HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 1 संरचनात्मक परिवर्तन

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 1 संरचनात्मक परिवर्तन Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Important Questions Chapter 1 संरचनात्मक परिवर्तन

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. भारत किस प्रकार का देश है?
(A) धर्म निरपेक्ष
(B) दो धर्मों को मानने वाला
(C) विशेष धर्म को मानने वाला
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
धर्म निरपेक्ष।

2. भारत को धर्म-निष्पक्षता किसने प्रदान की है?
(A) राज्य
(B) सरकार
(C) जनता
(D) संविधान।
उत्तर:
संविधान।

3. हम कहाँ पर व्यापारी, अध्यापक, मध्य वर्ग, ट्रेड युनियन जैसे वर्ग देख सकते हैं?
(A) कस्बे में
(B) गाँव में
(C) शहरों में
(D) कहीं नहीं।
उत्तर:
शहरों में।

4. कहाँ पर हम सीमांत तथा छोटे किसान, ज़मींदार, मज़दूर जैसे वर्ग देख सकते हैं?
(A) गाँव में
(B) शहर में
(C) कस्बे में
(D) बड़े शहरों में।
उत्तर:
गाँव में।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 1 संरचनात्मक परिवर्तन

5. भारत में विश्वव्यापीकरण तथा उदारीकरण की प्रक्रिया कब शुरू हुई थी?
(A) 1990 से पहले
(B) 1990 के बाद
(C) 1991 के बाद
(D) 1985 के बाद।
उत्तर:
1991 के बाद।

6. उदारीकरण की प्रक्रिया किस प्रधानमंत्री ने शुरू की थी?
(A) राजीव गाँधी
(B) चंद्रशेखर
(C) वी० पी० सिंह
(D) पी० वी० नरसिम्हा राव।
उत्तर:
पी० वी० नरसिम्हा राव।

7. उस प्रक्रिया को क्या कहते हैं जिसमें एक देश की अर्थव्यवस्था दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था में मिल जाती है?
(A) निजीकरण
(B) विश्वव्यापीकरण
(C) उदारीकरण
(D) संस्कृतिकरण।
उत्तर:
विश्वव्यापीकरण।

8. सार्वजनिक उपक्रमों को व्यक्तिगत पार्टियों को बेचने की प्रक्रिया को क्या कहते हैं?
(A) विश्वव्यापीकरण
(B) उदारीकरण
(C) निजीकरण
(D) संस्कृतिकरण।
उत्तर:
निजीकरण।

9. सामाजिक परिवर्तन कब आवश्यक हो जाता है?
(A) शिक्षा प्राप्त करने के बाद
(B) नौकरी प्राप्त करने के बाद
(C) विवाह के बाद
(D) बच्चों के बाद।
उत्तर:
शिक्षा प्राप्त करने के बाद।

10. हमारा समाज किस प्रकार औद्योगीकरण से प्रभावित हुआ है?
(A) शहर बढ़ रहे हैं
(B) वातावरण प्रदूषित हो रहा है।
(C) उत्पादन बढ़ रहा है
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

11. नगर की इनमें से कौन-सी विशेषता है?
(A) अधिक जनसंख्या
(B) द्वितीयक संबंध
(C) गैर-कृषि पेशे
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

12. उस प्रक्रिया को क्या कहते हैं जिसमें गांव की स्थिति में परिवर्तन आ जाता है तथा उसमें नगरों जैसे लक्षण आने शुरू हो जाते हैं?
(A) नगरीकरण
(B) संस्कृतिकरण
(C) औद्योगीकरण
(D) आधुनिकीकरण।
उत्तर:
नगरीकरण।

13. इनमें से कौन-सी नगरीकरण की विशेषता है?
(A) औपचारिक संबंध
(B) परिवारों का टूटना
(C) अधिक गतिशीलता
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

14. नगरों में जनसंख्या क्यों बढ़ती है?
(A) सुख-सुविधाओं का उपलब्ध होना
(B) रोज़गार के अधिक साधन
(C) तकनीक का प्रयोग
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

15. इनमें से कौन-सा समाज औद्योगीकरण के कारण ग्रामीण से स्थानांतरित होकर नगरीय देश बना?
(A) जापान
(B) अमेरिका
(C) ब्रिटेन
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(A) जापान।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक परिवर्तन क्यों होता है?
उत्तर:
जब शिक्षा लेने के बाद व्यक्ति शिक्षित हो जाता है तो सामाजिक परिवर्तन होना ज़रूरी होता है।

प्रश्न 2.
औद्योगीकरण का कोई एक प्रभाव बताओ।
उत्तर:
औद्योगीकरण से नगर बढ़ते हैं तथा वातावरण दूषित होता है।

प्रश्न 3.
नीली क्रांति क्या होती है?
उत्तर:
मछलियों के उत्पादन को बढ़ाने को नीली क्रांति कहते हैं।

प्रश्न 4.
हरित क्रांति क्या होती है?
उत्तर:
कृषि के उत्पादन को बढ़ाने को हरित क्रांति कहते हैं।

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प्रश्न 5.
श्वेत क्रांति क्या होती है?
उत्तर:
दूध के उत्पादन को बढ़ाने को श्वेत क्रांति कहते हैं।

प्रश्न 6.
सामाजिक क्रांति क्यों आती है?
उत्तर:
जब समाज में आर्थिक समानता न हो, असमानता कुछ ज्यादा ही हो तथा व्यक्ति के मौलिक मानवीय अधिकारों का दमन हो रहा हो तो सामाजिक क्रांति आती है।

प्रश्न 7.
किसके कहने के अनुसार आर्थिक आधार पर समाज में क्रांति आएगी?
उत्तर:
कार्ल मार्क्स के कहने के अनुसार समाज में आर्थिक आधार पर क्रांति आएगी।

प्रश्न 8.
कौन-सी क्रांति बिना हिंसा के आती है?
उत्तर:
औद्योगिक क्रांति बिना हिंसा के आती है।

प्रश्न 9.
चक्रीय कार्य-कारण का क्या अर्थ होता है?
उत्तर:
जब एक परिवर्तन के कारण किसी और जगह भी परिवर्तन आए तो उसे चक्रीय कार्य-कारण कहते हैं।

प्रश्न 10.
भारत में I.R.D.P. कब शुरू हुए थे?
उत्तर:
भारत में I.R.D.P. 1952 में शुरू हुए थे।

प्रश्न 11.
भारत में C.D.P. कब शुरू हुए थे? (Community Development Programme.)
उत्तर:
भारत में C.D.P. 1952 में शुरू हुए थे।

प्रश्न 12.
एम० एन० श्रीनिवास ने कौन-सी धारणाएं दी हैं?
उत्तर:
एम० एन० श्रीनिवास ने संस्कृतिकरण तथा पश्चिमीकरण की धारणाएं दी हैं।

प्रश्न 13.
सामाजिक परिवर्तन क्या होता है?
उत्तर:
जब सामाजिक संबंधों में परिवर्तन शुरू हो जाए तो उसे सामाजिक परिवर्तन कहते हैं।

प्रश्न 14.
प्रगति क्या होती है?
उत्तर:
जो परिवर्तन हमारी इच्छानुसार हो उसे प्रगति कहते हैं।

प्रश्न 15.
सांस्कृतिक परिवर्तन क्या होता है?
उत्तर:
हमारी संस्कृति, हमारे विचारों, धर्म, संस्थाओं, व्यवहार इत्यादि में होने वाले परिवर्तन को सांस्कृतिक परिवर्तन कहते हैं।

प्रश्न 16.
क्या सामाजिक परिवर्तन के बारे में निश्चितता से कहा जा सकता है कि सामाजिक परिवर्तन आएगा?
उत्तर:
जी नहीं, सामाजिक परिवर्तन के बारे में निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता कि सामाजिक परिवर्तन आएगा।

प्रश्न 17.
सरल तथा जटिल समाजों में किस गति से परिवर्तन आते हैं?
उत्तर:
सरल समाजों में धीमी गति से तथा जटिल समाजों में तेज़ गति से परिवर्तन आते हैं।

प्रश्न 18.
उद्विकास क्या होता है?
उत्तर:
समाज के सरलता से जटिलता की तरफ जाने को उद्विकास कहते हैं।

प्रश्न 19.
मार्गन के अनुसार उद्विकास की कितनी अवस्थाएं हैं?
उत्तर:
मार्गन के अनुसार उद्विकास की तीन अवस्थाएं हैं।

प्रश्न 20.
किसी नयी खोज के कारण होने वाले परिवर्तन को क्या कहते हैं?
उत्तर:
किसी नयी खोज के कारण होने वाले परिवर्तन को रेखीय परिवर्तन कहते हैं।

प्रश्न 21.
किस समाजशास्त्री ने धर्म में विकास को अलग हिस्सों में विभाजित किया है?
उत्तर:
अगस्ते काम्ते ने धर्म में विकास को अलग हिस्सों में विभाजित किया है।

प्रश्न 22.
भारत का सबसे बड़ा उद्योग कौन-सा है?
उत्तर:
भारत का सबसे बड़ा उद्योग कपड़ा उद्योग है।

प्रश्न 23.
सुधारवादी आंदोलन क्या थे?
उत्तर:
जिन आंदोलनों ने भारतीय समाज में फैली बुराइयों को दूर करने के प्रयास किए, उन को सुधारवादी आंदोलन कहते हैं।

प्रश्न 24.
सामाजिक परिवर्तन किस प्रकृति के होते हैं?
उत्तर:
सामाजिक परिवर्तन सामाजिक प्रकृति के होते हैं।

प्रश्न 25.
पूंजीवाद का जन्म क्यों हुआ?
उत्तर:
पूंजीवाद का जन्म प्रोटेस्टेंट धर्म की वजह से हुआ था।

प्रश्न 26.
क्रांति क्या होती है?
उत्तर:
जब समाज में चल रहे असंतोषों की वजह से सामाजिक तथा राजनीतिक परिवर्तन का प्रयास किया जाए तो उसे क्रांति कहते हैं।

प्रश्न 27.
मार्गन के अनुसार उद्विकास की कौन-सी तीन अवस्थाएं हैं?
उत्तर:
मार्गन के अनुसार उद्विकास की तीन अवस्थाएं-जंगली अवस्था, बर्बरता की अवस्था तथा सभ्यता की अवस्थाएं हैं।

प्रश्न 28.
बर्बरता अवस्था में किन संगठनों का विकास हुआ था?
उत्तर:
बर्बरता अवस्था में आर्थिक संगठनों जैसे कि पूंजीवाद का विकास हुआ था।

प्रश्न 29.
रेखीय परिवर्तन क्या होता है?
उत्तर:
जब नए आविष्कारों की वजह से परिवर्तन तथा सीधी रेखा में विकास होता जाए तो उसे रेखीय परिवर्तन कहते हैं।

प्रश्न 30.
सांस्कृतिक परिवर्तन किसे कहते हैं?
उत्तर:
हमारी संस्कृति, हमारे विचारों, धर्म, संस्थानों, व्यवहार इत्यादि में होने वाले परिवर्तन को सांस्कृतिक परिवर्तन कहते हैं। इसका अर्थ यह है कि हमारी संस्कृति में होने वाले परिवर्तनों को सांस्कृतिक परिवर्तन कहते हैं।

प्रश्न 31.
सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया क्या है?
उत्तर:
जब समाज के अधिकतर लोगों के विचारों, कार्य करने के ढंगों इत्यादि में परिवर्तन आना शुरू हो जाए तो उसे सामाजिक परिवर्तन कहते हैं। इसका अर्थ यह है कि जब समाज के अधिकतर अंगों, संस्थाओं, विचारों इत्यादि में परिवर्तन आना शुरू हो जाए उसे सामाजिक परिवर्तन कहते हैं।

प्रश्न 32.
नगरीकरण की प्रक्रिया कब हमारे सामने आती है?
उत्तर:
जब नगरों की जनसंख्या का घनत्व बढ़ जाए, यातायात के साधनों का विकास होना शुरू हो जाए, नगरों के आकार में बढ़ोत्तरी होनी शुरू हो जाए, उत्पादन बड़े पैमाने पर होना शुरू हो जाए तो नगरीकरण की प्रक्रिया हमारे सामने आती है।

प्रश्न 33.
हरेक परिवर्तन को प्रगति क्यों नहीं कह सकते?
उत्तर:
जब परिवर्तन व्यक्ति की ऐच्छिक दिशा में हो तो उसे प्रगति कहते हैं परंतु परिवर्तन हमारे मन की इच्छा के अनुसार नहीं होता। जो परिवर्तन हमारी इच्छा के अनुसार नहीं होता उसे प्रगति नहीं कह सकते। इस तरह हरेक परिवर्तन प्रगति नहीं हो सकता।

प्रश्न 34.
नगर क्या होता है?
उत्तर:
नगर किसी खास भौगोलिक क्षेत्र में बसा वह समुदाय है जिसमें ज्यादा जनसंख्या, गैर-कृषि कार्यों की भरमार, अव्यक्तिक संबंध, औपचारिक नियंत्रण तथा द्वितीय समूहों की प्रधानता होती है।

प्रश्न 35.
नगरीयकरण किसे कहते हैं?
अथवा
शहरीकरण से क्या तात्पर्य है?
अथवा
नगरीकरण की प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं?
अथवा
नगरीकरण क्या है?
उत्तर:
नगरीयकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें गांव की स्थिति में परिवर्तन आ जाता है तथा उसमें शहरों या नगरों जैसे लक्षण आने शुरू हो जाते हैं अर्थात् वहां का रहन-सहन शहरों जैसा हो जाता है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 1 संरचनात्मक परिवर्तन

प्रश्न 36.
नगरीयकरण की तीन विशेषताएं बताओ।
उत्तर:

  1. नगरीयकरण में संबंध औपचारिक होते हैं।
  2. नगरीयकरण में गतिशीलता अधिक होती है।
  3. नगरीयकरण में परिवार टूटने लग जाते हैं।

प्रश्न 37.
औद्योगीकरण का क्या अर्थ है?
अथवा
औद्योगीकरण की परिभाषा दें।
अथवा
औद्योगीकरण किसे कहते हैं?
अथवा
औद्योगीकरण की प्रक्रिया क्या है?
अथवा
औद्योगीकरण का अर्थ बताइए।
अथवा
औद्योगीकरण क्या है?
उत्तर:
औद्योगीकरण एक प्रक्रिया है जिसमें उत्पादन घरेलू स्तर से आगे निकल कर कारखानों तक पहुँच जाता है तथा उत्पादन बड़े स्तर पर शुरू हो जाता है।

प्रश्न 38.
विकास क्या होता है?
उत्तर:
जब किसी भी चीज़ के बारे में ज्यादा जानकारी हो जाए या जब कोई चीज़ आगे बढ़नी शुरू हो जाए तो उसे विकास कहते हैं।

प्रश्न 39.
विकास किससे संबंधित होता है?
उत्तर:
विकास का संबंध सिर्फ परिवर्तन से होता है। यह अच्छे बुरे से या इसका किसी चीज़ की विशेषता से कोई संबंध नहीं होता।

