HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 4 बाज़ार एक सामाजिक संस्था के रूप में

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 4 बाज़ार एक सामाजिक संस्था के रूप में Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Important Questions Chapter 4 बाज़ार एक सामाजिक संस्था के रूप में

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एडम स्मिथ किस देश से संबंध रखते थे?
(A) इंग्लैंड
(B) अमेरिका
(C) फ्रांस
(D) जर्मनी।
उत्तर:
इंग्लैंड।

प्रश्न 2.
एडम स्मिथ ने कौन-सी किताब लिखी थी?
(A) द रिचनेस आफ नेशन्स
(B) द वेल्थ ऑफ नेशन्स
(C) द मार्कीट इकॉनामी
(D) द वीकली मार्कीट।
उत्तर:
द वेल्थ ऑफ नेशन्स।

प्रश्न 3.
उस बल को एडम स्मिथ ने क्या नाम दिया था जो लोगों के लाभ की प्रवृत्ति को समाज के लाभ में बदल देता
(A) खुला व्यापार
(B) लेसे-फेयर
(C) अदृश्य हाथ
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
अदृश्य हाथ।

प्रश्न 4.
इनमें से किसका एडम स्मिथ ने समर्थन किया था?
(A) खुला व्यापार
(B) अदृश्य हाथ
(C) लेसे-फेयर
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
अदृश्य हाथ।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 4 बाज़ार एक सामाजिक संस्था के रूप में

प्रश्न 5.
समाजशास्त्री मानते हैं कि ………………. सामाजिक संस्थाएँ हैं जो विशेष सांस्कृतिक तरीकों द्वारा निर्मित है।
(A) बाजार
(B) परिवार
(C) विवाह
(D) नातेदारी।
उत्तर:
बाज़ार।

प्रश्न 6.
ज़िला बस्तर किस प्रदेश में स्थित है?
(A) पंजाब
(B) बिहार
(C) मध्य प्रदेश
(D) छत्तीसगढ़।
उत्तर:
छत्तीसगढ़।

प्रश्न 7.
किन क्षेत्रों में साप्ताहिक बाज़ार एक पुरानी संस्था है?
(A) जन-जातीय
(B) नगरीय
(C) ग्रामीण
(D) औद्योगिक।
उत्तर:
जन-जातीय।

प्रश्न 8.
किस मानवविज्ञानी के अनुसार बाज़ार का महत्त्व केवल उसकी आर्थिक क्रियाओं तक सीमित नहीं है?
(A) एडम स्मिथ
(B) एल्फ्रेड गेल
(C) जोंस
(D) मैकाइवर तथा पेज।
उत्तर:
एल्फ्रेड गेल।

प्रश्न 9.
औपनिवेशिक काल में ग्रामीण क्षेत्रों में कौन-सी व्यवस्था प्रचलित थी?
(A) जजमानी प्रथा
(B) रुपये का लेन-देन
(C) पारंपरिक प्रथा
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
जजमानी प्रथा।

प्रश्न 10.
इनमें से कौन-से समूह का मुख्य कार्य व्यापार करना है?
(A) ब्राह्मण
(B) क्षत्रिय
(C) वैश्य
(D) शूद्र।
उत्तर:
वैश्य।

प्रश्न 11.
किस प्रक्रिया के कारण भारत में नए बाज़ार सामने आए?
(A) आधुनिकीकरण
(B) संस्कृतिकरण
(C) पश्चिमीकरण
(D) उपनिवेशवाद।
उत्तर:
उपनिवेशवाद।

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प्रश्न 12.
इनमें से कौन-सा व्यापारिक समुदाय भारत में हर जगह पाया जाने वाला तथा सबसे अधिक जाना माना समुदाय है?
(A) मारवाड़ी
(B) नाकरट्टार
(C) चेट्टीयार
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
मारवाड़ी।

प्रश्न 13.
‘अदृश्य हाथ’ की संज्ञा देन है
(A) स्मिथ की
(B) मार्क्स की
(C) दुर्खीम की
(D) एम० एन० श्रीनिवास की।
उत्तर:
स्मिथ की।

प्रश्न 14.
इनमें से सामाजिक संस्था है-
(A) जाति..
(B) जनजाति
(C) बाज़ार
(D) सभी।
उत्तर:
सभी।

प्रश्न 15.
‘द वेल्थ ऑफ नेशंस’ नामक पुस्तक किसने लिखी
(A) एम० एन० श्रीनिवास
(B) कार्ल मार्क्स
(C) एडम स्मिथ
(D) रॉबर्ट माल्थस।
उत्तर:
एडम स्मिथ।

प्रश्न 16.
उदारवाद किस दशक में शुरू हुआ?
(A) 1960
(B) 1980
(C) 1970
(D) 1990.
उत्तर:
1990

प्रश्न 17.
पूंजीवाद का सिद्धांत किसने दिया?
(A) श्रीनिवास
(B) वेबर
(C) दूबे
(D) मार्क्स।
उत्तर:
वेबर।

प्रश्न 18.
आधुनिक काल में किस सदी से जाति तथा व्यवसाय के बीच संबंध ढीले हुए हैं?
(A) 18वीं
(B) 19वीं
(C) 20वीं
(D) इनमें से किसी में नहीं।
उत्तर:
20वीं।

प्रश्न 19.
इनमें से किस राजनीतिक अर्थशास्त्री ने बाज़ार अर्थव्यवस्था को समझने का प्रयास किया?
(A) एडम स्मिथ
(B) मार्क्स
(C) वेबर
(D) इनमें से कोई में नहीं।
उत्तर:
एडम स्मिथ।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एडम स्मिथ कौन थे?
अथवा
‘द वेल्थ ऑफ नेशन्स’ किताब किसकी है?
उत्तर:
एडम स्मिथ इंग्लैंड के सबसे चर्चित राजनीतिक अर्थशास्त्री थे जिन्होंने पुस्तक ‘द वेल्थ ऑफ नेशंस’ लिखी थी।

प्रश्न 2.
एडम स्मिथ ने अपनी पुस्तक में किस बात की व्याख्या की थी?
उत्तर:
एडम स्मिथ ने अपनी पुस्तक ‘द वेल्थ ऑफ नेशंस’ में इस बात की व्याख्या की कि कैसे खुली बाजार अर्थव्यवस्था में तार्किक स्वयं-लाभ आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देता है।

प्रश्न 3.
बाज़ार का क्या अर्थ है?
अथवा
बाज़ार की परिभाषा दें।
अथवा
बाज़ार का अर्थ बताएं।
अथवा
बाज़ार या मंडी किसे कहते हैं?
अथवा
‘द वेल्थ ऑफ नेशन्स’ किलाब किसकी है?
उत्तर:
अर्थशास्त्र में क्रय-विक्रय के स्थान को बाजार कहा जाता है अर्थात् जहां चीजें बेची तथा खरीदी जाती हैं परंतु समाजशास्त्र में बाज़ार सामाजिक संस्थाएं हैं जो विशेष सांस्कृतिक तरीकों द्वारा निर्मित हैं।

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प्रश्न 4.
एडम स्मिथ के अनुसार बाज़ारी अर्थव्यवस्था का क्या अभिप्राय है.?
उत्तर:
एडम स्मिथ के अनुसार बाजारी अर्थव्यवस्था व्यक्तियों में आदान-प्रदान या सौदों का एक लंबा क्रम है, जो अपनी क्रमबद्धता के कारण स्वयं ही एक कार्यशील और स्थिर व्यवस्था की स्थापना करती है। यह तब भी होता है जब करोड़ों के लेन-देन में शामिल लोगों में से कोई भी इसकी स्थापना का इरादा नहीं रखता।

