Class 11

HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव

Haryana State Board HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class History Important Questions Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव

निबंधात्मक उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
ऐसे कौन-से कारण थे जिनसे 15वीं शताब्दी में यूरोपीय नौचालन को सहायता मिली?
अथवा
15वीं शताब्दी में भौगोलिक खोजों के कारणों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
15वीं शताब्दी में यूरोपवासियों ने भौगोलिक खोजों का सिलसिला आरंभ किया। इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. आर्थिक उद्देश्य (Economic Motives):
यूरोपवासियों को नई खोज यात्राएँ करने में आर्थिक उद्देश्यों की प्रमुख भूमिका थी। 1453 ई० में तुर्कों द्वारा कुंस्तुनतुनिया (Constantinople) पर अधिकार से यूरोपीय व्यापार को गहरा आघात लगा। इस संकट से निपटने के लिए नए प्रदेशों की खोज करना आवश्यक था। 15वीं शताब्दी में यूरोपवासियों की आर्थिक आवश्यकताएँ बहुत बढ़ गई थीं।

नवोदित राष्ट्रीय राज्यों को अपनी सेना के लिए धन आवश्यकता थी। नए प्रदेशों की खोज करके यूरोपवासी अपने इन आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति कर सकते थे। अत: वे नए प्रदेशों की खोज करने के लिए प्रेरित हुए।

2. नए आविष्कार (New Inventions):
14वीं एवं 15वीं शताब्दियों में जहाजरानी से संबंधित नए आविष्कारों ने नाविकों की समुद्री यात्राओं को सुगम बना दिया। 1380 ई० में कुतबनुमा (compass) भाव दिशासूचक यंत्र का आविष्कार हुआ। यह एक सर्वोच्च महत्त्व का आविष्कार था। इससे नाविकों को खुले समुद्र में दिशाओं की सही जानकारी प्राप्त होती थी। 16वीं शताब्दी में एस्ट्रोलेब (astrolab) का आविष्कार हुआ।

इस यंत्र से नाविकों को भूमध्य रेखा (equator) से दूरी मापने में सहायता मिली। इस काल में यूरोपियों ने अपने जहाजों में बहुत सुधार कर लिया था। ये जहाज़ पहले से अधिक हल्के, विशाल एवं तीव्र गति से चलने वाले थे। निस्संदेह इन नवीन आविष्कारों ने समुद्री यात्राएँ करने वालों को एक नई दिशा प्रदान की। प्रसिद्ध इतिहासकार थॉमस एफ० एक्स० नोबल के शब्दों में, “14वीं एवं 15वीं शताब्दियों में जहाजरानी में सहायक सिद्ध हुए अनेक नए आविष्कारों ने खुले समुद्र में यात्राओं को सुगम एवं अधिक पूर्वानुमानित बनाया।

3. टॉलेमी की ज्योग्राफी (Ptolemy’s Geography):
टॉलेमी की ज्योग्राफी ने नए प्रदेशों की खोज में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। टॉलेमी मिस्र का रहने वाला था। उसने दूसरी शताब्दी में ज्योग्राफी की रचना की। यह महत्त्वपूर्ण पुस्तक 1477 ई० में मुद्रित हुई। यह पुस्तक बहुत लोकप्रिय हुई। इससे यूरोपवासी नए प्रदेशों की खोज करने के लिए प्रेरित हुए।

4. मार्को पोलो की यात्राएँ (Travels of Marco Polo):
मार्को पोलो इटली के शहर वेनिस का एक महान् यात्री था। वह 1275 ई० में मंगोलों के महान् नेता कुबलई खाँ (Kublai Khan) के दरबार में पीकिंग (Peking) पहुँचा। कुबलई खाँ ने उसका बहुत सम्मान किया। मार्को पोलो 17 वर्षों तक कुबलई खाँ के दरबार में रहा। इस समय के दौरान वह सरकार के कुछ महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्त हुआ।

वापसी के समय वह जापान, बर्मा, भारत एवं थाइलैंड होता हुआ वापस इटली पहुँचा। यहाँ पहुँच कर उसने मार्को पोलो की यात्राएँ (Travels of Marco Polo) नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की। इसमें उसने पूर्वी देशों के महान् वैभव पर विस्तृत प्रकाश डाला था। उसके विवरण में यूरोपवासियों में इन देशों की समुद्री यात्रा करने की एक होड़-सी आरंभ हो गई।

5. धार्मिक उद्देश्य (Religious Motives):
ईसाई धर्म सदैव से एक प्रचारक धर्म रहा था। ईसाई मिशनरियों ने अपने अथक प्रयासों से मध्यकाल तक संपूर्ण यूरोप में ईसाई धर्म का प्रसार कर दिया था। इसमें उन्हें अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई थी। इसके पश्चात् उन्होंने अपना ध्यान एशिया एवं अफ्रीका की तरफ किया। वे यहाँ के असभ्य लोगों को सभ्य बनाना चाहते थे। इन देशों में ईसाई धर्म का प्रसार करने के लिए बड़ी संख्या में उनके मिशनरी तैयार थे। अतः यूरोपीय व्यापारियों के साथ-साथ ईसाई मिशनरी भी इन देशों में गए। वास्तव में ईसाई धर्म के प्रसार की भावना ने नए देशों की समुद्री खोज को एक नया प्रोत्साहन दिया।

6. आईबेरियाई प्रायद्वीप का योगदान (Contribution of Iberian Peninsula):
15वीं शताब्दी में आईबेरियाई प्रायद्वीप भाव स्पेन एवं पुर्तगाल के देशों ने समुद्री खोज यात्राओं में बहुमूल्य योगदान दिया। अक्सर यह प्रश्न किया जाता है कि स्पेन एवं पुर्तगाल के शासकों ने समुद्री खोजों में अन्य देशों के मुकाबले अग्रणी भूमिका क्यों निभाई ? इसके अनेक कारण थे। प्रथम, इस समय स्पेन एवं पुर्तगाल की अर्थव्यवस्था अच्छी थी जबकि यूरोप की अर्थव्यवस्था गिरावट के दौर से गुजर रही थी।

दूसरा, स्पेन एवं पुर्तगाल के शासक सोना एवं धन दौलत के भंडार एकत्र कर अपने यश एवं सम्मान में वृद्धि करना चाहते थे। तीसरा, वे नई दुनिया में ईसाई धर्म का प्रसार करना चाहते थे। चौथा, धर्मयुद्धों (crusades) के कारण इन देशों की एशिया के साथ व्यापार करने में रुचि बढ़ गई। इन युद्धों के दौरान उन्हें पता चला कि इन देशों के साथ व्यापार करके वे भारी मुनाफा कमा सकते हैं। पाँचवां इन देशों के शासकों ने समुद्री खोज पर जाने वाले नाविकों को प्रत्येक संभव सहायता प्रदान की।

7. पुर्तगाल के राजकुमार हेनरी का योगदान (Contribution of Prince Henry of Portugal):
पुर्तगाल के राजकुमार हेनरी (1394-1460 ई०) ने समुद्री खोज यात्राओं को प्रोत्साहित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अत: वह इतिहास में हेनरी दि नेवीगेटर (Henry, the Navigator) के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसने खोज यात्राओं को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से सारगेस (Sargess) में एक नाविक स्कूल खोला। इस स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने के लिए विश्व के अनेक देशों से नाविक, वैज्ञानिक एवं मानचित्र बनाने वाले आए।

इसके महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले। यहाँ भावी समुद्री खोज यात्राओं की योजना तैयार की जाती थी। यहाँ लंबी दूरी की समुद्री यात्राएँ करने के लिए सुदृढ़ नावों का निर्माण किया गया जिन्हें कैरेवल (caravels) कहा जाता था। नाविकों की सहायता के लिए नए भौगोलिक मानचित्र तैयार किए गए। राजकुमार हेनरी ने व्यापार को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से पश्चिमी अफ्रीका के शासकों के साथ संबंध स्थापित किए तथा बोजाडोर (Bojador) में अपना व्यापारिक केंद्र स्थापित किया।

प्रसिद्ध इतिहासकार बी० वी० राव का यह कहना ठीक है कि, “यद्यपि वह (हेनरी) व्यावसायिक तौर पर एक नाविक नहीं था किंतु उसने भौगोलिक खोजों के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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प्रश्न 2.
क्रिस्टोफर कोलंबस कौन था ? उसकी बहामा द्वीप यात्रा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
क्रिस्टोफर कोलंबस ने नई दुनिया (New World) की खोज में सर्वाधिक उल्लेखनीय योगदान दिया। उसका जन्म 1451 ई० में इटली के प्रसिद्ध शहर जेनेवा (Genoa) में हआ। जेनेवा इटली की एक प्रसिद्ध बंदरगाह थी। अतः यहाँ जहाज़ों का आना-जाना लगा रहता था। अतः कोलंबस के मन में बचपन से ही समुद्री यात्रा करने एवं नाम कमाने की गहरी इच्छा थी।

वह फ्रांसीसी दार्शनिक कार्डिनल पिएर डिऐली द्वारा 1410 ई० में खगोलशास्त्र (Astronomy) एवं भूगोल (Geography) पर लिखी प्रसिद्ध रचना इमगो मुंडी (Imago Mundi) से बहुत प्रभावित हुआ। अतः उसने पूर्व (the Indies) की यात्रा करने का निर्णय किया।

कोलंबस 3 अगस्त, 1492 ई० को स्पेन की एक बंदरगाह पालोस (Palos) से यात्रा के लिए रवाना हुआ। इस समय उसके पास तीन जहाजों-सांता मारिया (Santa Maria), पिंटा (Pinta) तथा नीना (Nina) का एक छोटा-सा बेड़ा था। इनमें कुल 90 नाविक सवार थे। कोलंबस स्वयं सांता मारिया की कमान कर रहा था। इसमें कुल 40 नाविक थे। यह यात्रा काफी लंबी हो गई। समुद्र एवं आकाश के अतिरिक्त कुछ अन्य नज़र नहीं आता था। उनकी खाद्य सामग्री भी कम होने लगी। इससे नाविकों में बेचैनी फैल गई।

वे कोलंबस से तुरंत वापस चलने की माँग करने लगे। सहसा उन्हें 7 अक्तूबर, 1492 ई० को समुद्र के ऊपर कुछ पक्षी उड़ते दिखाई दिए। इससे उनका धैर्य बढ़ गया। उन्हें यह विश्वास हो गया कि उनका बेड़ा किसी भूमि के निकट पहुँचने वाला है। अंतत: उन्हें 12 अक्तूबर, 1492 ई० को भूमि दिखाई दी। इससे उनकी प्रसन्नता का कोई ठिकाना न रहा।

कोलंबस जिस स्थान पर पहुँचा उसने उसे इंडीज (भारत एवं भारत के पूर्व में स्थित देश) समझा। अतः उसने वहाँ के निवासियों को रेड इंडियन्स (Red Indians) कहा। वास्तव में वह बहामा द्वीप समूह के गुआनाहानि (Guanahani) नामक स्थान पर पहुंचा था। जब कोलंबस एवं उसके साथी वहाँ पहुँचे तो वहाँ रहने वाले अरावाक (The Arawaks) लोगों ने उनका भव्य स्वागत किया।

अरावाक लोग इन अपरिचित लोगों को देखकर एक-दूसरे को आश्चर्य से कह रहे थे कि देखो ये लोग स्वर्गलोक से यहाँ आए हैं। इन लोगों ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया। कोलंबस उनकी उदारता से बहुत प्रभावित हुआ। कोलंबस ने उनके संबंध में लिखा है कि, “वे बहुत उदार हैं तथा वे बुराई को नहीं जानते। वे किसी दूसरे की हत्या नहीं करते तथा न ही चोरी करते हैं तथा उनके पास हथियार भी नहीं हैं।”

कोलंबस लगभग तीन महीने गुआनाहानि में रहा। उसने इस द्वीप में स्पेन का झंडा गाड़ दिया। उसने इस द्वीप का नया नाम सैन सैल्वाडोर (San Salvador) रख दिया। उसने स्वयं को वहाँ का वाइसराय (Viceroy) घोषित कर दिया। वाइसराय का अभिप्राय है राजा का प्रतिनिधि। कोलंबस ने इस समय के दौरान क्यूबा (Cuba) एवं हिस्पानिओला (Hispaniola) की खोज की। कोलंबस ने इन स्थानों की खोजें वहाँ से सोना प्राप्त करने के उद्देश्य से की थी किंतु इसमें उसे कोई विशेष सफलता प्राप्त न हुई।

इस समय के दौरान कोलंबस को कैरिब (Carib) नाम के एक खूखार कबीले का सामना करना पड़ा। अत: कोलंबस के साथी नाविकों ने उसे वापस स्पेन चलने के लिए बाध्य किया। कोलंबस ने 4 जनवरी, 1493 ई० को स्पेन की वापसी यात्रा आरंभ की। इस समय उनका सांता मारिया नामक जहाज़ नष्ट हो गया था तथा बाकी दो अन्य जहाजों को दीमक लगनी आरंभ हो गई थी।

कोलंबस एवं उसके साथी 15 मार्च, 1493 ई० को स्पेन की बंदरगाह पालोस वापस पहुँचने में सफल रहे। उनका स्पेन के शासक फर्जीनेंड द्वारा भव्य स्वागत किया गया। कोलंबस ने भी उसे गुआनाहानि से प्राप्त कुछ बहमल्य उपहार भेंट किए। राजा इससे बहत प्रसन्न हआ। अतः उसने कोलंबस को एडमिरल ऑफ दी ओशन सी (Admiral of the Ocean Sea) नामक उपाधि तथा इंडीज का वाइसराय होने की घोषणा की। इसके पश्चात् कोलंबस ने 1493-96 ई०, 1498-1500 ई० तथा 1502-04 ई० में इंडीज की तीन बार और यात्राएँ कीं।

इस समय के दौरान कोलंबस ने वहाँ सख्ती से शासन किया। उसने वहाँ के लोगों को भारी कर देने तथा सोना देने के लिए बाध्य किया। इंकार करने पर लोगों पर घोर अत्याचार किए जाने लगे। इस कारण वहाँ के लोगों में स्पेनी शासन रोष फैलने लगा। जब यह समाचार स्पेन के शासक फर्जीनेंड को प्राप्त हआ तो उसने कोलंबस को जंजीरों में जकड़ कर दरबार में प्रस्तुत करने को कहा। उसके आदेश की पालना करते हुए कोलंबस को 7 नवंबर, 1504 ई० को दरबार में प्रस्तुत किया गया।

कोलंबस द्वारा क्षमा याचना माँगने पर रानी ईसाबेला ने उसे क्षमा कर दिया किंतु उससे वाइसराय की पदवी छीन ली गई। कोलंबस की 20 मई, 1506 ई० को अत्यंत निराशा की स्थिति में स्पेन के शहर वल्लाडोलिड (Valladolid) में मृत्यु हो गई। प्रसिद्ध इतिहासकार माईकल एच० हार्ट के अनुसार, “उसकी खोज ने नई दुनिया में खोजों एवं उपनिवेशों के युग का आरंभ करके इतिहास को एक नया मोड़ दिया। 1499 ई० में इटली के एक भूगोलवेत्ता अमेरिगो वेस्पुसी (Amerigo Vespucci) ने दक्षिण अमरीका की यात्रा की।

उसने अपनी यात्रा का विस्तृत वर्णन किया तथा दक्षिण अमरीका को नयी दुनिया (New World) के नाम से संबोधित किया। 1507 ई० में एक जर्मन प्रकाशक ने अमेरिगो वेस्पुसी के बहुमूल्य योगदान को देखते हुए नई दुनिया को अमरीका का नाम दिया।

प्रश्न 3.
हरनेडो कोटेंस कौन था? उसने मैक्सिको पर किस प्रकार विजय प्राप्त की?
उत्तर:
हरनेडो अथवा हरनन कोर्टेस जिसने मैक्सिको पर महत्त्वपूर्ण विजय प्राप्त की थी स्पेन का एक महत्त्वपूर्ण विजेता था। उसे तथा उसके सैनिकों को जिन्होंने मैक्सिको पर आक्रमण किया था इतिहास में कोक्विस्टोडोर (Conquistadores) के नाम से जाना जाता है। हरनेंडो कोर्टस का जन्म 1485 ई० में स्पेन के शहर मेडलिन (Medellin) में हुआ था। 1504 ई० में वह अपना भाग्य आजमाने क्यूबा के गवर्नर की सेना में भर्ती हो गया। यहाँ उसने क्यूबा के गवर्नर के आदेश पर अनेक सैनिक अभियानों में भाग लिया। इनमें कोर्टेस ने अपनी बहादुरी के अनेक प्रमाण दिए।

इससे प्रभावित होकर क्यूबा के गवर्नर ने 1519 ई० में कोर्टेस को मैक्सिको पर आक्रमण करने का आदेश दिया। हरनेडो कोर्टेस फरवरी, 1519 ई० में 600 स्पेनी सैनिकों, 11 जहाजों एवं कुछ तोपों के साथ क्यूबा से रवाना हुआ। शीघ्र ही वे मैक्सिको की एक बंदरगाह वेराक्रुज (Veracruz) पहुँचे। यहाँ उसे डोना मैरीना (Dona Marina) का महत्त्वपूर्ण सहयोग मिला। वह स्पेनिश एवं मैक्सिकन भाषाओं में बहुत प्रवीण थी। उसके सहयोग के बिना कोर्टेस के लिए वहाँ के लोगों की भाषा समझना अत्यंत कठिन था।

डोना मैरीना ने इस कार्य को सरल कर दिया। हरनेंडो कोर्टस का कहना था कि, “परमात्मा के पश्चात् हम न्यू स्पेन की विजय के लिए डोना मैरीना के ऋणी हैं।” डोना मैरीना द्वारा अपने देश के साथ किए गए विश्वासघात के लिए मैक्सिकन लोग उसे मालिंच (Malinche) अथवा विश्वासघातिनी कहते थे। डोना मैरीना के संबंध में हमें महत्त्वपूर्ण जानकारी बर्नाल डियाज़ डेल कैस्टिलो (Bernal Diaz del Castillo) की प्रसिद्ध रचना टु हिस्ट्री ऑफ़ मैक्सिको (True History of Maxico) से प्राप्त होती है। हरनेंडो कोर्टेस ने यह जानकारी भी प्राप्त की कि अनेक कबीलों के लोगों में एजटेक शासक मोंटेजुमा द्वितीय (1502-1520 ई०) के घोर अत्याचारों के कारण भारी रोष है। ये लोग उसके शासन का अंत देखना चाहते थे।

इस स्थिति का लाभ उठाते हुए कोर्टेस ने सर्वप्रथम वहाँ के टोटोनेक (Totonacs) लोगों की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया। इसे फौरन स्वीकार कर लिया गया क्योंकि टोटोनेक एज़टेक शासन से मुक्त होना चाहते थे। स्पेनी सैनिकों ने सर्वप्रथम लैक्सकलान (Tlaxcalans) नामक एक खूखार कबीले पर आक्रमण कर दिया। इस कबीले ने स्पेनी सैनिकों से कड़ा मुकाबला किया परंतु अंततः उनकी पराजय हुई। इसके पश्चात् ट्लैक्सकलान स्पेनी सैनिकों के साथ सम्मिलित हो गए। इससे कोर्सेस का साहस बढ़ गया। इस समय तक एज़टेक शासक मोंटेजुमा द्वितीय ने कोर्टेस की ओर कोई ध्यान नहीं दिया।

ट्लैक्सकलानों पर उसकी विजय के पश्चात् मोंटेजुमा द्वितीय ने अपने एक अधिकारी के हाथों अनेक बहुमूल्य उपहार कोर्टेस को इस उद्देश्य के साथ भेजे कि वह उनके साम्राज्य से वापस चला जाए। कोर्टेस ने जब इन उपहारों को देखा तो उसकी अधिक धन प्राप्त करने की लालसा बढ़ गई। इस अधिकारी ने जब वापस जाकर मोंटेजुमा द्वितीय को स्पेनवासियों की आक्रमण क्षमता, उनके बारूद एवं घोड़े के प्रयोग के बारे में बताया तो वह घबरा गया।

कोर्टेस एवं उसके सैनिकों ने 8 नवंबर, 1519 ई० को एजटेक की राजधानी टेनोक्टिटलान (Tenochtitlan) पर आक्रमण कर दिया। यहाँ तक वे बिना किसी विरोध के पहुंच गए थे। यहाँ वे राजधानी टेनोक्टिटलान की भव्यता को देखकर स्तब्ध रह गए। उन्हें लगा जैसा कि वे कोई स्वप्न देख रहे हों। यहाँ मोंटेजुमा द्वितीय ने कोर्टेस को देवता का अवतार समझ उसका भव्य स्वागत किया। शीघ्र ही कोर्टेस ने मोंटेजुमा द्वितीय को बिना किसी कारण बंदी बना लिया। वास्तव में उसके बंदी बनाए जाने से ही कोर्टेस ने मैक्सिको पर लगभग विजय प्राप्त कर ली थी।

इसी समय हरनेडो कोर्टेस को क्यूबा वापस लौटना पड़ा। अतः उसने अपने सहायक ऐल्वारैडो (Alvarado) को मैक्सिको का प्रशासन सौंपा। स्पेनी शासन बहुत अत्याचारी प्रमाणित हुआ। सोने की निरंतर माँग के कारण वहाँ के लोगों ने विद्रोह कर दिया। अतः ऐल्वारैडो ने हुइजिलपोक्टली (Huizilpochtli) के वसंतोत्सव (spring festival) के दौरान हत्याकांड का आदेश दे दिया। इसने स्थिति को अधिक विस्फोटक बना दिया।

अतः स्थिति से निपटने के लिए कोर्टेस 25 जून, 1520 ई० को वापस लौटा। पर लोगों में स्पेनी शासन के विरुद्ध बहुत रोष था। उन्होंने कोर्टेस के लिए अनेक बाधाएँ उत्पन्न कर दी। सड़क मार्ग बंद कर दिए गए। पुलों को तोड़ दिया गया। जलमार्गों को काट दिया गया। स्पेनियों को भोजन की घोर कमी का भी सामना करना पड़ा। विद्रोहियों ने अथवा स्पेनी सैनिकों ने 29 जून, 1520 ई० को मोंटेजुमा द्वितीय को मौत के घाट उतार दिया। इसके बावजूद एज़टेकों एवं स्पेनियों में लड़ाई जारी रही। 30 जून, 1520 ई० को 600 स्पेनी एवं उतने ही एज़टेक लोग मारे गए।

अतः हत्याकांड की इस भयंकर रात को इतिहास में आँसू भरी रात (Night of Tears) के नाम से जाना जाता है। अंततः कोर्टेस ने 15 अगस्त, 1521 ई० को एज़टेकों को पराजित कर उनके साम्राज्य का अंत कर दिया। इस प्रकार हरनेंडो कोर्टेस ने दो वर्षों के भीतर ही एजटेक साम्राज्य का अंत कर दिया। प्रसिद्ध इतिहासकार जे० एम० फारेगर के अनुसार, “दो वर्षों के भीतर ही कोर्टेस एवं उसकी सेना ने एजटेक साम्राज्य को नष्ट कर दिया। यह एक ऐसी शानदार सफलता थी जिसकी विजयों के इतिहास में कोई अन्य उदाहरण नहीं है।’

हरनेंडो कोर्टेस ने मैक्सिको पर कब्जा करने के पश्चात् भारी मात्रा में स्पेन के शासक चाल्र्स पँचम (Charles V) को सोना एवं बहुमूल्य आभूषण भेजे। इससे प्रसन्न होकर चार्ल्स पँचम ने हरनेंडो कोर्टेस को अनेक सम्मानों से विभूषित किया तथा उसे 1522 ई० में न्यू स्पेन (मैक्सिको का नाम अब परिवर्तित करके न्यू स्पेन रख दिया गया था।) का गवर्नर एवं कैप्टन-जनरल (Governor and Captain-General) बनाया गया।

कोर्टेस ने अपने शासनकाल के दौरान न्यू स्पेन में नए नगरों का निर्माण किया। उसने वहाँ के लोगों पर घोर अत्याचार किए। कोर्टेस के बढ़ते हुए प्रभाव के कारण उसके विरोधियों ने चार्ल्स पँचम के कान भरे। अत: चार्ल्स पँचम ने कोर्टेस की शक्तियों में कुछ कमी कर दी। इससे कोर्टेस को बहुत निराशा हुई। अतः कोर्टेस 1541 ई० में वापस स्पेन आ गया। उसकी 2 दिसंबर, 1547 ई० को सेविली (Seville) में मृत्यु हो गई। निस्संदेह हरनेंडो कोर्टेस ने मैक्सिको में स्पेनी शासन स्थापित करने में बहुमूल्य योगदान दिया।

प्रश्न 4.
फ्रांसिस्को पिज़ारो कौन था? उसने इंका साम्राज्य पर किस प्रकार विजय प्राप्त की ?
उत्तर:
फ्राँसिस्को पिज़ारो पेरू (Peru) पर अधिकार करने वाला स्पेन का एक अन्य प्रसिद्ध विजेता था। उसका जन्म 1478 ई० में स्पेन के शहर ट्रजिलो (Trujillo) में हुआ था। वह एक अत्यंत गरीब परिवार से संबंधित था। अत: वह अनपढ़ रहा। वह 1502 ई० में हिस्पानिओला (Hispaniola) में अपना भाग्य आजमाने आ गया था। यहाँ वह सेना में भर्ती हो गया। 1513 ई० में वह प्रसिद्ध नाविक बालबोआ (Balboa) के साथ यात्रा पर गया जिसने प्रशांत महासागर (Pacific Ocean) की खोज की। इस यात्रा से पिज़ारो बहुत प्रेरित हुआ।

शीघ्र ही उसे इंका राज्य के बारे में यह जानकारी मिली कि यह एक सोने एवं चाँदी का देश (El-do-rado) है। अत: वह इस देश पर अधिकार करने के स्वप्न देखने लगा। 1521 ई० में हरनेंडो कोर्टेस द्वारा मैक्सिको की विजय ने उसमें नव-स्फूर्ति का संचार किया। 1528 ई० में वह पेरू पहुँचने में सफल हो गया।फ्रांसिस्को पिजारो स्पेन की वापसी यात्रा के समय वहाँ से इंका कारीगरों द्वारा बनाए गए सोने के अत्यंत सुंदर कुछ मर्तबान अपने साथ ले आया।

वह स्पेन के शासक चार्ल्स पँचम (Charles V) को 1529 ई० में मिलने में सफल हुआ। उसने अपनी भेंट के दौरान चार्ल्स पँचम को इंका साम्राज्य में उपलब्ध बहुमूल्य दौलत के बारे में जानकारी दी। इससे उसके मन में इस अपार दौलत को प्राप्त करने की इच्छा उत्पन्न हुई। अतः उसने पिज़ारो को यह वचन दिया कि यदि वह इंका साम्राज्य पर विजय प्राप्त करने में सफल हो जाता है तो उसे वहाँ का गवर्नर बना दिया जाएगा।

यह वचन पाकर पिज़ारो बहुत प्रसन्न हुआ। अतः वह इंका साम्राज्य पर आक्रमण करने के लिए किसी सुनहरी अवसर की तलाश करने लगा। 1532 ई० में इंका साम्राज्य में सिंहासन प्राप्त करने के उद्देश्य से दो भाइयों अताहुआल्पा (Atahualpa) एवं हुआस्कर (Huascar) के मध्य गृह युद्ध आरंभ हो गया। अत: यह सुनहरी अवसर देखकर पिज़ारो ने इंका साम्राज्य पर आक्रमण करने की योजना बनाई। उसने केवल 168 सैनिकों एवं 62 घोड़ों के साथ इंका साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया।

इस समय तक अताहुआल्पा ने अपने भाई को पराजित कर सिंहासन प्राप्त कर लिया था। पिज़ारो 15 नवंबर, 1532 ई० को अपने सैनिकों के साथ इंका साम्राज्य के शहर काजामारका (Cajamarca) पहुँचा। यहाँ अताहुआल्पा अपने 40,000 सैनिकों के साथ मौजूद था। इतने सैनिकों का मुकाबला करना पिज़ारो के बस की बात नहीं थी। अतः उसने एक चाल द्वारा अताहुआल्पा को 16 नवंबर, 1532 ई० को बंदी बना लिया। अताहुआल्पा ने अपनी मुक्ति के लिए पिज़ारो को एक कमरा भर सोने की फिरौती देने का प्रस्ताव किया।

उस समय तक के इतिहास में इतनी बड़ी फिरौती कभी नहीं दी गई थी। इसके बावजूद पिज़ारो ने 29 अगस्त, 1533 ई० को राजा का वध करवा दिया। अताहुआल्पा के वध के कारण इंका साम्राज्य के सैनिकों में घोर निराशा फैल गई थी। अतः पिज़ारो एवं उसके सैनिकों ने नवंबर 1533 ई० में सुगमता से इंका साम्राज्य की राजधानी कुजको (Cuzco) पर अधिकार कर लिया। निस्संदेह यह पिज़ारो की एक महान् सफलता थी। दो सौ से भी कम सैनिकों के साथ 6 लाख लोगों के साम्राज्य पर अधिकार करने की कोई अन्य उदाहरण इतिहास में नहीं मिलती।

पिज़ारो के सैनिकों ने कुज़को पर अधिकार करने के पश्चात् वहाँ भयंकर लूटमार की। पिज़ारो ने 1535 ई० में लिमा (Lima) को पेरू की नई राजधानी बनाया। अपने शासन के दौरान पिज़ारो ने इंका साम्राज्य के लोगों पर घोर अत्याचार किए। उसने बड़ी संख्या में लोगों को गुलाम बना लिया तथा उन्हें अधिक-से-अधिक धन देने के लिए विवश किया। अत: 1534 ई० में वहाँ के लोगों ने स्पेनी शासन के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। यह विद्रोह दो वर्षों तक जारी रहा। 26 जून, 1541 ई० को लिमा में पिजारो के एक विरोधी गुट ने उसका वध कर दिया। इस प्रकार स्पेन के इस महान् विजेता का दुःखद अंत हुआ।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव

प्रश्न 5.
16वीं शताब्दी में ब्राजील के पुर्तगाली प्रशासन के संबंध में आप क्या जानते हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ब्राज़ील पर पुर्तगालियों का कब्जा संयोगवश ही हुआ। पुर्तगाली शासक मनोल (Manoel) के आदेश पर पेड्रो अल्वारिस कैनाल (Pedro Alvares Cabral) 9 मार्च, 1500 ई० को 13 जहाजों के एक बेड़े के साथ पुर्तगाल की बंदरगाह तागुस (Tagus) से भारत के लिए रवाना हुआ। समुद्री तूफानों से बचने के लिए वह अपने जहाजों के साथ 22 अप्रैल, 1500 ई० को ब्राजील के तट पर पहुँचा। उसके वहाँ पहुँचने पर वहाँ के मूल निवासियों (natives) ने उसका गर्मजोशी से स्वागत किया। कैब्राल ब्राज़ील में एक सप्ताह रुकने के पश्चात् पूर्व की ओर चल दिया।

उसने ब्राजील की खोज संबंधी पुर्तगाली शासक को अवगत किया। आरंभ में पुर्तगालियों ने ब्राजील की ओर कम ध्यान दिया। इसका प्रमुख कारण यह था कि वहाँ सोना अथवा चाँदी मिलने की संभावना बहुत कम थी। वहाँ केवल ब्राजीलवुड (Brazilwood) नामक वृक्ष पाया जाता था। इससे लाल रंजक (red dye) तैयार की जाती थी। ब्राजीलवुड के नाम के आधार पर ही यूरोपवासियों ने इस प्रदेश का नाम ब्राजील रखा।

पुर्तगाली शासक ने आरंभिक 30 वर्षों में ब्राजील में व्यापारियों को व्यापार करने की अनुमति बदले में वे सरकार को कर देते थे। ब्राजील के मूल निवासी इन व्यापारियों को लोहे के चाकू, छरियों एवं आरियों के बदले में जिन्हें वे अदभत मानते थे. पेड़ों को काटने तथा उन्हें जहाजों तक ले जाने के लिए तैयार हो गए। इसके अतिरिक्त वे इनके बदले में बहुत से बंदर, मुर्गियाँ, तोते, शहद तथा अन्य वस्तुएँ देने के लिए तैयार रहते थे। ब्राजील के मूल निवासी इस बात को समझने में असमर्थ रहे कि पुर्तगाली एवं फ्रांसीसी लोग इस लकड़ी की तलाश में इतनी दूर से क्यों आते हैं तथा घोर परेशानियाँ क्यों झेलते हैं।

पुर्तगालियों के ब्राजील में बढ़ते हुए व्यापार के कारण फ्रांसीसी व्यापारी उनसे ईर्ष्या करने लगे। अत: वे भी ब्राजील पहुंच गए। अतः पुर्तगाली एवं फ्रांसीसी व्यापारियों के मध्य अनेक भयंकर लड़ाइयाँ हुई। इन लड़ाइयों में अंततः पुर्तगालियों की विजय हुई। 1533 ई० में पुर्तगाली शासक जॉन तृतीय (John II) ने ब्राज़ील को 15 आनुवंशिक कप्तानियों (hereditary captaincies) में बाँट दिया। प्रत्येक कप्तानी का प्रमुख डोनाटेरियस (Donatarius) कहलाता था।

उसे विशाल शक्तियाँ प्रदान की गई थीं। उसे लोगों पर कर लगाने तथा उन्हें भूमि अनुदान देने का अधिकार दिया गया था। वे स्थानीय लोगों को गुलाम भी बना सकते थे। उनका मूल निवासियों के प्रति व्यवहार बहुत क्रूर था। 1540 के दशक में पुर्तगालियों ने ब्राजील में व्यापक पैमाने पर गन्ना उपजाने एवं वहाँ चीनी मिलें चलाने का कार्य शुरू किया। इस चीनी की यूरोप के बाजारों में बहुत माँग थी। अत: उन्हें इस व्यापार से बहुत लाभ होने लगा। पुर्तगाली इन चीनी मिलों में काम करने के लिए स्थानीय लोगों पर निर्भर थे।

इन लोगों की चीनी मिलों में काम करने की कोई दिलचस्पी न थी क्योंकि यह काम बहुत नीरस था। अत: पुर्तगालियों ने इन लोगों को गुलाम बना कर वहाँ काम करने के लिए बाध्य किया। पर्तगालियों के घोर अत्याचार से बचने के लिए इन लोगों ने अपने गाँव खाली कर दिए तथा जंगलों में जाकर शरण ली। अत: बहुत कम लोग गाँवों में बचे थे। अत: मिल मालिकों को अफ्रीका से गुलाम मंगवाने के लिए बाध्य होना पडा। स्पेनी उपनिवेशों-एजटेक साम्राज्य एवं इंका साम्राज्य-में स्थिति इससे बिल्कुल विपरीत थी। वहाँ स्थानीय लोगों ने खेतों एवं खानों में काम करने का विरोध नहीं किया।

अतः स्पेनियों को वहाँ गुलामों की आवश्यकता नहीं पड़ी। ब्राजील में डोनाटेरियसों के क्रूर व्यवहार के कारण वहाँ के लोगों में पुर्तगाली प्रशासन के विरुद्ध विरोध बढ़ता जा रहा था। अतः 1549 ई० में पुर्तगाली शासक ने ब्राजील के शासन को सीधा अपने हाथों में लेने का निर्णय किया। इस उद्देश्य से ब्राज़ील में एक गवर्नर-जनरल को नियुक्त किया गया। उसे अपने सभी कार्यों के लिए राजा के प्रति उत्तरदायी बनाया गया। सैल्वाडोर (Salvador) को ब्राजील की राजधानी घोषित किया गया।

इस समय से जेसुइट पादरियों (Jesuit missionaries) ने ब्राज़ील जाना आरंभ कर दिया था। इन पादरियों ने दास प्रथा की कड़े शब्दों में आलोचना की। जेसुइट पादरी एंटोनियो वीइरा का कथन था, “जो भी आदमी दूसरों की स्वतंत्रता छीनता है और उस स्वतंत्रता को वापस लौटाने की क्षमता रखते हुए भी नहीं लौटाता, वह अवश्य ही महापाप का भागी होता है। इसके अतिरिक्त इन पादरियों ने वहाँ के मल निवासियों के साथ अच्छा बर्ताव किए जाने का पक्ष लिया। इन कारणों से यूरोपवासी इन जेसुइट पादरियों को पसंद नहीं करते थे। इन पादरियों ने ब्राज़ील में ईसाई धर्म का खूब प्रचार किया।

प्रश्न 6.
साम्राज्यवाद से क्या अभिप्राय है? साम्राज्यवाद के उत्थान के लिए कौन-से कारण उत्तरदायी थे?
उत्तर:
साम्राज्यवाद से तात्पर्य उस तीव्र इच्छा से है जिसके कारण एक शक्तिशाली देश राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से पिछडे हए किसी दूसरे देश पर बलपूर्वक अधिकार जमाने का प्रयास करता है। इतिहास साक्षी है कि प्राचीनकाल से ही राजाओं की इच्छा दूसरे प्रदेशों पर कब्जा करने की रही है। साम्राज्यवाद शब्द विश्व में पहली बार 16वीं शताब्दी में छपा था।

19वीं शताब्दी में साम्राज्वाद को एक नया रूप सामने आया। इस नवीन साम्राज्यवाद के पीछे राजनीति भावना की अपेक्षा आर्थिक भावना अधिक प्रबल थी। साम्राज्यवादी देश उनके नियंत्रण में आए देशों का खूब शोषण करते थे। साम्राज्यवाद को बढ़ावा देने में पुर्तगाल, स्पेन, इंग्लैंड, फ्रांस, रूस एवं जापान ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई। 19वीं शताब्दी में सामाज्यवाद के प्रसार के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. कच्चे माल की आवश्यकता (Necessity for Raw Materials):
औद्योगीकरण के अधीन यूरोपियन देशों में बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना हुई। इन उद्योगों को चलाने हेतु कच्चे माल की अत्यधिक मात्रा में आवश्यकता थी। हर प्रकार का कच्चा माल देश के अंदर मिलना संभव न था। इसलिए यूरोपीय लोगों ने उन देशों के साथ मेल जोल बढ़ाना शुरू कर दिया था, जहां से उन्हें कच्चा माल अधिक मात्रा में मिल सकता था।

अधिक लाभ कमाने के लिए वे इन देशों से कच्चा माल काफ़ी सस्ते मूल्य पर खरीदते थे। आरंभ में इन यूरोपीय देशों के लोग व्यापारियों के रूप में एशिया तथा अफ्रीका के अनेक भागों में गए। परंतु बाद में उनकी कमजोर राजनैतिक स्थिति और पिछड़ेपन का लाभ उठा कर उन देशों पर अपना अधिकार कर लिया। इन स्थानों पर अधिकार करने हेतु इन देशों में परस्पर होड़ लग गई। इस प्रकार कच्चे माल की आवश्यकता ने साम्राज्यवाद को जन्म दिया।

2. नई मंडियों की खोज (The Search for New Markets):
यूरोप के देशों में औद्योगिक क्रांति के आने से बहुत-से नए और बड़े-बड़े कारखानों की स्थापना हुई। इन कारखानों में पहले से कहीं अधिक माल तैयार होने लगा। यह माल उस देश की आवश्यकताओं से कहीं अधिक होता था। अधिक लाभ कमाने के लिए और देश में मूल्य नियंत्रण रखने के लिए, इस माल को विदेशों में बेचना बहुत आवश्यक था।

इस माल को वे यूरोप के देशों में नहीं बेच सकते थे क्योंकि इनमें से बहुत-से देशों ने संरक्षण नीति को अपनाया हुआ था। इसके अधीन उन्होंने कानून पास करके विदेशों से तैयार माल खरीदने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसीलिए इन देशों ने अपना तैयार माल बेचने के लिए नई मंडियों की खोज शुरू कर दी। परिणामस्वरूप इन देशों ने एशिया तथा अफ्रीका से बहुत-से देशों पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार साम्राज्यवाद की भावना को प्रोत्साहन मिला।

3. जनसंख्या में वृद्धि (Increase in Population):
19वीं शताब्दी से यूरोप के कुछ बड़े देशों में जनसंख्या में निरंतर वृद्धि हो रही थी। इन देशों में से इंग्लैंड, जर्मनी तथा फ्राँस प्रमुख थे। इस बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण लोगों को रोजगार देने तथा उन्हें बसाने की समस्या ने जटिल रूप धारण कर लिया था। इस समस्या पर नियंत्रण पाने के लिए बड़े राष्ट्रों ने अतिरिक्त जनसंख्या को अपने अधीन उपनिवेशों में भेजना आरंभ कर दिया। ये लोग या तो प्रमुख प्रशासनिक एवं सैनिक पदों पर लग गए अथवा उन्होंने वहाँ अपने उद्योग स्थापित कर लिए। धीरे धीरे उन्होंने इन उपनिवेशों में अपना प्रभाव बढ़ा लिया।

4.ईसाई प्रचारक (Christian Missionaries):
ईसाई प्रचारकों ने भी साम्राज्यवाद के प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इन प्रचारकों ने पिछड़े देशों में जा कर अपने धर्म का प्रचार किया। उन्होंने वहाँ के लोगों में फैले धार्मिक अंधविश्वासों को दूर करने का यत्न किया। इस प्रकार अनेक लोगों ने प्रभावित होकर उनके धर्म में शामिल होना आरंभ कर दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने धन का लालच देकर अनेक लोगों को अपने धर्म में शामिल करना शुरू कर दिया। इस प्रकार धीरे-धीरे उनका प्रभाव एशियाई और अफ्रीकी देशों में बढ़ना शुरू हो गया।

5. उच्चतम सभ्यता में विश्वास (Faith in Higher Civilization):
19वीं शताब्दी में यूरोप के अधिकाँश देशों में एक नई राष्ट्रीय जागृति का विकास हुआ। इस विकास के फलस्वरूप यूरोप के प्रमुख देश अपनी सभ्यता पर अधिक गर्व करने लग पड़े। उनके अनुसार केवल उनकी सभ्यता ही विश्व में विकसित सभ्यता थी। उन्होंने अपनी-अपनी सभ्यता का विकास अविकसित देशों में करना आवश्यक समझा। उनका कहना था कि “हीन जातियों को सभ्य बनाना श्रेष्ठ जातियों का कर्तव्य है।” अधिक-से-अधिक उपनिवेशों को अपने प्रभावाधीन लाने को वे अपने राष्ट्र के लिए सम्मान का चिह्न मानते थे।

6. अतिरिक्त पूँजी का लगाना (Investment of Extra Capital):
औद्योगिक प्रगति के फलस्वरूप यूरोपीय देशों के लोग बहुत धनवान् हो गए। इनके पास पूँजी की मात्रा बढ़ गई, परंतु इस समय ब्याज की दर कम होने के कारण वे पूँजी को बैंकों में रखना नहीं चाहते थे। वे उपनिवेशों में इस अतिरिक्त पूँजी को उद्योग स्थापित करने में लगाना चाहते थे।

अत: उन्होंने अधीनस्थ उपनिवेशों में उद्योग स्थापित किए। वहाँ का कच्चा माल सस्ते दाम पर लेकर निर्मित माल अधिक दामों पर बेचना आरंभ कर दिया। इस प्रकार अपनी पूँजी से अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त करने हेतु उन्होंने अधीन उपनिवेशों में अधिक-से-अधिक कारखाने आदि स्थापित करके अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू कर दिया।

7. देशों का पिछडापन (Backwardness of the Countries):
एशिया तथा अफ्रीका के अधिकाँश देश रोपियन देशों से अनेक पक्षों से पिछडे हए थे। उनके पास न तो आधनिक शस्त्र थे और न ही अच्छी प्रशिक्षित सेना। इसके अतिरिक्त उनमें राजनीतिक एकता का भी अभाव था। वे परस्पर लड़ते-झगड़ते रहते थे। इन कारणों से वे यूरोपियन देशों का मुकाबला न कर सके। अतः यूरोप के शक्तिशाली राष्ट्रों के लिए इन पिछड़े देशों पर अधिकार करना सुगम हो गया।

8. यातायात और संचार के साधन (Means of Transport and Communications) :
यातायात तथा संचार के साधनों के विकास ने साम्राज्यवाद की भावना को प्रोत्साहन दिया। भाप से चलने वाले जहाजों तथा रेलगाड़ियों ने एक स्थान से दूसरे स्थान पर यात्रा को सरल बना दिया। अब यूरोपीय देशों द्वारा उपनिवेशों के आंतरिक भागों से कच्चा माल प्राप्त करने तथा वहाँ अपने देश का बना माल बेचने का कार्य पहले से कहीं सुगम हो गया। तार के द्वारा दूर-दूर के स्थानों के साथ संपर्क संभव हो पाया। इस प्रकार यातायात और संचार के साधनों ने साम्राज्यवाद के विस्तार कार्य को पहले की अपेक्षा कहीं अधिक सुगम बना दिया।

प्रश्न 7.
अरावाक कौन थे? उनके जीवन की मुख्य विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अरावाकी कबीले के लोग कैरीबियन सागर में स्थित छोटे-छोटे द्वीप समूहों जिन्हें आजकल बहामा (Bahamas) कहा जाता है एवं वृहत्तर एंटिलीज (Greater Antilles) में रहते थे। वे अरावाकी लुकायो (Arawakian Lucayos) के नाम से भी जाने जाते थे। वे बहुत शाँतिप्रिय लोग थे। वे लड़ने की अपेक्षा बातचीत से झगड़ा निपटाना अधिक पसंद करते थे। उन्हें कैरिब (Caribs) नामक एक खूखार कबीले ने दक्षिण अथवा लघु ऐंटिलीज (Lesser Antilles) से सहजता से खदेड़ दिया था।

अरावाकी लोग अपने वंश के बुजुर्गों के अधीन संगठित रहते थे। उनका न तो कोई राजा था तथा न ही कोई सेना। चर्च का भी उनके जीवन पर कोई नियंत्रण न था। इस प्रकार वे एक स्वतंत्र जीवन व्यतीत करते थे। उनमें बहु विवाह प्रथा प्रचलित थी। वे स्त्रियों का बहुत सम्मान करते थे। वे कुशल नौका निर्माता थे। वे नौकाओं में बैठकर खुले समुद्र की यात्रा करते थे एवं मछलियाँ पकड़ते थे। उनके प्रमुख शस्त्र तीर एवं कमान थे। इनके द्वारा वे पशुओं का शिकार करते थे। इनके अतिरिक्त वे खेती का धंधा भी करते थे।

उनकी प्रमुख फ़सलें मक्का (corn), मीठे आलू (sweet potatoes), कंद-मूल (tubers) एवं कसावा (cassava) थे। वे खेती का अधिक विस्तार नहीं कर सके क्योंकि उनके पास घने जंगलों की सफाई करने के लिए लोहे की कुल्हाड़ी नहीं थी। अरावाकी गाँवों में रहते थे। उनके घर साधारण प्रकार के थे। यद्यपि वे सोने के गहने पहनते थे किंतु वे यूरोपियों की तरह सोने को उतना महत्त्व नहीं देते थे। यदि कोई यूरोपीय उन्हें सोने के बदले काँच के मनके (glass beads) दे देता था तो वे बहुत प्रसन्नता से इन्हें स्वीकार करते थे।

इसका कारण यह था कि काँच का मनका उन्हें अधिक सुंदर लगता था। वे बुनाई की कला में बहुत निपुण थे। उनके हैमक (Hammock) नामक झूले को देखकर यूरोपीय भी दंग रह गए थे। अरावाकियों का धर्म में अटूट विश्वास था। वे जीववादी (Animists) थे। उनका विश्वास था कि निर्जीव वस्तुओं-पत्थर एवं पेड़ आदि में भी जीवन होता है। वे जादू-टोनों में भी विश्वास रखते थे। शमन लोग (Shamans) लोगों के कष्टों को दूर करने में प्रमुख भूमिका निभाते थे।

अरावाकी बहुत उदार थे। 1492 ई० में जब क्रिस्टोफर कोलंबस (Cristopher Columbus) बहामा द्वीप में पहुँचा तो अरावाकियों ने उसका गर्मजोशी के साथ स्वागत किया। कोलंबस उनकी उदारता से बहुत प्रभावित हुआ था। इस बारे में उसने अपने रोज़नामचे (log-book) में लिखा, “वे इतने ज्यादा उदार एवं सरल स्वभाव के लोग हैं कि अपना सब कुछ देने को तैयार हैं। वे कभी इंकार नहीं करते; बल्कि वे सदा बाँटने को तत्पर रहते हैं और इतना अधिक प्यार जताते हैं कि मानो उनका प्यार भरा कलेजा ही बाहर निकल आएगा।’
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 8 iMG 1
स्पेनी प्रशासन के अधीन अरावाकियों पर घोर अत्याचार किए गए। उन्हें सोने एवं चाँदी की खानों में कार्य करने के लिए बाध्य किया गया। इस कारण अरावाकी उनके विरुद्ध हो गए। स्पेनियों ने उनका क्रूरता से दमन किया। इसके अतिरिक्त यूरोपियों के आगमन से बहामा में अनेक भयंकर बीमारियाँ फैल गईं। इनके चलते स्पेनियों के संपर्क में आने के बाद 25 वर्ष के अंदर ही अरावाकी सभ्यता लुप्त हो गई। निस्संदेह यह एक दुःखदायी अध्याय था।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव

प्रश्न 8.
एजटेक सभ्यता की मुख्य विशेषताएँ क्या थीं ? इस सभ्यता के पतन के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर:
एजटेक एक युद्धप्रिय एवं यायावर कबीला था। वे उत्तर मैक्सिको के रहने वाले थे। वे भोजन की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते थे। एजटेकों ने मैक्सिको की मध्यवर्ती घाटी में 12वीं शताब्दी में बसने का निर्णय किया। मैक्सिको नाम एजटेकों के एक प्रमुख देवता मैक्सिली (Mexitli) के नाम पर पड़ा था।

1. एटेक साम्राज्य (Aztec Empire):
एजटेकों ने एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की थी। इसकी सीमाएं 2 लाख वर्ग किलोमीटर तक फैली हुई थीं। 15वीं शताब्दी में एजटेकों की शक्ति अपने शिखर पर थी। उस समय एजटेक साम्राज्य में 38 प्राँत थे। प्रत्येक प्रांत का मुखिया एक सैनिक गवर्नर होता था। उसकी सहायता के लिए एक सैनिक दल होता था। ये सैनिक लोगों से कर वसूल करते थे तथा गैर-एजटेक लोगों पर घोर अत्याचार करते थे। जॉन ए० गैरटी एवं पीटर गे के अनुसार, “एजटेक खन के प्यासे लोग थे तथा उनका साम्राज्य एक राजनीतिक राज्य की अपेक्षा सैनिक राज्य अधिक था।”

2. सम्राट की स्थिति (Position of the Emperor):
समाज में सम्राट् का स्थान सर्वोच्च था। उसे निरंकुश शक्तियाँ प्राप्त थीं। उसके मुख से निकला प्रत्येक शब्द कानून समझा जाता था। कोई भी उसकी आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस नहीं करता था। वह भव्य महलों में निवास करता था। उसके दरबार में विशेष नियमों का पालन किया जाता था। प्रजा उसकी देवता समान उपासना करती थी। उसे पृथ्वी पर सूर्य देवता का प्रतिनिधि समझा जाता था। राजा का चुनाव अभिजात वर्ग द्वारा किया जाता था।

3. कला (Art):
एजटेक शासक महान् कला प्रेमी थे। पाँचवें एज़टेक सम्राट् मोटेजुमा प्रथम (Montezuma I) ने 1325 ई० में टेनोस्टिटलान (Tenochtitlan) नामक राजधानी का निर्माण करवाया। इसका मैक्सिको झील के मध्य निर्माण किया गया था। इसे भव्य महलों, मंदिरों एवं उपवनों से सुसज्जित किया गया था। इस शहर की भव्यता को देखकर बाद में आने वाले स्पेनवासी भी चकित रह गए थे। 16वीं शताब्दी में इसकी गणना अमरीका के सबसे बड़े शहरों में की जाती थी।

4. श्रेणियों (Classes):
एज़टेक समाज श्रेणीबद्ध था। इसमें अभिजात वर्ग (aristocracy) को सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। इसमें शाही परिवार के सदस्य, पुरोहित, सैनिक अधिकारी एवं कुछ धनी व्यापारी सम्मिलित थे। उन्हें राज्य के महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया जाता था। वे भव्य महलों में निवास करते थे। उन्हें अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे।

समाज में उनकी बहुत प्रतिष्ठा थी। व्यापारियों को सरकारी राजदूतों एवं गुप्तचरों के रूप में कार्य करने का अवसर दिया जाता था। समाज में प्रतिभाशाली शिल्पियों, चिकित्सकों एवं अध्यापकों को भी सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। समाज में सबसे निम्न स्थान दासों का था। उनकी स्थिति अत्यंत शोचनीय थी। युद्धबंदियों को दास बना लिया जाता था। गरीब लोग भी विवश होकर अपने बच्चों को दासों के रूप में बेच देते थे।

5. व्यवसाय (Occupations):
एज़टेक लोग विभिन्न प्रकार के व्यवसाय करते थे। उनका मुख्य व्यवसाय कृषि था। क्योंकि एजटेक लोगों के पास भूमि की कमी थी इसलिए उन्होंने एक विशेष ढंग को अपनाया। वे सरकंडे (reed) की चटाइयाँ (mats) बुनकर उन्हें मिट्टी एवं पत्तों से ढक कर मैक्सिको झील में कृत्रिम टापू (artificial islands) बना लेते थे।

इन्हें चिनाम्पा (chinampas) कहा जाता था। इस भूमि पर स्वामित्व किसी व्यक्ति विशेष का नहीं अपितु कुल का होता था। यहाँ की प्रमुख फ़सलें मक्का (corn), फलियाँ (beans), कद्दु (pumpkins), कसावा (manioc root), आलू (potatoes) आदि थीं। कृषि के अतिरिक्त एजटेक लोग वस्त्र बनाने, गहने बनाने, मिट्टी के बर्तन बनाने तथा धातुओं के औजार बनाने का कार्य भी करते थे।

6. शिक्षा (Education):
एजटेक लोग शिक्षा पर विशेष बल देते थे। अभिजात वर्ग के बच्चे जिन स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करते थे उन्हें कालमेकाक (Calmecac) कहा जाता था। यहाँ उन्हें पुरोहित एवं योद्धा बनने का प्रशिक्षण दिया जाता था। उस समय एजटेक समाज में इन दोनों व्यवसायों की विशेष माँग थी। सामान्य लोगों के बच्चे जिन स्कूलों में पढ़ते थे उन्हें तेपोकल्ली (Telpochcalli) कहा जाता था। यहाँ लड़कों को सैन्य प्रशिक्षण, कृषि एवं व्यापार करना सिखाया जाता था। उन्हें धर्म, उत्सवी गीतों एवं इतिहास संबंधी शिक्षा भी दी जाती थी। लड़कियों को घरेलू कार्यों की एवं नैतिक शिक्षा दी जाती थी।

7. स्त्रियों की स्थिति (Position of women):
एजटेक समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी थी। उन्हें शिक्षा का अधिकार प्राप्त था। कुछ स्त्रियाँ पुरोहित का कार्य करती थीं। इस व्यवसाय को समाज में विशेष सम्मान प्राप्त था। कुछ स्त्रियाँ पुरुषों के साथ कृषि कार्य करती थीं। कुछ स्त्रियाँ दुकानदारी का कार्य भी करती थीं। अधिकांश स्त्रियाँ घरेलू जीवन व्यतीत करती थीं। उस समय लड़कियों का विवाह प्रायः 16 वर्ष की आयु में कर दिया जाता था। विवाह के समय बहुत जश्न मनाया जाता था। उस समय लड़कियों को दहेज देने की प्रथा प्रचलित थी।

8. धर्म (Religion):
एजटेक लोग अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे। उनका पंचांग (calendar) 18 माह में विभाजित था। प्रत्येक माह किसी विशेष देवी-देवता को समर्पित था। सूर्य देवता उनका सबसे प्रमुख देवता था। वह विश्व की सभी घटनाओं की जानकारी रखता था तथा पापियों को दंड देता था। युद्ध देवता उनका दूसरा महत्त्वपूर्ण देवता था।

युद्ध में विजय अथवा पराजय उसकी कृपा पर निर्भर करती थी। अन्न देवी (corn goddess) उनकी प्रमुख देवी थी। उसे सभी देवताओं की जननी समझा जाता था। इन देवी-देवताओं की स्मृति में विशाल एवं भव्य मंदिरों का निर्माण किया जाता था। इन मंदिरों में इन देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित की जाती थीं। इन देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के उद्देश्य से प्रति वर्ष बड़ी संख्या में लोगों की बलियाँ दी जाती थीं। एजटेक . लोग मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास रखते थे। उनमें अनेक प्रकार के अंध-विश्वास भी प्रचलित थे।

9. पतन (Decline):
1519 ई० में स्पेन के हरनेडो कोर्टस (Hernando Cortes) ने एज़टेक साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया। उसने दो वर्षों के भीतर ही संपूर्ण एजटेक सभ्यता को रौंद डाला। एज़टेक साम्राज्य का इतनी शीघ्र पतन क्यों हो गया इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। सर्वप्रथम, एजटेक शासकों ने लोगों पर भारी कर लगाए थे। इस कारण उनमें भारी असंतोष था। दूसरा, एज़टेक शासकों की लगातार लड़ाइयों के कारण सैनिक भी ऊब चुके थे।

तीसरा, एज़टेक शासकों ने जिन नवीन क्षेत्रों को अपने अधीन किया वहाँ के लोगों पर घोर अत्याचार किए। इस कारण उनमें घोर असंतोष था। चौथा, एजटेक साम्राज्य में रोजाना बड़ी संख्या में युद्धबंदियों एवं गैर एज़टेक लोगों को बलि चढ़ा दिया जाता था। इस कारण लोग ऐसे अत्याचारी शासन का अंत करना चाहते थे। अतः इन लोगों ने हरनेडो कोर्टेस के आक्रमण के समय उसकी यथासंभव सहायता की। अतः ऐसे साम्राज्य का डूबना कोई हैरानी की बात नहीं थी।

प्रश्न 9.
इंका सभ्यता के बारे में आप क्या जानते हैं ? इस सभ्यता के पतन के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर:
इंका सभ्यता दक्षिण अमरीका की सबसे प्रसिद्ध एवं शक्तिशाली सभ्यता थी। इस सभ्यता की स्थापना 12वीं शताब्दी में मैंको कपाक (Manco Capac) ने पेरू (Peru) में की थी। उसने कुजको (Cuzco) को अपनी राजधानी घोषित किया। यह सभ्यता 15वीं शताब्दी में अपनी उन्नति के शिखर पर थी। इस सभ्यता का सबसे शाक्तशाली शासक पचकुटी इंका (Pachacuti Inca) था। वह नौवां इंका शासक था। वह 1438 ई० में सिंहासन पर बैठा था। उसके शासनकाल में इंका साम्राज्य की सीमाओं में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। इंका साम्राज्य उत्तर में इक्वेडोर (Ecuador) से लेकर दक्षिण में चिली (Chile) तक फैला हुआ था। इसका क्षेत्रफल 3000 मील था तथा इसकी जनसंख्या 10 लाख से अधिक थी।

1. सम्राट् की स्थिति (Position of the Emperor):
इंका साम्राज्य में सम्राट् की स्थिति सर्वोच्च थी। उसे सूर्य देवता का पुत्र समझा जाता था। राज्य के सभी लोग अपने सम्राट् की देवता समान उपासना करते थे। सम्राट को अनेक शक्तियाँ प्राप्त थीं। उसके मुख से निकला प्रत्येक शब्द कानून समझा जाता था। सम्राट् की आज्ञा का उल्लंघन करना मृत्यु को निमंत्रण देना था। इंका सम्राट् अताहुआल्पा (Atahualpa) का कथन था कि, “मेरे साम्राज्य में मेरी इच्छा के बिना न तो कोई पक्षी उड़ सकता है तथा न ही कोई पत्ता हिल सकता है।

2. प्रशासन (Administration):
इंका शासक कुशल प्रशासक थे। उनके प्रशासन का मुख्य उद्देश्य लोक भलाई था। इंका शासकों ने प्रशासन की कुशलता के उद्देश्य से इसे अनेक प्रांतों में विभाजित किया था। प्रत्येक प्रांत का मुखिया एक गवर्नर होता था। वह अभिजात वर्ग से संबंधित होता था। वह अपने अधीन प्रांत में कानून एवं व्यवस्था के लिए उत्तरदायी होता था। उसकी सहायता के लिए कुछ सैनिक एवं अन्य अधिकारी होते थे। इंका साम्राज्य में अनेक कबीले थे। प्रत्येक कबीला स्वतंत्र रूप से वरिष्ठों की सभा (Council of Elders) द्वारा शासित होता था।

इनका चुनाव कबीले के सदस्यों द्वारा लोकतांत्रिक ढंग से किया जाता था। प्रत्येक कबीला अपने कार्यों के लिए शासक के प्रति उत्तरदायी था। शासक उनके कार्यों पर प्रभावी ढंग से नियंत्रण रखता था। निस्संदेह इंका शासकों का प्रशासन बहुत उच्च कोटि का था। प्रसिद्ध इतिहासकार पी० एस० फ्राई के कथनानुसार, “इंका ने अपने विशाल साम्राज्य का प्रशासन एक कुशल संगठन द्वारा चलाया जिसका मुकाबला प्राचीन काल रोम के साथ किया जा सकता है।”

3. भवन निर्माण (Architecture):
इंका सभ्यता के लोग महान् भवन निर्माता थे। कुजको (Cuzco) एवं माचू-पिच्चू (Machu-Picchu) नामक शहरों में बने उनके भव्य महल, किले, मंदिर एवं अन्य भवन उनकी उच्च कोटि की भवन निर्माण कला को दर्शाते हैं। इन भवनों की दीवारों को बनाते समय वे विशाल पत्थरों का प्रयोग करते थे। इनमें से कुछ पत्थरों का वजन 100 टन से भी अधिक तक होता था। इन पत्थरों को वे मजदूरों एवं रस्सियों के सहयोग से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते थे। इन पत्थरों को जो कि वास्तव में बड़ी चट्टानें होती थीं बहुत बारीकी से तराशा जाता था।

इन पत्थरों को आपस में जोड़ने के लिए इंका मिस्त्री किसी गारे अथवा सीमेंट का प्रयोग नहीं करते थे। इसके बावजूद उनके द्वारा बनवाए गए भवन बहुत मज़बूत होते थे। इन भवनों को शल्क पद्धति (flaking) द्वारा सुंदर बनाया जाता था। भवनों के अतिरिक्त इंका लोगों ने पहाड़ों के मध्य संपूर्ण साम्राज्य में सड़कें, पुल एवं सुरंगें बनाईं। इनसे उनके इंजीनियरिंग कौशल का पता चलता है। प्रसिद्ध इतिहासकार जे० एच० हाल का यह कथन ठीक है कि, “इंका भवन निर्माण कला के शिखरों को नई दुनिया में भी नहीं छुआ जा सका है।”

4. विभिन्न श्रेणियाँ (Various Classes):
इंका समाज विभिन्न श्रेणियों में विभाजित था। समाज में सर्वोच्च स्थान सम्राट् को प्राप्त था। वह भव्य महलों में रहता था। वह बहुमूल्य वस्त्र पहनता था। उसकी देखभाल के लिए बड़ी संख्या में नौकर होते थे। उसके मनोरंजन के लिए बड़ी संख्या में रखैलें (concubines) भी होती थीं। सम्राट् के पश्चात् दूसरा स्थान कुलीनों (nobles) एवं पुरोहितों (priests) को प्राप्त था।

उन्हें अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। वे एक समृद्ध जीवन व्यतीत करते थे। शिक्षक, डॉक्टर एवं सैनिक मध्य वर्ग से संबंधित थे। उनका जीवन निर्वाह भी सुगमता से हो जाता था। किसान एवं दस्तकार साधारण वर्ग से संबंधित थे। उन्हें अपने जीवन निर्वाह के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। समाज में सबसे निम्न स्थान दासों को प्राप्त था। उनका जीवन जानवरों से भी बदतर था। ई० एम० बर्नस एवं अन्य के शब्दों में, “इंका समाज मानव समुदायों में पाए जाने वाले सबसे कठोर समाजों में से एक था।”

5. स्त्रियों की स्थिति (Position of Women):
समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी। उनका परिवार में पूर्ण सम्मान किया जाता था। उन्हें शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार दिया गया था। वे अपना पति चुनने के लिए भी स्वतंत्र थीं। उनमें बाल विवाह की प्रथा प्रचलित नहीं थी। विधवा को दुबारा विवाह करने की अनुमति थी। अधिकाँश स्त्रियाँ घरेलू होती थीं। कुछ स्त्रियाँ पुरोहित का कार्य करती थीं। उस समय की स्त्रियाँ त्योहारों में बढ़ चढ़ कर भाग लेती थीं।

6. शिक्षा (Education):
इंका समाज में शिक्षा को विशेष महत्त्व दिया जाता था। प्रत्येक बच्चे को शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्कूल भेजा जाता था। लड़कों को प्रायः सैनिक एवं पुरोहित बनने संबंधी शिक्षा दी जाती थी। अधिकाँश लड़कियों को घरेलू कार्यों संबंधी शिक्षा दी जाती थी। कुछ लड़कियाँ पुरोहित संबंधी प्रशिक्षण ग्रहण करती थीं। उस समय विद्यार्थियों को मौखिक (oral) शिक्षा दी जाती थी।

इसका कारण यह था कि इंका समाज में कोई लेखन प्रणाली प्रचलित नहीं थी। वे अपना हिसाब क्विपु (quipu) प्रणाली से रखते थे। इससे चीजों को स्मरण रखने में मदद मिलती थी। इसमें एक डंडा होता था जिस पर विभिन्न रंगों की रस्सियों से गाँठ बाँधी जाती थी। प्रत्येक गाँठ एक किस्म का संकेत होती थी जिससे उस वस्तु का अनुमान लगाया जाता था। इंका लोगों की प्रशासनिक भाषा क्वेचुआ (Quechua) थी।

7. विभिन्न व्यवसाय (Various Occupations):
इंका समाज में विभिन्न प्रकार के व्यवसाय प्रचलित थे। उस समय के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। इसे इंका सभ्यता का आधार माना जाता था। उस समय पहाड़ों में सीढ़ीदार खेत (terraces) बनाए जाते थे। इन खेतों की सिंचाई के लिए नहरें बनाई जाती थीं। उनकी प्रमुख फ़सलें मक्का (corn) एवं आलू (potatoes) थीं।

उस समय कुछ लोग पशुपालन का कार्य करते थे। वे लामा (Ilama) तथा अल्पाका (Alpaca) नामक पशुओं को पालते थे। इनसे वे भार ढोने का कार्य करते थे। इनसे ऊन प्राप्त की जाती थी तथा इनका माँस खाया जाता था। इनके अतिरिक्त उस समय वस्त्र उद्योग, मिट्टी के बर्तन बनाने का उद्योग एवं सोने, चाँदी एवं ताँबे के आभूषण बनाने के उद्योग भी प्रसिद्ध थे। कुछ लोग खानों से धातु निकालने का कार्य भी करते थे।

8. धर्म (Religion):
इंका लोगों का जीवन धर्म से बहुत प्रभावित था। यद्यपि वे अनेक देवी-देवताओं में विश्वास रखते थे किंतु सूर्य उनका प्रमुख देवता था। उनका विश्वास था कि उनका प्रथम शासक मैंको कपाक सूर्य का पुत्र था। अतः इंका शासकों ने सूर्य देवता की स्मृति में साम्राज्य भर में अनेक भव्य एवं विशाल मंदिरों का निर्माण करवाया। इन मंदिरों को सोने से सजाया जाता था।

इन मंदिरों में इंका के मृत शासकों के शवों को रखा जाता था। इन मंदिरों में उपासना के लिए बड़ी संख्या में पुरोहितों को नियुक्त किया जाता था। सर्य देवता को प्रसन्न करने के लिए जानवरों की एवं कभी-कभी मनुष्य की बलियाँ दी जाती थीं। विशेष अवसरों पर राजा स्वयं विशेष धूम-धड़के के साथ इन मंदिरों में उपासना के लिए आता था। इंका लोग मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास रखते थे। उनमें अनेक प्रकार के अंध-विश्वास भी प्रचलित थे।

9. पतन (Decline):
इंका सभ्यता के पतन के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। प्रथम, 1532 ई० में स्पेनी आक्रमण से पूर्व इंका साम्राज्य कमज़ोर हो गया था। इसका कारण सिंहासन प्राप्ति के लिए वहाँ अताहुआल्पा (Atahualpa) एवं उसके भाई हुआस्कर (Huascar) में गृह युद्ध आरंभ हो गया था। अताहुआल्पा ने सिंहासन प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की तथा उसने अपने भाई हुआस्कर को बंदी बना लिया था। दूसरा, अताहुआल्पा एक योग्य शासक प्रमाणित न हुआ। वह विशाल सेना के होते हुए भी स्पेनी आक्रमणकारियों का सामना न कर सका।

