Class 11

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व

Haryana State Board HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व

प्रश्न 1.
(क) B से Tl तक तथा (ख) C से Pb तक की ऑक्सीकरण अवस्थाओं की भिन्नता के क्रम की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
(क) B से Tl तक (बोरॉन परिवार) ऑक्सीकरण अवस्था [Oxidation state from B to Tl (Boron family)]—बोरॉन परिवार (वर्ग 13) के तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns2p1 होता है। इसका तात्पर्य यह है कि बंध निर्माण के लिए तीन संयोजी इलेक्ट्रॉन उपलब्ध हैं। इन इलेक्ट्रॉनों का त्याग करके ये परमाणु अपने यौगिकों में +3 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करते हैं। यद्यपि इन तत्वों की ऑक्सीकरण-अवस्था में निम्नलिखित प्रवृत्ति प्रेक्षित होती है-

(i) प्रथम दो तत्व बोरॉन तथा ऐलुमिनियम यौगिकों में केवल +3 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करते हैं, परन्तु शेष तत्व-गैलियम, इण्डियम तथा थैलियम +3 ऑक्सीकरण अवस्था के साथ-साथ +1 ऑक्सीकरण अवस्था भी प्रदर्शित करते हैं अर्थात् ये परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित करते हैं।

(ii) +3 ऑक्सीकरण अवस्था का स्थायित्व ऐलुमिनियम से आगे जाने पर घटता है तथा अन्तिम तत्व थैलियम की स्थिति में, +1 ऑक्सीकरण अवस्था, +3 ऑक्सीकरण अवस्था से अधिक स्थायी होती है। इसका अर्थ यह है कि TlCI, TlCl3 से अधिक स्थायी होता है।

(ख) C से Pb तक (कार्बन परिवार) ऑक्सीकरण अवस्था [Oxidation state from C to Pb (Carbon family)]—कार्बन परिवार (समूह-14)के तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns2 np2 होता है। स्पष्ट है कि इन तत्वों के परमाणुओं के बाह्यतम कोश में चार इलेक्ट्रॉन होते हैं। इन तत्वों द्वारा सामान्यत: +4 तथा +2 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाई जाती है। कार्बन ऋणात्मक ऑक्सीकरण अवस्था भी प्रदर्शित करता है। चूँकि प्रथम चार आयनन एन्थैल्पी का योग अति उच्च होता है; अत: + 4 ऑक्सीकरण अवस्था में अधिकतर यौगिक सहसंयोजक प्रकृति के होते हैं।

इस समूह के गुरुतर तत्वों में Ge < Sn < Pb क्रम में +2 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करने की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है। ऐसा सहसंयोजक कोश में ns2 इलेक्ट्रॉन के बन्धन में भाग नहीं लेने के कारण यह होता है।

इन दो ऑक्सीकरण अवस्थाओं का सापेक्षिक स्थायित्व वर्ग में परिवर्तन होता है। कार्बन तथा सिलिकन मुख्यतः +4 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करते हैं। जर्मेनियम की +4 ऑक्सीकरण अवस्था स्थायी होती है, जबकि कुछ यौगिकों में +2 ऑक्सीकरण अवस्था भी मिलती है। टिन ऐसी दोनों अवस्थाओं में यौगिक बनाता है (+2 ऑक्सीकरण अवस्था में टिन अपचायक के रूप में कार्य करता है)। +2 ऑक्सीकरण अवस्था में लेड के यौगिक स्थायी होते हैं, जबकि इसकी +4 अवस्था प्रबल ऑक्सीकारक है। इस आधार पर स्पष्ट है कि-

(i) SnCl4 तथा PbCl4 की तुलना में SnCl2 तथा PbCl2 अधिक सरलता से बनते हैं।
(ii) PbCl2, SnCl2 से अधिक स्थायी होता है चूँकि इसमें अक्रिय युग्म प्रभाव का परिमाण अधिक होता है।

चतुर्संयोजी अवस्था में अणु के केन्द्रीय परमाणु पर आठ इलेक्ट्रॉन होते हैं। इलेक्ट्रॉन परिपूर्ण अणु होने के कारण सामान्यतया इलेक्ट्रॉन ग्राही या इलेक्ट्रॉनदाता स्पीशीज की अपेक्षा इनसे नहीं की जाती है। यद्यपि कार्बन अपनी सहसंयोजकता +4 का अतिक्रमण नहीं कर सकता है, परन्तु समूह के अन्य तत्व ऐसा करते हैं। यह उन तत्वों में d-कक्षकों की उपस्थित के कारण होता है। यही कारण है कि ऐसे तत्वों के हैलाइड जल-अपघटन के उपरान्त दाता स्पीशीज (donor species) से इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके संकुल बनाते हैं। उदाहरणार्थ-कुछ स्पीशीज; जैसे-

\(\left(\mathrm{SiF}_6\right)^{2-}\), \(\left(\mathrm{GeCl}_6\right)^{2-}\) तथा \(\mathrm{Sn}(\mathrm{OH})_6{ }^{2-}\) ऐसी होती हैं, जिनके केन्द्रीय परमाणु sp3d2 संकरित होते हैं।

प्रश्न 2.
TICl3 की तुलना में BCl3 के उच्च स्थायित्व को आप कैसे समझाएँगे ?
उत्तर:
बोरॉन (B) परमाणु की स्थिति में, अक्रिय युग्म प्रभाव नगण्य होता है। इसका अर्थ है कि इसके तीनों संयोजी इलेक्ट्रॉन (2s2px1) क्लोरीन परमाणुओं के साथ बन्ध बनाने के लिए उपलब्ध हैं। इसलिए BCl3 स्थायी होता है। यद्यपि थैलियम (Tl) की स्थिति में, संयोजी s-इलेक्ट्रॉन (6s2) अधिकतम अक्रिय युग्म प्रभाव अनुभव करते हैं। अतः केवल संयोजी p-इलेक्ट्रॉन (6p1) बंध के लिए उपलब्ध होते हैं। इन परिस्थितियों में TlCl अत्यधिक स्थायी होते हैं, जबकि TlCl3 अपेक्षाकृत बहुत कम स्थायी होता है।

निष्कर्ष रूप से स्पष्ट है कि TlCl3 की तुलना में BCl3 उच्च स्थायी होता है।

प्रश्न 3.
बोरॉन ट्राइफ्लुओराइड लूइस अम्ल के समान व्यवहार क्यों प्रदर्शित करता है ?
उत्तर:
बोरॉन ट्राइफ्लुओराइड BF3 अणु में F परमाणु के इलेक्ट्रॉन-न्यून अणु हैं तथा यह स्थायी इलेक्ट्रॉनिक विन्यास प्राप्त करने के लिए एक इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण करके लूइस अम्ल के समान व्यवहार प्रदर्शित करता है। उदाहरणार्थ-बोरॉन ट्राइफ्लुओराइड सरलतापूर्वक अमोनिया से एक एकांकी इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण करके BF3.NH3 उपसहसंयोजक यौगिक बनाता है।
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प्रश्न 4.
BCl3 तथा CCl4 यौगिकों का उदाहरण देते हुए जल के प्रति इनके व्यवहार के औचित्य को समझाइए।
उत्तर:
BCl3 में (B परमाणु sp2- संकंरित हैं), B परमाणु का अष्टक अपूर्ण है तथा इसका असंकरित 2p-कक्षक जल अणु से इलेक्ट्रॉन-युग्म ग्रहण करके योगात्मक उत्पाद बना सकता है।
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इस प्रकार जल से अभिक्रिया करने पर एक Cl परमाणु -OH समूह से प्रतिस्थापित हो जाता है। इसी प्रकार अन्य दो Cl परमाणु भो -OH समूह से प्रतिस्थापित हो जाते हैं।
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इससे प्रदर्शित होता है कि बोरॉन ट्राइक्लोराइड का जल-अपघटन हो जाता है, परन्तु यह CCl4 के साथ सम्भव नहीं है। कार्बन परमाणु का अष्टक पूर्ण होता है तथा H2O अणुओं के साथ योगात्मक उत्पाद बनने की कोई सम्भावना नहीं है। परिणामस्वरूप कार्बन टेट्राक्लोराइड जल-अपघटित नहीं होता। जल में मिलाने पर यह उसमें मिश्रित भी नहीं होता, अपितु एक पृथक् तैलीय पर्त बनाता है।

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प्रश्न 5.
क्या बोरिक अम्ल प्रोटीनी अम्ल है? समझाइए।
उत्तर:
बोरिक अम्ल प्रोटीनी अम्ल नहीं है। यह एक लूइस अम्ल है तथा H2O अणु के हाइड्रॉक्सिल आयन से इलेक्ट्रॉन-युग्म ग्रहण करता है।
B(OH)3 + 2HOH → [B(OH)4] + H3O+

प्रश्न 6.
क्या होता है, जब बोरिक अम्ल को गर्म किया जाता है?
उत्तर:
370K से अधिक ताप पर गर्म किए जाने पर बोरिक अम्ल (ऑर्थोबोरिक अम्ल) मेटाबोरिक अम्ल (HBO2) बनाता है, जो और अधिक गर्म करने पर बोरिक ऑक्साइड (B2O3) में परिवर्तित हो जाता है।
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प्रश्न 7.
BF3 तथा BH4 की आकृति की व्याख्या कीजिए। इन स्पीशीज में बोरॉन के संकरण को निर्दिष्ट कीजिए।
उत्तर:
BF3 की आकृति- BF3 में sp2 संकरण होता है। जिस कारण इन कक्षकों की संख्या 3 होती है। तथा इन कक्षकों बीच 120° का कोण होता है जिससे इलेक्ट्रॉन युग्मों में पारस्परिक प्रतिकर्षण न्यूनतम रहता है तथा यह अणु त्रिकोणीय व समतल होता है।
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BH4 में B का संकरण sp3 होता है। इसकी आकृति चतुष्फलकीय होती है तथा 109°28′ का कोण होता है।
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प्रश्न 8.
ऐलुमिनियम के उभयधर्मी व्यवहार दर्शाने वाली अभिक्रियाएँ दीजिए।
उत्तर:
ऐलुमिनियम अम्ल तथा क्षार दोनों से अभिक्रिया कर सकता है। इसलिए यह उभयधर्मी प्रकृति का होता है। उदाहरणार्थ-
2Al(s) + 6HCl(aq) → 2AlCl3(aq) + 3H2(g) तनु
2Al(s) + 2NaOH(aq) + 6H2O(l) → 2Na[Al(OH)4](aq) + 3H2(g)

प्रश्न 9.
इलेक्ट्रॉन न्यून यौगिक क्या होते हैं? क्या BCl3 तथा SiCl4 इलेक्ट्रॉन न्यून यौगिक हैं? समझाइए।
उत्तर:
इलेक्ट्रॉन न्यून यौगिक (Electron deficient Compounds)-वे यौगिक जिनके अणुओं में केन्द्रीय परमाणु एक या अधिक इलेक्ट्रॉन-युग्मों को ग्रहण करने की प्रवृत्ति रखते है, इलेक्ट्रॉन-न्यून यौगिक कहलाते हैं। इलेक्ट्रान-न्यून यौगिक को लूइस अम्ल भी कहा जाता है।

BCl3 तथा SiCl4 दाना इलक्ट्रान-न्यून योंगक है। B परमाणु मे रिक्त 2p कक्षक होते हैं, जबकि Si परमाणु में रिक्त 3-d कक्षक होते हैं। ये दोनों परमाणु इलेक्ट्रॉन-दाता स्पीशीज से इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण कर सकते हैं। अत: BCl3 तथा SiCl4 दोनों इलेक्ट्रॉन-न्यून यौगिक हैं।

प्रश्न 10.
\(\mathrm{CO}_3^{2-}\) तथा \(\mathrm{HCO}_3^{-}\) की अनुनादी संरचनाएँ लिखिए।
उत्तर:
\(\mathrm{CO}_3^{2-}\) की अनुनादी संरचना (Resonating Structure of \(\mathrm{CO}_3^{2-}\) )
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प्रश्न 11.
(क) \(\mathrm{CO}_3^{2-}\), (ख) हीरा तथा (ग) ग्रेफाइट में कार्बन की संकरण-अवस्था क्या होती है?
उत्तर:
(क) \(\mathrm{CO}_3^{2-}\) में कार्बन की संकरण-अवस्था sp2 होती है।
(ख) हीरे में कार्बन की संकरण-अवस्था sp3 होती है।
(ग) ग्रेफाइट में कार्बन की संकरण-अवस्था sp2 होती है।

प्रश्न 12.
संरचना के आधार पर हीरा तथा ग्रेफाइट के गुणों में निहित भिन्नता को समझाइए।
उत्तर:
हीरा तथा ग्रेफाइट में संरचनात्मक भिन्नता हीरा

  • हीरे में क्रिस्टलीय जालक होता है। इसमें एक-दूसरे से बँधे कार्बन परमाणुओं का जाल होता है।
  • प्रत्येक कार्बन परमाणु sp3 संकरित होता है तथा एकल सहसंयोजी बंध द्वारा चार अन्य कार्बन परमाणुओं से जुड़ा रहता है।
  • प्रत्येक कार्बन परमाणु चतुष्फलक के केन्द्र पर स्थित होता है तथा अन्य चार कार्बन परमाणु चतुष्फलक के चारों कोनों पर स्थित होते हैं।
  • C-C बंध की लम्बाई 154pm होती है। इसलिए हीरे में प्रबल सहसंयोजी बंधों का त्रिविमीय जाल होता है।
  • यह अत्यन्त कठोर होता है। इसका गलनांक उच्च होता है।

ग्रेफाइट:

  • ग्रेफाइट में परते 340pm की दूरी पर पृथक्कृत रहती हैं। इन परतो के बीच अत्यधिक दूरी यह प्रदर्शित करती है कि केवल दुर्बल वाण्डरवाल्स बल इन परतो को बाँधे रखते हैं।
  • ग्रेफाइट में, प्रत्येक कार्बन परमाणु sp2 संकरण प्रदर्शित करता है तथा तीन अन्य कार्बन परमाणुओं से सहसंयोजी रूप से जुड़ा रहता है।
  • प्रत्येक कार्बन परमाणु में चौथा इलेक्ट्रॉन π-बंध बनता है। अतः यह द्विविमीय षट्कोणीय वलय रखता है।
  • वलय में C-C सहसंयोजी दूरी 142pm होती है जो प्रबल बंध को व्यक्त करती है। इन वलयों की व्यवस्था परते बनाती है।
  • यह अत्यन्त कोमंल होता है। इसे मशीनों में शुष्क स्नेहक की भाँति प्रयोग किया जाता है।

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प्रश्न 13.
निम्नलिखित कशनों को युक्तिसंगत कीजिए तथा रासायनिक समीकरण दीजिए-
(क) लेड (II) क्लोराइड Cl2 से क्रिया करके PbCl4 देता है।
(ख) लेड (IV) क्लोराइड ऊष्मा के प्रति अत्यधिक अस्थायी है।
(ग) लेड एक आयोडाइड PbI4 नहीं बनाता है।
उत्तर:
(क) लेड (II) क्लोराइड Cl2 से क्रिया करके लेड (IV) क्लोराइड, (PbCl4) देता है क्योंकि क्लोरीन एक प्रबलतम ऑक्सीकारक है।
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(ख) लेड IV ऑक्सीकरण अवस्था की तुलना में, II ऑक्सीकरण अवस्था में अधिक स्थायी होता है। इसलिए लेड (IV) क्लोराइड ऊष्मा के प्रति अत्यधिक अस्थायी होता है। यह गर्म करने पर विघटित होकर लेड (II) क्लोराइड बनाता है।
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(ग) लेड एक आयोडाइड (PbI4) नहीं बनाता है; क्योंकि I आयन के प्रबल अपचायक होने के कारण यह विलयन में Pb4+ आयन को Pb2+ आयन में अपचयित कर देता है।
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प्रश्न 14.
BF3 में तथा \(\mathrm{BF}_4^{-}\) में बंध लम्बाई क्रमशः 130 pm तथा 143 pm होने के कारण बताइए।
उत्तर:
BF3 में तथा \(\mathrm{BF}_4^{-}\) में बोरॉन की संकरण-अवस्था निम्नलिखित प्रकार से दर्शाई जा सकती है-
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BF3 की आकृति समतलीय (Planer) है, इसमें sp2 संकरण पाया जाता है जबकि \(\mathrm{BF}_4^{-}\) की आकृति चतुष्फलकीय (tetrahedral) है, इसमें sp3 संकरण पाया जाता है, अतः दिए गए दोनों फ्लुओराइडों में बंध लम्बाइयों का अन्तर बोरॉन की संकरण-अवस्था में भिन्नता के कारण होता है।

प्रश्न 15.
B-Cl आबन्ध द्विधुव आघूर्ण रखता है, किन्तु BCl3 अणु का द्विध्रुव आघूर्ण शून्य होता है। क्यों ?
उत्तर:
B-Cl आबन्ध एक निश्चित द्विध्रुव आघूर्ण रखता है; क्योंकि यह ध्रुवीय प्रकृति का होता है। परन्तु BCl3 अणु का द्विध्रुव आघूर्ण शून्य होता है; क्योंकि BCl3 अणु सममिताकार (समतलीय) होता है जिसमें आबन्ध ध्रुवणताएँ एक-दूसरे को निरस्त कर देती हैं।
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प्रश्न 16.
निर्जलीय HF में ऐलुमिनियम ट्राइफ्लुओराइड अविलेय है, परन्तु NaF मिलाने पर घुल जाता है। गैसीय BF3 को प्रवाहित करने पर परिणामी विलयन में से ऐलुमिनियम ट्राइ फ्लुओराइड अवक्षेपित हो जाता है। इसका कारण बताइए।
उत्तर:
ऐलुमिनियम ट्राइफ्लुओराइड (AIF3) निर्जली HF में अविलेय होता है; क्योंकि इसकी प्रकृति सहसंयोजी होती है। यद्यपि यह NaF से अभिक्रिया करने पर एक संकुल यौगिक बनाता है, जो जल में विलेय होता है।
AlF3 + NaF → Na+[AlF4]
(विलेय)
इस संकुल यौगिक को जलीय विलयन में BF3 की वाष्प बुलबुलों के रूप में प्रवाहित करने पर तोड़ा जा सकता है। परिणामस्वरूप ऐलुमिनियम ट्राइफ्लुओराइड पुनः अवक्षेपित हो जाता है।
Na+[AlF4] + BF3→AlF3Na+[BF4]
(अवक्षेप)

प्रश्न 17.
CO के विधैली होने का एक कारण बताइए।
उत्तर:
कार्बन मोनोक्साइड (CO) प्रकृति में पाई जाने वाली एक अत्यधिक विषैली गैस होती है। इसके विषैला होने का कारण यह है कि रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन से संयुक्त होकर कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन बना लेती है जो श्वसित की गई ऑक्सीजन को शरीर के विभिन्न भागों में ले जाने में असमर्थ होता है। इससे दम घुटने लगता है तथा अन्ततः मृत्यु हो जाती है।

प्रश्न 18.
CO2 की अधिक मात्रा भूमण्डलीय ताप वृद्धि के लिए उत्तरदायी कैसे है?
उत्तर:
CO2 में मेथेन के समान ऊष्मा अवशोषित करने की प्रवृत्ति होती है। इसे हरित-गृह गैस (green house gas) भी कहते हैं। इस प्रवृत्ति के कारण वायुमण्डल में इसकी अत्यधिक सान्द्रता भूमण्डलीय ताप वृद्धि के लिए उत्तरदायी होती है।

प्रश्न 19.
डाइबोरेन तथा बोरिक अम्ल की संरचना समझाइए।
उत्तर:
(क) डाइबोरेन की संरचना (Structure of Diborane)डाइबोरेन की संरचना को चित्र द्वारा दर्शाया गया है। इसमें सिरे वाले चार हाइड्रोजन परमाणु तथा दो बोरॉन परमाणु एक ही तल में होते हैं। इस तल के ऊपर तथा नीचे दो सेतु बंधित हाइड्रोजन परमाणु होते हैं। सिरे वाले चार B-H बंध सामान्य द्विकेन्द्रीय-द्विइलेक्ट्रॉन (two centretwo electron) बंध होते हैं तथा दो सेतु बन्ध (B-H-B) भिन्न प्रकार के होते हैं, जिन्हें ‘त्रिकेन्द्रीय-द्विइलेक्ट्रॉन बंध’ कहते हैं।
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डाइबोरेन में प्रत्येक बोरॉन परामाणु sp3 संकरित होता है।

(ख) बोरिक अम्ल की संरचना (Structure of Boric acid)ठोस अवस्था में, बोरिक अम्ल की परतदार संरचना होती है, जहाँ समतलीय BO3 की इकाइयाँ हाइड्रोजन बंध द्वारा एक-दूसरे से 318pm की दूरी पर जुड़ी रहती हैं। बोरिक अम्ल में बोरॉन परमाणु sp2 संकरित होता है।
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बोरिक अम्ल की संरचना में बिन्दुकृत रेखाएँ हाइड्रोजन आबन्ध को प्रदर्शित करती हैं।

प्रश्न 20.
क्या होता है, जब-
(क) बोरेक्स को अधिक गर्म किया जाता है।
(ख) बोरिक अम्ल को जल में मिलाया जाता है।
(ग) ऐल्युमिनियम की तनु NaOH से अभिक्रिया कराई जाती है।
(घ) BF3 की क्रिया अमोनिया से की जाती है।
उत्तर:
(क) जब बोरेक्स के चूर्ण को बुन्सन बर्नर की ज्वाला में अधिक गर्म किया जाता है, तो सर्वप्रथम यह जल के अणु का निष्कासन करके फूल जाता है। पुन: गर्म करने पर यह एक पारदर्शी द्रव में परिवर्तित हो जाता है, जो काँच के समान एक ठोस में परिवर्तित हो जाता है। इसे बोरेक्स मनका कहते हैं।
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(ख) यह जल में घुल जाता है; क्योंकि यह इलेक्ट्रॉन-न्यून यौगिक है।
B(OH)3 + H – OH → [B(OH)4] + H+
या
[H3BO3]

(ग) ऐलुमिनियम NaOH विलयन में घुलकर एक विलेय संकुल बनाता है तथा हाइड्रोजन गैस मुक्त करता है।
2Al(s) + 2NaOH(aq) + 6H2O(l) → 2Na+[Al(OH)4](aq) + 3H2(g)

(घ) BF3 (व्यवहार में लूइस अम्ल) NH3 (व्यवहार में लूइस-क्षारक) के साथ योगात्मक यौगिक बनाता है।
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प्रश्न 21.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं को समझाइए जब-
(क) कॉपर की उपस्थिति में उच्च ताप पर सिलिकन को मेथिल क्लोराइड के साथ गर्म किया जाता है।
(ख) सिलिकन डाइऑक्साइड की क्रिया ह्यइड्रोजन फ्लुओराइड के साथ की जाती है।
(ग) CO को ZnO के साथ गर्म किया जाता है।
(घ) जलीय ऐलुमिना की क्रिया जलीय NaOH के साथ की जाती है।
उत्तर:
(क) कॉपर पाउडर (उत्प्रेरक) की उपस्थिति में उच्च ताप (570K) पर सिलिकन को मेथिल क्लोराइड के साथ गर्म करने पर डाइमेथिल डाइक्लोरोसिलेन प्राप्त होता है, जिसके जल-अपघटन के उपरान्त संघनन बहुलकीकरण द्वारा श्रृंखला बहुलक प्राप्त होते हैं।
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(ख) सिलिकन डाइऑक्साइड की क्रिया हाइड्रोजन फ्लुओराइड के साथ होने पर सिलिकन टेट्राफ्लुओराइड (SiF4) बनता है।
SiO2 + 4HF → SiF4 + 2 H2O

(ग) CO, जो एक प्रबल अपचायक है, के द्वारा ZnO का अपचयन Zn में हो जाता है।
ZnO + CO → Zn + CO2

(घ) दोनों यौगिक दाब के अन्तर्गत गर्म किए जाने पर विलेय संकुल बनाते हैं।
Al2O3(s) + 2NaOH(aq) + 3H2O(l) → 2Na[Al(OH)4](aq)

प्रश्न 22.
कारण बताइए-
(क) सान्द्र HNO3 का परिवहन ऐलुमिनियम के पात्र द्वारा किया जा सकता है।
(ख) तनु NaOH तथा ऐलुमिनियम के टुकड़ों के मिश्रण का प्रयोग अपवाहिका खोलने के लिए किया जाता है।
(ग) ग्रेफाइट शुष्क स्नेहक के रूप में प्रयुक्त होता है।
(घ) हीरे का प्रयोग अपघर्षक के रूप में होता है।
(ङ) वायुयान बनाने में ऐलुमिनियम मिश्र धातु का प्रयोग होता है।
(च) जल को ऐलुमिनियम पात्र में पूरी रात नहीं रखना चाहिए।
(छ) संचरण केबल बनाने में ऐलुमिनियम तार का प्रयोग होता है।
उत्तर:
(क) सान्द्र HNO3 प्रारम्भ में ही ऐलुमिनियम से क्रिया करके ऐलुमिनियम ऑक्साइड (Al2O3) बना लेता है, जो पात्र के भीतर एक रक्षी-लेपन कर देता है। इस प्रकार धात्विक पात्र निष्क्रिय (passive) हो जाता है तथा फिर अम्ल से क्रिया नहीं करता। इसलिए अम्ल का परिवहन ऐलुमिनियम के पात्र द्वारा सुरक्षापूर्वक किया जा सकता है।

(ख) ऐलुमिनियम तनु NaOH में घुलकर H2 मुक्त करता है। यह हाइड्रोजन गैस अपवाहिका खोलने में सहायता करती है।
2Al + 2NaOH + 2H2O → 2NaAlO2 + 3H2

(ग) ग्रेफाइट में sp2- संकरित कार्बन होता है तथा इसकी परतीय संरचना होती है। व्यापक पृथक्करण तथा दुर्बल अन्तरपर्तीय बन्धों के कारण इसकी दो समीपवर्ती परते एक-दूसरे पर सरलतापूर्वक फिसल जाती हैं। इस कारण इसे शुष्क स्नेहक की भाँति उन मशीनों में प्रयुक्त किया जा सकता है जिनमें किसी कारणवश तैलीय स्नेहक प्रयुक्त न किए जा सकते हों।

(घ) हीरा समस्त ज्ञात पदार्थों में कठोरतम पदार्थ होता है। अत: इसका प्रयोग अपघर्षक (abrasive) तथा काँच काटने में किया जाता है।

(ङ) ऐलुमिनियम मिश्रधातु-मैग्नेलियम तथा ड्यूरैलियम जिनमें लगभग 95% धातु है, को वायुयान बनाने में प्रयोग किया जाता है। इस कारण ये हल्के, परन्तु मजबूत होते हैं। इसके अतिरिक्त इन पर जंग भी नहीं लगता है।

(च) जल को ऐलुमिनियम पात्र में पूरी रात नहीं रखना चाहिए; क्योंकि लम्बे समय तक नमी तथा ऑक्सीजन से धातु संक्षारित हो सकती है।

(छ) ऐलुमिनियम सामान्यतया वायु तथा नमी से प्रभावित नहीं होती तथा इसकी विद्युत-चालकता कॉपर से दोगुनी होती है। इसलिए संचरण केबल बनाने में ऐलुमिनियम तार का प्रयोग होता है।

प्रश्न 23.
कार्बन से सिलिकॉन तक आयनीकरण एन्थैल्पी में प्रघटनीय कमी होती है। क्यों ?
उत्तर:
कार्बन से सिलिकॉन तक आयनीकरण में प्रघटनीय कमी होती है; क्योंकि कार्बन की परमाणु त्रिज्या (77 pm) की तुलना में सिलिकॉन की परमाणु त्रिज्या अधिक (118 pm) होती है। इसलिए इलेक्ट्रॉनों का निष्कासन सरलतापूर्वक हो जाता है। सिलिकॉन से जर्मेनियम तक आयनन एन्थैल्पी में कमी प्रघटनीय नहीं होती; क्योंकि तत्वों के परमाणु आकार एकसमान रूप से बढ़ते हैं।

प्रश्न 24.
Al की तुलना में Ga की कम परमाण्वीय त्रिज्या को आप कैसे समझयेंगे ?
उत्तर:
Al की तुलना में Ga की कम परमाण्वीय त्रिज्या को प्रथम संक्रमण श्रेणी (Z = 21 से 30) के दस तत्वों की उपस्थिति के आधार पर समझाया जा सकता है। इनमें इलेक्ट्रॉन 3d-कक्षकों में होते हैं। चूँकि d-कक्षकों का आकार p-कक्षकों की तुलना में अधिक होता है; अतः अन्तरस्थ इलेक्ट्रॉनों के पास नाभिकीय आवेश में वृद्धि के प्रभाव को निरस्त करने के लिए पर्याप्त परिरक्षण प्रभाव नहीं होता। इसलिए Ga की स्थिति में प्रभावी नाभिकीय आवेश का मान कम होता है। इससे अपवादस्वरूप Ga का परमाणु आकार घट जाता है जिसे वास्तव में बढ़ा होना चाहिए था।

प्रश्न 25.
अपररूप क्या होता है? कार्बन के दो महत्त्वपूर्ण अपररूप हीरा तथा ग्रेफाइट की संरचना का चित्र बनाइए। इन दोनों अपररूपों के भौतिक गुणों पर संरचना का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
प्रकृति में शुद्ध कार्बन दो रूपों में पाया जाता है—हीरा तथा ग्रेफाइट। यदि हीरे अथवा ग्रेफाइट को वायु में अत्यधिक गर्म किया जाए तो यह पूर्ण रूप से जल जाते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड बनाते हैं। जब हीरे तथा ग्रेफाइट की समान मात्रा दहन की जाती है, तब कार्बन डाइऑक्साइड की बराबर मात्रा उत्पन्न होती है तथा कोई अवशेष नहीं बचता। इन तथ्यों से स्पष्ट है कि हीरा तथा ग्रेफाइट रासायनिक रूप से एक-समान हैं तथा केवल कार्बन परमाणुओं से बने हैं। इनके भौतिक गुण अत्यधिक भिन्न होते हैं। अतः इस प्रकार के गुणों को प्रदर्शित करने वाले तत्वों को अपररूप कहते हैं। हीरा तथा ग्रेफाइट कॉर्बन के दो प्रमुख क्रिस्टलीय अपररूप हैं।

1. हीरा – हीरा में क्रिस्टलीय जालक होता है। इसमें प्रत्येक परमाणु sp3 संकरित होता है तथा चतुष्फलकीय ज्यामिति से अन्य चार कार्बन परमाणुओं से जुड़ा रहता है। इसमें कार्बन-कार्बन बंध लम्बाई 154 pm होती है। कार्बन परमाणु दिक् (space) में दृढ़ त्रिविमीय जालक (rigid three dimensional network) का निर्माण करते हैं।
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इस संरचना में सम्पूर्ण जालक में दिशात्मक सहसंयोजक बंध उपस्थित रहते हैं। इस प्रकार विस्तृत सहसंयोजक बन्धन को तोड़ना कठिन कार्य होता है। अतः हीरा पृथ्वी पर पाया जाने वाला सर्वाधिक कठोर पदार्थ है। इसका उपयोग धार तेज करने के लिए अपघर्षक (abrasive) के रूप में, डाई बनाने में तथा विद्युत-प्रकाश लैम्प में टंगस्टन तन्तु (filament) बनाने में होता है।

2. ग्रेफाइट – ग्रेफाइट की पर्त्त्र्य संरधना (layered structure) होती है। ये पर्तें वाण्डरवाल बल द्वारा जुड़ी रहती हैं।
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इस कारण ग्रेफाइट चिकना (slippery) तथा मुलायम (soft) होता है। दो पर्तों के मध्य की दूरी 340 pm होती है। प्रत्येक पर्त में कार्बन परमाणु षट्कोणीय वलय (hexagonal rings) के रूप में व्यवस्थित होते हैं जिसमें C-C बंध लम्बाई 141.5 pm होती है। षट्कोणीय वलय में प्रत्येक कार्बन परमाणु sp2 संकरित होता है। प्रत्येक कार्बन परमाणु तीन निकटवर्ती कार्बन परमाणुओं से तीन सिग्मा बंध बनाता है। इसका चौथा इलेक्ट्रॉन π-बंध बनाता है। सम्पूर्ण पर्त में इलेक्ट्रॉन विस्थानीकृत होते हैं। इलेक्ट्रॉन गतिशील होते हैं; अत: ग्रेफाइट विद्युत का सुचालक होता है। उच्च ताप पर जिन मशीनों में तेल का प्रयोग स्नेहक (lubricant) के रूप में नहीं हो सकता है, उनमें ग्रेफाइट शुष्क स्नेहक का कार्य करता है।

3. फुलरीन्स (Fullerenes) – एच. डब्ल्यू. क्रोटो, ई. स्मैले तथा आर. एफ. कर्ल ने सन् 1985 में कार्बन में एक अन्य अपररूप फुलरीन की खोज की। इसी खोज के कारण इन्हें सन् 1996 में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।
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हीलियम, आर्गन आदि अक्रिय गैसों की उपस्थिति में जब ग्रेफाइट को विद्युत आर्क (electric arc) में गर्म किया जाता है, तब फुलरीन का निर्माण होता है। वाष्पित लघु Cn अणुओं को संघनित करने पर प्राप्त कज्जली पदार्थ (sooty material) में मुख्य रूप से C60 कुछ अंश C70 तथा अतिसूक्ष्म मात्रा में 350 या अधिक समसंख्या में कार्बन फुलरीन में पाए गए हैं। फुलरीन कार्बन का शुद्धतम रूप हैं; क्योंकि फुलरीन में किसी प्रकार का झूलता बंध (dangling bond) नहीं होता है। फुलरीन की संरचना पिंजरानुमा (cage-like) होती है। C60 अणु की आकृति सॉकर बॉल के समान होती है। इसे बकमिन्ट्टर फुलरीन (buckminstefulerene) कहते हैं।

इसमें छह सदस्यीय बीस वलय तथा पाँच सदस्यीय बारह वलय होती हैं। एक छह सदस्यीय वलय छह अथवा पाँच सदस्यीय वलय के साथ संगलित (fused) रहती है, जबकि पाँच सदस्यीय नलय केवल छ: सदस्यीय वलय के साथ संगलित अवस्था में रहती है। सभी कार्बन परमाणु समान होते हैं तथा sp2-संकरित होते हैं। प्रत्येक कार्बन परमाणु अन्य तीन कार्बन परमाणुओं के साथ तीन आबन्ध बनाता है।

चौथा इलेक्ट्रॉन पूरे अणु पर विस्थानीकृत रहता है, जो अणु को ऐरोमैटिक गुण प्रदान करता है। दस गेंदनुमा अणु में 60 उदग्र (vertices) होते हैं। प्रत्येक उदग्र पर एकल कार्बन परमाणु होता है। इस पर दोनों एकल तथा द्विबन्ध होते हैं, जिसकी C-C की लम्बाई क्रमशः 143.5 pm तथा 138.3 pmहोती है। गोलाकार फुलरीन को ‘बकी बॉल’ (Bucky ball) भी कहते हैं।

(4) अन्य अपररूप (Other Allotropes) – कार्बन तत्व के अन्य अपररूप भी होते हैं जैसे-कार्बन ब्लैक, कोक, चारकोल आदि। ये सभी अशुद्ध अपररूप कहलाते हैं।

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 11 p-ब्लॉक तत्त्व

प्रश्न 26.
(क) निम्नलिखित ऑक्साइड को उदासीन, अम्लीय, क्षारीय तथा उभयधर्मी ऑक्साइड के रूप में वर्गीकृत कीजिए-
CO, B2O3, SiO2, Al2O3, PbO2, TI2O3
(ख) इनकी प्रकृति को दर्शाने वाली रासायनिक अभिक्रिया लिखिए।
उत्तर:
(क) उदासीन ऑक्साइड : CO
अम्लीय ऑक्साइड : SiO2, CO2, B2O3
क्षारीय ऑक्साइड : Tl2O3, PbO2
उभयधर्मी ऑक्साइड : Al2O3
(ख) CO – उदासीन
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प्रश्न 27.
कुछ अभिक्रियाओं में थैलियम, ऐलुमिनियम से समानता दर्शाता है, जबकि अन्य में यह समूह-I के धातुओं से समानता दर्शाता है। इस तथ्य को कुछ प्रमाणों के द्वारा सिद्ध करें।
उत्तर:
थैलियम की ऐलुमिनियम से समानता

  • दोनों का बाह्यतम इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns2np1 होता है।
  • दोनों वायु में ऑक्साइड बनने के कारण धूमिल पड़ जाते हैं।
  • Al तथा Tl दोनों के फ्लोराइड आयनिक होते हैं तथा इनका गलनांक उच्च होता है।
  • Al तथा Tl दोनों ही +3 ऑक्सीकरण संख्या भी दर्शाते हैं।

थैलियम की समूह -I की धातुओं से समानता

  • थैलियम एवं समूह -I दोनों ही +1 ऑक्सीकरण संख्या दर्शाते हैं।
  • NaOH के समान Tl(OH) जल में विलेय होकर प्रबल क्षारीय विलयन बनाता है।
  • क्षार धातुओं के समान, थैलियम ऐलुमिनियम लवणों के साथ द्विक लवण बनाता है।
    HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 11 Img 22

प्रश्न 28.
जब धातु X की क्रिया सोडियम हाइड्रु क्साइड के साथ की जाती है तो श्वेत अवक्षेप (A) प्राप्त होता है, जो NaOH के आधिक्य में विलेय होकर विलेय संकुल (B) बनाता है। यौगिक (A) तनु HCl में घुलकर (C) बनाता है। यौगिक(A) को अधिक गर्म किए जाने पर यौगिक (D) बनता है, जो एक निष्कर्षित घातु के रूप में प्रयुक्त होता है। X,A,B, C तथा D को पहचानिए तथा इनकी पहचान के समर्थन में उपयुक्त समीकरण दीजिए।
उत्तर:
दी गई परिस्थितियों के अनुसार धातु X ऐलुमिनियम है। वे अभिक्रियाएँ, जिनमें ऐलुमिनियम भाग लेकर यौगिक A,B,C तथा D बनाता है, अग्रलिखित हैं-

(i) ऐलुमिनियम (X) को NaOH के साथ गर्म करने पर यह Al(OH)3 का सफेद् अवक्षेप बनाता है अर्थात् यौगिक (A) बनाता है जो NaOH के आधिक्य में घुलकर विलेय संकर (B) बनाता है।
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(ii) यौगिक (A) तनु HCl में घुलकर ऐलुमिनियम क्लोराइड (C) बनाता है।

(iii) गर्म करने पर Al(OH)3, ऐलुमिना (D) में परिवर्तित हो जाता है।
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Al2O3 का प्रयोग ऐलुमिनियम के निष्कर्षण में किया जाता है।

प्रश्न 29.
निम्नलिखित से आप क्या समझते हैं?
(क) अक्रिय युग्म प्रभाव,
(ख) अपररूप,
(ग) श्रृंखलन।
उत्तर:
(क) अक्रिय युग्म प्रभाव (Inert pair effect) – इलेक्ट्रॉनिक कोश विन्यास, (n – 1)d10 ns2np1 वाले तत्व में, d-कक्षक के इलेक्ट्रॉन दुर्बल परिरक्षण प्रभाव (poor shielding effect) प्रदर्शित करते हैं। इसलिए ns2 इलेक्ट्रॉन नाभिक के धनावेश द्वारा अधिक दृढ़ता से बँधे रहते हैं। इस प्रबल आकर्षण के परिणामस्वरूप, ns2 इलेक्ट्रॉन युग्मित रहते हैं तथा बन्ध में भाग नहीं लेते हैं अर्थात् अक्रिय रहते हैं। यह प्रभाव अक्रिय युग्म प्रभाव कहलाता है। इस स्थिति में, ns2np1 विन्यास में, तीन इलेक्ट्रॉनों में से केवल एक इलेक्ट्रॉन बंध-निर्माण में भाग लेता है।

(ख) अपररूप (Allotropes) – किसी तत्व का समान रासायनिक अवस्था में दो या अधिक भिन्न-रूपों में पाया जाना अपररूपता कहलाता है। तत्व के ये विभिन्न रूप अपररूप कहलाते हैं। किसी तत्व के सभी अपररूपों के रासायनिक गुण समान होते हैं, परन्तु इनके भौतिक गुणों मे अन्तर होता है।

(ग) शृंखलन (Catenation) – कार्बन में अन्य परमाणुओं के साथ सहसंयोजक बंध द्वारा जुड़कर लम्बी शृंखला या.वलय बनाने की प्रवृत्ति होती है। इस प्रवृत्ति को श्रृंखलन कहते हैं। C-C बंध अधिक प्रबल होने के कारण ऐसा होता है।

प्रश्न 30.
एक लवण X निम्नलिखित परिणाम देता है-
(क) इसका जलीय विलयन लिटमस के प्रति क्षारीय होता है।
(ख) तीव्र गर्म किए जाने पर यह काँच के समान ठ्रेस में स्वेदित हो जाता है।
(ग) जब X के गर्म विलयन में सान्द्र H2SO4 मिलाया जाता है तो एक अम्ल Z का श्वेत क्रिस्टल बनता है।
उपर्युक्त अभिक्रियाओं के समीकरण लिखिए और X, Y तथा Z को पहचानिए।
उत्तर:
दिए गए परिणामों से स्पष्ट है कि लवण X बोरेक्स (Na2B4O7) है।
(क) बोरेक्स का जलीय विलयन क्षारीय प्रकृति का होता है तथा लाल लिटमस को नीला कर देता है।
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(ख) बोरेक्स तीव्र गर्म किए जाने पर स्वेदित (swell) हो जाता है तथा क्रिस्टलन जल के अणु खोकर ठोस (Y) बनाता है।
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(ग) सान्द्र H2SO4 से अभिक्रिया करने पर, बोरेक्स बोरिक अम्ल (H3BO3) बनाता है। जब इसे विलयन से क्रिस्टलीकृत किया जाता है तो श्वेत क्रिस्टलों (Z) के रूप में होता है।
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प्रश्न 31.
सन्तुलित समीकरण दीजिए-
(क) BF3 + LiH →
(ख) B2H6 + H2O →
(ग) NaH + B2H6
(घ) H3BO3HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 11 Img 29
(ङ) Al + NaOH →
(च) B2H6 + NH3
उत्तर:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 11 Img 30

प्रश्न 32.
CO तथा CO प्रत्येक के संश्लेषण के लिए एक प्रयोगशाला तथा एक औद्योगिक विधि दीजिए।
उत्तर:
(क) कार्बनमोनोऑक्साइड (Carbon Mono oxide)
प्रयोगशाला विधि (Laboratory Method)-सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल का 373K पर फॉर्मिक अम्ल के द्वारा निर्जलीकरण कराने पर अल्प मात्रा में शुद्ध कार्बन मोनो ऑक्साइड प्राप्त होती है।
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 11 Img 31
औद्योगिक विधि (Industrial Method)-औद्योगिक रूप में इसे कोक पर भाप (Steam) प्रवाहित करके बनाया जाता है। इस प्रकार CO तथा H2 का प्राप्त मिश्रण ‘वाटर गैस’ अथवा ‘संश्लेषण गैस’ (synthesis gas) कहलाता है।
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जब भाप के स्थान पर वायु का प्रयोग किया जाता है, तब CO तथा N2 का मिश्रण प्राप्त होता है। इसे प्रोड्यूसर गैस कहते हैं।
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(ख) कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide)
प्रयोगशाला विधि (Laboratory Method) – प्रयोगशाला में इसे कैल्सियम कार्बोनेट पर तनु HCl की अभिक्रिया द्वारा बनाया जाता है।
CaCO3(s) + 2HCl(aq) → CaCl2(aq)+CO2(g)+H2O(l)
कैल्सियम – कैल्सियम कार्बन डाइ
कार्बोनेट – क्लोराइड ऑक्साइड

औद्योगिक विधि (Industrial Method) – औद्योगिक रूप में चूना पत्थर (lime-stone) को गर्म करके CO2 बनाई जा सकती है।
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प्रश्न 33.
बोरेक्स के जलीय विलयन की प्रकृति कौन-सी होती है?
(क) उदासीन
(ख) उभयधर्मी
(ग) क्षारीय
(घ) अम्लीय।
उत्तर:
(ग) क्षारीय।

प्रश्न 34.
बोरिक अम्ल के बहुलकीय होने का कारण ?
(क) इसकी अम्लीय प्रकृति है
(ख) इसमें हाइड्रोजन बंधों की उपस्थिति है
(ग) इसकी एकक्षारीय प्रकृति है
(घ) इसकी ज्यामिति है।
उत्तर:
(ख) इसमें हाइड्रोजन बंधों की उपस्थिति है।

प्रश्न 35.
डाइबोरेन में बोरॉन का संकरण कौन-सा होता है?
(क) sp
(ख) sp2
(ग) sp3
(घ) dsp2
उत्तर:
(ग) sp3

प्रश्न 36.
ऊष्मागतिकीय रूप से कार्बन का सर्वाधिक स्थायी रूप कौन-सा है?
(क) हीरा
(ख) ग्रेफाइट
(ग) फुलरीन्स
(घ) कोयला।
उत्तर:
(ख) ग्रेफाइट।

प्रश्न 37.
निम्नलिखित में से समूह-14 के तत्वों के लिए कौन-सा कथन सत्य है ?
(क) +4 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करते हैं।
(ख) +2 तथा +4 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करते हैं।
(ग) M2- तथा M4+ आयन बनाते हैं।
(घ) M2+ तथा M4- आयन बनाते हैं।
उत्तर:
(ख) +2 तथा +4 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करते हैं।

प्रश्न 38.
यदि सिलिकॉन-निर्माण में प्रारमिभक पदार्थ RSiCl3 है तो बनने वाले उत्पाद की संरचना बताइए।
उत्तर:
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HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 3 तत्त्वों का वर्गीकरण एवं गुणधर्मों में आवर्तिता

Haryana State Board HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 3 तत्त्वों का वर्गीकरण एवं गुणधर्मों में आवर्तिता Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Chemistry Solutions Chapter 3 तत्त्वों का वर्गीकरण एवं गुणधर्मों में आवर्तिता

प्रश्न 1.
आवर्त सारणी में व्यवस्था का भौतिक आधार क्या है?
उत्तर:
आवर्त सारणी में व्यवस्था का मूल आधार समान अभिलक्षणों (भौतिक एवं रासायनिक) वाले तत्त्वों को एक साथ वर्गीकृत करना है। जिससे कि इन लक्षणों का पालन करना काफी आसान हो जाये। चूँक ये अभिलक्षण मुख्यतः तत्त्वों के संयोजी कोश इलेक्ट्रॉंनिक विन्यास पर निर्भर करते हैं इसलिये किसी समूह या वर्ग में स्थित तत्त्वों में समान संयोजी कोश इलेक्ट्रॉनिक विन्यास होता है। वर्ग में ऊपर से नीचे आने पर इलेक्ट्रॉनिक विन्यास की निश्चित अन्तरालों पर पुनरावृत्ति होती है।

प्रश्न 2.
मेण्डलीव ने किस गुणधर्म को अपनी आवर्त सारणी में तत्त्वों के वर्गीकरण का आधार बनाया ? क्या वे उस पर दृढ़ रह पाये ?
उत्तर:
मेण्डलीव ने परमाणु भार को अपनी आवर्त सारणी में तत्त्वों के वर्गीकरण का आधार बनाया। मेण्डलीव ने एक नियम दिया जिसे मेण्डलीव का आवर्त नियम कहते हैं। इस नियम के अनुसार, “तत्त्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुणधर्म उनकी द्रव्यमान संख्याओं या परमाणु भारों के आवर्ती फलन होते हैं।”

मेण्डलीव अपने इस सन्दर्भ पर दृढ़ बने रहे। उन्होंने प्रथम बार तत्त्वों को एक सारणी के रूप में व्यवस्थित किया, जहाँ उन्होंने आवर्त तथा समूह बनाये। नि:सन्देह बाद में इसमें कई कमियाँ पायी गयीं तथा वैज्ञानिकों ने वर्गीकरण के इस आधार को चुनौती भी दी थी।

प्रश्न 3.
मेण्डलीव के आवर्त नियम और आधुनिक आवर्त नियम में मौलिक अन्तर क्या है ?
उत्तर:
मेण्डलीव के आवर्त नियम का आधार परमाणु भार है जबकि आधुनिक आवर्त नियम का मौलिक आधार परमाणु क्रमांक है।

प्रश्न 4.
क्वाण्टम संख्याओं के आधार पर सिद्ध कीजिए कि आवर्त सारणी के छठवें आवर्त में 32 तत्त्व होने चाहिए।
उत्तर:
छठा आवर्त छठवें कोश के अनुरूप होता है। छठवें कोश में 6s, 4f, Sp तथा 6d कक्षक उपस्थित होते हैं। इन कक्षकों में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या इस आवर्त में तत्त्वों की संख्या का निर्धारण करेगी। अत: छठवें आवर्त में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या
कक्षक – 6s, 4f, 5p, 6d
इलेक्ट्रॉन – 2 + 14 + 6 + 10 = 32 इलेक्ट्रॉन
अतः छठे आवर्त में अधिकतम 32 तत्त्व उपस्थित होंगे।

प्रश्न 5.
आवर्त और वर्ग के पदों में यह बताइये कि Z = 14 कहाँ स्थित होगा?
उत्तर:
Z = 14 वाले तत्त्व का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्न होगा – 1s², 2s², 2p6, 3s² 3p²
इस तत्त्व का आवर्त तृतीय है तथा यह p-ब्लॉक का तत्त्व है। तत्त्व के वर्ग का निर्धारण हम निम्न प्रकार कर सकते हैं।
p-ब्लॉक के लिये वर्ग = 10 + ns में e + np में e
= 10 + 2 + 2
= 14वें वर्ग का तत्त्व है तथा यह सिलिकॉन हैं।

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प्रश्न 6.
उस तत्त्व का परमाणु क्रमांक लिखिए, जो आवर्त सारणी में तीसरे आवर्त में और 17वें वर्ग में स्थित होता है।
उत्तर:
यह तत्त्व क्लोरीन (CI) है जिसका परमाणु क्रमांक 17 है।

प्रश्न 7.
कौन से तत्त्व का नाम निम्नलिखित के द्वारा दिया गया?

  1. लॉरेन्स बर्कले प्रयोगशाला द्वारा
  2. सीबोर्ग समूह द्वारा।

उत्तर:

  1. लॉरेन्स बर्कले प्रयोगशाला द्वारा लॉरेन्सियम (Lr) नाम दिया गया जिसका परमाणु क्रमांक 103 है।
  2. सीबोर्ग समूह द्वारा सीबोर्गियम (Sg) नाम दिया गया जिसका परमाणु क्रमांक 106 है।

प्रश्न 8.
एक ही वर्ग में उपस्थित तत्त्वों के भौतिक और रासायनिक गुणधर्म समान क्यों होते हैं?
उत्तर:
एक ही वर्ग में उपस्थित तत्त्वों के भौतिक और रासायनिक गुणधर्म समान होते हैं क्योंकि इन परमाणुओं के संयोजी कोश में समान इलेक्ट्रॉनिक विन्यास होता है। हालांकि इसके परमाण्वीय आकार भिन्न होते हैं जो कि वर्ग में नीचे आने पर बढ़ते जाते हैं। अतः किसी भी समूह या वर्ग में तत्त्वों के रासायनिक गुणधर्म तो समान होते हैं परन्तु इनके भौतिक लक्षणों में बहुत कम परिवर्तन होता है।

प्रश्न 9.
‘परमाणु त्रिज्या’ और ‘आयनी त्रिज्या’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
परमाणु त्रिज्या (Atomic radius) – किसी तत्त्व के परमाणु के नाभिक के केन्द्र से बाह्यतम कोश की प्रभावी दूरी, उस तत्त्व के परमाणु की परमाणु त्रिज्या (Atomic radius) कहलाती है।

आयनी त्रिज्या (Ionic radius) – किसी आयन के नाभिक के केन्द्र से वह प्रभावी दूरी जहाँ तक नाभिक इलेक्ट्रॉन मेघ पर अपना प्रभाव छोड़ सके, आयनी त्रिज्या (ionic radius) कहलाती है।

परमाणु त्रिज्या के मापन के लिये अन्य त्रिज्याओं की आवश्यकता होती है। जैसे-सहसंयोजक त्रिज्या, वाण्डर वाल त्रिज्या, धात्विक त्रिज्या आदि । वर्ग में परमाणु त्रिज्या नीचे की ओर जाने पर बढ़ती है। ऐसा इलेक्ट्रॉन कोशों की संख्या बढ़ने तथा आवरण प्रभाव के परिमाण में वृद्धि कारण होता है। आवर्त में परमाणु त्रिज्या बायें से दायें जाने पर घटती है क्योंकि इलेक्ट्रॉन समान कोश में भरते हैं तथा कोई भी नया कोश नहीं बनता है।

प्रश्न 10.
किसी वर्ग या आवर्त में परमाणु त्रिज्या किस प्रकार परिवर्तित होती है? इस परिवर्तन की व्याख्या आप किस प्रकार करेंगे ?
उत्तर:
किसी वर्ग में परमाणु त्रिज्या नीचे की ओर जाने पर बढ़ती है। क्योंकि वर्ग में नीचे जाने पर कोशों की संख्या बढ़ती जाती है तथा आवरण प्रभाव (Shielding effect) का परिमाण बढ़ता जाता है।

आवर्त में परमाणु त्रिज्या बायें से दायें जाने पर घटती जाती है, क्योंकि इलेक्ट्रॉन समान कोश में भरते हैं तथा कोई नया कोश नहीं बनता है। इस कारण नाभिकीय आकर्षण बल बढ़ता है तथा आकार घट जाता है।

प्रश्न 11.
समइलेक्ट्रॉनिक स्पीशीज से आप क्या समझते हैं? एक ऐसी स्पीशीज का नाम लिखिए जो निम्नलिखित परमाणुओं या आयनों के साथ समइलेक्ट्रॉनिक होगी ?
(i) F
(ii) Ar
(iii) Mg2+
(iv) Rb+.
उत्तर:
समइलेक्ट्रॉनिक स्पीशीज में इलेक्ट्रॉन की संख्यायें समान होती हैं। प्रश्न में दी गई स्पीशीज के साथ निम्न समइलेक्ट्रॉनिक स्पीशीज होगी-
(i) Na+
(ii) K+
(iii) Na+
(iv) Sr2+.

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प्रश्न 12.
निम्नलिखित स्पीशीज पर विचार कीजिए – .
N3-, O2-, F, Na+, Mg2+ तथा Al3+.
(क) इनमें क्या समानता है?
(ख) इन्हें आयनिक त्रिज्या के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित कीजिए।
उत्तर:
(क) ये सभी समइलेक्ट्रॉनिक हैं। इनमें प्रत्येक में 10 इलेक्ट्रॉन हैं।
(ख) Al3+ + < Mg2+ < Na+ < F < O² – < N3-.

प्रश्न 13.
धनायन अपने जनक परमाणुओं से छोटे क्यों होते हैं और ऋणायनों की त्रिज्या उनके जनक परमाणुओं की त्रिज्या से अधिक क्यों होती है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
धनायन (Cation ) जनक परमाणुओं से इलेक्ट्रॉन निकल जाने पर धनायन बनते हैं। धनायन अपने जनक परमाणुओं से छोटे होते हैं क्योंकि इलेक्ट्रॉन की संख्या कम होने पर प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ जाता है जिससे अन्तरानाभिकीय आकर्षण बल बढ़ता है तथा आकार छोटा हो जाता है।
Na > Na+, Mg > Mg2+
ऋणायन (Anion ) ऋणायन जनक परमाणुओं से इलेक्ट्रॉन के जुड़ने पर बनते हैं। ऋणायन हमेशा अपने जनक परमाणुओं से बड़े होते हैं क्योंकि इलेक्ट्रॉन की संख्या बढ़ जाने पर प्रभावी नाभिकीय आवेश कम हो जाता है, जिससे अन्तरानाभिकीय आकर्षण बल कम होता है तथा आकार बढ़ जाता है।
Cl < CE, O < O2-

प्रश्न 14.
आयनन एन्थैल्पी और इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी को परिभाषित करने में विलगित गैसीय परमाणु तथा आद्य अवस्था पदों की सार्थकता क्या है?
उत्तर:
(i) विलगित गैसीय परमाणु की सार्थकता – जब कोई परमाणु गैसीय अवस्था में विलगित होता है तो इसकी इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृत्ति एवं ग्रहण करने की प्रवृत्ति दोनों प्रकृति में असीमित होती हैं। अर्थात् इनकी आयनन एन्थैल्पी एवं इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी के मान अन्य परमाणुओं की उपस्थिति से प्रभावित नहीं होते हैं । परमाणुओं के द्रव एवं ठोस अवस्था में ऐसा होना सम्भव नहीं होता है।

(ii) आद्य अवस्था की सार्थकता – आद्य अवस्था से तात्पर्य है कि कोई विशेष परमाणु तथा इससे सम्बन्धित इलेक्ट्रॉन न्यूनतम ऊर्जा अवस्था में होते हैं। आद्य अवस्था परमाणु की सामान्य अवस्था में उपस्थित ऊर्जा को प्रदर्शित करती है। आयनन विभव तथा इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्यैल्पी दोनों को परमाणु की आद्य अवस्था होने पर ही व्यक्त किया जा सकता है।

प्रश्न 15.
हाइड्रोजन परमाणु में आद्य अवस्था में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा – 2.1 × 10-18 J है। परमाण्विक हाइड्रोजन की आयनन एन्थैल्पी J mol-1 के पदों में परिकलित कीजिए।
हल:
यनन एन्थैल्पी हमेशा 1 मोल परमाणुओं के लिये व्यक्त की जाती है। अतः एक मोल परमाणु की आद्य अवस्था में ऊर्जा,
E(आद्य अवस्था) = (- 2.18 × 10-18) × 6.02 × 1023
= 1.312 x 106
आयनन एन्थैल्पी = E – E(आद्य अवस्था)
= 0 – (-1.312 × 106 J)
आयनन एन्थैल्पी = 1.312 x 106 J

प्रश्न 16.
द्वितीय आवर्त के तत्त्वों में वास्तविक आयनन एन्थैल्पी का क्रम इस प्रकार है-
Li < B < Be < C < O < N < F < Ne
व्याख्या कीजिए कि-
(i) Be की ∆i, H, B से अधिक क्यों है?
(ii) O की ∆i, H, N और F से कम क्यों है?
उत्तर:
(i) Be (1s², 2s²) में बाह्यतम इलेक्ट्रॉन 2s कक्षक में उपस्थित है जबकि B(1s², 2s², 2p1) में 2p कक्षक में उपस्थित है। 2s इलेक्ट्रॉनों नाभिक का आकर्षण 2p कक्षक इलेक्ट्रॉनों की तुलना में अधिक होता है इसलिये 2s इलेक्ट्रॉन को निकालने के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। परिणामस्वरूप Be के लिए ∆iH का मान B से ज्यादा होता है।

(ii) N का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (1s², 2s², 2p1x, 2p1y, 2p1z) है जिसमें 2p कक्षक अर्द्धपूरित अवस्था में है जबकि O (1s², 2s², 2p1x, 2p1y, 2p1z) में 2p कक्षक न तो अर्द्धपूरित है न ही पूर्णपूरित है। अर्द्धपूरित अवस्था के स्थायी होने के कारण N से इलेक्ट्रॉन को निकालना कठिन है। जिसके परिणामस्वरूप O के लिए ∆iH का मान N की तुलना में कम होता है। फ्लुओरीन के छोटे आकार व अधिक नाभिकीय आवेश (+ 9) के कारण इसकी प्रथम आयनन एन्थैल्पी का मान की तुलना में अधिक होता है। इसलिये O की आयनन एन्थैल्पी N व F की तुलना में कम होती है।

प्रश्न 17.
आप इस तथ्य की व्याख्या किस प्रकार करेंगे कि सोडियम की प्रथम आयनन एन्थैल्पी, मैग्नीशियम की प्रथम आयनन एन्थैल्पी से कम है किन्तु इसकी द्वितीय आयनन एन्थैल्पी मैग्नीशियम की द्वितीय आयनन एन्पी से अधिक है।
उत्तर:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 3 तत्त्वों का वर्गीकरण एवं गुणधर्मों में आवर्तिता 1
Mg का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3s कक्षक में पूर्ण है अर्थात् स्थायी है जिससे इलेक्ट्रॉन निकालना Na के 3s कक्षक से इलेक्ट्रॉन निकालने की तुलना में कठिन है । अत: Na की प्रथम आयनन एन्थैल्पी Mg की प्रथम आयनन एन्थैल्पी से कम है परन्तु Na की द्वितीय आयनन एन्थैल्पी Mg की द्वितीय आयनन एन्थैल्पी से अधिक होती है क्योंकि Na से एक 3s इलेक्ट्रॉन निकलने के पश्चात् यह स्थायी विन्यास 1s², 2s², 2p6 प्राप्त कर लेता है जबकि मैग्नीशियम से इलेक्ट्रॉन निकालने के पश्चात् यह एक अस्थायी विन्यास 1s², 2s², 2p63s1 प्राप्त करता है। अतः मैग्नीशियम के 3p कक्षक से इलेक्ट्रॉन निकालना सोडियम की तुलना में सरल हो जाता है। अतः सोडियम की द्वितीय आयनन एन्थैल्पी मैग्नीशियम की द्वितीय आयनन एन्थैल्पी से अधिक होती है।

प्रश्न 18.
मुख्य समूह तत्त्वों में आयनन एन्थैल्पी के किसी समूह में नीचे की ओर कम होने के कौन-कौन से कारक हैं?
उत्तर:
मुख्य समूह तत्त्वों में आयनन एन्थैल्पी किसी समूह में नीचे जाने पर निम्न कारकों के कारण कम होती है-

  • समूह में नीचे जाने पर नये कोश बढ़ने से परमाणु आकार बढ़ जाता है।
  • समूह में नीचे जाने पर इलेक्ट्रॉन बढ़ने से बाह्य इलेक्ट्रॉनों पर आवरण प्रभाव बढ़ जाता है।
  • समूह में नीचे जाने पर नाभिकीय आवेश बढ़ता है।

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 3 तत्त्वों का वर्गीकरण एवं गुणधर्मों में आवर्तिता

प्रश्न 19.
वर्ग-13 के तत्त्वों की प्रथम आयनन एन्थैल्पी के मान (kJ mol-1) में इस प्रकार हैं-

B Al Ga In Tl
801 577 579 558 589

सामान्य से इस विचलन की प्रवृत्ति की व्याख्या आप किस प्रकार करेंगे?
उत्तर:
B से Al तक प्रथम आयनन एन्थैल्पी के मान का कम होना Al परमाणु के बड़े आकार के कारण है। Ga की प्रथम आयनन एन्थैल्पी Al से ज्यादा है। इसका कारण यह है कि Ga में 10 इलेक्ट्रॉन 3d – उपकोश में उपस्थित हैं ये 10 इलेक्ट्रॉन संयोजी कोश के इलेक्ट्रॉनों को पूर्ण रूप से परिरक्षित नहीं कर पाते, जिस कारण Ga का आकार Al से छोटा हो जाता है तथा प्रथम आयनन विभव का मान बढ़ जाता है। TI की अधिक प्रथम आयनन एन्थैल्पी यह प्रदर्शित करती है कि यहाँ प्रभावी नाभिकीय आवेश का मान बहुत अधिक है जो कि 4f- इलेक्ट्रॉनों के क्षीण या दुर्बल आवरण प्रभाव (Poor shielding effect) के कारण है।

प्रश्न 20.
तत्त्वों के निम्नलिखित गुणों में किस तत्त्व की इलेक्ट्रॉन ब्ध एन्थैपी अधिक ऋणात्मक होगी?
(i) O या F
(ii) F या Cl
उत्तर:
(i) F की इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी अधिक ऋणात्मक होती है क्योंकि F का आकार ऑक्सीजन से छोटा होता है जिसके कारण प्रभावी नाभिकीय आवेश अधिक होता है और जुड़ने वाला इलेक्ट्रॉन अधिक आकर्षण बल अनुभव करता है।

अतः अधिक प्रभावी नाभिकीय आवेश के कारण e अधिक आकर्षण बल का अनुभव करता है तथा इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी का मान बढ़ जाता है।

(ii) Cl की इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी अधिक ऋणात्मक होगी क्योंकि F का आकार छोटा होता है। F परमाणु का अधिक उच्च आवेश घनत्व होने के कारण जुड़ने वाले इलेक्ट्रॉन प्रबल इलेक्ट्रॉन – इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षण अनुभव करते हैं। अतः F से एक इलेक्ट्रॉन जुड़ने पर ऊर्जा अवशोषित होती है तथा ऋणायन बनने पर निर्गत कुल ऊर्जा में कमी आ जाती है। यदि इलेक्ट्रॉन को बड़े p-कक्षक में जोड़ा जाता है तो इलेक्ट्रॉन इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षण अत्यन्त कम हो जाता है तथा इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी का उच्च मान प्रेक्षित होता है। इस प्रकार F की इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी का मान क्लोरीन के मान से कम हो जाता है।

प्रश्न 21.
आप क्या सोचते हैं कि O की द्वितीय इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी प्रथम इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी के समान धनात्मक, अधिक ऋणात्मक या कम ऋणात्मक होगी? अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
ऑक्सीजन की द्वितीय इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी धनात्मक होगी। ऑक्सीजन परमाणु का आकार छोटा होता है और नाभिकीय आवेश उच्च होता है जिससे यह सरलता से इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर लेता है और ऊर्जा निकलती है। इस प्रकार प्राप्त O(g) समान आवेशों के मध्य स्थिर विद्युत प्रतिकर्षण के कारण सरलता से इलेक्ट्रॉन प्राप्त नहीं कर सकता। अतः द्वितीय इलेक्ट्रॉन को O(g) में प्रवेश कराने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होगी। अतः प्रतिकर्षण समाप्त करने के लिए यह ऊर्जा इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने से निकली ऊर्जा अर्थात् प्रथम इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी से अधिक होती है।

अतः ऑक्सीजन की प्रथम इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी ऋणात्मक तथा द्वितीय इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी धनात्मक होती है।
O(g) + e → O(g) E. A. (1) = – ve
O(g) + e → O2-(g) E. A. (2) = + ve

प्रश्न 22.
इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी और वैद्युत ऋणात्मकता में क्या मूल अन्तर है?
उत्तर:

वैद्युत ऋणात्मकता इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी
1. इसमें परमाणु के सहभाजित इलेक्ट्रॉन युग्म को आकर्षित करने की प्रवृत्ति होती है। इसमें परमाणु के बाह्य इलेक्ट्रॉन को आकर्षित करने की प्रवृत्ति होती है।
2. इसमें परमाणु के सापेक्ष इलेक्ट्रॉन को आकर्षित करने की प्रवृत्ति है। इसमें परमाणु के असीमिति इलेक्ट्रॉन को आकर्षित करने की प्रवृत्ति है।
3. इसमें बन्धित परमाणु का गुण है। इसमें विलगित परमाणु का गुण है।
4. इसकी कोई भी इकाई नहीं होती है। इसकी इकाई KJ mol-1 तथा eV / atom होती है।

प्रश्न 23.
सभी नाइट्रोजन यौगिकों में N की ऋणात्मकता पॉउलिंग पैमाने पर 3.0 है। आप इस कथन पर अपनी क्या प्रतिक्रिया देंगे ?
उत्तर:
पॉउलिंग पैमाने पर N की विद्युत ऋणात्मकता 3.0 है, जो यह प्रदर्शित करती है कि N पर्याप्त रूप से विद्युत ऋणात्मक है। परन्तु किसी तत्त्व की विद्युत ऋणात्मकता स्थिर नहीं होती है। यह परमाणु के किसी दूसरे तत्त्व के साथ बन्धन पर तथा संकरण की अवस्था पर निर्भर करती है। इसलिये यह कथन गलत है।

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 3 तत्त्वों का वर्गीकरण एवं गुणधर्मों में आवर्तिता

प्रश्न 24.
उस सिद्धान्त का वर्णन कीजिए जो परमाणु की त्रिज्या से सम्बन्धित होता है-
(i) जब वह इलेक्ट्रॉन प्राप्त करता है।
(ii) जब वह इलेक्ट्रॉन का त्याग करता है।
उत्तर:
(i) परमाणु द्वारा इलेक्ट्रॉन प्राप्त करने पर ऋणायन बनता है जिसके फलस्वरूप एक या अधिक इलेक्ट्रॉन परमाणु के संयोजी कोश में जुड़ जाते हैं। नाभिकीय आवेश जनक परमाणु के बराबर ही रहता है। संयोजी कोश में इलेक्ट्रॉन बढ़ने से इलेक्ट्रॉन द्वारा परिरक्षण की अधिकता होने से प्रभावी नाभिकीय आवेश कम हो जाता है जिससे आयनिक त्रिज्या बढ़ जाती है।
F < F-(त्रिज्या)
(2, 7) (2, 8)
72 pm 136 pm

(ii) इलेक्ट्रॉन त्यागने पर धनायन बनता है जो अपने जनक परमाणु से आकार में छोटा होता है। इसके दो कारण हो सकते हैं- (a) संयोजी कोश का समाप्त हो जाना जैसे सोडियम में। (b) प्रभावी नाभिकीय आवेश में वृद्धि हो जाने से।
Na > Na+(त्रिज्या)
(2, 8, 1) (2, 8)
(157 pm) (95 pm)

प्रश्न 25.
किसी तत्त्व के दो समस्थानिकों की प्रथम आयनन एन्थैल्पी समान होगी या भिन्न ? आप क्या मानते हैं? अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
आयनन एन्थैल्पी नाभिकीय आवेश के परिमाण एवं तत्त्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास से सम्बन्धित होती है। चूँक किसी तत्त्व के समस्थानिकों में नाभिकीय आवेश एवं इलेक्ट्रॉनिक विन्यास समान होते हैं। इसलिए इनकी आयनन एन्थैल्पी समान होती है।

प्रश्न 26.
धातुओं तथा अधातुओं में मुख्य अन्तर क्या है?
उत्तर:
धातुओं तथा अधातुओं में अन्तर निम्न प्रकार है-

गुण धातु अधातु
1. भौतिक अवस्था ये कमरे के ताप पर ठोस होती हैं। (अपवाद -Hg कमरे के ताप पर द्रव होती है।) ये कमरे के ताप पर ठोस द्रव गैस कुछ भी हो सकती है। अर्थात् ये द्रव की सभी अवस्थाओं में पाई जाती है। ये सामान्यतः चमक रहित होती हैं। (अपवाद-ग्रेफाइट)
2. चमक
3. चालकता धातुएँ ऊष्मा तथा विद्युत की सुचालक होती हैं। अधातुएँ ऊष्मा और विद्युत की कुचालक होती हैं। (अपवाद-ग्रेफाइट)
4. कठोरता ये मुख्यतः कठोर होती हैं। ये सामान्यतया मृदु होती हैं।
5. आघातवर्धनीयता एवं तन्यता धातुएँ आघतवर्धनीय एवं तन्य होती हैं। ये आघातवर्धनीय एवं तन्य नहीं होती हैं। ये भंगुर होती हैं।
6. गलनांक एवं क्वथनांक इनके गलनांक व क्वथनांक उच्च होते हैं व ये तीनों अवस्थाओं में पायी जाती हैं। इनके गलनांक व क्वथनांक उच्च नहीं होते हैं।

प्रश्न 27.
आवर्त सारणी का उपयोग करते हुए निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(i) उस तत्त्व का नाम बताइए जिसके बाह्य कोश में पाँच इलेक्ट्रॉन उपस्थित हों।
(ii) उस तत्त्व का नाम बताइए जिसकी प्रवृत्ति दो इलेक्ट्रॉन त्यागने की हो।
(iii) उस तत्त्व का नाम बताइए जिसकी प्रवृत्ति दो इलेक्ट्रॉन प्राप्त करने की हो।
(iv) उस वर्ग का नाम बताइए जिसमें सामान्य ताप पर धातु, अधातु, द्रव और गैस उपस्थित हों।
उत्तर:
(i) नाइट्रोजन N (7) = 2, 5
(ii) मैग्नीशियम Mg (12) = 2, 8, 2
(iii) ऑक्सीजन O (8) = 2, 6
(iv) प्रथम वर्ग में H अधातु गैस है, Cs द्रव है तथा Na, K ठोस धातु हैं।

प्रश्न 28.
प्रथम वर्ग के तत्त्वों के लिए अभिक्रिया-शीलता का बढ़ता हुआ क्रम इस प्रकार है-
Li < Na < K < Rb < Cs जबकि वर्ग 17 के तत्त्वों में क्रम F> Cl > Br > I है। इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रथम वर्ग में तत्त्वों की अभिक्रियाशीलता उनके इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृत्ति के कारण होती है। जिसे आयनन एन्थैल्पी से ज्ञात करते हैं। आयनन एन्थैल्पी वर्ग में ऊपर से नीचे की ओर आने पर घटती है। अतः धातुओं की अभिक्रियाशीलता बढ़ती है।
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 3 तत्त्वों का वर्गीकरण एवं गुणधर्मों में आवर्तिता 2
हैलोजनों में अभिक्रियाशीलता ऋणायनों के बनने की प्रवृत्ति पर निर्भर करती है। अर्थात् इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी के मान पर हैलोजनों की अभिक्रियाशीलता पर निर्भर करते हैं। वर्ग में नीचे आने पर इलेक्ट्रॉन – लब्धि एन्थैल्पी का मान घटता है तथा हैलोजनों की अभिक्रियाशीलता भी घटती है।

अधातुओं की अभिक्रियाशीलता ∝ इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी

प्रश्न 29.
s, p, d और f-ब्लॉकों के तत्त्वों का सामान्य बाह्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए।
उत्तर:

  1. s-ब्लॉक के तत्त्वों का सामान्य बाह्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns1 तथा ns² होता है ।
  2. p-ब्लॉक के तत्त्वों का सामान्य बाह्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns² np1-6 होता है।
  3. d-ब्लॉक के तत्त्वों का सामान्य बाह्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (n – 1)d1-10 ns1-2 होता है।
  4. f-ब्लॉक के तत्त्वों का सामान्य बाह्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (n – 2)f1-14 (n – 1)d0-1 ns² होता है।

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 3 तत्त्वों का वर्गीकरण एवं गुणधर्मों में आवर्तिता

प्रश्न 30.
तत्त्व जिसका बाह्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्नलिखित है, का स्थान आवर्त सारणी में बताइए –
(i) ns² np4, जिसके लिए n = 3 है ।
(ii) (n – 1)d²ns², जब n = 4 है ।
(iii) (n – 2)f1(n – 1 )d1ns², जब n = 6 है ।
उत्तर:
(i) तत्त्व तीसरे आवर्त में स्थित है तथा वर्ग 16 (10 + 2 + 4 = 16) है।
(ii) तत्त्व चौथे आवर्त में तथा वर्ग 4 ( 2 + 2 = 4) में स्थित है।
(iii) तत्त्व छठवें आवर्त तथा वर्ग 3 में स्थित है।

प्रश्न 31.
कुछ तत्त्वों की प्रथम ∆iH1, और द्वितीय ∆iH2 आयनन एन्थैल्पी (kJ mol-1 में) और इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी (∆egH) (kJ mol-1 में) निम्नलिखित है –

तत्त्व iH1 iH2 egH
I 520 7300 -60
II 419 3051 -48
III 1681 3374 -328
IV 1008 1846 -295
V 2372 5251 +48
VI 738 1451 -40

ऊपर दिये गये तत्त्वों में कौन-सी-
(क) सबसे कम अभिक्रियाशील धातु है।
(ख) सबसे अधिक अभिक्रियाशील धातु है।
(ग) सबसे अधिक अभिक्रियाशील अधातु है।
(घ) सबसे कम अभिक्रियाशील अधातु है।
(ङ) ऐसी धातु है जो स्थायी द्विअंगी हैलाइड जिसका सूत्र MX2 (X = हैलोजन) बनाती है।
(च) ऐसी धातु जो मुख्यत: MX (X = हैलोजन ) वाले स्थायी सहसंयोजी हैलाइड बनाती है।
उत्तर:
(क) तत्त्व V की आयनन एन्थैल्पी उच्चतम है। अतः यह सबसे कम अभिक्रियाशील धातु है।

(ख) न्यूनतम प्रथम आयनन एन्थैल्पी वाले तत्त्व सरलता से इलेक्ट्रॉन त्याग देते हैं। इसलिए ये अधिक अभिक्रियाशील होते हैं। तत्त्व II की प्रथम आयनन एन्थैल्पी न्यूनतम है अत: यह सबसे अधिक अभिक्रियाशील धातु है।

(ग) अधातुओं की आयनन एन्थैल्पी उच्च तथा इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी अधिक ऋणात्मक होती है अतः तत्त्व III सबसे अधिक अभिक्रियाशील अधातु है।

(घ) तत्त्व IV सबसे कम अभिक्रियाशील अधातु है । क्योंकि इसकी इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी तो ऋणात्मक है पर आयनन एन्थैल्पी उच्च नहीं है।

(ङ) धातुओं की आयनन एन्थैल्पी अपेक्षाकृत कम होती है। वर्ग 2 के तत्त्वों की प्रथम आयनन एन्थैल्पी वर्ग 1 के तत्त्वों की तुलना में उच्च होती है। चूँकि तत्त्व M सूत्र MX2 का एक स्थायी द्विअंगी हैलाइड बनाता है। अत: M को आवर्त सारणी के वर्ग 2 में होना चाहिए। वर्ग 2 के तत्त्वों के लिए प्रथम एवं द्वितीय आयनन एन्थैल्पी का योग इनके समीपवर्ती तत्त्वों की तुलना में कम होता है अतः तत्त्व VI ही वह धातु है जो सूत्र MX2 के द्विअंगी हैलाइड को बनाने की क्षमता रखती है।

(च) धातु जो मुख्यत: MX वाले स्थायी सह-संयोजक हैलाइड बनाती है तत्त्व I है, चूँकि वर्ग I में तत्त्वों के छोटे आकारों के कारण आयनन एन्थैल्पी उच्च होती है।

प्रश्न 32.
तत्त्वों के निम्नलिखित युग्मों के संयोजन से बने स्थायी द्विअंगी यौगिकों के सूत्रों की प्रागुक्ति कीजिए।
(क) लीथियम और ऑक्सीजन,
(ख) मैग्नीशियम और नाइट्रोजन,
(ग) ऐलुमिनियम और आयोडीन,
(घ) सिलिकॉन और ऑक्सीजन,
(ङ) फास्फोरस और फ्लोरीन,
(च) 71वाँ तत्त्व व फ्लोरीन।
उत्तर:
(क) Li2O
(ख) Mg3N2
(ग) AlI3
(घ) SiO2
(ङ) PF5
(च) LuF2

प्रश्न 33.
आधुनिक आवर्त सारणी में आवर्त निम्न में से किसको व्यक्त करता है?
(क) परमाणु संख्या
(ख) परमाणु द्रव्यमान
(ग) मुख्य क्वाण्टम संख्या
(घ) दिगंशी क्वाण्टम संख्या
उत्तर:
(ग) मुख्य क्वाण्टम संख्या

प्रश्न 34.
आधुनिक आवर्त सारणी के लिए निम्नलिखित के सन्दर्भ में कौन-सा कथन सही नहीं है?
(क) p-ब्लॉक में 6 स्तम्भ हैं क्योंकि कोश के सभी कक्षक भरने के लिए अधिकतम 6 इलेक्ट्रॉनों की आवश्यकता होती है।
(ख) d-ब्लॉक में 8 स्तम्भ हैं क्योंकि d उपकोश के कक्षक भरने के लिए अधिकतम 8 इलेक्ट्रॉनों की आवश्यकता होती है।
(ग) प्रत्येक ब्लॉक में स्तम्भों की संख्या उपकोश में भरे जा सकने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या के बराबर होती है।
(घ) तत्त्व के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास को भरते समय अन्तिम भरे जाने वाले इलेक्ट्रॉन का उपकोश उसकी दिगंशी क्वाण्टम संख्या को प्रदर्शित करता है।
उत्तर:
(ख) d-ब्लॉक में 8 स्तम्भ हैं क्योंकि d उपकोश के कक्षक भरने के लिए अधिकतम 8 इलेक्ट्रॉनों की आवश्यकता होती है। यह कथन गलत है। d ब्लॉक में 10 स्तम्भ होते हैं और d उपकोश के कक्षक भरने के लिए 10 इलेक्ट्रॉनों की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 35.
ऐसा कारक जो संयोजकता इलेक्ट्रॉन को प्रभावित करता हैं, उस तत्त्व की रासायनिक प्रवृत्ति भी प्रभावित करता है। निम्नलिखित में से कौन-सा कारक संयोजकता कोश को प्रभावित नहीं करता?
(क) संयोजक मुख्य क्वाण्टम संख्या (n)
(ख) नाभिकीय आवेश (Z)
(ग) नाभिकीय द्रव्यमान
(घ) क्रोड इलेक्ट्रॉन की संख्या
उत्तर:
(ग) नाभिकीय द्रव्यमान संयोजकता इलेक्ट्रॉनों को प्रभावित नहीं करता है।

प्रश्न 36.
समइलेक्ट्रॉनिक स्पीशीज F, Ne और Na+ का आकार इनमें से किससे प्रभावित होता है ?
(क) नाभिकीय आवेश (Z)
(ख) मुख्य क्वाण्टम संख्या (n)
(ग) बाह्य कक्षकों में इलेक्ट्रॉन-इलेक्ट्रॉन अन्योन्य क्रिया
(घ) ऊपर दिये गये कारणों में से कोई भी नहीं क्योंकि उनका आकार समान है।
उत्तर:
(क) समइलेक्ट्रॉनिक स्पीशीज का आकार नाभिकीय आवेश (Z) द्वारा प्रभावित होता है।

प्रश्न 37.
आयनन एन्थैल्पी के सन्दर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है-
(क) प्रत्येक उत्तरोत्तर इलेक्ट्रॉन से आयनन एन्थैल्पी बढ़ती है।
(ख) क्रोड उत्कृष्ट गैस के विन्यास से जब इलेक्ट्रॉन को निकाला जाता है तब आयनन एन्थैल्पी का मान अत्यधिक होता है।
(ग) आयनन एन्थैल्पी के मान में अत्यधिक तीव्र वृद्धि संयोजकता इलेक्ट्रॉनों के विलोपन को व्यक्त करती है।
(घ) कम मान वाले कक्षकों से अधिक n मान वाले कक्षकों की तुलना में इलेक्ट्रॉनों को आसानी से निकाला जा सकता है।
उत्तर:
(घ) असत्य है।

प्रश्न 38.
B, Al, Mg, K तत्त्वों के लिए धात्विक अभिलक्षण का सही क्रम इनमें से कौन-सा है ?
(क) B > Al > Mg > K
(ख) Al > Mg > B > K
(ग) Mg > Al > K > B
(घ) K > Mg > Al > B
उत्तर:
(घ) K > Mg > Al > B क्रम सही है।

प्रश्न 39.
तत्त्वों B, C, N, F और Si के लिए अधातु अभिलक्षण का इनमें से सही क्रम कौन-सा है?
(क) B> C > Si > N > F
(ख) Si> C > B>N>F
(ग) F > N > C > B > Si
(घ) F > N > C > Si > B
उत्तर:
(ग) F > N > C > B > Si क्रम सही है।

प्रश्न 40.
तत्त्वों F, CI, O और N तथा ऑक्सीकरण गुणधर्मों के आधार पर उनकी रासायनिक अभिक्रिया- शीलता का क्रम निम्नलिखित में से कौन-से तत्त्वों में से है-
(क) F > Cl > O > N
(ख) F > O > Cl > N
(ग) Cl> F > O > N
(घ) O > F > N > Cl
उत्तर:
(ख) F > O > Cl > N क्रम सही है।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

Haryana State Board HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न 1.
द्रव्यमान केन्द्र की गति का मुख्य कारण है-
(a) पारस्परिक बल
(b) नाभिकीय बल
(c) बाह्य बल
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) बाह्य बल

प्रश्न 2.
एक तार जिकसी लम्बाई L तथा द्रव्यमान M है, को वृत्ताकार छल्ले में मोड़ा जाता है। इसका जड़त्व आघूर्ण केन्द्र से गुजरने वाली तथा तल के लम्बवत् अक्ष के परित: है-
(a) \(\frac{ML²}{8π²}\)
(b) 8π² ML²
(c) \(\frac{ML²}{4π²}\)
(d) π² ML²
उत्तर:
(c) \(\frac{ML²}{4π²}\)

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 3.
द्रव्यमान केन्द्र वह बिन्दु है जिसके सापेक्ष किसी पिण्ड के लिए निम्न राशि का मान शून्य होता है-
(a) कोणीय आघूर्ण
(b) बलाघूर्ण
(c) द्रव्यमान आघूर्ण
(d) भार
उत्तर:
(c) द्रव्यमान आघूर्ण

प्रश्न 4.
द्रव्यमान केन्द्र हमेशा वह बिन्दु है-
(a) जो पिण्ड का ज्यामितीय केन्द्र है
(b) जहाँ से सभी कणों की दूरी समान है।
(c) जहाँ पिण्ड का सम्पूर्ण द्रव्यमान केन्द्रित माना जा सके
(d) जो निर्देश तन्त्र का मूल बिन्दु है।
उत्तर:
(c) जहाँ पिण्ड का सम्पूर्ण द्रव्यमान केन्द्रित माना जा सके

प्रश्न 5.
यदि HCI अणु में H की द्रव्यमान केन्द्र से दूरी हो तो CI35 की दूरी होगी-
(a) 35x
(b) x
(c) \(\frac{36x}{35}\)
(d) \(\frac{x}{35}\)
उत्तर:
(d) \(\frac{x}{35}\)

प्रश्न 6.
बाह्य बल की अनुपस्थिति में द्रव्यमान केन्द्र से सम्बद्ध राशि नियत रहती है-
(a) वेग
(b) त्वरण
(c) स्थिति
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) वेग

प्रश्न 7.
एक घूमती हुई चकती की त्रिज्या यकायक आधी कर दी जाये परन्तु द्रव्यमान स्थिर रहे तो उसका कोणीय वेग हो जायेगा-
(a) दोगुना
(b) आधा
(c) चार गुना
(d) अपरिवर्तित
उत्तर:
(c) चार गुना

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 8.
कोणीय संवेग का 2 घटक रैखिक संवेग के घटकों रूप में निम्न है-
(a) Lz =xpy – yPx
(b) Lz = ypy – xPx
(c) Lz = yPx – xPy
(d) Lz =xpx – ypz
उत्तर:
(a) Lz =xpy – yPx

प्रश्न 9.
ग्रहों की परिभ्रमण गति में नियत रहता है-
(a) गुरुत्वीय बल
(b) अभिकेन्द्र बल
(c) कोणीय संवेग
(d) कोणीय त्वरण
उत्तर:
(c) कोणीय संवेग

प्रश्न 10.
घूर्णन गति में किया गया कार्य होता है-
(a) \(\vec{\tau} \cdot \vec{\alpha}\)
(b) \(\vec{\tau} \cdot \vec{\theta}\)
(c) \(\vec{\tau} \cdot \vec{\omega}\)
(d) \(\vec{L} \cdot \vec{\theta}\)
उत्तर:
(b) \(\vec{\tau} \cdot \vec{\theta}\)

प्रश्न 11.
केन्द्रीय बल क्षेत्र में नियत रहता है-
(a) रैखिक संवेग
(b) कोणीय संवेग
(c) गतिज ऊर्जा
(d) स्थितिज ऊर्जा
उत्तर:
(b) कोणीय संवेग

प्रश्न 12.
दो बिन्दु द्रव्यमान क्रमश: m1,m2 अपने परस्पर गुरुत्वीय आकर्षण बल के प्रभाव में गति करते हैं। यदि कोई अन्य बल नहीं लग रहा हो तो संरक्षित रहेगा-
(a) केवल रैखिक संवेग
(b) केवल कोणीय संवेग
(c) दोनों रैखिक एवं कोणीय संवेग
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) दोनों रैखिक एवं कोणीय संवेग

प्रश्न 13.
यदि दो द्रव्यमान m1 तथा m2 की द्रव्यमान केन्द्र से दूरी क्रमशः r1 तथा r2 हो तो का मान होगा-
(a) m1 / m2
(b) (m1 / m2
(c) m2 / m1
(d) (m2 / m1
उत्तर:
(c) m2 / m1

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 14.
दो कण जिनके द्रव्यमान 10 तथा 30 किलोग्राम हैं और इनके स्थिति सदिश क्रमश: \((\hat{i}+\hat{j}+\hat{k})\) तथा \((-\hat{i}-\hat{j}-\hat{k})\) है तो निकाय का द्रव्यमान केन्द्र होगा-
(a) \(– \frac{(\hat{i}+\hat{j}+\hat{k})}{2}\)
(b) \(\frac{(\hat{i}+\hat{j}+\hat{k})}{2}\)
(c) \(– \frac{(\hat{i}+\hat{j}+\hat{k})}{4}\)
(d) \(\frac{(\hat{i}+\hat{j}+\hat{k})}{4}\)
उत्तर:
(a) \(– \frac{(\hat{i}+\hat{j}+\hat{k})}{2}\)

प्रश्न 15.
एक समान वर्गाकार प्लेट ABCD के दो किनारों B व C पर एक-एक किग्रा के पिण्ड रखे हैं। एक तीसरे 2 किग्रा द्रव्यमान के पिण्ड को प्लेट पर कहाँ रखें कि प्लेट का द्रव्यमान केन्द्र वर्ग के केन्द्र 0 पर ही रहे?
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -1
(a) P
(b) 2
(c) R
(d) s
उत्तर:
(b) 2

प्रश्न 16.
जूल सेकण्ड मात्रक है-
(a) शक्ति का
(b) कोणीय संवेग का
(c) बल आघूर्ण का
(d) रैखिक संवेग का
उत्तर:
(b) कोणीय संवेग का

प्रश्न 17.
डिस्क की स्वयं की अक्ष के प्रति घूर्णन त्रिज्या है-
(a) R / 2
(b) R / √2
(c) R
(d) R√2
उत्तर:
(b) R / √2

प्रश्न 18.
लम्बाई तथा द्रव्यमान के एक पतले तार को अर्धवृतत के रूप में मोड़ा गया है। उसके स्वतन्त्र किनारों को मिलाने वाली रेखा के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण होगा-
(a) \(\frac{m l^2}{2 \pi^2}\)
(b) \(\frac{m l^2}{2}\)
(c) \(\frac{m l^2}{\pi^2}\)
(d) ml²
उत्तर:
(a) \(\frac{m l^2}{2 \pi^2}\)

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 19.
एक छल्ला किसी नत तल पर प्रथम बार बिना लुढ़के खिसकता है तथा दूसरी बार बिना खिसके लुढ़कता है तो दोनों परिस्थितियों में उत्पन्न त्वण का अनुपात है-
(a) 1 : 1
(b) 2 : 1
(c) 1 : 2
(d) 4 : 1
उत्तर:
(b) 2 : 1

प्रश्न 20.
एक पतला खोखला बेलन जिसका व्यास 0.3 मीटर है, 2 मीटर ऊँचे नत तल पर विरामावस्था से लुढ़कता है पैदे पर पहुँचने पर उसका रेखीय वेग होगा-
(a) 2g
(b) √2g
(c) g/2
(d) \(\frac{3g}{10}\)
उत्तर:
(b) √2g

प्रश्न 21.
बाह्य बल की अनुपस्थिति में द्रव्यमान केन्द्र का वेग-
(a) शून्य है
(b) नियत रहेगा
(c) बढ़ेगा
(d) छटेगा।
उत्तर:
(b) नियत रहेगा

प्रश्न 22.
किसी पदार्थ के गोले के लिए उसके व्यास के जड़त्व आघूर्ण / का मान उसकी त्रिज्या R की किस घात के समानुपाती है?
(a) R²
(b) R²
(c) R4
(d) R²
उत्तर:
(b) R²

प्रश्न 23.
किसी ठोस गोले का व्यास के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण का मान I है तो गोले का उसकी स्पर्श रेखा के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण होगा-
(a) \(\frac{7}{2}\)I
(b) \(\frac{5}{2}\)I
(c) \(\frac{2}{5}\)I
(d) \(\frac{1}{2}\)I
उत्तर:
(a) \(\frac{7}{2}\)I

प्रश्न 24.
1 मीटर व 5 मीटर त्रिज्या की दो वलय एक नत तल पर एक साथ बिना फिसले प्रारम्भ करते हैं। पृथ्वी तल पर कौन-सी वलय पहले पहुंचेगी?
(a) बड़ी वलय
(b) छोटी वलय
(c) दोनों एक साथ
(d) कुछ नहीं कहा जा सकता।
उत्तर:
(c) दोनों एक साथ

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Questions)

प्रश्न 1.
दृढ़ पिण्ड की साम्यावस्था के लिए प्रतिबन्ध लिखिए।
उत्तर:
ΣF = 0 तथा Στ = 0

प्रश्न 2.
द्विपरमाणुक अणु के जड़त्व आघूर्ण के लिए व्यंजक लिखिए।
उत्तर:
I = \(\frac{m_1m_2}{m_1+m_2}\)r² जहाँ दोनों परमाणुओं के मध्य दूरी।

