HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नियोजन से आप क्या समझते हैं ? नियोजन के लक्षणों की व्याख्या करें।
उत्तर:
आधुनिक राज्य पुलिस राज्य न होकर कल्याणकारी राज्य है। आधुनिक राज्य अपने नागरिकों की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक आदि की उन्नति में व्याप्त है। राज्य अपने लक्ष्यों की पूर्ति के लिए नियोजन पद्धति को प्रयोग में ला रहे हैं। आज नियोजन की आवश्यकता को व्यापक रूप से स्वीकार कर लिया गया है।

आर्थिक नियोजन की विधि को सबसे पहले रूस ने 1928 में लागू किया। इन योजनाओं के फलस्वरूप कुछ वर्षों में ही रूस संसार की महान् शक्तियों में गिना जाने लगा। आर्थिक नियोजन की सफलता को देखकर संसार के सभी देशों विशेषकर अल्पविकसित देशों ने योजनाओं के मार्ग को अपनाया है।

फिफ्नर और प्रिस्थस (Pfiffner and Presthus) ने ठीक ही कहा है, “सभी संगठनों को यदि वे अपने उद्देश्यों की सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो योजना का निर्माण करना All organisations must plan if they are to achieve their end.”) लीविस (Lewis) ने कहा है, “आज मुख्य बात यह नहीं कि नियोजन हो अथवा नहीं अपितु यह है कि नियोजन का रूप क्या होना चाहिए।

नियोजन का अर्थ एवं परिभाषाएं (Meaning and Definitions of Planning):
नियोजन निर्माण आम व्यक्ति तथा सामूहिक प्रयत्न का एक स्वाभाविक अंग है। फिफ्नर और प्रिस्थस के अनुसार, “नियोजन एक ऐसी विवेकपूर्ण प्रक्रिया है जो सारे मानव-व्यवहार में पाई जाती है।” साधारण शब्दों में नियोजन का अर्थ कम से कम व्यय द्वारा उपलब्ध साधनों का प्रयोग करते हुए पूर्व निश्चित लक्ष्य को प्राप्त करना है। उर्विक (Urwick) के अनुसार, “नियोजन एक बौद्धिक प्रक्रिया है, साधारण रूप से कार्य करने की एक पूर्व निश्चित मानसिक प्रक्रिया है । कार्य करने से पूर्व विचार तथा अनुमानों की अपेक्षा तथ्यों के प्रकाश में कार्य करना है, यह अनुमान लगाने वाली प्रवृत्ति की प्रतिक्रिया है।”

डिमॉक (Dimock) के शब्दों में, “योजना परिवर्तन के स्थान पर तर्क सम्मत इच्छा का प्रयोग करना है। कार्य करने से पूर्व निर्णय लेना है न कि कार्य आरम्भ करने के बाद सुधारना।” सेक्लर हडसन (Secklar Hudson) के अनुसार, “भावी कार्यक्रम के मार्ग को निश्चित करने के लिए आधार की खोज ही नियोजन है।” (The process of devising a basis for future course of action.) भारतीय विचारक डॉ० अमरेश के अनुसार, “संक्षेप में नियोजन उन भावी कार्यक्रमों के चयन एवं विकास की विधि है जिसके द्वारा एक घोषित लक्ष्य की सहज प्राप्ति होती है।”

जॉन डी० मिलट (John D. Millett) के शब्दों में, “प्रशासकीय प्रयत्न के उद्देश्यों को निश्चित करने तथा उनको प्राप्त करने के लिए उपयुक्त साधनों की व्यवस्था करना ही नियोजन है।” प्रो० के० टी० शाह (K.T. Shah) के अनुसार, “नियोजन एक लोकतन्त्रीय व्यवस्था में उपभोग, उत्पादन, अनुसन्धान, व्यापार तथा वित्त का तकनीकी समायोजन है। यह उन उद्देश्यों के अनुरूप होते हैं जिनका निर्धारण राष्ट्र की प्रतिनिधि संस्थाओं द्वारा होता है।”

डॉ० एम० पी० शर्मा (Dr. M.P. Sharma) के अनुसार, “नियोजन विस्तृत अर्थों में व्यवस्थित क्रिया का स्वरूप है। नियोजन में इस प्रकार समस्त मानवीय क्रियाएं आ जाती हैं भले ही वह व्यक्तिगत हों अथवा सामूहिक।” अमरेश महेश्वरी के अनुसार विभिन्न कार्यक्रमों तथा साधनों के संगठन, संघनन तथा विलीनीकरण की क्रिया को नियोजन कहते हैं। परिभाषाओं से स्पष्ट है कि पूर्व निर्धारित कार्यक्रम को उचित साधनों द्वारा प्राप्त करना ही नियोजन है। व्यापक रूप से नियोजन के अन्तर्गत निम्नलिखित चार क्रम शामिल हैं

  • लक्ष्य का निर्धारण।
  • लक्ष्य की प्राप्ति के लिए नीति का निर्धारण।
  • निश्चित नीति के अनुसार प्रक्रियाओं तथा साधनों का निर्धारण।
  • नियोजन के परिणामों का समुचित रूप से वर्गीकरण तथा विश्लेषण करना।

अच्छे नियोजन के लक्षण (Characteristics of a Good Plan):
एक अच्छी योजना में निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं

1. स्पष्ट उद्देश्य-नियोजन के उद्देश्य की स्पष्ट तथा व्यापक व्यवस्था होनी चाहिए। नियोजन के लक्ष्य का संक्षिप्त तथा निश्चित होना ज़रूरी है। यदि नियोजन के लक्ष्य स्पष्ट न हों तो अधिकारियों को सफलता नहीं मिलती।

2. साधनों की व्यवस्था- उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक साधनों तथा उपायों की व्यवस्था होनी चाहिए।

3. लचीलापन-नियोजन में आवश्यकतानुसार लचीलापन होना चाहिए। नियोजन भविष्य से सम्बन्धित होता है और भविष्य में परिस्थितियां बदल सकती हैं। बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार जिसमें आसानी से परिवर्तन लाया जा सके वही सही नियोजन है।

4. समन्वय-नियोजन के विभिन्न अंगों में सन्तुलन होना चाहिए। विभिन्न नियोजनों के बीच समन्वय स्थापित किया जाना ज़रूरी है। विभिन्न नियोजनों के अनुरूप ही मुख्य नियोजन का होना आवश्यक है।

5. व्यावहारिकता-नियोजन में व्यावहारिकता का होना अति आवश्यक है।

6. सिद्धान्त-नियोजन में कार्यों का स्पष्ट विश्लेषण तथा सफलता को मापने के लिए कुछ सिद्धान्तों का प्रतिपादन होना चाहिए।

7. स्पष्ट विषय-वस्तु-किसी भी नियोजन की विषय-वस्तु स्पष्ट होनी चाहिए।

8. पद-सोपान-नियोजन में उसके पद-सोपान का रहना ज़रूरी है।

9. निरन्तरता-नियोजन की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि उसमें निरन्तरता हो। निरन्तरता न होने पर नियोजन पर किया गया खर्च, समय और श्रम बेकार हो जाता है।

प्रश्न 2.
भारत में आर्थिक नियोजन के मुख्य उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
आर्थिक नियोजन 20वीं शताब्दी की देन है। संसार की लगभग सभी अर्थव्यवस्थाओं ने दसरे महायद्ध के पश्चात् आर्थिक विकास तथा स्थिरता के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए आर्थिक नियोजन की विधि को अपनाया है। भारत ने भी स्वतन्त्रता के पश्चात् आर्थिक नियोजन को अपनाया है। भारत में आर्थिक नियोजन के मुख्य उद्देश्य अग्रलिखित हैं

1. राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि-भारत में आर्थिक नियोजन का प्रथम उद्देश्य देश के विभिन्न क्षेत्रों जैसे कृषि, उद्योग आदि का विकास करके राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना है। जनसंख्या की वृद्धि की दर में कमी करके प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करना भी आर्थिक नियोजन का मुख्य उद्देश्य है।

2. आर्थिक असमानता में कमी-आर्थिक नियोजन का उद्देश्य आर्थिक असमानता को कम करना है। आर्थिक असमानता क्रान्ति एवं संघर्ष को जन्म देती है। अत: नियोजन का ये उद्देश्य होता है कि सभी वर्गों का विकास किया जाए।

3. क्षेत्रीय असमानताओं में कमी-आर्थिक नियोजन का उद्देश्य देश में क्षेत्रीय असमानताओं में कमी करना होता है। इसके लिए देश के पिछड़े क्षेत्रों के विकास की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है।

4. पूर्ण रोज़गार-आर्थिक नियोजन का मुख्य उद्देश्य रोजगार के अवसर बढ़ाना है ताकि प्रत्येक व्यक्ति को रोज़गार दिया जा सके।

5. उपलब्ध साधनों का पूर्ण उपयोग-आर्थिक नियोजन का एक मुख्य उद्देश्य देश के प्राकृतिक साधनों का पूर्ण उपयोग करना होता है। आर्थिक नियोजन द्वारा वन, जल, भूमि, खनिज पदार्थ आदि प्राकृतिक साधनों का उचित प्रयोग करके देश का आर्थिक विकास करने की कोशिश की जाती है।

6. आर्थिक विकास- भारत में आर्थिक नियोजन का मुख्य उद्देश्य आर्थिक विकास की बाधाओं को दूर करके देश का आर्थिक विकास करना है।

7. जीवन स्तर में वृद्धि-आर्थिक नियोजन का उद्देश्य लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा करना है और इसके लिए उत्पादन के समस्त क्षेत्रों में वृद्धि की जाती है।

8. उद्योगों का विकास-आर्थिक नियोजन का उद्देश्य मूल तथा भारी उद्योगों का विकास करना तथा इस प्रकार देश का तेजी से औद्योगिकीकरण करना है।

9. आत्म निर्भरता-आर्थिक नियोजन का उद्देश्य देश को अधिक से अधिक आत्म-निर्भर बनाना है ताकि देश दूसरे देशों पर कम-से-कम निर्भर रहे।

10. सामाजिक उद्देश्य-आर्थिक नियोजन का उद्देश्य मनुष्य का सम्पूर्ण विकास करना होता है। अत: नियोजन का उद्देश्य सामाजिक कल्याण में वृद्धि करना भी है। आर्थिक नियोजन का एक मुख्य उद्देश्य समाज के निर्धन तथा शोषित वर्ग को सुरक्षा प्रदान करना है।