तीसरा, फ्राँसिस्को पिज़ारो (Francisco Pizarro) जिसके नेतृत्व में स्पेनी सैनिकों ने इंका साम्राज्य पर आक्रमण किया था बहुत अनुभवी था। उसने बहुत चतुराई से अताहुआल्पा को बंदी बना लिया था। चौथा, यूरोपियों के आगमन के कारण इंका साम्राज्य में अनेक बीमारियाँ फैल गई थीं। इस कारण वहाँ बड़ी संख्या में लोग मृत्यु का शिकार हो गए थे। पाँचवां, इंका लोग अपने तीरों एवं तलवारों से स्पेनी बंदूकों एवं तोपों का सामना करने में विफल रहे । अतः उनकी सभ्यता का लोप हो गया।

प्रश्न 10.
माया सभ्यता की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। इस सभ्यता का पतनं क्यों हुआ?
उत्तर:
माया सभ्यता मैक्सिको की एक महत्त्वपूर्ण सभ्यता थी। यह सभ्यता 300 ई० से 900 ई० के दौरान अपनी उन्नति के शिखर पर पहुँची । इस सभ्यता के महत्त्वपूर्ण केंद्र मैकि महत्त्वपूर्ण केंद्र मैक्सिको (Maxico), ग्वातेमाला (Guatemala), होंडुरास (Honduras) एवं अल-सैल्वाडोर (El Salvador) में थे। यद्यपि माया सभ्यता का अंत 16वीं शताब्दी में हुआ किंतु इसका पतन 11वीं शताब्दी से आरंभ हो गया था।

1. माया शासन पद्धति (Maya Polity):
माया सभ्यता की शासन पद्धति के संबंध में हमें कोई विशेष जानकारी प्राप्त नहीं है। माया शासक सामान्यतः पुरुष हुआ करते थे। कभी-कभी रानियाँ भी शासन करती थीं। राजा का पद पैतृक होता था। उसकी मृत्यु के पश्चात् उसका बड़ा पुत्र सिंहासन पर बैठता था। राजा का बहादुर होना अनिवार्य था।

एक बहादुर राजा ही साम्राज्य का विस्तार एवं उसकी सुरक्षा कर सकता था। राजा के सिंहासन पर बैठते समय देवताओं को प्रसन्न करने के उद्देश्य से मानव बलि दी जाती थी। राजा अभिजात वर्ग (nobility) एवं पुराहितों (priests) की सहायता से शासन चलाता था। राजा भव्य महलों में रहता था। उसकी सेवा में बड़ी संख्या में लोग, दास एवं दासियाँ होते थे।

2. श्रेणियाँ (Classes):
माया समाज अनेक श्रेणियों में विभाजित था। समाज में सर्वोच्च स्थान पुरोहितों को प्राप्त था। राजा उनके परामर्श के बिना कोई कार्य नहीं करता था। समाज में दूसरा स्थान अभिजात वर्ग को प्राप्त था। अभिजात वर्ग के लोग राज्य के महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्त थे। पुरोहित एवं अभिजात वर्ग के लोग बहुत बहुमूल्य वस्त्र पहनते थे तथा वे बहुत ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करते थे।

उनकी सेवा में भी अनेक दास-दासियाँ होते थे। समाज की अधिकाँश जनसंख्या किसान वर्ग से संबंधित थी। उन्हें अपने जीवन निर्वाह के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। समाज में सबसे निम्न स्थान दासों को प्राप्त था। उनकी दशा अत्यंत दयनीय थी।

3. कृषि (Agriculture):
माया लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। उन्होंने पत्थर की कुल्हाड़ी (stone axe) तथा आग के द्वारा अनेक घने जंगलों का सफाया किया। इस भूमि को उन्होंने कृषि योग्य बनाया। उनके कृषि करने के ढंग उन्नत एवं कुशलतापूर्वक थे। अतः उस समय फ़सलों की भरपूर पैदावार होती थी। माया किसान सबसे अधिक मक्का (corn) का उत्पादन करते थे। इसका कारण यह था कि माया लोगों के अनेक धार्मिक क्रियाकलाप एवं उत्सव मक्का बोने, उगाने एवं काटने से जुड़े होते थे। इसके अतिरिक्त वे सेम (beans), आलू (potatoes), कपास (cotton) आदि फ़सलों का उत्पादन करते थे।

4. धर्म (Religion):
माया लोगों का धर्म में अटूट विश्वास था। वे अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे। उनके दो प्रमुख देवता सूर्य देवता एवं मक्का देवता थे। इनके अतिरिक्त वे अग्नि देवता, वन देवता, भूमि देवता एवं वर्षा देवता आदि की भी उपासना करते थे। वे अपने देवी-देवताओं की स्मृति में भव्य मंदिरों एवं सुंदर मूर्तियों का निर्माण करते थे।

इन मंदिरों की देखभाल के लिए बड़ी संख्या में पुरोहितों को नियुक्त किया जाता था। माया लोग अपने देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए पशुओं की बलियाँ देते थे। कुछ विशेष अवसरों पर मानव बलियाँ भी दी जाती थीं। माया लोग मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास रखते थे। उनमें अनेक प्रकार के अंध विश्वास भी प्रचलित थे।

5. कला (Art):
माया लोग कला के महान् प्रेमी थे। उन्होंने यूनानी एवं रोमनों की तरह भवन निर्माण कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। उन्होंने अनेक भव्य नगरों, महलों, पिरामिडों, मंदिरों एवं वेधशालाओं (observatories) का निर्माण करवाया। माया लोगों ने जिन नगरों का निर्माण किया उनमें टिक्ल (Tikal), कोपान (Copan), पालेंक (Palenque), कोबा (Coba), युकाटान (Ukatan), चिचेन इटजा (Chichen Itza), बोनामपाक (Bonamapak), कलाक्मुल (Kalakmul) तथा उक्समल (Uxmal) आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

इन नगरों को अनेक भव्य भवनों, उद्यानों एवं फव्वारों से सुसज्जित किया गया था। माया कलाकारों द्वारा बनाए गए महलों को देखकर व्यक्ति चकित रह जाता है। ये महल बहुत विशाल एवं सुंदर थे। माया लोगों ने बहुत विशाल पिरामिड (pyramids) बनवाए। इन पिरामिडों के ऊपर मंदिरों का निर्माण किया जाता था। इन मंदिरों में अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित की जाती थीं। ये मूर्तियाँ देखने में बिल्कुल सजीव लगती थीं।

माया कलाकारों ने जिन मंदिरों का निर्माण किया उनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध आठवीं शताब्दी ग्वातेमाला में निर्मित टिक्ल मंदिर था। यह मंदिर 229 फुट ऊँचा था। इस मंदिर में बनी मूर्तियाँ एवं चित्र इसकी शान में चार चाँद लगाते थे। प्रसिद्ध इतिहासकार टी० एच० वालबैंक के अनुसार, “कला के क्षेत्र में माया भवन निर्माण कला एवं मर्ति कला ने अद्वितीय उन्नति की।”

6. पंचांग (Calendar):
माया सभ्यता ने पंचांग के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण देन दी। उन्होंने दो प्रकार के पंचांग तैयार किए। प्रथम पंचांग धर्म-निरपेक्ष था। इसमें सौर पंचांग की तरह वर्ष में 365 दिन होते थे। उनके वर्ष में 18 माह होते थे। प्रत्येक माह में 20 दिन होते थे। शेष पाँच दिनों को दुर्भाग्यपूर्ण समझा जाता था। माया लोगों का दूसरा पंचांग धार्मिक था। इसमें वर्ष में 260 दिन होते थे। इसे पुराहितों के लिए धार्मिक कर्मकांडों के लिए तैयार किया गया था।

7. लिपि (Script):
माया सभ्यता की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि उनकी लिपि थी। यह अमरीका की प्रथम सभ्यता थी जिसने सर्वप्रथम लिपि का विकास किया। उनकी लिपि चित्रात्मक (pictographic) थी। माया लेखन के उदाहरण प्रस्तर पट्टों पर उत्कीर्ण अभिलेखों (carved inscriptions on the stelae) एवं पुस्तकों जिन्हें कोडिसेज (codices) कहा जाता था में पाए गए हैं। इनमें माया शासकों से संबंधित महत्त्वपूर्ण घटनाओं एवं खगोल विद्या (astronomical information) संबंधी सूचनाएँ दर्ज की जाती थीं। दुर्भाग्यवश इस लिपि को अभी तक पूर्णतः पढ़ने में सफलता प्राप्त नहीं की जा सकी है।

8. पतन (Downfall):
माया सभ्यता का पतन 11वीं शताब्दी में आरंभ हो गया था। माया सभ्यता का पतन क्यों हुआ इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि माया सभ्यता का अंत वहाँ आने वाले भयंकर भूकंपों एवं समुद्री तूफानों के कारण हुआ। कुछ अन्य के विचारों के अनुसार माया सभ्यता का विनाश वहाँ फैलने वाली भयंकर बीमारियों के कारण हुआ। इस कारण बड़ी संख्या में लोग मृत्यु का शिकार हो गए थे। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि माया सभ्यता का अंत वहाँ आए जलवायु परिवर्तन के कारण हुआ।

वहाँ काफी लंबे समय तक सूखा पड़ा। इस कारण फ़सलें नष्ट हो गई एवं लोग भूखे मर गए। कुछ इतिहासकारों का कथन है कि माया सभ्यता के पतन में वहाँ होने वाले किसान विद्रोहों ने प्रमुख भूमिका निभाई। अधिकाँश इतिहासकारों का मानना है कि माया सभ्यता का अंत 1519 ई० में हरनेंडो कोर्टेस के आक्रमण के कारण हुआ। उसने 1521 ई० में मैक्सिको को अपने अधीन कर लिया था। शीघ्र ही उसने ग्वातेमाला, निकारागुआ एवं होंडुरास पर कब्जा करके माया सभ्यता का अंत कर दिया।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव

प्रश्न 11.
ओलाउदाह एक्वियानो कौन था? उसकी यात्रा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
गुलाम के रूप में पकड़ कर ब्राज़ील ले जाए गए ग्यारह वर्षीय अफ्रीकी लड़के की यात्रा का वर्णन करें।
उत्तर:
ओलाउदाह एक्वियानो नाईजीरिया (Nigeria) का रहने वाला था। 11 वर्ष की उम्र में उसे गुलाम बना लिया गया था। उसे गुलाम के रूप में ब्राज़ील में बेच दिया गया। वहाँ से उसे इंग्लैंड के एक कप्तान ने खरीद लिया। 1766 ई० में उसने अपने स्वामी से मुक्ति प्राप्त कर ली। इसके पश्चात् उसने विभिन्न देशों में दासता के विरुद्ध प्रचार किया। 1789 ई० में उसकी आत्मकथा दि इनटरेस्टिंग नैरेटिव ऑफ़ दि लाइफ ऑफ़ ओलाउदाह एक्वियानो (The Interesting Narrative of the Life of Olaudah Equiano) प्रकाशित हुई।

यह पुस्तक शीघ्र ही संपूर्ण विश्व में बहुत लोकप्रिय हुई तथा इसका विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद किया गया। इस पुस्तक में ओलाउदाह एक्वियानो ने एक गुलाम के रूप में अपनी यात्रा तथा गुलामों के जीवन के बारे में विस्तृत प्रकाश डाला है। ओलाउदाह एक्वियानो ने अपनी आत्मकथा (autobiography) में लिखा है कि उसका जन्म 1745 ई० में नाईजीरिया में हुआ था। मैंने कभी अंग्रेज़ों अथवा समुद्र के बारे में नहीं सुना था।

एक दिन जब मेरे माता-पिता खेतों में कार्य करने गए थे तो उस दिन दो पुरुषों एवं एक स्त्री जो कि अफ्रीकी थे ने मेरे घर पर धावा बोल दिया। वे मुझे तथा मेरी छोटी बहन को बंदी बना कर ले गए। उस समय मेरी आयु 11 वर्ष थी। आगे आने वाले 6 अथवा 7 महीनों के दौरान मुझे कई अफ्रीकी मालिकों को बेचा जाता रहा। हमें बंदरगाह की ओर पैदल ले जाया जाता रहा। मेरे साथ बहत से अन्य लोग थे जिन्हें गुलाम बनाया गया था। इन सभी को जंजीरों से जकड कर पंक्ति के रूप में ले जाया जाता था।

जिन लोगों ने हमें खरीदा था वे हमारे साथ-साथ चलते थे। अधिक शोर मचाने वालों अथवा भागने का प्रयास करने वालों की हंटर से ज़बरदस्त पिटाई की जाती थी। एक शाम को हम बंदरगाह के किनारे पहुंच गए। मुझे बहुत से अन्य गुलामों के साथ बंदरगाह पर खड़े एक जहाज में दूंस दिया गया। जहाज़ में सवार नाविकों की डरावनी शकलें देखकर मैं काँप गया। मुझे लगा कि मैं बुरी आत्माओं की दुनिया में आ गया हूँ तथा ये लोग कर खा जाएँगे।

जहाज़ में गलामों का जीवन नरक समान था। उनमें विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ जैसे चेचक, पेचिश तथा पीला बुखार आदि फैल गई थीं। इससे उनके दुःख बहुत बढ़ गए थे। इन घातक बीमारियों के कारण तथा बिना किसी इलाज के रोज़ाना अनेक गुलामों की मत्य हो जाती थी। दर्द से कराह रहे इन गलामों की आवाज़ सुन कर दिल दहल जाता था।

एक दिन अवसर पाकर दो गुलामों ने पानी में कूदकर आत्महत्या कर ली। मुझे यह अवसर प्राप्त नहीं हुआ नहीं तो मैं भी ऐसा ही करता। जब जहाज़ के सदस्यों को इस घटना की जानकारी मिली तो उन्होंने सभी गुलामों की जम कर पिटाई की तथा हम पर निगरानी बढ़ा दी गई।

जब यह जहाज़ अंततः ब्राजील की बंदरगाह पर पहुँचा तो बहुत से गुलाम खरीदने वाले व्यापारी जहाज़ पर चढ़ आए। उनकी शकलें बहुत डरावनी थीं। ऐसा लगता था कि वे हमें खा जाएंगे। उन्हें देखकर बहुत से गुलाम काँपने लगे। इसी समय जहाज़ पर वहाँ पहले से रह रहे दो अफ्रीकी गुलाम आए तथा उन्होंने हमें समझाया कि उन्हें यहाँ मारने के लिए नहीं अपितु काम करने के लिए लाया गया है। मुझे खेतों में कार्य करने के लिए लगाया गया। यहाँ गुलामों पर घोर अत्याचार किए जाते थे।

अफ्रीका में गुलामों के साथ ऐसा बर्ताव नहीं किया जाता था। वहाँ गुलामों को परिवार के सदस्यों के रूप में सम्मिलित कर लिया जाता था। कुछ समय पश्चात् मुझे एक गोरे व्यक्ति ने खरीद लिया तथा वह अपने साथ मुझे इंग्लैंड ले आया। वह एक व्यापारी था। उसके साथ मैं अनेक बार वेस्टइंडीज़ (West Indies) गया। 1766 ई० में मेरे स्वामी ने मुझे मुक्त कर दिया। इसके पश्चात् ओलाउदाह एक्वियानो ने 1797 ई० में अपनी मृत्यु तक गुलाम प्रथा के विरुद्ध एक जोरदार अभियान चलाया। इस प्रकार इतिहास में सदैव के लिए उसका नाम अमर हो गया।

प्रश्न 12.
दास व्यापार के बारे में आप क्या जानते हैं ? इस प्रथा का उन्मूलन किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
दास व्यापार आधुनिक विश्व इतिहास के माथे पर एक कलंक समान था। इस प्रथा ने 15वीं शताब्दी में अपने पाँव यूरोप में पसारने आरंभ किए। 16वीं शताब्दी में यह प्रथा दक्षिण एवं उत्तरी अमरीका में भी फैल गई। यह प्रथा 17वीं एवं 18वीं शताब्दियों में अपनी उन्नति के शिखर पर थी। आरंभ में पराजित हए लोगों को गुलाम बना लिया जाता था।

बाद में बड़ी संख्या में दासों को अफ्रीका से पकड़ कर इन देशों में बेचा जाने लगा। वास्तव में दास प्रथा ने एक व्यापार का रूप धारण कर लिया था। इन दासों पर जो अमानवीय अत्याचार किए जाते थे उनका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। दास व्यापार के कारण न केवल अफ्रीका अपितु यूरोप एवं अमरीका के समाजों पर दूरगामी प्रभाव पड़े।

1. दास प्रथा का जन्म (Origin of Slavery):
15वीं शताब्दी में जब कुछ पुर्तगाली एवं स्पेनी नाविक अफ्रीका गए तो वे अपने साथ वहाँ से कुछ दासों को भी ले आए। इन गुलामों को घरों, खेतों एवं खानों में कार्य पर लगाया गया। 16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों एवं स्पेनियों ने दक्षिण अमरीका के कुछ भागों पर अधिकार कर लिया था। वहाँ इन देशों के सैनिकों ने स्थानीय लोगों को पराजित कर उन्हें गुलाम बना लिया था। इन लोगों से गुलाम के रूप में कार्य करवाना अत्यंत कठिन सिद्ध हुआ। इस समस्या से निपटने के लिए यूरोपियों ने नई दुनिया में अफ्रीका से गुलाम मंगवाने आरंभ कर दिए थे।

2. दास व्यापार (Slave Trade):
17वीं एवं 18वीं शताब्दियों में नई दुनिया में दासों की माँग में अभूतपूर्व वृद्धि हो गई थी। इसका कारण था कि जंगलों की सफाई के लिए, खेतों के लिए एवं खानों में कार्य करने के लिए सस्ते श्रम की आवश्यकता थी। अत: यूरोपवासियों ने अफ्रीका के साथ गुलामों का व्यापार आरंभ कर दिया था। ये व्यापारी अपनी माँग अफ्रीका के स्थानीय नेताओं को देते थे।

अफ्रीका के स्थानीय नेता काफी प्रभावशाली होते थे। उन्होंने अपने अधीन कछ सेना रखी होती थी। इन सैनिकों की सहायता से वे रात के समय अफ्रीका के अंदरूनी भागों में छापे मार कर लोगों को बलपूर्वक गुलाम बना लेते थे। इन गुलामों में अधिकाँश संख्या युवा गुलामों की होती थी। इन गुलामों को यूरोपीय व्यापारियों को बेच दिया जाता था।

इसके बदले यूरोपीय व्यापारी उन्हें दक्षिण अमरीका से लाए गए खाद्य पदार्थ देते थे। ये अफ्रीकी लोगों के प्रमुख खाद्य पदार्थ थे। कभी-कभी उन्हें नकद धन भी दिया जाता था। यूरोपीय व्यापारी अफ्रीकी गुलामों को जहाजों में लाद कर नई दुनिया में ले आते थे। बंदरगाह पर पहुँचने पर ये व्यापारी इन दासों को दो से तीन गुना अधिक मुनाफे पर ज़रूरतमंदों को बेच देते थे।

3. दासों का जीवन (Life of Slaves):
अधिकाँश दास खेतों में मजदूरी का कार्य करते थे। कुछ गुलाम खानों में भी काम करते थे। इन्हें अत्यंत भयावह स्थितियों में कार्य करना पड़ता था। गुलामों से प्रतिदिन 14 से 16
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 8 iMG 2
घंटे कार्य लिया जाता था। कार्य के दौरान भी उन्हें जंजीरों से जकड़ कर रखा जाता था ताकि वे भागने न पाएँ। कार्य के दौरान यदि कोई गुलाम सुस्त कार्य करता तो उसकी निगरानी करने वाला गोरा निरीक्षक उसकी हंटर द्वारा जमकर पिटाई करता। उस पर अनेक प्रकार के अन्य अमानवीय अत्याचार किए जाते थे।

कठोर श्रम करने के बावजूद इन गुलामों को दो समय भर पेट खाना भी नसीब नहीं होता था। रात्रि के समय उन्हें गंदी झोंपड़ियों में धकेल दिया जाता था। इस समय भी वे जंजीरों से जकड़े रहते थे। वे नाम मात्र के वस्त्र पहनते थे। संक्षेप में गुलामों का जीवन जानवरों से भी बदतर था। एरिक विलियम्स (Eric Williams) प्रथम आधुनिक इतिहासकार था जिसने 1940 के दशक में अपनी पुस्तक कैपिटलिज्म एंड स्लेवरी (Capitalism and Slavery) में गुलामों के दु:खों पर काफी प्रकाश डाला है।

4. दासों पर प्रतिबंध (Restrictions on Slaves):
दासों पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगाए गए थे। वे अपने मालिकों से अनुमति पत्र लिए बिना अपने कार्य को नहीं छोड़ सकते थे। वे किसी प्रकार का कोई नशा नहीं कर सकते थे। वे अपने पास किसी प्रकार का कोई हथियार नहीं रख सकते थे। उन्हें पढ़ने तथा लिखने का भी कोई अधिकार न था। वे गोरे लोगों के विरुद्ध चाहे वे उन्हें जान से मार दें अथवा इनकी स्त्रियों के साथ बलात्कार करें कोई शिकायत दर्ज नहीं करवा सकते थे। दसरी ओर वे गोरे लोगों पर हाथ नहीं उठा सकते थे। इनमें से किसी नियम का उल्लंघन करने पर संबंधित गुलाम को कड़ा दंड दिया जाता था।

5. दास व्यापार के प्रभाव (Impacts of the Slave Trade):
दास व्यापार के अनेक दूरगामी परिणाम निकले। प्रथम, यह प्रथा अफ्रीका के लिए विशेष तौर पर विनाशकारी सिद्ध हई। इस प्रथा के कारण अफ्रीका के अधिकांश पुरुषों को दास बना लिया गया। अतः उनकी स्त्रियों को अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ा। वे खेतों में काम करने के लिए बाध्य हुईं।

यह कार्य पहले पुरुष किया करते थे। दूसरा, इस प्रथा के चलते दासों को घोर अत्याचारों का सामना करना पड़ा। उनका जीवन जानवरों से भी बदतर था। बाध्य होकर अनेक बार दास या तो भाग जाते थे या फिर विद्रोह कर देते थे। दास व्यापार यूरोपियों के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ। दासों को खानों एवं खेतों में कार्य पर लगाया गया। उनके खून-पसीने के कारण यूरोपीय अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा मिली।

6. दास प्रथा का उन्मूलन (The Abolition of Slavery):
दासों के साथ किए जाने वाले अमानुषिक व्यवहार के कारण अनेक देशों में इस क्रूर प्रथा के विरुद्ध आवाज़ बुलंद होने लगी। बहुत से नेताओं ने इस प्रथा का अंत करने के लिए अपनी सरकारों को प्रेरित किया। इसके लिए उन्हें एक लंबा संघर्ष करना पड़ा। सर्वप्रथम डेनमार्क (Denmark) ने 1803 ई० में दासों के व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया।

यह निस्संदेह दास प्रथा का उन्मूलन करने की दिशा में उठाया गया प्रथम महत्त्वपूर्ण पग था। डेनमार्क का अनुसरण करते हुए ब्रिटेन ने 1807 ई० में, फ्राँस ने 1814 ई० में, नीदरलैंड ने 1817 ई० में तथा स्पेन ने 1845 ई० में गुलामों के व्यापार पर पूर्णत: निषेध लगा दिया। 1833 ई० में सर्वप्रथम ब्रिटेन ने दास प्रथा का अंत करने की घोषणा की। इसके पश्चात् फ्राँस ने 1848 ई० में, संयुक्त राज्य अमरीका ने 1865 ई० में, क्यूबा ने 1886 ई० में तथा ब्राजील ने 1888 ई० में दास प्रथा का अंत कर दिया। दास प्रथा का उन्मूलन निस्संदेह एक नए युग का संकेत था।

क्रचन सेख्या बर्ष घटना
1. 1325 ई० एजटेक की राज्धानी टेनोक्टिटलान का निर्माण।
2. 1380 ई० कुलबनुमा का आविष्कार।
3. 1410 ई० कार्डिनल पिएर ड्विऐेली ने ‘इमगो मुंड़ी’ की रचना की।
4. 1438 ई० इंका सम्र्राज्य का सबसे शब्तिशाली शासक पचकुटी इंका सिंहासन पर बैठा।
5. 1453 ई० तुर्कों द्वारा कुस्तुनदुनिया पर अधिकार।
6. 1477 ई० टॉलेमी की ज्योग्राफ़ी प्रकाशित हुई।
7. 1492 ई० कोलेंबस द्वारा बहामा द्वीप समूह की खोज।
8. 1499 ई० अमेरिगो वेस्पुसी ने यदिण अमरीका की यात्रा की।
9. 22 अप्रैल, 1500 ई० पेट्गो अल्वारिस कैज्राल ब्राजील पहूँचज।
10. 1502 ई० मेंटेजुमा द्वितीय एजटेक सम्नाट् बना।
11. 1507 ई० नयी दुनिया को अमरीका का नाम दिया गया।
12. 1519 ई० हरनेंड़ो कोटेंस द्वारा एजटेक सात्राज्प पर आक्रमण।
13. 30 जून, 1520 ई० औसू भरी रात।
14. 15 अगस्त, 1521 ई० एजटेक साम्राज्म का अंत।
15. 1522 ई० हरनेंडो कोर्टेस को न्यू स्पेन (मैक्सिको) का गवर्नर एवं कैप्टन-जनरल बनाया गया।
16. 1532 ई० अताहुआल्पा इंका साम्राज्य के सिंहासन पर बैठा। फ्राँसिस्को पिज़ारो ने इंका साम्राज्य को जीता।
17. 1532 ई० पुर्तगाली शासक ने ब्राज़ील का शासन सीधा अपने हाथों में लिया।
18. 1549 ई० ओलाउदाह एक्वियानो की आत्मकथा ‘दि इनटरेस्टिंग नैंरेटिव ऑफ़ दि लाइफ ऑफ़ ओलाउदाह एक्वियानो’ का प्रकाशन।
19. 1789 ई० ओलाइदाह एक्वियानो की आत्मकथा ‘दि इनटरेस्टिंग
20. 1797 ई० नैरैटिव ऑफ़ दि लाइफ ऑफ ओलाउदाह एक्वियनो’ का प्रकाशन।
21. 1803 ई० ओसाउदाह एक्वियानो की मृत्यु हुई।
22. 1833 ई० ड़नमार्क ने दास व्यापार पर सर्वप्रथन प्रतिबंध लगापा।
23. 1865 ई० ब्रिटेन ने दास प्रथा पर प्रतिबंध लगाया।
24. 1888 ई० संयुक्त राज्च अमरीका ने दास प्रथा पर प्रतिबंध लगाया।

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
ऐसे कौन-से कारण थे जिनसे 15वीं शताब्दी में यूरोपीय नौचालन को सहायता मिली ?
अथवा
भौगोलिक खोजों के क्या कारण थे ?
उत्तर:
15वीं शताब्दी में निम्नलिखित कारणों ने यूरोपीय नौचालन में सहायता दी
(1) नए प्रदेशों की खोज कर वहाँ से सोना-चाँदी प्राप्त करना।

(2) विदेशों में ईसाई धर्म का प्रसार करना।

(3)1380 ई० में कुतबनुमा अथवा दिशासूचक का आविष्कार हुआ। इस कारण नाविकों को खुले समुद्र में दिशाओं को सही जानकारी प्राप्त हुई। इस कारण समुद्री यात्राएँ अधिक सुरक्षित हो गई।

(4) समुद्री यात्रा पर जाने वाले यूरोपीय जहाजों में भी काफी सुधार हो चुका था। इससे नाविकों को समुद्र पार जाने के लिए प्रेरणा मिली।

(5) 1477 ई० में टॉलेमी की प्रसिद्ध पुस्तक ज्योग्राफी का प्रकाशन हुआ। इसमें अनेक देशों से संबंधित बहुमूल्य भौतिक जानकारी दी गई थी। इसने नाविकों को समुद्री यात्राएँ करने के लिए प्रेरित किया।

(6) 15वीं शताब्दी में आईबेरियाई प्रायद्वीप अर्थात् स्पेन एवं पुर्तगाल के शासकों ने समुद्री यात्राएँ करने वाले नाविकों को दिल खोलकर सहायता प्रदान की।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव

प्रश्न 2.
15वीं शताब्दी में आईबेरियाई प्रायद्वीप ने भौगोलक खोजों के क्षेत्र में क्या योगदान दिया ?
अथवा
किन कारणों से स्पेन और पुर्तगाल ने 15वीं शताब्दी में सबसे पहले अटलांटिक महासागर के पार जाने का साहस किया ?
उत्तर:
15वीं शताब्दी में आईबेरियाई प्रायद्वीप भाव स्पेन एवं पुर्तगाल के देशों ने समुद्री खोज यात्राओं में बहुमूल्य योगदान दिया। अक्सर यह प्रश्न किया जाता है कि स्पेन एवं पुर्तगाल के शासकों ने समुद्री खोजों में अन्य देशों के मुकाबले अग्रणी भूमिका क्यों निभाई ? इसके अनेक कारण थे। प्रथम, इस समय स्पेन एवं पुर्तगाल की अर्थव्यवस्था अच्छी थी जबकि यूरोप की अर्थव्यवस्था गिरावट के दौर से गुजर रही थी।

दूसरा, स्पेन एवं पुर्तगाल के शासक सोना एवं धन दौलत के भंडार एकत्र कर अपने यश एवं सम्मान में वृद्धि करना चाहते थे। तीसरा, वे नई दुनिया में ईसाई धर्म का प्रसार करना चाहते थे। चौथा, धर्मयुद्धों के कारण इन देशों की एशिया के साथ व्यापार करने में रुचि बढ़ गई। इन युद्धों के दौरान उन्हें पता चला कि इन देशों के साथ व्यापार करके वे भारी मुनाफा कमा सकते हैं।

पाँचवां, स्पेन के शासकों द्वारा दिए जाने वाले इकरारनामों जिन्हें कैपिटुलैसियोन कहा जाता था लोगों को महासागरी शूरवीर बनने के लिए प्रोत्साहित किया। इन इकरारनामों द्वारा स्पेन के शासक ने नई दुनिया के प्रदेशों को जीतने वाले नेताओं को पुरस्कार के रूप में शासन का अधिकार दिया। छठा, इन देशों के शासकों ने समुद्री खोज पर जाने वाली नाविकों को प्रत्येक संभव सहायता प्रदान की।

प्रश्न 3.
नए आविष्कारों ने किस प्रकार भौगोलिक खोजों के उत्साहित किया ?
उत्तर:
14वीं एवं 15वीं शताब्दियों में जहाजरानी से संबंधित नए आविष्कारों ने नाविकों की समुद्री यात्राओं को सुगम बना दिया। 1380 ई० में कुतबनुमा भाव दिशासूचक यंत्र का आविष्कार हुआ। यह एक सर्वोच्च महत्त्व का आविष्कार था। इससे नाविकों को खुले समुद्र में दिशाओं की सही जानकारी प्राप्त होती थी।

इससे सुदूर समुद्री यात्राएँ करना संभव हुआ। 16वीं शताब्दी में एस्ट्रोलेब का आविष्कार हुआ। इस यंत्र से नाविकों को भूमध्य रेखा से दूरी मापने में सहायता मिली। इसी शताब्दी में बतिस्ता ने विश्व का ठीक मानचित्र बनाया। इससे नाविकों को स्थानों के मध्य दूरी जानने में सहायता मिली। 1609 ई० में दूरबीन के आविष्कार ने नाविकों को दूर तक देखना संभव बनाया।

इस कारण वे आने वाले किसी ख़तरे से परिचित हो सकते हैं। सबसे बढ़कर इस काल में यूरोपियों ने अपने जहाजों में बहुत सुधार कर लिया था। ये जहाज़ पहले से अधिक हल्के, विशाल एवं तीव्र गति से चलने वाले थे। निस्संदेह इन नवीन आविष्कारों ने समद्री यात्राएँ करने वालों को एक नई दिशा प्रदान की।

प्रश्न 4.
क्रिस्टोफर कोलंबस पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
क्रिस्टोफर कोलंबस ने नयी दुनिया की खोज में उल्लेखनीय योगदान दिया। उसका जन्म 1451 ई० में इटली के शहर जिनोआ में हुआ था। उसे बचपन से ही समुद्री यात्राएँ करने का शौक था। 1492 ई० में स्पेन के शासक फर्जीनेंड ने समुद्री यात्राओं संबंधी उसकी योजना को स्वीकृति दी। कोलंबस 3 अगस्त, 1492 ई० को स्पेन की बंदरगाह पालोस से यात्रा के लिए रवाना हुआ। इस समय उसके पास तीन जहाज़-सांता मारिया, पिंटा तथा नीना थे।

वह 12 अक्तूबर, 1492 ई० को बहामा द्वीप समूह के गुआनाहानि पहुँचा। कोलंबस ने इसे इंडीज समझा। अत: उसने वहाँ के निवासियों को रेड इंडियन्स कहा। वह यहाँ के निवासियों के भव्य स्वागत एवं उदारता से बहुत प्रभावित हुआ। कोलंबस ने इस द्वीप का नाम सैन सैल्वाडोर रखा। कोलंबस की इस महत्त्वपूर्ण सफलता से प्रभावित होकर फर्जीनेंड ने उसे एडमिरल ऑफ़ दी ओशन सी की उपाधि से सम्मानित किया। उसे सैन सैल्वाडोर का वाइसराय नियुक्त किया गया। उसने अपने शासनकाल के दौरान यहाँ के लोगों पर घोर अत्याचार किए। 1506 ई० में क्रिस्टोफर कोलंबस की मृत्यु हो गई।

प्रश्न 5.
हरनेंडो कोर्टेस कौन था ?
उत्तर:
हरनेंडो कोर्टेस स्पेन का एक प्रसिद्ध विजेता (कोंक्विस्टोडोर) था। उसका जन्म 1485 ई० में स्पेन के शहर मेडिलन में हुआ था। 1504 ई० में वह क्यूबा के गवर्नर की सेना में भर्ती हो गया था। उसने अनेक सैनिक अभियानों में भाग लिया एवं महत्त्वपूर्ण सफलताएँ अर्जित की। उसकी बहादुरी एवं योग्यता से प्रभावित होकर क्यूबा के गवर्नर ने हरनेंडो कोर्टेस को 1519 ई० में मैक्सिको पर आक्रमण करने की ज़िम्मेदारी सौंपी। हरनेडो कोर्टेस 1519 ई० में 600 स्पेनी सैनिकों के साथ मैक्सिको के लिए रवाना हुआ। उसे डोना मैरीना का बहुमूल्य सहयोग मिला।

उसके सहयोग के बिना हरनेडो कोर्टेस के लिए वहाँ के लोगों की भाषा समझना अत्यंत कठिन था। उस समय मैक्सिको में एजटेक शासक मोंटेजमा द्वितीय का शासन था। लोग उसके अत्याचारों से बहत दःखी थे। अतः हरनेंडो कोर्टेस बिना किसी विरोध के एज़टेक साम्राज्य की राजधानी टेनोक्टिटलान में 8 नवंबर, 1519 ई० को पहुँच गया था।

उसने धोखे से मोंटेजुमा द्वितीय को बंदी बना लिया। 1521 ई० तक हरनेंडो कोर्टेस ने संपूर्ण एज़टेक साम्राज्य को अपने अधीन कर लिया था। 1522 ई० में उसने मैक्सिको का नाम परिवर्तित करके न्यू स्पेन रख दिया। हरनेंडो कोर्टेस ने 1522 ई० से लेकर 1541 ई० तक न्यू स्पेन के गवर्नर के रूप में शासन किया। अपने शासनकाल के दौरान उसने वहाँ के लोगों पर घोर अत्याचार किए। 1547 ई० में उसकी मृत्यु हो गयी।

प्रश्न 6.
फ्राँसिस्को पिज़ारो के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
फ्रांसिस्को पिज़ारो स्पेन का एक प्रसिद्ध विजेता था। उसका जन्म 1478 ई० में स्पेन के में हुआ था। 1502 ई० में वह सेना में भर्ती हो गया था। वह 1521 ई० में हरनेंडो कोर्टेस की मैक्सिको विजय से बहुत प्रभावित हुआ। वह 1528 ई० में अपना भाग्य आजमाने पेरू चला गया। अगले वर्ष वह वहाँ से स्पेन वापसी यात्रा के समय इंका कारीगरों द्वारा बनाए गए कुछ सोने के बर्तन साथ ले आया था। उसने उन्हें स्पेन के शासक चार्ल्स पँचम को भेंट किया तथा पेरू में उपलब्ध अपार दौलत के बारे में जानकारी दी।

अतः उसने पिज़ारो को पेरू पर आक्रमण करने एवं वहाँ शासन करने की अनुमति दे दी। 1532 ई० में पेरू में सिंहासन प्राप्त करने के लिए दो भाइयों में गृहयुद्ध आरंभ हो गया था। इसके अतिरिक्त वहाँ चेचक के भयंकर रूप में फैलने से बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु हो गयी थी। यह स्वर्ण अवसर देखकर फ्रांसिस्को पिज़ारो ने 15 नवंबर, 1532 ई० को पेरू पर आक्रमण कर दिया था। उसने धोखे से पेरू के नव-नियुक्त शासक अताहुआल्पा को बंदी बना लिया था। अताहुआल्पा द्वारा भारी फिरौती देने के बावजूद भी उसका वध कर दिया गया।

इसके पश्चात् पिज़ारो ने सुगमता से संपूर्ण इंका साम्राज्य पर अधिकार कर लिया। 1535 ई० में उसने लिमा को पेरू साम्राज्य की राजधानी घोषित किया। अपने शासनकाल के दौरान पिज़ारो ने वहाँ के लोगों पर घोर अत्याचार किए। परिणामस्वरूप 26 जून, 1541 ई० को पिज़ारो का लिमा में वध कर दिया गया।

प्रश्न 7.
अरावाकी सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
(1) अरावाकी लोग बहुत शाँतिप्रिय थे। वे लड़ने की अपेक्षा बातचीत से झगड़ा निपटाना अधिक पसंद करते थे।

(2) अरावाकी लोग अपने वंश के बुजुर्गों के अधीन संगठित रहते थे। उनका न तो कोई राजा था तथा न ही कोई सेना। चर्च का भी उनके जीवन पर कोई नियंत्रण न था। इस प्रकार वे एक स्वतंत्र जीवन व्यतीत करते थे।

(3) वे कुशल नौका निर्माता थे। वे नौकाओं में बैठकर खुले समुद्र की यात्रा करते थे एवं मछलियाँ पकड़ते थे। उनके प्रमुख शस्त्र तीर एवं कमान थे। इनके द्वारा वे पशुओं का शिकार करते थे।

(4) अरावाकी गाँवों में रहते थे। उनके घर साधारण प्रकार के थे। यद्यपि वे सोने के गहने पहनते थे। किंतु वे यूरोपियों की तरह सोने को उतना महत्त्व नहीं देते थे।

(5) वे बुनाई की कला में बहुत निपुण थे। उनके हैमक नामक झूले को देखकर यूरोपीय भी दंग रह गए थे।

(6) अरावाकियों का धर्म के अटूट विश्वास था। वे जीववादी थे। उनका विश्वास था कि निर्जीव वस्तुओं पत्थर एवं पेड़ आदि में भी जीवन होता है। वे जादू-टोनों में भी विश्वास रखते थे।

प्रश्न 8.
एजटेक सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ लिखो।
उत्तर:
(1) एजटेक समाज में सम्राट् का स्थान सर्वोच्च था। उसे पृथ्वी पर सूर्य देवता का प्रतिनिधि समझा जाता था।

(2) एज़टेक शासक महान् कला प्रेमी थे। एजटेक सम्राट् मोंटेजुमा प्रथम ने 1325 ई० में टेनोक्टिटलान नामक राजधानी का निर्माण करवाया।

(3) एज़टेक समाज श्रेणीबद्ध था। इसमें अभिजात वर्ग को सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। समाज में सबसे निम्न स्थान दासों का था। उनकी स्थिति अत्यंत शोचनीय थी।

(4) एजटेक लोग विभिन्न प्रकार के व्यवसाय करते थे। उनका मुख्य व्यवसाय कृषि था।

(5) एजटेक लोग शिक्षा पर विशेष बल देते थे। अभिजात वर्ग के बच्चे जिन स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करते थे। उनको कालमेकाक कहा जाता था।

(6) एज़टेक समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी थी। उन्हें शिक्षा का अधिकार प्राप्त था। कुछ स्त्रियाँ पुरोहित का कार्य करती थीं।

(7) धर्म एज़टेक लोगों का जीवन का मुख्य आधार था। सूर्य देवता उनका सबसे प्रमुख देवता था। युद्ध देवता और अन्न देवी उनके प्रमुख देवी-देवता थे।

प्रश्न 9.
एजटेक और मेसोपोटामयी सभ्यताओं की तुलना कीजिए।
उत्तर:

  • एज़टेक एवं मेसोपोटामयी दोनों ही सभ्यताएँ एक विशाल क्षेत्र में फैली हुई थीं।
  • दोनों ही सभ्यताओं के समाज में सम्राट् को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था।
  • दोनों ही सभ्यताओं का समाज श्रेणीबद्ध था। समाज में सबसे निम्न स्थान दासों को दिया गया था। उनकी स्थिति अत्यंत शोचनीय थी।
  • दोनों ही सभ्यताओं के लोगों के जीवन में धर्म की प्रमुख भूमिका थी। लोग अपने देवी-देवताओं की स्मृति में भव्य मंदिरों का निर्माण करते थे।
  • दोनों ही सभ्यताओं के समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी थी। उन्हें अनेक अधिकार प्राप्त थे।
  • एजटेक समाज में शिक्षा पर विशेष बल दिया जाता था। मेसोपोटामयी सभ्यता के लोग कम शिक्षित थे।

प्रश्न 10.
इंका लोगों की संस्कृति की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या थी ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • इंका साम्राज्य में सम्राट की स्थिति सर्वोच्च थी। उसे सूर्य देवता का पुत्र समझा जाता था।
  • इंका सभ्यता के लोग महान् भवन निर्माता थे। कुजको एवं माचू-पिच्चू नामक शहर उनकी उच्च कोटि की कला के प्रतीक हैं।
  • इंका समाज अनेक श्रेणियों में विभाजित था। समाज में सबसे निम्न स्थान दासों को प्राप्त था। उनका जीवन नरक समान था।
  • इंका समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी। उनका परिवार में काफ़ी सम्मान किया जाता था। उन्हें अनेक अधिकार भी प्राप्त थे।
  • इंका समाज में शिक्षा को विशेष महत्त्व दिया जाता था। सभी बच्चों को अनिवार्य रूप से शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्कूल भेजा जाता था।
  • इंका समाज में नैतिकता पर विशेष बल दिया जाता था। लोग सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करते थे।

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प्रश्न 11.
इंका सभ्यता के लोग महान् भवन निर्माता थे। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ?
उत्तर:
इंका सभ्यता के लोग महान् भवन निर्माता थे। कुजको एवं माचू-पिच्चू नामक शहरों में बने उनके भव्य महल, किले, मंदिर एवं अन्य भवन उनकी उच्च कोटि की भवन-निर्माण कला को दर्शाते हैं। इन भवनों की दीवारों को बनाते समय वे विशाल पत्थरों का प्रयोग करते थे। इनमें से कुछ पत्थरों का वज़न 100 टन से भी अधिक तक होता था। इन पत्थरों को वे मजदूरों एवं रस्सियों के सहयोग से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते थे।

इन पत्थरों को जो कि वास्तव में बड़ी चट्टानें होती थीं बहुत बारीकी से तराशा जाता था। इन पत्थरों को आपस में जोड़ने के लिए इंका मिस्त्री किसी गारे अथवा सीमेंट का प्रयोग नहीं करते थे। इसके बावजूद उनके द्वारा बनवाए गए भवन इतने मज़बूत होते थे कि सैंकड़ों वर्ष बीत जाने के बाद एवं कुछ विनाशकारी भूकंपों के बावजूद वे नष्ट नहीं हुए। इन भवनों को शल्क पद्धति द्वारा सुंदर बनाया जाता था। भवनों के अतिरिक्त इंका लोगों ने पहाड़ों के मध्य संपूर्ण साम्राज्य में सड़कें, पुल एवं सुरंगें बनाईं। इनसे उनके इंजीनियरिंग कौशल का पता चलता है।

प्रश्न 12.
माया लोगों की अति महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ क्या थी ?
उत्तर:
(1) माया समाज अनेक श्रेणियों में विभाजित था। समाज में सर्वोच्च स्थान पुरोहितों को प्राप्त था। राजा उनके परामर्श के बिना कोई कार्य नहीं करता था।

(2) माया लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। उनके कृषि करने के ढंग उन्नत एवं कुशलतापूर्वक थे। अतः उस समय फ़सलों की भरपूर पैदावार होती थी।

(3) माया लोगों का धर्म में अटूट विश्वास था। वे अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे। उनके दो प्रमुख देवता सूर्य देवता एवं मक्का देवता थे।

(4) माया लोग कला के महान् प्रेमी थे। उन्होंने यूनानी एवं रोमनों की तरह भवन निर्माण कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। उनका आठवीं शताब्दी ग्वातेमाला में निर्मित टिक्ल मंदिर सर्वाधिक प्रसिद्ध था।

(5) माया सभ्यता की पंचांग के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण देन थी। उन्होंने दो प्रकार के पंचांग तैयार किए। प्रथम पंचांग धर्म-निरपेक्ष था। दूसरा पंचांग धार्मिक था।

(6) माया सभ्यता अमरीका की प्रथम सभ्यता थी जिसने सर्वप्रथम लिपि का विकास किया।

प्रश्न 13.
माया सभ्यता की कला के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
माया लोग कला के महान् प्रेमी थे। उन्होंने यूनानी एवं रोमनों की तरह भवन निर्माण कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। उन्होंने अनेक भव्य नगरों, महलों, पिरामिडों, मंदिरों एवं वेधशालाओं का निर्माण करवाया। माया लोगों ने जिन नगरों का निर्माण किया उनमें टिक्ल, कोपान, पालेंक, कोबा, युकाटान, बोनामपाक तथा उक्समल आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

इन नगरों को अनेक भव्य भवनों, उद्यानों एवं फव्वारों से सुसज्जित किया गया था। माया कलाकारों द्वारा बनाए गए महलों को देखकर व्यक्ति चकित रह जाता है। ये महल बहुत विशाल एवं सुंदर थे। इनमें शाही परिवार के अतिरिक्त अनेक अन्य व्यक्तियों के लिए निवास स्थान बनाए जाते थे। इन महलों की छतों एवं दीवारों को अनेक प्रकार के चित्रों से सुसज्जित किया जाता था।

इन चित्रों में चटकीले रंग भरे गए हैं। माया लोगों ने बहुत विशाल पिरामिड बनवाए। इन पिरामिडों के ऊपर मंदिरों का निर्माण किया जाता था। इन मंदिरों में अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित की जाती थीं। ये मूर्तियाँ देखने में बिल्कुल सजीव लगती थीं।

प्रश्न 14.
माया सभ्यता का पतन क्यों हुआ ?
उत्तर:
माया सभ्यता का पतन क्यों हुआ इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि माया सभ्यता का अंत वहाँ आने वाले भयंकर भूकंपों एवं समुद्री तूफानों के कारण हुआ। कुछ अन्य के विचारों के अनुसार माया सभ्यता का विनाश वहाँ फैलने वाली भयंकर बीमारियों के कारण हुआ। इस कारण बड़ी संख्या में लोग मृत्यु का शिकार हो गए थे।

कुछ इतिहासकारों का विचार है कि माया सभ्यता का अंत वहाँ आए जलवायु परिवर्तन के कारण हुआ। वहाँ काफ़ी लंबे समय तक सूखा पड़ा। इस कारण फ़सलें नष्ट हो गई एवं लोग भूखे मर गए। कुछ इतिहासकारों का कथन है कि माया सभ्यता के पतन में वहाँ होने वाले किसान विद्रोहों ने प्रमुख भूमिका निभाई।

अधिकाँश इतिहासकारों का माना है कि माया सभ्यता का अंत 1519 ई० में हरनेंडो कोर्टेस के आक्रमण के कारण हुआ। उसने 1521 ई० में मैक्सिको को अपने अधीन कर लिया था।

प्रश्न 15.
ओलाउदाह एक्वियानो कौन था ?
उत्तर:
ओलाउदाह एक्वियानो नाईजीरिया का रहने वाला था। 11 वर्ष की उम्र में उसे गुलाम बना लिया गया था। उसे गुलाम के रूप में दक्षिण अमरीका में बेच दिया गया। वहाँ से उसे इंग्लैंड के एक कप्तान ने खरीद लिया। 1766 ई० में उसने अपने स्वामी से मुक्ति प्राप्त कर ली। इसके पश्चात् उसने विभिन्न देशों में दास्ता के विरुद्ध प्रचार किया। 1789 ई० में उसकी आत्मकथा दि इनटरेस्टिंग नैरैटिव ऑफ़ दि लाइफ ऑफ़ ओलाउदाह एक्वियानो प्रकाशित हुई।

यह पुस्तक शीघ्र ही संपूर्ण विश्व में बहुत लोकप्रिय हुई तथा इसका विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद किया गया। इस पुस्तक में ओलाउदाह एक्वियानो ने एक गुलाम के रूप में अपनी यात्रा तथा गुलामों के जीवन के बारे में विस्तृत प्रकाश डाला है। गुलाम प्रथा का अंत करने में इस पुस्तक ने प्रमुख भूमिका निभाई।

प्रश्न 16.
दासों के जीवन पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
दक्षिण अमरीका में दासों का जीवन नरक समान था। उनसे अधिकांशतः खेती का कार्य करवाया जाता था। कुछ गुलाम खानों में भी काम करते थे। इन्हें अत्यंत भयावह स्थितियों में कार्य करना पड़ता था। कार्य के दौरान उन्हें जंजीरों से जकड़ कर रखा जाता था ताकि वे भागने न पाएँ। उन पर अनेक प्रकार के अन्य अमानवीय अत्याचार किए जाते थे। इन अत्याचारों के कारण अनेक गुलामों की मृत्यु हो जाती थी।

इसके बावजूद गोरे लोगों पर किसी प्रकार का न तो कोई मुकद्दमा चलता था तथा न ही उन्हें कोई सज़ा दी जाती थी। कठोर श्रम करने के बावजूद इन गलामों को दो समय भर पेट खाना भी नसीब नहीं होता था। वे गंदी झोंपडियों में रहते थे। वे अर्द्धनग्न घमते रहते थे। घरों में कार्य करने वाले दासों की स्थिति यद्यपि कुछ अच्छी थी, किंतु उन्हें भी अपने मालिकों के घोर अत्याचारों को सहन करना पड़ता था।

प्रश्न 17.
दास व्यापार के क्या परिणाम निकले ?
उत्तर:
दास व्यापार के अनेक दूरगामी परिणाम निकले। प्रथम, यह व्यापार विशेष रूप से अफ्रीका के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ। दास व्यापार 15वीं शताब्दी में बहुत छोटे पैमाने पर आरंभ हुआ था। इस व्यापार ने 17वीं एवं 18वीं शताब्दियों में बहुत विकास कर लिया था। इस व्यापार के चलते अफ्रीका के दो तिहाई पुरुषों को दास बना कर यूरोप की मंडियों में बेच दिया गया था।

अतः अफ्रीका में लिंग अनुपात गड़बड़ा गया। अफ्रीका में स्त्रियों की संख्या बहुत बढ़ गई। उन्हें अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ा। वे खेतों में काम करने के लिए बाध्य हुईं। यह कार्य पहले पुरुष किया करते थे। दूसरा, इस प्रथा के चलते दासों को घोर अत्याचारों का सामना करना पड़ा। उनका जीवन नरक समान था।

बाध्य होकर अनेक बार दास या तो भाग जाते थे या फिर विद्रोह कर देते थे। दास व्यापार यूरोपियों के दृष्टिकोण से बहुत लाभकारी प्रमाणित हुआ। दासों की मेहनत के परिणामस्वरूप यूरोपीय अर्थव्यवस्था ने उल्लेखनीय प्रगति की।

प्रश्न 18.
दास प्रथा का उन्मूलन किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
दासों के साथ किए जाने वाले अमानुषिक व्यवहार के कारण अनेक देशों में इस क्रूर प्रथा के विरुद्ध आवाज़ बुलंद होने लगी। बहत-से नेताओं ने इस प्रथा का अंत करने के लिए अपनी सरकारों को प्रेरित किया। इसके लिए उन्हें एक लंबा संघर्ष करना पड़ा। अंत में उनकी प्रेरणा रंग लाई। इसके चलते सर्वप्रथम डेनमार्क ने 1803 ई० में दासों के व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया।

यह निस्संदेह दास प्रथा का उन्मूलन करने की दिशा में उठाया गया प्रथम महत्त्वपूर्ण पग था। डेनमार्क का अनुसरण करते हुए ब्रिटेन ने 1807 ई० में, फ्राँस ने 1814 ई० में, नीदरलैंड ने 1817 ई० में तथा स्पेन ने 1845 ई० में गुलामों के व्यापार पर पूर्णतः निषेध लगा दिया। 1833 ई० में सर्वप्रथम ब्रिटेन ने दास प्रथा का अंत करने की घोषणा की।

इसके पश्चात् फ्राँस ने 1848 ई० में, संयुक्त राज्य अमरीका ने 1865 ई० में, क्यूबा ने 1886 ई० में तथा ब्राज़ील ने 1888 ई० में दास प्रथा का अंत कर दिया। दास प्रथा का उन्मूलन निस्संदेह एक नए युग का संकेत था।

अति संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कोई ऐसे दो कारण बताएँ जिनसे 15वीं शताब्दी में सबसे पहले यूरोपीय नौचालन को सहायता मिली ?
उत्तर:

  • 14वीं एवं 15वीं शताब्दियों में जहाजरानी से संबंधित नए आविष्कारों ने नाविकों की समुद्री यात्राओं को सुगम बना दिया।
  • पुर्तगाल के राजकुमार हेनरी ने यूरोपीय नौचालन को यथासंभव सहायता प्रदान की।

प्रश्न 2.
किन कारणों से स्पेन और पुर्तगाल ने पंद्रहवीं शताब्दी में सबसे पहले अटलांटिक महासागर के पार जाने का साहस किया ?
उत्तर:

  • उस समय स्पेन और पुर्तगाल की अर्थव्यवस्था अच्छी थी। इस कारण वे अटलांटिक महासागर के पार जाने का खर्चा उठा सकने में सक्षम थे।
  • स्पेन एवं पुर्तगाल के शासकों ने अटलांटिक महासागर के पार जाने वाले नाविकों की प्रत्येक संभव सहायता की।
  • ईसाई प्रचारक वहाँ ईसाई धर्म का प्रचार करना चाहते थे।

प्रश्न 3.
कुतबनुमा का आविष्कार कब हुआ ? इसने नौचालन को कैसे प्रेरित किया ?
उत्तर:

  • कुतबनुमा का आविष्कार 1380 ई० में हुआ।
  • इसने नाविकों को खुले समुद्र में दिशाओं की सही जानकारी प्रदान की। इससे सुदूर समुद्री यात्राएं करना संभव हआ।

प्रश्न 4.
टॉलेमी कहाँ का निवासी था ? उसकी प्रसिद्ध रचना का नाम क्या था ? इसका प्रकाशन कब हुआ था ?
उत्तर:

  • टॉलेमी मित्र का निवासी था।
  • उसकी प्रसिद्ध रचना का नाम ज्योग्राफी था।
  • इसका प्रकाशन 1477 ई० में हुआ था।

प्रश्न 5.
मार्को पोलो कौन था ?
उत्तर:

  • मार्को पोलो इटली के शहर वेनिस का एक महान् यात्री था।
  • वह 1275 ई० में मंगोलों के महान् नेता कुबलई खाँ के दरबार में पीकिंग पहुंचा।
  • उसने मार्को पोलो की यात्राएँ नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की।

प्रश्न 6.
रीकांक्वेस्टा (Reconquista) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
रीकांक्वेस्टा से अभिप्राय है पुनर्विजय। ईसाई राजाओं ने 1492 ई० में आईबेरियन प्रायद्वीप को अरबों के कब्जे से छडा लिया था। इस सैनिक विजय को रीकांक्वेस्टा कहा जाता है।

प्रश्न 7.
कैपिटुलैसियोन (Capitulaciones) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
कैपिटुलैसियोन से अभिप्राय स्पेन के शासक द्वारा दिए गए इकरारनामों से है। इन इकरारनामों द्वारा स्पेन के शासक ने नए जीते गए प्रदेशों पर उन्हें जीतने वाले अभियानों के नेताओं को पुरस्कार के रूप में उनका शासनाधिकार दिया।

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प्रश्न 8.
कौन-सी नयी खाद्य वस्तुएँ दक्षिणी अमरीका से बाकी दुनिया को भेजी जाती है ?
उत्तर:
दक्षिणी अमरीका से तंबाकू, आलू, गन्ने की चीनी, ककाओ, रबड़, लाल मिर्च, मक्का, कसावा एवं कुमाला नामक नयी खाद्य वस्तुएँ बाकी दुनिया को भेजी जाती थीं।

प्रश्न 9.
कार्डिनल पिएर डिऐली (Cardinal Pierre di Ailly) कौन था ?
उत्तर:

  • वह एक प्रसिद्ध फ्रांसीसी दार्शनिक था।
  • उसने खगोलशास्त्र एवं भूगोल पर ‘इमगो मुंडी’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की।

प्रश्न 10.
क्रिस्टोफर कोलंबस कहाँ का निवासी था ? वह बहामा द्वीप समूह में कब पहुँचा ?
उत्तर:

  • क्रिस्टोफर कोलंबस इटली का निवासी था।
  • वह बहामा द्वीप समूह में 12 अक्तूबर, 1492 ई० को पहुँचा।

प्रश्न 11.
कोलंबस गुआनाहानि कब पहुँचा ? उसने इस द्वीप का क्या नाम रखा ?
उत्तर:

  • कोलंबस गुआनाहानि 12 अक्तूबर, 1492 ई० को पहुंचा।
  • उसने इस द्वीप का नाम सैन सैल्वाडोर रखा।

प्रश्न 12.
कोलंबस का नाम क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर:

  • उसने नयी दुनिया की खोज की।
  • उसने उपनिवेशों के युग का आरंभ किया।
  • उसने यूरोप को कच्चे माल एवं खनिज पदार्थों के नए स्रोत दिए।

प्रश्न 13.
नयी दुनिया को अमरीका का नाम किसने, कब तथा किसकी स्मृति में दिया ?
उत्तर:
नयी दुनिया को अमरीका का नाम एक जर्मन प्रकाशक ने 1507 ई० में अमेरिगो वेस्पुसी की स्मृति में दिया।

प्रश्न 14.
कोक्विस्टोडोर (Conquistadores) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
कोक्विस्टोडोर से अभिप्राय स्पेनी विजेताओं एवं उनके सैनिकों से है जिन्होंने नयी दुनिया में अपने साम्राज्य स्थापित किए।

प्रश्न 15.
हरनेंडो कोर्टेस ने मैक्सिको पर कब आक्रमण किया था ? उस समय वहाँ का शासक कौन
उत्तर:

  • हरनेंडो कोर्टेस ने मैक्सिको पर 1519 ई० में आक्रमण किया था।
  • उस समय वहाँ का शासक मोंटेजुमा द्वितीय था।

प्रश्न 16.
डोना मैरीना (Dona Marina) कौन थी ?
उत्तर:
वह मैक्सिको की एक राजकुमारी थी। उसकी माँ ने उसे टैबैस्को लोगों को एक दासी के रूप में बेच दिया था। वह स्पेनिश एवं मैक्सिकन भाषाओं में बहुत प्रवीण थी। उसने हरनेंडो कोर्टेस के लिए दुभाषिये का काम किया था। उसके सहयोग के बिना हरनेंडो कोर्टेस के लिए मैक्सिको पर विजय पाना अत्यंत कठिन था।

प्रश्न 17.
मोंटेजुमा द्वितीय कौन था ?
उत्तर:
मोटेजुमा द्वितीय मैक्सिको का शासक था। वह इस पद पर 1502 ई० से 1520 ई० तक रहा। वह अपने अत्याचारों के कारण प्रजा में बहुत बदनाम था। हरनेंडो कोर्टेस ने 1519 ई० में उसकी राजधानी टेनोक्टिटलान पर आक्रमण कर धोखे से बंदी बना लिया था। 29 जून, 1520 ई० को मोंटेजुमा द्वितीय को मौत के घाट उतार दिया गया।

प्रश्न 18.
हरनेंडो कोर्टस क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
हरनेंडो कोर्टेस स्पेन का एक प्रसिद्ध कोक्विस्टोडोर था। उसने 1519 ई० में मैक्सिको पर आक्रमण कर इसके शासक मोंटेजुमा द्वितीय को बंदी बना लिया था। उसने 1521 ई० में मैक्सिको पर कब्जा कर एज़टेक साम्राज्य का अंत कर दिया था। उसे स्पेन के शासक चार्ल्स पँचम ने न्यू स्पेन (मैक्सिको) का गवर्नर एवं कैप्टन-जनरल नियुक्त किया था। वह इस पद पर 1541 ई० तक रहा।

प्रश्न 19.
फ्रांसिस्को पिज़ारो कौन था ?
उत्तर:
फ्रांसिस्को पिज़ारो स्पेन का एक प्रसिद्ध विजेता था। उसने 1532 ई० में पेरू में स्थापित इंका साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया था। उसने धोखे से इसके शासक अताहुआल्पा को बंदी बना लिया। उसने अताहुआल्पा से भारी फिरौती लेने के बावजूद उसका 1533 ई० में वध कर दिया। उसने इंका साम्राज्य में भयंकर लूटमार की। उसने 1535 ई० में लिमा को पेरू की नई राजधानी बनाया। 26 जून, 1541 ई० को पिज़ारो का लिमा में उसके विरोधियों ने वध कर दिया।

प्रश्न 20.
पेड्रो अल्वारिस कैब्राल का नाम क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
पेड्रो अल्वारिस कैब्राल पुर्तगाल का एक प्रसिद्ध नाविक था। उसने 22 अप्रैल, 1500 ई० को ब्राज़ील की खोज की। पुर्तगालियों ने यहाँ से मिलने वाली ब्राज़ीलवुड का भरपूर लाभ उठाया। इससे लाल रंजक (red dye) तैयार की जाती थी।

प्रश्न 21.
आरंभ में पुर्तगालियों ने ब्राज़ील की ओर कम ध्यान क्यों दिया ?
उत्तर:
आरंभ में पुर्तगालियों ने ब्राजील की ओर कम ध्यान इसलिए दिया क्योंकि वहाँ सोना अथवा चाँदी मिलने की संभावना बहुत कम थी। दूसरा, पुर्तगाली उस समय पश्चिमी भारत के साथ अपना व्यवसाय करने के लिए अधिक उत्सुक थे।

प्रश्न 22.
यूरोपीय जेसुइट पादरियों के विरुद्ध क्यों थे ?
उत्तर:

  • वे सभी लोगों की स्वतंत्रता के पक्ष में थे।
  • उन्होंने दास प्रथा की कड़े शब्दों में आलोचना की।
  • उन्होंने यूरोपियों को मूल निवासियों के साथ अच्छा बर्ताव करने का परामर्श दिया।

प्रश्न 23.
पोटोसी (Potosi) को नरक का मुख किसने कहा और क्यों ?
उत्तर:
पोटोसी को नरक का मुख एक संन्यासी डोमिनिगो डि सैंटो टॉमस (Dominigo de Santo Tomas) ने कहा। इसका कारण यह था कि प्रत्येक वर्ष हजारों की संख्या में इंडियन लोग जो यहाँ की खानों में काम करते थे मृत्यु का ग्रास बन जाते थे। इन खानों के मालिक इन लोगों के साथ जानवरों से भी बदतर व्यवहार करते थे।

प्रश्न 24.
दक्षिणी अमरीका को लैटिन अमरीका क्यों कहा जाता है ?
उत्तर
दक्षिणी अमरीका को लैटिन अमरीका इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहाँ स्पेनी एवं पुर्तगाली दोनों ही भाषाएँ बोली जाती थीं। ये दोनों ही भाषाएँ लैटिन भाषा परिवार से संबंधित हैं। अतः दक्षिणी अमरीका को लैटिन अमरीका कहा जाने लगा।

प्रश्न 25.
अरावाकी लुकायो कौन थे?
उत्तर:

  • वे बहुत शांतिप्रिय लोग थे।
  • वे लड़ने की अपेक्षा बातचीत से झगड़ा निपटाना अधिक पसंद करते थे।

प्रश्न 26.
अरावाकी सभ्यता की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • वे अपने वंश के बुजुर्गों के अधीन संगठित रहते थे।
  • उनमें बहु-विवाह प्रथा प्रचलित थी।

प्रश्न 27.
अरावाकी लोगों का आरंभ में स्पेनियों के प्रति कैसा व्यवहार था ? बाद में इस व्यवहार में परिवर्तन क्यों आया ?
उत्तर:

  • अरावाकी लोगों का आरंभ में स्पेनियों के प्रति व्यवहार मैत्रीपूर्ण था।
  • बाद में इस व्यवहार में परिवर्तन का कारण स्पेनियों द्वारा मूल निवासियों के प्रति अपनाई गई क्रूर नीति थी।

प्रश्न 28.
तुपिनांबा लोग कहाँ रहते थे ? वे खेती के लिए घने जंगलों का सफ़ाया क्यों न कर सके ?
उत्तर:

  • तुपिनांबा लोग दक्षिणी अमरीका के पूर्वी तट पर रहते थे।
  • वे खेती के लिए घने जंगलों का सफाया इसलिए नहीं कर सके क्योंकि उनके पास पेड़ काटने के लिए लोहे का कुल्हाड़ा नहीं था।

प्रश्न 29.
स्पेनियों के संपर्क में आने के बाद 25 वर्ष के अंदर ही अरावाकी सभ्यता लुप्त क्यों हो गई ? कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • स्पेनियों ने अरावाकियों का क्रूरता से दमन किया।
  • स्पेनियों के आगमन से अरावाकियों में अनेक भयंकर बीमारियाँ फैल गईं। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में अरावाकियों की मृत्यु हो गई।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव

प्रश्न 30.
एजटेक साम्राज्य की राजधानी का नाम क्या था ? इसका निर्माण कब किया गया था ?
उत्तर:

  • एज़टेक साम्राज्य की राजधानी का नाम टेनोक्टिटलान (Tenochtitlan) था।
  • इसका निर्माण 1325 ई० में किया गया।

प्रश्न 31.
एज़टेक की राजधानी टेनोक्टिटलान का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • इसका निर्माण 1325 ई० में किया गया था।
  • इसे भव्य महलों, मंदिरों एवं उपवनों से सुसज्जित किया गया था।

प्रश्न 32.
एज़टेक सभ्यता की कोई दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • एजटेक समाज में सम्राट को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था।
  • एज़टेक समाज श्रेणीबद्ध था। अभिजात वर्ग को विशेष अधिकार प्राप्त थे।

प्रश्न 33.
एजटेक समाज में सम्राट् की स्थिति क्या थी ?
उत्तर:

  • एज़टेक समाज में सम्राट को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था।
  • उसे निरंकुश शक्तियाँ प्राप्त थीं।
  • उसे पृथ्वी पर सूर्य देवता का प्रतिनिधि समझा जाता था।

प्रश्न 34.
चिनाम्पा. (Chinampas) से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
चिनाम्पा मैक्सिको झील में बने कृत्रिम टापू थे। इन्हें सरकंडे की बहुत बड़ी चटाइयाँ बुनकर इन्हें मिट्टी तथा पत्तों से ढककर बनाया जाता था। ये अत्यंत उपजाऊ थे।

प्रश्न 35.
कालमेकाक (Calmecac) तथा तेपोकल्ली (Telpochcally) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:

  • कालमेकाक एजटेक लोगों के वे स्कल थे जिनमें अभिजात वर्ग के बच्चे शिक्षा प्राप्त करते थे।
  • तेपोकल्ली वे स्कल थे जिनमें साधारण वर्ग के बच्चे शिक्षा प्राप्त करते थे।

प्रश्न 36.
एज़टेक समाज में लड़कों एवं लड़कियों को किस प्रकार की शिक्षा दी जाती थी ?
उत्तर:

  • एज़टेक समाज में लड़कों को पुरोहित एवं सैनिक बनने की शिक्षा दी जाती थी।
  • एजटेक समाज में लड़कियों को घरेलू कार्यों की शिक्षा दी जाती थी।

प्रश्न 37.
एज़टेक समाज में स्त्रियों की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर:
एजटेक समाज में स्त्रियों की स्थिति बहुत अच्छी थी। वे शिक्षा प्राप्त करती थीं। वे सामान्यतः घरेलू कार्य करती थीं। कुछ स्त्रियाँ खेती का एवं कुछ पुरोहित का कार्य भी करती थीं। उनका विवाह प्रायः 16 वर्ष की आयु में किया जाता था।

प्रश्न 38.
एजटेक लोगों के धार्मिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:

  • वे अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे।
  • सूर्य देवता एवं युद्ध देवता उनके दो प्रमुख देवते थे।
  • वे अपने देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए मनुष्यों की बलियाँ देते थे।

प्रश्न 39.
एजटेक सभ्यता के पतन के कोई दो प्रमुख कारण बताएँ।
उत्तर:

  • एज़टेक शासकों ने गैर-एज़टेक लोगों पर घोर अत्याचार किए। इस कारण उनमें भारी असंतोष था।
  • एज़टेक साम्राज्य में रोजाना बड़ी संख्या में लोगों की बलि दी जाती थी। अत: वे ऐसे शासन का अंत करना चाहते थे।

