HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. भारत किस प्रकार का देश है?
(A) कल्याणकारी
(B) तानाशाही
(C) राजतंत्र
(D) कुलीनतंत्र।
उत्तर:
कल्याणकारी।

2. …………………. एक कानूनी किताब या दस्तावेज़ है जिसमें देश को चलाने के सभी नियम दिए गए हैं?
(A) महाकाव्य
(B) आचार संहिता
(C) संविधान
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
संविधान।

3. भारतीय संविधान कब लागू हुआ था?
(A) 26 जनवरी, 1947
(B) 26 जनवरी, 1950
(C) 26 जनवरी, 1952
(D) 26 जनवरी 1949
उत्तर:
26 जनवरी, 1950.

4. संविधान बनाने वाली Drafting Committee के अध्यक्ष कौन थे?
(A) लाल बहादुर शास्त्री
(B) महात्मा गांधी
(C) जवाहर लाल नेहरू
(D) डॉ० अंबेदकर।
उत्तर:
डॉ० अंबेदकर।।

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5. सभी भारतीयों को कितने मौलिक अधिकार दिए गए हैं?
(A) छः
(B) चार
(C) पाँच
(D) सात।
उत्तर:
छः।

6. …………….. एक समूह है जिसकी वैधानिक संस्थाएं उसके नाम से जानी जाती हैं, जिसका अपना एक भौगोलिक क्षेत्र होता है तथा जिसे शक्ति के शारीरिक पक्ष को प्रयोग करने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है?
(A) देश
(B) सरकार
(C) राज्य
(D) राजनीतिक दल।
उत्तर:
राज्य।

7. सामाजिक नियोजन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
(A) देश का सर्वपक्षीय विकास
(B) देश के एक पक्ष का विकास
(C) अपने देश के साथ और देशों का विकास
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
देश का सर्वपक्षीय विकास।

8. आज तक कितनी पंचवर्षीय योजनाएं बन चुकी हैं?
(A) नौ
(B) दस
(C) आठ
(D) बारह।
उत्तर:
बारह।

9. देश में योजना आयोग कब बना था?
(A) 1952
(B) 1951
(C) 1954
(D) 1950
उत्तर:
1950

10. योजना आयोग का अध्यक्ष कौन होता है?
(A) प्रधानमंत्री
(B) वित्त मंत्री
(C) राष्ट्रपति
(D) वित्त सचिव।
उत्तर:
प्रधानमंत्री।

11. पहली पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल क्या था?
(A) 1950-1955
(B) 1952-1957
(C) 1951-1956
(D) 1953-1958
उत्तर:
1951-1956

12. पंचवर्षीय योजनाओं का माडल किस देश से लिया गया था?
(A) यू० एस० एस० आर०
(B) ब्रिटेन
(C) अमेरिका
(D) जर्मनी।
उत्तर:
यू० एस० एस० आर० (U.S.S.R.)।

13. स्थानीय स्वः संस्थाओं में स्त्रियों को कितना आरक्षण दिया गया है?
(A) एक तिहाई
(B) पाँचवां हिस्सा
(C) एक चौथाई
(D) दसवां हिस्सा।
उत्तर:
एक तिहाई।

14. सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जनजातियों को कितना आरक्षण दिया गया है?
(A) 10%
(B) 15%
(C) 7.5%
(D) 27%
उत्तर:
7.5%

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15. संसद् में अनुसूचित जनजातियों के लिए कितने स्थान आरक्षित हैं?
(A) 39
(B) 41
(C) 49
(D) 46
उत्तर:
41

16. पहली पंचवर्षीय योजना का क्या उद्देश्य था?
(A) कृषि व्यवस्था को सुदृढ़ करनाड्ड
(B) औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना
(C) सामाजिक कल्याण के अधिक-से-अधिक कार्यक्रम बनाना
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

17. सभी भारतीयों को कितने मौलिक कर्तव्य दिए गए हैं?
(A) छः
(B) दस
(C) आठ
(D) नौ।
उत्तर:
दस।

18. पंचवर्षीय योजनाओं से देश में क्या परिवर्तन आया?
(A) शिक्षा का फैलाव
(B) स्त्रियों की स्थिति में सुधार
(C) पिछड़े वर्गों का उत्थान
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

19. नियोजित विकास का क्या लाभ है?
(A) समय की बचत
(B) सभी क्षेत्रों का विकास
(C) पैसे की बचत
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

20. इनमें से कौन-सा पंचायती राज का एक स्तर है?
(A) पंचायत
(B) ब्लॉक समिति
(C) जिला परिषद्
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

21. ………………. एक नियमों की व्यवस्था है जिसे सरकार द्वारा लोगों पर लागू किया जाता है?
(A) कानून
(B) संविधान
(C) राज्य
(D) सरकार।
उत्तर:
कानून।

22. देश के लिए कानून कौन बनाता है?
(A) संसद्
(B) लोक सभा
(C) राज्य सभा
(D) प्रदेश की वैधानिक संस्था।
उत्तर:
संसद्।

23. राज्य के लिए कानून कौन बनाता है?
(A) संसद्
(B) राज्य विधान सभा
(C) राज्य सभा में
(D) लोकसभा।
उत्तर:
राज्य विधान सभा।

24. भारत में पंचायती राज्य व्यवस्था कब लागू हुई थी?
(A) 1952
(B) 1959
(C) 1955
(D) 1962
उत्तर:
1959

25. ग्राम सभा की अधिक-से-अधिक समयावधि कितनी होती है?
(A) 4 साल
(B) 5 साल
(C) 6 साल
(D) असीमित।
उत्तर:
5 साल।

26. पंचों और सरपंचों की नियुक्ति कैसे होती है?
(A) प्रत्यक्ष चुनाव के द्वारा
(B) जिले के डी० सी० द्वारा नियुक्ति
(C) जिले के संसद् सदस्य द्वारा नियुक्ति
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
प्रत्यक्ष चुनाव के द्वारा।

27. पंचायती राज्य की तीन स्तरीय संरचना में सबसे निम्न स्तर कौन-सा है?
(A) ब्लॉक समिति
(B) पंचायत
(C) जिला परिषद्
(D) नगर कौंसिल।
उत्तर:
पंचायत।

28. पंचायती राज्य की तीन स्तरीय संरचना में बीच का स्तर कौन-सा है?
(A) ब्लॉक समिति
(B) पंचायत
(C) नगर कौंसिल
(D) जिला परिषद्।
उत्तर:
ब्लॉक समिति।

29. पंचायती राज्य की तीन स्तरीय संरचना में सबसे उच्च स्तर कौन-सा है?
(A) नगर निगम
(B) ब्लॉक समिति
(C) पंचायत
(D) जिला परिषद्।
उत्तर:
जिला परिषद्।

30. पंचायत समिति द्वारा बनाई गई योजनाओं को कौन लागू करता है? .
(A) B.D.O.
(B) S.S.P.
(C) D.C.
(D) S.D.M.
उत्तर:
B.D.O.

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31. किस कानून से बहु-विवाह की प्रथा समाप्त कर दी गई थी?
(A) हिंदू तलाक कानून, 1955
(B) हिंदू विवाह अधिनियम, 1955
(C) हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956
(D) दहेज निषेध कानून, 1961.
उत्तर:
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955

32. अस्पृश्यता अपराध अधिनियम कब पास हुआ था?
(A) 1949
(B) 1954
(C) 1955
(D) 1961
उत्तर:
1955

33. नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम कब पास हुआ था?
(A) 1975
(B) 1974
(C) 1977
(D) 1976
उत्तर:
1976.

34. प्राचीन पंचायती राज्य व्यवस्था में क्या कमी थी?
(A) लगातार चुनाव की कमी
(B) वित्तीय साधनों की कमी
(C) लोगों द्वारा दिलचस्पी न लेना
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

35. इनमें से कौन-सा पंचायत का कार्य है?
(A) पीने के पानी का प्रबंध
(B) सड़कें बनाना
(C) स्कूल का प्रबंध
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

36. ग्राम सभा में गाँव के सभी ………………… सदस्य होते हैं।
(A) बालिग
(B) बच्चे
(C) जवान
(D) स्त्रियाँ।
उत्तर:
बालिग।

37. इनमें से कौन-सा पंचायत समिति की आय का स्रोत है?
(A) अनुदान
(B) मेलों से आय
(C) मार्कीट से आय
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

38. विकेंद्रीकरण का अर्थ है ……………….. का ऊपर से नीचे तक विभाजन।
(A) कार्यों
(B) शक्तियों
(C) व्यवस्था
(D) देश।
उत्तर:
शक्तियों।

39. पंचायत का सदस्य बनने के लिए क्या योग्यता होनी चाहिए?
(A) वह भारत का नागरिक होना चाहिए।
(B) वह दिवालिया घोषित न किया गया हो
(C) उसकी आयु 21 वर्ष से अधिक होनी चाहिए
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

40. भारतीय संविधान की प्रस्तावना इनमें से किसे सुनिश्चित करने का प्रयास करती है?
(A) धार्मिक न्याय
(B) सामाजिक न्याय
(C) राजनीतिक न्याय
(D) उपर्युक्त सभी को।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी को।

41. इनमें से कौन-सा 1931 के कराची कांग्रेस संकल्प घोषणा पत्र में शामिल था?
(A) धार्मिक स्वतंत्रता
(B) धर्म निरपेक्ष राज्य
(C) वयस्क मताधिकार।
(D) उपर्युक्त सभी को।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक नियोजन का मुख्य उदेश्य क्या होता है?
उत्तर:
सामाजिक नियोजन का मुख्य उदेश्य देश का हर तरफ से विकास करना होता है।

प्रश्न 2.
हमारे देश में अब तक कितनी पंचवर्षीय योजनाएं बन चुकी हैं?
उत्तर:
हमारे देश में अब तक 12 पंचवर्षीय योजनाएं बन चुकी हैं।

प्रश्न 3.
हमारे देश में अब तक कितनी एकवर्षीय योजनाएं लागू हो चुकी हैं?
उत्तर:
हमारे देश में अब तक तीन एकवर्षीय योजनाएं 1966-69 तक लागू हो चुकी हैं।

प्रश्न 4.
हमारे देश के योजना आयोग को कब बनाया गया था?
उत्तर:
हमारे देश के योजना आयोग को 1950 में बनाया गया था।

प्रश्न 5.
योजना आयोग का अध्यक्ष कौन होता है?
उत्तर:
योजना आयोग का अध्यक्ष हमेशा प्रधानमंत्री होता है क्योंकि हमारे संविधान के अनुसार योजना आयोग का अध्यक्ष हमेशा प्रधानमंत्री ही होगा।

प्रश्न 6.
महिला अधिकारिता दिवस कब मनाया गया था?
उत्तर:
महिला अधिकारिता दिवस सन् 2001 में मनाया गया था।

प्रश्न 7.
पहली पंचवर्षीय योजना की अवधि क्या थी?
अथवा
प्रथम पंचवर्षीय योजना कब लागू की गई?
उत्तर:
पहली पंचवर्षीय योजना की अवधि 1951-1956 तक थी।

प्रश्न 8.
पहली पंचवर्षीय योजना में कितने रुपये खर्च करने का प्रावधान था?
उत्तर:
पहली पंचवर्षीय योजना में ₹ 1960 करोड़ खर्च करने का प्रावधान था।

प्रश्न 9.
दूसरी तथा तीसरी पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल बताएं।
उत्तर:
दूसरी पंचवर्षीय योजना 1956-1961 तक थी तथा तीसरी पंचवर्षीय योजना 1961-1966 तक थी।

प्रश्न 10.
दूसरी तथा तीसरी पंचवर्षीय योजना में कितने रुपये खर्च करने का प्रावधान था?
उत्तर:
दूसरी योजना में ₹ 4672 करोड़ तथा तीसरी पंचवर्षीय योजना में ₹ 8577 करोड़ खर्च करने का प्रावधान था।

प्रश्न 11.
तीन एकवर्षीय योजनाओं में कितने रुपये खर्च किए गए?
उत्तर:
तीन एकवर्षीय योजनाओं में ₹ 6625 करोड़ खर्च किए गए।

प्रश्न 12.
चौथी, पाँचवीं तथा छठी पंचवर्षीय योजनाओं का कार्यकाल बताएं।
उत्तर:
चौथी पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल 1969-74, पाँचवीं का 1974-79 तथा छठी पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल 1979-85 तक था।

प्रश्न 13.
इन तीन योजनाओं में कितने पैसे खर्च किए गए?
उत्तर:
चौथी योजना में ₹ 15779 करोड़, पाँचवीं योजना में ₹ 39,426 करोड़ तथा छठी पंचवर्षीय योजना में ₹ 1,10,467 करोड़ खर्च किए गए।

प्रश्न 14.
सातवीं तथा आठवीं पंचवर्षीय योजनाओं की अवधि बताएं।
उत्तर:
सातवीं तथा आठवीं पंचवर्षीय योजनाओं की अवधि क्रमशः 1985-90 तथा 1992-97 थी।

प्रश्न 15.
सातवीं तथा आठवीं पंचवर्षीय योजनाओं में कितने पैसे खर्च किए गए?
उत्तर:
सातवीं योजना में ₹ 2,21,436 करोड़ तथा आठवीं पंचवर्षीय योजना में ₹ 4,74,121 करोड़ खर्च किए गए।

प्रश्न 16.
नौवीं तथा दसवीं पंचवर्षीय योजनाओं की अवधि बताएं।
उत्तर:
नौवीं योजना की अवधि 1997-2002 तथा दसवीं पंचवर्षीय योजना की अवधि 2002-2007 तक है।

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प्रश्न 17.
नौवीं योजना में कितने रुपये खर्च किए गए?
उत्तर:
नौवीं योजना में ₹ 8,59,200 करोड़ खर्च किए गए।

प्रश्न 18.
दसवीं पंचवर्षीय योजना में कितने रुपये खर्च किए जाएंगे?
उत्तर:
दसवीं पंचवर्षीय योजना में ₹ 15.92,300 करोड़ खर्च किए जाएंग।

प्रश्न 19.
पंचवर्षीय योजनाओं का मॉडल भारत ने किस देश से लिया था?
उत्तर:
पंचवर्षीय योजनाओं का मॉडल भारत ने सोवियत संघ (U.S.S.R.) से लिया था।

प्रश्न 20.
आर्थिक विकास मख्यतः किन बातों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
आर्थिक विकास मुख्यतः उद्योगों के होने तथा अधिक उत्पादन होने, कृषि उत्पादन में बढ़ोत्तरी, विदेशी निवेश के बढ़ने, देश में सामान की खपत, आयात-निर्यात इत्यादि पर निर्भर करता है।

प्रश्न 21.
भारतीय संविधान की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान इतना लचकीला तथा आसान है कि इसमें परिवर्तन किया जा सकता है तथा साथ ही साथ इतना कठोर है कि इसे परिवर्तित करने के लिए संसद् तथा राज्य विधानसभाओं के दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता है।

प्रश्न 22.
बहु विवाह की प्रथा किस कानून द्वारा खत्म की गई थी?
उत्तर:
बहु विवाह प्रथा को हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के द्वारा खत्म किया गया था।

प्रश्न 23.
पुत्र गोद लेने का कानून कब पास हआ था?
उत्तर:
पुत्र गोद लेने या हिंदू दत्तक पुत्र गोद लेने का कानून 1950 में पास हुआ था।

प्रश्न 24.
दहेज निरोधक कानून कब पास हुआ?
उत्तर:
दहेज निरोधक कानून पहली बार 1961 में तथा दूसरी बार 1986 में पास हुआ था।

प्रश्न 25.
अस्पृश्यता अपराध कानून कब पास हुआ था?
उत्तर:
अस्पृश्यता अपराध कानून 1955 में पास हुआ था पर यह कारगर सिद्ध नहीं हुआ था। इसलिए इसमें संशोधन करके नागरिक संरक्षण अधिकार कानून 1976 में पास हुआ था।

प्रश्न 26.
विधवा पुनर्विवाह कानून कब पास हुआ था?
उत्तर:
विधवा पुनर्विवाह कानून 1856 में पास हुआ था।

प्रश्न 27.
सती प्रथा विरोधी कानून कब पास हुआ था?
उत्तर:
सती प्रथा विरोधी कानून 1829 में पास हुआ था।

प्रश्न 28.
प्रभुत्व जाति होने के लिए कौन-सी विशेषताएँ आवश्यक हैं?
उत्तर:
प्राचीन समय में उच्च जाति, धन का होना प्रभुत्व जाति होने के लिए आवश्यक था। परंतु आधुनिक समय में जाति का प्रभाव कम हो गया है। इसलिए अधिक जनसंख्या का होना ही प्रभुत्व जाति के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 29.
भारत किस प्रकार का राज्य है?
उत्तर:
भारत एक कल्याणकारी राज्य है जिसका मुख्य उद्देश्य जनता के कल्याण में कार्य करना है।

प्रश्न 30.
संविधान क्या होता है?
उत्तर:
संविधान एक कानूनी किताब या दस्तावेज़ है जिसमें देश पर शासन करने के तरीके तथा प्रणालियाँ लिखी हुई हैं।

प्रश्न 31.
भारत देश का संविधान कब लागू हुआ था?
उत्तर:
भारत देश का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ था, तभी हमारा देश गणतंत्र बना था।

प्रश्न 32.
संविधान बनाने वाली Drafting Committee के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
संविधान बनाने वाली Drafting Committee के अध्यक्ष डॉ० अंबेदकर थे।

प्रश्न 33.
भारत के नागरिकों को कितने मौलिक अधिकार दिए गए हैं?
उत्तर:
भारत के नागरिकों को छः (6) मौलिक अधिकार दिए गए हैं।

प्रश्न 34.
राज्य क्या होता है?
अथवा
राज्य की परिभाषा दें।
अथवा
राज्य क्या है?
अथवा
राज्य को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
राज्य वह समूह है जिसमें समाज में चल रही विभिन्न वैधानिक संस्थाएं उसके नाम से जानी जाती हैं तथा उसका निश्चित भू-भाग होता है जिसमें उसे शक्ति के शारीरिक पक्ष का प्रयोग करने का पूरा अधिकार होता है।

प्रश्न 35.
पंचवर्षीय योजनाओं का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
पंचवर्षीय योजनाओं का मुख्य उद्देश्य देश का हर तरफ से विकास करना है तथा राज्यों को उनके हक के मुताबिक विकास कार्यों पर खर्च करने के लिए पैसा देना है। इससे देश का सामाजिक तथा आर्थिक विकास होता है।

प्रश्न 36.
कल्याणकारी राज्य क्या होता है?
उत्तर:
कल्याणकारी राज्य में राज्य अपने नागरिकों तथा जनता के कल्याण करने की ज़िम्मेवारी उठाता है तथा उनके कल्याण के प्रयास करता है।

प्रश्न 37.
कल्याणकारी राज्य किस प्रकार की भूमिका निभाता है?
उत्तर:
कल्याणकारी राज्य देश में नागरिकों के कल्याण में सबसे अहम भूमिका अदा करता है। देश के कमजोर तथा पिछड़े वर्गों के आर्थिक विकास के लिए वह कार्य करता है। महिलाओं तथा बच्चों के लिए विधान रखता है ताकि कोई उनका शोषण न कर सके। इस तरह कल्याणकारी राज्य बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

प्रश्न 38.
नियोजन क्या होता है?
उत्तर:
नियोजन एक व्यवस्था होती है जिसके आधार पर समाज या व्यक्तिगत तौर पर लक्ष्यों की पूर्ति के लिए प्रयास किए जाते हैं।

प्रश्न 39.
सामाजिक नियोजन क्या होता है?
उत्तर:
यह वह व्यवस्था या विधि है जिसकी मदद से समाज की विभिन्न प्रकार की सामाजिक तथा सांस्कृतिक समस्याओं के समाधान के प्रयास किए जाते हैं।

प्रश्न 40.
आर्थिक नियोजन क्या होता है?
उत्तर:
यह वह योजना या कार्यक्रम है जिसमें हम आर्थिक तौर के सभी पक्षों जैसे कृषि, व्यापार, संपत्ति, संचार, परिवहन के साधनों के विकास के कार्य या प्रयास करते हैं।

प्रश्न 41.
हमारे देश में सामाजिक नियोजन की क्या ज़रूरत है?
उत्तर:
हमारे देश में विभिन्न धर्मों, जातियों के लोग रहते हैं। इन सबको एक-दूसरे के निकट लाने के लिए तथा इस निकटता में से निकली समस्याओं के समाधान के लिए सामाजिक नियोजन की बहुत ज़रूरत है।

प्रश्न 42.
राज्य तथा सरकार में क्या अंतर है?
उत्तर:
राज्य स्थायी होती है उसे कोई हिला नहीं सकता पर सरकार अस्थायी होती है जोकि पाँच साल या उससे पहले भी बदल सकती है। राज्य के कुछ लक्ष्य होते हैं, सरकार उन लक्ष्यों को प्राप्त करने का साधन है।

प्रश्न 43.
पंचायत किसे कहते हैं?
उत्तर:
पंचायत का अर्थ है-पाँच व्यक्तियों की सभा यां पंचों का समूह। पंचायती राज का अर्थ पंचों या पाँच व्यक्तियों द्वारा शासन करने के आधार पर समझा जा सकता है। इसे स्थानीय स्वशासन भी कह सकते हैं।

प्रश्न 44.
पंचायती राज के तीन स्तर कौन-कौन से हैं?
अथवा
नई पंचायती राज व्यवस्था के तीन स्तर कौन से हैं?
अथवा
पंचायती राज संस्थाओं के स्तरों की संख्या कितनी है?
उत्तर:
पंचायती राज के तीन स्तर हैं-

  • पंचायत-गांव के स्तर पर
  • पंचायत समिति-ब्लॉक स्तर पर
  • जिला परिषद्-ज़िला के स्तर पर।

प्रश्न 45.
कानून क्या हैं?
अथवा
सामाजिक अधिनियम किसे कहते हैं?
उत्तर:
नियमों व सिद्धांतों की वह व्यवस्था जिसे जनता पर सरकार द्वारा लागू किया जाता है उसे कानून कहते है।

प्रश्न 46.
देश के लिए कानून कौन बनाता है?
उत्तर:
देश के लिए कानून देश की संसद् बनाती है तथा राज्य के लिए कानून राज्य के विधानमंडल बनाते हैं।

प्रश्न 47.
भारत में पंचायती राज व्यवस्था कब लागू हुई थी?
उत्तर:
भारत में पंचायती राज व्यवस्था 1959 में लागू हुई थी।

प्रश्न 48.
ग्राम पंचायत का गठन कितने समय के लिए होता है?
उत्तर:
ग्राम पंचायत का गठन 73वें संशोधन के अनुसार 5 साल के लिए होता है पर इसे पहले भी भंग किया जा सकता है।

प्रश्न 49.
ग्राम पंचायत में कितने सदस्य होते हैं?
उत्तर:
हमारे देश में ग्राम पंचायत के सदस्यों की संख्या निश्चित नहीं है। हरेक राज्य में यह भिन्न-भिन्न है। हरियाणा में यह संख्या 6 से 20 तक है।

प्रश्न 50.
ग्राम पंचायत के सदस्यों तथा प्रधान का चुनाव कैसे होता है?
उत्तर:
भारत में प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली चलती है ताकि लोगों के प्रतिनिधियों को चुना जा सके। इस तरह ग्राम पंचायत के पंचों तथा सरपंच का चुनाव भी प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली से होता है।

प्रश्न 51.
पंचायत समिति तथा जिला परिषद् किस स्तर पर गठित होते हैं?
उत्तर:
पंचायत समिति ब्लॉक स्तर पर तथा जिला परिषद् जिला स्तर पर गठित होते हैं।

प्रश्न 52.
पंचायत समिति द्वारा बनाई योजनाओं को कौन लागू करता है?
उत्तर:
पंचायत समिति द्वारा बनाई गई योजनाओं को ब्लॉक विकास अधिकारी (Block Development Officer) लागू करता है।

