Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन Important Questions and Answers.
Haryana Board 12th Class Sociology Important Questions Chapter 4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों का मुख्य पेशा क्या है?
(A) कृषि
(B) नौकरी
(C) व्यापार
(D) उद्योग।
उत्तर:
कृषि।
2. कितने प्रतिशत भारतीय जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर करती है?
(A) 60%
(B) 70%
(C) 80%
(D) 50%
उत्तर:
70%.
3. भारत में अंदाजन कितने गांव हैं?
(A) 4 लाख
(B) 5 लाख
(C) 6 लाख
(D) 4.5 लाख।
उत्तर:
6 लाख।
4. कृषि उत्पादन में बढ़ोत्तरी किस पर निर्भर करती है?
(A) नई तकनीक
(B) उन्नत बीज
(C) रासायनिक उर्वरक
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।
5. किस क्रांति ने कृषि उत्पादन के क्षेत्र में अत्यधिक बढ़ौत्तरी की है?
(A) हरित क्रांति
(B) श्वेत क्रांति
(C) नीली क्रांति
(D) पीली क्रांति।
उत्तर:
हरित क्रांति।
6. 1793 में ज़मींदार व्यवस्था किसने शुरू की थी?
(A) लॉर्ड विलियम बैंटिक
(B) लॉर्ड कार्नवालिस
(C) लॉर्ड माऊँटबेंटन
(D) लॉर्ड डलहौज़ी।
उत्तर:
लॉर्ड कार्नवालिस।
7. कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए सबसे पहले कौन-सा कार्यक्रम शुरू किया गया था?
(A) IRDP
(B) IADP
(C) CDP
(D) SJSY
उत्तर:
IADP
8. भारत में रैय्यतवाड़ी प्रथा किसने शुरू की थी?
(A) लॉर्ड डलहौज़ी
(B) लॉर्ड कार्नवालिस
(C) लॉर्ड बैंटिक
(D) लॉर्ड माऊँटबेटन।
उत्तर:
लॉर्ड बैंटिक।
9. हरित क्रांति के द्वारा किस चीज़ का उत्पादन बढ़ाया गया?
(A) गेहूँ
(B) चावल
(C) a + b दोनों
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
a + b दोनों।
10. कृषि उत्पादन कैसे बढ़ाया जा सकता है?
(A) मशीनों का प्रयोग करके
(B) उन्नत बीजों का प्रयोग करके
(C) कैमिकल उर्वरक प्रयोग करके
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।
11. हरित क्रांति का अधिक लाभ उत्तर भारतीय प्रदेशों ने क्यों उठाया था?
(A) उपजाऊ भूमि के कारण
(B) सिंचाई के साधनों की उपलब्धता के कारण
(C) निवेश के लिए पैसा होने के कारण
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।
12. जब कुछ किसान इकट्ठे होकर कृषि करते हैं तो उसे क्या कहते हैं?
(A) सहकारी कृषि
(B) एकत्रता कृषि
(C) इकट्ठ कृषि
(D) ज़मींदारी व्यवस्था।
उत्तर:
सहकारी कृषि।
13. रैय्यत का क्या अर्थ है?
(A) ज़मींदार
(B) किसान
(C) मज़दूर
(D) सरकार।
उत्तर:
किसान।
14. इनमें से कौन-सी ज़मींदारी व्यवस्था की विशेषता है?
(A) ज़मींदार भूमि का स्वामी होता था।
(B) ज़मींदार अपनी भूमि ग़रीब किसानों को कृषि करने के लिए देता था।
(C) ज़मींदार किसानों से लगान इकट्ठा करके सरकार को देता था।
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।
15. महलवाड़ी प्रथा में भूमि का स्वामी कौन होता था?
(A) किसान
(B) परिवार
(C) गाँव
(D) जमींदार।
उत्तर:
गाँव।
16. महलवाड़ी प्रथा में लोगों से लगान कौन इकट्ठा करता था?
(A) नंबरदार
(B) ज़मींदार
(C) परिवार
(D) सरकार।
उत्तर:
नंबरदार।
17. ज़मींदार उन्मूलन की क्या विशेषता थी?
(A) बंजर भूमि सरकार के हाथों में आ गई
(B) ज़मींदारों को उनकी भूमि का मुआवजा दिया गया
(C) मुआवजा नगद या किस्तों में दिया गया
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।
18. भारत में स्वतंत्रता के पश्चात् कौन-सा भूमि सुधार किया गया?
(A) ज़मींदार प्रथा का खात्मा
(B) भूमि के स्वामित्व की सीमा तय करना
(C) काश्तकारी व्यवस्था में सुधार
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।
19. हरित क्रांति की हानि क्या थी?
(A) सीमित क्षेत्रों में आई थी
(B) सीमित फसलों को प्रोत्साहित किया था
(C) अमीरों को अधिक लाभ हुआ
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।
20. हरित क्रांति का मुख्य आधार क्या था?
(A) फसलों का मूल्य निर्धारित करना
(B) कीटनाशकों का प्रयोग
(C) तकनीकों तथा उर्वरकों का प्रयोग
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।
21. प्राचीन भारत में किस प्रकार की व्यवस्था थी?
(A) जाति प्रथा
(B) वर्ग व्यवस्था
(C) सामाजिक व्यवस्था
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
जाति प्रथा।
22. आधुनिक भारत में किस प्रकार की व्यवस्था मिल जाती है?
(A) जाति प्रथा
(B) वर्ग व्यवस्था
(C) सामाजिक व्यवस्था
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
वर्ग व्यवस्था।
23. इनमें से कौन-सा वर्ग नगरों में देखने को मिल जाता है?
(A) व्यापारी वर्ग
(B) अध्यापक वर्ग
(C) ट्रेड यूनियन
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।
24. इनमें से कौन-सा वर्ग ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिल जाता है?
(A) छोटे किसान
(B) पूंजीपति किसान
(C) सज्जन किसान
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।
25. क्या यह मुमकिन है कि सभी व्यक्तियों की सामाजिक स्थिति एक जैसी हो जाए?
(A) हाँ
(B) नहीं
(C) कह नहीं सकते
(D) पता नहीं।
उत्तर:
नहीं।
26. उस समूह को ……………… समूह कहते हैं जिसे समाज में कोई विशेष स्थान प्राप्त होता है।
(A) सज्जन
(B) अभिजात
(C) विशेष
(D) पूंजीपति।
उत्तर:
अभिजात।
27. उस व्यक्ति को …………….. किसान कहते हैं जिसने रिटायर होने के पश्चात् अपना पैसा कृषि में लगा दिया है।
(A) मध्यमवर्गीय
(B) पूंजीपति
(C) सीमांट
(D) सज्जन।
उत्तर:
सज्जन।
28. ……………… किसान उस समूह का सदस्य होता है जो कृषि कार्यों में इस तरह पूंजी निवेश करता ताकि अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त हो सके।
(A) मध्यमवर्गीय
(B) पूंजीपति
(C) सीमांत
(D) सज्जन।
उत्तर:
पूंजीपति।
29. इनमें से कौन-सा संविदा खेती का समाजशास्त्रीय महत्त्व रखता है?
(A) सभी व्यक्तियों को उत्पादन प्रक्रिया से जोड़ना
(B) बहुत से व्यक्तियों को उत्पादन प्रक्रिया से अलग कर देना
(C) देशीय कृषि-ज्ञान को निरर्थक बना देना।
(D) (B) व (C) दोनों।
उत्तर:
(B) व (C) दोनों।
अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्राचीन समय में भारत में किस प्रकार की व्यवस्था थी?
उत्तर:
प्राचीन समय में भारत में जाति व्यवस्था थी जोकि जातियों में स्तरीकरण पर निर्भर थी।
प्रश्न 2.
आजकल भारतीय समाज में किस प्रकार की व्यवस्था आगे आ रही है?
उत्तर:
आजकल भारतीय समाज में जाति व्यवस्था की जगह वर्ग व्यवस्था आगे आ रही है।
प्रश्न 3.
शहरों में किस प्रकार के वर्ग देखने को मिल जाते हैं?
उत्तर:
शहरों में व्यवसायी, अध्यापक, मध्यम वर्ग तथा और कई प्रकार के वर्ग देखने को मिल जाते हैं।
प्रश्न 4.
गांवों में आजकल किस प्रकार के वर्ग देखने को मिलते हैं?
उत्तर:
गांवों में आजकल छोटे किसान, मध्यमवर्गीय किसान, पूंजीपति किसान तथा मज़दूर या बगैर भूमि के किसान देखने को मिल जाते हैं।
प्रश्न 5.
गांव की पहचान किस तरह होती है?
उत्तर:
आम तौर पर गांव की पहचान जाति के आधार पर होती है।
प्रश्न 6.
क्या मनुष्यों के समाज में सभी व्यक्तियों की स्थिति या पद एक समान हो सकते हैं?
उत्तर:
जी नहीं, मनुष्यों के समाज में सभी व्यक्तियों की स्थिति या पद एक समान नहीं हो सकते हैं क्योंकि ऐसा करने से शक्ति संतुलन बिगड़ सकता है।
प्रश्न 7.
भारत के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध कब तथा क्यों लगे थे?
उत्तर:
कुछ देशों ने भारत के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे क्योंकि सन् 1998 में भारत ने पोखरन (राजस्थान में) परमाणु परीक्षण किए थे।
प्रश्न 8.
भारत में उदारीकरण तथा भूमंडलीकरण कब शुरू हुए थे?
उत्तर:
भारत में उदारीकरण तथा किरण 1991 के बाद शुरू हुए जब नरसिम्हा राव सरकार में मनमोहन सिंह वित्त मंत्री बने थे।
प्रश्न 9.
भारत में कितने टेलीफोन एक्सचेंज हैं?
उत्तर:
भारत में 35000 के करीब टेलीफोन एक्सचेंज हैं।
प्रश्न 10.
भारत में नयी औद्योगिक नीति की घोषणा कब हुई थी?
उत्तर:
भारत में नयी औद्योगिक नीति की घोषणा 1991 में हुई थी।
प्रश्न 11.
जाति वर्ग में क्यों बदल रही है?
उत्तर:
जाति-प्रथा में बहुत से बंधन जैसे विवाह, खाने-पीने इत्यादि पर बंधन हुआ करते थे परंतु नगरीकरण, औद्योगीकरण, पश्चिमीकरण इत्यादि की वजह से जाति-प्रथा कमज़ोर पड़ रही है तथा उसकी जगह वर्ग व्यवस्था सामने आ रही है।
प्रश्न 12.
सन् 2000 में भारत में खाद्यान्न का कितना उत्पादन हुआ था?
उत्तर:
सन् 2000 में भारत में खाद्यान्न का उत्पादन 250 मिलियन टन के करीब हुआ था।
प्रश्न 13.
भारत में ज़मींदारी प्रथा कब शुरू हुई थी?
अथवा
ज़मींदारी व्यवस्था किसने शुरू की?
उत्तर:
भारत में ज़मींदारी प्रथा लार्ड कार्नवालिस द्वारा 1793 में शुरू हुई थी।
प्रश्न 14.
लगान क्या होता है?
उत्तर:
जो पैसा किसान हरेक वर्ष ज़मींदार को भूमि के कर के रूप में देता हैं उसे लगान कहते हैं।
प्रश्न 15.
कृषि को बढ़ावा देने के लिए सबसे पहले कौन-सा कार्यक्रम चलाया गया था?
उत्तर:
कृषि को बढ़ावा देने के लिए सबसे पहले IADP (Intensive Agricultural District Programme) 1960-61 में चलाया गया था।
प्रश्न 16.
रैय्यतवाड़ी प्रथा कब शुरू हुई थी?
उत्तर:
रैय्यतवाड़ी प्रथा 1792 में मद्रास प्रांत में लार्ड विलियम बैंटिंक ने शुरू की थी।
प्रश्न 17.
यूरिया या खाद क्या होती है?
उत्तर:
ये वे रासायनिक पदार्थ होते हैं जिनसे भूमि की खाद्यान्न पैदा करने की क्षमता बढ़ती है। उदाहरण के तौर पर पोटाश, नाइट्रोजन, फॉस्फेट इत्यादि।
प्रश्न 18.
किस खाद्यान्न का उत्पादन भारत में ज्यादा है?
उत्तर:
चावल का उत्पादन भारत में सबसे ज्यादा है।
प्रश्न 19.
हरित क्रांति के फलस्वरूप कौन-सी फसलों का उत्पादन बढ़ा है?