प्रश्न 5.
खुले व्यापार का अर्थ बताएं।
अथवा
खुले व्यापार का समर्थन किसने किया?
उत्तर:
एडम स्मिथ के अनुसार खुले व्यापार का अर्थ एक ऐसे बाज़ार से है जो किसी भी प्रकार की राष्ट्रीय या अन्य रोकथाम से मुक्त हो, अर्थात् जिस पर कोई सरकारी नियंत्रण या हस्तक्षेप न हो। अगर हो तो भी वह इतना कम हो कि व्यापार में कोई बाधा उत्पन्न न हो।

प्रश्न 6.
लेसे-फेयर की नीति किसे कहा गया?
उत्तर:
फ्रांसीसी भाषा के शब्द लेसे-फेयर का अर्थ है बाजार को अकेला छोड़ दिया जाए या हस्तक्षेप न किया जाए। इसका अर्थ है कि बाज़ार सरकारी नियंत्रण से मुक्त हो तथा इसमें सरकार का कोई दखल न हो।

प्रश्न 7.
साप्ताहिक बाज़ार का क्या अर्थ है?
अथवा
साप्ताहिक बाज़ार क्या है?
अथवा
साप्ताहिक बाज़ार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मुख्यतया साप्ताहिक बाजार आदिवासी क्षेत्रों में लगते हैं जहां पर आदिवासी वनों से इकट्ठी की हुई चीजें तथा अपनी उत्पादित वस्तुएं बेचने तथा उस कमाए हुए पैसे से अपनी आवश्यकता की वस्तुएं खरीदने आते हैं। यह बाज़ार चीज़ों के विनिमय के साथ-साथ उनके मेल-मिलाप की प्रमुख संस्था भी बन जाती है।

प्रश्न 8.
अल्पकालीन बाज़ार का अर्थ बताएं।
उत्तर:
अल्पकालीन बाज़ार, बाजार की वह स्थिति है जिसमें अगर किसी चीज़ की मांग बढ़ जाती है तो चीज़ के उत्पादक को एक सीमा तक पूर्ति बढ़ाने का समय मिल जाता है। यह सीमा उस उत्पादक के गोदाम अथवा माल इकट्ठा करके रखने तक की क्षमता होती है। इस बाज़ार के मूल्य को बाज़ार मूल्य कहते हैं।

प्रश्न 9.
दीर्घकालीन बाज़ार का अर्थ बताएं।
उत्तर:
दीर्घकालीन बाज़ार, बाज़ार की वह स्थिति है जिसमें वस्तु की मांग के अनुसार उसकी पूर्ति को कम या अधिक किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में वस्तु की मांग तथा पूर्ति में सामन्जस्य स्थापित हो सकता है। इस बाज़ार के मूल्य को सामान्य मूल्य कहते हैं।

प्रश्न 10.
जजमानी व्यवस्था का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यह गांवों में मिलने वाली व्यवस्था थी जिसमें भिन्न जातियां उच्च जातियों को अपनी सेवाएं देती थीं। इस सेवा की एवज में उन्हें फसल के पश्चात् अनाज अथवा और वस्तुएं प्राप्त हो जाती थीं।

प्रश्न 11.
विनिमय का क्या अर्थ है?
उत्तर:
अगर हम आम व्यक्ति के शब्दों में देखें तो विनिमय दो पक्षों के बीच होने वाली वस्तुओं तथा सेवाओं के लेन-देन को कहते हैं। अर्थशास्त्र में विनिमय दो पक्षों के बीच होने वाले वैधानिक, ऐच्छिक तथा आपसी धन का लेन देन होता है।

प्रश्न 12.
पण्यीकरण कब होता है?
अथवा
वस्तुकरण से आप क्या समझते हैं?
अथवा
पण्यीकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पण्यीकरण तब होता है जब कोई वस्तु बाज़ार में बेची खरीदी न जा सकती हो और अक वह बेची-खरीदी जा सकती है अर्थात् अब वह बाज़ार में बिकने वाली चीज़ बन गई है। जैसे श्रम और कौशल अब ऐसी चीजें हैं जो खरीदी व बेची जा सकती हैं।

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प्रश्न 13.
उदारीकरण क्या होता है?
उत्तर:
नियंत्रित अर्थव्यवस्था के अनावश्यक प्रतिबंधों को हटाना उदारीकरण है। उद्योगों तथा व्यापार पर से अनावश्यक प्रतिबंध हटाना ताकि अर्थव्यवस्था अधिक प्रतिस्पर्धात्मक, प्रगतिशील तथा खुली बन सके, इसे उदारीकरण कहते हैं। यह एक आर्थिक प्रक्रिया है तथा यह समाज में आर्थिक परिवर्तनों की प्रक्रिया है।

प्रश्न 14.
भूमंडलीकरण क्या होता है?
अथवा
भूमंडलीकरण की परिभाषा लिखें।
अथवा
भूमंडलीकरण का अर्थ बताइए।
उत्तर:
भूमंडलीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक देश की अर्थव्यवस्था का संबंध अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ा जाता है अर्थात् एक देश के अन्य देशों के साथ वस्तु, सेवा, पूंजी तथा श्रम के अप्रतिबंधित आदान-प्रदान को भूमंडलीकरण कहते हैं। व्यापार का देशों के बीच मुक्त आदान-प्रदान होता है।

प्रश्न 15.
उदारीकरण के क्या कारण होते हैं?
उत्तर:

  1. देश में रोजगार के साधन विकसित करने के लिए ताकि लोगों को रोजगार मिल सके।
  2. उद्योगों में ज्यादा-से-ज्यादा प्रतिस्पर्धा पैदा करना ताकि उपभोक्ता को ज्यादा-से-ज्यादा लाभ प्राप्त हो सके।

प्रश्न 16.
निजीकरण क्या होता है?
उत्तर:
लोकतांत्रिक तथा समाजवादी देशों जहां पर मिश्रित प्रकार की अर्थव्यवस्था होती है। इस अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक उपक्रम होते हैं जोकि सरकार के नियंत्रण में होते हैं। इन सार्वजनिक उपक्रमों को निजी
हाथों में सौंपना ताकि यह और ज्यादा लाभ कमा सकें। इन सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों में सौंपने को निजीकरण कहते हैं।

प्रश्न 17.
भारत पर भूमंडलीकरण का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:

  1. भारत की विश्व निर्यात के हिस्से में वृद्धि हुई।
  2. भारत में विदेशी निवेश में वृद्धि हुई।
  3. भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ा।

प्रश्न 18.
हुंडी का क्या अर्थ है?
उत्तर:
हुंडी एक विनिमय बिल कर्ज पत्र की तरह थी जिसे व्यापारी लंबी दूरी के व्यापार में इस्तेमाल करते थे। देश के एक कोने से एक व्यापारी द्वारा जारी हुई हुंडी दूसरे कोने में व्यापारी द्वारा स्वीकार की जाती थी।

प्रश्न 19.
संस्था का क्या अर्थ है?
उत्तर:
समाज ऐसी कार्य प्रणालियों को विकसित करता है जो व्यक्तियों तथा समितियों को समाज द्वारा स्वीकृत तरीके बताती है। इन कार्य प्रणालियों, नियमों तथा तरीकों को संस्थाएँ कहते हैं।

प्रश्न 20.
विनिमय का अर्थ बताएं।
उत्तर:
किसी वस्तु के लेन-देन को विनिमय कहा जाता है अर्थात् वस्तु के स्थान पर किसी अन्य वस्तु के लेन देन को विनिमय कहते हैं।

प्रश्न 21.
‘द डिवीज़न ऑफ लेबर इन सोसायटी’ (The Division of Labour in Society) पुस्तक किसने लिखी थी?
उत्तर:
‘द डिवीज़न ऑफ लेबर इन सोसायटी’ पुस्तक के लेखक इमाइल दुर्खाइम थे।