प्रश्न 40.
संरचनात्मक परिवर्तन क्या होता है?
उत्तर:
सामाजिक संबंधों तथा सामाजिक संस्थाओं में होने वाले परिवर्तनों को संरचनात्मक परिवर्तन कहते हैं। विवाह, परिवार में होने वाले परिवर्तन संरचनात्मक परिवर्तन होते हैं।

प्रश्न 41.
औद्योगीकरण के क्या ग़लत परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर:

  1. औद्योगीकरण से प्रदूषण फैलता है।
  2. औद्योगीकरण से छोटे उद्योगों का नाश होता है।
  3. औद्योगीकरण से पैसा कुछ हाथों में ही केंद्रित हो जाता है।

प्रश्न 42.
नगरों में जनसंख्या बढ़ने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
नगरों में सभी सुख-सुविधाओं का उपलब्ध होना, रोज़गार के ज्यादा साधन, कम होती भूमि, तकनीक का प्रयोग, रोजगार की तलाश की वजह से नगरों में जनसंख्या बढ़ रही है।

प्रश्न 43.
जनसंख्या के बढ़ने से दसलक्षी शहरों की संख्या कितनी बढ़ गई?
उत्तर:
जनसंख्या के बढ़ने से दसलक्षी शहरों की संख्या काफ़ी बढ़ गई है। पहले केवल चार दसलक्षी शहर होते थे-दिल्ली, मुंबई, कोलकाता तथा चेन्नई परंतु अब यह संख्या 15 से ऊपर पहुंच गई है। जैसे कि अहमदाबाद, बैंगलुरू, चंडीगढ़, लखनऊ इत्यादि।

प्रश्न 44.
उपनिवेशवाद का क्या अर्थ है?
उत्तर:
एक स्तर पर, एक देश के द्वारा दूसरे देश पर शासन को उपनिवेशवाद कहते हैं। इसका अर्थ यह है कि जब किसी शक्तिशाली देश द्वारा कमज़ोर देश पर अपने लाभ के लिए कब्जा कर लिया जाता है तो उसे उपनिवेशवाद कहते हैं।

प्रश्न 45.
ऐसे किसी एक भारतीय शहर का नाम बताएं जिसकी जनसंख्या एक करोड़ या इससे अधिक हो।
उत्तर:
मम्बई, दिल्ली. कोलकाता ऐसे भारतीय शहर हैं जिनकी जनसंख्या एक करोड या इससे अधिक है।

प्रश्न 46.
कस्बे का न्यूनतम जनसंख्या घनत्व कितने व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० होना आवश्यक है?
उत्तर:
कस्बे का जनसंख्या घनत्व 400 व्यक्ति प्रति कि०मी० होना आवश्यक है।

प्रश्न 47.
भारत में कस्बा घोषित करने के लिए न्यूनतम जनसंख्या कितनी तय की गई है?
उत्तर:
भारत में कस्बा घोषित करने के लिए न्यूनतम जनसंख्या 5000 तय की गई है।

प्रश्न 48.
औद्योगीकरण का संबंध उद्योगों की स्थापना से है या इनको हटाने से है?
उत्तर:
औद्योगीकरण का संबंध उद्योगों की स्थापना से है।

प्रश्न 49.
चंडीगढ़ एक कस्बा है या शहर?
उत्तर:
चंडीगढ़ एक शहर है।

प्रश्न 50.
अपने राज्य में स्थित किसी बड़े उद्योग का नाम लिखें।
उत्तर:
मारूति उद्योग हमारे राज्य में स्थित एक बड़ा उद्योग है।

प्रश्न 51.
नगरीकरण की कोई एक विशेषता बताएँ।
उत्तर:
नगरीकरण में नगरों की संख्या में बढ़ोत्तरी होती है तथा लोग गांवों को छोड़ कर नगरों की तरफ रहने के लिए जाते हैं।

प्रश्न 52.
सामाजिक परिवर्तन की किसी एक प्रक्रिया का नाम बताएँ।
उत्तर:
आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण, धर्मनिरपेक्षीकरण, संस्कृतिकरण इत्यादि सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रियाएं हैं।

प्रश्न 53.
औद्योगीकरण की प्रक्रिया का संबंध किस गतिविधि से है?
उत्तर:
औद्योगीकरण की प्रक्रिया का संबंध उद्योगों की प्रगति से है।

प्रश्न 54.
सामाजिक परिवर्तन का कोई एक कारक बताएं।
उत्तर:
जनसंख्या के अधिक घटने-बढ़ने से सामाजिक परिवर्तन होता है।

प्रश्न 55.
औद्योगीकरण की कोई एक विशेषता लिखिए।
उत्तर:
औद्योगीकरण में उत्पादन घरों से निकल कर बड़े-बड़े कारखानों में चला जाता है।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक परिवर्तन से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सामाजिक संबंधों, सामाजिक संगठन, सामाजिक संरचना, सामाजिक अंतक्रिया में होने वाले किसी भी प्रकार के परिवर्तन को सामाजिक परिवर्तन का नाम दिया जाता है। समाज में होने वाले हरेक प्रकार का परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन नहीं होता। केवल सामाजिक संबंधों, सामाजिक क्रियाओं इत्यादि में पाया जाने वाला परिवर्तन ही सामाजिक परिवर्तन होता है।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि लोगों के जीवन जीने के ढंगों में पाया जाने वाला परिवर्तन ही सामाजिक परिवर्तन होता है। यह हमेशा सामूहिक तथा सांस्कृतिक होता है। जब भी मनुष्यों के व्यवहार में परिवर्तन आता है तो हम कह सकते हैं कि सामाजिक परिवर्तन हो रहा है।

प्रश्न 2.
सामाजिक परिवर्तन के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर:
सामाजिक परिवर्तन के बहुत से प्रकार हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-

  • परिवर्तन-किसी भी चल रही या मौजूद स्थिति में बदलाव को परिवर्तन कहते हैं। यह परिवर्तन अच्छा तथा बुरा दोनों हो सकते हैं।
  • वृद्धि-परिवर्तन एक दिशा में होता है तथा इस दिशा को वृद्धि कहते हैं। वृद्धि की गति भी होती है तथा यह गति धीमी तथा तेज़ दोनों तरह से हो सकती है।
  • उद्विकास-जब परिवर्तन निश्चित स्तरों से होकर गुजरता है तो उस प्रक्रिया को उद्विकास कहते हैं।
  • प्रगति-प्रगति हमेशा अच्छाई के लिए होती है। जब परिवर्तन हमारी इच्छित तथा मर्जी की दिशा में होता है तो उसे प्रगति कहते हैं।
  • क्रांति-जब परिवर्तन तेज़ी से तथा अकस्मात होता है तो उसे क्रांति कहते हैं। इससे परंपराओं, राजनीति में तेजी से बदलाव आ जाता है। यह हिंसात्मक तथा अहिंसात्मक भी हो सकती है।
  • विकास-इस प्रकार के परिवर्तन में परिवर्तन एक अवस्था से होकर दूसरी अवस्था में पहुंचता है। इस तरह परिवर्तन अपेक्षित दिशा तथा अपने लक्ष्य की ओर नियोजित होता है।

प्रश्न 3.
आधुनिकीकरण की कोई चार विशेषताएं बताओ।
अथवा
आधुनिकीकरण की किन्हीं तीन विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:

  1. आधुनिकीकरण में हर तरफ तकनीक का बोल-बाला होता है।
  2. इसमें औद्योगीकरण का पक्ष भी शामिल होता है। उद्योगों पर ज्यादातर लोग आश्रित होते हैं।
  3. इसमें साक्षरता दर काफ़ी ज्यादा होती है।
  4. संचार के साधन विकसित रूप में पाए जाते हैं।
  5. यातायात के साधनों का विकसित रूप हमारे सामने होता है।

प्रश्न 4.
आप कैसे कह सकते हैं कि परिवर्तन एक तुलनात्मक प्रक्रिया है?
उत्तर:
यह सही है कि परिवर्तन एक तुलनात्मक प्रक्रिया है क्योंकि परिवर्तन को किसी से तुलना करके ही समझा जा सकता है। किसी समाज में ज्यादा परिवर्तन होते हैं किसी में कम, यह तो हम उन दोनों समाजों की तुलना करके ही समझ सकते हैं। पुराने समय में लोग हल से कृषि करते थे, आजकल ट्रैक्टर से कृषि करते हैं। यह परिवर्तन है पर यह तभी समझा जा सकता है जब हम दोनों समाजों की तुलना करेंगे। इसके साथ ही यह भी पता चल जाता है कि परिवर्तन है या नहीं तथा अगर है तो कितना। यह तो सिर्फ तुलना करके ही समझा जा सकता है।

प्रश्न 5.
सामाजिक परिवर्तन सामाजिक जीवन में होने वाला परिवर्तन कैसे है?
उत्तर:
सामाजिक परिवर्तन का मतलब होता है समाज में चल रहे मूल्यों, आदर्शों, विधियों, परिमापों, व्यवस्था में परिवर्तन चाहे यह परिवर्तन तकनीकी या किसी और कारणों की वजह से क्यों न आए हों। इससे यह स्पष्ट है कि समाज में चल रहे आदर्शों, नियमों में आने वाले बदलावों को सामाजिक परिवर्तन कहते हैं तथा ये परिवर्तन किसी कारण से भी आ सकते हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि सामाजिक जीवन में आने वाले परिवर्तन को ही सामाजिक परिवर्तन कहते हैं।

प्रश्न 6.
नगरीयकरण की क्या विशेषताएं होती हैं?
उत्तर:

  1. नगरीयकरण की प्रमुख विशेषता यह होती है कि यहां संबंध अस्थायी होते हैं तथा अपने कार्य खत्म होने के बाद संबंध खत्म कर दिए जाते हैं।
  2. नगरीयकरण की दूसरी प्रमुख विशेषता घनी आबादी का होना है। लोग नगरों में जगह कम होने की वजह से छोटे-छोटे घरों में तथा ज्यादा तादाद में रहते हैं।
  3. नगरीयकरण में गतिशीलता पायी जाती है। लोग अपना घर, कारोबार, नौकरी कभी भी छोड़कर कहीं भी जा सकते हैं।
  4. नगरीयकरण में व्यवसाय में कृषि संबंधों कार्यों की कमी पायी जाती है। लोगों की व्यवसाय संबंधी निर्भरता कृषि पर कम और कार्यों पर ज्यादा होती है।
  5. नगरों में लोग अपनी संस्कृति का आदान-प्रदान करते हैं। अलग-अलग संस्कृतियों के लोग इकट्ठे रहते हैं जिस वजह से उनमें संस्कृतियों का आदान-प्रदान हो जाता है।
  6. नगरों में लोगों में समायोजन की क्षमता होती है। जैसी परिस्थितियां व्यक्ति के सामने आती हैं वह उनके अनुसार ही स्वयं को ढाल लेता है।

प्रश्न 7.
विकास तथा प्रगति में क्या अंतर होता है?
उत्तर:
विकास तथा प्रगति में अंतर निम्नलिखित हैं-

विकास प्रगति
(i) विकास क्रमिक परिवर्तन होता है। (i) प्रगति क्रमिक परिवर्तन भी हो सकता है तथा नहीं भी।
(ii) विकास अपने-आप हो जाता है। (ii) प्रगति अपने-आप नहीं होती बल्कि यह योजनाबद्ध प्रयास होता है।
(iii) विकास परिवर्तन की स्वाभाविक प्रक्रिया है। (iii) प्रगति हमेशा इच्छित दिशा में परिवर्तन होता है।
(iv) विकास की प्रक्रिया हमेशा समाज में चलती रहती है। (iv) प्रगति अपने-आप नहीं होती। इसको तो योजनाबद्ध तरीके से चलाना पड़ता है।
(v) परिवर्तन में सबसे पहले विकास आता है। (v) परिवर्तन में प्रगति दूवितीय स्थान पर आती है।
(vi) विकास अनुभव व अनुमान पर आधारित होता है। (vi) प्रगति को उपयोगिता के आधार पर मापा जाता है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 1 संरचनात्मक परिवर्तन

प्रश्न 8.
तकनीक तथा नगरीकरण का आपस में क्या संबंध हैं?
उत्तर:
तकनीक की वजह से बड़े-बड़े उद्योग शुरू हो गए तथा देश का औद्योगीकरण हो गया है। औद्योगीकरण के कारण बड़े-बड़े नगर उन उद्योगों के पास बस गए। शुरू के गाँवों में उद्योगों में कार्य करने के लिए आने वाले मज़दूरों के लिए आस-पास बस्तियां बस गईं। फिर उन बस्तियों के जीवन जीने के लिए तथा चीजें मुहैया करवाने के लिए दुकानें तथा बाजार खुल गए।

फिर लोगों के लिए होटल, स्कूल, कॉलेज, दफ्तर, व्यापारिक कंपनियां खुल गई तथा दफ्तर बन गए। इस प्रकार धीरे-धीरे इनके कारण शहरों का विकास हुआ तथा शहरीकरण बढ़ गया। इस प्रकार नगरीकरण को बढ़ाने में तकनीक का सबसे बड़ा हाथ है।

प्रश्न 9.
संरचनात्मक परिवर्तन से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सामाजिक परिवर्तन को दो भागों में विभाजित किया जाता है तथा वह है संरचनात्मक तथा सांस्कृतिक। परिवर्तन की प्रक्रिया संरचनात्मक सामाजिक संबंधों, परिवार, नातेदारी, जाति, व्यावसायिक समूह इत्यादि से संबंधित होती है। अगर इनमें कोई परिवर्तन आता है तो उसे संरचनात्मक परिवर्तन कहते हैं। हम उदाहरण ले सकते हैं कृषि से संबंधित कार्यों की। प्राचीन समय में कृषि का कार्य परिवार के सदस्य ही करते थे तथा कृषि प्राचीन परंपरागत ढंगों से होती थी।

परंतु आधुनिक समय में कृषि यंत्रों के साथ तथा किराए पर मज़दूर लेकर होती है और उत्पादन बाजार के लिए होता है। इसे ही संरचनात्मक परिवर्तन कहते हैं। हम एक और उदाहरण ले सकते हैं संयुक्त परिवार की जो पहले होते थे। आधुनिक समय में केंद्रीय परिवार सामने आ रहे हैं तथा परिवार की संरचना तथा कार्य बदल गए हैं। इसे ही संरचनात्मक परिवर्तन कहा जाता है। पश्चिमीकरण, औद्योगीकरण तथा आधुनिकीकरण जैसी प्रक्रियाओं के कारण संरचनात्मक परिवर्तन हो जाता है।

प्रश्न 10.
नगरीकरण के कारण कौन-सी समस्याएं उत्पन्न होती हैं?
उत्तर:
नगरों में बसी हुई गंदी बस्तियां कई प्रकार के अपराधों का केंद्र होती है। अधिक जनसंख्या तथा पेशे होने के कारण यहां अपराध अधिक होते हैं। निर्धनता तथा बेरोज़गारी व्यक्ति को जल्दी अमीर बनने के लिए अपराध करने को प्रेरित करते हैं। बड़े घरों की लड़कियाँ अपने खर्चे पूर्ण करने के लिए काल गर्ज़ बन जाती हैं।

