HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 8 सामाजिक आंदोलन

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 8 सामाजिक आंदोलन Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Important Questions Chapter 8 सामाजिक आंदोलन

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. समाज की कुरीतियां दूर करने के लिए कौन-सा आंदोलन शुरू होता है?
(A) समाज सुधार आंदोलन
(B) अभिव्यक्ति आंदोलन
(C) क्रांतिकारी आंदोलन
(D) क्रांतिकारी आंदोलन।
उत्तर:
समाज सुधार आंदोलन।

2. समाज सुधार आंदोलन का मुख्य उद्देश्य क्या होता है?
(A) समाज की व्यवस्था को बदलना
(B) समाज से कुरीतियों को दूर करना
(C) वर्तमान व्यवस्था को उखाड़ फेंकना
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
समाज से कुरीतियों को दूर करना।

3. राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए चलाए गए आंदोलन को क्या कहते हैं?
(A) सांस्कृतिक आंदोलन
(B) अभिव्यक्ति आंदोलन
(C) राजनीतिक आंदोलन
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
राजनीतिक आंदोलन।

4. इनमें से कौन-सी सामाजिक आंदोलन की विशेषता है?
(A) यह हमेशा समाज विरोधी होते हैं
(B) यह हमेशा नियोजित होते हैं
(C) इनका उद्देश्य समाज में सुधार लाना होता है
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 8 सामाजिक आंदोलन

5. इनमें से कौन-सी सुधार आंदोलन की विशेषता है?
(A) प्राचीन सामाजिक व्यवस्था में सुधार लाना
(B) इनकी गति काफी धीमी होती है
(C) इसमें शांतिपूर्ण ढंग प्रयोग होते हैं
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

6. सामाजिक आंदोलनों से भारतीय समाज में क्या परिवर्तन आए?
(A) सती प्रथा का खात्मा
(B) पर्दा प्रथा का खात्मा
(C) विधवा विवाह शुरू होना
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

7. जब आंदोलन करने वाला व्यक्ति अपने भीतर में अंसतोष को किसी दूसरे माध्यम से प्रकट करे तो उसे क्या कहते हैं?
(A) अभिव्यक्ति आंदोलन
(B) राजनीतिक आंदोलन
(C) सुधार आंदोलन
(D) अवरोधक आंदोलन।
उत्तर:
अभिव्यक्ति आंदोलन।

8. अमेरिका में 1950 तथा 1960 के दशकों में कौन-सा सामाजिक आंदोलन चला?
(A) समाजवादी आंदोलन
(B) नागरिक अधिकार आंदोलन
(C) महिला अधिकार आंदोलन
(D) सामाजिक आंदोलन।
उत्तर:
नागरिक अधिकार आंदोलन।

9. चिपको आंदोलन में किसने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी?
(A) सुंदर लाल बहुगुणा
(B) लाल बहादुर शास्त्री
(C) मेधा पाटकर
(D) अरुंधति राय।
उत्तर:
सुंदर लाल बहुगुणा।

10. प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक शोषण के विरुद्ध कौन-से आंदोलन चले थे?
(A) कामगारों के आंदोलन
(B) दलितों के आंदोलन
(C) कृषक आंदोलन
(D) पारिस्थितिकीय आंदोलन।
उत्तर:
पारिस्थितिकीय आंदोलन।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जनजातीय आंदोलन क्यों शुरू हुए थे?
उत्तर:
जनजातीय आंदोलन अपनी संस्कृति को बचाने के लिए शुरू हुए थे ताकि वह औरों की संस्कृति में न मिल जाएं।

प्रश्न 2.
आधुनिक भारत का पिता (Father of Modern India) किसे कहा जाता है?
उत्तर:
राजा राममोहन राय को आधुनिक भारत का पिता (Father of Modern India) कहा जाता है।

प्रश्न 3.
समाज सुधार क्या होता है?
उत्तर:
जब समाज में चल रही कुरीतियों के विरुद्ध समाज के समझदार व्यक्ति कोई आंदोलन करें तथा उन कुरीतियों को बदलने का प्रयास करें तो उसे समाज सुधार कहते हैं।

प्रश्न 4.
समाज सुधार में गतिशीलता क्यों होती है?
उत्तर:
समाज सुधार में गतिशीलता इसलिए होती है क्योंकि समाज सुधार सभी समाजों तथा सभी युगों में एक समान नहीं होता। इसलिए यह गतिशील है।

प्रश्न 5.
समाज कल्याण क्या होता है?
उत्तर:
समाज कल्याण में उन संगठित सामाजिक कोशिशों या प्रयासों को शामिल किया जाता है जिनकी मदद से समाज के सारे सदस्यों को अपने आप को ठीक तरीके से विकसित करने की सुविधाएं मिलती हैं। समाज कल्याण के कार्यों में निम्न था पिछड़े वर्गों की तरफ विशेष ध्यान दिया जाता है ताकि समाज का हर तरफ से विकास तथा कल्याण हो सके।

प्रश्न 6.
समाज कल्याण के क्या उद्देश्य होते हैं?
उत्तर:

  1. पहला उद्देश्य यह है कि समाज के सदस्यों के हितों की पूर्ति उनकी ज़रूरतों के अनुसार होतो हैं।
  2. ऐसे सामाजिक संबंध स्थापित करना जिससे लोग अपनी शक्तियों का पूरी तरह विकास कर सके हैं।

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प्रश्न 7.
भारत के आज़ादी के आंदोलन से हमें क्या मिला?
उत्तर:
भारत के आज़ादी के आंदोलन से हमें आजादी मिली। इस आंदोलन में भारत की सारी जनता बगैर किसी भेदभाव के एक-दूसरे से कंधे से कंधा मिलाकर लड़ी जिस वजह से उनमें राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ। निम्न जातियों में भी चेतना आई तथा वह उच्च जातियों के समाज के समान खड़े हो गए।

प्रश्न 8.
किन्हीं तीन समाज सुधारकों के नाम बताओ।
उत्तर:

  1. राजा राममोहन राय
  2. सर सैयद अहमद खान
  3. स्वामी दयानंद सरस्वती
  4. स्वामी विवेकानंद।

प्रश्न 9.
बेसिक शिक्षा की धारणा किसने दी थी?
उत्तर:
बेसिक शिक्षा की धारणा महात्मा गांधी ने 1937 में दी थी।

प्रश्न 10.
समाज कल्याण तथा समाज सुधार में कोई मुख्य फर्क बताओ।
उत्तर:
समाज कल्याण तथा समाज सुधार में मुख्य फर्क यह है कि समाज कल्याण में समाज की निम्न जातियों, पिछड़े वर्गों के सर्वांगीण विकास के लिए कार्य किए जाते हैं जबकि समाज सुधार में समाज में फैली हुई कुरीतियों को दूर कर उनमें बदलाव लाने के प्रयास किए जाते हैं।

प्रश्न 11.
राजनीतिक आंदोलन क्या होता है?
उत्तर:
जो आंदोलन राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए चलाए जाएं उन्हें राजनीतिक आंदोलन कहते हैं। जैसे भारत की आजादी का आंदोलन।

प्रश्न 12.
सांस्कृतिक आंदोलन क्या होता है?
उत्तर:
जो आंदोलन अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए चलाया जाए उसे सांस्कृतिक आंदोलन कहते हैं। जैसे जनजातीय आंदोलन।

प्रश्न 13.
आज़ादी से पहले जाति आंदोलन क्यों चलाए गए थे?
उत्तर:

  1. आजादी से पहले जाति आंदोलन इसलिए चलाए गए थे ताकि ब्राह्मणों की और जातियों के ऊपर श्रेष्ठता का विरोध किया जा सके।
  2. जाति स्तरीकरण में अपनी जाति की स्थिति को ऊपर उठाया जा सके।

प्रश्न 14.
भगत आंदोलन क्या होता है?
उत्तर:
भारत में निम्न जातियां उच्च जातियों के विचारों, तौर-तरीकों, व्यवहारों का अनुसरण करती हैं। इस प्रकार की रुचि तथा अनुसरण की प्रक्रिया को भगत आंदोलन कहते हैं।

प्रश्न 15.
सुधार आंदोलनों को सामाजिक आंदोलन क्यों कहते हैं?
उत्तर:
असल में सुधार आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य समाज में पाई जाने वाली धार्मिक तथा सामाजिक कुरीतियों को दूर करना था इसलिए इन आंदोलनों को सामाजिक आंदोलन कहते हैं।

प्रश्न 16.
भारत में समाज सुधार आंदोलन क्यों शुरू हुए?
उत्तर:
अंग्रेजों के आने के बाद भारत में पश्चिमी शिक्षा का प्रसार हुआ। इस शिक्षा को ग्रहण करते-करते समाज के बहुत से सुलझे हुए लोगों को पता चला कि उनके समाज में जो रीतियां, जैसे सती प्रथा, बाल विवाह इत्यादि चल रही हैं। वह असल में रीतियां नहीं बल्कि कुरीतियां हैं। उन्हें पश्चिमी देशों में जाने तथा वहां के लोगों से बातें करने का मौका मिला जिससे उनकी आँखें खुल गईं तथा अपने समाज में फैली कुरीतियों, कुप्रथाओं, अंधविश्वासों को दूर करने के लिए सुधार आंदोलन चल पड़े।

प्रश्न 17.
गतिशीलकरण संसाधन (Resource Mobilisation) का क्या अर्थ है?
उत्तर:
गतिशीलकरण संसाधन एक विधि है जिसमें किसी सामाजिक आंदोलन को राजनीतिक प्रभाव, धन, मीडिया तक पहुंच तथा लोगों के सहयोग से शक्ति प्राप्त होती है।