प्रश्न 53.
पुरानी पंचायत राज व्यवस्था में क्या त्रुटियां थीं?
उत्तर:

  1. नियमित चुनावों का अभाव था।
  2. पंचायतों के पास वित्तीय साधन नहीं थे।
  3. लोगों की इन संस्थाओं में कम रुचि थी।
  4. सरकारी अधिकारियों का इनके ऊपर अत्यधिक नियंत्रण था।

प्रश्न 54.
कानून कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
कानून दो प्रकार के होते हैं-

  1. दीवानी कानून
  2. फ़ौजदारी कानून।

प्रश्न 55.
गाँवों के विकास के लिए पंचायती राज में कौन-सी संस्थाएं कार्य करती हैं?
उत्तर:
गाँवों के विकास के लिए पंचायती राज में तीन संस्थाएं कार्य करती हैं।

  1. गाँव में पंचायत
  2. ब्लॉक में पंचायत समिति
  3. जिले में जिला परिषद्।

प्रश्न 56.
ग्राम सभा क्या है?
उत्तर:
यह सभा गाँव में बनती है। गाँव के सभी बालिग मर्द तथा औरतें इसके सदस्य होते हैं तथा यही लोग पंचायत का निर्माण करते हैं।

प्रश्न 57.
पंचायत की आय के कोई दो साधन बताओ।
उत्तर:

  1. सरकार से मिलने वाली ग्रांट
  2. मकानों पर लगे टैक्स से आमदनी
  3. शामलाट ज़मीन से आमदनी।

प्रश्न 58.
पंचायत के कोई चार कार्य बताओ।
उत्तर:

  1. गाँव में पीने के पानी का प्रबंध करना।
  2. गाँवों में सड़कों का निर्माण करना।
  3. गाँवों की सफाई रखने की व्यवस्था करनी।
  4. गाँवों में बिजली का प्रबंध करना।

प्रश्न 59.
पंचायत समिति की आय के कोई तीन साधन बताओ।
उत्तर:

  1. सरकार से ग्रांट मिलना
  2. मेलों से आमदनी
  3. मंडियां लगने से आय की प्राप्ति।

प्रश्न 60.
पंचायत समिति के कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर:

  1. अपने क्षेत्र के विकास के लिए योजनाएं बनाना तथा उन्हें लागू करना।
  2. अपने क्षेत्र के अंतर्गत आती पंचायतों के काम-काज की निगरानी करना।

प्रश्न 61.
जिला परिषद् की आय के कोई दो साधन बताओ।
उत्तर:

  1. सरकार द्वारा प्राप्त ग्रांट
  2. अपनी संपत्ति से मिलती आमदनी
  3. उस क्षेत्र में से इकट्ठे हुए करों का कुछ भाग।

प्रश्न 62.
जिला परिषद् के प्रमुख कार्य क्या है?
उत्तर:

  1. अपने क्षेत्र में आती पंचायत समितियों के काम का निरीक्षण करना।
  2. अपने क्षेत्र में चल रहे विकास कार्यों का निरीक्षण करना।

प्रश्न 63.
ग्राम पंचायत का सदस्य बनने के लिए क्या योग्यता चाहिए?
उत्तर:
ग्राम पंचायत का सदस्य बनने के लिए 21 वर्ष की आयु होनी चाहिए। चुनाव लड़ने वाला व्यक्ति राज्य विधानसभा का चुनाव लड़ने तथा पंचायतों का चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य न ठहराया गया हो।

प्रश्न 64.
उदारीकरण का क्या अर्थ है?
उत्तर:
नियंत्रित अर्थव्यवस्था के अनावश्यक प्रतिबंधों को हटाना उदारीकरण है। उद्योगों तथा व्यापार पर से अनावश्यक प्रतिबंध हटाना अर्थव्यवस्था अधिक प्रतिस्पर्धात्मक, प्रगतिशील तथा खुली बन सके, इसे उदारीकरण कहते हैं। यह एक आर्थिक प्रक्रिया है तथा यह समाज में आर्थिक परिवर्तनों की प्रक्रिया हैं।

प्रश्न 65.
निजीकरण किसे कहते हैं?
उत्तर:
लोकतांत्रिक तथा समाजवादी देशों में मिश्रित प्रकार की व्यवस्था होती है। इस अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक उपक्रम होते हैं। इन सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों में सौंपना, ताकि यह अधिक लाभ कमा सकें, निजीकरण कहलाता है।

प्रश्न 66.
मौलिक अधिकारों से आप क्या समझते हैं?
अथवा
मौलिक अधिकार क्या हैं?
अथवा
मौलिक अधिकारों की परिभाषा दें।
उत्तर:
हमारे देश के संविधान ने देश के सभी नागरिकों को कुछ मूलभूत अधिकार प्रदान किए हुए हैं जिन्हें मौलिक अधिकार कहा जाता है। यह अधिकार व्यक्ति के लिए अच्छा जीवन जीने के लिए आवश्यक हैं जिस कारण इन्हें मौलिक अधिकार कहा जाता है।

प्रश्न 67.
भारतीय नागरिकों को संविधान में दिए गए प्रमुख मौलिक अधिकारों का वर्णन करें।
अथवा
मौलिक अधिकारों का एक उदाहरण दें।
अथवा
भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
किन्हीं दो मौलिक अधिकारों का वर्णन करें।
अथवा
कोई दो मौलिक अधिकार लिखिए।
उत्तर:

  1. समानता का अधिकार
  2. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
  3. स्वतंत्रता का अधिकार
  4. सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक अधिकार
  5. शोषण के विरुद्ध अधिकार
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

प्रश्न 68.
संवैधानिक उपचारों के अधिकार का क्या अर्थ है?
उत्तर:
यह अधिकार देश के सभी नागरिकों को दिया गया है। इसके अनुसार अगर कोई और व्यक्ति, राज्य सरकार अथवा केन्द्र सरकार किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन या उनमें हस्तक्षेप करने का प्रयास करता है तो वह व्यक्ति न्यायालय का दरवाजा खटखटाकर अपने अधिकार वापिस पा सकता है।

प्रश्न 69.
लोकतंत्र क्या है?
अथवा
लोकतंत्रीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
लोकतंत्र सरकार का ही एक प्रकार है जिसमें जनता का शासन चलता है। इसमें जनता के प्रतिनिधि साधारण जनता में से बालिगों को वोट देने के अधिकार से चुने जाते हैं तथा यह प्रतिनिधि ही जनता का प्रतिनिधित्व करते है और उनकी तरफ से बोलते हैं। यह कई संकल्पों जैसे कि समानता, स्वतंत्रता तथा भाईचारे में विश्वास रखता है तथा यह ही इसके कार्यवाहक आधार है।

प्रश्न 70.
दबाव समूह क्या होता है?
अथवा
दबाव समूह से आप क्या समझते हैं?
अथवा
दबाव समूह क्या है?
उत्तर:
दबाव समूह वह संगठित अथवा असंगठित समूह होते हैं जो सरकारी नीतियों को प्रभावित करते हैं तथा अपने हितों को बढ़ावा देते हैं। उनके कुछ उद्देश्य होते हैं तथा वे सरकार पर दबाव डालकर अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के प्रयास करते हैं। यह प्रत्यक्ष रूप से कभी भी चनाव नहीं लड़ते बल्कि अपने प्रभाव से स रखते हैं। ट्रेड यूनियन, किसान संघ इसकी उदाहरणें हैं।

प्रश्न 71.
स्थानीय स्वः शासन का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब स्थानीय स्तर पर जनता का शासन स्थापित हो जाए तो उसे स्थानीय स्वः शासन कहते हैं। इसमें जनता स्थानीय स्तर पर अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है तथा वह प्रतिनिधि स्थानीय स्तर पर ही जनता की समस्याओं का समाधान करते हैं।

प्रश्न 72.
राज्य क्या होता है?
उत्तर:
राज्य वह समूह है जिसमें समाज में चल रही विभिन्न वैधानिक संस्थाएं उसके नाम से जानी जाती हैं तथा उसका निश्चित भू-भाग होता है जिसमें उसे शक्ति के शारीरिक पक्ष का प्रयोग करने का पूरा अधिकार होता है।

प्रश्न 73.
पंचवर्षीय योजनाओं का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
पंचवर्षीय योजनाओं का मुख्य उद्देश्य देश का हर तरफ से विकास करना है तथा राज्यों को उनके हक के मुताबिक विकास कार्यों पर खर्च करने के लिए पैसा देना है। इससे देश का सामाजिक तथा आर्थिक विकास होता है।

प्रश्न 74.
संगठित अपराध किसे कहते हैं?
उत्तर:
आजकल के समय में लोग एक निश्चित योजना बनाकर, हथियारों के साथ अपराध करते हैं। उन्हें ही संगठित अपराध कहा जाता है।

प्रश्न 75.
सफेद कॉलर अपराध का एक उदाहरण दें।
उत्तर:
नेताओं, अफसरों इत्यादि द्वारा किया जाने वाला घोटाला सफेद कॉलर अपराध का उदाहरण है।

प्रश्न 76.
चार नीति निर्देशक सिद्धांतों के नाम दें।
उत्तर:
राज्य बाल मजदूरी को रोकेगा, राज्य समान कार्य के लिए समान वेतन सुनिश्चित करेगा, सभी नागरिकों के लिए आजीविका के उपयुक्त स्रोत विकसित करेगा तथा देश की प्राचीन धरोहरों की रक्षा करेगा।

प्रश्न 77.
समानता के अधिकार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
समानता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है जिसके अनुसार देश के सभी नागरिक कानून की दृष्टि में समान हैं तथा किसी के साथ भी जाति, वर्ण, रंग, भाषा, आयु, प्रजाति इत्यादि में आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।

प्रश्न 78.
शैक्षणिक अधिभार से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
शैक्षणिक अधिकार का अर्थ यह है कि सरकार 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों को मुफ्त तथा अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगी।

प्रश्न 79.
भारत के किसी एक क्षेत्रीय राजनीतिक दल का नाम बताएं।
उत्तर:
इंडियन नैशनल लोकदल हरियाणा राज्य में मौजूद क्षेत्रीय राजनीतिक दल है।

प्रश्न 80.
ग्राम पंचायत का उप-प्रधान कैसे निर्वाचित किया जाता है?
उत्तर:
ग्राम पंचायत के निर्वाचित सदस्य अर्थात पंच अपने में से ही एक उप प्रधान का चुनाव करते हैं।

प्रश्न 81.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि ‘भारत एक समाजवादी ……………… है।
उत्तर:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि भारत एक समाजवादी पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य है।

प्रश्न 82.
स्वतंत्रता के अधिकार क्या है?
उत्तर:
स्वतंत्रता के अधिकार के अनुसार भारत में सभी नागरिक स्वतंत्र हैं तथा किसी भी देशी, विदेशी प्रभाव से मुक्त है।

प्रश्न 83.
भारत के किसी एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल का नाम बताएँ।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भारत का एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल हैं।

प्रश्न 84.
ग्राम पंचायत के प्रधान का चुनाव कैसे किया जाता है?
उत्तर:
ग्राम पंचायत के प्रधान का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान के द्वारा होता है।

प्रश्न 85.
भारतीय संविधान में लिखा है कि भारत एक प्रजातंत्रीय …………………….. है।
उत्तर:
भारतीय संविधान में लिखा है कि भारत एक प्रजातन्त्रीय गणराज्य है।

प्रश्न 86.
अस्पृश्यता में उन्मूलन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अस्पृश्यता में उन्मूलन का अर्थ है कि देश में से विधानों के द्वारा अस्पृश्यता का खात्मा कर दियागया है तथा जो भी अस्पृश्यता का पालन करेगा उसे विधानों के अनुसार कठोर दंड दिया जाएगा।

प्रश्न 87.
कोई एक मौलिक कर्तव्य बताएं।
उत्तर:
संविधान का पालन करना तथा इसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज व राष्ट्रीय गान का सम्मान करना

प्रश्न 88.
ग्राम पंचायत की मीटिंग की अध्यक्षता प्रधान या पंच में से कौन करता है?
उत्तर:
ग्राम पंचायत की मीटिंग की अध्यक्षता प्रधान करता है।

प्रश्न 89.
किन्हीं दो राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के नाम बताएँ।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी भारत के राष्ट्रीय राजनीतिक दल हैं।

प्रश्न 90.
भारत का संविधान 15 अगस्त, 1947 या 26 जनवरी, 1950 में से किस दिन लागू किया गया?
उत्तर:
भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया।

प्रश्न 91.
‘संविधान दवारा 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों को शिक्षा का अधिकार प्रदान किया गया है।’ यह कथन सत्य है या असत्य?
उत्तर:
यह कथन सत्य है कि संविधान द्वारा 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों को शिक्षा का अधिकार प्रदान किया गया है।

प्रश्न 92.
ग्राम सभा तथा ग्राम पंचायत में क्या अंतर है?
उत्तर:
एक ग्राम सभा में ग्राम के सभी बालिग सदस्य होते हैं तथा ग्राम पंचायत ग्राम सभा द्वारा चुनी हुई संस्था होती है जिसमें एक प्रधान तथा कई पंच होते हैं।

प्रश्न 93.
आपके राज्य में ग्राम पंचायत के सदस्यों के चुनाव में वोट डालने की न्यूनतम आयु क्या है?
उत्तर:
हमारे राज्य में ग्राम पंचायत के सदस्यों के चुनाव में वोट डालने की न्यूनतम आयु 18 वर्ष है।

प्रश्न 94.
‘शिक्षा का अधिकार’ कितनी आयु तक के बच्चों को दिया गया है?
उत्तर:
शिक्षा का अधिकार 6-14 वर्ष तक की आयु तक के बच्चों को दिया गया है।

प्रश्न 95.
पंचायती राज संस्थाओं के सदस्यों का कितने वर्ष के लिए चुनाव किया जाता है?
उत्तर:
पंचायती राज संस्थाओं के सदस्यों का चुनाव 5 वर्ष के लिए होता है।

प्रश्न 96.
अपने राज्य में सक्रिय किन्हीं दो राजनीतिक दलों के नाम बताएं।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, इंडियन नैशनल लोकदल, बी० जे० पी० हमारे राज्य के सक्रिय राजनीतिक दल हैं।

प्रश्न 97.
26 जनवरी, 1950 को किस देश का संविधान लागू किया गया?
उत्तर:
26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू किया गया।

प्रश्न 98.
अभिव्यक्ति का अधिकार क्या है?
उत्तर:
वह अधिकार जिसके अंतर्गत सभी को अपनी बात कहने की स्वतंत्रता हो, अभिव्यक्ति का अधिकार है।

प्रश्न 99.
अनुसूचित जनजाति किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह जनजाति जिसका नाम संविधान में दर्ज है, उसे अनुसूचित जनजाति कहते हैं।

प्रश्न 100.
भारत में दल प्रणाली का स्वरूप किस प्रकार का है?
उत्तर:
भारत में बहुदलीय व्यवस्था है अर्थात् यहाँ बहुत से राजनीतिक दल होते हैं।

प्रश्न 101.
अनुसूचित जाति क्या है?
उत्तर:
जिस जाति का नाम संविधान में कुछ विशेष व्यवस्थाओं को पाने के लिए दर्ज हो, उसे अनुसूचित जाति कहते हैं।

प्रश्न 102.
मौलिक अधिकार के हनन पर भारत के किस न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है?
उत्तर:
मौलिक अधिकार के हनन पर उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।

प्रश्न 103.
भारत की राजकीय भाषा कौन-सी है?
उत्तर:
हिंदी भारत की राजकीय भाषा है।

प्रश्न 104.
प्रभुजाति का स्थानीय सोपान में कौन-सा स्थान होता है?
उत्तर:
प्रभुजाति का स्थानीय सोपान में सबसे उच्च स्थान होता है।

प्रश्न 105.
किंही दो दबाव समूहों का नाम बताएं।
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आंदोलन, चिपको आंदोलन दो दबाव समूह हैं।

प्रश्न 106.
संविधान में किस अनुच्छेद द्वारा अस्पृश्यता का उन्मूलन किया गया है?
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद 17 द्वारा अस्पृश्यता का उन्मूलन किया गया है।

प्रश्न 107.
जाति कैसी सामाजिक व्यवस्था है?
उत्तर:
जाति एक बंद सामाजिक व्यवस्था है जिसमे शामिल होना या निकलना मुमकिन नहीं है।

प्रश्न 108.
भारतीय संविधान में कौन-सी भाषा मान्यता प्राप्त नहीं हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान में अंग्रेजी को मान्यता प्राप्त नहीं हैं क्योंकि इसे संपर्क भाषा कहा गया है।

प्रश्न 109.
सरकार के तीन अंग कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
विधानपालिका (Legislative), कार्यपालिका (Executive) तथा न्यायपालिका (Judiciary), सरकार के तीन अंग हैं।

प्रश्न 110.
भारत में नयी पंचायती राज व्यवस्था कब शरू हई?
उत्तर:
भारत में नयी पंचायती राज व्यवस्था 1993 में शुरू हुई थी।

प्रश्न 111.
भारत की राजकीय भाषा कौन-सी है?
उत्तर:
हिंदी भारत की राजकीय भाषा है।

प्रश्न 112.
राज्य के अनिवार्य तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भौगोलिक क्षेत्र, जनसंख्या, प्रभुसत्ता तथा सरकार राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं।

प्रश्न 113.
सरकार का अर्थ एवं परिभाषा लिखें।
उत्तर:
सरकार राज्य का वह अनिवार्य तत्त्व है. जिसे उसका प्रशासन चलाने के लिए निर्मित किया जाता है।

प्रश्न 114.
एक पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल क्या होता है?
उत्तर:
एक पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल 5 वर्ष होता है।

प्रश्न 115.
हिंदू विवाह अधिनियम कब पास हुआ?
उत्तर:
हिंदू विवाह अधिनियम सन् 1955 में पास हुआ था।

प्रश्न 116.
संवैधानिक प्रावधान से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसी विशेष कार्य को करने के लिए जो उपबंध अथवा प्रावधान संविधान में रखे गए हों उन्हें संवैधानिक प्रावधान कहा जाता है।

प्रश्न 117.
पंचवर्षीय योजना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
हमारे देश का विकास करने के लिए पाँच वर्षों के लिए जो योजना तैयार की जाती है उसे पंचवर्षीय योजना कहा जाता है।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पंचायती राज संस्थाओं के कोई चार कार्य बताओ।
अथवा
ग्राम पंचायत के कोई दो प्रमुख कार्य बताएँ।
अथवा
पंचायती राज्य संस्थाओं के कोई पाँच कार्य लिखिए।
उत्तर:

  1. पीने के पानी का प्रबंध, बिजली का प्रबंध करना।
  2. कृषि विस्तार के प्रयास करने।
  3. पशुपालन, दुग्ध उद्योग और कुक्कुट पालन का विकास करना।
  4. सड़कें, पुलियाँ, पुल, फेरी, जलमार्ग तथा संचार के अन्य साधनों का प्रबंध करना।
  5. शिक्षा का प्रबंध करना।
  6. बाज़ार तथा मेले लगवाने।

प्रश्न 2.
पंचायती राज प्रणाली की विशेषताएं बताओ।
अथवा
नई पंचायती राज प्रणाली की कोई चार विशेषताएं लिखें।
उत्तर:

  1. पंचायती राज प्रणाली में तीन स्तरीय संरचना होती है।
  2. इनमें ग्राम सभा की भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण होती है।
  3. इनमें चुनाव प्रत्यक्ष तौर पर होता है।
  4. इस प्रणाली में महिलाओं, अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण होता है।
  5. पंचायती राज संस्थाओं के वित्तीय अधिकार तथा कार्यों का वितरण होता है।

प्रश्न 3.
पंचायत समिति के कौन-कौन सदस्य होते हैं?
उत्तर:

  1. पंचायत समिति के लिए प्रत्यक्ष रूप से चुने हुए सदस्य।
  2. लोकसभा तथा राज्य विधानसभा के सदस्य जो उस क्षेत्र से संबंधित हों।
  3. पंचायत समिति क्षेत्र से ग्राम पंचायतों के कुल प्रधानों में से 1/5 भाग।
  4. राज्य सभा के सदस्य।

प्रश्न 4.
मैकाइवर के अनुसार कानून कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:

  1. राष्ट्रीय कानून (National Law)
  2. अंतर्राष्ट्रीय कानून (International Law)
  3. संवैधानिक कानून (Constitutional Law)
  4. साधारण कानून (Ordinary Law)
  5. सार्वजनिक कानून (Public Law)
  6. व्यक्तिगत कानून (Private Law)
  7. सामान्य कानून (General Law)
  8. प्रशासनिक कानून (Administrative Law)।

प्रश्न 5.
भारत में विकेंद्रीकरण का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
विकेंद्रीकरण का अर्थ है शक्तियों का बंटवारा। इसका अर्थ है शक्तियों का ऊपर से लेकर नीचे तक शक्तियों का बंटवारा। भारत में विकेंद्रीकरण का बहुत महत्त्व है क्योंकि भारत एक लोकतंत्र है। लोकतंत्र की सबसे पहली शर्त है कि राजनीति में जनता की भागीदारी। जनता की भागीदारी तभी संभव है जब हर स्तर पर चुनाव हो। हर स्तर पर चुनाव होने से लोए चुने जाएंगे। अगर वह चुने गए हैं तो उनको शक्तियों की जरूरत पड़ेगी।

उनको शक्तियां मिलेंगी ऊपर से तथा यह शक्तियां तभी मिल सकती हैं अगर शक्तियों का केंद्रीकरण न होकर विकेंद्रीकरण हो। वैसे भी भारत में बहुत-सी समस्याएं पायी जाती हैं। इन समस्याओं को केंद्र में बैठकर हल नहीं किया जा सकता। इनको उसी स्तर पर हल किया जा सकता है जहाँ पर यह हैं तथा उसके लिए शक्तियों का विकेंद्रीकरण चाहिए।

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प्रश्न 6.
विकेंद्रीकरण व्यवस्था की कोई चार विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
विकेंद्रीकरण व्यवस्था में शक्तियों का विकेंद्रीकरण हो जाता है। आजादी के बाद हमारे देश में विकेंद्रीकरण की व्यवस्था अपनायी गई ताकि हमारा देश सही मायनों में लोकतंत्र बन सके। विकेंद्रीकरण व्यवस्था की चार विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(i) विकेंद्रीकरण व्यवस्था में शासन व्यवस्था लोकप्रिय रहती है क्योंकि इस व्यवस्था में हर किसी को सत्ता हथियाने का मौका मिलता है। लोकतंत्र जितना व्यापक होगा जनता उतनी ही सक्रिय होगी। इसलिए इससे शासन व्यवस्था लोकप्रिय रहती है।

(ii) विकेंद्रीकरण में निर्णय जल्दी ले लिए जाते हैं। अगर यह व्यवस्था न हो तो निर्णय लेने में समय लग जाएगा क्योंकि वह राजधानी से आएगा पर इस व्यवस्था में मौके पर ही निर्णय हो जाते हैं। इसमें बड़े-बड़े अधिकारियों से आज्ञा की ज़रूरत नहीं पड़ती।

(iii) इस व्यवस्था में प्रशासन में लचीलापन आ जाता है। कर्मचारियों को उनके अधिकार क्षेत्र में निर्णय लेने की स्वतंत्रता रहती है। जिन लोगों के लिए वे काम करते हैं वह उनके निकट होते हैं इसलिए वह मौके के अनुसार निर्णय ले लेते हैं।

(iv) इस व्यवस्था में एक अधिकारी के पास काम का बोझ नहीं रहता। अगर यह व्यवस्था न हो तो छोटे अधिकारियों के पास कोई काम न होगा तथा बड़े अधिकारी काम के बोझ तले दब जाएंगे। इस तरह यह व्यवस्था काम को अलग-अलग स्तरों पर बांट देती है।