उत्तर:
हरित क्रांति के फलस्वरूप चावल तथा गेहूँ का उत्पादन बढ़ा है।
प्रश्न 20.
सामाजिक स्तरीकरण की खुली व बंद व्यवस्था में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वर्ग सामाजिक स्तरीकरण में खुली व्यवस्था है जिसकी सदस्यता व्यक्ति की योग्यता पर आधारित होती है तथा इसे कभी भी बदला जा सकता है। परंतु सामाजिक स्तरीकरण की बंद व्यवस्था जाति होती है जिसकी सदस्यता जन्म पर आधारित होती है तथा योग्यता होते हुए भी व्यक्ति इसे बदल नहीं सकता।
प्रश्न 21.
भूमि सुधार से आप क्या समझते हैं?
अथवा
भूमि सुधार का अर्थ बताएं।
उत्तर:
आज़ादी से पहले भूमि, कृषि, कृषक बीच की कड़ियों व सरकार के बीच संबंधों के कुछ दोष थे जिन्हें दूर करने के लिए कुछ सुधार किए गए जिन्हें भूमि सुधार कहा गया। ज़मींदारों का उन्मूलन बिचौलियों का उन्मूलन, गरीबों को भूमि देना इत्यादि इन सुधारों में शामिल था।
प्रश्न 22.
गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय क्या होता है?
उत्तर:
गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि ही होता है। भूमि से उत्पादन उनके स्रोत का मुख्य साधन है। भारत की 70% के करीब जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर करती है।
प्रश्न 23.
भारत में कितने गाँव हैं?
उत्तर:
भारत में 5,50,000 के करीब गाँव हैं।
प्रश्न 24.
कृषि के उत्पादन में विकास किस चीज़ पर निर्भर करता है?
उत्तर:
कृषि के उत्पादन में विकास भूमि के लिए किए गए सुधारों, नई-नई तकनीकों के प्रयोग, नए आविष्कारों को प्रयोग करने से होता है।
प्रश्न 25.
हरित क्रांति से पहले भारत में खाद्यान्न की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
हरित क्रांति से पहले भारत अपनी जरूरतों के अनुसार उत्पादन नहीं कर पाता था तथा उसे अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए बाहर के देशों से खाद्यान्न मंगवाना पड़ता था।
प्रश्न 26.
किस क्रांति से भारत में कृषि उत्पादन में बहुत विकास हुआ था?
उत्तर:
हरित क्रांति से भारत में कृषि उत्पादन में बहुत विकास हुआ था।
प्रश्न 27.
हरित क्रांति में उत्पादन में बढ़ोत्तरी किन वैज्ञानिकों की कोशिशों का नतीजा है?
उत्तर:
हरित क्रांति में उत्पादन में बढ़ोत्तरी का श्रेय डॉ० एम० एस० स्वामीनाथन तथा डॉ० बोरमान बोरलाग को जाता है।
प्रश्न 28.
हरित क्रांति से धनी किसानों को कैसे ज्यादा लाभ हुआ?
उत्तर:
हरित क्रांति से नई तकनीकें, बीज तथा खादें हमारे सामने आईं तथा इन सब चीज़ों को खरीदना धनी किसानों के लिए ही मुमकिन था। इसलिए हरित क्रांति से धनी किसानों को ज्यादा लाभ हुआ।
प्रश्न 29.
भूमि सुधार के क्या कारण थे?
उत्तर:
- भूमि सुधार का पहला कारण कृषि के क्षेत्र तथा उत्पादन में वृद्धि करना था।
- दूसरा कारण दलालों या मध्यस्थों को खत्म करके किसानों का शोषण खत्म करना था ताकि किसानों को भूमि मिल सके।
प्रश्न 30.
चकबंदी क्या होती है?
उत्तर:
यह भूमि को इकटठा करने की व्यवस्था है। अगर किसी किसान की एक ही गाँव में अलग-अलग जगह जोतने लायक ज़मीन होती थी तो उस किसान को एक ही जगह इकट्ठी ज़मीन दे दी जाती था या उन्हें एक ही स्थान पर संगठित कर दिया जाता था। उसे चकबंदी कहा जाता था।
प्रश्न 31.
सहकारी खेती क्या होती है?
उत्तर:
सहकारी खेती का अर्थ है कि छोटे-छोटे भूमि के टुकड़ों के मालिक इकट्ठे होकर अपनी जमीन इकट्ठी करके सहकारिता के आधार पर खेती करना तथा उस भूमि से होने वाली आय को अपनी भूमि के अनुसार बांट लेना। इससे व्यक्ति अपनी भूमि का मालिक भी बना रहता है तथा कृषि संबंधी काम भी मिल-बांट कर हो जाते हैं। उससे जो लाभ होता है उसे बांट लिया जाता है।
प्रश्न 32.
काश्तकारी प्रथा क्या होती है?
उत्तर:
हमारे देश में 40% खेती इसी काश्तकारी प्रथा से होती है। इस प्रथा के अनुसार जब व्यक्ति अपनी भूमि पर खुद खेती नहीं करता बल्कि किसी ओर की जमीन जोतने के लिए दे देता है। इसके लिए जोतने वाला व्यक्ति ज़मीन के मालिक को किराया देता है। जोतने वाले को काश्तकार कहते हैं।
प्रश्न 33.
आर्थिक विकास क्या होता है?
उत्तर:
जब जीव जीने के लिए सभी ज़रूरी साधनों का विकास हो जाए या जीवन जीने के ज़रूरी साधन आराम से उपलब्ध हों तो हम कह सकते हैं कि आर्थिक विकास हो गया है।
प्रश्न 34.
हरित क्रांति से सबसे अधिक विकास उत्तर भारत के प्रदेशों को क्यों पहुँचा है?
उत्तर:
हरित क्रांति से सबसे अधिक विकास उत्तर भारत के प्रदेशों को इन क्षेत्रों में उपलब्ध अच्छी उपजाऊ जमीन तथा कृषि के लिए उपलब्ध सिंचाई की काफ़ी ज्यादा सुविधाओं की वजह से है।
प्रश्न 35.
उत्पादन में सुधार कैसे किया जा सकता है?
उत्तर:
- अच्छे बीजों का प्रयोग करके उत्पादन सुधारा जा सकता है।
- रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करके भी उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।
प्रश्न 36.
ज़मींदारी प्रथा भारत में कब खत्म हुई थी?
उत्तर:
आज़ादी से पहले भारत में काफ़ी ज्यादा ज़मींदारी प्रथा प्रचलित थी। आजादी के बाद ज़मींदारी प्रथा खत्म कर दी गई। 1950 के बाद सभी राज्यों ने ज़मींदारी प्रथा के विरुद्ध कानून बनाए जिस वजह से यह ज़मींदारी प्रथा हमारे देश में खत्म हो गई।
प्रश्न 37.
हरित क्रांति क्या है?
अथवा
हरित क्रांति किसे कहते हैं?
अथवा
हरित क्रांति क्या होती है?
अथवा
हरित क्रांति से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भारत में नई तकनीकों, नए बीजों तथा उर्वरकों के प्रयोग से कृषि के उत्पादन के क्षेत्र में जो वृद्धि हुई है उसे हरित क्रांति कहते हैं।
प्रश्न 38.
भारत का आर्थिक विकास किस तरह कृषि पर निर्भर करता है?
उत्तर:
भारत का आर्थिक विकास इस तरह कृषि पर निर्भर करता है कि भारत की 70% के करीब जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है। ये लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपनी आमदनी के लिए कृषि पर ही निर्भर करते हैं। अगर देश को विकास करना है तो इन लोगों का विकास ज़रूरी है। इसीलिए अगर यह 70% लोग तरक्की करेंगे तो ही देश आर्थिक तौर पर तरक्की कर पाएगा।
प्रश्न 39.
जाति वर्ग में क्यों बदल रही है?
उत्तर:
जाति-प्रथा में बहुत से बंधन जैसे विवाह, खाने-पीने इत्यादि पर बंधन हुआ करते थे परंतु नगरीकरण, औद्योगीकरण, पश्चिमीकरण इत्यादि की वजह से जाति-प्रथा कमज़ोर पड़ रही है तथा उसकी जगह वर्ग व्यवस्था सामने आ रही है।
प्रश्न 40.
अभिजात वर्ग या Elite Group क्या होता है?
उत्तर:
Elite का मतलब होता है विशिष्ट अर्थात् जिसे समाज में कोई विशेष (खास) या उच्च स्थिति प्राप्त हो उसे अभिजात या Elite कहते हैं। इस तरह अभिजात वर्ग वह वर्ग होता है जिसे समाज में कोई विशिष्ट स्थान प्राप्त हो।
प्रश्न 41.
सज्जन किसान कौन होते हैं?
उत्तर:
इस किसान वर्ग में काफ़ी ऐसे लोग होते हैं जो सरकारी, गैर-सरकारी, सैनिक तथा असैनिक सेवाओं में कार्यरत थे तथा रिटायर हो चुके हैं। अपनी नौकरी से प्राप्त धन को वह कृषि फार्मों में लगाते हैं तथा विकास करते हैं।
प्रश्न 42.
मध्यमजातीय किसान कौन होते हैं?
उत्तर:
इस प्रकार के किसान मध्यम जातियों के समूह होते हैं। यह बीच की जातियों के होते हैं। यह न तो बहुत अमीर होते हैं तथा न ही ग़रीब होते हैं। इसलिए इन्हें मध्यमवर्गीय कहते हैं।
प्रश्न 43.
पूंजीपति किसान कौन होते हैं?
उत्तर:
पूंजीपति किसान वर्ग एक ऐसा वर्ग है जो कृषि कार्यों में इस तरह से पूंजी निवेश करता है ताकि अधिक से-अधिक लाभ प्राप्त हो सकें। यह खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ाने के लिए ऋण, अन्न प्रौद्योगिकी, मंडियों, यातायात तथा दरसंचार के साधनों तथा सस्ते श्रमिकों इत्यादि का प्रयोग करता है।
प्रश्न 44.
उदारीकरण क्या होता है?
उत्तर:
नियंत्रित अर्थव्यवस्था के अनावश्यक प्रतिबंधों को हटाना उदारीकरण है। उद्योगों तथा व्यापार पर से अनावश्यक प्रतिबंध हटाना ताकि अर्थव्यवस्था अधिक प्रतिस्पर्धात्मक, प्रगतिशील तथा खुली बन सके, इसे उदारीकरण कहते हैं। यह एक आर्थिक प्रक्रिया है तथा यह समाज में आर्थिक परिवर्तनों की प्रक्रिया है।
प्रश्न 45.
भूमंडलीकरण क्या होता है?
उत्तर:
भूमंडलीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक देश की अर्थव्यवस्था का संबंध अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ा जाता है अर्थात् एक देश के अन्य देशों के साथ वस्तु, सेवा, पूंजी तथा श्रम के अप्रतिबंधित आदान-प्रदान को भूमंडलीकरण कहते हैं। व्यापार का देशों के बीच मुक्त आदान-प्रदान होता है।
प्रश्न 46.
उदारीकरण के क्या कारण होते हैं?
उत्तर:
- देश में रोज़गार के साधन विकसित करने के लिए ताकि लोगों को रोजगार मिल सके।
- उद्योगों में ज्यादा-से-ज्यादा प्रतिस्पर्धा पैदा करना ताकि उपभोक्ता को ज्यादा-से-ज्यादा लाभ प्राप्त हो सके।
प्रश्न 47.
निजीकरण क्या होता है?
उत्तर:
लोकतांत्रिक तथा समाजवादी देशों जहां पर मिश्रित प्रकार की अर्थव्यवस्था होती है। इस अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक उपक्रम होते हैं जोकि सरकार के नियंत्रण में होते हैं। इन सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों में सौंपना ताकि यह और ज्यादा लाभ कमा सकें। इन सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों में सौंपने को निजीकरण कहते हैं।
प्रश्न 48.
ज़मींदारी व्यवस्था क्या है?
उत्तर:
इस प्रथा को लॉर्ड कार्नवालिस ने बंगाल में शुरू किया था। इसके अनुसार ज़मींदारों को भूमि का मालिक मान लिया गया तथा उनका लगान निश्चित कर दिया गया। ज़मींदार आगे भूमि किराए पर देकर छोटे किसानों से जितना मर्जी चाहे लगान वसूल कर सकते थे। इससे छोटे किसानों का शोषण होना शुरू हो गया।
प्रश्न 49.