निष्कर्ष (Conclusion):
संक्षेप में भारत में आर्थिक नियोजन का मूल उद्देश्य लोकतन्त्रीय तथा कल्याणकारी कार्य विधियों द्वारा देश का तीव्र गति से आर्थिक विकास करना है। योजना आयोग के शब्दों में, “भारत में योजनाकरण का केन्द्रीय उद्देश्य लोगों के जीवन-स्तर को ऊंचा उठाना तथा उन्हें समृद्ध जीवन व्यतीत करने के लिए अधिकाधिक सुविधाओं की व्यवस्था करना है।”

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 3.
योजना आयोग की रचना तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा
योजना आयोग के प्रमुख कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
रचना (Composition):
योजना आयोग की रचना समय-समय पर बदलती रहती थी। आरम्भ में इसके कुल छः सदस्य थे और इनमें योजना आयोग के अध्यक्ष प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू भी शामिल थे। प्रधानमन्त्री योजना आयोग का अध्यक्ष होता था और इसके अतिरिक्त आयोग का उपाध्यक्ष भी होता था।

योजना आयोग के उपाध्यक्ष का कैबिनेट मन्त्री का स्तर होता था और सदस्यों का स्तर मन्त्री का होता था। योजना आयोग का एक स्थायी सचिव भी होता था जो मन्त्रिमण्डल का सचिव भी होता था। पूर्णकालिक सदस्यों के अतिरिक्त वित्त मन्त्री, गृहमन्त्री आदि भी योजना आयोग के अल्पकाल के सदस्य होते थे। योजना आयोग मुख्य रूप से तीन विभागों द्वारा कार्य करते थे-

  • कार्यक्रम सलाहकार समिति,
  • सामान्य सचिवालय तथा
  • तकनीकी विभाग।

कार्य (Functions):
योजना आयोग जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री थे, भारत में एक शक्तिशाली तथा प्रभावशाली परामर्शदात्री अभिकरण के रूप में प्रकट हुए हैं। इसके कार्य इस प्रकार थे

(1) देश के भौतिक, पूंजीगत, मानवीय, तकनीकी तथा कर्मचारी वर्ग सम्बन्धी साधनों का अनुमान लगाना और साधन राष्ट्रीय आवश्यकता की तुलना में कम प्रतीत होते हों तो उनकी वृद्धि की सम्भावनाओं के सम्बन्ध में अनुसन्धान करना।

(2) देश के साधनों के अधिकतम प्रभावशाली तथा सन्तुलित उपयोग के लिए योजना बनाना।

(3) नियोजन में स्वीकृति कार्यक्रम तथा परियोजनाओं के बारे में प्राथमिकताएं निश्चित करना।

(4) योजना के मार्ग में आने वाली बाधाओं को इंगित करना तथा राष्ट्र की राजनीतिक तथा सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए योजना के लिए स्वस्थ वातावरण उत्पन्न करना।

(5) योजना के लिए विभिन्न यन्त्रों का जुटाना जो उसकी विभिन्न सेवाओं पर काम आ सके।

(6) समय-समय पर योजना की प्रगति का मूल्यांकन करना और नीति तथा उपायों में आवश्यकतालमेल करना।

(7) वर्तमान आर्थिक व्यवस्था, प्रचलित नीतियों, उपायों तथा विकास-कार्यक्रमों के विचार-विमर्श के लिए इसके कर्त्तव्य के पालन को आसान बनाने के लिए आवश्यक सिफ़ारिशें करना अथवा केन्द्रीय या राज्य सरकारों द्वारा सुझावों हेतु भेजी जांच की सिफारिश करना।

(8) राष्ट्र के विकास में लोगों का सहयोग प्राप्त करना।

(9) देश के औद्योगिक विकास के लिए नियोजन करना।

(10) केन्द्र और राज्य सरकारों की विकास योजनाओं का निर्माण करना। (नोट-एक जनवरी 2015 को केन्द्र सरकार ने योजना आयोग को समाप्त करके इसके स्थान पर ‘नीति आयोग’ की स्थापना की थी।)

प्रश्न 4.
नीति आयोग पर एक संक्षिप्त लिखें।
उत्तर:
भारत में स्थापित योजना आयोग की प्रासंगिकता 1990 के दशक में कम होने लगी। लाइसैंस राज समाप्त होने के बाद यह बिना किसी प्रभावी अधिकार के सलाहकार संस्था के तौर पर काम करता रहा। योजना आयोग की रचना, कार्यप्रणाली तथा इसकी प्रासंगिकता पर समय-समय पर सवाल उठते रहे थे। योजना आयोग के अनुसार 28 रु० की आय वाला व्यक्ति ग़रीबी रेखा से ऊपर है, जबकि आयोग ने अपने दो शौचालयों पर 35 लाख रुपये खर्च कर दिये थे।

तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता का कहना था, कि “हम दिल्ली सिर्फ इसलिए आते हैं, ताकि आयोग हमें बता सके कि हम अपना धन कैसे खर्च करें।” पूर्व केन्द्रीय मन्त्री कमल नाथ योजना आयोग को ‘आमचेयर एडवाइजर तथा नौकरशाहों का पार्किंग लॉट’ कहकर व्यंग्य कर चुके हैं। स्वतन्त्र मूल्यांकन कार्यालय (आई०ई०ओ०) ने आयोग को आई०ए०एस० अधिकारियों का अड्डा बताया है।

यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने योजना आयोग को ‘जोकरों का समूह’ कहा था। इन सभी कारणों से योजना आयोग जैसी पुरानी संस्था को समाप्त करके एक नई संस्था बनाने का विचार काफी समय से उठ रहा था। इसलिए भारतीय जनता पार्टी ने 1998 के अपने चुनावी घोषणा पत्र में कहा था, कि “विकास की बदलती आवश्यकताओं के लिए योजना आयोग का फिर गठन होगा।”

भारतीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमन्त्री थे, तब वे कई बार योजना आयोग की अप्रासंगिकता की बात उठा कर एक नयी संस्था की वकालत कर चुके थे। इसलिए जब वे मई, 2014, में देश के प्रधानमंत्री बने, तभी से उन्होंने योजना आयोग के स्थान पर एक नई संस्था या आयोग को बनाने पर जोर दिया।

7 दिसम्बर, 2014 को नई दिल्ली में मुख्यमन्त्रियों की बैठक में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने योजना आयोग के स्थान पर नई व्यवस्था बनाने को समय की ज़रूरत बताया तथा उन्होंने कहा, कि अब योजना की प्रक्रिया ‘ऊपर से नीचे’ की बजाय ‘नीचे से ऊपर’ करने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में ऐसे संगठन की आवश्यकता है जो न केवल सृजनात्मक रूप से चिंतन कर सके, बल्कि संघात्मक ढांचे को मजबूत बनाने के साथ ही राज्यों में नई ऊर्जा का संचार भी कर सके। इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रखकर एक जनवरी, 2015 को योजना आयोग को समाप्त करके नीति आयोग (NITI AAYOG-NATIONAL INSTITUTION FOR TRANSFORMING INDIA) क स्थापना की गई।

नीति आयोग की रचना (Composition of NITI Aayog)-नीति आयोग की रचना निम्नलिखित ढंग से की गई है

  • अध्यक्ष-प्रधानमन्त्री
  • उपाध्यक्ष-इसकी नियुक्ति प्रधानमन्त्री करेंगे।
  • सी०ई०ओ०-सी०ई०ओ० केन्द्र के सचिव स्तर का अधिकारी होगा, जिसकी नियुक्ति प्रधानमन्त्री निश्चित कार्यकाल के लिए करेंगे।
  • गवर्निंग काऊंसिल-इसमें सभी मुख्यमंत्री तथा केन्द्रशासित प्रदेशों के उपराज्यपाल शामिल होंगे।
  • पूर्णकालिक सदस्य- इसमें अधिकतम पांच सदस्य होंगे।
  • अंशकालिक सदस्य- इसमें अधिकतम दो पदेन सदस्य होंगे।
  • पदेन सदस्य- इसमें अधिकतम चार केन्द्रीय मन्त्री होंगे।
  • विशेष आमंत्रित सदस्य-इसमें विशेषज्ञ होंगे, जिन्हें प्रधानमन्त्री मनोनीत करेंगे।

5 जनवरी, 2015 को प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अरविन्द पनगड़िया को नीति आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया, जिन्होंने 14 जनवरी, 2015 को अपना कार्यभार संभाल लिया। प्रधानमंत्री ने 11 जनवरी, 2015 को सिन्धुश्री खुल्लर को आयोग का पहला सी०ई०ओ०, (C.E.O. Chief Executive Officer) मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया। 31 दिसम्बर, 2015 को सिन्धुश्री खुल्लर की सेवानिवृत्ति के पश्चात् श्री अमिताभ कांत को नीति आयोग का सी० ई० ओ० नियुक्त किया गया। 5 अगस्त, 2017 को श्री राजीव कुमार को श्री अरविन्द पनगड़िया के स्थान पर नीति आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया।

विभाग (Department):
नीति आयोग में कुशलतापूर्वक कार्य करने के लिए तीन विभागों की भी व्यवस्था की गई है

  • पहला अन्तर्राज्जीय परिषद् की तरह कार्य करेगा।
  • दूसरा विभाग लम्बे समय की योजना बनाने तथा उसकी निगरानी करने का काम करेगा।
  • तीसरा विभाग डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर तथा यू०आई०डी०ए०आई० (UIDAI) को मिलाकर बनाया जायेगा।

उद्देश्य (Objectives):
नीति आयोग के कुछ महत्त्वपूर्ण उद्देश्य निर्धारित किए गए हैं, जिनका वर्णन इस प्रकार है

  • सशक्त राज्य से सशक्त राष्ट्र-इस सूत्र से सहकारी संघवाद (Co-operative Federalism) को बढ़ाना।
  • रणनीतिक तथा दीर्घावधि के लिए नीति तथा कार्यक्रम का ढांचा बनाना।
  • ग्रामीण स्तर पर योजनाएं बनाने के तन्त्र को विकसित करना।
  • आर्थिक प्रगति से वंचित रहे वर्गों पर विशेष ध्यान देना।
  • राष्टीय सरक्षा के हितों व आर्थिक नीति में तालमेल बिठाना।

नीति आयोग का गठन भी योजना आयोग की तरह मन्त्रिमण्डल के प्रस्ताव से हआ है परन्त दोनों में महत्त्वपूर्ण अन्तर यह है, कि नीति आयोग की गतिविधियों में मुख्यमन्त्री एवं निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। इस प्रकार प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा स्थापित नीति आयोग ‘टीम इण्डिया तथा सहकारी संघवाद’ के विचार को साकार करेगा, जबकि पं० नेहरू के समय के योजना आयोग की प्रकृति केन्द्रीयकृत थी, इसलिए योजना आयोग को सुपर केबिनेट भी कहा जाने लगा था।

