दूर जंगलों पहाड़ों में रहते हैं उन्हें जनजाति अथवा कबीला कहते हैं।

प्रश्न 20.
प्राचीन भारतीय समाज कितने भागों में विभाजित था?
उत्तर:
प्राचीन भारतीय समाज चार भागों में विभाजित था।

प्रश्न 21.
जाति व्यवस्था का क्या लाभ था?
उत्तर:
इसने हिंदू समाज का बचाव किया, समाज को स्थिरता प्रदान की तथा लोगों को एक निश्चित व्यवसाय प्रदान किया था।

प्रश्न 22.
परंपरागत तथा आदिम समाजों में वर्ग स्थिति में महत्त्वपूर्ण कारक कौन-सा था?
उत्तर:
परंपरागत तथा आदिम समाजों में वर्ग स्थिति में महत्त्वपूर्ण कारक धर्म था।

प्रश्न 23.
जनजातियों में किस चीज़ का अधिक महत्त्व होता है?
उत्तर:
जनजातियों में टोटम का अधिक महत्त्व होता है।

प्रश्न 24.
मजूमदार ने जनजातियों को कितने वर्गों में बांटा है?
उत्तर:
मजूमदार ने जनजातियों को तीन वर्गों में बांटा है।

प्रश्न 25.
नीलगिरी पहाड़ियों में कौन-सी जनजाति रहती है?
उत्तर:
नीलगिरी पहाड़ियों में टोडा जनजाति रहती है।

प्रश्न 26.
भारत की सबसे बड़ी जनजाति कौन-सी है?
उत्तर:
मुंडा भारत की सबसे बड़ी जनजाति है।

प्रश्न 27.
खासी जनजाति किस राज्य में पाई जाती है?
उत्तर:
असम में।

प्रश्न 28.
जनजातीय समाज आकार में कैसा होता है?
उत्तर:
जनजातीय समाज आकार में छोटा होता है।

प्रश्न 29.
जनजातीय जीवन किस पर आधारित होती है?
उत्तर:
जनजातीय जीवन बंधुता पर आधारित है।

प्रश्न 30.
भारत में आजकल कितनी जनजातियाँ पायी जाती हैं?
उत्तर:
आजकल भारत में 425 के लगभग जनजातियाँ पायी जाती हैं।

प्रश्न 31.
जनजातीय भाषाएं किस से संबंधित हैं?
उत्तर:
जनजातियों की भाषाएं आस्ट्रिक, द्रविड़ियन तथा तिब्बती चीनी से संबंधित हैं।

प्रश्न 32.
सजातीय विवाह क्या होता है?
उत्तर:
अपनी ही जाति, उपजाति या समूह में विवाह करना सजातीय विवाह होता है।

प्रश्न 33.
घुमंतू जनजाति क्या होती है?
उत्तर:
यह शिकारी तथा भोजन इकट्ठा करने वाली जनजाति होती है जो कि घने जंगलों में घूमती है। यह अपना भोजन इकट्ठा करने के लिए घूमते रहते हैं। कुछ नागा जनजातियाँ इसी श्रेणी में आती हैं।

प्रश्न 34.
झूम खेती कौन करता है?
उत्तर:
झूम खेती जनजातीय समूह करते हैं।

प्रश्न 35.
झारखंड में कौन-सी जनजातियाँ पायी जाती हैं?
उत्तर:
मुंडा, उराव, संथाल इत्यादि जनजातियाँ पायी जाती हैं।

प्रश्न 36.
अंग्रेज़ों ने जनजातियों को किस आधार पर अलग किया?
उत्तर:
अंग्रेजों ने जनजातियों को धार्मिक तथा स्थानीय आधारों पर अलग किया।

प्रश्न 37.
नीलगिरी पहाड़ियों में कौन-सी जनजाति रहती है?
उत्तर:
टोडा जनजाति नीलगिरी पहाड़ियों में रहती है।

प्रश्न 38.
सबसे अधिक जनजातियाँ किस राज्य में पायी जाती हैं?
उत्तर:
सबसे अधिक जनजातियाँ मध्य प्रदेश में पायी जाती हैं।

प्रश्न 39.
एक विवाह का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जब एक पुरुष एक स्त्री से विवाह करता है तो उसे एक विवाह कहते हैं।

प्रश्न 40.
बहुविवाह के कितने प्रकार हैं?
उत्तर:
बहुविवाह के तीन प्रकार हैं।

प्रश्न 41.
विविवाह में एक पुरुष की कितनी पत्नियां होती हैं?
उत्तर:
द्विविवाह में एक पुरुष की दो पत्नियां होती हैं।

प्रश्न 42.
बहुपति विवाह में एक स्त्री के कितने पति हो सकते हैं?
उत्तर:
बहुपति विवाह में एक स्त्री के कई पति हो सकते हैं।

प्रश्न 43.
पितृ सत्तात्मक परिवार में …………………. की शक्ति अधिक होती है।
उत्तर:
पितृ सत्तात्मक परिवार में पिता की शक्ति अधिक होती है।

प्रश्न 44.
मातृ सत्तात्मक परिवार में ………………. की सत्ता चलती है।
उत्तर:
मात सत्तात्मक परिवार में माता की सत्ता चलती है।

प्रश्न 45.
किस परिवार में वंश का नाम पिता के नाम से चलता है?
उत्तर:
पितृवंशी परिवार में वंश का नाम पिता के नाम से चलता है।

प्रश्न 46.
रक्त संबंधी परिवार में कौन-से संबंध पाए जाते हैं?
उत्तर:
रक्त संबंधी परिवार में रक्त संबंध पाए जाते हैं।

प्रश्न 47.
आगमन परिवार का अर्थ बताएं।
उत्तर:
जिस परिवार में व्यक्ति जन्म लेता तथा बड़ा होता है उसे आगमन परिवार कहते हैं।

प्रश्न 48.
कौन-से परिवार को संतान पैदा करने वाला परिवार कहा जाता है?
उत्तर:
जन्म परिवार को।

प्रश्न 49.
नातेदारी कितने प्रकारों में बांटी जा सकती है?
उत्तर:
नातेदारी तीन प्रकारों में बांटी जा सकती है।

प्रश्न 50.
रक्त संबंधी किस नातेदारी के भाग होते हैं?
उत्तर:
रक्त संबंधी सगोत्र नातेदारी के भाग होते हैं।

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प्रश्न 51.
सिबलिंग (Sibling) का अर्थ बताएं।
उत्तर:
सगे भाई बहन को सिबलिंग कहा जाता है।

प्रश्न 52.
हाफ सिबलिंग (Half Sibling) का अर्थ बताएं।
उत्तर:
सौतेले भाई-बहन को हाफ सिबलिंग कहा जाता है।

प्रश्न 53.
एक रेखीय संबंधी कौन-से होते हैं?
उत्तर:
वंशक्रम की सीधी रेखा के साथ संबंधित रिश्तेदारों को एक रेखीय संबंधी कहते हैं।

प्रश्न 54.
वंश समूह का अर्थ बताएं।
उत्तर:
माता अथवा पिता के रक्त संबंधियों को मिलाकर वंश समूह बनता है।

प्रश्न 55.
गोत्र ………………… का विस्तृत रूप है।
उत्तर:
गोत्र वंश समूह का विस्तृत रूप है।

प्रश्न 56.
सदस्यों के आधार पर परिवार के कितने तथा कौन-से प्रकार होते हैं?
उत्तर:
सदस्यों के आधार पर परिवार के तीन प्रकार केंद्रीय परिवार, संयुक्त परिवार तथा विस्तृत परिवार होते हैं।

प्रश्न 57.
विवाह के आधार पर परिवार के कितने तथा कौन-से प्रकार होते हैं?
उत्तर:
विवाह के आधार पर परिवार के दो प्रकार-एक विवाही परिवार तथ होते हैं।

प्रश्न 58.
वंश के आधार पर कितने प्रकार के परिवार होते हैं?
उत्तर:
चार प्रकार के परिवार।

प्रश्न 59.
अंतर्विवाह क्या है?
उत्तर:
जब व्यक्ति केवल अपनी ही जाति में विवाह करवा सकता हो उसे अंतर्विवाह कहा जाता है।

प्रश्न 60.
बर्हिविवाह का अर्थ बताएं।
उत्तर:
जब व्यक्ति को अपनी गोत्र के बाहर परंतु अपनी जाति के अंदर विवाह करवाना पड़े तो उसे बर्हिविवाह कहते हैं।

प्रश्न 61.
केंद्रीय परिवार का अर्थ बताएं।
अथवा
मूल परिवार क्या है?
उत्तर:
वह परिवार जिसमें पति पत्नी तथा उनके बिनब्याहे बच्चे रहते हों उसे केंद्रीय परिवार अथवा मूल परिवार कहा जाता है।

प्रश्न 62.
मुस्लिम तलाक कानून कंब पास हुआ था?
उत्तर:
मुस्लिम तलाक कानून, 1954 में पास हुआ था।

प्रश्न 63.
ईसाइयों का तलाक कानून …………………. में पास हुआ था।
उत्तर:
ईसाइयों का तलाक कानून 1869 में पास हुआ था।

प्रश्न 64.
हिंदू विधवा पुनर्विवाह कब पास हुआ था?
उत्तर:
सन् 1856 में।

प्रश्न 65.
किस समुदाय में मेहर की प्रथा प्रचलित है?
उत्तर:
मुस्लिम समुदाय में।

प्रश्न 66.
विशेष विवाह अधिनियम कब पास हुआ था?
उत्तर:
विशेष विवाह अधिनियम 1954 में पास हुआ था।

प्रश्न 67.
संयुक्त परिवार के विघटित होने का क्या कारण है?
उत्तर:
पश्चिमीकरण, औद्योगिकीकरण, आधुनिक शिक्षा, यातायात के साधनों का विकास इत्यादि के कारण संयुक्त परिवार विघटित हो रहे हैं।

प्रश्न 68.
संयुक्त परिवार में संपत्ति पर किसका अधिकार होता है?
उत्तर:
संयुक्त परिवार में संपत्ति पर परिवार के सभी सदस्यों का अधिकार होता है।

प्रश्न 69.
टेलर के अनुसार परिवार की प्रकृति क्या थी?
उत्तर:
टेलर के अनुसार आदिम परिवार मातृ प्रधान थे।

प्रश्न 70.
केंद्रीय परिवार की एक विशेषता बताएं।
उत्तर:
केंद्रीय परिवार में पति पत्नी तथा उनके बिन-ब्याहे बच्चे रहते हैं तथा परिवार के सभी सदस्यों को समान अधिकार प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 71.
परिवार के आरंभिक कार्य क्या हैं?
उत्तर:
परिवार के आरंभिक कार्य हैं लैंगिक संबंधों की पूर्ति, बच्चे पैदा करना तथा बच्चों का पालन-पोषण करना।

प्रश्न 72.
गारो जनजाति में वंश परंपरा किस प्रकार की होती है?
उत्तर:
गारो जनजाति में वंश परंपरा पितृस्थानीय प्रकार की होती है।

प्रश्न 73.
माता-पिता, भाई-बहन, माँ-बेटा, पिता-पुत्री का संबंध कैसा होता है?
उत्तर:
इन सब का संबंध रक्त का होता है।

प्रश्न 74.
मातृवंशी परिवार में संपत्ति किसको मिलती है?
उत्तर:
मातृवंशी परिवार में संपत्ति पुत्री को प्राप्त होती है।

प्रश्न 75.
पति-पत्नी, जमाई-ससुर, जीजा-साला इत्यादि किस प्रकार के संबंध हैं?
उत्तर:
विवाह संबंधी हैं।

प्रश्न 76.
नातेदारी की …………………. श्रेणियां हैं।
उत्तर:
नातेदारी की तीन श्रेणियां हैं।

प्रश्न 77.
नातेदारी की प्राथमिक श्रेणी में कितने प्रकार के संबंध होते हैं?
उत्तर:
नातेदारी की प्राथमिक श्रेणी में 8 प्रकार के संबंध होते हैं।

प्रश्न 78.
माता-पिता व बच्चों का संबंध नातेदारी की कौन-सी श्रेणी में आता है?
उत्तर:
प्राथमिक श्रेणी में।

प्रश्न 79.
जिसके सदस्य अपने आपको किसी जात पूर्वज के वंशज मानते हैं ऐसा समूह ……………. कहलाता
उत्तर:
गोत्र।

प्रश्न 80.
किसी एक ऐसी मुख्य जनजाति का नाम बताइये जिसकी भाषा द्रविड़ भाषा परिवार की हो।
उत्तर:
इरूला, कुर्ग।

प्रश्न 81.
जनजातीय लोग कौन-से इलाके में अधिक रहते हैं?
उत्तर:
जनजातीय लोग मुख्यता पहाड़ियों, वनों, ग्रामीण मैदान और नगरीय औद्योगिक इलाकों में रहते हैं।

प्रश्न 82.
एक ऐसा परिवार जिसमें नवविवाहिता दंपत्ति वर के मामा के निवास स्थान पर रहते हैं, कहलाता है …………….।
उत्तर:
मातृवंशीय परिवार।

प्रश्न 83.
वह परिवार जिसमें एक व्यक्ति का जन्म होता है ……………… कहलाता है।
उत्तर:
जनन परिवार।

प्रश्न 84.
एक व्यक्ति का जीजा किस श्रेणी की नातेदारी का होगा?
उत्तर:
द्वितीय श्रेणी की नातेदारी।

प्रश्न 85.
जनजाति में बंधुआ मज़दूरी का कारण क्या है?
उत्तर:
इसका कारण उनके ऊपर चढ़ा कर्ज है। वह कर्ज चुका नहीं पाते हैं जिस कारण उन्हें बंधुआ मजदूरी करनी पड़ती है।

प्रश्न 86.
जाति का अर्थ बताएँ।
अथवा
जाति क्या है?
अथवा
जाति का अर्थ लिखें।
उत्तर:
हिंदू सामाजिक प्रणाली में एक उलझी हुई एवं दिलचस्प संस्था है जिसका नाम ‘जाति व्यवस्था’ है। यह शब्द पुर्तगाली शब्द ‘Casta’ से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘जन्म’। इस प्रकार यह एक अंत-वैवाहिक जिसकी सदस्यता जन्म के ऊपर आधारित है। इसमें कार्य (धंधा) पैतृक एवं परंपरागत होता है।

प्रश्न 87.
जाति व्यवस्था की कोई तीन विशेषताएं बतायें।
अथवा
जाति की एक विशेषता लिखिए।
अथवा
जाति की कोई दो सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. जाति की सदस्यता जन्म के आधार द्वारा होती है।
  2. जाति में सामाजिक संबंधों पर प्रतिबंध होते थे।
  3. जाति में खाने-पीने के बारे में प्रतिबंध होते थे।

प्रश्न 88.
पुरातन भारतीय समाज कितने भागों में विभाजित था?
उत्तर:
चार भागों में-

  1. ब्राह्मण-जो शिक्षा देने का काम किया करते थे।
  2. क्षत्रिय-जो देश की रक्षा करते थे तथा राज्य चलाते थे।
  3. वैश्य-जो व्यापार या खेती करते थे।
  4. चौथा वर्ण-जो अन्य तीन वर्गों की सेवा किया करते थे।

प्रश्न 89.
संस्कृति में हस्तांतरण में जाति की क्या भूमिका है?
उत्तर:
प्रत्येक जाति की अपनी संस्कृति, रहन-सहन, खाने-पीने, काम करने के ढंग तथा कुछ खास गुर होते हैं। व्यक्ति जब बचपन से ही इन सब को देखता है तो धीरे-धीरे वह इन सब को सीख जाता है। इस तरह जाति संस्कृति के हस्तांतरण में विशेष भूमिका निभाती है।

प्रश्न 90.
जाति प्रथा दैवी शक्ति से भी मज़बूत कैसे हैं?
उत्तर:
सदियों से जाति प्रथा हमारे समाज के राजनीतिक तथा सामाजिक संगठन का आधार थी। हर किसी को जाति प्रथा के नियम मानने ही पड़ते थे। व्यक्ति भगवान का आदेश तो ठुकरा सकता था, परंतु अपनी जाति के आदेश उसे मानने ही पड़ते थे। इसलिए हम कह सकते हैं कि जाति प्रथा देवी शक्ति से भी ज्यादा मज़बूत थी।

प्रश्न 91.
जाति व्यवस्था के कोई तीन प्रभाव बताओ।
उत्तर:

  1. जाति व्यवस्था से समाज में श्रम विभाजन होता था।
  2. जाति व्यवस्था से सामाजिक संगठन बना रहता था।
  3. जाति व्यवस्था से राजनीतिक स्थिरता बनी रहती थी।
  4. जाति व्यवस्था बेरोज़गारी को कम करती थी।

प्रश्न 92.
जाति व्यवस्था के कोई तीन लाभ बताओ।
उत्तर:

  1. जाति से व्यवसाय निश्चित हो जाता था।
  2. जाति व्यवस्था समाज को स्थिरता प्रदान करती थी।
  3. जाति व्यवस्था में विवाह करने में परेशानी नहीं होती थी।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ : निरन्तरता एवं परिवर्तन

प्रश्न 93.
जाति की दो परिभाषाएं दीजिए।
अथवा
जाति की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:

  1. होकार्ट के अनुसार, “जाति तो केवल कुछ ऐसे परिवारों का इकठ्ठ होती है जिन्हें जन्म से ही धार्मिक संस्कारों के आधार पर अलग-अलग प्रकार के कार्य सौंपे जाते हैं।”
  2. कूले के अनुसार, “जब एक वर्ग पूर्णतया वंशानुक्रमण पर आधारित होता है, तो हम उसे जाति कहते हैं।”

प्रश्न 94.
जाति व्यवस्था के तीन दोष अथवा हानियां बताएं।
उत्तर:

  1. जाति व्यवस्था का सबसे बड़ा दोष यह था कि इस व्यवस्था में निम्न जातियों का शोषण होता था।
  2. जाति व्यवस्था ने भारतीय समाज में अस्पृश्यता की प्रथा को जन्म दिया था।
  3. जाति व्यवस्था व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में बाधक होती है।

प्रश्न 95.
जाति व्यवस्था में कौन-से परिवर्तन आ रहे हैं?
अथवा
जाति व्यवस्था में किसी एक परिवर्तन को बताइए।
अथवा
जाति प्रथा में कोई दो परिवर्तन बताएं।
उत्तर:
आधुनिक समय में शिक्षा के बढ़ने से, औद्योगिकीकरण के आने से, संचार के साधनों, नगरीकरण इत्यादि के कारण बहुत से परिवर्तन जाति व्यवस्था में आए हैं। जाति व्यवस्था के प्रत्येक प्रकार के प्रतिबंध समाप्त हो रहे हैं, अंतर्जातीय विवाह बढ़ रहे हैं, निम्न जातियों का प्रभुत्व बढ़ रहा है, प्रत्येक प्रकार का भेदभाव खत्म हो रहा है तथा व्यवसाय की विशेषता खत्म हो गई है।

प्रश्न 96.
अनुसूचित जनजाति किसे कहते हैं?
अथवा
जनजाति का अर्थ लिखें।
अथवा
जनजाति से आप क्या समझते हैं?
अथवा
अनुसूचित जनजाति के बारे में बताइए।
अथवा
जनजाति क्या होती है?
उत्तर:
जनजाति एक ऐसा समुदाय होता है जो हमारी सभ्यता से दूर पहाड़ों, वनों तथा जंगलों में रहता है। इन समुदायों की अपनी ही अलग संस्कृति, अलग भाषा, अलग धर्म तथा खाने-पीने और रहने के अलग ही ढंग होते हैं। ये न तो किसी के कार्यों में हस्तक्षेप करते हैं तथा न ही किसी को अपने कार्यों में हस्तक्षेप करने की आज्ञा देते हैं। जिस जनजाति का नाम संविधान में दर्ज है उसे अनुसूचित जनजाति कहते हैं।

प्रश्न 97.
जनजाति की एक परिभाषा दीजिए।
अथवा
जनजाति को परिभाषित करें।
अथवा
जनजाति क्या है?
उत्तर:
भारत में इंपीरियल गजेटियर के अनुसार, “जनजाति परिवारों का ऐसा समूह है जिसका एक सामान्य नाम होता है, जो एक सामान्य भाषा का प्रयोग करता है, एक सामान्य प्रदेश में रहता है अथवा रहने का दावा करता है और प्रायः अंतर्विवाह करने वाला नहीं होता, चाहे शुरू में उसमें अंतर्विवाह करने की रीति रही हो।”

प्रश्न 98.
जनजाति की दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर:

  1. कबीला बहुत-से परिवारों का समूह होता है जिसमें साझा उत्पादन होता है तथा उस उत्पादन से वह अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करते हैं।
  2. कबीलों के लोग एक साझे भौगोलिक क्षेत्र में रहते हैं तथा एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहने के कारण यह शेष समाज से अलग होते तथा रहते हैं।

प्रश्न 99.
टोटम का अर्थ बताएं।
उत्तर:
जनजातियों में टोटम के प्रति बहुत श्रद्धा होती है। यह टोटम एक काल्पनिक पूर्वज, पेड़, फल, पशु, पत्थर इत्यादि कुछ भी हो सकता है। जनजाति के सदस्य टोटम को पवित्र मानते हैं। उसे वह खाते या नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। फल व पौधे के रूप में टोटम में दैवी शक्ति है वे ऐसा विश्वास करते हैं।

प्रश्न 100.
परिवार का क्या अर्थ है?
उत्तर:
परिवार उस समूह को कहते हैं जो यौन संबंधों पर आधारित है तथा जो इतना छोटा व स्थायी है कि उससे बच्चों की उत्पत्ति तथा पालन-पोषण हो सके। इस प्रकार परिवार पति-पत्नी व उनके बच्चों से मिलकर बनता है। पति-पत्नी के बीच किसी न किसी प्रकार के स्थायी संबंध परिवार की मुख्य विशेषता है।

प्रश्न 101.
संयुक्त परिवार को परिभाषित करें।
अथवा
ग्रामीण भारतीय परिवार की परिभाषा दीजिए।
अथवा
संयुक्त परिवार क्या है?
अथवा
संयुक्त परिवार का अर्थ बताएँ।
अथवा
संयुक्त परिवार किसे कहते हैं?
उत्तर:
ग्रामीण भारतीय परिवार मुख्यतः संयुक्त परिवार होते हैं। इसलिए इरावती कार्वे के अनुसार, “एक संयुक्त परिवार उन व्यक्तियों का समूह है जो सामान्यतया एक मकान में रहते हैं, जो एक ही रसोई में पका भोजन करते हैं, जो सामान्य संपत्ति के भागी होते हैं, जो सामान्य रूप से पूजा में भाग लेते हैं तथा जो किसी न किसी प्रकार से एक-दूसरे के रक्त संबंधी होते हैं।”

प्रश्न 102.
परिवार की दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर:

  1. परिवार पति-पत्नी तथा उनके बच्चों से मिलकर बनता है। इस प्रकार पति-पत्नी के बीच किसी न किसी प्रकार के स्थायी संबंध परिवार की मुख्य विशेषता है। प्रत्येक संस्कृति में यह संबंध स्थायी होते हैं।
  2. वैवाहिक संबंध के आधार पर परिवार का जन्म होता है। यह संबंध समाज द्वारा स्वीकृत होते हैं। इन संबंधों के आधार पर पति-पत्नी में लिंग संबंध से संतान उत्पन्न होती है जिन्हें मान्यता प्राप्त होती है।

प्रश्न 103.
परिवार के दो आर्थिक कार्य बताएं।
अथवा
परिवार का एक प्रकार्य लिखें।
उत्तर:

  1. परिवार में व्यक्ति की संपत्ति पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है। परिवार अपने सदस्यों में समान रूप से सम्पत्ति विभाजित करता है।
  2. प्रत्येक आवश्यकता पूर्ण करने के लिए धन की आवश्यकता होती है। परिवार की हरेक प्रकार की आवश्यकता, खाने-पीने, रहने तथा पहनने की व्यवस्था परिवार द्वारा ही पूर्ण की जाती है।

प्रश्न 104.
परिवार के दो सामाजिक कार्य बताएं।
उत्तर:

  1. बच्चों का समाजीकरण करने में परिवार सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है। परिवार में रहकर ही बच्चा अच्छी आदतें सीखता है तथा समाज का एक अच्छा नागरिक बनता है।
  2. यदि हम सामाजिक नियंत्रण के साधनों की तरफ देखें तो परिवार की इसमें सबसे बड़ी भूमिका है क्योंकि परिवार ही व्यक्ति को नियंत्रण में रहना सिखाता है।

प्रश्न 105.
संयुक्त परिवार को बनाकर रखने वाले दो कारक बताएं।
उत्तर:

  1. धर्म ने संयुक्त परिवार को बनाकर रखा है। धर्म भारतीय सामाजिक संगठन का मूल आधार है। अनेक प्रकार के धार्मिक कार्य संयुक्त रूप से करने होते हैं जिस कारण संयुक्त परिवार बना रह पाया है।
  2. हमारा देश कृषि प्रधान देश है। जहाँ पर कृषि करने के लिए बहुत से व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। इस कारण भी संयुक्त परिवार बने रहे।

प्रश्न 106.
परिवार के मनोरंजनात्मक कार्य के बारे में बताएँ।
उत्तर:
परिवार अपने सदस्यों को मनोरंजन के लिए भी सुविधाएं प्रदान करता है। रात के समय परिवार के सभी सदस्य इकट्ठे मिलकर खाना खाते हैं और अपने विचारों व मुश्किलों को एक-दूसरे के सामने प्रकट करते हैं। परिवार के वृद्ध सदस्य बच्चों को दिलचस्प कथा-कहानियां सुनाकर उनका मनोरंजन करते हैं। त्योहारों के समय या किसी अन्य जश्न (खुशी) के समय परिवार के सारे सदस्य नाचते व गाते हैं।

प्रश्न 107.
केंद्रीय परिवार क्या है?
अथवा
एकाकी (मूल) परिवार किसे कहते हैं?
अथवा
केंद्रक परिवार को पारिभाषित करें।
उत्तर:
केंद्रीय परिवार वह परिवार है जिसमें पति-पत्नी व उनके अविवाहित बच्चे रहते हैं। विवाह के बाद बच्चे अपना अलग घर कायम कर लेते हैं। यह सबसे छोटे परिवार होते हैं। यह परिवार अधिक प्रगतिशील होते हैं व उनके निर्णय तर्क के आधार पर होते हैं। इसमें पति-पत्नी को बराबर का दर्जा हासिल होता है।

प्रश्न 108.
केंद्रीय परिवार की विशेषताएं बताएं।
उत्तर:

  1. केंद्रीय परिवार या इकाई परिवार आकार में छोटा होता है।
  2. केंद्रीय परिवार में संबंध सीमित होते हैं।
  3. परिवार के प्रत्येक सदस्य को महत्ता मिलती है।

प्रश्न 109.
केंद्रीय परिवार के तीन गुण बताएं।
उत्तर:

  1. केंद्रीय परिवारों में स्त्रियों की स्थिति ऊँची होती है।
  2. इसमें रहन-सहन का दर्जा उच्च वर्ग का होता है।
  3. व्यक्ति को मानसिक संतुष्टि मिलती है।

प्रश्न 110.
केंद्रीय परिवार के अवगुण बताएं।
उत्तर:

  1. यदि माता या पिता में से कोई बीमार पड़ जाए तो घर के कामों में रुकावट आ जाती है।
  2. इसमें बेरोज़गार व्यक्ति का गुजारा मुश्किल से होता है।
  3. पति की मौत के पश्चात यदि स्त्री अशिक्षित हो तो परिवार की पालना कठिन हो जाती है।

प्रश्न 111.
विस्तृत परिवार का क्या अर्थ है?
उत्तर:
इस प्रकार के परिवार संयुक्त परिवार से ही बनते हैं। जब संयुक्त परिवार आगे बढ़ जाते हैं तो वह विस्तृत परिवार कहलाते हैं। इसमें माता-पिता, उनके भाई-बहन, बेटे-बेटियां व पोते-पोतियां आदि इकट्ठे रहते हैं। बच्चों के दादा-दादी भी इसमें रहते हैं। इस प्रकार इसमें कम से कम तीन पीढ़ियां रहती हैं।

