Class 11

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 8 मौसम यंत्र, मानचित्र तथा चार्ट

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Practical Work in Geography Chapter 8 मौसम यंत्र, मानचित्र तथा चार्ट Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 8 मौसम यंत्र, मानचित्र तथा चार्ट

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. मौसम की प्रमुख दशा है-
(A) मेघाच्छन्न
(B) आर्द्र
(C) तूफानी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

2. मौसम संबंधी प्रेक्षणों को कितने स्तरों पर रिकॉर्ड किया जा सकता है?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
उत्तर:
(B) तीन

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3. फारेनहाइट थर्मामीटर में हिमांक तथा क्वथनांक के बीच कितने का अन्तर होता है?
(A) 90°
(B) 120°
(C) 180°
(D) 320°
उत्तर:
(C) 180°

4. एल्कोहल कितने डिग्री सेण्टीग्रेड पर जमता है?
(A) -115°C
(B) -90°C
(C) -50°C
(D) -10°C
उत्तर:
(A) -115°C

5. आर्द्रता कितने प्रकार की होती है?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
उत्तर:
(A) दो

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मौसम किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी स्थान की थोड़े समय की वायुमंडलीय दशाओं को वहाँ का मौसम कहते हैं।

प्रश्न 2.
मौसम के आधारभूत या महत्त्वपूर्ण या प्रमुख तत्त्व कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर:
तापमान, वर्षा, वायुदाब, वायु की गति व दिशा, मेघाच्छन्नता तथा आर्द्रता आदि मौसम के आधारभूत तत्त्व हैं।

प्रश्न 3.
मौसम की प्रमुख दशाएं कौन-कौन सी होती हैं?
उत्तर:
मेधाच्छन्न (Cloudy), आर्द्र (Humid), उमसवाला (Sultry), तूफानी (Stormy) तथा खिला मौसम (Sunny) इत्यादि।

प्रश्न 4.
मौसम के पूर्वानुमान से क्या लाभ होते हैं?
उत्तर:
आने वाले मौसम के अनुसार हम अपने कार्यक्रम निश्चित या स्थगित कर सकते हैं। फसलों को बचाया जा सकता है। तटीय क्षेत्र के लोगों और मछुआरों को सचेत किया जा सकता है। वायुयान व जलयान के चालकों के लिए भी यह पूर्वानुमान लाभदायक सिद्ध होता है।

प्रश्न 5.
साधारण थर्मामीटर कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
मुख्यतः साधारण थर्मामीटर दो प्रकार के होते हैं-

  1. सेल्सियस थर्मामीटर
  2. फारेनहाइट थर्मामीटर। एक तीसरा कम प्रचलित रियूमर थर्मामीटर भी होता है।

प्रश्न 6.
सिक्स के अधिकतम व न्यूनतम थर्मामीटर में कौन-कौन से दो द्रव प्रयोग किए जाते हैं?
उत्तर:
पारा और एल्कोहल।

प्रश्न 7.
आर्द्रता को मापने वाले यंत्र को क्या कहते हैं?
उत्तर:
आर्द्र एवं शुष्क बल्ब थर्मामीटर।

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प्रश्न 8.
सेल्सियस और फारेनहाइट थर्मामीटरों में हिमांक बिंदु तथा क्वथनांक बिंदु कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर:
सेल्सियस थर्मामीटर में हिमांक 0°C तथा क्वथनांक 100°C होता है। फारेनहाइट थर्मामीटर में हिमांक 32°F तथा क्वथनांक 212°F होता है।

प्रश्न 9.
निर्द्रव और पारद बैरोमीटरों में अंतर बताओ।
उत्तर:
पारद बैरोमीटर में पारे (Mercury) का प्रयोग किया जाता है, जबकि निर्द्रव बैरोमीटर में किसी भी द्रव का प्रयोग नहीं किया जाता।

प्रश्न 10.
सेल्सियस तापमान को फारेनहाइट तापमान में बदलने का क्या सूत्र है?
उत्तर:
°F = (°C x \(\frac { 9 }{ 5 }\)) + 32

प्रश्न 11.
स्टीवेंसन स्क्रीन का क्या उपयोग होता है?
उत्तर:
इसमें रखे थर्मामीटरों को ऊष्मा, धूप व विकिरण से बचाया जा सके तथा केवल वायु ही स्वतंत्र रूप से इसमें से आ-जा सके ताकि वायु का तापमान ठीक-ठीक मापा जा सके।

प्रश्न 12.
वायु की गति और दिशा बताने वाले यंत्रों के नाम बताएँ।
उत्तर:
वायु की गति को वेगमापी (Anemometer) द्वारा तथा वायु की दिशा को वादिक-सूचक (Wind Vane) द्वारा मापा जाता है।

प्रश्न 13.
वायुदाब किन इकाइयों में मापा जाता है?
उत्तर:
इंच, सेंटीमीटर और मिलीबार में।

प्रश्न 14.
भारत में मौसम विज्ञान सेवा का आरंभ कब और कहाँ पर हुआ?
उत्तर:
सन् 1864 में, शिमला में।

प्रश्न 15.
भारत में मौसम विभाग का मुख्यालय कहाँ पर स्थित है?
उत्तर:
दिल्ली में।

प्रश्न 16.
भारतीय दैनिक मौसम सूचक मानचित्र कहाँ से प्रकाशित किया जाता है?
उत्तर:
पुणे से।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मौसम क्या होता है और इसकी रचना किन तत्त्वों के द्वारा होती है?
उत्तर:
किसी स्थान पर थोड़ी अवधि की; जैसे कुछ घण्टों, एक दिन या एक-दो सप्ताह की वायुमण्डलीय अवस्थाओं को वहाँ का मौसम कहते हैं। तापमान, वर्षा, वायुदाब, पवनें, आर्द्रता तथा मेघ आदि मौसम के प्रमुख तत्त्व माने जाते हैं।

प्रश्न 2.
मौसम की प्रमुख दशाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मौसम की प्रमुख दशाएँ निम्नलिखित होती हैं-

  • मेघाच्छन्न (Cloudy)-जब किसी दिन आकाश में बादल छाए हुए हों और सूर्य दिखाई न दे रहा हो तो कहा जाता है कि मौसम मेघाच्छन्न है।
  • आर्द्र (Humid)-वर्षा वाले दिन जब वायु में आर्द्रता सामान्य से अधिक होती है तो कहा जाता है कि मौसम आर्द्र है।
  • उमसवाला (Sultry)-जब वायु में आर्द्रता सामान्य से अधिक हो और सूर्य भी तेजी से चमक रहा हो तो कहा जाता है कि मौसम उमसवाला है।
  • तूफानी (Stormy)-जिस दिन तेज वायु चल रही हो तो कहा जाता है कि मौसम तूफानी है।
  • खिला मौसम (Sunny)-जब आकाश में बादल न हों और धूप खिली हुई हो तो कहा जाता है कि मौसम धूपयुक्त या खिला हुआ है।

प्रश्न 3.
मौसम के पूर्वानुमान से क्या लाभ होते हैं?
उत्तर:
मौसम का पूर्वानुमान हो जाने से हम मूसलाधार बारिश, हिमपात, तड़ितझंझा व आंधी-तूफानों से बच सकते हैं तथा तदानुकूल अपने कार्यक्रम बना सकते हैं। मौसम का कुछ दिन पहले पता चल जाने से किसान अपनी फसलों की रक्षा कर सकते हैं, तटवर्ती क्षेत्रों में लोगों की जान बचाई जा सकती है, मछुआरों को समुद्र में जाने से सचेत किया जा सकता है और जलयान चालक अपने जहाज़, माल व सवारियों को सुरक्षित रख सकते हैं। वायुयानों की सफल उड़ान मौसम के पूर्वानुमान पर ही निर्भर करती है। मौसम की पूर्व जानकारी से अकाल और बाढ़ से बचाव किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
मौसम चार्ट क्या है?
उत्तर:
विभिन्न मौसम वेधशालाओं से प्राप्त आंकड़े पर्याप्त एवं विस्तृत होते हैं। अतः ये एक चार्ट पर बिना कोडिंग के नहीं दिखाए जा सकते। कोडिंग के द्वारा कम स्थान में सूचनाएं देकर चार्ट की उपयोगिता बढ़ जाती है। इन्हें सिनाप्टिक मौसम चार्ट कहते हैं तथा जो कोड प्रयोग में लाए जाते हैं, उसे मौसम विज्ञान प्रतीक कहते हैं। मौसम पूर्वानुमान के लिए मौसम चार्ट प्राथमिक यंत्र हैं। ये विभिन्न वायुराशियों, वायुदाब यंत्रों, वातारों तथा वर्षण के क्षेत्रों की अवस्थिति जानने एवं पहचानने में सहयोग करते हैं।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मौसम मानचित्र क्या है? इसका महत्त्व बताते हुए इसकी रचना कीजिए।
उत्तर:
मौसम मानचित्र (Weather Maps)-आज के वैज्ञानिक युग में मौसम के विभिन्न तत्त्वों को मानचित्र पर अंकित करना सम्भव हो गया है। प्रतिदिन किसी विशेष समय का मौसमी विवरण मौसम मानचित्र पर अंकित किया जाता समय पर अल्पकालीन मौसम की दशाओं को दर्शाने वाले मानचित्र को मौसम मानचित्र कहते हैं।” मौसम के तत्त्वों को दर्शाने के लिए समान रेखाओं, प्रतीकों तथा संकेतदारों की सहायता ली जाती है। अभ्यास हो जाने पर उनके द्वारा मौसम मानचित्र का अध्ययन करके मौसम के बारे में बहुत कुछ जाना जा सकता है।

मौसम मानचित्र का महत्त्व (Importance of Weather Maps)-प्रतिदिन के मौसम मानचित्रों के अध्ययन से हम आने वाले दिन के मौसम की कल्पना कर सकते हैं। मौसम वेधशालाएँ प्रतिदिन के मौसम मानचित्रों के अध्ययन के पश्चात् भविष्य के मौसम के विषय में अपने विचार जनता तक पहुँचाती हैं। इस ज्ञान से जलयान अथवा वायुयान द्वारा यात्रा के विषय में ज्ञात हो जाता है और वे अपने प्रोग्राम को उचित प्रकार से निश्चित कर सकते हैं। वायुयान चालक तथा जलयान चलाने वाले खराब मौसम का पता लग जाने पर सावधान हो जाते हैं, जिनसे बहुत-सी दुर्घटनाओं से रक्षा हो जाती है। मौसम ज्ञात हो जाने पर अकाल एवं बाढ़ से रक्षा के लिए पहले से ही बहुत कुछ तैयारी कर ली जाती है। मौसम के विवरण का कृषकों के लिए विशेष महत्त्व है। वे कृषि योजनाओं को मौसम के अनुसार सुचारु रूप से चला सकते हैं।

मौसम मानचित्रों की रचना भारत में मौसम मानचित्र दिन में दो बार बनाए जाते हैं जिनमें से एक प्रातः 8.30 बजे तथा जे बनाया जाता है। मौसम मानचित्रों की रचना भारत के विभिन्न भागों में स्थापित की गई मौसम प्रेक्षणशालाओं से प्राप्त की गई सचनाओं के आधार पर की जाती है। ये भारत के मौसम विभाग के अधीन कार्य करती हैं। इनका विवरण इस प्रकार है-

भारत में मौसम सम्बन्धी सेवा-भारत में मौसम सम्बन्धी सेवा सन् 1875 में आरम्भ की गई। तब इसका मुख्यालय शिमला में था। प्रथम विश्व-युद्ध के पश्चात् इसका मुख्यालय पुणे ले जाया गया। अब भारत के मौसम सम्बन्धी मानचित्र वहीं से प्रकाशित होते हैं।

भारत के दैनिक मौसम मानचित्र पर वायुदाब का वितरण, वायु की दिशा एवं गति, वर्षा, आकाश की दशा तथा दृश्यता आदि प्रदर्शित किए जाते हैं। इसके साथ एक रिपोर्ट संलग्न होती है जो पिछले दिन का मौसम तथा आने वाले 24 घण्टों के लिए मौसम . का पूर्वानुमान बताती है। इस पर भारत के सभी महत्त्वपूर्ण स्थानों के मौसम सम्बन्धी आँकड़े अंकित किए जाते हैं।

ये आँकड़े बेतार के तार (Wireless) की सहायता से एकत्रित किए जाते हैं। इन आँकड़ों के आधार पर ये रिपोर्ट तैयार की जाती है। आजकल कृत्रिम उपग्रह इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। INSAT I-B की सहायता से हम दूरदर्शन पर हर रोज भारतीय मौसम की जानकारी लेते हैं। INSAT I-C भी अन्तरिक्ष में छोड़ा गया है। मौसम का अध्ययन करने के लिए Air Photographs का भी प्रयोग किया जाता है।

भारतीय मौसम प्रेक्षणशालाएँ इस समय भारत में लगभग 350 प्रेक्षणशालाएँ हैं। इन्हें पाँच वर्गों में बाँटा गया है। प्रथम श्रेणी की प्रेक्षणशालाओं में स्वतः अभिलेखी (Self-recording) मौसम विज्ञान यन्त्रों; जैसे तापलेखी (Thermograph), वायुदाबलेखी (Barograph), आर्द्रतालेखी (Hygrograph), पवनवेग-लेखी (Anemograph) आदि प्रयोग किए जाते हैं। ये दिन में दो बार पुणे में स्थित केन्द्रीय प्रेक्षणशाला को मौसम सम्बन्धी सूचनाएँ भेजती है।

द्वितीय श्रेणी की प्रेक्षणशालाओं में सामान्य नेत्र-अभिलेखी (Eye-recording) मौसम विज्ञान यन्त्रों, जैसे अधिकतम व न्यूनतम तापमापी, वायुदाबमापी, शुष्क तथा आर्द्र बल्ब तापमापी, पवन वेगमापी, वायुदिक्-सूचक, वर्षामापक यन्त्र आदि का प्रयोग होता है। ये प्रेक्षणशालाएँ भी दिन में दो बार मुख्य कार्यालय को सूचना भेजती हैं।

तृतीय श्रेणी की प्रेक्षणशालाओं में भी नेत्र-अभिलेखी यन्त्रों का ही प्रयोग होता है। अन्तर केवल यह है कि ये दिन में केवल एक ही बार मुख्य कार्यालय को सूचना भेजती हैं। चतुर्थ श्रेणी की प्रेक्षणशालाओं में केवल तापमान एवं वर्षा सम्बन्धी आँकड़े एकत्रित किए जाते हैं। पंचम श्रेणी की प्रेक्षणशालाएँ प्रतिदिन प्रातः 8 बजे तार द्वारा पिछले 24 घण्टों में हुई वर्षा की सूचना केन्द्रीय प्रेक्षणशाला को भेजती हैं।

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प्रश्न 2.
मौसम के कुछ प्रमुख तत्त्वों को मापने वाले यन्त्रों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वायुमण्डल का तापमान, दाब, वर्षा तथा वायु की दिशा एवं गति मौसम के प्रमुख तत्त्व हैं। इन्हें मापने के लिए प्रायः निम्नलिखित यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है-
1. तापमान को मापना-सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करके वायुमण्डल का तापमान बढ़ता है जिसे तापमापी (Thermometer) द्वारा मापा जाता है। तापमापी कई प्रकार के होते हैं, परन्तु यहाँ पर सिक्स का अधिकतम तथा न्यूनतम तापमापी का ही विवरण दिया जा रहा है-

सिक्स का अधिकतम व न्यूनतम तापमापी-दिन का अधिकतम तथा रात्रि का न्यूनतम तापमान मापने के लिए एक विशेष प्रकार का तापमापी प्रयोग किया जाता है। इसका आविष्कार जे० सिक्स (J.Six) नामक विद्वान ने किया था इसलिए इसे सिक्स का अधिकतम तथा न्यूनतम तापमापी (Six’s Maximum and Minimum Thermometer) कहते हैं। यह शीशे की एक ‘U’ आकार की नली का बना होता है जिसके दोनों सिरों पर एक-एक बल्ब लगा हुआ होता है।

नली की बाईं ओर के बल्ब ‘A’ के पूरे भाग में एल्कोहल भरा होता है जबकि दाईं ओर के बल्ब ‘D’ के निचले भाग में ही एल्कोहल होता है और ऊपरी भाग खाली होता है। नली के निचले भाग में पारा भरा होता है। पारे के ऊपर इस्पात के दो सूचक (Steel Index) E तथा F लगे होते… हैं। इन सूचकों के साथ स्प्रिंग लगे हुए होते हैं जिनकी सहायता से ये अपने स्थान पर तब तक बने रहते हैं जब तक पारा उन्हें धकेल न दे।

पारे की गति एल्कोहल के फैलने और सिकुड़ने पर निर्भर करती है क्योंकि एल्कोहल पारे से छः गुना अधिक फैलता है। जब तापमान बढ़ता है तो बल्ब A का एल्कोहल फैलता है। पतला तरल होने के कारण यह सूचक को पार कर जाता है और नली के AB भाग में पारे को नीचे धकेलता है।
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इससे नली के CD भाग में पारा ऊपर को उठता है। ऊपर उठता हुआ पारा सूचक F को ऊपर की ओर धकेलेगा। यह तब तक धकेलता रहेगा जब तक तापमान बढ़ना बन्द नहीं हो जाता। सूचक F का निचला सिरा अधिकतम तापमान दर्शाता है। जब तापमान कम होना आरम्भ होता है तब बल्ब A का एल्कोहल सिकुड़ना शुरू कर देता है और नली के AB भाग में पारा ऊपर चढ़ना शुरू कर देता है। ऊपर चढ़ता हुआ पारा सूचक E को ऊपर की ओर धकेलता है। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक तापमान गिरना बन्द नहीं हो जाता। सूचक E का निचला सिरा न्यूनतम तापमान को दर्शाता है। इस प्रकार न्यूनतम तापमान वाली भुजा पर ऊपर से नीचे की ओर तथा अधिकतम तापमान वाली भुजा पर नीचे से ऊपर की ओर तापमान पढ़े जाते हैं।

इस थर्मामीटर के साथ घोड़े के खुर के आकार का चुम्बक (Horse Shoe Magnet) होता है। इस चुम्बक की सहायता से इस्पात के सूचक पारे के तल तक लाए जाते हैं जिससे अधिकतम तथा न्यूनतम तापमान का पता लगाने में सहायता मिलती है।

आर्द्र एवं शुष्क बल्ब थर्मामीटर-इसमें एक ही आकार के दो थर्मामीटर T1 तथा T2 होते हैं जिन्हें लकड़ी के एक फ्रेम पर लगाया जाता है। इनमें T1 शुष्क थर्मामीटर है जबकि T2 आर्द्र थर्मामीटर है। T2 के बल्ब को मलमल के कपड़े से ढक दिया जाता है। इस कपड़े के निचले सिरे को नीचे रखी जल से भरी शीशी में डाल दिया जाता है (चित्र 9.2)। जब इस यन्त्र के पास वायु चलती है तो शीशी में पड़े जल का वाष्पीकरण होता है जिससे इस थर्मामीटर का तापमान कम हो जाता है।

परन्तु T1 का तापमान वायु के सामान्य तापमान को ही दर्शाता है। इस प्रकार शुष्क एवं आर्द्र थर्मामीटर द्वारा दर्शाए गए ताप में अन्तर आ जाता है। यह अन्तर वायुमण्डल में उपस्थित आर्द्रता का सूचक है। इन दोनों के तापमान में अन्तर जितना अधिक होगा, वायुमण्डल में आर्द्रता उतनी ही कम होगी। इसके विपरीत यदि दोनों थर्मामीटरों के तापमान में अन्तर कम होगा तो वायु में आर्द्रता अधिक होगी। आर्द्रता को शुद्धता से मापने के लिए विशेष तौर पर तैयार की गई तालिका का प्रयोग करना पड़ता है।

2. वायुमण्डलीय दाब का मापना-वायुमण्डलीय दाब को मापने के लिए फोर्टिन का वायुदाबमापी तथा निर्द्रव वायुदाबमापी-प्रयोग किए जाते हैं।

फोर्टिन का वायुदाबमापी (Fortin’s Barometer)-यह साधारण पारद वायुदाबामापी का ही परिष्कृत रूप है। इस यन्त्र का आविष्कार फोर्टिन महोदय ने किया था इसलिए इसका नाम ‘फोर्टिन का वायुदाबमापी’ रखा गया है। यह लगभग एक मीटर लम्बी काँच पारद स्तम्भ की नली होती है जिसका ऊपरी सिरा बन्द तथा निचला सिरा खुला होता है। इस नली में (Mercury Column) रहता है। नली के नीचे की ओर पारे की एक हौज (Cistern) होती है जिसमें नली का खुशक हुआ निचला सिरा डूबा रहता है। इस हौज में चमड़े की एक थैली होती है जिसमें पारा होता है। इस थैली की तली लचीली (Flexible) होती है।

इसके नीचे एक समंजन पेच (Adjusting Screw) होता है जिसकी सहायता से लचीली थैली की तली को ऊपर-नीचे करके थैली में पारे की सतह को ऊपर-नीचे किया जा सकता है। थैली के पारे की सतह के थोड़ा ऊपर हाथी-दाँत का बना एक नुकीला सूचक (Ivory Index) लगा होता है। इस सूचक की नोक वायुदाबमापी पर बनी मापनी के शून्य मान लेने वाले बिन्दु को प्रकट करती है। वायुदाबमापी की काँच की नली का केवल थोड़ा-सा भाग ही दिखाई देता है, शेष भाग सुरक्षा के लिए पीतल की बनी एक नली में ढका रहता है।

नली के दिखाई देने वाले भाग पर वायुमण्डलीय दाब की मिलीबार में मापनी अंकित की जाती है। इस मापनी पर एक वर्नियर मापनी (Vernier Scale) लगी होती है। इसे वर्नियर पेंच की सहायता से ऊपर या नीचे किया जाता है। इस वर्नियर का सम्बन्ध काँच की नली के पीछे की ओर स्थित पीतल की एक प्लेट से होता है। इस प्लेट का निचला सिरा तथा वर्नियर मापनी का शून्य बिन्दु पर क्षैतिज रेखा में होते हैं। वर्नियर पेच घुमाने पर यह प्लेट तथा वर्नियर मापनी इकट्ठे ही खिसकते हैं।
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फोर्टिन के वायुदाबमापी पर एक साधारण थर्मामीटर लगा होता है जिससे वायुदाब के समय वायु का तापमान पढ़ा जा सके (देखें चित्र 9.3)।

वायुदाब पढ़ने से पहले दो काम करने होते हैं-(1) समंजन पेंच की सहायता से हौज से पारे को इतना ऊँचा कीजिए कि पारे की ऊपरी सतह हाथी-दाँत के सूचक की नोक को स्पर्श करने लगे। (2) नली के दिखाई देने वाले भाग में, जहाँ मापनी बनी है, पारद स्तम्भ की ऊपरी सतह देखिए। अब वर्नियर पेंच की सहायता से वर्नियर को इतना खिसकाइए कि वर्नियर का शून्य पारद स्तम्भ की ऊपरी सतह तथा वर्नियर से जुड़ी प्लेट का निचला सिरा, तीनों एक क्षैतिज रेखा में दिखाई दें। इसके बाद वर्नियर मापनी की सहायता से वायुदाब पढ़ लीजिए।

निर्द्रव वायुदाबमापी (Aneroid Barometer)-जैसा कि इसके नाम से ही विदित है, इसमें कोई द्रव प्रयोग नहीं होता। यह एक गोल घड़ी के समान होता है जिसके डायल पर वायुदाब का मान लिखा हुआ होता है। यन्त्र के भीतर एक धात्विक बॉक्स होता है जिसमें से हवा निकालकर आंशिक शून्य पैदा किया जाता है। इसकी सतह को लहरदार बनाया जाता है ताकि वायुदाब में थोड़ा-सा परिवर्तन होने पर भी इस पर अधिक प्रभाव पड़ सके।

वायुदाब में वृद्धि होने पर यह लहरदार ढक्कन नीचे की ओर दबता है और दाब में कमी होने पर ऊपर को उठता है। इसका प्रभाव स्प्रिंग (Spring) पर पड़ता है जिसकी प्रगति को उत्तोलकों (Levers की सहायता से बढ़ाया जाता है। ये उत्तोलक एक छोटी-सी जंजीर (Chain) से जुड़े हुए होते हैं जो डायल के केन्द्र पर लगी हुई सुई (Moovable Needle) को घुमाते हैं। इस सुई को पढ़कर वायुमण्डलीय दबाव का पता लगाया जाता है।

डायल पर एक अन्य सुई भी होती है जिसे यन्त्र के ऊपर लगे धात्विक स्टैंड द्वारा घुमाया जा सकता है। इस सुई का प्रयोग किसी निश्चित अवधि में दाब में हुए परिवर्तन का पता लगाने के लिए किया जाता है। यन्त्र के डायल पर आँधी (Stormy), वर्षा (Rainy), परिवर्तन (Change), सुहाना (Fair) तथा बहुत शुष्क (Very Dry) मौसम सम्बन्धी दशाओं के नाम अंकित होते हैं जिससे मौसम सम्बन्धी पूर्वानुमान लगाने में सहायता मिलती है। निर्द्रव बैरोमीटर की रचना (चित्र 9.4) में दर्शाई गई है।
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3. वर्षा का मापना- वर्षा को वर्षामापी यन्त्र (Rain Gauge) द्वारा मापा जाता है। वर्षामापी यन्त्र धातु का एक खोखला बेलनाकार (सिलेण्डर) बर्तन होता है जिसमें एक कीप अच्छी प्रकार से बिठाई गई बाह्यपात्र होती है और उसमें से होकर वर्षा का जल नीचे बर्तन में पहुँचता है। कीप के मुँह की परिधि, ग्राह्य बर्तन के आधार की परिधि के बराबर होती है। सिलेण्डर का मुँह कीप के मुँह से 12.5 सेंटीमीटर ऊपर रहता है, जिससे गिरती हुई वर्षा के जल का कोई भाग निकलकर बाहर न भीतरी सिलेंडर चला जाए। इस प्रकार से अपने-आप ही सारा वर्षा का जल जो भूमि तल कीप के मुँह की सतह पर गिरता है, ग्राह्य बर्तन में चला जाता है
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इस प्रकार से एकत्रित जल एक मापक जार द्वारा मापा जाता है जिस पर मिलीमीटर या इन्चों में निशान लगे होते हैं। मापक जार के आधार का क्षेत्रफल तथा कीप के क्षेत्रफल में एक विशेष सम्बन्ध होता है। भारत में हम लोग वर्षा को मिलीमीटर या सेंटीमीटर की इकाई में नापते हैं। दिन में किसी निश्चित समय पर 24 घण्टे में एक बार पाठ्यांक लिया जाता है। सामान्यतः यह समय 8 बजे प्रातःकाल होता है और यह पिछले 24 घण्टे या पूरे दिन की सारी वर्षा की मात्रा को प्रकट करता है।

यथार्थ पाठ्यांकों के लिए यन्त्र को खुले और समतल क्षेत्र में भूमि से 30 सेंटीमीटर की ऊँचाई पर रखना चाहिए, जिससे उसमें पानी छिटककर या बहकर न जा सके। वर्षामापी में वर्षा के जल को निर्विघ्न गिरने के लिए उसे किसी वृक्ष, मकान या किसी ऊँची वस्तु से दूर रखना चाहिए। साथ ही उसे जानवरों से भी सुरक्षित रखना चाहिए क्योंकि उनसे वर्षामापी के उलट जाने का भय हो सकता है।

4. वायु की दिशा तथा गति-वायु की दिशा तथा गति को क्रमशः वायुदिक्-सूचक तथा पवन-वेगमापी से मापा जाता है।
1. वायुदिक् (वातदिक्)-सूचक-यह एक लम्बा तीर-सा होता है जिसके पीछे धातु की चादर का टुकड़ा लगा हुआ होता है। इसे एक लोहे के डण्डे पर बाल बियरिंग की सहायता से इस प्रकार लगाया जाता है कि थोड़ी-सी हवा चलने पर भी यह घूम जाता है। तीर के नीचे चार मुख्य दिशाएँ, North (N), South (S), East (E), West (W) लगा दी जाती हैं। तीर का मुँह पवन के चलने की दिशा का सूचक होता है (चित्र 9.6)।
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2. पवन-वेगमापी-पवन-वेगमापी एक प्रकार का यन्त्र होता है जो पवन की गति को मापने के लिए प्रयुक्त होता है। इस पवन-वेगमापी में तीन या कभी-कभी चार अर्द्धगोलाकार प्यालियाँ लगी रहती हैं जो क्षैतिज भुजाओं द्वारा एक ऊर्ध्वाधर त’ से सम्बन्धित होती हैं (चित्र 9.7)। –
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जब पवन चलती है तो प्याले घूमते हैं और इससे क्षैतिज भुजाएँ भी घूमने लगती हैं। इन भुजाओं के घूमने से ऊर्ध्वाधर त’ भी घूमने लगता है। पवन जितने ही अधिक वेग से चलती है, उतनी ही अधिक वेग से तर्कु घूमता है। तर्कु के आधार पर एक यन्त्र लगा होता है जो निश्चित अवधि में तर्कु के चक्करों अर्थात् पवन की गति को अंकित करता रहता है। कभी-कभी पवन-वेगमापी बिजली के तारों द्वारा मौसम केन्द्र के अन्दर एक डायल से लगा दिया जाता है। यह डायल हवा की चाल को प्रति घण्टा किलोमीटर या मील या ‘नाट’ में प्रदर्शित करता है।

वात यन्त्रों को ऐसे खुले स्थान पर रखना चाहिए जहाँ स्थानीय बाधाएँ न हों। इन्हें बहुत दूर तथा आस-पास की ऊँची वस्तुओं से अधिक ऊँचाई पर रखना चाहिए। सामान्यतया वात यन्त्रों को ऊँचे टावर पर खुली जगह पर लगाया जाता है।

प्रश्न 3.
मौसम मानचित्र में प्रयोग होने वाले मौसम-चिह्नों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मौसम मानचित्र पर वायु की गति, मेघाच्छादन, वर्षा, समुद्र की दशा तथा अन्य कई प्रकार के मौसम तत्त्वों को विभिन्न चिहनों की सहायता से दर्शाया जाता है।
1. वायु की गति तथा दिशा-वायु की गति तथा उसकी दिशा एक छोटे से वृत्त के किनारे पर खींचे गए तीर द्वारा दर्शाई जाती है। तीर पवनों की दिशा से वृत्त की ओर खींचा जाता है। तीर पर छोटी रेखाएँ या त्रिभुजाएँ होती हैं जो वायु की गति को प्रस्तुत करती हैं (चित्र 9.8)।
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2. मेघाच्छादन-आकाश पर मेघों के आवरण को एक छोटे-से वृत्त द्वारा दर्शाया जाता है। बिल्कुल स्वच्छ आकाश को खाली वृत्त द्वारा तथा पूर्ण मेघाच्छादन को पूर्णतः काले वृत्त द्वारा दर्शाया जाता है। चित्र 9.9 में आकाश में मेघाच्छादन की विभिन्न दशाओं को दर्शाया गया है।

3. अन्य चिह्न-धुन्ध कोहरा, झंझावात, हिमपात, बौछार, ओला आदि मौसमी तत्त्वों विभिन्न चिह्नों द्वारा दर्शाया जाता है। जिनकी सूची चित्र 9.9 में दी गई है।
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4. समुद्र की दशाएँ समुद्र की दशाओं को संकेताक्षरों द्वारा दर्शाया जाता है। इनका विवरण इस प्रकार है-

संकेताक्षर पूर्ण शब्द अर्थ
W Wave direction तरंग की दिशा
Cm Calm शान्त सागर
Sm Smooth अत्यल्प तरंगित सागर
SI Slight अल्प तरंगित सागर
Mod Moderate सामान्य तरंगित सागर
Ro Rough प्रक्षुब्ध सागर
V.Ro Very Rough अति प्रक्षुब्ध सागर
Hi High उच्च तरंगित सागर
V.Hi Very High अत्युच्च तरंगित सागर
Ph Phenomenal प्रलयकारी सागर

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 8 मौसम यंत्र, मानचित्र तथा चार्ट

प्रश्न 4.
भारतीय दैनिक मौसम मानचित्र के वर्णन के शीर्षकों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय दैनिक मौसम मानचित्र का वर्णन करने की विधि के अनुसार इन मानचित्रों का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जाता है-
1. प्रारम्भिक सूचना (Preliminary Introduction)

2. वायुमण्डलीय दाब (Atmospheric Pressure)

  • उच्च दाब के क्षेत्र (Location of bar high)
  • निम्न दाब के क्षेत्र (Location of bar low)
  • समदाब रेखाओं की प्रवृत्ति (Trend of isobars)
  • दाब प्रवणता (Pressure gradient)

3. पवनें (Winds)

  • पवनों की दिशा (Direction of winds)
  • पवनों का वेग (Velocity of winds)

4. आकाश की दशा (Sky condition)

  • मेघावरण (Cloud cover) की मात्रा
  • मेघों की प्रकृति (Nature of the clouds)
  • अन्य वायुमण्डलीय परिघटनाएँ (Other atmospheric Phenomena)

5. वृष्टि (Precipitation)

  • वर्षण का सामान्य वितरण (General distribution of rainfall),
  • भारी वर्षण के क्षेत्र (Areas of heavy precipitation)

6. समुद्र की दशा (Sea condition)

7. न्यूनतम तापमान का प्रसामान्य से विचरण
(Departure of minimum temperature from normal)

8. वायुदाब का प्रसामान्य से विचलन
(Departure of Pressure from normal)

सायः 5.30 बजे (17.30 hours) के मौसम मानचित्र में न्यूनतम तापमान के प्रसामान्य से विचलन के स्थान पर अधिकतम तापमान का प्रसामान्य से विचलन (Departure of maximum temperature from normal) दिखाया जाता है। इसके साथ ही समुद्र-तल से 1.5 कि०मी० की ऊँचाई पर पवनों (Winds at 1.5 km above mean sea level) को भी दिखाया जाता है।

प्रश्न 5.
दिए गए भारतीय मौसम मानचित्र का विस्तृत अध्ययन कीजिए।
उत्तर:
1. प्रारम्भिक सूचना (Preliminary Introduction)-दिया गया मौसम मानचित्र 15 अगस्त, 1969 को भारतीय समय के अनुसार प्रातः 8.30 बजे की मौसमी दशाओं को प्रदर्शित करता है (चित्र 9.10)।

2. वायुमण्डलीय दाब-
(1) सामान्य (General) सामान्य रूप से वायुदाब दक्षिण से उत्तर की ओर कम होता है। दक्षिण में अधिकतम वायुदाब 1012 मिलीबार तथा उत्तर में न्यूनतम वायुदाब 994 मिलीबार है।

(2) उच्च वायुमण्डलीय दाब-क्षेत्र अरब सागर में लक्षद्वीप के दक्षिण-पश्चिम में उच्च वायुदाब की समभार रेखा स्थित है जिसका मान 1012 मिलीबार है। उत्तर में एक अन्य 1006 मिलीबार का उच्च भार क्षेत्र भूटान के निकट स्थित है।

(3) निम्न वायुमण्डलीय दाब-क्षेत्र भारत के मानचित्र पर निम्न वायुमण्डलीय दाब-क्षेत्र उपस्थित हैं
(क) एक निम्न भार क्षेत्र भारतीय सीमा के निकट पाकिस्तान के उत्तरी-पूर्वी सीमान्त पर स्थित है। यह 994 मिलीबार की समभार रेखा द्वारा घिरा हुआ है।

(ख) दूसरा निम्न भार क्षेत्र उत्तरी-पूर्वी राज्यों पर स्थित है जो 1004 मिलीबार की समभार रेखा द्वारा घिरा हुआ है।

(ग) तीसरा महत्त्वपूर्ण निम्न वायुदाब क्षेत्र उड़ीसा के तट पर स्थित है। यह 996 मिलीबार की समभार रेखा द्वारा घिरा हुआ है। यह रेखा लगभग वृत्ताकार है और यहाँ पर विकसित हुए चक्रवात का केन्द्रीय भाग है।

(4) समभार रेखाओं की प्रवृत्ति-सामान्यतः समभार रेखाएँ पश्चिम से पूर्व दिशा में जाती हैं। परन्तु कई स्थानों पर स्थानीय रूप से इस प्रवृत्ति में विकार आ रहा है। उदाहरणतः ओडिशा के तट पर चक्रवात विकसित होने के कारण समभार रेखाएँ – वृत्ताकार हैं। दक्षिणी पठार पर स्कान (Wedge) बनता है। उत्तर-पश्चिमी भाग में समभार रेखाएँ दक्षिण-पश्चिम से उत्तर:पूर्व की ओर
जाती हैं।

(5) दाब प्रवणता-बंगाल की खाड़ी तथा निकटवर्ती ओडिशा एवं पश्चिमी बंगाल में समभार रेखाएँ एक-दूसरे के बहुत निकट हैं जिस कारण यहाँ पर दाब प्रवणता अधिक है। देश के अन्य भागों में समभार रेखाएँ दूर-दूर हैं जिस कारण वहाँ पर दाब प्रवणता कम है।

3. पवनें पवनों की दिशा तथा उनका वेग उच्च व निम्न वायुदाब की स्थिति तथा दाब की प्रवणता पर निर्भर करते हैं।
(1) पवनों की दिशा लगभग सारे प्रायद्वीपीय भारत में पवनें पश्चिम से पूर्व की ओर चलती हैं। बंगाल की खाड़ी के चक्रवातीय क्षेत्र में पवनें वामावर्त हैं। उत्तरी भारत के अधिकांश भागों में पवनें पूर्व से पश्चिम दिशा में चल रही हैं।

(2) पवनों का वेग पवनों का वेग दाब प्रवणता पर निर्भर करता है। अधिक दाब प्रवणता होने पर पवनों का वेग अधिक होता है जबकि कम दाब प्रवणता होने पर पवनों का वेग कम होता है। दक्षिणी भारत में उत्तरी भारत की अपेक्षा पवनों का वेग अधिक है। उत्तरी भारत में पवन वेग 1-10 नॉट है जबकि दक्षिणी भारत में 10-15 नॉट प्रति घण्टा है। पूर्वी तट पर चक्रवात उत्पन्न होने के कारण पवनों का वेग कई स्थानों पर 15-20 नॉट है।

4. आकाश की दशाएँ-(1) मेघावरण की मात्रा (Cloud cover)-वर्षा ऋतु के कारण देश के अधिकांश भाग मेघाच्छादित हैं। गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा, गंगा का मैदान तथा पर्वतीय भाग पूर्ण रूप से मेघों से ढके हुए हैं। कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु मेघारहित हैं।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 8 मौसम यंत्र, मानचित्र तथा चार्ट 9

(2) मेघों की प्रकृति देश में अधिकतर निम्न ऊँचाई (Low Clouds) वाले मेघ छाए हुए हैं। पूर्वी तट पर ऊँचे मेघ मिलते हैं।

(3) अन्य वायुमण्डलीय घटनाएँ कई स्थानों पर झंझा, ओला तथा तूफान की घटनाएँ दिखाई गई हैं।

5. वृष्टि-वर्षा ऋतु के कारण देश के सभी भागों में कुछ-न-कुछ वर्षा आवश्यक है। अधिक वर्षा के क्षेत्र पंजाब, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश हैं जहाँ पिछले 24 घण्टों में 3 से 17 मिलीमीटर वर्षा अंकित की गई है, उड़ीसा तट पर चक्रवात के कारण कई स्थानों पर 3 से 8 मिलीमीटर वर्षा रिकॉर्ड की गई। मध्य प्रदेश, बिहार, मेघालय में 2 से 6 मिलीमीटर वर्षा हुई। दक्षिणी पठार तथा राजस्थान वर्षारहित प्रदेश हैं।

6. समुद्र की दशा-पूर्वी तट पर तेज पवनों के कारण सागर की लहरें मन्द (Moderate) हैं। पश्चिमी तट पर सागरीय लहरें विनित (Smooth) हैं।

7. अधिकतम तथा न्यूनतम तापमान का सामान्य से विचलन-राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा पूर्वी तट पर दिन का तापमान सामान्य से 4° अधिक है। शेष भागों में रात्रि का तापमान सामान्य से विचलन कम है।

8. वायुदाब का सामान्य से विचलन लगभग सारे देश में वायुदाब सामान्य से कम है। यह विचलन दक्षिण भारत में 4 से 8 मिलीबार तक है। अन्य भागों में वायुदाब सामान्य है।

मौसम यंत्र, मानचित्र तथा चार्ट HBSE 11th Class Geography Notes

→ मौसम (Weather) : किसी स्थान तथा विशेष समय के मौसम संबंधी वायुमण्डलीय दिशाओं को ‘मौसम’ कहते हैं।

→ वायुदाब (Air Pressure) : अन्य पदार्थों की भाँति वायु में भी भार होता है जिस कारण वह भूतल पर दबाव डालती है। वायु के इस दबाव को ‘वायुदाब’ कहते हैं।

→ वास्तविक आर्द्रता (Absolute Humidity) : किसी निश्चित तापमान पर वायु में उपस्थित जलवाष्प की वास्तविक मात्रा को उस वायु की वास्तविक आर्द्रता कहा जाता है।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 8 मौसम यंत्र, मानचित्र तथा चार्ट

→ समदाब रेखाएँ (Isobars) : समदाब रेखाएँ वे रेखाएँ होती हैं जो मानचित्र पर समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाती हुई खींची जाती हैं।

→ समताप रेखाएँ (Isotherms) : समान तापमान वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएँ।

→ समवर्षा रेखाएँ (Isotherms) : दिए गए समय में समान औसत वार्षिक वर्षा वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएँ।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 7 सुदूर संवेदन का परिचय

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Practical Work in Geography Chapter 7 सुदूर संवेदन का परिचय Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 7 सुदूर संवेदन का परिचय

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. हमारे शरीर में प्रदत्त सुदूर-संवेदन के प्राकृतिक उपकरण हैं-
(A) आँख
(B) कान
(C) नाक
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

2. यांत्रिक सुदूर-संवेदन मुख्यतः कितने प्रकार के होते हैं?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
उत्तर:
(C) चार

3. सुदूर-संवेदन में प्रयुक्त होने वाली ऊर्जा के कितने स्रोत हो सकते हैं?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
उत्तर:
(A) दो

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 7 सुदूर संवेदन का परिचय

4. सुदूर-संवेदन का प्रकार है-
(A) धरातलीय विभेदन
(B) वर्णक्रमीय विभेदन
(C) रेडियोमीट्रिक विभेदन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

5. वायुयान द्वारा सुदूर-संवेदन का लक्षण है-
(A) प्लेटफॉर्म कम स्थायी
(B) बृहत् मापक
(C) उच्च क्षेत्रीय विभेदन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुदूर-संवेदन का क्या अर्थ है?
उत्तर:
किसी वस्तु को छुए बिना उसका बोध या संवेद होना सुदूर-संवेदन कहलाता है।

प्रश्न 2.
तरंगदैर्ध्य को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
दो निकटवर्ती तरंग श्शृंगों (Wave Crests)अथवा तरंग गर्तों (Wave Troughs) के बीच की लम्बाई को तरंगदैर्ध्य कहते हैं।

प्रश्न 3.
सदूर-संवेदक कितने प्रकार के होते हैं? उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
सुदूर-संवेदक दो प्रकार के होते हैं-

  • प्राकृतिक सुदूर-संवेदक एवं
  • कृत्रिम सुदूर-संवेदक।

प्रश्न 4.
विद्युत-चुम्बकीय विकिरण को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
प्रकाश की गति से ऊर्जा का किसी दिकस्थान अथवा माध्यम से होने वाला प्रवर्धन विद्युत-चुम्बकीय विकिरण कहलाता है।

प्रश्न 5.
संवेदक किसे कहते हैं?
उत्तर:
कोई भी प्रतिबिम्बन अथवा अप्रतिबिम्बन साधन, जो विद्युत चुम्बकीय विकिरण को प्राप्त करने एवं उसे ऐसे संकेतों में परावर्तित करता हो, जिनसे फोटोग्राफीय अथवा अंकिक प्रतिबिम्बों को अभिलेखित तथा प्रदर्शित किया जा सकता हो।

प्रश्न 6.
राडार व फ्लैशगन में किस प्रकार की ऊर्जा का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
राडार व फ्लैशगन में कृत्रिम ऊर्जा का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 7.
भू-स्थैतिक उपग्रह की ऊँचाई कितनी है?
उत्तर:
36,000 कि०मी०।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 7 सुदूर संवेदन का परिचय

प्रश्न 8.
त्रियक रंग मिश्र को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
कृत्रिम रूप से उत्पादित रंगीन बिम्ब जिसमें नीला, हरा और लाल रंग उन तरंग क्षेत्रों को निर्दिष्ट किया जाता है जो प्राकृतिक रूप से अलग होते हैं। उदाहरण के तौर पर एक मानक त्रियक रंगी मिश्र में नीला रंग हरे विकिरण क्षेत्र (0.5 से 0.6 माइक्रोमीटर) को, हरा रंग लाल विकिरण क्षेत्र (0.6 से 0.7 माइक्रोमीटर) और अन्ततः लाल रंग अवरक्त क्षेत्र (0.7 से 0.8 माइक्रोमीटर) वाले विकिरण क्षेत्रों को निर्दिष्ट किए जाते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुदूर-संवेदन क्या है? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सुदूर-संवेदन (Remote Sensing)-दूरस्थ संवेदन सूचनाएँ एकत्रित करने की आधुनिक तकनीक है जिसके अन्तर्गत किसी वस्तु के बिना सम्पर्क में आए उसके बारे में दूर से ही सूचनाएँ प्राप्त की जाती हैं। पृथ्वी के सभी पदार्थ ऊर्जा का विकिरण, अवशोषण तथा परावर्तन करते हैं। अतः धरातलीय तत्त्वों की विशिष्टता के आधार पर सुदूर अन्तरिक्ष में सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं और वहाँ से निश्चित भू-केन्द्रों तक प्रेषित की जाती है। सुदूर-संवेदन तकनीक विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक तत्त्वों के मानचित्रण में अत्यन्त लाभदायक है। आधुनिक युग में कम्प्यूटर विधि द्वारा सुदूर-संवेदन से प्राप्त सूचनाओं को बड़े प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। अतः प्राकृतिक संसाधनों के विश्लेषण में सुदूर-संवेदन विधि का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक और कृत्रिम सुदूर-संवेदकों में अन्तर स्पष्ट करते हुए चार मुख्य प्रकार के यान्त्रिक सुदूर-संवेदकों के नाम बताइए।
उत्तर:
आँख, नाक, कान व त्वचा सुदूर-संवेदन के प्राकृतिक उपकरण हैं। कृत्रिम सुदूर-संवेदी उपकरणों का आविष्कार किया जाता है। रेडियोमीटर, ऑडियोमीटर, मैग्नेटोमीटर, ग्रेवीमीटर तथा साधारण कैमरा कृत्रिम सुदूर-संवेदी यन्त्र हैं।

प्रश्न 3.
उपग्रह द्वारा सुदूर-संवेदन के क्या-क्या गुण हैं?
उत्तर:
उपग्रह द्वारा सुदूर-संवेदन ने वर्षों और महीनों में एकत्रित होने वाली ‘सूचनाओं को क्षणों में उपलब्ध करवाकर ज्ञान-विज्ञान की शाखाओं में सूचना क्रान्ति ला दी है। उपग्रह द्वारा सुदूर-संवेदन में दृश्य का चित्र विस्तृत तथा सार रूप में खींचा जा सकता है।

प्रश्न 4.
सुदूर-संवेदन की सक्रिय प्रणाली क्या है?
उत्तर:
सक्रिय संवेदन प्रणाली वह प्रणाली होती है जिसमें मानव द्वारा उत्पादित ऊर्जा का प्रयोग होता है। इसमें ऊर्जा अपने स्रोत से वस्तु तक जाती है और उसका कुछ भाग परावर्तित होकर पुनः स्रोत तक पहुँचता है। वहाँ पर इसे डिक्टेटर द्वारा रिकॉर्ड किया जाता है। राडार सक्रिय संवेदन प्रणाली का प्रमुख उदाहरण है।

प्रश्न 5.
भूगोल में सुदूर-संवेदन के प्रयोग की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भूगो सुदूर-संवेदन तकनीक का निम्नलिखित विषयों के अध्ययन में प्रयोग किया जाता है-

  • समुद्र विज्ञान तथा सागरीय सम्पदा।
  • कृषि, वन सम्पदा तथा मिट्टी।
  • भू-गर्भ विज्ञान।
  • जल विज्ञान।
  • मौसम विज्ञान।
  • भूमि-उपयोग विश्लेषण।
  • मानचित्र विज्ञान।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 7 सुदूर संवेदन का परिचय

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुदूर-संवेदन विधि के क्या उपयोग हैं? इस विधि में आधारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दूरस्थ संवेदन प्रणाली का उपयोग-वर्तमान समय में सामान्य, रंगीन, इन्फ्रारेड एवं त्रिआयामी (Three dimensional) फोटोग्राफी द्वारा, लेज़र किरणों की पद्धति के उपयोग द्वारा तथा कम्प्यूटर एवं रेडार के उपयोग द्वारा कुछ विकासशील देशों की . दृश्य-भूमि (Landscape) का प्रमाणिक ज्ञान ऐसे साधनों द्वारा होने लगा है। इससे मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रकार की सम्बन्धित सूचनाएँ प्राप्त की जाती हैं

  • भतल पर विकसित दृश्यावली एवं दृश्यभूमि (An Areal Mosaic and Landscapes)
  • प्राकृतिक प्रदेश एवं पृष्ठभूमि (Natural regions and its background)
  • भूशैल एवं भू-विज्ञान अध्ययन तकनीकी-रडार इन्फ्रारेड एवं विविध बैण्डों की रंगीन फोटोग्राफी से विभिन्न प्रकार की शैलों, मिट्टियों एवं खनिजों का प्रारम्भिक अध्ययन किया जाता है
  • प्रादेशिक यातायात विकास हेतु नीति निर्धारण इससे सम्भावित मार्ग-निर्माण का स्वरूप एवं उसकी दिशा आदि का ज्ञान निरन्तर प्राप्त इमेजियरी चित्रों से होता है।

सुदूर-संवेदन विधि (Remote Sensing) द्वारा अर्द्धविकसित प्रदेशों का एवं ऐसे क्षेत्रों का, जिनका कि एकाधिक कारणों से स्थलाकृति मानचित्र उपलब्ध नहीं है, का सम्पूर्ण सर्वेक्षण कार्य अल्प समय में ही पूरा किया जा सकता है। लेण्डसेट उपग्रह शृंखला, इण्टलसेट, रोहिणी, इनसेट I-B से प्राप्त अनेक प्रकार की वेवलेन्थ (Wave length) वाली अलग-अलग बैण्ड (Band) से प्राप्त इमेजरी से संसाधनों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई है। इस दृष्टि से बेण्ड 5 से 7 के बीच विभिन्न स्तरों व बेण्डों के इमेजरी (Imagery) का ज्ञान मानचित्र एवं परिणाम अलग-अलग आभाओं की सघनता एवं विरलता से लगता है।

इससे सरलता से वनों के प्रकार, उनके विकास की अवस्था, फसलों के प्रकार एवं अवस्था, उनके रोग एवं प्रकोप, वनों के विदोहन की सम्भावनाएँ, चट्टानों एवं मिट्टियों का विशिष्ट वितरण, किसी क्षेत्र की पहुँच आदि बातों का पता लगाया जा सकता है। इन्फ्रारेड इमेजरी (Infra-red Imagery) के द्वारा इन सबकी सघनता एवं विरलता का ज्ञान होता है। इसी कारण अब वायु फोटो व्याख्या एवं दूरस्थ संवेदन (Remote Sensing) अपने-आप में एक महत्त्वपूर्ण स्वतन्त्र विज्ञान बनता जा रहा है। इसकी विधियों में तीव्र गति से विकास हो रहा है। इसके साथ ही अब इसमें लेजर किरणों का प्रयोग कर साधारण फोटो या त्रिविमीय (Third Dimensional)

फोटोग्राफी करने के लिए होलोग्राफी (Holography) का भी प्रयोग किया जाने लगा है। इस तकनीक द्वारा वायुफोटो एवं इमेजरी एवं दूरस्थ संवेदन तन्त्र को सीखने हेतु विशिष्ट प्रशिक्षण अनुसन्धान केन्द्र भी स्थापित किए जा चुके हैं। भारत में ऐसे केन्द्र हासन, हैदराबाद, देहरादून तथा अहमदाबाद में स्थापित किए गए हैं। कुछ अन्य केन्द्रों, जिनमें हरिकोटा, कोलकाता एवं दिल्ली मुख्य हैं, में ऐसी सुविधाएँ विकसित की जा चुकी हैं।

भूगोल में इस तकनीक का प्रयोग न सिर्फ विषय के विकास के लिए वांछनीय है, बल्कि यह एक अनिवार्य तत्त्व बनकर स्थान (Locality), क्षेत्र (Area) अनेक प्रकार के प्रदेशों (Various types of regions e.g., Macro, Meso, Mico) की तुलनात्मक व्याख्या, विश्लेषण एवं नियोजन के लिए भी किया जाता है।

नवीन परिवेश से भूतल की क्रियाओं से प्रभावित आँकड़े फोटो एवं इमेजरी सूचनाएँ एवं पृष्ठभूमि के द्वारा जो सम्पूर्ण सूचना संग्रह प्राप्त होता है, उसके परिष्करण, विश्लेषण एवं परिणाम की प्रक्रिया में भी निश्चित रूप से गतिशीलता एवं तेजी बनी रहनी चाहिए। इसी कारण वर्तमान समय में दूरस्थ संवेदन विधियों का प्रयोग बढ़ रहा है। दूरस्थ संवेदन में व्याख्या करने के लिए निम्नलिखित आधारों का सहारा लेना पड़ता है
1. आकार-अधिकांश दूरस्थ संवेदन चित्रों को अनेक आकार के आधार पर पहचाना जा सकता है; जैसे पहाड़ी क्षेत्रों का उच्चावच मैदानी क्षेत्रों की तुलना में छोटा व विरल होता है। मैदान के आकार को देखकर कृषि की सघनता देखी जाती है। अधिकतर वस्तुओं को मानक के आधार पर पहचाना जाता है।

2. आकृति-आकाशीय छायाचित्रों के विश्लेषण के लिए यह जरूरी है कि वस्तुओं की आकृति का ज्ञान हो, भवन व कारखाने, खेत, सड़कें, रेलमार्ग, नहरें, रजवाहे, खेल के मैदान तथा बाग-बगीचे आदि नियमित ज्यामितीय आकृति के होते हैं, जबकि नदी, झीलें, मरुस्थल, तालाब एवं वन आदि अनियमित आकृति के होते हैं।

3. आभा आकाशीय छायाचित्रों में धूसर रंग की विभिन्न प्रकार की आभाएँ होती हैं, इन आभाओं का गहरापन इस बात पर आधारित है कि धरातल से प्रकाश की कितनी मात्रा परावर्तित होती है। यदि सतह पर प्रकाश का परावर्तन अधिक होता है तो आभाएँ पतली होती हैं तथा प्रकाश के कम परावर्तन में आभाएँ गहरी होती हैं।

इन आभाओं के आधार पर छायाचित्रों को पहचाना. जाता है; जैसे स्वच्छ पानी, गहरा धूसर या काला दिखाई देता है, जबकि गन्दा पानी हल्का भूरा दिखाई देता है। ऊर्ध्वाधर छायाचित्रों में सड़कों की आभा रेलमार्गों से कम होती है, क्योंकि सड़कों से प्रकाश का परावर्तन अधिक होता है। इसी तरह शुष्क भू-भाग की अपेक्षातर भू-भाग की आभा हल्के रंग की दिखाई देती है। रेत का रंग सफेद दिखता है। लम्बी फसल वाले क्षेत्र की आभा गहरी दिखती है। पके गेहूँ की कृषि की आभा हल्के रंग की दिखाई देती है।

4. गठन गठन अनेक तरह का होता है; जैसे चिकना, चितकबरा एवं धारीदार आदि। आकाशीय छायाचित्रों के गठन द्वारा भी क्षेत्रों की पहचान अच्छे ढंग से की जा सकती है। सामान्यतः जुते हुए खेतों का गठन धारीदार, झाड़ियों का गठन महीन चितकबरा एवं वनों का गठन मोटा चितकबरा होता है।

5. परछाई परछाई से हमें पता चलता है कि सम्बन्धित विवरण सामान्य धरातल से नीचा है या ऊँचा है। परछाई विवरण के बाहर ता है, जबकि परछाई विवरण अन्दर होने पर धरातल नीचा होगा। परछाई से ऊँचाई भी ठीक ज्ञात की जा सकती है। यदि हवाई चित्रों में अक्षांशीय विस्तार दिया हो तो परछाई से दिशाएँ भी ज्ञात की जा सकती हैं।

6. पहुँच मार्ग-पहुँच मार्गों के द्वारा भी छायाचित्रों को पहचाना जा सकता है, जैसे किसी आवास तक कोई मार्ग अवश्य होगा, . यदि वह मार्ग चित्र में समाप्त होता दिखाई दे तो स्पष्ट होता है कि यहाँ आवास गृह अवश्य होंगे, चाहे वे दिखाई न देते हों।

लक्ष्यों की पहचान तथा उनके महत्त्व को जानने के लिए प्रतिबिम्बों के परीक्षण करने का कार्य प्रतिबिम्ब व्याख्या के रूप में परिभाषित किया जाता है। व्याख्याकार दूरस्थ संवेदन (Remote Sensing) के आँकड़ों का अध्ययन करता है। वायु फोटोग्राफी विधि में निम्नलिखित नौ तत्त्व महत्त्वपूर्ण माने गए हैं-

  • आकृति
  • आकार
  • आभा
  • छाया
  • गठन
  • पैटर्न
  • स्थान
  • प्रस्ताव
  • स्टीरियोस्कोपिक आकृति।

आकाशीय फोटोचित्रों का मापक भारतीय सर्वेक्षण विभाग की तरह निश्चित एवं समान नहीं होता। आकाशीय फोटोचित्रों में । किन्हीं दो या अधिक स्थानों का मापक भारतीय सर्वेक्षण विभाग के उन्हीं स्थानों को सन्दर्भ बिन्दु मानकर मापक का पता लगाया जाए तो कभी भी समान नहीं होगा। इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा ज्ञात किया जाता है-
मापक = \(\frac { f }{ H’ }\)
यहाँ f = कैमरा (लैन्स) की फोकस दूरी।
H = माध्य, H = H-h (H = M.S.L. से ऊँचाई, h = सामान्य ऊँचाई)
भारतीय दूरस्थ संवेदन उपग्रह प्रणाली (आई०आर०एस०) राष्ट्रीय प्राकृतिक संसाधन प्रणाली का मुख्य भाग है एवं अन्तरिक्ष . विभाग दूरस्थ संवेदन आँकड़े उपलब्ध कराने वाली मुख्य संस्था है। इस संस्था का पहला उपग्रह आई०आर०एस० -ए मार्च, 1988 में अन्तरिक्ष में छोड़ा गया था। पहले की तरह दूसरा भारतीय दूर-संवेदी उपग्रह आई०आर०एस० I-बी अगस्त, 1991 में छोड़ा गया था। भारतीय दूरस्थ संवेदन प्रणाली आई०आर०एस० I-सी, आई०आर०एस०पी०-3, आई०आर०एस० -डी तथा आई०आर०एस०पी०-4 के प्रक्षेपण से बहुत सुदृढ़ हुई है। इनमें अन्तिम तीन उपग्रहों का प्रक्षेपण भारतीय प्रक्षेपण यान पी०एस०एल०वी० द्वारा किया गया। आई०आर०एस० -सी को 28 दिसम्बर 1995 में एक रूसी रॉकेट से तथा आई०आर०एस०डी० को पी०एस०एल०वी० से 29 दिसम्बर, 1997 को अन्तरिक्ष में छोड़ा गया था।

इन अन्तरिक्ष यानों में पहले अन्तरिक्ष यानों की तुलना में बेहतर वर्णक्रमीय और स्थानिक विभेदन, अधिक तेजी से चक्कर लगाने, स्टीरियो (त्रिविमीय) निरीक्षण और रिकॉर्डिंग क्षमता अधिक होती है। इनमें रखे टेप-रिकॉर्ड आँकड़ों को दर्ज करते हैं। आई०आर०एस०पी०-3 को 21 मार्च, 1996 में छोड़ा गया था। इसमें डी०एल०आर० जर्मनी द्वारा परिकल्पित आप्टो इलैक्ट्रानिक स्केनर है। इसमें वनस्पति विज्ञान के अध्ययन के लिए आई०आर०एस० I-सी की तरह ही एक अतिरिक्त शार्ट वेव बैण्ड है तथा एक्स-रे खगोल-विज्ञान पर लोड भी है जो अन्तरिक्ष के एक्सरे-स्रोतों के स्पेक्ट्रम की विशेषताएँ एवं उनमें परिवर्तन की जानकारी देता है। पी०एस०एल०वी० से आई०आर०एस०पी० को 26 मई, 1999 को अन्तरिक्ष में छोड़ा गया था। भारत में दूरस्थ संवेदन (Remote Sensing) विधि का प्रयोग निम्नलिखित क्षेत्रों में किया जा रहा है

  • विभिन्न फसलों के क्षेत्रफल और उत्पादन का आकलन
  • बंजर भूमि प्रबन्धन
  • शहरी विकास
  • बाढ़ नियन्त्रण और क्षति का आकलन
  • भूमि उपयोग
  • जलवायु के अनुसार कृषि की योजना बनाना
  • मौसम सम्बन्धी जानकारी के लिए
  • जल संसाधन का प्रबन्धन
  • भूमिगत पानी की खोज
  • मत्स्य पालन विकास
  • खनिजों का पता लगाना
  • वन-संसाधनों के सर्वेक्षण आदि।

सुदूर संवेदन का परिचय HBSE 11th Class Geography Notes

→ सुदूर-संवेदन (Remote Sensing) : किसी वस्तु को छुए बिना उसका बोध या संवेद होना सुदूर-संवेदन कहलाता है।

→ मैग्नेटोमीटर (Magnetometre) : यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों को मापता है।

→ ग्रेवीमीटर (Gravimetre) : यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में होने वाले परिवर्तनों को मापता है।

→ संवेदक (Sensors) : संवेदक एक प्रकार की मशीनें युक्ति या उपकरण होते हैं जो विद्युत चुंबकीय विकिरण ऊर्जा को एकत्रित करते हैं और उन्हें संकेतकों में बदलकर अन्वेषण लक्ष्यों के विषय में सूचना प्रदान करते हैं।

→ वर्णक्रमीय विभेदन (Spectral Resolution) : यह विभेदन विद्युत-चुंबकीय स्पेक्ट्रम के विभिन्न ऊर्जा क्षेत्रों में संवेदक के अभिलेखन की क्षमता से संबंधित है।

→ प्रतिबिम्ब (Image) : प्रतिबिम्ब किसी क्षेत्र विशेष को संसूचित व अभिलेखित की गई ऊर्जा का चित्र रूप में प्रदर्शन करता है।

HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

Haryana State Board HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class History Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

निबंधात्मक उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जापान में शोगुनों के उत्थान एवं पतन के बारे में आप क्या जानते हैं ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जापान के इतिहास में शोगुनों ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई। जापान का सम्राट मिकाडो (mikado) सर्वोच्च होता था। उसके मुख से निकला प्रत्येक शब्द कानून समझा जाता था। वह क्योतो (Kyoto) से शासन करता था। सम्राट का प्रधान सेनापति शोगन कहलाता था। जापान के राजनीतिक इतिहास में एक नए चरण का आरंभ तब हुआ जब 1603 ई० में तोकुगावा (Tokugawa) वंश के लोगों ने शोगुन पद पर अधिकार कर लिया। इस वंश के लोग इस पद पर 1867 ई० तक कायम रहे।

तोकुगावा शोगुनों ने अपनी शक्ति में काफी वृद्धि कर ली थी। उनके शासनकाल में सम्राट् बिल्कुल महत्त्वहीन हो गया था। कोई भी व्यक्ति शोगुन की अनुमति के बिना सम्राट से नहीं मिल सकता था। सम्राट को प्रशासन में किसी प्रकार की कोई भूमिका नहीं दी गई थी। तोकुगावा शोगुनों ने एदो (Edo) को जिसे अब तोक्यो (Tokyo) के नाम से जाना जाता है अपनी राजधानी घोषित किया। उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान अपने विरोधियों को पराजित कर जापान में कानून व्यवस्था को लागू किया।

उन्होंने एदो में एक विशाल दुर्ग का निर्माण करवाया जहाँ बड़ी संख्या में सैनिकों को रखा जाता था। वे दैम्यो, प्रमुख शहरों एवं खदानों (mines) पर भी नियंत्रण रखते थे। उन्होंने जापान को 250 क्षेत्रों (domains) में बाँटा था। प्रत्येक क्षेत्र को एक दैम्यो (daimyo) के अधीन रखा गया था। दैम्यो अपने अधीन क्षेत्र में लगभग स्वतंत्र होता था। उसे अपने अधीन क्षेत्र के लोगों को मृत्यु दंड देने का अधिकार था।

शोगुन दैम्यो पर कड़ा नियंत्रण रखते थे ताकि वे शक्तिशाली न हो जाएँ। उन्हें सैनिक सेवा करने एवं जन-कल्याण के कार्य करने के लिए बाध्य किया जाता था। शोगुन के जासूस उनकी गतिविधियों पर नियंत्रण रखते थे। प्रत्येक दैम्यो के लिए यह आवश्यक था कि वह वर्ष के चार माह राजधानी एदो में रहे।

जापान के प्रशासन में सामुराई (samurai) की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। सामुराई योद्धा वर्ग (warrior class) से संबंधित थे। वे शोगुन एवं दैम्यो को प्रशासन चलाने में प्रशंसनीय योगदान देते थे। वे अपनी वफ़ादारी, वीरता एवं सख्त जीवन के लिए प्रसिद्ध थे। केवल उन्हें तलवार धारण करने का अधिकार था। वे रणभूमि में वीरगति पाने को एक भारी सम्मान समझते थे। पराजित होने पर वे आत्महत्या कर लेते थे। आत्महत्या के लिए वे दूसरे समुदाय की तलवार से अपना पेट चीर लेते थे। इसे हरकारा (Harkara) पद्धति कहा जाता था।

उन्हें समाज का विशिष्ट वर्ग माना जाता था। अत: उन्हें अनेक सुविधाएँ प्रदान की गई थीं। तोकुगावा शासनकाल (1603-1867 ई०) में राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं बौद्धिक स्तर पर अनेक उल्लेखनीय परिवर्तन हुए जिनके दूरगामी प्रभाव पड़े। 17वीं शताब्दी के अंत में तीन महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए गए जिन्होंने आधुनिक जापान के विकास की आधारशिला रखी। प्रथम, किसानों से हथियार वापस ले लिए गए। केवल सामुराई तलवार रख सकते थे। इसके परिणामस्वरूप जापान में एक लंबे समय के पश्चात् शाँति स्थापित हुई।

दूसरा, दैम्यों को अपने क्षेत्रों की राजधानियों में रहने के आदेश दिए गए तथा उन्हें स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करने दिया गया। इससे जापान के विकास को बल मिला। तीसरा, जापान की भूमि का सर्वेक्षण किया गया। इसका उद्देश्य भूमि के मालिकों तथा करदाताओं का निर्धारण करना था। कर निर्धारण भूमि की उत्पादन शक्ति के आधार पर किया जाता था। 17वीं शताब्दी के मध्य तक जापान का शहर एदो (Edo) विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर बन गया। उस समय एदो में 10 लाख से अधिक लोग रहते थे।

इसके अतिरिक्त ओसाका (Osaka), क्योतो (Kyoto) एवं नागासाकी (Nagasaki) जापान के अन्य बड़े शहरों के रूप में उभरे। जापान में उस समय कम-से-कम 6 ऐसे शहर थे जिनकी जनसंख्या 50,000 से अधिक थी। उस समय अधिकाँश यूरोपीय देशों में एक बड़ा शहर होता था। जापान में शहरों के तीव्र विकास से व्यापार एवं वाणिज्य को बहुत बल मिला। इससे व्यापारी वर्ग बहुत धनी हुआ। इस वर्ग ने जापानी कला एवं साहित्य को एक नई दिशा देने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई।

तोकुगावा काल में जापान के लोगों में शिक्षा का काफी प्रचलन था। अनेक लोग केवल लेखन द्वारा ही अपनी जीविका चलाते थे। पुस्तकों का प्रकाशन बड़े स्तर पर किया जाता था। जापानी लोग यूरोपीय छपाई को पसंद नहीं करते थे। वे किताबों की छपाई के लिए लकड़ी के ब्लॉकों का प्रयोग करते थे। लोगों में पढ़ाई का इतना शौक था कि वे पुस्तकों को किराए पर लेकर भी पढ़ते थे। 18वीं शताब्दी में पश्चिमी देशों की अनेक महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का जापानी में अनुवाद किया गया। इससे जापान के लोगों को पश्चिम के ज्ञान के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त हुई।

तोकुगावा काल में जापान एक धनी देश था। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि जापान चीन से रेशम तथा भारत से वस्त्र आदि विलासी वस्तुओं का आयात करता था। इसके बदले वह सोना एवं चाँदी देता था। इसका जापानी अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा। इस कारण तोकुगावा को इन कीमती वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। उन्होंने रेशम के आयात को कम करने के उद्देश्य से 16वीं शताब्दी में निशिजन (Nishijin) में रेशम उद्योग की स्थापना की। आरंभ में केवल 31 परिवारों का एक संघ इस उद्योग से संबंधित था।

17वीं शताब्दी के अंत में इस संघ में 70,000 लोग सम्मिलित हो गए थे। इससे रेशम उद्योग को प्रोत्साहन मिला। 1713 ई० में केवल घरेलू धागे का प्रयोग करने संबंधी आदेश से इस उद्योग को अधिक बल मिला। 1859 ई० में जापान द्वारा विदेशी व्यापार आरंभ किए जाने से रेशम के व्यापार को सर्वाधिक मुनाफा मिलने लगा। इसका कारण यह था कि निशिजन का रेशम दुनिया में सबसे बेहतरीन माना जाता था। मुद्रा का बढ़ता हुआ प्रयोग तथा चावल का शेयर बाज़ार इस बात का संकेत था कि जापानी अर्थतंत्र नयी दिशाओं में विकसित हो रहा था।

1867 ई० में शोगुन पद की समाप्ति के साथ ही जापान के इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। शोगुनों का पतन किसी अचानक घटना का परिणाम नहीं था। इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इन कारणों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. शोगुनों की पक्षपातपूर्ण नीति:
शोगुनों की नीति बहुत पक्षपातपूर्ण थी। उन्होंने राज्य के सभी महत्त्वपूर्ण पदों पर केवल तोकुगावा वंश के लोगों को ही नियुक्त किया। इसके चलते अन्य सामंती वंशों में निराशा फैली तथा उन्होंने शोगनों का अंत करने का प्रण किया।

2. गलत आर्थिक नीति :
शोगनों के शासनकाल में उनकी गलत नीतियों के चलते जापान की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई थी। विवश होकर उन्हें अपने व्यय में कटौती करनी पड़ी। इस उद्देश्य से उन्होंने अपनी सेना की संख्या में कुछ कमी कर दी। किंतु नौकरी से निकाले गए सैनिक इसे सहन करने को तैयार नहीं थे। अतः उन्होंने शोगुनों को एक सबक सिखाने का निर्णय किया।

3. किसानों की दयनीय स्थिति:
शोगुन शासनकाल में किसानों की स्थिति बहुत दयनीय थी। उन पर अनेक प्रकार के कर लगाए गए थे। इन करों को बलपूर्वक वसूल किया जाता था। विवश होकर उन्होंने विद्रोहों का दामन थामा। इन विद्रोहों के चलते जापान में अराजकता फैल गयी थी।

4. व्यापारिक वर्ग का उदय:
19वीं शताब्दी जापान के समाज में एक नवीन व्यापारिक वर्ग का उत्थान हुआ। उन्नत व्यापार के चलते इनके पास काफी धन था। इसके बावजूद सामंत वर्ग उनसे ईर्ष्या करता था। अत: व्यापारी वर्ग अपनी हीन स्थिति को समाप्त करने के लिए जापान में शोगुन व्यवस्था का अंत करना चाहता था।

5. कॉमोडोर मैथ्यू पेरी का आगमन:
अमरीका ने 24 नवंबर, 1852 ई० को कॉमोडोर मैथ्यू पेरी को जापान की सरकार के साथ एक समझौता करने के लिए भेजा। वह 3 जुलाई, 1853 ई० को जापान की बंदरगाह योकोहामा में पहुँचा। इसका उद्देश्य अमरीका एवं जापान के मध्य राजनीतिक एवं व्यापारिक संबंध स्थापित करना था। पेरी जापान की सरकार के साथ 31 मार्च, 1854 ई० को कानागावा की संधि करने में सफल हो गया।

इस संधि के अनुसार जापान की दो बंदरगाहों शीमोदा (Shimoda) एवं हाकोदाटे (Hakodate) को अमरीका के लिए खोल दिया गया। शीमोदा में अमरीका के वाणिज्य दूत को रहने की अनुमति दी गई। जापान ने अमरीका के साथ बहुत अच्छे राष्ट्र (most favoured nation) जैसा व्यवहार करने का वचन दिया। विदेशियों के प्रवेश से जापान में स्थिति ने विस्फोटक रूप धारण कर लिया। शोगुन इस स्थिति को अपने नियंत्रण में लाने में विफल रहे। अतः उन्हें अपने पद को त्यागना पड़ा।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

प्रश्न 2.
मेज़ी काल के दौरान जापान का आधुनिकीकरण किस प्रकार हुआ ? वर्णन करें।
अथवा
मेज़ी काल के दौरान जापान के आधुनिकीकरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मेज़ी पुनर्स्थापना को जापान के इतिहास की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना माना जाता है। 1868 ई० में मुत्सुहितो (Mutsohito) जापान का नया सम्राट बना। वह तोक्यो (Tokyo) में सिंहासनारूढ़ हुआ। मुत्सुहितो ने 1912 ई० तक शासन किया। उसने सिंहासन पर बैठते समय ‘मेज़ी’ की उपाधि धारण की थी। मेज़ी से अभिप्राय था प्रबुद्ध सरकार (Enlightened Government)। मेजी शासनकाल के दौरान जापान में अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय सुधार किए गए।

इन सुधारों के चलते जापान की काया पलट हो गयी तथा वह एक शक्तिशाली एवं आधुनिक देश बन गया। वास्तव में मेज़ी पुनर्स्थापना के साथ जापान ने एक नए युग में प्रवेश किया। प्रसिद्ध इतिहासकार केनेथ बी० पायली के अनुसार, “मेज़ी काल (1868-1912) में जापान का पश्चिमीकरण अब तक का इतने कम समय हुआ किसी भी लोगों का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन माना जाता है।”

1. सामंती प्रथा का अंत:
मेज़ी सरकार की सबसे महत्त्वपूर्ण सफलता जापान में सामंती प्रथा का अंत करना था । इससे पर्व संपर्ण जापान में सामंतों का बोलबाला था। वे अपने अधीन क्षेत्रों का शासन प्रबंध चलाते थे। इस संबंध में उन्हें व्यापक अधिकार प्राप्त थे। वे अपने अधीन क्षेत्रों के लोगों को मत्य दंड तक दे सकते थे। सेना में केवल सामुराई सामंतों को भर्ती किया जाता था। सामंतों के शक्तिशाली होने के कारण सम्राट् केवल नाममात्र का शासक रह गया था। सामंती प्रथा जापान के एकीकरण के मार्ग में सबसे प्रमुख बाधा थी।

सामंती प्रथा के चलते किसानों की स्थिति बहुत दयनीय हो गई थी। सामंत उन पर घोर अत्याचार एवं भारी शोषण करते थे। मेज़ी सरकार ने 1871 ई० में जापान में सामंती प्रथा के अंत की घोषणा की। इसके अधीन सामंतों के सभी प्रकार के विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए। ऐसा करते समय सामंतों के हितों का विशेष ध्यान रखा गया। उनके लिए वार्षिक पेंशन की व्यवस्था की गई।

कुछ सामंतों को राष्ट्रीय सेना में भर्ती कर लिया गया। इस प्रकार जापान में सामंती प्रथा का अंत बिना किसी खून खराबे के हो गया। निस्संदेह इस प्रथा के अंत से जापान आधुनिकीकरण की दिशा की ओर अग्रसर हुआ। प्रसिद्ध इतिहासकार सी० ए० बस के अनुसार, “सामंतवाद के अंत ने एक ऐसी व्यवस्था को खत्म किया जो पिछले एक हजार वर्ष या इससे कुछ अधिक समय से जारी थी।”2

2. शिक्षा सुधार:
मेज़ी पुनर्स्थापना के पश्चात् जापान में उल्लेखनीय शिक्षा सुधार किए गए। इससे पूर्व शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार केवल समाज के उच्च वर्ग को ही प्राप्त था। स्त्रियों की शिक्षा की ओर तो बिल्कुल ध्यान नहीं दिया गया था। जापान में 1871 ई० में शिक्षा विभाग की स्थापना की गई। इसके पश्चात् शिक्षा के क्षेत्र में बहुत तीव्रता से प्रगति हुई। संपूर्ण जापान में अनेक स्कूलों एवं कॉलेजों की स्थापना की गई। 6 वर्ष के सभी बालक-बालिकाओं के लिए प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य कर दिया गया।

विद्यार्थियों को अच्छे नागरिक बनने एवं राष्ट्र के प्रति वफ़ादार रहने की प्रेरणा दी जाती थी। 1877 ई० में जापान में तोक्यो विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। तकनीकी शिक्षा को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया गया। पश्चिम की प्रसिद्ध पुस्तकों का जापानी भाषा में अनुवाद किया गया । स्त्रियों को शिक्षा प्राप्ति के लिए प्रेरित किया गया। 1901 ई० में जापानी महिला विश्वविद्यालय की स्थापना इस दिशा में एक मील पत्थर सिद्ध हुआ।

3. सैनिक सुधार:
मेज़ी काल में सेना को शक्तिशाली बनाने के उद्देश्य से अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किए गए अब तक जापान में कोई राष्ट्रीय सेना नहीं थी। सम्राट् केवल सामंतों की सेना पर निर्भर करता था। इस सेना में कोई आपसी तालमेल नहीं था। इस सेना में केवल सामुराई वर्ग का प्रभुत्व था। 1853 ई० में कॉमोडोर मैथ्यू पेरी के जापान आगमन के समय जापानी सेना की कमज़ोर स्थिति स्पष्ट हो गई थी। अतः जापान की सुरक्षा के लिए इसकी सेना का पुनगर्छन करना अत्यंत आवश्यक था।

इस उद्देश्य से जापानी राष्ट्रीय सेना का गठन किया गया । इसमें सभी वर्ग के लोगों को योग्यता के आधार पर भर्ती किया गया। 1872 ई० में 20 वर्ष से अधिक नौजवानों के लिए सैनिक सेवा को अनिवार्य कर दिया गया। नौसेना (navy) को भी अधिक शक्तिशाली बनाया गया। सेना को आधुनिक शस्त्रों से लैस किया गया।

4. आर्थिक सुधार:
मेज़ी काल में जापानी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से अनेक प्रशंसनीय पग उठाए गए। सरकार ने फुकोकु क्योहे (Fukoku Kyohei) का नारा दिया। इससे अभिप्राय था समृद्ध देश एवं मज़बूत सेना।।

(1) औद्योगिक विकास:
जापान में उद्योगों के विस्तार की ओर सरकार ने अपना विशेष ध्यान दिया। इस उद्देश्य से 1870 ई० में जापान में उद्योग मंत्रालय की स्थापना की गई। इस मंत्रालय की स्थापना जापानी उद्योगों के विकास के लिए एक मील पत्थर सिद्ध हआ। सरकार ने भारी उद्योगों के विकास के लिए पूँजीपतियों को प्रोत्साहित किया। अत: जापान में शीघ्र ही अनेक नए कारखाने स्थापित हुए।

इनमें लोहा-इस्पात उद्योग, वस्त्र उद्योग, रेशम उद्योग, जहाज़ उद्योग एवं शस्त्र उद्योग प्रसिद्ध थे। मित्सुबिशी (Mitsubishi) एवं सुमितोमो (Sumitomo) नामक कंपनियों को जहाज़ निर्माण के लिए विशेष सुविधाएँ प्रदान की गईं। इन उद्योगों में यूरोप से मँगवाई गई मशीनों को लगाया गया। मजदूरों के प्रशिक्षण के लिए विदेशी कारीगरों को बुलाया गया।

(2) कृषि सुधार:
मेज़ी काल में कृषि क्षेत्र में भी प्रशंसनीय सुधार किए गए। सामंती प्रथा का अंत हो जाने से किसानों की स्थिति पहले की अपेक्षा अच्छी हो गई। 1872 ई० में सरकार के एक आदेश द्वारा किसानों को उस भूमि का स्वामी स्वीकार कर लिया गया। किसानों से बेगार लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। किसानों को कृषि की पैदावार बढ़ाने के लिए राज्य की ओर से विशेष सुविधाएँ प्रदान की गईं।

उन्हें उत्तम किस्म के बीज दिए गए। पशओं की उत्तम नस्ल का प्रबंध किया गया। किसानों से अब अनाज की अपेक्षा नकद भू-राजस्व लिया जाने लगा। उन्हें कृषि के पुराने ढंगों की अपेक्षा आधुनिक ढंग अपनाने के लिए प्रेरित किया गया। पश्चिमी देशों से अनेक कृषि विशेषज्ञों को जापान बुलाया गया। जापान में अनेक कृषि विद्यालयों की स्थापना की गई। उन प्रयासों के परिणामस्वरूप जापान के कृषि क्षेत्र में एक क्राँति आ गई। निस्संदेह इसे मेज़ी काल की एक महान् सफलता माना जा सकता है।

(3) कुछ अन्य सुधार:
जापान की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से मेज़ी काल में कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण सुधार किए गए। सर्वप्रथम यातायात के साधनों का विकास किया गया। 1870-72 ई० में जापान में तोक्यो (Tokyo) एवं योकोहामा (Yokohama) के मध्य प्रथम रेल लाइन बिछाई गई। 1894-95 ई० में जापान में 2 हज़ार मील लंबी रेल लाइन बिछाने का कार्य पूरा हो चुका था। जहाज़ निर्माण के कार्य में भी उल्लेखनीय प्रगति की गई। द्वितीय, मुद्रा प्रणाली में महत्त्वपूर्ण सुधार किए गए। तीसरा, 1872 ई० में जापान में बैंकिंग प्रणाली को आरंभ किया गया। 1882 ई० में बैंक ऑफ जापान (Bank of Japan) की स्थापना की गई। प्रसिद्ध इतिहासकार सी० यनागा के शब्दों में, “मेज़ी पुनर्स्थापना एक आर्थिक क्राँति थी।”

5. मेज़ी संविधान:
मेज़ी काल की एक अन्य महत्त्वपूर्ण उपलब्धि 1889 ई० में एक नए संविधान को लागू करना था। इस संविधान के अनुसार सम्राट् को सर्वोच्च सत्ता सौंपी गई। उसे कई प्रकार के विशेषाधिकार प्राप्त थे। संपूर्ण सेना उसके अधीन थी। उसे किसी भी देश से युद्ध अथवा संधि करने का अधिकार दिया गया था। वह डायट (संसद्) के अधिवेशन को बुला सकता था तथा उसे भंग भी कर सकता था।

वह सभी मंत्रियों की नियुक्ति करता था तथा वे अपने कार्यों के लिए उसके प्रति उत्तरदायी होते थे। केवल सम्राट ही मंत्रियों को बर्खास्त कर सकता था। डायट का अधिवेशन प्रत्येक वर्ष तीन माह के लिए बुलाया जाता था। इसमें सदस्यों को बहस करने का अधिकार प्राप्त था। सम्राट् डायट की अनुमति के बिना लोगों पर नए कर नहीं लगा सकता था। नए संविधान की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह थी कि इसमें नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए थे।

6. न्यायिक सुधार:
मेज़ी काल में अनेक न्यायिक सुधार भी किए गए। जापान में 1882 ई० में एक नई दंड संहिता को लागू किया गया। इसके अनुसार अपराधियों को क्रूर सजाएँ देना बंद कर दिया गया। न्यायालयों के अधिकार निश्चित कर दिए गए। दीवानी एवं फ़ौजदारी कानूनों को अलग-अलग परिभाषित किया गया। केवल ईमानदार एवं उच्च चरित्र के व्यक्तियों को न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किया गया। अपराधियों की दशा को सुधारने के उद्देश्य से नई जेलों का निर्माण किया गया। इस प्रकार जापान न्यायिक क्षेत्र में आधुनिकीकरण के पथ पर आगे अग्रसर हुआ।

7. रोजमर्रा की जिंदगी में बदलाव:
मेज़ी काल में जापानियों की रोज़मर्रा की जिंदगी में अनेक महत्त्वपूर्ण बदलाव आए। इसमें जापान में हुए तीव्रता से शिक्षा के प्रसार, जापानियों की पश्चिमीकरण में दिलचस्पी एवं पत्रकारिता के प्रचार ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई। मेज़ी काल से पूर्व जापान में संयुक्त परिवार प्रणाली का प्रचलन था।

इसके अधीन परिवार की कई पीढ़ियाँ परिवार के मुखिया के नियंत्रण में रहती थीं, मेजी में परिवार के बारे में लोगों के दृष्टिकोण में तीव्रता से परिवर्तन आने लगा। अब एकल परिवार का प्रचलन बढ़ने लगा। इसमें पति, पत्नी एवं उनके बच्चे रहते थे। अतः वे नए घरों जिसे जापानी में होमु (homu) कहते थे में रहने लगे।

वे घरेलू उत्पादों के लिए बिजली से चलने वाले कुकर, माँस एवं मछली भूनने के लिए अमरीकी भूनक (American grill) तथा ब्रेड सेंकने के लिए टोस्टर का प्रयोग करने लगे। जापानियों में अब पश्चिमी वेशभूषा का प्रचलन बढ़ गया। वे अब सूट एवं हैट डालने लगे। औरतों के लिबास में भी परिवर्तन आ गया। वे यूरोपीय ढंग से अपने बालों को सजाने लगीं।

वे अब सौंदर्य वृद्धि की ओर विशेष ध्यान देने लगीं। दाँतों की चमक-दमक के लिए टूथब्रश एवं ट्थपेस्ट का प्रचलन बढ़ गया। परस्पर अभिवादन के लिए हाथ मिलाने का प्रचलन लोकप्रिय हो गया। मनोरंजन के नए साधनों का विकास हुआ। लोग ट्रामों एवं मोटरगाड़ियों द्वारा सैर-सपाटों पर जाने लगे।

1878 ई० में जापान में लोगों के लिए भव्य बागों का निर्माण किया गया। लोगों की सुविधा के लिए विशाल डिपार्टमैंट स्टोर बनने लगे। 1899 ई० में जापान में सिनेमा का प्रचलन आरंभ हुआ। संक्षेप में मेज़ी काल में लोगों के रोज़मर्रा के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव आए। प्रसिद्ध इतिहासकार के० एस० लाटूरेट का यह कहना ठीक है कि, “19वीं शताब्दी के दूसरे मध्य में जापान ने उल्लेखीय परिवर्तन देखे।”

प्रश्न 3.
1894-95 ई० के चीन-जापान युद्ध के क्या कारण थे? इसके क्या परिणाम निकले?
अथवा
1894-95 ई० के चीन-जापान युद्ध के बारे में आप क्या जानते हैं ? चर्चा कीजिए।
अथवा
शिमोनोस्की की संधि क्यों व कब हुई ? इसके क्या परिणाम निकले? इसके क्या परिणाम निकले?
उत्तर:
1894-95 ई० में जापान तथा चीन के मध्य एक युद्ध हुआ। इस युद्ध का मूल कारण कोरिया था। इस युद्ध में जापान ने चीन को बहुत शर्मनाक पराजय दी। परिणामस्वरूप चीन के सम्मान को भारी आघात पहुँचा और जापान विश्व के शक्तिशाली देशों की पंक्ति में आ खड़ा हुआ।

चीन-जापान युद्ध के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इन कारणों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. रूस की कोरिया में रुचि:
रूस की दक्षिणी पूर्वी सीमा कोरिया के साथ लगती थी। अत: उसने कोरिया पर अपना अधिकार करने की योजना बनाई। रूस ने कोरिया की सेना को पुनर्गठित करने के उद्देश्य से अपने सैनिक अधिकारियों को वहाँ भेजा। इसके बदले में कोरिया ने लजरफ की बंदरगाह रूस को दे दी। अब रूस के जहाज़ बिना किसी बाधा के इस बंदरगाह पर आ-जा सकते थे। इस प्रकार कोरिया में रूस का प्रभाव बढ़ने लगा। रूस के कोरिया में बढ़ते हुए प्रभाव को जापान सहन करने को तैयार नहीं था।

2. कोरिया की आंतरिक दशा शोचनीय:
कोरिया की आंतरिक स्थिति बड़ी दयनीय थी। वह एक निर्बल देश था। उस समय कोरिया में अशांति फैली हुई थी तथा अव्यवस्था व्याप्त थी। वहाँ जापान यह अनुभव करता था कि कोरिया की यह आंतरिक स्थिति अन्य देशों के लिए एक नियंत्रण का कार्य कर सकती है। उसे सदैव यह भय लगा रहता था कि कोई अन्य देश कोरिया पर अपना अधिकार न कर ले। चीन भी अपने वंशानुगत अधिकार के कारण किसी अन्य देश के कोरिया में हस्तक्षेप को सहन नहीं कर सकता था। इन परिस्थितियों में चीन तथा जापान में युद्ध होना अनिवार्य था।

3. कोरिया में विदेशी शक्तियों का आगमन:
कोरिया में जापान के बढ़ रहे प्रभाव को देख कर चीन बहुत चिंतित हो गया। जापान के प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से उसने विदेशी शक्तियों को कोरिया में व्यापार करने के प्रयासों में अपना समर्थन दिया। परिणामस्वरूप अमरीका, इंग्लैंड, जर्मनी, इटली, रूस तथा फ्राँस आदि देशों ने कोरिया से संधियाँ की तथा अपने लिए अनेक सुविधाएँ प्राप्त की।

विदेशी शक्तियों के बढ़ते हुए प्रभाव से जापान घबरा उठा। अतः जापान कोरिया को विदेशी शक्तियों के प्रभाव से मुक्त करवाना चाहता था ताकि उसकी स्वयं की स्वतंत्रता कायम रहे। इन परिस्थितियों में उसका चीन के साथ युद्ध अनिवार्य था।

4. 1885 ई० की संधि:
1885 ई० में जापान ने चीन के साथ एक संधि की। संधि के अनुसार दोनों देश इस बात पर सहमत हो गए कि वे दोनों ही कोरिया से अपनी सेनाएँ वापस बुला लेंगे। इस संधि से चीन के कई राजनीतिज्ञ असंतुष्ट हो गए। चीनी राजनीतिज्ञों का विचार था कि कोरिया चीन का ही एक अंग है तथा चीन को कोरिया में अपनी सेनाएँ रखने का पूर्ण अधिकार है। चीन के इस विचार को जापान सहन करने को तैयार नहीं था। अतः चीन-जापान के मध्य युद्ध अनिवार्य था।

5. जापान के आर्थिक हित:
चीन-जापान यद्ध के कारणों में एक कारण कोरिया में जापान के आर्थिक हित भी थे। अपने आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए वह कोरिया की ओर ललचाई नज़रों से देख रहा था । जापान में औद्योगिक विकास आश्चर्यजनक गति से हुआ था। अब उसे अपने तैयार माल तथा कच्चे माल के लिए मंडियों की आवश्यकता थी। अपने इस उद्देश्य के लिए जापान कोरिया को उपयुक्त स्थान समझता था। इसे चीन बिल्कुल भी सहन करने को तैयार नहीं था।

6. तात्कालिक कारण:
कोरिया में ‘तोंगहाक’ (Tonghak) संप्रदाय द्वारा किया गया विद्रोह चीन-जापान युद्ध का तात्कालिक कारण बना। इस संप्रदाय के लोग विदेशियों को पसंद नहीं करते थे। कोरिया सरकार इस संप्रदाय के विरुद्ध थी तथा उसने एक अध्यादेश द्वारा इसकी सभी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया। 1883 ई० में इस संप्रदाय के नेताओं ने उन पर लगे प्रतिबंधों को हटाने की माँग की।

परंतु सरकार ने इसे अस्वीकार कर दिया। कोरिया में प्रत्येक स्थान पर विद्रोह होने लगे। आरंभ में सरकार ने इस विद्रोह का दमन कर दिया किंतु 1894 ई० में इसने भीषण रूप धारण कर लिया। विवश होकर कोरिया की सरकार ने चीन एवं जापान से सैनिक सहायता माँगी।

परंतु इन सेनाओं के पहुंचने से पहले ही विद्रोह का दमन कर दिया गया था। कोरिया सरकार ने दोनों सरकारों को अपनी-अपनी सेनाएँ वापस बुलाने की प्रार्थना की। परंतु दोनों देशों ने अपनी सेनाएँ वहाँ से न निकाली। जापानी सेनाओं ने कोरिया के राजा को बंदी बना लिया और वहाँ की सरकार का पुनर्गठन किया। पुनर्गठित सरकार ने जापान से आग्रह किया कि वह चीन की सेनाओं को कोरिया से मार भगाए। इस प्रकार 1 अगस्त, 1894 ई० को यह युद्ध आरंभ हो गया।

युद्ध से पूर्व ही जापान ने अपनी सेना का आधुनिक ढंग से पुनर्गठन कर लिया था। परंतु चीन की सेना इतनी कुशल नहीं थी तथा उसका लड़ने का ढंग भी प्राचीन ही था। यह युद्ध 9 मास तक चला। इस युद्ध में जापान को शानदार विजय प्राप्त हुई। 16-17 सितंबर, 1894 ई० को जापान ने पिंगयांग तथा यालू के युद्धों में चीन की सेनाओं को पराजित कर दिया तथा चीन की सेनाओं को कोरिया से खदेड़ दिया। फिर उसने मंचूरिया पर आक्रमण किया तथा लिआयोतुंग प्रायद्वीप की ओर चल पड़ा। जापानी सेनाओं ने तेलियनवैन तथा पोर्ट आर्थर पर अधिकार कर लिया।

जापानी सेनाओं ने फ़रवरी 1895 ई० तक शातुंग तथा वी-हाई-वी पर भी अधिकार कर लिया। परिस्थितिवश चीन जापान के साथ समझौता करने के लिए विवश हुआ। अत: 17 अप्रैल, 1895 ई० को दोनों पक्षों में शिमोनोसेकी की संधि हुई जिसके परिणामस्वरूप युद्ध का अंत हुआ। युद्ध में पराजित होने के पश्चात् माँचू सरकार ने ली-हुंग-चांग को संधि के लिए जापान भेजा। ली-हुंग-चांग ने 17 अप्रैल, 1895 ई० को जापानी अधिकारियों के साथ शिमोनोसेकी की संधि की। इस संधि की मुख्य धाराएँ निम्नलिखित अनुसार थीं-.