प्रश्न 18.
प्रतिदानात्मक अथवा रूपांतरणकारी आंदोलन का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रतिदानात्मक अथवा रूपांतरणकारी सामाजिक आंदोलन वह सामाजिक आंदोलन होते हैं जिनका मुख्य उद्देश्य अपने व्यक्तिगत सदस्यों की व्यक्तिगत चेतना तथा गतिविधियों में परिविर्तन लाना होता है। उदाहरण के लिए केरल के इजहावा समुदाय के लोगों ने नारायण गुरु के नेतृत्व में अपनी सामाजिक प्रथाओं को परिवर्तित किया।

प्रश्न 19.
सुधारवादी आंदोलन कौन-से होते हैं?
अथवा
सुधार आंदोलन से आप क्या समझते हैं?
अथवा
सुधारवादी सामाजिक आंदोलन क्या है?
उत्तर:
उन आंदोलनों को सुधारवादी आंदोलन कहा जाता है जो वर्तमान सामाजिक तथा राजनीतिक विन्यास को धीमे प्रगतिशील चरणों द्वारा बदलने का प्रयास करता है। उदाहरण के लिए. 1960 के दशक में भारत के राज्यों को भाषा के आधार पर पुनर्गठित करने अथवा हाल के सूचना के अधिकार का अभियान।

प्रश्न 20.
क्रांतिकारी सामाजिक आंदोलन क्या हैं?
उत्तर:
क्रांतिकारी सामाजिक आंदोलन सामाजिक संबंधों के आमूल रूपांतरण का प्रयास करते हैं, आम तौर पर राजसत्ता पर अधिकार के द्वारा। उदाहरण के लिए 1789 की फ्रांसीसी क्रांति तथा 1919 की रूस की बोल्शेविक क्रांति।

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प्रश्न 21.
सामाजिक आंदोलनों का सापेक्षिक वचन का सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
सामाजिक आंदोलनों के सापेक्षिक वचन के सिद्धांत के अनुसार सामाजिक संघर्ष उस समय उत्पन्न होता है जब एक सामाजिक समूह यह अनुभव करे कि वह अपने इर्द-गिर्द के अन्य व्यक्तियों से खराब स्थिति में है। ऐसा संघर्ष सफल सामूहिक विरोध के रूप में सामने आ सकता है।

प्रश्न 22.
पारिस्थितिकीय आंदोलन क्यों चलाए गए थे?
उत्तर:
आधुनिक काल में विकास पर अधिक बल दिया गया जिस कारण प्राकृतिक संसाधनों का अनियंत्रित उपयोग हुआ तथा प्राकृतिक संसाधनों का अत्याधिक शोषण हुआ है। यह एक चिंता का विषय बन गया तथा पारिस्थितिकीय आंदोलन इस कारण ही चलाए गए थे।

प्रश्न 23.
स्वतंत्रता से पहले किसान आंदोलन क्यों चलाए गए थे?
उत्तर:
वैसे तो स्वतंत्रता से पहले चले हरेक किसान आंदोलन की प्रकृति अलग-अलग थी परंतु मुख्यता इनकी मुख्य मांग थी कि किसानों, कामगारों तथा अन्य सभी वर्गों को आर्थिक शोषण से मुक्ति मिल सके।

प्रश्न 24.
औपनिवेशिक काल में कामगारों के आंदोलन क्यों चले थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक काल की प्रारंभिक अवस्थाओं में मजदूरी काफ़ी सस्ती थी क्योंकि औपनिवेशिक सरकार ने उनके वेतन तथा कार्य दशाओं के लिए कोई नियम नहीं बनाए थे। इस प्रकार मजदूरों को मालिकों के शोषण से बचाने के लिए कामगारों में आंदोलन चलाए गए थे।

प्रश्न 25.
मज़दूर आंदोलन की क्या हानियां हैं?
उत्तर:

  1. मज़दूर आंदोलन से उत्पादन बंद हो जाता है जिससे महँगाई बढ़ जाती है।
  2. अगर देश में मजदूर आंदोलन बार-बार होने लग जाए तो उससे विदेशी निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 26.
महिला आंदोलन से महिलाओं की स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
महिला आंदोलन महिलाओं में चेतना जगाने तथा उनके अधिकारों की प्राप्ति के लिए चलाया जाता है। इससे उन्हें कई प्रकार के अधिकार प्राप्त हो जाते हैं तथा समाज में उनकी स्थिति उच्च हो जाती है।

प्रश्न 27.
महिला आंदोलन से समाज पर क्या प्रभाव पड़ते हैं?
उत्तर:
महिला आंदोलन से समाज में परिर्वन आ जाता है। महिलाओं को आंदोलन के कारण अधिकार मिल जाते हैं जिससे उनकी स्थिति उच्च हो जाती है। इससे सामाजिक संस्थाओं विवाह, परिवार के स्वरूप में परिवर्तन आ जाता है तथा समाज में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ जाता है।

प्रश्न 28.
किसान आंदोलन क्या होते हैं?
उत्तर:
किसानों से संबंधित मुद्दे उठाने के लिए जो आंदोलन चलाए जाते हैं उन्हें किसान आंदोलन कहते हैं। उदाहरण के लिए गांधी जी द्वारा चलाया गया चंपारन सत्याग्रह।

प्रश्न 29.
स्वतंत्रता के पश्चात् हुए किसी महिला आंदोलन के बारे में बताएं।
उत्तर:
1970 के दशक के प्रारंभ में बिहार में छात्र अंसतोष उभरा जिसने जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति के आह्वान का समर्थन किया जिनके अनेक मुद्दे महिलाओं से संबंधित थे जैसे परिवार, कार्य वितरण, पारिवारिक हिंसा, पुरुष तथा स्त्रियों द्वारा संसाधनों पर असमान पहुँच इत्यादि।

प्रश्न 30.
भारत में अपराध के कोई तीन कारण बताइये।
उत्तर:

  1. लोग निर्धनता के कारण अपराध करते हैं।
  2. जायदाद प्राप्ति के लिए भी अपराध किए जाते हैं।
  3. कई लोगों को अपराध करने में मज़ा आता है।

प्रश्न 31.
बाल न्याय अधिनियम के तहत बाल अपराधी की कितनी आयु निर्धारित की गई है?
उत्तर:
इस अधिनियम के तहत बाल अपराधी की आयु 16 वर्ष निर्धारित की गई है।

प्रश्न 32.
किन्हीं दो मुस्लिम आंदोलनों के नाम लिखें।
उत्तर:
खिलाफ़त आंदोलन तथा सर सैय्यद अहमद खान द्वारा चलाया गया सुधार आंदोलन।

प्रश्न 33.
किन्हीं दो सिक्ख आंदोलनों के नाम लिखिए।
उत्तर:
गुरुद्वारा आंदोलन तथा पंजाबी सूबे के लिए आंदोलन।

प्रश्न 34.
बाल अपराध क्या है?
उत्तर:
एक निश्चित आयु से नीचे अपराध करने वाले अपराध को बाल अपराध कहा जाता है।

प्रश्न 35.
सामाजिक विचलन क्या है?
उत्तर:
जब सामाजिक व्यवस्था में अव्यवस्था फैल जाए, आदर्शहीनता की स्थिति फैल जाए, आदर्श, नियम तथा प्रतिमान खत्म हो जाए तो इस स्थिति को सामाजिक विचलन कहा जाता है।

प्रश्न 36.
कोई दो प्रकार के सामाजिक आंदोलन बताइए।
उत्तर:
अभिव्यक्ति आंदोलन, क्रांतिकारी आंदोलन, सुधारात्मक आंदोलन इत्यादि।

प्रश्न 37.
भू-दान आंदोलन किसने चलाया?
उत्तर:
भू-दान आंदोलन आचार्य विनोबा भावे ने चलाया था।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज सुधार आंदोलनों की मदद से हम क्या परिवर्तन ला सकते हैं?
उत्तर:
भारत एक कल्याणकारी राज्य है जिसमें हर किसी को समान अवसर उपलब्ध होते हैं। पर कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य जनता के जीवन को सुखमय बनाना है। पर यह तभी संभव है अगर समाज में फैली हुई कुरीतियों तथा अंध-विश्वासों को दूर कर दिया जाए। इन को दूर सिर्फ समाज सुधारक आंदोलन ही कर सकते हैं। सिर्फ कानून बनाकर कुछ हासिल नहीं हो सकता। इसके लिए समाज में सुधार ज़रूरी हैं। कानून बना देने से सिर्फ कुछ नहीं होगा।

उदाहरण के तौर पर बाल विवाह, दहेज प्रथा, विधवा विवाह, बच्चों से काम न करवाना। इन सभी के लिए कानून हैं पर ये सब चीजें आम हैं। दहेज लिया दिया, यहां तक कि मांग कर लिया जाता है, बाल विवाह होते हैं, विधवा विवाह को अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता। हमारे समाज के विकास में ये चीजें सबसे बड़ी बाधाएं हैं। अगर हमें समाज का विकास करना है तो हमें समाज सुधार आंदोलनों की ज़रूरत है। इसलिए हम समाज सुधार आंदोलनों के महत्त्व को भूल नहीं सकते।

प्रश्न 2.
सामाजिक आंदोलन की कोई चार विशेषताएं बताओ।
अथवा
सामाजिक आंदोलन के दो लक्षण बताएँ।
अथवा
सामाजिक आंदोलन के लक्षण बताइए।
उत्तर:

