HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 मानचित्र का परिचय

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Practical Work in Geography Chapter 1 मानचित्र का परिचय Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 मानचित्र का परिचय

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. रेखाओं एवं आकृतियों के मानचित्र कहे जाने के लिए निम्नलिखित में से क्या अनिवार्य है?
(A) मानचित्र रूढ़ि
(B) प्रतीक
(C) उत्तर दिशा
(D) मानचित्र मापनी
उत्तर:
(D) मानचित्र मापनी

2. एक मानचित्र जिसकी मापनी 1:4,000 एवं उससे बड़ी है, उसे कहा जाता है
(A) भूसंपत्ति मानचित्र
(B) स्थलाकृतिक मानचित्र
(C) भित्ति मानचित्र
(D) एटलस मानचित्र
उत्तर:
(A) भूसंपत्ति मानचित्र

3. निम्नलिखित में से कौन-सा मानचित्र के लिए अनिवार्य नहीं है?
(A) मानचित्र प्रक्षेप
(B) मानचित्र व्यापकीकरण
(C) मानचित्र अभिकल्पना
(D) मानचित्रों का इतिहास
उत्तर:
(D) मानचित्रों का इतिहास

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 मानचित्र का परिचय

4. मानचित्र में व्यापकीकरण का अर्थ है
(A) मानचित्र में ज्यादा से ज्यादा लक्षण दिखाना
(B) मानचित्र में विस्तृत क्षेत्रों का प्रदर्शन
(C) प्रदर्शित किए जाने वाली सूचनाओं व आंकड़ों का सरलीकरण
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) प्रदर्शित किए जाने वाली सूचनाओं व आंकड़ों का सरलीकरण

5. स्थलाकृतिक मानचित्रों के संबंध में कौन-सा कथन सत्य नहीं है?
(A) इनमें बस्तियां, धार्मिक स्थल, संचार के साधन, नहरें, कुएं आदि दिखाए जाते हैं
(B) इनकी मापनी 1:25,000 से 1:250,000 तक होती है
(C) इन्हें राज्य सरकारें प्रकाशित करती हैं
(D) इनमें प्राकृतिक लक्षणों का भी प्रदर्शन किया जाता है
उत्तर:
(C) इन्हें राज्य सरकारें प्रकाशित करती हैं

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानचित्र किसे कहते हैं ? अथवा मानचित्र की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी सहित किसी भी खगोलीय पिंड अथवा उसके किसी भाग का मापनी के अनुसार समतल सतह पर प्रतीकात्मक निरूपण मानचित्र कहलाता है।

प्रश्न 2.
गोलाकार पृथ्वी का सही और शुद्ध प्रदर्शन किस चीज़ से होता है?
उत्तर:
ग्लोब द्वारा।

प्रश्न 3.
ग्लोब क्या है?
उत्तर:
ग्लोब, पृथ्वी अथवा किसी खगोलीय पिंड का मानव द्वारा निर्मित छोटे आकार का एक त्रि-विस्तारीय मॉडल है।

प्रश्न 4.
विस्तृत क्षेत्रों के मानचित्र ग्लोब इतने शुद्ध क्यों नहीं होते?
अथवा
सभी मानचित्र मूलतः दोषपूर्ण क्यों होते हैं?
उत्तर:
मानचित्र सपाट कागज पर बनाए जाते हैं, जबकि पृथ्वी गोलाकार है। किसी गोल आकृति को एकदम सपाट बनाना संभव नहीं होता। इसी कारण बड़े क्षेत्रों के मानचित्र प्रायः विरूपित (Distorted) अथवा दोषपूर्ण होते हैं।

प्रश्न 5.
मानचित्र को धरातल का आलेखी (Graphic) अथवा प्रतीकात्मक निरूपण क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि मानचित्र पर धरातलीय लक्षणों को प्रतीकों और अक्षरों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

प्रश्न 6.
मानचित्र के मुख्य घटक या अंग या अवयव या भाग कौन-से होते हैं?
उत्तर:
शीर्षक, मापक, संकेत, दिशा, प्रक्षेप और रूढ़ चिह्न मानचित्र के छः आवश्यक अवयव (Elements) होते हैं।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 मानचित्र का परिचय

प्रश्न 7.
मानचित्रों के दो प्रमुख वर्गीकरण कौन-से होते हैं?
उत्तर:

  1. मापक के अनुसार।
  2. विषय-वस्तु अथवा उद्देश्य अथवा प्रकार्य के अनुसार।

प्रश्न 8.
मापक के अनुसार मानचित्र कितने प्रकार के होते हैं? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
मापक के अनुसार मानचित्र दो प्रकार के होते हैं-(1) बृहत मापक पर बने मानचित्र; जैसे भूकर मानचित्र और स्थलाकृतिक मानचित्र। (2) लघु मापक पर बने मानचित्र; जैसे दीवारी मानचित्र और एटलस मानचित्र।

प्रश्न 9.
बृहत मापक के मानचित्र और लघु मापक के मानचित्र में क्या अंतर होता है ?
उत्तर:
बृहत मापक के मानचित्र-बृहत मापक पर बने मानचित्र एक कागज़ पर अपेक्षाकृत थोड़े क्षेत्र को दिखाते हैं। अतः इनमें विस्तृत विवरण दिखाए जा सकते हैं। उदाहरणतः 1:50,000 के मापक पर बना भारतीय सर्वेक्षण विभाग का स्थलाकृतिक मानचित्र बृहत मापक पर बना होता है।