महलवारी प्रथा का क्या अर्थ है?
अथवा
महलवारी व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
यह प्रथा अंग्रेजों के समय 19वीं सदी की शुरुआत में शुरू की थी जिसके अनुसार गांव के पूरे समुदाय को ही भूमि का मालिक मानकर उसका लगान निश्चित कर दिया जाता था। समुदाय का एक व्यक्ति गांव के सभी घरों से निश्चित लगान इकट्ठा करके सरकार तक पहुंचाता था परंतु इस प्रथा में लगान काफी अधिक होता था।
प्रश्न 50.
रैय्यतवाड़ी व्यवस्था क्या है?
अथवा
रैयतबाड़ी व्यवस्था में रैयत’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
रैय्यत का अर्थ है किसान अथवा कृषक। यह प्रथा लॉर्ड विलियम बैंटिंक ने चलाई थी जिसमें सरकार का सीधा संपर्क कृषक या रैय्यत के साथ होता था। इसमें हरेक रैय्यत का लगान निश्चित कर दिया जाता था तथा वह सीधे सरकार को ही इसका भुगतान करते थे। परंतु इसमें लगान काफी अधिक निश्चित किया जाता था।
प्रश्न 51.
किसी शैक्षणिक वर्ग का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अध्यापकों का वर्ग शैक्षणिक वर्ग का उदाहरण है।
प्रश्न 52.
हरित क्रांति से किस वस्तु का उत्पादन बढ़ा।
उत्तर:
हरित क्रांति से गेहूँ तथा चावल का उत्पादन बढ़ा।
प्रश्न 53.
पूँजीपति वर्ग क्या होता है?
उत्तर:
वह वर्ग जिसके पास बहुत-सा पैसा होता है जिसकी सहायता से वह नए उद्योग लगाता है ताकि और पैसा कमाया जा सके तथा जो मजदूरों का शोषण करता है उसे पूँजीपति वर्ग कहते हैं।
प्रश्न 54.
भारत में हरित क्रांति किस क्षेत्र में आई?
उत्तर:
भारत में हरित क्रांति कृषि क्षेत्र में गेहूँ तथा चावल में उत्पादन के क्षेत्र में आई।
प्रश्न 55.
कृषक वर्ग का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जो वर्ग कृषि करके तथा चीज़ों को उगा कर अपना गुजारा करता है उसे कृषक वर्ग कहते हैं।
प्रश्न 56.
ज़मींदार किसे कहते हैं?
उत्तर:
गांवों में मिलने वाला शक्तिशाली व्यक्ति जिसके पास बहुत-सा पैसा तथा भूमि होती है, जो भूमि को किसानों को किराए पर देता है तथा स्वयं कम कार्य करता है उसे ज़मींदार कहते हैं।
प्रश्न 57.
कृषि मज़दूर किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह मज़दूर जो कृषि के क्षेत्र में किसानों के पास कार्य करता है उसे कृषि मजदूर कहते हैं।
प्रश्न 58.
हरित क्रांति का संबंध कृषि तथा उद्योग में से किससे है?
उत्तर:
हरित क्रांति का संबंध कृषि से है।
प्रश्न 59.
निर्धनता (गरीबी) रेखा से नीचे रहने वाले व्यक्ति आर्थिक आधार पर उच्च, मध्य तथा निम्न में से किस वर्ग में आते हैं?
उत्तर:
निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले व्यक्ति आर्थिक आधार पर निम्न वर्ग में आते हैं।
प्रश्न 60.
भारत में हरित क्रांति (दूध, फल या कृषि) किस क्षेत्र में आई?
उत्तर:
भारत में हरित क्रांति कृषि क्षेत्र में आई।
प्रश्न 61.
स्वतंत्रता से पूर्व भारत में कितने प्रकार की भू-काश्तकारी व्यवस्थाएं थीं?
अथवा
स्वतंत्रता से पूर्व भारत में कितनी भू-व्यवस्थाएँ प्रचलित थीं?
उत्तर:
तीन प्रकार की-ज़मींदारी व्यवस्था, रैयतवाड़ी तथा महलवाड़ी व्यवस्था।
प्रश्न 62.
भारत में हरित क्रांति किस क्षेत्र से संबंधित है?
उत्तर:
भारत में हरित क्रांति खाद्यानों के उत्पादन बढ़ाने से संबंधित है।
प्रश्न 63.
ग्राम पंचायत की सभा का अध्यक्ष कौन होता है?
उत्तर:
ग्राम पंचायत की सभा का अध्यक्ष सरपंच या प्रधान होता है।
लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
उदारीकरण के क्या मुख्य उद्देश्य हैं?
उत्तर:
उदारीकरण के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
- उदारीकरण का मुख्य उद्देश्य उद्योगों में रोज़गार के अवसर बढ़ाना था।
- विदेशी निवेश को आकर्षित करना ताकि रोज़गार के अवसर बढ़े।
- अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के साथ भारतीय कंपनियों को प्रतिस्पर्धा में खड़ा करना।
- निजी क्षेत्र को ज्यादा-से-ज्यादा स्वतंत्रता प्रदान करना।
- देश की उत्पादन क्षमता में वृद्धि करना।
प्रश्न 2.
उदारीकरण नीति की विशेषताएं बताएं।
उत्तर:
- उदारीकरण के तहत कुछ विशेष चीज़ों को छोड़कर लाइसैंस राज की नीति को खत्म कर दिया गया ताकि सारे उद्योग आराम से विकसित हो सकें।
- उदारीकरण के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण करना शुरू कर दिया गया है ताकि घाटे में चल रहे सार्वजनिक उपक्रमों को लाभ में बदला जा सके।
- सार्वजनिक क्षेत्र के लिए अब बहुत कम उद्योग रह गए हैं ताकि सभी उद्योगों को बढ़ावा दिया जा सके।
- देश में विदेशी निवेश की सीमा भी बढ़ा दी गई है। कई क्षेत्रों में तो यह 51% तथा कई क्षेत्रों में पूर्ण निवेश तथा कई क्षेत्रों में यह 74% तक रखी गई है।
प्रश्न 3.
भूमंडलीकरण की विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने भूमंडलीकरण की चार विशेषताओं का वर्णन किया है-
- भूमंडलीकरण में लोगों के लिए नए-नए उपकरण आ गए हैं क्योंकि अब विश्व की बड़ी-बड़ी कंपनियां हर देश में आ रही हैं।
- अब कंपनियों के लिए नए-नए बाजार खुल गए हैं क्योंकि भूमंडलीकरण में कंपनियां किसी भी देश में मुक्त व्यापार कर सकती हैं।
- भूमंडलीकरण में कार्यों के संपादन के लिए नए-नए कर्ता आगे आ गए हैं जैसे रैडक्रास, विश्व व्यापार संगठन (W.T.O.)।
- भूमंडलीकरण के कारण नए-नए नियम सामने आए हैं जैसे पहले नौकरी पक्की होती थी पर अब यह पक्की न होकर ठेके पर होती है।
प्रश्न 4.
भारत में उदारीकरण को कितने चरणों में बांटा जा सकता है?
उत्तर:
भारत में उदारीकरण की प्रक्रिया को चार चरणों में बांटा जा सकता है-
- 1975 से 1980 का काल
- 1980 से 1985 का काल
- 1985 से 1991 का काल
- 1991 से आगे का काल।
प्रश्न 5.
भूमंडलीकरण के कोई चार सिद्धांत बताओ।
उत्तर:
- विदेशी निवेश के लिए देश की अर्थव्यवस्था को खोलना।
- सीमा शुल्क कम-से-कम करना।
- सरकारी क्षेत्रों के प्रतिष्ठानों का विनिवेश करना।
- निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देना।
प्रश्न 6.
ज़मींदारी व्यवस्था क्या होती है?
उत्तर:
आज़ादी के समय कृषि योग्य कुल भूमि में से 1/4 भाग पर ज़मींदारी व्यवस्था प्रचलित थी। ज़मींदारी व्यवस्था ब्रिटिश शासन में लार्ड कार्नवालिस ने 1793 में बंगाल में शुरू की थी। इस व्यवस्था के अंदर जमींदार भूमि का मालिक होता है पर यह जरूरी नहीं है कि वह अपनी भूमि पर आप ही कृषि करे।
कृषि करने के लिए वह अपनी भूमि किसानों को दे देता था। वह किसानों से लगान इकट्ठा करता था तथा सरकार को राजस्व या कर देता था। भूमि, किसान, जमींदार तथा सरकार के बीच इस तरह एक संबंध स्थापित हो जाता था। यह प्रथा बंगाल के अलावा उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार तथा मद्रास राज्यों में प्रचलित थी।
प्रश्न 7.
ज़मींदारी प्रथा की विशेषताएं बताओ।
उत्तर:
- भूमि का स्वामित्व ज़मींदार के पास होना।
- ज़मींदारों द्वारा कृषि के लिए भूमि काश्तकारों को सौंपना।
- काश्तकारों द्वारा ज़मींदार को लगान देना।
- ज़मींदार द्वारा सरकार को राजस्व का भुगतान करना।
प्रश्न 8.
रैय्यतवाड़ी व्यवस्था क्या होती थी?
उत्तर:
आज़ादी के समय कृषि भूमि में से 36% भाग पर रैय्यतवाड़ी प्रथा प्रचलित थी। लार्ड विलियम बैंटिंक ने ज़मींदारी प्रथा के दोषों को दूर करने के लिए रैय्यतवाड़ी व्यवस्था शुरू की थी। यह एक हिंदू प्रथा थी। इस भूमि व्यवस्था के अंतर्गत भूमि का स्वामित्व जिस व्यक्ति या परिवार के पास होता था वही सरकार को राजस्व का भुगतान करता था। रैय्यत का अर्थ है जोतदार या कृषक या किसान। एक निश्चित अवधि तक सरकार को राजस्व देने के पश्चात् वह रैय्यत भूमि का मालिक बन जाता था। रैय्यत भूमि को किराए पर किसी ओर किसान को भी दे सकता था।
प्रश्न 9.
महलवारी व्यवस्था क्या होती थी?
उत्तर:
महलवारी भूमि व्यवस्था की एक और महत्त्वपूर्ण व्यवस्था थी। इस व्यवस्था में भूमि का स्वामित्व पूरे गांव के पास होता था। गांव के नियंत्रण अधीन भूमि को शामलाट भूमि के नाम से जाना जाता था। इस भूमि को गांवों के विभिन्न परिवारों में बांट दिया जाता था जो निश्चित लगान देते थे। विभिन्न सदस्यों तथा परिवारों से लंबरदार लगान इकट्ठा किया करता था जिसके बदले उसे पाँच प्रतिशत दलाली मिलती थी। इसके बाद गांव सरकार को निश्चित राजस्व का भुगतान करता था। इस व्यवस्था में भी कृषक का सरकार के साथ कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता था।
प्रश्न 10.
ज़मींदारी उन्मूलन की क्या विशेषताएं थीं?
उत्तर:
- गांव की बंजर भूमि चरागाह इत्यादि सरकार के कब्जे में आ गई।
- सभी राज्यों में ज़मींदारों से ज़मीन लेकर उन्हें मुआवजा दे दिया गया।
- कुछ राज्यों में मुआवजा नकद तथा कुछ राज्यों में यह किस्तों में दिया गया।
- जिस भूमि पर जमींदार खुद खेती करते थे वह उन्हीं के पास रहने दी गई।
प्रश्न 11.
हरित क्रांति क्या थी? इसका भारत में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
भारत में योजना बना कर कृषि के क्षेत्र में उत्पादन को बढ़ाया गया इससे उत्पादन के क्षेत्र में बहुत ज्यादा वृद्धि हुई। कृषि के उत्पादन के क्षेत्र में इतनी ज्यादा वृद्धि को हरित क्रांति कहते हैं। इस तरह हरित क्रांति शब्द का प्रयोग उस तेज़ गति से हुए परिवर्तन से है जो भारत के खाद्यान्न उत्पादन में हुआ था।
भारत में हरित क्रांति का बहत महत्त्व है क्योंकि हरित क्रांति जो कि 1966-67 के बाद शरू हई थी, की वजह से भारत खादयान्न के क्षेत्र में आत्म-निर्भर हो गया था। आजादी के बाद से 1965 तक भारत के पास खाद्यान्न की कमी थी। उसे बाहर से अपनी ज़रूरतों के लिए खाद्यान्न मंगवाना पड़ता था पर हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्म-निर्भर बना दिया था।
प्रश्न 12.