प्रश्न 22.
पारंपरिक व्यापारिक समुदाय कौन-से होते हैं?
उत्तर:
जो समुदाय प्राचीन समय से लेकर आज तक व्यापार ही करते आये हों उन्हें पारंपरिक व्यापारिक समुदाय कहते हैं। उदाहरण के लिए वैश्य, मारवाड़ी इत्यादि।

प्रश्न 23.
मारवाड़ी व्यापार में क्यों सफल हुए?
उत्तर:
मारवाड़ी व्यापार में सफल अपने गहन सामाजिक तंत्रों की वजह से हुए हैं।

प्रश्न 24.
कब भारत पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से जुड़ गया था?
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में भारत पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से और अधिक जुड़ गया।

प्रश्न 25.
बाज़ार सार्वभौमिक रूप से हर कहीं पाए जाते हैं (हाँ/नहीं)
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 26.
मुद्रा की अनुपस्थिति में विनिमय करने की प्रणाली वस्तु विनिमय कहलाती है। (हाँ/नहीं)
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 27.
सरल समाजों में बाज़ार एक आर्थिक सत्ता होती है। (हाँ/नहीं)
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 28.
जिस काम के लिए कोई पैसा न दिया जाये उसे …………………… कहते हैं।
उत्तर:
जिस काम के लिए कोई पैसा न दिया जाये उसे बेगार कहते हैं।

प्रश्न 29.
‘अदृश्य हाथ’ की अवधारणा किसने दी?
उत्तर:
‘अदृश्य हाथ’ की अवधारणा एडम स्मिथ ने दी थी।

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प्रश्न 30.
उपनिवेशवादी शासन के दौरान प्रचलित दो आधुनिक व्यापारिक नगर कौन-से थे?
उत्तर:
बंबई, मद्रास, कलकत्ता इत्यादि।

प्रश्न 31.
सिल्क रूट प्रसिद्ध व्यापारिक मार्ग हैं। (हा/नहीं)
उत्तर:
हां।

प्रश्न 32.
उपनिवेशवादी शासन में भारतीय मज़दूरों को कहाँ-कहाँ भेजा गया था?
उत्तर:
उपनिवेशवादी शासन में भारतीय मजदूरों को ब्रिटेन के उपनिवेशों जैसे कि दक्षिण अफ्रीका, फिजी इत्यादि देशों में भेजा गया था।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उदारीकरण के क्या मुख्य उद्देश्य हैं?
उत्तर:
उदारीकरण के निम्नलिखित मुख्य उद्देश्य हैं-

  • उदारीकरण का मुख्य उद्देश्य उद्योगों में रोजगार के अवसर बढ़ाना था।
  • विदेशी निवेश को आकर्षित करना ताकि रोज़गार के अवसर बढ़े।
  • अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के साथ भारतीय कंपनियों को प्रतिस्पर्धा में खड़ा करना।
  • निजी क्षेत्र को ज्यादा-से-ज्यादा स्वतंत्रता प्रदान करना।
  • देश की उत्पादन क्षमता में वृद्धि करना।

प्रश्न 2.
उदारीकरण नीति की विशेषताएं बताएं।
उत्तर:

  • उदारीकरण के तहत कुछ विशेष चीजों को छोड़कर लाइसैंस राज की नीति को खत्म कर दिया गया ताकि सारे उद्योग आराम से विकसित हो सकें।
  • उदारीकरण के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण करना शुरू कर दिया गया है ताकि घाटे में चल रहे सार्वजनिक उपक्रमों को लाभ में बदला जा सके।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के लिए अब बहुत कम उद्योग रह गए हैं ताकि सभी उद्योगों को बढ़ावा दिया जा सके।
  • देश में विदेशी निवेश की सीमा भी बढ़ा दी गई है। कई क्षेत्रों में तो यह 51% तथा कई क्षेत्रों में पूर्ण निवेश तथा कई क्षेत्रों में यह 74% तक रखी गई है।

प्रश्न 3.
भूमंडलीकरण की विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने भूमंडलीकरण की चार विशेषताओं का वर्णन किया है-

  • भूमंडलीकरण में लोगों के लिए नए-नए उपकरण आ गए हैं क्योंकि अब विश्व की बड़ी-बड़ी कंपनियां हर देश में आ रही हैं।
  • अब कंपनियों के लिए नए-नए बाज़ार खुल गए हैं क्योंकि भूमंडलीकरण में कंपनियां किसी भी देश में मुक्त व्यापार कर सकती हैं।
  • भूमंडलीकरण में कार्यों के संपादन के लिए नए-नए कर्ता आगे आ गए हैं जैसे रैडक्रास, विश्व व्यापार संगठन (W.T.O.)।
  • भूमंडलीकरण के कारण नए-नए नियम सामने आए हैं जैसे पहले नौकरी पक्की होती थी पर अब यह पक्की न होकर ठेके पर होती है।

प्रश्न 4.
भारत में उदारीकरण को कितने चरणों में बांटा जा सकता है?
उत्तर:
भारत में उदारीकरण की प्रक्रिया को चार चरणों में बांटा जा सकता है-

  • 1975 से 1980 का काल
  • 1980 से 1985 का काल
  • 1985 से 1991 का काल
  • 1991 से आगे का काल।

प्रश्न 5.
भूमंडलीकरण के कोई चार सिद्धांत बताओ।
उत्तर:

  • विदेशी निवेश के लिए देश की अर्थव्यवस्था को खोलना।
  • सीमा शुल्क कम-से-कम करना।
  • सरकारी क्षेत्रों के प्रतिष्ठानों का विनिवेश करना।
  • निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देना।

प्रश्न 6.
जनजातीय साप्ताहिक बाज़ार में क्या परिवर्तन आए हैं?
अथवा
जनजातीय क्षेत्रों में साप्ताहिक बाज़ारों के स्वरूप में क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर:
समय के साथ जनजातीय साप्ताहिक बाज़ार में भी परिवर्तन आए हैं। अंग्रेजों के समय इनके दूर-दराज के इलाकों को क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ दिया गया। इनके क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण किया गया तथा इनके क्षेत्रों को बाहर के लोगों के लिए खोल दिया गया ताकि इनके समृद्ध जंगलों तथा खनिजों तक पहुंचा जा सके।

इस कारण इनके क्षेत्रों में व्यापारी, साहूकार तथा अन्य गैर-जनजातीय लोग आने लग गए। इनके बाजारों में नई प्रकार की वस्तुएं आ गईं। जंगल के उत्पादों को बाहरी लोगों को बेचा जाने लगा। आदिवासियों को खदानों तथा बगानों में मज़दूर रखा जाने लगा। साप्ताहिक बाज़ार में बाहर की वस्तुएं आने से यह लोग पैसा कर्ज़ पर लेकर उन्हें खरीदने लगे जिससे वह दरिद्र हो गए।

प्रश्न 7.
उपभोग का क्या अर्थ है?
उत्तर:
किसी भी वस्तु के उत्पादन के साथ-साथ उपभोग का होना भी अति आवश्यक होता है क्योंकि बिना उत्पादन के खपत नहीं हो सकती। उपभोग का अर्थ है किसी भी वस्तु का उपभोग करना एवं उपभोग का अर्थ है, वह गुण जो किसी वस्तु को मानव की आवश्यकता पूरा करने के योग्य बनाता है। यह प्रत्येक समाज का मुख्य कार्य होता है कि वह उपभोग को समाज के लिए नियमित व नियंत्रित करे।