प्रश्न 3.
क्या किसी पिण्ड की घूर्णन त्रिज्या अचर राशि है?
उत्तर:
नहीं; घूर्णन अक्ष बदलने पर जड़त्व आघूर्ण एवं घूर्णन त्रिज्या दोनों के मान बदल जाते हैं।

प्रश्न 4.
धनात्मक आघूर्ण व ऋणात्मक आघूर्ण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यदि बल की प्रवृत्ति पिण्ड को वामावर्त (Anticlockwise) दिशा में घुमाने की है तो उसका बल आघूर्ण धनात्मक आघूर्ण कहलाता है। इसके विपरीत पिण्ड को दक्षिणावर्त (clockwise) दिशा में घुमाने की प्रवृत्ति रखने वाले बल का आघूर्ण ऋणात्मक आघूर्ण कहलाता है।

प्रश्न 5.
किसी गोले को पिघलाकर उसे चकती का स्वरूप प्रदान कर दिया जाता है तो उसके जड़त्व आघूर्ण पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
चकती का जड़त्व आघूर्ण गोले के जड़त्व आघूर्ण से अधिक होगा।

प्रश्न 6.
क्या द्रव्यमान केन्द्र व गुरुत्व केन्द्र सम्पाती होते हैं?
उत्तर:
समरूप द्रव्यमान घनत्व वाली वस्तुओं में उक्त दोनों केन्द्र सम्पाती होते हैं।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 7.
पेंचकस का हत्या चौड़ा क्यों बनाया जाता है?
उत्तर:
पेंचकस के हत्थे पर अंगूठे एवं उँगलियों की सहायता से बलयुग्म लगाकर उसे घूर्णन गति प्रदान की जाती है और बलयुग्म का आघूर्ण τ = F × r
अतः r के मान को बढ़ाने के लिए पेंचकस का हत्था चौड़ा लिया जाता है ताकि कम बल (F) लगाने पर भी अधिक बलयुग्म का आघूर्ण (τ) प्राप्त हो सके और पेंच को आसानी से खोला या कसा जा सके।

प्रश्न 8.
किसी दृढ़ पिण्ड के समस्त कणों के कोणीय वेग एक समान होते हैं या भिन्न-भिन्न?
उत्तर:
दृढ़ पिण्ड के सभी कणों के कोणीय वेग समान होते हैं।

प्रश्न 9.
समान द्रव्यमान त्रिज्या तथा आकृति की खोखली तथा ठोस वस्तुओं में किसका जड़त्व अधिक होगा?
उत्तर:
खोखली वस्तुओं का जड़त्व अधिक होता है ।

प्रश्न 10.
क्या घर्षण रहित नत तल पर कोई वस्तु लोटनी गति कर सकती है?
उत्तर:
नहीं; वह फिसल जायेगी।

प्रश्न 11.
किसी पिण्ड के कोणीय संवेग J, जड़त्व आघूर्ण एवं कोणीय वेग 00 में क्या सम्बन्ध होता है?
उत्तर:
J = I.ω ।

प्रश्न 12.
किसी पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण किन कारकों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
(i) घूर्णन अक्ष की स्थिति पर
(ii) घूर्णन अक्ष के सापेक्ष पिण्ड के द्रव्यमान वितरण पर ।

प्रश्न 13.
क्या यह आवश्यक है कि द्रव्यमान केन्द्र पर द्रव्यमान उपस्थित हो?
उत्तर:
नहीं। उदाहरण के लिए वलय का द्रव्यमान केन्द्र उसके केन्द्र पर होता है जहाँ द्रव्यमान नहीं होता है।

प्रश्न 14.
क्या द्रव्यमान केन्द्र एक वास्तविकता है?
उत्तर:
नहीं, यह केवल एक गणितीय अवधारणा है।

प्रश्न 15.
क्या रेखीय गति में वस्तु में कोणीय संवेग हो सकता है?
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 16.
यदि पृथ्वी की त्रिज्या कम हो जाये तो दिन की लम्बाई में क्या प्रभाव होगा?
उत्तर:
पृथ्वी की त्रिज्या कम होने पर जड़त्व आघूर्ण (I) कम हो जायेगा। फलस्वरूप कोणीय संवेग संरक्षण के सिद्धान्त के अनुसार (I.ω = नियतांक) उसका कोणीय वेग ω का मान बढ़ेगा और ω का मान बढ़ने से (ω = \(\frac{2π}{T}\)) आवर्तकाल T का मान कम होगा। परिणामस्वरूप दिन की लम्बाई घट जायेगी।

प्रश्न 17.
किस अक्ष के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण न्यूनतम होता है?
उत्तर:
द्रव्यमान केन्द्र से गुजरने वाली अक्ष के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण न्यूनतम होता है।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 18.
एक व्यक्ति घूर्णन कर रही मेज पर अपनी भुजाएं फैलाये हुए बैठा है। यदि वह भुजाएं सिकोड़ ले तो क्या होगा?
उत्तर:
भुजाएं सिकोड़ने पर उसका जड़त्व आघूर्ण कम होने से उसका कोणीय वेग बढ़ जायेगा।

प्रश्न 19.
एक पतली छड़ का द्रव्यमान M एवं इसकी लम्बाई L है तो छड़ के सिरे से छड़ के लम्बवत् गुजरने वाली अक्ष के सापेक्ष उसका जड़त्व आघूर्ण क्या होगा?
उत्तर:
I = \(\frac{ML^{2}}{3}\)

प्रश्न 20.
गतिशील वाहनों के पहिए बीच में खोखले एवं परिधि पर मोटे बनाये जाते हैं क्यों?
उत्तर:
ऐसा करने से पहिए का जड़त्व आघूर्ण बढ़ जाता है और वह गति पालक चक्र (Flywheel) की भाँति कार्य करने लगता है। फलस्वरूप इंजन बन्द कर देने पर भी वाहन अचानक नहीं रुकता है।

प्रश्न 21.
क्या पिण्ड के जड़त्व आघूर्ण का मान उसके कोणीय वेग पर निर्भर करता है?
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 22.
M द्रव्यमान तथा / लम्बाई के एक खोखले बेलन की आंतरिक तथा बाह्य त्रिज्याएं क्रमश: R1 व R2 हैं। इसके केन्द्र से होकर जाने वाली तथा बेलन के लम्बवत् अक्ष के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण कितना होता है?
उत्तर:
\(I=M\left[\frac{l^2}{12}+\frac{R_1^2+R_2^2}{4}\right]\)

प्रश्न 23.
कोणीय संवेग में परिवर्तन की दर किस भौतिक राशि को प्रदर्शित करती है?
उत्तर:
बल आघूर्ण को = \(\left[\tau=\frac{\Delta J}{\Delta t}\right]\)

प्रश्न 24.
बलयुग्म किस प्रकार की गति उत्पन्न करता है?
उत्तर:
केवल घूर्णन गति उत्पन्न करता है।

प्रश्न 25.
साइकिल के पहिए तानेंदार (spokes) क्यों बनाये जाते हैं?
उत्तर:
जड़त्व आघूर्ण बढ़ाने के लिए साइकिल के पहिए तानेदार बनाये जाते हैं।

प्रश्न 26.
जब कोई वस्तु क्षैतिज से θ कोण पर झुके तल पर फिसलती है तो उसका त्वरण क्या होता है?
उत्तर:
g sin θ

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प्रश्न 27.
समान कोणीय वेग से घूर्णन कर रहे एक वृत्ताकार प्लेटफार्म के किनारे के निकट एक व्यक्ति बैठा है। यदि वह अचानक प्लेटफार्म के केन्द्र की ओर चलना प्रारम्भ करता है तो प्लेटफार्म के कोणीय वेग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
केन्द्र की ओर व्यक्ति के चलने पर कुल जड़त्व आघूर्ण कम होगा फलस्वरूप कोणीय संरक्षण के सिद्धान्त से कोणीय वेग बढ़ जायेगा।

प्रश्न 28.
विलगित निकाय क्या होता है?
उत्तर:
वह निकाय जिस पर कोई बाह्य बल न लग रहा हो, विलगित निकाय कहलाता है।

प्रश्न 29.
यदि दो विभिन्न द्रव्यमान के तरबूज एक पुल से एक साथ ऊर्ध्वाधर नीचे की ओर गिराये जायें तो तरबूजों के द्रव्यमान केन्द्र का त्वरण क्या होगा?
उत्तर:
दोनों तरबूजों के द्रव्यमान केन्द्र का त्वरण g होगा।

प्रश्न 30.
एक त्रिभुजाकार पटल के द्रव्यमान केन्द्र की स्थिति क्या होगी?
उत्तर:
त्रिभुजाकार पटल की तीनों मध्यिकाओं का कटान बिन्दु ही पटल का द्रव्यमान केन्द्र होगा।

प्रश्न 31.
एक आयताकार पटल का द्रव्यमान M, लम्बाई l व चौड़ाई b है तो उसके तल के लम्बवत् तथा उसके द्रव्यमान केन्द्र से गुजरने वाली अक्ष के परित: उसका जड़त्व लिखिए ।
उत्तर:
\(I=M\left[\frac{l^2+b^2}{12}\right]\)

प्रश्न 32.
ठोस गोले का उसके किसी व्यास के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण क्या होगा?
उत्तर:
I = \(\frac{2}{5}\) MR²,
जहाँ M = गोले का द्रव्यमान
R = गोले की त्रिज्या

प्रश्न 33.
किसी वलय का उसके व्यास के सापेक्ष जड़त्व आपूर्ण क्या होगा?
उत्तर:
I = \(\frac{1}{2}\) MR²
जहाँ M= वलय का जड़त्व आघूर्ण;
R = वलय की त्रिज्या

प्रश्न 34.
रेखीय गति में बल = द्रव्यमान × त्वरण होता है। इससे संगत घूर्णन गति का व्यंजक लिखिये।
उत्तर:
बल आघूर्ण = जड़त्व आघूर्ण × कोणीय त्वरण

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प्रश्न 35.
पेन का ढक्कन दो अंगुलियों की सहायता से आसानी से खुल जाता है परन्तु एक अंगुली से नहीं, क्यों?
उत्तर:
पेन का ढक्कन खोलने के लिए बलयुग्म की आवश्यकता होती है जो दो अंगुलियों द्वारा ही सम्भव हो पाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)

प्रश्न 1.
धातु की दो वृत्ताकार चकतियाँ A व B के द्रव्यमान व मोटाई समान हैं। 4 का घनत्व B के घनत्व का दो गुना है। चकती व B का इनके अक्षों के प्रति जड़त्व आघूर्णो का अनुपात क्या होगा ?
उत्तर:
चकती का जड़त्व आघूर्ण I = \(\frac{1}{2}\) Mr²
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -2

प्रश्न 2.
जब ठोस गोला किसी नत तल पर लुढ़कता है तो घूर्णन ऊर्जा कुल ऊर्जा का कितना प्रतिशत होगी?
उत्तर:
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -3

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 3.
तीन वलय जिनमें प्रत्येक का द्रव्यमान M एवं त्रिज्या है, त्रिभुजाकार आकृति में व्यवस्थित है। इस निकाय का YY” अक्ष के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण ज्ञात कीजिए।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -4
उत्तर:
वलय का उसकी अक्ष के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण = MR²
वलय का व्यास के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण
Id = \(\frac{1}{2}\) MR²
अतः व्यास के समान्तर स्पर्शरेखीय अक्ष के परितः जड़त्व आघूर्ण
IT = \(\frac{3}{2}\) MR²
अतः पूरे निकाय का YY’ अक्ष के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण
IYY’ = I1 + I2 + I3
= \(\frac{3}{2}\) MR² + \(\frac{3}{2}\) MR² + \(\frac{1}{2}\) MR²
या IYY’ = \(\frac{7}{2}\) MR²

प्रश्न 4.
एक सीढ़ी दीवार के सहारे तिरछी लगी है। यदि वह फिसले तो उसका तात्क्षणिक घूर्णन केन्द्र कहाँ होगा?
उत्तर:
ऊपरी सिरे के स्पर्श बिन्दु पर दीवार के लम्बवत् तथा नीचे के स्पर्श बिन्दु पर जमीन के लम्ब के कटान बिन्दु पर होगा।

प्रश्न 5.
द्रव्यमान m का एक कण v वेग से X-दिशा में गतिशील है। जब वह बिन्दु (x,y,z) पर स्थित होता है तो उस पर मूल बिन्दु के परितः कण के कोणीय संवेग के घटक ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
कण X- अक्ष के अनुदिश गतिशील है अतः उसका रेखीय संवेग
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -5

प्रश्न 6.
समान पदार्थ के गोलों के लिए जड़त्व आघूर्ण तथा त्रिज्या का क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
ठोस गोले का जड़त्व आघूर्ण
I = \(\frac{2}{5}\) MR²
∵ M = \(\frac{4}{3}\) πR³ . ρ
∴ I = \(\frac{2}{5}\) × \(\frac{4}{3}\) πR³ . ρ . R²
= \(\frac{8}{15}\) πρR5
∴ I ∝ R5 (क्योंकि \(\frac{8πρ}{15}\) = नियतांक)

प्रश्न 7.
एक वलय का उसकी अक्ष के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण मात्रक है। वलय का उसके तल में स्थित परितः अक्ष (अर्थात् वलय के तल में स्पशरिखीय अक्ष) के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण ज्ञात कीजिए।
उत्तर;
दिया है MR² = 8 मात्रक
∴ वलय के तल में स्थित स्पर्शरेखीय अक्ष के सापेक्ष वलय का जड़त्व आघूर्ण समान्तर अक्षों की प्रमेव से-
I = ICM + MR² = Id + MR² = \(\frac{1}{2}\)MR² + MR²
I = \(\frac{3}{2}\) MR²
= \(\frac{3}{2}\) × 8 = 12 मात्रक
या I = 12 मात्रक

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प्रश्न 8.
समान द्रव्यमान के ठोस गोले भिन्न-भिन्न पदार्थों के बनाये जाते हैं। गोलों के जड़त्व आघूर्ण का उनके घनत्व d के साथ क्या सम्बन्ध होगा?
उत्तर;
ठोस गोले का जड़त्व आघूर्ण I = \(\frac{1}{2}\)MR²
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -6

प्रश्न 9.
यदि एक ठोस गोला जिसका द्रव्यमान M है, ऊर्ध्वाधर दिशा में एक नत तल पर से hm नीचे लुढ़ककर आ जाता है। गोले का वेग ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
नत तल पर लुढ़कने पर प्राप्त वेग,
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -7

प्रश्न 10.
हेलिकॉप्टर में दो नोदक (Propellers) क्यों काम में लाये जाते हैं?
उत्तर:
हेलिकॉप्टर में केवल एक नोदक लगाने पर कोणीय संवेग संरक्षण के नियमानुसार हेलिकॉप्टर स्वयं नोदक के घूर्णन के विपरीत दिशा में घूम जायेगा। फलस्वरूप वह ऊपर नहीं उठ पायेगा। इस समस्या के निदान के लिए दो नोदक प्रयोग में लाये जाते हैं।

प्रश्न 11.
मोम की एक चकती को पिघलाकर ठोस गोले के रूप में डाल दिया जाता है। केन्द्र से गुजरने वाली उभयनिष्ठ अक्ष के प्रति जड़त्व आघूर्ण पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
चकती को पिघलाकर गोले के रूप में डाल देने उसकी त्रिज्या (R) का मान काफी कम हो जायेगा अतः गोले का जड़त्व आघूर्ण (\(\frac{2}{5}\)MR1²) चकती के जड़त्व आघूर्ण (\(\frac{1}{2}\)MR²) से काफी कम हो जायेगा।

प्रश्न 12.
मूल बिन्दु से (\((2 \hat{i}-4 \hat{j}+2 \hat{k})\))m दूरी पर एक बिन्दु पर बल \((3 \hat{i}+2 \hat{j}-4 \hat{k})\) N कार्य कर रहा है। बल आघूर्ण का परिमाण ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -8

प्रश्न 13.
समान द्रव्यमान के एवं समान त्रिज्या के एक ठोस व खोखले गोले को एक साथ समान कोणीय वेग से घुमाया जाता है तो कौन सा गोला पहले रुकेगा?
उत्तर:
ठोस गोला क्योंकि इसका जड़त्व आघूर्ण कम है अतः यह समान घूर्णन गति का विरोध कम करेगा।

प्रश्न 14.
m1, m2 तथा m3 द्रव्यमानों के तीन कण एक समबाहु त्रिभुज के तीन शीर्षो पर स्थित हैं। त्रिभुज की प्रत्येक भुजा की लम्बाई a हो, तो इस निकाय का जड़त्व आघूर्ण त्रिभुज की m1 द्रव्यमान से गुजरने वाली माध्यिका के परितः ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
द्रव्यमानों एवं माध्यिका की व्यवस्था संलग्न चित्र में प्रदर्शित है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -9

प्रश्न 15.
द्रव्यमान m व त्रिज्या r की एक ठोस चकती क्षैतिज तल पर कोणीय चाल ω से लुढ़क रही है। मूल बिन्दु O के परितः चकती का कोणीय संवेग ज्ञात कीजिए।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -10
उत्तर:
OX अक्ष के सापेक्ष चकती का जड़त्व आघूर्ण
I = ICM + Mr² = \(\frac{1}{2}\)Mr² + Mr²
या I = \(\frac{3}{2}\) Mr²
∴ चकती का कोणीय संवेग,
J = I.ω = \(\frac{3}{2}\) Mr².ω

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 16.
समान द्रव्यमान तथा समान मोटाई की दो कतियाँ A व B भिन्न धातुओं की बनी हैं जिनके घनत्व ρA व ρBA > ρB) हैं। यदि उनके वृत्ताकार तलों के लम्बवत् तथा गुरुत्वीय केन्द्रों से पारित अक्षों के परितः जड़त्व आघूर्ण IA व IB हों तो IA व IB में कौन बड़ा होगा?
उत्तर:
चकती का उसकी अक्ष के सापेक्ष जड़त्व आघूर्ण I = \(\frac{3}{2}\) MR²
यदि चकतियों की मोटाई t हो तो चकती का द्रव्यमान
M = आयतन × घनत्व = πR².t.ρ
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -11

प्रश्न 17.
यदि ध्रुवों पर जमी हुई बर्फ पिघल जाये तो दिन-रात, की अवधि पर क्या प्रभाव सम्भव है?
उत्तर:
ध्रुवों पर दिन रात की अवधि पृथ्वी के अपनी अक्ष के परितः घूर्णन गति पर निर्भर करती है। यदि ध्रुवों की बर्फ पिघल जाये तो यह पृथ्वी की सतह पर फैल जायेगी जिससे पृथ्वी का द्रव्यमान विस्तार बढ़ने से जड़त्व आघूर्ण बढ़ जायेगा और जड़त्व आघूर्ण बढ़ जाने पर कोणीय वेग घट जायेगा। अत: सूत्र (ω = \(\frac{2π}{T}\)) के अनुसार ω घटने से T (दिन-रात की अवधि) का मान बढ़ जायेगा अर्थात् दिन-रात की अवधि बढ़ जायेगी।

प्रश्न 18.
न्यूटन का गति विषयक नियम निकाय के अलग-अलग कणों के लिए लागू है, फिर भी निकाय की गति को न्यूटन के नियम द्वारा वर्णित किया जा सकता है। समझाइये।
उत्तर:
निकाय का सम्पूर्ण द्रव्यमान निकाय के द्रव्यमान केन्द्र पर संकेन्द्रित माना जा सकता है तथा सभी बाह्य बल भी द्रव्यमान केन्द्र पर लगे माने जा सकते हैं। तब न्यूटन के नियम के अन्तर्गत द्रव्यमान केन्द्र की गति निकाय की गति को व्यक्त करेगी।

प्रश्न 19.
एक बिल्ली गिरने पर अपने पैरों पर सुरक्षित उत्तर जाती है। क्यों?
उत्तर:
कोणीय संवेग संरक्षण के अनुसार,
Iω = नियतांक ⇒ ω ∝ \(\frac{1}{I}\)
जब बिल्ली नीचे गिरती है तो यह अपनी पूँछ एवं शरीर को तान लेती है जिससे बिल्ली का जड़त्व आघूर्ण बढ़ जाता है और फलस्वरूप उसका कोणीय वेग घट जाता है। इस प्रकार बिल्ली गिरने पर अपने पैरों पर सुरक्षित उतर जाती है।

प्रश्न 20.
गुरुत्व केन्द्र एवं द्रव्यमान केन्द्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए। क्या ये पिण्ड में एक ही बिन्दु पर होते हैं?
उत्तर:
\(\vec{r}_{C M}=\frac{\Sigma m_i \overrightarrow{r_i}}{\Sigma m_i}\) तथा \(\overrightarrow{r_{C G}}=\frac{\Sigma m_i g_i \overrightarrow{r_i}}{\Sigma m_i g_i}\)
अतः एक समान गुरुत्व केन्द्र में अर्थात् पिण्ड का आकार पृथ्वी की तुलना में बहुत छोटा होने पर, इसके प्रत्येक कण पर का मान समान होने से दोनों द्रव्यमान केन्द्र व गुरुत्व केन्द्र सम्पाती होंगे।

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प्रश्न 21.
घूर्णन गति करने वाली दो वस्तुओं 4 तथा B के जड़त्व आघूर्ण IA व IB हैं। यदि इनके कोणीय संवेग बराबर हों, तो किसकी गतिज ऊर्जा अधिक होगी? दिया है- IA > IB
उत्तर;
दिया है: JA = JB
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -12

प्रश्न 22.
छोटी डोरी से एक पत्थर के टुकड़े को बाँधकर घुमाना आसान होता है जबकि बड़ी डोरी से बाँधकर इसे घुमाना कठिन है, क्यों?
उत्तर:
पत्थर का जड़त्व आघूर्ण I = mr²
यदि डोरी छोटी है, तो वृत्त की त्रिज्या (r) कम होगी अतः जड़त्व आघूर्ण कम होगा। इसके विपरीत डोरी बड़ी होने पर जड़त्व आघूर्ण अधिक होगा। घूर्णन गति के समीकरण τ = Iα के अनुसार समान कोणीय त्वरण उत्पन्न करने के लिए छोटी डोरी की स्थिति में कम व बड़ी डोरी की स्थिति में अधिक बल-आघूर्ण लगाना पड़ेगा। अतः छोटी डोरी से पत्थर को बाँधकर घुमाना आसान है।

प्रश्न 23.
चक्रवात में चक्करदार वायु के झोंके के अक्ष के निकट की परतों का वेग बहुत अधिक होता है। समझाइये क्यों?
उत्तर:
चक्रवात में वायु की आन्तरिक परतें अक्ष के बहुत निकट होती हैं जिससे वायु के कणों का जड़त्व आघूर्ण बहुत कम हो जाता है अतः कोणीय संवेग संरक्षण के सिद्धान्त से इन आन्तरिक परतों का कोणीय वेग बहुत अधिक हो जाता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)

प्रश्न 1.
दृढ़ पिण्ड से क्या अभिप्राय है? इसकी स्थानान्तरीय एवं घूर्णन गतियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
दृढ पिण्ड (Rigid Body) :
“वे पिण्ड जिनकी आकृति बाह्य बल लगाने पर भी अपरिवर्तित रहती है अर्थात् जिनके कणों की आन्तरिक दूरियाँ अपरिवर्तित रहती हैं, दृढ़ पिण्ड कहलाते हैं।”
प्रकृति में कोई वस्तु पूर्णतः दृढ़ पिण्ड नहीं होती है क्योंकि उच्च दाब या बल लगाकर वस्तु में विकृति उत्पन्न की जा सकती है। अतः ऐसी वस्तुओं का अध्ययन करने के लिए आदर्श दृढ़ पिण्ड की कल्पना करते हैं जिसमें विकृतियाँ नगण्य रहती हैं। दृढ पिण्ड की गति में स्थानान्तरीय गति (Translational motion) तथा घूर्णन गति (Rotational motion) सम्मिलित होती है। यदि दृढ पिण्ड उससे गुजरने वाली स्थिर अक्ष के प्रति घूर्णन करती है, तो उसे पिण्ड की शुद्ध घूर्णन गति (Pure-rotational motion) कहते हैं तथा अक्ष घूर्णन अक्ष (axis of rotation) कहलाती है, उदाहरण के लिए छत से लटके पंखे की गति शुद्ध घूर्णन गति होती है। परन्तु कुछ स्थितियों में दृढ़ पिण्ड की गति के दौरान घूर्णन अक्ष स्थिर नहीं रहती है। इस स्थिति में पिण्ड में घूर्णन गति के साथ-साथ स्थानान्तरीय गति भी होती है। यदि गति के दौरान दृढ़ पिण्ड के कण परस्पर समान्तर पथ में गति करते हैं, तो वह स्थानान्तरीय गति कहलाती है । उदाहरण के लिए किसी पिण्ड का किसी तल पर फिसलना व्यक्ति का किसी तल पर चलना आदि।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -13

जब गति के दौरान दृढ़ पिण्ड के कण घूर्णन अक्ष के सापेक्ष अपनी स्थिति परिवर्तित करते हैं तो वह गति घूर्णन एवं स्थानान्तरीय गतियों का मिश्रण होती है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -14

दौरान दृढ पिण्ड का प्रत्येक कण घूर्णन अक्ष के परितः वृत्ताकार गति करता है। गति के दौरान घूर्णन अक्ष स्थिर या अपनी दिशा परिवर्तित कर सकती है। अतः “यदि दृढ़ पिण्ड का प्रत्येक बिन्दु वृत्ताकार पथ में गति करता हो तथा प्रत्येक वृत्त का केन्द्र एक उभयनिष्ठ रेखा पर स्थित हो, तो उस गति को शुद्ध घूर्णन गति कहते हैं तथा रेखा को घूर्णन-अक्ष कहते हैं।”
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -15

चित्र में पिण्ड की घूर्णन गति को दर्शाया गया है। चित्र में पिण्ड के तीन कण P, Q R दिखाये गये हैं जो घूर्णन अक्ष AB से क्रमशः r1, r2 व r3 दूरियों पर स्थित हैं। पिण्ड की घूर्णन गति के दौरान इन कणों के वृत्तीय पथों की त्रिज्याएं क्रमशः r1, r2 व r3 होगी और इन पथों के केन्द्र O, O’ और O” उभयनिष्ठ अक्ष AB पर होंगे। इन सभी कणों के कोणीय वेग एवं आवर्तकाल समान होंगे।

कुछ विशेष स्थितियों में दृढ़ पिण्ड के घूर्णन अक्ष की स्थिति में परिवर्तन होता रहता है परन्तु उसमें कोई स्थानान्तरण नहीं होता है। उदाहरण के लिए घूमते हुए लट्टू की गति। इस गति को शुद्ध पुरस्सरण गति (Pure Precessional motion) कहते हैं।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 2.
द्रव्यमान केन्द्र से क्या अभिप्राय है? इसके कार्तीय घटकों के लिए व्यंजक प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
द्रव्यमान केन्द्र (Centre of Mass) :
दृढ़ पिण्डों की जटिल गतियों, जिनमें वह स्थानान्तरीय गति के साथ-साथ घूर्णन गति भी करता है, को समझना गणितीय रूप से अत्यधिक कठिन होता है। इस प्रकार की गतियों को समझने के लिए यदि हम पिण्ड के एक विशेष बिन्दु पर ध्यान रखें तो गति का विश्लेषण करना अत्यधिक सरल हो जाता है। इस विशेष बिन्दु को द्रव्यमान केन्द्र कहते हैं। द्रव्यमान केन्द्र को निम्न प्रकार परिभाषित करते हैं-
“किसी दृढ़ पिण्ड अर्थात् कणों के निकाय का द्रव्यमान केन्द्र वह बिन्दु है जो इस प्रकार गति करता है कि मानों निकाय का समस्त द्रव्यमान वहाँ पर केन्द्रित हो और समस्त बाह्य बल इसी बिन्दु पर कार्यरत् हों।” उदाहरण के लिए ठोस गोले का केन्द्र ही द्रव्यमान केन्द्र होता है। सामान्यत: नियमित आकार के पिण्डों का द्रव्यमान केन्द्र उनका ज्यामितीय केन्द्र होता है।

दो कणों के निकाय का द्रव्यमान केन्द्र (Centre of Mass of a System of Two Particles) :
माना किसी निकाय में दो कण हैं जिनके द्रव्यमान क्रमशः m1 व m2 हैं तथा निर्देश बिन्दु O से जिनके स्थिति सदिश \(\overrightarrow{r_1}\) व \(\overrightarrow{r_2}\) हैं एवं इन कणों का आपस में तथा बाह्म वातावरण से सम्बन्ध है। इनके द्रव्यमान केन्द्र (C.M.) का स्थिति सदिश,
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -16
उपपत्ति (Proof):
माना इन कणों पर कार्य करने वाले बाह्य बल क्रमश: \(\vec{F}_{1 \mathrm{ext}}\) व \(\overrightarrow{F_{2 \mathrm{ext}}}\) तथा आन्तरिक बल क्रमश: \(\overrightarrow{F_{12}}\) व \(\overrightarrow{F_{21}}\) हैं। अतः कण A पर नेट बल,
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -17

माना किसी क्षण पर द्रव्यमान केन्द्र के स्थिति सदिश, वेग तथा त्वरण क्रमशः \(\overrightarrow{r_{c m}} ; \overrightarrow{v_{c m}}\) एवं \(\overrightarrow{a_{c m}}\) हैं।
निकाय का कुल द्रव्यमान M = (m1 + m2)
∵ द्रव्यमान केन्द्र की अभिधारणा से कुल बाह्य बल \(\vec{F}=\vec{F}_{1 \mathrm{ext}}+\vec{F}_{2 \mathrm{ext}}\) द्रव्यमान केन्द्र पर कार्य करता है तथा कुल द्रव्यमान भी द्रव्यमान केन्द्र पर केन्द्रित माना जाता है। अत: न्यूटन के गति के द्वितीय नियम से
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -18

प्रश्न 3.
सतत् पिण्ड के द्रव्यमान केन्द्र के लिए सूत्र प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
दो कणों के निकाय का द्रव्यमान केन्द्र (Centre of Mass of a System of Two Particles) :
माना किसी निकाय में दो कण हैं जिनके द्रव्यमान क्रमशः m1 व m2 हैं तथा निर्देश बिन्दु O से जिनके स्थिति सदिश \(\overrightarrow{r_1}\) व \(\overrightarrow{r_2}\) हैं एवं इन कणों का आपस में तथा बाह्म वातावरण से सम्बन्ध है। इनके द्रव्यमान केन्द्र (C.M.) का स्थिति सदिश,
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -16.1
उपपत्ति (Proof):
माना इन कणों पर कार्य करने वाले बाह्य बल क्रमश: \(\vec{F}_{1 \mathrm{ext}}\) व \(\overrightarrow{F_{2 \mathrm{ext}}}\) तथा आन्तरिक बल क्रमश: \(\overrightarrow{F_{12}}\) व \(\overrightarrow{F_{21}}\) हैं। अतः कण A पर नेट बल,
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -17.1

माना किसी क्षण पर द्रव्यमान केन्द्र के स्थिति सदिश, वेग तथा त्वरण क्रमशः \(\overrightarrow{r_{c m}} ; \overrightarrow{v_{c m}}\) एवं \(\overrightarrow{a_{c m}}\) हैं।
निकाय का कुल द्रव्यमान M = (m1 + m2)
∵ द्रव्यमान केन्द्र की अभिधारणा से कुल बाह्य बल \(\vec{F}=\vec{F}_{1 \mathrm{ext}}+\vec{F}_{2 \mathrm{ext}}\) द्रव्यमान केन्द्र पर कार्य करता है तथा कुल द्रव्यमान भी द्रव्यमान केन्द्र पर केन्द्रित माना जाता है। अत: न्यूटन के गति के द्वितीय नियम से
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -18.1

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 4.
सिद्ध कीजिए कि जब किसी तन्त्र पर बाह्य बल शून्य होता है तो उसका द्रव्यमान केन्द्र नियत वेग से गति करता है।
उत्तर:
द्रव्यमान केन्द्र का रेखीय संवेग (Linear Momentum of Centre of Mass) :
माना कि एक निकाय n कणों से मिलकर बना है, जिसके कणों का द्रव्यमान क्रमशः \(m_1, m_2, m_3 \ldots . m_n\) तथा वेग क्रमशः \(v_1, v_2, v_3 \ldots . v_n\) है इसलिए इस निकाय का संवेग
\(\vec{p}=m \overrightarrow{v_1}+m \overrightarrow{v_2}+m \overrightarrow{v_3}+\ldots \ldots . .+m_n \overrightarrow{v_n}\)
लेकिन हम जानते हैं
\(\overrightarrow{v_cm}=\frac{1}{2}(m \overrightarrow{v_1}+m \overrightarrow{v_2}+m \overrightarrow{v_3}+\ldots \ldots . .+m_n \overrightarrow{v_n})\)
\(\vec{p}=M \vec{v_cm}\) ………….(1)
अर्थात् कणों के निकाय का कुल रेखीय संवेग, निकाय के कुल द्रव्यमान तथा द्रव्यमान केन्द्र के वेग के गुणनफल के बराबर होता है।
समी० (1) का समय t के सापेक्ष अवकलन करने पर
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -19
अर्थात् जब किसी निकाय पर आरोपित बाह्य बलों का योग शून्य होता है तब उस निकाय का कुल रेखीय संवेग नियत अर्थात् संरक्षित रहता है। यह किसी निकाय के द्रव्यमान केन्द्र का रेखीय संरक्षण नियम कहलाता है।
∴ \(\frac{d \vec{p}}{d t}=0\) होने पर
\(\frac{d}{d t}\left(M v_{c m}\right)=0\)
v cm= नियतांक ………….(4)
या \(m_A \overrightarrow{a_A}+m_B \overrightarrow{a_B}=0\)
यहाँ \(\overrightarrow{a_A}[latex] व [latex]\overrightarrow{a_B}\) क्रमश: A व B की गतियों में त्वरणों का मान है। यदि \(\overrightarrow{F_{A B}}\) एवं \(\overrightarrow{F_{B A}}\) क्रमशः A व B पर B व A के कारण लगने वाले आन्तरिक बल हैं, तो-
\(\overrightarrow{F_{A B}}+\overrightarrow{F_{B A}}=0\)
या \(\overrightarrow{F_{A B}}=-\overrightarrow{F_{B A}}\)
यह न्यूटन का क्रिया एवं प्रतिक्रिया का नियम है।

प्रश्न 5.
बल आघूर्ण की परिभाषा दीजिए एवं इसके लिए सूत्र प्राप्त कीजिए तथा दैनिक जीवन में बल आघूर्ण के उपयोग समझाइये।
उत्तर:
बल आघूर्ण (Torque) tau :
“घूर्णन गति में दिये गये घूर्णन अक्ष के सापेक्ष किसी कण पर कार्यरत् बल का आघूर्ण ही बल आघूर्ण कहलाता है।’ इसे \(\vec{\tau}\) (tau) से व्यक्त करते हैं।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -20
चित्र में एक कण P पर बल \(\vec{F}\) आरोपित है। जिससे वह O से गुजरने वाले घूर्णन अक्ष के सापेक्ष घूर्णन गति करता है।
बल आघूर्ण = बल × बल की घूर्णन अक्ष से लम्बवत् दूरी
τ = F(OM)
= F r sin θ
τ = r F sin θ
सदिश गुणन के रूप में \(\vec{\tau}=\vec{r} \times \vec{F}\)
यहाँ पर \theta, \(\vec{r}\) और \(\vec{F}\) के मध्य कोण है। बल आघूर्ण की दिशा \(\vec{r}\) तथा \(\vec{F}\) के तल के लम्बवत् दक्षिणावर्ती पेंच नियम से ज्ञात करते हैं। चित्र में \(\vec{r}\) व \(\vec{F}\) X-Y तल में है अतः बल आघूर्ण Z अक्ष की धन दिशा में होगा।
बल आघूर्ण का मात्रक-न्यूटन-मीटर होता है तथा इसका विमीय सूत्र \(\left[\mathrm{M}^1 \mathrm{~L}^2 \mathrm{~T}^{-2}\right]\) होता है।

प्रश्न 6.
कोणीय वेग एवं कोणीय त्वरण की परिभाषा दीजिए तथा घूर्णन गति के समीकरणों की उपपत्ति दीजिए।
उत्तर:
कोणीय वेग (Angular Velocity) :
“समय के साथ कोणीय विस्थापन के परिवर्तन की दर को कोणीय वेग कहते हैं।” इसे ω से व्यक्त करते हैं। यह सदिश राशि है। यह एक अक्षीय सदिश है जिसकी दिशा पिण्ड की घूर्णन अक्ष के अनुदिश होती है। यदि दृढ़ पिण्ड वामावर्त (anti clockwise) दिशा में घूर्णन करता है, तो उसका कोणीय वेग घूर्णन अक्ष के अनुदिश पिण्ड के तल से बाहर की ओर होगा। अर्थात् यदि पिण्ड X-Y तल में वामावर्त (anti clockwise) दिशा में घूर्णन गति करता है तो कोणीय वेग +z दिशा में होगा। इसी प्रकार यदि पिण्ड दक्षिणावर्त (clockwise) दिशा में घूर्णन करता है तो कोणीय वेग -z दिशा के अनुदिश होगा।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -21
कोणीय वेग की दिशा को दाहिने हाथ के नियम से व्यक्त किया जाता है जैसा कि चित्र में प्रदर्शित किया गया है। कोणीय वेग की दिशा को ज्ञात करने के लिए दाहिने हाथ से घूर्णन अक्ष को इस पकड़े जाने की कल्पना करें कि अंगूठा अक्ष के समान्तर रहे तो यदि उँगलियों के घुमाव से पिण्ड के घूर्णन की दिशा व्यक्त होती है तो अँगूठे द्वारा कोणीय वेग की दिशा व्यक्त होगी। कोणीय वेग को rad.s-1 में मापा जाता है।
यदि समयान्तर ∆t = (t2 – t1 ) में कोणीय विस्थापन ∆θ = (θ2 – θ1 ) हो तो औसत कोणीय वेग
\(\omega_{a v}=\vec{\omega}=\frac{\Delta \theta}{\Delta t}=\frac{\left(\theta_2-\theta_1\right)}{\left(t_2-t_1\right)}\)
यदि ∆t का मान अत्यल्प हो अर्थात् ∆t → 0 तो पिण्ड के कोणीय वेग का तात्क्षणिक मान (Instantaneous Values of Angular Velocity) निम्न प्रकार व्यक्त होगा-
\(\omega=\lim _{\Delta t \rightarrow 0} \frac{\Delta \theta}{\Delta t}=\frac{d \theta}{d t}\) ………..(2)
\(\omega=\frac{d \theta}{d t}\)
इसी तात्क्षणिक कोणीय वेग को ‘कोणीय वेग’ के नाम से जाना जाता है। कोणीय वेग धनात्मक एवं ऋणात्मक हो सकता है लेकिन कोणीय चाल सदैव धनात्मक होती है।

कोणीय त्वरण (Angular Acceleration) :
जब किसी पिण्ड के कोणीय वेग का मान परिवर्तित होता है तो उसमें कोणीय त्वरण होता है। उदाहरण के लिए जब हम साइकिल चलाते हैं या उसको रोकते हैं तो दोनों स्थितियों में उसके कोणीय वेग में परिवर्तन होता है अर्थात् साइकिल पहियों में कोणीय त्वरण होता है। अतः “पिण्ड के कोणीय वेग में परिवर्तन की दर को कोणीय त्वरण कहते हैं।” इसे द्वारा प्रदर्शित करते हैं और यह एक सदिश राशि है और इसका मात्रक rad.s-2 होता है।
माना t2 एवं t1 क्षण पर दृढ पिण्ड के कोणीय वेग ω1 व ω2 हैं।
अतः पिण्ड का औसत कोणीय त्वरण
\(\alpha_{a v}=\bar{\alpha}=\frac{\omega_2-\omega_1}{t_2-t_1}=\frac{\Delta \omega}{\Delta t}\) ……(1)
कोणीय त्वरण की दिशा को दाँये हाथ के नियम से ज्ञात किया जा सकता है। α की दिशा पिण्ड के कोणीय वेग में वृद्धि की दिशा में होगी। अर्थात् यदि ω2 > ω1 तो कोणीय वेग में वृद्धि होने पर α का मान धनात्मक होगा एवं ω2 < ω1 होने पर कोणीय वेग में कमी होगी और फलस्वरूप α का मान ऋणात्मक होगा। अतः धनात्मक α त्वरण की दिशा कोणीय वेग ω की दिशा में एवं ऋणात्मक α की दिशा कोणीय वेग की विपरीत दिशा में होगी।
यदि ∆t का मान अत्यल्प हो अर्थात् ∆t → 0 तो पिण्ड के कोणीय त्वरण को तात्क्षणिक कोणीय त्वरण या केवल कोणीय त्वरण के नाम से जाना जाता है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -22

प्रश्न 7.
निम्नलिखित राशियों में सम्बन्ध स्थापित कीजिए-
(i) रेखीय वेग, कोणीय वेग तथा त्रिज्या में।
(ii) रेखीय त्वरण एवं कोणीय त्वरण में ।
उत्तर:
रेखीय वेग तथा कोणीय वेग में संबंध (Relation between Linear Velocity and Angular Velocity) :
जब कोई दृढ़ पिण्ड अपनी स्थिर अक्ष के परितः घूर्णन करता है तो उसका प्रत्येक कण विभिन्न त्रिज्याओं के वृत्तीय पथों पर गति करता है। सभी पथों के केन्द्र घूर्णन अक्ष पर होते हैं और सभी का कोणीय वेग समान होता है लेकिन उनकी चाल घूर्णन अक्ष से उनकी दूरी अर्थात् उनके वृत्तीय पथों की त्रिज्या पर निर्भर करती है। दूरी बढ़ने पर चाल बढ़ जाती है। शुद्ध घूर्णी गति में कण की चाल का मान उसके कोणीय वेग के अनुक्रमानुपाती होता है। संलग्न चित्र (7.18) में दृढ़ पिण्ड का कण P त्रिज्या r के वृत्तीय पथ में घूर्णन गति कर रहा है। यदि किसी क्षण उसका कोणीय विस्थापन θ rad. हो तो, चाप PP’ की लम्बाई s निम्न प्रकार व्यक्त कर सकते हैं।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -23
शुद्ध घूर्णी गति में सभी कणों के लिए कोणीय वेग ω समान होता है अत: समी० (2) से स्पष्ट है कि घूर्णन अक्ष से दूरी (r) बढ़ने पर रेखीय वेग (v) उतना ही अधिक बढ़ जायेगा।
उक्त सम्बन्ध [समी० (2)] को सदिश गुणनफल में निरूपित करने के लिए माना कण P का t = 0 पर स्थिति सदिश \(\vec{R}=\overrightarrow{O P}\) है। अत: चित्र से-
\(\frac{r}{R}=\sin \phi \quad \text { या } \quad r=R \sin \phi\)
अत: समी० (2) से
\(v=\omega \cdot R \sin \phi\)
चूँकि \(\omega R \sin \phi\) कोणीय वेग ω के तल के लम्बवत् है, अत: उक्त समी० (2) को सदिश गुणनफल के रूप में निम्न प्रकार व्यक्त कर सकते हैं।
\(\vec{v}=\vec{\omega} \times \overrightarrow{\boldsymbol{R}}\)
यहाँ यह ध्यान देने योग्य कि \(\phi=\frac{\pi}{2} \mathrm{rad}\) की स्थिति में R का मान वृत्तीय पथ की त्रिज्या r के तुल्य होगा।

रेखीय त्वरण एवं कोणीय त्वरण में सम्बन्ध (Relation between Linear Acceleration and Angular Acceleration):
जब कोई कण वृत्तीय पथ पर नियत कोणीय वेग से गति करता है, तो उस पर केवल त्रिज्य त्वरण \(\vec{a}_{\mathrm{rad}}\) ही कार्य करता है, लेकिन कण की चाल (v) भी बदलती है, तो उसमें \(\vec{a}_{\mathrm{rad}}\) के साथ-साथ स्पर्श रेखीय त्वरण \(\vec{a}_{\mathrm{tan}}\) भी होता है। इन्हीं दोनों त्वरणों का परिणामी कण का त्वरण \(\overrightarrow{a_R}\) होता है। इन दोनों घटकों एवं परिणामी त्वरण \(\left(\overrightarrow{a_R}\right)\) को संलग्न चित्र 7.19 में दिखाया गया है। स्पर्श रेखीय त्वरण \(\left(\vec{a}_{\text {tan }}\right)\) की दिशा कण के रेखीय वेग \(\vec{v}\) की दिशा में होती है, क्योंकि इस त्वरण की उत्पत्ति रेखीय वेग \(\vec{v}\) के परिमाण में परिवर्तन से ही होती है। अत:
\(a_{\mathrm{tan}}=\frac{d v}{d t}=r \cdot \frac{d \omega}{d t}=r \cdot \alpha\)

यहाँ \(\alpha=\frac{d \omega}{d t}\) कण का कोणीय त्वरण है। कण के त्रिज्य त्वरण \(\left(a_{\mathrm{rad}}\right)\) का मान कण के रेखीय वेग की दिशा में परिवर्तन से सम्बन्धित होता है। अत:
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -24
कण के रेखीय त्वरण व कोणीय त्वरण के सम्बन्ध को सदिश रूप में निम्न प्रकार व्यक्त करते हैं।
यदि कण का स्थिति सदिश \(\vec{R}\) हो तो चित्र से,
r =R sin ϕ
atan =αR sin ϕ
या \(\overrightarrow{a_{\tan }} \propto R \sin \hat{n}\)

जहाँ \(\hat{n}\) घूर्णन तल के लम्बवत् दिशा में एकांक सदिश को व्यक्त करता है। अत:

\(\vec{a}_{\mathrm{tan}}=\vec{a}=\vec{\alpha} \times \vec{R}\) ………………..(3)
यदि \(\phi=\frac{\pi}{2} \mathrm{rad} तो R \sin \phi=r\)
अतः a = α . r
यदि घूर्णन अक्ष स्थिर है तो कण के ω व α के मान स्थिर रहेंगे। कण पर परिणामी त्वरण
\(a_R=\sqrt{a_{\mathrm{rad}}^2+a_{\mathrm{tan}}^2} \text { क्योंकि } \vec{a}_{\mathrm{rad}} \perp \vec{a}_{\mathrm{tan}}\)

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प्रश्न 8.
जड़त्व आघूर्ण की परिभाषा दीजिए एवं दैनिक जीवन में इसके महत्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जड़त्व आघूर्ण (Moment of Inertia):
न्यूटन के प्रथम नियम के अनुसार बाह्य बल की अनुपस्थिति में वस्तुएँ अपनी अवस्था परिवर्तन का विरोध करती हैं अर्थात् यदि वस्तु विरामावस्था में है, तो वह गति में आने का विरोध करती हैं और यदि गतिशील हैं तो उसी दिशा में उसी वेग से चलती रहना चाहती है और वेग तथा वेग की दिशा में परिवर्तन का विरोध करती है। वस्तुओं के इस गुण को जड़त्व (Inertia) कहते हैं जो कि पदार्थ का मूल गुण है। इसीलिए न्यूटन के प्रथम नियम को जड़त्व का नियम भी कहते हैं।

इसी प्रकार यदि कोई वस्तु किसी अक्ष के परितः घूर्णन के लिए स्वतन्त्र हैं तो बाह्य बल आघूर्ण की अनुपस्थिति में वह अपनी अवस्था परिवर्तन का विरोध करती है अर्थात् यदि विरामावस्था में है तो घूर्णन गति करने का विरोध करती है और यदि घूर्णन कर रही है तो कोणीय वेग में ‘ परिवर्तन का विरोध करती है। किसी अक्ष के परितः वस्तुओं के इस गुण को घूर्णन जड़त्व या ‘जड़त्व आघूर्ण (Moment of Inertia) कहते हैं। इसे प्रायः I से व्यक्त करते है “पिण्ड के किसी कण का घूर्णन अक्ष के परित: जड़त्व आघूर्ण उस कण के द्रव्यमान तथा उसकी घूर्णन अक्ष से दूरी के वर्ग के गुनणनफल के बराबर होता है।” अर्थात्
I = mr²
I का मात्रक = kg.m²
तथा I का विमीय सूत्र = [M1L2T0] …(1)

1. कणों के निकाय का जड़त्व आघूर्ण (Moment of Inertia of a System of Particles ) :
माना M द्रव्यमान का कोई दृढ पिण्ड (कणों का निकाय) चित्र में प्रदर्शित एक बिन्दु O से गुजरने वाली ऊर्ध्वाधर अक्ष के परितः घूर्णन के लिए स्वतन्त्र है और पिण्ड का इसी अक्ष के परितः जड़त्व आघूर्ण ज्ञात करना है। माना पिण्ड विभिन्न द्रव्यमानों m1, m2, m3 …………., mn के n कणों से मिलकर बना है और घूर्णन अक्ष से इन कणों की दूरियाँ क्रमश: r1, r2, r3 …………., rn हैं। इन सभी कणों के जड़त्व आघूर्णो का योग पूरे पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण प्रदान करेगा अर्थात्
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -25

2. सतत् द्रव्यमान वितरण वाले पिण्ड या निकाय का जड़त्व आघूर्ण (Moment of Inertia of a Block of Homogeneous Mass Distribution ) :
यदि किसी पिण्ड में कणों की संख्या अत्यधिक व अति पास-पास स्थित हो जैसे- बेलन, चकती, गोला, मीटर स्केल आदि तो ऐसे पिण्डों को या निकाय को सतत् द्रव्यमान वितरण वाले निकाय के रूप में जाना जाता है। इन पिण्डों के जड़त्व आघूर्ण ज्ञात करने के लिए समाकलन (Integration) विधि का उपयोग करते हैं।
माना dm द्रव्यमान का एक अल्पांश घूर्णन अक्ष से r दूरी पर स्थित है तो इस अल्पांश का जड़त्व आघूर्ण
dI = dm.r² …..(3)
अतः पूरे पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण उचित सीमाओं के अन्तर्गत समी० (3) का समाकलन ज्ञात करके ज्ञात करते हैं, अर्थात्
I = \(\int r^2 \cdot d m\) ………….(4)

जड़त्व आघूर्ण का भौतिक महत्व (Physical Significance of Moment of Inertia):
जब किसी वस्तु पर कोई बाह्य बल लगाया जाता है, तो यदि वह विरामावस्था में है अथवा सीधी रेखा में किसी वेग से गतिशील है, अपनी अवस्था परिवर्तन का विरोध करती है। वस्तुओं या पिण्डों के इस गुण को ‘जड़त्व’ कहते हैं। किसी पिण्ड का द्रव्यमान जितना अधिक होता है, उसकी अवस्था परिवर्तन हेतु उतने ही अधिक बल की आवश्यकता होती है अतः किसी पिण्ड का द्रव्यमान ही उसके जड़त्व की माप है।

ठीक इसी प्रकार किसी पिण्ड को जो विरामावस्था में है, किसी अक्ष के परितः घुमाने के लिए अथवा घूर्णन गति कर रहे पिण्ड के कोणीय वेग में परिवर्तन के लिए उस पर बल आघूर्ण लगाने की आवश्यकता होती है। पिण्ड के इस गुण को ‘जड़त्व आघूर्ण’ कहते हैं। पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण जितना अधिक होता है, उसकी अवस्था परिवर्तन ( घूर्णन गति में) के लिए उतने ही अधिक बल आघूर्ण की आवश्यकता होती है।

उक्त विवेचना से स्पष्ट है कि “रेखीय गति में जो भूमिका द्रव्यमान की होती है, वही भूमिका घूर्णन गति में जड़त्व आघूर्ण की होती है। इसी प्रकार जो भूमिका रेखीय गति में बल की होती है वही भूमिका घूर्णन गति में बल आघूर्ण की होती है।”

जड़त्व तथा जड़त्व आघूर्ण में अन्तर (Difference between Inertia and Moment of Inertia):
पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण केवल पिण्ड के द्रव्यमान पर निर्भर करता है परन्तु पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण पिण्ड के द्रव्यमान पर तो निर्भर करता ही है, साथ ही साथ पिण्ड की घूर्णन अक्ष से दूरी पर भी निर्भर करता है अर्थात् पूरे पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण इस तथ्य पर निर्भर करता है कि पूरे पिण्ड के द्रव्यमान का घूर्णन अक्ष के परितः वितरण कैसा है। पिण्ड के द्रव्यमान का जितना अधिक भाग घूर्णन अक्ष से दूर होगा, पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण उतना ही अधिक होगा।

जड़त्व आघूर्ण का दैनिक जीवन में महत्व :
(Importance of Moment of Inertia in Daily Life)
हमारे दैनिक जीवन में जड़त्व आघूर्ण की अहम् भूमिका है। स्कूटर, मोटर साइकिल, साइकिल, रिक्शा, ताँगा तथा बैलगाड़ी इत्यादि में पहिए का जड़त्व आघूर्ण बढ़ाने के लिए पदार्थ की अधिकतम मात्रा परिधि पर रखने का प्रयास किया जाता है परिधि का घेरा तानों द्वारा घूर्णन अक्ष से जुड़ा होता है। ऐसा करने से पहिये में ‘गतिपालक चक्र’ (Fly wheel) का गुण उत्पन्न हो जाता है अर्थात् साइकिल के पैडल चलाना बन्द कर देने पर भी साइकिल कुछ दूरी तक चलती रहती है।

जड़त्व आघूर्ण का व्यावहारिक एवं अच्छा उपयोग ऑटोमोबाइल क्षेत्र में होता है। ऑटोमोबाइल इंजन जो घूर्णी गति पैदा करता है, इसमें बहुत अधिक जड़त्व आघूर्ण वाली एक चकती लगी रहती हैं जिसे गतिपालक चक्र कहते हैं। जब शैफ्ट को घुमाने वाले बल आघूर्ण का मान घटता या बढ़ता है, तो गतिपालक चक्र अपने अधिक जड़त्व आघूर्ण के कारण लगभग एक समान चाल से घूमता रहता है जिससे झटके वाली स्थिति से बच जाते हैं।

बच्चों के खिलौने के मोटर के नीचे भी एक छोटा सा गतिपालक चक्र लगा रहता है। इसे जमीन से रगड़ कर घुमाकर छोड़ देते हैं। जड़त्व आघूर्ण के कारण मोटर कुछ देर तक चलती रहती है।

प्रश्न 9.
बल आघूर्ण एवं जड़त्व में सम्बन्ध स्थापित कीजिए और इसकी सहायता से जड़त्व आघूर्ण की परिभाषा कीजिए।
उत्तर:
बल आघूर्ण, जड़त्व आघूर्ण एवं कोणीय त्वरण में सम्बन्ध (Relation between Torque, Moment of Inertia and Angular Acceleration) :
किसी घूर्णन अक्ष के सापेक्ष किसी बल का आघूर्ण बल एवं घूर्णन अक्ष से बल की क्रिया रेखा की लम्बवत् दूरी के गुणनफल से प्राप्त होता है; अर्थात्
बल आघूर्ण = बल × घूर्णन अक्ष से बल की क्रिया रेखा की लम्बवत् दूरी
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -26

या τ = F × r
∵ F = ma एवं a = r.a
जहाँ a रेखीय त्वरण एवं α कोणीय त्वरण है।
τ = ma × r = m × r α × r
या τ = mr²α
यदि पिण्ड बड़ा है तो उसे अनेक छोटे-छोटे द्रव्यमान कणों से मिलकर बना हुआ मान सकते हैं जिनके द्रव्यमान क्रमश: \(m_1, m_2, \ldots, m_n\) हैं। सभी कणों का कोणीय त्वरण पिण्ड के कोणीय त्वरण α के बराबर होगा। इन सभी कणों पर लगने वाले बल आघूर्णों का योग पूरे पिण्ड का बल आघूर्ण प्रदान करेगा। अत:
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -27
उक्त समीकरण में यदि α = 1 rad.s-2 तो τ = I “अर्थात् किसी पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण उस बल आघूर्ण के तुल्य है जो पिण्ड में एकांक कोणीय त्वरण उत्पन्न कर दे।”

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प्रश्न 10.
घूर्णन ऊर्जा के लिए व्यंजक प्राप्त कीजिए एवं इसकी सहायता से जड़त्व आघूर्ण की परिभाषा कीजिए।
उत्तर:
घूर्णन गतिज ऊर्जा (Rotational Kinetic Energy):
घूर्णन गति में किसी कण की गतिज ऊर्जा ही घूर्णन गतिज ऊर्जा कहलाती है। इसे ER से व्यक्त करते हैं। यदि m द्रव्यमान का कण घूर्णन अक्ष के परितः r त्रिज्या के वृत्तीय मार्ग पर v चाल से घूर्णन गति करता है तो उसकी घूर्णन गतिज ऊर्जा
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -28
यदि पिण्ड बड़ा है तो उसे अनेक छोटे-छोटे द्रव्यमान कणों से मिलकर बना हुआ मान सकते हैं। इन कणों के द्रव्यमान क्रमशः \(m_1, m_2, m_3, \ldots, m_n\) एवं घूर्णन अक्ष से इनकी दूरियाँ क्रमश: \(r_1, r_2, r_3, \ldots, r_n\) हैं। चूँकि पूरा पिण्ड ω कोणीय वेग से घूर्णन गति करता है, अत: सभी कणों का कोणीय वेग ω होगा। सभी कणों की घूर्णन गतिज ऊर्जाओं का योग पूरे पिण्ड की घूर्णन गतिज ऊर्जा प्रदान करेगा; अर्थात्
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -29
जहाँ I = Σmr² = पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण
समी० (1) एक समान घूर्णन गति में घूर्णन ऊर्जा का सूत्र है। स्पष्ट है कि जिस प्रकार किसी पिण्ड की रेखीय गतिज ऊर्जा (\(\frac{1}{2} m v^2\)) पिण्ड के द्रव्यमान m तथा रेखीय वेग के वर्ग v² के गुणनफल की आधी होती है; उसी प्रकार घूर्णन गतिज ऊर्जा (\(\frac{1}{2} I \omega^2\)) पिण्ड के जड़त्व आघूर्ण I एवं कोणीय वेग के वर्ग ω² के गुणनफल की आधी होती है।
समी० (1) में यदि ω = 1 rad.s-1
तो I = 2 Er
अर्थात् “किसी घूर्णन अक्ष के सापेक्ष किसी पिण्ड का जड़त्त आघूर्ण उसकी घूर्णन ऊर्जा के दोगुने के तुल्य है जो पिण्ड में एकांक कोणीय वेग की अवस्था में होती है।”
यदि कोई पिण्ड अपनी अक्ष पर घूमने के साथ-साथ सरल रेखा में भी गतिमान हो (जैसे चलते हुए वाहनों के पहिए) तो उसकी कुल गतिज ऊर्जा उसकी घूर्णन गतिज ऊर्जा एवं रेखीय गतिज ऊर्जा के योग के बराबर होगी। अर्थात्
\(E_{\text {total }}=E_K+E_R[latex]
या [latex]E_{\text {total }}=\frac{1}{2} m v^2+\frac{1}{2} I \omega^2\) ………..(2)

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 11.
सिद्ध कीजिए
उत्तर:
द्रव्यमान केन्द्र की गति (Motion of Centre of Mass) :
माना एक निकाय n कणों से मिलकर बना है, जिसके द्रव्यमान \(m_1, m_2, m_3 \ldots . m_n\) हैं तथा स्थिति सदिश \(\overrightarrow{r_1}, \overrightarrow{r_2}, \vec{r}_3, \ldots . \vec{r}_n\) हैं। द्रव्यमान केन्द्र की परिभाषा के अनुसार इस निकाय के द्रव्यमान केन्द्र की स्थिति
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -30
न्यूटन के द्वितीय नियम से, पहले कण पर बल \(\vec{F}_1=m_1 \vec{a}_1\) तथा द्वितीय कण पर बल \(\overrightarrow{F_2}=m_2 \overrightarrow{a_2}\) तथा इसी प्रकार अन्य सभी कणों के लिए बल लेते हैं। अत:
\(M \overrightarrow{a c m}_{c m}=\vec{F}_1+\vec{F}_2+\ldots . \vec{F}_n=\sum_{i=1}^n \vec{F}_i\)
सभी कणों पर लगने वाले बाह्य बलों का योग \(\vec{F}=\sum_{i=1}^n \vec{F}_i\) है। कणों के मध्य लाने वाले आन्तरिक बल, बराबर तथा विपरीत युग्म में होते हैं। अत: वे परस्पर निरस्त हो जाते हैं। इस प्रकार
\(M \overrightarrow{a_{c m}}=\vec{F}=\overrightarrow{F_{\mathrm{ext}}}\)
अत: निकाय का द्रव्यमान तथा द्रव्यमान केन्द्र के त्वरण का गुणनफल निकाय पर आरोपित बाह्म बलों के सदिश योग के बराबर होता है।

प्रश्न 12.
दिखाइये कि क्षैतिज से 8 कोण पर झुके तल पर बिना फिसले लुढ़कने वाले पिण्ड के द्रव्यमान केन्द्र का त्वरण निम्न सम्बन्ध द्वारा दिया जाता है-
\(a=\frac{g \sin \theta}{1+\frac{K^2}{R^2}}\)
जहाँ गुरुत्वीय त्वरण; K पिण्ड की घूर्णन त्रिज्या एवं R त्रिज्या है।
उत्तर:
नत तल पर लोटनी गति (Rolling Motion on Inclined Plane):
जब आनत तल पर कोई पिण्ड बिना फिसले लुढ़कता है तो पिण्ड की इस गति को लोटनी गति कहते हैं। इस गति में पिण्ड अपने द्रव्यमान केन्द्र के परित: अक्ष के सापेक्ष घूर्णन गति करती है तथा साथ ही वस्तु का द्रव्यमान केन्द्र भी आगे बढ़ता है। इस प्रकार लोटनी गति में स्थानान्तरीय एवं घूर्णन गति दोनों प्रकार की गति होती है। नत तल पर जब वस्तु नीचे की ओर लोटनी गति करती है तो पिण्ड की स्थितिज ऊर्जा कम होती है और गतिज ऊर्जा बढ़ती है।

माना एक नत तल θ° के कोण पर झुका है और तल के शीर्ष की ऊँचाई h है। शीर्ष से कोई पिण्ड स्वतन्त्रतापूर्वक नत तल पर छोड़ दिया जाता है तो लोटनी गति करते हुए नीचे आती है। तल के आधार पर पहुँचने पर पिण्ड की सम्पूर्ण स्थितिज ऊर्जा (M g h), पिण्ड की गतिज ऊर्जा \(\left(\frac{1}{2} M v^2\right)\) एवं घूर्णन ऊर्जा \(\left(\frac{1}{2} I \omega^2\right)\) में बदल जाती है। अत:
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -31

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 13.
कोणीय संवेग संरक्षण का सिद्धान्त उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
कोणीय संवेग संरक्षण का नियम (Law of Conservation of Angular Momentum):
जब कोई पिण्ड एक बाह्य बल आघूर्ण के अन्तर्गत किसी अक्ष के सापेक्ष घूर्णन गति करता है तो पिण्ड के कोणीय संवेग परिवर्तन की दर उस पर लगने वाले बल आघूर्ण के बराबर होती है। अर्थात्
\(\vec{\tau}=\frac{d \vec{J}}{d t}\)
\(\text { यदि } \vec{\tau}=0 \text { तो } \frac{d \vec{J}}{d t}=0\)
\(\text { या } \vec{J}\text { नियतांक }\)
\(\text { या } J=I \omega\text { नियतांक }\)
अर्थात् “बाह्य बल आघूर्ण की अनुपस्थिति में कण या पिण्ड का कुल कोणीय संवेग नियत रहता है। यही कोणीय संवेग संरक्षण का नियम है।”
बाह्य बल आघूर्ण की अनुपस्थिति में यदि घूर्णन गति के दौरान किसी पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण I1 से बदलकर I1 कर दिया जाये तो माना उसका कोणीय वेग ω1 से ω2 में बदल जाता है। अतः कोणीय संवेग संरक्षण के सिद्धान्त से,
I1ω1 = I2ω2 …………(1)

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 14.
दृढ़ पिण्डों के संतुलन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
दृढ़ पिण्डों का संतुलन (Equilibrium of Rigid Bodies):
किसी पिण्ड पर आरोपित बल के कारण स्थानान्तरीय गति उत्पन्न होती है जिसके कारण पिण्ड के रेखीय संवेग में परिवर्तन होता है। रेखीय संवेग में परिवर्तन की दर आरोपित बल के बराबर होती है। ठीक उसी प्रकार यदि पिण्ड पर बल आघूर्ण क्रिया करता है तो पिण्ड घूर्णन गति करता है, जिसके कारण पिण्ड के कोणीय संवेग में परिवर्तन होता है और कोणीय संवेग में परिवर्तन की दर आरोपित बल आघूर्ण के बराबर होती है।

यदि बाह्म बल का मान शून्य हो जाये तो रेखीय संवेग नियत हो जाता है और यदि बल आघूर्ण शून्य हो जाये तो कोणीय संवेग का मान नियत हो जाता है। अत: स्पष्ट है बाह्य बल एवं बल आघूर्ण दोनों शून्य होने पर पिण्ड का रेखीय त्वरण एवं कोणीय त्वरण दोनों शून्य हो जाते हैं।
” किसी दृढ़ पिण्ड को यांत्रिक संतुलन की अवस्था में तब कहा जाता है जब इसके रेखीय व कोणीय दोनों प्रकार के संवेग समय के साथ न बदलें।” अर्थात् पिण्ड में न तो रेखीय त्वरण हो और न ही कोणीय त्वरण हो। इस प्रकार किसी पिण्ड के यांत्रिक संतुलन के लिए-
(i) पिण्ड पर लगने वाले सभी बलों का सदिश योग शून्य होना चाहिए, अर्थात्
\(\vec{F}_1+\vec{F}_2+\ldots+\vec{F}_n=\sum_{i=1}^n F_i=0\) …………(1)
यदि पिण्ड पर लगने वाला कुल बल शून्य होगा तो उस पिण्ड के रेखीय संवेग में समय के साथ परिवर्तन नहीं होगा। समी० (1) को पिण्ड के स्थानान्तरीय संतुलन की शर्त कहते हैं।
समी० (1) को x, y व z घटकों के रूप में निम्न प्रकार लिख सकते
हैं-
\(\sum_{i=1}^n \vec{F}_{i x}=0 ; \sum_{i=1}^n \vec{F}_{i y}=0 ; \sum_{i=1}^n \vec{F}_{i z}=0\) ……….(2)

यहाँ Fix, Fiy व Fiz बल Fi के क्रमशः X, Y व Z दिशाओं में घटक हैं।

(ii) दृढ़ पिण्ड पर लगने वाले बल आघूर्णों का सदिश योग शून्य होना चाहिए, अर्थात्
\(\overrightarrow{\tau_1}+\overrightarrow{\tau_2}+\overrightarrow{\tau_3}+\ldots+\overrightarrow{\tau_n}=\sum_{i=1}^n \overrightarrow{\tau_i}=0\) ………..(3)
यदि पिण्ड पर आरोपित कुल बल आघूर्ण शून्य है तो उसका कुल कोणीय संवेग समय के साथ नहीं बदलेगा। समीकरण (3) को पिण्ड के घूर्णी संतुलन की शर्त है। समी० (3) निम्न तीन समीकरणों के तुल्य हैं-
\(\sum_{i=1}^n \overrightarrow{\tau_{i x}}=0 ; \sum_{i=1}^n \overrightarrow{\tau_{i y}}=0 ; \sum_{i=1}^n \overrightarrow{\tau_{i z}}=0\)

जहाँ, τix, τiy व τiz क्रमशः X, Y व Z दिशाओं में τi के घटक हैं। समीकरण (2) व (4) किसी दृढ़ पिण्ड के यांत्रिक संतुलन के लिए आवश्यक छः ऐसी शर्तें बताते हैं जो एक-दूसरे पर निर्भर नहीं करती हैं।

यदि किसी पिण्ड पर लगने वाले बल एक तल में हों तो पिण्ड के यांत्रिक संतुलन के लिए केवल तीनों शर्तों का पूर्ण होना आवश्यक होगा। इनमें से दो शर्तें स्थानान्तरीय संतुलन के संगत होंगी जिनके अनुसार सभी बलों के इस तल स्वच्छ चुनी गईं दो परस्पर लम्बवत् अक्षों के अनुदिश अवयवों का सदिश योग अलग-अलग शून्य होगा। तीसरी शर्त घूर्णी संतुलन के संगत है। बलों के तल के अभिलम्बवत् अक्ष के अनुदिश बल आघूर्णों का सदिश योग शून्य होगा।

एक पिण्ड आंशिक संतुलन में तभी हो सकता है अर्थात् दृढ़ पिण्ड स्थानान्तरीय संतुलन में तो हो, परन्तु घूर्णी संतुलन में न हो या फिर घूर्णी संतुलन में तो हो परन्तु स्थानान्तरीय संतुलन में न हो।

सुमेलन सम्बन्धित प्रश्न
(Matrix Matching Type Questions)

प्रश्न 1.
पृथ्वी की त्रिज्या व द्रव्यमान M है। यदि पृथ्वी की त्रिज्या सिकुड़कर आधी हो जाये जबकि उसका द्रव्यमान परिवर्तित न हो तो स्तम्भ को स्तम्भ ।। से सुमेलित कीजिए ।

स्तम्भ – I स्तम्भ – II
(A) पृथ्वी का कोणीय वेग (P) दो गुना हो जायेगा
(B) पृथ्वी के अपनी अक्ष के परितः घूर्णन का परिक्रमण काल (Q) चार गुना हो जायेगा
(C) पृथ्वी की घूर्णन गतिज ऊर्जा (R) नियत रहेगा
(S) कोई नहीं

उत्तर:

स्तम्भ – I स्तम्भ – II
(A) पृथ्वी का कोणीय वेग (R) नियत रहेगा
(B) पृथ्वी के अपनी अक्ष के परितः घूर्णन का परिक्रमण काल (S) कोई नहीं
(C) पृथ्वी की घूर्णन गतिज ऊर्जा (Q) चार गुना हो जायेगा

प्रश्न 2.
सूची (A) तथा सूची (B) को सुमेलित कीजिए ।

स्तम्भ – I स्तम्भ – II
(A) वृत्ताकार वलय ( इसके केन्द्र से गुजरने वाली एवं इसके तल के लम्बवत् अक्ष) (P) \(I=\frac{2}{5} M R^2\)
(B) वृत्ताकार डिस्क (ज्यामितीय अक्ष) (Q) \(I=\frac{2}{3} M R^2\)
(C) ठोस गोला (व्यास) (R) \(I=\frac{1}{2} M R^2\)
(D) खोखला गोला (व्यास) (S) \(I=M R^2\)

उत्तर:

स्तम्भ – I स्तम्भ – II
(A) वृत्ताकार वलय ( इसके केन्द्र से गुजरने वाली एवं इसके तल के लम्बवत् अक्ष) (S) \(I=M R^2\)
(B) वृत्ताकार डिस्क (ज्यामितीय अक्ष) (R) \(I=\frac{1}{2} M R^2\)
(C) ठोस गोला (व्यास) (P) \(I=\frac{2}{5} M R^2\)
(D) खोखला गोला (व्यास) (Q) \(I=\frac{2}{3} M R^2\)

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

आंकिक प्रश्न (Numerical Questions )

द्रव्यमान केन्द्र पर आधारित प्रश्न
प्रश्न 1.
1 kg तथा 3 kg के दो कण क्रमश: \((2 \hat{i}+3 \hat{j})\) तथा \((3 \hat{i}-4 \hat{j})\) ms-1 के वेग से गतिमान हैं। द्रव्यमान केन्द्र का वेग बताइये।
उत्तर:
\(\frac{1}{4}(11 \hat{i}-9 \hat{j})\)

प्रश्न 2.
तीन बिन्दु द्रव्यमान m1 = 1kg, m2 = 2 kg एवं m3 = 3 kg एक समबाहु त्रिभुज के तीनों शीर्षो पर स्थित हैं। त्रिभुज की प्रत्येक भुजा की लम्बाई ० है द्रव्यमान केन्द्र की स्थिति के सापेक्ष
उत्तर:
\(-\left(\frac{7}{12} a, \frac{3 \sqrt{3}}{12} a, 0\right)\)

प्रश्न 3.
दो कणों के एक निकाय में, कणों के द्रव्यमान क्रमशः 2 व 5 kg हैं। इनकी स्थितियाँ t = 0 पर क्रमश: \((4 \hat{i}+3 \hat{j})\) तथा \((6 \hat{i}-3 \hat{j}+7 \hat{k})\) m हैं तथा उनके वेग क्रमशः \((10 \hat{i}-6 \hat{k})\) तथा \((3 \hat{i}+6 \hat{j})\) ms-1 है। इस कण तन्त्र के द्रव्यमान केन्द्र का वेग ज्ञात कीजिए | समय t = 0 तथा t = 4 पर द्रव्यमान केन्द्र की स्थितियाँ क्या होंगी?
उत्तर:
\(v_{C M}=\frac{1}{7}(35 \hat{i}+30 \hat{j}-12 \hat{k}) \mathrm{ms}^{-1}\)
\(t=0 \text { पर } \overrightarrow{r_{C M}}=\frac{1}{7}(38 \hat{i}-29 \hat{j}+35 \hat{k}) \mathrm{m}\)
\(t=4 \text { पर } \overrightarrow{r_{C M}}=\frac{1}{7}(178 \hat{i}+91 \hat{j}-13 \hat{k}) \mathrm{m}\)

बल आघूर्ण, कोणीय संवेग तथा घूर्णन गति के नियमों पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 4.
m द्रव्यमान का एक कण वेग से क्षैतिज से 6 कोण पर फेंका जाता है जब कण महत्तम ऊँचाई पर पहुँचता हैं तब प्रक्षेपण बिन्दु के परितः कोणीय संवेग ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
\(\frac{m v^3 \sin ^2 \theta \cos \theta}{2 g}\)

प्रश्न 5.
0.05 kg.m² जड़त्व आघूर्ण वाला एक गतिमान पहिया 10 चक्कर / मिनट से अपने अक्ष के परितः घूर्णन कर रहा है। उसको 5 गुना तेजी से घुमाने के लिए और कितना कार्य करना पड़ेगा?
उत्तर:
0.6573 J

प्रश्न 6.
20 kg द्रव्यमान का एक पिण्ड 0.20m व्यास के वृत्ताकार पथ पर 3 सेकण्ड में 100 चक्कर की दर से घूम रहा है। ज्ञात कीजिए – (i) पिण्ड की घूर्णन गतिज ऊर्जा, (ii) पिण्ड का कोणीय संवेग, r = 9.86
उत्तर:
(i) 4.382×10³ J
(ii) 41.87 J.s.

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 7.
किसी वलय (ring) का जड़त्व आघूर्ण 0.40 kg.m² है। यदि यह प्रति मिनट 2100 चक्कर लगा रही हो तो इसे 2s में रोकने के लिए कितने बल आघूर्ण की आवश्यकता होगी?
उत्तर:
44 N.m

प्रश्न 8.
एक व्यक्ति अपने हाथों में 10-10 kg के गोले लेकर 2s में 1 चक्कर लगाने वाली घूमती मेज पर खड़ा है। उसकी भुजाएं फैली हैं तथा प्रत्येक गोला घूर्णन अक्ष से 3 m दूर है। यदि वह व्यक्ति गोलों को दूर फेंक दे तो मेज का नया कोणीय वेग क्या होगा? व्यक्ति सहित मेज का जड़त्व आघूर्ण 15 kg.m² है।
उत्तर:
6.5 चक्कर / सेकण्ड

प्रश्न 9.
5 × 10 kg.m-4 जड़त्व आघूर्ण की एक चकती अपनी अक्ष के परितः 40 चक्कर / मिनट लगा रही है। यदि 0.02 Kg की मोम की एक गोली अक्ष से 0.08m की दूरी पर धीरे से गिरा दी जाती है। तो अब वह कितने चक्कर प्रति मिनट करेगी?
उत्तर:
31.85 चक्कर / मिनट

प्रश्न 10.
25 cm त्रिज्या तथा 5000 g द्रव्यमान का ऊर्ध्वाधर ठोस पहिया अपनी क्षैतिज धुरी पर घूमने के लिए स्वतन्त्र है। पहिए पर एक डोरी लिपटी है। डोरी को 2 N के बल से 55 तक खींचा जाता है। गणना कीजिए कि पहिया किस कोणीय वेग से घूमने लगेगा? (धुरी घर्षण रहित है।)
उत्तर:
16 rad.s-1

संतुलन पर आधारित

प्रश्न 11.
समान घनत्व की एक मीटर लम्बी छड़ 40 cm के निशान पर कीलकित की जाती है। 10g द्रव्यमान एक ब्लॉक 10 cm के चिन्ह पर लटकाया जाता है। यदि छड़ सन्तुलित अवस्था में हो तो उसका द्रव्यमान ज्ञात कीजिए।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -32
उत्तर:
30 g

प्रश्न 12.
एक छड़ जिसका भार W है, दो समान्तर क्षुरधारों A व B पर आधारित है, क्षैतिज स्थिति में संतुलित है। क्षुरधारों के बीच की दूरी d है। छड़ का द्रव्यमान केन्द्र क्षुरधार A से x दूरी पर है। बिन्दु A व B पर अभिलम्ब प्रतिक्रियाएं ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
\(R_A=\frac{W(d-x)}{d} ; R_B=\frac{W \cdot x}{d}\)

जड़त्व आघूर्ण, घूर्णन गतिज ऊर्जा तथा संरक्षण के नियमों पर आधारित

प्रश्न 13.
लकड़ी के हल्के मीटर पैमाने 18 पर 200 g व 300 g के भार क्रमश: 20 cm व 70 cm के चिन्हों पर रखे हैं। इस निकाय का जड़त्व आघूर्ण (i) 0cm; (ii) 50 cm (iii) 100 cm वाले चिन्हों से गुजरने वाली तथा मीटर पैमाने के लम्बवत् अक्षों के परितः ज्ञात
कीजिए।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति -33
उत्तर:
(i) 15.5 × 105 g.cm²;
(ii) 3 × 105 g.cm²;
(iii) 5.9 × 105 g.cm²

प्रश्न 14.
एक वृत्ताकार चकती जिसका द्रव्यमान 49 kg तथा त्रिज्या 50 cm है, अपनी अक्ष के परितः 120 घूर्णन / मिनट की दर से घुमायी जाती है। चकती की गतिज ऊर्जा की गणना कीजिए।
उत्तर:
484J

प्रश्न 15.
एक मीटर लम्बी एक पतली छड़ पर पाँच बिन्दुवत् कण जिनमें प्रत्येक का द्रव्यमान 1 kg है, समान दूरी पर क्रमश: A, B, C, D और E पर चित्र के अनुसार स्थित हैं। छड़ का द्रव्यमान 0.5 है जो केन्द्रीय बिन्दु पर केन्द्रित माना गया है। इस निकाय का जड़त्व आघूर्ण से पारित एवं छड़ के लम्बवत् अक्ष के सापेक्ष ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
2 kg.m²

प्रश्न 16.
यदि पृथ्वी अचानक सिकुड़ जाती है जिससे इसकी त्रिज्या पूर्व त्रिज्या की एक तिहाई रह जाये तो अब दिन कितना छोटा हो जायेगा? यह मान लीजिए कि द्रव्यमान अपरिवर्तित रहता है।
उत्तर:
21 घंटे 20 मिनट

प्रश्न 17.
एक पुच्छल तारें की सूर्य से अधिकतम एवं न्यूनतम दूरी क्रमश: 1.4 × 1012 m एवं 7 × 1010 m है। यदि सूर्य के निकटतम इसका वेग 6 × 104 ms-1 है तो दूरस्थ स्थिति में इसका वेग ज्ञात कीजिए। पुच्छल तारे का पथ वृत्ताकार माना गया है।
उत्तर:
3 × 10³ ms-1

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 18.
एक 500 kg द्रव्यमान एवं 1 m त्रिज्या वाला गतिपालक चक्र 500 घूर्णन प्रति मिनट की दर से घूम रहा है। यह मानते हुए कि उसका सम्पूर्ण द्रव्यमान इसकी परिधि पर रहा है, निम्नलिखित की गणना कीजिए।
(i) कोणीय वेग (ii) जड़त्व आघूर्ण (iii) घूर्णन ऊर्जा ।
उत्तर:
(i) 52.33 rad.s-1
(ii) 500 kg.m²;
(iii) 6.85 × 105 J

लोटनी गति पर आधारित

प्रश्न 19.
10 kg द्रव्यमान तथा 20 cm त्रिज्या का एक गोला 5 mis के रेखीय वेग से एक क्षैतिज पर बिना फिसले लुढ़क रहा है। इसकी कुल गतिज ऊर्जा ज्ञात कीजिए।
उत्तर;
175 J

प्रश्न 20.
एक वृत्ताकार चकती का द्रव्यमान 0.05 kg तथा त्रिज्या 0.01 m है। यह क्षैतिज तल पर 0.05 ms-1 के वेग से लुढ़कता है। कुल गतिज ऊर्जा की गणना कीजिए।
उत्तर:
9.4 × 10-5 J

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 कार्बनिक रसायन : कुछ आधारभूत सिद्धांत तथा तकनीकें

Haryana State Board HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 कार्बनिक रसायन : कुछ आधारभूत सिद्धांत तथा तकनीकें Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 कार्बनिक रसायन : कुछ आधारभूत सिद्धांत तथा तकनीकें

प्रश्न 1.
निम्नलिखित यौगिकों में प्रत्येक कार्बन की संकरण अवस्था बताइये-
(i) CH2 = C = O
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 1
(ii) CH3CH=CH2
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 2
(iii) (CH3)2CO
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 3
(iv) CH2 = CHCN
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 4
(v) C6H6
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 5
निष्कर्ष-
(1) यदि कार्बन परमाणु चार एकल बन्ध से जुड़ा है तो संकरण sp3 होगा।
(2) यदि कार्बन परमाणु पर दो एकल एक द्विबन्ध है, तो संकरण sp2 होगा।
(3) यदि कार्बन परमाणु पर एक एकल बन्ध तथा एक त्रिबन्ध है तो संकरण sp होगा।
(4) यदि कार्बन परमाणु पर दो द्विबन्ध उपस्थित हैं तो संकरण sp होगा।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित अणुओं में σ तथा π-आबन्ध दर्शाइए C6H6, C6H12, CH2Cl2,
CH2=C=CH2,CH3NO2,HCONHCH3
उत्तर:
(i) C6H6
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 6
(ii) C6H12
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 7
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 8

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 कार्बनिक रसायन : कुछ आधारभूत सिद्धांत तथा तकनीकें

प्रश्न 3.
निम्नलिखित यौगिकों के आबन्ध-रेखा-सूत्र लिखिएआइसोप्रोपिल ऐे पेहॉल, 2, 3-डाइमेथिल ब्यूटेनल, हेप्टेन-4-ओन
उत्तर:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 9

प्रश्न 4.
निम्नलिखित यौगिकों के IUPAC नाम लिखिए-
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 10
उत्तर:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 11

प्रश्न 5.
निम्नलिखित यौगिकों में से कौन-सा नाम IUPAC पद्धति के अनुसार सही है ?
(क) 2, 2-डाइमेथिलपेण्टेन अथवा 2-डाइमेथिलपेण्टेन
(ख) 2,4,7-ट्राइमेथिलऑक्टेन अथवा 2,5,7-ट्राइमेथिल ऑक्टेन
(ग) 2-क्लोरो-4-मेथिलपेण्टेन अथवा 4-क्लोरो-2-मेथिलपेण्टेन
(घ) ब्यूट-3-आइन-1-ऑल अथवा ब्यूट-4-ऑल-1-आइन
उत्तर:
(क) 2,2 -डाइमेथिलपेन्टेन सही है :
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 12
(ख) 2,4,7-ट्राइमेथिलऑक्टेन सही है :
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 13
(ग) 2-क्लोरो-4-मेथिलपेण्टेन सही है :
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 14
(घ) ब्यूट-3-आइन-1-ऑल सही है :
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 15

प्रश्न 6.
निम्नलिखित दो सजातीय श्रेणियों में से प्रत्येक के प्रथम पाँच सजातों के संरचना-सूत्र लिखिए-
(क) H – COOH
(ख) CH3COCH3
(ग) H – CH = CH2
उत्तर:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 16
(ख) CH3COCH3
प्रोपेन-2-ओन
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 17
(ग) H – CH = CH2
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 18

प्रश्न 7.
निम्नलिखित के संघनित और आबन्ध रेखा-सूत्र लिखिए तथा यदि कोई क्रियात्मक समूह हो तो उसे पहचानिए-
(क) 2, 2, 4-ट्राइमेथिल पेण्टेन
(ख) 2-हाइड्रॉक्सी-1, 2,3 -प्रोपेनट्राइकार्बोक्सिलिक अम्ल
(ग) हेक्सेनडाइएल
उत्तर:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 19

प्रश्न 8.
निम्नलिखित यौगिकों में क्रियात्मक समूह पहचानिए-
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 20
उत्तर:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 21
क्रियात्मक समूह-इस यौगिक में ऐल्कोहॉल, ईथर, ऐल्डिहाइड समूह उपस्थित है।
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 22
क्रियात्मक समूह-इस यौगिक में ऐमीनो, एस्टर, तृतीय-ऐमीन समूह उपस्थित हैं।
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 23
क्रियात्मक समूह-इस यौगिक में नाइट्रो एवं द्विबन्ध समूह उपस्थित हैं।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित में से कौन अधिक स्थायी है तथा क्यों ?
O2NCH2CH2O और CH3CH2O
उत्तर:
दिये गये दोनों आयनों में से O2NCH2CH2O अधिक स्थायी हैं क्योंकि यहाँ पर -I प्रभाव वाला -NO2 समूह जुड़ा हुआ है, जो ऋणायन पर ऋण आवेश को घटा देता है जिससे आयन का स्थायित्व बढ़ जाता है। जबकि दूसरे आयन CH3CH2O में एक +I प्रभाव वाला CH3 समूह जुड़ा हुआ है, जो ऋणायन पर ऋण आवेश की मात्रा को बढ़ा देता है जिससे वह अस्थायी हो जाता है।

प्रश्न 10.
π-निकाय से आबन्धित होने पर ऐल्किल समूह इलेक्ट्रॉन दाता की तरह व्यवहार प्रदर्शित क्यों करते हैं ? समझाइए।
उत्तर:
ऐल्किल समूह sp3 संकरित होता है तथा जब यह π-निकाय से आबन्धित होता है तो इसमें sp2 संकरण हो जाता है। हम जानते हैं कि जैसे-जैसे s-गुण या s की प्रतिशतता बढ़ती है वैसे-वैसे विद्युत ऋणात्मकता बढ़ जाती है अतः π-निकाय से आबन्धित होने पर यह इलेक्ट्रॉन दाता की तरह व्यवहार करने लगता है।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित यौगिकों की अनुनाद संरचना लिखिए तथा इलेक्ट्रॉनों का विस्थापन मुड़े तीरों की सहायता से दर्शाइए-
(क) C6H5OH
(ख) C6H5NO2
(ग) CH3CH = CHCHO
(घ) C6H5-CHO
(ङ) C6H5-CH2+
(च) CH3CH = CHC+H2
उत्तर:
(क) C6H5OH की अनुनाद संरचना
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 24
(ख) C6H5NO2 की अनुनाद संरचना
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 25
(ग) CH3CH=CHCHO की अनुनाद संरचना
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 26
(घ) C6H5CHO की अनुनाद संरचना
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 27
(ङ) \(\mathrm{C}_6 \mathrm{H}_5 \mathrm{CH}_2^{+}\) की अनुनाद संरचना
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(च) CH2CH = \(\mathrm{CHCH}_2^{+}\) की अनुनाद संरचना
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HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 कार्बनिक रसायन : कुछ आधारभूत सिद्धांत तथा तकनीकें

प्रश्न 12.
इलेक्ट्रॉन स्नेही तथा नाभिक स्नेही क्या है ? उदाहरण सहित समझाइए ?
उत्तर:
इलेक्ट्रॉन स्नेही अभिकर्मक (Electro philic reagent) – ऐसे अभिकर्मकों के एक परमाणु पर इलेक्ट्रॉन की कमी रहती है। इलेक्ट्रॉन की कमी वाले परमाणु की उपस्थिति की वजह से यह ऐसे स्रोतों के साथ अभिक्रिया करते हैं, जहाँ इलेक्ट्रॉन की अधिकता रहती है। इस कारण इन्हें इलेक्ट्रॉन स्नेही (Electrophiles) कहा जाता है।

(A) इलेक्ट्रॉनिक स्नेही अभिकभेक के प्रकार –

  • धनात्मक इलेक्ट्रॉन स्नेही (E+) – इनमें इलेक्ट्रॉनों की कमी होती है एवं इनके ऊपर धनात्मक आवेश होता है। जैसे-कार्बोनियम आयन, क्लोरोनियम आदि। इनके बाह्मतम कोश में 6 इलेक्ट्रॉन पाये जाते हैं एवं इनमें दो इलेक्ट्रॉनों की कमी होती है।
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  • उदासीन इलेक्ट्रॉन स्ने ही (E) – इनके ऊपर कोई भी आवेश नहीं होता है परन्तु इनमें इलेक्ट्रॉनों की कमी होती है। जैसे- BF3, AlCl3, SO3, FeCl3 आदि। इलेक्ट्रॉन स्नेही सदैव अभिकारक के इलेक्ट्रॉन समूह वाले केन्द्र पर आक्रमण करते हैं।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित समीकरणों में रेखांकित अभिकर्मकों को नाभिकस्नेही तथा इलेक्ट्रॉनस्नेही में वर्गीकृत कीजिए-
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उत्तर:
(क) OH नाभिकस्नेही है क्योंकि इस पर ऋण आवेश है तथा हाइड्रोजन से संयोग कर H2O बनाता है।
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(ख) CN नाभिकस्नेही है क्योंकि इस पर ऋण आवेश है तथा यह कार्बन से संयोग करता है जिस पर धनावेश उत्पन्न होता है।
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(ग) CH3CO+ इलेक्ट्रॉनस्नेही हैं क्योंकि इस पर धनावेश है।
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प्रश्न 14.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं को वर्गीकृत कीजिए-
(क) CH3CH2Br + HS → CH3CH2SH + Br
(ख) (CH3)2C = CH2 + HCl → (CH3)2ClC – CH3
(ग) CH3CH2Br + HO → CH2 = CH2 + H2O + Br
(घ) (CH3)3C – CH2OH + HBr → (CH3)2CBrCH2CH3 + H2O
उत्तर:
(क) नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया।
(ख) इलेक्ट्रॉनस्नेही संकलन अभिक्रिया।
(ग) द्विआण्विक निराकरण अभिक्रिया
(घ) नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया (पुर्नव्यवस्थापन सहित)

प्रश्न 15.
निम्नलिखित युग्मों में सदस्य-संरचनाओं के मध्य कैसा सम्बन्ध है? क्या ये संरचनाएँ संरचनात्मक या ज्यामितीय समावयवी अथवा अनुनाद संरचनाएँ हैं ?
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 35
उत्तर:
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ये ज्यामितीय समावयवी हैं। इसमें एक सिस समावयवी तथा एक ट्रान्स समावयवी है।
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प्रश्न 16.
निम्नलिखित आबन्ध विदलनों के लिए इलेक्ट्रॉन विस्थापन को मुड़े तारों द्वारा दर्शाएँ तथा प्रत्येक विदलन को समांश अथवा विषमांश में वर्गीकृत कीजिए। साथ ही निर्मित सक्रिय मध्यवर्ती उत्पादों में मुक्त-मूलक, कार्बधनायन तथा कार्बत्रणायन पहचानिए-
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 38
उत्तर:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 39

प्रश्न 17.
प्रेरणिक तथा इलेक्ट्रोमेरिक प्रभावों की व्याख्या कीजिए। निम्नलिखित कार्बोक्सिलिक अम्लों की अम्लता का सही क्रम कौन-सा इलेक्ट्रॉन-विस्थापन वर्णित करता है ?
(क) Cl3CCOOH>Cl2CHCOOH>ClCH2COOH
(ख) CH3CH2COOH>(CH3)2CHCOOH>(CH3)3C.COOH
उत्तर:
जब सह-संयोजन बन्ध दो भिन्न विद्युत ऋणात्मकता वाले परमाणुओं के मध्य होता है तो साझे का इलेक्ट्रॉन युग्म दोनों परमाणुओं के मध्य न रहकर यह अधिक विद्युत ऋणी परमाणु की तरफ विस्थापित हो जाता है। इसी विस्थापन के फलस्वरूप अधिक विद्युत ऋणी परमाणु के ऊपर आंशिक ऋणावेश एवं कम विद्युत ऋणी परमाणु पर आंशिक धनावेश उत्पन्न हो जाता है।
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 40
कार्बन श्रंखला में यह आवेश निम्न प्रकार उत्पन्न होता है-
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 41
इस प्रभाव को I द्वारा प्रदर्शित करते है। यह दो प्रकार का होता है-
(A) प्रकार (Types) यह दो प्रकार का होता है।
(i) + I प्रभाव (+ I Effect) – जब कार्बन के साथ कोई इलेक्ट्रॉन प्रतिकर्षित करने वाला समूह जुड़ा रहता है तो साझे के इलेक्ट्रॉन युग्म कार्बन की तरफ विस्थापित हो जाते हैं। इसी प्रभाव को +I या धनात्मक प्रेरणिक प्रभाव कहते हैं। ऐल्किल समूह के द्वारा + I प्रभाव प्रदर्शित किया जाता है।