  • चीन ने कोरिया को एक पूर्ण स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी।
  • चीन ने पोर्ट आर्थर, फारमोसा, पेस्काडोरस तथा लियाओतुंग जापान को दे दिए।
  • चीन ने माना कि वह युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में जापान को 2 करोड़ तायल देगा।
  • चीन जापान को सर्वाधिक प्रिय देश स्वीकार करेगा।
  • चीन जापान के व्यापार के लिए अपनी चार बंदरगाहें शांसी, सो चाऊ, चुंग-किंग तथा हंग चाओ खोलेगा।
  • जब तक चीन युद्ध की क्षतिपूर्ति की राशि जापान को नहीं चुकाएगा उसकी वी-हाई-वी नामक बंदरगाह जापान के पास रहेगी।

शिमोनोसेकी की संधि के कागजों पर अभी स्याही भी नहीं सूखी थी कि उसके 6 दिन पश्चात् ही फ्राँस, रूस तथा जर्मनी ने जापान को कहा कि वह लियाओतुंग प्रायद्वीप चीन को लौटा दे। क्योंकि उन्हें भय था कि यदि लियाओतुंग पर जापान का अधिकार हो गया तो इससे चीन को निरंतर खतरा रहेगा तथा कोरिया की स्वतंत्रता भी स्थायी नहीं रह पाएगी। विवश होकर जापान ने शिमोनोसेकी की संधि में संशोधन करना मान लिया। उसने लियाओतुंग प्रायद्वीप चीन को वापस कर दिया तथा इसके बदले चीन से 3 करोड तायल की अतिरिक्त धन-राशि ले ली।

चीन-जापान युद्ध में जापान ने शानदार विजय प्राप्त की तथा चीन की शर्मनाक पराजय हुई। इस युद्ध में एक छोटे से बौने (जापान) ने एक दैत्य (चीन) को पराजित किया था। इस युद्ध से दोनों देश बहुत प्रभावित हुए। प्रसिद्ध इतिहासकार एच० एफ० मैकनैर के अनुसार, “यह वास्तव में जापान को प्रथम चुनौती थी।”5 संक्षेप में इन प्रभावों का वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. जापान की प्रतिष्ठा में वृद्धि:
जापान एशिया का एक छोटा सा देश था तथा चीन सबसे बड़ा देश था। फिर भी जापान ने चीन को पराजित कर दिया। इस युद्ध में विजय से जापान की प्रतिष्ठा को चार चाँद लग गए। सभी यूरोपीय शक्तियों को विश्वास था कि जापान पराजित होगा। परंतु उसकी विजय ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। परिणामस्वरूप उसकी शक्ति की धाक् सारे विश्व में बैठ गई। प्रसिद्ध इतिहासकार एम०ई० कैमरन के अनुसार, “जापान के हाथों चीन की पराजय के महान् एवं दूरगामी प्रभाव पड़े।”

2. चीन की प्रतिष्ठा को गहरा आघात:
जापान ने जो कि एशिया का एक छोटा सा देश था, चीन जैसे बड़े देश को पराजित कर संपूर्ण विश्व को चकित कर दिया था। चीन की इस घोर पराजय से उसकी प्रतिष्ठा को गहरा आघात लगा। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर बी० वी० राव का यह कहना ठीक है कि, “चीन के लिए पराजय एवं अपमानजनक संधि ने माँचू वंश के पतन का डंका बजा दिया।”

3. चीन की लूट आरंभ:
जापान के हाथों पराजित होने से चीन की दुर्बलता सारे विश्व के आगे प्रदर्शित हो गई। इस कारण यूरोपीय शक्तियों की मनोवृत्ति में आश्चर्यजनक परिवर्तन आया। पहले पश्चिमी देशों ने चीन से कई प्रकार की रियायतें प्राप्त की हुई थीं। परंतु अब वे उसके साम्राज्य का विभाजन चाहने लगीं। अतः ये सभी देश चीन की लूट में जापान के भागीदार बनने के लिए तैयार हो गए। प्रसिद्ध इतिहासकार के० एस० लाटूरेट के अनुसार, “जापान द्वारा चीनी साम्राज्य के हिस्से को हड़पने की कार्यवाही से लूट की प्रक्रिया तीव्र हो गई।”

4. चीन में सुधार आंदोलन:
चीन की अपमानजनक पराजय से चीन के देशभक्त बड़े दुःखी हुए। वे अनुभव करने लगे कि चीन को भी जापान की भाँति आधुनिक ढंग के सुधार करने चाहिएँ। परंतु उस समय के माँचू शासक बड़े रूढ़िवादी थे। अतः वे इन सुधारों के पक्ष में नहीं थे। परिणामस्वरूप चीन में माँचू विरोधी सुधार आंदोलन चल पड़ा।

5. आंग्ल-जापानी समझौते की आधारशिला:
चीन जापान युद्ध के परिणामस्वरूप आंग्ल-जापानी समझौते की नींव रखी गई। जब जापान इस युद्ध में विजयी हो रहा था तो इंग्लैंड के समाचार-पत्रों ने इसकी बहुत प्रशंसा की। उनके अनुसार इंग्लैंड और जापान के हित सामान्य थे। अतः वे जापान को भविष्य का उपयोगी मित्र मानने लगे। जापान भी इंग्लैंड से मित्रता करना चाहता था। इस प्रकार ये दोनों देश एक-दूसरे के निकट आए तथा 1902 ई० में एक समझौता किया।

6. जापान-रूस शत्रुता:
शिमोनोसेकी की संधि के पश्चात् रूस जापान के विरुद्ध हो गया। उसने फ्राँस तथा जर्मनी के साथ मिल कर जापान पर दबाव डाला कि वह लियाओतुंग प्रायद्वीय चीन को वापस कर दे। इससे जापान रूस से नाराज़ हो गया। इसके अतिरिक्त चीन-जापान युद्ध के पश्चात् जापान भी रूस के समान दूर-पूर्व में एक शक्ति के रूप में उभरा। दोनों देश महत्त्वाकांक्षी थे और यही महत्त्वाकांक्षा उन्हें 1904-05 के युद्ध की ओर ले गई।

प्रश्न 4.
रूस-जापान युद्ध 1904-05 के क्या कारण थे? इस युद्ध के क्या प्रभाव पड़े?
अथवा
रूस-जापान युद्ध 1904-05 के बारे में आप क्या जानते हैं ? इस युद्ध में जापान की सफलता के क्या कारण थे?
अथवा
रूस-जापान युद्ध के कारणों का वर्णन करो।
उत्तर:
सुदूर पूर्व में रूस तथा जापान दो महान् शक्तियाँ थीं। ये दोनों शक्तियों महत्त्वाकांक्षी थीं। ये दोनों शक्तियाँ साम्राज्यवादी नीति का अनुसरण करती थीं तथा इस नीति पर चलते हुए अपने-अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहती थीं। इसी कारण उनमें 1904-05 ई० में एक युद्ध हुआ जिसमें रूस पराजित हुआ और जापान को गौरवपूर्ण सफलता प्राप्त हुई।

I. रूस-जापान युद्ध के कारण

रूस-जापान युद्ध के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इन कारणों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. जापान के विरुद्ध रूस का हस्तक्षेप:
1894-95 ई० में हुए चीन-जापान युद्ध में जापान ने चीन को पराजित करके एक शानदार विजय प्राप्त की थी। इस युद्ध के पश्चात् हुई शिमोनोसेकी की संधि के अनुसार चीन ने अपने कुछ क्षेत्र जापान को दे दिए थे। इन प्रदेशों में एक लियाओतुंग प्रदेश भी था। उधर रूस भी अपने स्वार्थी हितों के कारण इन प्रदेशों पर नजर लगाए बैठा था।

इस कारण इस संधि के कुछ दिन पश्चात् ही उसने जापान पर दबाव डाला कि वह लियाओतुंग प्रदेश चीन को वापस कर दे। फ्राँस तथा जर्मनी ने भी रूस का समर्थन किया। अतः जापान को बाध्य होकर लियाओतुंग का प्रदेश चीन को वापस करना पड़ा। जापान रूस से अपने इस अपमान का बदला लेना चाहता था।

2. रूस-चीन गठबंधन:
लियाओतुंग का प्रदेश वापस मिलने पर चीन और रूस के संबंध मैत्रीपूर्ण हो गए। रूस ने फ्रांस के साथ मिल कर एक बड़ी राशि चीन को ऋण स्वरूप दी। 1896 ई० में उसने चीन के साथ एक रक्षात्मक गठबंधन बनाया। इस गठबंधन के अनुसार उन्होंने यह निश्चित किया कि यदि जापान रूसी प्रदेशों अथवा चीन और कोरिया पर आक्रमण करता है तो वे सम्मिलित रूप से उसका सामना करेंगे। चीन तो जापान का शत्रु था ही, अपितु यह गठबंधन बन जाने से जापान का रूस के विरुद्ध होना स्वाभाविक था।

3. लियाओतुंग पर रूस का कब्जा:
चीन में हुए ‘रियायतों के लिए संघर्ष’ (scramble for concessions) में रूस सबसे महत्त्वपूर्ण सुविधाएँ प्राप्त करने में सफल रहा था। अन्य रियायतों के साथ-साथ उसने 1898 ई० में लियाओतुंग का प्रदेश भी चीन से पट्टे पर ले लिया था। रूस की इस कार्यवाही से जापान भड़क उठा था क्योंकि यही प्रदेश उसने जापान से चीन को वापस दिलवाया था और अब उस पर कब्जा कर बैठा था। निस्संदेह इसने आग में घी डालने का कार्य किया।

4. मंचूरिया की समस्या:
मंचूरिया भी रूस-जापान युद्ध का एक महत्त्वपूर्ण कारण बना। मंचूरिया चीन के उत्तरी भाग में स्थित था तथा ये दोनों देश उसमें रुचि रखते थे। लियाओतुंग पर कब्जा करने के पश्चात् रूस ने पोर्ट आर्थर को अपना शक्तिशाली समुद्री अड्डा बनाने का प्रयास किया। उसने मंचूरिया में रेलवे लाइनें भी बिछाई। मंचूरिया में जापान के भी आर्थिक हित थे। रूस के बढ़ते हुए प्रभाव के कारण उसके हितों को खतरा पैदा हो गया।

बॉक्सर विद्रोह के बाद भी रूसी सेनाएँ मंचूरिया में ही थीं। वहाँ से सेना हटाने की अपेक्षा उसने चीनी सरकार से और रियायतें प्राप्त करनी चाहीं परंतु जापान तथा इंग्लैंड ने इसका विरोध किया। 1902 ई० में रूस ने वचन दिया कि वह 18 मास में अपनी सेनाएँ चीन से निकाल लेगा परंतु उसने ऐसा न किया। अतः जापान ने रूस को एक सबक सिखाने का निर्णय किया।

5. कोरिया की समस्या:
1894-95 ई० में हुए चीन-जापान युद्ध का मुख्य कारण कोरिया ही था। जापान ने इस यद्ध द्वारा कोरिया में चीन की प्रभसत्ता समाप्त कर दी थी। इस यद्ध के पश्चात रूस ने कोरिया पर जापान के अधिकार को स्वीकार कर लिया था। परंतु रूस ने उत्तरी कोरिया के जंगलों से लकड़ी काटने का सिलसिला बंद न किया। इस के अतिरिक्त उसने इस क्षेत्र में सेना भी भेजनी आरंभ कर दी थी। जापान की सरकार ने इस का विरोध दर्शाते हुए एक पत्र रूसी सरकार के पास भेजा। परंतु रूसी सरकार ने इसकी कोई परवाह न की। परिणामस्वरूप इसने स्थिति को विस्फोटक बना दिया।

6. इंग्लैंड-जापान गठबंधन :
1902 ई० में जापान तथा इंग्लैंड ने एक गठबंधन किया। इसके अधीन दोनों ने एक-दूसरे को वचन दिया कि चीन और कोरिया में अपने हितों को सुरक्षित रखने के लिए एक-दूसरे को सहायता देंगे। संधि के अनुसार इंग्लैंड ने यह भी वचन दिया कि यदि रूस और जापान में युद्ध होता है तो वह निष्पक्ष रहेगा। परंतु यदि इस युद्ध में फ्राँस रूस की सहायता करेगा तो वह जापान का साथ देगा। इंग्लैंड के इस आश्वासन से जापान को प्रोत्साहन मिला और उसने रूस के प्रति कठोर नीति अपनानी आरंभ कर दी। जापान का यह व्यवहार भी इस युद्ध का कारण बना।

7. जापान द्वारा संधि के प्रयास:
जापान रूस की विस्तारवादी नीति से बड़ा चिंतित था। वह कोरिया तथा मंचूरिया के प्रश्न पर रूस से कोई समझौता करना चाहता था। अतः इन देशों के मध्य 1903 ई० में बातचीत आरंभ हुई जो कि फ़रवरी, 1904 ई० तक चली। जापान चाहता था कि यदि रूस कोरिया पर जापान का आधिपत्य स्वीकार कर ले तो वह मंचूरिया पर रूस का आधिपत्य स्वीकार कर लेगा। परंतु यह बातचीत किसी निष्कर्ष पर न पहुँच सकी। अंततः दोनों के मध्य 10 फ़रवरी, 1904 ई० को युद्ध आरंभ हो गया।

II. युद्ध की घटनाएँ

रूस-जापान युद्ध स्थल तथा समुद्र दोनों में लड़ा गया था। जापान के एडमिरल तोजो ने युद्ध का आरंभ करते हुए सबसे पहले पोर्ट आर्थर को चारों ओर से घेरा डाला। इसी समय जापानी सेनाओं ने रूस के स्थल मार्ग से आक्रमण किया। इस प्रकार जापानी सेनाओं ने पोर्ट आर्थर को स्थल तथा जल दोनों मार्गों द्वारा घेर लिया। रूस इस घेरे को तोड़ न सका। 10 महीनों के घेराव के बाद जापानी सेनाओं ने पोर्ट आर्थर पर कब्जा कर लिया।

यहाँ से जापानी सेनाएँ लियाओतुंग (Liaotung) की ओर बढ़ी तथा उसे भी विजय कर लिया। फ़रवरी, 1905 ई० को जापानी सेनाओं ने मंचूरिया की राजधानी मुकदेन (Mukaden) पर धावा बोल दिया। एक भयंकर युद्ध के पश्चात् रूसी सेनाएँ पराजित हुईं। रूसी सेनाएँ मुकदेन छोड़ कर भाग गईं तथा उन्होंने मंचूरिया में जापान का आधिपत्य स्वीकार कर लिया। रूस के ज़ार ने अब समुद्री युद्ध में अपने हाथ आजमाने चाहे।

उसने अपनी नौसेना को बाल्टिक सागर से प्रशाँत सागर में भेजा ताकि पोर्ट आर्थर पर फिर से अधिकार किया जा सके। जब यह सेना तुशिमा (Tsushima) पहुँची तो जापानी एडमिरल तोजो (Admiral Tojo) ने इसे तहस-नहस कर दिया। इस निर्णायक लड़ाई में जापान विजयी रहा। अब तक रूस तथा जापान दोनों ही इस लड़ाई से तंग आ चुके थे। इस युद्ध के कारण जापान पर अत्यधिक आर्थिक बोझ पड़ रहा था तथा रूस की कठिनाइयाँ भी बहुत बढ़ गई थीं।

अब वे किसी संधि के लिए सोचने लगे थे। इस कार्य में संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट (Theodore Roosevelt) ने मध्यस्थता की। दोनों देशों के प्रतिनिधियों को शाँति संधि की शर्ते निर्धारित करने के लिए पोर्टसमाउथ बुलाया गया। काफी वाद-विवाद के पश्चात् । सितंबर, 1905 ई० को दोनों पक्षों में पोर्टसमाउथ की संधि हुई और युद्ध समाप्त हो गया।

पोर्टसमाउथ की संधि (Treaty of Portsmouth) संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट के प्रयत्नों के फलस्वरूप रूस तथा जापान के मध्य 5 सितंबर, 1905 ई० को एक संधि हुई। इसे पोर्टसमाउथ की संधि कहा जाता है। इस संधि की शर्ते निम्नलिखित थीं

(1) कोरिया में जापान के राजनीतिक, सैनिक तथा आर्थिक हितों को रूस ने स्वीकार कर लिया।

(2) पोर्ट आर्थर तथा लियाओतुंग के प्रायद्वीप जापान को मिल गए।

(3) इस संधि में यह भी कहा गया कि रूस तथा जापान दोनों ही मंचूरिया से अपनी सेनाएं वापस बुला लेंगे। केवल रेलों की रक्षा के लिए ही कुछ सैनिक वहाँ रहेंगे।

(4) दोनों ने माना कि मंचूरिया में रेलों का उपयोग केवल व्यापारिक एवं औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया जाएगा।

(5) आपान को स्खालिन द्वीप का दक्षिण भाग प्राप्त हुआ। प्रसिद्ध इतिहासकारों एफ० एच० माइकल एवं जी०ई० टेलर के शब्दों में, “पोर्टसमाउथ की संधि ने जापान को एशिया में एक महाद्वीपीय शक्ति के रूप में स्थापित किया।

III. जापान की सफलता के कारण

रूस-जापान युद्ध में जापान की सफलता के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

(1) जापानी सैनिक तथा जनता दोनों ही देश-भक्ति की भावना से ओतप्रोत थे। सारा राष्ट्र जापान की सरकार के साथ था तथा देश के लिए मर मिटने को तैयार था। उन्होंने शत्रु को हराने के लिए तन, मन तथा धन से सरकार की सहायता की। यही राष्ट्र-भक्ति की भावना जापानियों की विजय का मूल कारण थी।

(2) जापान ने अपनी सेना का आधुनिक ढंग से पुनर्गठन कर इसे काफी शक्तिशाली. बना लिया था। इस शक्तिशाली सेना के आगे रूसी सेनाएँ टिक न सकीं।

(3) जापान ने युद्ध के आरंभ होने से पूर्व ही अपनी पूरी तैयारी कर ली थी। उसने अपने यातायात के साधनों तथा स्वास्थ्य सेवाओं का भी उचित प्रबंध किया जो उसकी विजय में सहायक सिद्ध हुईं।

(4) तोजो, आयोमा तथा नोगी आदि जापानी सेनापतियों को युद्धों का बहुत अनुभव था। अत: उन्होंने जापानी सेना का कुशल नेतृत्व किया। परिणामस्वरूप रूसी सेना जापानी सेना का मुकाबला न कर सकी एवं उसे पराजय का सामना करना पड़ा।

(5) रूस का ज़ार जापान की सैन्य शक्ति का ठीक अनुमान न लगा सका। वह यह ही समझता रहा कि युद्ध अथवा शांति का निर्णय उसी के हाथ में है। यह भ्रम ही रूस की पराजय तथा जापान की विजय का कारण बना।

(6) जापान की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति सदढ थी। वह इंग्लैंड की मित्रता पर भरोसा कर सकता था। परंत फ्राँस 1904 ई० के समझौते के कारण इंग्लैंड के विरुद्ध नहीं लड़ सकता था। अतः रूस मित्रहीन था। अतः जापान ने आसानी से उसे पराजित कर दिया।

IV. रूस-जापान युद्ध के प्रभाव

रूस-जापान युद्ध के दूरगामी प्रभाव पड़े। संक्षेप में इसके प्रभावों का वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. रूस पर प्रभाव (Effects on Russia)-रूस-जापान युद्ध से रूस की प्रतिष्ठा को गहरी चोट लगी। ज़ार शासकों के विरुद्ध पहले ही रूसी जनता में असंतोष व्याप्त था। ऊपर से जापान जैसे छोटे-से देश से पराजित होने पर लोग उनसे और नाराज हो गए। इस पराजय से जार शासकों की शक्ति का खोखलापन सारे विश्व के सामने आ गया तथा यूरोप के लोग इसकी आलोचना करने लगे।

2. जापान पर प्रभाव (Effects on Japan)-रूस-जापान युद्ध के जापान पर भी प्रभाव पड़े। इस युद्ध में विजय के कारण अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में जापान का बहुत सम्मान बढ़ा। जापान एक छोटा-सा देश था फिर भी वह विशालकाय रूस पर विजय पाने में सफल रहा। इस विजय के कारण उसकी प्रतिष्ठा को चार चाँद लग गए तथा दूर-पूर्व में उसका प्रभाव बढ़ गया।

इस विजय से जापान बहुत प्रोत्साहित हुआ। इस विजय ने यह सिद्ध कर दिया कि जापान एक शक्तिशाली राष्ट्र है। प्रसिद्ध इतिहासकार सी० यनागा के अनुसार,”इस प्रकार सुदूर पूर्व में एक नई शक्ति का उदय हुआ, एक छोटी पूर्वी शक्ति ने न केवल एक शक्तिशाली राष्ट्र को चुनौती प्रस्तुत की अपितु उसे कड़ी पराजय देने में भी सफलता प्राप्त की।

3. चीन पर प्रभाव (Effects on China)-रूस-जापान युद्ध के प्रभावों से चीन भी अछूता नहीं रहा। इस युद्ध के पश्चात् चीन के लोगों के मन में यह धारणा घर कर गई कि यदि उन्होंने पश्चिमी देशों के साम्राज्यवाद से छुटकारा
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 11 iMG 1
पाना है तो उन्हें अपनी शक्ति का पुनर्गठन करना होगा। अतः चीन ने अपनी सेना को पुनर्गठित करने के लिए पश्चिमी युद्ध कला को अपनाया। पश्चिमी ज्ञान-विज्ञान से परिचित होने के लिए अनेक चीनी विदेशों में गए। अत: चीन के लोगों में एक नई जागृति का उत्थान हुआ। इसी राष्ट्रीय जागरण के परिणामस्वरूप चीन में 1911 ई० की क्रांति हुई और चीनी सम्राट् गद्दी छोड़ने पर विवश हुआ। इस प्रकार मांचू वंश का पतन हुआ तथा चीन में गणतंत्र की स्थापना हुई।

4. यूरोप पर प्रभाव (Effects on Europe)-इस युद्ध के यूरोप की राजनीति पर भी महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े। युद्ध के समय जर्मनी ने रूस तथा फ्रॉस से मिल कर इंग्लैंड के विरुद्ध एक संगठन बनाने का प्रयास किया, परंतु इसमें वह सफल न हो सका। इसके विपरीत फ्रांस के प्रयत्नों से रूस और इंग्लैंड एक-दूसरे के निकट आए। इस युद्ध में रूस की पराजय से इंग्लैंड को रूस की ओर से कोई भय न रहा। इस कारण इंग्लैंड ने रूस की ओर मैत्री का हाथ बढ़ाया जिससे इंग्लैंड को बहुत लाभ हुआ। प्रसिद्ध इतिहासकार एम० ई० कैमरन के अनुसार, “युद्ध में जापान की विजय के विश्व मामलों में गहन प्रभाव पड़े।”

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

प्रश्न 5.
जापान में सैन्यवाद के उदय के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जापान में सैन्यवाद के उदय के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनमें से मुख्य कारणों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है

1. सैन्यवादियों की महत्त्वाकांक्षा:
जापान में सैन्यवादियों के उत्थान का एक महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि वे जापान में फैली अशांति पर नियंत्रण पाने में सफल रहे। 1894-95 में चीन-जापान युद्ध में तथा 1904-05 ई० में रूस-जापान युद्ध में जापान की सफलता ने विश्व को चकित कर दिया। 1902 ई० में जापान इंग्लैंड के साथ एक समझौता करने में सफल रहा। इन कारणों से जापान की सेना की महत्त्वाकांक्षा बढ़ गई। 1931 ई० में जापानी सेना ने सरकार से परामर्श किए बिना ही मंचूरिया पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया।

2. उदारवादियों की मृत्यु :
बहुत-से पुराने नेता सैन्यवादियों की गतिविधियों को पसंद . नहीं करते थे। वास्तव में वे सैन्यवादियों पर अंकुश रखते थे। परंतु ज्यों-ज्यों समय गुजरता गया वे बूढ़े हो गए और उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के कारण सैन्यवादियों पर जो उनका अंकुश था वह समाप्त हो गया और वे अब अपनी मनमानी करने के लिए स्वतंत्र हो गये। दूसरे क्षेत्रों को विजय करने की उनकी इच्छा को अब कोई नहीं दबा सकता था।

3. नवयुवक अधिकारियों की श्रेणी का उदय:
जापान में नवयुवक अधिकारियों की एक नई श्रेणी का उदय हुआ। इन लोगों का संबंध जापान की कुलीन श्रेणी से नहीं था। यहाँ यह बात याद रखने योग्य है कि कुलीन श्रेणी के लोग इन नवयुवक लोगों को केवल पसंद ही नहीं करते थे बल्कि घृणा भी करते थे। उधर ये नवयुवक अधिकारी अपनी शानदार विजयों द्वारा समाज में अपना स्थान बनाना चाहते थे। उन्हें सैनिक नेताओं का समर्थन प्राप्त था। वे जापानी सैनिकवाद में विश्वास करते थे और शक्ति का प्रयोग करना अपना अधिकार समझते थे।

4. नाजीवाद तथा फासिस्टवाद का प्रभाव:
हिटलर तथा मुसोलिनी की सफलताओं का जापानियों पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। अत: जापानी भी हिटलर तथा मुसोलिनी की भाँति विजयें प्राप्त करना चाहते थे। वे उनके विचारों तथा तरीकों से बहुत प्रभावित थे। विजयों की आकांक्षा रखने वाले जापानी नवयवक नाजी एवं फासिस्ट लोगों की तरह अपनी दशा को सधारना चाहते थे।

5. विरोधी नेता:
जापानी संसद् के सदस्य, उच्च अधिकारी तथा मंत्रिपरिषद् के सदस्य सैन्यवादियों के घोर विरोधी थे। अपने इस विरोध के कारण ही वे सैन्यवादियों के आतंक का निशाना बने। जापान में सैन्यवादियों का विरोध करने वालों में शिक्षक तथा पत्रकार भी शामिल थे। वे भली-भाँति समझते थे कि सैनिक खर्च में वद्धि का क्या परिणाम होगा। जापान में उस समय सरकारी आमदनी सीमित तथा खर्चे असीमित थे।

देश पर पहले ही ऋण का भारी बोझ था। अतः एक के बाद एक वित्तमंत्री ने सैनिक खर्चों में कटौती करने के सझाव रखे। जापानी सेना इसलिए तैयार नहीं थी। अतः उसने विरोधियों को अपना निशाना बनाया।

6. उच्च-पदाधिकारियों का वध:
1937 ई० तक जापान में उग्र राष्ट्रवाद का प्रसार हो चुका था। सैन्यवादियों ने उग्र-राष्ट्रवाद का प्रयोग एक हथियार के रूप में किया। पहले उन्होंने लोगों को डराया धमकाया और जब इससे काम न चला तो सैन्यवादियों ने उनका वध कर दिया। मंत्री, उच्च-पदाधिकारी, संसद् के सदस्य, पत्रकार तथा शिक्षक जो सैन्यवादियों के विरोधी थे, उन्हें पहले धमकी दी गई और जब उन्होंने इस पर भी सैन्यवादियों का विरोध करना न छोड़ा तो उनका वध कर दिया गया। इसने स्थिति को विस्फोटक बना दिया।

प्रश्न 6.
जापान पर अमरीका के कब्जे (1945-51 ई० ) के दौरान वहाँ क्या प्रगति हुई ? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जापान पर 1945 ई० से लेकर 1952 ई० तक अमरीका के जनरल दगलस मेकार्थर (General Douglas Mac Arthur) का शासन रहा। इसका उद्देश्य जापान का निशस्त्रीकरण करना, युद्ध अपराधियों पर अभियोग चलाना, जापान में एक लोकतांत्रिक शासन की स्थापना करना, जापान की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करना एवं शिक्षा को एक नई दिशा देना था।

वह अपने उद्देश्य में काफी सीमा तक सफल रहा। इसके परिणामस्वरूप जापान पुनः एक शक्तिशाली देश के रूप में उभरा। आज जापान की गणना विश्व के प्रसिद्ध देशों में की जाती है। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर बी० वी० राव के शब्दों में, “विश्व युद्ध के पश्चात् मित्र राष्ट्रों ने जापान पर कब्जे के पश्चात् महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए। ये मेज़ी काल से कहीं अधिक क्रांतिकारी थे।”

1. जापान का निरस्त्रीकरण करना :
जनरल दगलस मेकार्थर ने सर्वप्रथम अपना ध्यान जापान को निरस्त्रीकरण करने की ओर दिया। इस कार्य के लिए उसने बहुत साहस से कार्य किया। उसने जापान की थल सेना एवं नौसेना को भंग कर दिया। उनके सभी हथियारों को नष्ट कर दिया। जापान में अनिवार्य सैनिक शिक्षा एवं सेवा को बंद कर दिया गया।

युद्ध सामग्री बनाने वाले सभी उद्योगों को बंद कर दिया गया। उन्हें असैनिक सामान का उत्पादन करने का आदेश दिया गया। वैज्ञानिकों द्वारा युद्ध सामग्री की नई खोजों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया। जिन जापानी अधिकारियों ने जापान के विस्तार में उल्लेखनीय योगदान दिया था उन्हें उनके पदों से हटा दिया गया। इस प्रकार जापान का निरस्त्रीकरण जापान में एक लंबे समय के पश्चात् एक स्थायी शांति स्थापित करने में सहायक सिद्ध हुआ।

2. युद्ध अपराधियों पर अभियोग :
जापान के जो अधिकारी युद्ध के लिए जिम्मेवार थे उन पर मुकद्दमा चलाया गया। इसके लिए तोक्यो में 1946 ई० में एक अंतर्राष्ट्रीय सैनिक अदालत का गठन किया गया। इसने जापान के जनरल तोजो एवं कुछ अन्य अधिकारियों को मृत्यु दंड दिया। अनेक सैनिकों को आजीवन कारावास का दंड दिया गया। जापान की पिछली सरकार द्वारा जितने उदार राजनीतिज्ञों को कारावास में डाल दिया गया था उन्हें रिहा कर दिया गया।

उग्र राष्ट्रवादी विचारों का प्रचार करने वाले व्यक्तियों को सरकारी पदों से हटा दिया गया। इसी प्रकार उग्र राष्टीय विचारधारा वाले अध्यापकों को भी हटा दिया गया। इस विचारधारा का समर्थन करने वाली समितियों को भंग कर दिया गया एवं पाठ्यक्रम से ऐसी पुस्तकों को हटा दिया गया।

3. जापान का नया संविधान :
जापान में 1947 ई० में एक नया विधान लाग किया गया। इसने 1889 ई० के मेज़ी काल में प्रचलित संविधान का स्थान ले लिया। इस संविधान के अनुसार सम्राट् से उसकी अनेक शक्तियाँ छीन ली गईं। उसे अब देवता नहीं माना जाता था। अब जापान की डायट के अधिकार बढ़ा दिए गए। इसे अब देश के कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो गया। न्यायपालिका को पूर्ण स्वतंत्र कर दिया गया।

नागरिक के अधिकारों में वृद्धि की गई। जापान को एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया। महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया गया। स्थानीय स्वशासन को प्रोत्साहित किया गया। निस्संदेह जापान का नया संविधान लोकतंत्र स्थापित करने की दिशा में एक मील पत्थर सिद्ध हुआ।

4. आर्थिक सुधार :
द्वितीय विश्व युद्ध के कारण जापान की अर्थव्यवस्था को भारी आघात लगा था। अत: जनरल दगलस मेकार्थर ने इस दिशा की ओर अपना विशेष ध्यान दिया। 1946 ई० में जापान की डायट द्वारा एक कानून पारित किया गया जिसके अनुसार अनुपस्थित ज़मींदारों (absentee landlords) को अपनी भूमि सरकार को बेचने के लिए बाध्य किया गया। सरकार ने इन जमीनों को किसानों में बाँट दिया। इससे उनकी स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ। 1946 ई० में मजदूरों को श्रमिक संगठन बनाने का अधिकार दिया गया।

उनकी दशा सुधारने के उद्देश्य से उनके वेतन, कार्य के समय, बेकारी भत्ते एवं बुढ़ापे के बीमे आदि की व्यवस्था की गई। जायबात्सु पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसका कारण यह था कि देश की लगभग समस्त संपत्ति उनके हाथों में एकत्र हो गई थी। सरकार ने उन्हें उनके विशेषाधिकारों से वंचित कर दिया। अमरीका ने जापान में भारी उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष कदम उठाए। इन सुधारों के चलते जापान की अर्थव्यवस्था पुनः पटड़ी पर आ गई।

5. शिक्षा सुधार :
आधिपत्यकाल में जापान में शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय सुधार किए गए। जापान की परंपरावादी (traditional) शिक्षा को परिवर्तित कर दिया गया। जापान में पश्चिम में प्रचलित आधुनिक शिक्षा को लागू किया गया। पाठ्य पुस्तकों को नए ढंग से लिखा गया। इसमें सम्राट् की उपासना, नैतिक एवं सैनिक शिक्षा की अपेक्षा लोकतंत्र पर अधिक बल दिया गया था।

शिक्षण संस्थाओं में जापान में प्रचलित शिंटो धर्म के पढ़ाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। 9 वर्ष तक शिक्षा अनिवार्य एवं निःशुल्क कर दी गई। इसके बाद विद्यार्थियों को व्यावसायिक शिक्षा दी जाती थी। अध्यापकों के प्रशिक्षण के लिए विशेष प्रबंध किया गया। उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् जापान ने विभिन्न क्षेत्रों में आश्चर्यजनक प्रगति की।

प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर एस० एन० सेन का यह कहना ठीक है कि, “जापान पर (अमरीका का) आधिपत्य यद्यपि 7 वर्ष तक रहा किंतु यह जापान के भावी विकास के लिए निर्णायक था।

प्रश्न 7.
1839-42 ई० के प्रथम अफ़ीम युद्ध के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा
प्रथम अफ़ीम युद्ध के कारणों एवं प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1839-42 ई० में इंग्लैंड एवं चीन के मध्य प्रथम अफ़ीम युद्ध हुआ। इस युद्ध के लिए उत्तरदायी कारणों, घटनाओं एवं प्रभावों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है
I. प्रथम अफ़ीम युद्ध के कारण
(Causes of the First Opium War) चीन तथा ब्रिटेन के मध्य प्रथम अफ़ीम युद्ध नवंबर, 1839 ई० में आरंभ हुआ था। यह युद्ध 1842 ई० तक चला। निस्संदेह अफ़ीम का व्यापार ही इस युद्ध का मुख्य कारण था परंतु इसके अन्य भी अनेक कारण थे । इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. चीन एवं ब्रिटेन के तनावपूर्ण संबंध:
विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक होने के कारण चीन निवासी अपनी उच्च सभ्यता पर बहुत गर्व करते थे। वहाँ के लोग पश्चिमी देशों के लोगों को निम्न मानते थे तथा उनके साथ कोई संबंध स्थापित नहीं करना चाहते थे। चीन सरकार के अफसर तथा कर्मचारी यरोपीय व्यापारियों के साथ बहत अभद्र व्यवहार करते थे तथा उन्हें अपमानजनक चीनी कों का पालन करने के लिए विवश किया जाता था। अंग्रेज़ इन अपमानजनक एवं घटिया नियमों को को तैयार नहीं थे। अत: चीन तथा ब्रिटेन के मध्य संबंध तनावपूर्ण हो गए। इसने चीन एवं ब्रिटेन के मध्य होने वाले प्रथम अफ़ीम युद्ध को अनिवार्य बना दिया।

2. चीन में यूरोपीय व्यापारियों का शोषण:
यूरोपीय व्यापारी चीन से जो भी माल खरीदते थे उस पर लिए जाने वाले कर की दर सरकार द्वारा निश्चित नहीं की गई थी। चीनी सरकार के भ्रष्ट अधिकारी उनसे मनमाने ढंग से कर वसूल करते थे जिस कारण यूरोपीय व्यापारी बहुत परेशान थे। चीन सरकार द्वारा स्थापित को-होंग (Co-Hong) नामक संस्था भी प्रायः विदेशी व्यापारियों का शोषण करती थी। चीन का सारा व्यापार को-होंग के माध्यम से ही होता था। चीन में यूरोपीय व्यापारियों का यह शोषण भी अफ़ीम युद्ध का एक महत्त्वपूर्ण कारण बना।

3. विदेशियों पर कठोर प्रतिबंध:
चीनी सरकार ने विदेशियों पर कई प्रकार के प्रतिबंध भी लगा रखे थे। विदेशी चीनी भाषा नहीं सीख सकते थे, चीनी नागरिक को दास नहीं रख सकते थे तथा न ही किसी चीनी नागरिक को अपने धर्म में दीक्षित कर सकते थे। विदेशी व्यापारी केवल व्यापार के लिए ही कैंटन में निवास कर सकते थे। इसके पश्चात् उन्हें मकाओ वापस जाना पड़ता था। वे कैंटन में अपने परिवार भी साथ नहीं ला सकते थे।

विदेशी अपनी फैक्टरियों में केवल निश्चित संख्या में ही चीनी नौकर रख सकते थे। वे चीन के आंतरिक भागों में नहीं जा सकते थे। इस कारण अंग्रेज़ चीन से अपमानजनक व्यवहार का बदला लेना चाहते थे। प्रसिद्ध इतिहासकार सी० ए० बस के अनुसार, “कैंटन में पूर्व एवं पश्चिम के मिलन ने गहरे मतभेदों को जन्म दिया जो कि युद्ध की ओर ले गए।”

4. अफ़ीम व्यापार (The Opium Trade)-अंग्रेज़ों ने 1767 ई० में चीन के साथ अफ़ीम का व्यापार आरंभ किया था। शीघ्र ही चीन में इसकी माँग बहुत बढ़ गई। चीन की सरकार ने अफ़ीम के व्यापार पर कई प्रतिबंध लगाए परंतु इसका कोई परिणाम न निकला। अब तक चीन के लोग अफ़ीम के आदी हो चुके थे तथा अंग्रेजों को इसका बहुत लाभ पहुँच रहा था।

चीन सरकार के भ्रष्ट अधिकारी भी भारी घूस लेकर इस व्यापार को प्रोत्साहन दे रहे थे। परिणामस्वरूप चीन में अफ़ीम की तस्करी में भारी वृद्धि हुई। एक अनुमान के अनुसार 1837 ई० तक चीन के व्यापार में केवल अफ़ीम का आयात ही 57% तक हो गया था। चीन की सरकार इसे सहन करने को तैयार नहीं थी। अतः युद्ध के लिए विस्फोट तैयार था।

5. तात्कालिक कारण:
7 जुलाई, 1839 ई० को एक ऐसी घटना घटी जो प्रथम अफ़ीम युद्ध का तात्कालिक कारण सिद्ध हुई। कुछ शराबी अंग्रेज़ नाविकों ने एक चीनी नाविक की हत्या कर दी। कैप्टन इलियट (Capt. Elliot) ने इन अंग्रेज़ नाविकों पर मुकद्दमा चलाकर उन्हें सजा दे दी तथा इस संबंधी चीनी सरकार को सूचित कर दिया। चीन की सरकार ने अपराधियों को उसे सौंपने के लिए कहा।

वह उन्हें अपने देश के कानूनों के अनुसार दंड देना चाहती थी। कैप्टन इलियट ने अपराधियों को सौंपने से इंकार कर दिया। इस बात पर कमिश्नर लिन ने अंग्रेजों को भेजी जाने वाली भोजन सामग्री तथा तेल की सप्लाई बंद कर दी। इसने प्रथम अफ़ीम युद्ध का बिगुल बजा दिया।

II. प्रथम अफ़ीम युद्ध की घटनाएँ

अंग्रेज़ सैनिकों तथा चीनी सैनिकों के मध्य प्रथम मुठभेड़ 3 नवंबर, 1839 ई० को हुई जिसमें ब्रिटिश सेनाओं ने चीन के तीन युद्धपोत नष्ट कर दिए। चीन की सरकार ने जनवरी, 1840 ई० को ब्रिटेन के विरुद्ध औपचारिक युद्ध की घोषणा कर दी। उधर ब्रिटेन का प्रधानमंत्री पामर्स्टन (Palmerston) भी चीन में अंग्रेज़ व्यापारियों के हितों की सुरक्षा करने के पक्ष में था। इसी उद्देश्य से उसने अप्रैल, 1840 ई० में ब्रिटेन की संसद् में चीन के विरुद्ध युद्ध का प्रस्ताव पास करवा लिया। यह युद्ध लगभग दो वर्ष (1840-42 ई०) तक चला।

अंग्रेजों की संगठित तथा श्रेष्ठ सेना का मुकाबला चीनी सैनिक न कर सके। अंग्रेजों ने सर्वप्रथम कैंटन (Canton), निंगपो (Ningpo), अमोय (Amoy) तथा हांगकांग (Hong Kong) पर अधिकार कर लिया। 1842 ई० में अंग्रेजों ने शंघाई (Shangai) पर भी अधिकार कर लिया तथा नानकिंग की ओर बढ़ने लगे। विवश होकर चीनी सम्राट ने अंग्रेजों के साथ बातचीत करने का आदेश दिया। इस बातचीत के परिणामस्वरूप 29 अगस्त, 1842 ई० को दोनों देशों के मध्य नानकिंग की संधि हुई और यह युद्ध समाप्त हो गया।

1. नानकिंग की संधि (Treaty of Nanking)-29 अगस्त, 1842 ई० को अंग्रेजों तथा चीनियों के बीच एक संधि हुई जो नानकिंग की संधि के नाम से प्रसिद्ध है। इस संधि की शर्ते निम्नलिखित थी

(1) हांगकांग का द्वीप सदा के लिए ब्रिटेन को सौंप दिया गया।

(2) ब्रिटिश लोगों को पाँच बंदरगाहों-कैंटन, अमोय, फूचाओ (Foochow), निंगपो और शंघाई में बसने तथा व्यापार करने का अधिकार दे दिया गया।

(3) क्षतिपूर्ति के रूप में चीन ने दो करोड़ दस लाख डालर अंग्रेजों को देना स्वीकार किया।

(4) को-होंग को भंग कर दिया गया। परिणामस्वरूप अब ब्रिटिश व्यापारी किसी भी चीनी व्यापारी के साथ स्वतंत्र रूप से व्यापार कर सकता था।

(5) आयात और निर्यात पर एक समान तथा उदार दर स्वीकार कर ली गई। (vi) चीनियों ने इस बात को स्वीकार कर लिया कि अंग्रेजों के मुकद्दमे अंग्रेज़ी कानून के अनुसार तथा उन्हीं की अदालतों में चलेंगे।

(6) यह भी शर्त रखी गई कि चीन अन्य देशों के लोगों को जो भी सुविधाएँ देगा वे अंग्रेजों को भी प्राप्त होंगी। एक अन्य इतिहासकार सी० ए० बस के शब्दों में, “यह एक युग का अंत एवं दूसरे युग का आगमन था।”

III. प्रथम अफ़ीम युद्ध के प्रभाव

प्रथम अफ़ीम युद्ध के परिणाम चीन के लिए बहुत ही विनाशकारी प्रमाणित हुए। इस युद्ध के परिणामों का वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. चीन की आर्थिक समस्याओं का बढ़ना:
प्रथम अफ़ीम युद्ध का सर्वप्रथम परिणाम यह हुआ कि चीन का आर्थिक शोषण आरंभ हो गया। अंग्रेज़ अब स्वतंत्रतापूर्वक अफ़ीम का व्यापार करने लगे। इस व्यापार के कारण चीन के धन का निकास होने लगा तथा चीन की आर्थिक कठिनाइयाँ बढ़ गईं।

2. चीन के सम्मान को धक्का:
प्रथम अफ़ीम युद्ध के पश्चात् हुई नानकिंग की संधि के कारण चीन के सम्मान में लगातार कमी होने लगी। उसकी व्यापारिक श्रेष्ठता तथ का महत्त्व कम होने के कारण विदेशियों ने चीनी सरकार पर अपना दबाव बढाना आरंभ कर दिया। परिणामस्वरूप उन्होंने चीन से अनेक सुविधाएँ प्राप्त की। इससे चीन के सम्मान को गहरा आघात लगा।

3. खुले द्वार की नीति :
एक लंबे समय से चीन के द्वार विदेशी व्यापारियों के लिए बंद थे। विदेशी व्यापारियों को कैंटन के अतिरिक्त किसी और नगर में व्यापार करने की अनुमति नहीं थी। विदेशी व्यापारी सीधे चीनी व्यापारियों के साथ व्यापार नहीं कर सकते थे। वे केवल को-होंग के माध्यम से ही अपना व्यापार कर सकते थे। परंतु इस युद्ध के पश्चात् चीन की सरकार को खुले द्वार की नीति अपनानी पड़ी। इस नीति के कारण चीन की बहुत आर्थिक हानि हुई।

4. साम्राज्यवाद का युग :
चीनी लोग यूरोपीयों से बहुत पिछड़े थे। उनकी सैनिक शक्ति भी संगठित नहीं थी। इस स्थिति का लाभ उठा कर यूरोपीयों ने चीन की सरकार पर दबाव डाला तथा अपने लिए अनेक सुविधाएँ प्राप्त कर ली। धीरे-धीरे यूरोपियों ने चीन के तटवर्ती नगरों में अपने कारखाने स्थापित कर लिए और सेना भी रखनी आरंभ कर दी। उन्होंने कुछ नगरों पर अपना शासन भी स्थापित कर लिया। इससे साम्राज्यवाद का उदय हुआ तथा चीन पराधीन होने लगा।

5. ताइपिंग विद्रोह :
प्रथम अफ़ीम युद्ध में हुई चीन की पराजय तथा नानकिंग की संधि से माँचू शासन की दुर्बलता प्रकट हो गई। इस कारण चीन के विभिन्न भागों के लोग माँचू शासन के विरुद्ध हो गए। उन्होंने समय-समय पर कई विद्रोह कर दिए। इन विद्रोहों में से ताइपिंग विद्रोह सबसे प्रसिद्ध था। इस विद्रोह ने 1850 ई० से 1864 ई० के समय के दौरान चीन के कई भागों को अपनी चपेट में ले लिया। विद्रोहियों का उद्देश्य माँचू शासन को समाप्त करके मिंग वंश का शासन पुनः स्थापित करना था। यद्यपि इस विद्रोह का दमन कर दिया गया तथापि चीन के इतिहास में यह एक महत्त्वपूर्ण घटना है।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

प्रश्न 8.
द्वितीय अफ़ीम युद्ध का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
द्वितीय अफ़ीम युद्ध के कारणों का वर्णन कीजिए। इस युद्ध के क्या परिणाम निकले ?
उत्तर:

I. द्वितीय अफ़ीम युद्ध के कारण
द्वितीय अफ़ीम युद्ध चीन तथा ब्रिटेन के मध्य 1856-60 ई० में लड़ा गया। इस युद्ध के लिए जिम्मेदार कारकों का वर्णन अग्रलिखित अनुसार है

1. अफ़ीम के व्यापार में वृद्धि :
प्रथम अफ़ीम युद्ध का मुख्य कारण अफ़ीम का अवैध व्यापार था परंतु इस युद्ध के पश्चात् हुई संधियों में इसके व्यापार संबंधी कोई निश्चित निर्णय नहीं हुआ था। अंग्रेज़ अब भी धड़ल्ले से इसका व्यापार कर रहे थे। वे अफ़ीम के व्यापार से काफी लाभ कमा रहे थे। परिणामस्वरूप भारी मात्रा में अफ़ीम चीन में आने लगी।

1842 ई० में चीन में आने वाली पेटियों की संख्या 38,000 थी जोकि 1850 ई० तक 52,000 हो गई थी। चीन की सरकार इस अवैध व्यापार से बहुत चिंतित थी परंतु इस मामले में विदेशियों पर कोई ठोस प्रतिबंध लगाने में असमर्थ थी। इस प्रकार अफ़ीम का व्यापार द्वितीय अफ़ीम युद्ध का एक महत्त्वपूर्ण कारण बना।

2. चीनियों के साथ विदेशों में दुर्व्यवहार:
नानकिंग की संधि के पश्चात् विदेशियों ने अपने व्यापार का विस्तार करना आरंभ कर दिया। उन्हें यूरोप में कुलियों की आवश्यकता थी। इसलिए उन्होंने चीन के निर्धन युवकों को धन का लालच देकर यूरोप के देशों तथा संयुक्त राज्य अमरीका आदि में भेजना आरंभ कर दिया। विदेशों में इन चीनियों से दासों जैसा व्यवहार किया जाता था। चीन की सरकार विदेशों में चीनियों के साथ किए जाने वाले दुर्व्यवहार को सहन करने को तैयार नहीं थी। इस कारण चीन तथा यूरोपियों के संबंध तनावपूर्ण हो गए।

3. अधिकारों का दुरुपयोग:
प्रथम अफ़ीम युद्ध के पश्चात् 8 अक्तूबर, 1843 ई० को हुई बोग की संधि (Treaty of Bogue) के अनुसार अंग्रेजों ने चीन में अपने देश के कानून लागू करने का अधिकार प्राप्त कर लिया था। परंतु चीन की सरकार की दुर्बलता का लाभ उठा कर वे अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने लगे थे। चीन की सरकार इसे सहन करने को तैयार नहीं थी।

4. कैथोलिक प्रचारक की हत्या :
आगस्ते चैप्डेलेन (Auguste Chapdelaine) नामक कैथोलिक प्रचारक की हत्या भी द्वितीय अफ़ीम युद्ध का एक मुख्य कारण सिद्ध हुई। चैप्डेलेन फ्राँस का निवासी था। वह ईसाई धर्म के प्रचार के लिए चीन में आया था। वह अपने धर्म-प्रचार के प्रयास में चीन के आंतरिक भागों में काफी दूर तक चला गया। चीन के अधिकारियों ने इसे संधि की शर्तों का उल्लंघन माना तथा उसे बंदी बना लिया।

उस पर चीनी सरकार के विरुद्ध लोगों को भड़काने का आरोप लगाया गया। क्वांगसी की स्थानीय अदालत ने फरवरी 1856 ई० में उसे मृत्यु दंड दे दिया। चीनी सरकार के इस व्यवहार से क्षुब्ध होकर नेपोलियन तृतीय ने चीन के विरुद्ध युद्ध में इंग्लैंड को साथ देने का मन बना लिया।

5. तात्कालिक कारण :
1856 ई० में घटने वाली लोर्चा ऐरो घटना (Lorcha Arrow Incident) द्वितीय अफ़ीम युद्ध का तात्कालिक कारण बनी। 8 अक्तूबर, 1856 ई० को चीनी अधिकारियों ने लोर्चा ऐरो नामक जहाज़ को पकड़ लिया तथा उसके 14 में से 12 नाविकों को बंदी बना लिया। इन पर यह इल्जाम लगाया कि वे प्रतिबंधित अफ़ीम का व्यापार कर रहे हैं। यह जहाज़ एक चीनी व्यापारी का था किंतु इसका कप्तान एक अंग्रेज़ था।

इस जहाज़ पर ब्रिटिश झंडा लगा हुआ था। अंग्रेजों ने चीन की इस कार्यवाही की निंदा की तथा बंदी बनाए गए व्यक्तियों को छोड़ने तथा उचित मुआवजा देने के लिए कहा। चीनी अधिकारियों ने अपनी कार्यवाही को उचित ठहराया तथा अंग्रेजों की माँग मानने से इंकार कर दिया। चीनियों के इस व्यवहार से अंग्रेज रुष्ट हो गए तथा उन्होंने युद्ध का बिगुल बजा दिया। प्रसिद्ध इतिहासकार इमानूएल सी० वाई० सू के शब्दों में, “1856 ई० की लोर्चा ऐरो घटना ने ब्रिटेन को अपना गुस्सा निकालने का मौका दिया।”

II. द्वितीय अफ़ीम युद्ध की घटनाएँ

1856 ई० में अंग्रेज सेनाओं ने कैंटन पर आक्रमण करके उस पर अधिकार कर लिया। इसके पश्चात् फ्रांसीसी सेनाएँ भी ब्रिटिश सेनाओं की सहायता के लिए पहुंच गई । शीघ्र ही दोनों सेनाएँ तीनस्तीन पहुँच गईं। चीनी सरकार इस संयुक्त सेना का सामना करने में असमर्थ थी। अतः परिणामस्वरूप चीनियों ने बाध्य होकर इन देशों के साथ 26 जून, 1858 ई० को तीनस्तीन की संधि कर ली।

1. तीनस्तीन की संधि 1858 ई० (Treaty of Tientsin 1858 CE)-तीनस्तीन की संधि पर 26 जून, 1858 ई० को चीन, इंग्लैंड तथा फ्राँस की सरकारों ने हस्ताक्षर किए। इस संधि की प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित थीं

(1) चीन की 11 नई बंदरगाहों को विदेशी देशों के साथ व्यापार तथा निवास के लिए खोल दिया गया।

(2) चीनी सरकार ने पश्चिमी देशों को अफ़ीम के व्यापार की अनुमति प्रदान कर दी तथा अफ़ीम के व्यापार को वैध घोषित कर दिया।

(3) चीन की ‘यांगत्सी’ नदी में पश्चिमी देशों के जहाजों को आने-जाने की अनुमति दे दी गई।

(4) चीन की सरकार ने यह भी स्वीकार कर लिया कि पश्चिमी देश चीन में अपने राजदूत नियुक्त कर सकेंगे।

(5) चीन की सरकार ने फ्रांस के रोमन कैथोलिक पादरियों को यह सुविधा प्रदान कर दी कि वे उपर्युक्त सोलह बंदरगाहों को छोड़कर कहीं भी आ-जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त वे किसी भी स्थान पर भूमि खरीद सकते हैं अथवा किराये पर भूमि लेकर गिरजाघरों का निर्माण कर सकते हैं।

(6) ईसाई धर्म के प्रचारकों को यह अधिकार दे दिया गया कि वे चीन में स्वतंत्रतापूर्वक घूम-फ़िर कर अपने धर्म का प्रचार कर सकते हैं और किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के अनुकूल ईसाई बना सकते हैं।

(7) पश्चिमी शक्तियों के राज्य-क्षेत्रातीत अधिकारों (Extra Territorial Rights) को अधिक विस्तृत और व्यापक कर दिया गया। इसके अनुसार उन्हें चीन में निवास करने और व्यापार करने की सुविधा दी गई।

(8) चीन ने अंग्रेज़ व्यापारियों को युद्ध के हर्जाने के रूप में एक भारी धन-राशि देना स्वीकार कर लिया।

(9) इस संधि ने उन विदेशियों को जिनके पास वैध प्रवेश पत्र (legal passport) हों, चीन के किसी स्थान पर स्वतंत्रतापूर्वक घूमने-फिरने की अनुमति प्रदान कर दी।

2. युद्ध का दूसरा चरण:
26 जून, 1858 ई० को तीनस्तीन की संधि हो गई थी प चीन की सरकार ने इसे मान्यता देने से इंकार कर दिया था। चीन की इस कार्यवाही से पश्चिमी शक्तियों को बहुत आघात पहुँचा। उन्होंने चीनी सरकार पर दबाव डालने के लिए पुनः युद्ध आरंभ कर दिया। इंग्लैंड तथा फ्रांस की संयुक्त सेनाओं ने शीघ्र ही पीकिंग पर आक्रमण कर दिया।

चीन की निर्बल सेना इस आक्रमण का मुकाबला करने में नाकाम रही। संयुक्त सेनाओं ने पीकिंग पर अधिकार कर लिया तथा माँचू सम्राट् पीकिंग छोड़ कर भाग गया। विजयी सेनाओं ने नगर में भारी लूट-मार की तथा राजमहल को अग्नि भेंट कर दिया। विवश होकर चीन की सरकार को पीकिंग की संधि की शर्तों को स्वीकार करना पड़ा। पीकिंग की संधि 1860 ई० (Treaty of Peking 1860 CE)-अक्तूबर, 1860 ई० में चीन, फ्राँस तथा इंग्लैंड के मध्य की गई पीकिंग संधि की मुख्य धाराएँ निम्नलिखित थीं

(1) अफ़ीम के व्यापार को वैध मान लिया गया।

(2) चीन सरकार ने पहले केवल 5 बंदरगाहें ही विदेशी व्यापार के लिए खोली थीं। अब 11 अन्य बंदरगाहें भी खोल दी जिससे बंदरगाहों की कुल संख्या 16 हो गई।

(3) चीन की सरकार पीकिंग में अंग्रेज़ राजदूत रखने के लिए मान गई।

(4) कौलून का प्रायद्वीप इंग्लैंड को दिया गया।

(5) चीन की सरकार को युद्ध के हर्जाने के रूप में आठ-आठ मिलियन डालर इंग्लैंड तथा फ्रांस को देने पड़े।

(6) चीन ने यह भी माना कि कैथोलिक पादरियों को 16 बंदरगाहों के अतिरिक्त चीन के किसी भी भाग में जाने की अनुमति होगी। उन्हें वहाँ धर्म प्रचार करने, भूमि खरीदने तथा गिरजाघर बनाने का अधिकार होगा।

II. द्वितीय अफ़ीम युद्ध के प्रभाव

द्वितीय अफ़ीम युद्ध के पश्चात् पूर्व के इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। इस युद्ध के प्रभावों का वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. चीन के सम्मान को धक्का :
चीन निवासी सदियों से स्वयं को पश्चिमी लोगों से सभ्य मानते थे। उन्हें अपनी सभ्यता पर बहुत गर्व था। द्वितीय अफ़ीम युद्ध में पराजित होने के कारण चीनियों को अपमानजनक संधियों पर हस्ताक्षर करने पड़े तथा विदेशियों को अपने से श्रेष्ठ मानना पड़ा। इस प्रकार उनके सम्मान को गहरा धक्का लगा।

2. चीन को आर्थिक हानि :
चीन लगभग चार वर्ष तक युद्धों में उलझा रहा। इन युद्धों में उसे भारी धन राशि खर्च करनी पड़ी। द्वितीय अफ़ीम युद्ध के दौरान इंग्लैंड तथा फ्रांस की सेनाओं ने चीन की राजधानी पीकिंग तथा अन्य नगरों में सरकारी संपत्ति को बहुत हानि पहुँचाई। इस युद्ध के पश्चात् हुई संधियों के अनुसार चीन को भारी धन राशि विजयी देशों को देनी पड़ी। इससे चीन की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई।

3. ईसाई मत का प्रसार :
द्वितीय अफ़ीम युद्ध के पश्चात् हुई पीकिंग की संधि के अनुसार अब कैथोलिक पादरियों को 16 बंदरगाहों के साथ-साथ चीन के आंतरिक भागों में जाने तथा प्रचार करने की अनुमति मिल गई। परिणामस्वरूप ये पादरी चीन के विभिन्न भागों में बेरोक-टोक ईसाई मत का प्रचार करने लगे। उनके प्रचार से प्रभावित होकर अनेक चीनी नागरिकों ने ईसाई मत ग्रहण कर लिया।

इस कारण उनके धार्मिक तथा सामाजिक जीवन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। इन ईसाइयों की गतिविधियाँ ही चीन में 1899-1900 ई० में हुए बॉक्सर विद्रोह का कारण बनीं।

4. साम्राज्यवाद को प्रोत्साहन :
द्वितीय अफ़ीम युद्ध से पूर्व यूरोपीय शक्तियों का उद्देश्य केवल चीन की बंदरगाहों पर अधिकार जमाना तथा व्यापार को संचालित करना था। इस युद्ध में विजयी रहने पर उन्हें 16 बंदरगाहों पर व्यापारिक अधिकार प्राप्त हो गए। अब उन्होंने चीन में राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने के प्रयास आरंभ कर दिए। अब इन शक्तियों ने अपनी बस्तियाँ बसानी आरंभ कर दी तथा कई नगरों में अपना शासन भी स्थापित कर लिया। इस प्रकार उन्होंने साम्राज्यवाद को प्रोत्साहन दिया।

प्रश्न 9.
चीन के इतिहास में डॉक्टर सन-यात-सेन की भूमिका का वर्णन कीजिए। उत्तर-चीन के इतिहास में डॉ० सन-यात-सेन (1866-1925 ई०) का एक विशेष स्थान है। उन्हें आधुनिक न का निर्माता कहा जाता है। वह चीन में राष्ट्रीय एकता स्थापित करना चाहते थे। व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा गणतंत्र की स्थापना उनके जीवन का परम लक्ष्य था।

1. प्रारंभिकजीवन :
डॉ० सन-यात-सेन का जन्म 2 नवंबर, 1866 ई० को कुआंगतुंग (Kwangtung) प्रदेश के चोय-हंग (Choy-Hung) नामक एक छोटे से गाँव में हुआ था। यह गाँव कैंटन (Canton) नगर से 40 मील की दूरी पर स्थित है। इनके पिता का नाम सन-टैट-सुंग (Sun-Tat-Sung) था। डॉ० सन-यात-सेन को शिक्षा प्राप्त करने के लिए हवाई द्वीप (Hawaii Islands) में भेजा गया। उनके भाई ने डॉ० सन-यात-सेन को एंगलीकन चर्च के एक प्रसिद्ध स्कूल में भर्ती करा दिया।

इस स्कूल में उन्होंने पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा प्राप्त की। डॉ० सन-यात सेन ने लंदन में 1887 ई० में एक मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। 1892 ई० में उन्होंने डॉक्टरी की परीक्षा पास की और मैकाय (Macoy) नामक स्थान पर डॉक्टरी की प्रैक्टिस आरंभ कर दी। उस समय उनके ऊपर क्रांतिकारी भावनाओं का गहरा प्रभाव पड़ चुका था। वह देश की शिक्षा-प्रणाली में सुधार करना चाहते थे। उनका विचार था कि शिक्षा के क्षेत्र में सुधार होने के पश्चात् ही देश उन्नति कर सकता है। वह चाहते थे कि माँचू सरकार शिक्षा के क्षेत्र में सुधार करे।

2. रिवाइव चाइना सोसाइटी की स्थापना :
डॉ० सन यात-सेन ने 24 नवंबर, 1894 ई० को होनोलल (Honolulu) में रिवाइव चाइना सोसाइटी की स्थापना की। वह स्वयं इस संस्था के चेयरमैन बने। इसे शिंग चुंग हुई (Hsing Chung Hui) के नाम से भी जाना जाता है। यह एक गुप्तचर संगठन था। आरंभ में इसके 112 सदस्य थे। 21 फरवरी, 1895 ई० को इसका मुख्यालय हांगकांग (Hong Kong) में खोला गया।

इसकी अनेक शाखाएँ चीन के विभिन्न प्रांतों में खोली गई। इसका प्रमुख उद्देश्य चीन में से माँचू शासन का अंत करना, चीनी समाज का पुनः निर्माण करना, प्रेस तथा शिक्षा के माध्यम से चीनियों में एक नवचेतना का संचार करना तथा चीन में गणतंत्र की स्थापना करना था।

3. तुंग मिंग हुई की स्थापना :
डॉ० सन-यात-सेन द्वारा 20 अगस्त, 1905 ई० को जापान की राजधानी तोक्यो (Tokyo) में तुंग मिंग हुई की स्थापना करना एक प्रशंसनीय कदम था। इस संगठन का प्रमुख उद्देश्य चीन में माँचू वंश का अंत करना, चीन को पश्चिमी देशों के शासन से मुक्त करना, चीन में लोकतंत्रीय गणतंत्र की स्थापना करना तथा भूमि का राष्ट्रीयकरण करना था। तुंग मिंग हुई की स्थापना वास्तव में चीन के इतिहास में एक मील पत्थर सिद्ध हुई।

4. डॉ० सन-यात-सेन के तीन सिद्धांत :
डॉ० सन-यात-सेन आरंभ से ही क्रांतिकारी विचारों के व्यक्ति थे। वह लोकतंत्र में विश्वास रखते थे। उन्होंने ही माँचू सरकार को हटा कर चीन में गणराज्य की स्थापना की थी। इसमें कोई संदेह नहीं कि वह रूसी साम्यवाद से बहुत प्रभावित थे, फिर भी वह रूसी विचारों का अंधा-धुंध अनुसरण नहीं करना चाहते थे। वह इस बात को भली-भाँति समझते थे कि रूस श्रमिकों का देश है और चीन किसानों का।

अत: उन्होंने अपनी विचारधारा को अपने देश की परिस्थितियों के अनुकूल बनाया। डॉ० सन-यात-सेन के राजनीतिक विचार तीन सिद्धांतों पर आधारित थे। ये सिद्धांत सन-मिन-चुई (San-min Chui) के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

(1) राष्ट्रीयता:
डॉ० सन-यात-सेन राष्ट्रीयता के महत्त्व को भली-भाँति समझते थे। उनके विचारानुसार चीन को जिन वर्तमान समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है उसका मूल कारण चीनी लोगों में राष्ट्रीयता की भावना का अभाव है।

इसी कारण पश्चिमी देश चीन का घोर शोषण कर रहे हैं तथा जिस कारण वह विश्व का अग्रणी देश होने की अपेक्षा एक गरीब एवं कमज़ोर राष्ट्र बनकर रह गया है। अतः चीन की खुशहाली के लिए यह आवश्यक है कि चीनी लोगों में राष्ट्रवाद एवं देश-प्रेम की भावना का विकास हो। इसके लिए निम्नलिखित शर्ते आवश्यक थीं

  • चीन से माँचू वंश का अंत करना।
  • चीन को पश्चिमी राष्ट्रों के प्रभाव से मुक्त करना।
  • चीनियों में राष्ट्रीय एकता की भावना उत्पन्न करना।
  • विभिन्न समुदायों के लोगों में प्रचलित मतभेदों को दूर करना।
  • चीन की स्वतंत्रता के लिए विदेशी राष्ट्रों से सहयोग प्राप्त करना।

(2) राजनीतिक लोकतंत्र (Political Democracy)-डॉ० सन-यात-सेन राजनीतिक लोकतंत्र को बहुमूल्य मानते थे। उन्होंने अपना अधिकांश जीवन विदेशों में व्यतीत किया था। अतः वह लोकतंत्र के महत्त्व से अच्छी तरह परिचित थे। यही कारण था कि वह चीन में गणतंत्रीय सरकार की स्थापना के पक्ष में थे।

वह चाहते थे कि चीन में एक शक्तिशाली सरकार की स्थापना हो किंतु यह सरकार अपने कार्यों के लिए लोगों के प्रति उत्तरदायी हो। ऐसी सरकार कभी भी निरंकुश नहीं हो सकती। लोकतंत्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि लोगों को बिना किसी मतभेद के वोट डालने का अधिकार हो तथा वे अपनी सरकार को वापस बुलाने (recall) का अधिकार रखते हों।

(3) लोगों की आजीविका:
डॉ० सन-यात-सेन लोगों की आजीविका के महत्त्व को भली-भाँति समझते थे। यदि किसी देश के लोग भूखे हों तो उस देश का विकास किसी भी सूरत में संभव नहीं है। क्योंकि अधिकाँश चीनी कृषि, कार्य करते थे इसलिए उन्होंने इस ओर अपना विशेष ध्यान दिया। उन्होंने ‘जोतने वाले को जमीन दो’ (land to the tiller) का नारा दिया।

चीन की आर्थिक खुशहाली के लिए उसके यातायात के साधनों, उद्योगों एवं खानों का विकास किया जाना चाहिए। इसके चलते मजदूरों को संपूर्ण रोजगार प्राप्त होगा तथा वे देश के विकास के लिए कड़ी मेहनत करेंगे। इसके अतिरिक्त वह जमींदारों, व्यापारियों एवं पूँजीवादियों के हाथों में धन के केंद्रीयकरण (concentration of wealth) के विरुद्ध थे। वह सभी विशाल प्राइवेट उद्यमों (enterprises) का सरकार द्वारा राष्ट्रीयकरण (nationalisation) के पक्ष में थे।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि डॉ० सन-यात-सेन न केवल एक महान क्रांतिकारी थे अपितु आधुनिक चीन के निर्माता थे। उन्होंने अपने अथक प्रयासों से चीनी समाज को एक नई दिशा देने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की। प्रसिद्ध इतिहासकार जी० डब्ल्यू० कीटन का यह कहना ठीक है कि,”डॉक्टर सन-यात-सेन ने 40 करोड़ चीनियों के लिए वही किया जो कमाल अतातुर्क ने तुर्की के लिए किया, जो लेनिन एवं स्टालिन ने रूस के लिए किया।”

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

प्रश्न 10.
1911 ई० की चीनी क्रांति के कारणों और उसके परिणामों का वर्णन कीजिएं।
अथवा
1911 ई० की चीनी क्रांति के क्या कारण थे?
उत्तर:
1. 1911 ई० की चीनी क्रांति के कारण थे

1. माँचुओं का पतन:
माँचू शासक मंचूरिया के रहने वाले थे। उन्होंने 1644 ई० में चीन में मिंग (Ming) वंश का अंत करके छींग (Qing) अथवा मांचू वंश की स्थापना की थी। 18वीं शताब्दी के अंत में इस वंश की शान एवं शक्ति कम होने लगी। इसका कारण यह था कि माँचू शासक अब बहुत विलासी एवं भ्रष्ट हो चुके थे।

वे अब अपना अधिकाँश समय सुरा एवं सुंदरी के संग व्यतीत करने लगे थे। अतः उन्होंने प्रशासन की ओर अपना कोई ध्यान नहीं दिया। अतः प्रजा में बहुत असंतोष फैल गया था। मांचू शासकों द्वारा विदेशियों के साथ की जाने वाली अपमानजनक संधियों ने माँचू शासकों की निर्बलता को प्रकट कर दिया था। निस्संदेह चीनी इस अपमान को सहन करने को तैयार नहीं थे।

प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर के० टी० एस० सराओ का यह कहना ठीक है कि, “माँचू वंश के चक्र ने जिन्हें उन्हें अपनी गौरवता के शिखर पर पहुँचाया था वह अब उन्हें तीव्रता से उनके विनाश की ओर ले जा रहा था।”

2. चीन में सुधार आंदोलन :
1894-95 ई० में जापान ने चीन को पराजित कर सभी को आश्चर्य में डाल दिया था। एशिया के एक छोटे-से देश से पराजित होना चीन के लिए एक घोर अपमान की बात थी। इसके पश्चात् चीन में रियायतों के लिए संघर्ष (Battle of Concessions) आरंभ हो गया था। इसने चीन की स्थिति को अधिक दयनीय बना दिया था।

चीन को इस घोर संकट से बाहर निकालने के लिए दो छींग सुधारकों कांग यूवेई (Kang Youwei) तथा लियांग किचाउ (Liang Qichao) ने चीनी सम्राट कुआंग शू (Kuang Hsu) को कुछ महत्त्वपूर्ण सुधार लागू करने का सुझाव दिया। सम्राट् ने उनके सुझावों को मानते हुए 1898 ई० में सौ दिनों तक अनेक अध्यादेश जारी किए।

इन्हें चीनी इतिहास में सुधारों के सौ दिन (Hundred Days of Reforms) कहा जाता है। इनके अधीन चीन में एक आधुनिक प्रशासकीय व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था, कृषि, उद्योग, व्यापार, कानून व्यवस्था, राजस्व, रेलवे, डाक व्यवस्था, सेना एवं नौसेना, यातायात के साधनों के विकास, सिविल सर्विस में सुधार तथा संवैधानिक सरकार के गठन के बारे में उल्लेख किया गया।

यद्यपि ये सुधार बहुत प्रशंसनीय थे, किंतु इनको महारानी त्जु शी (Tzu Hsi) के विरोध के चलते लागू न किया जा सका। उसने बड़ी संख्या में सुधारकों को बंदी बना कर मौत के घाट उतार दिया। इससे चीनियों में व्यापक असंतोष फैला तथा उन्होंने ऐसे निकम्मे शासन का अंत करने का निर्णय किया। प्रसिद्ध इतिहासकार जीन चैसनिआक्स का यह कहना ठीक है कि, “वे सुधार जो कि माँचू वंश द्वारा मुक्ति के साधन के तौर पर अपनाए गए थे उनके पतन का कारण बने थे।

3. त्जु शी की मृत्यु :
त्जु शी चीन की राजनीति में सबसे प्रभावशाली महारानी थी। उसने 1861 ई० से लेकर 1908 ई० तक चीन की राजनीति में अपनी गहरी छाप छोड़ी। वह बहुत रूढ़िवादी, अहंकारी एवं षड्यंत्रकारी महिला थी। उसने अपनी चतुर कूटनीति द्वारा माँचू वंश के पतन को रोके रखा। उसने 1898 ई० में सम्राट् कुआंग शू के सुधारों को रद्द कर दिया। उसने चीनी सुधारकों का निर्ममता से दमन कर दिया। 1908 ई० में त्जु शी की मृत्यु से माँचू वंश को एक गहरा आघात लगा।

4. शिक्षा का प्रसार :
शिक्षा के प्रसार ने चीन में 1911 ई० की क्रांति लाने में उल्लेखनीय योगदान दिया। चीन में शताब्दियों से प्राचीन शिक्षा प्रणाली प्रचलित थी। इस प्रणाली में केवल धर्मशास्त्रों के अध्ययन पर बल दिया जाता था। 1902 ई० में चीन में पीकिंग विश्वविद्यालय (Peking University) स्थापित किया गया।

1905 ई० में चीन में प्राचीन शिक्षा के अंत एवं आधुनिक शिक्षा को लागू करने की घोषणा की गई। निस्संदेह यह एक उल्लेखनीय कदम था। शिक्षा के प्रसार के कारण चीनी लोगों में एक नवचेतना का संचार, हुआ। अनेक चीनी विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से विदेशों में गए। ये विद्यार्थी पश्चिम में हुए विकास को देख कर चकित रह गए। जब ये विद्यार्थी चीन वापस लौटे तो चीन की सरकार उन्हें योग्य नौकरियाँ देने में विफल रही। इस कारण इन विद्यार्थियों में चीनी सरकार के विरुद्ध घोर निराशा फैली। अत: उन्होंने ऐसी सरकार का अंत करने का निर्णय किया।

5. आर्थिक निराशा:
चीन की दयनीय आर्थिक दशा 1911 ई० की क्रांति का एक महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुई। प्रथम अफ़ीम युद्ध (1839-42 ई०) के पश्चात् यूरोपीय लुटेरों ने चीन का दरवाजा बलपूर्वक खोल दिया। उन्होंने चीन में लूट-खसूट का एक ऐसा दौर आरंभ किया जिस कारण वह कंगाली के कगार पर जा पहुँचा।

चीन की तीव्रता से बढ़ती हुई जनसंख्या ने इस स्थिति को अधिक विस्फोटक बना दिया। खाद्यान्न की कमी के कारण बड़ी संख्या में लोग भुखमरी का शिकार हो गए। इस घोर संकट के समय प्रकृति ने भी चीन में अपना कहर ढाया। 1910-11 ई० में चीन भयंकर बाढ़ की चपेट में आ गया। इस कारण जन-धन की अपार हानि हुई।

इससे चीन की अर्थव्यवस्था को एक गहरा आघात लगा। ऐसे समय में चीन की सरकार ने लोगों पर भारी कर लगा कर एक भयंकर भूल की। अतः चीन के लोगों ने माँचू सरकार को एक सबक सिखाने का निर्णय लिया। एच० एम० विनायके के शब्दों में, “इसने लोगों में माँचू वंश के विरुद्ध बेचैनी एवं असंतुष्टता को और बढ़ा दिया। 120

6. प्रेस की भूमिका:
1911 ई० की चीनी क्रांति लाने में प्रेस ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई। चीन में समाचार-पत्रों का प्रकाशन 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में आरंभ हुआ था। चीन में प्रकाशित होने वाले प्रारंभिक समाचार-पत्र अंग्रेजी भाषा में थे। 1870 ई० में चीनी भाषा में प्रथम समाचार-पत्र प्रकाशित हुआ। इसके पश्चात् इन समाचार-पत्रों की संख्या तीव्रता से बढ़ने लगी। इन समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं ने माँचू सरकार के विरुद्ध लोगों में एक नवचेतना का संचार करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

7. डॉ० सन-यात-सेन का योगदान:
डॉ० सन-यात-सेन ने 1911 ई० की चीनी क्रांति में उल्लेखनीय योगदान दिया। इस कारण उन्हें चीनी क्रांति का पिता कहा जाता है। वह इंग्लैंड, फ्राँस, अमरीका एवं जापान के हाथों से चीन की लगातार पराजयों से बहुत निराश हुए। इन पराजयों से चीन को घोर अपमान को सहन करना पड़ा। अत: डॉ० सन-यात-सेन ने चीन से अयोग्य माँचू सरकार का अंत करने का निर्णय लिया।

इस उद्देश्य से उन्होंने 1894 ई० में होनोलूलू में रिवाइव चाइना सोसायटी (Revive China Society) तथा 1905 ई० में तोक्यो में तुंग मिंग हुई (Tung Meng Hui) की स्थापना की। प्रसिद्ध इतिहासकार इमानुएल सी० वाई० सू का यह कहना ठीक है कि, “तुंग मिंग हुई की स्थापना चीनी क्रांति के लिए एक मील पत्थर सिद्ध हुई क्योंकि इसने क्रांति के स्वरूप एवं दिशा को परिवर्तित कर दिया था।”

वास्तव में डॉ० सन-यात-सेन ने चीनियों में एक नई जागृति लाने एवं उनमें एकता स्थापित करने के लिए अथक प्रयास किए। इस दिशा में उसके समाचार-पत्र मिन पाओ (Min Pao) ने प्रशंसनीय भूमिका निभाई। निस्संदेह 1911 ई० की चीनी क्रांति में डॉ० सन-यात-सेन ने जो प्रशंसनीय भूमिका निभाई उसके लिए उनका नाम चीनी इतिहास में सदैव स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।

8. तात्कालिक कारण :
चीन की सरकार द्वारा रेलों का राष्ट्रीयकरण करना 1911 ई० की चीनी क्रांति का तात्कालिक कारण सिद्ध हुआ। 1909 ई० में चीन की सरकार ने रेलमार्गों के निर्माण की एक विशाल योजना बनाई। यह कार्य प्रांतीय सरकारों को सौंपा गया। किंतु प्रांतीय सरकारें धन की कमी के कारण इन योजनाओं को संपूर्ण करने में विफल रहीं।

अतः मई 1911 ई० में चीनी सरकार ने रेलों का राष्ट्रीयकरण करने की घोषणा की। अत: रेलमार्गों के निर्माण का कार्य केंद्रीय सरकार ने अपने हाथों में ले लिया। ऐसा होने से प्रांतीय गवर्नर केंद्रीय सरकार के विरुद्ध हो गए। वे क्रांतिकारयिों से मिल गए। उन्होंने 1911 ई० की चीनी क्रांति का बिगुल बजा दिया।

II. 1911 ई० की चीनी क्राँति की घटनाएँ।

10 अक्तूबर, 1911 ई० को हैंको में एक ऐसी घटना घटी जिसने क्राँति को तीव्र गति प्रदान कर दी। उस दिन हैंको में एक रूसी परिवार के घर एक बम-विस्फोट हुआ। यह घर क्रांतिकारियों का अड्डा था तथा वहाँ बमों का निर्माण किया जाता था। इस घटना के पश्चात् कई क्रांतिकारियों को बंदी बना लिया गया तथा चीनी सरकार के हवाले कर दिया गया।

चीन की सरकार ने कुछ क्रांतिकारियों को मृत्यु दंड दे दिया। सरकार की इस दमन नीति से उत्तेजित होकर वूचांग के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। शीघ्र ही बहुत से ग्रामीण विद्रोही भी उनसे आ मिले। इन क्रांतिकारियों नेवू-तिंग-फंग के नेतृत्व में एक सैनिक सरकार का गठन किया तथा नानकिंग को अपनी राजधानी घोषित किया। उस समय डॉ० सन-यात-सेन अमरीका में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहा था।

वह 24 दिसंबर, 1910 ई० को शंघाई पहुँचा और सभी क्रांतिकारियों ने उसे अपना नेता मान लिया। डॉ० सन-यात-सेन ने सुझाव दिया कि माँचू वंश का अंत कर गणतंत्र की स्थापना की जाए। उसने गणतंत्र का राष्ट्रपति युआन-शी-काई को बनाने के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिसे युआन-शी-काई ने स्वीकार कर लिया। डॉ० सन-यात-सेन ने राजनीतिक संन्यास लेने का मन बना लिया।

परिणामस्वरूप 12 फ़रवरी, 1912 ई० को एक शाही घोषणा की गई जिसके अनुसार सारी राजनीतिक शक्ति युआन शी-काई को सौंप दी गई। 13 फ़रवरी को वह प्रथम राष्ट्रपति नियुक्त हुआ और माँचू वंश का सदा के लिए अंत हो गया।

III.1911 ई० की चीनी क्रांति का महत्त्व

1911 ई० की क्रांति चीन के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इस क्रांति से चीन में तानाशाही का अंत हुआ तथा गणतंत्र स्थापित हुआ। इस क्रांति के अनेक दूरगामी परिणाम निकले। प्रसिद्ध इतिहासकार के० टी० एस० सराओ ने ठीक लिखा है कि, “1911 ई० की चीन की क्रांति आधुनिक विश्व के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। इस क्रांति ने एक युग का अंत किया एवं एक नए युग का सूत्रपात किया। 22

1. माँचू वंश का अंत :
1911 ई० की क्रांति का सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम यह निकला कि लगभग तीन सौ वर्षों से स्थापित माँचू शासन का अंत हो गया। माँचू शासक अयोग्य, भ्रष्ट तथा विलासी थे। न तो वे कुशल शासन प्रबंध दे सके तथा न ही विदेशी शक्तियों का सामना कर सके। वे अत्यंत रूढ़िवादी थे। चीन के लोग ऐसे शासन से छुटकारा पाना चाहते थे। 1911-12 ई० में चीन के लोगों ने बिना कठिनाई तथा किसी का खून बहाए इस राजवंश का अंत कर दिया। प्रसिद्ध इतिहासकार जॉन सेल्बी के अनुसार, “1912 ई० में कागजी ड्रेगन का अंत हो गया।”

2. राजतंत्र का अंत :
1911 ई० की क्रांति ने चीन में राजतंत्र का अंत कर दिया था। 1912 ई० में युआन-शी-काई (Yuan-Shih-Kai) चीन का प्रथम राष्ट्रपति बना था। वह गणतंत्र में विश्वास नहीं रखता था। वह राजतंत्र के पक्ष में था। 1915 ई० में उसने चीन में राजतंत्र स्थापित करने का प्रयास किया किन्तु विफल रहा। 1916 ई० में उसकी मृत्यु हो गई। इसके साथ ही चीन में राजतंत्रीय विचारधारा का भी अंत हो गया।

3. नए विचार:
1911 ई० की क्रांति के कारण चीन के शिक्षित नवयुवकों में नवीन विचारों का संचार हुआ। जो युवक पश्चिमी देशों से शिक्षा प्राप्त कर के आए वे नवीन विचारों से ओत-प्रोत थे । उन्होंने अपने देश में रूढ़िवादी सामाजिक ढाँचे को बदलने के प्रयास आरंभ कर दिए। अनेकों प्रसिद्ध पश्चिमी लेखकों के ग्रंथों का चीनी भाषा में अनुवाद किया गया। पश्चिमी विचारकों से प्रेरित होकर चीनी लोगों का दृष्टिकोण बदल गया।

4. माओ-त्सेतुंग का उत्थान:
1911 ई० की क्रांति के पश्चात् युआन शी-काई की गणतंत्रीय तथा चियांग-काई-शेक (Chiang-Kai-Shek) की राष्ट्रीय सरकारें बनीं। परंतु ये सरकारें भी देश को कठिनाइयों के भंवर से बाहर न निकाल सकीं। तब 1921 ई० में साम्यवादी दल की स्थापना हुई। चियांग काई-शेक की सरकार साम्यवादी दल को समाप्त करना चाहती थी।

परंतु वह असफल रही। शनैः-शनैः साम्यवादी दल का प्रभाव गाँवों में भी बढ़ने लगा। साम्यवादियों ने चीन में 1934 ई० में एक लाँग मार्च (Long March) का आयोजन किया। इस मार्च में लगभग एक लाख लोगों ने भाग लिया। इसी मार्च के दौरान प्रसिद्ध नेता माओ-त्सेतुंग का उत्थान हुआ।

5. चीन का आधुनिकीकरण :
राष्ट्रीय सरकार स्थापित करने के पश्चात् चीन धीरे-धीरे आधुनिकीकरण की ओर अग्रसर हुआ। देश में एक अस्थायी संविधान लागू किया गया। स्वास्थ्य, उद्योग, सिंचाई, संचार आदि से संबंधित कई सुधार किए गए। शिक्षा क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण सुधार हुए। मुद्रा संबंधी किए गए सुधारों से चीन में आर्थिक तथा व्यापारिक स्थिरता आई। राष्ट्रीय सरकार की विदेश नीति भी आर्थिक उत्थान में बड़ी सहायक सिद्ध हुई। निस्संदेह यह क्रांति चीन के इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई।

प्रश्न 11.
कुओमीनतांग के उत्थान एवं सिद्धांतों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कुओमीनतांग चीन का एक महत्त्वपूर्ण दल था। इस दल ने चीन में राष्ट्रीय एकता स्थापित करने के लिए बड़ा सराहनीय काम किया। इस बात में कोई संदेह नहीं कि इस दल को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, फिर भी इस दल ने देश में राष्ट्रीय एकता स्थापित करने के लिये काफी कुछ किया। सच तो यह है कि इस दल का उत्थान चीन के इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी।

1. कुओमीनतांग की स्थापना :
1905 ई० में डॉ० सन-यात-सेन ने जापान में तुंग-मिंग-हुई नामक दल की स्थापना की थी। आरंभ में यह संस्था एक गुप्त समिति के रूप में कार्य करती थी, परंतु 1911 ई० की चीनी क्रांति के समय यह दल काफी शक्तिशाली हो गया था। 1912 ई० में तुंग-मिंग-हुई तथा चीन के अन्य दलों को मिला कर एक नये राष्ट्रीय दल की स्थापना की गई। इस दल का नाम कुओमीनतांग रखा गया।

जब 1913 ई० में संसद् के चुनाव हुए तो इस दल को काफी सफलता प्राप्त हुई। यह दल युआन-शी-काई के निरंकुश शासन के विरुद्ध था। परिणामस्वरूप युआन-शी-काई से इस दल का संघर्ष आरंभ हो गया। 1921 ई० में कुओमीनतांग दल ने दक्षिणी चीन में कैंटन (Canton) सरकार की स्थापना की और डॉ० सन-यात-सेन को इस प्रकार का अध्यक्ष बनाया गया।

इसी समय इस दल के पुनर्गठन की फिर से आवश्यकता अनुभव की गई। अतः डॉ० सन-यात-सेन के प्रति निष्ठा आदि की शर्तों को हटा दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि इस दल की सदस्य संख्या में काफी वृद्धि हुई।

2. कुओमीनतांग दल के सिद्धांत :
कुओमीनतांग दल के सिद्धांतों की व्याख्या अनेक अवसरों पर भाषणों. लेखों तथा दल के घोषणा-पत्र द्वारा की गई थी। 1924 ई० में द सम्मेलन बुलाया गया था। इससे पहले दल के सिद्धांतों पर प्रकाश डालने के लिए घोषणा-पत्र प्रकाशित किया गया। दल के सिद्धांत डॉ० सन-यात-सेन के, जनता के तीन सिद्धांतों (Three Principles of the People) पर आधारित थे। इन तीन सिद्धांतों का वर्णन इस प्रकार है

(1) राष्ट्रीयता :
डॉ० सन-यात-सेन के तीन सिद्धांतों में पहला सिद्धाँत राष्ट्रीयता का था। डॉ० सन-यात-सेन का यह विश्वास था कि जनता में राष्ट्रवाद का विकास होना बहुत आवश्यक है। वह प्रायः चीनी जनता की तुलना रेत के ढेर से करते थे, जिसके प्रत्येक कण में आपसी समानता तो विद्यमान है परंतु मज़बूती का पूर्ण अभाव है।

राष्ट्रीयता की भावना उत्पन्न करने के लिए वह साम्राज्यवाद का विरोध तथा राष्ट्रीय मोर्चों का निर्माण आवश्यक समझते थे। यह बात याद रखने योग्य है कि डॉ० सन-यात-सेन विदेश विरोधी नहीं थे। वह तो केवल विदेशी शक्तियों की साम्राज्यवादी तथा विस्तारवादी नीतियों को सहन करने के लिए तैयार नहीं थे।

(2) राजनीतिक लोकतंत्र :
डॉ० सन-यात-सेन का दूसरा सिद्धांत राजनीतिक लोकतंत्र था। वास्तव में 1911 ई० में चीन में अकस्मात् ही राज्य क्राँति हो गई थी और इस समय देश लोकतंत्र के लिए तैयार नहीं था। चीन के लोग भी लोकतंत्र को चलाने की योग्यता नहीं रखते थे, परंतु क्रांतिकारी नेता इस बात को समझ नहीं पाए थे। अतः जब वे इस बात को भली-भाँति समझ गए थे, उन्होंने लोकतंत्र की स्थापना के लिए तीन बातों का सहारा लिया।

डॉ० सन-यात-सेन चाहते थे कि देश का शासन सेना के हाथ में रहे। दूसरे स्थान पर देश में राजनीतिक चेतना जागृत करना था। तीसरी बात संवैधानिक सरकार की थी। देश का संविधान जनता द्वारा चुनी गई सभा के द्वारा तैयार किया जायेगा।

(3) जनता की जीविका :
डॉ० सन-यात-सेन का तीसरा सिद्धांत जनता की जीविका का था। डॉ० सन-यात-सेन चाहते थे कि चीन की जनता की भौतिक उन्नति हो। चीन की अधिकाँश जनता गाँवों में रहती थी और मुख्यतया कृषि पर निर्भर थी। चीन के ज़मींदारों और किसानों के बीच एक गहरी आर्थिक विषमता थी। वास्तव में देश की भौतिक उन्नति के लिए इस विषमता को दूर करना बहुत आवश्यक था।

अत: दल के कार्यक्रम में यह बात स्पष्ट कर दी गई कि भूमि का समान वितरण करके किसानों की दशा सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए। इसके अतिरिक्त बड़े उद्योगों का विकास करके उनकी पूँजी पर राज्य द्वारा नियंत्रण रखा जाए। ऐसा करना इसलिए आवश्यक था ताकि विदेशी शक्तियों के द्वारा आर्थिक शोषण को रोका जा सके।

3. कुओमीनतांग में फूट:
1925 ई० में डॉ० सन-यात-सेन की मृत्यु के पश्चात् कुओमीनतांग के सदस्यों में मतभेद उत्पन्न होने आरंभ हो गये। इस समय चियांग-काई-शेक (Chiang-Kai-Shek) ने सेना पर बहुत प्रभाव स्थापित कर लिया था। वह वाहम्पिया सैनिक अकादमी का डायरेक्टर (Director of Whampia Military Academy) था। सेना पर प्रभाव रखने के कारण उसका कैंटन पर काफी नियंत्रण था।

चियांग-काई-शेक ने मार्च, 1925 ई० में कैंटन में फ़ौजी कानून की घोषणा कर दी और उसने रूसी सलाहकारों को वापस लौट जाने का आदेश दे दिया। वह स्वयं कैंटन सरकार का मुखिया बन गया। अनेक कारणों से साम्यवादियों तथा चियांग-काई-शेक के अनुयायियों में विरोध उत्पन्न हो गया। परिणामस्वरूप कुओमीनतांग दल के प्रभाव में कुछ कमी आई।

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प्रश्न 12.
1949 ई० की चीनी क्रांति के कारण तथा परिणाम बताएँ।
अथवा
1949 ई० की चीन की क्रांति के क्या कारण थे?
अथवा
1949 ई० की चीन की क्रांति के प्रभावों का वर्णन कीजिए। उत्तर

I. क्रांति के लिए उत्तरदायी कारण

1949 ई० की क्राँति अकस्मात् ही नहीं आ गई थी। इस क्रांति के बीज 1911 ई० की क्रांति के समय ही बो दिए गए थे। 1911 ई० की क्रांति के पश्चात् चीन में ऐसा घटनाक्रम चला जो इसे 1949 ई० की ओर ले गया। इन घटनाओं का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. 1911 ई० की क्रांति :
1949 ई० की क्रांति के मूल कारण 1911 ई० की क्रांति में ही छुपे हुए थे। 1911 ई० की क्रांति के परिणामस्वरूप चीन में माँचू वंश का अंत हुआ तथा गणतंत्र की स्थापना हुई। परंतु फिर भी राजसत्ता के लिए लगातार संघर्ष होता रहा। कई राजनीतिक दल अस्तित्व में आए। इनमें से कुओमीनतांग नामक साम्यवादी दल सब से महत्त्वपूर्ण दल के रूप में उभरा। कई विदेशी शक्तियाँ जैसे रूस और जापान भी किसी-न-किसी रूप में चीन की राजनीति को प्रभावित करती रहीं। ये सभी घटनाएँ 1949 ई० की क्रांति की आधारशिला बनीं।

2. चार मई का आंदोलन :
1919 ई० में वर्साय (Versailles) पेरिस में हुए शांति सम्मेलन में चीन को भारी निराशा हाथ लगी। शांति सम्मेलन के निर्णयों के परिणामस्वरूप चीनी लोगों में राष्ट्रीय भावना जागृत हुई। इस सम्मेलन में मित्र राष्ट्र चीन में जापान के प्रभाव को कम करने में असफल रहे थे। इस कारण चीन के लोग जापान के विरुद्ध हो गए। इस कारण 4 मई, 1919 ई० में 3000 से अधिक विद्यार्थियों तथा अध्यापकों ने पीकिंग (बीजिंग) के तियानमेन चौक (Tiananmen square) में एक भारी प्रदर्शन किया।

उन्होंने में शातंग (Shantang) पर दिए गए निर्णय की घोर आलोचना की। सरकार ने इस भीड पर नियंत्रण पाने के लिए बल प्रयोग से काम लिया। इतिहास में यह घटना ‘चार मई दिवस’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस घटना से चीनी लोगों में एक नई चेतना का संचार हुआ तथा 1949 ई० की क्रांति का मार्ग प्रशस्त हुआ।

3. वाशिंगटन सम्मेलन :
अमरीका के प्रयासों से एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन 1921-22 ई० में वाशिंगटन में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में नौ देशों ने भाग लिया। इन नौ देशों ने वचन दिया कि चीन की एकता, अखंडता तथा स्वतंत्रता बनाए रखी जाएगी। यह भी कहा गया कि चीन में सभी देशों को समान रूप से व्यापारिक सुविधाएँ दी जाएँगी तथा 1 जनवरी, 1923 ई० तक सभी विदेशी डाक एजेंसियाँ समाप्त कर दी जाएँगी।

एक संधि के अनुसार जापान ने शातुंग प्रांत में अपनी सभी रियायतें त्याग दी तथा सभी विदेशी शक्तियों ने अपनी सेनाएँ चीन से निकाल लीं। इस सम्मेलन से चीन को एक नया जीवन मिला। इस सम्मेलन के पश्चात् विदेशी शक्तियों का चीन में प्रभाव कम हो गया तथा चीन को सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ। परंतु फिर भी चीन की सरकार जापान की साम्राज्यवादी गतिविधियों को कम न कर सकी। चीन सरकार की यही असमर्थता 1949 ई० की क्रांति का कारण सिद्ध हुई।