  1. सामाजिक आंदोलन हमेशा समाज विरोधी होते हैं।
  2. सामाजिक आंदोलन हमेशा नियोजित तथा जानबूझ कर किया गया प्रयत्न है।
  3. इसका उद्देश्य समाज में सुधार करना होता है।
  4. इसमें सामूहिक प्रयत्नों की ज़रूरत होती है क्योंकि एक व्यक्ति समाज में परिवर्तन नहीं ला सकता।

प्रश्न 3.
सामाजिक आंदोलन की किस प्रकार की प्रकृति होती है?
उत्तर:

  1. सामाजिक आंदोलन संस्थाएं नहीं होते हैं क्योंकि संस्थाएं स्थिर तथा रूढ़िवादी होती हैं तथा संस्कृति का ज़रूरी पक्ष मानी जाती हैं। यह आंदोलन अपना उद्देश्य पूरा होने के बाद खत्म हो जाते हैं।
  2. सामाजिक आंदोलन समितियां भी नहीं हैं क्योंकि समितियों का एक विधान होता है। यह आंदोलन तो अनौपचारिक, असंगठित तथा परंपरा के विरुद्ध होता है।
  3. सामाजिक आंदोलन दबाव या स्वार्थ समूह भी नहीं होते बल्कि यह आंदोलन सामाजिक प्रतिमानों में बदलाव की मांग करते हैं।

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प्रश्न 4.
जनजातीय आंदोलन क्यों शुरू हुए थे?
अथवा
जनजातीय आंदोलनों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
अथवा
जनजातीय आंदोलन के बारे में संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में सैंकड़ों जनजातियों के लोग रहते हैं। इनकी अपनी विशिष्ट जीवन शैली होती है। उनकी ज़रूरतें भी कम होती हैं। वह अपनी संस्कृति व अलग जनजातीय पहचान बनाए रखने के प्रति बहुत सचेत होते हैं। यदि जनजाति के सदस्यों को लगे कि उनकी संस्कृति से छेड़छाड़ की जा रही है, इसमें परिवर्तन करने की कोशिश की जा रही है या उनकी मांगों की अनदेखी की जा रही है या उनकी अपनी अलग पहचान बनाए रखने में कोई खतरा है तो वे आंदोलन का रास्ता अपना लेते हैं। इसके अलावा अन्य समुदायों, धर्मों तथा वर्गों के लोगों के प्रभाव के कारण निश्चित तरह के परिवर्तन की इच्छा से भी जनजातियों के लोग आंदोलन करने लगते हैं।

उदाहरण पर बिहार से झारखंड राज्य अलग करने की मांग को लेकर आंदोलन हुआ। बिरसा मुंडा ने मुंडा जनजाति में ईसाइयत के विरुद्ध आंदोलन चलाया। बिरसा को मुंडा जनजाति के लोग बिरसा भगवान् कहते थे। उसके कहने के फलस्वरूप इस जनजाति के उन लोगों, जिन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया था, ने हिंदू धर्म को पुनः अपना लिया तथा मूर्ति पूजा, हिंदू कर्म-कांडों तथा रीति-रिवाजों का
पालन करने लगे।

प्रश्न 5.
भारत में समाज सुधार आंदोलन क्यों शुरू हए?
उत्तर:
भारत में समाज सुधार आंदोलन निम्नलिखित कारणों से शुरू हुए-

  • भारतीय समाज में फैली कुरीतियों को धर्म के साथ जोड़ा हुआ था।
  • समाज का जातीय आधार पर विभाजन था तथा जाति धर्म के आधार पर बनी हुई थी। जाति के नियमों को तोड़ना पाप माना जाता था।
  • भारतीय समाज में स्त्रियों की दशा काफ़ी निम्न थी जिस वजह से उनका कोई महत्त्व नहीं रह गया था।
  • भारतीय समाज में अशिक्षा का बोलबाला था।
  • जाति प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह की मनाही इत्यादि बहुत-सी कुरीतियां समाज में फैली हुई थीं।

इन सब कारणों की वजह से शिक्षित समाज सुधारकों ने समाज सुधार करने की ठानी तथा समाज सुधार अंट लन शुरू हो गए।

प्रश्न 6.
आज़ादी से पहले चले सामाजिक आंदोलनों की विशेषताएं क्या थी?
उत्तर:
आज़ादी से पहले चले सामाजिक आंदोलनों की निम्नलिखित विशेषताएं थीं-

  • आजादी से पहले चले सामाजिक आंदोलनों की पहली विशेषता यह थी कि हिंदू धर्म को तार्किक रूप से स्थापित करना क्योंकि इसने मुस्लिम शासकों तथा अंग्रेजों के कई थपेड़ों को झेला था।
  • महिलाओं, हरिजनों तथा शोषित वर्गों को ऊपर उठाना ताकि यह वर्ग भी और वर्गों की तरह सर उठाकर जी सकें।
  • ये आंदोलन परंपरागत रूढ़िवादी विचारधाराओं को समाप्त करके उनकी जगह नयी व्यवस्था स्थापित करना चाहते थे।
  • ये आंदोलन जाति व्यवस्था की असमानता की बेड़ियों को तोड़कर समानता तथा भाईचारे की भावना को स्थापित करना चाहते थे।
  • ये आंदोलन भारतीय जनता में प्यार, भाईचारे, सहनशीलता, त्याग आदि भावनाओं का विकास करना चाहते थे।

प्रश्न 7.
क्रांतिकारी आंदोलन की क्या विशेषताएं होती हैं?
उत्तर:
क्रांतिकारी आंदोलन की निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं-

  • क्रांतिकारी आंदोलन प्रचलित पुरानी व्यवस्था को उखाड़ कर उसकी जगह नयी व्यवस्था को लागू करना चाहते हैं।
  • क्रांतिकारी आंदोलन में हिंसात्मक तथा दबाव वाले तरीके अपनाए जाते हैं।
  • क्रांतिकारी आंदोलन हमेशा तभी चलाए जाते हैं जब सामाजिक बुराइयों को दूर करना हो।
  • क्रांतिकारी आंदोलन हमेशा निरंकुश शासन में तथा उसे खत्म करने के लिए चलाए जाते हैं।
  • क्रांतिकारी आंदोलनों में हमेशा उग्रता तथा तीव्रता पाई जाती है।

प्रश्न 8.
सुधारवादी आंदोलन की क्या विशेषताएं होती हैं?
उत्तर:
सुधारवादी आंदोलन की निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं-

  • सुधारवादी आंदोलन प्राचीन सामाजिक व्यवस्था में सुधार करना चाहता है।।
  • सुधारवादी आंदोलनों की गति हमेशा धीमी होती है।
  • सुधारवादी आंदोलनों में हमेशा शांतिपूर्ण तरीके अपनाए जाते हैं तथा यह समाज में शांतिपूर्ण परिवर्तन के लिए चलाए जाते हैं।
  • यह आम तौर पर प्रजातांत्रिक देशों में पाया जाता है।

प्रश्न 9.
सामाजिक आंदोलन के लक्षण बताएँ।
उत्तर:

  • सामाजिक आंदोलन में एक लंबे समय तक लगातार सामूहिक गतिविधियों की ज़रूरत होती है। ऐसी गतिविधियां मुख्यतः राज्य के विरुद्ध होती हैं तथा राज्य की नीति तथा व्यवहार में परिवर्तन की मांग करती हैं।
  • सामाजिक आंदोलन आम तौर पर किसी जनहित के मामले में परिवर्तन लाने के उद्देश्य से उत्पन्न होते हैं ताकि जनता को उनके अधिकार प्राप्त हो सकें।
  • जहां विरोध सामूहिक गतिविधि का सबसे अधिक मूर्त रूप है, वहीं सामाजिक आंदोलन समान रूप से अन्य महत्त्वपूर्ण ढंगों से भी कार्य करता है।
  • सामाजिक आंदोलनों से परिवर्तन अचानक नहीं आते बल्कि धीरे-धीरे लंबे समय के बाद आते हैं।

प्रश्न 10.
नए सामाजिक आंदोलनों तथा पुराने सामाजिक आंदोलनों में भिन्नता बताएं।
उत्तर:

  • पुराने सामाजिक आंदोलन किसी-न-किसी राजनीतिक दल के दायरे में काम करते थे परंतु नए सामाजिक आंदोलन समाज में सत्ता के विवरण के बारे में न होकर जीवन की गुणवत्ता जैसे स्वच्छ पर्यावरण के बारे में थे।
  • पुराने सामाजिक आंदोलन समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर हटाना चाहते थे तथा शोषण से छुटकारा प्राप्त करना चाहते थे परंतु नए सामाजिक आंदोलन अच्छे जीवन स्तर की चाह में चलाए गए हैं।
  • पुराने सामाजिक आंदोलनों में सामाजिक दलों की केंद्रीय भूमिका थी परंतु आज के आंदोलन औपचारिक राजनीतिक व्यवस्था से छूट गए हैं तथा राज्य पर वे बाहर से दबाव डालते हैं।

प्रश्न 11.
चिपको आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं?
अथवा
चिपको आंदोलन क्या था?
उत्तर:
चिपको आंदोलन 1970 के दशक में उत्तराखंड (उस समय उत्तर प्रदेश) के पहाड़ी इलाकों में शुरू हुआ। यहाँ के जंगल वहाँ पर रहने वाले गाँववासियों की रोजी-रोटी का साधन थे। लोग जंगलों से चीजें इकट्ठी करके अपना जीवन यापन करते थे। सरकार ने इन जंगलों को राजस्व प्राप्त करने के लिए ठेके पर दे दिया। जब लोग जंगलों से चीजें, लकड़ी इकट्ठी करने गए तो ठेकेदारों ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि ठेकेदार स्वयं जंगलों को काटकर पैसा कमाना चाहते थे।