विभिन्न ऐल्किल समूहों द्वारा उत्पन्न प्रभाव की तीव्रता का क्रम निम्नलिखित है-
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(ii) -I प्रभाव (-I Effect) – जब कार्बन के साथ इलेक्ट्रॉन आकर्षित करने वाला समूह जुड़ा रहता है तो साझे का इलेक्ट्रॉन युग्म कार्बन परमाणु से दूर विस्थापित हो जाता है। इसी प्रभाव को – I प्रभाव या ऋणात्मक प्रेरणिक प्रभाव कहते हैं। ऋणात्मक प्रेरणिक प्रभाव उत्पन्न करने वाले कुछ समूहों के उदाहरण एवं उनकी तीव्रता का क्रम इस प्रकार है-
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(B) प्रेरणिक प्रभाव की विशेषताएँ – प्रेरणिक प्रभाव बन्धों में ध्रुवता करता है। इसकी निम्न विशेषताएँ हैं-
(i) C-H बन्ध में कार्बन एवं हाइड्रोजन की विद्युत ऋणात्मकता का मान लगभग समान होता है। अत: C-H बन्ध के मध्य प्रेरणिक प्रभाव नहीं होता है।
(ii) प्रेरणिक प्रभाव सदैव कार्बन परमाणु एवं एक विद्युत ऋणी परमाणु या समूह के मध्य केवल एक इलेक्ट्रॉन युग्म के साझे से उत्पन्न होता है।
(iii) कार्बन श्रृंखला की लम्बाई बढ़ने के साथ-साथ इलेक्ट्रॉन विस्थापन घटता जाता है अर्थात् C-X बंध से दूरी बढ़ने के साथ कार्बन परमाणुओं पर आने वाला आवेश घटता जाता है तथा तीसरे कार्बन के बाद यह प्रभाव नगण्य हो जाता है।
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यह प्रभाव तीर HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 45 के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है जो कि अधिक विद्युत ऋणी की ओर रहता है।

(C) प्रेरणिक प्रभाव के अनुप्रयोग (Uses of Inductive Effect) – प्रेरणिक प्रभाव के मुख्य अनुप्रयोग निम्नलिखित हैं-

  • यह कार्बनिक यौगिकों के सहसंयोजक बंधों के मध्य ध्रुवता की व्याख्या करता है।
  • अभिक्रिया मध्यवर्तियों जैसे-कार्बोनियम आयन, कार्बेनायन इत्यादि की स्थायित्व की भी व्यख्या करता है।
  • यह अम्लों एवं क्षारों की प्रबलता भी स्पष्ट करता है।

इलेक्ट्रोमेरिक पभाव: ऐसे यौगिक जिनमें द्विबंध या त्रिक बंध (double bond or triple bond) होता है, के π इलेक्ट्रॉन आक्रमणकारी अभिकर्मक (attacking reagent) की उपस्थिति में अधिक विद्युत ऋणी तत्त्व पर स्थानान्तरित हो जाते हैं तथा यौगिक में पूर्ण धन एवं ऋण आवेश उत्पन्न हो जाता है। इस प्रभाव को इलेक्ट्रोमेरिक (Electromeric effect) प्रभाव कहते हैं।

उदाहरण – जब CN कार्बोनिल समूह (> C = O) के कार्बन पर आक्रमण करता है तो π बंध का इए न्ट्रॉन युग्म ऑक्सीजन परमाणु पर पूर्णतया स्थानान्तरित हो जाता है।
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अतः द्विबंध या त्रिक बंध में उपस्थित साझे के इलेक्ट्रॉन युग्मों का आक्रमणकारी अभिकर्मक की उपस्थिति में अधिक विद्युत ऋणी तत्त्व पर स्थानान्तरित हो जाने की क्रिया को इलेक्ट्रोमेरिक प्रभाव (Electromeric Effect) कहते हैं। यह प्रभाव आक्रमणकारी अभिकर्मक की उपस्थिति तक ही रहता है, अतः यह प्रभाव अस्थायी होता है।
इलेक्ट्रोमेरिक प्रभाव दो प्रकार का होता है।
(i) +E प्रभाव
(ii) – E प्रभाव

(i) धनात्मक इलेक्ट्रोमेरिक प्रभाव (+ E प्रभाव) – इस प्रभाव में बहुआबंध के π – इलेक्ट्रॉनों का स्थानांतरण उस परमाणु पर होता है, जिससे आक्रमणकारी अभिकर्मक बंधित होता है। उदाहरणार्थ-
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 46
(ii) ऋणात्मक इलेक्ट्रोमेरिक प्रभाव (- E प्रभाव)—इस प्रभाव में बहुआबंध के π – इलेक्ट्रॉनों का स्थानांतरण उस परमाणु पर होता है, जिससे आक्रमणकारी अभिकर्मक बंधित नहीं होता है। उदाहरणार्थ-
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 Img 47
इलेक्ट्रोमेरिक प्रभाव के आधार पर द्विबंध या त्रिकबंध युक्त यौगिकों के विभिन्न योग अभिक्रियाओं की व्याख्या की जा सकती है।
उदाहरण-ऐथीन(CH2 = CH2) की क्रिया HBr से निम्न प्रकार होती है।
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जब प्रेरणिक तथा इलेक्ट्रोमेरिक प्रभाव एक-दूसरे की विपरीत दिशाओं में कार्य करते हैं, तब इलेक्ट्रोमेरिक प्रभाव प्रबल होता है।

(क) हैलेजेन परमाणुओं की संख्या घटने पर समग्र – I प्रभाव घटता है तथा अम्लीय सामर्थ्य घटती है।
Cl3CCOOH>Cl2CHCOOH>ClCH2COOH

(ख) ऐल्किल समूहों की संख्या बढ़ने पर +I प्रभाव बढ़ता है तथा अम्लीय सामर्थ्य घटती है।
CH3CH2COOH>(CH3)2CHCOOH>(CH3)3C.COOH
यह इलेक्ट्रॉन दाता प्रेरणिक प्रभाव (+1) दर्शाता है।

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 कार्बनिक रसायन : कुछ आधारभूत सिद्धांत तथा तकनीकें

प्रश्न 18.
प्रत्येक का एक उदाहरण देते हुए निम्नलिखित प्रक्रमों के सिद्धान्तों का संक्षिप्त विवरण दीजिए-
(क) क्रिस्टलन,
(ख) आसवन,
(ग) क्रोमेटोग्राफी।
उत्तर:
(क) क्रिस्टलन:
ठोस कार्बनिक पदार्थों के शोधन के लिये इस विधि को प्रयोग में लाया जाता है। यह विधि कार्बनिक यौगिक तथा अशुद्धि की किसी एक उपयुक्त विलायक में इनकी विलेयताओं में निहित अंतर पर आधारित होती है। अशुद्ध यौगिक को किसी एक ऐसे विलायक में घोलते हैं जिसमें यौगिक सामान्य ताप पर अल्प-विलेय परन्तु उच्च ताप पर अधक विलेय होता है। यौगिक को घोलने के पश्चात् उसे सान्द्रित करते हैं तथा इतना सान्द्रित करते हैं कि विलयन संतृप्त हो जाये। अब विलयन को ठण्डा करने पर शुद्ध पदार्थ क्रिस्टलित हो जाता है, जिसे मातृ द्रव से पृथक् कर लेते हैं।

बचे हुये मातृ द्रव में अशुद्धियों तथा यौगिक की अल्प मात्रा रह जाती है। यदि यौगिक किसी एक विलायक में अत्यधिक विलेय तथा अन्य में अल्प विलेय होता है तब की उचित मात्रा में इन विलायकों को मिश्रित करके किया जाता है। सक्रियित काष्ठ कोयले की सहायता से बने हुये विलयन में से रंगीन अशुद्धियों को दूर किया जाता है। इस प्रकार बार-बार क्रिस्टलन करके यौगिक को शुद्ध किया जाता है।

उदाहरणार्थ-कार्बनिक पदार्थ। जैसे- कार्बन टेट्राक्लोराइड (CCl4), बेन्जीन (C6H6), ऐल्कोहॉल, ऐसीटोन, क्लोरोफॉर्म (CHCl3) आदि। क्रिस्टलन में प्रयुक्त होने वाले उपकरणों को निम्न चित्रों दिखाया गया है।
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(ख) आसवन:
द्रव कार्बनिक यौगिकों का शोधन प्रायः आसवन विधियों द्वारा किया जाता है। “किसी द्रव को गर्म करके वाष्प में परिवर्तन करने तथा वाष्प को ठण्डा करके फिर से द्रव में बदलने की क्रिया को आसवन कहते हैं। आसवन में वाष्पन तथा संघनन दोनों प्रक्रियाएँ होती हैं।”

आसवन = वाष्पन + संघनन

ऐसे कार्बनिक पदार्थ, जो सामान्य ताप पर द्रव अवस्था में होते हैं या जिनके क्वथनांक बहुत कम या बहुत अधिक नहीं होते हैं, का शोधन एवं पृथक्करण आसवन विधि द्वारा किया जाता है। केवल उन्हीं पदार्थों को उनके मिश्रण से अलग किया जाता है, जो परस्पर विलेय होते हैं। इसकी निम्न विधियाँ होती है।

  • साधारण आसवन
  • प्रभाजी आसवन
  • भाप आसवन
  • निर्वात आसवन या कम दाब पर आसवन

(1) साधारण आसवन (Simple Distillation)-इस विधि की सहायता से ऐसे दो द्रवों का लिश्रण जिनके हो, को पृथक् कर सकते हैं। भिन्न ववधनांक। बाले द्रव भिन्न ताष पर वाष्पित होते हैं। वाष्पों को ठण्डा करने से प्राप्त द्रवों को अलग-अलगं एकत्र कर लेते हैं। क्लोरोफार्म (क्वथनांक 334K) और ऐनिलीन (क्वथनांक 457K) का साधारण आसवन विधि द्वारा आसानी से पृथक् कर सकते हैं।

विधि-द्रव-मिश्रण को चित्रानुसार एक गोल पेंदे के फ्लास्क में लेकर बर्नर की सहायता से धीरे-धीरे गरम करते हैं। उबालने प्र कम क्वथनांक वाले द्रव की वाष्प पहले बनती है। वाष्प को संघनित्र की सहायता से संघनित करके प्राप्त द्रव को ग्राही में एकत्र कर लेते हैं। उच्च क्वथनांक वाले घटक के वाष्प बाद में बनते हैं। इनमें संघनन से प्राप्त द्रव को दूसरे ग्राही में एकत्र कर लेते हैं।
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(2) प्रभाजी आसवन (Fractional Distillation) – यह द्रवों के क्वथनांकों की भिन्नता पर आधारित है, यदि दो या दो से अधिक द्रवों के क्वथनांक काफी समीप होते हैं तथा उन्हें शुद्ध रूप में प्राप्त करना होता है और वे स्थिर क्वाथी मिश्रण भी नहीं होते तो उन्हें प्रभाजी आसवन द्वारा पृथक् करते हैं। इस विधि की यह विशेषता है कि इसके द्वारा ऐसे यौगिकों को भी पृथक् किया जा सकता है जिनके क्वथनांकों में 10°C से उच्च या 50°C से कम का अन्तर होता है।

इस विधि द्वारा ऐसीटोन (50°C) तथा मेथिल ऐल्कोहॉल (65°C) या बेन्जीन व टॉलूईन आदि के मिश्रण को पृथक् किया जा सकता है।

विधि (Method) – सर्वप्रथम एक गोल पेंदी वाले फ्लास्क में प्रभाजक स्तम्भ लगा देते हैं तथा इसका दूसरा सिरा संघनित्र से जोड़ देते हैं (जब मिश्रण में उपस्थित द्रवों के क्वथनांकों में अधिक अन्तर न हो या आसवन केवल एक ही बार कराना चाहते हैं तो हम यहाँ पर प्रभाजक स्तम्भ का प्रयोग करते हैं)। संघनित्र का दूसरा सिरा ग्राही में लगा दिया जाता है जिसका बल्ब स्तम्भ में पारर्व नली के पास होता है। फ्लास्क में प्रेथिल ऐल्कोहलल एवं ऐसीटोन या उन द्रवों को जिन्हें अलग करना होता है, भर लेते हैं तथा मिश्रण को गर्म करते हैं। गर्म करने पर कणष खनती है नी र की ओर उठती है।

इन गर्म वाष्प के मार्ग में प्रभाजक स्तम्भ रुकावट डालते हैं। इस रुकावट के कारण कम वाष्पशील द्रव अर्थात् यहाँ पर लिये गये द्रवों में से मेथिल एल्कोहॉल
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की वाष्प ठण्डी होकर पुनः द्रव में बदल जाती है और द्रव धीरे-धीरे फ्लास्क में नीचे लौट आता है। जैसे-जैसे यह द्रव नीचे खिसकता है और नीचे से ऊपर आने वाली वाष्प के सम्पर्क में आता है तो यह उसमें उपस्थित कम वाष्पशील द्रव की वाष्प को द्रवित कर देता है। यह वाष्प द्रवित होकर फ्लास्क में वापस आ जाती है। इस प्रकार जैसे-जैसे वाष्प ऊपर उठती है, उसमें से कम वाष्पशील द्रव की वाष्प द्रवित होकर पुनः फ्लास्क में वापस आ जाती है। केवल अधिक वाष्पशील द्रव की वाष्प ही संघनित्र तक पहुँचती है। यह वाष्प अब संघनित्र द्वारा द्रवित हो जाती है और उसे ग्राही में एकत्र कर लेते हैं।

अन्त में केवल कम वाष्पशील द्रव आसवन फ्लास्क में रह जाता है और अधिक वाष्पशील द्रव ग्राही में आ जाता है। आसवन फ्लास्क तथा ग्राही से प्राप्त द्रवों का फिर से प्रभाजी आसवन किया जाता है तथा इस प्रकार दो तीन बार प्रभाजी आसवन कराने पर दोनों वाष्पशील द्रव पूर्णतया पृथक् हो जाते हैं।

(3) भाप आसवन (Steam Distillation) – यह विधि उन कार्बनिक यौगिकों के शोधन में प्रयुक्त की जाती है। जोकि जल में अविलेय होते हैं परन्तु भाप के द्वारा आसानी से वाष्पीकृत हो जाते हैं। जो वाष्पशील कार्बनिक यौगिक अपने क्वथनांक पर अपघटित नहीं होते हैं, उनके लिये भाप आसवन एक कारगर विधि है। उदाहरण को लिये ऐनिलीन, नाइट्रोबेंजीन, ऑर्थों नाइट्रोफिनॉल, क्लोरोबेंजीन आदि को इस विधि द्वारा ही शुद्ध किया जाता है क्योंक ये सभी यौगिक भाप की उपस्थिति में शीघ्र ही वाष्पीकृत हो जाते हैं।

क्वथनांक (Boiling Point)-किसी द्रव का क्वथनांक वह ताप है जिस पर उसका वाष्प दाब, वायुमण्डलीय दाब के बराबर हो जाता है।

भापीय आसवन में कार्बनिक द्रव को वाष्प अवस्था में बदलने के लिये भाप प्रवाहित की जाती है। इस अवस्था में जल वाष्प की दाब (P1) तथा द्रवों के वाष्प की दाब P2 एवं वायुमण्डलीय दाब (P) है तो,
P = P1 + P2
उपरोक्त लिखे सूत्र से यह स्पष्ट हो जाता है कि जल तथा कार्बनिक द्रव के क्वथनांक शुद्ध जल तथा शुद्ध कार्बनिक द्रवों के मिश्रणों का क्वथनांकों से कम होता है। अतः भाप आसवन में कार्बनिक द्रव अपने क्वथनांक से कम ताप पर बिना अपघटित हुये ही आसवित अर्थात् वाष्प में परिवर्तित हो जाती है।

भाप आसवन की विधि के लिये चित्र 12.13 के अनुसार उपकरण का संयोजन किया जाता है जिस पदार्थ का आसवन करना होता है। उस फ्लास्क को धीरे-धीरे लगभग 80°C से 90°C तक गर्म किया जाता है। अब इस फ्लास्क को भाप पात्र से जोड़ देते हैं जिससे भाप तेजी से प्रवाहित होती है। भाप वाष्पशील यौगिक को अपने साथ उड़ाकर संघनित्र में पहुँचा देती है। यहाँ संघनित्र दोनों की वाष्प को ठण्डा कर देता है तथा दोनों अर्थात् जल एवं कार्बनिक यौगिक द्रव में परिवर्तित हो जाते हैं। जिसे ग्राही में एकत्र कर लेते हैं।
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चूँकि वाष्पशील यौगिक जल में अविलेय है तो यहाँ दोनों की अलग-अलग पर्त सी बन जाती है। अर्थात् यदि यौगिक ठोस है तो उसे जल से छानकर पृथक् कर लेते हैं, यदि वे निलम्बित अवस्था में है तो द्रव को एक पृथक्कारी फलन में ले लेते हैं और पृथक् कर देते हैं। कुछ समय पश्चात् द्रव व जल की दो पर्त बन जाती है, यदि जल उपस्थित रहता है तो उन्हें पुनः पृथक्कारी फलन से पृथक् कर देते हैं और शुद्ध यौगिक प्राप्त कर लेते हैं।

(4) निर्वात आसवन या कम दाब पर आसवन (Vacuum Distilation or Distillation at Low Pressure)-इस विधि का प्रयोग उन द्रवों पर किया जाता है, जो अपने क्वथनांक से पूर्व ताप पर अपघटित होते हैं, किसी द्रव का क्वथनांक वह ताप होता है जिस पर उसका दाब वायुमण्डल के दाब के बराबर हो जाता है। यदि किसी प्रकार द्रव का दाब कम कर दिया जाये तो उसका क्वथनांक भी कम हो जाता है। यदि ऐसे द्रव का आसवन कराना हो क्वथनांक से पूर्व ताप पर अपघटित होता है तो उस पर दाब कम करके उसको इस तरह उबालते हैं कि ये अपघटित नहीं होता है।

चित्र 12.14 में दिखाये गये उपकरण की भाँति सभी अवयवों को व्यवस्थित कर लेते हैं। ग्राही को जो कि एक फ्लास्क है, निर्वात पम्प से जोड़ देते हैं। इस निर्वात पम्प की सहायता से दाब को कम किया जाता है। ग्राही व पम्प के मध्य एक मैनोमीटर लगाया जाता है। अब एक फ्लास्क में अशुद्ध कार्बनिक द्रव लिया जाता है तथा उसको कम दाब पर उबालते हैं। कम दाब होने के कारण द्रव अपने सामान्य क्वथनांक से नीचे की उबलने लगता है तथा उबलने पर वाष्प बनती है, इस वाष्प को संघनित्र में प्रवाहित करके द्रव में परिवर्तित कर लिया जाता है और शुद्ध द्रव को कम दाब पर ग्राही में एकत्र कर लेते हैं।
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(ग) क्रोमेटोग्राफी:
यह एक महत्त्वपूर्ण तकनीक है, जिसका उपयोग यौगिकों के शोधन करने में होता है। इसका उपयोग सर्वप्रथम पादपों में पाये जाने वाले रंगीन पदार्थों को पृथक् करने में किया गया था। यह ‘क्रोमेटोग्राफी’ राब्द ग्रीक शब्द ‘क्रोमा’ से बना है जिसका अर्थ ‘रंग’ है। इसमें दो प्रावस्था पायी जाती है। एक स्थिर प्रावस्था तथा दूसरी गतिशील प्रावस्था। यौगिकों के मिश्रण को स्थिर प्रावस्था पर अधिशोषित कर दिया जाता है।

स्थिर प्रावस्था ठोस या द्रव हो सकती है। अंब स्थिर प्रावस्था में से उपयुक्त विलायक, गैस या विलायकों के मिश्रण को धीरे-धीरे प्रवाहित किया जाता है। इस प्रकार मिश्रण के अवयव क्रमश : एक दूसरे से पृथक् हो जाते हैं। यहाँ गति करने वाली प्रावस्था को ‘गतिशील प्रावस्था’ कहा जाता है। इसे निसालक (eluennt) भी कहते हैं। विभिन्न सिद्धान्तों के आधार पर क्रोमेटोग्राफी को विभिन्न वर्गों में बाँटा जाता है। इनमें से दो निन्न प्रकार हैं-

(1) अधिशोषण वर्ण लेखन या अधिशोषण क्रोमेटोग्राफी (Adsorption Chromatography)-इस प्रकार की क्रोमेटोग्राफी में एक विशिष्ट प्रकार के अधिशोषक पर विभिन्न यौगिक भिन्न अंशो में अधिशोषित होते हैं। यहाँ पर प्रयोग होने वाले अधिशोषक ऐलुमिना तथा सिलिका जेल है। स्थिर प्रावस्था अर्थात् अधिशोषक पर गतिशील प्रावस्था प्रवाहित करने के उपरान्त मिश्रण के अवयव स्थिर प्रावस्था पर अलग-अलग दूरी तय करते हैं। इस प्रकार की क्रोमेटोग्राफी दो प्रकार की होती हैं।

(a) कॉलम क्रोमेटोग्राफी या कॉलम-वर्णलेखन या स्तम्भ वर्ण लेखन (Column Chromatography)-इस प्रकार की क्रोमेटोग्राफी में काँच की एक लम्बी नली में स्थिर प्रावस्था या अधिशोषक भरा जाता है। यहाँ प्रयुक्त होने वाला अधिशोषक प्राय: सिलिका जेल या ऐलुमिना होता है, नली के निचले सिरे पर रोधनी लगी रहती है। यौगिक के मिश्रण को उपयुक्त विलायक की न्यूनतम मात्रा में घोलकर कॉलम के ऊपरी
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भाग में अधिशोषित कर देते हैं। तत्पश्चात् एक उपर्युक्त विक्षालक या गतिशील प्रावस्था या इलुएन्ट जो कि द्रव या द्रवों का मिश्रण होता है, को कॉलम में धीमी गति से नीचे की ओर बहने दिया जाता है। विभिन्न यौगिकों के अधिशोषण की मात्रा के आधार पर उसका आंशिक या पूर्ण पृथक्करण हो जाता है। अधिक अधिशोषित यौगिक कॉलम में विभिन्न दूरी तक अधिशोषित होकर नीचे आ जाते हैं। अब लम्बी काँच की नली में लगे रोधन को हटाकर हम विभिन्न यौगिकों को प्राप्त कर लेते हैं। चूंकि यहाँ काँच की लम्बी नली को कॉलम की तरह प्रयोग करते हैं अतः इसको कॉलम स्तम्भ क्रोमेटोग्राफी कहते हैं।

(b) पतली पर्त वर्ण लेखन (Thin Layer Chromatography)-यह एक अधिशोषण क्रोमेटोग्राफी का प्रकार है। यहाँ अधिशोषक या स्थिर प्रावस्था की पतली पर्त का मिश्रण के अवयवों का पृथक्करण होता है। इस प्रकार की वर्ण लेखन में काँच की उपयुक्त आमाप की प्लेट पर अधिशोषक की पतली लगभग 0.2mm की पर्त फैला दी जाती है। यहाँ उपयोग होने वाले अधिशोषक सिलिका जेल या ऐलुमिना होते हैं। इस काँच पर छोटा-सा बिन्दु प्लेट के एक सिरे से लगभग 2 सेमी ऊपर लगाते हैं। प्लेट को अब कुछ ऊँचाई तक विलायक से भरे हुये एक बंद जार में खड़ा कर देते हैं, जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।

गतिशील प्रावस्था या निक्षालक जैसे-जैसे प्लेट पर आगे बढ़ता है, वैसे-वैसे मिश्रण के अवयव भी निक्षालक या विलायक या गतिशील प्रावस्था के साथ-साथ प्लेट पर आगे बढ़ते हैं, परन्तु अधिशोषण की तीव्रता के आधार पर ऊपर बढ़ने की उनकी गति भिन्न अधिशोषण को धारण गुणक (retention factor) अर्थात् Rf मान द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
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रंगीन यौगिकों के बिन्दुओं को, जो प्लेट पर विभिन्न अधिशोषक क्षमता के आधार पर प्राप्त हुये हैं, बिना कठिनाई के देखा जा सकता है, परन्तु रंगहीन एवं प्रतिदीप्त होने वाले यौगिकों के बिन्दुओं को प्लेट पर पराबैंगनी प्रकाश के नीचे रखकर देखते हैं। इसके अलावा जार में कुछ आयोडीन के क्रिस्टल रखकर भी रंगहीन बिन्दुओं को देखा जा सकता है।

जो यौगिक आयोडीन अवशोषित करते हैं। उनके बिन्दु भूर रंग के दिखाई देते हैं। कभी-कभी उपर्युक्त अभिकर्मक के विलयन को जिसे दर्शनीय अभिकर्मक (visualizing reagent) कहा जाता है, भी प्लेट पर छिड़क कर बिन्दुओं को देखा जा सकता है।

उदाहरण के लिए ऐमीनों अम्ल को देखने के लिए बिन्दुओं की प्लेट पर निनहाइड्रिन विलयन छिड़कते हैं जिससे ऐमीनो अम्ल के यौगिक रंगीन दिखाई देने लगते हैं।
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(2) वितरण क्रोमेटोग्राफी (Partition Chromatography)- इस प्रकार की क्रोमेटोग्राफी स्थिर तथा गतिशील प्रावस्थाओं के मध्य मिश्रण के अवयवों के सतत विभेदी वितरण पर आधारित है। इसका मुख्य उदाहरण पेपर क्रोमेटोग्राफी है। इसमें एक विशिष्ट प्रकार के क्रोमेटोग्राफी कागज का प्रयोग किया जाता है। इस कागज के छिद्रों में जल के अणु पारित रहते हैं, जोकि स्थिर प्रावस्था का कार्य करते हैं।

(a) पेपर क्रोमेटोग्राफी या कागज वर्णलेखन (Paper Chromatography) – यह वितरण क्रोमेटोग्राफी का एक प्रकार है। यहाँ एक विशिष्ट प्रकार के कागज का प्रयोग करते हैं। जिसमें जल के अणु पारित रहते हैं तथा स्थिर प्रावस्था का कार्य करते हैं। इस पेपर को क्रोमेटोग्राफी पेपर कहा जाता है।

क्रोमेटोग्राफी पेपर की सर्वप्रथम एक पट्टी काट ली जाती है जो लगभग 4 सेमी. चौड़ी तथा 25 सेमी. लम्बी होती है। इस पट्टी के आधार पर मिश्रण का बिन्दु लगाकर उसे जार में लटका देते हैं। जार में उपयुक्त ऊँचाई तक एक विलायक भरा होता है अर्थात् जार में गतिशील प्रावस्था भरी होती है। कोशिका क्रिया के कारण पेपर की पट्टी पर विलायक ऊपर की ओर चढ़ता है तथा बिन्दु पर प्रवाहित होता है। विभिन्न यौगिकों का दो प्रावस्थाओं में अधिशोषण वितरण भिन्न-भिन्न होने के कारण वे अलग-अलग दूरी तक आगे की ओर चढ़ते हैं। इस प्रकार प्राप्त क्रोमेटोग्राफी पट्टी को क्रोमेटोग्राम कहा जाता है।
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प्रश्न 19.
ऐसे दो यौगिक, जिनकी विलेयताएँ विलायक S में भिन्न हैं, को पृथक् करने की विधि की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
ऐसे यौगिकों को क्रिस्टल विधि से पृथक् करते हैं। इसमें सर्वप्रथम अशुद्ध यौगिक को किसी एक ऐसे विलायक में घोलते हैं, जिसमें यौगिक सामान्य ताप पर कम विलेय तथा उच्च ताप पर अधिक विलेय हो। इसके पश्चात् विलयन को सान्द्रित करते हैं जिससे वह संतृप्त हो जाता है। ठंडा करने पर विलयन में से अल्प विलेय घटक पहले क्रिस्टलीय होता है तथा विलयन को पुन: गरम करके ठंडा करने पर अधिक विलेय घटक क्रिस्टलीकृत हो जाता है। विलयन में उपस्थित रंगीन अशुद्धियों को दूर करने के लिए सक्रियित काष्ठ कोयले की सहायता ली जाती है। विलयन का बार-बार क्रिस्टलन करने पर शुद्ध यौगिक प्राप्त होता है।

प्रश्न 20.
आसवन, निम्न दाब पर आसवन तथा भाप आसवन में क्या अन्तर है ? विवेचना कीजिए।
उत्तर:
आसवन:
क्वथनांक में अधिक अन्तर वाले द्रवों को पृथक् करने के लिए इसका प्रयोग करते हैं।

निम्न दाब पर:
इसका प्रयोग उन यौगिकों पर होता है जो अपने साधारण क्वथनांक पर या उससे नीचे अपघटित हो जाते हैं।

भाप आसवन:
इसका प्रयोग उन यौगिकों पर होता है, जो भाप में वाष्प-शील होते हैं। परन्तु जल में अमिश्रणीय होते हैं।

प्रश्न 21.
लैसग्ने-परीक्षण का रसायन सिद्धान्त समझाइए।
उत्तर:
किसी कार्बनिक यौगिक में उपस्थित नाइट्रोजन, सल्फरर, हैलोजेन तथा फॉस्फोरस की पहचान ‘लैसग्ने-परीक्षण’ (Lassaigne’s Test) द्वारा दी जाती है। यौगिक को सोड्डियम धातु के साथ संगलित करने पर ये वत्व सहसंयोजी सूप से आयनिक रूप में परिवर्तित हो जाते है। इनमें निम्नलिखित अभिक्रियाएँ होती हैं-
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C, N, S तथा X कार्बनिक यौगिक में उपस्थित तत्व हैं। सोडियम संगलन से प्राप्त अवशेष को आसुत जल के साथ उबालने पर सोडियम सायनाइड, सल्फाइड तथा हैलाइ्ड जल में घुल जाते हैं। इस निष्कर्ष को ‘सोडियम संगलन निष्कर्ष’ (Sodium Fusion Extract) कहते है।

प्रश्न 22.
किसी कार्बनिक यौगिक में नाइट्रोजन के आकलन की (i) इ्यूमा विधि तथा (ii) कैल्डॉल विधि के सिद्धान्त की रूप-रेखा प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
(i) ड्यूमा विधि
(ii) कैल्डॉल विधि

(i) ड्यूमा विधि (Duma’s Method)-जब किसी नाइट्रोजन युक्त कार्बनिक यौगिक को CuO के साथ गर्म करने पर नाइट्रोजन मुक्त होती
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है। कार्बन तथा हाइड्रोजन क्रमशः कार्बन डाइऑक्साइड एवं जल में परिवर्तित हो जाते हैं।
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अल्प मात्रा में बने नाइट्रोजन ऑक्साइडों को गरम कॉपर तार पर प्रवाहित कर नाइट्रोजन में अपचयित कर दिया जाता है। इस प्रकार प्राप्त गैसीय मिश्रण को हाइड्रॉक्साइड पोटैशियम के जलीय विलयन पर एकत्र कर लिया जाता है। कार्बन डाइऑक्साइड पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड द्वारा अवशोषित हो जाती है तथा बची हुयी N2 गैस को जल के ऊपर एकत्र कर लेते हैं। अब N2 का आयतन वायुमण्डल के दाब तथा ताप पर नोट कर लेते हैं तथा इसे NTP पर परिवर्तित कर लेते हैं।

मान लिया, m g कार्बनिक याँगिक से N.T.P. पर x मिली नाइट्रोजन प्राप्त होती है।
∵ N.T.P. पर 22,400 मिली नाइट्रोजन (N2) की मात्रा = 28 g (N2 का g अणुभार)
∴ N.T.P. पर x मिली नाइट्रोजन (N2) की मात्रा = \(\frac { 28x }{ 22,400 }\) g
∵ m g कार्बनिक यौगिक में नाइट्रोजन (N2) की मात्रा = \(\frac { 28x }{ 22,400 }\) g
∴ 100 g कार्बनिक यौगिक में नाइट्रोजन (N2) की मात्रा = \(\frac{28 x \times 100}{22,400 \times m} \mathrm{~g}\)
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(ii) (ii) कैल्डाल विधि (Kjeldahl’s Method) – जब किसी नाइट्रोजन युक्त कार्बनिक यौगिक को K2SO4 की उपस्थित में सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ गर्म करते हैं तो उसमें उपस्थित नाइट्रोजन पूर्ण रूप से अमोनियम सल्फेट में परिवर्तित हो जाता है। इस अमोनियम सल्फेट को जब सान्द्र NaOH विलयन के साथ गर्म करते हैं तो अमोनियम गैस निकलती है जिसको ज्ञात सान्द्रण वाले H2SO4 के निश्चित आयतन में अवशोषित कर लेते हैं। इस अम्ल का मानक NaOH के साथ अनुमापन करके गणना द्वारा अवशोषित हुई अमोनिया की मात्रा ज्ञात कर ली जाती है। फिर अन्त में नाइट्रोजन के आयतन की गणना कर लेते हैं।
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माना कि,
कार्बनिक यौगिक का भार = m
प्रयुक्त अम्ल का आयतन = vmL
प्रयुक्त अम्ल की नॉर्मलता = N
V mL N नॉर्मलता का अम्ल = V mL N नॉर्मलता की अमोनिया 1000 mL N नॉर्मलता वाली अमोनिया में 17 g अमोनिया या 14 g नाइट्रोजन होती है।
V mL N NH3 में नाइट्रोजन की मात्रा = \(\frac { 14 }{ 1000 }\) × V × N = 0.014 NV g

इसलिए m ग्राम कार्बनिक यौगिक में नाइट्रोजन की मात्रा = 0.014 NV g
100 ग्राम कार्बनिक यौगिक में नाइट्रोजन की मात्रा
= \(\frac{0.014 \times \mathrm{N} \times \mathrm{V} \times 100}{m}\) = \(\frac{1.4 \mathrm{NV}}{m}\) g
अत :
कार्बनिक यौगिक में नाइट्रोजन की प्रतिशत मात्रा (%)
1.4 × प्राप्त NH3 की नॉर्मलता × प्राप्त NH3 का
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प्रश्न 23.
किसी बौगिक में हैलोजेन, सल्फर तथा फॉस्फोरस के आंकलन के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
(i) सल्फर एवं नाइट्रोजन का संयुक्त परीक्षण (Combined Test for Sulphur and Nitrogen)-परखनली में सोडियम निष्कर्ष लेकर उसे HCl की सहायता से अम्लीय कर लेने के बाद, उसमें फेरिक क्लोराइड विलयन मिलाते हैं, विलयन का रंग रक्त के समान लाल हो जाता है।
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(ii) फॉस्फोरस का परीक्षण (Detection of Phosphorous)ऑक्सीकारक के साथ गरम करने पर यौगिक में उपस्थित फॉस्फोरस, फॉस्फेट में परिवर्तित हो जाता है। विलयन को नाइट्रिक अम्ल के साथ उबालकर अमोनियम मॉलिब्डेट मिलाने पर पीला अवक्षेप बनता है, जो फॉस्फोरस की उपस्थित को निश्चित करता है।
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HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 कार्बनिक रसायन : कुछ आधारभूत सिद्धांत तथा तकनीकें

प्रश्न 24.
पेपर क्रोमेटोग्राफी के सिद्धान्त को समझाइए।
उत्तर:
(iii) यह एक महत्त्वपूर्ण तकनीक है, जिसका उपयोग यौगिकों के शोधन करने में होता है। इसका उपयोग सर्वप्रथम पादपों में पाये जाने वाले रंगीन पदार्थों को पृथक् करने में किया गया था। यह ‘क्रोमेटोग्राफी’ राब्द ग्रीक शब्द ‘क्रोमा’ से बना है जिसका अर्थ ‘रंग’ है। इसमें दो प्रावस्था पायी जाती है। एक स्थिर प्रावस्था तथा दूसरी गतिशील प्रावस्था। यौगिकों के मिश्रण को स्थिर प्रावस्था पर अधिशोषित कर दिया जाता है।

स्थिर प्रावस्था ठोस या द्रव हो सकती है। अंब स्थिर प्रावस्था में से उपयुक्त विलायक, गैस या विलायकों के मिश्रण को धीरे-धीरे प्रवाहित किया जाता है। इस प्रकार मिश्रण के अवयव क्रमश : एक दूसरे से पृथक् हो जाते हैं। यहाँ गति करने वाली प्रावस्था को ‘गतिशील प्रावस्था’ कहा जाता है। इसे निसालक (eluennt) भी कहते हैं। विभिन्न सिद्धान्तों के आधार पर क्रोमेटोग्राफी को विभिन्न वर्गों में बाँटा जाता है। इनमें से दो निन्न प्रकार हैं-

(1) अधिशोषण वर्ण लेखन या अधिशोषण क्रोमेटोग्राफी (Adsorption Chromatography)-इस प्रकार की क्रोमेटोग्राफी में एक विशिष्ट प्रकार के अधिशोषक पर विभिन्न यौगिक भिन्न अंशो में अधिशोषित होते हैं। यहाँ पर प्रयोग होने वाले अधिशोषक ऐलुमिना तथा सिलिका जेल है। स्थिर प्रावस्था अर्थात् अधिशोषक पर गतिशील प्रावस्था प्रवाहित करने के उपरान्त मिश्रण के अवयव स्थिर प्रावस्था पर अलग-अलग दूरी तय करते हैं। इस प्रकार की क्रोमेटोग्राफी दो प्रकार की होती हैं।

(a) कॉलम क्रोमेटोग्राफी या कॉलम-वर्णलेखन या स्तम्भ वर्ण लेखन (Column Chromatography)-इस प्रकार की क्रोमेटोग्राफी में काँच की एक लम्बी नली में स्थिर प्रावस्था या अधिशोषक भरा जाता है। यहाँ प्रयुक्त होने वाला अधिशोषक प्राय: सिलिका जेल या ऐलुमिना होता है, नली के निचले सिरे पर रोधनी लगी रहती है। यौगिक के मिश्रण को उपयुक्त विलायक की न्यूनतम मात्रा में घोलकर कॉलम के ऊपरी
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भाग में अधिशोषित कर देते हैं। तत्पश्चात् एक उपर्युक्त विक्षालक या गतिशील प्रावस्था या इलुएन्ट जो कि द्रव या द्रवों का मिश्रण होता है, को कॉलम में धीमी गति से नीचे की ओर बहने दिया जाता है। विभिन्न यौगिकों के अधिशोषण की मात्रा के आधार पर उसका आंशिक या पूर्ण पृथक्करण हो जाता है। अधिक अधिशोषित यौगिक कॉलम में विभिन्न दूरी तक अधिशोषित होकर नीचे आ जाते हैं। अब लम्बी काँच की नली में लगे रोधन को हटाकर हम विभिन्न यौगिकों को प्राप्त कर लेते हैं। चूंकि यहाँ काँच की लम्बी नली को कॉलम की तरह प्रयोग करते हैं अतः इसको कॉलम स्तम्भ क्रोमेटोग्राफी कहते हैं।

(b) पतली पर्त वर्ण लेखन (Thin Layer Chromatography)-यह एक अधिशोषण क्रोमेटोग्राफी का प्रकार है। यहाँ अधिशोषक या स्थिर प्रावस्था की पतली पर्त का मिश्रण के अवयवों का पृथक्करण होता है। इस प्रकार की वर्ण लेखन में काँच की उपयुक्त आमाप की प्लेट पर अधिशोषक की पतली लगभग 0.2mm की पर्त फैला दी जाती है। यहाँ उपयोग होने वाले अधिशोषक सिलिका जेल या ऐलुमिना होते हैं। इस काँच पर छोटा-सा बिन्दु प्लेट के एक सिरे से लगभग 2 सेमी ऊपर लगाते हैं। प्लेट को अब कुछ ऊँचाई तक विलायक से भरे हुये एक बंद जार में खड़ा कर देते हैं, जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।

गतिशील प्रावस्था या निक्षालक जैसे-जैसे प्लेट पर आगे बढ़ता है, वैसे-वैसे मिश्रण के अवयव भी निक्षालक या विलायक या गतिशील प्रावस्था के साथ-साथ प्लेट पर आगे बढ़ते हैं, परन्तु अधिशोषण की तीव्रता के आधार पर ऊपर बढ़ने की उनकी गति भिन्न अधिशोषण को धारण गुणक (retention factor) अर्थात् Rf मान द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
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रंगीन यौगिकों के बिन्दुओं को, जो प्लेट पर विभिन्न अधिशोषक क्षमता के आधार पर प्राप्त हुये हैं, बिना कठिनाई के देखा जा सकता है, परन्तु रंगहीन एवं प्रतिदीप्त होने वाले यौगिकों के बिन्दुओं को प्लेट पर पराबैंगनी प्रकाश के नीचे रखकर देखते हैं। इसके अलावा जार में कुछ आयोडीन के क्रिस्टल रखकर भी रंगहीन बिन्दुओं को देखा जा सकता है। जो यौगिक आयोडीन अवशोषित करते हैं। उनके बिन्दु भूर रंग के दिखाई देते हैं। कभी-कभी उपर्युक्त अभिकर्मक के विलयन को जिसे दर्शनीय अभिकर्मक (visualizing reagent) कहा जाता है, भी प्लेट पर छिड़क कर बिन्दुओं को देखा जा सकता है।

उदाहरण के लिए ऐमीनों अम्ल को देखने के लिए बिन्दुओं की प्लेट पर निनहाइड्रिन विलयन छिड़कते हैं जिससे ऐमीनो अम्ल के यौगिक रंगीन दिखाई देने लगते हैं।
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(2) वितरण क्रोमेटोग्राफी (Partition Chromatography)- इस प्रकार की क्रोमेटोग्राफी स्थिर तथा गतिशील प्रावस्थाओं के मध्य मिश्रण के अवयवों के सतत विभेदी वितरण पर आधारित है। इसका मुख्य उदाहरण पेपर क्रोमेटोग्राफी है। इसमें एक विशिष्ट प्रकार के क्रोमेटोग्राफी कागज का प्रयोग किया जाता है। इस कागज के छिद्रों में जल के अणु पारित रहते हैं, जोकि स्थिर प्रावस्था का कार्य करते हैं।

(a) पेपर क्रोमेटोग्राफी या कागज वर्णलेखन (Paper Chromatography) – यह वितरण क्रोमेटोग्राफी का एक प्रकार है। यहाँ एक विशिष्ट प्रकार के कागज का प्रयोग करते हैं। जिसमें जल के अणु पारित रहते हैं तथा स्थिर प्रावस्था का कार्य करते हैं। इस पेपर को क्रोमेटोग्राफी पेपर कहा जाता है।

क्रोमेटोग्राफी पेपर की सर्वप्रथम एक पट्टी काट ली जाती है जो लगभग 4 सेमी. चौड़ी तथा 25 सेमी. लम्बी होती है। इस पट्टी के आधार पर मिश्रण का बिन्दु लगाकर उसे जार में लटका देते हैं। जार में उपयुक्त ऊँचाई तक एक विलायक भरा होता है अर्थात् जार में गतिशील प्रावस्था भरी होती है। कोशिका क्रिया के कारण पेपर की पट्टी पर विलायक ऊपर की ओर चढ़ता है तथा बिन्दु पर प्रवाहित होता है। विभिन्न यौगिकों का दो प्रावस्थाओं में अधिशोषण वितरण भिन्न-भिन्न होने के कारण वे अलग-अलग दूरी तक आगे की ओर चढ़ते हैं। इस प्रकार प्राप्त क्रोमेटोग्राफी पट्टी को क्रोमेटोग्राम कहा जाता है।
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प्रश्न 25.
‘सोडियम संगलन निष्करर्ष’ में हैलोजेन के परीक्षण के लिए सिल्वर नाइट्रेट मिलाने से पूर्व नाइट्रिक अम्ल ब्यों मिलाया जाता है।
उत्तर:
सोडियम संगलन निफ्कर्ष में हैलोजेन के परीक्षण के लिये सिल्वर नाइट्रेट मिलाने से पूर्व नाइट्रिक अम्ल मिलाया जाता है क्योंकि यदि यौगिक में हैलोजेन के अलावा नाइट्रोजन अथवा सल्फर उपस्थित होते है तो ये नाइट्रिक अम्ल से क्रिया करके सायनाइड तथा सल्फाइड में विघटित हो जाते हैं तथा हैलोजेन के सिल्वर नाइट्रेट परीक्षण में बाधा उत्पन्न नहीं करते हैं।

NaCN + HNO3 → NaNO3 + HCN↑
Na2S + 2NaNO3 + H2S ↑

यदि नाइट्रिक अम्ल न डाले तो NaCN तथा Na2S, AgNO3 से क्रिया करके अवक्षेप देते हैं तथा हैलोजन के परीक्षण में बाधा उत्पन्न करेंगे।
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प्रश्न 26.
नाइट्रोजन, सल्फर तथा फॉस्फोरस के परीक्षण के लिए सोडियम के साथ कार्बनिक यौगिक का संगलन क्यों किया जाता है ?
उत्तर:
नाइट्रोजन, सल्फर तथा फॉस्फोरस के परीक्षण के लिए सोडियम के साथ कार्बनिक यौगिक का संगलन किया जाता है क्योंकि सोडियम के साथ ये तत्व अपने सोडियम लवण में जैसे- NaCN, Na2S, Na3PO4 में परिवर्तित हो जाते हैं। ये यौगिक आयनिक होते हैं एवं अत्यधिक क्रियाशील भी होते हैं जिसके कारण इन्हें उपर्युक्त अभिकर्मक

प्रश्न 27.
कैल्सियम सल्फेट तथा कपूर के मिश्रण के अवयवों को पृथक् करने के लिए एक उपयुक्त तकनीक बताइए।
उत्तर:
इसके लिए ऊर्ध्वपातन तकनीक उपयुक्त है क्योंक कपूर का ऊर्ध्वपातन हो सकता जबकि कैल्सियम सल्फेट का नहीं।

प्रश्न 28.
भाप आसवन करने पर एक कार्बनिक द्रव अपने क्वथनांक से निम्न ताप पर वाष्पीकृत क्यों हो जाता है?
उत्तर:
भाप आसवन वास्तव में निम्न दाब पर आसवन होता है। आसवन फ्लास्क में रखे जल वाष्प तथा कार्बनिक द्रव दोनों के वाष्प दाबों का योग वायुमण्डलीय दाब के बराबर होना चाहिए। इसका तात्पर्य यह है कि दोनों अपने सामान्य क्वथनांक से कम ताप पर ही वाष्पीकृत हो जाएँगे।

प्रश्न 29.
क्या CCl4 सिल्वर नाइट्रेट के साथ गर्म करने पर AgCl का श्वेत अवक्षेप देगा ? अपने उत्तर को कारण सहित समझाइए।
उत्तर:
नहीं; क्योंकि CCl4 अध्रुवी यौगिक है तथा जलीय विलयन में Cl आयन नहीं देता है, जबकि सिल्वर नाइट्रेट आयनिक प्रवृत्ति का यौगिक है। इसलिए ये परस्पर अभिक्रिया नहीं करेंगे तथा सिल्वर क्लोराइड का श्वेत अवक्षेप प्राप्त नहीं होगा।

प्रश्न 30.
किसी कार्बनिक यौगिक में कार्बन का आकलन करते समय उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने के लिए पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड विलयन का उपयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर:
ऐसा इसलिए किया जाता है; क्योंकि पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड प्रबल क्षार है तथा CO2 का पूर्णतया अवशोषण कर सकता है। इस प्रकार कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण करके पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड विलेय पोटैशियम कार्बोनेट बना लेता है जिसका आकलन किया जा सकता है।

2KOH + CO2 → K2CO3 + H2O

प्रश्न 31.
सल्फर के लेड ऐसीटेट द्वारा परीक्षण में ‘सोडियम संगलन निष्कर्ष’ को ऐसीटिक अम्ल द्वारा उदासीन किया जाता है, न कि सल्फ्यूरिक अम्ल द्वारा। क्यों ?
उत्तर:
सोडियम संगलन निष्कर्ष को ऐसीटिक अम्ल द्वारा अम्लीकृत कर लेड ऐसीटेट मिलाने पर यदि लेड सल्फाइड का काला अवक्षेप बनता है तो सल्फर की उपस्थिति की पुष्टि होती है।
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परन्तु ऐसीटिक अम्ल के स्थान पर सल्फ्यूरिक अम्ल का प्रयोग किया जाए तो लेड ऐसीटेट सल्फ्यूरिक अम्ल से क्रिया करके लेड सल्फेट का सफेद अवक्षेप देगा जो सल्फर के परीक्षण में बाधा उत्पन्न कर देता है।

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 12 कार्बनिक रसायन : कुछ आधारभूत सिद्धांत तथा तकनीकें

प्रश्न 32.
एक कार्बनिक यौगिक में 69% कार्बन, 4.8% हाइड्रोजन तथा शेष ऑक्सीजन है। इस यौगिक के 0.20g के पूर्ण दहन के फलस्वरूप उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल की मात्राओं की गणना कीजिए।
उत्तर:
उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा की गणना-
यौगिक का द्रव्यमान = 0.20g
कार्बन का प्रतिशत = 69%
कार्बन का प्रतिशत
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उ्पन्न जल की मात्रा की गणना –
यौगिक का द्रव्यमान = 0.20g
हाइड्रोजन का प्रतिशत = 4.8%
हाइड्रोजन का प्रतिशत
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प्रश्न 33.
0.50g कार्बनिक यौगिक को कैल्डाल विधि के अनुसार उपचारित करने पर प्राप्त अमोनिया को 0.5 M H2SO4 के 50 mL में अवशोषित किया गया। अवशिष्ट अम्ल के उदासीनीकरण के लिए 0.5 M NaOH के 50 mL की आवश्यकता हुई। यौगिक में नाइट्रोजन प्रतिशतता की गणना कीजिए।
हल : अवशिष्ट अम्ल के आयतन की गणना –
NaOH विलयन का आवश्यक आयतन = 50 mL
NaOH विलयन की मोलरता = 0.5 M
H2SO4 विलयन की मोलरता = 0.5 M
अवशिष्ट अम्ल के आयतन की गणना के लिए मोलरता समीकरण का प्रयोग करना होगा।
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प्रयुक्त अम्ल के आयतन की गणना-
मिलाए गए अम्ल का आयतन = 50 mL
अवशिष्ट अम्ल का आयतन = 25 mL
प्रयुक्त अम्ल का आयतन = (50 – 25) = 25 mL

नाइट्रोजन की प्रतिशतता की गणना-
यौगिक की मात्रा = 0.50 g
प्रयुक्त अम्ल का आयतन = 25 mL
प्रयुक्त अम्ल की मोलरता = 0.5 M
नाइट्रोजन की प्रतिशतता
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प्रश्न 34.
केरियस आकलन में 0.3780 g कार्बनिक क्लोरो यौगिक से 0.5740 g सिल्वर क्लोराइड प्राप्त हुआ। यौगिक में क्लोरीन की प्रतिशतता की गणना कीजिए।
हल : यौगिक का द्रव्यमान = 0.3780 g
सिल्वर क्लोराइड का द्रव्यमान = 0.5740 g
क्लोरीन की प्रतिशतता
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= \(\frac { 35.5 }{ 143.5 }\) × \(\frac { 0.5740 }{ 0.3780 }\) × 100
= \(\frac { 2037.7 }{ 54.243 }\) = 37.57%

प्रश्न 35.
केरियस विधि द्वारा सल्फर के आकलन में 0.468 g सल्फर युक्त कार्बनिक यौगिक से 0.668 g बेरियम सल्फेट प्राप्त हुआ। दिए गए कार्बन यौगिक में सल्फर की प्रतिशतता की गणना कीजिए।
उत्तर:
बेरियम सल्फेट की मात्रा = 0.668 g
सल्फर की प्रतिशतता
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= \(\frac { 32 }{ 233 }\) × \(\frac { 0.668 }{ 0.468 }\) × 100 = \(\frac { 2137.6 }{ 109.044 }\) = 19.60%

प्रश्न 36.
CH2 = CH-CH2-CH2-C ≡CH, कार्बनिक यौगिक में C2 – C3 आबन्ध किन संकरित कक्षकों के युग्म से निर्मित होता है ?
(क) sp – sp2
(ख) sp – sp3
(ग) sp2 – sp3
(घ) sp3 – sp3
उत्तर:
(ग) sp2 – sp3

प्रश्न 37.
किसी कार्बनिक यौगिक में लैसेग्ने-परीक्षण द्वारा नाइट्रोजन की जाँच में प्रश्शियन ब्लू रंग निम्नलिखित में से किसके कारण प्राप्त होता है ?
(क) Na4[Fe(CN)6]
(ख) Fe4[Fe(CN)6]3
(ग) Fe2[Fe(CN)6]
(घ) Fe3[Fe(CN)6]4
उत्तर:
(ख) Fe4[Fe(CN)6]3

प्रश्न 38.
निम्नलिखित कार्बधनायनों में से कौन-सा सबसे अधिक स्थायी है ?
(क) \(\left(\mathrm{CH}_3\right)_3 \stackrel{+}{\mathrm{C}} \cdot \mathrm{CH}_2\)
(ख) \(\left(\mathrm{CH}_3\right)_3 \stackrel{+}{\mathrm{C}}\)
(ग) \(\mathrm{CH}_3 \mathrm{CH}_2 \stackrel{+}{\mathrm{C}} \mathrm{H}_2\)
(घ) \(\mathrm{CH}_3 \stackrel{+}{\mathrm{C}} \mathrm{HCH}_2 \mathrm{CH}_3\)
उत्तर:
(ख) \(\left(\mathrm{CH}_3\right)_3 \stackrel{+}{\mathrm{C}}\)

प्रश्न 39.
कार्बनिक यौगिकों के पृथक्करण और शोधन की सर्वोत्तम तथा आधुनिकतम तकनीक कौन-सी है ?
(क) क्रिस्टलन
(ख) आसवन
(ग) ऊर्ध्वपातन
(घ) क्रोमेटोग्राफी
उत्तर:
(घ) क्रोमेटोग्राफी

प्रश्न 40.
CH3CH2I + KOH(aq) → CH3CH2OH+KI अभिक्रिया को नीचे दिए गए प्रकार में वर्गीकृत कीजिए-
(क) इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन
(ख) नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन
(ग) विलोपन
(घ) संकलन
उत्तर:
(ख) नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 2 परमाणु की संरचना

Haryana State Board HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 2 परमाणु की संरचना Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Chemistry Solutions Chapter 2 परमाणु की संरचना

प्रश्न 1.
(i) एक ग्राम भार में इलेक्ट्रॉनों की संख्या का परिकलन कीजिए।
(ii) एक मोल इलेक्ट्रॉन के द्रव्यमान और आवेश का परिकलन कीजिए।
हल:
(i) एक इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान
= 9.1 × 1028 ग्राम
1 ग्राम भार = \(\frac{1}{9.1 \times 10^{-28}}\)
अतः एक ग्राम भार में इलेक्ट्रॉन की संख्या
= 1.099 × 1027 इलेक्ट्रॉन

(ii) एक इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान
= 9.1 × 10-31 kg
1 मोल (6.023 × 1023) इलेक्ट्रॉन का भार
= 9.1 × 10-31 × 6.023 x 1023
= 5.48 × 10-7 kg
1 इलेक्ट्रॉन पर आवेश = 1.602 x 10-19 कूलाम्ब
अतः एक मोल इलेक्ट्रॉन पर आवेश
= 1.602 × 10-19 x 6.023 x 1023
= 9.65 x 104 कूलाम्ब

प्रश्न 2.
(i) मेथेन के एक मोल में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या का परिकलन कीजिए।
(ii) 7mg14C में न्यूट्रॉनों की (क) कुल संख्या तथा (ख) कुल द्रव्यमान ज्ञात कीजिए। (न्यूट्रॉन का द्रव्यमान = 1.675 x 10-27 kg मान लीजिए।
(iii) मानक ताप और दाब (STP) पर 34mg NH3 में प्रोटॉनों की (क) कुल संख्या और (ख) कुल द्रव्यमान बताइए। दाब और ताप में परिवर्तन से क्या उत्तर परिवर्तित हो जाएगा।
हल:
(i) 1 मोल मेथेन में 1 कार्बन और 4 मोल हाइड्रोजन परमाणु होते हैं।
एक अणु CH4 में कुल इलेक्ट्रॉन = 6 + 4 = 10
मेथेन के एक मोल में इलेक्ट्रॉनों की संख्या
= 6 × 6.023 × 1023 + 4 x 6.023 x 1023 इलेक्ट्रॉन
= 3.614 x 1024 + 2.409 x 1024
= 6.023 x 1024 इलेक्ट्रॉन

(ii) (क) न्यूट्रॉन का द्रव्यमान 1.675 x 10-27kg
14 ग्राम कार्बन में 1 मोल 14C परमाणु होते हैं।
14 ग्राम C-14 में न्यूट्रॉनों की संख्या
= 8 × 6.023 x 1023 न्यूट्रॉन
7 x 10-3 ग्राम C-14 में न्यूट्रॉनों की संख्या
= \(\frac{8 \times 6.023 \times 10^{23} \times 7 \times 10^{-3}}{14}\)
= 2.409 x 1021 न्यूट्रॉन

(ख) कुल न्यूट्रॉनों की संख्या = 2.409 × 1021
1 न्यूट्रॉन का द्रव्यमान = 1.675 × 10-27kg
∴ 2.409 x 1021 न्यूट्रॉनों का द्रव्यमान
= 2.409 x 1021 x 1.675 x 10-27kg
अत: कुल न्यूट्रॉनों का द्रव्यमान
= 4.0347 × 10-6 kg

(iii) (क) 17 ग्राम NH3 में 1 मोल नाइट्रोजन तथा तीन मोल हाइड्रोजन परमाणु हैं।
1 मोल नाइट्रोजन परमाणु में प्रोटॉन = 7 मोल
3 मोल हाइड्रोजन परमाणु में प्रोटॉन = 3 मोल
अतः अमोनिया के एक मोल में प्रोटॉन = 10 मोल
17 ग्राम NH3 में प्रोटॉन = 10 मोल प्रोटॉन
= 10 × 6.02 × 1023 प्रोटॉन
= 6.02 × 1024 प्रोटॉन
34 x 10-3 ग्राम NH3 में प्रोटॉन
= \(\frac{6.02 \times 10^{24} \times 34 \times 10^{-3}}{17}\)
= 1.2044 ×1022 प्रोटॉन

(ख) 34 x 10-3 ग्राम NH3 में प्रोटॉन की संख्या
= 1.2044 × 1022
∵ एक प्रोटॉन का द्रव्यमान = 1.675 x 10-27 kg
∴ 1022 प्रोटॉन का द्रव्यमान
= 1.675 × 10-27 × 1.2044 x 1022
= 2.015 × 10-5 kg
ताप व दाब परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं रहता है।

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 2 परमाणु की संरचना

प्रश्न 3.
निम्नलिखित नाभिकों में उपस्थित न्यूट्रॉनों और प्रोटॉनों की संख्या बताइए।
\({ }_6^{13} \mathrm{C},{ }_8^{16} \mathrm{O}, \quad{ }_{12}^{24} \mathrm{Mg},{ }_{26}^{56} \mathrm{Fe},{ }_{38}^{88} \mathrm{Sr}\)
हल:
\({ }_6^{13} \mathrm{C}\) में प्रोटॉनों की संख्या =6
न्यूट्रॉनों की संख्या = 13 – 6 = 7
\({ }_8^{16} \mathrm{O}\) में प्रोटॉनों की संख्या = 8,
न्यूट्रॉनों की संख्या = 16 – 8 = 8
\({ }_{12}^{24} \mathrm{Mg}\) में प्रोटॉनों की संख्या = 12,
न्यूट्रॉनों की संख्या = 24 – 12 = 12
\({ }_{26}^{56} \mathrm{Fe}\) में प्रोटॉनों की संख्या = 26,
न्यूट्रॉनों की संख्या = 56 – 26 = 30
\({ }_{38}^{88} \mathrm{Sr}\) में प्रोटॉनों की संख्या = 38,
न्यूट्रॉनों की संख्या = 88 – 38 = 50

प्रश्न 4.
नीचे दिये गये परमाणु द्रव्यमान (A) और परमाणु संख्या (Z) वाले परमाणुओं का पूर्ण प्रतीक लिखिए –
(i) Z = 17 A = 35
(ii) Z = 92 A = 233
(iii) Z = 4 A = 9
हल:
(i) \({ }_{17}^{35} \mathrm{Cl}\)
(ii) \({ }_{92}^{233} \mathrm{U}\)
(iii) \({ }_4^9 \mathrm{Be}\)

प्रश्न 5.
सोडियम लैम्प द्वारा उत्सर्जित पीले प्रकाश की तरंगदैर्ध्य (λ) 580 nm है। इसकी आवृत्ति (υ) और तरंग संख्या (\(\overline{\mathcal{V}}\)) का परिकलन कीजिए।
हल:
पीले प्रकाश की तरंगदैर्ध्य (λ) = 580nm
अतः υ = \(\frac{c}{\lambda}=\frac{3 \times 10^8}{580 \times 10^{-9}}\) = 5.17 x 1014s-1
(\(\overline{\mathcal{V}}\)) = \(\frac{1}{\lambda}=\frac{1}{580 \times 10^{-9}}\)
= 0.0172 × 108m-1
= 1.72 × 106m-1

प्रश्न 6.
प्रत्येक ऐसे फोटॉन की ऊर्जा ज्ञात कीजिए –
(i) जो 3 × 1015 Hz आवृत्ति वाले प्रकाश के संगत हो।
(ii) जिसकी तरंगदैर्ध्य 0.50 Å हो ।
हल:
(i) E = hυ = 6.626 × 10-34 × 3 × 1015
= 1.988 × 10-18 J

(ii) E = hυ = h\(\frac { c }{ λ }\)
= \(\frac{6.626 \times 10^{-34} \times 3 \times 10^8}{\left(0.5 \times 10^{-10} \mathrm{~m}\right)}\)
= 3.97 × 10-15J

प्रश्न 7.
2.0 x 10-10s काल वाली प्रकाश तरंग की तरंगदैर्ध्य, आवृत्ति, और तरंग संख्या की गणना कीजिए।
हल:
तरंग काल T = 2.0 × 10-10 s
आवृत्ति υ = \(\frac { 1 }{ T }\) = \(\frac{1}{2.0 \times 10^{-10}}\) = 5.0 x 109 s-1
तरंगदैर्ध्य λ = \(\frac { c }{ υ }\) = \(\frac{3 \times 10^8}{5 \times 10^9}\) = 6.0 x 10-2 m
तरंग संख्या (\(\overline{\mathcal{V}}\)) = \(\frac { 1 }{ λ }\) = \(\frac{1}{\left(6.0 \times 10^{-2}\right)}\)
= \(\frac { 100 }{ 6 }\)
= 16.66 m-1

प्रश्न 8.
ऐसा प्रकाश जिसकी तरंगदैर्ध्य 4000 pm हो और जो 1J ऊर्जा दे, में फोटॉनों की संख्या बताइए।
हल:
फोटॉन की ऊर्जा E = \(\frac { hc }{ λ }\) (h = 6.626 × 10-34 Js)
c = 3 ×108 ms-1
2 = 4000 pm = 4000 x 10-12 m
= 4 × 10-9 m
E = \(\frac{6.626 \times 10^{-34} \times 3 \times 10^8}{4 \times 10^{-9}}\)
= 4.9687 × 10-17 J
= 4.97 × 10-17 J
4.97× 10-17 J ऊर्जा है = 1 फोटॉन की
1 J ऊर्जा होगी =\(\frac{1}{4.97 \times 10^{-17}}\) फोटॉन की
= 2012 × 10-16 फोटॉन

प्रश्न 9.
यदि 4 × 10-7m तरंगदैर्ध्य वाला एक फोटॉन 2.13 ev कार्यफलन वाली धातु की सतह से टकराता है तो –
(i) फोटॉन की ऊर्जा (eV) में,
(ii) उत्सर्जन की गतिज ऊर्जा और
(iii) प्रकाशीय इलेक्ट्रॉन के वेग का परिकलन कीजिए।
(1 eV = 1.6020 × 10-19 J)
हल:
(i) फोटॉन की ऊर्जा
E = \(\frac { hc }{ λ }\) = \(\frac{6.62 \times 10^{-34} \times 3 \times 10^8}{4 \times 10^{-7}}\)
= 4.97 × 10-19 J
= \(\frac{(1 \mathrm{eV}) \times 4.97 \times 10^{-19}}{1.6020 \times 10^{19} \mathrm{~J}}\)
फोटॉन की ऊर्जा 3.1eV

(ii) उत्सर्जन की गतिज ऊर्जा = E – कार्यफलन
= 3.10 – 2.13
= 0.97 ev

(iii) उत्सर्जन की गतिज ऊर्जा (KE) = \(\frac { 1 }{ 2 }\)
v² = \(\frac { 2 K.E. }{ m }\)
प्रकाशीय इलेक्ट्रॉन का वेग
= v = \(\sqrt{\frac{2 \mathrm{KE}}{m}}\)
= \(\sqrt{\frac{2 \times 0.97 \times 1.602 \times 10^{-19}}{9.1 \times 10^{-31}}}\)
= 5.84 × 105 m/s

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 2 परमाणु की संरचना

प्रश्न 10.
सोडियम परमाणु के आयनन के लिए 242 m तरंगदैर्ध्य की विद्युत चुम्बकीय विकिरण पर्याप्त होती है। सोडियम की आयनन ऊर्जा kJmol-1 में ज्ञात कीजिए।
हल:
तरंगदैर्ध्य λ = 242 nm = 242 x 10-9 m
E = \(\frac { hc }{ λ }\) = \(\frac{6.626 \times 10^{-17} \times 3 \times 10^8}{242 \times 10^{-9}}\)
= 0.0821 × 10-17 J
सोडियम के 1 मोल के लिए आयनन ऊर्जा
E = \(\frac{0.0821 \times 10^{-12} \times 6.022 \times 10^{23}}{1000}\)
= 494 kJ mol-1

प्रश्न 11.
25 वाट का एक बल्ब 0.57 μm तरंगदैर्ध्य वाले पीले रंग का एक वर्णी प्रकाश उत्पन्न करता है तो प्रति सेकेण्ड क्वाण्टा के उत्सर्जन की दर ज्ञात कीजिए।
हल:
फोटॉन की ऊर्जा
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 2 परमाणु की संरचना 1

प्रश्न 12.
किसी धातु की सतह पर 6800 Å तरंगदैर्ध्य वाली विकिरण डालने से शून्य वेग वाले इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं। धातु की देहली आवृत्ति (υ0) और कार्यफलन (W0) ज्ञात कीजिए।
हल:
देहली आवृत्ति (υ0) = \(\frac{c}{\lambda_0}=\frac{3 \times 10^8}{6800 \times 10^{-10}}\)
= 4.41 × 1014 s-1
कार्यफलन W0 = hv0 = 6.626 × 10-34 × 4.41 × 1014 J
= 2.92 × 10-19 J

प्रश्न 13.
जब हाइड्रोजन परमाणु के n = 4 ऊर्जा स्तर से = 2 ऊर्जा स्तर में इलेक्ट्रॉन जाता है तो किस तरंगदैर्ध्य का प्रकाश उत्सर्जित करेगा ?
हल:
RH = 109677
\(\overline{\mathcal{υ}}\) = RH\(\left[\frac{1}{n_1^2}-\frac{1}{n_2^2}\right]\)
= 109677\(\left[\frac{1}{2^2}-\frac{1}{4^2}\right]\)
= 20564.4 cm-1
λ = \(\frac{1}{\bar{v}}=\frac{1}{20564 \cdot 4}\)
= 486 × 10-7 cm
= 486 × 10-9 m = 486nm

प्रश्न 14.
यदि इलेक्ट्रॉन n = 5 कक्षक में उपस्थित हो तो H परमाणु के आयनन के लिए कितनी ऊर्जा की आवश्यकता होगी ? अपने उत्तर की तुलना हाइड्रोजन परमाणु की आयनन एन्थैल्पी से कीजिए। आयनन एन्थैल्पी n = 1 कक्षक में इलेक्ट्रॉन को निकालने के लिए आवश्यक ऊर्जा होती है।
हल:
एक निश्चित ऊर्जा कक्षक में उपस्थित हाइड्रोजन इलेक्ट्रॉन के लिए ऊर्जा
En = \(\frac{2 \cdot 18 \times 10^{-19} \mathrm{~J}}{n^2}\) परमाणु
n = 5 कक्षक में उपस्थित हाइड्रोजन इलेक्ट्रॉन के लिए आयनन ऊर्जा n1 = 5, n2 = ∞
∆E5 = E – E5
= 0 – \(\left(\frac{-2 \cdot 18 \times 10^{-18}}{(5)^2}\right)\) J/atom
= \(\frac{2 \cdot 18 \times 10^{-18}}{25}\) J / atom
= 8.72 × 10-20 J / atom
कक्षा n = 1 में उपस्थित हाइड्रोजन इलेक्ट्रॉन के लिये आयनन ऊर्जा
1 = E – E1
= 0 – \(\left(\frac{-2 \cdot 18 \times 10^{-18}}{(1)^2}\right)\)
= 2.18 × 10-18 J / atom
तुलना करने पर,
\(\frac{\Delta \mathrm{E}_5}{\Delta \mathrm{E}_1}=\frac{8 \cdot 72 \times 10^{-20}}{2.18 \times 10^{-18}}\)
= 0.04

प्रश्न 15.
जब हाइड्रोजन परमाणु में उत्तेजित इलेक्ट्रॉन n = 6 से मूल अवस्था में जाता है तो प्राप्त उत्सर्जित रेखाओं की अधिकतम संख्या होगी?
हल:
उत्सर्जित रेखाओं की अधिकतम संख्या
= \(\frac{n(n-1)}{2}=\frac{6(6-1)}{2}\) = 15

प्रश्न 16.
(i) हाइड्रोजन के प्रथम कक्षक से सम्बन्धित ऊर्जा – 2.18 × 10-18 जूल / परमाणु है। पाचवें कक्षक से सम्बन्धित ऊर्जा बताइए। (ii) हाईड्रोजन परमाणु के पाँचवें बोर कक्षक की त्रिज्या की गणन कीजिए।
हल:
(i) n कक्षक के लिए ऊर्जा
En = – \(\frac{2 \cdot 18 \times 10^{-18}}{n^2}\) J
अतः पाँचवें कक्षक के लिए ऊर्जा
E5 = – \(\frac{2 \cdot 18 \times 10^{-18}}{5^2}\)
= – 8.72 × 10-20 J

(ii) nवें कोश की त्रिज्या = ae
an = 52.9pm
= 52.9 × 10-12 x 25
= 1322.5 × 10-12 m
= 1.3225 nm

प्रश्न 17.
हाइड्रोजन परमाणु की बामर श्रेणी में अधिकतम तरंगदैर्ध्य वाले संक्रमण की तरंग संख्या की गणना कीजिए।
हल:
बामर श्रेणी के लिए n1 = 2
अत:
\(\overline{\mathcal{V}}\) = RH\(\left(\frac{1}{2^2}-\frac{1}{n_2^2}\right)\)
\(\overline{\mathcal{V}}\) = \(\frac { 1 }{ λ }\)
अतः यदि \(\overline{\mathcal{V}}\) अधिकतम है तो छोटी होगी।
∴ \(\overline{\mathcal{V}}\) = (1.097 x 107)\(\left(\frac{1}{2^2}-\frac{1}{3^2}\right)\)
= 1097×107 x \(\frac { 5 }{ 56 }\) m-1
= 1.523 × 106 m-1

प्रश्न 18.
हाइड्रोजन परमाणु में इलेक्ट्रॉन को पहली कक्षा से पाँचवीं कक्षा तक ले जाने के लिए आवश्यक ऊर्जा की जूल में गणना कीजिए। जब यह इलेक्ट्रॉन तलस्थ अवस्था में लौटता है तो किस तरंगदैर्ध्य का प्रकाश उत्सर्जित होता ? (इलेक्ट्रॉन की तलस्थ अवस्था ऊर्जा – 2.18 x 10-11 अर्ग है)।
हल:
तलस्थ अवस्था में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा – 2.18 x 10-11 अर्ग अर्थात्
En = – \(\frac{2 \cdot 18 \times 10^{-11}}{n^2}\) अर्ग
∆E = E5 – E1 = 2.18 x 10-11\(\left(\frac{1}{1^2}-\frac{1}{5^2}\right)\)
= 2.18 x 10-11\(\frac { 24 }{ 25 }\)
= 209 × 10-11 अर्ग
= 2.09 × 10-18 जूल (1 अर्ग = 10-7 जूल)
जब इलेक्ट्रॉन तलस्थ अवस्था में लौटता है। (n = 1 में)
उत्सर्जित ऊर्जा = 2.09 10-11 अर्ग
∴ ∆E = hv = \(\frac { c }{ λ }\)
या λ = \(\frac { hc }{ ΔΕ }\)
= \(\frac{6626 \times 10^{-27} \times 3 \times 10^{10}}{2.09 \times 10^{-11}}\)
= 9.51 × 10-6 cm
= 951 × 10-8 cm
= 951 Å

प्रश्न 19.
हाइड्रोजन परमाणु में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा En = \(\frac{-2 \cdot 18 \times 10^{-18}}{n^2} \mathrm{~J}\) द्वारा दी जाती है। n = 2 कक्षा से इलेक्ट्रॉन को पूरी तरह निकालने के लिए आवश्यक ऊर्जा की गणना कीजिए। प्रकाश की सबसे लम्बी तरंगदैर्घ्य $(\mathrm{cm}$ में) क्या होगी जिसका प्रयोग इस। संक्रमण में किया जा सके?
हल :
∆E = E – E2
= 0 – \(\left[\frac{-2.18 \times 10^{-18}}{2^2}\right]\)
= 5.45 x 1-19 J atom-1
∆E = hv = h\(\frac { c }{ λ }\) या λ = \(\frac { hc }{ ΔΕ }\)
= \(\frac{6.626 \times 10^{-34} \mathrm{Js} \times 3 \times 10^8 \mathrm{~ms}^{-1}}{5.45 \times 10^{-19} \mathrm{~J}}\)
= 3.647 × 10-7m
= 3.647 × 10-5 cm

प्रश्न 20.
2-05 × 107ms-1 वेग से गति कर रहे किसी इलेक्ट्रॉन का तरंगदैर्ध्य क्या होगा ?
हल:
डी-ब्रॉग्ली समीकरण द्वारा
λ = \(\frac { h }{ mv }\)
= \(\frac{6.626 \times 10^{-34} \mathrm{Js}}{\left(9.11 \times 10^{-31} \mathrm{~kg}\right) \times 2.05 \times 10^7 \mathrm{~ms}^{-1}}\)
= 3.55 × 10-1m

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 2 परमाणु की संरचना

प्रश्न 21.
इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान 9.1 x 10-31 kg है। यदि इसकी गतिज ऊर्जा 3.0 x 10-25 J हो तो इसकी तरंगदैर्ध्य की गणना कीजिए।
हल:
गतिज ऊर्जा = \(\frac { 1 }{ 2 }\)mv²
v = \(\sqrt{\frac{2 \mathrm{KE}}{m}}=\sqrt{\frac{2 \times 3.0 \times 10^{-25} \mathrm{~J}}{9 \cdot 1 \times 10^{-31} \mathrm{~kg}}}\)
= 812 ms-1
λ = \(\frac { h }{ mv }\) = \(\frac{6.626 \times 10^{-34} \mathrm{Js}}{\left(9.1 \times 10^{-31} \mathrm{~kg}\right)\left(812 \mathrm{~ms}^{-1}\right)}\)
= 8.967 × 10-7m
= 8967 A

प्रश्न 22.
निम्नलिखित में से कौन-से समआयनी स्पीशीज (isoelectronic) हैं? अर्थात् किनमें इलेक्ट्रॉनों की समान संख्या है।
Na+, K+, Mg2+, Ca2+, S2-, Ar
हल:
Na+ तथा Mg2+ समइलेक्ट्रॉनी हैं (इनमें 10 इलेक्ट्रॉन हैं)
K+, Ca2+, S2- तथा Ar समइलेक्ट्रॉनी हैं (इनमें 18 इलेक्ट्रॉन हैं)

प्रश्न 23.
(i) निम्नलिखित आयनों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए-
(क) H
(ख) Na+
(ग) O2
(घ) F

(ii) उन तत्वों की परमाणु संख्या बताइए जिनके सबसे बाहरी इलेक्ट्रॉनों को निम्नलिखित रूप में दर्शाया गया है
(क) 3s1
(ख) 2p³
(ग) 3p5

(iii) निम्नलिखित विन्यासों वाले परमाणुओं के नाम बताइए-
(क) (He) 2s1
(ख) (Ne) 3s² 3p³
(ग) (Ar) 4s² 3d1
हल:
(i) निम्नलिखित आयनों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास-
(क) H = 1s²
(ख) Na+ = 1s², 2s², 2p6
(ग) O2- = 1s², 2s², 2p6
(घ) F = 1s², 2s², 2p6

(ii) :

बाहरी इलेक्ट्रॉनिक विन्यास परमाणु क्रमांक पूर्ण इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
(क) 3s1 11 1s², 2s², 2p6 , 3s²
(ख) 2p³ 7 1s², 2s², 2p6
(ग) 3p5 17 1s², 2s², 2p6, 3s² 3p5

(iii) :

इलेक्ट्रॉनिक विन्यास परमाणु क्रमांक पूर्ण इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
(क) [He] 2s1 3 लीथियम
(ख) [Ne] 3s² 3p³ 15 फॉस्फोरस
(ग) [Ar] 4s² 3d1 21 स्कैन्डियम

प्रश्न 24.
किस निम्नतम n मान द्वारा g कक्षक का अस्तित्व अनुमत होगा?
हल:
g उपकक्ष के लिये l = 4. l का मान 0 से (n – 1) होता है। अत: l = 4 तब n = 5 अत: n का निम्नतम मान = 5

प्रश्न 25.
एक इलेक्ट्रॉन 3d कक्षक में है इसके लिये n, l, m के सम्भव मान दीजिए।
हल:
n = 3 1=2
m = – 2, – 1, 0, +1, +2 (कोई भी एक मान)

प्रश्न 26.
किसी तत्व के परमाणु में 29 इलेक्ट्रॉन और 35 न्यूट्रॉन हैं (i) प्रोटॉनों की संख्या (ii) तत्व का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास बताइए।
हल:
Z = 29 अत: प्रोटॉन = 29
इलेक्ट्रॉनों की संख्या = Z = 29
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 1s², 2s², 2p6, 3s², 3p6, 4s1, 3d10

प्रश्न 27.
H2+, H2, और O2+ स्पीशीज में उपस्थित इलेक्ट्रानों की संख्या बताइए।
हल:
H2+ = 2 – 1 = 1, H2 = 2, O2+ = 16 – 1 = 15

प्रश्न 28.
(i) किसी परमाणु कक्षक का n = 3 है, इसके लिए l और m के सम्भव मान क्या होंगे?
(ii) 3d कक्षक के इलेक्ट्रॉनों के लिए m और l क्वाण्टम संख्याओं के मान बताइए।
(iii) निम्न में से कौन-से कक्षक सम्भव हैं-
1p, 2s, 2p 3f
हल:
(i) n = 3
l = 0 → (n – 1) = 0, 1, 2
1 = 0 m = 0
1 = 1 m = – 1, 0, + 1
1 = 2 m = – 2, – 1, 0, +1, +2

(ii) 3d कक्षक के लिए
l = 2 m = – 2, – 1, 0, +1, +2

(iii) 2s, 2p कक्षक सम्भव हैं।

प्रश्न 29.
s, p, d, f संकेतन द्वारा निम्नलिखित क्वाण्टम संख्याओं वाले कक्षकों को बताइए –
(क) n = 1, l = 0
(ख) n = 3 l = 1
(ग) n = 4 l = 2
(घ) n = 4 l = 3
हल:

l का मान कक्षक
0 s
1 p
2 d
3 F

अत: (क) 1s (ख) 3p (ग) 4d (घ) 4f

प्रश्न 30.
कारण देते हुए बताइए कि निम्नलिखित क्वाण्टम संख्या के कौन-से मान सम्भव नहीं हैं।
(क) n = 0 l = 0 m1 = 0 ms = + \(\frac { 1 }{ 2 }\)
(ख) n = 1 l = 0 m1 = 0 ms = – \(\frac { 1 }{ 2 }\)
(ग) n = 1 l = 1 m1 = 0 ms = + \(\frac { 1 }{ 2 }\)
(घ) n = 2 l = 1 m1 = 0 ms = – \(\frac { 1 }{ 2 }\)
(ङ) n = 3 l = 3 m1 = -3 ms = + \(\frac { 1 }{ 2 }\)
(च) n = 3 l = 1 m1 = 0 ms = + \(\frac { 1 }{ 2 }\)
हल:
(क) सम्भव नहीं है क्योंकि n = 0 असम्भव हैं।
(ख) n = 1, l = 0, m1 = 0, ms = – \(\frac { 1 }{ 2 }\) (सम्भव है।)
(ग) n = 1, l = 1 असम्भव है क्योंकि 7 का मान 0 से (n – 1) तक होता है।
(घ) सम्भव है।
(ङ) n = 3, l = 3, m1 = 3, ms = + \(\frac { 1 }{ 2 }\)
असम्भव है क्योंकि यहाँ पर n तथा का मान समान नहीं हो सकता है।
(च) सम्भव है।

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 2 परमाणु की संरचना

प्रश्न 31.
किसी परमाणु में निम्नलिखित क्वाण्टम संख्याओं वाले कितने इलेक्ट्रॉन होंगे-
(क) n = 4, m, = – \(\frac { 1 }{ 2 }\)
(ख) n = 3, l = 0
हल:
(क) n = 4 के लिए कुल सम्भव इलेक्ट्रॉन 2n² = 32 इलेक्ट्रॉन होंगे।
जिनमें 16 इलेक्ट्रॉन के लिए ms = – \(\frac { 1 }{ 2 }\)

(ख) n = 3, l = 0 केवल दो इलेक्ट्रॉन 3s कक्षक में सम्भव हैं।

प्रश्न 32.
यह दर्शाइए कि हाइड्रोजन परमाणु की बोर कक्षा की परिधि उस कक्षा में गतिमान इलेक्ट्रॉन की डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य का पूर्ण गुणक होती है।
उत्तर:
बोर के अनग्रहित द्वारा
mvr = \(\frac { nh }{ 2π }\) या 2πr = \(\frac { nh }{ mv }\) … (1)
डी-ब्रॉग्ली के अनुसार λ = \(\frac { h }{ mv }\) … (2)
समीकरण (1) व (2) की तुलना करने पर
2πr = nλ
अतः हाइड्रोजन परमाणु की बोर कक्षा की परिधि (2πr) उस कक्षा में गतिमान इलेक्ट्रॉन की डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य का पूर्ण गुणक होती है।

प्रश्न 33.
He+ स्पेक्ट्रम के n = 4 से n = 2 बामर संक्रमण से प्राप्त तरंगदैर्ध्य के बराबर वाला संक्रमण हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम में क्या होगा?
हल:
किसी परमाणु के लिए
\(\overline{\mathcal{V}}\) = \(\frac { 1 }{ λ }\) = RHZ²\(\left(\frac{1}{n_1^2}-\frac{1}{n_2^2}\right)\)
He+ स्पेक्ट्रम के लिए
Z = 2, n2 = 4, n1 = 2
\(\overline{\mathcal{V}}\) = \(\frac { 1 }{ λ }\) = RH x (2)² \(\left(\frac{1}{2^2}-\frac{1}{4^2}\right)=\frac{3 \mathrm{R}_{\mathrm{H}}}{4}\)
हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम के लिए
\(\overline{\mathcal{V}}\) = \(\frac{3 R_H}{4}\) तथा Z = 1
\(\overline{\mathcal{V}}\) = \(\frac{1}{\lambda}=\mathrm{R}_{\mathrm{H}} \times 1\left(\frac{1}{n_1^2}-\frac{1}{n_2^2}\right)\)
= RH\(\left(\frac{1}{n_1^2}-\frac{1}{n_2^2}\right)=\frac{3 \mathrm{R}_{\mathrm{H}}}{4}\)
या \(\frac{1}{n_1^2}-\frac{1}{n_2^2}=\frac{3}{4}\)
अर्थात् n1 = 1 तथा n2 = 2
अतः हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम की स्थिति में संक्रमण n2 = 2 से n1 = 1 होगा।

प्रश्न 34.
He+ (g) → He2+ (g) + e
प्रक्रिया के लिए आवश्यक ऊर्जा की गणना कीजिए। हाइड्रोजन परमाणु की तलस्थ अवस्था में आयनन ऊर्जा 2.18 × 1018 J atom-1 है।
हल:
H परमाणु के लिये E1 = – I.E. ( आयनन ऊर्जा )
= – 2.18 × 10-18 J
He+ के लिये E1 = E1 (H) × Z²
= – 2·18 × 10-18 × (2)² J
= – 8.72 × 10-18 J
दी गयी प्रक्रिया H+ के आयनन को प्रदर्शित कर रही है अतः He+ के आयनन के लिये आवश्यक ऊर्जा
= – E1 (He+)
= – (8-72 × 10-18 J)
= 8.72 × 10-18 J

प्रश्न 35.
यदि कार्बन परमाणु का व्यास 0.15 nm है तो उन कार्बन परमाणुओं की संख्या की गणना कीजिए जिन्हें 20 cm स्केल की लम्बाई में एक-एक करके व्यवस्थित किया जा सकता है।
हल:
कार्बन परमाणु का व्यास
= 0-15 nm = 0.15 × 10 = 1.5 x 10-10m
रेखा की लम्बाई = 20cm = 20 x 10-2m = 2 x 10-1 m
20cm लम्बाई में रखे, कार्बन परमाणु जिनकी संख्या
= \(\frac{2 \times 10^{-1}}{1.5 \times 10^{-10}}\)
= 1.33 × 10o परमाणु

प्रश्न 36.
कार्बन के 2 x 108 परमाणु एक कतार में व्यवस्थित हैं। यदि इस व्यवस्था की लम्बाई 2-4 cm है तो कार्बन परमाणु के व्यास की गणना कीजिए।
हल:
कार्बन परमाणुओं की संख्या = 2 x 108
कतार की लम्बाई = 2.4 cm = 24 x 10-2m
कार्बन परमाणु का व्यास =\(\frac{2 \cdot 4 \times 10^{-2}}{2 \times 10^8}\)
= 12 × 10-10m

प्रश्न 37.
जिंक परमाणु का व्यास 2.6 Å है।
(क) जिंक की परमाणु त्रिज्या pm में तथा
(ख) 1.6cm की लम्बाई में कतार में लगातार उपस्थित परमाणुओं की संख्या की गणना कीजिए ।
हल:
(क) 1 Å = 10² pm
अतः व्यास \(\frac { 2.6 }{ 2 }\) = 1.3 Å = 1·3 × 10-10m
= 130 × 10-12 m = 130pm

(ख) दी हुई लम्बाई = 1.6 cm = 1.6 × 10-2m
परमाणु का व्यास = 26 Å = 2.6 x 10-10 m
1.6 लम्बाई में परमाणुओं की संख्या
= \(\frac{1.6 \times 10^{-2}}{2.6 \times 10^{-10}}\)
= 6.154 × 107

प्रश्न 38.
किसी कण का स्थिर विद्युत आवेश 2.5 x 10-16 C है। इसमें उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या की गणना कीजिए।
हल:
कण का स्थिर विद्युत आवेश (q) = 2.5 x 10-16C
इलेक्ट्रॉन पर आवेश (e) = 1.602 × 10-19C
इलेक्ट्रॉन की संख्या \(\frac { q }{ e }\) = \(\frac{2.5 \times 10^{-16}}{1.602 \times 10^{-19}}\)
= 1560

प्रश्न 39.
मिलीकन के प्रयोग में तेल की बूँद पर चमकती X-किरणों द्वारा स्थैतिक विद्युत आवेश प्राप्त किया जाता है। तेल की बूँद पर यदि स्थैतिक विद्युत आवेश – 1.282 x 10-18C हो तो इसमें उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या ज्ञात कीजिए ।
हल:
तेल की बूँद पर आवेश (q) = – 1.282 x 10-18 C
एक इलेक्ट्रॉन पर आवेश (e) = – 1.602 x 10-19 C
इलेक्ट्रॉन की संख्या = \(\frac { q }{ e }\)
= \(\frac{\left(-1.282 \times 10^{-18}\right)}{\left(-1.602 \times 10^{-19}\right)}\)
= 8

प्रश्न 40.
रदरफोर्ड के प्रयोग में सोने, प्लैटिनम आदि भारी परमाणुओं की पतली पन्नी पर – कणों द्वारा बमबारी की जाती है। यदि ऐल्यूमिनियम आदि जैसे हल्के परमाणु की पतली पन्नी ली जाये तो उपर्युक्त परिणामों में क्या अन्तर होगा ?
हल:
ऐल्यूमिनियम का नाभिक हल्का और छोटा तथा कम अव्यवस्थित होगा, अतः α-कण अपने पथ से कम विक्षेपित होंगे और सीधे निकल जायेंगे। इस प्रकार ऐल्यूमिनियम की पतली पन्नी लेने पर रदरफोर्ड के प्रयोग के परिणाम भिन्न होंगे।

प्रश्न 41.
\({ }_{35}^{79} \mathrm{Br}\) तथा 79Br प्रतीक मान्य है, जबकि \({ }_{35}^{79} \mathrm{Br}\) तथा
35 Br मान्य नहीं हैं। संक्षेप में कारण बताइये।
हल:
किसी भी तत्व का परमाणु क्रमांक स्थायी होता है। जबकि द्रव्यमान संख्या स्थिर नहीं होती है। प्रत्येक समस्थानिक के लिये भी द्रव्यमान संख्या का मान भिन्न-भिन्न होता है। अतः प्रत्येक समस्थानिक की द्रव्यमान संख्या भी व्यक्त करना अनिवार्य है। अतः \({ }_{35}^{79} \mathrm{Br}\) तथा 35 Br मान्य नहीं है क्योंकि 35Br में द्रव्यमान संख्या नहीं है। इस कारण \({ }_{79}^{35} \mathrm{Br}\) तथा 79Br प्रतीक मान्य है।

प्रश्न 42.
एक 81 द्रव्यमान संख्या वाले तत्व में प्रोटॉनों की तुलना में 31.7% न्यूट्रॉन अधिक हैं। इसका परमाणु प्रतीक लिखिए।
हल:
द्रव्यमान संख्या (A) = 81, p + n = 81
यदि प्रोटॉन = x तब न्यूट्रॉन = x + \(\frac{31.7 \times x}{100}\) = 1.317x
∴ x + 1.317x = 81
या 2.317x = 81
x = \(\frac { 81 }{ 2.317 }\) = 35
अतः प्रोटॉन = 35; Z = 35
न्यूट्रॉन = 81 – 35 = 46
अतः प्रतीक \({ }_{35}^{81} \mathrm{Br}\) है।

प्रश्न 43.
37 द्रव्यमान संख्या वाले एक आयन पर ऋण आवेश की एक इकाई है। यदि आयन में इलेक्ट्रॉन की तुलना में न्यूट्रॉन 11.1% अधिक हैं तो आयन का प्रतीक लिखिए।
हल:
माना आयन में इलेक्ट्रॉनों की संख्या = x
प्रोटॉनों की संख्या = x – 1
न्यूट्रॉनों की संख्या = x + \(\frac{11.1 \times x}{100}\)
आयन का द्रव्यमान = प्रोटॉनों की संख्या + न्यूट्रॉनों की संख्या
37 = (x – 1) + 1-11x
या 2.11x = 38
या x = \(\frac{38}{2.11}\) = 18
प्रोटॉन की संख्या = परमाणु क्रमांक = x – 1
= 18 – 1 = 17
अतः आयन की परमाणु संख्या = 17,
आयन का प्रतीक = \({ }_{37}^{17} \mathrm{Cl}\)

प्रश्न 44.
56 द्रव्यमान संख्या वाले एक आयन पर धनावेश 3 इकाई है और उसमें इलेक्ट्रॉन की तुलना में 30.4% न्यूट्रॉन अधिक हैं। इस आयन का प्रतीक लिखिए।
हल:
आयन में इलेक्ट्रॉन की संख्या = x
अत: प्रोटॉन की संख्या = x 3
न्यूट्रॉन की संख्या = x + \(\frac{30.4 \times x}{100}\)
= 1.304 x
उदासीन परमाणु में इलेक्ट्रॉन की संख्या = x + 3
प्रोटॉन की संख्या = x + 3
न्यूट्रॉनों की संख्या = x + \(\frac{30.4 \times x}{100}\)
= x + 0.304x
आयन का द्रव्यमान = प्रोटॉनों की संख्या + न्यूट्रॉनों की संख्या
= (x + 3) + (x + 0.304x)
56 = (x + 3) + (x + 0.304x)
2.304x = 56 – 3 = 53
x = \(\frac{53}{2.304}\) = 23
परमाणु संख्या = 23 + 3 = 26
अतः आयन का प्रतीक = \({ }_{56}^{26} \mathrm{Fe}\)+3

