HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Important Questions Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. भारत में औद्योगीकरण की नींव किसने रखी थी?
(A) अंग्रेजों ने
(B) मुग़लों ने
(C) भारत सरकार ने
(D) पुर्तगालियों ने।
उत्तर:
अंग्रेजों ने।

2. इनमें से कौन-सा भारत का प्रथम आधुनिक उद्योग था?
(A) रूई, जूट
(B) कोयला खाने
(C) रेलवे
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

3. 1991 में कुल कार्यकारी जनसंख्या में से कितने लोग बड़े उद्योगों में नौकरी कर रहे थे?
(A) 35%
(B) 28%
(C) 40%
(D) 38%
उत्तर:
28%

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4. 1991 में लोग छोटे पैमाने के एवं परंपरागत उद्योगों में कार्यरत् थे?
(A) 40%
(B) 62%
(C) 72%
(D) 80%
उत्तर:
72%

5. 1990 के बाद भारत सरकार ने ………………… की नीति को अपनाया है।
(A) पश्चिमीकरण
(B) उदारीकरण
(C) सरकारी नियंत्रण
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
उदारीकरण।

6. सार्वजनिक कंपनियों को निजी क्षेत्र की कंपनियों को बेचने की प्रक्रिया को क्या कहते हैं?
(A) विनिवेश
(B) उदारीकरण
(C) विश्वव्यापीकरण
(D) औद्योगीकरण।
उत्तर:
विनिवेश।

7. निजीकरण की जाने वाली पहली सार्वजनिक कंपनी कौन-सी थी?
(A) नाल्को
(B) वी० एस० एन० एल०
(C) माडर्न फूड
(D) आई० पी० सी० एल०
उत्तर:
मार्डन फूड।

8. औद्योगीकरण का क्या नुकसान होता है?
(A) प्रदूषण का बढ़ना
(B) कुटीर उद्योगों का ख़ात्मा
(C) बेरोज़गारी का बढ़ना
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
उपर्युक्त सभी।

9. इनमें से कौन मशीनों के प्रति पागलपन का विरोधी था?
(A) महात्मा गाँधी
(B) जवाहर लाल नेहरू
(C) सुभाष चंद्र बोस
(D) इंदिरा गाँधी।
उत्तर:
महात्मा गाँधी।

10. टेलरिज्म का आविष्कारक कौन था?
(A) ऐल्फरिड टेलर
(B) फ्रेडरिक विनस्लो टेलर
(C) मार्लिन टेलर
(D) आर्कराइट।
उत्तर:
फ्रेडरिक विनस्लो टेलर।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
असंगठित अथवा अनौपचारिक क्षेत्र का क्या अर्थ है?
उत्तर:
असंगठित अथवा अनौपचारिक क्षेत्र का अर्थ उन श्रमिकों या कामगारों से है जो रोजगार के अस्थायी स्वरूपों, निरक्षरता, अज्ञानता, बिखरे हुए तथा छोटे उद्योगों जैसे कुछेक कारणों के कारण अपने साझे हितों के लिए अपने आपको संगठित करने में असमर्थ होते हैं। हमारे देश में 90% के लगभग लोग असंगठित क्षेत्र में कार्य करते हैं।

प्रश्न 2.
लघु उद्योग से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सरकार ने लघु उद्योगों को उसमें निवेश किए जाने वाले पैसे या पूँजी की मात्रा के अनुसार परिभाषित किया है। आजकल के समय में जिस उद्योग में 1 करोड़ तक का निवेश किया गया है उसे लघु उद्योग कहा जाता है। 1950 में यह सीमा पाँच लाख रुपये थी।

प्रश्न 3.
सरकार लघु उद्योगों को कैसे प्रोत्साहित करती है?
उत्तर:

  • लघु उद्योगों को कम ब्याज पर ऋण प्रदान किया जाता है।
  • लघु उद्योगों के द्वारा उत्पादित कुछ वस्तुओं को कर मुक्त रखा गया है।
  • देश में औदयोगिक बस्तियों या Focal Points की अलग-अलग शहरों में स्थापना की गई है ताकि लघु उद्योगों को विकसित किया जा सके।

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प्रश्न 4.
औदयोगिक क्षेत्र में अलगाव की स्थिति से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आजकल औद्योगिक क्षेत्र में श्रम विभाजन का काफ़ी महत्त्व है। श्रम विभाजन के कारण व्यक्ति को एक ही कार्य बार-बार करना पड़ता है। इससे उस व्यक्ति की और चीज़ उत्पादित करने की क्षमता खत्म हो जाती है तथा वह किसी और कार्य को नहीं कर पाता है इसे ही अलगाव कहा जाता है।

प्रश्न 5.
औद्योगीकरण का आपसी संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
लोग गाँवों में परिवारों को छोड़कर उद्योगों में कार्य करने के लिए नगरों की तरफ भागते हैं। कार्य मिलने के पश्चात् वह अपनी पत्नी व बच्चों को भी शहर में बुला लेते हैं। इससे गांवों के संयुक्त परिवार टूट जाते हैं तथा रिश्तेदारों में दूरियां भी बढ़ जाती हैं।

प्रश्न 6.
संरक्षण की नीति किस मान्यता पर आधारित है?
उत्तर:
एक मान्यता यह है कि विकसित देशों के उत्पाद की तुलना में देशी उत्पाद उनका सामना नहीं कर पाएंगे। इसलिए घरेलू उद्योगों को अगर कुछ समय के लिए संरक्षण दे दिया जाए तो वह विकसित देशों के उत्पादों के सामने खड़े हो पाएंगे। इसलिए उन्हें सरकार की तरफ से संरक्षण दे दिया जाता है। संरक्षण की नीति इस मान्यता पर आधारित है।

प्रश्न 7.
विनिवेश क्या है?
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था में कुछ सार्वजनिक उद्यम होते हैं जिन पर सरकार का नियंत्रण होता है। जब सरकार इन सार्वजनिक उद्योगों में अपना हिस्सा किसी निजी उद्योग या व्यक्ति को बेचकर उससे अलग हो जाती है तो इसे विनिवेश कहा जाता है। उदाहरण के लिए NALCO, IPCL, VSNL इत्यादि।

प्रश्न 8.
मज़दूर संघ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
किसी भी उद्योग, मिल या कारखाने में कार्य करने वाले मजदूरों के हितों की रक्षा करने के लिए सभी मजदूर इकट्ठे होकर एक संघ का निर्माण करते हैं जिसे मज़दूर संघ कहा जाता है। उद्योग के सभी मज़दूर इसके सदस्य होते हैं।

प्रश्न 9.
आउटसोर्सिंग सर्विस से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब आउटसोर्सिंग कंपनी किसी कार्य को सस्ती दर पर विकासशील देशों की छोटी कंपनियों से करवाती है तो इसे आउटसोर्सिंग सर्विस कहा जाता है। बहुत-सी बहुराष्ट्रीय कंपनियां आजकल भारत में ऐसे ही कार्य करवा रही हैं।