प्रश्न 112.
संयुक्त परिवार का अर्थ बताएं।
उत्तर:
संयुक्त परिवार एक मुखिया की ओर से शासित अनेकों पीढ़ियों के रक्त संबंधियों का एक ऐसा समूह है जिनका निवास, चूल्हा व संपत्ति संयुक्त होते हैं। वह सब कर्तव्यों व बंधनों में बंधे रहते हैं। संयुक्त परिवार की विशेषताएं हैं-

  • साँझा चूल्हा
  • साँझा निवास
  • साँझी संपत्ति
  • मुखिया का शासन
  • बड़ा आकार।

आजकल इस प्रकार के परिवारों की अपेक्षा केंद्रीय परविार चलन में आ गए हैं।

प्रश्न 113.
पितृ-मुखी परिवार क्या है?
अथवा
पितृवंशी परिवार क्या है?
अथवा
पितृसत्तात्मक परिवार क्या है?
उत्तर:
जैसे कि नाम से ही ज्ञात होता है कि इस प्रकार के परिवारों की सत्ता या शक्ति पूरी तरह से पिता के हाथ में होती है। परिवार के संपूर्ण कार्य पिता के हाथ में होते हैं। वह ही परिवार का कर्ता होता है। परिवार के सभी छोटे या बड़े कार्यों में पिता का ही कहना माना जाता है। परिवार के सभी सदस्यों पर पिता का ही नियंत्रण होता है। इस तरह का परिवार पिता के नाम पर ही चलता है। पिता के वंश का नाम पुत्र को मिलता है।

प्रश्न 114.
मात-वंशी परिवार क्या है?
अथवा
मातृसत्तात्मक परिवार क्या है?
अथवा
मातृ-वंशी परिवार की परिभाषा दो।
उत्तर:
जैसे कि नाम से ही स्पष्ट है कि परिवार में सत्ता या शक्ति माता के हाथ ही होती है। बच्चों पर माता के रिश्तेदारों का अधिकार अधिक होता है न कि पिता के रिश्तेदारों का। स्त्री ही मूल पूर्वज मानी जाती है। संपत्ति का वारिस पत्र नहीं बल्कि माँ का भाई या भांजा होता है। परिवार माँ के नाम से चलता है। इस प्रकार के परिवार भारत में कुछ कबीलों में जैसे गारो, खासी आदि में मिल जाता है।

प्रश्न 115.
प्रतिबंधित बहु-पत्नी विवाह का अर्थ बताएं।
उत्तर:
इस प्रकार के विवाह में पत्नियों की संख्या सीमित कर दी जाती है। वह एक बंधित सीमा से अधिक पत्नियां नहीं रख सकता। मुसलमानों में प्रतिबंधित बहु-पत्नी विवाह आज भी प्रचलित है जिसके अनुसार एक व्यक्ति के लिए पत्नियों की संख्या ‘चार’ तक निश्चित कर दी गई है।

प्रश्न 116.
अप्रतिबंधित बहु-पत्नी विवाह का अर्थ बताएं।
उत्तर:
इस प्रकार के विवाह में पत्नियों की संख्या की कोई सीमा नहीं होती जितनी मर्जी चाहे पत्नियां रख सकता है। भारत में प्राचीन समय में इस प्रकार का विवाह प्रचलित था। जब राजा महाराजा बिना गिनती के पत्नियां या रानियां रख सकते थे।

प्रश्न 117.
मातृ-सत्तात्मक परिवार कौन-सा होता है?
उत्तर:
वह परिवार जहां सारे अधिकार माता के हाथ में होते हैं, परिवार माता के नाम पर चलता है तथा परिवार पर माता का नियंत्रण होता है, उसे मात-सत्तात्मक परिवार कहते हैं।

प्रश्न 118.
विवाह के आधार पर परिवार के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर:
विवाह के आधार पर परिवार तीन प्रकार के होते हैं-

  • एक विवाही परिवार
  • बहु विवाही परिवार
  • समूह विवाही परिवार।

प्रश्न 119.
बहु विवाही परिवार कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
बहु विवाही परिवार दो प्रकार के होते हैं-

  • बहु पत्नी विवाही परिवार
  • बहु पति विवाही परिवार।

प्रश्न 120.
नातेदारी क्या होती है?
अथवा
नातेदारी क्या है?
अथवा
नातेदारी किसे कहते हैं?
उत्तर:
नातेदारी समाज से मान्यता प्राप्त संबंध है जो अनुमानित या वास्तविक वंशावली संबंधों पर आधारित है। नातेदारी का दूसरा नाम रिश्तेदारी भी है।

प्रश्न 121.
नातेदारी कितने प्रकार की होती है?
उत्तर:
नातेदारी दो प्रकार की होती है-

  • रक्त मूलक या रक्त संबंधी नातेदारी।
  • विवाह मूलक या विवाह से बनी नातेदारी।

प्रश्न 122.
संयुक्त परिवार के लाभों का वर्णन करो।
उत्तर:

  1. संयुक्त परिवार भूमि बंटने से बचाता है।
  2. संयुक्त परिवार श्रम विभाजन करता है।
  3. संयुक्त परिवार में खर्च में बचत हो जाती है।

प्रश्न 123.
संयुक्त परिवार के दोषों का वर्णन करो।
उत्तर:

  1. संयुक्त परिवार व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में बाधक है।
  2. संयुक्त परिवार में स्त्रियों की दुर्दशा हो जाती है।
  3. संयुक्त परिवार में पारिवारिक कलह आम रहती है।

प्रश्न 124.
संयुक्त परिवार की विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर:

  1. संयुक्त परिवार का आकार बड़ा होता है।
  2. संयुक्त परिवार के कर्ता अर्थात् पिता की प्रधानता होती है।
  3. संयुक्त परिवार में संपत्ति, निवास तथा रसोई संयुक्त होती है।

प्रश्न 125.
एकाकी अथवा केंद्रीय परिवार के दो कार्य बताएं।
उत्तर:

  1. घर एक ऐसा स्थान है जहाँ पर व्यक्ति आकर अपनी थकावट दूर कर सकता है। विवाह के बाद अपना घर बनाना तथा उसकी व्यवस्था करना केंद्रीय परिवार का मुख्य कार्य है।
  2. केंद्रीय परिवार अपने सामाजिक मूल्यों, मान्यताओं तथा रहन-सहन के ढंगों को अपनी नई पीढ़ी को ठीक तरह से बताता है तथा सिखाता है।

प्रश्न 126.
केंद्रीय परिवार तथा संयुक्त परिवार में दो मुख्य अंतर बताएं।
अथवा
एकल परिवार और संयुक्त परिवार की तुलना करें।
उत्तर:

संयुक्त परिवारकेंद्रीय परिवार
(1) संयुक्त परिवार में स्त्रियों की स्थिति निम्न स्तर की होती है । वे पूर्ण रूप से आदमियों के अधीन होती हैं।(1) केंद्रीय परिवार में स्त्रियों की स्थिति पुरुषों के समान होती है। परिवार में प्यार व समानता और मित्रता वाले संबंध मिलते हैं।
(2) संयुक्त परिवार में कर्त्ता का निरंकुश शासन चलता है। प्रत्येक निर्णय वही लेता है और शेष सदस्य उसका पालन करते हैं।(2) केंद्रीय परिवार में महत्त्वपूर्ण पारिवारिक निर्णय में सभी की राय ली जाती है। सभी को अपना जीवन अपनी इच्छा अनुसार जीने का अधिकार होता है।

प्रश्न 127.
वर्ग निर्धारण के कौन-से आधार हैं?
उत्तर:
वर्ग निर्धारण के बहुत से आधार हैं जैसे कि पैसा, संपत्ति, शिक्षा, रहने का स्थान, पेशा, निवास स्थान की अवधि, व्यवसाय की प्रकृति, धर्म, परिवार तथा नातेदारी।

प्रश्न 128.
हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार लड़की के विवाह की न्यूनतम आयु – – – वर्ष है?
उत्तर:
हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार लड़की के विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष है।

प्रश्न 129.
हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार लड़के के विवाह की न्यूनतम आयु – – – – वर्ष है।
उत्तर:
हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार लड़के के विवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष है।

प्रश्न 130.
सामान्यतः संयुक्त तथा केंद्रक में से कौन-से परिवार की सदस्य संख्या अधिक होती है?
उत्तर:
सामान्यतः संयुक्त परिवार की सदस्य संख्या अधिक होती है।

प्रश्न 131.
………………… देश में विश्व की सबसे जटिल जाति व्यवस्था पाई जाती है।
उत्तर:
भारत देश में विश्व की सबसे जटिल जाति व्यवस्था पाई जाती है।

प्रश्न 132.
परिवार तथा नातेदारी में से कौन-सी वृहद (बड़ी) है?
उत्तर:
परिवार तथा नातेदारी में से नातेदारी बड़ी है।

प्रश्न 133.
किसी एक सामाजिक संस्था का नाम बताएँ।
उत्तर:
परिवार एक सामाजिक संस्था है।

प्रश्न 134.
विशेष विवाह अधिनियम कब पास हुआ?
उत्तर:
विशेष विवाह अधिनियम 1954 में पास हुआ था।

प्रश्न 135.
किसी एक सामाजिक संस्था का नाम लिखें।
उत्तर:
विवाह, परिवार सामाजिक संस्थाएं हैं।

प्रश्न 136.
सामान्य संपत्ति किस परिवार की विशेषता है?
उत्तर:
सामान्य संपत्ति संयुक्त परिवार की विशेषता है।

प्रश्न 137.
जाति एक बंद ……………….. है।
उत्तर:
जाति एक बंद वर्ग है।

प्रश्न 138.
जाति व्यवस्था ……………….. पर आधारित है।
उत्तर:
जाति व्यवस्था जन्म पर आधारित है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ : निरन्तरता एवं परिवर्तन

प्रश्न 139.
जाति एक नवीनतम सांस्कृतिक संस्थान है। (हां/नहीं)।
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 140.
जाति व्यवस्था व्यक्तियों को किस आधार पर वर्गीकृत करती है?
उत्तर:
जाति व्यवस्था व्यक्तियों को पेशे व जन्म के आधार पर वर्गीकृत करती है।

प्रश्न 141.
खंडात्मक संगठन क्या है?
उत्तर:
जो संगठन अलग-अलग खंडों या टुकड़ों में किसी आधार पर विभाजित हों उन्हें खंडात्मक संगठन कहा जाता है।

प्रश्न 142.
वर्गों को क्रम से लिखिए।
उत्तर:

  1. ब्राह्मण
  2. क्षत्रिय
  3. वैश्य, तथा
  4. शुद्र।

प्रश्न 143.
जनजातियों को कितने भाषायी परिवारों में बाँटा गया है?
उत्तर:
दो आधारों पर-स्थायी विशेषक तथा अर्जित विशेषक।

प्रश्न 144.
जाति भारतीय उपमहाद्वीप से जुड़ा अनूठा संस्थान है। (सत्य/असत्य)
उत्तर:
सत्य।

प्रश्न 145.
शारीरिक प्रजातीय दृष्टि से जनजातियों का वर्गीकरण किन-किन श्रेणियों में किया गया है?
उत्तर:
शारीरिक प्रजातीय दृष्टि से जनजातियों के लोगों को नीग्रिटो, आर्टेलॉयड, द्रविड तथा आर्य श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।

प्रश्न 146.
पत्नी स्थानिक परिवार कौन-सा है?
उत्तर:
जब विवाह के पश्चात पति-पत्नी के घर रहने के लिए चला जाता है तो इसे पत्नी स्थानिक परिवार कहते हैं।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पदक्रम क्या होता था?
उत्तर:
जाति प्रणाली में एक निश्चित पदक्रम होता था। भारत वर्ष में ज्यादातर भागों में ब्राह्मण वर्ण की जातियों को समाज में ऊँचा स्थान प्राप्त था, इसी प्रकार दूसरे क्रम में क्षत्रिय आते थे। वर्ण व्यवस्था के अनुसार जैसा तीसरा स्थान ‘वैश्यों’ का था। इसी क्रम के अनुसार सबसे बाद वाले क्रम में चौथा निम्न जातियों का था। समाज में किसी भी व्यक्ति की स्थिति भारत के ज्यादा भागों में उसी प्रकार से ही निश्चित की जाती थी। ब्राह्मणों को ज़्यादा आदर व सत्कार दिया जाता था और निम्न वर्ग भाव व्यक्तियों से दुर्व्यवहार होता है।

प्रश्न 2.
जाति का अलग-अलग हिस्सों में विभाजन होता था। व्याख्या करें।
अथवा
खंडात्मक संगठन क्या है?
उत्तर:
जाति प्रथा ने भारतीय सामाजिक ढांचे को अथवा भारतीय समाज को कई हिस्सों में बांट दिया है, सामान्यतः इसके चार भाग ही माने जाते हैं। इस प्रकार से इन चारों भागों में सबसे पहले भाग में ‘ब्राह्मण’ आते थे। दूसरे भाग में क्षत्रिय आते थे। इसके बाद वाला भाग वैश्यों को मिला था और आखिर वाला तथा चौथा भाग निम्न जातियों का माना गया था। इस तरह से हर खंड अथवा हिस्से का समाज में अपना-अपना दर्जा था। उसी प्रकार समाज में उनका स्थान, स्थिति अथवा कार्य प्रणाली थी, जिसमें उनको अपने रीति-रिवाजों के अनुसार चलना था। इसके अनुसार जाति के सदस्यों को अपने संबंधों का दायरा भी अपनी जाति तक ही सीमित रखना होता था। इस व्यवस्था में हर जाति अपने आप में एक संपूर्ण जीवन बिताने की एक ‘सामाजिक इकाई’ मानी जाती थी।

प्रश्न 3.
जाति के कार्यों का वर्णन करें।
अथवा
जाति का एक प्रकार्य बताइए।
उत्तर:
जाति व्यवस्था की प्रथा में जाति भिन्न तरह से अपने सदस्यों की सहायता करती है, उसमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-

  • जाति व्यक्ति के व्यवसाय का निर्धारण करती है।
  • व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती है।
  • प्रत्येक व्यक्ति को मानसिक सुरक्षा प्रदान करती है।
  • व्यक्ति एवं जाति के रक्त की शुद्धता बरकरार रखती है।
  • जाति राजनीतिक स्थिरता प्रदान करती है।
  • जाति अपने तकनीकी रहस्यों को गुप्त रखती है।

प्रश्न 4.
जाति सामाजिक एकता में रुकावट थी। कैसे?
उत्तर:
इस व्यवस्था से क्योंकि समाज का विभाजन कई भागों में हो जाता है, इसलिए सामाजिक संतुलन बिगड़ जाता है। इस व्यवस्था में प्रत्येक जाति के अपने नियम एवं प्रतिबंध होते थे। इस तरह से अपनी जाति के अतिरिक्त दूसरी जाति से कोई ज्यादा लगाव नहीं होता क्योंकि उन्हें पता होता था कि उन्हें नियमों के अनुसार आचरण करना होता था।

इस प्रथा में हमेशा उच्च वर्ग, निम्न वर्ग के लोगों का शोषण करते थे। जाति भेद होने के कारण एक-दूसरे के प्रति नफरत की भावना भी उजागर हो जाती थी। यह भेदभाव समाज की एकता में बाधक बन जाता था। और इस व्यवस्था की यह कमी थी, कोई व्यक्ति अपनी योग्यता के आधार पर भी अपनी जाति को बदल नहीं सकता था। यह सामाजिक ढांचे का संतुलन बिगाड़ देती है और यह समाज की उन्नति में बाधक बन जाती थी।

प्रश्न 5.
जाति व्यवस्था के लाभों के बारे में बताएं।
उत्तर:
जाति व्यवस्था के लाभ निम्नलिखित हैं-
(i) हिंदू समाज का बचाव-जाति व्यवस्था ने मध्यकाल में मुसलमानों के आक्रमणों के समय हिंदू समाज की रक्षा की थी। यदि जाति व्यवस्था में विवाह, खाने-पीने तथा अन्य प्रतिबंध न होते तो हिंदू समाज मुसलमानों में मिल गया होता।

(ii) व्यवसाय निश्चित करना-जाति व्यवस्था ने हमेशा से ही हर जाति के व्यवसाय निश्चित किए हैं। ब्राहमण. क्षत्रिय, वैश्यों तथा निम्न जातियों के काम हमेशा उनकी जाति जन्म से ही निश्चित हो जाते थे। इससे हर किसी को काम मिल जाता था।

(iii) धार्मिक आधार बनाना-जाति व्यवस्था ने हमेशा समाज को धार्मिक आधार भी दिया है। प्रत्येक जाति के धार्मिक कर्तव्य निश्चित होते थे कि किस जाति ने किस प्रकार के धार्मिक संस्कारों का पालन करना है।

(iv) सामाजिक स्थिरता प्रदान करना-जाति व्यवस्था ने समाज को स्थिरता भी प्रदान की है। प्रत्येक जाति के काम, उसकी स्थिति, रुतबा निश्चित हुआ करता था। उच्च तथा निम्न जाति के बीच एक प्रकार का संबंध बना रहता था जिससे उनके संबंध स्थिर रहते थे तथा समाज में भी स्थिरता रहती थी।

प्रश्न 6.
जाति प्रथा की हानियों का वर्णन करें।
उत्तर:
जाति प्रथा की हानियों का वर्णन निम्नलिखित है-
(i) समाज को बांट देना-जाति प्रथा ने समाज को कई भागों में बांट दिया है। इस कारण इन जातियों में एक दूसरे के प्रति नफरत पैदा हो गई तथा उनमें दुश्मनी भी हो गई। इस तरह समाज में नफरत फैलाने में जाति व्यवस्था का बहुत बड़ा हाथ है।

(ii) व्यक्तिगत विकास में बाधा-जाति व्यवस्था हर किसी का पेशा निश्चित कर देती है। चाहे कोई व्यक्ति अपनी जाति का काम करना चाहता हो या न उसे वह काम करना ही पड़ता था। जाति व्यवस्था व्यक्तिगत योग्यता में बहुत बड़ी बाधक है।

(iii) समाज के विकास में रुकावट-जाति प्रथा समाज के विकास में रुकावट है। हर कोई अपनी जाति, अपने लोगों के उत्थान के बारे में सोचता है। कोई समाज के विकास में ध्यान नहीं देता। इस तरह जाति समाज के विकास में बहुत बड़ी बाधक है।

(iv) समाज सुधार में बाधक-जाति प्रथा के कारण निम्न जाति, शूद्र, अस्पृश्यता इत्यादि संकल्प हमारे सामने आए हैं। इसने निम्न जातियों के लोगों को नीचा ही रखा, उनको ऊपर नहीं आने दिया। इस तरह समाज सुधार में जाति प्रथा एक बाधक है।

(v) लोकतंत्र की विरोधी-जाति प्रथा लोकतंत्र की विरोधी है। लोकतंत्र समानता, भाईचारे तथा स्वाधीनता के विचारों का समर्थक है बल्कि जाति प्रथा में इन सब चीज़ों की कोई परवाह नहीं है।

प्रश्न 7.
जाति प्रथा ने हमारे समाज को किस तरह प्रभावित किया है?
उत्तर:

  • जाति प्रथा ने सामाजिक गतिशीलता को चोट पहुँचायी है। व्यक्ति अपने पेशे के कारण से अपनी जगह छोड़कर कहीं और नहीं जा सकता।
  • जाति प्रथा ने समाज तथा व्यक्ति के आर्थिक विकास में भी रुकावट डाली है क्योंकि ऊँची जाति के व्यक्ति निम्न जाति के व्यक्तियों के साथ काम करना पसंद नहीं करते।
  • जाति प्रथा व्यक्तिगत कुशलताओं को बाहर नहीं आने देती।।
  • आजकल राजनीति में जातिगत वोटों का बोलबाला है क्योंकि सभी अपनी ही जाति के लोगों से वोट मांगते हैं।
  • जाति के राजनीति में आने से विभिन्न जातियों में दुश्मनी बढ़ी है।
  • जाति प्रथा सांप्रदायिक दंगों के लिए भी कई बार कारण बन जाती है।

प्रश्न 8.
औद्योगीकरण ने जाति प्रथा को किस तरह प्रभावित किया है?
उत्तर:

  • औद्योगीकरण के कारण बड़े-बड़े नगर बस गए जहां लोग बिना किसी भेदभाव के रहने लगे।
  • औद्योगीकरण से पैसा बढ़ा जिससे जाति व्यवस्था के स्थान वर्ग व्यवस्था सामने आयी है।
  • औद्योगीकरण से देशों के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में बढ़ोत्तरी हुई जिससे लोग, जाति तथा देश छोड़कर अन्य देशों में बसना शुरू हो गए।
  • औद्योगीकरण के कारण लोग फैक्टरियों में मिलकर काम करने लगे जिससे अस्पृश्यता की भावना को धक्का लगा।
  • इसके कारण से लोगों ने शिक्षा ग्रहण करनी शुरू की जिससे उनके विचार उदारवादी हो गए।

प्रश्न 9.
जाति प्रथा में कौन-कौन से परिवर्तन आ रहे हैं?
अथवा
जाति प्रथा में क्या-क्या परिवर्तन हो रहे हैं?
उत्तर:
पुराने समय में जो कुछ भी जाति प्रथा का आधार था उन सभी में आजकल परिवर्तन आ रहे हैं, जैसे कि-

  • आजकल लोग जाति से बाहर विवाह कर रहे हैं।
  • आजकल खाने-पीने के प्रतिबंध कोई नहीं मानता।
  • ब्राह्मणों की प्रभुता काफी सीमा तक खत्म हो गई है।
  • आजकल व्यक्ति कोई भी व्यवसाय अपना सकता है।
  • अस्पृश्यता को कानून की सहायता से खत्म कर दिया गया है।

प्रश्न 10.
विवाह की कोई चार विशेषताओं के बारे में बताओ।
उत्तर:
विवाह की चार विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. यौन संबंधों को नियमित करना-विवाह की महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह स्त्री-पुरुष के यौन संबंधों को नियमित करता है। विवाह के बाहर यौन संबंधों को गैर-कानूनी करार दिया जाता है। इसलिए यौन संबंध निश्चित तथा नियमित करना विवाह का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है।

2. संतान पैदा करना-विवाह की दूसरी महत्त्वपूर्ण विशेषता है कि इससे संतान पैदा होती है। समाज की नियमितता तथा समाज के चलते रहने के लिए यह ज़रूरी है कि पीढ़ी आगे बढ़े। अगर पीढ़ी आगे बढ़ेगी तभी समाज आगे बढ़ेगा। इसलिए संतान पैदा करना विवाह का एक और उद्देश्य है।

3. परिवार की स्थापना-समाज बहुत सारे परिवारों का एक समूह है। विवाह के बाद पति-पत्नी परिवार का निर्माण पूरा करते हैं। बच्चे पैदा होने के बाद परिवार पूरा हो जाता है। इस तरह विवाह के बाद ही परिवार का निर्माण हो पाता है जोकि समाज के बनने के लिए बहुत ज़रूरी है।

4. बच्चों का पालन-पोषण-विवाह के बाद ही परिवार का निर्माण होता है जहां बच्चे पैदा होते हैं तथा उनका पालन-पोषण होता है। विवाह के बाहर पैदा हुए बच्चों का पालन-पोषण न तो अच्छी तरह हो पाता है तथा न ही उन्हें पिता तथा परिवार का नाम मिल पाता है। इस तरह विवाह से पैदा हुए बच्चों का पालन-पोषण अच्छी तरह हो जाता है।

प्रश्न 11.
परिवार की कोई चार विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
1. पति-पत्नी में संबंध-परिवार पति-पत्नी तथा उनके बच्चों से मिलकर बनता है। इस तरह पति-पत्नी के बीच किसी न किसी प्रकार के स्थायी संबंध परिवार की मुख्य विशेषता है। प्रत्येक संस्कृति में यह संबंध स्थायी होते हैं।

2. स्थायी लिंग संबंध-वैवाहिक संबंध के आधार पर परिवार का जन्म होता है। ये संबंध समाज द्वारा स्वीकृत होते हैं। इन संबंधों के आधार पर पति-पत्नी में लिंग संबंध से संतान उत्पन्न होती है जिनको मान्यता प्राप्त होती है।

3. रक्त संबंधों का बंधन-परिवार की एक और विशेषता यह है कि परिवार के सदस्यों में रक्त संबंधों का होना है। ये रक्त संबंध वास्तविक भी हो सकते हैं तथा काल्पनिक भी। परिवार के सदस्य समान पूर्वज की संतान होते हैं।

4. सदस्यों के पालन-पोषण की आर्थिक अवस्था-परिवार में उसके सदस्य. बच्चों. बढों. स्त्रियों आदि के पालन पोषण की आर्थिक अवस्था होती है। परिवार के कमाने वाले सदस्य अन्य सदस्यों के पालन-पोषण का ज़रूरी प्रबंध करते हैं। इस तरह परिवार के सदस्य अधिकार तथा कर्तव्य के बंधनों में बंधे हए होते हैं।

प्रश्न 12.
परिवार के कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर:
1. जैविक कार्य-

  • संतान की उत्पत्ति
  • सदस्यों की सुरक्षा
  • भोजन, आवास तथा कपड़े की व्यवस्था
  • बच्चों की सुरक्षा तथा देखभाल।

2. आर्थिक कार्य-

  • श्रम विभाजन
  • आय का प्रबंध
  • संपत्ति की देखभाल।

3. सामाजिक कार्य-

  • स्थिति को निश्चित करना
  • समाजीकरण
  • सामाजिक नियंत्रण
  • सामाजिक विरासत का संग्रह तथा विस्तार।

4. धार्मिक शिक्षा प्रदान करना।

5. बच्चों के मनोरंजन संबंधी कार्य।

6. राजनीतिक कार्य-बच्चों को अधिकारों तथा कर्तव्यों का पाठ पढ़ाना।

प्रश्न 13.
निवास के आधार पर परिवार कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
निवास के आधार पर परिवार तीन प्रकार के होते है-
1. पितृ स्थानीय परिवार-जब विवाह के बाद पत्नी अपने पति के घर जाकर रहने लग जाती है तो उसे पितृ स्थानीय परिवार कहते हैं।

2. मातृ स्थानीय परिवार-जब विवाह के बाद पति अपनी पत्नी के घर जाकर रहने लग जाए तो उसे मातृ स्थानीय परिवार कहते हैं। यह पितृ स्थानीय परिवार के बिल्कुल उलट है।

3. नवस्थानीय परिवार-जब विवाह के पश्चात् पति-पत्नी किसी के घर न जाकर अपना नया घर बसाते हैं तो उसे नवस्थानीय परिवार कहते हैं।

प्रश्न 14.
नातेदारी के कितने प्रकार पाए जाते हैं?
अथवा
रक्तमूलक नातेदारी क्या है?
अथवा
रक्तमूलक नातेदारी किसे कहते हैं?
उत्तर:
नातेदारी के दो प्रकार पाए जाते हैं-
1. समरक्त संबंधी-रक्त या प्रजनन के आधार पर जो संबंधी पाए जाएं, उन्हें समरक्त संबंधी कहते हैं, जैसे माता-पिता का अपने बच्चों के साथ संबंध। माता, पिता, भाई, बहन के साथ संबंध इसी श्रेणी में आता है। यह संबंध सामाजिक मान्यताओं तथा जैविक तथ्यों पर आधारित होते हैं।

2. विवाह संबंधी नातेदारी-वह संबंध जोकि विवाह होने के पश्चात् बनते हैं, वह विवाह संबंधी नातेदारी होती है। यहां एक बात ध्यान रखने योग्य है कि केवल पति-पत्नी ही इस श्रेणी में नहीं आते बल्कि लड़का-लड़की के रिश्तेदारों के जो संबंध बनते हैं, वह भी इसी श्रेणी में आते हैं, जैसे कि दामाद, जीजा, साला, साली, ननद, बहू इत्यादि।

प्रश्न 15.
नातेदारी संबंधों का क्या महत्त्व होता है?
अथवा
नातेदारी का समाज में क्या महत्त्व है?
उत्तर:

  1. नातेदारी संबंधों से परिवार में सत्ता का निर्धारण होता है।
  2. नातेदारी संबंधों से विवाह के समय काफी मदद मिलती है। कौन किस खानदान से है, कौन उसका रिश्तेदार है, यह काफ़ी महत्त्वपूर्ण होता है।
  3. हिंदू जीवन के धार्मिक संस्कारों तथा कर्मकांडों को पूरा करने के लिए नातेदारों, रिश्तेदारों की बहुत जरूरत होती है।
  4. व्यक्ति के जीवन में बहुत से सुख-दुःख आते हैं। उस समय सबसे ज्यादा ज़रूरत नातेदारों की पड़ती है।

