Haryana State Board HBSE 11th Class Chemistry Solutions Chapter 14 पर्यावरणीय रसायन Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 11th Class Chemistry Solutions Chapter 14 पर्यावरणीय रसायन
प्रश्न 1.
पर्यावरणीय रसायन शास्त्र को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरणीय रसायन शास्त्र, विज्ञान की वह शाखा है जिसमें हम पर्यावरण में होने वाले रासायनिक परिवर्तनों का अध्ययन करते हैं। इसमें हमारे चारों ओर का परिवेश सम्मिलित होता है; जैसे-वायु, जल, मिट्टी, वन, सूर्य का प्रकाश आदि। व्यापक रूप से, पर्यावरण के तीन प्रमुख घटक हैं-
- अजैविक घटक (Abiotic or Non-living components) – स्थलमण्डल, जलमण्डल तथा वायुमण्डल अजैविक घटक कहलाते हैं।
- जैविक घटक (Biotic or Living components)-पर्यावरण के जैविक घटक पादप तथा जन्तु हैं। इनमें मनुष्य भी सम्मिलित है।
- ऊर्जा घटक (Energy components)-पर्यावरण के ऊर्जा घटक में सौर ऊर्जा, भू-रासायनिक ऊर्जा, ताप-रासायनिक ऊर्जा, जल-विद्युत ऊर्जा तथा नाभिकीय ऊर्जा सम्मिलित हैं। ये ऊर्जाएँ विभिन्न जीवों को जीवित रखने के लिए अति आवश्यक हैं।
प्रश्न 2.
क्षोभमण्डलीय प्रदूषण को लगभग 100 शब्दों में समझाइए।
उत्तर:
क्षोभमण्डल भूमि से ऊपरी वायु का क्षेत्र होता है, जो पृथ्वी को घेरे रहता है। वायु में उपस्थित अवांछनीय ठोस तथा गैस कणों के कारण क्षोभमण्डलीय प्रदूषण होता है। वायु का क्षेत्र होने के कारण इस क्षेत्र की मुख्य प्रदूषक वस्तुयें निम्न होती हैं-
(i) विघाक्त गैसें (Toxic Gases) – बढ़ते हुए औद्योगीकरण तथा बढ़ते हुए वाहनों के कारण क्षोभमण्डल में उपस्थित वायु में विषाक्त गैसें विसरित (Diffuse) हो जाती हैं। इन गैसों में वाहनों से उत्सर्जित CO, N2O, NO, SO2, SO3, H2S, ऐल्केन्स प्रदूषण का प्रमुख कारण होती हैं। इसके अतिरिक्त कीटनाशक एवं सधूम कारकों (Fumigents) का प्रभाव भी क्षोभमण्डल पर पड़ रहा है तथा वह दिन-प्रतिदिन अधिक प्रदूषित होता जा रहा है।
(ii) धूल कण (Sand Particles) – तीव्र गति से चलने वाले वाहन, वायु इत्यादि के साथ धूल, रेत आदि के कोलॉइडी कण क्षोभ मण्डल को प्रदूषित करते हैं। औद्योगिक अपशिष्ट के कण, राख, सीमेण्ट, सीसा इत्यादि के महीन कण भी क्षोभमण्डल को प्रदूषित करते हैं। अपशिष्ट प्रबन्धन द्वारा इसे नियन्त्रित किया जा सकता है।
प्रश्न 3.