प्रश्न 10.
बड़े उद्योग की कोई एक विशेषता दें।
उत्तर:

  1. बड़े उद्योग में उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है तथा उस उत्पादन का वितरण भी बड़े पैमाने पर होता है।
  2. बड़े उद्योग में अधिक उत्पादन के लिए मशीनों का प्रयोग किया जाता है तथा श्रमिकों के स्थान पर मशीनों से कार्य लिया जाता है।

प्रश्न 11.
लघु उद्योग की एक उदाहरण दें।
उत्तर:
हथकरघा उद्योग, घरों में साबुन तैयार करना, चटाई इत्यादि तैयार करना लघु उद्योग की उदाहरण हैं।

प्रश्न 12.
लघु उद्योग किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह उद्योग जो घरों से शुरू हो सकते हैं, जिन्हें लगाने में अधिक पूँजी की आवश्यकता नहीं होती तथा जिनमें मशीनों के स्थान पर व्यक्तिगत श्रम का अधिक महत्त्व होता है उन्हें लघु उद्योग कहा जाता है।

प्रश्न 13.
बड़े उद्योग की एक उदाहरण दें।
उत्तर:
कार बनाने की फैक्ट्री, स्कूटर-मोटरसाइकिल बनाने की फैक्ट्री, कपड़ा उद्योग, लोहा उद्योग इत्यादि बड़े उद्योग की उदाहरण हैं।

प्रश्न 14.
निजीकरण का संबंध कौन-सी नीति से है?
उत्तर:
निजीकरण का संबंध सरकारी संपत्तियों को निजी हाथों में सौंपने से है।

प्रश्न 15.
‘वर्ग’ कैसी सामाजिक व्यवस्था है?
उत्तर:
वर्ग एक खुली हुई सामाजिक व्यवस्था है जिसे कभी भी परिवर्तित किया जा सकता है।

प्रश्न 16.
सामाजिक वर्ग का क्या अर्थ है?
उत्तर:
सामाजिक वर्ग एक ऐसे व्यक्तियों का समूह होता है जिनमें किसी न किसी आधार पर कोई न कोई समानता अवश्य होती है।

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प्रश्न 17.
पूँजीवाद किसे कहते हैं?
उत्तर:
पूँजीवाद अर्थव्यवस्था का एक प्रकार है जिसमें सभी कुछ व्यक्तिगत हाथों में निर्भर होता है तथा सरकार की भागीदारी न के बराबर होती है।

प्रश्न 18.
श्रम विभाजन क्या है?
उत्तर:
श्रम विभाजन एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें कार्यों का बँटवारा होता है या अलग-अलग लोग अलग-अलग कार्य करने में माहिर होते हैं।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र ने औद्योगीकरण की शुरुआती दशा में कौन-से कार्य किए थे?
उत्तर:
जब औद्योगीकरण एक नयी धारणा थी तथा जब मशीनों ने एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया था उस समय समाजशास्त्र ने कई महत्त्वपूर्ण कार्य किए थे। कार्ल मार्क्स, मैक्स वैबर तथा एमील दुर्खाइम जैसे समाजशास्त्रियों ने तो उद्योगों से संबंधित कई संकल्पों के साथ अपने आपको जोड़ा। यह थी नगरीकरण जिन आमने-सामने के उन संबंधों को बदला जोकि ग्रामीण समाजों में मिलते थे। ग्रामीण समाज के लोग अपने या जान पहचान के भूमि मालिकों के खेतों में कार्य करते थे, उन संबंधों की जगह आधुनिक कारखाने तथा कार्यस्थलों के अज्ञात व्यावसायिक संबंध सामने आ गए।

औद्योगीकरण के कारण विस्तृत श्रम विभाजन सामने आता है। लोगों को संपूर्ण उत्पादन के एक छोटे से पुर्जे को बनाना होता है जिस कारण वह कार्य का अंतिम रूप नहीं देख पाते हैं। चाहे यह कार्य बार-बार होता है तथा थकावट वाला होता है परंतु यह बेरोज़गार होने से अच्छा होता है। मार्क्स के अनुसार यह स्थिति अलगाव की होती है। इसमें लोग अपने कार्य से खुश नहीं होते। उनकी जीविका भी इस बात पर निर्भर करती है कि मशीनें मानवीय श्रम के लिए कितना काम छोड़ती हैं।

प्रश्न 2.
औद्योगीकरण के समाज पर क्या प्रभाव पड़ते हैं?
उत्तर:

  1. श्रम विभाजन-औदयोगीकरण के समाज में श्रम विभाजन उत्पन्न हआ जिसमें किसी चीज़ का उत्पादन कई चरणों में होता है। हरेक व्यक्ति अलग-अलग कार्य करता है।
  2. यातायात के साधनों का विकास-इसके कारण यातायात के साधन विकसित हो गए । कच्चे माल को लाने तथा उत्पादित माल को बाज़ार तक पहुँचाने के लिए यह साधन विकसित हुए।
  3. उत्पादन का बढ़ना-इस कारण उत्पादन घरों से निकल कर फैक्टरियों में आ गया जहां उत्पादन मशीनों के साथ होता है। मशीनें उत्पादन तेजी से करती हैं जिससे उत्पादन बढ़ गया।
  4. जाति प्रथा का कम होना-उद्योगों में अलग-अलग जातियों के लोग इकट्ठे मिल कर कार्य करते हैं, इससे जाति प्रथा का प्रभाव कम हो गया।

प्रश्न 3.
भारत में स्वतंत्रता के प्रारंभिक वर्षों में औद्योगीकरण की दशा का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत के प्रथम आधुनिक उद्योग रूई, जूट, कोयला खाने तथा रेलवे थे। स्वतंत्रता के बाद सरकार ने की पर बल दिया। इसमें सुरक्षा, ऊर्जा खनन, परिवहन तथा संचार और कई अन्य परियोजनाओं को शामिल किया जिन्हें सरकार कर सकती थी। यह निजी क्षेत्र के उद्योगों की प्रगति के लिए भी ज़रूरी था। सरकारी मिश्रित आर्थिक नीति में सरकार लाइसेंसिग नीति से यह सुनिश्चित करने की कोशिश करती है कि यह उद्योग अलग-अलग भागों में फैले हों।

स्वतंत्रता के बाद यह बड़े शहरों से निकल कर बड़ौदा, कोयंबटूर, बैंगलोर, पूना, फरीदाबाद, राजकोट जैसे शहरों में फैल गए। सरकार कई और छोटे पैमाने के उद्योगों को सहायता देकर प्रोत्साहित कर रही है। कई वस्तुएं जैसे कि कागज़, लकड़ी का सामान, लेखन सामग्री, शीशा, चीनी मिट्टी जैसे छोटे पैमाने के क्षेत्रों के लिए आरक्षित थे। 1991 तक कुल कार्यकारी जनसंख्या में से सिर्फ 28% ही बड़े उद्योगों में कार्य करते थे। 72% लोग छोटे व परंपरागत उद्योगों में कार्य करते थे।