4. जापान द्वारा चीन पर आक्रमण :
1 जुलाई, 1937 ई० को जापान ने चीन पर आक्रमण कर दिया। यह युद्ध 1945 ई० तक चला। इस आक्रमण के समय नानकिंग की सरकार तथा साम्यवादियों में एक समझौता हुआ जिसके अनुसार उन्होंने मिल कर संयुक्त रूप से जापान का सामना करने का निर्णय लिया। यद्यपि इस युद्ध के दौरान चियांग-काई-शेक एक राष्ट्रीय नेता के रूप में उभर कर सामने आया परंतु आठ वर्षों के इस लंबे युद्ध में चीन की पराजय से उसके समर्थक भी उसके शत्रु बन गए।

दूसरी ओर चियांग-काई-शेक भी साम्यवादियों को अपना शत्रु ही मानता रहा। फिर भी जापान के साथ युद्ध तथा द्वितीय महायुद्ध के दौरान साम्यवादियों का प्रभुत्व बना रहा। साम्यवादियों ने जापान द्वारा छोड़े गए क्षेत्रों पर मार्च, 1945 ई० में अपना अधिकार कर लिया।

5. चीन में गृहयुद्ध :
1945 ई० में जापान के पतन के पश्चात् जापान द्वारा छोड़े गए क्षेत्रों पर अधिकार जमाने के प्रश्न पर साम्यवादियों तथा कुओमीनतांग में आपसी होड़-सी लग गई। परिणामस्वरूप चीन में गृहयुद्ध छिड़ गया। तभी अमरीका के प्रयासों से माओ-त्सेतुंग तथा चियांग-काई-शेक आपसी बातचीत करने के लिए सहमत हो गए। अमरीका के राष्ट्रपति ने राष्ट्रवादियों तथा साम्यवादियों में समझौता करवाने के लिए अपने विशेष दूत जॉर्ज मार्शल को भेजा। उसके प्रयासों से जनवरी 1946 ई० को समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।

समझौते को लागू करने के लिए एक समिति का गठन किया गया जिसमें राष्ट्रीय सरकार, साम्यवादियों तथा अमरीका के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया। फ़रवरी, 1946 ई० में हुए एक समझौते के अनुसार राष्ट्रीय सरकार तथा साम्यवादियों ने अपनी सेनाओं में कमी कर दी। यह निर्णय भी किया गया कि दोनों सेनाएँ संयुक्त कर दी जाएँ और प्रत्येक प्रदेश में साम्यवादियों की सेना को अल्पमत में रखा जाए। परंतु दोनों दलों में सरकार के स्वरूप के प्रश्न पर दरार पड़ गई। राष्ट्रवादी शक्तिशाली केंद्रीय सरकार के पक्ष में थे और साम्यवादी विकेंद्रीकरण के पक्ष में थे। इस प्रकार इस समस्या को न सुलझाया जा सका।

II. घटनाएँ

धीरे-धीरे साम्यवादी राष्ट्रवादियों पर हावी हो गए। 1946 ई० में राष्ट्रवादियों ने साम्यवादियों को उत्तर से खदेड़ दिया तथा वहाँ के मुख्य नगरों तथा रेलवे लाइनों पर अपना अधिकार जमा लिया। परंतु 1947 ई० में परिस्थितियाँ राष्ट्रवादियों के विरुद्ध हो गईं और साम्यवादियों ने उन्हें मंचूरिया के अधिकतर भागों से निकाल बाहर किया।

उन्होंने 1948 ई० में मुकदेन तथा 1949 ई० में तीनस्तीन और पीकिंग पर अपना अधिकार कर लिया। धीरे-धीरे उनका शंघाई, तथा हैंको आदि प्रदेशों पर भी अधिकार हो गया। उन्होंने 1 अक्तूबर, 1949 ई० में कैंटन पर अधिकार कर लिया जो कि राष्ट्रीय सरकार की राजधानी थी। इस प्रकार फारमोसा और कुछ द्वीपों को छोड़ कर सारे चीन पर साम्यवादियों का अधिकार हो गया।

III. 1949 ई० की चीन की क्रांति के प्रभाव

1949 ई० की क्रांति को न केवल चीन बल्कि विश्व इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना माना जाता है। इस क्राँति ने जहाँ चीन के समाज को प्रभावित किया वहाँ विश्व भी इसके प्रभावों से अछूता न रहा। इस क्राँति के महत्त्वपूर्ण प्रभावों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. शक्तिशाली केंद्रीय सरकार :
1949 ई० की क्राँति से चीन में एकता स्थापित हुई। केवल फारमोसा को छोड़ कर शेष सारा देश एक केंद्रीय सरकार के अधीन लाया गया। राजनीतिक एकता के साथ-साथ सारे देश में एक प्रकार का ही शासन स्थापित किया गया। अब चीन अयोग्य तथा भ्रष्ट शासन से मुक्त हो चुका था । चीन वासी अब अपने पर गर्व कर सकते थे।

2. शाँति एवं सुरक्षा:
साम्यवादी सरकार की स्थापना से चीन में काफी समय से व्याप्त अराजकता एवं अव्यवस्था का अंत हुआ तथा पूर्ण स्थायी शाँति की स्थापना हुई। साम्यवादियों ने अपनी कुशल पुलिस व्यवस्था तथा गुप्तचर व्यवस्था से क्रांति का विरोध करने वालों तथा समाज विरोधी तत्त्वों का अंत कर दिया। इससे स्थायी शाँति की स्थापना हुई तथा लोग अपने-आप को सुरक्षित अनुभव करने लगे।

3. सामाजिक सुधार:
साम्यवादी सरकार ने अनेकों सामाजिक सुधार भी किए। उन्होंने समाज में प्रचलित कई सामाजिक बुराइयों का अंत करके महान् कार्य किया। साम्यवादी सरकार ने चीन में अफ़ीम के प्रयोग पर पूर्ण रूप से रोक लगा दी। मदिरापान, वेश्यावृत्ति, जुआबाजी आदि के विरुद्ध भी कानून बनाए गए। सरकार ने स्त्रियों के उत्थान की ओर भी विशेष ध्यान दिया। उन्हें पुरुषों के समान अधिकार प्रदान किए गए। फलस्वरूप उन्हें सदियों पश्चात् चीनी समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त हुआ।

4. ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था पर प्रभाव :
1949 ई० की चीनी क्राँति से वहाँ की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बहुत परिवर्तन आया। इस क्राँति से पूर्व छोटे किसानों की दशा बड़ी दयनीय थी तथा उनकी समस्याओं के प्रति सरकार उदासीन रहती थी। दिन भर की कड़ी मेहनत के पश्चात् भी उन्हें भर–पेट भोजन नसीब नहीं ता था। इसके विपरीत बडे-बडे जमींदार विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे। 1949 ई० की क्रांति के पश्चात भमि का पुनर्विभाजन किया गया। बड़े ज़मींदारों से फालतू भूमि ले कर छोटे किसानों में बाँट दी गई। किसानों की दशा सुधारने के लिए सहकारी समितियाँ भी बनाई गईं।

प्रश्न 13.
माओ-त्सेतुंग के आरंभिक जीवन एवं सफलताओं के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
माओ-त्सेतुंग की गणना न केवल चीन अपितु विश्व के महान् व्यक्तित्वों में की जाती है। उसके आरंभिक जीवन एवं सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

I. आरंभिक जीवन

1. आरंभिक जीवन:
माओ-त्सेतुंग का जन्म 26 दिसंबर, 1893 ई० को चीन के हूनान (Hunan) प्रांत में स्थित एक छोटे से गाँव शाओ शां (Shao Shan) में हुआ था। उनके पिता का नाम माओ जेने-शुंग (Mao-Jane-Shung) था। वह एक गरीब किसान था। अतः उसे अपने जीवनयापन के लिए बहुत कठोर परिश्रम करना पड़ता था। 15 वर्ष की आयु में माओ-त्सेतुंग ने अपना घर छोड़ दिया एवं एक स्कूल में प्रवेश ले लिया।

माओ के जीवन पर कांग यूवेई एवं लियांग किचाउ नामक प्रसिद्ध चीनी सुधारकों, वाशिंगटन, रूसो, नेपोलियन, पीटर महान्, अब्राहिम लिंकन आदि के जीवन का बहुत प्रभाव पड़ा। 1911 ई० की चीनी क्राँति के समय माओ-त्सेतुंग डॉक्टर सन-यात-सेन की क्रांतिकारी सेना में सम्मिलित हुआ था। उसने माँचू वंश का पतन होते हुए अपनी आँखों से देखा था।

माओ-त्सेतुंग 1917 ई० में हुई रूसी क्राँति से भी बहुत प्रभावित हुआ था। उसे पढाई से विशेष लगाव था इसलिए उसने पीकिंग विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में नौकरी कर ली। यहाँ उसने समाजवाद से संबंधित अनेक पुस्तकों को पढ़ा। 1921 ई० में चीन की साम्यवादी पार्टी की स्थापना हुई थी। इस समय माओ-त्सेतुंग इसका सदस्य बन गया था। शीघ्र ही वह इसके एक प्रमुख नेता बन गए।

2. लाँग मार्च 1934-35 ई०:
लाँग मार्च (लंबी यात्रा) चीन के इतिहास की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है। 1934 ई० में चियांग-काई-शेक जो कि साम्यवादियों को अपना कट्टर दुश्मन मानता था का विनाश करने के उद्देश्य से कियांग्सी (Kiangsi) का घेराव कर लिया। कियांग्सी उस समय साम्यवादियों का एक प्रमुख केंद्र था। इस घोर संकट के समय में माओ-त्सेतुंग ने बहुत साहस से कार्य लिया।

उसने अपने अधीन एक लाख लाल सेना (Red Army) एकत्रित की तथा वह चियांग-काई-शेक के घेराव को तोड़ते हुए लंबी यात्रा पर निकल पड़ा। यह यात्रा 16 अक्तूबर, 1934 ई० को आरंभ की गई थी। उसने शांग्सी (Shanxi) तक का 6,000 मील का कठिन सफर तय किया। यह एक बहुत ज़ोखिम भरी यात्रा थी। रास्ते में उन्हें चियांग-काई-शेक की सेना का अनेक बार सामना करना पड़ा।

उन्हें भूखे-प्यासे अनेक वनों, नदियों एवं कठिन पर्वतों को पार करना पड़ा। इनके चलते करीब 80 हज़ार माओ के सैनिक रास्ते में मृत्यु का ग्रास बन गए। 370 दिनों की लंबी यात्रा के पश्चात् 20 अक्तूबर, 1935 ई० को माओ-त्सेतुंग अपने 20 हजार सैनिकों के साथ शांग्सी पहुँचने में सफल हुआ। निस्संदेह विश्व इतिहास में इस घटना की कोई उदाहरण नहीं मिलती। प्रसिद्ध इतिहासकार इमानूएल सी० वाई० सू के अनुसार, “यह साम्यवादी पार्टी के इतिहास की महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना थी तथा माओ की शक्ति को शिखर तक पहुँचाने में सहायक सिद्ध हुई।”
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 11 iMG 2

II. माओ-त्सेतुंग की सफलताएँ

माओ-त्सेतुंग एवं साम्यवादी दल के अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप चीन में अंतत: 1 अक्तूबर, 1949 ई० को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (People’s Republic of China) की स्थापना हुई। निस्संदेह इससे चीनी इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। चीनी लोगों को एक शताब्दी के पश्चात् विदेशी शक्तियों के शोषण से मुक्ति मिली। इस अवसर पर माओ-त्सेतुंग को चीनी गणराज्य का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उसने अपने शासनकाल (1949-76 ई०) के दौरान अनेक महत्त्वपूर्ण सफलताएँ प्राप्त की। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. राजनीतिक एकता की स्थापना:
माओ-त्सेतुंग ने सत्ता संभालने के पश्चात् अपना सर्वप्रथम विशेष ध्यान चीन में राजनीतिक एकता स्थापित करने की ओर दिया। चीन जैसे विशाल देश को एकता के सूत्र में बाँधना कोई साधारण बात नहीं थी। इसके लिए माओ-त्सेतुंग ने बल एवं कूटनीति दोनों का प्रयोग किया। इस उद्देश्य में वह काफ़ी सीमा तक सफल रहा।

2.1954ई० का संविधान:
चीन में 20 सितंबर, 1954 ई० को एक नया संविधान लागू किया गया। इसमें राष्ट्रीय जन कांग्रेस (National People’s Congress) को राष्ट्र की सर्वोच्च संस्था घोषित किया गया। इसके सदस्यों की संख्या 1200 रखी गई। इनका चुनाव 4 वर्ष के लिए किया जाता था। इसका अधिवेशन प्रतिवर्ष बुलाया जाता था। अध्यक्ष को देश का राष्ट्राध्यक्ष (Head of the State) घोषित किया गया। इस पद पर माओ-त्सेतुंग नियुक्त हुए।

उन्हें विशाल अधिकार दिए गए। संविधान द्वारा साम्यवादी दल को सर्वोच्च स्थान दिया गया। राज्य के सभी प्रमुख पद साम्यवादी दल के नेताओं को दिए गए। चाऊ एनलाई (Zhou Enlai) को देश का प्रथम प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। संविधान में नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकारों एवं न्याय व्यवस्था पर भी विस्तृत प्रकाश डाला गया है।

3. आर्थिक प्रगति:
माओ-त्सेतुंग ने चीन की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से अनेक महत्त्वपूर्ण पग उठाए। उसने विदेशी पूँजी एवं उनके द्वारा स्थापित कारखानों को अपने नियंत्रण में ले लिया। दसरा सरकार ने छोटे उद्योगों को संरक्षण प्रदान करके उन्हें प्रोत्साहित किया। उसने श्रमिकों की दशा सुधारने के उद्देश्य से उनकी मजदूरी बढ़ा दी।

उसने मुद्रा संबंधी कार्यों तथा ऋण के संचालन के लिए 1950 ई० बैंक ऑफ़ चाइना (People’s Bank of China) की स्थापना की उसने चीन में आर्थिक विकास के उद्देश्य से चीन की सरकार ने रूस की सरकार से सहायता प्राप्त की। उसने चीन में विशाल उद्योगों की स्थापना के उद्देश्य से 1953 ई० में प्रथम पँचवर्षीय योजना आरंभ की।

4. लंबी छलाँग वाला आंदोलन :
1958 ई० में चीन में लंबी छलाँग वाला आंदोलन चलाया गया। इसका उद्देश्य चीन में औद्योगीकरण की प्रक्रिया में तीव्रता लाना था। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए चीन में कम्यून्स (Communes) की स्थापना की गई। 1958 ई० के अंत तक चीन में ऐसे 26,000 कम्यून्स की स्थापना की जा चुकी थी। प्रत्येक कम्यून में लगभग 5,000 परिवार होते थे। इनके अपने खेत एवं कारखाने आदि होते थे।

प्रत्येक कम्यून उत्पादन, वितरण एवं खपत आदि पर नज़र रखता था। यद्यपि सरकार द्वारा लगातार इस आंदोलन की सफलता की घोषणा की गई किंतु वास्तविकता यह थी कि यह विफल रहा। लीऊ शाओछी (Liu Shaochi) एवं तंग शीयाओफींग (Deng Xiaoping) नामक नेताओं ने कम्यून प्रथा को बदलने का प्रयास किया क्योंकि ये कुशलता से काम नहीं कर रही थीं।

अत: 1959 ई० में इस आंदोलन को वापस ले लिया गया। प्रसिद्ध इतिहासकार जे० डब्ल्यूक हाल का यह कहना ठीक है कि, “लंबी छलाँग वाला आंदोलन विफल रहा तथा इसने अपने पीछे आर्थिक महामंदी तथा भारी मानव दुःखों को छोड़ा।”

5. शिक्षा का प्रसार :
माओ-त्सेतुंग शिक्षा के महत्त्व को अच्छी प्रकार से जानता था। अतः उसने शिक्षा के प्रसार के लिए उल्लेखनीय कार्य किए। इस उद्देश्य से उसने संपूर्ण चीन में अनेक स्कूलों, कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों की स्थापना की। प्रारंभिक शिक्षा को अनिवार्य बनाया गया। किसानों एवं मजदूरों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए विशेष रूप से प्रोत्साहित किया गया।

चीन में तकनीकी शिक्षा पर अधिक बल दिया गया ताकि विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् बेरोज़गार न रहें। इसलिए पाठ्यक्रम एवं पुस्तकों में आवश्यक परिवर्तन किए गए।

6. स्त्रियों की स्थिति में सुधार:
1949 ई० से पूर्व चीन में स्त्रियों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। उन्हें सभी प्रकार के अधिकारों से वंचित किया गया था। माओ-त्सेतुंग के शासनकाल में स्त्रियों की स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से अनेक पग उठाए गए। प्रथम, उन्हें भूमि की स्वामिनी बना दिया गया। अतः उन्हें अपनी जीविका के लिए पुरुषों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता था।

दूसरा, चीन के संविधान के अनुसार स्त्रियों को पुरुषों के बराबर सभी प्रकार के अधिकार दिए गए। तीसरा, 1950 ई० के विवाह कानून के अनुसार एक विवाह की प्रथा प्रचलित की गई। तलाक का अधिकार दोनों पति एवं पत्नी को समान रूप से दिया गया। चीन में वेश्यावृत्ति का उन्मूलन कर दिया गया। राज्य के सभी महत्त्वपूर्ण पदों पर स्त्रियों को नियुक्त किया गया। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप चीन की स्त्रियों की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ।

7. महान् सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति :
माओ-त्सेतुंग चीन में एक वर्गहीन समाज की स्थापना करने में विफल रहा। अतः सरकार के विरोधियों ने उसकी आलोचना करनी आरंभ कर दी। माओ इसे सहन करने को तैयार नहीं था। अतः उसने अपने विरोधियों का सफाया करने के उद्देश्य से 1966 ई० में महान् सर्वहारा सांस्कृतिक क्राँति को आरंभ किया।

इसके अधीन रेड गाईस (लाल रक्षक) का गठन किया गया। इसमें छात्रों एवं सैनिकों को भर्ती किया गया। उन्होंने पुरानी संस्कृति, पुराने रिवाजों एवं पुरानी आदतों के खिलाफ एक ज़ोरदार आंदोलन आरंभ किया। सभी माओ विरोधियों का निर्ममतापूर्वक दमन किया गया। उन्हें उनके पदों से हटा दिया गया। शीघ्र ही सांस्कृतिक क्राँति ने एक उग्र रूप धारण कर लिया। इससे संपूर्ण चीन में अराजकता फैल गई। इसके बावजूद इसे 1976 ई० में माओ-त्सेतुंग की मृत्यु तक जारी रखा गया।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

प्रश्न 14.
जापान एवं चीन में आधुनिकता के अपनाए गए मार्गों का संक्षिप्त वर्णन करें। क्या इनमें कोई अंतर है?
उत्तर:
जापान एवं चीन ने आधुनिकता के अलग-अलग मार्ग अपनाए। इन मार्गों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. जापान द्वारा अपनाया गया मार्ग:
जापान ने 19वीं शताब्दी तक चीन की तरह पश्चिमी देशों के प्रति तटस्थता की नीति अपनाई थी। उसने विदेशियों के साथ कोई संपर्क नहीं रखा था। 1853 ई० में अमरीका के कॉमोडोर मैथ्यू पेरी के जापान आगमन से जापान के इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। इस समय जापान ने अमरीका के साथ राजनीतिक एवं व्यापारिक संबंध स्थापित करने का निर्णय किया। अतः 1854 ई० में कॉमोडोर मैथ्यू पेरी एवं जापान की सरकार के मध्य कानागावा की संधि हो गई।

इस संधि के अनुसार जापान ने शीमोदा (Shimoda) एवं हाकोदाते (Hakodate) नामक दो बंदरगाहों को अमरीका के जहाजों के लिए खोल दिया। शीमोदा में अमरीका के वाणिज्य दूत को रहने की अनुमति दे दी गई। जापान ने अमरीका के साथ सबसे अच्छे राष्ट्र जैसा व्यवहार करने का वचन दिया।

अमरीका के पदचिन्हों पर चलते हुए हालैंड, ब्रिटेन, रूस एवं फ्राँस ने भी जापान के साथ संधियाँ कर ली तथा वे सभी विशेषाधिकार प्राप्त कर लिए जो जापान ने अमरीका को दिए थे। जापान ने इन पश्चिमी देशों के साथ ये संधियाँ अपनी इच्छा एवं बराबरी के आधार पर की थीं। इन संधियों द्वारा जापान पश्चिमी देशों का ज्ञान प्राप्त कर विकास के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहता था।

जापान में आधुनिकीकरण का नेतृत्व कुलीन वर्ग ने किया। इनके अधीन जापान ने एक उग्र राष्ट्रवाद (aggressive nationalism) को जन्म दिया। उन्होंने शोषणकारी सत्ता (repressive regime) को जारी रखा। उन्होंने लोकतंत्र की माँग को कुचल दिया तथा विरोध के स्वर को उठने नहीं दिया। जापान ने सैन्यवादियों के प्रभाव के चलते एक औपनिवेशिक साम्राज्य की स्थापना की। इस कारण उसे अनेक युद्धों का सामना करना पड़ा। इसके चलते उसके विकास में बाधा आई।

जापान के आधुनिकीकरण में उसकी सांस्कृतिक परंपराओं ने उल्लेखनीय योगदान दिया। इनका उपयोग नए रचनात्मक ढंग से किया गया। मेज़ी काल में विद्यार्थियों को यूरोपीय एवं अमरीकी प्रथाओं के अनुरूप नए विषयों को पढ़ाया जाने लगा। किंतु इस बात का विशेष ध्यान रखा गया कि जापानी निष्ठावान नागरिक बनें। अत: जापान में नैतिक शास्त्र को पढ़ना अनिवार्य कर दिया गया।

इसमें सम्राट् के प्रति वफ़ादारी पर विशेष बल दिया जाता था। जापान के लोगों ने रोज़मर्रा की जिंदगी में भी केवल पश्चिमी समाजों की अंधाधुंध नकल नहीं की अपितु उन्होंने देशी एवं विदेशी को मिलाया। इसका उदाहरण जापानी लोगों की रोज़मर्रा की जिंदगी में आए बदलावों से लगाया जा सकता है।

2. चीन द्वारा अपनाया गया मार्ग:
चीन का आधुनिकीकरण का सफर जापान से काफी भिन्न था। चीन ने पश्चिमी देशों से अपनी दूरी बनाए रखी। परिणामस्वरूप पश्चिमी देशों को जब अफ़ीम के युद्धों के पश्चात् चीन की वास्तविक कमजोरी का ज्ञान हुआ तो अनेक देश लूट की होड़ में सम्मिलित हो गए। इसके चलते चीनी लोगों को अनेक कष्टों को सहन करना पड़ा। प्राकृतिक त्रासदियों ने लोगों के दुःखों को और बढ़ा दिया।

1949 ई० में चीन में साम्यवादी दल के सत्ता में आने से वहाँ एक नए युग का श्रीगणेश हुआ। इसने चीन में राजनीतिक एकता स्थापित की। चीनी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से विशेष पग उठाए गए। साम्यवादी दल एवं उसके समर्थकों ने परंपरा का अंत करने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी। उनका विश्वास था कि परंपरा के कारण ही जनसाधारण गरीबी में जकड़ा हुआ है एवं देश अविकसित है। इस कारण ही स्त्रियों की दशा दयनीय है। अतः साम्यवादी दल ने शिक्षा में अनिवार्य बदलाव किए ताकि लोगों के दृष्टिकोण में आवश्यक परिवर्तन आए।

उन्होंने स्त्रियों की स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से उन्हें अनेक अधिकार दिए। चीन में वेश्यावृति का उन्मूलन कर दिया गया। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप चीन में आज स्त्रियाँ पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रत्येक क्षेत्र में कार्य कर रही हैं। आज चीनी समाज में पुनः असमानताएँ उभर रही हैं तथा परंपराएँ पुनर्जीवित होने लगी हैं। अतः चीन की आज सबसे बड़ी चुनौती इन समस्याओं से निपटने की है।

क्रम संख्या
Table

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जापान की भौगोलिक विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
जापान प्रशांत महासागर की गोद में बसा हुआ पूर्वी एशिया का एक महान् देश है। इसे विश्व का एक अत्यंत सुंदर एवं रमणीय देश माना जाता है। इसका कारण यह है यहाँ की जलवायु बहुत स्वच्छ है। यहाँ वर्षा काफी होती है। यहाँ जंगलों, नदियों, झीलों एवं पर्वतों की बहुतायत है। जापान 3000 से अधिक द्वीपों से मिलकर बना है। इनमें से अधिकांश द्वीप छोटे हैं।

जापान के चार द्वीप होश, क्यूश, शिकोकू तथा होकाइदो प्रमुख हैं। इन द्वीपों में होंशू सबसे बड़ा है तथा जापान का केंद्र है। यहाँ जापान की राजधानी एदो (आधुनिक तोक्यो) सहित कुछ अन्य प्रसिद्ध नगर स्थित हैं। क्यूशू द्वीप चीन के निकट स्थित होने के कारण यह सर्वप्रथम यूरोप के संपर्क में आया।

प्रश्न 2.
शोगुन कौन थे ? उनकी सफलताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शोगुन जापान के सम्राट् के प्रधान सेनापति थे। 1603 ई० में तोकुगावा वंश के लोगों ने शोगुन पद पर अधिकार कर लिया था। वह इस पद पर 1867 ई० तक कायम रहे। इस समय के दौरान उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण सफलताएँ प्राप्त की। उन्होंने अपने विरोधियों को पराजित कर जापान में कानून व्यवस्था को लागू किया। उन्हेंने दैम्यों पर कड़ा नियंत्रण रखा तथा उन्हें शक्तिशाली न होने दिया।

उन्होंने प्रमुख शहरों एवं खादानों पर भी नियंत्रण बनाए रखा। उन्होंने योद्धा वर्ग जिसे समुराई कहा जाता था को विशेष सुविधाएँ प्रदान की। उन्होंने कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए किसानों से हथियार वापस ले लिये। उन्होंने भूमि की उत्पादन शक्ति के आधार पर भू-राजस्व निर्धारित किया।

प्रश्न 3.
कॉमोडोर मैथ्यू पेरी कौन था ? उसके जापान आगमन का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
1852 ई० में अमरीका ने कॉमोडोर मैथ्यू पेरी को जापान की सरकार के साथ एक समझौता करने के लिए भेजा। इसका उद्देश्य अमरीका एवं जापान के मध्य राजनीतिक एवं व्यापारिक संबंध स्थापित करना था। पेरी जापान की सरकार के साथ 31 मार्च, 1854 ई० को कानागावा की संधि करने में सफल हो गया। इस संधि के अनुसार जापान की दो बंदरगाहों शीमोदा एवं हाकोदाटे को अमरीका के लिए खोल दिया गया।

शीमोदा में ” अमरीका के वाणिज्य दूत को रहने की अनुमति दी गई। जापान ने अमरीका के साथ बहुत अच्छे राष्ट्र जैसा व्यवहार करने का वचन दिया। विदेशियों के प्रवेश से जापान में स्थिति ने विस्फोटक रूप धारण कर लिया। शोगुन इस स्थिति को अपने नियंत्रण में लाने में विफल रहे। अत: उन्हें अपने पद को त्यागना पड़ा।

प्रश्न 4.
मेजी पुनर्स्थापना से पहले की वे अहम घटनाएँ क्या थीं, जिन्होंने जापान के तीव्र आधुनिकीकरण को संभव किया ?
उत्तर:
(1) 17वीं शताब्दी के मध्य तक जापान में शहरों के तीव्र विकास से व्यापार एवं वाणिज्य को बहत बल मिला। इससे व्यापारी वर्ग बहुत धनी हुआ। इस वर्ग ने जापानी कला एवं साहित्य को एक नई दिशा देने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई।

(2) तोकुगावा काल में जापान के लोगों में शिक्षा का काफी प्रचलन था। अनेक लोग केवल लेखन द्वारा ही अपनी जीविका चलाते थे। पुस्तकों का प्रकाशन बड़े स्तर पर किया जाता था। 18वीं शताब्दी में पश्चिमी देशों की अनेक महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का जापानी में अनुवाद किया गया। इससे जापान के लोगों को पश्चिम के ज्ञान के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त हुई।

(3) तोकुगावा काल में जापान एक धनी देश था। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि जापान चीन से रेशम तथा भारत से वस्त्र आदि विलासी वस्तुओं का आयात करता था। इसके बदले वह सोना एवं चाँदी देता था। इसका जापानी अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा। इस कारण तोकुगावा को इन कीमती वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। उन्होंने रेशम के आयात को कम करने के उद्देश्य से 16वीं शताब्दी में निशिजन में रेशम उद्योग की स्थापना की।

प्रश्न 5.
मेजी शासनकाल की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या थी ?
उत्तर:
(1) मेजी सरकार की सबसे महत्त्वपूर्ण सफलता जापान में सामंती प्रथा का अंत करना था। मेजी, सरकार ने 1871 ई० में जापान में सामंती प्रथा के अंत की घोषणा की। इस प्रथा के अंत से जापान आधुनिकीकरण की दिशा की ओर अग्रसर हुआ।

(2) मेजी पुनर्स्थापना के पश्चात् जापान में उल्लेखनीय शिक्षा सुधार किए गए। इससे पूर्व शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार केवल समाज के उच्च वर्ग को ही प्राप्त था। जापान में 1871 ई० में शिक्षा विभाग की स्थापना की गई। इसके पश्चात् शिक्षा के क्षेत्र में बहुत तीव्रता से प्रगति हुई।

(3) मेजी काल में सेना को शक्तिशाली बनाने के उद्देश्य से अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किए गए। 1872 ई. में 20 वर्ष से अधिक नौजवानों के लिए सैनिक सेवा को अनिवार्य कर दिया गया। नौसेना को भी अधिक शक्तिशाली बनाया गया।

(4) जापान में उद्योगों के विस्तार की ओर सरकार ने अपना विशेष ध्यान दिया। इस उद्देश्य से 1870 ई० में जापान में उद्योग मंत्रालय की स्थापना की गई। इस मंत्रालय की स्थापना जापानी उद्योगों के विकास के लिए एक मील पत्थर सिद्ध हुआ।

(5) मेज़ी काल में कृषि क्षेत्र में भी प्रशंसनीय सुधार किए गए। सामंती प्रथा का अंत हो जाने से किसानों की स्थिति पहले की अपेक्षा अच्छी हो गई।

(6) मेज़ी काल की एक अन्य महत्त्वपूर्ण उपलब्धि 1889 ई० में एक नए संविधान को लागू करना था। इस संविधान के अनुसार सम्राट् को सर्वोच्च सत्ता सौंपी गई। उसे कई प्रकार के विशेषाधिकार प्राप्त थे।

प्रश्न 6.
मेज़ी शासनकाल में शिक्षा के क्षेत्र में हुए उल्लेखनीय सुधार बताएँ।
उत्तर:
मेजी पुनर्स्थापना के पश्चात् जापान में उल्लेखनीय शिक्षा सुधार किए गए। जापान में 1871 ई० में शिक्षा विभाग की स्थापना की गई। इसके पश्चात् शिक्षा के क्षेत्र में बहुत तीव्रता से प्रगति हुई। संपूर्ण जापान में अनेक स्कूलों एवं कॉलेजों की स्थापना की गई। 6 वर्ष के सभी बालक-बालिकाओं के लिए प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य कर दिया गया। 1877 ई० में जापान में तोक्यो विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। तकनीकी शिक्षा को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया गया। पश्चिम की प्रसिद्ध पुस्तकों का जापानी भाषा में अनुवाद किया गया । स्त्रियों को शिक्षा प्राप्ति के लिए प्रेरित किया गया। 1901 ई० में जापानी महिला विश्वविद्यालय की स्थापना इस दिशा में एक मील पत्थर सिद्ध हुआ।

प्रश्न 7.
मेज़ी काल के मुख्य आर्थिक सुधारों पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
(1) औद्योगिक विकास-जापान में उद्योगों के विस्तार की ओर सरकार ने अपना विशेष ध्यान दिया। इस उद्देश्य से 1870 ई० में जापान में उद्योग मंत्रालय की स्थापना की गई। इस मंत्रालय की स्थापना जापानी उद्योगों के विकास के लिए एक मील पत्थर सिद्ध हुई। सरकार ने भारी उद्योगों के विकास के लिए पूँजीपतियों को प्रोत्साहित किया। अतः जापान में शीघ्र ही अनेक नए कारखाने स्थापित हुए। इनमें लोहा-इस्पात उद्योग, वस्त्र उद्योग, रेशम उद्योग, जहाज़ उद्योग एवं शस्त्र उद्योग प्रसिद्ध थे।

(2) कृषि सुधार-मेज़ी काल में कृषि क्षेत्र में भी प्रशंसनीय सुधार किए गए। सामंती प्रथा का अंत हो जाने से किसानों की स्थिति पहले की अपेक्षा अच्छी हो गई। 1872 ई० में सरकार के एक आदेश द्वारा किसानों को उस भूमि का स्वामी स्वीकार कर लिया गया। किसानों से बेगार लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। किसानों को कृषि की पैदावार बढ़ाने के लिए राज्य की ओर से विशेष सुविधाएँ प्रदान की गई। उन्हें उत्तम किस्म के बीज दिए गए। पशुओं की उत्तम नस्ल का प्रबंध किया गया। किसानों से अब अनाज की अपेक्षा नकद भू-राजस्व लिया जाने लगा। उन्हें कृषि के पुराने ढंगों की अपेक्षा आधुनिक ढंग अपनाने के लिए प्रेरित किया गया।

(3) कुछ अन्य सुधार-जापान की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से मेज़ी काल में कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण सुधार किए गए। सर्वप्रथम यातायात के साधनों का विकास किया गया। 1870-72 ई० में जापान में तोक्यो एवं योकोहामा के मध्य प्रथम रेल लाइन बिछाई गई। जहाज़ निर्माण के कार्य में भी उल्लेखनीय प्रगति की गई। द्वितीय, मुद्रा प्रणाली में महत्त्वपूर्ण सुधार किए गए। तीसरा, 1872 ई० में जापान में बैंकिंग प्रणाली को आरंभ किया गया। 1882 ई० में बैंक ऑफ जापान की स्थापना की गई।

प्रश्न 8.
मेज़ी संविधान की मुख्य विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:
मेज़ी काल की एक अन्य महत्त्वपूर्ण उपलब्धि 1889 ई० में एक नए संविधान को लागू करना था। इस संविधान के अनुसार सम्राट को सर्वोच्च सत्ता सौंपी गई। उसे कई प्रकार के विशेषाधिकार प्राप्त थे। संपूर्ण सेना उसके अधीन थी। उसे किसी भी देश से युद्ध अथवा संधि करने का अधिकार दिया गया था। वह डायट (संसद्) के अधिवेशन को बुला सकता था तथा उसे भंग भी कर सकता था। वह सभी मंत्रियों की नियुक्ति करता था तथा वे अपने कार्यों के लिए उसके प्रति उत्तरदायी होते थे।

केवल सम्राट् ही मंत्रियों को बर्खास्त कर सकता था। डायट का अधिवेशन प्रत्येक वर्ष तीन माह के लिए बुलाया जाता था। इसमें सदस्यों को बहस करने का अधिकार प्राप्त था। सम्राट् डायट की अनुमति के बिना लोगों पर नए कर नहीं लगा सकता था। नए संविधान की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह थी कि इसमें नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए थे। इसके अनुसार उन्हें भाषण देने, लिखने, एकत्र होने, संगठन बनाने एवं किसी भी धर्म को अपनाने की पूर्ण स्वतंत्रता थी। सभी नागरिकों को कानून के सामने बराबर माना जाता था।

प्रश्न 9.
जापान के विकास के साथ-साथ वहाँ की रोज़मर्रा की जिंदगी में किस तरह बदलाव आए ? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
मेज़ी शासनकाल में जापानियों की रोज़मर्रा की जिंदगी में अनेक महत्त्वपूर्ण बदलाव आए। मेज़ी काल से पूर्व जापान में संयुक्त परिवार प्रणाली का प्रचलन था। मेज़ी काल में एकल परिवार का प्रचलन बढ़ने लगा। इसमें पति, पत्नी एवं उनके बच्चे रहते थे। अतः वे नए घरों जिसे जापानी में होमु कहते थे में रहने लगे।

वे घरेलू उत्पादों के लिए बिजली से चलने वाले कुकर, माँस एवं मछली भूनने के लिए अमरीकी भूनक तथा ब्रेड सेंकने के लिए टोस्टर का प्रयोग करने लगे। जापानियों में अब पश्चिमी वेशभूषा का प्रचलन बढ़ गया। वे अब सूट एवं हैट डालने लगे। औरतों के लिबास में भी परिवर्तन आ गया। वे अब सौंदर्य वृद्धि की ओर विशेष ध्यान देने लगीं। परस्पर अभिवादन के लिए हाथ मिलाने का प्रचलन लोकप्रिय हो गया। मनोरंजन के नए साधनों का विकास हुआ। लोगों की सुविधा के लिए विशाल डिपार्टमैंट स्टोर बनने लगे। 1899 ई० में जापान में सिनेमा का प्रचलन आरंभ हुआ।

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प्रश्न 10.
1894-95 ई० के चीन-जापान के युद्ध के प्रमुख कारण क्या थे ?
उत्तर:
(1) रूस के कोरिया में बढ़ते हुए प्रभाव के कारण जापान को चिंता हुई। जापान ने स्वयं वहाँ अपना आधिपत्य स्थापित करने के प्रयास तीव्र कर दिए।

(2) कोरिया की आंतरिक स्थिति बड़ी दयनीय थी। वह एक निर्बल देश था। उस समय कोरिया में अशांति फैली हुई थी तथा अव्यवस्था व्याप्त थी। जापान को हर समय भय लगा रहता था कि कोई अन्य देश कोरिया पर अपना अधिकार न कर ले। चीन भी अपने वंशानुगत अधिकार के कारण किसी अन्य देश के कोरिया में हस्तक्षेप को सहन नहीं कर सकता था।

(3) कोरिया में जापान के बढ़ रहे प्रभाव को देखकर चीन बहुत चिंतित हो गया। जापान के प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से उसने विदेशी शक्तियों को कोरिया में व्यापार करने के प्रयासों में अपना समर्थन दिया।

(4) चीन-जापान यद्ध के कारणों में एक कारण कोरिया में जापान के आर्थिक हित भी थे। अपने आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए वह कोरिया की ओर ललचाई दृष्टि से देख रहा था।

(5) कोरिया में ‘तोंगहाक’ संप्रदाय द्वारा किया गया विद्रोह चीन-जापान युद्ध का तत्कालीन कारण बना। इस संप्रदाय के लोग विदेशियों को पसंद नहीं करते थे। कोरिया सरकार इस संप्रदाय के विरुद्ध थी तथा उसने एक, अध्यादेश द्वारा उसकी सभी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया। जापानी सेनाओं ने कोरिया के राजा को बंदी बना लिया। इस प्रकार 1 अगस्त, 1894 ई० को यह युद्ध आरंभ हुआ।

प्रश्न 11.
शिमोनोसेकी की संधि क्यों व कब हुई ? इसके क्या परिणाम निकले ?
उत्तर:
शिमोनोसेकी की संधि 17 अप्रैल, 1895 ई० को चीन एवं जापान के मध्य हुई। इस संधि की मुख्य धाराएँ अग्रलिखित अनुसार थीं

  • चीन ने कोरिया को एक पूर्ण स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी।
  • चीन ने पोर्ट आर्थर, फारमोसा, पेस्काडोरस तथा लियाओतुंग जापान को दे दिए।
  • चीन ने माना कि वह युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में जापान को 2 करोड़ तायल देगा।
  • चीन जापान को सर्वाधिक प्रिय देश स्वीकार करेगा।
  • चीन जापान के व्यापार के लिए अपनी चार बंदरगाहें शांसी, सो चाऊ, चुंग-किंग तथा हंग चाओ खोलेगा।
  • जब तक चीन युद्ध की क्षतिपूर्ति की राशि जापान को नहीं चुकाएगा उसकी वी-हाई-वी नामक बंदरगाह जापान के पास रहेगी।

शिमोनोसेकी की संधि के कागजों पर अभी स्याही भी नहीं सूखी थी कि उसके 6 दिन पश्चात् ही फ्राँस, रूस तथा जर्मनी ने जापान को कहा कि वह लियाओतुंग प्रायद्वीप चीन को लौटा दे। विवश होकर जापान ने शिमोनोसेकी की संधि में संशोधन करना मान लिया। उसने लियाओतुंग प्रायद्वीप चीन को वापस कर दिया।

प्रश्न 12.
1894-95 ई० के चीन-जापान युद्ध के कोई चार प्रमुख प्रभाव बताएँ।
उत्तर:
(1) जापान की प्रतिष्ठा में वृद्धि-जापान एशिया का एक छोटा सा देश था तथा चीन सबसे बड़ा देश था। फिर भी जापान ने चीन को पराजित कर दिया। इस युद्ध में विजय से जापान की प्रतिष्ठा को चार चाँद लग गए। सभी यूरोपीय शक्तियों को विश्वास था कि जापान पराजित होगा। परंतु उसकी विजय ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। परिणामस्वरूप उसकी प्रतिष्ठा बहुत बढ़ गई।

(2) चीन की लूट आरंभ-जापान के हाथों पराजित होने से चीन की दुर्बलता सारे विश्व के आगे प्रदर्शित हो गई। इस कारण यूरोपीय शक्तियों की मनोवृत्ति में आश्चर्यजनक परिवर्तन आया। पहले पश्चिमी देशों ने चीन से कई प्रकार की रियायतें प्राप्त की हुई थीं। परंतु अब वे उसके साम्राज्य का विभाजन चाहने लगीं। अतः ये सभी देश चीन की लूट में जापान के भागीदार बनने के लिए तैयार हो गए।

(3) आंग्ल-जापानी समझौते की आधारशिला-चीन-जापान युद्ध के परिणामस्वरूप आंग्ल-जापानी समझौत (1902 ई०) की नींव रखी गई। जब जापान इस युद्ध में विजयी हो रहा था तो इंग्लैंड के समाचार-पत्रों ने इसकी बहुत प्रशंसा की। उनके अनुसार इंग्लैंड और जापान के हित सामान्य थे। अतः वे जापान को भविष्य का उपयोगी मित्र मानने लरो । जापान भी इंग्लैंड से मित्रता करना चाहता था। इस प्रकार ये दोनों देश एक-दूसरे के निकट आए तथा 1902 ई० में एक समझौता किया।

(4) जापान-रूस शत्रता-शिमोनोसेकी की संधि के पश्चात रूस जापान के विरुद्ध हो गया। उसने फ्राँस तथा जर्मनी के साथ मिल कर जापान पर दबाव डाला कि वह लियाओतुंग प्रायद्वीय चीन को वापस कर दे। इससे जापान रूस से नाराज़ हो गया। इसके अतिरिक्त चीन-जापान युद्ध के पश्चात् जापान भी रूस के समान दूर-पूर्व में एक शक्ति के रूप में उभरा। दोनों देश महत्त्वाकांक्षी थे और यही महत्त्वाकांक्षा उन्हें 1904-05 के युद्ध की ओर ले गई।

प्रश्न 13.
रूस-जापान युद्ध 1904-1905 के क्या कारण थे ?
उत्तर:
(1) 1894-95 ई० में हुए चीन-जापान युद्ध में जापान ने चीन को पराजित करके एक शानदार विजय प्राप्त की थी। इस युद्ध के पश्चात् हुई शिमोनोसेकी की संधि के अनुसार चीन ने अपने कुछ क्षेत्र जापान को दिए थे। इन प्रदेशों में एक लियाओतुंग प्रदेश भी था। उस संधि के कुछ दिनों पश्चात् ही रूस ने जापान पर दबाव डाला कि वह लियाओतुंग का प्रदेश चीन को वापस कर दे।

(2) चीन में हुए रियायतों के लिए संघर्ष में रूस सब से महत्त्वपूर्ण सुविधाएँ प्राप्त करने में सफल रहा था। उसने 1898 ई० में लियाओतुंग का प्रदेश भी चीन से पट्टे पर ले लिया था। रूस की इस कार्यवाही से जापान भड़क उठा था।

(3) मंचूरिया भी रूस-जापान युद्ध का एक महत्त्वपूर्ण कारण बना। मंचूरिया चीन के उत्तरी भाग में स्थित था तथा ये दोनों देश उसमें रुचि रखते थे। उसने मंचूरिया में रेलवे लाइनें बिछाईं। अत: जापान ने रूस को एक सबक सिखाने का निर्णय किया।

(4) 1902 ई० में जापान तथा इंग्लैंड ने एक गठबंधन किया। इसके अधीन दोनों ने एक-दूसरे को वचन दिया कि चीन और कोरिया में अपने हितों को सुरक्षित रखने के लिए एक-दूसरे को सहयोग देंगे। इंग्लैंड का इस आश्वासन से जापान को प्रोत्साहन मिला और उसने रूस के प्रति कठोर नीति अपनानी आरंभ कर दी।

(5) जापान रूस की विस्तारवादी नीति से बड़ा चिंतित था। वह कोरिया तथा मंचूरिया के प्रश्न पर रूस से कोई समझौता करना चाहता था। अंततः दोनों के मध्य 10 फरवरी, 1904 ई० को युद्ध आरंभ हो गया।

प्रश्न 14.
जापान में सैन्यवाद के उत्थान के क्या कारण थे ?
उत्तर:
(1) जापान में सैन्यवादियों को एक के बाद एक सफलता प्राप्त होती गई जिसके कारण वे महत्त्वाकांक्षी हो गए। वे पूरे महाद्वीप पर नियंत्रण करना चाहते थे।

(2) बहुत-से पुराने नेता सैन्यवादियों की गतिविधियों को पसंद नहीं करते थे। वास्तव में वे सैन्यवादियों पर अंकुश रखते थे। परंतु ज्यों-ज्यों समय गुज़रता गया वे बूढ़े हो गए और उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के कारण सैन्यवादियों पर जो उनका अंकुश था वह समाप्त हो गया और वे अपनी मनमानी करने के लिए स्वतंत्र हो गये।

(3) जापान में नवयुवक अधिकारियों की एक नई श्रेणी का उदय हुआ। ये नवयुवक अधिकारी अपनी शानदार विजयों द्वारा समाज में अपना स्थान बनाना चाहते थे। वे जापानी सैन्यवाद में विश्वास करते थे और शक्ति का प्रयोग करना अपना अधिकार समझते थे।

(4) सैन्यवादियों के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जापान में बहुत-सी गुप्त समितियों की स्थापना की गई थी। इनके उद्देश्यों का वर्णन इस प्रकार है-

(5) ये समितियाँ चाहती थीं कि जापान सारी दुनिया पर शासन करे। यदि ऐसा न हो सका तो जापान को समस्त देशों को विजय करना चाहिए।

(6) ये समितियाँ उदारवाद तथा प्रजातंत्र के विरुद्ध थीं। अतः इनका एक अन्य उद्देश्य पाश्चात्य देशों के सिद्धांतों का विरोध करना था।

(7) इन समितियों के सदस्य नाजीवाद तथा फासिस्टवाद में विश्वास रखते थे। वे फासिस्ट लोगों तथा नाजियों की भाँति राज्य को व्यक्ति से ऊपर मानते थे।

प्रश्न 15.
द्वितीय विश्व युद्ध का जापान पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
दूसरे विश्व युद्ध के अंत में जापान की पराजय हुई। इस पराजय के परिणामस्वरूप जापान पूर्व का अधिपति बनने के प्रयत्न में असफल रहा। युद्ध में पराजित होकर जापान का प्रदेश संकुचित होकर 1894-95 ई० की स्थिति में आ गया अर्थात् जितना कि यह चीन और जापान के युद्ध के पश्चात् बना था। जापान के पास केवल चार मुख्य द्वीप तथा कुछ छोटे द्वीप रह गए।

कोरिया को अस्थायी तौर पर रूस तथा अमरीका ने बाँट लिया। फार्मोसा चीन को लौटा दिया गया। मित्र देशों की सेना ने जनरल मेकार्थर के अधीन जापान पर अधिकार कर लिया। जापान में शासन प्रबंध के लिए एक नई सरकार स्थापित की गई, परंतु वास्तविक सत्ता मेकार्थर के हाथ में थी, क्योंकि वह मित्र शक्तियों की ओर से सर्वोच्च कमांडर था। जापानी सरकार भी साथ चलती रही तथा इसी सरकार की सहायता से जनरल मेकार्थर अपनी नीति चलाता था। वास्तव में जापान अपनी आंतरिक तथा बाह्य स्वतंत्रता का बहुत बड़ा भाग खो चुका था।

प्रश्न 16.
1960 ई० के पश्चात् जापान की प्रगति के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
1960 ई० के दशक से जापान प्रगति के पथ पर लगातार आगे बढ़ता रहा। 1964 ई० में जापान की राजधानी तोक्यो में ओलंपिक खेलों का आयोजन किया गया। इन खेलों के आयोजन में जापान ने 3 करोड़ डालर खर्च किए। इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि इस समय तक जापान की अर्थव्यवस्था काफी सुदृढ़ हो चुकी थी।

इसी वर्ष जापान में शिंकासेन नामक 200 मील प्रति घंटे की रफ़तार वाली रेलगाड़ी आरंभ हुई। इसे बुलेट ट्रेन के नाम से भी जाना जाता है। इससे जापान की नयी प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुए विकास की जानकारी प्राप्त होती है। 1960 ई० के दशक में जापान में नागरिक समाज आंदोलन आरंभ हुआ। इस आंदोलन के आरंभ होने का कारण यह था कि औद्योगीकरण के कारण स्वास्थ्य और पर्यावरण पर काफी हानिकारक प्रभाव पड़ रहे थे।

1960 ई० के दशक में मिनामाता में पारे के जहर के फैलने तथा 1970 ई० के दशक में हवा के प्रदूषण से नयी समस्याएँ उत्पन्न हुईं। इन समस्याओं से निपटने के लिए जापान की सरकार ने 1990 ई० के दशक में कछ कठोर पग उठाए।

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प्रश्न 17.
प्रथम अफ़ीम युद्ध पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
प्रथम अफ़ीम युद्ध चीन तथा ब्रिटेन के मध्य लड़ा गया था। यह युद्ध 1839 ई० से लेकर 1842 ई० तक चला। ब्रिटेन यूरोप की एक प्रमुख साम्राज्यवादी शक्ति था तथा वह चीन में अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था। 1800 ई० में उसने चीन में भारत से लाकर अफ़ीम बेचनी आरंभ कर दी थी। 1839 ई० तक उसका अफ़ीम का व्यापार बहुत बढ़ गया था।

अफ़ीम के इस व्यापार के कारण चीनियों का नैतिक पतन होने लगा तथा उसकी सैनिक शक्ति शिथिल पड़ने लगी। इससे चिंतित होकर चीन के शासकों ने अफ़ीम के व्यापार पर अंकुश लगाने के लिए आदेश जारी किए। परंतु ब्रिटेन ने अपना व्यापार जारी रखा। 1839 ई० में चीनियों ने ब्रिटेन के अफ़ीम से भरे जहाजों को समुद्र में डुबो दिया। परिणामस्वरूप चीन तथा ब्रिटेन में प्रथम अफ़ीम युद्ध आरंभ हो गया। यह युद्ध 29 अगस्त, 1842 ई० को हुई नानकिंग की संधि के साथ समाप्त हुआ। इस संधि के अनुसार

  • चीन को युद्ध हर्जाने के रूप में 21 मिलियन डालर की राशि ब्रिटेन को देनी पड़ी।
  • हांगकांग का द्वीप सदा के लिए ब्रिटेन को मिल गया।
  • कैंटन के अतिरिक्त फूचाओ, अमोय, निंगपो तथा शंघाई नामक बंदरगाहें भी ब्रिटेन के लिए खोल दी गईं।

प्रश्न 18.
नानकिंग की संधि कब हुई ? इसकी प्रमुख धाराएँ क्या थी ?
उत्तर:
अंग्रेजों तथा चीनियों के बीच नानकिंग की संधि 29 अगस्त, 1842 ई० को हुई। इस संधि की प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित थीं

  • हांगकांग का द्वीप सदा के लिए ब्रिटेन को सौंप दिया गया।
  • ब्रिटिश लोगों को पाँच बंदरगाहों-कैंटन, अमोय, फूचाओ, निंगपो और शंघाई में बसने तथा व्यापार करने का अधिकार दे दिया गया।
  • क्षतिपूर्ति के रूप में चीन ने दो करोड़ दस लाख डालर अंग्रेजों को देना स्वीकार किया।
  • को-होंग को भंग कर दिया गया। परिणामस्वरूप अब ब्रिटिश व्यापारी किसी भी चीनी व्यापारी के साथ स्वतंत्र रूप से व्यापार कर सकता था।
  • आयात और निर्यात पर एक समान तथा उदार दर स्वीकार कर ली गई।
  • चीनियों ने इस बात को स्वीकार कर लिया कि अंग्रेज़ों के मुकद्दमे अंग्रेज़ी कानून के अनुसार तथा उन्हीं की अदालतों में चलेंगे।
  • यह भी शर्त रखी गई कि चीन अन्य देशों के लोगों को जो भी सुविधाएँ देगा वे अंग्रेजों को भी प्राप्त होंगी।

प्रश्न 19.
द्वितीय अफ़ीम युद्ध का तात्कालिक कारण क्या था ?
उत्तर:
1856 ई० में घटने वाली लोर्चा ऐरो घटना द्वितीय अफ़ीम युद्ध का तात्कालिक कारण बनी। 8 अक्तूबर, 1856 ई० में चीनी अधिकारियों ने लोर्चा ऐरो नामक जहाज़ को पकड़ लिया तथा उसके 14 नाविकों में से 12 को बंदी बना लिया। यह जहाज एक चीनी व्यापारी का था तथा हांगकांग में पंजीकृत हुआ था। इस जहाज़ पर ब्रिटिश झंडा लगा हुआ था।

हैरी पार्कस नामक अंग्रेज़ अधिकारी ने चीन की इस कार्यवाही की निंदा की तथा बंदी बनाए गए व्यक्तियों को छोड़ने के लिए कहा। उसने यह भी कहा कि चीनी अधिकारी इस घटना के लिए माफी माँगें तथा भविष्य में ऐसी घटना न होने का आश्वासन दें। चीनी अधिकारियों ने अपनी कार्यवाही को उचित ठहराया तथा अंग्रेजों की माँग मानने से इंकार कर दिया।

इसके पश्चात् अंग्रेज़ अधिकारियों ने अपनी मांगों के लिए 48 घंटे का समय दिया। चीनी अधिकारियों ने बंदी बनाए गए सभी 12 नाविकों को छोड़ दिया परंतु बाकी माँगें मानने से इंकार कर दिया। चीनियों के इस व्यवहार से अंग्रेज़ रुष्ट हो गए तथा उन्होंने युद्ध का बिगुल बजा दिया।

प्रश्न 20.
तीनस्तीन की संधि के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
तीनस्तीन की संधि पर 26 जून, 1858 ई० को चीन, इंग्लैंड तथा फ्रांस की सरकारों ने हस्ताक्षर किए। इस संधि की प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित थीं

  • चीन की 11 नई बंदरगाहों को विदेशी देशों के साथ व्यापार तथा निवास के लिए खोल दिया गया।
  • चीनी सरकार ने पश्चिमी देशों को अफ़ीम के व्यापार की अनुमति प्रदान कर दी तथा अफ़ीम के व्यापार को वैध घोषित कर दिया।
  • चीन की ‘यांगत्सी’ नदी में पश्चिमी देशों के जहाजों को आने-जाने की अनुमति दे दी गई।
  • चीन की सरकार ने यह भी स्वीकार कर लिया कि पश्चिमी देश चीन में अपने राजदूत नियुक्त कर सकेंगे।
  • ईसाई धर्म के प्रचारकों को यह अधिकार दे दिया गया कि वे चीन में स्वतंत्रतापूर्वक घम-फिर कर अपने धर्म का प्रचार कर सकते हैं और किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के अनुकूल ईसाई बना सकते हैं।
  • पश्चिमी शक्तियों के राज्य-क्षेत्रातीत अधिकारों को अधिक विस्तृत और व्यापक कर दिया गया। इसके अनुसार उन्हें चीन में निवास करने और व्यापार करने की सुविधा दी गई।

प्रश्न 21.
आधुनिक चीन का संस्थापक किसे माना जाता है ? उसके सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।
अथवा
डॉ० सन-यात-सेन के तीन सिद्धांत क्या थे ?
उत्तर:
डॉ० सन-यात-सेन को आधुनिक चीन का संस्थापक माना जाता है। उसके राजनीतिक विचार तीन सिद्धांतों पर आधारित थे। उनका पहला सिद्धांत ‘राष्ट्रीयता’ का था। डॉ० सन-यात-सेन जानते थे कि चीन में राजनीतिक एकता का पूरी तरह अभाव है। जनता में स्थानीय तथा प्रांतीय भावनाएँ बड़ी प्रबल थीं।

इसी कारण साम्राज्यवादी शक्तियाँ चीन में अपना प्रभाव स्थापित कर रही थीं। अतः डॉ० सन-यात-सेन ने चीन में राष्ट्रीय भावनाएँ जगाने का प्रयत्न किया। राजनीतिक लोकतंत्र’ उनका दूसरा सिद्धांत था। वह चीन में लोकतंत्र स्थापित करना चाहते थे। लोकतंत्र की सफलता के लिये वह देश की सैनिक शक्ति को दृढ़ बनाना आवश्यक समझते थे।

इसके पश्चात् वह राजनीतिक चेतना का प्रसार करना चाहते थे। अंत में वह लोकतंत्रीय सरकार का निर्माण करना चाहते थे। उनका तीसरा सिद्धांत ‘जनता की आजीविका’ था। आजीविका के प्रश्न को हल करने के लिए वह चीन में भूमि का समान वितरण चाहते थे।

प्रश्न 22.
‘कुओमीनतांग’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
1905 ई० में डॉ० सन-यात-सेन ने तुंग-मिंग-हुई नामक दल की स्थापना की थी। इस दल की स्थापना जापान में की गई थी। 1911 ई० में चीनी क्रांति के समय यह दल काफी शक्तिशाली हो गया था। वास्तव में मांचू वंश के साथ जो समझौता किया गया था, उसकी शर्ते भी इस दल के द्वारा तय की गई थीं।

परंतु गणतंत्र की स्थापना के पश्चात् जब युआन शी-काई ने निरंकुश शासन स्थापित करने का प्रयत्न किया तो डॉ० सन-यात-सेन ने छोटे-छोटे दलों को मिला कर एक नया राष्ट्रीय दल बनाने का निर्णय किया। अत: 1912 ई० में तुंग-मेंग हुई तथा चीन के अन्य दलों को मिलाकर एक नये राष्ट्रीय दल की स्थापना की गई।

इस दल का नाम कुओमीनतांग रखा गया। जब 1913 ई० में संसद् के चुनाव हुए तो इस दल को काफी सफलता प्राप्त हुई। यह दल युआन-शी-काई के निरंकुश शासन के विरुद्ध था। परिणामस्वरूप युआन-शी-काई से इस दल का संघर्ष आरंभ हो गया।

प्रश्न 23.
1911 ई० की चीनी क्रांति के कारणों का संक्षिप्त वर्णन करो। .
उत्तर:
1911 ई० की चीनी क्रांति का महत्त्वपूर्ण कारण उसकी बढ़ती हुई जनसंख्या थी। इससे भोजन की समस्या गंभीर होती जा रही थी। इसके अतिरिक्त 1910-1911 ई० में भयंकर बाढ़ों के कारण लाखों लोगों की जानें गईं तथा देश में भुखमरी फैल गई। इससे लोगों में असंतोष बढ़ गया जिसके परिणामस्वरूप विद्रोह की आग भड़क उठी।

क्राँति का दूसरा कारण ‘प्रवासी चीनियों का योगदान’ था। विदेशों में रहने वाले चीनी लोग काफी धनी हो गए थे। वे चीन में सत्ता परिवर्तन के पक्ष में थे। अत: उन्होंने क्रांतिकारी संस्थाओं की खूब सहायता की। माँचू सरकार के नये कर भी क्रांति लाने में सहायक सिद्ध हुए। इन करों के लगने से चीन में क्रांति की भावनाएँ भड़क उठीं।

जापान की उन्नति भी चीनी क्रांति का एक कारण था। चीन के लोग माँचू सरकार को समाप्त करके जापान की भाँति उन्नति करना चाहते थे। चीन में यातायात के साधनों का सुधार होने के कारण चीनी क्रांति के विचारों के प्रसार को काफी बल मिला। अतः यह भी क्रांति का एक अन्य कारण था।

प्रश्न 24.
1911 ई० की चीनी क्रांति का क्या महत्त्व है ?
उत्तर:
(1) 1911 ई० की क्रांति का सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम यह निकला कि लगभग तीन सौ वर्षों से स्थापित माँचू शासन का अंत हो गया।

(2) माँचू शासन के अंत के पश्चात् युआन-शी-काई चीन का प्रथम राष्ट्रपति बना।

(3) 1911 ई० की क्रांति के कारण चीन के शिक्षित नवयुवकों में नवीन विचारों का संचार हुआ। पश्चिमी विचारकों से प्रेरित होकर चीनी लोगों का दृष्टिकोण बदल गया।

(4) राष्ट्रीय सरकार स्थापित करने के पश्चात् चीन धीरे-धीरे आधुनिकीकरण की ओर अग्रसर हुआ।

(5) चीन के लोगों को शताब्दियों से हो रहे शोषण तथा दुर्व्यवहार से छुटकारा मिला तथा आत्म-सम्मान की प्राप्ति हुई। निस्संदेह यह क्राँति चीन के इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई।

प्रश्न 25.
चार मई आंदोलन क्या था ?
उत्तर:
1919 ई० में वर्साय पेरिस में हुए शाँति सम्मेलन में चीन को भारी निराशा हाथ लगी। शाँति सम्मेलन के निर्णयों के परिणामस्वरूप चीनी लोगों में राष्ट्रीय भावना जागृत हुई। इस सम्मेलन में मित्र राष्ट्र चीन में जापान के प्रभाव को कम करने में असफल रहे थे। इस कारण चीन के लोग जापान के विरुद्ध हो गए।

इस कारण 4 मई, 1919 ई० में 3000 से अधिक विद्यार्थियों तथा अध्यापकों ने पीकिंग (बीजिंग) के तियानमेन चौक में एक भारी प्रदर्शन किया। उन्होंने वर्साय में शातुंग पर दिए गए निर्णय की घोर आलोचना की। सरकार ने इस भीड़ पर नियंत्रण पाने के लिए बल प्रयोग से काम लिया। इतिहास में यह घटना ‘चार मई दिवस’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस घटना से चीनी लोगों में एक नई चेतना का संचार हुआ तथा 1949 ई० की क्रांति का मार्ग प्रशस्त हुआ।

प्रश्न 26.
1949 ई० की चीनी क्रांति के परिणामों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1949 ई० की चीनी क्रांति के प्रमुख परिणाम निम्नलिखित थे

(1) शक्तिशाली केंद्रीय सरकार-1949 ई० की क्राँति से चीन में एकता स्थापित हुई। केवल फारमोसा को छोड़ कर शेष सारा देश एक केंद्रीय सरकार के अधीन लाया गया। राजनीतिक एकता के साथ-साथ सारे देश में एक प्रकार का ही शासन स्थापित किया गया। अब चीन अयोग्य तथा भ्रष्ट शासन से मुक्त हो चुका था । चीन वासी अब अपने पर गर्व कर सकते थे। इस प्रकार माँचू शासन के अंत के पश्चात् प्रथम बार चीनी लोगों को शक्तिशाली केंद्रीय सरकार मिली।

(2) शाँति एवं सुरक्षा–साम्यवादी सरकार की स्थापना से चीन में काफी समय से व्याप्त अराजकता एवं अव्यवस्था का अंत हुआ तथा पूर्ण स्थायी शाँति की स्थापना हुई। साम्यवादियों ने अपनी कुशल पुलिस व्यवस्था तथा गुप्तचर व्यवस्था से क्राँति का विरोध करने वालों तथा समाज विरोधी तत्त्वों का अंत कर दिया। इससे स्थायी शाँति की स्थापना हुई तथा लोग अपने-आप को सुरक्षित अनुभव करने लगे।

(3) सामाजिक सुधार-साम्यवादी सरकार ने अनेकों सामाजिक सुधार भी किए। उन्होंने समाज में प्रचलित कई सामाजिक बुराइयों का अंत करके महान् कार्य किया। साम्यवादी सरकार ने चीन में अफ़ीम के प्रयोग पर पूर्ण रूप से रोक लगा दी। मदिरापान, वेश्यावृत्ति, जुआबाज़ी आदि के विरुद्ध भी कानून बनाए गए। सरकार ने स्त्रियों के उत्थान की ओर भी ध्यान दिया। उन्हें पुरुषों के समान अधिकार प्रदान किए गए। फलस्वरूप उन्हें सदियों पश्चात् चीनी समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त हुआ।

(4) ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था पर प्रभाव-1949 ई० की चीनी क्राँति से वहाँ की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बहुत परिवर्तन आया। इस क्राँति से पूर्व छोटे किसानों की दशा बड़ी दयनीय थी। दिन भर की कड़ी मेहनत के पश्चात् भी उन्हें भर-पेट भोजन नसीब नहीं होता था। इसके विपरीत बड़े-बड़े ज़मींदार विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे। 1949 ई० की क्रांति के पश्चात् भूमि का पुनर्विभाजन किया गया। बड़े ज़मींदारों से फालतू भूमि ले कर छोटे किसानों में बाँट दी गई। किसानों की दशा सुधारने के लिए सहकारी समितियाँ भी बनाई गईं।

प्रश्न 27.
माओ-त्सेतुंग के जीवन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
माओ-त्सेतुंग को आधुनिक चीन का निर्माता स्वीकार किया गया है। वह किसानों और श्रमिकों का प्रबल समर्थक था। साम्यवाद में उसका दृढ़ विश्वास था। माओ का जन्म 1893 ई० में हूनान प्रांत में स्थित शाओ-शां नामक गाँव में हुआ। उसके पिता का नाम माओ-जेने-शुंग था।माओ को वाशिंगटन, रूसो और नेपोलियन की जीवन गाथाओं ने बहुत प्रभावित किया था।

उसकी सहानुभूति किसानों के साथ थी और उसने उनके लिए काम करने का निश्चय किया। उसने अकाल से भूखी मर रही जनता पर शासकों द्वारा अत्याचार को देखा। 1917 ई० की रूसी क्रांति का युवा माओ पर गहरा प्रभाव पड़ा। वह उग्र क्रांतिकारी बन गया। उसने लाल सेना का गठन किया। 1930 ई० में वह किसानों और मजदूरों की सभा का सभापति बन गया और भूमिगत होकर काम करने लगा।

उसके सिर पर 25 लाख डालर का ईनाम था। उसने 1934 ई० में लाल सेना की सहायता से च्यांग-काई-शेक की विशाल सेना के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध आरंभ कर दिया। पाँचवें आक्रमण में उस पर इतना दबाव पड़ा कि उसने ‘महाप्रस्थान’ की योजना बनाई। माओ ने अपना संघर्ष जारी रखा। आखिर 1949 ई० में च्यांग-काई-शेक को चीन से भाग कर फारमोसा में शरण लेनी पड़ी। माओ-त्से-तुंग को चीन की सरकार का अध्यक्ष चुना गया। 1976 ई० में अपनी मृत्यु तक वह इसी पद पर बना रहा।

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प्रश्न 28.
लाँग मार्च पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर:
लाँग मार्च (लंबी यात्रा) चीन के इतिहास की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है। 1934 ई० में चियांग-काई-शेक जो कि साम्यवादियों को अपना कट्टर दुश्मन मानता था का विनाश करने के उद्देश्य से कियांग्सी का घेराव कर लिया। राष्ट्रवादी सेना के घेराव के कारण साम्यवादी एक गहन संकट में फंस गए। उन्हें घोर कष्टों को सहन करना पड़ा।

इस घोर संकट के समय में माओ-त्सेतुंग ने बहुत साहस से कार्य लिया। उसने अपने अधीन एक लाख लाल सेना एकत्रित की तथा वह चियांग-काई-शेक के घेराव को तोड़ते हुए लंबी यात्रा पर निकल पड़ा। यह यात्रा 16 अक्तूबर, 1934 ई० को आरंभ की गई थी। उसने शांग्सी तक का 6,000 मील का कठिन सफर तय किया। यह एक बहुत जोखिम भरी यात्रा थी।

रास्ते में उन्हें चियांग-काई-शेक की सेना का अनेक बार सामना करना पड़ा। उन्हें भूखे-प्यासे अनेक वनों, नदियों एवं कठिन पर्वतों को पार करना पड़ा। इनके चलते करीब 80 हज़ार माओ के सैनिक रास्ते में मृत्यु का ग्रास बन गए। 370 दिनों की लंबी यात्रा के पश्चात् 20 अक्तूबर, 1935 ई० को माओ-त्सेतुंग अपने 20 हजार सैनिकों के साथ शांग्सी पहुँचने में सफल हुआ। निस्संदेह विश्व इतिहास में इस घटना की कोई उदाहरण नहीं मिलती।

प्रश्न 29.
‘लंबी छलाँग वाला आंदोलन’ से क्या अभिप्राय है ? क्या यह सफल रहा ?
उत्तर:
चीन में लंबी छलाँग वाला आंदोलन 1958 ई० में चलाया गया। इसका उद्देश्य चीन में औद्योगीकरण की प्रक्रिया में तीव्रता लाना था। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए चीन में कम्यून्स की स्थापना की गई। इनके अपने खेत एवं कारखाने आदि होते थे। प्रत्येक कम्यून उत्पादन, वितरण एवं खपत आदि पर नज़र रखता था।

यद्यपि सरकार द्वारा लगातार इस आंदोलन की सफलता की घोषणा की गई किंतु वास्तविकता यह थी कि यह विफल रहा। लीऊ शाओछी एवं तंग शीयाओफींग नामक नेताओं ने कम्यून प्रथा को बदलने का प्रयास किया क्योंकि ये कुशलता से काम नहीं कर रही थीं। इसके अनेक कारण थे। प्रथम, इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए पर्याप्त धन की व्यवस्था नहीं की गई थी। दूसरा, कम्यून्स द्वारा तैयार किया गया इस्पात निम्नकोटि का था। तीसरा, रूस से मतभेदों के चलते उसने चीन को आर्थिक सहायता देनी बंद कर दी थी। अतः 1959 ई० में इस आंदोलन को वापस ले लिया गया।

अति संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राचीन चीन का सबसे महानतम इतिहासकार कौन था ?
उत्तर:
प्राचीन चीन का सबसे महानतम इतिहासकार सिमा छियन था।

प्रश्न 2.
नाइतो कोनन कौन था ?
उत्तर:
नाइतो कोनन चीनी इतिहास पर काम करने वाला एक प्रमुख जापानी विद्वान् था। उसने अपने काम में पश्चिमी इतिहास लेखन की नई तकनीकों एवं अपने पत्रकारिता के अनुभवों का प्रयोग किया। उसने 1907 ई० में क्योतो विश्वविद्यालय में प्राच्य अध्ययन का विभाग बनाने में सहायता की।

प्रश्न 3.
उगते हुए सूर्य का देश किसे कहा जाता है ?
उत्तर:
उगते हुए सूर्य का देश जापान को कहा जाता है।

प्रश्न 4.
जापानी लोगों का मुख्य भोजन क्या है ?
उत्तर:
जापानी लोगों का मुख्य भोजन चावल एवं मछली है।

प्रश्न 5.2,228 Comments in moderation
चीन एवं जापान के कोई दो भौतिक अंतर बताएँ।
उत्तर:

  • चीन एक विशाल महाद्वीप है जबकि जापान एक छोटा द्वीप है।
  • चीन भूकंप क्षेत्र में नहीं आता जबकि जापान में अक्सर भूकंप आते रहते हैं।

प्रश्न 6.
शोगन कौन थे ?
उत्तर:
शोगुन जापान में सैद्धांतिक रूप से राजा के नाम पर शासन चलाते थे। वे दैम्यों पर, प्रमुख शहरों एवं खाद्यानों पर नियंत्रण रखते थे। कोई भी व्यक्ति शोगुन की अनुमति के बिना सम्राट से नहीं मिल सकता था। उनके अधीन बड़ी संख्या में सैनिक होते थे।

प्रश्न 7.
सामुराई कौन थे ?
उत्तर:
सामुराई जापान के यौद्धा वर्ग से संबंधित थे। वे शोगुन एवं दैम्यों को प्रशासन चलाने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते थे। वे अपनी वफ़ादारी, वीरता एवं सख्त जीवन के लिए प्रसिद्ध थे।

प्रश्न 8.
दैम्यो कौन थे ?
उत्तर:
दैम्यो जापान में अपने अधीन क्षेत्र के मुखिया होते थे। वे अपने क्षेत्र में लगभग स्वतंत्र होते थे। उन्हें अपने अधीन क्षेत्र के लोगों को मृत्यु दंड देने का अधिकार था। वे सैनिक सेवा करते थे। वे लोक भलाई के कार्य भी करते थे।

प्रश्न 9.
16वीं एवं 17वीं शताब्दी में जापान को एक धनी देश क्यों समझा जाता था ?
उत्तर:
16वीं एवं 17वीं शताब्दी में जापान को एक धनी देश इसलिए समझा जाता था क्योंकि वह चीन से रेशम और भारत से कपड़े का आयात करता था। जापान इसका मूल्य सोने में चुकाता था। अत: जापान को एक धनी देश समझा जाता था।

प्रश्न 10.
जापान का कौन-सा रेशम दुनिया भर में बेहतरीन रेशम माना जाता था ?
उत्तर:
जापान का निशिजन रेशम दुनिया भर में बेहतरीन रेशम माना जाता था।

प्रश्न 11.
जापान में शोगुनों के पतन के लिए उत्तरदायी कोई दो महत्त्वपूर्ण कारण लिखें।
उत्तर:

  • शोगुनों की पक्षपातपूर्ण नीति।
  • किसानों की दयनीय स्थिति।

प्रश्न 12.
कॉमोडोर मैथ्यू पेरी कौन था ?
उत्तर:
कॉमोडोर मैथ्यू पेरी एक अमरीकी नाविक था। उसे अमरीकी सरकार ने 24 नवंबर, 1852 ई० को जापानी सरकार से बातचीत के लिए भेजा था। वह 3 जुलाई, 1853 ई० को जापान की बंदरगाह योकोहामा पहुँचने में सफल रहा। वह 1854 ई० में जापान सरकार के साथ एक संधि करने में सफल हुआ।

प्रश्न 13.
कॉमोडोर मैथ्यू पेरी की जापान के साथ 1854 ई० में हुई कानागावा संधि की कोई दो शर्ते लिखें।
उत्तर:

  • जापान की दो बंदरगाहों शीमोदा एवं हाकोदाटे को अमरीका के जहाजों के लिए खोल दिया गया।
  • शीमोदा में अमरीका के वाणिज्य दूत को रहने की अनुमति मिल गई।

प्रश्न 14.
मेज़ी पुनर्स्थापना से क्या भाव है ?
अथवा
मेज़ी पुनर्स्थापना से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
1868 ई० में जापान में तोकुगावा वंश के शासन का अंत कर दिया गया एवं मुत्सुहितो जापान का नया सम्राट् बना। मुत्सुहितो ने मेज़ी नामक उपाधि को धारण किया। मेज़ी का अर्थ है प्रबुद्ध शासन। जापान के इतिहास में इस घटना को मेज़ी पुनर्स्थापना कहा जाता है।

प्रश्न 15.
मुत्सुहितो जापान का सम्राट् कब बना ? वह इस पद पर कब तक रहा ?
उत्तर:

  • मुत्सुहितो जापान का सम्राट् 1868 ई० में बना।
  • वह इस पद पर 1912 ई० तक रहा।

प्रश्न 16.
फुकोकु क्योहे से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
जापान में मेज़ी काल में सरकार ने फुकोकु क्योहे का नारा दिया। इससे अभिप्राय था समृद्ध देश एवं मज़बूत सेना।

प्रश्न 17.
मेज़ी काल में शिक्षा के क्षेत्र में किए गए कोई दो सुधार बताएँ।
उत्तर:

  • शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए एक अलग शिक्षा विभाग की स्थापना की गई।
  • प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बना दिया गया।

प्रश्न 18.
मेजी काल के कोई दो सैनिक सुधार लिखें।
उत्तर:

  • सेना को अधिक शक्तिशाली बनाया गया।
  • 20 वर्ष से अधिक आयु वाले नौजवानों के लिए सेना में कार्य करना अनिवार्य कर दिया गया।

प्रश्न 19.
मेजी काल में अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण करने के उद्देश्य से कौन-से दो पग उठाए गए ?
उत्तर:

  • उद्योगों के विकास के लिए यूरोप से मशीनों का आयात किया गया।
  • मजदूरों के प्रशिक्षण के लिए विदेशी कारीगरों को बुलाया गया।

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प्रश्न 20.
जायबात्सु से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
जायबात्सु जापान की बड़ी व्यापारिक संस्थाएँ थीं। इन पर जापान के विशिष्ट परिवारों का नियंत्रण था। इनका प्रभुत्व दूसरे विश्व युद्ध के बाद तक अर्थव्यवस्था पर बना रहा।

प्रश्न 21.
मेज़ी संविधान को कब लागू किया गया था ? इसकी कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • मेज़ी संविधान को 1889 ई० में लागू किया गया था।
  • इसमें सम्राट् के अधिकारों की बढ़ौतरी की गई।
  • सम्राट् डायट के अधिवेशन को बुला सकता था एवं उसे भंग कर सकता था।

प्रश्न 22.
जापान की प्रथम रेलवे लाइन कब तथा कहाँ बिछाई गई थी ?
उत्तर:
जापान की प्रथम रेलवे लाइन 1870 ई. से 1872 ई० के मध्य तोक्यो एवं योकोहामा के मध्य बिछाई गई थी।

प्रश्न 23.
तनाका शोज़ो कौन था ?
उत्तर:
वह जापान की प्रथम संसद् जिसे डायट कहा जाता था का सदस्य था। उसने 1897 ई० में जापान में औद्योगिक प्रदूषण के खिलाफ प्रथम आंदोलन आरंभ किया। उसका कथन था कि औद्योगिक प्रगति के लिए आम लोगों की बलि नहीं दी जानी चाहिए।

प्रश्न 24.
मेजी काल में जापानियों की रोजमर्रा जिंदगी में आए महत्त्वपूर्ण बदलाव क्या थे ?
उत्तर:

  • इस काल में एकल परिवार का प्रचलन बढ़ा।
  • त्पादों के लिए बिजली का प्रचलन बढ़ गया।
  • जापानी अब पश्चिमी वेशभूषा पहनने लगे।

प्रश्न 25.
फुकुजावा यूकिची कौन था ?
अथवा
फुकुजावा यूकिची के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
वह मेज़ी काल का एक प्रमुख बुद्धिजीवी था। उसने ‘ज्ञान के लिए प्रोत्साहन’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की। उसने जापानी ज्ञान की कड़ी आलोचना की। उसका कथन था कि जापान को अपने में से एशिया को निकाल फेंकना चाहिए। इससे अभिप्राय था कि जापान को अपने एशियाई लक्षणों को छोड़ कर पश्चिमी लक्षणों को अपनाना चाहिए।

प्रश्न 26.
मियाके सेत्सुरे कौन था ?
उत्तर:
मियाके सेत्सुरे जापान का एक प्रसिद्ध दर्शनशास्त्री था। उसका कथन था कि विश्व सभ्यता के हित में प्रत्येक राष्ट्र को अपने विशेष हुनर का विकास करना चाहिए। अपने को अपने देश के लिए समर्पित करना अपने को विश्व को समर्पित करने के समान है।

प्रश्न 27.
उएकी एमोरी कौन था ?
उत्तर:
उएकी एमोरी जापान में जनवादी अधिकारों के आंदोलन का नेता था। वह चाहता था कि जापान सैन्यवाद की अपेक्षा लोकतंत्र पर बल दे। वह उदारवादी शिक्षा के पक्ष में था। उसका कथन था, “व्यवस्था से ज़्यादा कीमती चीज़ है, आज़ादी।” वह फ्रांसीसी क्रांति के मानवों के प्राकृतिक अधिकार एवं जन प्रभुसत्ता का प्रशंसक था।

प्रश्न 28.
1894-95 ई० के चीन-जापान युद्ध के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • रूस की कोरिया में दिलचस्पी।
  • कोरिया में तोंगहाक संप्रदाय द्वारा किया गया विद्रोह।

प्रश्न 29.
1894-95 ई० के चीन-जापान युद्ध का अंत किस संधि के साथ हुआ ? इस संधि की कोई दो धाराएँ लिखो।
उत्तर:

  • 1894-95 ई० के चीन-जापान युद्ध का अंत शिमोनोसेकी की संधि द्वारा हुआ।
  • चीन ने जापान को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी।
  • चीन ने माना कि वह युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में जापान को 2 करोड़ तायल देगा।

प्रश्न 30.
1894-95 ई० के चीन-जापान यद्ध के कोई दो परिणाम लिखें।
उत्तर:

  • इसमें चीन को पराजय का सामना करना पड़ा।
  • इसमें जापान की विजय से उसके सम्मान में बहुत वृद्धि हुई।

प्रश्न 31.
रूस-जापान युद्ध कब हुआ ? इसमें कौन विजयी रहा ?
उत्तर:

  • रूस-जापान युद्ध 1904-05 ई० में हुआ।
  • इसमें जापान विजयी रहा।

प्रश्न 32.
1904-05 ई० के रूस-जापान युद्ध के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • लियाओतुंग पर रूस ने कब्जा कर लिया था।
  • मँचूरिया पर रूस एवं जापान कब्जा करना चाहते थे।

प्रश्न 33.
पोर्टसमाउथ की संधि कब हुई ? इस संधि की कोई दो शर्ते लिखें।
उत्तर:

  • पोर्टसमाउथ की संधि 1905 ई० में हुई।
  • पोर्ट आर्थर एवं लियाओतुंग प्रायद्वीप जापान को मिल गए।
  • जापान को स्खालिन द्वीप का दक्षिण भाग प्राप्त हुआ।

प्रश्न 34.
1904-05 ई० के रूस-जापान युद्ध के कोई दो प्रभाव लिखें।
उत्तर:

  • इस युद्ध में पराजय के कारण रूस की प्रतिष्ठा को गहरा आघात लगा।
  • इस विजय से जापान को अन्य क्षेत्रों में विजय प्राप्त करने के लिए एक नया प्रोत्साहन मिला।

प्रश्न 35.
जापान में सैन्यवाद के उदय के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • जापान के सैन्यवादी बहुत महत्त्वाकांक्षी हो गए थे।
  • जापानी नवयुवक जापानी सैन्यवाद में विश्वास करते थे।

प्रश्न 36.
जापान में द्वितीय विश्व युद्ध के समय अमरीका ने कब तथा किन दो शहरों पर एटम बम गिराये थे ?
उत्तर:
जापान में द्वितीय विश्व युद्ध के समय 1945 ई० में अमरीका ने जापान के दो शहरों हिरोशिमा एवं नागासाकी पर बम गिराए थे।

प्रश्न 37:
अमरीका ने जापान पर कब-से-कब तक कब्जा किया ? इस समय दौरान जापान पर किसने शासन किया ?
उत्तर:

  • अमरीका ने जापान पर 1945 ई० से 1952 ई० तक शासन किया।
  • इस समय के दौरान जापान पर जनरल दगलस मेकार्थर ने शासन किया।

प्रश्न 38.
जापान में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहले चुनाव कब हुए ? इसकी महत्त्वपूर्ण विशेषता क्या थी ?
उत्तर:

  • जापान में द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद पहले चुनाव 1947 ई० में हुए।
  • इसकी महत्त्वपूर्ण विशेषता यह थी कि इसमें स्त्रियों को प्रथम बार मतदान करने का अधिकार दिया गया।

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प्रश्न 39.
अमरीका ने जापान में कौन-से चार महत्त्वपूर्ण सुधार किए ?
उत्तर:

  • उसने जापान में 1947 ई० में एक नया संविधान लागू किया।
  • उसने जापान में भारी उद्योगों को प्रोत्साहन दिया।
  • उसने जापान में आधुनिक शिक्षा को लागू किया।
  • उसने जापान का निरस्त्रीकरण किया।

प्रश्न 40.
जापान में कब तथा कहाँ प्रथम ओलंपिक खेलों का आयोजन किया गया था.?
उत्तर:
जापान में 1964 ई० में तोक्यो में प्रथम ओलंपिक खेलों का आयोजन किया गया था।

प्रश्न 41.
प्रथम अफ़ीम युद्ध कब एवं किनके मध्य हुआ ? इसमें कौन-विजयी रहा ?
उत्तर:

  • प्रथम अफ़ीम युद्ध 1839 ई० से 1842 ई० को इंग्लैंड एवं चीन के मध्य हुआ।
  • इसमें इंग्लैंड की विजय हुई।

प्रश्न 42.
प्रथम अफ़ीम युद्ध के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • चीनियों द्वारा यूरोपियों से किया जाने वाला घृणापूर्ण व्यवहार।
  • चीन के सम्राट् द्वारा कमिश्नर लिन की नियुक्ति।

प्रश्न 43.
प्रथम अफ़ीम युद्ध किस संधि के साथ समाप्त हुआ ? यह संधि कब हुई थी ?
उत्तर:

  • प्रथम अफ़ीम युद्ध नानकिंग की संधि के साथ समाप्त हुआ था।
  • यह संधि 1842 ई० को हुई थी।

प्रश्न 44.
नानकिंग की संधि की कोई दो शर्ते लिखें।
उत्तर:

  • हांगकांग का द्वीप ब्रिटेन को सौंपा गया।
  • ब्रिटेन के लिए पाँच चीनी बंदरगाहें व्यापार के लिए खोल दी गईं।

प्रश्न 45.
प्रथम अफ़ीम युद्ध के कोई दो प्रभाव लिखें।
उत्तर:

  • इस युद्ध में पराजय के कारण चीन के सम्मान को गहरा आघात लगा।
  • इससे चीन की आर्थिक समस्याएँ बढ़ गईं।

प्रश्न 46.
चीन में ताइपिंग विद्रोह कब हुआ ? इस विद्रोह का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:

  • चीन में ताइपिंग विद्रोह 1850-1864 ई० में हुआ था।
  • इसका उद्देश्य चीन में मिंग शासन की पुनः स्थापना करना था।

प्रश्न 47.
चीन एवं ब्रिटेन के मध्य द्वितीय अफ़ीम युद्ध कब हुआ ? इसमें कौन विजयी रहा ?
उत्तर:

  • चीन एवं ब्रिटेन के मध्य द्वितीय अफ़ीम युद्ध 1856 ई० से 1860 ई० के मध्य लड़ा गया।
  • इसमें ब्रिटेन विजयी रहा।

प्रश्न 48.
चीन एवं ब्रिटेन के मध्य तीनस्तीन की संधि कब हुई ?
उत्तर:
चीन एवं ब्रिटेन के मध्य तीनस्तीन की संधि 1858 ई० में हुई।

प्रश्न 49.
रिवाइव चाइना सोसायटी की स्थापना कब तथा किसने की थी ?
उत्तर:
रिवाइव चाइना सोसायटी की स्थापना 1894 ई० में डॉक्टर सन-यात-सेन ने की थी।

प्रश्न 50.
रिवाइव चाइना सोसायटी के कोई दो प्रमुख उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • चीन से माँचू शासन का अंत करना।
  • चीनी समाज का पुनः निर्माण करना।

प्रश्न 51.
डॉक्टर सन-यात-सेन ने तुंग-मिंग-हुई की स्थापना कब की ? इसका उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:

  • डॉक्टर सन-यात-सेन ने तुंग-मिंग-हुई की स्थापना 1905 ई० में की।
  • इसका उद्देश्य चीन में क्रांति करना था।

प्रश्न 52.
डॉक्टर सन-यात-सेन ने किन तीन सिद्धांतों का प्रचलन किया था ?
उत्तर:
डॉक्टर सन-यात-सेन ने राष्ट्रवाद, गणतंत्र एवं समाजवाद नामक तीन सिद्धांतों का प्रचलन किया।

प्रश्न 53.
1911 ई० की चीनी क्रांति के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • चीन में बढ़ती हुई समस्याएँ।
  • डॉक्टर सन-यात-सेन का योगदान।

प्रश्न 54.
1911 ई० की चीनी क्रांति के कोई दो परिणाम बताएँ ।
उत्तर:

  • इसने चीन में माँचू वंश का अंत कर दिया।
  • चीन में गणतंत्र की स्थापना हुई।

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प्रश्न 55.
चीन में माँचू वंश का अंत कब हुआ एवं गणतंत्र की स्थापना किसके नेतृत्व में की गई ?
उत्तर:

  • चीन में माँचू वंश का अंत 1917 ई० में हुआ।
  • चीन में गणतंत्र की स्थापना डॉक्टर सन-यात-सेन के नेतृत्व में हुई।

प्रश्न 56.
चीन में कुओमीनतांग की स्थापना किसने तथा कब की ?
उत्तर:
चीन में कुओमीनतांग की स्थापना डॉक्टर सन-यात-सेन ने 1912 ई० में की।

प्रश्न 57.
चीन में कुओमीनतांग दल के कोई दो उद्देश्य लिखें।
उत्तर:

  • चीन में शाँति स्थापित करना।
  • चीनी सेना में कड़ा अनुशासन लागू करना।

प्रश्न 58.
4 मई आंदोलन कब तथा कहाँ हुआ था ?
उत्तर:
4 मई आंदोलन 1919 ई० में बीजिंग में हुआ था।

प्रश्न 59.
माओ-त्सेतुंग के जीवन पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर:
माओ-त्सेतुंग का जन्म 1893 ई० में चीन के हूनान प्रांत में स्थित शाओ-शां नामक गाँव में हुआ। उसने 1934-35 ई० में लाँग मार्च का नेतृत्व किया। माओ-त्सेतुंग ने नया लोकतंत्र नामक पुस्तक 1940 ई० में लिखी। उसके नेतृत्व में 1949 ई० की क्राँति हुई।

प्रश्न 60.
माओ-त्सेतुंग ने कौन-सी प्रसिद्ध पुस्तक तथा कब लिखी ?
उत्तर:
माओ-त्सेतुंग ने नया लोकतंत्र नामक पुस्तक 1940 ई० में लिखी।

प्रश्न 61.
लाँग मार्च से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
साम्यवादियों द्वारा की गई नाकेबंदी के कारण माओ-त्सेतुंग ने 1934-35 ई० में लाँग मार्च का नेतृत्व किया। यह 6000 मील का लंबा सफर था। इस सफर के दौरान लोगों को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 62.
पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की सरकार कब तथा किसके नेतृत्व में स्थापित हुई ?
उत्तर:
पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की सरकार 1949 ई० में माओ-त्सेतुंग के नेतृत्व में स्थापित हुई।

प्रश्न 63.
चीन में लंबी छलाँग की घोषणा कब की गई थी ? इसका उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:

  • चीन में लंबी छलाँग की घोषणा 1958 ई० में की गई थी।
  • इसका उद्देश्य चीन के उद्योगों को प्रोत्साहन देना था।

प्रश्न 64.
महान् सर्वहारा सांस्कृतिक क्राँति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
महान् सर्वहारा सांस्कृतिक क्राँति को चीन में माओ-त्सेतुंग द्वारा 1966 ई० में आरंभ किया गया था। इसका उद्देश्य चीन में प्राचीन संस्कृति को पुनः स्थापित करना एवं माओ-त्सेतुंग के विरोधियों के विरुद्ध अभियान छेड़ना था।

प्रश्न 65.
चीन में आधुनिकीकरण के लिए कब तथा किसने चार सूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा की ? ये चार सूत्र कौन-से थे ?
उत्तर:

  • चीन में आधुनिकीकरण के लिए 1978 ई० में तंग शीयाओफींग ने चार सूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा की।
  • ये चार सूत्र थे-विज्ञान, उद्योग, कृषि एवं रक्षा।

प्रश्न 66.
चियांग-काई-शेक ने ताइवान की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से कौन-से दो मुख्य सुधार किए ?
उत्तर:

  • उसने कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए किसानों को विशेष सुविधाएँ प्रदान की।
  • उसने उद्योगों के विकास पर बल दिया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राचीन चीन का सबसे महान् इतिहासकार किसे माना जाता है ?
उत्तर:
सिमा छियन को।

प्रश्न 2.
मैटियो रिक्की कौन थे ?
उत्तर:
चीन में एक जेसूइट पादरी।

प्रश्न 3.
नाइतो कोनन कौन थे ?
उत्तर:
एक प्रसिद्ध जापानी विद्वान्।

प्रश्न 4.
जापान का सबसे बड़ा द्वीप कौन-सा है ?
उत्तर:
होशू।

प्रश्न 5.
जापान की राजधानी तोक्यो को पहले किस नाम से जाना जाता था ?
उत्तर:
एदो।

प्रश्न 6.
जापान का प्रथम सम्राट् किसे माना जाता है ?
उत्तर:
जिम्मू।

प्रश्न 7.
उगते हुए सूर्य का देश किसे माना जाता है ?
उत्तर:
जापान को।

प्रश्न 8.
जापान की प्रसिद्ध मछली कौन-सी है ?
उत्तर:
साशिमी।

प्रश्न 9.
जापान में सम्राट् किस नाम से जाने जाते थे ?
उत्तर:
मिकाडो।

प्रश्न 10.
शोगुनों के उत्थान से पूर्व जापानी सम्राट् कहाँ से शासन करते थे ?
उत्तर:
क्योतो।

प्रश्न 11.
जापान में तोकुगावा कब सत्ता में आए ?
उत्तर:
1603 ई० में।

प्रश्न 12.
सामुराई कौन थे ?
उत्तर:
योद्धा वर्ग।

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प्रश्न 13.
17वीं शताब्दी के मध्य तक जापान में दुनिया में सबगे अधिक जनसंख्या वाला शहर कौन सा था।
उत्तर:
एदो।

प्रश्न 14.
16वीं शताब्दी में निशिजन किस उद्योग के लिए प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
रेशम।

प्रश्न 15.
जापान में शोगुन पद का अं का हुआ ?
उत्तर:
1867 ई० में।

प्रश्न 16.
अमरीका का कॉमोडोर मैथ्यू पेरी जापान कब पहुँचा ?
उत्तर:
1853 ई० में।

प्रश्न 17.
जापान एवं अमरीका के मध्य कानागावा की संधि कब हुई ?
उत्तर:
1854 ई० में।