कार्बन डाईऑक्साइड अपेक्षा कार्बन मोनो ऑक्साइड अधिक खतरनाक क्यों है? समझाइए।
उत्तर:
CO2 की अपेक्षा CO ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि यह ऑक्सीजन की अपेक्षा अधिक प्रबलता से हीमोग्लोबिन के साथ संयुक्त होकर स्थायी संकुल बनाती है। इसके द्वारा कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन बनता है जो ऑक्सीहीमोग्लोबिन की अपेक्षा 300 गुना अधिक स्थायी है। यदि रक्त में कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन की मात्रा 3 – 4% तक पहुँच जाये तो रक्त में ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता कम हो जाती है।
ऑक्सीजन की कमी से सिरदर्द, नेत्र दृष्टि में क्षीणता, तंत्रकीय आवेश में न्यूनता, हृदयवाहिका में तन्त्र अवस्था हो जाती है। CO की 1300 ppm की सान्द्रता प्राण घातक होती है। जबकि CO2 केवल वायुमण्डल की ताप वृद्धि के लिए उत्तरदायम है. वह हीमोग्लोबिन के साथ क्रिया नहीं करती है।
प्रश्न 4.
ग्रीन हाउस प्रभाव के लिये कौनसी गैसें उत्तरदायी हैं?
उत्तर:
ग्रीन हाउस-प्रभाव के लिए कार्बन डाइऑक्साइड, मेथेन, ओजोन, क्लोरोफ्लुओरो कार्बन यौगिक तथा जलवाष्प उत्तरदायी होती हैं। ये गैसें वायुमण्डल में विकिरित सौर-ऊर्जा की कुछ मात्रा अवशोषित करके भूमण्डलीय ताप बढ़ा देती हैं।
प्रश्न 5.
अम्ल वर्षा मूर्तियों तथा स्मारकों को कैसे दुष्प्रभावित करती है ?
उत्तर:
अम्ल वर्षा में वायुमण्डल से पृथ्वी की सतह पर अम्ल निक्षेपित हो जाता है। अम्लीय प्रकृति के नाइट्रोजन एवं सल्फर के ऑक्साइड वायुमण्डल में ठोस कणों के साथ हवा में बहकर या तो ठोस रूप में अथवा जल में द्रव रूप में कुहासे से या हिम की भाँति निक्षेपित होते हैं। नाइट्रोजन तथा सल्फर के ऑक्साइड ऑक्सीकरण के पश्चात् जल के साथ अभिक्रिया करके अम्ल वर्षा में प्रमुख योगदान देते हैं, क्योंकि प्रदूषित वायु में सामान्यतया कणिकीय द्रव्य उपस्थित होते हैं जो ऑक्सीकरण को उत्प्रेरित करते हैं-
2SO2(g) + O2(g) + 2H2O(l) → 2H2SO4(aq)
4NO2(g) + O2(g) + 2H2O(l) → 4HNO3(aq)
अम्लवर्षा पत्थर एवं धातुओं से बनी संरचनाओं; जैसे- मूर्तियों तथा स्मारकों को नष्ट करती है। यह संगमरमर (CaCO3) से अग्रवत् अभिक्रिया करती है-
CaCO3 + H2SO4 → CaSO4 + H2O + CO2 ↑
संगमरमर
CaCO3 + 2HNO3 → Ca(NO3)2 + H2O + CO2 ↑
प्रश्न 6.
धूम्र कोहरा क्या है? सामान्य धूम्र कोहरा प्रकाश रासायनिक धूम्र कोहरा से कैसे भिन्न है?
उत्तर:
धूम-कोहरा-यह धूम एवं कोहरे से मिलकर बना है। यह दो प्रकार का होता है।
सामान्य धूम्न कोहरा: यह धूम्र, कोहरे एवं SO2 का मिश्रण है। रासायनिक रूप में ये एक अपचायक मिश्रण है। इसे अपचायक धूम्र कोहरा भी कहते है।
प्रकाश रासायनिक धूम्र कोहरा : यह उष्ण, शुष्क एवं साफ धूपमयी जलवायु में होता है। यह स्वचालित वाहनों तथा कारखानों से निकलने वाले नाइट्रोजन के ऑक्साइडों तथा हाइड्रोकार्बनों पर सूर्य के प्रकाश की क्रिया के कारण उत्पन्न होता आक्यीकारक है इ्रांक द्यमें ऑक्षीकारा से चै की जत्ला शम्ला त्रो कहते है|
प्रश्न 7.