नीति आयोग की अध्यक्षता प्रधानमन्त्री करेंगे। इसकी गवर्निंग काऊंसिल में सभी राज्यों के मुख्यमन्त्री तथा केन्द्र शासित प्रदेशों के उप-राज्यपाल सदस्य के रूप में शामिल होंगे। नीति आयोग प्रधानमन्त्री तथा सभी मुख्यमन्त्रियों के लिए विकास का राष्ट्रीय एजेण्डा तैयार करने के लिए एक ‘थिंक टैंक’ की तरह काम करेगा। नीति आयोग जन केन्द्रित, सक्रिय तथा सहभागी विकास एजेण्डा के सिद्धान्त पर आधारित है। इससे सहकारी संघवाद की भावना बढ़ेगी। नीति आयोग की मुख्य भूमिका या कार्य राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के अलग-अलग नीतिगत विषयों पर केन्द्र तथा राज्य सरकारों को जरूरी रणनीतिक व तकनीकी परामर्श देना है।

नीति आयोग की पहली बैठक 6 फरवरी, 2015 को हुई, जिसमें प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी, वित्त मन्त्री श्री अरुण जेटली तथा आयोग के उपाध्यक्ष श्री अरविंद पनगडिया शामिल थे। इनके अतिरिक्त बैठक में विजय केलकर, नितिन देसाई, अशोक गुलाटी, सुबीर गोकर्ण, बिमल जालान, पार्थसारथी सोम, जी०एन० वाजपेयी, राजीव कुमार, राजीव लाल, मुकेश बुरानी, आर० वैद्यनाथन तथा बालाकृष्णन जैसे अर्थशास्त्रियों ने भी भाग लिया। इस बैठक में अर्थव्यवस्था की विकास दर फिर तेज़ करने, रोज़गार के अवसर बढ़ाने तथा ढांचागत संरचना सहित महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने जैसे विषयों पर विचार-विमर्श हुआ।

नीति आयोग की दूसरी महत्त्वपूर्ण बैठक 8 फरवरी, 2015 को हुई, इसमें नीति आयोग के सभी सदस्यों ने भाग लिया। इस बैठक में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने निम्नलिखित बातों पर बल दिया

(1) प्रधानमन्त्री ने आर्थिक सुधारों की धीमी गति, विकास की धीमी गति, मेक इन इण्डिया को मिलते कम समर्थन तथा मैन्यूफैक्चरिंग गतिविधियों में कमी को देखते हुए राज्यों से सक्रिय सहयोग की अपील की।

(2) प्रधानमन्त्री ने राज्यों को आपसी मतभेद भुलाकर विकास दर को तेज़ करने, निवेश बढ़ाने तथा रोजगार पैदा करने की अपील की।

(3) उन्होंने मुख्यमन्त्रियों से अपने-अपने राज्यों में एक नोडल अफसर नियुक्त करने की अपील की ताकि, राज्य लम्बित मुद्दों को हल तथा परियोजनाओं को जल्दी पूरा करने के लिए अवश्यक कदम उठा सकें।

(4) उन्होंने विकास के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा ग़रीबी को बताया तथा इसे दूर करने को सबसे बड़ी चुनौती बताया।

(5) उनके अनुसार नीति आयोग सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद का एक नया मॉडल बनायेगा।

(6) नीति आयोग की इस बैठक में प्रधानमन्त्री ने तीन उप-समितियां बनाने की घोषणा की, जोकि केन्द्र की 66 योजनाओं को ठीक से संगठित करने, कौशल विकास तथा स्वच्छ भारत योजना को निरन्तर चलाए रखने के लिए सुझाव देंगी।

(7) उन्होंने कहा, कि केन्द्र सभी के लिए एक ही नीति के सिद्धान्त से हटकर, नीतियों तथा राज्यों की ज़रूरत के उचित समन्वय पर बल देगा।

(8) उन्होंने मुख्यमन्त्रियों को परियोजनाओं को धीमी करने के कारणों पर खुद ध्यान देने की अपील की। (9) उन्होंने ग़रीबी समाप्त करने के लिए राज्यों से टास्क फोर्स गठित करने की अपील की।

(10) उन्होंने मख्यमन्त्रियों तथा उपराज्यपालों से फ्लैगशिप योजनाओं, ढांचागत योजनाओं, स्वच्छता मिशन, मेक इन इण्डिया अभियान, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना, स्मार्ट सिटी, डिजिटल इण्डिया, स्किल इण्डिया, प्रधानमन्त्री सिंचाई योजना तथा 2022 तक सभी के लिए घर उपलब्ध कराने जैसी केन्द्र की योजनाओं की सफलता के लिए सुझाव मांगे।

स्पष्ट है कि योजना आयोग को समाप्त करके बनाये गये नीति आयोग पर देश के विकास के लिए कारगार नीतियां एवं योजनाएं बनाने का दबाव रहेगा। यह सही है कि योजना आयोग द्वारा पूरे देश के लिए लगभग एक जैसी नीति बनाना सही तरीका नहीं था क्योंकि भारत में कुछ राज्य कृषि प्रधान हैं, तो कुछ राज्यों में उद्योगों की अधिकता है। किसी राज्य की प्रति व्यक्ति आय अधिक है, तो किसी की कम। इसलिए पूरे देश के लिए एक ही तरह की नीति व्यावहारिक सिद्ध नहीं हो रही थी। इसलिए नीति बनाते हुए विभिन्नताओं का सही विचार आवश्यक है। यदि नीति आयोग में ऐसा होना सम्भव हो तो उचित रहेगा।

प्रश्न 5.
खाद्य संकट से आपका क्या अभिप्राय है? खाद्य संकट के प्रमुख परिणामों का वर्णन करें।
उत्तर:
खाद्य संकट से अभिप्राय खाने पीने की वस्तुओं का कम होना है। 1960 के मध्य में भारत को राजनीतिक एवं आर्थिक मोर्चे पर कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। राजनीतिक मोर्चे पर पाकिस्तान से युद्ध के बाद पैदा हुई स्थिति राजनीतिक बदलाव तथा आर्थिक मोर्चे पर भारत में पड़ने वाला भयंकर अकाल था। इन सभी परिस्थितियों ने भारत की अर्थव्यवस्था को काफी हद तक प्रभावित किया। भारत में आर्थिक विकास में कमी आने लगी तथा विशेषकर खाद्य पदार्थों की कमी होने लगी।

खाद्य संकट के प्रमुख परिणाम

  • खाद्य संकट के कारण भारत में बड़े पैमाने पर कुपोषण फैला।
  • बिहार के कई भागों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन का आहार 2200 कैलोरी से घटकर 1200 कैलोरी रह गया।
  • 1967 में बिहार में मृत्यु दर पिछले साल की तुलना में 34% बढ़ गई।
  • खाद्य संकट के कारण देश में खाद्यान्न की कीमतें बढ़ने लगीं।
  • खाद्यान्न संकट ने देश की राजनीतिक परिस्थितियों को भी प्रभावित किया।
  • देश को चावल एवं गेहूं का आयात करना पड़ा। जिससे भारत की विदेशी पूंजी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
  • नियोजन के प्रति नागरिकों का विश्वास हिलने लगा।
  • योजना बनाने वालों को अपनी नीतियों में बदलाव करना पड़ा ताकि खाद्य संकट को टाला जा सके।

प्रश्न 6.
हरित क्रान्ति से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रभावों का वर्णन करो।
अथवा
हरित क्रांति क्या है ? हरित क्रांति की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
1960 के मध्य में भारत को राजनीतिक एवं आर्थिक मोर्चे पर कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। राजनीतिक मोर्चे पर पाकिस्तान से युद्ध के बाद पैदा हुई स्थिति, राजनीतिक बदलाव तथा आर्थिक मोर्चे पर भारत में पड़ने वाला भयंकर अकाल। इन सभी परिस्थितियों ने भारत की अर्थव्यवस्था को काफ़ी हद तक प्रभावित किया।

भारत के आर्थिक विकास में कमी आने लगी तथा विशेषकर खाद्य पदार्थों की कमी होने लगी जिसने भारतीय नेतृत्व को चिन्ता में डाल दिया कि किस प्रकार इन स्थितियों से बाहर निकला जाए। अतः भारतीय नीति निर्धारकों ने कृषि उत्पादन में तेजी से वृद्धि करने का निर्णय किया, ताकि भारत खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्म-निर्भर हो जाए। यहीं से भारत में हरित क्रान्ति की शुरुआत मानी जाती है। हरित क्रान्ति का मुख्य उद्देश्य देश में पैदावार को बढ़ाकर भारत को खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्म-निर्भर बनाना था। हरित क्रांति की मुख्य विशेषताएं या तत्त्व निम्न प्रकार से हैं

1. कृषि का निरन्तर विस्तार (Continued Expansion of Agriculture Sector):
हरित क्रान्ति का सबसे महत्त्वपूर्ण उद्देश्य या तत्त्व भारत में कृषि क्षेत्र का निरन्तर विस्तार एवं विकास करना था। यद्यपि स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय से ही भारत में कृषि क्षेत्र का विस्तार जारी था परन्तु 1960 के मध्य में इस ओर अधिक ध्यान दिया गया और यह कार्य हरित क्रान्ति के अन्तर्गत किया गया।

2. दोहरी फसल का उद्देश्य (Aim of Double Cropping):
हरित क्रान्ति का एक अन्य महत्त्वपूर्ण तत्त्व या उद्देश्य यह था कि साल में दो मौसमी फ़सलें बोई जाएं। साधारण रूप से भारत में प्रतिवर्ष एक मौसमी फसल ही काटी जाती थी, इसका प्रमुख कारण यह था कि प्रतिवर्ष भारत में एक ही मौसमी वर्षा होती थी। हरित क्रान्ति के अन्तर्गत अब प्रतिवर्ष दो मौसमी वर्षा करके दो मौसमी फ़सलें काटने का निर्णय लिया गया।

एक फ़सल प्राकृतिक वर्षा के आधार पर होनी तथा दूसरी कृत्रिम वर्षा के आधार होगी। कृत्रिम वर्षा के लिए सिंचाई सुविधाओं एवं यन्त्रों की ओर विशेष ध्यान दिया गया। प्राकृतिक वर्षा के समय जो पानी व्यर्थ चला जाता है उसे अब एक जगह एकत्र किया जाने लगा तथा नी का प्रयोग उस मौसमी फ़सल के लिए किया जाने लगा जब प्राकृतिक वर्षा नहीं होती थी। इस तरह भारत में अब एक वर्ष में दो मौसमी फ़सलें होने लगीं तथा खाद्यान्न पदार्थों की अधिकाधिक पैदावार होने लगी।