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 2 परमाणु की संरचना

प्रश्न 45.
निम्नलिखित विकिरणों के प्रकारों को आवृत्ति के बढ़ते हुए क्रम में व्यवस्थित कीजिए-
(क) माइक्रोवेव ऑवन से विकिरण।
(ख) यातायात संकेत से त्रणमणि (amber) प्रकाश।
(ग) एफ. एम. रेडियो से प्राप्त विकिरण।
(घ) बाहरी दिक् से कॉस्मिक किरणें।
(ङ) X – किरणें।
हल:
बाहरी दिक् से कॉस्मिक किरणें < X – किरणें < त्रणमणि प्रकाश माइक्रोवेव < एफ. एम रेडियो से प्राप्त विकिरण।

प्रश्न 46.
नाइट्रोजन लेजर 337.1 nm की तरंगदैर्ध्य पर एक विकिरण उत्पन्न करती है। यदि उत्सर्जित फोटॉनों की संख्या 5.6 x 1024 हो तो इस लेजर की क्षमता की गणना कीजिए।
हल:
नाइट्रोजन लेजर की तरंगदैर्ध्य = 337.1nm
फोटॉनों की संख्या = 5.6 x 1024
E = Nhv = Nh\(\frac { c }{ λ }\)
= \(\frac{\left(5.6 \times 10^{24)}\left(6 \cdot 626 \times 10^{-34} \mathrm{Js}\right)\left(3.0 \times 10^8 \mathrm{~ms}^{-1}\right)\right.}{\left(337.1 \times 10^{-9} \mathrm{~m}\right)}\)
= 3.3 × 106 J

प्रश्न 47.
नियॉन गैस को सामान्यतः संकेत बोर्डों में प्रयुक्त किया जाता है। यदि यह 616 nm पर प्रबलता से विकिरण उत्सर्जन करती है तो (क) उत्सर्जन की आवृत्ति (ख) 30 सेकेण्ड में इस विकिरण द्वारा तय की गई दूरी, (ग) क्वाण्टम की ऊर्जा तथा (घ) उपस्थित क्वाण्टम की संख्या की गणना कीजिए। (यदि यह 2J की ऊर्जा उत्पन्न करती है।)
हल:
λ = 616 x 10-9 m
(क) आवृत्ति υ = \(\frac { c }{ λ }\) = \(\frac{3.0 \times 10^8 \mathrm{~ms}^{-1}}{616 \times 10^{-9} \mathrm{~m}}\)
= 4.87 × 10-14 s-1

(ख) विकिरण का वेग = 3.0 x 108 ms-1
∴ 30 सेकेण्ड में विकिरण द्वारा तय की गई दूरी = समय × वेग
= 30 × 3 × 108
= 9.0 x 108 m

(ग) E = hυ = h\(\frac { c }{ λ }\)
= υ = \(\frac{\left(6.626 \times 10^{-34} \mathrm{Js}\right) \times 3.0 \times 10^8 \mathrm{~ms}^{-1}}{616 \times 10^{-9} \mathrm{~m}}\)
= 32.27 × 10-20 J

(घ) 2J ऊर्जा में क्वाण्टम की संख्या
32-27 × 10-20 J ऊर्जा में क्वाण्टम की संख्या = 1
2J ऊर्जा में क्वाण्टम की संख्या
= \(\frac{2}{32.27 \times 10^{-20}}\)
= 6.2 × 1018

प्रश्न 48.
खगोलीय प्रेक्षणों में दूरस्थ तारों से मिलने वाले संकेत बहुत कमजोर होते हैं। यदि प्रोटॉन संसूचक 600 nm के विकिरण से कुल 3-15 × 10-18 J प्राप्त करता है तो संसूचक द्वारा प्राप्त फोटॉनों की संख्या की गणना कीजिए।
हल:
एक फोटॉन की ऊर्जा = hυ = h\(\frac { c }{ λ }\)
= \(\frac{\left(6.626 \times 10^{-34} \mathrm{Js}\right)\left(3 \times 10^8 \mathrm{~ms}^{-1}\right)}{\left(600 \times 10^{-9} \mathrm{~m}\right)}\)
= 3.313 × 10-19 J
कुल प्राप्त ऊर्जा = 3.15 × 10-18 J
प्राप्त फोटॉनों की संख्या = \(\frac{3.15 \times 10^{-18}}{3.313 \times 10^{-19}}\)
= 9.51 ≈ 10

प्रश्न 49.
उत्तेजित अवस्थाओं में अणुओं के जीवनकाल का माप प्रायः लगभग नैनो सेकेण्ड परास वाले विकिरण स्रोत का उपयोग करके किया जाता है। यदि विकिरण स्रोत का काल 2ns और स्पंदित विकरण स्रोत के दौरान उत्सर्जित फोटॉनों की संख्या 2.5 x 1015 है तो स्रोत की ऊर्जा की गणना कीजि।
हल:
स्रोत में विकिरण की अवधि
T = 2 ns = 2 × 10-9 s
आवृत्ति = \(\frac{1}{2 \times 10^{-9}}\)
= 0.5 × 109 s-1
ऊर्जा = nhv = (2.5 x 1015) (6.626 x 10-34Js) (0.5 x 109 s-1)
= 8.28 ×10-10 J

प्रश्न 50.
सबसे लम्बी द्विगुणित तरंगदैर्ध्य जिंक अवशोषण संक्रमण 589 और 589-6nm पर देखा जाता है। प्रत्येक संक्रमण की आवृत्ति और दो उत्तेजित अवस्थाओं के बीच ऊर्जा के अन्तर की गणना कीजिए।
हल :
λ1 = 589 nm = 589 x 10-9m
∴ υ = \(\frac { c }{ λ }\) = \(\frac{3.0 \times 10^8 \mathrm{~ms}^{-1}}{589 \times 10^{-9} \mathrm{~m}}\)
= 5.093 × 1014 s-1
λ2 = 589.6nm = 589.6 × 10-9m
∴ υ2 = \(\frac { c }{ λ2 }\) = \(\frac{3.0 \times 10^8 \mathrm{~ms}^{-1}}{589.6 \times 10^{-9} \mathrm{~m}}\)
= 5.008 × 1014 s-1
∆E = E2 – E1 = h (υ2 – υ1)
= (6.626 × 10-34 Js) (5.93 – 5.088) x 1014 s-1
= 3.31 × 10-22 J

प्रश्न 51.
सीजियम परमाणु का कार्य फलन 1-9 eV है तो
(क) उत्सर्जित विकिरण की देहली तरंगदैर्ध्य,
(ख) देहली आवृत्ति की गणना कीजिए।
यदि सीजियम तत्व को 500 nm की तरंगदैर्ध्य के साथ विकीर्णित किया जाये तो निकले हुए फोटो-इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा और वेग की गणना कीजिए।
हल:
(क) कार्य फलन (W0) = hυ0
∴ υ0 = \(\frac{\left(W_0\right)}{h}=\frac{1.9 \times 1.602 \times 10^{-19} \mathrm{~J}}{6.626 \times 10^{-34} \mathrm{Js}}\)
= 4.59 × 1014 s-1

(ख) λ0 = \(\frac{c}{v_0}=\frac{3.0 \times 10^8 \mathrm{~ms}^{-1}}{4.59 \times 10^{14} \mathrm{~s}^{-1}}\)
= 6.54 x 10-7 m
= 654 × 10-9 m
उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन की K.E. = 654nm
= h(v-vo ) = hc\(\left(\frac{1}{\lambda}-\frac{1}{\lambda_0}\right)\)
= (6·626 × 10-34 Js) (3.0 x 108 ms-1)\(\left(\frac{1}{500 \times 10^{-9} \mathrm{~m}}-\frac{1}{654 \times 10^{-9} \mathrm{~m}}\right)\)
= \(\frac{6.626 \times 3.0 \times 10^{-26}}{10^{-9}}\left(\frac{154}{500 \times 654}\right) \mathrm{J}\)
= 9.36 × 10-20 J
K.E.= \(\frac { 1 }{ 2 }\) mv² =9.36×10-20 J
∴ \(\frac { 1 }{ 2 }\) x (9.11 × 10-31 kg)v² = 9.36 × 10-20 kg m² s²
या v² = 2055 x 10-11 m² s-2
= 20.55 × 1010 m² s-2
या v = 4.53 × 105 ms-1

प्रश्न 52.
जब सोडियम धातु को विभिन्न तरंगदैर्ध्य के साथ विकीर्णित किया जाता है तो निम्नलिखित परिणाम प्राप्त होते हैं –

λ (nm) 500 450 400
v × 10-5 (cm s-1) 2.55 4.35 5.35

(क) देहली तरंगदैर्ध्य और (ख) प्लांक स्थिरांक की गणना कीजिए।
हल:
माना कि देहली तरंगदैर्ध्य
= λ0 nm = λ0 x 10-9 m
h (v – v0) = \(\frac { 1 }{ 2 }\)mv² या hc\(\left(\frac{1}{\lambda}-\frac{1}{\lambda_0}\right)\) = \(\frac { 1 }{ 2 }\)mv²
तीनों परिणामों को जोड़ने पर –
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 2 परमाणु की संरचना 2
इस मान को समीकरण (iii) में रखने पर
= \(\frac{h \times\left(3 \times 10^8\right)}{10^{-9}}\left(\frac{1}{400}-\frac{1}{531}\right)\)
= \(\frac { 1 }{ 2 }\)(9.11 × 10-31)(5.20 × 105
h = 6.66 × 10-34 Js

प्रश्न 53.
प्रकाश विद्युत प्रभाव प्रयोग में सिल्वर धातु से फोटो इलेक्ट्रॉन का उत्सर्जन 0.35V की वोल्टता द्वारा रोका जा सकता है। जब 256.7 nm के विकिरण का उपयोग किया जाता है तो सिल्वर धातु के लिए कार्य फलन की गणना कीजिए।
हल:
विकिरण की ऊर्जा कार्य फलन +फोटो इलेक्ट्रॉन की गतिज
ऊर्जा
कार्यफलन = विकिरण ऊर्जा फोटो इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा E = hv = h\(\frac { c }{ λ }\)
= \(\frac{\left(6.626 \times 10^{-34} \mathrm{Js}\right)\left(3.0 \times 10^8 \mathrm{~ms}^{-1}\right)}{\left(256.7 \times 10^{-9} \mathrm{~m}\right)}\)
= 7.74 × 10-19 J
= 4·83 eV (1 eV = 1.602 × 10-19 J)
अत: इलेक्ट्रॉन की K. E. = 0.35 eV
∴ कार्य फलन = 4.83 eV – 0.35 ev
= 4.48 ev

प्रश्न 54.
यदि 150 pm तरंगदैर्ध्य का फोटॉन एक परमाणु से टकराता है और उसके अन्दर बंधा हुआ इलेक्ट्रॉन 1.5 x 107 ms-1 वेग से बाहर निकलता है तो उस ऊर्जा की गणना कीजिए। जिससे यह नाभिक से बंधा हुआ है।
हल:
फोटॉन की ऊर्जा
= \(\frac{h c}{\lambda}=\frac{\left(6.626 \times 10^{-34} \mathrm{Js}\right)\left(3.0 \times 10^8 \mathrm{~ms}^{-1}\right)}{\left(150 \times 10^{-12} \mathrm{~m}\right)}\)
= 13.25 × 10-16 J
(150 × 10-12 m )
बाहर निकलने वाले इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा
= \(\frac { 1 }{ 2 }\)mv²
= \(\frac { 1 }{ 2 }\) (9.11 × 10-31 kg) (1.5 × 107 ms-1
= 1.025 × 10-16 J
इलेक्ट्रॉन की नाभिक से बंधे रहने की ऊर्जा = (टकराने वाले फॉटोन की ऊर्जा) – (गतिज ऊर्जा)
= 13.25 × 10-16 J – 1.025 × 10-16 J
= 12.225 × 10-16
= \(\frac{12.225 \times 10^{-16}}{1.602 \times 10^{-19}}\)eV
= 7.63 x 10 ev

प्रश्न 55.
पाश्चन श्रेणी का उत्सर्जन संक्रमण n कक्ष से आरम्भ होता है। कक्ष n = 3 में खत्म होता है तथा इसे v = 3.29 × 1015 (Hz) \(\left[\frac{1}{3^2}-\frac{1}{n^2}\right]\) से दर्शाया जा सकता है। यदि संक्रमण 1285nm पर प्रेक्षित होता है तो ” के मान की गणना कीजिए तथा स्पेक्ट्रम का क्षेत्र बताइए।
हल:
v = \(\frac{c}{\lambda}=\frac{3.0 \times 10^8 \mathrm{~ms}^{-1}}{1285 \times 10^{-9} \mathrm{~m}}\)
= 3.29 × 1015\(\left[\frac{1}{3^2}-\frac{1}{n^2}\right]\)
\(\frac{1}{n^2}=\frac{1}{9}-\frac{3.0 \times 10^8}{1285 \times 10^{-9}} \times \frac{1}{3.29 \times 10^{15}}\)
= 0.111 – 0.071 = 0.04 =
n² = 25, n = 5
1285 nm का विकिरण स्पैक्ट्रम के अवरक्त (Infrared) क्षेत्र में होता है।

प्रश्न 56.
उस उत्सर्जन संक्रमण के तरंगदैर्ध्य की गणना कीजिए जो 1.3225 nm त्रिज्या वाले कक्ष से आरम्भ और 211.6pm पर समाप्त होता है। इस संक्रमण की श्रेणी का नाम और स्पेक्ट्रम का क्षेत्र बताइए।
हल:
H-जैसे कणों के लिये nth कक्षक की त्रिज्या = \(\frac{0.529 n^2}{Z}\) = \(\frac{52 \cdot 9 n^2}{Z}\)pm
r1 = 1.3225 nm = 1322.5pm
= 52.9 n²1 pm
1 = \(\frac { 1322.5 }{ 52.9 }\) = 25
n1 = 5
r2 = 211·6 pm = 52.9 n²22 pm
2 = \(\frac { 211.6 }{ 52.9 }\) = 4
n2 = 2
अत: n2 = 2, n = 5
चूँकि संक्रमण पाँचवें से द्वितीय कक्ष में होता है। अतः यह बामर श्रेणी है।
\(\overline{\mathrm{υ}}\) = 1.097 × 107m-1\(\left(\frac{1}{2^2}-\frac{1}{5^2}\right)\)
= 10-9 x \(\frac { 21 }{ 100 }\) x 107 m-1
या λ = \(\frac { 1 }{ υ }\)
= \(\frac{100}{1.097 \times 21 \times 10^7}\)m = 434 x 10-9m
यह दृश्य (Visible) स्पेक्ट्रम क्षेत्र में पड़ता है।

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 2 परमाणु की संरचना

प्रश्न 57.
डी-ब्रॉग्ली द्वारा प्रतिपादित द्रव्य के दोहरे व्यवहार से इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की खोज हुई जिसे जैव अणुओं और अन्य प्रकार के पदार्थों की अति आवर्धित प्रतिबिम्ब के लिए उपयोग में लाया जाता है। इस सूक्ष्मदर्शी में यदि इलेक्ट्रॉन का वेग 1.6 x 106ms-1 है तो इस इलेक्ट्रॉन से सम्बन्धित डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य की गणना कीजिए।
हल:
डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य
λ = \(\frac { h }{ mv }\)
= \(\frac{6.626 \times 10^{-34} \mathrm{~kg} \mathrm{~m}^2 \mathrm{~s}^{-1}}{\left(9.11 \times 10^{-31} \mathrm{~kg}\right)\left(1.6 \times 10^6 \mathrm{~ms}^{-1}\right)}\)
= 4.55 ×10-10 m
= 455 pm

प्रश्न 58.
इलेक्ट्रॉन विवर्तन के समान न्यूट्रॉन विवर्तन सूक्ष्मदर्शी को अणुओं की संरचना के निर्धारण में प्रयुक्त किया जाता है। यदि यहाँ 800 pm की तरंगदैर्ध्य ली जाये तो न्यूट्रॉन से सम्बन्धित अभिलाक्षणिक वेग की गणना कीजिए।
हल:
तरंगदैर्ध्य λ = 800pm = 800 × 10-12 m
= 8 ×10-10 m
न्यूट्रॉन का द्रव्यमान = 1675 x 10-27 kg
λ = \(\frac { h }{ mv }\) या v = \(\frac { h }{ mλ }\)
= \(\frac{6.626 \times 10^{-34} \mathrm{~kg} \mathrm{~m}^2 \mathrm{~s}^{-1}}{1.675 \times 10^{-27} \mathrm{~kg} \times 8 \times 10^{-10} \mathrm{~m}}\)
= \(\frac{6.625}{1.675 \times 8}\)
= 4.94 × 10² ms-1

प्रश्न 59.
यदि बोर के प्रथम कक्ष में इलेक्ट्रॉन का वेग 2.9 x 106 ms-1 है तो इससे सम्बन्धित डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य की गणना कीजिए ।
हल:
बोर के प्रथम कक्ष में इलेक्ट्रॉन का वेग
= 2.9 × 106ms-1
h = 6-626 × 10-34m 2s-1
इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान = 9-11 × 10-31 kg
λ = \(\frac { h }{ mv }\)
= \(\frac{6.626 \times 10^{-34} \mathrm{~kg} \mathrm{~m}^2 \mathrm{~s}^{-1}}{9.11 \times 10^{-31} \times 2.9 \times 10^6}\)
= 3.32 ×10-10m = 332 pm

प्रश्न 60.
एक प्रोटॉन जो 1000 V के विभवान्तर में गति कर रहा है, से सम्बन्धित वेग 4.37 x 105 ms-1 है। यदि 0.1 kg द्रव्यमान की हॉकी की गेंद इस वेग से गतिमान है तो इससे सम्बन्धित तरंगदैर्ध्य की गणना कीजिए।
हल:
हॉकी की गेंद का वेग
v = 4.37 × 105 ms-1
गेंद का द्रव्यमान m = 0.1 kg
λ = \(\frac{h}{m v}=\frac{6.626 \times 10^{-34} \mathrm{~kg} \mathrm{~m}^2 \mathrm{~s}^{-1}}{0.1 \times 4.37 \times 10^5 \mathrm{~ms}^{-1}}\)
= 1·516 × 10-28 m

प्रश्न 61.
यदि एक इलेक्ट्रॉन की स्थिति को ± 0.002 nm की शुद्धता से मापा जाता है तो इलेक्ट्रॉन के संवेग में अनिश्चितता की गणना कीजिए। यदि इलेक्ट्रॉन का संवेग h/4πm x 0.05nm है तो क्या इस मान को निकालने में कोई कठिनाई होगी?
हल:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 2 परमाणु की संरचना 3
यह सम्भव नहीं है क्योंकि संवेग का मान अनिश्चितता के मान से बहुत कम है।

प्रश्न 62.
छ: इलेक्ट्रॉनों की क्वाण्टम संख्या नीचे दी गई है। इन्हें ऊर्जा के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित कीजिए। क्या इनमें से किसी की ऊर्जा समान है?
1. n = 4 l = 2 ms = – 1 / 2 ml = 2
2. n = 3 l = 2 ms = + 1 / 2 ml = 1
3. n = 4 l = 1 ms = + 1 / 2 ml = 0
4. n = 3 l = 2 ms = – 1 / 2 ml = – 2
5. n = 3 l = 1 ms = + 1 / 2 ml = – 1
6. n = 4 l = 1 ms = – 1 / 2 ml = 0
हल:
इलेक्ट्रॉन कक्षक के क्रम इस प्रकार हैं-
(1) 4d (2) 3d (3) 4p (4) 3d (5) 3p तथा (6) 4p
संयोजन (2) तथा (4) की ऊर्जाएँ समान होंगी। इसी प्रकार (3) तथा (6) की ऊर्जाएँ समान होंगी।
ऊर्जा का बढ़ता क्रम निम्न प्रकार है –
(5) < 2 (4) < (6) = (3) < (1)

प्रश्न 63.
ब्रोमीन परमाणुओं में 35 इलेक्ट्रॉन होते हैं। इसके 2p कक्षक में छः इलेक्ट्रॉन, 3p कक्षक में छः इलेक्ट्रॉन तथा 4p कक्षक में पाँच इलेक्ट्रॉन होते हैं। इनमें से कौन-सा इलेक्ट्रॉन न्यूनतम प्रभावी नाभिकीय आवेश अनुभव करता है।
हल:
जैसे-जैसे नाभिक से दूर जाते हैं नाभिकीय आवेश घटता जाएगा, अत: 4p कक्षक में उपस्थित इलेक्ट्रॉन सबसे कम नाभिकीय आवेश अनुभव करता है। 4p अन्तिम कक्षक है। Br (35) : 1s², 2s²
2p6, 3s² 3p6 3d10, 4s² 4p5

प्रश्न 64.
निम्नलिखित में से कौन-सा कक्षक उच्च प्रभावी नाभिकीय आवेश अनुभव करेगा?
(i) 2s और 3s (ii) 4d और 5f तथा (iii) 3d और 3p
उत्तर:
(i) 2s इलेक्ट्रॉन अधिक प्रभावी नाभिकीय आवेश अनुभव करेंगे।
(ii) 4d इलेक्ट्रॉन अधिक प्रभावी नाभिकीय आवेश अनुभव करेंगे।
(iii) 3p इलेक्ट्रॉन अधिक प्रभावी नाभिकीय आवेश अनुभव करेंगे।

प्रश्न 65.
Al तथा Si में 3p कक्षक में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं। कौन-सा इलेक्ट्रॉन नाभिक से अधिक प्रभावी नाभिकीय आवेश अनुभव करेगा?
हल:
Al (13) : 1s² 2s² 2p6 3s² 3p1
Si (14) : 1s² 2s² 2p6 3s² 3px1 3py1
सिलिकान (Si) में उपस्थित अयुग्मित इलेक्ट्रॉन अत्यधिक प्रभावी नाभिकीय आवेश अनुभव करेंगे। क्योंकि Si का परमाणु क्रमांक Al से अधिक है।

प्रश्न 66.
इनमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या बताइए-
(क) P (ख) Si (ग) Cr (घ) Fe (ङ) Kr
हल:
(क) P (15) : 1s² 2s² 2p6 3s² 3px1 3py1 3pz1
3- अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं

(ख) Si (14) : 1s² 2s² 2p6 3s² 3px1 3py1
2- अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं।

(ग) Cr (24) : 1s² 2s² 2p6 3s² 3p6 4s1 3d5
6- अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं।

(घ) Fe (26) : 1s² 2s² 2p6 3s² 3p6 4s² 3a6
4- अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं।

(ड.) Kr (36) : 1s² 2s² 2p6 3s² 3p6 4s² 3d10 4p6
कोई अयुग्मित इलेक्ट्रॉन नहीं है।

प्रश्न 67.
(क) n = 4 से सम्बन्धित कितने उपकोश हैं?
(ख) उस उपकोश में कितने इलेक्ट्रॉन उपस्थित होंगे जिसके लिए
ms = – \(\frac { 1 }{ 2 }\) एवं n = 4 है।
हल:
(क) n = 4
l = 0, 1, 2, 3, (0 से (n – 1) तक)
l = 0 4s
l = 1 4p
l = 2 4d
l = 3 4f
चार उपकोश 4s, 4p, 4d, 4f होंगे।

(ख) n = 4 ms = 1/2 अत : कुल 16 इलेक्ट्रॉन होंगे।

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 14 पर्यावरणीय रसायन

Haryana State Board HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 14 पर्यावरणीय रसायन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Chemistry Solutions Chapter 14 पर्यावरणीय रसायन

प्रश्न 1.
पर्यावरणीय रसायन शास्त्र को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरणीय रसायन शास्त्र, विज्ञान की वह शाखा है जिसमें हम पर्यावरण में होने वाले रासायनिक परिवर्तनों का अध्ययन करते हैं। इसमें हमारे चारों ओर का परिवेश सम्मिलित होता है; जैसे-वायु, जल, मिट्टी, वन, सूर्य का प्रकाश आदि। व्यापक रूप से, पर्यावरण के तीन प्रमुख घटक हैं-

  • अजैविक घटक (Abiotic or Non-living components) – स्थलमण्डल, जलमण्डल तथा वायुमण्डल अजैविक घटक कहलाते हैं।
  • जैविक घटक (Biotic or Living components)-पर्यावरण के जैविक घटक पादप तथा जन्तु हैं। इनमें मनुष्य भी सम्मिलित है।
  • ऊर्जा घटक (Energy components)-पर्यावरण के ऊर्जा घटक में सौर ऊर्जा, भू-रासायनिक ऊर्जा, ताप-रासायनिक ऊर्जा, जल-विद्युत ऊर्जा तथा नाभिकीय ऊर्जा सम्मिलित हैं। ये ऊर्जाएँ विभिन्न जीवों को जीवित रखने के लिए अति आवश्यक हैं।

प्रश्न 2.
क्षोभमण्डलीय प्रदूषण को लगभग 100 शब्दों में समझाइए।
उत्तर:
क्षोभमण्डल भूमि से ऊपरी वायु का क्षेत्र होता है, जो पृथ्वी को घेरे रहता है। वायु में उपस्थित अवांछनीय ठोस तथा गैस कणों के कारण क्षोभमण्डलीय प्रदूषण होता है। वायु का क्षेत्र होने के कारण इस क्षेत्र की मुख्य प्रदूषक वस्तुयें निम्न होती हैं-

(i) विघाक्त गैसें (Toxic Gases) – बढ़ते हुए औद्योगीकरण तथा बढ़ते हुए वाहनों के कारण क्षोभमण्डल में उपस्थित वायु में विषाक्त गैसें विसरित (Diffuse) हो जाती हैं। इन गैसों में वाहनों से उत्सर्जित CO, N2O, NO, SO2, SO3, H2S, ऐल्केन्स प्रदूषण का प्रमुख कारण होती हैं। इसके अतिरिक्त कीटनाशक एवं सधूम कारकों (Fumigents) का प्रभाव भी क्षोभमण्डल पर पड़ रहा है तथा वह दिन-प्रतिदिन अधिक प्रदूषित होता जा रहा है।

(ii) धूल कण (Sand Particles) – तीव्र गति से चलने वाले वाहन, वायु इत्यादि के साथ धूल, रेत आदि के कोलॉइडी कण क्षोभ मण्डल को प्रदूषित करते हैं। औद्योगिक अपशिष्ट के कण, राख, सीमेण्ट, सीसा इत्यादि के महीन कण भी क्षोभमण्डल को प्रदूषित करते हैं। अपशिष्ट प्रबन्धन द्वारा इसे नियन्त्रित किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
कार्बन डाईऑक्साइड अपेक्षा कार्बन मोनो ऑक्साइड अधिक खतरनाक क्यों है? समझाइए।
उत्तर:
CO2 की अपेक्षा CO ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि यह ऑक्सीजन की अपेक्षा अधिक प्रबलता से हीमोग्लोबिन के साथ संयुक्त होकर स्थायी संकुल बनाती है। इसके द्वारा कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन बनता है जो ऑक्सीहीमोग्लोबिन की अपेक्षा 300 गुना अधिक स्थायी है। यदि रक्त में कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन की मात्रा 3 – 4% तक पहुँच जाये तो रक्त में ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता कम हो जाती है।

ऑक्सीजन की कमी से सिरदर्द, नेत्र दृष्टि में क्षीणता, तंत्रकीय आवेश में न्यूनता, हृदयवाहिका में तन्त्र अवस्था हो जाती है। CO की 1300 ppm की सान्द्रता प्राण घातक होती है। जबकि CO2 केवल वायुमण्डल की ताप वृद्धि के लिए उत्तरदायम है. वह हीमोग्लोबिन के साथ क्रिया नहीं करती है।

प्रश्न 4.
ग्रीन हाउस प्रभाव के लिये कौनसी गैसें उत्तरदायी हैं?
उत्तर:
ग्रीन हाउस-प्रभाव के लिए कार्बन डाइऑक्साइड, मेथेन, ओजोन, क्लोरोफ्लुओरो कार्बन यौगिक तथा जलवाष्प उत्तरदायी होती हैं। ये गैसें वायुमण्डल में विकिरित सौर-ऊर्जा की कुछ मात्रा अवशोषित करके भूमण्डलीय ताप बढ़ा देती हैं।

प्रश्न 5.
अम्ल वर्षा मूर्तियों तथा स्मारकों को कैसे दुष्प्रभावित करती है ?
उत्तर:
अम्ल वर्षा में वायुमण्डल से पृथ्वी की सतह पर अम्ल निक्षेपित हो जाता है। अम्लीय प्रकृति के नाइट्रोजन एवं सल्फर के ऑक्साइड वायुमण्डल में ठोस कणों के साथ हवा में बहकर या तो ठोस रूप में अथवा जल में द्रव रूप में कुहासे से या हिम की भाँति निक्षेपित होते हैं। नाइट्रोजन तथा सल्फर के ऑक्साइड ऑक्सीकरण के पश्चात् जल के साथ अभिक्रिया करके अम्ल वर्षा में प्रमुख योगदान देते हैं, क्योंकि प्रदूषित वायु में सामान्यतया कणिकीय द्रव्य उपस्थित होते हैं जो ऑक्सीकरण को उत्प्रेरित करते हैं-

2SO2(g) + O2(g) + 2H2O(l) → 2H2SO4(aq)
4NO2(g) + O2(g) + 2H2O(l) → 4HNO3(aq)

अम्लवर्षा पत्थर एवं धातुओं से बनी संरचनाओं; जैसे- मूर्तियों तथा स्मारकों को नष्ट करती है। यह संगमरमर (CaCO3) से अग्रवत् अभिक्रिया करती है-

CaCO3 + H2SO4 → CaSO4 + H2O + CO2
संगमरमर
CaCO3 + 2HNO3 → Ca(NO3)2 + H2O + CO2

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 14 पर्यावरणीय रसायन

प्रश्न 6.
धूम्र कोहरा क्या है? सामान्य धूम्र कोहरा प्रकाश रासायनिक धूम्र कोहरा से कैसे भिन्न है?
उत्तर:
धूम-कोहरा-यह धूम एवं कोहरे से मिलकर बना है। यह दो प्रकार का होता है।

सामान्य धूम्न कोहरा: यह धूम्र, कोहरे एवं SO2 का मिश्रण है। रासायनिक रूप में ये एक अपचायक मिश्रण है। इसे अपचायक धूम्र कोहरा भी कहते है।

प्रकाश रासायनिक धूम्र कोहरा : यह उष्ण, शुष्क एवं साफ धूपमयी जलवायु में होता है। यह स्वचालित वाहनों तथा कारखानों से निकलने वाले नाइट्रोजन के ऑक्साइडों तथा हाइड्रोकार्बनों पर सूर्य के प्रकाश की क्रिया के कारण उत्पन्न होता आक्यीकारक है इ्रांक द्यमें ऑक्षीकारा से चै की जत्ला शम्ला त्रो कहते है|

प्रश्न 7.
प्रकाश रासायनिक धूम्र कोहरे के निर्माण के दौराम होने वाली अभिक्रिया लिखिए।
उत्तर:
प्रकाश रासायनिक धूम्र कोहरे के निर्माण के दौरांन होने वाली अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं-
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 14 Img 1

प्रश्न 8.
प्रकाश रासायनिक धूम्र कोहरे के दुष्परिणाम क्या हैं? इन्हें कैसे नियन्त्रित किया जा सकता है ?
उत्तर:
प्रकाश रासायनिक धूम्र का निर्माण सामान्यतः विषैली गैसों के कारण होता है। इनका सामान्य घटक हानिकारक गैसों का उच्च आनुपातिक मिश्रण होता है, जिसमें NO, NO2, O3, CH2 = CH-CHO, HCHO, ऐसीटिल नाइट्रेट इत्यादि होते हैं।
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 14 Img 2
जब मनुष्य इन्हें वायु के साथ ग्रहण करता है तो यह मानव स्वास्थ्य पर गम्भीर प्रभाव उत्पन्न करते हैं। इन गैसों के कारण खाँसी, गले की तकलीफ, फेफड़ों की तकलीफ, सिरदर्द, आधासीसी, उच्च रक्तचाप, मिर्गी एवं दमा जैसे रोग होना आम बात है। प्रकाश रासायनिक कुहरे के परिणामस्वरूप रबर में दरार उत्पन्न हो जाती है। यह पौधों की वृद्धि पर भी कुप्रभाव डालता है तथा पौधों की वृद्धि को रोकता है।

मार्बल पत्थर पर प्रभाव, धातुओं (धातुओं के तारों पर) तथा मूर्तियों एवं भवनों के रंगों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है तथा उनके रंग धीरे-धीरे हल्के एवं मंद हो जाते हैं। सारांश में यह कहा जा सकता है कि प्रकाश रासायनिक कोहरे का व सजीव एवं निर्जीव तंत्रों पर क्षयकारी होता है।

नियन्त्रण (Control) – प्रकाश रासायनिक धूम्र का प्राथमिक कारण हानिकारक गैसें हैं। यदि वायुमण्डल में औद्योगिक क्षेत्रों से अथवा वाहनों से निकलने वाले धुएँ पर नियन्त्रण किया जाए तो उपरोक्त समस्याओं से बचा जा सकता है। महानगरों में यूरो मानक Uro-4 का उत्सर्जन लागू किया गया है, जिससे कुछ हद तक NO, SO2 इत्यादि की बढ़ती मात्रा पर नियंत्रण किया गया है।

प्रश्न 9.
क्षोभमण्डल पर ओजोन परत के क्षय में होने वाली अभिक्रिया कौन-सी है।
उत्तर:
क्षोभमण्डल पर ओजोन परत के क्षय में होने वाली अभिक्रियाएँ-कार्बन यौगिक, हैलोजेन, क्लोरोफॉर्म, NO आदि के बढ़ते हुए उपयोग के कारण वायुमण्डल में इन सभो पदार्थों की अधिकता होती जा रही है। यही प्रदूषक ओजोन परत के अपक्षय का मुख्य कारण हैं। वायुमण्डल में लम्बे समय तक पाए जाने के कारण, ये यौगिक सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों द्वारा विघटित हो जाते हैं। विघटन से बनने वाले उत्पाद ओजोन परत को नष्ट करते हैं।

ओजोन परत के क्षय के लिए क्लोरो-फ्लुओरो कार्बन (CFCs) गैसें सर्वाधिक उत्तरदायी हैं। क्लोरो-फ्लुओरो कार्बन वस्तुतः रेफ्रीजरेटरों, वातानुकूल संयन्त्रों, फोम निर्माण, सौन्दर्य प्रसाधन स्प्रे आदि में प्रयोग किया जाता है।
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 14 Img 3
अत: उपर्युक्त अभिक्रियाओं से स्पष्ट है कि क्लोरो-फ्लुओरो कार्बन द्वारा उत्पादित एक क्लोरीन मूलक ओजोन के कई अणुओं को नष्ट कर देता है।
सुपरसोनिक विमानों द्वारा निकली नाइट्रिक ऑक्साइड ओजोन परत में पहुँचकर उसे नष्ट करती है।
NO + O3 → NO2 + O2

प्रश्न 10.
ओजोन छिद्र से आप क्या समझते हैं? इसके परिणाम क्या हैं?
उत्तर:
ओजोन छिद्र (Ozone hole)-हाइड्रोकार्बन्स तथा फ्रेऑन्स अथवा गैसीय प्लास्टिक अवशिष्टों के वायुमण्डल में ओजोन से क्रिया करके उसकी परत को पतला कर देना ओजोन छिद्र बनना कहलाता है। ओजोन छिद्र बनने के कारण पृथ्वी के ऊपर ओजोन की रक्षक परत सूर्य से आने वाले घातक पराबैंगनी विकिरण को पूर्ण रूप से नहीं रोक पा रही है। इस कारण पृथ्वी के तापमान में निरन्तर वृद्धि हो रही है।

ओजोन परत अपक्षय का जीवन पर प्रभाव-ओजोन परत पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्राणियों के लिए एक चादर का कार्य करती है। सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी विकिरण यदि सीधे पृथ्वी तक पहुँचती हैं, तो त्वचा केंसर जैसा भयानक रोग उत्पन्न हो जायेगा। इसके साथ-साथ आनुवांशिक गुणों में भी परिवर्तन आ जाएगा। पौधों में प्रकार संश्लेषण की दर कम हो जायेगी। पराबेंगनी विकिणों के कारण मनुष्य में से हिस्टेमिन नामक रसायन निकलता है। जिसके कारण शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।

प्रश्न 11.
जल प्रदूषण के मुख्य कारण क्या हैं? समझाइये। उत्तर-जल में प्रदूषण उत्पन्न करने वाले मुख्य प्रदूषक तथा उनके स्रोत निम्नलिखित माने गये हैं
उत्तर:

प्रदूषण स्रोत/कारण
(i) सूक्ष्म जीव घरेलू सीवेज से
(ii) कार्बनिक अपशिष्ट घरेलू सीवेज, पशु अपशिष्ट, सड़े हुए मृत पशु तथा पौधे, खाद्य संसाधन, कारखानों से विसर्जन से
(iii) पादप पोषक रासायनिक उर्वरक से
(iv) विषाक्त भारी वस्तु उद्योग तथा रसायन कारखानों से कीटों, कवक तथा खरपतवार को नष्ट करने के लिये प्रयुक्त रसायन से
(v) पीड़कनाशी यूरेनियम युक्त खनिजों के खनन से
(vi) रेडियोधर्मी पदार्थ स्रोत/कारण

यदपि वर्गौकृत सभी प्रदूषण्क जल के लिए घातक हैं। परन्तु इनमें सबसे अधिक घातक प्रदूषक रेड्वियोधर्मीं पदार्थ है, जो बिकसित देशों में गम्भीर समस्या उत्पन्न करते हैं। भारत जैसे विकसित देश में रासायनिक प्रदूषक, जल पर तीव्र प्रभाव डाल रहे हैं। नदियों के किनारे स्थित चमड़ा उद्योग, काँच उद्योग, वस्त्र उच्योग, कागज उद्योग, प्लास्टिक उद्योग, रंजक उदोग, उर्वरक उधोग, पेय (Beverage) उद्योग इत्यादि जल प्रदूषण के लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी हैं। जल का सबसे प्रमुख गुण यह है कि वह सार्वभौमिक विलायक है। अतः यह आसानी से प्रदूषित हो जाता है।

प्रश्न 12.
क्या आपने अपने क्षेत्र में जल प्रदूषण देखा है। इसे नियन्त्रित करने के कौन-से उपाय हैं?
उत्तर:
हाँ। हमारे क्षेत्र में जल प्रदूषिता हो रहा है। जल के प्रदूषित होने की जाँच हम स्वयं कर सकते हैं। इसके लिए हम स्थानीय झोतों का निरीक्षण कर सकते हैं। जैसे कि नदी, तालाब, कुणँ, झील आदि का पानी अप्रदूषित या आंशिक प्रद्धित या सामान्य प्रद्षित या अत्यधिक प्रद्षित हैं, इसकी जानकारी हम pH के द्वारा ज्ञात कर सकते है।

जल प्रदूषण नियंत्रण हेतु उपाय-जल प्रदूषण को नियँत्रित करने के लिए अग्रलिखित उपाय किए जाने चाहिए-

  • उछोगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों को बिना उपचार के नदी में नही बहाना चाहिए।
  • घरेलू बहिंसाव एवं सीवेज में बहने वाले अपशिष्ट पदार्थाँ को उपचारित करने के बाद ही जल में ब्रेड़ना चाहिए।
  • औधोगिक क्षेत्र, आवादी क्षेत्रों से दूर होने चाहिए।
  • साजुन और अपमार्जकीं (डिटरजेंट) का प्रयोग कम से कम करना चाहिए।
  • पीने के पानी की पाइ्दप लाइन, सीखेज लाइन से काफी दूर होनी चाहिए।
  • मरे हुए जानवरों के शरीर को तालाब या नदी में नहीं डालना चाहिए।
  • जलाशय में कछुआ, मछली, घोंघा आदि की संख्या में वृद्धि होनी चाहिए जिससे कि जलाशय को साफ रखा जा सके।
  • उर्वरकों एवं रसायनों का प्रयोग कृषि में कम से कम किया जाना चाहिए।
  • जलाशय में पशुओं को नहलाना नहीं चाहिए।
  • जल में विलेय ऑक्सीजन की मात्रा को बनाए रखने के लिए वनस्पति को जल में बढ़ने से रोकना चाहिए।
  • नए उद्योग लगाने की दशा में, स्थापना के समय ही जल उपचार संयंत्र अवश्य लगाना चाहिए।
  • समुद्री जल को प्रदूषण से बचाने के लिए उसमें खनिज तेलों को फैलने से रोकना चाहिए।
  • जल प्रदूषण के नियंत्रण के सम्बन्ध में सरकार द्वारा मानक मापदण्ड निर्धारित करके उनको लागू करना चाहिए।
  • लोगों को जल प्रदूषण रोकने के लिए जन चेतना जाग्रत करना चाहिए।
    उपर्युक्त सभी जल-प्रदूषण नियंत्रण के कारगर उपाय हैं।

प्रश्न 13.
आप अपने ‘जैव रासायनिक ऑक्सीजन माँग’ (BOD) से क्या समझते हैं?
उत्तर:
जल के एक नमूने के निश्चित आयतन में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ को विखण्डित करने के लिए जीवाणु द्वारा आवश्यक जॉक्सीजन को ‘जैवरासायनिक ऑक्सीजन माँग (BOD)’ कहा जाता है। अतः जल में BOD की मात्रा कार्बनिक पदार्थ को जैवीय रूप में विखण्डित करने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा होती है। स्वच्छ जल की BOD का मान 5 ppm से कम होता है, जबकि अत्यधिक प्रदूषित जल में यह 17 ppm या इससे अधिक होता है।

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 14 पर्यावरणीय रसायन

प्रश्न 14.
क्या आपने आस-पास के क्षेत्र में भूमि प्रदूषण देखा है? आप भूमि प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिये क्या प्रयास करेंगे ?
उत्तर:
हाँ, हमने अपने आसपास के क्षेत्र में भूमि-प्रदूषण देखा है। भूमि प्रदूषण की रोकथाम के उपाय-

  1. औद्योगिक संस्थान के कचरे का उपचार किये बिना निष्कासित किये जाने पर दण्ड का प्रावधान होना चाहिए एवं घरेलू कचरे का प्रबन्धन भी भली प्रकार होना चाहिये।
  2. कृषि में स्थिर प्रकृति के रसायनों के उपयोग पर रोक होनी चाहिए। इसके स्थान पर जैव उर्वरक व जैविक कीटनाशी के प्रयोग पर बदल देना चाहिए।
  3. अनियन्त्रित उत्खनन पर पाबन्दी लगनी चाहिए।
  4. भूमि अपरदन (soil erosion) रोकने के लिए सधन वृक्षारोपण होना चाहिए।
  5. अपमार्जकों का प्रयोग कम करना चाहिए तथा प्रदूषित जल सिंचाई के लिये उपयोग नहीं किया जाना चाहिये।
  6. भूमिगत परमाणु परीक्षणों पर रोक लगानी चाहिये।
  7. अधिक से अधिक संख्या में वृक्षारोपण करना चाहिये।
  8. जनता को मृदा प्रदूषण से होने वाले नुकसान के बारे में अंखबार, टेलीविजन, मीडिया, नाटकों द्वारा जागरूक करना चाहिये।

प्रश्न 15.
पीडकनाशी तथा शाकनाशी से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित समझाइये ।
उत्तर:
पीडकनाशी-द्वितीय विश्वयुद्ध से पूर्व प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले अनेक रसायनों जैसे निकोटीन का प्रयोग अनेक फसलों के लिए पीडक-नियन्त्रण के रूप में किया जाता था। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय मलेरिया तथा अन्य कीटजनित रोगों के नियन्त्रण में D.D.T बहुत उपयोगी पाया गया। युद्ध के पश्चात् D.D.T का प्रयोग कृषि में कीट, सेर्डेंट, खर-पतवार तथा फसलों के अनेक रोगों के नियन्त्रण में किया जाने लगा परन्तु बाद में यह प्रतिबन्धित किया गया।
मूल रूप से पीडकनाशी विषैले रसायन हैं जो पारिस्थितिकी प्रतिघाती भी हैं। इनका प्रयोग फसलों को हानिकारक कीटों तथा रोगों से बचाने हेतु करते हैं।

उदाहरणार्थ डाइऐल्ड्रीन, बी.एच.सी. ऐल्ड़ीन आदि। ये जल में अविलेय तथा अजैवनिम्नीकरणीय होते हैं। ये उच्च प्रभाव वाले जीव-विष भोजन शृंखला द्वारा निम्नपोषी स्तर से उच्चपोषी स्तर तक स्थानान्तरित होते हैं। समय के साथ-साथ उच्व प्राणियों में जीव-विषों की सान्द्रता बढ़ जाती है। यह अधिक सान्द्रता उपापचयी तथा शरीर क्रियात्मक अव्यवस्था का कारण बन जाती है। उच्च स्थायित्व वाले क्लोरीनीकृत कार्बनिक जीव-विष के प्रत्युत्तर में निम्न स्थायित्व अथवा अधिक जैव निम्नीकरणीय उत्पादों जैसेआर्गेनों फोंस्फेट्स तथा काबोनेट्स को प्रचलन में लाया गया परन्तु ये और अधिक हानिकारक होते हैं।

शाकनाशी-वे रसायन जो खरपतवार का नाश करने के लिए प्रयोग किये जाते हैं। उन्हें शाकनाशी कहते हैं। उदाहरण-सोडियम क्लोरेट, सोडियम आर्सिनेट, पोटैशियम आर्सिनेट आदि। ये स्तनधारियों के लिए विषैले होते हैं परन्तु कार्बक्लोराइड के समान स्थायी नहीं होते तथा कुछ समय पश्चात् अपघटित हो जाते हैं।

प्रश्न 16.
हरित रसायन से आप क्या समझते हैं? यह वातावरणीय प्रदूषण को रोकने में किस प्रकार सहायक है ?
उत्तर:
हरित रसायन (Green Chemistry)-विषैले रसायनों की मात्रा वायुमण्डल में कम से कम करने या फैलने से रोकने के लिए एक सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है, जिसे हरित रसायन कहते हैं। हरित रसायन के द्वारा अभिक्रियाओं का प्रारूप तैयार करके उस अभिक्रिया के अभिकर्मकों एवं उत्पादों के गुणों व प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। रासायनिक अभिक्रिया में उन पदार्थों तथा विलायकों का प्रयोग किया जाना चाहिए जो मनुष्य एवं पर्यावरण के लिए हानिकारक न हों।

मानव के लिए उपयोग – हरित रसायन मानव के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है। कृषि रसायनों के उत्पादन के लिए अब विषैले पदार्थों जैसे-सायनाइड, फॉर्मेल्डिहाइड आदि की आवश्यकता नहीं होती है। वायु प्रदूषण रोकने के लिए वाहनों में पेट्रोल, डीजल के स्थान पर हौलियम आदि का प्रयोग किए जाने पर शोधकार्य किए जा रहे हैं।

प्रदूषण घटाने में योगदान-दरित रसायन एक नया क्षेत्र अबश्य है, परन्तु इसके द्वारा प्रदूषण घटाने में कुछ विशेष उपलब्धियाँ हासिल की गई है। हरित रसायन के द्वारा किसी भी रासायनिक अभिक्रिया का प्रारूप तैयार करके उसमें प्रयुक्त रसायन एवं बनने वाले उत्पाद के गुणों एवं प्रभावों का अध्ययन किया जाता है।

रासायनिक अभिक्रियाओं को सूय्य के पराबैगनी प्रकाश, ध्वनि तरंगों एवं सुक्ष्म तरंगों की उपस्थिति में कराने पर सकारात्मक परिणाम सामने आए है। आजकल प्रतिजैविकों के निमांण में एन्जाइम का उपयोग उत्प्रेरक की तरह किया जा रहा है। हरित रसायन की मदद से कुछ ऐसे कार्बनिक विलायक बनाए गए हैं जो कि मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नह़ी हैं और न ही पर्यावरण में प्रदूषण उत्पन्न करते हैं।

हरित रसायन के ही द्वारा SO2 को सल्फर में अपचयित कर वायु प्रदूषण कम करने की विधि तैयार की गई है।
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SO2 गैस के अवशोषण के लिए चूने के पत्थर का उपयोग उद्योगों में किया जा रहा है।
2CaCO3 + 2SO2 + O2 → 2CaSO4 + 2CO2

हरित रसायन के द्वारा जिओलाइट पर आधारित अपमार्जंकों का उपयोग किया जाता है जो कि प्रदूषण को कम करता है। आजकल फोम शीटों के पैकिंग के लिए क्लोरो-फ्लूओरो कार्बन के स्थान पर CO2 का उपयोग किया जा रहा है। मोटर वाहनों के द्वारा होने वाले वायु प्रदूषण को रोकने के लिए पेट्रोल, डीजल के स्थान पर हीलियम आदि के प्रयोग के लिए शोधकार्य किए जा रहे हैं।

कृषि रसायनों के निर्माण में ऐसी विधियाँ खोजी जा रही हैं, जिनमें विधले पदार्थ सायनाइड, फॉर्मेल्डिहाइड आदि की आवश्यकता नहीं पद्ती है। अतः हरित रसायन अभी सिर्फ एक शुरुआत है। इसके द्वारा अनेक शोध कार्य किए जा रहे हैं। कुछ ऐंसी तकनीकों का विकास किया जा रहा है जो प्रदूषण रोकने के लिए महत्वपूर्ण भुमिका अदा करेंगी।

प्रश्न 17.
क्या होता, जब भू-वायुमण्डल में ग्रीनहाउस गैसें नहीं होतीं ? विवेचना कीजिए।
उत्तर:
यदि भू-वायुमण्डल में ग्रीनहाउस गैसें न होतीं तो पृथ्वी का ताप घट जाता। पौधे प्रकाश-संश्लेषण नहीं कर पाते (यदि CO2 उपस्थिति नहीं होती)। पौधों की अनुपस्थिति में मानव-जीवन भी नहीं होता।

प्रश्न 18.
एक झील्ल में अचानक असंख्य मृत मछलियाँ तैरती हुई मिलीं। इसमें कोई विषाक्त पदार्थ नहीं था, परन्तु बहुतायत में पादप प्लवक पाए गए। मछलियों के मरने का कारण बताइए।
उत्तर:
जल में कार्बनिक द्रव्यों; जैसे-पत्तियों, घास, कूड़ा-करकट आदि की उपस्थिति के कारण पादप प्लवक विकसित हो जाते हैं। ये जल में घुलित ऑक्सीजन की अत्यधिक मात्रा का उपभोग कर लेते हैं जो जलीय जीवों; जैसे-मछली के जीवन हेतु अत्यन्त आवश्यक होती है। यदि जल में घुलित ऑक्सीजन की सान्द्रता 6 ppm से नीचे हो जाए तो मछलियों का विकास रूक जाता है।

जल में ऑक्सीजन या तो वातावरण या कई जलीय पौर्धों द्वारा दिन में प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रम से पहुँचती है। रात में प्रकाश-संश्लेषण रूक जाता है, परन्तु पौधे श्वसन करते हैं जिससे जल में घुलित ऑक्सीजन कम हो जाती है। घुलित ऑक्सीजन सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा कार्बनिक यौगिकों के ऑक्सीकरण में भी उपयोग में ली जाती है। इस प्रकार पादप प्लवकों तथा अन्य कारणों से जल में आँक्सीजन की कमी हो जाने के कारण मछलियाँ मृत पाई गई।

प्रश्न 19.
घरेलू अपशिष्ट किस प्रकार खाद के रूप में काम आ सकते हैं ?
उत्तर:
घरेलू अपशिष्ट में जैवनिम्नीकरण तथा अजैवनिम्नीकरण, दोनों घटकों का समावेश होता है। अपशिष्ट में से दोनों घटकों को छँटकर पृथक् कर लेते हैं। जैव अनिम्नीकरण पदार्थों; जैसे-प्लास्टिक, काँच, धातु छीलन आदि को पुनर्चक्रण के लिए भेज दिया जाता है। जैवुनिम्निकरण अपशिष्टों को खुले मैदानों में मिट्टी में दबा दिया जाता है। जैवनिम्नीकरण अपशिष्ट में कार्बनिक द्रव्य होते हैं जो कम्पोस्ट खाद में परिवर्तित हो जाते हैं।

प्रश्न 20.
आपने अपने कृषि-क्षेत्र अथवा उद्यान में कम्पोस्ट खाद के लिए गड्डे बना रखे हैं। उत्तम कम्पोस्ट बनाने के लिए इस प्रक्रिया की व्याख्या दुर्गाध, मक्खियों तथा अपशिष्टों के चक्रीकरण के सन्दर्भ में कीजिए।
उत्तर:
यदि अपशिष्ट को कम्पोस्ट में परिवर्तित न किया जाए तो वह नालियों में चला जाता है। इसमें से कुछ मवेशियों द्वारा खा लिया जाता है। कम्पोस्ट खाद बनाने की प्रक्रिया दुर्गन्धपूर्ण होती है। इस पर मक्खियाँ उड़ती रहती हैं, इसे दुर्गन्ध तथा मक्खियों से बचाने के लिए मिट्टी से ढक दिया जाता है। अपशिष्ट के कम्पोस्ट खाद में परिवर्तन के पश्चात् इस पर डाली गई मिट्टी को हटा दिया जाता है तथा कम्पोस्ट खाद प्राप्त कर ली जाती है। यह खाद पौधों के लिए अत्यन्त उपयोगी होती है।

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 हाइड्रोकार्बन

Haryana State Board HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 हाइड्रोकार्बन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 हाइड्रोकार्बन

प्रश्न 1.
मेथेन के क्लोरीनीकरण के दौरान ऐथेन कैसे बनती है ? आप इसे कैसे समझाएँगे।
उत्तर:
जब मेथेन का क्लोरीनीकरण होता है तो मुक्त मूलक बनता है यह मुक्त मूलक आपस में मिलकर ऐथेन बनाता है एवं प्रृंखला समापन पद का कार्य करता है।
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित यौगिकों के I.U.P.A.C. नाम लिखिए-
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 2
उत्तर:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 3

प्रश्न 3.
निम्नलिखित यौगिकों, जिनमें द्विआबन्ध तथा त्रिआबन्ध की संख्या दशाई गई है, के सभी सम्भावित स्थिति समावयवियों के संरचना सूत्र एवं I.U.P.A.C. नाम दीजिए-
(क) C4H8 (एक द्विआबन्ध)
(ख) C5H8 (एक त्रिआबन्ध)
उत्तर:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 4

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 हाइड्रोकार्बन

प्रश्न 4.
निम्नलिखित यौगिकों के ओजोनी- अपघटन के पश्चात् बनने वाले उत्पादों के नाम लिखिए-
(i) पेन्ट-2-ईन
(ii) 3, 4-डाईमेथिल-हेप्ट-3-ईन
(iii) 2-एथिल ब्यूट-1-ईन
(iv) 1-फेनिल ब्यूट-1-ईन
उत्तर:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 5

प्रश्न 5.
एक ऐल्कीन ‘A’ के ओजोनी अपघटन से पेन्टेन-3ओन तथा ऐथेनेल का मिश्रण प्राप्त होता है। ‘A’ का I.U.P.A.C. नाम तथा संरचना दीजिए।
उत्तर:
ऐल्कीन ‘A’ 3 -ऐथिल पेन्ट-2-ईन है। इसकी संरचना तथा होने वाली ओजोनी अपघटन अभिक्रिया निम्नलिखित है-
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 6

प्रश्न 6.
एक ऐल्कीन A में तीन C-C, आठ C-H सिग्मा-आबन्ध तथा एक C-C पाई आबन्ध हैं। A ओजोनी अपघटन से दो अुण एल्डिहाइड, जिनका मोलर द्रव्यमान 44 है, देता है। A का आई. यू. पी. ए. सी. नाम लिखिए।
उत्तर:
एल्डिहाइड, जिसका मोलर द्रव्यमान 44 है एवं जो ओजोनी अपघटन से प्राप्त होता है, CH3CHO (ऐथेनेल) है। चूँकि एक ही एल्डिहाइड ऐथेनेल के दो मोल, ऐल्कीन ‘A ‘ से बनते है, अतः ऐल्कीन का अणुसूत्र है-
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 7

प्रश्न 7.
एक ऐल्कीन, जिसके ओजोनी अपघटन से प्रोपेनेल तथा पेन्टेन-3-ओन प्राप्त होते हैं, का संरचनात्मक सूत्र क्या है?
उत्तर:
ऐल्कीन का नाम 3 -ऐथिल हेक्स-3-ईन है। इसका संरचनात्मक सूत्र तथा ओजोनी अपघटन अभिक्रिया निम्नलिखित है-
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 8

प्रश्न 8.
निम्नलिखित हाइड्रोकार्बनों के दहन की रासायनिक अभिक्रिया लिखिए-
(1) ब्यूटेन,
(2) पेन्टीन,
(3) हेक्साइन,
(4) टॉलूईन।
उत्तर:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 9

प्रश्न 9.
हेक्स-2-ईन की समपक्ष (सिस) तथा विपक्ष (ट्रांस) संरचनाएँ बनाइये। इनमें से कौन-से समावयव का क्वथनांक उच्च होता है और क्यों ?
उत्तर:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 10
यहाँ समपक्ष का क्वथनांक उच्च होता है, जोकि उच्च द्विध तुव-आघूर्ण के कारण होता है। द्विध्रुव आघूर्ण अधिक होने के कारण तुवणता अधिक होती है जिससे अधिक बान्डर-वाल्स आकर्षण बल उत्पन्न हो जाता है।

प्रश्न 10.
बेन्जीन में तीन द्वि-आबन्ध होते हैं, फिर भी यह अत्यधिक स्थायी है, क्यों ?
उत्तर:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 11
बेन्जीन में अनुनाद पाया जाता है एवं यह विभिन्न अनुनादी संरचना को प्रदर्शित करता है। केकुले ने उपरोक्त दिखाई गयी संरचनाओं को दिया। चूँक अनुनाद के कारण बेन्जीन में सभी बन्धों की लम्बाई एकसमान होती है और वह द्वि-आबन्ध एवं एकल आबन्ध के मध्य की होती है। जिसके कारण इन संरचनाओं का स्थायित्व बढ़ जाता है और यह अधिक स्थायी हो जाता है।

प्रश्न 11.
किसी निकाय द्वारा ऐरोमैटिकता प्रदर्शित करने के लिए आवश्यक शर्तें क्या हैं?
उत्तर:
ऐरोमैटिकता प्रदर्शित करने के लिए निम्न गुण होने आवश्यक हैं-

  1. वे चक्रीय एवं समतलीय होने चाहिए।
  2. इनमें एक या इससे अधिक द्विबन्ध उपस्थित होने चाहिए। द्विबन्ध उपस्थित होने के बावजूद ये योगात्मक अभिक्रियाओं की तुलना में प्रतिस्थापना
    अभिक्रियाओं को प्राथमिकता देते हैं।
  3. ये समतलीय होने चाहिए।
  4. वलय में (4n + 2)π इलेक्ट्रॉन होने चाहिए। जहाँ n एक पूर्णांक है।
  5. यौगिक में अनुनाद प्रदर्शित करने की क्षमता होनी चाहिए।

प्रश्न 12.
इनमें से कौन से निकाय ऐरोमैटिक नहीं हैं? कारण स्पष्ट कीजिए।
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 12
उत्तर:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 13
इसमें (4n + 2)π इलेक्ट्रॉन = 6π इलेक्ट्रॉन
परन्तु ये इलेक्ट्रॉन विस्थानीकृत नहीं होते हैं अतः यह ऐरोमैटिक नहीं हैं।
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 14
इसमें (4n + 2)π इलेक्ट्रॉन = 6 होने चाहिए। परन्तु इसमें केवल 4π इलेक्ट्रॉन हैं अतः यह ऐरोमैटिक नहीं है।
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 15
इसमें (4n + 2)π इलेक्ट्रॉन = 6 होने चाहिए, परन्तु इसमें 8π इलेक्ट्रॉन है। अतः यह ऐरोमैटिक नहीं है।

प्रश्न 13.
बेन्जीन को निम्न में परिवर्तित कैसे करोगे-
(1) p – नाइट्रोबेन्जीन
(2) m – नाइट्रोक्लोरो बेन्जीन
(3) p – नाइट्रोटॉलूईन
(4) ऐसीटोफिनोन
उत्तर:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 16

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 हाइड्रोकार्बन

प्रश्न 14.
ऐल्केन CH3 – CH2 – C(CH3)2 – CH2 – CH(CH3)2 में 1°, 2° तथा 3° कार्बन परमाणुओं की पहचान कीजिए तथा प्रत्येक कार्बन से आबन्धित कुल हाइड्रोजन परमाणुओं की संख्या भी बताइए।
उत्तर:
अगर कार्बन परमाणु तीन हाइड्रोजन से जुड़ा हो तो उसे 1° कार्बन परमाणु कहते हैं।
अगर कार्बन परमाणु दो हाइड्रोजन से जुड़ा हो तो उसे 2° कार्बन परमाणु कहते हैं।
अगर कार्बन परमाणु एक हाइड्रोजन से जुड़ा हो तो उसे 3° कार्बन परमाणु कहते हैं।
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 17

प्रश्न 15.
क्वथनांक पर ऐल्केन की श्वृंखला के शाखन का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
आण्विक द्रव्यमान बढ़ने के साथ-साथ ऐल्केनों के क्वथनांक बढ़ जाते हैं क्योंकि वान्डरवाल का आकर्षण बल बढ़ जाता है। जैसे-जैसे ऐल्केन को शृंखला में वृद्धि होती है इनका क्वथनांक कम हो जाता है क्योंकि शृंखलाओं की संख्या बढ़ने से अणु की आकृति लगभग गोल हो जाती है। इन गोलाकार अणुओं में कम आपसी सम्पर्क स्थल तथा दुर्बल आन्तराण्विक आकर्षण बल होता है।
उदाहरण-
क्वथनांक CH3CH2CH2CH2CH3>
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 18

प्रश्न 16.
प्रोपीन पर HBr के संकलन से 2 -ब्रोमोप्रोपेन बनता है, जबकि बेंजॉयल परॉक्साइड की उपस्थिति में यह अभिक्रिया 1-ब्रोमोप्रोपेन देती है। क्रियाविधि की सहायता से इसका कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रथम स्थिति-
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 19
इस स्थिति में क्रियाविधि निम्नानुसार दर्शाई जा सकती है-
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 20

प्रश्न 17.
1, 2-डाइमेथिलबेन्जीन (o-जाइलीन) के ओजोनी अपघटन को फलस्वरूप निर्मित उत्पादों को लिखिए। यह परिणाम बेन्जीन को केकुले संरचना की पुष्टि किस प्रकार करता है?
उत्तर:
O-जाइलीन का ओजोनीकरण निम्न प्रकार होता है-
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 21
उपरोक्त लिखित सभी उत्पाद वलय में एकान्तर क्रम में उपस्थित द्विआबन्धी की उपस्थिति के कारण हैं। चूँकि दोनों दी गई o-जाइलीन की सरचना ककुले को अनुनाद संरचना है जिससे भिन्न उत्पाद बन रहे हैं। अतः ओजोनीकरण से हम केकुले की संरचना की पुष्टि कर सकते हैं।

प्रश्न 18.
बेन्जीन, n-हैक्सेन तथा ऐथाइन को घटते हुए अम्लीय व्यवहार के क्रम में व्यवस्थित कीजिए एवं इस व्यवहार का कारण भी बताइए।
उत्तर:
अम्लीय व्यवहार – ऐथाइन > बेन्जीन n हेक्सेन
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 22
एथाइन में कार्बन sp संकरित है, जो कि सर्वाधिक s-प्रकृति होने के कारण अत्यधिक विद्युत ऋणी है और यह इलेक्ट्रॉनों के साझे युग्म को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है, जिसके कारण सरलता से H+ को मुक्त भी कर सकता है। अतः सर्वाधिक अम्लीय प्रकृति का होता है। बेन्जीन में कार्बन sp2 संकरित है या कम विद्युत ऋणी है, अतः कम सरलता से H+ मुक्त करेगा, जबकि n-हेक्सेन में कार्बन sp3 संकरित होने के कारण न्यूनतम विद्युत ऋणी है और सरलता से H+ को मुक्त नहीं करेगा। अतः n-हेक्सेन सबसे कम अम्लीय व्यवहार प्रदर्शित करता है।

प्रश्न 19.
बेन्जीन इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ सरलतापूर्वक क्यों प्रदशित करती हैं, जबकि उसमें नाभिकरनेहीं प्रतिस्थापन कठिन होता है।
उत्तर:
बेन्जीन में वलय के तल के ऊपर तथा नीचे 6π इलेक्ट्रॉनों का इलेक्ट्रॉन अभ्र (electron cloud) होता है। यह इलेक्ट्रॉनों का धनी स्रोत होता है। जब यह इलेक्ट्रॉनरागियों को अपनी ओर आकर्षित करता है, परिणामस्वरूप बेंजीन आसानी से इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ देती है, जबकि नाभिकरागी प्रतिस्थापन कठिनाई से होता है।

प्रश्न 20.
आप निम्नलिखित यौगिकों को बेन्जीन में कैसे परिवर्तित करेंगे?
(1) ऐथाइन
(2) सेथीन
(3) हेक्सेन।
उत्तर:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 23

प्रश्न 21.
उन सभी ऐल्कीनों की संरचनाएँ लिखिए, जो हाइड्रोजनीकरण करने पर 2-मेथिल ब्यूटेन देती हैं।
उत्तर:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 24

प्रश्न 22.
निम्नलिखित यौगिकों को उनकी इलेक्ट्रॉनस्नेही (E+) के प्रति घटती आपेक्षित क्रियाशीलता के क्रम में व्यवस्थित कीजिए-

(क) क्लोरोबेन्जीन , 2, 4-डाइनाइट्रोक्लोरोबेन्जीन , p-नाइट्रोक्लोरोबेन्जीन
(ख) टॉलूईन, p-H3C-C6H4-NO2, p-O2N-C6H4-NO2
उत्तर:
(क) इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन के प्रति घटती क्रियाशीलता का सही क्रम निम्नलिखित है-
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 25
व्याख्या- NO2 समूह एक आक्रय समूह है एव यह बन्जान वलय पर इलेक्ट्रॉन स्नेही प्रतिस्थापन को अक्रिय कर देता है। अतः NO2-समूह की अधिक संख्या में उपस्थिति इलेक्ट्रॉन स्नेही प्रतिस्थापन को कम कर देती है।

(ख) घटती क्रियाशीलता का सही क्रम निम्नलिखित है-
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 26
व्याख्या-मेथिल समूह एक सक्रिय समूह है जबकि NO2 – समूह एक अक्रिय समूह है अतः उपरोक्त क्रम सही है।

प्रश्न 23.
बेन्जीन, m-डाईनाइट्रोबेन्जीन तथा टॉलूईन में से किसका नाइट्रीकरण आसानी से होता है और क्यों ?
उत्तर:
टॉलूईन का नाइट्रीकरण आसानी से होता है क्योंकि मेथिल समूह एक सक्रिय या इलेक्ट्रॉन विमुक्तन समूह होता है एवं यह बेन्जीन वलय पर इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ा देता है।

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 हाइड्रोकार्बन

प्रश्न 24.
बेन्जीन के ऐथिलीकरण में निर्जल AlCl3 के स्थान पर कोई दूसरा लुइस अम्ल सुझाइए।
उत्तर:
FeCl3 (फेरिक क्लोराइड) ।

प्रश्न 25.
क्या कारण है कि वुर्ट्ज अभिक्रिया विषम कार्बन परमाणु वाले विशुद्ध ऐल्केन बनाने के लिए प्रयुक्त नहीं की जाती ? उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर:
विषम संख्या कार्बन परमाणु वाले ऐल्केन बनाने के लिए दो भिन्न हैलो ऐल्केन की आवश्यकता होती है जिसमें एक सम संख्या एवं एक विषम संख्या कार्बन परमाणु वाला हैलो ऐल्केन होता है।
उदाहरण:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 27
परन्तु यहाँ पेन्टेन के साथ-साथ कुछ अन्य ऐल्केन भी बनेगे। उदाहरण-ब्रोमोऐथेन, ब्यूटेन देता है तथा 1 -ब्रोमोप्रोपेन हेक्सेन देता है।
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 13 Img 28
अतः ब्यूटेन, पेन्टेन तथा हेक्सेन का मिश्रण प्राप्त होगा। इस मिश्रण से प्रत्येक घटक को पृथक् करना अत्यधिक कठिन कार्य होगा।

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 1 रसायन विज्ञान की कुछ मूल अवधारणाएँ

Haryana State Board HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 1 रसायन विज्ञान की कुछ मूल अवधारणाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Chemistry Solutions Chapter 1 रसायन विज्ञान की कुछ मूल अवधारणाएँ

प्रश्न 1.
निम्नलिखित के लिये मोलर द्रव्यमान का परिकलन कीजिए –
(i) H2O
(ii) CO2
हल:
(i) H2O का मोलर द्रव्यमान
= 2 × हाइड्रोजन का परमाणु द्रव्यमान + ऑक्सीजन का परमाणु द्रव्यमान
= 2 × 1 + 16
= 18 u

(ii) CO2 का मोलर द्रव्यमान
= कार्बन का परमाणु द्रव्यमान + (2 x ऑक्सीजन का परमाणु द्रव्यमान)
= 12 + 32
= 44 u

(iii) CH4 का मोलर द्रव्यमान
= कार्बन का परमाणु द्रव्यमान
+ (4 × हाइड्रोजन का परमाणु द्रव्यमान)
= 12 + 4 × 1
= 16 u

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 1 रसायन विज्ञान की कुछ मूल अवधारणाएँ

प्रश्न 2.
सोडियम सल्फेट (Na2SO4) में उपस्थित विभिन्न तत्वों के द्रव्यमान प्रतिशत का परिकलन कीजिए।
हल:
सोडियम सल्फेट का आण्विक द्रव्यमान = (2 x सोडियम का परमाणु द्रव्यमान) + सल्फर का परमाणु द्रव्यमान + (4 x ऑक्सीजन का परमाणु द्रव्यमान)
= (2 x 23) + 32 + (4 x 16)
= 46 + 32 + 64
= 142 u
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 1 रसायन विज्ञान की कुछ मूल अवधारणाएँ 1

प्रश्न 3.
आयरन के उस ऑक्साइड का मूलानुपाती सूत्र ज्ञात कीजिए, जिसमें द्रव्यमान द्वारा 69.9% आयरन और 30.1% ऑक्सीजन है।
हल:

तत्व प्रतिशतता परमाणु द्रव्यमान प्रतिशतता / परमाणु द्रव्यमान सरल अनुपात पूर्ण अनुपात
Fe 69.9 56 \(\frac { 69.9 }{ 56 }\) = 1.25 \(\frac { 1.25 }{ 1.25 }\) = 1.0 1.0 x 2 = 2
O 30.1 16 \(\frac { 30.1 }{ 16 }\) = 1.88 \(\frac { 1.88 }{ 1.25 }\) = 1.5 1.5 x 2 = 3

मूलानुपाती सूत्र Fe2O3

प्रश्न 4.
प्राप्त कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा का परिकलन कीजिए।
जब
(i) 1 मोल कार्बन को वायु में जलाया जाता है और
(ii) 1 मोल कार्बन को 16 ग्राम ऑक्सीजन में जलाया जाता है।
हल:
(i) HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 1 रसायन विज्ञान की कुछ मूल अवधारणाएँ 2
अतः 1 मोल कार्बन को वायु में जलाने पर 44 g CO2 प्राप्त होगी ।

(ii) HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 1 रसायन विज्ञान की कुछ मूल अवधारणाएँ 3
32 g ऑक्सीजन को जलाने पर प्राप्त होता है।
= 44 g CO2
16 g ऑक्सीजन को जलाने पर प्राप्त होता है = \(\frac { 44×16 }{ 32 }\)
= 22 g CO2
अतः 16 ग्राम ऑक्सीजन का दहन कराने पर 22 g CO2 प्राप्त होगा।

प्रश्न 5.
सोडियम ऐसीटेट (CH3COONa) का 500ml, 0.375 मोलर जलीय विलयन बनाने के लिए उसके कितने द्रव्यमान की आवश्यकता होगी? सोडियम ऐसीटेट का मोलर द्रव्यमान 82.O245 ग्राम / मोल है।
हल:
दिया गया है,
विलेय का भार (WB) = ?
विलयन का आयतन (V) = 500ml
मोलरता (M) = 0.375 mol/L
विलेय का आण्विक द्रव्यमान
(MB) = 82.0245 g/mol
M = \(\frac{W_B \times 1000}{M_B \times V}\)
WB = \(\frac{\mathrm{M} \times \mathrm{W}_{\mathrm{B}} \times \mathrm{V}}{1000}\)
= \(\frac{0.375 \times 82 \cdot 0245 \times 500}{1000}\)
= 15.38 g
विलेय का द्रव्यमान = 15.38 g

HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 1 रसायन विज्ञान की कुछ मूल अवधारणाएँ

प्रश्न 6.
सान्द्र नाइट्रिक अम्ल के उस प्रतिदर्श का मोल प्रति लीटर में सान्द्रता का परिकलन कीजिए, जिसमें उसका द्रव्यमान प्रतिशत 69% हो और जिसका घनत्व 1.41 g ml-1 हो।
हल:
दिया गया है,
द्रव्यमान प्रतिशत = 69%
घनत्व = 1.41 g/ml
विलेय (HNO3) का आण्विक द्रव्यमान = (हाइड्रोजन का परमाणु भार ) + ( नाइट्रोजन का परमाणु भार ) + (3 x ऑक्सीजन का परमाणु भार )
= 1 + 14 + 3 × 16
= 1 + 14 + 48
= 63 u
69% HNO3 का तात्पर्य है 69 g HNO3, 100 g उपस्थित है।
विलेय का भार (WB) = 69 g
विलायक का भार (WA) = 100 – 69 = 31 g
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 1 रसायन विज्ञान की कुछ मूल अवधारणाएँ 4

प्रश्न 7.
100 ग्राम, कॉपर सल्फेट (CuSO4) से कितना कॉपर प्राप्त किया जा सकता है?
हल:
कॉपर सल्फेट का आण्विक द्रव्यमान- = Cu का परमाणु भार + S का परमाणु भार + 4 × 0 का परमाणु भार
= 63.5+ 32+ 4 × 16
= 63.5+ 32+ 64
= 159.5 u
159.5 ग्राम CuSO4 देता है = 63.5 ग्राम Cu
100 ग्राम CuSO4 देता है = \(\frac { 63.5×100 }{ 159.5 }\)
= 39.81 ग्राम Cu
100 ग्राम CuSO4 से 39.81 ग्राम कॉपर प्राप्त होता है।

प्रश्न 8.
आयरन के ऑक्साइड का आण्विक सूत्र ज्ञात कीजिए जिसमें आयरन तथा ऑक्सीजन का द्रव्यमान प्रतिशत 69.9g तथा 30.1g है।
हल:

तत्व प्रतिशतता परमाणु द्रव्यमान प्रतिशतता / परमाणु द्रव्यमान सरल अनुपात पूर्ण अनुपात
Fe 69.9 56 \(\frac { 69.9 }{ 56 }\) = 1.25 \(\frac { 1.25 }{ 1.25 }\) = 1.0 1 x 2 = 2
O 30.1 16 \(\frac { 30.1 }{ 16 }\) = 1.88 \(\frac { 1.88 }{ 1.25 }\) = 1.5 1.5 x 2 = 3

मूलानुपाती सूत्र = Fe2O3
आण्विक सूत्र = n x मूलानुपाती सूत्र
= 1 × Fe2O3
= Fe2O3

प्रश्न 9.
निम्नलिखित आँकड़ों के आधार पर क्लोरीन के औसत परमाणु द्रव्यमान का परिकलन कीजिए –
हल:
क्लोरीन का औसत परमाणु भार
= \(\frac{(75.77 \times 34.9689)+(24.23 \times 36.9659)}{75.77+24.23}\)
= \(\frac{2649 \cdot 5936+89568376}{100}\)
= \(\frac{3545 \cdot 2774}{100}\)
= 35.45 amu

प्रश्न 10.
ऐथेन (C2H6) के तीन मोलों में निम्नलिखित का परिकलन कीजिए-
(i) कार्बन परमाणुओं के मोलों की संख्या
(ii) हाइड्रोजन परमाणुओं के मोलों की संख्या
(iii) एथेन के अणुओं की संख्या।
हल:
(i) यहाँ 1 मोल एथेन (C2H6) में 2 मोल कार्बन परमाणु होते हैं। अत: 3 मोल एथेन में कार्बन के मोलों की संख्या
= 2 × 3 = 6 मोल

(ii) 1 मोल एथेन (C2H6) में 6 मोल हाइड्रोजन होते हैं । अतः 3 मोल एथेन में हाइड्रोजन के मोलों की संख्या
= 3 × 6 = 18 मोल

(iii) 1 मोल ऐथेन 6.022 x 1023 अणु ऐथेन होते हैं।
अत: 3 मोल एथेन में अणुओं की संख्या
= 3 × 6.022 x 1023
= 1·8069 × 1024 अणु

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प्रश्न 11.
यदि 20 ग्राम चीनी (C12H2O11) को जल की पर्याप्त मात्रा में घोलने पर उसका आयतन 2L हो जाए, तो चीनी के इस विलयन की सान्द्रता क्या होगी ?
हल:
विलेय का भार (WB) = 20 ग्राम
विलेय का अणु भार (C12H22O11)
= 12 × 12 + 1 × 22 + 11 × 16
= 144 +22 + 176
= 342 g/mol
आयतन (V) = 2000ml
मोलरता (M) = \(\frac{W_B \times 1000}{M_B \times V}\)
= \(\frac{20 \times 1000}{342 \times 2000}\)
= 0.029 मोल/लीटर

प्रश्न 12.
यदि मेथेनॉल का घनत्व 0.793 kg L-1 हो तो इसके 0.25 M के 2.5 L विलयन को बनाने के लिए कितने आयतन की आवश्यकता होगी?
हल:
विलेय का घनत्व (d) = 0.793 kg/L-1
मोलरता (M) = 0.25 M
आयतन (V) = 2.5 L
मेथेनॉल का आण्विक द्रव्यमान (MB) = CH3OH
= (कार्बन का परमाणु भार ) + (4 × हाइड्रोजन का परमाणु भार) + (ऑक्सीजन का परमाणु भार )
= 12 + 4 x 1 + 16
= 12+4+ 16
= 32 amu
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प्रश्न 13.
दाब को प्रति इकाई क्षेत्रफल पर लगने वाले बल के रूप में परिभाषित किया जाता है। दाब का SI मात्रक नीचे दिया गया है-
1 Pa = 1 N/m²
यदि समुद्र तल पर हवा का द्रव्यमान 1034 g cm-2 हो तो पास्कल में दाब का परिकलन कीजिए।
हल:
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प्रश्न 14.
द्रव्यमान का SI मात्रक क्या है? इसे किस प्रकार परिभाषित किया जाता है?
हल:
द्रव्यमान का SI मात्रक किग्रा. है। यह अन्तर्राष्ट्रीय मानक किग्रा. के बराबर है।

प्रश्न 15.
निम्नलिखित पूर्व-लग्नों को उनके गुणांकों के साथ मिलाइए-

पूर्व लग्न गुणांक
(i) माइक्रो 106
(ii) डेका 109
(iii) मेगा 10-6
(iv) गीगा 10-15
(v) फेम्टो 10

हल:
इसका सुमेल निम्न प्रकार है-

पूर्व लग्न गुणांक
(i) माइक्रो 10-6
(ii) डेका 10
(iii) मेगा 106
(iv) गीगा 109
(v) फेम्टो 10-15

प्रश्न 16.
सार्थक अंकों से आप क्या समझते हैं?
हल:
सार्थक अंक (Significant Figure):
सार्थक अंक वे अर्थपूर्ण अंक होते हैं, जिनके द्वारा निश्चितता अंक को अंतिम अंक के रूप में लिखा जाता है। सार्थक अंक माप की विश्वसनीयता (reliability) सूचित करते हैं। किसी अभिलिखित माप में सार्थक अंकों की संख्या जितनी अधिक होती है उतना ही अधिक विश्वास (confidence) उस माप में हम रख सकते हैं।

अर्थात् जिस माप में सार्थक अंकों की संख्या जितनी अधिक होती है उसका मान उतना ही अधिक परिशुद्ध (Precise) होता है तथा जिस मान में सार्थक अंकों की संख्या कम होती है वह उतना ही कम परिशुद्ध (Precise) होता है।

सार्थक अंकों को निर्धारित करने के कुछ नियम होते हैं। यह नियम निम्न प्रकार हैं-
(1) सभी गैर शून्य अंक सार्थक होते हैं।
उदाहरण-
2856 = चार सार्थक अंक
5.35 = तीन सार्थक अंक

(2) प्रथम गैर शून्य अंक से पहले आने वाले शून्य सार्थक नहीं होते हैं। ऐसे शून्य केवल दशमलव की स्थिति को बताते हैं ।
उदाहरण-
0.03 = एक सार्थक अंक
0.0052 = दो सार्थक अंक

(3) दो गैर-शून्य अंकों के मध्य स्थित शून्य सार्थक होते हैं।
उदाहरण-
2.005 = चार सार्थक अंक
5.0032 = पाँच सार्थक अंक

(4) किसी अंक की दाँयीं ओर या अंत में आने वाले शून्यं सार्थक होते हैं, परन्तु उसके लिये यह शर्त है कि वे दशमलव की दाँयीं ओर स्थित हों।
उदाहरण-
0.300 तीन सार्थक अंक
0.8000 = चार सार्थक अंक
परन्तु दशमलव विहीन संख्याओं में दाँयीं ओर के शून्य सार्थक नहीं होते।
उदाहरण – 100 में केवल एक सार्थक अंक है तथा 1000 में चार सार्थक अंक हैं। अतः ऐसी संख्याओं को वैज्ञानिक संकेतन में प्रदर्शित करना उपयुक्त होता है अतः अंक 100 के लिए-
1 x 10² = एक सार्थक अंक
1.0 × 10² = दो सार्थक अंक
100 x 10² = तीन सार्थक अंक

(5) वस्तुओं की गिनती, उदाहरण के लिए 2 पेन्सिल, 20 सेबों में । सार्थक अंकों की संख्या अनंत है, क्योंकि ये दोनों ही यथार्थपरक संख्याएँ हैं और इनको दशमलव लिखकर उनके बाद अनंत शून्य लिखकर व्यक्त किया जा सकता है।
जैसे-
2 = 2.0000000 या
20 = 20.0000000

(6) वैज्ञानिक संकेतन में लिखी सभी संख्याओं के अंक सार्थक होते हैं।
उदाहरण – 4.01 x 10² = तीन सार्थक अंक
8.256 x 10-3 = चार सार्थक अंक

परिशुद्धता (Precision) – एक ही राशि के मान ज्ञात करने में उसी प्रयोग को बार-बार दोहराने (replicate) पर करीब-करीब एक से मान (concordancent value) प्राप्त हों तो इसे परिशुद्धता (Precision) कहते हैं ।

यथार्थता (Accuracy ) – किसी भी राशि की सही माप की तुलना मानक मान से करने को ही यथार्थता (Accuracy) कहते हैं।

किसी भी राशि का मान मापने के पश्चात् उसकी तुलना मानक मान से करने पर यदि दोनों के मान आपस में मेल खाते हैं, तो मान अधिक यथार्थ है।

उदाहरण के लिए-यदि किसी परिणाम का सही मान 2.00g है, और एक विद्यार्थी ‘क’ दो मापन करता है, उसे 1.95g और 1.93g परिणाम प्राप्त होते हैं। एक-दूसरे के बहुत पास होने के कारण ये मान परिशुद्ध हैं, परन्तु यथार्थपरक नहीं हैं। दूसरा विद्यार्थी ‘ख’ दो मापनों के लिए 1.94g और 2.05g परिणाम प्राप्त करता है। ये दोनों परिणाम न तो परिशुद्ध हैं और न ही यथार्थपरक । तीसरे विद्यार्थी ‘ग’ को इन मापनों के लिए 2.01g और 1.99g परिणाम प्राप्त होते हैं। ये मान परिशुद्ध भी है और यथार्थपरक भी ।

इसे निम्न सारणी द्वारा प्रदर्शित कर सकते हैं।

सारणी 1.4 : आँकड़ों की परिशुद्धता और यथार्थता का निरूपण

मापन (में)
1 मान 2 मान औसत (g)
छात्र ‘क’ 1.95 1.93 1.940
छात्र ‘ख’ 1.94 2.05 1.995
छात्र ‘ग’ 2.01 1.99 2.000

प्रायोगिक या परिकलित मानों में अनिश्चितता को सार्थक अंकों की संख्या द्वारा व्यक्त किया जाता है।

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प्रश्न 17.
पेय जल के नमूने में क्लोरोफॉर्म, जो कैंसरजन्य है, से अत्यधिक संदूषित पाया गया। संदूषण का स्तर 15 ppm (द्रव्यमान के रूप में) था।
(i) इसे द्रव्यमान प्रतिशतता में दर्शाइए।
(ii) जल के नमूने में क्लोरोफॉर्म की मोललता ज्ञात कीजिए।
हल:
(i) द्रव्यमान प्रतिशतता की गणना
15 ppm से तात्पर्य है कि नमूने के 106 ग्राम में 15 ग्राम क्लोरोफॉर्म उपस्थित है।
विलेय का भार = 15 ग्राम
106 ग्राम नमूने में है = 15 ग्राम क्लोरोफॉर्म
100 ग्राम नमूने में है = \(\frac{15 \times 100}{10^6}\) = 15 x 10-4
अत: नमूने की द्रव्यमान प्रतिशतता = 15 x 10-4%

(ii) मोललता की गणना
विलेय क्लोरोफॉर्म का भार (WB) = 15 x 10-4 g
क्लोरोफॉर्म का अणुभार (MB)
= 12 + 1 + (3 x 35.-5)
= 119.5 g/mol
विलयन का द्रव्यमान = 100 g
विलायक का द्रव्यमान = 1000 – 0015
(WA) = 99.9985 g
मोललता (m) = \(\frac{W_B \times 1000}{\mathrm{M}_{\mathrm{B}} \times \mathrm{W}_{\mathrm{A}}}\)
= \(\frac{0.0015 \times 1000}{119.5 \times 99.9985}\)
= 1.25 × 10-4 मोल/ किग्रा.
= 1.25 × 10-4 mol/kg

प्रश्न 18.
निम्नलिखित को वैज्ञानिक संकेतन में लिखिए-
(i) 0.0048
(ii) 234,000
(iii) 8008
(iv) 500.0
(v) 6.0012
हल:
वैज्ञानिक संकेतन
(i) 0.0048 = 4.8 x 10-3
(ii) 234,000 = 2.34 × 105
(iii) 8008 = 8.008 × 103
(iv) 500.0 = 5.000 × 10²
(v) 6.0012 = 6.0012 × 100

प्रश्न 19.
निम्नलिखित में सार्थक अंकों की संख्या बताइए-
(i) 0.0025
(ii) 208
(iii) 5005
(iv) 126,000
(v) 500.0
(vi) 2.0034
हल:
सार्थक अंक
(i) 0.0025 = 2
(ii) 208 = 3
(iii) 5005 = 4
(iv) 126,000 = 6
(v) 500.0 = 3
(vi) 2.0034 = 5

प्रश्न 20.
निम्न का तीन सार्थक अंकों तक निकटतम मान ज्ञार कीजिए।
(i) 34.216
(ii) 10.4107
(iii) 0.04597
(iv) 2808
हल:
(i) 34.216 = 34.2
(ii) 10.4107 = 10.4
(iii) 0.04597 = 0.0460
(iv) 2808 = 2810

प्रश्न 21.
(क) जब डाईनाइट्रोजन और डाईऑक्सीजन आपस में अभिक्रिया करके भिन्न यौगिक बनाती हैं तो निम्न आँकड़े प्राप्त होते हैं –

डाईनाइट्रोजन का द्रव्यमान डाईऑक्सीजन का द्रव्यमान
(i) 14 ग्राम 16 ग्राम
(ii) 14 ग्राम 32 ग्राम
(iii) 28 ग्राम 32 ग्राम
(iv) 28 ग्राम 80 ग्राम

उपर्युक्त प्रायोगिक आँकड़ों से रासायनिक संयोजन के किस नियम के अनुरूप है, बताइए।
हल:
डाईनाइट्रोजन का नियत द्रव्यमान 14 ग्राम लेने पर, डाइनाइट्रोजन के 14 ग्राम से संयोजित होने वाले डाइऑक्सीजन का (द्रव्यमानानुसार) अनुपात है –
16 : 32 : 16 : 40 या 2 : 4 : 2 : 5
चूँकि अनुपात एक सरल पूर्ण संख्याएँ हैं, अतः ये आँकड़े गुणित अनुपात के नियम का पालन करते हैं।
गुणित अनुपात का नियम – यह नियम डाल्टन ने सन् 1803 में दिया था।
इसके अनुसार,
“यदि दो तत्व संयोग करके एक से अधिक यौगिक बनाते हैं तो एक तत्व के साथ दूसरे तत्व के संयुक्त होने वाले द्रव्यमान सरल पूर्णांकों के अनुपात में होते हैं।”

(ख) निम्न रूपान्तरणों (Conversions) में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।
(i) 1 km = – mm = – pm
(ii) 1 mg = – kg = – ng
(iii) 1 mL = – L = – dm³
हल:
(i) 1 km = (1 km ) x \(\frac{(1000 \mathrm{~m})}{(1 \mathrm{~km})}\)
= (10³ m) x \(\frac{\left(10^3 \mathrm{~mm}\right)}{(1 \mathrm{~m})}\)
= 106 mm
1 km = (1 km ) x \(\frac{(1000 \mathrm{~m})}{(1 \mathrm{~km})}\)
= (10³ m) x \(\frac{\left(10^{12} \mathrm{pm}\right)}{(1 \mathrm{~m})}\)
= 1015 pm
अतः 1 km = 106 mm = 1015 pm

(ii) 1 mg = (1 mg) x \(\frac{\left(10^{-6} \mathrm{~kg}\right)}{(1 \mathrm{mg})}\)
= 10-6 kg
1 mg = (1 mg) x \(\frac{\left(10^{6} \mathrm{~kg}\right)}{(1 \mathrm{mg})}\)
= 10-6 kg
अतः 1 mg = 10-6 kg = 106 ng

(iii) 1 mL = (1 mL) × \(\frac{\left(10^{-3} \mathrm{~L}\right)}{(1 \mathrm{~mL})}\)
= 10-3 L
1 mL = (1 mL ) x \(\frac{\left(10^{-3} \mathrm{dm}^3\right)}{(1 \mathrm{~mL})}\)
= 10-3 dm³
अतः, 1 mL = 10-3 L = 10-3 dm³.