प्रश्न 7.
विकेंद्रीकरण व्यवस्था के चार अवगुण बताओ।
उत्तर:
इस व्यवस्था के अवगुण निम्नलिखित हैं-
(i) इस व्यवस्था से शासन में एकरूपता का अभाव होता है। ऊपर बैठे अधिकारी काम करने के नीति निर्देश तो दे देते हैं पर छोटे अधिकारी उस नीति में मौके तथा समय के अनुसार संशोधन कर देते हैं जिस वजह से ऊपर तथा नीचे वालों की नीति में भिन्नता आ जाती है।

(ii) इस व्यवस्था का एक और अवगुण यह है कि इससे खर्च बढ़ जाता है। कर्मचारियों की तनख्वाह, कार्यालय, उसके खर्च यह सब सरकार को सहन करने पड़ते हैं जोकि बहुत ज्यादा होते हैं।

(iii) इस समस्या से राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचता है। अधिकारी स्थानीय समस्याओं को निपटाने में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि वह सिर्फ स्थानीय क्षेत्र के बारे में सोचते रहते हैं देश के बारे में नहीं सोचते।।

(iv) इस व्यवस्था में केंद्र के नियंत्रण का अभाव होता है। कर्मचारी अपनी मर्जी से काम करते हैं। कई बार तो केंद्र सरकार द्वारा बनाई नीतियों की भी अवहेलना हो जाती है। उनमें स्वेच्छाचारी की प्रवृत्ति बढ़ जाती है।

प्रश्न 8.
भारत के संविधान में महिलाओं के लिए प्रावधान है?
अथवा
महिलाओं के कल्याण के लिए क्या संवैधानिक प्रावधान हैं?
उत्तर:
भारत की कुल जनसंख्या में से आधी आबादी महिलाओं की है। सदियों से उनकी स्थिति निम्न रही है तथा उनको पैरों की जूती समझा जाता था। इसलिए संविधान में उनके कल्याण के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। अनुच्छेद 15 के अनुसार सरकार महिलाओं के हितों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रबंध तथा उनको विशेष सुविधाएँ प्रदान कर सकती हैं। अनुच्छेद 39 में यह प्रावधान है कि महिलाओं व पुरुषों को समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाएगा।

अनुच्छेद 42 के अनुसार राज्य महिलाओं को प्रसूति सहायता का प्रबंध करेगा। अनुच्छेद 51 में लिखा है कि प्रत्येक भारतीय का यह कर्तव्य है कि वह महिलाओं के गौरव को अपमान पहुँचाने वाली परंपराओं को त्याग दें। 73वें तथा 74वें संवैधानिक संशोधनों से महिलाओं के लिए पंचायती राज संस्थाओं तथा नगरपालिकाओं में एक तिहाई सीटें आरक्षित की गई हैं।

प्रश्न 9.
हमारे संविधान में बच्चों के लिए क्या प्रावधान है?
अथवा
बच्चों के कल्याण के लिए क्या संवैधानिक प्रावधान है?
उत्तर:
भारतीय संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में बच्चों का भी उल्लेख किया गया है। अनुच्छेद 15 के अनुसार सरकार बच्चों के हितों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रबन्ध कर सकती है। उन्हें विशेष सुविधाएं मुहैया करवा सकती है। अनुच्छेद 39 के अनुसार बच्चों को आर्थिक संकट से विवश होकर ऐसे कार्य न करने पड़ें जोकि उनकी आयु व स्वास्थ्य के अनुकूल न हो।

इसलिए सरकार ऐसी नीति का निर्माण करे जिससे बच्चों व युवकों के शोषण तथा नैतिक एवं भौतिक पतन से रक्षा हो सके। अनुच्छेद 45 में लिखा है कि सरकार 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क तथा आवश्यक शिक्षा का प्रबंध करे।

प्रश्न 10.
संविधान ने अनुसूचित जातियों के लिए क्या प्रावधान रखे हैं?
उत्तर:

  1. संविधान के अनुच्छेद 275 के अनुसार केंद्र सरकार राज्यों को जनजातीय कल्याण के लिए विशेष धनराशि देगी।
  2. अनुच्छेद 325 के अनुसार सभी को (जनजातियों को भी) वयस्क मताधिकार प्राप्त है।
  3. अनुच्छेद 330 व 332 के अनुसार वर्तमान समय में अनुसूचित जातियों के लिए लोकसभा में 41 तथा राज्यों की विधानसभाओं में 527 स्थान आरक्षित हैं।
  4. अनुच्छेद 335 के अनुसार जनजातियों के लिए सरकारी नौकरियों में 7.5% स्थान आरक्षित हैं।
  5. अनुच्छेद 338 के अनुसार राष्ट्रपति अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए विशेष अधिकारी की नियुक्ति करेगा जो प्रत्येक वर्ष राष्ट्रपति को रिपोर्ट करेगा।

प्रश्न 11.
पहली पंचवर्षीय योजना के क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:
1951 में जब पहली पंचवर्षीय योजना शुरू हुई तो उस समय देश विभाजन तथा द्वितीय विश्व युद्ध की वजह से आर्थिक संकट से गुजर रहा था। इसलिए पहली पंचवर्षीय योजना के निम्नलिखित मुख्य उदेश्य रखे गए

  • देश में कृषि व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाएगा।
  • देश में कृषि का विकास किया जाएगा ताकि देश खाद्यान्न उत्पादन में आत्म-निर्भर हो सके।
  • ज्यादा से ज्यादा समाज कल्याण के कार्यक्रम बनाना।
  • औद्योगिक विकास को बढ़ाना।
  • रोज़गार बढ़ाने वाले क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान देना।
  • विस्थापितों के पुनर्वास के लिए ज्यादा से ज्यादा काम करना।

इस योजना के बजट 1960 करोड़ में से 45% राशि कृषि पर खर्च की गई। प्रथम योजना में विकास दर का लक्ष्य 2.2% रखा गया पर 3.7% तक विकास दर पहुँच गई थी।

प्रश्न 12.
दूसरी पंचवर्षीय योजना के क्या लक्ष्य थे?
उत्तर:
द्वितीय पंचवर्षीय योजना के लिए प्रमुख लक्ष्य था तेज़ गति से देश का औद्योगीकरण करना। इसके लिए 1956 में औद्योगिक नीति की घोषणा भी की गई। इसके लक्ष्य निम्नलिखित थे-

  • तेज़ गति से देश का औद्योगीकरण करना।
  • मूल तथा बड़े उद्योगों की स्थापना पर बल दिया जाए ताकि भारतीय समाज में समाजवादी अर्थव्यवस्था का विकास किया जा सके।
  • उद्योगों का विकास ताकि रोज़गार के साधनों का ज्यादा विकास हो सके।
  • राष्ट्रीय आय तथा देश के लोगों के रहन-सहन में वृद्धि करना।
  • आर्थिक साधनों का देश की जनता में समान रूप में वितरण करना।

इसके लिए दूसरी पंचवर्षीय योजना में 4672 करोड़ रुपये खर्च किए गए। विकास दर का लक्ष्य 46% रखा गया पर उपलब्धि 4.2% ही रही। छोटे बड़े उद्योगों में 14,000 विस्थापितों को नौकरियां दी गईं तथा 22,000 लोगों को व्यावसायिक प्रशिक्षण दिए गए।

प्रश्न 13.
तीसरी पंचवर्षीय योजना के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
उत्तर:
तीसरी पंचवर्षीय योजना में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य रखा गया तथा कृषि तथा औद्योगिक विकास की दर को बढ़ाने का प्रयास किया गया।

  • देश को कृषि के उत्पादन क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना।
  • कृषि तथा औद्योगिक विकास की दर को बढाना।
  • राष्ट्रीय आय में वृद्धि ताकि देश में चल रही योजनाओं को पूरा किया जा सके।
  • रोजगार के साधन बढ़ाने में प्रयास करना।
  • देश की उन्नति के लिए अवसर उपलब्ध करवाना।
  • उद्योगों के लिए बिजली, ईंधन इत्यादि उपलब्ध करवाना ताकि ज्यादा से ज्यादा उत्पादन किया जा सके।

इस पूरी योजना के दौरान ₹ 8577 करोड़ खर्च किए गए। विकास दर का लक्ष्य तो 5% का था पर उपलब्धि 2.8% ही रही। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, समाज कल्याण इत्यादि के लिए काफ़ी पैसा रखा गया ताकि देश के औद्योगिक विकास के साथ-साथ सामाजिक विकास भी हो सके।

प्रश्न 14.
चौथी पंचवर्षीय योजना के क्या लक्ष्य थे?
उत्तर:
चौथी पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल 1969-1974 तक का था। इसके अंतर्गत निम्नलिखित लक्ष्य रखे गए-

  • कृषि उत्पादन में और साधनों को लगाना ताकि खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि हो सके।
  • परिवहन उद्योगों तथा शक्ति, बिजली इत्यादि के साधनों को विकसित करना।
  • ग्रामीण जनता की आय बढ़ाने के लिए कृषि उत्पादन पर ज्यादा ज़ोर देना।
  • निर्यात बढ़ाने तथा आयात कम करने के लिए प्रयास करना।
  • ग्रामीणों को अधिक सुविधाएं प्रदान करना।

इस कार्यकाल में ₹ 15,779 करोड़ खर्च किए गए तथा देश में विकास की दर का लक्ष्य 5.5% रखा गया था पर उपलब्धि 3.4% थी।

प्रश्न 15.
पाँचवीं पंचवर्षीय योजना के क्या लक्ष्य थे?
उत्तर:
पाँचवीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल 1974-79 था तथा इसमें निम्नलिखित उद्देश्य थे-

  • पाँचवीं पंचवर्षीय योजना का प्रमुख लक्ष्य गरीबी हटाओ था।
  • एक और लक्ष्य देश को आत्मनिर्भर बनाना था।
  • देश में वृद्धि का लक्ष्य 5.5% रखा गया।
  • जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करने की कोशिश करना।
  • गरीब लोगों को सस्ते दामों पर अनाज उपलब्ध करवाना।
  • निर्यात बढ़ाने तथा आयात कम करने पर बल देना।
  • समाज में बढ़ रही आर्थिक असमानताओं को कम करना।

इस योजना के अंतर्गत ₹ 39426 करोड़ खर्च किए गए। विकास दर के लिए लक्ष्य 5.5% रखा गया पर उपलब्धि 5% ही थी। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों व ग्रामीण उदयोगों के विकास पर काफ़ी ध्यान दिया गया।

प्रश्न 16.
छठी पंचवर्षीय योजना में कौन-से प्रमुख लक्ष्य रखे गए थे?
उत्तर:
छठी पंचवर्षीय योजना दो बार बनी थी। पाँचवीं योजना केंद्र में सरकार बदलने के कारण 1979 की बजाए 1978 में ही खत्म कर दी गई। जनता पार्टी ने छठी योजना (1978-83) को लागू किया पर 1980 में फिर सरकार पुनः परिवर्तित हो गई जिस वजह से 1980-85 के लिए छठी पंचवर्षीय योजना बनाई गई जिसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • इस योजना का प्रमुख उद्देश्य ग़रीबी उन्मूलन (Poverty Eradication) था।
  • बढ़ रही जनसंख्या पर नियंत्रण लगाना।
  • शक्ति के देसी साधनों का विकास करना।
  • आर्थिक तथा क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करना।
  • दो प्रमुख समस्याओं ग़रीबी तथा बेरोज़गारी को कम करना।
  • विकास दर को ठीक तरीके से बढ़ाना जो कि 5.2% रखी गई थी।
  • विकास कार्यों में सभी क्षेत्रों की भागीदारी तथा सभी लोगों की भागीदारी को सुनिश्चित करना।

छठी पंचवर्षीय योजना की पूरी अवधि के दौरान ₹ 1,10,467 करोड़ खर्च किए गए। विकास दर का लक्ष्य 5.2% पर रखा गया था पर यह दर असल में 5.5% पर रही थी।

प्रश्न 17.
सातवीं पंचवर्षीय योजना के प्रमुख लक्ष्यों के बारे में बताओ।
उत्तर:
सातवीं विकास योजना 1985 में शुरू होकर 1990 तक चली। इस योजना ने विकास, आधुनिकीकरण जैसे सिद्धांतों को मुख्य रूप से सामने रखा तथा अग्रलिखित लक्ष्य रखे गए-

  • मुख्य लक्ष्य ग़रीबी उन्मूलन रखा गया।
  • बेरोज़गारी में कमी लाने के प्रयास किए जाएंगे।
  • विकास दर को तेज़ किया जाएगा।
  • उत्पादन को बढ़ाने के प्रयास किए जाएंगे।
  • ग़रीबी को कम करने के प्रयास किए जाएंगे।

इस अवधि के दौरान 2,21,436 करोड़ रुपये खर्च किए गए तथा 5% की विकास दर का लक्ष्य रखा गया था पर प्राप्ति 5.8% थी। इस दौरान गरीबी हटाने के काफी प्रयास किए गए। समाज सुधार पर काफ़ी पैसे खर्च किए गए तथा ग़रीबी हटाने के भी काफी प्रयास किए गए।

प्रश्न 18.
आठवीं पंचवर्षीय योजना के क्या उद्देदश्य थे?
उत्तर:
आठवीं पंचवर्षीय योजना की अवधि 1992-97 थी। चाहे सातवीं योजना 1990 में ही खत्म हो गई थी पर 1990-92 के दौरान केंद्र में सरकार में परिवर्तनों तथा अन्य कारणों की वजह से यह योजना 1990 में लागू न हो सकी तथा 1992 में लागू हुई। इसके उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • भारतीय समाज में परिवर्तन के लिए इस योजना में प्रावधान किए गए।
  • महिलाओं के सशक्तिकरण, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों में उत्थान के लिए विशेष प्रयास किए जाएंगे।
  • ग्रामीण विकास को प्राथमिकता दी जाएगी।
  • लोगों में साक्षरता दर बढ़ाने के प्रयास किए जाएंगे। 15-25 वर्ष की आयु के अनपढ़ लोगों को साक्षर बनाया जाएगा।
  • सभी गांवों में साफ पीने के पानी का प्रबंध तथा प्राथमिक सुविधाएं उपलब्ध करवाना।
  • खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ना ताकि निर्यात बढ़ाया जा सके।
  • परिवहन, संचार के साधनों का विकास करना।
  • विदेशी निवेश को बढ़ावा देना।

आठवीं योजना के अंतर्गत 4,74,121 करोड़ रुपये खर्च किए गए। इस योजना में विकास दर का लक्ष्य 5.6% रखा गया था पर उपलब्ध हुई थी 6.6%। इसका मतलब इस योजना में विकास दर काफ़ी तेजी से बढ़ी थी।

प्रश्न 19.
नौवीं पंचवर्षीय योजना में क्या लक्ष्य रखे गए थे?
उत्तर:
नौवीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल 1997 से 2002 तक का था। इस योजना में अग्रलिखित लक्ष्य रखे गए थे-

  • इसमें कृषि व ग्रामीण विकास मुख्य उद्देश्य रखे गए।
  • सभी वर्गों को प्राथमिक शिक्षा प्रदान की जाएगी।
  • जनसंख्या वृद्धि को रोकने के प्रयास किए जाएंगे।
  • पिछड़े वर्गों का सशक्तिकरण किया जाएगा।
  • लोगों की पंचायती राज संस्थाओं में भागीदारी बढ़ायी जाएगी।
  • केंद्र तथा राज्य सरकारों के राजस्व घाटे को कम किया जाएगा।
  • सरकार की वित्तीय हालत को सुधारने के प्रयास किए जाएंगे।
  • निर्यात बढ़ाने के लिए नीति निर्माण किया जाएगा।

इसी योजना के दौरान राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 तथा स्वास्थ्य नीति 2001 का निर्माण किया गया था। इस योजना के दौरान 8,59,200 करोड़ रुपये खर्च किए गए। विकास दर का लक्ष्य 6.5% रखा गया था क्योंकि पिछली योजना में 6.6% की दर को प्राप्त किया गया था पर इस बार प्राप्ति की दर 5.5% रही जोकि लक्ष्य में काफ़ी पीछे थी।

प्रश्न 20.
दसवीं पंचवर्षीय योजना के क्या उद्देश्य रखे गए थे?
उत्तर:
दसवीं पंचवर्षीय योजना 2002 में शुरू हुई थी। इसमें कुल 15,92,300 करोड़ रुपये 2007 तक खर्च करने का प्रावधान है। इस अवधि में विकास दर का लक्ष्य 8% निर्धारित किया गया है। इस पंचवर्षीय योजना में भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं में निश्चित परिवर्तन लाने के लिए निम्नलिखित लक्ष्य तय किये गए-

  • साक्षरता दर 75% प्राप्त करना ताकि लोगों का सार्वभौमिक विकास हो सके।
  • शिशु, मृत्युदर 45% प्राप्त करना।
  • मातृ मृत्युदर 2% पहुँचाना।
  • सभी प्रमुख नदियों तथा दूषित नदियों की सफ़ाई करना।
  • पंचायती राज को मज़बूत करने के प्रयास करने।
  • वाणिज्य तथा उद्योगों को बढ़ावा देना ताकि देश का औद्योगिक विकास हो सके।
  • 2007 तक ग़रीबी अनुपात कम करने के प्रयास करने तथा ज्यादा से ज्यादा लोगों को ग़रीबी की रेखा से ऊपर उठाना।
  • विद्युत् क्षमता को बढ़ावा देना ताकि देश विद्युत् (Electricity) के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो सके।

प्रश्न 21.
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं की उपलब्धियों की विवेचना करें।
उत्तर:

  1. सरकार ने देश का सर्वपक्षीय विकास करने के लिए पंचवर्षीय योजनाएं शुरू की। इसलिए ही देश का विकास हो पाया है।
  2. पंचवर्षीय योजनाएं शुरू होने से ही देश का औद्योगिक विकास हुआ है तथा देश के कोने-कोने में उद्योग स्थापित हो गए हैं।
  3. पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए पैसा तथा प्रावधान रखे गए जिस कारण देश का कृषि उत्पादन काफ़ी बढ़ गया है।
  4. स्वतंत्रता के समय देश के आर्थिक विकास की दर कुछ भी नहीं थी। परंतु पंचवर्षीय योजनाओं के कारण अब यह 9% तक पहुंच गई है।
  5. पंचवर्षीय योजनाओं में महिलाओं, अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों के उत्थान के प्रावधान रखे गए जिस कारण इनकी सामाजिक स्थिति में काफ़ी परिवर्तन आया है।

प्रश्न 22.
स्वतंत्र भारत के किन्हीं चार सामाजिक विधानों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में बने मुख्य सामाजिक विधानों की व्याख्या करें।
उत्तर:

  1. अस्पृश्यता अपराध अधिनियम 1955-इस विधान के अनुसार देश में अस्पृश्यता के प्रयोग को गैर कानूनी घोषित किया गया तथा प्रयोग करने वाले के विरुद्ध दंड का प्रावधान रखा गया।
  2. हिंदू विवाह कानून 1955-इस विधान के अनुसार देश में एक से अधिक विवाह करवाना गैर कानूनी घोषित किया गया तथा एक विवाह को मान्यता दी गई।
  3. दहेज निरोधक कानून 1961-इस विधान के अनुसार किसी के लिए भी दहेज लेना तथा देना गैर-कानूनी घोषित किया गया।
  4. हिंदू दत्तक पुत्र गोद लेने का कानून 1950-इस विधान के अनुसार हिंदुओं को पुत्र गोद लेने की आज्ञा दी गई।

प्रश्न 23.
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में विकेंद्रीकरण की क्या भूमिका है?
उत्तर:
विकेंद्रीकरण का अर्थ है देश में शक्तियों का विभाजन अर्थात् शक्तियों को उच्च स्तर से लेकर निम्न स्तर तक इस प्रकार विभाजित कर दिया जाए कि कार्य करते समय कोई समस्या ही न रहे। इस कारण ही देश की अर्थव्यवस्था में विकेंद्रीकरण की काफ़ी बड़ी भूमिका है। अगर अर्थव्यवस्था में कोई प्रतिबंध नहीं होंगे तथा इसमें लचकीलापन होगा तो देश का आर्थिक विकास निश्चित होगा।

देश के आर्थिक विकास के लिए अलग-अलग स्तरों पर आर्थिक शक्तियों का विभाजन भी आवश्यक है ताकि आर्थिक कार्य करते समय कोई बाधा न आए तथा यह तो अर्थव्यवस्था में विकेंद्रीयकरण के कारण ही मुमकिन है। मुक्त अर्थव्यवस्था से भी आर्थिक विकास मुमकिन हो पाएगा।

प्रश्न 24.
पंचायती राज की तीन स्तरीय व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
अथवा
किस प्रकार स्थानीय स्वैः सरकार गाँव के स्तर पर कार्य करती है?
अथवा
पंचायती राज का क्या अर्थ है?
अथवा
त्रि-स्तरीय पंचायती राज प्रणाली की व्याख्या कीजिए।
अथवा
नई पंचायती राज व्यवस्था क्या है?
उत्तर:
73वें संवैधानिक संशोधन के अनुसार पंचायती राज्य में तीन स्तरीय ढाँचे की व्यवस्था की गई है। गाँव के स्तर पर लोकतंत्र की सबसे पहली संस्था अर्थात् ग्राम सभा है जोकि गाँव के सभी बालिगों की सभा है तथा वह यह ग्राम सभा ही पंचायत तथा सरपंच का चुनाव करती है। पंचायत गाँव के हितों तथा आवश्यकताओं का ध्यान रखती है। दूसरा स्तर है पंचायत समिति का ब्लॉक स्तर पर तथा ब्लॉक की सभी पंचायतें इसकी सदस्य होती हैं।

यह अपने क्षेत्र में आने वाली पंचायतों का कार्य देखती है। इसका एक चेयरमैन तथा कई चुने हुए तथा मनोनीत सदस्य होते हैं। तीसरा स्तर होता है ज़िला परिषद् का जोकि जिले के स्तर पर होता है। एक जिले की सभी पंचायत समितियाँ इसकी सदस्य होती हैं। एम० पी०. एम० एल० ए०. कमिश्नर इत्यादि अपने पद के कारण इसके सद कुछ चुने हुए सदस्य भी होते हैं। जिला परिषद् अपने क्षेत्र में आने वाली ब्लॉक समितियों तथा पंचायतों द्वारा किए गए कार्यों की देख-रेख करती है।

प्रश्न 25.
ग्राम सभा क्या होती है? इसके कौन-से कार्य होते हैं?
अथवा
ग्राम सभा क्या होती है?
उत्तर:
ग्राम सभा गाँव के सभी बालिग व्यक्तियों की एक सभा है जो सरपंच तथा पंचायत का चुनाव अपने वोट डालने के अधिकार के द्वारा करती है। ग्राम सभा कई प्रकार के कार्य करती है जैसे कि-

  • ग्राम सभा सरपंच, पंचायत तथा इसके सदस्यों का चुनाव करती है।
  • सरपंच ग्राम सभा में पंचायत का बजट पेश करता है तथा ग्राम सभा उसके ऊपर चर्चा करती है।
  • यह गाँव में किए जाने वाले विकास कार्यों के बारे में निर्णल लेती है।
  • यह पंचायत से गाँव से संबंधित किसी भी विषय पर प्रश्न पूछ सकती है।

प्रश्न 26.
स्थानीय स्वैः सरकार का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जहाँ पर बहुत से भाषायी, जातीय तथा धार्मिक समूह होते हैं, स्थानीय स्वैः सरकार का निम्नलिखित कारणों के कारण बहुत महत्त्व है-

  • स्थानीय हितों से संबंधित मुद्दे स्थानीय लोगों द्वारा ही समझे जा सकते हैं जैसे कि पानी का प्रबंध, सड़कों की सफ़ाई तथा रोशनी इत्यादि। इसलिए स्थानीय स्वैः सरकार का बहुत महत्त्व है।
  • स्थानीय स्तर पर प्रशासनिक कार्य करने से लोगों को स्थानीय सरकार के बारे में काफ़ी जानकारी प्राप्त होती
  • स्थानीय कार्य स्थानीय सरकार द्वारा कम लागत पर अच्छे ढंग से हो सकते हैं।