3. अच्छे बीजों का प्रयोग (Use of Good Qualities Seeds):
हरित क्रान्ति का एक तत्त्व या उद्देश्य अच्छे बीजों का प्रयोग करना था ताकि फ़सल ज्यादा हो। इसके लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (Indian Council for Agriculture Research) का 1965 एवं 1973 में पुनर्गठन किया गया। भारत में चावल, गेहूं, मक्का तथा बाजरा की विशेष किस्में तैयार की गईं।

4. भारत में कृषि का मशीनीकरण भी किया गया। इसके अन्तर्गत किसानों को कृषि यन्त्र खरीदने के लिए कृषि ऋण प्रदान किया गया।

5. हरित क्रांति के अन्तर्गत कृषि क्षेत्रों में सिंचाई की व्यवस्था का प्रबन्ध एवं विस्तार किया गया। 6. हरित क्रांति के अन्तर्गत खेतों में कीटानाशक दवाओं एवं रासायनिक खादों का प्रयोग किया जाने लगा। तीसरी पंचवर्षीय योजना में हरित क्रान्ति को सफल बनाने के लिए विशेष जोर दिया गया। तीसरी पंचवर्षीय योजना में अच्छी किस्म के बीजों पर ध्यान दिया गया। सिंचाई साधनों का विस्तार किया गया। किसानों को कृषि के विषय में और अधिक शिक्षित किया गया।

हरित क्रान्ति की सफलताएं (Achievements of Green Revolution):
भारत में हरित क्रान्ति के कुछ अच्छे परिणाम सामने आए जिनका वर्णन इस प्रकार है

1. उत्पादन में रिकार्ड वृद्धि (Record Increasement in Production) हरित क्रान्ति की सबसे बड़ी सफलता यह थी कि इससे भारत में रिकार्ड पैदावार हुई। 1978-79 में भारत में लगभग 131 मिलियन टन गेहूँ का उत्पादन हुआ तथा जो देश गेहूँ का आयात करता था, वह अब गेहूँ को निर्यात करने की स्थिति में आ गया।

2. फ़सल क्षेत्र में वृद्धि (Increasement in Crop Field)-हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप भारत में फ़सल क्षेत्र में व्यापक वृद्धि हुई।

3. औद्योगिक विकास को बढ़ावा (Promotion of Industrial Development) हरित क्रान्ति के कारण भारत में न केवल कृषि क्षेत्र को ही फायदा हुआ बल्कि इसने औद्योगिक विकास को भी बढ़ावा दिया। हरित क्रान्ति के अन्तर्गत अच्छे बीजों, अधिक पानी, खाद तथा कृत्रिम यन्त्रों की आवश्यकता थी, जिसके लिए उद्योग लगाए गए। इससे लोगों को रोजगार भी प्राप्त हुआ है।

4. बांधों का निर्माण (Making of Bandh)हरित क्रान्ति के लिए वर्षा के पानी को संचित करने की आवश्यकता अनुभव हुई जिसके लिए कई जगहों पर बांधों का निर्माण किया गया जिससे कई लोगों को रोजगार मिला।

5. जल विद्युत् शक्ति को बढ़ावा (Promotion Water Energy)-बांधों द्वारा संचित किए गए पानी का जल विद्युत् शक्ति के उत्पादन में प्रयोग किया गया।

6. विदेशों में भारतीय किसानों की मांग (Demand of Indian Farmers in Foreign)-भारत की हरित क्रान्ति से कई देश इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने भारतीय किसानों को अपने देश में बसाने के लिए प्रोत्साहित किया। कनाडा जैसे देश ने भारत सरकार से किसानों की मांग की। जिसके कारण पंजाब एवं हरियाणा से कई किसान कनाडा में जाकर बस गए।

7. विदेशी कों की वापसी-हरित क्रान्ति के समय या उससे पहले भारत ने विदेशी संस्थाओं से जो भी कर्जे लिए थे, उन्हें वापिस कर दिया गया।

8. राजनीतिक स्थिति में बढ़ोत्तरी (Increasement of Political Status)-भारत में हरित क्रान्ति का एक सकारात्मक प्रभाव यह पड़ा कि भारत की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर और अधिक अच्छी छवि बन गई। हरित क्रान्ति के परिणाम भारत खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्म-निर्भर हो गया, जिससे भारत को अमेरिका पर खाद्यान्न के लिए निर्भर नहीं रहना पडा और इसका प्रभाव 1971 की पाकिस्तान के साथ लडाई में देखा गया।

9. बुनियादी ढांचे में विकास (Development of Infrastructure) हरित क्रान्ति की एक सफलता यह रही कि इसके परिणामस्वरूप भारत में बुनियादी ढांचे में उत्साहजनक विकास देखने को मिला। हरित क्रान्ति द्वारा पैदा हुई समस्याएं (Problems Emerged by Green Revolution) हरित क्रान्ति से भारत में जहां विकास के नये द्वार खुले, वहीं इससे सम्बन्धित कई समस्याएं भी पैदा हुईं

  • हरित क्रान्ति के कारण भारत में चाहे खाद्यान्न संकट समाप्त हो गया, परन्तु वह थोड़े समय के लिए ही था। आज भी भारत में खाद्यान्न संकट पैदा हो जाता है।
  • भारत में 1980 के दशक में वर्षा न होने से हरित क्रान्ति से कुछ विशेष लाभ प्राप्त नहीं हो पाया।
  • हरित क्रान्ति के बावजूद 1998 में भारत को प्याज आयात करना पड़ा।
  • भारत को 2004 में चीनी आयात करनी पड़ी।
  • हरित क्रान्ति की सफलता पूरे भारत में न होकर केवल उत्तरी राज्यों में ही दिखाई पड़ती है।
  • कालाहाण्डी जैसे क्षेत्रों में लोग आज भी भूख के कारण मर रहे हैं।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 7.
हरित क्रान्ति तथा इसके राजनीतिक कुप्रभावों का वर्णन करें।
अथवा
हरित क्रान्ति किसे कहते हैं ? इसके राजनैतिक प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति का अर्थ-इसके लिए प्रश्न नं० 6 देखें। हरित क्रान्ति के राजनीतिक प्रभाव-हरित क्रान्ति के निम्नलिखित राजनीतिक प्रभाव पड़े

  • हरित क्रान्ति के कारण पंचवर्षीय योजना को कुछ समय के लिए रोक दिया गया।
  • हरित क्रान्ति के समय भारत में राजनीतिक अस्थिरता का दौर रहा।
  • हरित क्रान्ति के दौरान होने वाले चुनावों के परिणामस्वरूप अनेक राज्यों में गठबन्धन सरकारों का निर्माण हुआ।
  • हरित क्रान्ति के दौरान दल-बदल को बढ़ावा मिला।
  • हरित क्रांन्ति के दौरान प्रशासनिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला।

प्रश्न 8.
विकास का अर्थ बताइये। विकास के मुख्य उद्देश्य क्या हैं ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विकास का अर्थ (Meaning of Development)-विकास एक व्यापक एवं सार्वभौमिक धारणा है, जिसको विभिन्न सन्दर्भो में विभिन्न अर्थों में इस्तेमाल किया जाता है। वर्तमान भौतिकवादी युग में व्यक्ति व समाज के विकास की अवधारणा का अर्थ प्रायः आर्थिक विकास से ही लिया जाता है। विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर ये कहा जा सकता है कि विकास एक बहुपक्षीय प्रक्रिया है जिसमें ढांचों में, दृष्टिकोणों और संस्थाओं में परिवर्तन, आर्थिक सम्पदा में वृद्धि, असमानताओं में कमी और निर्धनता का उन्मूलन शामिल है। परम्परागत समाज से आधुनिक विकसित समाज में परिवर्तन करने की प्रक्रिया को विकास कहते हैं।

1. एल्फ्रेड डायमेन्ट (Alfred Diamant) के अनुसार, “राजनीतिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक राजनीतिक व्यवस्था के नए प्रकार के लक्ष्यों को निरन्तर सफल रूप में प्राप्त करने की क्षमता बनी रहती है।”

2. चुतर्वेदी (Chaturvedi) के अनुसार, “विकास एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज के उद्देश्यों को प्राप्त किया जाता है। विकास का उद्देश्य है-एक प्राचीन एवं पिछड़ी हुई व्यवस्था को आधुनिक व्यवस्था में बदलना।”

3. लूसियन पाई (Lucian Pye) के अनुसार, “राजनीतिक विकास संस्कृति का वितरण और जीवन के प्रतिमानों के नए भागों के अनुकूल बनाना, उन्हें उनके साथ मिलाना या उनके साथ सामंजस्य बिठाना है।”

विकास के उद्देश्य (Objectives of Development)-विकास के निम्नलिखित उद्देश्य होते हैं

1. न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति-विकास का प्रथम महत्त्वपूर्ण लक्ष्य गरीब जनता की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करना है। चिकित्सा सुविधाएं, स्वास्थ्य, पेयजल, कपड़ा, मकान, भोजन आदि आवश्यक पदार्थों की सुविधाएं आम जनता को दी जाएंगी।

2. गरीबी व बेरोज़गारी को दूर करना-पिछड़े तथा विकासशील देशों का एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य आर्थिक पुनर्निर्माण करके गरीबी तथा बेरोज़गारी को दूर करना है। विकसित देश भी बेरोज़गारी की समस्या को हल करने के लिए प्रयास कर रहे हैं।

3. प्राकृतिक साधनों का विकास-विकासशील देशों का लक्ष्य प्राकृतिक साधनों का शोषण करके देश का आर्थिक विकास करना है।

4.विकास की ऊंची दर-आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए आर्थिक विकास की ऊंची दर को प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके लिए यह आवश्यक है कि राष्ट्रीय आय तथा शुद्ध प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि की जाए।

5. आत्म-निर्भरता-अल्पविकसित तथा विकासशील देशों का लक्ष्य अपने देश को आत्म-निर्भर बनाना है।

6. समाज कल्याण के कार्य-विकासशील देश लोगों के आर्थिक तथा समाज कल्याण के कार्यों को निम्न स्तर के लोगों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखते हैं। गरीब वर्गों और विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए सरकार को भारी निवेश का रास्ता अपनाना पड़ेगा। विश्व के अनेक देशों में बेकारी भत्ता (Unemployment Allowance) दिया जाता है। विश्व के अनेक विकसित देशों में बेरोजगारों को बेकारी भत्ता, नि:शुल्क तथा अनिवार्य प्राइमरी शिक्षा, वृद्धों को पेंशन इत्यादि अनेक सुविधाएं दी गई हैं और विकासशील देश इन सुविधाओं को देने का प्रयास कर रहे हैं।