प्रकाश रासायनिक धूम्र कोहरे के निर्माण के दौराम होने वाली अभिक्रिया लिखिए।
उत्तर:
प्रकाश रासायनिक धूम्र कोहरे के निर्माण के दौरांन होने वाली अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 8.
प्रकाश रासायनिक धूम्र कोहरे के दुष्परिणाम क्या हैं? इन्हें कैसे नियन्त्रित किया जा सकता है ?
उत्तर:
प्रकाश रासायनिक धूम्र का निर्माण सामान्यतः विषैली गैसों के कारण होता है। इनका सामान्य घटक हानिकारक गैसों का उच्च आनुपातिक मिश्रण होता है, जिसमें NO, NO2, O3, CH2 = CH-CHO, HCHO, ऐसीटिल नाइट्रेट इत्यादि होते हैं।
जब मनुष्य इन्हें वायु के साथ ग्रहण करता है तो यह मानव स्वास्थ्य पर गम्भीर प्रभाव उत्पन्न करते हैं। इन गैसों के कारण खाँसी, गले की तकलीफ, फेफड़ों की तकलीफ, सिरदर्द, आधासीसी, उच्च रक्तचाप, मिर्गी एवं दमा जैसे रोग होना आम बात है। प्रकाश रासायनिक कुहरे के परिणामस्वरूप रबर में दरार उत्पन्न हो जाती है। यह पौधों की वृद्धि पर भी कुप्रभाव डालता है तथा पौधों की वृद्धि को रोकता है।
मार्बल पत्थर पर प्रभाव, धातुओं (धातुओं के तारों पर) तथा मूर्तियों एवं भवनों के रंगों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है तथा उनके रंग धीरे-धीरे हल्के एवं मंद हो जाते हैं। सारांश में यह कहा जा सकता है कि प्रकाश रासायनिक कोहरे का व सजीव एवं निर्जीव तंत्रों पर क्षयकारी होता है।
नियन्त्रण (Control) – प्रकाश रासायनिक धूम्र का प्राथमिक कारण हानिकारक गैसें हैं। यदि वायुमण्डल में औद्योगिक क्षेत्रों से अथवा वाहनों से निकलने वाले धुएँ पर नियन्त्रण किया जाए तो उपरोक्त समस्याओं से बचा जा सकता है। महानगरों में यूरो मानक Uro-4 का उत्सर्जन लागू किया गया है, जिससे कुछ हद तक NO, SO2 इत्यादि की बढ़ती मात्रा पर नियंत्रण किया गया है।
प्रश्न 9.
क्षोभमण्डल पर ओजोन परत के क्षय में होने वाली अभिक्रिया कौन-सी है।
उत्तर:
क्षोभमण्डल पर ओजोन परत के क्षय में होने वाली अभिक्रियाएँ-कार्बन यौगिक, हैलोजेन, क्लोरोफॉर्म, NO आदि के बढ़ते हुए उपयोग के कारण वायुमण्डल में इन सभो पदार्थों की अधिकता होती जा रही है। यही प्रदूषक ओजोन परत के अपक्षय का मुख्य कारण हैं। वायुमण्डल में लम्बे समय तक पाए जाने के कारण, ये यौगिक सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों द्वारा विघटित हो जाते हैं। विघटन से बनने वाले उत्पाद ओजोन परत को नष्ट करते हैं।
ओजोन परत के क्षय के लिए क्लोरो-फ्लुओरो कार्बन (CFCs) गैसें सर्वाधिक उत्तरदायी हैं। क्लोरो-फ्लुओरो कार्बन वस्तुतः रेफ्रीजरेटरों, वातानुकूल संयन्त्रों, फोम निर्माण, सौन्दर्य प्रसाधन स्प्रे आदि में प्रयोग किया जाता है।
अत: उपर्युक्त अभिक्रियाओं से स्पष्ट है कि क्लोरो-फ्लुओरो कार्बन द्वारा उत्पादित एक क्लोरीन मूलक ओजोन के कई अणुओं को नष्ट कर देता है।
सुपरसोनिक विमानों द्वारा निकली नाइट्रिक ऑक्साइड ओजोन परत में पहुँचकर उसे नष्ट करती है।
NO + O3 → NO2 + O2
प्रश्न 10.