शहरों में स्मगलिंग का कार्य भी अधिक होता है। स्मगलिंग, नशा बेचना, बैंक डकैतियां, दुकानें लूटना, गंदी बस्तियां, निर्धनता, अपराध, बेरोजगारी, अनैतिकता इत्यादि जैसी समस्याएँ शहरों में आम देखने को मिल जाती हैं तथा यह सब नगरीकरण के कारण ही होता है।

प्रश्न 11.
स्वतंत्रता के बाद देश में औद्योगीकरण की प्रक्रिया में आए परिवर्तनों का वर्णन करें।
अथवा
भारत में औद्योगीकरण तथा नगरीयकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता से पहले देश में काफ़ी कम उद्योग स्थापित हुए थे क्योंकि विदेशी सरकार से उद्योगों को स्थापित करने में सुविधाएं प्राप्त नहीं होती थी। 1947 से पहले देश में इस्पात का उत्पादन करने वाली दो ही इकाइयाँ थीं। परंतु 1947 के बाद यह काफ़ी तेजी से बढ़ गई। सरकार ने पंचवर्षीय योजनाएं बनाईं जिनका मुख्य उद्देश्य औद्योगिक विकास करना था। इसके बाद तो देश का औद्योगिक विकास तेज़ी से शुरू हुआ।

इस्पात के उद्योग, ट्रैक्टर, कारों, स्कूटरों, मोटर साइकलों, इलेक्ट्रॉनिक्टस, उर्वरकों, कैमीकल, भारी उद्योगों के क्षेत्र में तो देश ने काफ़ी प्रगति कर ली। वस्त्र उत्पादों के क्षेत्र में तो देश का विश्व में अग्रणी स्थान है। कोयला, जहाजरानी, पेट्रोलियम उत्पादों के उद्योग इत्यादि के क्षेत्र में भी देश ने काफी तेजी से विकास किया है। 1991 के बाद तो देश में विदेशी निवेश की बाढ़ आ गई जिससे देश में और तेज़ी से उद्योग लगने शुरू हो गए।

प्रश्न 12.
भारत में आज़ादी के बाद उद्योगों के क्षेत्र में क्या-क्या महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं?
उत्तर:

  1. आजादी के बाद देश में उद्योगों का तेज़ी से विकास हुआ है तथा उद्योगों में उत्पादन आधुनिक मशीनों से शुरू हो गया है।
  2. अब उद्योगों में उत्पादन तेजी से होना शुरू हो गया है जिससे देश का निर्यात बढ़ गया है।
  3. उद्योगों में नई-नई मशीनों का प्रयोग होना शुरू हो गया है जिनका प्रयोग उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जाता है।
  4. श्रमिकों के हितों के लिए श्रमिक संघ निर्मित हुए हैं ताकि उद्योगों में कार्य कर रहे श्रमिकों के लाभ के लिए कार्य किया जा सके।

प्रश्न 13.
भारतीय समाज पर नगरीकरण के पाँच प्रभावों का वर्णन कीजिए।
अथवा
स्वतंत्र भारत में नगरीकरण के प्रभावों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:

  1. नगरीकरण की प्रक्रिया के कारण भारतीय समाज की जनसंख्यात्मक संरचना बदल रही है। ग्रामीण क्षेत्रों की जनसंख्या कम हो रही हैं तथा नगरों की जनसंख्या बढ़ रही है।
  2. नगरीकरण के कारण भारतीय समाज की कई संस्थाएं जैसे कि संयुक्त परिवार, जाति व्यवस्था खत्म हो गई है तथा केंद्रीय परिवार सामने आ रहे हैं।
  3. नगरीकरण के कारण लोगों में व्यक्तिवादिता बढ़ रही है तथा लोग अब केवल अपने हितों की पूर्ति के बारे में ही सोचते हैं।
  4. नगरीकरण की प्रक्रिया के कारण सुविधाएं बढ़ रही हैं जिससे उनका जीवन आसान हो गया है।
  5. नगरीकरण के कारण नगरों में रोजगार प्राप्त करने के मौके बढ़ गए हैं तथा रोजगार के अवसरों की तो बाढ़ सी आ गई है।

प्रश्न 14.
आज़ादी के बाद के सालों भारत में कई औद्योगिक शहरों का उद्भव और विकास हुआ। उनका संक्षिप्त विवरण दें।
अथवा
भारतीय समाज में नगरीकरण पर एक निबंध लिखिए।
अथवा
भारत में नगरीकरण की प्रक्रिया की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
चाहे आज़ादी से पहले अंग्रेजों ने भारत में बहुत से उद्योग स्थापित किए थे, परंतु वह ठीक ढंग से विकसित न हो पाए। आजादी के पश्चात् भारत सरकार ने देश में औद्योगीकरण की प्रक्रिया को तेजी से चलाने का निश्चय किया तथा उसके लिए सरकार ने उद्योगों को कई प्रकार के प्रोत्साहन दिए। इस कारण ही बोकारो, भिलाई, राऊरकेला, दुर्गापुर जैसे शहर सामने आए। यह औद्योगिक शहर बिहार, झारखंड जैसे प्रदेशों में स्थित हैं।

इन प्रदेशों में औद्योगिक शहरों के सामने आने का कारण यह है कि यहाँ पर सभी खनिज पदार्थ पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त गुजरात में सूरत, अहमदाबाद, पंजाब में फगवाड़ा जैसे शहर कपड़ा उद्योग के लिए प्रसिद्ध हुए। मुंबई के नज़दीक बाम्बे हाई का पिकास हुआ जहां से तेल निकाला जाता है। काँडला, विशाखापट्टनम जैसे शहर बंदरगाहों के कारण विकसित हुए। अहमदाबाद, डालमिया नगर, पोरबंदर, सतना, सूरतपुर इत्यादि जैसे शहर सीमेंट उद्योग के कारण सामने आए। इस प्रकार आज़ादी के बाद बहुत से शहर उद्योगों के कारण ही विकसित हुए।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
औद्योगीकरण की क्या विशेषताएं होती हैं?
उत्तर:
औद्योगीकरण की विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित है-
(i) मशीनों से उत्पादन-औद्योगीकरण की प्रक्रिया में उत्पादन मशीनों से होता है न कि हाथों से। इस प्रक्रिया में नयी-नयी मशीनों का ईजाद होता है तथा उन मशीनों की मदद से उत्पादन बढ़ाया जाता है। प्राचीन समाजों में उत्पादन हाथों से होता था इसलिए औद्योगीकरण इतनी उन्नत अवस्था में नहीं था। औद्योगीकरण में उत्पादन नयी मशीनों से तथा ज्यादा मात्रा में होता है।

(ii) औद्योगीकरण का संबंध उत्पादन की प्रक्रिया से होता है-औद्योगीकरण का संबंध उत्पादन की प्रक्रिया से होता इस प्रक्रिया के दौरान उत्पादन बढ़ जाता है। इसमें मशीनों की मदद से उत्पादन किया जाता है तथा उत्पादन भी ज्यादा मात्रा में होता है।

(iii) औद्योगीकरण में परंपरागत शक्ति का प्रयोग नहीं होता-परंपरागत शक्ति वह शक्ति होती है जो मानव शक्ति या पशु शक्ति पर आधारित होती है। औद्योगीकरण में इस मानव या पशु शक्ति की बजाए पेट्रोल, डीज़ल, कोयला, विद्युत् या परमाणु शक्ति का प्रयोग होता है क्योंकि परंपरागत शक्ति की अपेक्षा यह शक्ति ज्यादा तेज़ी से मशीनों को चलाती है तथा आज-कल की मशीनें भी इसी शक्ति से चलती हैं।

(iv) ओद्योगीकरण में उत्पादन तेज़ी से होता है-इस प्रक्रिया में उत्पादन बहुत तेज़ गति से होता है। प्राचीन समय में क्योंकि उत्पादन हाथों से होता था इसलिए उत्पादन बहुत कम हुआ करता था परंतु औद्योगीकरण में उत्पादन मशीनों से होता है इसलिए उत्पादन भी ज्यादा मात्रा में होता है। क्योंकि आजकल जनसंख्या भी काफी बढ़ गई है इसलिए उनकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ज्यादा मशीनों का प्रयोग होता है ताकि ज्यादा उत्पादन किया जा सके।

(v) औदयोगीकरण में आर्थिक विकास होता है-इस प्रक्रिया में आर्थिक विकास होना ज़रूरी है। इस में बहत सारे उद्योग लग जाते हैं जो न सिर्फ अपने देश की ज़रूरतें पूरी करते हैं बल्कि दूसरे देशों की भी ज़रूरतें पूरी करते हैं। इस वजह से ये ज्यादा मुनाफ़ा कमाते हैं तथा देश के लिए भी पैसा कमाते हैं। पैसा कमाने के साथ ये देश को काफ़ी कर भी देते हैं जिससे देश को काफ़ी आमदनी हो जाती है जो कि देश के विकास में खर्च होती है। लोगों को उद्योगों में काम मिलता है जिससे उनका जीवन स्तर ऊँचा होता है जिससे देश का आर्थिक विकास होता है।

(vi) औद्योगीकरण से प्राचीन मान्यताएं टूट जाती हैं-औद्योगीकरण से प्राचीन मान्यताएं टूट जाती हैं। उदाहरण के लिए, भारत में इस प्रक्रिया के फलस्वरूप संयुक्त परिवार की मान्यता तथा परंपरा में विघटन हो गया है। इस वजह से संयुक्त परिवार टूट कर केंद्रीय परिवारों में बदल रहे हैं। इस तरह और भी कई परंपराओं जैसे जाति प्रथा, विवाह नाम की संस्था में भी बहुत से परिवर्तन आ रहे हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि औद्योगीकरण में प्राचीन परंपराएं टूट जाती हैं।

(vii) औद्योगीकरण में नए वर्गों का उदय होता है-औद्योगीकरण में नए-नए वर्ग सामने आते हैं। अमीर वर्ग, ग़रीब वर्ग, मध्यम वर्ग, मालिक वर्ग, मज़दूर वर्ग जैसे कई और वर्ग हमारे सामने आते हैं। इस वजह से कइयों को पैसा आ जाता है, कइयों के पास कम हो जाता है। कई ट्रेड यूनियन इत्यादि जैसे वर्ग सामने आ जाते हैं जोकि हमारे समाज में ज़रूरी हो जाते हैं।

(viii) औद्योगीकरण में प्राकृतिक साधनों का पूरी तरह प्रयोग होता है-इस प्रक्रिया में देश के प्राकृतिक साधनों का पूरी तरह प्रयोग होता है। मशीनों से उत्पादन की वजह से कोयला, डीज़ल, पेट्रोल, बिजली इत्यादि शक्ति का प्रयोग होता है जोकि प्राकृतिक साधनों का हिस्सा होते हैं। इसके अलावा कच्चे माल के लिए कृषि पर तथा भूमि पर आवश्यकता से अधिक बोझ पड़ता है जिससे प्राकृतिक साधनों का विनाश होना शुरू हो जाता है।

(ix) औद्योगीकरण में कई तकनीकों का प्रयोग होता है-औद्योगीकरण में हमेशा नई तकनीकों का प्रयोग होता रहता है क्योंकि औद्योगीकरण में नयी-नयी मशीनों का प्रयोग होता है। इस वजह से नए-नए आविष्कार होते रहते हैं जिसके कारण हमारे सामने नयी-नयी मशीनें आती हैं जिनका प्रयोग उत्पादन को बढ़ाने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 2.
औद्योगीकरण की वजह से क्या समस्याएं आती हैं? उनका वर्णन करो।
उत्तर:
औद्योगीकरण से समाज को बहुत सारे लाभ होते हैं जैसे पैसा बढ़ता है, आर्थिक विकास होता है, उत्पादन बढ़ता है, नए वर्गों का निर्माण होता है पर भारत जैसे देश में, जहां व्यक्ति जातीय बंधनों में बंधा होता है, औद्योगीकरण की वजह से कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिनका वर्णन निम्नलिखित है-
(i) आर्थिक संकट-औद्योगीकरण की वजह से कई बार आर्थिक विकास की बजाए आर्थिक संकट भी आ जाता है। उत्पादन बहुत ज्यादा होता है पर कई बार ऐसा होता है कि उत्पादन तो ज्यादा होता है पर खपत ज्यादा नहीं होती या कम हो जाती है। उत्पादन तो उसी तरह से चलता रहता है पर खपत कम होने की वजह से तथा फैक्टरी में इकट्ठा होता जाता है जिस वजह से उस उद्योग में आर्थिक संकट आ जाता है।

(ii) बेकारी-औद्योगीकरण की वजह से बेकारी की समस्या भी बढ़ जाती है। पुराने तरीकों से उत्पादन हाथों से होता है जिस वजह से सभी को काम मिल जाता है पर इस प्रक्रिया में नए-नए आविष्कार होते रहते हैं तथा मशीनें आती रहती हैं जिस वजह से मजदूरों को काम से हटा दिया जाता है। उनकी जगह मशीनें आ जाती हैं। एक-एक मशीन दस-दस मजदूरों का काम कर सकती है। वे मज़दूर बेकार हो जाते हैं। इस तरह औद्योगीकरण बेकारी की समस्या को भी बढ़ावा देता है।

(iii) कुटीर उद्योगों का खत्म होना-औद्योगीकरण की वजह से गांवों में लगे कुटीर उद्योग भी खत्म हो जाते हैं। औद्योगीकरण में उत्पादन मशीनों से होता है जो कि सस्ता तथा अच्छा भी होता है। पर कुटीर उद्योगों में क्योंकि होता है जिस वजह से वह महंगा तथा मशीनों जैसा अच्छा भी नहीं होता है।

इस तरह फैक्टरियों का माल बिकने लग जाता है तथा इन कुटीर उद्योगों का माल बिकना बंद हो जाता है जिस वजह से इन कुटीर उद्योगों में आर्थिक संकट आ जाता है तथा ये धीरे-धीरे बंद हो जाते हैं। इस तरह औद्योगीकरण कुटीर उद्योगों के विनाश का कारण बनता है।

(iv) संयुक्त परिवारों में विघटन-औद्योगीकरण की प्रक्रिया संयुक्त परिवारों में विघटन का कारण बनती है। उद्योग शहरों में लगते हैं जिसके लिए उनमें काम करने के लिए लोगों को गांव में अपने संयुक्त परिवारों को छोड़ना पड़ता है। धीरे-धीरे सभी अपने संयुक्त परिवारों को छोड़ कर शहरों में चले जाते हैं। पहले तो वो अकेले जाते हैं पर धीरे-धीरे अपनी पत्नी तथा बच्चों को भी शहरों में ले जाते हैं तथा केंद्रीय परिवार का निर्माण करते हैं। इस तरह संयुक्त परिवार, जो भारतीय समाज की विशेषता हुआ करते थे, वह टूट जाते हैं तथा इसका कारण सिर्फ औद्योगीकरण ही है।