कई गांवों के लोग इसके विरुद्ध हो गए तथा उन्होंने मिलकर संघर्ष करना शुरू कर दिया। जब ठेकेदार जंगलों के वृक्ष काटने आते तो लोग पेड़ों के इर्द-गिर्द लिपट जाते या चिपक जाते थे ताकि वह पेड़ों को न काट सकें। महिलाओं तथा बच्चों ने भी इस आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। प्रमुख पर्यावरणवादी सुंदर लाल बहुगुणा भी इस आंदोलन से जुड़ गए। लोगों के पेड़ों से चिपकने के कारण ही इस आंदोलन को चिपको आंदोलन कहा गया। अंत में आंदोलन को सफलता प्राप्त हुई तथा सरकार ने हिमालयी क्षेत्र के पेड़ों की कटाई पर 15 वर्ष की रोक लगा दी।

प्रश्न 12.
क्या लोग किसी सामाजिक आंदोलन में हानि अथवा लाभ के विषय में सोचकर भाग लेते हैं अथवा व्यक्तिगत लाभ के विषय में तर्क संगत गणना करके भाग लेते हैं?
उत्तर:
जब लोग किसी सामाजिक आंदोलन में भाग लेते है तो वह किसी हानि या लाभ या व्यक्तिगत विषय के बारे में नहीं सोचते हैं। कोई सामाजिक आंदोलन किसी व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं बल्कि सामूहिक हितों के लिए चलाया जाता हैं तथा लोग बिना किसी लाभ हानि की भावना के उसमें भाग लेते है। उदाहरण के लिए हमारी स्वतंत्रता का आंदोलन।

अगर हमने, महात्मा गांधी ने व्यक्तिगत हितों के बारे में सोचा होता तो हमारा स्वतंत्रता संग्राम सफल न हो पाता। परंतु उन्होंने तथा अन्य लोगों ने देश के हितों तथा संपूर्ण जनता के विषय के बारे में सोचा तथा आंदोलन शुरू किया। उन्हें बहुत कठिनाइयां आयीं तथा उन्हें जेल भी जाना पड़ा। परंतु फिर भी वह अपने मार्ग पर जुटे रहे तथा देश को स्वतंत्र करवा कर ही दम लिया। इस प्रकार यह किसी व्यक्तिगत हित के लिए आंदोलन नहीं था
बल्कि समूह अथवा संपूर्ण जनता के हितों के लिए आंदोलन था।

प्रश्न 13.
अपने क्षेत्र में पर्यावरण प्रदूषण के कुछ उदाहरणों का पता लगाइए
उत्तर:
आजकल पर्यावरण प्रदूषण काफी हो रहा है तथा यह बहुत से कारकों के कारण होता है। जब कोई अनचाही वस्तु पर्यावरण में मिल जाए तो उसे पर्यावरण प्रदूषण कहते हैं। बहुत से ऐसे कारक हैं जो प्रदूषण फैलाते हैं। आजकल इतने अधिक वाहन हो गए हैं तथा वह इतना अधिक धआँ छोडते हैं कि पर्यावरण प्रदषण फैल ही जाता है। बड़े-बड़े कारखानों, उद्योगों की चिमनियों से निकलता धुआँ प्रदूषण फैलाता है। उद्योगों से निकला कचरा, गर्म पानी इत्यादि पर्यावरण प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है।

इनके साथ ही घरेलू प्रयोग किया हुआ पानी, साफ़ पानी में गंदा पानी फेंकना, उद्योगों का कचरा नदियों में फेंकना, भूक्षरण, खेतों में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग, उवर्रक बनाने के कारखाने, चमड़ा बनाने के कारखाने, कीटनाशक दवाएं बनाने के कारखाने काफ़ी अधिक प्रदूषण फैलाते हैं। दिल्ली जैसे शहर में 50 लाख से अधिक वाहन हैं तथा हम यह सोच सकते हैं कि वह कितना प्रदूषण फैलाते होंगे।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक आंदोलन क्या होता है? इसके प्रकारों का वर्णन करो।
अथवा
सामाजिक आंदोलन के अर्थ व प्रकारों की व्याख्या करें।
अथवा
सामाजिक आंदोलन किसे कहते हैं?
अथवा
सामाजिक आंदोलन क्या है?
अथवा
समाज सुधार आंदोलनों का सविस्तार वर्णन कीजिए।
अथवा
सामाजिक आंदोलन क्या है? प्रमुख प्रकार के सामाजिक आंदोलनों का संक्षिप्त वर्णन करें।
अथवा
आंदोलन क्या है? सामाजिक आंदोलन कितने प्रकार के हैं?
उत्तर:
सामाजिक आंदोलन का अर्थ (Meaning of Social Movements)-किसी भी समाज में सामाजिक आंदोलन तब जन्म लेता है जब वहाँ के व्यक्ति समाज में पाई जाने वाली सामाजिक परिस्थितियों से असंतुष्ट होते हैं तथा उसमें परिवर्तन लाना चाहते हैं। किसी भी तरह का सामाजिक आंदोलन बिना किसी विचारधारा (Ideology के विकसित नहीं होता है।

कभी-कभी सामाजिक आंदोलन किसी परिवर्तन के विरोध के लिए भी विकसित होता है। प्रारंभिक समाज-शास्त्री सामाजिक आंदोलन को परिवर्तन लाने का एक प्रयास मानते थे, परंतु आधुनिक समाज शास्त्री, आंदोलनों को समाज में परिवर्तन करने या फिर उसे परिवर्तन को रोकने के रूप में लेते हैं। विभिन्न विचारकों ने अपने-अपने दृष्टिकोणों से सामाजिक आंदोलन को निम्नलिखित रूप से समझाने का प्रयास किया है

मैरिल एवं एल्ड्रिज (Meril and Eldridge) के अनुसार “सामाजिक आंदोलन रूढ़ियों में परिवर्तन के लिए अधिक या कम मात्रा में चेतन रूप से किये गये प्रयास हैं।” हर्टन व हंट (Hurton and Hunt) के शब्दों में ‘‘सामाजिक आंदोलन समाज अर्थात् उसके सदस्यों में परिवर्तन लाने या उसका विरोध करने का सामूहिक प्रयास है।”

रॉज (Rose) के शब्दानुसार, “सामाजिक आंदोलन सामाजिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए लोगों की एक बड़ी संख्या के एक औपचारिक संगठन को कहते हैं, जो अनेक व्यक्तियों के सामूहिक प्रयास से प्रभुत्ता संपन्न, संस्कृत स्कूलों संस्थाओं या एक समाज के विशिष्ट वर्गों को संशोधित अथवा स्थानांतरित करता है।

हरबर्ट ब्लूमर (Herbert Blumer) के अनुसार, “सामाजिक आंदोलन जीवन की एक नयी व्यवस्था को स्थापित करने के लिए सामूहिक प्रयास कहा जा सकता है।” उपर्यक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सामाजिक आंदोलन समाज में व्यक्तियों दवारा किया जाने वाला सामूहिक व्यवहार है, जिसका उद्देश्य प्रचलित संस्कृति एवं सामाजिक संरचना में परिवर्तन करना होता है या फिर हो रहे परिवर्तन को रोकना होता है। अतः सामाजिक आंदोलन को सामूहिक प्रयास और सामाजिक क्रिया के प्रयास के रूप में समझा जा सकता है।

सामाजिक आंदोलनों के प्रकार (Types of Social Movements)-हर्टन एवं हंट (Hurton and Hunt) के अनुसार, सामाजिक आंदोलन का वर्गीकरण सरल नहीं है। क्योंकि कभी-कभी कोई आंदोलन दो आंदोलनों के बीच की स्थिति का होता है अथवा अपने विकास के विभिन्न स्तरों पर एक ही आंदोलन विभिन्न प्रकृति का होता है। विभिन्न विचारकों ने सामाजिक आंदोलनों का वर्गीकरण अपने-अपने दृष्टिकोण से निम्नलिखित प्रकार से किया है-
1. विशेष सामाजिक आंदोलन (Special Social Movements)-विशेष या विशिष्ट सामाजिक आंदोलनों के उद्देश्य पहले से ही निर्धारित तथा संगठित होते हैं। इन आंदोलनों के संचालन में अनुभवी नेताओं का हाथ होता है। विशेष सामाजिक आंदोलन के अंतर्गत क्रांतिकारी व सुधारवादी आंदोलन मुख्य रूप से आते हैं।

2. सामान्य सामाजिक आंदोलन (General Social Movements)-सामान्य सामाजिक आंदोलनों का संबंध समाज में प्रचलित सांस्कृतिक मूल्यों से होता है। इस प्रकार के आंदोलन सांस्कृतिक मूल्यों में होने वाले धीरे-धीरे परिवर्तनों के कारण विकसित होते हैं क्योंकि इन्हीं आंदोलनों के कारण परिवर्तित मूल्य, विचार व विश्वास आरंभ में अस्पष्ट होते हैं। महिला आंदोलन, दलित आंदोलन इस श्रेणी के आंदोलनों में आते हैं।

3. अभिव्यक्ति आंदोलन (Expresive Movements)-अभिव्यक्तात्मक सामाजिक आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य किसी भी विषय में सामूहिक असहमति को प्रतीक रूप में प्रकट करना होता है, हरबर्ट ब्लूमर (Herbert Blumers) ने इस प्रकार के आंदोलनों को दो भागों में बांटा है-धार्मिक आंदोलन या भाषा आंदोलन।