प्रश्न 40.
एजटेक और मेसोपोटामई सभ्यता की तुलना कीजिए।
उत्तर:

  • एज़टेक और मेसोपोटामई सभ्यताएँ एक विशाल क्षेत्र में फैली हुई थीं।
  • दोनों सभ्यताओं के समाजों में दासों को सबसे निम्न स्थान प्राप्त था।
  • दोनों सभ्यताओं में स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी।

प्रश्न 41.
इंका सभ्यता का संस्थापक कौन था ? उसकी राजधानी का नाम क्या था ?
उत्तर:

  • इंका सभ्यता का संस्थापक मैंको कपाक था।
  • उसकी राजधानी का नाम कुजको था।

प्रश्न 42.
इंका सभ्यता का सबसे शक्तिशाली शासक कौन था ? वह सिंहासन पर कब बैठा था ?
उत्तर:

  • इंका सभ्यता का सबसे शक्तिशाली शासक पचकुटी इंका था।
  • वह 1438 ई० में सिंहासन पर बैठा था।

प्रश्न 43.
इंका साम्राज्य की राजधानी एवं प्रशासनिक भाषा का नाम बताएँ।
उत्तर:

  • इंका साम्राज्य की राजधानी का नाम कुजको (Cuzco) था।
  • इंका साम्राज्य की प्रशासनिक भाषा कवेचुआ (Quechua) थी।

प्रश्न 44.
इंका सभ्यता की मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
अथवा
इंका समाज की कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  • इंका साम्राज्य में सम्राट की स्थिति सर्वोच्च थी।
  • इंका समाज विभिन्न श्रेणियों में विभाजित था।
  • इंका सभ्यता का आधार कृषि था।

प्रश्न 45.
इंका लोग उच्चकोटि के भवन निर्माता थे। कैसे ?
उत्तर:

  • उन्होंने कुजको एवं माचू-पिच्चू में भव्य महलों, किलों एवं मंदिरों का निर्माण किया।
  • उन्होंने पहाड़ों के बीच इक्वेडोर से चिली तक अनेक सड़कें बनाईं।

प्रश्न 46.
इंका भवनों की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • वे अपने भवनों में विशाल पत्थरों का प्रयोग करते थे।
  • वे अपने भवनों को शल्क पद्धति (flaking) द्वारा सुंदर बनाते थे।

प्रश्न 47.
“इंका समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी।” कोई दो तर्क दें।
उत्तर:

  • उनका परिवार में पूर्ण सम्मान किया जाता था।
  • उन्हें शिक्षा का अधिकार प्राप्त था।

प्रश्न 48.
क्विपु (quipu) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
क्विपु इंका लोगों की एक प्रणाली थी। इससे चीजों को स्मरण रखने में सहायता मिलती थी। इसमें एक डंडा होता था जिसमें विभिन्न रंगों की रस्सियों से गाँठ बाँधी जाती थी। प्रत्येक गाँठ एक किस्म का संकेत देती थी जिससे उस वस्तु का अनुमान लगाया जाता था।

प्रश्न 49.
इंका कृषि की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • वे कृषि के लिए पहाड़ों में सीढ़ीदार खेत (terraces) बनाते थे।
  • उनकी दो प्रमुख फ़सलें मक्का एवं आलू थीं।

प्रश्न 50.
इंका लोग लामा (Ilama) का पालन क्यों करते थे ?
उत्तर:

  • वे इससे भार ढोने का कार्य लेते थे।
  • वे इससे ऊन प्राप्त करते थे।
  • वे इसका माँस खाते थे।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव

प्रश्न 51.
इंका लोगों के धार्मिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:

  • उनका प्रमुख देवता सूर्य था।
  • वे अपने देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए जानवरों एवं कभी-कभी मनुष्यों की बलियाँ देते थे।
  • वे मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास रखते थे।

प्रश्न 52.
इंका सभ्यता के पतन के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • इंका शासक अताहुआल्पा एक योग्य शासक प्रमाणित न हुआ।
  • इंका स्पेनी आक्रमणकारी फ्रांसिस्को पिज़ारो का सामना न कर सके।

प्रश्न 53.
माया काल का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • माया सभ्यता का आरंभ 1500 ई० पू० में हुआ था।
  • यह सभ्यता 300 ई० से 900 ई० के दौरान बहुत प्रफुल्लित हुई।
  • इस सभ्यता का अंत 1519 ई० में हुआ।

प्रश्न 54.
माया सभ्यता की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • उनकी सभ्यता का मुख्य आधार मक्के की खेती थी।
  • माया समाज में पुरोहितों को मुख्य स्थान प्राप्त था।

प्रश्न 55.
मक्के की खेती माया सभ्यता का मुख्य आधार क्यों थी ?
उत्तर:
मक्के की खेती माया सभ्यता का मख्य आधार इसलिए थी क्योंकि उनके अनेक धार्मिक क्रियाकलाप एवं उत्सव मक्का बोने, उगाने एवं काटने से जुड़े थे।

प्रश्न 56.
माया लोगों के धार्मिक जीवन की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • वे अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे। उनके दो प्रमुख देवता सूर्य देवता एवं मक्का देवता थे।
  • वे मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास रखते थे।

प्रश्न 57.
माया मंदिरों में सबसे प्रसिद्ध मंदिर कौन-सा था ? इसकी स्थापना कब और कहाँ की गई थी ?
उत्तर:

  • माया मंदिरों में सबसे प्रसिद्ध मंदिर टिक्ल था।
  • इसकी स्थापना 8वीं शताब्दी में ग्वातेमाला में की गई थी।

प्रश्न 58.
माया पंचांग कितनी प्रकार के थे ? इनमें वर्ष में कितने दिन होते थे ?
उत्तर:

  • माया पंचांग दो प्रकार के थे।
  • इनमें एक वर्ष में 365 दिन एवं दूसरे में 260 दिन होते थे।

प्रश्न 59. माया लिपि की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • माया लिपि चित्रात्मक थी।
  • इस लिपि को अभी तक पूरी तरह पढ़ा नहीं जा सका है।

प्रश्न 60.
माया सभ्यता के पतन के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • इस सभ्यता के पतन में किसानों के विद्रोह मुख्य रूप से उत्तरदायी थे।
  • 1519 ई० में हरनेंडो कोर्टेस के आक्रमण ने माया सभ्यता के पतन का डंका बजा दिया।

प्रश्न 61.
ओलाउदाह एक्वियानो (Olaudah Equiano) कहाँ का निवासी था ? जब उसे गुलाम बनाया गया तो उसकी आयु क्या थी ?
उत्तर:

  • ओलाउदाह एक्वियानो नाईजीरिया का निवासी था।
  • जब उसे गुलाम बनाया गया तो उसकी आयु 11 वर्ष थी।

प्रश्न 62.
ओलाउदाह एक्वियानो ने अपनी आत्मकथा कब लिखी ? इसका नाम क्या था ?
उत्तर:

  • ओलाउदाह एक्वियानो ने अपनी आत्मकथा 1789 ई० में लिखी।
  • इसका नाम दि इनटरेस्टिंग नैरैटिव ऑफ़ दि लाइफ ऑफ़ ओलाउदाह एक्वियानो था।

प्रश्न 63.
आधुनिक इतिहासकार एरिक विलियम्स ने कब तथा किस पुस्तक की रचना की ? इसका विषय क्या था ?
उत्तर:

  • आधुनिक इतिहासकार एरिक विलियम्स ने 1940 के दशक में कैपिटलिज्म एंड स्लेवरी’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की।
  • इसका मुख्य विषय अफ्रीकी दासों के कष्टों का वर्णन करना था।

प्रश्न 64.
दासों पर लगे कोई दो प्रतिबंध बताएँ।
उत्तर:

  • वे अपने मालिकों से अनुमति पत्र लिए बिना अपने कार्य को नहीं छोड़ सकते थे।
  • वे अपने पास किसी किस्म का कोई हथियार नहीं रख सकते थे।।

प्रश्न 65.
किन्हीं दो देशों के नाम बताएँ जिन्होंने दास प्रथा का उन्मूलन किया। ऐसा कब किया गया ?
उत्तर:

  • ब्रिटेन एवं संयुक्त राज्य अमरीका ने दास प्रथा का उन्मूलन किया।
  • ऐसा क्रमवार 1833 ई० एवं 1865 ई० में किया गया।

प्रश्न 66.
दास प्रथा के कोई दो प्रभाव लिखें।
उत्तर:

  • अफ्रीका के अधिकांश पुरुषों को दास बना कर यूरोप में बेच दिया गया। इससे अफ्रीका में लिंग अनुपात गड़बड़ा गया।
  • दासों की मेहनत के कारण यूरोपीय अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा मिली।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

प्रश्न 1.
यूरोपवासियों ने खोज यात्राओं का श्रीगणेश किस शताब्दी में किया ?
उत्तर:
15वीं शताब्दी में।

प्रश्न 2.
15वीं शताब्दी में किन दो देशों ने समुद्री यात्राओं को प्रोत्साहित करने में उल्लेखनीय योगदान दिया ?
उत्तर:
पुर्तगाल एवं स्पेन।

प्रश्न 3.
तुर्कों ने कुंस्तुनतुनिया पर कब अधिकार किया ?
उत्तर:
1453 ई० में।

प्रश्न 4.
कुतबनुमा का आविष्कार कब हुआ था ?
उत्तर:
1380 ई० में।

प्रश्न 5.
विश्व का ठीक मानचित्र किसने बनाया था ?
उत्तर:
बतिस्ता ने।

प्रश्न 6.
टॉलेमी की ज्योग्राफ़ी किस वर्ष प्रकाशित हुई ?
उत्तर:
1477 ई० में।

प्रश्न 7.
मार्को पोलो कुबलई खाँ के दरबार में कब पहुँचा था ?
उत्तर:
1275 ई० में।

प्रश्न 8.
समुद्री खोज यात्राओं को प्रोत्साहित करने वाला राजकुमार हेनरी किस देश से संबंधित था ?
उत्तर:
पुर्तगाल।

प्रश्न 9.
क्रिस्टोफर कोलंबस किस देश का निवासी था ?
उत्तर:
इटली का।

प्रश्न 10.
इमगो मुंडी का लेखक कौन था ?
उत्तर:
कार्डिनल पिएर डिऐली।

प्रश्न 11.
क्रिस्टोफर कोलंबस गुआनाहानि कब पहुँचा ?
उत्तर:
1492 ई० में।

प्रश्न 12.
गुआनाहानि में कौन लोग रहते थे ?
उत्तर:
अरावाक।

प्रश्न 13.
कोलंबस ने गुआनाहानि में रहने वाले लोगों को किस नाम से पुकारा ?
उत्तर:
रेड इंडियन्स।

प्रश्न 14.
कोलंबस ने गुआनाहानि का नाम क्या रखा ?
उत्तर:
सैन सैल्वाडोर।

प्रश्न 15.
कोलंबस की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर:
1506 ई० में।

प्रश्न 16.
हरनेंडो कोर्टेस ने मैक्सिको पर कब आक्रमण किया ?
उत्तर:
1519 ई० में।

प्रश्न 17.
हरनेंडो कोर्टस के मैक्सिको आक्रमण के दौरान किसने उसे बहुमूल्य सहयोग दिया ?
उत्तर:
डोना मैरीना ने।

प्रश्न 18.
टु हिस्ट्री ऑफ़ मैक्सिको का लेखक कौन था ?
उत्तर:
बर्नाल डियाज़ डेल कैस्टिलो।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव

प्रश्न 19.
हरनेंडो कोर्टेस के आक्रमण के समय वहाँ किस एजटेक शासक का शासन था ?
उत्तर:
मोंटेजुमा द्वितीय का।

प्रश्न 20.
एजटेक साम्राज्य की राजधानी का नाम क्या था।
उत्तर:
टेनोक्टिटलान।

प्रश्न 21.
आँसू भरी रात की घटना कब हुई ?
उत्तर:
30 जून, 1520 ई०।

प्रश्न 22.
हरनेंडो कोर्टेस ने एज़टेक साम्राज्य का अंत कब किया ?
उत्तर:
1521 ई० में।

प्रश्न 23.
हरनेंडो कोर्टेस ने मैक्सिको का क्या नाम रखा ?
उत्तर:
न्यू स्पेन।

प्रश्न 24.
पेरू पर किसने अधिकार किया ?
उत्तर:
फ्राँसिस्को पिज़ारो ने।

प्रश्न 25.
फ्राँसिस्को पिज़ारो ने किसे पेरू की राजधानी घोषित किया ?
उत्तर:
लिमा को।

प्रश्न 26.
ब्राजील की खोज किसने की ?
उत्तर:
पेड्रो अल्वारिस कैब्राल ने।

प्रश्न 27.
ब्राज़ील किस वृक्ष के लिए जाना जाता था ?
उत्तर:
ब्राज़ीलवुड के लिए।

प्रश्न 28.
पुर्तगाल ने ब्राज़ील का शासन कब सीधा अपने हाथों में ले लिया ?
उत्तर:
1549 ई० में।

प्रश्न 29.
पुर्तगाल ने किसे ब्राज़ील की राजधानी घोषित किया?
उत्तर:
सैल्वाडोर को।

प्रश्न 30.
अरावाकी लुकायो नामक कबीला कहाँ रहता था ?
उत्तर:
बहामा एवं वृहत्तर एंटिलीज में।

प्रश्न 31.
हैमक क्या थे ?
उत्तर:
एक प्रकार का झूला।

प्रश्न 32.
एजटेक साम्राज्य कहाँ फैला हुआ था ?
उत्तर:
मैक्सिको में।

प्रश्न 33.
एजटेक साम्राज्य की राजधानी टेनोक्टिटलान का निर्माण कब किया गया था ?
उत्तर:
1325 ई० में।

प्रश्न 34.
एजटेक समाज में सबसे निम्न स्थान किसे प्राप्त था ?
उत्तर:
दासों को।

प्रश्न 35.
मैक्सिको झील में जो कृत्रिम टापू बनाए गए थे वे क्या कहलाते थे ?
उत्तर:
चिनाम्पा।

प्रश्न 36.
एजटेक साम्राज्य में अभिजात वर्ग के बच्चे जिन स्कूलों में पढ़ते थे वे क्या कहलाते थे ?
उत्तर:
कालमेकाक।

प्रश्न 37.
एज़टेकों का प्रमुख देवता कौन था ?
उत्तर:
सूर्य देवता।

प्रश्न 38.
दक्षिण अमरीका की सबसे प्रसिद्ध एवं शक्तिशाली सभ्यता कौन-सी थी ?
उत्तर:
इंका सभ्यता।

प्रश्न 39.
इंका साम्राज्य का संस्थापक किसे माना जाता है ?
उत्तर:
मैंको कपाक को।।

प्रश्न 40.
इंका साम्राज्य की राजधानी का क्या नाम था ?
उत्तर:
कुजको।

प्रश्न 41.
इंका साम्राज्य का सबसे शक्तिशाली शासक कौन था ?
उत्तर:
पचकुटी इंका।

प्रश्न 42.
माचू-पिच्चू नामक प्रसिद्ध शहर का निर्माण किस सभ्यता ने किया था ?
उत्तर:
इंका सभ्यता ने।

प्रश्न 43.
इंका साम्राज्य में किसे सर्वोच्च स्थान प्राप्त था ?
उत्तर:
सम्राट् को।

प्रश्न 44.
इंका साम्राज्य में विद्यार्थियों को शिक्षा किस प्रकार दी जाती थी ?
उत्तर:
मौखिक।

प्रश्न 45.
इंका साम्राज्य के लोगों की प्रशासनिक भाषा कौन-सी थी ?
उत्तर:
क्वेचुआ।

प्रश्न 46.
माया सभ्यता कहाँ फैली थी ?
उत्तर:
मैक्सिको में।

प्रश्न 47.
माया सभ्यता के लोग किस फ़सल का सर्वाधिक उत्पादन करते थे ?
उत्तर:
मक्का का।

प्रश्न 48.
माया लोगों का प्रमुख देवता कौन था ?
उत्तर:
सूर्य देवता।

प्रश्न 49.
माया लोगों ने टिक्ल मंदिर का निर्माण कहाँ करवाया था ?
उत्तर:
ग्वातेमाला में।

प्रश्न 50.
माया लोगों ने कितने प्रकार के पंचांग तैयार किए थे ?
उत्तर:
दो।

प्रश्न 51.
माया लोगों की लिपि कैसी थी ?
उत्तर:
चित्रात्मक।

प्रश्न 52.
ओलाउदाह एक्वियानो कहाँ का निवासी था ?
उत्तर:
नाईजीरिया का।

प्रश्न 53.
दि इनटरेस्टिंग नैरेटिव ऑफ दि लाइफ ऑफ़ ओलाउदाह एक्वियानो का प्रकाशन किस वर्ष हुआ था ?
उत्तर:
1789 ई० में

प्रश्न 54.
17वीं-18वीं शताब्दियों में यूरोपीय देश अधिकाँश दास कहाँ से प्राप्त करते थे ?
उत्तर:
अफ्रीका से।

प्रश्न 55.
कैपिटलिज्म एंड स्लेवरी का लेखक कौन था ?
उत्तर:
एरिक विलियम्स।

प्रश्न 56.
संयुक्त राज्य अमरीका ने दास प्रथा पर कब प्रतिबंध लगाया ?
उत्तर:
1865 ई० में।

रिक्त स्थान भरिए

1. यूरोपवासियों ने खोज यात्राओं का सर्वप्रथम आरंभ ……………… सदी में किया।
उत्तर:
15वीं

2. स्पेन के हरनेंडो कोर्टेस ने ……………….. में मैक्सिको पर आक्रमण कर दिया था।
उत्तर:
1519 ई०

3. एज़टेक की राजधानी का नाम ……………….. था।
उत्तर:
टेनोक्टिटलान

4. माया संस्कृति का संबंध ………………. देश से था।
उत्तर:
मैक्सिको

5. माया संस्कृति के लोगों के द्वारा टिक्ल मंदिर का निर्माण ……………….. में करवाया गया था।
उत्तर:
ग्वातेमाला

6. इंका साम्राज्य की स्थापना ……………….. द्वारा की गई थी।
उत्तर:
मैंको कपाक

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7. टॉलेमी ने ……………….. नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की।
उत्तर:
ज्योग्रफ़ी

8. तुर्कों ने कुस्तुनतुनिया पर विजय ……………….. ई० में प्राप्त की।
उत्तर:
1453

9. क्रिस्टोफर ……………….. का निवासी था।
उत्तर:
इटली

10. स्पेनिश भाषा के अनुसार ‘बाओ’ शब्द का अर्थ है …………. ।
उत्तर:
भारी जहाज़

11. वास्कोडिगामा ……………….. ई० में कालीकट पहुँचा।
उत्तर:
1498

12. अमेरिका नाम का सर्वप्रथम प्रयोग एक जर्मन के प्रकाशक द्वारा ………………. ई० में किया गया।
उत्तर:
1507

13. ‘टू हिस्ट्री ऑफ मैक्सिको’ नामक पुस्तक की रचना …………. द्वारा की गई।
उत्तर:
बर्नार्ड

14. फ्रांसीसको पिज़ारो ने ……………….. को पेरु की राजधानी घोषित किया।
उत्तर:
लिमा को

15. स्पेन के फिलिप द्वितीय द्वारा बेगार की प्रथा पर ……………….. ई० में रोक लगा दी गई थी।
उत्तर:
1601

16. एरिक विलियम्स की सुप्रसिद्ध रचना का नाम ……………….. था।
उत्तर:
कैपिटलिज्म एंड स्लेवरी

17. संयुक्त राज्य अमेरिका ने ……………….. ई० में दास प्रथा पर रोक लगा दी थी।
उत्तर:
1865

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. 15वीं से 17वीं शताब्दियों के दौरान यूरोपवासियों और उत्तरी एवं दक्षिणी अमरीका के मूल निवासियों के बीच हुए संघर्ष की जानकारी का प्रमुख स्रोत क्या है ?
(क) भवन
(ख) यात्रियों की डायरियाँ
(ग) जेसुइट धर्म प्रचारकों के विवरण
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

2. दूरबीन की खोज कब हुई ?
(क) 1409 ई० में
(ख) 1469 ई० में
(ग) 1609 ई० में
(घ) 1709 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1609 ई० में

3. दिशासूचक यंत्र का आविष्कार कब हुआ था ?
(क) 1280 ई० में
(ख) 1320 ई० में
(ग) 1380 ई० में
(घ) 1420 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1380 ई० में

4. टॉलेमी की ज्योग्राफ़ी किस वर्ष प्रकाशित हुई थी ?
(क) 1475 ई० में
(ख) 1477 ई० में
(ग) 1478 ई० में
(घ) 1479 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1477 ई० में

5. तुर्कों ने कुंस्तुनतुनिया पर कब अधिकार कर लिया था ?
(क) 1433 ई० में
(ख) 1443 ई० में
(ग) 1453 ई० में
(घ) 1463 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1453 ई० में

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव

6. मार्कोपोलो किस देश का निवासी था ?
(क) फ्राँस का
(ख) इटली का
(ग) रूस का
(घ) अमेरिका का।
उत्तर:
(ख) इटली का

7. कोलंबस का जन्म स्थान कहाँ था ?
(क) जेनेवा
(ख) पुर्तगाल
(ग) फ्राँस
(घ) स्पेन।
उत्तर:
(ख) पुर्तगाल

8. कोलंबस गुआनाहानि कब पहुँचा ?
(क) 1410 ई० में
(ख) 1451 ई० में
(ग) 1482 ई० में
(घ) 1492 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1492 ई० में।

9. कोलंबस ने गुआनाहानि के लोगों को किस नाम से संबोधित किया ?
(क) रेड इंडियन्स
(ख) ब्लैक इंडियनस
(ग) अरावाक
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(क) रेड इंडियन्स

10. कोलंबस ने गुआनाहानि में किस देश का झंडा गाड़ा था ?
(क) पुर्तगाल का
(ख) इटली का
(ग) स्पेन का
(घ) मैक्सिको का।
उत्तर:
(ग) स्पेन का

11. निम्नलिखित में से किसने दक्षिण अमरीका को नयी दुनिया का नाम दिया ?
(क) कोलंबस ने
(ख) अमेरिगो वेस्पुसी ने
(ग) हरनेंडो कोर्टेस ने
(घ) डोना मैरीना ने।
उत्तर:
(ख) अमेरिगो वेस्पुसी ने

12. हरनेडो कोर्टेस और उसके सैनिकों जिन्होंने मैक्सिको पर आक्रमण किया था इतिहास में किस नाम से जाना जाता है ?
(क) कोंक्विस्टोडोर
(ख) मालिंचिस्टा
(ग) लैक्सकलान
(घ) कैरिब।
उत्तर:
(क) कोंक्विस्टोडोर

13. बर्नाल डियाज़ डेल कैस्टिलो ने किस प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की ?
(क) इमगो मुंडी
(ख) ट्र हिस्ट्री ऑफ़ मैक्सिको ।
(ग) ट्र हिस्ट्री ऑफ़ अमरीका
(घ) दि प्रिंस।
उत्तर:
(ख) ट्र हिस्ट्री ऑफ़ मैक्सिको ।

14. हरनेंडो कोर्टस ने मैक्सिको पर कब आक्रमण किया था ? ।
(क) 1509 ई० में
(ख) 1511 ई० में
(ग) 1519 ई० में
(घ) 1521 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1519 ई० में

15. हरनेंडो कोटेंस ने जब मैक्सिको पर आक्रमण किया तो वहाँ किसका शासन था ?
(क) मोंटेजुमा प्रथम का
(ख) मोंटेजुमा द्वितीय का
(ग) अताहुआल्पा का
(घ) हुआस्कर का।
उत्तर:
(ख) मोंटेजुमा द्वितीय का

16. आँसू भरी रात की घटना किस दिन हुई ?
(क) 19 जन. 1520 ई० को
(ख) 29 जन 1500 ई० को
(ग) 30 जून, 1520 ई० को
(घ) 29 जुलाई, 1520 ई० को।
उत्तर:
(ग) 30 जून, 1520 ई० को

17. हरनेंडो कोर्टेस ने एजटेक साम्राज्य का अंत कब किया ?
(क) 1519 ई० में
(ख) 1520 ई० में
(ग) 1521 ई० में
(घ) 1522 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1521 ई० में

18. हरनेंडो कोर्टेस को मैक्सिको विजय के लिए किसने बहुमूल्य सहयोग दिया था ?
(क) मोंटेजुमा द्वितीय ने
(ख) डोना मैरीना ने
(ग) अमेरिगो वेस्पुसी ने
(घ) काजामारका ने।
उत्तर:
(ख) डोना मैरीना ने

19. अताहुआल्पा इंका साम्राज्य का शासक कब बना ?
(क) 1529 ई० में
(ख) 1530 ई० में
(ग) 1531 ई० में
(घ) 1532 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1532 ई० में।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव

20. इंका साम्राज्य की राजधानी का नाम क्या था ?
(क) पेरू
(ख) लिमा
(ग) कुजको
(घ) टेनोक्टिटलान।
उत्तर:
(ग) कुजको

21. निम्नलिखित में से किसने इंका साम्राज्य पर अधिकार कर लिया था ?
(क) कोलंबस ने
(ख) फ्राँसिस्को पिज़ारो ने
(ग) हरनेंडो कोर्टेस ने
(घ) डोना मैरीना ने।
उत्तर:
(ख) फ्राँसिस्को पिज़ारो ने

22. 1533 ई० में पुर्तगाल के राजा ने ब्राजील को कितने आनुवंशिक कप्तानियों में बाँट दिया था?
(क) 13
(ख) 14
(ग) 15
(घ) 16
उत्तर:
(ग) 15

23. पुर्तगाल के शासक ने किसे ब्राज़ील की राजधानी घोषित किया ?
(क) कुजको को
(ख) सैल्वाडोर को
(ग) क्यूबा को
(घ) सैन सैल्वाडोर को।
उत्तर:
(ख) सैल्वाडोर को

24. एंटोनियो वीइरा कौन था ?
(क) जेसुइट
(ख) कैथोलिक पादरी
(ग) फ्रांसीसी व्यापारी
(घ) पुर्तगाली नाविक।
उत्तर:
(क) जेसुइट

25. अरावाकी लोगों की प्रमुख फ़सल कौन-सी थी ?
(क) मक्का
(ख) कसावा
(ग) मीठे आलू
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

26. अरावाकी जो झूले बनाते थे वे किस नाम से जाने जाते थे ?
(क) कुजको
(ख) कसावा
(ग) हैमक
(घ) डोनाटेरियस।
उत्तर:
(ग) हैमक

27. एजटेकों ने अपने विशाल साम्राज्य की स्थापना कहाँ की थी ?
(क) मैक्सिको में
(ख) ब्राज़ील में
(ग) स्पेन में
(घ) इटली में।
उत्तर:
(क) मैक्सिको में

28. एज़टेकों ने मैक्सिको नाम अपने किस प्रमुख देवता के नाम पर रखा था ?
(क) युद्ध देवता
(ख) कुजको
(ग) मैक्सिली
(घ) कालमेकाक।
उत्तर:
(ग) मैक्सिली

29. एजटेकों ने मैक्सिको झील में जो कृत्रिम टापू बनवाए वे क्या कहलाते थे ?
(क) चिनाम्पा
(ख) हैमक
(ग) माचू-पिच्चू
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) चिनाम्पा

30. एजटेकों की राजधानी का नाम क्या था ?
(क) कुजको
(ख) टेनोक्टिटलान
(ग) सैल्वाडोर
(घ) लिमा।
उत्तर:
(ख) टेनोक्टिटलान

31. एज़टेक समाज में सर्वोच्च स्थान किसे प्राप्त था ?
(क) अभिजात वर्ग को
(ख) पुरोहितों को
(ग) सैनिकों को
(घ) दासों को।
उत्तर:
(क) अभिजात वर्ग को

32. एनटेक साम्राज्य में अभिजात वर्ग के बच्चे जिन स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करते थे वे क्या कहलाते थे ?
(क) तेपोकल्ली
(ख) कालमेकाक
(ग) हैमक
(घ) डोनाटेरियस।
उत्तर:
(ख) कालमेकाक

33. एजटेक साम्राज्य के लोग किस देवी की प्रमुख रूप से उपासना करते थे ?
(क) मातृदेवी
(ख) अन्न देवी
(ग) मिनर्वा
(घ) डायना।
उत्तर:
(ख) अन्न देवी

34. इंका साम्राज्य की स्थापना कब की गई थी ?
(क) 10वीं शताब्दी में
(ख) 12वीं शताब्दी में
(ग) 13वीं शताब्दी में
(घ) 15वीं शताब्दी में।
उत्तर:
(ख) 12वीं शताब्दी में

35. इंका साम्राज्य की स्थापना कहाँ की गई थी ?
(क) बहामा में
(ख) ब्राज़ील में
(ग) पेरू में
(घ) मैक्सिको में।
उत्तर:
(ग) पेरू में

36. इंका साम्राज्य का सबसे महान् शासक कौन था ?
(क) मैंको कपाक
(ख) पचकुटी इंका
(ग) अताहुआल्पा
(घ) हुआस्कर।
उत्तर:
(ख) पचकुटी इंका

37. निम्नलिखित में से किस शहर का निर्माण इंका साम्राज्य के लोगों ने किया था ?
(क) उर
(ख) मारी
(ग) माचू-पिच्चू
(घ) लिमा।
उत्तर:
(ग) माचू-पिच्चू

38. इंका साम्राज्य के लोगों की प्रशासनिक भाषा क्या थी ?
(क) अंग्रेज़ी
(ख) फ्राँसीसी
(ग) क्विपु
(घ) क्वेचुआ।
उत्तर:
(घ) क्वेचुआ।

39. निम्नलिखित में से किस का साम्राज्य के लोग पालते थे ?
(क) भेड़
(ख) गाय
(ग) लामा
(घ) बाइसन।
उत्तर:
(ग) लामा

40. इंका साम्राज्य का अंत कब हुआ ?
(क) 1530 ई० में
(ख) 1532 ई० में
(ग) 1632 ई० में
(घ) 1638 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1532 ई० में

41. माया समाज में सबसे निम्न स्थान किसे प्राप्त था ?
(क) पुरोहितों को
(ख) दासों को
(ग) व्यापारियों को
(घ) किसानों को।
उत्तर:
(ख) दासों को

42. माया सभ्यता के लोग निम्न में से किस फ़सल का सर्वाधिक उत्पादन करते थे ?
(क) आलू
(ख) कपास
(ग) सेम
(घ) मक्का
उत्तर:
(घ) मक्का

43. माया सभ्यता द्वारा निर्मित टिक्ल मंदिर का निर्माण किस शताब्दी में किया गया था ?
(क) 7वीं शताब्दी में
(ख) 8वीं शताब्दी में
(ग) 9वीं शताब्दी में
(घ) 10वीं शताब्दी में।
उत्तर:
(ख) 8वीं शताब्दी में

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव

44. माया सभ्यता के लोगों ने कितने प्रकार के पंचांग बनाए थे ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार।
उत्तर:
(ख) दो

45. ओलाउदाह एक्वियानो कौन था ?
(क) दास
(ख) दार्शनिक
(ग) चिकित्सक
(घ) अध्यापक।
उत्तर:
(क) दास

46. ओलाउदाह एक्वियानो कहाँ का निवासी था ?
(क) साइबेरिया का
(ख) नाइजीरिया का
(ग) तंजानिया का
(घ) केन्या का।
उत्तर:
(ख) नाइजीरिया का

47. कैपिटलिज्म एंड स्लेवरी का लेखक कौन था ?
(क) जॉन विलियम्स
(ख) एरिक विलियम्स
(ग) कार्डिनल पिएर डिऐली
(घ) मार्को पोलो।
उत्तर:
(ख) एरिक विलियम्स

48. निम्नलिखित में से किस देश ने 1865 ई० में दास प्रथा पर प्रतिबंध लगाया था ?
(क) डेनमार्क
(ख) ब्रिटेन
(ग) संयुक्त राज्य अमरीका
(घ) फ्राँस।
उत्तर:
(ग) संयुक्त राज्य अमरीका

संस्कृतियों का टकराव HBSE 11th Class History Notes

→ 15वीं शताब्दी में यूरोपवासियों द्वारा की गई भौगोलिक खोजों ने एक नए युग का सूत्रपात किया। इन भौगोलिक खोजों को नए आविष्कारों, टॉलेमी की ज्योग्राफी, मार्को पोलो की यात्राओं, आर्थिक एवं धार्मिक उद्देश्यों एवं पुर्तगाल के राजकुमार हेनरी के बहुमूल्य योगदान ने प्रेरित किया। इन खोजों के अनेक दूरगामी परिणाम निकले।

→ 1492 ई० में क्रिस्टोफर कोलंबस ने बहामा द्वीप समूह के गुआनाहानि नामक स्थान पर स्पेन का झंडा गाड़ा। उसने इस द्वीप का नाम सैन-सैल्वाडोर रखा। यहाँ के अरावाकी लोगों ने जिस गर्मजोशी से कोलंबस का स्वागत किया उससे वह चकित रह गया। 1499 ई० में इटली के अमेरिगो वेस्पुसी ने दक्षिण अमरीका की यात्रा की।

→ उसने इसे नई दुनिया के नाम से संबोधित किया। 1507 ई० में एक जर्मन प्रकाशक ने अमेरिगो वेस्पुसी की स्मृति में नयी दुनिया को अमरीका का नाम दिया। स्पेन के हरनेडो कोर्टेस ने 1519 ई० में मैक्सिको पर आक्रमण कर दिया था। इस आक्रमण के दौरान उसे डोना मैरीना ने बहुमूल्य योगदान दिया।

→ कोर्टेस ने मैक्सिको के शासक मोंटेजुमा द्वितीय को धोखे से बंदी बना लिया। 1521 ई० में कोर्टेस ने एज़टेकों को पराजित कर उनके साम्राज्य का अंत कर दिया। हरनेंडो कोर्टेस 1522 ई० से लेकर 1547 ई० तक मैक्सिको जिसे अब न्यू स्पेन का नाम दिया गया था का गवर्नर एवं कैप्टन-जनरल रहा।

→ अपने शासनकाल के दौरान उसने वहाँ के मूल निवासियों पर घोर अत्याचार किए। स्पेन के एक अन्य प्रसिद्ध विजेता फ्रांसिस्को पिज़ारो ने पेरू में स्थापित इंका साम्राज्य पर 1532 ई० में आक्रमण कर दिया। उसने धोखे से वहाँ के शासक अताहुआल्पा को बंदी बना लिया।

→ इस कारण उसने सुगमता से 1533 ई० में इंका साम्राज्य की राजधानी कुज़को पर अधिकार कर लिया। इसके पश्चात् उसने वहाँ भयंकर लूटमार की। पिज़ारो ने 1541 ई० तक पेरू में शासन किया। उसने लिमा को पेरू की नई राजधानी बनाया। 1500 ई० में पुर्तगाल का नाविक पेड्रो अल्वारिस कैबाल संयोगवश ब्राज़ील पहुँच गया था।

→ आरंभ में पुर्तगालियों ने ब्राज़ील की ओर कम ध्यान दिया। इसका प्रमुख कारण यह था कि वहाँ सोना अथवा चाँदी मिलने की संभावना बहुत कम थी। ब्राज़ील में केवल ब्राज़ीलवुड नामक इमारती लकड़ी मिलती थी। 1549 ई० में पुर्तगाल के शासक ने ब्राज़ील का शासन सीधे अपने हाथों में ले लिया था। यहाँ आए जेसुइट पादरियों ने दास प्रथा की कटु आलोचना की।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. विश्व में सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाला स्थान कौन-सा है?
(A) मॉसिनराम
(B) चेरापूँजी
(C) तुरा
(D) सिल्वर
उत्तर:
(A) मॉसिनराम

2. भारत की जलवायु है-
(A) शीतोष्ण कटिबंधीय
(B) उष्ण कटिबंधीय
(C) ध्रुवीय
(D) उपोष्ण कटिबंधीय
उत्तर:
(B) उष्ण कटिबंधीय

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

3. भारत के उत्तरी मैदान में ग्रीष्म ऋतु में दिन में बहने वाली पवन का क्या नाम है?
(A) काल बैसाखी
(B) सन्मार्गी पवनें
(C) लू
(D) शिनूक
उत्तर:
(C) लू

4. भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में सर्दियों में होने वाली वर्षा किस कारण से होती है?
(A) चक्रवातीय अवदाब
(B) पश्चिमी विक्षोभ
(C) लौटती मानसून
(D) दक्षिण-पश्चिमी मानसून
उत्तर:
(B) पश्चिमी विक्षोभ

5. निम्नलिखित में से किसके सहारे पर्वतीय वर्षा नहीं होती?
(A) पश्चिमी घाट
(B) अरावली
(C) शिवालिक
(D) गारो, खासी और जयंतिया
उत्तर:
(B) अरावली

6. निम्नलिखित में से वर्षा की सर्वाधिक परिवर्तनीयता कहाँ पाई जाती है?
(A) राजस्थान
(B) केरल
(C) कर्नाटक
(D) मेघालय
उत्तर:
(A) राजस्थान

7. कौन-सी विशेषता मानसूनी वर्षा की नहीं है?
(A) मौसमी वर्षा
(B) वर्षा वाले दिनों की निरंतरता
(C) वषां का असमान वितरण
(D) अनिश्चित और अनियमित वर्षा
उत्तर:
(B) वर्षा वाले दिनों की निरंतरता

8. ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा सबसे पहले भारत के किस राज्य में आती है?
(A) केरल
(B) पंजाब
(C) पश्चिमी बंगाल
(D) कर्नाटक
उत्तर:
(A) केरल

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

9. सर्वाधिक वार्षिक तापांतर निम्नलिखित में से किस महानगर में पाया जाता है?
(A) कोलकाता
(B) फरीदाबाद
(C) मुंबई
(D) चेन्नई
उत्तर:
(B) फरीदाबाद

10. निम्नलिखित में से सबसे कम वार्षिक तापांतर पाया जाता है-
(A) शिलांग
(B) तिरुवनंतपुरम
(C) जोधपुर
(D) जींद
उत्तर:
(B) तिरुवनंतपुरम

11. भारतीय मौसम मानचित्र नहीं दर्शाता है-
(A) मेघाच्छादन
(B) समदाब रेखाएँ
(C) समताप रेखाएँ
(D) वायु की दिशा
उत्तर:
(C) समताप रेखाएँ

12. दिल्ली का वार्षिक तापांतर अधिक है, क्योंकि
(A) यह कर्क रेखा के निकटतम है
(B) यहाँ अल्प वर्षा होती है
(C) यह समुद्र से दूर स्थित है
(D) यह मरुस्थल के निकट है
उत्तर:
(C) यह समुद्र से दूर स्थित है

13. निम्नलिखित में से कौन-से राज्य में दक्षिण-पश्चिम मानसून से वर्षा नहीं होती?
(A) पंजाब
(B) कर्नाटक
(C) तमिलनाडु
(D) राजस्थान
उत्तर:
(C) तमिलनाडु

14. तमिलनाडु में वर्षा होने का कारण है-
(A) दक्षिण-पश्चिमी मानसून
(B) उत्तर:पूर्वी मानसून
(C) पूर्वी अवदाब
(D) पश्चिमी विक्षोभ
उत्तर:
(B) उत्तर:पूर्वी मानसून

15. दक्षिण-पश्चिमी मानसून भारत के दक्षिण में केरल तट पर कब पहुँचती है?
(A) 1 जून
(B) 10 जून
(C) 13 जून
(D) 18 जून
उत्तर:
(A) 1 जून

16. कोपेन ने अपने जलवायु वर्गीकरण में मानसूनी जलवायु को किस संकेताक्षर से प्रस्तुत किया है?
(A) Am
(B) Aw
(C) Af
(D) Cw
उत्तर:
(A) Am

17. भारत में प्रवेश करने वाले शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति कहाँ होती है?
(A) अरब सागर में
(B) भूमध्य सागर में
(C) हिंद महासागर में
(D) अटलांटिक महासागर में
उत्तर:
(B) भूमध्य सागर में

18. कौन-सा पर्वतीय क्षेत्र अधिकतम वर्षा प्राप्त करता है?
(A) पश्चिमी घाट
(B) नीलगिरि
(C) सतपुड़ा
(D) खासी पहाड़ियाँ
उत्तर:
(D) खासी पहाड़ियाँ

19. निम्नलिखित में से कौन-सा युग्म सुमेलित नहीं है?
(A) आन वर्षा : ओडिशा
(B) आंधी : उत्तर प्रदेश
(C) काल बैसाखी : पं० बंगाल
(D) लू : उत्तर पश्चिमी भारत
उत्तर:
(A) आन वर्षा : ओडिशा

20. भारत के कोरोमंडल तट पर वर्षा होती है-
(A) मार्च-मई में
(B) जनवरी-फरवरी में
(C) अक्तूबर-नवम्बर में
(D) जून-सितम्बर में
उत्तर:
(C) अक्तूबर-नवम्बर में

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

21. निम्नलिखित में से किस स्थान पर सूर्य सिर के ऊपर कभी लंबवत् नहीं चमकता?
(A) चेन्नई
(B) दिल्ली
(C) भोपाल
(D) मुम्बई
उत्तर:
(B) दिल्ली

22. वर्षा की सर्वाधिक विरलता निम्नलिखित में से कहाँ पाई जाती है?
(A) जैसलमेर
(B) जोधपुर
(C) बीकानेर
(D) लेह
उत्तर:
(D) लेह

23. कोपेन के जलवायु वर्गीकरण में ‘As’ संकेताक्षर भारत के किस क्षेत्र के लिए प्रयुक्त किया गया है?
(A) पूर्वी हिमालय
(B) केरल तट
(C) तमिलनाडु तट
(D) पश्चिमी राजस्थान
उत्तर:
(C) तमिलनाडु तट

24. दिसंबर मास में भारत में सबसे कम तापमान कहाँ पाया जाता है?
(A) गंगानगर
(B) द्रास/कारगिल
(C) पंजाब
(D) केरल
उत्तर:
(B) द्रास/कारगिल

25. भारत में उच्चतम तापमान कहाँ पाया जाता है?
(A) गंगानगर
(B) द्रास/कारगिल
(C) पंजाब
(D) केरल
उत्तर:
(A) गंगानगर

26. वर्षा ऋतु में वायुमंडल में सर्वाधिक आर्द्रता विद्यमान रहती है-
(A) मध्यान्ह के समय
(B) प्रातःकाल के समय
(C) सायंकाल के समय
(D) मध्यरात्रि के समय
उत्तर:
(B) प्रातःकाल के समय

27. निम्नलिखित में से कौन भारतीय मानसून को प्रभावित नहीं करता?
(A) जेट स्ट्रीम
(B) एल-निनो
(C) गल्फ स्ट्रीम
(D) तिब्बत का पठार
उत्तर:
(C) गल्फ स्ट्रीम

28. पश्चिमी घाट के पूर्व में स्थित वृष्टि-छाया प्रदेश के होने का प्रमुख कारण कौन-सा है?
(A) मंद ढाल
(B) आर्द्रता में वृद्धि
(C) तापमान में वृद्धि
(D) विरल वनस्पति
उत्तर:
(C) तापमान में वृद्धि

29. ग्रीष्म ऋतु में आने वाला कौन-सा तूफान चाय, पटसन व चावल के लिए उपयोगी माना जाता है?
(A) काल बैसाखी
(B) आम्र वर्षा
(C) फूलों वाली बौछार
(D) वज्र तूफान
उत्तर:
(A) काल बैसाखी

30. मानसून की गतिक विचारधारा का प्रतिपादन किस विद्वान ने किया था?
(A) एम०टी० यीन
(B) पी० कोटेश्वरम्
(C) रामारत्ना
(D) एच० फ्लोन
उत्तर:
(D) एच० फ्लोन

31. एल-निनो के बारे में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) यह पेरु के तट के सहारे बहने वाली समुद्री धारा है
(B) एल-निनो का अर्थ है ‘बालक ईसा’
(C) यह उष्ण वायु की धारा है जो जल में वाष्पिक अनियमितताएँ उत्पन्न कर देती है
(D) यह धारा क्रिसमस के आस-पास पैदा होती है
उत्तर:
(C) यह उष्ण वायु की धारा है जो जल में वाष्पिक अनियमितताएँ उत्पन्न कर देती है

32. निम्नलिखित में से कौन-सा भारतीय स्थान सबसे ठण्डा है?
(A) श्रीनगर
(B) गुलमर्ग
(C) द्रास
(D) नन्दा देवी
उत्तर:
(C) द्रास

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
भारत कौन-सी जलवायु वाला देश है?
उत्तर:
भारत उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी जलवायु वाला देश है।

प्रश्न 2.
‘मानसून’ शब्द कौन-सी भाषा के किस शब्द से बना है?
उत्तर:
मानसून शब्द अरबी भाषा के मौसिम’ शब्द से बना है।

प्रश्न 3.
विश्व में सर्वाधिक वर्षा कहाँ होती है?
उत्तर:
विश्व में सबसे अधिक वर्षा मेघालय में चेरापूंजी के निकट मॉसिनराम स्थान पर होती है।

प्रश्न 4.
‘ल’ भारत में कब और किस क्षेत्र में चलती है?
उत्तर:
भारत में ‘लू’ ग्रीष्म ऋतु (मई-जून) में तथा उत्तरी भारत में चलती है।

प्रश्न 5.
जेट-प्रवाह की कौन सी शाखा सर्दियों में उत्तरी भारत में चक्रवात लाने में सहायक होती है?
उत्तर:
जेट-प्रवाह की पश्चिमी शाखा।

प्रश्न 6.
भारत में किस क्षेत्र से मानसून सबसे पहले लौटता है?
उत्तर:
पश्चिमी राजस्थान से।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 7.
भारत के किन भागों में लौटती हुई मानसून पवनें शीतऋतु में वर्षा करती हैं?
उत्तर:
तमिलनाडु में।

प्रश्न 8.
थार्नवेट तथा कोपेन के जलवायु वर्गीकरण के क्या आधार हैं?
उत्तर:
थार्नवेट : जल-सन्तुलन, कोपेन तापमान एवं वृष्टि के मासिक मान।

प्रश्न 9.
भारत में उच्चतम तापमान कहाँ और कितना पाया जाता है?
उत्तर:
भारत में उच्चतम तापमान राजस्थान के गंगानगर शहर में 52° सेल्सियस पाया जाता है।

प्रश्न 10.
भारत के किस राज्य में वार्षिक तापान्तर सबसे कम होता है?
उत्तर:
केरल में।

प्रश्न 11.
भारत के दक्षिणी-पूर्वी तट पर अथवा कोरोमण्डल तट पर सर्दियों में वर्षा क्यों होती है?
उत्तर:
उत्तर-पूर्वी मानसून पवनों के कारण।

प्रश्न 12.
मानसून पवनें कौन-सी पवनें होती हैं?
उत्तर:
मानसून पवनें मौसमी पवनों को कहते हैं।

प्रश्न 13.
गर्मियों में मानसून पवनों की दिशा बताएँ।
उत्तर:
दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर।

प्रश्न 14.
ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा सबसे पहले भारत के किस राज्य में आती है?
उत्तर:
केरल में।

प्रश्न 15.
काल बैसाखी नामक भयंकर तूफानी पवनें क्यों चलती हैं?
उत्तर:
शुष्क व गर्म पवनों के समुद्री आर्द्र पवनों से मिलने के कारण।

प्रश्न 16.
भारत में वर्षा ऋतु के महीने कौन-से माने जाते हैं?
उत्तर:
जून से सितम्बर तक के महीने।

प्रश्न 17.
मानसून प्रस्फोट क्या होता है?
उत्तर:
वर्षा का अचानक आरम्भ होना।

प्रश्न 18.
भारत का कौन-सा तट दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों से वर्षा प्राप्त करता है?
उत्तर:
पश्चिमी तट।

प्रश्न 19.
भारत के किस राज्य में आम्र वर्षा होती है?
उत्तर:
केरल में।

प्रश्न 20.
मौसम विशेषज्ञों के अनुसार भारत की चार ऋतुएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. शीत ऋतु
  2. ग्रीष्म ऋतु
  3. वर्षा ऋतु
  4. मानसून के निवर्तन की ऋतु।

प्रश्न 21.
पश्चिमी विक्षोभ या शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात सर्दियों में कहाँ कहाँ वर्षा करते हैं?
उत्तर:
हिमालय की श्रेणियों, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में।

प्रश्न 22.
दक्षिणी भारत में उत्तर भारत जैसी प्रखर ग्रीष्म ऋतु क्यों नहीं होती?
उत्तर:
प्रायद्वीपीय स्थिति (तीन ओर से समुद्र) के कारण।

प्रश्न 23.
काल बैसाखी तूफान या नॉरवेस्टर कहाँ चलते हैं?
उत्तर:
असम और पश्चिमी बंगाल में।

प्रश्न 24.
आम्र वर्षा कहाँ होती है?
उत्तर:
पूर्वी महाराष्ट्र तथा पश्चिमी तटीय प्रदेश में।

प्रश्न 25.
200 सें०मी० से अधिक वर्षा प्राप्त करने वाले क्षेत्र कौन से हैं?
उत्तर:
पश्चिमी घाट के पश्चिमी भाग तथा उत्तर-पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 26.
भारत की जलवायु की क्या विशेषता है?
अथवा
उष्ण कटिबन्धीय मानसनी जलवाय की क्या विशेषता है?
उत्तर:
उष्ण-आर्द्र गर्मियाँ व शुष्क एवं ठण्डी सर्दियाँ।

प्रश्न 27.
भारत में जून सबसे गर्म महीना होता हैं, जुलाई नहीं। क्यों?
उत्तर:
जुलाई में वर्षा हो जाने के कारण तापमान 10°C सेल्सियस गिर जाता है।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जनवरी में जेट-प्रवाह की क्या स्थिति होती है?
उत्तर:
जनवरी में जेट-प्रवाह हिमालय के दक्षिण की ओर पश्चिम से पूर्व दिशा में होती है।

प्रश्न 2.
मानसून द्रोणी किसे कहते हैं?
उत्तर:
अंतउष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र को मानसून द्रोणी कहते हैं।

प्रश्न 3.
मानसून विच्छेद क्या होता है?
उत्तर:
एक बार कुछ दिनों तक वर्षा होने के बाद यदि एक-दो या कई हफ्तों तक वर्षा न हो तो वह मानसून विच्छेद कहलाता है।

प्रश्न 4.
फूलों वाली बौछार कहाँ होती है और किस फसल के लिए उपयोगी मानी जाती है?
उत्तर:
फूलों वाली बौछार केरल में होती है तथा यह कहवा फसल के लिए उपयोगी मानी जाती है।

प्रश्न 5.
‘अक्तूबर हीट’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अत्यधिक आर्द्रता तथा गर्मी वाला अक्तूबर का घुटन भरा चिपचिपा मौसम।

प्रश्न 6.
‘लू’ किस प्रकार की पवनें होती हैं?
उत्तर:
गर्मियों में उत्तरी भारत में चलने वाली गर्म एवं धूल भरी पवनें।

प्रश्न 7.
वृष्टि-छाया क्षेत्र कौन-से होते हैं?
उत्तर:
पर्वतों के पवनाविमुखी ढाल वाले क्षेत्र वृष्टि-छाया क्षेत्र होते हैं।

प्रश्न 8.
‘मानसून’ शब्द से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मानसून शब्द अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से लिया गया है। इस शब्द का अर्थ है ऋतु अर्थात् मानसून का अर्थ एक ऐसी ऋतु से है जिसमें पवनों की दिशा में पूरी तरह से परिवर्तन हो जाता है। ये मौसमी पवनें हैं जो मौसम के अनुसार अपनी दिशा बदल लेती हैं। ये पवनें ग्रीष्मकाल में छह मास सागर से स्थल की ओर तथा शीतकाल में छह मास तक स्थल से सागर की ओर चलती हैं।

प्रश्न 9.
अंतःउष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र (I.T.C.z.) क्या है?
उत्तर:
अंतःउष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र निम्न वायुदाब क्षेत्र होता है जो सभी दिशाओं से पवनों के अन्तर्वहन को प्रोत्साहित करता है। यह भूमध्य-रेखीय क्षेत्र में स्थित होता है। इसकी स्थिति सूर्य की स्थिति के अनुसार उष्ण कटिबन्ध के मध्य बदलती रहती है। ग्रीष्मकाल में यह उत्तर की ओर तथा शीतकाल में यह दक्षिण की ओर सरक जाता है। इसे भूमध्यरेखीय द्रोणी भी कहते हैं।

प्रश्न 10.
लू से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
लू, वे स्थानीय पवनें हैं जो ग्रीष्मकाल में उत्तर तथा उत्तर:पश्चिमी भारत में दिन के समय तेज गति से चलती हैं। ये अत्यधिक गर्म हवाएँ होती हैं। लू के कारण तापमान 40° सेल्सियस से अधिक रहता है तथा धूल-भरी आँधियाँ चलती हैं। लू की गर्मी सहन नहीं होती और लोग प्रायः बीमार हो जाते हैं।

प्रश्न 11.
‘मानसून’ प्रस्फोट किसे कहते हैं? और भारत में सबसे अधिक वर्षा कहाँ होती है?
उत्तर:
भारत में ग्रीष्म ऋतु के पश्चात् वर्षा ऋतु आरम्भ होती है। इस समय भारत में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनें प्रवेश करती हैं तथा भारत की 80% वर्षा इन्हीं पवनों से होती है। मानसून पवनों की वर्षा के
अकस्मात् आरम्भ होने को ‘मानसून प्रस्फोट’ कहते हैं। इसमें वर्षा की तेज बौछारें पडती हैं। भारत में सबसे अधिक वर्षा मॉसिनराम (चेरापंजी) में होती है।

प्रश्न 12.
वर्षा की परिवर्तनीयता से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वर्षा की सामान्य मात्रा से अधिक या कम वर्षा होने की घटना को वर्षा की परिवर्तनीयता या विचरणशीलता कहते हैं। परिवर्तनीयता का मूल्य एक ऐसे सूत्र से निकाला जाता है जिसे विचरणशीलता का गुणांक या संक्षेप में C.V. कहा जाता है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु 1

प्रश्न 13.
संसार में सर्वाधिक वर्षा मॉसिनराम में होती है। क्यों?
उत्तर:
मॉसिनराम मेघालय राज्य में स्थित है। यह स्थान 1221 सें०मी० से अधिक वार्षिक वर्षा प्राप्त करता है, जो विश्व में किसी भी स्थान की वर्षा की अपेक्षा अधिक है। यह स्थान खासी-गारो-ज्यन्तिया पहाड़ियों से घिरा हुआ है जिनकी स्थिति कुप्पी जैसी है। यहाँ बंगाल की खाड़ी में मानसून पवनें घुस जाती हैं जिससे यहाँ भारी वर्षा होती है।

प्रश्न 14.
तमिलनाडु के तटीय प्रदेशों में अधिकतर वर्षा जाड़ों में होती है, क्यों?
उत्तर:
दक्षिण-पश्चिमी मानसून के दिनों में वृष्टि-छाया क्षेत्र में होने के कारण ये क्षेत्र सूखे रह जाते हैं, परन्तु लौटती हुई मानसून (Retreating Monsoon) या उत्तर:पूर्वी मानसून के दिनों में यहाँ काफी वर्षा होती है क्योंकि ये पवनें जब खाड़ी बंगाल के ऊपर से गुज़रती हैं तो वाष्प लेकर सीधे तमिलनाडु के तट से टकराकर यहाँ खूब वर्षा करती हैं।

प्रश्न 15.
भारत के उत्तर:पश्चिम के मैदान में शीत ऋतु में वर्षा होती है, क्यों?
उत्तर:
भूमध्य सागर तथा फारस की खाड़ी से आर्द्रता ग्रहण करके पवनें, जेट-प्रवाह की सहायता से शीत ऋतु में उत्तर:पश्चिम भारत में प्रवेश करके और पश्चिमी हिमालय की पहाड़ियों से टकराकर यहाँ वर्षा करती हैं, जो इस मैदान की कृषि के लिए बहुत लाभदायक है।

प्रश्न 16.
वर्षा का वितरण सारे भारत में एक-समान नहीं है। क्यों?
उत्तर:
भारत में वर्षा का वितरण एक-समान नहीं है। इसका मुख्य कारण यह है कि जैसे-जैसे हम समुद्र से दूर जाते हैं, वर्षा की मात्रा कम होती जाती है। समुद्र के निकट और पर्वतीय क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा अधिक होती है। इसी प्रकार वृष्टिछाया क्षेत्र में वर्षा की मात्रा बहुत कम होती है क्योंकि पर्वतों से नीचे उतरती वायु में वाष्पकण ग्रहण करने की शक्ति बढ़ती जाती है। भारत एक विशाल देश है। यहाँ राजस्थान जैसे प्रदेश समुद्र से इतने दूर हैं कि खाड़ी बंगाल की पवनें यहाँ आते-आते शुष्क हो जाती हैं।

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प्रश्न 17.
भारत की वार्षिक वर्षा के वितरण की दो मुख्य प्रवृत्तियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
भारत की वार्षिक वर्षा के वितरण की दो मुख्य प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं (1) वर्षा की मात्रा पश्चिमी बंगाल और ओडिशा के तट से पश्चिम और उत्तर-पश्चिम की ओर कम होती जाती है। (2) पश्चिमी एवं पूर्वी तटों से पठार के आन्तरिक क्षेत्रों की ओर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है।

प्रश्न 18.
जैसलमेर में वर्षा शायद ही कभी 12 सें०मी० से अधिक होती है। क्यों?
उत्तर:
जैसलमेर राजस्थान में अरावली पर्वत के पश्चिम में स्थित है। अरावली पर्वत अरब सागर की मानसून पवनों के समानान्तर स्थित है। इसलिए ये मानसून पवनें बिना-रोक-टोक आगे निकल जाती हैं तथा वर्षा नहीं करतीं। इसलिए यहाँ औसत वार्षिक वर्षा 12 सें०मी० से भी कम है।

प्रश्न 19.
उत्तर-पश्चिम भारत में रबी की फसलें बोने वाले किसानों को किस प्रकार के चक्रवातों से वर्षा प्राप्त होती है? ये चक्रवात कहाँ उत्पन्न होते हैं?
उत्तर:
उत्तर-पश्चिम भारत में रबी की फसलें बोने वाले किसानों को अत्यन्त लाभदायक शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात प्राप्त होते हैं, जिन्हें पश्चिमी विक्षोभ भी कहा जाता है। ये चक्रवात पूर्वी भूमध्य सागर पर उत्पन्न होते हैं और पूर्व की ओर यात्रा करते हुए भारत पहुँचते हैं।

प्रश्न 20.
भारत के तटीय प्रदेशों में गर्मी और जाड़े की ऋतुओं के मध्य तापमानों में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता। क्यों?
उत्तर:
भारत के तटीय प्रदेश उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र में स्थित हैं। यहाँ ग्रीष्म ऋतु और शीत ऋतु में तापमान में कोई विशेष अन्तर नहीं होता क्योंकि सागरों के समकारी प्रभाव के कारण तापमान समान रहता है। यहाँ जल समीर तथा स्थल समीर चलती हैं। इनके प्रभाव के कारण तापमान अधिक नहीं बढ़ता तथा शीत ऋतु में सागरों के जल के गर्म रहने के कारण तापमान अधिक कम नहीं होता।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के अत्यधिक गर्म तथा अत्यधिक ठण्डे स्थानों का उल्लेख करें।
उत्तर:
भारत में अत्यधिक ठण्डे प्रदेश उत्तर:पश्चिमी हिमालय में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा अन्य पर्वतीय क्षेत्र हैं। जम्मू-कश्मीर के कारगिल नामक स्थान पर न्यूनतम तापमान-40° सेल्सियस पाया जाता है। इन प्रदेशों के अत्यधिक ठण्डे होने का मुख्य कारण समुद्र-तल से ऊँचाई है। इन प्रदेशों में शीत ऋतु में हिमपात होता है तथा तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है।

भारत में सबसे अधिक गर्म स्थान राजस्थान का बाड़मेर क्षेत्र है। यहाँ ग्रीष्मकाल में दिन का तापमान 50° सेल्सियस तक पहुँच जाता है। यहाँ अधिक तापमान का मुख्य कारण समुद्र तल से दूरी है। गर्मियों में यहाँ लू चलती है जो यहाँ के तापमान को बढ़ा देती है। अन्य कारण यहाँ की रेतीली मिट्टी तथा वायु में आर्द्रता की कमी है।

प्रश्न 2.
भारत के सर्वाधिक वर्षा वाले तथा सर्वाधिक शुष्क स्थानों का उल्लेख करें।
उत्तर:
भारत में सर्वाधिक वर्षा मॉसिनराम (मेघालय राज्य में चेरापूँजी के निकट स्थित) में 1140 सें०मी० तथा 200 सें०मी० से अधिक गारो तथा खासी की पहाड़ियों, पश्चिमी तटीय मैदान तथा पश्चिमी घाट पर होती है क्योंकि ये प्रदेश पर्वतीय क्षेत्र हैं तथा पवनों की दिशा में स्थित हैं। गारो तथा खासी की पहाड़ियों में खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें तथा पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढलान पर अरब सागर की मानसून पवनें खूब वर्षा करती हैं।

भारत में निम्नतम वर्षा (20 सें०मी० से कम) वाले क्षेत्र पश्चिमी राजस्थान में बाड़मेर क्षेत्र, कश्मीर में लद्दाख क्षेत्र तथा दक्षिणी पठार क्षेत्र हैं क्योंकि राजस्थान में अरावली पर्वत अरब मानसूनी पवनों के समानान्तर स्थित है। प्रायद्वीप पठार तथा लद्दाख क्षेत्र वृष्टिछाया में स्थित होने के कारण बहुत कम वर्षा प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 3.
‘जेट-प्रवाह’ क्या है? इसका क्या प्रभाव है?
उत्तर:
पृथ्वी के तल से लगभग तीन किलोमीटर की ऊँचाई पर तेज गति की धाराएँ चलती हैं, जिन्हें जेट-प्रवाह कहते हैं। एक मान्यता के अनुसार ये ‘जेट-प्रवाह’ मानसून पवनों की उत्पत्ति का एक कारण है। ये जेट-प्रवाह 40° उत्तर से 20° दक्षिण अक्षांशों में नियमित रूप से चलते हैं। हिमालय पर्वत तथा तिब्बत का पठार इसके मार्ग में अवरोध पैदा करते हैं, जिससे यह जेट-प्रवाह दो शाखाओं में बँट जाता है। एक भाग हिमालय के उत्तर में तथा दूसरा भाग दक्षिण में पश्चिमी-पूर्वी दिशा में बहता है। दक्षिणी को प्रभावित करता है। शीत काल में भारत के उत्तर:पश्चिमी भाग में आने वाले चक्रवात इस जेट-प्रवाह का ही परिणाम है।

प्रश्न 4.
पश्चिमी जेट-प्रवाह जाड़े के दिनों में किस प्रकार पश्चिमी विक्षोभों को भारतीय उप-महाद्वीप में लाने में मदद करते हैं?
उत्तर:
जेट-प्रवाह की दूसरी शाखा हिमालय के दक्षिण में पश्चिम से पूर्व को बहती है। यह शाखा 25° उत्तर अक्षांश पर स्थित होती है। इसका दाब स्तर 200 मिलीबार से 300 मिलीबार होता है। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार जेट-प्रवाह की यह दक्षिणी शाखा भारत में शीत ऋतु को प्रभावित करती है तथा यहाँ पश्चिमी विक्षोभ लाने में सहायक है। ये विक्षोभ पश्चिमी एशिया तथा भूमध्य सागर के निकट निम्न वायु-दाब क्षेत्र में उत्पन्न होते हैं तथा जेट-प्रवाह के साथ-साथ ईरान और पाकिस्तान को पार करके भारत में प्रवेश करते हैं। इनके प्रभाव से शीतकाल में उत्तर:पश्चिमी भारत में वर्षा होती है।

प्रश्न 5.
भारतीय मानसून की कोई तीन विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
भारतीय मानसून की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • मानसून पवनों का अनियमित तथा अनिश्चित होना।
  • ऋतु अनुसार पवनों की दिशा में परिवर्तन होना।
  • मानसून पवनों का प्रादेशिक स्वरूप भिन्न-भिन्न होते हुए भी जलवायविक एकता का होना।

प्रश्न 6.
भारत में कितनी ऋतुएँ होती हैं? क्या उनकी अवधि में दक्षिण से उत्तर में कोई अन्तर मिलता है? यदि हाँ, तो क्यों?
उत्तर:
भारत एक विशाल देश है। यहाँ तापमान दबाव, पवनों तथा वर्षा की परिस्थितियाँ सारा वर्ष समान नहीं रहतीं बल्कि इनमें नियमित रूप से परिवर्तन आते हैं। भारत की जलवायु की अवस्था तथा उसके रचना-तन्त्र के अनुसार निम्नलिखित चार ऋतुएँ पाई जाती हैं

  • शीत ऋतु-दिसम्बर से फरवरी।
  • ग्रीष्म ऋतु-मार्च से मध्य जून।
  • वर्षा ऋतु-मध्य जून से मध्य सितम्बर।
  • मानसून प्रत्यावर्तन ऋतु-दक्षिण से उत्तर की ओर जाते हुए विभिन्न प्रदेशों की इस ऋतु की अवधि में अन्तर मिलता है।

दक्षिणी भारत में कोई विशेष ऋतु नहीं होती। यहाँ सामान्यतः ग्रीष्म ऋतु पाई जाती है। तटीय क्षेत्रों में ऋतु परिवर्तन नहीं होता क्योंकि भारत का दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में स्थित है। उत्तरी भारत में स्पष्ट रूप से ग्रीष्म ऋतु तथा शीत ऋतु पाई जाती है क्योंकि यह भाग शीत उष्णकटिबन्ध में स्थित है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 7.
पश्चिमी विक्षोभ क्या है? भारत में किस भाग में शीत ऋतु में वर्षा होती है?
अथवा
पश्चिमी विक्षोभ क्या है? भारत के किन भागों में ये शीतकालीन वर्षा लाते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी विक्षोभ वे चक्रवात हैं जो पश्चिमी एशिया तथा भूमध्य सागर के निकट के प्रदेशों में उत्पन्न होते हैं। पश्चिमी जेट-प्रवाह के कारण ये चक्रवात पूर्व की तरफ से ईरान तथा पाकिस्तान को पार करके भारत में प्रवेश करते हैं। शीत ऋतु में ये चक्रवात पश्चिमी भारत के क्षेत्रों में क्रियाशील होते हैं तथा इनके कारण जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में भारी वर्षा होती है। यह वर्षा गेहूँ की फसल के लिए विशेष रूप से लाभदायक होती है।

प्रश्न 8.
कौन-कौन-से कारक भारतीय उप-महाद्वीप में तापमान वितरण को नियन्त्रित करते हैं?
उत्तर:
भारतीय उप-महाद्वीप के तापमान के वितरण में बहुत अन्तर पाया जाता है। मानसून प्रदेश में स्थित होने के कारण यह एक उष्ण देश है। यहाँ के विभिन्न क्षेत्रों के तापमान में पाई जाने वाली विविधता के निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं-

  • अक्षांश अथवा भूमध्य रेखा से दूरी
  • पर्वतों की स्थिति
  • समुद्र तल से दूरी
  • प्रचलित पवनें
  • चक्रवातीय प्रभाव
  • समुद्र तल से ऊँचाई।

प्रश्न 9.
भारत में वार्षिक वर्षा के विचरण गुणांक के वितरण की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
भारत में वार्षिक वर्षा के विचरण गुणांक में सामान्य रूप से 15 से 30 प्रतिशत के बीच विचलन पाया जाता है। विचरण गुणांक अधिक वर्षा वाले भागों में कम और कम वर्षा वाले भागों में अधिक पाया जाता है। पश्चिमी तट पर मंगलौर, मेघालय, असम, अरुणाचल प्रदेश, उप-हिमालयी पेटी, मणिपुर, मिज़ोरम व नगालैण्ड जैसे अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में विचरण गुणांक 15 प्रतिशत से कम है। इसके विपरीत पठारी प्रदेशों में विचरण गुणांक 30 प्रतिशत से अधिक है। ये साधारण वर्षा वाले क्षेत्र हैं। हरियाणा व पंजाब में विचरण गुणांक 40 प्रतिशत तथा पश्चिमी राजस्थान, कच्छ व गुजरात के न्यून वर्षा वाले क्षेत्रों में वर्षा की परिवर्तनीयता सर्वाधिक अर्थात् 50 से 80 प्रतिशत के बीच है।

प्रश्न 10.
जलवायु प्रदेश क्या होता है? जलवायु प्रदेश किन आधारों पर पहचाने जाते हैं?
उत्तर:
जलवायु प्रदेश जलवायु प्रदेश एक ऐसा क्षेत्र होता है जिसमें विभिन्न जलवायविक तत्त्व अपने संयुक्त प्रभाव से एकरूपी जलवायविक दशाओं का निर्माण करते हैं। स्थानीय तौर पर मौसम के तत्त्व; जैसे तापमान, वर्षा इत्यादि मिलकर जलवायु में अनेक क्षेत्रीय विभिन्नताएँ उत्पन्न कर देते हैं। इन विभिन्नताओं को हम जलवायु के उप-प्रकार मानते हैं। इसी आधार पर जलवायु प्रदेश पहचाने जाते हैं।