लघु मापक के मानचित्र-लघु मापक पर बना मानचित्र उसी आकार के कागज़ पर अपेक्षाकृत बड़े क्षेत्र का प्रदर्शन करता है। इसमें सीमित विवरण होते हैं। महाद्वीपों और देशों के मानचित्र लघु मापक पर बने होते हैं।

प्रश्न 10.
मानचित्र अलग-अलग मापकों पर क्यों बनाए जाते हैं?
उत्तर:
मानचित्र के लिए मापक का चयन हमारे उद्देश्य पर निर्भर करता है। यदि हम एक विस्तृत क्षेत्र में प्रमुख शहरों, बंदरगाहों व प्रमुख भू-आकारों का प्रदर्शन करना चाहते हैं तो हम लघु मापक का मानचित्र बनाएंगे और यदि हम एक छोटे क्षेत्र को विस्तार से दिखाना चाहते हैं तो हम बृहत मापक वाला मानचित्र बनाएंगे।

प्रश्न 11.
भूकर या कैडस्ट्रल मानचित्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
ये बृहत मापक पर बने ऐसे मानचित्र होते हैं जो सार्वजनिक स्थानों एवं प्रत्येक भवन अथवा व्यक्तिगत क्षेत्रों की सीमाएं दर्शाते हैं। इनसे भूमि कर या लगान इकट्ठा किया जाता है। इन्हें प्लान भी कहते हैं।

प्रश्न 12.
उद्देश्य के अनुसार मानचित्रों के दो प्रमुख वर्ग कौन-से होते हैं?
उत्तर:

  1. भौतिक या प्राकृतिक मानचित्र
  2. सांस्कृतिक या मानवीय मानचित्र।

प्रश्न 13.
भौतिक तथा सांस्कृतिक मानचित्रों में अंतर बताइए।
उत्तर:
भौतिक मानचित्र प्राकृतिक तत्त्वों को दर्शाते हैं; जैसे धरातल, जलवायु, नदियां, वनस्पति, मिट्टी आदि। सांस्कृतिक मानचित्र मानवीय तत्त्वों को दर्शाते हैं; जैसे जनसंख्या, कृषि, उद्योग, परिवहन इत्यादि।

प्रश्न 14.
मानचित्रों का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
मानचित्रों के बिना भू-तल पर भौतिक तथा सांस्कृतिक तत्त्वों के वितरण और उनके बीच संबंधों का प्रदर्शन नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 15.
मानचित्र और प्लान में क्या अंतर है?
उत्तर:
मानचित्र बड़े क्षेत्र को छोटे मापक द्वारा प्रदर्शित करते हैं, जबकि प्लान में छोटे क्षेत्र को बड़े मापक द्वारा दिखाया जाता है। मानचित्र में कागज़ का 1 सें०मी० धरती के 2 कि०मी० को प्रदर्शित कर सकता है, जबकि प्लान में कागज़ का 1 सें०मी० धरती के 1 अथवा कुछ मीटरों को ही दिखाता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्लोब और मानचित्र में क्या अंतर होता है?
उत्तर:
ग्लोब और मानचित्र में निम्नलिखित अंतर होता है-

ग्लोब मानचित्र
1. ग्लोब, संपूर्ण पृथ्वी अथवा किसी खगोलीय पिंड का छोटा-सा मॉडल होता है। 1. मानचित्र, पृथ्वी या किसी खगोलीय पिंड अथवा उसके किसी भाग को प्रदर्शित करता है।
2. बड़े ग्लोबों का निर्माण, रख-रखाव, प्रयोग और उनका लाना, ले-जाना कठिन होता है। 2. मानचित्र का प्रयोग और रख-रखाव आसान है। इसे कहीं भी ले जाया जा सकता है।
3. कम जगह होने के कारण ग्लोब पर सभी महत्त्वपूर्ण स्थान व आकृतियां नहीं दिखाई जा सकतीं। 3. मानचित्र पर छोटे क्षेत्रों का विस्तृत प्रदर्शन संभव है।
4. ग्लोब पर महाद्वीपों और महासागरों के आकार और आकृति (Size and shape) का विरूपण नहीं होता। 4. मानचित्रों में बड़े क्षेत्रों के आकार और आकृति में अत्यधिक विरूपण आ जाता है।
5. संपूर्ण पृथ्वी का प्रदर्शन करने के लिए ग्लोब सर्वाधिक उपयुक्त होते हैं। 5. पृथ्वी अथवा उसके किसी भाग; जैसे गांव, ज़िला, प्रांत, देश अथवा महाद्वीप का प्रदर्शन करने के लिए मानचित्र सर्वश्रेष्ठ होते हैं।
6. ग्लोब पर पृथ्वी या किसी खगोलीय पिंड का केवल आधा भाग ही एक समय में दिखाई पड़ता है। 6. मानचित्र पर पृथ्वी या किसी खगोलीय पिंड को संपूर्ण रूप में एक ही समय में देखा जा सकता है।

प्रश्न 2.
ग्लोब द्वारा पृथ्वी के लिए किए जाने वाले श्रेष्ठ प्रदर्शन के कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
ग्लोब द्वारा पृथ्वी के लिए किए जाने वाले श्रेष्ठ प्रदर्शन के कारण निम्नलिखित हैं-