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प्रश्न 4.
भूमंडलीकरण व उदारीकरण से भारतीय उद्योगों में क्या परिवर्तन आए?
उत्तर:

  1. भारतीय उद्योग विदेशी निवेश के लिए खोल दिए गए तथा विदेशी कंपनियों ने भारतीय उद्योगों का अधिग्रहण करना शुरू कर दिया।
  2. भारतीय दुकानों पर विदेशी माल आसानी से उपलब्ध होने लग गया जो पहले उपलब्ध नहीं होता था।
  3. सरकार ने सार्वजनिक कंपनियों का विनिवेश करके उन्हें निजी उद्योगों को बेचना शुरू कर दिया। निजी उद्योगों ने सरकारी कर्मचारियों की छंटनी शुरू कर दी।
  4. अधिकांश कंपनियों ने अपने स्थायी कर्मचारियों की छंटनी करके अपने कार्य बाहरी स्रोतों जैसे कि छोटी कंपनियों से करवाने शुरू कर दिए।

प्रश्न 5.
आजकल लोग किस तरह काम पाते हैं?
उत्तर:
आजकल फैक्ट्री में कामगारों को रोजगार देने का तरीका भिन्न होता है। आजकल काम दिलाने वालों का महत्त्व कम हो गया है। यूनियन तथा कार्यकारिणी दोनों ही अपने लोगों को काम दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कुछ कामगार यह भी चाहते हैं कि उनके बच्चों को उनका कार्य दे दिया जाए।

बहुत-सी फैक्ट्रियों में बदली कामगार होते हैं, जोकि छुट्टी पर गए श्रमिकों की जगह कार्य करते हैं। बहुत से बदली श्रमिक एक ही उद्योग में काफी लंबे समय तक कार्य कर रहे होते हैं। परन्तु उन्हें सबके जैसी सुरक्षा तथा स्थायी पद नहीं दिया जाता। इसे संगठित क्षेत्र में अनुबंधित कार्य कहते हैं।

प्रश्न 6.
टेलरिज्म या औदयोगिक इंजीनियरिंग व्यवस्था का क्या अर्थ है?
उत्तर:
इस व्यवस्था में कार्य को छोटे-से-छोटे पुनरावृत्ति तत्त्वों में तोड़कर श्रमिकों में बाँट दिया जाता था। कामगारों को निश्चित समय में कार्य को खत्म करना ही पड़ता था। इसके लिए स्टाप वाच की सहायता भी ली जाती थी। कार्य को जल्दी खत्म करने के लिए असैंबली लाइन सामने आयी।

हरेक श्रमिक को कन्वेयर बेल्ट के साथ बैठकर अंतिम उत्पाद के केवल एक पुर्जे को उसमें जोड़ना था। कार्य करने की गति को बेल्ट की गति के साथ व्यवस्थित किया गया। 1980 के दशक में प्रत्यक्ष नियंत्रण की जगह अप्रत्यक्ष नियंत्रण की व्यवस्था की गई थी जहां कामगारों को प्रेरित तथा प्रबोधित करने का प्रावधान था। परंतु हम कभी-कभी ही इस पुरानी टेलरिज्म प्रक्रिया को बचा हुआ पाते हैं।

प्रश्न 7.
औद्योगीकरण का श्रमिकों पर क्या नकारात्मक प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:

  1. अधिक मशीनों वाले उद्योगों में कम लोगों को काम दिया जाता है परंतु जो भी होते हैं उन्हें भी मशीनी गति से कार्य करना पड़ता है जिससे उनमें काम के प्रति लगाव नहीं रहता।
  2. कामगारों को कार्य करने के समय के दौरान विश्राम का काफ़ी कम समय मिलता है जिस कारण वह 40 वर्ष तक पहुँचते-पहुँचते बुरी तरह थक जाता है तथा स्वैच्छिक अवकाश ले लेता है।
  3. कंपनियां बाहरी स्रोतों से कार्य करवाती है। अगर सप्लाई समय पर नहीं आती तो कामगारों में तनाव आ जाता है तथा अलगाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  4. सप्लाई न आने की स्थिति में उत्पादन का लक्ष्य देर से होता है और जब वह आ जाता है तो उसे रखने के लिए उन्हें भाग दौड़ करनी पड़ती है। ऐसा करने में वह पूरी तरह निढाल हो जाते हैं।

प्रश्न 8.
भारत में उद्योगों की विभाजित श्रेणियों की व्याख्या करें।
उत्तर:
1956 में बनी भारतीय औद्योगिक नीति के अनुसार भारतीय उद्योगों को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है तथा वह हैं-

  1. प्रथम श्रेणी-इस श्रेणी से सुरक्षा से संबंधित उद्योग, रेल यातायात, डाकघर, परमाणु शक्ति के उत्पादन तथा नियंत्रण जैसे उद्योग रखे गए थे। केंद्र सरकार ही इनके संचालन तथा विकास को संभालती है।
  2. द्वितीय श्रेणी-12 उद्योग जैसे कि मशीनें, औजार, दवाएं, रबड़, जल यातायात, उवर्रक, सड़क यातायात इत्यादि इस श्रेणी में रखे गए थे। इनके विकास में सरकार अधिक हिस्सा डालेगी।
  3. तृतीय श्रेणी-इस श्रेणी में वह सभी उद्योग शामिल किए गए जो निजी क्षेत्र के लिए रखे गए थे। चाहे निजी क्षेत्र इनका विकास करते हैं परंतु सरकार चाहे तो इनकी स्थापना भी कर सकती है।

प्रश्न 9.
खानों में किस प्रकार मजदूरों का शोषण होता है?
उत्तर:

  1. छोटी तथा खुली खानों में नियमों का पालन नहीं किया जाता। मजदूरों को ठेकेदारी व्यवस्था के अंतर्गत रखा जाता है तथा उन्हें बराबर वेतन नहीं दिया जाता।
  2. ठेकेदार मजदूरों का रजिस्टर भी ठीक नहीं रखते। दुर्घटना होने की स्थिति में ठेकेदार मज़दूरों को किसी भी प्रकार का लाभ नहीं देते हैं।
  3. खानों में भूमि के नीचे जाकर कार्य करना पड़ता है जिस कारण गैसों के उत्सर्जन तथा ऑक्सीजन के बंद होने से कामगारों को साँस से संबंधित बीमारियां भी हो जाती हैं।
  4. खान के फटने या किसी चीज़ के गिरने से उन्हें चोट का सामना करना पड़ता है परंतु कोई उनका इलाज नहीं करता।

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निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
1992 में बंबई की एक मिल में हड़ताल हुई। इस हड़ताल के बारे में दिए गए परिच्छेद को पढ़ें तथा उसके बाद दिए गए प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दें-
उत्तर:
जय प्रकाश भिलारे-मिल के भूतपूर्व कामगारः महाराष्ट्र गिरनी कामगार संघ के महासचिवः कपड़ा मिल के कामगार केवल अपना वेतन और महँगाई भत्ता लेते हैं इसके अलावा उन्हें कोई और भत्ता नहीं मिलता। हमें केवल पाँच दिन का आकस्मिक अवकाश मिलता है। दूसरे उद्योगों के कामगारों को अन्य भत्ते जैसे यातायात, स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएँ इत्यादि मिलने शुरू हो गए साथ ही 10-12 दिन का आकस्मिक अवकाश भी।