प्रश्न 11.
भारत में ग्रीष्म ऋतु में आने वाले कुछ प्रसिद्ध तूफानों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गर्मियों में भारत में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण तूफान आते हैं-

  • आम्र वर्षा यह पूर्वी महाराष्ट्र तथा पश्चिमी तटीय प्रदेशों में चलती है। आम के वृक्षों के लिए यह तूफानी वर्षा फायदेमन्द होती है।
  • फूलों वाली बौछार-इस वर्षा से केरल. तथा निकटवर्ती कहवा उत्पादन वाले क्षेत्रों में फूल खिलने लगते हैं।
  • काल बैसाखी-असम और पश्चिम बंगाल में बैसाख के महीने में चलने वाली ये भयंकर व विनाशकारी वर्षायुक्त पवनें हैं, जिन्हें नॉरवेस्टर भी कहा जाता है। चाय, पटसन व चावल के लिए ये पवनें अच्छी हैं।
  • लू–उत्तरी मैदान में चलने वाली गर्म, शुष्क व भीषण पवनें।

प्रश्न 12.
मानसूनी वर्षा की विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानसूनी वर्षा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • यह मौसमी वर्षा है जो प्रतिवर्ष जून से सितम्बर के दौरान होती है। देश की कुल वर्षा का 75 प्रतिशत ग्रीष्मकालीन मानसून द्वारा प्राप्त होता है।
  • मानसूनी वर्षा अनिश्चित है। कभी निर्धारित समय से पहले व कभी देर से शुरू होती है। कभी तो कुछ समय होकर जल्दी रुक जाती है व कभी वर्षा काल की अवधि बढ़ जाती है।
  • मानसूनी वर्षा का भारत में वितरण असमान है। कुछ भागों में वर्षा 250 सेंटीमीटर से भी अधिक होती है व कुछ भागों में 12 सेंटीमीटर से भी कम होती है।
  • मानसनी वर्षा पर्वतीय है अथवा उच्चावच से प्रभावित होती है।
  • अधिकांश मानसूनी वर्षा मूसलाधार होती है।
  • यह वर्षा अनियमित भी है। एक ही क्षेत्र में कभी अकाल और कभी बाढ़ की दशाएँ उत्पन्न होती हैं।
  • कृषि प्रधान देश होने के कारण भारत की अर्थव्यवस्था में मानसून की भूमिका महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।

प्रश्न 13.
दक्षिणी-पश्चिमी मानसून का क्रम अन्तराल पर सामान्यतः शुष्क मौसम की छोटी अवधि द्वारा भंग होता रहता है, क्यों?
उत्तर:
भारत में मुख्य रूप से वर्षा ग्रीष्मकालीन मानसून पवनें करती हैं। इन पवनों द्वारा वर्षा लगातार नहीं होती अपितु कुछ दिनों अथवा कुछ सप्ताहों के अन्तराल पर होती है। इन दिनों एक दीर्घ शुष्क मौसम आ जाता है तथा वर्षा का क्रम भंग हो जाता है क्योंकि इसका कारण खाड़ी बंगाल अथवा अरब सागर में उत्पन्न होने वाले चक्रवात हैं। ये चक्रवात वर्षा की मात्रा को बढ़ाते हैं परन्तु ये चक्रवात अनियमित रूप से चलते हैं। इसलिए सामान्यतः शुष्क मौसम की छोटी अवधि द्वारा मानसून का क्रम भंग होता रहता है।

प्रश्न 14.
लगभग सम्पूर्ण उत्तरी भारत में सितम्बर तथा अक्तूबर के महीने में औसत अधिकतम तापमान काफी ऊँचा रहता है। क्यों?
उत्तर:
भारत में जून मास सबसे अधिक गर्म मास है। इसके पश्चात् मानसून पवनों की वर्षा के कारण तापमान में गिरावट आ जाती है परन्तु वर्षा ऋतु समाप्त होने के पश्चात् तापमान में फिर वृद्धि हो जाती है क्योंकि सितम्बर तथा अक्तूबर में मानसून पवनें वापस लौटने लगती हैं। ये पवनें शुष्क होती हैं तथा तापमान अधिक ऊँचे होते हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली में इन मासों में औसत तापमान अधिकतम 33° सेल्सियस से अधिक रहता है। सितम्बर मास में सूर्य भूमध्य रेखा पर लम्बवत् चमकता है इसलिए दक्षिण भारत में तापमान अधिक पाया जाता है।

प्रश्न 15.
उत्तर-पश्चिमी भारत में मानसून की अवधि बहुत कम है, क्यों?
उत्तर:
जिस प्रकार भारत के भिन्न-भिन्न स्थानों पर मानसून के आने का समय भिन्न-भिन्न है, इसी प्रकार उसके लौटने का समय भी भिन्न-भिन्न होता है। इस प्रकार हर स्थान पर इसकी अवधि भी अलग-अलग होती है। उत्तर:पश्चिमी भारत में यह समय बहुत कम होता है क्योंकि गर्मियों की मानसून पवनें यहाँ बहुत देर से अर्थात् 15 जुलाई के आसपास पहुँचती हैं। यह 15 सितम्बर के आसपास लौटना शुरू कर देती हैं। अतः केवल 2 मास ही इस क्षेत्र में मानसून की अवधि होती है जो भारत के किसी भी क्षेत्र से कम है। वास्तव में यह अवधि भारत में दक्षिण-पूर्व से उत्तर:पश्चिम की ओर कम होती जाती है।

प्रश्न 16.
भारतीय मानसून की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानसून शब्द अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से लिया गया है। इस शब्द का अर्थ है-ऋतु, अर्थात् मानसून का अर्थ एक ऐसी ऋतु से है जिसमें पवनों की दिशा में पूरी तरह से परिवर्तन हो जाता है। ये मौसमी पवनें हैं जो मौसम के अनुसार अपनी दिशा बदल लेती हैं। ये पवनें ग्रीष्मकाल में छः मास सागर से स्थल की ओर तथा शीतकाल में छः मास तक स्थल से सागर की ओर चलती हैं।

मानसून की प्रकृति-मानसून पर लगभग तीन शताब्दियों से प्रेक्षण हो रहे हैं। इसके बावजूद आज भी यह वैज्ञानिकों के लिए एक पहेली ही है। अब मानसून का अध्ययन क्षेत्रीय स्तर की बजाय भूमंडलीय स्तर पर किया गया है। दक्षिणी एशियाई क्षेत्र में वर्षा के कारणों का व्यवस्थित अध्ययन मानसन के कारणों को समझने में सहायता करता है। इसके कछ विशेष पक्ष अग्रलिखित हैं

  • मानसून का आरम्भ और उसका स्थल की ओर बढ़ना।
  • वर्षा लाने वाले तंत्र तथा मानसूनी वर्षा की आवृत्ति और वितरण के बीच संबंध।
  • मानसून में विच्छेद।
  • मानसून का निवर्तन।

प्रश्न 17.
दक्षिण-पश्चिमी मानसून तथा उत्तर-पूर्वी मानसून में अन्तर बताइए।
उत्तर:
दक्षिण-पश्चिमी मानसून तथा उत्तर-पूर्वी मानसून में निम्नलिखित अन्तर हैं-

दक्षिण-पश्चिमी मानसून उत्तर-पूर्वी मानसून
1. जून से सितम्बर तक की अवधि दक्षिण-पशिचमी मानसून की होती है। 1. दिसम्बर से फरवरी तक की अवंधि उत्तर-पूर्वी मानसून की होती है।
2. इन महीनों में उत्तर भारत में निम्न दाब-क्षेत्र बन जाता है। 2. इन महीनों में उत्तर भारत में उच्च दाब-क्षेत्र बन जाता है।
3. इस निम्न दाब-क्षेत्र की ओर पवनें अग्रसर होने लगती हैं और उनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व होती है। 3. इस उच्च दाब से पवनें चारों ओर फैलने लगती हैं। पवनों की दिशा गंगा की घाटी में पश्चिम में, बंगाल में उत्तर में और बंगाल की खाड़ी में उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम हो जाती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 18.
भारत में पाई जाने वाली शीत ऋतु का वर्णन करें।
उत्तर:
शीतकाल भारत में सामान्यतः नवम्बर मध्य से मार्च तक होता है। इस ऋतु में अधिकांश भागों में महाद्वीपीय पवनें चलती हैं। इस ऋतु में उत्तरी भारत में तापमान अपेक्षाकृत कम रहता है। यहाँ के अधिकांश भागों में तापमान 20° सेल्सियस से नीचे रहता है और कई क्षेत्रों में हिमांक बिन्दु से भी नीचे गिर जाता है। उत्तरी भारत में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, उत्तरी राजस्थान तथा उत्तरी-पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शीत लहरें’ (Cold Waves) चलती हैं। दक्षिणी भारत में तापमान 22° सेल्सियस से नीचे नहीं आता।

शीतकाल में पवनें स्थलीय भागों से सागर की ओर चलती हैं, इसलिए ये हवाएँ शुष्क होती हैं। जो बंगाल की खाड़ी को पार करके नमी ग्रहण करती हैं तथा पूर्वी घाट से टकराकर आन्ध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु के तटीय भागों में वर्षा करती हैं।

इस मौसम में उत्तर:पश्चिम से आने वाले चक्रवातों एवं दक्षिण में लौटती हुई मानसून पवनों से वर्षा होती है, लेकिन पश्चिम से पूर्व की ओर जाने पर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है। इसे रबी की फसल के लिए वरदान माना जाता है। उत्तरी-पूर्वी भारत में इस मौसम में थोड़ी वर्षा होती है।

वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर पश्चिमी पवनों का प्रभाव होता है अर्थात् 3 किलोमीटर की ऊँचाई पर जेट प्रवाह सक्रिय होता है। हिमालय तथा तिब्बत की उच्च भूमि इन जेट प्रवाहों को अवरुद्ध करती है, जिससे जेट प्रवाह दो शाखाओं में बँट जाता है। इसकी एक शाखा हिमालय के उत्तर में तथा दूसरी दक्षिण में पश्चिमी-पूर्वी दिशा में 25° उत्तरी अक्षांश के सहारे चलने लगती है। इस जेट प्रवाह की दक्षिणी शाखा में शीत ऋतु में उत्तरी भारत में वर्षा होती है अर्थात् जेट प्रवाह उत्तर:पश्चिमी चक्रवातों को लाने में मदद करते हैं।

प्रश्न 19.
एल निनो क्या है? इसका भारतीय मानसून पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
एल निनो एक जटिल मौसम तन्त्र है जो हर पाँच या दस साल बाद प्रकट होता रहता है। इसके कारण संसार के अनेक भागों में सूखा, बाढ़ और मौसम की चरम अवस्थाएँ आती हैं। एल निनो पूर्वी प्रशान्त महासागर में पेरु के तट के निकट उष्ण समुद्री धारा के रूप में प्रकट होता है। इससे भारत का मानसून अत्यधिक प्रभावित होता है। यह धारा पेरु के तट के जल का तापमान 10°C तक बढ़ा देती है जिसके परिणामस्वरूप भूमध्य-रेखीय वायुमण्डलीय परिसंचरण में विकृति उत्पन्न हो जाती है जिससे भारतीय मानसून प्रभावित होता है।

प्रश्न 20.
मानसून की उत्पत्ति पर एक नोट लिखिए।
अथवा
मानसून की उत्पत्ति सम्बन्धित आधुनिक विचारधारा का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर:
आधुनिक मौसम-विशेषज्ञों का विचार है कि मानसून पवनों की उत्पत्ति का सम्बन्ध क्षोभ सीमा पर पाई जाने वाली जेट प्रवाह से है। सन् 1973 में भारतीय तथा सोवियत मौसम विशेषज्ञों ने ‘मानसून अभियान संगठन’ का गठन किया। यह संगठन इस जलवायु निष्कर्ष पर पहुँचा कि मानसून की उत्पत्ति तिब्बत के ऊँचे पठार से होती है। इस धारणा के अनुसार शीत ऋतु में एशिया में तीन कि०मी० की ऊँचाई पर क्षोभमण्डल में अपनी तरह का एक वायु-परिसंचरण दिखाई देता है। इसमें धरातलीय विषमताओं का कोई योगदान नहीं होता। इस समय समस्त एशिया के मध्य एवं पश्चिमी भाग के क्षोभमण्डल पर पश्चिमी पवनों का प्रभाव होता है, जिन्हें ‘जेट-स्ट्रीम’ कहते हैं।

तिब्बत का पठार तथा हिमालय इस जेट-प्रवाह के मार्ग में अवरोधक का काम करते हैं। इस रुकावट से जेट-प्रवाह दो भागों में विभाजित हो जाता है। एक भाग हिमालय के उत्तर में तथा दूसरा भाग दक्षिण तथा पश्चिम से पूर्व की ओर बहते हैं। इस जेट-प्रवाह से नीचे की ओर उतरती हुई वायु हिन्द महासागर की ओर चलती है। गर्मियों में भूमध्य रेखीय निम्न वायुदाब उत्तर भारत की ओर खिसकने के साथ पश्चिमी जेट-स्ट्रीम भारत से चला जाता है।

उसकी जगह भारत पर एक पूर्वी जेट-स्ट्रीम बहने लगता है, जो उष्ण कटिबन्धीय गों के भारतीय उप-महाद्वीप की ओर आकर्षित कर लेता है। इस पूर्वी जेट की उत्पत्ति गर्मियों में हिमालय पर्वत तथा तिब्बत के पठार के अत्यधिक गर्म होने से होती है। इन ऊँचे भागों से विकिरण के कारण क्षोभमण्डल में दक्षिणवर्ती (Clockwise) परिसंचरण आरम्भ होता है। इन उच्च स्थलों से भूमध्य रेखा की ओर बहने वाला प्रवाह भारत में ‘पूर्वी जेट-प्रवाह’ कहलाता है। अतः गर्मियों में मानसून की उत्पत्ति भूमध्य रेखीय निम्न दाब के उत्तर की ओर स्थानान्तरण तथा हिमालय एवं मध्य एशिया के ऊँचे स्थलों के गर्म होने के संयुक्त प्रयास से होती है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की ऋतु या वर्षा ऋतु का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
केरल तथा तमिलनाडु के तटीय भागों में जून के प्रथम सप्ताह से मानसूनी वर्षा शुरू हो जाती है, लेकिन उत्तरी भारत में मानसून जुलाई के मध्य तक पहुँच जाता है। देश की 80 प्रतिशत वर्षा इसी ऋतु में होती है। जब अकस्मात् मानसून का आरम्भ होता है तो उसे ‘मानसून का विस्फोट’ (Burst of Monsoon) कहते हैं। अगस्त में तापमान 35° से 40° के मध्य रहता है। वर्षा के कारण तापमान में कमी आ जाती है।

दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनों की निम्नलिखित दो शाखाएँ हैं-

  • बंगाल की खाड़ी का मानसून
  • अरब सागर का मानसून।

(1) बंगाल की खाड़ी का मानसून (Monsoon of Bay of Bengal)-जब बंगाल की खाड़ी से दक्षिणी-पश्चिमी हवाएँ गुज़रती हैं, तो पर्याप्त नमी ग्रहण करती हैं। ये पवनें दो शाखाओं में बँट जाती हैं। एक शाखा पूर्व की ओर मेघालय में गारो, खासी एवं जयन्तिया की पहाड़ियों से टकराती है तथा वर्षा करती है। इन पहाड़ियों की आकृति कीप (Funnel) की तरह होने के कारण यहाँ अत्यधिक वर्षा होती है इसलिए मॉसिनराम (मेघालय राज्य में चेरापूँजी के निकट स्थित) में विश्व की सर्वाधिक वार्षिक वर्षा 1,140 सें०मी० होती है।

बंगाल की खाड़ी को मानसून की दूसरी शाखा सीधे गंगा घाटी में प्रवेश करके हिमालय से टकराकर बंगाल, बिहार तथा उत्तर प्रदेश से होती हुई हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश एवं जम्मू कश्मीर आदि में वर्षा करती है, लेकिन पश्चिम की ओर जाने पर इन मानसून पवनों की नमी में कमी आती जाती है। कोलकाता में 120 सें०मी०, पटना में 105 सें०मी०, इलाहाबाद में 75 सें०मी० और दिल्ली में 56 सें०मी० वर्षा होती है।

(2) अरब सागरीय मानसून (Monsoon of Arabian Sea) मानसून पवनों की दूसरी शाखा अरब सागरीय मानसून है जो पश्चिमी घाट से टकराकर पश्चिमी भारत में वर्षा करती है, लेकिन जब ये वाष्प भरी हवाएँ पश्चिमी घाट को पार करती हैं तो इनकी आर्द्रता में कमी आ जाती है और पश्चिमी घाट का पूर्वी भाग ‘वृष्टिछाया प्रदेश’ (Rain Shadow Area) में पड़ जाता है, जिसके कारण मंगलौर में जहाँ 280 सें०मी० वर्षा होती है, वहीं बंगलूरू में केवल 60 सें०मी० वर्षा होती है। अरब सागरीय मानसून की दूसरी शाखा उत्तर की ओर गुजरात एवं राजस्थान में अरावली पहाड़ियों के समानान्तर आगे हिमालय तक चली जाती है, लेकिन राजस्थान में वर्षा नहीं करती, वरन् हिमालय से टकराकर वर्षा करती है।

प्रश्न 2.
कोपेन द्वारा प्रस्तुत भारत को जलवायु विभागों में वर्गीकृत कीजिए।
उत्तर:
यह बताया जा चुका है कि सारे भारत में मानसूनी जलवायु पाई जाती है, फिर भी यहाँ जलवायु में विभिन्न प्रादेशिक स्वरूप पाए जाते हैं। इसका कारण यह है कि भारत एक विशाल देश है तथा यहाँ पर विभिन्न भौतिक स्वरूप मिलते हैं, जिनके कारण भारत में विभिन्न भागों में तथा विभिन्न समयों में जलवायु की कुछ अलग-अलग विशेषताएँ मिलती हैं। कई जलवायु-वेत्ताओं ने भारतीय जलवायु को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत करने की चेष्टा की है। कोपेन द्वारा प्रस्तुत भारत का जलवायु विभागों में वर्गीकरण अधिक मान्य है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु 2

कोपेन द्वारा प्रस्तुत जलवायु प्रदेश: कोपेन की प्रणाली के अनुसार जलवायु प्रवेश कोपेन द्वारा प्रस्तुत जलवायु प्रदेश कोपेन द्वारा जलवायु के वर्गीकरण की पद्धति तापमान तथा वृष्टि के मासिक मान पर आधारित है। उसने भारतीय जलवाय को आठ जलवाय प्रदेशों में बाँटा है। वैसे कोपेन के जलवाय प्रदेश पाँच प्रकार के हैं, जिनको अंग्रेजी के पहले पाँच बड़े अक्षरों से सम्बोधित किया है; जैसे
(1) उष्ण कटिबन्धीय जलवायु (Tropical Climate) = A
(2) शुष्क जलवायु (Dry Climate) = B
(3) गर्म जलवायु (Warm Climate) = C
(4) हिम जलवायु (Snow Climate) = D
(5) बर्फीली जलवायु (Ice Climate) = E
वृहत रूप के उपर्युक्त पाँच जलवायु प्रदेशों को तापमान तथा वर्षा ऋतु के अनुसार वितरण के आधार पर उप-प्रदेशों में विभाजित किया गया है, जिनके लिए अंग्रेजी के छोटे अक्षरों का प्रयोग किया गया है, जिनका अर्थ इस प्रकार है
a = गर्म ग्रीष्म तथा सबसे अधिक गर्म माह का औसत तापमान 22° सेल्सियस से अधिक।
c = शीतल ग्रीष्म सबसे गर्म माह का औसत तापमान 22° सेल्सियस से कम।
i = कोई भी मौसम शुष्क नहीं।
s = ग्रीष्म ऋतु में शुष्क मौसम।
g = ग्रीष्म ऋतु में वर्षा तथा गंगा तुल्य तापमान का वार्षिक परिसर।
h = वार्षिक औसत तापमान 18° सेल्सियस से नीचे।
m = मानसून, शुष्क मौसम की अल्प अवधि।
भारत के आठ जलवायु प्रदेशों का वितरण इस प्रकार है-

  • लघु शुष्क ऋतु वाला मानसून प्रकार इस प्रकर की जलवायु भारत के पश्चिमी तटों पर गोवा के दक्षिण में पाई जाती है।
  • अधिक गर्मी की अवधि में शुष्क ऋतु का प्रदेश इस प्रकार की जलवायु भारत के कोरोमण्डल तट पर पाई जाती है।
  • उष्ण कटिबन्धीय सवाना प्रकार की जलवायु इस प्रकार की जलवायु दक्षिणी भारत के अधिकांश भाग पर पाई जाती है। कोरोमण्डल तथा मालाबार के तट इसके अपवाद हैं।
  • अर्ध-शुष्क स्टेपी जलवायु–यह जलवायु दक्षिणी पठार के वृष्टि छाया क्षेत्रों, गुजरात, राजस्थान तथा हरियाणा के दक्षिण-पश्चिमी भाग में पाई जाती है।
  • उष्ण मरुस्थलीय जलवायु-यह जलवायु भारत के पश्चिमी भागों में पाई जाती है।
  • शुष्क ऋतु वाला मानसून जलवायु-यह जलवायु भारत के उत्तरी विशाल मैदान में पाई जाती है।
  • लघु ग्रीष्म के साथ शीतल व अर्ध-शीत वाली जलवायु इस प्रकार की जलवायु भारत के उत्तर:पूर्वी भाग में पाई जाती है।
  • ध्रुवीय प्रकार इस प्रकार की जलवायु कश्मीर तथा निकटवर्ती पर्वतमालाओं में पाई जाती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 3.
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत की जलवायु को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं-
1. उत्तर में स्थित हिमालय पर्वत-भारत की उत्तरी सीमा पर पूर्व-पश्चिम दिशा में फैले हिमालय पर्वत के कारण उत्तर भारत में ऊँचा तापमान तथा शुष्क ऋतु पाई जाती है। यहाँ उष्ण कटिबन्धीय लक्षण पाए जाते हैं, यद्यपि उत्तर भारत शीतोष्ण कटिबन्ध में स्थित है।

2. हिन्द महासागर-भारतीय जलवायु पर हिन्द महासागर का गहरा प्रभाव पड़ता है। यह मानसून पवनों को आर्द्रता प्रदान करता है तथा सम्पूर्ण भारत में वर्षा होती है।

3. भारत का विस्तार तथा विभिन्न प्रकार की स्थलाकृतियाँ देश के बड़े आकार के कारण तथा पृथक्-पृथक् स्थलाकृतियों के मिलने के कारण भारत में विविध प्रकार की जलवायु पाई जाती है।

4. शीत ऋतु में विक्षोभ-भूमध्य सागर में उत्पन्न विक्षोभ चक्रवातों के रूप में भारत में पहुँचकर उत्तरी भारत के पश्चिमी हिमालय से टकराकर वर्षा करते हैं।

5. भूमध्य रेखा की समीपता भारत 8°4′ उत्तर से 37°6′ उत्तर के मध्य स्थित है। इसलिए भारत का दक्षिणी क्षेत्र भूमध्य रेखा के निकट स्थित है तथा सारा वर्ष गर्मी पड़ती है। कर्क रेखा देश के मध्य से गुजरती है इसलिए यहाँ उष्ण कटिबन्धीय जलवायु पाई जाती है।

6. समुद्र तट से दूरी-भारतीय तटीय प्रदेशों में समकारी प्रभाव के कारण सम प्रकार की जलवायु पाई जाती है। उदाहरण के लिए मुम्बई का ग्रीष्मकालीन तापमान लगभग 27° सेल्सियस तथा शीतकालीन तापमान लगभग 24° सेल्सियस रहता है। जो स्थान समुद्र तट से अधिक दूर है, वहाँ विषम प्रकार का जलवायु मिलता है। उदाहरण के लिए इलाहाबाद समुद्र तट से दूर है। इसलिए यहाँ ग्रीष्मकालीन तापमान लगभग 30° सेल्सियस तथा शीतकालीन तापमान लगभग 16° सेल्सियस रहता है। दक्षिणी भारत तीनों ओर से सागरों तथा महासागर से घिरा है। इसलिए यहाँ गर्मियों में कम गर्मी तथा सर्दियों में कम सर्दी पड़ती है।

7. धरातल का प्रभाव पश्चिमी घाट तथा मेघालय पर्वतीय क्षेत्र मानसून पवनों के सम्मुख ढाल पर स्थित हैं। इसलिए यहाँ वर्षा अधिक होती है। परन्तु दक्षिणी पठार पवन-विमुख ढाल के कारण वृष्टिछाया क्षेत्र में स्थित होने के कारण यहाँ वर्षा बहुत कम होती है। राजस्थान में स्थित अरावली पर्वत मानसून पवनों की दिशा के समानान्तर स्थित होने के कारण शुष्क रह जाता है।

पर्वतीय प्रदेशों में तापमान कम तथा मैदानों में तापमान अधिक होता है। उदाहरण के लिए आगरा तथा दार्जिलिंग एक ही आक्षांश पर स्थित हैं, परन्तु आगरा में जनवरी का तापमान 16° सेल्सियस दार्जिलिंग में 4° सेल्सियस होता है, क्योंकि आगरा मैदानी क्षेत्र है तथा दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र है।

प्रश्न 4.
अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी की मानसूनी पवनों का सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. अरब सागर की मानसून पवनें ये पवनें अरब सागर में उत्पन्न होकर भारत की ओर अग्रसर होती हैं, परन्तु भारत के पश्चिमी तट पर पहुँचकर ये तीन शाखाओं में बँट जाती हैं, जो निम्नलिखित प्रकार से हैं-
(1) पहली शाखा, पश्चिमी घाटों से टकराकर भारत के पश्चिमी तटीय मैदानों पर लगभग 250 सें०मी० वर्षा करती है। पश्चिमी घाट के पूर्व की ओर घाटों से नीचे उतरने के कारण इन पवनों के तापमान में बढ़ोतरी हो जाती है तथा पूर्व की ओर ये वर्षा नहीं करती हैं, अतः पश्चिमी घाट के पूर्व का क्षेत्र ‘वृष्टि छाया’ (Rain Shadow) क्षेत्र कहलाता है।

(2) दूसरी शाखा, नर्मदा तथा ताप्ती नदियों की घाटियों में से होकर भारत के मध्यवर्ती क्षेत्र में प्रवेश करती है। यहाँ इनके रास्ते में ऐसी रुकावट नहीं है जो इन्हें रोककर वर्षा हो सके, अतः ये दूर तक मध्य भारतीय क्षेत्र से में निकल जाती हैं और वर्षा करती हैं। नागपुर के पास इन पवनों द्वारा लगभग 60 सें०मी० वर्षा होती है।

(3) तीसरी शाखा, उत्तर:पूर्व की ओर अरावली पर्वतों के समानान्तर चलती है तथा रुकावट न होने के कारण ये राजस्थान से बिना वर्षा किए निकल जाती है। आगे चलकर हिमालय की पश्चिमी पहाड़ियों से टकराकर काफी वर्षा करती है।

2. बंगाल की खाड़ी की मानसून पवनें-ये पवनें दो शाखाओं में विभक्त होकर चलती हैं-
(1) एक शाखा, गंगा के डेल्टे को पार करके असम में खासी तथा गारो की पहाड़ियों से टकराकर असम में खूब वर्षा करती है। यहाँ मॉसिनराम (मेघालय राज्य में चेरापूंजी के निकट स्थित) नामक स्थान पर विश्व की सर्वाधिक वर्षा (1140 सें०मी०) होती है।

(2) दूसरी शाखा हिमालय पर्वत के समानान्तर पश्चिम की ओर बहती है क्योंकि यह हिमालय को पार नहीं कर पाती इसलिए पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा करती जाती है तथा वर्षा की मात्रा में कमी आती जाती है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 4 जलवायु

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 4 जलवायु Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 4 जलवायु

HBSE 11th Class Geography जलवायु Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर का चयन करें-

1. जाड़े के आरंभ में तमिलनाडु के तटीय प्रदेशों में वर्षा किस कारण होती है?
(A) दक्षिणी-पश्चिमी मानसून
(B) उत्तर:पूर्वी मानसून
(C) शीतोष्ण-कटिबंधीय चक्रवात
(D) स्थानीय वायु परिसंचरण
उत्तर:
(B) उत्तर-पूर्वी मानसून

2. भारत के कितने भू-भाग पर 75 सेंटीमीटर से कम औसत वार्षिक वर्षा होती है?
(A) आधा
(B) दो-तिहाई
(C) एक-तिहाई
(D) तीन-चौथाई
उत्तर:
(C) एक-तिहाई

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3. दक्षिण भारत के संदर्भ में कौन-सा तथ्य ठीक नहीं है?
(A) यहाँ दैनिक तापांतर कम होता है
(B) यहाँ वार्षिक तापांतर कम होता है
(C) यहाँ तापमान सारा वर्ष ऊँचा रहता है
(D) यहाँ जलवायु विषम पाई जाती है
उत्तर:
(D) यहाँ जलवायु विषम पाई जाती है

4. जब सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा पर सीधा चमकता है, तब निम्नलिखित में से क्या होता है?
(A) उत्तरी-पश्चिमी भारत में तापमान कम होने के कारण उच्च वायुदाब विकसित हो जाता है
(B) उत्तरी-पश्चिमी भारत में तापमान बढ़ने के कारण निम्न वायुदाब विकसित हो जाता है
(C) उत्तरी-पश्चिमी भारत में तापमान और वायुदाब में कोई परिवर्तन नहीं आता
(D) उत्तरी-पश्चिमी भारत में झुलसा देने वाली तेज लू चलती है
उत्तर:
(A) उत्तरी-पश्चिमी भारत में तापमान कम होने के कारण उच्च वायुदाब विकसित हो जाता है

5. कोपेन के वर्गीकरण के अनुसार भारत में ‘As’ प्रकार की जलवायु कहाँ पाई जाती है?
(A) केरल और तटीय कर्नाटक में
(B) अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में
(C) कोरोमंडल तट पर
(D) असम व अरुणाचल प्रदेश में B-60
उत्तर:
(C) कोरोमंडल तट पर

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
भारतीय मौसम तंत्र को प्रभावित करने वाले तीन महत्त्वपूर्ण कारक कौन-से हैं?
उत्तर:
भारतीय मौसम तंत्र को निम्नलिखित तीन महत्त्वपूर्ण कारक प्रभावित करते हैं-

  • वायुदाब तथा पवनों के धरातलीय वितरण इसके महत्त्वपूर्ण कारक मानसून पवनें, कम वा क्षेत्र हैं।
  • ऊपरी वायु परिसंचरण-इसमें महत्त्वपूर्ण तत्त्व विभिन्न वायुराशियाँ और जेट स्ट्रीम का अंतर्वाह है।
  • विभिन्न वायु विक्षोभ-इसमें उष्ण कटिबन्धीय और पश्चिमी चक्रवातों के प्रभाव से वर्षा होती है।

प्रश्न 2.
अंतःउष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र क्या है?
उत्तर:
अंतःउष्ण कटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र निम्न वायुदाब क्षेत्र होता है जो सभी दिशाओं से पवनों के अन्तर्वहन को प्रोत्साहित करता है। यह भूमध्य-रेखीय क्षेत्र में स्थित होता है। इसकी स्थिति सूर्य की स्थिति के अनुसार उष्ण कटिबन्ध के मध्य बदलती रहती है। ग्रीष्मकाल में यह उत्तर की ओर तथा शीतकाल में यह दक्षिण की ओर सरक जाता है। इसे भूमध्यरेखीय द्रोणी भी कहते हैं।

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प्रश्न 3.
मानसून प्रस्फोट से आपका क्या अभिप्राय है? भारत में सबसे अधिक वर्षा प्राप्त करने वाले स्थान का नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत में ग्रीष्म ऋतु के पश्चात् वर्षा ऋतु आरम्भ होती है। इस समय भारत में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनें प्रवेश करती हैं तथा भारत की 80% वर्षा इन्हीं पवनों से होती है। मानसून पवनों की वर्षा के अकस्मात आरम्भ होने को ‘मानसून प्रस्फोट’ कहते हैं। इसमें वर्षा की तेज बौछारें पड़ती हैं। भारत में सबसे अधिक वर्षा मॉसिनराम में होती है।

प्रश्न 4.
जलवायु प्रदेश क्या होता है? कोपोन की पद्धति के प्रमुख आधार कौन-से हैं?
उत्तर:
जलवायु प्रदेश-जलवायु प्रदेश एक ऐसा क्षेत्र होता है जिसमें विभिन्न जलवायविक तत्त्व अपने संयुक्त प्रभाव से एकरूपी जलवायविक दशाओं का निर्माण करते हैं। स्थानीय तौर पर मौसम के तत्त्व; जैसे तापमान, वर्षा इत्यादि मिलकर जलवायु में अनेक क्षेत्रीय विभिन्नताएँ उत्पन्न कर देते हैं। इन विभिन्नताओं को हम जलवायु के उप-प्रकार मानते हैं। इसी आधार पर जलवायु प्रदेश पहचाने जाते हैं। कोपेन ने अपने जलवायु वर्गीकरण का आधार तापमान तथा वर्षण के मासिक मानों को रखा है।

प्रश्न 5.
उत्तर-पश्चिम भारत में रबी की फसलें बोने वाले किसानों को किस प्रकार के चक्रवातों से वर्षा प्राप्त होती है? वे चक्रवात कहाँ उत्पन्न होते हैं?
उत्तर:
उत्तर-पश्चिम भारत में रबी की फसलें बोने वाले किसानों को अत्यन्त लाभदायक शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात प्राप्त होते हैं, जिन्हें पश्चिमी विक्षोभ भी कहा जाता है। ये चक्रवात पूर्वी भूमध्य सागर पर उत्पन्न होते हैं और पूर्व की ओर यात्रा करते हुए भारत पहुँचते हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
जलवायु में एक प्रकार का ऐक्य होते हुए भी, भारत की जलवायु में क्षेत्रीय विभिन्नताएँ पाई जाती हैं। उपयुक्त उदाहरण देकर इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत की जलवायु मानसूनी है जो कदाचित् देश की एकता का प्रतीक है, लेकिन जलवायु में प्रादेशिक विभिन्नता दृष्टिगोचर होती है। ये प्रादेशिक विभिन्नताएँ देश के तापक्रम, वर्षा, आर्द्रता, समुद्र तल से ऊँचाई, पर्वतों की दिशा तथा उच्चावच में देखने को मिलती हैं। इन विभिन्नताओं के निम्नलिखित कारण हैं-
1. अक्षांशीय विस्तार-भारत का अक्षांशीय विस्तार 8°4′ उत्तर से 37°6′ उत्तर है जो लगभग 30° है। इतने अधिक विस्तार के कारण उत्तरी भारत तथा दक्षिणी भारत की जलवायु में अन्तर पाया जाना स्वाभाविक ही है। दक्षिणी भाग (प्रायद्वीपीय भाग) में भूमध्य रेखा तथा हिन्द महासागर के निकट होने के कारण वर्ष भर तापक्रम ऊँचा रहता है। कोंकण तटीय मैदान में तथा गोवा में रहने वाले लोगों को तापमान की विषमता एवं ऋतु परिवर्तनों का अहसास कम ही होता है।

दिसम्बर, जनवरी में कारगिल में तापक्रम जहाँ -40°C तक गिर जाता है, वहीं गोवा एवं चेन्नई में तापमान 20°-25°C के मध्य रहता है। राजस्थान में गंगानगर का जून का तापक्रम 50°C तक पहुँच जाता है, जबकि गुलमर्ग में 20°C के आसपास रहता है। भूमध्य रेखा से दूर होने के कारण तापक्रम की विभिन्नताएँ दृष्टिगोचर होती हैं।

2. उत्तर में विशाल हिमालय की स्थिति देश की उत्तरी सीमा पर हिमालय पर्वत श्रृंखलाएँ पूर्व से पश्चिम में दीवार की भाँति फैली हुई हैं जो देश की जलवायु को अत्यधिक प्रभावित करती हैं। हिमालय पर्वत अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी से आने वाली वाष्प भरी हवाओं को रोकने का कार्य करता है, जिससे सम्पूर्ण भारत में वर्षा होती है, दूसरी ओर हिमालय उत्तर से आने वाली शीत लहरों को भारत में आने से रोकता है, जिससे शीत ऋतु का तापमान अधिक नीचे नहीं गिर पाता। यदि उत्तर में हिमालय न होता तो सम्भवतः भारत एक मरुस्थली देश होता।

3. जल व स्थल का वितरण-भारत के उत्तर में विशाल स्थलीय भाग एशिया महाद्वीप तथा दक्षिण में हिन्द महासागर स्थित है। स्थल तथा जल में तापमान ग्रहण करने की क्षमता अलग-अलग होती है। स्थलीय भाग शीघ्र गर्म तथा शीघ्र ठण्डे होते हैं। इसके विपरीत जलीय भाग देर से गर्म तथा देर से ठण्डे होते हैं, इसलिए ग्रीष्म ऋतु में जलीय भाग में वायुदाब अधिक तथा उत्तर:पश्चिम भारत में वायुदाब कम होता है और पवनें सागरीय भागों से स्थलीय भाग की ओर चलती हैं। हवाएँ वाष्प-युक्त होती हैं, इसलिए उत्तरी भारत में वर्षा करती हैं।

भारत की जलवायु मानसूनी है। मानसून शब्द अरब भाषा के शब्द ‘मौसिम’ से बना है अर्थात् देश की जलवायु में मानसूनी पवनों का विशेष योगदान है, जो मौसमानुसार देश में चलती हैं। मानसूनी पवनें छह महीने सागर से स्थल की ओर तथा छह महीने स्थल से सागर की ओर चलती हैं, लेकिन देश में पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की जलवायु दशाओं में अत्यधिक अन्तर या विभिन्नता देखने को मिलती है। इस विभिन्नता के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
(1) तापमान की विभिन्नता राजस्थान में बाड़मेर में जहाँ ग्रीष्मकालीन तापमान 50°C तक पहुँच जाता है, वहीं दूसरी ओर पहलगाम में तापमान 22°C के आसपास रहता है। शीतकाल में कारगिल में
तापमान –40°C तथा त्रिवेन्द्रम में तापमान 20°C के आसपास रहता है।

(2) वर्षा की विभिन्नता भारत के उत्तर:पूर्व में मॉसिनराम (मेघालय राज्य में चेरापूँजी के निकट स्थित) में औसत वार्षिक वर्षा 1140 सें०मी० है, जबकि जैसलमेर (राजस्थान) में केवल 12 सें०मी० है। गारो की पहाड़ियों तुरा (Tura) में एक ही दिन में इतनी वर्षा होती है, जितनी जैसलमेर में 10 वर्षों में भी नहीं होती।

(3) ऋतओं में विभिन्नता-

  • दिसम्बर-जनवरी के महीनों में उत्तरी भारत विशेषकर जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, पंजाब एवं हरियाणा में जहाँ शीत लहर चल रही होती है, वहीं दक्षिण भारत में केरल तथा तमिलनाडु में 22°C के आसपास तापमान रहता है।
  • मुम्बई तथा कोंकण तटीय प्रदेश के लोगों को ऋतु परिवर्तन का अनुभव नहीं होता। ये सारे वर्ष एक ही तरह के वस्त्र पहनते हैं।
  • केरल में वर्षा मई के माह में आरम्भ हो जाती है, जबकि चण्डीगढ़ एवं जम्मू-कश्मीर में जुलाई के महीने में मानसून का आगमन होता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 2.
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार भारत में कितने स्पष्ट मौसम पाए जाते हैं? किसी एक मौसम की दशाओं की सविस्तार व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारतीय जलवायु में प्रादेशिक विभिन्नता के साथ-साथ मौसमी विभिन्नताएँ भी देखने को मिलती हैं। भारत में प्रायः निम्नलिखित चार ऋतुएँ मानी जाती हैं-

  • शीत ऋतु (Winter Season)
  • ग्रीष्म ऋतु (Summer Season)
  • वर्षा ऋतु (Rainy Season)
  • मानसून के प्रत्यावर्तन या लौटने की ऋतु (Season of Retreating Monsoon)।

इनमें से ग्रीष्म ऋतु का वर्णन इस प्रकार है-
ग्रीष्म ऋतु-मार्च के महीने के बाद सूर्य उत्तर की ओर स्थानान्तरित होने लगता है और उत्तरी भारत, पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान में तापक्रम बढ़ने लगता है और धरातलीय एवं उच्च-स्तरीय वायु का परिसंचरण (Circulation) विपरीत दिशा में होने लगता है अर्थात् समुद्री भागों से हवाएँ स्थलीय भाग की ओर चलने लगती हैं। जून का तापक्रम उत्तरी-पश्चिमी भारत में 40° सेल्सियस से अधिक तापमान के कारण न्यून वायुदाब का केन्द्र बन जाता है, जिससे भूमध्य रेखीय द्रोणी वायु को विभिन्न दिशाओं से अपनी ओर आकर्षित करती है। दक्षिण से आने वाली वायु की दिशा भूमध्य रेखा को पार करने के बाद दक्षिण-पश्चिम हो जाती है, जिसे दक्षिण-पश्चिमी मानसून कहते हैं। इन दक्षिण-पश्चिमी वाष्प भरी पवनों की दो शाखाएँ अग्रलिखित हैं

  • अरब सागर का मानसून
  • बंगाल की खाड़ी का मानसून।

वायुदाब-शीत ऋतु में उत्तरी भारत में तापक्रम कम होने के कारण हवाएँ ठण्डी एवं भारी होती हैं, इसलिए वायुदाब अधिक होता है, जबकि दक्षिणी भाग में अपेक्षाकृत कम वायुदाब होता है। उत्तरी-पश्चिमी भाग में वायुदाब 1018 से 1020 मिलीबार की समदाब रेखाएँ देखी जाती हैं, जबकि दक्षिणी भारत विशेषकर बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर के आसपास 1012 से 1014 मिलीबार वायुदाब अंकित किया जाता है। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पश्चिमी विक्षोभ के कारण पवनों की दिशा में भी विक्षोभ आ जाता है। ये विक्षोभ भूमध्य सागर से उत्पन्न होकर ईरान, इराक, अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान से होता हुआ उत्तरी-पश्चिमी भारत में प्रवेश करता है। इन विक्षोभों को भारत में लाने में जेट-प्रवाह (Jet-flow) का महत्त्वपूर्ण योगदान है। इस प्रकार का प्रवाह उत्तरी भारत में दिसम्बर से फरवरी तक सक्रिय रहता है।

तापमान कर्क रेखा भारत के बीचो-बीच गुजरती है और जून में सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत् चमकता है, जिससे तापमान उत्तरी-पश्चिमी भारत में कई स्थानों पर 45° सेल्सियस तक पहुँच जाता है। मई-जून में अधिक तापमान के कारण गर्म हवाएँ, जिन्हें ‘लू’ कहते हैं, उत्तरी भारत में चलती हैं। दक्षिणी भारत में तापक्रम 30°-35° सेल्सियस के बीच रहता है तथा तटीय भागों में कहीं-कहीं इससे भी कम रहता है अर्थात् समुद्र का प्रभाव रहता है।

वर्षा उत्तरी भारत में इस ऋतु में धूल-भरी आँधियों के साथ कभी-कभी छुट-पुट वर्षा होती है। दिल्ली, राजस्थान, पंजाब एवं हरियाणा में 1 सें०मी० से 3 सें०मी० तक वर्षा होती है, जबकि हिमालय एवं प्रायद्वीपीय भारत में 10 सें०मी० से 15 सें०मी० तक वर्षा होती है।

वायुदाब-ग्रीष्म ऋतु में तापक्रम की अधिकता के कारण उत्तरी भारत में वायुदाब कम होता है। वायुदाब वितरण मानचित्र को देखने से स्पष्ट होता है कि उत्तरी-पश्चिमी भारत में 997 मिलीबार रेखा राजस्थान तथा पाकिस्तान की सीमा के पास होती है, जबकि दक्षिणी भारत में अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी में वायुदाब अपेक्षाकृत अधिक 1008 से 1010 मिलीबार के मध्य अंकित किया गया है।

जलवायु HBSE 11th Class Geography Notes

→ एल-निनो (AI-Nino)-यह एक जटिल मौसम तंत्र है, जो हर पाँच या दस साल बाद प्रकट होता रहता है। इसके कारण संसार के विभिन्न भागों में सूखा, बाढ़ और मौसम की चरम अवस्थाएँ आती है।

→ लू (Loo)-उत्तरी मैदान में पंजाब से बिहार तक चलने वाली ये शुष्क, गर्म व पीड़ादायक पवनें हैं।

→ काल बैसाखी (Norwesters)-असम और पश्चिम बंगाल में बैसाख के महीने में शाम को चलने वाली ये भयंकर व विनाशकारी वर्षायुक्त पवनें हैं।

→ मानसून प्रस्फोट (Monsoon Boost)-मानसून पवनों द्वारा अकस्मात मूसलाधार वर्षा करना।

→ भूमध्यरेखीय द्रोणी (Equatorial Trough) यह अंतउष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र का दूसरा नाम है।

HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ

Haryana State Board HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class History Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ

निबंधात्मक उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पुनर्जागरण से आपका क्या अभिप्राय है? इसके उत्थान के क्या कारण थे?
उत्तर:
I. पुनर्जागरण का अर्थ

पुनर्जागरण का अंग्रेज़ी रूप रेनेसाँ है जो कि मूल रूप से फ्रांसीसी भाषा का शब्द है। रिनेसाँ का अर्थ है फिर जागना। इतिहास में इसे नया जन्म, नई जागृति, बौद्धिक चेतना तथा सांस्कृतिक जागृति के नामों से भी जाना जाता है। प्रसिद्ध इतिहासकार बी० के० गोखले के अनुसार, “शाब्दिक रूप में पुनर्जागरण से अभिप्राय बाहरी किसी एजेंसी के नियंत्रण के बिना विचारों एवं उस पर कार्य करने की स्वतंत्रता है।”

II. पुनर्जागरण के उत्थान के कारण

पुनर्जागरण के उत्थान के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे

1. सामंतवाद का पतन (Decline of Feudalism):
सामंतवाद के पतन ने पुनर्जागरण की आधारशिला तैयार की। मध्यकालीन समाज में सामंतवाद का व्यापक प्रचलन था। परंतु 14वीं शताब्दी के पश्चात् इसका पतन होना आरंभ हो गया था। इसका पतन मध्य वर्ग की शक्ति के कारण हुआ। इसी मध्य वर्ग ने अपने सम्राटों को सेना के संगठन के लिए आवश्यक धन-राशि प्रदान की थी।

अतः सम्राट् सामंतों पर निर्भर न रहे। व्यापार तथा वाणिज्य में उन्नति होने से मध्य वर्ग के व्यापारियों को बहुत लाभ हुआ। परंतु सामंतों की भूमि के किराये में कोई विशेष वृद्धि न हुई। इस कारण सामंतों को इन व्यापारियों से कर्ज लेने पड़े। इस कर्जे के कारण कई सामंत दीवालिए हो गए और उन्हें अपनी ज़मीनें बेचनी पड़ी। परिणामस्वरूप सामंतवाद को भारी धक्का लगा तथा उसका पतन हो गया।

2. धर्मयुद्ध (Crusades):
11वीं शताब्दी के अंत से लेकर 13वीं शताब्दी के मध्य तक ईसाई मत के पवित्र स्थान जेरुसलम के कारण मुसलमानों तथा ईसाइयों के बीच लगातार युद्ध लड़े गए। इन्हें धर्मयुद्ध का नाम दिया जाता के दौरान पश्चिमी देशों के विद्वान् पूर्वी देशों की सभ्यता के संपर्क में आए। उस समय पूर्वी देशों की सभ्यता पश्चिमी देशों की सभ्यता से प्राचीन तथा विकसित थी। धर्मयुद्धों में भाग लेने वाले व्यक्तियों ने पूर्व के नवीन विचार ग्रहण किये।

इससे उनका बौद्धिक स्तर अधिक उन्नत हो गया। मध्य युग में प्रायः लोगों का विश्वास था कि व्यक्ति के इस लोक तथा परलोक की सभी आवश्यकताएँ केवल चर्च तथा ईसाई धर्म के द्वारा पूर्ण हो सकती हैं। परंतु धर्मयुद्धों से लौटने वाले लोगों ने इस विश्वास का खंडन किया। इस तरह लोगों के मस्तिष्क पर चर्च का प्रभाव कम होने लगा। धर्मयुद्धों के माध्यम से ही यूनान के वैज्ञानिक ग्रंथ, अरबी अंक, बीजगणित, नवीन दिग्दर्शक यंत्र और कागज़ पश्चिमी यूरोप में पहुँचे।

अतः स्पष्ट है कि धर्मयुद्धों ने नवीन विचारों तथा धारणाओं का प्रसार किया और पुराने विचारों, विश्वासों तथा संस्थाओं पर प्रहार किया। फलस्वरूप पुनर्जागरण का प्रारंभ हुआ। विख्यात इतिहासकार बी० के० गोखले का यह कहना ठीक है कि, “धर्मयुद्धों ने ईसाइयों के दृष्टिकोण को परिवर्तित किया तथा उन्हें चर्च के बाहर झांकने के लिए बाध्य किया।”

3. व्यापारिक समृद्धि (Commercial Prosperity):
पुनर्जागरण का एक प्रेरक तत्त्व था-व्यापार का उदय एवं विकास। धर्मयुद्धों के कारण जहाँ नवीन विचारधाराएँ पनपीं, वहाँ यूरोप के पूर्वी देशों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित हुए। अनेक यूरोपीय व्यापारी जेरुसलम तथा एशिया माइनर के तटों पर बस गये। इनके कारण व्यापार में पर्याप्त वृद्धि हुई। व्यापारिक समृद्धि के कारण यूरोपीय व्यापारी विभिन्न देशों में पहुंचे।

उन्हें नये विचारों तथा प्रगतिशील तत्त्वों की जानकारी हुई। स्वदेश वापस लौटने पर ये व्यापारी नये विचारों को अपने साथ लाए। व्यापारी वर्ग ने चर्च की आलोचना करके उसके महत्त्व को कम करने का प्रयास किया। चर्च सूद लेने को पाप मानता था, परंतु व्यापारी वर्ग सूद को व्यापारिक उन्नति के लिए आवश्यक समझता था। इसलिए व्यापारियों ने चर्च का विरोध किया।

4. छापेखाने का आविष्कार (Invention of Press):
यूरोप के लोगों ने अरबवासियों से कागज़ बनाने की कला सीखी। पंद्रहवीं शताब्दी से पूर्व कागज़ पर छपाई कठिन भी थी और महँगी भी, परंतु इसके पश्चात् स्थिति में परिवर्तन आया।

1455 ई० में जर्मनी के जोहानेस गटेनबर्ग (Johannes Gutenberg) नामक व्यक्ति ने एक ऐसी टाइप मशीन का आविष्कार किया जो आधुनिक प्रेस की अग्रदूत कही जा सकती है। मुद्रण यंत्र के इस चमत्कारी आविष्कार ने बौद्धिक विकास का द्वार खोल दिया। इस छापेखाने में 1455 ई० में बाईबल की 150 प्रतियाँ छपी। धीरे-धीरे इस

स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन आए। अब पुस्तकें अधिक और सस्ती छपने लगीं। इस प्रकार ज्ञान के प्रसार से अंध विश्वास तथा रूढियों के बँधन ढीले पड़ने लगे और उनमें आत्म-विश्वास जागने लगा। अत: स्पष्ट है कि छापेखाने का आविष्कार पुनर्जागरण का प्रमुख प्रेरक तत्त्व बना। प्रसिद्ध इतिहासकार बी० वी० राव के अनुसार,

“छापेखाने के आविष्कार ने जो यूरोप में पद्रहवीं शताब्दी के मध्य में हुआ था, को सर्वाधिक महत्त्व का माना जाना चाहिए। यदि छापेखाने का आविष्कार न होता तो संभवतः शेष यूरोप में पुनर्जागरण इतनी शीघ्र न फैलता।”

5. कुंस्तुनतुनिया पर तुर्कों का अधिकार (Occupation of Constantinople by the Turks):
1453 ई० में तुर्कों ने पूर्वी रोमन साम्राज्य (बाइजेंटाइन) की राजधानी कुंस्तुनतुनिया पर अधिकार कर लिया था। यह एक युग प्रवर्तक घटना सिद्ध हुई। पहला, कुंस्तुनतुनिया पर तुर्कों का अधिकार हो जाने से यूरोप से पूर्वी देशों में जाने वाले स्थल मार्ग पर अब तुर्कों का अधिकार हो गया। तुर्क लोग व्यापारियों को लूट लिया करते थे।

अत: यूरोप का पूर्वी देशों के साथ होने वाला व्यापार बंद हो गया। अत: यूरोप के लोग किसी नए व्यापारिक मार्ग की खोज के लिए आतर हो उठे। परिणामस्वरूप अमरीका की खोज हुई तथा भारत और पूर्वी देशों में जलमार्ग ढूँढ निकाला गया। दूसरा, कुंस्तुनतुनिया पिछले दो सौ वर्षों से ज्ञान, दर्शन तथा कला का महान् केंद्र था। तुर्कों के लिए तलवार का तो महत्त्व था परंतु उनके लिए ज्ञान की न कोई उपयोगिता थी और न ही कोई महत्त्व।

अत: इस विख्यात नगर से आजीविका की खोज में हजारों यूनानी विद्वान्, दार्शनिक तथा कलाकार इटली, फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैंड आदि देशों में चले गए। वे अपने साथ प्राचीन रोम तथा यूनान का ज्ञान-विज्ञान तथा नई चिंतन पद्धति भी ले गये। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कुंस्तुनतुनिया पर तुर्कों का अधिकार पुनर्जागरण के उत्थान का कारण बना।

6. मंगोल साम्राज्य का उदय (Rise of Mongol Empire):
मंगोल साम्राज्य के उदय से पुनर्जागरण की धारा को बल मिला। तेरहवीं शताब्दी में प्रसिद्ध मध्य एशियाई विजेता चंगेज़ खाँ की मृत्यु हो गई। उसके बाद कुबलई खाँ ने एक विशाल परंतु शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की। इस विशाल मंगोल साम्राज्य में रूस, पोलैंड, हंगरी आदि प्रदेश सम्मिलित थे। यहाँ विद्वानों, धर्म प्रचारकों और व्यापारियों का सम्मान था। इस संपर्क ने विचार-विनिमय और ज्ञान के आदान-प्रदान का मार्ग खोला। इससे यूरोप के लोगों पर काफी प्रभाव पड़ा।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ

प्रश्न 2.
किन कारणों के चलते इटली में पुनर्जागरण का जन्म हुआ?
उत्तर:
यूरोप में पुनर्जागरण का वास्तविक आरंभ इटली से हुआ था। इसके पश्चात् यह यूरोप के अन्य देशों में फैला। इटली में पुनर्जागरण के आरंभ के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित
अनुसार है

1. इटली का एक प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र होना (Italy was a famous Trade Centre):
इटली एक प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र था। इटली का विदेशी व्यापार बडा उन्नत था। इटली की स्थिति ने इसे विशिष्टता प्रदान की। मध्यकाल में अरब व्यापारियों का एशियाई सामान इसी देश में बिकता था। यहीं से फिर ये वस्तुएँ अन्य यूरोपीय देशों
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 7 iMG 1
को भेजी जाती थीं। इसके अतिरिक्त उत्तरी यूरोप से आने वाले व्यापारी भी इटली हो कर ही पश्चिम एशिया जाते थे। इस प्रकार इटली एक सुप्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। इटली के इस बढ़ते व्यापार तथा उसकी समृद्धि ने पुनर्जागरण की प्रवृत्तियों को बल प्रदान किया।

2. प्राचीन रोमन सभ्यता का जन्म स्थान (Birth Place of Ancient Roman Civilisation):
इटली में पुनर्जागरण के पनपने का एक अन्य कारण यह भी था कि यह प्राचीन रोमन सभ्यता का जन्म स्थान रहा था। इटली के नगरों में विद्यमान प्राचीन रोमन सभ्यता के अनेक स्मारक आज भी लोगों को पुनर्जागरण की याद दिलाते हैं।

वे इटली को प्राचीन रोम की भाँति महान् देखना चाहते थे। इस तरह प्राचीन रोमन संस्कृति पुनर्जागरण के लिए प्रेरणा का स्रोत सिद्ध हुई। सर्वप्रथम दाँते की रचनाओं में इस प्रेरणा के चिह्न देखने को मिले हैं।

3. ईसाई धर्म का प्रसिद्ध केंद्र (Famous Centre of Christianity):
रोम सारे पश्चिमी यरोपीय ईसाई जगत का केंद्र था। पोप यहीं निवास करता था। कुछ पोप पुनर्जागरण की भावना से प्रेरित होकर विद्वानों को रोम लाए और उनसे यूनानी पांडुलिपियों का लातीनी भाषा में अनुवाद कराया। पोप निकोलस पंचम (1447-1455 ई०) के कार्य सराहनीय हैं।

उसने वैटिकन पुस्तकालय की स्थापना की। संत पीटर का गिरजाघर भी उसने बनाया। कहते हैं कि उसके अधीन लगभग सारा रोम निर्मित हुआ। इन कार्यों का प्रभाव अन्य स्थानों पर भी पड़ना स्वाभाविक था।

4. उपयुक्त राजनीतिक दशा (Favourable Political Condition):
राजनीतिक दृष्टि से इटली पुनर्जागरण के लिए उपयुक्त था। पवित्र रोमन साम्राज्य का पतन हो रहा था। उत्तरी इटली में अनेक स्वतंत्र नगर-राज्यों का उदय हो चुका था। इसके अतिरिक्त इटली में सामंती प्रथा भी अधिक दृढ़ नहीं थी। परिणामस्वरूप इन नगर-राज्यों में स्वतंत्रता एवं स्वच्छंदता का वातावरण था। इससे वहाँ के नागरिकों ने नवीन विचारों का स्वागत किया और नवीन विचारों को जन्म दिया।

5. शिक्षा का प्रसार (Spread of Education):
मध्यकालीन यूरोप में शिक्षा पर धर्म का प्रभाव था। परंतु इटली में व्यापार के विकास के कारण शिक्षा धर्म के बंधनों से मुक्त थी। यहाँ पाठ्यक्रम में व्यावसायिक ज्ञान, भौगोलिक ज्ञान आदि को उपयुक्त स्थान प्राप्त था। परिणामस्वरूप विज्ञान तथा तर्क को बल मिला।

यहाँ मध्यकाल में यूरोप के सर्वप्रथम विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई थी। इनमें बोलोनिया, पादुआ, रोम एवं फ्लोरेंस विश्वविद्यालयों के नाम प्रसिद्ध हैं। इन्होंने इटली के लोगों में एक नई जागृति लाने में उल्लेखनीय योगदान दिया।

6. तुर्कों का कुंस्तुनतुनिया पर अधिकार (Occupation of Constantinople by the Turks):
1453 ई० में तुर्कों ने कुंस्तुनतुनिया पर अधिकार कर लिया। वहाँ के अधिकाँश यूनानी विद्वान्, कलाकार और व्यापारी भाग कर सबसे पहले इटली के नगरों में आए और यहाँ पर आश्रय लिया और कालांतर में वहीं बस गए।

ये विद्वान् अपने साथ प्राचीन यूनानी साहित्य की अनेक अनमोल पांडुलिपियाँ भी लाए। यूरोप के लोगों को इन ग्रंथों में समाए ज्ञान का कोई परिचय नहीं था। इसके अतिरिक्त इन विद्वानों में से अनेक इटली के विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में शिक्षक नियुक्त

प्रश्न 3.
पुनर्जागरण काल में साहित्य के क्षेत्र में हुए विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पुनर्जागरण काल में साहित्य के क्षेत्र में अद्वितीय विकास हुआ। इस काल में यूरोप में अनेक ऐसे विद्वान् हुए जिन्होंने साहित्य के विकास में चार चाँद लगा दिए। उनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. फ्रांसिस्को पेट्रार्क 1304-1374 ई० (Francesco Petrarch 1304-1374 CE):
फ्रांसिस्को पेट्रार्क को पुनर्जागरण का पिता (Father of Renaissance) कहा जाता है। उसका जन्म 1304 ई० में इटली के नगर फ्लोरेंस में हुआ था। उसने अपनी शिक्षा बोलोनिया (Bologna) विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी। उसने अपना अधिकाँश समय प्राचीन लातीनी ग्रंथों के अध्ययन में लगाया।

उसने संपूर्ण यूरोप में मानवतावादी विचारधारा को प्रोत्साहित किया। उसने लौरा (Laura) नामक एक स्त्री जिसे वह बेहद प्यार करता था पर अनेक कविताएँ लिखीं। साहित्य के क्षेत्र में उसके उल्लेखनीय योगदान के कारण उसे 1341 ई० में रोम में ‘राजकवि’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर अरुण भट्टाचार्जी के अनुसार, “वह मानवतावाद को प्रोत्साहित करने वाला प्रथम व्यक्ति था तथा उसका समकालीनों पर गहरा प्रभाव पड़ा।

2. दाँते अलिगहियरी 1265-1321 ई० (Dante Alighieri 1265-1321 CE):
दाँते अलिगहियरी की गणना इटली के महान् कवियों में की जाती है। उसका जन्म 1265 ई० में फ्लोरेंस के एक समृद्ध परिवार में हुआ था। यद्यपि उसका चर्च में पूर्ण विश्वास था किंतु उसने पादरियों के भ्रष्टाचारी जीवन की कटु आलोचना की। उसने अनेक पुस्तकों की रचना की।

इनमें सर्वाधिक उल्लेखनीय डिवाईन कॉमेडी (Divine Comedy) थी। इस काल्पनिक कथा में दाँते ने नर्क तथा स्वर्ग की यात्रा का वर्णन किया है। दाँते के उल्लेखनीय योगदान के कारण उसे ठीक ही प्राचीन एवं आधुनिक दुनिया के मध्य एक पुल माना जाता है। प्रसिद्ध इतिहासकार बी० के० गोखले का यह कहना ठीक है कि, “उसे (दाँते को) ठीक ही पुनर्जागरण साहित्य का सुबह का तारा कहा जाता है।”

3. जोवान्ने बोकासियो 1313-1375 ई० (Giovanni Boccaccio 1313-1375 CE):
जोवान्ने बोकासियो 14वीं शताब्दी का एक महान् साहित्यकार एवं मानवतावादी था। उसका जन्म 1313 ई० में पेरिस में हुआ था। किंतु उसने अपना जीवन फ्लोरेंस में व्यतीत किया था। वह फ्राँसिस्को पेट्रार्क का शिष्य था। वह एक प्रसिद्ध कहानीकार था।

उसकी सबसे महान् रचना का नाम डेकामेरोन (Decameron) था। इसे इतालवी भाषा में लिखा गया था तथा इसमें 100 कहानियों का वर्णन किया गया है। इसके प्रकाशन से उसकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। इन कहानियों में उसने सामंतवाद एवं समाज में फैले नैतिक भ्रष्टाचार का बाखूबी से वर्णन किया है। वास्तव में बोकासियो का गद्य क्षेत्र में वही स्थान है जो पेट्रार्क एवं दाँते का कविता के क्षेत्र में।

4. जोवान्ने पिको देल्ला मिरांदोला 1463-1494 ई० (Giovanni Pico della Mirandola 1463 1494 CE):
वह फ्लोरेंस का एक महान् मानवतावादी था। वह प्लेटो के विचारों से बहुत प्रभावित था। अत: उसने फ्लोरेंस में मार्सिलो फीसिनो (Marsilo Ficino) के साथ मिलकर प्लेटोनिक अकेडमी (Platonic Academy) की स्थापना की।

इसमें विभिन्न विद्वानों एवं लेखकों को गोष्ठियों के लिए आमंत्रित किया जाता था। उसने 1486 ई० में औरेशन ऑन दि डिगनिटी ऑफ़ मैन (Oration on the Dignity of Man) की रचना की। इसमें उसने मानव एवं वाद-विवाद के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।

5. निकोलो मैक्यिावेली 1469-1527 ई० (Niccolo Machiavelli 1469-1527 CE):
निकोलो मैक्यिावेली इटली का एक महान् विद्वान् एवं देशभक्त था। उसका जन्म 1469 ई० में फ्लोरेंस में हुआ था। उसने चर्च में प्रचलित बुराइयों की कटु आलोचना की। वह इटली की दयनीय राजनीतिक स्थिति को दूर कर उसके प्राचीन गौरव को पुनः स्थापित करना चाहता था।

उसने 1513 ई० में दि प्रिंस (The Prince) नामक एक ग्रंथ की रचना की। यह शीघ्र ही बहुत लोकप्रिय हुआ। इसका यूरोप की अनेक भाषाओं में अनुवाद किया गया था। इसमें उसने उस समय इटली में प्रचलित राजनीतिक दशा एवं राजाओं द्वारा प्रशासन में अपनाए जाने वाले नियमों का विस्तृत वर्णन किया है। इस कारण इस ग्रंथ को राजाओं की बाईबल (Bible of the Kings) कहा जाता है। यह ग्रंथ आने वाले शासकों के लिए भी एक प्रेरणा स्रोत रहा।

6. जेफ्री चॉसर 1340-1400 ई० (Geoffrey Chaucer 1340-1400 CE):
जेफ्री चॉसर की गणना इंग्लैंड के महान् कवियों में की जाती है। वास्तव में यह जेफ्री चॉसर ही था जिसे इंग्लैंड में पुनर्जागरण की स्थापना का श्रेय दिया जाता है। उसने 1390 ई० में दि कैंटरबरी टेल्स (The Canterbury Tales) की रचना की। इससे हमें मध्यकालीन इंग्लैंड के समाज की महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।

इस ग्रंथ के अध्ययन से जेफ्री चॉसर की प्रतिभा का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। यह ग्रंथ शीघ्र ही विश्व में बहुत लोकप्रिय हुआ। प्रसिद्ध इतिहासकारों डॉक्टर एफ० सी० कौल एवं डॉक्टर एच० जी० वारेन के अनुसार, “चॉसर का अंग्रेजी भाषा के लिए वही योगदान था जो कि इतालवी भाषा के लिए दाँते एवं पेट्रार्क का था।”

7. सर टॉमस मोर 1478-1533 ई० (Sir Thomas More 1478-1533 CE):
सर टॉमस मोर इंग्लैंड का एक महान् लेखक था। वह इंग्लैंड के जान कोलेट (John Colet) एवं हालैंड के डेसीडेरियस इरेस्मस (Desiderius Erasmus) से बहुत प्रभावित था। उसकी रचना यूटोपिया (Utopia) जिसका प्रकाशन 1516 ई० में किया गया था ने एक तहलका मचा दिया।

इसमें उसने समकालीन समाज तथा शासन में प्रचलित बुराइयों की कटु आलोचना की तथा एक आदर्श समाज की तस्वीर प्रस्तुत की है। इसे लेखक ने लातीनी भाषा में लिखा था। बाद में इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद किया गया।

8. डेसीडेरियस इरेस्मस 1466-1536 ई० (Desiderius Erasmus 1466-1536 CE):
डेसीडेरियस इरेस्मस हालैंड का सर्वाधिक श्रेष्ठ साहित्यकार था। उसने यूनानी एवं लातीनी भाषाओं का गहन अध्ययन किया था। उसने अनेक पुस्तकों की रचना की। इनमें से सर्वाधिक प्रसिद्ध दि प्रेज़ ऑफ़ फॉली (The Praise of Folly) थी।

इसका प्रकाशन 1509 ई० में हुआ था। इसमें उसने चर्च में फैले भ्रष्टाचार का विस्तृत वर्णन किया है। उसने पादरियों के विलासी जीवन की कटु आलोचना की है। इरेस्मस में व्यंग्य कसने की अद्भुत योग्यता थी।

प्रश्न 4.
पुनर्जागरण काल में कला के क्षेत्र में हुए विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पुनर्जागरण काल में कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई। मध्यकाल में कला का अपना स्वतंत्र स्थान नहीं था। इसमें मौलिकता एवं सुंदरता का अभाव था। पुनर्जागरण काल में कला धार्मिक बँधनों से मुक्त हो गई तथा यह यथार्थवादी (realistic) बन गई। वास्तव में कला ने पुनर्जागरण काल में एक नए युग में प्रवेश किया।

1. चित्रकला (Painting):
मध्यकाल में चित्रकला धर्म की जंजीरों से जकड़ी हुई थी। उस समय केवल ईसाई धर्म से संबंधित चित्र ही बनाए जाते थे। ये चित्र बिल्कुल सादा होते थे। इनमें केवल कुछ निश्चित रंगों का ही प्रयोग किया जाता था। इस प्रकार चित्रकला का क्षेत्र सीमित था। पुनर्जागरण काल में चित्रकला के क्षेत्र में एक नई क्राँति आई। इस काल में चित्रकारों ने धार्मिक नियमों का त्याग कर दिया।

उन्होंने मानव जीवन एवं प्राकृतिक दृश्यों से संबंधित अत्यंत सुंदर चित्र बनाए। अब ये गिरजाघरों के लिए नहीं अपितु व्यक्तिगत भवनों की सजावट के लिए बनाए जाने लगे। इनमें मानवतावाद एवं धर्मनिरपेक्षता की झलक स्पष्ट दिखाई पड़ती है। इन चित्रों को पूर्व की तुलना में अधिक रंगीन एवं चटख बनाया गया। अब चित्रकारी के लिए तेल रंगों (oil painting) का प्रयोग किया जाने लगा। ये रंग पक्के होते थे। अब त्रि-आयामी