  1. पृथ्वी की भांति ग्लोब भी अपने अक्ष पर स्वतंत्रतापूर्वक घूर्णन (Rotation) कर सकता है।
  2. ग्लोब पर खींची गई अक्षांश एवं देशांतर रेखाओं के जाल (Graticule) से विभिन्न स्थानों की स्थिति सुगमतापूर्वक मालूम की जा सकती है।
  3. केवल ग्लोब पर ही महाद्वीपों के सापेक्षिक आकार और स्थिति का परिशुद्ध (Precise) निरूपण संभव हो पाता है।
  4. पृथ्वी पर दूरियों और दिशाओं के सही प्रदर्शन के लिए ग्लोब एक सर्वश्रेष्ठ माध्यम है।

प्रश्न 3.
ग्लोब के प्रयोग में आने वाली कठिनाइयों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ग्लोब के प्रयोग में निम्नलिखित कठिनाइयाँ आती हैं-

  1. ग्लोब पर जगह (Space) कम होने के कारण किसी क्षेत्र विशेष का विस्तृत अध्ययन नहीं किया जा सकता।
  2. यदि ग्लोब बड़े भी बना लिए जाएँ तो उनका निर्माण, प्रयोग, रख-रखाव और उनका एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाना, ले-जाना अत्यंत कठिन होगा।
  3. एक समय में ग्लोब का केवल आधा भाग ही देखा जा सकता है। अतः विश्व के आपस में दूर स्थित भागों के अध्ययन के लिए हमें दो ग्लोबों की आवश्यकता पड़ेगी।
  4. यदि विश्व के किसी एक भाग का ही अध्ययन करना हो तो हमें पूरे ग्लोब का प्रयोग करना पड़ता है।
  5. गोलीय (Spherical) होने के कारण ग्लोब पर किन्हीं दो स्थानों के बीच की दूरियां मापना अपेक्षाकृत कठिन है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानचित्र को परिभाषित करते हुए इसके अनिवार्य तत्त्वों का वर्णन कीजिए। अथवा मानचित्र के अनिवार्य (आवश्यक) तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानचित्र की परिभाषा (Definition of a Map) संपूर्ण पृथ्वी अथवा उसके किसी भाग का समतल पृष्ठ पर समानीत मापनी द्वारा वरणात्मक, प्रतीकात्मक तथा व्यापकीकृत निरूपण मानचित्र कहलाता है। आजकल तो खगोलीय पिंडों के भी मानचित्र – बनने लगे हैं।

एफजे० मोंकहाऊस (F.J. Monkhouse) के अनुसार, “निश्चित मापनी के अनुसार, धरातल के किसी भाग के लक्षणों को समतल सतह पर प्रदर्शन करने को मानचित्र कहते हैं।” (“Map is a representation on a plane su features of part of the Earth’s surface, drawn to some specific scale.”)

बिना मापनी के खींची गई रेखाओं तथा बहुभुज को मानचित्र नहीं कहा जाता बल्कि इसे रेखाचित्र (Sketch) कहा जाता है मानचित्र के अनिवार्य तत्त्व (Essentials of a Map) मानचित्रकला (Cartography) मानचित्रों को बनाने की कला एवं
तो मानचित्र अनेक प्रकार के होते हैं किंत उनकी रचना संबंधी कछ प्रक्रियाएं या तत्त्व ऐसे होते हैं जो समान होते हैं। इनमें से यदि एक भी प्रक्रिया या तत्त्व हट जाए तो मानचित्र शुद्ध नहीं रह जाता।
1. मानचित्र शीर्षक (Map Title) शीर्षक से हमें ज्ञात होता है कि मानचित्र किस बारे में है और किस क्षेत्र का बनाया गया है। उदाहरणतः एशिया का भौतिक मानचित्र, भारत का जनसंख्या घनत्व मानचित्र अथवा भारत का वायुदाब (जुलाई) मा इत्यादि।

2. मानचित्र मापनी (Map Scale)-मापनी मानचित्र पर दर्शाए गए विभिन्न स्थानों के बीच दूरियों और प्रदर्शित क्षेत्र के क्षेत्रफल की गणना में मदद करता है। इससे मानचित्र को छोटा या बड़ा भी किया जा सकता है।

आप जानते हैं कि सभी मानचित्र लघुकरण होते हैं। मानचित्र बनाने के लिए सबसे पहले मापनी का चुनाव करना पड़ता है। किसी मानचित्र की मापनी इस बात को निर्धारित करती है कि उस मानचित्र में कितनी सूचनाओं, विषय-वस्तु एवं वास्तविकताओं का समावेश किस हद तक संभव है।

3. मानचित्र प्रक्षेप (Map Projection)-आप जानते हैं कि जीऑयड की सतह सभी ओर से वक्रित (curved) है, जिसका समतल कागज पर सरल प्रदर्शन करना अर्थात् मानचित्र बनाना एक चुनौती है। विमाओं (Dimensions) के इस प्रकार बदलाव में जीऑयड के वास्तविक स्वरूप, दिशाओं, दूरियों, क्षेत्रों तथा आकारों में अनिवार्य परिवर्तन आता है। एक गोलाकार सतह को समतल सतह पर दर्शाने की प्रणाली को प्रक्षेप कहा जाता है। इस प्रणाली में अक्षांश और देशांतर रेखाओं का जाल होता है जिससे किसी स्थान की वास्तविक स्थिति निश्चित करने में मदद मिलती है। इसलिए प्रक्षेपों के चयन, उपयोग तथा निर्माण मानचित्र बनाने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण होते हैं।