(v) जाति प्रथा का कमज़ोर होना-अगर हम प्राचीन भारतीय समाज को देखें तो जाति प्रथा बहुत मज़बूत हुआ करती थी पर आज के समय में बहुत कमज़ोर पड़ गई है। इसके कमज़ोर पड़ने की सबसे बड़ी वजह औद्योगीकरण है। जाति प्रथा की विशेषता विभिन्न जातियों में मेल-जोल तथा खाने-पीने पर पाबंदियां हुआ करती थीं। पर औद्योगीकरण ने इन पाबंदियों को तोड़ दिया है।

फैक्टरियों में सभी लोग मिल कर काम करते हैं तथा कोई किसी से यह नहीं पूछता कि वह किस जाति से है क्योंकि फैक्टरी में काम योग्यता के आधार पर मिलता है न कि जाति के आधार पर। सभी जातियों के लोग मिल-जुल कर काम करते हैं, खाने के समय मिल-जुल कर खाते हैं तथा यह नहीं पूछते कि वह किस जाति से है। इस तरह जाति प्रथा की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषताएं मेल-जोल तथा खाने-पीने पर पाबंदियां को औद्योगीकरण ने खत्म कर दिया है। इस तरह जाति प्रथा को कमजोर करने में औदयोगीकरण का बहुत बड़ा हाथ है।

(vi) स्त्रियों का घर की चार दीवारी से बाहर निकलना-औद्योगीकरण की वजह से स्त्रियां घर की चार दीवारी से बाहर निकलना शुरू हो गई हैं। उद्योगों में मशीनें चलाने के अतिरिक्त अन्य बहुत-से कार्य होते हैं। स्त्रियों में साक्षरता दर के बढ़ने की वजह से वह भी दफ्तरों में काम करना शुरू हो गई हैं। स्त्रियां अब काफ़ी हद तक आर्थिक रूप से पति या पिता पर निर्भर न रह कर आत्म-निर्भर हो गई हैं जिस वजह से वे समानता का अधिकार मांगती हैं जिसे देने में मर्द आनाकानी करते हैं।

इस तरह मर्दो तथा स्त्रियों में अहं का टकराव होता है तथा घर टूटने तथा लड़ाई-झगड़ों का खतरा पैदा हो जाता है। इसके अलावा महिलाओं के घर से बाहर काम करने के लिए जाने की वजह से बच्चों के पालन-पोषण में कमी आई है जो कि आजकल क्रैच में होता है। इस वजह से बच्चों में आजकल अच्छे गुणों की कमी पायी जाती है जो कि सिर्फ माता-पिता ही बच्चों में डाल सकते हैं। माता-पिता के पास इसके लिए समय नहीं होता। इस तरह स्त्रियों की स्वतंत्रता नयी प्रकार की समस्याएं पैदा कर रही है।

(vii) प्रेम-विवाह, अंतर्जातीय-विवाह तथा तलाक-औरतों के घर से बाहर निकलने से तथा जाति प्रथा की परंपराओं के टूटने की वजह से अब प्रेम विवाह तथा अंतर्जातीय विवाह बढ़ रहे हैं। शिक्षा के बढ़ने की वजह से लड़का-लड़की कॉलेज में मिलते हैं तथा उनमें प्यार हो जाता है तथा बाद में वह प्रेम-विवाह कर लेते हैं।

इसके अलावा औरतों के दफ्तरों में मर्दो के साथ काम करने की वजह से उनमें मेल-जोल बढ़ता है तथा धीरे-धीरे उनमें प्यार हो जाता है। वह विवाह कर लेते हैं। दोनों ही हालातों में यह ज़रूरी नहीं कि दोनों एक ही जाति के हों। वह अलग-अलग जातियों के भी हो सकते हैं। इस तरह प्रेम विवाह तथा अंतर्जातीय विवाहों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है। इनके अलावा एक बड़ी समस्या जिस-का समाज को सामना करना पड़ रहा है वह है तलाक की समस्या।

औरतें अब आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर हो गई हैं जिस वजह से वह किसी के अधिकार के अंदर नहीं रहना चाहती जिस वजह से पति-पत्नी के अहं में टकराव होता है तथा बात तलाक तक आ जाती है। इसके साथ ही प्रेम विवाह रोमांच पर आधारित होता है।

जब रोमांच खत्म हो जाता है तथा जिंदगी की सच्चाई भी सामने आ जाती है तो प्यार भी खत्म होना शुरू हो जाता है तथा झगड़े शुरू हो जाते हैं। इस वजह से तलाक तक बात पहुँच जाती है। अंतर्जातीय विवाह में कई बार दोनों की संस्कृति, परंपराएं, रहन-सहन नहीं मिल पाते जिस वजह से झगड़े शुरू हो जाते हैं तथा बात तलाक तक पहुँच जाती है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 1 संरचनात्मक परिवर्तन

प्रश्न 3.
औद्योगीकरण के समाज पर क्या प्रभाव पड़ते हैं?
अथवा
उद्योगों से किस तरह समाज में विकास होता है?
उत्तर:
औद्योगीकरण के समाज पर बहुत से अच्छे-बुरे प्रभाव पड़ते हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-
(i) श्रम विभाजन-प्राचीन समय में किसी चीज़ का उत्पादन परिवार में ही हुआ करता था। सभी को उस चीज़ के उत्पादन से संबंधित कार्य आते थे तथा वे सभी मिल-जुल कर कार्य करके उसका उत्पादन कर लिया करते थे। परंतु औद्योगीकरण की वजह से काम मशीनों पर होना शुरू हो गया जिस वजह से श्रम विभाजन का संकल्प हमारे सामने आया। किसी चीज़ का उत्पादन कई चरणों में होता है।

हर चरण में अलग-अलग काम होते हैं। अब हर कोई अलग-अलग काम करता है, जैसे कपड़ा बनाने में कोई किसी मशीन को चलाता है, कोई किसी मशीन को। अगर कोई रंगाई करता है तो यह भी श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण का काम हो जाता है। इस तरह हर काम में श्रम विभाजन हो गया है। हर कोई एक खास काम करता है तथा उसका उसी काम में विशेषीकरण हो जाता है। यह औद्योगीकरण की वजह से हुआ है।

(ii) यातायात के साधनों का विकास-औद्योगीकरण की वजह से यातायात के साधनों का भी विकास हुआ है। फैक्टरियों में उत्पादन के लिए कच्चे माल की ज़रूरत होती है। कच्चे माल को फैक्टरियों तक दूर-दूर के इलाकों से पहुँचाने के लिए ट्रेन, ट्रकों इत्यादि जैसे यातायात के साधनों का विकास हुआ। इसके अलावा बने हुए माल को फैक्टरी से बाज़ार तक पहुँचाने के लिए भी इन यातायात के साधनों की आवश्यकता होती है जिनका धीरे-धीरे विकास हो गया। इस तरह औद्योगीकरण की वजह से यातायात के साधनों का विकास तेज़ी से हुआ।

(iii) फैक्टरियों के उत्पादन में बढ़ोत्तरी-औद्योगीकरण की वजह से चीजों का उत्पादन घरों से निकल कर फैक्टरी में आ गया जहां पर उत्पादन हाथों की बजाए मशीनों से होता है। हाथों से उत्पादन धीरे-धीरे होता है परंतु मशीनों से उत्पादन तेजी से होता है। चाहे जनसंख्या के बढ़ने से खपत में भी बढ़ोत्तरी हुई पर इसके साथ-साथ नए-नए आविष्कार हुए जिन से उत्पादन भी और बढ़ता गया। इस तरह चीज़ों के उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी औद्योगीकरण की वजह से हुई।

(iv) शहरों के आकार में बढ़ोत्तरी-औद्योगीकरण के बढ़ने से शहरों के आकार भी बढ़ने लगे। उद्योग शहरों में लगते थे जिस वजह से गांवों के लोग शहरों की तरफ जाने लगे। रोज़-रोज़ गांव में जाना मुमकिन नहीं था इसलिए लोग अपने परिवार भी शहर ले जाने लगे। जनसंख्या के बढ़ने से शहरों में जनसंख्या बढ़ने लगी जिस वजह से धीरे धीरे शहरों के आकार बढ़ने लगे तथा धीरे-धीरे नगरीयकरण का संकल्प हमारे सामने आया।

(v) पंजीवाद-औदयोगीकरण की वजह से पंजीवाद का भी जन्म हआ। जब घरों में उत्पादन हआ करता था तो ज्यादा पूंजी की ज़रूरत नहीं होती थी क्योंकि उत्पादन कम होता था तथा उत्पादन घर में ही हो जाता था पर औद्योगीकरण ने फैक्टरी प्रथा को जन्म दिया। फैक्टरी बनाने के लिए बहुत ज्यादा पूंजी की ज़रूरत पड़ी। फैक्टरी बनाने के लिए, कच्चा माल खरीदने के लिए, बनी हुई चीज़ को बाज़ार में बेचने के लिए, मजदूरों को तनख्वाह देने तथा कई और कामों के लिए बहुत ज्यादा पूंजी की ज़रूरत पड़ी।

जिनके पास पैसा था उन्होंने बड़ी-बड़ी फैक्टरियां खड़ी कर ली तथा धीरे-धीरे पैसे की मदद से और पैसा कमाने लग गए। इसके साथ-साथ समाज में कई और वर्ग जैसे व्यापारी, मालिक, मजदूर, दलाल इत्यादि हमारे सामने आए तथा व्यापार में भी बढ़ोत्तरी हुई। पैसे की मदद से उत्पादित चीजें और देशों को भेजी जाने लगी जिससे और पैसा आने लगा। इस पैसे की वजह से और देशों पर कब्जे होने लगे जिसे हम साम्राज्यवाद कहते हैं। इसने और देशों का शोषण करने को प्रेरित किया। इस तरह पूंजीवाद का जन्म हुआ जिसने कई और समस्याओं को जन्म दिया।

(vi) कुटीर उद्योगों का खत्म होना-इसकी वजह से गांवों में लगे कुटीर उद्योग खत्म हो जाते हैं। इसमें उत्पादन मशीनों से होता है जोकि सस्ता तथा अच्छा भी होता है। कुटीर उद्योग में क्योंकि उत्पादन हाथों से होता है जिस कारण वह महंगा तथा मशीनों जैसा अच्छा भी नहीं होता है। इस तरह फैक्टरियों का माल बिकने लग जाता है तथा कुटीर उद्योगों का माल बिकना बंद हो जाता है जिस वजह से इन कुटीर उद्योगों में आर्थिक संकट आ जाता है तथा यह धीरे-धीरे बंद हो जाते हैं। इस तरह औद्योगीकरण कुटीर उद्योगों के विनाश का कारण बनता है।

(vii) रहने की जगह की समस्या-उद्योग नगरों में लगते हैं। गांवों से हज़ारों लोग शहरों में इन उद्योगों में काम की तलाश में आते हैं जिस वजह से शहरों में रहने की जगह की या मकानों की समस्या हो जाती है। इस समस्या से निपटने के लिए कई-कई लोग एक कमरे में रहते हैं जिस वजह से उनमें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जन्म लेती हैं। इसी के साथ गंदी बस्तियां भी पनप जाती हैं जो शहरों में गंदगी फैलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं।

(viii) बेकारी-औद्योगीकरण की वजह से बेकारी की समस्या भी बढ़ जाती है। पुराने तरीकों से उत्पादन हाथों से होता है जिस वजह से सभी को काम मिल जाता है पर इस प्रक्रिया में नए-नए आविष्कार होते रहते हैं तथा मशीनें भी आती रहती हैं जिस वजह से मजदूरों को काम से हटा दिया जाता है। उनकी जगह मशीनें आ जाती हैं। एक एक मशीन दस-दस मजदूरों का काम कर सकती है। वे मजदूर बेकार हो जाते हैं। इस तरह औद्योगीकरण बेकारी की समस्या को भी बढ़ावा देता है।

(ix) स्वास्थ्य की समस्या-औद्योगीकरण का एक और प्रभाव मजदूरों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। इन उद्योगों का वातावरण मजदूरों की सेहत के लिए काफ़ी हानिकारक होता है। वहां ताजी हवा नहीं जाती, उन्हें प्रदूषण में काम करना पड़ता है जिस वजह से उनके स्वास्थ्य पर काफ़ी हानिकारक प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 4.
सामाजिक परिवर्तन क्या है? इसकी विशेषता का वर्णन करो।
अथवा
सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें।
अथवा
सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सामाजिक परिवर्तन का अर्थ (Meaning of Social Changes)-साधारण शब्दों में परिवर्तन का अर्थ समाज में घटित होने वाले परिवर्तनों से समझा जाता है अर्थात् परिवर्तन शब्द समय की किसी अवधि में आए परिवर्तन को स्पष्ट करता है। प्रारंभ में सामाजिक विचारकों ने उद्विकास (evolution), प्रगति (Progress) एवं सामाजिक परिवर्तन तीन अवधारणाओं का एक ही अर्थ माना जाता है। केवल आगबर्न पहले ऐसे विद्वान हुए जिन्होंने 1922 में अपनी पुस्तक (Social change) में इन सभी अवधारणाओं का अंतर समझाया।

सामाजिक परिवर्तन के बारे में विभिन्न विद्वानों की निम्नलिखित परिभाषाएं हैं किंग्सले डेविस (Kingsley Devis) के अनुसार, “सामाजिक परिवर्तन से हमारा अभिप्रायः उन परिवर्तनों से है जो सामाजिक संगठन अर्थात् समाज की संरचना और कार्यों में उत्पन्न होते हैं।”

गिन्सबर्ग (Ginsberg) के शब्दों में, “सामाजिक परिवर्तन से हमारा अभिप्राय सामाजिक ढांचे में परिवर्तन से है। उदाहरण के रूप में समाज के आकार, उनके विभिन्न अंगों की बनावट या संतुलन अथवा उसके संगठन के प्रकारों में होने वाले परिवर्तन से है।’

जेन्सन (Jenson) का मानना है कि, “सामाजिक परिवर्तन को लोगों के कार्य करने तथा विचार करने के तरीकों में होने वाले रूपांतर के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।” मैकाइवर एवं पेज (MacIver and Page) के अनुसार, “समाजशास्त्री होने के नाते हमारी विशेष रुचि प्रत्यक्ष रूप से सामाजिक संबंधों से है। केवल इन सामाजिक संबंधों में होने वाले परिवर्तन को ही सामाजिक परिवर्तन कहते हैं।”

पर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर सामाजिक परिवर्तन लोगों के जीवन में होने वाले परिवर्तन को दर्शाता है। सामाजिक परिवर्तन सामाजिक संबंधों में परिवर्तन है। सामाजिक परिवर्तन उन परिवर्तनों को कहा जाता है जो मानवीय संबंधों, व्यवहारों, प्रथाओं, परंपराओं, संस्थाओं, मूल्यों, कार्यविधियों, प्रकार्यों व सामाजिक व्यवस्था व संरचना है।

सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएं (Characteristics of Social Change) सामाजिक परिवर्तन एक आवश्यक एवं सर्वव्यापी प्रक्रिया है। लेकिन स्थिर व गतिशील समाजों में इसकी प्रकृति अलग-अलग देखने को मिलती है। इन विभिन्नताओं को देखते हुए सामाजिक परिवर्तन की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-
1. सामाजिक परिवर्तन अनेक तत्त्वों की अंतः क्रिया का परिणाम होता है (Social Change is a result of the interaction of a number of factor)-सामाजिक परिवर्तन किसी एक तत्त्व के प्रभाव के कारण नहीं होता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि कोई विशेष तत्त्व प्रौद्योगिकी में परिवर्तन, आर्थिक विकास या जलवायु संबंधी दशाएं सामाजिक परिवर्तन उत्पन्न करती है।