(1) जोटो 1267-1337 ई० (Giotto 1267-1337 CE):
जोटो इटली का एक महान् चित्रकार था। उसने चित्रकला को एक नई दिशा प्रदान करने में उल्लेखनीय योगदान दिया। उसने अत्यंत सुंदर प्राकृतिक चित्र बनाए। ये चित्र देखने में बिल्कुल सजीव लगते थे। उसका सर्वाधिक प्रसिद्ध चित्र असिसि (Assis) था। इसमें बाल ईसा मसीह को दिखाया गया है।

उसने चर्च की दीवारों पर भी अनेक चित्र बनाए। उसने चित्रों की पृष्ठभूमि के लिए कुछ नए रंगों का प्रयोग किया। उसके चित्रों ने आने वाले चित्रकारों को एक नई प्रेरणा दी।

(2) लियोनार्डो दा विंसी 1452-1519 ई० (Leonardo da Vinci 1452-1519 CE):
लियोनार्डो दा विंसी बहुमुखी प्रतिभा का व्यक्ति था। वह विश्व में एक चित्रकार के रूप में अधिक लोकप्रिय हुआ। उसका जन्म इटली के फ्लोरेंस नगर में 1452 ई० में हुआ था। उसने अपने जीवनकाल में अनेक चित्र बनाए।

इन चित्रों को देख कर उसकी प्रतिभा का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। उसके बनाए चित्रों मोना लीसा (Mona Lisa) एवं दि लास्ट सपर (The Last Supper) ने विश्व ख्याति प्राप्त की।

ये चित्र देखने में बिल्कुल सजीव लगते हैं। मोना लीसा एक साधारण स्त्री का चित्र है। इस चित्र को बनाने में लियोनार्डो को चार वर्ष लगे। इस चित्र में मोना लीसा की मुस्कान इतनी मधुर है कि इसे देखने वाला व्यक्ति आज भी चकित रह जाता है। प्रसिद्ध इतिहासकार बी० के० गोखले के शब्दों में, “मोना लीसा एक ऐसा चित्र है जिससे उत्कृष्ठ चित्र आज तक नहीं बनाया जा सका।”

दि लास्ट सपर नामक चित्र मिलान स्थित सेंट मेरिया के गिरजाघर की दीवार पर बनाया गया है। इसमें ईसा मसीह को अपने साथियों के साथ एक मेज़ पर अपना अंतिम भोजन करते हुए दिखाया गया है। यह चित्र उच्च कोटि की मानवतावादी भावनाओं को प्रकट करता है। निस्संदेह लियोनार्डो दा विंसी पुनर्जागरण काल का सबसे महान् चित्रकार था। प्रसिद्ध इतिहासकार सी०.जे० एच० हेज़ के अनुसार, “लियोनार्डो ने अन्य कलाकारों के मुकाबले अपने युग को सबसे अधिक प्रभावित किया।”

(3) अल्बर्ट ड्यूरर 1471-1528 ई० (Albrecht Durer 1471-1528 CE):
अल्बर्ट ड्यूरर की गणना जर्मनी के महान् चित्रकारों में की जाती है। उसे बचपन से ही चित्रकारी में विशेष रुचि थी। 1494 ई० में अपनी इटली यात्रा के दौरान वह वहाँ के चित्रकारों से बहुत प्रभावित हुआ।

उसने प्रकृति से एवं मानव से संबंधित अनेक चित्र बनाए। उसके बनाए चित्रों में 1508 ई० में बनाया गया प्रार्थना रत हस्त (Praying Hands) बहुत लोकप्रिय हुआ। इससे 16वीं शताब्दी की इतालवी संस्कृति का आभास होता है।

(4) माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती 1475-1564 ई० (Michael Angelo Buonarroti 1475-1564 CE):
माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती इटली का एक अन्य प्रतिभाशाली व्यक्ति था। वह एक श्रेष्ठ चित्रकार, प्रवीण मूर्तिकार, कुशल भवन निर्माता एवं उच्च कोटि का कवि था। वास्तव में वह प्रत्येक क्षेत्र में असाधारण प्रदर्शन करने की योग्यता रखता था। उसका नाम रोम के

1. सिस्टीन चैपल (Sistine Chapel) की भीतरी छत पर बनाए 145 चित्रों के कारण सदैव के लिए अमर हो गया है। इन चित्रों से माईकल ऐंजेलो के कौशल एवं प्रतिभा का प्रमाण मिलता है। इसी चर्च की दीवार पर माईकल ऐंजेलो ने लास्ट जजमेंट (Last Judgement) नामक एक उच्च कोटि का चित्र को बनाया।

2. भवन निर्माण कला (Architecture):
पुनर्जागरण काल में भवन निर्माण कला के क्षेत्र में भी एक नयी क्राँति आई। इस काल में मध्यकाल में प्रचलित गौथिक शैली को छोड दिया गया। इस काल में भवन निर्माण कला की शास्त्रीय शैली (classical style) को अपनाया गया। इस शैली में डिज़ाइन, सजावट, विशालता एवं भव्यता पर विशेष बल दिया गया। इस काल में शिल्पकारों एवं चित्रकारों ने भवनों को गुंबदों, चित्रों एवं मूर्तियों से सुसज्जित किया।

(1) फिलिप्पो ब्रूनेलेशी 1377-1446 ई० (Philippo Brunelleschi 1377-1446 CE):
फिलिप्पो ब्रूनेलेशी फ्लोरेंस का एक प्रसिद्ध भवन निर्माता था। वह प्रथम ऐसा व्यक्ति था जिसने गौथिक शैली की अपेक्षा शास्त्रीय शैली (classical style) को अपनाया। उसने भवन निर्माण कला के संबंध में काफी गहन अध्ययन किया था।

उसने 1436 ई० में फ्लोरेंस के कथीड्रल में दि ड्यूमा नामक गुंबद तैयार किया। इसने उसका नाम सदैव के लिए अमर कर दिया। यह गुंबद बहुत भव्य एवं विशाल था। इससे आने वाले भवन निर्माताओं को एक नई प्रेरणा मिली।

(2) दोनातल्लो 1386-1466 ई० (Donatello 1386-1466 CE):
दोनातल्लो इटली का एक महान् मूर्तिकार था। उसने 1416 ई० में मूर्तिकला के क्षेत्र में एक नई शैली का विकास किया। उसने यूनानी एवं रोमन मूर्तियों का गहन अध्ययन किया था। उसके द्वारा निर्मित मूर्तियों में से फ्लोरेंस में बनाई गई यंग ऐंजलस (Young Angels) नामक मूर्ति, पादुआ के जनरल गाटामेलाटा (Gattamelata) एवं वेनिस के सेंट मार्क (St. Mark) नामक मूर्तियों के नाम उल्लेखनीय हैं। ये मूर्तियाँ दोनातल्लो की दक्षता का प्रमाण देती हैं।

(3)माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती 1475-1564 ई० (Michael Angelo Buonarroti 1475-1564CE):
इटली के माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती न केवल एक महान् चित्रकार थे अपितु वह अपनी मूर्तिकला एवं भवन निर्माण कला के लिए भी प्रसिद्ध थे। माईकल ऐंजेलो ने अनेक भव्य एवं सुंदर मूर्तियों का निर्माण किया था। इनमें दो मूर्तियाँ दि पाइटा (The Pieta) एवं डेविड (David) के नाम उल्लेखनीय हैं।

इसमें मेरी को ईसा मसीह के मृतक शरीर को गोद में लिए हुए दिखाया गया है। उसकी दूसरी मूर्ति डेविड के नाम से जानी जाती है इन दोनों मूर्तियों को पुनर्जागरण काल की सर्वश्रेष्ठ मूर्तियाँ माना जाता है। इनके अतिरिक्त माईकल ऐंजेलो ने सेंट पीटर गिरजाघर के गुंबद का भव्य डिज़ाइन बनाया।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ

प्रश्न 5.
पुनर्जागरण काल में विज्ञान के क्षेत्र में क्या विकास हुआ?
उत्तर:
पुनर्जागरण काल में विज्ञान के क्षेत्र में अद्वितीय विकास हुआ। मध्यकाल में लोगों के जीवन पर चर्च का जबरदस्त प्रभाव था। इस काल में मानव जीवन का उद्देश्य परमात्मा को पाना एवं परलोक के बारे सोचना था। अत: इस काल में लोगों की विज्ञान में कोई दिलचस्पी नहीं थी। पुनर्जागरण काल में लोगों के दृष्टिकोण में भारी परिवर्तन आ गया।

वे प्रत्येक वस्तु को तर्क की कसौटी पर परखने लगे। इससे नवीन खोजों का मार्ग प्रशस्त हुआ। लोगों को वास्तविक ज्ञान की जानकारी देने के उद्देश्य से 1662 ई० में लंदन में रॉयल सोसाइटी (Royal Society) तथा 1666 ई० में फ्राँस में पेरिस अकादमी (Paris Academy) की स्थापना की गई। संक्षेप में वैज्ञानिक खोजों ने लोगों के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिए।

1. निकोलस कोपरनिकस 1473-1543 ई० (Nicholas Copernicus 1473-1543 CE):
निकोलस कोपरनिकस पोलैंड का एक महान् वैज्ञानिक था। उसने खगोल विज्ञान (astronomy) के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान दिया। उसने उस समय प्रचलित इस सिद्धांत को असत्य सिद्ध किया कि पृथ्वी सभी ग्रहों का केंद्र है तथा सूर्य एवं अन्य ग्रह इसके इर्द-गिर्द चक्कर काटते हैं।

कोपरनिकस ने सिद्ध किया कि पृथ्वी गोल है तथा यह अन्य ग्रहों की तरह सर्य की परिक्रमा करती है। चर्च ने कोपरनिकस के इस सिद्धांत की कट आलोचना की तथा इसे बाईबल की शिक्षा के विरुद्ध माना। यही कारण था कि कोपरनिकस के विचारों संबंधी पस्तक दि रिवल्यशनिबस (De Revolutionibus) का प्रकाशन उसकी मृत्यु के पश्चात् हुआ। निस्संदेह कोपरनिकस के इस सिद्धांत ने विज्ञान के क्षेत्र में एक नए युग का सूत्रपात किया।

2. अंड्रीयस वेसेलियस 1514-1564 ई० (Andreas Vesalius 1514-1564 CE):
अंड्रीयस वेसेलियस इटली के पादुआ विश्वविद्यालय में आयुर्विज्ञान का प्राध्यापक था। वह प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने सूक्ष्म परीक्षण के लिए मनुष्य के शरीर की चीर-फाड़ (dissection) की। निस्संदेह यह एक महान् वैज्ञानिक उपलब्धि थी। इससे आधुनिक शरीर-क्रिया विज्ञान (physiology) का आरंभ हुआ। उसने 1543 ई० में ऑन एनॉटमी (On Anatomy) नामक एक बहुमूल्य ग्रंथ की रचना की।

3. गैलिलियो गैलिली 1564-1642 ई० (Galileo Galilei 1564-1642 CE):
गैलिलियो गैलिली इटली का एक महान् वैज्ञानिक था। उसने कोपरनिकस के इस सिद्धांत का समर्थन किया कि सूर्य ही ब्रह्मांड का केंद्र है तथा पृथ्वी एवं अन्य ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं। उसने 1609 ई० में दूरबीन (Telescope) तैयार की जिससे सूर्य तथा चाँद आदि ग्रहों को देखा जा सकता था।

निस्संदेह यह एक महान् उपलब्धि थी। गैलिलियो ने दि मोशन (The Motion) नामक एक बहुमूल्य ग्रंथ की रचना की। इसमें उसने यह सिद्ध किया कि भारी एवं हल्की वस्तुएँ एक ही गति से पृथ्वी पर गिरती हैं। गैलिलियो को अपने विचारों के लिए चर्च की कटु आलोचना का शिकार होना पड़ा।

4. जोहानेस कैप्लर 1571-1630 (Johannes Kepler 1571-1630 CE):
जोहानेस कैप्लर जर्मनी का एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक था। वह जर्मन विश्वविद्यालय में खगोल विज्ञान का प्रोफैसर था। उसने कॉस्मोग्राफ़िकल मिस्ट्री (Cosmographical Mystery) नामक ग्रंथ की रचना की। इसमें उसने खगोलीय रहस्य के बारे में विस्तृत प्रकाश डाला है। इसमें उसने कोपरनिकस के सिद्धांत को लोकप्रिय बनाया। इसमें उसने यह सिद्ध किया कि सारे ग्रह सूर्य के चारों ओर वृत्ताकार (circles) के रूप में नहीं अपितु अंडाकार गति से घूमते हैं।

5. विलियम हार्वे 1578-1657 ई० (William Harvey 1578-1657 CE):
विलियम हार्वे इंग्लैंड का एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक था। उसने 1628 ई० में यह सिद्ध किया कि रक्त हृदय से चलकर धमनियों तथा नाड़ियों से होता हुआ पुनः वापस हृदय में पहुँच जाता है। इसे रुधिर परिसंचरण (Blood circulation) कहा जाता है। निस्संदेह चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में यह एक क्रांतिकारी देन थी।

6. आइज़क न्यूटन 1642-1717 ई० (Issac Newton 1642-1717 CE):
आइज़क न्यूटन इंग्लैंड का एक महान् वैज्ञानिक था। उसने 1687 ई० में प्रिंसिपिया मैथेमेटिका (Principia Mathematica) नामक प्रसिद्ध ग्रंथ का प्रकाशन किया। इस | विज्ञान के अनेक नए सिद्धांतों की खोज का वर्णन किया है। इनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत (Law of Gravitation) था। इसमें उसने सिद्ध किया कि पृथ्वी की आकर्षण शक्ति के कारण प्रत्येक वस्तु ऊपर से नीचे की ओर खींचती है।

प्रश्न 6.
पुनर्जागरण के यूरोपीय समाज पर पड़े विभिन्न प्रभावों पर प्रकाश डालें।
अथवा
पुनर्जागरण के सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक तथा राजनीतिक प्रभावों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पुनर्जागरण को विश्व इतिहास में एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण आंदोलन माना जाता है। इस आंदोलन के कारण लोगों का सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक तथा राजनीतिक जीवन बहुत प्रभावित हुआ। इन प्रभावों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

I. सामाजिक तथा धार्मिक प्रभाव

1. जिज्ञासा की भावना (Spirit of Inquiry):
पुनर्जागरण का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रभाव यह पड़ा कि लोगों में जिज्ञासा की भावना उत्पन्न हुई तथा उनका दृष्टिकोण वैज्ञानिक हो गया। अब उन्होंने शताब्दियों से प्रचलित अंध विश्वासों तथा रीति-रिवाजों को त्याग दिया। वे अब प्रत्येक विचार को तर्क की कसौटी पर परखने लगे। उनमें अधिक-से-अधिक ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा पैदा हुई। परिणामस्वरूप नए-नए आविष्कार हुए जिससे लोगों की जीवन पद्धति परिवर्तित हो गई।

2. मानवतावाद की भावना (Spirit of Humanism):
मानवतावाद की भावना का उत्पन्न होना पुनर्जागरण की एक अन्य महत्त्वपूर्ण देन है। इस काल के साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में मनुष्य से संबंधित विषयों को प्रमुख स्थान दिया तथा मनुष्य के कल्याण पर बल दिया। उन्होंने धर्म द्वारा मनुष्य पर लगाए गए अनुचित प्रतिबंधों की घोर आलोचना की। उन्होंने मनुष्य की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन किया। पेट्रार्क, दाँते तथा इरेस्मस उस काल के प्रसिद्ध मानवतावादी थे।

3. स्त्रियों की स्थिति में सुधार (Uplift of Women):
पुनर्जागरण से पूर्व स्त्रियों की स्थिति बहुत बदतर थी। उन्हें समाज में कोई सम्मानजनक स्थान प्राप्त नहीं था। पुनर्जागरण काल में स्त्रियों की स्थिति में कुछ सुधार आया तथा उन्हें पुरुषों के समान स्थान प्राप्त हुआ। परिणामस्वरूप उनमें जागृति आई। अब वे शिक्षा ग्रहण करने लगीं। साहित्य के अध्ययन से उनका दृष्टिकोण विशाल हो गया।

4. नैतिकता का पतन (Decline of Morality) :
पुनर्जागरण का समाज पर एक बुरा प्रभाव यह पड़ा कि लोगों की नैतिकता का पतन हो गया। पुनर्जागरण से पूर्व लोग प्रायः धार्मिक होते थे। परंतु अब वे भौतिकवादी बन गए। इससे लोगों के पास काफी धन एकत्र हो गया तथा वे विलासी जीवन बिताने लगे। इस प्रभाव से पादरी भी अछूते न रहे तथा वे भी भ्रष्ट एवं चरित्रहीन हो गए।

5. चर्च के महत्त्व में कमी (Decline in the Importance of Church):
पुनर्जागरण के कारण लोगों का दृष्टिकोण विशाल हो गया था। अब वे आँखें मूंद कर चर्च पर विश्वास नहीं करते थे। इस कारण चर्च की प्रतिष्ठा को चोट पहुँची। विज्ञान में हुए नए-नए आविष्कारों के कारण लोगों में तर्कशीलता की भावना पैदा हुई। अब वे खोखले रीति-रिवाजों तथा अंध-विश्वासों का अनुसरण करने को तैयार न रहे। परिणामस्वरूप चर्च की बुराइयाँ लोगों के सामने आने लगीं तथा समाज में चर्च का महत्त्व कम होने लगा।

II. सांस्कृतिक प्रभाव

1. साहित्य का विकास (Development of Literature):
पुनर्जागरण के कारण साहित्य के क्षेत्र में आश्चर्य विकास हआ। इस विकास के परिणामस्वरूप अनेक नई पस्तकों की रचना हई। इतालवी. फ्राँसीसी. अंग्रेजी, स्पेनी, जर्मन, डच आदि भाषाओं में अनेकों विद्वानों ने अपनी रचनाएँ लिखीं। इस काल के साहित्यकारों में दाँते, पेट्रार्क, बोकासियो, मैक्यिावेली, मिरांदोला, जेफ्री चॉसर, टॉमस मोर तथा इरेस्मस आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इन्होंने अपनी रचनाओं में मानवतावादी विचारों का प्रसार किया तथा साहित्य के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

2. शिक्षा का विकास (Progress of Education):
पुनर्जागरण से पूर्व शिक्षा केवल चर्च द्वारा ही प्रदान की जाती थी। पुनर्जागरण के कारण शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। विभिन्न देशों में नए-नए स्कूलों, कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों की स्थापना होने लगी। अब लोग चर्च से शिक्षा ग्रहण करने की अपेक्षा इन नए शिक्षण संस्थानों में जाने लगे। परिणामस्वरूप आधुनिक शिक्षा का विकास होने लगा। छापेखाने का आविष्कार हो जाने से लोगों को अब शीघ्र तथा सस्ती पुस्तकें प्राप्त होने लगीं।

3. ललित कलाओं का विकास (Development of Fine Arts):
पुनर्जागरण काल में चित्रकला के क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास हुआ। इस काल के चित्रकारों ने मानव जीवन से संबंधित चित्र बनाने आरंभ कर दिये थे तथा इन चित्रों में धर्म-निरपेक्षता की झलक स्पष्ट दिखाई देती थी। इस काल में चित्रों के लिए प्रयोग होने वाले रंगों में भी परिवर्तन आया।

लियोनार्डो द विंसी, माईकल ऐंजेलो, राफेल, ब्रूनेलेशी, दोनातल्लो आदि ने चित्रकला में अपना विशेष योगदान दिया। इस काल में मूर्तिकला के क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास हुआ। इस काल के मूर्तिकारों में लोरेंजो जिबर्टी, दोनातल्लो, माईकल ऐंजेलो आदि के नाम वर्णनीय हैं।

4. वैज्ञानिक आविष्कार (Scientific Inventions):
पुनर्जागरण काल में लोगों का दृष्टिकोण वैज्ञानिक हो गया था। परिणामस्वरूप नए-नए वैज्ञानिक आविष्कार हुए। कोपरनिकस, केप्लर, गैलिलियो आदि ने अपनी खोजों से यह सिद्ध किया कि सूर्य ब्रह्मांड का केंद्र है तथा शेष सभी ग्रह इसके गिर्द चक्कर लगाते हैं। इससे पूर्व यह धारणा थी कि सभी ग्रह पृथ्वी के गिर्द घूमते हैं। न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत पेश किया। छापाखाना, गोला बारूद तथा कंपास आदि के आविष्कारों ने भी मानव जीवन पर क्रांतिकारी प्रभाव डाले।

5. भौगोलिक खोजें (Geographical Discoveries):
पुनर्जागरण काल में हुई भौगोलिक खोजों से एक नए युग का प्रादुर्भाव हुआ। इस काल में अनेक देशों के नाविकों ने समुद्री यात्राएँ की तथा नए-नए समुद्री मार्गों का पता लगाया। कोलंबस, वास्को-डी-गामा, मैगलन, कैबट, लैबरोडोर इस काल के प्रसिद्ध नाविक थे। इन्होंने अमरीका, भारत, कनाडा, अफ्रीका तथा चीन आदि देशों तक पहुँचने के लिए नए-नए समुद्री मार्गों की खोज की। इन भौगोलिक खोजों के कारण यूरोपीय देशों के व्यापार में बड़ी वृद्धि हुई तथा उपनिवेशवाद को प्रोत्साहन मिला।

II. आर्थिक प्रभाव

1. व्यापार तथा वाणिज्य का विकास (Development of Trade and Commerce):
पुनर्जागरण से पूर्व लोग धार्मिक विचारों में विश्वास रखते थे परंतु अब वे तर्कशील तथा भौतिकवादी बन गए थे। वे अपना परलोक सुधारने की अपेक्षा वर्तमान जीवन को सुखी तथा आनंदपूर्ण बनाने की ओर ज्यादा ध्यान देने लगे। उनकी रुचि अब धन-दौलत इकट्ठी करने की हो गई। उनकी यह प्रवृत्ति व्यापार तथा वाणिज्य के विकास में बड़ी सहायक सिद्ध हुई।

2. उद्योगों का विकास (Development of Industry):
पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप पैदा हुए वातावरण के कारण उद्योगों के क्षेत्र में भी पर्याप्त विकास हुआ। अमीर वर्ग अपने धन का प्रयोग करके और अधिक धन कमाना चाहता था। उनकी इसी लालसा ने उद्योगों के विकास को प्रोत्साहन दिया। उद्योगों का विकास होने के परिणामस्वरूप पूँजीवाद का जन्म हुआ।

3. उपनिवेशवाद को प्रोत्साहन (Impetus to Colonialism):
पुनर्जागरण काल में उद्योगों का विकास होने के कारण उद्योगों में अधिक मात्रा में माल बनने लगा। उद्योगपति अपना माल बेच कर अधिक-से-अधिक पैसा कमाना चाहते थे। इस माल को बेचने के लिए उन्हें मंडियों की आवश्यकता थी। अत: विभिन्न देशों के सम्राटों ने अपने नाविकों को दूर-दूर के स्थानों पर जाने के लिए नए समुद्री मार्गों को खोजने के लिए प्रेरित किया। परिणामस्वरूप इन नाविकों ने नए समुद्री मार्गों की खोज की तथा अमरीका, एशिया तथा अफ्रीका आदि में पहुँचने में सफल हुए। वहाँ पर इन देशों ने अपने उपनिवेश स्थापित कर लिए।

IV. राजनीतिक प्रभाव

1. प्रबल राजतंत्र का उदय (Rise of Strong Monarchy):
पुनर्जागरण काल में हुए साहित्य के विकास के कारण लोगों के राजनीतिक विचारों में बड़ा परिवर्तन आया। प्राचीन रोमन साहित्य के अध्ययन से यूरोपीय शासकों को प्राचीन रोमन साम्राज्य की शक्ति तथा शानो-शौकत का पता चला तो उनके मन में भी शक्तिशाली राज्य स्थापित करने का विचार आया।

उनमें यह विचार प्रचलित हो गया था कि नैतिकता के मूल्यों की परवाह किए बिना उन्हें उचित अनुचित ढंग अपना कर अपने राज्यों का विस्तार करना चाहिए। गोला-बारूद का आविष्कार हो जाने के कारण सामंतों का पतन हो चुका था तथा सम्राटों की स्थिति मज़बूत हो गई थी। अब तक चर्च भी शक्तिहीन हो गया था। इन सभी परिस्थितियों ने शक्तिशाली राजतंत्रों के उत्थान को संभव बना दिया।

2. सामंतवाद का पतन (Downfall of Feudalism) :
मध्यकाल में सामंतवाद का बोल-बाला था। सामंत बहुत ही शक्तिशाली थे तथा सम्राट सेना के लिए उन पर ही निर्भर करते थे। परंतु गोला-बारूद के आविष्कार के परिणामस्वरूप स्थिति में परिवर्तन आ गया। इस कारण सम्राट् शक्तिशाली हो गए तथा उनकी सामंतों पर निर्भरता समाप्त हो गई। अब सम्राट विद्रोही सामंतों को कुचलने में सक्षम हो गए।

3. युद्ध के नवीन ढंग (New Mode of Warfare):
मध्यकाल में प्रायः युद्ध में तलवारों, नेजों तथा भालों आदि का ही प्रयोग किया जाता था। परंतु पुनर्जागरण काल में बारूद का आविष्कार हो जाने के कारण युद्ध के ढंग में युद्धों में तोपखाने का प्रयोग होने लगा। इसी शक्तिशाली सेना की सहायता से विभिन्न यूरोपीय सम्राट विभिन्न स्थानों पर विजय प्राप्त करके अपने उपनिवेश स्थापित करने में सफल रहे।

प्रश्न 7.
धर्म सुधार आंदोलन से आपका क्या अभिप्राय है? इसके कारणों तथा उद्देश्यों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
धर्म-सुधार आंदोलन पुनर्जागरण के बाद आधुनिक युग की दूसरी महानतम् घटना मानी जाती है। इस आंदोलन का उदय पुनर्जागरण की कोख से ही हुआ। यह आंदोलन वास्तव में पोप तथा चर्च के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया थी जो 16वीं शताब्दी में यूरोप के देशों में हुई।

एक अन्य इतिहासकार फर्डिनांड शेविल के अनुसार, “वास्तव में यह एक प्रकार का दोहरा आंदोलन था जिसका उद्देश्य एक ओर ईसाइयों के जीवन का नैतिक उत्थान करना था तथा दूसरी ओर पोप की सत्ता को धार्मिक क्षेत्र में कम करना था।”

I. धर्म सुधार आंदोलन से अभिप्राय

16वीं शताब्दी से पूर्व चर्च ग्रीक आर्थोडॉक्स तथा रोमन कैथोलिक नामक दो भागों में बँटा हुआ था। ग्रीक आर्थोडॉक्स का पूर्वी यूरोप तथा रोमन कैथोलिक का पश्चिमी यूरोप में प्रभुत्व था। ग्रीक आर्थोडॉक्स चर्च का केंद्र कुंस्तुनतुनिया था जबकि रोमन कैथोलिक चर्च का केंद्र रोम था। 1453 ई० में तुर्कों ने कुंस्तुनतुनिया सहित पूर्वी यूरोप के बहुत बड़े भाग पर अधिकार कर लिया था।

परिणामस्वरूप आर्थोडॉक्स चर्च का महत्त्व कम हो गया। परंतु रोमन कैथोलिक का महत्त्व अभी भी बना हुआ था। वस्तुतः धर्म-सुधार आंदोलन रोम कैथोलिक चर्च तथा इसको संचालित करने वाले पोप के विरुद्ध ही चलाया गया था।

कैथोलिक चर्च एक शक्ति संपन्न संस्था थी। इसके अनुयायियों पर इसका पूर्ण नियंत्रण था। जन्म से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति की सभी रस्में चर्च के नियमों के अनुसार ही होती थीं। कोई भी व्यक्ति चर्च के नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकता था। पोप की शक्ति के आगे तो सम्राटों की शक्ति भी फीकी पड़ जाती थी। सम्राट् तथा उसकी प्रजा चर्च के अधीन ही होते थे।

चर्च की अपनी सरकार होती थी तथा उसने अपने कानून, अपने न्यायालय एवं अपनी ही पुलिस स्थापित की होती थी। प्रत्येक व्यक्ति को चर्च को कर देना पड़ता था।

सम्राट अपने राज्य के कानून चर्च पर लागू नहीं कर सकता था। यदि कोई चर्च के नियमों का उल्लंघन करता था तो उसे धर्म से निष्कासित कर दिया जाता था। यदि कोई सम्राट् चर्च के विरुद्ध कार्य करता था तो पोप उसे सिंहासन से उतार सकता था। इस प्रकार पोप असीम शक्तियों का स्वामी था। जॉन मैरीमेन के अनुसार, “चर्च एक अर्ध-स्वतंत्र संस्था थी जो लोगों के राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक जीवन के प्रत्येक पक्ष में हस्तक्षेप करता था।”

पोप धर्म का मुखिया तो था ही, इसके साथ-साथ वह राजनीतिक मामलों में भी हस्तक्षेप करता रहता था। परिणामस्वरूप राजाओं के साथ उसके संबंध सुखद नहीं रहते थे। उनमें व्यापक तनाव रहता था। सम्राट् पोप के प्रभाव से मुक्त होने के यत्न करते रहते थे। धीरे-धीरे चर्च में कई दोष आ गए तथा वहाँ पाप के अड्डे बन गए।

पादरी चरित्रहीन हो गए तथा विलासी जीवन बिताने लगे। इस कारण लोगों में रोष उत्पन्न हुआ तथा उन्होंने चर्च के विरुद्ध आवाज़ उठानी आरंभ कर दी। परिणामस्वरूप 16वीं शताब्दी में धर्म-सुधार आंदोलन आरंभ हुआ जिसे सम्राटों तथा जनता ने अपना पूर्ण सहयोग दिया।

II. धर्म-सुधार आंदोलन के कारण

धर्म-सुधार आंदोलन के उदय तथा विकास में जिन कारणों ने सहायता पहुँचाई उनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. चर्च की बुराइयाँ (Evils of the Church):
धर्म-सुधार आंदोलन का मुख्य कारण चर्च में व्याप्त बुराइयाँ थीं जिनके कारण लगभग पिछले 200 वर्षों से चर्च बदनाम हो रहा था। चर्च के संगठन में भ्रष्टाचार तथा दुराचार का बोलबाला था। उच्च अधिकारी से लेकर पादरी तक सभी का चरित्र पतित हो चुका था। चर्च के अधिकारी अपने कर्तव्यों की ओर कोई ध्यान नहीं देते थे तथा बड़े लालची हो गए थे।

वे विलासी जीवन व्यतीत करने लगे थे तथा हर समय रंगरलियों में डूबे रहते थे। कई पादरियों ने शराब पीना, जुआ खेलना तथा शिकार खेलना आरंभ कर दिया था। पादरियों के इन्हीं अनैतिक कार्यों के कारण जन-साधारण चर्च के विरुद्ध हो गया। प्रसिद्ध इतिहासकार बी० के० गोखले के अनुसार, “चर्च के नैतिक पतन से लोगों का विश्वास डगमगा गया।”

2. पोप तथा पादरियों के विशेषाधिकार (Privileges of the Pope and the Priests):
यूरोप की सामाजिक व्यवस्था के अनुसार पादरियों को विशेषाधिकार प्राप्त थे। देश का कोई भी कानून उन पर लागू नहीं होता था। कोई अपराध करने पर भी उनके ऊपर किसी न्यायालय में मुकद्दमा नहीं चलाया जा सकता था। मध्यकाल में पोप बिल्कुल निरंकुश होते थे तथा उनकी शक्ति पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता था।

वे अपनी शक्तियों का दुरप्रयोग करने लगे थे। इस काल के पोपों ने धन इकट्ठा करने के साथ भोग-विलास का जीवन भी आरंभ कर दिया था। धर्म के सबसे बड़े व्यक्ति के इस प्रकार के चरित्र से लोगों के मन को बड़ी ठेस पहुँची। इसने धर्म-सुधार आंदोलन का आधार तैयार किया।

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3. चर्च की विशाल धन-संपत्ति (Vast Wealth of the Church) :
यूरोप के विभिन्न देशों में चर्च ने विशाल संपत्ति इकट्ठी कर ली थी। इसी प्रकार फ्राँस तथा अन्य देशों में भी चर्च ने काफी संपत्ति इकट्ठी कर ली थी। चर्च की संपत्ति बढ़ने के कई साधन थे जैसे चर्च को दान दी गई भूमि। चर्च किसानों से उनके उत्पादन का दसवाँ भाग कर के रूप में लेता था।

यह कर भी उसकी आय का एक बड़ा साधन था। सम्राट् चर्च की संपत्ति पर कर नहीं लगा सकते थे। इस विशाल संपत्ति के कारण पादरी भ्रष्ट हो गये थे। उन्होंने धार्मिक कार्यों तथा निर्धनों की सहायता करने की अपेक्षा स्वार्थी हितों की पूर्ति करनी आरंभ कर दी थी। इस कारण लोग चर्च के विरुद्ध हो गए।

4. राजनीतिक क्षेत्र में पोप का हस्तक्षेप (Pope’s Interference in the Political Affairs):
पोप केवल धार्मिक दृष्टि से ही निरंकुश शासक नहीं था, अपितु राजनीतिक क्षेत्र में भी उसका पूरा प्रभाव था। वह स्वयं को पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि समझता था। ईसाई राज्यों पर अपना कड़ा नियंत्रण रखने के उद्देश्य से उसने अपने एजेंट नियुक्त किए हुए थे।

ये एजेंट पोप के आदेशों का पालन करवाने का कार्य करते थे। यदि कोई सम्राट् पोप के आदेशों के विपरीत कार्य करता था तो पोप उसे दंड दे सकता था। वह सम्राट को पदच्युत कर सकता था।

चर्च की संपत्ति के कारण भी कई बार पोप तथा सम्राटों में झगड़ा हो जाता था। पोप का यह विश्वास था कि चर्च की संपत्ति पर कर लगाने का अधिकार किसी सम्राट के पास नहीं है। परंतु कई सम्राटों ने पोप की इस धारणा को चनौती दी। इन सम्राटों ने पोप के आदेशों की कोई परवाह न की तथा चर्च पर कर लगा दिए।

इससे पोप की प्रतिष्ठा तथा शक्ति को गहरा आघात पहँचा। फलस्वरूप पोप की स्थिति दर्बल हो गई और लोग धर्म सधार के लिए प्रेरित हए। फर्डीनांड शेविल के अनुसार, “पोप द्वारा धन इकट्ठा करने तथा उसके राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप करने के कारण यूरोप के लोगों ने उसका विरोध किया।”

5. राष्ट्रीय राज्यों का उदय (Rise of Nation States) :
पुनर्जागरण से पर्व यरोप के कई देशों में सामंतवाद का प्रभुत्व था। इस सामंती व्यवस्था में अनेकों दोष व्याप्त थे। इन दोषों को दूर करने के उद्देश्य से कई राज्यों में शासकों ने सामंतों को शक्तिहीन करने के सफल प्रयास किए। परिणामस्वरूप इंग्लैंड, फ्राँस, पुर्तगाल, स्पेन, हंगरी, पोलैंड, हालैंड, स्काटलैंड, डेनमार्क आदि राष्ट्रीय राज्य उदय हुए।

ये राष्ट्रीय राज्य चर्च के प्रभाव से मुक्ति पाना चाहते थे। इस कार्य के लिए फ्राँस. इंग्लैंड तथा स्पेन के सम्राट आगे आए। उन्होंने अपने राज्य में स्थित चर्च की संपत्ति पर कर लगाया। उनके अनुसार किसी सम्राट को पदच्युत करने का पोप द्वारा दिया जाने वाला आदेश अनुचित है।

6. पुनर्जागरण का प्रभाव (Influence of the Renaissance):
पनर्जागरण एक ऐसी क्रांति थी जिसने धार्मिक अंध-विश्वासों एवं रूढ़िवादी मान्यताओं पर कड़ा प्रहार किया और यूरोपवासियों में एक नई चेतना जागृत की। इसके प्रभाव से यरोप के लोगों का दष्टिकोण आलोचनात्मक एवं तार्किक हो गया। अब वे तर्क की कसौटी पर कसे बिना किसी भी तथ्य को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। छापेखाने के आविष्कार के कारण उनमें नवचेतना का संचार हुआ। वे चर्च में फैले भ्रष्टाचार से अवगत हुए। अत: उनमें व्याप्त असंतोष आक्रोश में बदल गया। इस बात ने धर्म-सुधार आंदोलन का मार्ग प्रशस्त किया।

7. धर्म-सुधारकों द्वारा पोप का विरोध (Opposition of Pope by the Religious Reformers):
धर्म-सुधार आंदोलन के आरंभ तथा प्रसार में यूरोप के धर्म-सुधारकों ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई। इन धर्म-सुधारकों ने लोगों के सामने तत्कालीन धार्मिक व्यवस्था के दोषों का भांडा फोड़ दिया। इन धर्म-सुधारकों में सबसे प्रसिद्ध जॉन वार्डक्लिफ (John Wvcliffe) था।

उसने तथा उसके शिष्य जॉन हस्स (John Huss) ने पोप तथा चर्च के विरुद्ध जोरदार प्रचार किया। चर्च का विरोध करने के कारण पोप ने उन्हें ईसाई धर्म से निकाल दिया। डरेस्मस (Erasmus) एक अन्य विद्वान था। उसने बाईबल की गलतियों में संशोधन किया तथा उसका लातीनी भाषा में रूपांतर तैयार किया। उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘इन प्रेज़ ऑफ़ फॉली’ (In Praise of Folly) में चर्च की भ्रष्टाचारी प्रथाओं का खंडन किया। इस पुस्तक के कारण पोप की प्रतिष्ठा को गहरी चोट पहुँची।

8. तात्कालिक कारण : पाप स्वीकारोक्ति पत्रों की बिक्री (Immediate Cause-Sale of Indulgences):
पोप द्वारा पाप स्वीकारोक्ति पत्रों की बिक्री धर्म-सुधार आंदोलन का तात्कालिक कारण बना। उन दिनों पोप को रोम में सेंट पीटर गिरजाघर के निर्माण के लिए धन चाहिए. था। उसने धन इकट्ठा करने के लिए पाप स्वीकारोक्ति पत्रों को बेचना आरंभ कर दिया।

इन पाप स्वीकारोक्ति पत्रों को खरीद कर कोई भी व्यक्ति अपने पापों से मुक्त हो सकता था। 1517 ई० में जोहानन टेट्ज़ेल (Johanan Tetzel) नामक एक पादरी पाप स्वीकारोक्ति पत्रों को बेचने के लिए विटेनबर्ग पहुँचा। जब वह वहाँ यह पाप स्वीकारोक्ति पत्र बेच रहा था तो मार्टिन लूथर ने उसका विरोध किया।

मार्टिन लूथर विटेनबर्ग में एक प्रोफेसर था। चर्च में व्याप्त दोषों के कारण उसके मन में पहले ही चर्च विरुद्ध तूफान उठ रहा था। मार्टिन लूथर ने इन पाप स्वीकारोक्ति पत्रों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। इसने धर्म सुधार आंदोलन का श्रीगणेश किया।

III. धर्म सुधार आंदोलन का उद्देश्य

धर्म-सुधार आंदोलन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित अनुसार थे

  • पोप तथा अन्य धर्म अधिकारियों के असीमित अधिकारों पर अंकुश लगाना।
  • चर्च अधिकारियों का नैतिक जीवन में सुधार लाना।
  • चर्चों में फैले भ्रष्टाचार को समाप्त करना तथा धर्म अधिकारियों का ध्यान आध्यात्मिकता की ओर लगाना।
  • राष्ट्रीय चर्च की स्थापना पर बल देना।
  • जनसाधारण को मोक्ष-प्राप्ति के लिए पोप पर आश्रित न रख कर परमात्मा पर आश्रित बनाना।
  • प्रत्येक मानव को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करना।

इन सब उद्देश्यों के होते हए भी यह कहा जा सकता है कि मल रूप से यह आंदोलन यरोप की प्राचीन रूढिवादिता को समाप्त करने के लिए चलाया गया जिसके लिए 13वीं शताब्दी में प्रयास किये जा रहे थे। डब्ल्यू० के० फरग्युसन एवं जी ब्रन के शब्दों में, “यद्यपि 13वीं शताब्दी में चर्च की व्यवस्था में कुछ परिवर्तन हुए थे, परंतु ये परिवर्तन आधुनिक युग की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं थे।”

प्रश्न 8.
यूरोप के विभिन्न देशों में चले धर्म सुधार आंदोलनों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
धर्म-सुधार आंदोलन के प्रसार में मुख्य भूमिका जर्मनी के प्रसिद्ध विद्वान् मार्टिन लूथर ने निभाई। मार्टिन लूथर के अतिरिक्त उलरिक ज्विंगली, जौं कैल्विन, जॉन वाईक्लिफ तथा इग्नेशियस लोयोला ने भी उल्लेखनीय योगदान दिया। धर्म-सुधार आंदोलन में विभिन्न नेताओं द्वारा दिए योगदान का वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. मार्टिन लूथर 1483-1546 ई० (Martin Luther 1483-1546 CE)-मार्टिन लूथर ने जर्मनी में धर्म सुधार आंदोलन में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। उसका जन्म 10 नवंबर, 1483 ई० को जर्मनी के एक निर्धन किसान के घर हुआ था। प्रारंभ में लूथर पोप विरोधी नहीं था, परंतु 1517 ई० में एक ऐसी घटना घटी जिससे वह पोप विरोधी हो गया।

लूथर ने देखा कि विटेनबर्ग में टेट्ज़ेल नामक एक पादरी लोगों को पाप स्वीकारोक्ति-पत्र बेच रहा था। टेट्ज़ेल यह प्रचार कर रहा था कि कोई भी व्यक्ति जो इन पाप स्वीकारोक्ति-पत्र को खरीद लेगा वह अपने पापों से मुक्त हो जाएगा तथा सीधे स्वर्ग को जाएगा। भोली-भाली जनता के साथ इस प्रकार किए जा रहे मजाक तथा शोषण के विरुद्ध मार्टिन लूथर ने आवाज़ उठाई।

उसने विटेनबर्ग के चर्च के द्वार पर अपने 95 थिसेज़ लटका दिए। इन थिसेज़ों में उसने चर्च के भ्रष्ट उपायों द्वारा धन इकट्ठा करने की कड़ी आलोचना की। उसने धर्म शास्त्रियों को इन थिसेज़ों के बारे में बहस करना की चुनौती दी। लेकिन पोप ने लूथर के विरोध को कोई महत्त्व नहीं दिया। लूथर ने 1519 ई० में लिपजिग में एक वाद-विवाद में मनुष्य तथा ईश्वर के बीच पोप की मध्यस्थता को निरर्थक बताया।

यह मार्टिन लथर की चर्च की निरंकशता को खली चनौती थी। इसका लोगों के मनों पर गहरा प्रभाव पडा तथा वे चर्च के विरोधी हो गए। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर अरुण भट्टाचार्जी के अनुसार, “मार्टिन लूथर आधुनिक समय के महान् धार्मिक व्यक्तियों में से एक था।

2. उलरिक ज्विंगली 1484-1531 ई० (Ulrich zwingli 1484-1531 CE):
उलरिक ज्विंगली स्विट्ज़रलैंड में हुआ। उसने बेसेल विश्वविद्यालय से एम० ए० की डिग्री प्राप्त की तथा एक पादरी बन गया। 1518 ई० में वह ज्यूरिख के चर्च का पादरी नियुक्त हुआ। परंतु चर्च में फैले भ्रष्टाचार तथा अंध-विश्वासों के कारण शीघ्र ही उसका मन असंतुष्ट हो गया। उस पर मार्टिन लूथर का बहुत प्रभाव था। उसने चर्च में फैले भ्रष्टाचारों एवं दोषों की कड़े शब्दों में आलोचना की। उसने पोप की सर्वोच्चता को मानने से इंकार कर दिया।

उसका कथन था कि लोग चर्च की अपेक्षा बाईबल को अपने जीवन का मार्गदर्शक बनाएँ। उसने उन सभी दूषित प्रथाओं को बंद करने की माँग की जिनके विरुद्ध जर्मनी में मार्टिन लूथर ने आंदोलन चलाया था। उसने लोगों को सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी। उसकी 1531 ई० में कैथोलिकों (Catholics) के साथ हुए एक संघर्ष में मृत्यु हो गई।

3. जौं कैल्विन 1509-64 ई० (Jean Calvin 1509-64 CE):
जौं कैल्विन ने फ्राँस में धर्म-सुधार आंदोलन का नेतृत्व किया था। वह भी मार्टिन लूथर की भाँति 16वीं शताब्दी का एक महान् सुधारक था। जौं कैल्विन का जन्म फ्रांस के नोपॅन (Noyon) नगर में 10 जुलाई, 1509 ई० को हुआ था। वह एक मध्यम वर्गीय परिवार से संबंध रखता था। बचपन से ही उसकी धार्मिक विचारों में रुचि थी। उसने अपनी उच्च शिक्षा पेरिस विद्यालय से प्राप्त की। यहाँ उसने कानून की शिक्षा के साथ-साथ धर्मशास्त्रों का भी गहन अध्ययन किया।

उसके मन पर लूथर के विचारों का बड़ा प्रभाव पड़ा था। उसका ईश्वर की सर्वोच्चता में दृढ़ विश्वास था। उसका विचार था कि ईश्वर सर्वव्यापक तथा सर्वशक्तिमान है तथा उसने इस सृष्टि की रचना की है। वह मनुष्य को ईश्वर का ही रूप मानता था। चर्च तथा राज्य के संबंध में उसके विचार मार्टिन लूथर से कुछ भिन्न थे। मार्टिन लूथर राज्यों को सर्वोच्च मानता था। परंतु जौं कैल्विन का मानना था कि चर्च का ईश्वर की सर्वोच्चता के प्रतिनिधि के रूप में महत्त्व होना चाहिए। वह चर्च में व्याप्त भ्रष्टाचार का विरोधी था।

1533 ई० में जौं कैल्विन कैथोलिक धर्म त्याग कर स्विट्ज़रलैंड में स्थित बेसेल नगर में आ गया। यहाँ रहते हुए 1536 ई० में उसने ‘इंस्टीच्यूट ऑफ़ क्रिश्चियन रिलिजन’ (‘The Institute of the Christian Religion’) नामक प्रसिद्ध पुस्तक प्रकाशित की। यह पुस्तक बहुत लोकप्रिय हुई। इस पुस्तक में उसने ईसाई धर्म की बड़ी सुंदर ढंग से व्याख्या की तथा लोगों को पवित्र जीवन जीने की प्रेरणा दी। जौं कैल्विन पादरियों द्वारा पवित्र जीवन जीने तथा भोग-विलास से दूर रहने पर बल देता था। प्रसिद्ध इतिहासकार ए० जे० ग्रांट के अनुसार, “कुछ ही वर्षों में कैल्विन की प्रसिद्धि महाद्वीप के बहुत से भागों में फैल गई थी।”

4. जॉन वाईक्लिफ 1320-84 ई० (John Wycliffe 1320-84 CE):
चर्च में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा अन्य दोषों के विरुद्ध आवाज़ इंग्लैंड में तो जर्मनी से पहले ही उठने लगी थी। इंग्लैंड में सर्वप्रथम चर्च के विरुद्ध आवाज़ जॉन वाईक्लिफ ने उठाई थी। वह पोप को धरती पर ईश्वर का प्रतीक नहीं मानता था क्योंकि उसके अनुसार पोप द्वारा अपनाया गया जीवन का ढंग धर्म के सिद्धांतों के विपरीत था।

वह तीर्थ स्थानों की यात्रा को व्यर्थ मानता था। उसका मानना था कि भ्रष्ट पादरियों के द्वारा दर्शाए गए रास्ते को अपना कर कोई भी व्यक्ति मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता। उसका महान् कार्य बाईबल का अंग्रेजी में अनुवाद करना था। इसमें उसने लोगों को ईसाई मत के सच्चे सिद्धांतों को अपनाने के लिए कहा।

1384 ई० में जॉन वाईक्लिफ की मृत्यु हो गई। उसके शिष्य लोलार्ड (Lollards) कहलाए। प्रसिद्ध इतिहासकार बी० के० गोखले के अनुसार, “जॉन वाईक्लिफ समाज के सभी वर्गों पर प्रभावशाली प्रभाव डालने में सफल हुआ।”

5. इग्नेशियस लोयोला 1493-1566 ई० (Ignatius Loyola 1493-1566 CE):
इग्नेशियस लोयोला स्पेन का निवासी था। उसने 1540 ई० में सोसाइटी ऑफ़ जीसस (Society of Jesus) की स्थापना की। इसका उद्देश्य रोमन कैथोलिक चर्च के प्रभाव को पुनः स्थापित करना एवं प्रोटेस्टेंटों के बढ़ रहे प्रभाव को रोकना था।

इसके सदस्य बहुत ईमानदार, शिक्षित तथा अनुशासित थे। उन्होंने ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिए अथक प्रयास किए। परिणामस्वरूप यह सोसाइटी न केवल स्पेन अपितु विश्व भर में लोकप्रिय हुई। इग्नेशियस लोयोला के अनुयायी जेसुइट (Jesuits) कहलाए।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ

प्रश्न 9.
धर्म सुधार आंदोलनों के विभिन्न प्रभावों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
धर्म-सुधार आंदोलन के यूरोपीय समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़े। निस्संदेह इस आंदोलन ने यूरोपीय समाज को एक नई दिशा देने में महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त की। डॉक्टर अरुण भट्टाचार्जी का यह कहना ठीक है कि, “धर्म-सुधार आंदोलन फ्रांस की क्रांति की तरह एक महान् सामाजिक-राजनीतिक घटना थी जिसके यूरोप के इतिहास पर दूरगामी प्रभाव पड़े।”

1. चर्च में फूट (Schism in the Church):
धर्म-सुधार आंदोलन का यूरोपीय लोगों के जीवन पर एक महत्त्वपूर्ण प्रभाव यह पडा कि चर्च दो भागों में विभाजित हो गया। अब यह कैथोलिक तथा प्रोटेस्टेंट नामक शाखाओं में बँट गया। कैथोलिक शाखा वाले पोप की सर्वोच्चता में विश्वास रखते थे जबकि प्रोटेस्टेंट वालों का मानना था कि पोप अथवा पादरी किसी व्यक्ति को मुक्ति प्राप्त करने में कोई सहायता नहीं कर सकते।

व्यक्ति को मुक्ति केवल बाईबल के सिद्धांतों के अनुसार चल कर ही मिल सकती है। चर्च में पड़ी यह दरार धीरे-धीरे इतनी पक्की हो गई कि यूरोप के भिन्न-भिन्न देशों में कैथोलिक तथा प्रोटेस्टेंट लोगों की विभिन्न शाखाएँ स्थापित हो गई।

2. धार्मिक अत्याचार (Religious Persecution):
धर्म-सुधार आंदोलन के परिणामस्वरूप यूरोप के लोग दो विरोधी संप्रदायों में विभाजित हो गए। धीरे-धीरे इन दोनों संप्रदायों में विरोधी भावनाएँ बढ़ने लगीं। इन विरोधी भावनाओं ने इतना गंभीर रूप धारण कर लिया कि वे धार्मिक असहनशीलता का प्रदर्शन करने लगे। प्रोटेस्टेंट तथा कैथोलिक दोनों संप्रदाय अपने ही ढंग से अपने-अपने सिद्धांतों का प्रचार करने लगे। दोनों संप्रदाय एक-दूसरे की निंदा करने लगे। शासक भी केवल अपने मत के लोगों से सहनशीलता का प्रदर्शन करते थे तथा विरोधी पर बहुत अत्याचार करते थे।

3. गृह युद्ध तथा विद्रोह (Civil Wars and Rebelions):
धर्म-सुधार आंदोलन के कारण प्रोटेस्टेंट तथा कैथोलिक एक-दूसरे के शत्रु बन गए। उनमें शत्रुता इतनी बढ़ गई कि वे एक-दूसरे के खून के प्यासे बन गए। परिणामस्वरूप विभिन्न देशों में धर्म के नाम पर युद्ध हुए जिनमें हजारों लोगों को अपने प्राण गँवाने पड़े।

4. शिक्षा का प्रसार (Spread of Education):
धर्म-सुधार आंदोलन के पश्चात् शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रसार हुआ। ईसाई मत की दोनों शाखाओं के समर्थकों ने अधिक-से-अधिक लोगों को अपने अनुयायी बनाने के लिए शिक्षा पर अधिक बल दिया। प्रोटेस्टेंटों ने शिक्षा के प्रसार के लिए बहुत प्रयत्न किए ताकि अधिक-से-अधिक लोग शिक्षित हो कर बाईबल को पढ़ें तथा उसके सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाएँ।

5. देशी भाषाओं का विकास (Development of Vernacular Languages):
धर्म-सुधार आंदोलन ने विभिन्न देशी भाषाओं के विकास में भी अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। क्योंकि सभी सुधारक लोगों को ईसाई धर्म का वास्तविक ज्ञान दिलाना चाहते थे इस लिए उन्होंने अपने प्रचार के लिए देशी भाषाओं को ही माध्यम बनाया। विभिन्न देशी भाषाओं में बाईबल का अनुवाद किया गया।

6. कला तथा साहित्य का विकास (Development of Art and Literature):
मध्यकाल में कला तथा साहित्य पर चर्च का बहुत प्रभाव था। उस समय कलाकृतियाँ तथा चित्र केवल धर्म से संबंधित ही बनाए जाते थे। गिरजाघरों, ईसा मसीह तथा संतों के चित्रों का कार्य केवल पोप की देख-रेख में ही किया जाता था। धर्म-सुधार आंदोलन के पश्चात् इस क्षेत्र में परिवर्तन आ गया।

अब कला का विषय धार्मिक न हो कर धर्म-निरपेक्ष हो गया। अब साधारण मनुष्य के जीवन से संबंधित कलाकृतियाँ बनाई जाने लगीं। इसी प्रकार साहित्य के क्षेत्र में भी परिवर्तन आ गया। अनेक सुधारकों ने प्राचीन ग्रंथों को पढ़ने तथा देशी भाषाओं में अनुवाद करने की प्रेरणा दी। परिणामस्वरूप अनेक नवीन ग्रंथ रचे गए।

7. व्यापार तथा वाणिज्य का विकास (Development of Trade and Commerce):
पुरातन कैथोलिकों की यह विचारधारा थी कि अधिक धन संचित करना तथा उसे ब्याज के लिए देना धर्म के विरुद्ध कार्य है। परंतु धर्म सुधारक इस विचारधारा को गलत मानते थे। जौं कैल्विन के अनुसार अधिक धन कमाना तथा ब्याज पर उधार देना उचित है।

उसके इस विचार का व्यापारियों, उत्पादकों तथा बैंकरों ने स्वागत किया तथा व्यापार एवं वाणिज्य को विकसित करने के लिए प्रेरित हुए। परिणामस्वरूप विभिन्न यूरोपीय देशों में इसका बहुत विकास हुआ। कई प्रोटेस्टेंट शासकों ने व्यापारियों तथा उद्योगपतियों को संरक्षण प्रदान किया। उन्होंने कैथोलिकों के विचारों की कोई परवाह न की।

8. धार्मिक युद्ध (Religious wars):
धर्म-सुधार आंदोलन के पश्चात् कई देशों ने प्रोटेस्टेंट धर्म को राजकीय धर्म घोषित कर दिया। परंतु दूसरी ओर कई अन्य देशों में प्राचीन कैथोलिक धर्म ही प्रचलित था। इन दोनों धर्मों के देश आपस में शत्रु बन गए। परिणामस्वरूप 16वीं तथा 17वीं शताब्दी में इनमें कई धर्म-युद्ध हुए। इसके विनाशकारी परिणाम निकले।

9. राष्ट्रीय राज्यों की शक्ति में वृद्धि (Strengthening of the Nation States):
राष्ट्रीय राज्यों का उदय धर्म-सुधार आंदोलन से पूर्व ही हो चुका था। धर्म-सुधार आंदोलन के परिणामस्वरूप उनकी शक्ति में और वृद्धि हो गई। नव स्थापित प्रोटेस्टेंट देशों के शासकों ने पोप तथा चर्च की शक्ति को समाप्त करके राष्ट्रीय चर्च स्थापित किए और उन्हें अपने अधीन कर लिया। उन्होंने पोप को भेजी जाने वाली राशि भी बंद कर दी। अब वे इतने शक्तिशाली हो गए कि उनके राज्यों में पोप का हस्तक्षेप बंद हो गया।

क्रम संख्या वर्ष घटना
1. 1300 ई० इटली के पादुआ विश्वविद्यालय में मानवतावाद को पढ़ाया जाने लगा।
2. 1304 ई० फ्राँसिस्को पेट्रार्क का फ्लोरेंस में जन्म।
3. 1341 ई० फ्राँसिस्को पेट्रार्क को रोम में राजकवि की उपाधि से सम्मानित करना।
4. 1390 ई० जेफ्री चॉसर द्वारा दि कैंटरबरी टेल्स का प्रकाशन।
5. 1436 ई० फिलिप्पो ब्रूनेशेशी द्वारा फ्लोरेंस में डयूमा तैयार करना।
6. 1455 ई० जोहानेस गुटेनबर्ग द्वारा बाईबल का प्रकाशन।
7. 1486 ई० जोवान्ने पिको देल्ला मिरांदोला द्वारा ‘ऑरेशन ऑन दि डिगनिटी ऑफ़ मैन’ का प्रकाशन।
8. 1495 ई० लियोनार्डों द विंसी द्वारा दि लास्ट सपर नामक चित्र तैयार करना।
9. 1508 ई० अल्बर्ट ड्यूरर द्वारा प्रार्थना रत हस्त नामक चित्र को तैयार करना।
10. 1509 ई० डेसीडेरियस इरस्मस द्वारा दि प्रेज़ ऑफ़ फ़ॉली का प्रकाशन।
11. 1513 ई० निकोलो मैक्यिावेली द्वारा दि प्रिंस नामक ग्रंथ का प्रकाशन।
12. 1517 ई० जर्मनी के मार्टिन लूथर द्वारा कैथोलिक चर्च के विरुद्ध अभियान छेड़ना।
13. 1543 ई० अंड्रीयस वेसेलियस द्वारा ऑन एनॉटमी नामक ग्रंथ की  रचना।
14. 1540 ई० इग्नेशियस लोयोला द्वारा स्पेन में सोसाइटी ऑफ़ जीसस नामक संस्था की स्थापना।
15. 1628 ई० विलियम हार्वे द्वारा ह्वदय को रुधिर परिसंचरण से जोड़ना।
16. 1662 ई० रॉयल सोसाइटी लंदन की स्थापना।
17. 1666 ई० पेरिस अकादमी की स्थापना।

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पुनर्जागरण के उत्थान के लिए कौन-से प्रमुख कारण उत्तरदायी थे?
उत्तर:
(1) सामंतवाद का पतन-सामंतवाद का पतन पुनर्जागरण के उत्थान के लिए महत्त्वपूर्ण कारणों में से एक था। मध्यकालीन समाज की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता सामंती प्रथा थी। परंतु 14वीं शताब्दी के पश्चात् इसका पतन होना आरंभ हो गया था। इसका पतन मध्य वर्ग की शक्ति के कारण हुआ। इसी मध्य वर्ग ने अपने-अपने सम्राटों को सेना के संगठन के लिए आवश्यक धन-राशि प्रदान की थी जिस कारण सम्राट् सामंतों पर निर्भर न रहे।

(2) धर्मयद-धर्मयद्धों ने यरोप को नवीनता प्रदान की। धर्मयद्धों के माध्यम से ही यनान के वैज्ञानिक ग्रंथ. अरबी अंक, बीजगणित, नवीन दिग्दर्शक यंत्र और कागज़ पश्चिमी यूरोप में पहुँचे। अतः स्पष्ट है कि धर्मयुद्धों ने नवीन विचारों तथा धारणाओं का प्रसार किया और पुराने विचारों, विश्वासों तथा संस्थाओं पर प्रहार किया। फलस्वरूप पुनर्जागरण का प्रारंभ हुआ।

(3) व्यापारिक समृद्धि-पुनर्जागरण का एक प्रेरक तत्त्व था-व्यापार का उदय एवं विकास। धर्मयुद्धों के कारण जहाँ नवीन विचारधाराएँ पनपीं, वहाँ यूरोप के पूर्वी देशों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित हुए। अनेक यूरोपीय व्यापारी जेरुसलम तथा एशिया माइनर के तटों पर बस गये। इनके कारण व्यापार में पर्याप्त वृद्धि हुई। व्यापारिक समृद्धि के कारण यूरोपीय व्यापारी विभिन्न देशों में पहुंचे। उन्हें नये विचारों तथा प्रगतिशील तत्त्वों की जानकारी हुई। स्वदेश वापस लौटने पर ये व्यापारी नये विचारों को अपने साथ लाए।

(4) छापेखाने का आविष्कार-1455 ई० में जर्मनी के जोहानेस गुटेनबर्ग ने एक ऐसी टाइप मशीन का आविष्कार किया जो आधुनिक प्रेस की अग्रदूत कही जा सकती है। मुद्रण यंत्र के इस चमत्कारी आविष्कार ने बौद्धिक विकास का द्वार खोल दिया। कैक्सटन ने 1477 ई० में ब्रिटेन में छापाखाना स्थापित किया। धीरे-धीरे इस यंत्र का प्रयोग इटली, जर्मनी, स्पेन, फ्राँस आदि देशों में आरंभ हो गया। कागज़ और मुद्रण यंत्र के आविष्कार से स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन आए।

प्रश्न 2.
पुनर्जागरण का आरंभ इटली में क्यों हुआ?
अथवा
मानवतावादी विचारों का अनुभव सबसे पहले इतालवी शहरों में क्यों हुआ?
उत्तर:
(1) इटली महान् रोमन साम्राज्य का केंद्र रहा था। अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के कारण यह व्यापार एवं ज्ञान का एक प्रसिद्ध केंद्र था। 1453 ई० में कुंस्तुनतुनिया के पतन के पश्चात् वहाँ से अनेक यूनानी विद्वान् पलायन कर इटली आ बसे थे। इससे इटली में पुनर्जागरण आंदोलन का आधार तैया

(2) इटली के पूर्वी देशों से बढ़ रहे व्यापार के कारण यहाँ के व्यापारियों को काफ़ी धनी बना दिया था। इन धनी व्यापारियों ने कलाकारों एवं साहित्यकारों की खुले दिल से सहायता की। निस्संदेह इससे इटली में पुनर्जागरण को प्रोत्साहन मिला।

(3) इटली प्राचीन रोमन सभ्यता का केंद्र था। इटली के लोग अपने प्राचीनकाल के गौरव को पुनः स्थापित करना चाहते थे। इससे इटली में पुनर्जागरण की एक नई प्रेरणा मिली।

(4) इटली में एक लंबे समय तक शांति का वातावरण रहा। इससे कला तथा साहित्य के विकास को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ।

(5) रोम के कुछ पोप भी विद्वानों एवं कलाकारों का सम्मान करते थे। उन्होंने कुछ प्रसिद्ध यूनानी पांडुलिपियों का लातीनी भाषा में अनुवाद करवाया। पोप निकोलस पंचम (1447-1455 ई०) ने वैटिकन पुस्तकालय की स्थापना की एवं संत पीटर का गिरजाघर भी बनवाया। निस्संदेह पोप के इन कार्यों ने इटली में पुनर्जागरण आंदोलन के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ

प्रश्न 3.
मानवतावाद से आपका क्या अभिप्राय है?
अथवा
मानवतावादी विचारों के क्या अभिलक्षण थे?
उत्तर:
मानवतावाद पुनर्जागरण काल की एक प्रमुख विशेषता थी। इसका उदय सर्वप्रथम 14वीं शताब्दी में इटली में हुआ। इसका कारण यह था कि इटली में शिक्षा के प्रसार के कारण लोगों में एक नई जागृति उत्पन्न हो गई थी। इटली के लोग आर्थिक दृष्टिकोण से बहुत खुशहाल थे। उनके विदेशों से बढ़ते हुए संपर्क ने मानवतावादी विचारधारा को जन्म दिया।

मानवतावाद का अर्थ है मानव जीवन में रुचि लेना, मानव की समस्याओं का अध्ययन करना, मानव का आदर करना, मानव जीवन के महत्त्व को स्वीकार करना तथा उसके जीवन को सुखी, समृद्ध एवं उन्नत बनाना। मानवतावादी धर्म द्वारा मनुष्य पर लगाए गए अनुचित बँधनों को समाप्त करके उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के पक्ष में थे।

इसलिए मानवतावादी धर्मशास्त्र के अध्ययन के स्थान पर मानवतावादी अध्ययन पर अधिक बल देते थे। 15वीं शताब्दी के आरंभ में मानवतावादी शब्द उन अध्यापकों के लिए प्रयुक्त होता था जो व्याकरण, अलंकारशास्त्र, कविता, इतिहास एवं नीतिदर्शन विषय पढ़ाते थे। फ्रांसिस्को पेट्रार्क को मानवतावाद का पिता कहा जाता है।

प्रश्न 4.
पुनर्जागरण से क्या अभिप्राय है?
अथवा
नवजागरण की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
नवजागरण की मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
14वीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी तक के समय के दौरान यूरोप की सांस्कृतिक परंपराओं में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए। इससे पूर्व मध्यकाल में यूरोप के लोगों पर चर्च का प्रभाव था। इस काल में लोग इहलोक की अपेक्षा परलोक की अधिक चिंता करते थे। पुनर्जागरण लोगों के लिए एक नए युग का संदेश लेकर आया।

यह आंदोलन सर्वप्रथम इटली में आरंभ हुआ था। इटली के फ्लोरेंस, वेनिस एवं रोम नामक नगरों ने, जो कला एवं विद्या के विश्वविख्यात केंद्र बने लोगों में एक नई जागृति उत्पन्न करने में उल्लेखनीय योगदान दिया। वास्तव में इटली ने जो चिंगारी जलायी वह शीघ्र ही संपूर्ण यूरोप में एक मशाल का रूप धारण कर गई।

यूरोप के साहित्यकारों एवं कलाकारों ने यूरोपीय साहित्य एवं कला को एक नई दिशा प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनका उद्देश्य मानवतावाद का प्रसार करना था। मानवतावाद में मनुष्य को विशेष महत्त्व प्रदान किया गया था। पुनर्जागरण काल में विज्ञान के क्षेत्र में जो प्रगति हुई उसने मनुष्य के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन कर दिए।

प्रश्न 5.
फ्रांसिस्को पेट्रार्क को पुनर्जागरण का पिता क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
फ्रांसिस्को पेट्रार्क को पुनर्जागरण का पिता कहा जाता है। उसका जन्म 1304 ई० में इटली के नगर फ्लोरेंस में हुआ था। उसने अपनी शिक्षा बोलोनिया विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी। उसने कुछ समय वकालत की नौकरी की। किंतु उसकी साहित्य में अधिक दिलचस्पी थी। अतः उसने अपनी नौकरी छोड़ दी तथा अपना अधिकाँश समय प्राचीन लातीनी ग्रंथों के अध्ययन में लगाया।

वह रोमन लेखकों सिसरो एवं वर्जिल से बहुत प्रभावित हुआ था। उसने संपूर्ण यूरोप में मानवतावादी विचारधारा को प्रोत्साहित किया। उसने लौरा नामक एक स्त्री जिसे वह बेहद प्यार करता था पर अनेक कविताएँ लिखीं। साहित्य के क्षेत्र में उसके उल्लेखनीय योगदान के कारण उसे 1341 ई० में रोम में ‘राजकवि’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

प्रश्न 6.
निकोलो मैक्यिावेली कौन था? वह क्यों प्रसिद्ध था?
उत्तर:
निकोलो मैक्यिावेली (1469-1527 ई०) इटली का एक महान् विद्वान् एवं देशभक्त था। उसका जन्म 1469 ई० में फ्लोरेंस में हुआ था। उसने यूनानी एवं लातीनी साहित्य का गहन अध्ययन किया था। उसने चर्च में प्रचलित बुराइयों की कटु आलोचना की। वह इटली की दयनीय राजनीतिक स्थिति को दूर कर उसके प्राचीन गौरव को पुनः स्थापित करना चाहता था।

उसने 1513 ई० में दि प्रिंस नामक एक ग्रंथ की रचना की। यह शीघ्र ही बहुत लोकप्रिय हुआ। इसका यूरोप की अनेक भाषाओं में अनुवाद किया गया था। इसमें उसने उस समय इटली में प्रचलित राजनीतिक दशा एवं राजाओं द्वारा प्रशासन में अपनाए जाने वाले नियमों का विस्तृत वर्णन किया है। इस कारण इस ग्रंथ को राजाओं की बाईबल कहा जाता है। यह ग्रंथ आने वाले शासकों के लिए भी एक प्रेरणा स्रोत रहा।

प्रश्न 7.
लियोनार्डो दा विंसी कौन था? वह क्यों प्रसिद्ध था?
उत्तर:
लियोनार्डो दा विंसी बहुमुखी प्रतिभा का व्यक्ति था। वह न केवल एक महान् चित्रकार अपितु एक कुशल इंजीनियर, वैज्ञानिक, मूर्तिकार एवं संगीतकार भी था। वह विश्व में एक चित्रकार के रूप में अधिक लोकप्रिय हुआ। उसका जन्म इटली के फ्लोरेंस नगर में 1452 ई० में हुआ था। उसे बचपन से ही चित्रकला में विशेष रुचि थी। उसने अपने जीवनकाल में अनेक चित्र बनाए ।