4. व्यापकीकरण (Generalisation) हर मानचित्र किसी-न-किसी उद्देश्य के लिए बनाया जाता है। कुछ मानचित्र सामान्य उद्देश्य वाले होते हैं जो सामान्य सूचनाओं को दर्शाते हैं; जैसे उच्चावच, अपवाह, मृदा, वनस्पति, परिवहन इत्यादि। लेकिन कुछ मानचित्र विशेष उद्देश्य वाले होते हैं जो एक से अधिक चुनी गई वस्तुओं को दर्शाते हैं; जैसे जनसंख्या का घनत्व, मिट्टी के प्रकार या उद्योगों की स्थिति इत्यादि। क्योंकि मानचित्र लघुकृत मापनी पर तैयार किया जाता है, इसलिए जरूरी है कि उसकी विषय-वस्तु को सावधानीपूर्वक नियोजित किया जाए और उसे व्यापकीकृत किया जाए। ऐसा करने के लिए विषय-वस्तु से संबंधित सूचनाओं (आंकड़ों) को जरूरत के अनुसार सरल कर लेना चाहिए।

5. मानचित्र अभिकल्पना (Map Design) मानचित्र अभिकल्पना में मानचित्रों की आलेखी विशिष्टताओं (Graphic Characteristics) को योजनाबद्ध किया जाता है, जिसमें शामिल हैं-उचित संकेतों का चयन, उनके आकार एवं प्रकार, लिखावट का तरीका, रेखाओं की चौड़ाई का निर्धारण, रंगों का चयन, मानचित्र में मानचित्र अभिकल्पना के विभिन्न तत्त्वों की व्यवस्था और रूढ़ चिह्न। अतः मानचित्र अभिकल्पना मानचित्र बनाने की एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें उन सिद्धांतों की गहन जानकारी की आवश्यकता होती है, जो आलेखी संचार के प्रभावों को नियंत्रित करती है।

6. मानचित्र निर्माण तथा उत्पादन (Map Construction and Production)-पुराने समय में मानचित्र बनाने एवं उनके पुनरुत्पादन का कार्य हाथों से किया जाता था। कलम एवं स्याही से मानचित्र बनाकर उनको मशीनों द्वारा छापते थे। किंतु मानचित्र बनाने तथा उनकी छपाई की तकनीकों में कंप्यूटर की सहायता मिलने के कारण मानचित्र निर्माण एवं पुनरुत्पादन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है।

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प्रश्न 2.
मानचित्रण के इतिहास पर लेख लिखिए।
उत्तर:
मानचित्रण का इतिहास (History of Map Making) मानचित्र बनाने की कला बहुत प्राचीन है। ईसा से 2,800 साल पहले मार्शल द्वीपवासी अपने द्वीपों की सापेक्षिक स्थिति दिखाने के लिए नरकटों, वृक्षों की टहनियों तथा घोंघों आदि की सहायता से चार्ट बनाया करते थे। विश्व का सबसे पुराना मानचित्र मैसोपोटामिया में बेबीलोन नगर से 320 कि०मी० उत्तर की ओर गासुर नगर के ध्वंसावशेषों को खोदने पर मिला था। आज यह मानचित्र हॉवर्ड विश्वविद्यालय के म्यूजियम में सुरक्षित है। यह मानचित्र ईसा से 2,500 वर्ष पुराना है और चिकनी मिट्टी की आग में पकी हुई टिकिया (Tablet) पर बना है। इस मानचित्र में उत्तरी ईराक प्रदेश और फरात (Euphrates) नदी दिखाई गई हैं। बेबीलोनिया के लोगों ने ही वृत्त को 360 अंशों में बांटना सिखाया।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 मानचित्र का परिचय 1
100 ई० के लगभग चीनियों ने कागज का आविष्कार कर लिया और मानचित्र बनाने लगे। पी.सिन (Pei-Hsin) को चीनी मानचित्र कला का जनक कहा जाता है।

आधुनिक मानचित्र कला की नींव अरब एवं यूनान के भूगोलवेत्ताओं द्वारा रखी गई। इन विद्वानों ने पृथ्वी की परिधि का माप तथा मानचित्र बनाने में भौगोलिक निर्देशांक (Geographical Co-ordinates) की पद्धति के उपयोग; जैसे कई महत्त्वपूर्ण योगदान दिए। इस काल के ज्ञाता मानचित्रकार एनेक्ज़ीमेंडर, इरेटॉस्थेनीज, हिपारकस और टॉलमी थे। टॉलमी ने विश्व मानचित्र बनाकर मानचित्रकला को उन्नति के शिखर पर पहुंचाया।

आधुनिक काल के आरंभिक दौर में मानचित्र बनाने की कला एवं विज्ञान को पुनर्जीवित किया गया। इसमें प्रयास किया गया कि जीऑयड को समतल सतह पर दर्शाने से होने वाली त्रुटियों को कम किया जाए। सही दिशा, दूरी एवं क्षेत्रफल के परिशुद्ध माप के लिए विभिन्न प्रक्षेपों पर मानचित्रों को खींचा गया था। वायव (Aerial) फोटोग्राफी से सतह पर होने वाले सर्वेक्षणों के तरीकों को सहयोग मिला तथा वायव फोटो के उपयोग ने 19वीं एवं 20वीं शताब्दी में मानचित्र बनाने के कार्य को और भी अधिक तेज़ कर दिया।