लेकिन इसे एकलवादी सिद्धांत कहा जाता है जोकि सामाजिक परिवर्तन की किसी अकेले तत्त्व के आधार पर समीक्षा करता है। यह एकलवादी सिद्धांत सामाजिक परिवर्तन की सही व्याख्या नहीं करता। क्योंकि सामाजिक परिवर्तन किसी एक तत्त्व नहीं बल्कि अनेक तत्त्वों सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनैतिक, भौगोलिक तथा प्राकृतिक आदि का परिणाम हो सकता है।

2. सामाजिक परिवर्तन एक जटिल तथ्य है (Social Change is a Complex Phenomenon)-सामाजिक परिवर्तन एक गुणात्मक परिवर्तन है परिवर्तन की मात्रा को मापा या तोला नहीं जा सकता। अतः यह एक जटिल तथ्य है। किसी भौतिक वस्तु या भौतिक संस्कृति में होने वाले परिवर्तन की मात्रा का माप या तोल किया जा सकता है। मूल्यों, विचारों, विश्वासों, संस्थाओं एवं व्यवहारों में होने वाले परिवर्तनों को माप-तोल के आधार पर व्यक्त नहीं कर सकते। सामाजिक परिवर्तन को सरलता से समझा भी नहीं जा सकता।

3. सामाजिक परिवर्तन की गति समरूप नहीं होती है (Speed of Social Changes is not Uniform)-यद्यपि सामाजिक परिवर्तन प्रत्येक समाज की आवश्यक घटना है। फिर भी परिवर्तन की प्रकृति प्रत्येक समाज में अलग अलग होती है। कई समाजों में तो परिवर्तन की गति इतनी धीमी होती है कि लोगों को परिवर्तन का अहसास तक नहीं होता है। आधुनिक समय में भी कई ऐसे समाज अब भी हैं जिनके परिवर्तन की गति काफ़ी धीमी है। नगरीय समाजों में ग्रामीण समाजों से तीव्र रूप से परिवर्तन आता है। इसी कारण नगरीय समुदाय अत्यधिक विकसित होता है। सामाजिक परिवर्तनों की गति समय, स्थान एवं परिस्थितियों के ऊपर निर्भर करती है।

4. सामाजिक परिवर्तन एक अनिवार्य घटना है (Social Change Occurs as an Essential Law)-परिवर्तन प्राकृतिक नियम है तथा सामाजिक परिवर्तन एक सामाजिक तथ्य है। परिवर्तन सुनियोजित प्रयत्नों का परिणाम भी हो सकता है। कई बार व्यक्ति परिवर्तन का विरोध करता है। फिर भी परिवर्तन के ऊपर उसके परिवर्तन के विरुद्ध प्रयासों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। मनुष्य की इच्छाओं, आवश्यकताओं एवं परिस्थितियों में परिवर्तन होने पर समाज में भी परिवर्तन होता है।

5. सामाजिक परिवर्तन सामुदायिक परिवर्तन है (Social Change is Community Change) सामाजिक परिवर्तन का संबंध किसी व्यक्ति विशेष, जाति, समूह, संस्था एवं प्रजाति में होने वाले परिवर्तन से नहीं है, बल्कि यह संपूर्ण सामुदायिक जीवन में घटित होने वाले परिवर्तन हैं। सामाजिक परिवर्तन किसी एक व्यक्ति के जीवन या कुछ एक व्यक्तियों के जीवन प्रतिमानों में परिवर्तन नहीं है बल्कि संपूर्ण समुदाय में परिवर्तित घटना से होता है। सारे सामुदाय पर परिवर्तन ही सामाजिक परिवर्तन कहलाता है। यह वैयक्तिक न होकर सामाजिक होता है।

6. सामाजिक परिवर्तन सार्वभौमिक है (Social Change is a Universal Phenomenon) कोई भी समाज ऐसा नहीं जिसमें परिवर्तन न पाया जाए अर्थात् कोई भी समाज गतिहीन नहीं होता। प्राचीन समाज हो या आधुनिक ग्रामीण या नगरीय समाज सभी में परिवर्तन होता है। समाज में दिन-प्रतिदिन अनेक गतिशील प्रभावों के कारण अस्थिरता पाई जाती है।

जनसंख्या में वृद्धि और प्रौद्योगिकी के विस्तार के कारण भौतिक पदार्थों में परिवर्तन आता रहता है। विचारधाराओं और सामाजिक मूल्यों व आदर्शों में भी नये तत्त्व सम्मिलित होते जाते हैं। जिससे सामाजिक संस्था संरचना की प्रकृति भी बदलती जाती है। परिवर्तन की गति कम या अधिक होना समाज की प्रकृति पर निर्भर करता है।

7. सामाजिक परिवर्तन की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती (Prediction of Social Change is not Possible) सामाजिक परिवर्तन का निश्चित रूप से पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है। औद्योगीकरण व नगरीयकरण के कारण भारत में संयुक्त परिवार प्रथा, जाति प्रथा एवं विवाह प्रणाली में कौन-कौन से परिवर्तन आयेंगे इसके साथ ही इनके प्रभाव के कारण लोगों के विचारों, विश्वासों व मनोवृत्तियों, मूल्यों व आदर्शों आदि पर किस प्रकार के परिवर्तन आयेंगे यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता।

कई बार आकस्मिक कारणों से भी परिवर्तन होते हैं। जिनके बारे में पहले सोचा तक भी नहीं होता है। जैसे ‘भुज’ गुजरात में भूकंप आने से वहां मूलभूत सामाजिक परिवर्तन आए हैं। विश्व युद्धों के दौरान या बाद में कई सामाजिक मूलभूत परिवर्तन आये जिनके बारे में कभी पहले सोचा भी नहीं गया। मई, 1998 में परमाणु बम का भारत में परीक्षण करने पर प्रतिक्रिया स्वरूप विश्व समुदाय ने भारत पर अनेक आर्थिक पाबंदियां लगाईं जिसने भारतीय समाज के परिवर्तनों की गति एवं स्वरूप को प्रभावित किया। इस तरह सामाजिक परिवर्तन अनेक कारकों पर निर्भर करते हैं जिनका सही पूर्वानुमान भविष्यवाणी करना संभव नहीं होता है।

प्रश्न 5.
सामाजिक परिवर्तन लाने वाले कारकों का वर्णन करो।
अथवा
सामाजिक परिवर्तन में जनांकिक कारकों का वर्णन करें।
अथवा
सामाजिक परिवर्तन के मुख्य कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किसी भी घटना के घटने का कोई न कोई कारण अवश्य होता है। सामाजिक परिवर्तन को भली-भांति समझने के लिए उन कारकों का जानना आवश्यक है जो इस परिवर्तन को संभव बनाते हैं। इस विषय में एक प्रसिद्ध रोमन कवि का कथन है कि, “वह व्यक्ति सबसे सुखी है जो वस्तुओं के कारणों को जान लेता है।” विभिन्न विचारकों के भिन्न कारकों को सामाजिक परिवर्तन के लिए जिम्मेदार ठहराया है जैसे कार्ल मार्क्स ने आर्थिक कारक को, वेबर ने धर्म को व ऑगबर्न ने सांस्कृतिक विलंबना को सामाजिक परिवर्तन के कारक माना है।

इन सबके आधार पर सामाजिक परिवर्तन के लिए सामूहिक कारक उत्तरदायी होते हैं। इस वाक्य के विचारक ए० एम० रोज़ (A.M. Rose) का कथन है कि, “सामाजिक परिवर्तन का कोई कारक या कारकों की एक श्रृंखला सभी समाजों में सभी परिवर्तनों के लिए उत्तरदायी नहीं है और न ही सिर्फ एक कारक ही किसी एक परिवर्तन के लिए उत्तरदायी है।”

1. आर्थिक कारक (Economic Factors)-सृष्टि के प्रारंभिक काल से ही मानव की सबसे पहली आवश्यकता भूख थी। मानव ने भूख को मिटाने के लिए इधर-उधर भटकना शुरू किया तथा इसके साथ ही अनेक वस्तुओं का भी उपयोग किया व अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के अनेक साधनों की खोज कर डाली। इस प्रकार समय के साथ-साथ उसने कई प्रकार के संबंध स्थापित किए व कई व्यवस्थाओं का भी निर्माण किया। प्रारंभिक मानव सभ्यता व संस्कृति के विकास हेतु अपनी आदतों, व्यवहारों, इच्छाओं व साधनों में परिवर्तन करता हुआ सामाजिक प्राणी में परिवर्तित हो गया।

2. भौगोलिक व प्राकृतिक कारक (Geographical or Natural Factors)-प्राकृतिक व भौगोलिक कारक मानवीय संबंधों, व्यवहार के तरीकों, विश्वासों को प्रभावित व परिवर्तित करते हैं। सुगम्य व अगम्य क्षेत्रों का सामाजिक परिवर्तन की गति पर प्रभाव पड़ता रहता है। नदियां, जंगल, पहाड़, अकाल, ऋतुएं, बाढ़ व भूकंप का सामाजिक जीवन पर निरंतर प्रभाव रहता है। जनवरी, 2001 में भुज (गुजरात) में व 1905 में कांगड़ा में विनाशकारी भूकंप, उड़ीसा में बाढ़, राजस्थान में सूखा आदि ने संबंधित क्षेत्रों के लोगों की जीवन शैली बदल डाली।

ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण वर्तमान समय में भी भारत में लाखों लोग प्राकृतिक शक्तियों का मानवीकरण करके उनकी पूजा करते हैं। वायु, सूर्य, चंद्रमा, शनि, बृहस्पति, नदियों, पर्वतों व अग्नि आदि की पूजा इसके कुछेक उदाहरण हैं। भौगोलिक परिस्थितियों के कारण निश्चित सामाजिक मल्य शिष्टाचार, विश्वास, नियम, आदर्श, कानन व व्यवहार के तरीके निश्चित स्वरूप धारण करते हैं।

रामपुर हिमाचल प्रदेश में “लवी का मेला’ शरद ऋतु से संबंधित हैं। अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियां मानव के स्वास्थ्य, कार्यक्षमता कार्यकुशलता को बढ़ाती है। खान-पान, पहरावे, धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित करती हैं। किंतु प्रतिकूल भौगोलिक परिस्थितियों का मानव की कार्यकुशलता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

3. मनोवैज्ञानिक कारक (Psychological Factors) मानसिक असंतोष, तनाव जिज्ञासा व इच्छा इत्यादि मनौवैज्ञानिक कारक है जो मानव को निश्चित तरह से क्रियाएं व व्यवहार करने को प्रेरित करते हैं। मानसिक असंतोष के कारण व्यक्ति सामाजिक मूल्य आदर्शों का उल्लंघन तक कर देता है। निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति न कर पाने, जीवन में अपने लिए संगठन व समाज के लिए कुछ करने की इच्छा व सामाजिक व्यवस्था से निराशा असंतोष को जन्म देती है।

वर्तमान समय में उग्रवाद, आतंकवाद, मूल्यों का पतन व अनेक आदर्श नियमों के उल्लंघन के लिए ज़िम्मेदार कारकों में से मानसिक असंतोष एक है। कुछ नया करने व जानने की इच्छा के कारण अनेक जिज्ञासु नए नए आविष्कार कर डालते हैं। जो सामाजिक परिवर्तनों को जन्म देते हैं। मानसिक असंतोष व जिज्ञासा से विवाह विच्छेद, हत्या, आत्महत्या, बाल-अपराध व वैश्यावृति, खोजें, आविष्कार, सामाजिक विघटन व प्रगति के तत्त्वों का जन्म होता है जो सामाजिक परिवर्तनों का रास्ता प्रशस्त करते हैं।

4. जनांकिक कारक (Demographic Factors)-विविध जनांकिक कारक किसी भी समाज की सामाजिक संरचना व सामाजिक व्यवस्था के परिवर्तनों को गति व दिशा प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिनीत करते हैं। जनसंख्या के प्रमुख कारकों में कुल जनसंख्या जन्म दर व मृत्यु दर जीवन प्रत्याशा (Life Expactancy) लिंग अनुपात (Sex Ratio), साक्षरता दर, ग्रामीण व नगरीय जनसंख्या व आयु संरचना आदि सम्मिलित हैं। भारतीय समाज के 2011 की जनगणना के अनुसार देश की कुल जनसंख्या लगभग 121 करोड़ है।

जबकि एक सौ दस वर्ष पूर्व 1901 में भारत की जनसंख्या 24 करोड़ से भी कम थी। 1991-2011 के दौरान बीस वर्षों में देश की कुल जनसंख्या में लगभग 32 करोड़ की वृद्धि हुई। भारतीय समाज में विभिन्न पहलुओं ग़रीबी, बेरोज़गारी, जीवन स्तर, स्वास्थ्य स्तर, साक्षरता, संस्कृति संबंधों की व्यवस्था आदि अनेक पहलुओं का प्रभाव पड़ा है। इसी तरह देश की साक्षरता दर में परिवर्तनों से सामाजिक परिवर्तन हो रहे हैं।

स्त्रियों की साक्षरता दर 0.60% से 65.5% पहुंच गई। अतः 1901 में 500 में से केवल 3 महिलाएं साक्षर थीं। महिलाओं में शिक्षा के तीव्रगति से प्रचार व प्रसार से उनमें आत्मविश्वास का विकास हुआ, जागरूकता बढ़ी, जिससे विवाह, परिवार, स्त्रियों की स्थिति, आर्थिक क्रियाओं, विश्वासों, सोच मनोवृत्तियों, रुचियों में परिवर्तन हुआ। जैसे जनसंख्या के एक कारक साक्षरता का सामाजिक परिवर्तनों में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा इसी प्रकार जनसंख्यात्मक कारकों से सामाजिक परिवर्तन हुए हैं।

5. सांस्कृतिक कारक (Cultural Factors)-सामाजिक परिवर्तनों के विभिन्न कारकों में सांस्कृतिक कारक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चूंकि संस्कृति, व्यक्ति के विश्वासों, विचारों, मूल्यों, धर्म, प्रथा, नैतिकता आदि से निर्मित होती है। जैसे ही किसी समाज की संस्कृति में परिवर्तन आता है वैसे ही सांस्कृतिक तत्त्व भी परिवर्तित हो जाते हैं। सांस्कृतिक तत्त्वों का संबंध व्यक्तियों के व्यवहारों, आदतों व तरीकों से है। स्वाभाविक रूप से उनमें भी परिवर्तन आ जाता है।

इस प्रकार संस्कृति के विभिन्न तत्त्वों में होने वाला परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन कहलाता समाज में संस्कृति ही निर्धारित करती है कि अमुक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के साथ-क्या संबंध होगा व उस संबंध के आधार पर वह दूसरे व्यक्ति के साथ कैसा व्यवहार करेगा। परिवार के सदस्यों के परस्पर व्यवहार करने के व सदस्यों के बीच किस प्रकार का संबंध होगा. यह सब संस्कति दवारा तय होता है। संस्कृति के भौतिक और अभौतिक दो पक्ष होते हैं।