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प्रश्न 22.
यदि प्रकाश का वेग 300 x 108 m/s1 हो, तो 2.00ns में प्रकाश कितनी दूरी तय करेगा?
हल:
प्रकाश द्वारा 1 सेकेण्ड में तय दूरी
= 3.0 × 108 m
अर्थात् चाल = 3 x 108 m/s
समय = 2.00ns
= 2.0 × 10-9 s
चाल = \(\frac { दूरी }{ समय }\)
दूरी = चाल x समय
= 3 x 108 × 2 × 10-9
= 0.6m

प्रश्न 23.
किसी अभिक्रिया A + B → AB में निम्नलिखित अभिक्रिया मिश्रणों में सीमांत अभिकर्मकों, यदि कोई हो, तो ज्ञात कीजिए।
(i) A के 300 परमाणु + B के 200 अणु
(ii) A के 2 मोल + B के 3 मोल
(iii) A के 100 परमाणु + B के 100 अणु
(iv) A के 5 मोल + B के 2.5 मोल
(v) A के 2.5 मोल + B के 5 मोल
हल:
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(i) प्रश्न के अनुसार, A के 300 परमाणु + B के 200 अणु
A के 1 परमाणु के साथ अभिक्रिया करने वाले B अणुओं की संख्या = 1
A के 300 परमाणु के साथ अभिक्रिया करने वाले B अणुओं की संख्या = 300
किन्तु B के वस्तुतः उपलब्ध अणुओं की संख्या = 200
अतः यहाँ B सीमान्त अभिकर्मक है।

(ii) 2 मोल A + B के 3 मोल B
A परमाणु के 1 मोल B के 1 मोल अणु के साथ अभिक्रिया करते A के 2 मोल परमाणु B2 के 2 मोल अणुओं के साथ ही क्रिया करेंगे। अतः यहाँ A सीमान्त अभिकर्मक है।

(iii) A के 100 परमाणु + B के 100 अणु
चूँकि A का 1 परमाणु B के 1 अणु के साथ अभिक्रिया करता है, अतः A के 100 परमाणु B के 100 अणु के साथ अभिक्रिया करेगा। इसलिए यहाँ पर कोई भी सीमान्त अभिकर्मक नहीं है।

(iv) A के 5 मोल तथा B के 2.5 मोल
चूँकि A का 1 परमाणु B के 1 अणु के साथ अभिक्रिया करता है, अत: 5 मोल A परमाणुओं के लिए 5 मोल B के अणुओं की आवश्यकता होगी। परन्तु B के केवल 2.5 मोल ही उपलब्ध है अत: यहाँ B सीमान्त अभिकर्मक है।

(v) A के 2.5 मोल + B के 5 मोल
A परमाणु के 1 मोल B के 1 मोल अणु के साथ अभिक्रिया करते हैं तो A के 2.5 मोल परमाणु B के 2.5 मोल अणु के साथ अभिक्रिया करेगा परन्तु यहाँ B के 5 मोल अणु उपलब्ध हैं। अतः यहाँ A सीमान्त अभिकर्मक हैं।

प्रश्न 24.
डाइनाइट्रोजन और डाइहाइड्रोजन निम्नलिखित रासायनिक समीकरण के अनुसार अमोनिया बनाती हैं –
N2 (g) + 3H2(g) → 2NH3 (g)
(i) यदि 2.00 × 10³ g डाइनाइट्रोजन 100 x 10³ g डाइहाइड्रोजन के साथ अभिक्रिया करती है, तो प्राप्त अमोनिया के द्रव्यमान का परिकलन कीजिए।
(ii) क्या दोनों में से कोई अभिक्रियक शेष बचेगा ?
(iii) यदि हाँ, तो कौन.सा, उसका द्रव्यमान क्या होगा ?
उत्तर:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 1 रसायन विज्ञान की कुछ मूल अवधारणाएँ 8
28 g N2 को अभिक्रिया के लिये आवश्यकता है
= 6 g H2 की
2 × 10³ g N2 को अभिक्रिया के लिये आवश्यकता है
= \(\frac{6 \times 2 \times 10^3}{28}\)
= 428.6 g H2 की

(ii) किन्तु उपलब्ध हाइड्रोजन की मात्रा = 1 x 10³ g
= 1000 g
अर्थात् हाइड्रोजन अधिकता में है एवं हाइड्रोजन की शेष मात्रा
= 1000.428.6
= 571.4g H2

(iii) यहाँ डाइनाइट्रोजन सीमान्त अभिकर्मक है।
28 g N2 अभिक्रिया करके बनाती है = 34 g NH3
2000 g N2 अभिक्रिया करके बनाती है
= \(\frac{34 \times 2000}{28}\)
= 2428.6g NH3
अर्थात् 2428.6g NH3 बनेगी।

प्रश्न 25.
0.5 mol Na2CO3 और 0.50 M Na2CO3 में क्या अन्तर है?
हल:
Na2CO3 के मोलर द्रव्यमान
= 2 × 23 + 12 + 3 × 16
= 106 g/mol
0.5 मोल Na2CO3 = 0.50 × 106 = 53 g
जबकि 0.50 M Na2CO3 विलयन की मोलरता है। यह Na2CO3 की सान्द्रता को मोल/ली. में व्यक्त करती है। 0.5 mol Na2CO3 को विलयन में घोला गया है।

प्रश्न 26.
यदि डाइहाइड्रोजन गैस के 10 आयतन डाइऑक्सीजन गैस के 5 आयतनों से अभिक्रिया करें तो जलवाष्प के कितने आयतन प्राप्त होंगे।
हल:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 1 रसायन विज्ञान की कुछ मूल अवधारणाएँ 9
अतः 10 आयतन डाइहाइड्रोजन 5 आयतन डाइऑक्सीजन से क्रिया करके 10 आयतन जलवाष्प प्रदान करता है।

प्रश्न 27.
निम्नलिखित को मूल मात्रकों में परिवर्तित कीजिए –
(i) 28.7pm
(ii) 15.15pm
(iii) 25365mg
हल:
(i) 28.7pm = 2.87 × 10-11 m

(ii) 15.15 pm = 15.15 × 10-12
= 1.515 × 10-11 m

(iii) 25365 mg = 2.5365 × 10-2 kg

प्रश्न 28.
निम्नलिखित में से किसमें परमाणुओं की संख्या सबसे अधिक होगी?
(i) 1g Au (s)
(ii) 1g Na (s)
(iii) 1 g Li (s)
(iv) 1g Cl2 (g)
हल:
(i) 1 g Au में (Au का परमाणु द्रव्यमान = 197g/mol)
197 g Au में उपस्थित परमाणु = 6·022 × 1023
1g Au में उपस्थित परमाणु =\(\frac{6022 \times 10^{23}}{197}\)
= 3.06 × 1021 परमाणु

(ii) 1g Na में (Na का परमाणु भार = 23 g/mol)
23 g Na में उपस्थित परमाणु = 6.022 x 1023
1 g Na में उपस्थित परमाणु =\(\frac{6022 \times 10^{23}}{23}\)
= 2.62 × 1022 परमाणु

(iii) 1 g Li में (Li का परमाणु भार = 6.9g/mol)
6.9 g Li में उपस्थित परमाणु = 6.022 × 1023
1 g Li में उपस्थित परमाणु =\(\frac{6022 \times 10^{23} \times 11}{6.9}\)
= 8.73 × 1022 परमाणु

(iv) 1 g Cl2 में (Cl का परमाणु भार = 35.5 g/mol)
71 g Cl2 में उपस्थित परमाणु = 2 x 6.022 × 1023
1 g Cl2 में उपस्थित परमाणु =\(\frac{2 \times 6022 \times 10^{23}}{71}\)
= 1.697 × 1022 परमाणु
अत: 1 g Li में सबसे अधिक परमाणु होंगे।

प्रश्न 29.
ऐथेनॉल के ऐसे जलीय विलयन की मोलरता ज्ञात कीजिए। जिसमें ऐथेनॉल का मोल. अंश 0.040 है। (मान लें कि जल का घनत्व 1 है ।)
हल:
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 1 रसायन विज्ञान की कुछ मूल अवधारणाएँ 10
अत: ऐथेनॉल की मोलरता = 2.31 मोल / लीटर है।

प्रश्न 30.
एक 12C कार्बन परमाणु का ग्राम (g) में द्रव्यमान का क्या होगा ?
हल:
कार्बन के 6.022 × 1023 परमाणुओं का द्रव्यमान = 12 g
कार्बन के 1 परमाणु का द्रव्यमान = \(\frac{12}{6.022 \times 20^{23}}\)
= 1.993 × 10-23g
अत: एक 12C कार्बन परमाणु का द्रव्यमान 1993 × 10-23g है।

प्रश्न 31.
निम्नलिखित परिकलनों के उत्तर में कितने सार्थक अंक उपस्थित होने चाहिये ?
(i) \(\frac{002856 \times 298.15 \times 0.112}{0.5785}\)
(ii) 5 × 5.364
(iii) 0.0125 +0.7864+0.0215
हल:
(i) न्यूनतम परिशुद्ध अंक (0.112) में 3 सार्थक अंक है। अतः उत्तर में तीन सार्थक अंक होने चाहिये।
(ii) दूसरे अंक (5.364) में चार सार्थक अंक हैं। अत: उत्तर में चार सार्थक अंक होने चाहिये।
(iii) चूँकि दशमलव के बाद चार अंक हैं अत: उत्तर में भी चार सार्थक अंक होने चाहिये।

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प्रश्न 32.
प्रकृति में उपलब्ध आर्गन के मोलर द्रव्यमान की गणना के लिए निम्नलिखित तालिका में दिए गए आँकड़ों का उपयोग कीजिए-

समस्थानिक समस्थानिक (मोलर द्रव्यमान) प्रचुरता
36Ar 35.96755 0.337 %
38Ar 37.96272 0.063 %
40Ar 39.9624 99.600 %

हल:
आर्गन का औसत मोलर द्रव्यमान निम्न प्रकार से ज्ञात किया जा सकता है,
औसत मोलर द्रव्यमान
= \(\begin{aligned}
& (0.337 \times 35.96755)+(0.063 \times 37.96272) \\
& \frac{+(99.600 \times 39.9624)}{99.600+0.337+0.063} \\
&
\end{aligned}\)
= \(\frac{12 \cdot 121064+2 \cdot 3916514+3980 \cdot 255}{100}\)
= 3994.7678/100
= 39.94 g/mol

प्रश्न 33.
निम्नलिखित में से प्रत्येक में परमाणुओं की संख्या ज्ञात कीजिए –
(i) 52 मोल Ar
(ii) 52 u He
(iii) 52g He
हल:
(i) 1 मोल Ar = 6.022 × 1023 परमाणु
52 मोल Ar = 52 × 6.022 x 1023 परमाणु
= 3.13 × 1025 परमाणु

(ii) 4 u He = 1 परमाणु
52u He = \(\frac { 52 }{ 4 }\) परमाणु
= 13 परमाणु He

(iii) He का परमाणु द्रव्यमान = 4gm
4 ग्राम He = 6.022 × 1023 परमाणु
52 ग्राम He = \(\frac{6 \cdot 022 \times 10^{23} \times 52}{4}\) परमाणु
= 78.286 × 1023 परमाणु
= 7.83 x 1024 परमाणु

प्रश्न 34.
एक वेल्डिंग ईंधन गैस (Welding fuel gas) में केवल कार्बन और हाइड्रोजन है। इसके नमूने की कुछ मात्रा ऑक्सीजन से जलाने पर 3.38g कार्बन डाईऑक्साइड, 0.690g जल के अतिरिक्त और कोई उत्पाद नहीं बनाती है। इस गैस के 10.0L (STP पर मापित) आयतन का भार 11.6 gm पाया गया। इसके –
(i) मूलानुपाती सूत्र,
(ii) अणु द्रव्यमान और
(iii) अणुसूत्र की गणना कीजिए।
हल:
प्रथम पद कार्बन व हाइड्रोजन की द्रव्यमान प्रतिशतता की गणना करना
44 ग्राम कार्बन डाईऑक्साइड में है = 12 g कार्बन
3.38 ग्राम कार्बन डाईऑक्साइड में होगा = \(\frac{12 \times 3.38}{44}\)
18 ग्राम जल में है = 2 g हाइड्रोजन
0.690 ग्राम जल में होगी = \(\frac{2 \times 0.690}{18}\)ग्राम हाइड्रोजन
= 0.0766 ग्राम हाइड्रोजन
अतः ईंधन का कुल द्रव्यमान = 0.9218 + 0.0766
= 0.9984 g
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 1 रसायन विज्ञान की कुछ मूल अवधारणाएँ 11
द्वितीय पद-ईंधन गैस का मूलानुपाती सूत्र
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 1 रसायन विज्ञान की कुछ मूल अवधारणाएँ 12
अतः ईंधन गैस का मूलानुपाती सूत्र = CH
तृतीय पद-ईंधन गैस का आण्विक द्रव्यमान
10 लीटर गैस का N.T.P पर भार= 11.6 g
22.4 लीटर गैस का N. T. P. पर भार = \(\frac { 11.6 }{ 10.0 }\) x 22.4
= 25.98 g
अतः ईंधन गैस का आण्विक द्रव्यमान = 25.98 ≈ 26.0g
चतुर्थ पद-गैस के आण्विक सूत्र की गणना
मूलानुपाती सूत्र द्रव्यमान = 12 + 1 = 13 g
आण्विक द्रव्यमान = 26g
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 1 रसायन विज्ञान की कुछ मूल अवधारणाएँ 13
आण्विक सूत्र = n x मूलानुपाती सूत्र
= 2 × CH = C2H2
ईंधन गैस का आण्विक सूत्र C2H2 है एवं यह गैस ऐसिटिलीन

प्रश्न 35.
CaCO3 जलीय HCl के साथ निम्नलिखित अभिक्रिया कर CaCl2 और CO2 बनाता है।
CaCO3(s) + 2HCl(g) → CaCl2 (aq) + CO2 (g) + H2O(l)
0.75M HCl के 25ml के साथ पूर्णत: अभिक्रिया करने के लिये CaCO3 की कितनी मात्रा की आवश्यकता होगी?
हल:
(i) HCl के द्रव्यमान की गणना करना दिया गया है –
मोलरता (M) = 0.75M
मोलर द्रव्यमान (MB) = 1 + 35.5 = 36.5 g
आयतन (V) = 25ml
द्रव्यमान (WB) = ?
मोलरता (M) = \(\frac{W_B \times 1000}{M_B \times V}\)
WB = \(\frac{\mathrm{M} \times \mathrm{M}_{\mathrm{B}} \times \mathrm{V}}{1000}=\frac{0.75 \times 36.5 \times 25}{1000}\)
= 0.684g

(ii) CaCO3 के द्रव्यमान की गणना
CaCO3 (s) + 2 HCl(aq) → CaCl2(aq) + H2O(l) + CO2(g)
1 मोल = 2ml
100gm = 2 × 36.5 = 73g
73 g HCl से अभिक्रिया करने के लिये आवश्यक है
= 100 g CaCO3
0.684 g HCl से अभिक्रिया के लिये आवश्यक होगा
= \(\frac{100 \times 0.684}{73}\)
= 0.94g
अत: 0.94g CaCP3 की आवश्यकता होगी।

प्रश्न 36.
प्रयोगशाला में क्लोरीन का विरचन मैग्नीज डाइऑक्साइड (MnO2) को जलीय HCI विलयन के साथ अभिक्रिया द्वारा निम्नलिखित समीकरण के अनुसार किया जाता है-
4 HCl(aq) + MnO2 (s) 2H2O(l) + MnCl2 (aq) + Cl2 (g) 5.0g मैंग्नीज डाइऑक्साइड के साथ HCI के कितने ग्राम अभिक्रिया करेंगे?
हल:
दी गई अभिक्रिया के अनुसार,
HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 1 रसायन विज्ञान की कुछ मूल अवधारणाएँ 14
87 ग्राम MnO2 से अभिक्रिया करने वाला HCl = 146 g
5 ग्राम MnO2 से अभिक्रिया करने वाला HCl = \(\frac { 146×5 }{ 87 }\)
= 8.39 g

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

Haryana State Board HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

प्रश्न 1.
ऊर्जा का मात्रक नहीं है-
(a) बाट
(b) किलोवाट घण्टा
(c) जूल
(d) इलेक्ट्रॉन बोल्ट
उत्तर:
(a) बाट

प्रश्न 2.
स्वतन्त्रतापूर्वक गिरती हुई वस्तु की गतिज ऊर्जा का मान-
(a) नियत रहता है
(b) घटता रहता है
(c) बढ़ता रहता है।
(d) शून्य रहता है।
उत्तर:
(c) बढ़ता रहता है।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 3.
चित्र में वेग समय चक्र दर्शाया गया है। बल द्वारा C से D तक किया गया कार्य होगा-
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -1
(a) धनात्मक
(b) शन्य
(c) ऋणात्मक
(d) अनन्त
उत्तर:
(b) शन्य

प्रश्न 4.
यदि एक बल को किसी पिण्ड पर लगाने से उस पिण्ड को वेग प्राप्त होता है तो शक्ति होगी-
(a) F/V
(b) FV²
(c) FV
(d) E/V²
उत्तर:
(c) FV

प्रश्न 5.
एक लड़का दूरी तक सिर पर वजन रखकर ढोता है उसे अधिकतम कार्य करना पड़ता है जब वह वस्तु को लेकर
(a) खुरदरे क्षैतिज सतह पर चलता है।
(b) चिकनी क्षैतिज सतह पर चलता है।
(c) नत तल पर चलता है
(d) ऊर्ध्व तल पर ऊपर चलता है।
उत्तर:
(d) ऊर्ध्व तल पर ऊपर चलता है।

प्रश्न 6.
एक बॉक्स को फर्श से उठाकर किसी टेबिल पर रख देते हैं। हमारे द्वारा बॉक्स पर किया गया कार्य निर्भर करता है-
(a) बॉक्स को रखने में विभिन्न पथों पर
(b) हमारे द्वारा लिये गये स्थान पर
(c) हमारे भार पर
(d) बॉक्स से भार पर
उत्तर:
(d) बॉक्स से भार पर

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 7.
किसी निकाय पर संरक्षी आन्तरिक बल द्वारा किये गये कार्य का ऋणात्मक मान तुल्य होता है-
(a) कुल ऊर्जा में परिवर्तन के
(b) गतिज ऊर्जा में परिवर्तन के
(c) स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तन के
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तन के

प्रश्न 8.
किसी पिण्ड की गतिज ऊर्जा में 0.1 प्रतिशत की वृद्धि होती है तो उसके संवेग में प्रतिशत वृद्धि होगी-
(a) 0.05%
(b) 0.1%
(c) 1.0%
(d) 10%
उत्तर:
(a) 0.05%

प्रश्न 9.
राशियाँ जो किसी टक्कर में नियत रहती है-
(a) संवेग, गतिज ऊर्जा तथा ताप
(b) संवेग, लेकिन गतिज ऊर्जा तथा ताप नहीं
(c) संवेग, गतिज ऊर्जा लेकिन ताप नहीं
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) संवेग, लेकिन गतिज ऊर्जा तथा ताप नहीं

प्रश्न 10.
दो स्प्रिंगों के बल नियतांक व 2 हैं। उनमें समान खिंचाव x उत्पन्न किया जाता है। इनकी प्रत्यास्थ ऊर्जा E व E2 हो तो E1 व E2 का अनुपात होगा-
(a) \(\frac{k_1}{k_2}\)
(b) \(\frac{k_2}{k_1}\)
(c) \(\frac{\sqrt{k_2}}{\sqrt{k_1}}\)
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(a) \(\frac{k_1}{k_2}\)

प्रश्न 11.
पिण्ड पर किया गया कार्य निर्भर नहीं करता है-
(a) आरोपित बल पर
(b) पिण्ड की प्रारम्भिक चाल पर
(c) बल व विस्थापन के मध्य कोण पर
(d) विस्थापन पर
उत्तर:
(b) पिण्ड की प्रारम्भिक चाल पर

प्रश्न 12.
यदि किसी पिण्ड का संवेग दुगना कर दिया जाये तो गतिज ऊर्जा में वृद्धि होगी-
(a) 400%
(b) 200%
(c) 300%
(d) 50%
उत्तर:
(c) 300%

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 13.
m व 4m द्रव्यमान के दो अणुओं की गतिज ऊर्जा समान है। उनमें रेखीय संवेग का अनुपात होगा-
(a) 1 : 4
(b) 4 : 1
(c) 1 : 2
(d) 1 : √2
उत्तर:
(c) 1 : 2

प्रश्न 14.
एक पिण्ड समान वेग से चलता हुआ दूसरे समान द्रव्यमान के स्थिर पिण्ड से द्विविमीय टक्कर करता है। टक्कर के पश्चात् दोनों के मध्य कोण होगा-
(a) 450
(b) 90°
(c) 60°
(d) 30°
उत्तर:
(b) 90°

प्रश्न 15.
m द्रव्यमान की गोली 1 वेग से क्षैतिज दिशा में दागी जाती है। यह गोली m द्रव्यमान के रेत के थैले में धँस जाती है। टक्कर के कारण रेत के थैले का वेग होगा-
(a) \(\frac{mu}{M+m}\)
(b) \(\frac{m}{(M+m)u}\)
(c) \(\frac{mM}{(M+m)u}\)
(d) o
उत्तर:
(a) \(\frac{mu}{M+m}\)

प्रश्न 16.
पूर्णत: प्रत्यास्थ टक्कर के लिए प्रत्यावस्थान गुणांक ९ का मान होता है-
(a) 1
(b)0
(c) ∞
(d) – 1
उत्तर:
(a) 1

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 17.
एक रेलगाड़ी को रोकने के लिए समान मन्दन बल लगाया जाता है। यदि चाल दोगुनी कर दी जाये तो दूरी होगी-
(a) समान
(b) दो गुनी
(c) आधी
(d) चार गुनी
उत्तर:
(d) चार गुनी

प्रश्न 18.
एक गेंद 5 मीटर ऊँचाई से गिरकर 1.8 मीटर ऊँचाई तक उछलती है, उछलने के पश्चात् तथा पूर्व गेंद के वेगों का अनुपात होगा –
(a) \(\frac{4}{5}\)
(b) \(\frac{1}{5}\)
(c) \(\frac{2}{5}\)
(d) \(\frac{3}{5}\)
उत्तर:
(d) \(\frac{3}{5}\)

प्रश्न 19.
यदि \(\vec{F}=(20 \hat{i}+15 \hat{j}-5 \hat{k}) \mathrm{N} \text { तथा } \vec{v}=(6 \hat{i}-4 \hat{j}+3 \hat{k}) \mathrm{m} / \mathrm{s}\) है तो तात्क्षणिक शक्ति होगी-
(a) 35 W
(b) 25 W
(c) 90 W
(d) 45 W
उत्तर:
(d) 45 W

प्रश्न 20.
√Ek में खींचा गया वक्र है-
(E = गतिज ऊर्जा तन्त्र, p = रेखीय संवेग)
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -2
उत्तर:
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -3

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Questions)

प्रश्न 1.
गुरुत्व के विरुद्ध किसी मनुष्य द्वारा किया गया कार्य कितना होगा, यदि वह समतल में चल रहा हो ?
उत्तर:
∵ W =F.d cos θ
समतल में चलने पर θ = 90° और F = mg
तो W = mg × cos 90°
या W = 0

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 2.
एक मनुष्य 10kg के भार को 1 min तक अपने कन्धों पर उठाये रखता है। मनुष्य द्वारा किया गया कार्य कितना होगा?
उत्तर:
W = F.d
यहाँ d = 0
W = 0

प्रश्न 3.
क्या यांत्रिक ऊर्जा हमेशा संरक्षित रहती है?
उत्तर:
नहीं; केवल विलगित निकाय की यांत्रिक ऊर्जा संरक्षित रहती है जबकि असंरक्षी बल शून्य हो।

प्रश्न 4.
घड़ी में चाबी भरने पर स्प्रिंग में कौन-सी ऊर्जा संचित होती है? घड़ी चलते रहने पर यह ऊर्जा कौन-सी ऊर्जा में परिवर्तित होती है?
उत्तर:
घड़ी में चाबी भरने पर स्प्रिंग में उसकी स्थितिज ऊर्जा के रूप में ऊर्जा एकत्र होती है। घड़ी के चलते रहने पर यहीं स्थितिज ऊर्जा सुइयों की गतिज ऊर्जा में बदलती है।

प्रश्न 5.
क्या किसी निकाय के संवेग में परिवर्तन किये बिना गतिज ऊर्जा में परिवर्तन किया जा सकता है?
उत्तर:
हाँ; निकाय के कणों का कुल संवेग अपरिवर्तित रहेगा परन्तु उसके कणों के अलग-अलग संवेग बदल सकते हैं और फलस्वरूप गतिज ऊर्जा में परिवर्तन हो सकता है।

प्रश्न 6.
क्या किसी कण की गतिज ऊर्जा परिवर्तित किये बिना इसका संवेग परिवर्तित किया जा सकता है?
उत्तर:
हाँ; एक समान वृत्तीय गति में कण की चाल नियत होने से उसकी गतिज ऊर्जा अपरिवर्तित रहती है लेकिन प्रति क्षण वेग की दिशा बदलने से संवेग परिवर्तित होगा।

प्रश्न 7.
क्या किसी पूर्णतः अप्रत्यास्थ टक्कर में सम्पूर्ण गतिज ऊर्जा क्षय हो सकती है?
उत्तर:
हाँ जब एक स्प्रिंग को दबाते हैं या वस्तु खुरदरे तल पर नियत वेग से खींची जाये।

प्रश्न 8.
संरक्षी बलों के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
गुरुत्वीय बल स्प्रिंग बल ।

प्रश्न 9.
असंरक्षी बलों के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
घर्षण बल श्यान बल ।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 10.
आइन्स्टीन का द्रव्यमान-ऊर्जा सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
E = mc²
जहाँ m = ऊर्जा में बदलने वाला द्रव्यमान
एवं c = प्रकाश की चाल = 3 × 100 ms-1

प्रश्न 11.
क्या किसी वस्तु की (EU) राशि ऋणात्मक हो सकती है? यहाँ E कुल ऊर्जा एवं स्थितिज ऊर्जा है।
उत्तर:
नहीं, क्योंकि राशि (EU) कुल गतिज ऊर्जा को व्यक्त करती है और गतिज ऊर्जा ऋणात्मक नहीं हो सकती है।

प्रश्न 12.
क्या किसी वस्तु पर बाह्य बल लगाये बिना निकाय की गतिज ऊर्जा परिवर्तित की जा सकती है?
उत्तर:
हाँ, जैसे बम विस्फोट में।

प्रश्न 13.
क्या रेखीय संवेग सदैव संरक्षित रहता है?
उत्तर:
नहीं; रेखीय संवेग केवल विलगित निकाय (Isolated System) में ही संरक्षित रहता है।

प्रश्न 14.
क्या किसी वस्तु पर बिना गतिज ऊर्जा परिवर्तन के बल लगाया जा सकता है?
उत्तर:
हाँ; जब एक स्प्रिंग को दबाते हैं या वस्तु खुरदरे तल पर नियत वेग से खींची जाये।

प्रश्न 15.
पानी में एक हवा का बुलबुला ऊपर उठता है तो उसकी स्थितिज ऊर्जा में क्या परिवर्तन होगा?
उत्तर:
स्थितिज ऊर्जा घटेगी।

प्रश्न 16.
ऋणात्मक कार्य का क्या अर्थ है?
उत्तर:
इसका अर्थ है कि विस्थापन बल के विपरीत है अर्थात् कार्य बल के विरुद्ध किया गया।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 17.
1 kWh में जूल (J) की संख्या लिखिए।
उत्तर:
1 kWh = 36 × 106 J

प्रश्न 18.
खिंची हुई स्प्रिंग की प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा का मान कितना है?
उत्तर:
U(x) = \(\frac{1}{2}\) kx²

प्रश्न 19.
क्या यांत्रिक ऊर्जा हमेशा संरक्षित रहती है?
उत्तर:
नहीं; केवल विलगित निकाय की यांत्रिक ऊर्जा संरक्षित रहती है, जब आन्तरिक असंरक्षी बल शून्य हो।

प्रश्न 20.
जब संरक्षी बल किसी वस्तु पर धनात्मक कार्य करता है, तो पिण्ड की स्थितिज ऊर्जा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
स्थितिज ऊर्जा घटती है।

प्रश्न 21.
धनात्मक कार्य के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
घोड़े द्वारा गाड़ी खींचना गिरते हुए पिण्ड पर गुरुत्व बल द्वारा कृत कार्य

प्रश्न 22.
एक व्यक्ति अपने हाथ में सूटकेस लिए हुए प्लेटफार्म पर खड़ा है, क्या वह कोई कार्य कर रहा है?
उत्तर:
नहीं; क्योंकि विस्थापन शून्य है।

प्रश्न 23.
1 जूल में कितने अगं होते हैं?
उत्तर:
1 जूल 107 अर्ग

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 24.
नाभिक के चारों ओर घूमते इलेक्ट्रॉन में स्थितिज ऊर्जा होती है अथवा नहीं?
उत्तर:
ऋणात्मक विद्युत् स्थितिज ऊर्जा होती है।

प्रश्न 25.
ऊर्जा के चार रूप लिखिए।
उत्तर:
ऊष्मीय ऊर्जा, विद्युत् ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा और प्रकाश ऊर्जा।

प्रश्न 26.
माचिस की तीली जलाने पर तीली से कौन-सी ऊर्जा ऊष्मा में बदलती है?
उत्तर:
रासायनिक ऊर्जा ऊष्मा में बदलती है।

प्रश्न 27.
किसी वस्तु के कार्य करने की क्षमता क्या कहलाती है?
उत्तर:
ऊर्जा।

प्रश्न 28.
जब किसी वस्तु का ताप बढ़ता है तो उसकी आन्तरिक ऊर्जा में क्या परिवर्तन होता है?
उत्तर:
आन्तरिक ऊर्जा बढ़ती है।

प्रश्न 29.
कमान से छोड़े गये तीर में गतिज ऊर्जा होती है, तीर को वह गतिज ऊर्जा कहाँ से मिलती है?
उत्तर:
तीर और कमान निकाय की स्थितिज ऊर्जा गतिज ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है जो तीर को मिल जाती है।

प्रश्न 30.
क्या पूर्ण अप्रत्यास्थ संघट्ट में निकाय की सम्पूर्ण ऊर्जा क्षय हो जाती है?
उत्तर:
नहीं; केवल उतनी ही गतिज ऊर्जा का क्षय होता है जितनी कि संवेग संरक्षण के लिए आवश्यक होती है।

प्रश्न 31.
प्रत्यास्थ और अप्रत्यास्थ संघट्ट में से किसमें संवेग संरक्षित रहता है और किसमें यांत्रिक ऊर्जा ?
उत्तर:
प्रत्यास्थ और अप्रत्यास्थ दोनों ही प्रकार के संघट्टों में संवेग संरक्षित रहता है लेकिन यांत्रिक ऊर्जा केवल प्रत्यास्थ संघट्ट में संरक्षित रहती है।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)

प्रश्न 1.
शून्य कार्य, धनात्मक कार्य एवं ऋणात्मक कार्य के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(i) शून्य कार्य –
∵ W = F.s.cos θ
यदि θ = 90° तो cos θ = 0 अत: W = 0
उदाहरण के लिए – वृत्तीय पथ पर गतिशील पिण्ड पर अभिकेन्द्रीय बल द्वारा कृत कार्य शून्य होता है।
धनात्मक कार्य – W=Fs.cos θ जब 80° तो cos 9 = 1 अतः W – F. अर्थात् कार्य धनात्मक होगा।
उदाहरण के लिए – जब कोई व्यक्ति किसी भार को ऊपर उठाता है तो व्यक्ति द्वारा कृत कार्य धनात्मक होता है।
ऋणात्मक कार्य – जब 0-180° तो cos81. अतः WFs अर्थात् कार्य ऋणात्मक होगा।
उदाहरण के लिए जब कोई व्यक्ति किसी भार को ऊपर उठाता है तो गुरुत्वीय बल द्वारा कृत कार्य ऋणात्मक (-mgh) होता है।

प्रश्न 2.
किसी बन्दूक से गोली दागी जाती है, तो बन्दूक एवं गोली में से किसकी गतिज ऊर्जा अधिक होगी?
उत्तर:
∵ Ek = \(\frac{p^{2}}{2m}\)
या Ek ∝ \(\frac{1}{m}\) यदि p का मान नियत है।
∵ गोली एवं बन्दूक के संवेग परिमाण में समान होते हैं अतः गोली की गतिज ऊर्जा अधिक होगी क्योंकि इसका द्रव्यमान कम होता है।

प्रश्न 3.
गतिज ऊर्जा किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह ऊर्जा जो किसी पिण्ड में उसकी गति के कारण होती है. गतिज ऊर्जा कहलाती है और इसकी माप उस कार्य से की जाती है, जो शून्य वेग की अवस्था से उस वेग की अवस्था तक लाने में करना पड़ता है। 1 वेग की अवस्था में
K = \(\frac{1}{2}\) v²

प्रश्न 4.
तोप से दागा गया गोला ऊपर जाकर वायु में फट जाता है। संवेग तथा गतिज ऊर्जा में क्या परिवर्तन होगा?
उत्तर:
जब गोला फटता है तो संवेग संरक्षित रहता है लेकिन गतिज ऊर्जा में वृद्धि हो जाती है।

प्रश्न 5.
गतिज ऊर्जा एवं संवेग में सम्बन्ध बताइये और इसकी सहायता से बताइये कि यदि हल्के एवं भारी पिण्डों के संवेग समान हैं तो किसकी गतिज ऊर्जा अधिक होगी?
उत्तर:
गतिज ऊर्जा,
\(K_i=\frac{1}{2} m v^2=\frac{m^2 v^2}{2 m}=\frac{p^2}{2 m}\)
या \(K=\frac{p^2}{2 m}\)
यदि P का मान नियत है, तो K ∝ \(\frac{1}{m}\)
स्पष्ट है कि हल्के पिण्ड ( कम द्रव्यमान m) की गतिज ऊर्जा अधिक होगी।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 6.
कार्य निर्देश तन्त्र पर किस प्रकार निर्भर करता है? समझाइये।
उत्तर:
कार्य, निर्देश तन्त्र पर निर्भर करता है क्योंकि निर्देश तन्त्र परिवर्तित होने से विस्थापन परिवर्तित हो जाता है। जैसे-यदि किसी बॉक्स जिसका द्रव्यमान है, को कोई व्यक्ति सिर पर रखकर ऊँचाई तक ले जाता है, तो व्यक्ति के सापेक्ष बॉक्स का विस्थापन शून्य होता है। अतः व्यक्ति के सापेक्ष कार्य शून्य होगा, लेकिन प्लेटफार्म पर खड़े व्यक्ति के लिए इसका मान Www.gh होता है क्योंकि प्लेटफार्म पर खड़े व्यक्ति के लिए बॉक्स का विस्थापन है।

प्रश्न 7.
स्थितिज ऊर्जा की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
ऊर्जा एवं ऊर्जा के रूप (Energy and Types of Energy) :
ऊर्जा एक विशेष प्रचलित शब्द है अर्थात् बिना ऊर्जा के कोई भी कार्य करना सम्भव नहीं है। मनुष्य इसे खाना खाकर, दूध पीकर, फल खाकर, फलों एवं सब्जियों का जूस पीकर ग्रहण करता है।

किसी वस्तु में उसकी विशेष स्थिति अथवा गति के कारण कार्य करने की क्षमता पायी जाती है। “वस्तु द्वारा कार्य की कुल क्षमता को ऊर्जा कहते है।’ किसी वस्तु में विद्यमान ऊर्जा का मापन उस कार्य से किया जाता है, जितना कि वह कर सकती है जबकि वह कार्य करने के योग्य न रहे। ऊर्जा कार्य के कुल परिमाण को बताती है।

जब कोई वस्तु या पिण्ड कार्य करता है तो उसकी ऊर्जा घटती हैं। किसी भी ऊर्जा की माप उस कार्य से होती है जो वह शून्य ऊर्जा वाली स्थिति में आने तक करती है। स्पष्ट है कि वस्तु द्वारा किया गया अधिकतम कार्य ही ऊर्जा की माप है।

ऊर्जा के वही मात्रक होते हैं जो कार्य के होते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय पद्धति में ऊर्जा का मात्रक जूल (J) होता है। ऊर्जा के अन्य मात्रक किलोवार घण्टा kWh तथा इलेक्ट्रॉन वोल्ट (eV) होते हैं।
1 kWh = 10³ × 1 Watt × 1 hour = 10³ J.s-1 × 3600 s
या 1 kWh = 3.6 × 106 J
1 eV = 1.6 × 10-19 C × 1 J.C-1
या 1 eV = 1.6 × 10-19 J

स्थितिज ऊर्जा की अवधारणा
(Concept of Potential Energy)
किसी कण या पिण्ड या तन्त्र की वह ऊर्जा है जो उसकी स्थिति या अभिविन्यास के कारण होती है, स्थितिज ऊर्जा कहलाती है।
यह धनात्मक या ऋणात्मक हो सकती है। स्थितिज ऊर्जा सदैव सम्पूर्ण निकाय की होती है।

प्रतिकर्षण बलों के कारण स्थितिज ऊर्जा का मान धनात्मक तथा आकर्षण बलों के कारण स्थितिज ऊर्जा का मान ऋणात्मक होता है।
जब कणों के बीच लगने वाला बल आकर्षण होता है तो उनके बीच दूरी बढ़ाने पर स्थितिज ऊर्जा बढ़ती है और जब कणों के बीच लगने वाला बल प्रतिकर्षण होता है तो उनके बीच की दूरी बढाने पर स्थितिज ऊर्जा घटती है।
आकर्षण तथा प्रतिकर्षण बलों के प्रभाव में स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तन चित्र 6.9 में दर्शाया है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -4

प्रश्न 8.
संरक्षी बलों को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
संरक्षी तथा असंरक्षी बल
(Conservative and Non-conservative Forces)
प्रथम परिभाषा-जब किसी कण पर एक या एक एक से अधिक
बल इस प्रकार कार्य करते हैं कि कण की अपनी प्रारम्भिक अवस्था में लौटने पर वही गतिज ऊर्जा रहती है, जो प्रारिम्भक अवस्था में थी, तो ये बल संरक्षी बल कहलाते है। गतिज ऊर्जा के मान में कमी होने पर बलों को असंरक्षी बल कहते हैं।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -5
द्वितीय परिभाषा : वे बल जिनके द्वारा पिण्ड को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक विस्थापित करने में किया गया कार्य पथ पर निर्भर नहीं करता है, संरक्षी बल कहलाते है। अर्थात् पथों 1,2 व 3 के लिये
W1 = W2 = W3
उदाहरणार्थ – गुरुत्वीय बल, प्रत्यास्थ बल आदि।
इसके विपरीत जिन बलों के प्रभाव में वस्तुऐं एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक विस्थापित करनें में कृत कार्य पथ पर निर्भर करता है, असंरक्षी बल कहलाते हैं अर्थात् इनके लिए
W1 ≠ W2 ≠ W3
उदाहरण के लिए – घर्षण बल, श्यान बल आदि।

तृतीय परिभाषा : किसी बल को किसी कण पर लगाने से एक एक पूर्ण चक्कर में बल द्वारा सम्पन्न कार्य शून्य हो तो बल को संरक्षी बल कहते हैं। यदि कुल कार्य का परिमाण शून्य नहीं है तो बल को असंरक्षी कहते हैं।

संरक्षी तथा असंरक्षी बलों के उदाहरण
(i) गुरुत्वीय बल संरक्षी बल है : यदि एक गेंद को पृथ्वी की सतह पर कुछ गतिज ऊर्जा देकर ऊर्ध्वाधर ऊपर की ओर फेंका जाए तो कुछ समय पश्चात वह पुन: पृथ्वी पर लौट आती है तथा उसकी गतिज ऊर्जा वही होती है जितनी ऊपर की ओर फेकते समय थी।

(ii) स्प्र्रग का प्रत्यास्थ बल संरक्षी बल है : माना पिण्ड द्रव्यमान रहित स्प्रिग के सिरे से जुड़ा है। स्प्रिग का दूसरा सिरा एक दीवार से जुड़ा है। स्प्रिग तथा गुटके का यह निकाय एक घर्षण रहित चिकने क्षैतिज धरातल पर रखा है। गुर्युके को दीवार की ओर कुछ विस्थापित करने पर स्प्रिग संपीडित होती है। स्प्रिग प्रत्यास्थता के कारण गुटके के विस्थापन के विपरीत दिशा में एक प्रत्यानयन बल आरोपित करती है। जिससे गुटका स्थिर हो जायेगा तथा उसकी गतिज ऊर्जा शून्य हो जाती है। अब संपीडित स्प्रिग विपरीत दिशा में प्रसारित होता है जिससे गुटका पूर्व गति के विपरीत दिशा में गतिशील होता है। जब गुटका अपनी प्रारस्भिक स्थिति में पहुँचता है तो उसका वेग तथा गतिज ऊर्जा प्रारम्भिक मान के बराबर होते हैं। अतः परिवर्तन के पूर्ण चक्र में गुटके की गतिज ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता है। इससे स्पष्ट होता है कि स्प्रिग का प्रत्यास्थ बल संरक्षी बल होता है।

(iii) घर्षण बल एवं श्यान बल : यदि क्षैतिज तल चिकना न हो अर्थात् घर्षण युक्त हो या गेंद पर वायु प्रतिरोधी श्यान बल करें तो गुटके या गेंद के प्रारम्भिक अवस्था में लौटकर आने पर उनकी गतिज ऊर्जा परिवर्तित हो जायेगी। स्पष्ट है कि घर्षण बल तथा श्यान बल असंरक्षी बल होते हैं।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 9.
टक्कर के लिए न्यूटन का नियम लिखिए।
उत्तर:
संघट्ट या टक्कर (Collision) :
किन्हीं दो पिण्ड़ों के मध्य अल्प समय के लिए पारस्परिक क्रिया (mutual interaction) का होना जिसके द्वारा पिण्ड़ों के संवेग तथा ऊर्जाएँ बदल जायें, संघट्ट कहलाता हैं अर्थात् “जब एक पिण्ड दूसरे पिण्ड की ओर गति करता है तो समीप आने अथवा अन्योन्य क्रिया के कारण उनकी गति में परिवर्तन होता है तो इस प्रक्रिया को संघट्ट या टक्कर कहते है।”

मुख्य तथ्य-
1. टक्कर में दो पिण्डों का परस्पर सम्पर्क में आना आवश्यक नहीं है। साधारणतः दो स्थूल पिण्ड टक्कर में एक-दूसरे को स्पर्श करते हैं। परन्तु सूक्ष्म कणों की टक्कर में उनके बीच स्पर्श नहीं होता है। उदाहरणार्थ-किसी गेंद तथा बल्ले के बीच टक्कर में स्पर्श होता हैं परन्तु नाभिक द्वारा α-कण के प्रकीर्णन में कोई स्पर्श नहीं होता है।
2. टक्कर की प्रक्रिया में पिणड़ों के रेखीय संवेगों में पुनर्वितरण होता हैं लेकिन कुल संवेग संरक्षित रहता है।
3. टक्कर में कुल ऊर्जा हमेशा संरक्षित रहती है।
4. यदि एक टक्कर में टकराने वाले कण टक्कर से पूर्ण तथा टक्कर के पश्चात् एक ही सरल रेखा के अनुदिश गतिशील हों, तो इसे सम्मुख टक्कर (Head on collision) कहते है। वे टक्कर एक विमीय कहलाती है, जबकि यदि टक्कर करने वाली वस्तुओं के वेग एक रेखा के अनुदिश नहीं होने तथा टक्कर से पूर्व और पश्चात् एक ही तल में स्थित होने पर टक्कर द्विविमीय कहलाती है। इसे तिर्यक टक्कर (Oblique collision) भी कहते हैं।

प्रश्न 10.
किसी वस्तु के संवेग में 50% की वृद्धि करें तो उसकी गतिज ऊर्जा में कितनी वृद्धि हो जायेगी ?
उत्तर:
गतिज ऊर्जा एवं संवेग में सम्बन्ध
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -6

प्रश्न 11.
तिर्यक टक्कर किसे कहते हैं?
उत्तर:
यदि टक्कर करने वाली वस्तुओं के वेग एक रेखा के अनुदिश नहीं होते हैं और टक्कर के पूर्व तथा पश्चात् एक ही तल में होते हैं। तो इस टक्कर को द्विविमीय टक्कर या तिर्यक टक्कर कहते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)

प्रश्न 1.
कार्य किसे कहते हैं? परिवर्ती बल द्वारा किया गया कार्य किस प्रकार ज्ञात करते हैं? समझाइये।
उत्तर:
अनुच्छेद 6.2 व 6.5 का अवलोकन कीजिए।
कार्य (Work) :
साधारण भाषा में कार्य शब्द किसी भी क्रिया को व्यक्त करता है जिसमें भौतिक या शारीरिक रूप से कोई कार्य सम्मिलित होता है। भौतिकी में कार्य का अर्थ अलग है। यदि किसी पिण्ड पर बल लगाया जाये और वह पिण्ड बल की दिशा में विस्थापित हो तो कहा जाता है कि कार्य किया गया है।

6.5. परिवर्तो बल के द्वारा किया गया कार्य (Work Done by Variable Force)
परिवर्ती बल की स्थिति में माना बिन्दु P पर बल \(\vec{F}\) द्वारा \(\vec{d} r\) विस्थापन देने में कृत कार्य
\(d W=\vec{F} \cdot \overrightarrow{d r}\)
या dW = Fdr cos θi …….(1)
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -7
यहाँ θi बिन्दु P पर \(\vec{F}\) व \(\vec{d}\) r के मध्य कोण है। \(\vec{d} r \)का मान इतना अत्यल्प है कि इस विस्थापन के लिये \(\vec{F}\) को नियत मान सकते हैं। इस प्रकार अल्प विस्थापन d r के संगत किया गया कार्य d W है। इस प्रकार सम्पूर्ण दूरी \(A \rightarrow B\) के लिये कृत कार्य ज्ञात करने के लिये सम्पूर्ण दूरी को अल्पांशों \(\Delta \overrightarrow{r_1}, \Delta \overrightarrow{r_2} \ldots\). इत्यादि में बाँट लेते हैं। ये अल्पांश इतने अल्प होने चाहिये कि इनके संगत बल को नियत माना जा सके। यदि इन अल्पांशों के संगत बलों के मान क्रमश: \(\vec{F}_1, \vec{F}_2, \vec{F}_3, \ldots\) इत्यादि हों, तो सम्पूर्ण विस्थापन में किया गया कार्य
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -8

प्रश्न 2.
गतिज ऊर्जा किसे कहते हैं? सिद्ध करें कि किसी पिण्ड की गतिज ऊर्जा mp” होती है? कार्य-कर्जा प्रमेय को समझाते हुए इसे व्युत्पन्न कीजिए।
उत्तर;
ऊर्जा एवं ऊर्जा के रूप (Energy and Types of Energy) :
ऊर्जा एक विशेष प्रचलित शब्द है अर्थात् बिना ऊर्जा के कोई भी कार्य करना सम्भव नहीं है। मनुष्य इसे खाना खाकर, दूध पीकर, फल खाकर, फलों एवं सब्जियों का जूस पीकर ग्रहण करता है।
किसी वस्तु में उसकी विशेष स्थिति अथवा गति के कारण कार्य करने की क्षमता पायी जाती है। “वस्तु द्वारा कार्य की कुल क्षमता को ऊर्जा कहते है।’ किसी वस्तु में विद्यमान ऊर्जा का मापन उस कार्य से किया जाता है, जितना कि वह कर सकती है जबकि वह कार्य करने के योग्य न रहे। ऊर्जा कार्य के कुल परिमाण को बताती है।

जब कोई वस्तु या पिण्ड कार्य करता है तो उसकी ऊर्जा घटती हैं। किसी भी ऊर्जा की माप उस कार्य से होती है जो वह शून्य ऊर्जा वाली स्थिति में आने तक करती है। स्पष्ट है कि वस्तु द्वारा किया गया अधिकतम कार्य ही ऊर्जा की माप है।

ऊर्जा के वही मात्रक होते हैं जो कार्य के होते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय पद्धति में ऊर्जा का मात्रक जूल (J) होता है। ऊर्जा के अन्य मात्रक किलोवार घण्टा kWh तथा इलेक्ट्रॉन वोल्ट (eV) होते हैं।
1 kWh = 10³ × 1 Watt × 1 hour = 10³ J.s-1 × 3600 s
या 1 kWh = 3.6 × 106 J
1 eV = 1.6 × 10-19 C × 1 J.C-1
या 1 eV = 1.6 × 10-19 J

कार्य-ऊर्जा प्रमेय (Work-Energy Theorem)
कथन-
” किसी बल द्वारा क्षैतिज तल पर एक वस्तु को विस्थापित करने में कृत कार्य उसकी गतिज ऊर्जा में वृद्धि के बराबर होता है।’ अर्थात्
W = ∆K
नियत बल के लिए कार्य-ऊर्जा प्रमेय-माना कोई कण जिसका द्रव्यमान m है, किसी क्षण प्रारम्भिक वेग \(\vec{u}\) से गतिमान है। अब यदि कोई बल \(\vec{F}\) उस पर गति की दिशा में लगाने से वस्तु का s दूरी तय करने के बाद अन्तिम वेग \(\vec{v}\) हो जाता है तथा वस्तु में उत्पन्न त्वरण \(\vec{a}\) है, तो गति के तृतीय नियम को सदिश रूप से लिखने पर
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -9
अत: किसी वस्तु पर लगाये गये कुल बल द्वारा सम्पन्न कार्य, वस्तु की दो विशिष्ट अवस्थाओं में विद्यमान गतिज ऊर्जाओं के अन्तर के बराबर होता है। यही कार्य-ऊर्जा प्रमेय है। स्पष्ट है कि-
(i) यदि W > 0 तो (Kf – Ki) >0 या Kf > Ki अर्थात् यदि सम्पन्न कार्य धनात्मक है तो अन्तिम गतिज ऊर्जा प्रारम्भिक गतिज ऊर्जा से अधिक होगी।
(ii) यदि W < 0 तो (Kf – Ki) < 0 या Kf < Ki अर्थात् यदि सम्पन्न कार्य ऋणात्मक है तो अन्तिम गतिज ऊर्जा प्रारिम्भक गतिज ऊर्जा से कम होगी।

परिवर्ती बल के अन्तर्गत कार्य ऊर्जा प्रमेय –
गतिज ऊर्जा \(K=\frac{1}{2} m v^2\)
गतिज ऊर्जा में परिवर्तन की दर
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -10
इस प्रकार परिवर्ती बल के लिए कार्य-ऊर्जा प्रमेय सिद्ध होती है। वास्तव में यह न्यूटन के द्वितीय का समालकन रूप है।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 3.
ऊर्जा किसे कहते हैं? यांत्रिक ऊर्जा कितने प्रकार की होती है? यांत्रिक ऊर्जा का संरक्षण गुणत्व के अधीन स्वतंत्रतापूर्वक गिरते पिण्ड का उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
ऊर्जा एवं ऊर्जा के रूप (Energy and Types of Energy) :
ऊर्जा एक विशेष प्रचलित शब्द है अर्थात् बिना ऊर्जा के कोई भी कार्य करना सम्भव नहीं है। मनुष्य इसे खाना खाकर, दूध पीकर, फल खाकर, फलों एवं सब्जियों का जूस पीकर ग्रहण करता है।

किसी वस्तु में उसकी विशेष स्थिति अथवा गति के कारण कार्य करने की क्षमता पायी जाती है। “वस्तु द्वारा कार्य की कुल क्षमता को ऊर्जा कहते है।’ किसी वस्तु में विद्यमान ऊर्जा का मापन उस कार्य से किया जाता है, जितना कि वह कर सकती है जबकि वह कार्य करने के योग्य न रहे। ऊर्जा कार्य के कुल परिमाण को बताती है।

जब कोई वस्तु या पिण्ड कार्य करता है तो उसकी ऊर्जा घटती हैं। किसी भी ऊर्जा की माप उस कार्य से होती है जो वह शून्य ऊर्जा वाली स्थिति में आने तक करती है। स्पष्ट है कि वस्तु द्वारा किया गया अधिकतम कार्य ही ऊर्जा की माप है।

ऊर्जा के वही मात्रक होते हैं जो कार्य के होते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय पद्धति में ऊर्जा का मात्रक जूल (J) होता है। ऊर्जा के अन्य मात्रक किलोवार घण्टा kWh तथा इलेक्ट्रॉन वोल्ट (eV) होते हैं।
1 kWh = 10³ × 1 Watt × 1 hour = 10³ J.s-1 × 3600 s
या 1 kWh = 3.6 × 106 J
1 eV = 1.6 × 10-19 C × 1 J.C-1
या 1 eV = 1.6 × 10-19 J

यान्त्रिक ऊर्जा संरक्षण का नियम (Law of Conservation of Mechanical Energy) :
संरक्षी बलों (Conservative forces) की उपस्थिति में किसी पिण्ड अथवा निकाय की यात्त्रिक ऊर्जा अर्थात् गतिज ऊर्जा एवं स्थितिज ऊर्जा का योग नियत रहता है। यही यान्त्रिक ऊर्जा के संरक्षण का नियम है।
हम जानते हैं कि किसी निकाय पर संरक्षी बल लगाने पर उसके विन्यास में परिवर्तन होता है और इस निकाय की गतिज ऊर्जा ∆K से बदल जाती है। संरक्षी बल की परिभाषा के अनुसार निकाय की स्थितिज ऊर्जा में भी बराबर व विपरीत मात्रा में परिवर्तन होना चाहिए, जिससे कि दोनों परिवर्तनों का योग शून्य हो जाये अर्थात्
∆U = -∆K
या ∆U + ∆K = 0
या U + K = नियतांक ……………(1)
अत: संरक्षी बलों की उपस्थिति में किसी निकाय की गतिज ऊर्जा K में परिवर्तन, निकाय की स्थितिज ऊर्जा U में बराबर व विपरीत परिवर्तन के तुल्य होता है और गतिज एवं स्थितिज ऊर्जा का योग सदैव नियत रहता है।

यह नियम असंरक्षीय बल (अर्थात् क्षयकारी बल) जैसे-घर्षण बल के लिए लागू नहीं होता है क्योंकि असंरक्षी बलों (Non conservative forces) के कारण यान्त्रिक ऊर्जा का कुछ भाग ध्वनि, ऊष्मा, प्रकाश या अन्य प्रकार की ऊर्जाओं में परिवर्तित हो जाता है।

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प्रश्न 4.
स्प्रिंग नियतांक वाली एक प्रत्यास्थ स्प्रिंग को x दूरी तक संपीडित किया जाता है, दशांइये कि स्थितिज ऊर्जा \(\frac{1}{2}\)Kx² होती है।
उत्तर:
यान्त्रिक ऊर्जा संरक्षण का नियम (Law of Conservation of Mechanical Energy) :
संरक्षी बलों (Conservative forces) की उपस्थिति में किसी पिण्ड अथवा निकाय की यात्त्रिक ऊर्जा अर्थात् गतिज ऊर्जा एवं स्थितिज ऊर्जा का योग नियत रहता है। यही यान्त्रिक ऊर्जा के संरक्षण का नियम है।
हम जानते हैं कि किसी निकाय पर संरक्षी बल लगाने पर उसके विन्यास में परिवर्तन होता है और इस निकाय की गतिज ऊर्जा ∆K से बदल जाती है। संरक्षी बल की परिभाषा के अनुसार निकाय की स्थितिज ऊर्जा में भी बराबर व विपरीत मात्रा में परिवर्तन होना चाहिए, जिससे कि दोनों परिवर्तनों का योग शून्य हो जाये अर्थात्
∆U = -∆K
या ∆U + ∆K = 0
या U + K = नियतांक ……………(1)
अत: संरक्षी बलों की उपस्थिति में किसी निकाय की गतिज ऊर्जा K में परिवर्तन, निकाय की स्थितिज ऊर्जा U में बराबर व विपरीत परिवर्तन के तुल्य होता है और गतिज एवं स्थितिज ऊर्जा का योग सदैव नियत रहता है।

यह नियम असंरक्षीय बल (अर्थात् क्षयकारी बल) जैसे-घर्षण बल के लिए लागू नहीं होता है क्योंकि असंरक्षी बलों (Non conservative forces) के कारण यान्त्रिक ऊर्जा का कुछ भाग ध्वनि, ऊष्मा, प्रकाश या अन्य प्रकार की ऊर्जाओं में परिवर्तित हो जाता है।

प्रश्न 5.
सिद्ध कीजिए कि दो समान द्रव्यमान की एक ही रेखा में गतिशील गेंदों के मध्य होने वाली प्रत्यास्थ टक्कर में गेंदे अपने वेगों को परस्पर बदल लेती हैं।
उत्तर:
एक विमीय प्रत्यास्थ टक्कर (One Dimensional Elastic Collision) :
माना चित्र में m1 व m2 द्रव्यमान के दो पिण्ड क्रमशः \(\overrightarrow{u_1}\) व \overrightarrow{u_2}[/latex] नियत वेगों \(\left(\vec{u}>\overrightarrow{u_2}\right)\) से एक सरल रेखा में चलते हुए प्रत्यास्थ रूप से टकराते हैं और टक्कर के बाद के उसी दिशा में क्रमश: \(\overrightarrow{v_1}\) व \(\overrightarrow{v_2}\) वेग से गति करते हैं।

प्रत्यास्थ टक्कर में ऊर्जा एवं संवेग दोनों संरक्षित रहते हैं। अतः संवेग संरक्षण के नियम से-
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -11
इस प्रकार एक विमीय सम्मुख प्रत्यास्थ टक्कर में टक्कर के पूर्व कणों के समीप आने का आपेक्षिक वेग (u1 – u2) टक्कर के पश्चात् उनके दूर जाने के आपेक्षिक वेग (v2 – v1) के बराबर होता है अत: इस टक्कर के लिए प्रत्यावस्थान गुणांक
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -12

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 6.
दो विमीय टक्कर का वर्णन कीजिए। इस प्रकार की टक्कर में कणों के अन्तिम वेग किस प्रकार ज्ञात किये जाते हैं?
उत्तर:
द्विविमीय टक्कर अथवा तिर्यक टक्कर (Two Dimensional Collision or Oblique Collision) :
टक्कर के पश्चात् यदि टकराने वाली वस्तुओं के वेग एक रेखा के अनुदिश नहीं रहते तथा टक्कर के पूर्व व पश्चात् उनके तल समान रहते हैं तो इस प्रकार की टक्कर को द्विविमीय टक्कर कहते हैं। इसे तिर्यक टक्कर (oblique collision) भी कहते हैं।
चित्र में माना m1 द्रव्यमान का पिण्ड u1 वेग से चलते हुये m2 द्रव्यमान के स्थिर पिण्ड (u2 = 0) से टकराता है और टक्कर के पश्चात् वे मूल दिशा से क्रमशः θ व ϕ कोणों पर समान तल में गति करते हैं। अतः सदिश निरुपण में
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -13

प्रश्न 7.
बल विस्थापन ग्राफ की सहायता से कार्य का आंकलन किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
परिवर्तो बल के द्वारा किया गया कार्य (Work Done by Variable Force)
परिवर्ती बल की स्थिति में माना बिन्दु P पर बल \(\vec{F}\) द्वारा \(\vec{d} r\) विस्थापन देने में कृत कार्य
\(d W=\vec{F} \cdot \overrightarrow{d r}\)
या dW = Fdr cos θi …….(1)
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -7.1
यहाँ θi बिन्दु P पर \(\vec{F}\) व \(\vec{d}\) r के मध्य कोण है। \(\vec{d} r \)का मान इतना अत्यल्प है कि इस विस्थापन के लिये \(\vec{F}\) को नियत मान सकते हैं। इस प्रकार अल्प विस्थापन d r के संगत किया गया कार्य d W है। इस प्रकार सम्पूर्ण दूरी \(A \rightarrow B\) के लिये कृत कार्य ज्ञात करने के लिये सम्पूर्ण दूरी को अल्पांशों \(\Delta \overrightarrow{r_1}, \Delta \overrightarrow{r_2} \ldots\). इत्यादि में बाँट लेते हैं। ये अल्पांश इतने अल्प होने चाहिये कि इनके संगत बल को नियत माना जा सके। यदि इन अल्पांशों के संगत बलों के मान क्रमश: \(\vec{F}_1, \vec{F}_2, \vec{F}_3, \ldots\) इत्यादि हों, तो सम्पूर्ण विस्थापन में किया गया कार्य
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -8.1

प्रश्न 8.
यांत्रिक ऊर्जा संरक्षण नियम क्या है? प्रत्यास्थ स्प्रिंग लोलक का उदाहरण देकर समझाइये।
उत्तर:
यान्त्रिक ऊर्जा संरक्षण का नियम (Law of Conservation of Mechanical Energy) :
संरक्षी बलों (Conservative forces) की उपस्थिति में किसी पिण्ड अथवा निकाय की यात्त्रिक ऊर्जा अर्थात् गतिज ऊर्जा एवं स्थितिज ऊर्जा का योग नियत रहता है। यही यान्त्रिक ऊर्जा के संरक्षण का नियम है।

हम जानते हैं कि किसी निकाय पर संरक्षी बल लगाने पर उसके विन्यास में परिवर्तन होता है और इस निकाय की गतिज ऊर्जा ∆K से बदल जाती है। संरक्षी बल की परिभाषा के अनुसार निकाय की स्थितिज ऊर्जा में भी बराबर व विपरीत मात्रा में परिवर्तन होना चाहिए, जिससे कि दोनों परिवर्तनों का योग शून्य हो जाये अर्थात्
∆U = -∆K
या ∆U + ∆K = 0
या U + K = नियतांक ……………(1)
अत: संरक्षी बलों की उपस्थिति में किसी निकाय की गतिज ऊर्जा K में परिवर्तन, निकाय की स्थितिज ऊर्जा U में बराबर व विपरीत परिवर्तन के तुल्य होता है और गतिज एवं स्थितिज ऊर्जा का योग सदैव नियत रहता है।

(B) प्रत्यास्थ स्प्रिंग में यांत्रिक ऊर्जा संरक्षण (Mechanical energy consevnation in elastic spring):
स्प्रिग बल भी संरक्षी परिवर्ती बल का उदाहरण है। चित्र में एक स्प्रिग जिसका बल नियतांक k है, दर्शाया है जिसका दूसरा सिरा किसी दृढ़ दीवार से जुड़ा है। स्प्रिग को द्रव्यमान रहित माना जा सकता है। स्प्रिग के लिए आदर्श स्थिति में बल का नियम निम्न है-

इसे हुक का नियम भी कहते हैं।
(i) जब गुटके को बाहर की ओर खींचते हैं तो विस्थापन x है। स्प्रिग बल द्वारा किया गया कार्य
\(W=\int_0^x F_x d x=-\int_0^x k x d x\)
\(W=-\frac{k x^2}{2}\)
यदि स्प्रिग को संपीडित किया जाता है तब भी उपर्युक्त व्यंजक सत्य है। परन्तु इस स्थिति में स्प्रिग बल धनात्मक होता है।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -14
किस स्प्रिग के गुटके को xi से पुन: xi तक आने दिया जाए तो किया गया कार्य
\(W=-\int_{x_i}^{x_i} k x d x=0\)
अर्थात् पूर्ण चक्र में किया गया कार्य शून्य होगा। अत: स्प्रिग बल एक संरक्षी बल है।
जब स्प्रिग को x दूरी संपीडित किया जाता है तो स्थितिज ऊर्जा
\(U_{(x)}=\frac{1}{2} k x^2\)
यांत्रिक ऊर्जा संरक्षण के नियम से गुटके की चाल v हो तो गतिज ऊर्जा साम्यावस्था (xm = 0) पर अधिकतम होगी।
\(K=\frac{1}{2} m v_m^2=\frac{1}{2} k x_m^2\)

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 9.
संरक्षी व असंरक्षी बलों से क्या अभिप्राय है? समझाकर लिखिए।
उत्तर:
संरक्षी तथा असंरक्षी बल (Conservative and Non-conservative Forces) :
प्रथम परिभाषा-जब किसी कण पर एक या एक एक से अधिक-
बल इस प्रकार कार्य करते हैं कि कण की अपनी प्रारम्भिक अवस्था में लौटने पर वही गतिज ऊर्जा रहती है, जो प्रारिम्भक अवस्था में थी, तो ये बल संरक्षी बल कहलाते है। गतिज ऊर्जा के मान में कमी होने पर बलों को असंरक्षी बल कहते हैं।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -5
द्वितीय परिभाषा : वे बल जिनके द्वारा पिण्ड को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक विस्थापित करने में किया गया कार्य पथ पर निर्भर नहीं करता है, संरक्षी बल कहलाते है। अर्थात् पथों 1,2 व 3 के लिये
W1 = W2 = W3
उदाहरणार्थ – गुरुत्वीय बल, प्रत्यास्थ बल आदि।
इसके विपरीत जिन बलों के प्रभाव में वस्तुऐं एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक विस्थापित करनें में कृत कार्य पथ पर निर्भर करता है, असंरक्षी बल कहलाते हैं अर्थात् इनके लिए
W1 ≠ W2 ≠ W3
उदाहरण के लिए – घर्षण बल, श्यान बल आदि।

तृतीय परिभाषा : किसी बल को किसी कण पर लगाने से एक एक पूर्ण चक्कर में बल द्वारा सम्पन्न कार्य शून्य हो तो बल को संरक्षी बल कहते हैं। यदि कुल कार्य का परिमाण शून्य नहीं है तो बल को असंरक्षी कहते हैं।

संरक्षी तथा असंरक्षी बलों के उदाहरण
(i) गुरुत्वीय बल संरक्षी बल है : यदि एक गेंद को पृथ्वी की सतह पर कुछ गतिज ऊर्जा देकर ऊर्ध्वाधर ऊपर की ओर फेंका जाए तो कुछ समय पश्चात वह पुन: पृथ्वी पर लौट आती है तथा उसकी गतिज ऊर्जा वही होती है जितनी ऊपर की ओर फेकते समय थी।

(ii) स्प्र्रग का प्रत्यास्थ बल संरक्षी बल है : माना पिण्ड द्रव्यमान रहित स्प्रिग के सिरे से जुड़ा है। स्प्रिग का दूसरा सिरा एक दीवार से जुड़ा है। स्प्रिग तथा गुटके का यह निकाय एक घर्षण रहित चिकने क्षैतिज धरातल पर रखा है। गुर्युके को दीवार की ओर कुछ विस्थापित करने पर स्प्रिग संपीडित होती है। स्प्रिग प्रत्यास्थता के कारण गुटके के विस्थापन के विपरीत दिशा में एक प्रत्यानयन बल आरोपित करती है। जिससे गुटका स्थिर हो जायेगा तथा उसकी गतिज ऊर्जा शून्य हो जाती है। अब संपीडित स्प्रिग विपरीत दिशा में प्रसारित होता है जिससे गुटका पूर्व गति के विपरीत दिशा में गतिशील होता है। जब गुटका अपनी प्रारस्भिक स्थिति में पहुँचता है तो उसका वेग तथा गतिज ऊर्जा प्रारम्भिक मान के बराबर होते हैं। अतः परिवर्तन के पूर्ण चक्र में गुटके की गतिज ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता है। इससे स्पष्ट होता है कि स्प्रिग का प्रत्यास्थ बल संरक्षी बल होता है।

(iii) घर्षण बल एवं श्यान बल : यदि क्षैतिज तल चिकना न हो अर्थात् घर्षण युक्त हो या गेंद पर वायु प्रतिरोधी श्यान बल करें तो गुटके या गेंद के प्रारम्भिक अवस्था में लौटकर आने पर उनकी गतिज ऊर्जा परिवर्तित हो जायेगी। स्पष्ट है कि घर्षण बल तथा श्यान बल असंरक्षी बल होते हैं।

प्रश्न 10.
शक्ति से आप क्या समझते हैं? इसके मात्रक की परिभाषा कीजिए।
उत्तर:
शक्ति (Power) :
“किसी मशीन या यन्त्र द्वारा कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं।”
यदि यन्त्र द्वारा ∆t समय में कृत कार्य ∆W है, तो औसत शक्ति
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -15
अर्थात् बल तथा वेग का अदिश गुणनफल शक्ति प्रदान करता है। यदि θ = 0° अर्थात् बल एवं वेग समान दिशा में है, तो
cos θ = 1
∴ P = F.v
मात्रक एवं विमीय सूत्र-मात्रक :
∵ P = F.v = \(\frac{W}{t}\)
∴ P का मात्रक = \(\frac{J}{s}\) = वाट (Watt)
यदि W = 1 J, t = 1 s, तो P = 1 वाट
अर्थात् यदि कोई मशीन 1 s में 1 J कार्य करती है तो उसकी शक्ति 1 वाट होती है।
विद्युत् उपकरणों में शक्ति किलोवाट (kwatt) में नापी जाती है।
∴ 1 kW = 1000 Js-1 या वाट
व्यवहारिक मात्रक अश्वशक्ति (H.P.) = 746 वाट
विमीय सूत्र ∵ P = \(\frac{W}{t}\)
∴ P का विमीय सूत्र = \(\frac{\left[\mathrm{M}^1 \mathrm{~L}^2 \mathrm{~T}^{-2}\right]}{\left[\mathrm{T}^1\right]}=\left[\mathrm{M}^1 \mathrm{~L}^2 \mathrm{~T}^{-3}\right]\)

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति

प्रश्न 11.
प्रत्यावस्थान गुणांक से क्या अभिप्राय है? विभिन्न प्रकार की टक्करों के लिए इसके मानों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
प्रत्यावस्थान गुणांक (Coefficient of Restitution):
“न्यूटन के अनुसार टक्कर के पश्चात् कणों के दूर आने आपेक्षिक वेग तथा टक्कर के पूर्व उनके समीप आने के आपेक्षिक वे का अनुपात नियत रहता है। यह नियतांक प्रत्यावस्थान गुणां कहलाता है।” इसे e से व्यक्त करते हैं।
अत: \(e=\frac{v_2-v_1}{u_1-u_2}\)
या \(\left(v_2-v_1\right)=e\left(u_1-u_2\right)\)
जहाँ v2 – v1= टक्कर के पश्चात् दूर जाने का आपेक्षिक वेग u1 – u1 = टक्कर के पूर्व समीप आने का आपेक्षिक वेग
e का मान शून्य से 1 के मध्य होता है अर्थात् 0 ≤ e ≤ 1

e का मान के आधार पर टक्करों के प्रकार-

  • प्रत्यास्थ टक्कर के लिए e = 1
  • अप्रत्यास्थ टक्कर के लिए 0 < e < 1
  • पूर्ण अप्रत्यास्थ टक्कर के लिए e = 0

सुमेलन सम्बन्धित प्रश्न (Matrix Match Type Questions)

प्रश्न 1.
स्तम्भ I में कुछ राशियाँ एवं स्तम्भ II में उनके दिये गये हैं। स्तम्भ I को स्तम्भ II से सुमेलित कीजिए।

स्तम्भ – I स्तम्भ – II
(A) किसी बल द्वारा कृत कार्य (p) शून्य
(B) गतिज ऊर्जा एवं संवेग में सम्बन्ध (q) 1
(C) प्रत्यास्थ टक्कर के लिए प्रत्यावस्थान गुणांक का मान (r) p = √2mk
(D) पूर्णतः अप्रत्यास्थ टक्कर के लिए प्रत्यावस्थान गुणांक का मान (s) \(\vec{F} \cdot \vec{s}\)
(t) \(\int_{x_1}^{x_2} F d x\)

उत्तर:

स्तम्भ – I स्तम्भ – II
(A) किसी बल द्वारा कृत कार्य (s) \(\vec{F} \cdot \vec{s}\), (t) \(\int_{x_1}^{x_2} F d x\)
(B) गतिज ऊर्जा एवं संवेग में सम्बन्ध (r) p = √2mk
(C) प्रत्यास्थ टक्कर के लिए प्रत्यावस्थान गुणांक का मान (q) 1
(D) पूर्णतः अप्रत्यास्थ टक्कर के लिए प्रत्यावस्थान गुणांक का मान (p) शून्य

आंकिक प्रश्न (Numerical Questions )

कार्य पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी निकाय पर तीन बल है \(\vec{F}_1=(2 \hat{i}+3 \hat{j}+4 \hat{k})\); \(\vec{F}_2=(\hat{i}+\hat{j}+\hat{k})\) तथा \(\vec{F}_3=(3 \hat{i}-2 \hat{j}-\hat{k})\) एक ही दिशा में कार्य कर रहे हैं। ये यल निकाय को बिन्दु (2, 3, 6) से बिन्दु (5, 3, 8) तक विस्थापित कर देते हैं। इस स्थिति में बल द्वारा किये गये कार्य की गणना कीजिए।
उत्तर:
26 मात्रक

प्रश्न 2.
नियत बल के अन्तर्गत गतिमान एक कण के विस्थापन तथा समय के बीच सम्बन्ध √x + 3 है, जहाँ x मीटर में एवं सेकण्ड में है। ज्ञात कीजिए-
(i) कण का उस क्षण विस्थापन जब इसका वेग शून्य है,
(ii) पहले 65 में बल द्वारा किया गया कार्य।
उत्तर:
(i) शून्य
(ii) शून्य

प्रश्न 3.
एक स्प्रिंग जिसका बल नियतांक है, हुक के नियम का पालन करती है। इसको मूल लम्बाई से 10 cm खींचने में 4 जूल कार्य की आवश्यकता होती है। गणना करें-
(i) A का मान,
(ii) इसे अतिरिक्त 10 cm लम्बाई तक खींचने में कृत कार्य।
उत्तर:
(i) 800 Nmal,
(ii) 123

प्रश्न 4.
एक 6 kg का पत्थर जिसका घनत्व 2g .cm-3 है, पानी में डूबा हुआ है। इसे पानी के अन्दर 4m गहराई से 1 m की गहराई तक उठाने में किये गये कार्य की गणना कीजिए ।
उत्तर:
90 J

ऊर्जा पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 5.
चित्र में ABC एक चिकना वक्रीय पथ है जिसका 8 से आगे का भाग त्रिज्या के उर्ध्व वृत्त के रूप में है। इस पथ पर एक गेंद को किस न्यूनतम ऊँचाई से छोड़ा जाये कि वह पथ के सम्पर्क में रहते हुए उच्चतम बिन्दु C को पार कर ले?
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 6 कार्य, ऊर्जा और शक्ति -16
उत्तर:
h = (\(\frac{5}{2}\)) r

प्रश्न 6.
एक गेंद 10m की ऊंचाई से प्रारम्भिक वेग μ0 से नीचे की ओर फेंकी जाती है। यह पृथ्वी से टकराने पर 50% ऊर्जा खो देती है। तथा फिर उसी ऊँचाई तक उठती है। ज्ञात कीजिए-
(i) प्रारम्भिक वेग μ0
(ii) यदि प्रारम्भिक स्थिति नीचे न होकर ऊपर को हो तो पृथ्वी से टकराने के बाद गेंद कितनी ऊपर उठेगी?
उत्तर:
(i) 14 ms-1
(ii) 10 m

प्रश्न 7.
एक 50 kg भार का व्यक्ति एक 15 kg भार की वस्तु को अपने सिर पर उठाता है। यदि वह 20 m की दूरी तय करता है, तो उसके द्वारा किया गया कार्य ज्ञात कीजिए-
(a) क्षैतिज तल पर;
(b) 5 में 1 से झुके हुए तल पर [ g = 10 ms-2]
उत्तर:
(a) शून्य
(b) 2600 J

शक्ति पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 8.
एक पेट्रोल चालित पानी का पम्प, 30m गहराई से 0.50m³ min-1 की दर से पानी खींचता है। यदि पम्प की दक्षता 70% है, तो इंजन द्वारा जनित शक्ति ज्ञात कीजिए। (g = 10 ms-2 तथा पानी का घनत्व 10³ kg ):
उत्तर:
3500 वाट

प्रश्न 9.
एक ट्यूबवेल प्रति मिनट 2400 kg पानी खींचता है। यदि पाइप से पानी 3 ms-1 के वेग से बाहर निकलता है तो पम्प की शक्ति ज्ञात कीजिए 10 घण्टे में पम्प कितना कार्य करता है? (g = 10 ms-2 )।
उत्तर:
180 W; 6.48 × 106 J

प्रश्न 10.
एक मोटर वोट 36 km hr-1 की नियत चाल से गतिशील है। यदि नाव की गति के विरुद्ध प्रतिरोध 4000 N है, तो इंजन की शक्ति ज्ञात कीजिए ।
उत्तर:
40 kW

संघट्ट पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 11.
10 kg द्रव्यमान के एक पिण्ड की जिसका वेग 5ms-1 है। एक अन्य 10 kg द्रव्यमान के अन्य पिण्ड से जो विरामावस्था में है, सम्मुख प्रत्यास्थी टक्कर होती है। टक्कर के बाद दोनों पिण्डों के वेग ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
v1 = 0, v2 = 5 ms-1

प्रश्न 12.
एक प्रोटॉन 500 ms-1 के वेग से गति करते हुए दूसरे प्रोटॉन से जो विरामावस्था में है, प्रत्यास्थ संघट्ट करता है। संघ के पश्चात् पहला प्रोटॉन अपनी प्रारम्भिक गति की दिशा से 60° कोण पर प्रकीर्णित हो जाता है। दूसरे प्रोटॉन की संघट्ट के बाद गति की दिशा क्या होगी ? संघट्ट के पश्चात् दोनों प्राटोंनों की चाल क्या होगी ?
उत्तर:
प्रथम प्रोटॉन की प्रारम्भिक गति की दिशा से 30° कोण पर; 250 ms-1 व 433 ms-1

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 3 मानव जनन

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 3 मानव जनन Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Important Questions Chapter 3 मानव जनन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. वृषण की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है-
(अ) वृक्क नलिकाएँ
(स) एपीडिडाइमिस
(ब) शुक्रजनन नालिकाएँ
(द) मुलेरियन नलिकाएँ
उत्तर:
(ब) शुक्रजनन नालिकाएँ

2. बुम्ब किसे कहते हैं-
(अ) योनि
(ब) बच्चादानी
(द) भगशेफ
(स) भग
उत्तर:
(ब) बच्चादानी

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 3 मानव जनन

3. स्त्रियों में अण्डाणु बनना किस आयु में बंद हो जाता है-
(अ) 13 वर्ष
(ब) 20 वर्ष
(स) 40 वर्ष
(द) 50 वर्ष
उत्तर:
(द) 50 वर्ष

4. वृषणकोष में उदर गुहा की तुलना में कितने ताप की कमी होती है-
(अ) 2-2.50 C
(ब) 5°C
(स) 6°C
(द) 13° C
उत्तर:
(अ) 2-2.50 C

5. मानव में सगर्भता की अवधि है-
(अ) 15 महीने
(ब) 9 महीने
(स) 12 महीने
(द) 18 महीने
उत्तर:
(ब) 9 महीने

6. कोरकपुटी (ब्लास्टोसिस्ट) गर्भाशय के कौनसे स्तर में अन्तःस्थापित होती है-
(अ) परिगर्भाशय
(ब) गर्भाशय पेशी स्तर
(स) गर्भाशय अन्त:स्तर
(द) अध: श्लेष्मिका
उत्तर:
(स) गर्भाशय अन्त:स्तर

7. प्रति आर्तव चक्र में अण्डोत्सर्ग के दौरान कितने अण्डाणु मोचित होते हैं-
(अ) एक
(ब) दो
(स) तीन
(द) चार
उत्तर:
(अ) एक

8. एक शिशु के लिंग का निर्धारण निम्न में से किसके द्वारा होता है-
(अ) पिता
(ब) माता
(स) भाई
(द) बहन
उत्तर:
(अ) पिता

9. शुक्राणुओं का निर्माण निम्न में किस अंग में होता है-
(अ) वृषण
(ब) अधिवृषण
(स) शुक्रवाहिनी
(द) प्रोस्टेट ग्रन्थि
उत्तर:
(अ) वृषण

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 3 मानव जनन

10. 8 से 16 कोरक खण्डों वाले भ्रूण को क्या कहते हैं-
(अ) तूतक (मोरुला)
(ब) ब्लास्टूला
(स) कोरकपुटी
(द) अंतर्रोपण
उत्तर:
(अ) तूतक (मोरुला)

11. आर्तव चक्र के दौरान रक्तस्राव कितने दिन तक चलता रहता है-
(अ) 10-15 दिन
(ब) 3-5 दिन
(स) 20-25 दिन
(द) उपर्युक्त में कोई नहीं ।
उत्तर:
(ब) 3-5 दिन

12. ग्रेफियन पुटक (Graffian Follicle) का फटना व अण्डाणु का मुक्त होना कहलाता है
(अ) संयुग्मन
(ब) केस्ट्रेशन
(स) क्रिप्टोडि
(द) अण्डोत्सर्ग
उत्तर:
(द) अण्डोत्सर्ग

13 तरुणावस्था (Puberty) में पहली बार रजस्राव (Menstruation) कहलाता है-
(अ) रजोदर्शन
(ब) रजोनिवृत्ति
(स) कामोन्माद
(द) क्रिप्टोकिंडिज्म
उत्तर:
(अ) रजोदर्शन

14. HCGC (ह्यूमन कोरिओनिक गोनेडोट्रॉपिन) का स्रावण होता है-
(अ) सरोली कोशिकाओं से
(ब) डिस्कस प्रालिजेरस
(स) अपरा (Placenta ) से
(द) पुटक कोशिकाओं से
उत्तर:
(स) अपरा (Placenta ) से

15. वृषण उदरगुहा के बाहर एक थैली में स्थित होते हैं जिसे कहते हैं-
(अ) वृषणकोष
(स) शुक्राशय
(ब) अधिवृषण
(द) अण्डाशय
उत्तर:
(अ) वृषणकोष

16. नर जर्म कोशिकाएँ किस विभाजन के फलस्वरूप शुक्राणुओं का निर्माण होता है?
(अ) अर्धसूत्री विभाजन
(ब) समसूत्री विभाजन
(स) असूत्री विभाजन
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) अर्धसूत्री विभाजन

17. पुरुष लिंग की सहायक ग्रन्थि है-
(अ) शुक्राशय
(ब) प्रोस्टेट ग्रन्थि
(स) बल्बोयूरेथ्रल ग्रन्थि
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

18. शुक्राणुजनन के पश्चात् शुक्राणु हो जाता शीर्ष किन कोशिकाओं में अन्तःस्थापित है?
(अ) स्ट्रोमा में
(ब) ध्रुव कोशिकाओं में
(स) सर्टोली कोशिकाओं में
(द) थीका इन्टरना में
उत्तर:
(स) सर्टोली कोशिकाओं में

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 3 मानव जनन

19. शुक्राणुओं की पूंछ को गति करने के लिए ऊर्जा किससे प्राप्त होती है?
(अ) गॉल्जीकाय
(ब) माइटोकॉन्ड्रिया
(स) लाइसोसोम
(द) केन्द्रक
उत्तर:
(ब) माइटोकॉन्ड्रिया

20. रजोधर्म की अनुपस्थिति किसका संकेत देती है?
(अ) गर्भपात का
(स) आर्तव चक्र का
(ब) गर्भधारण का
(द) मद चक्र का
उत्तर:
(ब) गर्भधारण का

21. मानव में एक महीने की सगर्भता के बाद भ्रूण अंग विकसित होता है
(अ) हृदय
(ब) पाद् व अंगुलियाँ
(स) बालों का
(द) बाह्य जननाँग
उत्तर:
(अ) हृदय

22. अपरा (प्लैसेंटा) का निम्न में से कार्य है-
(अ) पोषण
(ब) उत्सर्जन
(स) श्वसन
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

23. शुक्राणुओं के साथ-साथ शुक्राणु प्लाज्मा मिलकर बनाता है-
(अ) वीर्य
(ब) हॉर्मोन
(स) एंजाइम
(द) क्षारीय द्रव
उत्तर:
(अ) वीर्य

24. स्त्री के प्राथमिक लैंगिक अंग हैं-
(अ) गर्भाशय
(ब) अण्डाशय
(स) अण्डवाहिनी
(द) इन्फन्डीबुलम
उत्तर:
(ब) अण्डाशय

25. शिश्न का अन्तिम वर्धित भाग कहलाता है-
(अ) फोरस्किन
(ब) मौंसप्यूबिस
(स) ग्लांस पेनिस
(द) अधिवृषण
उत्तर:
(स) ग्लांस पेनिस

26. फल शर्करा पाई जाती है-
(अ) मूत्र में
(ब) पसीने में
(स) ऑक्सीटोसिन में
(द) शुक्रिय प्लाज्मा में
उत्तर:
(द) शुक्रिय प्लाज्मा में

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 3 मानव जनन

27. मानव के शुक्राणु के शीर्ष भाग में उपस्थित केन्द्रक होता है-
(अ) गोलाकार
(ब) अण्डाकार
(स) त्रिकोणाकार
(द) दीर्घीकार (इलोगेटेड)
उत्तर:
(द) दीर्घीकार (इलोगेटेड)

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
फटी हुई पुटक कोशिकाओं द्वारा निर्मित ग्रन्थिल संरचना से स्रावित एक हारमोन का नाम बताइए ।
उत्तर:
प्रोजेस्टरोन (Progestron) अथवा एस्ट्रोजन ( Estrogen ) ।

प्रश्न 2.
शुक्र कायान्तरण को परिभाषित कीजिए ।
उत्तर:
शुक्राणु पूर्वी कोशिकाएँ ( Spermatids ) गोल, अचल एवं अगुणित संरचनाएँ हैं। इनके आकारिकी, उपापचयी एवं क्रियात्मक रूप में एक अति विशिष्ट संरचना ‘शुक्राणु’ में परिवर्तन को शुक्र कायान्तरण कहते हैं।

प्रश्न 3.
एक पंचास वर्षीय स्त्री का रजचक्र समाप्त होना क्या कहलाता है ?
उत्तर:
एक पचास वर्षीय स्त्री का रजचक्र का समाप्त होना रजोनिवृत्ति (Menopause) कहलाता है ।

प्रश्न 4.
वीर्यसेचन ( Insemination) को परिभाषित कीजिए ।
उत्तर:
स्त्री एवं पुरुष के संभोग (मैथुन) के दौरान शिश्न द्वारा (वीर्य) शुक्राणु स्त्री की योनि में छोड़ने की क्रिया को वीर्यसेचन कहते हैं।

प्रश्न 5.
गर्भावस्था (Gestation Period) किसे कहते हैं ?
उत्तर:
निषेचन से शिशु के जन्म (प्रसव) के बीच के समय को गर्भावस्था कहते हैं ।

प्रश्न 6.
कॉरपोरा केवरनौसा कहाँ पाया जाता है ?
उत्तर:
कॉरपोरा केंवरनौसा शिश्न (Penis) में पाया जाता है।

प्रश्न 7.
स्तनधारियों के एक्रोसोम द्वारा स्रावित एन्जाइम का नाम लिखिए जो अण्डकलाओं को घोलने में सहायता करता है ।
उत्तर:
स्तनधारियों के एक्रोसोम द्वारा हाएलसोयूरोनाइडेज एन्जाइम का स्रावण किया जाता है जो अण्ड कलाओं को घोलने में सहायता करता है।

प्रश्न 8.
हाथी, कुत्ता एवं बिल्ली में औसत गर्भकाल क्या है ?
उत्तर:
हाथी – 641 दिन, कुत्ता – 63 दिन एवं बिल्ली – 63 दिन ।

प्रश्न 9.
क्लोस्ट्रम क्या है ?
उत्तर:
प्रसव के पश्चात् मादा के स्तनों से प्रथम स्रावित दुग्ध क्लोस्ट्रम कहलाता है। यह हल्का पीला, गाढ़ा व रोग प्रतिरोधक होता है ।

प्रश्न 10.
भ्रूण का माता के गर्भाशय से सम्बन्ध बनाने की क्रिया को क्या कहते हैं?
उत्तर:
भ्रूण का माता के गर्भाशय से सम्बन्ध बनाने की क्रिया को आरोपण (Implantation) कहते हैं ।

प्रश्न 11.
अण्डाशय पीठिका कौनसे दो भागों में विभेदित होता है?
उत्तर:

  • परिधीय वल्कुट (Peripheral Cortex)
  • आन्तरिक मध्यांश (Internal Medulla)

प्रश्न 12.
रजोधर्म की अनुपस्थिति किस बात का संकेत है?
उत्तर:
रजोधर्म की अनुपस्थिति गर्भधारण का संकेत है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 3 मानव जनन

प्रश्न 13.
मनुष्य में किस प्रकार का अपरा (Placenta ) पाया जाता है ?
उत्तर:
मनुष्य में हीमोकारियल अपरा (Placenta ) पाया जाता है।

प्रश्न 14.
अण्डोत्सर्ग (Ovulation) के बाद ग्रेफियन पुटिका (Graffian Follicle) द्वारा निर्मित स्रावी संरचना का नाम लिखिए ।
उत्तर:
अण्डोत्सर्ग (Ovulation ) के बाद ग्रेफियन पुटिका (Graffian Follicle) द्वारा निर्मित स्रावी संरचना को कॉरपस ल्यूटियम (Corpus luteum) कहते हैं।

प्रश्न 15.
प्रसव के बाद दुग्ध संश्लेषण ( Milk Synthesis) के लिए उत्तरदायी हारमोन का नाम लिखिए ।
उत्तर:
प्रसव के बाद दुग्ध संश्लेषण ( Milk Synthesis) के लिए उत्तरदायी हारमोन LTH (Lactotrophic Hormone)।

प्रश्न 16.
शुक्राणुओं का संग्रहण व परिपक्वन (Storage & Maturation ) किस अंग में होता है ?
उत्तर:
अधिवृषण (Epididymis) में शुक्राणुओं का संग्रहण परिपक्वन होता है।

प्रश्न 17.
वृषण के एक पिण्डक (Lobule) में शुक्रज- नलिकाओं (Seminiferous Tubules) की संख्या कितनी होती है?
उत्तर:
वृषण के एक पिण्डक (Lobule) में शुक्रजन नलिकाओ (Seminiferous Tubules) की संख्या 1-3 होती है।

प्रश्न 18.
उस हारमोन का नाम लिखिए जो प्रसक (Parturition) के समय प्यूबिक सिम्फाइसिस (Pubic Symphysis) का शिथिलन करता है।
उत्तर:
रिलेक्सिन हारमोन प्रसव के समय प्यूबिक सिम्फाइसिस का शिथिलन करता है।

प्रश्न 19.
लैंगिक उत्तेजना (Sexual Excitement) के समय महिलाओं में रंगहीन पदार्थ का स्रावण किस ग्रन्थि द्वारा किया जाता है?
उत्तर:
लैंगिक उत्तेजना (Sexual Excitement) के समय महिलाओं में रंगहीन पदार्थ का स्रावण बार्थोलिन ग्रन्थियों (Bartholian glands) द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 20.
योनि का द्वार प्राय: एक पतली झिल्ली से आंशिक रूप से ढका होता है जिसे क्या कहते हैं?
उत्तर:
योनि का द्वार प्राय: एक पतली झिल्ली से आंशिक रूप से ढका होता है जिसे योनिच्छद (Hymen) कहते हैं।

प्रश्न 21.
एक छोटी अंगुली जैसी संरचना जो मूत्र द्वार के ऊपर दो वृहद् भगोष्ठ से ऊपरी मिलन बिन्दु के पास स्थित होती है उसे क्या कहते हैं?
उत्तर:
एक छोटी अंगुली जैसी संरचना जो मूत्र द्वार के ऊपर दो वृहद् भगोष्ठ के ऊपरी मिलन बिन्दु के पास स्थित होती है उसे भगशेफ (Clitoris) कहते हैं।

प्रश्न 22.
जघन शैल (माँस प्यूबिस) किस प्रकार के ऊतकों से बनता है?
उत्तर:
जघन शैल (माँस प्यूबिस) वसामय ऊतकों से बना होता है।

प्रश्न 23.
गर्भाशय की भित्ति कितनी परतों से बनी होती है? नाम लिखिए ।
उत्तर:
गर्भाशय की भित्ति तीन परतों से बनी होती है-

  • परिगर्भाशय (पेरिमैट्रियम)
  • गर्भाशय पेशी स्तर (मायोमैट्रियम)
  • गर्भाशय अन्तःस्तर (एंडोमैट्रियम) ।

प्रश्न 24.
स्त्री के गर्भाशय की आकृति किस फल के समान होती है?
उत्तर:
स्त्री के गर्भाशय की आकृति उल्टी रखी हुई नाशपाती के समान होती है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 3 मानव जनन

प्रश्न 25.
उस भ्रूण अवस्था का नाम लिखिए जो मानव स्त्री की गर्भाशय भित्ति में अन्तर्रोपित हो जाती है।
उत्तर:
ब्लास्टोसिस्ट (Blastocyst) मानव स्त्री की गर्भाशय भित्ति में अन्तरोंपित हो जाती है।

प्रश्न 26.
नवजात शिशुओं में कोलोस्ट्रम (Colostrum ) किस प्रकार रोगों के प्रति आरम्भिक सुरक्षा प्रदान करता है? एक कारण दे।
उत्तर:
कोलोस्ट्रम ( खीस) में कई प्रकार के प्रतिरक्षी (एंटीबॉडी) होती है जो नवजात शिशुओं में रोगों के प्रति प्रतिरोधी क्षमता उत्पन्न करती है।

प्रश्न 27.
वह क्या चीज है जो प्रसव के लिए उत्तरदायी हार्मोन्स के विमोचन के लिए पीयूष (पिट्यूटरी) को उत्तेजित करती है? उस हार्मोन का नाम लिखिए।
उत्तर:
गर्भ उत्क्षेपन प्रतिवर्त (फीटल इंजेक्शन रेफलेक्स) पीयूष ग्रन्थि को आक्सीटोसिन (Oxytocin) हार्मोन के स्रावण को उद्दीपन करते हैं।

प्रश्न 28.
मादा के अण्डाशय से अण्डोत्सर्ग के लिए ग्राफी पुटक को फटने के लिए कौनसा हार्मोन प्रेरित करता है?
उत्तर:
LH हार्मोन के प्रभाव से ग्राफी पुटक फट जाती है।

प्रश्न 29.
मानव अण्डाशय में कौनसा भाग प्रोजेस्ट्रॉन स्त्रावित करता है?
उत्तर:
मानव अण्डाशय में पीत पिण्ड ( कार्पसल्यूटियम) प्रोजेस्ट्रॉन स्रावित करता है।

प्रश्न 30.
मानव भ्रूण में ट्रोफोब्लास्ट का क्या कार्य है?
उत्तर:
मानव भ्रूण में ट्रोफोब्लास्ट का कार्य गर्भाशय ( Uterus ) की आन्तरिक भित्ति (एण्डोमेट्रियम) को भेदने का कार्य है। जिससे ब्लास्टोसिस्ट (Blastocyst) आन्तरिक भित्ति में रोपित हो सके।

प्रश्न 31.
अंडोत्सर्ग को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
अण्डाशय की ग्राफियन पुटिका में से द्वितीयक ऊसाइट का फट कर उदर गुहा में मुक्त होना अंडोत्सर्ग कहलाता है।

प्रश्न 32.
प्रथम स्तन्य या खीस क्या है?
उत्तर:
प्रसव के बाद मादा के स्तनों से आरम्भिक कुछ दिनों तक जो दूध निकलता है, उसे प्रथम स्तन्य या खीस (कोलोस्ट्रम) कहते हैं ।

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
अपरा (Placenta ) किसे कहते हैं? गर्भाशय में अपरा को दर्शाते हुए मानव भ्रूण का नामांकित चित्र बनाइए एवं इसके कोई चार कार्य लिखिए।
उत्तर:
अपरा (Placenta ) – भ्रूण के अन्तर्रोपण के पश्चात् पोषकोरक पर अंगुली जैसी संरचनाएँ उभरती हैं, जिन्हें जरायु अंकुरक (Chorionic Villi) कहते हैं। ये जरायु अंकुरक गर्भाशयी ऊतक और मातृ रक्त से आच्छादित होते हैं। जरायु अंकुरक और गर्भाशयी ऊतक एक-दूसरे के साथ अंतरागुलियुक्त (Interdigited) हो जाते हैं तथा संयुक्त रूप से परिवर्धशील भ्रूण (Foetus ) और मातृ शरीर के साथ एक संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई को गठित करते हैं जिसे अपरा (Placenta ) कहते हैं। देखिए चित्र में ।