भारत में मानचित्र कला का विकास-भारत में मानचित्र बनाने का कार्य वैदिक काल में ही शुरु हो गया था, जब खगोलीय यथार्थता तथा ब्रह्मांडिकी रहस्योद्घाटन के प्रयत्न किए गए थे। आर्यभट्ट, वाराहमिहिर तथा भास्कर आदि के पौराणिक ग्रंथों में इन अभिव्यक्तियों को सिद्धांत या नियम के निश्चित रूप में दिखाया गया था। प्राचीन भारतीय विद्वानों ने पूरे विश्व को सात द्वीपों में बांटा (चित्र 1.3)। महाभारत में माना गया था कि यह गोलाकार विश्व चारों ओर से जल से घिरा है (चित्र 1.4)।
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टोडरमल ने भू-सर्वेक्षण तथा मानचित्र बनाने के कार्य को लगान वसूली प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग बना दिया था। इसके अतिरिक्त, शेरशाह सूरी के लगान मानचित्रों ने मध्य काल में मानचित्र बनाने के कार्य को और अधिक समृद्ध किया। पूरे देश के तत्कालीन मानचित्रों को बनाने के लिए गहन स्थलाकृतिक सर्वेक्षण 1767 में सर्वे ऑफ इंडिया की स्थापना के साथ किया गया, जिसके चरम बिंदु के रूप में 1785 में हिंदुस्तान का मानचित्र बनकर तैयार हुआ। आज सर्वे ऑफ इंडिया विभिन्न मापनियों के आधार पर पूरे देश का मानचित्र तैयार करता है।

प्रश्न 3.
मानचित्रों के वर्गीकरण का वर्णन कीजिए।
अथवा
मानचित्रों के विभिन्न प्रकारों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मानचित्रों का वर्गीकरण (Classification of Maps) मानचित्र अनेक प्रकार के होते हैं। सामान्यतः इनका वर्गीकरण दो प्रकार से किया जाता है-

  • मापक के अनुसार (According to Scale)
  • विषय-वस्तु अथवा उद्देश्य अथवा प्रकार्य के अनुसार (According to Purpose or Function)।

A. मापक के अनुसार (According to Scale) मानचित्र दो प्रकार के होते हैं-

  • बृहत मापक पर बने मानचित्र (Large Scale Maps)
  • लघु मापक पर बने मानचित्र (Small Scale Maps)।

(a) बृहत मापक पर बने मानचित्र (Large Scale Maps)-बृहत मापक पर बने मानचित्र दो प्रकार के होते हैं-
1. भूकर मानचित्र अथवा प्लान (Cadastral Maps or Plan)-कैडस्ट्रल फ्रांसीसी भाषा के कैडस्टर (Cadestre) शब्द से बना है जिसका अर्थ ‘संपत्ति रजिस्टर’ से होता है। बृहत मापक पर बनाए गए नगरों के प्लान जिनमें नागरिकों के भवनों की सीमाएं अंकित हों या पटवारियों द्वारा प्रयोग किया जाने वाला सिजरा (Village Map) जिसमें सार्वजनिक स्थान तथा भूमि की व्यक्तिगत मानचित्र का परिचय मल्कियत दर्शाई गई हो भूकर अथवा कैडस्ट्रल मानचित्र कहलाते हैं।

ये मानचित्र सरकार द्वारा नागरिकों से भूमि, भवन जैसी अचल संपत्ति पर लगान वसूल करने के लिए बनाए जाते हैं। भू-संपत्ति मानचित्र कानूनी उद्देश्यों के लिए भू-संपत्ति की सीमाओं के निर्धारण, प्रशासन, कर (Tax) व भू-संपत्ति के प्रबंधन के लिए अत्यंत उपयोगी होते हैं। इन मानचित्रों का मापक 1″ से 110 गज़ या 1″ से 55 गज़ होता है। गांवों का भूसंपत्ति मानचित्र 1 : 4000 की मापनी पर तथा नगरों का मानचित्र 1 : 2000 और इससे अधिक मापनी पर बनाए जाते हैं।

2. स्थलाकृतिक मानचित्र (Topographical Maps)- ये भी बड़ी मापनी पर बने मानचित्र होते हैं जिन्हें वास्तविक निरीक्षण व परिशुद्ध सर्वेक्षण के बाद बनाया जाता है। भारत में स्थलाकृतिक मानचित्रों का प्रकाशन भारतीय सर्वेक्षण विभाग (Survey of India) करता है। पहले इन मानचित्रों को 1 इंच : 4 मील, 1 इंच : 2 मील तथा 1 इंच : 1 मील मापक पर बनाया जाता था, किंतु देश में मीट्रिक प्रणाली अपनाए जाने के बाद अब इन्हें 1:2,50,000, 1:50,000 तथा 1:25,000 की मापनियों पर बनाया जाता है।