आज़ादी के बाद भारत में कौन-कौन से भूमि सुधार किए गए हैं?
अथवा
स्वतंत्रता के बाद कृषीय सुधारों के लिये क्या सुझाव दिये गये हैं?
उत्तर:
आज़ादी के बाद भारत में निम्नलिखित भूमि सुधार किए गए हैं-
- सबसे पहले ज़मींदारी प्रथा का उन्मूलन किया गया।
- किसी व्यक्ति के लिए भूमि रखने की अधिकतम सीमा रखी गई।
- चकबंदी को लागू किया गया।
- काश्तकारी प्रथा में बहुत से सुधार किए गए।
- सहकारी खेती तथा भूमि संबंधी नए तरीकों से रिकार्ड रखे गए।
प्रश्न 13.
जोतों की सीमाओं का क्या अर्थ है? इसमें सुधार कैसे किए गए?
अथवा
भू-सीमा निर्धारण से क्या तात्पर्य है?
अथवा
हदबंदी अधिनियम क्या है?
उत्तर:
जोतों की सीमाओं का अर्थ है किसी व्यक्ति के पास कृषि योग्य भूमि एक सीमा तक होनी चाहिए उससे अधिक नहीं। इस सीमा से पहले किसी के पास तो हज़ारों एकड़ भूमि थी तथा कइयों के पास कुछ भी नहीं। इसलिए सभी को भूमि देने के लिए व्यक्ति के पास कृषि योग्य भूमि रखने की सीमा निर्धारित की गई जिसे जोतों की सीमाएं कहा गया। इसके लिए कई प्रकार के अधिनियम बनाए गए। 1973 के बाद हरियाणा तथा पंजाब में यह सीमा क्रमश 18 एकड़ तथा 27 एकड़ निश्चित कर दी गई। जिसके पास इन सीमा से अधिक भूमि थी उनसे भूमि ले ली गई तथा भूमिहीन किसानों में बांट दी गई।
प्रश्न 14.
देश में भूमि सुधार क्यों किए गए थे?
अथवा
भूमि सुधार के चार उद्देश्य बताएँ।
उत्तर:
(i) देश में कई किसानों के पास सैंकड़ों एकड़ भूमि थी तथा कइयों के पास बिल्कुल भी नहीं थी। भूमिहीन किसानों को भूमि देने के लिए भूमि सुधार लागू किए गए।
(ii) स्वतंत्रता के बाद देश के नेताओं को लगा कि अगर देश में से असमानता को निकाल कर सामाजिक तथा आर्थिक समानता स्थापित करनी है तो भूमि सुधार लागू करने ही होंगे। इसलिए भूमि सुधार लागू किए गए।
(iii) देश में किसानों की निम्न स्थिति का सबसे बड़ा कारण सरकार तथा छोटे किसानों के बीच मध्यस्थों की मौजूदगी थी। इसलिए सरकार को लगा कि किसानों की आर्थिक स्थिति को ठीक करने के लिए मध्यस्थों का उन्मूलन ज़रूरी है तथा यह भूमि सुधारों का मुख्य उद्देश्य था।
(iv) स्वतंत्रता के समय देश को अपनी खाद्यान ज़रूरतों को पूर्ण करने के लिए खाद्यान को आयात करना पड़ता था। इसलिए सरकार ने भूमि सुधारों को लागू किया ताकि खाद्यान आवश्यकताओं को पूर्ण किया जा सके।
प्रश्न 15.
कृषिक या ग्रामीण वर्ग संरचना और जाति के मध्य पाए जाने वाले विभिन्न संबंधों को वर्गीकृत कीजिए।
उत्तर:
ग्रामीण वर्ग संरचना तथा जाति के बीच काफ़ी गहरा संबंध पाया जाता है। आम तौर पर यह सोचा जाता है कि दोनों के बीच गहरे संबंध ही होंगे। साधारणतयाः हम यह सोचते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों की उच्च जातियों के पास अधिक भूमि तथा अधिक धन होता है तथा यह कल्पना ठीक ही साबित होती है। ग्रामीण समाज में उच्च जातियों का दबदबा पाया जाता है। बहुत-से क्षेत्रों में ग्रामीण समाज में उच्च जातियों में ब्राह्मण कम ही होते हैं तथा यह जाट अथवा वैशा जातियों से संबंधित होती है।
बहुत ही कम बार ऐसा होता है कि ब्राह्मण कृषि कार्यों में लगे होते हैं तथा निम्न जातियों के लोगों के पास अधिक भूमि होती है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री एम० एन० श्रीनिवास ने प्रबल जाति का संकल्प दिया है जोकि ग्रामीण क्षेत्रों में पाई जाती है। पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश में जाट प्रबल जाति के रूप में पाए जाते हैं। जाट लोगों के पास अधिक भूमि होती है तथा इनके पास अच्छा जीवन जीने के भरपूर साधन होते हैं।
प्रश्न 16.
भूदान आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
भूदान आंदोलन को विनोबा भावे ने स्वतंत्रता के बाद चलाया था। उस समय बहुत से ऐसे ज़मींदार थे जिनके पास सैंकड़ों एकड़ भूमि थी। वह स्वयं इस पर कृषि नहीं करते थे बल्कि ग़रीब किसानों को किराए पर देते थे। वह स्वयं न तो भूमि पर कृषि करते थे तथा न ही करने को इच्छुक थे। दूसरी तरफ हज़ारों लाखों ऐसे निर्धन किसान थे जिनके पास एक इंच भी भूमि नहीं थी। स्वतंत्रता के पश्चात् आंध्र प्रदेश तथा बंगाल में ज़मींदारों के विरुद्ध विद्रोह शुरू हो गया तथा ऐसा लगता था कि सब कुछ लाल हो जाएगा।
परंतु इससे पहले ही विनोबा भावे ने भूदान आंदोलन शुरू कर दिया। विनोबा भावे ने ज़मींदारों को कुल 40 लाख एकड़ भूमि ग़रीबों को दान करने को कहा। इसके लिए उन्होंने अहिंसात्मक संघर्ष भी किया। 3 साल के भीतर ही 27,40,000 एकड़ भूमि उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश में एकत्रित कर ली गई है।
राज्यों ने भूदान आंदोलन के समय कई प्रकार के कानून बनाए। इस आंदोलन के अंतर्गत 50 लाख एकड़ भूमि निर्धन किसानों को दान कर दी गई परंतु यह अपने 150 लाख एकड़ भूमि के लक्ष्य से पिछड़ गया। इस आंदोलन ने ग्रामीण समाज की restructuring की तथा सदियों से चली आ रही निर्धनता और दुःखों को ख़त्म करने में सहायता की।
प्रश्न 17.
समाचार-पत्रों को पढ़ें, दूरदर्शन अथवा रेडियो के समाचार सुनें तथा बताएं कि कब-कब ग्रामीण क्षेत्रों को इनमें शामिल किया जाता है? किस तरह के मुद्दे आमतौर पर बताएं जाते हैं?
उत्तर:
अगर हम रोज़ाना के समाचार-पत्र पढ़ें अथवा दूरदर्शन या रेडियो के समाचार सुनें तो हमें पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों के बहुत से मुद्दों को इनमें लगातार शामिल किया जाता है। कृषि उत्पादन के क्षेत्र में आने वाली मुश्किलें, उनमें प्रयोग होने वाले बीज, उर्वरक, कीटनाशक, उन्हें मिलने वाली बिजली, सिंचाई का पानी, उनके उत्पाद का सही मूल्य इत्यादि ऐसे मुद्दे हैं जो इनमें बार-बार शामिल होते हैं। रेडियो के आकाशवाणी जालंधर पर रोज़ाना कृषि करने के अलग-अलग ढंगों के बारे में बताया जाता है।
किसानों को उत्पादन बढ़ाने के नए-नए ढंग, नए उन्नत बीज तथा उर्वरक, समय-समय पर मिलने वाली सब्सिडी इत्यादि के बारे में विस्तार से बताया जाता है। परंतु आजकल कुछेक नए मुद्दे ऐसे हैं जो आजकल सामने आ रहे हैं तथा वह हैं किसानों की ऋणग्रस्तता तथा किसानों में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति।
कृषि की आधुनिक मशीनों को खरीदने के लिए किसान कर्जा लेते हैं। परंतु जब वह कर्जा वापिस नहीं कर पाते हैं तो वह आत्महत्या कर लेते हैं। इसके साथ बढ़ती लागत, कृषि का विस्तार, राज्य द्वारा कृषि के विकास के लिए किए जाने वाले कार्य ऐसे मुद्दे हैं जो आजकल के समाचारों की सुर्खियां बन रहे हैं।
प्रश्न 18.