अपरा (Placenta ) के कार्य- अपरा के निम्नलिखित कार्य हैं-

  • भ्रूण को ऑक्सीजन तथा पोषण की आपूर्ति एवं कार्बन -डाइऑक्साइड तथा भ्रूण द्वारा उत्पन्न उत्सर्जी (Excretory ) अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने का कार्य करता है।
  • अपरा एक नाभिरज्जु ( umbilical cord) द्वारा भ्रूण से जुड़ा होता है जो भ्रूण तक सभी आवश्यक पदार्थों को अन्दर लाने तथा बाहर ले जाने के कार्य में सहायता करता है।
  • अपरा अन्तःस्रावी (Endocrine) ऊतकों का कार्य करता है।
  • इसके द्वारा अनेक हार्मोनों का स्रावण किया जाता है जैसे मानव जरायु गोनेडोट्रॉपिन (HCG), मानव अपरा लैक्टोजन (HPL), एस्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रोजन आदि ।
  • प्रोजेस्टरोन पूरे गर्भकाल तक गर्भ को साधे रखता है, प्रसव के समय अपरा से ही रिलेक्सिन का स्राव होता है जो प्रसव के समय मूत्रमार्ग व जननमार्ग को चिकना कर भ्रूण के निकास में सहायता करता है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 3 मानव जनन 1

प्रश्न 2.
अपवाहक नलिका तथा शुक्रवाहिनी में कोई चार अन्तर लिखिए।
उत्तर:
अपवाहक नलिका (Vasa Efferentia) तथा शुक्रवाहिनी (Vasa Deferentia) में अन्तर

अपवाहक नलिका (Vasa Efferentia) शुक्रवाहिनी (Vasa Deferentia)
1. अपवाहक नलिका की उत्पत्ति वृषण जालक (Rete Testis) से होती है। जबकि शुक्रवाहिनी की उत्पत्ति कॉडा एपिडिडाइमिस (Cauda epididymis) से होती है।
2. अपवाहक नलिकाओं की संख्या 15-20 होती है। जबकि शुक्रवाहिनी की संख्या दो होती है।
3. अपवाह क नलिका अत्यधिक वलित होती है। वृषणकोष में आंशिक रूप से कुण्डलित तथा उदरगुहा में सीधी होती है।
4. वृषण जालक (Rete Testis) से शुक्राणुओं का कैपट एपिडिडाइमिस की ओर वहन करती है। शुक्रवाहिनी शुक्राणुओं का कॉडा एपिडडडाइ मिस से स्खलन वाहिनी (Eijculatory duct) की ओर वहन करती है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 3 मानव जनन

प्रश्न 3.
सगर्भता के विभिन्न महीनों में भ्रूण परिवर्धन के प्रमुख लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव में सगर्भता की अवधि 9 महीने की होती है। सगर्भता के विभिन्न महींनों में भ्रूण परिवर्धन के प्रमुख लक्षण अग्र हैं-

  1. मानव में एक महीने की सगर्भता के बाद भ्रूण के हृदय का निर्माण होता है। हृदय की धड़कनों को स्टेथेस्कोप की सहायता से ध्यानपूर्वक सुना जा सकता है।
  2. सगर्भता के दूसरे माह के अन्त तक भ्रूण के पाद एवं अंगुलियाँ विकसित होती हैं।
  3. 12वें सप्ताह ( पहली तिमाही) के अन्त तक लगभग सभी प्रमुख अंग तंत्रों की रचना बन जाती है, जैसे पाद एवं बाह्य जननांग अच्छी तरह से विकसित हो जाते हैं।
  4. गर्भावस्था के पाँचवें माह के दौरान गर्भ की पहली गतिशीलता और सिर पर बाल उग आते हैं ।
  5. 24वें सप्ताह के अन्त तक (दूसरी तिमाही), पूरे शरीर पर कोमल बाल निकल आते हैं।
  6. आँखों की पलकें अलग-अलग हो जाती हैं और बरौनियाँ बन जाती हैं।
  7. गर्भावस्था के 9वें माह के अन्त तक गर्भ पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है और प्रसव के लिए तैयार हो जाता है।

प्रश्न 4.
युग्मक जनन किसे कहते हैं? इसके कोई तीन महत्त्व लिखिए।
उत्तर:
जनदों (वृषणों एवं अण्डाशयों) में जननिक उपकला (Germinal epithelium) की कोशिकाओं से युग्मक कोशिकाओं के बनने की प्रक्रिया को युग्मक जनन ( Gametogenesis) कहते हैं । युग्मक जनन का महत्त्व (Importance of Gametogenesis )

  • इसके फलस्वरूप अगुणित युग्मकों का निर्माण होता है। नर एवं मादा युग्मक संयुजन करके द्विगुणित युग्मनज (Diploid Zygote) का निर्माण करते हैं जिसके विकास से नए जीव की उत्पत्ति होती है।
  • इसमें होने वाले अर्धसूत्री विभाजन में जीन विनिमय (Crossingover) होता है जिससे नये संयोगों का निर्माण होता है।
  • युग्मक जनन की समानताओं के आधार पर जीवों का विकासीय क्रम जाना जा सकता है।

प्रश्न 5.
स्टेम कोशिकाएँ किसे कहते हैं? समझाइए ।
उत्तर:
अंतर्रोपण के तुरन्त पश्चात् अन्तर कोशिका समूह (भ्रूण) बाह्य त्वचा (Ectoderm) नामक तथा एक बाहरी स्तर और अंतस्त्वचा (Endoderm) नामक एक भीतरी स्तर में विभेदित हो जाता है। इस बाह्यस्त्वचा और अंतस्त्वचा के बीच जल्दी ही मध्यजननस्तर (Mesoderm) बन जाता है। ये तीनों ही स्तर वयस्कों में भी ऊतकों (अंगों ) का निर्माण करते हैं। यहाँ यह स्पष्ट करना जरूरी है कि इस अन्तरकोशिका समूह में कुछ निश्चित तरह की कोशिकाएँ जिन्हें स्टेम कोशिकाएँ कहते हैं, समाहित रहती हैं, जिनमें यह क्षमता होती है कि वे सभी अंगों एवं ऊतकों को उत्पन्न कर सकती हैं।

प्रश्न 6.
यदि मनुष्य की एपिडिडाइमिस को काट दिया गया है तो कौनसा कार्य प्रभावित होगा? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
यदि मनुष्य की एपिडिडाइमिस को काट दिया जाये तो इसके अभाव में शुक्राणुओं का परिपक्वन, पोषण एवं संग्रह (एक माह तक) कार्य नहीं होगा । एपिडिडाइमिस के अभाव में वृषण से शुक्राणु शुक्रवाहिनी तक नहीं जा पायेंगे जिसके फलस्वरूप निषेचन क्रिया नहीं होगी।

प्रश्न 7.
प्रजनन क्रिया में स्त्रियों की पुरुषों की तुलना में अधिक जिम्मेदारी होती है। क्यों? समझाइये |
उत्तर:
प्रजनन क्रिया में स्त्रियों की पुरुषों की तुलना में अधिक जिम्मेदारी होती है, क्योंकि मादा जनन तन्त्र द्वारा जनन से सम्बन्धित कई कार्य सम्पादित किये जाते हैं; जैसे- अण्डाणु निर्माण, मैथुन के समय शुक्राणुओं को ग्रहण करना, गर्भाधान हेतु अनुकूल वातावरण तैयार करना, नवजात शिशु को भ्रूणावस्था एवं प्रसव पश्चात् पोषण देना, स्तन ग्रन्थियों द्वारा दूध का संश्लेषण एवं स्रावण आदि ।

प्रश्न 8.
मदचक्र किसे कहते हैं? मदचक्र एवं रजचक्र के कोई तीन अन्तर लिखिए।
उत्तर:
मदचक्र (Estrous cycle ) – नॉन प्राइमेट्स स्तनधारियों की मादाओं के जनन तन्त्र में होने वाले चक्रीय परिवर्तनों को मद चक्र कहते हैं। इस काल या चक्र में मादा उत्तेजित अवस्था में होती है एवं मैथुन हेतु तैयार होती है। मद चक्र (Estrous cycle) एवं रजचक्र (Menstrual cycle) में अन्तर –

मद चक्र (Estrous cycle) रजचक्र (Menstrual cycle)
1. प्राइमेट्स को छोड़कर सभी स्तनधारियों में चक्र पाय जाता है। उदाहरण-कुत्ता यह चक्र प्राइमेट्स मादा स्तनियों में पाया जाता है। उदाहरण-स्त्री
2. इसमें रक्त का स्राव नही होता है । इस चक्र के अन्त में रक्त का साव होता है ।
3. एण्डोमीट्रियम का क्षरण एवं रक्तस्राव नहीं होता है । एण्डोमीट्रियम का क्षरण एवं रक्तस्राव होता है।
4. मद चक्र में मादा उत्तेजित अवस्था में होती है एवं मैथुन हेतु तैयार होती है। इस चक्र में ऐसा नहीं होता है।

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प्रश्न 9.
भगशेफ क्या है?
उत्तर:
भगशेफ/क्लाइटोरिस ( Clitoris ) – यह भग (Vulva) के अग्र छोर पर स्थित एक घुण्डीनुमा रचना होती है जिसे क्लाइटोरिस (Clitoris) कहते हैं। यह स्पर्शकणिकाओं की अधिक उपस्थिति के कारण अत्यधिक संवेदी होता है। क्लाइटोरिस नर के शिश्न के समजात अंग है। लैंगिक संभोग के समय यह मादा में उत्तेजना तरंगों को प्रसारित करने में सहायक होता है।

प्रश्न 10.
यदि नर के वृषण से निकले हारमोन को मादा में प्रवेश करा दिया जावे तो क्या प्रभाव होगा?
उत्तर:
नर के वृषण से स्रावित होने वाला हारमोन नर के द्वितीयक लैंगिक लक्षणों का नियन्त्रण करता है। इन नर हारमोन्स को यदि मादा में प्रवेश कराया जायेगा तो मादा में नर के द्वितीयक लक्षण बनने की सम्भावना पैदा हो जायेगी।

प्रश्न 11.
अण्डाशय को अन्तःस्रावी ग्रन्थि क्यों कहा जाता है ? समझाइये |
उत्तर:
अण्डाशय भी अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के समान हारमोन स्रावित करता है । अण्डाशय में पाये जाने वाला कॉरपस ल्यूटियम (Corpus Luteum) निषेचन के तुरन्त बाद सक्रिय होकर निम्न हारमोन्स का स्रावण करता है-

  • प्रोजेस्टेरॉन (Progesteron ) – यह हारमोन गर्भ धारण = गर्भावस्था के लिये आवश्यक है। अतः इसे गर्भावस्था हारमोन (Pregnancy Hormone) कहते हैं।
  • रिलैक्सिन (Relaxin) – प्रसव के समय यह हारमोन श्रोणि मेखला के प्यूबिक सिम्फाइसिस को शिथिल करता है, जिससे जन्म नाल (Birth Canal) या वेजाइना चौड़ी हो जाती है और शिशु का जन्म सुगमता से हो जाता है।

प्रश्न 12.
यदि मादा की अण्डवाहिनियों के स्थान पर प्लास्टिक की नलिकायें लगा दी जायें, तो अण्डाणुओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
मादा में अण्डवाहिनियों का प्रारम्भिक कार्य अण्डों को निषेचन के लिए आगे बढ़ाना, शुक्राणुओं को स्थान देना तथा उनकी गति व जीवन को सुरक्षित रखते हुए निषेचन के लिए स्थान देना आदि होते हैं । प्लास्टिक की नली में अण्डों को आगे कैसे बढ़ाया जा सकेगा तथा विशेष तरल पदार्थों की अनुपस्थिति में तो शुक्राणु अण्डों तक कैसे पहुँचेंगे अर्थात् निषेचन नहीं हो सकेगा। इसके बाद की प्रक्रियायें जैसे रोपण, गर्भधारण, भ्रूण परिवर्धन आदि की तो बात ही नहीं की जा सकती। इस प्रकार अण्डाणु नष्ट हो जायेगा ।

प्रश्न 13.
यदि पुरुष के शरीर से प्रोस्टेट ग्रन्थि तथा काउपर्स ग्रन्थियाँ निकाल दी जाएँ तो शुक्राणुओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
प्रोस्टेट ग्रन्थि का स्राव शुक्राणुओं के लिए जीवनदायक होता है। ये एपिडिडाइमिस में रहने तक निष्क्रिय होते हैं, किन्तु इस व्यन्थि के स्राव के सम्पर्क में आते ही सक्रिय हो जाते हैं। वीर्य के अधिकांश भाग में इसी ग्रन्थि का स्राव होता है। काउपर्स ग्रन्थि का स्राव क्षारीय होता है तथा शुक्राणुओं की रक्षा करता है।

नर में मूत्र मार्ग और शुक्र रस का मार्ग एक ही होता है और सूत्र हल्का अम्लीय होता है। यदि दोनों ग्रन्थियों को पुरुष के शरीर से निकाल दिया जाये तो शुक्राणु न तो निष्क्रियता छोड़कर सक्रिय हो सकेंगे और न ही उनकी सुरक्षा अम्ल इत्यादि से हो सकेगी। अतः निषेचन करने योग्य भी नहीं होंगे।

प्रश्न 14.
यौवनारम्भ (Puberty) किसे कहते हैं? समझाइए ।
उत्तर:
यौवनारम्भ (Puberty ) – मानव में नर एवं मादा में अपरिपक्व जनन अंगों का परिपक्व होकर जनन क्षमता का विकास होना यौवनारम्भ कहलाता है। नर की अपेक्षा मादा में यौवनारम्भ पहले प्रारम्भ होता है। मानव नर में यौवनारम्भ 14-16 वर्ष की आयु में वृषणों की सक्रियता तथा शुक्राणु उत्पादन के साथ शुरू होता है जबकि मादा में 12-14 वर्ष की आयु में स्तन ग्रन्थियों की वृद्धि एवं रजोदर्शन के साथ प्रारम्भ होता है।

प्रश्न 15.
वृषण देहगुहा के बाहर क्यों होते हैं? समझाइये ।
उत्तर:
मानव में वृषण देहगुहा के बाहर होते हैं क्योंकि वृषण कोष में ताप शरीर के ताप से लगभग 2-2.5°C तक कम होता है जिसके कारण शुक्राणुओं का निर्माण सुगमता से होता है। यदि वृषण देहगुहा के अन्दर होंगे तो शरीर के तापमान पर शुक्राणुओं का बनना असम्भव होगा।

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प्रश्न 16.
प्राथमिक शुक्र कोशिकाओं व 100 प्राथमिक tus कोशिकाओं से कितने शुक्राणु व अण्डाणु बनेंगे? समझाइए ।
उत्तर:
100 शुक्राणु व 100 अण्डाणु बनेंगे। शुक्रजनन में प्रथम एवं द्वितीय परिपक्वन विभाजन केन्द्रक एवं कोशिकाद्रव्यी विभाजन में समान होते हैं एवं परिणामस्वरूप चार समान शुक्राणु निर्मित होते हैं। अतः 25 प्राथमिक कोशिकाओं से 100 शुक्राणुओं का निर्माण होता है। जबकि अण्डजनन में दोनों परिपक्वन विभाजन असमान कोशिकाद्रव्यी विभाजन दर्शाते हैं तथा इसके फलस्वरूप एक बड़ी अण्डाणु कोशिका तथा तीन ध्रुवकायों का निर्माण होता है। तीनों ध्रुवकाय नष्ट हो जाती हैं, केवल एक अण्डाणु शेष रहता है। अतः 100 प्राथमिक अण्ड कोशिकाओं से 100 अण्डाणुओं का निर्माण होता है।

प्रश्न 17.
मानव नर व मादा में यौवनारम्भ शुरू होने पर क्या-क्या परिवर्तन दिखाई देते हैं?
उत्तर:
यौवनारम्भ के समय मानव नर तथा मादा में होने वाले परिवर्तन-

नर (Male) मादा (Female)
1. शिश्न, वृषण कोषों, प्रॉस्टेट ग्रन्थि एवं शुक्राशय ग्रन्थि के आकार में वृद्धि होती है। गर्भाशय, योनि, अण्डवाहिनियों तथा भग के आकार में वृद्धि होती है।
2. वृषणों के आकार में वृद्धि एवं शुक्राणुजनन प्रारम्भ होता है। वक्ष स्थल पर स्तन ग्रन्थियों में वृद्धि तथा रजोदर्शन के साथ मासिक चक्र का प्रारम्भ होना।
3. आवाज का भारी होना। आवाज महीन, तीव्र एवं मधुर हो जाती है।
4. शरीर के विभिन्न क्षेत्रों जैसे चेहरे, वक्षस्थल एवं श्रोणि भाग में बालों का उगना। शरीर पर बालों का अभाव होना।
5. शरीर में तीव्र वृद्धि तथा अंसीय क्षेत्र में वृद्धि होना। श्रोणि भाग में तीव्र वृद्धि, नितम्ब भाग का फैलकर चौड़ा होना, स्तनों की वृद्धि, शरीर में वसा का संचय।
6. टेस्टोस्टेरोन, FSH, LH इत्यादि हारमोन के स्रावण में वृद्धि। प्रोजेस्टेरोन, ऐस्ट्रोजन तथा FSH, LH हारमोन के स्राव में वृद्धि होना।
7. मादा की ओर मनोवैज्ञानिक आकर्षण। नर की तरफ मनोवैज्ञानिक आकर्षण।

प्रश्न 18.
पुरुषों में सहायक जनन ग्रन्थियाँ वीर्य निर्माण एवं जनन प्रक्रिया में किस प्रकार सहायता करती हैं?
उत्तर:
पुरुषों में सहायक जनन ग्रन्थियाँ तीन प्रकार की पायी जाती हैं। ये सभी स्रावी पदार्थ अधिवृषण एवं शुक्राशय द्वारा स्रावित पदार्थों एवं शुक्राणुओं से मिलकर वीर्य का निर्माण करती हैं।
(1) प्रोस्टेट ग्रन्थि (Prostate Gland) – यह ग्रन्थि मूत्र मार्ग के आधार भाग पर स्थित होती है। यह कई पिण्डों से मिलकर बनी होती है। इस ग्रन्थि द्वारा हल्के सफेद क्षारीय तरल पदार्थ का स्रावण किया जाता है, जो वीर्य का 25-30 प्रतिशत भाग बनाता है। इस तरल में फॉस्फेट्स, सिट्रेट, लाइसोजाइम, फाइब्रिनोलाइसिन, स्पर्मिन आदि पदार्थ पाये जाते हैं। यह शुक्राणुओं को सक्रिय बनाता है एवं वीर्य के स्कंदन को रोकता है।

(2) शुक्राशय (Seminal Vesicle ) – यह मूत्राशय की पश्च सतह एवं मलाशय के बीच में स्थित होता है जो एक जोड़ी थैलीनुमा रचना है। शिश्न के उत्तेजित अवस्था में स्खलन के समय शुक्राशय संकुचित होकर स्राव मुक्त करते हैं। यह स्राव वीर्य का 60% भाग बनाता है। स्राव की क्षारीय प्रकृति के कारण यह स्राव योनि मार्ग की अम्लीयता को समाप्त कर शुक्राणुओं की सुरक्षा करता है ।

(3) काउपर ग्रन्थि या ब्लबोयूरीथल ग्रन्थि (Cowper’s Gland or Bulbouretheral Gland) – मैथुन के समय इस ग्रन्थि द्वारा एक गाढ़ा, चिपचिपा तथा क्षारीय पारदर्शी तरल पदार्थ स्रावित किया जाता है जो मूत्र मार्ग को चिकना बनाता है तथा मूत्र मार्ग की अम्लीयता को समाप्त कर उसे उदासीन या हल्का क्षारीय बनाता है। यह तरल मादा की योनि को चिकना कर मैथुन क्रिया को सुगम बनाता है। अतः हम कह सकते हैं कि पुरुषों में सहायक जनन ग्रन्थियाँ वीर्य निर्माण एवं जनन प्रक्रिया में सहायता करती हैं।

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प्रश्न 19.
कार्पस ल्यूटियम का निर्माण किस प्रकार होता है तथा इसका प्रमुख कार्य क्या है?
उत्तर:
अण्डोत्सर्ग (Ovulation) के पश्चात् रिक्त या खाली ग्राफियन पुटिका नष्ट न होकर ल्यूटिनाइजिंग हारमोन (LH) के प्रभाव से, एक पीली ग्रन्थिल रचना में बदल जाती है जिसे कॉर्पस ल्यूटियम (Corpus Luteum) अथवा पीत पिण्ड कहते हैं। अण्ड के बाहर निकल जाने पर पुटिका का फटा हुआ भाग बंद हो जाता है और इसकी गुहा में रक्त जमा होकर एक थक्का (Clot ) बन जाता है।

थक्के के चारों ओर की पुटिका कोशिकाएँ LH के कारण ल्यूटिन की कोशिकाओं में परिवर्तित हो जाती हैं। इनके द्रव्य में ल्यूटिन नामक पीला-सा वर्णक बन जाता है। ये कोशिकाएँ आमाप में बड़ी होती हैं तथा प्रोजेस्ट्रान (Progestrone) तथा रिलेक्सिन (Relaxin) नामक हारमोन का स्रावण करती हैं। इस प्रकार यह एक अन्तःस्रावी ग्रन्थि होती है।

यदि अण्डाणु का निषेचन (फैलोपियन नलिका में) हो जाता है तो यह प्रोजेस्ट्रान तथा रिलेक्सिन हारमोन का स्रावण करती रहती है अन्यथा निष्क्रिय होकर नष्ट होने लगती है। कार्पस ल्यूटियम की अपभ्रष्ट (Degenerate) हुई रचना को कार्पस एल्बिकैन्स (Corpus Albicans) कहते हैं। यह अन्त में समाप्त हो जाती है।

कार्य-

  1. पीत पिण्ड (Corpus Luteum) द्वारा स्रावित प्रोजेस्टरोन हारमोन भ्रूण के सफल परिवर्धन के लिए गर्भ को बनाये रखता है। इसलिये उसे सगर्भता हारमोन (Pregnancy Hormone) भी कहते हैं।
  2. भ्रूणीय परिवर्धन पूर्ण हो जाने के उपरान्त शिशु के जन्म के लिए पीत पिण्ड (Corpus Luteum) द्वारा रिलेक्सन (Relaxin) हारमोन उत्पन किया जाता है।

प्रश्न 20.
मानव में मादा के विभिन्न जनन अंगों के महत्त्वपूर्ण कार्य लिखिए।
उत्तर:
मानव में मादा के विभिन्न जनन अंगों के महत्त्वपूर्ण कार्य

अंग का नाम (Name of Organ) जनन अंगों के कार्य (Functions of Reproductive organ)
1. अण्डाशय (Ovary) अंडों का निर्माण करता है।
2. अण्डवाहिनियाँ Oviducts) निषेचन स्थल, निषेचित अंड/भू को गर्भाशय में स्थानान्तरित करती है।
3. गर्भाशय (Uterus) आन्तरिक परत भ्रूण को ग्रहण करती है और उसे पोषण प्रदान करती है। मांसल भित्ति के संकुचनी प्रसव के दौरान शिशु को बाहर निकालने में सहायता करती है।
4. गर्भ ग्रीवा (Cervix) जलीय श्लेष्म उत्पन्न करती है जो शिश्न के लिये एक स्नेहक प्रदान करता है जिसमें स्खलन के पश्चात् शुक्राणु तैरते हैं।
5. योनि (Vagina) लैंगिक समागम के दौरान शिश्न को ग्रहण करती है व प्रसव के दौरान शिशु को निकालने के लिए नलिका का काम करती है।
6. क्लाइटोरिस (Clitoris) नर शिश्न के समजात।

प्रश्न 21.
25 प्राथमिक शुक्र कोशिकाएँ व 25 प्राथमिक अण्ड कोशिकाओं से कितने शुक्राणु व अण्डाणु बनेंगे? कारण सहित समझाइए ।
उत्तर:
1000 शुक्राणु व 25 अण्डाणु बनेंगे। शुक्रजनन में प्रथम एवं द्वितीय परिपक्व विभाजन केन्द्रक एवं कोशिकाद्रव्यी विभाजन में समान होते हैं एवं परिणामस्वरूप चार समान शुक्राणु निर्मित होते हैं। होता है। अतः 25 प्राथमिक कोशिकाओं से 100 शुक्राणुओं का निर्माण जबकि अण्डजनन में दोनों परिपक्वन विभाजन असमान कोशिकाद्रव्यी विभाजन दर्शाते हैं तथा इसके फलस्वरूप एक बड़ी अण्डाणु कोशिका तथा तीन ध्रुवकायों का निर्माण होता है। तीनों ध्रुवकाय नष्ट हो जाती हैं, केवल एक अण्डाणु शेष रहता है। अतः 25 प्राथमिक अण्ड कोशिकाओं से 25 अण्डाणुओं का निर्माण होता है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 3 मानव जनन

प्रश्न 22.
शुक्रजनन का क्या महत्व है?
उत्तर:
शुक्रजनन का निम्न महत्त्व है-

  1. शुक्रजनन क्रिया के फलस्वरूप अगुणित युग्मक अर्थात् शुक्राणुओं का निर्माण होता है।
  2. इस क्रिया से पैतृक के आनुवंशिक गुण शुक्राणु में गुणसूत्रों एक समुच्चय के रूप में आ जाते हैं। यह निषेचन अण्डाणु में प्रवेश करते हैं।
  3. इस क्रिया से बनी अगुणित, पुच्छयुक्त संरचना होती है। यह द्रवीय माध्यम में सरलता से गति करने योग्य होते हैं।

प्रश्न 23.
शुक्रजनन व अण्डजनन में कोई चार समानताएँ लिखिये ।
उत्तर:
शुक्रजनन व अण्डजनन में समानताएँ-

  1. दोनों क्रियाएँ जनदों में जनन उपकला की प्राथमिक जनन कोशिकाओं द्वारा आरम्भ होती हैं।
  2. दोनों क्रियाओं में तीन प्रावस्थाएँ पाई जाती हैं गुणन प्रावस्था वृद्धि प्रावस्था व परिपक्वन प्रावस्था ।
  3. गुणन प्रावस्था के तहत दोनों में समसूत्री विभाजन द्वारा जनन कोशिकाओं की संख्यात्मक वृद्धि होती है।
  4. दाना क्रियाओं का परिपक्वन प्रावस्था में प्रथम एवं द्वितीय परिपक्वन विभाजन होते हैं जो अर्धसूत्रीय विभाजन होता है।

प्रश्न 24.
वयस्क की शुक्रवाहिनी को हटाकर उसके स्थान पर रबर की नलिका लगा दी जावे तो क्या प्रभाव पड़ेगा? समझाइए ।
उत्तर;
वयस्क में शुक्रवाहिनी को हटाकर उसके स्थान पर रबड़ की नलिका लगा दी जाती है तो शुक्राणुओं में गमन नहीं हो पायेगा क्योंकि शुक्रवाहिनी की कोशिकाएँ विशेष तरल पदार्थ का स्राव करती हैं जो शुक्रवाहिनी के मार्ग को शुक्राणुओं के गमन हेतु चिकना बनाती हैं । इसके साथ ही शुक्रवाहिनी की दीवार में पेशियों में तरंग गति उत्पन्न होती है जिससे शुक्राणु आगे बढ़ते हैं । अतः रबड़ की नलिका में शुक्राणुओं का गमन नहीं होगा ।

प्रश्न 25.
शुक्रजनक नलिकाओं (वर्धित) आरेखीय काट का नामांकित चित्र बनाइए ।
उत्तर:
शुक्रजनक नलिकाओं (वर्धित) के आरेखीय काट का चित्र-
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प्रश्न 26.
सर्टोली कोशिकाओं से क्या तात्पर्य है? इनका क्या कार्य है?
उत्तर:
सर्टोली कोशिकायें (Sertoli Cells) – इन्हें आलम्बन अथवा धात्री कोशिकायें (Nurse Cells) भी कहते हैं। ये कोशिकायें मुग्दाकार, संख्या में कम एवं आकार में बड़ी होती हैं। इनके स्वतन्त्र भाग में शुक्राणुपूर्व कोशिकायें (Spermatids ) सटकर लगी होती हैं।
सर्टोली कोशिकाओं का कार्य –

  • ये विकासशील जनन कोशिकाओं को सुरक्षा, आलम्बन तथा पोषण प्रदान करती हैं।
  • शुक्राणुपूर्व कोशिका के बेकार कोशिकाद्रव्य का विघटन करती हैं।
  • इनके द्वारा शुक्राणु उत्पादन प्रेरित करने वाले हारमोन की क्रिया का नियमन करने हेतु इन्हिबिन (Inhibin) हारमोन का स्रावण किया जाता है।

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प्रश्न 27.
सगर्भता किसे कहते हैं? सगर्भता को बनाये रखने वाले हार्मोन्स के नाम लिखिए ।
उत्तर:
सगर्भता (Pregnancy) – भ्रूण का गर्भाशय की भित्ति से जुड़ना आरोपण कहलाता है और बाद में यह सगर्भता का रूप धारण कर लेती है। रजोधर्म का न आना ही सगर्भता का संकेत है। सगर्भता को बनाये रखने वाले हार्मोन्स निम्न हैं- मानव जरायु गोनेडोट्रापिन, मानव अपरा लेक्टोजन, एस्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रोन आदि हार्मोन अपरा द्वारा स्रावित किये जाते हैं। सगर्भता के उत्तरार्द्ध की अवधि में अण्डाशय द्वारा रिलैक्सिन नामक एक हार्मोन भी स्रावित किया जाता है।

मानव जरायु गोनेडोट्रापिन मानव अपरा लेक्टोजन और रिलैक्सिन स्त्री में केवल सगर्भता की स्थिति में उत्पादित होते हैं। इसके अलावा दूसरे हार्मोनों जैसे एस्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रोन, कॉर्टिसाल, प्रोलेक्टिन, थॉइराक्सिन आदि की भी मात्रा सगर्भता के दौरान माता के रक्त में कई गुणा बढ़ जाती है। इन हार्मोनों के उत्पादन में बढ़ोतरी होना भी भ्रूण वृद्धि, माता की उपापचयी क्रियाओं में परिवर्तनों तथा सगर्भता को बनाये रखने के लिए आवश्यक होता है।

प्रश्न 28.
यदि निषेचन पश्चात् स्त्री के अण्डाशय को काटकर हटा दिया जावे तो गर्भ पर क्या प्रभाव होगा? समझाइए ।
उत्तर:
अण्डाशय में उपस्थित कार्पस ल्यूटियम एस्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रान तथा रिलैक्सिन हार्मोन्स का सक्रिय स्रावण करता है। यही गर्भाशय की दीवार के संकुचन को रोक कर गर्भ की सुरक्षा करता है। इसलिए गर्भधारण के बाद लगभग 6 सप्ताह तक कॉर्पस ल्यूटियम का सक्रिय रहना आवश्यक है। यदि इस दौरान अण्डाशय को हटा दिया जाये तो गर्भपात ( abortion) हो जाता है। लगभग 6 सप्ताह के गर्भकाल के पश्चात् अपरा (Placenta ) से ही एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्ट्रोन की मात्रा स्रावित होने लगती है जिससे गर्भपात की आशंका समाप्त हो जाती है अतः अब अण्डाशयों को हटा दिया जाए तो गर्भपात नहीं होगा ।

प्रश्न 29.
वीर्यसेचन को परिभाषित करते हुए निषेचन क्रिया को समझाइए ।
उत्तर:
वीर्यसेचन (Insemination ) – स्त्री एवं पुरुष के संभोग मैथुन के दौरान शिश्न द्वारा शुक्र (वीर्य) स्त्री की योनि में छोड़ना वीर्यसेचन कहलाता है । निषेचन क्रिया- गतिशील शुक्राणु तेजी से तैरते हुए गर्भाशय ग्रीवा से होकर गर्भाशय में प्रवेश करते हैं और अन्त में अण्डवाहिनी नली के संकीर्ण पथ (इस्थमस) तथा तुंबिका (Ampulla) के संधिस्थल तक पहुँचते हैं।

इसी बीच अण्डाशय द्वारा मोचित अंडाणु भी इस संधिस्थल तक पहुँच जाता है, जहाँ निषेचन की क्रिया सम्पन्न होती है। निषेचन तभी हो सकता है जब अण्डाणु तथा शुक्राणु दोनों एक ही समय में तुंबिका – संकीर्ण पथ के संधिस्थल पर पहुँच जाएँ। यही कारण है जिससे कि संभोग क्रियाएं निषेचन व सगर्भता की स्थिति में नहीं पहुँच पाती हैं।
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शुक्राणु के साथ एक अण्डाणु के संलयन की प्रक्रिया को निषेचन (Fertilization) कहते हैं। निषेचन के दौरान एक शुक्राणु अण्डाणु के पारदर्शी अण्डावरण (Zona Pellucida ) स्तर के सम्पर्क में आता है। देखिए चित्र में और अतिरिक्त शुक्राणुओं के प्रवेश को रोकने हेतु उसके उक्त स्तर में बदलाव प्रेरित करता है।

इस प्रकार यह सुनिश्चित हो जाता है कि एक अण्डाणु को केवल एक ही शुक्राणु निषेचित कर सकता है। अग्रपिण्डक (Acrosome ) का स्रवण शुक्राणु की पारदर्शी अंडावरण के माध्यम से अंडाणु के कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) तथा प्लाज्मा भित्ति से प्रवेश करने में मदद करता है। यह द्वितीयक अंडक के अर्द्धसूत्री विभाजन को प्रेरित करता है।

दूसरा अर्धसूत्री विभाजन भी असमान होता है और इसके फलस्वरूप द्वितीयक ध्रुवीय पिंड (Secondary Polar Body ) की रचना होता है और एक अगुणित अंडाणु बनता है। शीघ्र ही शुक्राणु का अंडाणु के अगुणित केन्द्रक के साथ संलयन (Fusion ) होता है, जिससे कि द्विगुणित युग्मनज (Diploid Zygote) की रचना होती है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 3 मानव जनन

प्रश्न 30.
स्तन ग्रन्थि का आरेखीय काट का नामांकित चित्र बनाकर वर्णन कीजिए एवं दुग्ध स्रवण को समझाइए ।
उत्तर:
स्तन ग्रन्थि का पाया जाना सभी मादा स्तनधारियों का लक्षण है। मादा (स्त्री) में एक जोड़ी स्तन ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं। प्रत्येक स्तन ग्रन्थि में ग्रन्थिल ऊतक एवं वसीय ऊतक होता है। स्तन का ग्रन्थिल ऊतक 15-20 स्तन पालियों (Mammary lobes) में विभक्त होता है। इसमें कोशिकाओं के गुच्छ होते हैं, जिन्हें कूपिका (alveoli) कहते हैं। इन कूपिकाओं की कोशिकाओं के द्वारा दूध का स्रावण किया जाता है।

यह दूध कूपिकाओं की गुहाओं ( अवकाशिकाओं) में संग्रह किया जाता है। ये कूपिकाएँ स्तन नलिकाओं (Mammary tubules) में खुलती हैं। प्रत्येक पाली की नलिकाएँ मिलकर स्तन वाहिनी (Mammary ducts) का निर्माण करती हैं। विभिन्न स्तन वाहिनियाँ (Mammary ducts) मिलकर एक वृहद् स्तन तुंबिका (ampulla) बनाती हैं जो दुग्ध वाहिनी (Lactiferous duct) से जुड़ी होती हैं। जिससे कि दूध स्तन से बाहर निकलता है।
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 3 मानव जनन 4

दुग्ध स्रवण (Lactation) –
सगर्भता की अवस्था में प्रोजेस्ट्रान व एस्ट्रोजन हार्मोन्स के प्रभाव से स्तन ग्रन्थियों की वृद्धि से स्त्री के वक्ष बड़े आकार के हो जाते हैं। प्रोलेक्टिन के प्रभाव से शिशु जन्म के 24 घण्टे के अन्दर दुग्ध ग्रन्थियों से दुग्ध स्रावण (Lactation) हो जाता है। प्रारम्भ में वक्ष की चूचुकों से कोलस्ट्रम (Colstrum) का स्राव होता है। यह पीले रंग का होता है जिसमें ग्लोबुलिन प्रोटीन (Globulin Protein) काफी मात्रा में होता है। इसमें माता की एण्टीबॉडीज (Antibodies) होती है जो नवजात शिशु की संक्रमण से रक्षा करती है।

प्रश्न 31.
मानव शुक्राणु (Human Sperm) की सूक्ष्मदर्शीय संरचना का नामांकित चित्र बनाइये ।
उत्तर:
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 3 मानव जनन 5

प्रश्न 32.
मनुष्य के अण्डाशय की काट का एक नामांकित चित्र बनाइए जिसमें ग्राफी पुटिका की विभिन्न अवस्थाएँ प्रदर्शित हों ।
उत्तर:
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 3 मानव जनन 6

प्रश्न 33.
एक परिपक्व ग्रेफियन पुटिका ( Mature Graffian Follicle) का नामांकित चित्र बनाइए ।
उत्तर:
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 3 मानव जनन 7

प्रश्न 34.
शुक्र कोशिका निर्माण (Spermatogenesis) एवं शुक्र कायान्तरण ( Spermiogenesis) में कोई चार अन्तर लिखिए।
उत्तर:
शुक्र कोशिका निर्माण एवं शुक्र कायान्तरण में अन्तर

शुक्र कोशिका निर्माण (Spermatogenesis) शुक्र कायान्तरण (Spermiogenesis)
1. यह पूर्व शुक्राणु निर्माण की द्वितीय प्रावस्था होती है। यह पूर्व शुक्राणु निर्माण के पश्चात् की प्रावस्था होती है।
2. इ समें स्पर मे टो गो निया (Spermatogonia) से प्राथमिक शुक्र कोशिकाएँ (Primary Spermatocytes) बनती हैं। इसमें स्पर मेट्ट्स् (Spermatids) से परिपक्व अगुणित शुक्राणुओं (Sperms) का निर्माण होता है।
3. यह शुक्रजनन कोशिकाओं की वृद्धि में भाग लेता है। इस क्रिया में कोशिकाओं का स्थानान्तरण होता है।
4. इ समें अनेक प्रक्रिया सम्मिलित होती हैं। यह शुक्राणु निर्माण की अन्तिम प्रावस्था है।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 3 मानव जनन

प्रश्न 35.
दिये गये चित्र का अध्ययन कीजिए और पूछे जा रहे प्रश्नों का उत्तर दीजिए-
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(अ) चित्र में प्रदर्शित मानव भ्रूण की अवस्था का नाम लिखिए ।
(ब) चित्र ‘a’ नामांकित भाग का नाम लिखिए एवं उसका कार्य लिखिए ।
(स) गर्भाशय के भीतर अन्तर्रोपित होने के बाद भीतरी कोशिका संहति का क्या होता है? लिखिए।
(द) इस भ्रूणम में स्टेम (मूल) कोशिकाएँ कहाँ हैं?
उत्तर:
(अ) ब्लास्टोसिस्ट (Blastocyst)
(ब) ट्रोफोब्लास्ट ( Trophoblast), कार्य-ट्रोफोब्लास्ट भ्रूण को सुरक्षा एवं पोषण उपलब्ध करवाती है।
(स) यह वास्तविक भ्रूण बनाती है।
(द) स्टेम (मूल) कोशिकाएँ भीतरी कोशिका संहति में है।

प्रश्न 36.
दिये गये चित्र के आधार पर प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
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  • शुक्राणुजनन की क्रिया किस कोशिका में होती है? नाम लिखिए।
  • ‘a’ तथा ‘b’ कोशिकाओं के नाम लिखिए। गुणसूत्रों की संख्या के आधार पर दोनों में क्या अन्तर होता है?
  • समसूत्री कोशिका को चिन्हित कर नाम लिखिए ।
  • ‘f’ कोशिका क्या है? इसका कार्य लिखिए।
  • उपरोक्त चित्र किस संरचना का भाग है? नाम लिखिए।

उत्तर:

  • ‘d’ शुक्राणु पूर्वी (Spermatid)
  • ‘a’ स्पर्मेटोगोनिया (Spermatogonia) ‘b’ प्राथमिक स्पर्मेटोसाइट (Primary Spermatocyte), दोनों कोशिकाएँ द्विगुणित (Diploid) होती है। प्रत्येक में गुणसूत्र 46 होते हैं ।
  • समसूत्री विभाजन-‘e’
  • ‘T’ कोशिका – सर्टोली कोशिका (Sertoli Cell) कार्य – विकासशील शुक्राणुओं को पोषण एवं आलम्बन प्रदान करती है।
  • शुक्रजनन नलिका (Seminiferous tubule)

प्रश्न 37.
मानव गर्भाशय की पेशीय तथा ग्रन्थीय परतों के नाम लिखिए। रजोचक्र के दौरान इनमें से किस परत में चक्रीय परिवर्तन होता है? इस परत के बने रहने के लिए अनिवार्य हार्मोन का नाम लिखिए।
उत्तर:
मानव गर्भाशय की पेशीय तथा ग्रन्थीय परतें निम्न हैं-

  1. एपिमेट्रियम (Epimatrium) – यह बाह्य तथा विसरल पेरीटोनियम से बनी होती है।
  2. मायोमेट्रियम (Myomatrium) – यह मध्य चिकनी कोशिकाओं से बनी होती है।
  3. एण्डोमेट्रियम (Endomatrium) – यह सबसे अन्दर की परत है जो ग्रन्थिल होती है।

रजोचक्र के दौरान एण्डोमेट्रियम परत में चक्रीय परिवर्तन होते हैं। इस परत के बने रहने के लिए अनिवार्य हार्मोन निम्न हैं- FSH, LH, तथा एस्ट्रोजन ।

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प्रश्न 38.
लेडिग कोशिकाएँ कहां पाई जाती हैं? प्रजनन में इनकी क्या भूमिका है?
उत्तर:
वृषण में शुक्रजनन नलिकाओं (Seminiferous tubules) के बाहर संयोजी ऊतक में धँसी हुई अनेक कोशिकाओं के समूह पाये जिन्हें लेडिंग कोशिकाएँ कहते हैं। इन्हें अन्तराली कोशिकाएँ (Interstial Cells) भी कहते हैं । इनके द्वारा नरलिंगी हार्मोन (male sex hormone) पुंजन ( एन्ड्रोजन) स्रावित किया जाता है ।

प्रश्न 39.
रजोदर्शन ( Menarch) तथा रजोनिवृत्ति (Menopause) में क्या अन्तर है?
उत्तर:
रजोदर्शन तथा रजोनिवृत्ति में अन्तर

रजोदर्शन (Menarch) रजोनिवृत्ति (Menopause)
किसी बालिका के जीव काल में प्रथम बार रजोधर्म य ॠतुस्राव (Menstrual होने को रजोदर्श (Menarch) कहते हैं। स्त्री में स्थायी रूप से ऋतु स्राव चक्रों के रुकने को रजोनिवृत्ति (Menopause) कहते हैं।
यह 12-13 वर्ष की आयु मे प्रारम्भ होता है। स्त्रियों में ॠतुसाव चक्र सामान्यतः 45-50 वर्ष की आयु में रुक जाता है।

प्रश्न 40.
मानव शिशु में यदि वृषणों का वृषण कोषों में स्थानान्तरण नहीं हुआ तो युवावस्था में जनन की कौनसी क्रिया प्रभावित होगी? कारण बताइये ।
उत्तर:
युवा अवस्था में शुक्राणुजनन (Spermatogenesis) की क्रिया प्रभावित होगी। शुक्राणुजनन के लिए तापमान शरीर के तापक्रम से 2- 2.5 डिग्री सेंटीग्रेड कम होना चाहिए। यदि वृषण कोष में स्थानान्तरित नहीं होते हैं तो अधिक तापमान के कारण शुक्राणुओं ( Sperms) का निर्माण नहीं होगा।

प्रश्न 41.
25 प्राथमिक शुक्र कोशिकाओं तथा 25 प्राथमिक अण्ड कोशिकाओं से बनने वाले शुक्राणुओं तथा अण्डाणुओं का अनुपात कितना होगा? कारण सहित समझाइए ।
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प्रश्न 42.
सजीव प्रजक प्राणियों की संतानों का उत्तर जीवन अधिक जोखिमपूर्ण नहीं होता है। दो कारण बताते हुए इस कथन की पुष्टि कीजिए।
अथवा
सजीव प्रजक जीवों में संतानों की उत्तर जीविता की अधिक सम्भावनाएँ हैं। कारण सहित समझाइए ।
उत्तर:
सजीव प्रजक जीवों में (अधिकतर स्तनधारी जिनमें मानव शामिल हैं) मादा जीव के शरीर के भीतर युग्मनज विकसित होकर शिशु का विकास करता है और एक निश्चित अवधि एवं विकास के चरणों को पूरा करने के बाद मादा जीव के शरीर से प्रसव द्वारा पैदा किये जाते हैं। भ्रूणीय सही देखभाल तथा संरक्षण के कारण सजीव प्रजक जीवों के उत्तरजीवित रहने के सुअवसर बढ़ जाते हैं।

प्रश्न 43.
मानव मादा जनन तंत्र को समझाइए ।
उत्तर:
स्त्रियों में एक जोड़ी अण्डाशय (Ovary) प्राथमिक जननांगों (Primary Sex Organs) के रूप में होते हैं। इसके अतिरिक्त अण्डवाहिनी (Oviduct), गर्भाशय (Uterus), योनि (Vagina), भग (Vulva), जनन ग्रन्थियाँ (Reproductive glands) तथा स्तन या छाती (Breast) सहायक जननांगों का कार्य करते हैं।
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(1) अण्डाशय (Ovary)-स्त्रियों में अण्डाशय की संख्या दो होती है, जिनकी आकृति बादाम के समान होती है। प्रत्येक अण्डाशय की लम्बाई लगभग 2 से 4 से. मी. होती है। दोनों अण्डाशय उदरगुहा में वृक्कों के काफी नीचे श्रोणि भाग (Pelvic region) में पीछे की ओर गर्भाशय (Uterus) के इधर-डधर स्थित होते हैं।

प्रत्येक अण्डाशय उदरगुहीय पेरीटोनियम के वलन से बनी मीसोविरियम (Mesovarium) नामक झिल्लीनुमा मीसेन्ट्री (Mesentery) द्वारा श्रोणि भाग की दीवार से टिका होता है। ऐसे ही एक झिल्ली अण्डाशयी लिगामेन्ट (Ovarian Ligament) प्रत्येक अण्डाशय को दूसरी ओर से गर्भाशय से जोड़ती है।

अण्डाशय की संरचना-प्रत्येक अण्डाशय भी वृषण के समान तीन स्तरों से घिरा होता है। बाहरी स्तर को ट्यूनिका एलब्यूजिनिया (Tunica Albuginea) कहते हैं। यह संयोजी ऊतक का महीन स्तर होता है। आन्तरिक स्तर को ट्यूनिका प्रोपरिया (Tunica Propria) कहते हैं तथा इनके बीच वाले स्तर को जनन उपकला (Germinal Epithelium) कहते हैं।

जनन उपकला घनाकार कोशिकाओं का बना होता है। अण्डाशय के बीच वाला भाग जो तन्तुमय होता है तथा संवहनीय संयोजी ऊतक (Vascular Connective Tissue) का बना होता है उसे स्ट्रोमा कहते हैं। स्ट्रोमा दो भागों में विभक्त होता है जिन्हें क्रमशः परिधीय वल्कुट (Peripheral Cortex) एवं आंतरिक मध्यांश (Internal Medulla) कहते हैं।

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अण्डाशय के वल्कुट (Cortex) भाग में अनेक अण्ड पुटिकाएँ (Ovarian Follicles) पायी जाती हैं। जिनका निर्माण जनन उपकला से होता है। पुटिकाएँ बहुकोशिकीय झिल्ली मेम्ब्रेना ग्रेन्यूलोसा (Membrana Granulosa) से घिरी होती हैं। जिसके भीतर फॉलीक्यूलर गुहा (Follicular Cavity) होती है जो फॉलीक्यूलर द्रव (Follicular Fluid) से भरी होती है।

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इस गुहा में अण्ड कोशिका (Ovum) होती है जो चारों ओर अनेक फॉलीकुलर कोशिकाओं से घिरी रहती है। इन कोशिकाओं को जोना पेल्यूसिडा (Zonapellucida) एवं चारों ओर के मोटे स्तर को कोरोना रेडिएटा (Corona Radiata) कहते हैं। इस संरचना को अब परिपक्व ग्राफियन पुटिका (Mature Graatian Follicle) कहते हैं। परिपक्व ग्राफियन पुटिका अण्डाशय की सतह पर पहुँच कर फट जाती है तथा अण्ड बाहर निकलकर उदरीय गुहा में आ जाता है। इस क्रिया को डिम्बोत्सर्ग (Ovulation) कहते हैं।

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(2) अण्डवाहिनी (Oviduct)-स्त्री में दो अण्डवाहिनियाँ होती हैं जो अण्डाणु को अण्डाशय से गर्भाशय तक पहुँचाती हैं। प्रत्येक अण्डवाहिनी की लम्बाई 10-12 से.मी. होती है। अण्डवाहिनी का स्वतन्त्र सिरा जो अण्डाशय के निकट होता है, कीप रूपी (Funnellike) एवं चौड़ा होता है तथा इसे आस्टियम (Ostium) कहते हैं।

आस्टियम या मुखिका का किनारा झालरदार (Fimbriated) एवं रोमाभि (Ciliated) होता है। अतः मुखिका को फिम्ब्रिएटेड कीप (Fimbriated Funnel) भी कहते हैं। अण्डोत्सर्ग के बाद अण्ड अण्डाशय से निकलकर उदरगुहा में आकर इसी फिम्ब्रिएटेड कीप के द्वारा फैलोपियन नलिका (Fallopian Tube) में चला जाता है। फैलोपियन नलिका की भित्ति पेशीयुक्त होती है तथा भीतर से अत्यन्त वलित (Folded) होती है। निषेचन की क्रिया फैलोपियन नलिका में ही होती है। प्रत्येक फैलोपियन नलिका अपनी ओर के गर्भाशय (Uterus) में अपने पश्च अन्त द्वारा खुलती है।

(3) गर्भाशय (Uterus)-इसे बच्चादानी (वुम्ब) भी कहते हैं। इसकी आकृति उल्टी नाशपाती के समान होती है। यह श्रोणि भित्ति से स्नायुओं द्वारा जुड़ा होता है। यह लगभग 7.5 से.मी. लम्बा, 3 से.मी, मोटा तथा अधिकतम 5 से.मी, चौड़ा खोखला तथा शंक्वाकार अंग होता है। इसका संकरा भाग नीचे की ओर तथा चौड़ा भाग ऊपर की ओर होता है।

इसके पीछे की ओर मलाशय (Rectum) तथा आगे की ओर मूत्राशय (Urinary Bladder) होता है। गर्भाशय की भित्ति, फतकों की तीन परतों से बनी होती हैबाहरी पताली झिल्लीमय स्तर को परिगभांशय (पेरिमेट्रियम), मध्य मोटी चिकनी पेशीख स्तर को गभाँशय पेशी स्तर (मायोमैट्रियम) और आन्तरिक ग्रान्थल स्तर को गर्भाशय अन्तःस्तर (एंड्रोमैट्रियम) कहते हैं जो गभाशएय गुहा को आस्तरित करती है। आतंव चक्र (Menstrual Cycle) के चक्र के दौरान गर्भाशब के अन्तःस्तर में चक्रीय परिवर्तन होते हैं, जबकि गभांशय पेशी स्तर में प्रसव के समय काफी तेज संकुचन होंता है।

गर्भाशाब को तीन भागों में विभेदित किया गया है-

  • फण्डस (Fundus)-ऊपर की और उभरा हुआ भाग फण्डस कहलाता है।
  • काय (Body)-बीच का प्रमुख भाग ग्रीवा (Cervix) कहलाता है।
  • ग्रीवा (Cervix)-सबसे निचला भाग ग्रीवा (Cervix) कहलाता है जो योनि से जुड़ा होता है।

भूण का विकास गर्भाशय (Uterus) में होता है। शूण अपरा (Placenta) की सहायता से गर्भाशय की भित्ति से संलग्न होता है। यहाँ भ्रूण को सुरक्षा एवं पोषण प्राप्त होता है।

(4) योनि (Vagina)-गर्भाशय ग्रीवा (Cervix Uteri) आगे बढ़कर एकपेशीय लचीली नलिका रूपी रचना का निर्माण करती है जिसे योनि (Vagina) कहते है। योनि स्त्रियों में मैथुन अंग (Copulatory organ) की तरह कार्य करती है। इसके अतिरिक्त योनि गर्भाशाय से उत्पन्न मास्तिक स्राव को निक्कासन हेतु पथ उपलख्ब करवाती है एवं शिशु जन्म के समय गर्भस्थ शिशु के बाहर निकालने के लिए जन्मनाल (Birth Canal) की तरह कार्य करती है।

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(5) बाद्य जननांग (External Genitila)-स्त्रियों के बाह्ष जननांग निम्न हैं-

(i) जघन शौल (Mons Pubis)-यह प्यूबिस लिम्फाइसिस के ऊपर स्थित होता है जो गद्दीनुमा होता है क्योंकि इसकी त्वचा के नीचे वसीय परत होती है। तरुण अवस्था में इस पर घने रोम उग आते हैं जो अन्त तक रहते हैं।

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(ii) वृहद् भगोष्ठ (Labia Majora)-ये जघन शैल (प्यूबिस मुंड) से नीचे की तरफ व पीछे की ओर से विस्तृत एक जोड़ी बड़े अनुद्रै्घ्य वलन होते हैं। इनकी बाह्य सतह पर रोम पाये जाते हैं।

(iii) लघु भगोष्ठ (Labia Minora)-ये आन्तरिक व छोटे वलन होते हैं। इन पर रोम नहीं पाये जाते हैं। लेबिया माइनोरा प्रघाण (Vestibule) को घेरे रहते हैं।

(iv) भगशेफ या क्लाइटोरिस (Clitoris)-यह जघन शैल (Mons Pubis) लेबिया माइनोरा के अग्र कोने पर स्थित एक संवेदी तथा घुण्डीनुमा अथवा अंगुलीनुमा रचना है। यह नर के शिश्न के समजात अंग है। यह अत्यधिक संवेदनशील होता है क्योंक इसमें स्पर्शकणिकाओं की अधिकता पायी जाती है।

(v) योनिच्छद (Hymen)-योनि द्वार पर पतली झिल्ली पाई जाती है जिसे योनिच्छद (Hymen) कहते हैं। यह लैंगिक सम्पर्क, शारीरिक परिश्रम एवं व्यायाम के कारण फट जाती है। बार्थोलिन की ग्रन्थियाँ (Bartholian Glands)-योनिद्वार के दोनों ओर एक-एक सेम की आकृति की ग्रन्थि लेबिया मेजोरा पर स्थित होती है। ये ग्रन्थियाँ एक क्षारीय व स्रेहक द्रव का स्राव करती हैं जो कि भग (Vulva) को नम रखता है एवं लैंगिक परस्पर व्यवहार को सुगम बनाता है।

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(6) स्तनग्रन्थि (Mammary Glands)-स्त्री में स्तन ग्रन्थियों (Mammary Glands) से युक्त एक जोड़ी स्तन उपस्थित होते हैं। ये वक्ष के सामने की तरफ अंसीय पेशियों (Pectoral Muscles) के ऊपर स्थित होते हैं। प्रत्येक स्तन ग्रन्थि में भीतर का संयोजी ऊतक $15-20$ नलिकाकार कोष्ठकीय पालियों का बना होता है। इनके बीच-बीच में वसीय ऊतक होता है। प्रत्येक पाली में अंगूर के गुच्छों के समान दुग्ध ग्रन्थियाँ होती हैं जो दुग्ध का स्राव करती हैं। यह दूध नवजात शिशु के पोषण का कार्य करता है।

प्रत्येक पालिका से निकली कई छोटी वाहिनियां एक दुग्ध नलिका या लैक्टीफेरस नलिका (Lactiferous Duct) बनाती हैं। ऐसी कई दुग्ध नलिकाएँ स्वतन्त्र रूप से आकर चूचुक (Nipples) में खुल जाती हैं। चूचुक स्तनग्रन्थियों के शीर्ष भाग पर उभरी हुई वर्णांकित (Pigmented) रचना है। इसके आसपास का क्षेत्र भी गहरा वर्णांकित हो जाता है। इस क्षेत्र को स्तन परिवेश (Areola Mammae) कहते हैं। स्त्रियों में चूचुक के चारों तरफ का क्षेत्र वसा के जमाव तथा पेशियों के कारण काफी उभरा हुआ होता, है। चूचुक में 0.5 मिमी. के 15-25 छिद्र पाये जाते हैं। पुरुषों में चूचुक अवशेषी होते हैं।

प्रश्न 44.
शुक्राणु जनन एवं अण्ड जनन में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न के निबन्धात्मक प्रश्न क्रमांक 8 का अवलोकन करें।

शुक्रजनन (Spermatogenesis) अण्डजनन (Oogenesis)
1. यह क्रिया वृषणों (Testes) में सम्पन्न होती है। यह क्रिया अण्डाशय (Ovaries) में सम्पन्न होती है।
2. शुक्रजनन की क्रिया प्राणी में जीवन पर्यन्त जारी रहती है। यह क्रिया एक निश्चित आयु के पश्चात् बन्द हो जाती है।
3. इस क्रिया में सभी शुक्रजनक कोशिकाएँ शुक्राणुओं का निर्माण करती हैं। के वल एक अण्ड जनक कोशिका अण्डाणु का निर्माण करती है। अन्य अनेक अण्डजनक कोशिकाएँ वृद्धि प्रावस्था में नष्ट हो जाती हैं।
4. दोनों परिपक्वन विभाजन वृषण में ही होते हैं। दोनों परिपक्वन विभाजन या कम से कम द्वितीय परिपक्वन विभाजन अण्डाशय से बाहर होते हैं।
5. वृद्धि प्रावस्था छोटे अन्तराल की एवं कम वृद्धि होती है। वृद्धि प्रावस्था लम्बे समय तक जारी रहती है एवं अधिक वृद्धि होती है।
6. इस क्रिया में एक शुक्रजनन कोशिका से चार पूर्व शुक्राणु कोशिकाओं का निर्माण होता है । इस क्रिया में एक ऊगोनिया से एक अण्डाणु एवं तीन ध्रुवकाय निर्मित होती हैं।
7. इस क्रिया में प्रथम एवं द्वितीय परिपक्वन विभाजन समान होते हैं एवं परिणामस्वरूप चार समान शुक्राणु (Sperm) निर्मित होते हैं। ये चारों ही स्वतन्त्र जनन इकाई होते हैं। दोनों परिपक्वन विभाजन असमान होते हैं तथा इसके फलस्वरूप एक बड़ी अण्डाणु कोशिका तथा तीन ध्रुवकाय का निर्माण होता है। इसमें केवल अण्डाणु (Ovum) ही स्वतन्त्र जनन इकाई है।
8. शुक्राणु निर्माण में कायान्तरण की क्रिया होती है। इसमें कायान्तरण नहीं होता।
9. शुक्राणु पीतक रहित एवं गतिशील होते हैं। अण्डाणु पीतकयुक्त एवं गतिहीन होते हैं।

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प्रश्न 45.
वृषण के अनुप्रस्थ काट का नामांकित चित्र बनाइए ।
उत्तर:
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प्रश्न 46.
यदि पीतपिंड निष्क्रिय हो जाये तो भ्रूण परिवर्धन पर क्या प्रभाव पड़ेगा? कारण सहित समझाइए ।
उत्तर:
पीतपिंड भारी मात्रा में प्रोजेस्ट्रॉन स्रावित करता है, जो कि गर्भाशय अंतःस्तर को बनाए रखने के लिये आवश्यक है। इस प्रकार गर्भाशय अंतःस्तर निषेचित अण्डाणु के अंतर्रोपण (inplantation) तथा सगर्भता की अन्य घटनाओं के लिये आवश्यक है। यदि पीतपिंड निष्क्रिय हो जाये तो यह अंत: स्तर का विखंडन कर देता है, जिससे फिर से रजोधर्म का नया चक्र शुरू हो जाता है यानी माहवारी पुनः होती है।

प्रश्न 47.
एक स्त्री जिसे आगे गर्भावस्था नहीं चाहिए, वह किस स्थाई विधि को अपनाएगी और क्यों?.
उत्तर:
शल्यक्रिया का उपयोग किया जाता है। महिलाओं के लिये डिंबनलिका उच्छेदन ( Tubectomy) का प्रयोग करते हैं। इसमें स्त्री के उदर में छोटा-सा चीरा लगाकर अथवा योनि द्वारा डिंबवाहिनी नली का छोटा-सा भाग निकाल या बांध दिया जाता है। यह शल्यक्रिया प्रभावशाली है और इसका कोई दुष्परिणाम भी नहीं है।

प्रश्न 48.
मानव के यौवनारम्भ के पश्चात् होने वाली लैंगिक जनन की चार जनन घटनाओं के नाम दीजिए ।
उत्तर:
निम्न चार जनन घटनाएँ होती हैं-

  • युग्मकजनन
  • युग्मक स्थानान्तरण
  • निषेचन
  • भ्रूणोद्भव ।

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
मानव शुक्राणु (Sperms) की संरचना का वर्णन कीजिए ।
अथवा
शुक्राणु की संरचना का सचित्र वर्णन करिये तथा शुक्राणुजनन को परिभाषित कीजिये ।
उत्तर:
शुक्राणुओं की आकृति भिन्न-भिन्न जाति में भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है। जैसे अस्थिल मछलियों में गोलाकार, मनुष्य में चमचाकार (Spoon-shaped), चूहों में हुक के आकार के व पक्षियों में सर्पिलाकार होते हैं।

शुक्राणु के चार भाग पाये जाते हैं-

  1. शीर्ष (Head)
  2. ग्रीवा (Neck)
  3. मध्य भाग (Middle piece)
  4. पूँछ (Tail)

(1) शीर्ष (Head) – मनुष्य में शीर्ष तिकोना एवं चपटा होता है। इसकी आकृति केन्द्रक की आकृति पर निर्भर होती है। शीर्ष भाग अंग्र दो संरचनाओं से मिलकर बना होता है-

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(i) केन्द्रक (Nucleus) – शुक्राणु के शीर्ष का अधिकांश भाग केन्द्रक द्वारा घिरा होता है। केन्द्रक में प्रमुख रूप से ठोस क्रोमेटिन पदार्थ पाये जाते हैं। DNA अत्यधिक संघनित अवस्था में होता है।

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(ii) अग्रपिंडक / एक्रोसोम (Acrosome ) – केन्द्रक के अग्र भाग में टोपी के समान रचना पाई जाती है जिसे एक्रोसोम कहते हैं। टोपी के समान एक्रोसोम पाया जाता है। यह स्पर्मलाइसिन्स नामक पाचक एन्जाइम का स्रावण करता है । स्तनधारियों में इसके द्वारा हाएलोयूरोनाइडेज एन्जाइम एवं प्रोएक्रोसिन, एसिड फॉस्फेटेस, बाइन्डीन का स्रावण किया जाता है। प्रोएक्रोसिन, एक्रोसोम क्रिया द्वारा एक्रोसिन में बदल जाता है । ये दोनों एन्जाइम अण्डभेदन में सहायक होते हैं।

(2) ग्रीवा (Neck ) – शीर्ष एवं मध्य भाग के बीच जहाँ तारक केन्द्र उपस्थित रहते हैं, ग्रीवा क्षेत्र कहलाता है। इस भाग में तारककाय पायी जाती है। समीपस्थ तारककाय केन्द्रक के पश्च भाग में एक गर्त में स्थित होता है, जो निषेचन के बाद खण्डीभवन को प्रेरित करता है । इसके पास ही दूरस्थ तारककाय पाया जाता है।

(3) मध्यभाग (Middle Piece ) – यह भाग शुक्राणु का ऊर्जा कक्ष या इंजन कहलाता है । मध्य भाग दूरस्थ तारककाय से मुद्रिका तारककाय तक होता है जिसमें अक्षीय तन्तुओं के चारों ओर माइटोकॉन्ड्रिया के आपस में आंशिक समेकन के फलस्वरूप बनी सर्पिल कुण्डली के रूप में व्यवस्थित रहते हैं ।

स्तनधारियों में माइटोकॉन्ड्रिया के आपस में आंशिक समेकन के फलस्वरूप बनी सर्पिल कुण्डली को बेनकर्म आच्छद (Nebenkerm Sheath) कहते हैं । मध्य भाग द्वारा ही शुक्राणु की गति के लिये आवश्यक ऊर्जा प्रदान की जाती है। शीर्ष के पश्च भाग एवं सम्पूर्ण मध्य भाग को चारों ओर कोशिकाद्रव्य की महीन पर्त घेरे रहती है जिसे मेनचैट (Manchette) कहते हैं। मध्य भाग के अंत में एक मुद्रिका सेन्ट्रियोल पायी जाती है।

(4) पूँछ (Tail) – यह पश्च भाग होता है । यह जीवद्रव्य की झिल्ली से बनी नलिका की तरह होता है। इसके बीचोंबीच में एक अक्षीय सूत्र (Axial Filament) होता है। अक्षीय सूत्र आगे सेट्रिओल से जुड़ा रहता है तथा पीछे की तरफ झिल्ली से स्वतन्त्र रहता है जिसे अन्तिम  खण्ड (End Piece) कहते हैं । पूँछ की तरंग गति द्वारा शुक्राणु तरल मध्यम में तैरते रहते हैं । शुक्राणुजनन (Spermatogenesis) – वृषण की जनन उपकला कोशिकाओं के समसूत्रीय व अर्धसूत्रीय विभाजन द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण शुक्रजनन कहलाता है ।

प्रश्न 2.
आर्तव चक्र किसे कहते हैं? इसकी विभिन्न घटनाओं को आरेख की सहायता से समझाइए ।
अथवा
आर्तव चक्र की और अवस्थाओं को चित्र बनाकर वर्णन कीजिए ।
अथवा
आर्तव चक्र की विभिन्न अवस्थाओं की व्याख्या कीजिए । आर्तव चक्र की विभिन्न अवस्थाओं का चित्रीय निरूपण कीजिए ।
उत्तर:
प्राइमेट्स मादाओं में पाये जाने वाले जनन चक्र को आर्तव चक्र या रजचक्र (Menstruation) कहते हैं। स्त्रियों में रजचक्र 28 दिन का होता है। प्रथम रजचक्र तरुणावस्था (Puberty) में प्रारम्भ होता है । इसे रजोदर्शन ( Menarche ) कहते हैं । इस चक्र के दौरान स्त्रियों की योनि मार्ग से महीने में एक बार रक्त का स्राव होता है। चालीस से पचास वर्ष की उम्र में यह चक्र लगभग समाप्त हो जाता है । इस अवस्था को रजोनिवृत्ति (Menopause) कहते हैं । गर्भवती महिलाओं में रज चक्र अनुपस्थित होता है । आर्तव चक्र (Menstrual Cycle) में निम्न चार अवस्थायें पायी जाती हैं-

(1) आर्तव प्रावस्था / रजस्राव प्रावस्था (Menstrual Phase)- यह चक्र स्त्रियों में रजस्राव शुरू होने के पहले दिन से प्रारम्भ होता है। इसकी अवधि स्त्रियों में 3-5 दिन की होती है। इस प्रावस्था में गर्भाशय की एण्डोमीट्रियम (Endometrium) का अस्थायी स्तर जिसे स्ट्रेटम फंक्सनेलिस (Stratum Functionalis) कहते हैं ।

रक्तस्राव का प्रारम्भ ऐस्ट्रोजन ( Estrogen) एवं प्रोजेस्ट्रोन (Progesterone) हार्मोन की मात्रा में अचानक कमी हो जाने के कारण होता है। इस प्रावस्था में एन्डोमीट्रियम की रक्त कोशिकायें एवं ग्रन्थियां फट जाती हैं एवं रक्तस्राव प्रारम्भ हो जाता है। रक्त गर्भाशयी ऊतकों से बाहर योनि मार्ग द्वारा निकलता रहता है।

(2) पश्च आर्तव / पुटिकीय प्रावस्था (Follicular Phase) – यह अवस्था आर्तव एवं अण्डोत्सर्ग के बीच की अवस्था होने के कारण इस अवस्था को पूर्व अण्डोत्सर्ग (Pre-ovulatory Phase) कहते हैं स्त्री में इसकी अवधि 8-10 दिन की होती है। इस प्रावस्था में निम्न कार्य सम्पन्न होते हैं-

  • गर्भाशय की एन्डोमीट्रियम पुनः निर्मित होती है एवं टूटी रुधिर वाहिनी एवं ऊतकों की मरम्मत होती है।
  • गर्भाशयी एवं फैलोपियन नलिका की क्षतिग्रस्त म्यूकस झिल्ली की मरम्मत होती है।
  • गर्भाशय की दीवार में पेशियों की मोटाई तथा रक्त नलिकाओं व ग्रन्थियों की संख्या बढ़ जाती है।

इस प्रावस्था में एस्ट्रोजन हार्मोन स्राव अधिक होता है।

(3) अण्डोत्सर्ग प्रावस्था (Ovulatory Phase ) – इस प्रावस्था में अण्डोत्सर्ग होता है जो स्त्री में 14वें दिन होता है अर्थात् अण्डाशय में स्थित ग्राफियन पुटिका फट जाती है एवं परिपक्व अण्डा मुक्त हो जाता है । अण्डाणु मुक्त होने को ही अण्डोत्सर्ग कहते हैं। यह क्रिया LH (Luteinizing Hormone) द्वारा नियन्त्रित होती है। इस प्रावस्था में स्त्रियों के शरीर का तापमान बढ़ जाता है ।

(4) पश्च अण्डोत्सर्ग या ल्यूटियल प्रावस्था (Luteal Phase)- इसको पूर्व रज – स्राव प्रावस्था भी कहते हैं । यह प्रावस्था 15- 28 वें दिन तक चलती है । अण्डोत्सर्ग के पश्चात् फटी हुई ग्राफियन कोशिकाओं में वृद्धि होती है एवं कार्पस ल्यूटियम ( Corpus Luteum) का निर्माण करती है । यह कार्पस ल्यूटियम एक अन्तःस्रावी ग्रन्थि का कार्य करती है एवं इससे एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन का अत्यधिक मात्रा में स्रावण किया जाता है। ये हार्मोन निषेचित अण्डाणु को गर्भाशय की भित्ति जुड़ने अर्थात् रोपण हेतु तैयार करते हैं।

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यदि निषेचन नहीं होता है, यह कॉर्पस ल्यूटियम जिसे पीत ग्रन्थि (Yellow gland) भी कहते हैं, धीरे-धीरे विघटित होकर एक श्वेत पदार्थ के रूप में परिवर्तित हो जाती है, जिसे कार्पस एल्बीकेन्स (Corpus Albicans) कहते हैं । एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्ट्रोन का स्राव कम हो जाता है एवं पुनः निर्मित एवं मोटी एन्डोमीट्रियम नष्ट होना प्रारम्भ हो जाती है एवं रजचक्र अथवा आर्तव चक्र प्रारम्भ हो जाता है।

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प्रश्न 3.
मनुष्य में नर जनन तन्त्र का वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
पुरुषों में एक जोड़ी वृषण (Testis) प्राथमिक जननांग के रूप में होते हैं। इसके अतिरिक्त सहायक जननांग (Accessory Reproduction organs) मुख्यतया वृषणकोष (Scrotal Sac), अधिवृषण (Epididymis), शुक्रवाहिनियां (Vas-deferences), शिश्न (Penis) तथा प्रोस्टेट ग्रन्थि (Prostate Gland) एवं कॉउपर ग्रन्थि (Cowper’s Gland) पाये जाते हैं।

वृषण (Testis)-वृषण प्राथमिक जननांग होते हैं जिनका निर्माण भ्रूणीय मीसोडर्म (Mesoderm) से होता है। ये मीसोर्कियम (Mesorchium) की सहायता से उदरगुहा की पृष्ठभित्ति से जुड़े रहते हैं। वृषण संख्या में दो होते हैं। इनका रंग गुलाबी तथा आकृति में अण्डाकार होते हैं जिसकी लम्बाई 4 से 5 से.मी., चौड़ाई लगभग 2 से 3 से.मी. एवं वजन में 12 ग्राम होता है।

दोनों वृषण उदरगुहा के बाहर एक थैले में स्थित होते हैं जिसे वृषणकोष (Scrotal Sac) कहते हैं। वृषणकोष एक ताप नियंत्रक की भांति कार्य करता है। वृषणों का तापमान शरीर के तापमान से 2-2.5° C नीचे बनाये रखता है। यह तापमान शुक्राणुओं के विकास के लिए उपयुक्त होता है। वृषणकोषों की दीवार पतली, लचीली एवं रोमयुक्त होती है।

इसके अन्दर पेशी तन्तुओं का मोटा अवत्वक (Subcutaneous) स्तर होता है जिसे डारटोस पेशी (Dartos muscle) कहते हैं। रेखित पेशी तन्तुओं का एक दण्डनुमा गुच्छा वृषणकोष के प्रत्येक अर्धभाग के अवत्वक पेशी स्तर को उदरीय अवत्वक पेशी स्तर से जोड़ता है, जिसे वृषणोत्कर्ष पेशी (cremaster muscles) कहते हैं।

प्रत्येक वृषण कोष की गुहा उदरगुहा से एक सँकरी नलिका द्वारा जुड़ी होती है जिसे वक्षणनाल (Inguinal Canal) कहते हैं। वक्षणनाल के द्वारा होकर वृषण धमनी, वृषणशिरा तथा वृषण तन्त्रिका एक वृषण रज्जु (Spermatic Cord) के रूप में वृषण तक जाती है।

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वृषण पर दो आवरण पाये जाते हैं जिन्हें वृषण खोल (Testicular capsule) कहते हैं। इसमें बाहरी महीन आवरण को मौनिक स्तर (Tunica Vaginalis) कहते हैं। यह उदरगुहा के उदरावण से बनता है जबकि भीतरी स्तर को श्वेत कुंचक अथवा ट्यूनिका ऐल्ब्यूजिनिया (Tunica Albuginea) कहते हैं। वृषण की गुहा भी इसी ऊतक की पट्टियों द्वारा लगभग 250 पालियों या वेश्मों में बंटी रहती है।

प्रत्येक पाली में अनेक कुण्डलित रूप में एक-दूसरे से सटी हुई कई पतली नलिकाएँ पायी जाती हैं, जिन्हें शुक्रजनन नलिका (Seminiferous Tubules) कहते हैं। इन नलिकाओं के बीच संयोजी ऊतक पाया जाता है जिसमें विशेष प्रकार की अन्तराली कोशिकाएँ या लैडिग कोशिकाएँ (Leydig cells) पायी जाती हैं।

इन कोशिकाओं द्वारा नर हार्मोन टेस्टोस्टेरोन (Testosterone) का विकास होता है। प्रत्येक शुक्रजनक नलिका (Seminiferous Tubules) के चारों ओर झिल्लीनुमा आवरण पाया जाता है जिसे ट्यूनिका प्रोप्रिया (Tunica Propria) कहते हैं। इस झिल्ली के नीचे जनन उपकला (Germinal Epithelium) का स्तर पाया जाता है। शुक्रजनक नलिका (Seminiferous Tubules) को वृषण की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई कहा जाता है। जनन उपकला स्तर में दो प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती हैं-
(i) स्परमेटोगोनिया कोशिकाएँ (Spermatogonia cells)इनके द्वारा शुक्रजनन (Spermatogenesis) द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण होता है।

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(ii) सरटोली कोशिकाएँ (Sertoli cells)-सरटोली कोशिकाओं को अवलम्बन या पोषी या नर्स या मातृ या सबटेन्टाकुलर कोशिकाएँ (Supporting or Nutritive or Nurse or Mother or Subtentacular cells) भी कहते हैं। ये कोशिकाएँ आकार में बड़ी, संख्या में कम एवं स्तम्भी प्रकार की होती हैं। इनका स्वतन्त्र भाग कटाफटा होता है। इस भाग में शुक्राणुपूर्व कोशिकाएँ (Spermatids) सर्टोली कोशिकाओं से सटकर संलग्न रहती हैं।

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सरटोली कोशिकाओं के कार्य (Functions of Sertoli Cells)-

  • शुक्राणुओं को आलम्बन प्रदान करती हैं।
  • ये कोशिकाएँ शुक्राणुओं को संरक्षण एवं पोषण प्रदान करती हैं।
  • शुक्रकायान्तरण (Spermiogenesis) के दौरान अवशिष्ट कोशिकाद्रव्य (Residual Cytoplasm) का भक्षण करना।
  • सरटोली कोशिका द्वारा एन्टीमुलेरियान हार्मोन का स्रावण किया जाता है। यह भूरणीय अवस्था में मादा जननवाहिनी के विकास का संदमन करता है।
  • सरटोली कोशिकाओं के द्वारा इनहिबिन (Inhibin) हार्मोन का स्रावण किया जाता है जो FSH का संदमन करता है।
  • इन कोशिकाओं के द्वारा ABP (एण्ड्रोजन बाइडिंग प्रोटीन) का स्रावण किया जाता है।

शुक्रजनन नलिका (Seminiferous Tubules) से पतलीपतली नलिकाएँ निकलती हैं, वृषण के अन्दर ये नलिकाएँ आपस में मिलकर एक जाल बनाती हैं, इसे वृषण जालक (Rete Testis) कहते हैं। इससे लगभग 15-20 संवलित नलिकाएँ (Convoluted ductules) निकलती हैं जिन्हें वास इफरेंशिया (Vas Efferentia) कहते हैं। ये नलिकाएँ वृषण की अग्र या ऊपरी सतह पर पहुँचकर लम्बी रचना में खुलती हैं जिसे अधिवृषण (Epididymis) कहते हैं।

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अधिवृषण (Epididymis)-यह एक लम्बी तथा अत्यधिक कुंडलित नलिका है जिसकी लम्बाई 6 मीटर होती है। प्रत्येक वृषण के भीतरी किनारों पर अत्यधिक कुण्डलित नलिका द्वारा निर्मित एक रचना पाई जाती है जिसे अधिवृषण कहते हैं। अधिवृषण को तीन भागों में बाँटा गया है-

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  • कैपुट एपिडिडाइमिस (Caput Epididymis)-यह वृषण के ऊपर केप (Cap) के समान होती है। इमें वृषण से आने वाली वास इफरेन्शिया (Vas Efferentia) खुलती है। कैपुट एपिडिडाइमिस को ग्लोबस मेजर (Globus Major) भी कहते हैं।
  • कॉर्पस एपिडिडाइमिस (Corpus Epididymis)-यह मध्य भाग है व संकरा होता है। इसे एपिडिडाइमिस काय (Epididymis body) भी कहते हैं।
  • कॉडा एपिडिडाइमिस (Cauda Epididymis)-यह एपिडिडाइमिस का पश्च व सबसे छोटा भाग है। इसे ग्लोबस माइनर (Globus Minor) भी कहते हैं। कॉडा एपिडिडाइमिस से इसकी नली पीछे निकलकर शुक्रवाहिनी (Vas deference) बनाती है। अधिवृषण

(Epididymis) के कार्य-

  • शुक्राणुओं को अधिवृषण में संग्रहित किया जाता है व यहाँ इनका परिपक्वन होता है।
  • यह वृषणों से शुक्रवाहिनी में शुक्राणुओं के पहुँचने के लिए मार्ग प्रदान करते हैं।
  • अधिवृषण (Epididymis) में शुक्राणु एक माह तक संचित रह सकते हैं। स्खलन न होने की स्थिति में शुक्राणुओं का विघटन न होने पर इनके तरल का अवशोषण इसी में होता है।
  • इसकी नलिका में क्रमाकुंचन के कारण शुक्राणु वास डिफरने्स (Vas deference) की ओर बहते हैं।

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शुक्रवाहिनी (Vas deference)-शुक्रवाहिनी लगभग 45 सेमी. लम्बी नलिका होती है। इसकी दीवार पेशीय होती है। शुक्रवाहिनी अधिवृषण के पश्च भाग से प्रारम्भ होकर ऊपर की ओर वक्षणनाल से होकर गुहा में मूत्राशय के पश्च तल पर नीचे की ओर मुड़कर चलती हुई अन्त में एक फूला हुआ भाग तुम्बिका (Ampulla) बनाती है। यहाँ इसमें शुक्राशय (Seminal Vesicle) की छोटी वाहिनी आकर खुलती है। दोनों के मिलने से स्खलनीय वाहिनी (Ejaculatory Duct) का निर्माण होता है।

शुक्रवाहिनी की भित्ति पेशीय होती है व इसमें संकुचन व शिथिलन की क्षमता पायी जाती है। संकुचन व शिथिलन द्वारा शुक्राणु शुक्राशय तक पहुँचा दिये जाते हैं। शुक्रवाहिनियों में ग्रन्थिल कोशिकाएँ पाई जाती हैं जो चिकने पदार्थ का सावण करती हैं। यह द्रव शुक्राणुओं को गति करने में सहायता करता है। तुम्बिका (Ampulla) में शुक्राणुओं को अस्थायी रूप से संग्रह किया जाता है।

स्खलनीय वाहिनियां अन्त में मूत्र मार्ग (Urethra) में आकर खुलती हैं। मूत्रमार्ग (Urethra)-मूत्राशय से मूत्रवाहिनी निकलकर स्खलनीय वाहिनी से मिलकर मूत्रजनन नलिका या मूत्रमार्ग (Urinogenital Duct or Urethra) बनाती है। यह लगभग 20 से.मी. लम्बी नाल होती है जो शिश्न के शिखर भाग पर मूत्रजनन छिद्र (Urinogenital Aperture) द्वारा बाहर खुलती है। मूत्रमार्ग एवं वीर्य दोनों के लिए एक उभयनिष्ठ मार्ग (Common Passage) का कार्य करता है।

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मूत्रमार्ग (Urethra) तीन भागों में बँटा होता है-

  1. प्रोस्टेटिक मूत्रमार्ग (Prostatic Urethra)
  2. झिल्लीमय मूत्रमार्ग (Membranous Urethra)
  3. स्पंजी मूत्रमार्ग (Spongy Urethra)

1. प्रोस्टेटिक मूत्रमार्ग (Prostatic Urethra)-यह मूत्रमार्ग का 2-3 से.मी. लम्बा भाग होता है। यह प्रोस्टेट ग्रन्थि के मध्य से गुजरता तथा दोनों ओर की स्खलन वाहिनियाँ इसी भाग में खुलती हैं।

2.  झिल्लीमय मूत्रमार्ग (Membranous Urethra)-यह मध्य का लगभग 1 से.मी. लम्बा भाग होता है जो प्रोस्टेट ग्रन्थि तथा शिश्न (Penis) के बीच स्थित पेशीय तन्तुपट (Muscular Diaphragm) को बेधता हुआ शिश्न में प्रवेश करता है।

3.  स्पंजी मूत्रमार्ग (Spongy Urethra)-यह मूत्रमार्ग का अन्तिम या शिखर भाग है जो शिश्न में से गुजरता है। यह स्पंजी तथा सर्वाधिक लम्बाई (16-17 से.मी.) वाला भाग है।

शिश्न (Penis)-पुरुष का मैथुनी अंग है जो एक लम्बा, संकरा, बेलनाकार तथा वहिःसारी (Protrusible) होता है। इसका स्वतन्त्र सिरा फूला हुआ तथा अत्यधिक संवेदी होता है तथा शिश्नमुण्ड (Galns Penis) कहलाता है। यह भाग एक त्वचा के आवरण से ढका रहता है। यह आवरण शिश्न = मुण्डछद (Prepuce) कहलाता है। शिश्न दोनों वृषणकोषों के ऊपर व मध्य में उदर के निचले भाग में लटका रहता है।
यह तीन भागों में विभेदित होता है-

  • शिश्नमूल (Root of Penis)-यह मूत्रोजनन तनुपट (Urinogenital diaphargm) से लगा शिश्न का समीपस्थ भाग होता है।

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  • शिश्नकाय (Body of Penis)-यह शिश्न का मुख्य लम्बा भाग है।
  • शिश्नमुण्ड (Glans Penis)-यह शिश्न का शिखर भाग होता है ।

शिश्न की संरचना पेशियों एवं रुधिर कोटरों (Blood Sinus) से होती है। ये तीन मोटे अनुदैर्घ्य डोरियों के समान रज्ञुओं (Cords) के रूप में होते हैं। पृष्ठ भाग में ऐसी संरचनाएँ दो होती हैं जिन्हें कॉरपोरा केवरनोसा (Corpora Cavernosa) तथा अधर भाग में एक कॉर्पस स्पंजिओसम (Corpus Spongiosum) कहलाती है। सामान्य अवस्थाओं में शिश्न शिथिल एवं छोटा होता है।

मैथुन उत्तेजना के समय इसके कोटर रुधिर से भर जाते हैं तथा यह लम्बा, मोटा तथा कड़ा हो जाता है। इस अवस्था में शिश्नमुण्ड नग्न हो जाता है तथा यह स्त्री की योनि में आसानी से प्रविष्ट कराया जा सकता है। मैथुन क्रिया में सुगमतापूर्वक शुक्राणुओं को वीर्य के साथ स्थानान्तरित किया जा सकता है।

सहायक ग्रन्थियाँ (Accessory Glands)-पुरुषों में मुख्यतः तीन प्रकार की सहायक जनन ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं जो जनन में सहायता करती हैं-

(1) प्रोस्टेट ग्रन्थि (Prostate Gland)-इस ग्रन्थि की आकृति सिंघाड़ेनुमा होती है। यह मूत्रमार्ग के आधार भाग पर स्थित होती है एवं कई पिण्डों में विभक्त होती है। प्रत्येक पिण्ड एक छोटी नलिका द्वारा मूत्रमार्ग में खुलता है। इस ग्रन्थि का स्राव विशेष गंध युक्त, सफेद एवं हल्का क्षारीय होता है जो वीर्य का 25-30 प्रतिशत भाग बनाता है।

इस स्राव में फॉस्फेट्स सिट्रेट, लाइसोजाइम, फाइब्रिनोलाइसिन, स्पर्मिन (Spermin) आदि पाये जाते हैं। वृद्ध पुरुषों में यह ग्रन्थि बड़ी हो जाती है व मूत्रोजनन मार्ग में अवरोध उत्पन्न कर देती है। इसे शल्य क्रिया द्वारा हटा दिया जाता है। कार्य-इस ग्रन्थि का साव (प्रोस्टेटिक द्रव) शुक्राणुओं को सक्रिय बनाता है एवं वीर्य के स्कंदन को रोकता है।

(2) काडपर गन्थि (Cowper’s Gland)-इ से बल्बोयूरेश्रिल ग्रन्थियाँ (Bulbourethral Glands) भी कहते हैं। ये ग्रन्थियाँ एक जोड़ी प्रोस्टेट ग्रन्थि के पीछे स्थित होती हैं। इनका स्राव चिकना, पारदर्शी व क्षारीय होता है जो मूत्रोजनन मार्ग की अम्लीयता को नष्ट करता है। यह तरल मादा की योनि को चिकना कर मैथुन क्रिया को सुगम बनाता है।

(3) शुक्राशय (Seminal Vesicle)-शुक्राशय एक थैलीनुमा रचना होती है जो एक जोड़ी के रूप में मूत्राशय की पश्च सतह एवं मलाशय के बीच में स्थित होती है। इसके द्वारा एक पीले रंग का चिपचिपे पदार्थ का स्रावण किया जाता है। यही तरल पदार्थ वीर्य का अधिकांश भाग (लगभग 60 प्रतिशत) बनाता है।

इसमें फ्रक्टोस, शर्क रा, प्रोस्टाग्लैं डिन्स (Prostaglandins) तथा प्रोटीन सेमीनोजेलिन (Semenogelin) होते हैं। फ्रक्टोस शुक्राणुओं को ATP के रूप में ऊर्जा प्रदान करता है। क्षारीय प्रकृति के कारण यह स्राव योनि मार्ग की अम्लीयता को समाप्त कर शुक्राणुओं की सुरक्षा करता है। प्रत्येक शुक्राशय से एक छोटी नलिका निकल कर शुक्रवाहिनी की तुम्बिका में खुलती है। शिश्न की उत्तेजित अवस्था में स्खलन के समय दोनों शुक्राशय संकुचित होकर अपने स्राव को मुक्त करते हैं।

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प्रश्न 4.
स्त्रियों में मादा जनन तन्त्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्त्रियों में एक जोड़ी अण्डाशय (Ovary) प्राथमिक जननांगों (Primary Sex Organs) के रूप में होते हैं। इसके अतिरिक्त अण्डवाहिनी (Oviduct), गर्भाशय (Uterus), योनि (Vagina), भग (Vulva), जनन ग्रन्थियाँ (Reproductive glands) तथा स्तन या छाती (Breast) सहायक जननांगों का कार्य करते हैं।

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(1) अण्डाशय (Ovary)-स्त्रियों में अण्डाशय की संख्या दो होती है, जिनकी आकृति बादाम के समान होती है। प्रत्येक अण्डाशय की लम्बाई लगभग 2 से 4 से. मी. होती है। दोनों अण्डाशय उदरगुहा में वृक्कों के काफी नीचे श्रोणि भाग (Pelvic region) में पीछे की ओर गर्भाशय (Uterus) के इधर-डधर स्थित होते हैं। प्रत्येक अण्डाशय उदरगुहीय पेरीटोनियम के वलन से बनी मीसोविरियम (Mesovarium) नामक झिल्लीनुमा मीसेन्ट्री (Mesentery) द्वारा श्रोणि भाग की दीवार से टिका होता है।

ऐसे ही एक झिल्ली अण्डाशयी लिगामेन्ट (Ovarian Ligament) प्रत्येक अण्डाशय को दूसरी ओर से गर्भाशय से जोड़ती है। अण्डाशय की संरचना-प्रत्येक अण्डाशय भी वृषण के समान तीन स्तरों से घिरा होता है। बाहरी स्तर को ट्यूनिका एलब्यूजिनिया (Tunica Albuginea) कहते हैं। यह संयोजी ऊतक का महीन स्तर होता है।

आन्तरिक स्तर को ट्यूनिका प्रोपरिया (Tunica Propria) कहते हैं तथा इनके बीच वाले स्तर को जनन उपकला (Germinal Epithelium) कहते हैं। जनन उपकला घनाकार कोशिकाओं का बना होता है। अण्डाशय के बीच वाला भाग जो तन्तुमय होता है तथा संवहनीय संयोजी ऊतक (Vascular Connective Tissue) का बना होता है उसे स्ट्रोमा कहते हैं। स्ट्रोमा दो भागों में विभक्त होता है जिन्हें क्रमशः परिधीय वल्कुट (Peripheral Cortex) एवं आंतरिक मध्यांश (Internal Medulla) कहते हैं।

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अण्डाशय के वल्कुट (Cortex) भाग में अनेक अण्ड पुटिकाएँ (Ovarian Follicles) पायी जाती हैं। जिनका निर्माण जनन उपकला से होता है। पुटिकाएँ बहुकोशिकीय झिल्ली मेम्ब्रेना ग्रेन्यूलोसा (Membrana Granulosa) से घिरी होती हैं। जिसके भीतर फॉलीक्यूलर गुहा (Follicular Cavity) होती है जो फॉलीक्यूलर द्रव (Follicular Fluid) से भरी होती है।

इस गुहा में अण्ड कोशिका (Ovum) होती है जो चारों ओर अनेक फॉलीकुलर कोशिकाओं से घिरी रहती है। इन कोशिकाओं को जोना पेल्यूसिडा (Zonapellucida) एवं चारों ओर के मोटे स्तर को कोरोना रेडिएटा (Corona Radiata) कहते हैं। इस संरचना को अब परिपक्व ग्राफियन पुटिका (Mature Graatian Follicle) कहते हैं। परिपक्व ग्राफियन पुटिका अण्डाशय की सतह पर पहुँच कर फट जाती है तथा अण्ड बाहर निकलकर उदरीय गुहा में आ जाता है। इस क्रिया को डिम्बोत्सर्ग (Ovulation) कहते हैं।

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(2) अण्डवाहिनी (Oviduct)-स्त्री में दो अण्डवाहिनियाँ होती हैं जो अण्डाणु को अण्डाशय से गर्भाशय तक पहुँचाती हैं। प्रत्येक अण्डवाहिनी की लम्बाई 10-12 से.मी. होती है। अण्डवाहिनी का स्वतन्त्र सिरा जो अण्डाशय के निकट होता है, कीप रूपी (Funnellike) एवं चौड़ा होता है तथा इसे आस्टियम (Ostium) कहते हैं। आस्टियम या मुखिका का किनारा झालरदार (Fimbriated) एवं रोमाभि (Ciliated) होता है। अतः मुखिका को फिम्ब्रिएटेड कीप (Fimbriated Funnel) भी कहते हैं।

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अण्डोत्सर्ग के बाद अण्ड अण्डाशय से निकलकर उदरगुहा में आकर इसी फिम्ब्रिएटेड कीप के द्वारा फैलोपियन नलिका (Fallopian Tube) में चला जाता है। फैलोपियन नलिका की भित्ति पेशीयुक्त होती है तथा भीतर से अत्यन्त वलित (Folded) होती है। निषेचन की क्रिया फैलोपियन नलिका में ही होती है। प्रत्येक फैलोपियन नलिका अपनी ओर के गर्भाशय (Uterus) में अपने पश्च अन्त द्वारा खुलती है।