इससे कपड़ा मिल के कामगार भड़क गए…… 22 अक्तूबर, 1981 को स्टैंडर्ड मिल के कामकार डॉ० दत्ता सामंत के घर गए और उनसे अपनी अगुआई करने को कहा। पहले सामंत ने मना कर दिया, उन्होंने कहा कि कपड़ा मिलें बी०आई०आर०ए० के अंतर्गत आती हैं, और मुझे इसके बारे में अधिक जानकारी भी नहीं है। परंतु ये कामगार किसी भी हालत में ना नहीं सुनना चाहते थे। वे रात भर उनके घर के बाहर चौकसी करते रहे और अंत में सुबह सामंत मान गए।

लक्ष्मी भाटकर-हड़ताल की सहभागीः मैंने हड़ताल का समर्थन किया। हम रोज़ाना गेट के बाहर बैठ जाते थे और सलाह करते थे कि आगे क्या करना होगा। हम समय-समय पर संगठित होकर मोर्चे भी निकालते थे…….. मोर्चे बहुत बड़े हुआ करते थे……. हमने कभी किसी को लूटा या चोट नहीं पहुँचाई मुझे कभी-कभी बोलने के लिए कहा गया, लेकिन मैं भाषण नहीं दे सकती। मेरे पाँव बुरी तरह काँपने लगते हैं। इसके अलावा मैं अपने बच्चों से भी डरती हूँ-वो क्या कहेंगे?

वो सोचेंगे कि यहाँ हम भूखे मर रहे हैं और वो वहाँ अपना फोटो अखबार में छपवा रही है…….. एक बार हमने सेंचुरी मिल के शोरूम की तरफ़ भी मोर्चा निकाला। हमें गिरफ्तार करके बोरीवली ले जाया गया। मैं अपने बच्चों के बारे में सोच रही थी। मैं खाना नहीं खा पाईं मैं अपने बारे में सोचने लगी कि हम लोग कोई अपराधी नहीं, मिल के कामगार हैं। हम अपने खून पसीने की कमाई के लिए लड़ रहे हैं?

किसन सालुंके-स्पिन मिल्स का भूतपूर्व कामगारः सेंचुरी मिल में हड़ताल शुरू हुए मुश्किल से डेढ़ महीना ही हुआ होगा कि आर०एम०एम०एस० वालों ने मिल खुलवा दी। वे ऐसा कर सकते हैं क्योंकि उन्हें राज्य और सरकार दोनों का समर्थन प्राप्त है। वे बाहर के लोगों को बिना उनके बारे में पूरी तरह जाने मिल के अंदर ले आए……. भोसले (तब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री) ने 30 रुपए बढ़ाने की पेशकश की।

दत्ता सामंत ने इस विषय पर विचार करने के लिए मीटिंग बुलाई आगे के सारे क्रियाकलाप यहीं होते थे। हमने कहा, ‘हमें यह नहीं चाहिए’। अगर हड़ताल के नेताओं के पास कोई मर्यादा, कोई बातचीत नहीं है, हम बिना किसी उत्पीड़न के काम पर वापस जाने के लिए तैयार नहीं हैं।

दत्ता इसवालकर-मिल चाल्स टेनैंट एसोसिएशन के अध्यक्ष : (प्रेसीडेंट) कांग्रेस ने बाबू रेशिम, रमा नायक और अरुण गावली जैसे सभी गुंडों को स्ट्राइक खत्म करवाने के लिए जेल से बाहर कर दिया।

हमारे पास स्ट्राइक तोड़ने वालों को मारने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। हमारे लिए यह जीवन मृत्यु का प्रश्न था। भाई भोंसले-1982 की हड़ताल में आर०एम०एम०एस० के महासचिव : हमने तीन महीने की हड़ताल के बाद लोगों को वापस काम पर बुलाना शुरू कर दिया…. हम सोचते थे, कि अगर लोग काम पर जाना चाहते हैं तो उन्हें जाने देना चाहिए, वास्तव में यह उनकी सहायता ही थी….

माफिया गैंग के बीच में आ जाने के बारे में, मैं उसके लिए उत्तरदायी था….. ये दत्ता सामंत जैसे लोग सुविधाजनक समय का इंतजार कर रहे हैं, और आराम से काम पर जाने वालों का इंतज़ार कर रहे हैं। हमने परेल एवं अन्य स्थानों पर प्रतिपक्षी समूहों को तैयार किया था। स्वाभाविक रूप से वहाँ कुछ झगड़ा कुछ खूनखराबा हो सकता था…. जब रमा नायक की मृत्यु हुई तो उस वक्त के मेयर भुजबल उसके सम्मान में अपनी ऑफ़िस की कार में आए। इन लोगों की ताकतों को एक समय या अन्य अनेक लोगों द्वारा राजनीति में इस्तेमाल किया गया।

किसन सालुंके-भूतपूर्व मिल कामगार : वह मुश्किल समय था हमने अपने सारे बर्तन बेच दिए थे। हमें अपने बर्तनों को सीधा उठाकर ले जाते हुए शर्म आती थी इसलिए हम उन्हें बोरियों में लपेटकर बेचने के लिए दुकानों पर ले जाते थे। वो ऐसे दिन थे जब हमारे पास खाने के लिए पानी के अलावा कुछ नहीं था, लकड़ी के बुरादे को ईंधन की जगह जलाते थे। मेरे तीन बेटे हैं। कई बार बच्चों के पीने के लिए दूध नहीं होता था, मुझसे उनकी यह भूख बर्दाश्त नहीं होती थी। मैं अपनी छतरी लेकर घर से बाहर चला जाता था।

सिंदु मरहने-भूतपूर्व मिल कामगारः आर०एम०एम०एस० वाले और गुंडे मुझे भी जबरदस्ती काम पर वापस ले जाने के लिए आए। पर मैंने जाने से इन्कार कर दिया…. जो महिलाएँ मिल में रह कर काम कर रही थीं उनके साथ क्या हो रहा था इस बारे में तरह-तरह की अफवाहें चारों तरफ़ फैली थीं। वहाँ बलात्कार की घटनाएँ घटी थीं।

प्रश्न 2.
1. 1982 की कपड़ा मिल हड़ताल के विभिन्न परिप्रेक्ष्यों का वर्णन कीजिए।
2. कामगार हड़ताल पर क्यों गए?
3. दत्ता सामंत ने किस तरह हड़ताल की नेतागिरी स्वीकार की?
4. हड़ताल तोड़ने वालों की क्या भूमिका थी?
5. माफिया गिरोहों ने किस तरह इन स्थानों पर अपनी जगह बनाई?
6. इस हड़ताल के दौरान महिलाएँ कैसे परेशान, हुईं, और उनके मुख्य सरोकार क्या थे?
7. हड़ताल के दौरान कामगार और उनके परिवार कैसे अपने आप को बचाए रख पाए?
उत्तर:
1. 1982 की कपड़ा मिल हड़ताल के मजदूरों ने अपने वेतन, बोनस, छुट्टी इत्यादि के मुद्दों को लेकर हड़ताल की थी।