प्रश्न 18.
मुत्सुहितो जापान का सम्राट् कब बना ?
उत्तर:
1868 ई० में।

प्रश्न 19.
मुत्सुहितो ने किसे जापान की राजधानी बनाया ?
उत्तर:
तोक्यो।

प्रश्न 20.
जापान में सामंती प्रथा के अंत की घोषणा कब की गई ?
उत्तर:
1871 ई० में।

प्रश्न 21.
जापान में तोक्यो विश्वविद्यालय की स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर:
1877 ई० में।

प्रश्न 22.
दि टेल ऑफ़ दि गेंजी का लेखक कौन था ?
उत्तर:
मुरासाकी शिकिबु।

प्रश्न 23.
फुकोकु क्योहे से क्या अभिप्राय था ?
उत्तर:
समूह देश एवं मज़बूत सेना।

प्रश्न 24.
जापान में विशिष्ट एवं धनी परिवार क्या कहलाते थे ?
उत्तर:
जायबात्सु।

प्रश्न 25.
1897 ई० में जापान में औद्योगिक प्रदूषण के विरुद्ध किसने प्रथम जन आंदोलन का नेतृत्व किया था ?
उत्तर:
तनाका शोज़ो ने।

प्रश्न 26.
जापान में प्रथम आधुनिक हड़ताल कब हुई ?
उत्तर:
1886 ई० में।

प्रश्न 27.
जापान में प्रथम रेल लाइन कहाँ से कहाँ तक बिछाई गई ?
उत्तर:
तोक्यो एवं योकोहामा।

प्रश्न 28.
बैंक ऑफ़ जापान को कब खोला गया था ?
उत्तर:
1882 ई० में।

प्रश्न 29.
मेज़ी संविधान को कब लागू किया गया था ?
उत्तर:
1889 ई० में।

प्रश्न 30.
जापान में प्रथम रेडियो स्टेशन कब खुला ?
उत्तर:
1925 ई० में।

प्रश्न 31.
जापान में जनवादी अधिकारों के आंदोलन का नेता कौन था ?
उत्तर:
उएकी एमोरी।

प्रश्न 32.
‘एक गुड़िया का घर’ नामक प्रसिद्ध नाटक का लेखक कौन था ?
उत्तर:
इब्सन।

प्रश्न 33.
चीन-जापान युद्ध कब हुआ ?
उत्तर:
1894-95 ई० में।

प्रश्न 34.
चीन-जापान के मध्य शिमोनोसेकी की संधि कब हुई ?
उत्तर:
1895 ई० में।

प्रश्न 35.
रूस एवं जापान के मध्य युद्ध कब हुआ ?
उत्तर:
1904-05 ई० में।

प्रश्न 36.
संयुक्त राज्य अमरीका ने जापान के किस शहर पर 6 अगस्त, 1945 ई० को प्रथम परमाणु बम गिराया ?
उत्तर:
हिरोशिमा पर।

प्रश्न 37.
जापान पर अमरीका का कब्जा कब से लेकर कब तक रहा ?
उत्तर:
1945 ई० से लेकर 1952 ई० तक।

प्रश्न 38.
तोक्यो में ओलंपिक खेलों का आयोजन कब किया गया ?
उत्तर:
1964 ई० में।

प्रश्न 39.
जापान में बुलेट ट्रेन को किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
शिंकासेन।

प्रश्न 40.
जापान में नागरिक समाज आंदोलन का विकास कब हुआ ?
उत्तर:
1960 के दशक में।

प्रश्न 41.
चीन में पीली नदीको किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
हवांग हो।

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प्रश्न 42.
चीन की सबसे बड़ी नदी कौन-सी है ?
उत्तर:
यांग्त्सी नदी।

प्रश्न 43.
चीन के सबसे प्रमुख जातीय समूह का नाम क्या है ?
उत्तर:
हान।

प्रश्न 44.
चीन का सबसे प्रसिद्ध खाना क्या कहलाता है ?
उत्तर:
डिम सम।

प्रश्न 45.
पहला अफ़ीम युद्ध कब हुआ ?
उत्तर:
1839-1842 ई०

प्रश्न 46.
पहला अफ़ीम युद्ध किनके मध्य हुआ ?
उत्तर:
इंग्लैंड एवं चीन।

प्रश्न 47.
नानकिंग की संधि कब हुई ?
उत्तर:
1842 ई० में।

प्रश्न 48.
द्वितीय अफीम युद्ध कब हुआ ?
उत्तर:
1856-60 ई०।

प्रश्न 49.
तीनस्तीन की संधि कब हुई ?
उत्तर:
1858 ई० में।

प्रश्न 50.
आधुनिक चीन का संस्थापक किसे माना जाता है ?
उत्तर:
डॉ० सन-यात-सेन को।

प्रश्न 51.
डॉ० सन-यात-सेन ने कितने सिद्धांतों का प्रचलन किया ?
उत्तर:
तीन।

प्रश्न 52.
डॉ० सन-यात-सेन ने तुंग मिंग हुई की स्थापना कब की ?
उत्तर:
1905 ई० में।

प्रश्न 53.
सन-यात-सेन की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर:
1925 ई० में।

प्रश्न 54.
पीकिंग विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर:
1902 ई० में।

प्रश्न 55.
चीनी क्रांति कब हुई ?
उत्तर:
1911 ई० में।

प्रश्न 56.
चीन का प्रथम राष्ट्रपति कौन बना ?
उत्तर:
युआन-शी-काई।

प्रश्न 57.
चीन में कुओमीनतांग दल की स्थापना कब हुई ?
उत्तर:
1921 ई० में।

प्रश्न 58.
4 मई, 1919 ई० का आंदोलन कहाँ आरंभ हुआ ?
उत्तर:
पीकिंग।

प्रश्न 59.
जापान ने चीन पर आक्रमण कब किया ?
उत्तर:
1 जुलाई, 1937 ई०।

प्रश्न 60.
चीन में लांग मार्च का नेतृत्व किसने किया ?
उत्तर:
माओ-त्सेतुंग।

प्रश्न 61.
‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार की स्थापना कब हुई ?
उत्तर:
1 अक्तूबर, 1919 ई०।

प्रश्न 62.
गणराज्यी चीन का प्रथम अध्यक्ष किसे नियुक्त किया गया ?
उत्तर:
माओ-त्सेतुंग को।

प्रश्न 63.
गणराज्यी चीन का प्रथम प्रधानमंत्री किसे नियुक्त किया गया ?
उत्तर:
चाऊ एनलाई को।

प्रश्न 64.
पीपुल्स बैंक ऑफ़ चाइना की स्थापना कब की गई ?
उत्तर:
1950 ई० में।

प्रश्न 65.
1958 ई० में चीन में कौन-सा आंदोलन चलाया गया ?
उत्तर:
लंबी छलाँग वाला आंदोलन।

प्रश्न 66.
तंग शीयाओफींग चीन में कब सत्ता में आया ?
उत्तर:
1976 ई० में।

प्रश्न 67.
चीन में चार आधुनिकीकरणों की घोषणा कब की गई थी ?
उत्तर:
1978 ई० में।

प्रश्न 68.
ताइवान को पहले किस नाम से जाना जाता था ?
उत्तर:
फारमोसा।

प्रश्न 69.
ताइवान की राजधानी किसे घोषित किया गया ?
उत्तर:
ताइपेइ को।

प्रश्न 70.
चियांग-काई-शेक की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर:
1975 ई० में।

प्रश्न 71.
ताइवान में मार्शल लॉ के अंत की घोषणा कब की गई ?
उत्तर:
1987 ई० में।

रिक्त स्थान भरिए

1. 1603 ई० में जापान में ……………… वंश की स्थापना हुई।
उत्तर:
तोकुगावा

2. मेजी पुनर्स्थापना ……………….. ई० में हुई।
उत्तर:
1868

3. ……………….. ई० में शिक्षा ग्रहण करना अनिवार्य किया गया।
उत्तर:
1870

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4. जापान की पहली रेल लाइन ……………….. ई० में बिछाई गई।
उत्तर:
1870

5. जापान में ……………….. ई० में आधुनिक बैंकिंग संस्थाओं का प्रारंभ हुआ था।
उत्तर:
1872

6. जापान में सर्वप्रथम महिलाओं द्वारा आधुनिक हड़तालों का आयोजन ……………….. ई० में हुआ था।
उत्तर:
1886

7. जापान में औद्योगिक प्रदूषण के विरुद्ध पहला आंदोलन ………………. ई० में आरंभ किया गया।
उत्तर:
1897

8. जापान में औद्योगिक प्रदूषण के खिलाफ़ प्रथम आंदोलन …………… द्वारा आरंभ किया गया।
उत्तर:
तनाको शोज़ो

9. ‘ज्ञान के लिए प्रोत्साहन’ नामक पुस्तक की रचना जापान के महान् बुद्धिजीवी ……………… द्वारा की गई __ थी।
उत्तर:
फुकुज़ावा यूकिची

10. ‘एक गुड़िया का घर’ नामक नाटक की रचना ……………….. द्वारा की गई थी।
उत्तर:
इबसन

11. जापान में प्रथम बार ……………….. ई० में चुनाव हुए। .
उत्तर:
1946

12. जापान में ……………….. ई० में बुलेट ट्रेन चलाई गई।
उत्तर:
1964

13. जापान में प्रथम अफ़ीम युद्ध ……………….. ई० में हुआ।
उत्तर:
1839

14. दूसरा अफ़ीम युद्ध ……………… ई० में हुआ।
उत्तर:
1856

15. मांचू साम्राज्य का अंत ………………. ई० में किया गया।
उत्तर:
1911

16. आधुनिक चीन का संस्थापक ………………. को माना जाता है।
उत्तर:
सन-यात-सेन

17. कुओमिनतांग का नेता ……………….. था।
उत्तर:
चियांग काइशेक

18. पीकिंग विश्वविद्यालय की स्थापना ……………….. ई० में की गई।
उत्तर:
1902

19. 1945 ई० में ……………….. तथा ……………….. पर बम फेंके गए।
उत्तर:
नागासाकी, हिरोशिमा

20. चीन में साम्यवादी की स्थापना ……………… ई० में हुई।
उत्तर:
1921

21. ……………… ई० में चीनी साम्यवादी पार्टी ने गृहयुद्ध में विजय प्राप्त की।
उत्तर:
1949

22. जापान व आंग्ल अमेरिका में ……………….. ई० में भयंकर युद्ध हुआ।
उत्तर:
1945

23. जापान का आधुनिकीकरण का सफर ……………… के सिद्धान्तों पर आधारित था।
उत्तर:
पूँजीवाद

24. ……………….. को प्राचीन चीन का महानतम इतिहासकार माना जाता है।
उत्तर:
सिमा छियन

25. 1907 ई० में जापान में क्योतो विश्वविद्यालय में प्राच्य अध्ययन का विभाग बनाने में ……………….. ने सर्वाधिक सहायता की।
उत्तर:
नाइतो कोनन

26. जापान द्वारा चीन से ……………… का आयात किया जाता था
उत्तर:
रेशम

27. जापान द्वारा भारत से ……………….. का आयात किया जाता था।
उत्तर:
कपड़ा

28. ……………… ई० में विदेशी व्यापार होना आरंभ हुआ था।
उत्तर:
1859

29. ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ की सरकार ……………….. में कायम हुई।
उत्तर:
1949 ई०

30. चीन की पोट्सडैम उद्घोषणा ………….. ई० में की गई।
उत्तर:
1949

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. ‘नाइतो कोनन’ किस देश के रहने वाले थे ?
(क) चीन
(ख) जापान
(ग) कनाडा
(घ) ऑस्ट्रेलिया।
उत्तर:
(ख) जापान

2. निम्नलिखित में से कौन-सा द्वीप जापान का सबसे बड़ा द्वीप है ?
(क) होंशू
(ख) क्यूशू
(ग) शिकोकू
(घ) होकाइदो।
उत्तर:
(क) होंशू

3. ‘उगते हुए सूर्य का देश’ किसे कहा जाता है ?
(क) इंडोनेशिया
(ख) जापान
(ग) कनाडा
(घ) इंग्लैंड।
उत्तर:
(ख) जापान

4. कुमे कुनीताके किस देश के रहने वाले थे ?
(क) चीन
(ख) जापान
(ग) इंग्लैंड
(घ) फ्राँस।
उत्तर:
(ख) जापान

5. एदो किस शहर का पुराना नाम है ?
(क) पेरिस
(ख) टोकियो
(ग) सिडनी
(घ) लंदन।
उत्तर:
(ख) टोकियो

6. जापान में शोगुनों ने सत्ता को कब हथिया लिया था ?
(क) 1192 ई०
(ख) 1503 ई०
(ग) 1603 ई०
(घ) 1867 ई०।
उत्तर:
(क) 1192 ई०

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7. जापान में तोकगावा कब से लेकर कब तक सत्ता में रहे ?
(क) 1192 ई० से 1203 ई० तक
(ख) 1203 ई० से 1603 ई० तक
(ग) 1603 ई० से 1867 ई० तक
(घ) 1867 ई० से 1971 ई० तक।
उत्तर:
(ग) 1603 ई० से 1867 ई० तक

8. तोकुगावा शासनकाल में जापान की राजधानी कौन-सी थी ?
(क) ओसाका
(ख) एदो
(ग) क्योतो
(घ) तोक्यो।
उत्तर:
(ख) एदो

9. कॉमोडोर मैथ्यू पेरी जापान कब पहुँचा ?
(क) 1851 ई० में
(ख) 1852 ई० में
(ग) 1853 ई० में
(घ) 1854 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1853 ई० में

10. जापान में मेज़ी पुनस्र्थापना कब हुई ?
(क) 1853 ई० में
(ख) 1854 ई० में
(ग) 1868 ई० में
(घ) 1878 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1868 ई० में

11. जापान में मुत्सुहितो का शासनकाल क्या था ?
(क) 1192 ई० से 1603 ई० तक
(ख) 1603 ई० से 1867 ई० तक
(ग) 1868 ई० से 1902 ई० तक
(घ) 1868 ई० से 1912 ई० तक।
उत्तर:
(घ) 1868 ई० से 1912 ई० तक।

12. मेज़ी शासनकाल में किसे जापान की राजधानी घोषित किया गया ?
(क) एदो
(ख) तोक्यो
(ग) नागासाकी
(घ) क्योतो।
उत्तर:
(ख) तोक्यो

13. जापान में तोक्यो विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई थी ?
(क) 1871 ई० में
(ख) 1875 ई० में
(ग) 1877 ई० में
(घ) 1901 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1877 ई० में

14. जापान में सैनिक सेवा को कब अनिवार्य बनाया गया था ? ।
(क) 1872 ई० में
(ख) 1876 ई० में
(ग) 1877 ई० में
(घ) 1879 ई० में।
उत्तर:
(क) 1872 ई० में

15. जापान में किसने औद्योगिक प्रदूषण के विरुद्ध प्रथम जन आंदोलन का नेतृत्व किया ?
(क) मुत्सुहितो
(ख) कुमो कुनीताके
(ग) तनाका शोज़ो
(घ) नाइतो कोनन।
उत्तर:
(ग) तनाका शोज़ो

16. जापान की पहली रेल लाइन कब बिछाई गई थी ?
(क) 1707-09
(ख) 1763-65
(ग) 1830-32
(घ) 1870-72
उत्तर:
(घ) 1870-72

17. बैंक ऑफ़ जापान की स्थापना कब की गई थी ?
(क) 1872 ई० में
(ख) 1875 ई० में
(ग) 1879 ई० में
(घ) 1882 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1882 ई० में।

18. मेज़ी संविधान कब लागू किया गया था ?
(क) 1869 ई० में
(ख) 1879 ई० में
(ग) 1889 ई० में
(घ) 1892 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1889 ई० में

19. फुकुज़ावा यूकिची कौन था ?
(क) जापान का एक बुद्धिजीवी
(ख) चीन का एक बुद्धिजीवी
(ग) जापान का एक दर्शनशास्त्री
(घ) जापान का एक अधिकारी।
उत्तर:
(क) जापान का एक बुद्धिजीवी

20. जापान में पहला रेडियो स्टेशन कब खुला ?
(क) 1855 ई० में
(ख) 1885 ई० में
(ग) 1915 ई० में
(घ) 1925 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1925 ई० में।

21. चीन-जापान युद्ध कब आरंभ हुआ ?
(क) 1892 ई० में
(ख) 1893 ई० में
(ग) 1894 ई० में
(घ) 1895 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1894 ई० में

22. 1894-95 ई० का चीन-जापान युद्ध किस संधि के साथ समाप्त हुआ ?
(क) शिमनोसेकी की संधि
(ख) नानकिंग की संधि
(ग) बोग की संधि
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) शिमनोसेकी की संधि

23. रूस-जापान युद्ध कब हुआ था ?
(क) 1905 ई० में
(ख) 1907 ई० में
(ग) 1909 ई० में
(घ) 1911 ई० में।
उत्तर:
(क) 1905 ई० में

24. जापान में ‘बुलेट ट्रेन’ की शुरुआत कब हुई ?
(क) 1954 ई० में
(ख) 1964 ई० में
(ग) 1974 ई० में
(घ) 1984 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1964 ई० में

25. संयुक्त राज्य अमरीका ने 6 अगस्त, 1945 ई० को जापान के किस शहर पर परमाणु बम फेंका ?
(क) नागासाकी
(ख) हिरोशिमा
(ग) तोक्यो
(घ) ओसाका।
उत्तर:
(ख) हिरोशिमा

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26. तोक्यो में ओलंपिक खेलों का आयोजन कब किया गया था ?
(क) 1960 ई० में
(ख) 1962 ई० में
(ग) 1964 ई० में
(घ) 1965 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1964 ई० में

27. निम्नलिखित में से किस नदी को चीन का दुःख कहा जाता है ?
(क) पर्ल नदी को
(ख) पीली नदी को
(ग) यांगत्सी नदी को
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(ख) पीली नदी को

28. प्रथम अफ़ीम युद्ध किनके मध्य हुआ ?
(क) चीन एवं जापान
(ख) इंग्लैंड एवं जापान
(ग) जापान एवं रूस
(घ) चीन एवं फ्राँस।
उत्तर:
(ख) इंग्लैंड एवं जापान

29. प्रथम अफ़ीम युद्ध कब लड़ा गया था ?
(क) 1803-05 ई० में
(ख) 1839-42 ई० में
(ग) 1856-59 ई० में
(घ) 1876-79 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1839-42 ई० में

30. नानकिंग की संधि कब हुई ?
(क) 1839 ई० में
(ख) 1842 ई० में
(ग) 1845 ई० में
(घ) 1849 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1842 ई० में

31. द्वितीय अफ़ीम युद्ध कब आरंभ हुआ ?
(क) 1854 ई० में
(ख) 1855 ई० में
(ग) 1856 ई० में
(घ) 1860 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1856 ई० में

32. 1858 ई० को चीन एवं इंग्लैंड के मध्य कौन-सी संधि हुई ?
(क) तीनस्तीन की संधि
(ख) बोग की संधि
(ग) नानकिंग की संधि
(घ) पीकिंग की संधि ।
उत्तर:
(क) तीनस्तीन की संधि

33. बॉक्सर विद्रोह किस देश में हुआ ?
(क) जापान में
(ख) चीन में
(ग) फ्रांस में
(घ) इंग्लैंड में।
उत्तर:
(ख) चीन में

34. चीन में बॉक्सर विद्रोह कब हुआ था ?
(क) 1890 ई० में
(ख) 1895 ई० में
(ग) 1900 ई० में
(घ) 1910 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1900 ई० में

35. ‘सौ दिन के सुधार’ का संबंध किस देश से है ?
(क) चीन
(ख) जापान
(ग) अमरीका
(घ) भारत।
उत्तर:
(क) चीन

36. तुंग-मिंग-हुई की स्थापना कब की गई थी ?
(क) 1902 ई० में
(ख) 1905 ई० में
(ग) 1907 ई० में
(घ) 1911 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1905 ई० में

37. सन-यात-सेन ने कितने सिद्धांतों का प्रचलन किया था ?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच।
उत्तर:
(ख) तीन

38. 1911 ई० की चीनी क्रांति का नेता कौन था?
(क) लियांग किचाऊ
(ख) कंफ्यूशियस
(ग) युआन-शि-काई
(घ) डॉ० सन-यात-सेन।
उत्तर:
(घ) डॉ० सन-यात-सेन।

39. चीन में माँच वंश का अंत कब हुआ ?
(क) 1905 ई० में
(ख) 1909 ई० में
(ग) 1911 ई० में
(घ) 1912 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1911 ई० में

40. आधुनिक चीन का संस्थापक किसे माना जाता है ?
(क) कांग यूवेई
(ख) लियांग किचाउ
(ग) सन-यात-सेन
(घ) चियांग-काई-शेक ।
उत्तर:
(ग) सन-यात-सेन

41. पीकिंग विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई थी?
(क) 1892 ई० में
(ख) 1902 ई० में
(ग) 1906 ई० में
(घ) 1920 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1902 ई० में

42. चीन का प्रथम राष्ट्रपति कौन बना ?
(क) सन-यात-सेन
(ख) माओ-त्सेतुंग
(ग) युआन-शि-काई
(घ) शाओ तोआफ़ेन !
उत्तर:
(ग) युआन-शि-काई

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43. चीन में कुओमीनतांग दल की स्थापना कब की गई थी ?
(क) 1911 ई० में
(ख) 1912 ई० में
(ग) 1921 ई० में
(घ) 1922 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1912 ई० में

44. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना कब की गई थी ?
(क) 1912 ई० में
(ख) 1920 ई० में
(ग) 1921 ई० में
(घ) 1931 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1921 ई० में

45. पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की सरकार का गठन कब हुआ ?
(क) 1911 ई० में
(ख) 1945 ई० में
(ग) 1949 ई० में
(घ) 1951 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1949 ई० में

46. चीन में लाँग मार्च कब आरंभ हुआ था ?
(क) 1911 ई० में
(ख) 1924 ई० में
(ग) 1934 ई० में
(घ) 1935 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1934 ई० में

47. माओ-त्सेतुंग ने चीन में नया संविधान कब लागू किया ?
(क) 1949 ई० में
(ख) 1950 ई० में
(ग) 1951 ई० में
(घ) 1954 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1954 ई० में।

48. चीन में लंबी छलाँग वाला आंदोलन कब चलाया गया ?
(क) 1954 ई० में
(ख) 1956 ई० में
(ग) 1958 ई० में
(घ) 1962 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1958 ई० में

49. निम्नलिखित में से किस नेता ने नया लोकतंत्र नामक पुस्तक की रचना की ?
(क) माओ-त्सेतुंग
(ख) चियांग-काई-शेक
(ग) कुमे कुनीताके
(घ) मैटियो रिक्की।
उत्तर:
(क) माओ-त्सेतुंग

50. चीन में महान् सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति का आरंभ कब हुआ ?
(क) 1958 ई० में
(ख) 1962 ई० में
(ग) 1965 ई० में
(घ) 1966 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1966 ई० में।

51. चीन में चार आधुनिकीकरणों की घोषणा कब की गई?
(क) 1968 ई० में
(ख) 1976 ई० में
(ग) 1978 ई० में
(घ) 1928 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1978 ई० में

52. ताइवान का पहला नाम क्या था ?
(क) फारमोसा
(ख) नानकिंग
(ग) शीमोदा
(घ) हाकोदारे।
उत्तर:
(क) फारमोसा

आधुनिकीकरण के रास्ते HBSE 11th Class History Notes

→ 19वीं शताब्दी में दूर पूर्व एशिया के दो देशों जापान एवं चीन ने आधुनिकीकरण के रास्ते को अपनाया। निस्संदेह दोनों देशों के लिए एक नए युग का सूत्रपात था। जापान प्रशांत महासागर में स्थित कई द्वीपों का समूह है। इसमें चार बड़े द्वीप हैं।

→ इनके नाम हैं-होंशू, क्यूशू, शिकोकू एवं होकाइदो। इनमें होंशू सबसे बड़ा है और जापान के केंद्र में है। जापान की 50 प्रतिशत से कुछ अधिक ज़मीन पहाड़ी है। जापान की केवल 17 प्रतिशत भूमि पर ही खेती होती है।

→ जापान के पहाड़ों में अक्सर ज्वालामुखी फूटते रहते हैं। अतः जापान में भूकंप बहुत विनाश करते हैं। प्राचीन काल में जापानी सभ्यता चीनी सभ्यता से बहुत प्रभावित थी। जापान की अधिकाँश जनसंख्या जापानी है।

→ इसके अतिरिक्त यहाँ आयनू और कोरिया के कुछ लोग भी रहते हैं। जापान के लोगों का मुख्य भोजन चावल एवं मछली है। जापान की साशिमी अथवा सूशी नामक मछली दुनिया भर में प्रसिद्ध है। जापान में 1603 ई० से लेकर 1867 ई० तक तोकुगावा परिवार का शासन था। इस परिवार के लोग शोगुन पद पर कायम थे।

→ शोगुन दैम्यो, प्रमुख शहरों एवं खदानों पर नियंत्रण रखते थे। 1853 ई० में संयुक्त राज्य अमरीका का नाविक कॉमोडोर मैथ्यू पेरी जापान की बंदरगाह योकोहामा पहुँचने में सफल हुआ। 1854 ई० में उसने जापान। सरकार के साथ कानागावा नामक संधि की। इसे जापान का खलना कहा जाता है।

→ इस संधि के पश्चात जापान के दरवाजे पश्चिमी देशों के लिए खुल गए एवं जापान ने आधुनिकीकरण के रास्ते को अपनाया। जापान में सम्राट मत्सहितो ने 1868 ई० से 1912 ई० तक शासन किया। उसने मेज़ी की उपाधि धारण की थी। इसलिए इस काल को मेज़ी पुनर्स्थापना कहते हैं।

→ मेज़ी शासनकाल में जापान में विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय सुधार किए गए एवं उसकी स्थिति सुदृढ़ हुई। जापान ने 1894-95 ई० में चीन को पराजित कर एवं 1904-05 ई० में रूस को पराजित कर विश्व को चकित कर दिया था।

→ उसने 1910 ई० में कोरिया जो उसके लिए सामरिक महत्त्व का था को भी अपने अधीन कर लिया। जापान में सैन्यवाद के कारण वहाँ सेना बहुत शक्तिशाली हो गई थी। द्वितीय विश्व युद्ध में जापान ने प्रमुख भूमिका निभाई। उसने अनेक सफलताएँ अर्जित की थीं।

→ 1945 ई० में अमरीका द्वारा हिरोशिमा एवं नागासाकी में गिराए गए दो एटम बमों के कारण उसे पराजय को स्वीकार करना पड़ा था। इस कारण जापान पर अमरीका का कब्जा हो गया था। यह कब्जा 1945 ई० से 1952 ई० तक रहा।

→ अमरीका के जापान से हटने के बाद उसने पुनः अपने गौरव को स्थापित किया। उसने अपनी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाया। वह 1956 ई० में संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बना। उसने 1964 ई० में अपनी राजधानी तोक्यो में ओलंपिक खेलों का आयोजन किया।

→ दूसरी ओर चीन पूर्वी एशिया का एक अत्यंत प्राचीन एवं विशाल देश है। इस विशाल क्षेत्र में अनेक नदियाँ एवं पर्वत हैं। चीन की तीन नदियाँ-पीली नदी, यांग्त्सी नदी एवं पर्ल नदी ने चीनी सभ्यता के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया है।

→ ये नदियाँ यातायात, सिंचाई एवं उर्वरता का प्रमुख साधन हैं। यहाँ लोहे, कोयले एवं ताँबे की प्रचुरता है। यहाँ अनेक जातीय समूह रहते हैं। हान यहाँ का प्रमुख जातीय समूह है। यहाँ की प्रमुख भाषा चीनी है। चीन का सबसे स्वादिष्ट भोजन डिम-सम है। चीनी चावल एवं गेहूँ का खूब प्रयोग करते हैं।

→ चीन शताब्दियों तक विदेशियों के लिए बंद रहा। 1839–42 ई० में ब्रिटेन ने चीन को प्रथम अफ़ीम युद्ध में पराजित कर उसके दरवाज़े पश्चिमी देशों के लिए खोल दिए। चीन आरंभ में जापान की तरह आधुनिकीकरण के रास्ते को सुगमता से अपनाने को तैयार नहीं था।

→ 1856-60 ई० में ब्रिटेन ने चीन को दूसरे अफ़ीम युद्ध में पुनः पराजित किया। इससे चीन की आंतरिक कमजोरी का भेद विश्व के अन्य देशों को पता चल गया। अतः विश्व के अन्य देशों जैसे संयुक्त राज्य अमरीका, फ्राँस, रूस, जापान आदि ने चीन के अनेक प्रदेशों को अपने अधीन कर लिया।

→ इससे चीन की अखंडता के लिए एक भारी ख़तरा उत्पन्न हो गया। चीन में बढ़ते हुए विदेशी प्रभाव एवं अन्य समस्याओं के चलते 1911 ई० में चीनी क्रांति का विस्फोट हो गया। इस क्राँति के कारण चीन में माँचू वंश का अंत हुआ।

→ इस क्राँति में डॉक्टर सन-यात-सेन ने उल्लेखनीय योगदान दिया। चीन में डॉक्टर सन-यात-सेन के नेतृत्व में 1912 ई० में गणतंत्र की स्थापना हुई। 1925 ई० में डॉक्टर सन-यात-सेन की मृत्यु के पश्चात् चीन में पुनः संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई। इस समय चीन में माओ-त्सेतुंग ने नेतृत्व किया।

→ उसने चीनी लोगों को एकत्र करने में प्रशंसनीय योगदान दिया। उसके अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप चीन में 1949 ई० में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की सरकार अस्तित्व में आई। निस्संदेह यह चीन के इतिहास में एक नए युग का संदेश था।

→ माओ त्सेतुंग जिसे 1949 ई० में चीन का अध्यक्ष बनाया गया था ने 1976 ई० में अपनी मृत्यु तक उल्लेखनीय सुधार किए। परिणामस्वरूप वह चीनी समाज को एक नई दिशा देने में सफल रहा।

→ चियांग-काई-शेक ने 1949 ई० में माओ-त्सेतुंग से पराजित होने के पश्चात् ताइवान (फारमोसा) में चीनी गणतंत्र की स्थापना कर ली थी। वह स्वयं ताइवान का राष्ट्रपति बन गया। उसने बहुत सख्ती से शासन किया एवं मार्शल लॉ को लागू किया। उसने अपने सभी विरोधियों को कठोर दंड दिए।

→ उसने ताइवान की अर्थव्यवस्था को पटड़ी पर लाने के उद्देश्य से अनेक उल्लेखनीय कदम उठाए। वह इस उद्देश्य में काफी सीमा तक सफल रहा। 1975 ई० में चियांग-काई-शेक की मृत्यु हो गई। उसके पश्चात् चीन की राजनीति में अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। चीन एवं ताइवान का एकीकरण आज भी एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है।

→ चीन एवं जापान में इतिहास लिखने की एक लंबी परंपरा रही है। इसका कारण यह था कि इसे शासकों के लिए महत्त्वपूर्ण माना जाता था। इसलिए इन देशों के शासकों ने अभिलेखों की देख-रेख एवं राजवंशों का इतिहास लिखने के लिए सरकारी विभागों की स्थापना की।

→ इन्हें सभी प्रकार की सहायता प्रदान की गई। सिमा छियन (Sima Qian) को प्राचीन चीन का सबसे महान् इतिहासकार माना जाता है। आधुनिक इतिहासकारों में चीन के लिआंग छिचाओ (Liang Qichao) एवं जापान के कुमे कुनीताके (Kume Kunitake) के नाम उल्लेखनीय हैं।

→ इटली के यात्री मार्को पोलो (Marco Polo) एवं जैसूइट पादरी मैटियो रिक्की (Mateo Ricci) ने चीन के तथा लुई फ़रॉय ने जापान के इतिहास पर काफी प्रकाश डाला है।

→ चीनी सभ्यता में विज्ञान के इतिहास पर जोजफ नीडहम (Joseph Needham) ने एवं जापानी इतिहास एवं संस्कृति पर जॉर्ज सैन्सम (George Sansom) ने उल्लेखनीय कार्य किया है।

→ नाइतो कोनन (Naito Konan) एक प्रसिद्ध जापानी विद्वान् थे। उन्होंने चीनी इतिहास पर काफी कार्य किया। उन्होंने अपने कार्य में पश्चिमी इतिहास लेखन की नयी तकनीकों तथा पत्रकारिता के अपने अनुभवों का काफी प्रयोग किया है। उन्होंने 1907 ई० में क्योतो विश्वविद्यालय (Kyoto University) में प्राच्य अध्ययन का विभाग (Department of Oriental Studies) को स्थापित किया।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Practical Work in Geography Chapter 6 वायव फोटो का परिचय Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. पहली बार वायव फोटो खींचने के लिए वायुयान का प्रयोग कब हुआ?
(A) सन् 1902 में
(B) सन् 1905 में
(C) सन् 1907 में
(D) सन् 1909 में
उत्तर:
(D) सन् 1909 में

2. भारत में वायव फोटो चित्र का सर्वप्रथम उपयोग कब हुआ?
(A) सन् 1908 में
(B) सन् 1912 में
(C) सन् 1915 में
(D) सन् 1916 में
उत्तर:
(D) सन् 1916 में

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय

3. मापनी के आधार पर वायव फोटो को कितने प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है?
(A) तीन
(B) चार
(C) पाँच
(D) छः
उत्तर:
(A) तीन

4. वायव फोटोग्राफी की कितनी विधियाँ हैं?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
उत्तर:
(A) दो

5. भारत में कितनी उड्डयन एजेंसी ही सरकारी अनुमति से वायव फोटो ले सकती हैं?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
उत्तर:
(B) तीन

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
फोटोग्राममिति किसे कहा जाता है?
उत्तर:
वायव फोटो चित्रों से धरातलीय एवं अन्य सूचनाओं के मापन और चित्रण की कला और विज्ञान को फोटोग्राममिति कहा जाता है।

प्रश्न 2.
भारत में वायव फोटो चित्र का सर्वप्रथम उपयोग किसने किया था?
उत्तर;
मेजर सी.पी. गुंडुर (1916) ने।

प्रश्न 3.
राष्ट्रीय सुदूर संवेदी संस्था कहाँ स्थित है?
उत्तर:
हैदराबाद में।

प्रश्न 4.
‘नत फोटोग्राफ’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऊर्ध्वाधर अक्ष से प्रकाशीय अक्ष में 3° से अधिक विचलन वाले फोटोग्राफ को ‘नत फोटोग्राफ’ कहा जाता है।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय

प्रश्न 5.
ऊर्ध्वाधर अक्ष किसे कहते हैं?
उत्तर:
कैमरा लैंस केन्द्र से धरातलीय तल पर बने लंब को ऊर्ध्वाधर अक्ष कहा जाता है।

प्रश्न 6.
बृहत मापनी फोटोग्राफ किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब एक वायव फोटो की मापनी 1:15,000 तथा इससे बड़ी होती है, तो इस प्रकार को फोटोग्राफ के बृहत मापनी फोटोग्राफ कहते हैं।

प्रश्न 7.
वायव फोटो चित्रों में दर्ज भौतिक तथा मानवीय लक्षणों की पहचान किस आधार पर की जा सकती है?
उत्तर:
आभा एवं आकृति के आधार पर।

प्रश्न 8.
विश्व का पहला फोटोग्राफिक सर्वेक्षण कब और किसने किया था?
उत्तर:
विश्व का पहला फोटोग्राफिक सर्वेक्षण सन् 1840 में फ्राँस के ल्यूसिडा (Laussedat) ने किया था।

प्रश्न 9.
उपग्रह द्वारा इमेजरी प्राप्त करने का प्रचलन कब से शुरू हुआ?
उत्तर:
1970 के दशक से।

प्रश्न 10.
स्टीरियोस्कोप कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
दो प्रकार का-

  1. लैंस स्टीरियोस्कोप
  2. दर्पण स्टीरियोस्कोप।

प्रश्न 11.
वाय फोटो चित्रों में स्वच्छ जल कैसा दिखाई देता है?
उत्तर:
काला या धूसर।

प्रश्न 12.
वायु फोटो चित्रों में रेतीले इलाके का रंग कैसा दिखाई देता है?
उत्तर:
सफेद।

प्रश्न 13.
वायव फोटो का क्या अर्थ है?
उत्तर:
वायुयान में लगे कैमरे द्वारा वायुमण्डल से खींची गई फोटो को वायव फोटो कहा जाता है। वायव फोटो भू-तल का विहंगम दृश्य प्रस्तुत करता है जिसकी सहायता से स्थलाकृतिक मानचित्रों को बनाने में सहायता मिलती है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वायव फोटो के महत्त्वपूर्ण उपयोग कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
वायव फोटो के उपयोग निम्नलिखित हैं-

  1. वायव फोटो हमें बड़े क्षेत्रों का विहंगम दृश्य प्रस्तुत करता है जिनसे पृथ्वी की सतह की स्थलाकृतियों को उनके स्थानिक सन्दर्भ में देखा जा सकता है।
  2. वायव फोटो का उपयोग ऐतिहासिक अवलोकन में किया जाता है।
  3. वायव फोटो से पृथ्वी के धरातलीय दृश्यों का त्रिविम स्वरूप प्राप्त किया जा सकता है।
  4. वायुयान की ऊँचाई के आधार पर विभिन्न मापनियों पर आधारित वायुफोटो चित्रों को प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
वायव फोटो के लक्षणों की पहचान किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
वायव फोटो की व्याख्या करने के लिए निम्नलिखित आधारों का सहारा लेना पड़ता है-
1. आभा (Tone) सामान्यतः वायु फोटो में ब्लैक एण्ड व्हाइट चित्र लिए जाते हैं जिनमें धूसर रंग की अनेक आभाएँ होती हैं जो धरातल द्वारा परावर्तित प्रकाश की मात्रा पर निर्भर करती है। धरातल के जिस भाग से प्रकाश का अधिक परावर्तन होता है, वायु फोटो में उस भाग की आभा हल्की होगी और पृथ्वी का जो भाग प्रकाश का कम परावर्तन करेगा उस भाग की आभा वायु फोटो पर गहरी होगी। उदाहरणस्वरूप स्वच्छ जल धूसर या काला दिखाई देगा जबकि सड़कों और रेल मार्गों की आभा हल्की होती है।

2. आकृति (Shape)-सामान्यतः प्राकृतिक लक्षण अनियमित आकार के होते हैं तथा मानवीय लक्षणों का आकार नियमित होता है; जैसे नदियों, तालाबों, पर्वतों तथा मरुस्थलों की आकृति अनियमित होती है जबकि मानवकृत भवन, खेत, सड़कें, रेलें आदि नियमित आकार प्रदर्शित करते हैं।

3. आकार (Size) धरातलीय लक्षणों की पहचान उनके आकार से भी की जा सकती है। उदाहरणतया नहर पतली व सीधी दिखाई देती है तथा नदी बड़ी व टेढ़ी-मेढ़ी दिखाई देती है।

4. त्रिविमीय प्रतिरूप (Stereoscopic Pattern)-अतिव्यापन वाले दो वायव फोटो की सहायता से त्रिविमीय स्वरूप देखकर प्रदर्शित तथ्यों की पहचान आसानी से की जा सकती है।

प्रश्न 3.
फोटोग्राफिक सर्वेक्षण का संक्षिप्त इतिहास बनाते हुए वायु फोटो के उपयोगों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
विश्व का पहला फोटोग्राफिक सर्वेक्षण सन् 1840 में फ्रांस के ल्यूसिडा (Laussedat) ने किया था। वायु फोटोग्राफी का वास्तविक विकास द्वितीय विश्व युद्ध में आरम्भ हुआ। आजकल तो वायु फोटो का उपयोग स्थलाकृतिक सर्वेक्षण (Tapographical Survey), भू-विज्ञान (Geology), जल विज्ञान (Hydrology), वानिकी (Forestry), पुरातत्व विज्ञान (Archeology), मृदा अपरदन के नियन्त्रण, यातायात नियन्त्रण तथा अनेक प्रकार के खोज कार्यों में किया जाने लगा है।

प्रश्न 4.
वायु फोटोग्राफी के तेजी से उभरने के कारण और उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर:
वायु फोटोग्राफी के तेजी से उभरने के प्रमुख कारण और उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. इनकी सहायता से अगम्य (Inaccessible) क्षेत्रों का चित्रण बहुत ही आसान हो गया है।
  2. जो सर्वेक्षण साधारण विधियों द्वारा कई-कई महीनों में तैयार होता था, वायु फोटो द्वारा वह अत्यन्त थोड़े समय में तैयार हो जाता है और वह भी बिना किसी त्रुटि के।
  3. यद्यपि इस विधि का प्रारम्भिक व्यय अधिक है किन्तु अन्ततः इसका कुल व्यय साधारण विधियों की अपेक्षा कम ही पड़ता है।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय

प्रश्न 5.
उपग्रहीय इमेजरी क्या होती है? इन चित्रों से किस प्रकार की सहायता मिलती है?
उत्तर:
अन्तरिक्ष में उच्च तकनीक से युक्त संवेदनशील उपकरणों से सुसज्जित उपग्रहों को स्थापित करके उनके द्वारा लिए गए चित्रों को उपग्रहीय इमेजरी कहा जाता है। इन चित्रों से दूर संवेदन में सहायता मिलती है। दूर संवेदन के लिए उपग्रह द्वारा इमेजरी प्राप्त करने का प्रचलन 1970 के दशक में आरम्भ हुआ।

प्रश्न 6.
उपग्रहीय इमेजरी वायु फोटोग्राफी से क्यों बेहतर है?
उत्तर:
उपग्रहीय इमेजरी वायु फोटोग्राफी से निम्नलिखित कारणों से बेहतर है-

  1. उपग्रह इमेजरी से अपेक्षाकृत विस्तृत क्षेत्रों के भौतिक तथा मानवीय तत्त्वों का अवलोकन किया जा सकता है।
  2. सार अवलोकन (Synoptic Coverage) के लिए उपग्रह द्वारा इमेजरी वायु फोटो की अपेक्षा अधिक सार्थक एवं कारगर है।
  3. उपग्रह द्वारा चित्रण और उनकी पुनरावृत्ति (Repetition) अत्यन्त शीघ्र होती है। इसमें क्षण भर में उतनी जानकारी प्राप्त हो जाती है जितनी रूढ़ चित्रण (Conventional Contact Prints) द्वारा कई घण्टों तक प्राप्त नहीं हो सकती द्वारा इतनी जानकारी जुटाने में अनेक वर्ष लग सकते हैं।
  4. यदि उपग्रह ध्रुवीय कक्षा में स्थिति हो तो इसमें सम्पूर्ण पृथ्वी का भी चित्रण किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
लैंस स्टीरियोस्कोप पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
लैंस स्टीरियोस्कोप-यह एक साधारण-सा उपकरण होता है जिसमें दो जुड़वा टाँगों वाले स्टैण्ड पर एक फ्रेम फिट किया गया होता है। इस क्षैतिज फ्रेम पर निश्चित दूरी के अन्तर पर दो लैंस लगे होते हैं। इन लैंसों के एकदम निकट आँख रखकर स्टीरियोस्कोप के नीचे रखे गए अतिव्यापित (Overlapped) फोटो चित्रों का अध्ययन किया जा सकता है। वायु फोटो के अतिव्यापन का एक तरीका होता है। सबसे पहले मेज पर स्टीरियोस्कोप के नीचे एक फोटो चित्र रखा जाता है। इसके ऊपर दूसरा फोटो चित्र इस प्रकार रखा जाता है कि उनके अतिव्यापित भाग ठीक एक-दूसरे के ऊपर आ जाएँ। अब ऊपर वाले वायु फोटो को दायीं ओर 5 सें०मी० सरकाइए। ऐसा करते समय ध्यान रहे कि निचले वायु फोटो के सन्दर्भ में ऊपरी वायु फोटो का अनुस्थान बिगड़ न जाए। ऐसी स्थिति में जब हम स्टीरियोस्कोप में से देखेंगे तो हमें अतिव्यापित फोटो चित्रों में धरातल का त्रि-विस्तारीय (Three Dimensional) स्वरूप दिखाई देगा।

प्रश्न 8.
सार सर्वेक्षण अथवा अवलोकन से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
इस सर्वेक्षण में केवल अपेक्षित विषय के बारे में सूचनाएँ एवं चित्र इकट्ठे किए जाते हैं न कि समस्त क्षेत्र के। उदाहरणतया यदि हम भारत के पूर्वी एवं पश्चिमी तटों पर स्थिति लैगून झीलों का सर्वेक्षण करते हैं, सम्पूर्ण तटीय प्रदेश का नहीं, तो इसे सार सर्वेक्षण कहा जाएगा।

प्रश्न 9.
मानचित्र तथा वायव फोटों में अन्तर बताइए।
उत्तर:
मानचित्र तथा वायव फोटो में अन्तर निम्नलिखित है-

मानचित्र फोटो वायव फोटो
1. इनकी रचना लम्बकोणीय प्रक्षेप पर होती है। 1. इनकी रचना केन्द्रीय प्रक्षेप पर होती है।
2. इसमें मापनी एक समान होती है। 2. इसमें मापनी एकसमान नहीं होती है।
3. अगम्य तथा अवास्य क्षेत्रों में मानचित्र बनाना अत्यधिक कठिन है। 3. वायव फोटो अगम्य तथा अवास्य क्षेत्रों के लिए भी उपयोगी है।
4. इसमें दिकमान शुद्ध होता है। 4. इसमें दिक्मान अशुद्ध होता है।
5. मानचित्र पर धरातल के लक्षण अदृश्य होते हैं। 5. वायव फोटो में धरातलीय लक्षणों को पहचाना जा सकता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वायव फोटो के प्रकारों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वायव फोटो का वर्गीकरण-वायव फ़ोटो का वर्गीकरण अनेक आधारों पर किया जा सकता है; जैसे कैमरा अक्ष, मापनी, व्याप्ति क्षेत्र के कोणीय विस्तार एवं उसमें उपयोग में लाई फिल्म के आधार पर किया जाता है। लेकिन वायव फोटो का प्रचलित वर्गीकरण, कैमरा अक्ष की स्थिति और मापनी के आधार पर किया जाता है।
1. कैमरा अक्ष की स्थिति के आधार पर वायव फोटो के प्रकार कैमरा अक्ष की स्थिति के आधार पर वायव फोटो को निम्नलिखित प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

  • ऊर्ध्वाधर फोटोग्राफ
  • अल्प तिर्यक फोटोग्राफ
  • अति तिर्यक फोटोग्राफ।

(1) ऊर्ध्वाधर फोटोग्राफ (Vertical Photograph)-वायव फोटो को खींचते समय कैमरा लैंस के केंद्र से दो विशिष्ट अक्षों की रचना होती है

  • धरातलीय तल की ओर
  • फोटो के तल की ओर।

कैमरा लैंस केंद्र से धरातलीय तल पर बने लंब को ऊर्ध्वाधर अक्ष (Vertical Axis) कहा जाता है, जबकि लैंस के केंद्र से .. फ़ोटो की सतह पर बनी साहुल रेखा को फोटोग्राफी ऑप्टीकल अक्ष (Optical Axis) कहा जाता है। जब फोटो की सतह को धरातलीय सतह के ऊपर, उसके समांतर रखा जाता है, तब दोनों अक्ष एक-दूसरे से मिल जाते हैं। इस प्रकार, प्राप्त फोटो को ऊर्ध्वाधर वायव फोटो कहते हैं (चित्र 7.1)। यद्यपि, दोनों सतहों के बीच समांतरता प्राप्त करना काफ़ी कठिन होता है, क्योंकि वायुयान पृथ्वी की वक्रीय सतह (Curved surface) पर गति करता है। इसलिए फोटोग्राफ के अक्ष ऊर्ध्वाधर अक्ष से विचल
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय 1
(Deviate) हो जाते हैं। यदि इस प्रकार का विचलन धनात्मक या ऋणात्मक 3° के भीतर होता है, तो लगभग ऊर्ध्वाधर वायव फ़ोटो प्राप्त होते हैं। ऊर्ध्वाधर अक्ष से प्रकाशीय अक्ष में 3° से अधिक विचलन वाले फोटोग्राफ को नत फोटोग्राफ कहा जाता है।

(2) अल्प तिर्यक फोटोग्राफ (Low Oblique Photograph)-ऊर्ध्वाधर अक्ष से कैमरा अक्ष में 150 से 30° के अभिकल्पित विचलन (Designed Deviation) के साथ लिए गए वायव फ़ोटो को अल्प तिर्यक फ़ोटोग्राफ़ कहा जाता है (चित्र 7.2)। इस प्रकार के फोटोग्राफ का उपयोग प्रायः प्रारंभिक सर्वेक्षणों में होता है।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय 2

(3) अति तिर्यक फोटोग्राफ़ (High Oblique Photography)-ऊर्ध्वाधर अक्ष से कैमरे की धुरी को लगभग 60° झुकाने पर एक अति तिर्यक फोटोग्राफ प्राप्त होता है (चित्र 7.3)। इस प्रकार की फ़ोटोग्राफी भी प्रारंभिक सर्वेक्षण में उपयोगी होती है।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय 3

2. मापनी के आधार पर वायव फोटो के प्रकार मापनी के आधार पर वायव फ़ोटो को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है
(1) बृहत मापनी फोटोग्राफ (Large Scale Photograph)-जब एक वायव फोटो की मापनी 1:15,000 तथा इससे बड़ी होती है, तो इस प्रकार को फोटोग्राफ के बृहत मापनी फ़ोटोग्राफ़ कहते हैं (चित्र 7.4)।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय 4

(2) मध्यम मापनी फोटोग्राफ (Medium Scale Photograph)-ऐसे वायव फोटो की मापनी 1:15,000 से 1:30,000 के बीच होती है (चित्र 7.5)।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय 5

(3) लघु मापनी फोटोग्राफ़ (Small Scale Photograph)-1:30,000 से लघु मापक वाले फ़ोटोग्राफ़ को लघु मापनी फोटोग्राफ़ कहा जाता है (चित्र 7.6)।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय 6

प्रश्न 2.
वायव फोटो में लक्षणों की पहचान किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
वायव फ़ोटो पर प्रदर्शित तथ्यों के बारे में विवरण नहीं दिया गया होता और न ही उन पर किसी संकेत या रूढ़ चिह्न का प्रयोग किया जाता है। वायु फ़ोटो में वृत्तों एवं पट्टियों पर कुछ प्रारंभिक सूचनाएँ अंकित होती हैं, जिनसे कुछ सामान्य प्रारंभिक जानकारी ही प्राप्त हो पाती है। अतः वायु फोटो चित्रों पर प्रदर्शित तथ्यों का विश्लेषण करने के लिए निम्नलिखित चीज़ों की आवश्यकता होती है-

  • जिस क्षेत्र के वायव फोटो का विश्लेषण करना है, वहां का मानचित्र और स्थलाकृतिक मानचित्र होना चाहिए ताकि बिंबों (Images) को पहचाना जा सके।
  • वायव चित्र में दिखाए गए क्षेत्र की भौतिक एवं मानवीय विशेषताओं की जानकारी विश्लेषणकर्ता को होनी चाहिए।

किसी क्षेत्र के वायु फोटो चित्रों में दर्ज भौतिक तथा मानवीय लक्षणों की पहचान आभा एवं आकृति के आधार पर की जा सकती है।
1. आभा (Tone)-यूं तो आजकल रंगीन हवाई चित्रों का चलन हो गया है किंतु सामान्यतया वायु फोटोग्राफ़ी में ब्लैक एंड व्हाइट चित्र ही लिए जाते हैं। ब्लैक एंड व्हाइट वायु चित्रों में धूसर रंग की अनेक आभाएं होती हैं जो धरातल द्वारा परावर्तित (Reflected) प्रकाश की मात्रा पर निर्भर करती हैं।

धरातल के जिस भाग से प्रकाश का परावर्तन ज्यादा होता है, वायु फ़ोटो में उस भाग की आभा हल्की (Light) होती है। इसके विपरीत धरती का जो भाग प्रकाश का कम मात्रा में परावर्तन करता है उस भाग की वायु फ़ोटो पर आभा गहरी होती है। अतः स्पष्ट है कि वायु फोटो चित्र पर भिन्न-भिन्न गहराई की आभाएं पाई जाती हैं। इन आभाओं के गहरेपन के आधार पर ही विभिन्न लक्षणों की पहचान की जा सकती है। देखिए कुछ उदाहरण-

  • स्वच्छ जल ऊर्ध्वाधर फ़ोटो (Vertical Photo) में घूसर या काला दिखाई देता है।
  • रेतीले इलाके का रंग सफेद दिखाई देता है।
  • गंदला जल हल्का भूरा दिखाई पड़ता है।
  • नमी वाली भूमि शुष्क भूमि की अपेक्षा गहरे रंग की प्रतीत होती है।
  • खेतों की आभा का गहरापन फसलों की लंबाई पर निर्भर करता है।
  • गेहूं की पकी हुई फसल हल्के रंग की आभा देती है।
  • हरियाली गहरे भूरे से काले रंग के बीच की आभा होती है।
  • सड़कों की आभा रेलमार्गों की आभा से हल्की होती है।

2. आकृति (Shape)-वस्तुओं के आकार की पहचान कर पाना वायु फ़ोटो चित्रों के अध्ययन में सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। आमतौर पर प्राकृतिक लक्षणों की अनियमित(Irregular) तथा मानवीय लक्षणों की आकृति नियमित होती है। उदाहरणतया नदियों, नालों, वनों, तालाबों, झीलों, मरुस्थलों, पर्वतों तथा तट रेखाओं आदि प्राकृतिक लक्षणों की आकृति अनियमित होती है जबकि मानवकृत वस्तुओं; जैसे भवन, खेत, सड़कें, नहरें, खेल के मैदान आदि नियमित आकार के होते हैं लेकिन इसके अपवाद भी हो सकते हैं। उदाहरणतः युद्ध की स्थिति में बैरकों, बंकरों, वाहनों, युद्ध सामग्रियों तथा जवानों को अनियमित रूप दे दिया जाता है जिसे छद्मावरण(Camouflage) कहते हैं ताकि वायुयान में बैठे शत्रु को सैनिक ठिकानों का आभास न हो सके।

3. आकार (Size)-तथ्यों के सापेक्षिक आकार से भी उनकी पहचान की जा सकती है। उदाहरणतः नहर पतली व सीधी दिखाई देती है जबकि नदी अपेक्षाकृत बड़ी और टेढ़ी-मेढ़ी दिखाई देती है। इसी प्रकार कारखाने लंबाकार व आवासीय भवन अपेक्षाकृत छोटे होते हैं।

4. गठन (Texture)-परती एवं बंजर भूमि सपाट व कहीं-कहीं धब्बों ये युक्त भूरे रंग की होती है। कृषि क्षेत्र की पहचान खेतों के आकार, मेढ़ तथा नहरों की स्थिति से की जा सकती है।

5. साहचर्य (Association)-तथ्यों के आस-पास स्थित अन्य तथ्यों से उनके संबंध के आधार पर भी तथ्यों की पहचान की जा सकती है। उदाहरणतः मानव अधिवास के क्षेत्र में सड़कें, गलियां एवं बाहर की ओर कृषि क्षेत्र मिलेगा। कृषि क्षेत्र में नहरों के होने की संभावना हो सकती है। पर्वतीय क्षेत्रों, वनों व नदियों और झीलों में भी साहचर्य पाया जाता है।

6. त्रिविमीय प्रतिरूप (Stereoscopic Pattern)-अतिव्यापन (Overlapping) वाले दो वायव फ़ोटो की सहायता से त्रिविमीय स्वरूप देखकर प्रदर्शित तथ्यों की पहचान आसानी से की जा सकती है। यह एक महत्त्वपूर्ण पान जाताना स का जा सकती है। यह एक महत्त्वपूर्ण विधि है, जिससे विवरणों की पहचान और विश्लेषण किया जा सकता है।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 वायव फोटो का परिचय

वायव फोटो का परिचय HBSE 11th Class Geography Notes

→ वायव फोटो (Air Photo) वायुयान अथवा हैलीकॉप्टर में लगे कैमरे द्वारा वायुमण्डल से खींची गई फोटो को वायव फोटो कहा जाता है।

→ फोटोग्राममिति (Photogrammetry)-वायव फोटो चित्रों से धरातलीय एवं अन्य सूचनाओं के मापन और चित्रण की कला और विज्ञान को फोटोग्राममिति कहा जाता है।

→ प्रतिबिंब निर्वचन (Imagery Interpretation) यह वस्तुओं के स्वरूपों को पहचानने तथा उनके सापेक्षिक महत्त्व से निर्णय लेने की प्रक्रिया है।

→ लम्बकोणीय प्रक्षेप (Orthogonal Projection) यह समान्तर प्रक्षेप की विशेष स्थिति है जिसमें मानचित्र, धरातल एवं लम्बकोणीय प्रक्षेप होते हैं।

HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

Haryana State Board HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class History Important Questions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

निबंधात्मक उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्तरी अमरीका की भौगोलिक विशेषताओं का वर्णन करते हुए मूल निवासियों के जीवन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
I. भौगोलिक विशेषताएँ
उत्तरी अमरीका का महाद्वीप उत्तर ध्रुवीय (Arctic Circle) से लेकर कर्क रेखा (Tropic of Cancer) तक एवं प्रशांत महासागर (Pacific Ocean) से लेकर अटलांटिक महासागर (Atlantic Ocean) तक फैला हुआ है। इसके पश्चिमी क्षेत्र में अरिज़ोना (Arizona) एवं नेवाडा (Nevada) के मरुस्थल (desert) हैं। यहाँ ही सिएरा नेवाडा (Sierra Nevada) पर्वत स्थित है।

पूर्व में विशाल मैदान, झीलें एवं मिसीसिपी (Mississippi), ओहियो (Ohio). तथा अप्पालाचियाँ (Appalachian) पर्वतों की घाटियाँ (valleys) स्थित हैं। इसके दक्षिण में मैक्सिको स्थित है। कनाडा के 40 प्रतिशत प्रदेश में वन हैं। उत्तरी अमरीका के अनेक क्षेत्र तेल, गैस एवं विभिन्न प्रकार के खनिजों से भरपूर हैं। यहाँ की प्रमुख फ़सलें गेहूँ, मकई एवं फल हैं। यहाँ का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उद्योग मछली उद्योग है।

II. मूल निवासी
उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों एवं उनकी जीवन-शैली की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. मानव का आगमन:
ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि उत्तरी अमरीका के सबसे प्रथम निवासी 30,000 वर्ष पूर्व एशिया से बेरिंग स्ट्रेट्स (Bering Straits) के रास्ते से आए। लगभग 10,000 वर्ष पूर्व वे दक्षिण दिशा की ओर बढ़े। उत्तरी अमरीका में हमें जो सबसे प्राचीन मानवकृति (artefact) मिली है वह 11,000 वर्ष पुरानी है। यह एक तीर की नोक (an arrow point) थी। उत्तरी अमरीका में लगभग 5,000 वर्ष पूर्व जलवायु में स्थिरता आई। इसके परिणामस्वरूप यहाँ की जनसंख्या में तीव्रता से वृद्धि हुई।

2. जीवन-शैली:
(1) रहन-सहन एवं भोजन (Living and Diet): यूरोपवासियों के आगमन से पूर्व उत्तरी अमरीका के मूल निवासी नदी घाटी (river valley) के साथ-साथ गाँवों में समूह (group) बनाकर रहते थे। वे मकई तथा विभिन्न प्रकार की सब्जियों का उत्पादन करते थे। वे मछली एवं माँस का अधिक प्रयोग करते थे। वे प्रायः माँस की तलाश में लंबी यात्राएँ करते थे। उन्हें मुख्य रूप से जंगली भैंसों जिन्हें बाइसन (bison) कहते थे की तलाश रहती थी। परंतु वे उतने ही जानवरों को मारते थे जितने की उन्हें भोजन के लिए आवश्यकता होती थी।

(2) अर्थव्यवस्था:
उत्तरी अमरीका की अर्थव्यवस्था मुख्यतः एक जीवन निर्वाह अर्थव्यवस्था (subsistence economy) थी। वहाँ के मूल निवासी केवल उतना ही उत्पादन करते थे जो कि उनके निर्वाह के लिए आवश्यक होता था। इस कारण खेती से किसी प्रकार का अधिशेष (surplus) नहीं बचता था। इसके चलते वे केंद्रीय एवं दक्षिणी अमरीका की तरह किसी साम्राज्य की स्थापना करने में विफल रहे। उन्हें जमीन पर व्यक्तिगत मलकियत (ownership) की कोई चिंता नहीं थी क्योंकि वे उससे प्राप्त होने वाले भोजन एवं आश्रय से संतुष्ट थे। इसलिए भूमि को लेकर कबीलों में बहुत कम झगड़े होते थे।

(3) उपहारों का आदान-प्रदान:
उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों की यह परंपरा थी कि वे आपस में मिलजुल कर रहते थे एवं उनके संबंध मैत्रीपूर्ण होते थे। वे आपस में बस्तुओं को खरीदते एवं बेचते नहीं थे अपितु उपहारों का आदान-प्रदान करते थे। कबीलों में आपसी समझौता होने पर वे एक विशेष प्रकार की वेमपुम बेल्ट (Wampum belt) का आदान-प्रदान (exchange) करते थे। यह बेल्ट रंगीन सीपियों (coloured shells) को आपस में सिलकर तैयार की जाती थी।

(4) भाषा एवं ज्ञान:
उत्तरी अमरीका के मूल निवासी अनेक भाषाएँ बोलते थे यद्यपि वे लिखी नहीं जाती थीं। उन्हें अनेक बातों का ज्ञान था। वे जानते थे कि समय की गति चक्रिय है (Time moved in cycles)। वे जलवायु एवं प्रकृति को पढ़े-लिखे लोगों की तरह समझते थे। प्रत्येक कबीले के पास अपने इतिहास के बारे में पूरी जानकारी होती थी। यह जानकारी मौखिक रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलती रहती थी। वे कुशल कारीगर भी थे। वे उत्तम प्रकार का वस्त्र बुनना जानते थे।

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प्रश्न 2.
यूरोपीय एवं मूल निवासियों की पारस्परिक धारणाओं के बारे में आप क्या जानते हैं ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यह जानना इतिहास का एक रोचक विषय है कि यूरोपीय जो अपने-आप को सभ्य कहते थे, की मूल निवासियों के बारे में क्या धारणाएँ थीं। दूसरी ओर उत्तरी अमरीका के मूल निवासी इन पूँजीपतियों के बारे में क्या सोचते थे।

1. ज्याँ जैक रूसो के विचार:
वह फ्राँस का एक प्रसिद्ध क था। उसके विचारानुसार मूल निवासी प्रशंसा के पात्र थे क्योंकि वे सभ्यता के कारण आई बुराइयों से अछूते थे। इसके लिए रूसो ने उनके लिए उदात्त, उत्तम जंगली (the noble savage) पद (term) का प्रयोग किया है। उसे मूल निवासियों से मिलने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ था।

2. विलियम वड्सवर्थ के विचार:
वह इंग्लैंड का एक महान् कवि था। वह भी उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों से नहीं मिला था। वह मूल निवासियों के संबंध में लिखता है कि, “वे जंगलों में रहते हैं, जहाँ कल्पना शक्ति के पास उन्हें भाव संपन्न करने, उन्हें ऊँचा उठाने या परिष्कृत करने के अवसर बहुत कम हैं।” इससे अभिप्राय यह है कि प्रकृति के समीप रहने वालों की कल्पना शक्ति एवं भावना बहुत सीमित होती है।

3. वाशिंगटन इरविंग के विचार:
वह अमरीका के एक प्रसिद्ध लेखक थे। वह उत्तरी अमरीका में रहने वाले मूल निवासियों से स्वयं मिले थे। उनका कथन था कि जिन इंडियनस की असली जिंदगी को देखने का मुझे मौका मिला वे कविताओं में वर्णित अपने रूप से काफी भिन्न हैं। वे गोरे लोगों की नीयत पर भरोसा नहीं करते। जब वे गोरे लोगों के साथ रहते हैं तो बहुत कम बोलते हैं क्योंकि उन्हें नकी भाषा समझ नहीं आती।

जब मूल निवासी आपस में एकत्र होते हैं तो वे गोरों की खूब नकल उतार कर अपना मनोरंजन करते हैं। दूसरी ओर यरोपीय यह समझते हैं कि मल निवासी उनका इसलिए सम्मान करते हैं क्योंकि उन्होंने इंडियन्स को अपनी भव्यता एवं गरिमा से प्रभावित किया है। इरविंग ने इस बात पर दुःख प्रकट किया है कि यूरोपीय लोग स्थानीय लोगों से जानवरों जैसा व्यवहार करते हैं।

4. थॉमस जैफ़र्सन के विचार:
वह संयुक्त राज्य अमरीका के तीसरे राष्ट्रपति थे। उन्होंने उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों के संबंध में एक आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। उनका कथन था कि हमने इस अभागी नस्ल (मूल निवासियों) को सभ्य बनाने के बहुत प्रयास किए किंतु वे सभ्य नहीं बन पाए। इससे उनके उन्मूलन का औचित्य सिद्ध होता है।

5. यूरोपियनों के बारे में मूल निवासियों की धारणा:
काफी समय तक मूल निवासियों की यूरोपियों के बारे में क्या धारणा थी के बारे में हम कोई जानकारी प्राप्त नहीं कर सके। किंतु हाल ही में मूल निवासियों की लोक कथाओं एवं संस्कृति के अध्ययन से इस संबंध में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई है। इन लोक कथाओं में गोरे लोगों का मज़ाक उड़ाया गया था तथा उन्हें लालची एवं मूर्ख दर्शाया गया था।

6. व्यापार संबंधी धारणा:
यूरोपियों एवं मूल निवासियों में चीज़ों के लेन-देन को लेकर विभिन्न धारणा थी। मूल निवासी चीजों का आदान-प्रदान दोस्ती में दिए गए उपहारों का रूप समझते थें। दूसरी ओर यूरोपीय व्यापारी मछली एवं रोएंदार खाल को व्यापारिक माल समझते थे। इसे बेचकर वे अधिक-से-अधिक धन कमाना चाहते थे।

मूल निवासियों को यह समझ नहीं आता था कि यूरोपीय व्यापारी उनके सामान के बदले कभी तो बहुत सारा सामान दे देते थे तथा कभी बहुत कम। वस्तुत: उन्हें बाज़ार के बारे में तनिक भी ज्ञान नहीं था। यूरोपीय लोग रोएँदार खाल को प्राप्त करने के लिए बड़ी संख्या में उदबिलावों (beavers मार रहे थे। इस मूल निवासी काफी परेशान थे। उन्हें यह भय था कि ये जानवर उनसे इस विध्वंस का बदला लेंगे।

7. जंगल एवं खेती से संबंधित धारणा:
यूरोपवासी उत्तरी अमरीका में लोहे के औजारों से जंगलों की सफ़ाई कर रहे थे। इसका उद्देश्य जंगलों को साफ़ कर वहाँ खेती करना था। यहाँ वे मकई व अन्य फ़सलों का उत्पादन करना चाहते थे। दूसरी ओर मूल निवासियों को यूरोपियों द्वारा की जा रही जंगलों की सफ़ाई अजीब लगती थी। वे केवल अपनी आवश्यकता के लिए फ़सलें उगाते थे।

ये लोग फ़सलों का उत्पादन बिक्री अथवा मुनाफे के लिए नहीं करते थे। वे जंगलों को अपनी शक्ति का स्रोत समझते थे। अतः वे उन्हें काटना एक पाप समझते थे। इस प्रकार जंगलों एवं खेती के प्रति यूरोपियों एवं मूल निवासियों की धारणा एक-दूसरे से बिल्कुल अलग थी।

प्रश्न 3.
अमरीका में यूरोपियों द्वारा मूल निवासियों की बेदखली का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमरीका में यूरोपियों द्वारा मूल निवासियों की बेदखली एक अत्यंत करुणामयी कहानी प्रस्तुत करती है। इससे स्पष्ट होता है कि किस प्रकार यूरोपियों ने धोखे से मूल निवासियों को उनकी जमीनों से बेदखल किया एवं उनके लिए घोर कष्टों के द्वार खोल दिए।

1. बेदखली के ढंग:
यूरोपवासियों के अमरीका में बढ़ते हुए कदमों के साथ ही इन क्षेत्रों से मूल निवासियों को बेदखल किया जाने लगा। इसके लिए यूरोपियों ने अनेक ढंग अपनाए।

  • वे मूल निवासियों को उन स्थानों से हटने के लिए प्रेरित करते थे।
  • वे मूल निवासियों द्वारा पीछे न हटने की दशा में उन्हें धमकाते थे।
  • वे मूल निवासियों से बहुत कम मूल्य पर जमीन खरीद लेते थे तथा फिर उन्हें वहाँ से पीछे हटने के लिए बाध्य कर देते थे।
  • वे मूल निवासियों से धोखे से अधिक भूमि हड़प लेते थे तथा मूल निवासियों को वहाँ से हटा दिया जाता था।

2. चिरोकियों के प्रति अन्याय:
मूल निवासियों की बेदखली करते समय उनके साथ बहुत अन्याय किया जाता था। उन्हें किसी प्रकार के कानूनी एवं नागरिक अधिकार नहीं दिए जाते थे। इसका एक उदाहरण जॉर्जिया जो कि संयुक्त राज्य अमरीका का एक राज्य है, के चिरोकी कबीले की बेदखली में देखा जा सकता है। उल्लेखनीय है कि चिरोकी समुदाय के लोग अंग्रेजी सीखने एवं यूरोपवासियों की जीवन शैली को समझने का सबसे अधिक प्रयास कर रहे थे।

इसके बावजूद उन्हें सभी प्रकार के नागरिक अधिकारों से वंचित रखा गया था। इस संबंध में 1832 ई० में संयुक्त राज्य अमरीका के मुख्य न्यायाधीश जॉन मार्शल (John Marshall) ने एक महत्त्वपूर्ण फैसला दिया। इस फैसले में कहा गया कि चिरोकी कबीला एक विशिष्ट समुदाय है और उसके स्वत्वाधिकार वाले प्रदेश में जॉर्जिया का कानून लागू नहीं होता। परंतु तत्कालीन राष्ट्रपति एंड्रिड जैकसन (Andrew Jackson) ने इस फैसले को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

उसने चिरोकियों को उनके प्रदेश से बेदखल करने के लिए एक सेना भेज दी। अतः 15000 चिरोकियों को महान् अमरीका मरुस्थल की ओर हटने के लिए बाध्य किया गया। इनमें से लगभग एक चौथायी लोग रास्ते में ही मर गए। अत: उनका यह सफर आँसुओं की राह (Trail of Tears) के नाम से जाना गया।

3. बेदखली का औचित्य:
यूरोपीय लोग स्थानीय लोगों को उनके मूल निवास से बेदखल करने को उचित ठहराते हैं। उनका कथन था कि मूल निवासी ज़मीन का ठीक प्रयोग करना नहीं जानते। इसलिए भूमि पर उनका अधिकार नहीं रहना चाहिए। वे यह कह कर भी मूल निवासियों की आलोचना करते हैं कि वे बहत आलसी थे। इसलिए वे बाज़ार के लिए उत्पादन करने में अपनी शिल्पकला (craft skills) का प्रयोग नहीं करते।

यह भी कहा गया कि वे अंग्रेज़ी नहीं सीखते एवं ढंग के वस्त्र नहीं पहनते। अत: मूल निवासी मर-खप जाने के ही योग्य हैं। उनकी बेदखली के बाद जमीनों को खेती के लिए साफ़ किया गया और जंगली भैंसों को मार दिया गया। निस्संदेह यह एक विस्फोटक स्थिति का संकेत था।

4. रिज़र्वेशंस:
यूरोपियों ने मूल निवासियों को पश्चिम की ओर धकेल दिया था। यहाँ उन्हें स्थायी तौर पर बसने के लिए अपनी ज़मीन दे दी गई थी। किंतु यदि कहीं से सोना अथवा तेल होने का पता चलता तो मूल निवासियों को उस क्षेत्र को फौरन छोड़ जाने के लिए बाध्य होना पड़ता था। उन्हें कई बार ऐसे क्षेत्रों में भेज दिया जाता था जहाँ पहले ही कबीलों की संख्या अधिक होती थी।

इसलिए उनमें आपसी लड़ाइयाँ हो जाती थीं। इस प्रकार मूल निवासी कुछ छोटे प्रदेशों में सीमित कर दिए गए थे। इन्हें रिज़र्वेशंस कहा जाता था। यह प्राय: ऐसी भूमि होती थी जिसके साथ उनका पहले से कोई संबंध नहीं होता था।

5. मूल निवासियों का प्रतिरोध:
यूरोपीय बार-बार मूल निवासियों को अपनी ज़मीन छोड़ने के लिए बाध्य करते थे। ऐसा नहीं था कि मूल निवासियों ने अपनी जमीनें बिना किसी संघर्ष के छोड़ दी हों। संयुक्त राज्य अमरीका की सेना को 1865 ई० से 1890 ई० के दौरान मूल निवासियों के अनेक विद्रोहों का दमन करना पड़ा था। इसी प्रकार कनाडा में 1869 ई० से 1885 ई० के दौरान मेटिसों (Metis) ने विद्रोहों का झंडा बुलंद कर रखा था। बाद में उनका दमन कर दिया गया था।

प्रश्न 4.
गोल्ड रश से आपका क्या अभिप्राय है? इसका संयुक्त राज्य अमरीका के उद्योगों एवं खेती के आधुनिकीकरण पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
दक्षिणी अमरीका की भाँति उत्तरी अमरीका के बारे में यह आशा की जाती थी कि वहाँ सोने के भंडार हैं। 1849 ई० में संयुक्त राज्य अमरीका के कैलीफ़ोर्निया (California) राज्य में सोने के कुछ चिन्ह प्राप्त हुए। यह समाचार जंगल में आग की तरह फैल गया। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में यूरोपीय अपना-अपना भाग्य आजमाने कैलीफोर्निया की ओर चल पड़े। उन्हें यह आशा थी कि वहाँ से प्राप्त सोना उनकी तकदीर को पलक झपकते ही बदल देगा। इसने गोल्ड रश को जन्म दिया।

1. उद्योगों का विकास:
गोल्ड रश की घटना के दूरगामी प्रभाव पड़े। सर्वप्रथम संपूर्ण संयुक्त राज्य अमरीका में रेलवे लाइन बिछाने का काम आरंभ हुआ। इस कार्य के लिए हज़ारों चीनी श्रमिकों को लगाया गया। 1870 ई० तक बड़े पैमाने पर रेलवे का निर्माण कर लिया गया। 1885 ई० में कनाडा में रेलवे का निर्माण पूरा किया गया।

स्कॉटलैंड से आने वाले एक अप्रवासी एंड्रिउ कार्नेगी (Andrew Carnegie) का कथन था कि, “पुराने राष्ट्र घोंघे की चाल से सरकत था कि, “पुराने राष्ट्र घोंघे की चाल से सरकते हैं नया गणराज्य किसी एक्सप्रेस की गति से दौड़ रहा है।” रेलवे निर्माण के साथ-साथ रेलवे के अन्य साज-सामान बनाने के कारखाने भी लगाए गए। इससे कारखानों की संख्या में तीव्रता से वृद्धि हुई। उस समय उद्योगों के दो प्रमुख उद्देश्य थे-

  • विकसित रेलवे का साज-सामान बनाना ताकि दूर-दूर के स्थानों को तीव्र परिवहन द्वारा जोड़ा जा सके।
  • ऐसे यंत्रों का उत्पादन करना जिनसे बड़े पैमाने पर खेती की जा सके। इससे उद्योगों को एक नया प्रोत्साहन मिला। परिणामस्वरूप संयुक्त राज्य अमरीका 1860 ई० से 1890 ई० के दौरान एक शक्तिशाली औद्योगिक देश के रूप में उभर कर सामने आया।

2. खेती का आधुनिकीकरण (Modernization of Agriculture)-इस समय संयुक्त राज्य अमरीका में ‘बड़े पैमाने पर ऐसे यंत्रों का विकास हो चुका था जिससे खेती को एक नया प्रोत्साहन मिला। खेती के लिए बहुत
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से जंगल साफ़ कर दिए गए। इससे खेती का विस्तार हुआ। 1890 ई० तक संयुक्त राज्य अमरीका में जंगली भैंसों का पूरी तरह उन्मूलन कर दिया गया था। इस कारण शिकार वाली जीवनचर्या भी समाप्त हो गई।

प्रश्न 5.
ऑस्ट्रेलिया के विकास के बारे में आप क्या जानते हैं ? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
ऑस्ट्रेलिया के विकास का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. मानव का आगमन:
ऑस्ट्रेलिया में मानव के आगमन का इतिहास बहुत प्राचीन एवं लंबा है। ऐसा अनुमान लगाया जाता है यहाँ आदिमानव 40,000 वर्ष पहले पहुँचा था। ऐसा विचार है कि ये लोग ऑस्ट्रेलिया में न्यू गिनी (New Guinea) के रास्ते पहुँचे थे। दूसरी ओर ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की परंपरा के अनुसार वे कहीं बाहर से नहीं आए थे। वे सदैव से यहीं रहते थे। इन्हें ऐबॉरिजिनीज (aborigines) कहा जाता है।

2. मूल निवासियों की स्थिति:
18वीं शताब्दी में यूरोपियों के ऑस्ट्रेलिया आगमन से पूर्व यहाँ मूल निवासियों के लगभग 350 से 750 तक समुदाय थे। प्रत्येक समुदाय की अपनी अलग भाषा थी। इनमें से 200 भाषाएँ आज तक भी बोली जाती हैं। स्थानीय लोगों का एक विशाल समूह उत्तर में रहता है। इसे टॉरस स्ट्रेट टापूवासी (Torres Strait Islanders) कहते हैं। इनके लिए ऐबॉरिजिनी शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता। क्योंकि ऐसा मानना है कि वे कहीं ओर से आए हैं तथा वे एक भिन्न नस्ल से संबंधित हैं।

3. ऑस्ट्रेलिया की खोज:
1606 ई० में एक साहसी डच यात्री विलेम जांस (Willem Jansz) ऑस्ट्रेलिया पहुँचने में सफल रहा। 1642 ई० में एक अन्य डच नाविक ए० जे० तास्मान (A. J. Tasman) ऑस्ट्रेलिया के एक टापू पर पहुँचने में सफल हुआ। उसने इस टापू का नाम तस्मानिया रखा। इसी वर्ष उसने न्यूजीलैंड की भी खोज की। इस खोज के बावजूद काफी समय तक ऑस्ट्रेलिया में किसी उपनिवेश को स्थापित करने का कोई प्रयास नहीं किया गया।

1770 ई० में इंग्लैंड का प्रसिद्ध नाविक जेम्स कुक (James Cook) एक छोटे से टापू बॉटनी बे (Botany Bay) पहुँचने में सफल हुआ। उसने इस टापू का नाम न्यू साउथ वेल्स (New South Wales) रखा। यहाँ रहते हए जेम्स कुक ने एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण मानचित्र तैयार किया। इसमें उसने 180 स्थानों के नाम दिए थे। यह मानचित्र आने वाले नाविकों के लिए एक प्रेरणा स्रोत सिद्ध हुआ। 1788 ई० में यहाँ ब्रिटेन की प्रथम बस्ती सिडनी (Sydney) की स्थापना हुई। यहाँ ब्रिटेन के अपराधियों को देश निकाले का दंड देकर भेजा जाता था।

4. मूल निवासियों के प्रति रवैया:
दक्षिणी अमरीका एवं उत्तरी अमरीका के समान ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों ने यूरोपवासियों का बहुत गर्मजोशी से स्वागत किया। वे यूरोपवासियों की यथासंभव सहायता करते थे। इस संबंध में हमें अनेक यात्रियों के ब्योरे उपलब्ध हैं। इस कारण आरंभ में यूरोपवासियों एवं मूल निवासियों के आपसी संबंध मित्रतापूर्ण रहे। 1779 ई० में ब्रिटेन के नाविक जेम्स कुक की हवाई में किसी आदिवासी ने हत्या कर दी। इस कारण यूरोपवासी भड़क उठे।

उन्होंने इस घटना के पश्चात् आदिवासियों के विरुद्ध कठोर रवैया अपनाया। इससे दोनों समुदायों के संबंधों में कटुता आ गई। यूरोपवासियों ने धीरे-धीरे खेती के लिए जंगलों का सफाया कर दिया। उन्होंने मूल निवासियों को अपने क्षेत्रों से पीछे हटने के लिए भी बाध्य कर दिया।

5. आर्थिक विकास:
ऑस्ट्रेलिया में यूरोपीय उपनिवेशों की स्थापना के साथ ही उसके आर्थिक विकास का क्रम आरंभ हुआ। यहाँ मैरिनो भेड़ों के पालन के लिए विशाल भेड़ फार्मों की स्थापना की गई। कृषि के विकास के लिए जंगलों की सफाई की गई। यहाँ गेहूँ के उत्पादन में बहुत वृद्धि की गई। मदिरा बनाने हेतु अंगूर के विशाल बाग लगाए गए। ऑस्ट्रेलिया में खनन उद्योगों की स्थापना की गई। इससे ऑस्ट्रेलिया की समृद्धि का आधार तैयार हुआ।

6. चीनी अप्रवासी:
आरंभ में ऑस्ट्रेलिया के आर्थिक विकास में मूल निवासियों से काम लिया गया। उनसे खेतों एवं खानों में कठिन परिस्थितियों में कार्य करवाया जाता था। अत: उनमें एवं दासों में कोई विशेष अंतर नहीं रह गया था। बाद में सस्ता श्रम प्राप्त करने के उद्देश्य से चीनी अप्रवासियों का सहारा लिया गया। शीघ्र ही उनकी संख्या में तीव्र वृद्धि हो गई।

इससे ऑस्ट्रेलिया की गोरी सरकार घबरा गई। उसे यह ख़तरा था कि इससे गोरे लोग एशिया के काले लोगों पर अधिक निर्भर होते जाएँगे। अत: उसने 1974 ई० तक गैर-गोरों को ऑस्ट्रेलिया से बाहर रखने की नीति अपनाई। इस वर्ष एशियाई अप्रवासियों को प्रवेश की अनुमति दी गई।

7. राजधानी की स्थापना:
1911 ई० में ऑस्ट्रेलिया की राजधानी बनाने का निर्णय किया गया। इसके लिए वूलव्हीटगोल्ड (Woolwheatgold) के नाम का सुझाव दिया गया। पर अंततः इसका नाम कैनबरा (Canberra) रखा गया। यह एक स्थानीय शब्द कैमबरा (Kamberra) से बना है जिसका अर्थ है सभा स्थल।

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प्रश्न 6.
20वीं शताब्दी में ऑस्ट्रेलिया में आई बदलाव की लहर का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
20वीं शताब्दी में ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के प्रति बदलाव की लहर को देखा गया। इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. डब्ल्यू ० ई० एच० स्टैनर का योगदान:
काफी समय तक यूरोपवासियों ने ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों और उनकी संस्कृति को समझने का कोई प्रयास नहीं किया। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि वे मूल निवासियों के प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया रखते थे। इसके चलते उन्होंने अपनी पुस्तकों में केवल ऑस्ट्रेलिया में आकर बसने वाले यूरोपियों की उपलब्धियों का ही वर्णन किया है।

इनमें यह दिखाने का प्रयास किया गया कि वहाँ के मल निवासियों की न तो कोई परंपरा है एवं न ही कोई इतिहास। 1968 ई० में एक मानवशास्त्री डब्ल्यू. ई० एच० स्टैनर ने दि ग्रेट ऑस्ट्रेलियन साइलेंस नामक प्रसिद्ध पुस्तक का प्रकाशन किया। इस पुस्तक से यूरोपवासियों में ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की संस्कृति को समझने की चाहत उत्पन्न हुई। निस्संदेह यह एक प्रशंसनीय कदम था।

2. हेनरी रेनॉल्डस का योगदान :
हेनरी रेनॉल्डस एक महान् लेखक था। उसकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना का नाम व्हाई वरंट वी टोल्ड (Why Weren’t We Told) था। इस पुस्तक में उसने ऑस्ट्रेलिया के इतिहास लेखन के परंपरागत ढंग की कटु आलोचना की है। यूरोपवासी कैप्टन कुक की खोज से ही ऑस्ट्रेलिया के इतिहास का आरंभ करते हैं।

हेनरी रेनॉल्डस का कथन था कि हमें ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की सभ्यता एवं संस्कृति पर भी प्रकाश डालना चाहिए। इससे यूरोपवासियों के मन में मूल निवासियों के इतिहास को जानने की एक नई प्रेरणा उत्पन्न हुई।

3. मूल निवासियों की संस्कृति का अध्ययन:
यूरोपवासियों द्वारा मूल निवासियों की संस्कति का अध्ययन करने के लिए विश्वविद्यालयों में विशेष विभागों की स्थापना हई। मल निवासियों की कला को कला दीर्घाओं (art galleries) में स्थान दिया जाने लगा। स्थानीय संस्कृति को समझने के लिए संग्रहालयों (museums) की स्थापना की गई। मूल निवासियों ने भी अपने इतिहास को लिखना आरंभ किया।

निस्संदेह यह एक प्रशंसनीय प्रयास था। 1974 ई० में ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने बहुसंस्कृतिवाद (multiculturalism) की नीति को अपनाया। इसके द्वारा मूल निवासियों, यूरोप तथा एशिया के अप्रवासियों की संस्कृतियों के प्रति बराबर सम्मान प्रकट किया गया। वास्तव में इसने एक नए युग का श्रीगणेश किया।

4. ज्यूडिथ राइट का योगदान:
ज्यूडिथ राइट ऑस्ट्रेलिया की एक महान् कवित्री थी। उसने मूल निवासियों के अधिकारों संबंधी एक ज़ोरदार अभियान चलाया। उसका कथन था कि गोरों एवं मूल निवासियों को अलग-अलग रखने से आने वाली नस्लों के लिए एक भारी ख़तरा उत्पन्न हो सकता है। इस संबंध में उसने अनेक प्रभावशाली कविताएँ लिखीं। इनका लोगों के दिलों पर जादुई प्रभाव पड़ा।

5. टेरा न्यूलिअस नीति का अंत:
1970 ई० के दशक में संयुक्त राष्ट्र संघ एवं दूसरी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में मानवाधिकार पर बल दिया जाने लगा था। इससे ऑस्ट्रेलिया के लोगों में एक नई जागृति उत्पन्न हुई। उन्हें यह अहसास हुआ कि यूरोपीय लोगों ने भूमि अधिग्रहण (takeover of land) को औपचारिक (formal) बनाने के उद्देश्य से कोई समझौता नहीं किया है।

इसका कारण यह था कि ऑस्ट्रेलिया की सरकार सदैव भमि को टेरा न्युलिअस कहती आई थी। इससे अभिप्राय ऐसी भमि थी जो किसी की भी नहीं है। 1992 ई० में ऑस्ट्रेलिया के हाईकोर्ट ने टेरा न्यूलिअस नीति को अवैध घोषित कर दिया। इस फैसले में 1770 ई० के पहले से ज़मीन पर मूल निवासियों के दावों को मान्यता दे दी गई।

6. मिश्रित रक्त वाले बच्चों की नीति में परिवर्तन:
ऑस्ट्रेलिया की एक अन्य गंभीर समस्या मिश्रित रक्त वाले बच्चों की थी। ये बच्चे यूरोपवासियों एवं मूल निवासियों के मध्य अवैध संबंधों के कारण उत्पन्न हुए थे। इन बच्चों को किसी प्रकार का कोई अधिकार नहीं दिया गया था। उनकी यंत्रणा का एक लंबा इतिहास था। गोरे एवं रंग-बिरंगे बच्चों को अलग-अलग करके उनके साथ एक घोर अन्याय किया जाता था।

इस कारण सरकार ने 1999 ई० में ऑस्ट्रेलिया में 1820 ई० से 1970 ई० के बीच गुम हुए बच्चों के लिए माफी माँगी। उसने 26 मई को राष्ट्रीय क्षमायाचना दिवस मनाने की घोषणा की। निस्संदेह यह मूल निवासियों की एक महान् विजय थी।

कालक्रम

क्रम संख्या वर्ष घटना
1. 1497 ई० जॉन कैबोट का न्यूफाऊँडलैंड पहुँचना।
2. 1507 ई० अमेरिगो डे वेसपुकी की ट्रैवेल्स प्रकाशित हुई।
3. 1534 ई० जैक कार्टियर सेंट लॉरेंस पहुँचा।
4. 1606 ई० डच यात्री विलेम जांस का ऑस्ट्रेलिया पहुँचना।
5. 1607 ई० ब्रिटिशों ने वर्जीनिया को अपना उपनिवेश बनाया।
6. 1642 ई० डच नाविक ए० जे० तास्मान का ऑस्ट्रेलिया पहुँचना।
7. 1770 ई० ब्रिटेन के नाविक जेम्स कुक का ऑस्ट्रेलिया पहुँचना।
8. 1783 ई० ब्रिटेन ने संयुक्त राज्य अमरीका को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दी।
9. 1788 ई० ब्रिटेन ने ऑस्ट्रेलिया के सिडनी नामक स्थान में अपनी प्रथम बस्ती स्थापित की।
10. 1803 ई० संयुक्त राज्य अमरीका ने फ्राँस से लुइसियाना को खरीदा।
11. 1849 ई० अमरीकी गोल्ड रश।
12. 1865 ई० संयुक्त राज्य अमरीका में दास प्रथा का अंत।
13. 1867 ई० संयुक्त राज्य अमरीका ने अलास्का को खरीदा।
14. 1892 ई० अमरीकी फ्रंटियर का अंत।
15. 1869-1885 ई० कनाडा में मेटिसों का विद्रोह।
16. 1911 ई० कैनबरा को ऑस्ट्रेलिया की राजधानी बनाना।
17. 1934 ई० इंडियन रीऑर्गेनाइज़ेशन एक्ट का पारित होना।
19. 1954 ई० डिक्लेरेशन ऑफ इंडियन राइट्स।
20. 1968 ई० डब्ल्यू० ई० एच० स्टैनर द्वारा दि ग्रेट ऑस्ट्रेलियन साइलेंस का प्रकाशन।
21. 1974 ई० ऑस्ट्रेलिया की सरकार द्वारा बहुसंस्कृतिवाद की नीति को अपनाना।
22. 1982 ई० संयुक्त राज्य अमरीका द्वारा मूल निवासियों के अधिकारों को मान्यता देना।
23. 1992 ई० ऑस्ट्रेलिया द्वारा टेरा न्यूलिअस नीति को त्यागना।

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों की जीवन शैली की प्रमुख विशेषताएँ लिखो।
उत्तर:
(1) रहन-सहन एवं भोजन-यूरोपवासियों के आगमन से पूर्व उत्तरी अमरीका के मूल निवासी नदी घाटी के साथ-साथ गाँवों में समूह बनाकर रहते थे। वे मकई तथा विभिन्न प्रकार की सब्जियों का उत्पादन करते थे। वे मछली एवं माँस का अधिक प्रयोग करते थे। वे प्रायः माँस की तलाश में लंबी यात्राएँ करते थे। उन्हें मुख्य जिन्हें बाइसन कहते थे कि तलाश रहती थी। परंत वे उतने ही जानवरों को मारते थे कि जितने की उन्हें भोजन के लिए आवश्यकता होती थी।

(2) अर्थव्यवस्था-उत्तरी अमरीका की अर्थव्यवस्था मुख्यतः एक जीवन निर्वाह अर्थव्यवस्था थी। वहाँ के मूल निवासी केवल उतना ही उत्पादन करते थे जो कि उनके निर्वाह के लिए आवश्यक होता था। उन्हें जमीन पर व्यक्तिगत मलकियत की कोई चिंता नहीं थी क्योंकि वे उससे प्राप्त होने वाले भोजन एवं आश्रय से संतुष्ट थे।

(3) उपहारों का आदान-प्रदान-उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों की यह परंपरा थी कि वे आपस में मिलजुल कर रहते थे एवं उनके संबंध मैत्रीपूर्ण होते थे। वे आपस में वस्तुओं को खरीदते एवं बेचते नहीं थे अपितु उपहारों का आदान-प्रदान करते थे। कबीलों में आपसी समझौता होने पर वे एक विशेष प्रकार की वेमपुम बेल्ट का आदान-प्रदान करते थे।

(4) भाषा एवं ज्ञान-उत्तरी अमरीका के मूल निवासी अनेक भाषाएँ बोलते थे यद्यपि वे लिखी नहीं जाती थीं। उन्हें अनेक बातों का ज्ञान था। वे जानते थे कि समय की गति चक्रिय है। वे जलवायु एवं प्रकृति को पढ़े-लिखे लोगों की तरह समझते थे। प्रत्येक कबीले के पास अपने इतिहास के बारे में पूरी जानकारी होती थी। यह जानकारी मौखिक रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलती रहती थी। वे कुशल कारीगर भी थे। वे उत्तम प्रकार का वस्त्र बुनना जानते थे।

प्रश्न 2.
यूरोपीय व्यापारियों ने उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों के साथ किस प्रकारं वस्तुओं का आदान-प्रदान किया ?
उत्तर:
यूरोपीय व्यापारियों को उत्तरी अमरीका पहुँचने पर यह ज्ञात हुआ कि स्थानीय लोग मिसीसिपी नदी के किनारे आपस में अपनी वस्तुओं के आदान-प्रदान के लिए नियमित रूप से जमा होते हैं। यहाँ उन हस्तशिल्पों अथवा खाद्य-पदार्थों का आदान-प्रदान होता था जो अन्य प्रदेशों में उपलब्ध नहीं होते थे। यूरोपीय व्यापारी भी अपने व्यापार को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से इस आदान-प्रदान में सम्मिलित होने लगे। वे मूल निवासियों को कंबल, लोहे के बर्तन, बंदूकें एवं शराब देते थे।

कंबल शीत को रोकने के लिए उपयोगी सिद्ध हुए। लोहे के बर्तन मिट्टी के बर्तनों की अपेक्षा कहीं अधिक उपयोगी थे। बंदूकें जानवरों को मारने के लिए तीर-कमानों की अपेक्षा अधिक उत्तम सिद्ध हुईं। उत्तरी अमरीका के लोग यूरोपियों के आगमन से पूर्व शराब से परिचित नहीं थे। वे शीघ्र ही शराब के आदी हो गए। उनकी यह आदत यूरोपीय व्यापारियों के लिए अच्छी प्रमाणित हुई। इस कारण यूरोपीय व्यापारी मूल निवासियों पर अपनी शर्ते थोपने में सफल हुए। यूरोपियनों ने मूल निवासियों से तंबाकू की आदत ग्रहण की।

प्रश्न 3.
वाशिंगटन इरविंग कौन था ? उसने उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों के बारे में क्या लिखा है ?
उत्तर:
वह अमरीका के एक प्रसिद्ध लेखक थे। वह उत्तरी अमरीका में रहने वाले मूल निवासियों से स्वयं मिले थे। उनका कथन था कि जिन इंडियन्स की असली जिंदगी को देखने का मुझे मौका मिला वे कविताओं में वर्णित अपने रूप से काफी भिन्न हैं। वे गोरे लोगों की नीयत पर भरोसा नहीं करते। जब वे गोरे लोगों के साथ रहते हैं तो बहुत कम बोलते हैं क्योंकि उन्हें उनकी भाषा समझ नहीं आती।