इन चित्रों को देख कर उसकी प्रतिभा का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। उसके चित्रों में प्रकाश एवं छाया, रंगों का चयन एवं मानव शरीर के विभिन्न अंगों का प्रदर्शन बहुत सोच समझ कर किया गया है। उसके बनाए चित्रों मोना लीसा एवं दि लास्ट सपर ने विश्व ख्याति प्राप्त की। ये चित्र देखने में बिल्कुल सजीव लगते हैं। मोना लीसा एक साधारण स्त्री का चित्र है।

इस चित्र को बनाने में लियोनार्डो को चार वर्ष लगे। इस चित्र में मोना लीसा की मुस्कान इतनी मधुर है कि इसे देखने वाला व्यक्ति आज भी चकित रह जाता है। दि लास्ट सपर नामक चित्र मिलान स्थित सेंट मेरिया के गिरजाघर की दीवार पर बनाया गया है।

प्रश्न 8.
माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती कौन था? उसने चित्रकला के क्षेत्र क्या योगदान दिया?
उत्तर:
माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती इटली का एक अन्य प्रतिभाशाली व्यक्ति था। वह एक श्रेष्ठ चित्रकार, प्रवीण मूर्तिकार, कुशल भवन निर्माता एवं उच्च कोटि का कवि था। वास्तव में वह प्रत्येक क्षेत्र में असाधारण प्रदर्शन करने की योग्यता रखता था। उसका नाम रोम के सिस्टीन चैपल की भीतरी छत पर बनाए 145 चित्रों के कारण सदैव के लिए अमर हो गया है।

इन चित्रों को उसने 1508 ई० से 1512 ई० तक बनाया। इन चित्रों से माईकल ऐंजेलो के कौशल एवं प्रतिभा का प्रमाण मिलता है। इन चित्रों को देखकर आज भी कला प्रेमी चकित रह जाते हैं। इसी चर्च की दीवार पर माईकल ऐंजेलो ने लास्ट जजमेंट नामक चित्र को बनाया। इस चित्र को बनाने में उसे 8 वर्ष लगे। निस्संदेह यह संसार का एक उच्च कोटि का चित्र है।

प्रश्न 9.
पुनर्जागरण के समाज पर पड़े प्रमुख प्रभाव बताएँ।
उत्तर:
(1) जिज्ञासा की भावना-पुनर्जागरण का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रभाव यह पड़ा कि लोगों में जिज्ञासा की भावना उत्पन्न हुई तथा उनका दृष्टिकोण वैज्ञानिक हो गया। अब उन्होंने शताब्दियों से प्रचलित अंध-विश्वासों तथा रीति-रिवाजों को त्याग दिया। वे अब प्रत्येक विचार को तर्क की कसौटी पर परखने लगे।

(2) मानवतावाद की भावना-मानवतावाद की भावना का उत्पन्न होना पुनर्जागरण की एक अन्य महत्त्वपूर्ण देन है। इस काल के साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में मनुष्य से संबंधित विषयों को प्रमुख स्थान दिया तथा मनुष्य के कल्याण पर बल दिया। उन्होंने धर्म द्वारा मनुष्य पर लगाए गए अनुचित प्रतिबंधों की घोर आलोचना की। उन्होंने मनुष्य की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन किया।

(3) स्त्रियों की स्थिति में सुधार-पुनर्जागरण से पूर्व स्त्रियों की स्थिति बहुत बदतर थी। उन्हें समाज में कोई सम्मानजनक स्थान प्राप्त नहीं था। पुनर्जागरण काल में स्त्रियों की स्थिति में कुछ सुधार आया तथा उन्हें पुरुषों के समान स्थान प्राप्त हुआ। परिणामस्वरूप उनमें जागृति आई। अब वे शिक्षा ग्रहण करने लगीं। साहित्य के अध्ययन से उनका दृष्टिकोण विशाल हो गया।

(4) साहित्य का विकास-पुनर्जागरण के कारण साहित्य के क्षेत्र में आश्चर्यजनक विकास हुआ। इस विकास के परिणामस्वरूप अनेक नई पुस्तकों की रचना हुई। इतालवी, फ्रांसीसी, अंग्रेजी, स्पेनी, जर्मन, डच आदि भाषाओं में अनेकों विद्वानों ने अपनी रचनाएँ लिखीं। इस काल के साहित्यकारों में दाँते, पेट्रार्क, बोकासियो, मैक्यिावेली, मिरांदोला, जेफ्री चॉसर, टॉमस मोर तथा इरेस्मस आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इन्होंने अपनी रचनाओं में मानवतावादी विचारों का प्रसार किया तथा साहित्य के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रश्न 10.
सत्रहवीं शताब्दी के यूरोपीयों को विश्व किस प्रकार भिन्न लगा ? उसका एक सुचिंतित विवरण दीजिए।
उत्तर:
सत्रहवीं शताब्दी में यूरोपीयों को विश्व निम्नलिखित भागों में भिन्न लगा

  • इस शताब्दी में यूरोप के अनेक देशों में नगरों की संख्या में तीव्रता से बढ़ौतरी हो रही थी।
  • नगरों के लोग यह सोचने लगे थे कि वे गाँवों के लोगों से अधिक सभ्य हैं।
  • फ्लोरेंस, वेनिस और रोम जैसे नगर कला तथा विद्या के केंद्र बन गए थे।
  • मुद्रण के आविष्कार के कारण लोगों में नव चेतना का संचार हुआ।
  • चर्च के बारे में लोगों के विचारों में परिवर्तन आ गया था।

प्रश्न 11.
धर्म-सुधार आंदोलन से आपका क्या अभिप्राय है? उस आंदोलन के प्रमुख उद्देश्य क्या थे?
अथवा
प्रोटेस्टेंट धर्म सुधार का अर्थ बताइए।
उत्तर:
(1) अभिप्राय-धर्म-सुधार आंदोलन से अभिप्राय उस आंदोलन से है जो 16वीं एवं 17वीं शताब्दियों में यूरोप में चर्च में प्रचलित कुरीतियों को दूर करने के लिए चलाया गया था।
(2) उद्देश्य-धर्म-सुधार आंदोलन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित अनुसार थे-

  • पोप तथा अन्य धर्म अधिकारियों के असीमित अधिकारों पर अंकुश लगाना।
  • उनके नैतिक जीवन में सुधार लाना।
  • चर्चों में फैले भ्रष्टाचार को समाप्त करना तथा धर्म अधिकारियों का ध्यान आध्यात्मिकता की ओर लगाना।
  • राष्ट्रीय चर्च की स्थापना पर बल देना।
  • जनसाधारण को मोक्ष-प्राप्ति के लिए पोप पर आश्रित न रख कर परमात्मा पर आश्रित बनाना।
  • प्रत्येक मानव को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करना।

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प्रश्न 12.
धर्म-सुधार आंदोलन के उदय के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर:
(1) चर्च में व्याप्त बुराइयाँ-धर्म-सुधार आंदोलन का मुख्य कारण चर्च में व्याप्त बुराइयाँ थीं। चर्च के संगठन में भ्रष्टाचार तथा दुराचार का बोलबाला था। उच्च अधिकारी से लेकर पादरी तक सभी का चरित्र पतित हो चुका था। चर्च के अधिकारी अपने कर्तव्यों की ओर कोई ध्यान नहीं देते थे तथा बड़े लालची हो गए थे। वे विलासी जीवन व्यतीत करने लगे थे तथा हर समय रंगरलियों में डूबे रहते थे। कई पादरियों ने शराब पीना, जुआ खेलना तथा शिकार खेलना आरंभ कर दिया था। पादरियों के इन्हीं अनैतिक कार्यों के कारण जन-साधारण चर्च के विरुद्ध हो गया।

(2) राजनीतिक क्षेत्र में पोप का हस्तक्षेप-चर्च की संपत्ति के कारण भी कई बार पोप तथा सम्राटों में झगड़ा हो जाता था। पोप का यह विश्वास था कि चर्च की संपत्ति पर कर लगाने का अधिकार किसी सम्राट् के पास नहीं है। परंतु कई सम्राटों ने पोप की इस धारणा को चुनौती दी। इन सम्राटों ने पोप के आदेशों की कोई परवाह न की तथा चर्च पर कर लगा दिए। इससे पोप की प्रतिष्ठा तथा शक्ति को गहरा आघात पहुँचा। फलस्वरूप पोप की स्थिति दुर्बल हो गई और लोग धर्म सुधार के लिए प्रेरित हुए।

(3) राष्ट्रीय राज्यों का उदय-पुनर्जागरण से पूर्व यूरोप के कई देशों में सामंतवाद का प्रभुत्व था। सभी प्रशासकीय शक्तियों का प्रयोग अधिकतर सामंत ही करते थे। इस सामंती व्यवस्था में अनेकों दोष व्याप्त थे। इन दोषों को दूर करने के उद्देश्य से कई राज्यों में शासकों ने सामंतों को शक्तिहीन करने के सफल प्रयास किए। परिणामस्वरूप इंग्लैंड, फ्रांस, पुर्तगाल, स्पेन, हंगरी, पोलैंड, हालैंड, स्काटलैंड तथा डेनमार्क आदि राष्ट्रीय राज्य उदय हुए। ये राष्ट्रीय राज्य चर्च के प्रभाव से मुक्ति पाना चाहते थे।

(4) तात्कालिक कारण-पोप द्वारा पाप स्वीकारोक्ति पत्रों की बिक्री धर्म-सुधार आंदोलन का तात्कालिक कारण बनी। उन दिनों पोप को रोम में सेंट पीटर गिरजाघर के निर्माण के लिए धन चाहिए था। उसने धन इकटा करने के लिए पाप स्वीकारोक्ति पत्रों को बेचना आरंभ कर दिया। इन पाप स्वीकारोक्ति पत्रों को खरीद कर कोई भी व्यक्ति अपने पापों से मुक्त हो सकता था। 1517 ई० में टेट्जेल नामक एक पादरी पाप स्वीकारोक्ति पत्रों को बेचने के लिए विटेनबर्ग पहुँचा। जब वह वहाँ यह पाप स्वीकारोक्ति पत्र बेच रहा था तो मार्टिन लूथर ने उसका विरोध किया।

प्रश्न 13.
मार्टिन लूथर कौन था? उसने धर्म-सुधार आंदोलन में क्या योगदान दिया?
अथवा
मार्टिन लूथर की मुख्य शिक्षाओं को लिखें।
उत्तर:
मार्टिन लूथर ने जर्मनी में धर्म-सुधार आंदोलन में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। उसका जन्म 10 नवंबर, 1483 ई० को जर्मनी के एक निर्धन किसान के घर हुआ था। प्रारंभ में लूथर पोप विरोधी नहीं था, परंतु 1517 ई० में एक ऐसी घटना घटी जिससे वह पोप विरोधी हो गया। लूथर ने देखा कि विटेनबर्ग में टेट्ज़ेल नामक एक पादरी लोगों को पाप स्वीकारोक्ति-पत्र बेच रहा था।

टेट्ज़ेल यह प्रचार कर रहा था कि कोई भी व्यक्ति जो इन पाप स्वीकारोक्ति पत्रों को खरीद लेगा वह अपने पापों से मुक्त हो जाएगा तथा सीधे स्वर्ग को जाएगा। भोली-भाली जनता के साथ इस प्रकार किए जा रहे मजाक तथा शोषण के विरुद्ध मार्टिन लूथर ने आवाज़ उठाई। उसने विटेनबर्ग के चर्च के द्वार पर अपने 95 थिसेज़ लटका दिए। इन थिसेज़ों में उसने चर्च द्वारा भ्रष्ट उपायों द्वारा धन इकट्ठा करने की कड़ी आलोचना की।

उसने धर्म शास्त्रियों को इन थिसेजों के बारे में बहस करने की चुनौती दी। लेकिन पोप ने लूथर के विरोध को कोई महत्त्व नहीं दिया। मार्टिन लूथर ने 1519 ई० में लिपजिग में एक वाद-विवाद में मनुष्य तथा ईश्वर के बीच पोप की मध्यस्थता को निरर्थक बताया। यह मार्टिन लूथर की चर्च की निरंकुशता को खुली चुनौती थी। इसका लोगों के मनों पर गहरा प्रभाव पड़ा तथा वे चर्च के विरोधी हो गए।

प्रश्न 14.
ईसाई धर्म के अंतर्गत वाद-विवाद की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
15वीं एवं 16वीं शताब्दियों में अनेक कारणों से ईसाई धर्म के अंतर्गत वाद-विवाद आरंभ हो गया था। इस काल में उत्तरी यूरोप के विश्वविद्यालयों के अनेक विद्वान् मानवतावादी विचारों की ओर आकर्षित हुए। उन्होंने ईसाई धर्म ग्रंथों के अध्ययन पर अधिक ध्यान दिया। ईसाई चर्च के अनेक सदस्य मानवतावादी सिद्धांत की ओर आकर्षित हुए।

उन्होंने ईसाइयों को आवश्यक कर्मकांडों को त्यागने के लिए प्रेरित किया एवं इनकी कड़ी आलोचना की। वे मानव को एक मुक्त विवेकपूर्ण कर्ता समझते थे। उनका कथन था मानव को अपनी खुशी इसी संसार में वर्तमान में मिलेगी। इंग्लैंड के टॉमस मोर एवं हालैंड के इरेस्मस ने चर्च को जन साधारण की लूट-खसूट करने वाली एक संस्था बताया।

पाप स्वीकारोक्ति नामक दस्तावेज़ यात्रियों द्वारा लोगों को ठगने का सबसे सरल तरीका था। किसान चर्च द्वारा लगाए गए अनेक प्रकार के करों से परेशान थे। राजा भी चर्च की दखलअंदाजी को पसंद नहीं करते थे। अत: 1517 ई० में जर्मनी के मार्टिन लूथर ने कैथोलिक चर्च के विरुद्ध एक ज़ोरदार अभियान चलाया।

प्रश्न 15.
विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में अरबियों का क्या योगदान था ?
उत्तर:
विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में अरबियों का उल्लेखनीय योगदान था। 14वीं शताब्दी में अनेक यूरोपीय विद्वानों ने प्लेटो एवं अरस्तु द्वारा लिखे ग्रंथों के अनुवादों को पढ़ना आरंभ किया। इन ग्रंथों का अनुवाद यूरोपीय विद्वानों ने नहीं अपितु अरब विद्वानों ने किया था। अरबी भाषा में प्लेटो को अफलातून एवं एरिसटोटिल को अरस्तु के नामों से जाना जाता था।

यनानी विद्वानों ने अरबियों के प्राकतिक विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान, औषधि विज्ञान एवं रसायन विज्ञान से संबंधित ग्रंथों का अनुवाद करके उनके ज्ञान को यूरोपियों तक पहुँचाया। मुस्लिम लेखकों जिनमें अरबी हकीम इब्न सिना तथा आयुविज्ञान विश्वकोष के लेखक अल-राज़ी सम्मिलित थे जो इटली में बहुत प्रसिद्ध थे। स्पेन के अरबी दार्शनिक इब्न रुश्द के दार्शनिक ज्ञान को ईसाई दार्शनिकों ने न केवल अपनाया अपितु इसकी बहुत प्रशंसा की।

अति संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
रेनेसाँ से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
रेनेसाँ एक फ्रांसीसी शब्द है जिससे. अभिप्राय है पुनर्जन्म अथवा पुनर्जागरण। यह आंदोलन 14वीं से 17वीं शताब्दी के मध्य यूरोप के अनेक देशों में चला। इस आंदोलन ने कला तथा साहित्य को एक नया प्रोत्साहन दिया। इसने लोगों में एक नई जागृति उत्पन्न की।

प्रश्न 2.
जैकब बहार्ट (Jacob Burckhardt) कौन था ?
उत्तर:
जैकब बर्कहार्ट स्विट्जरलैंड के ब्रेसले विश्वविद्यालय का एक प्रसिद्ध इतिहासकार था। उन्होंने 1860 ई० में ‘दि सिविलाईजेशन ऑफ़ दि रेनेसाँ इन इटली’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की। इसमें उन्होंने इटली में साहित्य, वास्तुकला एवं चित्रकला के क्षेत्रों में हुए विकास पर प्रकाश डाला है।

प्रश्न 3.
कार्डिनल गेसपारो कोंतारिनी कौन था ?
उत्तर:
कार्डिनल गेसपारो कोंतारिनी वेनिस का एक प्रसिद्ध अधिकारी था। उसने 1534 ई० में ‘दि कॉमनवेल्थ एंड गवर्नमेंट ऑफ़ वेनिस’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की। इसमें लेखक ने वेनिस के संयुक्तमंडल (Commonwealth) के संबंध में विस्तृत जानकारी प्रदान की है।

प्रश्न 4.
पुनर्जागरण के उत्थान के लिए उत्तरदायी कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:

  • सामंतवाद का पतन।
  • छापेखाने का आविष्कार।

प्रश्न 5.
धर्मयुद्ध किस प्रकार पुनर्जागरण लाने में सहायक सिद्ध हुए ?
उत्तर:

  • यूरोपवासी पूर्वी देशों के लोगों एवं सभ्यता के संपर्क में आए।
  • इन युद्धों ने भौगोलिक खोजों को प्रोत्साहित किया।

प्रश्न 6.
जोहानेस गुटेनबर्ग कौन था ?
उत्तर:
जोहानेस गुटेनबर्ग मेन्ज़ (जर्मनी) के निवासी थे। उन्होंने 1455 ई० में छापेखाने का आविष्कार किया। इस छापेखाने में 1455 ई० में बाईबल की 150 प्रतियाँ छपी। बौद्धिक क्रांति लाने में छापेखाने का आविष्कार एक मील पत्थर सिद्ध हुआ।

प्रश्न 7.
छापेखाने के आविष्कार ने किस प्रकार पुनर्जागरण में सहायता दी ? कोई दो बिंदु लिखिए।
उत्तर:

  • इससे साहित्य एवं ज्ञान का प्रसार हुआ।
  • इससे लोगों में एक नई जागृति आई।

प्रश्न 8.
पुनर्जागरण यूरोप के किस देश से आरंभ हुआ था ?
उत्तर:
पुनर्जागरण यूरोप के इटली देश से आरंभ हुआ था।

प्रश्न 9.
इटली में पुनर्जागरण के आरंभ होने के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:

  • इटली के अनेक नगर वाणिज्य एवं व्यापार के प्रसिद्ध केंद्र थे।
  • इटली के अनेक विद्वानों ने अंध-विश्वासों का खंडन किया एवं मानवतावाद का प्रचार किया।

प्रश्न 10.
पादुआ और बोलोनिया विश्वविद्यालय विधिशास्त्र के अध्ययन केंद्र थे। क्यों ?
उत्तर:
पादआ और बोलोनिया व्यापार एवं वाणिज्य के प्रसिद्ध केंद्र थे। अत: यहाँ वकीलों एवं नोटरी की बहत अधिक आवश्यकता होती थी। वे नियमों को लिखते, उनकी व्याख्या करते एवं समझौते तैयार करते थे। अत: यहाँ के विश्वविद्यालय विधिशास्त्र के अध्ययन केंद्र बन गए।

प्रश्न 11.
वेनिस और समकालीन फ्रांस में ‘अच्छी सरकार’ के विचारों की तुलना कीजिए।
उत्तर:
वेनिस इटली का एक प्रसिद्ध गणराज्य था। यह चर्च एवं सामंतों के प्रभाव से मुक्त था। नगर के धनी व्यापारी एवं महाजन नगर के प्रशासन में मुख्य भूमिका निभाते थे। दूसरी ओर फ्रांस में निरंकुश राजतंत्र स्थापित था। यहाँ के आम नागरिक सभी प्रकार के अधिकारों से वंचित थे।

प्रश्न 12.
चौदहवीं और पंद्रहवीं शताब्दियों में यूनानी और रोमन संस्कृति के किन तत्त्वों को पुनर्जीवित किया गया ?
उत्तर:
चौदहवीं और पंद्रहवीं शताब्दियों में यूनानी और रोमन संस्कृति के धार्मिक, साहित्यिक तथा कलात्मक तत्त्वों को पुनर्जीवित किया गया।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ

प्रश्न 13.
मानवतावादी विचारों का अनुभव सबसे पहले इतालवी शहरों में क्यों हुआ ?
उत्तर:

  • इटली में सर्वप्रथम ऐसे विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई जहाँ मानवतावादी विषयों को पढ़ाया जाता था।
  • इटली के विद्वानों ने अनेक मानवतावादी ग्रंथों की रचना की।

प्रश्न 14.
मानवतावाद से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मानवतावाद से अभिप्राय एक ऐसे आंदोलन से है जिसमें परलोक की अपेक्षा मानव के महत्त्व पर अधिक बल दिया जाता है। इसमें मानव जीवन में रुचि, मानव की समस्याओं का अध्ययन, मानव का सम्मान, मानव जीवन को सुखी, समृद्ध एवं उन्नत बनाने पर विशेष बल दिया गया है। 15वीं शताब्दी में मानवतावाद यूरोप में बहुत लोकप्रिय हुआ।

प्रश्न 15.
फ्रांसिस्को पेट्रार्क कौन था?
उत्तर:
फ्रांसिस्को पेट्रार्क फ्लोरेंस का एक प्रसिद्ध लेखक था। उसे पुनर्जागरण का पिता के नाम से जाना जाता है। उसने साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। उसने मानवतावादी विचारों का प्रसार किया।

प्रश्न 16.
जोटो कौन था?
उत्तर:
जोटो इटली के नगर फ्लोरेंस का एक प्रसिद्ध कलाकार था। उसने ऐसे चित्र बनाए जो देखने में बिल्कुल सजीव लगते थे। उससे पहले कलाकार जिन चित्रों को बनाते थे वे बेजान-से होते थे।

प्रश्न 17.
दाते अलिगहियरी कौन था ? उसकी प्रसिद्ध रचना का नाम लिखें।
उत्तर:

  • दाँते अलिगहियरी फ्लोरेंस का एक प्रसिद्ध कवि था।
  • उसकी प्रसिद्ध रचना का नाम डिवाईन कॉमेडी था।

प्रश्न 18.
‘रेनेसों व्यक्ति’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘रेनेसा व्यक्ति’ का प्रयोग उस मनुष्य के लिए किया जाता है जिसकी अनेक रुचियाँ हों तथा जो अनेक कलाओं में कुशल हो। पुनर्जागरण काल में ऐसे अनेक महान् लोग हुए जो अनेक रुचियों रखते थे और कई कलाओं में कुशल थे। इनमें लियोनार्डो दा विंसी, फिलिप्पो ब्रूनेलेशी एवं लोरेंजो वल्ला आदि थे।

प्रश्न 19.
मानवतावादियों ने 15वीं शताब्दी के आरंभ को नए युग का नाम क्यों दिया ?
उत्तर:
मानवतावादियों ने 15वीं शताब्दी के आरंभ को मध्यकाल से अलग करने के लिए नए युग का नाम दिया। उनका यह तर्क था कि मध्य युग में चर्च ने लोगों की सोच को बुरी तरह जकड़ रखा था इसलिए वे वास्तविक ज्ञान से कोसों दूर थे। 15वीं शताब्दी में लोगों को इस ज्ञान की पुनः जानकारी हुई।

प्रश्न 20.
अल्बर्ट ड्यूरर कौन था ?
उत्तर:
अल्बर्ट ड्यूरर इटली का एक प्रसिद्ध चित्रकार था। उसने 1508 ई० में ‘प्रार्थना रत हस्त’ नामक चित्र बनाया। यह चित्र बहुत लोकप्रिय हुआ। यह चित्र 16वीं शताब्दी की इतालवी संस्कृति का आभास कराता है जब यहाँ के लोग बहुत धार्मिक विचारों के थे।

प्रश्न 21.
दोनातल्लो का नाम क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
दोनातल्लो फ्लोरेंस का एक महान् मूर्तिकार था। उसने 1416 ई० में अनेक भव्य मूर्तियाँ बनाई। इनमें यंग ऐंजलस, सेंट मार्क एवं गाटामेलाटा नामक मूर्तियाँ बहुत प्रसिद्ध हुईं। ये मूर्तियाँ देखने में बिल्कुल सजीव लगती हैं।

प्रश्न 22.
अंडीयस वेसेलियस क्यों प्रसिद्ध थे ?
उत्तर:
अंड्रीयस वेसेलियस पादुआ विश्वविद्यालय में आयुर्विज्ञान के प्राध्यापक थे। वह प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने सूक्ष्म परीक्षण के लिए मनुष्य के शरीर की चीर-फाड़ की। इससे आधुनिक शरीर क्रिया विज्ञान (Physiology) का प्रारंभ हुआ।

प्रश्न 23.
लियोनार्द्ध दा विंसी कौन था ? उसके दो प्रसिद्ध चित्रों के नाम बताएं।
अथवा
लियोनाङ्के दा विंसी कौन था ?
उत्तर:

  • लियोनार्डो दा विंसी फ्लोरेंस का एक महान् चित्रकार एवं मूर्तिकार था।
  • उसके दो प्रसिद्ध चित्रों के नाम मोना लीसा एवं दि लास्ट सपर थे।

प्रश्न 24.
पुनर्जागरण काल में बने चित्रों की कोई दो विशेषताएं लिखिए।
उत्तर:

  • इस काल में बने चित्र अधिक रंगीन एवं चटख थे।
  • इन चित्रों में धर्म-निरपेक्षता की झलक स्पष्ट दिखाई देती है।

प्रश्न 25.
यथार्थवाद से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
पुनर्जागरण काल में शरीर विज्ञान, रेखागणित, भौतिकी एवं सौंदर्य की उत्कृष्ट भावना ने इतालवी कला को एक नया रूप प्रदान किया। इसे यथार्थवाद के नाम से जाना जाने लगा। यथार्थवाद की यह परंपरा 19वीं शताब्दी तक चलती रही।

प्रश्न 26.
पुनर्जागरण काल की वास्तुकला की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • इस काल में शास्त्रीय शैली (classical style) के अनुसार भवनों का निर्माण किया गया।
  • इस काल के चित्रकारों और शिल्पकारों ने भवनों को चित्रों एवं मूर्तियों से सुसज्जित किया।

प्रश्न 27.
माईकल ऐंजेलो बुआनारोती क्यों प्रसिद्ध था?
उत्तर:
माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती पुनर्जागरण काल का सर्वाधिक प्रसिद्ध मूर्तिकार, चित्रकार एवं भवन निर्माता था। उसकी प्रतिभा का प्रमाण हमें रोम के सिस्टीन नामक गिरजाघर के भीतर बनाए गए चित्रों, दि पाइटा नामक प्रतिमा, दि लास्ट जजमेंट नामक चित्र एवं सेंट पीटर गिरजे के गुंबद के डिजाइन को देखने से मिलता है।

प्रश्न 28.
फिलिप्पो ब्रूनेलेशी कौन था ?
उत्तर:
फिलिप्पो ब्रूनेलेशी पुनर्जागरण काल का एक प्रसिद्ध मूर्तिकार एवं भवन निर्माता था। उसने फ्लोरेंस के कथीड्रल के गुंबद का डिजाइन बनाया था। इसे ‘दि ड्यूमा’ के नाम से जाना जाता है। यह अपनी उच्च कोटि की कला शैली के लिए प्रसिद्ध है।

प्रश्न 29.
जेफ्री चॉसर कौन था ?
उत्तर:
जेफ्री चॉसर इंग्लैंड का प्रसिद्ध लेखक था। उसने 1390 ई० में दि कैंटरबरी टेल्स का प्रकाशन किया। यह ग्रंथ अनेक कहानियों का संग्रह है। इससे हमें मध्यकालीन इंग्लैंड के समाज के संबंध में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। यह ग्रंथ संपूर्ण विश्व में बहुत लोकप्रिय हुआ।

प्रश्न 30.
निकोलो मैक्यिावेली क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
वह पुनर्जागरण काल का इटली का सबसे प्रसिद्ध विद्वान् था। उसने 1513 ई० में दि प्रिंस नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की। इसमें उसने उस समय की राजनीतिक समस्याओं का वर्णन किया है एवं शासन संबंधी नियमों पर प्रकाश डाला है।

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प्रश्न 31.
निकोलस कोपरनिकस कौन था ?
अथवा
कोपरनिकस क्रांति पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
निकोलस कोपरनिकस पोलैंड का प्रसिद्ध खगोल विज्ञानी था। उसने इस प्रचलित मत को अपनी पुस्तक ‘दि रिवल्यूशनिबस’ में यह असत्य सिद्ध किया कि पृथ्वी सभी ग्रहों का केंद्र है और अन्य ग्रह इसके इर्द-गिर्द चक्कर काटते हैं। उसने यह प्रमाणित किया कि पृथ्वी सहित सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर काटते हैं।

प्रश्न 32.
जोहानेस कैप्लर क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
जोहानेस कैप्लर जर्मनी का एक प्रसिद्ध खगोल विज्ञानी था। उसने ‘कॉस्मोग्राफ़िकल मिस्ट्री’ नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की। इसमें उसने सिद्ध किया कि पृथ्वी एवं अन्य ग्रह सूर्य के चारों ओर वृत्ताकार रूप से नहीं अपितु अंडाकार गति से घूमते हैं।

प्रश्न 33.
गैलिलियो गैलिली कौन था ?
उत्तर:
गैलिलियो गैलिली इटली का एक महान् वैज्ञानिक एवं गणितकार था। उसने दि मोशन नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की। इसमें उसने प्रमाणित किया कि सूर्य ही ब्रह्मांड का केंद्र है और पृथ्वी एवं अन्य ग्रह इसके इर्द गिर्द चक्कर काटते हैं।

प्रश्न 34.
आइज़क न्यूटन कौन था ?
उत्तर:
आइज़क न्यूटन 17वीं शताब्दी इंग्लैंड का एक महान् वैज्ञानिक था। उसने 1687 ई० में ‘प्रिंसिपिया मैथेमेटिका’ नामक प्रसिद्ध ग्रंथ का प्रकाशन किया। इसमें उसने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का वर्णन किया था। इस कारण उसकी विश्व में ख्याति बहुत बढ़ गई।

प्रश्न 35.
अंड्रीयस वेसेलियस कौन था ?
उत्तर:
अंड्रीयस वेसेलियस 16वीं शताब्दी इटली का एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक था। उसने 1543 ई० में ऑन एनॉटमी नामक ग्रंथ की रचना की। इसमें उसने शरीर रचना विज्ञान पर विस्तृत प्रकाश डाला है।

प्रश्न 36.
विलियम हार्वे क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
विलियम हार्वे (1578-1657 ई०) इंग्लैंड का एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक था। उसने 1628 ई० में यह सिद्ध किया कि रक्त हृदय से चलकर धमनियों तथा नाड़ियों से होता हुआ पुनः हृदय में पहुँच जाता है। इसे रुधिर परिसंचरण (blood circulation) का नाम दिया गया।

प्रश्न 37.
मानवतावादी युग में व्यापारी परिवारों में स्त्रियों की स्थिति के कोई दो बिंदु बताएँ।
उत्तर:

  • दुकानदारों की स्त्रियाँ दुकानों को चलाने में उनकी सहायता करती थीं।
  • व्यापारी परिवार की स्त्रियाँ परिवार के कारोबार को संभालती थीं।

प्रश्न 38.
कसांद्रा फेदले कौन थी ?
उत्तर:
वह वेनिस की एक प्रसिद्ध महिला थी। वह मानवतावादी विचारों की पक्षधर थी। उसने सभी महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। उसने पादुआ विश्वविद्यालय में भाषण दिया था।

प्रश्न 39.
ईसाबेला दि इस्ते कौन थी ?
उत्तर:
वह मंटुआ की एक प्रतिभाशाली महिला थी। उसने अपने पति की अनुपस्थिति में अपने राज्य पर शासन किया था। उसका दरबार बौद्धिक प्रतिभा के लिए प्रसिद्ध था। उसने पुरुष-प्रधान समाज में महिलाओं को अपनी पहचान बनाए रखने पर बल दिया।

प्रश्न 40.
पुनर्जागरण के कोई दो प्रमुख प्रभाव लिखें।
उत्तर:

  • इस कारण सामंतवाद को गहरा आघात लगा।
  • इस कारण कला एवं साहित्य को एक नया प्रोत्साहन मिला।

प्रश्न 41.
धर्म-सुधार आंदोलन क्या था ? इस आंदोलन के दो कारण लिखो।
उत्तर:

  • धर्म-सुधार आंदोलन से अभिप्राय मध्यकालीन समाज में आई धार्मिक कुरीतियों को दूर करने के लिए चलाए गए आंदोलन से है।
  • चर्च में भ्रष्टाचार बहत फैल गया था।
  • पोप द्वारा पाप स्वीकारोक्ति पत्र की बिक्री।

प्रश्न 42.
धर्म-सुधार आंदोलन के कोई दो उद्देश्य बताएँ।
उत्तर:

  • चर्च में फैले भ्रष्टाचार को समाप्त करना।
  • लोगों के जीवन में नैतिक सुधार करना।

प्रश्न 43.
पाप स्वीकारोक्ति (Indulgences) से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
पाप स्वीकारोक्ति एक ऐसा दस्तावेज़ था जो किसी व्यक्ति द्वारा किए गए उसके सभी पापों से मुक्ति दिलवा सकता था। यह वास्तव में पादरियों द्वारा जन-साधारण से धन ऐंठने का एक नया ढंग निकाला गया था। इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति पादरी को धन देकर इसे प्राप्त कर सकता था एवं पापों से छुटकारा पा सकता था।

प्रश्न 44.
मार्टिन लूथर क्यों प्रसिद्ध था?
उत्तर:
मार्टिन लूथर ने जर्मनी में धर्म-सुधार आंदोलन का सफल नेतृत्व किया था। उसने 1517 ई० में कैथोलिक चर्च में फैले भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए एक जोरदार आंदोलन का आरंभ किया था। उसका यह आंदोलन काफी सीमा तक सफल रहा।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
14वीं शताब्दी में यूरोपीय इतिहास की जानकारी देने वाले किसी एक प्रमुख स्त्रोत का नाम लिखें।
उत्तर:
मुद्रित पुस्तकें।

प्रश्न 2.
रेनेसाँ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
पुनर्जन्म।

प्रश्न 3.
‘दि सिविलाईजेशन ऑफ़ दि रेनेसाँ इन इटली’ का लेखक कौन था ?
उत्तर:
जैकब बर्कहार्ट।

प्रश्न 4.
जैकब बर्कहार्ट किस जर्मन इतिहासकार का शिष्य था ?
उत्तर:
लियोपोल्ड वॉन रांके।

प्रश्न 5.
पुनर्जागरण का उत्थान किस शताब्दी में हुआ ?
उत्तर:
14वीं शताब्दी में।

प्रश्न 6.
पुनर्जागरण सर्वप्रथम किस देश में आरंभ हुआ ?
उत्तर:
इटली में।

प्रश्न 7.
छापेखाने का आविष्कार किसने किया ?
उत्तर:
जोहानेस गुटेनबर्ग ने।

प्रश्न 8.
छापेखाने का आविष्कार कब हुआ था ?
उत्तर:
1455 ई० में।

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प्रश्न 9.
‘दि कॉमनवेल्थ एंड गवर्नमेंट ऑफ़ वेनिस’ का लेखक कौन था ?
उत्तर:
कार्डिनल गेसपारो कोंतारिनी।

प्रश्न 10.
11वीं शताब्दी में इटली के दो प्रसिद्ध विश्वविद्यालय कौन-से थे ?
उत्तर:
बोलोनिया एवं पादुआ।

प्रश्न 11.
पुनर्जागरण का पिता किसे माना जाता है ?
उत्तर:
फ्रांसिस्को पेट्रार्क को।

प्रश्न 12.
फ्राँसिस्को पेट्रार्क इटली में किस नगर का निवासी था ?
उत्तर:
फ्लोरेंस।

प्रश्न 13.
डिवाईन कॉमेडी का लेखक कौन था ?
उत्तर:
दाँते अलिगहियरी।

प्रश्न 14.
किसी एक प्रसिद्ध मानवतावादी का नाम लिखें।
उत्तर:
फ्रांसिस्को पेट्रार्क।

प्रश्न 15.
जोवान्ने बोकासियो की महान् रचना का नाम क्या था ?
उत्तर:
डेकामेरोन।

प्रश्न 16.
किस वर्ष जोवान्ने पिको देल्ला मिरांदोला की रचना औरेशन ऑन दि डिगनिटी ऑफ़ मैन प्रकाशित हुई ?
उत्तर:
1486 ई०।

प्रश्न 17.
निकोलो मैक्यिावेली की प्रसिद्ध रचना का नाम क्या था ?
उत्तर:
दि प्रिंस।

प्रश्न 18.
दि कैंटरबरी टेल्स का लेखक कौन था ?
उत्तर:
जेफ्री चॉसर।

प्रश्न 19.
सर टॉमस मोर की रचना यूटोपिया का प्रकाशन कब हुआ था ?
उत्तर:
1516 ई०।

प्रश्न 20.
दि प्रेज़ ऑफ फॉली का लेखक कौन था ?
उत्तर:
डेसीडेरियस इरेस्मस।

प्रश्न 21.
जोटो किस देश का प्रसिद्ध चित्रकार था ?
उत्तर:
इटली।

प्रश्न 22.
किस प्रसिद्ध चित्रकार ने ‘मोना लीसा’ एवं ‘दि लास्ट सपर’ नामक प्रसिद्ध चित्र बनाए ?
उत्तर:
लियोनार्डो दा विंसी।

प्रश्न 23.
मोना लीसा कौन थी ?
उत्तर:
एक साधारण स्त्री।

प्रश्न 24.
अल्बर्ट ड्यूरर के प्रसिद्ध चित्र का नाम क्या था ?
उत्तर:
प्रार्थना रत हस्त।

प्रश्न 25.
माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती किस देश का निवासी था ?
उत्तर:
इटली।

प्रश्न 26.
फिलिप्पो ब्रूनेलेशी ने भवनों के निर्माण के लिए किस शैली को अपनाया ?
उत्तर:
शास्त्रीय शैली।

प्रश्न 27.
‘दि पाइटा’ एवं ‘डेविड’ नामक प्रसिद्ध चित्रों का निर्माण किसने किया ?
उत्तर:
माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती।

प्रश्न 28.
लंदन में रॉयल सोसाइटी की स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर:
1662 ई० में।

प्रश्न 29.
फ्रांस में पेरिस अकादमी की स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर:
1666 ई० में।

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प्रश्न 30.
पुनर्जागरण काल के किसी एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक का नाम लिखें।
उत्तर:
आइज़क न्यूटन।

प्रश्न 31.
निकोलस कोपरनिकस किस देश का प्रसिद्ध विज्ञानी था ?
उत्तर:
पोलैंड का।

प्रश्न 32.
‘ऑन एनॉटमी’ का लेखक कौन था ?
उत्तर:
अंड्रीयस वेसेलियस।।

प्रश्न 33.
जोहानेस कैप्लर ने किस प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की थी ?
उत्तर:
कॉस्मोग्राफ़िकल मिस्ट्री।

प्रश्न 34.
विलियम हार्वे ने ‘रुधिर परिसंचरण’ का आविष्कार कब किया ?
उत्तर:
1628 ई० में।

प्रश्न 35.
गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत किस विज्ञानी से जुड़ा है ?
उत्तर:
आइज़क न्यूटन।

प्रश्न 36.
पुनर्जागरण काल की किसी एक प्रसिद्ध स्त्री का नाम लिखें।
उत्तर:
कसांद्रा फेदेले।

प्रश्न 37.
ईसाबेला दि इस्ते कहाँ की निवासी थी ?
उत्तर:
मंटुआ की।

प्रश्न 38.
यूरोप में धर्म सुधार आंदोलन कब आरंभ हुआ ?
उत्तर:
16वीं शताब्दी में।

प्रश्न 39.
यूरोप में धर्म सुधार आंदोलन को आरंभ करने का प्रमुख कारण क्या था ?
उत्तर:
चर्च में व्याप्त बुराइयाँ।

प्रश्न 40.
‘इन प्रेज़ ऑफ़ फॉली’ का लेखक कौन था ?
उत्तर:
डेसीडेरियस इरेस्मस।

प्रश्न 41.
जर्मनी में धर्म सुधार आंदोलन का संस्थापक कौन था ?
उत्तर:
मार्टिन लूथर।

प्रश्न 42.
वर्मज की सभा कब हुई ?
उत्तर:
18 अप्रैल, 1521 ई०।

प्रश्न 43.
मार्टिन लूथर की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर:
1546 ई० में।

प्रश्न 44.
उलरिक ग्विंगली किस देश से संबंधित था ?
उत्तर:
स्विट्जरलैंड।

प्रश्न 45.
इंस्टीच्यूट ऑफ क्रिश्चियन रिलिजन का संस्थापक कौन था ?
उत्तर:
जाँ कैल्विन।

प्रश्न 46.
जॉन वाइक्लिफ के शिष्य क्या कहलाए ?
उत्तर:
लोलार्ड।

प्रश्न 47.
सोसाइटी ऑफ़ जीसस की स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर:
1540 ई० में।

बह-विकल्पीय प्रश्न

1. 14वीं शताब्दी में फ्लोरेंस, वेनिस तथा रोम …………….. तथा …………… के मुख्य केंद्र बन गए थे।
उत्तर:
कला, विद्या

2. 19वीं शताब्दी में स्विट्जरलैंड के प्रसिद्ध इतिहासकार …………. ने पुनर्जागरण शब्द पर अत्यधिक बल दिया।
उत्तर:
जैकब बर्कहार्ट

3. ‘दि सिविलाईजेशन ऑफ़ दि रेनेसाँ इन इटली’ नामक पुस्तक की रचना …………….. ने की थी।
उत्तर:
जैकब बहार्ट

4. बहार्ट द्वारा ‘दि सिविलाईजेशन ऑफ़ दि रेनेसौं इन इटली’ नामक पुस्तक की रचना ……………….. ई० ___ में की गई।
उत्तर:
1860

5. “दि कॉमनवेल्थ एंड गवर्नमेंट ऑफ़ वेनिस’ नामक ग्रंथ की रचना …………….. द्वारा की गई थी।
उत्तर:
कार्डिनल गेसपारो

6. पेट्रार्क को रोम में ……………….. ई० में राजकवि की उपाधि से सम्मानित किया गया था।
उत्तर:
1341

7. दि कैंटरबरी टेल्स का प्रकाशन ……………….. द्वारा किया गया।
उत्तर:
जेफ्री चॉसर

8. कोलंबस ……………… ई० में अमेरिका पहुँचे।
उत्तर:
1492

9. लियोनार्डो दा विंसी की प्रसिद्ध रचना ……………….. है।
उत्तर:
मोना लीसा

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10. 11वीं शताब्दी में ‘पादुआ’ तथा ……………… विश्वविद्यालय विधिशास्त्र के अध्ययन केंद्र रहे।
उत्तर:
बोलोनिया

11. फ्लोरेंस ……………….. के सबसे जीवंत बौद्धिक नगर के रूप में जाना जाता था।
उत्तर:
इटली

12. फलोरेंस के मानवतावादी जोवान्ने पिको देल्ला मिरांढोला ने …………….. पुस्तक की रचना की।
उत्तर:
औरेशन ऑन दि डिगनिटी ऑफ़ मैन

13. बेल्जियम मूल के ………………. ने सूक्ष्म-परीक्षण के लिए मनुष्य के शरीर की चीर-फाड़ की।
उत्तर:
अंड्रीयस वेसेलियस

14. जोहानेस गुटेनबर्ग ………………. के रहने वाले थे।
उत्तर:
जर्मनी

15. निकोलो मैक्यावेली ने ……………… ग्रंथ की रचना की।
उत्तर:
दि प्रिंस

16. मटुंआ राज्य की सर्वाधिक प्रतिभाशाली स्त्री का नाम …………… था।
उत्तर:
ईसाबेला दि इस्ते

17. मार्टिन लूथर द्वारा ……………….. ई० में कैथोलिक चर्च के विरुद्ध अभियान आरंभ किया गया।
उत्तर:
1517

18. इग्नेशियस लोयोला ने 1540 ई० में …………….. नामक संस्था की स्थापना की।
उत्तर:
सोसायटी ऑफ़ जीसस

19. ………….. ने यह घोषणा की कि पृथ्वी समेत सारे ग्रह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं।
उत्तर:
निकोलस कोपरनिकस

20. फ्रांस में पेरिस अकादमी की स्थापना ………….. में की गई थी।
उत्तर:
1666 ई०

रिका स्थान भरिए

1. छापेखाने का आविष्कारक किसे माना जाता है ?
(क) फाँसिस्को पेट्रार्क को
(ख) सर टामस मोर को
(ग) फिलिप्पो ब्रूनेलेशी को
(घ) जोहानेस गुटेनबर्ग को।
उत्तर:
(घ) जोहानेस गुटेनबर्ग को।

2. गुटेनबर्ग किस देश का रहने वाला था?
(क) फ्रॉस
(ख) इंग्लैंड
(ग) चीन
(घ) जर्मनी।
उत्तर:
(घ) जर्मनी।

3. तुर्कों ने कुंस्तुनतुनिया पर कब अधिकार किया था ?
(क) 1433 ई० में
(ख) 1453 ई० में
(ग) 1463 ई० में
(घ) 1473 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1453 ई० में

4. पुनर्जागरण का आरंभ किस देश से हुआ था ?
(क) इंग्लैंड
(ख) फ्राँस
(ग) इटली
(घ) जर्मनी।
उत्तर:
(ग) इटली

5. मानवतावाद का पिता किसे कहा जाता है ?
(क) फ्राँसिस्को पेट्रार्क
(ख) जोवान्ने बोकासियो
(ग) दाँते अलिगहियरी
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) फ्राँसिस्को पेट्रार्क

6. डिवाईन कॉमेडी की रचना किसने की है ?
(क) गुटेनबर्ग ने
(ख) दाँते ने
(ग) कोपरनिकस ने
(घ) लूथर ने।
उत्तर:
(ख) दाँते ने

7. औरेशन ऑन दि डिगनिटी ऑफ़ मैन का प्रकाशन किस वर्ष हुआ था ?
(क) 1476 ई० में
(ख) 1480 ई० में
(ग) 1485 ई० में
(घ) 1486 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1486 ई० में।

8. दि प्रिंस का लेखक कौन था ?
(क) निकोलो मैक्यिावेली
(ख) सर टॉमस मोर
(ग) दोनातल्लो
(घ) मार्टिन लूथर।
उत्तर:
(क) निकोलो मैक्यिावेली

9. जेफ्री चॉसर ने किस प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की ?
(क) यूटोपिया
(ख) दि प्रिंस
(ग) दि कैंटरबरी टेल्स
(घ) दि प्रेज ऑफ़ फॉली।
उत्तर:
(ग) दि कैंटरबरी टेल्स

10. यूटोपिया का लेखक कौन था ?
(क) डेसीडेरियस इरेस्मस
(ख) सर टॉमस मोर
(ग) फिलिप्पो ब्रूनेलेशी
(घ) अल्बर्ट ड्यूरर।
उत्तर:
(ख) सर टॉमस मोर

11. दि प्रेज़ ऑफ़ फॉली का प्रकाशन किस वर्ष हुआ था ?
(क) 1309 ई० में
(ख) 1409 ई० में
(ग) 1509 ई० में
(घ) 1609 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1509 ई० में

12. जोटो किस देश का महान् चित्रकार था ?
(क) जर्मनी
(ख) फ्राँस
(ग) ऑस्ट्रेलिया
(घ) इटली।
उत्तर:
(घ) इटली।

13. ‘मोना लीसा’ नामक चित्र किसने बनाया था ?
(क) लियोनार्डो दा विंसी
(ख) माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती
(ग) फिलिप्पो ब्रूनेलेशी
(घ) दोनातल्लो ।
उत्तर:
(क) लियोनार्डो दा विंसी

14. अल्बर्ट ड्यूरर ने प्रार्थना रत हस्त चित्र को कब बनाया था ?
(क) 1507 ई० में
(ख) 1508 ई० में
(ग) 1509 ई० में
(घ) 1512 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1508 ई० में

15. निम्नलिखित में से किस कलाकार ने दि पाइटा नामक मूर्ति का निर्माण किया ?
(क) माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती
(ख) दोनातल्लो
(ग) लियोनार्डो दा विंसी
(घ) जोटो।
उत्तर:
(क) माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती

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16. रॉयल सोसाइटी की स्थापना कहाँ की गई थी ?
(क) लंदन
(ख) पेरिस
(ग) रोम
(घ) नेपल्स।
उत्तर:
(क) लंदन

17. ‘स्फटिक प्रासाद’ कहाँ स्थित है ?
(क) लंदन में
(ख) पेरिस में
(ग) मास्को में
(घ) सिडनी में।
उत्तर:
(क) लंदन में

18. पेरिस अकादमी की स्थापना कब की गई थी ?
(क) 1662 ई० में
(ख) 1666 ई० में
(ग) 1675 ई० में
(घ) 1680 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1666 ई० में

19. निकोलस कोपरनिकस किस देश का महान् विज्ञानी था ?
(क) इंग्लैंड
(ख) चीन
(ग) पोलैंड
(घ) भारत।
उत्तर:
(ग) पोलैंड

20. ऑन एनॉटमी का लेखक कौन था ?
(क) निकोलस कोपरनिकस
(ख) जोहानेस कैप्लर
(ग) आइज़क न्यूटन
(घ) अंड्रीयस वेसेलियस।
उत्तर:
(घ) अंड्रीयस वेसेलियस।

21. निम्नलिखित में से किसने दूरबीन का आविष्कार किया ?
(क) विलियम हार्वे
(ख) जोहानेस कैप्लर
(ग) गैलिलियो गैलिली
(घ) अंड्रीयस वेसेलियस।
उत्तर:
(ग) गैलिलियो गैलिली

22. जोहानेस कैप्लर द्वारा लिखित पुस्तक का नाम लिखें।
(क) दि रिवल्यूशनिबास
(ख) ऑन एनॉटमी
(ग) दि मोशन
(घ) कॉस्मोग्राफ़िकल मिस्ट्री।
उत्तर:
(घ) कॉस्मोग्राफ़िकल मिस्ट्री।

23. विलियम हार्वे ने रुधिर परिसंचरण को कब सिद्ध किया ?
(क) 1618 ई० में
(ख) 1628 ई० में
(ग) 1638 ई० में
(घ) 1648 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1628 ई० में

24. किस विज्ञानी ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत प्रस्तुत किया ?
(क) आइज़क न्यूटन
(ख) विलियम हार्वे
(ग) निकोलस कोपरनिकस
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) आइज़क न्यूटन

25. कसांद्रा फेदेले कहाँ की निवासी थी ?
(क) पादुआ
(ख) वेनिस
(ग) मंटुआ
(घ) रोम।
उत्तर:
(ख) वेनिस

26. मार्टिन लूथर किस देश का निवासी था ?
(क) जर्मनी
(ख) फ्राँस
(ग) अमरीका
(घ) इटली।
उत्तर:
(क) जर्मनी

27. मार्टिन लूथर ने कैथोलिक चर्च के विरुद्ध अभियान कब छेड़ा ?
(क) 1507 ई० में
(ख) 1517 ई० में
(ग) 1527 ई० में
(घ) 1537 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1517 ई० में

28. उलरिक धिंगली किस देश से संबंधित था ?
(क) जर्मनी
(ख) इटली
(ग) फ्राँस
(घ) स्विट्जरलैंड।
उत्तर:
(घ) स्विट्जरलैंड।

29. लोलार्ड किसके शिष्य थे ?
(क) जॉन वाईक्लिफ
(ख) जौं कैल्विन
(ग) इग्नेशियस लोयोला
(घ) मार्टिन लूथर।
उत्तर:
(क) जॉन वाईक्लिफ

30. सोसाइटी ऑफ़ जीसस का संस्थापक कौन था ?
(क) जौं कैल्विन
(ख) उलरिक ज्विंगली
(ग) इग्नेशियस लोयोला
(घ) जॉन वाईक्लिफ।
उत्तर:
(ग) इग्नेशियस लोयोला

बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ HBSE 11th Class History Notes

→ 14वीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी तक के समय के दौरान यूरोप की सांस्कृतिक परंपराओं में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए। इससे पूर्व मध्यकाल में यूरोप के लोगों पर चर्च का प्रभाव था। इस काल में लोग इहलोक की अपेक्षा परलोक की अधिक चिंता करते थे।

→ पुनर्जागरण लोगों के लिए एक नए युग का संदेश लेकर आया। यह आंदोलन सर्वप्रथम इटली में आरंभ हुआ था। इटली के फ्लोरेंस, वेनिस एवं रोम नामक नगरों ने, जो कला एवं विद्या के विश्वविख्यात केंद्र बने लोगों में एक नई जागृति उत्पन्न करने में उल्लेखनीय योगदान दिया।

→ वास्तव में इटली ने जो चिंगारी जलायी वह शीघ्र ही संपूर्ण यूरोप में एक मशाल का रूप धारण कर गई। यूरोप के साहित्यकारों एवं कलाकारों ने यूरोपीय साहित्य एवं कला को एक नई दिशा प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनका उद्देश्य मानवतावाद का प्रसार करना था।

→ मानवतावाद में मनुष्य को विशेष महत्त्व प्रदान किया गया था। पुनर्जागरण काल में विज्ञान के क्षेत्र में जो प्रगति हुई उसने मनुष्य के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन कर दिए।

→ इसी काल में यूरोप में धर्म-सुधार आंद का उदय हुआ। इसका उद्देश्य चर्च में फैली बुराइयों को दूर करना था। इस आंदोलन को सफल बनाने में जर्मनी के मार्टिन लूथर, स्विटज़रलैंड के उलरिक ज्विंगली एवं फ्रांस के जौं कैल्विन का उल्लेखनीय योगदान था।

→ वास्तव में पुनर्जागरण एवं धर्म-सुधार आंदोलन ने यूरोपीय समाज की सांस्कृतिक परंपराओं को बदलने में प्रमुख भूमिका निभाई। इस काल के यूरोपीय इतिहास की जानकारी के लिए बहुत अधिक सामग्री दस्तावेजों, पुस्तकों, चित्रों, मूर्तियों, भवनों एवं वस्त्रों से प्राप्त होती है।

→ इन्हें यूरोप तथा अमरीका के अभिलेखागारों, कला चित्रशालाओं एवं संग्रहालयों में सुरक्षित रखा हुआ है। स्विट्जरलैंड के ब्रेसले विश्वविद्यालय के इतिहासकार जैकब बर्कहार्ट (Jacob Burckhardt) ने रेनेसाँ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1860 ई० में प्रकाशित अपनी पुस्तक दि सिविलाईजेशन ऑफ़ दि रेनेसाँ इन इटली (The Civilisation of the Renaissance in Italy) में किया है। वह जर्मन इतिहासकार लियोपोल्ड वॉन रांके (Leopold Von Ranke) का विद्यार्थी था।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. भारत का कितना क्षेत्रफल वनों के अंतर्गत आता है?
(A) 12.50%
(B) 15.49%
(C) 19.39%
(D) 33.25%
उत्तर:
(C) 19.39%

2. भारत में कुल कितने जीवमंडल निचय हैं?
(A) 9
(B) 12
(C) 14
(D) 16
उत्तर:
(C) 14

3. भारत में एक सींग वाले गैंडे कहाँ मिलते हैं?
(A) ओडिशा (उड़ीसा) में
(B) मध्य प्रदेश में
(C) असम में
(D) गुजरात में
उत्तर:
(C) असम में

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4. भारत के सबसे बड़े क्षेत्र में किन वनों का फैलाव है?
(A) उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों का
(B) कंटीले वनों का
(C) उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों का
(D) डेल्टाई वनों का
उत्तर:
(A) उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों का

5. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों के वृक्ष हैं
(A) सागोन
(B) साल
(C) नीम
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

6. मैंग्रोव वन किन क्षेत्रों में पाए जाते हैं?
(A) डेल्टाई क्षेत्रों में
(B) पर्वतीय क्षेत्रों में
(C) मैदानी क्षेत्रों में
(D) मरुस्थलीय क्षेत्रों में
उत्तर:
(A) डेल्टाई क्षेत्रों में

7. कंटीली झाड़ियाँ किन क्षेत्रों में पाई जाती हैं?
(A) डेल्टाई क्षेत्रों में
(B) पर्वतीय क्षेत्रों में
(C) मैदानी क्षेत्रों में
(D) मरुस्थलीय क्षेत्रों में
उत्तर:
(D) मरुस्थलीय क्षेत्रों में

8. सुंदरवन जीव मंडल निचय किस राज्य में स्थापित है?
(A) पश्चिमी बंगाल में
(B) उत्तराखंड में
(C) मध्य प्रदेश में
(D) उत्तर प्रदेश में
उत्तर:
(A) पश्चिमी बंगाल में

9. भारत में पाई जाने वाली वनस्पति में बोरियल वनस्पति का अनुपात कितना है?
(A) 20%
(B) 30%
(C) 35%
(D) 40%
उत्तर:
(D) 40%

10. उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन क्षेत्रों में वर्षा की कितनी मात्रा पाई जाती है?
(A) 75 cm से कम
(B) 100 cm
(C) 150 cm
(D) 200 cm से अधिक
उत्तर:
(D) 200 cm से अधिक

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11. भारत में बाघ विकास कार्यक्रम परियोजना की शुरुआत की गई
(A) सन् 1973 में
(B) सन् 1974 में
(C) सन् 1975 में
(D) सन् 1976 में
उत्तर:
(A) सन् 1973 में

12. गिर वन किस प्राणी की शरणस्थली है?
(A) मोर
(B) हाथी
(C) शेर
(D) बाघ
उत्तर:
(C) शेर

13. भारत का राष्ट्रीय पशु है-
(A) मोर
(B) हाथी
(C) शेर
(D) बाघ
उत्तर:
(D) बाघ

14. भारत का राष्ट्रीय पक्षी है
(A) मोर
(B) हाथी
(C) शेर
(D) बाघ
उत्तर:
(A) मोर

15. भारतीय वन्य जीवमंडल का गठन कब किया गया-
(A) सन् 1952 में
(B) सन् 1965 में
(C) सन् 1972 में
(D) सन् 1999 में
उत्तर:
(A) सन् 1952 में

16. वन्य जीव संरक्षण अधिनियम बनाया गया-
(A) सन् 1952 में
(B) सन् 1965 में
(C) सन् 1972 में
(D) सन् 1999 में
उत्तर:
(C) सन् 1972 में

17. हरा सोना कहा जाता है-
(A) कोयले को
(B) वृक्षों को
(C) पर्वतों को
(D) सागर को
उत्तर:
(B) वृक्षों को

18. महोगिनी उदाहरण है
(A) डेल्टाई वन का
(B) मरुस्थलीय वन का
(C) उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन का
(D) उष्णकटिबंधीय शुष्क वन का
उत्तर:
(C) उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन का

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
नंदा देवी जीवमंडल निचय किस प्रांत में स्थित है?
उत्तर:
उत्तराखंड।

प्रश्न 2.
भारत में वन्य प्राणी अधिनियम कब पारित हुआ?
उत्तर:
सन् 1972 में।

प्रश्न 3.
भारतीय वन्य जीवमंडल का गठन कब किया गया?
उत्तर:
1952 में।

प्रश्न 4.
भारत में देशज अथवा स्थापित अथवा मौलिक वनस्पति कहाँ पाई जाती है?
उत्तर:
हिमालय तथा प्रायद्वीपीय क्षेत्र के अधिकांश भागों में।

प्रश्न 5.
भारत में चीनी-तिब्बती क्षेत्र से आने वाली वनस्पति को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
बोरियल वनस्पति।

प्रश्न 6.
भारत में उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों से प्राप्त हुई वनस्पति को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
पुराउष्ण कटिबन्धीय जात।

प्रश्न 7.
बाघ परियोजना कब आरंभ की गई?
उत्तर:
1973 में।

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प्रश्न 8.
उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन हमेशा हरे क्यों दिखाई पड़ते हैं?
उत्तर:
विभिन्न जातियों के वृक्षों के पत्ते गिरने का समय अलग-अलग होने के कारण।

प्रश्न 9.
उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती अथवा मानसूनी वन किन जलवायविक दशाओं में उगते हैं?
उत्तर:
वार्षिक वर्षा 100 से 200 सें०मी० तथा सारा वर्ष ऊँचा (24°C) तापमान।

प्रश्न 10.
भारत में पाई जाने वाली वनस्पति में बोरियल वनस्पति का अनुपात कितना है?
उत्तर:
40 प्रतिशत।

प्रश्न 11.
हिमालय में वनस्पति के प्रकार को सर्वाधिक प्रभावित करने वाला कारक कौन-सा है?
उत्तर:
ऊँचाई।

प्रश्न 12.
प्राकृतिक वनस्पति का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर:
प्राकृतिक वनस्पति का दूसरा नाम अक्षत वनस्पति है।

प्रश्न 13.
वनस्पति जगत का क्या अर्थ है?
उत्तर:
वनस्पति जगत का अर्थ किसी विशेष क्षेत्र में किसी समय में पौधों की उत्पत्ति से है।

प्रश्न 14.
मरुस्थल में किस प्रकार की वनस्पति पाई जाती है?
उत्तर:
मरुस्थल में कांटेदार झाड़ियाँ पाई जाती हैं।

प्रश्न 15.
पर्वत की ढलानों पर किस प्रकार के वन पाए जाते हैं?
उत्तर:
पर्वत की ढलानों पर शंकुधारी वन पाए जाते हैं।

प्रश्न 16.
पर्वतीय वन कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
हिमाचल प्रदेश, उत्तराँचल तथा जम्मू और कश्मीर।

प्रश्न 17.
एक सींग वाले गैंडे कहाँ मिलते हैं?
उत्तर:
असम तथा पश्चिमी बंगाल के दलदल वाले क्षेत्रों में।

प्रश्न 18.
भारत में सबसे बड़े क्षेत्र पर कौन-से वन फैले हैं?
उत्तर:
भारत में सबसे बड़े क्षेत्र पर उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन फैले हैं।

प्रश्न 19.
खजूर तथा नागफनी किस प्रकार के वनों की वनस्पति है?
उत्तर:
खजूर तथा नागफनी कंटीले वनों की वनस्पति है।

प्रश्न 20.
सिमलीपाल जीव मंडल निचय कौन-से राज्य में स्थित है?
उत्तर:
ओडिशा में।

प्रश्न 21.
भारत में हाथी कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
भारत में हाथी असम, कर्नाटक तथा केरल में पाए जाते हैं।

प्रश्न 22.
भारत में जंगली गधे कहाँ मिलते हैं?
उत्तर:
भारत में जंगली गधे कच्छ के रन में मिलते हैं।

प्रश्न 23.
भारत में याक कहाँ पाए जाते है?
उत्तर:
भारत में याक लद्दाख की बर्फीली ऊँचाइयों पर पाए जाते हैं।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत का कितना क्षेत्रफल वनों के अन्तर्गत आता है?
उत्तर:
19.39 प्रतिशत अथवा 637.3 लाख हैक्टेयर।

प्रश्न 2.
वन किन भौगोलिक कारकों की देन होते हैं?
उत्तर:
जलवायु (धूप एवं वर्षा), समुद्र तल से ऊँचाई तथा भू-गर्भिक संरचना।

प्रश्न 3.
उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वनों के कुछ प्रमुख वृक्षों के नाम बताओ।
उत्तर:
ताड़, महोगनी, रबड़, बाँस, बेंत तथा आबनूस।

प्रश्न 4.
डेल्टाई वनों के अन्य नाम बताइए।
उत्तर:
दलदली वन, ज्वारीय वन, मैंग्रोव वन।

प्रश्न 5.
डेल्टाई वनों के कुछ प्रमुख वृक्षों के नाम बताइए।
उत्तर:
ताज, ताड़, बेंत, नारियल, रोज़ोफरोश, सोनेरिटा व फीनिक्स इत्यादि।

प्रश्न 6.
प्राकृतिक वनस्पति किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह वनस्पति जो बिना मनुष्य की सहायता के किसी प्रदेश में अपने-आप उग आती है।

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प्रश्न 7.
औषधि देने वाले पाँच पौधों के नाम लिखें।
उत्तर:

  • नीम
  • तुलसी
  • आंवला
  • सर्प गंधा
  • जामुन।

प्रश्न 8.
उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों के तीन वृक्षों के नाम लिखें।
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों के तीन वृक्षों के नाम महोगनी, रोजवुड और रबड़ है।

प्रश्न 9.
देशज वनस्पति किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह वनस्पति जो मूलरूप से भारतीय हो, उसे देशज वनस्पति कहते हैं।

प्रश्न 10.
विदेशज वनस्पति किसे कहते हैं?
उत्तर:
जो वनस्पति विदेशों से भारत में आई है, उसे विदेशज वनस्पति कहते हैं।

प्रश्न 11.
हिमरेखा के पास वनस्पति के विकास की दशाएँ कैसी होती हैं?
उत्तर:
भारी ठण्ड के कारण वृक्षों में गाँठे पड़ जाती हैं और उनका विकास अवरुद्ध हो जाता है।

प्रश्न 12.
वृक्षों को ‘हरा सोना’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
उनके आर्थिक, औद्योगिक एवं पर्यावरणीय महत्त्व के कारण।

प्रश्न 13.
पारिस्थितिक तंत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक वातावरण एवं उसमें रहने वाले जीव आपस में घुल-मिलकर रहते हैं। इसी व्यवस्था को पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं। मनुष्य भी इस पारिस्थितिक तंत्र का अभिन्न अंग है।

प्रश्न 14.
भारत के चार ‘जीवमण्डल निचय’ के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. नीलगिरी जीवमण्डल निचय
  2. मानस जीवमण्डल निचय
  3. सुंदरवन जीवमण्डल निचय
  4. नंदा देवी जीवमण्डल निचय।।

प्रश्न 15.
भारत में पादपों तथा जीवों का वितरण किन तत्त्वों द्वारा निर्धारित होता है?
उत्तर:

  1. धरातल
  2. मृदा
  3. तापमान
  4. वर्षण
  5. सूर्य का प्रकाश।

प्रश्न 16.
कोई दो वन्य प्राणियों के नाम बताइए जो कि उष्ण कटिबंधीय वर्षा और पर्वतीय वनस्पति में मिलते हैं?
उत्तर:

  1. उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन-हाथी और बंदर
  2. पर्वतीय वन बारहसिंगा और याक।

प्रश्न 17.
संकटमयी जातियों तथा दुर्लभ जातियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1. संकटमयी जातियाँ इस श्रेणी में वे जातियाँ आती हैं जो चारों ओर से खतरों से घिरी हुई हैं, उनके विलुप्त होने की पूरी सम्भावना है।उनकी संख्या बहुत थोड़ी रह गई है और उनका आवास भी काफी नष्ट हो चुका है।

2. दुर्लभ जातियाँ ये वे जातियाँ हैं जो संख्या में बहुत कम हैं और कुछ ही आवासों में जीवित हैं। उनके जीवन को तुरन्त कोई खतरा नहीं है, किन्तु उनके नष्ट होने की पूरी सम्भावना है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संकटापन्न जीवों के संरक्षण के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं? संकटापन्न जातियों के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
भारत में संकटापन्न जातियों के संरक्षण के लिए विशेष उपाय किए जा रहे हैं। इसके लिए वन्य प्राणियों की गणना की जाती है तथा उन जीवों की नवीनतम स्थिति और प्रवृत्ति का अनुमान लगाया जाता है। बाघ संरक्षण के लिए टाइगर प्रोजैक्ट योजना चलाई गई है जिसमें बाघों के आवास को बचाया जाता है तथा उनकी संख्या के स्तर को बनाए रखा जाता है। संकटापन्न जातियाँ-बाघ, गैण्डा, समुद्री गाय।

प्रश्न 2.
वन्य-जीवन के महत्त्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
उत्तर:
1. आर्थिक महत्त्व-वन्य-जीवन से हमें अनेक उत्पादों की प्राप्ति होती है। अनेक जानवरों का उपयोग खेती, परिवहन तथा बोझा ढोने में किया जाता है।

2. पारिस्थितिक तन्त्र का नियमन वन्य-जीवन (पौधे और प्राणी) अपनी संख्या सन्तुलित तो रखते ही हैं, बल्कि खाद्य-शृंखला तथा प्राकृतिक चक्रों को भी नियमित करते हैं।

3. जीन बैंक के रूप में वन्य-जीवन में कुछ बहुत उपयोगी जीन होते हैं। फसलों की उत्तम जातियाँ उत्पन्न करने के लिए वैज्ञानिकों को उत्तम जीन वाले पौधों की ज़रूरत होती है। इसी प्रकार रोग-प्रतिरोधी पौधे उत्पन्न करने के लिए भी उत्तम जीनों की आवश्यकता होती है।

4. अनुसन्धान-पौधे तथा जन्तु बायो मेडिकल अनुसन्धान के अभिन्न अंग हैं।

5. मनोरंजनात्मक महत्त्व प्राणियों के व्यवहार को प्राकृतिक वातावरण में देखना अच्छा लगता है। पक्षी शरणस्थल तथा बड़े-बड़े एक्वेरियम मनुष्य का मन मोह लेते हैं। इससे मनुष्य का मनोरंजन होता है तथा पर्यटन का भी विकास होता है।