2. मिल के कामगारों ने वेतन, महँगाई भत्ते के अतिरिक्त मिलने वाली और सुविधाओं तथा भत्तों की माँग को लेकर हड़ताल की थी।

3. जब मजदूरों ने काफ़ी अधिक आग्रह किया तो ही दत्ता सामंत ने हड़ताल की नेतागिरी स्वीकार की थी।

4. हड़ताल तोड़ने वालों की इसमें काफ़ी बड़ी भूमिका थी। उन्हें सरकार तथा राज्य दोनों का ही समर्थन प्राप्त था तथा इसलिए ही उन्होंने मिल को जबरन ही खुलवा दिया था।

5. सरकार ने माफिया के गुंड़ों जैसे कि बाबू रेशिम, रमा नायक और अरुण गवली को जेल से छोड़ दिया। इन सभी ने दबाव डालकर इन स्थानों पर अपनी जगह बनाई।

6. महिलाओं को बेइज्जत किया गया, उन्हें मोर्चा निकालने के कारण जेल भेज दिया गया। महिलाओं का मुख्य सरोकार मेहनत मजदूरी करके इज्ज़त के साथ अपने बच्चों का पेट भरना था।

7. हड़ताल का समय काफ़ी मुश्किल समय था। इस समय के दौरान उन्होंने अपने घरों के बर्तन बेचे, वस्तुएं बेची ताकि वह अपने परिवारों को बचा कर रख सकें।

प्रश्न 3.
उदारीकरण की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर:
1991 में भारत में आर्थिक नीति लागू की गई। उदारीकरण, निजीकरण तथा भूमंडलीकरण इस नीति की प्रमुख विशेषताएं हैं। उदारीकरण की प्रक्रिया 20वीं शताब्दी के अंत में शुरू हुई। चाहे भारत में उदारीकरण की प्रक्रिया लगभग तीन दशक से चली आ रही है पर सरकारों में बदलाव के साथ-साथ उदारीकरण की नीतियों तथा गति में भी परिवर्तन आता रहा है। उदारीकरण के महत्त्वपूर्ण पहलू तथा विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(i) उद्योगों को लाइसेंस मुक्त करना ताकि ज्यादा-से-ज्यादा लोग निजी तौर पर पूंजी लगाकर उद्योगों का विकास कर सकें।

(ii) उदयोगों को अनावश्यक प्रतिबंधों से मुक्त करना ताकि उदयोग लगाते समय कोई झिझके न तथा उदयोगों में तेजी से प्रगति हो।

(iii) प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देना ताकि देश में विदेशी मुद्रा बढ़े तथा उद्योग ज्यादा-से-ज्यादा लग सकें।

(iv) उद्योगों को बाज़ार की ज़रूरतों के अनुसार उत्पादन करने की छूट देना ताकि मार्किट में चीज़ों के उत्पादन पर किसी एक कंपनी का एकाधिकार न हो तथा मूल्यों में बढ़ोत्तरी न हो।

(v) उद्योगों की मांग तथा अपनी क्षमता के अनुसार वस्तुओं का उत्पादन करने की अनुमति देना।

(vi) उद्योगों तथा व्यापार को नौकरशाही के चंगुल से मुक्त करना क्योंकि व्यापार तथा उद्योगों में सबसे ज्यादा अडंगे नौकरशाही ही डालती है। अगर नौकरशाही अड़गे न डाले तो उद्योग तेज़ गति से तरक्की करेंगे।

(vii) अर्थव्यवस्था पर सरकारी नियंत्रण को कम करना ताकि लोग निजी तौर पर उद्योग लगाने के लिए आगे आएं तथा देश का औद्योगिक विकास हो सके।

(viii) सीमा शुल्क कम करना ताकि आयात-निर्यात को बढ़ावा मिल सके। आयात बढ़ने से कीमतें नियंत्रण में रहेंगी तथा निर्यात बढ़ने से देश के आंतरिक व्यापार में वृद्धि होगी।

(ix) वस्तुओं तथा सेवाओं के आयात-निर्यात से अनावश्यक प्रतिबंध हटाना ताकि व्यापार में बढ़ोत्तरी हो सके।

(x) सार्वजनिक उपागमों को समाप्त करना तथा उनको निजी उद्योगों में बदलना क्योंकि सार्वजनिक उपागमों में सरकारी नियंत्रण ज्यादा होता है तथा उनमें मुनाफा कमाने की क्षमता कम होती है पर निजी हाथों में उद्योगों के आ जाने से कार्यक्षमता बढ़ जाती है तथा निजी क्षेत्र हमेशा मुनाफा कमाने पर ज्यादा ध्यान देते हैं। इस तरह सार्वजनिक उपागमों को निजी हाथों में देने से उनकी कार्यक्षमता बढ़ेगी तथा मुनाफा कमाने के मौके ज्यादा बढ़ेंगे।

प्रश्न 4.
भूमंडलीकरण से भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1991 में देश में आर्थिक सुधार शुरू होने के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था के भूमंडलीकरण की प्रक्रिया में तेजी आ गई। भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न चरणों में भूमंडलीकरण किया जा रहा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार भूमंडलीकरण में 50 राष्ट्रों में सिंगापुर प्रथम तथा भारत 49वें स्थान पर है।

इससे पता चलता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के भूमंडलीकरण की गति अभी धीमी है। भूमंडलीकरण का भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं पर क्या प्रभाव पड़ा उसका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है-
(i) भारत की विश्व निर्यात हिस्से में वृद्धि (Increase of Indian Share in World Export)-भूमंडलीकरण की प्रक्रिया के चलते भारत का विश्व में निर्यात का हिस्सा बढ़ा है।

20वीं शताब्दी के आखिरी दशक के दौरान भारत की वस्तुओं तथा सेवाओं में 125% की वृद्धि हुई है। 1990 में भारत का विश्व की वस्तुओं तथा सेवाओं के निर्यात में हिस्सा 0.55% था जोकि 1999 में बढ़कर 0.75% हो गया था।

(ii) भारत में विदेशी निवेश (Foreign Investment in India)-विदेशी निवेश वृद्धि भी भूमंडलीकरण का एक लाभ है क्योंकि विदेशी निवेश से अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता बढ़ती है। भारत में निरंतर विदेशी निवेश बढ़ रहा है। 1995-96 से 2000-01 के दौरान इसमें 53% की वृद्धि हुई। इस अवधि के दौरान वार्षिक औसत लगभग $ 500 करोड़ विदेशी निवेश हुआ।