भौतिक पक्ष का संबंध भौतिक वस्तुओं जैसे मशीन, कलपुर्जे, कार व रेलगाड़ी से है जबकि अभौतिक संस्कृति का संबंध समाज में प्रचलित रूढ़ियों, आदर्शों, नियमों व मूल्यों से है। सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया में भौतिक पक्ष आगे बढ़ता जाता है जबकि अभौतिक पक्ष पिछड़ जाता है।

संस्कृति का भौतिक पहलू व्यक्ति की आदतों में परिवर्तन को बढ़ावा देता है व अभौतिक पक्ष व्यक्ति के व्यवहारों में परिवर्तन को योग देता है। जब भी किसी समाज के लोगों की आदत व व्यवहार में परिवर्तन आता है तो सामाजिक परिवर्तन होना शुरू हो जाता है। संस्कृति केवल सांस्कृतिक क्षेत्र में ही परिवर्तन को संभव नहीं बनाती बल्कि यह आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक प्रयोगीकरण के क्षेत्र में भी परिवर्तन की दिशा में अपना योगदान देती है।

6. प्राणीशास्त्रीय कारक (Biological Factors) डार्विन (Darvin) के अनुसार प्राणीशास्त्रीय कारक सामाजिक परिवर्तन लाने में काफ़ी महत्त्वपूर्ण हैं। शारीरिक रूप से शक्तिशाली व साहसिक, मानसिक दृष्टि से अधिक बुद्धिमान व्यक्ति सामाजिक परिवर्तनों का रास्ता प्रशस्त करते हैं। जन्मदर, मृत्यु, औसत आयु व लिंग अनुपात प्राणीशास्त्रीय कारक हैं।

लिंगानुपात के आधार पर समाज में विवाह का स्वरूप, परिवार का गठन, आर्थिक गतिविधियां व राजनीतिक क्रियाएं प्रभावित होती हैं। जहां पुरुष व स्त्रियों की संख्या लगभग समान होती है वहां सामान्यतः एक विवाह प्रचलित होता है। बहुपति व बहुपत्नी विवाह प्रचलन के लिए भी लिंगानुपात कारक हैं।

7. वैचारिक कारक (Ideological Factors) विचारधाराएं सामाजिक परिवर्तन लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिनीत करती हैं। गांधीवाद, पूंजीवाद, मार्क्सवाद व समतावाद आदि विचारधाराओं ने विश्व के विभिन्न समाजों में मूलभूत परिवर्तन किए। साम्यवाद, पूंजीवाद व समतावाद का विकास अनेक विद्वानों के सामूहिक प्रयत्नों का फल है। गांधी जी ने सत्याग्रह व अहिंसा के दवारा ब्रिटिश सरकार को भारत स्वतंत्र करने के लिए बाध्य किया, मार्क्सवाद के प्रभावाधीन विश्व के अनेक देशों ने सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक व्यवस्था में मार्क्सवाद को अपनाया।

महात्मा बुद्ध ने भारतीय समाज में अनावश्यक व खर्चीले कर्मकांडों का विरोध किया तथा अहिंसा एवं सादगी को जीवन में अपनाने पर बल दिया। पूंजीवाद व साम्यवाद विचारधाराओं के आधार पर द्वितीय महायुद्ध से लेकर 1990 के दशक के आरंभ तक विश्व दो गुटों में बंटा रहा जिसने “शीत युद्ध” को जन्म दिया। इन विचारधाराओं के प्रभाव के कारण इनको अपनाने वाले राष्ट्रों में परिवर्तनों की प्रक्रिया, दिशा व गति में काफ़ी अंतर रहा है।

8. प्रौद्योगिक कारक (Technological Factors)-वर्तमान समय में प्रौद्योगिक कारक सामाजिक परिवर्तन का महत्त्वपूर्ण कारण हैं। प्रौदयोगिक का अर्थ उन उन्नत प्रविधियों से है जिनके दवारा व्यक्ति की भौतिक आवश्यकताओं भी है। विज्ञान के क्षेत्र में होने वाली प्रगति ने अनेक आविष्कारों को जन्म दिया है। इन आविष्कारों के आधार पर यंत्रीकरण में वृद्धि हुई और यंत्रीकरण के परिणामस्वरूप ही उत्पादन प्रणाली में क्रांतिकारी परिवर्तन आये हैं।

जैसे उत्पादन प्रणाली में परिवर्तन आता है वैसे ही सामाजिक संबंधों, व्यवस्था, संरचना, भूमिका एवं भी परिवर्तन आ जाता है। साधारण रूप से इसी को सामाजिक परिवर्तन कहा जाता है। भाप के इंजन के आविष्कार से मानव का सामाजिक जीवन इतना परिवर्तित हो गया जिसकी पहले किसी ने कल्पना तक नहीं की होगी। यातायात एवं संचार की सुविधाओं के विस्तार व प्रसार से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने से स्थानीय गतिशीलता में अभूतपूर्व वृद्धि हुई।

औद्योगीकरण व नगरीयकरण की प्रक्रिया के आधार पर नगरों में उद्योगों का विकास बढ़ा जिससे नगरों में घनी बस्तियों का निर्माण हुआ। इसी प्रकार रेडियो, टेलीफोन, टेलीविज़न, कंप्यूटर, ई मेल, प्रेस व मशीनों के आविष्कार ने संपूर्ण सामाजिक संरचना को परिवर्तित रूप दिया। नवीन प्रौद्योगिकी ने न केवल पाश्चात्य देशों को ही बल्कि भारत व एशियाई देशों को भी काफ़ी हद तक प्रभावित किया।

मानव वर्तमान समय में धर्म व जाति से बाहर निकल कर अपनी सोच को विकसित करने में लगा हुआ है। प्रौद्योगिकी के विकास के कारण स्त्रियों के अधिकारों व उनकी आर्थिक स्वतंत्रता में भी वृद्धि हुई है। समाज में युवा पीढ़ी की शक्ति व अधिकारों में वृद्धि हुई है। इन सब पहलुओं को देखने से स्पष्ट होता है कि प्रौद्योगिकी विकास सामाजिक परिवर्तन का महत्त्वपूर्ण कारक है।

9. राजनीतिक कारक (Political Factors)-आज तक समाज में जो परिवर्तन हुए हैं वह राजनीतिक उथल पुथल के कारण हुए हैं। बीयरस्टीड का कथन है कि, “कई लेखकों के अनुसार सामाजिक परिवर्तन युद्धों, लड़ाइयों, विजय, पराजय, वंशों व महायुदधों की कहानी हैं।”

इतिहास का लेखन कार्य सैन्य शक्ति के आधार पर ही था व सामाजिक परिवर्तन के बारे में भी सैन्य सिद्धांत (Military Theory) ही पाया जाता था। इस सिद्धांत के समर्थकों के अनुसार धार्मिक एवं दार्शनिक नेता समाज में अपना प्रभाव सैन्य शक्ति धारण करने वाले व्यक्तियों की अपेक्षा कम डाल पाते हैं। जिसके कारण परिवर्तन की मात्रा इन नेताओं की अपेक्षा राजनीतिक सत्ता प्राप्त व्यक्ति के द्वारा अधिक पायी जाती है। इस प्रकार इतिहास को युद्धों के संदर्भ में ही समझा जाना चाहिए व युद्धों के आधार पर परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन कहलाता है।

सामाजिक परिवर्तन से पहले राजनीतिक परिवर्तन स्पष्ट दिखाई देने लगता है। युद्ध और क्रांति होकर शांत हो जाते हैं। देश की व्यवस्था एक के बाद दूसरे राजनेता के पास आती रहती है। इस सबके परिणामस्वरूप सामाजिक व्यवस्था पूर्ण रूप से परिवर्तित रूप धारण कर लेती है।

सन् 1947 का परिवर्तन अंग्रेजी शासकों को उखाड़ फेंक कर सत्ता अपने हाथ में लेने का परिवर्तन है तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भी अनेक राजनीतिक पार्टियां अपने आपको राजगद्दी पर बिठाने के लिए प्रयास करती रहती हैं। यही प्रयास आगे सामाजिक परिवर्तन के रूप में स्पष्ट दिखाई देते हैं।

न लोगों एवं विदवानों का योगदान (Contribution of Greatmen and Scholars)-किसी भी समाज के परिवर्तन में वहां के महान् लोगों व विद्वानों की विशेष भूमिका रहती है। महात्मा बुद्ध, महावीर, संत कबीर, राजा राम मोहन राय, तुलसीदास, स्वामी विवेकानंद जी, दयानंद सरस्वती, टैगोर, महात्मा गांधी तथा नेहरू आदि ने भारतीय समाज में अनेक परिवर्तनों का मार्ग प्रशस्त किया।

पेरेटो का भारत की इस पृष्ठभूमि को देखते हुए यह विचार कि इतिहास अभिजात्य वर्ग की कब्र है (History is the graveyard of elites) सार्थक है। इन भारतीय संत-महात्माओं, विद्वानों व अनेक अन्य बुद्धिजीवियों ने भारतीय समाज के मूलभूत ढांचों में परिवर्तन किए।

प्रश्न 6.
औद्योगीकरण के परिणामों का वर्णन करो।
अथवा
औद्योगीकरण के भारतीय समाज पर परिणामों की व्याख्या करें।
उत्तर:
सन् 1947 के पश्चात् भारतवर्ष में बढ़ते औद्योगीकरण का लोगों के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा है। जिसका वर्णन निम्नलिखित है-
1. सामुदायिक भावना में परिवर्तन (Change in Community Feelings)-औद्योगीकरण की प्रक्रिया का प्रभाव ग्रामीण समुदाय एवं नगरीय समुदाय दोनों पर पड़ा है। लेकिन ग्रामीण समुदाय में जहां पर सामुदायिक भावना का सुदृढ़ रूप देखने को मिलता है। औद्योगीकरण के कारण नगरीय जनसंख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है। जिसके परिणामस्वरूप सामुदायिक भावना कम हुई है।

2. सामाजिक नियंत्रण में कमी (Decline in Social Control)-औदयोगीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप नगरीय जनसंख्या में वृद्धि हुई है। जिसके कारण जातीय एवं सामाजिक संगठनों की शक्ति कम होती गई। जातीय एवं सामाजिक आधार पर संगठनों के निर्बल होने के परिणामस्वरूप सामुदायिक भावना घटती गई तथा सामाजिक नियंत्रण में कमी आ गई।

3. नगरीयकरण की प्रक्रिया का विकास (Development of the Process of Urbanisation)-नगरीयकरण की प्रक्रिया का विकास उद्योग ही रहे हैं। औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप ही नगरों का विकास आरंभ हुआ। जहां पर उद्योग स्थापित किये जाते हैं वहां पर लोग गांवों से आकर काम करने के लिये नगरों में बस जाते हैं। धीरे धीरे ऐसे स्थान औद्योगिक नगरों के रूप में जाने लग जाते हैं।

4. यातायात एवं संचार का विकास (Development of Transportation and Communication)-भारत में बड़े-बड़े उद्योग-धंधों के विकास के कारण यातायात एवं संचार का तीव्र गति से विकास हुआ है। यातायात एवं संचार के साधन: जैसे-रेल, बस, सड़क एवं समद्री यातायात के साधनों में वदधि होने से लोगों को व्यापार इत्यादि करने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना या फिर अपना उत्पादन पहुंचाना काफ़ी सरल हो गया। उद्योगों के यंत्रीकरण से उत्पादन में तीव्रता से वृद्धि हुई है।

5. धर्म के महत्त्व में कमी (Decline in the Importance of Religion)-औद्योगीकरण की प्रक्रिया ने भारतीय समाज में धर्म के महत्त्व को भी कम किया है। उद्योगों में कार्य करने हेतु ग्रामीण समुदाय के लोग नगरों में आकर बस जाते हैं। नगरों में भौतिकवाद का अधिक महत्त्व होता है जिससे नगरों में रहने एवं संपर्क में आने पर ग्रामीण लोग भी नास्तिक प्रवृत्ति के होने लग गये हैं। अतः धर्म का महत्त्व व प्रभाव स्वतः कम होता गया।

6. परिवार व्यवस्था में परिवर्तन (Change in Family System)-उद्योगों का विकास शहरों व नगरों में होने के कारण गांवों के अधिकतर लोग शहरों में आकर अपना रोज़गार करने लग पड़े। अपनी रोजी-रोटी को अर्जित करने हेतु उन्हें अपने पैतृक मकान व निवास स्थान तक छोड़ने भी पड़े।

जिससे ग्रामीण इलाकों में पाई जाने वाली संयुक्त परिवार प्रथा भी धीरे-धीरे टूटने लगी। इसके स्थान पर एकाकी परिवारों का उद्गम होने लग पड़ा। जिन कार्यों को पहले परिवार के आधार पर पूरा किया जाता था, उन कार्यों को अन्य संस्थाएं पूरा करने लग गईं हैं। परिवार के मुखिया को भी कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया जाने लगा। वर्तमान में भी परिवार नियोजन बढ़ने से परिवार छोटे होते जा रहे हैं।

7. श्रम-विभाजन (Devision of Labour)-ग्रामीण कुटीर उद्योगों में एक परिवार के व्यक्ति मिलकर ही संपूर्ण कार्य कर लेते थे। लेकिन जब उत्पादन कार्य बड़ी-बड़ी मशीनों के आधार पर किया जाने लगा, तो संपूर्ण उत्पादन क्रिया को छोटे-छोटे भागों में बांट दिया गया। इसके परिणामस्वरूप श्रम का विभाजन का विकास आरंभ हुआ।

श्रम विभाजन के अंतर्गत एक व्यक्ति संपूर्ण उत्पादन प्रक्रिया में केवल एक भाग को कर सकता है। उदाहरणार्थ कार निर्माण में कुछ व्यक्ति टायर बनाने कुछ व्यक्ति इंजन बनाने तथा कुछ व्यक्ति दूसरे पुर्जे बनाने के विशेषज्ञ होते हैं। जिस व्यक्ति को जिस क्षेत्र में निपुणता होती है, उसे उसी क्षेत्र से संबंधित कार्य भी दिया जाता है। अतः उद्योगों के विकास के कारण श्रम-विभाजन एवं विशेषीकरण में प्रर्याप्त वृद्धि हुई है।

8. व्यक्तिवाद एवं समाजवाद (Individualisim and Socialism)-पूंजीवाद के विकास के कारण देश में व्यक्तिवादिता एवं समाजवादी विचारधारा का भी विकास हुआ। अधिकाधिक पूंजी संग्रह के लिये व्यक्ति हमेशा अपने हित व स्वार्थ के लिये ही कार्य करने लगा। जिसके कारण वह अपनी जाति व समूह व समुदाय से अलग होता गया।