जब मूल निवासी आपस में एकत्र होते हैं तो वे गोरों की खूब नकल उतार कर अपना मनोरंजन करते हैं। दूसरी ओर यूरोपीय यह समझते हैं कि मूल निवासी उनका इसलिए सम्मान करते हैं क्योंकि उन्होंने इंडियन्स को अपनी भव्यता एवं गरिमा से प्रभावित किया है। इरविंग ने इस बात पर दुःख प्रकट किया है कि यूरोपीय लोग स्थानीय लोगों से जानवरों जैसा व्यवहार करते हैं।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

प्रश्न 4.
यूरोपियों एवं मूल निवासियों में व्यापार संबंधी क्या धारणा थी ?
उत्तर:
युरोपियों एवं मूल निवासियों में चीजों के लेन-देन को लेकर विभिन्न धारणा थी। मल निवासी चीज़ों का आदान-प्रदान दोस्ती में दिए गए उपहारों का रूप समझते थे। दूसरी ओर यूरोपीय व्यापारी मछली एवं रोएँदार खाल को व्यापारिक माल समझते थे। इसे बेचकर वे अधिक-से-अधिक धन कमाना चाहते थे।

मूल निवासियों को यह समझ नहीं आता था कि यूरोपीय व्यापारी उनके सामान के बदले कभी तो बहुत सारा सामान दे देते थे तथा कभी बहुत कम। वस्तुतः उन्हें बाज़ार के बारे में तनिक भी ज्ञान नहीं था। यूरोपीय लोग रोएँदार खाल को प्राप्त करने के लिए बड़ी संख्या में उदबिलावों को मार रहे थे। इससे मूल निवासी काफी परेशान थे। उन्हें यह भय था कि ये जानवर उनसे इस विध्वंस का बदला लेंगे।

प्रश्न 5.
उत्तरी अमरीका में दास प्रथा का अंत कैसे हुआ ? संक्षेप में उत्तर दीजिए।
अथवा
संयुक्त राज्य अमरीका में दास प्रथा के प्रचलन के बारे में आप क्या जानते हैं ? इसका अंत किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमरीका में यूरोपियों के आगमन के पश्चात् दास प्रथा का प्रचलन बहुत बढ़ गया। इसका कारण यह था कि यूरोपियों ने दक्षिणी राज्यों में कपास एवं गन्ने की खेती आरंभ कर दी थी। यह कार्य दासों द्वारा करवाया जाता था। यहाँ के बाग़ान मालिकों ने बड़ी संख्या में अफ्रीका से दास खरीदने आरंभ किए। इन दासों के साथ बहुत क्रूर व्यवहार किया जाता था।

अत: संयुक्त राज्य अमरीका के उत्तरी राज्यों जहाँ की अर्थव्यवस्था बागानों पर आधारित नहीं थी, में दास प्रथा को समाप्त करने के स्वर उठने लगे। दक्षिणी राज्य किसी भी कीमत पर दास प्रथा का अंत नहीं चाहते थे। अत: 1861 ई० से लेकर 1865 ई० तक दास प्रथा के प्रश्न को लेकर उत्तरी राज्यों एवं दक्षिणी राज्यों में एक भयंकर गृहयुद्ध हुआ। इस गृहयुद्ध में उत्तरी राज्यों को विजय प्राप्त हुई। अतः 1865 ई० में संयुक्त राज्य अमरीका में दास प्रथा का अंत कर दिया गया। इस प्रथा के अंत में अमरीका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई।।

प्रश्न 6.
संयुक्त राज्य अमरीका में यूरोपवासियों ने मूल निवासियों को बेदखल करने के लिए कौन-से ढंग अपनाए ?
उत्तर:
जैसे-जैसे संयुक्त राज्य अमरीका में यूरोपवासियों की बस्तियों का विस्तार हुआ इन क्षेत्रों से मूल निवासियों को बेदखल कर दिया गया। इसके लिए यूरोपियों ने अनेक ढंग अपनाए।

  • वे मूल निवासियों को उन स्थानों से हटने से लिए प्रेरित करते थे।
  • वे मूल निवासियों द्वारा पीछे न हटने की दशा में उन्हें धमकाते थे।
  • वे मूल निवासियों से बहुत कम मूल्य पर जमीन खरीद लेते थे तथा फिर उन्हें वहाँ से पीछे हटने के लिए मजबूर कर देते थे।
  • वे मूल निवासियों से धोखे से अधिक भूमि हड़प लेते थे तथा मूल निवासियों को वहाँ से हटा दिया जाता था।

प्रश्न 7.
चिरोकी कौन थे ? यूरोपवासियों का उनके प्रति क्या व्यवहार था ?
उत्तर:
मूल निवासियों की बेदखली करते समय उनके साथ किसी प्रकार की सहानुभूति नहीं की जाती थी। उन्हें किसी प्रकार के कानूनी एवं नागरिक अधिकार नहीं दिए जाते थे। इसका एक उदाहरण जॉर्जिया जो कि संयुक्त राज्य अमरीका का एक राज्य है के चिरोकी कबीले की बेदखली में देखा जा सकता है। उल्लेखनीय है कि चिरोकी समुदाय के लोग अंग्रेजी सीखने एवं यूरोपवासियों की जीवन शैली को समझने का सबसे अधिक प्रयास कर रहे थे।

इसके बावजूद उन्हें सभी प्रकार के नागरिक अधिकारों से वंचित रखा गया था। इस संबंध में 1832 ई० में संयुक्त राज्य अमरीका के मुख्य न्यायाधीश जॉन मार्शल एक महत्त्वपूर्ण फैसला दिया। इस फैसले में कहा गया कि चिरोकी कबीला एक विशिष्ट समुदाय है और उसके स्वत्वाधिकार वाले प्रदेशों में जॉर्जिया का कानून लागू नहीं होता। परंतु तत्कालीन राष्ट्रपति एंड्रिउ जैकसन ने इस फैसले को स्वीकार करने से इंकार कर दिया।

उसने चिरोकियों को उनके प्रदेश से बेदखल करने के लिए एक सेना भेज दी। अत: 15000 चिरोकियों को महान् अमरीका मरुस्थल की ओर हटने के लिए बाध्य किया गया। इनमें से लगभग एक चौथायी लोग रास्ते में ही मर गए। अतः उनका यह सफर आँसुओं की राह के नाम से जाना गया।

प्रश्न 8.
‘गोल्ड रश’ क्या था ?
अथवा
गोल्ड रश से आपका क्या अभिप्राय है ? इससे संयुक्त राज्य अमरीका पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
दक्षिणी अमरीका की भाँति उत्तरी अमरीका के बारे में यह आशा की जाती थी कि वहाँ सोने के भंडार हैं। 1849 ई० में संयुक्त राज्य अमरीका के कैलीफ़ोर्निया राज्य में सोने के कुछ चिन्ह प्राप्त हुए। यह समाचार जंगल में आग की तरह फैल गया। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में यूरोपीय अपना-अपना भाग्य आजमाने कैलीफोर्निया की ओर चल पड़े।

उन्हें यह आशा थी कि वहाँ से प्राप्त सोना उनकी तकदीर को पलक झपकते ही बदल देगा। इसने गोल्ड रश को जन्म दिया। गोल्ड रश की घटना के दूरगामी प्रभाव पड़े। सर्वप्रथम संपूर्ण संयुक्त राज्य अमरीका में रेलवे लाइन बिछाने का काम आरंभ हुआ। इस कार्य के लिए हज़ारों चीनी श्रमिकों को लगाया गया। 1870 ई० तक बड़े पैमाने पर रेलवे का निर्माण किया गया।

रेलवे निर्माण के साथ-साथ रेलवे के अन्य साज-सामान बनाने के कारखाने भी लगाए गए। इससे कारखानों की संख्या में तीव्रता से वृद्धि हुई। इस समय संयुक्त राज्य अमरीका में बड़े पैमाने पर ऐसे यंत्रों का विकास हो चुका था जिससे खेती को एक नया प्रोत्साहन मिला खेती के लिए बहुत से जंगल साफ़ कर दिए गए। इससे खेती का विस्तार हुआ।

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प्रश्न 9.
आप किस प्रकार कह सकते हैं कि 20वीं शताब्दी में संयुक्त राज्य अमरीका में मूल निवासियों के संबंध में बदलाव की लहर आई ?
उत्तर:
(1) सर्वेक्षण-1928 ई० में मूल निवासियों की समस्याओं को जानने के लिए लेवाइस मेरिअम की अध्यक्षता में एक सर्वेक्षण प्रकाशित हुआ। इसे दि प्रॉब्लम ऑफ़ इंडियन एडमिनिस्ट्रेशन का नाम दिया गया। इसमें रिज़र्वेशंस में रह रहे मूल निवासियों की स्वास्थ्य एवं शिक्षा संबंधी सुविधाओं की कमी का बड़ा ही करुणामयी चित्र प्रस्तुत किया गया है।

(2) इंडियन रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट 1934 ई०-1930 ई० के दशक के आते-आते गोरे अमरीकियों के मन में मूल निवासियों के प्रति सहानुभूति उत्पन्न हुई। अब तक मूल निवासियों को नागरिकता के.सभी लाभों से वंचित रखा गया था। 1934 ई० में इंडियन रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट पारित किया गया। इस एक्ट के अधीन रिज़र्वेशंस में रहने वाले मूल निवासियों को ज़मीन खरीदने और ऋण लेने का अधिकार प्रदान किया गया।

(3) डिक्लेरेशन ऑफ़ इंडियन राइट्स 1954 ई०-1954 ई० में अनेक मूल निवासियों ने डिक्लेरेशन ऑफ़ इंडियन राइट्स नामक दस्तावेज़ तैयार किया। इसमें कहा गया कि वे संयुक्त राज्य अमरीका की नागरिकता को इस शर्त पर स्वीकार करेंगे कि उनके रिज़र्वेशंस वापिस नहीं लिए जाएँगे तथा न ही उनकी परंपराओं में किसी प्रकार का हस्तक्षेप किया जाएगा।

(4) मूल निवासियों द्वारा अधिकारों की माँग-1969 ई० में जब अमरीका की सरकार ने यह घोषणा की कि वह आदिवासी अधिकारों को मान्यता नहीं देगी तो मूल निवासियों ने इसका धरना, प्रदर्शनों एवं वाद-विवाद द्वारा डटकर विरोध किया। अत: बाध्य होकर 1982 ई० में सरकार ने उनके अधिकारों को स्वीकृति प्रदान कर दी।

प्रश्न 10.
आप उन्नीसवीं सदी में संयुक्त राज्य अमरीका में अंग्रेजी के उपयोग के अतिरिक्त अंग्रेजों के आर्थिक एवं सामाजिक जीवन में कौन-सी विशेषताएँ देखते हैं ?
उत्तर:
यूरोपियों के संयुक्त राज्य अमरीका में जाकर बसने के कारण वहाँ अंग्रेज़ी का उपयोग काफी बढ़ गया। इसके अतिरिक्त वहाँ अंग्रेजों के आर्थिक एवं सामाजिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

(1) ज़मीन के प्रति यूरोपीय लोगों का दृष्टिकोण मूल निवासियों से अलग था। ब्रिटेन एवं फ्राँस से आए कुछ प्रवासी ऐसे थे जो अपने पिता का बड़ा पुत्र होने के कारण पिता की संपत्ति के उत्तराधिकरी नहीं बन सकते थे। इसलिए वे अमरीका में भू-स्वामी बनना चाहते थे।

(2) जर्मनी, स्वीडन और इटली जैसे देशों से ऐसे अप्रवासी आए जिनकी ज़मीनें बड़े किसानों के हाथों में चली गई थीं। वे ऐसी ज़मीन चाहते थे जिसे वे अपना कह सकें।

(3) पोलैंड से आए लोगों को चरगाहों में काम करना अच्छा लगता था। इसमें उन्हें काफ़ी लाभ भी प्राप्त हुआ।

(4) अमरीका में बहुत कम कीमत पर बड़ी संपत्तियाँ खरीद पाना आसान था। अत: अंग्रेजों ने बड़े-बड़े भूखंड खरीद लिए।

(5) यूरोपियों ने अपने हितों के लिए मूल निवासियों को बेदखल किया। वे मूल निवासियों की बेदखली को गलत नहीं मानते थे।

प्रश्न 11.
ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों का यूरोपवासियों के प्रति क्या रवैया था ?
उत्तर:
यूरोपवासियों के आगमन पर ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों ने उनका बहुत गर्मजोशी से स्वागत किया। वे यूरोपवासियों की यथासंभव सहायता करते थे। मूल निवासियों के दोस्ताना व्यवहार के बारे में हमें अनेक यात्रियों के ब्यौरे उपलब्ध हैं। इससे स्पष्ट है कि आरंभ में यूरोपवासियों एवं मूल निवासियों के आपसी संबंध मित्रतापूर्ण रहे। 1779 ई० में ब्रिटेन के नाविक कैप्टन जेम्स कुक की हवाई में किसी आदिवासी ने हत्या कर दी। इस कारण यूरोपवासी तिलमिला उठे।

उन्होंने इस घटना के लिए मूल निवासियों को उत्तरदायी ठहराया। अतः उन्होंने मूल निवासियों को सबक सिखाने का निर्णय लिया। इसके चलते उन्होंने मूल निवासियों के विरुद्ध कठोर रवैया अपनाया। इससे दोनों समुदायों के संबंधों में कटुता आ गई। यूरोपवासियों ने धीरे-धीरे खेती के लिए जंगलों का सफ़ाया कर दिया। उन्होंने मूल निवासियों को अपने क्षेत्रों से पीछे हटने के लिए भी बाध्य किया।

अति संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
‘नेटिव’ शब्द से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नेटिव अथवा मूल निवासी से अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से है जो अपने वर्तमान निवास स्थान पर ही पैदा हुआ हो। 20वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में यह शब्द यूरोपीय लोगों द्वारा अपने उपनिवेशों में रहने वाले मूल निवासियों के लिए प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 2.
‘सेटलर’ शब्द से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
सेटलर शब्द से अभिप्राय किसी स्थान पर बाहर से आकर बसे लोगों से है। इस शब्द का प्रयोग दक्षिण अफ्रीका में डचों के लिए, आयरलैंड, न्यूज़ीलैंड तथा ऑस्ट्रेलिया में ब्रिटिश लोगों के लिए और अमरीका में यूरोपीय लोगों के लिए किया जाता था।

प्रश्न 3.
उत्तरी अमरीका की कोई दो भौगोलिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • उत्तरी अमरीका उत्तरी ध्रुवीय वृत्त से लेकर कर्क रेखा तक फैला हुआ है।
  • इसके पश्चिम में अरिज़ोना एवं नेवाडा की मरुभूमि है।

प्रश्न 4.
उत्तरी अमरीका की जलवायु में कब स्थिरता आई? इसका क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:

  • उत्तरी अमरीका की जलवायु में 5000 वर्ष पूर्व स्थिरता आई।
  • इसके परिणामस्वरूप यहाँ की जनसंख्या में तीव्रता से वृद्धि हुई।

प्रश्न 5.
उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों की जीवन शैली की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों की मुख्य विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • वे नदी घाटी के साथ-साथ बने गाँवों में समूह बना कर रहते थे।
  • वे उतनी ही वस्तुओं का उत्पादन करते थे जो कि उनके निर्वाह के लिए आवश्यक थीं।

प्रश्न 6.
वेमपुम बेल्ट क्या थी ?
उत्तर:
वेमपुम बेल्ट रंगीन सीपियों को आपस में सिलकर बनाई जाती थी। यह बेल्ट कबीलों में आपसी समझौते के पश्चात् सम्मान के तौर पर आदान-प्रदान की जाती थी।

प्रश्न 7.
उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों को किन बातों का ज्ञान था ?
उत्तर:

  • वे जानते थे कि समय की गति चक्रीय है।
  • वे अपने इतिहास के बारे में पूरी जानकारी रखते थे।

प्रश्न 8.
यूरोपीय एवं मूल निवासियों में किन वस्तुओं का आदान-प्रदान होता था ?
उत्तर:

  • यूरोपीय केवल लोहे के बर्तन, बंदूकें एवं शराब मूल निवासियों को देते थे।
  • मूल निवासी यूरोपियों को मछली एवं रोएँदार खाल देते थे।

प्रश्न 9.
यूरोपीय लोगों को उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों पर किस बात ने अपनी शर्ते थोपने में सक्षम बनाया ?
उत्तर:
उत्तरी अमरीका के मूल निवासी शराब से परिचित नहीं थे। परंतु यूरोपियों ने उन्हें शराब देकर शराब पीने की आदत डाल दी। इस कारण शराब उनकी कमज़ोरी बन गई। उनकी इसी कमज़ोरी के कारण यूरोपीय लोगों को उन पर अपनी शर्ते थोपने के सक्षम बनाया।

प्रश्न 10.
यूरोप के लोगों को अमरीका के मूल निवासी असभ्य क्यों प्रतीत हुए ?
उत्तर:
18वीं शताब्दी में यूरोपीय लोग तीन मापदंडों-साक्षरता, संगठित धर्म और शहरीपन के आधार पर विश्वास करते थे। इस दृष्टिकोण से उन्हें अमरीका के मूल निवासी असभ्य प्रतीत हुए।

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प्रश्न 11.
वाशिंगटन इरविंग ने अमरीका के मूल निवासियों के संबंध में क्या विचार प्रकट किए ?
उत्तर:

  • वे कविताओं में वर्णित अपने रूप से काफी भिन्न हैं।
  • वे गोरे लोगों की नीयत पर भरोसा नहीं करते हैं।
  • वे गोरे लोगों की नकल कर अपना मनोरंजन करते हैं।

प्रश्न 12.
यूरोपियों एवं अमरीका के मूल निवासियों में व्यापार संबंधी धारणा में प्रमुख अंतर क्या था ?
उत्तर:

  • यूरोपीय व्यापारी मछली एवं फर को व्यापारिक माल समझते थे। वे इसे बेचकर अधिक मुनाफा कमाना चाहते थे।
  • अमरीका के मूल निवासी चीज़ों के आदान-प्रदान को दोस्ती में दिए गए उपहार समझते थे।

प्रश्न 13.
अमरीकियों के लिए ‘फ्रंटियर’ के क्या मायने थे ?
उत्तर:
यूरोपियों द्वारा जीती गई एवं खरीदी गई भूमि के कारण विस्तार होता रहता था। इस कारण अमरीका की पश्चिमी सीमा पीछे खिसकती रहती थी। इस कारण अमरीका के मूल निवासियों को भी पीछे हटने के लिए बाध्य होना पड़ता था। वे राज्य की जिस सीमा तक पहुँच जाते थे उसे फ्रंटियर कहा जाता था।

प्रश्न 14.
19वीं शताब्दी में ब्रिटेन एवं फ्रांस के लोग अमरीका क्यों आए ?
उत्तर:
ब्रिटेन एवं फ्रांस में यह परंपरा थी कि केवल बड़े पुत्र को ही संपत्ति का अधिकार मिलता था। छोटे पुत्र संपत्ति का उत्तराधिकारी नहीं बन सकते थे। अतः ऐसे लोग संपत्ति की तलाश में 19वीं शताब्दी में अमरीका में आए।

प्रश्न 15.
यूरोपियों ने संयुक्त राज्य अमरीका में खेती के विकास के लिए कौन-से दो पग उठाए ?
उत्तर:

  • उन्होंने यहाँ जंगलों की सफाई की।
  • उन्होंने 1873 ई० में खेतों के चारों ओर कंटीली तारें लगा दी ताकि फ़सलों को जानवरों द्वारा सुरक्षित रखा जा सके।

प्रश्न 16.
दक्षिणी एवं उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों के बीच के फर्कों से संबंधित किसी भी बिंदु पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
दक्षिणी अमरीका के लोग बड़े पैमाने पर खेती करते थे जबकि उत्तरी अमरीका के लोग ऐसा नहीं करते थे। इसके चलते उत्तरी अमरीका के लोग दक्षिणी अमरीका के लोगों की तरह किसी विशाल साम्राज्य का गठन नहीं कर सके।

प्रश्न 17.
यूरोपवासियों ने संयुक्त राज्य अमरीका में मूल निवासियों को बेदखल करने के कौन-से ढंग अपनाए ?
उत्तर:

  • उन्हें अपने मूल स्थान से पीछे हटने के लिए प्रेरित किया जाता अथवा धमकाया जाता था।
  • मूल निवासियों की जमीनों को बहुत कम मूल्य पर खरीदा जाता था।
  • मूल निवासियों की जमीनों पर यूरोपवासियों ने धोखे से कब्जा कर लिया।

प्रश्न 18.
चिरोकी कौन थे ? उनके साथ क्या अन्याय किया जा रहा था ?
उत्तर:

  • रोकी संयुक्त राज्य अमरीका के जॉर्जिया नामक राज्य का एक कबीला था।
  • उन्हें अंग्रेजों की जीवन शैली सीखने के बावजूद सभी प्रकार के नागरिक अधिकारों से वंचित रखा गया था।

प्रश्न 19.
यूरोपीय किस आधार पर संयुक्त राज्य अमरीका के मूल निवासियों की बेदखली को उचित ठहराते हैं ?
उत्तर:

  • वे बहुत आलसी थे। इसलिए वे बाज़ार के लिए उत्पादन करने में अपनी शिल्पकला का प्रयोग नहीं करते हैं।
  • वे अंग्रेज़ी नहीं सीखते एवं न ही ढंग के वस्त्र पहनते हैं।
  • वे ज़मीन का अधिकतम प्रयोग करना नहीं जानते हैं।

प्रश्न 20.
रिज़र्वेशंस से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
उत्तरी अमरीका में मूल निवासियों को छोटे-छोटे प्रदेशों में सीमित कर दिया गया था। यह प्रायः ऐसी ज़मीन होती थी जिनके साथ उनका पहले कोई नाता नहीं होता था। इन ज़मीनों को रिज़र्वेशंस कहा जाता था।

प्रश्न 21.
‘गोल्ड रश’ से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
उत्तरी अमरीका में ‘गोल्ड रश’ क्या था ?
उत्तर:
यूरोपीय लोगों को इस बात की आशा थी कि उत्तरी अमरीका में भी सोने के भंडार हैं। 1849 ई० में संयुक्त राज्य अमरीका के कैलिफ़ोर्निया में सोने के कुछ चिन्ह मिले। इस कारण यूरोपियों में अमरीका पहुँचने की आपाधापी फैल गयी। इसे गोल्ड रश का नाम दिया गया।

प्रश्न 22.
गोल्ड रश संयुक्त राज्य अमरीका के लिए किस प्रकार एक वरदान सिद्ध हुआ ?
उत्तर:

  • संपूर्ण संयुक्त राज्य अमरीका में रेलवे लाइनों का निर्माण किया गया।
  • इस कार्य के लिए हजारों श्रमिकों को रोजगार मिला।
  • इससे उद्योगों को एक नया प्रोत्साहन मिला।

प्रश्न 23.
उत्तरी अमरीका में उद्योगों के विकास के कौन-से दो प्रमुख उद्देश्य थे ?
उत्तर:

  • रेलवे के लिए साज-सामान बनाना ताकि दूर-दूर के स्थानों को उसके द्वारा जोड़ा जा सके।
  • ऐसे यंत्रों का निर्माण करना जिनसे बड़े पैमाने पर खेती की जा सके।

प्रश्न 24.
संयुक्त राज्य अमरीका में जंगली भैंसों को किस नाम से जाना जाता था ? उनका कब तक पूरा सफ़ाया कर दिया गया ?
उत्तर:

  • संयुक्त राज्य अमरीका में जंगली भैंसों को बाइसन के नाम से जाना जाता था।
  • उनका 1890 ई० तक पूरी तरह उन्मूलन कर दिया गया।

प्रश्न 25.
संयुक्त राज्य अमरीका ने इंडियन रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट कब पारित किया ? इसका उद्देश्य क्या था ?
अथवा
1934 ई० का इंडियन रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट क्या था ?
उत्तर:

  • संयुक्त राज्य अमरीका ने इंडियन रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट 1934 ई० में पारित किया।
  • इसका उद्देश्य रिज़र्वेशंस में रहने वाले मूल निवासियों को जमीन खरीदने एवं ऋण लेने का अधिकार प्रदान करना था।

प्रश्न 26.
डिक्लेरेशन ऑफ़ इंडियन राइटस नामक दस्तावेज़ कब तैयार किया गया था ? इसका महत्त्व क्या था ?
उत्तर:

  • डिक्लेरेशन ऑफ़ इंडियन राइटस नामक दस्तावेज़ 1954 ई० में तैयार किया गया था।
  • इसमें मूल निवासियों द्वारा यह कहा गया था कि वे संयुक्त राज्य अमरीका की नागरिकता को इस शर्त पर स्वीकार करेंगे कि उनके न तो रिज़र्वेशंस वापस लिए जाएँगे तथा न ही उनकी परंपराओं में हस्तक्षेप किया जाएगा।

प्रश्न 27.
टॉरस स्ट्रेट टापूवासी कौन थे ?
उत्तर:
टॉरस स्ट्रेट टापूवासी ऑस्ट्रेलिया के उत्तर में रहने वाला एक विशाल समूह है। उनके लिए ऐबॉरिजिनी शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता क्योंकि ऐसा माना जाता है कि वे कहीं और से आए थे एवं उनकी नस्ल भी अलग है।

प्रश्न 28.
कैप्टन कुक कौन था ?
उत्तर:

  • वह इंग्लैंड का नाविक था।
  • वह 1770 ई० में ऑस्ट्रेलिया के टापू बॉटनी बे पहुंचा था।

प्रश्न 29.
ऑस्ट्रेलिया पहुँचने वाला प्रथम यात्री कौन था ? वह किस देश से संबंधित था ? वह ऑस्ट्रेलिया कब पहुँचा था ?
उत्तर:

  • ऑस्ट्रेलिया पहुँचने वाला प्रथम यात्री विलेम जांस था।
  • वह डच (हालैंड) देश से संबंधित था।
  • वह 1606 ई० में ऑस्ट्रेलिया पहुंचा था।

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प्रश्न 30.
1770 ई० में इंग्लैंड का कौन-सा नाविक ऑस्ट्रेलिया के किस टापू में पहुँचा था ? उसका क्या नाम रखा गया ?
उत्तर:

  • 1770 ई० में इंग्लैंड का नाविक जेम्स कुक ऑस्ट्रेलिया के टापू बॉटनी बे पहुंचा था।
  • इस टापू का नाम न्यू साउथ वेल्स रखा गया।

प्रश्न 31.
ऑस्ट्रेलिया में ब्रिटेन ने अपनी प्रथम बस्ती कहाँ तथा कब स्थापित की ? इसका उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:

  • ऑस्ट्रेलिया में ब्रिटेन ने अपनी प्रथम बस्ती 1788 ई० में सिडनी में स्थापित की।
  • यहाँ ब्रिटेन के अपराधियों को देश निकाले का दंड देकर भेजा जाता था।

प्रश्न 32.
ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के प्रति ब्रिटिशों का क्या दृष्टिकोण था ?
उत्तर:
ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के प्रति ब्रिटिशों का आरंभ में मैत्रीपूर्ण दृष्टिकोण था। मूल निवासी ब्रिटिशों की यथा संभव सहायता करते थे। 1779 ई० में ब्रिटिश नाविक की हवाई में किसी आदिवासी द्वारा हत्या कर दिए जाने के कारण उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन आ गया एवं उनके प्रति कठोर रवैया अपनाया।

प्रश्न 33.
यूरोपवासियों ने ऑस्ट्रेलिया के आर्थिक विकास के लिए कौन-से महत्त्वपूर्ण पग उठाए ?
उत्तर:

  • यहाँ भेड़ों के पालन के लिए विशाल फार्म बनाए गए।
  • यहाँ कृषि के विकास के लिए जंगलों की सफाई की गई।
  • यहाँ मदिरा बनाने हेतु अंगूर के विशाल बाग लगाए गए।

प्रश्न 34.
चीनी अप्रवासियों के प्रति ऑस्ट्रेलिया ने क्या नीति अपनाई ?
उत्तर:
1974 ई० तक ऑस्ट्रेलिया ने चीनी अप्रवासियों के प्रति कड़ी नीति अपनाई। उन पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगाए गए थे। 1974 ई० में उन्हें ऑस्ट्रेलिया में प्रवेश की अनुमति दे दी गई।

प्रश्न 35.
किसे तथा कब ऑस्ट्रेलिया की राजधानी बनाया गया ?
उत्तर:
कैनबरा को ऑस्ट्रेलिया की राजधानी 1911 ई० में बनाया गया।

प्रश्न 36.
इतिहास की किताबों में ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को शामिल क्यों नहीं किया गया था ?
उत्तर:
इतिहास की किताबों में ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को इसलिए शामिल नहीं किया गया था क्योंकि यूरोपवासी उनके प्रति शत्रुता की भावना रखते थे। उन्होंने अपनी किताबों पर यह दिखाने का प्रयास किया कि वहाँ के मूल निवासियों की न तो कोई परंपरा है एवं न ही कोई इतिहास।

प्रश्न 37.
डब्ल्यू० ई० एच० स्टैनर ने कब तथा किस पुस्तक की रचना की ? इसका विषय क्या था ?
उत्तर:

  • डब्ल्यू० ई० एच० स्टैनर ने 1968 ई० में दि ग्रेट ऑस्ट्रेलियन साइलेंस नामक पुस्तक की रचना की।
  • इसका विषय यूरोपवासियों में ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की संस्कृति को जानने के लिए जागृति उत्पन्न करना था।

प्रश्न 38.
बहुसंस्कृतिवाद नीति से आपका क्या अभिप्राय है ? ऑस्ट्रेलिया ने इस नीति को कब अपनाया ?
उत्तर:

  • बहुसंस्कृतिवाद की नीति से अभिप्राय ऐसी नीति से है जिसमें मूल निवासियों, यूरोप एवं एशिया के अप्रवासियों की संस्कृति को बराबर का सम्मान दिया जाता था।
  • ऑस्ट्रेलिया ने इस नीति को 1974 ई० में अपनाया।

प्रश्न 39.
टेरा न्यूलिअस से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:

  • टेरा न्यूलिअस नीति से अभिप्राय ऐसी भूमि से था जो किसी की भी नहीं है।
  • ऑस्ट्रेलिया ने इस नीति का अंत 1992 ई० में किया था।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
कनाडा के कितने प्रतिशत क्षेत्र में वन हैं ?
उत्तर:
40 प्रतिशत।

प्रश्न 2.
कनाडा का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उद्योग कौन-सा है ?
उत्तर:
मछली उद्योग।

प्रश्न 3.
उत्तरी अमरीका के सबसे प्रथम निवासी किस रास्ते से आए थे ?
उत्तर:
बेरिंग स्ट्रेट्स।

प्रश्न 4.
उत्तरी अमरीका के जंगली भैंसों को क्या कहा जाता था ?
उत्तर:
बाइसन।

प्रश्न 5.
क्या उत्तरी अमरीका के मूल निवासी ज़मीन पर अपनी व्यक्तिगत मलकियत जताते थे ?
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 6.
उत्तरी अमरीका में कबीलों में आपसी समझौता होने पर वे किसका आदान-प्रदान करते थे ?
उत्तर:
वेमपुम बेल्ट का।

प्रश्न 7.
जॉन कैबोट न्यूफाऊँडलैंड कब पहुँचा ?
उत्तर:
1497 ई० में।

प्रश्न 8.
अंग्रेजों ने वर्जीनिया को अपना उपनिवेश कब बनाया ?
उत्तर:
1607 ई० में।

प्रश्न 9.
विलियम वड्सवर्थ कौन था ?
उत्तर:
इंग्लैंड का एक महान् कवि।

प्रश्न 10.
अमरीका के किस राष्ट्रपति ने उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों के उन्मूलन को सही बताया ?
उत्तर:
थॉमस जैफ़र्सन ने।

प्रश्न 11.
उत्तरी अमरीका में रोएँदार खाल प्राप्त करने के लिए यूरोपीय किस जानवर को बड़ी संख्या में मार रहे थे ?
उत्तर:
उदबिलाव को।

प्रश्न 12.
ब्रिटेन ने अमरीका में कितने उपनिवेशों की स्थापना की थी ?
उत्तर:
13.

प्रश्न 13.
अमरीका के उपनिवेशों ने ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्ति की घोषणा कब की ?
उत्तर:
1776 ई० में।

प्रश्न 14.
संयुक्त राज्य अमरीका ने फ्रांस से लुइसियाना को कब खरीदा था ?
उत्तर:
1803 ई० में।

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प्रश्न 15.
संयुक्त राज्य अमरीका ने 1867 ई० में अलास्का को किस से खरीदा था ?
उत्तर:
रूस से।

प्रश्न 16.
अमरीकी फ्रंटियर का अंत कब हुआ ?
उत्तर:
1892 ई० में।

प्रश्न 17.
अमरीका में खेती के लिए कंटीले तारों का प्रयोग कब शुरू हुआ ?
उत्तर:
1873 ई० में।

प्रश्न 18.
अमरीका में दास प्रथा के अंत के लिए किसने उल्लेखनीय भूमिका निभाई ?
उत्तर:
अब्राहम लिंकन ने।

प्रश्न 19.
चिरोकी कहाँ के निवासी थे ?
उत्तर:
जॉर्जिया के।

प्रश्न 20.
चिरोकियों का उन्मूलन का सफर किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
आँसुओं की राह।

प्रश्न 21.
कनाडा में किन्होंने 1869 ई० से 1885 ई० के दौरान विद्रोह का झंडा बुलंद किया ?
उत्तर:
मेटिसों ने।

प्रश्न 22.
गोल्ड रश कब आरंभ हुआ ?
उत्तर:
1849 ई० में।

प्रश्न 23.
कनाडा में रेलवे का निर्माण कब पूरा हुआ ?
उत्तर:
1885 ई० में।

प्रश्न 24.
1928 ई० में किसकी अध्यक्षता में मूल निवासियों की समस्याओं को जानने के लिए एक सर्वेक्षण प्रकाशित हुआ ?
उत्तर:
लेवाइस मेरिअम।

प्रश्न 25.
इंडियन रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट कब पारित हुआ था ?
उत्तर:
1934 ई० में।

प्रश्न 26.
अमरीकी मूल निवासियों के अधिकारों को सरकार द्वारा कब स्वीकृति दी गई ?
उत्तर:
1982 ई० में।

प्रश्न 27.
ऑस्ट्रेलिया में आदिमानव कब पहुँचा ?
उत्तर:
40,000 वर्ष पहले।

प्रश्न 28.
ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को क्या कहा जाता था ?
उत्तर:
ऐबॉरिजिनीज।

प्रश्न 29.
कौन-सा डच यात्री 1606 ई० में सर्वप्रथम ऑस्ट्रेलिया पहुँचा ?
उत्तर:
विलेम जांस।

प्रश्न 30.
किस वर्ष डच यात्री ए० जे० तास्मान ऑस्ट्रेलिया पहुँचा ?
उत्तर:
1642 ई० में।

प्रश्न 31.
जेम्स कुक बॉटनी बे कब पहुँचा था ?
उत्तर:
1770 ई० में।

प्रश्न 32.
जेम्स कुक ने बॉटनी बे का नाम क्या रखा ?
उत्तर:
न्यू साउथ वेल्स।

प्रश्न 33.
ब्रिटेन ने ऑस्ट्रेलिया में अपनी प्रथम बस्ती कहाँ स्थापित की ?
उत्तर:
सिडनी में।

प्रश्न 34.
किस घटना के चलते यूरोपवासियों एवं ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के संबंधों में बिगाड़ आ गया ?
उत्तर:
जेम्स कुक की हत्या के कारण।

प्रश्न 35.
ऑस्ट्रेलिया में बड़ी संख्या में किन भेड़ों को पाला जाता था ?
उत्तर:
मैरिनो भेड़।

प्रश्न 36.
किस वर्ष तक गैर-गोरों को ऑस्ट्रेलिया से बाहर रखने की नीति अपनाई गई ?
उत्तर:
1974 ई० तक।

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प्रश्न 37.
1911 ई० में किसे ऑस्ट्रेलिया की राजधानी घोषित किया गया ?
उत्तर:
कैनबरा।

प्रश्न 38.
दि ग्रेट ऑस्ट्रेलियन साइलेंस का लेखक कौन था ?
उत्तर:
डब्ल्यू० ई० एच० स्टैनर।

प्रश्न 39.
हेनरी रेनॉल्डस की प्रसिद्ध रचना का नाम क्या था ?
उत्तर:
व्हाई वरंट वी टोल्ड।

प्रश्न 40.
ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने बहु-संस्कृतिवाद की नीति को कब अपनाया ?
उत्तर:
1974 ई० में।

प्रश्न 41.
ऑस्ट्रेलिया ने टेरा न्यूलिअस नीति के अंत की घोषणा कब की ?
उत्तर:
1992 ई० में।

रिक्त स्थान भरिए

1. उत्तरी अमेरिका के सबसे प्रथम निवासी . …………….. वर्ष पूर्व एशिया से आए थे।
उत्तर:
30,000

2. उत्तरी अमेरिका के सबसे प्रथम निवासी ………………. के मार्ग से आए।
उत्तर:
बेरिंग स्ट्रेट्स

3. उत्तरी अमेरिका के मूल निवासी जिन जंगली भैंसों का शिकार करते थे उन्हें ………………. कहते थे।
उत्तर:
बाइसन

4. अंग्रेजों ने प्लाइमाउथ की खोज ……………….. में की।
उत्तर:
1620 ई०

5. अमेरिका द्वारा कंटीली तारों की खोज ………………. में की गई।
उत्तर:
1873

6. संयुक्त राज अमेरिका में ……………….. ई० में दास प्रथा का अंत किया गया।
उत्तर:
1865

7. संयुक्त राज अमेरिका में दास प्रथा का अंत ………………. के प्रयत्नों के परिणामस्वरूप हुआ।
उत्तर:
अब्राहम लिंकन

8. 1849 ई० में संयुक्त राज्य अमेरिका के ……………….. राज्य में सोने के कुछ चिह्न प्राप्त हुए थे।
उत्तर:
कैलीफोर्निया

9. आस्ट्रेलिया की खोज ………………. ने की थी।
उत्तर:
विलेम जांस

10. आस्ट्रेलिया की खोज ………………. ई० में की गई थी।
उत्तर:
1606

11. 1788 ई० में ब्रिटेन में स्थापित हुई प्रथम बस्ती का नाम ……………….. था।
उत्तर:
सिडनी

12. ऑस्ट्रेलिया में ……………….. नामक भेड़ों को अत्यधिक पाला जाता था।
उत्तर:
मैरिनो

13. 1911 ई० में ऑस्ट्रेलिया की राजधानी ……………….. को बनाया गया।
उत्तर:
कैनबरा

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14. कैनबरा को ऑस्ट्रेलिया की राजधानी ……………….. ई० में बनाया गया।
उत्तर:
1911

15. ……………….. में ऑस्ट्रेलिया द्वारा टेरा न्यूलिअस नीति का त्याग कर दिया गया।
उत्तर:
1992 ई०

16. ‘दि ग्रेट आस्ट्रेलियन साइलेंस’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना ……………. द्वारा की गई थी।
उत्तर:
डब्ल्यू. ई० एच० स्टैनर

17. ‘व्हाई वरंट वी टोल्ड’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना ………….. द्वारा की गई थी।
उत्तर:
हेनरी रेनॉल्डस

18. आस्ट्रेलिया में ‘राष्ट्रीय क्षमा याचना दिवस’ मनाने की घोषणा ……… . में की गई।
उत्तर:
1999 ई०

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. उत्तरी अमरीका के पश्चिम क्षेत्र में कौन-सा मरुस्थल स्थित है ?
(क) मिसीसिपी
(ख) अरिज़ोना
(ग) ओहियो
(घ) अप्पालाचियाँ।
उत्तर:
(ख) अरिज़ोना

2. कनाडा के कितने प्रतिशत क्षेत्र में वन हैं ?
(क) 20%
(ख) 30%
(ग) 40%
(घ) 50%.
उत्तर:
(ग) 40%

3. निम्नलिखित में से कौन-सी फ़सल उत्तरी अमरीका की प्रमुख फ़सल नहीं है ?
(क) कपास
(ख) मकई
(ग) गेहूँ
(घ) फल।
उत्तर:
(क) कपास

4. उत्तरी अमरीका में जलवायु में स्थिरता कब आई ?
(क) एक हजार वर्ष पूर्व
(ख) दो हज़ार वर्ष पूर्व
(ग) तीन हजार वर्ष पूर्व ।
(घ) पाँच हजार वर्ष पूर्व।
उत्तर:
(घ) पाँच हजार वर्ष पूर्व।

5. उत्तरी अमरीका के लोग किसके माँस का अधिक प्रयोग करते थे ?
(क) बाइसन
(ख) लामा
(ग) अल्पाका
(घ) भेड़।
उत्तर:
(क) बाइसन

6. उत्तरी अमरीका के कबीले आपसी समझौता होने पर किस वस्तु का आदान-प्रदान करते थे ?
(क) वेमपुम बेल्ट का
(ख) चमड़े की बेल्ट का
(ग) फलों का
(घ) फूलों का।
उत्तर:
(क) वेमपुम बेल्ट का

7. एंड्रिउ जैक्सन किस देश के राष्ट्रपति थे
(क) चीन
(ख) जापान
(ग) फ्राँस
(घ) अमेरिका।
उत्तर:
(घ) अमेरिका।

8. अमरीका स्वतंत्र देश कब बना ?
(क) 1776 ई० में
(ख) 1779 ई० में
(ग) 1786 ई० में
(घ) 1789 ई० में।
उत्तर:
(क) 1776 ई० में

9. रूसो किस देश का निवासी था ?
(क) अमरीका
(ख) इंग्लैंड
(ग) फ्राँस
(घ) चीन।
उत्तर:
(ग) फ्राँस

10. अमरीकी फ्रंटीयर का अंत किस वर्ष हुआ ?
(क) 1803 ई० में
(ख) 1852 ई० में
(ग) 1892 ई० में
(घ) 1902 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1892 ई० में

11. किस शताब्दी में यूरोपीय लोग संयुक्त राज्य अमरीका में आकर बसने लगे थे ?
(क) 15वीं शताब्दी में
(ख) 17वीं शताब्दी में
(ग) 18वीं शताब्दी में
(घ) 19वीं शताब्दी में।
उत्तर:
(घ) 19वीं शताब्दी में।

12. संयुक्त राज्य अमरीका में दास प्रथा का अंत कब हुआ ?
(क) 1861 ई० में
(ख) 1865 ई० में
(ग) 1867 ई० में
(घ) 1875 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1865 ई० में

13. संयुक्त राज्य अमरीका से मूल निवासियों की बेदखली के लिए यूरोपवासियों ने कौन-सा ढंग अपनाया ?
(क) उन्हें हटने के लिए प्रेरित किया गया
(ख) उन्हें हटने के लिए धमकाया गया
(ग) उन्होंने मूल निवासियों के साथ धोखा किया
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

14. चिरोकी कहाँ के निवासी थे ?
(क) कुज़को के
(ख) जॉर्जिया के
(ग) अलास्का के
(घ) लुइसियाना के।
उत्तर:
(ख) जॉर्जिया के

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15. किनके सफर की तुलना ‘आँसुओं की राह’ से की गई ?
(क) मार्को पोलो की
(ख) चिरोकियों की
(ग) मेटिसों की
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) चिरोकियों की

16. कनाडा कब स्वयत राज्यों का एक संघ बना ?
(क) 1837 ई० में
(ख) 1847 ई० में
(ग) 1857 ई० में
(घ) 1867 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1867 ई० में।

17. ‘कनाडा-इंडियस एक्ट’ कब. पास हुआ था ?
(क) 1717 ई० में
(ख) 1749 ई० में
(ग) 1856 ई० में
(घ) 1876 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1876 ई० में।

18. ये शब्द किसने कहे, “पुराने राष्ट्र घोंघे की चाल से सरकते हैं नया गणराज्य किसी एक्सप्रैस की गति से दौड़ रहा है।”
(क) जॉन मार्शल ने
(ख) एंड्रिउ जैकसन ने
(ग) एंड्रिउ कार्नेगी ने
(घ) थॉमस जैफ़सन ने।
उत्तर:
(ग) एंड्रिउ कार्नेगी ने

19. इंडियन रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट कब पास हुआ ?
(क) 1930 ई० में
(ख) 1934 ई० में
(ग) 1936 ई० में
(घ) 1940 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1934 ई० में

20. 1934 ई० के इंडियन रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट के अधीन उत्तरी अमरीका के मूल निवासियों को कौन-सा अधिकार दिया गया ?
(क) वोट डालने का
(ख) संपत्ति खरीदने के
(ग) राष्ट्रपति पद के चुनाव का
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(ख) संपत्ति खरीदने के

21. डिक्लेरेशन ऑफ़ इंडियन राइट्स एक्ट कब पारित किया गया ?
(क) 1924 ई० में
(ख) 1934 ई० में
(ग) 1954 ई० में
(घ) 1982 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1954 ई० में

22. ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासी जिस प्रदेश में रहते थे, वह कहलाता था
(क) टॉरस स्ट्रेट टापूवासी
(ख) बेरिंग स्ट्रेट्स टापूवासी
(ग) क्यूबेक टापूवासी
(घ) वर्जीनिया टापूवासी।
उत्तर:
(क) टॉरस स्ट्रेट टापूवासी

23. ऑस्ट्रेलिया की खोज किसने की ?
(क) कोलंबस ने
(ख) ए० जे० तास्मान ने
(ग) विलेम जांस ने
(घ) फ्रांसीसिको पिज़ारो ने।
उत्तर:
(ग) विलेम जांस ने

24. जेम्स कुक किस देश का प्रसिद्ध नाविक था ?
(क) ऑस्ट्रेलिया का
(ख) इंग्लैंड का
(ग) पुर्तगाल का
(घ) डच का।
उत्तर:
(ख) इंग्लैंड का

25. आयरलैंड किस देश का उपनिवेश था ?
(क) अमेरिका
(ख) फ्राँस
(ग) इंग्लैंड
(घ) जर्मनी।
उत्तर:
(ग) इंग्लैंड

26. इंग्लैंड ने अपनी प्रथम बस्ती ऑस्ट्रेलिया में कहाँ स्थापित की थी ?
(क) बॉटनी बे में
(ख) न्यू साउथ वेल्स में
(ग) सिडनी में
(घ) तस्मानिया में।
उत्तर:
(ग) सिडनी में

27. ऑस्ट्रेलिया की राजधानी कहाँ है ?
(क) सिडनी
(ख) कैनबरा
(ग) मेलबोर्न
(घ) डरबन।
उत्तर:
(ख) कैनबरा

28. ऑस्ट्रेलिया की राजधानी कैनबरा कब बनाई गई ?
(क) 1880 में
(ख) 1899 में
(ग) 1903 में
(घ) 1911 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1911 ई० में।

29. डब्ल्यू० ई० एच० स्टैनर की प्रसिद्ध पुस्तक का नाम क्या था ?
(क) व्हाई वरंट वी टोल्ड
(ख) दि ग्रेट ऑस्ट्रेलियन साइलेंस
(ग) ऑन प्लेजर
(घ) दि रिवल्यूशनिबस।
उत्तर:
(ख) दि ग्रेट ऑस्ट्रेलियन साइलेंस

30. ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने बहु-संस्कृतिवाद की नीति को कब अपनाया ?
(क) 1968 ई० में
(ख) 1970 ई० में
(ग) 1972 ई० में
(घ) 1974 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1974 ई० में।

31. ज्यूडिथ राइट कौन थी ?
(क) ऑस्ट्रेलिया की लेखिका
(ख) फ्रांस की लेखिका
(ग) पुर्तगाल की विद्वान्
(घ) ब्रिटेन की कलाकार।
उत्तर:
(क) ऑस्ट्रेलिया की लेखिका

32. इंग्लैंड ने अपनी प्रथम बस्ती ऑस्ट्रेलिया में कहाँ स्थापित की थी ?
(क) बॉटनी बे में
(ख) न्यू साउथ वेल्स में
(ग) सिडनी में
(घ) तस्मानिया में।
उत्तर:
(ग) सिडनी में

33. ‘हमें बताया क्यों नहीं गया’ का लेखक कौन है ?
(क) कैप्टन कुक
(ख) हेनरी रेनॉल्डस
(ग) एडम स्मिथ
(घ) टेकुमेस।
उत्तर:
(ख) हेनरी रेनॉल्डस

34. ऑस्ट्रेलिया में टेरा न्यूलिअस नीति का अंत कब किया गया ?
(क) 1972 ई० में
(ख) 1982 ई० में
(ग) 1992 ई० में
(घ) 1999 ई० में ।
उत्तर:
(ग) 1992 ई० में

35. ऑस्ट्रेलिया में राष्ट्रीय क्षमायाचना दिवस कब मनाया जाता है ?
(क) 5 मार्च को
(ख) 26 मई को
(ग) 20 अगस्त को
(घ) 19 नवंबर को।
उत्तर:
(ख) 26 मई को

मूल निवासियों का विस्थापन HBSE 11th Class History Notes

→ 17वीं एवं 18वीं शताब्दियों में हालैंड, इंग्लैंड एवं फ्राँस ने उत्तरी अमरीका एवं ऑस्ट्रेलिया में अपने उपनिवेश स्थापित किए। जिस समय ये यूरोपीय वहाँ पहुँचे तो वहाँ के मूल निवासी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने बहुत गर्मजोशी से इन यूरोपियों का स्वागत किया। ये मूल निवासी बहुत सादा जीवन व्यतीत करते थे।

→ वे ज़मीन पर अपनी मलकियत का दावा नहीं करते थे। वे उतनी ही फ़सलों का उत्पादन करते जितनी उनके जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक होती थीं। वे प्रमुखतः मछली एवं माँस खाते थे। वे वस्तुओं के किए गए आदान-प्रदान को दोस्ती में दिए गए उपहार समझते थे। दूसरी ओर यूरोपीय व्यापार के उद्देश्य से एवं सोना प्राप्त करने के उद्देश्य से वहाँ पहुँचे थे।

→ आरंभ में उन्होंने मूल निवासियों के आगे दोस्ती का हाथ बढ़ाया। मूल निवासी उनके वास्तविक उद्देश्य को भांपने में विफल रहे। धीरे-धीरे जब यूरोपियों की शक्ति में वृद्धि हो गई तो उनका वास्तविक चेहरा मूल निवासियों के सामने आया। इन यूरोपियों ने मूल निवासियों पर अनेक जुल्म किए।

→ उन्हें सभी प्रकार के अधिकारों से वंचित कर दिया गया। यहाँ तक कि उन्हें अपनी ज़मीनें छोडने के लिए भी बाध्य किया गया। इस प्रकार मल निवासी दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हुए। मूल निवासियों ने अपने अधिकारों को पाने के लिए अनेक बार विद्रोह किए किंतु उनका दमन कर दिया गया।

→ 20वीं शताब्दी में यूरोपवासियों में मूल निवासियों के प्रति एक नई चेतना उत्पन्न हुई। अतः उत्तरी अमरीका एवं ऑस्ट्रेलिया की सरकारों ने मूल निवासियों की संस्कृति एवं अधिकारों को मान्यता प्रदान की। निस्संदेह यह मूल निवासियों की एक महान् विजय थी।

→ किंतु यह दुःख की बात है कि इस समय तक मूल निवासियों की जनसंख्या बहुत कम रह गई है। वे शहरों में बहुत कम नज़र आते हैं। यहाँ तक कि ये लोग यह भी भूल चुके हैं कि कभी इन देशों के अधिकाँश हिस्से उनके अधीन थे।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Practical Work in Geography Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. अन्तर्राष्ट्रीय श्रृंखला के स्थलाकृतिक मानचित्रों की संख्या कितनी है?
(A) 2,222
(B) 1,822
(C) 2,144
(D) 2,488
उत्तर:
(A) 2,222

2. सर्वे ऑफ इण्डिया का स्थापना वर्ष है-
(A) सन् 1744
(B) सन् 1755
(C) सन् 1764
(D) सन् 1767
उत्तर:
(D) सन् 1767

3. सर्वे ऑफ इण्डिया का मुख्यालय कहाँ पर स्थित है?
(A) देहरादून में
(B) कोलकाता में
(C) मुम्बई में
(D) इलाहाबाद में
उत्तर:
(A) देहरादून में

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र

4. कृषिकृत भूमि उपयोग को प्रदर्शित करने के लिए किस रंग का प्रयोग किया जाता है?
(A) पीला
(B) हल्का हरा
(C) भूरा
(D) लाल
उत्तर:
(A) पीला

5. मानचित्र पर उच्चावच प्रदर्शित करने की प्रचलित विधि है-
(A) हैश्यूर
(B) पहाड़ी छायाकरण
(C) समोच्च रेखाएँ
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्थलाकृतिक मानचित्र क्या होते हैं?
उत्तर:
स्थलाकृतिक मानचित्र वृहत् पैमाने पर बने बहु-उद्देशीय मानचित्र होते हैं जिन पर प्राकृतिक व सांस्कृतिक लक्षणों के विवरण को देखा जा सकता है।

प्रश्न 2.
अन्तर्राष्ट्रीय श्रृंखला के मानचित्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इस श्रृंखला के मानचित्रों को 1:1000000 अथवा 1:250000 के मापक पर बनाया जाता है। इनका विस्तार 4° अक्षांश तथा 6° देशान्तर होता है। इन मानचित्रों को वन-टू-वन मिलियन शीट भी कहा जाता है।

प्रश्न 3.
स्थलाकृतिक मानचित्रों पर कौन-कौन से विवरण अंकित होते हैं?
उत्तर:
इन मानचित्रों पर भौतिक और सांस्कृतिक विवरण दिखाए जाते हैं; जैसे उच्चावच, अपवाह तन्त्र, जलीय स्वरूप, प्राकृतिक वनस्पति, बस्तियाँ (गाँव, नगर), मार्ग, सड़कें, रेलमार्ग, भवन, स्मारक, संचार-साधन, सीमाएँ, पूजा-स्थल इत्यादि।

प्रश्न 4.
स्थलाकृतिक मानचित्रों पर भौतिक तथा सांस्कृतिक लक्षणों को किस तरीके (विधि) से दिखाया जाता है?
उत्तर:
रूढ़ चिह्नों द्वारा।

प्रश्न 5.
रूढ़ चिह्न क्या होते हैं?
उत्तर:
वे संकेत व प्रतीक जिनके माध्यम से मानचित्रों पर विभिन्न लक्षण प्रदर्शित किए जाते हैं, रूढ़ चिह्न कहलाते हैं।

प्रश्न 6.
स्थलाकृतिक मानचित्रों पर कौन-से प्रमुख भौगोलिक लक्षण नहीं दिखाए जाते हैं?
उत्तर:
जलवायु, तापमान, वर्षा, मिट्टी के प्रकार, चट्टानें, भू-गर्भ, फसलों के अन्तर्गत भूमि, जनसंख्या इत्यादि तत्त्व स्थलाकृतिक मानचित्रों पर नहीं दिखाए जाते।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र

प्रश्न 7.
स्थलाकृतिक मानचित्रों का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
यह सर्वेक्षण के समय की भू-तल की आकृति को हू बहू मानचित्र पर उतार देता है। अतः इसका उपयोग क्षेत्रीय विकास (Regional Development) के लिए खूब किया जाता है।

प्रश्न 8.
सर्वे ऑफ इण्डिया की स्थापना कब हुई थी? इसका मुख्य कार्यालय कहाँ स्थित है?
उत्तर:
इस विभाग की स्थापना सन् 1767 में हुई थी। इसका मुख्य कार्यालय देहरादून में है।

प्रश्न 9.
अन्तर्राष्ट्रीय शृंखला के मानचित्रों की कुल संख्या कितनी है?
उत्तर:
2,2221

प्रश्न 10.
अन्तर्राष्ट्रीय श्रृंखला के मानचित्रों का मापक क्या होता है?
उत्तर:
1:1,000,000; इन्हें एक मिलियन मानचित्र कहते हैं।

प्रश्न 11.
भारत एवं निकटवर्ती देशों की श्रृंखला से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
ये 4° दक्षिण से 40° उत्तर अक्षांश तथा 44° पूर्व से 104° पूर्व देशान्तर के बीच स्थित क्षेत्र के 106 मानचित्र हैं। इनका मापक 1:1,000,000 (मिलियन) है। इनका विस्तार 4° अक्षांश x 4° देशांतर है।

प्रश्न 12.
स्थलाकृतिक मानचित्र किस मापक पर बना होता है?
उत्तर:
वृहत् मापक पर।

प्रश्न 13.
स्थलाकृतिक मानचित्र किस विभाग द्वारा बनाए जाते हैं?
उत्तर:
भारतीय सर्वेक्षण विभाग द्वारा।

प्रश्न 14.
भारतीय सर्वेक्षण विभाग का मुख्यालय कहाँ पर स्थित है?
उत्तर:
देहरादून (उत्तराखंड)।

प्रश्न 15.
भारत के स्थलाकृतिक मानचित्रों की सूची संख्या बताओ।
उत्तर:
40 से 92 तक।

प्रश्न 16.
रूढ़ चिह्नों को मापक के अनुसार क्यों नहीं बनाया जाता?
उत्तर:
मापक के अनुसार बनाने पर अधिकतर लक्षण बहुत छोटे हो जाते हैं।

प्रश्न 17.
स्थलाकृतिक मानचित्रों में किसी क्षेत्र के ढाल का अनुमान कैसे लगता है?
उत्तर:
नदियों की प्रकट दिशा तथा समोच्च रेखाओं से।

प्रश्न 18.
मौसमी नदियों को किस रंग द्वारा प्रदर्शित किया जाता है?
उत्तर:
काले रंग से।

प्रश्न 19.
सड़कों तथा रेलमार्गों के साथ-साथ मिलने वाली बस्तियों का प्रतिरूप कैसा होता है?
उत्तर:
रेखीय प्रतिरूप।

प्रश्न 20.
भू-पत्रकों पर बस्तियों को किस रंग द्वारा दिखाया जाता है?
उत्तर:
लाल रंग से।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्थलाकृतिक मानचित्र क्या होता है?
उत्तर:
स्थलाकृतिक मानचित्र समतल और भूगणितीय सर्वेक्षणों पर आधारित ऐसे बहु-उद्देशीय मानचित्र होते हैं जिन्हें वृहत् मापक (Large Scale) पर बनाया जाता है। इन पर प्राकृतिक व सांस्कृतिक विवरण देखे जा सकते हैं; जैसे धरातल, जल-प्रवाह, वनस्पति, गाँव, नगर, सड़कें, नहरें, रेल लाइनें, पूजा स्थल इत्यादि विस्तारपूर्वक रूढ़ चिह्नों द्वारा प्रदर्शित किए जाते हैं।

प्रश्न 2.
स्थलाकृतिक मानचित्रों की उपयोगिता एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यदि भू-तल पर वितरित विभिन्न भौतिक एवं सांस्कृतिक स्वरूपों में पाए जाने वाले अंतर्संबन्धों (Inter-relationships) का विश्लेषण और व्याख्या करनी हो तो स्थलाकृतिक मानचित्रों से बढ़िया और कोई साधन नहीं है। भौगोलिक अध्ययन के अतिरिक्त ये मानचित्र सैनिक गतिविधियों, प्रशासन, नियोजन, शोध, यात्रा तथा अन्वेषण के लिए भी उपयोगी होते हैं। रक्षा विशेषज्ञों का ऐसा कहना है कि युद्ध की सफलता सेना अधिकारियों द्वारा उस क्षेत्र के स्थलाकृतिक मानचित्रों के गहन अध्ययन पर निर्भर करती है क्योंकि ये मानचित्र भूमि के चप्पे-चप्पे की जानकारी देते हैं। इससे सम्भावित आक्रमण और सुरक्षित स्थानों का अन्दाजा हो जाता है।

प्रश्न 3.
भारत और निकटवर्ती देशों की मानचित्र शृंखला का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत और निकटवर्ती देशों के मानचित्र निम्नलिखित प्रणालियों में तैयार किए गए हैं-
1. एक मिलियन शीट या डिग्री शीट-इस शृंखला के मानचित्रों को 1:1,000,000 के मापक पर बनाया जाता है तथा इनका विस्तार 4° अक्षांश तथा 4° देशान्तर होता है।

2. चौथाई इंच प्रति मील शृंखला-इनका मापक \(\frac { 1 }{ 4 }\) इंच : 1 मील अथवा 1″ : 4 मील या 1:253440 होता है। इसलिए इनको चौथाई इंच शीट या डिग्री शीट भी कहा जाता है। इनका विस्तार 1° अक्षांश से 1° देशान्तर होता है।

3. आधा इंच प्रति मील श्रृंखला-इनका मापक 1/2″ : 1 मील या 1″ : 2 मील या 1:126720 होता है। इनका अक्षांशीय और देशान्तरीय विस्तार आधा डिग्री या 30′ होता है।

4. एक इंच प्रति मील शृंखला-इन मानचित्रों का मापक 1 इंच : 1 मील अथवा 1:63360 होता है तथा इनका अक्षांशीय और देशान्तरीय विस्तार 15′ होता है।

5. 1:25,000 मापक की शृंखला-इन्हें चौथाई डिग्री शीट वाले मानचित्र भी कहा जाता है। इनका मापक 1:50,000 होता है। इनका अक्षांशीय विस्तार 5′ तथा देशान्तरीय विस्तार 7V’ होता है।

प्रश्न 4.
उच्चावच को प्रदर्शित करने की विधियों के नाम बताइए।
उत्तर:
मानचित्र पर भू-तल के प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक लक्षणों का चित्रण भूगोल का एक अभिन्न अंग है। धरातल पर कहीं पर्वत, पठार, समतल मैदान तथा घाटियाँ हैं। अतः धरातलीय उच्चावच को प्रदर्शित करना भूगोलवेत्ता का महत्त्वपूर्ण कार्य है। इसको प्रदर्शित करने की निम्नलिखित विधियाँ हैं-

  • हैश्यूर (Hachures)
  • स्थानिक ऊँचाइयाँ, तल चिह्न एवं त्रिकोणमितीय स्टेशन (Spot Heights, Bench Marks and Trigonometrical Stations)
  • पहाड़ी छायाकरण (Hill Shading)
  • स्तर वर्ण (Layer Tints)
  • भू-आकृति चिह्न (Physiographic Symbols)
  • समोच्च रेखाएँ (Contours)
  • खंडित रेखाएँ (Form lines)
  • मिश्रित विधियाँ (Mixed Methods) आदि।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र

प्रश्न 5.
समोच्च रेखाओं से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
समोच्च रेखाएँ वे कल्पित रेखाएँ हैं जो समुद्र-तल से ऊँचाई वाले स्थानों को मिलाती है। (A Contour is an imaginary line which joins place of equal altitude above the sea level.) अतः 200 मीटर वाली समोच्च रेखा का तात्पर्य इस समोच्च रेखा से है जो समुद्र की सतह से 200 मीटर वाले स्थानों को मिलाकर खींची जाती है। इन्हें एक निश्चित अन्तराल पर खींचा जाता है।

प्रश्न 6.
समोच्च रेखाओं की क्या विशेषताएँ (लक्षण) हैं?
उत्तर:
समोच्च रेखाओं की निम्नलिखित विशेषताएँ (लक्षण) हैं-

  • समोच्च रेखाएँ मानचित्र में वक्राकार होती हैं।
  • ये समुद्र-तल से समान ऊँचाई वाले स्थानों को मिलाती हैं।
  • ये रेखाएँ तो मिल जाती हैं परन्तु एक-दूसरे को काटती नहीं हैं। ये रेखाएँ जल-प्रपात के स्थान पर मिल जाती हैं, केवल प्रलम्बी भृगु (Over hanging clif) की समोच्च रेखाएँ एक-दूसरे को काटती हैं।
  • किसी स्थान का उच्चावच इन रेखाओं की सहायता से किया जाता है।
  • ये निश्चित उर्ध्वाकार अन्तराल पर खींची जाती हैं। इनके द्वारा दो स्थानों के बीच ऊँचाई का स्पष्ट एवं सही ज्ञान हो जाता है।
  • जब समोच्च रेखाएँ पास-पास हों तो ढाल तीव्र तथा जब इनकी आपसी दूरी अधिक हो तो ढाल मन्द होती है।

प्रश्न 7.
समोच्च रेखाओं के गुण और दोष क्या हैं?
उत्तर:
गुण समोच्च रेखाओं के गुण निम्नलिखित हैं-

  • इस विधि द्वारा विभिन्न भू-आकृतियाँ सरलता से दिखाई जा सकती हैं।
  • इस उच्चावच को दर्शाने की सर्वोत्तम विधि है।
  • समोच्च रेखाओं द्वारा किसी भी क्षेत्र की ऊँचाई तथा ढाल ज्ञात की जा सकती है।
  • यह एक शुद्ध विधि है।

दोष समोच्च रेखाओं के दोष निम्नलिखित हैं-

  • ऊर्ध्वाधर अन्तराल अधिक होने पर छोटी-छोटी भू-आकृतियों को इस विधि द्वारा मानचित्र पर नहीं दर्शाया जा सकता।
  • इस विधि द्वारा पर्वतीय तथा मैदानी क्षेत्रों को साथ-साथ दिखाने में कठिनाई होती है।

प्रश्न 8.
ऊर्ध्वाधर अन्तराल किसे कहते हैं?
उत्तर:
किन्हीं दो समोच्च रेखाओं के मध्य ऊँचाई का जो अन्तर होता है, उसे ऊर्ध्वाधर अन्तराल कहते हैं। (Vertical interval is the difference of height between any two successive contours.) इसे संक्षेप में V.I. कहते हैं। यह हमेशा स्थिर रहता है तथा इसे मीटर तथा फुट में दिखाया जाता है। मानचित्र पर समोच्च रेखाएँ भूरे रंग से 20, 50, 100 तथा 200 मीटर अथवा फुट के अन्तर पर खींची जाती हैं।

प्रश्न 9.
क्षैतिज तुल्यमान किसे कहते हैं?
उत्तर:
दो समोच्च रेखाओं के बीच क्षैतिज दूरी को क्षैतिज तुल्यमान कहते हैं। (Horizontal equivalent is the horizontal distance between any two successive contours.) इसे H.E. से पुकारा जाता है। यह ढाल के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। यदि ढाल अधिक है तो समोच्च रेखाओं के मध्य की दूरी कम होगी और यदि ढाल कम है तो इनके बीच की दूरी अधिक होगी। पर्वतीय क्षेत्रों की समोच्च रेखाएँ पास-पास होती हैं। इसलिए ऐसे क्षेत्रों की समोच्च रेखाओं का क्षैतिज तुल्यमान कम तथा मैदानी क्षेत्रों में यह अधिक होता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
परिच्छेदिका किसे कहते हैं? परिच्छेदिका खींचने की सचित्र व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
परिच्छेदिका अथवा अनुप्रस्थ काट (Profile or Cross-Section)-“समोच्च रेखा मानचित्र पर किसी दी गई पार्श्व रेखा के सहारे भू-तल की बाहरी रूपरेखा को परिच्छेदिका कहते हैं।” इसे अनुप्रस्थ काट अथवा पार्श्व चित्र भी कहते हैं। परिच्छेदिका समझ सकते हैं। मान लीजिए धरातल पर किसी स्थलरूप को एक सरल रेखा के सहारे खड़े तल में ऊपर से नीचे काटकर उसके एक भाग को हटा दिया जाए तो बचे हुए भाग का ऊपरी किनारा या सीमा रेखा उस स्थल की परिच्छेदिका को प्रकट करेगा। जिस सरल रेखा के सहारे स्थलरूप को काटा गया है वह उस परिच्छेदिका की काट-रेखा (Line of Section) कहलाती है। काट-रेखा के बारे में उल्लेखनीय है कि इसे सरल रेखा के रूप में सीधा या तिरछा किसी भी दिशा में खींचा जा सकता है।

परिच्छेदिका खींचना – मान लो एक समोच्च रेखा मानचित्र में AB, CD, EF तथा GH चार समोच्च रेखाएं दी हुई हैं। (चित्र 6.1) तथा AB रेखा के साथ इसकी परिच्छेदिका खींचनी है।

  • सर्वप्रथम A तथा B बिंदुओं को मिलाते हुए एक सरल रेखा इस प्रकार खींचो कि वह समोच्च रेखाओं को C, D, E, F, G तथा H बिंदुओं पर काटे।
  • मानचित्र के नीचे एक अन्य रेखा A B लो जिसकी लंबाई AB रेखा के बराबर हो। यह रेखा परिच्छेदिका की आधार रेखा होगी।
    A तथा B बिंदुओं से नीचे की ओर AA’ तथा BB’ दो लंब गिराओ।
  • इन लंबवत रेखाओं के सहारे आधार रेखा से ऊपर की ओर समान दूरी पर किसी मापनी के अनुसार 200, 300, 400, 500 व 600 मीटर की ऊंचाई दिखाने वाली रेखाएं खींचो जो A B के समानांतर हों। ये रेखाएं ऊर्ध्वाधर अंतराल V.I. को प्रकट करती हैं।
  • अब A व B,C व D, E व F तथा G व H से AA’ व BB’, CC’ व DD’, EE’ व FF’ तथा GG’ व HH क्रमशः 200, 300, 400 तथा 500 मीटर वाली रेखाओं पर लंब गिराओ।
  • A, C, E’,G’, H’, F’, D’ तथा B’ को मिलाने वाली वक्र रेखा परिच्छेदिका का निर्माण करेगी।

परिच्छेदिका खींचते समय क्षैतिज मापक (Horizontal Scale) की तुलना में ऊर्ध्वाधर मापक (Vertical Scale) का 5 से 10 गुना तक परिवर्धन कर लिया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि परिच्छेदिका द्वारा ढाल और भू-आकृति की रूपरेखा स्पष्ट और प्रभावशाली ढंग से उभरकर सामने आए।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र 1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित भू-आकृतियों को समोच्च रेखाओं द्वारा प्रदर्शित करो तथा इनकी परिच्छेदिका भी खींचो :
(1) समढाल (Uniform Slope)
(2) नतोदर ढाल (Concave Slope)
(3) उन्नतोदर ढाल (Convex Slope)
(4) सीढ़ीनुमा ढाल (Terraced Slope)
(5) विषम ढाल (Undulating Slope)।
उत्तर:
1. समढाल (Uniform Slope)-जिन प्रदेशों में ढाल में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आता, ढाल सभी जगह एक जैसा
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र 2
ही रहता है अथवा ढाल में शनैःशनैः परिवर्तन आता है, उसे समढाल (Uniform Slope) कहते हैं। इसमें समोच्च रेखाओं के बीच की दूरी बराबर रहती है। (चित्र 6.2)

2. नतोदर ढाल (Concave Slope) पर्वतीय क्षेत्रों में शिखर के तीव्र ढाल तथा गिरीपद क्षेत्र में मन्द ढाल होते हैं। इसलिए शिखर के पास समोच्च रेखाएँ पास-पास तथा गिरीपद के निकट ये दूर-दूर होती हैं। (चित्र 6.3)
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र 3
3. उन्नतोदर ढाल (Convex Slope)-इसमें ढाल का क्रम नतोदर के ठीक विपरीत होता है। शिखर के निकट ढाल मन्द तथा गिरीपद के निकट तीव्र ढाल होता है। शिखर के निकट समोच्च रेखाएँ दूर-दूर तथा गिरीपद के निकट ये रेखाएँ पास-पास होती हैं। (चित्र 6.4)

4. सीढ़ीनुमा ढाल (Terraced Slope)-इसमें समोच्च रेखाएँ जोड़ों में होती हैं। इसमें कहीं पर ढाल समतल तथा कहीं सीढ़ीनुमा या सोपानी होता है। इसलिए इसमें दो रेखाएँ एक युग्म के रूप में पास-पास होती हैं। (चित्र 6.5)

5. विषम ढाल (Undulating Slope)-इसे तरंगित ढाल भी कहते हैं। इसमें ढाल कहीं तीव्र तथा कहीं मन्द होता है, कहीं पर ढाल नतोदर तथा कहीं उन्नतोदर होता है। एक लहर या तरंग की भाँति विषम ढाल असमान होता है, उसे विषम ढाल कहते हैं। (चित्र 6.6)

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र

प्रश्न 3.
समोच्च रेखाओं द्वारा निम्नलिखित भू-आकृतियों का प्रदर्शन करें।
(1) पठार (Plateau)
(2) शंक्वाकार पहाड़ी (Conical Hill)
(3) कटक (Ridge)
(4) स्कन्ध (Spur)
(5) V-आकार की घाटी (V-Shaped Valley)
(6) जलप्रपात (Waterfall)
(7) समुद्री भृगु (Sea Cliff)।
उत्तर:
1. पठार (Plateau)-पठार भू-तल का एक मेजनुमा भू-भाग है, जिसके पार्श्व खड़े ढाल वाले होते हैं। इसीलिए किनारों पर समोच्च रेखाएँ पास-पास तथा मध्यवर्ती भाग समतल होने के कारण नहीं पाई जाती हैं। (चित्र 6.7)

2. शंक्वाकार पहाड़ी (Conical Hill)-यह एक पहाड़ी भू-आकृति है, जिसमें चारों ओर ढाल प्रायः एक समान होता है। समोच्च रेखाएँ समान दूरी पर होती हैं। पहाड़ी त्रिभुजाकार शिखर संकरे तथा आधार चौड़े होते हैं। (चित्र 6.8)

3. कटक (Ridge)-एक ऊँची पहाड़ी जो श्रृंखला के रूप में लम्बाई में विस्तृत हो कटक कहलाती है। यह प्रायः संकरी होती है। इनको प्रायः अण्डाकार समोच्च रेखाओं द्वारा दिखाया जाता है। इसके किनारों के ढाल तीव्र होते हैं तथा दीर्घवृत्तों वाली समोच्च रेखाओं द्वारा प्रदर्शित किए जाते हैं। (चित्र 6.9)
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र 4
4. स्कन्ध (Spur) उच्च प्रदेशों में निम्न प्रदेशों की ओर एक जिह्वा की भाँति निकली स्थलाकृति को स्कन्ध कहते हैं। इसकी समोच्च रेखाएँ अंग्रेजी के अक्षर V की तरह होती हैं। (चित्र 6.10)

5. V-आकार की घाटी (V-Shaped Valley)-यह नदी द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों में बनने वाली महत्त्वपूर्ण स्थलाकृति है, इससे प्रदर्शित समोच्च रेखाओं का आकार V की तरह होता है तथा बाहर से अन्दर को उनका मान कम होता जाता है। नदी की तलहटी के कटाव के कारण घाटी निरन्तर गहरी होती चली जाती है तथा पार्श्व खड़े रहते हैं। (चित्र 6.11)
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र 5

6. जलप्रपात (Waterfall)-जलप्रपात भी नदी के अपरदन के कारण नदी द्वारा प्रारम्भिक अवस्था में बनने वाली आकर्षक स्थलाकृति है। जब नदी के अपरदन द्वारा कोमल चट्टान कटकर निम्न हो जाती है तो जलप्रपात का निर्माण होता है। जहाँ पर पानी गिरता है वहाँ दो या दो से अधिक समोच्च रेखाएँ आकर मिल जाती हैं क्योंकि ढाल लगभग 90° के आस-पास होता है। (चित्र 6.12)
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र 6

7. समुद्री भृगु (Sea Cliff)-सागरीय तट के खड़े ढाल वाली चट्टान, जो मुख्य रूप से किसी सागर तट में ऊर्ध्वाधर दिशा में होती है, को भृगु कहते हैं। इसमें कम ऊँचाई दिखाने वाली समोच्च रेखाएँ मिली होती हैं। ये खड़े ढाल को प्रदर्शित करती हैं। उच्च भूमि की समोच्च रेखाएँ दूर-दूर होती हैं। ये मन्द ढाल दर्शाती हैं। (चित्र 6.13)
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र 7

प्रश्न 4.
भारत में प्रकाशित होने वाले स्थलाकृतिक मानचित्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में प्रकाशित स्थलाकृतिक मानचित्र-
1. अन्तर्राष्ट्रीय शृंखला (International Series)-इस श्रृंखला के मानचित्र 1:1,000,000 मापक पर बनाए गए हैं। 60° उत्तरी व 60° दक्षिणी अक्षांशों के बीच स्थित क्षेत्रों के प्रत्येक मानचित्र का विस्तार 4° अक्षांश तथा 6° देशान्तर है। इस श्रृंखला में पूरे विश्व के 2,222 मानचित्र बनने हैं। इन मानचित्रों को 1/IM या one-to-one million sheets भी कहा जाता है। इनमें ऊँचाई मीटरों में दर्शायी जाती है। यह शृंखला अन्तर्राष्ट्रीय समझौते के अन्तर्गत बनाई गई है।

2. भारत एवं निकटवर्ती देशों की श्रृंखला (India and Adjacent Countries Series) इस श्रृंखला के मानचित्रों का मापक भी 1:1,000,000 है, परन्तु इसमें प्रत्येक मानचित्र का विस्तार 4° अक्षांश तथा 4° देशान्तर है। इनकी संख्या 1 से 106 तक है जिनके अन्तर्गत भारतीय उपमहाद्वीप के अतिरिक्त ईरान, अफगानिस्तान, म्याँमार, तिब्बत व चीन के कुछ भाग शामिल होते हैं। भारतीय क्षेत्र के मानचित्रों की संख्या 38 है जो क्रम संख्या 40 से 92 के बीच पाए जाते हैं।

इन संख्याओं को सूचक संख्याएँ (Index Number) कहा जाता है। वर्तमान में इस श्रृंखला का प्रकाशन बन्द हो चुका है। इसके बावजूद भी यह श्रृंखला भारत में छपने वाली अन्य सभी शृंखलाओं का आधार है। इस शृंखला के प्रत्येक मानचित्र को 4 डिग्री शीट या एक मिलियन शीट कहते हैं।

3. चौथाई इंच प्रति मील शृंखला (Quarter Inch or Degree Sheets)- 4°x4° शीट जब किसी 4°x 4° शीट अर्थात् एक मिलियन शीट (जैसे 55 या 57 या 73 कोई 24° भी जो भारत व निकटवर्ती देशों की श्रृंखला में आती है) को 16 बराबर स्थलाकृतिक मानचित्रों में बाँटेंगे तो प्रत्येक मानचित्र 1° अक्षांश x1° देशान्तर द्वारा घेरे हुए क्षेत्र को दिखाएगा। अतः ऐसी प्रत्येक शीट को डिग्री शीट या चौथाई इंच शीट कहा जाता है।

इनका मापक \(\frac { 1 }{ 4 }\) इंच : 1 मील अथवा 1 इंच : 4 मील अर्थात् 1:253,440 होता है। (63,360 x 4 = 253,440)। इन मानचित्रों में समोच्च रेखाओं का अन्तराल 250 फुट होता है। इन डिग्री शीटों का अंकन करने के लिए अंग्रेजी A के P से 16 है। तक अक्षरों का प्रयोग किया जाता है; जैसे 55A, 55B, 55C तथा 55D आदि 76° (चित्र 6.14)।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र 8
इन मानचित्रों का नवीन संस्करण मीट्रिक प्रणाली में छापा गया है जिनका मापक 1:250,000 तथा समोच्च रेखाओं का अन्तराल 100 मीटर होता है।

4. आधा इंच प्रति मील श्रृंखला (Half Inch or Half Degree Sheets) जब किसी चौथाई इंच शीट या डिग्री शीट को चार बराबर भागों में बाँटेगें तो इनमें से प्रत्येक आधा डिग्री शीट होगी अर्थात् अक्षांशीय और देशान्तरीय विस्तार आधा डिग्री या 30 होगा। इसका मापक \(\frac { 1″ }{ 2 }\) : 1 मील या 1″ : 2 मील अर्थात् 1:126,720 होता है। (63,360 x 2 = 126,720)। इन पत्रकों में समोच्च रेखाओं का अन्तराल 100 फुट होता है। इन चार भागों में प्रत्येक को उसकी दिशानुसार अंकित किया जाता है; जैसे 55\(\frac { P }{ MW }\), 55\(\frac { P }{ NE }\)इत्यादि (चित्र 6.15)। मेट्रिक प्रणाली के अन्तर्गत इन मानचित्रों का मापक 1 : 100,000 रखा गया है।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र 9
इन मानचित्रों का प्रकाशन अब बन्द हो गया है।

5. एक इंच प्रति मील शृंखला (One Inch or Quarter Degree Sheets)-जब किसी चौथाई इंच या डिग्री शीट (जैसे 55P) को 16 बराबर भागों में बाँटते हैं तो प्रत्येक मानचित्र का 45° अक्षांशीय और देशान्तरीय विस्तार 15′ होगा। इन 16 मानचित्रों को 1 से 16 तक संख्याओं द्वारा 30 अंकित किया जाता है; जैसे 55 P/1, 55 P/2, 55 P/3 …… 55 P/16 इत्यादि। इन मानचित्रों का मापक 1 इंच : 1 मील अथवा 1:63,360 तथा समोच्च रेखाओं का अन्तराल 50 फुट होता है। मौद्रिक प्रणाली में बने इस श्रृंखला के नए मानचित्रों का मापक 1:50,000 तथा समोच्च -0761530 4577 रेखाओं का अन्तराल 20 मीटर होता है। (चित्र 6.16)
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र 10

6. 1 : 25,000 मापक की श्रृंखला (Series of 1:25000 scale)- स्थलाकृतिक मानचित्रों की यह एक नई श्रृंखला है जिसमें एक इंच या चौथाई डिग्री शीट या 1 : 50,000 मापक वाली शीट (जैसे 55 P/7) को छः बराबर भागों में बाँटा जाता है।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र 11

इसका प्रत्येक भाग 5′ अक्षांशीय तथा 7 – देशान्तीय विस्तार वाला होता है। इन 6 मानचित्रों पर क्रमशः 1, 2, 3, 4, 5 व 6 इस प्रकार लिखा जाता है-55 P/7/1, 55 P/7/2, 55 P/7/6 इत्यादि। इन मानचित्रों को 1:25,000 मानचित्र भी कहा जाता है (चित्र 6.17)।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र 12

रूढ़ चिहन एवं प्रतीक [Conventional Signs and Symbols]
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र 13

स्थलाकृतिक मानचित्र HBSE 11th Class Geography Notes

→ स्थलाकृतिक मानचित्र (Topographical Maps) यह एक दीर्घमापक पर बनाया गया बहुउद्देशीय मानचित्र है।

→ रूढ़ चिहन (Conventional Signs)-स्थलाकृतिक मानचित्रों पर विभिन्न भौतिक एवं सांस्कृतिक लक्षणों को जिन सर्वमान्य और परम्परागत चिह्नों, संकेतों व प्रतीकों की सहायता से प्रदर्शित किया जाता है, उन्हें रूढ़ चिह्न कहते हैं। समोच्च रेखाएँ (Contours)-समोच्च रेखाएँ वे कल्पित रेखाएँ हैं जो माध्य समुद्र-तल से समान ऊँचाई वाले समीपस्थ स्थानों को मिलाती हैं।

→ ऊर्ध्वाधर अन्तराल (Vertical Interval) किन्हीं दो उत्तरोत्तर समोच्च रेखाओं के बीच लम्बवत् ऊँचाई के अंतर को ऊर्ध्वाधर अन्तराल कहा जाता है।

→ क्षैतिज तुल्यमान (Horizontal Equivalent)-किन्हीं दो उत्तरोत्तर समोच्च रेखाओं के बीच क्षैतिज दूरी को क्षतिज तुल्यमान कहा जाता है।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Practical Work in Geography Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. मानचित्र प्रक्षेप, जो कि विश्व के मानचित्र के लिए न्यूनतम उपयोगी है।
(A) मर्केटर
(B) बेलनी
(C) शंकु
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) बेलनी

2. एक मानचित्र प्रक्षेप, जो न समक्षेत्र हो एवं न ही शुद्ध आकार वाला हो तथा जिसकी दिशा भी शुद्ध नहीं होती है।
(A) शंकु
(B) ध्रुवीय शिराबिंदु
(C) मर्केटर
(D) बेलनी
उत्तर:
(A) शंकु

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप

3. एक मानचित्र प्रक्षेप, जिसमें दिशा एवं आकृति शुद्ध होती है, लेकिन ध्रुवों की ओर यह बहुत अधिक विकृत हो जाती है।
(A) बेलनाकार समक्षेत्र
(B) मर्केटर
(C) शंकु
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) मर्केटर

4. जब प्रकाश के स्रोत को ग्लोब के मध्य रखा जाता है, तब प्राप्त प्रक्षेप को कहते हैं-
(A) लंबकोणीय
(B) त्रिविम
(C) नोमॉनिक
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) नोमॉनिक

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रक्षेप (Projection) का शाब्दिक अर्थ क्या होता है? उदाहरण देकर समझाएं।
उत्तर:
किसी पारदर्शी (Transparent) कागज़ या फिल्म पर अंकित चित्र, शब्दों या सूत्रों को प्रकाश की सहायता से कुछ दूरी पर स्थित दीवार या पर्दे पर प्रदर्शित करने की क्रिया को प्रक्षेप कहा जाता है। उदाहरणतः सिनेमा के पर्दे पर आने वाले चित्र या शब्द किसी फिल्म पर अंकित होते हैं, जिन्हें Projector की सहायता से पर्दे पर प्रक्षेपित किया जाता है।

प्रश्न 2.
मानचित्र प्रक्षेप को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
प्रकाश अथवा गणितीय विधियों द्वारा ग्लोब की अक्षांश व देशांतर रेखाओं के जाल का कागज़ या किसी समतल सतह पर प्रदर्शन मानचित्र प्रक्षेप कहलाता है।

प्रश्न 3.
प्रक्षेप बनाना क्यों जरूरी होता है?
उत्तर:
ग्लोब से मानचित्र बनाने के लिए कागज़ पर अक्षांश-देशांतर रेखाओं के जाल अर्थात् प्रक्षेप की ज़रूरत पड़ती है।

प्रश्न 4.
विकासनीय और अविकासनीय पृष्ठ क्या होते हैं?
उत्तर:
ऐसे तत्त्व (Surfaces) जिन्हें फैलाकर समतल किया जा सकता है, विकासनीय पृष्ठ या तल कहलाते हैं; जैसे बेलन तथा शंकु। अविकासनीय पृष्ठ वे होते हैं, जिन्हें काटकर समतल रूप में नहीं फैलाया जा सकता, जैसे गोला (Sphere)।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप

प्रश्न 5.
“ग्लोब को सर्वगुण संपन्न कहते हैं किंतु मानचित्र को नहीं।” ऐसा क्यों?
उत्तर:
ग्लोब पृथ्वी को शुद्ध रूप से प्रदर्शित करता है, इसलिए सर्वगुण संपन्न माना जाता है। मानचित्र पर पृथ्वी के क्षेत्र, आकार, दिशा और दूरी जैसी विशेषताएं शुद्ध नहीं रह पातीं। इसलिए मानचित्र त्रुटिपूर्ण होता है।

प्रश्न 6.
अक्षांश और अक्षांश रेखाओं में क्या फर्क है?
उत्तर:
किसी स्थान की भूमध्य रेखा से उत्तर व दक्षिण की ओर कोणात्मक दूरी को उस स्थान का अक्षांश कहते हैं। समान अक्षांश वाले स्थानों को मिलाने वाली कल्पित रेखा को अक्षांश रेखा कहते हैं।

प्रश्न 7.
देशांतर और देशांतर रेखा में क्या अंतर होता है?
उत्तर:
किसी स्थान की प्रधान देशांतर रेखा से पूर्व या पश्चिम की ओर कोणात्मक दूरी को उस स्थान का देशांतर कहते हैं। समान देशांतर वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा या अर्धवृत्त को देशांतर रेखा कहते हैं।

प्रश्न 8.
प्रधान देशांतर रेखा किसे कहते हैं?
उत्तर:
लंदन में स्थित ग्रीनिच रॉयल वेधशाला से होकर जाने वाली देशांतर रेखा को 0° देशांतर या प्रधान देशांतर रेखा या प्रधान मध्याह्न रेखा कहा जाता है।

प्रश्न 9.
भारत में किस देशांतर रेखा को मानक देशांतर रेखा कहा जाता है?
उत्तर:
82 1/2° पूर्वी देशांतर।

प्रश्न 10.
गणों के अनुसार प्रक्षेप कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:

  1. शुद्ध क्षेत्रफल प्रक्षेप
  2. शुद्ध आकृति प्रक्षेप
  3. शुद्ध दिशा प्रक्षेप
  4. शुद्ध दूरी प्रक्षेप।

प्रश्न 11.
रचना विधि के अनुसार प्रक्षेप कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:

  1. बेलनाकार प्रक्षेप
  2. शंक्वाकार प्रक्षेप
  3. शिरोबिंदु प्रक्षेप
  4. रूढ़ प्रक्षेप।

प्रश्न 12.
मापक के अनुसार ग्लोब का अर्धव्यास (r) कैसे निकाला जाता है?
उत्तर:
ग्लोब का अर्धव्यास (r) = प्रदर्शक भिन्न x पृथ्वी का वास्तविक अर्धव्यास।

प्रश्न 13.
इंचों और सेंटीमीटरों में पृथ्वी का वास्तविक अर्धव्यास बताओ।
उत्तर:
इंचों में लगभग 250,000,000 इंच तथा सेंटीमीटरों में 640,000,000 सें०मी०।

प्रश्न 14.
बेलनाकार प्रक्षेप में दो देशांतर रेखाओं के बीच की दूरी कैसे ज्ञात करते हैं?
उत्तर:
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप 1

प्रश्न 15.
बेलनाकार प्रक्षेप पर किन क्षेत्रों को सही ढंग से दिखाया जा सकता है?
उत्तर:
भूमध्यरेखीय क्षेत्रों को।

प्रश्न 16.
शंक्वाकार प्रक्षेपों में मानक अक्षांश (Standard Parallel) क्या होता है?
उत्तर:
ग्लोब की वह अक्षांश रेखा जिसे कागज़ से बने खोखले शंकु का भीतरी तल स्पर्श करता है, मानक अक्षांश कहलाता है।

प्रश्न 17.
एक मानक अक्षांश वाला शंक्वाकार प्रक्षेप किस क्षेत्र को दिखाने के लिए बढ़िया होता है?
उत्तर:
शीतोष्ण कटिबंधों के कम अक्षांशीय विस्तार तथा अधिक देशांतरीय विस्तार वाले क्षेत्रों के लिए।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप

प्रश्न 18.
मर्केटर प्रक्षेप का दूसरा नाम बताइए।
उत्तर:
बेलनाकार समरूप या शुद्ध आकृति प्रक्षेप।

प्रश्न 19.
मर्केटर प्रक्षेप के दो प्रमुख गुण बताइए।
उत्तर:

  1. शुद्ध आकृति (Orthomorphic)
  2. शुद्ध दिशा (True Direction)।

प्रश्न 20.
मर्केटर प्रक्षेप के दो अवगुण (दोष/कमियाँ/सीमाएँ) बताइए।
उत्तर:

  1. ध्रुवों की ओर अक्षांशीय मापक बढ़ने से क्षेत्रफल बहुत ज्यादा बढ़ जाता है।
  2. इस पर ध्रुवों पर प्रदर्शन नहीं हो सकता।

प्रश्न 21.
लोक्सोड्रोम या एकदिश नौपथ क्या होता है?
उत्तर:
मर्केटर प्रक्षेप पर स्थिर दिक्मान की रेखा (Line of Constant Bearing) को एकदिश नौपथ कहा जाता है।

प्रश्न 22.
मर्केटर प्रक्षेप पर बृहत वृत का आकार कैसा होता है?
उत्तर:
भूमध्य रेखा तथा समस्त देशांतर रेखाओं पर बृहत वृत सरल रेखाओं के रूप में होते हैं, जबकि अन्य बृहत वृत वक्राकार होते हैं, जिनके वक्र ध्रुवों की ओर होते हैं।

प्रश्न 23.
मर्केटर प्रक्षेप पर लोक्सोड्रोम का आकार कैसा होता है?
उत्तर:
सरल रेखा।

प्रश्न 24.
मानक अक्षांश की क्या विशेषता होती है?
उत्तर:
मानक अक्षांश पर मापक शुद्ध होता है।

प्रश्न 25.
निम्नलिखित में रिक्त स्थानों की पूर्ति उचित शब्दों द्वारा करो-

  1. मानचित्रों में पृथ्वी की गोलाकार आकृति प्रदर्शित करने से पहले ………. रेखाओं का जाल बनाना ज़रूरी होता है।
  2. ……….. पृष्ठ वे होते हैं जिन्हें फैलाकर समतल किया जा सकता है।
  3. ग्लोब एक ……….. पृष्ठ है।
  4. प्रधान मध्याह्न रेखा से पूर्व में ……….. देशांतर रेखाएं और पश्चिम में ……….. देशांतर रेखाएं होती हैं।
  5. ……….. स्थान से गुज़रने वाली देशांतर रेखा प्रधान देशांतर रेखा कहलाती है।
  6. सबसे बड़ी अक्षांश रेखा ……….. होती है।
  7. वह अक्षांश रेखा जिसे कागज़ के खोखले शंकु का भीतरी तल स्पर्श करता है ………. कहलाती है।
  8. सागरीय धाराओं को ……….. प्रक्षेप द्वारा प्रदर्शित करते हैं।
  9. पूर्व-पश्चिम दिशा में संकरी पट्टी में फैले क्षेत्रों के लिए ……….. प्रक्षेप उपयुक्त होता है।

उत्तर:

  1. अक्षांश व देशांतर
  2. विकासनीय
  3. अविकासनीय
  4. 180, 180
  5. ग्रीनिच
  6. भूमध्य रेखा
  7. मानक अक्षांश
    मर्केटर
  8. एक मानक वाला साधारण शंक्वाकार।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानचित्र प्रक्षेप क्या है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मानचित्र प्रक्षेप का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मानचित्र प्रक्षेप को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
मानचित्र प्रक्षेप का अर्थ (Meaning of Map Projection) ग्लोब, पृथ्वी का सबसे अच्छा प्रतिरूप है। यह त्रिविम है। ग्लोब के इसी गुण के कारण महाद्वीपों एवं महासागरों के सही आकार एवं प्रकार को इस पर दिखाया जाता है। यह दिशा एवं दूरी की भी सही-सही जानकारी प्रदान करता है। ग्लोब अक्षांश एवं देशांतर रेखाओं के द्वारा विभिन्न खंडों में विभाजित होता है। क्षैतिज रेखाएं अक्षांश के समांतरों एवं ऊर्ध्वाधर रेखाएं देशांतर के याम्योत्तरों को दर्शाती हैं। इस जाल को रेखा जाल (Graticule) के नाम से भी जाना जाता है। यह जाल मानचित्रों को बनाने में सहायक होता है। अतः गोलाकार पृष्ठ से अक्षांशों एवं देशांतरों के जाल के समतल सतह पर स्थानांतरण करना मानचित्र प्रक्षेप कहलाता है।