(iii) विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) आयात के लिए विदेशी मुद्रा आवश्यक है। जून, 1991 में विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ One Billion था जिससे सिर्फ दो सप्ताह की आयात आवश्यकताएं ही पूरी की जा सकती थीं। जुलाई, 1991 में भारत में नयी आर्थिक नीतियां अपनायी गईं।

भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण को बढ़ावा दिया गया जिस वजह से देश के विदेशी मुद्रा भंडार में काफ़ी तेज़ी से बढ़ोत्तरी हुई। फलस्वरूप वर्तमान समय में देश में $ 300 Billion के करीब विदेशी मद्रा है। इससे पहले कभी भी देश में इतना विदेशी मद्रा का भंडार नहीं था।

(iv) सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर (Growth of Gross Domestic Product)-भूमंडलीकरण से सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि होती है। देश में 1980 के दशक में वृद्धि दर 5.63% तथा 1990 के दशक के दौरान वृद्धि दर 5.80% रहा। इस तरह सकल घरेलू उत्पादन में थोड़ी सी वृद्धि हुई।

(v) बेरोज़गारी में वृद्धि (Increase in Unemployment)-भूमंडलीकरण से बेरोज़गारी बढ़ती है। 20वीं शताब्दी के आखिरी दशक में मैक्सिको, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, सिंगापुर, इंडोनेशिया तथा मलेशिया में भूमंडलीकरण के प्रभाव के कारण आर्थिक संकट आया। फलस्वरूप लगभग एक करोड़ लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा तथा वे ग़रीबी रेखा से नीचे आ गए। 1990 के दशक के शुरू में देश में बेरोजगारी दर 6% थी जो दशक के अंत में 7% हो गई। इस तरह भूमंडलीकरण से रोजगार विहीन विकास हो रहा है।

(vi) कृषि पर प्रभाव (Impact on Agriculture)-देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि तथा इससे संबंधित कार्यों का हिस्सा लगभग 29% है जबकि यह अमेरिका में 2%, फ्रांस तथा जापान में 5.5% है। अगर श्रम शक्ति की नजर से देखें तो भारत की 69% श्रम शक्ति को कृषि तथा इससे संबंधित कार्यों में रोजगार प्राप्त है जबकि अमेरिका तथा इंग्लैंड में ऐसे कार्यों में 2.6% श्रम शक्ति कार्यरत है। विश्व व्यापार के नियमों के अनुसार विश्व को इस संगठन के सभी सदस्य देशों को कृषि क्षेत्र निवेश के लिए विश्व के अन्य राष्ट्रों के लिए खोलना है। इस तरह आने वाला समय भारत की कृषि तथा अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती भरा रहने की उम्मीद है।

(vii) शिक्षा व तकनीकी सुधार (Educational and technical reforms) भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण का शिक्षा पर भी काफ़ी प्रभाव पड़ा है तथा तकनीकी शिक्षा में तो चमत्कार हो गया है। आज संचार तथा परिवहन के साधनों की वजह से दूरियां काफ़ी कम हो गई हैं। आज अगर किसी देश में शिक्षा तथा तकनीक में सुधार आते हैं तो वह पलक झपकते ही सारी दुनिया में पहुंच जाते हैं। इंटरनेट तथा कंप्यूटर ने तो इस क्षेत्र में क्रांति ला दी है।

(viii) वर्गों के स्वरूप में परिवर्तन (Change in the form of Classes) भूमंडलीकरण ने वर्गों के स्वरूप में भी परिवर्तन ला दिया है। 20वीं सदी में सिर्फ तीन प्रमुख वर्ग-उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग तथा निम्न वर्ग थे पर आजकल वर्गों की संख्या काफी ज्यादा हो गई है। प्रत्येक वर्ग में ही बहत से उपवर्ग बन गए हैं जैसे मज़दर वर्ग. डॉक्टर वर्ग. शिक्षक वर्ग इत्यादि के उनकी आय के अनुसार वर्ग बन गए हैं।

(ix) निजीकरण (Privatization)-भूमंडलीकरण का एक अच्छा प्रभाव यह है कि निजीकरण देखने को मिल रहा है। विकसित तथा विकासशील देशों में बहुत से सार्वजनिक उपक्रम निजी हाथों में चल रहे हैं तथा यह अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। इसी से प्रेरित होकर और ज्यादा सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण हो रहा है।

(x) उद्योग-धंधों का विकास (Development of Industries) आर्थिक विकास की ऊँची दर प्राप्त करने के लिए विदेशी पूंजी निवेश से काफ़ी सहायता मिलती है। इससे न सिर्फ उद्योगों को लाभ मिलता है बल्कि उपभोक्ता को अच्छी तकनीक, अच्छे उत्पाद मिलते हैं तथा साथ ही साथ भारतीय उद्योगों को अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा करने की प्रेरणा मिलती है।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

प्रश्न 5.
भारत में मज़दूर संघों की भूमिका पर प्रकाश डालें तथा किसी लंबी चली हड़ताल के बारे में बताएं।
उत्तर:
हमारे देश में बहुत से मजदूर संघ मजदूरों के हितों के लिए कार्य करते हैं परंतु बहुत से मज़दूर संघों में क्षेत्रीयवाद तथा जातिवाद जैसी कई समस्याएँ होती हैं। कई बार काम को बुरी दशाओं के कारण मज़दूर हड़ताल कर देते हैं। वे काम करने नहीं जाते. तालाबंदी होने की स्थिति में मालिक मिल का दरवाजा बंद करके मज़दरों को अंदर जाने नहीं देते हैं। हड़ताल करना काफी मुश्किल निर्णय होता है क्योंकि मालिक बाहर से मजदूर बुलाने की कोशिश करते हैं। श्रमिकों के लिए वेतन के बिना रहना मुश्किल होता है। इस समय पर मजदूर संघ उनके हितों के लिए लड़ते हैं तथा मालिकों पर दबाव बनाते हैं ताकि उनकी मांगों को माना जा सके।

यहां हम 1982 में बंबई कपड़ा मिल में हुई सामंत हड़ताल के बारे में बता सकते हैं जो व्यापार संघ के नेता डॉ० दत्ता सामंत के नेतृत्व में हुई थी। इस हड़ताल के कारण लगभग ढाई लाख मज़दूर तथा उनके परिवार प्रभावित हुए। मजदूरों की माँग थी कि उन्हें अधिक वेतन दिया जाए तथा अपना संघ बनाने की आज्ञा दी जाए। बंबई इंडस्ट्रियल रिलेशंस एक्ट के अनसार संघ बनाने केलिए अनुमति लेनी चाहिए तथा अनमति लेने के लिए हडताल नहीं होनी चाहिए।

कांग्रेस द्वारा समर्थित राष्ट्रीय मिल मजदूर संघ ही एकमात्र मान्यता प्राप्त संघ था तथा उसने बाहर से मजदूर की मांगों को नहीं सुना। धीरे-धीरे दो साल बाद मजदूरों ने काम पर जाना शुरू कर दिया क्योंकि वह हड़ताल से परेशान हो चुके थे। लगभग एक लाख मज़दूर बेरोज़गार हो गए तथा वह अपने गाँवों को लौट गए या दिहाड़ी पर कार्य करने लग गए। बाकी आसपास के क्षेत्रों के बिजली करघा क्षेत्रों
में कार्य करने चले गए।