ये बहुउद्देशीय (Multi-Purpose) मानचित्र होते हैं जिनमें प्राकृतिक (Natural) और मानवीय (Cultural) लक्षणों को प्रदर्शित किया जाता है। प्राकृतिक तत्त्वों में उच्चावच (पर्वत, पठार व मैदान), जल-प्रवाह, जलाशय, वन, मिट्टियों व दलदल इत्यादि दिखाए जाते हैं, जबकि मानवीय अथवा सांस्कृतिक तत्त्वों में नगर, गांव, मार्ग, संचार के साधन व नहरें, कुएं, धार्मिक स्थल आदि विस्तारपूर्वक प्रदर्शित किए जाते हैं। योजना, राष्ट्रीय सुरक्षा एवं पर्यटन आदि उद्देश्यों के लिए स्थलाकृतिक मानचित्रों का कोई मुकाबला नहीं।

(b) लघु मापक पर बने मानचित्र (Small Scale Maps)-लघु मापक पर बने मानचित्र भी दो प्रकार के होते हैं-
1. दीवारी या भित्ति मानचित्र (Wall Maps)-स्कूल, कॉलेज अथवा दफ्तरों की दीवारों पर लटकाए जाने के कारण इन्हें दीवारी मानचित्र कहते हैं। इनका मापक 1 सें०मी० से 5 कि०मी० (1:5,00,000) से लेकर 1 सें०मी० से 40 कि०मी० (1:40,00,000) या इससे भी छोटा हो सकता है। अन्य शब्दों में इनकी मापनी स्थलाकृतिक मानचित्र से छोटी, एटलस मानचित्र से बड़ी होती है। इन्हें बड़े अक्षरों में छापा जाता है ताकि वांछित सूचना दूर से पढ़ी जा सके और समझाई जा सके। ये मानचित्र पृथ्वी के विस्तृत क्षेत्रों का प्रदर्शन करते हैं; जैसे समस्त संसार, कोई महाद्वीप, देश या राज्य इत्यादि।
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2. एटलस मानचित्र (Atlas Maps)-पुस्तक के रूप में मानचित्रों के क्रमबद्ध तथा व्यवस्थित संग्रह को एटलस या मानचित्रावली कहते हैं। एटलस मानचित्रों का मापक बहुत-ही छोटा होता है जो प्रायः 1:15,00,000 से कम होता है। मापनी छोटी होने के कारण ये मानचित्र केवल प्रमुख लक्षणों को ही दर्शाते हैं तथा इनमें महत्त्वहीन तत्त्वों को छोड़ दिया जाता है। एटलस मानचित्र विश्व, महाद्वीपों, देशों या क्षेत्रों की भौगोलिक जानकारियों के आलेखी (Graphic) विश्वकोश हैं जिनके वितरण को हम एक ही नज़र में देख सकते हैं। इन मानचित्रों में उपयुक्त रंगों का प्रयोग किया जाता है जिस कारण एटलस मानचित्रों का दृश्य प्रभाव (Visual impact) ज़बरदस्त होता है।

B. विषय-वस्तु अथवा उद्देश्य अथवा प्रकार्य के अनुसार (According to Purpose or Function)भी मानचित्रों के दो वर्ग होते हैं-

  • भौतिक मानचित्र (Physical Maps)
  • सांस्कृतिक मानचित्र (Cultural Maps)

(a) भौतिक अथवा प्राकृतिक मानचित्र (Physical Maps)-इसके अंतर्गत आने वाले प्रमुख मानचित्र निम्नलिखित हैं
1. उच्चावच मानचित्र (Relief Maps)-इन मानचित्रों में पर्वत, पठार, मैदान और अपवाह तंत्र इत्यादि सामान्य स्वरूपों का चित्रण किया जाता है।

2. भू-गर्भीय मानचित्र (Geological Maps)-इन मानचित्रों में किसी क्षेत्र की भू-गर्भीय संरचना व शैल प्रकारों इत्यादि को दिखाया जाता है।

3. जलवायु मानचित्र (Climatic Maps)-इन मानचित्रों पर जलवायु के विभिन्न तत्त्वों; जैसे तापमान, वायुदाब, सापेक्षिक आर्द्रता, बादलों, वर्षा, पवनों की दिशा एवं गति तथा मौसम के अन्य तत्त्वों के वितरण को दिखाया जाता है।

4. मौसम मानचित्र (Weather Maps)-ये मानचित्र देश के मौसम विभाग द्वारा प्रकाशित किए जाते हैं जो दिन के निर्दिष्ट समय पर मौसम संबंधी अवस्थाओं को दिखाते हैं।

5. मृदा मानचित्र (Soil Maps)-इन मानचित्रों पर किसी क्षेत्र में पाई जाने वाली विविध प्रकार की मिट्टियों तथा उनके वितरण को दर्शाया जाता है।

6. वनस्पति मानचित्र (Vegetation Maps)-इन मानचित्रों पर धरातल पर पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक वनस्पति का वितरण प्रदर्शित किया जाता है।

(b) सांस्कृतिक मानचित्र (Cultural Maps) इनमें अधिक महत्त्वपूर्ण मानचित्र निम्नलिखित हैं-
1. राजनीतिक मानचित्र (Political Maps) इन मानचित्रों पर देश, प्रांत व जिलों की सीमाएं दिखाई जाती हैं। इन मानचित्रों का प्रशासनिक महत्त्व बहुत होता है।

2. जनसंख्या मानचित्र (Population Maps) इनमें जनसंख्या की विशेषताएं; जैसे वितरण, घनत्व, वृद्धि, स्थानांतरण इत्यादि को दर्शाया जाता है।