7. लोकतन्त्रीय पद्धति से विकास-लोकतन्त्र पद्धति के द्वारा ही विकास कार्य किए जाने चाहिए। लोकतन्त्र विकास का विरोधी नहीं है। यह ठीक है कि अधिनायकवादी देशों में विकास की गति तीव्र होती है और अधिनायक विकास की जो दिशा तय करता है उसी दिशा में विकास होता है।

परन्तु अधिनायकवादी देशों ने जनसहयोग के अभाव में विकास में जनता की न तो रुचि होती है और न ही विकास के लाभ आम जनता तक पहुंचते हैं। उदाहरण के तौर पर साम्यवादी देशों में विकास के प्रतिमानों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता था जबकि वास्तविकता बिल्कुल उसके विपरीत थी। अत: विकास जनसहयोग से ही होना चाहिए ताकि विकास या लाभ आम जनता में समानता के आधार पर वितरित किया जा सके।

लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1.
प्रथम पंचवर्षीय योजना के कोई चार उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
(1) प्रथम योजना का सर्वप्रथम उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध तथा देश के विभाजन के फलस्वरूप देश में जो आर्थिक अव्यवस्था तथा असन्तुलन पैदा हो चुका था उसको ठीक करना था।

(2) प्रथम योजना का दूसरा उद्देश्य देश में सर्वांगीण सन्तुलित विकास का प्रारम्भ करना था ताकि राष्ट्रीय आय निरन्तर बढ़ती जाए और लोगों के रहन-सहन का स्तर ऊंचा उठ सके। यह आर्थिक विकास, प्रचलित सामाजिक-आर्थिक ढांचे में सुधार लाकर किया जाना था।

(3) योजना का तीसरा मुख्य उद्देश्य उत्पादन-क्षमता में वृद्धि तथा आर्थिक विषमता को यथासम्भव कम करना था।

(4) प्रथम योजना का एक उद्देश्य मुद्रा-स्फीति के दबाव को कम करना भी था।

प्रश्न 2.
दूसरी पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • राष्ट्रीय आय में पर्याप्त वृद्धि की जाए ताकि लोगों के रहन-सहन के स्तर में सुधार हो सके।
  • देश का औद्योगिक विकास तीव्र गति से किया जाए और इसके लिए आधारभूत तथा भारी उद्योगों के विकास पर विशेष बल दिया जाए।
  • रोज़गार के अवसरों में अधिक-से-अधिक विस्तार किया जाए।
  • धन तथा आय के बंटवारे में असमानता को कम किया जाए तथा आर्थिक सत्ता को विकेन्द्रित किया जाए।

प्रश्न 3.
तीसरी पंचवर्षीय योजना के कोई चार उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
(1) राष्ट्रीय आय में वार्षिक वृद्धि दर 5 प्रतिशत से अधिक किया जाए तथा विनियोग इस प्रकार हो कि यह विकास दर आगामी पंचवर्षीय योजनाओं में उपलब्ध हो सके।

(2) खाद्यान्नों में आत्म-निर्भरता प्राप्त की जाए तथा कृषि उत्पादन में इतना विकास किया जाए जिससे उद्योगों तथा निर्यात की आवश्यकताएं पूरी हो सकें।

(3) आधारभूत उद्योगों जैसे इस्पात, कैमिकल उद्योग, ईंधन तथा विद्युत् उद्योगों का विस्तार किया जाए तथा मशीन निर्माण की क्षमता को इस प्रकार बढ़ाया जाए कि आगामी दस वर्षों में इस क्षेत्र में लगभग आत्म-निर्भर हो जाएं तथा औद्योगिक विकास के लिए भविष्य में मशीनरी की आवश्यकताएं देश में पूरी हो सकें।

(4) देश की मानव शक्ति का अधिक-से-अधिक प्रयोग किया जाए तथा रोजगार के अवसरों में पर्याप्त वृद्धि की जाए।

प्रश्न 4.
विकास का समाजवादी मॉडल क्या है?
अथवा
विकास के समाजवादी मॉडल का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
(1) विकास का समाजवादी मॉडल उत्पादन तथा वितरण के साधनों को समस्त समाज की सम्पत्ति मानता है। अतः समाजवादी उत्पादन तथा वितरण के साधनों पर राज्य का नियन्त्रण स्थापित करना चाहते हैं।

(2) विकास का समाजवादी मॉडल व्यक्ति की अपेक्षा समाज के विकास को अधिक महत्त्व देता है।

(3) विकास का समाजवादी मॉडल नियोजित अर्थव्यवस्था का समर्थन करता है। नियोजित अर्थव्यवस्था के द्वारा ही देश का विकास किया जा सकता है।

(4) विकास का समाजवादी मॉडल आर्थिक क्षेत्र में स्वतन्त्र प्रतियोगिता समाप्त करके सहयोग की भावना पैदा करने के पक्ष में है।

प्रश्न 5.
विकास के पूंजीवादी मॉडल से आपका क्या तात्पर्य है ?
अथवा
विकास का पूंजीवादी मॉडल क्या है ?
उत्तर:

  • विकास का पूंजीवादी मॉडल खुली प्रतिस्पर्धा और बाज़ार मूलक अर्थव्यवस्था में विश्वास रखता है।
  • विकास का पूंजीवादी मॉडल अर्थव्यवस्था में सरकार के गैर-ज़रूरी हस्तक्षेप को उचित नहीं मानता।
  • विकास का पंजीवादी मॉडल लाइसेंस/परमिशन को समाप्त करने के पक्ष में है।
  • विकास का पूंजीवादी मॉडल भौतिक विकास में विश्वास रखता है।

प्रश्न 6.
पांचवीं पंचवर्षीय योजना के कोई चार उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
1. निर्धनता को दूर करना-पांचवीं योजना का मुख्य उद्देश्य निर्धनता को दूर करना था। निर्धनता दूर करने का अभिप्राय यह है कि देशवासियों की कम-से-कम इतनी आय अवश्य होनी चाहिए कि वे अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।

2. आधारभूत न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति- पांचवीं योजना का एक मुख्य उद्देश्य देशवासियों की आधारभूत न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति की व्यवस्था करना था।

3. रोज़गार की अधिकाधिक व्यवस्था–उत्पादन बढ़ाने वाले रोजगार का विस्तार करना ताकि अधिक लोगों को रोज़गार दिया जा सके।

4. आर्थिक स्वावलम्बन-पांचवीं योजना का एक मुख्य लक्ष्य आर्थिक आत्म-निर्भरता की प्राप्ति है। विदेशी सहायता को 1978-79 तक बिल्कुल शून्य करना इस योजना का लक्ष्य था।

प्रश्न 7.
छठी पंचवर्षीय योजना के मुख्य चार उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • राष्ट्रीय आय की विकास दर का लक्ष्य 5.2 % निर्धारित किया गया। प्रति व्यक्ति आय की विकास दर का लक्ष्य 3.3 % रखा गया।
  • कृषि की विकास दर का लक्ष्य 4 प्रतिशत, उद्योगों का 7 प्रतिशत प्रतिवर्ष तथा निर्यात का 10 प्रतिशत प्रतिवर्ष निर्धारित किया गया था।
  • बचत की दर 24.5 प्रतिशत तथा निवेश की दर 25 प्रतिशत प्रतिवर्ष निर्धारित की गई थी।
  • जनसंख्या की वृद्धि दर को 2.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष से कम करके 1.86 प्रतिशत प्रतिवर्ष करने का लक्ष्य रखा गया।

प्रश्न 8.
सातवीं पंचवर्षीय योजना के चार मुख्य उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • योजना का विकेन्द्रीकरण होगा और विकास के काम में सब लोगों का सहयोग लिया जाएगा।
  • ग़रीबी और बेरोजगारी कम की जाएगी। रोजगार के अवसरों में 4 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य रखा गया।
  • क्षेत्रीय असमानता कम की जाएगी।
  • शिक्षा, स्वास्थ्य तथा पोषण की सुविधाएं अधिक-से-अधिक लोगों तक पहुंचाई जाएंगी।

प्रश्न 9.
आठवीं पंचवर्षीय योजना के चार उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • देश में पर्याप्त रोजगार अवसर पैदा करना।
  • जनसंख्या की वृद्धि दर को कम करना।
  • प्राथमिक शिक्षा को सर्वव्यापक बनाना।
  • कृषि क्षेत्र में विविधता को बढ़ावा देना।

प्रश्न 10.
नौवीं पंचवर्षीय योजना के चार उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • बचत दर को बढ़ाकर 28.6% करना।
  • विकास दर को सात प्रतिशत प्रतिवर्ष करना।
  • कीमतों को स्थिर रखना।
  • जनसंख्या वृद्धि दर को कम करना।

प्रश्न 11.
10वीं पंचवर्षीय योजना के चार उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • प्रति व्यक्ति आय को दुगुनी करना।
  • विकास दर को 8% प्रतिवर्ष करना।
  • निर्धनता को बढ़ावा देना।
  • कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देना।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 12.
नियोजन का अर्थ बताओ।
उत्तर:
वर्तमान समय में नियोजन का विशेष महत्त्व है। नियोजन से अभिप्राय किसी कार्य को व्यवस्थित ढंग से करने के लिए तैयारी करना है। कुछ विशेष उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विधि निर्धारित करना ही नियोजन कहलाता है। हडसन ने नियोजन की परिभाषा देते हुए कहा है, “भावी कार्यक्रम के मार्ग को निश्चित करने के लिए आधार की खोज नियोजन है।” मिलेट के अनुसार, “प्रशासकीय कार्य के उद्देश्यों को निर्धारित करना तथा उनकी प्राप्ति के साधनों पर विचार करने को नियोजन कहते हैं।” हैरिस के शब्दों में, “आय तथा कीमत के सन्दर्भ की गति में साधनों के बंटवारे को प्रायः नियोजन कहते हैं।”

प्रश्न 13.
भारत में नियोजन के कोई चार मुख्य उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
1. राष्ट्रीय आय में वृद्धि-भारत में नियोजन का मुख्य उद्देश्य देश की राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना है।

2. क्षेत्रीय असन्तुलन में कमी-विभिन्न योजनाओं का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य क्षेत्रीय असन्तुलन को कम करना रहात अर्थव्यवस्था का निर्माण किया जा सके। इस दिशा में भारत सरकार ने योजना अवधि में पिछड़े क्षेत्रों के विकास हेतु विशेष कार्यक्रम लागू किए हैं।