प्रश्न 27.
ग्राम पंचायत के प्रमुख कार्यों का वर्णन करें।
अथवा
पंचायत की दो महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ बताइए।
उत्तर:

  1. ग्राम पंचायत का सबसे पहला कार्य गांव के लोगों के सामाजिक तथा आर्थिक जीवन के स्तर को ऊँचा उठाना होता है।
  2. गांव की पंचायत गांव में स्कूल खुलवाने तथा लोगों को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करती
  3. ग्राम पंचायत ग्रामीण समाज में मनोरंजन के साधन जैसे कि फ़िल्में, मेले लगवाने तथा लाइब्रेरी खुलवाने का भी प्रबंध करती है।
  4. पंचायत लोगों को कृषि की नई तकनीकों के बारे में बताती है, नए बीजों, उन्नत उर्वरकों का भी प्रबंध करती
  5. यह गांव में कुएं, ट्यूबवैल इत्यादि लगवाने का प्रबंध करती है तथा नदियों के पानी की भी व्यवस्था करती
  6. यह गांवों का औद्योगिक विकास करने के लिए गांव में उद्योग लगवाने का भी प्रबंध करती है।

प्रश्न 28.
न्याय पंचायत का क्या अर्थ है?
उत्तर:
गांवों के लोगों में झगड़े होते रहते हैं जिस कारण उनके झगड़ों का निपटारा करना आवश्यक होता है। इसलिए 5-10 ग्राम सभाओं के लिए एक न्याय पंचायत का निर्माण किया जाता है। न्याय पंचायत लोगों के बीच होने वाले झगडों को खत्म करने में सहायता करती है। इसके सदस्य चने जाते हैं तथा सरपंच पांच सदस्यों की एक कमेटी बनाता है। इन सदस्यों को पंचायत से प्रश्न पूछने का भी अधिकार होता है।

प्रश्न 29.
पंचायत समिति अथवा ब्लॉक समिति के बारे में बताएं।
अथवा
पंचायत समिति किसे कहते हैं?
अथवा
पंचायत समिति क्या है?
उत्तर:
पंचायती राज्य संस्थाओं के तीन स्तर होते हैं। सबसे निचले गांव के स्तर पर पंचायत होती है। दूसरा स्तर ब्लॉक का होता है। जहां पर ब्लॉक समिति अथवा पंचायत समिति का निर्माण किया जाता है। एक ब्लॉक में आने वाली पंचायतें, पंचायत समिति के सदस्य होते हैं तथा इन पंचायतों के प्रधान अथवा सरपंच इसके सदस्य होते हैं।

पंचायत समिति के इन सदस्यों के अतिरिक्त और सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष तौर पर किया जाता है। पंचायत समिति अपने क्षेत्र में आने वाली पंचायतों के कार्यों का ध्यान रखती है। यह गांवों के विकास के कार्यक्रमों को चैक करती है तथा पंचायतों को गांव के कल्याण करने के लिए निर्देश देती है। यह पंचायती राज्य के दूसरे स्तर पर है।

प्रश्न 30.
जिला परिषद् का क्या अर्थ है?
उत्तर:
पंचायती राज्य के सबसे ऊंचे स्तर पर है जिला परिषद् जो कि जिले के बीच आने वाली पंचायतों के कार्यों का ध्यान रखती है। यह भी एक प्रकार की कार्यकारी संस्था होती है। पंचायत समितियों के चेयरमैन चुने हुए सदस्य, उस क्षेत्र के लोक सभा, राज्य सभा तथा विधान सभा के सदस्य सभी जिला परिषद् के सदस्य होते हैं। यह सभी जिले में आने वाले गांवों के विकास का ध्यान रखते हैं। जिला परिषद् कृषि में सुधार, ग्रामीण बिजलीकरण, भूमि सुधार, सिंचाई, बीजों तथा उर्वरकों को उपलब्ध करवाना, शिक्षा, उद्योग लगवाने जैसे कार्य करती है।

प्रश्न 31.
पंचायती राज्य की समस्याएं बताएं।
उत्तर:

  1. लोगों के अनपढ़ तथा अंधविश्वासों में फंसे हुए होने के कारण वह परिवर्तन को जल्दी स्वीकार नहीं करते जो पंचायती राज्य संस्थाओं के रास्ते में सबसे बड़ी समस्या है।
  2. गांवों में अच्छे तथा ईमानदार नेताओं की कमी होती है तथा वह केवल अपने विकास पर ही ध्यान देते हैं गांवों के विकास पर नहीं।
  3. अच्छे पढ़े-लिखे लोग धीरे-धीरे शहरों में बस रहे हैं जिससे गांव में पढ़े-लिखे नेताओं की कमी है।
  4. सरकारी अफ़सर, पंचों तथा सरपंचों से मिलकर गांव को मिलने वाले ज्यादातर पैसे को स्वयं ही खा जाते हैं तथा गांव का विकास रुक जाता है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

प्रश्न 32.
सरपंच के बारे में कुछ बताएं।
उत्तर:
ग्रामे पंचायत के मुखिया को सरपंच अथवा चेयरपर्सन कहा जाता है। अलग-अलग राज्यों में इसे अलग अलग नामों से पुकारा जाता है जैसे कि अध्यक्ष, प्रैजीडेंट, सरपंच, मुखिया, प्रधान, सभापति इत्यादि। अधिकतर राज्यों में सरपंच का चुनाव प्रत्यक्ष तथा सीधे तौर पर किया जाता है अर्थात् ग्राम सभा के जिन सदस्यों को वोट देने का अधिकार प्राप्त है तथा जो ग्राम पंचायत के सदस्यों का चुनाव करते हैं, वह वोटर ही ग्राम पंचायत के सरपंच का चुनाव भी करते हैं। सरपंच पंचायत की बैठकों की अध्यक्षता करता है। वह सरकार द्वारा मिले पैसे को गांव के विकास कार्यों में लगाता है तथा गांव के सर्वपक्षीय विकास का प्रयास करता है।

प्रश्न 33.
ग्राम पंचायत की आय के साधन के बारे में बताएं।
उत्तर:

  1. पंचायत को राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त टैक्स लगाने का अधिकार प्राप्त है जैसे कि संपत्ति कर, पश कर, पेशा कर, मार्ग कर, चंगी कर इत्यादि इनसे उसे आय होती है।
  2. ग्राम पंचायत कई प्रकार के जुर्माने भी लगा सकती है तथा फ़ीस भी इकट्ठी कर सकती है जिससे उसे आय प्राप्त होती है।
  3. पंचायतों को प्रत्येक वर्ष सरकार से ग्रांटें प्राप्त होती हैं जिससे उसकी आय बढ़ती है।
  4. पंचायत को कड़ा-कर्कट, गोबर बेचने से आय, मेलों से आय, पंचायत की संपत्ति से भी आय प्राप्त हो जाती है।
  5. इनके अतिरिक्त यह राज्य सरकार की मंजूरी से कर्जा भी ले सकती है।

प्रश्न 34.
73वें संवैधानिक संशोधन की कुछ विशेषताएं बताएं।
उत्तर:
1992 में 73वां संवैधानिक संशोधन किया गया तथा इसमें स्थानीय सरकार से संबंधित कुछ प्रावधान किए गए। इस संशोधन की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं:

  • अब पंचायती राज्य में तीन स्तरीय ढाँचा स्थापित किया गया है तथा यह है गाँव के लिए पंचायत, ब्लॉक के लिए ब्लॉक समिति तथा जिले के लिए जिला परिषद्।
  • अब स्थानीय सरकारों के लिए हरेक 5 वर्ष बाद चुनाव करवाना ज़रूरी कर दिया गया।
  • स्थानीय सरकारों की कुल सीटों में से 1/3 स्थान स्त्रियों के लिए आरक्षित कर दिए गए।
  • अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए उस क्षेत्र में उनकी जनसंख्या के अनुसार स्थान आरक्षित रखे गए।
  • एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था राज्य चुनाव आयोग का गठन किया गया ताकि स्वतंत्र चुनाव करवाए जा सकें।

प्रश्न 35.
दबाव समूह और आंदोलन राजनीति को किस तरह प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
दबाव समूह संगठित अथवा असंगठित समूह होते हैं जो सरकार की नीतियों को प्रभावित करते हैं तथा अपने हितों को बढ़ावा देते हैं। आंदोलन भी राजनीति को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं परंतु दोनों ही प्रत्यक्ष रूप से चुनाव में भाग नहीं लेते। दोनों ही एक अथवा दूसरे ढंग से राजनीति को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। दोनों ही निम्नलिखित ढंगों से राजनीति को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं
(i) यह दबाव समूह तथा आंदोलन किसी विशेष मुद्दे पर आंदोलन चलाते हैं ताकि जनता का समर्थन हासिल किया जा सके। यह दोनों ही संचार माध्यमों की सहायता लेते हैं ताकि जनता का ध्यान अधिक-से-अधिक खींचा जा सके।

(ii) यह साधारणतया हड़ताल करवाते हैं, रोषमार्च निकालते हैं तथा सरकारी कार्यों में बाधा पहुँचाने का प्रयास करते हैं। यह हड़ताल की घोषणा करते हैं तथा धरने पर बैठते हैं ताकि अपनी आवाज़ उठा सकें। अधिकतर फैडरेशन तथा यूनियनें सरकारी नीतियों को प्रभावित करने के लिए यही ढंग प्रयोग करते हैं।

(iii) साधारणतया व्यापारी समूह लॉबी का निर्माण करते हैं जिसके कुछ आम हित होते हैं ताकि सरकार पर उसकी नीतियाँ बदलने के लिए दबाव बनाया जा सके।

प्रश्न 36.
दबाब समूहों और राजनीतिक दलों के आपसी संबंधों का स्वरूप कैसा होता है, वर्णन करें।
उत्तर:
साधारणतया दबाव समूह कुछ लोगों के समूह होते हैं जो सरकारी नीतियों को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। उनके कुछ उद्देश्य होते हैं तथा वह सरकार पर दबाव डालकर अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के प्रयास करते हैं। इनका मुख्य उद्देश्य सरकारी नीतियों को प्रभावित करना होता है।

साधारणतया इन समूहों के सदस्य वह लोग होते हैं जिनके कुछ सामान्य हित, उद्देश्य होते हैं। यह कभी भी चुनाव लड़ने का प्रयास नहीं करते परंतु इनके अपने ही कुछ विचार होते हैं। राजनीतिक दलों तथा दबाव समूहों के आपसी संबंधों का स्वरूप अग्रलिखित प्रकार का होता है-
(i) कई केसों में यह दबाव समूह राजनीतिक दलों द्वारा बनाए गए तथा निर्देशित किए जाते हैं। तब यह दबाव समूह उन राजनीतिक दलों की बाजुओं के रूप में कार्य करते हैं। उदाहरण के तौर पर अलग-अलग राजनीतिक दलों द्वारा बनाई गई लेबर यूनियनें।

(ii) कई बार आंदोलन ही राजनीतिक दलों को जन्म दे देते हैं। अगर आंदोलन के उद्देश्य अधिक खिंच जाए तो कई बार यह राजनीतिक दल का भी रूप ले लेते हैं। उदाहरण के तौर पर DMK तथा AIADMK की जड़ें भी आंदोलनों से ही निकली हैं।

(iii) कई बार राजनीतिक दल तथा हित समूह एक-दूसरे के विरुद्ध आमने-सामने खड़े हो जाते हैं। तब उनमें प्रत्यक्ष रिश्ते नहीं होते बल्कि उनमें बातचीत होती है। उनके विचार एक-दूसरे के विपरीत होते हैं।

प्रश्न 37.
दबाव समूहों की गतिविधियाँ लोकतांत्रिक सरकार के कामकाज में कैसे उपयोगी होती है?
अथवा
क्या दबाव समूह तथा आंदोलनों का प्रभाव लोकतंत्र के लिए अच्छा है? टिप्पणी करें।
उत्तर:
दबाव समूह कुछ लोगों का समूह है जो अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सरकारी नीतियों को प्रभावित करते हैं। समान हितों, पेशों से संबंधित लोग इस प्रकार के समूह का निर्माण करते हैं। शुरुआत में तो यह ही लगता है कि दबाब समूह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है क्योंकि ये किसी विशेष समूह के हितों को प्राप्त करने के लिए सरकारी नीतियों को प्रभावित करते हैं। लोकतंत्र में सरकार को समाज के सभी समूहों में हितों का ध्यान रखना पड़ता है।

इनके विरुद्ध एक और कारक यह जाता है कि यह समूह सत्ता को हथियाने का प्रयास तो करते हैं परंतु बिना किसी उत्तरदायित्व के लिए। राजनीतिक दलों की तरह यह समूह चुनाव में जनता के सामने आने को बाध्य नहीं होते तथा ये किसी के प्रति ज़िम्मेदार भी नहीं होते। ये जनता में किसी प्रकार का समर्थन तथा धन भी नहीं लेते हैं। कई बार तो ये अपने संकीर्ण दृष्टिकोण के लिए, अपनी संपदा के बल पर जनता के का प्रयास करते हैं।

परंतु दूसरी तरफ दबाव समूह तथा आंदोलन लोकतंत्र के लिए आवश्यक भी होते हैं। अगर देश में सभी को समान अवसर प्राप्त नहीं हो रहे हैं तो यह समाज के लिए ठीक नहीं है। साधारणतया सरकार अमीर तथा प्रभावशाली लोगों के दबाव में आ जाती है। आंदोलन तथा जल-कल्याण समूह इस समय इस नियंत्रण को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं तथा यह समय-समय पर सरकार को आम जनता की आवश्यकताओं के बारे में बता सकते हैं।

यहाँ तक कि अलग-अलग हित समूह भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। अगर एक हित समूह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सरकार पर दबाव डालता है तो दूसरा समूह इसके विरुद्ध जा सकता है तथा पहले समूह के रास्ते में रोड़े अटका सकता है। यहाँ से ही सरकार को जनता की आवश्यकताओं का पता चल जाता है तथा वह अलग-अलग हितों वाले समूहों के हितों का ध्यान रखती है।

प्रश्न 38.
दबाव समूह और राजनीतिक दल में क्या अंतर है?
अथवा
राजनीतिक दल तथा दवाब समूह में क्या अंतर है?
उत्तर:
एक दबाव समूह संगठित अथवा असंगठित समूह हैं जो सरकारी नीतियों को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं तथा अपने हितों को बढ़ावा देते हैं। इनके कुछ उद्देश्य होते हैं तथा यह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सरकार पर दबाव डालते हैं। साधारणतया इन समूहों के सदस्यों के कुछ सामान्य हित होते हैं।

यह अपने प्रभाव के कारण सत्ता को अपने नियंत्रण में रखते हैं। परंतु राजनीतिक दल एक संगठित संस्था है जो प्रत्यक्ष रूप से चुनाव लड़कर तथा विचारधारा को जीतकर देश की राजनीतिक सत्ता को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। एक राजनीतिक दल के सदस्यों की विचारधारा तथा उद्देश्य एक जैसे ही होते हैं।

दबाव समूह तथा राजनीतिक दल में महत्त्वपूर्ण अंतर यह है कि दबाव समूह कभी भी प्रत्यक्ष रूप से चुनाव नहीं लड़ता बल्कि यह पिछले दरवाज़े से सत्ता को नियंत्रण में रखते हैं। परंतु, दूसरी तरफ राजनीतिक दल प्रत्यक्ष रूप से चुनाव लड़कर सत्ता को अपने हाथों में लेने का प्रयास करते हैं। दबाव समूह संगठित भी हो सकते हैं तथा असंगठित भी परंतु राजनीतिक दल हमेशा ही संगठित समूह होते हैं।

प्रश्न 39.
लोकतंत्र का क्या अर्थ है?
उत्तर:
लोकतंत्र सरकार का ही एक प्रकार है जिसमें जनता शासन चलता है। इसमें जनता के प्रतिनिधि साधारण जनता में बालिगों के वोट देने के अधिकार से चुने जाते हैं तथा यह प्रतिनिधि ही जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा उनकी तरफ से बोलते हैं। यह कई संकल्पों जैसे कि समानता, स्वतंत्रा तथा भाईचारे में विश्वास रखता है तथा यह ही इसमें कार्यवाहक आधार हैं। इसके पीछे मूल विचार यह है कि समाज में सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक समानता होनी चाहिए।

इसमें हरेक व्यक्ति को संविधान के अनुसार बोलने तथा संगठन बनाने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। समाज तथा व्यक्ति के संपूर्ण विकास के लिए इसमें कार्यवाहक आधार हैं। इसके पीछे मूल विचार यह है कि समाज में सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक समानता होनी चाहिए। इसमें हरेक व्यक्ति को संविधान के अनुसार बोलने तथा संगठन बनाने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। समाज तथा व्यक्ति के संपूर्ण विकास के लिए इसमें पूर्ण क्षमता होनी चाहिए।

प्रश्न 40.
राजनीतिक दल की कोई चार विशेषताएं बताएं।
उत्तर:

  1. प्रत्येक राजनीतिक दल की भिन्न-भिन्न नीतियां होती हैं।
  2. प्रत्येक दल के सदस्य अच्छी तरह संगठित होते हैं और वह दल भी अच्छी तरह से संगठित व सुदृढ़ होता
  3. इसके सभी सदस्य एक ही नीति पर विश्वास करते हैं।
  4. इनके सदस्यों का एक साझा कार्यक्रम होता है।
  5. प्रत्येक अच्छा राजनीतिक दल देश के हितों का ध्यान रखता है।

प्रश्न 41.
राजनीतिक दलों के कोई चार कार्य बताओ।
उत्तर:

  1. यह लोकमत बनाते हैं।
  2. यह राजनीतिक शिक्षा देते हैं।
  3. यह उम्मीदवार चुनने में सहायता करते हैं।
  4. यह लोगों की कठिनाइयों को सब तक पहुंचाते हैं।
  5. यह राष्ट्रीय हितों को महत्त्व देते हैं।

प्रश्न 42.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
भारतीय संविधान की प्रस्तावना पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना का संक्षिप्त वर्णन है-
हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता; प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर, 1949 ई० (मिति मार्गशीर्ष शुल्क सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
73वें संवैधानिक संशोधन में पंचायती राज्य संबंधी विशेषताओं का वर्णन करो।
(Explain the characteristics of Panchayati Raj according to 73rd constitutional amendment.)
अथवा
नई पंचायती राज प्रणाली की विशेषताओं की व्याख्या करें।
अथवा
पंचायती राज के आदर्शों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दिसंबर, 1992 में 73वां संवैधानिक संशोधन संसद् में पास हुआ तथा अप्रैल, 1993 में राष्ट्रपति ने इस संशोधन को मान्यता दे दी। इस संवैधानिक संशोधन द्वारा जो पंचायती राज्य प्रणाली स्थापित की गयी, उसकी विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(1) 73वीं संवैधानिक संशोधन से पहले स्थानीय स्तर पर स्वः शासन के संबंध में संविधान में कोई व्यवस्था नहीं थी। इस संशोधन से संविधान में नयी अनुसूची तथा नया भाग जोड़ा गया। इस अनुसूची तथा भाग में संपूर्ण व्यवस्थाएं पंचायती राज्य प्रणाली से संबंधित हैं कि नयी व्यवस्था में किस तरह की व्यवस्थाएं हैं।

(2) इस संशोधन से संविधान में ग्राम सभा की परिभाषा दी गई है जिसके अनुसार पंचायत के क्षेत्र में आने वाले गांव या गांव के जिन लोगों का नाम वोटर सूची में दर्ज है, वह सभी लोग ग्राम सभा के सदस्य होंगे। राज्य विधानमंडल कानून द्वारा ग्राम सभा की व्यवस्था कर सकता है तथा उसको कुछ कार्य सौंप सकता है। इस तरह ग्राम सभा की स्थापना राज्य विधानमंडल की तरफ से पास किए गए कानून के द्वारा होगी तथा वह ही उसके कार्य भी निश्चित करेगा।

(3) ग्राम सभा की परिभाषा के साथ ही पंचायत की परिभाषा दी गयी है तथा कहा गया कि पंचायत स्वैः-शासन पर आधारित ऐसी संस्था है जिसकी स्थापना ग्रामीण क्षेत्र में राज्य सरकार द्वारा की जाती है।

(4) इस संवैधानिक संशोधन द्वारा संविधान में यह व्यवस्था की गई है कि अब ग्रामीण क्षेत्र में स्वै-शासन की तीन स्तरीय पंचायती राज्य प्रणाली की स्थापना की जाएगी। सबसे निम्न स्तर गांव पर पंचायत, बीच के स्तर ब्लॉक पर ब्लॉक समिति तथा जिला स्तर पर जिला परिषद् होगी परंतु राज्य सरकार इनको कोई और नाम भी दे सकती है।

(5) इस संवैधानिक संशोधन में यह कहा गया है कि नयी प्रणाली के अंतर्गत संपूर्ण जिले को पंचायती स्तर पर चुनाव क्षेत्रों में बाँटा जाएगा तथा पंचायतों, ब्लॉक समिति तथा जिला परिषद् के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होगा अर्थात् वह प्रत्यक्ष तौर पर लोगों द्वारा बालिग वोट अधिकार के आधार पर चुने जाएंगे।

(6) इस संशोधन के अनुसार पंचायत के अलग-अलग स्तरों पर चुनाव के लिए, वोटरों की संख्या तथा सूची तैयार करवाने की जिम्मेवारी राज्य चुनाव आयोग की होगी। इस आयोग में राज्य चुनाव कमिश्नर को राज्य का राज्यपाल नियुक्त करेगा। उसका कार्यकाल, सेवा की शर्ते इत्यादि भी राज्यपाल की तरफ से बनाए गए नियमों के अनुसार निश्चित किए जाएंगे। राज्य चुनाव कमिश्नर को उस तरीके से हटाया जा सकता है जैसे उच्च न्यायालय के जज को हटाया जा सकता है।

(7) गाँव की पंचायत के प्रधान के बारे में 73वीं शोध में यह व्यवस्था की गई है कि गाँव की पंचायत के प्रधान का चुनाव सीधे तौर पर लोगों द्वारा किया जाएगा।

(8) गाँव की पंचायत के प्रधान का चुनाव करने के साथ-साथ यह भी व्यवस्था की गई है कि पंचायत के प्रधान को उसके कार्यकाल खत्म होने से पहले भी हटाया जा सकता है और उसको हटाने का अधिकार ग्राम सभा को दिया गया है। ग्राम सभा सरपंच को तब ही उसके पद से हटा सकती है यदि उस क्षेत्र की पंचायत इस बात की सिफारिश करे। इस प्रकार की सिफ़ारिश के लिए यह ज़रूरी है कि उस सिफ़ारिश के पीछे पंचायत के सभी सदस्यों का बहुमत और मौजूदगी अनिवार्य है।

इसके लिए एक विशेष बैठक बुलाई जाएगी और इस बैठक में ग्राम सभा के 50% सदस्य होने ज़रूरी हैं। यदि इस बैठक में ग्राम सभा उस सिफ़ारिश को मौजूद सदस्यों के बहुमत के साथ पास कर दे तो सरपंच या प्रधान को हटाया जा सकता है।

(9) इसी तरह पंचायती समिति या ब्लॉक समिति और जिला परिषद् के सदस्य भी लोगों द्वारा चुने जाएंगे और इनके प्रधान इनके सदस्यों द्वारा और उनके बीच में से ही चुने जाएंगे। पंचायत की तरह इनके प्रधानों को भी हटाया जा सकता है। प्रधान को दो-तिहाई बहुमत से हटाया जा सकता है।