ओजोन छिद्र से आप क्या समझते हैं? इसके परिणाम क्या हैं?
उत्तर:
ओजोन छिद्र (Ozone hole)-हाइड्रोकार्बन्स तथा फ्रेऑन्स अथवा गैसीय प्लास्टिक अवशिष्टों के वायुमण्डल में ओजोन से क्रिया करके उसकी परत को पतला कर देना ओजोन छिद्र बनना कहलाता है। ओजोन छिद्र बनने के कारण पृथ्वी के ऊपर ओजोन की रक्षक परत सूर्य से आने वाले घातक पराबैंगनी विकिरण को पूर्ण रूप से नहीं रोक पा रही है। इस कारण पृथ्वी के तापमान में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
ओजोन परत अपक्षय का जीवन पर प्रभाव-ओजोन परत पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्राणियों के लिए एक चादर का कार्य करती है। सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी विकिरण यदि सीधे पृथ्वी तक पहुँचती हैं, तो त्वचा केंसर जैसा भयानक रोग उत्पन्न हो जायेगा। इसके साथ-साथ आनुवांशिक गुणों में भी परिवर्तन आ जाएगा। पौधों में प्रकार संश्लेषण की दर कम हो जायेगी। पराबेंगनी विकिणों के कारण मनुष्य में से हिस्टेमिन नामक रसायन निकलता है। जिसके कारण शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
प्रश्न 11.
जल प्रदूषण के मुख्य कारण क्या हैं? समझाइये। उत्तर-जल में प्रदूषण उत्पन्न करने वाले मुख्य प्रदूषक तथा उनके स्रोत निम्नलिखित माने गये हैं
उत्तर:
प्रदूषण | स्रोत/कारण |
(i) सूक्ष्म जीव | घरेलू सीवेज से |
(ii) कार्बनिक अपशिष्ट | घरेलू सीवेज, पशु अपशिष्ट, सड़े हुए मृत पशु तथा पौधे, खाद्य संसाधन, कारखानों से विसर्जन से |
(iii) पादप पोषक | रासायनिक उर्वरक से |
(iv) विषाक्त भारी वस्तु | उद्योग तथा रसायन कारखानों से कीटों, कवक तथा खरपतवार को नष्ट करने के लिये प्रयुक्त रसायन से |
(v) पीड़कनाशी | यूरेनियम युक्त खनिजों के खनन से |
(vi) रेडियोधर्मी पदार्थ | स्रोत/कारण |
यदपि वर्गौकृत सभी प्रदूषण्क जल के लिए घातक हैं। परन्तु इनमें सबसे अधिक घातक प्रदूषक रेड्वियोधर्मीं पदार्थ है, जो बिकसित देशों में गम्भीर समस्या उत्पन्न करते हैं। भारत जैसे विकसित देश में रासायनिक प्रदूषक, जल पर तीव्र प्रभाव डाल रहे हैं। नदियों के किनारे स्थित चमड़ा उद्योग, काँच उद्योग, वस्त्र उच्योग, कागज उद्योग, प्लास्टिक उद्योग, रंजक उदोग, उर्वरक उधोग, पेय (Beverage) उद्योग इत्यादि जल प्रदूषण के लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी हैं। जल का सबसे प्रमुख गुण यह है कि वह सार्वभौमिक विलायक है। अतः यह आसानी से प्रदूषित हो जाता है।
प्रश्न 12.
क्या आपने अपने क्षेत्र में जल प्रदूषण देखा है। इसे नियन्त्रित करने के कौन-से उपाय हैं?