ग्लोब पर देशांतर अर्द्धवृत्त एवं अक्षांश पूर्णवृत्त होते हैं। जब उन्हें समतल सतह पर स्थानांतरित किया जाता है, तब वे सीधी या वक्र प्रतिच्छेदी रेखाएं बनाते हैं। इतना समझ लेने के बाद अब हम मानचित्र प्रक्षेप की परिभाषा दे सकते हैं “गोलाकार पृथ्वी अथवा उसके किसी बड़े भाग का मानचित्र बनाने के लिए प्रकाश अथवा किसी ज्यामितीय विधि के द्वारा कागज़ या किसी समतल सतह पर खींचे गए ग्लोब की अक्षांश-देशांतर रेखाओं का जाल (Graticule) मानचित्र-प्रक्षेप कहलाता है।”

प्रश्न 2.
मानचित्र प्रक्षेप की आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ग्लोब के प्रयोग में अनेक दिक्कतें हैं जैसे ग्लोब पर छोटे स्थानों का विस्तृत विवरण नहीं दिखाया जा सकता। इसी प्रकार, ग्लोब पर यदि दो प्राकृतिक प्रदेशों की तुलना करनी हो तो यह काम कठिन हो जाता है। इसलिए यह बहुत जरूरी हो जाता है कि समतल पृष्ठ पर बड़ी मापनी के मानचित्र बनाकर भू-आकारों का सही-सही चित्रण किया जाए।

अब, प्रश्न यह उठता है कि अक्षांश एवं देशांतर रेखाओं को समतल सतह पर कैसे स्थानांतरित किया जाए। यदि हम एक समतल पृष्ठ को ग्लोब पर चिपकाए, तो यह एक बड़े भाग पर बिना विकृति के सतह के अनुरूप नहीं बैठेगा। ग्लोब के केंद्र से प्रकाश डालने पर प्रक्षेपित छायांकन, ग्लोब पर कागज के स्पर्श बिंदु या स्पर्श रेखा से दूर विकृत हो जाएगा। स्पर्श बिंदु या स्पर्श रेखा से बढ़ती दूरी के साथ-साथ विकृति में वृद्धि हो जाती है। यही कारण है कि मानचित्र पर क्षेत्र (Area), आकार (Shape), दिशा (Direction) और दूरी (Distance) जैसी सभी विशेषताएं उस तरह शुद्ध नहीं रह पातीं जिस तरह वे ग्लोब पर होती हैं। इसका कारण यह है कि ग्लोब एक विकासनीय पृष्ठ नहीं है।

प्रश्न 3.
विकासनीय और अविकासनीय पृष्ठ क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कुछ पृष्ठ या तल (Surfaces) ऐसे होते हैं जिन्हें हम फैलाकर समतल नहीं कर सकते और न ही उनके गिर्द बिना मोड़ अथवा बल (Fold) के कागज़ लपेटा जा सकता है। ऐसे पृष्ठों को अविकासनीय पृष्ठ या तल कहते हैं। गोला-(Sphere) एक ऐसा ही तल है (चित्र 5.1 और 5.2)।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप 2

प्रश्न 4.
मानचित्र प्रक्षेप के तत्त्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानचित्र प्रक्षेप के तत्त्व निम्नलिखित हैं
1. पृथ्वी का छोटा रूप-प्रक्षेप को पृथ्वी के मॉडल के रूप में छोटी मापनी की सहायता से कागज की समतल सतह पर उतारा जाता है। यह मॉडल लगभग गोलाभ होना चाहिए, जिसमें ध्रुव का व्यास विषुवतीय व्यास से छोटा हो।

2. अक्षांश के समांतर-ये ग्लोब के चारों ओर स्थित वे वृत्त हैं, जो विषुवत वृत के समांतर एवं ध्रुवों से समान दूरी पर स्थित होते हैं। प्रत्येक समांतर इसकी सतह पर स्थित होता है, जो कि पृथ्वी की धुरी से समकोण बनाती है। अक्षांश रेखाएं एक समान लंबाई की नहीं होती हैं। इनका विस्तार ध्रुव पर बिंदु से लेकर विषुवत वृत्त पर ग्लोबीय परिधि तक होता है। इनका सीमांकन 0° से 90° उत्तरी एवं 0° से 90° दक्षिणी अक्षांशों में किया जाता है।

3. देशांतर के याम्योत्तर-ये अर्द्धवृत्त होते हैं, जो कि उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर, एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव तक खींचे जाते हैं। दो विपरीत देशांतर अर्धवृत्त एक वृत्त का निर्माण करते हैं, जो ग्लोब की परिधि होती है। प्रत्येक देशांतर रेखा अपनी सतह पर स्थित होती है, लेकिन ये सभी ग्लोब की धुरी के साथ एक-दूसरे को समकोण पर काटती हैं। यद्यपि वास्तव में कोई मध्य देशांतर रेखा नहीं होती, लेकिन सुविधा के लिए ग्रिनिच की देशांतर रेखा को मध्य देशांतर रेखा माना गया है जिसका मान 0° देशांतर रखा गया है। अन्य सभी देशांतरों के निर्धारण में इससे संदर्भ देशांतर (Reference Longitude) का काम लिया जाता है।

4. ग्लोब के गुण मानचित्र प्रक्षेप बनाने में, ग्लोब की सतह के निम्नलिखित मूल गुणों को कुछ विधियों के द्वारा संरक्षित रखा जाता है

  • किसी क्षेत्र के दिए गए बिंदुओं के बीच की दूरी
  • प्रदेश की आकृति
  • प्रदेश के आकार या क्षेत्रफल का सही माप
  • प्रदेश के किसी एक बिंदु से दूसरे बिंदु की दिशा।

प्रश्न 5.
आधारभूत अक्षांश-देशांतर कौन-से होते हैं?
उत्तर:
आधारभूत अक्षांश-देशांतरों पर मापक शुद्ध होता है। विभिन्न प्रक्षेपों में आधारभूत अक्षांश-देशांतर अलग-अलग होते हैं। उदाहरणतः बेलनाकार प्रक्षेप में भूमध्य रेखा तथा प्रधान मध्याह्न रेखा आधारभूत होते हैं जबकि शंक्वाकार प्रक्षेपों में मानक अक्षांश रेखा (Standard Parallel) तथा केंद्रीय देशांतर रेखा (Central Meridian)आधारभूत अक्षांश-देशांतर रेखाएं होती हैं। इसी प्रकार शिरोबिंदु प्रक्षेपों में ध्रुव तथा 0° देशांतर रेखा आधारभूत होते हैं।

चरण-2. ग्लोब का अर्धव्यास (r) ज्ञात करने के बाद उन आधारभूत अक्षांश-देशांतरों को बनाइए जिन पर सारा प्रक्षेप निर्भर करता है।

चरण-3. अन्य अक्षांश-देशांतरों की रचना करके प्रक्षेप पूरा कीजिए।

चरण-4. ड्राईंग शीट पर प्रक्षेप के ऊपर शीर्षक, नीचे मापक तथा यथास्थान अक्षांश-देशांतरों का अंतराल लिखिए। अंततः इस रचना को प्राध्यापक महोदय को दिखाइए।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानचित्र प्रक्षेप क्या है? इसका वर्गीकरण कीजिए।
अथवा
मानचित्र प्रक्षेप के अर्थ को समझाते हुए इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए। अथवा मानचित्र प्रक्षेप के प्रकारों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।।
उत्तर:
मानचित्र प्रक्षेप का अर्थ (Meaning of Map Projection) ग्लोब, पृथ्वी का सबसे अच्छा प्रतिरूप है। यह त्रिविम है। ग्लोब के इसी गुण के कारण महाद्वीपों एवं महासागरों के सही आकार एवं प्रकार को इस पर दिखाया जाता है। यह दिशा एवं दूरी की भी सही-सही जानकारी प्रदान करता है। ग्लोब अक्षांश एवं देशांतर रेखाओं के द्वारा विभिन्न खंडों में विभाजित होता है। क्षैतिज रेखाएं अक्षांश के समांतरों एवं ऊर्ध्वाधर रेखाएं देशांतर के याम्योत्तरों को दर्शाती हैं। इस जाल को रेखा जाल (Graticule) के नाम से भी जाना जाता है। यह जाल मानचित्रों को बनाने में सहायक होता है। अतः गोलाकार पृष्ठ से अक्षांशों एवं देशांतरों के जाल के समतल सतह पर स्थानांतरण करना मानचित्र प्रक्षेप कहलाता है।

ग्लोब पर देशांतर अर्द्धवृत्त एवं अक्षांश पूर्णवृत्त होते हैं। जब उन्हें समतल सतह पर स्थानांतरित किया जाता है, तब वे सीधी या वक्र प्रतिच्छेदी रेखाएं बनाते हैं। इतना समझ लेने के बाद अब हम मानचित्र प्रक्षेप की परिभाषा दे सकते हैं
“गोलाकार पृथ्वी अथवा उसके किसी बड़े भाग का मानचित्र बनाने के लिए प्रकाश अथवा किसी ज्यामितीय विधि के द्वारा कागज़ या किसी समतल सतह पर खींचे गए ग्लोब की अक्षांश-देशांतर रेखाओं का जाल (Graticule) मानचित्र-प्रक्षेप कहलाता है।”

मानचित्र प्रक्षेपों का वर्गीकरण (Classification of Map Projections)-मानचित्र प्रक्षेपों का वर्गीकरण दो आधारों पर किया जाता है

  • प्रक्षेप के गुणों के आधार पर।
  • प्रक्षेप की रचना विधि के आधार पर।

(1) गुणों के आधार पर प्रक्षेपों का वर्गीकरण क्षेत्र, आकृति, दिशा और दूरी जैसे लक्षणों का शुद्ध प्रदर्शन केवल ग्लोब पर ही संभव है। अभी तक ऐसा कोई प्रक्षेप नहीं बन पाया जो इन सभी गुणों को एक साथ शुद्ध रूप से प्रदर्शित कर सके। यही कारण है कि कोई भी मानचित्र पृथ्वी के सभी भागों को शुद्धता के साथ नहीं दिखा सकता। ऐसी दशा में हम उन प्रक्षेपों की रचना करते हैं जो कम-से-कम एक या दो गुणों का सही प्रदर्शन कर सकते हों। अतः गुणों या लक्षणों के आधार पर प्रक्षेप अग्रलिखित चार प्रकार के होते हैं-

1. शुद्ध क्षेत्रफल प्रक्षेप (Equal Area or Homolographic Projections) इस वर्ग के प्रक्षेपों में विभिन्न क्षेत्रों के क्षेत्रफल को शुद्ध रूप से प्रदर्शित किया जाता है चाहे इसके लिए वास्तविक लंबाई या चौड़ाई को कम या ज्यादा क्यों न करना पड़े। क्षेत्रफल को सही रखने के प्रयत्न में आकृति और दिशा जैसे गुणों की उपेक्षा हो जाती है। इन समक्षेत्र प्रक्षेपों का उपयोग विभिन्न प्रकार के वितरण मानचित्रों को बनाने के लिए किया जाता है।

2. शुद्ध आकृति प्रक्षेप (True Shape or Orthomorphic Projections)-इन प्रक्षेपों में ग्लोब के विभिन्न भागों की आकृति को शुद्ध रूप में प्रदर्शित किया जाता है। वास्तव में बड़े भू-भागों की आकृति को शुद्ध रख पाना संभव नहीं होता। इन प्रक्षेपों में केवल छोटे भू-भागों या किसी एक भू-भाग की आकृति का अनुरक्षण (Preservation) हो जाता है। अतः शुद्ध आकृति का लक्षण कुछ भ्रांतिपूर्ण है। प्रक्षेप पर शुद्ध आकृति या यथाकृति के गुण को विकसित करने के लिए निम्नलिखित दो दशाओं का होना अनिवार्य है

  • अक्षांश और देशांतर रेखाएं समकोण पर काटती हों।
  • प्रक्षेप के किसी भी बिंदु पर प्रत्येक दिशा में मापक समान रहे अर्थात् यदि अक्षांशीय मापक में वृद्धि हो तो देशांतरीय मापक में भी उसी अनुपात में वृद्धि हो। इन प्रक्षेपों पर राजनीतिक मानचित्रों की रचना की जाती है।

3. शुद्ध दिशा प्रक्षेप या खमध्य या दिगंश प्रक्षेप (True Bearing or Azimuthal Projections)-शुद्ध दिशा से अभिप्राय है कि मानचित्र पर किन्हीं दो स्थानों को मिलाने वाली सरल रेखा की वही दिशा होती है जो ग्लोब पर उन बिंदुओं को मिलाने वाले बृहत वृत्त (Great Circle) की होती है। शुद्ध दिशा प्रक्षेपों पर सर्वत्र और सभी ओर दिक्पात शुद्ध पाया जाता है। ऐसे प्रक्षेपों का प्रयोग जलमार्गों, पवनों और धाराओं की दिशा दिखाने वाले मानचित्रों को बनाने में किया जाता है।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप 3

4. शुद्ध पैमाना या समदूरस्थ प्रक्षेप (True Scale or Equidistant Projections) ये ऐसे प्रक्षेप होते हैं जिन पर विभिन्न के बीच की दूरी ग्लोब पर उन्हीं बिंदुओं के बीच की दूरी के समान होती है। वास्तव में प्रक्षेप के हर स्थान पर पैमाने को शुद्ध रख पाना असंभव होता है। पैमाना या तो सभी अक्षांश रेखाओं पर शुद्ध रह सकता है या सभी देशांतर रेखाओं पर शुद्ध रह सकता है अथवा कुछ अक्षांश रेखाओं तथा कुछ देशांतर रेखाओं पर पैमाना शुद्ध रह सकता है।

(2) रचनाविधि के आधार पर प्रक्षेपों का वर्गीकरण-रचना विधि के आधार पर मानचित्र प्रक्षेप निम्नलिखित चार प्रकार के होते हैं-
1. बेलनाकार प्रक्षेप (Cylindrical Projections)- जिन प्रक्षेपों की रचना बेलनाकार आकृति से विकसित करके की जाती है उन्हें बेलनाकार प्रक्षेप कहते हैं। इन प्रक्षेपों में यह माना जाता है कि बेलन के आकार में मुड़ा हुआ कोई कागज़ पारदर्शक ग्लोब को भूमध्य रेखा पर स्पर्श करता हुआ लिपटा है और ग्लोब के अंदर एक विद्युत बल्ब प्रकाशित है। ग्लोब की अक्षांश-देशांतर रेखाएं कागज़ पर प्रतिबिंबित हो रही हैं। अब यदि रेखा जाल के प्रतिबिंबों को पैन या पैंसिल से अंकित करके उस कागज़ को फैला दें तो हमें अक्षांश-देशांतर का एक आयताकार जाल प्राप्त होगा जिसे बेलनाकार प्रक्षेप कहा जाता है।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप 4
वास्तव में ये प्रक्षेप ज्यामितीय विधि द्वारा बनाए जाते हैं। प्रकाश द्वारा प्रक्षेपण तो ज्यामितीय विधियों को केवल आधार प्रदान करता शंकु करता है (चित्र 5.3)। बेलनाकार प्रक्षेप भूमध्यरेखीय क्षेत्रों के लिए अधिक उपयुक्त होते हैं, यद्यपि इन पर सारी पृथ्वी का मानचित्र बनाया जाता है।

2. शंक्वाकार प्रक्षेप (Conical Projections)-जिन प्रक्षेपों की रचना शंकु की आकृति से विकसित की जाती है, उन्हें शंक्वाकार प्रक्षेप कहते हैं। इन प्रक्षेपों में यह माना जाता है कि शंकु के आकार शंकु सतह को समतल करने पर प्रक्षेपण बिंदु परिणामी रेखा जाल में मुड़ा हुआ एक कागज़ पारदर्शक ग्लोब जिसके अंदर एक बल्ब जल रहा है, पर इस प्रकार रखा हुआ है कि शंकु का शीर्ष किसी ध्रुव के ऊपर स्थित है। इस अवस्था में शंकु का भीतरी तल ग्लोब की किसी-न-किसी अक्षांश रेखा को स्पर्श करेगा जिसे प्रधान या मानक या प्रामाणिक अक्षांश रेखा (Standard Meridian) कहा जाता है।

बल्ब के प्रकाश से प्रसारित किरणों द्वारा शंकु के भीतरी तल पर अक्षांश-देशांतर रेखाओं का प्रतिबिंब बनेगा। इस प्रतिबिंब को शंकु पर अंकित करके यदि उसे आधार से ऊपर तक काटकर फैला दिया जाए तो शंकु एक वृत्तांश का रूप धारण कर लेगा। यही शंक्वाकार प्रक्षेप कहलाता है (चित्र 5.4)। इन प्रक्षेपों पर पूरी पृथ्वी का मानचित्र नहीं बनाया जा सकता। ये केवल शीतोष्ण कटिबंधों के लिए उपयुक्त होते हैं। शंक्वाकार प्रक्षेप भी ज्यामितीय ढंग से बनाए जाते हैं।
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3. शिरोबिंदु प्रक्षेप (Zenithal Projections) इन प्रक्षेपों की रचना करते समय यह मान लिया जाता है कि एक समतल कागज़ पारदर्शी ग्लोब के किसी विशेष बिंदु पर स्पर्श करता हुआ रखा जाता है यह स्पर्श बिंदु भूमध्य रेखा या कोई ध्रुव या इन दोनों के बीच स्थित हो सकता है (पिन 5.5)। बल्ब अथवा प्रकाश पुंज ग्लोब के भीतर या बाहर कहीं भी हो सकता है। प्रकाश द्वारा प्रतिबिंबित अक्षांश-देशांतर रेखाओं के जाल को कागज़ पर अंकित कर लिया जाता है।
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ऐसी दशा में अक्षांश रेखाएं वृत्ताकार और देशांतर रेखाएं सीधी होती हैं। शिरोबिंदु या खमध्य प्रक्षेपों पर केवल गोला? मा प्रक्षेपण बिंदु के मानचित्र बनाए जा सकते हैं, पूरी पृथ्वी के नहीं (चित्र 5.6)।

4. रूढ़ या परिवर्तित प्रक्षेप (Conventional or Modi fied Projections) ये वे प्रक्षेप होते हैं जिन्हें मूल प्रक्षेपों का रूपांतरण करके किसी खास उद्देश्य के लिए उपयुक्त बना लिया जाता है। इनकी रचना में किसी विकासनीय पृष्ठ का प्रयोग नहीं ध्रुव पर ग्लोब को स्पर्श करता तल समतल सतह पर परिणामी जाल किया जाता बल्कि गणितीय सूत्रों की सहायता ली जाती है। इसलिए इन्हें गणितीय प्रक्षेप भी कहते हैं। इन प्रक्षेपों से ‘प्रक्षेप’ शब्द का अर्थ प्रकट नहीं होता। मॉलवीड प्रक्षेप व सिनुसाइलड : प्रक्षेप इत्यादि ऐसे ही प्रक्षेप हैं।
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प्रश्न 2.
मानचित्र प्रक्षेपों की रचना के चरणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानचित्र प्रक्षेपों की रचना के चार चरण (Four Steps in the Drawing of Map Projections) चरण-1. दिए हुए मापक के अनुसार ग्लोब कर अर्धव्यास (त्रिज्या) निकालिए।
अर्धव्यास (r) = प्रदर्शक भिन्न – पृथ्वी का वास्तविक अर्धव्यास, पृथ्वी का वास्तविक अर्धव्यास लगभग 6,400 कि०मी० या 640,000,000 सें०मी० है अथवा लगभग 3,960 मील या 250,000,00 इंच हैं।
आइए! अब हम दो बार सें०मी० में व दो बार इंचों में ग्लोब के अर्धव्यास को निकालने का अभ्यास करें-
उदाहरण 1.
मापक \(\frac { 1 }{ 320,000,000 }\) हो तो ग्लोब का r (अर्धव्यास) ज्ञात करो।
हल:
(1) इंचों में r = \(\frac { 1 }{ 320,000,000 }\) x 250,000,000
= 0.78 इंच

(2) सें०मी० में r = \(\frac { 1 }{ 320,000,000 }\) x 640,000,000
उत्तर:
= 2 सें०मी०

उदाहरण 2.
\(\frac { 1 }{ 200,000,000 }\) प्रदर्शक भिन्न पर ग्लोब का r ज्ञात करो।
हल:
(1) इंचों में r = \(\frac { 1 }{ 200,000,000 }\) x 250,000,000
= 1.25 इंच

(2) सें०मी० में r = \(\frac { 1 }{ 200,000,000 }\) x 640,000,000
उत्तर:
= 3.2 सें०मी०

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प्रश्न 3.
बेलनाकार सम-क्षेत्रफल प्रक्षेप क्या है? इसके लक्षणों (विशेषताओं) पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
बेलनाकार सम-क्षेत्रफल प्रक्षेप (Cylindrical Equal Area Projection)-जैसा कि इस प्रक्षेप के नाम से ही स्पष्ट होता है कि इस प्रक्षेप में क्षेत्रफल शुद्ध रहता है। सभी अक्षांश रेखाओं की लंबाई भूमध्य रेखा के बराबर होती है अर्थात् ध्रुवों की ओर उनका मापक बढ़ता जाता है। अतः अक्षांश रेखाओं के बीच की दूरी (अर्थात देशांतर रेखाओं का मापक) इस प्रकार समायोजित कर दी जाती है कि प्रक्षेप पर किन्हीं दो अक्षांश रेखाओं के बीच की पट्टी का क्षेत्रफल ग्लोब पर उन्हीं दो अक्षांश रेखाओं के बीच की पट्टी के क्षेत्रफल के समान हो जाए। इस प्रकार पूरे प्रक्षेप पर सम-क्षेत्रफल का गुण परिरक्षित हो जाता है।

इस प्रक्षेप को सर्वप्रथम जोहान्न हेनरिच लैंबर्ट (Johann Henrich Lambert) नामक मानचित्रकार ने सन 1722 में बनाया था। इसलिए इस प्रक्षेप को लैंबर्ट का बेलनाकार समक्षेत्र प्रक्षेप भी कहते हैं।

बेलनाकार सम-क्षेत्रफल प्रक्षेप के लक्षण-इस प्रक्षेप की प्रमुख विशेषताएं एवं लक्षण निम्नलिखित हैं-
1. अक्षांश रेखाओं का आकार-इस प्रक्षेप में सभी अक्षांश रेखाएं सरल व सीधी होती हैं जो भूमध्य रेखा के समानांतर व इसके समान लंबी होती हैं। भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाते हुए अक्षांश रेखाओं के बीच की अपनी दूरी उत्तरोत्तर कम होती जाती है।

2. देशांतर रेखाओं का आकार सभी देशांतर रेखाएं सरल रेखाएं होती हैं। ये भूमध्य रेखा के लंबवत, एक-दूसरे के समानांतर तथा परस्पर समान दूरी पर अंकित होती हैं।

3. अक्षांश तथा देशांतर रेखाओं के बीच प्रतिच्छेदन इस प्रक्षेप में अक्षांश तथा देशांतर रेखाएं परस्पर समकोण पर काटती हैं।

4. अक्षांश रेखाओं का मापक-भूमध्य रेखा पर मापक शुद्ध होता है जबकि बाकी अक्षांश रेखाओं पर मापक अशुद्ध होता है। भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाते हुए मापक में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जाती है। इस प्रक्षेप पर 60° की अक्षांश रेखा पर मापक ग्लोब की अपेक्षा दुगुना हो जाता है और ध्रुवों पर यह वृद्धि अनंत हो जाती है। इसका कारण यह है कि इस प्रक्षेप पर सभी अक्षांश रेखाएं भूमध्य रेखा के बराबर लंबी होती हैं, जबकि ग्लोब पर ये भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाते हुए छोटी होती चली जाती हैं।

5. देशांतर रेखाओं का मापक-इस प्रक्षेप में, सम-क्षेत्रफल के गुण को परिरक्षित करने हेतु किसी स्थान विशेष पर देशांतर रेखाओं का मापक उसी अनुपात में कम कर दिया जाता है। जिस अनुपात में वहां अक्षांश रेखाओं के मापक में वृद्धि होती है। यही कारण है कि इस प्रक्षेप पर अक्षांश रेखाओं के बीच की दूरी भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर उत्तरोत्तर कम होती चली जाती है।

6. विशेष गुण-बेलनाकार सम-क्षेत्रफल प्रक्षेप का यह एक विशेष गुण है कि इस प्रक्षेप पर किन्हीं दो अक्षांश रेखाओं के बीच की पट्टी का क्षेत्रफल ग्लोब पर उन्हीं दो अंक्षाश रेखाओं के बीच के पट्टी के क्षेत्रफल के बराबर होता है।

7. उपयोग-सम-क्षेत्रफल प्रक्षेप होने के कारण इस प्रक्षेप का प्रयोग प्रायः संसार का राजनीतिक मानचित्र तथा वितरण मानचित्र बनाने के लिए किया जाता है। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र ठीक प्रकार से प्रदर्शित किए जा सकने के कारण इस प्रक्षेप का प्रयोग मुख्यतः उष्ण-कटिबंधीय उपजों; जैसे रबड़, चावल, नारियल, कहवा, कोको, गर्म मसाले, कपास, गन्ना, केला तथा मूंगफली इत्यादि के विश्व-वितरण को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है।

8. सीमाएं ध्रुवीय क्षेत्रों में अक्षांश रेखाओं के मापक में बहुत अधिक विवर्धन तथा देशांतर रेखाओं के मापक में बहुत अधिक लघुकरण के कारण इन क्षेत्रों में स्थित देश पूर्व-पश्चिम दिशा में बहुत अधिक खिंच जाते हैं और उत्तर:दक्षिण दिशा में बहुत संकुचित हो जाते हैं। फलस्वरूप ध्रुवीय क्षेत्रों में देशों की आकृतियों में अधिकाधिक विकृति आ जाती है, परंतु उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में देशों की आकृति में विकृति नगण्य होती है। अतः इस प्रक्षेप का प्रयोग ध्रुवीय क्षेत्रों के लिए नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 4.
समस्त ग्लोब के लिए एक ऐसे बेलनाकार सम-क्षेत्रफल प्रक्षेप की रचना करो, जिसका मापक 1:320,000,000 हो। अक्षांश एवं देशांतर रेखाओं का अंतराल क्रमशः 15° और 30° हो।
उत्तर:
रचना विधि-दिए गए मापक के अनुसार-
(1) जनक ग्लोब का अर्धव्यास (r)
\(\frac{1}{320,000,000} \times 640,000,000\) = 2 सें०मी०

(2) भूमध्य रेखा की लंबाई = 2πr
= 2 x \(\frac { 22 }{ 7 }\) = 12.6 से०मी०

(3) 30° के अंतराल पर दो देशांतर रेखाओं के बीच की दरी = \(\frac { 12.6×30° }{ 360° }\) = 1.05 सें०मी०
ग्लोब को प्रदर्शित करने के लिए 2 सें०मी० अर्धव्यास का एक वृत्त खींचिए। कल्पना कीजिए की EOE’ तथा POP’ क्रमशः भूमध्यरेखीय और ध्रुवीय व्यास हैं। 0 केंद्र पर 15° के अंतराल पर कोण बनाइए और 15°, 30°, 45°, 60°, 75° और 90° की अक्षांश रेखाएं बनाइए। कल्पना कीजिए कि ये कोण वृत्त की परिधि को उत्तर में a, b, c, d, e तथा p पर और दक्षिण में a’, b’, c’, d’, e’ तथा p’ बिंदुओं पर काटते हैं। EOE’ रेखा को Q बिंदु तक बढ़ाइए जिससे EQ रेखा भूमध्य रेखा की वास्तविक लंबाई अर्थात् 12.6 सें०मी० के बराबर हो। अब a, b, c,d,e तथा P बिंदुओं से और a’, b’, c’, d’, e’ तथा P बिंदुओं से भी भूमध्य रेखा के समानांतर सरल रेखाएं खींचिए। ये सभी रेखाएं 15° के अंतराल पर अक्षांश रेखाओं को प्रकट करती हैं।
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अब 1.05 सें०मी० परकार खोलकर EQ रेखा को 12 समान भागों में बांटिए। इन बिंदुओं से देशांतर रेखाएं खींचिए जो भूमध्य रेखा को समकोण (90°) पर काटे। RM इस प्रक्षेप की मध्य देशांतर होगी। इस प्रकार यह विश्व के मानचित्र के लिए बेलनाकार सम-क्षेत्रफल प्रक्षेप का रेखा जाल बन जाएगा (चित्र 5.7)।

प्रश्न 5.
1 : 300,000,000 मापनी पर संसार का मानचित्र बनाने के लिए मर्केटर प्रक्षेप की रचना कीजिए। प्रक्षेप में अंतराल 20° है।
उत्तर:
रचना विधि:
चरण-1.
सर्वप्रथम ग्लोब का अर्धव्यास या त्रिज्या (r) ज्ञात करें। ग्लोब का अर्धव्यास (r)
= \(\frac{1}{300,000,000} \times 640,000,000\)

चरण-2.
ग्लोब पर भूमध्य रेखा की लंबाई ज्ञात करें (2πr)
= 2 x \(\frac { 22 }{ 7 }\) x 2.1 = 13.2 सें०मी०

चरण-3.
अब भूमध्य रेखा पर 20° देशांतरीय अंतराल के अनुसार दो देशांतर रेखाओं के बीच की दूरी ज्ञात करें
= \(\frac { 22×r×20 }{ 360 }\)
= \(\frac { 13.2×20 }{ 360 }\)

Mecrator’s Projection:
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चरण-4.
चित्र 5.8 के अनुसार कागज़ के बीचों-बीच 13.2 सें०मी० लंबी रेखा खींचिए। परकार में 0.73 सें०मी० की दूरी लेकर इस रेखा पर 17 निशान लगा दीजिए। इस प्रकार यह रेखा 18 भागों में विभक्त हो जाएगी। इन चिह्नों पर लंब डाल दीजिए। ये लंब देशांतर रेखाओं को प्रकट करेंगे।

चरण-5.
दिए हुए अंतराल के अनुसार प्रक्षेप 20°, 40°, 60° में व 80° उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांश बनेंगे। इन अक्षांश रेखाओं की भूमध्य रेखा से दूरी को निम्नलिखित तालिका से ज्ञात करें।

अक्षांश भूमध्य रेखा से दूरी (सें०मी०)
20° 0.356 x r = 0.356 x 2.1 = 0.75
40° 0.763 x r = 0.763 x 2.1 = 1.6
60° 1.317 x r = 1.317 x 2.1 = 2.76
80° 2.437 x r = 2.437 x 2.1 = 5.1

अब इन दूरियों में से प्रत्येक को पहले A की ओर, फिर A से नीचे की ओर काटिए।

उदाहरणतया 13.2 सें०मी० की आधार रेखा AB भूमध्य रेखा को प्रकट करती है। इस रेखा के उत्तर व दक्षिण में 0.75 सें०मी० के चिह्न लगा दीजिए तथा इन चिह्नों में से होती हुई भूमध्य रेखा के समांतर रेखाएं खींच दीजिए। ये रेखाएं 10° उ० व 10° द० अक्षांशों को प्रकट करेंगी। इसी प्रकार 1.6 सें०मी०, 2.76 सें०मी० तथा 5.1 सें०मी० की दूरियां लेकर A से उत्तर व दक्षिण की ओर चिह्न लगाइए तथा भूमध्य रेखा के समांतर रेखाएं खींच दीजिए। ये रेखाएं क्रमशः 40°, 60° व 80° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों को प्रकट करेंगी।

चरण-6.
चित्र के अनुसार रेखा जाल के बाहर अक्षांशों व देशांतर रेखाओं के मान लिख दीजिए। इन मानों के साथ उत्तर, दक्षिण, पूर्व व पश्चिम (N,S,E,W) लिखना न भूलें।

प्रश्न 6.
मर्केटर प्रक्षेप की विशेषताएँ, उपयोग तथा सीमाएँ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मर्केटर प्रक्षेप की विशेषताएँ (Characteristics of Mercator’s Projection)-मर्केटर प्रक्षेप की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. अक्षांश रेखाओं का आकार प्रक्षेप में सभी अक्षांश रेखाएं सरल रेखाएं हैं, जो भूमध्य रेखा के समांतर खींची गई हैं तथा समान लंबाई वाली हैं।

2. देशांतर रेखाओं का आकार देशांतर रेखाएं भी सरल रेखाएं हैं जो भूमध्य रेखा पर समान दूरी पर खींची गई समांतर रेखाएं हैं। सभी देशांतर रेखाओं की लंबाई समान है इस प्रक्षेप पर ध्रुव प्रदर्शित नहीं किए जा सकते।

3. अक्षांश तथा देशांतर रेखाओं का प्रतिच्छेदन-अक्षांश व देशांतर रेखाएं एक-दूसरे को समकोण पर काटती हैं।

4. अक्षांश रेखाओं का मापक इस प्रक्षेप में भूमध्य रेखा पर तो मापक शुद्ध होता है, किंतु भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाते हुए अन्य अक्षांश रेखाओं का मापक निरंतर बढ़ता जाता है। इसका कारण यह है कि मर्केटर प्रक्षेप पर सभी अक्षांश रेखाएं भूमध्य रेखा के बराबर खींची जाती हैं, जबकि ग्लोब पर ये ध्रुवों की ओर छोटी होती जाती हैं। उदाहरणतः ग्लोब पर 60° उ० व द० अक्षांश रेखा भूमध्य रेखा से आधी होती है, जबकि इस प्रक्षेप में वह भूमध्य रेखा के बराबर होती है। अतः इस प्रक्षेप पर 60° अक्षांश रेखा पर मापक ग्लोब की तुलना में दुगुना हो जाता है। इसी प्रकार 75%° अक्षांश रेखा पर मापक ग्लोब की तुलना में गुना हो जाता है। ध्रुवों पर तो यह मापक अनंत गुना बड़ा हो जाता है।

देशांतर रेखाओं का मापक भूमध्य रेखा पर तो देशांतर रेखाओं का मापक भी लगभग शुद्ध होता है, किंतु शुद्ध दिशा और शुद्ध आकृति के गुणों को बचाए रखने के लिए इस प्रक्षेप पर देशांतर रेखाओं के मापक को भी ध्रुवों की ओर उ दिया जाता है।

उपयोग (Utility)-संसार में वायुमार्ग, समुद्री मार्ग, महासागरीय धाराओं, पवनों के परिसंचरण, अपवाह, समताप तथा समदाब रेखाएं दिखाने के लिए इस प्रक्षेप पर बने मानचित्रों का प्रयोग किया जाता है।

मर्केटर प्रक्षेप की सीमाएं (Limitations of Mercator’s Projection)-

  • इस प्रक्षेप में उच्च अक्षांशों में क्षेत्रफल बहुत ही ज्यादा बढ़ जाता है। इसी कारण ग्रीनलैंड दक्षिणी अमेरिका के बराबर दिखता है। वास्तव में दक्षिणी अमेरिका ग्रीनलैंड से 9 गुना बड़ा है।
  • ग्लोब पर एशिया, यूरोप और उत्तरी अमेरिका के उत्तरी भाग एक-दूसरे के काफी निकट हैं, जबकि इस प्रक्षेप में वे दूर-दूर दिखाई देते हैं।
  • मर्केटर प्रक्षेप गोल पृथ्वी की भ्रामक तस्वीर प्रस्तुत करता है, क्योंकि इस पर ध्रुव नहीं दिखाए जा सकते।

प्रश्न 7.
मर्केटर प्रक्षेप पर रंब लाइन तथा बृहत वृत्त की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मर्केटर प्रक्षेप पर रंब लाइन तथा बृहत वृत्त (Loxodrome and Great Circles on Mercator’s Projection) मर्केटर प्रक्षेप में सभी देशांतर रेखाएं आपस में समांतर होती हैं, इसलिए इस प्रक्षेप पर खींची गई कोई भी सरल रेखा सभी देशांतर रेखाओं के साथ एक समान कोण बनाती है। इसके अतिरिक्त इस प्रक्षेप पर अक्षांश व देशांतर रेखाओं का मापक भी समान होता है। अतः इस प्रक्षेप पर किन्हीं दो स्थानों को जोड़ने वाली कोई भी सीधी रेखा एक स्थिर दिक्मान रेखा (A Line of Constant Blaring) होती है। चित्र 5.9 में AB रेखा ऐसी ही एक स्थिर दिक्मान रेखा है जो सभी देशांतर रेखाओं के साथ 35° का कोण बनाती है। इसी प्रकार इस चित्र में अन्य सरल रेखाएं भी स्थिर दिक्मान कहलाती हैं। ऐसी रेखाओं को एकदिश नौपथ अथवा रंब लाइन अथवा लोक्सोड्रोम (Loxodrome) कहा जाता है। लोक्सोड्रोम मूलतः यूनानी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है ‘तिरछा चलते हुए’ वास्तव में ग्लोब पर लोक्सोड्रोम वक्राकार रेखाएँ होती है जो इस प्रक्षेप पर सीधी दर्शाई जाती हैं।

बेलनाकार प्रक्षेपों में केवल मर्केटर प्रक्षेप पर ही दो स्थानों के बीच दिक्मान ग्लोब के अनुसार शुद्ध होता है। (नीचे दिया गया बॉक्स देखें) मर्केटर प्रक्षेप का यही गुण नाविकों के लिए वरदान सिद्ध हुआ।

नाविकों की First Choice था मर्केटर प्रक्षेप:

  • शुद्ध दिशा प्रक्षेप होने के कारण नाविकों के लिए गंतव्य स्थान की सही-सही दिशा मानचित्र पर ज्ञात कर अपने जहाज को निश्चित दिशा में स्थापित करना सरल हो गया।
  • इस प्रक्षेप का सही उपयोग वायुयान चालकों के लिए भी था।
  • इस प्रक्षेप पर 50° अक्षांश के बाद आकृतियां बहुत बड़ी दिखाई देती हैं। अतः इस प्रक्षेप पर ब्रिटेन साम्राज्य अपने वास्तविक विस्तार से कई गुना बड़ा दिखाई देता था। यह तथ्य एक राष्ट्र और नस्ल विशेष के श्रेष्ठ और बहुत बड़ा दिखाने के अहम की पुष्टि करता था।
  • ध्रुवीय प्रदेशों के वायु एवं जल यातायात के लिए भी शिरोबिंदु ध्रुव प्रक्षेप तथा मर्केटर प्रक्षेप समान रूप से उपयोगी सिद्ध हुए हैं।
    HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप 10

नाविकों को अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचने के लिए अपने जहाज को एक स्थिर दिक्मान रेखा पर चलाना होता है। इसके बाद जहाज बिना दिशा बदले निश्चित मार्ग पर चलता रहता है। याद रहे कि मर्केटर प्रक्षेप पर स्थिर दिक्मान रेखा आरंभिक बिंदु (Starting Point) तथा गंतव्य स्थान (Destination) के बीच सीधी रेखा खींचकर प्राप्त की जा सकती है।।

नौ संचालन के दौरान मर्केटर प्रक्षेप के प्रयोग करने से एक कठिनाई आती है, जिसे नाविक दूर करते चलते हैं। समय और ईंधन बचाने के लिए नाविक छोटे से छोटा रूट पकड़ते हैं, जिसके लिए उन्हें बृहत वृत्त मार्ग अपनाना होता है।

परंतु ग्लोब पर भूमध्य रेखा और देशांतर रेखाएं ही ऐसे बृहत वृत हैं, जो सरल रेखाओं द्वारा दर्शाए जाते हैं। बाकी सभी बृहत वृत वक्राकार होते हैं। इनकी वक्रता ध्रुवों की ओर होती है। अन्य शब्दों में ये बृहत वृत उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर की ओर तथा दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिण की ओर झुके हुए होते हैं। उल्लेखनीय है कि मर्केटर प्रक्षेप पर न्यूनतम दूरी वाले बृहत वृत वक्राकार होते हैं, जबकि अधिक दूरी वाले एकदिश नौपथ (Loxodromes) सीधी रेखाओं द्वारा दर्शाए जाते हैं।

अतः साफ है कि कोई बृहत वृत मार्ग भूमध्य रेखा अथवा किसी देशांतर रेखा का भाग नहीं है तो वह वक्र होगा। इस वक्र के साथ-साथ जहाज चलाने के लिए नाविक को जहाज की दिशा जल्दी-जल्दी बदलनी पड़ती है जो बहुत मुश्किल काम है। इस मुश्किल को आसान करने के लिए बृहत वृत को छोटे-छोटे खंडों में बांट दिया जाता है और इन खंडों के विभाजन बिंदुओं को सीधी रेखा द्वारा मिला दिया जाता है। ऐसी प्रत्येक सीधी रेखा स्वयं एकदिश नौपथ (Loxodrome) या रंब लाइन बन जाती हैं।

इन खंडित रंब रेखाओं के सहारे नौसंचालन करते समय नाविक जहाज को केवल तभी मोड़ते हैं जहां दो रंब रेखाएं आपस में मिलती है। ऐसी ही खंडित रंब रेखाओं को चित्र 5.10 में दर्शाया गया है।
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प्रश्न 8.
एक मानक शंक्वाकार प्रक्षेप के लक्षण, गुण, अवगुण एवं उपयोग को समझाइए।
उत्तर:
1. एक मानक शंक्वाकार प्रक्षेप के लक्षण (Properties)

  • सभी अक्षांश रेखाएं संकेंद्रीय वृत्तों की चापें हैं जो आपस में समान दूरी पर स्थित हैं। ये चापें देशांतर रेखाओं के मिलन बिंदु को केंद्र मानकर खींची गई हैं।
  • ध्रुव भी एक चाप द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
  • प्रत्येक अक्षांश रेखा पर देशांतर रेखाओं की परस्पर दूरी समान होती है।
  • देशांतर रेखाएं शंकु के शीर्ष से प्रसारित होने वाली सरल रेखाएं होती हैं।

2. एक मानक शंक्वाकार प्रक्षेप के गुण (Merits)-

  • मानक अक्षांश रेखा पर मापक शुद्ध होता है। इससे दोनों ओर की अन्य अक्षांश रेखाओं पर मापक शुद्ध नहीं रहता।
  • सभी देशांतर रेखाएं ग्लोब की दूरी के अनुसार विभाजित की जाती हैं, अतः सभी देशांतरों पर मापक शुद्ध रहता है।

3. एक मानक शंक्वाकार प्रक्षेप के अवगण (Demerits)-

  • मानक अक्षांश से दूरी बढ़ने के साथ-साथ प्रदेशों की आकति और क्षेत्रफल में अशुद्धि आने लगती है, क्योंकि इसमें केवल मानक अक्षांश पर ही मापक शुद्ध रहता है।
  • इस प्रक्षेप में ध्रुव को भी चाप द्वारा प्रदर्शित किया जाता है, अतः यह प्रक्षेप पृथ्वी की सतह को शुद्ध रूप में प्रकट नहीं करता।

4. एक मानक शंक्वाकार प्रक्षेप के उपयोग (Uses)-मानक अक्षांश के दोनों ओर पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली संकरी पट्टी के प्रदर्शन के लिए यह प्रक्षेप श्रेष्ठ है। अतः उच्च अक्षांशों वाले प्रदेशों में पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं, सड़कों, रेल-मार्गों, नदी घाटियों को प्रदर्शित करने के लिए यह एक उपयोगी प्रक्षेप है। ट्रांस-कैनेडियन रेलवे (Trans-Canadian Rly.), कैनेडियन-पैसेफिक रेलवे (Canadian-Pacific Rly.), कनाडा-संयुक्त राज्य अमेरिका की अंतर्राष्ट्रीय सीमा, भारत में नर्मदा और तापी नदी घाटियों को इस प्रक्षेप पर सही ढंग से दिखाया जा सकता है।

मानचित्र प्रक्षेप HBSE 11th Class Geography Notes

→ बृहत वृत्त-यह दो बिंदुओं के बीच की लघुत्तम दूरी को दर्शाता है, जिसका उपयोग प्रायः वायु परिवहन एवं नौसंचालन में किया जाता है।

→ यथाकृतिक प्रक्षेप-वह प्रक्षेप जिसमें धरातल के किसी क्षेत्र की यथार्थ आकृति बनाए रखी जाती है।

→ लेक्सोड्रोम या रंब रेखा यह मर्केटर प्रक्षेप पर खींची गई सीधी रेखा है, जो स्थिर दिक्मान वाले दो बिंदुओं को जोड़ती है। नौसंचालन के दौरान दिशा निर्धारण में यह अत्यंत सहायक होती है।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 मानचित्र प्रक्षेप

→ ग्रिड (जाल)-किसी स्थान की सही स्थिति बताने और जानने के लिए मानचित्र पर खींची गई अक्षांश और देशांतर – रेखाओं का जाल। इन रेखाओं पर अक्षांशों और देशांतरों के मान अंकित होते हैं।

→ विकासनीय सतह ऐसी सतह जिसे बिना फटे समतल रूप में फैलाया जा सकता है, विकासनीय सतह कहलाती है।

→ अविकासनीय सतह ऐसी सतह जिसे बिना फाड़े समतल रूप में नहीं फैलाया जा सकता है।

→ केंद्रीय मध्याह्न रेखा (Central Meridian) रेखा जाल के मध्य की रेखा को केंद्रीय मध्याह्न रेखा या केंद्रीय देशांतर कहते हैं। इस पर चिह्न लगाकर निश्चित दूरी पर अक्षांश रेखाएं खींची जाती हैं।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Practical Work in Geography Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. यदि सिंगापुर (103.5° पूर्व) में प्रातः के 10 बजे हों तो मोम्बासा (39° पूर्व) पर स्थानीय समय क्या होगा?
(A) 5.42 प्रातः
(B) 6.40 प्रातः
(C) 4.52 प्रातः
(D) 5.22 प्रातः
उत्तर:
(A) 5.42 प्रातः

2. एक गोले में होते हैं-
(A) 360°
(B) 320°
(C) 180°
(D) 90°
उत्तर:
(A) 360°

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय

3. भूमध्य रेखा की अक्षांश रेखा है-
(A) 0°
(B) 90°
(C) 180°
(D) 360°
उत्तर:
(A) 0°

4. अक्षांश रेखाओं की संख्या कितनी है?
(A) 90
(B) 180
(C) 360
(D) 190
उत्तर:
(B) 180

5. देशान्तर रेखाओं की संख्या कितनी है?
(A) 90
(B) 180
(C) 360
(D) 480
उत्तर:
(C) 360

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भौगोलिक निर्देशांक से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भौगोलिक निर्देशांक, अक्षांश तथा देशांतर रेखाओं का ग्लोब पर बना वह रेखा जाल होता है जिससे हम विभिन्न स्थानों की स्थितियां निश्चित करते हैं।

प्रश्न 2.
अक्षांश तथा अक्षांश रेखा में क्या अंतर होता है?
उत्तर:
किसी स्थान की भूमध्य रेखा से उत्तर व दक्षिण की ओर पृथ्वी के केंद्र पर बनने वाली कोणात्मक दूरी को उस स्थान का अक्षांश कहते हैं। ग्लोब पर समान अक्षांश वाले बिंदुओं को प्रकट करने वाले काल्पनिक वृत्तों को अक्षांश अथवा अक्षांश रेखाएं कहते हैं।

प्रश्न 3.
देशांतर तथा देशांतर रेखा में क्या भेद होता है?
उत्तर:
किसी स्थान की प्रधान देशांतर रेखा (0° देशांतर) से पूर्व या पश्चिम दिशा में कोणात्मक दूरी को उस स्थान का देशांतर कहते हैं। ग्लोब पर समान देशांतर वाले बिंदुओं को प्रकट करने वाले काल्पनिक अर्धवृत्तों को देशांतर रेखाएं कहा जाता है।

प्रश्न 4.
बृहत वृत्त (Great Circle) किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब किसी गोले को उसके केंद्र से गुजरने वाले तल (plane) से काटा जाए तो कटा हुआ तल उस गोले का सबसे बड़े आकार (size) का होगा। यह वृत्त ‘बृहत वृत्त’ कहलाता है।

प्रश्न 5.
बृहत वृत्त मार्ग (Great Circle Route) क्या होता है व इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
यात्रा का वह मार्ग जो बृहत वृत्त का अनुसरण (Follow) करता हो, बृहत वृत्त मार्ग कहलाता है। यदि मार्ग में कोई बाधा न हो तो ग्रेट सर्कल रूट का अनुसरण करने वाला वायुमार्ग या समुद्री मार्ग सबसे छोटा होता है जो ईंधन व समय की बचत करता है। इसका कारण यह है कि किसी महान वृत्त की चाप दो दूर बिंदुओं के बीच न्यूनतम दूरी दर्शाती है।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय

प्रश्न 6.
प्रधान मध्याहून रेखा (Prime Meridian) किसे कहते हैं?
उत्तर:
ग्रीनविच रॉयल प्रेक्षणशाला से होकर गुजरने वाली 0° देशांतर रेखा को प्रधान मध्याह्न रेखा कहते हैं।

प्रश्न 7.
देशांतर तथा समय में क्या संबंध है?
उत्तर:
पृथ्वी अपने अक्ष पर 24 घंटे में एक चक्कर पूरा करती है। अतः 24 घंटे में पृथ्वी की समस्त 360 देशांतर रेखाएं एक-एक करके सूर्य के सामने से होकर गुजरती हैं। इस प्रकार पृथ्वी एक घंटे में \(\frac { 360° }{ 24 }\) = 15° घूम जाती है। एक देशांतर को सूर्य के सामने से गुजरने में \(\frac { 60 }{ 5 }\) = 4 मिनट का समय लगता है।

प्रश्न 8.
स्थानीय समय (Local Time) क्या होता है?
उत्तर:
किसी स्थान पर मध्याह्न सूर्य के समय को दोपहर 12.00 बजे मानकर निर्धारित किया गया समय स्थानीय समय कहलाता है।

प्रश्न 9.
मानक या प्रामाणिक समय से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसी देश या समय कटिबंध के बीच से गुजरने वाली देशांतर रेखा के स्थानीय समय को मानक समय कहा जाता है।

प्रश्न 10.
समय कटिबंध (Time Zone) क्या होता है?
उत्तर:
समय कटिबंध संसार का ऐसा क्षेत्र है जहां घड़ियां एक जैसा समय दर्शाती हैं।

प्रश्न 11.
GMT या ग्रीनविच माध्य समय क्या होता है?
उत्तर:
सारे विश्व में समय की समरूपता बनाए रखने के लिए 0° देशांतर के समय को सब देश अपनाते हैं तो इस समय को GMT कहते हैं।

प्रश्न 12.
किसी देश का प्रामाणिक देशांतर 71° के गुणज पर क्यों लिया जाता है?
उत्तर:
प्रत्येक 71/2° का देशांतर 30 मिनट या आधे घंटे (7.5 x 4 = 30) का अंतर दर्शाता है। समय में आधे घंटे का गुणी समय की गणना को सरल व सुविधाजनक बनाता है।

प्रश्न 13.
अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा 180° देशांतर के लगभग अनुरूप वह काल्पनिक रेखा है जिसे पार करने पर दिशा के अनुसार एक दिन बढ़ाया या घटाया जाता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अक्षांश रेखाएँ क्या हैं? इनकी विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
अक्षांश रेखाएं (Lines of Latitudes) ग्लोब पर समान अक्षांश वाले बिंदुओं को मिलाने वाले काल्पनिक वृत्तों को अक्षांश वृत्त अथवा अक्षांश रेखाएं अथवा अक्षांश समांतर (Parallel of Latitudes) कहा जाता है।

अक्षांश रेखाओं की प्रमुख विशेषताएं (लक्षण) निम्नलिखित हैं-

  • अक्षांश रेखाएं एक-दूसरे के समानांतर और आपस में समान दूरी पर होती हैं।
  • ध्रुवों के अक्षांश वृत्त केवल बिंदुओं के रूप में होते हैं।
  • शेष सभी अक्षांश रेखाएं एक पूर्ण वृत्त के रूप में होती हैं। इसलिए इन्हें अक्षांश वृत्त कहा जाता है।
  • भूमध्य रेखा बृहत वृत्त (Great Circle) होती है, जबकि शेष सभी अक्षांश रेखाएं लघु वृत्त होती हैं।
  • अक्षांश रेखाएं यथार्थ पूर्व-पश्चिम (True east-west direction) रेखाओं के रूप में होती हैं।
  • भूमध्य रेखा से उत्तर व दक्षिण की ओर अक्षांश रेखाओं की लंबाई उत्तरोत्तर कम होती जाती है। 60° उत्तर व 60° दक्षिण की अक्षांश रेखाओं की लंबाई भूमध्य रेखा की लंबाई की आधी होती है।

प्रश्न 2.
भूमध्य रेखा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पृथ्वी का घूर्णन पृथ्वी के कल्पित अक्ष का संकेत देता है। इस अक्ष का ध्रुव तारे (Pole Star) का सीध वाला सिरा उत्तरी ध्रुव और दूसरा सिरा दक्षिणी ध्रुव कहलाता है। दोनों ध्रुवों के बीचों-बीच पृथ्वी के इर्द-गिर्द (Around) मान लिए गए कल्पित वृत्त को भूमध्य रेखा कहा जाता है। यह सबसे बड़ा अक्षांशीय वृत्त है जो पृथ्वी को उत्तरी और दक्षिणी गोलार्डों में बांटता है। भूमध्य रेखा 0° अक्षांश रेखा है। अन्य अक्षांशों की गणना यहीं से होती है।

प्रश्न 3.
देशान्तर रेखाएँ क्या हैं? इनकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
देशांतर रेखाएं (Lines of Longitude)-ग्लोब पर समान देशांतर वाले बिंदुओं को प्रकट करने वाले काल्पनिक अर्धवृत्तों को देशांतर रेखाएं (Lines of Longitude) कहा जाता है। देशांतर रेखाओं की प्रमुख विशेषताएं (लक्षण) निम्नलिखित हैं-

  • देशांतर रेखाएं दोनों ध्रुवों को मिलाते हुए अर्धवृत्त (Semi circles) बनाती हैं।
  • सभी देशांतरों के सिरे उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवों पर मिलते हैं।
  • एक वृत्त में 360° होती हैं, अतः 1° के अंतराल पर कुल 360 देशांतर रेखाएं खींची जा सकती हैं।
  • इनमें से 180 देशांतर रेखाएं प्रधान मध्याह्न रेखा के पूर्व में व 180 देशांतर रेखाएं प्रधान मध्याह्न रेखा के पश्चिम में स्थित होती हैं (चित्र 4.1)।
  • 180° पूर्वी तथा पश्चिमी देशांतर रेखा एक ही है जो प्रधान मध्याह्न के विपरीत दिशा में होती है।
  • भूमध्य रेखा पर दो देशांतर रेखाओं के बीच की दूरी सबसे अधिक होती है जो ध्रुवों पर घटकर शून्य हो जाती है।
    HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय 1

प्रश्न 4.
अक्षांश तथा देशांतर रेखाओं में अन्तर बताइए।
उत्तर:
अक्षांश तथा देशांतर में अंतर:

अक्षांश (Latitude) देशांतर (Longitude)
1. अक्षांश किसी स्थान की भूमध्य रेखा से उत्तर अथवा दक्षिण की ओर पृथ्वी के केंद्र पर बनने वाली कोणात्मक दूरी है। 1. देशांतर किसी स्थान की प्रधान मध्याह्न रेखा से पूर्व अथवा पश्चिम में बनने वाली कोणात्मक दूरी है।
2. अक्षांश का माप भूमध्य रेखा (0°) से होता है। 2. देशांतर का माप प्रधान मध्याह्न रेखा (0°) से होता है।
3. अक्षांश 90° उत्तर तथा 90° दक्षिण तक अर्थात् कुल 180 होते हैं। 3. देशांतर 180° पूर्व तथा 180° पश्चिम तक अर्थात् कुल 360 होते हैं।
4. सभी अक्षांश विषुवत वृत्त के समांतर होते हैं। 4. देशांतर के सभी याम्योत्तर ध्रुवों पर मिलते हैं।
5. ग्लोब पर अक्षांश समांतर वृत्त के समान प्रतीत होते हैं। 5. सभी याम्योत्तर वृत्त के समान प्रतीत होते हैं, जो ध्रुवों से गुजरते हैं।
6. दो अक्षांशों के बीच की दूरी लगभग 111 किलोमीटर होती है। 6. देशांतरों के बीच की दूरी विषुवत वृत्त पर अधिकतम (111.3 किलोमीटर) तथा ध्रुवों पर न्यूनतम (0 किलोमीटर) होती है। मध्य में अर्थात् 45° अक्षांश पर यह 79 किलोमीटर होती है।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय

प्रश्न 5.
अक्षांश व देशान्तर रेखाओं की उपयोगिता बताइए।
उत्तर:
अक्षांश व देशांतर रेखाओं की उपयोगिता निम्नलिखित है-

  • पृथ्वी या ग्लोब पर किसी भी स्थान की अवस्थिति का सही-सही निर्धारण किया जा सकता है।
  • गोलाकार पृथ्वी या उसके भू-भाग का समतल मानचित्र बनाया जा सकता है।
  • अक्षांश भूमध्य रेखा से दूरी और वहां के तापमान का संकेत करते हैं, क्योंकि 1° अक्षांश पृथ्वी के 111 कि०मी० की दूरी के समान होता है।
  • देशांतर से स्थानीय समय (Local Time) का पता चलता है।

प्रश्न 6.
स्थानीय समय क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब कोई देशांतर रेखा सूर्य के ठीक सामने आती है तो सूर्य सिर के ऊपर दिखाई देता है। उस देशांतर रेखा पर स्थित सभी स्थानों पर मध्याह्न होता है और परछाइयों की लंबाई सबसे कम होती है। इस समय यदि घड़ियों में दोपहर के 12 बजा लिए जाएं तो इसे स्थानीय समय कहेंगे। अतः किसी स्थान पर मध्याह्न सूर्य के समय को दोपहर 12 बजे मानकर निर्धारित किया गया समय स्थानीय समय कहलाता है।

प्रश्न 7.
स्थानीय समय तथा प्रामाणिक समय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्थानीय समय तथा प्रामाणिक समय में अंतर

स्थानीय समय (Local Time) प्रामाणिक समय (Standard Time)
1. स्थानीय समय प्रत्येक स्थान के देशांतर के अनुसार होता है। 1. प्रामाणिक समय किसी देश या समय कटिबंध के केंद्रीय देशांतर के अनुसार होता है।
2. प्रत्येक स्थान पर स्थानीय समय भिन्न-भिन्न होता है। 2. किसी देश या समय कटिबंध के सभी स्थानों पर प्रामाणिक समय एक होता है।

प्रश्न 8.
अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा कितनी जगह से टेढ़ी है और क्यों?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा तीन जगह से टेढ़ी है क्योंकि-

  • बेरिंग जलडमरू (Bering Strait) पर इस रेखा को पूर्व में घुमाने पर साइबेरिया का समस्त पूर्वी भाग एक तिथि रख सकता है, परंतु थोड़े से पूर्वी छोर पर तिथि अलग होती है।
  • दूसरा मोड़ एल्यूशियन द्वीप को अलास्का प्रायद्वीप वाला समय रखने की सुविधा देता है।
  • तीसरा व अंतिम मोड़ भूमध्य रेखा के दक्षिण में है ताकि एल्लिस, गिलबर्ट, फिजी व टोंगा द्वीप-समूहों को न्यूजीलैंड की तिथि के अनुरूप रखा जा सके।

ध्यान दें कि अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा में टेढ़ापन या तो 7 1/2° देशांतर तक है या फिर सीधा 150 देशांतर तक।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा (International Date Line)-अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा 180° देशांतर रेखा के लगभग अनुरूप वह काल्पनिक रेखा है जिसे पार करने पर दिशा के अनुसार एक दिन बढ़ाया या घटाया जाता है।

24 घंटों में पृथ्वी अपने अक्ष पर एक घूर्णन पूरा करती है। इससे प्रति देशांतर 4 मिनट का अंतर पड़ जाता है। पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व को घूमती है। अतः यदि हम पश्चिम से पूर्व की ओर यात्रा करें तो हमें अपनी घड़ी प्रति 15° देशांतर पर 1 घंटा आगे व पूर्व से पश्चिम की ओर यात्रा करने पर 1 घंटा पीछे करनी पड़ेगी। अतः ग्रिनिच (ग्रीनविच) से चलकर 180° पूर्व तक पहुंचते-पहुंचते समय 12 घंटे आगे हो जाएगा, जबकि ग्रीनविच से चलकर 180° पश्चिम तक पहुंचते-पहुंचते समय 12 घंटे पीछे हो जाएगा।

इस प्रकार 0° देशांतर रेखा के मुकाबले 180° देशांतर रेखा पर 24 घंटे अथवा 1 दिन का फ़र्क पड़ जाता है। उदाहरणतः यदि ग्रीनविच प्रातः (0° देशांतर) पर रविवार 11 फरवरी, 2002 को प्रातः 6 बजे का समय है तो 180° पूर्व देशांतर पर पहुंचने वाले व्यक्ति को समय \(\frac { 180×4 }{ 60 }\) = 12 घंटे आगे मिलेगा अर्थात् वहाँ रविवार 11 फरवरी (उसी दिन) के सायं के 6 बजे होंगे। दूसरी ओर ग्रीनविच से पश्चिम की ओर यात्रा करने वाले व्यक्ति को 180° पश्चिम देशांतर पर समय 12 घंटे पीछे मिलेगा, अर्थात् वहाँ उसे रविवार 10 फरवरी सायं के 6 बजे मिलेंगे (चित्र 4.2)।

संसार की यात्रा में इस गड़बड़ी को दूर करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा निश्चित कर दी गई है जो 180° देशांतर रेखा की स्थिति में कुछ हेर-फेर करके मानी गई है।

अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा अपनी संपूर्ण लंबाई में जल प्रदेश (प्रशांत महासागर) से ही गुज़रती है (चित्र 4.2)। जो जहाज़ एक तिथि रेखा को पश्चिम की ओर से पार करता है वह तिथि रेखा को पार करते ही एक दिन छोड़ देता है और जो जहाज़ इसे पूर्व की ओर से पार करता है वह एक ही दिन को दोबारा गिनता है। ऐसा करने से यात्रा में तिथि की गड़बड़ी दूर हो जाएगी।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय 2

उदाहरणतः यदि पश्चिम की ओर से आता हुआ जहाज़ अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा को रविवार 11 फरवरी को पार करता है तो वह अपने रिकॉर्ड में इस दिन को दो बार दर्ज करेगा-रविवार 11 फरवरी I व रविवार 11 फरवरी II । इस प्रकार पश्चिम से पूर्व की ओर जाने वाले जहाज़ के लिए सप्ताह 8 दिनों का होगा। दूसरी ओर यदि पूर्व की ओर से आता हुआ जहाज़ इस तिथि रेखा को रविवार 11 फरवरी को पार करता है तो वह अगला दिन, अर्थात्सोमवार 12 फरवरी को छोड़ देगा और अपने रिकॉर्ड में दूसरा दिन मंगलवार 13 फरवरी दर्ज कर लेगा। इस प्रकार पूर्व से पश्चिम की ओर जाने वाले जहाज़ के लिए सप्ताह केवल 6 दिनों का होगा।

प्रश्न 2.
यदि ग्रीनविच पर दिन के 2 बजे हों तो भारत में मानक समय क्या होगा? (भारत का मानक समय इलाहाबाद 827° पूर्वार्द्ध से मापा जाता है।) इलाहाबाद का देशांतर 82%° पूर्व तथा ग्रीनविच का देशांतर 0° है।
उत्तर:
दोनों स्थानों के देशांतरों में अंतर = 82 1/2°
82 1/2° = \(\frac { 165° }{ 2 }\)
यदि देशांतर में अंतर 1° है तो समय में अंतर = 4 मिनट
यदि देशांतर में अंतर \(\frac { 165° }{ 2 }\) है तो समय में अंतर
= \(\frac { 165×4 }{ 2 }\) = 330 मिनट या 5 घंटे 30 मिनट
क्योंकि इलाहाबाद ग्रीनविच के पूर्व में स्थित है, इसलिए वहां का समय ग्रीनविच के समय से आगे होगा।
अतः जब ग्रीनविच पर दिन के 2 बजे होंगे तो इलाहाबाद (समस्त भारत) में सायं के 2 + 5:30 = 7:30 बजे होंगे।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय 3

प्रश्न 3.
न्यूयॉर्क (74°W) पर स्थानीय समय क्या होगा जब ग्रीनविच पर दोपहर के 12 बजे हों?
उत्तर:
न्यूयॉर्क का देशांतर = 74° W
ग्रीनविच का देशांतर = 0°
दोनों स्थानों के देशांतरों में अंतर = 74° – 0° = 74°
यदि देशांतर में अंतर 1° है तो समय में अंतर = 4 मिनट
यदि देशांतर में अंतर 74° है तो समय में अंतर = 74 x 4 = 296 अर्थात् 4 घंटे 56 मिनट
क्योंकि न्यूयार्क ग्रीनविच के पश्चिम में स्थित है, इसलिए वहां का समय ग्रीनविच के समय से पीछे होगा।
अतः जब ग्रीनविच पर दोपहर 12 बजे होंगे तो न्यूयार्क पर स्थानीय समय 12 – 4 घंटे 56 मिनट = 7 बजकर 4 मिनट

प्रश्न 4.
चेन्नई (मद्रास) (80°E) पर क्या स्थानीय समय होगा जब बोस्टन (71°W) में 15 मार्च सायं के 10 बजे हों?
उत्तर:
बोस्टन का देशांतर = 71° W
चेन्नई का देशांतर = 80° E
दोनों स्थानों के देशांतरों में अंतर
= 71° + 80° = 151°
(जब दोनों दिशाएं विपरीत हों तो देशांतरों के जमा होने पर अंतर निकलता है।)
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय 4
यदि देशांतर में अंतर 1° है तो समय में अंतर = 4 मिनट
यदि देशांतर में अंतर 151° है तो समय में अंतर = 151 x 4 = 604 मिनट
अर्थात् 10 घंटे 4 मिनट
क्योंकि चेन्नई बोस्टन के पूर्व में स्थित है, इसलिए वहां का स्थानीय समय बोस्टन के समय से आगे होगा।
बोस्टन में 15 मार्च वाले दिन, रात के 10 बजे हैं अर्थात् बोस्टन में 15 मार्च के दिन का सूर्योदय हुए 12 + 10 = 22 घंटे हो चुके हैं।
क्योंकि चेन्नई बोस्टन के पूर्व में है इसलिए चेन्नई का समय ज्ञात करने के लिए हमें दोनों स्थानों के समय के अंतर को बोस्टन के समय में जमा करना पड़ेगा।
अतः चेन्नई का समय = बोस्टन का समय + समयांतर = 22.00 + 10.4 = 32.4
हम जानते हैं कि 24 घंटों के बाद अगला दिन शुरू हो जाता है अतः चेन्नई के कुल समय में से 24 घंटे घटा दीजिए अर्थात्
= 32.4-24 = 8.4।
इसका अर्थ यह है कि जब बोस्टन में 15 मार्च के दिन, रात के 10 बजे होंगे उस समय चेन्नई में दिन पहले ही पूरा हो चुका होगा और वहां अगले दिन 16 मार्च प्रातः 8 बजकर 4 मिनट हुए होंगे।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय

प्रश्न 5.
एक स्थान ‘A’ पर स्थानीय समय के अनुसार प्रातः के 10.00 बजे हैं तथा दूसरे स्थान ‘B’ पर उसी दिन सायं के 5.00 बजे हैं। यदि ‘A’ का देशांतर 40°E हो तो ‘B’ का देशांतर क्या होगा?
उत्तर:
घंटे  मिनट
A स्थान का समय = 10 : 00
B स्थान का समय = 17 : 00 (12+ 5)
समय में अंतर = 7 : 00 घंटे
अर्थात् 7 x 60 = 420 मिनट
यदि 4 मिनट के अंतर पर देशांतर का अंतर 1° है
तो 420 मिनट के अंतर पर देशांतर का अंतर
= \(\frac { 420 }{ 4 }\) = 105 देशांतर होगा
क्योंकि B स्थान का समय अधिक है इसलिए ‘B’ ‘A’ स्थान के पूर्व में स्थित होगा।
A का देशांतर = 40°E
B का देशांतर = 40° + 105° = 145° E
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय 5

प्रश्न 6.
टोकियो का देशांतर 138° 45′ पूर्व है और अहमदाबाद का देशांतर 72°45′ पूर्व है। टोकियो का समय ज्ञात कीजिए, जबकि अहमदाबाद में प्रातः के 9 बजे हों।
उत्तर:
टोकियो का देशांतर = 138° 45′ पूर्व
अहमदाबाद का देशांतर = 72° 45′ पूर्व
दोनों स्थानों के देशांतरों में अंतर = 138° 45′ – 72° 45′
66° 00′
1° देशांतर के अंतर पर समय का अंतर = 4 मिनट
66 देशांतर के अंतर पर समय का अंतर = 66 x 4 = 264
मिनट अर्थात् 264 ÷ 60 = 4 घंटे 24 मिनट
क्योंकि टोकियो अहमदाबाद के पूर्व में है इसलिए टोकियो का समय अहमदाबाद के समय से आगे होगा।
टोकियो का समय ज्ञात करने के लिए हमें दोनों स्थानों के समय के अंतर को अहमदाबाद के समय में जोड़ना होगा। अतः टोकियो का समय होगा 9:00 + 4:24 = 13:24 अर्थात् दोपहर 1 बजकर 24 मिनट।
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प्रश्न 7.
हांगकांग (114° पूर्व) पर समय ज्ञात कीजिए जब मांट्रियल (74° पश्चिम) पर मंगलवार सायं के 10 बजे हों।
उत्तर:
हांगकांग का देशांतर = 114° पूर्व
मांट्रियल का देशांतर = 74° पश्चिम
दोनों स्थानों के देशांतरों में अंतर = 114° + 74° = 188°
(जब दोनों दिशाएं विपरीत हों तो देशांतरों के जमा होने पर अंतर निकलता है)
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय 7
यदि देशांतर में अंतर 1° है तो समय में अंतर यदि देशांतर में अंतर 188° है तो समय में अंतर = 4 मिनट
= 188 x 4 = 752 मिनट अर्थात् 12 घंटे 32 मिनट
क्योंकि हांगकांग मांट्रियल के पूर्व में स्थित है, इसलिए वहां का स्थानीय समय मांट्रियल के समय से आगे होगा।
मांट्रियल में रात के 10 बजे हैं अर्थात् मांट्रियल में सूर्योदय हुए 12 + 10 = 22 घंटे हो चुके हैं।
क्योंकि हांगकांग मांट्रियल के पूर्व में स्थित है, इसलिए हांगकांग का समय ज्ञात करने के लिए हमें दोनों स्थानों के समय के अंतर को मांट्रियल के समय में जोड़ना होगा।
अतः हांगकांग का समय = मांट्रियल का समय + समयांतर = 22:00 + 12:32 = 34:32.
हम जानते हैं कि 24 घंटों के बाद अगला दिन शुरू हो जाता है। अतः हांगकांग के कुल समय में से 24 घंटों घटा दीजिए अर्थात् 34:32-24 = 10:32
इसका अर्थ यह हुआ कि जब मांट्रियल में मंगलवार रात के 10 बजे होंगे उस समय हांगकांग में अगले दिन बुधवार को दिन के 10:32 बजे होंगे।

प्रश्न 8.
भारत के पश्चिम में स्थित भुज का देशांतर 69° पूर्व है तथा भारत के पूर्व में स्थित तेजपुर का देशांतर 93° पूर्व है। भुज का स्थानीय समय ज्ञात करो, जबकि तेजपुर में दोपहर के 12 बजे हों।
उत्तर:
तेजपुर का देशांतर = 93° पूर्व
भुज का देशांतर = 69° पूर्व
दोनों स्थानों के देशांतरों में अंतर = 93° – 69° = 24°
1° देशांतर के अंतर पर समय का अंतर = 4 मिनट
24° देशांतर के अंतर पर समय का अंतर
= 24 x 4=96 मिनट अर्थात् 1 घंटा 36 मिनट
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय 8
क्योंकि भुज तेजपुर के पश्चिम में है, इसलिए भुज का स्थानीय समय तेजपुर के स्थानीय समय से पीछे होगा। अतः भुज का समय = 12:00 – 1:36 = 10 बजकर 24 मिनट दिन के।

प्रश्न 9.
एशियाई रूस के पूर्व में स्थित व्लाडिवॉस्टक का देशांतर 132° पूर्व है तथा यूरोपीय रूस के पश्चिम में स्थित सेंट पीटर्सबर्ग का देशांतर 30° पूर्व है। यदि व्लाडिवॉस्टक में 10 मार्च रविवार प्रातः के 4 बजे हैं तो सेंट पीटर्सबर्ग में स्थानीय समय क्या होगा?
उत्तर:
व्लाडिवॉस्टक का देशांतर = 132° पूर्व
सेंट पीटर्सबर्ग का देशांतर = 30° पूर्व
दोनों स्थानों के देशांतरों में अंतर = 132° – 30° = 102°
यदि देशांतर में अंतर 1° है तो समय में अंतर = 4 मिनट
यदि देशांतर में अंतर 102° है तो समय में अंतर
= 102 x 4 =408 मिनट अर्थात
= 6 घंटे 48 मिनट।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 अक्षांश, देशान्तर और समय 9
क्योंकि सेंट पीटर्सबर्ग व्लाडिवॉस्टक के पश्चिम में है अतः सेंट पीटर्सबर्ग का स्थानीय समय व्लाडिवॉस्टक के स्थानीय समय से पीछे होगा।
अतः सेंट पीटर्सबर्ग का समय ज्ञात करने के लिए हमें व्लाडिवॉस्टक के समय से 6 घंटे 48 मिनट पीछे जाना होगा अर्थात 4a.m. – 6:48 = 9 बजकर 12 मिनट रात के दिनांक 9 मार्च शनिवार।

अक्षांश, देशान्तर और समय HBSE 11th Class Geography Notes

→ अक्षांश (Latitude)-किसी स्थान की भूमध्य रेखा से उत्तर व दक्षिण की ओर पृथ्वी के केन्द्र पर बनने वाली कोणात्मक दूरी को उस स्थान का अक्षांश कहते हैं।

→ देशान्तर (Longitude)-किसी स्थान की प्रधान देशान्तर रेखा (0° देशान्तर) से पूर्व या पश्चिम दिशा में कोणात्मक दूरी को उस स्थान का देशान्तर कहते हैं।

→ प्रधान मध्याह्न रेखा (Prime Meridian) एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौते में लंदन के समीप ग्रीनविच वेधशाला से गुजरने वाली देशान्तर रेखा को प्रधान देशान्तर रेखा या प्रधान मध्याह्न रेखा कहा जाता है।

→ कर्क रेखा (Tropic of Capricorn)-भूमध्य रेखा से 2372° उत्तर अक्षांश रेखा को कर्क रेखा कहते हैं।

→ अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा (International Date Line) अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा 180° देशान्तर रेखा के लगभग अनुरूप वह काल्पनिक रेखा है जिसे पार करने पर दिशा के अनुसार एक दिन बढ़ाया या घटाया जाता है।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Practical Work in Geography Chapter 2 मानचित्र मापनी Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में से कौन-सी विधि मापनी की सार्वत्रिक विधि है?
(A) साधारण प्रकथन
(B) निरूपक भिन्न
(C) आलेखी विधि
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) निरूपक भिन्न

2. मानचित्र की दूरी को मापनी में किस रूप में जाना जाता है?
(A) अंश
(B) हर
(C) मापनी का प्रकथन
(D) निरूपक भिन्न
उत्तर:
(B) हर

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी

3. मापनी में ‘अंश’ व्यक्त करता है-
(A) धरातल की दूरी
(B) मानचित्र की दूरी
(C) दोनों दूरियां
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) धरातल की दूरी

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मापक किसे कहते हैं?
उत्तर:
मानचित्र पर प्रदर्शित किन्हीं दो बिंदुओं के बीच की दूरी तथा पृथ्वी पर उन्हीं दो बिंदुओं के बीच की वास्तविक दूरी के अनुपात को मापक कहते हैं।

प्रश्न 2.
मापक की हमें क्यों जरूरत पड़ती है?
उत्तर:
किसी भी क्षेत्र के बराबर आकार का मानचित्र नहीं बनाया जा सकता। यद्यपि क्षेत्र के अनुपात में कुछ छोटा मानचित्र बनाया जा सकता है। इसके लिए मापक जरूरी है। दूसरे मानचित्र पर दूरियों को मापने और विभिन्न स्थानों की सापेक्षित स्थिति ज्ञात करने के लिए भी हमें मापक की जरूरत पड़ती है।

प्रश्न 3.
मानचित्र पर मापक को कितने तरीकों से व्यक्त किया जा सकता है?
उत्तर:
तीन विधियों से-

  1. कथनात्मक मापक
  2. प्रदर्शक भिन्न (R.E.) और
  3. रैखिक मापक।

प्रश्न 4.
प्रदर्शक भिन्न (R.F.) क्या होती है?
उत्तर:
यह मापक प्रदर्शित करने वाली भिन्न होती है जिसके बाईं ओर की संख्या अंश तथा दाईं ओर की संख्या हर कहलाती है। अंश (Numerator) का मान (Value) सदा 1 होता है जो मानचित्र की दूरी को दिखाता है और हर (Denominator) धरातल की दूरी को दिखाता है। इन दोनों की इकाई सदा एक-जैसी होती है।

प्रश्न 5.
R.F. को किस मापन-प्रणाली द्वारा व्यक्त किया जाता है?
उत्तर:
प्रदर्शक भिन्न या R.E. की कोई मापन-प्रणाली नहीं होती। यह तो केवल भिन्न (Fraction) के द्वारा व्यक्त होता है।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी

प्रश्न 6.
प्रदर्शक भिन्न को मापक व्यक्त करने की अन्य विधियों से बेहतर क्यों माना जाता है?
अथवा
प्रदर्शक भिन्न को अंतर्राष्ट्रीय मापक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
R.F. किसी भी मापन-प्रणाली से जुड़ा हुआ नहीं होता। अतः हर देश में इसका प्रयोग हो सकता है, इसलिए यह एक बेहतर विधि है।

प्रश्न 7.
विकर्ण मापक का क्या लाभ है?
उत्तर:
विकर्ण मापक से मानचित्र की छोटी-से-छोटी दूरी भी सरलता से मापी जा सकती है, क्योंकि इस मापक के द्वारा 1 सें०मी० या 1 इंच का 100वां हिस्सा भी दिखाया जा सकता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मापक क्या है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मापक को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
मापक की परिभाषा एवं अर्थ (Definition and Meaning of Scale)-पृथ्वी अथवा उसके किसी भाग का मानचित्र बनाने से पहले हम तय करते हैं कि मानचित्र की कितनी दूरी से धरातल की कितनी दूरी दिखाई जानी है। इस प्रकार हम मानचित्र की दूरी और धरातल की दूरी के बीच एक संबंध स्थापित करते हैं। यही संबंध मापक को जन्म देता है। मापक वह अनुपात है जिसमें धरातल पर मापी गई दूरियों को छोटा करके मानचित्र में प्रदर्शित किया जाता है। सरल शब्दों में, “मानचित्र पर किन्हीं दो बिंदुओं के बीच की सीधी दूरी तथा पृथ्वी पर उन्हीं दो बिंदुओं के बीच की वास्तविक सीधी दूरी के अनुपात को मापक कहते हैं।” (Scale is the ratio between a distance measured on a map and the corresponding distance on the Earth.) इसे निम्नलिखित सूत्र में भी व्यक्त किया जा सकता है-
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 1
उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए एक मानचित्र पर A तथा B कोई दो बिंदु हैं, जिनके बीच की दूरी 1 सें०मी० तथा धरातल पर इन्हीं दो बिंदुओं के बीच की दूरी 5 किलोमीटर है; तो उस मानचित्र का मापक 1 सें०मी० : 5 कि०मी० होगा।

प्रश्न 2.
मापक की आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मापक की आवश्यकता (Necessity of Scale)-
(1) हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी के धरातल के आकार के बराबर मानचित्र नहीं बनाया जा सकता। अगर बन भी जाए तो वह निरर्थक होगा। प्रदर्शित.किए जाने वाले क्षेत्र की तुलना में मानचित्र का काफी छोटा होना ही उसकी उपयोगिता और सार्थकता को दर्शाता है। मानचित्र आवश्यकतानुसार आकार वाला होना चाहिए। यह कार्य केवल मापक द्वारा ही हो सकता है।

(2) मापक के अभाव में मानचित्र पर विभिन्न स्थानों की सापेक्षित स्थिति (Relative Position) नहीं दिखाई जा सकती। जो मानचित्र मापक के अनुसार न बना हो वह केवल एक कच्चा रेखाचित्र (Rough Sketch) होता है।

प्रश्न 3.
मापक की विभिन्न पद्धतियों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मापक की पद्धतियाँ (Methods of Measurement)-मापक की दो पद्धतियाँ हैं-
1. मेट्रिक प्रणाली इस प्रणाली के अंतर्गत धरातल पर किन्हीं दो बिंदुओं के बीच की क्षैतिज दूरी को मापने के लिए किलोमीटर, मीटर एवं सेंटीमीटर इत्यादि का प्रयोग किया जाता है। मेट्रिक प्रणाली का उपयोग भारत तथा विश्व के अन्य अनेक देशों में किया जाता है।

2. अंग्रेज़ी प्रणाली-इस दूसरी पद्धति में मील, फल्ग, गज व फुट आदि इकाइयों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रणाली का उपयोग संयुक्त राज्य अमेरिका एवं इंग्लैंड दोनों देशों में किया जाता है। रेखीय दूरियों को मापने व प्रदर्शित करने के लिए 1957 से पूर्व इस पद्धति का प्रयोग भारत में भी किया जाता था।
मापक की पद्धतियाँ:
मापक की मेट्रिक प्रणाली

  • 1 कि०मी० = 1,000 मीटर
  • 1 मीटर = 100 सें०मी०
  • 1 सें०मी० = 10 मिलीमीटर

मापक की अंग्रेज़ी प्रणाली

  • 1 मील = 8 फर्लांग
  • 1 फर्लांग = 220 यरर्ड
  • 1 यार्ड = 3 फुट
  • 1 फुट = 12 इंच

प्रश्न 4.
एक मानचित्र का कथनात्मक मापक 5 सें०मी० : 1 कि०मी० है। उसका प्रदर्शक भिन्न (R.F.) ज्ञात करें।
क्रिया:
पग 1.
धरातल की दूरी को सें०मी० में परिवर्तित कीजिए, क्योंकि मानचित्र पर दूरी सें०मी० में है। 1 कि०मी० = 1,00,000 सें०मी०।।
पग 2.
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 2
R.F = \(\frac{5}{1,00,000}=\frac{1}{20,000}\) (अंश सदैव 1 ही रहता है।)
उत्तर:
R.F. = 1:20,000

प्रश्न 5.
एक मानचित्र का कथनात्मक मापक 1 सें०मी० : 250 मीटर है। उसका प्रदर्शक भिन्न (R.E.) ज्ञात कीजिए। क्रिया : पग 1. धरातल की दूरी को सें०मी० में बदलिए क्योंकि मानचित्र की दूरी सें०मी० में है। 250 मीटर = 100 x 250 = 25,000 सें०मी०
पग 2.
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 2
R.F. = \(\frac { 1 }{ 25,000 }\) (अंश सदैव 1 ही रहता है।)
उत्तर:
R.E. = 1:25,000

प्रश्न 6.
एक मानचित्र का कथनात्मक मापक 3.5 सें०मी० : 7 कि०मी० है। उसका प्रदर्शक भिन्न (R.F.) . ज्ञात करें।
क्रिया : पग 1. धरातल की दूरी को सें०मी० में बदलिए, क्योंकि मानचित्र की दूरी सें०मी० में है।
7 कि०मी० = 7 x 1,00,000 सें०मी०
पग 2.
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 2
R.E = \(\frac{3.5}{7,00,000}=\frac{1}{2,00,000}\) (अंश सदैव 1 रहता है)
उत्तर:
R.F. = 1:2,00,000

प्रश्न 7.
1 इंच : 8 मील वाले कथनात्मक मापक को प्रदर्शक भिन्न (R.F.) में परिवर्तित कीजिए। क्रिया : पग 1. धरातल की दूरी को इंचों में बदलिए क्योंकि मानचित्र की दूरी इंचों में है।
8 मील = 8 x 63,360 = 5,06,880 इंच
(1 मील = 63,360 इंच)
पग 2.
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 1a

R.E. = \(\frac{1}{5,06,880}\) (अंश सदैव 1 ही रहता है।)
उत्तर:
R.E. = 1:5,06,880

प्रश्न 8.
एक मानचित्र पर प्रदर्शक भिन्न \(\frac{1}{3,00,000}\) दिया गया है। इसे कि०मी० में दिखाने के लिए कथनात्मक मापक बनाइए।
क्रिया : पग 1. R.F. \(\frac{1}{3,00,000}\) ; इसे मीट्रिक प्रणाली में पढ़िए।
1 सें०मी० : 3,00,000 सें०मी०
पग 2. धरातल की दूरी को कि०मी० में बदलिए।
1 सें०मी० = \(\frac{1}{1,000}\) कि०मी०
3,00,000 सें०मी० = \(\frac{3,00,000}{1,00,000}\) = 3 कि०मी०
उत्तर:
कथनात्मक मापक 1 सें०मी० : 3 कि०मी०।

प्रश्न 9.
यदि प्रदर्शक भिन्न 1:2,53,440 हो तो मील दिखाने के लिए उसे कथनात्मक मापक में परिवर्तित कीजिए।
क्रिया : पग 1. R.F. = \(\frac{1}{2,53,440}\) को ब्रिटिश प्रणाली में पढ़िए।
1 इंच : 2,53,440 इंच।
पग 2. धरातल की दूरी को मीलों में बदलिए।
1 इंच = \(\frac{1}{63,360}\) माल
2,53,440 इंच = \(\frac{2,53,440}{63,360}\)= 4 मील
उत्तर:
कथनात्मक मापक 1 इंच : 4 मील।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी

प्रश्न 10.
यदि प्रदर्शक भिन्न 1:10,00,000 हो तो मील दिखाने के लिए इसे कथनात्मक मापक में परिवर्तित कीजिए। क्रिया : पग 1. R.F. \(\frac{1}{10,00,000}\) को ब्रिटिश प्रणाली में पढ़िए।
1 इंच : 10,00,000 इंच
पग 2. धरातल की दूरी को मीलों में बदलिए।
1 इंच : \(\frac{1}{63,360}\) मील
10,00,000 इंच : \(\frac{10,00,000}{63,360}\) = 15.78 मील
उत्तर:
कथनात्मक मापक 1 इंच : 15.78 मील।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानचित्र पर मापक को प्रदर्शित करने वाली विधियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मानचित्र पर मापक प्रदर्शित करने वाली विधियों के गुण-दोषों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानचित्र पर मापक को प्रदर्शित करने की विधियां (Methods of Expressing Scale on a Map)-मानचित्र पर मापक को निम्नलिखित तीन विधियों द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है

  • कथनात्मक मापक (Statement of Scale)
  • प्रदर्शक भिन्न (Representative Fraction)
  • रैखिक मापक (Linear Scale)

1. कथनात्मक मापक (Statement of Scale) इस विधि में किसी मानचित्र पर उसके मापक को शब्दों में लिख दिया जाता है; जैसे 1 सेंटीमीटर : 2 किलोमीटर। इसका अर्थ यह हुआ कि मानचित्र पर 1 सेंटीमीटर की दूरी धरातल की 2 किलोमीटर की दूरी को प्रदर्शित कर रही है। कथनात्मक मापक में बाएं हाथ की ओर वाली संख्या सदैव मानचित्र पर दूरी को दिखाती है। इस विधि के अन्य नाम विवरणात्मक मापक तथा शाब्दिक विवेचन विधि भी हैं।

गुण-

  • यह एक सरल विधि है जिसे एक साधारण व्यक्ति भी समझ सकता है।
  • मापक प्रदर्शित करने की इस विधि में कम समय लगता है और किसी विशेष कुशलता की भी आवश्यकता नहीं पड़ती।
  • इस विधि से हमें दूरियों का ठीक-ठीक ज्ञान हो जाता है।

दोष-

  • कथनात्मक मापक को पढ़कर केवल वे लोग मानचित्र पर दूरियों की गणना कर सकते हैं, जो उस माप-प्रणाली से परिचित होंगे।
  • इस विधि द्वारा सीधे मानचित्र पर दूरियां नहीं मापी जा सकतीं।
  • जिन मानचित्रों में मापक शब्दों में व्यक्त किया गया होता है, उनका मूल आकार से भिन्न आकार में मुद्रित करना संभव नहीं होता, क्योंकि इससे उनका मापक अशुद्ध हो जाएगा।

2. प्रदर्शक भिन्न (Representative Fraction)-इस विधि में मापक को एक भिन्न द्वारा प्रदर्शित किया जाता है; जैसे \(\frac{1}{10,00,000}\)। इसका अंश (Numerator) सदा एक (1) होता है जो मानचित्र पर दूरी को दर्शाता है। इस भिन्न का हर (Denominator) धरातल पर दूरी को दर्शाता है। मानचित्र का मापक बदलने पर अंश वही रहता है, लेकिन हर बदल जाता है।
अन्य शब्दों में-
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 3
इस विधि की महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इसमें अंश और हर एक ही इकाई (Unit) में व्यक्त किए जाते हैं। उपर्युक्त उदाहरण में मानचित्र का मापक 1 : 1,00,000 या 1/1,00,000 है तो इसका अर्थ यह हुआ कि मानचित्र पर दूरी की 1 इकाई धरातल पर 1,00,000 उन्हीं इकाइयों की दूरी को प्रदर्शित करती है। यदि मानचित्र पर यह इकाई 1 सें०मी० है तो धरातल पर यह 1,00,000 सें०मी० दूरी को प्रदर्शित करेगी।

गुण-
(1) इस विधि में किसी मापन-प्रणाली (Measurement System) का प्रयोग नहीं होता, केवल भिन्न का प्रयोग होता है। इसलिए मापक दिखाने की इस विधि का प्रयोग किसी भी देश की मापक प्रणाली के अनुसार किया जा सकता है। मान लो एक मानचित्र पर प्रदर्शक भिन्न = \(\frac{1}{10,00,000}\) लिखा हुआ है तो इसका अभिप्राय अलग-अलग मापन प्रणालियों में अलग-अलग होगा; जैसे-

देश/प्रणाली मानचित्र पर दूरी धरातल की दूरी
भारत व फ्रांस, जहां मेट्रिक प्रणाली है। 1 सें०मी० 1,00,000 सें०मी०
ब्रिटेन, जहां ब्रिटिश प्रणाली है। 1 इंच 1,00,000 इंच
रूस 1 वर्स्ट 1,00,000 वसर्ट्रूस
चीन 1 चांग 1,00,000 चांग

फर्क मामूली है, किंतु महत्त्वपूर्ण है

यह अनुपात (Ratio) है यह भिन्न (Fraction) है
1: 50,000 \(\frac { 1 }{ 50,000 }\)

संपरिवर्तनीयता (Convertibility) की इसी विशेषता के कारण ही इस R.F. विधि को अंतर्राष्ट्रीय मापक (International Scale) और प्राकृतिक मापक (Natural Scale) कहा जाता है।

(2) यह एक अत्यंत लोकप्रिय विधि है जिसका बहुत अधिक प्रयोग किया जाता है।

दोष-

  • इस विधि में किसी मापन-प्रणाली का प्रयोग न करके केवल भिन्न का प्रयोग किया जाता है, जिससे सीधे ही दूरियों का अनुमान नहीं लग सकता।
  • फोटोग्राफी द्वारा मानचित्र को छोटा अथवा बड़ा करने पर इसका प्रदर्शक भिन्न बदल जाता है, यद्यपि संख्या वही लिखी रहती है।
    यह विधि एक साधारण व्यक्ति की समझ से बाहर है।

3. रैखिक मापक (Linear Scale)-इस विधि में मानचित्र की दूरी को एक सरल रेखा द्वारा प्रदर्शित किया जाता है जिसका अनुपात धरातल की दूरी से होता है। सुविधा के अनुसार इस रेखा को प्राथमिक (Primary) तथा गौण (Secondary) भागों में बांटा जाता है।

गुण-
(1) इस विधि से दूरियों को मापना सरल हो जाता है।

(2) इस विधि का सबसे बड़ा गुण यह है कि यदि मानचित्र को फोटोग्राफी द्वारा बड़ा या छोटा किया जाए तो मानचित्र पर छपा रैखिक मापक भी उसी अनुपात में बड़ा या छोटा हो जाता है। अतः मापक बड़े या छोटे किए गए मानचित्र के लिए शुद्ध रहता है। यह गुण कथनात्मक मापक और प्रदर्शक भिन्न (R.F.) विधियों में नहीं है जिस कारण मूल मानचित्र से भिन्न मापक पर बने मानचित्र में ये दो विधियां उपयुक्त नहीं होती।

दोष-

  • इस विधि का प्रयोग भी तभी हो सकता है जब हम उस मापन-प्रणाली से परिचित हों जिसका प्रयोग मापक बनाने के लिए किया गया है।
  • इस मापक को बनाने में समय भी लगता है और कुशलता की भी आवश्यकता होती है।

प्रश्न 2.
रैखिक मापक की रचना को विस्तारपूर्वक समझाइए।
उत्तर:
रैखिक मापक की रचना (Drawing of Linear Scale)-रैखिक मापक की रचना करने से पहले हमें एक सरल रेखा को समान भागों में बांटने के तरीके आने चाहिएं क्योंकि इसके बिना शुद्ध रैखिक मापक की रचना नहीं हो सकती। इसके लिए दो विधियां हैं
प्रथम विधि : मान लीजिए AB कोई दी हुई सरल रेखा है जिसे 6 समान भागों में विभाजित करना है।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 4

  • A सिरे पर न्यूनकोण (Acute angle) बनाती हुई एक रेखा AC खींचो।
  • अब परकार में कोई भी दूरी भर कर AC रेखा में समान अंतर पर.छः बिंदु D, E, F, G H और I अंकित करो।
  • बिंदु IB को सरल रेखा द्वारा मिलाओ।
  • अब D, E, F, G और 4 बिंदुओं से IB रेखा के समानांतर रेखाएं खींचो।

इस प्रकार AB रेखा 6 समान भागों में बंट जाएगी (चित्र 2.1)।
दूसरी विधि : मान लीजिए AB कोई दी हुई रेखा है जिसे पाँच समान भागों में विभाजित करना है।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 5

  • रेखा के दोनों सिरों A और B पर विपरीत दिशाओं में दो समान न्यूनकोण (लंबकोण भी ले सकते हैं) खींचो।
  • अब परकार में कोई भी दूरी भर कर बिंदु A से पांच बिंदु C, D, E, F और G अंकित करो।
  • इसी प्रकार B बिंदु से भी उतनी ही दूरी पर पांच बिंदु C’, D’, E, F व G’ अंकित करो।
  • अब A को G’ से, C को F से, D को E’ से, E को D’ से, F को C’ से तथा G को B से मिला दीजिए।

इस प्रकार AB रेखा के पांच समान भाग बन जाएंगे।

रैखिक मापक की रचना (Drawing of Linear Scale)-जब कथनात्मक मापक अथवा प्रदर्शक भिन्न दिया हुआ है तो हम प्लेन मापक बना सकते हैं। रैखिक मापक की रचना करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए
(1) प्रायोगिक-पुस्तिका (Practical File) में बनाई जाने वाली मापनी (Scale) की लंबाई 12 से 20 सें० मी० या 5 से 8 इंच के बीच ठीक मानी जाती है। वैसे मानचित्र के आकार के अनुसार किसी भी लंबाई की छोटी या बड़ी मापनी बनाई जा सकती है।