(10) इन तीनों स्तरों पर स्थान भी आरक्षित रखे गए हैं।

  • निम्न जातियों एवं कबीलों में प्रत्येक पंचायत में स्थान आरक्षित रखे गए हैं। आरक्षित करने की गिनती उनके उस क्षेत्र की जनसंख्या के अनुपात में होगी।
  • इन आरक्षित स्थानों में एक-तिहाई सीटें औरतों के लिए आरक्षित रखी जाएंगी।
  • पंचायतों, ब्लॉक समितियों और जिला परिषदों में भी स्त्रियों के लिए एक-तिहाई स्थान आरक्षित रखे जाएंगे। इसके साथ-साथ इन संस्थाओं के प्रधानों के लिए भी स्थान औरतों के लिए आर रखे जाएंगे।

(11) इस संशोधन के अनुसार इन सभी संस्थाओं का कार्यकाल 5 सालों के लिए निश्चित कर दिया गया। किसी भी संस्था का कार्यकाल 5 साल से ज्यादा नहीं हो सकता। यदि राज्य सरकार को किसी पंचायत के अव्यवस्थित प्रबंधन के बारे में पता चले तो वह उसको 5 साल से पहले ही भंग कर सकती है परंतु 6 महीने के अंदर उसका दोबारा चुनाव किया जाना जरूरी है। यदि कोई पंचायत 5 साल से पहले भंग हो तो नई चुनी गई पंचायत बाकी रहता कार्यकाल पूरा करेगी।

(12) यदि कोई व्यक्ति राज्य के कानून अधीन राज्य विधान सभा का चुनाव नहीं लड़ सकता तो वह पंचायत का चुनाव भी नहीं लड़ सकता। परंतु यहाँ आयु में फ़र्क है। राज्य विधान सभा का चुनाव लड़ने हेतु 25 साल की उम्र होना आवश्यक है परंतु पंचायत के चुनाव के लिए 21 वर्ष की आयु निश्चित की गई है।

(13) राज्य विधानमंडल के कानून के अधीन पंचायत को कुछ अधिकार एवं ज़िम्मेदारियाँ दी जाएंगी। पंचायत को आर्थिक विकास एवं सामाजिक न्याय हेतु योजनाएं तैयार करने और लागू करने के अधिकार दिए गए हैं।

(14) इसके साथ-साथ राज्य विधानमंडल कानून पास करके पंचायत को कुछ छोटे-छोटे टैक्स लगाने की शक्ति भी दे सकता है ताकि वह अपनी आमदनी में भी वृद्धि कर सकें। इसके साथ राज्य सरकार अपने द्वारा लगाए टैक्सों अथवा शल्कों में से कुछ हिस्सा पंचायतों को भी देगी और साथ ही उनको गांवों के विकास के लिए सहायता के रूप में ग्रांट देने की व्यवस्था भी करेगी।

इस प्रकार हम देख सकते हैं कि 73वीं संवैधानिक शोध द्वारा पंचायती राज के लिए कई महत्त्वपूर्ण व्यवस्थाएं की गई हैं जिसके साथ पंचायती राज्य की महत्ता काफ़ी बढ़ गई है। नई व्यवस्था को प्रभावशाली बनाने हेतु कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं और अब पंचायती राज्य प्रणाली काफ़ी प्रभावशाली बन गई है।

प्रश्न 2.
73वीं संवैधानिक संशोधन के अनुसार नई पंचायती राज प्रणाली की विशेषताएं लिखो।
अथवा
पंचायती राज व्यवस्था के अर्थ और संरचना की व्याख्या करें।
अथवा
पंचायती राज व्यवस्था पर निबंध लिखें।
अथवा
पंचायती राज संस्थाओं के गठन की व्याख्या कीजिए।
अथवा
भारत में पंचायती राज संस्थाओं के विकास तथा गठन की व्याख्या कीजिए।
अथवा
जनजातीय क्षेत्रों में पंचायती राज व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत में नई पंचायती राज व्यवस्था लाग की गई। परे देश में पंचायती राज संस्थाओं में एकरूपता लाने के लिए संसद् में संवैधानिक संशोधन पेश किया गया। इसे 22 दिसंबर, 1992 को लोकसभा तथा 23 दिसंबर, 1992 को राज्यसभा ने पास कर दिया। 23 अप्रैल, 1993 को राष्ट्रपति ने इसे अपनी स्वीकृति प्रदान की। इस नई पंचायती राज प्रणाली की विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित है-

(i) तीन स्तरीय संरचना (Three tier Structure)-73वें संवैधानिक संशोधन द्वारा पूरे देश के लिए पंचायतों की तीन स्तरीय संरचना का प्रावधान किया गया। यह तीन स्तर निम्नलिखित हैं-

  • ग्राम पंचायत (ग्राम स्तर पर)
  • पंचायत समिति (ब्लॉक स्तर पर)
  • जिला परिषद् (जिला स्तर पर)।

(ii) बनावट (Composition)–तीनों स्तर की पंचायती राज संस्थाओं की सदस्य संख्या राज्य के विधानमंडल द्वारा तय की जाएगी। ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत में एक प्रधान, एक उप-प्रधान होता है। पंचों की संख्या राज्य सरकार पर निर्भर करती है। हर राज्य में यह संख्या अलग-अलग है।

(iii) ग्राम सभा (Gram Sabha)-पंचायत के अंतर्गत जितने भी गांव आते हैं उन गांवों के लोगों के नाम मतदाता सूची में होते हैं। वे सब सामूहिक रूप से ग्राम सभा का निर्माण करते हैं। ग्राम सभा की स्थापना के लिए विभिन्न राज्यों में अलग-अलग जनसंख्या निर्धारित की है।

(iv) सदस्यों की योग्यताएं (Qualifications of Members)-पंचायती राज संस्थाओं का चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम आयु 21 वर्ष आवश्यक है। इसके अलावा चुनाव लड़ने के इच्छुक लोग विधानसभा का चुनाव लड़ने के योग्य हों।

(v) प्रत्यक्ष चुनाव (Direct Election) ग्राम पंचायत, पंचायत समिति तथा जिला परिषद् के सदस्यों का चुनाव अपने-अपने क्षेत्र के मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है। मतदाता बनने के लिए न्यूनतम आयु 18 वर्ष है।

(vi) अध्यक्षों तथा उपाध्यक्षों का चुनाव (Election of Chairpersons and Vice Chairpersons)-714 पंचायत के प्रधान तथा उप प्रधान का चुनाव लोगों के द्वारा पंचों के साथ ही प्रत्यक्ष मतदान द्वारा किया जाता है। पंचायत समिति तथा जिला परिषद् के अध्यक्षों तथा उपाध्यक्षों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से किया जाता है अर्थात् पंचायत समिति तथा जिला परिषद् के सदस्य अपने-अपने अध्यक्षों तथा उपाध्यक्षों का चुनाव करते हैं।

(vii) कार्यकाल (Tenure) प्रत्येक स्तर की पंचायती राज संस्था का कार्यकाल 5 वर्ष है। यह कार्यकाल पंचायतों की प्रथम बैठक की तिथि से प्रारम्भ होता है।

(viii) कार्य तथा शक्तियां (Functions and Powers)-राज्य विधानमंडल पंचायतों को निम्नलिखित विषयों से संबंधित कार्य सौंप सकता है

(a) 1 1वीं अनुसूची में अंकित विषयों से संबंधित कार्य
(b) सामाजिक न्याय तथा आर्थिक विकास से संबंधित योजनाओं का निर्माण तथा कार्यान्वयन।

(ix) आरक्षण (Reservation) तीनों स्तर की पंचायती राज संस्थाओं में अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान है। प्रत्येक स्तर की पंचायत में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में स्थान आरक्षित किए जाते हैं।

कुल स्थानों में से 1/3 स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित हैं अर्थात् हरेक श्रेणी अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा सामान्य श्रेणी में से 1/3 स्थानों पर महिलाएं ही चुनाव लड़ सकती हैं। आरक्षित स्थानों के चुनाव क्षेत्रों में राज्य द्वारा समय-समय पर परिवर्तन किया जाता है। आरक्षण संबंधी नियम अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष पद के लिए भी लागू होते हैं।

प्रश्न 3.
ग्राम सभा के बारे में आप क्या जानते हैं? वर्णन करो।
उत्तर:
नयी पंचायत प्रणाली में सबसे पहले ग्राम सभा आती है। ग्राम सभा की सदस्यता प्राप्त करने के लिए कम से-कम आयु. 18 वर्ष है। ग्राम पंचायत के क्षेत्राधिकार में 18 वर्ष या इससे अधिक आयु वाले सभी सदस्यों का नाम मतदाता सूची में अंकित कर दिया जाता है। परंतु उन व्यक्तियों का नाम मतदाता सूची में अंकित नहीं किया जाता जिन्हें पागल या दिवालिया घोषित किया हो। विभिन्न राज्यों ने अपने-अपने कानून बना कर ग्राम सभा की सदस्य संख्या निर्धारित की है। कुछ राज्यों में ग्राम सभा की सदस्य संख्या अग्रलिखित है-

  • हिमाचल प्रदेश-1500-4500
  • हरियाणा-500-4500
  • पंजाब-200-4500.

अधिवेशन (Session)-ग्राम सभा का अधिवेशन एक वर्ष में कम-से-कम दो बार बुलाया जाना जरूरी है। अधिवेशन कब बुलाए जाएं इस संबंध में अपनी-अपनी व्यवस्था है। जैसे हिमाचल तथा राजस्थान में ग्राम सभा के अधिवेशन गर्मियों तथा सर्दियों में बुलाए जाते हैं। इनके अलावा ग्राम सभा के 1/5 सदस्यों की मांग पर विशेष अधिवेशन भी बुलाया जा सकता है। अधिवेशन में गणपूर्ति सदस्य की संख्या का 1/10 भाग है। इसलिए अधिवेशन में ग्राम सभा के 1/10 सदस्यों का होना ज़रूरी है। अधिवेशन की अध्यक्षता ग्राम पंचायत के प्रधान द्वारा की जाती है। इसका अध्यक्ष सरपंच होता है।

ग्राम सभा के कार्य-इसके कार्य तथा शक्तियां निम्नलिखित हैं-

  • ग्रामसभा अपनी आमदनी के अनुसार अपना साल का बजट पास करती है।
  • पंचायत द्वारा किए गए खर्चों की एक कापी ग्राम सभा को भी दी जाती है ताकि इसके अधिवेशन में इस रिर्पोट पर चर्चा हो सके।
  • ग्राम पंचायत कई प्रकार के कर लगाती है। पर उनकी मंजूरी ग्राम सभा द्वारा दी जाती है।
  • ग्राम सभा गांव के प्रधान, ग्राम पंचायत के सदस्यों का चुनाव करती है।
  • ग्राम सभा ग्राम प्रधान को हटा भी सकती है।

इनके अलावा अपने क्षेत्र के विकास की योजनाएं बनाना, लोक कल्याण कार्यों के लिए स्वैच्छिक धन इकट्ठा करना इत्यादि ग्राम सभा के और प्रमुख कार्य हैं।

प्रश्न 4.
ग्राम पंचायत के बारे में आप क्या जानते हैं?
अथवा
त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत पंचायतों को किन-किन शक्तियों से पुष्ट किया गया है?
अथवा
पंचायत क्या है? पंचायतों को कौन-कौन सी शक्तियां प्रदान की गई हैं?
उत्तर:
ग्राम पंचायत पंचायती राज संस्थाओं के तीन स्तरों में से सबसे निम्न स्तर पर है-
(i) गठन (Composition)-ग्राम पंचायत में एक प्रधान, एक उपप्रधान तथा 5-13 सदस्य होते हैं जिन्हें पंच कहा जाता है। अंतः प्रधान व उपप्रधान के साथ ग्राम पंचायत की कुल संख्या 7-15 तक होती है। सदस्यों की संख्या क्षेत्र की जनसंख्या के अनुसार तय की जाती है।

जनसंख्या सदस्य संख्या
150 तक 5
1500-2500 तक 7
2500-3500 तक 9
3500-4500 तक 11
4500-से अधिक 13

(ii) प्रत्यक्ष चुनाव (Direct Election)-प्रधान, उपप्रधान तथा अन्य सदस्यों का चुनाव ग्राम सभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है। पंचायत के सभी सदस्य प्रत्यक्ष चुनाव के द्वारा 5 वर्ष के लिए चुने जाते हैं।

(iii) आरक्षण (Reservation) ग्राम पंचायत में अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या में. अनुपात के अनुसार स्थान आरक्षित होते हैं। इसके अलावा 1/3 स्थान महिलाओं के लिए भी आरक्षित होते हैं।

(iv) कार्यकाल (Tenure)-ग्राम पंचायत का कार्यकाल 73वें संशोधन के अनुसार 5 वर्ष निश्चित कर दिया यदि सरकार को लगता है कि कोई ग्राम पंचायत ठीक तरीके से काम नहीं कर रही है तो सरकार उसे 5 वर्ष से पहले भी भंग कर सकती है पर 6 महीने के अंदर चुनाव करवाए जाने ज़रूरी हैं।

(v) योग्यताएं (Qualifications)-ग्राम पंचायत का सदस्य बनने के लिए निम्नलिखित योग्यताओं का होना ज़रूरी है-

  • वह भारत का नागरिक होना चाहिए।
  • वह 21 वर्ष से ज्यादा की आयु का होना चाहिए।
  • वह पागल या दिवालिया घोषित नहीं होना चाहिए।
  • वह किसी सरकारी पद पर नौकरी न करता हो।

हरेक ग्राम पंचायत का एक सरपंच होता है। जिसका चुनाव प्रत्यक्ष चुनाव के द्वारा ग्राम सभा के सदस्यों द्वारा होता है। सरपंच ग्राम पंचायतों की बैठकों की अध्यक्षता करता है तथा गांव के विकास कार्यों को देखता है। उसकी अनुपस्थिति में ग्राम पंचायत की बैठक की अध्यक्षता उप सरपंच करता है जिसका चुनाव ग्राम पंचायत के सदस्य अपने बीच में से करते हैं।

(vi) बैठकें-ग्राम पंचायत की एक महीने में कम-से-कम दो बैठकें होनी ज़रूरी हैं। किसी आवश्यक काम के लिए पंचायत के सदस्य बहुमत के साथ बैठक जल्दी भी बुला सकते हैं।

(vii) ग्राम पंचायत के कार्य (Functions of Gram Panchayat)-ग्राम पंचायत के निम्नलिखित कार्य हैं-

  • यह क्षेत्र में विकास का बजट बनाती है तथा उसे ग्राम सभा के आगे पेश करती है।
  • डेयरी उद्योग तथा मुर्गीपालन उद्योग को प्रोत्साहन देना।
  • सड़क के दोनों ओर वृक्ष लगवाने का काम करना।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योग को प्रोत्साहन देना।
  • पीने के पानी के लिए कँओं या सरकारी पानी का प्रबन्ध करना।
  • पुलों तथा पुलियों का निर्माण तथा मुरम्मत के कार्य करना।
  • श्मशान भूमि तथा कब्रिस्तान की देखभाल करना।
  • कुएँ, तालाब इत्यादि बनवाना तथा उनकी रक्षा करना।
  • मेलों तथा मंडियों का आयोजन करना।
  • गांव में सड़कों, नालियों को बनवाने का प्रबंध करना।
  • महामारियों के विरुद्ध उपचारात्मक प्रबंध करने।
  • गांव में अस्पताल, डिस्पैंसरी इत्यादि का प्रबंध करना।
  • पुस्तकालयों तथा वाचनालयों की स्थापना करना तथा उनकी देखभाल करना।
  • प्राथमिक शिक्षा के केंद्रों, स्कूलों इत्यादि का प्रबंध करना।
  • किसी सरकारी कर्मचारी, जो ठीक काम न करता हो, उसकी शिकायत जिलाधीश को पहुँचाना।
  • अनुसूचित जातियों के कल्याण के कार्य करने।

प्रश्न 5.
पंचायत समिति के बारे में आप क्या जानते हैं? वर्णन करें।
अथवा
पंचायत समिति के गठन, कार्य तथा चुनाव की विवेचना करें।
उत्तर:
पंचायती राज व्यवस्था में दूसरे स्तर या बीच के स्तर की इकाई है। पंचायत समिति एक ब्लॉक में जितनी पंचायतें आती हैं उन सब के सरपंच इस के मैंबर होते हैं।
(i) गठन (Composition)-नयी पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत खंड स्तर पर पंचायत समिति की स्थापना की गई है। पंचायत समिति में निम्नलिखित सदस्य होते हैं-

  • पंचायत समिति के प्रत्यक्ष रूप से चुने हुए सदस्य।
  • लोकसभा तथा राज्य विधानसभा के सदस्य जो उस क्षेत्र से संबंधित हों।
  • पंचायत समिति क्षेत्र से ग्राम पंचायतों के कुल प्रधानों में से 1/5 भाग।
  • राज्य सभा का सदस्य।

(ii) कार्यकाल (Tenure) ग्राम पंचायत की तरह पंचायत समिति का कार्यकाल भी 5 वर्ष होता है पर अगर सरकार चाहे तो उसे पहले भी भंग कर सकती है।

(iii) आरक्षण (Reservation)-पंचायत समिति में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के लिए पंचायत समिति में स्थान आरक्षित होते हैं। यह आरक्षण उस क्षेत्र में उनकी जनसंख्या के अनुपात के मुताबिक होता है। इसके अलावा इसमें महिलाओं के लिए आरक्षण है। यह आरक्षण अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों को मिला कर 1/3 होता है।

(iv) अध्यक्ष व उपाध्यक्ष (Election of Chairperson and Vice Chairperson)-शपथ ग्रहण के पश्चात् पंचायत समिति के सदस्य को अध्यक्ष तथा एक उपाध्यक्ष चुनते हैं। इस प्रकार अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का अप्रत्यक्ष का चुनाव होता है।

(v) समिति का सदस्य बनने के लिए योग्यता (Qualifications)-पंचायत समिति का सदस्य बनने के लिए निम्नलिखित योग्यताएं होनी चाहिएं

  • वह भारत का नागरिक होना चाहिए।
  • वह दिवालिया या पागल घोषित न हुआ हो।
  • उसकी उम्र 21 वर्ष से ऊपर होनी चाहिए।
  • वह किसी सरकारी पद या नौकरी पर न हो।

(vi) पंचायत समिति के कार्य (Functions of Panchayat Samiti)-पंचायत समिति के क्षेत्र में विकास के जों कार्य पंचायत समिति द्वारा किए जाते हैं उनका वर्णन निम्नलिखित है

  • अपने क्षेत्र में कुटीर उद्योगों, कारीगरी के विकास इत्यादि कार्यों को प्रोत्साहन देना ताकि औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकास हो सके।
  • अपने क्षेत्र की विकास योजनाओं को लागू करना तथा रोजगार के अवसर पैदा करने की कोशिश करनी।
  • अपने क्षेत्र में आती पंचायतों के कार्यों का निरीक्षण करना तथा उनके बजट तथा खर्च पर निगरानी रखना।
  • स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना, प्रसूति केंद्रों की स्थापना के प्रबंध करने।
  • पीने के पानी तथा सड़कों को बनवाने के प्रयास करने।
  • मेले तथा मंडियों को लगवाने का कार्य करना।

(vii) बैठकें (Meetings)-पंचायत समिति की साल में कम-से-कम दो बैठकें होनी चाहिएं। दो बैठकों के बीच 6 महीने से ज्यादा समय नहीं होना चाहिए। पर ज़रूरत पड़ने पर सदस्य बहुमत के साथ पहले भी बैठक बुला सकते हैं।

प्रश्न 6.
जिला परिषद् के बारे में आप क्या जानते हैं? वर्णन करो।
उत्तर:
जिला स्तर की पंचायती राज संस्था को जिला परिषद् कहते हैं। प्रत्येक जिले में एक जिला परिषद संस्था होती है। इसमें नगरपालिका क्षेत्रों को छोड़ कर जिले के सभी क्षेत्र सम्मिलित होते हैं।
(i) ज़िला परिषद् का गठन (Composition of Zila Parishad)-प्रत्येक जिला परिषद् के निम्नलिखित सदस्य होते हैं

  • प्रत्यक्ष रूप में वयस्क आधार पर जिला परिषद् के लिए निर्वाचित सदस्य।
  • जिले से संबंधित विधायक तथा लोकसभा के सदस्य।
  • राज्य सभा के ऐसे सदस्य जिनका नाम जिले में मतदाता के रूप में पंजीकत हो।
  • जिले की सभी पंचायत समितियों के अध्यक्ष।

यदि जिला परिषद् के सदस्यों में विधायकों, सांसदों तथा समिति अध्यक्षों की संख्या चुने हुए सदस्यों से अधिक हो जाए तो समिति अध्यक्षों में से केवल 1/5 को बारी-बारी निर्धारित अवधि के लिए चुना जाएगा।

(ii) आरक्षण (Reservation) ग्राम पंचायत तथा पंचायत समिति की तरह जिला परिषद् में भी अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित होते हैं। यह स्थान उस क्षेत्र में उनकी जनसंख्या के अनुसार होता है। महिलाओं के लिए भी 1/3 स्थान आरक्षित होते हैं।

(iii) बैठकें (Meetings)-पंचायत समिति की तरह जिला परिषद् की एक वर्ष में कम-से-कम चार बैठकें जरूरी हैं। बैठकों के मध्य तीन महीनों से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए। अध्यक्ष बैठकों की अध्यक्षत है तथा उसकी अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष बैठकों की अध्यक्षता करता है। जिला परिषद् के 1/3 सदस्यों की मांग पर विशेष बैठक भी बुलाई जा सकती है।

(iv) कार्यकाल (Tenure)-जिला परिषद् का कार्यकाल 73वें संशोधन के अनुसार 5 साल का होता है पर अगर सरकार चाहे तो उसे अयोग्यता या भ्रष्टाचार के आधार पर समय से पहले भी भंग किया जा सकता है।

इसके अलावा जिला परिषद् अपने क्षेत्र में कार्य करने के लिए विशेष समितियां गठित करती है। उदाहरण के तौर पर वित्त के लिए समिति, कार्य समिति, शिक्षा समिति, कल्याण समिति इत्यादि। जिला परिषद् के निर्णयों को लागू करने के लिए तथा रोज़ाना के कार्य करने के लिए एक सचिव. की नियुक्ति होती है तथा उसे सरकार द्वारा वेतन भी मिलता है।

(v) जिला परिषद् के कार्य-जिला परिषद् अपने क्षेत्र में निम्नलिखित कार्य करता है-

  • इसका मुख्य काम अपने क्षेत्र में आती पंचायत समितियों के कार्यों का निरीक्षण करना है। इसके साथ-साथ यह सभी पंचायत समितियों के कार्यों में समन्वय पैदा करने की कोशिश करती है।
  • यह पंचायत समितियों के लिए विकास योजनाएं बनाती है तथा उनको कार्यान्वित करने के प्रयास करती है।
  • यह पंचायत समितियों के बजट का निरीक्षण तथा उनको स्वीकृति प्रदान करती है।
  • यह विकास संबंधी योजनाओं के लिए सरकार को सुझाव देती है।
  • सरकार अपनी नीतियों के अमल के लिए जिला परिषद् को कार्य सौंपती है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

प्रश्न 7.
पंचायती राज का क्या महत्त्व है?
अथवा
पंचायती राज तथा सामाजिक रूपांतरण का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत में पंचायती राज की शुरुआत 1959 में हुई थी। पर 73वें संवैधानिक संशोधन के साथ भारत के सभी राज्यों में एक प्रकार की प्रणाली स्थापित की गई। इसके बाद से पंचायती राज ने भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किए हैं। इन कार्यों की वजह से ही ग्रामीण क्षेत्रों में काफ़ी सुधार हुए तथा पंचायती राज के महत्त्व को काफ़ी ज्यादा बढ़ा दिया। इस तरह पंचायती राज का महत्त्व निम्नलिखित है-
(i) जनता का शासन (Administration of People)-पंचायती राज व्यवस्था को हम जनता का शासन कह सकते हैं क्योंकि पंचायती राज के हरेक स्तर पर जनता का हाथ होता है। चुनावों के समय सब कुछ जनता के हाथ में होता है कि किसको चनना है तथा किसको नहीं चनना है।