4. अवरोधक आंदोलन (Resistence Movements)-अवरोधक आंदोलन क्रांतिकारी आंदोलन के सर्वथा विपरीत है। यह उसका भिन्न रूप है। अवरोधक आंदोलन का उद्देश्य परिवर्तन को रोकना या समाप्त करना होता है जबकि क्रांतिकारी आंदोलन में परिवर्तन एकमात्र उद्देश्य माना गया है। भारतवर्ष में इस प्रकार के कई अवरोधक आंदोलन पाए हैं। भारत समाज में जब हिंदू कोड बिल विभिन्न अधिनियमों के रूप में पारित किया गया तो इस तरह के कई आंदोलन शुरू हो गये।

5. काल्पनिक आंदोलन (Utopian Movements) काल्पनिक आंदोलनों के अंतर्गत वह आंदोलन आते हैं, जो महान विचारकों या दार्शनिकों द्वारा अपने काल्पनिक और आदर्श समाज की रचना के लिए आरंभ किये जाते हैं। कार्ल मार्क्स का साम्यवादी आंदोलन, विनोबा भावे का ग्राम दान व भू-दान आंदोलन काल्पनिक आंदोलन के अंतर्गत ही आते हैं।

6. देशांतर आंदोलन (Migratory Movements)-देशांतर आंदोलन युद्ध, बाढ़, अकाल व महामारी के कारण पैदा होते हैं। इस प्रकार के आंदोलन के अंतर्गत जनसंख्या का एक स्थान से दूसरे स्थान पर हस्तांतरण होता है। एक क्षेत्र या देश के लोग व्यापक असंतोष के कारण सामूहिक रूप से दूसरे देश में जाकर रहने का फैसला करते हैं। भारत-विभाजन और बांग्लादेश का निर्माण देशांतर आंदोलन का ही रूप है।

7. क्रांतिकारी आंदोलन (Revolutionery Movements)-क्रांतिकारी आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य प्रचलित सामाजिक व्यवस्था को उखाड़ कर उसके स्थान पर नयी व्यवस्था की स्थापना करना होता है। क्रांतिकारी आंदोलन हिंसात्मक एवं अहिंसात्मक दो तरह के होते हैं। ये आंदोलन समाज में पाये जाने वाले असंतोष के परिणामस्वरूप जन्म लेते हैं। Hurton & Hunt क्रांतिकारी आंदोलन को इस प्रकार परिभाषित करते हैं-क्रांतिकारी आंदोलन वर्तमान सामाजिक व्यवस्था को उखाड़ कर, उसके स्थान पर विभिन्न व्यवस्था को प्रतिस्थापित करना चाहता है। क्रांतिकारी आंदोलन की मुख्य विशेषताएं तीव्रता, उग्रता, अहिंसा व कभी-कभी हिंसा भी है।

8. सुधारात्मक आंदोलन (Reformative Movements)-सुधारात्मक आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य सामाजिक व्यवस्था में पाई जाने वाली बुराइयों को दूर कर उनमें सुधार लाना होता है। भारतीय समाज में ब्रह्म समाज, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन और प्रार्थना समाजों की स्थापना इत्यादि सुधारवादी आंदोलनों के अंतर्गत ही आते हैं। सुधार आंदोलन प्रजातांत्रिक प्रणाली में ही विकसित हो सकते हैं क्योंकि इस प्रणाली में ही सरकार स्वयं नये परिवर्तन एवं सुधारों में रुचि रखती है तथा वहां की जनता को सत्ताधारी या सरकार की आलोचना का पूरा अधिकार होता है। बहुमत की इच्छा से सरकार परिवर्तन करती जाती है।

प्रश्न 2.
सामाजिक आंदोलनों से भारतीय समाज में क्या परिवर्तन आए? उनका वर्णन करो।
अथवा
सामाजिक आंदोलनों का भारतीय समाज पर क्या प्रभाव पड़ा? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारतीय समाज में 19वीं सदी आते-आते बहुत-सी कुरीतियां फैली हुई थीं। इन कुरीतियों ने भारतीय समाज को बुरी तरह जकड़ा हुआ था। इसी समय भारत के ऊपर अंग्रेज़ कब्जा कर रहे थे। इसके साथ-साथ वह पश्चिमी शिक्षा का प्रसार भी कर रहे थे। बहुत से अमीर भारतीय पश्चिमी शिक्षा ले रहे थे।

शिक्षा लेने के बाद जब वह भारत पहुंचे तो उन्होंने देखा कि भारतीय समाज बहुत-सी कुरीतियों में जकड़ा हुआ है। इसलिए उन्होंने सामाजिक आंदोलन चलाने का निर्णय लिया ताकि इन कुरीतियों को दूर किया जा सके। इन सामाजिक आंदोलनों की जगह जो परिवर्तन भारतीय समाज में आए उनका वर्णन निम्नलिखित है-

(i) सती–प्रथा का अंत (End of Sati System)-भारत में सती प्रथा सदियों से चली आ रही थी। अगर किसी औरत के पति की मृत्यु हो जाती थी तो उसे जिंदा ही पति की चिता में जलना पड़ता था। इस अमानवीय प्रथा को ब्राह्मणों ने चलाया हुआ था। सामाजिक आंदोलनों की वजह से ब्रिटिश सरकार इस अमानवीय प्रथा के विरुद्ध हो गई तथा उसने 1829 में सती प्रथा विरोधी अधिनियम पास कर दिया तथा सती प्रथा को गैर-कानूनी घोषित कर दिया। इस तरह सदियों से चली आ रही यह प्रथा खत्म हो गई। यह सब सामाजिक आंदोलन के कारण ही हुआ।

(ii) बाल-विवाह का खात्मा (End of Child Marriage)-बहुत-से कारणों की वजह से भारतीय समाज में बाल विवाह हो रहे थे। पैदा होते ही या 4-5 साल की उम्र में ही बच्चों का विवाह कर दिया जाता था चाहे उन को विवाह का मतलब पता हो या न हो। सामाजिक आंदोलनों की वजह से ब्रिटिश सरकार ने विवाह की न्यूनतम आयु निश्चित कर दी। 1860 में ब्रिटिश सरकार ने कानून बना कर विवाह की न्यूनतम आयु 10 वर्ष निश्चित कर दी।

(iii) विधवा-पुनर्विवाह (Widow Remarriage)-सदियों से हमारे समाज में विधवाओं को पुनर्विवाह की इजाजत नहीं थी। विधवाओं की स्थिति बहुत बदतर थी। उनको किसी पारिवारिक समारोह में भाग लेने की इजाजत नहीं थी। वह घुट-घुट कर मरती रहती थी। उनको अपनी जिंदगी आराम से जीने का अधिकार नहीं था।

ईश्वर चंद्र विद्यासागर की कोशिशों की वजह से अंग्रेजों ने 1856 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पास किया जिससे विधवाओं को दोबारा विवाह करने की इजाजत मिल गई। इस तरह विधवाओं को कानूनी रूप से विवाह करने तथा अपनी जिंदगी आराम से जीने का अधिकार मिल गया।

(iv) पर्दा-प्रथा की समाप्ति (End of Purdah System)-मुस्लिमों में बरसों से पर्दा प्रथा चली आ रही थी। औरतों को हमेशा पर्दे के पीछे रहना पड़ता था। वह कहीं आ जा भी नहीं सकती थीं। यह प्रथा धीरे-धीरे सारे भारत में फैल गई। बड़े-बड़े समाज सुधारकों ने पर्दा प्रथा के विरुद्ध आवाज़ उठायी। यहां तक कि सर सैय्यद अहमद खान ने भी इसके विरुद्ध आवाज़ उठायी। इस तरह धीरे-धीरे पर्दा प्रथा कम होने लग गई तथा समय आने के साथ यह भी खत्म हो गई।

(v) दहेज-प्रथा में परिवर्तन (Change in Dowry System)-दहेज वह होता है जो विवाह के समय लड़की का पिता अपनी खुशी से लड़के वालों को देता था। धीरे-धीरे इसमें भी बुराइयां आनी शुरू हो गईं। लड़के वाले दहेज मांगने लगे जिस वजह से लड़की वालों को बहुत तकलीफें उठानी पड़ती थीं। इसके विरुद्ध भी आंदोलन चले जिस वजह से ब्रिटिश सरकार ने तथा आजादी के बाद 1961 में सरकार ने दहेज लेने या देने को गैर-कानूनी घोषित कर दिया।

(vi) भारतीय समाज में बहुत समय से अस्पृश्यता चली आ रही थी। इसमें छोटी जातियों को स्पर्श भी नहीं किया जाता था। इन सामाजिक आंदोलनों में अस्पृश्यता के विरुद्ध आवाज़ उठी। जिस वजह से इसे गैर-कानूनी घोषित करने के लिए वातावरण तैयार हो गया तथा आज़ादी के बाद इसे गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया।

(vii) भारतीय समाज में अंतर्जातीय विवाह पर प्रतिबंध था। इन सामाजिक आंदोलनों की वजह से अंतर्जातीय विवाह को बल मिला जिस वजह से आजादी के बाद इसे भी कानूनी मंजूरी मिल गई।

(vii) इन आंदोलनों की वजह से भारतीय समाज के आधार जाति व्यवस्था पर गहरी चोट लगी। सभी आंदोलनों ने जाति प्रथा के विरुद्ध आवाज़ उठायी जिस वजह से धीरे-धीरे जाति व्यवस्था खत्म होने लगी तथा आज भारत में जाति व्यवस्था अपनी आखिरी कगार पर खड़ी है।