उत्तर:
हाँ। हमारे क्षेत्र में जल प्रदूषिता हो रहा है। जल के प्रदूषित होने की जाँच हम स्वयं कर सकते हैं। इसके लिए हम स्थानीय झोतों का निरीक्षण कर सकते हैं। जैसे कि नदी, तालाब, कुणँ, झील आदि का पानी अप्रदूषित या आंशिक प्रद्धित या सामान्य प्रद्षित या अत्यधिक प्रद्षित हैं, इसकी जानकारी हम pH के द्वारा ज्ञात कर सकते है।
जल प्रदूषण नियंत्रण हेतु उपाय-जल प्रदूषण को नियँत्रित करने के लिए अग्रलिखित उपाय किए जाने चाहिए-
- उछोगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों को बिना उपचार के नदी में नही बहाना चाहिए।
- घरेलू बहिंसाव एवं सीवेज में बहने वाले अपशिष्ट पदार्थाँ को उपचारित करने के बाद ही जल में ब्रेड़ना चाहिए।
- औधोगिक क्षेत्र, आवादी क्षेत्रों से दूर होने चाहिए।
- साजुन और अपमार्जकीं (डिटरजेंट) का प्रयोग कम से कम करना चाहिए।
- पीने के पानी की पाइ्दप लाइन, सीखेज लाइन से काफी दूर होनी चाहिए।
- मरे हुए जानवरों के शरीर को तालाब या नदी में नहीं डालना चाहिए।
- जलाशय में कछुआ, मछली, घोंघा आदि की संख्या में वृद्धि होनी चाहिए जिससे कि जलाशय को साफ रखा जा सके।
- उर्वरकों एवं रसायनों का प्रयोग कृषि में कम से कम किया जाना चाहिए।
- जलाशय में पशुओं को नहलाना नहीं चाहिए।
- जल में विलेय ऑक्सीजन की मात्रा को बनाए रखने के लिए वनस्पति को जल में बढ़ने से रोकना चाहिए।
- नए उद्योग लगाने की दशा में, स्थापना के समय ही जल उपचार संयंत्र अवश्य लगाना चाहिए।
- समुद्री जल को प्रदूषण से बचाने के लिए उसमें खनिज तेलों को फैलने से रोकना चाहिए।
- जल प्रदूषण के नियंत्रण के सम्बन्ध में सरकार द्वारा मानक मापदण्ड निर्धारित करके उनको लागू करना चाहिए।
- लोगों को जल प्रदूषण रोकने के लिए जन चेतना जाग्रत करना चाहिए।
उपर्युक्त सभी जल-प्रदूषण नियंत्रण के कारगर उपाय हैं।
प्रश्न 13.
आप अपने ‘जैव रासायनिक ऑक्सीजन माँग’ (BOD) से क्या समझते हैं?
उत्तर:
जल के एक नमूने के निश्चित आयतन में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ को विखण्डित करने के लिए जीवाणु द्वारा आवश्यक जॉक्सीजन को ‘जैवरासायनिक ऑक्सीजन माँग (BOD)’ कहा जाता है। अतः जल में BOD की मात्रा कार्बनिक पदार्थ को जैवीय रूप में विखण्डित करने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा होती है। स्वच्छ जल की BOD का मान 5 ppm से कम होता है, जबकि अत्यधिक प्रदूषित जल में यह 17 ppm या इससे अधिक होता है।
प्रश्न 14.
क्या आपने आस-पास के क्षेत्र में भूमि प्रदूषण देखा है? आप भूमि प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिये क्या प्रयास करेंगे ?