चनावों के बाद जीते हए व्यक्तियों को जनता की समस्याओं को निपटाने के कार्य करने पड़ते हैं। पानी का प्रबंध, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा ऐसी बुनियादी सुविधाएं हैं जो पंचायती राज के हर स्तर को मुहैया करवानी ही पड़ती हैं। उस चुने हुए व्यक्ति को पता होता है कि अगर वह लोगों के लिए काम नहीं करेगा तो दोबारा जनता उसे नहीं चुनेगी। इस तरह उसे जनता से डर कर कार्य करने पड़ते हैं तथा हमेशा जनता का शासन चलता रहता है।

(ii) लोकतंत्र (Democracy)-पंचायती राज से लोकतंत्र को बल मिलता है। लोकतंत्र का मतलब है लोगों का राज तथा पंचायती राज बनाया भी इसीलिए गया था कि लोग अपने ऊपर स्वयं राज करें। इसमें जनता स्वयं अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है। वह जब भी चाहे इन प्रतिनिधियों से मिल कर अपनी समस्याओं के बारे में बता सकते हैं। ग्राम स्तर पर ग्राम सभा होती है जिसमें ग्राम के सभी वयस्क सदस्य होते हैं।

इनकी वर्ष में दो बार बैठक ज़रूर होती है जिसमें पंचायत द्वारा किए कार्यों, उनकी योजनाओं, उनके बजट तथा खर्च इत्यादि की चर्चा होती है। इस तरह लोगों को यह पता चलता रहता है कि उनके द्वारा चुने गए प्रतिनिधि क्या कर रहे हैं जो कि लोकतंत्र की पहली निशानी है।

(iii) लोगों को आत्म-निर्भर बनाना (To make the people Self-reliance)-पंचायती राज का एक और महत्त्व यह है कि इसका उद्देश्य गांवों को आत्म-निर्भर बनाना है। इसका कानून बनाते समय इस बात का ध्यान रखा गया कि पंचायती राज के हर स्तर को उनकी ज़रूरतों के मुताबिक अधिकार तथा कर लगाने की शक्तियां मिलें।

हर पंचायत को अपने गांव की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए तथा समस्याओं के समाधान के लिए पर्याप्त अधिकार होते हैं जिनकी मदद से वह अपनी समस्याओं का हल करते हैं। ग्राम पंचायत गांव के विकास के लिए कई प्रकार की योजनाएं बना कर उन्हें ग्राम सभा से पास करवाती है।

इन योजनाओं को पूरा करने के लिए अगर सरकार की तरफ से पैसा मिल जाए तो ठीक है नहीं तो उसे कई प्रकार के कर लगाने का अधिकार भी है ताकि उसे अपने विकास कार्य पूरे करने के लिए सरकार की तरफ न देखना पड़े। इस तरह ग्राम आत्म-निर्भर हो जाते हैं।

(iv) अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान (Knowledge of Rights and Duties)-पंचायती राज व्यवस्था से लोगों को अपने गांव के प्रति कर्तव्यों तथा उनके अधिकारों के बारे में पता चलता है। मतदाता के रूप में तथा ग्रामसभा के सदस्य के रूप में एक व्यक्ति के क्या अधिकार होते हैं यह चुनाव के समय तथा ग्राम सभी की मीटिंग के समय उसे पता चल जाते हैं। इसके अलावा इन से उसे कर्तव्यों के बारे में भी पता चलता है।

अगर ग्रामसभा में ग्राम पंचायत गांव के विकास के लिए कोई कर लगाती है तो आजकल सभी आराम से वह कर दे देते हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कि यह पैसा इकट्ठा हो कर गांव के विकास के ऊपर ही लगेगा।

(v) कृषि का विकास (Development of Agriculture)-पंचायती राज का एक और महत्त्व है कि इसने कृषि के विकास में काफ़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। पंचायत, पंचायत समिति तथा जिला परिषद् का एक महत्त्वपूर्ण कार्य यह है कि यह अपने क्षेत्र में कृषि के विकास तथा उत्पादन बढ़ाने के लिए कार्य करते हैं। इनके पास बहुत से सरकारी कर्मचारी होते हैं जिनका काम लोगों को नई तकनीक, नए बीजों तथा नई खाद के बारे में जानकारी देना है ताकि लोग इनको अपना कर उत्पादन में बढ़ोत्तरी कर सकें।

इसके अतिरिक्त यह पंचायती राज संस्थाएं अपने क्षेत्र में बीजों का, खादों का भी प्रबंध करती है ताकि इनकी कमी न हो। इसका फायदा यह ही है कि एक तो उत्पादन बढ़ने से देश खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो जाता है तथा इसके साथ-साथ लोगों की आर्थिक उन्नति भी होती है। इस तरह पंचायती राज संस्थाएं लोगों की आर्थिक उन्नति के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं।

(vi) महिलाओं तथा निम्न जातियों को आगे आने की प्रेरणा (Motivation for Women and Lower ca to come forward) सदियों से हमारे देश में महिलाओं तथा निम्न जातियों को दबाया जाता रहा, जिस वजह से इनकी स्थिति हमेशा निम्न रही है। पंचायती राज से संबंधित कानून बनाते समय यह ध्यान रखा गया कि इनको भी आगे आने का मौका मिल सके। इनके लिए सभी संस्थाओं में आरक्षण रखे गए हैं।

अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए उस क्षेत्र में उनकी जनसंख्या के अनुपात के अनुसार आरक्षण रखा गया है। इसके अलावा महिलाओं की शासन में भागीदारी बढ़ाने के लिए उनके लिए हर जगह 1/3 स्थान आरक्षित रखे गए हैं। इस वजह से अब महिलाओं तथा निम्न जातियों की शासन में भागीदारी काफ़ी बढ़ गई तथा उनको आगे आने का मौका प्राप्त हो गया है।

प्रश्न 8.
विभिन्न कानूनों से समाज में क्या परिवर्तन आए हैं? उनका वर्णन करो।
उत्तर:
कानून भारतीय समाज में परिवर्तन के महत्त्वपूर्ण कारक रहे हैं। आजादी से पहले ब्रिटिश सरकार ने सती प्रथा को खत्म करने, विधवा पुनर्विवाह को आज्ञा प्रदान करने, बाल-विवाह पर रोक लगाने, हिंदू स्त्रियों में संपत्ति अधिकार के बारे में तथा विवाह संबंधी कई अधिनियम पास किए। आजादी के बाद विशेष तौर पर 1954 से 1956 के दौरान देश में बहुत से महत्त्वपूर्ण विधान बनाए गए।

इन सभी विधानों का भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा। विभिन्न विधानों से भारतीय समाज में होने वाले प्रमुख परिवर्तनों तथा विधानों ने भारतीय समाज पर जो महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े उनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है-
(i) महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन (Change in the Status of Women) विभिन्न कानूनों को बनाएं जाने से महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 से विधवा को अपने पति की संपत्ति का सीमित अधिकार दिया गया। इस अधिनियम द्वारा स्त्री पुरुष को संपत्ति का समान अधिकार प्रदान किया गया।

हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम द्वारा विधवाओं को पुनर्विवाह की अनुमति दे दी गई। महिलाओं को पुत्र गोद लेने का अधिकार प्रदान किया गया। स्त्रियों व कन्याओं का अनैतिक व्यापार गैर-कानूनी घोषित किया गया। दहेज निरोधक कानून बनाए गए। महिलाओं के लिए पंचायती राज स्तर पर आरक्षण रखे गए। इन विधानों से भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन आया।

(ii) विवाह के स्वरूप में परिवर्तन (Change in form of Marriage) सदियों से भारतीय समाज में एक विवाह, बहुविवाह, बहुपत्नी तथा बहुपति विवाह प्रथाएं प्रचलित थीं। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत बहुविवाह को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। एक विवाह को कानूनी मान्यता तथा कोर्ट मैरिज को भी कानूनी मान्यता मिल गई।

(iii) निरर्थक रीतियों में कमी (Decline in Obsolete Conventions)-भारतीय समाज में सती प्रथा, दहेज प्रथा, बाल-विवाह तथा अस्पृश्यता आदि कई कुरीतियां प्रचलित रही हैं। सती प्रथा निषेध अधिनियम द्वारा सती प्रथा को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। वर्तमान समय में सती प्रथा भारतीय समाज में खत्म हो चुकी है। दहेज निरोधक कानून 1961 तथा 1986 के अनुसार दहेज लेना तथा देना भी कानूनन जुर्म घोषित कर दिया गया है।

बाल विवाह भी खत्म कर दिया गया है तथा विवाह के लिए आय लड़कियों के लिए 18 वर्ष तथा लड़कों के लिए 21 वर्ष निर्धारित कर दी गई है। बाल विवाह को भी गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया है। अस्पृश्यता की समाप्ति के लिए अस्पृश्यता कानून 1955 तथा नागरिक संरक्षण अधिकार कानून 1976 बना दिए गए हैं।

(iv) अंतर्जातीय संबंधों में परिवर्तन (Decline in Inter Caste Relations)-सामाजिक विधानों द्वारा अंतर्जातीय संबंधों में परिवर्तन आए हैं। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 द्वारा अंतर्जातीय विवाह को कानूनी अनुमति मिल गई है। अंतर्जातीय विवाहों को सरकार द्वारा प्रोत्साहन दिया जा रहा है। अस्पृश्यता को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया है। फलस्वरूप उच्च व निम्न जातियों में अंतःक्रिया बढ़ी है। अब इन दोनों में काफ़ी ज्यादा अंतः क्रिया हो रही है तथा यह मिल जुल कर कर रहे हैं।

(v) विवाह नियमों में परिवर्तन (Change in Rules of Marriage)-पारंपरिक रूप से हिंदू विवाह एक धार्मिक संस्कार रहा है। परंतु विभिन्न विधानों के निर्माण के बाद विवाह एक धार्मिक संस्कार न रह कर एक समझौता मात्र रह गया है। विवाह जन्म जन्मांतर का पवित्र बंधन माना जाता है।

मगर कानून द्वारा तलाक को स्वीकृति मिल गई है अर्थात् निश्चित कानूनी प्रक्रिया के द्वारा विवाह विच्छेद को अनुमति दे दी गई है। विवाह संबंधी अन्य नियमों में। परिवर्तन आए हैं। अंतर्जातीय विवाह को कानूनी अनुमति मिल गई है। विवाह की न्यूनतम आयु निर्धारित कर दी गई है। विवाह की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है।

(vi) बंधुआ मज़दूरी प्रथा अधिनियम 1976 के तहत किसी व्यक्ति को बंधुआ मजदूरी नहीं करवायी जा सकती। किसी को बंधुआ मजदूरी के लिए मजबूर करने वाले या इसके लिए कर्ज देने वाले को 3 साल की कैद तथा ₹ 2000 जुर्माना हो सकता है।

(vii) बाल मजदूरी रोकने के लिए भी अधिनियम बना है। 14 साल से कम उम्र के बच्चे से फैक्टरी या दुकान में काम करवाना अपराध माना गया है।

प्रश्न 9.
पंचायती राज में सुधार के लिए क्या किया जा सकता है?
उत्तर:
भारत में पंचायती राज प्रणाली 1959 में लागू हुई थी। इस प्रणाली का मुख्य उद्देश्य शक्तियों का विकेंद्रीकरण था। पर समय के साथ पंचायती राज प्रणाली कमज़ोर पड़ती गई तथा इसमें काफ़ी त्रुटियां आनी शुरू हो गईं। इन त्रुटियों को सरकार ने समझा तथा 1993 में संविधान में संशोधन करके 73वां संवैधानिक संशोधन पास किया गया।

इसमें पंचायती राज के हर पहलु को ध्यान में रखा गया था पर फिर भी आज के समय में इस व्यवस्था में काफ़ी त्रुटियां पायी जाती हैं। जो सपना प्रजातंत्र या लोकतंत्र के विकेंद्रीकरण का देखा गया था वह पूरा नहीं हो पाया है। इसमें बहुत से सुधारों की आवश्यकता है तथा इनमें निम्नलिखित तरीकों से सुधार किया जा सकता है-
(i) इन में सुधार लाने के लिए सबसे पहले यह ज़रूरी है कि ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को अपने अधिकारों के साथ साथ कर्तव्यों की जानकारी भी होनी चाहिए। अगर ग्रामीण लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता होगी तो वह ग्राम सभा में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले सकेंगे तथा इसके साथ ही उनको अपने कर्तव्यों के बारे में भी पता चल जाएगा।

(ii) अगला ज़रूरी कदम यह है कि इन पंचायती राज के सभी स्तरों की संस्थाओं को पूर्ण स्वतंत्रता तथा स्वायत्तता देनी चाहिए ताकि यह पूण आजादी से अपने क्षेत्र के विकास के कार्य कर सकें। सरकार को इनके कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए ताकि वह अपने क्षेत्र के विकास के लिए बगैर किसी डर के कार्य कर सकें।

(iii) सरकार द्वारा इन संस्थाओं के कार्यों पर तथा इन संस्थाओं पर गैर-ज़रूरी नियंत्रण नहीं रखना चाहिए। ज्यादा नियंत्रण की सूरत में काम में कमी आ जाती है तथा काम भी ठीक तरीके से नहीं हो पाता है।

(iv) पंचायती संस्थाओं के सरकारी कर्मचारियों तथा इन संस्थाओं के सदस्यों को गैर-सरकारी या सरकारी संस्थाओं से प्रशिक्षण दिलाना चाहिए ताकि यह गांवों के विकास के लिए कार्य कर सकें तथा इस प्रशिक्षण का फायदा सीधे से गांव के लोगों को मिल सके तथा वह इसको अपनी भूमि पर प्रयोग कर सकें।

(v) पंचायतों में ब्लॉक समिति में तथा जिला परिषद् में कार्य करने वाले कर्मचारियों को अच्छी तनख्वाह मिलनी चाहिए ताकि वह पूरा दिल लगा कर अपने क्षेत्र में विकास के कार्य कर सकें।

(vi) पंचायती राज के तीनों स्तरों पंचायत, पंचायत समिति तथा जिला परिषद् के कार्यों में आपसी तालमेल होना चाहिए ताकि यह एक दूसरे से मिल जुल कर अपने क्षेत्र का विकास कर सकें।

(vii) ग्राम सभा को और अधिकार देकर अधिक शक्तिशाली बनाना चाहिए ताकि पंचायतों के कार्यों पर निगरानी रखी जा सके तथा इन में आम जनता की भागीदारी बढ़ायी जा सके।

(viii) इन संस्थाओं के लिए कर्मचारियों की भर्ती के समय सही उम्मीदवारों को ही भर्ती करना चाहिए ताकि वह गांवों की समस्याओं को समझ कर उनको हल करने की कोशिश कर सकें।

(ix) पंचायतों की जमीनों पर नाजायज कब्जों को छुड़वाने के लिए सरकार को विशेष प्रयास करने चाहिए ताकि इन ज़मीनों से होने वाली आमदनी को पंचायतें गांवों के विकास कार्यों पर लगा सकें।

(x) राज्य तथा केंद्र सरकार को इन संस्थाओं को ज्यादा से ज्यादा ग्रांट देनी चाहिए ताकि ये संस्थाएं अपने क्षेत्र में विकास कार्यों को तेज़ी से चला सकें।

प्रश्न 10.
संविधान ने राज्य के निर्देशक सिद्धांत जो सरकार को दिए हैं, उनका वर्णन करो।
अथवा
राज्य में नीति निर्देशक सिद्धांतों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
राजनीति के निर्देशक सिद्धांत संविधान के चौथे भाग अनुच्छेद 36 से 51 में अंकित हैं। आयरलैंड के संविधान से प्रेरणा पाकर तथा संविधान सभा के संवैधानिक परामर्शदाता सर बी० एन राव (Sir B.N. Rao) के सुझाव के बाद निर्देशक सिद्धांतों को संविधान में शामिल किया गया है। डॉ० बी० आर० अंबेदकर के अनुसार, “निर्देशक सिद्धांत देश में विशेष रूप से सामाजिक तथा आर्थिक प्रजातंत्र स्थापित करने के उद्देश्य से बनाए गए हैं।’ निर्देशक सिद्धांतों को निम्नलिखित श्रेणियों में बाँटा जा सकता हैं-

  • सामान्य सिद्धांत (General Principles)
  • समाजवादी सिद्धांत (Socialist Principles)
  • उदारवादी सिद्धांत (Liberal Principles)
  • गांधीवादी सिद्धांत (Gandhian Principles)

इन सब श्रेणियों का वर्णन निम्नलिखित हैं-
(i) सामान्य सिद्धांत (General Principles)-सामान्य सिद्धांतों के अंदर कई ऐसे सिद्धांत हैं जिनमें राज्य का अर्थ तथा उसके कार्यों का जिक्र किया गया है। प्रमुख सिद्धांत हैं-“राज्य समस्त भारत में एक समान आचार संहिता लागू करेगा”-अनुच्छेद 44 “राज्य न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करने के लिए कार्यवाही करेगा।” देश में स्थित ऐतिहासिक महत्त्व तथा कलात्मक रुचि के स्थानों या वस्तुओं को नष्ट होने या हटाए जाने को बचाना राज्य का कर्तव्य है।”

पर्यावरण की रक्षा तथा सुधार के लिए तथा देश में वनों तथा वन्य-जीवन की रक्षा के लिए राज्य प्रयास करेगा।” अनुच्छेद में लिखा है, राज्य के अंतर्गत भारत सरकार तथा संसद्, समस्त राज्य सरकारें तथा विधानमंडल तथा भारत सरकार की सारी शक्तियाँ आती हैं।”

(ii) समाजवादी सिद्धांत (Socialist Principles)-राज्य कुछ ऐसे कदम उठाए जिससे स्त्री पुरुष को समान कार्य के लिए समान वेतन मिले-अनुच्छेद 39 (d) “व्यक्तियों तथा क्षेत्रों में आय की असमानताएं कम हों।” इसके अतिरिक्त राज्य गर्भवती महिलाओं के लिए प्रसूति सहायता का प्रबंध करेगा। श्रमिकों, स्त्रियों, पुरुषों के स्वास्थ्य तथा कम उम्र के बच्चों का दुरुपयोग होने से रोकेगा।

(iii) उदारवादी सिद्धांत (Libral Exploitation) निर्देशक सिद्धांत में कुछ उदारवादी सिद्धांत हैं जैसे, “राज्य संविधान लागू होने के 10 वर्षों के अंदर 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा का प्रबंध करने की कोशिश करेगा।’-अनुच्छेद 45-अनुच्छेद 47 के अनुसार राज्य लोगों के भोजन तथा जीवन स्तर को ऊँचा उठाने तथा उनके स्वास्थ्य को सुधारने का प्रयत्न करेगा।”

(iv) गाँधीवादी सिद्धांत (Gandhian Principles)-कई ऐसे सिद्धांत हैं जोकि गांधीवादी विचारधारा पर आधारित हैं। उदाहरण के तौर पर अनुच्छेद 40 के अनुसार राज्य गांव में पंचायतें स्थापित करके तथा उन्हें ऐसी शक्तियां प्रदान करेगा, जिससे वे स्थानीय स्वशासन की इकाइयों के रूप में काम कर सके। राज्य समाज के कमज़ोर वर्गों, विशेषकर अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के शैक्षणिक तथा आर्थिक हितों को बढ़ावा देने का प्रयल करेगा तथा उन्हें शोषण से बचाएगा।

(v) अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत (International Principles) अंतर्राष्ट्रीय निर्देशक सिद्धांतों में ऐसे सिद्धांत सम्मिलित हैं जिनका संबंध विश्व के अन्य देशों से है जैसे राज्य अंतर्राष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा को बढ़ावा देने का प्रयत्न करेगा।

राज्य अंतर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता द्वारा निपटाए जाने के यत्न को प्रोत्साहित करेगा। – राजनीति के यह निर्देशक सिद्धांत भावी सरकारों के निर्देश है कि उन्हें किस प्रकार की व्यवस्था का विकास करेंगे पर यह मौलिक अधिकारों की तरह न्यायसंगत नहीं हैं। इन्हें न्यायालय द्वारा लागू नहीं करवाया जा सकता है। चाहे ने को बाध्य नहीं है पर फिर भी सरकार से यह उम्मीद की जाती है कि वह अपनी किसी भी प्रकार की नीति बनाते समय इन निर्देशों को ध्यान में रखे।

प्रश्न 11.
भारतीय नागरिकों को मिले हुए मौलिक अधिकारों तथा मौलिक कर्तव्यों का वर्णन करो।
अथवा
मौलिक कर्तव्यों की व्याख्या करें।
अथवा
भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्तव्य क्या हैं?
अथवा
मौलिक अधिकारों की विवेचना कीजिए।
अथवा
भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
मौलिक अधिकार-(Fundamental Rights):
भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हो गया था तथा इसी दिन हमारा देश गणतंत्र बन गया था। संविधान के तीसरे अध्याय में मौलिक अधिकारों का जिक्र है। संविधान में कुल 7 मौलिक अधिकार दिए गए थे पर 1979 में 44वें संवैधानिक संशोधन द्वारा “संपत्ति का अधिकार” मौलिक अधिकारों की सूची में से निकाल दिया गया था। आजकल भारत के सभी नागरिकों को निम्नलिखित 6 मौलिक अधिकार दिए गए हैं :

  • समानता का अधिकार (Right to Equality)
  • स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom)
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against Exploitation)
  • धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Religious Freedom)
  • सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक अधिकार (Cultural and Educational Rights)
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies)

अब इन मौलिक अधिकारों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
(i) समानता का अधिकार (Right to Equality) सभी भारतीय नागरिक कानून के सामने समान हैं। भारत में किसी भी व्यक्ति के साथ रंग, नस्ल, जाति, धर्म या जन्म स्थान के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं किया जा सकता है। सबको समान अवसर उपलब्ध हैं। अनुच्छेद 17 द्वारा अस्पृश्यता की समाप्ति कर दी गई है अर्थात् अस्पृश्यता पर कानून द्वारा रोक लगा दी गई है।

(ii) स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom)-अनुच्छेद 19 के तहत सभी भारतीय नागरिकों को निम्नलिखित स्वतंत्रताएं प्रदान की गई हैं –

  • भाषण देने तथा विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and expression)
  • बिना शस्त्र शांतिपूर्ण ढंग से एकत्र होने की स्वतंत्रता (Freedom to assemble peacefully without arms)
  • समितियां तथा संघ स्थापित करने की स्वतंत्रता (Freedom to form Associations and unions)
  • समस्त भारत में घूमने फिरने की स्वतंत्रता (Freedom to move freely throughout the territory of India)
  • भारत के किसी भी भाग में रहने तथा निवास स्थान बनाने की स्वतंत्रता (Freedom to reside and settle in any part of terroitory of India)
  • किसी भी पेशे को अपनाने या व्यवसाय, व्यापार कारोबार की स्वतंत्रता (Freedom to Practise any profession or to carry on any occupation, trade and business)

इनके अलावा हरेक भारतीय नागरिक को जीवन तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के अधिकार भी प्राप्त हैं।

(iii) शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against Exploitation)-किसी भी भारतीय का कोई शोषण नहीं करेगा क्योंकि संविधान में शोषण के विरुद्ध निम्नलिखित प्रावधान हैं-

  • मानवीय व्यापार तथा बलपूर्वक मज़दूरी की मनाही (Prohibition of traffic in human beings and forced Labour)
  • बालश्रम की मनाही (Prohibition of child labour)

14 साल की उम्र तक के बच्चों को फैक्ट्रियों, दुकानों पर काम पर नहीं लगाया जा सकता। यह कानूनन जुर्म है तथा इसके लिए सजा का प्रावधान हैं। इसके अलावा बंधुआ मजदूरी करवाना भी कानूनन जुर्म है।

(iv) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Religious Freedom)-संविधान को बनाने वाले भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाना चाहते थे। वह जानते थे कि भारत में कई धर्मों के अनुयायी निवास करते हैं। इसलिए संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता का प्रावधान रखा गया है कि किसी भी धर्म को मानने तथा प्रचार करने की स्वतंत्रता, धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता, किसी विशेष धर्म के विकास के लिए कर न देने की स्वतंत्रता इत्यादि। इसके अलावा सरकारी शैक्षणिक संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा की मनाही की गई है।

(v) सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक अधिकार (Cultural and Educational Rights) हरेक भारतीय को अपनी लिपि, भाषा तथा संस्कृति की सुरक्षा करने का अधिकार प्राप्त है। धार्मिक तथा भाषायी अल्पसंख्यक समूह अपने लिए शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना कर सकते हैं। सभी भारतीयों को सरकार द्वारा सहायता प्राप्त शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश पाने की स्वतंत्रता है।

(vi) संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies)-प्रत्येक भारतीय को यह अधिकार प्राप्त है कि वह अपने मौलिक अधिकारों को लागू करवाने या उनकी सुरक्षा के लिए सीधे उच्चतम न्यायालय जा सकता है। अगर किसी व्यक्ति को ऐसा लगता है कि सरकार या कोई और उसके मौलिक अधिकारों को उससे छीन रहा है या वापस ले रहा है तो वह उनको वापस पाने के लिए न्यायालय में भी जा सकता है। इसको संवैधानिक उपचारों का अधिकार कहते हैं।

मौलिक कर्तव्य-(Fundamental Duties):
संविधान में भारतीय नागरिकों को अगर मौलिक अधिकार दिए गए हैं तो उनके साथ-साथ कुछ मौलिक कर्तव्य भी दिए गए हैं। चाहे मूल संविधान में मौलिक कर्तव्यों का जिक्र नहीं था पर 1976 में आपात्काल के समय के दौरान 42वें संवैधानिक संशोधन के द्वारा संविधान के चौथे भाग में अनुच्छेद 51-A में अग्रलिखित दस मौलिक कर्तव्य दिए गए हैं-
(a) संविधान का पालन करना तथा इसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज व राष्ट्रीय गान का सम्मान करना। (To abide by the constitution and respect its ideas, institutions, National flag and National Anthem.)