भूमि चकबंदी पर निबंध लिखें।
उत्तर:
भूमि सुधार की तीसरी मुख्य श्रेणी में भूमि की चकबंदी या हदबंदी के कानून थे। इन कानूनों के अनुसार एक विशेष परिवार के लिए कृषि योग्य भूमि रखने की उच्चतम सीमा निर्धारित की गई। प्रत्येक क्षेत्र में हदबंदी भूमि के प्रकार, उपज तथा कई अन्य प्रकार के कारकों पर निर्भर थी। जो ज़मीन अधिक उपजाऊ थी, उसकी हदबंदी कम थी परंतु कम उपजाऊ भूमि की तथा बिना पानी वाली भूमि की हदबंदी अधिक सीमा तक थी।
यह राज्यों का कार्य था कि वह निश्चत करे कि अतिरिक्त भूमि (हदबंदी सीमा से अधिक भूमि) को वह अधिगृहित कर लें और इसे भूमिहीन परिवारों को तय की गई श्रेणी के अनुसार दोबारा वितरित कर दें जैसे कि अनुसूचित जातियों व जनजातियों। परंतु अधिकतर राज्यों में यह कानून दंतविहीन ही साबित हुए हैं।
इसमें बहुत से ऐसे बचाव के रास्ते थे जिससे परिवारों व घरानों ने अपनी भूमि को राज्यों को देने से बचा लिया। लोगों ने अपनी बच्चों के नाम पर भूमि कर दी तथा अधिकतर मामलों में उन्होंने अपने रिश्तेदारों, नौकरों तथा कई स्थानों पर तो बेनामी स्थानों पर भूमि की मल्कियत बदल दी।
निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
ज़मींदारी प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं? ज़मींदारी व्यवस्था की विशेषताओं तथा दोषों का वर्णन करो।
अथवा
जमींदारी व्यवस्था में भारतीय समाज पर दुष्परिणामों की व्याख्या करें।
उत्तर:
हमारे देश में आजादी से पहले कृषि के क्षेत्र में ज़मींदारी प्रथा प्रचलित थी। आज़ादी के समय कृषि योग्य कुल भूमि में से 25% अर्थात एक चौथाई भाग पर ज़मींदारी व्यवस्था प्रचलित थी। ज़मींदारी व्यवस्था ब्रिटिश शासन काल में लार्ड कार्नवालिस ने 1793 में बंगाल में शुरू की। इस व्यवस्था के अंर्तगत ज़मींदार भूमि का स्वामी होता है पर यह जरूरी नहीं कि वह अपनी भूमि पर स्वयं ही कृषि करे। कृषि करने के लिए वह अपनी भूमि किसानों को दे देता था।
वह किसानों से लगान इकट्ठा करता था तथा सरकार को राजस्व या कर देता था। ब्रिटिश सरकार ने ज़मींदारों को बड़े-बड़े भू-भाग का स्वामित्व प्रदान किया ताकि उन्हें ज़मींदारों से राजस्व के रूप में निश्चित पैसा नियमित रूप से मिलता रहे। ज़मींदारों की संख्या कम होने के कारण उनसे संपर्क रख पाना भी आसान था। ज्यादातर मामलों में ज़मींदारों ने स्वयं कृषि करने की जगह भूमि काश्तकारों को पट्टे पर दे दी।
काश्तकारों में से भी ज्यादातर ने आगे कई व्यक्तियों को भूमि सौंप दी। इस तरह ज़मींदार की भूमि बहुत सारे काश्तकारों तथा उप-काश्तकारों में बंटती चली गई। हरेक उप-काश्तकार उत्पादन में से निश्चित मात्रा में अनाज या धनराशि के रूप में काश्तकार को लगान देता था तथा इस तरह प्रथम काश्तकार ज़मींदार को निश्चित लगान देता था जिसमें से ज़मींदार सरकार को राजस्व का भुगतान करता था। ज़मींदार प्रथा बंगाल के अलावा उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार तथा मद्रास राज्यों में प्रचलित थी।
ज़मींदारी प्रथा की विशेषताएं (Characteristics of Zamindari System)-ज़मींदारी प्रथा की विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
- ज़मींदारी प्रथा की सबसे पहली विशेषता यह है कि भूमि की मलकीयत ज़मींदार के पास ही रहती थी चाहे वह आगे काश्तकारों या उप-काश्तकारों को पट्टे पर दी हुई थी।
- इस प्रथा में भूमि पर कृषि ज़मींदार खुद नहीं किया करते थे बल्कि यह उन्होंने आगे काश्तकारों को पट्टे पर दी होती थी।
- काश्तकार भी कई बार खुद कृषि नहीं किया करते थे बल्कि वह भी आगे भूमि उप-काश्तकारों को कृषि करने के लिए दिया करते थे।
- यहां पर काश्तकार ज़मींदार को या तो अपनी तरफ से या उप-काश्तकारों से लगान इकट्ठा करके दिया करते थे।
- ज़मींदार काश्तकारों से लगान इकट्ठा करके सरकार को राजस्व या कर का भुगतान किया करता था।
- इस में भूमि के असली काश्तकार तथा सरकार के बीच कोई सीधा संपर्क नहीं होता था।
- क्योंकि असली काश्तकार तथा सरकार के बीच कोई सीधा संबंध नहीं होता था इसलिए ज़मींदार इन दोनों के बीच मध्यस्थ या बिचौलिए की भूमिका निभाता था।
- ज़मींदार जो लगान इकट्ठा करता था तथा सरकार को जो राजस्व का भुगतान करता था उसमें भारी अंतर होता था क्योंकि उसे
- एक बंधी हुई धनराशि सरकार को देनी होती थी पर वह अपनी मनमर्जी से काश्तकारों से लगान वसूल करता था।
- इस व्यवस्था में ज़मींदारों द्वारा काश्तकारों तथा उप-काश्तकारों का बहुत ज्यादा शोषण होता था क्योंकि ज़मींदार काश्तकारों से अपनी मनमर्जी का लगान वसूल करते थे।
- काश्तकारों का बाढ़, अकाल, सूखे आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं में ज़मींदार या सरकार की तरफ से सुरक्षा का अभाव होता था क्योंकि जमींदार या सरकार को सिर्फ लगान से मतलब होतालथा।
- काश्तकार भूमि के रख-रखाव तथा भूमि की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने के प्रति उदासीन होते थे क्योंकि उन को पता होता था कि यह भूमि जिस पर वह कृषि कर रहे हैं यह उनकी अपनी नहीं है तथा यह कभी भी उनके हाथ से जा सकती है।
- इस प्रथा में ज़मींदारों में कई बुराइयां आ गई थीं क्योंकि उनके पास पैसा आने लग गया था जिस वजह से उन्होंने विलासिता में अपना जीवन शुरू कर दिया था।
ज़मींदारी प्रथा के दोष (Demerits of Zamindari System)-
- जमींदारी प्रथा का सबसे बड़ा दोष यह था कि भूमि का छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजन हो जाता था क्योंकि भूमि काश्तकारों से आगे उप-काश्तकारों में बंट जाती थी।
- काश्तकारों में पट्टे की भूमि पर सुरक्षा का अभाव होता था क्योंकि उन्हें पता होता था कि यह ज़मीन उनकी अपनी नहीं है, पता नहीं है कि कब यह ज़मीन उनके हाथ से निकल जाए।
- लगान के प्रतिशत में निश्चितता तथा किसी प्रकार के नियमों का अभाव होता था क्योंकि ज़मींदार तो सरकार को एक निश्चित रकम लगान के रूप में दिया करते थे पर वह काश्तकारों से अपनी मर्जी के अनुसार लगान वसूल किया करते थे। कई बार तो यह उत्पादन का आधा भाग होता था।
- इस प्रथा में असली कृषकों का शोषण हुआ करता था क्योंकि उनके द्वारा उत्पादित चीज़ों का ज्यादातर भाग जमींदार लगान के रूप में ले जाया करता था।
- असली कृषकों के पास भूमि का स्वामित्व नहीं होता था क्योंकि भूमि तो उनको पट्टे पर मिली होती थी जो कभी भी छिन सकती थी।
- सरकार का असली कृषकों के साथ कोई प्रत्यक्ष संपर्क नहीं होता था क्योंकि सरकार का संबंध तो सिर्फ ज़मींदार से हुआ करता था।
- जमींदार किसानों से लगान की उच्च दर वसूलते थे। कभी-कभी तो यह कुल उपज का दो तिहाई भाग भी होता था।
प्रश्न 2.
हरित क्रांति के आने से क्या-क्या समस्याएं उत्पन्न हुईं? उनका वर्णन करो।
उत्तर:
आजादी के बाद भारत की सबसे बड़ी समस्या थी देश की बढ़ रही जनसंख्या के लिए खाद्यान्न उत्पन्न करने की। 1950 से लेकर 1960 तक के सालों में भारत को अपनी जनता की खाद्यान्न की ज़रूरत पूरा करने के लिए बाहर के देशों या विदेशों से खाद्यान्न आयात करना पड़ता था। परंतु उस समय सरकार के सामने यह प्रश्न था कि देश की खाद्यान्न की ज़रूरत को कैसे पूरा किया जाए। इसलिए कई कमेटियां बनाई गईं तथा उन सब कमेटियों को ध्यान में रखते हुए जो कुछ भी सरकार ने किया उसका परिणाम हमारे सामने आया हरित क्रांति के रूप में।
हरित क्रांति के पहले ही साल भारत का खाद्यान्न का उत्पादन 25% तक बढ़ गया। इस तरह हरित क्रांति ने न सिर्फ देश की खाद्यान्न की ज़रूरत को पूरा किया बल्कि देश में इतना खाद्यान्न होने लग गया कि भारत इसे बाहर के देशों को भी भेजने या निर्यात करने लग गया। हरित क्रांति के हमारे देश को बहुत से फायदे हुए पर इन फायदों के साथ-साथ कुछ समस्याएं भी पैदा हो गईं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-
(i) सीमित प्रदेश (Limited States) सबसे पहली समस्या हरित क्रांति के साथ यह हुई कि यह सिर्फ कुछ एक प्रदेशों में आई न कि पूरे भारत में। जिन राज्यों में सिंचाई के साधन काफ़ी अच्छे थे जैसे पंजाब, हरियाणा वहां पर हरित क्रांति ने जबरदस्त बदलाव ला कर रख दिया परंतु बहुत से प्रदेश इस हरित क्रांति से अछूते ही रहे।
जिन राज्यों में हरित क्रांति आई वह आर्थिक रूप से काफ़ी समृद्ध हो गए पर जिन राज्यों में यह नहीं आई वह आर्थिक रूप से पिछड़े ही रहे। इस तरह आर्थिक स्तर पर क्षेत्रीय असमानता फैल गई। उदाहरण के तौर पर पंजाब जैसा छोटा-सा प्रदेश देश का सबसे अमीर प्रदेश बन गया था। इस तरह सिर्फ उन राज्यों में ही कृषि का विकास हुआ जो पहले ही कृषि के क्षेत्र में उन्नत थे। जो राज्य पहले भी कृषि में पिछड़े हुए थे वे अब भी पिछड़े हुए हैं।
(ii) सीमित फसलें (Limited Number)- इस हरित क्रांति का एक और दोष यह रहा कि यह सिर्फ कछ एक फसलों तक ही सीमित रही। इसके क्षेत्र में सभी फसलें नहीं आईं। इस वजह से सिर्फ गेहूँ, चावल, ज्वार, मक्का, बाजरा इत्यादि फसलों का उत्पादन बढ़ा। व्यापारिक महत्त्व की फसलें जैसे कपास, चाय, जूट इत्यादि के उत्पादन में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई। इन फसलों में स्थिति ज्यों की त्यों बनी रही। इस तरह कुछ एक फसलों को छोड़ कर यह और क्षेत्रों में क्रांति नहीं ला पायी।
(iii) अमीर किसानों को ज्यादा लाभ-हरित क्रांति से एक और समस्या उभर कर सामने आई कि इसने सिर्फ अमीर किसानों को ही ज्यादा लाभ पहुंचाया। ग़रीब किसानों की हालत में इससे कोई सुधार नहीं हुआ। इसका कारण यह है कि हरित क्रांति लाने के लिए यह जरूरी है कि आप ट्रैक्टर, नए उन्नत बीजों. नए रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करें। अगर आप इनका प्रयोग नहीं करेंगे तो आपके लिए हरित क्रांति का कोई फायदा नहीं होगा।
इस तरह इन सब के लिए पैसे की ज़रूरत थी और पैसा सिर्फ अमीर किसान ही खर्च कर सकते थे। अमीर किसानों ने पैसा खर्च किया और वे ज्यादा अमीर हो गए। जिन किसानों के पास 10-15 एकड़ तक से ऊपर तक की जमीन थी वहे तो हरित क्रांति से काफ़ी ज्यादा लाभ ले गए पर जिनके पास 5 एकड़ से कम भूमि थी उनकी स्थिति और भी खराब हो गई। इस तरह बड़े किसानों के लिए तो यह हरित क्रांति सिद्ध हुई पर छोटे किसानों को फायदे की बजाए नुकसान ही हुआ।
(iv) आर्थिक असमानता का बढ़ना-हरित क्रांति ने आर्थिक असमानता को भी बढ़ाया। बड़े-बड़े किसान जो पैसा खर्च कर सकते थे उन्होंने पैसा खर्च किया तथा उससे और ज्यादा पैसा कमाया पर जिन किसानों के पास ज़मीन कम थी या जो छोटे किसान थे उनको इससे कोई फायदा नहीं हुआ और उनकी स्थिति जैसी की तैसी बनी रही। इस तरह एक तरफ बढ़ती अमीरी तथा दूसरी तरफ बढ़ती ग़रीबी या जस की तस की स्थिति से आर्थिक असमानता में बहुत ज्यादा वृद्धि हुई।
इस तरह हम हरित क्रांति का सही लाभ तभी उठा सकते हैं जब इसका सही लाभ सभी वर्गों को प्राप्त हो न कि कुछ वर्गों को। अगर इसका लाभ सिर्फ कुछेक वर्गों को हुआ तो इस प्रकार की क्रांति का कोई फायदा नहीं है।
प्रश्न 3.
आज़ादी के बाद भारत में कौन-से भूमि सुधार किए गए? इन सुधारों के क्या परिणाम निकले?