प्रश्न 8.
विनिमय का अर्थ बताएं।
उत्तर:
किसी भी वस्तु के लेन-देन को वर्तमान में ‘Exchange’ कहते हैं। इसका अर्थ है किसी वस्तु के स्थान पर किसी दूसरी वस्तु को लेना या देना। विनिमय वर्तमान में ही नहीं, बल्कि पुरातन समाज से ही चला आ रहा है। यह कई प्रकार का होता है, वस्तु के बदले वस्तु, सेवा के बदले सेवा, वस्तु के बदले धन, सेवा के बदले धन, यह दो प्रकार का होता है, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष। विनिमय सर्वप्रथम वस्तुओं का वस्तुओं के साथ, सेवा के बदले वस्तुओं के साथ और सेवा के बदले सेवा के लेने-देने के साथ होता है। अप्रत्यक्ष विनिमय में तोहफे का विनिमय सर्वोत्तम होता है।

प्रश्न 9.
विभाजन से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आम व्यक्ति के लिए विभाजन का अर्थ वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान के ऊपर ले जाने से और बेचने से है। परंतु अर्थशास्त्र में विभाजन वह प्रक्रिया है, जिसके साथ किसी आर्थिक वस्तु का कुल मूल्य उन व्यक्तियों में बांटा जाता है, जिन्होंने उस वस्तु के उत्पादन में भाग लिया। भिन्न-भिन्न लोगों एवं समूहों का विशेष योगदान होता है जिस कारण उन्हें मुआवजा मिलना चाहिए। इस तरह उन्हें दिया गया धन या पैसा मुआवजा विभाजन होता है। जैसे ज़मीन के मालिक को किराया, मज़दूर को मज़दूरी, पैसे लगाने वाले को ब्याज, सरकार को टैक्स आदि के रूप में इस विभाजन का हिस्सा प्राप्त होता है।

प्रश्न 10.
पूंजीवाद का क्या अर्थ है?
उत्तर:
पूंजीवाद एक आर्थिक व्यवस्था है, जिसमें निजी संपत्ति की बहुत महत्ता होती है। पूंजीवाद में उत्पादन बड़े स्तर पर होता है और अलग-अलग पूंजीवादियों में बहुत अधिक मुकाबला देखने को मिलता है। पूंजीपति अधिक से-अधिक लाभ प्राप्त करने की कोशिश करता है और इसी कारण से वह निवेश भी करता है। इसमें धन एवं उधार की काफी महत्ता होती है। पूंजीवाद का सबसे बड़ा लक्षण इसके मजदूरों का शोषण होता है।

प्रश्न 11.
पूंजीवाद की विशेषताएं बताएं।
उत्तर:

  • पूंजीवाद में बड़े स्तर पर उत्पादन होता है।
  • पूंजीवाद का आधार निजी संपत्ति होता है।
  • पंजीवाद में भिन्न-भिन्न वर्गों में बहत अधिक उपयोगिता होती है।
  • पूंजीवाद में पूंजीपति लाभ कमाने हेतु निवेश करता है।
  • पूंजीवाद में मज़दूर का शोषण होता है और उसकी स्थिति दयनीय होती है।
  • पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में धन एवं उधार की काफ़ी महत्ता होती है।

प्रश्न 12.
अतिरिक्त मूल्य का क्या अर्थ है?
अथवा
अतिरिक्त मूल्य क्या हैं?
उत्तर:
अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत कार्ल मार्क्स ने दिया था। यह उसने अपनी पुस्तक ‘दास कैपीटल’ में दिया था। मार्क्स के अनुसार किसी व्यक्ति का वह मूल्य है जो उसे अपनी श्रम शक्ति के एवज में प्राप्त होता है। दूसरे शब्दों में पूँजीवादी युग में मज़दूर अपने श्रम को पूँजीपतियों को अपना जीवन चलाने के लिए बेचता है। जिसका मूल्य उसे कुछेक सिक्कों के रूप में मिलता है।

यही मूल्य उसकी मज़दूरी है। इस प्रकार मार्क्स के अनुसार पूंजीपति की यह नीति थी कि मजदूरों को कम से कम मजदूरी देकर अधिक से अधिक कार्य करवाया जो। इस प्रकार जो अधिक लाभ होता है उसे पूँजीपति हड़प कर जाता है तथा जो मार्क्स के अनुसार मजदूरों का ही अधिकार है तथा उन्हें ही मिलना चाहिए। इस मानवीय श्रम के लिए मूल्य को मज़दूरों को उनकी मज़दूरी के रूप में नहीं दिया जाता। यही अतिरिक्त मूल्य है जो मज़दूरों द्वारा उत्पन्न की जाती है तथा पूंजीपतियों द्वारा हड़प कर ली जाती है।

प्रश्न 13.
उत्पादन विधि का क्या अर्थ है?
उत्तर:
उत्पादन विधि वह है जो कुल्हाड़ी, लोहे की कुदाल, हल, ट्रैक्टर, मशीनों इत्यादि की सहायता से की जाती है। मनुष्य उत्पादन के साधनों का प्रयोग करके अपने उत्पादन कौशल के आधार पर ही भौतिक वस्तुओं का उत्पादन करता है तथा यह सभी तत्व इक्ट्ठे मिल कर उत्पादन की शक्तियों का निर्माण करते हैं। उत्पादन की विधियों पर पूंजीपतियों का अधिकार होता है तथा वह इन की सहायता से अतिरिक्त मूल्य का निर्माण करके मज़दूर वर्ग का शोषण करता है। इन उत्पादन की विधियों की सहायता से वह अधिक अमीर होता जाता है जिनका प्रयोग वह मजदूर वर्ग को दबाने के लिए करता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भूमंडलीकरण क्या होता है? इसके सिद्धांतों का वर्णन करो।
अथवा
भूमंडलीकरण की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में 1991 में नयी आर्थिक नीतियां अपनाई गईं। भूमंडलीकरण, उदारीकरण तथा निजीकरण इन नीतियों के तीन प्रमुख पहलू हैं। भारत में 1980 के दशक के दौरान भूमंडलीकरण की प्रक्रिया शुरू की गई। नयी आर्थिक नीतियों या आर्थिक सुधारों के माध्यम से इसे गति प्रदान करने की कोशिश की गई। वैश्वीकरण आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाली एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के चलते भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं में कई प्रकार के परिवर्तन सामने आए।

भूमंडलीकरण का अर्थ (Meaning of Globalization)-भूमंडलीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक देश की अर्थव्यवस्था का संबंध अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ा जाता है। अन्य शब्दों में एक देश के अन्य देशों के साथ वस्तु, सेवा, पूँजी तथा श्रम के अप्रतिबंधित आदान-प्रदान को भूमंडलीकरण कहते हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे के संपर्क में आती हैं। व्यापार का देशों के बीच मुक्त आदान-प्रदान होता है। इस तरह विश्व अर्थव्यवस्थाओं के एकीकरण की प्रक्रिया को वैश्वीकरण कहा जाता है। भूमंडलीकरण के द्वारा सारी दुनिया एक विश्व ग्राम बन गई है।

भूमंडलीकरण के सिद्धांत
(Principles of Globalization)
भूमंडलीकरण के अंतर्गत कई महत्त्वपूर्ण बातों पर बल दिया जाता है। निश्चित कार्यक्रमों को अपनाने तथा आर्थिक नीतियों को अपनाने पर भी जोर दिया जाता है। भूमंडलीकरण के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं
(i) विदेशी निवेश के लिए देश की अर्थव्यवस्था को खोल दिया जाता है क्योंकि इस व्यवस्था में आपको और देशों में भी मुक्त व्यापार की आज्ञा होती है तथा आप भी किसी और देश में निवेश कर सकते हैं। देश में विदेशी निवेश आता है तो एक तरफ देश आर्थिक तौर पर समृद्ध होता है तथा दूसरी तरफ देश में रोजगार के नए साधन उत्पन्न होते हैं।