उत्तर:
हाँ, हमने अपने आसपास के क्षेत्र में भूमि-प्रदूषण देखा है। भूमि प्रदूषण की रोकथाम के उपाय-
- औद्योगिक संस्थान के कचरे का उपचार किये बिना निष्कासित किये जाने पर दण्ड का प्रावधान होना चाहिए एवं घरेलू कचरे का प्रबन्धन भी भली प्रकार होना चाहिये।
- कृषि में स्थिर प्रकृति के रसायनों के उपयोग पर रोक होनी चाहिए। इसके स्थान पर जैव उर्वरक व जैविक कीटनाशी के प्रयोग पर बदल देना चाहिए।
- अनियन्त्रित उत्खनन पर पाबन्दी लगनी चाहिए।
- भूमि अपरदन (soil erosion) रोकने के लिए सधन वृक्षारोपण होना चाहिए।
- अपमार्जकों का प्रयोग कम करना चाहिए तथा प्रदूषित जल सिंचाई के लिये उपयोग नहीं किया जाना चाहिये।
- भूमिगत परमाणु परीक्षणों पर रोक लगानी चाहिये।
- अधिक से अधिक संख्या में वृक्षारोपण करना चाहिये।
- जनता को मृदा प्रदूषण से होने वाले नुकसान के बारे में अंखबार, टेलीविजन, मीडिया, नाटकों द्वारा जागरूक करना चाहिये।
प्रश्न 15.
पीडकनाशी तथा शाकनाशी से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित समझाइये ।
उत्तर:
पीडकनाशी-द्वितीय विश्वयुद्ध से पूर्व प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले अनेक रसायनों जैसे निकोटीन का प्रयोग अनेक फसलों के लिए पीडक-नियन्त्रण के रूप में किया जाता था। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय मलेरिया तथा अन्य कीटजनित रोगों के नियन्त्रण में D.D.T बहुत उपयोगी पाया गया। युद्ध के पश्चात् D.D.T का प्रयोग कृषि में कीट, सेर्डेंट, खर-पतवार तथा फसलों के अनेक रोगों के नियन्त्रण में किया जाने लगा परन्तु बाद में यह प्रतिबन्धित किया गया।
मूल रूप से पीडकनाशी विषैले रसायन हैं जो पारिस्थितिकी प्रतिघाती भी हैं। इनका प्रयोग फसलों को हानिकारक कीटों तथा रोगों से बचाने हेतु करते हैं।
उदाहरणार्थ डाइऐल्ड्रीन, बी.एच.सी. ऐल्ड़ीन आदि। ये जल में अविलेय तथा अजैवनिम्नीकरणीय होते हैं। ये उच्च प्रभाव वाले जीव-विष भोजन शृंखला द्वारा निम्नपोषी स्तर से उच्चपोषी स्तर तक स्थानान्तरित होते हैं। समय के साथ-साथ उच्व प्राणियों में जीव-विषों की सान्द्रता बढ़ जाती है। यह अधिक सान्द्रता उपापचयी तथा शरीर क्रियात्मक अव्यवस्था का कारण बन जाती है। उच्च स्थायित्व वाले क्लोरीनीकृत कार्बनिक जीव-विष के प्रत्युत्तर में निम्न स्थायित्व अथवा अधिक जैव निम्नीकरणीय उत्पादों जैसेआर्गेनों फोंस्फेट्स तथा काबोनेट्स को प्रचलन में लाया गया परन्तु ये और अधिक हानिकारक होते हैं।
शाकनाशी-वे रसायन जो खरपतवार का नाश करने के लिए प्रयोग किये जाते हैं। उन्हें शाकनाशी कहते हैं। उदाहरण-सोडियम क्लोरेट, सोडियम आर्सिनेट, पोटैशियम आर्सिनेट आदि। ये स्तनधारियों के लिए विषैले होते हैं परन्तु कार्बक्लोराइड के समान स्थायी नहीं होते तथा कुछ समय पश्चात् अपघटित हो जाते हैं।
प्रश्न 16.
हरित रसायन से आप क्या समझते हैं? यह वातावरणीय प्रदूषण को रोकने में किस प्रकार सहायक है ?