इसके साथ ही उद्योगों में कार्यरत श्रमिकों एवं उद्योगपतियों के बीच भी अंतर बढ़ गया। अनेक समस्याओं के आधार पर श्रमिकों एवं पूंजीपतियों के बीच झगड़े-आरंभ हो गये। श्रमिकों ने अपनी समस्या के हल के लिये तथा पूंजीपतियों से निपटने के लिये अनेक यूनियनों का भी विकास किया जिसके परिणामस्वरूप भारत में समाजवादी एवं साम्यवादी विचारधाराओं का विकास हुआ।

9. पूंजीवाद का विकास (Development of Capitalism)-औद्योगीकरण के आधार पर ही भारत में पूंजीवाद का विकास हुआ है। औद्योगीकरण से पहले लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि तथा कुटीर उद्योग होते थे। इस व्यवसाय को करने के लिए अधिक पूंजी की आवश्यकता नहीं होती थी।

उत्पादन स्थानीय आवश्यकताओं के आधार पर किया जाता था। व्यक्ति की भूमि ही उसकी संपत्ति होती थी। जैसे-जैसे ही बड़े-बड़े उद्योगों का विकास हुआ, वैसे ही संपूर्ण अर्थव्यवस्था में परिवर्तन हुआ। उद्योग स्थापित करने के लिये अधिक पूंजी की आवश्यकता हुई तथा माल खरीदने व बेचने के लिये दलालों व एजेंटों की भी आवश्यकता महसूस की गई। पहले जहां पर वस्तु विनिमय की व्यवस्था थी अब मुद्रा व्यवस्था विकसित हो गई है।

परिणामस्वरूप मुद्रा का भी संग्रह आसान हो गया जिसने पूंजी का अधिक संग्रह किया और उसने ही कारखाना या उद्योग भी लगाया। धीरे-धीरे पूंजी में वृद्धि होती गई तथा श्रमिकों का लाभ पूंजीपतियों को मिलने लगा। पूंजीपति और धनी होते गये और श्रमिक और ग़रीब होते गये। औद्योगीकरण ने ही समाज में दो वर्गों पूंजीपति वर्ग और श्रमिक वर्ग (Capitalistic and Labourer Class) का उदय भी किया।

अतः यह कहा जा सकता है कि औद्योगीकरण सामाजिक परिवर्तन की एक प्रक्रिया के रूप में विकसित हुआ है। इस प्रक्रिया का प्रभाव व्यक्ति के आर्थिक सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

एक ओर जहां इस प्रक्रिया में सामाजिक व्यवस्था व संरचना में सकारात्मक परिवर्तन किये हैं। वहां दूसरी ओर कछ ऐसे परिणाम इस प्रक्रिया के उभर कर सामने आए हैं जिसके कारण हमारी संरचना एवं व्यवस्था विघटित भी हुई है। कुल मिला कर औद्योगीकरण एक परिवर्तन की प्रक्रिया है, जिसने व्यक्ति के जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया है।

प्रश्न 7.
नगरीकरण का क्या अर्थ है? भारत में नगरीकरण की प्रक्रिया का वर्णन करें।
अथवा
नगरीकरण क्या है?
उत्तर:
नगरीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्र से नगरों की ओर आते हैं। इस प्रक्रिया के अंतर्गत नगरों की जनसंख्या में वृद्धि होती जाती है। नगरों का विकास अचानक या एक तरफा नहीं होता है बल्कि ग्रामीण समुदाय धीरे-धीरे नगरों के रूप में विकसित होते जाते हैं। अतः गांव नगर की पहली अवस्था है। ग्रामीण समुदाय में धीरे-धीरे परिवर्तन के फलस्वरूप नगरों की विशेषताओं का जब विकास हो जाता है तो इस परिवर्तन को नगरीकरण कहा जाता है।

एण्डर्सन (Anderson) के मतानुसार, “नगरीकरण एक तरफा प्रक्रिया नहीं बल्कि दो तरफा प्रक्रिया है। इसमें न केवल गांवों से नगरों की तरफ गमन तथा कृषि व्यवसाय से कारोबार, व्यापार, सेवाओं एवं धंधों की ओर परिवर्तन ही शामिल है बल्कि प्रवासियों की मनोवृत्तियों, विश्वासों, मूल्यों तथा व्यावहारिक प्रतिमानों में भी परिवर्तन सम्मिलित होता है।”

बर्गेल (Bergal) के शब्दों में, “हम ग्रामीण क्षेत्रों के नगरीय क्षेत्रों में रूपांतरित होने की प्रक्रिया को नगरीकरण कहते हैं।”

सामान्यतः नगरीकरण एक प्रक्रिया है जो मूलरूप से ग्रामीण अर्थव्यवस्था से नगरीय अर्थव्यवस्था की ओर परिवर्तन को दर्शाती है। जब ग्रामीण समुदायों में धीरे-धीरे उद्योग-धंधों, शिक्षा संस्थाओं तथा व्यापार केंद्रों इत्यादि का विकास हो जाता है तब वहां पर विभिन्न जाति, वर्ग, धर्म एवं संप्रदाय के लोग आकर बस जाते हैं। जनसंख्या में वृद्धि होती है, विभिन्न रोज़गार की सुविधाएं विकसित हो जाती हैं।

बड़े पैमाने पर उत्पादन तथा यातायात व संचार सुविधाओं का विकास हो जाता है। इसके साथ ही संबंधों की संरचना में भी परिवर्तन होता है। द्वैतीयक संबंध विकसित होते हैं तो यह प्रक्रिया नगरीकरण की प्रक्रिया कहलाना शुरू कर देती है। विश्व के अन्य देशों की अपेक्षा भारतवर्ष में नगरीकरण की प्रक्रिया अधिक विकसित नहीं हो पाई है। इसका कारण यहां पर ग्रामीण समुदायों की बहुलता तथा कृषि मुख्य व्यवसाय है।

भारत में नगरीकरण की प्रक्रिया/भारत में नगरों का विकास-(Urbanization in India/Urban Development in India):
भारतवर्ष में नगरों के विकास के अनेक कारकों एवं परिस्थितियों की क्रियाशीलता के परिणामस्वरूप अनेक नये नगरों का विकास हुआ तथा पुराने नगरों के विकास में भी वृद्धि हुई। भारत में भी विश्व के अन्य भागों की तरह ही नगरों का विकास ग्रामीण क्षेत्र से लोगों के प्रवास के द्वारा हुआ। सन् 1951 में नगरीय जनसंख्या 6 करोड़ 22 लाख थी जो 2011 में बढ़कर अढ़ाई गुना अर्थात् 38 करोड़ हो गई।

शताब्दी के अंत तक अर्थात् सन् 2000 तक जनसंख्या के 35 करोड़ हो जाने की आशंका थी। इस शताब्दी के अंत तक अर्थात् 1996 से 2000 तक नगरीय भारत में वार्षिक जनसंख्या वृद्धि दर 3.4 प्रतिशत होने की संभावना थी जबकि ग्रामीण भारत की जनसंख्या में केवल 0.7 प्रतिशत वृद्धि होने की संभावना थी।

नगरीय जनसंख्या की वृद्धि के साथ ही नगरीय क्षेत्रों में भी वृद्धि हुई है। 1971 की जनगणना के अनुसार, भारत में 1921 नगर थे जिनमें 69 नगरीय संग्रह भी सम्मिलित थे। 1991 में इसकी संख्या 3301 हो गई। 1951 एवं 2001 के मध्य नगरीकरण की प्रवृत्ति की ओर धीमी, परंतु निरंतर वृद्धि निम्नलिखित आधार पर हुई है-
तालिका : भारत में नगरीय जनसंख्या
(TABLE : URBAN POPULATION IN INDIA)

वर्ष
(Year)
नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत
Percentage of Urban Population
1951 17.3
1961 18.0
1971 19.9
1981 23.73
1991 25.2
2001 27.88
2011 32.2

प्रश्न 8.
नगरीकरण के निर्धारक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतवर्ष में नगरीकरण या नगरीय विकास को निर्धारित करने वाले तत्त्व निम्नलिखित हैं-
1. अनुकूल भौगोलिक पर्यावरण (Favourable Geographic Enviroment) नगर के विकास में भौगोलिक पर्यावरण एक आवश्यक तत्त्व है। जहां पर्यावरण अनुकूल होता है, वहीं नगर विकसित हो जाता है। भौगोलिक पर्यावरण के अनुकूल होने से व्यक्ति अपनी रोज़मर्रा की आवश्यकताओं को सरलतापूर्वक पूरा कर सकते हैं। भारतवर्ष में अनेक प्राचीन नगरों का विकास गंगा, यमुना एवं सिंधु नदियों के किनारे पर हुआ है। भारत में गंगा नदी के किनारे एक सौ से अधिक कस्बों एवं नगरों का विकास हुआ है।

2. अधिक खाद्य सामग्री (Surplus Food Stuffs)-गाँव में लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि होता है। ग्रामों में जब व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के अतिरिक्त अधिक खादय सामग्री का उत्पादन करने लगे तो वहाँ पर अधिक व्यक्ति रहना प्रारंभ कर देते हैं। धीरे-धीरे इन स्थानों पर जनसंख्या वृद्धि तथा नये उद्योगों व मंडियों इत्यादि का विकास शुरू हो जाता है। परिणामस्वरूप गाँव नगरों में परिवर्तित होने लगते हैं।

3. आवागमन के साधनों का आविष्कार (Invention of the Means of Transport)-प्राचीन समय में ग्रामों से अतिरिक्त खाद्य सामग्री को नगरों तक पहुँचाने के लिए पहिए, नावों तथा पशुओं का प्रयोग किया जाता था। आवागमन के साधनों ने भी नगर के विकास में अहम भूमिका निभाई है।

4. नगरों का आकर्षण (Attraction of the Cities)-अपने जीवन को अधिक से अधिक सुखमय एवं खुशहाल बनाने के लिए, शिक्षा ग्रहण करने तथा रोजगार पाने के लिए दूर-दराज के क्षेत्रों के व्यक्ति नगरों की ओर खिंचते चले जाते हैं। इससे भी नगरों का अधिक विकास हुआ है। भारतवर्ष में पाटलिपुत्र नगर के रूप में नालंदा विश्वविद्यालय के कारण विकसित हुआ माना जाता है।

5. सांस्कृतिक तथा आर्थिक महत्त्व (Cultural and Economic Importance)-किसी भी क्षेत्र की संस्कति तथा आर्थिक सुविधाएं भी नगरों के विकास में अपनी अहम भूमिका अभिनीत करते हैं। भारतवर्ष में भी नगरों का विकास विभिन्न क्षेत्रों में सांस्कृतिक तथा आर्थिक महत्त्व के कारण हुआ है।

जैसे-ढाका का विकास व्यापारिक कारणों से हुआ माना जाता है तथा पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) का नगर के रूप में विकास नालंदा विश्वविद्यालय के कारण हुआ है। इसी प्रकार बरेली व मुरादाबाद जैसे नगरों के विकास में भी इन्हीं कारकों का योगदान रहा है। भारतवर्ष में अनेक राजाओं के शासन के समय में अनेक स्थानों पर विशेष उद्योग-धंधों और दस्तकारी इत्यादि के विकास के परिणामस्वरूप भी अनेक नगरों का विकास हुआ है।

6. धार्मिक महत्त्व (Religious Importance)-भारतवर्ष में अनेक स्थान ऐसे हैं जो धार्मिक दृष्टि से पवित्र माने जाते हैं। इन स्थानों की धार्मिक उपयोगिता के कारण ही नगरों का रूप धारण कर लिया है। इनमें जैसे हरिद्वार, मथुरा, काशी, प्रयाग, गया, आनंदपुर साहिब आदि ऐसे ही नगर हैं जिनका विकास धार्मिक उपयोगिता के कारण हुआ है।

7. सैनिक छावनियों की स्थापना (Establishment of Army Camps)-प्राचीन समय से ही प्रायः विजयी वर्ग पराजित वर्ग पर नियंत्रण रखने के उद्देश्य से गाँवों के इर्द-गिर्द सैनिक छावनियां स्थापित कर लेते हैं। ये धीरे-धीरे नगरों का रूप धारण कर लेते हैं। भारतवर्ष में भी नगरों का विकास जैसे-दिल्ली, कोलकाता, आगरा का विकास इसी आधार पर हुआ है।

प्रश्न 9.
नगरीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने वाले तत्त्वों का वर्णन करें।
अथवा
नगरीय विकास की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने वाले कारकों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
नगरीय विकास की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने वाले सहायक तत्त्व निम्नलिखित हैं-
1. औदयोगिकीकरण एवं वाणिज्यीकरण (Industrialization and Commercialization)-जब से औदयोगिक क्षेत्र में क्रांति आई है तब से ही नगरीय विकास में भी वृद्धि हुई है। उद्योगों में नई प्रविधियों, यंत्रों के आविष्कार तथा औद्योगिक उद्यमों में अपार पूंजी के निवेश से दीर्घकालीन उद्योगों की स्थापना हुई। ग्रामीण व्यक्ति अधिक वेतन पाने की चाहत से अपने ग्रामीण व्यवसायों को छोड़कर औद्योगिक क्षेत्रों में प्रविष्ट हुए।

इस प्रकार भारत में इस्पात केंद्र जमशेदपुर तथा शिकागो, लिवरपूल आदि विश्व के महान् औद्योगिक नगरों के रूप में विकसित हो गये। पहले लोग उपजाऊ भूमि तथा अनुकूल जलवायु के कारण निश्चित क्षेत्र में निवास स्थान बनाने को प्राथमिकता देते थे, लेकिन वर्तमान समय में लोहे, कोयले तथा सोने इत्यादि संबंधी कार्यों के लिए विभिन्न केंद्रों की ओर स्थानांतरित होते हैं।

औद्योगिकीकरण के साथ-साथ व्यापार एवं वाणिज्य ने भी नगरों के विस्तार एवं विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिनीत की है। प्राचीन समय में भी नगरों का विकास उन स्थानों पर ही अधिक हआ है जहां पर सामान वितरण आसानी से किया जा सकता था। वर्तमान समय में वाणिज्य-व्यापार के विकास से नगरों के विकास में वृद्धि की है। इस प्रकार औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया तथा व्यापार-वाणिज्य नगरीकरण की प्रक्रिया में अहम् भूमिका अभिनीत करते हैं।

2. अधिक साधन (Surplus Resources)-जब समाज या समूह अपनी आवश्यकता पूर्ति से अधिक साधनों का विकास कर लेता है, तो उस विकास के परिणामस्वरूप नगरों का विकास होना आरंभ हो जाता है। प्राचीन समय में व्यक्ति इन साधनों की प्राप्ति व्यक्ति पर विजय प्राप्त करने के बाद करता था। लेकिन वर्तमान समय में मनुष्य ने प्रकृति पर विजय प्राप्त कर उत्पाद शक्ति को बढ़ाया है। अपने ज्ञान के विकास के साथ प्रौद्योगिक प्रगति के कारण सका थोड़े-से व्यक्ति अधिक व्यक्तियों के समान कार्य करने में समर्थ हैं। प्रकृति के ऊपर मनुष्य का नियंत्रण नगरों के विकास का एक कारण है।

3. यातायात तथा संचार का विकास (Development of Transportation and Communication) यातायात तथा संचार की सुविधाओं ने भी नगरों के विकास में प्रोत्साहन दिया है। उद्योग कच्चे माल एवं निर्मित माल के वितरण के लिए यातायात पर निर्भर रहते हैं।