(ii) इसका दूसरा सिद्धांत यह है कि इसमें सीमा शुल्क को काफ़ी हद तक कम कर दिया जाता है ताकि अगर कोई बाहर से आकर आपके देश में अपनी चीज़ बेचना चाहता है तो वह उत्पाद बहुत महंगी न हो जाए। इसलिए सीमा शुल्क को कम कर दिया जाता है।

(iii) सार्वजनिक क्षेत्रों के प्रतिष्ठानों का विनिवेश भी कर दिया जाता है। भूमंडलीकरण के साथ-साथ निजीकरण भी चलता है। निजीकरण होता है सरकार की कंपनियों का ताकि वह भी निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकें तथा मुनाफा कमा सकें। इसलिए सरकारी कंपनियों का विनिवेश कर दिया जाता है।

(iv) निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा दिया जाता है ताकि निजी क्षेत्र बड़े-बड़े उद्योग लगाएं। इसके कई लाभ हैं। एक तो सरकार को कर के रूप में आमदनी होगी तथा दूसरी तरफ रोज़गार के साधन बढ़ेंगे तथा बेरोज़गारी की समस्या भी हल होगी।

(v) इसमें सरकार बुनियादी ढांचे के विकास पर अधिक पैसा खर्च करती है। इसका कारण यह है कि अगर आप विदेशियों को अपने देश में निवेश के लिए आकर्षित करना चाहते हों तो उन्हें निवेश के लिए बढ़िया बुनियादी ढांचा भी देना पड़ेगा ताकि उनको कोई परेशानी न हो तथा ज्यादा-से-ज्यादा विदेशी निवेश देश में आ सके।

(vi) इसमें मुक्त अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा दिया जाता है। मुक्त व्यापार का अर्थ है बिना सीमा शुल्क दिए किसी भी देश में जाकर व्यापार करना। ऐसा करने से बगैर कीमतों के इज़ाफे के सारी दुनिया की चीजें हमारे सामने होती हैं तथा हम किसी भी चीज़ को खरीद सकते हैं।

(vii) विश्व बैंक, विश्व व्यापार निधि तथा विश्व व्यापार संगठन के दिशा-निर्देशों का पालन किया जाता है क्योंकि एक तो यह व्यापार तथा और सुविधाओं के लिए अलग-अलग देशों को कर देते हैं तथा विश्व व्यापार संगठन पूरे विश्व के व्यापार का संचालन करता है। इसलिए इनके दिशा-निर्देशों का पालन करना ही पड़ता है।

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प्रश्न 2.
भूमंडलीकरण का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1991 में देश में आर्थिक सुधार शुरू होने के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था के भूमंडलीकरण की प्रक्रिया में तेजी आ गई। भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न चरणों में भूमंडलीकरण किया जा रहा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार भूमंडलीकरण में 50 राष्ट्रों में सिंगापुर प्रथम तथा भारत 49वें स्थान पर है। इससे पता चलता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के भूमंडलीकरण की गति अभी धीमी है। भूमंडलीकरण का भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं पर क्या प्रभाव पड़ा उसका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है-
(i) भारत की विश्व निर्यात हिस्से में वृद्धि (Increase of Indian Share in World Export)-भूमंडलीकरण की प्रक्रिया के चलते भारत का विश्व में निर्यात का हिस्सा बढ़ा है। इस तथ्य की पुष्टि निम्नलिखित आंकड़ों से होती है-

भारत का विश्व निर्यात में हिस्सा – (Indian Share in World Export):
HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 4 बाज़ार एक सामाजिक संस्था के रूप में 1
इस तालिका में दर्शाए-प्रिए आंकड़ों से पता चलता है कि 20वीं शताब्दी के आखिरी दशक के दौरान भारत की वस्तुओं तथा सेवाओं में 125% की वृद्धि हुई है। 1990 में भारत का विश्व की वस्तुओं तथा सेवाओं के निर्यात में हिस्सा 0.55% था जोकि 1999 में बढ़कर 0.75% हो गया था।

(ii) भारत में विदेशी निवेश (Foreign Investment in India)-विदेशी निवेश वृद्धि भी भूमंडलीकरण का एक लाभ है क्योंकि विदेशी निवेश से अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता बढ़ती है। भारत में निरंतर विदेशी निवेश बढ़ रहा है। 1995-96 से 2000-01 के दौरान इसमें 53% की वृद्धि हुई। इस अवधि के दौरान वार्षिक औसत लगभग $ 390 करोड़ विदेशी निवेश हुआ।

(iii) विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves)-आयात के लिए विदेशी मुद्रा आवश्यक है। जून, 1991 में विदेशी मद्रा भंडार सिर्फ One Billion $ था जिससे सिर्फ दो सप्ताह की आयात आवश्यकताएं ही परी की जा सकती थीं। जलाई, 1991 में भारत में नयी आर्थिक नीतियां अपनायी गईं। भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण को बढ़ावा दिया गया जिस के कारण देश के विदेशी मुद्रा भंडार में काफ़ी तेजी से बढ़ोत्तरी हुई। फलस्वरूप वर्तमान समय में देश में 390 Billion के करीब विदेशी मुद्रा है। इससे पहले कभी भी देश में इतना विदेशी मुद्रा का भंडार नहीं था।

(iv) सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर (Growth of Gross Domestic Product)-भूमंडलीकरण से सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि होती है। देश में 1980 के दशक में वृद्धि दर 5.63% तथा 1990 के दशक के दौरान वृद्धि दर 5.80% रहा। इस तरह सकल घरेलू उत्पादन में थोड़ी सी वृद्धि हुई। आज कल यह 7% के करीब है।

(v) बेरोज़गारी में वृद्धि (Increase in Unemployment) भूमंडलीकरण से बेरोज़गारी बढ़ती है। 20वीं शताब्दी के आखिरी दशक में मैक्सिको, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, सिंगापुर, इंडोनेशिया तथा मलेशिया में भूमंडलीकरण के प्रभाव के कारण आर्थिक संकट आया। फलस्वरूप लगभग एक करोड़ लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा तथा वे ग़रीबी रेखा से नीचे आ गए। 1990 के दशक के शुरू में देश में बेरोज़गारी दर 6% थी जो दशक के अंत में 7% हो गई। इस तरह भूमंडलीकरण से रोज़गार विहीन विकास हो रहा है।

(vi) कृषि पर प्रभाव (Impact on Agriculture)-देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि तथा इससे संबंधित कार्यों का हिस्सा लगभग 29% है जबकि यह अमेरिका में 2%, फ्रांस तथा जापान में 5.5% है। अगर श्रम शक्ति की नज़र से देखें तो भारत की 69% श्रम शक्ति को कृषि तथा इससे संबंधित कार्यों में रोजगार प्राप्त है जबकि अमेरिका तथा इंग्लैंड में ऐसे कार्यों में 2.6% श्रम शक्ति कार्यरत है। विश्व व्यापार के नियमों के अनुसार विश्व को इस संगठन के सभी सदस्य देशों को कृषि क्षेत्र निवेश के लिए विश्व के अन्य राष्ट्रों के लिए खोलना है। इस तरह आने वाला समय भारत की कृषि तथा अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती भरा रहने की उम्मीद है।

(vii) शिक्षा व तकनीकी सुधार-भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण का शिक्षा पर भी काफ़ी प्रभाव पड़ा है तथा तकनीकी शिक्षा में तो चमत्कार हो गया है। आज संचार तथा परिवहन के साधनों के कारण दूरियां काफ़ी कम हो गई हैं। आज अगर किसी देश में शिक्षा तथा तकनीक में सुधार आते हैं तो वह पलक झपकते ही सारी दुनिया में पहुंच जाते हैं। इंटरनेट तथा कंप्यूटर ने तो इस क्षेत्र में क्रांति ला दी है।