प्रश्न 16.
कबीला अथवा जनजाति का क्या अर्थ है?
उत्तर:
कबीला अथवा जनजाति व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जो हमारी सभ्यता से दूर पहाड़ों, जंगलों, घाटियों इत्यादि में आदिम तथा प्राचीन अवस्था में रहता है। यह समूह एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में रहता है जिसकी अपनी ही अलग भाषा, अपनी संस्कृति, अपना ही धर्म होता है। ये समूह अंतर्वैवाहिक समूह होते हैं तथा प्यार, पेशे तथा उद्योगों के विषय में कुछ नियमों की पालना करते हैं। ये लोग हमारी संस्कृति, सभ्यता तथा समाज से बिल्कुल ही अलग होते हैं। अलग-अलग कबीले अपनी सामाजिक संरचना, भाषा, संस्कृति इत्यादि जैसे कई पक्षों के आधार पर एक-दूसरे से अलग होते हैं।

प्रश्न 17.
कबाइली समाज किसे कहते हैं?
उत्तर:
कबीला एक ऐसा समूह है जो हमारी सभ्यता, संस्कृति से दूर पहाड़ों, जंगलों, घाटियों इत्यादि में आदिम तथा प्राचीन अवस्था में रहता है। इन कबीलों में पाए जाने वाले समाज को कबाइली समाज कहा जाता है। कबाइली समाज वर्गहीन समाज होता है। इसमें किसी प्रकार का स्तरीकरण नहीं पाया जाता है। प्राचीन समाजों में कबीले को बहुत ही महत्त्वपूर्ण सामाजिक समूह माना जाता था।

कबाइली समाज की अधिकतर जनसंख्या पहाड़ों अथवा जंगली इलाकों में पाई जाती है। यह समाज साधारणतया स्वःनिर्भर होते हैं जिनका अपने ऊपर नियंत्रण होता है तथा यह किसी के भी नियंत्रण से दूर होते हैं। कबाइली समाज, शहरी समाजों तथा ग्रामीण समाजों की संरचना तथा संस्कृति से बिल्कुल ही अलग होते हैं।

प्रश्न 18.
सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार के रूप में वर्ग तथा जाति में चार अंतर बताएं।
अथवा
जाति तथा वर्ग में दो अंतर बताइए।
अथवा
वर्ग और जाति में अंतर करें।
उत्तर:

वर्गजाति
(i) वर्ग की सदस्यता व्यक्तिगत योग्यता पर निर्भर होती है।(i) जाति की सदस्यता जन्म पर निर्भर होती है।
(ii) वर्ग में हम एक-दूसरे के वर्ग में विवाह कर सकते हैं।(ii) जाति में हम दूसरी जाति में विवाह नहीं कर सकते।
(iii) वर्ग में सामाजिक संबंधों तथा खाने-पीने पर कोई प्रतिबंध नहीं होता।(iii) जाति में जातियों में संबंधों तथा खाने-पीने संबंधी पाबंदियां होती हैं।
(iv) व्यक्ति कोई भी व्यवसाय अपना सकता है।(iv) व्यक्ति का पेशा उसके वंश या जाति के अनुसार होता है।
(v) व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत योग्यता से अपना वर्ग बदल सकता है।(v) व्यक्ति चाह कर भी या योग्यता रखते हुए भी अपनी जाति नहीं बदल सकता।
(vi) वर्ग के कई आधार जैसे कि धन, शिक्षा, व्यवसाय इत्यादि होते हैं।(vi) जाति का आधार केवल जन्म होता है।
(vii) वर्ग की कोई पंचायत नहीं होती।(vii) जाति की अपनी जाति पंचायत होती है।
(viii) वर्ग में व्यक्तिगत योग्यता की प्रधानता होती है।(viii) जाति में व्यक्तिगत योग्यता का कोई मूल्य नहीं होता केवल आपके परिवार तथा जाति का महत्त्व होता है।

प्रश्न 19.
आज के समय में जाति व्यवस्था की भूमिका की व्याख्या करें।
उत्तर:
अगर आज के सामाजिक परिदृश्य को ध्यान से देखा जाए तो हमारे देश में जाति व्यवस्था कमजोर हो रही है। अब इस बात का कोई महत्त्व नहीं रह गया है कि वह किस समूह से संबंध रखता है। जाति व्यवस्था की संरचनात्मक व्यवस्था भी कमजोर हो रही है। जातीय भेदभाव, धार्मिक निषेध, जातीय मेल-जोल की पांबदियां खत्म हो रही हैं। अब जाति का व्यवसाय के साथ कोई संबंध नहीं रह गया है।

गांवों की जजमानी व्यवस्था भी खत्म हो रही है। आजकल ग्रामीण क्षेत्रों में बहुसंख्यक समूहों का दबदबा है न कि जातीय समूहों का। चाहे वैवाहिक क्षेत्र में जाति व्यवस्था का कुछ प्रभाव देखने को मिल जाता है, परंतु फिर भी प्राचीन समय वाला प्रभाव खत्म हो गया है। औद्योगीकरण, नगरीकरण, संस्कृतिकरण, पश्चिमीकरण जैसी प्रक्रियाओं ने इसे काफ़ी सीमा तक प्रभावित किया है।

प्रश्न 20.
जनजातीय पहचान (Tribal Identity) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जनजातीय पहचान का अर्थ है जनजातियों की सामाजिक तथा सांस्कृतिक धरोहर को संभाल कर रखना ताकि बाहरी संस्कृतियों के संपर्क में आने से उनकी संस्कृति का अस्तित्व खत्म न हो जाए। आजकल जनजातियां अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रही हैं जिस कारण ही जनजातीय पहचान का मुद्दा सामने आया है।

जनजातीय समाज में ईसाई मिशनरियों के प्रभाव, शिक्षा के प्रसार के कारण लोग अपना धर्म बदल रहे हैं, संस्कृति को भूल रहे हैं, लोग आधुनिक बन रहे हैं। इससे उनकी मूल संस्कृति नष्ट हो रही है। इस कारण ही उनमें जनजातीय पहचान की चेतना उत्पन्न हो रही है ताकि उनकी विशेष संस्कृति, धर्म, भाषा इत्यादि को बचा कर रखा जा सके।

प्रश्न 21.
नातेदारी की श्रेणियों के बारे में बताएं।
अथवा
नातेदारी के दो प्रकार बताइये।
उत्तर:
नातेदारी की श्रेणियों को निकटता की मात्रा के आधार पर तीन भागों में बांटा जा सकता है-
(i) प्राथमिक नातेदारी-आमने-सामने की प्रत्यक्ष नातेदारी को प्राथमिक नातेदारी कहते हैं। यह 8 प्रकार की होती हैं जैसे कि पति-पत्नी, पिता-पुत्र, भाई-बहन, माता-पुत्र इत्यादि।

(ii) द्वितीयक नातेदारी-जो नातेदारी प्राथमिक नातेदारों के द्वारा बने उसे द्वितीयक नातेदारी कहते हैं। जैसे कि पिता का भाई चाचा, माता का भाई मामा इत्यादि। इनके साथ हमारा संबंध प्राथमिक नातेदारों द्वारा बनता है। यह 33 प्रकार के होते हैं।

(iii) तृतीयक नातेदारी-जो नातेदारी द्वितीयक नातेदारों द्वारा बनती है उसे तृतीयक नातेदारी कहते हैं। जैसे कि पिता के भाई की पत्नी चाची, माता के भाई की पत्नी मामी इत्यादि। यह 151 प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 22.
परिहास प्रथा क्या है?
उत्तर:
परिहास या हँसी मज़ाक के संबंधों में हँसी मज़ाक, यौन संबंधी अश्लील कथन, गाली गलौच इत्यादि का समावेश होता है। इस प्रकार के संबंधों में स्वतंत्रता पाई जाती है। इस प्रकार का व्यवहार आमतौर पर विवाह संबंधियों में मिलता है जैसे कि देवर-भावी, ननद-भाभी, जीजा-साली इत्यादि कई बार तो इस प्रकार के संबंधों में यौन संबंध तक स्थापित हो जाते हैं। एक विद्वान् के अनुसार कई बार तो इस प्रकार के संबंधों में इतनी घनिष्ठता आ जाती है कि वह विवाह तक कर लेते हैं।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जाति व्यवस्था का क्या अर्थ है? इसकी विशेषताएं बताएं।
अथवा
जाति व्यवस्था की परिभाषा दीजिए।
अथवा
जाति व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
अथवा
जाति की विशेषताएँ लिखें।
अथवा
जाति की परिभाषा देकर अर्थ बताएँ।
अथवा
जाति प्रथा व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? विस्तार कीजिये।
अथवा
जाति व्यवस्था क्या है? जाति की सबसे सामान्य निर्धारित विशेषताएं कौन-सी हैं?
उत्तर:
जाति का अर्थ (Meaning of Caste System)-जाति शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द CASTE का हिंदी रूपांतर है, जो कि पुर्तगाली शब्द CASTA से लिया गया है। CASTA एक पुर्तगाली शब्द है, जिसका अर्थ है नस्ल। इसी प्रकार शब्द CASTE का लातीनी भाषा के शब्द CASTUS से भी गहरा संबंध है, जिसका अर्थ शुद्ध नस्ल होता है। जाति व्यवस्था जन्म पर आधारित होती थी। व्यक्ति को तमाम आयु उस जाति से संबंधित रहना पड़ता था जिस जाति में उसने जन्म लिया है। जब व्यक्ति जन्म लेता था उसी समय ही उसके जीवन जीने के ढंग निश्चित कर दिए जाते थे तथा उस पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगा दिए जाते थे। व्यक्ति पर जो भी प्रतिबंध जाति व्यवस्था द्वारा लगा दिए जाते हैं, उसके लिए उन्हें मानना आवश्यक होता था।

यह जाति व्यवस्था भारतीय सामाजिक व्यवस्था के मूल आधारों में से एक है तथा हिंदू सामाजिक जीवन के लगभग सभी पहलू इससे प्रभावित हुए हैं। इसका प्रभाव इतना शक्तिशाली रहा है कि भारत में बसने वाले प्रत्येक समूह तथा समुदाय को इसने प्रभावित किया है।

जाति शब्द संस्कृत के शब्द ‘जन’ से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘जन्म’। जाति शब्द अंग्रेजी के शब्द CASTE (कास्ट) का हिंदी रूपांतर है जो कि पुर्तगाली शब्द Casta से लिया गया है। चाहे ये और भी सामाजिक व्यवस्थाओं में भी पाया जाता है, परंतु भारत में इसका विकसित रूप ही नज़र आता है।

परिभाषाएं-जाति व्यवस्था की कई प्रमुख समाज शात्रिस्यों ने निम्नलिखित ढंग से परिभाषाएं दी हैं-
(1) रिज़ले (Risley) के अनुसार, “जाति परिवारों और परिवारों के समूह का संकल्प है’ जिसका इसके अनुरूप नाम होता है और वो काल्पनिक पूर्वज मनुष्य या दैवी के वंशज होने का दावा करते हैं जो समान पैतृक कार्य अपनाते हैं और वे विचारक जो इस विषय को ‘देव योग’ मानते हैं इसे ‘समजाति-समुदाय’ मानते हैं।”

(2) राबर्ट बीयरस्टेड (Robert Bierstdt) के अनुसार, “जब वर्ग प्रथा का ढांचा एक या अधिक विषयों पर पूरी तरह बंद होता है तो उसको ‘जाति प्रथा’ कहा जाता है।”

(3) बलंट (Blunt) के अनुसार, “जाति एक अंतर वैवाहिक समूह या अंतर वैवाहिक समूहों का इकट्ठ है जिसका एक नाम है, जिसकी सदस्यता वंशानुगत है जोकि अपने सदस्यों के ऊपर सामाजिक सहवास के संबंध में कुछ प्रतिबंध लगाती है, एक सामान्य परंपरागत पेशे को करती है या एक सामान्य उत्पत्ति का दावा करती है और आमतौर पर एक समरूप समुदाय को बनाने वाली समझी जाती है।’

(4) मैकाइवर तथा पेज (Maclver and Page) के अनुसार, “जब स्थिति पूरी तरह पूर्व निश्चित होती हो व्यक्ति बिना किसी आशा को लेकर पैदा होते हों तो वर्ग जाति का रूप धारण कर लेती है।’

(5) जे० एच० हट्टन (J.H. Hutton) के अनुसार, “जाति एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अंतर्गत एक समाज एक आत्म केंद्रित तथा एक-दूसरे से पूर्ण रूप से अलग इकाइयों में बंटा रहता है। इन विभिन्न इकाइयों में परस्पर संबंध उच्च निम्न के आधार पर तथा संस्कारों के आधार पर निर्धारित होते हैं।”

इस तरह इन परिभाषाओं को देखकर हम कह सकते हैं कि जाति एक अन्तर्विवाहित समूह होता है। इस की सदस्यता जन्म पर आधारित होती है। पेशा परंपरागत होता है और जातियों के खाने-पीने तथा रहन-सहन की पाबंदी होती है तथा विवाह संबंधी कठोर पाबंदियां होती हैं।

जाति व्यवस्था की विशेषताएँ
1. सदस्यता जन्म के ऊपर आधारित है (Membership is based upon Birth) इस प्रथा के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपनी जाति का निर्धारण स्वयं नहीं कर सकता, किसी की भी जाति उसके जन्म के आधार पर ही निश्चित की जाती है। जिस भी जाति में वह व्यक्ति जन्म लेता था उसी के अनुसार, उसकी जाति निश्चित हो जाती थी।

2. सामाजिक-संबंधों के ऊपर प्रतिबंध (Restrictions upon Social Relations) समाज को अलग-अलग जातियों में विभाजित किया गया था। कोई उच्च जाति से संबंध रखता था तो कोई निम्न जाति से। जाति प्रथा में इस भावना को तो पाया ही जाता था। उच्च जाति वाले हमेशा शहरों एवं गाँवों में रहते थे और निम्न जाति वालों को बाहर रहना पड़ता था। इस तरह निम्न जाति वाले अपने आपको ऊँची जाति वालों से दूर रखना या रहना ही ठीक समझते थे।

3. खाने-पीने पर प्रतिबंध (Restrictions upon Eatables}-जाति प्रणाली में यह बात स्पष्ट रूप से बतायी जाती थी कि व्यक्तियों को किन-किन वर्गों के लोगों के साथ उठना-बैठना होता था और किन-किन लोगों के साथ खाने-पीने पर प्रतिबंध था। इस प्रकार से भोजन को भी दो श्रेणियों में बांटा गया था जोकि दो तरह से तैयार होता था। नं० 1 भोजन जो कि घी द्वारा तैयार किया जाता था एवं पकाया जाता था, उसे पक्का भोजन कहा गया है और उसे ब्राह्मणों द्वारा तैयार किया जाता या उसके गुरु द्वारा तैयार किया जाता था।

इसी प्रकार कच्चा भोजन, जोकि पानी द्वारा तैयार किया जाता था। इस प्रकार यदि ब्राह्मण वर्ग द्वारा कच्चा भोजन भी तैयार किया जाता था, तो दूसरी जाति के लोग उसे ग्रहण कर लेते थे परंतु दूसरी जातियों द्वारा तैयार कच्चा भोजन ब्राह्मण कभी भी ग्रहण नहीं करते थे। ब्राह्मण लोग, क्षत्रियों एवं वैश्यों द्वारा पकाया हुआ भोजन स्वीकार कर लेते थे।

4. व्यवसाय अपनाने हेतु पाबंदियां (Restrictions upon Occupation)-जाति प्रथा में विशेष, परंपरागत धंधों को अपनाया जाता था। यदि किसी जाति का कोई विशेष व्यवसाय होता था तो उसे वही पेशा ही अपनाना पड़ता था। इस प्रकार व्यक्ति के पास कोई पसंद या पहल यानि की कोई Choice नहीं होती थी अर्थात् वह अपनी इच्छा के अनुसार कार्य नहीं कर सकता था।

परंतु इसमें कुछ धंधों में जैसे कि व्यापार, खेतीबाड़ी और सुरक्षा के मामलों में, नौकरी संबंधी कई विभागों में वह अपनी योग्यता के आधार पर कार्य करने के भी प्रावधान थे। कई समूहों को कोई भी पेशा अपनाने की छूट थी। परंतु कई जाति-समूहों जैसे की लोहारों, बढ़ई, बारबर, कुम्हार इत्यादि को अपने परंपरागत कार्यों को ज्यादातर अपनाना पड़ता था।

इस प्रणाली में ब्राह्मणों को विशेष कार्य अर्थात् शिक्षा प्रदान करने का महत्त्वपूर्ण कार्य मिला हुआ था। क्षत्रियों को सुरक्षा का जिम्मा मिला हुआ था। वैश्यों को खेतीबाड़ी, पशुपालन एवं व्यापार के लिए विकल्प खुले थे।

5. विवाह संबंधी पाबंदियां (Restrictions for Marriages)-जाति प्रथा में जातियों को इस तरह से विभाजित किया जाता था कि आगे उनकी उपजातियां भी बनाई गई थीं। इन उपजातियों में यह बंधन था कि अपने सदस्यों को दूसरी जाति में विवाह करने से रोकते थे। अपनी जाति के अंदर ही विवाह करने की प्रथा को जाति विशेष की विशेषता माना जाता था। इस प्रणाली में कुछ उपजातियों को दूसरी जातियों में भी विवाह का कुछ हालातों में किसी लड़की से विवाह कर सकते थे। परंतु यह आम नियम था कि एक व्यक्ति अपनी ही उपजाति में विवाह कर सकता था। इस प्रकार यदि वह नियमों का उल्लंघन करता था तो उसे अपनी उपजाति में से बाहर निकाल दिया जाता था।

6. समाज का अलग-अलग हिस्सों में विभाजन (Segmantal Division of Society)-जाति प्रथा के अनुसार समाज को कई भागों में बांटा गया था और हर हिस्से के सदस्यों का दर्जा, स्थान और कार्य निश्चित कर दिये गये थे। इसलिए सदस्यों में अपने समूह का एक हिस्सा होने की चेतना पैदा होती थी अर्थात् वह अपने समूह का एक अटूट अंग बन जाते थे। समाज का इस तरह हिस्सों में बंट जाने के कारण एक जाति के सदस्यों का सामाजिक अंतर, कार्य का दायरा ज्यादातर अपनी जाति तक ही सीमित हो जाता था।

जाति के नियमों की पालना न करने वालों को जाति की पंचायत दंड भी दे सकती थी। भिन्न-भिन्न जातियों के रहन-सहन के ढंग और रस्मों-रिवाजों में भी अंतर होता था। एक ही जाति के लोग प्रायः अपनी ही जाति के लोगों से अंतर कार्य करते थे। हर जाति अपने आप में एक-एक संपूर्ण सामाजिक जीवन जीने वाली सामाजिक इकाई होती थी।

7. पदक्रम (Hierarchy)-जाति प्रथा में एक निश्चित पदक्रम होता था। भारत में ज़्यादातर सभी भागों में सबसे ऊपर का दर्जा ब्राह्मणों को दिया गया था। इसी क्रम में दूसरे स्थान पर क्षत्रियों को रखा गया था। तीसरे स्थान पर वैश्यों को और इसी सामाजिक पदक्रम में सबसे बाद में यानि कि चौथे स्थान पर निम्न जातियों को रखा गया था। इस तरह से समाज में सभी व्यक्तियों की स्थिति को पदक्रम के आधार पर निश्चित किया गया था।

8. प्रत्येक जाति कई उपजातियों में बंटी होती है (Every caste is divided into many sub-castes) हमारे देश में तीन हज़ार के लगभग जातियां पाई जाती हैं तथा यह सभी जातियां आगे बहुत-सी उपजातियों में बंटी हुई थीं। व्यक्ति को अपना जीवन इन उपजातियों के नियमों के अनुसार व्यतीत करना पड़ता था तथा व्यक्ति को केवल अपनी ही उपजाति में विवाह करवाना पड़ता था।

9. अंतर्वैवाहिक (Endogamous)-जाति प्रथा में विवाह से संबंधित बहुत-सी पाबंदियां थीं। व्यक्ति के ऊपर अपनी जाति से बाहर विवाह करवाने की पाबंदी थी। यही नहीं व्यक्ति को केवल अपनी ही उपजाति में विवाह करवाना पड़ता था। जो व्यक्ति जाति प्रथा के नियमों को तोड़ता था उसे साधारणतया जाति से बाहर ही निकाल दिया मजूमदार के अनुसार संस्कृति के संघर्ष तथा नस्ली मेल-मिलाप ने भारत में उच्च तथा निम्न दर्जे के समूहों की रचना की।

नस्ली मिश्रण के कई कारण थे जैसे आर्यों में स्त्रियों की कमी, उन्नत द्राविड़ संस्कृति, उनकी मात प्रधान व्यवस्था, देवी-देवताओं की पूजा, एक जगह पर जीवन व्यतीत करने की इच्छा, अलग-अलग रीति-रिवाज इत्यादि। आर्य लोगों द्वारा द्राविड़ लोगों को जीतने के पश्चात् उनमें आपसी मेल-मिलाप तथा सांस्कृतिक संघर्ष चलता रहा। इस कारण कई सामाजिक समहों का निर्माण हआ जो अंतर्विवाहित बन गए। यहां से प्रत्येक समह या जाति का दर्जा इस समूह की रक्त शुद्धता तथा दूसरे समूहों से अलग रहने के आधार पर निर्धारित हो गया।

नस्ली सिद्धांत की आलोचना होती है क्योंकि इस सिद्धांत ने वैवाहिक संबंधों पर रोक के बारे में तो बताया है परंतु खाने-पीने के नियमों का कोई वर्णन नहीं किया है। मुसलमान तथा ईसाई सांस्कृतिक भिन्नता होने के बावजूद भी जाति का रूप धारण नहीं कर सके हैं। इस तरह जाति प्रथा की उत्पत्ति कई कारणों के कारण हुई है केवल एक कारण की वजह से नहीं।

3. भौगोलिक सिद्धांत (Geographical Theory)-जाति प्रथा की उत्पत्ति के संबंध में भौगोलिक सिद्धांत गिलबर्ट (Gilbert) ने दिया है। उसके अनुसार जातियों का निर्माण अलग-अलग समूहों के देश के अलग-अलग भागों में बसने के कारण हुआ है। यह विचार तमिल साहित्य में भी दिया गया है। इस विचार की पुष्टि कई उदाहरणों के कारण होती है।

जैसे सरस्वती नदी के किनारे रहने वाले ब्राह्मण सारस्वत ब्राह्मण कहलाए तथा कन्नौज में रहने वाले कनौजिए हो गए। इस तरह कई और जातियों के नाम भी उनके निवास स्थान के आधार पर पड़ गए। परंतु इस सिद्धांत को ज्यादातर विद्वानों ने नकार दिया है क्योंकि किसी भी एक भौगोलिक क्षेत्र में कई जातियां मिलती हैं परंतु उनमें से सभी के नाम उस क्षेत्र से संबंधित नहीं होते।

4. व्यावसायिक या पेशे से संबंधित सिद्धांत (Occupational Theory)-व्यवसाय के आधार पर जाति प्रथा की उत्पत्ति का सिद्धांत नेसफील्ड तथा डाहलमैन (Nesfield and Dahlman) ने दिया है। नेसफील्ड के अनुसार जातियों की उत्पत्ति अलग-अलग व्यवसायों के आधार पर हुई है तथा उसने नस्ली कारकों को नकार दिया है। जाति व्यवस्था के अस्तित्व में आने से बहुत पहले ही नस्ली मिश्रण बढ़ चुका था। उसके अनुसार जाति प्रथा की उत्पत्ति धर्म के कारण भी नहीं हुई है क्योंकि धर्म वह कट्टर आधार नहीं दे सकता जो जाति व्यवस्था के लिए ज़रूरी है। इस तरह नेसफील्ड के अनुसार केवल व्यवसाय ही जाति प्रथा की उत्पत्ति के लिए ज़िम्मेदार है।

डाहलमैन के अनुसार शुरू में भारतीय समाज तीन भागों में बँटा हुआ था तथा वह थे-रोहित, शासक तथा बुर्जुआ। इन तीनों वर्गों के व्यवसाय धार्मिक, राजनीतिक तथा आर्थिक क्रियाओं से संबंधित थे। इनके समूह व्यवसाय तथा रिश्तों के आधार पर छोटे-छोटे समूहों में बंट गए। यह पहले व्यावसायिक निगमों तथा धीरे-धीरे बड़े व्यावसायिक संघों का रूप धारण कर गए। आगे चल कर संघ जाति के रूप में विकसित हो गए।

की भी आलोचना हई है। जाति प्रथा का धर्म से कोई सीधा संबंध न बताना उचित नहीं है। यह सिद्धांत नस्ली सिद्धांतों से दूर है क्योंकि उच्च तथा निम्न सामाजिक समूहों में कुछ-न-कुछ नस्ली अंतर ज़रूर है। इसके साथ ही यदि जाति प्रथा की उत्पत्ति व्यावसायिक संघों के कारण ही हुई तो यह केवल भारत में ही क्यों आगे आई और देशों में क्यों नहीं। इस तरह इस सिद्धांत में इन प्रश्नों का उत्तर नहीं है।

5. विकासवादी सिद्धांत (Evolutionary Theory)-इस सिद्धांत को डैनज़िल इबैटस्न (Denzil Ibbetson) ने दिया है। उसके अनुसार जाति व्यवस्था की उत्पत्ति चार वर्णों के आधार पर न होकर आर्थिक आधार पर बने संघों द्वारा हुई है। उसके अनुसार पहले लोग खानाबदोशों की तरह रहते थे तथा जाति व्यवस्था अस्तित्व में नहीं आई थी। लोगों में खून का रिश्ता होता था तथा उच्च-निम्न की भावना नहीं थी।

परंतु धीरे-धीरे इकठे रहने से आर्थिक विकास शुरू हुआ तथा लोग कृषि कार्य करने लगे। समय के साथ-साथ आर्थिक जीवन के जटिल होने के कारण श्रम विभाजन की आवश्यकता महसूस हुई। राजाओं का यह कर्तव्य बन गया कि वह ऐसी आर्थिक नीति का निर्माण करें जोकि श्रम विभाजन तथा व्यावसायिक भिन्नता पर आधारित हो।

इस कारण कई नए वर्ग अस्तित्व में आए। एक जैसा कार्य करने के कारण सामुदायिक भावना का विकास हुआ। समय के साथ-साथ इन वर्गों ने अपने हितों की रक्षा के लिए संघ बना लिए। प्रत्येक संघ ने अपने भेदों को गुप्त रखने के लिए अंतर्विवाह की नीति अपनायी। इस तरह जाति वैवाहिक होने के कारण जाति प्रथा उत्पन्न हई। धीरे-धीरे इन समहों ने सामाजिक सामाजिक पदक्रम में अपना स्थान बना लिया।

इस सिद्धांत की भी आलोचना हुई है क्योंकि व्यवसाय के आधार पर संघ तो सभी समाजों में मिलते हैं पर केवल भारत में ही जाति प्रथा क्यों विकसित हुई। आर्थिक कारक को बहुत-से कारकों में से एक कारक तो माना जा सकता है पर केवल एक ही कारक नहीं।

6. धार्मिक सिद्धांत (Religious Theory)-इस सिद्धांत को होकार्ट तथा सेनार्ट ने दिया है। होकार्ट के अनुसार जाति व्यवस्था की उत्पत्ति तथा भारतीय समाज का विभाजन धार्मिक कर्मकांडों तथा सिद्धांतों के कारण हुआ है। प्राचीन भारतीय समाज में धर्म बहुत महत्त्वपूर्ण था जिस में देवताओं को बलि भी दी जाती थी। बलि की प्रथा में पूजा पाठ तथा मंत्र पढ़ना शामिल था जिसमें कई व्यक्तियों की ज़रूरत पड़ती थी। धीरे-धीरे धार्मिक कार्य करने वाले लोग संगठित हो गए तथा उन्होंने अलग-अलग जातियों का रूप धारण कर लिया। होकार्ट के अनुसार प्रत्येक जाति का व्यवसाय पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता है तथा व्यवसाय का मूल आधार धार्मिक है न कि आर्थिक।