अथवा
भूमि सुधार के चार लाभ बताएँ।
अथवा
भारत में भूमि सुधारों की व्याख्या करें।
उत्तर:
भारत में भूमि सुधार (Land Reforms in India)-आज़ादी से पहले भूमि, कृषि, कृषक बीच की कड़ियों व सरकार के बीच संबंधों के दोषों को देखते हुए इनमें तुरंत परिवर्तन करना अनिवार्य था। भारत स्वतंत्रता के समय अविकसित राष्ट्र था। उद्योगों का बहुत कम विकास हो पाया था। तकनीक व विज्ञान क्षेत्र भी पिछड़ा हुआ था। देश तथा लोगों की आय का मुख्य साधन कृषि करना ही था। उस समय 80 प्रतिशत से अधिक लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते थे।
जो अधिकतर कृषि कार्य करते थे। गांव में उच्च निम्न-संपन्न वर्ग को छोड़कर अन्य लोगों की आर्थिक-सामाजिक स्थिति दयनीय थी। इससे निपटने के लिए सरकारी एवं गैर-सरकारी स्तर पर प्रयास अति आवश्यक थे ताकि कृषि संबंधों में सुधार लाया जा सके। सरकार ने भूमि व्यवस्था व कृषि संबंधों को सुधारने संबंधी कानूनों का निर्माण किया।
इन्हें लागू किया, विनोबा भावे तथा अन्य कई सामाजिक कर्ताओं ने जन-आंदोलनों के माध्यम से कृषि संबंधों को सुधारने में सराहनीय योगदान दिया। देश में भूमि सुधार के उद्देश्य से किए गए प्रयासों व कार्यों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है-
1. भूमि की चकबंदी (Consolidation of Land)-देश में लाखों किसानों की भूमि इधर-उधर बिखरी पड़ी थी। खेत दूर-दूर थे। इस प्रकार उन्हें एक स्थान पर उनकी भूमि के बराबर भूमि मुहैया करवाई गई ताकि कृषि करने में उन्हें कठिनाई न हो।
2. सहकारी कृषि को प्रोत्साहन (To Encourage Co-operative Farming)-विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में सहकारी कृषि को प्रोत्साहित किया गया है। फलस्वरूप वर्तमान समय में देश में दस हज़ार सहकारी समितियों के अंतर्गत लाखों सदस्य लाखों हेक्टेयर भूमि पर सहकारी कृषि कर रहे हैं।
3. बिचौलियों का उन्मूलन (Abolition of Intermediaries)-सरकार ने स्वतंत्रता के पश्चात् कृषक एवं राज्य के बीच बिचौलियों/मध्यस्थों के उन्मूलन के लिए कानूनों का निर्माण किया। 1948 में सर्वप्रथम चेन्नई राज्य ने ऐसा कानून बनाया। पश्चिमी बंगाल में ज़मींदारों तथा अनुपस्थित भू-स्वामियों के रूप में कृषि क्षेत्र में बिचौलिया प्रथा विकट रूप में थी, सबसे पहले ज़मींदारी व्यवस्था इसी राज्य में प्रारंभ की गई।
ज़मींदारी उन्मूलन कानून का निर्माण इस प्रदेश में 1954-55 में किया गया। साम्यवादी राज्यों-रूस व चीन के विपरीत भारत में ज़मींदारों से भूमि लेने के बदले उन्हें मुआवजा दिया जाने लगा। केरल में मुआवजे की राशि “मार्किट मूल्य” के समान थी, इस तरह अरबों रुपये की धन राशि बिचौलियों को देनी पड़ी।
4. भूमि-स्वामित्व के अभिलेख (Records of Land-ownership)-भूमि-स्वामित्व संबंधी रिकार्ड का सही रख-रखाव किया जाने लगा। अधिकतर राज्यों ने भू-स्वामित्व अभिलेख ठीक कर लिए हैं। हिमाचल प्रदेश ने तो सन् 2000-2001 में किसान पुस्तकें तैयार की हैं। जिनमें उनकी भूमि-संबंधी पूरी सूचना दी गई है ताकि किसानों को अपनी भूमि संबंधी जानकारी रहे।
5. जोतों की सीमाओं का निर्धारण (Ceiling of Holdings)-अधिकतम सीमा जोतों में निर्धारित की गई। ऐसी सीमा निर्धारण संबंधी विभिन्न राज्यों में अधिनियम दो चरणों में बनाए गए। प्रथम सन् 1972 से पूर्व तथा द्वितीय 1973 व उसके पश्चात् निर्मित कानून। हरियाणा एवं पंजाब में 1973 से पूर्व सिंचाई एवं गैर-सिंचाई वाली भूमि क्रमशः 27 एवं 100 एकड़ तक रखने की अनुमति थी, जबकि 1973 के पश्चात् यह सीमा क्रमशः 18 एकड़ तथा 27 एकड़ कर दी गई। जबकि हिमाचल प्रदेश में 1973 के पश्चात् जोत सीमा क्रमशः 10 एकड़ तथा 15 एकड़ तय की गई।
6. काश्तकारी व्यवस्था में सुधार (Reform in Tenancy System)-पट्टेदारों को स्वतंत्रता से पूर्व सामान्य उत्पादन का आधा तथा कई मामलों में तीन-चौथाई भाग लगान के रूप में देना होता था। मगर प्रथम पंचवर्षीय योजना में यह सिफारिश की गई कि पट्टेदार से लगान के रूप में 20-25 प्रतिशत से अधिक न लिया जाए।
तत्पश्चात् विभिन्न राज्यों द्वारा अधिनियम पारित किए गए व अधिकांश राज्यों में लगान प्रतिशत 25 प्रतिशत या इससे कम है। कुछ एक राज्यों (जैसे तमिलनाडु में सिंचित एवं शुष्क भूमि के लिए लगान दर 45% तथा 25% है।) में इससे अधिक लगान भी लिया जाता है। पट्टेदारों को पट्टे का स्वामित्व प्रदान किया गया है उन्हें पट्टे की सुरक्षा भी प्रदान की गई।
7. भू-स्वामित्व के अभिलेख (Records of Land-ownership)-भू-स्वामित्व संबंधी रिकार्ड का सही रख रखाव किया जाने लगा। ज्यादातर राज्यों ने भू-स्वामित्व अभिलेख ठीक कर दिये। हिमाचल प्रदेश ने तो सन् 2000-01 में किसान पुस्तकें तैयार की हैं जिसमें उनकी भूमि संबंधी पूरी सूचना दी गई है ताकि किसानों को अपनी भूमि संबंधी जानकारी रहे।
सरकारी एवं गैर-सरकारी प्रयासों का परिणाम (Consequences of Governmental and Non-Governmental Efforts)-भारतीय समाज में भूमि सुधारों के उद्देश्य से किये गये सरकारी, गैर-सरकारी प्रयासों के अच्छे परिणाम निकले, जिनका संक्षिप्त ब्यौरा निम्नलिखित है-
- कृषकों के शोषण का अंत हुआ।
- भूमिहीन किसानों को भू-स्वामित्व प्राप्त हुआ।
- सामंतवाद का अंत हो गया।
- कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई।
- लाखों कृषक सरकार के प्रत्यक्ष संपर्क में आये।
- भूमि के असमान वितरण में भारी कमी आई।
- सरकार की आय में वृद्धि हुई।
- कृषकों की आर्थिक दशा में सुधार हुआ।
- भूमि के अभिलेखों का ठीक रख-रखाव होने लगा।
- देश की अर्थ व्यवस्था सुदृढ़ हुई।
- कृषि में किसानों द्वारा पूंजी निवेश में रुचि बढ़ी, भूमि का विकास किया जाने लगा।
- भूमिहीन किसानों की भूमि वितरण से व्यर्थ तथा बंजर भूमि का सदुपयोग होने लगा।
- लगान का नियमन किया गया।
प्रश्न 4.
हरित क्रांति क्या है? इसके कौन-से प्रमुख आधार हैं?
अथवा
हरित क्रांति के प्रमुख आधार कौन-कौन से हैं? सविस्तार वर्णन करें।
उत्तर:
हरित क्रांति कृषि उत्पादन को बढ़ाने का एक नियोजित एवं वैज्ञानिक तरीका है। पंचवर्षीय योजनाओं का मूल्यांकन करने के पश्चात् यह स्पष्ट हो गया कि यदि हमें खाद्यान्न में आत्म-निर्भरता प्राप्त करनी है तो उत्पादन संबंधी नवीन तरीकों व तकनीकों का प्रयोग करना होगा। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए भारतवर्ष में सन् 1966-67 में कृषि में तकनीकी परिवर्तन आरंभ हुए। इसके अंतर्गत अधिक उपज वाली नयी किस्मों (विशेषतः गेहूँ व चावल की खेती आती है।) सिंचाई के विकसित साधनों तथा कीटनाशक दवाओं का प्रयोग किया जाने लगा।
कृषि में उन्नत साधनों के प्रयोग को ही ‘हरित क्रांति’ का नाम दिया गया। यहां पर हरित शब्द ग्रामीण क्षेत्रों के हरे भरे खेतों के लिये प्रयुक्त हुआ है और क्रांति व्यापक रूप से परिवर्तन को दर्शाती है। हरित क्रांति के पहले चरण में गहन कृषि जिला कार्यक्रम शुरू किये गये जिसके अंतर्गत पहले तीन ज़िलों और बाद में सौलह-ज़िलों को शामिल किया गया। चुने गये जिलों में कृषि की उन्नत विधियां, खाद्य बीज एवं सिंचाई का एक साथ प्रयोग करने के कारण इस कार्यक्रम को पैकेज प्रोग्राम भी कहा गया।
सन् 1967-68 में इस कार्यक्रम को देश के अन्य भागों में भी शुरू कर दिया गया। लेकिन उसमें विस्तार कार्य के लिए स्टाक छोटे पैमाने पर रखा गया है। इसी कारण इसे गहन कृषि क्षेत्रीय कार्यक्रम भी कहा गया है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत किसानों को कृषि संबंधी नई तकनीक, ज्ञान, साख, एवं उत्पादन के नवीन साधनों का वितरण किया गया ताकि कृषि उत्पादन में अधिक-से-अधिक वृद्धि की जा सके।
हरित क्रांति के प्रमुख आधार (Main bases of Green Revolution)
1. उत्पाद का सही मूल्य (Determination of Price of Produce)-सरकार ने किसानों को उनके उत्पादन का सही मूल्य दिलाने, शोषण से छुटकारा पाने तथा मूल्यों में आने वाली गिरावट से सुरक्षा प्रदान कराने के लिये उचित मूल्य की गारंटी दी है। इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए कृषि मूल्य आयोग की स्थापना की गई। यह आयोग समय-समय पर उपज की वसूली और खरीद मूल्य के बारे में सुझाव देता रहता है।
2. पशु-पालन विकास (Development of Animal Husbandry) देश में पशुओं की नस्ल सुधार उनके रोगों की रोकथाम, दुधारू एवं उन्नत नस्ल पशुओं का विकास, भेड़ पालन, सुअर पालन, मुर्गी पालन एवं डेयरी विकास को विशेष महत्त्व दिया गया है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में पशु-पालन व कृषि का गहरा संबंध है। कृषि उत्पादकता में तभी वृद्धि की जा सकती है यदि हमारा पशु पालन सही व उन्नत तरीकों पर आधारित हो।
अन्यथा नहीं। भारत में डेयरी विकास तथा ग्रामीण रोजगार व आय में वृद्धि करने के उद्देश्य से सन् 1988 में डेयरी विकास के टेकनोलोजी मिशन की स्थापना की गई। 1966-1976 में दग्ध उत्पादन 6.8 करोड से बढ़ 1997-98 में 7.2 करोड़ टन हो गया। यह पश-पालन को बढ़ावा देने के कारण संभव हो
3. निगमों की स्थापना (Establishment of Corporation षि के विकास के लिये विभिन्न प्रकार के कृषि उपकरण तथा मशीनों एवं गोदामों की व्यवस्था के लिये सरकार ने कृषि उद्योग निगम (Agricultural Industry Corporation) की स्थापना की। इसी के साथ कृषि में उत्पादित माल की ब्रिकी प्रोसेसिंग एवं संग्रह के लिये 1953 में राष्ट्रीय सरकारी विकास निगम की स्थापना की गई। उन्नत बीजों की बिक्री के लिये राष्ट्रीय बीज निगम तथा भारतीय राजकीय कार्य निगम स्थापित किये गये हैं। अनेक राज्यों ने भी अपने बीज निगम खोले हैं। राष्ट्रीय बीज निगम के अनाज, तिलहन, दाल इत्यादि के प्रमाणित बीज तैयार किये हैं।