प्रश्न 3.
वन्य-जीव (संरक्षण) अधिनियम का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सन् 1972 में वन्य-जीव (संरक्षण) अधिनियम बनाया गया जिसके अन्तर्गत-

  1. वन्य जीवन को वैधानिक संरक्षण
  2. वन्य प्राणियों के शिकार पर प्रतिबन्ध
  3. चोरी से शिकार करने वालों को कठोर दण्ड का प्रावधान
  4. शेर, बाघ, गेंडे व हाथियों के शिकार को दण्डनीय अपराध घोषित करना
  5. दुर्लभ व समाप्त हो रही प्रजातियों के व्यापार पर रोक (शाहतूश की शालों के व्यापार पर रोक)
  6. वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए समिति गठित करना जैसे प्रावधान किए गए।

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प्रश्न 4.
वनस्पति जात और वनस्पति में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वनस्पति जात और वनस्पति में निम्नलिखित अन्तर हैं-

वनस्पति ज्ञात वनस्पति
1. किसी विशिष्ट प्रदेश अथवा युग के पेड़-पौधों की विभिन्न जातियाँ, जिन्हें एक वर्ग में रखा जा सकता है, ‘बनस्पति जात’ कहलाती हैं। 1. किसी विशिष्ट पर्यावरण में पनपने वाले पेड़-पौधों की विभिन्न जातियों के समूह को ‘वनस्पति’ कहते हैं।
2. पर्यावरण में भिन्नता के कारण पेड़-पौधों की विभिन्न जातियाँ उगती और बढ़ती हैं। 2. एक जैसे पर्यावरण में पाये जाने वाले विभिन्न पेड़-पौधे एक दूसरे के साहचर्य में पनपते हैं।
3. परस्पर मिलती-जुलती पेड़-पौधों की विभिन्न जातियों को एक वर्ग में रखा जाता है और उस वर्ग का एक विशेष नाम होता है; जैसे भारत में पाए जाने वाले चीनी-तिब्बती क्षेत्र से प्राप्त पेड़-पौधों की जातियों के वर्ग को बोरियल कहते हैं। 3. वनस्पति एक प्रदेश में विविध दृश्यावली प्रस्तुत करती है, जैसे-घास-भूमि, वनस्थली व झाड़ियाँ इत्यादि।

प्रश्न 5.
“मैंग्रोव वन सम्पन्न पारिस्थितिक तन्त्र हैं।” संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मैंग्रोव अपने आप में समृद्ध और सम्पन्न पारिस्थितिक तन्त्र (Eco-system) हैं। अत्यधिक नमी, पर्याप्त धूप, गले-सड़े जैव पदार्थों से प्राप्त पोषक तत्त्व, नदियों के बहते जल से प्राप्त खनिजांश की बहुतायत के कारण ये वन जीवन के अनेक रूपों के पैदा होने, फलने व बढ़ने की अनकल प्राकृतिक दशाएँ प्रदान करते हैं। घने पत्तों (Foliage) की छाय में उलझी हुई मज़बूत जड़ों की सुरक्षा के कारण ये वृक्ष असंख्य जीव-जन्तुओं, कीड़े-मकौड़ों, मछलियों, झींगों व अन्य जलीय जीवों के विकास, विशेष रूप से उनके प्रजनन काल में आश्रय-स्थली का काम करते हैं। ज्वारीय जल के संचरण के समय ये वृक्ष अपनी जड़ों के जाल से मुलायम कीचड़ को रोककर मिट्टी के पोषक तत्त्वों को कार्य समुद्र में न जाने देकर मृदा-संरक्षण में अनूठी भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 6.
चिड़ियाघर (Z00) तथा राष्ट्रीय उद्यान (National Park) में अंतर बताइए।
उत्तर:
चिड़ियाघर-चिड़ियाघर वह स्थान है, जहाँ पर जंगली पशु तथा पक्षी रखे जाते हैं। इन्हें पिंजरों में बंद रखा जाता है और नियमित समय पर भोजन दिया जाता है। राष्ट्रीय उद्यान-इसमें वनस्पति तथा पशु-पक्षियों को संरक्षित रखा जाता है। इसमें वन्य-प्राणियों को प्राकृतिक वातावरण में जीवन-निर्वाह करने दिया जाता है। इसमें पशु-पक्षी अपने भोजन की व्यवस्था उन्हीं सीमाओं में स्वयं करते हैं, जहाँ उन्हें संरक्षण प्रदान किया जाता है।

प्रश्न 7.
वनस्पति और वन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वनस्पति और वन में निम्नलिखित अन्तर हैं-

वनस्पति वन
1. किसी विशिष्ट पर्यावरण में पनपने वाले पेड़-पौधों की विभिन्न जातियों के समूह को ‘वनस्पति’ कहते हैं। 1. पेड़-पौधों से ढके हुए विशाल प्रदेश को ‘बन’ कहा जाता है।
2. एक जैसे पर्यावरण में पाए जाने वाले विभिन्न पेड़-पौधे एक दूसरे के साहचर्य में पनपते हैं। 2. वन से तात्पर्य परस्पर निकट उगने वाले पेड़ों से है।
3. बनस्पति एक प्रदेश में विविध दृश्यावली प्रस्तुत करती है, जैसे-घास-भूमि, वनस्थली व झाड़ियाँ इत्यादि। 3. वन सामान्यतः एक ही प्रकार के पेड़ों की दृश्यावली प्रस्तुत करते हैं; जैसे-पर्णपाती वन, शंकु-धारी वन, सदाबहार वन इत्यादि।

प्रश्न 8.
घास और झाड़ियों में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
घास और झाड़ियों में निम्नलिखित अन्तर हैं-

घास झाड़ियाँ
1. यह आर्द्र उष्ण कटिबन्ध तथा मानसून प्रदेशों में उगती है। 1. ये मरुस्थलीय क्षेत्रों में उगती हैं।
2. यह पशुओं के लिए चारे के रूप में प्रयोग होती है। 2. आर्थिक दृष्टि से इनका कोई विशेष महत्त्व नहीं होता।
3. घास के मैदान कृषि की दृष्टि से उपजाऊ होते हैं। 3. झाड़ियों वाले मरुस्थलीय क्षेत्रों में कृषि सम्भव नहीं है।
4. यह हरी-भरी होती है। 4. ये प्रायः कांटेदार होती हैं।
5. इसकी ऊँचाई कुछ सें०मी० से लेकर कुछ मीटरों तक होती है। 5. इनकी ऊँचाई प्रायः मीटरों में मापी जा सकती है।

प्रश्न 9.
सदाबहार तथा डेल्टाई वन में अन्तर बताइए।
उत्तर:
सदाबहार तथा डेल्टाई वन में निम्नलिखित अन्तर हैं-

सदाबहार वन डेल्टाई वन
1. ये बन पश्चिमी तटीय मैदान, असम, मेघालय, नगालैण्ड, मणिपुर तथा पश्चिमी बंगाल में पाए जाते हैं। 1. ये बन गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, गोदावरी, कृण्गा तथा कावेरी आदि नदियों के डेल्टा प्रदेशों में पाए जाते हैं।
2. ये अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं। 2. ये उपजाऊ डेल्टाई मिट्टी के प्रदेशों में पाए जाते हैं।
3. इन वनों में ताड़, महोगनी तथा सिनकोना वृक्ष अधिक मिलते हैं। 3. इनमें सुन्दरी, नारियल तथा मैंग्रोव वृक्ष अधिक हैं।
4. इन वनों में उपयोगी वृक्ष कम होते हैं। 4. ये वन उपयोगी होते हैं।

प्रश्न 10.
वनों का आर्थिक महत्त्व बताइए।
उत्तर:
भारत के वनों के आर्थिक महत्त्व का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है-
1. वन्नों की मुख्य उपजें-वनों से ईंधन तथा इमारती लकडी प्राप्त होती है। इन वनों में साल, सागवान तथा देवदार की लकडी इमारतों के काम के लिए महत्त्वपूर्ण समझी जाती है।

2. वनों की सामान्य उपजें वनों से अनेक वस्तुएँ प्राप्त होती हैं। वृक्षों की छाल से चमड़ा रंगने का काम लिया जाता है। चंदन की लकड़ी से सुगंधित तेल प्राप्त होता है। वनों से अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियाँ प्राप्त होती हैं। कुनैन तथा रबड़ जैसी उपयोगी वस्तुएँ भी वनों से प्राप्त होती हैं।

3. माँस, खाल तथा सींगों की प्राप्ति-वन प्रदेश शिकार के लिए उत्तम स्थान होते हैं, जहाँ शिकारी लोग शिकार करने जाते हैं। इनमें माँस, खाल, सींग इत्यादि वस्तुएँ प्राप्त होती हैं।

4. वनों पर निर्भर उद्योग-वन संबंधी उद्योग भारत की अर्थव्यवस्था के अंग हैं। भारतीय वनों पर आधारित मुख्य उद्योग; जैसे रेशम के कीड़े पालना, कागज़ उद्योग, लाख इकट्ठा करना, दियासलाई उद्योग, नारियल संबंधी उद्योग, प्लाईवुड उद्योग, रेयान उद्योग, खेल का सामान बनाना, फर्नीचर बनाना तथा औषधि आदि हैं।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में पाई जाने वाली प्राकृतिक वनस्पति (वनों) का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। [B.S.E.H. March, 2017]
अथवा
भारत के मानचित्र पर पाँच प्रकार के वनों का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत में मुख्यतः पाँच प्रकार के वन पाए जाते हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-
1. उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन-ये वन पश्चिमी घाटों के अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों, अंडमान और निकोबार द्वीप, लक्षद्वीप समूहों, असम के ऊपरी भागों और तमिलनाडु के तट तक सीमित हैं। ये उन क्षेत्रों में भली-भाँति विकसित हैं जहाँ 200 सें०मी० से अधिक वर्षा के साथ कुछ समय के लिए शुष्क ऋतु पाई जाती है। क्योंकि ये क्षेत्र साल भर गर्म और आर्द्र रहते हैं, इसीलिए यहाँ हर प्रकार की वनस्पति-झाड़ियाँ, वृक्ष व लताएँ उगती हैं और वनों में इनकी विभिन्न ऊँचाइयों से कई स्तर देखने को मिलते हैं। वृक्षों में पतझड़ होने का कोई निश्चित समय नहीं होता। अतः ये वन साल भर हरे-भरे लगते हैं। इन वनों में पाए जाने वाले व्यापारिक महत्त्व के कुछ वृक्ष आबनूस (एबोनी), महोगनी, रोजवुड, रबड़ और सिंकोना हैं।

2. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन-ये वन भारत में सबसे अधिक क्षेत्र में फैले हुए हैं। इन वनों को मानसूनी वन भी कहते हैं और ये उन क्षेत्रों में विस्तृत हैं जहाँ 70 सें०मी० से 200 सें०मी० तक वर्षा होती है। इन वनों के वृक्ष शुष्क ग्रीष्म ऋतु में छः से आठ सप्ताह के लिए अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं।

देश के पूर्वी भागों, उत्तरी-पूर्वी राज्यों, हिमालय के गिरिपद प्रदेशों, पश्चिमी ओडिशा (उड़ीसा), छत्तीसगढ़, झारखंड तथा पश्चिमी घाटों के पूर्वी ढालों तक ये वन पाए जाते हैं। सागोन इन वनों की अधिक प्रमुख वृक्ष प्रजाति है। वर्ब, अर्जुन, साल, शीशम, बांस, रवैर, कुसुम, चंदन, तथा शहतूत के वृक्ष व्यापारिक महत्त्व वाले हैं।

3. कंटीले वन तथा झाड़ियाँ-जिन क्षेत्रों में वर्षा 70 सेंमी० से भी कम होती है, वहाँ प्राकृतिक वनस्पति में कंटीले वन और झाड़ियाँ पाई जाती हैं। इस प्रकार की वनस्पति देश के उत्तरी-पश्चिमी भागों में पाई जाती है जिनमें छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा हरियाणा के अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र सम्मिलित हैं। अकासिया, खजूर (पाम), यूफोरबिया तथा नागफनी (कैक्टाई) यहाँ के पौधों की मुख्य प्रजातियाँ हैं।

4. पर्वतीय वन-
(i) आई शीतोष्ण कटिबंधीय वन-ये वन 1000 मी० से 2000 मी० तक की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इन वनों में चौड़ी पत्ती वाले ओक तथा चेस्टनट वृक्ष पाए जाते हैं।

(ii) शंकुधारी वन-ये वन 1500 मी० से 3000 मी० की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। चीड़, देवदार, सिल्वर-फर, स्यूस, सीडर इन वनों में पाए जाने वाले मुख्य वृक्ष हैं।

(ii) शीतोष्ण कटिबंधीय वन एवं घास के मैदान ये वन और घास के मैदान 3000 मी० से 3600 मी० की ऊँचाई तक के प्रदेशों में पाए जाते हैं।

(iv) अल्पाइन वन-3600 मी० से अधिक ऊंचाई पर इस प्रकार के वन पाए जाते हैं। सिल्वर-फर, जूनिपर, पाइन व बर्च इन वनों के मुख्य वृक्ष हैं।

5. मैंग्रोव वन-यह वनस्पति तटवर्तीय क्षेत्रों, जहाँ ज्वार-भाटा आते हैं, की महत्त्वपूर्ण वनस्पति है। मिट्टी एवं बालू रित) इन तटों पर एकत्रित हो जाती है। मैंग्रोव एक प्रकार की ऐसी वनस्पति है जिसमें पौधों की जड़ें पानी में डूबी रहती हैं। ये वन ब्रह्मपुत्र, गंगा, गोदावरी, महानदी, कावेरी तथा कृष्णा नदियों के डेल्टा प्रदेशों में पाए जाते हैं। सुंदरवन इस प्रकार के वनों का प्रमुख उदाहरण है। इस वन में सुंदरी नामक वृक्ष पाया जाता है। इसलिए इस वन को सुंदरवन के नाम से जाना जाता है। यह वन गंगा-ब्रह्मपुत्र नदियों के डेल्टा प्रदेश में स्थित है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति 1

प्रश्न 2.
भारतीय वन्य जीवों की विविधता पर भौगोलिक टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, जलवायु के प्रकारों तथा विविध स्थलाकृतियों के कारण भारत में बड़ी संख्या में नाना प्रकार के वन्य-जीव पाए जाते हैं। अब तक विश्व में ज्ञात जीव-जन्तुओं की एक-तिहाई प्रजातियाँ भारत में विद्यमान हैं।
1. स्तनपायी जीव (Mammals) भारत के स्तनपायी जीवों में हाथी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। हाथी मुख्यतः केरल, कर्नाटक तथा असम में पाया जाता है। यह उष्ण व आर्द्र जलवायु का जीव है। इसके अतिरिक्त गोर (Indian Bison) भारतीय भैंस, नील गाय, ऊँट, चौ सिंगा, भारतीय जंगली गधा, काला हिरण तथा एक सींग वाला गैंडा इत्यादि अन्य महत्त्वपूर्ण स्तनपायी जीव हैं जो भारत में पाए जाते हैं। हिरण की यहाँ अनेक जातियाँ पाई जाती हैं; जैसे कस्तूरी मृग, हांगुल, दलदली हिरण, चीतल, शामिन तथा पिसूरी।

2. माँसाहारी जीव (Carnivores)-माँसाहारी जीवों में एशियाई सिंह (Asiatic Lion), बाघ (चीता), तेंदुआ, लमचीता या बदली तेंदुआ, साह (Showleopard) तथा छोटी बिल्लियाँ प्रमुख हैं। शेर (सिंह) मुख्यतः गुजरात के गिर (Gir) वन क्षेत्र में पाया जाता है। संसार में अफ्रीका के बाहर पाया जाने वाला यह एकमात्र स्थान है जहाँ शेर पाए जाते हैं। अपनी शान (Majesty) और शक्ति (Power) के लिए प्रसिद्ध बाघ (Tiger) को राष्ट्रीय पशु होने का गौरव हासिल है। दुनिया में पाई जाने वाली बाघ की आठ प्रजातियों में बंगाल के सुन्दरवन क्षेत्र में पाया जाने वाला ‘बंगाल टाइगर’ की बात ही कुछ और है।

3. बन्दर (Monkeys)-भारत में बन्दर की अनेक प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनमें लंगूर प्रमुख है। भारत का एकमात्र कपिहुलक गिब्बन उत्तरी-पूर्वी भारत के वर्षा वनों (Rain Forests) में पाया जाता है। शेर जैसी पूँछ वाला बन्दर जिसके चेहरे पर बालों का एक घेरा होता है, दक्षिण भारत में पाया जाता है।

4. हिमालय के जीव-जन्तु (Himalayan Wild Life)-हिमालय में वास करने वाले प्राणियों में जंगली भेड़, पहाड़ी बकरी, बड़े सींगों वाली पहाड़ी बकरी (Ibeso), मार खोर, छबूंदर, तापिर, साह तथा छोटा पांडा उल्लेखनीय हैं।

5. पक्षी (Birds) भारत में अनेक प्रकार के रंग-बिरंगे पक्षी पाए जाते हैं। मोर हमारा राष्ट्रीय पक्षी है। अन्य पक्षी तीतर, कोयल, बटेर, बत्तख, तोते, कबूतर, सारस, धनेश, शकरखोरा, बैया, चकोर तथा दर्जी पक्षी इत्यादि हैं।

6. अन्य प्राणी भारत में अनेक प्रकार के सरीसृप व उभयचर पाए जाते हैं। जलचरों में मछलियाँ, कछुए, मगरमच्छ व घड़ियाल प्रमुख हैं। घड़ियाल केवल भारत में पाए जाते हैं। गिरगिट, अनेक प्रकार की छिपकलियाँ, जहरीले नाग, अत्यन्त विषैले करेल तथा विषहीन धामिन जैसे साँप, भारत के वन्य-जीवन की विविधता को बढ़ाते हैं। बिना रीढ़ वाले प्राणियों में एक कोशिका वाले प्रोटोजोआ से लेकर कंटक देही प्राणी तक शामिल हैं। कीड़े, मकौड़ों व मोलस्क के भी यहाँ अनेक प्रकार पाए जाते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 3.
वन्य जीव संरक्षण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर क्या कदम उठाए गए हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में वन्य प्राणियों के बचाव की परिपाटी बहुत प्राचीन है। पंचतन्त्र और जंगल बुक इत्यादि की कहानियाँ हमारे । वन्य प्राणियों के प्रति प्रेम का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।

स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् देश में वन्य जीवन संरक्षण के लिए अनेक प्रभावी कदम उठाए गए-
(1) सन् 1952 में भारतीय वन्य जीवमण्डल (Indian Board for Wild Life-IBWL) का गठन किया गया।

(2) सन् 1972 में वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम बनाया गया जिसके अन्तर्गत-
(i) वन्य जीवन को वैधानिक संरक्षण

(ii) वन्य प्राणियों के शिकार पर प्रतिबन्ध

(iii) चोरी से शिकार करने वालों को कठोर दण्ड का प्रावधान

(iv) शेर, बाघ, गेंडे व हाथियों के शिकार को दण्डनीय अपराध घोषित करना

(v) दुर्लभ व समाप्त हो रही प्रजातियों के व्यापार पर रोक (शाहतूश की शालों के व्यापार पर रोक)

(vi) वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए समिति गठित करना जैसे प्रावधान किए गए। इस अधिनियम को 1991 में पूर्णतया संशोधित कर दिया गया जिसके अन्तर्गत कठोर सजा का प्रावधान किया गया है। इसमें कुछ पौधों की प्रजातियों को बचाने तथा संकटापन्न प्रजातियों के संरक्षण का प्रावधान है।

(vii) सन् 1980 में वन (संरक्षण) विधेयक द्वारा केन्द्रीय शासन की अनुमति के बिना किसी भी जंगल का किसी भी कार्य के लिए विनाश वर्जित किया गया।

(viii) अत्यधिक संकटापन्न जातियों के पुनर्वास के लिए विशेष परियोजनाएँ चलाई गईं; जैसे बाघ परियोजना, हिमचीता परियोजना, गेंडा परियोजना, लाल पांडा परियोजना, घड़ियाल प्रजनन तथा पुनर्वास परियोजना, गिर शेर शरण स्थल परियोजना, कस्तूरी मृग परियोजना, हंगुल परियोजना, मणिपुर थामिन परियोजना इत्यादि। लखनऊ के निकट कुकरैल के जंगल में बारहसिंघों, जंगली कुत्तों तथा लोमड़ी आदि के लिए पुनर्वास केन्द्र स्थापित किया गया है।

इन परियोजनाओं का मुख्य उद्देश्य भारत में इन प्राणियों की जनसंख्या का स्तर बनाए रखना है जिससे वैज्ञानिक, सौन्दर्यात्मक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिक मूल्य बनाए रखे जा सकें। इससे प्राकृतिक धरोहर को भी संरक्षण मिलेगा। भारत में ‘वन्य जीवन’ की सुरक्षा के लिए जीव आरक्षित क्षेत्र स्थापित किए गए हैं। देश में लगभग 103 नेशनल पार्क और 535 वन्य प्राणी अभयवन हैं।

प्रश्न 4.
वनों के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ क्या हैं?
उत्तर:
प्रत्यक्ष लाभ-वनों के प्रत्यक्ष लाभ निम्नलिखित हैं-

  • वनों से ईंधन के लिए लकड़ी प्राप्त होती है।
  • वनों से हमें इमारती तथा फर्नीचर बनाने के लिए लकड़ी मिलती है।
  • वनों से भेड़-बकरियाँ पाली जाती हैं।
  • वनों से बहुत-से लोगों को रोजगार मिलता है; जैसे लकड़ी काटना, चीरना तथा ढोना आदि।
  • वनों से अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियाँ प्राप्त होती हैं।
  • वनों से सरकार को भी आय होती है।
  • वनों से बहुत-सी उपयोगी वस्तुएँ; जैसे गोंद, सुपारी, तारपीन का तेल, लाख तथा मोम आदि प्राप्त होती हैं।
  • अनेक प्रकार के उद्योग-धंधे; जैसे खेल का सामान, कागज़ बनाने का सामान, रेयान कपड़ा, प्लाईवुड आदि वनों पर आधारित हैं।

अप्रत्यक्ष लाभ-वनों के अप्रत्यक्ष लाभ निम्नलिखित हैं-

  • वन वर्षा लाने में सहायक होते हैं।
  • वन पर्यावरण को शुद्ध रखते हैं।
  • वन बाढ़ की भयंकरता को कम करते हैं।
  • वन प्राकृतिक सौंदर्य को बढ़ाते हैं।
  • वन भूमि कटाव को रोकने में सहायक होते हैं।
  • वन भूमि की उर्वरता को बनाए रखने में सहायक होते हैं।
  • वन कहीं-कहीं पर दो देशों की प्राकृतिक सीमा भी बनाते हैं; जैसे भारत और बर्मा की सीमा।

प्रश्न 5.
प्रमुख जीव-मण्डल निचय के नामों को भारत के मानचित्र में दर्शाएँ।
अथवा
भारत के मानचित्र पर पाँच प्रकार के जीवमंडल निचय प्रदर्शित करें।
उत्तर:
प्रमुख जीव-मण्डल निचय के नाम निम्नलिखित तालिका में स्पष्ट किए गए हैं-

कम सें जीव-मण्डल निचय का नाम स्थिति (प्रदेश/राज्य)
1. नीलगिरी बायनाद, नगरह्नेल, बांदीपुर, मुदुमलार्इ, निलंबूर, सायलेंट वैली और सिरुवली पहाड़ियाँ (तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक)।
2. नंदा देवी चमोली, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा जिलों के भाग (उत्तराखंड)।
3. मानस कोकराझार, बोगाई गांव, बरपेटा, नलबाड़ी कामरूप व दारांग जिलों के हिस्से (असम) ।
4. सुंदरवन गंगा-व्रह्मपुत्र नदी तंत्र का डेल्टा व इसका हिस्सा (पश्चिम बंगाल)।
5. नोकरेक गारो पहाड़ियों का हिस्सा (मेघालय)।
6. मन्नार की खाड़ी भारत और श्रीलंका के बीच स्थित मन्नार की खाड़ी का भारतीय हिस्सा (तमिलनाह)।
7. ग्रेट निकोबार अंडमान-निकोबार के सुदूर दक्षिणी द्वीप (अंडमान निकोबार द्वीप समूह)।
8. कच्छ गुजरात राज्य के कच्छ, राजकोट, सुरेन्द्रनगर और पाटन ज़िलों के भाग।
9. कोल्ड डेज़र्ट हिमाचल प्रदेश में स्थित पिनवैली राष्ट्रीय पार्क और आस-पास के क्षेत्र, चंद्रताल, सारचू और किब्यर वन्यजीव अभयारण्य।
10. अचनकमर-अमरकटंक मध्य प्रदेश में अनुपुर और दिन दोरी जिलों के भाग और छत्तीसगढ़ में बिलासपुर जिले का भाग।
11. सिमिलीपाल मयूरभंज जिले के भाग (ओडिशा)।
12. डिन्नू-साईकोवा डित्रूगढ़ और तिनसुकिया जिलों के भाग (असम)।
13. दिहांग-देबांग अरुणाचल प्रदेश में सियांग और देबांग जिलों के भाग।
14. कंचनजंचा उत्तर और पश्चिम सिक्किम के भाग।
15. पंचमड़ी बेनूल, होशंगाबाद और छिंदवाड़ा जिलों के भाग (मध्य प्रदेश)।
16. अगस्त्यमलाई केरल में अगस्त्यथीमलाई पहाड़ियाँ।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति 2

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति Textbook Exercise Questions and Answers.

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HBSE 11th Class Geography प्राकृतिक वनस्पति Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर का चयन करें-

1. चंदन वन किस तरह के वन के उदाहरण हैं?
(A) सदाबहार वन
(B) डेल्टाई वन
(C) पर्णपाती वन
(D) काँटेदार वन
उत्तर:
(C) पर्णपाती वन

2. प्रोजेक्ट टाइगर निम्नलिखित में से किस उद्देश्य से शुरू किया गया है?
(A) बाघ मारने के लिए
(B) बाघ को शिकार से बचाने के लिए
(C) बाघ को चिड़ियाघर में डालने के लिए
(D) बाघ पर फिल्म बनाने के लिए
उत्तर:
(B) बाघ को शिकार से बचाने के लिए

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

3. नंदा देवी जीव मंडल निचय निम्नलिखित में से किस प्रांत में स्थित है?
(A) बिहार
(B) उत्तराखण्ड
(C) उत्तर प्रदेश
(D) ओडिशा
उत्तर:
(B) उत्तराखण्ड

4. निम्नलिखित में से भारत के कितने जीव मंडल निचय यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त हैं?
(A) एक
(B) दस
(C) दो
(D) चार
उत्तर:
(D) चार

5. वन नीति के अनुसार वर्तमान में निम्नलिखित में से कितना प्रतिशत क्षेत्र, वनों के अधीन होना चाहिए?
(A) 33%
(B) 55%
(C) 44%
(D) 22%
उत्तर:
(A) 33%

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
प्राकृतिक वनस्पति क्या है? जलवायु की किन परिस्थितियों में उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन उगते हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक वनस्पति-किसी स्थान पर मनुष्य के हस्तक्षेप के बिना अपने-आप प्राकृतिक रूप से उगने वाली वनस्पति; जैसे घास, झाड़ियाँ, वृक्ष आदि को प्राकृतिक वनस्पति कहते हैं। सदाबहार वन उष्ण कटिबन्धीय जलवायु में पाए जाते हैं जहाँ वार्षिक वर्षा 200 सें०मी० से अधिक होती है तथा औसत वार्षिक तापमान 22° सेल्सियस से अधिक रहता है।

प्रश्न 2.
जलवायु की कौन-सी परिस्थितियाँ सदाबहार वन उगने के लिए अनुकूल हैं?
उत्तर:
सदाबहार वन उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जहाँ उष्ण आर्द्र जलवायु पाई जाती है। सदाबहार वनों के लिए औसत वार्षिक वर्षा 200 सें०मी० से अधिक तथा वार्षिक तापमान 22°C होना चाहिए।

प्रश्न 3.
सामाजिक वानिकी से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सामाजिक वानिकी पर्यावरणीय, सामाजिक व ग्रामीण विकास में मदद के उद्देश्य से वनों का प्रबन्ध और सुरक्षा तथा ऊसर भूमि पर वनारोपण करना सामाजिक वानिकी कहलाता है। राष्ट्रीय कृषि उद्योग ने सामाजिक वानिकी को तीन वर्गों में बाँटा है-

  • शहरी वानिकी
  • ग्रामीण वानिकी और
  • फार्म वानिकी।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 4.
जीव मण्डल निचय को परिभाषित करें। वन क्षेत्र और वन आवरण में क्या अंतर है?
उत्तर:
जीव मण्डल निचय या आरक्षित क्षेत्र एक विशेष प्रकार के भौमिक और पारिस्थितिक तन्त्र हैं जिन्हें यूनेस्को के मानव और जीव मण्डल प्रोग्राम के अन्तर्गत मान्यता प्राप्त है। इसमें पशुओं के संरक्षण के साथ-साथ पौधों का भी संरक्षण किया जाता है। वन क्षेत्र और वन आवरण में अन्तर-वन क्षेत्र वह क्षेत्र होता है जो वन भूमि के लिए निश्चित है तथा वन आवरण वास्तव में वह क्षेत्र होता है जो वनों से ढका हुआ है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दें

प्रश्न 1.
वन संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
उत्तर:
भारत में वनों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय वन नीति बनाई गई है जिसके अन्तर्गत निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं-

  • देश के 33 प्रतिशत भू-भाग पर वन लगाना जो राष्ट्रीय स्तर से 6 प्रतिशत अधिक है।
  • पर्यावरण सन्तुलन बनाए रखना तथा पारिस्थितिक असन्तुलित क्षेत्रों में वन लगाना।
  • देश की प्राकृतिक धरोहर, जैव-विविधता तथा आनुवंशिक मूल का संरक्षण।
  • मृदा अपरदन तथा मरुस्थलीकरण को रोकना तथा बाढ़ व सूखे आदि पर नियन्त्रण रखना।
  • निम्नीकृत भूमि पर सामाजिक वानिकी एवं वन-रोपण द्वारा वन आवरण का विस्तार करना।
  • पेड़ लगाने को बढ़ावा देना, पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए जन-आन्दोलन चलाना।

प्रश्न 2.
वन और वन्य जीवन संरक्षण में लोगों की भागीदारी कैसे महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
मनुष्य का वन और वन्य प्राणियों से बड़ा गहरा सम्बन्ध रहा है। वन और वन्य जीवन हमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक व सामाजिक लाभ पहुंचाते हैं। वन और वन्य जीवन के संरक्षण के लिए मनुष्य की भागीदारी बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। औद्योगिक और तकनीकी विकास के कारण ही वन और वन्य जीवों की संख्या में कमी आ रही है। बहुत से वन्य प्राणियों की प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं। अतः यह आवश्यक है कि मनुष्य ऐसा विकास करे जिससे वन और वन्य प्राणियों का संरक्षण हो सके। वनों के हित के लिए आन्दोलन चलाए जाएँ तथा जन-जागरूकता लाई जाए। इसी प्रकार वन्य जीवन की सुरक्षा के लिए भी संकटापन्न जातियों को संरक्षण प्रदान किया जाए। इस दिशा में मनुष्य की सहभागिता निम्नलिखित प्रकार से प्रभावी हो सकती है

  • वनों को कम-से-कम साफ किया जाना चाहिए, ताकि वन्य जीवों के आवास नष्ट न हों।
  • चारे, ईंधन और इमारती लकड़ी के लिए वनों से पेड़ नहीं काटने चाहिएँ।
  • व्यापारिक महत्त्व के लिए जंगली जानवरों का शिकार नहीं किया जाना चाहिए।

प्राकृतिक वनस्पति HBSE 11th Class Geography Notes

→ प्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegetation) प्राकृतिक वनस्पति उन पेड़-पौधों को कहते हैं जो लम्बे समय तक बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के उगते हैं।

→ हरा सोना (Green Gold) वृक्षों को हरा सोना कहते हैं।

→ सामाजिक वानिकी (Social Forestry) पर्यावरणीय, सामाजिक व ग्रामीण विकास में मदद के उद्देश्य से वनों का प्रबन्ध और सुरक्षा तथा ऊसर भूमि पर वृक्षारोपण करना सामाजिक वानिकी कहलाता है।

→ वन्य जीवन (Wild Life)-प्राकृतिक आवास में रहने वाले सभी जीव सामूहिक रूप से वन्य जीवन कहलाते हैं।

→ जीवमण्डल निचय (Biosphere Reserves) यह एक विशेष प्रकार का भौमिक और तटीय पारिस्थितिक तंत्र है।

→ जीवमण्डल संरक्षित क्षेत्र ऐसा क्षेत्र जिसमें पौधों व प्राणियों को उनका प्राकृतिक आवास प्रदान किया जाता है।

HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 6 तीन वर्ग

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निबंधात्मक उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में प्रचलित तीन वर्ग कौन-से थे? इनकी प्रमुख विशेषताएँ क्या थी?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोपीय समाज तीन वर्गों में बँटा हुआ था। प्रथम वर्ग में पादरी, दूसरे वर्ग में कुलीन एवं तीसरे वर्ग में किसान सम्मिलित थे। प्रथम दो वर्गों में बहुत कम लोग सम्मिलित थे। उन्हें अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। वे विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे। समाज की अधिकाँश जनसंख्या तीसरे वर्ग से संबंधित थी। उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय थी। उन्हें अपने गुज़ारे के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। इन तीनों वर्गों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. पादरी वर्ग (The Clergy):
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में पादरी प्रथम वर्ग में सम्मिलित थे। इस वर्ग में पोप, आर्कबिशप एवं बिशप सम्मिलित थे। यह वर्ग बहुत शक्तिशाली एवं प्रभावशाली था। इसका चर्च पर पूर्ण नियंत्रण था। चर्च के अधीन विशाल भूमि होती थी, जिससे उसे बहुत आमदनी होती थी। लोगों द्वारा दिया जाने वाला दान भी चर्च की आय का एक प्रमुख स्रोत था।

इनके अतिरिक्त चर्च किसानों पर टीथ (tithe) नामक कर लगाता था। यह किसानों की कुल उपज का दसवाँ भाग होता था। चर्च की इस विशाल आय के चलते पादरी वर्ग बहुत धनी हो गया था। इस वर्ग का यूरोप के शासकों पर भी बहुत प्रभाव था। ये शासक पोप की आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस नहीं रखते थे। कुलीन वर्ग भी पादरी वर्ग का बहुत सम्मान करता था।

पादरी वर्ग को अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। वे राज्य को किसी प्रकार का कोई कर नहीं देते थे। वे विशाल एवं भव्य महलों में रहते थे। यद्यपि वे लोगों को पवित्र जीवन व्यतीत करने का उपदेश देते थे किन्तु वे स्वयं विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे। वे चर्च की संपत्ति का दुरुपयोग करने से नहीं हिचकिचाते थे। लोगों को धर्मोपदेश देने का कार्य निम्न वर्ग के पादरी करते थे।

2. कुलीन वर्ग (The Nobility):
कुलीन वर्ग दूसरे वर्ग में सम्मिलित था। यूरोपीय समाज में इस वर्ग की विशेष भूमिका थी। केवल कुलीन वर्ग के लोगों को ही प्रशासन, चर्च एवं सेना के उच्च पदों पर नियुक्त किया जाता था। उन्हें अनेक प्रकार के विशेषाधिकार प्राप्त थे। वे सभी प्रकार के करों से मुक्त थे। उनके पास विशाल जागीरें होती थीं। कुलीन इन जागीरों पर एक छोटे राजे के समान शासन करते थे।

वे अपने न्यायालय लगाते थे तथा मुकद्दमों का निर्णय देते थे। वे अपने अधीन सेना रखते थे। उन्हें सिक्के जारी करने का भी अधिकार प्राप्त था पर कर लगाने का भी अधिकार था। वे कृषकों से बेगार लेते थे। उनके पशु किसानों की खेती उजाड़ देते थे, किंतु इन पशुओं को रोकने का साहस उनमें नहीं था। कुलीन अपने क्षेत्र में आने वाले माल पर चुंगी लिया करते थे।

कलीन वर्ग बहत धनवान था। राज्य की अधिकाँश संपत्ति उनके अधिकार में थी। वे विशाल महलों में रहते थे। वे बहुत विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे। उनकी सेवा में बड़ी संख्या में नौकर-नौकरानियाँ होती थीं। संक्षेप में कुलीन वर्ग की यूरोपीय समाज में उल्लेखनीय भूमिका थी। प्रसिद्ध इतिहासकार जे० ई० स्वैन के अनुसार, “उच्च श्रेणी (कुलीन वर्ग) को अधिकाँश विशेषाधिकार प्राप्त थे तथा उसके पास अधिकाँश दौलत थी।

3. किसान (The Peasants):
किसान यूरोपीय समाज के तीसरे वर्ग से संबंधित थे। तीसरे वर्ग की गणना यूरोपीय समाज के सबसे निम्न वर्ग में की जाती थी। यूरोपीय समाज की कुल जनसंख्या का 85% से 90% भाग किसान थे। उस समय समाज में दो प्रकार के किसान थे। ये थे स्वतंत्र किसान एवं कृषकदास। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

(क) स्वतंत्र किसान (Free Peasants):
यूरोपीय समाज में स्वतंत्र किसानों की संख्या बहुत कम थी। यद्यपि वे अपनी भूमि सामंतों से प्राप्त करते थे किंतु वे इस पर अपनी इच्छानुसार खेती करते थे। सामंत इन किसानों से बेगार नहीं लेते थे। उन पर कृषकदासों की तरह प्रतिबंध नहीं लगे हुए थे। वे केवल निश्चित मात्रा में सामंतों को भूमि कर प्रदान करते थे।

(ख) कृषकदास (Serfs):
यूरोपीय समाज की अधिकाँश जनसंख्या कृषकदास से संबंधित थी। कृषकदासों का जीवन नरक के समान था। उनके प्रमुख कर्त्तव्य ये थे-

(1) वर्ष में कम-से-कम 40 दिन सामंत (लॉर्ड) की सेना में कार्य करना।

(2) उसे एवं उसके परिवार के सदस्यों को सप्ताह में तीन अथवा उससे कुछ अधिक दिन सामंत की जागीर पर जा कर काम करना पड़ता था। इस श्रम से होने वाले उत्पादन को श्रम अधिशेष (labour rent) कहा जाता था।

(3) वह मेनर में स्थित सड़कों, पुलों तथा चर्च आदि की मुरम्मत करता था।

(4) वह खेतों के आस-पास बाड़ बनाता था।

(5) वह जलाने के लिए लकड़ियाँ एकत्र करता था।

(6) वह अपने सामंत के लिए पानी भरता था, अन्न पीसता था तथा दुर्ग की मरम्मत करता था।

कृषकदास जानवरों से भी बदतर जीवन व्यतीत करते थे। 16 से 18 घंटे रोजाना कड़ी मेहनत करने के बावजूद उन्हें दो समय भरपेट खाना नसीब नहीं होता था। वे गंदी झोंपड़ियों में निवास करते थे। इन झोंपड़ियों में रोशनी का एवं गंदे पानी की निकासी का कोई प्रबंध नहीं था। वर्षा के दिनों में इन झोंपड़ियों में पानी भर जाता था। इससे बीमारियाँ फैलने का सदैव ख़तरा बना रहता था।

जब किसी वर्ष किसी कारण फ़सलें बर्बाद हो जाती थीं तो कृषकदासों की स्थिति पहले की अपेक्षा अधिक दयनीय हो जाती थी। ऐसे अवसरों पर वे बड़ी संख्या में मृत्यु का ग्रास बन जाते थे। प्रसिद्ध इतिहासकार बी० चौधरी के अनुसार, “किसानों की दशा संतोषजनक से कहीं दूर थी। किसानों पर उनकी पारिवारिक जिम्मेवारी बहुत अधिक थी तथा उनकी मांगों एवं स्रोतों में नियमित तौर पर बहुत अंतर था।”

प्रश्न 2.
मध्यकालीन यूरोप में किसानों की स्थिति का वर्णन करें। B.S.E.H. (Mar. 2016)
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में किसानों की स्थिति का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है नोट-इस प्रश्न के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं० 1 के भाग 3 का उत्तर देखें।

प्रश्न 3.
सामंतवादी व्यवस्था में दूसरे वर्ग (अभिजात वर्ग) की स्थिति व महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नोट-इस प्रश्न के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया करके प्रश्न नं० 1 का भाग 2 का उत्तर देखें।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 6 तीन वर्ग

प्रश्न 4.
सामंतवाद से आपका क्या अभिप्राय है ? इसकी प्रमुख विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
सामंतवाद ने मध्यकालीन यूरोप के समाज एवं अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव डाले। यूरोप में इस संस्था का उदय 9वीं शताब्दी में हुआ था। 14वीं शताब्दी तक इसका फ्राँस, जर्मनी, इंग्लैंड एवं इटली आदि देशों पर व्यापक प्रभाव रहा।

I. सामंतवाद से अभिप्राय

सामंतवाद को मध्ययुगीन यूरोपीय सभ्यता का आधार स्तंभ कहा जाता है। यह जर्मन शब्द फ़्यूड (Feud) से बना है। इससे अभिप्राय है भूमि का एक टुकड़ा अथवा जागीर। इस प्रकार सामंतवाद का संबंध भूमि अथवा जागीर से है। सामंतवाद को समझना कोई सरल कार्य नहीं है। इसका कारण यह है कि सामंतवाद के विभिन्न देशों में लक्षणता में भिन्नता थी। प्रसिद्ध इतिहासकार डब्ल्यू० टी० हेन्स के अनुसार, “सामंतवाद वह प्रथा थी जिसमें लॉर्ड अपने अधीन सामंतों को सैनिक सेवा एवं व्यक्तिगत वफ़ादारी के बदले भूमि अनुदान में देता था।”

वास्तव में सामंतवाद एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें राजा अपने अधीन बड़े सामंतों को उनकी सैनिक एवं राजनीतिक सेवाओं के बदले बड़ी-बड़ी जागीरें देता था। ये बड़े सामंत आगे छोटे सामंतों को उनकी सेवाओं के बदले छोटी जागीरें बाँटते थे। इस प्रकार सामंतवादी व्यवस्था पूरी तरह भूमि के स्वामित्व तथा भूमि वितरण पर आधारित थी।

II. सामंतवाद की विशेषताएँ

सामंतवाद की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं-

1. राजा (The King):
सैद्धांतिक रूप में राजा समस्त भूमि का स्वामी होता था। सामंती अधिक्रम (hierarchy) में राजा का स्थान सर्वोच्च था। मध्यकाल में राजा के पास न तो स्थायी सेना होती थी एवं न ही उसके पास आय
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के पर्याप्त साधन होते थे। इसलिए राजा के लिए दूर के क्षेत्रों पर नियंत्रण रखना एवं अपने राज्य की सुरक्षा करना कठिन था। इसलिए उसने अपनी भूमि का एक बहुत बड़ा भाग अपने अधीन बड़े-बड़े सामंतों में बाँट दिया। इन सामंतों को लॉर्ड कहा जाता था। ये लॉर्ड राजा के प्रति वफादार रहने की सौगंध खाते थे। वे राजा को सैनिक एवं राजनीतिक सेवाएँ प्रदान करते थे।

ये लॉर्ड अपनी कुछ भूमि को छोटे सामंतों में बाँट देते थे। इसी प्रकार ये छोटे सामंत अपनी कुछ भूमि को नाइटों में बाँटते थे। इस प्रकार सामंतवादी व्यवस्था में राजा सबसे ऊपर एवं नाइट सबसे नीचे होता था।

2. सामंत (The Feudal Lords):
सामंत (लॉर्ड) अपनी जागीर के अंदर सर्वशक्तिशाली होता था। उसके अधीन एक सेना होती थी। वह इस सेना में बढ़ोत्तरी कर सकता था। वह बाहरी शत्रुओं से अपने अधीन सामंतों की रक्षा करता था। वह अपना न्यायालय भी लगाता था। वह अपनी जागीर में रहने वाले लोगों के मुकद्दमों का निर्णय देता था। उसके निर्णयों को अंतिम माना जाता था। किसी में भी उसके निर्णयों के विरुद्ध अपील करने का साहस नहीं होता था। वह अपनी मुद्रा भी प्रचलित कर सकता था।

यदि उसके अधीन कोई सामंत अपनी सेवाओं में असफल रहता तो वह उसकी जागीर छीन सकता था। कभी-कभी लॉर्ड इतने शक्तिशाली हो जाते थे कि वे राजा की परवाह नहीं करते थे। सामंत को अनेक कर्तव्यों का पालन करना पड़ता था। उसे समय-समय पर अपने स्वामी के दरबार में उपस्थित होना पड़ता था। दरबार में वह अपने स्वामी को विभिन्न मामलों में सलाह देता था।

वह अपने स्वामी को आवश्यकता पड़ने पर सैनिक सहायता भेजता था। उसे स्वयं युद्ध की स्थिति में 40 दिन सैनिक सेवा करनी पड़ती थी। उसे अपने स्वामी के दुर्ग की रक्षा के लिए भी प्रबंध करना पड़ता था।

3. मेनर (Manor):
लॉर्ड का आवास क्षेत्र मेनर कहलाता था। इसका आकार एक जैसा नहीं होता था। इसमें कुछ गाँवों से लेकर अनेक गाँव सम्मिलित होते थे। प्रत्येक मेनर में एक ऊँची पहाड़ी की चोटी पर सामंत का दुर्ग होता था। यह दुर्ग जितना विशाल होता था उससे उस लॉर्ड की शक्ति का आंकलन किया जाता था। इस दुर्ग की सुरक्षा के लिए चारों ओर एक चौड़ी खाई होती थी।

इसे सदैव पानी से भर कर रखा जाता था। प्रत्येक मेनर में एक चर्च, एक कारखाना एवं कृषकदासों की अनेक झोंपड़ियाँ होती थीं। मेनर में एक विशाल कृषि फार्म होता था।

इसमें सभी आवश्यक फ़सलों का उत्पादन किया जाता था। मेनर की चरागाह पर पशु चरते थे। मेनरों में विस्तृत वन होते थे। इन वनों में लॉर्ड शिकार करते थे। गाँव वाले यहाँ से जलाने के लिए लकड़ी प्राप्त करते थे। मेनर में प्रतिदिन के उपयोग के लिए लगभग सभी वस्तुएँ उपलब्ध होती थीं। इसके बावजूद मेनर कभी आत्मनिर्भर नहीं होते थे।

इसका कारण यह था कि कुलीन वर्ग के लिए विलासिता की वस्तुएँ, आभूषण एवं हथियार आदि तथा नमक एवं धातु के बर्तन बाहर से मंगवाने पड़ते थे। प्रसिद्ध इतिहासकार जे० ई० स्वैन के शब्दों में, “मेनर व्यवस्था ने आरंभिक मध्यकाल की आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक गतिविधियों पर प्रभुत्व स्थापित किया।

4. नाइट (The Knights):
नाइट का यूरोपीय समाज में विशेष सम्मान किया जाता था। 9वीं शताब्दी यूरोप में निरंतर युद्ध चलते रहते थे। इसलिए साम्राज्य की सुरक्षा के लिए एक स्थायी सेना की आवश्यकता थी। इस आवश्यकता को नाइट नामक एक नए वर्ग ने पूर्ण किया। नाइट अपने लॉर्ड से उसी प्रकार संबंधित थे जिस प्रकार लॉर्ड राजा के साथ संबंधित था।

लॉर्ड अपनी विस्तृत जागीर का कुछ भाग नाइट को देता था। इसे फ़ीफ़ (Fief) कहा जाता था। इसका आकार सामान्य तौर पर 1000 एकड़ से 2000 एकड़ के मध्य होता था। कुछ फ़ीफें 5000 एकड़ तक बंड़ी होती थीं। इसे उत्तराधिकार में प्राप्त किया जा सकता था। प्रत्येक फ़ीफ़ में नाइट के लिए घर, चर्च, पनचक्की (watermill), मदिरा संपीडक (wine press) एवं किसानों के लिए झोंपडियाँ आदि की व्यवस्था होती थी।

नाइट को अपनी फ़ीफ़ में व्यापक अधिकार प्राप्त थे। फ़ीफ़ की सुरक्षा का प्रमुख उत्तरदायित्व नाइट पर था। उसके अधीन एक सेना होती थी। नाइट अपना अधिकाँश समय अपनी सेना के साथ गुजारते थे। वे अपने सैनिकों को प्रशिक्षण देते थे। वे अपनी सेना में अनुशासन पर विशेष बल देते थे। उनकी सेना की सफलता पर लॉर्ड की सफलता निर्भर करती थी क्योंकि आवश्यकता पड़ने पर लॉर्ड उनकी सेना का प्रयोग करता था।

प्रसन्न होने पर लॉर्ड उनकी फ़ीफ़ में बढौत्तरी कर देता था। नाइट अपने अधीन फ़ीफ़ में कर एकत्र करता था एवं लोगों के मकद्दमों निर्णय देता था। फ़ीफ़ को जोतने का कार्य कृषकों द्वारा किया जाता था। नाइट फ़ीफ़ के बदले अपने लॉर्ड को युद्ध में उसकी तरफ से लड़ने का वचन देता था। वह उसे एक निश्चित धनराशि भी देता था।

गायक नाइट की वीरता की कहानियाँ लोगों को गीतों के रूप में सुना कर उनका मनोरंजन करते थे। 15वीं शताब्दी में सामंतवाद के पतन के साथ ही नाइट वर्ग का भी पतन हो गया।

5. कृषकदास (Seris):
यूरोपीय समाज की अधिकाँश जनसंख्या कृषकदास से संबंधित थी। उनका जीवन जानवरों से भी बदतर था। वे अपने लॉर्ड अथवा नाइट की जागीर पर जा कर काम करते थे। इसके अतिरिक्त उन्हें अपने लॉर्ड की आज्ञा के अनुसार अनेक अन्य कार्य भी करने पड़ते थे। इन कार्यों के लिए उन्हें किसी प्रकार का कोई वेतन नहीं मिलता था।

उन पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगे हुए थे। वे लॉर्ड की अनुमति के बिना उसकी जागीर छोड़ कर नहीं जा सकते थे। सामंत उन पर घोर अत्याचार करते थे। इसके बावजूद वे सामंतों के विरुद्ध कोई शिकायत नहीं कर सकते थे। कड़ी मेहनत के बावजूद वे अक्सर भूखे ही रहते थे। उनकी रहने की झोंपड़ियाँ गंदी होती थीं। वे नाममात्र के ही वस्त्र पहनते थे। संक्षेप में उनका जीवन नरक के समान था।

प्रश्न 5.
सामंतवाद के पतन के प्रमुख कारण क्या थे?
अथवा
सामंतवाद के पतन के मुख्य कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सामंत प्रथा के पतन के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे

1. लोगों की दयनीय स्थिति (Pitiable Condition of the People):
सामंतवाद के अधीन लोगों एवं विशेष तौर पर कृषकों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। लोग सामंतों के घोर अत्याचारों के कारण बेहद दु:खी थे। वे सामंत के विरुद्ध किसी से कोई शिकायत नहीं कर सकते थे। दूसरी ओर सामंत अपने न्यायालय लगाते थे। इन न्यायालयों में सामंत अपनी इच्छानुसार लोगों के मुकद्दमों का निर्णय देता था।

इन निर्णयों को अंतिम माना जाता था। सामंत लोगों को अनेक प्रकार के कर देने के लिए बाध्य करते थे। उसके मेनर के लोग सामंत की इच्छा के विरुद्ध कोई कार्य नहीं कर सकते थे। घोर परिश्रम के बाद लोगों को दो समय भरपेट खाना नसीब नहीं होता था। संक्षेप में लोगों में सामंतों के प्रति बढ़ता हुआ आक्रोश उनके पतन का एक प्रमुख कारण सिद्ध हुआ। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर हंस राज का यह कहना ठीक है कि, “सामंतवाद का पतन मुख्यतः इसलिए हुआ क्योंकि इसमें लोगों की भलाई की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया था।’

2. धर्मयुद्धों का प्रभाव (Impact of the Crusades):
11वीं से 13वीं शताब्दी के मध्य यूरोप के ईसाइयों एवं मध्य एशिया के मुसलमानों के बीच जेरुसलम (Jerusalem) को लेकर युद्ध लड़े गए। ये युद्ध इतिहास में धर्मयुद्धों (crusades) के नाम से प्रसिद्ध हुए। इन धर्मयुद्धों में पोप (Pope) की अपील पर बड़ी संख्या में सामंत अपने सैनिकों समेत सम्मिलित हुए। इन धर्मयुद्धों में जो काफी लंबे समय तक चले में बड़ी संख्या में सामंत एवं उनके सैनिक मारे गए। इससे उनकी शक्ति को गहरा आघात लगा। राजाओं ने इस स्वर्ण अवसर का लाभ उठाया तथा उन्होंने सुगमता से बचे हुए सामंतों का दमन कर दिया। इस प्रकार धर्मयुद्ध सामंतों के लिए विनाशकारी सिद्ध हुए।

3. कृषकों के विद्रोह (Peasants’ Revolts):
14वीं शताब्दी यूरोप में हुए कृषकों के विद्रोहों ने सामंतवादी प्रथा के पतन में प्रमुख भूमिका निभाई। 1347 ई० से 1350 ई० के दौरान यूरोप में भयानक ब्यूबोनिक प्लेग फैली। इसे ‘काली मौत’ (black death) के नाम से जाना जाता है। इसके चलते यूरोप की जनसंख्या का एक बड़ा भाग मृत्यु का ग्रास बन गया।

इसमें अधिकाँश संख्या कृषकों की थी। अतः बचे हुए कृषक अधिक मज़दूरी की मांग करने लगे। किंतु सामंतों ने उनकी इस उचित माँग को स्वीकार न किया। वे कृषकों का पहले की तरह शोषण करते रहे। अत: बाध्य होकर यूरोप में अनेक स्थानों पर कृषकों ने सामंतों के विरुद्ध विद्रोह का झंडा गाड़ दिया।

इन विद्रोहों में 1358 ई० में फ्रांस के किसानों द्वारा किया गया विद्रोह जिसे जैकरी (jacquerie) विद्रोह कहा जाता था एवं 1381 ई० में इंग्लैंड के विद्रोह उल्लेखनीय हैं। यद्यपि इन विद्रोहों का दमन कर दिया गया था किंतु इन विद्रोहों के कारण किसानों में एक नवचेतना का संचार हुआ।

4. राष्ट्रीय राज्यों का उत्थान (Rise of Nation States):
सामंतवाद के उदय के कारण राज्य की वास्तविक शक्ति सामंतों के हाथों में आ गई थी। सामंतों को अनेक अधिकार प्राप्त थे। उनके अधीन एक विशाल सेना भी होती थी। सामंतों के सहयोग के बिना राजा कुछ नहीं कर सकता था। धीरे-धीरे परिस्थितियों में बदलाव आया।

15वीं शताब्दी के अंत एवं 16वीं शताब्दी के आरंभ में अनेक राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना हुई। इन राज्यों के शासक काफी शक्तिशाली थे। उन्होंने अपने अधीन एक शक्तिशाली एवं आधुनिक सेना का गठन किया था। इस सेना को तोपों एवं बारूद से लैस किया गया। दूसरी ओर सामंतों के अधीन जो सेना थी उसकी लड़ाई के ढंग एवं हथियार परंपरागत थे। अत: नए शासकों को सामंतों की शक्ति कुचलने में किसी विशेष कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा।

5. मध्य श्रेणी का उत्थान (Rise of the Middle Class):
15वीं एवं 16वीं शताब्दी यूरोप में मध्य श्रेणी का उत्थान सामंतवादी व्यवस्था के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ। मध्य श्रेणी में व्यापारी, उद्योगपति एवं पूंजीपति सम्मिलित थे। इस काल में यूरोप में व्यापार के क्षेत्र में तीव्रता से प्रगति हो रही थी। इस कारण समाज में मध्य श्रेणी को विशेष सम्मान प्राप्त हुआ।

इस श्रेणी ने सामंतों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों का अंत करने के लिए शासकों से सहयोग किया। शासक पहले ही सामंतों के कारण बहुत परेशान थे। अतः उन्होंने मध्य श्रेणी के लोगों को राज्य के उच्च पदों पर नियुक्त करना आरंभ कर दिया। मध्य श्रेणी द्वारा दिए गए आर्थिक सहयोग के कारण ही शासक अपनी स्थायी एवं शक्तिशाली सेना का गठन कर सके। इससे सामंतों की शक्ति को एक गहरा आघात लगा।

6. मुद्रा का प्रचलन (Circulation of Money):
सामंतवादी काल में वस्तु-विनिमय (barter system) की प्रथा प्रचलित थी। मध्य युग में मुद्रा का प्रचलन आरंभ हुआ। यह कदम यूरोपीय अर्थव्यवस्था के लिए एक क्रांतिकारी परिवर्तन सिद्ध हुआ। अब प्रत्येक वस्तु मुद्रा के माध्यम से खरीदी जाने लगी। मुद्रा के प्रचलन से लोगों को सामंतों के जुल्मों से छुटकारा मिला।

इसका कारण यह था कि पहले वे अपनी लगभग सभी आवश्यकताओं के लिए सामंतों पर निर्भर थे। मुद्रा के प्रचलन से वे कहीं से भी वस्तु खरीद सकते थे। इसके अतिरिक्त मुद्रा के प्रचलन के कारण राजाओं के लिए अब स्थायी सेना रखना संभव हुआ।

7. नगरों का उत्थान (Rise of Towns):
15वीं शताब्दी में यूरोप में नगरों का उत्थान सामंतवाद के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ। इस काल में जो नए नगर बने उनमें वेनिस, जेनेवा, फ्लोरेंस, पेरिस, लंदन, फ्रैंकफर्ट, एम्स्टर्डम एवं मीलान आदि के नाम उल्लेखनीय थे। ये नगर शीघ्र ही व्यापार एवं उद्योग के केंद्र बन गए। इन नगरों में रहने वाले लोगों को स्वतंत्रता प्राप्त थी।

इसलिए बहुत से कृषकदास (serfs) सामंतों के अत्याचारों से बचने के लिए नगरों में आ बसे। इन नगरों में उन्हें व्यवसाय के अच्छे अवसर प्राप्त थे। इसके अतिरिक्त गाँवों के अनेक लोग नगरों में इसलिए आ कर बस गए क्योंकि वहाँ बेहतर सुविधाएँ उपलब्ध थीं। इस प्रकार नगरों के उत्थान से सामंतवाद को गहरा आघात लगा।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 6 तीन वर्ग

प्रश्न 6.
सामंतवाद से आप क्या समझते हैं ? इसके पतन के क्या कारण थे?
उत्तर:
नोट-इस प्रश्न के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं0 4 का भाग I एवं प्रश्न नं. 5 का उत्तर देखें।

प्रश्न 7.
“मध्यकाल यूरोप में चर्च एक महत्त्वपूर्ण संस्था थी।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं? वर्णन कीजिए।
अथवा
यूरोप में चर्च और समाज के संबंधों पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
मध्यकालीन पश्चिमी यूरोप के समाज पर जिस संस्था ने सर्वाधिक प्रभाव डाला वह चर्च थी। वास्तव में चर्च का जन्म से लेकर कब्र तक लोगों के जीवन पर पूर्ण नियंत्रण था। इसके अपने नियम एवं न्यायालय थे। इन नियमों का उल्लंघन करने का साहस कोई नहीं करता था। यहाँ तक कि राजे भी इन नियमों का पालन करने में अपनी भलाई समझते थे। यदि कोई व्यक्ति इन नियमों का उल्लंघन करता तो चर्च द्वारा उसे दंडित किया जाता था। प्रसिद्ध इतिहासकार जे० ई० स्वैन का यह कथन ठीक है कि, “हमारे लिए यह कल्पना करना कठिन है कि मध्य युग में चर्च का प्रभाव कितना व्यापक था।”

1. चर्च के कार्य (Functions of the Church): मध्यकाल में चर्च अनेक प्रकार के कार्य करता था।

  • इसने सामाजिक एवं धार्मिक रीति-रिवाजों संबंधी अनेक नियम बनाए थे जिनका पालन करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक था।
  • चर्च की देखभाल के लिए अनेक अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी।
  • चर्च में धर्मोपदेश दिए जाते थे तथा सामूहिक प्रार्थना की जाती थी।
  • यहाँ विद्यार्थियों को शिक्षा भी दी जाती थी।
  • इसके द्वारा रोगियों, गरीबों, विधवाओं एवं अनाथों की देखभाल की जाती थी।
  • यहाँ विवाह की रस्में पूर्ण की जाती थीं।
  • यहाँ वसीयतों एवं उत्तराधिकार के मामलों की सुनवाई की जाती थी।
  • यहाँ धर्मविद्रोहियों के विरुद्ध मुकद्दमे चलाए जाते थे एवं उन्हें दंडित किया जाता था।
  • यह कृषकों से उनकी उपज का दसवाँ भाग कर के रूप में एकत्रित करता था। इस कर को टीथ (tithe) कहते थे।
  • यह श्रद्धालुओं से दान भी एकत्रित करता था। प्रसिद्ध इतिहासकार सी० डी० हेज़न ने ठीक लिखा है कि, “इस प्रकार चर्च राज्य के भीतर एक राज्य था जो कि अनेक ऐसे कार्यों को करता था जो कि अधिकाँशतः आधुनिक समाज के सिविल अधिकारियों द्वारा किए जाते हैं।”

2. चर्च का संगठन (Organization of the Church):
चर्च में अनेक प्रकार के अधिकारी कार्य करते थे। इन अधिकारियों का समाज में बहत सम्मान किया जाता था। उन्हें अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। वे राज्य को किसी प्रकार का कर नहीं देते थे। उन्हें सैनिक सेवा से भी मुक्त रखा जाता था। उनके प्रमुख कार्यों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

(1) पोय (Pope)-पोप चर्च का सर्वोच्च अधिकारी था। वह रोम में निवास करता था। मध्यकाल में उसे शक्तियाँ प्राप्त थीं। उसे पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था। वह चर्च से संबंधित सभी प्रकार के नियमों को बनाता था। वह चर्च की समस्त गतिविधियों पर अपना नियंत्रण रखता था। उसका अपना न्यायालय था जहाँ वह विवाह, तलाक, वसीयत एवं उत्तराधिकार से संबंधित मुकद्दमों के निर्णय देता था। उसके निर्णयों को अंतिम माना जाता था।

वह यूरोपीय शासकों को पदच्युत करने की भी क्षमता रखता था। वह चर्च से संबंधित विभिन्न अधिकारियों की नियुक्ति भी करता था। कोई भी यहाँ तक कि शासक भी पोप की आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस नहीं करता था। संक्षेप में पोप की शक्तियाँ असीम थीं। प्रसिद्ध लेखकों डॉक्टर एफ० सी० कौल एवं डॉक्टर एच० जी० वारेन के अनुसार, “पोप निरंकुश शासक की तरह सर्वोच्च था तथा जिसके निर्णयों के विरुद्ध कोई अपील नहीं की जा सकती थी।”

(2) आर्कबिशप (Archbishop):
पोप के बाद दूसरा स्थान आर्कबिशप का था। वह प्रांतीय बिशपों पर अपना नियंत्रण रखता था तथा उनके कार्यों की देखभाल करता था। उसका अपना न्यायालय होता था यहाँ वह बिशपों के निर्णयों के विरुद्ध की गई अपीलों को सुनता था। वह बिशपों की नियुक्ति भी करता था।

(3) बिशप (Bishop):
बिशप चर्च का एक महत्त्वपूर्ण अधिकारी होता था। प्रांत के सभी चर्च उसके अधीन होते थे। उनका अपना एक न्यायालय होता था। यहाँ वे चर्च से संबंधित विभिन्न मुकद्दमों की सुनवाई करते थे। वह पादरियों की नियुक्ति भी करते थे। ।

(4) पादरी (Priest):
मध्यकाल में चर्च में पादरी की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती थी। वह रविवार के दिन चर्च में आने वाले लोगों को धर्मोपदेश सनाता था। वह लोगों की दःख-तकलीफों को सनता था। वह लोगों के सखी जीवन के लिए सामूहिक प्रार्थनाएँ करता था। वह जन्म, विवाह एवं मृत्यु से संबंधित सभी प्रकार के संस्कारों को संपन्न करवाता था। वह पोप से प्राप्त सभी आदेशों का पालन करवाता था। पादरियों के लिए कुछ विशेष योग्यताएँ निर्धारित की गई थीं। पादरी विवाह नहीं करवा सकते थे। कृषकदास, अपंग व्यक्ति एवं स्त्रियाँ पादरी नहीं बन सकती थीं।

3. मठवाद (Monasticism):
मध्यकाल में लोगों पर चर्च का प्रभाव स्थापित करने में मठवाद ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई। उस समय कुछ ऐसे धार्मिक व्यक्ति थे जो एकांत का जीवन पसंद करते थे। अत: वे आबादी से दूर जिन भवनों में रहते थे उन्हें मठ (monasteries) अथवा ऐबी (abbeys) कहते थे। इनमें रहने वाले भिक्षुओं को मंक (monk) एवं भिक्षुणियों को नन (nun) कहा जाता था। कुछ मठों को छोड़ कर अधिकाँश मठों में भिक्षु एवं भिक्षुणियाँ अलग-अलग रहती थीं।

उन्हें अत्यंत कठोर नियमों का पालन करना पड़ता था। उन्हें पवित्रता का जीवन व्यतीत करना पड़ता था। वे विवाह नहीं करवा सकते थे। उन्हें संपत्ति रखने का कोई अधिकार नहीं था। वे ईश्वर अराधना में अपना जीवन व्यतीत करते थे। वे प्रसिद्ध पाँडुलिपियों की प्रतिलिपियाँ तैयार करते थे। वे लोगों को शिक्षा देने का कार्य करते थे। वे लोगों को उपदेश देते थे तथा उन्हें पवित्र जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा देते थे।

वे रोगियों की सेवा करते थे। वे मठ में आने वाले यात्रियों की देखभाल करते थे। वे मठ को दान दी गई भूमि पर कृषि एवं पशुपालन का कार्य करते थे।

जे० एच० बेंटली एवं एच० एफ० जाईगलर के शब्दों में,
“क्योंकि मठवासियों द्वारा समाज में विभिन्न भूमिकाएं निभाई जाती थीं इसलिए वे ईसाई धर्म के प्रचार में शक्तिशाली कार्यकर्ता सिद्ध हुए।

(क) सेंट बेनेडिक्ट (St. Benedict):
मध्यकाल यूरोप में जिन मठों की स्थापना हुई उनमें 529 ई० इटली में स्थापित सेंट बेनेडिक्ट (St. Benedict) सर्वाधिक प्रसिद्ध था। इसकी स्थापना इटली के महान् सेंट बेनेडिक्ट (480-547 ई०) ने की थी। उसने बेनेडिक्टीन (Benedictine) मठों में रहने वाले भिक्षुओं के लिए एक हस्तलिखित पुस्तक लिखी। इसके 73 अध्याय थे। इसमें भिक्षुओं के मार्गदर्शन के लिए नियमों का वर्णन किया गया था। प्रमुख नियम ये थे-

  • प्रत्येक मठवासी विवाह नहीं करवा सकता था।
  • वे अपने पास संपत्ति नहीं रख सकते थे।
  • उन्हें मठ के प्रधान ऐबट (abbot) की आज्ञा का पालन करना पड़ता था।
  • उन्हें बोलने की आज्ञा कभी-कभी ही दी जानी चाहिए।
  • प्रत्येक भिक्षु-भिक्षुणी को कुछ समय रोज़ाना शारीरिक श्रम करना चाहिए।
  • प्रत्येक मठवासी को अपना अधिकाँश समय अध्ययन में व्यतीत करना चाहिए।
  • प्रत्येक मठवासी को पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए।
  • प्रत्येक मठवासी को एक निश्चित समय में खाना खाना चाहिए एवं सोना चाहिए।
  • प्रत्येक मठवासी को जनसाधारण को शिक्षा देनी चाहिए एवं रोगियों की सेवा करनी चाहिए।
  • प्रत्येक मठ इस प्रकार बनाना चाहिए कि आवश्यकता की समस्त वस्तुएँ-जल, चक्की, उद्यान, कार्यशाला सभी उसकी सीमा के अंदर हों। इन नियमों का पालन सदियों तक किया जाता रहा।

(ख) क्लूनी (Cluny):
मध्यकाल यूरोप में स्थापित होने वाला दूसरा प्रसिद्ध मठ क्लूनी थां। इसकी स्थापना 910 ई० में विलियम प्रथम ने फ्राँस में बरगंडी (Burgundi) नामक स्थान में की थी। इस मठ की स्थापना का कारण यह था कि मठों में भ्रष्टाचार एवं चरित्रहीनता का बोलबाला हो गया था। अतः इनमें सुधारों की आवश्यकता महसूस की जाने लगी थी।