सेनार्ट के अनुसार भोजन संबंधी प्रतिबंध धार्मिक कारणों के कारण पैदा हुए तथा लोग जातियों तथा उपजातियों में विभाजित हो गए। परंतु कई समाजशास्त्रियों के अनुसार जाति व्यवस्था एक सामाजिक संस्था है न कि धार्मिक। इसलिए यह सिद्धांत ठीक नहीं प्रतीत होता है। जाति व्यवस्था बहुत ही जटिल है परंतु इसकी उत्पत्ति का बहुत ही सरल वर्णन किया गया है जोकि ठीक नहीं है।

7. माना सिद्धांत (Mana Theory) हट्टन का कहना है कि आर्य लोगों के भारत आने से पहले भी जाति व्यवस्था के तत्त्व भारत में मौजूद थे। जब आर्य लोग भारत में आए तो उन्होंने इन तत्त्वों को अपने हितों की रक्षा के लिए दृढ किया। उनसे पहले भारत में सामाजिक विभाजन ज्यादा स्पष्ट नहीं था परंतु आर्यों ने इसे अलग किया तथा अपने आपको इस व्यवस्था में सब से ऊपर रखा।

हट्टन का कहना था कि यह प्रारंभिक अवस्था थी। जाति व्यवस्था के प्रतिबंधों को उसने माना तथा टैबु की मदद से स्पष्ट किया है। प्राचीन समाजों में माना को अदृश्य आलौकिक शक्ति समझा जाता था जो कि प्रत्येक प्राणी में होती है तथा छूने से एक-दूसरे में भी आ सकती है।

कबीलों के लोग यह मानते हैं कि माना शक्ति के कारण ही लोगों में भिन्नता होती थी। माना के डर से ही यह लोग बाहर के व्यक्तियों से दूर रहते हैं। अपने समूहों में भी वह उन लोगों को नहीं छूते थे जिनको दुष्ट समझा जाता था। इस तरह कबीले के लोगों के बीच कुछ चीजों पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है जिनको टैबु कहते हैं। लोगों में यह डर होता था कि टैबु को न मानने वालों के ऊपर दैवी प्रकोप हो जाएगा।

हट्टन के अनुसार माना तथा टैबु को मानने वाले हिंदू, इस्लाम, पारसी तथ बुद्ध धर्म को मानने वालों में भी मिलते हैं। आर्य लोगों के आने से पहले भी भारत में माना तथा टैबु से संबंधित भेदभाव मिलते थे। इस कारण विवाह, खाने-पीने, कार्यों इत्यादि से संबंधित प्रतिबंध अलग-अलग समूहों में मिलते थे। इस कारण जब जाति व्यवस्था शुरू हुई तो उसमें कई प्रकार की पाबंदियां लगा दी गईं।

कई विद्वानों ने इस बात की आलोचना की है तथा कहा है कि चाहे माना, टैबु संसार के अन्य कबीलों में भी मिलते हैं परंतु हमें जाति व्यवस्था कहीं भी नहीं मिलती है। इसके साथ कबीलों की संस्कृति संपूर्ण भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व नहीं करती। हट्टन ने कोई ऐसे तथ्य भी पेश नहीं किए जिस के आधार पर माना जा सके कि आर्य लोगों से पहले भी भारत में मूल निवासी माना तथा टैबु के आधार पर बँटे हुए थे।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ : निरन्तरता एवं परिवर्तन

प्रश्न 3.
जाति प्रथा के लाभों तथा हानियों का वर्णन करो।
अथवा
जाति व्यवस्था के कार्य अथवा लाभ स्पष्ट करें।
उत्तर:
जाति व्यक्ति, समुदाय तथा समाज के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य करती है इसलिए यह संस्था सैंकड़ों वर्षों से भारतीय समाज का आधार रही है। जाति प्रथा के बहुत से लाभ तथा हानियां हैं जिन का वर्णन निम्नलिखित है

जाति प्रथा के लाभ (Advantages of Caste System)-
(i) सामाजिक स्थिति निर्धारित करना (Determining Social Status)-जाति अपने सदस्यों को जन्म से ही निश्चित स्थिति प्रदान करती थी। व्यक्ति शिक्षा. गरीबी-अमीरी, आय तथा लिंग या व्यक्तिगत योग्यता से अपनी जाति परिवर्तित नहीं कर सकता था। जाति के आधार पर ब्राह्मणों की स्थिति सबसे ऊपर तथा शेष की इनसे निम्न होती थी।

(ii) सरल श्रम विभाजन (Simple Division of Labour)-जाति प्रथा में श्रम विभाजन हुआ करता था। हर किसी को एक काम उसके परिवार तथा जाति के अनुसार मिल जाता था। विभिन्न जातियों द्वारा निश्चित कार्य करना समाज में श्रम विभाजन का अच्छा उदाहरण है। हर किसी को निश्चित कार्य देने के कारण समाज में श्रम विभाजन हो जाता था।

(iii) जीवन साथी चुनने में सहायक (Helpful in choosing Life Male)-जाति अंतर्विवाही होती है। इसलिए व्यक्ति के लिए यह ज़रूरी है कि वह अपनी जाति में ही विवाह करे। इससे जीवन साथी चुनने में सरलता हो जाती है।

(iv) व्यवसाय निर्धारित करना (To determine Occupation)-जातियों का अपना-अपना व्यवसाय होता है। इसके सदस्य अपनी जाति के अनुरूप व्यवसाय करते हैं। व्यवसाय पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होता रहता है।

(v) रक्त की शुद्धता (Purity of Blood)-जाति अंतर्विवाह तथा बहिर्विवाह में नियमों पर आधारित है। अपनी जाति के अंदर विवाह करवाना तथा बहिर्विवाह का मतलब अपने सपिंड, सप्रवर तथा सगोत्र से बाहर विवाह करवाना होता है। इससे रक्त की शुद्धता बनी रहती है।

(vi) व्यवहारों पर नियंत्रण (Control on Behaviour)-प्रत्येक जाति के अपने मूल्य, प्रतिमान तथा नियम होते हैं। जाति नियम यह तय करते हैं कि किस जाति के साथ किस प्रकार के संबंध रखे जाएं। छूतछात, धर्म, खानपान, व्यवसाय इत्यादि संबंधी नियमों के द्वारा जाति अपने सदस्यों के व्यवहारों को नियंत्रित तथा निर्देशित करती है।

(vii) सामाजिक सुरक्षा (Social Security)-जाति अपने सदस्यों की स्थिति का निर्धारण करती है। जाति के सदस्य ज़रूरत पड़ने पर गरीबों, अनाथों, बच्चों तथा विधवाओं की सहायता करके उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान करते हैं।

(viii) मानसिक सुरक्षा (Psychological Security)-जाति व्यवस्था में व्यक्ति की सामाजिक स्थिति जन्म से ही निर्धारित हो जाती है। कई प्रकार के नियम जाति तय करती है। जातीय लोक रीतियां तथा प्रथाएं भी स्पष्ट होती हैं जिनके कारण व्यक्ति को मानसिक शांति व सुरक्षा का अहसास होता है।

(ix) सामाजिक स्थिरता (Social Stability)-भारत पर बहुतों ने आक्रमण किए। सैंकड़ों वर्ष विदेशियों ने यहां पर राज किया। इस विदेशी शासन के दौरान भी जाति प्रथा ने अपनी संस्कृति को बचा कर रखा तथा सामाजिक स्थिरता प्रदान की।

जाति प्रथा की हानियां (Disadvantages of Caste System):
(i) निम्न जातियों का शोषण (Exploitation of Low Castes)-जाति प्रथा में निम्न जातियों का शोषण होता था। उनसे कठोर परिश्रम करवाया जाता था जिसके बदले में पूरी मजदूरी भी नहीं दी जाती थी। उनसे निम्न स्तर के घृणित कार्य करवाये जाते थे। उन पर कई प्रकार के प्रतिबंध हुआ करते थे। इस तरह उनका शोषण हुआ करता था।

(ii) अस्पृश्यता (Untouchability)- जाति व्यवस्था ने भारतीय समाज में अस्पृश्यता या छूतछात को जन्म दिया। कई क्षेत्रों में तो जाति का उग्र रूप भी देखने को मिलता था कि कुछेक निम्न जाति के लोगों की परछाईं मात्र से अन्य जाति के लोग अपने आप को दूषित समझते थे।

(iii) धर्म परिवर्तन (Religion Conversion)-निम्न जातियों को उनकी निम्न स्थिति का अहसास करवा कर मिशनरी धर्म प्रचारक उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए उत्साहित करते हैं। समाज में उचित स्थान न मिलने के कारण निम्न जाति के सदस्य धर्म परिवर्तन कर लेते थे ताकि जाति व्यवस्था से छुटकारा मिल सके।

(iv) व्यक्तित्व विकास में बाधक (Hindrance in Personality Development)-जाति व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में बाधक होती है। व्यक्ति योग्यता होते हुए भी अपना विकास नहीं कर सकते थे। व्यक्ति उच्चता तथा निम्नता की भावना से ग्रसत रहते हैं जिस के कारण व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पाता है।

(v) राष्ट्रीय एकता में बाधक (Hindrance in National Unity)-जाति के आधार पर समाज तथा समुदाय छोटे-छोटे भागों में विभाजित हो जाता है। व्यक्ति की निष्ठा जाति के प्रति अधिक तथा राष्ट्र के प्रति कम हो जाती है। अपनी जाति के सदस्यों में हम की भावना रहती है जबकि अन्य जातियों के प्रति घृणा की भावना विकसित हो जाती है जिससे सांप्रदायिक दंगे हो जाते हैं। इस तरह यह राष्ट्रीय एकता में बाधक है।

(vi) स्त्रियों की निम्न स्थिति (Low Status of Women)-जाति प्रथा द्वारा बाल विवाह का प्रचलन, विधवा विवाह की मनाही तथा स्त्रियों को शिक्षा के अधिकार से वंचित कर दिया जाता है। जाति व्यवस्था में स्त्री की कोई जाति नहीं होती। वह जिस जाति के पुरुष से विवाह करती है उसी की जाति उसकी जाति बन जाती है। इन सबसे स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है।

प्रश्न 4.
जाति प्रथा में आ रहे परिवर्तनों का वर्णन करें।
अथवा
जाति व्यवस्था में आये आधुनिक परिवर्तन स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय जाति व्यवस्था में लगातार संरचनात्मक एवं प्रकार्यात्मक परिवर्तन होते रहे हैं। इन परिवर्तनों की गति स्थान तथा हालातों के अनुसार भिन्न-भिन्न रही है। आजादी के बाद जाति प्रथा में काफी तेज़ी से परिवर्तन आए हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है:
(i) उच्च जातियों की स्थिति में गिरावट (Decline in status of Brahmins)-जाति व्यवस्था की शुरुआत से ही उच्च जातियों का प्रत्येक क्षेत्र में विशेष महत्त्व रहा है। परी जाति व्यवस्था उनके इर्द-गिर्द घमती थी। जाति के संस्तंरण में उनका सर्वोच्च स्थान रहा है। परंतु शिक्षा के प्रसार, विज्ञान के विकास, नए पदों का सृजन, पश्चिमीकरण, संस्कतिकरण, आधनिकीकरण, नगरीकरण इत्यादि के कारण उनकी स्थिति में गिरावट आई है। आजकल गैर-ब्राहमणों की स्थिति उनकी शिक्षा, पैसे या सत्ता के कारण उच्च है। इस तरह उच्च जातियों की स्थिति में काफ़ी गिरावट आई है।

(ii) अंतर्जातीय संबंधों में परिवर्तन (Change in Inter Caste Relations)-प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में जजमानी व्यवस्था प्रचलित रही है जिसके चलते विभिन्न जातियों में अंतर्निर्भरता बनी रहती थी। परंतु अंतर्जातीय संबंधों में अब काफी परिवर्तन हुए हैं। पैसे के प्रचलन, उद्योगों के विकास तथा शिक्षा के प्रचार तथा प्रसार के कारण विभिन्न जातियों ने अपने परंपरागत व्यवसाय छोड़ने शुरू कर दिए हैं। सेवाओं के आदान-प्रदान में भी काफ़ी परिवर्तन हुए हैं। लोग पैसे देकर चमड़े, बांस, मिट्टी इत्यादि की चीजें खरीदने लग गए हैं। अच्छी चीजें उपलब्ध होने के कारण लोग बाज़ार जाने लग गए हैं। पढ़े-लिखे युवाओं द्वारा भी परंपरागत काम छोड़ने के कारण अंतर्जातीय संबंधों का स्वरूप बदला है।

(iii) अस्पृश्यता में कमी (Decline in Untouchability)-जाति प्रथा में अस्पृश्यता का बोलबाला था। पर आज़ादी के बाद इसमें कमी आयी है। औद्योगीकरण के कारण सभी जातियों के लोग मिल कर काम करते हैं। 1955 में अस्पृश्यता कानून भी पास हो गया जिसके अनुसार अस्पृश्यता को मानना गैर कानूनी है। होटलों, क्लबों में सभी को प्रवेश मिलने से अस्पृश्यता में काफी कमी आयी है। कानून की वजह से भी इसमें काफ़ी कमी आई है।

(iv) वैवाहिक परिवर्तन (Matrimonial Changes)-हिंदू विवाह कानून 1955 द्वारा अंतर्जातीय विवाह की अनुमति प्रदान की गई है। अंतर्विवाह जाति प्रथा का सार रहा है। समाचार पत्रों में प्रकाशित वैवाहिक विज्ञापनों में Caste No bar का लिखा होना इस बात का प्रमाण है कि अब लोगों में जाति में विवाह करवाना ज़रूरी नहीं रह गया है। अब प्रेम विवाह बढ़ रहे हैं जिससे पता चलता है कि वैवाहिक प्रतिबंध ढीले हो रहे हैं।

(v) जन्म के महत्त्व में कमी (Importance of Birth is Declining)-भारतीय समाज में पारंपरिक दृष्टि से व्यक्ति जिस जाति में जन्म लेता है उसकी सामाजिक स्थिति उसी जाति के अनुसार ही हो जाती है। लेकिन आजकल व्यक्ति के जन्म के आधार पर स्थिति का महत्त्व कम होता जा रहा है। उसकी व्यक्तिगत योग्यता तथा कुशलता का महत्त्व बढ़ रहा है। आजकल व्यक्ति की सामाजिक स्थिति समाज में जन्म से नहीं बल्कि गुणों तथा कर्मों तथा उपलब्धियों के कारण है। व्यक्ति को जाति की सदस्यता जन्म से प्राप्त होती है। जन्म के महत्त्व में कमी आने से जातीय आधार पर सामाजिक स्थिति के निर्धारण में परिवर्तन हुआ है।

(vi) व्यावसायिक गतिशीलता में वृद्धि (Increase in Occupational Mobility)-भारतीय समाज में जातिगत व्यवसायों में काफ़ी गतिशीलता आई है। बहुत सारे नए व्यवसायों का विकास हुआ है। लाखों नए पदों का विकास हुआ है। विभिन्न पदों के लिए शैक्षिक योग्यता ज़रूरी है इसलिए सभी ने शिक्षा लेनी शुरू की। शिक्षा तथा प्रशिक्षण प्राप्त करके कोई भी किसी भी पद का पात्र बन सकता है। निम्न जाति का सदस्य संस्कृत तथा वेदों का विशेष ज्ञान प्राप्त करके यज्ञ भी करवा सकता है। आजकल कोई भी व्यक्ति किसी भी व्यवसाय को अपना सकता है। इससे व्यावसायिक गतिशीलता का पता चलता है।

(vii) भोजन प्रतिबंधों में कमी (Decline in Food Restrictions)-जातीय आधार पर भोजन संबंधी नियम काफी शिथिल हुए हैं। पढ़ी-लिखी नई पीढ़ियों में कच्चे तथा पक्के भोजन की अवधारणा खत्म होती जा रही है। होटलों, ढाबों, लंगरों, मंदिरों में किस जाति का व्यक्ति भोजन बांट रहा है इसके बारे में कोई पता नहीं चलता है। होटल, क्लब में जाकर व्यक्ति यह नहीं पूछता है कि किस ने खाना बनाया या परोसा है। इस तरह भोजन प्रतिबंधों में काफी हद तक कमी आई है।

प्रश्न 5.
कबीला अथवा जनजाति क्या होती है? इसकी विशेषताओं का वर्णन करो।
अथवा
जनजातीय समुदाय क्या है?
उत्तर:
हमारे देश में एक सभ्यता ऐसी होती है जो हमारी सभ्यता से दूर पहाड़ों, जंगलों, घाटियों इत्यादि में आदिम तथा प्राचीन अवस्था में रहती है। इस सभ्यता को कबीला, आदिवासी, जनजाति इत्यादि जैसे नामों से पुकारा जाता है। भारतीय संविधान में इन्हें पट्टीदर जनजाति भी कहा गया है। कबाइली समाज वर्गहीन समाज होता है। इसमें किसी प्रकार का स्तरीकरण नहीं पाया जाता है। प्राचीन समाजों में कबीले को बहुत ही महत्त्वपूर्ण सामाजिक समूह माना जाता था।

कबाइली समाज की अधिकतर जनसंख्या पहाड़ों अथवा जंगली इलाकों में पाई जाती है। यह लोग संपूर्ण भारत में पाए जाते हैं। – यह समाज आमतौर पर स्वः निर्भर होते हैं जिनका अपने ऊपर नियंत्रण होता है तथा यह किसी के भी नियंत्रण से दूर होते हैं। कबाइली समाज शहरी समाजों तथा ग्रामीण समाजों की संरचना तथा संस्कृति से बिल्कुल ही अलग होते हैं। इनको हम तीन श्रेणियों में बांट देते हैं-शिकार करने वाले तथा मछली पकड़ने वाले और कंदमूल इकट्ठा करने वाले, स्थानांतरित तथा झूम कृषि करने वाले तथा स्थानीय रूप से कृषि करने वाले। यह लोग हमारी संस्कृति, सभ्यता तथा समाज से बिल्कुल ही अलग होते हैं।

जनजाति की परिभाषाएँ
(Definitions of Tribe)
(1) इंपीरियल गजेटियर आफ इंडिया (Imperial Gazetear of India) के अनुसार, “कबीला परिवारों का एक ऐसा समूह होता है जिसका एक नाम होता है, इसके सदस्य एक ही भाषा बोलते हैं तथा एक ही भू-भाग में रहते हैं तथा अधिकार रखते हैं अथवा अधिकार रखने का दावा करते हैं तथा जो अंतर्वैवाहिक हों चाहे अब न हों।”

(2) गिलिन तथा गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार, “कबीला स्थानीय कुलों तथा वंशों की एक व्यवस्था है जो एक समान भू-भाग में रहते हैं, समान भाषा बोलते हैं तथा एक जैसी ही संस्कृति का अनुसरण करते हैं।’

इस तरह इन अलग-अलग परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि कबीले छोटे समाजों के रूप में एक सीमित क्षेत्र में पाए जाते हैं। कबीले अपनी सामाजिक संरचना, भाषा, संस्कृति जैसे कई पक्षों के आधार पर एक दूसरे से अलग-अलग तथा स्वतंत्र होते हैं। हरेक जनजाति की अलग ही भाषा, संस्कृति, परंपराएं, खाने-पीने इत्यादि के ढंग होते हैं।

इनमें एकता की भावना होती है क्योंकि यह एक निश्चित भू-भाग में मिलजुल कर रहते हैं। यह बहुत से परिवारों का एकत्र समूह होता है जिस में काफ़ी पहले अंतर्विवाह भी होता था। आजकल इन कबाइली लोगों को भारत सरकार तथा संविधान ने सुरक्षा तथा विकास के लिए बहुत सी सुविधाएं जैसे कि आरक्षण इत्यादि दिए हैं तथा धीरे-धीरे यह लोग मुख्य धारा में आ रहे हैं।

जनजाति की विशेषताएँ
(Characteristics of a Tribe)
1. परिवारों का समूह (Collection of Families)-जनजाति बहुत-से परिवारों का समूह होता है जिन में साझा उत्पादन होता है। वह जितना भी उत्पादन करते हैं उससे अपनी ज़रूरतें पूर्ण कर लेते हैं। वह कुछ भी इकट्ठा नहीं करते हैं जिस कारण उनमें संपत्ति की भावना नहीं होती है। इस कारण ही इन परिवारों में एकता बनी रहती है।

2. साझा भौगोलिक क्षेत्र (Common Territory) कबीलों में लोग एक साझे भौगोलिक क्षेत्र में रहते हैं। एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहने के कारण यह बाकी समाज से अलग होते हैं तथा रहते हैं। यह और समाज की पहुँच से बाहर होते हैं क्योंकि इन की अपनी ही अलग संस्कृति होती है तथा यह किसी बाहर वाले का हस्तक्षेप पसंद नहीं करते इसलिए यह बाकी समाज से कोई रिश्ता नहीं रखते। इनका अपना अलग ही एक संसार होता है। इनमें सामुदायिक भावना पायी जाती है क्योंकि यह साझे भू-भाग में रहते हैं।

3. साझी भाषा तथा साझा नाम (Common Language and Common Name)-प्रत्येक कबीले की एक अलग ही भाषा होती है जिस कारण यह एक-दूसरे से अलग होते हैं। हमारे देश में कबीलों की संख्या के अनुसार ही उनकी भाषाएं पायी जाती हैं। हरेक जनजाति का अपना एक अलग नाम होता है तथा उस नाम से ही यह कबीला जाना जाता है।

4. खंडात्मक समाज (Segmentary Society)-प्रत्येक जनजातीय समाज दूसरे जनजातीय समाज से कई आधारों जैसे कि खाने-पीने के ढंगों, भाषा, भौगोलिक क्षेत्र इत्यादि के आधार पर अलग होता है। यह कई आधारों पर अलग होने के कारण एक-दूसरे से अलग होते हैं तथा एक-दूसरे का हस्तक्षेप पसंद नहीं करते। इनमें किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं पाया जाता। इस कारण इनको खंडात्मक समूह भी कहते हैं।

5. साझी संस्कृति (Common Culture)-प्रत्येक जनजाति के रहन-सहन के ढंग, धर्म, भाषा, टैबु इत्यादि एक-दूसरे से अलग होते हैं। परंतु यह सभी एक ही कबीले में समान होते हैं। इस तरह सभी कुछ अलग होने के कारण एक ही कबीले के अंदर सभी कबीले के अंदर सभी व्यक्तियों की संस्कृति भी समान ही होती है।

6. आर्थिक संरचना (Economic Structure)-प्रत्येक जनजाति के पास अपनी ही भूमि होती है जिस पर वह अधिकतर स्थानांतरित कृषि ही करते हैं। वह केवल अपनी ज़रूरतों को पूर्ण करना चाहते हैं जिस कारण उनका उत्पादन भी सीमित होता है। वह चीज़ों को एकत्र नहीं करते जिस कारण उनमें संपत्ति को एकत्र करने की भावना कारण ही जनजातीय समाज में वर्ग नहीं होते। प्रत्येक चीज़ पर सभी का समान अधिकार होता है तथा इन समाजों में कोई भी उच्च अथवा निम्न नहीं होता है।

7. आपसी सहयोग (Mutual Cooperation)-कबीले का प्रत्येक सदस्य कबीले के और सदस्यों को अप सहयोग देता है ताकि कबीले की सभी आवश्यकताओं को पूर्ण किया जा सके। कबीले में प्रत्येक व्यक्ति को सुरक्षा भी प्राप्त होती है। अगर कबीले के किसी सदस्य के साथ किसी अन्य कबीले के सदस्य लड़ाई करते हैं तो पहले कबीले के अन्य सदस्य अपने साथी से मिलकर दूसरे कबीले से संघर्ष करने के लिए तैयार रहते हैं। प्रत्येक जनजाति के मुखिया का यह फर्ज होता है कि वह अपने कबीले का मान सम्मान रखे। कबीले के मुखिया के निर्णय को संपूर्ण कबीले द्वारा मानना ही पड़ता है तथा वह मुखिया के निर्णय की इज्जत भी इसी कारण ही करते हैं। कबीले के सभी सदस्य कबीले के प्रति वफ़ादार रहते हैं।

8. राजनीतिक संगठन (Political Organization)-कबीलों में गांव एक महत्त्वपूर्ण इकाई होता है तथा 10-12 गांव मिलकर एक राजनीतिक संगठन का निर्माण करते हैं। यह बहुत सारे संगठन अपनी एक कौंसिल बना लेते हैं तथा प्रत्येक कौंसिल का एक मुखिया होता है। प्रत्येक कबाइली समाज इस कौंसिल के अंदर ही कार्य करता है। कौंसिल का वातावरण लोकतांत्रिक होता है। कबीले का प्रत्येक सदस्य कबीले के प्रति वफ़ादार होता है।

9. कार्यों की भिन्नता (Division of Labour)-कबाइली समाज में बहुत ही सीमित श्रम-विभाजन तथा विशेषीकरण पाया जाता है। लोगों में भिन्नता के कई आधार होते हैं जैसे कि उम्र, लिंग, रिश्तेदारी इत्यादि। इनके अतिरिक्त कुछ कार्य अथवा भूमिकाएं विशेष भी होती हैं जैसे कि एक मुखिया तथा एक पुजारी होता है। साथ में एक वैद्य भी होता है जो बीमारी के समय दवा देने का कार्य भी करता है।

10. स्तरीकरण (Stratification)-कबाइली समाजों में वैसे तो स्तरीकरण होता ही नहीं है, अगर होता भी है तो वह भी सीमित ही होता है क्योंकि इन समाजों में न तो कोई वर्ग होता है तथा न ही कोई जाति व्यवस्था होती है। केवल लिंग अथवा रिश्तेदारी के आधार पर ही थोड़ा-बहुत स्तरीकरण पाया जाता है।

प्रश्न 6.
भारत में मिलने वाले अलग-अलग कबीलों के राजनीतिक संगठनों का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत में मिलने वाले कबीलों को हम तीन भागों में बांट सकते हैं-

  • उत्तर पूर्वी कबीले (North Eastern Tribes)
  • मध्य भारतीय कबीले (Central Indian Tribes)
  • दक्षिण भारतीय कबीले (South Indian Tribes)

अब हम इनका वर्णन विस्तार से करेंगे।
1. उत्तर पूर्वी कबीलों के राजनीतिक संगठन (Political Organization of North Eastern Tribes)-उत्तर पूर्वी क्षेत्र में हम त्रिपुरा, मिज़ोरम, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, असम, अरुणाचल प्रदेश इत्यादि जैसे प्रदेश ले सकते हैं। इन प्रदेशों के प्रमुख कबीले नागा, मिज़ो, अपातनी (Apatani), लुशाई, जंतिया, गारो, खासी इत्यादि आते हैं।

असम में मिलने वाले कबीलों में लोकतांत्रिक राजनीतिक संगठन पाए जाते हैं। इनमें अधिकतर कबीलों में भूमि के सामूहिक स्वामित्व को मान्यता प्राप्त है तथा साथ ही साथ भूमि पर व्यक्तिगत अधिकारों को भी मान्यता प्राप्त है। एक गांव के लोग कहीं पर भी कृषि करने को स्वतंत्र हैं। चाहे गांव के अलग-अलग परिवारों की आर्थिक स्थिति अलग होती है। परंतु इस अंतर से इनके समाज में कठोर सामाजिक स्तरीकरण उत्पन्न नहीं हुआ है। इनमें से अधिकतर कबीले बहिर्वैवाहिक गोत्रों में बंटे होते हैं, बाकी बचे कबीले गांव के समुदायों में गोत्र व्यवस्था के बिना रहते हैं। यह अलग अलग गोत्र अपने मुखिया के अंतर्गत कार्य करते हैं।

खासी कबीले में मुखिया की मृत्यु के बाद उसकी पदवी बड़ी बहन के बड़े पुत्र को प्राप्त होती है। अगर कोई आदमी मौजूद नहीं है तो बड़ी बहन की बड़ी बेटी को मुखिया बनाया जाता है। प्राचीन समय में खासी कबीला 25 खासी प्रदेशों में बँटा हुआ था जो कि एक-दूसरे से स्वतंत्र थे।