(viii) वर्गों के स्वरूप में परिवर्तन (Change in the form of Classes)-भूमंडलीकरण ने वर्गों के स्वरूप में भी परिवर्तन ला दिया है। 20वीं सदी में सिर्फ तीन प्रमख वर्ग-उच्च वर्ग. मध्यम वर्ग तथा निम्न वर्ग थे पर आजकल वर्गों की संख्या काफ़ी ज्यादा हो गई है। प्रत्येक वर्ग में ही बहुत से उपवर्ग बन गए हैं जैसे मजदूर वर्ग, डॉक्टर वर्ग, शिक्षक वर्ग इत्यादि के उनकी आय के अनुसार वर्ग बन गए हैं।

(ix) निजीकरण (Privatization)-भूमंडलीकरण का एक अच्छा प्रभाव यह है कि निजीकरण देखने को मिल रहा है। विकसित तथा विकासशील देशों में बहुत से सार्वजनिक उपक्रम निजी हाथों में चल रहे हैं तथा यह अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। इसी से प्रेरित होकर और ज्यादा सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण हो रहा है।

(x) उद्योग-धंधों का विकास (Development of Industries)-आर्थिक विकास की ऊँची दर प्राप्त करने के लिए विदेशी पूंजी निवेश से काफ़ी सहायता मिलती है। इससे न सिर्फ उद्योगों को लाभ मिलता है बल्कि उपभोक्ता को अच्छी तकनीक, अच्छे उत्पाद मिलते हैं तथा साथ ही साथ भारतीय उद्योगों को अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा करने की प्रेरणा मिलती है।

प्रश्न 3.
उदारीकरण क्या होता है? उदारीकरण से क्या समस्याएं पैदा होती हैं?
अथवा
उदारीकरण की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
अथवा
उदारवादिता का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1991 में डॉ. मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री बनने के बाद नयी आर्थिक नीति लागू की गई। उदारीकरण, निजीकरण तथा भूमंडलीकरण इस नीति की प्रमुख विशेषताएं थीं। 20वीं शताब्दी के आखिरी दशक के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था का तेज़ गति से उदारीकरण किया जाने लगा तथा यह उदारीकरण की प्रक्रिया अब भी जारी है। यह एक आर्थिक प्रक्रिया तथा समाज में आर्थिक परिवर्तनों की प्रक्रिया है।

उदारीकरण का अर्थ (Meaning of Liberalization)-नियंत्रित अर्थव्यवस्था के गैर-ज़रूरी प्रतिबंधों को हटाना उदारीकरण है। उद्योगों तथा व्यापार पर से गैर-ज़रूरी प्रतिबंध हटाना ताकि अर्थव्यवस्था अधिक प्रतिस्पर्धात्मक. प्रगतिशील तथा खुली बन सके, इसे उदारीकरण कहते हैं।

उदारीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें विश्व के अलग अलग देशों के बीच व्यापारिक तथा आर्थिक संबंधों को ज्यादा विस्तार की नज़र से भूमंडल के सदस्य देशों को ऐसी सुविधाएं प्रदान करने के लिए प्रेरित किया जाता है ताकि विश्व में मुक्त व्यापार फैल सके तथा बेहतर अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों के लक्ष्य तक पहुंचा जा सके। इस नीति से अर्थव्यवस्था की कार्यकुशलता बढ़ती है तथा निजी उद्योगों में सार्वजनिक उद्योगों की अपेक्षा ज्यादा बेहतर परिणाम देने की क्षमता होती है।

उदारीकरण की समस्याएं (Problems of Liberalization)-उदारीकरण से भारत जैसे देश में बहुत-सी समस्याएं पैदा हई हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-
(i) बेरोज़गारी में वृदधि (Increase in Unemployment)-भारत में 1990 में बेरोज़गारी की दर 6% थी जो 1999 में बढ़कर 7% हो गई। यह सिर्फ उदारीकरण का ही परिणाम है। देश में 36% लोग ग़रीबी की रेखा के नीचे रहते हैं क्योंकि उनके पास मूल सुविधाओं की कमी है। घरेलू उद्योगों तथा रोजगार में सीधा संबंध होता है क्योंकि घरेलू रोज़गार बहुत से लोगों को रोजगार देता है।

अगर उद्योगों की संख्या बढ़ेगी जो ज्यादा लोगों को रोजगार प्राप्त होगा पर अगर उद्योग कम होंगे तो बेरोज़गारी बढ़ेगी तथा ग़रीबी भी साथ ही साथ बढ़ेगी। हमारे देश में उदारीकरण की प्रक्रिया 14 वर्ष से चल रही है। बड़े-बड़े उद्योग तो लग रहे हैं, परंतु कुटीर तथा घरेलू उद्योग खत्म हो रहे हैं जिससे कि बेरोज़गारी में वृद्धि हुई है। इस तरह उदारीकरण की प्रक्रिया से बेरोज़गारी में वृद्धि हुई है।

(ii) उदारीकरण के गलत परिणाम (Evil Consequences of Liberalization)- उदारीकरण की प्रक्रिया के साथ-साथ कर्मचारियों को निकालने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। जब उदारीकरण की नीति अपनायी गयी थी तो यह कहा गया था कि इस प्रक्रिया से देश की सारी समस्याएं हल हो जाएंगी। लेकिन 14 वर्षों के उदारीकरण की प्रक्रिया के बाद भी हमारी अर्थव्यवस्था पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा है। आज भी देश की 36% जनता गरीबी की रेखा से नीचे रहती है। इन वर्षों में चाहे भारत को तकनीकी रूप से लाभ ही हुआ है पर बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं, जैसे कि कटीर उदयोगों का खत्म होना, जिनमें उदारीकरण की प्रक्रिया के गलत परिणाम

(iii) विदेशी कर्ज का बढ़ता बोझ (Increasing pressure of foreign debt)-आर्थिक सुधारों का पहला दौर 1991 से 2001 तक चला। 2001 में दूसरा दौर शुरू हुआ। इस दौर में यह सोचा गया कि देश के आर्थिक विकास की दर तेज़ होगी पर हुआ इसका उल्टा। देश के आर्थिक विकास तथा आर्थिक सुधार के रास्ते पर कदम धीरे हो गए हैं।

देश के लिए 8% की आर्थिक विकास की दर का लक्ष्य रखा गया है जोकि बहुत दूर की कौड़ी लगता है। वित्त मंत्री तरह-तरह के उपायों की घोषणा कर रहे हैं पर फिर भी यह मुमकिन नहीं लगता। इसके साथ-साथ देश के ऊपर विदेशी कर्ज का बोझ लगातार बढ़ रहा है। आज हमारे देश के ऊपर 110 अरब डालर के लगभग विदेशी कर्ज़ है जिससे हर भारतीय विदेशों का कर्जदार बन गया है। यह भी उदारीकरण की प्रक्रिया की वजह से ही

(iv) निर्यात में कमी तथा आयात का बढ़ना (Decrease in Export and Increase in Import)-उदारीकरण की प्रक्रिया में निर्यात में भी कमी आती है तथा आयात में भी बढ़ोत्तरी होती है। 1991 के मुकाबले 1996 में निर्यात कम हुआ था तथा आयात बढ़ा था। यह इस वजह से होता है कि उदारीकरण से पश्चिम की या विदेशी चीजें हमारे देश में आईं जिस के कारण लोगों में विदेशी चीजें लेने की प्रवृत्ति भी बढ़ी।