3. आर्थिक असमानता में कमी-नियोजन का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य आर्थिक असमानता को कम करना है। रोज़गार-नियोजन का मुख्य उद्देश्य रोज़गार के अवसर बढ़ाना है।

प्रश्न 14.
भारत में आर्थिक नियोजन को अपनाने के कोई चार कारण लिखिये।
अथवा
भारत में योजना पद्धति को क्यों अपनाया गया ?
उत्तर:
नियोजन की आवश्यकता मुख्यतः निम्नलिखित कारणों से अनुभव की जाती है

  • नियोजन के द्वारा आर्थिक तथा सामाजिक जीवन के विभिन्न अंगों में समन्वय स्थापित करके समाज की उन्नति की जा सकती है।
  • आर्थिक न्याय तथा सामाजिक समता पर आधारित अच्छे समाज के निर्माण को सम्भव बनाने के लिए नियोजन ‘अति आवश्यक है।
  • नियोजन से श्रमिकों तथा निर्धनों की शोषण से सुरक्षा की जा सकती है।
  • नियोजन से राष्ट्र की पूंजी थोड़े-से व्यक्तियों के हाथों में एकत्रित नहीं होती।

प्रश्न 15.
अच्छे नियोजन की किन्हीं चार विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
अच्छे नियोजन की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं

  • नियोजन के उद्देश्य की स्पष्ट तथा व्यापक व्यवस्था होनी चाहिए।
  • उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक साधनों तथा उपायों की व्यवस्था होनी चाहिए।
  • नियोजन में आवश्यकतानुसार लचीलापन होना चाहिए।
  • नियोजन के विभिन्न अंगों में सन्तुलन होना चाहिए।

प्रश्न 16.
योजना आयोग के कोई चार कार्य लिखिए।
उत्तर:
योजना आयोग के मख्य कार्य निम्नलिखित थे

(1) देश के भौतिक, पूंजीगत, मानवीय, तकनीकी तथा कर्मचारी वर्ग सम्बन्धी साधनों का अनुमान लगाना और जो साधन राष्ट्रीय आवश्यकता की तुलना में कम प्रतीत होते हों उनकी वृद्धि की सम्भावनाओं के सम्बन्ध में अनुसन्धान करना।

(2) देश के साधनों का अधिकतम प्रभावशाली तथा सन्तुलित उपयोग के लिए योजना बनाना।

(3) नियोजन में स्वीकृत कार्यक्रम तथा परियोजनाओं के बारे में प्राथमिकताएं निश्चित करना।

(4) योजना के मार्ग में आने वाली बाधाओं को इंगित करना तथा राष्ट्र की राजनीतिक तथा सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए योजना के लिए स्वस्थ वातावरण उत्पन्न करना।

प्रश्न 17.
योजना आयोग की कार्यप्रणाली की आलोचना क्यों की जाती थी ?
उत्तर:
भारत में स्थापित योजना आयोग की प्रासंगिकता 1990 के दशक में कम होने लगी। लाइसैंस राज समाप्त होने के बाद यह बिना किसी प्रभावी अधिकार के सलाहकार संस्था के तौर पर काम करता रहा। योजना आयोग की रचना, कार्यप्रणाली तथा इसकी प्रासंगिकता पर समय-समय पर सवाल उठते रहे थे। योजना आयोग के अनुसार 28 रु० की आय वाला व्यक्ति ग़रीबी रेखा से ऊपर है, जबकि आयोग ने अपने दो शौचालयों पर 35 लाख रुपये खर्च कर दिये थे।

तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता का कहना था, कि “हम दिल्ली सिर्फ इसलिए आते हैं, ताकि आयोग हमें बता सके कि हम अपना धन कैसे खर्च करें।” पूर्व केन्द्रीय मन्त्री कमल नाथ योजना आयोग को ‘आमचेयर एडवाइजर तथा नौकरशाहों का पार्किंग लॉट’ कहकर व्यंग्य कर चुके हैं।

स्वतन्त्र मूल्यांकन कार्यालय (आई०ई०ओ०) ने आयोग को आई०ए०एस० अधिकारियों का अड्डा बताया है। यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने योजना आयोग को ‘जोकरों का समूह’ कहा था। इन सभी कारणों से योजना आयोग जैसी पुरानी संस्था को समाप्त करके एक नई संस्था बनाने का विचार काफी समय से उठ रहा था।

प्रश्न 18.
नीति आयोग की स्थापना कब की गई ? इसकी रचना का वर्णन करें।
उत्तर:
एक जनवरी, 2015 को योजना आयोग को समाप्त करके नीति आयोग (NITI AAYOG NATIONAL INSTITUTION FOR TRANSFORMING INDIA) की स्थापना की गई।

नीति आयोग की रचना (Composition of NITI Aayog)-नीति आयोग की रचना निम्नलिखित ढंग से की गई है

  • अध्यक्ष–प्रधानमन्त्री
  • उपाध्यक्ष- इसकी नियुक्ति प्रधानमन्त्री करेंगे।
  • सी०ई०ओ०-सी०ई०ओ० केन्द्र के सचिव स्तर का अधिकारी होगा, जिसकी नियुक्ति प्रधानमन्त्री निश्चित कार्यकाल के लिए करेंगे।
  • गवर्निंग काऊंसिल- इसमें सभी मुख्यमंत्री तथा केन्द्रशासित प्रदेशों के उपराज्यपाल शामिल होंगे।
  • पूर्णकालिक सदस्य- इसमें अधिकतम पांच सदस्य होंगे।
  • अंशकालिक सदस्य- इसमें अधिकतम दो पदेन सदस्य होंगे।
  • पदेन सदस्य-इसमें अधिकतम चार केन्द्रीय मन्त्री होंगे।
  • विशेष आमंत्रित सदस्य-इसमें विशेषज्ञ होंगे, जिन्हें प्रधानमन्त्री मनोनीत करेंगे।

प्रश्न 19.
नीति आयोग में कितने विभागों की व्यवस्था की गई है ?
उत्तर:
नीति आयोग में कुशलतापूर्वक कार्य करने के लिए तीन विभागों की भी व्यवस्था की गई है

  • पहला अन्तर्राज्जीय परिषद् की तरह कार्य करेगा।
  • दूसरा विभाग लम्बे समय की योजना बनाने तथा उसकी निगरानी करने का काम करेगा।
  • तीसरा विभाग डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर तथा यू०आई०डी०ए०आई० (UIDAI) को मिलाकर बनाया जायेगा।

प्रश्न 20.
नीति आयोग के उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
नीति आयोग के कुछ महत्त्वपूर्ण उद्देश्य निर्धारित किए गए हैं, जिनका वर्णन इस प्रकार है

  • सशक्त राज्य से सशक्त राष्ट्र-इस सूत्र से सहकारी संघवाद (Co-operative Federalism) को बढ़ाना।
  • रणनीतिक तथा दीर्घावधि के लिए नीति तथा कार्यक्रम का ढांचा बनाना।
  • ग्रामीण स्तर पर योजनाएं बनाने के तन्त्र को विकसित करना।
  • आर्थिक प्रगति से वंचित रहे वर्गों पर विशेष ध्यान देना।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों व आर्थिक नीति में तालमेल बिठाना।

प्रश्न 21.
विकास के किन्हीं तीन उद्देश्यों का वर्णन करें।
अथवा
विकास के किन्हीं चार उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विकास के निम्नलिखित उद्देश्य हैं

  • विकास का प्रथम महत्त्वपूर्ण उद्देश्य ग़रीब जनता की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करना हैं।
  • आर्थिक पुनर्निर्माण करके ग़रीबी तथा बेरोज़गारी को दूर करना है।
  • विकास का लक्ष्य प्राकृतिक साधनों का विकास करना है।
  • विकास की ऊँची दर प्राप्त करना।

प्रश्न 22.
भारत में योजना पद्धति को क्यों अपनाया गया ?
उत्तर:
भारत में योजना पद्धति को निम्नलिखित कारणों से अपनाया गया

  • नियोजन के द्वारा आर्थिक तथा सामाजिक जीवन के विभिन्न अंगों में समन्वय स्थापित करके समाज की उन्नति की जा सकती है।
  • आर्थिक न्याय तथा सामाजिक समता पर आधारित अच्छे समाज के निर्माण को सम्भव बनाने के लिए नियोजन अति आवश्यक है।
  • आर्थिक नियोजन से श्रमिकों तथा निर्धनों की शोषण से सुरक्षा की जा सकती है।
  • आर्थिक नियोजन से राष्ट्र की पूंजी थोड़े से व्यक्तियों के हाथों में एकत्रित नहीं होती।

प्रश्न 23.
राष्ट्रीय विकास परिषद् के मुख्य कार्य लिखें।
उत्तर:
राष्ट्रीय विकास परिषद् के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं

  • समय-समय पर राष्ट्रीय योजना के कार्य की समीक्षा करना।
  • राष्ट्रीय विकास को प्रभावित करने वाली सामाजिक व आर्थिक नीति के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार करना।
  • राष्ट्रीय योजना के अन्तर्गत निश्चित लक्ष्यों और उद्देश्यों की सफलता के लिए उपायों की सिफ़ारिश करना।

इसके अन्तर्गत जनता से सक्रिय सहयोग प्राप्त करना. प्रशासकीय सेवाओं की कार्यकशलता में सधार करना। पिछडे प्रदेशों तथा वर्गों का पूर्ण विकास करना तथा सभी नागरिकों द्वारा समान मात्रा में बलिदान के माध्यम से राष्ट्रीय विकास के लिए साधनों का निर्माण करने के उपायों की सिफ़ारिश करना भी सम्मिलित है।

प्रश्न 24.
सार्वजनिक क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र से अभिप्राय उन व्यवसायों तथा आर्थिक क्रिया-कलापों से है जिनके साधनों पर सरकार का स्वामित्व होता है और जिनका प्रबन्ध व नियन्त्रण सरकार के हाथों में ही होता है। सार्वजनिक क्षेत्र में आर्थिक क्रियाओं का संचालन मुख्य रूप से सार्वजनिक हित को ध्यान में रखकर ही किया जाता है।

सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत राज्य द्वारा सार्वजनिक उद्यमों की स्थापना की जाती है। वे सभी उद्योग-धन्धे तथा व्यावसायिक गतिविधियां जिन पर सरकार का स्वामित्व होता है, सार्वजनिक क्षेत्र कहलाता है। प्रो० ए० एच० हैन्सन के अनुसार, “सरकार के स्वामित्व और संचालन के अन्तर्गत आने वाले औद्योगिक, कृषि एवं वित्तीय संस्थानों से है।”