उत्तर:
हरित रसायन (Green Chemistry)-विषैले रसायनों की मात्रा वायुमण्डल में कम से कम करने या फैलने से रोकने के लिए एक सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है, जिसे हरित रसायन कहते हैं। हरित रसायन के द्वारा अभिक्रियाओं का प्रारूप तैयार करके उस अभिक्रिया के अभिकर्मकों एवं उत्पादों के गुणों व प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। रासायनिक अभिक्रिया में उन पदार्थों तथा विलायकों का प्रयोग किया जाना चाहिए जो मनुष्य एवं पर्यावरण के लिए हानिकारक न हों।
मानव के लिए उपयोग – हरित रसायन मानव के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है। कृषि रसायनों के उत्पादन के लिए अब विषैले पदार्थों जैसे-सायनाइड, फॉर्मेल्डिहाइड आदि की आवश्यकता नहीं होती है। वायु प्रदूषण रोकने के लिए वाहनों में पेट्रोल, डीजल के स्थान पर हौलियम आदि का प्रयोग किए जाने पर शोधकार्य किए जा रहे हैं।
प्रदूषण घटाने में योगदान-दरित रसायन एक नया क्षेत्र अबश्य है, परन्तु इसके द्वारा प्रदूषण घटाने में कुछ विशेष उपलब्धियाँ हासिल की गई है। हरित रसायन के द्वारा किसी भी रासायनिक अभिक्रिया का प्रारूप तैयार करके उसमें प्रयुक्त रसायन एवं बनने वाले उत्पाद के गुणों एवं प्रभावों का अध्ययन किया जाता है।
रासायनिक अभिक्रियाओं को सूय्य के पराबैगनी प्रकाश, ध्वनि तरंगों एवं सुक्ष्म तरंगों की उपस्थिति में कराने पर सकारात्मक परिणाम सामने आए है। आजकल प्रतिजैविकों के निमांण में एन्जाइम का उपयोग उत्प्रेरक की तरह किया जा रहा है। हरित रसायन की मदद से कुछ ऐसे कार्बनिक विलायक बनाए गए हैं जो कि मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नह़ी हैं और न ही पर्यावरण में प्रदूषण उत्पन्न करते हैं।
हरित रसायन के ही द्वारा SO2 को सल्फर में अपचयित कर वायु प्रदूषण कम करने की विधि तैयार की गई है।
SO2 गैस के अवशोषण के लिए चूने के पत्थर का उपयोग उद्योगों में किया जा रहा है।
2CaCO3 + 2SO2 + O2 → 2CaSO4 + 2CO2
हरित रसायन के द्वारा जिओलाइट पर आधारित अपमार्जंकों का उपयोग किया जाता है जो कि प्रदूषण को कम करता है। आजकल फोम शीटों के पैकिंग के लिए क्लोरो-फ्लूओरो कार्बन के स्थान पर CO2 का उपयोग किया जा रहा है। मोटर वाहनों के द्वारा होने वाले वायु प्रदूषण को रोकने के लिए पेट्रोल, डीजल के स्थान पर हीलियम आदि के प्रयोग के लिए शोधकार्य किए जा रहे हैं।
कृषि रसायनों के निर्माण में ऐसी विधियाँ खोजी जा रही हैं, जिनमें विधले पदार्थ सायनाइड, फॉर्मेल्डिहाइड आदि की आवश्यकता नहीं पद्ती है। अतः हरित रसायन अभी सिर्फ एक शुरुआत है। इसके द्वारा अनेक शोध कार्य किए जा रहे हैं। कुछ ऐंसी तकनीकों का विकास किया जा रहा है जो प्रदूषण रोकने के लिए महत्वपूर्ण भुमिका अदा करेंगी।
प्रश्न 17.