इन कबीलों में प्रशासन लोकतांत्रिक होता था जिसका कि एक मुखिया भी होता था। खासी कबीले में मुखिया न तो लोगों पर कोई कर लगा सकता था, न ही वह स्वतंत्र तौर पर कोई नीति बना सकता था तथा न ही उसको भूमि या जंगल से संबंधित कोई अधिकार था। जनता की राय के अनुसार निर्णय लिए जाते थे। निर्णय लेने के लिए कबीले के सभी बालिगों की सभा बुलाई जाती थी तथा लोगों को इसमें भाग लेना ही पड़ता था। लुशाई कबीले में चाहे मुखिया के पास अधिक अधिकार थे परंतु, यहां भी उसके लिए गांव के बुजुर्गों या सभा के निर्णय के विरुद्ध जाना मुमकिन नहीं था। चाहे मुखिया या और पद पैतृक थे परंतु प्रशासन लोकतांत्रिक होता था।

गारो कबीले में राजनीतिक प्रशासन लोकतान्त्रिक रूप से ही चलता था। गारो कबीले में कोई मुखिया (Chiefs) नहीं होते केवल एक Headman होता है जो कि कबीले का नाममात्र का मुखिया होता है। गांव या कबीले में सभी महत्त्वपूर्ण निर्णय गांव की कौंसिल अथवा सभा द्वारा लिए जाते हैं जिसमें परिवारों के बुजुर्ग सदस्य होते हैं। नागा कबीले के राजनीतिक संगठन में बहुत अधिक विविधता (Diversity) देखने को मिल जाती है। कुछ नागा कबीले मुखिया की निरंकुश (Autocratic) मर्जी पर चलते हैं जबकि कुछ नागा कबीलों में लोकतांत्रिक गांव की सभा होती है जिस में Headman को बहुत ही कम अधिकार होते हैं।

अधिकतर नागा कबीलों को अत्याचारी, हिंसक, रक्त के प्यासे समझा जाता है परंतु इस तरह के विचार बनाना ठीक नहीं है। चाहे अधिकतर नागा कबीलों को लड़ाई के मैदान में देखा जा सकता है परंतु इस को सामाजिक ऐतिहासिक दृष्टि से देखना चाहिए। बहुत-से लोग यह देखकर हैरान होते हैं कि इस तरह की अव्यवस्था में स्थिर प्रशासन कैसे स्थापित हो सकता है जहां प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में एक कानून है। परंतु इन हालातों में भी लचकीले प्रकार का राजनीतिक संगठन देखने को मिल जाता है। कोनयाक (Konyak) कबीले में तो मुखिया को बहुत अधिक अधिकार प्राप्त होते हैं। नागा कबीले में तो प्राकृतिक आपदाओं तथा प्राकृतिक शक्तियों के विरुद्ध सुरक्षा के लिए राजनीतिक संगठन तो हमेशा प्रयास करते रहते हैं।

2. मध्य भारत के कबीले (Central Indian Tribes)-भारत में सबसे अधिक कबीले मध्य प्रदेश, बिहार तथा उड़ीसा के इस क्षेत्र में ही पाए जाते हैं। इन कबीलों में गोत्रों की एकता के आधार पर राजनीतिक संगठन के कुछ तत्त्व एक जैसे हैं। गांव के मुखिया की सहायता के लिए बुजुर्गों की एक सभा होती है जो गांव के प्रशासन की देख-रेख करती है। इस सभा में निर्णय या तो आम राय से लिए जाते हैं अथवा बहुमत से लिए जाते हैं तथा मुखिया के लिए सभा के निर्णय के विरुद्ध जाना मुश्किल नहीं होता है।

इस क्षेत्र के बहुसंख्यक कबीले भील, गौंड तथा ऊराओं लोग हैं। ऊराओं लोगों ने ‘Parha’ संगठन का निर्माण किया है जो कि बहुत-से पड़ोसी गांवों का संगठन होता है जिस में एक केंद्रीय संगठन ‘परहा पंच’ होता है। प्रत्येक ऊराओं परहा में कई गांव होते हैं। इनमें से एक गांव को रहा (राजा) गांव कहते हैं, दूसरे गांव को दीवान कहते हैं, तीसरे को पनरी (राजा का क्लर्क) कहते हैं, चौथे को कोतवाल गांव कहते हैं और सभी गांवों में से किसी को भी अधिक सत्ता प्राप्त नहीं है तथा उन्हें प्रजा कहा जाता है। राजा गांव को परहा का मुखिया गांव कहा जाता है। परहा के प्रत्येक गांव का अपना एक झंडा होता है तथा बैज (Badge) होता है जो किसी और गांव का नहीं होता है। परहा कौंसिल का मुख्य कार्य अलग अलग गांवों के बीच झगड़े निपटाना है।

संथाल लोगों में सब से निम्न राजनीतिक सत्ता गांव के मुखिया के पास होती है जिसे मंझी (Manjhi) कहा जाता है। मंझी तथा गांव के अन्य बुजुर्ग एक-दूसरे से मिलते हैं तथा गांव के मसलों के बारे में चर्चा करते हैं। मुखिया को विवाह के समय कुछ उपहार भी मिलते हैं तथा उसके पास बिना किराए की ज़मीन भी होती है। मंझी के पास सिविल तथा नैतिक सत्ता भी होती है। अपने दैनिक कार्यों के लिए उप-मुखिया उसकी मदद करता है।

मुंडा लोगों में गांव के मुखिया को मुंडा ही कहा जाता है परंतु धार्मिक मुखिया को ‘पहां’ (Pahan) कहा जाता है। 12 गांवों को मिला कर एक पट्टी अथवा परहा का निर्माण होता है जिसके मुखिया को ‘मनकी’ (Manki) कहा जाता है। गांवों के मुखिया एक समूह का निर्माण करते हैं जिनमें मनकी सबसे प्रभावशाली होता है। गौंड लोगों में मूल राजनीतिक इकाई गांव होता है। गांव के मुखिया को पटेल अथवा मंडल कहा जाता है। गांव के कुछ बुजुर्ग उसकी गांव के कार्य करने लोग बिहार के बस्तर जिले में पाए जाते हैं। चाहे बस्तर के हिंदू राजा की इन लोगों पर कोई प्रभुता नहीं होती है परंतु फिर भी उस को सभी गौंड समूहों का आध्यात्मिक मुखिया माना जाता है।

3. दक्षिण भारतीय कबीले (South Indian Tribes) यह कबाइली क्षेत्र एक तथ्य से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है तथा वह तथ्य यह है कि इस क्षेत्र में तकनीकी तथा आर्थिक रूप से संसार के सबसे पिछड़े हुए कबीले रहते हैं। इस क्षेत्र के अधिकतर कबीले छोटे-छोटे समूह बना कर रहते हैं तथा वह या तो जंगलों में फैले (dispersed) हुए होते हैं या फिर गांवों के किसानों के पास कार्य करते हैं। आम तौर पर यह लोग अपने अनुसार ही जीवन जीते हैं तथा यह किसी बाहरी शक्ति के साथ संपर्क तथा हस्तक्षेप से दूर रहना ही पसंद करते हैं।

अंडेमान तथा निकोबार द्वीप समूहों के कबीले अभी भी आर्थिक विकास की शिकारी तथा भोजन इकट्ठा करने वाली अवस्था में जी रहे हैं। इनमें से बहुत से घुमन्तू समूह होते हैं परंतु फिर भी यह एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में ही घूमते रहते हैं। प्रत्येक स्थानीय समूह में 5-10 परिवार होते हैं तथा हरेक समूह का अपना ही मुखिया होता है। यह स्थानीय समूह अलग ही रहते तथा कार्य करते हैं। चाहे विशेष शिकार करने के समय अथवा कुछ उत्सवों के समय यह अस्थायी तौर पर एक-दूसरे से मिल जाते हैं। इन स्थानीय समूहों के मुखिया ही इनके अंदरूनी मामलों की देख-रेख करते हैं।

कई और घुमंतु कबीलों में समूह के मुखिया नाम की कोई पदवी नहीं है। परिवारों के मुखिया इकट्ठे बैठते हैं तथा जब भी कोई समस्या सामने आती है तथा निर्णय लेने होते हैं तो वह सभी इकट्ठे होकर मसले का निपटारा करते हैं। अलार (Allar) तथा अरंडर (Arandar) लोगों में कोई मुखिया नहीं होता है। समूह के बुजुर्गों में एक जगह एकत्र होने के समय पर समुदाय के मसलों पर चर्चा होती है तथा इनका निर्णय सभी को मानना ही पड़ता है। जो लोग निर्णय को नहीं मानते हैं वह समूह को छोड़ कर चले जाते हैं तथा दूसरे समूह का हिस्सा बन जाते हैं। कदार (Kadar) लोगों में मुखिया की संस्था अब खत्म हो गई है।

केरल के अदियार (Adiyar) कबीले में मुखिया का पद पैतृक होता है। यदि पद के लिए पुत्र ठीक नहीं है तो भतीजे को पद प्राप्त हो जाता है। मुखिया एक विशेष पद है परंतु वह एक निरंकुश
(Autocratic) शासक नहीं होता है। वह केवल बुजुर्गों की मीटिंग की प्रधानता करता है जिसमें समुदाय के मामलों की चर्चा होती है।

प्रश्न 7.
जनजातीय विवाह क्या होता है? जनजातियों में जीवन साथी चुनने के कौन-कौन से तरीके हैं?
उत्तर:
भारत में जनजातीय विवाह (Tribal Marriage in India)-भारत में सैंकड़ों जनजातीय समूह निवास करते हैं। प्रत्येक जनजाति में अपनी अलग संस्कृति, रीति-रिवाज, विश्वास एवं धर्म होता है। अलग संस्कृति होने के कारण इनकी अलग पहचान भी होती है। भारत में कुछ जनजातियां त्योहारों या उत्सवों के अवसर पर विवाह पूर्व या विवाहेत्तर यौन संबंध स्थापित करने की अनुमति प्रदान करती हैं। परंतु इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि इन समाजों में विवाह संबंधी कोई नियम ही नहीं है।

विवाह संबंधी अनेक नियम भी जनजाति की अपनी अलग पहचान बनाते हैं। जनजातियों में आमतौर पर एक विवाह की प्रथा पाई जाती है। विभिन्न जनजातियों थेडा, अंडमानी, चेंचू, कादर इत्यादि सबसे कम विकसित जनजातियां हैं। जीवन साथी के चुनाव में भी जनजातीय समाजों में अनेक नियम व निषेधों की पालना की जाती है।

जनजाति में विवाह के प्रकार (Types of Marriage in Tribes) भारतवर्ष में भारतीय जनजातियों में पाए जाने वाले विवाह के प्रमुख स्वरूपों का वर्णन निम्नलिखित है:
1. एक विवाही प्रथा (Monogamy)-भारत की अधिकतर जनजातियों में एक विवाह की प्रथा का प्रचलन है। एक विवाह प्रथा के अंतर्गत एक व्यक्ति, एक समय में केवल एक ही विवाह कर सकता है। भारतीय मुख्यः जनजातियों, जैसे संथाल, मुंडा, ओकाओ, हो, गोंड, भील, कोर्वा, जुआंगा, लीठा, बिरहोल, भोत, मिना, कादर, मीजो इत्यादि में एक विवाही प्रथा ही प्रचलित है।

2. बहु विवाह प्रथा (Polygamy) बहु विवाह प्रथा के अंतर्गत व्यक्ति एक समय में एक से अधिक स्त्री/पुरुषों के साथ विवाह कर सकता है। भारत की अनेक जनजातियों में बहु विवाह प्रचलित है।

बहु विवाह दो प्रकार का है।

  • बहु पति विवाह (Polyandry)
  • बहु पत्नी विवाह Polygany)।

1. बहु पति विवाह (Polyandry)-बहु पति विवाह प्रथा के अंतर्गत एक स्त्री के एक समय में अनेक पति होते हैं अर्थात अनेक पति एक पत्नी। भारत की कई जनजातियों में यह प्रथा पाई जाती है। भारत आर्य तथा मंगोल जनजातियों, थेडा, कोटा, खासा तिब्बत के लोगों में भी सामान्यतया इसी प्रथा का पालन होता है। बहु पति विवाह के भी आगे दो रूप हैं।

भ्रातृत्व बहु पति और अभ्रातृत्व बहु पति विवाह-भ्रातृत्व बहु पति विवाह में कई सगे भाइयों की एक ही समय में एक ही पत्नी होती है। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में भ्रातृत्व बहुपति प्रथा पाई जाती है। अभ्रातृत्व बहुपति प्रथा के अंतर्गत अनेक पति आपस में सगे भाई नहीं होते। अनेक विभिन्न व्यक्ति एक स्त्री से विवाह करते हैं तथा उनकी पत्नी थोड़े-थोड़े समय के लिए बारी-बारी सबके पास जाती है। टोडा, नापर, कोटा, मन्ना आदि जनजातियों में यही प्रथा प्रचलित है।

2. बह पत्नी विवाह (Polygany)-इस प्रथा के अंतर्गत एक समय में एक पुरुष की एक से अधिक पत्नियां होती हैं। बहू पत्नी विवाह का यह रूप अनेक भारतीय जनजातियों में पाया जाता है। इन जनजातियों के समाज में इस प्रथा का पालन करना सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है। नागा, गोंड, थेडा, लोशाई, पालियन, पुलामो इत्यादि जनजातियों में बहु पत्नी विवाह प्रथा ही पाई जाती है।

भारतीय जनजातियों में उपर्युक्त विवाह के स्वरूपों के अतिरिक्त कुछ विवाह अधिमानिक अर्थात् आदेशात्मक भी होते हैं। अधिमानक (Preferential) विवाहों के अंतर्गत चचेरे, ममेरे, भाई-बहनों का विवाह (Cross Cousin Marriage) नियोग एवं भगिनीयता (Levirate & Sorarate) विवाह आते हैं। चचेरे, ममेरे, भाई-बहिन किसी व्यक्ति के परिवार के दोनों ओर से भी हो सकते हैं अर्थात् पिता की बहन या माता के भाई या पिता के भाई के बच्चे भी हो सकते हैं।

ये विवाह अपने चाचा, मामा इत्यादि के बच्चों में किया जाता है। इस तरह नियोग तथा भगिनीयता विवाह भी इसी समाज में पाया जाता है। नियोग (Levirate) विवाह में एक व्यक्ति अपने मृत भाई की विधवा पत्नी से विवाह कर सकता है। भगिनीयता विवाह में व्यक्ति का विवाह साली (Sister in Law) से किया जाता है। नियोग और भगिनीयता विवाह विशेष रूप से अंतर पारिवारिक दायित्वों की स्वीकृति पर बल देते हैं। इन प्रथाओं में विवाह के दो व्यक्तियों की अपेक्षा दो परिवारों के बीच संबंध को अधिक मान्यता दी जाती है।

जनजातियों में जीवन साथी चुनने के तरीके – (Tribal ways of Choosing & Life-Mate):
जनजातियों में विवाह यौन सुख, संतान उत्पत्ति व आपसी सहयोग के विकास के लिए किया जाता है। हिंदू समाज की तरह जनजातियों में विवाह एक धार्मिक संस्कार नहीं माना जाता बल्कि इसमें विवाह को एक सामाजिक समझौते के रूप में देखा जाता है। जनजातियों में मुख्यतः निम्न प्रकार के विवाह संबंध विकसित किये जाते हैं-

1. सह-पलायन विवाह (Elopment Marriage)-विवाह योग्य लड़का-लड़की दोनों घर से भाग जाते हैं तथा विवाह कर लेते हैं। उसे सह-पलायन कहते हैं। इसके बाद बड़े-बूढ़े व्यक्ति इनकी जोड़ी को स्वीकार कर लेते हैं। यह विवाह पद्धति मुख्यतः वधू की ऊंची कीमत के कारण विकसित हुई मानी जाती है। सह-पलायन या घर से भाग कर विवाह का प्रचलन मुख्यतः किन्नौर, लाहौल स्पीति, छोटा नागपुर एवं झारखंड की जनजाति में है। झारखंड राज्य में ‘हो’ जनजाति में इस विवाह को राजी-खुशी विवाह कहा जाता है।

2. विनिमय विवाह (Marriage by Exchange)-इस प्रकार की विवाह प्रथा में दो परिवार स्त्रियों का आपस में आदान-प्रदान करते हैं। यह विवाह की विधि वधू की ऊंची कीमत के भुगतान से बचने के लिए विकसित की गई है। ये विवाह प्रथा संपूर्ण भारतवर्ष में किसी न किसी रूप में देखी जा सकती है। इस प्रथा के अंतर्गत एक व्यक्ति अपनी पत्नी प्राप्त करने के लिए उसके बदले में अपनी बहिन या परिवार की कोई स्त्री देता है। ये विधि खासी जनजाति की विशेषता है।

3. खरीद विवाह (Marriage by Purchase)-इस विवाह का रूप प्रारंभिक जनजातियों समाजों में अत्यधिक प्रचलित था। इस विवाह में वधू का मूल्य चुकाया जाता है। वधू के मूल्य का भुगतान नगद या फिर वस्तु के रूप में किया जाता है। मुख्य जनजातियां मुंडा, ओराओ, हो, संथाल, नागा, रेग्मां आदि में खरीद विवाह ही प्रचलित है। खरीद विवाह को क्रय विवाह भी कहा जाता है।

4. लूट विवाह (Marriage by Capture)-भारतीय जनजातियों में वधू प्राप्त करने का तरीका लूटकर विवाह करना है। यह प्रथा जनजातियों में वधू का अत्यधिक मूल्य का होने के कारण प्रचलित है। स्त्रियां लूटकर विवाह करने की प्रथा उत्तर:पूर्वीय क्षेत्र की नागा जनजातियों में अधिक प्रचलित है। इस प्रथा में एक जनजाति के लोग अपनी शत्रु जनजाति पर हमला करते हैं तथा लड़कियों को उठाकर ले जाते हैं। विवाह की ये प्रथा नागा, संथाल, मुंडा, गौंड, भील तथा पाई आदि जनजातियों में पायी जाती है।

5. सेवा विवाह (Marriage by Service)-इस विवाह प्रथा में लड़का अपने ससर के घर विवाह पूर्व एक निश्चित समय तक उसकी सेवा करता है। इस अवधि के पश्चात् यदि वधू का पिता उसकी सेवा से संतुष्ट होता है तो अपनी बेटी का हाथ उसे देता है। यदि वह उसके कार्य से असंतुष्ट होता है तो वर को घर से निकाल दिया जाता है। सेवा अवधि व सेवा स्वरूप भिन्न-भिन्न जातियों में भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है। गौंड, बैगा आदि जनजातियों में ये प्रथा पाई जाती है।

6. हठ विवाह (Marriage by Intrusion) हठ विवाह के अंतर्गत एक व्यक्ति किसी स्त्री के साथ आत्मीयता के संबंध बनाता है। परंतु किसी न किसी बहाने से विवाह करने से हट जाता है तो वह स्त्री अपने-आप पहल करके उस व्यक्ति के घर में घुस जाती है। व्यक्ति के माता-पिता उसको मारते-पीटते हैं और प्रताड़ित करते हैं। यदि कन्या यह सह लेती है तो पड़ोस के लोग उस युवक को उस कन्या से विवाह के लिए बाध्य कर देते हैं। कई जनजातियों में इस विवाह को अनादर विवाह कहा जाता है।

7. परीवीक्षा विवाह (Probationary Marriage)-इस विवाह के फलस्वरूप एक युवक निश्चित समय के लिए युवती के घर उसके पिता के साथ रहता है। इस परीवीक्षा काल में युवक व युवती यदि दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हैं तो उनका विवाह कर दिया जाता है अन्यथा दोनों अलग-अलग हो जाते हैं। इसमें क्षतिपूर्ति के रूप में युवक, युवती को कुछ दान देता है। इस परीवीक्षा अवधि में यदि युवती गर्भवती हो जाए तो युवक को उससे विवाह करना ही पड़ता है। मणिपुर की कूकी जनजाति में यह विवाह प्रथा प्रचलित है।

8. परीक्षा विवाह (Marriage by Test)-इस परीक्षा विवाह के अंतर्गत व्यक्ति तभी विवाह कर सकता है जब वह अपने आपको इसके लिए प्रमाणित कर लेता है। इस प्रथा में होली के अवसर पर सभी विवाह के इच्छुक नौजवान लड़के तथा लड़कियां एक पेड़ के नीचे या खंबे के पास इकट्ठे होकर (वृत्त बनाकर) नृत्य करते हैं। उस पेड़ या खंबे की चोटी पर नारियल और गुड़ बांधा जाता है। युवतियां पेड़ या खंबे के चारों ओर वृत्त बनाकर नृत्य करती हैं तथा युवक युवतियों के वृत्त के चारों और वृत्त बनाकर नाचते हैं।

हर युवक पेड़ या खंबे के नज़दीक पहुंचने की कोशिश करता है। युवतियां इन्हें रोकने का पूरा प्रयास करती हैं। यहां तक कि युवक को रोकने के लिए उसे डंडे तक से भी पीटा जाता है। इस सबके बावजूद भी यदि युवक पेड़ या खंबे तक पहुंचने में कामयाब हो जाता है और नारियल व गुड़ प्राप्त कर लेता है तो उसे नृत्य करती हुई किसी भी युवती के साथ विवाह करने की अनुमति मिल जाती है। उपर्युक्त स्वरूपों के आधार पर कहा जा सकता है कि अनेक जनजातियां अपने-अपने आधार पर विवाह के अनेक स्वरूपों को अपनाए हुए हैं।

प्रश्न 8.
परिवार का क्या अर्थ है? इसकी परिभाषाओं तथा विशेषताओं की व्याख्या करें।
उत्तर:
परिवार का अर्थ (Meaning of Family)-परिवार शब्द अंग्रेजी के शब्द ‘Family’ का हिंदी रूपांतर है। Family शब्द रोमन शब्द (Famulous) ‘फैमलयस’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘नौकर’ या ‘दास’.। इस तरह से रोमन कानून में परिवार से अभिप्राय है एक ऐसा समूह जिसमें नौकर या दास, मालिक या सदस्य शामिल हैं जो कि रक्त संबंधों के आधार पर एक-दूसरे से संबंधित हों। इससे स्पष्ट है कि परिवार कुछ लोगों का इकट्ठा होना नहीं, बल्कि उनमें संबंधों की व्यवस्था है।

यह एक ऐसी संस्था है, जिसमें औरत और आदमी का समाज से मान्यता प्राप्त लिंग संबंधों (Sex Relations) को स्थापित करता है। संक्षेप में, परिवार व्यक्तियों का वह समूह है, जो कि विशेष “नाम” से पहचाना जाता है जिसमें स्त्री एवं पुरुष का स्थायी लिंग संबंध हो, और इसी प्रक्रिया में सदस्यों के पालन-पोषण की व्यवस्था हो तथा उनमें रक्त के संबंध हों और वे एक विशेष निवास स्थान पर रहते हों।

परिवार ‘शब्द’ का सही अर्थ जानने के लिए यह आवश्यक है कि समाज शास्त्रियों की ओर से दी गई सभी परिभाषाओं को ठीक तरह से देख लें। इन सभी में थोड़ा-बहुत अन्तर तो है ही क्योंकि हर विद्वान् ने अपने दृष्टिकोण से और अपने-अपने हालातों के अनुसार परिभाषा दी है। इन सभी का वर्णन निम्न प्रकार से है-
(1) आगबर्न और निमकॉफ (Ogburn and Nimcoff) के अनुसार, “परिवार बच्चों सहित या बच्चों रहित, पति-पत्नी या अकेला एक आदमी या औरत और बच्चों की एक स्थाई सभा है।”

(2) मैकाइवर और पेज़ (Maclver and Page) के अनुसार, “परिवार एक ऐसा समूह है जो कि निश्चित एवं स्थायी लिंग संबंधों द्वारा परिभाषित किया जाता है, जो बच्चों को पैदा करने एवं पालन-पोषण के अवसर प्रदान करता है।”

(3) मर्डोक (Mardock) के अनुसार, “परिवार एक ऐसा समूह है जिसकी विशेषताएं हमारा निवास स्थान, आर्थिक सहयोग और संतान की उत्पत्ति या प्रजनन हैं, इसमें दोनों लिंगों के बालिग शामिल होते हैं और इसमें कम से-कम दो के मध्य सामाजिक दृष्टि से स्वीकृत लिंग संबंध होता है और लिंग संबंधों से बने इन बालिगों के अपने या गोद लिए हुए एक या इससे ज्यादा बच्चे होते हैं।” इस तरह उपरोक्त सभी समाज शास्त्रियों द्वारा दी गई परिवार की परिभाषाएं देखते हुए, हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि परिवार एक ऐसा समूह है, जिसमें आदमी एवं औरत के लैंगिक संबंधों को समाज की तरफ से मान्यता प्राप्त होती है।

इस तरह से यह एक जैविक इकाई है जिसमें लैंगिक संबंधों की पूर्ति एवं संतुष्टि होती है और उससे बच्चे पैदा किए जाते हैं, बच्चों का पालन-पोषण किया जाता है और उन्हें बड़ा किया जाता है। इस तरह यहां पर लिंग संबंधों को विधिपूर्वक स्वीकार किया जाता है और यह आर्थिक आधार पर भी टिका है। इसमें बच्चों की ज़िम्मेदारी भी शामिल है।

इस प्रकार परिवार व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक आवश्यकता है। चाहे इसके अर्थों के बारे में अलग-अलग समाजशास्त्रियों के विचारों में भिन्नता पाई जाती है, परंतु सभी इस बात पर सहमत हैं कि परिवार ही एक ऐसा समूह है जिसमें मर्द तथा स्त्री के लैंगिक संबंधों को मान्यता प्रदान की जाती है तथा यह एक सर्वव्यापक समूह है जो प्रत्येक समाज में पाया जाता है। परिवार को एक जैविक इकाई के रूप में भी माना जा सकता है।

परिवार की विशेषताएँ
(Characteristics of Family)
1. परिवार एक सर्वव्यापक समूह है (Family is a universal group)-परिवार को एक सर्वव्यापक समूह माना जाता है क्योंकि यह प्रत्येक समाज तथा प्रत्येक काल में पाया जाता रहा है। अगर इसे मनुष्यों के इतिहास के पहले समूह या संस्था के रूप में माने तो ग़लत नहीं होगा। व्यक्ति किसी-न-किसी परिवार में ही जन्म लेता है तथा वह तमाम उम्र उस परिवार का सदस्य बनकर ही रहता है। प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी परिवार का सदस्य हमेशा ही होता है। इस कारण ही इसे सर्वव्यापक समूह माना जाता है। यहां तक कि व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति भी परिवार में ही होती है।

2. परिवार छोटे आकार का होता है (Family is of small size)-प्रत्येक परिवार छोटे तथा सीमित आकार का होता है। इसका कारण यह है कि व्यक्ति का जिस समूह अथवा परिवार में जन्म होता है उसमें या तो रक्त संबंधी या वैवाहिक संबंधी ही शामिल किए जाते हैं। प्राचीन समय में तो संयुक्त परिवार होते थे जिनमें बहुत से रिश्तेदार जैसे कि दादा-दादी, ताया-तायी, चाचा-चाची, उनके बच्चे इत्यादि शामिल होते थे। परंतु समय के साथ साथ बहत से कारणों के कारण समाज में परिवर्तन आए तथा संयुक्त परिवारों की जगह मूल परिवार सामने आए जिनमें केवल माता-पिता तथा उनके बिन विवाहित बच्चे रहते हैं। विवाह के बाद बच्चे अपना अलग मूल परिवार बना लेते हैं। इस प्रकार परिवार छोटे तथा सीमित आकार का होता है जिसमें रक्त संबंधी अथवा वैवाहिक संबंधी ही शामिल होते हैं।

3. परिवार का भावात्मक आधार होता है (Family has emotional base)-प्रत्येक परिवार का भावात्मक आधार होता है क्योंकि परिवार में रहकर ही व्यक्ति में बहुत-सी भावनाओं का विकास होता है। परिवार को समाज का आधार माना जाता है तथा व्यक्ति की मूल प्रवृत्तियां परिवार पर ही निर्भर होती हैं। बहुत-सी भावनाएं तथा क्रियाएं इसमें शामिल होती हैं जैसे कि पति-पत्नी के बीच संबंध, बच्चों का पैदा होना, वंश को आगे बढ़ाना, परिवार को आगे बढ़ाना, परिवार की संपत्ति को सुरक्षित रखना। परिवार में रहकर ही व्यक्ति में बहुत-सी भावनाओं का विकास होता है जैसे कि प्यार, सहयोग, हमदर्दी इत्यादि। इन सबके कारण ही परिवार समाज की प्रगति में अपना योगदान देता है।