3. जातियों का मानचित्र (Racial Maps)-इन मानचित्रों में विभिन्न प्रदेशों में रहने वाली जातियों का वितरण दिखाया जाता है।

4. भाषा मानचित्र (Language Maps) ये मानचित्र भिन्न-भिन्न प्रदेशों में बोली जाने वाली भाषाओं का वितरण दिखाते हैं।

5. आर्थिक मानचित्र (Economic Maps)-इन मानचित्रों में औद्योगिक, व्यापारिक और कृषि संबंधी आर्थिक गतिविधियों के वितरण और उनसे जुड़े प्रमुख केंद्रों को दर्शाया जाता है।

6. परिवहन मानचित्र (Transport Maps)-इन मानचित्रों में सड़क-मार्ग, रेल-मार्ग, वायु-मार्ग, समुद्री-मार्ग तथा पाइप लाइनों को दर्शाया जाता है। पर्यटकों के लिए ये मानचित्र महत्त्वपूर्ण होते हैं।

HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 मानचित्र का परिचय

प्रश्न 4.
मानचित्रों द्वारा किए जाने वाले मापनों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मानचित्रों के उपयोग का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूगोलवेत्ताओं के अतिरिक्त अन्य विषयों के विशेषज्ञ भी मानचित्रों का अधिकाधिक उपयोग कर रहे हैं। इस उपयोग के दौरान वे दूरी, दिशा एवं क्षेत्र को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न प्रकार के मापन करते हैं-
1. दूरी का मापन (Measuring Distance)-मानचित्र पर दिखाए गए रैखिक लक्षण दो प्रकार के होते हैं-

  • सीधी रेखाएं (Straight Lines)
  • टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएं (Irregular lines)

सीधी रेखा वाले लक्षणों; जैसे सड़कें, रेल की पटरियां एवं नहरों इत्यादि को मापना आसान होता है। मानचित्र की सतह पर एक मापनी (फुटा) रखकर इन्हें मापा जा सकता है। किंतु दूरियों को मापने की आवश्यकता प्रायः अव्यवस्थित रास्तों; जैसे तटीय किनारों, नदियों तथा धाराओं को मापने में होती है। इस प्रकार की आकृतियों दूरियों को मापने के लिए धागे का एक छोर प्रारंभिक बिंदु पर रखकर धागे को टेढ़े मार्ग पर रखा जाता है और आखिरी छोर पर पहुंच जाने के बाद धागे को फैलाकर उसकी सही दूरी को मापा जाता है। एक साधारण यंत्र वक्ररेखामापी के द्वारा भी यह मापी जा सकती है। दूरी को मापने के लिए वक्ररेखामापी के पहिए को रास्ते के साथ-साथ घुमाया जाता है।

2. दिशा का मापन (Measuring Direction)-दिशा, मानचित्र पर एक काल्पनिक सीधी रेखा है, जो एक समान आधार से दिशा की कोणीय स्थिति को प्रदर्शित करती है। उत्तर दिशा की ओर संकेत करने वाली रेखा बिंदु को शून्य दिशा या आधार दिशा रेखा कहते हैं। एक मानचित्र सदैव उत्तर दिशा को दर्शाता है। अन्य सभी दिशाओं का निर्धारण इसके संबंध से किया जाता है। सामान्यतः चार दिशाएं मानी जाती हैं (उत्तर, दक्षिण, पूर्व एवं पश्चिम) इन्हें प्रधान दिग्बिंदु (कार्डिनल प्वाइंट) भी कहा जाता है। प्रधान दिग्बिंदुओं के बीच कई अन्य मध्यवर्ती दिशाएं होती हैं।

3. क्षेत्र का मापन (Measuring Area)-प्रशासनिक एवं भौगोलिक इकाइयों जैसी आकृतियों का मापन मानचित्र की सतह पर किया जाता है। मानचित्र उपयोगकर्ताओं द्वारा क्षेत्रों को विभिन्न तरीकों से मापा जाता है। वर्गों की एक नियमित शैली के द्वारा किसी क्षेत्र की माप की जा सकती है, हालांकि यह विधि अधिक परिशद्ध नहीं होती है। इस विधि द्वारा क्षेत्र को मापने के लिए एक प्रदीप्त (Illuminated) ट्रेसिंग टेबल के ऊपर मानचित्र के नीचे एक ग्राफ (आलेख) पेपर रखकर मानचित्र को वर्गों से ढंक लें अथवा स्क्वायर शीट पर उस क्षेत्र को ट्रेस कर लें। ‘संपूर्ण वर्गों की संख्या को ‘आंशिक वर्गों के साथ जोड़ लिया जाता है। इसके बाद एक साधारण समीकरण द्वारा क्षेत्रफल मापा जाता है।
HBSE 11th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 मानचित्र का परिचय 4
क्षेत्रफल की गणना स्थिर ध्रुवीय प्लेनीमीटर की सहायता से भी की जा सकती है।

प्रश्न 5.
भूगोल में मानचित्रों के महत्त्व (उपयोग/आवश्यकता) को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भूगोल में मानचित्रों का महत्त्व (उपयोग/आवश्यकता) (Importance of Maps in Geography)-सूचना क्रांति के आधुनिक युग में मानचित्रों का उपयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। भूगोल ही नहीं, ज्ञान-विज्ञान का शायद है मानचित्रों की उपयोगिता का महत्त्व न अनुभव किया गया हो। मानचित्र सूचनाओं का अगाध स्रोत माने जाते हैं।