(b) स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित करने वाले राष्ट्रीय आदर्शों का सम्मान तथा अनुसरण करना। (To cherish and follow the noble ideals which inspired our National Struggle for freedom.)

(c) भारत की प्रभुसत्ता को बनाए रखना तथा उसकी रक्षा करना (To uphold and protect the Sovereignty, Unity and Integrity of India)

(d) देश की रक्षा करना तथा ज़रूरत पड़ने पर राष्ट्र के लिए अपनी सेवा प्रदान करना। (To defend the Country and render National Service when called upon to do so.)

(e) धार्मिक, भाषायी, क्षेत्रीय तथा वर्गीय विभिन्नताओं से ऊपर उठकर भारत के सभी नागरिकों के बीच सदभाव तथा आपसी भाईचारे का विकास करना तथा महिलाओं के गौरव को अपमान पहुंचाने वाले कार्यों का त्याग करना। (To promote harmony and the Spirit of common brotherhood amogest all the people of India transcending religious, linguistic, regional and sectional diversities and to renounnce practices derogatory to the dignity of women.)

(f) अपनी समृद्ध विरासत तथा संयुक्त संस्कृति का सम्मान करना तथा उसको सुरक्षित रखना। (To Value and preserve the rich heritage of our composite culture.)

(g) वैज्ञानिक सोच व मानवतावाद विकसित करना। (To develop Scientific temper and humanism.)

(h) जंगलों, झीलों, नदियों तथा वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण को सुरक्षित रखना तथा सुधारना। (To protect and improve natural environment including forests, lakes, rivers and wild life.)

(i) सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना तथा हिंसा का त्याग करना। (To safeguard public property and adjure violence.)

(j) व्यक्तिगत तथा सामूहिक गतिविधियों में उत्कृष्टता के लिए प्रयास करना। (To Strive towards excellence in spheres of individual and collective activities.)

चाहे मौलिक कर्तव्यों के पीछे कानूनी शक्ति नहीं है तथा न ही इन्हें कानूनी मान्यता प्राप्त है पर यह ऐसे आदर्श हैं जिनको मानने से राष्ट्र के विकास में योगदान दिया जा सकता है। इसलिए सभी भारतीयों को इनका पालन करना चाहिए।

प्रश्न 12.
पंचवर्षीय योजनाओं के माध्मय से भारतीय समाज में क्या-क्या परिवर्तन आए हैं? उनका वर्णन करो।
अथवा
पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा भारतीय समाज पर लाए गए प्रमुख परिवर्तनों की व्याख्या करें।
अथवा
देश के स्वतंत्र होने पर ‘नियोजित विकास के कार्यक्रमों में किन-किन बातों की ओर ध्यान केंद्रित किया गया?
उत्तर:
1952 से लेकर 2013 तक भारत में बारह पंचवर्षीय योजनाएं तथा तीन एक वर्षीय योजनाएं लाग हो चुकी थीं। 2002 से 2007 तक के समय के लिए दसवीं पंचवर्षीय योजना का निर्माण किया गया। पिछले 53 सालों में भारतीय समाज में बहुत ज्यादा परिवर्तन आए हैं। हम अगर कोई भी क्षेत्र उठा कर देख ले हमें यह परिवर्तन तो देखने को मिल ही जाएंगे। इन परिवर्तनों का वर्णन निम्नलिखित है-
(i) शिक्षा का प्रसार (Spread of Education)-1951 में पहली पंचवर्षीय योजना लागू होने के समय भारत में साक्षरता दर 18% थी जो कि सन् 2011 में बढ़कर 75 % हो गई है। अगर साक्षरता दर बढ़ी है तो वह इस वजह से कि सभी पंचवर्षीय योजनाओं में शिक्षा पर अच्छा पैसा खर्च किया गया है ताकि लोग पढ़ लिखकर अपनी तथा देश की तरक्की में अपना योगदान दे सके।

उच्चशिक्षा का भी बहुत ज्यादा प्रसार हुआ। इस समय देश में हजारों मैडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, विश्वविद्यालय तथा कई और प्रकार के कॉलेज हैं जो कि देश के लाखों नौजवानों में उच्चशिक्षा का प्रसार कर रहे हैं जोकि देश के विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।

(ii) वंचित या निम्न बों का उत्थान (Upliftment of Deprived Sections)-अनुसूचित जातियां, अनुसूचित जनजातियां तथा अन्य पिछड़े वर्ग (SC’s, ST’s and OBC’S) भारतीय समाज के प्रमुख वंचित वर्ग हैं जिन्हें सदियों से भारतीय समाज में उनके मानवीय अधिकारों से वंचित रखा गया था। इन लोगों के स्तर को ऊपर उठाने के लिए संविधान तथा पंचवर्षीय योजनाओं में विशेष प्रावधान किए गए हैं।

इन सभी वर्गों के सदस्यों के लिए नौकरियों तथा शैक्षणिक संस्थाओं में आरक्षण दिया गया है। इसके अतिरिक्त अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं में उनकी जनसंख्या के मुताबिक स्थान आरक्षित किए गए हैं। उन उपेक्षित वर्गों के लिए कई कल्याण कार्यक्रम कार्यन्वित किए गए हैं। प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में इनके कल्याण हेतु काफ़ी पैसा रखा जाता रहा है ताकि इनकी स्थिति तथा स्तर को ऊपर उठाया जा सके। फलस्वरूप इन वर्गों की स्थिति में काफी सुधार हुआ है।

(iii) महिलाओं की स्थिति में सुधार (Improvement in the Status of Women) स्वतंत्रता से पहले भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति काफ़ी निम्न थी। सदियों से इनको पैरों की जूती समझा जाता रहा है। भारतीय समाज में संयुक्त परिवार व्यवस्था प्रचलित थी जिसमें महिलाओं का काम सिर्फ परिवार की सेवा करना होता था।

उनको किसी तरह के अधिकार प्राप्त नहीं थे। यहां तक कि उन्हें शिक्षा भी नहीं लेने दी जाती थी। पर आजादी के बाद संविधान में भी तथा पंचवर्षीय योजनाओं में भी महिलाओं के उत्थान के लिए काफ़ी प्रावधान रखे गए ताकि इनका स्तर ऊपर उठाया जा सके। विभिन्न योजनाओं के तहत महिला कल्याण के अनेक कार्यक्रम चलाए गए।

उनके सशक्तिकरण के लिए स्थानीय स्वशासन निकायों यानि कि पंचायतों तथा नगरपालिकाओं में उनके लिए एक तिहाई पद आरक्षित किए गए। उनके उत्थान के लिए हरेक पंचवर्षीय योजना में काफ़ी पैसा रखा गया। उनकी साक्षरता की तरफ विशेष ध्यान दिया गया जिस वजह से 1951 में जो महिला साक्षरता दर 9% से भी कम थी वह 2011 में बढ़कर 65.5% से अधिक हो गई है।

(iv) ग्रामीण पुनर्निर्माण (Rural Reconstruction)-आजादी से पहले ग्रामीण इलाकों की हालत काफ़ी खराब थी। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों के पुनर्निर्माण के लिए सभी पंचवर्षीय योजनाओं में खास प्रावधान किए गए। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के तहत ग्रामीण पुनर्निर्माण के लिए कार्यक्रम चलाए गए।

एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP), इंदिरा आवास योजना, गांधी कुटीर योजना, सामुदायिक विकास कार्यक्रम (CDP) तथा पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत करना इत्यादि के द्वारा गांवों का पुनर्निर्माण हुआ है। हरित क्रांति तथा भूमि सुधारों से ग्रामीण समुदाय की आर्थिक स्थिति बेहतर हुई है। ग्रामीण इलाकों के विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाओं में अच्छा पैसा रखा गया था क्योंकि असली भारत तो गांवों में बसता है।

(v) अंतर्जातीय संबंधों में परिवर्तन (Change in Inter Caste Relations)-संविधान के अनुच्छेद 17 के द्वारा भारत में अस्पृश्यता को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। अंतर्जातीय विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान कर दी गई। जाति के आधार पर कोई भेदभाव किए बिना सभी भारतीयों को समान मौलिक अधिकार प्रदान किए गए। फलस्वरूप जातीय भेदभाव में कमी आई है। निम्न जातियों के सदस्यों में गतिशीलता बढ़ी है। उच्च तथा निम्न जातियों के सदस्यों में समीपता बढ़ी है।

(vi) कृषि तथा औद्योगिक क्षेत्र में परिवर्तन (Changes in Agricultural and Industrial Sectors) लगभग सभी पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि तथा औद्योगिक क्षेत्रों के विकास को प्रमुख लक्ष्य बनाया गया। आजादी के 10-15 साल के समय में भारत को खाद्यान्न आयात करना पड़ता था। पर इन पंचवर्षीय योजनाओं के प्रावधानों के फलस्वरूप हरित क्रांति आई तथा उसके 10 साल के अंदर ही भारत खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो गया।

इसी तरह औद्योगिक क्षेत्र या उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए भी सभी पंचवर्षीय योजनाओं में विशेष प्रावधान रखे गए। 1951 में कुल खाद्यान्न उत्पादन 5 करोड़ टन था वह आजकल 20-21 करोड़ टन हो गया है। लघु, कुटीर तथा बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना की गई जिस वजह से किसानों, उद्योगपतियों तथा औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वालों की आय में काफ़ी वृद्धि हुई है।

(vii) जनसंख्यात्मक परिवर्तन (Demographic Changes)-बढ़ती जनसंख्या भारत की प्रमुख समस्या रही है। स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण के माध्यम से सन् 2000 तक देश में 25 करोड़ बच्चे पैदा होने से रोके गए। 1951-2001 के दौरान जन्म दर कम होकर 40 से 27 तथा मृत्यु दर 27 से कम होकर 9 तक पहुंच गई है। इसी अवधि में जीवन प्रत्याशा 32 वर्ष से बढ़कर 63 वर्ष तथा शिशु मृत्यु दर 146 से कम होकर 70 हो गई है। यह सब ही सभी पंचवर्षीय योजनाओं में रखे गए प्रावधानों का परिणाम है।

इस तरह हम कह सकते हैं कि भारत ने पिछले 53 सालों में इन पंचवर्षीय योजनाओं के फलस्वरूप काफ़ी ज्यादा प्रगति की है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

प्रश्न 13.
योजनाबद्ध विकास के क्या लाभ होते हैं?
उत्तर:
योजना वह व्यवस्था होती है जिसके आधार पर लक्ष्यों की पूर्ति के प्रयास किए जाते हैं। अगर किसी काम को करने के लिए योजना बनाई जाएगी तो वह काम सही समय पर भी हो जाएगा तथा साधन भी व्यर्थ नहीं जाएंगे। अगर किसी कार्य को करने के लिए योजना नहीं बनाई जाएगी तो हो सकता है कि प्रयास भी व्यर्थ ही चला जाए। इसलिए किसी कार्य को करने के लिए योजना बनाना ज़रूरी है। इसी के साथ योजनाबद्ध विकास के भी बहुत से लाभ हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-
(i) समय की बचत योजना बनाकर विकास करने से समय की बचत होती है। हो सकता है कि अगर हम योजना न बनाएं तो हम व्यर्थ ही अपना समय तथा साधन खर्च करते जाएं तथा उससे हमारा लक्ष्य न मिल पाए। योजना बनाने से हमें पता होता है कि किस दिशा में हमें काम करना है। इससे समय की बचत तो होती ही हैं पर साथ ही साथ हमारे साधन व्यर्थ होने से बच जाते हैं।

(ii) कम समय में लक्ष्य की प्राप्ति-हरेक योजना बनाते समय उस योजना के कुछ लक्ष्य निर्धारित कर लिए जाते हैं तथा उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समय भी निर्धारित कर लिया जाता है। अगर ऐसा न हो तो हम बगैर दिशा के कार्य करते जाएंगे तथा लक्ष्य भी प्राप्त नहीं होगा। इस तरह योजनाबद्ध विकास से कम समय में लक्ष्य की प्राप्ति होती है।

(iii) सभी क्षेत्रों का विकास-अगर योजनाबद्ध तरीके से कार्य किया जाएगा तो सभी क्षेत्रों का ठीक तरीके से विकास होगा। अगर योजनाबद्ध तरीके से काम न किया जाए तो हो सकता है कि किसी एक क्षेत्र का तो बहुत ज्यादा विकास हो जाए तथा किसी क्षेत्र का विकास कम हो या हो ही न।

इस तरह वह क्षेत्र पूरी तरह अविकसित रह जाएगा। इसलिए सभी क्षेत्रों का ठीक तरीके से विकास करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम करना ज़रूरी है। इसके लिए सारे क्षेत्र को इकाई मानकर काम किया जाता है तथा उसके सभी क्षेत्रों का ध्यान रखा जाता है।

(iv) औद्योगिक विकास–अगर देश का औद्योगिक विकास करना है तो वह योजनाबद्ध तरीके से ही होगा। अगर उद्योग लगाना है तो उसके लिए योजना बनानी ही पड़ेगी। उद्योग के लिए पैसा कहां से आएगा, माल बनाने के लिए कच्चामाल, माल बनाने के लिए मज़दूर, माल बेचने के लिए मंडी का प्रबंध, इन सबके लिए एक योजना की ज़रूरत होती है।

अगर योजना न बनाई जाए तो वह उद्योग नहीं चल पाएगा। अगर उद्योग लगाने में पैसा कम पड़ गया तो, माल बनाने के लिए कच्चा माल न मिला तो, माल न बिका तो क्या होगा? यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनके लिए योजना बनाने की ज़रूरत है। इसलिए औद्योगिक विकास के लिए योजनाबद्ध विकास की जरूरत होती है।

(v) कृषि के विकास के लिए- कृषि के विकास के लिए भी योजनाबद्ध तरीके की ज़रूरत होती है। कृषि के लिए अच्छे बीज, अच्छी खाद, तकनीक उपलब्ध करवाना, उत्पादन को बढ़ाने तथा बेचने के लिए योजना की ज़रूरत होती है। अगर किसी एक चरण में भी योजना न बनायी गई तो सारा कार्य खराब हो जाएगा तथा जिस क्षेत्र में हम विकास के बारे में सोच रहे हैं वह क्षेत्र विकसित नहीं हो पाएगा। इसलिए कृषि के विकास के लिए योजनाबद्ध तरीके की ज़रूरत है।

(vi) निम्न जातियों में विकास के लिए हमारे देश में सदियों से निम्न जातियों का शोषण होता आया है। इसलिए इनको ऊपर उठाने के लिए एक योजनाबद्ध प्रयास की जरूरत थी। यही किया गया तथा संविधान में इनके लिए आरक्षण रखे गए। पंचवर्षीय योजनाओं में इनके उत्थान के लिए काफ़ी कुछ किया गया। आज निम्न जातियां ऊँची जातियों के साथ खड़ी हैं तथा उनकी निम्न स्थिति काफ़ी अच्छी हो गई है। यह सब विकास योजनाबद्ध तरीके से ही हुआ है।

इस तरह और सभी क्षेत्रों चाहे घर में हो या देश में विकास के लिए योजनाबद्ध तरीके की ही ज़रूरत होती है।

प्रश्न 14.
लोकतांत्रिक समाज में हित समूह व दबाव समूह कौन-कौन से कार्य करते हैं?
उत्तर:
दबाव व हित समूह वह संगठित या असंगठित समूह हैं जो सरकारी नीतियों को प्रभावित करते हैं तथा अपने हितों को बढ़ावा देते हैं। उनके कुछ उद्देश्य होते हैं तथा वे सरकार पर अलग-अलग प्रकार से दबाव डालकर अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, लोकतांत्रिक समाज में यह कई प्रकार के कार्य करते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है:
(i) आंदोलन चलाना-यह दबाव समूह किसी विशेष मुद्दे पर तथा विशेष उद्देश्य के लिए आंदोलन चलाते हैं ताकि जनता का समर्थन हासिल किया जा सके। इसके लिए यह संचार माध्यमों जैसे कि टी०वी०, समाचार-पत्र इत्यादि का सहारा लेते हैं तथा जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

(ii) हड़तालें करवाना तथा रोष मार्च निकालना-दबाव समूह साधारणतया हड़तालें करवाते हैं, रोष मार्च निकालते हैं तथा सरकारी कार्यों में बाधा पहुँचाने का प्रयास करते हैं ताकि सरकार तक अपनी बात पहुँचा सकें। यह हड़ताल की घोषणा करते हैं तथा धरनों पर बैठकर अपनी आवाज़ उठाते हैं। अधिकतर फैडरेशन तथा यूनियनें सरकारी नीतियों को प्रभावित करने के लिए इसी ढंग का प्रयोग करते हैं।

(iii) लॉबी का निर्माण करना-साधारणतया दबाव समूह लॉबी का निर्माण करते हैं। इस लॉबी के कुछ आम हित होते हैं तथा यह हितों को प्राप्त करने के लिए कार्य करते हैं।

(iv) राजनीतिक दलों का समर्थन-हरेक दबाव व हित समूह किसी-न-किसी राजनीतिक दल से जुड़ा हुआ होता है। यह समूह चुनाव के समय अपने-अपने राजनीतिक दल का तन-मन-धन से समर्थन करते हैं ताकि वह चुनाव जीत कर उनकी मांगे पूरी करें।

(v) कानून बनाने वाली समितियों को प्रभावित करना-जब भी कोई विधेयक संसद् में कानून बनाने के लिए पेश किया जाता है तो यह विधेयक संसद् की विधायी समितियों को सौंप दिया जाता है ताकि वह इसके गुणों तथा दोषों पर समीक्षा कर सकें। यह दबाव समूह विधायी समूहों के सदस्यों को प्रभावित करते हैं ताकि विधेयक के मुख्य लक्षण अपने हितों के अनुसार करवा सकें।

इस प्रकार लोकतांत्रिक समाज में हित व दबाव समूह कई प्रकार के कार्य करते हैं।

प्रश्न 15.
भारतीय लोकतंत्र में दबाव समूहों एवं राजनीतिक दलों की भूमिका की चर्चा करें।
अथवा
भारत में राजनीतिक दलों की भूमिका बताएं।
अथवा
लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की क्या भूमिका रहती है? विवेचना करें।
अथवा
दबाव समूहों की भारतीय लोकतंत्र में भूमिका की चर्चा करें।
अथवा
सरकार के लोकतांत्रिक प्रारूप में राजनीतिक दलों और दबाव समूहों की क्या भूमिका है?
अथवा
राजनीतिक दल की भूमिका बताइए।
उत्तर:
भारत में लोकतंत्र को प्रभावी बनाने में देश में उपस्थित दबाव समूहों तथा राजनीतिक दलों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। इसका संक्षिप्त वर्णन अधोलिखित है-
दबाव समूहों की भूमिका-(Role of Pressure Groups):
1. सार्वजनिक नीतियों में के निर्माण को प्रभावित करना (To influence the making of Public Policies and Laws)-प्रत्येक दबाव समूह के लिए यह आवश्यक होता है कि वे सरकार के दवारा बनाई जाने वाली नीतियों को अपने सदस्यों के हितों की सुरक्षा के लिए प्रभावित करें। दबाव समूह सार्वजनिक सभाओं, प्रदर्शनियों एवं बातचीत के माध्यम से सरकार की नीतियों तथा कानूनों के निर्माण को अपने हित के लिए प्रयोग करने का प्रयास करते हैं।

2. राजनीतिक दलों को अपने प्रभावाधीन रखना (To keep the Political Parties under their influence) दबाव समूह सरकारी नीतियों को प्रभावित करने के लिए राजनीतिक दलों को अपने प्रभाव से प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। इसके लिए वे राजनीतिक दलों को गप्त रूप से चंदा इत्यादि भी देते हैं। इस प्रकार अपने हितों की सुरक्षा हेतु दबाव समूह सरकार से सहायता लेते रहते हैं।

3. प्रचार करना (To make Propaganda)-धर्म, जाति, इत्यादि के नाम पर जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए तथा अपने उद्देश्यों का प्रचार करने की आवश्यकता को देखते हुए दबाव समूह कई प्रकार के आंदोलन भी चलाते हैं ताकि जनता को प्रभावित किया जा सके।

4. सरकारी अधिकारियों से संपर्क स्थापित करना (To Establish contacts with Governmental Authorities)-दबाव समूहों को अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक होता है कि वे सरकारी अधिकारियों से संपर्क स्थापित करें। वर्गीय दबाव समूह (Sectional Pressure Groups) विशेष रूप से सरकारी गोधा संबंध रखते हैं क्योंकि सरकार अधिकारियों के माध्यम से ही उनको सरकार की नीतियों की जानकारी मिलती है।

राजनीतिक दलों की भूमिका-(Role of Political Parties):
1. गठबंधन की राजनीति का विकास (Side of Coalitional Politics)-भारत में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के अस्तित्व में आने से गठबंधन की राजनीति का विकास हुआ है। पिछले छः चुनावों में लटकती संसद् (Hung Parliament) के अस्तितत्व में आने से यह बात स्पष्ट हो गई है कि कोई भी राजनीतिक दल गठबंधन किए बिना राजनीतिक शक्ति को ग्रहण नहीं कर सकता।

15वीं लोकसभा के चुनाव भी मुख्यतः तीन गठबंधनों राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन, कांग्रेस व उसके सहयोगी दलों का गठबंधन तथा वामपंथी दलों के गठबंधन के बीच लड़े गए। राजनीति में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का महत्त्व इतना अधिक बढ़ गया है कि भविष्य में भी कोई दल गठबंधन किए बिना चुनाव में सफलता ग्रहण नहीं कर सकता है।