प्रश्न 6.
औद्योगीकरण की क्या विशेषताएं होती हैं?
उत्तर:
औद्योगीकरण की विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित हैं-
(i) मशीनों से उत्पादन-औद्योगीकरण की प्रक्रिया में उत्पादन मशीनों से होता है न कि हाथों से। इस प्रक्रिया में नयी-नयी मशीनों का ईजाद होता है तथा उन मशीनों की मदद से उत्पादन बढ़ाया जाता है। प्राचीन समाजों में उत्पादन हाथों से होता था इसलिए औद्योगीकरण इतनी उन्नत अवस्था में नहीं था। औद्योगीकरण में उत्पादन नयी मशीनों से तथा ज़्यादा मात्रा में होता है।

(ii) औद्योगीकरण का संबंध उत्पादन की प्रक्रिया से होता है-औद्योगीकरण का संबंध उत्पादन की प्रक्रिया से होता है क्योंकि इस प्रक्रिया के दौरान उत्पादन बढ़ जाता है। इसमें मशीनों की मदद से उत्पादन किया जाता है तथा उत्पादन भी ज़्यादा मात्रा में होता है।

(iii) औद्योगीकरण में परंपरागत शक्ति का प्रयोग नहीं होता-परंपरागत शक्ति वह शक्ति होती है जो मानव शक्ति या पशु शक्ति पर आधारित होती है। औद्योगीकरण में इस मानव या पशु शक्ति की बजाए पेट्रोल, डीज़ल, कोयला, विद्युत् या परमाणु शक्ति का प्रयोग होता है क्योंकि परंपरागत शक्ति की अपेक्षा यह शक्ति ज़्यादा तेज़ी से मशोनों को चलाती है तथा आजकल की मशीनें भी इसी शक्ति से चलती हैं।

(iv) औद्योगीकरण में उत्पादन तेज़ी से होता है-इस प्रक्रिया में उत्पादन बहुत तेज़ गति से होता है। प्राचीन समय में क्योंकि उत्पादन हाथों से होता था इसलिए उत्पादन बहुत कम हुआ करता था परंतु औद्योगीकरण में उत्पादन मशीनों से होता है इसलिए उत्पादन भी ज्यादा मात्रा में होता है। क्योंकि आजकल जनसंख्या भी काफ़ी बढ़ गई है इसलिए उनकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ज्यादा मशीनों का प्रयोग होता है ताकि ज्यादा उत्पादन किया जा सके।

(v) औद्योगीकरण में आर्थिक विकास होता है-इस प्रक्रिया में आर्थिक विकास होना ज़रूरी है। उदयोग लग जाते हैं जो न सिर्फ अपने देश की ज़रूरतें परी करते हैं बल्कि दसरे देशों की भी जरूरतें परी करते हैं। इस वजह से ये ज्यादा मुनाफ़ा कमाते हैं तथा देश के लिए भी पैसा कमाते हैं। पैसा कमाने के साथ ये देश को काफ़ी कर भी देते हैं जिससे देश को काफ़ी आमदनी हो जाती है जो कि देश के विकास में खर्च होती है। लोगों को उद्योगों में काम मिलता है जिससे उनका जीवन स्तर ऊँचा होता है जिससे देश का आर्थिक विकास होता है।

(vi) औद्योगीकरण से प्राचीन मान्यतएं टूट जाती हैं-औद्योगीकरण से प्राचीन मान्यताएं टूट जाती हैं। उदाहरण के तौर पर, भारत में इस प्रक्रिया के फलस्वरूप संयुक्त परिवार की मान्यता तथा परंपरा में विघटन हो गया है। इस वजह से संयुक्त परिवार टूट कर केंद्रीय परिवारों में बदल रहे हैं। इस तरह और भी की परंपराओं जैसे जाति प्रथा, विवाह नाम की संस्था में भी बहुत से परिवर्तन आ रहे हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि औद्योगीकरण में प्राचीन परंपराएं टूट जाती हैं।

(vii) औद्योगीकरण में नए वर्गों का उदय होता है-औद्योगीकरण में नए-नए वर्ग सामने आते हैं। अमीर वर्ग, गरीब वर्ग, मध्यम वर्ग, मालिक वर्ग, मज़दूर वर्ग जैसे कई और वर्ग हमारे सामने आते हैं। इस वजह से कइयों को पैसा आ जाता है, कइयों के पास कम हो जाता है। कई ट्रेड यूनियन इत्यादि जैसे वर्ग सामने आ जाते हैं जोकि हमारे समाज में जरूरी हो जाते हैं।

(vii) औद्योगीकरण में प्राकृतिक साधनों का पूरी तरह प्रयोग होता है-इस प्रक्रिया में देश के प्राकृतिक साधनों का पूरी तरह प्रयोग होता है। मशीनों से उत्पादन की वजह से कोयला, डीज़ल, पेट्रोल, बिजली इत्यादि शक्ति का प्रयोग होता है जोकि प्राकृतिक साधनों का हिस्सा होते हैं। इसके अलावा कच्चे माल के लिए कृषि पर तथा भूमि पर ज़रूरत से ज्यादा बोझ पड़ता है जिससे प्राकृतिक साधनों का विनाश होना शुरू हो जाता है।

(ix) औदयोगीकरण में कई तकनीकों का प्रयोग होता है-औदयोगीकरण में हमेशा नई तकनीकों का प्रयोग होता रहता है क्योकि औद्योगीकरण में नयी-नयी मशीनों का प्रयोग होता है। इस वजह से नए-नए आविष्कार होते रहते हैं जिसके कारण हमारे सामने नयी-नयी मशीनें आती हैं जिनका प्रयोग उत्पादन को बढ़ाने के लिए किया जाता है। इस तरह हमने देखा कि औद्योगीकरण में बहुत-सी विशेषताएं होती हैं पर इस प्रक्रिया की वजह से कई समस्याएं भी आती हैं।

प्रश्न 7.
औद्योगीकरण के समाज पर क्या प्रभाव पड़ते हैं?
उत्तर:
औद्योगीकरण के समाज पर बहुत से अच्छे-बुरे प्रभाव पड़ते हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-
(i) श्रम विभाजन-प्राचीन समय में किसी चीज़ का उत्पादन परिवार में ही हुआ करता था। सभी को उस चीज़ के उत्पादन से संबंधित कार्य आते थे तथा वे सभी मिल-जुल कर कार्य करके उसका उत्पादन कर लिया करते थे। पर औद्योगीकरण की वजह से काम मशीनों पर होना शुरू हो गया जिस वजह से श्रम विभाजन का संकल्प हमारे सामने आया।