(3) गर्भाशय (Uterus)-इसे बच्चादानी (वुम्ब) भी कहते हैं। इसकी आकृति उल्टी नाशपाती के समान होती है। यह श्रोणि भित्ति से स्नायुओं द्वारा जुड़ा होता है। यह लगभग 7.5 से.मी. लम्बा, 3 से.मी, मोटा तथा अधिकतम 5 से.मी, चौड़ा खोखला तथा शंक्वाकार अंग होता है। इसका संकरा भाग नीचे की ओर तथा चौड़ा भाग ऊपर की ओर होता है।

इसके पीछे की ओर मलाशय (Rectum) तथा आगे की ओर मूत्राशय (Urinary Bladder) होता है। गर्भाशय की भित्ति, फतकों की तीन परतों से बनी होती हैबाहरी पताली झिल्लीमय स्तर को परिगभांशय (पेरिमेट्रियम), मध्य मोटी चिकनी पेशीख स्तर को गभाँशय पेशी स्तर (मायोमैट्रियम) और आन्तरिक ग्रान्थल स्तर को गर्भाशय अन्तःस्तर (एंड्रोमैट्रियम) कहते हैं जो गभाशएय गुहा को आस्तरित करती है। आतंव चक्र (Menstrual Cycle) के चक्र के दौरान गर्भाशब के अन्तःस्तर में चक्रीय परिवर्तन होते हैं, जबकि गभांशय पेशी स्तर में प्रसव के समय काफी तेज संकुचन होंता है।

गर्भाशाब को तीन भागों में विभेदित किया गया है-

  • फण्डस (Fundus)-ऊपर की और उभरा हुआ भाग फण्डस कहलाता है।
  • काय (Body)-बीच का प्रमुख भाग ग्रीवा (Cervix) कहलाता है।
  • ग्रीवा (Cervix)-सबसे निचला भाग ग्रीवा (Cervix) कहलाता है जो योनि से जुड़ा होता है।

भूण का विकास गर्भाशय (Uterus) में होता है। शूण अपरा (Placenta) की सहायता से गर्भाशय की भित्ति से संलग्न होता है। यहाँ भ्रूण को सुरक्षा एवं पोषण प्राप्त होता है।

(4) योनि (Vagina)-गर्भाशय ग्रीवा (Cervix Uteri) आगे बढ़कर एकपेशीय लचीली नलिका रूपी रचना का निर्माण करती है जिसे योनि (Vagina) कहते है। योनि स्त्रियों में मैथुन अंग (Copulatory organ) की तरह कार्य करती है। इसके अतिरिक्त योनि गर्भाशाय से उत्पन्न मास्तिक स्राव को निक्कासन हेतु पथ उपलख्ब करवाती है एवं शिशु जन्म के समय गर्भस्थ शिशु के बाहर निकालने के लिए जन्मनाल (Birth Canal) की तरह कार्य करती है।

(5) बाद्य जननांग (External Genitila)-स्त्रियों के बाह्ष जननांग निम्न हैं-
(i) जघन शौल (Mons Pubis)-यह प्यूबिस लिम्फाइसिस के ऊपर स्थित होता है जो गद्दीनुमा होता है क्योंकि इसकी त्वचा के नीचे वसीय परत होती है। तरुण अवस्था में इस पर घने रोम उग आते हैं जो अन्त तक रहते हैं।
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(ii) वृहद् भगोष्ठ (Labia Majora)-ये जघन शैल (प्यूबिस मुंड) से नीचे की तरफ व पीछे की ओर से विस्तृत एक जोड़ी बड़े अनुद्रै्घ्य वलन होते हैं। इनकी बाह्य सतह पर रोम पाये जाते हैं।

(iii) लघु भगोष्ठ (Labia Minora)-ये आन्तरिक व छोटे वलन होते हैं। इन पर रोम नहीं पाये जाते हैं। लेबिया माइनोरा प्रघाण (Vestibule) को घेरे रहते हैं।

(iv) भगशेफ या क्लाइटोरिस (Clitoris)-यह जघन शैल (Mons Pubis) लेबिया माइनोरा के अग्र कोने पर स्थित एक संवेदी तथा घुण्डीनुमा अथवा अंगुलीनुमा रचना है। यह नर के शिश्न के समजात अंग है। यह अत्यधिक संवेदनशील होता है क्योंक इसमें स्पर्शकणिकाओं की अधिकता पायी जाती है।

(v) योनिच्छद (Hymen)-योनि द्वार पर पतली झिल्ली पाई जाती है जिसे योनिच्छद (Hymen) कहते हैं। यह लैंगिक सम्पर्क, शारीरिक परिश्रम एवं व्यायाम के कारण फट जाती है।

बार्थोलिन की ग्रन्थियाँ (Bartholian Glands)-योनिद्वार के दोनों ओर एक-एक सेम की आकृति की ग्रन्थि लेबिया मेजोरा पर स्थित होती है। ये ग्रन्थियाँ एक क्षारीय व स्रेहक द्रव का स्राव करती हैं जो कि भग (Vulva) को नम रखता है एवं लैंगिक परस्पर व्यवहार को सुगम बनाता है।
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(6) स्तनग्रन्थि (Mammary Glands)-स्त्री में स्तन ग्रन्थियों (Mammary Glands) से युक्त एक जोड़ी स्तन उपस्थित होते हैं। ये वक्ष के सामने की तरफ अंसीय पेशियों (Pectoral Muscles) के ऊपर स्थित होते हैं। प्रत्येक स्तन ग्रन्थि में भीतर का संयोजी ऊतक $15-20$ नलिकाकार कोष्ठकीय पालियों का बना होता है। इनके बीच-बीच में वसीय ऊतक होता है। प्रत्येक पाली में अंगूर के गुच्छों के समान दुग्ध ग्रन्थियाँ होती हैं जो दुग्ध का स्राव करती हैं। यह दूध नवजात शिशु के पोषण का कार्य करता है।

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प्रत्येक पालिका से निकली कई छोटी वाहिनियां एक दुग्ध नलिका या लैक्टीफेरस नलिका (Lactiferous Duct) बनाती हैं। ऐसी कई दुग्ध नलिकाएँ स्वतन्त्र रूप से आकर चूचुक (Nipples) में खुल जाती हैं। चूचुक स्तनग्रन्थियों के शीर्ष भाग पर उभरी हुई वर्णांकित (Pigmented) रचना है। इसके आसपास का क्षेत्र भी गहरा वर्णांकित हो जाता है। इस क्षेत्र को स्तन परिवेश (Areola Mammae) कहते हैं। स्त्रियों में चूचुक के चारों तरफ का क्षेत्र वसा के जमाव तथा पेशियों के कारण काफी उभरा हुआ होता, है। चूचुक में 0.5 मिमी. के 15-25 छिद्र पाये जाते हैं। पुरुषों में चूचुक अवशेषी होते हैं।

प्रश्न 5.
प्रसव किसे कहते हैं? प्रसव एवं दुग्ध स्रवण क्रिया को समझाइए ।
उत्तर:
गर्भावस्था (Gestation) के पश्चात् माता के गर्भाशय (Uterus) से पूर्ण विकसित शिशु के बाहर आने की प्रक्रिया को प्रसव कहते है।
शिशु जन्म (Parturition) का नियन्त्रण हार्मोन द्वारा होता है, अतः यह क्रिया एक अन्तःस्रावी-नियमित क्रिया (Endocrine Regulatory Process) होती है। शिशु जन्म में दो हार्मोन प्रमुख हैं। पीयूष के पश्च भाग का आक्सीटोसिन (Oxytocin) तथा अण्डाशय द्वारा स्रावित रिलेक्सिन (Relaxin) हार्मोन।

जैसे गर्भावस्था का अन्त होने लगता है तथा जब फीटस (Foetus) पूर्ण विकसित हो जाता है, प्लेसेन्टा (Placenta) द्वारा स्रावित हार्मोन मुख्यतः प्रोजेस्टरोन की मात्रा कम होने लगती है तथा जन्म के समय न्यूनतम हो जाती है, जिसके फलस्वरूप प्लेसेन्टा का गर्भाशय से सम्बन्ध कमजोर हो जाता है। अतः शिशु जन्म के समय आक्सीटोसिन गर्भाशय को उत्तेजित करता है तथा इसमें क्रमिक संकुचन होने लगता है, इसे प्रसव पीड़ा (Labour Pain) कहते हैं।

इसके साथ ही रिलेक्सिन हार्मोन भी मुक्त होता है जिसके फलस्वरूप जघनास्थिसंधि (Pubic Symphysis) एवं जघन पेशियाँ शिथिल हो जाती हैं। इन क्रियाओं के फलस्वरूप पूर्ण रचित शिशु योनि में से होते हुए भग से बाहर आ जाता है। इस क्रिया को प्रसव कहते हैं। गर्भाशय में शिशु, नाभिनाल (Umbilical) द्वारा माता के गर्भाशय से जुड़ा रहता है जिसे काटकर हटा दिया जाता है।

यदि माता में प्राकृतिक रूप से प्रसव पीड़ा प्रारम्भ न हो तो चिकित्सक उन्हें आक्सीटोसिन (Oxytocin) हार्मोन का इन्जेक्शन लगाते हैं जिससे प्रसव पीड़ा प्रारम्भ हो जाती है और प्रसव आसानी से हो जाता है।

दुग्धस्रवण (Lactation)-सगर्भता की अवस्था में प्रोजेस्ट्रॉन व एस्ट्रोजन हार्मोन्स के प्रभाव से स्तन ग्रन्थियों की वृद्धि से स्त्री के वक्ष बड़े आकार के हो जाते हैं। प्रौलेक्टिन के प्रभाव से शिशु जन्म के 24 घन्टे के अन्दर दुग्ध ग्रन्थियों से दुग्धस्रवण (Lactation) हो जाता है। प्रारम्भ में वक्ष की निप्पलों से कोलस्ट्रम (Colstrum) का स्राव होता है। यह पीले रंग का होता है जिसमें ग्लोबुलिन प्रोटीन (Globulin Protein) काफी में मात्रा में होता है। इसमें माता की एन्टीबॉडीज होती है जो नवजात शिशु की संक्रमण से रक्षा करती है।

प्रश्न 6.
युग्मकजनन को परिभाषित कीजिए । शुक्राणुजनन व अण्डजनन को विस्तार से समझाइए ।
उत्तर:
जनद (Gonods) द्वारा युग्मकों के निर्माण को युग्मकजनन कहते हैं। युग्मकजनन के दौरान समसूत्रीय व अर्धसूत्रीय दोनों प्रकार के विभाजन पाये जाते हैं। इस प्रकार अगुणित (Haploid) युग्मकों का निर्माण होता है। युग्मक दो प्रकार के होते हैं जिन्हें क्रमशः शुक्राणु व अण्डाणु कहते हैं।

शुक्रजनन की क्रियाविधि
वृषण की जनन उपकला कोशिकाओं के समसूत्रीय व अर्धसूत्रीय विभाजन द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण शुक्रजनन (Spermatogenesis) कहलाता है। शुक्रजनन एक सतत (Continuous) क्रिया है। शुक्रजनन में अग्र दो चरण पाये जाते हैं-
(A) शुक्र णुपूर्वी का निर्माण या स्पर्में टोसाइटोसिस (Formation of Spermatid or Spermatocytosis)
(B) शुक्राणुपूर्वी का शुक्राणु में कायान्तरण अथवा स्पर्मिओजे नेसिस (Metarmorphosis of Spermatids in to Spermatozoa or Spermiogenesis)

(A) शुकाणुपूर्वी का निमर्णा (Formation of Spermatids)-यह क्रिया तरुणावस्था (Puberty) में आरम्भ होती है। शुक्रजनन प्राथमिक जनन कोशिका अथवा आदि जनन कोशिका से आरम्भ होता है। इस क्रिया में निम्न तीन चरण पाये जाते हैं-

(a) गुणन प्रावस्था (Multiplication phase)
(b) वृद्धि प्रावस्था (Growth phase)
(c) परिपक्वन प्रावस्था (Maturation phase)
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(a) गुणन प्रावस्था (Multiplication phase)-इस दौरान प्राथमिक जनन कोशिका या आदि जनन कोशिका में एक के बाद एक समसूत्री विभाजन पाये जाते हैं, इससे निर्मित कोशिका को स्परमेटोगोनिया (Spermatogonia) कहते हैं। स्परमेटोगोनिया द्विगुणित (Diploid) या (2n) कोशिका है।

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(b) वृद्धि प्रावस्था (Growth phase)-इस दाँरान स्परमेटोगोनिया के आकार में वृद्धि होती है। यह वृद्धि दुगुने (Double) के बराबर होती है। इस वृद्धि द्वारा निर्मित कोशिका को प्राथमिक स्परमेटोसाइट्स (Primary Spermatocytes) कहते हैं। वृद्धि प्रावस्था, अण्डजनन की वृद्धि प्रावस्था से अल्पावधि की होती है। इस अवस्था में किसी भी प्रकार का विभाजन नहीं पाया जाता है। प्राथमिक स्परमेटोसाइट्स द्विगुणित (2n) कोशिका है।

(c) परिपक्व प्रावस्था (Maturation phase)-इस दौरान प्राथमिक स्परमेटेसाइट्स में दो बार विभाजन होता है-

  • प्रथम परिपक्वन विभाजन (First maturation division)-अर्धसूत्रीय-I (Meiosis-I) होता है। इसके परिणामस्वरूप दो द्वितीयक स्परमेटोसाइट्स (Secondary Spermatocytes) का निर्माण होता है।
  • द्वितीय परिपक्वन विभाजन (Second maturation division)-अर्धसूत्रीय-II होता है। यह समसूत्रीय विभाजन के समान होता है। इस प्रकार 4 शुक्राणुपूर्वी (Spermatid) का निर्माण हो जाता है। शुक्राणुपूर्वी अगुणित होते हैं। देखिए चित्र में।

(B) शुक णुपूर्वी का शुक्राणु में कायान्तरण (Spermiogenesis)-गोल, अचल व पूंछविहीन शुक्राणु पूर्वी (Spermatid) का तर्कुकार, चल व पूंछयुक्त शुक्राणु में बदलना शुक्रकायान्तरण (Spermiogenesis) कहलाता है। इस शुक्राणु में निम्न परिवर्तन होते हैं-
(i) शीर्ष का निर्माण (Formation of Head)-शुक्राणुपूर्व कोशिका के केन्द्रक से जल के कम हो जाने से गुणसूत्र एक छोटे व अत्यधिक संहत् पिण्ड का निर्माण कर लेते हैं। RNA तथा केन्द्रिका (Nucleolus) की हानि हो जाने से केन्द्रक में केवल आनुवंशिक पदार्थ (DNA व क्रोमेटिन) रह जाते हैं। गोलाकार केन्द्रक दीर्घित हो जाता है और धीरे-धीरे उत्केन्द्री (Ecentric) स्थिति ग्रहण कर लेता है। कोशिकाद्रव्य निर्माणाधीन पूंछ की ओर चला जाता है। केन्द्रक कोशिकाद्रव्य के एक पतले आवरण से आवरित रह जाता है।

(ii) अग्रपिण्डक या एक्रोसोम का निर्माण (Formation of Acrosome)-शुक्राणुपूर्वी के गॉल्जीकाय से शुक्राणु का अग्रपिण्डक (स्क्रोसोम) बनता है। शुक्राणुपूर्वी के गाल्जीकाय में अनेक छोटी-छोटी रिक्तिकाओं का समूह होता है। इनमें से अग्रपिण्डक के निर्माण हेतु एक रिक्तिका बड़ी होने लगती है और इसमें एक सघन प्रोएक्रोसोमल कणिका (Proacrosomal Granule) बन जाती है ।

अब गॉल्जीकाय को अग्रकोरक (Acroblast) कहते हैं। अन्य रिक्तिकाओं के संयुक्त हो जाने से एक्रोसोमल कणिका भी अब बड़ी होकर एक्रोसोमल कणिका (Acrosomal granule) बन जाती है। एक्रोसोम आशय में उपस्थित तरल पदार्थ धीर-धीरे कम होने लगता है।
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(iii) ग्रीवा का निर्माण (Formation of Neck)-शुक्राणुपूर्व में पहले से ही दो तारक केन्द्र (Centrioles) होते हैं। ये बेलनाकार तथा परस्पर समकोणिक होते हैं, शुक्राणुजनन में ये दोनों तारक केन्द्र के पश्च भाग में चले जाते हैं। केन्द्रक के पश्च तल पर बने एक गड्ढे में एक तारक केन्द्र शुक्राणु के लम्बे अक्ष पर समकोणिक स्थिति में व्यवस्थित हो जाता है।

इसे समीपस्थ तारक केन्द्र (Proximal Centriole) कहते हैं। दूसरे तारक केन्द्र को दूरस्थ तारक केन्द्र (Distal Centriole) कहते हैं। इसका लम्बा अक्ष शुक्राणु के लम्बे अक्ष की संपाती स्थिति में होता है।

(iv) मध्य खण्ड का निर्माण (Formation of Middle Piece)-दूरस्थ तारक केन्द्र से बना एक सूत्र धीरे-धीरे पीछे की ओर लम्बाई में बढ़ने लगता है। शुक्राणुपूर्व के सभी माइटोकॉन्ड्रिया इस सूत्र के समीपस्थ भाग के पास सर्पिल कुण्डली के रूप में व्यवस्थित हो जाते हैं। यह शुक्राणु का मध्य खण्ड होता है।

(v) पूंछ का निर्माण (Formation of Tail)-दूरस्थ तारक केन्द्र द्वारा बना सूत्र निरन्तर लम्बा होता जाता है तथा इसे ढकता हुआ कोशिकाद्रव्य भी पश्च भाग की ओर प्रवाहित होता रहता है। इसी सूत्र की पूंछ को अक्ष्रीय सूत्र (Axial filament) कहते हैं। यह सूत्र तेज गति से बढ़ता हुआ अन्ततः कोशिकाओं से निकलकर बाहर आ जाता है। यह भाग कोशिकाद्रव्य से अनावरित होता है। अक्ष्षीय सूत्र का कोशिकाद्रव्य से अवरित भाग पूंछ का मुख्य खण्ड होता है तथा अनावरित भाग अन्त्यखण्ड (End piece) कहलाता है।

इस समय तक शेष बचे कोशिकाद्रव्य को गॉल्जीकाय के अनावश्यक अवयवों सहित त्याग दिया जाता है और एक अत्यन्त सक्रिय शुक्राणु (Sperm) का निर्माण हो जाता है। शुक्राणु की संरचना शुक्राणुओं की आकृति भिन्न-भिन्न जाति में भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है। जैसे अस्थिल मछलियों में गोलाकार, मनुष्य में चमचाकार, चूहों में हुक के आकार के व पक्षियों में सर्पिलाकार होते हैं।

शुक्राणु के चार भाग पाये जाते हैं-

  1. शीर्ष
  2. ग्रीवा
  3. मध्य भाग
  4. पूँछ

1. शीर्ष-मनुष्य में शीर्ष तिकोना एवं चपटा होता है। इसकी आकृति केन्द्रक की आकृति पर निर्भर होती है। शीर्ष भाग निम्न दो संरचनाओं से मिलकर बना होता है-
(i) केन्द्रक-शुक्राणु के शीर्ष का अधिकांश भाग केन्द्रक द्वारा घिरा होता है। केन्द्रक में प्रमुख रूप से ठोस क्रोमेटिन पदार्थ पाये जाते हैं। DNA अत्यधिक संघनित अवस्था में होता है।

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(ii) अग्रपिंडक/एक्रोसोम-केन्द्रक के अग्र भाग में टोपी के समान रचना पाई जाती है जिसे एक्रोसोम कहते हैं। टोपी के समान एक्रोसोम पाया जाता है। यह स्पर्मलाइसिन्स नामक पाचक एन्जाइम का स्रावण करता है। स्तनधारियों में इसके द्वारा हाएलोयूरोनाइडेज एन्जाइम एवं प्रोएक्रोसिन, एसिड फॉस्फेटेस, बाइन्डीज का स्रावण किया जाता है। प्रोएक्रोसिन, एक्रोसोम क्रिया द्वारा एक्रोसिन में बदल जाता है। ये दोनों एन्जाइम अण्डभेदन में सहायक होते हैं।
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2. ग्रीवा-शीर्ष एवं मध्य भाग के बीच जहाँ तारक केन्द्र उपस्थित रहते हैं, ग्रीवा क्षेत्र कहलाता है। इस भाग में तारककाय पायी जाती है। समीपस्थ तारककाय केन्द्रक के पश्च भाग में एक गर्त में स्थित होता है, जो निषेचन के बाद खण्डीभवन को प्रेरित करता है। इसके पास ही दूरस्थ तारककाय पाया जाता है।

3. मध्य भाग-यह भाग शुक्राणु का ऊर्जा कक्ष या इंजन कहलाता है। मध्य भाग दूरस्थ तारककाय से मुद्रिका तारककाय तक होता है जिसमें अक्षीय तन्तुओं के चारों ओर माइटोकॉन्ड्रिया के आपस में आंशिक समेकन के फलस्वरूप बनी सर्पिल कुण्डली के रूप में व्यवस्थित रहते हैं।

स्तनधारियों में माइटोकॉन्ड्रिया के आपस में आंशिक समेकन के फलस्वरूप बनी सर्पिल कुण्डली को नेबेनकर्न (Nebenkern) आच्छद कहते हैं। मध्य भाग द्वारा ही शुक्राणु की गति के लिये आवश्यक ऊर्जा प्रदान की जाती है। शीर्ष के पश्च भाग एवं सम्पूर्ण मध्य भाग को चारों ओर कोशिकाद्रव्य की महीन पर्त घेरे रहती है जिसे मेनचैट (Manchette) कहते हैं। मध्य भाग के अंत में एक मुद्रिका सेन्ट्रियोल पायी जाती है।

4. पूंछ-यह शुक्राणु का सबसे लम्बा तन्तुमय भाग है जो गति में सहायक है।
अण्डजनन (Oogenesis)-अण्डाशय की जनन उपकला द्वारा अण्डाणु निर्माण एवं परिपक्वन की क्रिया को अण्डजनन कहते हैं। अण्डजनन में निम्न तीन चरण पाये जाते हैं-
(A) गुणन प्रावस्था (Multiplication phase)
(B) वृद्धि प्रावस्था (Growth phase)
(C) परिपक्वन प्रावस्था (Maturation phase)

(A) गुणन प्रावस्था (Multiplication phase)-प्रारम्भिक अथवा प्राथमिक जनन कोशिकाओं (Primordial or Primary Germ Cells) के बारम्बार समसूत्री विभाजन के फलस्वरूप वर्त्त कोशिकाएँ अण्डजन या ऊगोनिया (Oogonia) कहलाती हैं। ऊगोनिया द्विगुणित (2n) कोशिकाएँ हैं।
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(B) वृद्धि प्रावस्था (Growth phase)-इस दौरान ऊगोनिया में पुन: समसूत्रीय विभाजन होता है। इसके फलस्वरूप स्तनधारियों के अण्डाशय में कोशिकाओं के समूह का निर्माण होता है, जिन्हें अण्डवाही रज्जु (Ovigerous cord) कहते हैं। अण्डवाही रज्जु की एक ऊगोनिया कोशिका वृद्धि करती है व शेष कोशिकाएँ घेर लेती हैं। ऊगोनिया की वृद्धि से प्राथमिक ऊसाइट (Primary Oocyte) का निर्माण होता है। प्राथमिक ऊसाइट को घेरने वाली कोशिकाओं को पुटक कोशिकाएँ (Follicle cells) कहते हैं।

(C) परिपक्वन प्रावस्था (Maturation phase)-प्राथमिक ऊसाइट (Primary Oocyte) में, अर्धसूत्री विभाजन (Meiosis) प्रथम द्वारा द्वितीयक ऊसाइट (Secondary Oocyte) व एक पोलर बॉडी (Polar Body) का निर्माण होता है। प्रारम्भिक पुटिक की पुटिकीय कोशिकाओं में निरन्तर विभाजन होने लगता है जिसके फलस्वरूप विकासशील अण्डकोशिका के चारों ओर एक बहुस्तरीय आवरण बन जाता है जिसे मेम्ब्रेना ग्रेन्यूलोसा (Membrana Granulosa) कहते हैं तथा सम्पूर्ण पुटिका समूह को अब द्वितीयक पुटिका (Secondary Follicle) कहते हैं।

धीरे-धीरे अण्डाणु व मेम्ब्रेना ग्रेन्यूलोसा के बीच रिक्त स्थान का निर्माण होने लगता है जिसे पुटिका गुहा (Follicular Cavity) कहते हैं। इसमें पाये जाने वाले पोषक तरल पदार्थ को पुटिका द्रव्य (Follicular Fluid) कहते हैं। पुटिका कोशिकाओं का स्तर जो अण्डाणु के चारों ओर उपस्थित होता है उसे कोरोना रेडिएटा (Corona Radiata) कहते हैं।

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इसके ठीक नीचे अण्डाणु के चारों तरफ एक ओर पारदर्शी आवरण पाया जाता है जिसे जोना पेल्यूसिडा (Zona Pellucida) कहते हैं। इस अवस्था में पुटिका अपने परिमाण के चरम सीमा पर होती है और इसे अब ग्राफ्रियन पुटिका (Graffian Follicle) कहते हैं। ग्राफियन पुटिका (Graffian Follicle) अण्डाशय के आवरण के निकट पहुँचकर फट जाती है तथा इसमें अण्डाणु (Ovum) बाहर निकलकर देहगुहा में आ जाता है। पुटिका से अण्डाणु के बाहर निकलने की प्रक्रिया को अण्डोत्सर्ग (Ovulation) कहते हैं।

शुकजनन व अण्डजनन में समानताएँ

  1. शुक्र जनन (Spermatogenesis) व अण्ड जनन (Oogenesis) दोनों क्रियाएँ जनन उपकला (Germinal Epithelium) से प्रारम्भ होती है।
  2. दोनों ही क्रियाओं में तीन समान प्रावस्थाएँ होती हैं-
    • गुणन प्रावस्था
    • वृद्धि प्रावस्था
    • परिपक्वन प्रावस्था
  3. गुणन प्रावस्था में दोनों क्रियाओं में समसूत्री विभाजन होता है ।
  4. परिपक्वन प्रावस्था में अर्धसूत्री विभाजन (Meiosis division) होता है।
  5. दोनों की अन्तिम प्रावस्था में अगुणित युग्मक का निर्माण होता है।

प्रश्न 7.
अंतर्रोपण किसे कहते हैं? अंतर्रोपण क्रिया का चित्र बनाकर वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
स्त्री एवं पुरुष के संभोग (मैथुन) के दौरान शुक्र (वीय) स्त्री की योनि में छोड़ा जाना वीर्यसेचन (Insemination) कहलाता है। गर्भाशय में होने वाली तरंग गति के कारण शुक्राणु गति करते हुए गर्भाशय में प्रवेश करते हुए अन्त में अंडवाहिनी नली के संकीर्ण पथ इस्थमस तथा तुंबिका (Ampulla) के संधिस्थल तक पहुँच जाता है। यहीं पर द्वितीय ऊसाइट (Secondary oocyte) होता है।

ऊसाइट द्वारा फर्टीलाइजिन (Fertilizin) एवं शुक्राणुओं द्वारा एन्टीफर्टीलाइजिन (anti-fertilizin) नामक रासायनिक पदार्थों का स्रावण किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप ऊसाइट (oocyte) व शुक्राणु एक दूसरे के समीप आ जाते हैं। वे फर्टीलाइजिन व एन्टी-फर्टीलाइजिन दोनों जाति विशिष्ट होते हैं।

अब शुक्राणु के एक्रोसोम (Acrosome) द्वारा हाएलुरोनिडेज (Hyaluronidase) नामक रासायनिक पदार्थ का स्रावण किया जाता है। इस एन्जाइम की उपस्थिति के कारण अण्डाणु के आवरण कोरोना रेडियेटा (Corona Rodiata) तथा जोना पैल्युसिडा (Zona pellucida) को नष्ट कर देता है, जिसके फलस्वरूप शुक्राणु अण्ड में प्रवेश कर जाता है एवं इसकी पूँछ बाहर ही रह जाती है। केवल एक शुक्राणु ही अण्डे में प्रवेश कर पाता है। इसके बाद अण्डे की प्लाज्मा झिल्ली निध्रुवित हो जाती है जिससे अन्य शुक्राणु प्रवेश नहीं कर पाते हैं।
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शुक्राणु को केन्द्रक अण्ड के केन्द्रक से आपस में संलयन करते हैं जिसके परिणामस्वरूप द्विगुणित रचना का निर्माण होता है जिसे युग्मनज (Zygote) कहते हैं। इस क्रिया को निषे चन (Fertilization) कहते हैं। निषेचन की क्रिया फैलोपियन नलिका अथवा अण्डवाहिनी में होती है। इसी समय भ्रूण के लिंग का निर्धारण हो जाता है।

स्त्री में XX लिंग गुणसूत्र (Sex Chromosome) व पुरुष में XY लिंग गुणसूत्र (Sex Chromosome) पाये जाते हैं। अर्थात् स्त्री द्वारा सिर्फ X गुणसूत्र के ही अगुणित युग्मक (अण्ड) निर्मित होते हैं। पुरुष द्वारा 50% X गुणसूत्र व 50% Y गुणसूत्र के अगुणित युग्मक शुक्राणु बनते हैं। पुरुष युग्मक (शुक्राणु) व स्त्री युग्मक (अण्ड) के संयोजन के बाद युग्मनज (Zygote) XYया XXप्रकार के होते हैं।

XXयुग्मनज मादा भ्रण (लड़की) व XYवाले युग्मनज नर भूण (लड़का) में परिवर्तित हो जाते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि एक शिशु का लिंग निर्धारण उसके पिता द्वारा होता है न कि माता के द्वारा। निषेचन के पश्चात् युग्मनज (Zygote) में विदलन समसूत्री विभाजन प्रारम्भ हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप 2,4,8,16 संतति कोशिकाओं का निर्माण होता है जिसे कोरकखण्ड (Blastomeres) कहते हैं।

8 से 16 कोरकखण्डों वाले भूण को मोरुला (Morulla) कहते हैं। देखिए आगे चित्र (य)। यह मोरुला लगातार विभाजित होता रहता है और जैसे-जैसे गर्भाशय की ओर बढ़ता है, यह कोरकपुटी (Blastocyst) के रूप में परिवर्तित हो जाता है। देखिए का (र)। एक कोरकपुटी में कोरकखण्ड बाहरी परत में व्यवस्थित होते हैं, जिसे पोषक कोरक (Trophoblast) कहते हैं। कोशिकाओं के भीतरी समूह जो पोषक कोरक से जुड़े होते हैं उन्हें अंतरकोशिका (Inner Cell Mass) कहते हैं।
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अब पोषक कोरक स्तर गभाशय के अन्तः स्तर (Endometrium) से संलग्न हो जाता है और अन्तर कोशिका समूह भ्रूण के रूप में अलग-अलग या विभेदित हो जाता है। संलग्न होने के बाद गर्भाशयी क्डोशिकाएँ तेजी से विभक्त होती हैं औरकोरकपुटी (Blastocyst) को आवृत कर लेती हैं। इसके परिणामस्वरूप कोरकपुटी गर्भाशय अन्तःस्तर में अन्तःस्थापित हो जाती है। देखिए चित्र (ल) इसे ही अन्तर्रोपण (Implantation) कहते हैं और बाद में सगर्भता का रूप धारण कर लेती है।

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प्रश्न 8.
शुक्रजनन ( Sperminatogenesis) एवं अण्डजनन (Oogenesis) में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
शुक्रजनन (Spermatogenesis) एवं अण्डजनन (Oogenesis) में अन्तर

शुक्रजनन (Spermatogenesis) अण्डजनन (Oogenesis)
1. यह क्रिया वृषणों (Testes) में सम्पन्न होती है। यह क्रिया अण्डाशय (Ovaries) में सम्पन्न होती है।
2. शुक्रजनन की क्रिया प्राणी में जीवन पर्यन्त जारी रहती है। यह क्रिया एक निश्चित आयु के पश्चात् बन्द हो जाती है।
3. इस क्रिया में सभी शुक्रजनक कोशिकाएँ शुक्राणुओं का निर्माण करती हैं। के वल एक अण्ड जनक कोशिका अण्डाणु का निर्माण करती है। अन्य अनेक अण्डजनक कोशिकाएँ वृद्धि प्रावस्था में नष्ट हो जाती हैं।
4. दोनों परिपक्वन विभाजन वृषण में ही होते हैं। दोनों परिपक्वन विभाजन या कम से कम द्वितीय परिपक्वन विभाजन अण्डाशय से बाहर होते हैं।
5. वृद्धि प्रावस्था छोटे अन्तराल की एवं कम वृद्धि होती है। वृद्धि प्रावस्था लम्बे समय तक जारी रहती है एवं अधिक वृद्धि होती है।
6. इस क्रिया में एक शुक्रजनन कोशिका से चार पूर्व शुक्राणु कोशिकाओं का निर्माण होता है । इस क्रिया में एक ऊगोनिया से एक अण्डाणु एवं तीन ध्रुवकाय निर्मित होती हैं।
7. इस क्रिया में प्रथम एवं द्वितीय परिपक्वन विभाजन समान होते हैं एवं परिणामस्वरूप चार समान शुक्राणु (Sperm) निर्मित होते हैं। ये चारों ही स्वतन्त्र जनन इकाई होते हैं। दोनों परिपक्वन विभाजन असमान होते हैं तथा इसके फलस्वरूप एक बड़ी अण्डाणु कोशिका तथा तीन ध्रुवकाय का निर्माण होता है। इसमें केवल अण्डाणु (Ovum) ही स्वतन्त्र जनन इकाई है।
8. शुक्राणु निर्माण में कायान्तरण की क्रिया होती है। इसमें कायान्तरण नहीं होता।
9. शुक्राणु पीतक रहित एवं गतिशील होते हैं। अण्डाणु पीतकयुक्त एवं गतिहीन होते हैं।

प्रश्न 9.
मानव में भ्रूणीय अवस्थाओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव में भ्रूणीय अवस्थाओं का सारांश (Summary of Embryonic Development Stage in Human)
1 दिन – निषेचन (Fertilization), निषेचित अण्डाणु का व्यास लगभग 0.15 मि.मी. होता है।
2 दिन – दो कोशिका अवस्था (Two Cell Stage)।
3 दिन – 16 कोशिका अवस्था (16 Cell Stage), मॉर्ला (Morula)।
4 दिन – कोरकपुटी (Blastocyst) का गर्भाशय अवकाशिका (Uterine Lumen) में प्रवेश, जोना पैल्यूसिडा (Zona pellucida) का विलोपन, कोरपुटी का व्यास लगभग 0.3 मि.मी।
7-8 दिन – कोरकपुटी का गर्भाशय की एण्डोमीट्रियम में आंशिक प्रवेश, रोपण (Implantation)।
12 दिन – कोरकपुटी का एण्डोमीट्रियम में प्रवेश पूर्ण, भ्रूणीय डिस्क (Embryonic Disc) का निर्माण, अतिरिक्त भूर्णीय अन्तश्चर्म (Extra-embryonic Endoderm), अतिरिक्त भ्रूणीय मध्यचर्म (Extra-embryonic Mesoderm), एम्निऑन (Amnion), पीतक कोष (Yolk Sac) का निर्माण।
14 दिन – आदि रेखा (Primitive Streak) का निर्माण।
18 दिन – 3-5 जोड़ी कायखण्डों (Somites) का निर्माण।
19 दिन – तन्त्रिका खाँच (Neural Groove), तन्त्रिका पट्ट (Neural Plate), पृष्ठ रज्जु पट्ट् (Notochordal plate), 6-8 जोड़ी कायखण्डों का निर्माण।
24 दिन – सिर एवं पुच्छ भागों का निर्धारण 21-23 जोड़ी कायखण्ड निर्मित। अधर भाग में हुदय (Heart) का निर्माण जारी।
28 दिन – हुदय का धड़कना प्रारम्भ, तन्त्रिका नाल (Neural Tube) का निर्माण पूर्ण, तीन जोड़ी ग्रसनी चाप (Viscerl Arch) निर्मित, 30-31 दिन जोड़ी कायखण्ड निर्मित रुधिर द्वीप (Blood Islands) दिखने लगते हैं।
32 दिन – 30-39 जोड़ी कायखण्ड निर्मित।
7 सप्ताह – जबड़े, उँगलियाँ, बाह्य कर्ण आदि दृष्टिगोचर होने लगते हैं। भूरण की शिखर कटिप्रोथ लम्बाई (CR length, crown rump lengte) सिर से नितम्ब के तल तक की लम्बाई ) 19-20 मिमी. हो जाती है।

8 सप्ताह – भ्रूण पूर्णरूपेण एम्निऑन द्वारा घेर लिया जाता है। उँगलियाँ एवं पंजे (Toes) स्पष्ट होते हैं। लगभग सभी अंग निर्मित होकर विकसित हो रहे होते हैं। 8 वें सप्ताह के अन्त तक भूरण एक छोटे मनुष्य का आकार ले लेता है। अब इसे गर्भ (Foetus) कहते हैं। CR लम्बाई 28 से 30 मिमी.।

5 महीने – अस्थि मज्जा (Bone Marrow) में रक्त निर्माण प्रारम्भ। पाती सम्पुट (Decidua Capsularis) पैराइटेलिस (Parietails) जुड़ जाती हैं। बाल आने लगते हैं।

9 महीने – अपरा (Placenta) का आकार अधिकतम हो जाता है। उँगलियाँ पर नाखून (Nails) आ जाते हैं। अगले 10 दिन में गर्भ जन्म लेने को तैयार होता है। मनुष्य में गर्भकाल 280 दिन का होता है।
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उपर्युक्त समयावधि सन्निकट समयावधि (Approximate Time Period) है। कभी-कभी किसी कारणवश कुछ बच्चों का जन्म कुछ माह पहले हो जाता है। सातवें माह में जन्म लेने वाले शिशु भी सामान्य शिशु की भाँति विकसित हो जाते हैं।

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 3 मानव जननb

प्रश्न 10.
(a) मानव शुक्रजनक नलिका की काट का नामांकित चित्र बनाइए ।
(b) मानव नर तथा मादा में युग्मक जनन में निम्न आधार पर अन्तर लिखिए-
(i) प्रक्रिया के प्रारम्भ होने का समय ।
(ii) प्रक्रिया के अन्त में बनी संरचनाएँ ।
उत्तर:
(a) [ संकेत- मानव शुक्रजनक नलिका की काट का नामांकित चित्र हेतु देखिए चित्र 3.13]
HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 3 मानव जनन 37

(b) (i) प्रक्रिया के प्रारम्भ होने का समय-नर में यौवनारम्भ की आयु में होता है जबकि मादा में विकास की भ्रूणीय अवस्था में होता है।
(ii) प्रक्रिया के अन्त में बनी हुई संरचनाएँ – नर में एक प्राथमिक स्पर्मेटोसाइट में चार स्पर्मेटोजोआ बनते हैं जबकि मादा में एक प्राथमिक असाइट से एक क्रियात्मक अण्ड तथा दो ध्रुवीयकाय (Pol body) बनाती है।

प्रश्न 11.
शुक्राणुजनन क्या है? संक्षेप में शुक्राणुजनन की प्रक्रिया का वर्णन करें।
उत्तर:
युग्मकजनन को परिभाषित कीजिए । शुक्राणुजनन व अण्डजनन को विस्तार से समझाइए ।
जनद (Gonods) द्वारा युग्मकों के निर्माण को युग्मकजनन कहते हैं। युग्मकजनन के दौरान समसूत्रीय व अर्धसूत्रीय दोनों प्रकार के विभाजन पाये जाते हैं। इस प्रकार अगुणित (Haploid) युग्मकों का निर्माण होता है। युग्मक दो प्रकार के होते हैं जिन्हें क्रमशः शुक्राणु व अण्डाणु कहते हैं।

शुक्रजनन की क्रियाविधि
वृषण की जनन उपकला कोशिकाओं के समसूत्रीय व अर्धसूत्रीय विभाजन द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण शुक्रजनन (Spermatogenesis) कहलाता है। शुक्रजनन एक सतत (Continuous) क्रिया है। शुक्रजनन में अग्र दो चरण पाये जाते हैं-
(A) शुक्र णुपूर्वी का निर्माण या स्पर्में टोसाइटोसिस (Formation of Spermatid or Spermatocytosis)
(B) शुक्राणुपूर्वी का शुक्राणु में कायान्तरण अथवा स्पर्मिओजे नेसिस (Metarmorphosis of Spermatids in to Spermatozoa or Spermiogenesis)

(A) शुकाणुपूर्वी का निमर्णा (Formation of Spermatids)-यह क्रिया तरुणावस्था (Puberty) में आरम्भ होती है। शुक्रजनन प्राथमिक जनन कोशिका अथवा आदि जनन कोशिका से आरम्भ होता है। इस क्रिया में निम्न तीन चरण पाये जाते हैं-
(a) गुणन प्रावस्था (Multiplication phase)
(b) वृद्धि प्रावस्था (Growth phase)
(c) परिपक्वन प्रावस्था (Maturation phase)
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(a) गुणन प्रावस्था (Multiplication phase)-इस दौरान प्राथमिक जनन कोशिका या आदि जनन कोशिका में एक के बाद एक समसूत्री विभाजन पाये जाते हैं, इससे निर्मित कोशिका को स्परमेटोगोनिया (Spermatogonia) कहते हैं। स्परमेटोगोनिया द्विगुणित (Diploid) या (2n) कोशिका है।

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(b) वृद्धि प्रावस्था (Growth phase)-इस दाँरान स्परमेटोगोनिया के आकार में वृद्धि होती है। यह वृद्धि दुगुने (Double) के बराबर होती है। इस वृद्धि द्वारा निर्मित कोशिका को प्राथमिक स्परमेटोसाइट्स (Primary Spermatocytes) कहते हैं। वृद्धि प्रावस्था, अण्डजनन की वृद्धि प्रावस्था से अल्पावधि की होती है। इस अवस्था में किसी भी प्रकार का विभाजन नहीं पाया जाता है। प्राथमिक स्परमेटोसाइट्स द्विगुणित (2n) कोशिका है।

(c) परिपक्व प्रावस्था (Maturation phase)-इस दौरान प्राथमिक स्परमेटेसाइट्स में दो बार विभाजन होता है-

  • प्रथम परिपक्वन विभाजन (First maturation division)-अर्धसूत्रीय-I (Meiosis-I) होता है। इसके परिणामस्वरूप दो द्वितीयक स्परमेटोसाइट्स (Secondary Spermatocytes) का निर्माण होता है।
  • द्वितीय परिपक्वन विभाजन (Second maturation division)-अर्धसूत्रीय-II होता है। यह समसूत्रीय विभाजन के समान होता है। इस प्रकार 4 शुक्राणुपूर्वी (Spermatid) का निर्माण हो जाता है। शुक्राणुपूर्वी अगुणित होते हैं। देखिए चित्र में।

(B) शुक णुपूर्वी का शुक्राणु में कायान्तरण (Spermiogenesis)-गोल, अचल व पूंछविहीन शुक्राणु पूर्वी
(Spermatid) का तर्कुकार, चल व पूंछयुक्त शुक्राणु में बदलना शुक्रकायान्तरण (Spermiogenesis) कहलाता है। इस शुक्राणु में निम्न परिवर्तन होते हैं-
(i) शीर्ष का निर्माण (Formation of Head)-शुक्राणुपूर्व कोशिका के केन्द्रक से जल के कम हो जाने से गुणसूत्र एक छोटे व अत्यधिक संहत् पिण्ड का निर्माण कर लेते हैं। RNA तथा केन्द्रिका (Nucleolus) की हानि हो जाने से केन्द्रक में केवल आनुवंशिक पदार्थ (DNA व क्रोमेटिन) रह जाते हैं। गोलाकार केन्द्रक दीर्घित हो जाता है और धीरे-धीरे उत्केन्द्री (Ecentric) स्थिति ग्रहण कर लेता है। कोशिकाद्रव्य निर्माणाधीन पूंछ की ओर चला जाता है। केन्द्रक कोशिकाद्रव्य के एक पतले आवरण से आवरित रह जाता है।

(ii) अग्रपिण्डक या एक्रोसोम का निर्माण (Formation of Acrosome)-शुक्राणुपूर्वी के गॉल्जीकाय से शुक्राणु का अग्रपिण्डक (स्क्रोसोम) बनता है। शुक्राणुपूर्वी के गाल्जीकाय में अनेक छोटी-छोटी रिक्तिकाओं का समूह होता है। इनमें से अग्रपिण्डक के निर्माण हेतु एक रिक्तिका बड़ी होने लगती है और इसमें एक सघन प्रोएक्रोसोमल कणिका (Proacrosomal Granule) बन जाती है ।

अब गॉल्जीकाय को अग्रकोरक (Acroblast) कहते हैं। अन्य रिक्तिकाओं के संयुक्त हो जाने से एक्रोसोमल कणिका भी अब बड़ी होकर एक्रोसोमल कणिका (Acrosomal granule) बन जाती है। एक्रोसोम आशय में उपस्थित तरल पदार्थ धीर-धीरे कम होने लगता है।
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(iii) ग्रीवा का निर्माण (Formation of Neck)-शुक्राणुपूर्व में पहले से ही दो तारक केन्द्र (Centrioles) होते हैं। ये बेलनाकार तथा परस्पर समकोणिक होते हैं, शुक्राणुजनन में ये दोनों तारक केन्द्र के पश्च भाग में चले जाते हैं। केन्द्रक के पश्च तल पर बने एक गड्ढे में एक तारक केन्द्र शुक्राणु के लम्बे अक्ष पर समकोणिक स्थिति में व्यवस्थित हो जाता है। इसे समीपस्थ तारक केन्द्र (Proximal Centriole) कहते हैं। दूसरे तारक केन्द्र को दूरस्थ तारक केन्द्र (Distal Centriole) कहते हैं। इसका लम्बा अक्ष शुक्राणु के लम्बे अक्ष की संपाती स्थिति में होता है।

(iv) मध्य खण्ड का निर्माण (Formation of Middle Piece)-दूरस्थ तारक केन्द्र से बना एक सूत्र धीरे-धीरे पीछे की ओर लम्बाई में बढ़ने लगता है। शुक्राणुपूर्व के सभी माइटोकॉन्ड्रिया इस सूत्र के समीपस्थ भाग के पास सर्पिल कुण्डली के रूप में व्यवस्थित हो जाते हैं। यह शुक्राणु का मध्य खण्ड होता है।

(v) पूंछ का निर्माण (Formation of Tail)-दूरस्थ तारक केन्द्र द्वारा बना सूत्र निरन्तर लम्बा होता जाता है तथा इसे ढकता हुआ कोशिकाद्रव्य भी पश्च भाग की ओर प्रवाहित होता रहता है। इसी सूत्र की पूंछ को अक्ष्रीय सूत्र (Axial filament) कहते हैं। यह सूत्र तेज गति से बढ़ता हुआ अन्ततः कोशिकाओं से निकलकर बाहर आ जाता है।

यह भाग कोशिकाद्रव्य से अनावरित होता है। अक्ष्षीय सूत्र का कोशिकाद्रव्य से अवरित भाग पूंछ का मुख्य खण्ड होता है तथा अनावरित भाग अन्त्यखण्ड (End piece) कहलाता है। इस समय तक शेष बचे कोशिकाद्रव्य को गॉल्जीकाय के अनावश्यक अवयवों सहित त्याग दिया जाता है और एक अत्यन्त सक्रिय शुक्राणु (Sperm) का निर्माण हो जाता है।

शुक्राणु की संरचना शुक्राणुओं की आकृति भिन्न-भिन्न जाति में भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है। जैसे अस्थिल मछलियों में गोलाकार, मनुष्य में चमचाकार, चूहों में हुक के आकार के व पक्षियों में सर्पिलाकार होते हैं।
शुक्राणु के चार भाग पाये जाते हैं-

  1. शीर्ष
  2. ग्रीवा
  3. मध्य भाग
  4. पूँछ

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1. शीर्ष-मनुष्य में शीर्ष तिकोना एवं चपटा होता है। इसकी आकृति केन्द्रक की आकृति पर निर्भर होती है। शीर्ष भाग निम्न दो संरचनाओं से मिलकर बना होता है-
(i) केन्द्रक-शुक्राणु के शीर्ष का अधिकांश भाग केन्द्रक द्वारा घिरा होता है। केन्द्रक में प्रमुख रूप से ठोस क्रोमेटिन पदार्थ पाये जाते हैं। DNA अत्यधिक संघनित अवस्था में होता है।

(ii) अग्रपिंडक/एक्रोसोम-केन्द्रक के अग्र भाग में टोपी के समान रचना पाई जाती है जिसे एक्रोसोम कहते हैं। टोपी के समान एक्रोसोम पाया जाता है। यह स्पर्मलाइसिन्स नामक पाचक एन्जाइम का स्रावण करता है। स्तनधारियों में इसके द्वारा हाएलोयूरोनाइडेज एन्जाइम एवं प्रोएक्रोसिन, एसिड फॉस्फेटेस, बाइन्डीज का स्रावण किया जाता है। प्रोएक्रोसिन, एक्रोसोम क्रिया द्वारा एक्रोसिन में बदल जाता है। ये दोनों एन्जाइम अण्डभेदन में सहायक होते हैं।
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2.  ग्रीवा-शीर्ष एवं मध्य भाग के बीच जहाँ तारक केन्द्र उपस्थित रहते हैं, ग्रीवा क्षेत्र कहलाता है। इस भाग में तारककाय पायी जाती है। समीपस्थ तारककाय केन्द्रक के पश्च भाग में एक गर्त में स्थित होता है, जो निषेचन के बाद खण्डीभवन को प्रेरित करता है। इसके पास ही दूरस्थ तारककाय पाया जाता है।

3. मध्य भाग-यह भाग शुक्राणु का ऊर्जा कक्ष या इंजन कहलाता है। मध्य भाग दूरस्थ तारककाय से मुद्रिका तारककाय तक होता है जिसमें अक्षीय तन्तुओं के चारों ओर माइटोकॉन्ड्रिया के आपस में आंशिक समेकन के फलस्वरूप बनी सर्पिल कुण्डली के रूप में व्यवस्थित रहते हैं।

स्तनधारियों में माइटोकॉन्ड्रिया के आपस में आंशिक समेकन के फलस्वरूप बनी सर्पिल कुण्डली को नेबेनकर्न (Nebenkern) आच्छद कहते हैं। मध्य भाग द्वारा ही शुक्राणु की गति के लिये आवश्यक ऊर्जा प्रदान की जाती है। शीर्ष के पश्च भाग एवं सम्पूर्ण मध्य भाग को चारों ओर कोशिकाद्रव्य की महीन पर्त घेरे रहती है जिसे मेनचैट (Manchette) कहते हैं। मध्य भाग के अंत में एक मुद्रिका सेन्ट्रियोल पायी जाती है।

4. पूंछ-यह शुक्राणु का सबसे लम्बा तन्तुमय भाग है जो गति में सहायक है।
अण्डजनन (Oogenesis)-अण्डाशय की जनन उपकला द्वारा अण्डाणु निर्माण एवं परिपक्वन की क्रिया को अण्डजनन कहते हैं। अण्डजनन में निम्न तीन चरण पाये जाते हैं-
(A) गुणन प्रावस्था (Multiplication phase)
(B) वृद्धि प्रावस्था (Growth phase)
(C) परिपक्वन प्रावस्था (Maturation phase)

(A) गुणन प्रावस्था (Multiplication phase)-प्रारम्भिक अथवा प्राथमिक जनन कोशिकाओं (Primordial or Primary Germ Cells) के बारम्बार समसूत्री विभाजन के फलस्वरूप वर्त्त कोशिकाएँ अण्डजन या ऊगोनिया (Oogonia) कहलाती हैं। ऊगोनिया द्विगुणित (2n) कोशिकाएँ हैं।
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(B) वृद्धि प्रावस्था (Growth phase)-इस दौरान ऊगोनिया में पुन: समसूत्रीय विभाजन होता है। इसके फलस्वरूप स्तनधारियों के अण्डाशय में कोशिकाओं के समूह का निर्माण होता है, जिन्हें अण्डवाही रज्जु (Ovigerous cord) कहते हैं। अण्डवाही रज्जु की एक ऊगोनिया कोशिका वृद्धि करती है व शेष कोशिकाएँ घेर लेती हैं। ऊगोनिया की वृद्धि से प्राथमिक ऊसाइट (Primary Oocyte) का निर्माण होता है। प्राथमिक ऊसाइट को घेरने वाली कोशिकाओं को पुटक कोशिकाएँ (Follicle cells) कहते हैं।

(C) परिपक्वन प्रावस्था (Maturation phase)-प्राथमिक ऊसाइट (Primary Oocyte) में, अर्धसूत्री विभाजन (Meiosis) प्रथम द्वारा द्वितीयक ऊसाइट (Secondary Oocyte) व एक पोलर बॉडी (Polar Body) का निर्माण होता है। प्रारम्भिक पुटिक की पुटिकीय कोशिकाओं में निरन्तर विभाजन होने लगता है जिसके फलस्वरूप विकासशील अण्डकोशिका के चारों ओर एक बहुस्तरीय आवरण बन जाता है जिसे मेम्ब्रेना ग्रेन्यूलोसा (Membrana Granulosa) कहते हैं तथा सम्पूर्ण पुटिका समूह को अब द्वितीयक पुटिका (Secondary Follicle) कहते हैं।

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धीरे-धीरे अण्डाणु व मेम्ब्रेना ग्रेन्यूलोसा के बीच रिक्त स्थान का निर्माण होने लगता है जिसे पुटिका गुहा (Follicular Cavity) कहते हैं। इसमें पाये जाने वाले पोषक तरल पदार्थ को पुटिका द्रव्य (Follicular Fluid) कहते हैं। पुटिका कोशिकाओं का स्तर जो अण्डाणु के चारों ओर उपस्थित होता है उसे कोरोना रेडिएटा (Corona Radiata) कहते हैं।

इसके ठीक नीचे अण्डाणु के चारों तरफ एक ओर पारदर्शी आवरण पाया जाता है जिसे जोना पेल्यूसिडा (Zona Pellucida) कहते हैं। इस अवस्था में पुटिका अपने परिमाण के चरम सीमा पर होती है और इसे अब ग्राफ्रियन पुटिका (Graffian Follicle) कहते हैं। ग्राफियन पुटिका (Graffian Follicle) अण्डाशय के आवरण के निकट पहुँचकर फट जाती है तथा इसमें अण्डाणु (Ovum) बाहर निकलकर देहगुहा में आ जाता है। पुटिका से अण्डाणु के बाहर निकलने की प्रक्रिया को अण्डोत्सर्ग (Ovulation) कहते हैं।

शुकजनन व अण्डजनन में समानताएँ

  1. शुक्र जनन (Spermatogenesis) व अण्ड जनन (Oogenesis) दोनों क्रियाएँ जनन उपकला (Germinal Epithelium) से प्रारम्भ होती है।
  2. दोनों ही क्रियाओं में तीन समान प्रावस्थाएँ होती हैं-
    • गुणन प्रावस्था
    • वृद्धि प्रावस्था
    • परिपक्वन प्रावस्था
  3. गुणन प्रावस्था में दोनों क्रियाओं में समसूत्री विभाजन होता है ।
  4. परिपक्वन प्रावस्था में अर्धसूत्री विभाजन (Meiosis division) होता है।
  5. दोनों की अन्तिम प्रावस्था में अगुणित युग्मक का निर्माण होता है।

प्रश्न 12.
(a) मानव शुक्राणु का चित्र बनाइए तथा उसके कोशिकीय घटकों को नामांकित कीजिए। किन्हीं तीन भागों के कार्य बताइए ।
(b) शुक्राणुजनन के बाद जीवित रहने के लिए इनका सिर कहाँ धंसा होता है?
उत्तर:
संकेत-
(a) शुक्राणु के चित्रों एवं तीन भागों के कार्य हेतु अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न के निबन्धात्मक प्रश्न क्रमांक 1 का अवलोकन करें।]
(b) शुक्राणुओं का सिर सर्टोली कोशिकाओं (Sertoli Cells) में धंसा होता है।

प्रश्न 13.
मानव जनन तंत्र का सचित्र वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
पुरुष जनन तंत्र (Male Reproductive System)
पुरुषों में एक जोड़ी वृषण (Testis) प्राथमिक जननांग के रूप में होते हैं। इसके अतिरिक्त सहायक जननांग (Accessory Reproduction organs) मुख्यतया वृषणकोष (Scrotal Sac), अधिवृषण (Epididymis), शुक्रवाहिनियां (Vas-deferences), शिश्न (Penis) तथा प्रोस्टेट ग्रन्थि (Prostate Gland) एवं कॉउपर ग्रन्थि (Cowper’s Gland) पाये जाते हैं।

वृषण (Testis)-वृषण प्राथमिक जननांग होते हैं जिनका निर्माण भ्रूणीय मीसोडर्म (Mesoderm) से होता है। ये मीसोर्कियम (Mesorchium) की सहायता से उदरगुहा की पृष्ठभित्ति से जुड़े रहते हैं। वृषण संख्या में दो होते हैं। इनका रंग गुलाबी तथा आकृति में अण्डाकार होते हैं जिसकी लम्बाई 4 से 5 से.मी., चौड़ाई लगभग 2 से 3 से.मी. एवं वजन में 12 ग्राम होता है। दोनों वृषण उदरगुहा के बाहर एक थैले में स्थित होते हैं जिसे वृषणकोष (Scrotal Sac) कहते हैं। वृषणकोष एक ताप नियंत्रक की भांति कार्य करता है।

वृषणों का तापमान शरीर के तापमान से 2-2.5° C नीचे बनाये रखता है। यह तापमान शुक्राणुओं के विकास के लिए उपयुक्त होता है। वृषणकोषों की दीवार पतली, लचीली एवं रोमयुक्त होती है। इसके अन्दर पेशी तन्तुओं का मोटा अवत्वक (Subcutaneous) स्तर होता है जिसे डारटोस पेशी (Dartos muscle) कहते हैं।

रेखित पेशी तन्तुओं का एक दण्डनुमा गुच्छा वृषणकोष के प्रत्येक अर्धभाग के अवत्वक पेशी स्तर को उदरीय अवत्वक पेशी स्तर से जोड़ता है, जिसे वृषणोत्कर्ष पेशी (cremaster muscles) कहते हैं। प्रत्येक वृषण कोष की गुहा उदरगुहा से एक सँकरी नलिका द्वारा जुड़ी होती है जिसे वक्षणनाल (Inguinal Canal) कहते हैं। वक्षणनाल के द्वारा होकर वृषण धमनी, वृषणशिरा तथा वृषण तन्त्रिका एक वृषण रज्जु (Spermatic Cord) के रूप में वृषण तक जाती है।
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वृषण पर दो आवरण पाये जाते हैं जिन्हें वृषण खोल (Testicular capsule) कहते हैं। इसमें बाहरी महीन आवरण को मौनिक स्तर (Tunica Vaginalis) कहते हैं। यह उदरगुहा के उदरावण से बनता है जबकि भीतरी स्तर को श्वेत कुंचक अथवा ट्यूनिका ऐल्ब्यूजिनिया (Tunica Albuginea) कहते हैं। वृषण की गुहा भी इसी ऊतक की पट्टियों द्वारा लगभग 250 पालियों या वेश्मों में बंटी रहती है।

प्रत्येक पाली में अनेक कुण्डलित रूप में एक-दूसरे से सटी हुई कई पतली नलिकाएँ पायी जाती हैं, जिन्हें शुक्रजनन नलिका (Seminiferous Tubules) कहते हैं। इन नलिकाओं के बीच संयोजी ऊतक पाया जाता है जिसमें विशेष प्रकार की अन्तराली कोशिकाएँ या लैडिग कोशिकाएँ (Leydig cells) पायी जाती हैं। इन कोशिकाओं द्वारा नर हार्मोन टेस्टोस्टेरोन (Testosterone) का विकास होता है।

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प्रत्येक शुक्रजनक नलिका (Seminiferous Tubules) के चारों ओर झिल्लीनुमा आवरण पाया जाता है जिसे ट्यूनिका प्रोप्रिया (Tunica Propria) कहते हैं। इस झिल्ली के नीचे जनन उपकला (Germinal Epithelium) का स्तर पाया जाता है। शुक्रजनक नलिका (Seminiferous Tubules) को वृषण की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई कहा जाता है। जनन उपकला स्तर में दो प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती हैं-
(i) स्परमेटोगोनिया कोशिकाएँ (Spermatogonia cells)इनके द्वारा शुक्रजनन (Spermatogenesis) द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण होता है।
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(ii) सरटोली कोशिकाएँ (Sertoli cells)-सरटोली कोशिकाओं को अवलम्बन या पोषी या नर्स या मातृ या सबटेन्टाकुलर कोशिकाएँ (Supporting or Nutritive or Nurse or Mother or Subtentacular cells) भी कहते हैं। ये कोशिकाएँ आकार में बड़ी, संख्या में कम एवं स्तम्भी प्रकार की होती हैं। इनका स्वतन्त्र भाग कटाफटा होता है। इस भाग में शुक्राणुपूर्व कोशिकाएँ (Spermatids) सर्टोली कोशिकाओं से सटकर संलग्न रहती हैं।
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सरटोली कोशिकाओं के कार्य (Functions of Sertoli Cells)-

  • शुक्राणुओं को आलम्बन प्रदान करती हैं।
  • ये कोशिकाएँ शुक्राणुओं को संरक्षण एवं पोषण प्रदान करती हैं।
  • शुक्रकायान्तरण (Spermiogenesis) के दौरान अवशिष्ट कोशिकाद्रव्य (Residual Cytoplasm) का भक्षण करना।
  • सरटोली कोशिका द्वारा एन्टीमुलेरियान हार्मोन का स्रावण किया जाता है। यह भूरणीय अवस्था में मादा जननवाहिनी के विकास का संदमन करता है।
  • सरटोली कोशिकाओं के द्वारा इनहिबिन (Inhibin) हार्मोन का स्रावण किया जाता है जो FSH का संदमन करता है।
  • इन कोशिकाओं के द्वारा ABP (एण्ड्रोजन बाइडिंग प्रोटीन) का स्रावण किया जाता है।

शुक्रजनन नलिका (Seminiferous Tubules) से पतलीपतली नलिकाएँ निकलती हैं, वृषण के अन्दर ये नलिकाएँ आपस में मिलकर एक जाल बनाती हैं, इसे वृषण जालक (Rete Testis) कहते हैं। इससे लगभग 15-20 संवलित नलिकाएँ (Convoluted ductules) निकलती हैं जिन्हें वास इफरेंशिया (Vas Efferentia) कहते हैं। ये नलिकाएँ वृषण की अग्र या ऊपरी सतह पर पहुँचकर लम्बी रचना में खुलती हैं जिसे अधिवृषण (Epididymis) कहते हैं।

अधिवृषण (Epididymis)-यह एक लम्बी तथा अत्यधिक कुंडलित नलिका है जिसकी लम्बाई 6 मीटर होती है। प्रत्येक वृषण के भीतरी किनारों पर अत्यधिक कुण्डलित नलिका द्वारा निर्मित एक रचना पाई जाती है जिसे अधिवृषण कहते हैं। अधिवृषण को तीन भागों में बाँटा गया है-
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  • कैपुट एपिडिडाइमिस (Caput Epididymis)-यह वृषण के ऊपर केप (Cap) के समान होती है। इमें वृषण से आने वाली वास इफरेन्शिया (Vas Efferentia) खुलती है। कैपुट एपिडिडाइमिस को ग्लोबस मेजर (Globus Major) भी कहते हैं।
  • कॉर्पस एपिडिडाइमिस (Corpus Epididymis)-यह मध्य भाग है व संकरा होता है। इसे एपिडिडाइमिस काय (Epididymis body) भी कहते हैं।
  • कॉडा एपिडिडाइमिस (Cauda Epididymis)-यह एपिडिडाइमिस का पश्च व सबसे छोटा भाग है। इसे ग्लोबस माइनर (Globus Minor) भी कहते हैं। कॉडा एपिडिडाइमिस से इसकी नली पीछे निकलकर शुक्रवाहिनी (Vas deference) बनाती है। अधिवृषण

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(Epididymis) के कार्य-

  • शुक्राणुओं को अधिवृषण में संग्रहित किया जाता है व यहाँ इनका परिपक्वन होता है।
  • यह वृषणों से शुक्रवाहिनी में शुक्राणुओं के पहुँचने के लिए मार्ग प्रदान करते हैं।
  • अधिवृषण (Epididymis) में शुक्राणु एक माह तक संचित रह सकते हैं। स्खलन न होने की स्थिति में शुक्राणुओं का विघटन न होने पर इनके तरल का अवशोषण इसी में होता है।
  • इसकी नलिका में क्रमाकुंचन के कारण शुक्राणु वास डिफरने्स (Vas deference) की ओर बहते हैं।

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  • सरटोली कोशिका द्वारा एन्टीमुलेरियान हार्मोन का सावण किया जाता है। यह भ्रूणीय अवस्था में मादा जननवाहिनी के विकास का संदमन करता है।
  • सरटोली कोशिकाओं के द्वारा इनहिबिन (Inhibin) हार्मोन का स्रावण किया जाता है जो =FSH= का संद्मन करता है।
  • इन कोशिकाओं के द्वारा ABP (एण्ड्रोजन बाइडिंग प्रोटीन) का स्रावण किया जाता है।

शुक्रवाहिनी (Vas deference)-शुक्रवाहिनी लगभग 45 सेमी. लम्बी नलिका होती है। इसकी दीवार पेशीय होती है। शुक्रवाहिनी अधिवृषण के पश्च भाग से प्रारम्भ होकर ऊपर की ओर वक्षणनाल से होकर गुहा में मूत्राशय के पश्च तल पर नीचे की ओर मुड़कर चलती हुई अन्त में एक फूला हुआ भाग तुम्बिका (Ampulla) बनाती है। यहाँ इसमें शुक्राशय (Seminal Vesicle) की छोटी वाहिनी आकर खुलती है। दोनों के मिलने से स्खलनीय वाहिनी (Ejaculatory Duct) का निर्माण होता है।

शुक्रवाहिनी की भित्ति पेशीय होती है व इसमें संकुचन व शिथिलन की क्षमता पायी जाती है। संकुचन व शिथिलन द्वारा शुक्राणु शुक्राशय तक पहुँचा दिये जाते हैं। शुक्रवाहिनियों में ग्रन्थिल कोशिकाएँ पाई जाती हैं जो चिकने पदार्थ का सावण करती हैं। यह द्रव शुक्राणुओं को गति करने में सहायता करता है। तुम्बिका (Ampulla) में शुक्राणुओं को अस्थायी रूप से संग्रह किया जाता है। स्खलनीय वाहिनियां अन्त में मूत्र मार्ग (Urethra) में आकर खुलती हैं।

मूत्रमार्ग (Urethra)-मूत्राशय से मूत्रवाहिनी निकलकर स्खलनीय वाहिनी से मिलकर मूत्रजनन नलिका या मूत्रमार्ग (Urinogenital Duct or Urethra) बनाती है। यह लगभग 20 से.मी. लम्बी नाल होती है जो शिश्न के शिखर भाग पर मूत्रजनन छिद्र (Urinogenital Aperture) द्वारा बाहर खुलती है। मूत्रमार्ग एवं वीर्य दोनों के लिए एक उभयनिष्ठ मार्ग (Common Passage) का कार्य करता है।

मूत्रमार्ग (Urethra) तीन भागों में बँटा होता है-

  1. प्रोस्टेटिक मूत्रमार्ग (Prostatic Urethra)
  2. झिल्लीमय मूत्रमार्ग (Membranous Urethra)
  3. स्पंजी मूत्रमार्ग (Spongy Urethra)

1. प्रोस्टेटिक मूत्रमार्ग (Prostatic Urethra)-यह मूत्रमार्ग का 2-3 से.मी. लम्बा भाग होता है। यह प्रोस्टेट ग्रन्थि के मध्य से गुजरता तथा दोनों ओर की स्खलन वाहिनियाँ इसी भाग में खुलती हैं।

2. झिल्लीमय मूत्रमार्ग (Membranous Urethra)-यह मध्य का लगभग 1 से.मी. लम्बा भाग होता है जो प्रोस्टेट ग्रन्थि तथा शिश्न (Penis) के बीच स्थित पेशीय तन्तुपट (Muscular Diaphragm) को बेधता हुआ शिश्न में प्रवेश करता है।

3. स्पंजी मूत्रमार्ग (Spongy Urethra)-यह मूत्रमार्ग का अन्तिम या शिखर भाग है जो शिश्न में से गुजरता है। यह स्पंजी तथा सर्वाधिक लम्बाई (16-17 से.मी.) वाला भाग है।

शिश्न (Penis)-पुरुष का मैथुनी अंग है जो एक लम्बा, संकरा, बेलनाकार तथा वहिःसारी (Protrusible) होता है। इसका स्वतन्त्र सिरा फूला हुआ तथा अत्यधिक संवेदी होता है तथा शिश्नमुण्ड (Galns Penis) कहलाता है। यह भाग एक त्वचा के आवरण से ढका रहता है। यह आवरण शिश्न = मुण्डछद (Prepuce) कहलाता है। शिश्न दोनों वृषणकोषों के ऊपर व मध्य में उदर के निचले भाग में लटका रहता है।

यह तीन भागों में विभेदित होता है-

  • शिश्नमूल (Root of Penis)-यह मूत्रोजनन तनुपट (Urinogenital diaphargm) से लगा शिश्न का समीपस्थ भाग होता है।

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  • शिश्नकाय (Body of Penis)-यह शिश्न का मुख्य लम्बा भाग है।
  • शिश्नमुण्ड (Glans Penis)-यह शिश्न का शिखर भाग होता है ।

शिश्न की संरचना पेशियों एवं रुधिर कोटरों (Blood Sinus) से होती है। ये तीन मोटे अनुदैर्घ्य डोरियों के समान रज्ञुओं (Cords) के रूप में होते हैं। पृष्ठ भाग में ऐसी संरचनाएँ दो होती हैं जिन्हें कॉरपोरा केवरनोसा (Corpora Cavernosa) तथा अधर भाग में एक कॉर्पस स्पंजिओसम (Corpus Spongiosum) कहलाती है।

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सामान्य अवस्थाओं में शिश्न शिथिल एवं छोटा होता है। मैथुन उत्तेजना के समय इसके कोटर रुधिर से भर जाते हैं तथा यह लम्बा, मोटा तथा कड़ा हो जाता है। इस अवस्था में शिश्नमुण्ड नग्न हो जाता है तथा यह स्त्री की योनि में आसानी से प्रविष्ट कराया जा सकता है। मैथुन क्रिया में सुगमतापूर्वक शुक्राणुओं को वीर्य के साथ स्थानान्तरित किया जा सकता है।

सहायक ग्रन्थियाँ (Accessory Glands)-पुरुषों में मुख्यतः तीन प्रकार की सहायक जनन ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं जो जनन में सहायता करती हैं-
(1) प्रोस्टेट ग्रन्थि (Prostate Gland)-इस ग्रन्थि की आकृति सिंघाड़ेनुमा होती है। यह मूत्रमार्ग के आधार भाग पर स्थित होती है एवं कई पिण्डों में विभक्त होती है। प्रत्येक पिण्ड एक छोटी नलिका द्वारा मूत्रमार्ग में खुलता है। इस ग्रन्थि का स्राव विशेष गंध युक्त, सफेद एवं हल्का क्षारीय होता है जो वीर्य का 25-30 प्रतिशत भाग बनाता है।

इस स्राव में फॉस्फेट्स सिट्रेट, लाइसोजाइम, फाइब्रिनोलाइसिन, स्पर्मिन (Spermin) आदि पाये जाते हैं। वृद्ध पुरुषों में यह ग्रन्थि बड़ी हो जाती है व मूत्रोजनन मार्ग में अवरोध उत्पन्न कर देती है। इसे शल्य क्रिया द्वारा हटा दिया जाता है। कार्य-इस ग्रन्थि का साव (प्रोस्टेटिक द्रव) शुक्राणुओं को सक्रिय बनाता है एवं वीर्य के स्कंदन को रोकता है।

(2) काडपर गन्थि (Cowper’s Gland)-इ से बल्बोयूरेश्रिल ग्रन्थियाँ (Bulbourethral Glands) भी कहते हैं। ये ग्रन्थियाँ एक जोड़ी प्रोस्टेट ग्रन्थि के पीछे स्थित होती हैं। इनका स्राव चिकना, पारदर्शी व क्षारीय होता है जो मूत्रोजनन मार्ग की अम्लीयता को नष्ट करता है। यह तरल मादा की योनि को चिकना कर मैथुन क्रिया को सुगम बनाता है।

(3) शुक्राशय (Seminal Vesicle)-शुक्राशय एक थैलीनुमा रचना होती है जो एक जोड़ी के रूप में मूत्राशय की पश्च सतह एवं मलाशय के बीच में स्थित होती है। इसके द्वारा एक पीले रंग का चिपचिपे पदार्थ का स्रावण किया जाता है। यही तरल पदार्थ वीर्य का अधिकांश भाग (लगभग 60 प्रतिशत) बनाता है।

इसमें फ्रक्टोस, शर्क रा, प्रोस्टाग्लैं डिन्स (Prostaglandins) तथा प्रोटीन सेमीनोजेलिन (Semenogelin) होते हैं। फ्रक्टोस शुक्राणुओं को ATP के रूप में ऊर्जा प्रदान करता है। क्षारीय प्रकृति के कारण यह स्राव योनि मार्ग की अम्लीयता को समाप्त कर शुक्राणुओं की सुरक्षा करता है। प्रत्येक शुक्राशय से एक छोटी नलिका निकल कर शुक्रवाहिनी की तुम्बिका में खुलती है। शिश्न की उत्तेजित अवस्था में स्खलन के समय दोनों शुक्राशय संकुचित होकर अपने स्राव को मुक्त करते हैं।

पुरुष जनन तंत्र (Female Reproductive System)
इस पाठ के बिन्दु सं. 3.2 का अवलोकन करें।
स्त्रियों में एक जोड़ी अण्डाशय (Ovary) प्राथमिक जननांगों (Primary Sex Organs) के रूप में होते हैं। इसके अतिरिक्त अण्डवाहिनी (Oviduct), गर्भाशय (Uterus), योनि (Vagina), भग (Vulva), जनन ग्रन्थियाँ (Reproductive glands) तथा स्तन या छाती (Breast) सहायक जननांगों का कार्य करते हैं।
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(1) अण्डाशय (Ovary)-स्त्रियों में अण्डाशय की संख्या दो होती है, जिनकी आकृति बादाम के समान होती है। प्रत्येक अण्डाशय की लम्बाई लगभग 2 से 4 से. मी. होती है। दोनों अण्डाशय उदरगुहा में वृक्कों के काफी नीचे श्रोणि भाग (Pelvic region) में पीछे की ओर गर्भाशय (Uterus) के इधर-डधर स्थित होते हैं। प्रत्येक अण्डाशय उदरगुहीय पेरीटोनियम के वलन से बनी मीसोविरियम (Mesovarium) नामक झिल्लीनुमा मीसेन्ट्री (Mesentery) द्वारा श्रोणि भाग की दीवार से टिका होता है।

ऐसे ही एक झिल्ली अण्डाशयी लिगामेन्ट (Ovarian Ligament) प्रत्येक अण्डाशय को दूसरी ओर से गर्भाशय से जोड़ती है। अण्डाशय की संरचना-प्रत्येक अण्डाशय भी वृषण के समान तीन स्तरों से घिरा होता है। बाहरी स्तर को ट्यूनिका एलब्यूजिनिया (Tunica Albuginea) कहते हैं। यह संयोजी ऊतक का महीन स्तर होता है।

आन्तरिक स्तर को ट्यूनिका प्रोपरिया (Tunica Propria) कहते हैं तथा इनके बीच वाले स्तर को जनन उपकला (Germinal Epithelium) कहते हैं। जनन उपकला घनाकार कोशिकाओं का बना होता है। अण्डाशय के बीच वाला भाग जो तन्तुमय होता है तथा संवहनीय संयोजी ऊतक (Vascular Connective Tissue) का बना होता है उसे स्ट्रोमा कहते हैं। स्ट्रोमा दो भागों में विभक्त होता है जिन्हें क्रमशः परिधीय वल्कुट (Peripheral Cortex) एवं आंतरिक मध्यांश (Internal Medulla) कहते हैं।
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अण्डाशय के वल्कुट (Cortex) भाग में अनेक अण्ड पुटिकाएँ (Ovarian Follicles) पायी जाती हैं। जिनका निर्माण जनन उपकला से होता है। पुटिकाएँ बहुकोशिकीय झिल्ली मेम्ब्रेना ग्रेन्यूलोसा (Membrana Granulosa) से घिरी होती हैं। जिसके भीतर फॉलीक्यूलर गुहा (Follicular Cavity) होती है जो फॉलीक्यूलर द्रव (Follicular Fluid) से भरी होती है।

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इस गुहा में अण्ड कोशिका (Ovum) होती है जो चारों ओर अनेक फॉलीकुलर कोशिकाओं से घिरी रहती है। इन कोशिकाओं को जोना पेल्यूसिडा (Zonapellucida) एवं चारों ओर के मोटे स्तर को कोरोना रेडिएटा (Corona Radiata) कहते हैं। इस संरचना को अब परिपक्व ग्राफियन पुटिका (Mature Graatian Follicle) कहते हैं। परिपक्व ग्राफियन पुटिका अण्डाशय की सतह पर पहुँच कर फट जाती है तथा अण्ड बाहर निकलकर उदरीय गुहा में आ जाता है। इस क्रिया को डिम्बोत्सर्ग (Ovulation) कहते हैं।
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(2) अण्डवाहिनी (Oviduct)-स्त्री में दो अण्डवाहिनियाँ होती हैं जो अण्डाणु को अण्डाशय से गर्भाशय तक पहुँचाती हैं। प्रत्येक अण्डवाहिनी की लम्बाई 10-12 से.मी. होती है। अण्डवाहिनी का स्वतन्त्र सिरा जो अण्डाशय के निकट होता है, कीप रूपी (Funnellike) एवं चौड़ा होता है तथा इसे आस्टियम (Ostium) कहते हैं। आस्टियम या मुखिका का किनारा झालरदार (Fimbriated) एवं रोमाभि (Ciliated) होता है।

अतः मुखिका को फिम्ब्रिएटेड कीप (Fimbriated Funnel) भी कहते हैं। अण्डोत्सर्ग के बाद अण्ड अण्डाशय से निकलकर उदरगुहा में आकर इसी फिम्ब्रिएटेड कीप के द्वारा फैलोपियन नलिका (Fallopian Tube) में चला जाता है। फैलोपियन नलिका की भित्ति पेशीयुक्त होती है तथा भीतर से अत्यन्त वलित (Folded) होती है। निषेचन की क्रिया फैलोपियन नलिका में ही होती है। प्रत्येक फैलोपियन नलिका अपनी ओर के गर्भाशय (Uterus) में अपने पश्च अन्त द्वारा खुलती है।

(3) गर्भाशय (Uterus)-इसे बच्चादानी (वुम्ब) भी कहते हैं। इसकी आकृति उल्टी नाशपाती के समान होती है। यह श्रोणि भित्ति से स्नायुओं द्वारा जुड़ा होता है। यह लगभग 7.5 से.मी. लम्बा, 3 से.मी, मोटा तथा अधिकतम 5 से.मी, चौड़ा खोखला तथा शंक्वाकार अंग होता है। इसका संकरा भाग नीचे की ओर तथा चौड़ा भाग ऊपर की ओर होता है।

इसके पीछे की ओर मलाशय (Rectum) तथा आगे की ओर मूत्राशय (Urinary Bladder) होता है। गर्भाशय की भित्ति, फतकों की तीन परतों से बनी होती हैबाहरी पताली झिल्लीमय स्तर को परिगभांशय (पेरिमेट्रियम), मध्य मोटी चिकनी पेशीख स्तर को गभाँशय पेशी स्तर (मायोमैट्रियम) और आन्तरिक ग्रान्थल स्तर को गर्भाशय अन्तःस्तर (एंड्रोमैट्रियम) कहते हैं जो गभाशएय गुहा को आस्तरित करती है। आतंव चक्र (Menstrual Cycle) के चक्र के दौरान गर्भाशब के अन्तःस्तर में चक्रीय परिवर्तन होते हैं, जबकि गभांशय पेशी स्तर में प्रसव के समय काफी तेज संकुचन होंता है।

गर्भाशाब को तीन भागों में विभेदित किया गया है-

  • फण्डस (Fundus)-ऊपर की और उभरा हुआ भाग फण्डस कहलाता है।
  • काय (Body)-बीच का प्रमुख भाग ग्रीवा (Cervix) कहलाता है।
  • ग्रीवा (Cervix)-सबसे निचला भाग ग्रीवा (Cervix) कहलाता है जो योनि से जुड़ा होता है।

भूण का विकास गर्भाशय (Uterus) में होता है। शूण अपरा (Placenta) की सहायता से गर्भाशय की भित्ति से संलग्न होता है। यहाँ भ्रूण को सुरक्षा एवं पोषण प्राप्त होता है।

(4) योनि (Vagina)-गर्भाशय ग्रीवा (Cervix Uteri) आगे बढ़कर एकपेशीय लचीली नलिका रूपी रचना का निर्माण करती है जिसे योनि (Vagina) कहते है। योनि स्त्रियों में मैथुन अंग (Copulatory organ) की तरह कार्य करती है। इसके अतिरिक्त योनि गर्भाशाय से उत्पन्न मास्तिक स्राव को निक्कासन हेतु पथ उपलख्ब करवाती है एवं शिशु जन्म के समय गर्भस्थ शिशु के बाहर निकालने के लिए जन्मनाल (Birth Canal) की तरह कार्य करती है।

(5) बाद्य जननांग (External Genitila)-स्त्रियों के बाह्ष जननांग निम्न हैं-
(i) जघन शौल (Mons Pubis)-यह प्यूबिस लिम्फाइसिस के ऊपर स्थित होता है जो गद्दीनुमा होता है क्योंकि इसकी त्वचा के नीचे वसीय परत होती है। तरुण अवस्था में इस पर घने रोम उग आते हैं जो अन्त तक रहते हैं।
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(ii) वृहद् भगोष्ठ (Labia Majora)-ये जघन शैल (प्यूबिस मुंड) से नीचे की तरफ व पीछे की ओर से विस्तृत एक जोड़ी बड़े अनुद्रै्घ्य वलन होते हैं। इनकी बाह्य सतह पर रोम पाये जाते हैं।

(iii) लघु भगोष्ठ (Labia Minora)-ये आन्तरिक व छोटे वलन होते हैं। इन पर रोम नहीं पाये जाते हैं। लेबिया माइनोरा प्रघाण (Vestibule) को घेरे रहते हैं।

(iv) भगशेफ या क्लाइटोरिस (Clitoris)-यह जघन शैल (Mons Pubis) लेबिया माइनोरा के अग्र कोने पर स्थित एक संवेदी तथा घुण्डीनुमा अथवा अंगुलीनुमा रचना है। यह नर के शिश्न के समजात अंग है। यह अत्यधिक संवेदनशील होता है क्योंक इसमें स्पर्शकणिकाओं की अधिकता पायी जाती है।

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(v) योनिच्छद (Hymen)-योनि द्वार पर पतली झिल्ली पाई जाती है जिसे योनिच्छद (Hymen) कहते हैं। यह लैंगिक सम्पर्क, शारीरिक परिश्रम एवं व्यायाम के कारण फट जाती है। बार्थोलिन की ग्रन्थियाँ (Bartholian Glands)-योनिद्वार के दोनों ओर एक-एक सेम की आकृति की ग्रन्थि लेबिया मेजोरा पर स्थित होती है। ये ग्रन्थियाँ एक क्षारीय व स्रेहक द्रव का स्राव करती हैं जो कि भग (Vulva) को नम रखता है एवं लैंगिक परस्पर व्यवहार को सुगम बनाता है।
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(6) स्तनग्रन्थि (Mammary Glands)-स्त्री में स्तन ग्रन्थियों (Mammary Glands) से युक्त एक जोड़ी स्तन उपस्थित होते हैं। ये वक्ष के सामने की तरफ अंसीय पेशियों (Pectoral Muscles) के ऊपर स्थित होते हैं। प्रत्येक स्तन ग्रन्थि में भीतर का संयोजी ऊतक $15-20$ नलिकाकार कोष्ठकीय पालियों का बना होता है। इनके बीच-बीच में वसीय ऊतक होता है। प्रत्येक पाली में अंगूर के गुच्छों के समान दुग्ध ग्रन्थियाँ होती हैं जो दुग्ध का स्राव करती हैं। यह दूध नवजात शिशु के पोषण का कार्य करता है।

प्रत्येक पालिका से निकली कई छोटी वाहिनियां एक दुग्ध नलिका या लैक्टीफेरस नलिका (Lactiferous Duct) बनाती हैं। ऐसी कई दुग्ध नलिकाएँ स्वतन्त्र रूप से आकर चूचुक (Nipples) में खुल जाती हैं। चूचुक स्तनग्रन्थियों के शीर्ष भाग पर उभरी हुई वर्णांकित (Pigmented) रचना है। इसके आसपास का क्षेत्र भी गहरा वर्णांकित हो जाता है। इस क्षेत्र को स्तन परिवेश (Areola Mammae) कहते हैं। स्त्रियों में चूचुक के चारों तरफ का क्षेत्र वसा के जमाव तथा पेशियों के कारण काफी उभरा हुआ होता, है। चूचुक में 0.5 मिमी. के 15-25 छिद्र पाये जाते हैं। पुरुषों में चूचुक अवशेषी होते हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

1. द्वितीयक अंडक का अर्धसूत्री विभाजन पूर्ण होता है- (NEET-2020)
(अ) सम्भोग के समय
(ब) युग्मनज बनने के बाद
(स) शुक्राणु एवं अण्डाणु के संलयन के समय
(द) अण्डोत्सर्ग के पहले
उत्तर:
(स) शुक्राणु एवं अण्डाणु के संलयन के समय

2. निम्न में से कौन ग्राफी पुटक से अण्डाणु का मोचन (अण्डोत्सर्ग) करेगा ?(NEET-2020)
(अ) प्रोजेस्टरोन की उच्च सान्द्रता
(ब) LH की निम्न सान्द्रता
(स) FSH की निम्न सान्द्रता
(द) एस्ट्रोजन की उच्च सान्द्रता
उत्तर:
(द) एस्ट्रोजन की उच्च सान्द्रता

3. निम्न स्तम्भों का मिलान कर सही विकल्प का चयन करो-

स्तम्भ-I स्तम्भ-II
(क) अपरा (i) एन्ड्रोजन
(ख) जोनापेल्युसिडा (ii) मानव जरायु गोनेडोट्रोपिन
(ग) बल्बो-यूरेश्रल ग्रन्थियाँ (iii) अण्डाणु की परत
(घ) लीडिंग कोशिकाएँ (iv) शिश्न का स्नेहन
(क) (ख) (ग) (घ)
(अ) (i) (iv) (ii) (iii)
(ब) (iii) (ii) (iv) (i)
(स (ii) (iii) (iv) (i)
(द) (iv) (iii) (i) (ii)

उत्तर:

(स (ii) (iii) (iv) (i)

4. अण्डाणु केन्द्रक से द्वितीय ध्रुवीय पिण्ड कब बाहर निकलते हैं? (NEET-2019)
(अ) प्रथम विदलन के साथ-साथ
(ब) शुक्राणुओं के प्रवेश के बाद लेकिन निषेचन से पहले
(स) निषेचन के बाद
(द) शुक्राणु का अण्डाणु में प्रवेश से पहले
उत्तर:
(ब) शुक्राणुओं के प्रवेश के बाद लेकिन निषेचन से पहले

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5. नर जनन तंत्र में शुक्राणु कोशिकाओं के परिवहन के सही क्रम का चयन करो- (NEET-2019)
(अ) वृषण → अधिवृषण → शुक्रवाहिकाएँ → शुक्रवाहक → स्खलनीय वाहिनी → वृषण नाल → मूत्र मार्ग → यूरेश्रल मीटस
(ब) वृषण → अधिवृषण → शुक्रवाहिकाएँ → वृषण जालिकाएँ → वृषण नाल → मूत्र मार्ग
(स) शुक्रजनक नलिकाएँ → वृषण जालिकाएँ → शुक्रवाहिकाएँ → अधिवृषण → शुक्रवाहक → स्खलनीय वाहिनी → मूत्र मार्ग → यूरेश्रल मीटस
(द) शुक्रजनक नलिकाएँ → शुक्रवाहिकाएँ → अधिवृषण → वषण नाल → मत्र मार्ग।
उत्तर:
(स) शुक्रजनक नलिकाएँ → वृषण जालिकाएँ → शुक्रवाहिकाएँ → अधिवृषण → शुक्रवाहक → स्खलनीय वाहिनी → मूत्र मार्ग → यूरेश्रल मीटस

6. सगर्भता को बनाए रखने के लिए अपरा कौन-से हॉर्मोन स्रावित करती है? (NEET-2018)
(अ) hCG, hPL, प्रोजेस्टेरोन, एस्ट्रोजन
(ब) hCG, hPL, एस्ट्रोजन, रिलैक्सिन, आक्सीटोसिन
(स) CG PL प्रोजेस्टेरोन, प्रोलेक्टिन
(द) HCG, प्रोजेस्ट्रोन, एस्ट्रोजन, ग्लूकोकोर्टिकाइडस ।
उत्तर:
(अ) hCG, hPL, प्रोजेस्टेरोन, एस्ट्रोजन

7. असत्य कथन को चुनिए- (NEET-2016)
(अ) पुटकीय अवस्था के दौरान LH और FSH धीरे-धीरे कम होते जाते हैं।
(ब) LH, लेडिंग कोशिका स्रावित एन्ड्रोजन का संदमन करता है।
(स) FSH, सरटोली कोशिका को उत्तेजित करके, शुक्राणुजनन में मददगार है।
(द) LH, अण्डाणु में अण्डोत्सर्ग को संदमित करता है।
उत्तर:
(अ) पुटकीय अवस्था के दौरान LH और FSH धीरे-धीरे कम होते जाते हैं।

8. निम्नलिखित घटनाओं में से कौनसी घटना स्त्री में अण्डोत्सर्ग से सम्बन्धित नहीं है ? (NEET-2015)
(अ) ग्राफीपुटक का पूर्ण विकास
(ब) द्वितीयक अण्डक का निर्मोचन
(स) LH प्रवाह
(द) एस्ट्रेडिओल में कमी
उत्तर:
(द) एस्ट्रेडिओल में कमी

9. एन्ट्रम (Antram) पुटक में निम्नलिखित में से कौनसी सतह अकोशिकीय होती है ? (NEET-2015)
(अ) थीमा इंटरना
(स) जोना पेल्युसीडा
(ब) स्ट्रोमा
(द) ग्रैनुलोसा
उत्तर:
(स) जोना पेल्युसीडा

10. मानव मादाओं में अर्धसूत्री विभाजन- II किसके पूर्ण होने तक नहीं होता है ? (NEET-2015)
(अ) निषेचन
(ब) गर्भाशय में आरोपण
(स) जन्म
(द) यौवनारंभ
उत्तर:
(अ) निषेचन

11. मानव नर में जनन और मूत्र प्रणाली की साझेदारी अंतस्थ वाहिका है। (NEET-2014)
(अ) मूत्र मार्ग
(ब) मूत्र वाहिनी
(स) शुक्रवाहक
(द) शुक्रवाहिका
उत्तर:
(अ) मूत्र मार्ग

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12. शुक्राणु -1 निर्माण का सही क्रम क्या है? (NEET-2013, CBSE PMT-2009)
(अ) स्पर्मेटिड, स्पर्मेटोसाइट, स्पर्मेटोगोनिया, स्पर्मेटोजोआ (शुक्राणु)
(ब) स्पर्मेटोगोनिया, स्पर्मेटोसाइट, स्पर्मेटोजोआ (शुक्राणु), स्पर्मेटिड
(स) स्पर्मेटोगोनिया, स्पर्मेटोजोआ (शुक्राणु), स्पर्मेटोसाइट, स्पर्मेटिड
(द) स्पर्मेटोगोनिया, स्पर्मेटोसाइट, स्पर्मेटिड, स्पर्मेटोजोआ (शुक्राणु)
उत्तर:
(द) स्पर्मेटोगोनिया, स्पर्मेटोसाइट, स्पर्मेटिड, स्पर्मेटोजोआ (शुक्राणु)

13. रक्त बहाव किसकी कमी के कारण होता है ? ( NEET 2013 )
(अ) प्रोजेस्ट्रोन
(ब) FSH
(स) ऑक्सीटोसिन
(द) वैसोप्रेसिन
उत्तर:
(अ) प्रोजेस्ट्रोन