(2) मापक द्वारा प्रदर्शित धरातलीय दूरी सदा पूर्णांक संख्या में होनी चाहिए। पूर्णांक संख्या वह संख्या होती है जो 2, 5, 10, 15, 20, 50, 100 अथवा किसी भी अन्य संख्या से पूर्णतः विभाजित हो जाए और उसमें शेष (Remainder) न बचे।

(3) मापक को पहले सुविधानुसार मुख्य भागों (Primary Divisions) में बांटा जाता है। याद रहे प्रत्येक मुख्य भाग भी पूर्णांक संख्या को दर्शाता है।

(4) फिर बाईं ओर के पहले मुख्य भाग को सुविधानुसार गौण भागों (Secondary Divisions) में बांटा जाता है। इनसे मानचित्र पर छोटी दूरियां मापी जाती हैं।

(5) शून्य सदा बाईं ओर के पहले मुख्य भाग को छोड़कर अंकित किया जाता है।

(6) इस शून्य से दाईं ओर (Right Side) मुख्य भागों द्वारा दिखाई गई इकाई तथा बाईं ओर (Left side) गौण भागों द्वारा दिखाई गई इकाई अंकित की जाती है।

(7) वैसे तो विश्वविख्यात कंपनियों द्वारा बने मानचित्रों व एटलसों में मापक की तीन विधियों में से केवल एक विधि का प्रयोग होता है। विद्यार्थी क्योंकि अभी सीखने की अवस्था में हैं तो उन्हें रैखिक मापक के साथ कथनात्मक मापक या R.F. या दोनों ही लिखने चाहिएं।

प्रश्न 3.
1:2,50,000 प्रदर्शक भिन्न वाले मानचित्र के लिए एक रैखिक मापक बनाओ जिससे एक किलोमीटर की दूरी भी मापी जा सके।
क्रिया : प्रदर्शक भिन्न 1:2,50,000
पग 1.
12 सें०मी० रेखा को मुख्य तथा गौण भागों में विभक्त कीजिए।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी 6

पग 2.
फिर इस प्रकार मापक को पूरा कीजिए।
PLAIN SCALE
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अर्थात् मानचित्र का 1 सें०मी० धरातल के 2,50,000 सें०मी० को प्रदर्शित करता है।
अथवा 1 सें०मी० = 2.5 कि०मी०
(क्योंकि 1,00,000 सें० मी० = 1 कि०मी०)
मान लो हम रैखिक मापक की लंबाई 12 सें० मी० रखना चाहते हैं। इस प्रकार इस लंबाई का मापक 12 x 2.5 = 30 कि०मी० की दूरी को प्रदर्शित करेगा। यह दूरी एक पूर्णांक संख्या है और मापक बनाने के लिए सुविधाजनक भी है। अब एक सरल रेखा 12 सें० मी० लंबी लो और इसे सिखलाई गई विधि से 6 समान भागों में बांटो। इसमें प्रत्येक मुख्य भाग 5 कि०मी०

दूरी को दिखाएगा। बाईं ओर के पहले मुख्य भाग को 5 गौण भागों में बांटो। प्रत्येक गौण भाग 1 कि०मी० को प्रदर्शित करेगा। इसकी दाईं तथा बाईं ओर कि०मी० लिखकर नीचे R.F.लिखो। इसे अंकित और सुसज्जित करके इसका शीर्षक लिखो (चित्र 2.3)।

विद्यार्थी ध्यान दें कि रैखिक मापक का डिज़ाइन जरूरी नहीं कि वैसा हो जैसा ऊपर बताया गया है। इसी R.F. से बने रैखिक मापक को नीचे दिए गए डिजाइनों से भी बनाया जा सकता है। आपने किस प्रकार का रैखिक मापक बनाना है, इसका निर्देश अपने प्राध्यापक महोदय से लें।
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प्रश्न 4.
एक मानचित्र का प्रदर्शक भिन्न 1 : 6,33,600 है। इस मानचित्र के लिए एक रैखिक मापक बनाइए जिसमें दो कि०मी० तक की दूरी पढ़ी जा सके।
क्रिया : इस प्रश्न में दूरियां कि०मी० में पूछी गई हैं अतः प्रदर्शन भिन्न का कथनात्मक मापक में परिवर्तन भी मेट्रिक प्रणाली में किया जाएगा।
प्रदर्शक भिन्न 1 : 6,33,600
∴ 1 सें०मी० : 6,33,600 सें०मी०
अथवा 1 सें०मी० : \(\frac { 6,33,600 }{ 1,00,000 }\) = 6.336 कि०मी० (क्योंकि 1,00,000 सें०मी० = 1 कि०मी०)
हम पढ़ चुके हैं कि रैखिक मापक की लंबाई 12 से 20 सें०मी० के बीच होनी चाहिए। यदि हम 12 सें०मी० लंबा मापक लेते हैं तो यह प्रदर्शित करेगा :
6.336 x 12 = 76.032 कि०मी०
परंतु 76.032 एक पूर्णांक संख्या नहीं है। इसकी निकटतम पूर्णांक संख्या 80 है। अब 80 कि०मी० को दर्शाने वाली रेखा की लंबाई ज्ञात करनी होगी।
क्योंकि 6.336 कि०मी० = 1 सें०मी०
1 कि०मी० = \(\frac { 1 }{ 6.336 }\) सेंमी०
80 कि०मी० = \(\frac { 1×80 }{ 6.336 }\) = 12.62 सें०मी०
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प्रश्न 5.
किलोमीटर प्रदर्शित करने के लिए एक रैखिक मापक बनाओ जबकि मानचित्र का प्रदर्शक भिन्न 1:20,00,000 . है।
क्रिया: क्योंकि दूरियां कि०मी० में पूछी गई हैं अतः प्रदर्शक भिन्न का कथनात्मक मापक में परिवर्तन भी मेट्रिक प्रणाली में किया जाएगा।
R.F. = 1 : 20,00,000
∴ 1 सें०मी० : 20,00,000 से०मी०
अथवा 1 सेंमी \(\frac { 20,00,000 }{ 1,00,000 }\) = 20 कि०मी० (क्योंकि 1,00,000 सें०मी० = 1 कि०मी०)
यदि हम मापक की लंबाई 15 सेंमी० लेते हैं तो यह 15 x 20 = 300 कि०मी० की दूरी दिखाएगा। अब एक सरल रेखा 15 सें०मी० लो उसके पांच बराबर भाग करो। प्रत्येक मुख्य भाग 60 कि०मी० को प्रदर्शित करेगा। बाईं ओर के प्रथम मुख्य भाग को 6 गौण भागों में बांटो जिसमें प्रत्येक गौण भाग 10 कि०मी० की दूरी दिखाएगा। इसके नीचे प्रदर्शक भिन्न लिख दो (चित्र 2.5)।
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HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 2 मानचित्र मापनी

प्रश्न 6.
एक मानचित्र का प्रदर्शक भिन्न 1 : 63,360 है। इसके द्वारा एक ऐसा रैखिक मापक बनाओ जिस पर मील और फर्लाग पढ़े जा सकें।
क्रिया: इसमें दूरियां मीलों और फल्गों में पूरी की गई हैं। अतः प्रदर्शक भिन्न का कथनात्मक मापक भी ब्रिटिश प्रणाली में किया जाएगा।
R.F. 1 : 63,360
∴ 1 इंच : 63,360 इंच
अथवा 1 इंच = \(\frac { 63,360 }{ 63,360 }\) = 1 मा
(क्योंकि 63,360 इंच = 1 मील)
हम पढ़ चुके हैं कि रैखिक मापक की लंबाई 5 से 8 इंच के बीच होनी चाहिए। मान लीजिए हम मापक की लंबाई 6 इंच लेते हैं।
6 इंच प्रदर्शित करेंगे 1 x 6 = 6 मील को।
अब 6″ लंबी रेखा लो, उसके 6 बराबर भाग करो। प्रत्येक मुख्य भाग 1 मील को प्रदर्शित करेगा। बाईं ओर के पहले मुख्य भाग के 4 बराबर गौण भाग करो। प्रत्येक गौण भाग 2 फर्लाग को दिखाएगा (क्योंकि 1 मील में 8 फलाँग होते हैं)। इसके नीचे R.F. लिख दो (चित्र 2.6)।
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मानचित्र मापनी HBSE 11th Class Geography Notes

→ अंश (Numerator)-भिन्न में रेखा के ऊपर स्थित अंक को अंश कहते हैं। उदाहरण के लिए 1:50,000 के भिन्न में 1 अंश है।

→ निरूपक भिन्न-मानचित्र अथवा प्लान की मापनी को प्रदर्शित करने की एक ऐसी विधि, जिसमें मानचित्र या प्लान पर दिखाई गई दूरी तथा धरातल की वास्तविक दूरी के बीच के अनुपात को भिन्न के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है

→ हर (Denominator)-भिन्न में रेखा के नीचे स्थित अंक को हर कहते हैं। उदाहरण के लिए, 1:50,000 के भिन्न में 50,000 हर है।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 मानचित्र का परिचय

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Practical Work in Geography Chapter 1 मानचित्र का परिचय Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 मानचित्र का परिचय

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. रेखाओं एवं आकृतियों के मानचित्र कहे जाने के लिए निम्नलिखित में से क्या अनिवार्य है?
(A) मानचित्र रूढ़ि
(B) प्रतीक
(C) उत्तर दिशा
(D) मानचित्र मापनी
उत्तर:
(D) मानचित्र मापनी

2. एक मानचित्र जिसकी मापनी 1:4,000 एवं उससे बड़ी है, उसे कहा जाता है
(A) भूसंपत्ति मानचित्र
(B) स्थलाकृतिक मानचित्र
(C) भित्ति मानचित्र
(D) एटलस मानचित्र
उत्तर:
(A) भूसंपत्ति मानचित्र

3. निम्नलिखित में से कौन-सा मानचित्र के लिए अनिवार्य नहीं है?
(A) मानचित्र प्रक्षेप
(B) मानचित्र व्यापकीकरण
(C) मानचित्र अभिकल्पना
(D) मानचित्रों का इतिहास
उत्तर:
(D) मानचित्रों का इतिहास

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 मानचित्र का परिचय

4. मानचित्र में व्यापकीकरण का अर्थ है
(A) मानचित्र में ज्यादा से ज्यादा लक्षण दिखाना
(B) मानचित्र में विस्तृत क्षेत्रों का प्रदर्शन
(C) प्रदर्शित किए जाने वाली सूचनाओं व आंकड़ों का सरलीकरण
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) प्रदर्शित किए जाने वाली सूचनाओं व आंकड़ों का सरलीकरण

5. स्थलाकृतिक मानचित्रों के संबंध में कौन-सा कथन सत्य नहीं है?
(A) इनमें बस्तियां, धार्मिक स्थल, संचार के साधन, नहरें, कुएं आदि दिखाए जाते हैं
(B) इनकी मापनी 1:25,000 से 1:250,000 तक होती है
(C) इन्हें राज्य सरकारें प्रकाशित करती हैं
(D) इनमें प्राकृतिक लक्षणों का भी प्रदर्शन किया जाता है
उत्तर:
(C) इन्हें राज्य सरकारें प्रकाशित करती हैं

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानचित्र किसे कहते हैं ? अथवा मानचित्र की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी सहित किसी भी खगोलीय पिंड अथवा उसके किसी भाग का मापनी के अनुसार समतल सतह पर प्रतीकात्मक निरूपण मानचित्र कहलाता है।

प्रश्न 2.
गोलाकार पृथ्वी का सही और शुद्ध प्रदर्शन किस चीज़ से होता है?
उत्तर:
ग्लोब द्वारा।

प्रश्न 3.
ग्लोब क्या है?
उत्तर:
ग्लोब, पृथ्वी अथवा किसी खगोलीय पिंड का मानव द्वारा निर्मित छोटे आकार का एक त्रि-विस्तारीय मॉडल है।

प्रश्न 4.
विस्तृत क्षेत्रों के मानचित्र ग्लोब इतने शुद्ध क्यों नहीं होते?
अथवा
सभी मानचित्र मूलतः दोषपूर्ण क्यों होते हैं?
उत्तर:
मानचित्र सपाट कागज पर बनाए जाते हैं, जबकि पृथ्वी गोलाकार है। किसी गोल आकृति को एकदम सपाट बनाना संभव नहीं होता। इसी कारण बड़े क्षेत्रों के मानचित्र प्रायः विरूपित (Distorted) अथवा दोषपूर्ण होते हैं।

प्रश्न 5.
मानचित्र को धरातल का आलेखी (Graphic) अथवा प्रतीकात्मक निरूपण क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि मानचित्र पर धरातलीय लक्षणों को प्रतीकों और अक्षरों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

प्रश्न 6.
मानचित्र के मुख्य घटक या अंग या अवयव या भाग कौन-से होते हैं?
उत्तर:
शीर्षक, मापक, संकेत, दिशा, प्रक्षेप और रूढ़ चिह्न मानचित्र के छः आवश्यक अवयव (Elements) होते हैं।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 मानचित्र का परिचय

प्रश्न 7.
मानचित्रों के दो प्रमुख वर्गीकरण कौन-से होते हैं?
उत्तर:

  1. मापक के अनुसार।
  2. विषय-वस्तु अथवा उद्देश्य अथवा प्रकार्य के अनुसार।

प्रश्न 8.
मापक के अनुसार मानचित्र कितने प्रकार के होते हैं? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
मापक के अनुसार मानचित्र दो प्रकार के होते हैं-(1) बृहत मापक पर बने मानचित्र; जैसे भूकर मानचित्र और स्थलाकृतिक मानचित्र। (2) लघु मापक पर बने मानचित्र; जैसे दीवारी मानचित्र और एटलस मानचित्र।

प्रश्न 9.
बृहत मापक के मानचित्र और लघु मापक के मानचित्र में क्या अंतर होता है ?
उत्तर:
बृहत मापक के मानचित्र-बृहत मापक पर बने मानचित्र एक कागज़ पर अपेक्षाकृत थोड़े क्षेत्र को दिखाते हैं। अतः इनमें विस्तृत विवरण दिखाए जा सकते हैं। उदाहरणतः 1:50,000 के मापक पर बना भारतीय सर्वेक्षण विभाग का स्थलाकृतिक मानचित्र बृहत मापक पर बना होता है।

लघु मापक के मानचित्र-लघु मापक पर बना मानचित्र उसी आकार के कागज़ पर अपेक्षाकृत बड़े क्षेत्र का प्रदर्शन करता है। इसमें सीमित विवरण होते हैं। महाद्वीपों और देशों के मानचित्र लघु मापक पर बने होते हैं।

प्रश्न 10.
मानचित्र अलग-अलग मापकों पर क्यों बनाए जाते हैं?
उत्तर:
मानचित्र के लिए मापक का चयन हमारे उद्देश्य पर निर्भर करता है। यदि हम एक विस्तृत क्षेत्र में प्रमुख शहरों, बंदरगाहों व प्रमुख भू-आकारों का प्रदर्शन करना चाहते हैं तो हम लघु मापक का मानचित्र बनाएंगे और यदि हम एक छोटे क्षेत्र को विस्तार से दिखाना चाहते हैं तो हम बृहत मापक वाला मानचित्र बनाएंगे।

प्रश्न 11.
भूकर या कैडस्ट्रल मानचित्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
ये बृहत मापक पर बने ऐसे मानचित्र होते हैं जो सार्वजनिक स्थानों एवं प्रत्येक भवन अथवा व्यक्तिगत क्षेत्रों की सीमाएं दर्शाते हैं। इनसे भूमि कर या लगान इकट्ठा किया जाता है। इन्हें प्लान भी कहते हैं।

प्रश्न 12.
उद्देश्य के अनुसार मानचित्रों के दो प्रमुख वर्ग कौन-से होते हैं?
उत्तर:

  1. भौतिक या प्राकृतिक मानचित्र
  2. सांस्कृतिक या मानवीय मानचित्र।

प्रश्न 13.
भौतिक तथा सांस्कृतिक मानचित्रों में अंतर बताइए।
उत्तर:
भौतिक मानचित्र प्राकृतिक तत्त्वों को दर्शाते हैं; जैसे धरातल, जलवायु, नदियां, वनस्पति, मिट्टी आदि। सांस्कृतिक मानचित्र मानवीय तत्त्वों को दर्शाते हैं; जैसे जनसंख्या, कृषि, उद्योग, परिवहन इत्यादि।

प्रश्न 14.
मानचित्रों का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
मानचित्रों के बिना भू-तल पर भौतिक तथा सांस्कृतिक तत्त्वों के वितरण और उनके बीच संबंधों का प्रदर्शन नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 15.
मानचित्र और प्लान में क्या अंतर है?
उत्तर:
मानचित्र बड़े क्षेत्र को छोटे मापक द्वारा प्रदर्शित करते हैं, जबकि प्लान में छोटे क्षेत्र को बड़े मापक द्वारा दिखाया जाता है। मानचित्र में कागज़ का 1 सें०मी० धरती के 2 कि०मी० को प्रदर्शित कर सकता है, जबकि प्लान में कागज़ का 1 सें०मी० धरती के 1 अथवा कुछ मीटरों को ही दिखाता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्लोब और मानचित्र में क्या अंतर होता है?
उत्तर:
ग्लोब और मानचित्र में निम्नलिखित अंतर होता है-

ग्लोब मानचित्र
1. ग्लोब, संपूर्ण पृथ्वी अथवा किसी खगोलीय पिंड का छोटा-सा मॉडल होता है। 1. मानचित्र, पृथ्वी या किसी खगोलीय पिंड अथवा उसके किसी भाग को प्रदर्शित करता है।
2. बड़े ग्लोबों का निर्माण, रख-रखाव, प्रयोग और उनका लाना, ले-जाना कठिन होता है। 2. मानचित्र का प्रयोग और रख-रखाव आसान है। इसे कहीं भी ले जाया जा सकता है।
3. कम जगह होने के कारण ग्लोब पर सभी महत्त्वपूर्ण स्थान व आकृतियां नहीं दिखाई जा सकतीं। 3. मानचित्र पर छोटे क्षेत्रों का विस्तृत प्रदर्शन संभव है।
4. ग्लोब पर महाद्वीपों और महासागरों के आकार और आकृति (Size and shape) का विरूपण नहीं होता। 4. मानचित्रों में बड़े क्षेत्रों के आकार और आकृति में अत्यधिक विरूपण आ जाता है।
5. संपूर्ण पृथ्वी का प्रदर्शन करने के लिए ग्लोब सर्वाधिक उपयुक्त होते हैं। 5. पृथ्वी अथवा उसके किसी भाग; जैसे गांव, ज़िला, प्रांत, देश अथवा महाद्वीप का प्रदर्शन करने के लिए मानचित्र सर्वश्रेष्ठ होते हैं।
6. ग्लोब पर पृथ्वी या किसी खगोलीय पिंड का केवल आधा भाग ही एक समय में दिखाई पड़ता है। 6. मानचित्र पर पृथ्वी या किसी खगोलीय पिंड को संपूर्ण रूप में एक ही समय में देखा जा सकता है।

प्रश्न 2.
ग्लोब द्वारा पृथ्वी के लिए किए जाने वाले श्रेष्ठ प्रदर्शन के कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
ग्लोब द्वारा पृथ्वी के लिए किए जाने वाले श्रेष्ठ प्रदर्शन के कारण निम्नलिखित हैं-

  1. पृथ्वी की भांति ग्लोब भी अपने अक्ष पर स्वतंत्रतापूर्वक घूर्णन (Rotation) कर सकता है।
  2. ग्लोब पर खींची गई अक्षांश एवं देशांतर रेखाओं के जाल (Graticule) से विभिन्न स्थानों की स्थिति सुगमतापूर्वक मालूम की जा सकती है।
  3. केवल ग्लोब पर ही महाद्वीपों के सापेक्षिक आकार और स्थिति का परिशुद्ध (Precise) निरूपण संभव हो पाता है।
  4. पृथ्वी पर दूरियों और दिशाओं के सही प्रदर्शन के लिए ग्लोब एक सर्वश्रेष्ठ माध्यम है।

प्रश्न 3.
ग्लोब के प्रयोग में आने वाली कठिनाइयों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ग्लोब के प्रयोग में निम्नलिखित कठिनाइयाँ आती हैं-

  1. ग्लोब पर जगह (Space) कम होने के कारण किसी क्षेत्र विशेष का विस्तृत अध्ययन नहीं किया जा सकता।
  2. यदि ग्लोब बड़े भी बना लिए जाएँ तो उनका निर्माण, प्रयोग, रख-रखाव और उनका एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाना, ले-जाना अत्यंत कठिन होगा।
  3. एक समय में ग्लोब का केवल आधा भाग ही देखा जा सकता है। अतः विश्व के आपस में दूर स्थित भागों के अध्ययन के लिए हमें दो ग्लोबों की आवश्यकता पड़ेगी।
  4. यदि विश्व के किसी एक भाग का ही अध्ययन करना हो तो हमें पूरे ग्लोब का प्रयोग करना पड़ता है।
  5. गोलीय (Spherical) होने के कारण ग्लोब पर किन्हीं दो स्थानों के बीच की दूरियां मापना अपेक्षाकृत कठिन है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानचित्र को परिभाषित करते हुए इसके अनिवार्य तत्त्वों का वर्णन कीजिए। अथवा मानचित्र के अनिवार्य (आवश्यक) तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानचित्र की परिभाषा (Definition of a Map) संपूर्ण पृथ्वी अथवा उसके किसी भाग का समतल पृष्ठ पर समानीत मापनी द्वारा वरणात्मक, प्रतीकात्मक तथा व्यापकीकृत निरूपण मानचित्र कहलाता है। आजकल तो खगोलीय पिंडों के भी मानचित्र – बनने लगे हैं।

एफजे० मोंकहाऊस (F.J. Monkhouse) के अनुसार, “निश्चित मापनी के अनुसार, धरातल के किसी भाग के लक्षणों को समतल सतह पर प्रदर्शन करने को मानचित्र कहते हैं।” (“Map is a representation on a plane su features of part of the Earth’s surface, drawn to some specific scale.”)

बिना मापनी के खींची गई रेखाओं तथा बहुभुज को मानचित्र नहीं कहा जाता बल्कि इसे रेखाचित्र (Sketch) कहा जाता है मानचित्र के अनिवार्य तत्त्व (Essentials of a Map) मानचित्रकला (Cartography) मानचित्रों को बनाने की कला एवं
तो मानचित्र अनेक प्रकार के होते हैं किंत उनकी रचना संबंधी कछ प्रक्रियाएं या तत्त्व ऐसे होते हैं जो समान होते हैं। इनमें से यदि एक भी प्रक्रिया या तत्त्व हट जाए तो मानचित्र शुद्ध नहीं रह जाता।
1. मानचित्र शीर्षक (Map Title) शीर्षक से हमें ज्ञात होता है कि मानचित्र किस बारे में है और किस क्षेत्र का बनाया गया है। उदाहरणतः एशिया का भौतिक मानचित्र, भारत का जनसंख्या घनत्व मानचित्र अथवा भारत का वायुदाब (जुलाई) मा इत्यादि।

2. मानचित्र मापनी (Map Scale)-मापनी मानचित्र पर दर्शाए गए विभिन्न स्थानों के बीच दूरियों और प्रदर्शित क्षेत्र के क्षेत्रफल की गणना में मदद करता है। इससे मानचित्र को छोटा या बड़ा भी किया जा सकता है।

आप जानते हैं कि सभी मानचित्र लघुकरण होते हैं। मानचित्र बनाने के लिए सबसे पहले मापनी का चुनाव करना पड़ता है। किसी मानचित्र की मापनी इस बात को निर्धारित करती है कि उस मानचित्र में कितनी सूचनाओं, विषय-वस्तु एवं वास्तविकताओं का समावेश किस हद तक संभव है।

3. मानचित्र प्रक्षेप (Map Projection)-आप जानते हैं कि जीऑयड की सतह सभी ओर से वक्रित (curved) है, जिसका समतल कागज पर सरल प्रदर्शन करना अर्थात् मानचित्र बनाना एक चुनौती है। विमाओं (Dimensions) के इस प्रकार बदलाव में जीऑयड के वास्तविक स्वरूप, दिशाओं, दूरियों, क्षेत्रों तथा आकारों में अनिवार्य परिवर्तन आता है। एक गोलाकार सतह को समतल सतह पर दर्शाने की प्रणाली को प्रक्षेप कहा जाता है। इस प्रणाली में अक्षांश और देशांतर रेखाओं का जाल होता है जिससे किसी स्थान की वास्तविक स्थिति निश्चित करने में मदद मिलती है। इसलिए प्रक्षेपों के चयन, उपयोग तथा निर्माण मानचित्र बनाने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण होते हैं।

4. व्यापकीकरण (Generalisation) हर मानचित्र किसी-न-किसी उद्देश्य के लिए बनाया जाता है। कुछ मानचित्र सामान्य उद्देश्य वाले होते हैं जो सामान्य सूचनाओं को दर्शाते हैं; जैसे उच्चावच, अपवाह, मृदा, वनस्पति, परिवहन इत्यादि। लेकिन कुछ मानचित्र विशेष उद्देश्य वाले होते हैं जो एक से अधिक चुनी गई वस्तुओं को दर्शाते हैं; जैसे जनसंख्या का घनत्व, मिट्टी के प्रकार या उद्योगों की स्थिति इत्यादि। क्योंकि मानचित्र लघुकृत मापनी पर तैयार किया जाता है, इसलिए जरूरी है कि उसकी विषय-वस्तु को सावधानीपूर्वक नियोजित किया जाए और उसे व्यापकीकृत किया जाए। ऐसा करने के लिए विषय-वस्तु से संबंधित सूचनाओं (आंकड़ों) को जरूरत के अनुसार सरल कर लेना चाहिए।

5. मानचित्र अभिकल्पना (Map Design) मानचित्र अभिकल्पना में मानचित्रों की आलेखी विशिष्टताओं (Graphic Characteristics) को योजनाबद्ध किया जाता है, जिसमें शामिल हैं-उचित संकेतों का चयन, उनके आकार एवं प्रकार, लिखावट का तरीका, रेखाओं की चौड़ाई का निर्धारण, रंगों का चयन, मानचित्र में मानचित्र अभिकल्पना के विभिन्न तत्त्वों की व्यवस्था और रूढ़ चिह्न। अतः मानचित्र अभिकल्पना मानचित्र बनाने की एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें उन सिद्धांतों की गहन जानकारी की आवश्यकता होती है, जो आलेखी संचार के प्रभावों को नियंत्रित करती है।

6. मानचित्र निर्माण तथा उत्पादन (Map Construction and Production)-पुराने समय में मानचित्र बनाने एवं उनके पुनरुत्पादन का कार्य हाथों से किया जाता था। कलम एवं स्याही से मानचित्र बनाकर उनको मशीनों द्वारा छापते थे। किंतु मानचित्र बनाने तथा उनकी छपाई की तकनीकों में कंप्यूटर की सहायता मिलने के कारण मानचित्र निर्माण एवं पुनरुत्पादन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 मानचित्र का परिचय

प्रश्न 2.
मानचित्रण के इतिहास पर लेख लिखिए।
उत्तर:
मानचित्रण का इतिहास (History of Map Making) मानचित्र बनाने की कला बहुत प्राचीन है। ईसा से 2,800 साल पहले मार्शल द्वीपवासी अपने द्वीपों की सापेक्षिक स्थिति दिखाने के लिए नरकटों, वृक्षों की टहनियों तथा घोंघों आदि की सहायता से चार्ट बनाया करते थे। विश्व का सबसे पुराना मानचित्र मैसोपोटामिया में बेबीलोन नगर से 320 कि०मी० उत्तर की ओर गासुर नगर के ध्वंसावशेषों को खोदने पर मिला था। आज यह मानचित्र हॉवर्ड विश्वविद्यालय के म्यूजियम में सुरक्षित है। यह मानचित्र ईसा से 2,500 वर्ष पुराना है और चिकनी मिट्टी की आग में पकी हुई टिकिया (Tablet) पर बना है। इस मानचित्र में उत्तरी ईराक प्रदेश और फरात (Euphrates) नदी दिखाई गई हैं। बेबीलोनिया के लोगों ने ही वृत्त को 360 अंशों में बांटना सिखाया।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 मानचित्र का परिचय 1
100 ई० के लगभग चीनियों ने कागज का आविष्कार कर लिया और मानचित्र बनाने लगे। पी.सिन (Pei-Hsin) को चीनी मानचित्र कला का जनक कहा जाता है।

आधुनिक मानचित्र कला की नींव अरब एवं यूनान के भूगोलवेत्ताओं द्वारा रखी गई। इन विद्वानों ने पृथ्वी की परिधि का माप तथा मानचित्र बनाने में भौगोलिक निर्देशांक (Geographical Co-ordinates) की पद्धति के उपयोग; जैसे कई महत्त्वपूर्ण योगदान दिए। इस काल के ज्ञाता मानचित्रकार एनेक्ज़ीमेंडर, इरेटॉस्थेनीज, हिपारकस और टॉलमी थे। टॉलमी ने विश्व मानचित्र बनाकर मानचित्रकला को उन्नति के शिखर पर पहुंचाया।

आधुनिक काल के आरंभिक दौर में मानचित्र बनाने की कला एवं विज्ञान को पुनर्जीवित किया गया। इसमें प्रयास किया गया कि जीऑयड को समतल सतह पर दर्शाने से होने वाली त्रुटियों को कम किया जाए। सही दिशा, दूरी एवं क्षेत्रफल के परिशुद्ध माप के लिए विभिन्न प्रक्षेपों पर मानचित्रों को खींचा गया था। वायव (Aerial) फोटोग्राफी से सतह पर होने वाले सर्वेक्षणों के तरीकों को सहयोग मिला तथा वायव फोटो के उपयोग ने 19वीं एवं 20वीं शताब्दी में मानचित्र बनाने के कार्य को और भी अधिक तेज़ कर दिया।

भारत में मानचित्र कला का विकास-भारत में मानचित्र बनाने का कार्य वैदिक काल में ही शुरु हो गया था, जब खगोलीय यथार्थता तथा ब्रह्मांडिकी रहस्योद्घाटन के प्रयत्न किए गए थे। आर्यभट्ट, वाराहमिहिर तथा भास्कर आदि के पौराणिक ग्रंथों में इन अभिव्यक्तियों को सिद्धांत या नियम के निश्चित रूप में दिखाया गया था। प्राचीन भारतीय विद्वानों ने पूरे विश्व को सात द्वीपों में बांटा (चित्र 1.3)। महाभारत में माना गया था कि यह गोलाकार विश्व चारों ओर से जल से घिरा है (चित्र 1.4)।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 मानचित्र का परिचय 2
टोडरमल ने भू-सर्वेक्षण तथा मानचित्र बनाने के कार्य को लगान वसूली प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग बना दिया था। इसके अतिरिक्त, शेरशाह सूरी के लगान मानचित्रों ने मध्य काल में मानचित्र बनाने के कार्य को और अधिक समृद्ध किया। पूरे देश के तत्कालीन मानचित्रों को बनाने के लिए गहन स्थलाकृतिक सर्वेक्षण 1767 में सर्वे ऑफ इंडिया की स्थापना के साथ किया गया, जिसके चरम बिंदु के रूप में 1785 में हिंदुस्तान का मानचित्र बनकर तैयार हुआ। आज सर्वे ऑफ इंडिया विभिन्न मापनियों के आधार पर पूरे देश का मानचित्र तैयार करता है।

प्रश्न 3.
मानचित्रों के वर्गीकरण का वर्णन कीजिए।
अथवा
मानचित्रों के विभिन्न प्रकारों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मानचित्रों का वर्गीकरण (Classification of Maps) मानचित्र अनेक प्रकार के होते हैं। सामान्यतः इनका वर्गीकरण दो प्रकार से किया जाता है-

  • मापक के अनुसार (According to Scale)
  • विषय-वस्तु अथवा उद्देश्य अथवा प्रकार्य के अनुसार (According to Purpose or Function)।

A. मापक के अनुसार (According to Scale) मानचित्र दो प्रकार के होते हैं-

  • बृहत मापक पर बने मानचित्र (Large Scale Maps)
  • लघु मापक पर बने मानचित्र (Small Scale Maps)।

(a) बृहत मापक पर बने मानचित्र (Large Scale Maps)-बृहत मापक पर बने मानचित्र दो प्रकार के होते हैं-
1. भूकर मानचित्र अथवा प्लान (Cadastral Maps or Plan)-कैडस्ट्रल फ्रांसीसी भाषा के कैडस्टर (Cadestre) शब्द से बना है जिसका अर्थ ‘संपत्ति रजिस्टर’ से होता है। बृहत मापक पर बनाए गए नगरों के प्लान जिनमें नागरिकों के भवनों की सीमाएं अंकित हों या पटवारियों द्वारा प्रयोग किया जाने वाला सिजरा (Village Map) जिसमें सार्वजनिक स्थान तथा भूमि की व्यक्तिगत मानचित्र का परिचय मल्कियत दर्शाई गई हो भूकर अथवा कैडस्ट्रल मानचित्र कहलाते हैं।

ये मानचित्र सरकार द्वारा नागरिकों से भूमि, भवन जैसी अचल संपत्ति पर लगान वसूल करने के लिए बनाए जाते हैं। भू-संपत्ति मानचित्र कानूनी उद्देश्यों के लिए भू-संपत्ति की सीमाओं के निर्धारण, प्रशासन, कर (Tax) व भू-संपत्ति के प्रबंधन के लिए अत्यंत उपयोगी होते हैं। इन मानचित्रों का मापक 1″ से 110 गज़ या 1″ से 55 गज़ होता है। गांवों का भूसंपत्ति मानचित्र 1 : 4000 की मापनी पर तथा नगरों का मानचित्र 1 : 2000 और इससे अधिक मापनी पर बनाए जाते हैं।

2. स्थलाकृतिक मानचित्र (Topographical Maps)- ये भी बड़ी मापनी पर बने मानचित्र होते हैं जिन्हें वास्तविक निरीक्षण व परिशुद्ध सर्वेक्षण के बाद बनाया जाता है। भारत में स्थलाकृतिक मानचित्रों का प्रकाशन भारतीय सर्वेक्षण विभाग (Survey of India) करता है। पहले इन मानचित्रों को 1 इंच : 4 मील, 1 इंच : 2 मील तथा 1 इंच : 1 मील मापक पर बनाया जाता था, किंतु देश में मीट्रिक प्रणाली अपनाए जाने के बाद अब इन्हें 1:2,50,000, 1:50,000 तथा 1:25,000 की मापनियों पर बनाया जाता है।

ये बहुउद्देशीय (Multi-Purpose) मानचित्र होते हैं जिनमें प्राकृतिक (Natural) और मानवीय (Cultural) लक्षणों को प्रदर्शित किया जाता है। प्राकृतिक तत्त्वों में उच्चावच (पर्वत, पठार व मैदान), जल-प्रवाह, जलाशय, वन, मिट्टियों व दलदल इत्यादि दिखाए जाते हैं, जबकि मानवीय अथवा सांस्कृतिक तत्त्वों में नगर, गांव, मार्ग, संचार के साधन व नहरें, कुएं, धार्मिक स्थल आदि विस्तारपूर्वक प्रदर्शित किए जाते हैं। योजना, राष्ट्रीय सुरक्षा एवं पर्यटन आदि उद्देश्यों के लिए स्थलाकृतिक मानचित्रों का कोई मुकाबला नहीं।

(b) लघु मापक पर बने मानचित्र (Small Scale Maps)-लघु मापक पर बने मानचित्र भी दो प्रकार के होते हैं-
1. दीवारी या भित्ति मानचित्र (Wall Maps)-स्कूल, कॉलेज अथवा दफ्तरों की दीवारों पर लटकाए जाने के कारण इन्हें दीवारी मानचित्र कहते हैं। इनका मापक 1 सें०मी० से 5 कि०मी० (1:5,00,000) से लेकर 1 सें०मी० से 40 कि०मी० (1:40,00,000) या इससे भी छोटा हो सकता है। अन्य शब्दों में इनकी मापनी स्थलाकृतिक मानचित्र से छोटी, एटलस मानचित्र से बड़ी होती है। इन्हें बड़े अक्षरों में छापा जाता है ताकि वांछित सूचना दूर से पढ़ी जा सके और समझाई जा सके। ये मानचित्र पृथ्वी के विस्तृत क्षेत्रों का प्रदर्शन करते हैं; जैसे समस्त संसार, कोई महाद्वीप, देश या राज्य इत्यादि।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 मानचित्र का परिचय 3

2. एटलस मानचित्र (Atlas Maps)-पुस्तक के रूप में मानचित्रों के क्रमबद्ध तथा व्यवस्थित संग्रह को एटलस या मानचित्रावली कहते हैं। एटलस मानचित्रों का मापक बहुत-ही छोटा होता है जो प्रायः 1:15,00,000 से कम होता है। मापनी छोटी होने के कारण ये मानचित्र केवल प्रमुख लक्षणों को ही दर्शाते हैं तथा इनमें महत्त्वहीन तत्त्वों को छोड़ दिया जाता है। एटलस मानचित्र विश्व, महाद्वीपों, देशों या क्षेत्रों की भौगोलिक जानकारियों के आलेखी (Graphic) विश्वकोश हैं जिनके वितरण को हम एक ही नज़र में देख सकते हैं। इन मानचित्रों में उपयुक्त रंगों का प्रयोग किया जाता है जिस कारण एटलस मानचित्रों का दृश्य प्रभाव (Visual impact) ज़बरदस्त होता है।

B. विषय-वस्तु अथवा उद्देश्य अथवा प्रकार्य के अनुसार (According to Purpose or Function)भी मानचित्रों के दो वर्ग होते हैं-

  • भौतिक मानचित्र (Physical Maps)
  • सांस्कृतिक मानचित्र (Cultural Maps)

(a) भौतिक अथवा प्राकृतिक मानचित्र (Physical Maps)-इसके अंतर्गत आने वाले प्रमुख मानचित्र निम्नलिखित हैं
1. उच्चावच मानचित्र (Relief Maps)-इन मानचित्रों में पर्वत, पठार, मैदान और अपवाह तंत्र इत्यादि सामान्य स्वरूपों का चित्रण किया जाता है।

2. भू-गर्भीय मानचित्र (Geological Maps)-इन मानचित्रों में किसी क्षेत्र की भू-गर्भीय संरचना व शैल प्रकारों इत्यादि को दिखाया जाता है।

3. जलवायु मानचित्र (Climatic Maps)-इन मानचित्रों पर जलवायु के विभिन्न तत्त्वों; जैसे तापमान, वायुदाब, सापेक्षिक आर्द्रता, बादलों, वर्षा, पवनों की दिशा एवं गति तथा मौसम के अन्य तत्त्वों के वितरण को दिखाया जाता है।

4. मौसम मानचित्र (Weather Maps)-ये मानचित्र देश के मौसम विभाग द्वारा प्रकाशित किए जाते हैं जो दिन के निर्दिष्ट समय पर मौसम संबंधी अवस्थाओं को दिखाते हैं।

5. मृदा मानचित्र (Soil Maps)-इन मानचित्रों पर किसी क्षेत्र में पाई जाने वाली विविध प्रकार की मिट्टियों तथा उनके वितरण को दर्शाया जाता है।

6. वनस्पति मानचित्र (Vegetation Maps)-इन मानचित्रों पर धरातल पर पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक वनस्पति का वितरण प्रदर्शित किया जाता है।

(b) सांस्कृतिक मानचित्र (Cultural Maps) इनमें अधिक महत्त्वपूर्ण मानचित्र निम्नलिखित हैं-
1. राजनीतिक मानचित्र (Political Maps) इन मानचित्रों पर देश, प्रांत व जिलों की सीमाएं दिखाई जाती हैं। इन मानचित्रों का प्रशासनिक महत्त्व बहुत होता है।

2. जनसंख्या मानचित्र (Population Maps) इनमें जनसंख्या की विशेषताएं; जैसे वितरण, घनत्व, वृद्धि, स्थानांतरण इत्यादि को दर्शाया जाता है।

3. जातियों का मानचित्र (Racial Maps)-इन मानचित्रों में विभिन्न प्रदेशों में रहने वाली जातियों का वितरण दिखाया जाता है।

4. भाषा मानचित्र (Language Maps) ये मानचित्र भिन्न-भिन्न प्रदेशों में बोली जाने वाली भाषाओं का वितरण दिखाते हैं।

5. आर्थिक मानचित्र (Economic Maps)-इन मानचित्रों में औद्योगिक, व्यापारिक और कृषि संबंधी आर्थिक गतिविधियों के वितरण और उनसे जुड़े प्रमुख केंद्रों को दर्शाया जाता है।

6. परिवहन मानचित्र (Transport Maps)-इन मानचित्रों में सड़क-मार्ग, रेल-मार्ग, वायु-मार्ग, समुद्री-मार्ग तथा पाइप लाइनों को दर्शाया जाता है। पर्यटकों के लिए ये मानचित्र महत्त्वपूर्ण होते हैं।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 मानचित्र का परिचय

प्रश्न 4.
मानचित्रों द्वारा किए जाने वाले मापनों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मानचित्रों के उपयोग का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूगोलवेत्ताओं के अतिरिक्त अन्य विषयों के विशेषज्ञ भी मानचित्रों का अधिकाधिक उपयोग कर रहे हैं। इस उपयोग के दौरान वे दूरी, दिशा एवं क्षेत्र को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न प्रकार के मापन करते हैं-
1. दूरी का मापन (Measuring Distance)-मानचित्र पर दिखाए गए रैखिक लक्षण दो प्रकार के होते हैं-

  • सीधी रेखाएं (Straight Lines)
  • टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएं (Irregular lines)

सीधी रेखा वाले लक्षणों; जैसे सड़कें, रेल की पटरियां एवं नहरों इत्यादि को मापना आसान होता है। मानचित्र की सतह पर एक मापनी (फुटा) रखकर इन्हें मापा जा सकता है। किंतु दूरियों को मापने की आवश्यकता प्रायः अव्यवस्थित रास्तों; जैसे तटीय किनारों, नदियों तथा धाराओं को मापने में होती है। इस प्रकार की आकृतियों दूरियों को मापने के लिए धागे का एक छोर प्रारंभिक बिंदु पर रखकर धागे को टेढ़े मार्ग पर रखा जाता है और आखिरी छोर पर पहुंच जाने के बाद धागे को फैलाकर उसकी सही दूरी को मापा जाता है। एक साधारण यंत्र वक्ररेखामापी के द्वारा भी यह मापी जा सकती है। दूरी को मापने के लिए वक्ररेखामापी के पहिए को रास्ते के साथ-साथ घुमाया जाता है।

2. दिशा का मापन (Measuring Direction)-दिशा, मानचित्र पर एक काल्पनिक सीधी रेखा है, जो एक समान आधार से दिशा की कोणीय स्थिति को प्रदर्शित करती है। उत्तर दिशा की ओर संकेत करने वाली रेखा बिंदु को शून्य दिशा या आधार दिशा रेखा कहते हैं। एक मानचित्र सदैव उत्तर दिशा को दर्शाता है। अन्य सभी दिशाओं का निर्धारण इसके संबंध से किया जाता है। सामान्यतः चार दिशाएं मानी जाती हैं (उत्तर, दक्षिण, पूर्व एवं पश्चिम) इन्हें प्रधान दिग्बिंदु (कार्डिनल प्वाइंट) भी कहा जाता है। प्रधान दिग्बिंदुओं के बीच कई अन्य मध्यवर्ती दिशाएं होती हैं।

3. क्षेत्र का मापन (Measuring Area)-प्रशासनिक एवं भौगोलिक इकाइयों जैसी आकृतियों का मापन मानचित्र की सतह पर किया जाता है। मानचित्र उपयोगकर्ताओं द्वारा क्षेत्रों को विभिन्न तरीकों से मापा जाता है। वर्गों की एक नियमित शैली के द्वारा किसी क्षेत्र की माप की जा सकती है, हालांकि यह विधि अधिक परिशद्ध नहीं होती है। इस विधि द्वारा क्षेत्र को मापने के लिए एक प्रदीप्त (Illuminated) ट्रेसिंग टेबल के ऊपर मानचित्र के नीचे एक ग्राफ (आलेख) पेपर रखकर मानचित्र को वर्गों से ढंक लें अथवा स्क्वायर शीट पर उस क्षेत्र को ट्रेस कर लें। ‘संपूर्ण वर्गों की संख्या को ‘आंशिक वर्गों के साथ जोड़ लिया जाता है। इसके बाद एक साधारण समीकरण द्वारा क्षेत्रफल मापा जाता है।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 मानचित्र का परिचय 4
क्षेत्रफल की गणना स्थिर ध्रुवीय प्लेनीमीटर की सहायता से भी की जा सकती है।

प्रश्न 5.
भूगोल में मानचित्रों के महत्त्व (उपयोग/आवश्यकता) को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भूगोल में मानचित्रों का महत्त्व (उपयोग/आवश्यकता) (Importance of Maps in Geography)-सूचना क्रांति के आधुनिक युग में मानचित्रों का उपयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। भूगोल ही नहीं, ज्ञान-विज्ञान का शायद है मानचित्रों की उपयोगिता का महत्त्व न अनुभव किया गया हो। मानचित्र सूचनाओं का अगाध स्रोत माने जाते हैं।

ये विभिन्न तकनीकों व विधियों के द्वारा भू-तल पर प्राकृतिक और मानवकृत लक्षणों की विविधता को शानदार ढंग से प्रदर्शित करते हैं। इनसे पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले विभिन्न तत्त्वों के बीच अंतर्संबंधों का पता चलता है। जलवायु, वनस्पति, मृदा, जनसंख्या, बस्ती प्रारूपों, प्रवाह-प्रणालियों तथा भूमि-उपयोग संबंधी किसी भी मानवीय अथवा भौतिक पक्ष की खोज (Research) मानचित्रों के बिना संभव नहीं है।

यदि विश्व के सभी भागों का स्वयं भ्रमण करके भी किसी तथ्य का अध्ययन किया जाए तो भी मानचित्र आवश्यक हैं, क्योंकि तथ्यों का क्षेत्रीय स्तर पर तुलनात्मक अध्ययन और प्राप्त ज्ञान का प्रदर्शन मानचित्रों द्वारा ही संभव होता है। विश्व में जनसंख्या विस्फोट के चलते प्राकृतिक संसाधनों की खोज और उनका अंकन मानचित्रों के बिना संभव नहीं।

मानचित्रों के बिना भूगोल को न ही समझा जा सकता है और न ही उसे रोचक बनाया जा सकता है। मानचित्र हैं तो भूगोल है। एक अच्छा मानचित्र हमें इतनी सूचना, सामग्री और विचार देता है जिन्हें हम जीवन भर घूम-घूम कर भी एकत्रित नहीं कर सकते। एक मानचित्र पस्तक के सैकड़ों पन्नों के समान हो सकता है। एच०आर० मिल ने उचित कहा है, “भगोल में हमें यह सिद्धांत मान लेना चाहिए कि जिसका मानचित्र नहीं बनाया जा सकता, उसका वर्णन भी नहीं किया जा सकता।”

कहा जाता है कि ‘Either map it or scrap it’ इसी कारण मानचित्र भूगोलवेत्ता की आशुलिपि (Short hand) मानी जाती है। युद्धों में हमेशा विजय उन्हीं राष्ट्रों की हुई जिन्होंने मानचित्र बनाने और उनका अध्ययन करने में दक्षता प्राप्त की। संभवतः इसी भरोसे पर हिटलर कहा करता था, “मुझे किसी भी देश का विस्तृत मानचित्र दो और मैं उस देश पर विजय प्राप्त कर लूंगा।”

इसीलिए कहा जाता है, “मानचित्र एक भूगोलवेत्ता के मुख्य उपकरण (Tools) हैं। मानचित्रों के बिना भूगोलवेत्ता शस्त्रहीन योद्धा के समान होता है।” (“Maps are the main tools of a Geographer and without maps he is like a warrior without weapons”.)

आज मानचित्रों का उपयोग केवल भूगोल तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि यह मानव जीवन के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक पक्षों को उजागर करने वाला एक सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। सैनिक गतिविधियों, नाविकों, वायुयान चालकों, पर्यटकों, अन्वेषकों, योजनाकारों, नीति-निर्धारकों, राजनीतिज्ञों, प्रशासकों, विद्यार्थियों और वैज्ञानिकों सभी को अपने-अपने उद्देश्य के अनुसार मानचित्रों की आवश्यकता पड़ती है। समाचारों में भी घटना स्थलों का मानचित्रों द्वारा प्रदर्शन बढ़ रहा है। अब तो विज्ञापन का क्षेत्र भी मानचित्रों से अछूता नहीं रहा। अब कंप्यूटरों द्वारा पहले से बेहतर व शुद्ध मानचित्र अत्यंत थोड़े समय में तैयार किए जा सकते हैं। इससे अध्ययन और अध्यापन के क्षेत्र में और अधिक गुणात्मक परिवर्तन आने की संभावना है।

मानचित्र का परिचय HBSE 11th Class Geography Notes

→ जीऑयड (Geoid)-एक लध्वक्ष गोलाभ, जो पृथ्वी के वास्तविक आकार के अनुरूप हो।

→ प्रधान दिग्बिदु-उत्तर (N), दक्षिण (S), पूर्व (E) तथा पश्चिम (W)।

→ भूसंपत्ति मानचित्र बृहत मापनी पर निर्मित मानचित्र, जो कि 1:500 से 1:4,000 की मापनी पर भूसंपत्ति परिसीमा दर्शाने के लिए निर्मित किया जाता है। इसमें प्रत्येक भूमि खंड को एक संख्या द्वारा व्यक्त किया जाता है। मानचित्र कला (Map Art) मानचित्र, चार्ट, खाका तथा अन्य प्रकार के ग्राफ बनाने की कला, विज्ञान तथा तकनीक और उनका अध्ययन तथा उपयोग।

→ मानचित्र क्रम (Map Series)-किसी देश या क्षेत्र के लिए समान मापनी, प्रकार तथा विशिष्टता के साथ बनाए गए मानचित्रों का समूह।

→ मानचित्र प्रक्षेप (Map Projection) गोलाकार सतह को समतल सतह पर प्रदर्शित करने की प्रणाली।

→ रेखाचित्र-वास्तविक मापनी या अभिविन्यास के बिना मुक्त-हस्त द्वारा खींचे गए सरल मानचित्र।

HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति

Haryana State Board HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class History Important Questions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति

निबंधात्मक उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
औद्योगिक क्राँति से आपका क्या अभिप्राय है? यह क्राँति सर्वप्रथम इग्लैंड में क्यों आई?
अथवा
औद्योगिक क्रांति सर्वप्रथम ब्रिटेन में ही क्यों आई ? कारण बताइए।
उत्तर:
इंग्लैंड विश्व का प्रथम ऐसा देश था जहाँ 18वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति का सूत्रपात हुआ। इस क्राँति के कारणों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

I. औद्योगिक क्रांति से अभिप्राय

औद्योगिक क्राँति वह क्राँति थी जिसका आरंभ 18वीं शताब्दी में इंग्लैंड से हुआ। इस क्राँति से अभिप्राय उस क्राँति से था जिसमें वस्तुओं का उत्पादन हाथों की अपेक्षा बड़ी-बड़ी मशीनों द्वारा किया जाता था।

II. औद्योगिक क्रांति के कारण

इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. राजनीतिक स्थिरता एवं शाँति (Political Stability and Peace):
18वीं शताब्दी में इंग्लैंड में राजनीतिक स्थिरता एवं शाँति थी। इससे इंग्लैंड में उद्योगों की स्थापना के लिए अनुकूल वातावरण तैयार हुआ। इंग्लैंड के शासक जॉर्ज तृतीय (George III) ने अपने शासनकाल (1760 ई०-1820 ई०) के दौरान इंग्लैंड को एक औद्योगिक देश बनाने के अनेक प्रयास किए। उसके ये प्रयास काफी सीमा तक सफल सिद्ध हए।

2. शक्तिशाली नौसेना (Powerful Navy):
उस समय इंग्लैंड के पास अन्य यूरोपीय देशों के मुकाबले सबसे अधिक शक्तिशाली नौसेना थी। इसलिए उसे ‘समुद्रों की रानी’ (Mistress of the Seas) कहा जाता था। इस नौसेना के कारण वह एक ओर अपनी विदेशी आक्रमणों से सुरक्षा कर सका वहीं दूसरी ओर वह सुगमता से अपने निर्मित माल का विदेशों को निर्यात कर सका। इससे औद्योगिकीकरण को एक नया प्रोत्साहन मिला।

3. इंग्लैंड के उपनिवेश (England’s Colonies):
इंग्लैंड विश्व की सबसे बड़ी साम्राज्यवादी शक्ति था। अतः उसके यूरोप, एशिया एवं अफ्रीका में अनेक उपनिवेश थे। इन उपनिवेशों से उसे इंग्लैंड के उद्योगों के लिए आवश्यक कच्चा माल सस्ती दरों पर सुगमता से प्राप्त हो जाता था। दूसरी ओर इंग्लैंड के उद्योगों द्वारा निर्मित माल को यहाँ ऊँची दरों पर बलपूर्वक बेचा जाता था। इस कारण इंग्लैंड के उद्योगों ने अभूतपूर्व उन्नति की।

4. पूँजी (Capital):
किसी भी देश में उद्योगों के विकास में पूँजी की प्रमुख भूमिका होती है। उस समय इंग्लैंड में पूंजी की कोई कमी नहीं थी। इसके तीन कारण थे। प्रथम, उस समय इंग्लैंड की कृषि ने उल्लेखनीय विकास किया था। दसरा, इंग्लैंड का विश्व व्यापार पर प्रभुत्व स्थापित था। तीसरा, ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत से व्यापक पैमाने पर धन का दोहन किया।

अतः पूँजी की प्रचुरता ने इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति लाने में उल्लेखनीय योगदान दिया। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर एस० एन० सेन के शब्दों में, “ब्रिटेन में उद्योगों के विकास का सबसे महत्त्वपूर्ण कारक 18वीं शताब्दी के दूसरे मध्य में पूँजी का एकत्र होना था। आर्थिक विकास की गति में तीव्रता तब आई जब पूँजी को कम ब्याज पर उपलब्ध कराया गया।

5. कषि क्राँति (Agricultural Revolution):
इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति से पर्व कषि क्रांति आई। इसके दो महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े। प्रथम, इस क्राँति के कारण फ़सलों के उत्पादन में बहुत वृद्धि हुई। इस कारण उद्योगों की स्थापना के लिए आवश्यक धन प्राप्त हुआ। दूसरा, कृषि क्राँति की सफलता के लिए खेतों की बाढ़बंदी (enclosure of fields) की गई।

इस कारण बडे ज़मींदारों ने अपने खेतों के आस-पास स्थित छोटे किसानों की जमीनें खरीद लीं। इस कारण ज़मींदारों के अधीन खेतों के क्षेत्र में वृद्धि हो गई। इन खेतों में कृषि के आधुनिक ढंगों को अपनाना सुगम हो गया। किंतु दूसरी ओर इससे भूमिहीन किसानों की संख्या में तीव्रता से वृद्धि होने लगी। बेकार हो जाने के कारण वे काम की तलाश में शहरों की ओर गये। यहाँ वे कारखानों में कम मज़दूरी पर काम करने के लिए बाध्य हुए। कम वेतन पर मजदूरों की उपलब्धता ने औद्योगिक क्रांति को प्रोत्साहित किया।

6. कुशल बैंक व्यवस्था (Efficient Banking System):
इंग्लैंड की कुशल बैंक व्यवस्था ने औद्योगिक क्रांति लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। वहाँ बैंक ऑफ़ इंग्लैंड (Bank of England) की स्थापना 1694 ई० में हुई थी। यह इंग्लैंड का केंद्रीय बैंक था। 1820 ई० तक इंग्लैंड में 600 से अधिक प्राँतीय बैंकों की स्थापना हुई। केवल लंदन में ही 100 से अधिक बैंक थे। इन बैंकों द्वारा बड़े-बड़े उद्योगों को स्थापित करने एवं उन्हें चलाने के लिए कम दरों पर धन उपलब्ध करवाया जाता था। इससे इंग्लैंड में औद्योगीकरण को बहुत प्रोत्साहन मिला।

7. विशाल बाज़ार (Vast Market):
18वीं शताब्दी में इंग्लैंड आर्थिक रूप से बहुत खुशहाल था। इसका कारण यह था कि इंग्लैंड के पास घरेलू एवं विदेशों में बहुत बड़ा बाज़ार उपलब्ध था। अतः इंग्लैंड के उद्योगों द्वारा तैयार माल की सुगमता से खपत हो जाती थी। कीमतों के कम होने के कारण उनके माल की बहुत माँग थी।

8. खनिज पदार्थ (Minerals):
इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति में वहाँ उपलब्ध खनिज पदार्थों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। वहाँ कोयला एवं लोहा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे। सौभाग्यवश ये दोनों खनिज एक-दूसरे के निकट ही मिल जाते थे। इन्होंने इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति का आधार तैयार किया। इनके अतिरिक्त यहाँ सीसा, ताँबा एवं टिन भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध था।

9. जनसंख्या में वृद्धि (Increase in Population):
इंग्लैंड में जनसंख्या में तीव्रता से वृद्धि हो रही थी। यूरोप के जिन 19 शहरों की जनसंख्या 1750 ई० से 1800 ई० के मध्य दोगुनी हुई उनमें से 11 ब्रिटेन में थे। इनमें लंदन सबसे बड़ा शहर था। जनसंख्या में वृद्धि से वस्तुओं की माँग बहुत बढ़ गई। इससे उत्पादन में वृद्धि करना आवश्यक हो गया। इससे औद्योगीकरण को बहुत प्रोत्साहन मिला।

10. वैज्ञानिक उन्नति (Scientific Progress):
इंग्लैंड यूरोप का प्रथम ऐसा देश था जहाँ अनेक नवीन आविष्कार हुए। परिणामस्वरूप अनेक नए यंत्रों एवं मशीनों का आविष्कार हुआ। ये आविष्कार औद्योगिक क्रांति के लिए एक रीढ़ की हड्डी सिद्ध हुए। यातायात एवं संचार के साधनों में हुई क्राँति ने औद्योगिक क्राँति को एक नई दिशा देने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति

प्रश्न 2.
औद्योगिक क्रांति के दौरान होने वाले आविष्कार एवं तकनीकी परिवर्तनों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
18वीं शताब्दी को आविष्कारों का काल कहा जाता है। इस शताब्दी में कुल मिलाकर 26,000 आविष्कार हुए। इनमें से आधे से अधिक आविष्कार 1782 ई० से 1800 ई० के मध्य हुए थे। इन आविष्कारों ने कोयला एवं लोहा, कपास की कताई एवं बुनाई, भाप की शक्ति तथा नहरों और रेलों के विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। अत: इस अध्याय में केवल इनसे संबंधित विषयों पर ही चर्चा की जाएगी।

1. कोयला एवं लोहा (Coal and Iron):
किसी भी देश में औद्योगिक क्रांति संभव नहीं है जब तक वहाँ पर्याप्त मात्रा में कोयला एवं लोहा उपलब्ध न हो। कोयले से शक्ति उत्पन्न की जाती है। इसके महत्त्व को देखते हुए इसे काला सोना (Black Gold) एवं उद्योगों की जननी (Mother of Industries) कहा जाता है। लोहे से उद्योगों में प्रयोग की जाने वाली सभी मशीनों का निर्माण किया जाता है।

इंग्लैंड इस मामले में सौभाग्यशाली था कि वहाँ कोयला एवं लौह अयस्क (iron ore) पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध था। इसके बावजूद 18वीं शताब्दी तक वहाँ इस्तेमाल योग्य लोहे की कमी थी। लोहा प्रगलन (smelting) की प्रक्रिया द्वारा लौह खनिज में से शुद्ध तरल धातु (pure liquid metal) के रूप में निकाला जाता है। अनेक शताब्दियों तक प्रगलन प्रक्रिया के लिए काठ कोयले (charcoal) का प्रयोग किया जाता था। किंतु इससे अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता था। प्रथम, काठ कोयला लंबी दूरी तक ले जाते समय टूट जाया करता था।

दूसरा, काठ कोयले की अशुद्धता के कारण घटिया किस्म के लोहे का उत्पादन होता था। तीसरा, काठ कोयला पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं था क्योंकि जंगलों की बड़े पैमाने पर सफ़ाई कर दी गई थी। चौथा, काठ कोयला उच्च तापमान उत्पन्न करने में असमर्थ था।

(1) अब्राहम डर्बी प्रथम 1677-1717 ई० (Abraham Darby 1 1677-1717 CE) अब्राहम डर्बी प्रथम श्रीपशायर (Shropshire) का एक प्रसिद्ध लोह उस्ताद था। 1709 ई० में उसने लोहे के प्रगलन के लि सर्वप्रथम कोक (Coke) का प्रयोग किया। कोक कोयले का शुद्ध रूप था। इसके अनेक लाभ हुए। प्रथम, यह काठ कोयले से बहुत सस्ता पड़ता था।

दूसरा, इस कारण लोह उत्पादकों के लिए बड़ी धमन भट्ठियाँ (Blast furnance) लगाना संभव हुआ। इससे लोहे के उत्पादन में बहुत वृद्धि हो गई। तीसरा, इन भट्ठियों से जो पिघला हुआ लोहा निकलता था उसकी गुणवत्ता (quality) पहले की अपेक्षा बहुत बढ़िया थी। इस आविष्कार के परिणामस्वरूप इंग्लैंड में लोहे का उत्पादन बहुत बढ़ गया। 1737 ई० में इंग्लैंड में लोहे का उत्पादन कुल 12,000 से 15,000 टन था। 1800 ई० में यह उत्पादन बढ़कर 2,50,000 टन हो गया। निस्संदेह इस आविष्कार ने इंग्लैंड के उद्योगों के लिए एक नए युग का श्रीगणेश किया।

(2) अब्राहम डर्बी द्वितीय 1711-1763 ई० (Abraham Darby II 1711-63 CE):
वह अब्राहम डर्बी प्रथम का पुत्र था। उसने 1755 ई० में ढलवाँ लोहे (pig-iron) से पिटवाँ लोहे (wrought iron) का विकास किया। यह लोहा ढलवाँ लोहे से कम भंगुर (less brittle) होता था। यह आविष्कार इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति के विकास में एक महत्त्वपूर्ण पग सिद्ध हुआ।

(3) जोन विल्किसन 1728-1808 ई० (John Wilkinson 1728-1808 CE):
जोन विल्किसन प्रथम व्यक्ति था जिसने अपनी धमन भट्ठी (blast furnance) के लिए 1776 ई० में जेम्स वाट के स्टीम इंजन (steam engine) का प्रयोग किया। यह प्रयोग बेहद सफल रहा। उसने सर्वप्रथम लोहे की कुर्सियाँ (iron chairs), शराब की भट्ठियों (distilleries) के लिए टंकियाँ (vats) तथा लोहे की अनेक प्रकार की पाइपें (pipes) बनाईं। इससे इंग्लैंड के लोहा उद्योग को एक नई दिशा मिली।

(4) हेनरी कोर्ट 1740-1800 ई० (Henry Court 1740-1800 CE):
हेनरी कोर्ट ने 1784 ई० में आलोड़न भट्ठी (puddling furmance) का आविष्कार किया जिसके द्वारा अधिक शुद्ध और अच्छा लोहा बनाना संभव हो गया। इससे लोहा उत्पादन के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। इस लोहे से अनेक प्रकार की नवीन मशीनें बनाना सुगम हो गया। इसका कारण यह था कि यह लोहा अधिक टिकाऊ था।

इसे रोज़मर्रा की वस्तुएँ एवं मशीनें बनाने के लिए लकड़ी का बेहतर विकल्प माना जाने लगा। लकड़ी के जल सकने एवं कटने-फटने (splinter) का ख़तरा रहता था। दूसरी ओर लोहे के भौतिक एवं रासायनिक गुणधर्म (properties) को नियंत्रित किया जा सकता था।

(5) अब्राहम डर्बी तृतीय 1750-91 ई० (Abraham Darby III 1750-91 CE):
वह अब्राहम डर्बी द्वितीय का पुत्र था। उसने 1779 ई० में कोलबुकडेल (Coalbrookdale) में सेवन (Severn) नदी पर विश्व का प्रथम लोहे का पुल बनाया। बाद में यह गाँव ‘आइरनब्रिज’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

(6) हैं फरी डेवी 1778-1829 ई० (Hamphry Davy 1778-1829 CE):
हैं फरी डेवी ने 1815 ई० में सेफ़टी लैंप (safety lamp) का आविष्कार किया। यह आविष्कार खानों में काम करने वाले मजदूरों के जीवन को सुरक्षित बनाने में बहुमूल्य प्रमाणित हुआ।
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 9 iMG 1
(7) हेनरी बेस्सेमर 1813-98 ई० (Henry Bessemer 1813-98 CE) :
हेनरी बेस्सेमर ने 1856 ई० में लोहे को शुद्ध करके इस्पात (steel) बनाने की विधि खोज निकाली। यह बेस्सेमर प्रक्रिया (Bessemer converter) के नाम से प्रसिद्ध हुई। शीघ्र ही इस्पात का उत्पादन बहुत बढ़ गया। इसने लोहे का स्थान ले लिया। लोहे से बनी मशीनें वज़नदार होती थीं। इनमें जंग भी लग जाता था। इस्पात अपेक्षाकृत हल्का एवं मजबूत होता था। इसमें जंग लगने की कोई संभावना नहीं होती थी।

उपरोक्त आविष्कारों के चलते ब्रिटेन के लोहा उद्योग ने हैरानीजनक प्रगति की। उसने 1800 ई० से 1830 ई० के मध्य अपने उत्पादन में चार गुना वृद्धि की। उसका लोहा यूरोप में अन्य देशों से सबसे सस्ता था। 1820 ई० में एक टन ढलवाँ लोहा (pig iron) बनाने के लिए 8 टन कोयले की आवश्यकता होती थी। 1850 ई० तक केवल 2 टन कोयले से ही एक टन ढलवाँ लोहा बनाया जाने लगा। इस समय तक ब्रिटेन में विश्व का सबसे अधिक लोहा पिघलाया (smelting) जाने लगा था।

2. कपास की कताई एवं बुनाई (Cotton Spinning and Weaving):
औद्योगिक क्रांति का आरंभ वस्त्र उद्योग से हुआ। यद्यपि यह उद्योग बहुत पुराना था किंतु इसमें शताब्दियों तक कोई विशेष उन्नति नहीं हुई थी। इसका कारण यह था कि सूत कातने (spinning) के लिए चरखे अथवा तकली का प्रयोग किया जाता था। एक व्यक्ति एक ही समय में केवल एक ही धागा बना सकता था। अत: एक बुनकर (weaver) को व्यस्त रखने के लिए आवश्यक धागा कातने वालों की ज़रूरत होती थी।

इसलिए कातने वाले दिन भर कताई के काम में लगे रहते थे जबकि बुनकर बुनाई के लिए धागे का इंतज़ार करते रहते थे। इस प्रक्रिया में बहुत समय बर्बाद होता था। धागा कातने का अधिकाँश काम स्त्रियों द्वारा किया जाता था। वे कड़ी मेहनत के बावजूद बहुत कम धागा बुन पाती थीं। अत: यह उद्योग वस्त्रों की बढ़ी हुई माँग की पूर्ति कर पाने में समर्थ नहीं था। 18वीं शताब्दी के मध्य में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण आविष्कार हुए। इनके चलते वस्त्र उद्योग में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए।

अब उत्पादन का काम कताईगरों (spinners) एवं बुनकरों (weavers) के घरों से हट कर कारखानों में होने लगा। प्रसिद्ध इतिहासकार रैम्जे म्योर के अनुसार, “लंकाशायर के वस्त्र उद्योग में सबसे विलक्षण परिवर्तन देखने को मिला, यह अब तक अंग्रेजों की एक महत्त्वहीन कऊँटी थी जो कि अब इंग्लैंड के सबसे महत्त्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र के रूप में विकसित हुई।

(1) जॉन के 1704-64 ई० (John Kay 1704-64 CE):
जॉन के ने 1733 ई० में फ़लाइंग शटल (flying shuttle) का आविष्कार किया। इस आविष्कार ने वस्त्र उद्योग में एक क्रांति लाने का कार्य किया। इसकी सहायता से बहुत कम समय में अधिक चौड़ा कपड़ा तैयार करना संभव हो गया। इससे बुनकरों का कार्य बहुत सुगम हो गया। इस कारण उनके द्वारा किए जाने वाले चरखे का प्रयोग शीघ्र ही अलोप हो गया।

(2) जेम्स हरग्रीन 1720-78 ई० (James Hargreaves 1720-78 CE):
फ़लाइंग शटल के आविष्कार के कारण कपड़े का उत्पादन बहुत तीव्रता से होने लगा। इस कारण धागे की माँग बहुत बढ़ गई। इस समस्या से निपटने के लिए जेम्स हरग्रीब्ज़ ने 1764 ई० में स्पिनिंग जैनी (spinning jenny) का आविष्कार किया।

जैनी, जेम्स हरग्रीब्ज की पत्नी का नाम था। स्पिनिंग जैनी एक साथ आठ से दस धागे कात सकती थी। इससे बुनकरों को आवश्यक धागा समय पर मिलने लगा। निस्संदेह इस आविष्कार ने इंग्लैंड के वस्त्र उद्योग को एक नई दिशा प्रदान की।

(3) रिचर्ड आर्कराइट 1732-92 ई० (Richard Arkwright 1732-92 CE):
स्पिनिंग जैनी में एक कमी थी। उसके द्वारा काता गया सूत कच्चा होता था। इस कारण यह बुनाई करते समय बार-बार टूटता रहता था। इस कमी को दूर करने के उद्देश्य से रिचर्ड आर्कराइट ने 1769 ई० में वॉटर फ्रेम (water frame) का आविष्कार
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किया। यह सर्वप्रथम सूत कातने वाली ऐसी मशीन थी जो कि हाथ की अपेक्षा जल शक्ति से चलती थी। इसके अनेक लाभ हुए। प्रथम, इससे धागे की कताई एवं बुनाई बहुत तेजी से की जाने लगी। दूसरा, इस मशीन द्वारा बनाया जाने वाला धागा पहले की अपेक्षा अधिक मजबूत था। तीसरा, इस मशीन को चलाने के लिए किसी विशेष कारीगर की आवश्यकता नहीं थी।

उसके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए ब्रिटेन के सम्राट् जॉर्ज तृतीय (George III) ने उसे सर (Sir) की उपाधि से सम्मानित किया। प्रसिद्ध इतिहासकार एच० ए० एल० फिशर का कहना ठीक है कि, “बहुत कम अंग्रेजों ने सभ्यता पर इतना गहन प्रभाव छोड़ा जितना कि इस उत्साही लंकाशायर ने।”

(4) सैम्यूअल काम्पटन 1753-1827 ई० (Samuel Crompton 1753-1827 C.E.):
सैम्यूअल क्राम्पटन ने 1779 ई० में स्पिनिंग जैनी एवं वॉटर फ्रेम को मिला कर म्यूल (mule) नामक एक महत्त्वपूर्ण मशीन का आविष्कार किया। यह बहुत बारीक एवं मज़बूत धागा कातती थी। अतः अब बढ़िया किस्म का एवं महीन कपड़ा तैयार किया जाने लगा। इसके द्वारा तैयार किया कपड़ा शीघ्र ही लोकप्रिय हो गया।

प्रसिद्ध इतिहासकार मार्क किशलेस्की के अनुसार, “यह सूत उत्पादन के क्षेत्र में एक निर्णायक आविष्कार था।”4 जे० एच० बेंटली एवं एच० एफ० जाईगलर के शब्दों में, “म्यूल द्वारा मज़बूत एवं उत्तम प्रकार का बढ़िया धागा तैयार किया गया जो किसी भी मानव द्वारा चरखे से तैयार नहीं किया जा सकता था तथा यह बहुत तीव्रता से तैयार होता था।

एक मजदूर जो शक्ति चालित म्यूल का प्रयोग करता था औद्योगीकरण से पूर्व किसी मज़दूर द्वारा चरखे पर काते गए सूत से सौ गुना अधिक होता था।”

( एडमंड कार्टराइट 1743-1823ई0 (Edmund Cartwright 1743-1823 CE) एडमंड कार्टराइट एक पादरी था। उसने 1785 ई० में पॉवरलूम (powerloom) का आविष्कार किया था। इसे चलाना बहुत सुगम था। यह मशीन जब भी धागा टूटता अपने आप काम करना बंद कर देती थी। इस मशीन द्वारा किसी भी प्रकार के धागे की बुनाई की जा सकती थी। इसके द्वारा बहुत तेजी से कताई एवं बुनाई की जाती थी। अतः इंग्लैंड में बढ़िया किस्म का कपड़ा बहुत सस्ता मिलने लगा।

उपरोक्त आविष्कारों ने इंग्लैंड के वस्त्र उद्योग में एक क्रांति ला दी। 1815 ई० में इंग्लैंड में 2,50,000 बुनक हथकरघे (handloom) पर कार्य करते थे। नई मशीनों के आविष्कार के कारण 1860 ई० में इनकी संख्या कम होकर केवल 3,000 रह गई। वस्त्र उद्योग इंग्लैंड का एक शक्तिशाली उद्योग सिद्ध हुआ। 1830 ई० में इस उद्योग में 5 लाख लोग कार्यरत थे। यह उद्योग प्रमुखतः स्त्रियों एवं बच्चों पर निर्भर था। इस उद्योग के लिए कच्चे माल के रूप में आवश्यक कपास संपूर्ण रूप से आयात की जाती थी।

जब इसका कपड़ा तैयार हो जाता था तो इसका अधिकांश भाग उपनिवेशों के बाजारों में बेचने के लिए भेज दिया जाता था। मार्क किशलेस्की के अनुसार, “कपास उद्योग के कारखानों में संगठित होने से वहाँ के आर्थिक जीवन में भारी परिवर्तन हआ।” एक अन्य विख्यात इतिहासकार रैम्जे म्योर के अनुसार, “इन आविष्कारों का परिणाम यह हुआ कि लंकाशायर ने शुद्ध कपास से उत्तम वस्त्रों का उत्पादन आरंभ कर दिया एवं जिसने भारतीय उत्पादों को पछाड़ दिया। अब बुनकरों को धागा पर्याप्त मात्रा एवं इतना सस्त उपलब्ध हो गया कि वे अब पूरा समय काम में व्यस्त रहने लगे तथा उनका वेतन भी बहुत बढ़ गया।”

3. भाप की शक्ति (Steam Power):
भाप की शक्ति का आविष्कार निस्संदेह औद्योगिक क्रांति के लिए एक निर्णायक मोड़ सिद्ध हुआ। जल भी शताब्दियों तक द्रवचालित शक्ति (hydraulic power) के रूप में ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत रहा था। किंतु इस शक्ति का प्रयोग कुछ विशेष प्रदेशों, मौसमों एवं जल प्रवाह की गति (speed of flow of the water) के अनुसार सीमित रूप में ही किया जाता था। किंतु अब इसका प्रयोग भाप की शक्ति के रूप में किया जाने लगा। इससे अनेक प्रकार की मशीनों को चलाया जा सकता था। इसके अतिरिक्त इस पर खर्चा भी कम आता था।

(1) थॉमस सेवरी 1650-1715 ई० (Thomas Savery 1650-1715 CE):
भाप की शक्ति का सर्वप्रथम प्रयोग खनन उद्योगों (mining industries) के लिए किया गया। इस समय तक कोयले एवं धातुओं की माँग में बहुत वृद्धि हो रही थी। अतः उन्हें और भी अधिक गहरी खानों से निकालने के लिए प्रयास तीव्र हो गए। किंतु ऐसा करते समय एक विकट समस्या सामने आई।

यह समस्या थी कि जब खानों की गहराई की जाती थी तब वे अचानक पानी से भर जाती थीं। खानों के पानी को बाहर निकालने के लिए 1698 ई० में थॉमस सेवरी ने माइनर्स फ्रेंड (Miner’s Friend) नामक एक स्टीम इंजन बनाया। यह प्रयोग अधिक सफल नहीं रहा। इसके दो कारण थे-प्रथम, यह छिछली गहराइयों (shallow depths) में बहुत धीरे-धीरे काम करता था। दूसरा, दबाव के अधिक हो जाने के कारण उसका बॉयलर फट जाता था।

(2) थॉमस न्यूकॉमेन 1663-1729 ई० (Thomas Newcomen 1663-1729 CE):
थॉमस न्यूकॉमेन ने 1712 ई० में भाप का एक अन्य इंजन तैयार किया। इसका उद्देश्य भी खानों में से पानी बाहर निकालना था। यह भी अपने उद्देश्य में पूर्ण सफल नहीं हुआ। यह बहुत भारी था एवं इसकी बनावट बहुत भद्दी थी। इसमें काफी मात्रा में ईंधन नष्ट होता था। अतः यह लोकप्रिय न हो सका।

(3) जेम्स वॉट 1736-1819 ई० (James Watt 1736-1819 CE):
जेम्स वॉट एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक था। उसने थॉमस न्यूकॉमेन के इंजन के दोषों का गहन अध्ययन किया। उसने 1769 ई० में एक नए भाप इंजन का निर्माण किया। इसमें न्यूकॉमेन के इंजन के सभी दोषों को दूर करने में सफलता प्राप्त की गई। इंजन कम खर्चीला था। यह बहुत उपयोगी एवं व्यावहारिक था।

इसका प्रयोग न केवल कोयला खानों अपितु दूसरे उद्योगों द्वारा भी किया गया। निस्संदेह यह एक महान् उपलब्धि थी। इसने औद्योगिक क्षेत्र में एक नए युग का सूत्रपात किया। प्रसिद्ध इतिहासकार रैम्जे म्योर के शब्दों में, “एक नई एवं असीम शक्ति जो कि नई सभ्यता के लिए एक शक्तिशाली साधन सिद्ध हुई मानवता की सेवा के लिए प्रस्तुत की गई।”एक अन्य लेखक आर० एम० रेनर के अनुसार, “जेम्स वॉट एक महान् मार्गदर्शक था जिसने एक ऐसे इंजन का निर्माण किया जो अभी तक के इंजनों में सबसे शक्तिशाली था तथा जिसमें ईंधन बहुत कम लगता था।”

(4) मैथ्यू बॉल्टन 1728-1809 ई० (Matthew Boulton 1728-1809 CE):
मैथ्यू बॉल्टन एक धनी कुशल व्यापारी था। उसने 1775 ई० में जेम्स वॉट के साथ मिल कर बर्मिघम में ‘सोहो फाउँडरी’ (Soho Foundary) की स्थापना की। इसमें जेम्स वॉट द्वारा तैयार किए स्टीम इंजन बड़ी संख्या में तैयार किए जाने लगे। 1800 ई० तक ऐसे 289 इंजनों को तैयार कर बेचा गया था।

मैथ्यू बॉल्टन ने इन इंजनों के निर्माण के लिए आवश्यक पूँजी जेम्स वॉट को उपलब्ध करवायी थी। इन इंजनों ने इंग्लैंड में औद्योगिक क्राँति को एक नई दिशा प्रदान की। इसके महत्त्व का अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 1840 ई० में ब्रिटेन में बने भाप के इंजन ही संपूर्ण यूरोप में आवश्यक ऊर्जा की 70 प्रतिशत से अधिक अश्व शक्ति (horse power) का उत्पादन कर रहे थे। प्रसिद्ध इतिहासकार जे० जी० कोफिन के अनुसार, “स्टीम इंजन प्रारंभिक 19वीं शताब्दी में औद्योगिक विस्तार में निस्संदेह निर्णायक थे।”10

4. नहरें एवं रेलें (Canals and Railways) :
इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति के विकास में नहरों एवं रेलों ने उल्लेखनीय योगदान दिया। वास्तव में इनके बिना इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति संभव ही न थी। इनके द्वारा ही उद्योगों द्वारा तैयार माल को तीव्र गति से एक स्थान से दूसरे स्थान पर तथा कम खर्चे में पहुँचाया जा सका। प्रसिद्ध इतिहासकार रैम्जे म्योर के अनुसार, “ब्रिटिश लोग यातायात के साधनों के विकास के बिना धन उत्पादन की नई शक्तियों का पूर्ण लाभ नहीं उठा सकते थे।”

प्रश्न 3.
इंग्लैंड में वस्त्र उद्योग में क्रांति पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
नोट-इस प्रश्न के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया करके प्रश्न नं 2 का भाग 2 देखें।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति

प्रश्न 4.
नहर और रेलवे परिवहन के सापेक्षित लाभ क्या-क्या हैं ?
अथवा
इंग्लैंड में नहरों एवं रेलों के विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति के विकास में नहरों एवं रेलों ने उल्लेखनीय योगदान दिया। वास्तव में इनके बिना इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति संभव ही न थी। इनके द्वारा ही उद्योगों द्वारा तैयार माल को तीव्र गति से एक स्थान से दूसरे स्थान पर तथा कम खर्चे में पहुँचाया जा सका। प्रसिद्ध इतिहासकार रैम्जे म्योर के अनुसार, “ब्रिटिश लोग यातायात के साधनों के विकास के बिना धन उत्पादन की नई शक्तियों का पूर्ण लाभ नहीं उठा सकते थे।”

1. नहरों का विकास

18वीं शताब्दी के दूसरे मध्य में इंग्लैंड में नहरों का निर्माण आरंभ हुआ। इनका प्रमुख उद्देश्य कोयले को शहरों में स्थित उद्योगों तक पहुँचाना था। इसमें सड़क मार्ग की अपेक्षा कम समय लगता था एवं खर्चा भी कम आता था। इंग्लैंड में नहरों के निर्माण में ड्यूक ऑफ़ ब्रिजवाट (Duke of Bridgewater) एवं जेम्स ब्रिडले (James Brindley) ने प्रशंसनीय भूमिका निभाई। ड्यूक ऑफ़ ब्रिजवा की वर्सले (Worsley) में अनेक कोयला खाने थीं। वह यहाँ से अपने कोयले को निकट स्थित मैनचेस्टर (Manchester) में स्थापित उद्योगों तक कम खर्च में पहँचाना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने 1758 ई० में जेम्स ब्रिडले जो कि एक प्रसिद्ध इंजीनियर था के साथ परामर्श किया।

जेम्स ब्रिडले ने उसे वर्सले से मैनचेस्टर तक एक नहर का निर्माण करने का परामर्श दिया। ब्रिजवार ने इस परामर्श को स्वीकार किया तथा इस कार्य के लिए आवश्यक पूँजी जेम्स ब्रिडले को उपलब्ध करवायी। जेम्स ब्रिडले ने 1759 ई० में वर्सले कैनाल (Worsley Canal) का निर्माण कार्य आरंभ किया। इस नहर द्वारा वर्सले को मैनचेस्टर के साथ जोड़ा गया। यह नहर 10 मील लंबी थी। 1761 ई० में इस नहर का निर्माण कार्य पूरा हुआ तथा इसे यातायात के लिए खोला गया। यह इंग्लैंड की प्रथम नहर थी।

निस्संदेह यह जेम्स ब्रिडले की एक महान सफलता थी। इस नहर के कारण कोयले की कीमतें आधी हो गईं। वर्सले कैनाल की महान् सफलता को देखते हुए जेम्स ब्रिडले ने मैनचेस्टर (Manchester) से लेकर लिवरपूल (Liverpool) तक एक अन्य नहर का निर्माण कार्य आरंभ किया। इसका निर्माण कार्य 1772 ई० पूर्ण हुआ। यह नहर 28 मील लंबी थी। इससे दोनों नगरों के मध्य की दूरी काफी कम हो गयी तथा सफ़र का खर्चा केवल छठा भाग ही रह गया। इससे जेम्स ब्रिडले की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई। दुर्भाग्यवश उसकी 1772 ई० में मृत्यु हो गई।

जेम्स ब्रिडले की मृत्यु के पश्चात् इंग्लैंड में नहरों का निर्माण कार्य जारी रहा। नहरों के निर्माण के अनेक लाभ थे। प्रथम, ये नहरें जिन स्थानों पर बनीं वहाँ भूमि के मूल्य बहुत बढ़ गए। दूसरा, नहरों के कारण अनेक नए शहर अस्तित्व में आए। तोसरा, इससे उद्योगों को बहुत लाभ पहुंचा। चौथा, इनसे कृषि को बहुत प्रोत्साहन मिला। पाँचवां, यह नहरों एवं नावों का निर्माण करने वालों के लिए भी बहुत लाभकारी प्रमाणित हुईं।

1770 ई० के दशक से लेकर 1830 ई० के दशक को इंग्लैंड की नहरों के इतिहास का सुनहरा काल (Golden Age) अथवा नहरोन्माद (Canal mania) के नाम से जाना जाता है। इस काल के दौरान इंग्लैंड में अनेकानेक नहरें बनाई गईं तथा इस कार्य पर बहुत धन व्यय किया गया। इस काल के दौरान 4000 मील लंबी नहरों का निर्माण किया गया। इन नहरों में से मरसी (Mersey), ट्रेंट (Trent), सेवन (Severn) एवं थेम्स (Thames) नामक नहरें बहुत प्रसिद्ध हुईं। प्रसिद्ध इतिहासकार क्रिस हरमन “अंग्रेजों की नहरी व्यवस्था जिसने जल यातायात का कार्य किया ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति के लिए उस समय प्रमुख भूमिका निभाई जब सड़कों का निर्माण कार्य आरंभ ही हुआ था।”

1830 ई० के पश्चात् जब रेलों का निर्माण आरंभ हो गया तो नहरों का महत्त्व कम हो गया। इसके अतिरिक्त नहरों के कुछ हिस्सों में जलपोतों की भीड़भाड़ के कारण परिवहन की गति धीमी पड़ गई। पाले, बाढ़ या सूखे के कारण नहरों का प्रयोग का समय भी सीमित हो गया।

II. रेलों का विकास

19वीं शताब्दी में इंग्लैंड में रेलों के विकास ने एक नए युग का सूत्रपात किया। इसके ब्रिटेन के समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़े।

1. रिचर्ड ट्रेविथिक 1771-1833 ई० (Richard Travithick 1771-1833 CE):
रिचर्ड ट्रेविथिक इंग्लैंड का एक प्रसिद्ध इंजीनियर था। उसने 1801 ई० में एक इंजन का निर्माण किया जिसे ‘पफिंग डेविल’ (puffing devil) कहा जाता था। यह इंजन ट्रकों (trucks) को कॉर्नवाल में उस खान के चारों ओर खींचकर ले जाता था जहाँ रिचर्ड काम करता था। यह इंजन बहुत भारी था।

अत: यह लंबी दूरी तय करने में विफल रहा। 1804 ई० में ट्रेविथिक विश्व का प्रथम स्टीम इंजन तैयार करने में सफल रहा। इस इंजन को पेनीडारेन (penydarren) नाम दिया गया। यह इंजन 7 टन भारी था। प्रथम दिन इसने 9 मील का सफर तय किया। इसमें 5 रेल डिब्बे थे तथा इसमें 70 यात्री सवार थे। इसे भी विशेष सफलता प्राप्त न हुई।

इसके दो प्रमुख कारण थे। प्रथम, यह रेल इंजन भी बहुत भारी था। अत: यह कमज़ोर रेल लाइनों को तोड़ देता था। दूसरा, यह अधिक समय तक अपने में भाप नहीं रख सकता था। इसके बावजूद रिचर्ड ट्रेविथिक ने इंग्लैंड में रेलों की नींव रख कर एक महान् कार्य किया।

2. जॉर्ज स्टीफेनसन 1781-1848 ई० (George Stephenson 1781-1848 CE):
जॉर्ज स्टीफेनसन इंग्लैंड का एक महान् इंजीनियर था। रेलों के विकास में उसके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए उसे ‘रेलों का पितामा’ (Father of Railways) कहा जाता है। उसने 1814 ई० में भाप से चलने वाला ब्लचर (blutcher) नामक इंजन तैयार किया। इसे केवल कोयला ढोने के लिए तैयार किया गया था।

यह इंजन 30 टन भार का कोयला 4 मील प्रति घंटा की रफ्तार से एक पहाड़ी पर ले जा सकता था। यात्रियों के लिए सर्वप्रथम रेल 1825 ई० में स्टॉकटन (Stockton) एवं डालिंगटन (Darlington) शहरों के मध्य चलाई गई। इसके इंजन को रॉकेट (rocket) का नाम दिया गया। यह भाप से चलता था। यात्रियों के लिए इसमें 30 डिब्बे लगाए गए थे।

इस इंजन को जॉर्ज स्टीफेनसन ने स्वयं प्रथम 9 मील तक चलाया था। इस यात्रा को तय करने में उसे 2 घंटे लगे थे। बाद में इस इंजन को 15 मील प्रति घंटा की रफ्तार से चलाया गया। निस्संदेह यह एक महान् घटना थी। प्रसिद्ध इतिहासकार सी० जे० एच० हेज़ के अनुसार, “इस साहसिक कार्य की सफलता ने रेलों का एक बड़े पैमाने पर निर्माण का युग आरंभ किया।”

1830 ई० में लिवरपल एवं मैनचेस्टर को रेलमार्ग द्वारा जोड़ा गया। 15 सितंबर, 1830 ई० को इस रेलमार्ग को इंग्लैंड के प्रधानमंत्री ड्यूक ऑफ़ विलिंगटन (Duke of Wellington) द्वारा खोला गया। यहाँ चलने वाली रेलगाड़ी ने 30 मील प्रति घंटा की रफ्तार प्राप्त की। दुर्भाग्यवश पहले ही दिन जब इस रेलमार्ग को चलाया गया था तो इंग्लैंड के एक प्रसिद्ध सांसद हसकिरस्न (Huskirson) की इस रेल इंजन से टकरा कर मृत्यु हो गई थी।

जॉर्ज स्टीफेनसन ने जो सफलता प्राप्त की उस कारण वह शीघ्र ही बहुत लोकप्रिय हो गया तथा उसे रेलवे के चीफ़ इंजीनियर के पद से सम्मानित किया गया। 1848 ई० में जेम्स स्टीफेनसन की मृत्यु हो गई।

3. स्टीफेनसन के बाद रेलों का विकास (The Developments of Railways after Stephenson):
जॉर्ज स्टीफेनसन की मृत्यु के पश्चात् भी रेलों के निर्माण का कार्य जारी रहा। 1830 ई० से 1850 ई० के मध्य ब्रिटेन में दो चरणों में 6,000 मील लंबे रेलमार्ग का निर्माण किया गया। आई० के० बरुनल (I.K. Brunel) ने रेल मागों के रास्ते में आने वाले पुलों एवं सुरंगों (tunnels) का निर्माण किया। 1841 ई० में ब्राडशाह ने यात्रियों की सुविधा के लिए प्रथम रेलवे टाइम टेबल को बनाया। 1846 ई० में ब्रिटेन की सरकार द्वारा रेलवे के संबंध में कुछ नियम पारित किए गए।

4. प्रभाव (Effects):
रेलों के आगमन से ब्रिटेन के समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़े। इनके कारण ब्रिटेन में शहरीकरण की प्रक्रिया तीव्र हुई। अतः अनेक बड़े-बड़े शहर अस्तित्व में आए। इनमें लंदन, ब्रिस्टल, मैनचेस्टर, लीड्स, लिवरपूल, वेल्स, बर्मिंघम एवं यार्कशायर आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इस कारण ब्रिटेन में गाँवों एवं छोटे शहरों का महत्त्व कम हो गया। रेलों के कारण लोगों के लिए कम खर्च एवं कम समय में सफर करना सुगम हो गया। इस कारण बड़ी संख्या में गाँवों के लोग नौकरी की तलाश में शहरों में आ गए।

अनेक लोग शहरों में ही बस गए। नए स्थान पर आने से उनके सामाजिक बंधन ढीले हो गए। रेलों के कारण लोग छुट्टियों में दूर सैर-सपाटे के लिए जाने लगे। यह उनके मनोरंजन के लिए एक बढ़िया साधन सिद्ध हुआ। रेलों द्वारा उद्योगों के लिए आवश्यक कच्चा माल कोयला, लोहा, कपास आदि कम खर्च पर पहुँचाना सुगम हो गया। इससे इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति को एक नया बल मिला। रेलों के कारण ही इंग्लैंड के उद्योगों द्वारा तैयार माल को दूर स्थानों तक पहुँचाया जा सका। रेलों के निर्माण कार्य में बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ। निस्संदेह रेलों ने ब्रिटेन के समाज को एक नई दिशा देने में उल्लेखनीय योगदान दिया।

प्रश्न 5.
औद्योगिक क्रांति के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
औद्योगिक क्रांति विश्व की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना थी। इस क्रांति के दूरगामी परिणाम निकले। प्रसिद्ध इतिहासकार चार्ल्स ब्रयूनिंग के अनुसार, “औद्योगिक क्रांति ने निस्संदेह यूरोपियों के जीवन को इतना प्रभावित किया जितना कि फ्रांसीसी क्रांति ने भी नहीं किया था।”

1. सामाजिक प्रभाव (Social Effects)-औद्योगिक क्रांति के उल्लेखनीय सामाजिक प्रभाव पड़े।

(1) औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप ब्रिटेन की जनसंख्या में असाधारण वृद्धि हुई। इसका कारण यह था कि अनेक वैज्ञानिक खोजों के कारण मृत्यु दर में काफ़ी कमी आ गई थी।

(2) औद्योगिक क्रांति के कारण पारिवारिक जीवन छिन्न-भिन्न हो गया। लोगों को रोजगार की तलाश में गाँवों को छोड़ कर शहरों में आना पड़ा। यहाँ परिवार के जिस सदस्य को जिस कारखाने में नौकरी मिलती वहीं काम करने लगता। इससे परिवार का विभिन्न सदस्यों पर नियंत्रण समाप्त हो गया।

(3) औद्योगिक क्रांति के कारण शहरों में जनसंख्या में तीव्रता से बढ़ौतरी से कारखानों फ आस-पास मजदूरों के बस जाने से वहाँ गंदी बस्तियों की स्थापना हुई।

(4) औद्योगिक क्रांति के कारण मशीनों का प्रचलन बढ़ गया। अतः मजदूरों को कम वेतन पर कार्य करने के लिए विवश होना पड़ा।

(5) उद्योगों में छोटे छोटे बच्चे एवं स्त्रियाँ भी काम करती थीं। उनसे भी बहुत भयावह परिस्थितियों में काम कराया जाता था। काम करते समय यदि उनकी मृत्यु हो जाती तो कारखाना मालिक उन्हें किसी प्रकार का कोई मुआवजा नहीं देता था।

(6) औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप ब्रिटेन का समाज दो वर्गों पूँजीपतियों एवं मजदूरों में बँट गया था। दोनों वर्गों के जीवन स्तर में बहुत अंतर था।

2. आर्थिक प्रभाव (Economic Effects):
औद्योगिक क्रांति के महत्त्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव पड़े।