(ix) सभी सामाजिक आंदोलन एक बात पर तो ज़रूर सहमत थे तथा वह थी स्त्री शिक्षा। हमारे समाज में स्त्रियों का स्तर काफ़ी निम्न था। उनको किसी भी चीज़ का अधिकार प्राप्त नहीं था। इन सभी आंदोलनों ने स्त्री शिक्षा के लिए कार्य किए जिस वजह से स्त्री शिक्षा को विशेष बल मिला। आज उसी वजह से स्त्री-पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ी है। इन सब चीज़ों को देखकर यह स्पष्ट है कि भारत में 19वीं सदी से शुरू हुए सामाजिक आंदोलनों की वजह से भारतीय समाज में बहुत-से परिवर्तन आए।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 8 सामाजिक आंदोलन

प्रश्न 3.
भारत में समाज सुधारक आंदोलन चलाने के लिए क्या सहायक हालात थे?
उत्तर:
भारत में सदियों से बहुत-सी कुरीतियां चली आ रही थीं। भारतीयों को इन कुरीतियों में पिसते-पिसते सदियां हो चली थी पर भारतीय इनमें पिसते ही जा रहे थे तथा इनके खिलाफ कोई आवाज़ भी उठ नहीं रही थी। 18वीं सदी के आखिरी दशकों में अंग्रेजों ने भारत पर हकूमत करनी शुरू की। इसके साथ-साथ उन्होंने भारत में पश्चिमी शिक्षा का प्रसार भी शुरू किया।

भारतीयों ने पश्चिमी शिक्षा ग्रहण करनी शुरू की तथा धीरे-धीरे उन्हें समझ आनी शुरू हो गई कि भारतीय समाज में जो प्रथाएं चल रही हैं वह सब बेफिजूल की हैं जो कि ब्राह्मणों ने अपना स्वामित्व स्थापित करने के लिए चलाई थीं। जब अंग्रेजों ने भारत पर हकूमत करनी शुरू की तो उस समय भारत में कुछ ऐसे हालात पैदा हो गए जिनकी वजह से भारत में समाज सुधारक आंदोलनों की शुरुआत हुई। इन हालातों का वर्णन निम्नलिखित हैं-
(i) पश्चिमी शिक्षा (Western Education)-अंग्रेजों के भारत आने के बाद भारत में पश्चिमी शिक्षा का प्रसार भी शुरू हुआ। पश्चिमी शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ उन्हें विज्ञान के बारे में यूरोप की प्रगति के बारे में भी पता चला। इस पश्चिमी शिक्षा प्राप्त करने का यह असर हुआ कि उनको पता चलने लग गया कि उनके समाज में जो प्रथाएं चल रही हैं उनका कोई अर्थ नहीं है। यही वजह है कि उन्होंने देश में सामाजिक आंदोलन चलाने शुरू किए और सामाजिक परिवर्तन आने शुरू हो गए।

(ii) यातायात के साधनों का विकास (Development of Means of Transport) अंग्रेज़ों ने भारत में चाहे अपने फायदे के लिए यातायात के साधनों का विकास किया पर उससे भारतीयों को भी बहुत फायदा हुआ। भारतीय इन यातायात के साधनों की वजह से एक-दूसरे के आगे आए तथा एक-दूसरे से मिलने लगे। पश्चिमी शिक्षा ग्रहण कर चुके भारतीय भी देश के कोने-कोने पहुँचे तथा उन्होंने लोगों को समझाया कि यह सब प्रथाएं उनके फायदे के लिए नहीं बल्कि नुकसान के लिए हैं जिससे लोगों को यह समझ आने लग गया। इस तरह यातायात के साधनों के विकास के साथ भी आंदोलनों के लिए हालात विकसित हुए।

(iii) भारतीय प्रेस की शुरुआत (Indian Press)-अंग्रेज़ों के आने के बाद भारत में प्रैस की शुरुआत हुई। दोलनों के संचालकों ने लोगों को समझाने के साथ छोटे-छोटे अखबार तथा पत्रिकाएं निकालनी भी शुरू की ताकि य इनको पढ़कर समझ सकें कि ये बुराइयां हमारे समाज में कितनी गहरी पैठ बना चुकी हैं तथा इनको यहां से निकालना बहुत ज़रूरी है। इस तरह प्रैस की शुरुआत ने भारतीयों को यह समझा दिया कि इन कुरीतियों को दूर करना कितना ज़रूरी है।

(iv) मिशनरियों का बढ़ता प्रभाव (Increasing Effect of Missionaries)-जब से अंग्रेज़ भारत में आए उन्होंने ईसाई मिशनरियों को भी सहायता देनी शुरू की। अंग्रेजों ने इनको आर्थिक सहायता के साथ राजनीतिक सहायता भी देनी शुरू की। इन मिशनरियों का कार्य ईसाई धर्म का प्रचार करना था पर इनका प्रचार करने का तरीका अलग था।

वह पहले समाज कल्याण का कार्य करते थे। लोगों की तकलीफ दूर करते थे फिर इनमें ईसाई धर्म का प्रचार करते थे। धीरे-धीरे लोग ईसाई धर्म को अपनाने लग गए। इससे समाज सुधारकों को बड़ी निराशा हुई क्योंकि भारतीय लोग अपना धर्म छोड़ कर विदेशी धर्म अपनाने लग गए थे। इन समाज सुधारकों ने भारतीयों को मिशनरियों के प्रभाव से बचाने के लिए समाज सुधारक आंदोलन चलाने शुरू कर दिए। इस तरह ईसाई मिशनरियों के प्रभाव की वजह से भी यह आंदोलन शुरू हो गए।

(v) बहुत ज्यादा कुप्रथाएं (So many ills in Indian Society)-जिस समय भारत में सुधार आंदोलन शुरू हुए उस समय भारतीय समाज में बहुत-सी कुप्रथाएं फैली हुई थीं। सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह पर प्रतिबंध, दहेज प्रथा, अस्पृश्यता इत्यादि कुप्रथाएं तथा इनके साथ जुड़े हुए बहुत से अंधविश्वास भी भारतीय समाज में फैले हुए थे। लोग भी इन सब से तंग आ चुके थे। जब यह आंदोलन शुरू हुए तो लोगों ने इन सुधारों को हाथों हाथ लिया जिस वजह से इन आंदोलनों को अच्छे हालात मिल गए तथा यह समाज सुधार के आंदोलन सफल हो गए।

प्रश्न 4.
भारत में महिलाओं में चले सुधार आंदोलन का वर्णन करो।
अथवा
महिला आंदोलनों की व्याख्या करें।
अथवा
स्वतः स्फूर्त महिला आंदोलन का उदय किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
भारतीय समाज में समय-समय पर अनेक ऐसे आंदोलन शुरू हुए हैं जिनका मुख्य उद्देश्य स्त्रियों की दशा में सुधार करना रहा है। भारतीय समाज एक पुरुष-प्रधान समाज है जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं ने अपने शोषण, उत्पीड़न इत्यादि के लिए अपनी स्थिति में सुधार के लिए आवाज़ उठाई है।

पारंपरिक समय से ही महिलाएं बाल-विवाह, सती-प्रथा, विधवा विवाह पर रोक, पर्दा प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों का शिकार होती आई हैं। महिलाओं को इन सब शोषणात्मक कुप्रथाओं से छुटकारा दिलवाने के देश के समाज सुधारकों ने समय-समय पर आंदोलन चलाये हैं।

इन आंदोलनों में समाज सुधारक तथा उनके द्वारा किये गए प्रयास सराहनीय रहे हैं। इन आंदोलनों की शुरुआत 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में ही हो गई थी। राजा राममोहन राय, दयानंद सरस्वती, केशवचंद्र सेन, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, ऐनी बेसेंट इत्यादि का नाम इन समाज सुधारकों में अग्रगण्य है।

सन् 1828 में राजा राममोहन राय द्वारा ब्रह्म समाज की स्थापना तथा 1829 में सती प्रथा अधिनियम का बनाया जाना उन्हीं का प्रयास रहा है। स्त्रियों के शोषण के रूप में पाये जाने वाले बाल-विवाह पर रोक तथा विधवा पुनर्विवाह को प्रचलित कराने का जनमत भी उन्हीं का अथक प्रयास रहा है।

इसी तरह महात्मा गांधी, स्वामी दयानंद सरस्वती, ईश्वरचंद्र, विद्यासागर जी ने भी कई ऐसे ही प्रयास किये जिनका प्रभाव महिलाओं के जीवन पर सकारात्मक महर्षि कर्वे स्त्री-शिक्षा एवं विधवा पुनर्विवाह के समर्थक रहे। इसी प्रकार केशवचंद्र सेन एवं ईश्वरचंद्र विद्यासागर के प्रयासों के अंतर्गत ही 1872 में ‘विशेष विवाह अधिनियम’ तथा 1856 में विधवा-पुनर्विवाह अधिनियम बना। इन अधिनियमों के आधार पर ही विधवा पुनर्विवाह एवं अंतर्जातीय विवाह को मान्यता दी गई। इनके साथ ही कई महिला संगठनों ने भी महिलाओं को शोषण से बचाने के लिए कई आंदोलन शुरू किये।