14. स्तनीय शुक्राणु की जीवन क्षमता के विषय में निम्नलिखित में से कौनसा कथन असत्य है ? (NEET-2012)
(अ) शुक्राणु केवल 24 घण्टे तक जीवनक्षम बना रहता है।
(ब) शुक्राणु की उत्तरजीविता माध्यम के PH पर निर्भर होती है। और क्षारीय माध्यम में वह अधिक सक्रिय बना रहता है।
(स) शुक्राणु की जीवन क्षमता उसकी गतिशीलता द्वारा निर्धारित होता है।
(द) शुक्राणुओं का सान्द्रण एक गाढ़े निलम्बन के भीतर होना चाहिए।
उत्तर:
(अ) शुक्राणु केवल 24 घण्टे तक जीवनक्षम बना रहता है।

15. मानव शरीर में पायी जाने वाली लेडिंग कोशिकाओं से किसका स्रवण होता है? (NEET-2012)
(अ) प्रोजेस्ट्रोन
(स) ग्लूकैगॉन
(ब) आंत्र श्लेस्म
(द) ऐन्ड्रोजन
उत्तर:
(द) ऐन्ड्रोजन

16. मानव आर्तव – चक्र में पायी जाने वाली स्रवण प्रावस्था को एक यह नाम भी दिया जाता है एवं वह कितने दिनों तक रहती है? (Mains-2012)
(अ) पीतपिण्ड प्रावस्था, अंतिम लगभग 6 दिन तक
(ब) पुटक प्रावस्था, अंतिम लगभग 6 दिन तक
(स) पीतपिण्ड प्रावस्था, अंतिम लगभग 13 दिन तक
(द) पुटक प्रावस्था, अन्तिम लगभग 13 दिन तक
उत्तर:
(स) पीतपिण्ड प्रावस्था, अंतिम लगभग 13 दिन तक

17. फैलोपियन नलिका का कौनसा भाग अण्डाशय के निकटतम होता है- (NEET 2010, CBSE PMT (Pre)- 2010)
(अ) इन्फंडीबुलम (कीपम)
(ब) सर्विक्स ग्रीवा
(स) ऐम्पूला ( तुम्बिका)
(द) इस्थमस (तनुयोजी)
उत्तर:
(अ) इन्फंडीबुलम (कीपम)

18. वृषण की कौनसी कोशिकाएँ टेस्टोस्टीरोन (नर लिंग हॉर्मोन) स्रावित करती हैं ? ( CBSE PMT – 2001, JPMT – 2007)
(अ) अन्तराली कोशिकाएँ अथवा लीडिंग कोशिकाएँ
(ब) जनन एपीथिलियम की कोशिकाएँ
(स) सरटोली कोशिकाएँ
(द) द्वितीयक स्पर्मेटोसाइट।
उत्तर:
(अ) अन्तराली कोशिकाएँ अथवा लीडिंग कोशिकाएँ

19. वृषण में पाई जाने वाली सर्टोली कोशिकाएँ क्या होती हैं? (MP PMT-2007)
(अ) पोषक कोशिकाएँ
(ब) प्रजनन कोशिकाएँ
(स) संवेदी कोशिकाएँ
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) पोषक कोशिकाएँ

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20. 400 शुक्राणुओं के निर्माण के लिए कितने सेकण्डरी स्पर्मेटोसाइट्स की आवश्यकता होगी- (MP PMT-2006)
(अ) 100
(स) 40
(ब) 200
(द) 400
उत्तर:
(ब) 200

21. रजोचक्र का तात्कालिक शुरू हो जाना निम्नलिखित में से किस हॉर्मोन की उपलब्धता समाप्त होने के कारण होता है- (NEET-2006)
(अ) ऐस्ट्रोजन
(ब) FSH
(स) FSH-RH
(द) प्रोजेस्ट्रोन
उत्तर:
(द) प्रोजेस्ट्रोन

22. सर्टोली कोशिकाओं का नियमन कौनसे पिट्यूटरी हॉर्मोन से होता है (NEET-2005)
(अ) FSH
(ब) GH
(स) प्रोलेक्टिन
(द) LH
उत्तर:
(अ) FSH

23. यदि स्तनी अण्डाणु निषेचन नहीं हो पाता तो निम्नलिखित में से कौनसा एक असम्भावित है- (NEET-2006)
(अ) एस्ट्रोजन का स्रवण और भी तेज हो जाएगा
(ब) प्रोजेस्ट्रोन का स्रवण तेजी से गिर जाएगा
(स) का सल्यूटियम विघटित हो जाएगा
(द) प्राथमिक पुष्टक विकसित होने लग जाता है।
उत्तर:
(अ) एस्ट्रोजन का स्रवण और भी तेज हो जाएगा

24. मानव स्त्रियों में रजोचक्र के दौरान अण्डोत्सर्ग सामान्यतः किस समय होता है- (NEET-2004)
(अ) स्रवण प्रावस्था के समाप्त होने के ठीक पूर्व
(ब) प्रचुरोद्भवन प्रावस्था के आरम्भ होने पर
(स) प्रचुरोद्भवन प्रावस्था के समाप्त होने पर
(द) मध्य स्रावण प्रावस्था पर
उत्तर:
(स) प्रचुरोद्भवन प्रावस्था के समाप्त होने पर

HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 3 मानव जनन

25. निम्नलिखित में से कौनसा एक हॉर्मोन अपरा (Placenta ) का स्रवण उत्पाद नहीं है- (NEET-2004)
(अ) प्रोलेक्टिन
(ब) एस्ट्रोजन
(स) प्रोजेस्ट्रोन
(द) मानव कारियोनिक गोनेडोट्रोपिन ।
उत्तर:
(अ) प्रोलेक्टिन

26. भ्रूण परिवर्धन के दौरान अग्र/पश्च पृष्ठ / अधर अथवा मध्य / पार्श्व अक्ष पर ध्रुवता की स्थापना को क्या कहते हैं? (NEET 2003)
(अ) आर्गेनाइजर परिघटना,
(ब) अक्षनिर्माण
(स) ऐनाफार्मोसिस
(द) प्रतिरूप निर्माण
उत्तर:
(अ) आर्गेनाइजर परिघटना,

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम

Haryana State Board HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम

बहुविकल्पीय प्रश्न:

प्रश्न 1.
न्यूटन के गति के नियम लागू होते हैं:
(a) घूर्णी तन्त्र में
(b) त्वरित तन्त्र में
(c) अजड़त्वीय निर्देश तन्त्रों में
(d) त्वरण रहित तन्त्र में
उत्तर:
(d) त्वरण रहित तन्त्र में

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम

प्रश्न 2.
एक कार घर्षण युक्त सड़क पर नियत वेग से गतिशील है, तो:
(a) कार के इंजन के द्वारा बल लगाया जा रहा है
(b) कार के इंजन के द्वारा बल नही लगाया जा रहा है।
(c) कार का संवेग बढ़ रहा है
(d) यह सम्भव नहीं
उत्तर:
(a) कार के इंजन के द्वारा बल लगाया जा रहा है

प्रश्न 3.
एक किग्रा भार बराबर होता है:
(a) 1 न्यूटन
(b) 9.8 न्यूटन
(c) 980 न्यूटन
(d) 98 न्यूटन
उत्तर:
(b) 9.8 न्यूटन

प्रश्न 4.
न्यूटन का तृतीय तुल्य है:
(a) रेखीय संवेग संरक्षण के नियम के
(b) ऊर्जा संरक्षण के नियम के
(c) कोणीय संवेग संरक्षण के नियम के
(d) ऊर्जा व द्रव्यमान तुल्यता के नियम के
उत्तर:
(a) रेखीय संवेग संरक्षण के नियम के

प्रश्न 5.
न्यूटन का गति का तृतीय नियम देता है:
(a) बल की माप
(b) बल की परिभाषा
(c) जड़त्व की परिभाषा
(d) बल का गुण
उत्तर:
(d) बल का गुण

प्रश्न 6.
यदि किसी कण द्वारा तय की गई दूरी (x) एवं समय (t) सम्बन्ध t = ax2 + bx, यहाँ a एवं b स्थिरांक हैं, तो कण का मन्दन होगा:
(a) 2av3
(b) 2bv3
(c) 2av2
(d) 2bv2
उत्तर:
(a) 2av3

प्रश्न 7.
एक स्प्रिंग तुला के पलड़े पर एक बीकर में थोड़ा पानी रखा हुआ है। यदि हम बीकर की तली को बिना छुए जल में अपनी अँगुली डुबाएँ तो तुला का:
(a) पाठ्यांक पहले की अपेक्षा बढ़ जायेगा
(b) पाठ्यांक पहले की अपेक्षा घट जायेगा
(c) पाठ्यांक अपरिवर्तित रहेगा
(d) पाठ्यांक परिवर्तन बीकर में भरे पदार्थ पर निर्भर करेगा।
उत्तर:
(a) पाठ्यांक पहले की अपेक्षा बढ़ जायेगा

प्रश्न 8.
एक स्वचालित मशीन गन से एक ही दिशा में गोलियाँ दागी जती हैं। प्रत्येक गोली का द्रव्यमान 50 ग्राम एवं वेग 1000 मी/से है। यदि गोली चलाने वाले व्यक्ति पर लगने वाला औसत बल 200 न्यूटन हो, तो प्रति मिनट दागी गयी गोलियों की संख्या होगी।
(a) 30
(b) 60
(c) 120
(d) 240
उत्तर:
(d) 240

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम

प्रश्न 9.
तीन घनाकार आकृति के पिण्ड जिनके द्रव्यमान क्रमश: m1 = 20 किग्रा m2 = 40 किग्रा एवं m3 = 60 किग्रा हैं, घर्षण रहित तल पर चित्रानुसार रखे हुए हैं। तीनों पिण्ड एक अविस्तारित डोरी से जुड़े हैं। तनाव T1 एवं T2 के मान होंगे:
(a) 20 एंव 10 न्यूटन
(b) 20 एवं 60 न्यूटन

(c) 40 एवं 20 न्यूटन
(d) 10 एवं 20 नयूटन
उत्तर:
(b) 20 एवं 60 न्यूटन

प्रश्न 10.
स्थिर 238U से एक a-कण 107 मी/से वेग से विघटित होता है।
शेष नाभिक का विघटित वेग होगा:
(a) 107 मी/से
(b) \(\frac{4}{238}\) × 107 मी/से
(c) \(\frac{4}{234}\) × 107 मी/से
(d) \(\frac{1}{238}\) × 107मी/से
उत्तर:
(c) \(\frac{4}{234}\) × 107 मी/से

प्रश्न 11.
जब एक व्यक्ति खुरदरी सतह पर चलता है, तो सतह द्वारा आरोपित घर्षण बल:
(a) व्यक्ति की गति की दिशा में होता है
(b) व्यक्ति की गति की दिशा से विपरीत होता है
(c) व्यक्ति की गति की दिशा के लम्बवत् होता है।
(d) व्यक्ति की गति की दिशा के लम्बवत् नीचे की ओर होता है।
उत्तर:
(a) व्यक्ति की गति की दिशा में होता है

प्रश्न 12.
एक पिण्ड पर F = 4t3 न्यूटन बल, प्रथम दो सेकण्ड तक लगाया जाता है। पिण्ड के रेखीय संवेग में वृद्धि होगी:
(a) 16 न्यूटन सेकण्ड
(b) 8 न्यूटन सेकण्ड
(c) 48 न्यूटन सेकण्ड
(d) 32 न्यूटन सेकण्ड
उत्तर:
(a) 16 न्यूटन सेकण्ड

प्रश्न 13.
एक बिन्दु पर 10-10 न्यूटन के दो बल कोण θ पर कार्य कर रहे है। उनका परिणामी बल भी होगा 10 न्यूटन कोण θ का मान हैं।
(a) 0°
(b) 60°
(c) 120°
(d) 180°
उत्तर:
(c) 120°

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प्रश्न 14.
2 किग्रा द्रव्यमान का एक ब्लॉक फर्श पर रखा हुआ है। स्थैतिक घर्षण गुणांक का मान 0.4 है। यदि 2.5 न्यूटन का एक बल चित्रानुसार ब्लॉक पर लगाया जाये तो ब्लॉक व फर्श के मध्य घर्षण बल का मान है

F = 2.5N
(a) 2.5 न्यूटन
(b) 5.0 न्यूटन
(c) 7.5 न्यूटन
(d) 10 न्यूटन
उत्तर:
(a) 2.5 न्यूटन

प्रश्न 15.
घर्षण रहित फर्श पर किस व्यक्ति को चलने के लिए निम्न नियम की सहायता लेनी होगी:
(a) न्यूटन के प्रथम नियम की
(b) न्यूटन के द्वितीय नियम की
(c) न्यूटन के तृतीय नियम की
(d) उपर्युक्त सभी नियमों की
उत्तर:
(c) न्यूटन के तृतीय नियम की

प्रश्न 16.
समान वेग से सरल रेखीय पथ पर गतिशील एक ट्रेन में एक बच्चे ने हाइड्रोजन गैस के गुब्बारे से बँधी हुई डोरी को हाथ में पकड़ रखा है। यदि ड्राइवर अचानक ब्रेक लगाता है तो गुब्बारा:
(a) पीछे जायेगा
(b) ऊर्ध्व ऊपर रहगा
(c) आगे जायेगा
(d) ऊर्ध्व नीचे रहेगा
उत्तर:
(a) पीछे जायेगा

प्रश्न 17.
एक गुटका एक मेज पर रखा हुआ है। प्रतिक्रिया बल होगा:
(a) नीचे की ओर मेज द्वारा
(b) नीचे की ओर गुटके द्वारा
(c) ऊपर की ओर गुटके द्वारा
(d) ऊपर की ओर मेज द्वारा।
उत्तर:
(d) ऊपर की ओर मेज द्वारा।

प्रश्न 18.
सरकस में दौड़ते हुए घोड़े की पीठ पर बैठा घुड़सवार उछलकर पुन: घोड़े पर आ जाता है क्योंकि:
(a) वृत्तीय पथ में गति है
(b) स्थिरता का जड़त्व है
(c) गतिशीलता का जड़त्व है
(d) यह असम्भव है
उत्तर:
(c) गतिशीलता का जड़त्व है

प्रश्न 19.
निम्न में से किस प्रक्रिया में बल की आवश्यकता नहीं होती है?
(a) समान चाल से वर्तुल गति
(b) समान वेग से रेखीय गति
(c) समान त्वरण से रेखीय गति
(d) सभी में बल की आवश्यकता होती है।
उत्तर:
(a) समान चाल से वर्तुल गति

प्रश्न 20.
यदि किसी पिण्ड पर कई बल कार्यरत हैं तो उसके साम्यावस्था में होने के लिए आवश्यक शर्त है।
(a) पिण्ड बहुत हल्का होना चाहिए
(b) पिण्ड बहुत भारी होना चाहिए
(c) पिण्ड पर कार्यरत् बल संगामी होने चाहिए
(d) पिण्ड पर कार्यरत् सभी बलों का सदिश योग शून्य होना चाहिए।
उत्तर:
(c) पिण्ड पर कार्यरत् बल संगामी होने चाहिए

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न:

प्रश्न 1.
एक वृत्ताकार चिकनी चकती पर एक चिकनी गोली रखी है। चकती को घुमाने पर गोली चकती से लुढ़ककर नीचे गिर जाती है, क्यों?
उत्तर:
चकती एवं गोली दोनों चिकनी हैं अतः गोली को चकती के साथ घूमने के लिए आवश्यक अभिकेन्द्रीय बल (घर्षण बल के द्वारा) नहीं मिल पाता है; अत; गोली वृत्त की स्पर्श रेखा की दिशा में गति करती हुई नीचे गिर जाती है।

प्रश्न 2.
कार में बैठा व्यक्ति कार के मुड़ने पर विपरीत दिशा में झुक जाता है, क्यों?
उत्तर:
कार के मुड़ने पर व्यक्ति के ऊपरी भाग को आवश्यक अभिकेन्द्र बल नहीं मिल पाता है अतः वह अपकेन्द्र बल के कारण विपरीत दिशा में झुक जाता है।

प्रश्न 3.
मोड़ पर सड़क के करवट के क्या लाभ हैं?
उत्तर:
सड़क पर करवट से वाहन के अधिकतम सुरक्षित वेग में वृद्धि होती है जिससे वाहन बिना फिसले मोड़ से सुरक्षित गुजर जाते हैं।

प्रश्न 4.
यदि नियत परिमाण का बल सदैव गतिशील पिण्ड की गति की दिशा के लम्बवत् कार्य करता है, तो कण का पथ कैसा होगा?
उत्तर:
कण का पथ वृत्ताकार होगा क्योंकि लगाया गया बल अभिकेन्द्र बल का कार्य करेगा।

प्रश्न 5.
क्षैतिज वृत्त में घूमने वाले पिण्ड की गतिज ऊर्जा प्रत्येक स्थिति में समान रहती है। क्या ऊर्ध्व वृत्त में भी यह कथन सत्य होगा?
उत्तर:
नहीं; क्योंकि ऊध्वं वृत्तीय गति में गतिज ऊर्जा एवं स्थितिज ऊर्जा का एक-दूसरे में रूपान्तरण होता रहता है।

प्रश्न 6.
एक डोरी से भारी पत्थर लटकाया गया है। जैसे ही पत्थर को सरल लोलक की तरह दोलन कराया जाता है, डोरी टूट जाती है। इस घटना का क्या कारण है?
उत्तर:
केवल लटकाये जाने की स्थिति में डोरी में तनाव T = mg होता है, जो डोरी की सहनशीलता के अन्दर होता है और डोरी नहीं टूटती है। दोलन कराने पर निम्नतम बिन्दु तनाव अधिकतम Tmax = (mg + \(\frac{m v^2}{r}\)
हो जाता है, जो डोरी की सहनशीलता से अधिक हो जाता है जिससे डोरी टूट जाती है।

प्रश्न 7.
अभिकेन्द्रीय बल को यह नाम क्यों दिया गया?
उत्तर:
क्योंकि इसकी दिशा सदैव केन्द्र की ओर होती है।

प्रश्न 8.
पृथ्वी पर अभिकेन्द्रीय बल कहाँ अधिकतम होता है?
उत्तर:
अभिकेन्द्रीय बल F = \(\frac{m v^2}{r}\) ध्रुवों पर r का मान न्यूनतम होता है। अतः यहाँ पर F का मान अधिकतम होता है।

प्रश्न 9.
एक कार को समतल सड़क पर मुड़ने के लिए अभिकेन्द्रीय बल किसके द्वारा प्रदान किया जाता है?
उत्तर:
सड़क व कार के पहियों के टायरों के मध्य लगने वाला घर्षण बल ही आवश्यक अभिकेन्द्रीय बल प्रदान करता है।

प्रश्न 10.
अभिकेन्द्र बल एवं अपकेन्द्र बल में कौन वास्तविक बल एवं कौन छद्म बल है?
उत्तर:
अभिकेन्द्र बल वास्तविक एवं अपकेन्द्र बल छद्म बल है।

प्रश्न 11.
ऊर्ध्व वृत्त में गतिमान पिण्ड की उच्चतम बिन्दु पर न्यूनतम चाल को क्या कहते हैं? इसका मान क्या होता है?
उत्तर:
उच्चतम बिन्दु पर न्यूतनतम चाल को क्रान्तिक चाल कहते हैं और इसका मान v = \(\sqrt{r g}\) होता है।

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प्रश्न 12.
ऊर्ध्वाधर वृत्त के निम्नतम बिन्दु पर क्रान्तिक चाल एवं डोरी में इस दशा में तनाव कितना होगा?
उत्तर:
डोरी में तनाव T = 6 mg तथा क्रान्तिक चाल Vc = \(\sqrt{5 r g}\)

प्रश्न 13.
जेट इंजन किसके संरक्षण पर आधारित है- ऊर्जा के, संवेग के या द्रव्यमान के?
उत्तर:
जेट इंजन संवेग संरक्षण के सिद्धान्त पर आधारित है।

प्रश्न 14.
पृथ्वी चन्द्रमा पर गुरुत्वाकर्षण बल लगाती है; इसका प्रतिक्रिया बल कहाँ लग रहा होगा?
उत्तर:
पृथ्वी के केन्द्र पर चन्द्रमा की ओर।

प्रश्न 15.
कुँए से पानी खींचते समय यदि रस्सी टूट जाये तो मनुष्य किस ओर गिरेगा?
उत्तर:
पीछे की ओर।

प्रश्न 16.
एक खिलाड़ी कूदने से पहले कुछ दूरी तक भागता क्यों है?
उत्तर:
खिलाड़ी गति जड़त्व के लिए कूदने से पहले कुछ दूर दौड़ता है।

प्रश्न 17.
यदि किसी पिण्ड पर नेट बल शून्य है, तो पिण्ड क्या विरामावस्था में होगा?
उत्तर:
आवश्यक नहीं है क्योंकि नियत वेग से गतिमान वस्तु पर भी नेट बल शून्य होता है।

प्रश्न 18.
जब कोई गेंद ऊपर की ओर फेंकी जाती है तो उसका वेग पहले घटता है फिर बढ़ता है। क्या इस प्रक्रिया में संवेग संरक्षण का उल्लंघन होता है?
उत्तर:
नहीं, क्योंकि (गेंद + पृथ्वी) का संवेग संरक्षित रहता है।

प्रश्न 19.
क्या रॉकेट मुक्त आकाश में उड़ सकता है?
उत्तर:
हाँ; रॉकेट मुक्त आकाश में उड़ सकता है।

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प्रश्न 20.
चलती बस के अचानक रुकने पर उसमें बैठा यात्री आगे की ओर गिर जाता है, क्यों?
उत्तर:
गति जड़त्व के कारण यात्री के शरीर का ऊपर वाला भाग गतिशील रहता है जबकि बस की सीट के सम्पर्क वाला भाग बस के साथ रुक जाता है। इसलिए यात्री आगे की ओर गिर जाता है।

प्रश्न 21.
यदि एक दीवार पर समान द्रव्यमान तथा समान वेग से बारी-बारी से लोहे, पत्थर, मिट्टी, टेनिस की गेंद मारी जाये तो किसके द्वारा सबसे अधिक बल लगेगा?
उत्तर:
टेनिस की गेंद से क्योंकि यह सर्वाधिक वेग से वापस लौटेगी तथा संवेग में परिवर्तन सर्वाधिक होगा।

प्रश्न 22.
दो तलों के मध्य घर्षण गुणांक किन-किन बातों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
आर्द्रता, तलों की प्रकृति, ताप, तलों की स्वच्छता पर।

प्रश्न 23.
पृथ्वी किस प्रकार का निर्देश तन्त्र है?
उत्तर:
अजड़त्वीय निर्देश तन्त्र, क्योंकि पृथ्वी के घूर्णन के कारण इस पर स्थित वस्तुओं की गति त्वरित गति की श्रेणी में आती है।

प्रश्न 24.
पहिए गोल क्यों बनाये जाते हैं?
उत्तर:
पहिए गोल इसलिए बनाये जाते हैं ताकि वे सर्पी घर्षण को लोटनी घर्षण में बदल सकें।

प्रश्न 25.
किसी पिण्ड की गति प्रारम्भ करने की अपेक्षा उसकी गति को बनाये रखना आसान होता है, क्यों?
उत्तर:
क्योंकि गतिक घर्षण बल का मान सीमान्त घर्षण बल की तुलना में कम होता है।

प्रश्न 26.
दो समान द्रव्यमान के दो व्यक्ति अपने पैरों पर बर्फ पर चलने वाली स्की (ice-skates) बाँधकर बर्फ के समतल मैदान पर कुछ दूरी पर खड़े हैं। एक व्यक्ति की कमर में एक रस्सी बँधी है जिसका दूसरा सिरा दूसरे व्यक्ति के हाथ में है। यदि दूसरा व्यक्ति रस्सी को अपनी ओर खींचे तो दोनों व्यक्तियों की गति पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
दोनों व्यक्ति समान संवेग से एक-दूसरे की ओर गति करेंगे।

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प्रश्न 27.
एक वस्तु पर कार्यरत् असमान संगामी बलों की संख्या कम से कम क्या होनी चाहिए जिससे वस्तु संतुलित रहे?
उत्तर:
वस्तु पर कार्यरत् असमान संगामी बलों की संख्या तीन होनी चाहिए जिससे वस्तु संतुलित रह सके।

प्रश्न 28.
समतल पृष्ठ पर एक W भार के बक्से को ऊर्ध्वाधर से θ कोंण पर F परिमाण का बल लगाकर खींचा जा रहा है। यदि बक्सा क्षैतिज दिशा में खिसके तब समान पृष्ठ का बक्से पर कितना प्रतिक्रिया बल मिलता है?

उत्तर:
बल को वियोजित करने पर,
R + Fcosθ = W
प्रतिक्रिया बल, R = W – Fcosθ

प्रश्न 29
एक नत समतल पर m द्रव्यमान की वस्तु रखी है जिस पर क्षैतिज बल F लग रहा है। वस्तु पर अभिलम्ब प्रतिक्रिया बल क्या है?
उत्तर:
बल F को एवं mg को वियोजित करने पर अभिलम्ब
प्रतिक्रिया
R = mg cosθ + F sinθ

प्रश्न 30.
कार की छत से धागे द्वारा लटकी गेंद कार के बायें मुड़ने पर किस ओर हटेगी?
उत्तर:
कार के बायीं ओर मुड़ने पर छद्म बल ( अपकेन्द्र बल) दायीं ओर को लगेगा। अतः गेंद दायीं ओर हटेगी।

प्रश्न 31.
एक लड़के के हाथ में एक पिंजरा है जिसकी फर्श पर एक चिड़िया बैठी है। यदि चिड़िया पिंजरे के भीतर उड़ने लगे तो क्या लड़के को पिंजरे के भार के कोई परिवर्तन अनुभव होगा?
उत्तर:
हाँ, पिंजरा पहले से हल्का प्रतीत होगा क्योकि अब चिड़िया का भार अनुभव नहीं होगा।

प्रश्न 32.
क्रिया व प्रतिक्रिया बल एक दूसरे के विपरीत व परिमाण में समान होते हैं लेकिन फिर भी वे एक दूसरे को निरस्त नहीं कर पाते हैं?
उत्तर:
प्रश्नगत क्रिया एवं प्रतिक्रिया बल एक दूसरे को निरस्त नही कर पाते क्योंकि ये दोनों बल एक ही वस्तु पर कार्य न करके दो अलग-अलग वस्तुओं पर कार्य करते हैं।

प्रश्न 33.
यदि किसी पिण्ड को तीन समान्तर बल सन्तुलन में रखते हैं तो उन बलों की विशेषता क्या होगी?
उत्तर:
बल समतलीय तथा संगामी होंगे।

लघु उत्तरीय प्रश्न:

प्रश्न 1.
रेलगाड़ी का ड्राइवर स्टार्ट करने के लिए पहले रेल के इंजन को पीछे धकेलता है तथा फिर आगे बढ़ाता है। ऐसा क्यों करता है?
उत्तर:
इंजन को पीछे धकेलने से डिब्बों को जोड़ने वाली कड़ियाँ ढीली पड़ जाती हैं। अब इंजन द्वारा आगे की ओर बल लगाने पर सर्वप्रथम पहला डिब्बा तथा फिर बारी-बारी से पिछले डिब्बे त्वरित होते हैं। यदि ड्राइवर ऐसा न करे तो कड़ियों के तने होने पर पूरी गाड़ी एक साथ त्वरित होगी, जिसके लिए इंजन को बहुत अधिक बल लगाना पड़ेगा।

प्रश्न 2.
क्या समान वेग से गति करने वाला पिण्ड सन्तुलन में है?
उत्तर:
हाँ, सरल रेखीय गति में,
संतुलन की अवस्था में Fnet = 0
अर्थात्
Fnet = ma = \(\frac{m(\Delta v)}{t}\)
= 0
या
∆v = 0
अर्थात् पिण्ड समान वेग से गतिमान है।

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प्रश्न 3.
एक हल्के एवं दूसरे भारी पिण्ड के रेखीय संवेग समान हैं। किस पिण्ड की गतिज ऊर्जा अधिक होगी?
उत्तर:
गतिज ऊर्जा E = \(\frac{1}{2}\)mv2
= \(\frac{m^2 v^2}{2 m}\)
= \(\frac{p^2}{2 m}\)
∴ p2 = 2mE ⇒ P = \(\sqrt{2 m E}\)
दिया है:
P1 = P2
∴ \(\sqrt{2 m_1 E_1}\) = \(\sqrt{2 m_7 E_2}\)
या
m1E1 = m2E2
⇒ \(\frac{E_1}{E_2}\) = \(\frac{m_2}{m_1}\)
∵ m2 > m1
∴ E1 > E2
अर्थात् हल्के पिण्ड की गतिज ऊर्जा अधिक होगी।

प्रश्न 4.
एक हल्के एवं भारी पिण्ड की गतिज ऊर्जा समान है। किस पिण्ड का रेखीय संवेग अधिक होगा?
उत्तर:
गतिज ऊर्जा E = \(\frac{p^2}{2 m}\)
∵ E1 = E2
∴\(\frac{p_1^2}{2 m_1}\) = \(\frac{p_2^2}{2 m_2}\)
या
\(\frac{p_1^2}{p_2^2}\) = \(\frac{m_1}{m_2}\)
∵ m1 < m2
p12 < P22 या P1 < P2
अर्थात् हल्के पिण्ड का रेखीय संवेग कम होगा और भारी का अधिक।

प्रश्न 5.
समान द्रव्यमान M के तीन समरूप गुटके एक घर्षण रहित मेज पर चित्र के अनुसार धकेले जाते हैं। बताइये कि (i) गुटकों का त्वरण क्या है? (ii) गुटके A पर नेट बल कितना है ? (iii) गुटका A गुटके B पर कितना बल लगाता है? (iv) गुटका B गुटके C पर कितना बल लगाता है? (v) गुटकों के सम्पर्क तलों पर क्रिया तथा प्रतिक्रिया बलों को दिखाइये।

उत्तर:
(i) प्रत्येक गुटके का त्वरण a = \(\frac{F}{3 M}\)
(ii) गुटके A पर नेट बल = \(\frac{F}{3}\)
(iii) गुटके A द्वारा B पर लगाया गया बल = \(\frac{2 F}{3}\)
(iv) गुटके B द्वारा C पर लगाया गया बल = \(\frac{F}{3}\)
(v) क्रिया तथा प्रतिक्रिया बल चित्र में प्रदर्शित हैं।

प्रश्न 6.
समान द्रव्यमान के तीन गुटके डोरियों से बाँधकर एक चिकनी क्षैतिज मेज पर बल द्वारा खींचे जाते हैं। डोरियों में तनाव T1 व T2 ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
माना बल F के कारण त्वरण a उत्पन्न होता है। अतः न्यूटन के गति के द्वितीय नियम से:

∴ प्रथम पिण्ड के लिए गति का समी०
F – T1 = ma ⇒ T1 = F – ma
= F – m\(\frac{F}{3 m}\)
या
T1 = F – \(\frac{F}{3 m}\) = \(\frac{2F}{3 m}\)
या
T1 = \(\frac{2F}{3 m}\)
इसी प्रकार दूसरे पिण्ड के लिए
T1 – T2 = ma = \(\frac{F}{3}\)
या
T2 = T1 – \(\frac{F}{3}\) = \(\frac{2F}{3}\) – \(\frac{F}{3}\) = \(\frac{F}{3}\)
या
T2 = \(\frac{F}{3}\)

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प्रश्न 7.
पेड़ की शाखा को हिलाने पर आम नीचे क्यों गिर जाते हैं?
उत्तर:
जब पेड़ की शाखा को हिलाते हैं तो यह गति करती है। जड़त्व के कारण आम स्थिर रहता है। इसी कारण आम शाखा से अलग होकर नीचे गिर जाता है।

प्रश्न 8.
धूल हटाने के लिए गलीचे को डण्डे से क्यों पिटते हैं?
उत्तर:
जब गलीचे को डण्डे से पीटते हैं तो गलीचा तो गति में आ जाता है लेकिन धूल के कण विराम जड़त्व के कारण गति में नहीं आ पाते हैं और वे गलीच से अलग हो जाते हैं।

प्रश्न 9.
स्पष्ट कीजिए कि क्यों किसी तीव्र गति से चल रही बस के यकायक रुकने पर यात्री आगे की ओर गिरते हैं?
उत्तर:
न्यूटन के गति के प्रथम नियम अर्थात् जड़त्व के नियम के अनुसार गतिशील वस्तु रुकने का विरोध करती है। इसीलिए तीव्र गतिशील वाहक के यकायक रुकने पर यात्री आगे की ओर गिरते हैं।

प्रश्न 10.
न्यूटन के गति के प्रथम नियम को जड़त्व का नियम क्यों कहते हैं?
उत्तर:
न्यूटन के गति के प्रथम नियम के अनुसार बाह्य बल की अनुपस्थिति में किसी पिण्ड की अवस्था में कोई परिवर्तन नहीं होता है और जड़त्व किसी वस्तु का वह गुण जिसके कारण वह अपनी अवस्था परिवर्तन का विरोध करती है। इसीलिए गति के प्रथम नियम को जड़त्व का नियम कहते हैं।

प्रश्न 11.
क्रिकेट का खिलाड़ी गेंद को लपकते समय अपने हाथ गेंद के साथ पीछे की ओर क्यों खींचता है?
उत्तर:
गति के द्वितीय नियम से F = \(\frac{\Delta p}{\Delta t}\)
स्पष्ट है कि ∆p संवेग परिवर्तन के लिए समयान्तराल ∆r का मान जितना अधिक होगा, बल F का मान उतना ही कम होगा। इसीलिए क्रिकेट खिलाड़ी गेंद को लपकते समय अपने हाथ गेंद के साथ पीछे खींच लेता है। ताकि गेंद का संवेग शून्य होने का समय बढ़ जाये और हाथ पर गेंद द्वारा आरोपित बल कम हो जाये।

प्रश्न 12.
बल की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
बल वह कारक है जो किसी वस्तु की अवस्था को बदल दे या बदलने का प्रयास करे।

प्रश्न 13.
एक जड़त्वीय तन्त्र के अन्तर्गत् एक कण का त्वरण मापने पर शून्य आता है। क्या हम कह सकते हैं कि कण पर कोई बल कार्यरत् नहीं है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जड़त्वीय निर्देश तन्त्र में न्यूटन के गति के प्रथम व द्वितीय नियम वैध होते हैं। गति की परिभाषा आपेक्षिक आधार पर की जाती है। सामान्यतः पृथ्वी को स्थिर मान कर हम गति को परिभाषित करते हैं और पृथ्वी को जड़त्वीय निर्देश तन्त्र मानते हैं। अतः पृथ्वी पर किसी वस्तु का त्वरण शून्य होने पर भी उस पर गुरुत्वीय बल (भार) कार्य करता है।

प्रश्न 14.
न्यूटन के गति के तृतीय नियम के अनुसार रस्साकशी के खेल में प्रत्येक टीम अपनी विरोधी टीम को समान बल से खींचता है, तो फिर एक टीम जीतती है और दूसरी हार जाती है ऐसा क्यों?
उत्तर:
रस्साकशी के खेल में दोनों टीमें जब तक समान बल से रस्से को सींचती हैं तब तक पूरे निकाय पर नेट बल शून्य रहता है। जैसे ही 1 एक टीम का बल दूसरी टीम के बल से अधिक हो जाता है, नेट बल लगने लगता और पूरा निकाय नेट बल की दिशा में गति करने लगता है। फलस्वरूप एक टीम जीत जाती है और दूसरी हार जाती है।

प्रश्न 15.
एक मेज पर एक किताब रखी हुई है। किताब का भार एवं मेज द्वारा किताब पर लगाया गया अभिलम्ब बल परिमाण में समान एवं दिशा में विपरीत हैं। क्या इसे न्यूटन के तृतीय नियम का उदाहरण माना जा सकता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हाँ, क्योंकि तृतीय नियम के लिए दोनों बल परिमाण में समान एवं दिशा में विपरीत होने चाहिए तथा दोनों बल दो अलग-अलग वस्तुओं पर लगने चाहिए । यहाँ ये शर्तें पूर्ण होती हैं।

प्रश्न 16.
किसी वस्तु पर लगने वाले आवेग की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
आवेग (Impulse): जब दो वस्तुओं में टक्कर होती है, तो वे एक दूसरे पर बल आरोपित करती हैं। फलस्वरूप प्रत्येक वस्तु के संवेग में दूसरी वस्तु द्वारा लगाये बल के कारण परिवर्तन होता है। सामान्यतः इस प्रकार की टक्कर में सम्पर्क का समय अर्थात् स्पर्श काल (Duration of Contact) अत्यल्प होता है जबकि वस्तुओं के संवेग में परिवर्तन अत्यधिक होता है। इसका अर्थ है कि टक्कर के समय लगने वाले बल का परिमाण अत्याधिक होना चाहिए। उदाहरणार्थ- क्रिकेट के खेल में बल्ले द्वारा गेंद पर अत्यधिक बल अत्यल्प समय के लिए लगाया जाता है। ऐसे ही बल को ‘आवेगी बल’ (Impulsive Force) कहते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि. सम्पर्क के समय बल एक समान ( uniform ) हो। इस प्रकार, “किसी वस्तु की गति पर बल के समग्र प्रभाव को आवेग कहते हैं और इसका मान बल एवं समयान्तराल के गुणनफल से प्राप्त करते हैं।” इसे / से व्यक्त करते हैं और यह सदिश राशि है जिसकी दिशा वही होती है, जो आरोपित बल की होती है।
अत:
आवेग = बल x समयान्तराल
या
I = F.∆l …..(1)
सदिश रूप में
\(\vec{I}\) = \(\vec{I}\)∆l …..(2)
∵ न्यूटन के गति के द्वितीय नियम से
\(\vec{F}\) = \(\frac{\Delta \vec{p}}{\Delta t}\)
\(\vec{I}\) = \(\frac{\Delta \vec{p}}{\Delta t}\) x ∆t
या
\(\vec{I}\) = \(\Delta \vec{p}\) ….(3)
अर्थात् “किसी वस्तु पर कार्यरत् आवेग, उसके संवेग में परिवर्तन के बराबर होता है।” यही आवेग संवेग प्रमेय हैं।
यदि किसी वस्तु पर कोई बल \(\vec{F}\) है अल्प समय dt के लिए कार्यरत् रहता है, तो बल का आवेग,
dI = F.dt
यदि ब F समय t1 से t2 तक के लिए आरोपित रहता है, तो कुल आवेग
I = \(\int d I\) = \(\int_{t_1}^{t_2} F \cdot d t\)
यदि बल समय का फलन (function) नहीं है तो नियत रहेगा। अतः
I = \(F \cdot \int_{t_1}^{t_2} d t-F \cdot[t]_{t_1}^{t_2}\)
या
I = F.∆t
मात्रक एवं विमीय सूत्र
∵ आवेग I = F. ∆t
∴ I का मात्रक = N. s.
तथा I का विमीय सूत्र = [M1L1T-2][T1]
= [M1L1T-1]

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प्रश्न 17.
आवेगी बल क्या होते हैं?
उत्तर:
अत्यधिक परिमाण के वे बल जो अत्यल्प अवधि (स्पर्श काल) के लिए कार्यरत् होते हैं, आवेगी बल कहलाते हैं।

प्रश्न 18.
विलगित निकाय किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसा निकाय जिस पर कोई बाह्य बल कार्य न कर रहा हो या कार्यरत् बाह्य बलों का सदिश योग शून्य हो, विलगित निकाय कहलाता है।

प्रश्न 19.
किसी बन्दूक से एक गोली छोड़ने पर बन्दूक पीछे की ओर प्रतिक्षिप्त क्यों करती है?
उत्तर:
संवेग संरक्षण के सिद्धान्त के अनुसार बाह्य बल की अनुपस्थिति में किसी निकाय का कुल संवेग संरक्षित अर्थात् नियत रहता है। अतः जब बन्दूक से गोली दागी जाती है तो जिस संवेग से गोली गति करती है, ठीक उतने ही संवेग से बन्दूक प्रतिक्षिप्त होती है, ताकि कुल संवेग नियत रहे।

प्रश्न 20.
एक व्यक्ति सीमेन्ट के फर्श पर गिरता है तो रेत की ढेरी पर गिरने की अपेक्षा अधिक चोट लगती है, क्यों?
उत्तर:
जब व्यक्ति किसी ऊँचाई से सीमेन्ट की फर्श पर गिरता है तो अचानक रूक जाता है क्योंकि फर्श दबती नहीं है। अतः आवेग को संतुलित करने के लिए फर्श द्वारा अधिक बल लगाया जाता है है जिससे चोट अधिक लगती है। इसके विपरीत जब व्यक्ति रेत के ढेर पर गिरता है तो रेत दब जाता है और संवेग को शून्य होने के लिए अधिक समय लगता है, अतः रेत की फर्श द्वारा कम बल लगाया जाता है जिससे चोट कम लगती है।

प्रश्न 21.
एक गुब्बारे (द्रव्यमान M) से बंधी रस्सी से एक व्यक्ति (द्रव्यमान m) लटका है तथा गुब्बारा स्थिर है। यदि वह व्यकि इसी रस्सी के सहारे चढ़ने लगे तो गुब्बारा किस वेग से तथा किस दिशा में चलने लगेगा? व्यक्ति का रस्सी के सापेक्ष वेग v है।
उत्तर:
व्यक्ति तथा गुब्बारे का प्रारम्भिक संवेग शून्य है, अतः व्यक्ति जिस संवेग से ऊपर चढ़ेगा, गुब्बारा उतने ही संवेग से नीचे गति करेगा। यदि गुब्बारे का वेग u है, तो व्यक्ति ऊपर की ओर (V – u) वेग से ऊपर चढ़ेगा।
अतः व्यक्ति का संवेग + गुब्बारे का संवेग = 0
या
m(v – u) – Mu = 0
या
mv – mu – Mu = 0
या
mv – u(m + M) = 0
या
u(M + m) = mv
∴ u = \(\frac{m v}{M+m}\)

प्रश्न 22.
कीचड़ वाली सड़क पर हम फिसल क्यों जाते हैं?
उत्तर:
कीचड़ वाली सड़क पर हमारे पैरों और सड़क के बीच जल की एक पतली पर्त होती है। यह पर्त अन्तर्ग्रथन (interlocking) को समाप्त करके घर्षण को कम कर देती है। इसीलिए कीचड़ युक्त सड़क पर हम फिसल जाते हैं।,

प्रश्न 23.
चाल से गतिमान एक ट्रक के ड्राइवर को अपने सामने दूरी पर एक चौड़ी दीवार दिखाई देती है टक्कर से बचने के लिए उसे ब्रेक लगानी चाहिए अथवा बिना ब्रेक लगाये गाड़ी को वृत्तीय मोड़ देना चाहिए? कारण भी बताइये।
उत्तर:
ब्रेक लगाने चाहिए, ब्रेक लगाने पर ट्रक की गतिज ऊर्जा घर्षण बल के विरुद्ध कार्य करने में व्यय होगी। यदि घर्षण बल Ff तथा रुकने से पूर्व ट्रक द्वारा चली गई दूरी हो तो
\(\frac{1}{2}\)mv2 = Ff x. ∴ x = \(\frac{m v^2}{2 F_f}\)
ट्रक को टक्कर से बचाने के लिए x < r
∴ \(\frac{m v^2}{2 F_f} \leq r\) या \(F_f \geq \frac{m v^2}{2 r}\)
ट्रक को मोड़ने पर,. \(F_f=\frac{m v^2}{r^{\prime}}\)
∴ \(r^{\prime}=\frac{m v^2}{F_f}\)
टक्कर से बचने के लिए \(r^{\prime} \leq r,\)
या \(\frac{m v^2}{F_f} \leq r\)
स्पष्ट है कि ब्रेक द्वारा रोकने के आवश्यक घर्षण बल \(\frac{m v^2}{2 r}\) वृत्तीय मोड़ देने के लिए आवश्यक अभिकेन्द्र बल \(\frac{m v^2}{r}\) से आधा है।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम

प्रश्न 24.
एक राइफल से गोली दागी जाती है। यदि राइफल स्वतन्त्रता पूर्वक प्रतिक्षेपित होती है, तो बताइये कि राइफल की गतिज ऊर्जा गोली की गतिज से किस प्रकार सम्बन्धित होगी?
उत्तर:
गतिशील पिण्ड की गतिज ऊर्जा E = \(\frac{p^2}{2 m}\)
∴ गोली एवं राइफल दोनों के संवेग समान होंगे, अतः E ∝ \( \frac{1}{m}\) स्पष्ट है कि राइफल की गतिज ऊर्जा गोली की गतिज ऊर्जा से कम होगी क्योंकि राइफल का द्रव्यमान गोली के द्रव्यमान से अधिक होता है।

प्रश्न 25.
ढालू सड़क पर चढ़ने की अपेक्षा समतल सड़क पर टायरों की पकड़ अधिक मजबूत होती है, क्यों?
उत्तर:
समतल सड़क पर घर्षण बल μmg होता है जबकि ढालू सड़क पर μmg cosθ होता है। यदि θ > 0° तो cosθ < 1, अतः समतल सड़क पर घर्षण बल अधिक होने के कारण टायरों की पकड़ अधिक मजबूत होती है।

प्रश्न 26.
किसी सतह का अत्यधिक पॉलिश करने पर घर्षण बल बढ जाता है। कारण बताइये।
उत्तर:
जब किसी पृष्ठ को बहुत अधिक पॉलिश कर दिया जाता है तो पृष्ठ के अणु एक-दूसरे की आणविक परास के अन्दर आ जाते हैं। अतः अन्तरापरमाणवीय आकर्षण बढ़ जाता है जिसके कारण घर्षण बल बढ़ जाता है।

प्रश्न 27.
50g द्रव्यमान की वस्तु निर्वात् में नियत वेग 10ms-1 के वेग से क्षैतिज घर्षण रहित तल पर गति करती है, वस्तु पर बल क्या होगा?
उत्तर:
नियत वेग से गतिमान वस्तु का त्वरण शून्य होगा, अर्थात् a = 0 अतः उस पर लगने वाला बल F = ma = 0 होगा।

प्रश्न 28.
विद्युत् बन्द कर देने के बाद भी पंखा कुछ देर तक घूमता रहता है, कारण सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
गति जड़त्व के कारण पंखा विद्युत् आपूर्ति बन्द करने के बाद कुछ समय तक घूमता रहता है। यदि घर्षण बल जैसे विरोधी बल न हों तो पंखा अनन्त काल तक घूमता रहेगा।

प्रश्न 29.
भारहीन तथा घर्षण रहित एक घिरनी पर भारहीन तथा न बढ़ने वाली एक रस्सी के दोनों सिरों पर समान द्रव्यमान के दो बन्दर लटके हैं। रस्सी के सापेक्ष एक बन्दर तेजी से चढ़ता है। कौन सा बन्दर सबसे पहले ऊपर पहुँचेगा?
उत्तर:
किसी भी बन्दर को संवेग प्रदान करने वाला कोई भी बाहय बल आरोपित नहीं हो रहा है। केवल बन्दर ही एक दूसरे पर बराबर संवेग लगा रहे है। अतः दोनों बन्दर एक साथ घिरनी पर पहुँचेंगे।

प्रश्न 30.
एक क्षैतिज सड़क पर एक पहिया घूमता हुआ आगे बढ़ रहा है। इस पर घर्षण बल की दिशा बताइये।
उत्तर:
आगे बढ़ रहे घूमते पहिए पर दो घर्षण बल कार्य करते हैं:

  • लोटनी घर्षण बल एवं
  • गतिक घर्षण बल 1 चूँकि पहिया आगे बढ़ रहा है, अतः गतिक घर्षण बल पीछे की ओर कार्य करेगा। पहिए के सड़क के सम्पर्क वाले भाग की प्रवृत्ति पीछे की ओर है अतः लोटनी घर्षण बल आगे को लगेगा। चूँकि लोटनी घर्षण बल गतिक घर्षण बल से कम होता है अतः परिणामी घर्षण बल पीछे की ओर लगेगा।

प्रश्न 31.
एक डोरी के सिरे पर एक पत्थर बाँधकर उसे तेजी से घुमाने पर डोरी टूट जाती है और पत्थर स्पर्श रेखा की दिशा में दूर चला जाता है, क्यों?
उत्तर:
ऐसा दिशा के जड़त्व के कारण होता है। जब डोरी टूटती है तो पत्थर को डोरी द्वारा प्राप्त होने वाला अभिकेन्द्रीय बल समाप्त हो जाता है। बल की अनुपस्थिति में पत्थर तात्क्षणिक वेग की दिशा में दूर चला जाता है। यह दिशा डोरी टूटने
के बिन्दु पर वृत्तीय पथ की स्पर्श रेखा की दिशा में होती है।

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प्रश्न 32.
एक नाभिक जो स्थिर अवस्था में है, अचानक दो समान भागों में टूट जाता है। दोनों नाभिकों के मध्य वह कोण ज्ञात कीजिए जिस पर ये एक दूसरे से दूर जाते हैं।
उत्तर:
बड़ा नाभिक स्थिर है अतः इसका संवेग = 0 (शून्य)। टूटने के बाद दोनों नाभिकों के द्रव्यमान m1 व m2 तथा उनके वेग क्रमशः \(\overrightarrow{v_1}\) व \(\overrightarrow{v_2}\) हैं, तो उनके संवेग
\(\overrightarrow{p_1}\) = m1 \(\overrightarrow{v_1}\)
एवं
\(\overrightarrow{p_2}\) = m2 \(\overrightarrow{v_2}\)
संवेग संरक्षण के सिद्धान्त से
टूटने के बाद कुल संवेग = टूटने के पूर्व संवेग
\(\overrightarrow{p_1}\) + \(\overrightarrow{p_2}\) = 0
∴ \(\vec{p}=-\overrightarrow{p_2}\)
या
m1 \(\overrightarrow{v_1}\) = m2 \(\overrightarrow{v_2}\)
∵ m1 व m2 अदिश राशियाँ हैं अतः \(\overrightarrow{v_1}\) व \(\overrightarrow{v_2}\) की दिशाएँ परस्पर विपरीत दिशा में अर्थात 180° के कोण पर होंगी।

प्रश्न 33.
एक स्थिर वाहन के अन्दर बैठे कुछ यात्री इसको अन्दर से धक्का लगा रहे हैं। कारण सहित बताइये कि वह वाहन चलेगा या नहीं?
उत्तर:
नहीं; क्योंकि यात्रियों द्वारा लगाया गया बल, वाहन की दीवार द्वारा आरोपित समान परन्तु विपरीत प्रतिक्रिया बल द्वारा संतुलित हो जाता है; अतः वाहन पर शुद्ध बल शून्य होगा और वाहन नहीं चलेगा।

प्रश्न 34.
विरामावस्था में रखा एक बम समान द्रव्यमान के तीन टुकड़ों में विस्फोटित हो जाता है। दो टुकड़ों का संवेग क्रमशः -2p\(\hat{i}\) और p\(\hat{j}\) है। तीसरे टुकड़ें के संवेग का परिमाण ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
दिया है;
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम-24

प्रश्न 35.
एक व्यक्ति पूर्णतया घर्षण रहित बर्फ के तालाब के मध्य में खड़ा है वह किनारे तक कैसे पहुँच सकता है?
उत्तर:
वह सामने की ओर फूँक मारकर या सामने की ओर थूककर किनारे पर पहुँच सकता है। ऐसा करने पर वह आगे की ओर कुछ बल लगाता है और वायु को कुछ संवेग प्रदान करता है। संवेग संरक्षण के सिद्धान्त से उसके शरीर को विपरीत दिशा में समान संवेग प्राप्त होता है। घर्षण की अनुपस्थिति में व्यक्ति की गतिज ऊर्जा में कोई हानि नहीं होती है और वह तालाब के किनारे पर पहुँच जाता है।

प्रश्न 36.
वर्षा होने पर सड़क के मोड़ पर स्कूटर प्रायः फिसल क्यों जाते हैं?
उत्तर:
वर्षा होने पर सड़क पानी के कारण गीली हो जाती है जिससे घर्षण कम हो जाता है। फलस्वरूप स्कूटर को घर्षण के द्वारा पर्याप्त अभिकेन्द्रीय बल नहीं मिल पाता है और वह फिसल जाता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)

प्रश्न 1.
न्यूटन का गति का द्वितीय नियम लिखिए तथा इससे सिद्ध कीजिए कि F = ma; इस सूत्र की सहायता से बल के S.I. मात्रक की परिभाषा दीजिए तथा बल का विमीय सूत्र प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
न्यूटन का गति का द्वितीय नियम (Newton’s Second Law of Motion) :
इस नियम के अनुसार, “किसी वस्तु के संवेग परिवर्तन की समय दर उस पर लगाये गये बाह्य बल के अनुक्रमानुपाती होती है और उसी दिशा में होती है जिस दिशा में बल लगाया जाता है।”

यदि m द्रव्यमान की वस्तु पर बल \(\vec{F}\) समयान्तराल ∆t के लिये लगाने पर उसका वेग \(\vec{v}\) से (\(\vec{v}+∆ \vec{v}\)) हो जाये तथा उसके संवेग में परिवर्तन \(\Delta \vec{p}\) हो तब
\(\vec{F} \propto \frac{\overrightarrow{∆ p}}{∆ t}\)
अति सूक्ष्म समयान्तराल (∆t → 0) के लिए \(\frac{\overrightarrow{∆ p}}{∆ t}\), समय t के सापेक्ष \(\vec{p}\) का अवकलन अथवा अवकल गुणांक हो जाता है जिसे \(\frac{d \vec{p}}{d t}\) द्वारा प्रदर्शित करते हैं। अतः
\(\vec{F} \propto \frac{d \vec{p}}{dt}\)
\(\vec{F}=k\frac{d \vec{p}}{dt}\)
जहाँ k = आनुपातिकता स्थिरांक (constant of proportionality) है।
k का मान चयनित मात्रकों की पद्धति पर निर्भर करता है। मात्रकों का चयन इस प्रकार करते हैं कि k = 1
अत: समी० (1) से
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम-8
अतः किसी वस्तु पर कार्यरत् बल वस्तु के द्रव्यमान तथा उसमें उत्पन्न त्वरण के गुणनफल के बराबर होता है।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम

प्रश्न 2.
जड़त्व क्या है? उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर :
अनुच्छेद 5.4 का अवलोकन कीजिए।
जड़त्व का नियम (Law of Motion) :
जड़त्व (Inertia) :
जड़त्व शब्द की उत्पत्ति जड़ता शब्द से हुई है जिसका अर्थ स्थिरता या अपरिवर्तनीयता है। प्रत्येक वस्तु जिस अवस्था में होती है, उसी अवस्था में रहना चाहती है अर्थात् यदि वह विरामावस्था है तो विरामावस्था में ही रहना चाहती है और यदि गतिशील है तो उसी वेग से चलते रहना चाहती है तथा अपनी उक्त अवस्थाओं में परिवर्तन का विरोध करती है। यही कारण है कि वस्तु की अवस्था परिवर्तित करने के लिए बाह्य असन्तुलित बल की आवश्यकता होती है। वस्तु के इस गुण को गैलीलियो ने ‘जड़त्व’ नाम द्यिया।

अतः, “जड़त्व किसी वस्तु का वह गुण है जिस कारण वह अपनी अवस्था में परिवर्तन का विरोध करती है।”

किसी वस्तु का द्रव्यमान उसके जड़त्व की माप है। अतः भारी वस्तु अपनी विरामावस्था में परिवर्तन का विरोध, हल्की वस्तु की तुलना में अधिक करती है।

जड़त्व के प्रकार (Kinds of Inertia) –

  1. विराम का जड़त्व (Inertia of Rest) : वस्तु का वह गुण जिसके कारण वह अपनी विरामावस्था में होने वाले परिवर्तन का विरोध करती है, विराम का जड़त्व कहलाता है।
  2. गति का जड़त्व (Inertia of Motion) : तस्तु का वह गुण जिसके कारण सरल रेखा में गतिशील वस्तु अपनी गति में होने वाले परिवर्तन का विरोध करती है, गति का जड़त्व कहलाता है।
  3. दिशा का जड़त्व (Inertia of Direction) : दिशा के जड़्व के कारण कोई वस्तु अपनी वास्तविक दिशा में रहने का प्रयास करती है और दिशा परिवर्तन का विरोध करती है।

प्रश्न 3.
न्यूटन के गति का द्वितीय नियम लिखिए तथा सिद्ध कीजिए कि बल का आवेग संवेग परिवर्तन के बराबर होता है। उदाहरण सहित इसका महत्त्व समझाइये।
उत्तर :
न्यूटन का गति का द्वितीय नियम (Newton’s Second Law of Motion) :
इस नियम के अनुसार, “किसी वस्तु के संवेग परिवर्तन की समय दर उस पर लगाये गये बाह्य बल के अनुक्रमानुपाती होती है और उसी दिशा में होती है जिस दिशा में बल लगाया जाता है।”
यदि m द्रव्यमान की वस्तु पर बल \(\vec{F}\) समयान्तराल ∆t के लिये लगाने पर उसका वेग \(\vec{v}\) से (\(\vec{v}+∆ \vec{v}\)) हो जाये तथा उसके संवेग में परिवर्तन \(\Delta \vec{p}\) हो तब
\(\vec{F} \propto \frac{\overrightarrow{∆ p}}{∆ t}\)
अति सूक्ष्म समयान्तराल (∆t → 0) के लिए \(\frac{\overrightarrow{∆ p}}{∆ t}\), समय t के सापेक्ष \(\vec{p}\) का अवकलन अथवा अवकल गुणांक हो जाता है जिसे \(\frac{d \vec{p}}{d t}\) द्वारा प्रदर्शित करते हैं। अतः
\(\vec{F} \propto \frac{d \vec{p}}{dt}\)
\(\vec{F}=k\frac{d \vec{p}}{dt}\)
जहाँ k = आनुपातिकता स्थिरांक (constant of proportionality) है।
k का मान चयनित मात्रकों की पद्धति पर निर्भर करता है। मात्रकों का चयन इस प्रकार करते हैं कि k = 1
अत: समी० (1) से
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम-9
अतः किसी वस्तु पर कार्यरत् बल वस्तु के द्रव्यमान तथा उसमें उत्पन्न त्वरण के गुणनफल के बराबर होता है।

आवेग संवेग प्रमेय (Impulse Momentum Theorem) :
कथन-इस प्रमेय के अनुसार, ” किसी बल का आवेग उस बल के कारण उत्पन्न हुए संवेग परिवर्तन के बराबर होता है।” उप्पत्ति-न्यूटन के गति के द्वितीय नियम से-
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम-10

प्रश्न 4.
सिद्ध कीजिए कि तीन संयुग्मी बलों \(\vec{F}_1, \vec{F}_2 व \vec{F}_3\) की स्थिति में वस्तु साम्यावस्था में होगी जब \(\vec{F}_1+\vec{F}_2+\vec{F}_3=0\).
उत्तर :
किसी कण की साम्यावस्था (Equilibrium of a particle concurrent forces) ;
संगामी बल (Concurrent Forces) :
“यदि किसी वस्तु पर कार्य करने वाले सभी बलों की क्रिया रेखाएँ एक उभयनिष्ट बिन्दु से गुजरती हैं, तो उन्हें संगामी बल कहते हैं।” ऐसी अवस्था में वस्तु पर परिणामी बल उस पर कार्यरत् सभी बलों के सदिश योग के बराबर होता है और यही परिणामी बल वस्तु के रेखीय त्वरण को निर्धारित करता है। यदि वस्तु पर कार्यरत् बल संगामी नहीं हैं तो वस्तु पर परिणामी बलयुग्म लग सकता है और फलस्वरूप वस्तु घूर्णन गति भी कर सकती है। संगामी बलों के प्रभाव में यदि वस्तु साम्यावस्था में है तो सभी बलों का सदिश योग शून्य होगा। अर्थात्
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम-11
या \(\vec{F}_1+\vec{F}_2+\ldots \ldots+\vec{F}_n=0\)

किसी वस्तु पर कार्यरत् बलों की संख्या के.अनुसार सदिशों के संयोजन हेतु उपयुक्त त्रिभुज नियम, समान्तर चतुर्भुज नियम या बहुभुज नियम का प्रयोग करते हुए परिणामी बल के परिमाण एवं दिशा ज्ञात की जा सकती है और तदानुसार वस्तु की गति का निर्धारण किया जा सकता है।

संगामी बलों के प्रभाव में संतुलन की आवश्यक शर्त (Necessary condition for equilibrium under effect of concurrent forces) :
संतुलन का अर्थ है कि वस्तु अपनी यथास्थिति को बनाये रखे। इसकी आवश्यक शर्तें निम्नलिखित हैं-
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम-12
(i) यदि पिण्ड पर दो संगामी बल कार्य करें तो बलों के संतुलन के लिए दोनों बल परिमाण में समान किन्तु परस्पर विपरीत दिशा में लगने चाहिए।
(ii) यदि बलों की क्रिया रेखाएँ समान नहीं हैं तो बलों की संख्या कम से कम तीन होनी चाहिए।
(iii) तीन संगामी बलों के प्रभाव में संतुलित अवस्था में
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम-13

(iv) यदि किसी वस्तु पर लगने वाले N संगामी बल N भुजाओं वाले बहुभुज की भुजाओं द्वारा क्रमागतः रूप से व्यक्त किये जा सकते हैं तो ये बल संतुलन में होते हैं।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम

प्रश्न 5.
बल निर्देशक आरेख क्या है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर ;
बल निर्देशक आरेख द्वारा यांत्रिकी में समस्याओं का हल (Solutions of Problems in Mechanics by Force Diagram)
बल निर्देशक आरेख (Force Diagram) :
आमतौर पर यांत्रिकी की किसी प्रारूपी समस्या में बलों की क्रिया के अधीन केवल एक पिण्ड का ही समावेश नहीं होता। अधिकांश प्रकरणों में हम विभिन्न पिण्डों के ऐसे संयोजन पर विचार करते हैं जिनमें पिण्ड परस्पर एक दूसरे पर बल लगाते हैं। इसके अतिरिक्त संयोजन का प्रत्येक पिण्ड गुरुत्वीय बल का भी अनुभव करता है। इस प्रकार की किसी समस्या को हल करने के लिए प्रयास करते समय हमें एक तथ्य को ध्यान रखना आवश्यक है कि हम संयोजन के किसी भी भाग को चुनकर उस पर न्यूटन के गति के नियमों को इस शर्त के साथ लागू कर सकते हैं कि चुने हुए भाग पर संयोजन के शेष भागों द्वारा आरोपित सभी बलों को सम्मिलित करना सुनिश्चित कर लिया गया है। संयोजन के चुने हुए भाग को हम ‘निकाय’ (System) कह सकते हैं तथा संयोजन के शेष भाग को ‘वातावरण’ (environment) कह सकते हैं। अब हमें यांत्रिकी की किसी प्रारूपी समस्या को सुव्यवस्थित ढंग से हल करने के लिए निम्नलिखित चरणों को अपनाना चाहिए-
(i) पिण्डों के संयोजन के विभिन्न भागों, सम्बन्धों आदि को दर्शाने वाला संक्षिप्त योजनाबद्ध आरेख खीचिए।

(ii) संयोजन के किसी भाग को, जिसकी गति के बारे में हमें जानना हो, निकाय के रूप में चुनिए।

(iii) एक पृथक् आरेख खींचिए जिसमें केवल निकाय तथा पिण्डों के संयोजन के शेष भागों (वातावरण) द्वारा निकाय पर आरोपित सभी बलों को सम्मिलित करके दर्शाया गया हो। निकाय पर सभी अन्य साधनों द्वारा आरोपित बलों को भी सम्मिलित कीजिए। परन्तु यह ध्यान रहे कि निकाय द्वारा वातावरण पर आरोपित बलों को इसमें सम्मिलित नही करना है। इस प्रकार के आरेख को ‘बल निर्देशक आरेख’ कहते हैं।

(iv) किसी बल निर्देशक आरेख में बलों से संबन्धित केवल वही सूचनाएँ (बलों के परिमाण तथा दिशाएँ) सम्मिलित कीजिए जो या तो आप को दी गई हैं अथवा जो निर्विवाद् निश्चित हैं। उदाहरण के लिए किसी पतली डोरी में तनाव की दिशा सदैव डोरी की लम्बाई के अनुदिश होती है; गुरुत्वीय बल की दिशा ऊध्र्वाधर नीचे की ओर होती है; अभिलम्ब प्रतिक्रिया बल तल के लम्बवत् होता है, आदि। शेष उन सभी को अज्ञात माना जाना चाहिए जिन्हें गति के नियमों के अनुप्रयोगों द्वारा ज्ञात किया जाना है।

(v) यदि आवश्यक हो तो संयोजन के किसी अन्य भाग को निकाय मानकर उसके लिए भी यही विधि अपनाइये। ऐसा करने के लिए न्यूटन के तृतीय नियम का ध्यान रखना आवश्यक है, अर्थात् यदि निकाय A के बल निर्देशक आरेख में B (वातावरण) के कारण A पर बल को \(\vec{F}\) द्वारा दर्शाया गया है, तो निकाय B के बल निर्देशक में A (वातावरण) के कारण B पर बल \(-\vec{F}\) द्वारा दर्शाया जाना चाहिए। यांत्रिकी की समस्याओं को हल करने में बल निर्देशक आरेख खोंचना सहायक है।

प्रश्न 6.
संवेग संरक्षण का नियम लिखकर इसे प्राप्त कीजिए एवं इस नियम की सहायता से गति का तृतीय नियम निगमित कीजिए।
उत्तर :
संवेग संरक्षण नियम एवं इसके अनुप्रयोग (Law of Conservation of Momentum and its Applications) :
संवेग संरक्षण नियम (Law of Conservation of Momentum) ;
न्यूटन के गति के द्वितीय नियम से किसी विलगित कण पर कार्य करने वाला बल, उसके संवेग परिवर्तन की दर के बराबर होता है, अर्थात्
\(\vec{F}=\frac{d \vec{p}}{d t}\)
यदि पिण्ड या कण पर आरोपित बल अनुपस्थित हो तो-
\(\vec{F}=0 \quad \text { अत: } \quad \frac{d \vec{p}}{d t}=0\)
या \(\vec{p}\) = नियतांक [क्योंकि नियतांक का अवकलन शून्य होता है] आंकिक रूप से p = नियतांक
या \(m \vec{v}\) = नियतांक
अर्थात् “बाह्य बल की अनुपस्थिति में किसी कण का कुल रेखीय संवेग नियत रहता है।’ यही रेखीय संवेग संरक्षण का सिद्धान्त है।

कणों के निकाय के लिए संवेग संरक्षण का नियम (Law of Conservation of Momentum for System of Particles) :
जब हम कणों के एक निकाय पर विचार करते हैं तो हमें निकाय पर आरोपित बाह्य बलों और निकाय के आन्तरिक बलों में भेद करना होगा। चूँकि आन्तरिक बल बराबर एवं विपरीत बलों के युग्म के रूप में होते हैं (अर्थात् \(\overrightarrow{F_{B A}}=-\overrightarrow{F_{A B}}\) ), अतः आन्तरिक बलों का सदिश योग शून्य होगा और निकाय पर केवल बाह्य आरोपित बलों का ही प्रभाव होगा।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम-14
अर्थात् ऐसा निकाय जिस पर कोई बाह्य बल कार्य नहीं कर रहा है या कार्यरत् बाह्य बलों का सदिश योग शून्य है, एक विलगित निकाय (Isolated System) कहलाता है। समीकरण (4) के अनुसार बाह्य बल की अनुपस्थिति में विलगित निकाय का कुल संवेग नियत या संरक्षित रहता है। यही एक विलगित निकाय के लिए संवेग संरक्षण का नियम है।

समीकरण (4) व (5) के अनुसार निकाय कण विशेष का संवेग या वेग परिवर्तित हो सकता है परन्तु बाह्य बल की अनुपस्थिति में निकाय का कुल संवेग नियत रहेगा।

कणों की खोज (Invention of Particles)-संवेग संरक्षण का नियम भौतिकी के मूलभूत नियमों में से एक है। संवेग संरक्षण के सामान्य नियम का अभी तक कोई अपवाद सामने नहीं आया है। वास्तव में जब कभी किसी प्रयोग में संवेग संरक्षण के सामान्य नियम का अतिक्रमण दृष्टि गोचर होता है, तो एक छिपे हुए या अज्ञात कण की खोज प्रारम्भ होती है, जो ऊपरी तौर से ऊर्जा संरक्षण नियम के अतिक्रमण के लिए भी उत्तरदायी होता है। इसी से न्यूट्रिनो, मेसॉन और कई अन्य मूल कणों की खोज सम्भव हो सकी है।

प्रश्न 7.
संगामी बलों से क्या तात्पर्य है? संगामी बलों के संतुलन के लिए आवश्यक शर्त क्या है?
उत्तर :

किसी कण की साम्यावस्था (Equilibrium of a particle concurrent forces) ;
संगामी बल (Concurrent Forces) :
“यदि किसी वस्तु पर कार्य करने वाले सभी बलों की क्रिया रेखाएँ एक उभयनिष्ट बिन्दु से गुजरती हैं, तो उन्हें संगामी बल कहते हैं।” ऐसी अवस्था में वस्तु पर परिणामी बल उस पर कार्यरत् सभी बलों के सदिश योग के बराबर होता है और यही परिणामी बल वस्तु के रेखीय त्वरण को निर्धारित करता है। यदि वस्तु पर कार्यरत् बल संगामी नहीं हैं तो वस्तु पर परिणामी बलयुग्म लग सकता है और फलस्वरूप वस्तु घूर्णन गति भी कर सकती है। संगामी बलों के प्रभाव में यदि वस्तु साम्यावस्था में है तो सभी बलों का सदिश योग शून्य होगा। अर्थात्
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम-11
या \(\vec{F}_1+\vec{F}_2+\ldots \ldots+\vec{F}_n=0\)

किसी वस्तु पर कार्यरत् बलों की संख्या के.अनुसार सदिशों के संयोजन हेतु उपयुक्त त्रिभुज नियम, समान्तर चतुर्भुज नियम या बहुभुज नियम का प्रयोग करते हुए परिणामी बल के परिमाण एवं दिशा ज्ञात की जा सकती है और तदानुसार वस्तु की गति का निर्धारण किया जा सकता है।

संगामी बलों के प्रभाव में संतुलन की आवश्यक शर्त (Necessary condition for equilibrium under effect of concurrent forces) :
संतुलन का अर्थ है कि वस्तु अपनी यथास्थिति को बनाये रखे। इसकी आवश्यक शर्तें निम्नलिखित हैं-
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम-12
(i) यदि पिण्ड पर दो संगामी बल कार्य करें तो बलों के संतुलन के लिए दोनों बल परिमाण में समान किन्तु परस्पर विपरीत दिशा में लगने चाहिए।
(ii) यदि बलों की क्रिया रेखाएँ समान नहीं हैं तो बलों की संख्या कम से कम तीन होनी चाहिए।
(iii) तीन संगामी बलों के प्रभाव में संतुलित अवस्था में
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम-15

(iv) यदि किसी वस्तु पर लगने वाले N संगामी बल N भुजाओं वाले बहुभुज की भुजाओं द्वारा क्रमागतः रूप से व्यक्त किये जा सकते हैं तो ये बल संतुलन में होते हैं।

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम

प्रश्न 8.
घर्षण से आप क्या समझते हैं? सीमान्त घर्षण, गतिक घर्षण तथा सर्पी घर्षण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
घर्षण (Friction) :
एक क्षैतिज मेज पर रखे m द्रव्यमान के पिण्ड पर लगने वाले बलों पर विचार करते हैं। जब तक कोई बाहरी बल पिण्ड पर नहीं लगाया जाता है तब तक पिण्ड विरामावस्था में रहता है और पिण्ड का भार \(\vec{W}=m \vec{g}\) व मेज द्वारा पिण्ड पर आरोपित अभिलम्ब बल परस्पर विपरीत दिशा में होने के कारण एक दूसरे को निरस्त कर देते हैं।

अब माना पिण्ड पर कोई बाह्य बल \(\vec{F}\) क्षैतिजत: आरोपित किया जाता है जो परिमाण में इतना कम है कि पिण्ड में कोई गति उत्पन्न नहीं कर पाता है। प्रश्न यह उठता है कि बाह्य बल \(\vec{F}\) परिमाण में भले ही कितना कम हो, लेकिन पिण्ड में इसके द्वारा त्वरण (\(\vec{a}=\frac{\vec{F}}{m}\)) उत्पन्न होना चाहिए

और वस्तु को गतिशील होना चाहिए था; परन्तु ऐसा नहीं होता है। इसका अर्थ यह है कि \(\vec{F}\) के विपरीत दिशा में निश्चित रूप से एक विरोधी बल उत्पन्न होता है जो \(\vec{F}\) का विरोध करता है और पिण्ड विरामावस्था में बना रहता है। यह विरोधी बल पिण्ड एवं मेज के सम्पर्क पृष्ठ के अनुदिश लगता है। इसी बल को घर्षण बल (Force of Friction) कहते हैं। इस बल को fs से व्यक्त करते हैं। इसे स्थैतिक घर्षण (Static Friction) कहते हैं। इस प्रकार,
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम-16
“जब कोई वस्तु किसी दूसरी वस्तु की सतह पर फिसलती है या फिसलने का प्रयास करती है तो स्पर्शी तलों के मध्य एक विरोधी बल उत्पन्न हो जाता है जो गति के विपरीत दिशा में ( अर्थात् बाह्य बल की विपरीत दिशा में ) गति का विरोध करता है। इसी विरोधी बल को घर्षण बल कहते हैं।”

यह ध्यान देने योग्य है कि स्थैतिक घर्षण का तब तक कोई अस्तित्व नहीं है जब तक कोई बाह्य बल नहीं लगाया जाता है। स्थैतिक घर्षण बल स्वत: समायोजित होने वाला बल है अर्थात् बाह्य बल को बढ़ाने पर यह बढ़ता है और एक सीमा तक बढ़ने के बाद फिर नहीं बढ़ता है। इसी अधिकतम स्थैतिक घर्षण बल को सीमान्त घर्षण (Limiting Friction) कहते हैं। बाह्य बल का मान इससे अधिक करने पर पिण्ड गति आरम्भ कर देता है।

प्रश्न 9.
घर्षण से क्या हानियाँ हैं? घर्षण कम करने की विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर ;

घर्षण (Friction) :
एक क्षैतिज मेज पर रखे m द्रव्यमान के पिण्ड पर लगने वाले बलों पर विचार करते हैं। जब तक कोई बाहरी बल पिण्ड पर नहीं लगाया जाता है तब तक पिण्ड विरामावस्था में रहता है और पिण्ड का भार \(\vec{W}=m \vec{g}\) व मेज द्वारा पिण्ड पर आरोपित अभिलम्ब बल परस्पर विपरीत दिशा में होने के कारण एक दूसरे को निरस्त कर देते हैं।

अब माना पिण्ड पर कोई बाह्य बल \(\vec{F}\) क्षैतिजत: आरोपित किया जाता है जो परिमाण में इतना कम है कि पिण्ड में कोई गति उत्पन्न नहीं कर पाता है। प्रश्न यह उठता है कि बाह्य बल \(\vec{F}\) परिमाण में भले ही कितना कम हो, लेकिन पिण्ड में इसके द्वारा त्वरण (\(\vec{a}=\frac{\vec{F}}{m}\)) उत्पन्न होना चाहिए

और वस्तु को गतिशील होना चाहिए था; परन्तु ऐसा नहीं होता है। इसका अर्थ यह है कि \(\vec{F}\) के विपरीत दिशा में निश्चित रूप से एक विरोधी बल उत्पन्न होता है जो \(\vec{F}\) का विरोध करता है और पिण्ड विरामावस्था में बना रहता है। यह विरोधी बल पिण्ड एवं मेज के सम्पर्क पृष्ठ के अनुदिश लगता है। इसी बल को घर्षण बल (Force of Friction) कहते हैं। इस बल को fs से व्यक्त करते हैं। इसे स्थैतिक घर्षण (Static Friction) कहते हैं। इस प्रकार,
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम-17
“जब कोई वस्तु किसी दूसरी वस्तु की सतह पर फिसलती है या फिसलने का प्रयास करती है तो स्पर्शी तलों के मध्य एक विरोधी बल उत्पन्न हो जाता है जो गति के विपरीत दिशा में ( अर्थात् बाह्य बल की विपरीत दिशा में ) गति का विरोध करता है। इसी विरोधी बल को घर्षण बल कहते हैं।”

यह ध्यान देने योग्य है कि स्थैतिक घर्षण का तब तक कोई अस्तित्व नहीं है जब तक कोई बाह्य बल नहीं लगाया जाता है। स्थैतिक घर्षण बल स्वत: समायोजित होने वाला बल है अर्थात् बाह्य बल को बढ़ाने पर यह बढ़ता है और एक सीमा तक बढ़ने के बाद फिर नहीं बढ़ता है। इसी अधिकतम स्थैतिक घर्षण बल को सीमान्त घर्षण (Limiting Friction) कहते हैं। बाह्य बल का मान इससे अधिक करने पर पिण्ड गति आरम्भ कर देता है।

घर्षण एक बुराई (Friction as an Evil) :

  • मशीनों में टूट फूट (wear and tear) का कारण घर्षण ही है।
  • घर्षण का प्रतिकार करने में ही शक्ति का बड़ा भाग व्यर्थ चला जाता है जिससे मशीनों की दक्षता काफी कम हो जाती है।
  • घर्षण के कारण ही मशीन के घूमने वाले हिस्सों में ऊष्मा उत्पन्न होती है जिससे वे गर्म हो जाती हैं।

घर्षण को कम करने की विधियाँ (Methods of Reducing Friction) :
1. पॉलिश द्वारा (By Polishing) :दो पृष्ठों के मध्य घर्षण को कम करने के लिए उन्हें पॉलिश किया जाता है। घड़ियों में प्रयुक्त ज्वेल बियरिंग (jewel-bearing) एवं तुला में प्रयुक्त छुर-धारों (knife-edges) पर उच्च कोटि की पॉलिश की जाती है ताकि घर्षण कम हो जाये।

2. बाल बियरिंग (Ball-Bearing) : लोटनी घर्षण फिसलन घर्षण से कम होता है। इसीलिए घूर्णन करने वाली मशीनों में शैफ्ट को बाल बियरिंग चित्र 5.22 पर जड़ (fix) दिया जाता है ताकि घर्षण को काफी कम किया जा सके। बाइसिकिल में फ्री-हील, मोटर कार की एक्सिल, मोटर एवं डायनमों की शैफ्ट आदि में बाल बियरिंग का प्रयोग किया जाता है।
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3. स्नेहक (Lubricants) : स्नेहक ऐसा पदार्थ (ठोस या द्रव) होता है, जो सम्पर्क वाली दोनों सतहों के मध्य एक पतली पर्त बना लेता है। यह सम्पर्क वाली सतहों के गड्ढ़ों (depressions) को भी भर देता है और घर्षण को काफी कम कर देता है। हल्की मशीनों में कम श्यानता का पतला तेल प्रयोग किया जाता है। भारी और तेज चलने वाली मशीनों में गाढ़ा तेल (thick oil) या ठोस स्नेहक (grease) प्रयोग किये जाते हैं। दो सतहों के मध्य स्नेहक के प्रयोग से घर्षण कम किया जाता है।
कभी-कभी ठोस पॉउडर के रूप में स्नेहक का प्रयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, फरम बोर्ड पर पॉउडर छिड़क देते हैं, जिससे बोर्ड व गोटियों के बीच घर्षण कम हो जाता है।

4. सुप्रवाहिता (Streamlining) : तीव्र गति वाले वाहनों जैसे-वायुयान, जलयान, जेटयान आदि को सामने की ओर विशेष आकार (नुकीला) का बनाना सुप्रवाहिता कहलाता है। इससे तरल घर्षण (अर्थात् वायु का घर्षण वाहन पर) घट जाता है।

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प्रश्न 10.
जड़त्वीय एवं अजड़त्वीय निर्देश तन्त्र की विवेचना कीजिए।
उत्तर :
जड़त्वीय एवं अजड़त्वीय निर्देश तन्त्र ( प्रारम्भिक अवधारणा) (Inertial and Non-inertial Frames of References) :
जड़त्वीय निर्देश तन्त्र (Inertial Frame of Reference ) ;
निर्देश तंत्रों की परिकल्पना गति की विश्लेषणात्मक व्याख्या के लिए की जाती है। यदि हम एक निर्देशांक पद्धति (coordinate system) की कल्पना करें जो किसी दृढ़ पिण्ड से सम्बद्ध है तथा इस निर्देशांक पद्धति के सापेक्ष किसी कण की स्थिति का मापन करते हुए इसकी गति का अध्ययन करें तो इस निर्देशांक पद्धति को निर्देश तन्त्र कहा जाता है। सामान्यतः प्रेक्षक की स्थिति निर्देश तन्त्र के मूल बिन्दु पर ली जाती हैं किन्तु यह आवयश्क नहीं है। सामान्यतः प्रेक्षक उस निर्देश तन्त्र को काम में लेता है जो उसके सापेक्ष स्थिर होता है। कार्तीय निर्देशांक पद्धति (cartesian coordinate system) को सरलतम निर्देश तन्त्र के रूप में लिया जाता है। इस प्रकार के निर्देश तन्त्र त्रिविमीय आकाश (three dimensional space) में परस्पर लम्बवत् तीन सरल रेखीय अक्षों X, Y व 2 से मिलकर बनते हैं और ये अक्ष मूलबिन्दु पर मिलती हैं।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम-19
इस प्रकार के तन्त्र से किसी क्षण पर स्थिति तीन निर्देशांकों (x. 31.2) द्वारा व्यक्त की जाती है। यद्यपि कार्तीय निर्देशांक पद्धति, दक्षिणावर्ती (right handed) (चित्र) व वामावर्ती (left handed) (चित्र b) दो प्रकार की होती है परन्तु अधिकांशतः दक्षिणावर्ती कार्तीय निर्देशांक पद्धति का ही प्रयोग निर्देश तन्त्र के रूप में किया जाता है।

ऐसे निर्देश तन्त्र जिनमें न्यूटन के गति सम्बन्धी प्रथम और द्वितीय नियम वैध होते हैं, जड़त्वीय निर्देश तन्त्र कहलाते हैं। इस प्रकार के तन्त्र में यदि किसी कण पर कोई बाह्य बल कार्यरत् नहीं है तो यह कण या तो स्थिर रहता है अथवा एक समान वेग से सरल रेखीय गति करता है (जड़त्व का नियम)। अत: इन्हें जगत्वीय निर्देश तन्त्र कहा जाता है। इस प्रकार के तन्त्रों को गैलीलियन तन्त्र अथवा न्यूटोनियन निर्देश तन्त्र के नाम से भी जाना जाता है।

गणितीय विश्लेषण से यह सिद्ध किया जा सकता है कि जड़त्वीय निर्देश तन्त्र या तो स्थिर होते हैं अथवा नियत वेग से गतिमान होते हैं। यह भी सिद्ध किया जा सकता है कि किसी जड़त्वीय निर्देश तन्त्र के सापेक्ष नियत वेग से गतिमान अन्य कोई तन्त्र भी जड़त्वीय ही होगा।

जड़त्वीय निर्देश तन्त्र के लिए न्यूटन द्वारा निरपेक्ष आकाश (Absolute space) की कल्पना की गई। न्यूटन ने यह माना कि निरपेक्ष आकाश एक ऐसा जड़त्वीय तंत्र है जो स्वयं निरपेक्ष विरामावस्था में है, अतः इसके सापेक्ष सभी प्रकार की गतियों का अध्ययन किया जा सकता है। परन्तु आपेक्षिकता के विशिष्ट सिद्धान्त के आधार पर यह कल्पना यथार्थ की कसौटी पर खरी नहीं उतरती है। अनुभवों के आधार पर यह ज्ञात है कि स्थिर तारे (fixed stars) निरपेक्ष आकाश के सापेक्ष लगभग स्थिर होते हैं। अतः इन तारों से सम्बद्ध निर्देश तन्त्र सर्वोत्तम उपलब्ध जड़त्वीय निर्देश तन्त्र है।

अजड़त्वीय निर्देश तन्त्र : वे निर्देश तन्त्र जिनमें न्यूटन के गति के प्रथम व द्वितीय नियम वैध नहीं रहते हैं, अजड़त्वीय निर्देश तन्त्र कहलाते हैं। इन तन्त्रों में बल की अनुपस्थिति में भी किसी कण की गति त्वरित प्रतीत होती है। सभी त्वरित तन्त्र एवं घूर्णन करते हुए तन्त्र अजड़त्वीय होते हैं।

क्या पृथ्वी जड़त्वीय निर्देश तन्त्र है? – पृथ्वी न केवल अपनी स्वयं की अक्ष पर अपितु सूर्य के चारों ओर भी घूर्णन करती है अतः पृथ्वी सम्बद्ध जड़त्वीय निर्देश तन्त्र वास्तव में जड़त्वीय निर्देश तन्त्र नहीं हैं। पृथ्वी की स्वयं की घूर्णन गति के कारण इसकी सतह पर स्थित कोई स्थिर कण इसके केन्द्र की ओर अभिकेन्द्रीय बल का अनुभव करता है।
उदाहरणार्थ : भूमध्य रेखा पर इस अभिकेन्द्रीय त्वरण का मान-
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम-20
सामान्य यांत्रिकी की समस्याओं में इस त्वरण को यदि न्यून मानकर छोड़ दें, तो पृथ्वी को जड़त्वीय निर्देश तन्त्र माना जा सकता है। परन्तु कुछ समस्याओं में इस त्वरण के प्रभाव दृष्टिगोचर होते हैं। वास्तव में पृथ्वी के अपनी अक्ष पर घूमने तथा सूर्य के चारों ओर परिक्रमण से सम्बन्धित त्वरणों के संशोधन के पश्चात् ही पृथ्वी को व्यावहारिक निर्देश तन्त्र माना जा सकता है। हालांकि पृथ्वी को जड़त्वीय निर्देश तन्त्र मानकर ही हम भौतिकी की समस्याओं को हल करते हैं।

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आंकिक प्रश्न (Numerical Questions)

न्यूटन के गति के नियमों, आवेग एवं संवेग पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
एक मीनार की दीवार पर जल के फब्बारे द्वारा लगाया जाने वाला बल ज्ञात कीजिए, जबकि पाइप का क्षेत्रफल 10-2 m-2 तथा पानी का वेग 15 ms-1 है। मान लीजिए कि जल दीवार से टकराने के बाद वापस नही लौटता है। (g = 10 ms-2)
उत्तर :
250 N

प्रश्न 2.
विरामावस्था में पड़ा एक बम तीन समान टुकड़ों में विभक्त हो जाता है दो टुकड़े समकोण पर क्रमशः 9 ms-1 व 12 ms-1 के वेग से गति करते है, तो तीसरे टुकड़े का वेग ज्ञात कीजिए।
उत्तर :
15 ms-1

प्रश्न 3.
500 g का हथौड़ा 6 ms-1 के वेग से एक कील के सिरे पर टकराकर उस कील को 5 cm अन्दर धकेल देता है। यदि कील का द्रव्यमान उपेक्षणीय हो तो ज्ञात कीजिए-
(a) टक्कर के पश्चात त्वरण;
(b) टक्कर में लगा समय;
(c) आवेग का मान।
उत्तर :
(a) 360 ms-2;
(b) \(\frac{1}{60}\) s;
(c) 3N.s.

प्रश्न 4.
एक वस्तु का द्रव्यमान 2 kg तथा प्रारम्भिक वेग 5 ms-1 है, वस्तु की गति की दिशा में एक बल 4 s के लिए कार्य करता है। बल-समय ग्राफ संलग्न चित्र में प्रदर्शित है। वस्तु के आवेग तथा वेग की गणना कीजिए।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम-21
उत्तर :
8.5 N.s. ; 9.25 ms-1

परिवर्ती द्रव्यमान पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 5.
500 kg द्रव्यमान का एक वाहन 6 ms-1 के वेग से गति कर रहा है। इस पर 10kg min-1 की दर से रेत डाली जा रही है। वाहन को नियत वेग से गतिशील रखने के लिए आवश्यक बल ज्ञात कीजिए।
उत्तर :
N

प्रश्न 6.
एक रॉकेट का ईंधन 100 kg.s-1 की दर से जल रहा है। निष्कासित गैसें 4.5 × 104 ms-1 के वेग से निकलती हैं। रॉकेट पर उछाल बल ज्ञात कीजिए।
उत्तर :
4.5 × 106 N

HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम

प्रश्न 7.
एक क्षैतिज घर्षण रहित सड़क पर खड़ी 2000kg की कार के ऊपर एक गन रखी गयी है। किसी समय गन द्वारा 10g की गोली कार के सापेक्ष 500 ms-1 के वेग से छोड़ी जाती है। प्रति सेकण्ड छोड़ी गयी गोलियों की संख्या 10 है, तो निकाय पर आरोपित औसत प्रणोद ज्ञात कीजिए।
उत्तर :
50N

घर्षण पर आधरित प्रश्न

प्रश्न 8.
2 kg का एक गुटका क्षैतिज से 60° के कोण पर झुके हुए एक आनत तल पर रखा है गुटके एवं तल के बीच घर्षण गुणांक 0.7 है गुटके पर लगने वाला घर्षण बल ज्ञात कीजिए।
उत्तर :
6.86N

प्रश्न 9.
10 ms-1 की चाल से सड़क पर लुढ़कता हुआ एक पिण्ड 50m दूरी तय करके विरामावस्था में आ जाता है। घर्षण गुणांक ज्ञात कीजिए। (g = 10 ms-2)
उत्तर :
0.1

प्रश्न 10.
एक मोटर कार सीधी क्षैतिज सड़क पर 1 चाल से चल रही है। यदि सड़क तथा टायरों के बीच स्वैतिक घर्षण गुणांक (4) हो, तो वह कम से कम दूरी क्या है जिसमें मोटर कार को रोका जा सकता है?
उत्तर :
\(\frac{u^2}{2 \mu_s \cdot g}\)

प्रश्न 11.
एक व्यक्ति जिसका द्रव्यमान 80kg है, एक खम्भे से नीचे फिसलता है। घर्षण बल 720 N पर नियत है। व्यक्ति का त्वरण ज्ञात कीजिए। (g = 10ms-2)
उत्तर :
1.0 ms-2

प्रश्न 12.
1200g द्रव्यमान का बक्सा क्षैतिज धरातल पर 12 g भार के बल से खींचा जाता है। घर्षण गुणांक 0.2 है सक्से में उत्पन्न त्वरण कितना होगा?
उत्तर :
7.84 ms-2

प्रश्न 13.
L लम्बाई की एक चेन अशंत मेज पर पड़ी है तथा अशंतः मेज के किनारे से लटकी है। यदि चेन तथा मेज के मध्य स्थैतिक घर्षण गुणक µs हो तो चेन कितनी अधिकतम लटकायी जा सकती है, जिससे कि मेज पर पड़ा चेन का भाग न खिसके?
उत्तर :
\(l=\frac{\mu_s \cdot L}{1+\mu_s}\)

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प्रश्न 14.
एक नत तल जिसकी लम्बाई 13 m तथा ऊँचाई 5m है और µ = \(\frac{1}{3}\) है। किस प्रारंभिक वेग से वस्तु प्रक्षेपित की जानी चाहिए ताकि वस्तु तल के उच्चतम बिन्दु पर विरामावस्था में आ जाये ?
उत्तर :
13.28 ms-1

प्रश्न 15.
धातु का बना एक ब्लॉक धातु से बनी नत तल की सतह जो क्षैतिज के साथ 30° का कोण बनाती है, पर रखा हुआ है। यदि ब्लॉक का द्रव्यमान 0.5 kg और घर्षण गुणांक 0.2 है तो (i) वस्तु को फिसलने से रोकने के लिए आवश्यक बल क्या होगा ? (ii) सतह पर ऊपर की ओर गति कराने के लिए आवश्यक बल क्या होगा ? (iii) ऊपर की ओर 20 cms-2 त्वरण से गति के लिए आवश्यक बल क्या होगा?
उत्तर :
(i) 1.6N
(ii) 3.299 N
(iii) 3.399 N

वृत्तीय गति पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 16.
0.10 kg द्रव्यमान का पिण्ड 1.0m व्यास के वृत्तीय पथ पर 31.48 में 10 चक्कर की दर से घूम रहा है। पिण्ड पर लगने वाले बल की गणना कीजिए।
उत्तर :
0.2N

प्रश्न 17.
वह अधिकतम वेग ज्ञात कीजिए जिससे एक रेलगाड़ी 100 m त्रिज्या वाले वृत्ताकार पथ पर चलाई जा सकती है। पटरियों का झुकाव 11.31° है। (tan 11.31° = 0.2, g = 10ms-2)
उत्तर :
14 ms-1

प्रश्न 18.
एक साइकिल सवार जिसका द्रव्यमान 100 kg है, 100 m त्रिज्या के वृत्तीय मोड़ को 10 ms की चाल से पार करना चाहता है। यदि साइकिल के टायरों व सड़क के बीच घर्षण गुणांक 11 0.6 हो, तो क्या सवार मोड़ को पार कर लेगा? (g = 10ms-2)
उत्तर :
हाँ

संगामी बलों पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 19.
2 किग्रा भार की एक वस्तु को संलग्न चित्र की भाँति लटकाया गया है। क्षैतिज डोरी में तनाव T1 (किग्रा भार में) ज्ञात कीजिए।
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम-22
उत्तर :
2√3 किग्रा भार

प्रश्न 20.
M द्रव्यमान को किसी अवितान्य डोरी से संलग्न चित्र की भाँति लटकाते हैं। क्षैतिज डोरी में तनाव क्या होगा?
HBSE 11th Class Physics Important Questions Chapter 5 गति के नियम-23
उत्तर :
√3 Mg