4. परिवार का सामाजिक संरचना में केंद्रीय स्थान होता है (Family has a central position in Social Structure)-परिवार एक सर्वव्यापक समूह है तथा यह प्रत्येक समाज में पाया जाता है। इसे समाज का पहला समूह भी कहा जाता है जिस कारण समाज का संपूर्ण ढांचा ही परिवार पर निर्भर करता है। समाज में अलग-अलग सभाएं भी परिवार के कारण ही निर्मित होती हैं तथा इस वजह से ही परिवार को सामाजिक संरचना में केंद्रीय स्थान प्राप्त है।

प्राचीन समय में तो परिवार के ऊपर ही सामाजिक संगठन निर्भर करता था। व्यक्ति के लगभग सभी प्रकार के कार्य परिवार में ही पूर्ण हो जाया करते थे। चाहे आधुनिक समाज में बहुत-सी और संस्थाएं सामने आ गई हैं तथा परिवार के कार्य इन संस्थाओं द्वारा ले लिए गए हैं, परंतु फिर भी व्यक्ति से संबंधित बहुत से ऐसे कार्य हैं जो केवल परिवार ही कर सकता है और कोई संस्था नहीं कर सकती है।

5. परिवार का रचनात्मक प्रभाव होता है (Family has a formative influence)-परिवार नाम की संस्था ऐसी संस्था है जिससे व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास पर एक रचनात्मक प्रभाव पड़ता है तथा इस कारण ही सामाजिक संरचना में परिवार को सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। अगर बच्चे का सर्वपक्षीय विकास करना है तो वह केवल परिवार में रहकर ही हो सकता है। परिवार में ही बच्चे को समाज में रहन-सहन, व्यवहार करने के ढंगों का पता चलता है।

बहुत से मनोवैज्ञानिक तो यहां तक कहते हैं कि शुरू के सालों में ही बच्चे ने जो कुछ बनना होता है वह बन जाता है। बाद की उम्र में तो उसमें केवल अच्छाई तथा बुराई जैसी चीजें ही विकसित होती हैं। बच्चा परिवार में जो कुछ होते हुए देखता है वह उसके अनुसार ही सीखता है तथा वैसा ही बन जाता है। इस प्रकार परिवार या व्यक्ति के व्यक्तित्व पर एक रचनात्मक प्रभाव पड़ता है।

6. यौन संबंधों को मान्यता (Sanction of Sexual relations)-व्यक्ति जब विवाह करता है तथा परिवार का निर्माण करता है तो ही उसके तथा उसकी पत्नी के लैंगिक अथवा यौन संबंधों को समाज द्वारा मान्यता प्राप्त होती है। परिवार के साथ ही मर्द तथा स्त्री एक-दूसरे से यौन संबंध स्थापित करते हैं। प्राचीन समाजों में यौन संबंध स्थापित करने के लिए कोई नियम नहीं थे तथा कोई भी पुरुष किसी भी स्त्री से यौन संबंध स्थापित कर सकता था। इस कारण ही परिवार का कोई भी रूप हमारे सामने नहीं आया था तथा समाज साधारणतया विघटित रहते थे। इस प्रकार परिवार के कारण ही मर्द तथा स्त्री के संबंधों को मान्यता प्राप्त होती है।

प्रश्न 9.
परिवार के भिन्न-भिन्न प्रकारों की व्याख्या करें।
अथवा
परिवार के विभिन्न प्रकारों या स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यह संसार बहुत ही बड़ा है। इसमें कई प्रकार के समाज एवं सामाजिक इकाइयां पाई जाती हैं। हरेक समाज की अपनी उसकी भौगोलिक स्थिति के अनुसार, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विशेषताएं होती हैं। इसी कारण उन समाजों में अलग-अलग तरह के परिवार पाए जाते हैं। यह इस तरह होता है कि हर समाज के अलग-अलग रीति रिवाज, आदर्श विश्वास एवं संस्कृति होती है। एक ही देश, जैसे भारत में कई तरह के समाज पाए जाते हैं।

उदाहरण के तौर पर, पितृ सत्तात्मक, मातृ सत्तात्मक समाज। इसी तरह से परिवारों के भी अनेक रूप हैं। इन्हीं रूपों को संख्या के आधार पर, विवाह के आधार पर, सत्ता के आधार पर एवं वंश के आधार पर तथा रहने के आधार पर विभाजित किया जा सकता है। हम अभी इनको अलग-अलग तरीके से देखने की कोशिश करेंगे।

1. विवाह के आधार पर परिवार की किस्म (On the basis of marriage)-
A. एक-विवाही परिवार (Monogamous Family)-इस तरह के परिवार में व्यक्ति एक ही औरत के साथ विवाह कर सकता है और उसी के साथ रहता हुआ सन्तान की उत्पत्ति करता है। आजकल इसी विवाह को आदर्श विवाह एवं ऐसे परिवार को सही परिवार माना जाता है।

B. बहु-विवाही परिवार (Polygamous Family)-इस तरह के परिवार में, जब एक आदमी एक से ज्यादा औरतों के साथ विवाह कर सकता है या फिर एक औरत, एक से ज्यादा पतियों से विवाह करती है तो इस प्रकार के विवाह को बहु-विवाही कहते हैं। यह भी आगे दो प्रकार का होता है-
(i) बहु-पति विवाह (Polyandrous Family)-जब कोई औरत एक से ज्यादा पतियों के साथ विवाह करवाती है, तो बहु-पति विवाह होता है। इस विवाह की विशेषता यह होती है कि एक औरत के कई पति होते हैं। इनमें यह भी दो प्रकार के होते हैं

  • इसमें औरत के सभी पति सगे भाई होते हैं।
  • दूसरी अवस्था में यह आवश्यक नहीं कि वे सभी सगे भाई हों।

(ii) बहु-पत्नी विवाह (Polygamous Family) इस प्रकार के विवाहों में, पति यानि कि आदमी एक से ज्यादा औरतों से विवाह करवाता है। इस प्रकार के परिवारों में एक आदमी की कई पत्नियां होती हैं। इस प्रकार के विवाह मुसलमानों में आमतौर पर मिल जाते हैं। इस तरह से मुस्लिम समुदाय में चार पलियां रखने की आज्ञा दी गई है। पुराने जमाने में हिंदू राजे-महाराजे भी कई पत्नियां रखते थे। सन् 1955 में हिंदू विवाह कानून के आधार पर हिंदुओं को एक से ज्यादा पत्नियां रखने का अधिकार नहीं है। परंतु भारत में अभी कई कबीलों में वही पुरानी परंपरा कायम है, जैसे नागा, गोण्ड, जिनमें इस तरह के परिवार अभी भी पाए जाते हैं।

2. सदस्यों के आधार पर परिवार की किस्में (Family on the basis of members)-सदस्यों के आधार पर परिवार के तीन प्रकार हैं-
A. केन्द्रीय परिवार (Nuclear Family)-यह एक छोटा परिवार होता है, जिसमें एक पति एवं पत्नी और उनके अविवाहित बच्चे शामिल होते हैं। इस परिवार में बाकी कोई भी रिश्तेदार या सदस्य नहीं होता। आजकल समाज में इन्हीं परिवारों की अधिकता है। इन परिवारों के सदस्य आमतौर पर शहरों में नौकरी करते हैं और जब उनके बच्चे विवाह करवा लेते हैं, तो वे भी एक केंद्रीय परिवार को जन्म दे देते हैं।

B. संयुक्त परिवार (Joint Family)-इस तरह के परिवार में बहुत सारे सदस्य होते हैं, जिसमें दादा-दादी, चाचा-चाची, भाई-भौजाई एवं ताया-तायी, उनके बच्चे, भाई-बहन आदि सभी इस प्रकार से शामिल होते हैं। इस प्रकार के परिवार अभी भी गाँवों में पाये जाते हैं।

C. विस्तृत परिवार (Extended Family) इस तरह के परिवार, संयुक्त परिवारों से ही बनते हैं। जब संयुक्त परिवार आगे बड़े हो जाते हैं, तो वे “विस्तृत परिवार’ कहलाते हैं। इनमें सभी भाई, उनके बच्चे विवाह के उपरांत भी साथ में रहते हैं चाहे उनके भी आगे बच्चे हो जायें। आजकल के समाजों में, इस तरह के परिवार मुमकिन नहीं हैं। प्राचीन काल में ऐसा हो जाता था, क्योंकि उनके काम-धंधे एक ही हुआ करते थे।

3. वंश नाम के आधार पर परिवार के प्रकार (On the basis of Nomenclature) इस आधार पर परिवार की चार तरह की किस्में मिलती हैं-
(i) पितृ-वंशी परिवार (Patrilineal Family) इस तरह का परिवार पिता के नाम से ही चलता है। इसका अर्थ ता का नाम उसके पुत्र को मिलता है और पिता के वंश का महत्त्व होता है। आजकल इस तरह के परिवार मिल जाते हैं।

(ii) मातृ-वंशी परिवार (Matrilineal Family)-इस तरह के परिवार माँ के नाम के साथ चलते हैं, जिसका अर्थ है कि बच्चे के नाम के साथ माता के वंश का नाम आएगा। माता के वंश का नाम बच्चों को प्राप्त होगा। इस प्रकार के परिवार भारत के कुछ कबीलों में भी मिल जाते हैं।

(iii) दो वंश नामी परिवार (Bilinear Family)-इस प्रकार के परिवारों में बच्चे को दोनों वंशों के नाम प्राप्त होते हैं और दोनों वंशों के नाम साथ-साथ में व्यक्ति के साथ चलते हैं।

(iv) अरेखकी परिवार (Non-Unilinear Family)-इस प्रकार के परिवारों में वंश के नाम का निर्धारण सभी नज़दीक के रिश्तेदारों के आधार पर होता है। इसको अरेखकी परिवार कहते हैं।

4. रिश्तेदारों के प्रकार के आधार पर परिवारों की किस्म (On the basis of types of Relatives)-इस प्रकार के परिवार भी दो प्रकार के होते हैं-
(i) रक्त संबंधी परिवार (Consanguine Family)-इस प्रकार के परिवारों में रक्त संबंधों का स्थान सबसे ऊपर होता है और इनमें किसी भी प्रकार के लिंग संबंध नहीं होते। इस परिवार में पति-पत्नी भी होते हैं, परंतु यह परिवार के आधार नहीं होते। इस परिवार में सदस्यता जन्म के आधार के कारण प्राप्त होती है। ये स्थायी होते हैं। तलाक भी इन परिवारों के अस्तित्व को समाप्त नहीं कर सकता।

(ii) विवाह संबंधियों का परिवार (Conjugal Family)-इस प्रकार के परिवारों में पति-पत्नी और उनके बिन ब्याहे बच्चे होते हैं अर्थात् जिनका विवाह अभी नहीं हुआ होता। इसमें पति-पत्नी और उनके रिश्तेदार भी शामिल होते हैं। यह परिवार किसी की मौत के बाद या फिर तलाक के बाद भी भंग हो सकता है।

5. रहने के स्थान के आधार पर आधारित परिवार (Family on the basis of Residence)-इस प्रकार के परिवार तीन तरह के होते हैं-
(i) पितृ-स्थानी परिवार (Patrilocal Family)-इस प्रकार के विवाह के बाद, लड़की अपने परिवार को छोड़कर अपने पति के घर रहने लग जाती है और इस तरह अपना परिवार बसाती है। इस तरह के परिवार आमतौर पर मिल जाते हैं।

(ii) मातृ-स्थानी परिवार (Matrilocal Family)-इस प्रकार के परिवार उपरोक्त परिवार से बिल्कुल विपरीत होते हैं। इनमें लड़की अपने पिता का घर छोड़कर नहीं जाती, वह उसी घर में ही रहती है। इसमें पति अपने पिता का घर छोड़कर, पत्नी के घर आकर रहने लग जाता है। इसको मातृ-स्थानी परिवार कहते हैं। ‘गारो’, खासी इत्यादि कबीलों में इस प्रकार के विवाह पाए जाते हैं।

(iii) नव-स्थानी-परिवार (Neo-Local-Family)-इस प्रकार के परिवार दोनों तरह की किस्मों से अलग हैं। इस तरह के विवाह के पश्चात् पति-पत्नी कोई भी एक-दूसरे के माता-पिता के घर नहीं जाते और न ही वहां रहते हैं। इसके विपरीत वे अपना और घर बनाते हैं और वहां पर जाकर रहते हैं। इस परिवार को नव-स्थानी परिवार कहा जाता है। आजकल के औद्योगीकरण के युग में बड़े-बड़े शहरों में, इस तरह के परिवार आम देखने में मिलते हैं।

6. सत्ता के आधार पर परिवार के प्रकार (On the basis of Authority)-इस तरह के परिवार भी दो तरह के होते हैं-
(i) पितृ सत्तात्मक परिवार (Patriarchal Family)-जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है, कि इस तरह के परिवार में शक्ति पिता के हाथों में होती है। परिवार के सभी कार्य पिता की मर्जी के अनुसार होते हैं। वह ही परिवार का कर्ता होता है। इस तरह से परिवार के सारे छोटे-बड़े कार्य का फैसला वह स्वयं ही करता है। भारत में इस तरह के परिवार ज्यादातर पाए जाते हैं।

(ii) मातृ-सत्तात्मक परिवार (Matriarchal Family)-इस तरह से यह भी नाम से ही प्रतीत होता कि इस तरह के परिवार में शक्ति माता के हाथ में होती है। मातृ सत्तात्मक परिवार में सभी फैसले एवं कर्ता माता होती है। बच्चों के ऊपर ज्यादा अधिकार माता का होता है। स्त्री ही इसमें मूल पूर्वज मानी जाती है। इसमें संपत्ति का वारिस माता का पुत्र नहीं होता, बल्कि उसका भाई अथवा ‘भांजा’ होता है। कई तरह के कबीलों जैसे गारो, खासी आदि में ऐसा आमतौर पर देखने को मिलता है।

प्रश्न 10.
एकाकी अथवा केंद्रीय परिवार का क्या अर्थ है? विशेषताओं सहित व्याख्या करें।
उत्तर:
केंद्रीय परिवार के अर्थ एवं परिभाषाएं-परिवार को संख्या के आधार पर दो भागों में बांटा जा सकता है, केंद्रीय एवं संयुक्त परिवार। इसमें केंद्रीय परिवार छोटा परिवार माना जाता है, इसमें माता-पिता तथा उनके कुंवारे बच्चे ही रहते हैं। संयुक्त परिवार में दादा-दादी, माता-पिता, ताया-तायी और उनके सभी बच्चे साथ में ही रहते हैं। इस प्रकार से केंद्रीय परिवारों की परिभाषा भिन्न-भिन्न विद्वानों ने अपने तरीके से की है। इनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं-
(1) मर्डोक के अनुसार- केंद्रीय परिवार एक शादीशुदा आदमी और उसकी औरत और उनके बच्चों को मिलाकर बनता है, जबकि यह हो सकता है कि और व्यक्ति भी उनके साथ एक परिवार बना कहै।”

(2) इसी प्रकार से विदवान आर०पी० देसाई ने अपने शब्दों में इसकी परिभाषा इस प्रकार से दी है- ”केंद्रीय परिवार वह है, जिसके सदस्य, अपने दूसरे रिश्तेदारों के साथ संपत्ति, आमदनी, अधिकार एवं कर्तव्यों द्वारा संबंधित न हों, जैसे कि रिश्तेदार से रिश्तेदारी की उम्मीद की जाती है।”

इस प्रकार उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि इकाई परिवार में केवल माता-पिता, उनके कुंवारे बच्चे ही रहते हैं और फिर जब उनका विवाह हो जाता है तो वे अपना अलग घर बना कर चले जाते हैं अर्थात् अपने अलग घर में रहते हैं। इस तरह से यह परिवार विवाह के आधार पर ही जुड़े होते हैं। इनका आकार भी छोटा ही होता है। इसमें नया जोड़ा अपना अलग घर बना कर रहता है। इसलिए इसको प्रजनन परिवार भी कहा गया है।

केंद्रीय अथवा इकाई परिवार की विशेषताएँ
(Characteristics of Nuclear Family)
1. छोटा आकार (Small Size)-इस तरह के परिवारों की सबसे मुख्य विशेषता यह है कि इनका आकार बहुत छोटा होता है, क्योंकि इसमें केवल माता-पिता और उनके कुंवारे बच्चे ही रहते हैं। इनमें सदस्यों की संख्या सीमित होती है, जैसे कि आजकल दो या तीन बच्चों का चलन है। इस तरह से जब यह बच्चे विवाह करते हैं तो यह अपने नए घर में जाकर रहते हैं।

2. सीमित संबंध (Limited Relations) केंद्रीय परिवार में ज़्यादा से ज्यादा आठ रिश्तों को माना गया है अथवा शामिल किया गया है, जैसे कि पति-पत्नी, पिता-पुत्र, माता-पुत्र, पिता-पुत्री, माता-पुत्री, बहन-भाई, भाई भाई, बहन-बहन। इनमें द्वितीय रक्त के संबंधों का महत्त्व कम माना गया है। उन सदस्यों के साथ संबंध भी रस्मी तौर पर ही होते हैं। केंद्रीय परिवारों में व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति अपने परिवार द्वारा ही करता है।

3. प्रत्येक सदस्य का महत्त्व (Importance of every member) केंद्रीय परिवार में पति-पत्नी तथा उनके बिन ब्याहे बच्चे ही रहते हैं तथा यह समानता पर आधारित होते हैं। इस प्रकार के परिवार में दो पीढ़ियों के लोग ही रहते हैं तथा सभी को समान स्थिति ही प्राप्त होती है। पत्नी तथा बच्चों की स्थिति भी इसमें समान ही होती है। घर के सभी सदस्यों में कार्य बँटे हुए होते हैं। माता-पिता अपने बच्चों का अच्छे ढंग से पालन-पोषण करते हैं, उन्हें अच्छी शिक्षा देते हैं ताकि वह अपना भविष्य बना सकें। इस प्रकार प्रत्येक सदस्य को परिवार में समान महत्त्व प्राप्त होता है।

4. बराबर सत्ता (Common authority) संयुक्त परिवारों में घर की सत्ता परिवार के बड़े बुजुर्गों के हाथ में ही होती है तथा पत्नी और बच्चों का कोई महत्त्व नहीं होता है। परंतु केंद्रीय परिवार इसके बिल्कुल विपरीत होते हैं जिनमें घर की सत्ता सभी के हाथ में समान रूप से होती है। घर में केवल पति या पिता की ही सत्ता नहीं चलती है बल्कि पत्नी तथा बच्चों की भी सत्ता चलती है।

घर की प्रत्येक छोटी-बड़ी समस्या को हल करने के लिए उनकी सलाह ली जाती है। इसमें सभी की व्यक्तिगत योग्यता को महत्त्व प्राप्त होता है। यह परिवार परंपरागत परिवारों से अलग होते हैं तथा आधुनिक समाजों में चलते हैं।

5. वैवाहिक व्यवस्था (Marital System) केंद्रीय परिवार विवाह होने के बाद ही सामने आते हैं। अगर देखा जाए तो विवाह के बाद ही केंद्रीय परिवार निर्मित होते हैं। इस प्रकार के परिवार में पति-पत्नी तथा उनके बिन ब्याहे बच्चे रहते हैं। विवाह होने के बाद बच्चे अपना अलग घर बसाते हैं। प्राचीन समाजों में अधिक बच्चे हुआ करते थे परंतु आजकल के समय में केवल एक या दो बच्चे ही होते हैं। इस प्रकार के परिवार का आधार ही विवाह है तथा इस प्रकार के परिवार में बच्चे अपनी इच्छा से विवाह करवाते हैं।

6. व्यक्तिवादी दृष्टिकोण (Individualistic Outlook) संयुक्त परिवारों में परिवार के सभी सदस्य परिवार के हितों के लिए कार्य करते हैं तथा अपने हितों की तिलांजलि दे देते हैं। परंतु केंद्रीय परिवारों में ऐसा नहीं होता है। केंद्रीय परिवारों में लोग केवल अपने हितों को ही देखते हैं। उन्हें परिवार के हितों से कुछ लेना देना नहीं होता है। अगर परिवार पर कोई समस्या आती है तो यह घर छोड़ कर ही चले जाते हैं। उनका दृष्टिकोण सामूहिक नहीं बल्कि व्यक्तिवादी होता है।

प्रश्न 11.
संयुक्त परिवार क्या होता है? इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है। जहां पर 70% के करीब जनसंख्या कृषि अथवा उससे संबंधित कार्यों पर निर्भर करती है। कृषि के कार्य में बहुत से व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ती है जिस कारण यहां पर संयुक्त परिवार प्रथा पाई जाती है। यही प्रथा परंपरागत भारतीय समाज की विशेषता भी है। ग्रामीण समाजों में गतिशीलता कम होती है जिस कारण भी लोग अपने घर छोड़ कर केंद्रीय परिवार बसाना पसंद नहीं करते।

जैसे कि नाम से ही स्पष्ट है संयुक्त परिवार में एक दो नहीं बल्कि तीन अथवा चार पीढ़ियों के लोग इकट्ठे मिल कर रहते हैं। इस प्रकार संयुक्त परिवार में पड़दादा, पड़दादी, दादा-दादी, माता-पिता, ताया-तायी, चाचा-चाची तथा उनके बच्चे सभी शामिल होते हैं तथा इकठे मिल कर रहते हैं। संयुक्त परिवार में चाहे परिवार की संपत्ति घर के मुखिया के हाथों में होती है परंतु सभी का उस पर बराबर का अधिकार होता है।

परिभाषाएँ (Definitions) संयुक्त परिवार प्रणाली की सत्ता पिता के हाथ में होती थी। इस प्रणाली में पिता का कहना माना जाता था। इसमें पिता का कहना पत्थर के ऊपर लकीर वाला कार्य था। इसमें पिता की भूमिका एक निरंकुश शासक की तरह होती थी। इस प्रणाली में लड़के विवाह के पश्चात् भी उसी परिवार में ही रहते थे। अब भी अगर कई जगहों पर यदि संयुक्त प्रणाली है, तो उसमें विवाह के उपरांत सभी बच्चों को साथ में रहना होता है। इसी तरह उनकी आने वाली संतानें भी इकट्ठी रहती हैं।

(1) किंगस्ले डेविस (Kingslay Davis) के अनुसार, “संयुक्त परिवार में वे आदमी होते हैं, जिनके पूर्वज भी इकट्ठे हों, औरतों का विवाह न हुआ हो और अगर हुआ हो तो उनको समूह में शामिल किया जाए। ये सभी सदस्य एक ही निवास स्थान पर रहते हों या इनके मकान एक-दूसरे के निकट होते हैं। किसी भी हालत में, जब तक संयुक्त परिवार इकट्ठा है, इसके सदस्य इसी के लिए मेहनत करते हैं और कुल संपत्ति का बराबर का हिस्सा प्राप्त करते हैं।”

(2) कार्वे (Karve) के अनुसार, “संयुक्त परिवार, उन आदमियों का समूह है, जोकि एक ही घर में रहते हैं और वे सभी एक ही रसोई में खाना बनाते हैं और वे सभी संयुक्त जायदाद के मालिक होते हैं। इस तरह वे सभी किसी न-किसी रक्त संबंधों से संबंधित होते हैं।”

इस प्रकार इन परिभाषाओं को देखकर हम कह सकते हैं कि संयुक्त परिवार में कई पीढ़ियों के लोग रहते हैं। यह सभी लोग एक साझे निवास स्थान पर रहते हैं तथा एक ही रसोई में पका हुआ भोजन खाते हैं।

संयुक्त परिवार में घर की सत्ता घर के मर्दो के हाथों में होती है जिस कारण घर की स्त्रियों की स्थिति भी निम्न होती है। घर की संपत्ति चाहे बड़े बुजुर्गों के हाथों में होती है परंतु सभी सदस्यों का इसमें समान अधिकार होता है। प्रत्येक सदस्य को उसके सामर्थ्य के अनुसार कार्य दिया जाता है तथा वह अपना कार्य अपना उत्तरदायित्व समझ कर पूर्ण करते हैं।

संयुक्त परिवार की विशेषताएँ
(Characteristics of Joint Family)
1. बड़ा आकार (Large in Size)-संयुक्त परिवार आकार में बहुत बड़ा होता है। इसमें माता-पिता के अतिरिक्त, उनके भाई-बहन, भाई, पुत्र, पुत्रियां एवं पौत्र इत्यादि सभी एक जगह इकट्ठे रहते हैं। इन सभी के अतिरिक्त इनके दादा-दादी भी मिलकर सभी के साथ रहते हैं। इस तरह से संयुक्त परिवार में कम-से-कम तीन पीढ़ियों के सदस्य शामिल होते हैं। संयुक्त परिवार में पिता के वंश से संबंधित कई पीढ़ियां इसमें रहती हैं। वे सभी मिलकर एक ही चारदीवारी के अंदर रहते हैं अर्थात् एक ही घर में रहते हैं। इस तरह से ये परिवार संख्या की दृष्टि से आकार में बड़े माने गए हैं।

2. संयुक्त संपत्ति (Joint or Common Property) संयुक्त परिवारों में सारी संपत्ति पर सभी का बराबर का अधिकार होता है। हर सदस्य इसमें अपनी योग्यता के आधार पर अपना योगदान डालता है। इसमें से जिस सदस्य को जितनी ज़रूरत होती है, वह खर्च कर लेता है। इस तरह परिवार का कर्ता जोकि प्रायः परिवार का बड़ा सदस्य होता है, सारी संपत्ति की देखभाल करता है। इस प्रकार से सारी संपत्ति के सभी. बराबर के मालिक होते हैं, परंतु परिवार का मुखिया इसको संभाल कर रखता है।

3. सहयोग की भावना (Feeling of Cooperation)-इस तरह के परिवारों में, सभी सदस्य एक-दूसरे की सहायता करते हैं। इसमें कोई सदस्य ज्यादा काम करता है या कोई सदस्य कम कार्य करता है, उससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। इस मुद्दे पर कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं होता। ऐसे परिवारों के सभी सदस्य एक निश्चित लक्ष्य के लिए कार्य करते हैं और वही उद्देश्य ही उन परिवारों के अस्तित्व को बचा कर रखता है।

4. संयुक्त रसोई (Common Kitchen)-संयुक्त परिवार की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें सभी का खाना एक ही रसोई में तैयार होता है और सभी मिल-जुल कर उसे बनाते हैं। इस प्रक्रिया में इकट्ठे मिल-जुल कर खाते हैं और अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं, ताकि उनका आपसी प्यार बना रहे।

5. संयुक्त निवास स्थान (Common Residence) संयुक्त परिवार की विशेषताओं में यह भी एक प्रमुख विशेषता है कि उसके सभी सदस्य एक ही जगह पर अर्थात् एक ही मकान में रहते हैं। अगर उनकी रिहाइश को अलग-अलग कर दिया जाए, तो वह संयुक्त परिवार न होकर केंद्रीय परिवार हो जाएगा।

6. सदस्यों की सुरक्षा (Security of all Members) संयुक्त परिवार की यह भी एक मुख्य विशेषता है कि यह परिवार अपने सभी सदस्यों की हर तरह से सुरक्षा करते हैं। इन परिवारों में उन सभी का संपत्ति पर अधिकार होता है। यदि कोई सदस्य बीमार हो जाये या उसके साथ कोई सुख-दुःख हो, परिवार के सभी सदस्य, उसकी देखभाल करते हैं।

उसके दुःख अथवा बीमारी पर जो भी खर्च आए, परिवार उसको सहन करता है। यदि किसी मर्द की अचानक मृत्यु हो जाए तो उसके बाद उसकी पत्नी की ज़िम्मेदारी पूरा परिवार मिलकर संभालता है। उसके बच्चों की देख-रेख भी यही परिवार करता है। इस तरह से इस तरह के परिवारों के सभी सदस्य, उनकी संतानें अथवा स्त्रियां पूरी तरह से सुरक्षित होती हैं।

7. संस्कृति की निरंतरता (Continuity of Culture) संयुक्त परिवार का यह मख्य लक्षण है कि उसका कर्ता या परिवार का मुखिया अपने परिवार के सदस्यों पर पूरा अधिकार रखता है और इन परिवारों में पीढ़ियों से इकट्ठे रह रहे होते हैं और अगर यह परंपरा चलती रहे तो पीढ़ी-दर-पीढ़ी ऐसा ही रहता है और उनके प्रेम प्यार में कोई कमी नहीं आती। यदि पिता ने अपने संस्कार पुत्र को दे दिए, वही आगे पुत्र ने अपने पुत्र को दे दिए, इस तरह से उनकी सभ्यता की धरोहर अर्थात् संस्कृति पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक चलती रहती है और उसकी निरंतरता बरकरार रहती है।