ये विभिन्न तकनीकों व विधियों के द्वारा भू-तल पर प्राकृतिक और मानवकृत लक्षणों की विविधता को शानदार ढंग से प्रदर्शित करते हैं। इनसे पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले विभिन्न तत्त्वों के बीच अंतर्संबंधों का पता चलता है। जलवायु, वनस्पति, मृदा, जनसंख्या, बस्ती प्रारूपों, प्रवाह-प्रणालियों तथा भूमि-उपयोग संबंधी किसी भी मानवीय अथवा भौतिक पक्ष की खोज (Research) मानचित्रों के बिना संभव नहीं है।

यदि विश्व के सभी भागों का स्वयं भ्रमण करके भी किसी तथ्य का अध्ययन किया जाए तो भी मानचित्र आवश्यक हैं, क्योंकि तथ्यों का क्षेत्रीय स्तर पर तुलनात्मक अध्ययन और प्राप्त ज्ञान का प्रदर्शन मानचित्रों द्वारा ही संभव होता है। विश्व में जनसंख्या विस्फोट के चलते प्राकृतिक संसाधनों की खोज और उनका अंकन मानचित्रों के बिना संभव नहीं।

मानचित्रों के बिना भूगोल को न ही समझा जा सकता है और न ही उसे रोचक बनाया जा सकता है। मानचित्र हैं तो भूगोल है। एक अच्छा मानचित्र हमें इतनी सूचना, सामग्री और विचार देता है जिन्हें हम जीवन भर घूम-घूम कर भी एकत्रित नहीं कर सकते। एक मानचित्र पस्तक के सैकड़ों पन्नों के समान हो सकता है। एच०आर० मिल ने उचित कहा है, “भगोल में हमें यह सिद्धांत मान लेना चाहिए कि जिसका मानचित्र नहीं बनाया जा सकता, उसका वर्णन भी नहीं किया जा सकता।”

कहा जाता है कि ‘Either map it or scrap it’ इसी कारण मानचित्र भूगोलवेत्ता की आशुलिपि (Short hand) मानी जाती है। युद्धों में हमेशा विजय उन्हीं राष्ट्रों की हुई जिन्होंने मानचित्र बनाने और उनका अध्ययन करने में दक्षता प्राप्त की। संभवतः इसी भरोसे पर हिटलर कहा करता था, “मुझे किसी भी देश का विस्तृत मानचित्र दो और मैं उस देश पर विजय प्राप्त कर लूंगा।”

इसीलिए कहा जाता है, “मानचित्र एक भूगोलवेत्ता के मुख्य उपकरण (Tools) हैं। मानचित्रों के बिना भूगोलवेत्ता शस्त्रहीन योद्धा के समान होता है।” (“Maps are the main tools of a Geographer and without maps he is like a warrior without weapons”.)

आज मानचित्रों का उपयोग केवल भूगोल तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि यह मानव जीवन के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक पक्षों को उजागर करने वाला एक सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। सैनिक गतिविधियों, नाविकों, वायुयान चालकों, पर्यटकों, अन्वेषकों, योजनाकारों, नीति-निर्धारकों, राजनीतिज्ञों, प्रशासकों, विद्यार्थियों और वैज्ञानिकों सभी को अपने-अपने उद्देश्य के अनुसार मानचित्रों की आवश्यकता पड़ती है। समाचारों में भी घटना स्थलों का मानचित्रों द्वारा प्रदर्शन बढ़ रहा है। अब तो विज्ञापन का क्षेत्र भी मानचित्रों से अछूता नहीं रहा। अब कंप्यूटरों द्वारा पहले से बेहतर व शुद्ध मानचित्र अत्यंत थोड़े समय में तैयार किए जा सकते हैं। इससे अध्ययन और अध्यापन के क्षेत्र में और अधिक गुणात्मक परिवर्तन आने की संभावना है।

मानचित्र का परिचय HBSE 11th Class Geography Notes

→ जीऑयड (Geoid)-एक लध्वक्ष गोलाभ, जो पृथ्वी के वास्तविक आकार के अनुरूप हो।

→ प्रधान दिग्बिदु-उत्तर (N), दक्षिण (S), पूर्व (E) तथा पश्चिम (W)।

→ भूसंपत्ति मानचित्र बृहत मापनी पर निर्मित मानचित्र, जो कि 1:500 से 1:4,000 की मापनी पर भूसंपत्ति परिसीमा दर्शाने के लिए निर्मित किया जाता है। इसमें प्रत्येक भूमि खंड को एक संख्या द्वारा व्यक्त किया जाता है। मानचित्र कला (Map Art) मानचित्र, चार्ट, खाका तथा अन्य प्रकार के ग्राफ बनाने की कला, विज्ञान तथा तकनीक और उनका अध्ययन तथा उपयोग।

→ मानचित्र क्रम (Map Series)-किसी देश या क्षेत्र के लिए समान मापनी, प्रकार तथा विशिष्टता के साथ बनाए गए मानचित्रों का समूह।

→ मानचित्र प्रक्षेप (Map Projection) गोलाकार सतह को समतल सतह पर प्रदर्शित करने की प्रणाली।

→ रेखाचित्र-वास्तविक मापनी या अभिविन्यास के बिना मुक्त-हस्त द्वारा खींचे गए सरल मानचित्र।

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