राय चौधरी एवं चक्रवर्ती के अनुसार, “लोक उद्यम या आधुनिक उपक्रम व्यवसाय का वह स्वरूप है जो सरकार द्वारा नियन्त्रित और संचालित होता है तथा सरकार उसकी या तो स्वयं एकमात्र स्वामी होती है अथवा उसके अधिकांश हिस्से सरकार के पास होते हैं।” इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में लोक उद्यमों का वर्णन इस प्रकार मिलता है, “लोक उद्योग का आशय ऐसे उपक्रम से है जिस पर केन्द्रीय, प्रान्तीय अथवा स्थानीय सरकार का स्वामित्व होता है। ये उद्योग अथवा उपक्रम मूल्य के बदले वस्तुओं एवं सेवाओं की पूर्ति करते हैं तथा सामान्यतया स्वावलम्बी आधार पर चलाए जाते हैं।”

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 25.
सार्वजनिक क्षेत्र की विशेषताएं लिखें।
उत्तर:

  • सार्वजनिक क्षेत्र एक व्यापक धारणा है जिसमें सरकार की समस्त आर्थिक तथा व्यावसायिक गतिविधियां शामिल की जाती हैं।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत स्थापित किए जाने वाले विभिन्न उद्यमों, निगमों तथा अन्य संस्थाओं पर सरकार का स्वामित्व, प्रबन्ध तथा संचालन होता है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों पर पूर्ण रूप से राष्ट्रीय नियन्त्रण होता है और सार्वजनिक क्षेत्र में एकाधिकार की प्रवृत्ति पाई जाती है।

प्रश्न 26.
हरित क्रान्ति की मुख्य चार विशेषताएं बताइये।
उत्तर:
1. उत्पादन में रिकार्ड वृद्धि-हरित-क्रान्ति की सबसे बड़ी सफलता यह थी कि इससे भारत में रिकार्ड पैदावार हुई। 1978-79 में भारत में लगभग 131 मिलियन टन गेहूँ का उत्पादन हुआ तथा जो देश गेहूँ का आयात करता था, वह अब गेहूँ को निर्यात करने की स्थिति में आ गया।

2. फ़सल क्षेत्र में वृद्धि-हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप भारत में फ़सल क्षेत्र में व्यापक वृद्धि हुई।

3. औद्योगिक विकास को बढ़ावा-हरित क्रान्ति के कारण भारत में न केवल कृषि क्षेत्र को ही फायदा हुआ बल्कि इसने औद्योगिक विकास को भी बढ़ावा दिया। हरित क्रान्ति के अन्तर्गत अच्छे बीजों, अधिक पानी, खाद तथा कृत्रिम यन्त्रों की आवश्यकता थी, जिसके लिए उद्योग लगाए गए। इससे लोगों को रोज़गार भी प्राप्त हुआ।

4. बांधों का निर्माण-हरित क्रान्ति के लिए वर्षा के पानी को संचित करने की आवश्यकता अनुभव हुई जिसके लिए कई जगहों पर बाँधों का निर्माण किया गया जिससे कई लोगों को रोजगार मिला।

प्रश्न 27.
‘मिश्रित अर्थव्यवस्था’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था उस व्यवस्था को कहते हैं, जहां पर पूंजीवादी तथा समाजवादी अर्थव्यवस्था का मिश्रित रूप पाया जाता है। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में वैयक्तिक क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र दोनों की व्यवस्था की जाती है। सार्वजनिक क्षेत्र वाले उद्योगों का प्रबन्ध राजकीय निगम और व्यक्तिगत क्षेत्र के उद्योगों का प्रबन्ध व्यक्तिगत रूप से उद्योगपतियों द्वारा किया जाता है। भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था पाई जाती है।

प्रश्न 28.
हरित क्रान्ति की आवश्यकता पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
1960 के मध्य में भारत को राजनीतिक एवं आर्थिक मोर्चे पर कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। राजनीतिक मोर्चे पर पाकिस्तान से युद्ध के बाद पैदा हुई स्थिति तथा राजनीति बदलाव तथा आर्थिक मोर्चे पर भारत में पड़ने वाला भयंकर अकाल था। इन सभी परिस्थितियों ने भारत की अर्थव्यवस्था को काफ़ी हद तक प्रभावित किया।

भारत में आर्थिक विकास में कमी आने लगी तथा विशेषकर खाद्य पदार्थों की कमी होने लगी, जिसने भारतीय नेतृत्व को चिन्ता में डाल दिया कि किस प्रकार इन स्थितियों से बाहर निकला जाए। अतः भारतीय नीति निर्धारकों ने कृषि उत्पादन में तेजी से वृद्धि करने का निर्णय किया ताकि भारत खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्म-निर्भर बन जाए। यहीं से भारत में हरित क्रान्ति की शुरुआत मानी जाती है। हरित क्रान्ति का मुख्य उद्देश्य देश में पैदावार को बढ़ाकर भारत को खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्म-निर्भर बनाना था।

प्रश्न 29.
आर्थिक विकास के भारतीय मॉडल की मुख्य विशेषताएं क्या हैं ?
उत्तर:

  • भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया है।
  • भारत के आर्थिक विकास में नियोजन को महत्त्व प्रदान किया गया है।
  • भारत में आर्थिक विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण किया जाता है।
  • भारत में कृषि के साथ-साथ औद्योगिकीकरण पर भी बल दिया गया है।

प्रश्न 30.
‘नियोजित विकास’ की कोई चार उपलब्धियां लिखें।
अथवा
भारत में नियोजन की कोई चार उपलब्धियों का वर्णन करें।
उत्तर:

  • नियोजन विकास से देश का संतुलित विकास सम्भव हो पाया है।
  • नियोजित विकास से श्रमिकों एवं कमजोर वर्गों का शोषण कम हुआ है।
  • नियोजित विकास से भारत खाद्यान्न क्षेत्र में आत्म-निर्भर हो पाया है।
  • इससे राष्ट्र की पूंजी थोड़े-से व्यक्तियों के हाथों में एकत्रित नहीं हो पाई है।

प्रश्न 31.
भारत में ‘खाद्य संकट’ के क्या परिणाम हुए थे ?
उत्तर:

  • खाद्य संकट से भारत में बड़े स्तर पर कुपोषण फैला।
  • बिहार के कई भागों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन का आहार 2200 कैलोरी से घटकर 1200 कैलोरी रह गया।
  • 1967 में बिहार में मृत्यु दर पिछले साल की तुलना में 34% बढ़ गई।
  • खाद्य संकट के कारण देश में खाद्यान्न की कीमतें बढ़ गईं।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विकास का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
विकास एक बहुपक्षीय प्रक्रिया है जिसमें ढांचों में, दृष्टिकोणों और संस्थाओं में परिवर्तन, आर्थिक सम्पदा में वृद्धि, असमानताओं में कमी और निर्धनता का उन्मूलन शामिल है। परम्परागत समाज से आधुनिक विकसित समाज में परिवर्तन करने की प्रक्रिया को विकास कहते हैं।

प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था किस प्रकार की थी ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत ही पिछड़ी अवस्था में थी। भारत की कृषि व्यवस्था खराब अवस्था में थी। स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था थी। अंग्रेजों ने भारतीय संसाधनों का इतनी बुरी तरह से शोषण किया कि भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह खराब हो गई। परिणामस्वरूप स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था गतिहीन, अर्द्ध सामन्ती तथा असन्तुलित अर्थव्यवस्था बन कर रह गई।

प्रश्न 3.
‘हरित क्रान्ति’ का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति से अभिप्राय कृषि उत्पादन में होने वाली उस भारी वृद्धि से है, जो कृषि की नई नीति अपनाने के कारण हुई है। जे० जी० हारर के अनुसार, “हरित क्रान्ति शब्द 1968 में होने वाले उन आश्चर्यजनक परिवर्तनों के लिए प्रयोग में लाया जाता है, जो भारत के खाद्यान्न उत्पादन में हुआ था तथा अब भी जारी है।” हरित क्रान्ति से न केवल आर्थिक एवं सामाजिक बल्कि राजनीतिक ढांचा भी प्रभावित हुआ।

प्रश्न 4.
भारत में नियोजन का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर:
भारत में नियोजन का मुख्य उद्देश्य क्षेत्रीय असन्तुलन को कम करके राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना है, ताकि लोगों के जीवन स्तर में सुधार किया जा सके।

प्रश्न 5.
भारत में हरित क्रान्ति को अपनाने के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:

  • हरित क्रान्ति अपनाने का प्रथम कारण खाद्य संकट को दूर करना था।
  • हरित क्रान्ति अपनाने का दूसरा कारण कृषि के लिए आधुनिक यन्त्रों एवं साधनों का प्रयोग करना था।

प्रश्न 6.
भारतीय विकास की योजना में सर्वोच्च प्राथमिकता किसे दी जाती है ?
उत्तर:
भारतीय विकास की योजना में सर्वोच्च प्राथमिकता कृषि विकास को दी जाती है।

प्रश्न 7.
हरित क्रान्ति की कोई दो असफलताएं या सीमाएं लिखें।
उत्तर:
(1) हरित क्रान्ति के कारण भारत में चाहे खाद्यान्न संकट समाप्त हो गया, परन्तु वह थोड़े समय के लिए ही था। आज भी भारत में खाद्यान्न संकट पैदा हो जाता है।
(2) हरित क्रान्ति की सफलता पूरे भारत में न होकर केवल उत्तरी राज्यों में ही दिखाई पड़ती है।

प्रश्न 8.
हरित क्रान्ति की कोई दो मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
1. उत्पादन में रिकार्ड वृद्धि-हरित क्रान्ति की सबसे बड़ी सफलता यह थी कि इससे भारत में रिकार्ड पैदावार हुई। 1978-79 में भारत में लगभग 131 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन हुआ तथा जो देश गेहूं का आयात करता था, वह अब गेहूं को निर्यात करने की स्थिति में आ गया।

2. फ़सल क्षेत्र में वृद्धि-हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप भारत में फ़सल क्षेत्र में व्यापक वृद्धि हुई।

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प्रश्न 9.
सन् 2015 में, योजना आयोग की जगह कौन-सा आयोग बनाया गया ? उसके उपाध्यक्ष का नाम लिखिए।
उत्तर:
सन् 2015 में योजना आयोग की जगह नीति आयोग बनाया गया तथा इसके पहले उपाध्यक्ष का नाम श्री अरविंद पनगड़िया था। वर्तमान समय में नीति आयोग के उपाध्यक्ष श्री राजीव कुमार हैं।