8. श्रम विभाजन (Division of Labour)-संयुक्त परिवार में सभी सदस्यों के कामों को बांट दिया जाता है। जिसको जो कार्य सौंप दिया जाता है, वह उसे अपना धर्म समझ कर निभाता है। कोई भी सदस्य अपनी मर्जी के अनुसार कार्य को बदल नहीं सकता। औरतें आमतौर पर घर पर रहकर, घर के काम करती हैं और घर के मर्द, बाहर जाकर रोटी-रोज़ी की समस्या का हल करते हैं अर्थात् कमाने की ज़िम्मेदारी आदमियों के ऊपर होती है।

इन परिवारों में कर्ता के स्थान को सबसे ऊपर माना गया है। इसके पश्चात् उसकी पत्नी का दूसरा नंबर होता है अर्थात् स्त्रियों में सबसे ज्यादा आदर कर्ता की पत्नी का होता है। इन परिवारों में विधवा स्त्री को ज़्यादा महत्त्व नहीं दिया जाता। इस तरह से सदस्यों की स्थिति भी उनके कार्य के अनुसार देखी जाती है। उसे उसकी स्थिति के अनुसार ही काम दिया जाता है।

9. संयुक्त परिवार में कर्ता की भूमिका (Role of Karta in Joint Family)-संयुक्त परिवार में कर्ता की भूमिका सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण होती है। इसमें प्रायः परिवार का सबसे ज़्यादा आयु का व्यक्ति अर्थात् कोई बुजुर्ग ही उसका कर्ता होता है। परिवार के सभी महत्त्वपूर्ण फैसले लेने का अधिकार उसे ही होता है और उसी तरह ही वह फैसला लेता भी है।

सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात कि वह उस परिवार की संपत्ति की चाहे वह चल हो या अचल, उसकी देखभाल उसे ही करनी पड़ती है। इन सारे कार्यों में बाकी परिवार के सदस्य उसकी आज्ञा का पालन करते हैं। इन परिवारों में यदि कर्ता की मृत्यु हो जाती है, तो उस परिवार का बड़ा लड़का फिर देखभाल करता है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ : निरन्तरता एवं परिवर्तन

प्रश्न 12.
संयुक्त परिवार में लाभों तथा हानियों का वर्णन करें।
उत्तर:
संयुक्त परिवार के लाभ
(Merits of Joint Family)
1. सांस्कृतिक सुरक्षा (Cultural Security)-संयुक्त परिवारों के लाभों को देखने के लिए सबसे पहला पक्ष जो हमें नज़र आता है वह है उसका सामाजिक पक्ष। उसमें हम देख सकते हैं कि ये परिवार हमें सामाजिक सुरक्षा, सांस्कृतिक सुरक्षा प्रदान करते हैं। बच्चों की देखभाल एवं पालन-पोषण मिल कर करते हैं।

इनमें सबसे पहले हम देखते हैं कि यह परिवार हमारी सांस्कृतिक धरोहर को बचा कर रखते हैं; जैसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने से बड़ों का सम्मान करना, सभी के साथ मिलकर धार्मिक अनुष्ठानों को पूरा करना और अपने कार्यों को अपना धर्म समझ कर पूरा करना। क्योंकि जो तीन पीढ़ियों के सदस्य इसमें रहते हैं, उनमें एक-दूसरे से मिलकर रहने की भावना रहती है। यह सभी तो इसकी संस्कृति होती है और यह व्यवस्था इसको स्थायी रूप से संभाल कर रखती है और पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्थानांतरित करती चली जाती है।

2. सामाजिक सुरक्षा (Social Security)-संयुक्त प्रणाली अपने सदस्यों की, दुर्घटना, बीमारी एवं बेरोज़गारी अथवा अचानक किसी की मृत्यु हो जाये तो उन हालातों में रक्षा करती है अर्थात् देखभाल करती है। इस प्रकार यह अपने सदस्यों के लिए एक प्रकार की ‘बीमा कंपनी’ जैसा कार्य करती है। यह परिवार अपने बूढ़ों अथवा विधवा औरतों को भी सामाजिक सुरक्षा प्रदान करते हैं।

इन परिवारों में बच्चों की देखभाल भी अपने से बड़े सदस्यों द्वारा अपना समझ कर होती है। यदि कोई सदस्य मानसिक एवं शारीरिक तौर पर किसी भी पक्ष से कमज़ोर है, ये सदस्य उनकी देखभाल एवं रक्षा मिलजुल कर करते हैं। उन्हें किसी भी प्रकार की असुरक्षा महसूस नहीं होने देते। उन्हें भी बराबरी का दर्जा एवं संपत्ति में बराबरी का अधिकार होता है।

3. बच्चों का पालन-पोषण (Taking Care of Children) संयुक्त परिवार में बच्चों के विकास की तरफ पूरा ध्यान दिया जाता है। इन परिवारों में बच्चों में नैतिक नियमों का विकास बहुत ही अच्छा होता है। इन परिवारों में रहते हुए उदारता, सहयोग, प्यार, बड़ों की आज्ञा मानना एवं समाज के प्रति अपने दायित्व को निभाने की कला, तो इन परिवारों का प्रमुख लक्षण है।

इन गुणों में सबसे प्रमुख है, दूसरों के लिए जीने की कला, जो इन परिवारों में सबसे पहले सीखने को मिलती है। संयुक्त परिवार में सभी बच्चों के ऊपर नियंत्रण भी, उनको अनुशासन में रहने की आदत डालनी होती है। इसी तरह ही यह परिवार अपने बच्चों का पालन-पोषण करता है और परिवार का हर सदस्य उसमें बराबर की रुचि लेता है।

4. सामाजिक नियंत्रण (Social Control)-बगैर किसी ज़बरदस्ती के इस परिवार के सदस्यों को नियंत्रण में रहने की आदत पड़ जाती है। वे सभी स्वयं ही इस नियंत्रण को मान लेते हैं क्योंकि उन्हें इसमें सभी की भलाई नज़र आती है। सदस्यों के आपसी संबंध एवं स्नेह प्यार के सामने यह नियंत्रण गौण नज़र आता है।

संयुक्त परिवार में कर्ता को सभी अधिकार दिए गए हैं, और वही अपने इस अधिकार को अपने परिवार की भलाई के लिए ही इस्तेमाल करता है। यदि कोई सदस्य कोई ग़लत काम करता है तो वह अपने अधिकार का इस्तेमाल कर उसे डांट-फटकार भी सकता है। परंतु कोई भी सदस्य उसकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता। इस तरह से यह परिवार अपने सदस्यों की सभी सामाजिक क्रियाओं पर पैनी नज़र रखते हैं और यही नियंत्रण ही उनको समाज में प्रतिष्ठा दिलाता है।

5. मनोरंजन का केंद्र (Centre of Recreation) संयुक्त परिवार अपने सभी सदस्यों को सही दिशा प्रदान करते हुए हर सुखद मौके का इंतज़ार करते रहते हैं। त्योहार इत्यादि, विवाह शादी का अवसर हो अथवा कोई धार्मिक कार्य या कोई और कोई भी सुखद मौका, उसे सभी सदस्य मिलजुल कर, हंसी-खेल करते हुए मनाते हैं।

बच्चे-बूढ़े, जवान और स्त्रियां इन्हीं अवसरों पर खूब मनोरंजन करते हैं और लोक गीतों, कहावतों, गानों और खेलों का आनंद मिलजुल कर लेते हैं और इन्हीं खेलों अथवा बातों-बातों में कई बार अपने तजुर्षों की बातें भी बच्चों को सिखा देते हैं। इस तरह से वे अपना मनोरंजन भी करते रहते हैं।

6. चिंताओं से मुक्ति (Least Tensions of Life)-संयुक्त परिवार में बड़ी से बड़ी समस्या का हल आसानी से मिल जाता है। यदि कोई समस्या आ भी जाए, तो उसे सभी मिलजुल कर सुलझाते हैं। इन परिवारों में जो सहयोग की भावना होती है, उसका यही लाभ होता है कि सदस्यों के दिमाग पर कोई बोझ नहीं पड़ता और सभी आराम से खुशी-खुशी जीवन को जीते हैं।

संयुक्त परिवार की हानियाँ
(Demerits of Joint Family)
1. व्यक्तित्व के विकास में कमी (Lack of Personality Development) संयुक्त परिवार प्रणाली में यह कमी है कि इसमें व्यक्ति की अपनी योग्यता सही रूप में उभर कर सामने नहीं आ पाती क्योंकि उनके कार्यों का विभाजन इस तरीके से हो जाता है कि व्यक्ति अपनी योग्यता का इस्तेमाल ही नहीं कर पाता।

व्यक्ति को अपने बड़ों के कहने पर अर्थात् कर्ता की इच्छानुसार कार्य करना होता है, वह सदस्य अपनी इच्छानुसार अपने बच्चों एवं पत्नी के साथ स्वतंत्रता के साथ समय नहीं बिता पाता। वह कई बार चाहते हुए भी अपनी इच्छा के अनुसार कार्य नहीं कर पाता, वह कोई भी कार्य अपने बड़ों की पसंद के बगैर नहीं कर सकता। इस प्रणाली में यह बहुत कमी है कि व्यक्ति अपनी प्रतिभा को सही तरह से दिखा नहीं पाता, क्योंकि उसके ऊपर पारिवारिक नियंत्रण होते हैं।

2. औरतों की निम्न दशा (Low Status of Women) संयुक्त परिवार आमतौर पर पित-प्रधान होता है, अर्थात् इन परिवारों में पुरुषों का ज्यादा दबदबा होता है। इन परिवारों में पुरुषों की बात को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है, औरतों को परिवारों में ज्यादा अधिकार नहीं दिए जाते। उनकी ज़िम्मेदारी केवल रसोई और बच्चों की देखभाल की है।

संयुक्त परिवार में औरत की हैसियत सिर्फ बच्चों को पैदा करना और घर की चारदीवारी के अंदर ज़िन्दगी को जीना मात्र होता है। इस तरह की व्यवस्था में हमेशा आदमी और औरतों में तकरार अथवा लड़ाई-झगड़ा रहता है। इन परिवारों में औरत आर्थिक तौर पर पुरुष के ऊपर निर्भर होती है, इसलिए उनकी सामाजिक स्थिति दयनीय ही होती है।

3. खालीपन की प्रवृत्ति (Carelessness) संयुक्त परिवार प्रणाली में यह सबसे ज्यादा कमी पाई जाती है आदमी में निकम्मापन आ जाता है अर्थात् उनको रोजी-रोटी की कोई समस्या तो होती नहीं, इस कारण उनमें खाली रहने अथवा आलस्य की प्रवृत्ति का जन्म हो जाता है और वह काम ही नहीं करना चाहते। इस समस्या के होते हुए कुछ सदस्यों को उन खाली सदस्यों का भी बोझ उन्हें ही उठाना पड़ता है और उनका काफ़ी समय उनको समझाने बुझाने एवं उनके हिस्से के कार्यों को करने में जाता है। इस तरह से ये प्रणाली व्यक्ति के निकम्मेपन को एक तरह से बढ़ाती है।

4. संघर्षपूर्ण स्थिति (Conflicts) संयुक्त परिवारों में आपसी लड़ाई-झगड़े बहुत होते हैं। इन परिवारों में कई बार एक भाई दूसरे भाई का दुश्मन बन जाता है। इस बात की चरम सीमा इतनी हो जाती है कि वह अपने भाई को मारने में भी संकोच नहीं करता। इस तरह से घर की शांति नष्ट हो जाती है।

इन परिवारों में कई बार स्त्रियों के कारण तनाव की स्थिति बन जाती है। कई बार ननद और भाभी की नहीं बनती। किसी जगह सास और बहु में क्लेश रहता है। कई बार व्यक्ति समझता है कि उसे अपनी योग्यता के अनुसार कोई अधिकार प्राप्त नहीं हैं, ऐसी स्थिति में आपसी संघर्ष अपने आप जगह बना लेता है और कई बार ऐसी स्थितियों के कारण पूरा परिवार नष्ट हो जाता है।

5. ज़्यादा संतानोत्पत्ति (More Children)-संयुक्त परिवारों में क्योंकि सभी बच्चों के पालन-पोषण की ज़िम्मेदारी होती है कि कोई भी आदमी इस बात के ऊपर नियंत्रण नहीं रखता कि उसको कितने बच्चों को पैदा करना है। संयुक्त परिवार में उनकी शिक्षा एवं पालन-पोषण की ज़िम्मेदारी सभी की होने के कारण से कोई भी परिवार नियोजन की तरफ ध्यान ही नहीं देता। जिनके ज़्यादा बच्चे होते हैं या कम बच्चे होते हैं, उन सभी की तरह होने के कारण, और यदि किसी के बच्चे कम होंगे और उसे कोई सीधा लाभ मिलेगा, इस कारण सभी ज़्यादा बच्चों को जन्म देते जाते हैं।

6. ग़रीबी को जन्म (Leads to Poverty) हर रोज की कलह-क्लेश, औरतों की निम्न स्थिति, निरंकुश विचारधारा का समाज, कर्तव्यों की तरफ विमुखता और ज़्यादा संतान की उत्पत्ति; यह सभी कारण, परिवार की आर्थिक स्थिति को कमजोर कर देते हैं और फिर समय के साथ-साथ इन परिवारों में अपनी नैतिक जिम्मेदारी को न समझना, यह सब परिवार को गरीब बना देता है।

परिवार का बढ़ते जाना और जमीन का न बढना और संपत्ति का स्थिर रहना, गरीबी का कारण बन जाता है। इसमें संपत्ति क्योंकि सभी की इकट्ठी होती है, उसकी सही ढंग से कोई भी देखभाल नहीं करता, इस कारण से बाद में उन्हें ही बदहाली झेलनी पड़ती है।

7. अन्य मिश्रित समस्याएँ (Other Mixed Problems)-उपरोक्त समस्याओं के अलावा कई मनोवैज्ञानिक एवं कानूनी समस्याएं, मुकद्दमेबाजी इत्यादि, किसी को उसकी योग्यताओं अथवा क्षमताओं के आधार पर अधिकार न मिलना, यह सभी वस्तुएं. या कारण, आदमी को मनोवैज्ञानिक आधार पर तोड़ देती है।

प्रश्न 13.
संयुक्त परिवारों के विघटित होने के क्या कारण हैं? व्याख्या करें।
अथवा
क्या आपके विचार में संयुक्त परिवार प्रणाली टूट रही है? व्याख्या करें।
अथवा
संयुक्त परिवार में परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदार प्रमुख कारणों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
क्या संयुक्त परिवार परिवर्तित/विघटित हो रहे हैं? स्पष्ट करें।
उत्तर:
इस प्रश्न का उत्तर हां में ही है। जी हां, आजकल हमारे विचार से संयुक्त परिवार प्रणाली टूट रही है। ये टूटने का जो सिलसिला है, एक-दो वर्षों में नहीं हुआ, बल्कि यह बदलाव कई वर्षों के परिवर्तन का परिणाम है। यह सभी परिवर्तन कई भिन्न-भिन्न कारणों से आए, जिसके परिणामस्वरूप परिवारों की बनावट और उसके रूप में अद्भुत बदलाव देखने को मिलते हैं, उनमें से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं, जिनको हम विस्तारपूर्वक इस संदर्भ में देखेंगे-

1. पैसों का महत्त्व (Importance of Money)-आधुनिक समाज में व्यक्ति ने पैसा कमाकर अपनी जीवन शैली में कई तरह के परिवर्तन ला दिए हैं और इस शैली को कायम रखने के लिए उसे हमेशा ज्यादा से ज़्यादा पैसों की ज़रूरत पड़ती है। इस प्रक्रिया में वह अपनी योग्यता के अनुसार अपनी कमाई में बढ़ौतरी करने की कोशिश में लगा रहता है। उसके रहने-सहने का तरीका बदलता जा रहा है और ऐश्वर्य की सभी वस्तुएं आज उसके जीवन के लिए सामान्य और आवश्यकता की वस्तुएं बनती जा रही हैं और इन सभी को पूरा करने के लिए पैसा अति आवश्यक है।

इस तरह हम कह सकते हैं कि वह उन सीमित साधनों से ज़्यादा सदस्यों की ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकता। इस कारण संयुक्त परिवारों का महत्त्व कम हो रहा है और आदमी अपने परिवारों से अलग रहना पसंद करता है। यह उसकी ज़रूरत भी है और मजबूरी भी, इस कारण वह अपने परिवारों से अलग रहने लग गया है।

2. पश्चिमी प्रभाव (Impact of Westernization)-भारत में अंग्रेजों के शासनकाल और उसके बाद भारतीय समाज में कई तरह से सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन हुए, जिससे कि हमारी संस्कृति और व्यवहार इत्यादि में कई जिनके कारण व्यक्तिवाद का जन्म होने लगा। आधनिक शिक्षा प्रणाली ने लोगों के जीवन को से रहने के तरीके सिखाए।

इस तरह से भौतिकतावादी सोच के कारण, आधनिकता की चकाचौंध से लोगों का गांवों से शहरों की ओर पलायन शुरू हो गया और लोगों में संयुक्त परिवार से लगाव कम होना शुरू हो गया। इसका अंत में परिणाम यह निकला कि संयुक्त परिवार प्रणाली टूटने लगी और इकाई अथवा केंद्रीय परिवार का उद्भव शुरू हो गया। लोगों को आधुनिक शिक्षा प्रणाली और औरतों की स्वतंत्रता के कारण, नौकरी करने वालों का शहरों में पलायन ने संयुक्त परिवारों का अस्तित्व समाप्त करना शुरू कर दिया और टूटना दिन-प्रतिदिन जारी है।

3. औद्योगीकरण (Industrialization) आधुनिक समाज को आज औद्योगिक समाज की संज्ञा दी जाती है। जगह-जगह पर कारखानों और नये-नये तरीकों से समाज में तबदीलियां नज़र आती हैं। हर रोज़ नये-नये आविष्कारों के कारण समाज में कार्य करने के तरीकों एवं मशीनीकरण का चलन बढ़ता जा रहा है। घरों में कार्य करने वाले लोग अब कारखानों में काम करने लगे हैं। लोग अब अपने पैतृक कार्यों को छोड़कर उद्योगों में जा रहे हैं।

लोगों ने महसूस करना शुरू कर दिया है कि इस दौड़ में अगर रहना है तो मशीनों का सहारा लेना ही पड़ेगा और इस बदलाव के कारण, शहरीकरण और भौगोलिक दृष्टि से कारखानों का बढ़ना इत्यादि लोगों को पलायन करवाता है। इस कारण लोगों ने संयुक्त परिवारों को छोड़कर, जहां पर उन्हें रोटी-रोज़ी मिली, वे उधर चल पड़े और यह सभी कुछ हुआ, उद्योगों के लगने की वजह से। इस तरह औद्योगीकरण के कारण संयुक्त परिवार प्रणाली में कई तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं, जिससे यह बात साफ हो जाती है कि इकाई परिवारों का चलन या अस्तित्व, उद्योगों की वजह से बढ़ रहा है।

4. सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility) आधनिक समाज में व्यक्ति की स्थिति. उसकी योग्यता के आधार पर आंकी जाती है। इसलिए उसे ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है और ज्यादा धन कमाना पड़ता है। हर व्यक्ति समाज में ऊपर उठना चाहता है। संयुक्त परिवार में व्यक्ति की स्थिति उसकी योग्यता के आधार पर न होकर अपने परिवार की हैसियत के अनुसार आंकी जाती है। इस प्रकार वह परिश्रम ही नहीं करता। औद्योगीकरण और शिक्षा के प्रसार ने व्यक्ति को गतिशील कर दिया है।

यातायात के साधनों और संचार के माध्यम से आदमी के लिए दूरियां कम हो गई हैं। उसका सोचने का तरीका बदलता जा रहा है। इस नए समाज में उसके जिंदगी के मूल्य भी बदल गए और वह भौतिकवाद की ओर अग्रसर है और उसी प्रक्रिया में उसमें भी तेजी आनी स्वाभाविक है और इस कारण वह संयुक्त परिवार के बंधनों से मुक्त होना चाहता है। इसी कारण से भी संयुक्त परिवारों का टूटना निरंतर जारी है।

5. यातायात के साधनों का विकास (Development of means of Communication and Transport) यहीं पर बस नहीं आधुनिक यातायात के साधनों में आया बदलाव भी अपने आप में इस सोच का कारण बना है। व्यक्ति को इन्हीं सुविधाओं के कारण ही नई राहों पर चलना आसान हो गया है। हर क्षेत्र में काम करने की संभावनाओं को इन्हीं साधनों ने बढ़ा दिया है, आज कोई भी व्यक्ति पचास-सौ किलोमीटर को कुछ भी नहीं समझता।

प्राचीन काल में यह सुविधाएं नहीं थीं या बहुत ही कम थीं, इस कारण से लोग एक ही जगह पर रहना पसंद करते थे। आज के युग में इन साधनों ने व्यक्ति की दूरियों को कम कर दिया है। इनकी वजह से भी आदमी बाहर अपने काम-धंधों को आसानी से कर पाता है और संयुक्त परिवार का मोह छोड़कर केंद्रीय परिवार की सभ्यता को अपना रहा है।

6. जनसंख्या में बढ़ोत्तरी (Increase in Population)-भारत में जनसंख्या बड़ी तेज़ी से बढ़ रही है। इससे कुछ ही समय में ही प्रत्येक परिवार में ऐसी स्थिति आ जाती है कि परिवार की भूमि या जायदाद सारे सदस्यों के पालन पोषण के लिए काफ़ी नहीं होती और नौकरी या व्यवसाय की खोज में सदस्यों को परिवार छोड़ना पड़ता है। इसलिए भी संयुक्त परिवारों में विघटन हो रहा है।

7. शहरीकरण और आवास की समस्या (Problem of Urbanization and Immigration) संयुक्त परिवारों के टूटने का एक और महत्त्वपूर्ण कारण देश का तेजी से बढ़ता शहरीकरण है, जिससे लोग गांव छोड़कर शहरों में आ रहे हैं। जबकि शहरों में मकानों की भारी कमी है। शहरों में मकान कम ही नहीं छोटे भी होते हैं। इसलिए मकानों की समस्या के कारण ही शहरों में संयुक्त परिवारों में विघटन हो रहा है।

8. स्वतंत्रता और समानता के आदर्श (Ideals of Independence and Equality) संयुक्त परिवार एक तरह से तानाशाही राजतंत्र है जिसमें परिवार के मुखिया का निर्देश शामिल होता है। इसका कहना सबको मानना पड़ता है व कोई उसके विरुद्ध बोल नहीं सकता। इसलिए यह आधुनिक विचारधारा के विरुद्ध है। आधुनिक शिक्षा के प्रभाव से नए नौजवान लड़के और लड़कियों में समानता और स्वतंत्रता की भावना से संयुक्त परिवार टूट रहे हैं।

प्रश्न 14.
परिवार की संस्था में किस प्रकार के परिवर्तन आ रहे हैं? उनका वर्णन करें।
अथवा
परिवार के ढांचे तथा कार्यों में आ रहे परिवर्तनों का वर्णन करें।
अथवा
परिवार की संरचना के बदलते आयाम की व्याख्या कीजिए।
अथवा
संयुक्त परिवार में प्रमुख परिवर्तन क्या-क्या हुए हैं?
अथवा
परिवार में हुए किन्हीं दो परिवर्तनों का वर्णन करें।
अथवा
परिवार का अर्थ बताते हुए परिवार की संरचना में हुए नवीन परिवर्तनों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इस संसार में कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसमें उसके उत्पन्न होने से लेकर खत्म होने तक कोई परिवर्तन न आया हो। इस प्रकार समाज में सामाजिक संस्थाएं भी, जो हमारी सहायता के लिए बनाई गई थीं, इन सामाजिक संस्थाओं में भी समय के साथ-साथ परिवर्तन आ रहे हैं। इसी प्रकार परिवार नाम की संस्था शरू हई थीं उस समय से लेकर आज तक इसमें बहत परिवर्तन आ चके हैं।

उसके ढांचे के साथ-साथ कार्यों में भी बहुत से परिवर्तन आए हैं। ढांचा पक्ष से पहले संयुक्त परिवार होते थे अब वह केंद्रीय परिवारों में बदल रहे हैं। कार्यात्मक पक्ष से भी बहुत परिवर्तन आए हैं तथा इसके बहुत से कार्य और संस्थाओं के पास चले गए हैं। परिवार में आए परिवर्तनों का वर्णन इस प्रकार है-
1. केंद्रीय परिवारों का बढ़ना (Increasing Nuclear Families)-भारतीय समाज का एक परंपरागत ग्रामीण समाज है जहां पर प्राचीन समय में संयुक्त परिवार पाए जाते थे। मुख्य पेशा कृषि होने के कारण परिवार में अधिक सदस्यों की आवश्यकता पड़ती थी। इसलिए संयुक्त परिवार हमारे समाज में पाए जाते थे। परंतु समय के साथ-साथ शिक्षा के बढ़ने से तथा सामाजिक गतिशीलता के बढ़ने से लोग शहरों की तरफ जाने लगे। लोग संयुक्त परिवारों को छोड़कर शहरों में जाकर केंद्रीय परिवार बसाने लगे। इस प्रकार परिवार के ढांचे पक्ष में परिवर्तन आने लग गए तथा संयुक्त परिवारों की जगह केंद्रीय परिवार सामने आने लग गए।

2. आर्थिक कार्यों में परिवर्तन (Change in Economic Functions)-परिवार के आर्थिक कार्यों में भी बहुत से परिवर्तन आए हैं। प्राचीन समय में तो व्यक्ति की आर्थिक क्रियाएं परिवार के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रहती थीं। कार्य परिवार दवारा ही होता था तथा रोटी बनाने या कमाने के कार्य परिवार में ही होते थे जैसे कि गेहूँ उगाने का कार्य या आटा पीसने का कार्य। परिवार में ही जीवन जीने के सभी साधन मौजूद थे।

परंतु समय के साथ-साथ समाज में परिवर्तन आए तथा हमारे समाजों में औद्योगिकीकरण शुरू हुआ। परिवार के आर्थिक कार्य उद्योगों के पास चले गए हैं जैसे कि आटा अब चक्कियों पर पिसता है अथवा कपड़ा बड़ी-बड़ी मिलों में बनता है। इस प्रकार परिवार के आर्थिक उत्पादन के कार्य धीरे-धीरे खत्म हो गए तथा परिवार के आर्थिक कार्य और संस्थाओं के पास चले गए।

3. शैक्षिक कार्यों का परिवर्तित होना (Changes in Educational Functions)-प्राचीन समय में बच्चों को शिक्षा देने का कार्य या तो गुरुकुल में होता था या फिर घर में। बच्चा अगर गुरु के पास शिक्षा लेने जाता भी था तो उसे केवल वेदों, पुराणों इत्यादि की शिक्षा ही दी जाती थी। उसे पेशे अथवा कार्य से संबंधित कोई शिक्षा नहीं दी जा थी तथा यह कार्य परिवार द्वारा ही किया जाता था।

प्रत्येक जाति अथवा परिवार का एक परंपरागत पेशा होता था तथा उस पेशे से संबंधित गुर भी उस परिवार को पता होते थे। वह परिवार अपने बच्चों को धीरे-धीरे पेशे से संबंधित शिक्षा देता जाता था तथा बच्चों की शिक्षा पूर्ण हो जाती थी। परंतु समय के साथ-साथ परिवार के इस कार्य में परिवर्तन आया है।

अब पेशों से संबंधित शिक्षा देने का कार्य परिवार नहीं बल्कि सरकार द्वारा खोले गए Professional Colleges, Medical Colleges, Engineering Colleges, I.I.M.’s, I.I.T.’s, I.T.I.’s Fruit करते हैं। बच्चा इनमें से पेशे से संबंधित शिक्षा ग्रहण करके अपना स्वयं का पेशा अपनाता है तथा परिवार का परंपरागत पेशा छोड़ देता है। इस प्रकार परिवार का शिक्षा देने का परंपरागत कार्य और संस्थाओं के पास चला गया है।