महिला आंदोलनकारियों में ऐनी बेसेंट, मैडम कामा, रामाबाई रानाडे, मारग्रेट नोबल आदि की भूमिका प्रमुख रही है। भारतीय समाज में महिलाओं को संगठित करने तथा उनमें अधिकारों के प्रति साहस दिखा सकने का कार्य अहिल्याबाई व लक्ष्मीबाई ने प्रारंभ से किया था। भारत में कर्नाटक में पंडिता रामाबाई ने 1878 में स्वतंत्रता से पूर्व पहला आंदोलन शुरू किया था तथा सरोज नलिनी की भी अहम् भूमिका रही है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व प्रचलित इन आंदोलनों के परिणामस्वरूप ही अनेक ऐसे अधिनियम पास किये गए जिनका महिलाओं की स्थिति सुधार में योगदान रहा है। महत्त्वपूर्ण इसी प्रयास के आधार पर स्वतंत्रता पश्चात् अनेक अधिनियम जिनमें 1955 का हिंदू विवाह अधिनियम, 1956 का हिंदू उत्तराधिकार का अधिनियम एवं 1961 का दहेज निरोधक अधिनियम प्रमुख रहे हैं।

इन्हीं अधिनियमों के तहत स्त्री-पुरुष को विवाह के संबंध में समान अधिकार दिये गए तथा स्त्रियों को पृथक्करण, विवाह-विच्छेद एवं विधवाओं को पुनर्विवाह की अनुमति प्रदान की गई है। इसी प्रकार संपूर्ण भारतीय समाज में समय-समय पर और भी ऐसे कई आंदोलन चलाए गए हैं जिनका एकमात्र उद्देश्य स्त्रियों को शोषण का शिकार होने से बचाना रहा है।

वर्तमान समय में स्त्री-पुरुष के समान स्थान व अधिकार पाने के लिए कई आंदोलनों के माध्यम से एक लंबा रास्ता तय करके ही पहुंच पाई है। समय-समय पर राजनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा महिला संगठनों के प्रयासों के आधार पर ही वर्तमान महिला जागृत हो पाई है।

इन सब प्रथाओं के परिणामस्वरूप ही 1975 को अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष घोषित किया गया। इसके साथ ही विभिन्न राज्यों में महिला विकास निगम [Women Development Council (WDC)] का निर्माण किया गया है जिसका उद्देश्य महिलाओं को तकनीकी सलाह देना तथा बैंक या अन्य संस्थाओं से ऋण इत्यादि दिलवाना है।

वर्तमान समय में अनेक महिलाएं सरकारी एवं गैर-सरकारी क्षेत्रों में कार्यरत हैं। आज स्त्री सभी वह कार्य कर रही है जो कि एक पुरुष करता है। महिलाओं के अध्ययन के आधार पर भी वह निष्कर्ष निकलता है कि वर्तमान समय में महिला की परिस्थिति, परिवार में भूमिका, शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता, राजनीतिक एवं कानूनी भागीदारी में काफ़ी परिवर्तन आया है।

आज महिला स्वतंत्र रूप से किसी भी आंदोलन, संस्था एवं संगठन से अपने आप को जोड़ सकती है। महिलाओं की विचारधारा में इस प्रकार के परिवर्तन अनेक महिला स्थिति सुधारक आंदोलनों के परिणामस्वरूप ही संभव हो पाये हैं। आज महिला पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित की जाती हैं तथा इसके साथ ही महिला सभाओं एवं गोष्ठियों का भी संचालन किया जा रहा है जिसका प्रभाव महिला की स्थिति पर पूर्ण रूप से सकारात्मक पड़ रहा है।

विभिन्न महिला आंदोलनों ने न केवल महिलाओं की स्थिति सुधार में ही भूमिका निभाई है, बल्कि इन आंदोलनों के आधार पर समाज में अनेक परिवर्तन भी आये हैं, अतः महिला आंदोलन सामाजिक परिवर्तन का भी एक उपागम रहा है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 8 सामाजिक आंदोलन

प्रश्न 5.
भारत में कृषक आंदोलन की भूमिका का वर्णन करो।
अथवा
कृषक आंदोलन पर एक नोट लिखिए।
अथवा
किसान आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
अथवा
किसान आंदोलन की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
कृषक या किसान आंदोलनों का संबंध किसानों तथा कृषि कार्यों के बीच पाए जाने वाले संबंधों से है। जब कृषि कार्यों को करने वालों तथा भूमि के मालिकों के बीच तालमेल ठीक नहीं बैठता तो कृषि करने वाले आंदोलनों का रास्ता अपना लेते हैं तथा यहीं से किसान आंदोलन की शुरुआत होती है। असल में यह आंदोलन किसानों के शोषण के कारण होते हैं। इनका मूल आधार वर्ग संघर्ष है तथा यह श्रमिक आंदोलन से अलग हैं।

डॉ० तरुण मजूमदार ने इसकी परिभाषा देते हुए कहा है कि, “कृषि कार्यों से संबंधित हरेक वर्ग के उत्थान तथा शोषण मुक्ति के लिए किए गए साहसी प्रयत्नों को कृषक आंदोलन की श्रेणी में रखा गया है।” इन आंदोलनों का महत्त्वपूर्ण आधार कृषि व्यवस्था होती है। भूमि व्यवस्था की विविधता तथा कृषि संबंधों ने खेतीहार वर्गों के बीच एक विस्तृत संरचना का विकास किया है। यह संरचना अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग रही है। भारत में खेतीहार वर्ग को तीन भागों में बांट सकते हैं-

  • मालिक (Owner)
  • किसान (Farmer)
  • मज़दूर (Labourer)

मालिक को भूमि का मालिक या भूपति भी कहते हैं। संपूर्ण भूमि का मालिक यही वर्ग होता है जिस पर खेती का ार्य होता है। किसान का स्थान भूपति के बाद आता है। किसान वर्ग में छोटे-छोटे भूमि के टुकड़ों के मालिक तथा ‘श्तकार होते हैं। यह अपनी भूमि पर स्वयं ही खेती करते हैं। तीसरा वर्ग मज़दूर का है जो खेतों में काम करके वेका कमाता है। इस वर्ग में भूमिहीन, कृषक, ग़रीब काश्तकार तथा बटईदार आते हैं। किसान आंदोलन अनेकों कारणों की वजह से अलग-अलग समय पर शुरू हुए।

औद्योगीकरण के कारण जब हार मज़दूरों की जीविका पर असर पड़ता है तो आंदोलनों की मदद से खेतीहार मज़दूर विरोध करते हैं। इसके थ ही खेती से संबंधित चीज़ों के दाम बढ़ने, मालिकों द्वारा ज्यादा लाभ प्राप्त करने के लिए विशेष प्रकार की खेती रवाना, अधिकारियों की नीतियां तथा शोषण की आदत का पाया जाना, खेतीहार मज़दूरों को बंधुआ मज़दूर रख र उनसे अपनी मर्जी का कार्य करवाना आदि ऐसे कारण रहे हैं जिनकी वजह से कृषक आंदोलन शुरू हुए।

किसान आंदोलनों की शुरुआत-19वीं शताब्दी से इन आंदोलनों की शुरुआत की गई थी जब अंग्रेज़ सरकार ने पने आपको कृषि व्यवस्था के साथ जोड़ा। 19वीं शताब्दी में ही अंग्रेजों के विरुद्ध संथाल विद्रोह हुआ। 1875 साहूकारों के दंगे, अवध विद्रोह तथा पंजाब में साहूकारों के विरोध में किसानों के संघर्ष ने किसान आंदोलन का प ले लिया। 1917-18 में गांधी जी ने किसानों तथा श्रमिकों के लिए अहिंसा का रास्ता अपनाया। 1923 किसान संगठनों तथा कृषक श्रम संघों का निर्माण हुआ।

उत्तर प्रदेश, बंगाल तथा पंजाब में किसान सभाओं का कास हुआ। गुजरात में 1928-29 में तथा 1930-31 में किसानों तथा श्रमिकों के बीच संघर्ष हुआ। पहला र्ष सरदार पटेल की मदद से किया गया जिस वजह से सरकार को उनकी मांगों को मानना पड़ा था। 1937 से लेकर 46 तक के समय में जागीरदार, ज़मींदार तथा बड़े भूपतियों के विरुद्ध अनेक आंदोलन शुरू किए गए। मैसूर तथा कसान आंदोलन, राजाओं, महाराजाओं तथा स्थानीय ठाकुरों के विरुद्ध हुए। उड़ीसा, उदयपुर, ग्वालियर जयपुर में हुए आंदोलन भारतीय कृषक आंदोलन के इतिहास में महत्त्वपूर्ण आंदोलन रहे हैं।

आजादी के बाद भी सरकार के अनेक प्रयासों के बावजूद भी कृषकों तथा कृषि श्रमिकों की समस्याएं कोई कम नहीं हो पाई हैं जिसके परिणामस्वरूप देश के अलग-अलग भागों में कृषक आंदोलनों की संख्या बढ़ी है। हैदराबाद तेलंगाना जिले में अखिल भारतवर्षीय किसान सभा ने आज़ादी की प्राप्ति के दौरान संघर्ष किया।

इसके साथ ही और अनेकों आंदोलन जैसे बिहार कृषक आंदोलन, उत्तर प्रदेश कृषक आंदोलन, दक्षिण भारत कृषक आंदोलन, बंगाल कृषक आंदोलन, महाराष्ट्र कृषक आंदोलन, राजस्थान कृषक आंदोलन मुख्य रहे हैं। इन सब आंदोलनों का उद्देश्य किसानों के हितों की रक्षा करना तथा शोषण का विरोध करना था। इन आंदोलनों का एकमात्र उद्देश्य किसानों को शोषण मुक्त करना तथा सामाजिक व आर्थिक न्याय दिलवाना रहा है।