2. क्षेत्रवाद का बढ़ता प्रभाव (Increasing Influence of Regionalism)-राजनीति में बढ़ता क्षेत्रवाद लोगों में राष्ट्रवादी भावना को कम करने में अहम् भूमिका निभाता है। क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने क्षेत्रवाद को काफ़ी अधिक प्रेरित किया है। क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का प्रभाव कुछ क्षेत्र विशेष तक ही सीमित होता है। क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की सरकारों का निर्माण जहां पर होता है। उन राज्यों में ही अब वह दल अधिक सक्रिय भी रहते हैं।

3. केंद्र में साझा सरकारों का आगमन (Advent of Coalitional Governments at the Centre)-देश में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों में बढ़ोत्तरी के परिणामस्वरूप ही केंद्र में साझा सरकारों का गठन होना आरंभ हुआ है। अनेकों क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधि जब चुन कर लोकसभा के सदस्य बनते हैं तो उससे साझा सरकारों का निर्माण होता है। 1989 से लेकर वर्तमान समय तक लोकसभा के चुनावों के पश्चात् साझा सरकारें अस्तित्व में आईं।

4. संघवाद का नवीन रूप (New form of Federalism)-जब देश में कांग्रेस की राजनीतिक प्रमखता थी तब भारत में सहयोगी संघवाद का अस्तित्व था। केंद्र और राज्यों में एक ही दल की सरकार होने के कारण केंद्र और राज्यों के बीच तनाव कम था। लेकिन वर्तमान समय में क्षेत्रीय दलों के बढ़ते प्रभाव के कारण केंद्रवाद की (Centralism) की प्रवृत्ति का विकास होना रुक गया है। क्षेत्रीय दल केंद्रीयकरण के विरुद्ध हैं और राज्यों को अधिक-से-अधिक शक्तियां देने के हक में हैं। क्षेत्रीय दलों के ऐसे दृष्टिकोण के कारण केंद्र सरकार के लिए संघवाद-विरोधी कोई भी कार्यवाही करना मुश्किल हो गया है, क्योंकि कई क्षेत्रीय दल स्वयं सरकार में शामिल हैं।

प्रश्न 16.
लोकतंत्र का क्या अर्थ है? इसकी विशेषताओं, गुणों तथा अवगुणों का वर्णन करें।
उत्तर:
लोकतंत्र सरकार का ही एक प्रकार है जिसमें जनता का शासन होता है। इसमें जनता के प्रतिनिधि वोटरों के द्वारा, बालिगों द्वारा वोट देने की प्रक्रिया के द्वारा चुने जाते हैं। यह स्वतंत्रता, समानता तथा भाईचारे के संकल्पों में विश्वास रखती है तथा यह ही इसके कार्यात्मक आधार हैं। इसमें समाज तथा व्यक्तिगत लोगों के विकास का पूर्ण स्कोप होता है। इसकी विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(i) जनता का शासन-लोकतंत्र में प्रशासन प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा चलाया जाता है तथा लोकतंत्र में हरेक निर्णय बहुमत से लिया जाता है।

(ii) जनता के हित-लोकतंत्र में प्रशासन को जनता के हितों के अनुसार चलाया जाता है तथा कमज़ोर तबके का सरकार द्वारा अच्छे ढंग से ध्यान रखा जाता है।

(iii) समानता का सिद्धांत-लोकतंत्र का मुख्य सिद्धांत समानता का सिद्धांत है। लोकतंत्र में हरेक व्यक्ति को समान समझा जाता है। किसी के साथ जन्म, शिक्षा, संपदा, जाति इत्यादि किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता है। सभी नागरिकों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त हैं। हरेक व्यक्ति को Universal Adult Franchise के अनुसार वोट देने का अधिकार प्राप्त है।

(iv) बहुमत का शासन-लोकतंत्र बहुमत का शासन है। लोकतंत्र में सभी निर्णय बहुमत द्वारा लिए जाते हैं। जिस दल को चुनाव में बहुमत प्राप्त होता है वह ही सरकार बनाता है। यहां तक कि सभी निर्णय बहुमत द्वारा ही लिए जाते हैं।

लोकतंत्र के गुण अथवा लाभ-
आधुनिक समय में लोकतंत्र को सबसे अच्छा शासन माना जाता है। इसलिए ही अधिकतर देशों ने लोकतंत्र के सिदधांत को अपनाया है। इसके कुछ लाभ हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-
(i) यह जनमत पर आधारित है-लोकतंत्र शासन की एक व्यवस्था है जोकि जनमत पर आधारित है तथा जिसमें शासन को जनता की इच्छा के अनुसार चलाया जाता है। तानाशाही तथा राजतंत्र में जनता की इच्छा को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता तथा इसमें कानूनों को भी जनमत के अनुसार ही बनाया जाता है।

(ii) यह समानता के सिद्धांत पर आधारित है-लोकतंत्र में सभी व्यक्तियों को समान समझा जाता है। किसी को म. लिंग. संपदा के आधार पर कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होता है। साधारण जनता को निर्णय लेने की प्रक्रिया में भागीदारी का अधिकार दिया गया है तथा सभी को समान समझा जाता है।

(iii) उत्तरदायी सरकार–तानाशाही तथा राजतंत्र में सरकार किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होती परंतु लोकतंत्र में सरकार जनता तथा संसद् के प्रति जवाबदेह होती है। सरकार को जनमत के अनुसार ही कार्य करना पड़ता है। यह जनमत के विरुद्ध कार्य नहीं करती है अन्यथा इसे अगले चुनावों में जनता द्वारा सत्ता से उखाड़ कर फेंक दिया जाता है।

(iv) शक्तिशाली तथा सक्षम सरकार-लोकतंत्र में सरकार शक्तिशाली तथा सक्षम होती है। शासन को जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चलाया जाता है तथा उन्हें जनता का समर्थन प्राप्त होता है। शासक जनता के समर्थन से प्रेरित होते हैं। इसलिए ही वह अपने निर्णय संपूर्ण शक्ति के साथ लेते हैं। शासन जनमत से नियंत्रित होते हैं तथा यह अपने निर्णयों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। इस प्रकार यह सक्षम रूप से कार्य करते हैं।

लोकतंत्र के अवगुण- लोकतंत्र के लाभों को देखने के बाद हम कह सकते हैं कि यह शासन सबसे अच्छा है परंतु यह ठीक नहीं है। इस व्यवस्था के कुछ अवगुण भी हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-
(i) समानता का सिद्धांत अप्राकृतिक है-लोकतंत्र का मुख्य आधार समानता का सिद्धांत है परंतु आलोचक यह कहते हैं कि समानता का सिद्धांत ही अप्राकृतिक है। यहां तक कि प्रकृति ने मनुष्यों में समानता नहीं रखी है। कुछ लोग बेवकूफ हैं, कुछ शक्तिशाली, कुछ चालाक तथा कुछ कमज़ोर। अगर प्रकृति ने भी इस प्रकार का भेदभाव रखा है तो किस प्रकार सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक समानता को रखा जा सकता है। समानता का सिद्धांत इसका सबसे बड़ा अवगुण है कि सभी को समान अधिकार दिए गए हैं।

(ii) गुणों की बजाए संख्या को महत्त्व देना-लोकतंत्र में गुणों की बजाए संख्या को अधिक महत्त्व दिया जाता है। दूसरे शब्दों में लोकतंत्र में सभी निर्णय बहुमत से लिए जाते हैं। अगर 100 बेवकूफ यह कहें कि कोई चीज़ ठीक है तथा 99 बदधिमान यह कहें कि यह गलत है तो 100 बेवकफों का निर्णय ही माना जाएगा। जनता के प्रतिनिधि भी बहुमत से चुने जाते हैं। हरेक बेवकूफ तथा बुद्धिमान को वोट देने का अधिकार है तथा ग़लत व्यक्ति भी जनता का प्रतिनिधि बन सकता है।

(iii) यह जवाबदेह सरकार का गठन नहीं करता-चाहे लोकतंत्र में सरकार जनता के प्रति जवाबदेह होती है परंतु ऐसा असल में होता नहीं है। चुनाव के बाद नेता कभी भी जनता का ध्यान नहीं रखते हैं तथा जनता के पास दोबारा अगले चुनावों के समय ही आते हैं। बहुमत वाला दल कभी भी विरोधी अथवा अल्पसंख्यक दलों की परवाह नहीं करता है।

(iv) अस्थिर तथा कमज़ोर सरकार-लोकतंत्र में सरकार अस्थिर तथा कमज़ोर होती है। बहदलीय व्यवस्था में सरकार तेज़ी से बदलती है। बहुमत के अभाव में कई दल इकट्ठे मिलकर सरकार का गठन करते हैं। इस प्रकार की मिश्रित सरकार को कभी भी तोड़ा जा सकता है। समस्या के समय, लोकतांत्रिक सरकार कमज़ोर सरकार सिद्ध होती है। निर्णय काफ़ी तेजी से नहीं लिए जाते हैं।

प्रश्न 17.
राजनीतिक दल का क्या अर्थ है? परिभाषाओं सहित वर्णन करें।
अथवा
राजनीतिक दल क्या है?
उत्तर:
राजनीतिक दल प्रत्येक प्रकार की सरकारों में मिल जाते हैं। अन्य प्रकार की सरकारों की तुलना में लोकतंत्र में राजनीतिक दल की बहुत महत्ता है। बहुत सारे विद्वानों ने इसको परिभाषित करने की कोशिश की है। परंतु प्रत्येक अच्छे राजनीतिक दल की अपनी विशेषताएं होती हैं। इस प्रकार प्रत्येक राजनीतिक दल से यह आशा की जाती है कि वह कछ आरंभिक कार्य करे जिनके बिना उसका अस्तित्व नहीं रह सकता।

राजनीतिक दल की महत्ता इसलिए अधिक होती है क्योंकि यह लोगों एवं सरकार के बीच एक कड़ी का कार्य करते हैं। कुछ राजनीतिक दल इतने शक्तिशाली होते हैं कि उनका अपने सदस्यों पर इतना कड़ा नियंत्रण होता है कि वह इस दल को छोड़ नहीं सकते। इस प्रकार कुछ राजनीतिक दल इतने कमज़ोर होते हैं कि उनका अपने सदस्यों पर नियंत्रण नहीं होता और यह सदस्य कभी भी अपने दल को छोड़कर चले जाते हैं।

कुछ समाजों में एक दलीय (दल की) व्यवस्था होती है। वहां पर एक ही दल सत्तासीन रहता है और अन्य दलों को बनने भी नहीं दिया जाता है। कुछ समाजों में बहुदलीय व्यवस्था होती है। वहां पर दलों का काफ़ी भंडार होता है। किसी भी राजनीतिक दल की कठोरता व कमजोरी उसके सदस्यों की शक्ति पर निर्भर करती है। इसकी वैधता भी उसकी सत्ता में आने पर निर्भर करती है। लोकतंत्र में इसकी लोकप्रियता और जनता में विश्वास इस बात पर निर्भर करता है कि पिछले चुनावों में उसे कितनी वोटें प्राप्त हुईं।

परिभाषाएं प्रत्येक राजनीतिक दल लोगों के द्वारा बनाया होता है। जिनका किसी राजनीतिक विषय पर साझा कार्यक्रम होता है और यह उस विषय को लागू करने हेतु Common line of action पर सहमति प्रकट करते हैं। प्रत्येक राजनीतिक दल केवल अकेला या फिर दूसरे दलों के साथ मिलकर सत्ता में आने की कोशिश करता है।
(1) बर्क (Burke) के अनुसार, “ये कुछ व्यक्तियों की संस्था है, जो कि राष्ट्रीय हितों को बढ़ाने के लिए इकट्ठे होते हैं, और वो कुछ साझे राजनीतिक सिद्धांतों को मानते हैं।”

(2) गिलक्रिस्ट (Gilchrist) के अनुसार, “ये लोगों का एक व्यवस्थित समूह है, जो कुछ राजनीतिक विचार साझे रखते हैं और जो एक राजनीतिक इकाई में बंध कर सरकार के ऊपर नियंत्रण रखने की कोशिश करते हैं।”

(3) फ़ाइनर (Finer) के अनुसार, “एक राजनीतिक दल एक संगठित इकाई है, जो कि इच्छुक सदस्यों पर आधारित है, और वो अपनी शक्ति को राजनीतिक सत्ता को प्राप्त करने में खर्च करता है।”

(4) जी० सी० फील्ड (G.C. Field) के अनुसार, “एक राजनीतिक दल कुछ नहीं, बल्कि लोगों की इच्छुक सभा है, जिसका महत्त्व राजनीतिक सत्ता प्राप्त करना होता है।”

इस प्रकार, इन उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि राजनीतिक दल एक संगठित समूह है, जो कुछ नियमों के साथ बंधा हुआ होता है, इसकी सदस्यता इच्छा पर निर्भर करती है, जो कभी भी ग्रहण की जा सकती है, और छोड़ी भी जा सकती है। यह लोगों की सभा है जिसका एकमात्र उद्देश्य सत्ता प्राप्ति करना होता है। इसके लिए सभी मिलकर कोशिश करते हैं। इनके सदस्यों के विचार साझे होते हैं क्योंकि यह एक दल के साथ संबंध रखते हैं।

प्रश्न 18.
राजनीतिक दल की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
(1) प्रत्येक राजनीतिक दल को यह विश्वास होता है कि उसके कुछ विरोधी अवश्य होते हैं। यदि वह आज नहीं हैं तो आने वाले दिनों में बन जायेंगे। प्रत्येक राजनीतिक दल का एक संगठन होता है। इसलिए यह अपने आप में ही एक संस्था होती है।

(2) क्योंकि राजनीतिक विचार एवं इच्छाएं सभी लोगों की भिन्न-भिन्न होती हैं। इस प्रकार राजनीतिक दल की नीतियां भी अलग-अलग होती हैं। प्रत्येक राजनीतिक दल कुछ विशेष नीतियों के कारण स्वयं को दूसरे राजनीतिक दलों से अलग सिद्ध करता है। प्रत्येक राजनीतिक दल का उद्देश्य होता है सत्ता प्राप्त करना और जिसके पास यह शक्ति है, वह इसे कायम रखना चाहता है।

(3) एक अच्छे राजनीतिक दल की यह विशेषता होती है कि ये पूर्ण तौर पर संगठित होता है और इसके सदस्य भी अनुशासित होते हैं। दल का इन पर पूर्ण नियंत्रण होता है। वह अपनी पार्टी या दल के सिद्धांतों को खुशी के साथ स्वीकार करते हैं और वह इनको मानते हुए अपनी कठिनाइयों को भी भूल जाते हैं। वह दल के नियंत्रण को अन्य वस्तुओं से ऊपर रखते हैं।

(4) राजनीतिक दल की एक विशेषता यह होती है कि इसके सदस्यों का कुछ Common नीतियों पर विश्वास होना चाहिए और इन्हें उनको कुछ विशेष अवसरों पर दिखाना चाहिए।

(5) इसकी नीतियों एवं कार्यों में निरंतरता होनी चाहिए। इसको स्वयं को कुछ विशेष नीतियों पर संगठित रखना चाहिये। क्योंकि किसी भी नेता का चमत्कार अधिक समय तक टिका नहीं रह सकता। जैसे कि 1984 से 1989 तक राजीव गांधी के साथ हुआ था। जब उस नेता का चमत्कार समाप्त हो जायेगा तो वह भी स्वतः समाप्त हो जायेगा।

(6) एक अच्छे राजनीतिक दल के सदस्यों का एक साझे कार्यक्रम एवं कार्य करने में विश्वास होना चाहिए। जो कि इसकी भावी नीतियों के अनुसार होते हैं। यदि ऐसा नहीं होगा तो झगड़े बढ़ेंगे और दलों में फूट पड़ेगी।

(7) इसकी ज़िम्मेदारियों को लेने के लिए तैयार रहना पड़ेगा और केवल उस दल के ही दोष नहीं गिनवाने चाहिए, जो दल सत्ता के बीच हो और वह स्वयं विरोधी दल में है। जब आवश्यकता पड़ने पर उसे सरकार बनाने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।

(8) एक राजनीतिक दल को जन समर्थन प्राप्त होना चाहिए या उसकी लोकप्रियता लोगों के बीच में होनी चाहिए। यदि यह नहीं होगी तो लोग उसे कभी सत्ता नहीं सौंपेगे और यह अपनी राजनीतिक नीतियों को पूरा नहीं कर पायेगा।

(9) एक राजनीतिक दल को देश के हितों के ऊपर राज्य के या क्षेत्रीय हितों को महत्त्व नहीं देना चाहिए और इसको विदेशियों के स्थान पर देश के लोगों का समर्थन लेना चाहिए। इस प्रकार प्रत्येक राजनीतिक दल को देश के हित को ध्यान में रखकर अपनी नीतियों को बनाना चाहिए।

(10) प्रत्येक राजनीतिक दल को संवैधानिक साधनों में पूर्ण विश्वास होना चाहिए। जो राजनीतिक दल
साधनों के अतिरिक्त अन्य किसी साधनों में विश्वास करता है, उसको किसी भी प्रकार की सरकार में कार्य नहीं करने देना चाहिए। उसकी दूसरी गतिविधियों के ऊपर भी तुरंत रोक लगा देनी चाहिए।

(11) प्रत्येक अच्छे राजनीतिक दल का एक राष्ट्रीय चरित्र होना चाहिए और उसे किसी विशेष समूह, जाति या क्षेत्र की अगुवाई नहीं करनी चाहिए। इस प्रकार प्रत्येक अच्छे राजनीतिक दल में बहुत-सी अच्छी विशेषताएं होनी चाहिएं और ऐसे कार्य करने चाहिए जो कि देश के निर्माण में सहायक सिद्ध हों।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

प्रश्न 19.
राजनीतिक दल के कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
प्रत्येक प्रकार की सरकारों में राजनीतिक दलों के लिए कुछ कार्य करने आवश्यक होते हैं। यद्यपि ये सरकारें या राजनीतिक दल संगठनों के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। इनके कार्य किये बिना लोकतंत्र को चलाना काफ़ी कठिन है। राजनीतिक दलों के कार्यों का वर्णन निम्नलिखित है-
1. यह लोकमत बनाते हैं लोगों की कभी भी एकमत राय नहीं होती है। यद्यपि लोगों के अनेक भिन्न-भिन्न मत होते हैं, परंतु उनका देश हेतु कोई विशेष महत्त्व नहीं होता है। यह राजनीतिक दलों का कार्य होता है कि वह भिन्न-भिन्न मतों को इकट्ठा करके एक लोकराज्य का निर्माण करें और उसे एक संगठित रूप प्रदान करें। यदि राजनीतिक दल ऐसा नहीं करेंगे तो भिन्न-भिन्न राय बेकार चली जायेगी, यह केवल इन दलों के कारण ही इसे आकार मिलता है, और यह किसी विशेष दिशा में बन जाते हैं।

2. यह राजनीतिक शिक्षा देते हैं-साधारणतयः लोग अपने-अपने कार्यों में व्यस्त होते हैं और उनके पास राजनीतिक शिक्षा लेने का कोई भी साधन नहीं होता। अपनी बढ़ती हुई आवश्यकताओं के कारण वह केवल आर्थिक कार्यों की तरफ ही ध्यान देते हैं। केवल चुनावों के समय ही राजनीतिक दल, बड़ी-बड़ी मीटिंगें, जुलूस आदि करते हैं और लोगों को राजनीतिक तौर पर शिक्षित करते हैं। यहां पर ही लोगों को देश की कठिनाइयों का पता चलता है। इस प्रकार राजनीतिक दल लोगों को राजनीतिक शिक्षा देते हैं।

3. यह चुने गये और चुने जाने वालों में कड़ी होती है-राजनीतिक दल चुने गये और चुनने वालों में कड़ी का कार्य करते हैं। इन दलों के अतिरिक्त लोगों के विचारों को पता करने का कोई साधन नहीं होता है। इसी प्रकार लोगों के पास अपनी कठिनाइयों को सरकार के पास पहुंचाने का अन्य कोई साधन नहीं होता है।

राजनीतिक दलों के सदस्य हमेशा लोगों के नज़दीक रहते हैं ताकि वह लोगों के विचारों को जानकर अपने दल को बता सकें। इस तरह यह चुने गये और चुनने वालों के बीच कड़ी का कार्य करते हैं।

4. उम्मीदवार चुनने में सहायता करते हैं राजनीतिक दल चुनावों के समय उम्मीदवार चुनने में सहायता करते हैं। वोटर आमतौर पर उम्मीदवारों को उसके विचारों को नहीं जानते। दलों के बिना लोगों के लिए सही प्रत्याशी का चयन करना मुमकिन नहीं होता। उम्मीदवार सदैव अपने राजनीतिक दल के नाम से जाना जाता है। उसको उसकी पार्टी की वजह से ही वोट मिलते हैं। इस प्रकार राजनीतिक दल लोगों को अपना सही प्रत्याशी चुनने में सहायता करते हैं।

5. लोगों की कठिनाइयां सरकार तक पहुंचाते हैं राजनीतिक दल सदैव लोगों की कठिनाइयां सरकार तक पहुंचाने में सहायता करते हैं। जब कोई राजनीतिक दल सत्ता में नहीं होता तो वह लोगों की शरण में जाता है। वह उनकी कठिनाइयों को सुनकर, उन्हें बढ़ा-चढ़ा कर सरकार तक पहुंचाते हैं। चाहे वह इनको बढ़ा-चढ़ा कर बताते हैं परंतु इसके साथ कम-से-कम सरकार को उनकी कठिनाइयों के बारे में पता चलता है और वह उनको दूर करने की कोशिश करती है।

6. राष्ट्रीय हितों को महत्ता-प्रत्येक राजनीतिक दल क्षेत्रीय हितों पर किसी विशेष समूह के हितों के विपरीत राष्ट्रीय हितों को महत्त्व देता है। यह साधारण सी बात है यदि कोई दल किसी जाति समूह तक सीमित रहकर कार्य करेगा तो वह संपूर्ण लोगों में प्रसिद्ध नहीं हो सकेगा। इसलिए प्रत्येव राजनीतिक दल अपने आपको राष्ट्रीय दल के रूप में पेश करता है। इस प्रकार देश के हितों को क्षेत्रीय हितों पर महत्त्व प्राप्त हो जाता है। प्रत्येक राजनीतिक दल अपने चुनाव घोषणा-पत्र को राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर बनाता है ताकि अधिकाधिक लोग उसकी तरफ आकर्षित हों।

7. यह सदभावना एवं सहयोग लाते हैं-राजनीतिक दल सरकार के भिन्न-भिन्न अंगों में तालमेल बिठाकर उनमें सहयोग लाने की कोशिश करते हैं। जो दल सरकार में होता है वह इस बात का विशेष ध्यान रखता है कि सरकार के भिन्न-भिन्न अंग संपर्क रूप से कार्य करें। अन्य दल कार्य को सही तरीके के साथ चलाने में सहायता करते हैं।

8. राजनीतिक स्थिरता लाने में सहायता करते हैं-राजनीतिक दल राजनीतिक स्थिरता लाने में सहायता करते हैं। यह अस्थिरता की स्थिति में से बाहर निकलने की पूरी कोशिश करते हैं ताकि देश संपन्न रूप से चल सके। किसी भी प्रकार हो यह जोड़-तोड़ कर सरकार बनाने में सहायता करता है।

9. नये राजनीतिक नेताओं की भर्ती करते हैं-प्रत्येक राजनीतिक दल ऐसे नेताओं को अपने दल में भर्ती करना चाहता है जो लोगों को अपनी तरफ खींच सकें। यदि सही नेता राजनीतिक दल के पास हो तो यह काफ़ी देर तक सत्ता में रह सकता है। इस प्रकार प्रत्येक राजनीतिक दल सदैव ऐसे नेता की तलाश में रहता है जो लोगों की नब्ज पर हाथ रख सके।

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