किसी चीज़ का उत्पादन कई चरणों में होता है। हर चरण में अलग-अलग काम होते हैं। अब हर कोई अलग-अलग काम करता है, जैसे कपड़ा बनाने में कोई किसी मशीन को चलाता है, कोई किसी मशीन को। अगर कोई रंगाई करता है तो यह भी श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण का काम हो जाता है। इस तरह हर काम में श्रम विभाजन हो गया है। हर कोई एक खास काम करता है तथा उसका उसी काम में विशेषीकरण हो जाता है। यह औद्योगीकरण की वजह से हुआ है।

(ii) यातायात के साधनों का विकास-औद्योगीकरण की वजह से यातायात से साधनों का भी विकास हुआ है। फैक्टरियों में उत्पादन के लिए कच्चे माल की ज़रूरत होती है। कच्चे माल की फैक्टरियों तक दूर-दूर के इलाकों से पहुँचाने के लिए ट्रेन, ट्रकों इत्यादि जैसे यातायात के साधनों का विकास हुआ है। इसके अलावा बने हुए माल को फैक्टरी से बाज़ार तक पहुँचाने के लिए भी इन यातायात के साधनों की जरूरत होती है जिनका धीरे-धीरे विकास हो गया। इस तरह औद्योगीकरण की वजह से यातायात के साधनों का विकास तेजी से हुआ।

(iii) फैक्टरियों के उत्पादन में बढ़ौतरी-औदयोगीकरण की वजह से चीजों का उत्पादन घरों से निकल कर फैक्टरी में आ गया जहां पर उत्पादन हाथों की बजाए मशीनों से होता है। हाथों से उत्पादन धीरे-धीरे होता है पर मशीनों से उत्पादन तेजी से होता है। चाहे जनसंख्या के बढ़ने से खपत में भी बढ़ोत्तरी हुई पर इसके साथ-साथ नए-नए आविष्कार हुए जिनसे उत्पादन भी और बढ़ता गया। इस तरह चीज़ों के उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी औद्योगीकरण की वजह से हुई।

(iv) शहरों के आकार में बढ़ौतरी-औद्योगीकरण के बढ़ने से शहरों के आकार भी बढ़ने लगे। उद्योग शहरों में लगते थे जिस वजह से गांवों के लोग शहरों की तरफ जाने लगे। रोज़-रोज़ गांव में जाना मुमकिन नहीं था इसलिए लोग अपने परिवार भी शहर ले जाने लगे। जनसंख्या के बढ़ने से शहरों में जनसंख्या कम होने लगी जिस वजह से धीरे-धीरे शहरों के आकार बढ़ने लगे तथा धीरे-धीरे नगरीयकरण का संकल्प हमारे सामने आया।

(v) पूंजीवाद-औद्योगीकरण की वजह से पूंजीवाद का भी जन्म हुआ। जब घरों में उत्पादन हुआ करता था तो ज़्यादा पूंजी की ज़रूरत नहीं होती थी क्योंकि उत्पादन कम होता था तथा उत्पादन घर में ही हो जाता था पर औदयोगीकरण ने फैक्टरी प्रथा को जन्म दिया। फैक्टरी बनाने के लिए बहुत ज्यादा पूंजी की ज़रूरत पड़ी। फैक्टरी बनाने के लिए, कच्चा माल खरीदने के लिए, बनी हुई चीज़ को बाज़ार में बेचने के लिए, मज़दूरों को तनख्वाह देने तथा कई और कामों के लिए बहुत ज्यादा पूंजी की ज़रूरत पड़ी।

जिनके पास पैसा था उन्होंने बड़ी-बड़ी फैक्टरियां खड़ी कर ली तथा धीरे-धीरे पैसे की मदद से और पैसा कमाने लग गए। इसके साथ-साथ समाज में कई और वर्ग जैसे व्यापारी, मालिक, मज़दूर, दलाल इत्यादि हमारे सामने आए तथा व्यापार में भी बढ़ोत्तरी हुई। पैसे की मदद से उत्पादित चीजें और देशों को भेजी जाने लगी जिससे और पैसा आने लगा। इस पैसे की वजह से और देशों पर कब्जे होने लगे जिसे हम साम्राज्यवाद कहते हैं। इसने और देशों का शोषण करने को प्रेरित किया। इस तरह पूंजीवाद का जन्म हुआ जिसने कई और समस्याओं को जन्म दिया।

(vi) कुटीर उद्योगों का ख़त्म होना-इसकी वजह से गांवों में लगे कुटीर उद्योग ख़त्म हो जाते हैं। इसमें उत्पादन मशीनों से होता है जोकि सस्ता तथा अच्छा भी होता है। पर कुटीर उद्योग में क्योंकि उत्पादन हाथों से होता है जिस वजह से वह महंगा तथा मशीनों जैसा अच्छा भी नहीं होता है। इस तरह फैक्टरियों का माल बिकने लग जाता है तथा कुटीर उद्योगों का माल बिकना बंद हो जाता है जिस वजह से इन कुटीर उद्योगों में आर्थिक संकट आ जाता है तथा यह धीरे-धीरे बंद हो जाते हैं। इस तरह औद्योगीकरण कुटीर उद्योगों के विनाश का कारण बनता है।

(vii) रहने की जगह की समस्या-उद्योग नगरों में लगते हैं। गाँवों से हजारों लोग शहरों में इन उद्योगों में काम की तलाश में आते हैं जिस वजह से शहरों में रहने की जगह की या मकानों की समस्या हो जाती है। इस समस्या से निपटने के लिए कई-कई लोग एक कमरे में रहते हैं जिस वजह से उनमें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जन्म लेती हैं। इसी के साथ गंदी बस्तियां भी पनप जाती हैं जो शहरों में गंदगी फैलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं।

(viii) बेकारी-औद्योगीकरण की वजह से बेकारी की समस्या भी बढ़ जाती है। पुराने तरीकों से उत्पादन हाथों से होता है जिस वजह से सभी को काम मिल जाता है पर इस प्रक्रिया में नए-नए आविष्कार होते रहते हैं तथा मशीनें भी आती रहती हैं जिस वजह से मजदूरों को काम से हटा दिया जाता है। उनकी जगह मशीनें आ जाती हैं। एक एक मशीन दस-दस मज़दूरों का काम कर सकती है। वे मजदूर बेकार हो जाते हैं। इस तरह औद्योगीकरण बेकारी की समस्या को भी बढ़ावा देता है द्धनहीं जाती, उन्हें प्रदूषण में काम करना पड़ता है जिस वजह से उनके स्वास्थ्य पर काफ़ी हानिकारक प्रभाव पड़ता है।

(ix) स्वास्थ्य की समस्या-औद्योगीकरण का एक और प्रभाव मजदूरों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। इन उद्योगों का वातावरण मजदूरों की सेहत के लिए काफ़ी हानिकारक होता है। वहां ताजी हवा नहीं जाती, उन्हें प्रदूषण में काम करना पड़ता है जिस वजह से उनके स्वास्थ्य पर काफ़ी हानिकारक प्रभाव पड़ता है।

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