क्या होता, जब भू-वायुमण्डल में ग्रीनहाउस गैसें नहीं होतीं ? विवेचना कीजिए।
उत्तर:
यदि भू-वायुमण्डल में ग्रीनहाउस गैसें न होतीं तो पृथ्वी का ताप घट जाता। पौधे प्रकाश-संश्लेषण नहीं कर पाते (यदि CO2 उपस्थिति नहीं होती)। पौधों की अनुपस्थिति में मानव-जीवन भी नहीं होता।
प्रश्न 18.
एक झील्ल में अचानक असंख्य मृत मछलियाँ तैरती हुई मिलीं। इसमें कोई विषाक्त पदार्थ नहीं था, परन्तु बहुतायत में पादप प्लवक पाए गए। मछलियों के मरने का कारण बताइए।
उत्तर:
जल में कार्बनिक द्रव्यों; जैसे-पत्तियों, घास, कूड़ा-करकट आदि की उपस्थिति के कारण पादप प्लवक विकसित हो जाते हैं। ये जल में घुलित ऑक्सीजन की अत्यधिक मात्रा का उपभोग कर लेते हैं जो जलीय जीवों; जैसे-मछली के जीवन हेतु अत्यन्त आवश्यक होती है। यदि जल में घुलित ऑक्सीजन की सान्द्रता 6 ppm से नीचे हो जाए तो मछलियों का विकास रूक जाता है।
जल में ऑक्सीजन या तो वातावरण या कई जलीय पौर्धों द्वारा दिन में प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रम से पहुँचती है। रात में प्रकाश-संश्लेषण रूक जाता है, परन्तु पौधे श्वसन करते हैं जिससे जल में घुलित ऑक्सीजन कम हो जाती है। घुलित ऑक्सीजन सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा कार्बनिक यौगिकों के ऑक्सीकरण में भी उपयोग में ली जाती है। इस प्रकार पादप प्लवकों तथा अन्य कारणों से जल में आँक्सीजन की कमी हो जाने के कारण मछलियाँ मृत पाई गई।
प्रश्न 19.
घरेलू अपशिष्ट किस प्रकार खाद के रूप में काम आ सकते हैं ?
उत्तर:
घरेलू अपशिष्ट में जैवनिम्नीकरण तथा अजैवनिम्नीकरण, दोनों घटकों का समावेश होता है। अपशिष्ट में से दोनों घटकों को छँटकर पृथक् कर लेते हैं। जैव अनिम्नीकरण पदार्थों; जैसे-प्लास्टिक, काँच, धातु छीलन आदि को पुनर्चक्रण के लिए भेज दिया जाता है। जैवुनिम्निकरण अपशिष्टों को खुले मैदानों में मिट्टी में दबा दिया जाता है। जैवनिम्नीकरण अपशिष्ट में कार्बनिक द्रव्य होते हैं जो कम्पोस्ट खाद में परिवर्तित हो जाते हैं।
प्रश्न 20.
आपने अपने कृषि-क्षेत्र अथवा उद्यान में कम्पोस्ट खाद के लिए गड्डे बना रखे हैं। उत्तम कम्पोस्ट बनाने के लिए इस प्रक्रिया की व्याख्या दुर्गाध, मक्खियों तथा अपशिष्टों के चक्रीकरण के सन्दर्भ में कीजिए।
उत्तर:
यदि अपशिष्ट को कम्पोस्ट में परिवर्तित न किया जाए तो वह नालियों में चला जाता है। इसमें से कुछ मवेशियों द्वारा खा लिया जाता है। कम्पोस्ट खाद बनाने की प्रक्रिया दुर्गन्धपूर्ण होती है। इस पर मक्खियाँ उड़ती रहती हैं, इसे दुर्गन्ध तथा मक्खियों से बचाने के लिए मिट्टी से ढक दिया जाता है। अपशिष्ट के कम्पोस्ट खाद में परिवर्तन के पश्चात् इस पर डाली गई मिट्टी को हटा दिया जाता है तथा कम्पोस्ट खाद प्राप्त कर ली जाती है। यह खाद पौधों के लिए अत्यन्त उपयोगी होती है।