4. कीटनाशक औषधियों का प्रयोग (Use of Insecticides)-ऐसा अनुमान है कि फसलों का एक चौथाई भाग कीटनाशकों, पतंगों, चूहों इत्यादि द्वारा नष्ट किया जाता है। फ़सलों को कीड़े-मकोड़ों से होने वाली हानि से बचाने के लिये ये आवश्यक है कि कीटनाशक दवाओं का प्रयोग किया जाये ताकि उत्पादन को बढ़ाया जा सके। हरित क्रांति में कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिये यह एक उत्तम उपाय है। पौधों की सुरक्षा के लिये दवाओं का प्रयोग किया जाए ताकि पेड़-पौधे समय से पहले नष्ट न हों। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए पौध संरक्षण केंद्रों की स्थापना की गई।
5. बहु फ़सल कार्यक्रम (Multi Crop Programme) बहु फ़सल कार्यक्रम के अंतर्गत थोड़े समय में पक कर तैयार हो जाने वाली फ़सलें बोई जाती हैं। जैसे-सब्जियां, मक्का, ज्वार, बाजरा इत्यादि। हरित क्रांति में अधिक उपज देने वाली किस्मों के साथ-साथ अल्पाविधि वाली फ़सलें भी विकसित की गईं। फ़सलों के नये तरीके भी अपनाये गये, जिससे पैदावार में काफ़ी वृद्धि हुई। वर्तमान समय में लगभग 930 हैक्टेयर भूमि पर बहु फ़सल कार्यक्रम को लागू किया गया है तथा इसके सकारात्मक परिणाम भी आये हैं।
6. सिंचाई को बढ़ावा (Promotion of Irrigation) किसान की कृषि कार्य के लिये वर्षा पर निर्भरता कम करने के लिये बड़ी-बड़ी सिंचाई परियोजनाएं प्रारंभ की गईं। डैम बनाये गये नहरें खुदवाई गईं, लघु सिंचाई परियोजनाएं प्रारंभ की गईं। इन परियोजनाओं में भू-गर्भ जल योजना पंपसैट, निजी ट्यूब्वेलों, फिल्टर प्वाईंट आदि का विकास किया गया।
इन योजनाओं के कारण भूमि की सिंचाई में काफ़ी विकास हुआ तथा पैदावार में भी वृद्धि हुई। लघु सिंचाई कार्यक्रम के दौरान 1970-71 में जहां 207 हैक्टेयर भूमि की सिंचाई की गई। वहीं 1997 98 में 14.4 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई लघु सिंचाई कार्यक्रम के तहत की गई। वर्तमान समय में किसानों की निजी पंपसैटों एवं ट्यूब्वेलों की संख्या में दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है।
7. भूमि सुधार (Land Reforms) भूमि सुधारों की देश में हरित क्रांति लाने में विशेष भूमिका रही है। कानूनों द्वारा अधिकतम भूमि रखने की सीमा तय की गई। भूमि की चकबंदी की गई। भूमि संबंधी अभिलेख (Records) तैयार किये गये। जमींदारों से फालतू भूमि लेकर भूमिहीन किसानों में बांटी गई।
8. यांत्रिक खेती (Mechanical Farming) यांत्रिक खेती को प्रोत्साहन देने तथा किसानों को आधुनिक कृषि संबंधी मशीनें, ट्रैक्टर, इत्यादि खरीदने के लिये सरकार अन्य सहायता प्रदान करती है। सस्ती दर पर ऋण देती है तथा इसका मुख्य उद्देश्य देश भर में खेती की उत्पादकता को बढ़ावा तथा किसानों में सामाजिक व आर्थिक असमानता को दूर करना है।
सरकार के इन प्रयासों के फलस्वरूप ही किसान कृषि मशीनरी का प्रयोग कर पाया जिससे पैदावार में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। 1997-98 की अवधि में ट्रैक्टरों में, 2,51,200 तथा 13,100 पावर टिलरों का निर्माण हुआ जोकि पहले की तुलना में अधिक है। 9वीं पंचवर्षीय योजना में भी इन उपकरणों को अधिक लोकप्रिय बनाने तथा इनके उपयोग पर बल दिया गया।
9. उर्वरकों का अधिक प्रयोग (More use of Fertilizers) उत्पादन को बढ़ाने के लिये रासायनिक उर्वरकों का अधिक से अधिक प्रयोग किया जाने लगा है। देश भर में रासायनिक खाद के उत्पादन के लिये पूर्व स्थापित कारखानों की उत्पादन क्षमता को भी बढ़ाया गया। कई नयी इकाइयों की स्थापना की गई। उर्वरकों का आयात किया जाने लगा। नाइट्रोजन, यूरिया, अपनी मांग का, तथा पोटाश के खादों के उपयोग के नये स्तर प्राप्त किये गये।
देश में 1986-87 में खादों का प्रयोग 86.4 लाख टन था जो बढ़कर 1997-98 में 163 लाख टन हो गया है। भारत केवल मात्र अपनी मांग का 60 प्रतिशत ही पूरा कर पाता है जबकि 40 प्रतिशत खादों के लिये विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है।
10. उन्नत बीजों का प्रयोग (Use of high yield variety seeds)-अधिक उपज देने वाला कार्यक्रम 1982-83 में 4 करोड़ 77 लाख हेक्टेयर पर भूमि में लागू किया गया है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत गेहूँ, धान, मक्का, ज्वार, बाजरा आदि की फ़सलों को चुना गया। परंतु सबसे अधिक सफलता गेहूँ को प्राप्त हुई। इसके साथ ही सन् 1990-91 में चावल, गेहूँ, मक्का तथा दालों का. उत्पादन 17.63 करोड़ टन था जो 1997-98 में बढ़कर 19.11 करोड़ टन हो गया।
वर्तमान समय में देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन 20 करोड टन से अधिक ‘होने लगा है। इस कार्यक्रम के तहत नयीं विकसित तकनीकों के साथ-साथ रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशक दवाओं तथा अन्य साधनों का प्रयोग भी किया जाता है जिससे फ़सलों के उत्पादन में और भी वृद्धि होती जाती है। पंजाब, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश में अधिक उपज देने वाली अनाज की किस्मों में वृद्धि होती जा रही है।
उपर्युक्त विश्लेषण के आधार पर यह स्पष्ट है कि हरित क्रांति के अंतर्गत अधिक उपज देने वाली फ़सलों का विकास, रासायनिक खादों का अधिक प्रयोग, कीटनाशक दवाओं का प्रयोग, यांत्रिक खेती, लघु सिंचाई सुविधाओं का विकास, भूमि सुधार, पशु पालन का विकास तथा कृषि उत्पादन का उचित मूल्य निर्धारण इत्यादि अनेक कार्यक्रमों को शामिल किया गया है। इन सब कार्यक्रमों का संयुक्त उद्देश्य कृषि उत्पादन में वृद्धि करना ही है।
प्रश्न 5.
हरित क्रांति के सामाजिक, आर्थिक प्रभावों का वर्णन करो।
अथवा
भारतीय समाज पर हरित क्रांति के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
अथवा
जहाँ हरित क्रांति लागू हुई, उन क्षेत्रों में (विशेषकर ग्रामीण) सामाजिक संबंधों में क्या परिवर्तन देखे गए?
उत्तर:
हरित क्रांति ने देश की उत्पादकता में काफ़ी वृद्धि की है। इसके परिणामस्वरूप देश की खाद्यान्नों के उत्पादन में बहुत बढ़ोत्तरी हुई। साथ ही गैर-पारंपरिक (Traditional) फ़सलों जैसे-सोयाबीन, सूरजमुखी, ग्रीष्मकालीन मूंग, मूंगफली आदि को बढ़ावा दिया गया। हरित क्रांति के कारण ही खाद्यान्नों का उत्पादन जो 1967-68 में 9.5 करोड़ टन था, वह 1997-98 में बढ़कर 19.11 तथा 2002-03 में 21 करोड़ टन हो गया। इन लाभों के बावजूद हरित क्रांति के साथ कुछ एक नयी समस्याएं भी उत्पन्न हुईं जो निम्नलिखित हैं-
1. वर्ग संघर्ष (Class Struggle) हरित क्रांति के प्रभाव के कारण गांवों में पाई जाने वाली वर्ग व्यवस्था में भी परिवर्तन आया है। क्रांति के लाभों के कारण जो किसान मज़दूर वर्ग की श्रेणी में आये थे, अब आर्थिक रूप से संपन्न और उच्च वर्ग की श्रेणी में आने लगे हैं। इसमें ग्रामों की परंपरागत वर्ग व्यवस्था परिवर्तित हो रही है। इसके साथ ही आर्थिक संपन्नता के आधार पर ये खेतीहर मजदूर वर्ग अब राजनीतिक शक्ति भी प्राप्त करना चाह रहे हैं जो पहले भू-स्वामियों और उच्च जातियों में निहित थी। अतः ग्रामों में वर्ग संघर्ष एवं जातीय संघर्ष हरित क्रांति का परिणाम माना जा रहा है।
2. खाद्यान्नों की कीमत में वृद्धि (Increase in the Price of food-grains) हरित क्रांति के परिणामस्वरूप कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुई है। परंतु रासायनिक खादों, बीजों, कीटनाशक औषधियों एवं नये कृषि यंत्रों के महंगा होने के कारण कृषि उपज की लागत में वृद्धि हुई है। फलस्वरूप छोटे व सीमांत किसान इन विधियों का प्रयोग नहीं कर पाते जिससे इनका लाभ केवल बड़े किसानों को ही अधिक हो जाता है। महंगी कृषि प्रौद्योगिकी के कारण खाद्यान्नों की कीमतें बढ़ी हैं।
3. खेतीहर मज़दूर और ग़रीब हुए (Agricultural Labourers become Poor)-अनेक विचारकों का मत है कि हरित क्रांति के प्रभावों के परिणामस्वरूप गांवों में बेकारी और बेरोज़गारी की समस्या बड़ी है। खेतीहर मज़दूरी की वास्तविक मज़दरी भी कम हई है। प्रणव वर्धन के “पंजाब और हरियाणा” के 15 जिलों के अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकला है कि हरित क्रांति के कारण खेतीहर श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी कम हुई है। इसी प्रकार अन्य विचारक जैसे-उमा श्री वास्तव, आर० डी० क्राऊन तथा ए० ओ० हैडी के अध्ययनों से इस बात का पता चलता है कि भारत जैसे देश में कृषि में यंत्रीकरण की यह नीति उचित नहीं है। इससे कृषक की स्थिति निम्न ही रही है।
4. राजनीतिक प्रभाव (Political Impact) हरित क्रांति के परिणामस्वरूप धनी किसान राजनीतिक दृष्टिकोण से भी अधिक शक्तिशाली बन गये हैं। धनी किसान समय-समय पर भूमि संबंधी सुधार अधिनियमों को लागू करने में रुकावट पैदा करते हैं, जिसके कारण भू-सुधार कानूनों को लागू करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। बिहार राज्य में छोटे एवं मध्यम दर्जे के किसानों ने नयी तकनीक का प्रयोग करके अपनी कृषि आय में वृद्धि कर ली है, जिससे वह राजनीतिक शक्ति को भी मजबूत करने में लगे हुए हैं।
5. उन्नत कृषि प्रौद्योगिकी छोटे किसानों की पहुंच से बाहर होती गई (Advance Technology become beyond the reach of Small Farmers)-हरित क्रांति में लघु और ग़रीब किसानों, भूमिहीन कृषि मजदूरों की सामाजिक आर्थिक स्थिति और कमजोर हुई है। नयी तकनीक, उन्नत बीज, उर्वरक, कीटनाशक दवाएं, सिंचाई आदि जैसे निवेश लघु एवं सीमांत किसानों की पहुंच से बाहर है। इसमें लघु किसानों और धनी किसानों के बीच की दूरी बढ़ गई है।
6. आर्थिक असमानता में वृद्धि (Increase in Economic Inequality)-हरित क्रांति के परिणामस्वरूप विभिन्न क्षेत्रों की आय में असमानता विकसित हुई है। इसका कारण यह है कि अधिक उपज देने वाली किस्मों के बीजों का प्रयोग देश के कुछ ही क्षेत्रों में ही हुआ। जबकि अधिकतर क्षेत्रों में कृषि कार्य परंपरागत तरीकों से ही किये जाते रहे हैं। इन क्षेत्रों में नयी तकनीक व पुरानी तकनीक के प्रयोग के परिणामस्वरूप उत्पादन क्षमता में असमानता विकसित हो गई है और इसी असमानता से विभिन्न क्षेत्रों की आय भी असमान हो गई है। अतः हरित क्रांति ने देश में आर्थिक असमानता को बढ़ावा दिया है।
प्रश्न 6.