(1) औद्योगिक क्रांति के कारण बड़ी मात्रा में वस्तुओं का उत्पादन मशीनों द्वारा किया जाने लगा। अत: लोगों को उत्तम वस्तुएँ सस्ते मूल्य पर उपलब्ध होने लगी। इससे लोगों के जीवन स्तर में पहले की अपेक्षा काफ़ी सुधार हुआ।

(2) औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप लघु उद्योगों का अंत हो गया।

(3) औद्योगिक क्राँति ने कृषि क्रांति को प्रोत्साहन दिया। अतः फ़सलों के उत्पादन में बहुत वृद्धि हो गई।

(4) उत्पादन में वृद्धि के कारण घरेलू एवं विदेशी व्यापार को एक नई दिशा मिली। इससे लोग बहुत समृद्धशाली हुए।

(5) औद्योगिक क्रांति के कारण यातायात के साधनों में अद्वितीय विकास हुआ। इससे जहाँ लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की एवं माल की आवाजाही भी सुविधाजनक हो गयी।

(6) औद्योगिक क्रांति के कारण ब्रिटेन को अपने कारखानों के लिए कच्चे माल की तथा तैयार माल को बेचने के लिए मंडियों की आवश्यकता हुई। अतः ब्रिटेन ने साम्राज्यवादी नीति को अपनाया

(7) औद्योगिक क्रांति के कारण अनेक ऐसी वस्तुओं का उत्पादन हुआ जिन्होंने मानव जीवन को सुखी एवं सुविधाजनक बना दिया।

(8) औद्योगिक क्रांति ने पूँजीवाद एवं बैंक प्रणाली को जन्म दिया।

3. राजनीतिक प्रभाव (Political Effects) औद्योगिक क्राँति ने ब्रिटेन के राजनीतिक जीवन को एक नई दिशा प्रदान की।

(1) औद्योगिक क्रांति के कारण ब्रिटेन एक धनी एवं शक्तिशाली देश बना। इस कारण वह फ्रांस एवं नेपोलियन के साथ दीर्घकालीन युद्ध करने में सक्षम हुआ। नेपोलियन के पतन में ब्रिटेन की प्रमुख भूमिका थी।

(2) औद्योगिक क्रांति के कारण अनेक नए नगर अस्तित्व में आए। इन नगरों को संसद् में प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं था। अतः संसदीय सुधारों की माँग बल पकड़ने लगी।

(3) औद्योगिक क्रांति के कारण यातायात के साधनों का विकास हुआ। इससे राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहन मिला।

(4) औद्योगिक क्राँति ने स्वतंत्रता, समानता, सामाजिक न्याय एवं समाजवाद आदि नए राजनीतिक विचारों को जन्म दिया।

(5) औद्योगिक क्राँति ने साम्राज्यवाद की भावना को जन्म दिया। इस कारण विभिन्न साम्राज्यवादी देशों में अपने-अपने उपनिवेश स्थापित करने के लिए एक होड़ सी लग गयी। इस होड़ के विनाशकारी परिणाम निकले।

(6) पूँजीपतियों द्वारा मजदूरों का घोर शोषण किया गया। इससे उनमें एक नई जागृति उत्पन्न हुई। अतः उन्होंने अपनी मांगों के समर्थन में श्रमिक संघों (Trade Unions) के निर्माण के लिए एक लंबा संघर्ष चलाया। अंततः उन्हें सफलता प्राप्त हुई।

प्रश्न 6.
ब्रिटेन में स्त्रियों के भिन्न-भिन्न वर्गों के जीवन पर औद्योगिक क्रांति का क्या प्रभाव पड़ा?
अथवा
ब्रिटेन में स्त्रियों के भिन्न-भिन्न वर्गों के जीवन पर औद्योगिक क्रांति का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप स्त्रियों की दशा भी अत्यंत दयनीय हो गई। इस क्राँति से पूर्व स्त्रियाँ कृषि कार्यों में सक्रिय हिस्सा लेती थीं। वे पशुओं की देखभाल करती थीं। वे वनों से लकड़ियाँ इकट्ठी करती थीं। वे अपने घरों में चरखे चला कर सूत कातने का कार्य भी करती थीं। औद्योगिक क्रांति के कारण उनके जीवन में भारी परिवर्तन आया। पुरुषों को शहरों में स्थापित कारखानों में मजदूरी करने के लिए बाध्य होना पड़ा।

क्योंकि उनका वेतन इतना कम था कि परिवार का पालन-पोषण करना उनके बस की बात नहीं थी अतः स्त्रियों को भी कारखानों में काम करने के लिए विवश होना पड़ा। कारखानों में स्त्रियों को बहुत भयानक परिस्थितियों में काम करना पड़ता था। उन्हें यहाँ एक ही प्रकार का कार्य 16 से 18 घंटों तक करना पड़ता था। यद्यपि वे कठोर परिश्रम करती थीं अपितु उन्हें पुरुषों की अपेक्षा बहुत कम वेतन मिलता था। कारखानों के मालिक अपना दिल बहलाने के लिए अक्सर उनका यौन शोषण करते थे।

गर्भवती होने पर उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाता था क्योंकि वे कुशलतापूर्वक काम करने के योग्य नहीं रहती थीं। कुछ स्त्रियों कोयला खानों में भी काम करती थीं। यहाँ काम करने की परिस्थितियाँ कारखानों से भी भयानक थीं। यहाँ उन्हें घोर अंधेरे में कार्य करना पड़ता था। उन्हें अपनी पीठ पर रख कर कोयले का भारी वज़न भी ढोना पड़ता था।

खानों में विस्फोट हो जाने से अक्सर उनकी मृत्यु हो जाती थी अथवा वे घायल हो जाती थीं। ऐसी स्थिति में खानों के मालिक उन्हें किसी प्रकार का कोई मुआवजा नहीं देते थे। इनके अतिरिक्त अनेक स्त्रियाँ घरों में नौकरानियों के तौर पर अथवा दुकानों में सहायक के तौर पर कार्य करती थीं। घरों के मालिक अथवा उनके पुत्र एवं दुकानदार उनके साथ नाजायज संबंध स्थापित कर लेते थे। इंकार करने वाली स्त्रियों को नौकरी से निकाल दिया जाता था।

अनेक स्त्रियाँ मज़बूरीवश वेश्यावृत्ति के दलदल में फंस गई थीं। स्त्रियों को अपने कार्य के अतिरिक्त अपने घरों का कार्य भी देखना पड़ता था। अतः उन्हें आराम करने का अवसर बहुत कम प्राप्त होता था। आय के कम होने के कारण प्रायः पति-पत्नी एवं बच्चों में झगड़े होते रहते थे। संक्षेप में, औद्योगिक क्रांति के दौरान स्त्रियों की स्थिति नरक समान थी।

प्रश्न 7.
इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के दौरान हुए विरोध आंदोलन की चर्चा कीजिए।
अथवा
औद्योगिक क्रांति के दौरान ब्रिटेन में हुए श्रमिक आंदोलनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इंग्लैंड में औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप वहाँ कारखानों एवं खानों में काम करने वाले मजदूरों की दशा पशुओं से भी बदतर हो गई। अतः वे अन्य मांगों के अतिरिक्त मताधिकार प्राप्त करने के लिए आंदोलन कर रहे थे। ब्रिटेन की सरकार मजदूरों के किसी प्रकार के आंदोलन को सहन करने को तैयार नहीं थी। अतः उसने मजदूरों के प्रति दमनकारी नीति अपनाई।

1. जुड़वाँ अधिनियम 1799-1800 ई० (Combination Acts 1799-1800 CE):
ब्रिटेन की सरकार ने 1799 ई० एवं 1800 ई० में दो नियम पारित किए। इन्हें जुड़वाँ अधिनियम कहा जाता है। इन अधिनियमों के अधीन ट्रेड यूनियनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। अब मजदूर अपनी मजदूरी बढ़ाने के लिए अथवा काम के घंटों को कम करने के लिए एक-दूसरे को सहयोग नहीं कर सकते थे।

वे भाषण या लेखन द्वारा सम्राट्, संविधान अथवा सरकार के विरुद्ध नफ़रत नहीं फैला सकते थे। इन नियमों का उल्लंघन करने वालों को दंड देने की व्यवस्था की गई। 1824 ई० में सरकार ने जुड़वाँ अधिनियम को रद्द कर दिया। अब मजदूरों को ब्रिटेन में ट्रेड यूनियन बनाने का अधिकार प्राप्त हो गया।

2. अनाज कानून 1815 ई० (Corn Laws 1815 CE):
1815 ई० में ब्रिटेन की सरकार ने अनाज कानून पारित किए। इन कानूनों के अधीन जब तक ब्रिटेन में अनाज की कीमत में एक स्वीकृत स्तर तक वृद्धि न हो जाए तब तक विदेश से अनाज के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके परिणामस्वरूप ब्रिटेन में अनेक वस्तुओं का अभाव हो गया एवं उनकी कीमतों में बहु जीवन को और भी अधिक भर बना दिया। अतः वे अनाज कानून पर लगे प्रतिबंध को हटाने की माँग करने लगे।

उस समय अधिकाँश सांसद भू-स्वामी थे इसलिए उन्होंने अनाज कानून का समर्थन किया। अत: विवश हो कर मजदूरों ने मैनचेस्टर में 1839 ई० में अनाज कानून विरोधी लीग (Anti-Corn Laws League) का निर्माण किया। इस लीग के दो प्रमुख सदस्य रिचर्ड काब्डन एवं जॉन ब्राइट (John Bright) थे। इस लीग ने अनाज कानून को रद्द किए जाने की अपनी माँग को जारी रखा। अंत में उनका आंदोलन सफल रहा तथा प्रधानमंत्री राबर्ट पील (Robert Peel) ने 1845 ई० में अनाज कानून को रद्द करने की घोषणा की।

3. ब्रैड के लिए दंगे (Riots for Bread):
औद्योगिक क्रांति के कारण शहरों में काम करने वाले मजदूरों की संख्या में भारी वृद्धि हो गई थी। उन्हें कारखानों में जिन भयावह परिस्थितियों में काम करना पड़ता था उस कारण उनमें घोर रोष था। 1793 ई० में इंग्लैंड का फ्रांस के साथ एक दीर्घकालीन युद्ध आरंभ हो गया। इस युद्ध के परिणामस्वरूप ब्रिटेन में ब्रैड जो कि गरीबों का मुख्य आहार था की कीमतें आसमान छूने लगीं। इससे मजदूरों के धैर्य का बाँध टूट गया। उन्होंने ब्रैड के लिए सारे देश में दंगे आरंभ कर दिए। ऐसे दंगों का सिलसिला 1840 ई० के दशक तक चलता रहा।

4. बाड़ा पद्धति (Enclosure):
1770 ई० के दशक में ब्रिटेन में पारित किए गए बाड़ा पद्धति अथवा चकबंदी अधिनियमों ने वहाँ के गरीब लोगों में घोर रोष उत्पन्न किया। इनके अधीन शक्तिशाली ज़मींदारों ने छोटे छोटे किसानों के फार्मों को अपने बडे फार्मों में मिला लिया। इस बाडा पद्धति के कारण बडे जमींदारों को बहत लाभ पहुँचा। दूसरी ओर यह छोटे किसानों के लिए बहुत विनाशकारी सिद्ध हुई।

इस कारण वे बेरोजगार हो गए। वे न्यूनतम वेतन पर कारखानों में काम करने के लिए बाध्य हुए। इससे उनका जीवन दूभर हो गया। 1790 के दशक से वे अपने वेतन में वृद्धि की माँग करने लगे। संसद् ने उनकी माँग को स्वीकार न किया। अत: वे हड़ताल पर चले गए। सरकार ने उन्हें जबरन खदेड़ दिया।

5. लुडिज्म 1811-17 ई० (Luddism 1811-17 CE):
लुडिज्म 1811 ई० से 1817 ई० के मध्य इंग्लैंड में चलने वाला एक प्रसिद्ध आंदोलन था। इस आंदोलन को इंग्लैंड के कपड़ा मजदूरों द्वारा चलाया गया था। इस आंदोलन का नेतृत्व जनरल नेड लुड (General Ned Ludd) ने किया। इस आंदोलन की अनेक माँगें थीं

  • मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी दी जाए।
  • स्त्रियों एवं बच्चों के काम करने के समय को कम किया जाए एवं उन्हें ख़तरनाक मशीनों पर न लगाया जाए।
  • मजदूरों को ट्रेड यूनियन बनाने का अधिकार हो ।

सरकार के विरुद्ध अपना विरोध प्रकट करने के उद्देश्य से उन्होंने वस्त्र मशीनों को नष्ट किया। वे इन मशीनों को उनके सभी कष्टों के लिए उत्तरदायी मानते थे। लुडिवादी (Luddites) अपने चेहरे को ढक कर रखते थे तथा वे अपनी कार्यवाही प्रायः रात के समय करते थे। उन्हें साधारण लोगों का काफी समर्थन प्राप्त था।

इस आंदोलन का आरंभ 1811 ई० में नोटिंघम (Notingham) से हुआ था। इसके पश्चात् यह ब्रिटेन के अनेक अन्य प्रसिद्ध शहरों में फैल गया। आंदोलनकारियों ने अनेक सूती एवं ऊनी वस्त्र की मिलों पर आक्रमण कर उन्हें नष्ट कर दिया। सरकार इसे कभी सहन करने को तैयार नहीं थी। अत: उसने दमन की नीति अपनाते हुए 1813 ई० में 14 लुडिवादियों को फाँसी पर चढ़ा दिया तथा अनेकों को बंदी बना कर ऑस्ट्रेलिया में भेज दिया।

6. पीटरलू नरसंहार 1819 ई० (Peterloo Massacre 1819 CE):औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप मजदूरों का जीवन नरक समान हो गया था। 16 से 18 घंटे प्रतिदिन कड़ी मेहनत करने के बावजूद उन्हें दो वक्त भर पेट खाना नसीब नहीं होता था। वे गंदी बस्तियों में निवास करते थे। वे अर्द्धनग्न घूमते रहते थे। उन्हें वोट के अधिकार से वंचित रखा गया था।

16 अगस्त, 1819 ई० को 80,000 लोग मैनचेस्टर के सेंट पीटर्स (St. Peters) के मैदान में शांतिपूर्वक एकत्र हुए। उनका उद्देश्य अनाज कानूनों के विरुद्ध अपना विरोध जारी करना था तथा वोट के अधिकार, ट्रेड यूनियन बनाने के अधिकार, सार्वजनिक सभाएँ करने तथा प्रेस की स्वतंत्रता के अधिकार की माँग करना था। इस आंदोलन के प्रसिद्ध नेता रिचर्ड कारलाइल (Richard Carlile), जॉन कार्टराइट (John Cartwright) तथा हेनरी हंट (Henry Hunt) थे। सरकार इस शाँतिमय जनसभा को भी सहन करने को तैयार नहीं थी।

अतः सरकार ने वहाँ घुड़सवार सेना भेज दी। इस सेना ने वहाँ लोगों को तितर-बितर (disperse) करने के उद्देश्य से गोलियाँ चला दीं। इसे पीटरलू नरसंहार के नाम से जाना जाता है। इसमें 11 लोगों की मृत्यु हुई एवं 400 से अधिक घायल हुए। इस नरसंहार के कारण संपूर्ण ब्रिटेन में रोष की लहर फैल गई।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति

प्रश्न 8.
इंग्लैंड में कानूनों के जरिये मजदूरों की दशा सुधारने के लिए क्या प्रयास किए गए ? क्या ये सफल सिद्ध हुए ?
उत्तर:
ब्रिटेन में काम करने वाले सभी मज़दूर जिनमें स्त्रियाँ एवं बच्चे भी सम्मिलित थे बहुत शोचनीय जीवन व्यतीत कर रहे थे। दिनभर कठोर परिश्रम करने के बावजूद उन्हें दो समय भर पेट खाना नसीब नहीं होता था। वे गंदी बस्तियों में रहते थे। उनकी दशा सुधारने हेतु इंग्लैंड की सरकार द्वारा अनेक कानून पारित किए गए। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. कारखाना अधिनियम 1802 ई० (Factory Act of 1802 CE):
इंग्लैंड में कारखानों में काम करने वाले मजदूरों विशेष तौर पर स्त्रियों एवं बच्चों की दशा सुधारने के उद्देश्य से 1802 ई० में प्रथम कारखाना अधिनियम पारित किया गया था। इसकी प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित थीं

  • कारखाना मालिकों को नियमों की पालना अवश्य करनी चाहिए।
  • कारखानों के सभी कमरे हवादार हों।
  • किसी भी बच्चे से 12 घंटों से अधिक काम न लिया जाए।
  • किसी भी बच्चे को रात्रि में कारखानों में काम पर न लगाया जाए।
  • रविवार के दिन सभी बच्चों को दो घंटे ईसाई धर्म के बारे में जानकारी देनी चाहिए।

मिल मालिक इस बात का ध्यान रखें कि उनके कारखाने में किसी प्रकार की कोई महामारी न फैले। यदि कोई कारखाना मालिक उपरोक्त नियमों की पालना नहीं करता है तो उस पर 2 से 5 पौंड तक जुर्माना लगाया जाए। निस्संदेह 1802 ई० का कारखाना अधिनियम मजदूरों की दशा सुधारने के लिए किया गया एक अच्छा प्रयास था। किंतु यह अधिनियम अपने उद्देश्य में अधिक सफल न रहा। इसका कारण यह था कि कारखानों की निष्पक्ष जाँच करने के लिए इंस्पेक्टरों का उचित प्रबंध न था।

2. कारखाना अधिनियम 1819 ई० (Factory Act of 1819 CE):
1819 ई० में दूसरा कारखाना अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम की प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित थीं

  • 9 वर्ष से कम बच्चों को कारखानों में काम पर लगाने की पाबंदी लगा दी गई।
  • 9 से 16 वर्ष के बच्चों से 12 घंटों से अधिक काम न लिया जाए।
  • बच्चों को रात्रि में काम पर न लगाया जाए।
  • बच्चों को भोजन के लिए 1.30 घंटे का विश्राम दिया जाए।

3. कारखाना अधिनियम 1833 ई० (Factory Act of 1833 CE):
1832 ई० में इंग्लैंड में प्रथम सधार अधिनियम पारित किया गया था। इस अधिनियम द्वारा मजदूरों की माँगों की उपेक्षा की गई थी। इस कारण उनमें घोर असंतोष था। उन्हें संतुष्ट करने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने 1833 ई० में एक अन्य कारखाना अधिनियम पारित किया। इस अधिनियम की प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित थीं

  • 13 से 17 वर्ष के बच्चों से 10 घंटों से अधिक काम न लिया जाए।
  • 9 से 13 वर्ष के बच्चों से 9 घंटों से अधिक काम न लिया जाए।
  • 9 वर्ष से कम बच्चों को कारखानों में काम पर न लगाया जाए।
  • बच्चों को कम-से-कम 2 घंटे स्कूल भेजना अनिवार्य कर दिया गया।
  • कारखानों के निरीक्षण के लिए नियमित इंस्पेक्टर नियुक्त किए गए। उन्हें कारखाना मालिकों को नियमों की उल्लंघना करने पर दंड देने का अधिकार दिया गया।

4. खान अधिनियम 1842 ई० (Mines Act of 1842 CE):
उपरोक्त सभी कारखाना अधिनियम वस्त उद्योगों पर लागू होते थे। खानों में काम करने वालों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया था। वे बहुत भयाव स्थितियों में काम करते थे। लॉर्ड एशले (Lord Ashley) की प्रार्थना पर सरकार ने 1842 ई० में एक शाही कमीश का गठन किया। इस कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने 1842 ई० में खान अधिनियम पारित किया। इस अधिनियम की प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित थीं

  • इसने खानों में स्त्रियों के काम करने पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • इसने 10 वर्ष से कम बच्चों के खानों में काम करने की मनाही कर दी।
  • खानों का निरीक्षण करने के लिए नियमित इंस्पेक्टरों को नियुक्त किया गया।

इस अधिनियम का विशेष महत्त्व है। इसके अनुसार खानों में काम करने वालों की दशा में सुधार करने हेतु सरकार ने प्रथम प्रयास किया था।

5. कारखाना अधिनियम 1844 ई० (Factory Act of 1844 CE):
1844 ई० में ब्रिटेन की सरकार ने एक अन्य कारखाना अधिनियम पारित किया था। यह अधिनियम भी वस्त्र उद्योग से संबंधित था। इस अधिनियम की प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित थीं

  • 8 वर्ष से कम बच्चों को कारखानों में काम पर नहीं लगाया जा सकता।
  • 8 वर्ष से 13 वर्ष के बच्चों से एक दिन में 6.30 घंटों से अधिक काम नहीं लिया जा सकता।
  • स्त्रियों एवं युवकों से एक दिन में 12 घंटों से अधिक काम नहीं लिया जा सकता। इस समय के दौरान उन्हें भोजन के लिए 1.30 घंटे का अवकाश होगा।
  • ख़तरनाक मशीनों के चारों ओर जंगले (fence) लगाए जाएँ।
  • बच्चों को ख़तरनाक मशीनों की सफाई के काम पर न लगाया जाए।
  • कारखानों में काम करने वालों की आयु संबंधी जाँच की जाए।
  • कारखानों में होने वाली सभी दुर्घटनाओं की जाँच होनी चाहिए।

6. कारखाना अधिनियम 1847 ई० (Factory Act of 1847 CE):
इंग्लैंड में मजदूर काफी समय से 10 घंटे काम की माँग कर रहे थे। अंत में सरकार ने उनकी यह माँग स्वीकार कर ली। अत: 1847 ई० का कारखाना अधिनियम पारित किया गया। इसके अनुसार कारखानों में काम करने वाले पुरुषों एवं स्त्रियों के लिए 10 घंटे प्रतिदिन निश्चित कर दिए गए।

7. कारखाना अधिनियम 1867 ई० (Factory Act of 1867 CE):
1867 ई० में ब्रिटेन की सरकार ने एक अन्य कारखाना अधिनियम पारित किया। इसका विशेष महत्त्व इस बात में है कि इस अधिनियम को सभी प्रकार के कारखानों में लागू किया गया था। इसके अनुसार वस्त्र उद्योग में लागू सभी नियम अब अन्य उद्योगों पर भी लागू होते थे।

8. कारखाना अधिनियम 1878 ई० (Factory Act of 1878 CE):
1878 ई० के कारखाना अधिनियम की प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित थीं

  • 10 वर्ष से कम बच्चों को कारखानों में काम पर न लगाया जाए।
  • 10 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए शिक्षा अनिवार्य हो।
  • 10 से 14 वर्ष तक के बच्चों से 5 घंटे तक काम लिया जा सकता था।
  • स्त्रियों के लिए सप्ताह में काम करने के लिए 56 घंटे निश्चित कर दिए गए।

उपरोक्त अधिनियमों के द्वारा कारखानों में काम करने वाले मजदूरों की दशा सुधारने का सरकार द्वारा प्रयास किया गया। किंतु इन प्रयासों को कोई विशेष सफलता प्राप्त न हुई। इसके दो प्रमुख कारण थे। प्रथम, कारखानों में नियमों के प्रावधानों को लागू करवाने के लिए इंस्पेक्टरों को नियुक्त किया गया था। इन इंस्पेक्टरों के वेतन बहुत कम थे।

अत: वे कारखाना मालिकों से रिश्वत ले लेते थे एवं उनके विरुद्ध कोई रिपोर्ट नहीं देते थे। दूसरा, बच्चों के माता-पिता भी उनकी आयु के बारे में झूठ बोल कर उन्हें काम पर लगवा देते थे। ऐसा वे घर का खर्च चलाने में सहायता के लिए करते थे। प्रसिद्ध इतिहासकारों डब्ल्यू० के० फर्गुसन एवं जी० बरुन के शब्दों में, “ऐसे सुधार एक गहरी बुराई के लिए कमज़ोर उपाय थे।”

प्रश्न 9.
क्या इंग्लैंड में औद्योगिक क्राँति हुई थी? इस विषय पर बहस कीजिए।
उत्तर:
क्या 18वीं एवं 19वीं शताब्दी ब्रिटेन में हुई औद्योगिक क्राँति वास्तविक रूप में एक क्रांति थी। इस संबंध में इतिहासकारों के दो पक्ष हैं। प्रथम पक्ष वाले इसे क्राँति नहीं मानते हैं। दूसरे पक्ष वाले इसे निस्संदेह एक क्रांति मानते हैं।

1. प्रथम पक्ष (First View):
कुछ इतिहासकार ब्रिटेन में आई औद्योगिक क्राँति को एक क्रांति स्वीकार नहीं करते। उनका कथन है कि औद्योगीकरण की यह प्रक्रिया बहुत धीमी थी। अतः औद्योगिक क्रांति से संबंधित परिवर्तन अचानक नहीं हुए। इसलिए इसे क्रांति की संज्ञा देना उचित प्रतीत नहीं होता। प्रसिद्ध इतिहासकार सी० जे० एच० हेज़ का कथन है कि,

“यह (औद्योगिक विकास का क्रम) 15वीं शताब्दी में आरंभ हो गया था और यह अब भी जारी है जिसके विकास में पाँच शताब्दियों का समय लगा, उसे क्राँति नहीं कहा जा सकता।”19वीं शताब्दी शुरू होने के काफी समय बाद तक भी इंग्लैंड के एक बड़े भाग में उद्योगों की स्थापना नहीं हुई थी। वहाँ जो उद्योग स्थापित हुए थे, वे प्रमुखतः लंदन, मैनचेस्टर, बर्मिंघम एवं न्यूकासल आदि शहरों में थे। इस सीमित विकास के कारण इसे क्राँति कहना ठीक नहीं है।

1760 ई० के दशक से 1820 ई० के दशक तक इंग्लैंड के सूती कपड़ा उद्योग का विकास हुआ। यह एक ऐसे कच्चे माल अर्थात् कपास पर निर्भर करता था जो कि बाहर एवं विशेष तौर पर भारत से मंगवाया जाता था। जो माल वहाँ तैयार होता था उसकी खपत इंग्लैंड में कम एवं विदेशों में अधिक होती थी। इसके अतिरिक्त इंग्लैंड में 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक धातु से बनी मशीनें एवं भाप की शक्ति दुर्लभ रहीं। अत: इंग्लैंड में हुई औद्योगिक क्राँति को क्राँति नहीं कहा जा सकता।

क्राँति उसे कहा जाता है जो अचानक हो एवं जिसके समाज पर दूरगामी प्रभाव हों। उदाहरण के तौर पर 1776 ई० की अमरीकी क्रांति, 1789 ई० की फ्रांसीसी क्राँति, 1911 ई० की चीनी क्राँति एवं 1917 ई० की रूसी क्राँति ने बहुत कम समय में समाज में उल्लेखनीय परिवर्तन किए। दूसरी ओर औद्योगिक क्राँति ने समाज को परिवर्तित करने में काफी समय लिया। इसलिए इसे क्राँति नहीं कहा जा सकता।

2. दूसरा पक्ष (Second View) :
अनेक इतिहासकार औद्योगिक क्रांति को एक क्रांति मानते हैं। उनका कथन है कि इस क्राँति ने समाज को व्यापक रूप से प्रभावित किया। इंग्लैंड के प्रसिद्ध दार्शनिक एवं अर्थशास्त्री ऑरनॉल्ड टॉयनबी (Arnold Toynbee) ने ब्रिटेन में हुए औद्योगिक विकास के लिए अपनी पुस्तक लेक्चर्स ऑन दि इंडस्ट्रियल रिवोल्यूशन इन इंग्लैंड (Lectures on the Industrial Revolution in England) में जो 1884 ई० में प्रकाशित हुई प्रथम बार औद्योगिक परिवर्तनों के लिए क्राँति शब्द का प्रयोग किया। इसके पश्चात् इस शब्द का प्रचलन व्यापक हो गया।

इस पक्ष के इतिहासकारों का कहना है कि यद्यपि औद्योगिक परिवर्तन आने में काफी समय लग गया तथापि इन परिवर्तनों ने समाज को इतना प्रभावित किया कि इन्हें क्रांति कहना गलत न होगा। अपने पक्ष में तर्क देते हुए उनका कहना है कि

(1) उत्पादन के जो कार्य पहले हाथों से किए जाते थे वे अब मशीनों द्वारा किए जाने लगे।

(2) मशीनों को चलाने के लिए जल शक्ति की अपेक्षा भाप शक्ति का प्रयोग आरंभ हो गया।

(3) कृषि के लिए मशीनों का प्रयोग आरंभ हो गया। इस कारण कृषि के उत्पादन में काफी वृद्धि हुई।

(4) यातायात के साधनों में सुधार हुआ। पक्की सड़कों एवं नहरों का निर्माण हुआ। रेलों का प्रचलन बढ़ गया। इससे माल के आयात एवं निर्यात का कार्य सुगम एवं सस्ता हो गया। यात्रियों को भी एक स्थान से दूसरे स्थान में जाने की सुविधा हो गई।

(5) रोजगार की तलाश में बड़ी संख्या में लोग शहरों में आ गए।

(6) बढ़ते हुए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण अनेक नए शहर, बीमा एवं बैंकिंग सेवाएँ अस्तित्व में आई।

(7) उत्पादन में वृद्धि के कारण देश में खुशहाली आई।

(8) इसने लघु उद्योगों का अंत कर दिया एवं विशाल कारखानों की स्थापना की।

(9) इस कारण पूँजी के उपयोग में बहुत वृद्धि हुई।

(10) इसने कारखानों में काम करने वाले मजदूरों, स्त्रियों एवं बच्चों का जीवन दूभर बना दिया।

(11) इस कारण ब्रिटेन की जनसंख्या में तीव्रता से वृद्धि होने लगी।

(12) इसने विज्ञान एवं तकनीकी ज्ञान में नवीन खोजों को प्रोत्साहित किया।

(13) श्रमिक वर्ग ने ट्रेड यूनियन एवं राजनीतिक अधिकारों की माँग की। निस्संदेह औद्योगिक परिवर्तनों ने समाज पर इतने दूरगामी प्रभाव डाले कि इन्हें क्रांति कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है।

क्रम संख्या

क्रम संख्या वर्ष घटना
1. 1694 ई० बैंक ऑफ़ इंग्लैंड की स्थापना।
2. 1698 ई० थॉमस सेवरी द्वारा माइनर्स फ्रेंड का आविष्क़ार।
3. 1709 ई० अब्राहम डर्बी द्वारा लोहे के प्रगलन में कोक का सर्वप्रथम प्रयोग।
4. 1712 ई० थॉमस न्यूकॉमेन द्वारा भाप के इंजन का आविष्कार।
5. 1733 ई० जॉन के द्वारा फ़लाइंग शटल का आविष्कार।
6. 1755 ई० अब्राहम डर्बी द्वितीय द्वारा ढलवाँ लोहे से पिटवाँ लोहे का विकास।
7. 1759 ई० जेम्स ब्रिंडले द्वारा वर्सले नहर का निर्माण।
8. 1760-1820 ई० प्रथम औद्योगिक क्राँति।
9. 1761 ई० वर्सले नहर को खोला जाना।
10. 1764 ई० जेम्स हरग्रीज़ द्वारा स्पिनिंग जेनी का आविष्कार।
11. 1769 ई० रिचर्ड आर्कराइट द्वारा वॉटर फ्रेम का आविष्कार।
12. 1769 ई० जेम्स वॉट द्वारा भाप के इंजन का आविष्कार।
13. 1775 ई० मैथ्यू बॉल्टन द्वारा सोहो की बर्मिघम में स्थापना।
14. 1776 ई० जोन विल्किसन द्वारा अपनी धमन भट्ठी के लिए भाप इंजन का प्रयोग।
15. 1779 ई अब्राहम डर्बी तृतीय द्वारा कोलब्नुकडेल में सेवर्न नदी पर विश्व का प्रथम लोहे का पुल बनाना।
16. 1779 ई० सैम्यूअल क्राम्पटन द्वारा म्यूल का आविष्कार।
17. 1784 ई० हेनरी कोर्ट द्वारा आलोड़न भट्ठी का आविष्कार।
18. 1785 ई० एडमंड कार्टराइट द्वारा पॉवरलूम का आविष्कार।
19. 1793-1815 ई० इंग्लैंड का फ्रॉंस के साथ युद्ध।
20. 1799-1800 ई० ब्रिटेन द्वारा जुड़वाँ अधिनियम पारित करना।
21. 1795-1840 ई० इंग्लैंड में ब्रेड के लिए दंगे।
22. 1801 ई० रिचर्ड ट्रेविथिक द्वारा पफिंग डेविल न्ञामक रेल इंजन का निर्माण।
23. 1802 ई० प्रथम कारखाना अधिनियम।
24. 1814 ई० जॉर्ज स्टीफेनसन द्वारा ब्लचर नामक रेल इंजन का निर्माण।
25. 1815 ई० हैंफरी डेवी द्वारा सेफ़टी लैंप का आविष्कार।
26. 1815 ई० ब्रिटेन द्वारा अनाज कानून पारित करना।
27. 1819 ई० पीटरलू नरसंहार, कारखाना अधिनियम।
28. 1825 ई० सर्वप्रथम रेलवे का स्टॉकटन से डार्लिगटन तक आरंभ।
29. 1830 ई० लिवरपूल एवं मैनचेस्टर को रेल द्वारा जोड़ा गया।
30. 1833 ई० कारखाना अधिनियम।
31. 1839 ई० मैनचेस्टर में अनाज विरोधी लीग की स्थापना।
32. 1841 ई० ब्राडशाह द्वारा प्रथम रेलवे टाइम टेबल का प्रकाशन।
33. 1842 ई० प्रथम खान अधिनियम।
34. 1847 ई० 10 घंटा अधिनियम।
35. 1850 ई० के बाद द्वितीय औद्योगिक क्राँति।
36. 1856 ई० हेनरी बेस्सेमर द्वारा इस्पात की खोज।
37. 1884 ई० ऑरनॉल्ड टॉयनबी की पुस्तक लेकचर्स ऑन दि इंडस्ट्रियल रिवोल्यूशन इन इंग्लैंड का प्रकाशन।

संक्षिप्त उत्तरा वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
औद्योगिक क्राँति से आप क्या समझते हो? किन कारणों के चलते इंग्लैंड में सबसे पहले औद्योगिक क्रांति शुरू हुई ?
अथवा
इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के लिए कौन-से प्रमुख कारण उत्तरदायी थे?
उत्तर:
(1) अभिप्राय-औद्योगिक क्रांति से अभिप्राय उस क्राँति से है जो इंग्लैंड तथा अन्य यूरोपीय देशों में 18वीं एवं 19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्षेत्र में हुई। इस कारण वस्तुओं का उत्पादन अब बहुत तीव्रता से एवं बड़ी बड़ी मशीनों द्वारा कारखानों में किया जाने लगा।

(2) राजनीतिक स्थिरता एवं शांति-18वीं शताब्दी में इंग्लैंड में राजनीतिक स्थिरता एवं शांति थी। इससे इंग्लैंड में उद्योगों की स्थापना के लिए अनुकूल वातावरण तैयार हुआ। इंग्लैंड के शासक जॉर्ज तृतीय ने अपने शासनकाल (1760 ई०-1820 ई०) के दौरान इंग्लैंड को एक औद्योगिक देश बनाने के अथक प्रयास किए। उसके ये प्रयास काफी सीमा तक सफल सिद्ध हुए।

(3) शक्तिशाली नौसेना-उस समय इंग्लैंड के पास अन्य यूरोपीय देशों के मुकाबले सबसे अधिक शक्तिशाली नौसेना थी। इसलिए उसे ‘समुद्रों की रानी’ कहा जाता था। इस नौसेना के कारण वह एक ओर अपनी विदेशी आक्रमणों से सुरक्षा कर सका वहीं दूसरी ओर वह सुगमता से अपने निर्मित माल का विदेशों को निर्यात कर सका। इससे औद्योगिकीकरण को एक नया प्रोत्साहन मिला।

(4) इंग्लैंड के उपनिवेश-इंग्लैंड विश्व की सबसे बड़ी साम्राज्यवादी शक्ति था। अत: उसके यूरोप, एशिया एवं अफ्रीका में अनेक उपनिवेश थे। इन उपनिवेशों से उसे इंग्लैंड के उद्योगों के लिए आवश्यक कच्चा माल सस्ती दरों पर सुगमता से प्राप्त हो जाता था। दूसरी ओर इंग्लैंड के उद्योगों द्वारा निर्मित माल को यहाँ ऊँची दरों पर बलपूर्वक बेचा जाता था। इस कारण इंग्लैंड के उद्योगों ने अभूतपूर्व उन्नति की।

(5) पूँजी-किसी भी देश में उद्योगों के विकास में पूँजी की प्रमुख भूमिका होती है। उस समय इंग्लैंड में पूँजी की कोई कमी नहीं थी। इसके तीन कारण थे। प्रथम, उस समय इंग्लैंड की कृषि ने उल्लेखनीय विकास किया था। दूसरा, इंग्लैंड का विश्व व्यापार पर प्रभुत्व स्थापित था। तीसरा, ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत से व्यापक पैमाने पर धन का दोहन किया। अतः पूँजी की प्रचुरता ने इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति लाने में उल्लेखनीय योगदान दिया।

प्रश्न 2.
बताइए कि ब्रिटेन के औद्योगीकरण के स्वरूप पर कच्चे माल की आपूर्ति का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
औद्योगीकरण के कारण ब्रिटेन में बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना हुई। इन उद्योगों को चलाने हेतु कच्चे माल की अत्यधिक मात्रा में आवश्यकता थी। यह कच्चा माल बाहरी लोगों से मंगवाने की आवश्यकता पड़ी। क्योंकि हर प्रकार का कच्चा माल देश के अंदर मिलना संभव न था। इसलिए ब्रिटेन ने उन देशों के साथ मेल-जोल बढ़ाना शुरू कर दिया था, जहाँ से उन्हें कच्चा माल अधिक मात्रा में मिल सकता था।

अधिक लाभ कमाने के लिए वे इन देशों से कच्चा माल काफी सस्ते मूल्य पर खरीदते थे। शुरू-शुरू में ब्रिटेन के लोग व्यापारियों के रूप में एशिया तथा अफ्रीका के अनेक भागों में गए, परंतु बाद में उनकी कमज़ोर राजनीतिक स्थिति और पिछड़ेपन का लाभ उठाकर उन देशों पर अपना अधिकार कर लिया।

प्रश्न 3.
इस अवधि में किए गए आविष्कारों की दिलचस्प विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:

  • अब्राहम डर्बी द्वारा कोक का प्रयोग बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ। इससे लोहे के उत्पादन में वृद्धि हुई एवं उसकी गुणवत्ता बढ़ गई।
  • हैंफरी डेवी के सेफ़टी लैंप के कारण खानों में काम करने वाले मजदूरों का जीवन सुरक्षित हो गया।
  • जॉन के द्वारा किए गए फ़लाइंग शटल के आविष्कार के कारण बहुत कम समय में अधिक चौड़ा कपड़ा तैयार करना संभव हुआ।
  • जेम्स हरग्रीब्ज के स्पिनिंग जैनी के आविष्कार के कारण एक साथ आठ से दस धागे कातना संभव हुआ।
  • जेम्स वॉट का भाप इंजन कोयला एवं अन्य उद्योगों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ।

प्रश्न 4.
इंग्लैंड में नहरों के निर्माण में ड्यूक ऑफ़ ब्रिजवाट्र एवं जेम्स ब्रिडले ने क्या योगदान दिया ?
उत्तर:
इंग्लैंड में नहरों के निर्माण में ड्यूक ऑफ़ ब्रिजवाट एवं जेम्स ब्रिडले ने प्रशंसनीय भूमिका निभाई। ड्यूक ऑफ़ ब्रिजवाट्र की वसले में अनेक कोयला खानें थीं। वह यहाँ से अपने कोयले को निकट स्थित मैनचेस्टर में स्थापित उद्योगों तक कम खर्च में पहुँचाना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने 1758 ई० में जेम्स ब्रिडले जो कि एक प्रसिद्ध इंजीनियर था के साथ परामर्श किया।

जेम्स ब्रिडले ने उसे वर्सले से मैनचेस्टर तक एक नहर का निर्माण करने का परामर्श दिया। ब्रिजवाट ने इस परामर्श को स्वीकार किया तथा इस कार्य के लिए आवश्यक पूँजी जेम्स ब्रिडले को उपलब्ध करवायी। जेम्स ब्रिडले ने 1759 ई० में वर्सले कैनाल का निर्माण कार्य आरंभ किया।

इस नहर द्वारा वर्सले को मैनचेस्टर के साथ जोड़ा गया। यह नहर 10 मील लंबी थी। 1761 ई० में इस नहर का निर्माण कार्य पूरा हुआ तथा इसे यातायात के लिए खोला गया। यह इंग्लैंड की प्रथम नहर थी। निस्संदेह यह जेम्स बिंडले की एक महान् सफलता थी। इस नहर के कारण कोयले की कीमतें आधी हो गईं।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति

प्रश्न 5.
जॉर्ज स्टीफेनसन कौन था ? रेलवे के विकास में उसने क्या योगदान दिया ?
उत्तर:
जॉर्ज स्टीफेनसन इंग्लैंड का एक महान इंजीनियर था। रेलों के विकास में उसके उल्लेखनीय योगदा को देखते हए उसे ‘रेलों का पितामा’ कहा जाता है। उसने 1814 ई० में भाप से चलने वाला ब्लचर नामक इंजन तैयार किया। इसे केवल कोयला ढोने के लिए तैयार किया गया था। यह इंजन 30 टन भार का कोयला 4 मील प्रति घंटा की रफ्तार से एक पहाड़ी पर ले जा सकता था।

यात्रियों के लिए सर्वप्रथम रेल 1825 ई० में स्टॉकटन एवं डार्लिंगटन शहरों के मध्य चलाई गई। इसके इंजन को रॉकेट का नाम दिया गया। यह भाप से चलता था। यात्रियों के लिए इसमें 30 डिब्बे लगाए गए थे। इस इंजन को जॉर्ज स्टीफेनसन ने स्वयं प्रथम 9 मील तक चलाया था। इस यात्रा को तय करने में उसे 2 घंटे लगे थे। बाद में इस इंजन को 15 मील प्रति घंटा की रफ्तार से चलाया गया। निस्संदेह यह एक महान् घटना थी।

प्रश्न 6.
नहर और रेलवे परिवहन के सापेक्षिक लाभ क्या-क्या हैं ?
उत्तर:
नहर और रेलवे परिवहन के सापेक्षिक लाभ निम्नलिखित हैं

  • नहरों के कारण उद्योगों को बहुत लाभ पहुंचा। इसका कारण यह था कि माल की आवाजाई पर ख़र्च बहुत कम हो गया।
  • नहरों के निर्माण के कारण कृषि को बहुत प्रोत्साहन मिला। नहरों द्वारा सिंचाई के कारण फ़सलों के उत्पादन में बहुत वृद्धि हुई।
  • इससे नहरों एवं नावों के निर्माण में लगे लोगों को बहुत लाभ पहुंचा।
  • रेलों के कारण लोगों को कम ख़र्च एवं कम समय में सफर करना सुगम हो गया।
  • रेलों के कारण औद्योगिक क्राँति को एक नया बल मिला।

प्रश्न 7.
औद्योगिक क्रांति के सामाजिक प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
(1) औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप ब्रिटेन की जनसंख्या में असाधारण वृद्धि हुई। यह 1871 ई० में 2.5 करोड़ थी जो 1901 ई० में बढ़ कर 4 करोड़ हो गई। इसका कारण यह था कि अनेक वैज्ञानिक खोजों के कारण मृत्यु दर में काफी कमी आ गई थी।

(2) औद्योगिक क्रांति के कारण पारिवारिक जीवन छिन्न-भिन्न हो गया। लोगों को रोजगार की तलाश में गाँवों को छोड़ कर शहरों में आना पड़ा। यहाँ परिवार के जिस सदस्य को जिस कारखाने में नौकरी मिलती वहीं काम करने लगता। इससे परिवार का विभिन्न सदस्यों पर नियंत्रण समाप्त हो गया। इससे समाज में अनेक कुरीतियों एवं अपराधों को प्रोत्साहन मिला।

(3) औद्योगिक क्रांति के कारण लंकाशायर, मैनचेस्टर, बर्मिंघम, लिवरपूल एवं लीड्स आदि शहर अस्तित्व में आए। शहरों में जनसंख्या में तीव्रता से बढ़ौतरी से सफ़ाई, स्वच्छ पेय-जल, यातायात एवं शिक्षा आदि की विभिन्न समस्याएँ उत्पन्न हुईं। कारखानों के आस-पास मज़दूरों के बस जाने से वहाँ गंदी बस्तियों की स्थापना हुई।

(4) उद्योगों में छोटे-छोटे बच्चे एवं स्त्रियाँ भी काम करती थीं। उनसे भी बहुत भयावह परिस्थितियों में काम कराया जाता था। वास्तव में उनका जीवन जानवरों से भी बदतर था।

प्रश्न 8.
औद्योगिक क्रांति के प्रमुख आर्थिक प्रभाव लिखें।
उत्तर:
(1) औद्योगिक क्राँति के कारण बड़ी मात्रा में वस्तुओं का उत्पादन मशीनों द्वारा किया जाने लगा। अतः लोगों को उत्तम वस्तुएँ सस्ते मूल्य पर उपलब्ध होने लगीं। इससे लोगों के जीवन स्तर में पहले की अपेक्षा काफी सुधार हुआ।

(2) औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप लघु उद्योगों का अंत हो गया।

(3) औद्योगिक क्रांति ने कृषि क्राँति को प्रोत्साहन दिया। अतः फ़सलों के उत्पादन में बहुत वृद्धि हो गई।

(4) उत्पादन में वृद्धि के कारण घरेलू एवं विदेशी व्यापार को एक नई दिशा मिली। इससे लोग बहुत समृद्धशाली हुए।

(5) औद्योगिक क्रांति के कारण यातायात के साधनों में अद्वितीय विकास हुआ। संपूर्ण ब्रिटेन में सड़कों, पुलों, नहरों एवं रेलों का निर्माण किया गया। इससे जहाँ लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की सुगमता हो गई वहीं पर यह पहले की अपेक्षा काफी सस्ता हो गया। इससे माल की आवाजाही भी सुविधाजनक हो गयी।

(6) औद्योगिक क्रांति के कारण ब्रिटेन को अपने कारखानों के लिए कच्चे माल की तथा तैयार माल को बेचने के लिए मंडियों की आवश्यकता हुई। अतः ब्रिटेन ने साम्राज्यवादी नीति को अपनाया।

प्रश्न 9.
औद्योगिक क्रांति के इंग्लैंड के श्रमिकों पर कैसा प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
औद्योगिक क्राँति से मजदूर वर्ग सबसे अधिक प्रभावित हुआ। मजदूरों को प्रतिदिन काफी लंबे समय तक काम करने के लिए बाध्य किया जाता था। उन्हें कोई अवकाश नहीं दिया जाता था। काम के दौरान यदि कोई मजदूर सुस्त हो जाता अथवा नींद आ जाती तो उसे निर्दयता से पीटा जाता था। मालिक जब चाहता वह किसी भी मज़दूर को नौकरी से निकाल सकता था।

अत: मज़दूर के सामने अपने मालिक की शर्तों का पालन करने के अलावा कोई अन्य रास्ता न था। बीमार होने पर अथवा किसी अन्य कारण से काम पर न आने के कारण उस पर भारी जुर्माना लगाया जाता था। मज़दरों को अत्यंत भयावह स्थिति में काम करना पड़ता था। इस कारण वे भयानक बीमारियों के शिकार हो जाते थे।

यदि काम करते समय उसके साथ कोई दुर्घटना हो जाती तो कारखाना मालिक उसे किसी प्रकार का कोई मुआवज़ा नहीं देता था। संक्षेप में औद्योगिक क्रांति के कारण मजदूर वर्ग की स्थिति नरक समान हो गयी थी।

प्रश्न 10.
इंग्लैंड 1793 से 1815 ई० तक कई युद्धों में लिप्त रहा। इससे इंग्लैंड के उद्योगों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
इंग्लैंड 1793 ई० से लेकर 1815 ई० तक कई युद्धों में लिप्त रहा। इसका इंग्लैंड के उद्योगों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा। इस कारण इंग्लैंड एवं यूरोप के मध्य चलने वाला व्यापार छिन्न-भिन्न हो गया। अत: अनेक उद्योगों को बाध्य होकर बंद करना पड़ा। इससे बेरोज़गारी में बढ़ौतरी हुई। खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान छूने लगीं। परिणामस्वरूप ग़रीबों एवं मजदूरों के लिए जीवन दूभर हो गया। स्त्रियों एवं बच्चों की दशा पहले की अपेक्षा अधिक शोचनीय हो गई।

प्रश्न 11.
जुड़वाँ अधिनियम क्या थे ?
उत्तर:
ब्रिटेन की सरकार ने 1799 ई० एवं 1800 ई० में दो नियम पारित किए। इन्हें जुड़वाँ अधिनियम कहा जाता है। इन अधिनियमों के अधीन ट्रेड यूनियनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। अब मज़दूर अपनी मज़दूरी बढ़ाने के लिए अथवा काम के घंटों को कम करने के लिए एक-दूसरे को सहयोग नहीं कर सकते थे। वे भाषण या लेखन द्वारा सम्राट.

संविधान अथवा सरकार के विरुद्ध नफ़रत नहीं फैला सकते थे अथवा लोगों को उकसा नहीं सकते थे। 50 से अधिक लोगों की अनाधिकत सार्वजनिक बैठकों पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। इन नियमों का उल्लंघन करने वालों को दंड देने की व्यवस्था की गई। 1824 ई० में सरकार ने जुड़वाँ अधिनियम को रद्द कर दिया। अब मज़दूरों को ब्रिटेन में ट्रेड यूनियन बनाने का अधिकार प्राप्त हो गया।

प्रश्न 12.
लुडिज्म आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
लुडिज्म आंदोलन इंग्लैंड में 1811 ई० से 1817 ई० के मध्य चला। इस आंदोलन को इंग्लैंड के कपड़ा मजदूरों द्वारा चलाया गया था। इस आंदोलन का नेतृत्व जनरल नेड लुड ने किया। इस आंदोलन की अनेक माँगें थीं-

  • मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी दी जाए।
  • स्त्रियों एवं बच्चों के काम करने के समय को कम किया जाए एवं उन्हें ख़तरनाक मशीनों पर न लगाया जाए।
  • मजदूरों को ट्रेड यूनियन बनाने का अधिकार हो।

सरकार के विरुद्ध अपना विरोध प्रकट करने के उद्देश्य से उन्होंने वस्त्र मशीनों को नष्ट किया। वे इन मशीनों को उनके सभी कष्टों के लिए उत्तरदायी मानते थे। लुडिवादी अपने चेहरे को ढक कर रखते थे तथा वे अपनी कार्यवाही प्रायः रात के समय करते थे। उन्हें साधारण लोगों का काफी समर्थन प्राप्त था। इस आंदोलन का आरंभ 1811 ई० में नोटिंघम से हुआ था।

इसके पश्चात् यह ब्रिटेन के अनेक अन्य प्रसिद्ध शहरों में फैल गया। आंदोलनकारियों ने अनेक सूती एवं ऊनी वस्त्र की मिलों पर आक्रमण कर उन्हें नष्ट कर दिया। सरकार ने दमन की नीति अपनाते हुए इस आंदोलन को कुचल दिया।

प्रश्न 13.
पीटरलू नरसंहार पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप मज़दूरों का जीवन नरक समान हो गया था। 16 से 18 घंटे प्रतिदिन जी तोड़ मेहनत करने के बावजूद उन्हें दो वक्त भर पेट खाना नसीब नहीं होता था। वे गंदी बस्तियों में निवास करते थे। वे अर्द्धनग्न घूमते रहते थे। उन्हें वोट के अधिकार से वंचित रखा गया था। 16 अगस्त, 1819 ई० को 80,000 लोग मैनचेस्टर के सेंट पीटर्स के मैदान में शांतिपूर्वक एकत्र हुए। उनका उद्देश्य अनाज कानूनों के विरुद्ध अपना विरोध जारी करना था तथा वोट के अधिकार, ट्रेड युनियन बनाने के अधिकार, सार्वजनिक सभाएँ करने तथा प्रेस की स्वतंत्रता के अधिकार की माँग करना था।

इस आंदोलन के प्रसिद्ध नेता रिचर्ड कारलाइल, जॉन कार्टराइट तथा हेनरी हंट थे। सरकार इस शांतिमय जनसभा को भी सहन करने को तैयार नहीं थी। अत: सरकार ने वहाँ घुड़सवार सेना भेज दी। इस सेना ने वहाँ लोगों को तितर-बितर करने के उद्देश्य से गोलियाँ चला दी। इस नरसंहार को पीटरलू के नाम से जाना जाता है। इसमें 11 लोगों की मृत्यु हुई एवं 400 से अधिक घायल हुए। इस नरसंहार के कारण संपूर्ण ब्रिटेन में रोष की लहर फैल गई।

अति संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.

औद्योगिक क्राँति से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
औद्योगिक क्रांति से अभिप्राय उस क्राँति से है जो इंग्लैंड तथा अन्य यूरोपीय देशों में 18वीं एवं 19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्षेत्र में हुई। अतः वस्तुओं का उत्पादन अब घरों की अपेक्षा विशाल कारखानों में मशीनों द्वारा किया जाने लगा।

प्रश्न 2.
ऑरनॉल्ड टॉयनबी कौन था ? उसने किस प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की ? इसका प्रकाशन कब हुआ ?
उत्तर:

  • ऑरनॉल्ड टॉयनबी ब्रिटेन का प्रसिद्ध दार्शनिक एवं अर्थशास्त्री था।
  • उसने लेक्चर्स ऑन दि इंडस्ट्रियल रिवोल्यूशन इन इंग्लैंड की रचना की।
  • इसका प्रकाशन 1884 ई० में हुआ था।

प्रश्न 3.
सर्वप्रथम किस देश में औद्योगिक क्रांति आई तथा कब ?
उत्तर:

  • सर्वप्रथम औद्योगिक क्राँति ब्रिटेन में आई।
  • यह क्राँति 1760 ई० से 1820 ई० के मध्य आई।

प्रश्न 4.
ब्रिटेन में सर्वप्रथम औद्योगिक क्रांति क्यों आई ? कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • ब्रिटेन के विश्व में स्थापित अनेक उपनिवेश।
  • ब्रिटेन के लोगों के पास पर्याप्त पूँजी का उपलब्ध होना।

प्रश्न 5.
बैंक ऑफ़ इंग्लैंड की स्थापना कब हुई थी ? 1820 ई० तक वहाँ कितने प्रांतीय बैंकों की स्थापना हो चुकी थी ?
उत्तर:

  • बैंक ऑफ़ इंग्लैंड की स्थापना 1694 ई० में हुई थी।
  • 1820 ई० तक इंग्लैंड में 600 प्राँतीय बैंकों की स्थापना हो चुकी थी।

प्रश्न 6.
किन्हीं चार खनिज पदार्थों के नाम बताएँ जिन्होंने इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति में प्रमुख भूमिका निभाई ?
उत्तर:
इंग्लैंड की औद्योगिक क्राँति में कोयला, लोहा, सीसा एवं ताँबा ने प्रमुख भूमिका निभाई।

प्रश्न 7.
18वीं शताब्दी में इंग्लैंड के किन चार प्रसिद्ध उद्योगों ने औद्योगिक क्रांति लाने में प्रशंसनीय योगदान दिया ?
उत्तर:
18वीं शताब्दी में इंग्लैंड के कोयला और लोहा उद्योग, सूती वस्त्र उद्योग, भाप की शक्ति एवं रेलों के उद्योग ने प्रशंसनीय भूमिका निभाई।

प्रश्न 8.
किस खनिज को ‘काला सोना’ एवं ‘उद्योगों की जननी’ के नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
कोयले को काला सोना एवं उद्योगों की जननी के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 9.
लोहा प्रगलन के लिए काठ कोयले के प्रयोग की कोई दो समस्याएँ लिखें।
उत्तर:

  • काठ कोयला लंबी दूरी तक ले जाते समय टूट जाता था।
  • कोयले की अशुद्धता के कारण घटिया किस्म के लोहे का उत्पादन होता था।

प्रश्न 10.
लोहा प्रगलन में कोक का प्रयोग किस प्रकार लाभकारी सिद्ध हुआ ?
उत्तर:

  • कोक में उच्च तापमान उत्पन्न करने की शक्ति थी।
  • यह काठ कोयले से बहुत सस्ता पड़ता था।
  • इसका प्रयोग बड़ी धमन भट्ठियों में किया जाना संभव हुआ।

प्रश्न 11.
जोन विल्किनसन ने लोहे का प्रयोग किन वस्तुओं के निर्माण के लिए किया ?
उत्तर:

  • उसने लोहे की कुर्सियाँ बनाईं।
  • उसने शराब की भट्ठियों के लिए टंकियाँ बनाईं।
  • उसने विभिन्न आकारों की लोहे की पाइपें बनाईं।

प्रश्न 12.
सेफ़टी लैंप का आविष्कार किसने तथा कब किया था ?
उत्तर:
सेफ़टी लैंप का आविष्कार हैंफरी डेवी ने 1815 ई० में किया था।

प्रश्न 13.
फ़लाइंग शटल का आविष्कार किसने तथा कब किया ?
उत्तर:
फ़लाइंग शटल का आविष्कार जॉन के ने 1733 ई० में किया।

प्रश्न 14.
स्पिनिंग जेनी का आविष्कार किसने तथा कब किया था ?
उत्तर:
स्पिनिंग जेनी का आविष्कार जेम्स हरग्रीव्ज़ ने 1764 ई० में किया था।

प्रश्न 15.
वॉटर फ्रेम का आविष्कार किसने तथा कब किया था ? इसका क्या लाभ हुआ ?
उत्तर:

  • वॉटर फ्रेम का आविष्कार रिचर्ड आर्कराइट ने 1769 ई० में किया था।
  • इससे धागे की कताई एवं बुनाई बहुत तेजी से की जाने लगी।

प्रश्न 16.
सैम्यअल काम्पटन किस आविष्कार के लिए प्रसिद्ध थे ? इसका क्या लाभ हआ ?
उत्तर:

  • सैम्यूअल क्राम्पटन म्यूल आविष्कार के लिए प्रसिद्ध थे।
  • इससे कता हुआ धागा बहुत मज़बूत और बढ़िया होता था।

प्रश्न 17.
पॉवरलूम का आविष्कार किसने तथा कब किया था ?
उत्तर:
पॉवरलूम का आविष्कार एडमंड कार्टराइट ने 1785 ई० में किया था।

प्रश्न 18.
किन्हीं दो आविष्कारों के नाम बताएँ जिन्होंने वस्त्र उद्योग में क्रांति ला दी। इनके आविष्कारकों के नाम भी बताएँ।
उत्तर:

  • जॉन के की फ़लाइंग शटल।
  • जेम्स हरग्रीब्ज की स्पिनिंग जेनी।

प्रश्न 19.
भाप की शक्ति के कोई दो लाभ बताएँ।
उत्तर:

  • इससे अनेक प्रकार की मशीनों को चलाया जा सकता था।
  • इस पर खर्चा भी कम आता था।

प्रश्न 20.
अश्व शक्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
अश्व शक्ति माप की इकाई थी। यह एक घोड़े की एक मिनट में एक फुट तक 33,000 पौंड वज़न उठाने की क्षमता के समकक्ष थी। इसका आविष्कार जेम्स वॉट ने किया था।

प्रश्न 21.
माइनर्स फ्रेंड का आविष्कार किसने तथा कब किया ? इसका क्या उपयोग था ?
उत्तर:

  • माइनर्स फ्रेंड का आविष्कार थॉमस सेवरी ने 1698 ई० में किया।
  • इसका प्रयोग खानों से पानी बाहर निकालने के लिए किया जाता था।

प्रश्न 22.
माइनर्स फ्रेंड क्यों असफल रहा ? कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • यह छिछली गहराइयों में बहुत धीरे-धीरे काम करता था।
  • दबाव के अधिक हो जाने के कारण उसका बॉयलर फट जाता था।

प्रश्न 23.
थॉमस न्यूकॉमेन के भाप के इंजन के कोई दो दोष लिखें।
उत्तर:

  • यह बहुत भारी था।
  • इसमें काफी मात्रा में ईंधन नष्ट होता था।

प्रश्न 24.
जेम्स वॉट ने भाप के इंजन का आविष्कार कब किया ? इसका कोई एक लाभ (utility) बताएँ।
उत्तर:

  • जेम्स वॉट ने भाप के इंजन का आविष्कार 1769 ई० में किया।
  • यह बहुत व्यावहारिक एवं कम खर्चीला था।

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प्रश्न 25.
18वीं शताब्दी में इंग्लैंड में नहरें किस उद्देश्य के साथ बनायी गई थीं ?
उत्तर:
18वीं शताब्दी में इंग्लैंड में नहरें कोयले को शहरों में स्थित उद्योगों तक पहुँचाने के लिए बनाई गई थीं। इसका कारण यह था कि इसमें सड़क मार्ग की अपेक्षा कम समय लगता था एवं खर्चा भी कम आता था।

प्रश्न 26.
वर्सले कैनाल का निर्माण किसने तथा कब किया था ? इसका उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:

  • वर्सले कैनाल का निर्माण जेम्स ब्रिडले ने 1759 ई० में किया था।
  • इसका उद्देश्य वर्सले से मैनचेस्टर तक कम खर्चे पर कोयले को पहुँचाना था।

प्रश्न 27.
वर्सले कैनाल को कब खोला गया था ? इसका क्या महत्त्व था ?
उत्तर:

  • वर्सले कैनाल को 1761 ई० में खोला गया था।
  • इस कारण इंग्लैंड में कोयले की कीमतें आधी हो गईं।

प्रश्न 28.
इंग्लैंड में नहरों के कोई दो लाभ लिखें।
उत्तर:

  • नहरों के निर्माण से अनेक नए शहर अस्तित्व में आए।
  • नहरों का निर्माण जिन क्षेत्रों में हुआ वहाँ भूमि के मूल्य बहुत बढ़ गए।

प्रश्न 29.
जॉर्ज स्टीफेनसन ने 1814 ई० में किस रेल इंजन का निर्माण किया ? इसकी रफ्तार कितनी थी ?
उत्तर:

  • जॉर्ज स्टीफेनसन ने 1814 ई० में ब्लचर नामक रेल इंजन का निर्माण किया था।
  • इसकी रफ्तार 4 मील प्रति घंटा थी।

प्रश्न 30.
इंग्लैंड में सर्वप्रथम रेलगाडी कब तथा किन दो शहरों के मध्य चलाई गई थी ?
उत्तर:
इंग्लैंड में सर्वप्रथम रेलगाड़ी 1825 ई० में स्टॉकटन एवं डार्लिंगटन शहरों के मध्य चलाई गई थी।

प्रश्न 31.
ब्रिटेन में रेलों के विकास के कोई दो प्रभाव लिखें।
उत्तर:

  • इससे माल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना सुगम हो गया।
  • लोगों के लिए सफर करना अब आसान एवं कम खर्चीला हो गया।

प्रश्न 32.
नहर और रेलवे के परिवहन के साधन के रूप में क्या-क्या लाभ हैं ?
उत्तर:

  • इससे शहरीकरण की प्रक्रिया तीव्र हुई।
  • इससे माल को एक स्थान से दसरे स्थान पर ले जाना कम खर्चीला हो गया।
  • इससे लोगों के लिए सफर करना सुगम हो गया।

प्रश्न 33.
औद्योगिक क्रांति के कोई दो प्रभाव लिखें।
उत्तर:

  • इस कारण ब्रिटेन की जनसंख्या में तीव्रता से वृद्धि हुई।
  • अब बड़ी मात्रा में वस्तुओं का उत्पादन मशीनों द्वारा किया जाने लगा।

प्रश्न 34.
औद्योगिक क्रांति के कोई दो सामाजिक प्रभाव लिखें।
उत्तर:

  • औद्योगिक क्रांति के कारण शहरी जनसंख्या में तीव्रता से वृद्धि हुई।
  • इस क्राँति के परिणामस्वरूप ब्रिटेन का समाज दो वर्गों पूँजीपतियों एवं मजदूरों में बँट गया।

प्रश्न 35.
औद्योगिक क्रांति के कोई दो आर्थिक प्रभाव बताएँ।
उत्तर:

  • औद्योगिक क्राँति ने कृषि क्राँति को प्रोत्साहित किया।
  • इससे ब्रिटेन के घरेलू एवं विदेशी व्यापार को प्रोत्साहन मिला।

प्रश्न 36.
औद्योगिक क्रांति के कोई दो राजनीतिक प्रभाव लिखें।
उत्तर:

  • औद्योगिक क्राँति के कारण ब्रिटेन फ्राँस एवं नेपोलियन के साथ युद्धों का डट कर सामना कर सका।
  • मज़दूरों ने श्रमिक संघों के निर्माण के लिए एक लंबा संघर्ष चलाया।

प्रश्न 37.
कारखाना पद्धति से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
कारखाना पद्धति से अभिप्राय उस पद्धति से है जिसके अंतर्गत उत्पादन घरों की अपेक्षा कारखानों में होने लगा। इनमें हाथों की अपेक्षा मशीनों द्वारा उत्पादन किया जाता था।

प्रश्न 38.
ब्रिटेन के कारखानों में प्रायः स्त्रियों एवं बच्चों को काम पर क्यों लगाया जाता था ? कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • स्त्रियों एवं बच्चों को पुरुषों की अपेक्षा कम मजदूरी देनी पड़ती थी।
  • वे काम की घटिया परिस्थितियाँ होने के बावजूद कम आंदोलित होते थे।

प्रश्न 39.
कारखानों में काम करने वाले मजदूरों की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर:

  • उन्हें कठोर अनुशासन में बहुत भयावह परिस्थितियों में काम करना पड़ता था।
  • उनका वेतन इतना कम था कि उन्हें दो वक्त भर पेट खाना नसीब नहीं होता था।

प्रश्न 40.
ब्रिटेन में विरोध आंदोलन आरंभ होने के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • कारखानों में काम करने की कठोर परिस्थितियाँ।
  • श्रमजीवी लोगों को मताधिकार प्राप्त न होना।

प्रश्न 41.
इंग्लैंड का फ्राँस के साथ युद्ध कब से कब तक चला ? इस युद्ध का कोई एक प्रभाव लिखें।
उत्तर:

  • इंग्लैंड का फ्रांस के साथ युद्ध 1793 ई० से 1815 ई० तक चला।
  • इस कारण इंग्लैंड एवं यूरोप के मध्य चलने वाला व्यापार छिन्न-भिन्न हो गया।

प्रश्न 42.
ब्रिटेन 1793 ई० से 1815 ई० तक कई युद्धों में लिप्त रहा। इसका ब्रिटेन के उद्योगों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:

  • अनेक उद्योगों को बंद करना पड़ा।
  • बेरोज़गारी में वृद्धि हुई।
  • खाद्य पदार्थों की कीमतें बहुत बढ़ गईं।

प्रश्न 43.
ब्रिटेन की सरकार द्वारा जुड़वाँ अधिनियम कब पारित किए गए ? इनका उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:

  • ब्रिटेन की सरकार द्वारा जुड़वाँ अधिनियम 1799-1800 ई० में पारित किए गए।
  • इनका उद्देश्य श्रमिक संघों पर प्रतिबंध लगाना था।

प्रश्न 44.
ब्रिटेन में अनाज कानून कब पारित किए गए ? इनका उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:

  • ब्रिटेन में अनाज कानून 1815 ई० में पारित किए गए।
  • इनका उद्देश्य जब तक ब्रिटेन में अनाज की कीमत में एक स्वीकृत स्तर तक वृद्धि न हो जाए तब तक विदेश से अनाज के आयात पर प्रतिबंध लगाया जाए।

प्रश्न 45.
अनाज विरोधी कानून लीग की स्थापना कब और कहाँ की गई ? इसके दो महत्त्वपूर्ण सदस्यों के नाम लिखें।
उत्तर:

  • अनाज विरोधी कानून लीग की स्थापना 1839 ई० में मैनचेस्टर में की गई।
  • इसके दो महत्त्वपूर्ण सदस्यों के नाम रिचर्ड काब्डन एवं जॉन ब्राइट थे।

प्रश्न 46.
ब्रिटेन में ब्रेड के लिए दंगे क्यों हुए. ? ये कब से लेकर कब तक चले ?
उत्तर:

  • ब्रिटेन में ब्रेड के लिए दंगे इसलिए हुए क्योंकि उनके मूल्यों में बहुत वृद्धि हो गई थी।
  • ऐसे दंगे 1795 ई० से लेकर 1840 ई० तक चले।

प्रश्न 47.
बाड़ा पद्धति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
बाड़ा पद्धति से अभिप्राय शक्तिशाली ज़मींदारों द्वारा छोटे-छोटे खेतों को अपने बड़े फार्मों में सम्मिलित करना था। ब्रिटेन में ऐसा 1770 ई० के दशक में किया गया।

प्रश्न 48.
ब्रिटेन में लुडिज्म आंदोलन कब चला ? इस आंदोलन का प्रसिद्ध नेता कौन था ?
उत्तर:

  • ब्रिटेन में लुडिज्म आंदोलन 1811 ई० से 1817 ई० तक चला।
  • इस आंदोलन का प्रसिद्ध नेता जनरल नेड लुड था।

प्रश्न 49.
लुडिज्म आंदोलन की कोई दो माँगें लिखें।
उत्तर:

  • मज़दूरों को न्यूनतम मजदूरी दी जाए।
  • मजदूरों को श्रमिक संघ बनाने की अनुमति दी जाए।

प्रश्न 50.
लडिज्म आंदोलन क्या था ?
उत्तर:
नोट-इस प्रश्न के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं0 48 तथा 49 का उत्तर देंखे।

प्रश्न 51.
पीटरलू नरसंहार कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर:
पीटरलू नरसंहार 1819 ई० में मैनचेस्टर में हुआ।

प्रश्न 52.
ब्रिटेन में प्रथम कारखाना अधिनियम कब पारित किया गया था ? इसकी कोई एक धारा लिखें।
उत्तर:

  • ब्रिटेन में प्रथम कारखाना अधिनियम 1802 ई० में पारित किया गया।
  • किसी भी बच्चे से 12 घंटों से अधिक काम न लिया जाए।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति

प्रश्न 53.
कारखाना कानून ( 1819 ई०) क्या था ?
उत्तर:

  • 9 वर्ष से कम बच्चों को कारखानों में काम पर न लगाया जाए।
  • बच्चों को भोजन के लिए 1.30 घंटे का विश्राम दिया जाए।

प्रश्न 54.
1833 ई० के कारखाना अधिनियम की कोई दो धाराएँ लिखें।
उत्तर:

  • 13 से 17 वर्ष तक के बच्चों से 10 घंटों से अधिक काम न लिया जाए।
  • कारखानों के निरीक्षण के लिए इंस्पैक्टर नियुक्त किए गए।

प्रश्न 55.
1842 ई० के खान अधिनियम की कोई दो धाराएँ लिखें।
उत्तर:

  • इसने खानों में स्त्रियों के काम करने पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • इसने खानों के निरीक्षण के लिए नियमित इंस्पैक्टर नियुक्त किए।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
औद्योगिक क्रांति सर्वप्रथम किस देश में आई ?
उत्तर:
इंग्लैंड।

प्रश्न 2.
औद्योगिक क्राँति कब आई ?
उत्तर:
1760 ई०-1820 ई० के मध्य।

प्रश्न 3.
औद्योगिक क्रांति का अंग्रेज़ी में प्रथम बार उपयोग किसने किया ?
उत्तर:
ऑरनॉल्ड टॉयनबी ने।।

प्रश्न 4.
ऑरनॉल्ड टॉयनबी द्वारा लिखित प्रसिद्ध पुस्तक का नाम लिखें।
उत्तर:
लेक्चर्स ऑन दि इंडस्ट्रियल रिवोल्यूशन इन इंग्लैंड।

प्रश्न 5.
औद्योगिक क्रांति के समय इंग्लैंड में किसका शासन था ?
उत्तर:
जॉर्ज तृतीय।

प्रश्न 6.
विश्व की सबसे बड़ी साम्राज्यवादी शक्ति कौन था ?
उत्तर:
इंग्लैंड।

प्रश्न 7.
बैंक ऑफ़ इंग्लैंड की स्थापना कब हुई ?
उत्तर:
1694 ई० में।

प्रश्न 8.
काला सोना किसे कहा जाता है ?
उत्तर:
कोयले को।

प्रश्न 9.
लोहे के प्रगलन के लिए सर्वप्रथम लोहे का प्रयोग किसने किया ?
उत्तर:
अब्राहम डर्बी प्रथम ने।

प्रश्न 10.
ढलवाँ लोहे से पिटवाँ लोहे का विकास कब हुआ ?
उत्तर:
1755 ई० में।

प्रश्न 11.
आलोड़न भट्ठी का आविष्कार किसने किया ?
उत्तर:
हेनरी कोर्ट ने।

प्रश्न 12.
विश्व में लोहे का पहला पुल कब बनाया गया ?
उत्तर:
1779 ई० में।

प्रश्न 13.
विश्व में पहला लोहे का पुल कहाँ बनाया गया था ?
उत्तर:
कोलबुकडेल में।

प्रश्न 14.
हैंफरी डेवी किस आविष्कार के लिए प्रसिद्ध है ?
उत्तर:
सेफ़टी लैंप।

प्रश्न 15.
सेफ़टी लैंप का आविष्कार कब हुआ था ?
उत्तर:
1815 ई० में।

प्रश्न 16.
किस विज्ञानी ने लोहे को शुद्ध करके इस्पात बनाने की विधि खोज निकाली थी ?
उत्तर:
हेनरी बेस्सेमर ने।

प्रश्न 17.
जॉन के ने किसका आविष्कार किया था ?
उत्तर:
फ़लाइंग शटल का।

प्रश्न 18.
जेम्स हरग्रीब्ज़ ने स्पिनिंग जेनी का आविष्कार कब किया था ?
उत्तर:
1764 ई० में।

प्रश्न 19.
वॉटर फ्रेम का आविष्कार किसने किया था ?
उत्तर:
रिचर्ड आर्कराइट ने।

प्रश्न 20.
सैम्यूअल क्राम्पटन ने म्यूल का आविष्कार कब किया था ?
उत्तर:
1779 ई० में।

प्रश्न 21.
पॉवरलूम का आविष्कार किसने किया था ?
उत्तर:
एडमंड कार्टराइट ने।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति

प्रश्न 22.
माइनर्स फ्रेंड का आविष्कार किसने किया था ?
उत्तर:
थॉमस सेवरी ने।

प्रश्न 23.
भाप इंजन का आविष्कार किसने किया था ?
उत्तर:
जेम्स वॉट ने।

प्रश्न 24.
जेम्स वॉट ने भाप इंजन का आविष्कार कब किया था ?
उत्तर:
1769 ई० में।

प्रश्न 25.
सोहो फाउँडरी का निर्माण कहाँ किया गया था ?
उत्तर:
बर्मिंघम में।

प्रश्न 26.
वर्सले कैनाल का निर्माण किसने किया था ?
उत्तर:
जेम्स ब्रिडले ने।

प्रश्न 27.
वर्सले कैनाल को किस वर्ष चालू किया गया ?
उत्तर:
1761 ई० में।

प्रश्न 28.
रिचर्ड ट्रेविथिक ने 1801 ई० में किस इंजन का निर्माण किया था ?
उत्तर:
पफिंग डेविल का।

प्रश्न 29.
‘रेलों का पितामा’ किसे कहा जाता है ?
उत्तर:
जॉर्ज स्टीफेनसन को।

प्रश्न 30.
भाप इंजन का आविष्कार कब हुआ ?
उत्तर:
1769 ई० में।

प्रश्न 31.
इंग्लैंड में प्रथम रेल को कब चलाया गया ?
उत्तर:
1825 ई० में।

प्रश्न 32.
इंग्लैंड एवं फ्रांस के मध्य एक दीर्घकालीन युद्ध कब से कब तक चला ?
उत्तर:
1793 ई० से 1815 ई० तक।

प्रश्न 33.
ब्रिटेन की सरकार ने जुड़वाँ अधिनियम कब पारित किए ?
उत्तर:
1799-1800 ई०।

प्रश्न 34.
ब्रिटेन की सरकार ने अनाज कानून कब पारित किए ?
उत्तर:
1815 ई०।

प्रश्न 35.
अनाज कानून विरोधी लीग के किसी एक नेता का नाम लिखिए।
उत्तर:
रिचर्ड काब्डन।

प्रश्न 36.
इंग्लैंड में ब्रैड के लिए दंगे कब शुरू हुए ?
उत्तर:
1795 ई० में।

प्रश्न 37.
इंग्लैंड में चलने वाले लुडिज्म आंदोलन का नेतृत्व किसने किया ?
उत्तर:
जनरल नेड लुड ने।

प्रश्न 38.
पीटरलू नरसंहार कब हुआ ?
उत्तर:
1819 ई० में।

प्रश्न 39.
इंग्लैंड की सरकार ने प्रथम कारखाना अधिनियम कब पारित किया था ?
उत्तर:
1802 ई० में।

प्रश्न 40.
इंग्लैंड में प्रथम खान अधिनियम कब पारित हुआ था?
उत्तर:
1842 ई० में।

प्रश्न 41.
किस अधिनियम के अधीन मज़दूरों द्वारा 10 घंटे प्रतिदिन काम की माँग को स्वीकार कर लिया गया ?
उत्तर:
कारखाना अधिनियम 1847 ई०।

रिक्त स्थान भरिए

1. ………………. पहला देश था जिसने सर्वप्रथम औद्योगिकीकरण का अनुभव किया था।
उत्तर:
इंग्लैंड

2. औद्योगिक क्राँति शब्द का अंग्रेजी में प्रयोग सर्वप्रथम ………………. ने किया था।
उत्तर:
ऑरनॉल्ड टॉयनबी

3. उजड़ा गाँव अंग्रेज़ी के सुप्रसिद्ध लेखक ……………… की कविता है।
उत्तर:
ओलिवर गोल्डस्मिथ

4. काला सोना ……………….. को कहा जाता था।
उत्तर:
कोयला

5. धमनभट्टी का आविष्कार ……………….. ई० में किया गया था।
उत्तर:
1709

6. धमनभट्टी का आविष्कार ……………… द्वारा किया गया था।
उत्तर:
अब्राहम डर्बी

7. आलोडन भट्टी का आविष्कार ……………….. ने किया था।
उत्तर:
हेनरी कोर्ट

8. फलाइंग शटल का निर्माण ……………….. द्वारा किया गया था।
उत्तर:
जॉन के

9. जेम्स हरग्रीब्ज द्वारा ……………….. का आविष्कार किया गया था।
उत्तर:
स्पीनिंग मशीन

10. वॉटर फ्रेम का आविष्कार ……………….. द्वारा किया गया था।
उत्तर:
रिचर्ड आर्कराइट

11. सैम्यूअल क्राम्पटन द्वारा म्यूल का आविष्कार ……………….. ई० में किया गया।
उत्तर:
1779

12. भाप इंजन का आविष्कार ………….. द्वारा किया गया था।
उत्तर:
जेम्स वॉट

13. इंग्लैंड की पहली नहर का नाम ……………….. था।
उत्तर:
वर्सले कैनाल

14. इंग्लैंड में पहली नहर का निर्माण ……………… द्वारा किया गया था।
उत्तर:
जेम्स ब्रिडले

15. इंग्लैंड में सर्वप्रथम रेल …………….. में चलाई गई थी।
उत्तर:
1825 ई०

16. प्रथम कारखाना अधिनियम ……………….. ई० में पारित किया गया।
उत्तर:
1802

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. औद्योगिक क्रांति का आरंभ कब हुआ ?
(क) 15वीं शताब्दी में
(ख) 16वीं शताब्दी में
(ग) 17वीं शताब्दी में
(घ) 18वीं शताब्दी में।
उत्तर:
(घ) 18वीं शताब्दी में।

2. औद्योगिक क्रांति सर्वप्रथम किस देश में आरंभ हुई ?
(क) फ्राँस
(ख) इंग्लैंड
(ग) रूस
(घ) जर्मनी।
उत्तर:
(ख) इंग्लैंड

3. इंग्लैंड के शासक जॉर्ज तृतीय का शासनकाल कब आरंभ हुआ ?
(क) 1720 ई० में
(ख) 1750 ई० में
(ग) 1760 ई० में
(घ) 1820 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1760 ई० में

4. किस देश को ‘समुद्रों की रानी’ कहा जाता था ?
(क) भारत
(ख) चीन
(ग) इराक
(घ) इंग्लैंड।
उत्तर:
(घ) इंग्लैंड।

5. बैंक ऑफ़ इंग्लैंड की स्थापना कब हुई थी ?
(क) 1605 ई० में
(ख) 1694 ई० में
(ग) 1705 ई० में
(घ) 1734 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1694 ई० में

6. 19वीं शताब्दी के आरंभ में इंग्लैंड का कौन-सा शहर जनसंख्या के दृष्टिकोण से सबसे बड़ा था ?
(क) लंदन
(ख) लीड्स
(ग) लिवरपूल
(घ) मैनचेस्टर।
उत्तर:
(क) लंदन

7. निम्नलिखित में से किसे उद्योगों की जननी कहा जाता है ?
(क) लोहा
(ख) इस्पात
(ग) कोयला
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(ग) कोयला

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति

8. निम्नलिखित में से किस विद्वान् ने सर्वप्रथम कोक का प्रयोग किया ?
(क) अब्राहम डर्बी प्रथम
(ख) अब्राहम डर्बी द्वितीय
(ग) जॉन के
(घ) थॉमस सेवरी।
उत्तर:
(क) अब्राहम डर्बी प्रथम

9. आलोड़न भट्ठी का आविष्कार किसने किया ?
(क) अब्राहम डर्बी तृतीय ने
(ख) हेनरी कोर्ट ने ।
(ग) हैम्फरी डेवी ने
(घ) एडमंड कार्टराइट ने।
उत्तर:
(ख) हेनरी कोर्ट ने ।

10. विश्व का प्रथम लोहे का पुल किस नदी पर बनाया गया था ?
(क) थेम्स
(ख) सेवन
(ग) गँगा
(घ) अमेजन।
उत्तर:
(ख) सेवन

11. हैंफरी डेवी ने सेफ़टी लैंप का आविष्कार कब किया था ?
(क) 1805 ई० में
(ख) 1810 ई० में
(ग) 1815 ई० में
(घ) 1835 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1815 ई० में

12. हेनरी बेस्सेमर ने लोहे को शुद्ध करके इस्पात बनाने की विधि कब खोज निकाली ?
(क) 1815 ई० में
(ख) 1825 ई० में
(ग) 1836 ई० में
(घ) 1856 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1856 ई० में।

13. फ़लाइंग शटल का आविष्कारक किसने किया ?
(क) हरग्रीब्ज ने
(ख) जेम्स वॉट ने
(ग) रिचर्ड आर्कराइट ने
(घ) जॉन के ने।
उत्तर:
(घ) जॉन के ने।

14. म्यूल का आविष्कार किसने किया था ?
(क) सैम्यूअल क्राम्पटन
(ख) जॉन के
(ग) जेम्स हरग्रीव्ज
(घ) रिचर्ड आर्कराइट।
उत्तर:
(ग) जेम्स हरग्रीव्ज

15. रिचर्ड आर्कराइट ने वॉटर फ्रेम का आविष्कार कब किया ?
(क) 1733 ई० में
(ख) 1764 ई० में
(ग) 1765 ई० में
(घ) 1769 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1769 ई० में।

16. पावरलूम का आविष्कार किसने किया था ?
(क) सैम्यूअल क्राम्पटन ने
(ख) एडमंड कार्टराइट ने
(ग) जॉन के ने
(घ) रिचर्ड आर्कराइट ने।
उत्तर:
(ख) एडमंड कार्टराइट ने

17. जेम्स वॉट ने निम्नलिखित में से किसका आविष्कार किया ?
(क) पावरलूम
(ख) म्यूल
(ग) वॉटर फ्रेम
(घ) भाप इंजन।
उत्तर:
(घ) भाप इंजन।

18. वर्सले कैनाल के निर्माण में निम्नलिखित में से किसने योगदान दिया ?
(क) मैथ्यू बॉल्टन
(ख) थॉमस न्यूकॉमेन
(ग) जेम्स ब्रिडले
(घ) रिचर्ड ट्रेविथिक।
उत्तर:
(ग) जेम्स ब्रिडले

19. वर्सले कैनाल को यातायात के लिए किस वर्ष खोला गया था ?
(क) 1759 ई० में
(ख) 1761 ई० में
(ग) 1767 ई० में
(घ) 1771 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1761 ई० में

20. पफिंग डेविल नामक इंजन का आविष्कार किसने किया था ?
(क) रिचर्ड ट्रेविथिक ने
(ख) जेम्स वॉट ने
(ग) जॉर्ज स्टीफेनसन ने
(घ) थॉमस सेवरी ने।
उत्तर:
(क) रिचर्ड ट्रेविथिक ने

21. ‘रेलों का पितामा’ किसे कहा जाता है ?
(क) रिचर्ड ट्रेविथिक को
(ख) जॉर्ज स्टीफेनसन को
(ग) ड्यूक ऑफ़ विलिंगटन को
(घ) आई० के० बरुनल को।
उत्तर:
(ख) जॉर्ज स्टीफेनसन को

22. इंग्लैंड में प्रथम रेल को कब चलाया गया ?
(क) 1805 ई० में
(ख) 1814 ई में
(ग) 1825 ई० में
(घ) 1841 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1825 ई० में

23. इंग्लैंड की प्रथम रेल किन दो शहरों के मध्य चलाई गई ?
(क) स्टॉकटन एवं डार्लिंगटन
(ख) लंदन एवं लीड्स
(ग) लंदन एवं मैनचेस्टर
(घ) स्टॉकटन एवं लिवरपूल।
उत्तर:
(क) स्टॉकटन एवं डार्लिंगटन

24. ‘सड़क-निर्माता’ किसे कहा जाता है ?
(क) जेम्स ब्रिडले को
(ख) जॉन के को
(ग) जॉन मेटकॉफ को
(घ) एडमंड कार्टराइट को।
उत्तर:
(ग) जॉन मेटकॉफ को

25. औद्योगिक क्रांति के समय मैनचेस्टर में मजदूरों का जीवनकाल क्या था ?
(क) 12 वर्ष
(ख) 15 वर्ष
(ग) 17 वर्ष
(घ) 21 वर्ष।
उत्तर:
(ग) 17 वर्ष

26. इंग्लैंड का फ्रांस के साथ एक दीर्घकालीन युद्ध कब आरंभ हुआ ?
(क) 1792 ई० में
(ख) 1793 ई० में
(ग) 1795 ई० में
(घ) 1799 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1793 ई० में

27. इंग्लैंड की सरकार ने जुड़वाँ अधिनियम को कब रद्द किया ?
(क) 1799 ई० में
(ख) 1800 ई० में
(ग) 1815 ई० में
(घ) 1824 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1824 ई० में।

28. अनाज कानून विरोधी लीग की स्थापना कहाँ की गई थी ?
(क) लीड्स में
(ख) लंदन में
(ग) मैनचेस्टर में
(घ) बर्मिंघम में।
उत्तर:
(ग) मैनचेस्टर में

29. इंग्लैंड में ब्रैड के लिए दंगों का सिलसिला कब तक चला ?
(क) 1793 ई० तक
(ख) 1795 ई० तक
(ग) 1830 ई० तक
(घ) 1840 ई० तक।
उत्तर:
(घ)

30. लुडिज्म आंदोलन का नेतृत्व किसने किया ?
(क) जनरल नेड लुड ने
(ख) रिचर्ड काब्डन
(ग) जॉन ब्राइट
(घ) आई० के० बरुनल।
उत्तर:
(क) जनरल नेड लुड ने

31. पीटरलू नरसंहार कब हुआ था ?
(क) मार्च 1793 में
(ख) जून 1807 में
(ग) अमरर, 1819 में
(घ) दिसंबर 1830 में।
उत्तर:
(ग) अमरर, 1819 में

32. पीटरलू नरसंहार कहाँ हुआ ?
(क) लंदन में
(ख) मैनचेस्टर में
(ग) लिवरपूल में
(घ) वेल्स में।
उत्तर:
(ख) मैनचेस्टर में

33. निम्नलिखित में से कौन-सा नेता पीटरलू नरसंहार से संबंधित नहीं था ?
(क) जॉन ब्राइट
(ख) रिचर्ड कारलाइल
(ग) जॉन कार्टराइट
(घ) हेनरी हंट।
उत्तर:
(क) जॉन ब्राइट

34. इंग्लैंड में प्रथम कारखाना अधिनियम कब पारित हुआ था ?
(क) 1801 ई० में
(ख) 1802 ई० में
(ग) 1819 ई० में
(घ) 1833 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1802 ई० में

35. किस अधिनियम के अधीन इंग्लैंड के कारखानों में 9 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को काम करने की मनाही कर दी गई थी ?
(क) 1802 ई० के
(ख) 1819 ई० के
(ग) 1833 ई० के
(घ) 1842 ई० के।
उत्तर:
(ख) 1819 ई० के

36. किस अधिनियम के अधीन इंग्लैंड में श्रमिकों के लिए 10 घंटे का दिन निश्चित कर दिया गया ?
(क) 1833 ई०
(ख) 1842 ई०
(ग) 1844 ई०
(घ) 1847 ई०।
उत्तर:
(घ) 1847 ई०।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 9 औद्योगिक क्रांति

37. इंग्लैंड में प्रथम खान अधिनियम कब पारित हआ था ?
(क) 1833 ई० में
(ख) 1842 ई० में
(ग) 1847 ई० में
(घ) 1867 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1842 ई० में

38. ऑरनॉल्ड टॉयनबी की पुस्तक लेक्चर्स ऑन दि इंडस्ट्रियल रिवोल्यूशन इन इंग्लैंड का प्रकाशन … कब हुआ था ?
(क) 1842 ई० में
(ख) 1847 ई० में
(ग) 1867 ई० में
(घ) 1884 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1884 ई० में।

39. कार्ल मार्क्स एक:
(क) चिकित्सक थे
(ख) वैज्ञानिक थे
(ग) अर्थशास्त्री थे
(घ) दार्शनिक थे।
उत्तर:
(घ) दार्शनिक थे।

औद्योगिक क्रांति HBSE 11th Class History Notes

→ औद्योगिक क्रांति की गणना विश्व की प्रभावशाली क्राँतियों में की जाती है। इस क्राँति ने विश्व इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात किया। यह क्राँति सर्वप्रथम 1760 ई० से 1820 ई० के मध्य इंग्लैंड में आई। इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के उदय एवं विकास के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे।

→ इनमें इंग्लैंड की राजनीतिक स्थिरता एवं शांति, उसकी शक्तिशाली नौसेना, उसके उपनिवेशों, उपलब्ध पूँजी, कृषि क्राँति, बैंकिंग व्यवस्था, विशाल बाजार, खनिज पदार्थों, वैज्ञानिक उन्नति एवं संसद् द्वारा किए गए प्रयासों ने उल्लेखनीय योगदान दिया।

→ औद्योगिक क्रांति के दौरान इंग्लैंड के जिन उद्योगों ने प्रमख भमिका निभाई उनमें कोयला एवं लोहा उद्योग एवं बुनाई उद्योग, भाप की शक्ति तथा नहरों एवं रेलों के उद्योग प्रसिद्ध थे।

→ कोयला एवं लोहा उद्योग के विकास में अब्राहम डर्बी प्रथम, अब्राहम डर्बी द्वितीय, अब्राहम डर्बी तृतीय, जोन विल्किसन, हेनरी कोर्ट, हैम्फरी डेवी एवं हेनरी बेस्सेमर ने, कपास की कताई एवं बुनाई उद्योग के विकास में जॉन के, जेम्स हरग्रीव्ज, रिचर्ड आर्कराइट, सैम्यूअल क्राम्पटन एवं एडमंड कार्टराइट ने, भाप की शक्ति के विकास में थॉमस सेवरी, थॉमस न्यूकॉमेन, जेम्स वॉट एवं मैथ्यू बॉल्टन ने, नहरों के विकास में ड्यूक ऑफ़ ब्रिजवाट एवं जेम्स ब्रिडले ने, रेलों के विकास में रिचर्ड ट्रेविथिक एवं जॉर्ज स्टीफेनसन ने उल्लेखनीय योगदान दिया।

→ औद्योगिक क्रांति के दूरगामी एवं महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले। इसने न केवल ब्रिटेन अपितु यूरोप के समाज के स्वरूप को बदल कर रख दिया। जनसंख्या में तीव्रता से वृद्धि हुई। इसने पारिवारिक जीवन को छिन्न-भिन्न कर दिया।

→ समाज दो वर्गों पूँजीपतियों एवं मज़दूरों में बँट गया। पूँजीपतियों जो कि जनसंख्या का बहुत कम भाग था, के हाथ समस्त उद्योग थे। वे ऐश्वर्य का जीवन व्यतीत करते थे। दूसरी ओर समाज का अधिकाँश भाग मज़दर वर्ग से संबंधित था। कारखानों में जो उनकी दुर्दशा थी वह जानवरों से भी बदतर थी।

→ यहाँ तक कि स्त्रियाँ एवं बच्चे भी नरक समान जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य थे। औद्योगिक क्रांति के कारण वस्तुओं के उत्पादन में बहुत वृद्धि हुई। इससे ब्रिटेन के घरेलू एवं विदेशी व्यापार को बहुत प्रोत्साहन मिला। औद्योगिक क्रांति के कारण साम्राज्यवादी भावना को बल मिला।

→ इस क्राँति के चलते ब्रिटेन फ्राँस एवं नेपोलियन के युद्धों का सामना करने में सफल हुआ। ब्रिटेन में मजदूरों ने अपनी मांगों के समर्थन में अनेक विरोध आंदोलन किए। अंततः ब्रिटेन आंदोलन किए। अंततः ब्रिटेन की सरकार ने अनेक कारखाना अधिनियमों द्वारा उनकी दशा सुधारने की चेष्टा की।

→ निस्संदेह यह ब्रिटेन के मजदूरों की एक महान् सफलता थी। औद्योगिक क्रांति पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश फ्रांस के जॉर्जिस मिशले (Georges Michelet), जर्मनी के फ्रॉइड्रिक एंजेल्स (Friedrich Engles), ब्रिटेन के ऑरनॉल्ड टॉयनबी (Arnold Toynbee), टी० एस० एश्टन (T.S. Ashton), पॉल मंतृ (Paul Mantoux) एवं एरिक हॉब्सबाम (Eric Hobsbawm) ने डाला।

→ ऑरनॉल्ड टॉयनबी ने अंग्रेजी में प्रथम बार क्राँति शब्द का प्रयोग अपनी प्रसिद्ध पस्तक लेक्चर्स ऑन दि इंडस्ट्रियल रिवोल्यूशन इन इंग्लैंड (Lectures on the Industrial Revolution in England) में किया था। इस पुस्तक का प्रकाशन उस की मृत्यु के पश्चात् 1884 ई० में हुआ था।