जिस के कारण आयात ज्यादा हो गया पर निर्यात उसी अनुपात में न बढ़ पाया जिस के कारण व्यापार घाटे में बढ़ोत्तरी तथा व्यापार संतुलन में कमी आई। आयात बढ़ने तथा उदारीकरण की प्रक्रिया से देसी उद्योगों पर भी प्रभाव पड़ा। आराम से ठीक दामों पर तथा अच्छी विदेशी चीज़ के मिलने के कारण भी आयात में बढ़ोत्तरी हुई तथा देशी उद्योगों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

(v) रुपये का मूल्य का गिरना (Decline in Value of Rupee)-उदारीकरण की वजह से भारतीय रुपए की कीमत में भी काफ़ी गिरावट आई है। 1991 में जिस डालर की कीमत ₹ 18 थी वह 1996 में ₹ 36तथा 2001 में यह ₹ 47 तक पहुंच गया था। आजकल यह ₹ 71 के लगभग है। यह सब उदारीकरण की वजह से है तथा यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं होता।

किसी देश की मुद्रा की कीमत कम होने से महंगाई बढ़ती है जोकि हमारे देश के गरीब लोगों के लिए ठीक नहीं है। विकसित देशों को तो इससे लाभ हो सकता है पर विकासशील देशों के लिए यह नुकसानदायक है। इस तरह उदारीकरण के कारण रुपए की विनिमय दर में निरंतर गिरावट आ रही है।

(vi) सरकार की आय में कमी आना (Decline in the Income of Govt.)-उदारीकरण की एक विशेषता है कि इसमें सरकार को उत्पादों पर सीमा शुल्क कम करना पड़ता है ताकि विदेशी चीजें उस देश के मूल्य पर मिल सके। सीमा शुल्क कम करने से सरकार के राजस्व या आमदनी कम होती है जिसका सीधा प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। इसके अलावा विदेशी चीज़ों की गुणवत्ता भारतीय उत्पादों के मामले काफ़ी अच्छी होती है तथा कई मामलों में यह सस्ती भी होती है।

जिस वजह से विदेशी चीजें भारतीय चीज़ों के मुकाबले ज्यादा बिकती हैं। इसके अलावा विदेशी चीजें भारतीय चीजों से तकनीक के मामले में भी अच्छी होती हैं क्योंकि भारतीय तकनीक इतनी अच्छी नहीं है। उदाहरण के तौर पर चीनी उत्पादों ने भारतीय बाजार में हलचल ला दी है। इस तरह जितनी ज्यादा ये चीजें हमारे देश में आएंगी उतनी ही सरकार की आमदनी में कमी होगी। अगर भारतीय चीजें बिकेंगी ही नहीं तो यह सरकार को क्या कर देंगे। इस तरह भी आमदनी में कमी आती है।

(vii) सरकारों का बढ़ता घाटा (Increasing deficit of Governments)-उदारीकरण की वजह से केंद्र तथा राज्य सरकारों के घाटे भी बढ़ रहे हैं। आमदनी कम हो रही है। खर्च या तो बढ़ रहे हैं या फिर कम हो रहे हैं। ज़रूरी चीज़ों के दाम बढ़ रहे हैं, बेरोज़गारी बढ़ रही है, ग़रीबी बढ़ रही है। सरकार के पास अपने काम पूरे करने के लिए पैसा नहीं है। देश के बजट का बड़ा हिस्सा कर्ज चुकाने में ही खर्च हो जाता है। सरकार के बढ़ते घाटे की वजह से विकास कार्य या तो नहीं हो रहे हैं या फिर अगर हो रहे हैं तो कम हो रहे हैं जिस वजह से देश पर काफ़ी प्रभाव पड़ रहा है।

इस तरह उदारीकरण के देश पर काफ़ी गलत प्रभाव भी पड़ रहे हैं। अगर हमें उदारीकरण से लाभ लेना है तो वित्तीय अनुशासन को सुधारना होगा। हमें अपने मूलभूत ढांचे को सुधारना होगा, ऊर्जा के क्षेत्र में प्रगति करनी होगी, नयी तकनीकों का प्रयोग करना होगा तथा और भी बहुत से सुधार करने होंगे तभी हम उदारीकरण के लाभ उठा सकते हैं। इनके साथ-साथ कुछ कानूनों में भी सुधार करना होगा तभी उदारीकरण पूर्ण रूप से सफल हो पाएगा।

प्रश्न 4.
पूंजीवाद के बारे में आप क्या जानते हैं? विस्तार सहित लिखो।
अथवा
पूँजीवाद को एक सामाजिक व्यवस्था के रूप में समझाइये।
अथवा
पूंजीवाद को एक सामाजिक व्यवस्था के रूप में समझाइये।
उत्तर:
पूंजीवाद एक आर्थिक व्यवस्था है जिसमें निजी संपत्ति की बहुत महत्ता होती है। पूंजीवाद एक दम से ही किसी स्तर पर नहीं पहुंचा बल्कि उसका धीरे-धीरे विकास हुआ है। इसके विकास को देखने के लिए हमें इसका अध्ययन आदिम समाज में करना होगा।

आदिम समाज में वस्तुओं के लेन-देने की व्यवस्था आदान-प्रदान में बदलने की व्यवस्था थी। उस समय लाभ का  विचार प्रत्यक्ष रूप से सामने नहीं आया था। लोग चीजों के लाभ के लिए एकत्र नहीं करते थे बल्कि उन दिनों के लिए एकत्र करते थे जब चीज़ों की कमी होती थी या फिर सामाजिक प्रसिद्धि के लिए एकत्र करते थे। व्यापार आमतौर पर सेवा व चीज़ों के देने पर निर्भर मरता था। आर्थिक कारक जैसे कि मजदूरी, निवेश, व्यापारिक लाभ के बारे में आदिम समाज को पता नहीं था।

मध्यवर्गी समाज में व्यापार व वाणिज्य थोड़े से उन्नत हो गए। चाहे शुरू में व्यापार आदान-प्रदान की व्यवस्था पर आधारित था पर धीरे-धीरे पैसा व्यापार करने का एक माध्यम बन गया। पैसा चाहे संपत्ति नहीं था, पर यह संपत्ति का सूचक था। इसका उत्पादक शक्तियों के लक्षणों पर पूरा प्रभाव था। सिमल के अनुसार पैसे की संस्था के आधुनिक पश्चिमी समाज में व्यवस्थित होने के कारण जिंदगी के हरेक हिस्से पर बहुत गहरे प्रभाव पड़े।

इसने मालिक व नौकर को आजादी दी। वस्तुओं तथा सेवाओं के बेचने तथा खरीदने वाले पर भी असर पड़ा क्योंकि इससे व्यापार के दोनों ओर से रस्मी रिश्ते पैदा हो गए। सिमल के अनुसार पैसे ने हमारी ज़िन्दगी की फिलासफ़ी में बहुत परिवर्तन ला दिए। इसने हमें Practical बना दिया क्योंकि अब हम प्रत्येक चीज़ को पैसे में तोलने लग पड़े। सामाजिक सम्पर्क, सम्बन्ध गैर-रस्मी तथा अव्यक्तक हो गए। मानवीय संबंध भी ठंडे हो गए।

आधुनिक समय के आरंभिक दौर में आर्थिक गतिविधियां आमतौर पर सरकारी ताकतों द्वारा संचालित होती थीं। इससे हमें यूरोपीय लोगों के राज्य की सरकार अधीन इकट्ठे होकर आगे बढ़ने का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है। इस समय में आर्थिक गतिविधियां राजनैतिक सत्ता द्वारा संचालित हैं ताकि राज्य का लभ तथा खज़ाना बढ़ सके। देश व्यापारियों की देख-रेख में चलता था तथा व्यापारी एक आर्थिक संगठन की भान्ति लाभ कमाने में लगे हुए हैं। उत्पादक शक्तियां भी व्यापारिक कानून द्वारा संचालित होती हैं।