ग्रामीण क्षेत्रों में किस प्रकार के वर्ग पाए जाते हैं? उनका वर्णन करो।
उत्तर:
आज़ादी के बाद भारत में तेज़ गति से आर्थिक विकास हुआ है। आर्थिक विकास के लिए नियोजित प्रयास किए जा रहे हैं जिसके फलस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में नए समूह तथा वर्ग विकसित हो रहे हैं जिनमें से प्रमुख वर्गों का वर्णन निम्नलिखित है-
(i) भूस्वामी किसान (Land Owner Farmer)-आज़ादी प्राप्त करने के बाद भारत में आज़ादी से पहले से चली आ रही भूमि व्यवस्थाओं को बदलने के प्रयास किए। ज़मींदारों से कानूनी तरीके से तथा भू-दान आंदोलन द्वारा फालतू ज़मीन लेकर लाखों भूमिहीन किसानों में बांटी गई। प्रत्येक भूमिहीन किसान को एक-एक एकड़ जमीन मुफ्त दी गई। इसके फलस्वरूप लाखों भूमिहीन किसान भू-स्वामी किसान बन गए।
पहले वे ज़मींदारों के लिए जमींदारों की ज़मीन पर कृषि किया करते थे। अब वह अपनी ज़मीन पर खेती करने लगे। 1992 तक 50 लाख लोगों में 50 लाख एकड़ ज़मीन बांटी गई। ज़मीन का मालिक बनने पर किसानों में कृषि कार्यों में रुचि बढ़ी। देश में हरित क्रांति के बाद थोड़ी ज़मीन पर भी अधिक उत्पादन होने लगा जिससे किसानों की आर्थिक दशा सुधरने लगी। उन्नत बीजों, उर्वरकों, कृषि औजारों तथा सिंचाई आदि पर उन्होंने धन निवेश करना प्रारंभ किया। आजकल छोटे से छोटे किसान के पास भी ट्रैक्टर हैं।
(ii) सज्जन किसान (Gentleman Farmer)-सज्जन किसान भी भू-स्वामी किसानों का एक वर्ग है। इन किसानों के पास ज़मींदारों की तरह बड़े-बड़े ज़मीन के टुकड़े नहीं हैं। इनमें ऐसे किसान शामिल होते है, जिन्हें ज़मीन या तो अपने पूर्वजों से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई या फिर उन्होंने खुद ज़मीन खरीदी है। इस किसान वर्ग में काफी ऐसे लोग भी शामिल होते हैं जो सरकारी या गैर-सरकारी नौकरियां करते हैं. सैनिक तथा असैनिक सेवाओं में लगे थे, रिटायर हो चुके हैं, अपना छोटा-छोटा कारोबार करते हैं।
सज्जन किसान गेहूं, मक्की तथा धान इत्यादि की पारंपरिक खेती तो करते हैं इसके अलावा वह फल, फूल, साब्जियां इत्यादि भी उगाते हैं। उन्नत बीजों, उर्वरकों, यांत्रिक हल, सिंचाई सुविधाओं तथा धैशर इत्यादि का प्रयोग करते हैं जिससे उत्पादन तथा उत्पादकता बढ़ती है। इस तरह इनकी खेती में पारंपरिक आधुनिक कृषि प्रणाली के तत्त्व देखे जा सकते हैं।
(iii) मध्यम जातीय एवं मध्यम वर्गीय किसान (Middle Caste and Middle Class Farmer)-स्वतंत्रता के बाद भारतीय समाज के ग्रामीण क्षेत्रों में शक्तिशाली मध्यम जातीय तथा मध्यम वर्गीय किसानों के समूह का विकास हुआ है। इसे मध्यम जातीय इसलिए कहते हैं क्योंकि जातीय संस्तरण में इनकी स्थिति उच्च जातियों से निम्न तथा निम्न जातियों से उच्च है। इस वर्ग को मध्यम वर्गीय किसान भी कहते हैं क्योंकि यह न तो ज़मींदार हैं तथा न ही ये भूमिहीन किसान हैं।
इनकी स्थिति बड़े किसानों तथा भूमिहीन किसानों के बीच की है। औद्योगीकरण तथा नगरीकरण का लाभ उठाने के लिए काफ़ी बड़े-बड़े किसान, उच्च जातियों से संबंधित बड़े किसान नगरों में स्थानांतरित हो गए। उन्होंने उद्योगों की स्थापना करनी प्रारंभ कर दी। ऐसे हालातों में ग्रामीण क्षेत्रों से मध्यम जातीय तथा मध्यम वर्गीय किसान वर्ग विकसित हुआ।
(iv) पूंजीपति किसान (Capitalist Farmer)-अंत में पूंजीपति किसान वर्ग एक ऐसा वर्ग है जो कृषि कार्यों में इस तरह से पूंजी निवेश करता है ताकि अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त किया जा सके। यह वर्ग आजादी से पहले के ज़मींदार वर्ग से अलग है क्योंकि ज़मींदार वर्ग सरकार तथा किसान के बीच विचौलिया हुआ करता था। उत्पादन तथा उत्पादकता बढ़ाने के लिए वह विशेष प्रयास नहीं करता था।
जबकि पूंजीपति किसान खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के लिए ऋण अन्न प्रौद्योगिकी, मंडियों, यातायात तथा दूर संचार के साधनों तथा सस्ते श्रमिकों इत्यादि का प्रयोग करता है। चाहे पूंजीपति किसान वर्ग देश की कुल आबादी का छोटा सा भाग है पर देश की घरेलू खपत तथा निर्यात के लिए खाद्यान्न उत्पादन करने में इस वर्ग की अहम भूमिका है। भू-स्वामी किसान, सज्जन किसान, मध्यम जातीय तथा मध्यम वर्गीय किसान तथा पूंजीपति किसानों के वर्गों का विकास आजादी के बाद हुआ। इस तरह सभी प्रकार के वर्गों का संबंध कृषि से है तथा यह वर्ग मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
प्रश्न 7.
भारत की आज़ादी के बाद ग्रामीण समाज में कौन-से परिवर्तन आए? उनकी व्याख्या करें।
उत्तर:
देश की स्वतंत्रता के बाद जिन-जिन प्रदेशों मे हरित क्रांति आई उन प्रदेशों में ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक संबंधों और प्रकृति में बहुत से बदलाव आए जैसे कि
- अधिक कृषि के कारण कृषि मजदूरों का बढ़ना।
- अनाज के स्थान पर नगद भुगतान।
- प्रारंपरिक बंधनों का कमज़ोर होना अथवा किसान व मजदूर के पुश्तैनी संबंधों में कमी आना।
- मुफ़्त दिहाड़ी मजदूरों के वर्ग का सामने आना।
प्रसिद्ध समाज शास्त्री जान ब्रेमन ने किसानों तथा मजदूरों के संबंधों की प्रकृति में परिवर्तन के बारे में बताया है। यह परिवर्तन उन सभी क्षेत्रों में आए जहां कृषि का व्यापारीकरण हुआ अर्थात जहां फसलों को बाज़ार में वेचने के लिए उगाया गया। कुछ विद्वानों के अनुसार मज़दूर संबंधों में यह बदलाव पूंजीवादी कृषि के काम आया। पूंजीवादी व्यवस्था में उत्पादन, उत्पादन के साधनों, मजदूरों के पृथक्करण तथा मुफ़्त दिहाड़ी मजदूरों के प्रयोग पर आधारित होता है।
आजकल विकसित क्षेत्रों में किसान बाजार के लिए उत्पादन कर रहे हैं। कृषि में व्यापारीकरण के कारण ग्रामीण क्षेत्र विस्तृत अर्थ व्यवस्था से जुड़ रहे हैं। इस कारण गांवों की तरफ पूंजी का निवेश बढ़ा है तथा व्यापार के अवसर व रोजगार बढ़ गए। परंतु हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में यह परिर्वतन अंग्रेजों के समय ही शुरू हो गए थे। 19वीं सदी में महाराष्ट्र में जमीन के बड़े टुकड़ों पर कपास का उत्पादन करके किसानों को सीधे विश्व बाजार से जोड़ दिया गया।
चाहे इसकी गति स्वतंत्रता के बाद तेज़ हुई क्योंकि सरकार ने खाद्यान उत्पादन बढ़ाने के लिए आधुनिक सुविधाएं ग्रामीण क्षेत्रों में मुहईया करवाई। सरकार ने सड़कें, सिंचाई की सुविधाएं तथा सहकारी समितियां उपलब्ध करवाई। ग्रामीण विकास के सरकारी प्रयासों से न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था तथा कृषि में परिर्वतन आए बल्कि कृषक संरचना तथा ग्रामीण समाज में भी परिवर्तन आए। 1960 तथा 1970 के दशक में हरित क्रांति आई तथा बड़े किसानों ने कृषि के क्षेत्र में निवेश करना शुरू किया जिससे वह समृद्ध हो गए।
आंध्र प्रदेश, पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा मध्य गुजरात में प्रबल जातियों के संपन्न किसानों ने कृषि से होने वाले लाभ को और प्रकार के व्यापारों में पैसा लगाना शुरू किया। इससे नए उद्यमी समूह सामने आए जिन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों से कस्बों की तरफ पलायन किया। इससे नए क्षेत्रीय अभिजात वर्ग सामने आए जो आर्थिक और राजनीतिक रूप से शक्तिशाली हो गए। वर्ग संरचना में इस परिर्वतन से ग्रामीण क्षेत्रों तथा कस्बों में उच्च शिक्षा के संस्थान शुरू हो गए जिससे ग्रामीण लोग अपने बच्चों को पढ़ाने लग गए। इनमें से बहुत ने व्यावसायिक अर्थव्यवसथा अथवा व्यापार करना शुरु किया तथा नगरों के मध्य वर्ग के विस्तार में योगदान दिया।
प्रश्न 8.
भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण का ग्रामीण समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
अथवा
भूमंडलीकरण से भारतीय कृषि व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?
अथवा
वैश्वीकरण का भारतीय कृषि व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1980 के दशक के उत्तरार्ध से ही भारत में उदारीकरण की नीति अपनायी जा रही है जिसका देश के ग्रामीण समाज तथा कृषि पर काफ़ी प्रभाव पड़ा है जिसका वर्णन इस प्रकार है-
(i) भूमंडलीकरण की प्रक्रिया में विश्व व्यापार संगठन में भागीदारी होती है जिसका मुख्य उद्देश्य मुक्त अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार स्थापित करना है। इसके लिए भारतीय बाजारों को आयात के लिए खोलने की ज़रूरत है। दशकों तक भारतीय बाजार बंद बाज़ार था परन्तु भूमंडलीकरण के कारण अब यह अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार से प्रतियोगिता करने को तैयार है।
बहुत सी ऐसी वस्तुएं हैं, जैसे कि कई प्रकार के फल तथा खाद्यान्न सामग्री जो आयात पर प्रतिबंध होने के कारण कुझ समय पहले तक उपलब्ध नहीं थी। कुछ समय पहले तक भारत गेहूं के क्षेत्र में आत्मनिर्भर था परंतु पिछले वर्ष इसे आयात करना पड़ा। इस तरह भूमंडलीकरण के कारण ग्रामीण समाज अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार से प्रतिस्पर्धा कर रहा है।
(ii) कृषि के भूमंडलीकरण के कारण कृषि विस्तृत अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में शामिल हो गई है जिसका किसानों तथा ग्रामीण समाज पर सीधा प्रभाव पड़ा है। जैसे पंजाब तथा कर्नाटक में किसानों ने बहु राष्ट्रीय कंपनियों (कोक, पेप्सी) से कुछ निश्चित फसलें उगाने (टमाटर, आलू) का ठेका लिया है। यह कंपनियां उन फसलों को निर्यात या प्रसंस्करण के लिए खरीद लेती हैं। इस प्रकार की संविदा खेती या ठेका करने वाली कृषि में कंपनियां निश्चित फसलें उगाने को कहती हैं, बीज तथा और वस्तुएं निवेश के रूप में उपलब्ध करवाती हैं।
इसके साथ ही वह जानकारी तथा कार्यकारी पूंजी भी देती हैं। इसके बदले में किसान पूर्व निर्धारित मूल्य पर फसल बेचने का आश्वासन देते हैं। फूल, अंगूर, अंजीर, अनार, कपास, तिलहन संविदा खेती की प्रमुख फसलें हैं। संविदा खेती बहुत से लोगों को उत्पादन प्रक्रिया से अलग कर देती हैं तथा उनके अपने प्राचीन ज्ञान को निरर्थक कर देती है। इसके अलावा इन फसलों को उगाने में उवर्रकों तथा कीटनाशकों का अधिक प्रयोग होता है जिस कारण यह पर्यावरण की दृष्टि से ठीक नहीं है।
(iii) कृषि के भूमंडलीकरण के कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियां बीज, कीटनाशकों तथा उर्वरकों के विक्रेता के रूप में सामने आएं हैं। पिछले एक दशक में इस क्षेत्र में सरकारी कार्यक्रमों की कमी के कारण इन कंपनियां के एजेंटों ने अपने पाँव जमा लिए हैं। यह एजेंट किसानों को बीजों तथा कृषि की जानकारी के एकमात्र स्रोत होते हैं तथा यह एजेंट अपने उत्पाद बेचने को इच्छुक होते हैं। इसलिए किसान महंगी खादों, कीटनाशकों का प्रयोग करने को बाध्य हुए हैं। इससे किसान ऋणी हो गए हैं तथा पर्यावरण का संकट भी उत्पन्न हो गया है।