प्रश्न 10.
विकास के मुख्य उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर:
विकास का मुख्य उद्देश्य ग़रीब जनता की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करना है, तथा प्राकृतिक संसाधनों का विकास करके देश को आत्मनिर्भर बनाता है।

प्रश्न 11.
मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy) से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
‘मिश्रित अर्थव्यवस्था’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था के प्रायः दो रूप माने जाते हैं। एक रूप पूंजीवादी अर्थव्यवस्था तथा दूसरे को समाजवादी अर्थव्यवस्था कहा जाता है। जहां अर्थव्यवस्था के इन दोनों रूपों का अस्तित्व हो उस अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था का नाम दिया जाता है।

प्रश्न 12.
योजना आयोग के कोई दो कार्य लिखिए।
उत्तर:
(1) देश के भौतिक, पूंजीगत, मानवीय, तकनीकी तथा कर्मचारी वर्ग सम्बन्धी साधनों का अनुमान लगाना और जो साधन राष्ट्रीय आवश्यकता की तुलना में कम प्रतीत होते हों उनकी वृद्धि की सम्भावनाओं के सम्बन्ध में अनुसन्धान करना।
(2) देश के साधनों का अधिकतम प्रभावशाली तथा सन्तुलित उपयोग के लिए योजना बनाना।

प्रश्न 13.
कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए क्या प्रयत्न किए गए ?
उत्तर:

  • कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए सिंचाई साधनों का विस्तार किया गया।
  • कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए उन्नत किस्म के बीजों के प्रयोग पर बल दिया गया।

प्रश्न 14.
नियोजन का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
नियोजन से अभिप्राय किसी कार्य को व्यवस्थित ढंग से करने के लिए तैयारी करना है। हडसन के अनुसार, “भावी कार्यक्रम के मार्ग को निश्चित करने के लिये आधार की खोज नियोजन है।”

प्रश्न 15.
भारत में पहली पंचवर्षीय योजना कब लागू हुई ? अब तक कितनी पंचवर्षीय योजनाएँ पूरी हो चुकी हैं ?
उत्तर:
भारत में पहली पंचवर्षीय योजना सन् 1951 में लागू हुई। अब तक 12 पंचवर्षीय योजनाएँ पूरी हो चुकी हैं। 12वीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल अप्रैल 2012 से मार्च 2017 तक था।

प्रश्न 16.
निजी क्षेत्र में क्या-क्या शामिल है ?
उत्तर:
निजी क्षेत्र में खेती-बाड़ी, व्यापार एवं उद्योग शामिल हैं।

प्रश्न 17.
भारत में योजना आयोग का गठन करने का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:
भारत में योजना आयोग का गठन करने का मुख्य उद्देश्य नियोजित विकास करना था।

प्रश्न 18.
भारत में खाद्य संकट के क्या परिणाम हुए थे ?
उत्तर:

  • सरकार को गेहूं का आयात करना पड़ा।
  • सरकार को अमेरिका जैसे देशों से विदेशी मदद भी स्वीकार करनी पड़ी।

प्रश्न 19.
विकास का पूंजीवादी मॉडल क्या है ?
उत्तर:

  • विकास का पूंजीवादी मॉडल खुली प्रतिस्पर्धा और बाज़ार मूलक अर्थव्यवस्था में विश्वास रखता है।
  • विकास का पूंजीवादी मॉडल अर्थव्यवस्था में सरकार के गैर-ज़रूरी हस्तक्षेप को उचित नहीं मानता।

प्रश्न 20.
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद विकास के लिए किस प्रकार की अर्थव्यवस्था का चुनाव किया गया था?
उत्तर:
आज़ादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद कायम था। विकास के सम्बन्ध में मुख्य मुद्दा यह था कि विकास के लिए कौन-सा मॉडल अपनाया जाए ? विकास का पूंजीवादी मॉडल या विकास का साम्यवादी मॉडल। पूंजीवादी मॉडल के समर्थक देश के औद्योगीकरण पर अधिक बल दे रहे थे, जबकि साम्यवादी मॉडल के समर्थक कृषि के विकास एवं ग्रामीण क्षेत्र की ग़रीबी को दूर करना आवश्यक समझते थे। इन परिस्थितियों में सरकार दुविधा में पड़ गई, कि विकास का कौन-सा मॉडल अपनाया जाए। परन्तु आपसी बातचीत तथा सहमति के बीच का रास्ता अपनाते हुए मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया।

प्रश्न 21.
निजी क्षेत्र क्या हैं ?
उत्तर:
निजी क्षेत्र उसे कहा जाता है, जिसे सरकार द्वारा न चलाकर व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा अपने लाभ के लिए चलाया जाता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. भारत में प्रथम पंचवर्षीय योजना किस वर्ष लागू की गई ?
(A) 1951
(B) 1960
(C) 1957
(D) 1962
उत्तर:
(A) 1951

2. अब तक कितनी पंचवर्षीय योजनाएं लागू की जा चुकी हैं ?
(A) 7
(B) 8
(C) 11
(D) 12
उत्तर:
(D) 12

3. 11वीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल क्या था ?
(A) 1992-1997
(B) 1997-2002
(C) 2002-2007
(D) 2007-2012
उत्तर:
(D) 2007-2012

4. योजनाबद्ध विकास की प्रेरणा भारत को मिली
(A) सोवियत रूस से
(B) अमेरिका से
(C) ब्रिटेन से
(D) पाकिस्तान से।
उत्तर:
(A) सोवियत रूस से।

5. ‘बाम्बे योजना’ कब प्रकाशित की गई ?
(A) वर्ष 1942 में
(B) वर्ष 1944 में
(C) वर्ष 1945 में
(D) वर्ष 1950 में।
उत्तर:
(B) वर्ष 1944 में।

6. भारत में किस वर्ष घोर अकाल पड़ा था ?
(A) वर्ष 1965-67 में
(B) वर्ष 1967-69 में
(C) वर्ष 1967-71 में
(D) वर्ष 1967-73 में।
उत्तर:
(A) वर्ष 1965-67 में।

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7. उच्च उत्पादकता के लिए फसल क्षेत्र मांग करता है :
(A) अधिक पानी की
(B) अधिक उर्वरक की
(C) अधिक कीटनाशकों की
(D) उपर्युक्त सभी की।
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी की।

8. “नियोजन विस्तृत अर्थों में व्यवस्थित क्रिया का स्वरूप है, नियोजन में इस प्रकार समस्त मानवीय क्रियाएं आ जाती हैं, भले ही वह व्यक्तिगत हों अथवा सामूहिक।” यह किसका कथन है ?
(A) प्रो० के० टी० शर्मा
(B) डॉ० एम० पी० शर्मा
(C) उर्विक
(D) बैंथम।
उत्तर:
(B) डॉ० एम० पी० शर्मा।

9. योजना आयोग का अध्यक्ष कौन होता था ?
(A) राष्ट्रपति
(B) प्रधानमन्त्री
(C) वित्त मन्त्री
(D) योजना मन्त्री।
उत्तर:
(B) प्रधानमन्त्री।

10. भारत में योजना आयोग की कब नियुक्ति की गई थी ?
(A) 1952
(B) 1950
(C) 1956
(D) 1960
उत्तर:
(B) 1950

11. योजना आयोग किस तरह की संस्था थी ?
(A) असंवैधानिक
(B) गैर-संवैधानिक
(C) संवैधानिक
(D) अति-संवैधानिक।
उत्तर:
(D) अति-संवैधानिक।

12. निम्नलिखित में से कौन नियोजन की उपलब्धि है ?
(A) राष्ट्रीय आय में वृद्धि
(B) सामाजिक विकास
(C) उत्पादन में आत्मनिर्भरता
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी।

13. “समाजवाद हमारी समस्याओं का एकमात्र समाधान है।” ये शब्द किसने कहे थे ?
(A) महात्मा गांधी ने
(B) सरदार पटेल ने
(C) जवाहर लाल नेहरू ने
(D) डॉ० लॉस्की ने।
उत्तर:
(C) जवाहर लाल नेहरू ने।

14. 1992 तक भारत में किस प्रकार की अर्थव्यवस्था थी ?
(A) साम्यवादी अर्थव्यवस्था
(B) पूंजीवादी अर्थव्यवस्था
(C) समाजवादी अर्थव्यवस्था
(D) मिश्रित अर्थव्यवस्था।
उत्तर:
(D) मिश्रित अर्थव्यवस्था।

15. सोवियत रूस ने विकास का कौन-सा मॉडल अपनाया था ?
(A) समाजवादी मॉडल
(B) पूंजीवादी मॉडल
(C) मिश्रित मॉडल
(D) कल्याणकारी मॉडल।
उत्तर:
(A) समाजवादी मॉडल।

16. एक जनवरी 2015 को योजना आयोग के स्थान पर किस नये आयोग की स्थापना हुई. ?
(A) नीति आयोग
(B) पानी आयोग
(C) केन्द्र आयोग
(D) राज्य आयोग।
उत्तर:
(A) नीति आयोग।

17. भारत की विकास योजना का उद्देश्य है
(A) आर्थिक विकास
(B) आत्मनिर्भरता
(C) सामाजिक विकास
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

18. ‘जनता-योजना’ के जनक थे
(A) मोंटेक सिंह
(B) मनमोहन सिंह
(C) मोरारजी देसाई
(D) एम० एन० राय।
उत्तर:
(D) एम० एन० राय।

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

(1) स्वतन्त्रता के समय भारत के समक्ष विकास के दो ही मॉडल थे, पहला उदारवादी-पूंजीवादी मॉडल तथा दूसरा . ………… मॉडल था।
उत्तर:
समाजवादी

(2) योजना आयोग की स्थापना मार्च, …………. में की गई।
उत्तर:
1950

(3) योजना आयोग का अध्यक्ष ………… होता है।
उत्तर:
प्रधानमन्त्री

(4) 1944 में उद्योगपतियों ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया, जिसे …………. के नाम से जाना जाता है।
उत्तर:
बाम्बे प्लान

(5) ……….. में प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रारूप जारी हुआ।
उत्तर:
1951

(6) दूसरी पंचवर्षीय योजना में भारी उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया। ………….. के नेतृत्व में अर्थशास्त्रियों और योजनाकारों के एक समूह ने यह योजना तैयार की थी।
उत्तर:
पी०सी० महालनोबिस

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
हरित क्रान्ति किस दशक में हुई ?
उत्तर:
हरित क्रान्ति 1960 के दशक में हुई।

प्रश्न 2.
भारत में योजना आयोग की स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर:
योजना आयोग की स्थापना मार्च 1950 में की गई।

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प्रश्न 3.
भारत में कैसी अर्थव्यवस्था लागू की गई ?
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था।

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