प्रश्न 6.
कामगारों के आंदोलन का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
कामगारों का आंदोलन तथा कृषक आंदोलन वर्ग पर आधारित दो महत्त्वपूर्ण आंदोलन रहे हैं। भारतवर्ष में कारखानों के आधार पर उत्पादन सन् 1860 से प्रारंभ हुआ था। औपनिवेशिक शासन काल में यह व्यापार का एक सामान्य तरीका था जिसमें कच्चे माल का उत्पादन भारतवर्ष में किया जाता था।

कच्चे माल से वस्तुएं निर्मित की जाती थीं तथा उन्हें उपनिवेश में बेचा जाता था। प्रारंभिक काल में इन कारखानों को बंदरगाह वाले शहरों जैसे बंबई एवं कलकत्ता में स्थापित किया गया तथा उसके पश्चात धीरे-धीरे यह कारखाने मद्रास इत्यादि बड़े शहरों में भी स्थापित कर दिए गए।

औपनिवेशक काल के प्रारंभ में सरकार ने मजदूरों के कार्यों एवं वेतन को लेकर किसी भी प्रकार की कोई योजना नहीं बनाई थी जिसके फलस्वरूप उस काल में मज़दूरी बहुत सस्ती थी। लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ कामगारों ने अपने शोषण को देखते हुए सरकार का विरोध करना शुरू कर दिया था अर्थात् मज़दूर संघ भी विकसित हुए लेकिन विरोध पहले से ही प्रारंभ हो चुका था। देश में कुछ एक राष्ट्रवादी नेताओं ने उपनिवेश विरोधी आंदोलनों में मज़दूरों को भी शामिल करना प्रारंभ कर दिया था।

देश में युद्ध के समय उद्योगों का बड़े स्तर पर विकास तो हुआ लेकिन इसके साथ ही साथ वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हो गई जिससे लोगों को खाने की भी कमी हो गई। परिणामस्वरूप हड़तालें होने लगी तथा बड़े-बड़े उद्योग एवं मिलें बंद हो गईं जैसे बंबई की कपड़ा मिल, कलकत्ता में पटसन कामगारों ने भी अपना काम बंद कर दिया। इसी तरह अहमदाबाद की कपड़ा मिल के कामगारों ने भी 50% वेतन वृद्धि की माँग को लेकर अपना काम बंद कर दिया।

कामगारों के इस विरोध को देखते हुए अनेक मज़दूर संघ स्थापित हुए। देश में पहला मजदूर संघ सन् 191 में बी० पी० वाडिया के प्रयास से स्थापित हुआ। उसी वर्ष महात्मा गांधी ने भी टेक्साइल लेबर एसोसिएशन (र्ट एल० ए०) की भी स्थापना की। इसी तर्ज पर सन् 1920 में बंबई में ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (All Inc Trade Union Congress), (ए० आई० ई० टी० सी०, एटक) की स्थापना भी की गई। एटक संगठन के सा विभिन्न विचारधाराओं वाले लोग संबंधित हुए जिसमें साम्यवादी विचारधारा मुख्य थी और इन विचारधाराओं वे समर्थक राष्ट्रवादी नेता जैसे लाला लाजपत राय तथा पं० जवाहर लाल नेहरू जैसे लोग भी शामिल थे।

एटक एक ऐसा संगठन उभर कर सामने आया जिसने औपनिवेशिक सरकार को मज़दूरों के प्रति व्यवहार को लेकर जागरूक कर दिया तथा फलस्वरूप कुछ रियासतों के आधार पर मज़दूरों में पनपे असंतोष को कम करने क प्रयास किया। इसके साथ ही सरकार ने सन् 1922 में चौथा कारखाना अधिनियम पारित किया जिसके अंतर्गत मज़दूरों की कार्य अवधि को घटाकर दस घंटे तक निर्धारित कर दिया। सन् 1926 में मजदूर संघ अधिनियम के तहत मजदूर संघों के पंजीकरण का भी प्रावधान किया गया। ब्रिटिश शासन काल के अंत तक कई संघों की स्थापन हो चुकी थी तथा साम्यवादियों ने एटक पर काफी नियंत्रण भी पा लिया था।

राष्ट्रीय स्तर पर कामगार वर्ग के आंदोलन के फलस्वरूप स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् क्षेत्रीय दलों ने भी अपने स्व के कई संघों का निर्माण करना प्रारंभ कर दिया। सन् 1966-67 जो कि अर्थव्यवस्था में मंदी का दौर था उत्पादन एवं रोजगार दोनों में कमी आई जिसके परिणामस्वरूप सभी ओर (असंतोष ही असंतोष था)।

इसके उदाहरण सामने थे जैसे 1974 में रेल कर्मचारियों की बहुत बड़ी हड़ताल, 1975-77 में आपात्काल के दौ सरकार ने मज़दूर संघों की गतिविधियों पर रोक लगा दी। धीरे-धीरे भूमंडलीकरण के प्रभाव के परिणामस्व कामगारों की स्थिति में काफ़ी परिवर्तन हो रहे हैं जोकि कामगारों की स्थिति में सुधारात्मक परिवर्तन हैं। इन सुधारात्मक परिवर्तनों के परिणामस्वरूप ही देश की अर्थव्यवस्था को एक मज़बूत आधार मिल सकता है।

प्रश्न 7.
पर्यावरण संबंधित आंदोलन का संक्षिप्त वर्णन दें।
अथवा
पर्यावरण आंदोलनों का वर्णन करें।
अथवा
पर्यावरण आंदोलनों के अर्थ की व्याख्या करें।
अथवा
किसी पर्यावरणीय आंदोलन का वर्णन करें।
उत्तर:
पर्यावरणीय आंदोलनों के बारे में जानने से पहले हमें पारिस्थितिकी का अर्थ जान लेना आवश्यक है। पारिस्थितिकी विज्ञान की वह शाखा है जो जीवन की किस्मों की एक-दूसरे के साथ और अपने आस-पास के साथ संबंधों के बारे में संबंधित है। पारिस्थितिकी पर्यावरण क्षेत्र में किसी भी एक संतुलित व्यवस्था की स्थिति को दिखलाती है। किसी भी पर्यावरण में जितनी भी वस्तुएं सजीव या निर्जीव होती हैं वे एक-दूसरे से संयोग करती हैं जिससे एक संतुलित व्यवस्था बनी रहती है।

आधुनिक समय में विकास पर अत्यधिक जोर दिया जा रहा है। विकास की बढ़ती माँग के कारण प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक शोषण एवं अनियंत्रित उपयोग के कारणों के फलस्वरूप विकास के ऐसे प्रतिमान पर चिंता प्रकट की जा रही है। वर्तमान समय में यह माना जाता रहा है कि विकास से सभी वर्गों के लोगों को लाभ पहुंचेगा परंतु वास्तव में बड़े-बड़े उद्योग धंधे कृषकों को उनकी आजीविका तथा घरों दोनों से दूर कर रहे हैं। उद्योगों के उत्तरोत्तर विकास के बढ़ने के कारण औद्योगिक प्रदूषण जैसी भयंकर समस्या सामने आ रही है।

औद्योगिक प्रदूषण प्रभाव को देखते हुए इससे बचाव कैसे किया जा सकता है। इसके लिए अनेक पारिस्थितिकीय आंदोलन शुरू हुए। न आंदोलनों में चिपको आंदोलन मुख्य आंदोलन रहा है। चिपको आंदोलन हिमालय की तलछटी में पारि दोलन का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है। यह आंदोलन लोगों की विचारधाराओं एवं मिश्रित हितों का एक ज्वलंत हरण है। सन् 1970 में अनपेक्षित भारी वर्षा के कारण बाढ़ आ गई जिससे अलकनंदा घाटी की 100 वर्ग लोमीटर भूमि पानी में डूब गई। इस बाढ़ के कारण सैंकड़ों घर, व्यक्ति तथा पशु पानी में बह गए।

जान-माल की यधिक तबाही के कारण पूरा क्षेत्र शोक में डूब गया। इसी दौरान गाँववासी जिन्होंने बाढ़ की मार को झेला था वनों ‘ अंधाधुंध कटाई, भूस्खलन एवं बाढ़ के बीच संबंध को धीरे-धीरे समझने लगे। गाँववासियों ने देखा कि जो गाँव न जंगलों के अधिक समीप थे जिन वनों की कटाई कर दी गई थी वो भूस्खलन से अधिक प्रभावित हुए, उन गाँवों। अपेक्षा जो कटाई रहित वनों के समीप थे।

इस प्रकार बाढ़ के प्रभाव को देखते हुए गाँववासियों ने वनों की कटाई को रोकने के लिए आवाज़ उठानी शुरू र दी। प्रारंभिक विरोधों के बावजूद भी सरकार ने जंगलों की वार्षिक नीलामी कर दी। इस आंदोलन में गांववासियों एकता का सबूत दिया। जब ठेकेदार के आदमी अपने उपकरणों सहित जंगल की कटाई के लिए जा रहे थे तो गांव ‘महिलाओं ने इसका विरोध किया तथा मजदूरों से कटाई कार्य न शुरू करने की प्रार्थना की। शुरू में तो उन्हें काफ़ी ‘स्कार भी सहना पड़ा लेकिन अंततः मज़दूर लोगों को खाली हाथ ही वापिस जाना पड़ा। चिपको आंदोलन की तरह ही कई पारिस्थितिकीय आंदोलन विकसित हुए जिनका एकमात्र उद्देश्य पर्यावरण कोण रहित बनाना रहा है।

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