4. पारिवारिक एकता का कम होना (Decreasing Unity of Family)-प्राचीन समय में संयुक्त परिवार हुआ करते थे तथा परिवार के सभी सदस्य परिवार के हितों के लिए कार्य करते थे। वह अपने हितों को परिवार के हितों पर त्याग देते थे। परिवार के सदस्यों में पूर्ण एकता होती थी। सभी सदस्य परिवार के बुजुर्ग की बात माना करते थे तथा अपने फर्ज़ अच्छे ढंग से पूर्ण किया करते थे। परंतु समय के साथ-साथ पारिवारिक एकता में कमी आई।

संयुक्त परिवार खत्म होने शुरू हो गए तथा केंद्रीय परिवार सामने आने लग गए। परिवार के सभी सदस्यों के अपने अपने हित होते हैं तथा कोई भी परिवार के हितों पर अपने हितों का त्याग नहीं करता है। सभी के अपने-अपने आदर्श होते हैं जिस कारण कई बार तो वह घर ही छोड़ देते हैं। इस प्रकार समय के साथ-साथ पारिवारिक एकता में कमी आई है।

5. सामाजिक कार्यों में परिवर्तन (Change in Social Functions)-परिवार के सामाजिक कार्य भी काफी बदल गए हैं। प्राचीन समय में परिवार सामाजिक नियंत्रण के साधन के रूप में काफी महत्त्वपूर्ण कार्य करता था। परिवार दस्यों पर पर्ण नियंत्रण रखता था। उसकी अच्छी-बरी आदतों पर नज़र रखता था तथा उसे समय-समय पर ग़लत कार्य न करने की चेतावनी देता था। सदस्य भी परिवार के बुजुर्गों से डरते थे, जिस कारण वह नियंत्रण में रहते थे। परंतु समय के साथ-साथ व्यक्ति पर पारिवारिक नियंत्रण कम होने लग गया तथा नियंत्रण के औपचारिक साधन सामने आने लग गए जैसे कि पुलिस, सेना, न्यायालय, जेल इत्यादि।

इसके साथ प्राचीन समय में स्त्री अपने पति को परमेश्वर समझती थी तथा उसे भगवान् का दर्जा देती थी। पति की इच्छा के सामने वह अपनी इच्छा का त्याग कर देती थी। परंतु अब यह धारणा बदल गई है। अब पत्नी पति को परमेश्वर नहीं बल्कि अपना साथी अथवा दोस्त समझती है जिससे कि वह अपनी समस्याएं साझी कर सके।

पहले परिवार बच्चों का पालन-पोषण करते थे तथा बच्चों के बड़ा होने तक उनका उत्तरदायित्व निभाते थे। परंतु आजकल के समय में केंद्रीय परिवार होते हैं तथा स्त्रियां नौकरी करती हैं जिस कारण बच्चा परिवार में नहीं पलता बल्कि क्रेचों में पलता है। इस प्रकार परिवार के बहुत से सामाजिक कार्य बदल कर और संस्थाओं के पास चले गए हैं।

6. धार्मिक कार्यों में परिवर्तन (Change in Religious Functions)-प्राचीन समय में चाहे बच्चों को गुरु के आश्रम में धार्मिक शिक्षा दी जाती थी तथा उसे वहीं पर वेदों, पुराणों इत्यादि की शिक्षा दी जाती थी परंतु फिर भी परिवार उसे धार्मिक शिक्षा भी देता था। उसे धर्म तथा नैतिकता का पाठ पढ़ाया जाता था। समय-समय पर परिवार में धार्मिक संस्कार, यज्ञ तथा अनुष्ठान होते रहते थे जिससे बच्चों को धर्म के बारे में काफी कुछ पता चलता रहता था। इस प्रकार परिवार में ही बच्चों की धार्मिक शिक्षा हो जाती थी। परंतु समय के साथ बहुत से आविष्कार हुए, की तथा विज्ञान प्रत्येक बात को तर्क पर तोलता है।

लोग विज्ञान की शिक्षा लेकर धर्म को भूलने लग गए। अब लोग प्रत्येक धार्मिक संस्कार को तर्क की कसौटी पर तोलने लग गए हैं कि यह क्यों और कैसे है। अब लोगों के पास धार्मिक अनुष्ठानों के लिए समय नहीं है। अब लोग धार्मिक कार्यों के लिए थोड़ा-सा ही समय निकाल पाते हैं तथा वह भी अपने समय की उपलब्धता के अनुसार। अब लोग विवाह जैसे धार्मिक संस्कार को सामाजिक उत्सव की तरह मनाते हैं ताकि अधिक से अधिक लोगों को बुलाया जा सके। लोग इनमें अधिक से अधिक पैसा खर्च जिस कारण धार्मिक क्रियाओं का महत्त्व कम हो गया है। इस प्रकार परिवार में धार्मिक कार्य कम हो गए हैं।

इस प्रकार इस व्याख्या को देखकर हम कह सकते हैं कि परिवार के कार्यों तथा ढांचे में बहुत परिवर्तन आ गए हैं। परिवार के बहुत से कार्य और संस्थाओं के पास चले गए। चाहे यह परिवर्तन समय के साथ-साथ आए हैं परंतु फिर भी हम कह सकते हैं कि परिवार का व्यक्ति के जीवन में जो महत्त्व है उसका स्थान कोई और संस्था नहीं ले सकती है।

प्रश्न 15.
परिवार से सामाजिक कार्यों की व्याख्या करें।
उत्तर:
(i) बच्चों का समाजीकरण (Socialization of Children) बच्चों का समाजीकरण करने में परिवार सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है। अगर बच्चा परिवार में रहकर अच्छी आदतें सीखता है तो उससे वह समाज का एक अच्छा नागरिक बनता है। बच्चे का समाज के साथ संपर्क भी परिवार के कारण ही स्थापित होता है। बच्चा जब पैदा होता है तो वह सबसे पहले अपने माता-पिता पर निर्भर होता है क्योंकि उसकी भूख-प्यास जैसी ज़रूरतें परिवार ही पूर्ण करता है। व्यक्ति को परिवार से ही समाज स्थिति तथा भूमिका भी प्राप्त होती है। व्यक्ति को अगर कोई पद प्रदान किया जाता है तो वह भी परिवार के कारण ही किया जाता है। इस प्रकार परिवार व्यक्ति के समाजीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

(ii) संस्कृति की सुरक्षा तथा हस्तांतरण (Protection and transmission of culture)-जो कुछ भी आज तक मनुष्य ने प्राप्त किया है वह उसकी संस्कृति है तथा यह संस्कृति परिवार के कारण ही सुरक्षित रहती है तथा पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित की जाती है। यह प्रत्येक परिवार का उत्तरदायित्व होता है कि वह अपनी आने वाली पीढ़ी को अच्छी-अच्छी आदतें, रीति-रिवाज, परंपराएं, मूल्य, आदर्श इत्यादि सिखाए। बच्चे चेतन या अचेतन मन से यह सब धीरे-धीरे ग्रहण करते हैं।

वह वही सब कुछ सीखते तथा ग्रहण करते हैं जो वह अपने माता-पिता को करते हुए देखते हैं। प्रत्येक परिवार के कुछ आदर्श, परंपराएं तथा रीति-रिवाज होते हैं तथा परिवार इन सभी चीज़ों को धीरे-धीरे बच्चों को प्रदान करता जाता है। इस प्रकार बच्चा इन सभी को ग्रहण करता है तथा परिवार के आदर्शों के अनुसार जीवन व्यतीत करता है। इस प्रकार परिवार समाज की संस्कति को सरक्षित रखता है तथा उसे एक पीढी से दसरी पीढ़ी की तरफ हस्तांतरित करती है।।

(iii) व्यक्तित्व का विकास (Development of personality) परिवार में रहकर बच्चा बहुत सी नई आदतें सीखता है, बहुत-से नए आदर्श, मूल्य इत्यादि ग्रहण करता है जिससे उसका समाजीकरण होता रहता है। परिवार व्यक्ति की ग़लत प्रवृत्तियों को नियंत्रित करता है, उसे कई प्रकार के उत्तरदायित्व सौंपता है, उसमें अच्छी आदतें डालता है तथा उसमें स्वः का विकास करने में सहायता करता है।

परिवार में रहकर ही बच्चे में बहुत-से गुणों का विकास होता है जैसे कि प्यार, सहयोग, अनुशासन, हमदर्दी इत्यादि तथा यह सब कुछ उसके व्यक्तित्व के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बच्चे को परिवार में रहकर कई प्रकार की शिक्षा प्राप्त होती है जिससे उसका व्यक्तित्व और विकसित हो जाता है तथा वह समाज में रहने के तौर-तरीके सीखता जाता है।

(iv) व्यक्ति को स्थिति प्रदान करना (To provide status to individual)-परिवार में बच्चे को यह पता चल जाता है कि परिवार में और समाज में उसकी स्थिति क्या है तथा उसे कौन-सी भूमिका निभानी है। प्राचीन समाजों में तो बच्चे को प्रदत्त स्थिति प्राप्त हो जाती थी अर्थात् जिस प्रकार के परिवार में वह जन्म लेता था उसे उसकी ही स्थिति प्राप्त हो जाती थी।

उदाहरण के तौर पर राजा के परिवार में पैदा हुए बच्चे को राजा जैसा सम्मान प्राप्त हो जाता था तथा निर्धन के घर पैदा हुए बच्चे को न के बराबर सम्मान प्राप्त होता था। निर्धन व्यक्ति के बच्चों की स्थिति हमेशा निम्न होती थी। इस प्रकार परिवार के कारण ही व्यक्ति को समाज में स्थिति प्राप्त होती थी। चाहे आधुनिक समय में व्यक्ति स्थिति को अर्जित करने में लग गए हैं परंतु फिर भी परंपरागत समाजों में आज भी व्यक्ति को प्रदत्त स्थिति प्राप्त होती है। इस प्रकार परिवार व्यक्ति को स्थिति प्रदान करता है।

(v) व्यक्ति पर नियंत्रण रखना (To keep control on individual)-अगर हम सामाजिक नियंत्रण के साधनों की तरफ देखें तो परिवार की इसमें सबसे बड़ी भूमिका है क्योंकि परिवार ही व्यक्ति को नियंत्रण में रहना सिखाता है। परिवार बच्चे में अच्छी-अच्छी आदतें डालता है ताकि उसमें ग़लत आदतों का विकास न हो सके। बच्चे पर माता पिता नियंत्रण रखते हैं, उस के झूठ बोलने पर उसे डाँटते हैं, उसे बड़ों के साथ सही प्रकार से बोलने के लिए कहते हैं, उसे समाज द्वारा बनाए गए नियमों के बारे में बताते हैं ताकि वह समाज का ज़िम्मेदार नागरिक बन सके तथा समाज में उनके परिवार का सम्मान और बढ़ जाए। परिवार में रहकर बच्चा अनुशासन में रहना सीखता है तथा अपने व्यवहार और क्रियाओं पर नियंत्रण रखना सीखता है।

अगर बच्चा परिवार के सदस्यों के साथ ही ठीक ढंग से व्यवहार नहीं करेगा तो वह समाज के और सदस्यों के साथ ठीक ढंग से कैसे व्यवहार करेगा। बच्चा परिवार के दूसरे सदस्यों को कार्य करता देखकर बहुत-सी बातें सीखता है। अगर परिवार के सदस्य ग़लत कार्य करेंगे तो बच्चा भी वह सब कुछ ग्रहण करेगा परंतु अगर परिवार के सदस्य ग़लत कार्य न करके अच्छी बातें करेंगे तो बच्चे भी अच्छी बातें करेंगे तथा वे नियंत्रण में रहेंगे। इस प्रकार परिवार सामाजिक नियंत्रण के साधन के रूप में बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य करता है।

(vi) विवाह करने में सहायता प्रदान करना (To give help in settling marriage) अगर कोई व्यक्ति विवाह करना चाहे तो सबसे पहले उससे परिवार, खानदान या वंश के बारे में पूछा जाता है ताकि उसकी पृष्ठभूमि के बारे में पता चल सके। अगर वह अच्छे परिवार से संबंध रखता है तो विवाह करने में कोई परेशानी नहीं होती परंतु अगर वह किसी निम्न श्रेणी के परिवार से संबंध रखता है तो विवाह करने में काफ़ी समस्या आती है। परिवार अपने बच्चों का विवाह करवाना अपना कर्तव्य समझता है ताकि वंश आगे बढ़ सके। अगर परिवार यह कर्तव्य पूर्ण नहीं करता तो उसे समाज में अच्छी स्थिति प्राप्त नहीं होती। इसलिए परिवार व्यक्ति का विवाह करने में सहायता प्रदान करता है।

(vii) पेशा प्रदान करना (To provide occupation)-चाहे आजकल के समय में तो परिवार का यह कार्य काफ़ी कम हो गया है परंतु प्राचीन समाजों में तथा परंपरागत समाजों में भी यह कार्य काफ़ी महत्त्वपूर्ण होता है। भारतीय समाज में प्राचीन समय में जाति प्रथा प्रचलित थी जिसमें चार महत्त्वपूर्ण वर्ण हुआ करते थे-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र।

प्रत्येक वर्ग में पैदा हुआ बच्चा केवल अपने ही वर्ण का पेशा अपना सकता था अर्थात् ब्रा परिवार में पैदा हुआ बच्चा केवल ब्राह्मण का ही कार्य कर सकता था तथा शूद्र परिवार में घर पैदा हुआ बच्चा केवल उस परिवार का ही कार्य अपना सकता था। चाहे आधुनिक समय में यह कार्य कम हो गया है तथा लोक परिश्रम करके अपनी मर्जी का पेशा अपना रहे हैं परंतु फिर भी व्यापारियों, दुकानदारों के बच्चे अपने परिवार का पेशा ही अपनाते बाह्मण हैं।

(viii) शिक्षा देना (To give education)-जब बच्चा पैदा होता है तो उसे समाज में रहने के नियम पता नहीं होते हैं। उसमें पशु प्रवृत्ति होती है तथा वह प्रत्येक चीज़ को अपना समझता है। परिवार ही उस की पशु प्रवृत्ति पर नियंत्रण रखता है तथा उसे समाज में रहने के नियम सिखाता है। इस प्रकार बच्चे को सबसे पहली शिक्षा परिवार में ही प्राप्त होती है। धर्म की शिक्षा, पेशे की शिक्षा, नियम सीखने की शिक्षा इत्यादि जैसी शिक्षा बच्चे को परिवार में ही मिलती है। चाहे आजकल के समय में औपचारिक शिक्षा देने का कार्य और संस्थाओं के पास चला गया है, परंतु फिर भी बच्चे को शिक्षा देने का कार्य परिवार ही करता है।

प्रश्न 16.
नातेदारी क्या होती है? इसके प्रकार बताओ।
उत्तर:
मानव इतिहास के आरंभिक चरणों से ही अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये मनुष्यों ने समूहों एवं झुंडों में रहना आरंभ किया। उसके द्वारा निर्मित समूह ही नातेदारी व्यवस्था के उद्विकास का प्रथम चरण था। उद्विकास की लंबी प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही यह वर्तमान स्वरूप में विकसित हुई।

समाजों की पृष्ठभूमि, सामाजिक संस्कृति, आर्थिक दशाओं द्वारा नातेदारी का स्वरूप एवं आकार निर्धारित किया जाता है। नातेदारी सर्वव्यापी संस्था है। लेकिन सभी समाजों में इसका स्वरूप, रीतियां, संबंधों की घनिष्ठता तथा घनिष्ठ संबंधियों की संख्या में अंतर पाया जाता है। नातेदारी के लिये बंधुत्व, संगोत्रता एवं स्वजनता आदि संज्ञाओं का प्रयोग किया जाता है।

नातेदारी व्यवस्था का अर्थ (Meaning of Kinship System) रैडक्लिफ ब्राऊन के शब्दों में, “नातेदारी सामाजिक उद्देश्यों के लिये स्वीकृत वंश संबंध है जो कि सामाजिक संबंधों के परंपरात्मक संबंधों का आधार है।”

लैवी स्ट्रास के अनुसार, “नातेदारी व्यवस्था विचारों की एक निरंकुश व्यवस्था है। नातेदारी व्यवस्था में समाज द्वारा मान्यता प्राप्त वे संबंध आते हैं जो कि अनुमानित और वास्तविक संबंधों पर आधारित हों। नातेदारी की यह परिभाषा ‘तिनिक’ ने मानव शास्त्र के शब्द कोष में दी है।” ‘फ़ॉक्स’ ने अपनी कृति ‘नातेदारी एवं विवाह’ में लिखा है “नातेदारी केवल मात्र स्वजन अर्थात् वास्तविक, ख्यात अथवा कल्पित समरक्तता वाले व्यक्तियों के मध्य संबंध है।”

डॉ० रिवर्स ने अपनी पुस्तक ‘सामाजिक संगठन’ में लिखा है संगोत्रता (बंधुत्व) की मेरी परिभाषा उस संबंध से है जो वंशावलियों के माध्यम से निर्धारित एवं वर्णित की जा सकती है। अतः स्पष्ट है कि नातेदारी ऐसे संबंधियों के बीच संबंधों की व्यवस्था होती है जिनसे हमारा संबंध वंशावली के आधार पर होता है। वंशावली संबंध परिवार के द्वारा विकसित होते हैं।

नातेदारी व्यवस्था के प्रकार/आधार
(Types/Bases of Kinship)
नातेदारी व्यवस्था समाज में दो आधारों पर विकसित होती है-

  • रक्तमूलक नातेदारी (Consenguineous Kinship)
  • विवाहमूलक नातेदारी (Affinal Kinship)

1. रक्तमूलक नातेदारी (Consenguineous Kinship)-रक्तमूलक नातेदारी वह होती है, जिसमें केवल उन्हीं व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाता है, जो आपस में रक्त द्वारा संबंधित होते हैं। जैसे माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-ताया-दादा-पिता, पुत्र-पौत्र इत्यादि सब एक-दूसरे से रक्त संबंधी होते हैं। रक्त संबंध के भी दो मूलाधार होते हैं-

  • मातृवंश
  • पितृवंश।

माता के वंश के सभी सदस्य व्यक्ति के रक्त संबंधी होते हैं। इसी प्रकार पिता के रिश्तेदार भी आपस में रक्त संबंधी होते हैं। चाचा, ताया, दादा आदि पिता के वंश तथा मामा, नाना, नानी आदि माता के वंश के रक्त संबंधी हैं।

रक्त संबंधी दो प्रकार के होते हैं-

  • रेखीय नातेदारी (Lineal Kinship)
  • क्षैतिज नातेदारी (Collateral Kinship)।

1. रेखीय नातेदारी में संबंधियों के बीच रक्त संबंध एक रेखा के रूप में होता है, जैसे-परदादा, दादी, पिता, पुत्र, पौत्र इत्यादि। क्षैतिज संबंधी वे होते हैं, जिनका सीधा रक्त संबंध नहीं होता। फिर भी एक ही पूर्वज के साथ संबंधित होने के कारण आपस में रक्त संबंधी होते हैं; जैसे चाचा, ताया, भतीजी इत्यादि। रक्त संबंध वास्तविक के अतिरिक्त काल्पनिक भी होता है। जैसे कई जनजातियों में बहुपति विवाह प्रथा पाई जाती है।

वहां जो भाई पत्नी के गर्भवती होने पर तीर-कमान का संस्कार पूरा करता है, वही होने वाली संतान का पिता माना जाता है। इसी तरह किसी व्यक्ति के द्वारा गोद ली गई संतान भी उसकी अपनी संतान मानी जाती है। अतः यह आवश्यक नहीं कि पिता व संतान का आपस में जैवकीय संबंध (Biological relationship) हो। फिर भी वह रक्त संबंधी माने जाते हैं।

2. विवाहमूलक नातेदारी (Affinal Kinship)-विवाहमूलक नातेदारी ऐसी नातेदारी है जो दो विषम लिंगियों के बीच समाज की स्वीकृति द्वारा स्थापित की जाती है। विवाह के द्वारा पति-पत्नी ही विवाह संबंधी नहीं बनते बल्कि पत्नी के सब रिश्तेदार पति के लिये और पति के सब नातेदार पत्नी के लिये विवाह संबंधी होते हैं। अतः विवाह द्वारा नातेदारी में लगभग दुगुणी वृद्धि हो जाती है। विवाहमूलक नातेदारी में सास, ससुर, जीजा, ननद, साला, साली, बहनोई, ज्येष्ठ, बहु, देवर आदि रिश्तेदार सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 17.
आज के समय में नातेदारी का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
नातेदारी की भूमिका एवं महत्त्व (Role and Importance of Kinship)-नेलसन ग्रेबन ने अपनी कृति “Reading in Kinship’ में लिखा है, “नातेदारी व्यवस्था सर्वव्यापी है। सामाजिक संगठन को समझने के लिये नातेदारी संस्थाओं का ज्ञान महत्त्वपूर्ण है।” डॉ० रिवर्स कहते हैं, “अनेक भारतीय मानव शास्त्रियों (Anthropologists) ने नातेदारी के विभिन्न पक्षों का अध्ययन कर मानव शास्त्रीय ज्ञान को समृद्ध बनाया है।” उन्होंने नातेदारी के मानवशास्त्र के अंतर्गत विकसित किये माडलों (Models) को नातेदारी के विभिन्न पहलुओं को समझने के लिये प्रयोग किया। नातेदारी को भूमिका एवं महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन विभिन्न शीर्षकों के अंतर्गत अधोलिखित है

1. परिस्थति निर्धारण (Determination of Status)-नातेदारी व्यक्ति की जन्म से सामाजिक प्रस्थिति को निर्धारित करती है। उच्च परिवार एवं नातेदारी से संबंधित व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति उच्च होती है। उदाहरणार्थ राजनीति में मंत्री, एम० एल० ए०, एम० पी० नौकरी में उच्च पद पर कार्यरत तथा उच्च स्तर के वाणिज्य व्यापार करने वालों के परिवार जनों एवं रिश्तेदारों को उच्च प्रस्थिति प्राप्त होती है। चाहे व्यक्ति की निजी उपलब्धियां भी कम हों।

2. वंश एवं उत्तराधिकार का निर्धारण (Determination of Descent and Inheritance)-वंश व्यक्ति का मूल (Root) होता है। परिवार, वंश, गोत्र, मातदल नातेदारी के ही अंग हैं। किस व्यक्ति को अपने पूर्वजों की संपत्ति, चल-अचल, भौतिक-अभौतिक का हस्तांतरण होगा। कौन व्यक्ति उत्तराधिकारी होगा तथा उत्तराधिकार के कितने भाग का उसे अधिकार होगा, ये सब बातें नातेदारी के सदस्यों में विभिन्न नियमों द्वारा तय की जाती हैं।

लूसी मेयर ने अपनी कृति ‘सामाजिक विज्ञान की भूमिका’ में इस संबंध में लिखा है, “किसी व्यक्ति का समाज में स्थान, उसके अधिकार और कर्तव्य, संपत्ति पर उसका दावा अधिकतर दूसरे सदस्यों के साथ, उसके जन्मजात संबंधों पर निर्भर करते हैं। ऐसे समाज में संगठन के चाहे जो भी सिद्धांत हों प्राथमिक समूह व तथा उत्तराधिकार निर्धारित किया जाता है।”

3. समाजीकरण (Socialization)-परिवार एवं परिवारों की समूह नातेदारी व्यक्ति के समाजीकरण की प्राथमिक एजेंसियां (Agencies) हैं। नवजात शिशु सर्वप्रथम अपनी नातेदारी माता-पिता इत्यादि के संपर्क में आता है। वहीं से वह जैविकीय प्राणी (Biological Being) से सामाजिक प्राणी बनना प्रारंभ करता है। संबंधी उसे चलना, बोलना, भाषा, सामाजिक मूल्य तथा व्यवहार के तरीके सिखाते हैं।

4. सामाजिक सुरक्षा (Social Security)-अपने सदस्यों को नातेदारी द्वारा सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया जाता है। व्यक्ति को जीवन में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कई बार वह समस्याओं को सफलतापूर्वक सुलझा लेता है। लेकिन कई बार असफलता ही उसके हाथ लगती है। ऐसी स्थिति में परिवार के अन्य संबंधी ही उसे ढांढस बंधवाते हैं। आकस्मिक मृत्यु, आपदा, विपत्ति दुःख, असफलता आदि प्रतिकूल परिस्थितियों में नातेदारी व्यक्ति को उभारने में सहायता करता है। विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उसको सहयोग भी देती है।

5. आर्थिक हितों की सुरक्षा (Safeguard of Economic Interests)-नातेदार व्यक्ति के आर्थिक हितों की रक्षा करते हैं। भारतीय समाज में तो इस क्षेत्र में नातेदारी का महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि नातेदारी व्यक्ति को जातिगत व्यवसाय सीखने तथा अपनाने में सहायता करती है। लूसी मेयर द्वारा नातेदारी व्यक्ति के आर्थिक हितों की सुरक्षा प्रदान करने के संबंध में लिखती है, “विभिन्न समाजों में स्वीकृत बंधुत्व के बंधन लोगों को खेती तथा जायदाद पर अधिकार, समान हितों की पूर्ति में परस्पर सहायता तथा दूसरों पर आधिपत्य प्रदान करते हैं। प्रभुता प्राप्त लोगों पर यह दायित्व रहता है कि वे आश्रितों का कल्याण करें। आश्रितों का धर्म आज्ञा पालन है। सभी लोगों का कर्तव्य है कि ऐसे अवसरों पर जहां बंधुत्व (नातेदारी) की मान्यता का प्रश्न है परस्पर सहयोग करें।”

6. मानव शास्त्रीय ज्ञान का आधार (Basis of Anthropological Knowledge)-विश्वभर के प्रमुख मानव शास्त्रियों के प्रारंभिक अध्ययन नातेदारी से ही संबंधित थे। उन्होंने सामाजिक संरचना की इस आधारभूत इकाई का पर्याप्त ज्ञान एकत्रित किया। मैलीनोवस्की, ब्राऊन, मार्गन, लौवी तथा हैनरीमैन आदि मानव शास्त्री उनमें से प्रमुख हैं। इन समाज शास्त्रियों के अध्ययनों से विवाह, परिवार एवं नातेदारी के उदविकास के विभिन्न चरणों का ज्ञान होना प्राप्त होता है।

7. सामाजिक संरचना को समझने में सहायक (Helpful in Understanding Social Structure) सामाजिक संरचना विशेषतः भारतीय सामाजिक संरचना को समझने के लिए नातेदारी के विभिन्न पहलुओं का ज्ञान आवश्यक है। विभिन्न रिश्तेदार आपस में विशेष प्रकार से व्यवहार करते हैं। इसके लिए नातेदारी की रीतियों को समझने की आवश्यकता है। ससुर के समक्ष आने पर बहू द्वारा एकदम चूंघट डाल लेना, पत्नी द्वारा पति के निकटतम संबंधी का नाम न लेना इत्यादि सामाजिक वास्तविकताओं को तभी समझा जा सकता है, यदि नातेदारी व्यवस्था का ज्ञान हो।

8. सामाजिक नियंत्रण (Social Control) नातेदारी सामाजिक नियंत्रण में महत्त्वपर्ण भमिका अभिनीत करती है। विभिन्न रिश्तेदारों को कैसे संबोधित किया जाए, उनके साथ किस प्रकार का व्यवहार किया जाए, बड़ों का आदर, छोटों से प्यार, आदि मूल्यों को नातेदारी अनुपालना सुनिश्चित करवाती है। नातेदारी होने के अहसास मात्र से व्यक्ति कई अवांछनीय कार्य नहीं करते हैं।

प्रत्येक समाज में नातेदारी व्यवस्था पायी जाती है। लेकिन किन तथा कितने व्यक्तियों के बीच घनिष्ठ संबंध पाए जाते हैं, ये प्रत्येक समाज में प्रचलित मूल्यों पर निर्भर करता है। भारतीय समाज में साधारणतया नातेदारी व्यवस्था के अंतर्गत पश्चिमी समाज की अपेक्षा कहीं अधिक संबंधी आते हैं। संबंधी का स्वरूप एवं क्षेत्र सामाजिक मूल्य तय करते हैं। नातेदारी व्यवस्था निश्चित रूप से व्यक्ति के व्यवहारों को नियंत्रित करती है तथा समाज में संगठन, संतुलन, भाईचारे आदि को बढ़ावा देती है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ : निरन्तरता एवं परिवर्तन Read More »