इसके पश्चात् औद्योगिक क्रांति आई जिसने उत्पादन के तरीकों को बदल दिया। व्यापारिक नीतियां लोगों का भला करने में असफल रहीं। चीजों के उत्पादन करने के लिए Laissez faire की नीति अपनाई गई। इस नीति के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तिगत हित देख सकता था। उस पर कोई बंधन नहीं था। राज्य ने आर्थिक कार्य में दखल देना बंद कर दिया। समनर के अनुसार राज्य में व्यापार व वाणिज्य पर लगे सारे प्रतिबंध हटा लेने चाहिएं व आदान-प्रदान व पैसे को इकट्ठा करने पर लगी सभी पाबंदियां हटा लेनी चाहिएं। एडम स्मिथ ने इस समय चार सिद्धांतों का वर्णन किया।

  • व्यक्तिगत हित की नीति।
  • दखल न देने की नीति।
  • प्रतियोगिता का सिद्धान्त।
  • लाभ को देखना।

इन सिद्धांतों का उस समय पर काफ़ी प्रभाव पड़ा। इन नियमों के प्रभाव अधीन व औद्योगिक क्रांति के कारण संपत्ति व उत्पादन की मलकीयत की नई व्यवस्था सामने आई। जिसको पूंजीवाद का नाम दिया गया। औद्योगिक क्रांति के कारण घरेलू उत्पादन कारखानों के उत्पादन में बदल गया। कारखानों में काम छोटे-छोटे भागों में बंटा होता था तथा प्रत्येक मज़दूर थोड़ा सा छोटा सा काम करता था। इससे उत्पादन बढ़ गया। समय के साथ-साथ बड़े कारखाने लग गए। इन बड़े कारखानों के मालिक निगम अस्तित्व में आ गए। पूंजीवाद के साथ-साथ श्रम-विभाजन, विशेषीकरण व लेन-देन भी पहचान में आया।

इस उत्पादन व लेन-देन की व्यवस्था में उत्पादन के साधन के मालिक व्यक्तिगत लोग थे और उन पर कोई सामाजिक ज़िम्मेदारी नहीं थी। संपत्ति बिल्कुल निजी थी तथा वह राज्य, धर्म, परिवार व अन्य संस्थाओं की पाबंदियों से स्वतंत्र थे। फैक्टरियों के मालिक कुछ भी करने को स्वतंत्र थे। उनका उद्देश्य केवल लाभ था।

उन पर बिना लाभ की चीजों का उत्पादन करने का कोई बंधन नहीं था। उत्पादन का तरीका लाभ वाला था और सरकार ने दखल न देने की नीति अपनाई तथा इस दिशा में मालिक का साथ दिया।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 4 बाज़ार एक सामाजिक संस्था के रूप में

प्रश्न 5.
बाज़ार का क्या अर्थ है? बाज़ार के प्रमुख लक्षणों का वर्णन करें।
उत्तर:
दैनिक बोलचाल की भाषा में बाज़ार शब्द को विशेष वस्तु के बाज़ार के रूप में प्रयोग किया जाता है जैसे कि फलों का बाजार, सब्जी का बाजार अर्थात् हम इसे अर्थव्यवस्था से संबंधित करते हैं। परंतु यह एक सामाजिक संस्था भी है। समाजशास्त्रियों के अनुसार बाज़ार वह सामाजिक संस्थाएं है जो विशेष सांस्कृतिक तरीकों द्वारा निर्मित है।

बाजारों का नियंत्रण तो विशेष सामाजिक वर्गों द्वारा होता है तथा इसका अन्य सामाजिक संस्थाओं, सामाजिक प्रक्रियाओं तथा संरचनाओं से भी विशेष संबंध होता है। आर्थिक दृष्टिकोण से बाजार में केवल ऑर्थिक क्रियाओं तथा संस्थाओं को भी शामिल किया जाता है। इसका अर्थ यह है कि बाज़ार में केवल लेन-देन तथा सौदे ही होते हैं जोकि पैसे पर आधारित होते हैं।

ऐली के अनुसार, “बाज़ार का अर्थ हम उन सभी क्षेत्रों से लेते हैं जिसके अंदर किसी वस्तु-विशेष की मूल्य निर्धारण करने वाली शक्तियां कार्यशील होती हैं।” इसी प्रकार मैक्स वैबर के अनुसार, “बाजार स्थिति का अर्थ विनिमय के किसी भी विषय के लिए उसे द्रव्य में परिवर्तित करने के उन सभी अवसरों से है जिनके बारे में बाज़ार स्थिति में सहभागी सभी जानते हैं कि वह उन्हें प्राप्त है तथा वह दामों तथा प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से उनकी मनोवृत्तियों के लिए संदर्भपूर्ण हैं।”

बाज़ार के लक्षण
(Features of Market)
बाज़ार के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-
1. आपसी लेन-देन-बाजार का सबसे प्रमुख लक्षण आपसी लेन-देन का है। बाजार वैसे भी आपसी लेन-देन पर ही आधारित होता है। इसमें या तो चीजों के बदले में चीजें, चीज़ों के बदले में पैसे अथवा चीज़ों के बदले में सेवाएं प्रदान की जाती हैं। अगर आपसी लेन-देन ही नहीं होगा तो हम बाज़ार के बारे में सोच भी नहीं सकते।

2. निरंतर प्रक्रिया-बाज़ार एक निरंतर चलने वाली संस्था है। हम चाहे प्राचीन समाज अथवा आधुनिक समाज, ग्रामीण समाज देखें अथवा जन-जातीय समाज, बाज़ार प्रत्येक प्रकार के समाज में मौजूद है। अगर किसी व्यक्ति को परिवार चलाना है तो वह बाज़ार में आएगा ही तथा खरीददारी भी करेगा। इससे बाज़ार का नियमन भी बना रहता

3. अव्यक्तिगत संबंध-बाजार का एक और महत्त्वपूर्ण लक्षण है कि इसमें अव्यक्तिगत संबंध होते हैं। चाहे लोग बाज़ार के दुकानदारों को जानते होते हैं परंतु उनके संबंध एक सीमा तक ही सीमित होते हैं। अगर संबंध घनिष्ठ भी हैं तो भी यह बाज़ार के नियमों को अधिक प्रभावित नहीं करते हैं। दुकानदार अपना लाभ तो लेगा ही चाहे वह कम ही क्यों न हों। बाजार में संबंध दो अजनबी व्यक्तियों के बीच भी बन सकते हैं।

4. माध्यम के रूप में द्रव्य-बाज़ार के नियमों के अनुसार विनिमय में द्रव्य का प्रयोग किया जाता है। यह द्रव्य किसी भी रूप, चीज़ों, धन अथवा सेवाओं के रूप में हो सकता है। द्रव्य के हिसाब से चीज़ों की मात्रा कम अथवा अधिक भी हो सकती है। द्रव्य की मात्रा के हिसाब से ही सौदे होते हैं तथा चीज़ों का लेन-देन होता है।

5. संबंध समझौते पर आधारित-बाज़ार में संबंध समझौते पर आधारित होते हैं। यह संबंध अव्यक्तिगत होते हैं। समझौते की शर्ते सभी पर मान्य होती हैं तथा सभी को इन्हें मानना ही पड़ता है अन्यथा क्षतिपूर्ति की मांग भी की जा सकती है। आज के औद्योगिक समाजों के समझौते पर आधारित संबंधों की मांग बढ़ती जा रही है।

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