औद्योगिक नगर में यातायात एवं संचार की सुविधाएं अत्यावश्यक रखाना प्रणाली के आरंभ के समय स्थानीय यातायात अधिक विकसत नहीं था जिसके परिणामस्वरूप मिकों को वहीं निवास करना पड़ता था, जिसके कारण बड़ी-बड़ी बस्तियों का निर्माण हुआ। वर्तमान समय में नगरों में इन सुविधाओं के अधिक विकास के कारण नगर को विभिन्न क्षेत्रों, जैसे-निवास क्षेत्र, श्रमिक क्षेत्र, बाजार क्षेत्र तथा औद्योगिक क्षेत्र में विभाजित कर दिया गया।

4. शिक्षा संबंधी सुविधाएं (Educational Facilities) नगरों के विकास में शिक्षा संबंधी सुविधाओं की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। प्राचीन समय में मुख्य शिक्षा संस्थान नगरों या शहरों में ही स्थित थे। मुख्य प्रशिक्षण संस्थान, महाविद्यालय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, तकनीकी शिक्षा संबंधी तथा कृषि विश्वविद्यालय भी नगरों में ही अधिकतर पाये जाते हैं।

अनेक प्रकार के कला केंद्र एवं संग्रहालय व पुस्तकालय भी नगरों में ही देखने को मिलते हैं। इन सब सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए ग्रामवासी नगरों की तरफ जा रहे हैं, जिससे नगरीकरण की प्रक्रिया में वृद्धि होती देखी जा सकती है।

5. मनोरंजनात्मक सुविधाएं (Recreational Facilities) नगरों में मनोरंजनात्मक सुविधाएं पर्याप्त रूप में पाई जाती हैं। मनोरंजन के उद्देश्य से अनेक प्रकार के क्लब, थियेटर एवं नृत्यगृह नगरों में विकसित किये गये हैं, जिनका उद्देश्य दूसरे क्षेत्रों में रह रहे व्यक्तियों ज्यादातर बच्चे और वयस्कों को अपनी ओर आकर्षित करना है। इस प्रकार नगरों के विकास में यह सब साधन भी अहम् भूमिका निभाते हैं।

6. नगर का आर्थिक आकर्षण (Economic Pull of City)-नगर वैयक्तिक उन्नति तथा विकास का आधार है। आधुनिक समय में अच्छा वेतन पाने में, वाणिज्य व्यापार करने में नगर नवयुवकों की सहायता करता है। नगर में रहकर व्यक्ति को अपनी आवश्यकता पूर्ति हेतु अच्छा रोज़गार व वेतन प्राप्त होता है, जिसके कारण वह नगरों में रहना पसंद करते हैं।

ग्राम की अपेक्षा नगर में सुविधाएं अधिक एवं अच्छी होती हैं। नगर में रहते हुए व्यापारी वर्ग भी अधिक-से-अधिक लाभ कमाता है। नगर में जीवन स्तर को उच्च करने की अधिक संभावनाओं के परिणामस्वरूप नगरों का विकास दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 1 संरचनात्मक परिवर्तन

प्रश्न 10.
शहरों में रहने वाले लोगों को किस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है?
उत्तर:
अगर हम हमारे वर्तमान समाज को देखें तो इस को बदलने में औद्योगीकरण तथा शहरीकरण का प्रमुख रोल रहा है। पर इनके साथ-साथ शहरों में रह रहे लोगों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिनका वर्णन निम्नलिखित है-
(i) रहने की समस्या-शहरों में सबसे बड़ी समस्या रहने की जगह यानि कि मकानों की समस्या है। गांवों से शहरों की तरफ पलायन बादस्तूर जारी रहता है जिस वजह से शहरों की आबादी काफ़ी बढ़ जाती है। आबादी तो बढ़ जाती है पर रहने के लिए जगह तो वही रहती है। इसलिए या तो आस-पास के जंगलों की कटाई करके नए मकान बनाए जाते हैं या एक-एक कमरे में कई लोग एक साथ रहते हैं। इसके अलावा धीरे-धीरे गंदी बस्तियों का भी निर्माण हो जाता है जहां पर रहना अपने आप में एक समस्या होती है।

(ii) स्वास्थ्य की समस्या-शहरों में लोगों को स्वास्थ्य की समस्या का भी सामना करना पड़ता है। बड़ी-बड़ी फैक्टरियों से निकले धुएं से होता प्रदूषण, यातायात के साधनों से होता प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, गंदी बस्तियां कुछ ऐसे तरीके हैं जिन की वजह से व्यक्ति के स्वास्थ्य को कुछ न कुछ हो ही जाता है यानि कि कोई न कोई बीमारी लग ही जाती है।

इस तरह शोरगुल, मक्खी, मच्छर, गंदा पानी, नाले इत्यादि से भी लोगों के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है। जब गांवों से लोग पलायन करके आते हैं तो काफ़ी ताकतवर तथा हृष्ट-पुष्ट होते हैं पर धीरे-धीरे शहरों के दूषित वातावरण में रहकर उनका स्वास्थ्य भी गिरने लगता है।

(iii) जनसंख्या का बढ़ना-शहरों में जनसंख्या हमेशा बढ़ती रहती है जिस वजह से कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। एक तरफ तो ज्यादा जन्म दर तथा कम मृत्यु दर की वजह से जनसंख्या बढ़ती है तथा दूसरी तरफ गांवों से रोजगार की तलाश में लोग शहरों की तरफ आते हैं जिस वजह से जनसंख्या में दुगनी रफ्तार से बढोत्तरी होती है। जनसंख्या तो तेजी से बढ़ती रहती है पर आवास की समस्या, ज्यादा जनसंख्या की वजह से सु कमी हो जाती है। जनसंख्या बढ़ने से शिक्षा तथा और कई प्रकार की कमी हो जाती है।

(iv) अपराध की समस्या-गांवों की अपेक्षा शहरों में अपराध की समस्या बहुत बड़ी समस्या है। गांवों में आम तौर पर झगड़े या अपराध भूमि से संबंधित होते हैं पर शहरों में इनकी प्रकृति अलग प्रकार की होती है। शहरों में डाके, चोरी, हत्या, बलात्कार इत्यादि हर तरह के अपराध होते हैं।

लोगों के बीच औपचारिक संबंध होते हैं, पड़ोसी तक को पता नहीं होता कि पड़ोस में क्या हो रहा है जिस वजह से अपराधी आराम से अपराध करके निकल जाते हैं तथा किसी को पता नहीं चलता। शहरों में अपराध नियोजित ढंग से होते हैं जिस कारण अपराध आसानी से हो जाते हैं। इस तरह शहर के लोगों को इस प्रकार की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।

(v) मनोरंजन की समस्या-शहरों में यह भी एक बड़ी समस्या है क्योंकि शहरों में प्रत्येक कार्य पैसे से होता है। गांव में तो घर में, पंचायत में या चौपाल में बड़े-बूढ़ों के साथ बैठ कर बातें करके व्यक्ति अपना मनोरंजन कर लेता है- सब नहीं होता। शहरों में या तो सिनेमा है या फिर घमने की कोई जगह जहां पर जाने के लिए पैसा खर्च करना पड़ता है। इस तरह अगर पैसा नहीं है तो आप अपना मनोरंजन नहीं कर सकते।

(vi) सामाजिक समस्याएं-शहरों में और जो समस्याएं पाई जाती हैं वह सब समस्याएं प्रकृति से सामाजिक हैं। वेश्यावृत्ति, भिक्षावृत्ति इत्यादि ऐसी समस्याएं हैं जो केवल शहरों में पाई जाती हैं। शहरों में औरतें भी दफ्तरों में काम करती हैं जिस वजह से कई बार वे अपने पति की यौन इच्छाओं की पूर्ति नहीं कर पातीं।

पति असंतुष्ट रहने लग जाता है जिस वजह से वे घर से बाहर अपनी यौन संतुष्टि के लिए जाते हैं जिससे वेश्यावृत्ति को बढ़ावा मिलता है। इसके साथ-साथ भिक्षावृत्ति एक और समस्या है जो शहरों में ज्यादा होती है। प्रत्येक गली, नुक्कड़, लाल बत्ती पर भिखारी मिल जाएंगे जो कि बहुत बड़ी समस्या है।

इस तरह चाहे और भी शहरों में समस्याएं हैं पर ऊपर लिखी समस्याएं बहुत महत्त्वपूर्ण हैं; इनका समाधान होना चाहिए।

प्रश्न 11.
भारतीय समाज पर उपनिवेशवाद के प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:
1. सामाजिक एकता पर प्रभाव (Impact onSocial Unity)-ब्रिटिश सरकार ने भारत में ‘फूट डालो तथा राज करो’ (Divide and Rule) की नीति अपनाई। भारतीय हिंदुओं तथा मुसलमानों के बीच वैर-विरोध के बीज डाले। मिंटो मार्ले (Minto Marley) ने सन् 1909 में मुसलमानों के लिए अलग सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व स्वीकार कर लिया। तत्पश्चात् 1919 तथा 1935 के अधिनियमों द्वारा सिखों, इसाइयों तथा हरिजनों के लिए भी ऐसे प्रतिनिधित्व स्वीकार कर लिए। इस सबसे भारतीय धार्मिक समुदायों तथा अगड़ी व पिछड़ी जातियों के सौहार्दपूर्ण संबंधों में कड़वाहट आ गई।

2. ग्राम्य जीवन पर प्रभाव (Impact on Rural Life)-प्राचीन काल से भारतीय गाँव छोटे गणतंत्र रहे हैं। गांव के अनुभवी व्यक्ति पंच-परमेश्वर ग्रामीण क्षेत्र के झगड़े निपटाते रहे हैं। ब्रिटिश सरकार के नए कानूनों को अपनाया। पंचायतों तथा पंच-परमेश्वरों को विशेष महत्व नहीं दिया। फलस्वरूप ग्राम्य जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

3. कृषि पर प्रभाव (Impact on Agriculture)-कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी रही है। कृषि क्षेत्र पर नियंत्रण करने तथा आसानी से राजस्व एकत्रित करने के लिए अंग्रेजों ने भारत में ज़मींदारी व्यवस्था लागू की। इस व्यवस्था के तहत सरकार ने ज़मीन के बड़े-बड़े भाग ज़मींदारों को दे दिए। जमींदार भू-स्वामी बन गए। उन्होंने कषि कार्य के लिए जमीन जोतकारों (Tillers) को दे दी। जोतकार जमींदारों को लगान तथा ज़मींदार सरकार को राजस्व देते थे।

ज़मींदार किसानों तथा सरकार के बीच में विचोलिए बन गए। वे जोतकारों से मनमाने ढंग से बहुत अधिक लगान वसूल करते थे। इसके अतिरिक्त वे जब चाहे ज़मीन को पूर्व जोतकारों से लेकर अन्य जोतकारों को दे देते थे। जोतकारों को सदैव इस बात को लेकर असुरक्षा रहती कि कहीं ज़मींदार उनसे ज़मीन वापिस न ले लें। इसलिए उन्होंने ज़मीन की देखभाल कम करना शुरू कर दी जिससे खाद्यान्न उत्पादन में भारी गिरावट आई। इस प्रकार ब्रिटिश उपनिवेशवाद से कृषि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

4. व्यापार तथा उद्योग पर प्रभाव (Impact on Trade and Industry)-अंग्रेज़ शासकों का उद्देश्य भारतीय व्यापारियों तथा उद्योगपतियों की बजाए ब्रिटिश व्यापारियों तथा उद्योगपतियों को बढ़ावा देना था। प्रारंभ में भारत से कच्चा माल इंग्लैंड ले जाकर अपने कारखानों में वस्तुएं निर्मित कर भारत में महंगे दामों में बेचा जाता था।

बाद में भारत में ही ब्रिटिश उद्योगपतियों तथा ईस्ट इंडिया कंपनी ने कारखाने लगा लिए। भारत के कच्चे माल को सस्ते भाव खरीदकर इन कारखानों में वस्तुएँ निर्मित की जाने लगी तथा उन्हें मनमाने दामों में बेचा जाने लगा। फलस्वरूप भारत में औद्योगिक उत्पाद एवं इसकी खपत तो बढ़ी परंतु भारतीय उद्योग जगत को इससे भारी नुकसान हुआ।

5. सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन पर प्रभाव (Impact on Social and Culture life)-ब्रिटिशवासी स्वयं को श्रेष्ठ तथा भारतीयों को निम्न श्रेणी के नागरिक के रूप में लेते थे। कई स्थानों पर लिखा होता था कि भारतीयों तथा कुत्तों को मालरोड पर आने की अनुमति नहीं है। इसके अतिरिक्त सन् 1835 में अंग्रेज़ी को भारत में शिक्षा के माध्यम के रूप में अपनाया गया। इस सबके चलते भारतीयों में हीनता की भावना का विकास हुआ। जबकि विधवा विवाह अनुमति तथा सती प्रथा के विरुद्ध कानून निर्माण कर भारतीय समाज को सुधारने के प्रयास भी किए गए।

6. यातायात तथा संचार साधनों का विकास (Development of Means of Transportation and Comunication)-भारत में बड़े-बड़े नगरों, मंडियों तथा बंदरगाहों को सड़कों तथा रेलमार्गों के द्वारा जोड़ा गया। डाक-तार तथा टेलीफोन आदि संचार साधनों का विकास किया गया।

भले ही ब्रिटिश शासन ने भारत में अपने व्यापारिक व राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए ये कदम उठाए। मगर इस सबसे देशवासियों को देश के एक कोने से दूसरे कोने के निवासियों के संपर्क में आने का सुअवसर मिल गया। परिणामस्वरूप भारतवासियों को एकता के सूत्र में बंधने में सहायता मिली।

7. राष्ट्रीय एकीकरण (National Unification)-ब्रिटिश शासन से पूर्व भारत सैंकड़ों छोटी-छोटी रियासतों में बंटा हुआ था। अंग्रेजों ने इन रियासतों के राजाओं को पराजित कर अपने अधीन कर लिया। इससे पूरे भारत को एक राष्ट्रीय स्वरूप मिला। भारत में राजनीतिक एकता स्थापित हुई।

8. लोकतंत्रात्मक संस्थाओं का विकास (Development of Democratic institutions)-इंग्लैंड विश्व में लोकतंत्र की जननी है। इसके भारत में शासन के कारण देश में वयस्क चुनाव प्रणाली, महिलाओं को अधिकार, संसद्, लोक सभा तथा राज्य सभा तथा स्वतंत्र न्यायपालिका आदि अपूर्व लोकतंत्रात्मक संस्थाओं के विकास में सहायता मिली।

9. प्रशासन पर प्रभाव (Impact on Administration) ब्रिटिश उपनिवेशवाद से भारत में नई प्रशासनिक व्यवस्था का विकास हुआ। भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के माध्यम से उच्च प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति की जाने लगी। इससे नौकरशाही का विकास जोकि देश की स्वतंत्रता के छः सात दशकों के पश्चात् भी भारतीय राष्ट्र का अभिन्न अंग है।

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