अतः क्लूनी मठ द्वारा सेंट बेनेडिक्ट के नियमों का कड़ाई से पालन पर बल दिया गया। इसने कछ नए नियम भी बनाए। शीघ्र ही क्लनी मठ बहत लोकप्रिय हो गया। इस मठ को लोकप्रिय बनाने में आबेस हिल्डेगार्ड (Abbess Hildegard) ने उल्लेखनीय योगदान दिया। वह बहुत प्रतिभाशाली थी। उसके प्रचार कार्य एवं लेखन ने लोगों के दिलों पर जादुई प्रभाव डाला।

उसने जर्मनी, फ्राँस तथा स्विट्जरलैंड में अथक प्रचार किया। उसने स्त्रियों की दशा सुधारने में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। प्रसिद्ध इतिहासकार आर० टी० मैथ्यू के अनुसार, “हिल्डेगार्ड बहुत प्रतिभाशाली थी एवं उसने एक उत्तम देन दी। उसने विशेषतः उस समय के प्रचलित विश्वास का खंडन किया कि स्त्रियों को पढ़ाना एवं लिखाना ख़तरनाक है।”

(ग) फ्रायर (Friars):
13वीं शताब्दी के आरंभ में यूरोप में भिक्षुओं (monks) नए समूह का उत्थान हुआ। ये भिक्षु फ्रायर कहलाते थे। वे मठों में रहने की अपेक्षा बाहर भ्रमण करते थे। वे ईसा मसीह (Jesus Christ) के संदेश को लोगों तक पहुँचाते थे। वे जनसाधारण की भाषा में प्रचार करते थे। उन्होंने चर्च के गौरव को स्थापित करने एवं लोगों में एक नई जागृति लाने में उल्लेखनीय योगदान दिया। फ्रायर लोगों द्वारा दिए गए दान से अपनी जीविका चलाते थे। वे दो संघों (orders) में विभाजित थे।

इनके नाम थे फ्राँसिस्कन (Franciscan) एवं डोमिनिकन (Dominican)। फ्राँसिस्कन संघ की स्थापना असीसी (Assisi) के संत फ्रांसिस (St. Francis) ने की थी। उनकी गणना मध्य युग के श्रेष्ठ व्यक्तियों में की जाती थी। उन्होंने गरीबों, अनाथों एवं बीमारों की सेवा करने का संदेश दिया। उन्होंने शिष्टता के नियमों का पालन करने, शिक्षा के प्रसार एवं श्रम के महत्त्व पर विशेष बल दिया।

उन्होंने जर्मनी, फ्राँस, हंगरी, स्पेन एवं सुदूरपूर्व (Near East) की यात्रा कर लोगों को उपदेश दिया। उनके जादुई व्यक्तित्व से प्रभावित होकर बड़ी संख्या में लोग उनके शिष्य बने। डोमिनिकन संघ के संस्थापक स्पेन (Spain) के संत डोमिनीक (St. Dominic) थे। उन्होंने जनभाषा में अपना किया।

उन्होंने पाखंडी लोगों की कटु आलोचना की। उन्होंने पुजारी वर्ग में फैली अज्ञानता को दूर करने का बीड़ा उठाया। उनके शिष्य बहुत विद्वान थे। वे विश्वविद्यालयों में दर्शनशास्त्र एवं धर्मशास्त्र पढ़ाने का कार्य करते थे। इस संघ का प्रभाव फ्रांसिस्कन संघ जितना व्यापक नहीं था। 14वीं शताब्दी में मठवाद का महत्त्व कुछ कम हो गया था। इसके दो प्रमुख कारण थे।

प्रथम, मठ में भ्रष्टाचार फैल गया था। दूसरा, भिक्षु, भिक्षुणी एवं फ्रायर ने अब विलासिता का जीवन व्यतीत करना आरंभ कर दिया था। इंग्लैंड के दो प्रमुख कवियों लैंग्लैंड (Langland) ने अपनी कविता पियर्स प्लाउमैन (Piers Plowman) तथा जेफ्री चॉसर

4. चर्च के प्रभाव (Effects of Church):
मध्य युग में चर्च का यूरोपीय समाज पर जितना व्यापक प्रभाव था उतना प्रभाव किसी अन्य संस्था का नहीं था। इसने लोगों को आपसी भाईचारे एवं प्रेम का संदेश दिया। इसने गरीबों एवं अनाथों को आश्रय प्रदान किया। इसने रोगियों की देखभाल के लिए अनेक अस्पताल बनवाए। इसने शिक्षा के प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दिया।

चर्च एवं मठों के द्वारा लोगों को मुफ्त शिक्षा प्रदान की जाती थी। अनेक चर्च अधिकारी विश्वविद्यालयों में अध्यापन का कार्य भी करते थे। इससे लोगों में एक नव जागृति का संचार हुआ। आबेस हिल्डेगार्ड ने स्त्रियों की दशा का उत्थान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

चर्च ने लोगों को युद्ध की अपेक्षा शांति का पाठ पढ़ाया। संक्षेप में चर्च के यूरोपीय समाज पर दूरगामी एवं व्यापक प्रभाव पड़े। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर बी० वी० राव के अनुसार,”किसी भी अन्य संस्था ने मध्यकालीन यूरोप के लोगों को इतना प्रभावित नहीं किया जितना कि ईसाई चर्च ने।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 6 तीन वर्ग

प्रश्न 8.
मध्यकाल में मठवाद के विकास के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
नोट-इस प्रश्न के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं0 7 के भाग 3 का उत्तर देखें।

प्रश्न 9.
मध्यकालीन यूरोप में नगरों के उत्थान के कारणों, विशेषताओं एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् यूरोप के अधिकाँश नगर लोप हो चुके थे। इसका कारण यह था कि रोमन साम्राज्य पर आक्रमण करने वाले बर्बर आक्रमणकारियों ने रोमन साम्राज्य के अनेक नगरों का विनाश कर दिया था। 11वीं शताब्दी से परिस्थितियों में परिवर्तन आना आरंभ हुआ। इससे मध्यकालीन यूरोप में अनेक नगरों का उत्थान हुआ। यद्यपि ये नगर आधुनिक नगरों की तुलना में भव्य एवं विशाल नहीं थे किंतु उन्होंने उस समय के समाज को काफी सीमा तक प्रभावित किया। बी० के० गोखले के अनुसार, “मध्यकालीन नगरों ने यूरोपीय संस्कृति एवं सभ्यता को महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।”

I. नगरों के उत्थान के कारण

मध्यकालीन यूरोप में नगरों के उत्थान के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. कृषि का विकास (Development of Agriculture):
रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् यूरोप में अराजकता का बोलबाला था। इससे कृषि एवं व्यापार को गहरा आघात लगा। अर्थव्यवस्था के तबाह हो जाने से बड़ी संख्या में नगर उजड़ गए थे। धीरे-धीरे परिस्थिति में परिवर्तन आया। इससे कृषि के विकास को बल मिला। फ़सलों के अधिक उत्पादन के कारण कृषक धनी हुए।

इन धनी किसानों को अपनी आवश्यकता से अधिक खाद्यान्न को बेचने तथा अपने लिए एवं कृषि के लिए आवश्यक वस्तुओं को खरीदने के लिए एक बिक्री केंद्र की आवश्यकता हुई। शीघ्र ही बिक्री केंद्रों में दुकानों, घरों, सड़कों एवं चर्चों का निर्माण हुआ। इससे नगरों के विकास की आधारशिला तैयार हुई।

2. व्यापार का विकास (Development of Trade):
11वीं शताब्दी में यूरोप एवं पश्चिम एशिया के मध्य अनेक नए व्यापारिक मार्गों का विकास आरंभ हुआ। इससे व्यापार को एक नई दिशा मिली। इटली, जर्मनी, इंग्लैंड, पुर्तगाल एवं बेल्जियम के व्यापारियों ने मुस्लिम एवं अफ्रीका के व्यापारियों के साथ संबंध स्थापित किए। व्यापार में आई इस तीव्रता ने नगरों के विकास को एक नया प्रोत्साहन दिया।

3. धर्मयुद्ध (Crusades):
धर्मयुद्ध यूरोपीय ईसाइयों एवं मुसलमानों के मध्य 1096 ई० से 1272 ई० के मध्य लड़े गए थे। इन धर्मयुद्धों का वास्तविक उद्देश्य ईसाइयों द्वारा अपनी पवित्र भूमि जेरुसलम (Jerusalem) को मुसलमानों के अधिकार से स्वतंत्र करवाना था। इन धर्मयुद्धों के कारण यूरोपियों के ज्ञान में बहुत वृद्धि हुई। वे भव्य, मुस्लिम नगरों को देखकर चकित रह गए।

इन धर्मयुद्धों के कारण पश्चिम एवं पूर्व के मध्य व्यापार को एक नया प्रोत्साहन मिला। इसका कारण यह था कि यूरोपीय देशों में रेशम, मलमल, गरम मसालों एवं विलासिता की वस्तुओं की माँग बहुत बढ़ गई थी। इससे व्यापारी धनी हुए जिससे नगरों के विकास को बल मिला।।

4. नगरों की स्वतंत्रता (Freedom of Towns):
मध्यकाल में यह कहावत प्रचलित थी-नगर की हवा बनाती है। (town air makes free.) अनेक कृषकदास (serfs) जो स्वतंत्र होने की इच्छा रखते थे तथा जो अपने सामंत द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों से दुःखी थे नगरों में जाकर छिप जाते थे। यदि कोई कृषकदास अपने सामंत की नजरों से एक वर्ष तथा एक दिन तक छिपे रहने में सफल हो जाता तो उसे स्वतंत्र कर दिया जाता था।

वह नगर में रहने वाले विभिन्न विचारों वाले लोगों से मिलता था। यहाँ उसे अपनी स्थिति में सुधार करने के अनेक अवसर प्राप्त थे। वह किसी भी व्यवसाय को अपना सकता था। यहाँ वह कोई भी विलास सामग्री खरीद सकता था। कृषकदास रहते हुए वह इस संबंध में स्वप्न में भी नहीं सोच सकता था। संक्षेप में नगरों के स्वतंत्र जीवन ने नगरों के विकास में बहुमूल्य योगदान दिया।

एक अन्य प्रसिद्ध इतिहासकार मार्क किशलेस्की का यह कहना ठीक है कि, “अनेक कृषक जो अपने सामान्य जीवन से निराश थे के लिए नगर एक पनाहगाह थे।”

II. नगरों की विशेषताएँ

मध्यकाल यूरोप में अनेक नए नगरों का उत्थान हुआ। इन नगरों में प्रमुख थे वेनिस (Venice), फ्लोरेंस (Florence), मिलान (Milan), जेनेवा (Genoa), नेपल्स (Naples), लंदन (London), क्लोन (Cologne), प्रेग (Prague), वियाना (Vienna), बार्सिलोना (Barcelona), रोम (Rome), आग्स्बर्ग (Augusburg) आदि। इन नगरों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

1. आधारभूत सुविधाओं की कमी (Lack of Basic Amenities):
मध्यकालीन यूरोप में यद्यपि अनेक नगरों का उत्थान हुआ था किंतु ये प्राचीन काल अथवा आधुनिक काल में बने नगरों की तरह भव्य एवं विशाल नहीं थे। यहाँ तक कि इन नगरों में आधारभूत सुविधाओं की बहुत कमी थी।

ये नगर बिना किसी योजना के बनाए जाते थे। जहाँ कहीं जगह मिलती वहीं मकान बना दिए जाते थे। ये मकान लकड़ी के बने हुए होते थे तथा एक दूसरे से सटे हुए होते थे। अत: आग लग जाने की सूरत में संपूर्ण नगर के नष्ट होने का ख़तरा रहता था। नगरों की गलियाँ बहुत तंग होती थीं। सड़कें कम चौड़ी एवं कच्ची होती थीं।

लोगों को पीने के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं था। घरों से जल निकासी (drainage) का कोई प्रबंध नहीं था। लोग घरों का कूड़ा-कर्कट बाहर गलियों फेंक देते थे। इस कारण अक्सर महामारियाँ फैल जाती थीं एवं बड़ी संख्या में लोग मृत्यु का ग्रास हो जाते थे। इन कारणों के चलते नगरों में रहने वाले लोगों की संख्या बहुत कम थी।

2. सुरक्षा व्यवस्था (Defence Arrangements) :
मध्यकाल यूरोप को यदि युद्धों एवं आक्रमणों का काल कह दिया जाए तो इसमें कोई अतिकथनी नहीं होगी। इस अराजकता का चोरों एवं लुटेरों ने खूब फायदा उठाया। नगरों की सुरक्षा व्यवस्था की ओर विशेष ध्यान दिया जाता था। इस उद्देश्य से नगरों के चारों ओर एक विशाल दीवार बनाई जाती थी। इस विशाल दीवार के अतिरिक्त नगर की सुरक्षा के लिए नगर के चारों ओर एक विशाल खाई बनाई जाती थी। इस खाई को सदैव पानी से भरा रखा जाता था। इसका उद्देश्य यह था कि कोई भी आक्रमणकारी सुगमता से नगर पर आक्रमण न कर सके।

3. श्रेणियों की भूमिका (Role of Guilds):
मध्यकालीन नगरों में रहने वाले अधिकाँश लोग व्यापारी थे। प्रत्येक शिल्प अथवा उद्योग ने व्यापार को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से अपनी-अपनी श्रेणियाँ संगठित कर ली थीं। ये श्रेणियाँ उत्पाद की गुणवत्ता, उसके मूल्य एवं बिक्री पर नियंत्रण रखती थीं। प्रत्येक श्रेणी का अपना एक प्रधान नियुक्त किया जाता था।

श्रेणी के नियमों का उल्लंघन करने वालों, घटिया माल का उत्पादन करने वालों एवं ग्राहकों से निर्धारित मूल्यों से अधिक वसूल करने वालों के विरुद्ध श्रेणी सख्त कदम उठाती थी। श्रेणी अपने अधीन कार्य करने वाले कारीगरों एवं शिल्पकारों के कल्याण के लिए बहुत कार्य करती थी। यह बीमारी, दुर्घटना एवं वृद्धावस्था के समय अपने सदस्यों को आर्थिक सहायता देती थी। यह विधवाओं एवं अनाथ बच्चों की भी देखभाल करती थी। यह अपने सदस्यों के लिए मनोरंजन की भी व्यवस्था करती थी।

4. कथील नगर (Cathedral Towns):
12वीं शताब्दी में फ्रांस में कथीड्रल कहे जाने वाले विशाल चर्चों का निर्माण कार्य आरंभ हुआ। शीघ्र ही यूरोप के अन्य देशों में भी कथीलों का निर्माण शुरू हुआ। इनके निर्माण के लिए धनी लोगों द्वारा दान दिया जाता था। सामान्यजन अपने श्रम द्वारा एवं अन्य वस्तुओं द्वारा इनके निर्माण में सहयोग देते थे। कथील बहुत विशाल एवं भव्य होते थे।

इन्हें पत्थर से बनाया जाता था। इनके निर्माण में काफी समय लगता था। अतः कथीड्रल के आस-पास अनेक प्रकार के लोग बस गए। उनकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बाज़ार भी स्थापित हो गए। इस प्रकार कथीलों ने नगरों का रूप धारण कर लिया। कथीलों का निर्माण इस प्रकार किया गया था कि पादरी की आवाज, भिक्षुओं के गीत, लोगों की प्रार्थना की घंटियाँ दूर-दूर तक सुनाई पड़ें। कथील की खिड़कियों के लिए अभिरंजित काँच (stained glass) का प्रयोग किया जाता था।

III. नगरों का महत्त्व

मध्यकाल में नगरों ने यूरोपीय सभ्यता एवं संस्कृति पर गहन प्रभाव डाला। नगरों की उल्लेखनीय भूमिका के संबंध में हम निम्नलिखित तथ्यों से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं

1. राजनीतिक क्षेत्र में देन (Contribution in the Political Field):
13वीं शताब्दी तक यूरोप के अनेक नगर बहुत समृद्ध हो गए थे। उन्होंने देश की राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। समृद्ध नगर निवासी

1. उन्होंने राजा को स्थायी सेना के गठन में भी सहयोग दिया। इस कारण राजाओं की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ। वे पहले की अपेक्षा शक्तिशाली हो गए। इससे सामंतों की शक्ति को गहरा आघात लगा। राजाओं ने अमीरों द्वारा दिए जाने वाले समर्थन के बदले उन्हें संसद में बैठने की अनमति दी। इन अमीरों ने शासन संबंधी सरकारी नीति को काफी सीमा तक प्रभावित किया। राजा ने कुछ अमीरों को नगर पर शासन करने के अधिकार पत्र भी दिए।

2. आर्थिक क्षेत्र में देन (Contribution in the Economic Field):
मध्यकालीन नगरों ने आर्थिक क्षेत्र में निस्संदेह उल्लेखनीय योगदान दिया। नगरों द्वारा अनेक ऐसी वस्तुओं का उत्पादन किया जाता था जो समाज के लिए आवश्यक थीं। व्यापारी अपने फालतू माल का विदेशों में निर्यात करते थे तथा वे आवश्यक माल का आयात भी करते थे। इससे नगरों की समृद्धि में वृद्धि हुई।

नगरों में लोगों की सुविधा के लिए अक्सर मेलों का आयोजन किया जाता था। इन मेलों में देशी एवं विदेशी प्रत्येक प्रकार का माल मिलता था। नगरों में व्यापार के कुशल संचालन के लिए श्रेणियों (guilds) का गठन किया गया था। ये श्रेणियाँ व्यापार के अतिरिक्त नगर शासन को भी प्रभावित करती थीं।

3. सामाजिक क्षेत्र में देन (Contribution in the Social Field):
मध्यकालीन नगरों ने यूरोप के सामाजिक जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। ये नगर सामंतों के प्रभाव से मुक्त थे। अतः यहाँ रहने वाले लोग अपनी इच्छानुसार किसी भी व्यवसाय को अपना सकते थे अथवा अपनी मेहनत से किसी भी पद पर पहुँच सकते थे। वे विवाह करवाने के लिए स्वतंत्र थे।

वे जब चाहे कोई भी संपत्ति खरीद सकते थे अथवा उसे बेच सकते थे। नगरों में धन के एकत्र होने से लोगों के सामाजिक जीवन में भी परिवर्तन हुआ। धनी लोगों ने अपने लिए विशाल घर बना लिए थे। वे विलासिता का जीवन व्यतीत करने लगे थे। नगरों के उत्थान से यूरोप के समाज में दो नए वर्ग– श्रमिक वर्ग एवं मध्य वर्ग अस्तित्व में आए। मध्य वर्ग ने यूरोप के समाज को एक नई दिशा देने में प्रशंसनीय योगदान दिया।

4. सांस्कृतिक क्षेत्र में देन (Contribution in the Cultural Field):
नगरों के उत्थान के परिणामस्वरूप यूरोप ने सांस्कृतिक क्षेत्र में अद्वितीय प्रगति की। नगरों के धनी लोगों ने नगरों के सौंदर्य को बढ़ाने के उद्देश्य से अनेक उद्यान लगवाए। उन्होंने सड़क मार्गों एवं यातायात के साधनों का विकास किया। उन्होंने भवन निर्माण कला, चित्रकला एवं साहित्य को प्रोत्साहित किया। परिणामस्वरूप इन सभी क्षेत्रों में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई। वास्तव में इसने यूरोप में पुनर्जागरण की आधारशिला रखी।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 6 तीन वर्ग

प्रश्न 10.
मध्यकालीन यूरोप में सामाजिक एवं आर्थिक संबंधों को प्रभावित करने वाले कारकों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
मध्यकालीन यूरोप में कृषि प्रौद्योगिकी में आए मूलभूत परिवर्तनों को लिखिए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोप में अनेक ऐसे परिवर्तन आए जिन्होंने सामाजिक एवं आर्थिक संबंधों पर गहन प्रभाव डाला। इन परिवर्तनों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. पर्यावरण (Environment):
5वीं शताब्दी से लेकर 10वीं शताब्दी तक यूरोप का अधिकाँश भाग विशाल जंगलों से घिरा हुआ था। इन जंगलों के कारण कृषि योग्य भूमि बहुत कम रह गई थी। अनेक कृषकदास अपने सामंतों के अत्याचारों से बचने के लिए जंगलों में जाकर शरण ले लेते थे। इस काल के दौरान संपूर्ण यूरोप जबरदस्त शीत लहर की चपेट में था।

इस शीत लहर के चलते फ़सलों की उपज का काल बहुत कम अवधि का रह गया था। इससे फ़सलों के उत्पादन में बहुत कमी आ गई। 11वीं शताब्दी में यूरोप के वातावरण में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव आया। अब तापमान में वृद्धि होने लगी।

इससे फ़सलों के लिए आवश्यक तापमान उपलब्ध हो गया। इससे फ़सलों के उत्पादन में तीव्र वृद्धि हुई। तापमान में वृद्धि के कारण यूरोप के अनेक भागों के वन क्षेत्रों में काफी कमी आई। परिणामस्वरूप कृषि क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

2. भूमि का उपयोग (Land Use):
प्रारंभिक मध्यकाल यूरोप में प्रचलित कृषि तकनीक बहुत पुरानी किस्म की थी। इसके बावजूद लॉर्ड अपनी आय को बढ़ाने का प्रयास करते रहते थे। यद्यपि कृषि के उत्पादन को बढ़ाना संभव नहीं था इसलिए कृषकों को मेनरों की जागीर (manorial estate) की समस्त भूमि को कृषि योग्य बनाने के लिए बाध्य किया जाता था।

इसके लिए उन्हें निर्धारित समय से भी अधिक समय तक काम करना पड़ता था। कृषक क्योंकि अपने लॉर्ड के अत्याचारों का खुल कर सामना नहीं कर सकते थे इसलिए उन्होंने निष्क्रिय प्रतिरोध का सहारा लिया। वे अपने खेतों पर अधिक समय काम करने लगे और उपज का अधिकाँश भाग अपने पास रखने लगे। चरागाहों एवं वन भूमि के लिए भी कृषकों और लॉर्डों के मध्य विवाद आरंभ हो गए। इसका कारण यह था कि लॉर्ड इस भूमि को अपनी व्यक्तिगत संपत्ति समझते थे जबकि कृषक इसे संपूर्ण समुदाय से संबंधित समझते थे।

3. नयी कृषि प्रौद्योगिकी (New Agricultural Technology):
11वीं शताब्दी तक यूरोप में नयी कृषि प्रौद्योगिकी के प्रमाण मिलते हैं। अब लकड़ी से बने हलों के स्थान पर लोहे के हलों का प्रयोग किया जाने लगा। ये हल भारी नोक वाले होते थे। इससे भूमि को अधिक गहरा खोदना संभव हुआ। अब साँचेदार पटरों (mould boards) का उपयोग किया जाने लगा।

इनके द्वारा उपरि मृदा को सुगमता से पलटा जा सकता था। अब हल को गले के स्थान पर बैलों के कंधों से बाँधा जाने लगा। इस तकनीकी परिवर्तन से बैलों की एक बड़ी परेशानी दूर हुई। इसके अतिरिक्त उन्हें पहले की अपेक्षा कहीं अधिक शक्ति मिल गई। घोड़ों के खुरों पर अब लोहे की नाल लगाने का प्रचलन आरंभ हो गया। इससे उनके खुर अब सुरक्षित हो गए।

मध्यकालीन यूरोप में भूमि के उपयोग के तरीकों में परिवर्तन आया। कृषि के लिए पहले दो खेतों वाली व्यवस्था (two-field system) प्रचलित थी। इसके स्थान पर अब तीन खेतों वाली व्यवस्था का प्रयोग होने लगा। इस व्यवस्था के अधीन कृषक अपने खेतों को तीन भागों में बाँटते थे। एक भाग में शरद ऋतु में गेहूँ अथवा राई (rye) बो सकते थे।

दूसरे भाग में बसंत ऋतु में मटर (peas), सेम (beans) तथा मसूर (lentils) की खेती की जाती थी। इनका प्रयोग मनुष्यों द्वारा किया जाता था। घोड़ों के उपयोग के लिए जौ (oats) एवं बाजरे (barley) का उत्पादन किया जाता था। तीसरे खेत को खाली रखा जाता था। इसका प्रयोग चरागाह के लिए किया जाता था। इस प्रकार वे प्रत्येक वर्ष खेतों का प्रयोग बदल-बदल कर करने लगे। इससे फ़सलों के उत्पादन में हैरानीजनक वृद्धि हुई।

फ़सलों के उत्पादन में वृद्धि के महत्त्वपूर्ण परिणाम सामने आए। भोजन की उपलब्धता अब पहले की अपेक्षा दुगुनी हो गई। मटर, सेम एवं मसूर आदि के प्रयोग से अब लोगों को पहले की अपेक्षा कहीं अधिक मात्रा में प्रोटीन मिलने लगा। जौ एवं बाजरा अब पशुओं के लिए एक अच्छा चारे का स्रोत बन गया। इससे वे अधिक ताकतवर बने। इस कारण वे अब अधिक कार्य करने योग्य हो गए।

कृषि के विकास के कारण यूरोप में जनसंख्या में तीव्रता से वृद्धि होने लगी। अत: लोगों द्वारा आवास की माँग बढ़ जाने के कारण कृषि अधीन क्षेत्र कम होने लगा। कृषि में हुए विकास के परिणामस्वरूप सामंतवाद पर गहरा प्रभाव पड़ा। व्यक्तिगत संबंध जो कि सामंतवाद की प्रमुख आधारशिला थे कमज़ोर पड़ने लगे।

प्रश्न 11.
किन कारणों के चलते यूरोपीय समाज को 14वीं शताब्दी में संकट का सामना करना पड़ा ?
अथवा
चौदहवीं सदी की शुरुआत तक यूरोप का आर्थिक विकास धीमा पड़ गया। क्यों ?
उत्तर:
14वीं शताब्दी में यूरोप में आए संकट के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

1. पर्यावरण में परिवर्तन (Change in Environment):
13वीं शताब्दी के अंत में उत्तरी यूरोप के पर्यावरण में पुनः परिवर्तन आया। इस कारण गर्मी का स्थान शीत ऋतु ने ले लिया। गर्मी का मौसम बहुत छोटा रह गया। इस कारण भूमि की उत्पादन क्षमता बहुत कम हो गई। इससे घोर खाद्य संकट उत्पन्न हो गया। भयंकर तूफानों एवं सागरीय बाढ़ों ने भी कृषि अधीन काफी भूमि को नष्ट कर दिया। इसने स्थिति को अधिक विस्फोटक बना दिया।

इसके अतिरिक्त भू-संरक्षण (soil conservation) के अभाव के कारण भूमि की उपजाऊ शक्ति बहुत कम हो गई थी। दूसरी ओर जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण उपलब्ध संसाधन बहुत कम पड़ गए। इससे अकालों का जन्म हुआ।

1315 ई० और 1317 ई० के दौरान यूरोप में भयंकर अकाल पड़े। इस कारण बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु हो गई। चरागाहों की कमी के कारण पशुओं को पर्याप्त चारा उपलब्ध न हो सका। परिणामस्वरूप 1320 ई० के दशक में बड़ी संख्या में पशु मारे गए।

2. चाँदी की कमी (Shortage of Silver):
14वीं शताब्दी में ऑस्ट्रिया एवं सर्बिया में चाँदी की कमी आ गई। इन दोनों देशों में विश्व की सर्वाधिक चाँदी की खानें थीं। यहाँ से अन्य यूरोपीय देशों को चाँदी का निर्यात किया जाता था। उस समय अधिकाँश यूरोपीय देशों में चाँदी की मुद्रा का प्रचलन था। अत: इस धातु की कमी के कारण यूरोपीय व्यापार को जबरदस्त आघात लगा। इसका कारण यह था कि चाँदी के अभाव में मिश्रित धातु की मुद्रा का प्रचलन किया गया। इसे व्यापारी स्वीकार करने को तैयार न थे।

3. ब्यूबोनिक प्लेग (Bubonic Plague):
14वीं शताब्दी में यूरोप में ब्यूबोनिक प्लेग ने भयंकर रूप धारण कर लिया था। यह एक संक्रामक बीमारी (contagious disease) थी जो चूहों से फैलती थी। इसे काली मौत (black death) कहा जाता था। इसका कारण यह था कि यह बीमारी जिस व्यक्ति को लगती थी उसका रंग काला पड जाता था।

इस बीमारी के प्रथम लक्षण 1347 ई० में सिसली (Sicily) में देखने को मिले। यहाँ एशिया से व्यापार के लिए आए जलपोतों के साथ चूहे भी आ गए थे। इससे वहाँ प्लेग फैल गई। शीघ्र ही यह 1348 ई० से 1350 ई० के दौरान यूरोप के अनेक देशों में फैल गई। यह बीमारी जिसे लग जाती थी उसकी मृत्यु निश्चित थी।

परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग मृत्यु का ग्रास बन गए। इस कारण यूरोप की जनसंख्या जो 1300 ई० में 730 लाख थी कम होकर 1400 ई० में 450 लाख रह गई। प्लेग के कारण व्यापक पैमाने पर सामाजिक विस्थापन हुआ। आर्थिक मंदी ने स्थिति को अधिक गंभीर बना दिया। इस कारण विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था को गहरा आघात लगा।

जनसंख्या में कमी के कारण मजदूरों की उपलब्धता बहुत कम हो गई। इस कारण मजदूरों की माँग बहुत बढ़ गई। इसके चलते मज़दूरी की दरों में 250 प्रतिशत तक की वृद्धि हो गई। दूसरी ओर मजदूरी की दरें बढ़ने तथा कृषि संबंधी मूल्यों में गिरावट के कारण लॉर्डों (सामंतों) की आय बहुत कम हो गई। इसके चलते उन्होंने मजदूरी संबंधी कृषकों से किए समझौतों का पालन करना बंद कर दिया।

इस कारण कृषकों एवं लॉर्डों के मध्य तनाव उत्पन्न हो गया। परिणामस्वरूप अनेक स्थानों पर कृषक विद्रोह करने के लिए बाध्य हो गए। इनमें से 1323 ई० में फलैंडर्स (Flanders), 1358 ई० में फ्राँस एवं 1381 ई० में इंग्लैंड में हुए विद्रोह प्रमुख थे। यद्यपि इन विद्रोहों का दमन कर दिया गया था किंतु इन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि कृषकों के साथ अब क्रूर व्यवहार नहीं किया जा सकता। प्रसिद्ध इतिहासकार रिचर्ड एल० ग्रीवस का यह कहना ठीक है कि, “प्लेग के सामाजिक एवं आर्थिक प्रभाव बहुत प्रभावशाली थे।”

प्रश्न 12.
राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान के कारणों एवं सफलताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
राष्ट्रीय राज्यों की विशेषताओं एवं सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। बाद में इन राज्यों का पतन क्यों हुआ?
उत्तर:
15वीं शताब्दी के अंत एवं 16वीं शताब्दी के आरंभ में यूरोप में राष्ट्रीय राज्यों (Nation States) का गठन हुआ। इसने आधुनिक युग का श्रीगणेश किया। राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान के कारणों, विशेषताओं एवं सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन अग्रलिखित अनुसार हैं

I. राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान के कारण

16वीं शताब्दी के आरंभ तक यूरोप में इंग्लैंड, फ्रांस, स्पेन एवं पुर्तगाल आदि में राष्ट्रीय राज्यों का उत्थान हुआ। राष्ट्रीय राज्यों से अभिप्राय ऐसे राज्यों से था जिसके नागरिक अपने आपको एक राष्ट्र से संबंधित समझते थे। उनकी अपनी भाषा एवं साहित्य होता था। उनका अपने राष्ट्र के साथ विशेष प्यार होता था। वे अपने राष्ट्र के हितों के लिए सब कुछ कुर्बान करने को तैयार रहते थे। राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. सामंतवाद का पतन (Decline of Feudalism):
16वीं शताब्दी के आरंभ में सामंतवाद का पतन राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान के लिए एक महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुआ। मध्यकाल सामंत बहुत शक्तिशाली थे। उनकी अपनी सेना होती थी। यहाँ तक कि राजा भी उनके प्रभावाधीन थे। लेकिन धीरे-धीरे परिस्थितियों में बदलाव आया।

सामंतों के घोर अत्याचारों के कारण लोग उनके विरुद्ध हो गए। धर्मयुद्धों में भाग लेने के कारण बड़ी संख्या में सामंत मारे गए। इनसे उनकी शक्ति को गहरा आघात लगा। सामंतों के पतन ने राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान की आधारशिला तैयार की। प्रसिद्ध इतिहासकार सी० जे० एच० हेज़ के अनुसार, “16वीं शताब्दी तक सामंतवाद का पतन हो रहा था एवं सामंत इस स्थिति में नहीं रहे कि वे शाही निरंकुशता का विरोध कर सकें।”

2. चर्च का प्रभाव (Influence of the Church):
मध्यकाल में चर्च का यूरोप के शासकों एवं लोगों पर गहन प्रभाव था। इसे असीम शक्तियाँ प्राप्त थीं। कोई भी व्यक्ति अथवा शासक चर्च की आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस नहीं रखता था। क्योंकि चर्च के पास अपार संपत्ति थी इसलिए यह शीघ्र ही भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया। 16वीं शताब्दी के आरंभ तक यूरोप के लोगों का दृष्टिकोण विशाल हो गया था।

अतः वे चर्च में फैले भ्रष्टाचार को सहन करने के लिए तैयार नहीं थे। धर्मयुद्धों के दौरान पोप ने यूरोपीय देशों को नेतृत्व प्रदान किया था। इन युद्धों में अंततः यूरोपीयों को पराजय का सामना करना पड़ा। इससे चर्च के सम्मान को गहरा आघात लगा। परिणामस्वरूप राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान के लिए स्वर्ण अवसर प्राप्त हुआ।

3. धर्मयुद्ध (The Crusades):
धर्मयुद्ध यूरोपीय ईसाइयों एवं मुसलमानों के मध्य 11वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी के दौरान लड़े गए। इन धर्मयुद्धों में बड़ी संख्या में सामंत मारे गए थे। इससे उनकी शक्ति को गहरा आघात लगा। चर्च के इन युद्धों के दौरान यूरोपीय शासकों को पूर्वी देशों में प्रचलित शासन व्यवस्था की जानकारी प्राप्त हई।

वे यहाँ प्रचलित निरंकश राजतंत्र (absolute monarchy) से बहत प्रभावित हए। अतः उन्होंने इस को यूरोपीय देशों में लागू करने का निर्णय किया। यूरोप में फैली अराजकता को दूर करने के उद्देश्य से लोगों ने इस दिशा में शासकों को पूर्ण सहयोग दिया। निस्संदेह यह कदम यूरोप में राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान में महत्त्वपूर्ण प्रमाणित हुआ।

4. मध्य वर्ग का उत्थान (The Rise of the Middle Class):
मध्य वर्ग के उत्थान ने राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस वर्ग के लोग धनी एवं व्यापारी थे। उन्होंने अपने व्यापार एवं वाणिज्य के प्रोत्साहन एवं सुरक्षा हेतु निरंकुश राजतंत्र की स्थापना में बड़ा सक्रिय सहयोग दिया। उन्होंने सामंतों के घोर अत्याचारों से बचने एवं अराजकता के वातावरण को दूर करने के लिए निरंकुश राजाओं के हाथ मज़बूत करने का निर्णय किया।

क्योंकि उस समय संसद् में कुलीन वर्ग का बोलबाला था इसलिए मध्य वर्ग यह कामना करता था कि इस पर राजा की सर्वोच्चता स्थापित हो। इस उद्देश्य से मध्य वर्ग ने राजा को नियमित कर देने का वचन दिया।

इन करों के कारण राजा अपनी एक शक्तिशाली सेना का गठन कर सका। इस सेना के चलते राजा अपने राज्य के सामंतों का दमन कर सका। निस्संदेह मध्य वर्ग का उत्थान युरोपीय इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण मोड सिद्ध हआ। प्रसिद्ध इतिहासकार सी० जे० एच० हेज़ के अनुसार, “मध्य वर्ग का उत्थान एवं इसका राजाओं के साथ समझौता शायद मध्य काल से आधुनिक काल के बीच के परिवर्तन की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता थी।”

5. शक्तिशाली शासकों का उत्थान (Rise of Powerful Rulers):
यह सौभाग्य ही था कि 15वीं शताब्दी के अंत एवं 16वीं शताब्दी के आरंभ में यूरोप में अनेक शक्तिशाली शासकों का उत्थान हुआ। इनमें फ्राँस का लुई ग्यारहवाँ (Louis XI), इंग्लैंड का हेनरी सातवाँ (Henery VII), स्पेन के फर्जीनेंड (Ferdinand) एवं ईसाबेला (Isabella) तथा ऑस्ट्रिया के मैक्समिलन (Maximilian) के नाम उल्लेखनीय हैं।

इन शासकों ने एक शक्तिशाली सेना का गठन किया। इस सेना को बंदूकों एवं बड़ी तोपों से लैस किया गया। इस सेना के सहयोग से इन शासकों ने सामंतों की शक्ति का सुगमता से दमन किया। इसका कारण यह था कि सामंतों की सेना कमज़ोर थी। ये सैनिक अपने तीर एवं तलवारों के साथ तोपों का मुकाबला न कर सके।

6. विद्वानों के लेख (Writings of the Scholars):
15वीं शताब्दी के अंत एवं 16वीं शताब्दी के आरंभ यूरोप में अनेक ऐसे विद्वान हुए जिन्होंने अपने लेखों द्वारा राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनमें इटली के लेखक मैक्यिावेली (Machiavelli), फ्रांसीसी लेखक बोदिन (Bodin) एवं इंग्लैंड के लेखक थॉमस हॉब्स (Thomas Hobbes) के नाम उल्लेखनीय हैं। मैक्यिावेली का ग्रंथ दि प्रिंस (The Prince) 1513 ई० में प्रकाशित हुआ।

इस ग्रंथ ने शीघ्र ही संपूर्ण यूरोप में धूम मचा दी। इस ग्रंथ में लेखक ने निरंकुश राजतंत्र की खूब प्रशंसा की तथा इस प्रणाली को अन्य सभी प्रकार की प्रणालियों से उत्तम बताया। इसका कथन था कि केवल राजा ही अपने राज्य के हितों के बारे में बेहतर जानता है। इसलिए उसे सदैव लोगों द्वारा समर्थन दिया जाना चाहिए। इन ग्रंथों का लोगों के दिलों पर जादुई प्रभाव पड़ा तथा वे राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना के समर्थन में आगे आए।

II. राष्ट्रीय राज्यों की विशेषताएँ

राष्ट्रीय राज्यों की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है-

(1) ऐसा विश्वास किया जाता था कि उनका अपना राज्य सर्वोच्च है तथा किसी अन्य राज्य को उनके राज्य की प्रभुसत्ता एवं क्षेत्रीय अखंडता (territorial integrity) को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है।

(2) ऐसे राज्य में राजा ही सर्वोच्च होता है। वह ही कानून का निर्माण करता है एवं उसकी व्याख्या करता है। उसके निर्णयों को अंतिम समझा जाता है। किसी भी व्यक्ति को उसकी आज्ञा का उल्लंघन करने का अधिकार नहीं होता। वास्तव में राजा की इच्छा को ही कानून समझा जाता है।

(3) ऐसे राज्यों में राजी ही राज्य की सुरक्षा एवं उसके विस्तार के लिए उत्तरदायी होता है। इसलिए उन्होंने अपने अधीन एक शक्तिशाली सेना का गठन किया। इस सेना को आधुनिक शस्त्रों से लैस किया जाता था।

(4) ऐसे राज्यों में व्यक्तियों को सभी प्रकार के अधिकारों से वंचित रखा जाता है।

(5) ऐसे राज्य राजनीतिक तौर पर स्वतंत्र होते हैं। इसके अतिरिक्त वे आर्थिक तौर पर आत्म-निर्भर (self-sufficient) होते हैं।

(6) ऐसे राज्यों में राजा को लोगों पर कर लगाने का अधिकार होता है। लोगों का यह कर्त्तव्य होता है कि वे इन करों की अदायगी समय पर करें।

(7) ऐसे राज्यों द्वारा सदैव विदेशों में अपने उपनिवेश (colonies) स्थापित करने के प्रयास किए जाते हैं।

III. राष्ट्रीय राज्यों की सफलताएँ

राष्ट्रीय राज्यों को अनेक सफलताएँ प्राप्त करने का श्रेय प्राप्त है।

  • उन्होंने सामंतों की शक्ति का दमन कर लोगों को उनके अत्याचारों से मुक्त किया।
  • उन्होंने अपने राज्यों में फैली अराजकता को दूर कर शाँति की स्थापना की।
  • उन्होंने लोगों को अपने शासकों का सम्मान करने एवं उन्हें पूर्ण सहयोग देने का सबक सिखाया।
  • उन्होंने लोगों में एक नई राष्ट्रीय चेतना का संचार किया। इसके यूरोप के भावी इतिहास पर दूरगामी प्रभाव पड़े।
  • उन्होंने अपने-अपने राज्यों की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से उल्लेखनीय पग उठाए। इससे देश की कृषि एवं उद्योगों को प्रोत्साहन मिला।
  • उन्होंने अपने राज्य की भाषा एवं साहित्य के विकास के लिए बहुमूल्य योगदान दिया। प्रसिद्ध इतिहासकार सी० जे० एच० हेज़ के शब्दों में, “16वीं शताब्दी में राष्ट्रीय राजतंत्र के उत्थान के साथ यूरोपीय लोगों में राष्ट्रीय जागृति एवं राष्ट्रीय देशभक्ति उत्पन्न हुई।”

IV. राष्ट्रीय राज्यों के पतन के कारण

16वीं शताब्दी में यद्यपि यूरोप में अनेक राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना हुई थी किंतु अनेक कारणों से बाद में इनका पतन हो गया। इन कारणों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

(1) आरंभ में राष्ट्रीय राज्यों के शासकों ने सामंतों का दमन कर आंतरिक शांति की स्थापना की। इससे उन्हें लोगों का पूर्ण सहयोग मिला। बाद में ये शासक अपने राज्यों के विस्तार के लिए दूसरे राज्यों के साथ लंबे युद्धों में उलझ गए। इस कारण पुनः अराजकता फैली। अत: लोग ऐसे राज्यों का अंत चाहने लगे।

(2) राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना के समय वहाँ के शासकों ने अनेक लोकप्रिय कार्य किए। इससे लोग बहुत प्रसन्न हुए। उन्हें लंबे समय के पश्चात् अत्याचारी सामंतों से छुटकारा प्राप्त हुआ। सत्ता हाथ में आने के पश्चात् अनेक राष्ट्रीय शासक अपने कर्तव्यों को भूल गए। उन्होंने लोगों पर अनेक अनुचित कानून लाद दिए। अतः लोग ऐसे शासकों के विरुद्ध हो गए।

(3) राष्ट्रीय राज्यों के अनेक शासक सत्ता एवं धन हाथ आते ही विलासप्रिय हो गए। उन्होंने अपना अधिकाँश समय सुरा एवं सुंदरी के संग व्यतीत करना आरंभ कर दिया। ऐसे राज्यों का अंत निश्चित था।

(4) 1776 ई० में अमरीका की क्राँति एवं 1789 ई० में फ्रांसीसी क्राँति ने राष्ट्रीय राज्यों को एक गहरा आघात पहुँचाया।

क्रम संख्या वर्ष घटना
1. 529 ई० इटली में सेंट बेनेडिक्ट मठ की स्थापना।
2. 768-814 ई० फ्राँस के शासक शॉर्लमेन का शासनकाल।
3. 910 ई० बरगंडी में क्लूनी मठ की स्थापना।
4. 1066 ई॰ नारमंडी के विलियम द्वारा इंग्लैंड पर अधिकार।
5. 1100 ई० फ्राँस में कथीड्रलों का निर्माण।
6. 1315-1317 ई० यूरोप में भयंकर अकाल।
7. 1323 ई० कृषकों का फलैंडर्स में विद्रोह।
8. 1347-1350 ई० यूरोप में ब्यूबोनिक प्लेग का फैलना।
9. 1358 ई० कृषकों का फ्राँस में विद्रोह।
10. 1381 ई० कृषकों का इंग्लैंड में विद्रोह।
11. 1337-1453 ई० इंग्लैंड एवं फ्राँस के मध्य सौ वर्षीय युद्ध।
12. 1455-1485 ई० इंग्लैंड एवं फ्राँस के मध्य गुलाबों का युद्ध।
13. 1461-1483 ई० फ्राँस में लुई ग्यारहवें का शासनकाल।
14. 1469 ई० आरागान के युवराज फर्डीनेंड एवं कास्तील की राजकुमारी ईसाबेला का विवाह।
15. 1485 ई० इंग्लैंड में हेनरी सप्तम द्वारा ट्यूडर वंश की स्थापना।
16. 1485-1509 ई० इंग्लैंड के शासक हेनरी सप्तम का शासनकाल।
17. 1492 ई० स्पेन का ग्रेनाडा पर अधिकार।
18. 1494 ई० पुर्तगाल के शासक की स्पेन के साथ टार्डींसिलास की संधि।
19. 1603 ई० जेम्स प्रथम द्वारा इंग्लैंड में स्टुअर्ट वंश की स्थापना।
20. 1603-1625 ई० इंग्लैंड के शासक जेम्स प्रथम का शासनकाल।
21. 1614 ई० फ्राँस के शासक लुई तेरहवें द्वारा एस्टेट्स जनरल को भंग करना।
22. 1625-1649 ई० इंग्लैंड के शासक चार्ल्स प्रथम का शासनकाल।
23. 1642-1649 ई० इंग्लैंड में गृहयुद्ध।
24. 1789 ई० प्राँस की क्राँति।
25. 1848 ई० जर्मनी की क्राँति।
26. 1917 ई० रूस की क्राँति।

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में प्रचलित तीन वर्ग कौन-से थे ? समाज पर इनके प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोपीय समाज तीन वर्गों-पादरी वर्ग, कुलीन वर्ग एवं किसान वर्ग में विभाजित था। समाज में सर्वोच्च स्थान पादरी वर्ग को प्राप्त था। पादरियों को पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि समझा जाता था। इसलिए समाज द्वारा उनका विशेष सम्मान किया जाता था। यहाँ तक कि राजा भी उनकी आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस नहीं करते थे। उन्हें अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे।

वे सभी प्रकार के करों से मुक्त थे। कृषकदास, अपाहिज व्यक्ति एवं स्त्रियाँ पादरी नहीं बन सकती थीं। कुलीन वर्ग को समाज में दूसरा स्थान प्राप्त था। इस वर्ग के लोग प्रशासन, चर्च एवं सेना के उच्च पदों पर नियुक्त थे। उन्हें भी अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। वे भव्य महलों में रहते थे एवं विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे।

किसान यूरोपीय समाज के सबसे निम्न वर्ग में सम्मिलित थे। यूरोप की अधिकाँश जनसंख्या इस वर्ग से संबंधित थी। इनमें स्वतंत्र किसानों की संख्या बहुत कम थी। अधिकाँश किसान कृषकदास थे। उन्हें अपने गुज़ारे के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। वास्तव में उनका जीवन नरक के समान था।

प्रश्न 2.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में पादरी वर्ग की क्या स्थिति थी ?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में पादरी प्रथम वर्ग में सम्मिलित थे। इस वर्ग में पोप, आर्कबिशप एवं बिशप सम्मिलित थे। यह वर्ग बहुत शक्तिशाली एवं प्रभावशाली था। इसका कारण यह था कि उनका चर्च पर पूर्ण नियंत्रण था। चर्च के अधीन विशाल भूमि होती थी, जिससे उसे बहुत आमदनी होती थी। लोगों द्वारा दिया जाने वाला दान भी चर्च की आय का एक प्रमुख स्त्रोत था।

इनके अतिरिक्त चर्च किसानों पर टीथ नामक कर लगाता था। चर्च की इस विशाल आय के चलते पादरी वर्ग बहुत धनी हो गया था। इस वर्ग का यूरोप के शासकों पर भी बहत प्रभाव था। ये शासक पोप की आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस नहीं रखते थे। कलीन वर्ग भी पादरी वर्ग का बहुत सम्मान करता था। पादरी वर्ग को अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे।

वे राज्य को किसी प्रकार का कोई कर नहीं देते थे। वे विशाल एवं भव्य महलों में रहते थे। यद्यपि वे लोगों को पवित्र जीवन व्यतीत करने का उपदेश देते थे किंतु वे स्वयं विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे। दूसरी ओर लोगों को धर्मोपदेश देने का कार्य निम्न वर्ग के पादरी करते थे। उनके वेतन कम थे। उनकी दशा शोचनीय थी। पादरी वर्ग में यह असमानता वास्तव में इस वर्ग के माथे पर एक कलंक समान थी।

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प्रश्न 3.
मध्यकालीन समाज में कुलीन वर्ग की क्या स्थिति थी ?
उत्तर:
कुलीन वर्ग दूसरे वर्ग में सम्मिलित था। यूरोपीय समाज में इस वर्ग की विशेष भूमिका थी। केवल कुलीन वर्ग के लोगों को ही प्रशासन, चर्च एवं सेना के उच्च पदों पर नियुक्त किया जाता था। उन्हें अनेक प्रकार के विशेषाधिकार प्राप्त थे। वे सभी प्रकार के करों से मुक्त थे। उनके पास विशाल जागीरें होती थीं। कुलीन इन जागीरों पर एक छोटे राजे के समान शासन करते थे।

वे अपने न्यायालय लगाते थे तथा मुकद्दमों का निर्णय देते थे। वे अपने अधीन सेना रखते थे। उन्हें सिक्के जारी करने का भी अधिकार प्राप्त था। उन्हें लोगों पर कर लगाने का भी अधिकार था। वे कृषकों से बेगार लेते थे। उनके पशु किसानों की खेती उजाड़ देते थे, किंतु इन पशुओं को रोकने का साहस उनमें नहीं था। कुलीन अपने क्षेत्र में आने वाले माल पर चुंगी लिया करते थे। कुलीन वर्ग बहुत धनवान् था। राज्य की अधिकाँश संपत्ति उनके अधिकार में थी। वे विशाल महलों में रहते थे। वे बहुत विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे।

प्रश्न 4.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में कृषकदासों के लिए कौन-से कर्त्तव्य निश्चित किए गए थे ?
उत्तर:
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में कृषक दासों के लिए निम्नलिखित कर्तव्य निश्चित किए गए थे

  • वर्ष में कम-से-कम 40 दिन सामंत (लॉर्ड) की सेना में कार्य करना।
  • उसे एवं उसके परिवार के सदस्यों को सप्ताह में तीन अथवा उससे कुछ अधिक दिन सामंत की जागीर पर जा कर काम करना पड़ता था। इस श्रम से होने वाले उत्पादन को श्रम अधिशेष कहा जाता था।
  • वह मेनर में स्थित सड़कों, पुलों तथा चर्च आदि की मुरम्मत करता था।
  • वह खेतों के आस-पास बाड़ बनाता था।
  • वह जलाने के लिए लकड़ियाँ एकत्र करता था।
  • वह अपने सामंत के लिए पानी भरता था, अन्न पीसता था तथा दुर्ग की मुरम्मत करता था।
  • वह अपने स्वामी को शत्रु द्वारा बंदी बनाए जाने पर उसे धन देकर छुड़ाता था।
  • वह राजा को टैली नामक कर भी देता था। इस कर की कोई निश्चित दर नहीं थी। यह राजा की इच्छा पर निर्भर करता था।
  • कृषकदास की स्त्रियाँ एवं बच्चे सूत कातने, वस्त्र बुनने, मोमबत्ती बनाने एवं मदिरा के लिए अंगूरों का रस निकालने का काम करते थे।

प्रश्न 5.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में प्रचलित सामंतवादी प्रथा पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
सामंतवाद मध्यकालीन पश्चिमी यूरोप की एक महत्त्वपूर्ण संस्था थी। इसमें राजा अपने बड़े सामंतों एवं बड़े सामंत अपने छोटे सामंतों में जागीरों का बंटवारा करते थे। ऐसा कुछ शर्तों के अधीन किया जाता था। रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् पश्चिमी यूरोप में फैली अराजकता एवं केंद्रीय सरकारों के कमजोर होने के कारण राजाओं के लिए सामंतों का सहयोग लेना आवश्यक हो गया था।

सामंतवाद का प्रसार यूरोप के अनेक देशों में हुआ। इनमें फ्राँस, इंग्लैंड, जर्मनी, इटली एवं स्पेन के नाम उल्लेखनीय थे। सामंतवाद के यूरोपीय समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़े। इसने यूरोपीय समाज में कानून व्यवस्था लागू करने, कुशल प्रशासन देने, निरंकुश राजतंत्र पर नियंत्रण लगाने एवं कला एवं साहित्य को प्रोत्साहन देने में प्रशंसनीय भूमिका निभाई।

सामंतवादी व्यवस्था ने दूसरी ओर शासकों को कमज़ोर किया। इसने किसानों का घोर शोषण किया। इसने युद्धों को प्रोत्साहित किया। यह राष्ट्रीय एकता के मार्ग में एक बड़ी बाधा सिद्ध हुई। 15वीं शताब्दी में सामंतवाद का अनेक कारणों के चलते पतन हो गया।

प्रश्न 6.
मेनर से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
लॉर्ड का आवास क्षेत्र मेनर कहलाता था। इसका आकार एक जैसा नहीं होता था। इसमें थोड़े से गाँवों से लेकर अनेक गाँव सम्मिलित होते थे। प्रत्येक मेनर में एक ऊँची पहाड़ी की चोटी पर सामंत का दुर्ग होता था। यह दुर्ग जितना विशाल होता था उससे उस लॉर्ड की शक्ति का आंकलन किया जाता था। इस दुर्ग की सुरक्षा के लिए चारों ओर एक चौड़ी खाई होती थी।

इसे सदैव पानी से भर कर रखा जाता था। प्रत्येक मेनर में एक चर्च, एक कारखाना एवं कृषकदासों की अनेक झोंपड़ियाँ होती थीं। मेनर में एक विशाल कृषि फार्म होता था। इसमें सभी आवश्यक फ़सलों का उत्पादन किया जाता था। मेनर की चरागाह पर पशु चरते थे। मेनरों में विस्तृत वन होते थे। इन वनों में लॉर्ड शिकार करते थे। गाँव वाले यहाँ से जलाने के लिए लकड़ी प्राप्त करते थे।

मेनर में प्रतिदिन के उपयोग के लिए लगभग सभी वस्तुएँ उपलब्ध होती थीं। इसके बावजूद मेनर कभी आत्मनिर्भर नहीं होते थे। इसका कारण यह था कि कुलीन वर्ग के लिए विलासिता की वस्तुएँ, आभूषण एवं हथियार आदि तथा नमक एवं धातु के बर्तन बाहर से मंगवाने पड़ते थे। इसके बावजूद मेनर सामंती व्यवस्था की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता थी।

प्रश्न 7.
नाइट एक अलग वर्ग क्यों बने और उनका पतन कब हुआ ?
उत्तर:
नाइट का यूरोपीय समाज में विशेष सम्मान किया जाता था। 9वीं शताब्दी यूरोप में निरंतर युद्ध चलते रहते थे। इसलिए साम्राज्य की सरक्षा के लिए एक स्थायी सेना की आवश्यकता थी। इस आवश्यकता को नाइट नामक एक नए वर्ग ने पूर्ण किया। नाइट अपने लॉर्ड से उसी प्रकार संबंधित थे जिस प्रकार लॉर्ड राजा के साथ संबंधित था।

लॉर्ड अपनी विस्तृत जागीर का कुछ भाग नाइट को देता था। इसे फ़ीफ़ कहा जाता था। इसका आकार सामान्य तौर पर 1000 एकड़ से 2000 एकड़ के मध्य होता था। प्रत्येक फ़ीफ़ में नाइट के लिए घर, चर्च, पनचक्की, मदिरा संपीडक एवं किसानों के लिए झोंपड़ियाँ आदि की व्यवस्था होती थी। नाइट को अपनी फीफ़ में व्यापक अधिकार प्राप्त थे।

फ़ीफ़ की सुरक्षा का प्रमुख उत्तरदायित्व नाइट पर था। उसके अधीन एक सेना होती थी। नाइट अपना अधिकाँश समय अपनी सेना के साथ गुजारते थे। वे अपने सैनिकों को प्रशिक्षण देते थे। वे बनावटी लड़ाइयों द्वारा अपने रणकौशल का अभ्यास करते थे। वे अपनी सेना में अनुशासन पर विशेष बल देते थे। उनकी सेना की सफलता पर लॉर्ड की सफलता निर्भर करती थी क्योंकि आवश्यकता पड़ने पर लॉर्ड उनकी सेना का प्रयोग करता था।

प्रसन्न होने पर लॉर्ड उनकी फ़ीफ़ में बढ़ोत्तरी कर देता था। गायक नाइट की वीरता की कहानियाँ लोगों को गीतों के रूप में सुना कर उनका मनोरंजन भी करते थे। 15वीं शताब्दी में सामंतवाद के पतन के साथ ही नाइट वर्ग का भी पतन हो गया।

प्रश्न 8.
सामंतवाद के प्रमुख गुण बताएँ।
उत्तर:
(1) कुशल प्रशासन-सामंतों ने मध्यकाल यूरोप में कुशल शासन व्यवस्था स्थापित की। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने यूरोप में फैली अराजकता को दूर करने में सफलता प्राप्त की। सामंतों ने राजा को सेना तैयार करने में उल्लेखनीय योगदान दिया। इसके अतिरिक्त सामंत अपने अधीन जागीर में राजा के एक अधिकारी के रूप में भी कार्य करते थे। वे अपनी जागीर में शांति एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए उत्तरदायी थे। वे अपने न्यायालय भी लगाते थे तथा लोगों के झगड़ों का निर्णय भी देते थे।

(2) निरंकुश राजतंत्र पर अंकुश-सामंतवाद की स्थापना से पूर्व यूरोप के शासक निरंकुश थे। उनकी शक्तियाँ असीम थीं। वे प्रशासन की ओर कम ध्यान देते थे। वे अपना अधिकाँश समय सुरा एवं सुंदरी के संग व्यतीत करते थे। अतः लोगों के कष्टों को सुनने वाला कोई न था। इन परिस्थितियों में सामंत आगे आए। उन्होंने निरंकुश शासकों एवं उन्हें जनता की भलाई करने के लिए बाध्य किया। निस्संदेह यह सामंतवाद की एक महान उपलब्धि थी।

(3) शूरवीरता को प्रोत्साहन-सामंतवाद में शूरवीरता के विकास पर विशेष बल दिया जाता था। सभी सामंत बहुत बहादुर होते थे। वे सदैव अपना रणकौशल दिखाने के लिए तैयार होते थे। वे रणक्षेत्र में विजय प्राप्त करने अथवा वीरगति को प्राप्त करने को बहुत गौरवशाली समझते थे। अतः सामंतवादी काल में बहादुरी दिखाने वाले सामंतों का समाज द्वारा विशेष सम्मान किया जाता था।

(4) कला तथा साहित्य को योगदान-सामंतवाद ने कला तथा साहित्य को बहुमूल्य योगदान दिया। सामंतों ने गोथिक शैली में दुर्गों एवं भवनों का निर्माण किया। उनके द्वारा बनवाए गए भवन अपनी सुंदरता एवं भव्यता के लिए विख्यात थे। उन्होंने चित्रकला को भी प्रोत्साहित किया। अत: इस काल में चित्रकला ने उल्लेखनीय विकास किया। इनके अतिरिक्त इस काल में साहित्य ने भी खूब प्रगति की।

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प्रश्न 9.
सामंतवाद के मुख्य दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) कमज़ोर शासक-सामंत प्रथा के अधीन शासक केवल नाममात्र के ही शासक रह गए थे। राज्य की वास्तविक शक्ति सामंतों के हाथों में आ गई थी। उनके अधीन एक विशाल सेना होती थी। वे ही अपने अधीन जागीर में कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए उत्तरदायी थे। वे अपने न्यायालय लगाते थे तथा लोगों के मुकद्दमों का निर्णय देते थे। राजा अपने सभी कार्यों के लिए सामंतों की सहायता पर निर्भर करता था।

(2) किसानों का शोषण-सामंत प्रथा किसानों के लिए एक अभिशाप सिद्ध हुई। इस प्रथा के अधीन किसानों का घोर शोषण किया गया। किसानों को सामंत के खेतों में काम करने के लिए बाध्य किया जाता था। इसके अतिरिक्त उन्हें अपने सामंत के कई प्रकार के अन्य कार्य भी करने पड़ते थे। इन कार्यों के लिए उन्हें कुछ नहीं दिया जाता था।

(3) युद्धों को प्रोत्साहन-सामंत प्रथा ने मध्यकालीन यूरोप में अराजकता फैलाने में प्रमुख भूमिका निभाई। इसका कारण यह था कि वे अपने स्वार्थी हितों की पूर्ति के लिए आपसी युद्धों में उलझ जाते थे। सभी सामंतों के अधीन एक विशाल सेना होती थी। इसलिए उन पर नियंत्रण पाना बहुत कठिन होता था। सामंत अवसर देखकर राजा के विरुद्ध विद्रोह करने से भी नहीं चूकते थे। अराजकता के इस वातावरण में न केवल लोगों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा अपितु इससे संबंधित देश की अर्थव्यवस्था को भी भारी आघात पहँचता था।

(4) राष्ट्रीय एकता में बाधा-सामंत प्रथा राष्ट्रीय एकता के मार्ग में एक बड़ी बाधा सिद्ध हई। इसका कारण यह था कि लोग अपने सामंत से जुड़े हुए थे। अतः वे अपने सामंत के प्रति अधिक वफ़ादार थे। वे अपने राजा से कोसों दूर थे। इसका कारण यह था कि उस समय लोगों में राष्ट्रीय चेतना न के बराबर थी। उनकी दुनिया तो उनके मेनर तक ही सीमित थी। मेनर के बाहर की घटनाओं का उन्हें कुछ लेना-देना नहीं था। निस्संदेह इसके हानिकारक परिणाम निकले।

प्रश्न 10.
फ्रांस के सर्फ और रोम के दास के जीवन की दशा की तुलना कीजिए।
उत्तर:
(1) फ्रांस के सर्फ-फ्रांस के सर्फ का जीवन जानवरों से भी बदतर था। वे अपने लॉर्ड अथवा नाइट की जागीर पर काम करते थे। इस कार्य के लिए उन्हें कोई वेतन नहीं मिलता था। उन पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगे हुए थे। वे लॉर्ड की अनुमति के बिना उसकी जागीर को नहीं छोड़ सकते थे। सामंत उन पर घोर अत्याचार करते थे। इसके बावजूद वे सामंतों के विरुद्ध कोई शिकायत नहीं कर सकते थे।

(2) रोम के दास-रोम के दासों का जीवन भी नरक समान था। अमीरों के पास इन दासों की भरमार होती थी। अधिकाँश दास युद्धबंदी होते थे। अवांछित बच्चों को भी दास बनाया जाता था। दासों के मालिक उन पर घोर अत्याचार करते थे। उनमें जागीरों पर 16 से 18 घंटे प्रतिदिन कार्य लिया जाता था। दासों को एक-दूसरे से जंजीरों से बाँध कर रखा जाता था, ताकि वे भागने का दुस्साहस न करें। स्त्री दासों का यौन शोषण किया जाता था।

प्रश्न 11.
सामंतवाद के पतन के प्रमुख कारण बताएँ।
उत्तर:
(1) धर्मयुद्धों का प्रभाव-11वीं से 13वीं शताब्दी के मध्य यूरोप के ईसाइयों एवं मध्य एशिया के मुसलमानों के बीच जेरुसलम को लेकर युद्ध लड़े गए। ये युद्ध इतिहास में धर्मयुद्धों के नाम से प्रसिद्ध हुए। इन धर्मयुद्धों में पोप की अपील पर बड़ी संख्या में सामंत अपने सैनिकों समेत सम्मिलित हुए। इन धर्मयुद्धों में जो काफी लंबे समय तक चले में बड़ी संख्या में सामंत एवं उनके सैनिक मारे गए। इससे उनकी शक्ति को गहरा आघात लगा। राजाओं ने इस स्वर्ण अवसर का लाभ उठाया तथा उन्होंने सुगमता से बचे हुए सामंतों का दमन कर दिया। इस प्रकार धर्मयुद्ध सामंतों के लिए विनाशकारी सिद्ध हुए।

(2) राष्ट्रीय राज्यों का उत्थान-सामंतवाद के उदय के कारण राज्य की वास्तविक शक्ति सामंतों के हाथों में आ गई थी। सामंतों को अनेक अधिकार प्राप्त थे। उनके अधीन एक विशाल सेना भी होती थी। सामंतों के सहयोग के बिना राजा कुछ नहीं कर सकता था। 15वीं शताब्दी के अंत एवं 16वीं शताब्दी के आरंभ में अनेक राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना हुई।

इन राज्यों के शासक काफी शक्तिशाली थे। उन्होंने अपने अधीन एक शक्तिशाली एवं आधुनिक सेना का गठन किया था। अत: नए शासकों को सामंतों की शक्ति कुचलने में किसी विशेष कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा।

(3) मध्य श्रेणी का उत्थान-15वीं एवं 16वीं शताब्दी यूरोप में मध्य श्रेणी का उत्थान सामंतवादी व्यवस्था के लिए विनाशकारी सिद्ध हआ। मध्य श्रेणी में व्यापारी, उद्योगपति एवं पंजीपति सम्मिलित थे। इस काल में यरोप में व्यापार के क्षेत्र में तीव्रता से प्रगति हो रही थी। इस कारण समाज में मध्य श्रेणी को विशेष सम्मान प्राप्त हुआ। इस श्रेणी ने सामंतों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों का अंत करने के लिए शासकों से सहयोग किया।

शासक पहले ही सामंतों के कारण बहुत परेशान थे। अतः उन्होंने मध्य श्रेणी के लोगों को राज्य के उच्च पदों पर नियुक्त करना आरंभ कर दिया। मध्य श्रेणी द्वारा दिए गए आर्थिक सहयोग के कारण ही शासक अपनी स्थायी एवं शक्तिशाली सेना का गठन कर सके। इससे सामंतों की शक्ति को एक गहरा आघात लगा।

प्रश्न 12.
मध्यकालीन मठों का क्या कार्य था ?
उत्तर:
मध्यकालीन मठों के प्रमुख कार्य निम्नलिखित थे

  • मठों द्वारा लोगों को उपदेश देने का कार्य किया जाता था।
  • उनके द्वारा प्रसिद्ध पांडुलिपियों को तैयार करवाया जाता था।
  • वे लोगों को शिक्षा दने का कार्य करते थे।
  • वे लोगों को पवित्र जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा देते थे।
  • वे रोगियों की सेवा करते थे।
  • वे मठ में आने वाले यात्रियों की देखभाल करते थे।
  • वे मठ को दान में दी गई भूमि पर कृषि एवं पशुपालन का कार्य करते थे।
  • मठ के नियमों की उल्लंघना करने वाले को कठोर दंड दिए जाते थे।

प्रश्न 13.
मध्यकालीन यूरोप में चर्च के कार्य क्या थे ?
उत्तर:
मध्यकाल में चर्च अनेक प्रकार के कार्य करता था।

  • इसने सामाजिक एवं धार्मिक रीति-रिवाजों संबंधी अनेक नियम बनाए थे जिनका पालन करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक था।
  • चर्च की देखभाल के लिए अनेक अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी।
  • चर्च में धर्मोपदेश दिए जाते थे तथा सामूहिक प्रार्थना की जाती थी।
  • यहाँ विद्यार्थियों को शिक्षा भी दी जाती थी।
  • इसके द्वारा रोगियों, गरीबों, विधवाओं एवं अनाथों की देखभाल की जाती थी।
  • यहाँ विवाह की रस्में पूर्ण की जाती थीं।
  • यहाँ वसीयतों एवं उत्तराधिकार के मामलों की सुनवाई की जाती थी।
  • यहाँ धर्म विद्रोहियों के विरुद्ध मुकद्दमे चलाए जाते थे एवं उन्हें दंडित किया जाता था।
  • चर्च कृषकों से उनकी उपज का दसवाँ भाग कर के रूप में एकत्रित करता था। इस कर को टीथ (tithe) कहते थे।
  • चर्च श्रद्धालुओं से दान भी एकत्रित करता था।

प्रश्न 14.
पोप कौन था ? मध्यकालीन युग में उसकी क्या स्थिति थी ?
उत्तर:
पोप चर्च का सर्वोच्च अधिकारी था। वह रोम में निवास करता था। मध्यकाल में उसके हाथों में अनेक शक्तियाँ थीं। उसे पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था। वह चर्च से संबंधित सभी प्रकार के नियमों को बनाता था। वह चर्च की समस्त गतिविधियों पर अपना नियंत्रण रखता था। उसका अपना न्यायालय था जहाँ वह विवाह, तलाक, वसीयत एवं उत्तराधिकार से संबंधित मुकद्दमों के निर्णय देता था।

उसके निर्णयों को अंतिम माना जाता था। वह यूरोपीय शासकों को पदच्युत करने की भी क्षमता रखता था। वह किसी भी सिविल कानून को जो उसकी नज़र में अनुचित हो, को रद्द कर सकता था। वह चर्च से संबंधित विभिन्न अधिकारियों की नियुक्ति भी करता था। कोई भी यहाँ तक कि शासक भी पोप की आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस नहीं करता था। संक्षेप में पोप की शक्तियाँ असीम थीं।

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प्रश्न 15.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज पर चर्च के क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर:
मध्य युग में चर्च का यूरोपीय समाज पर जितना व्यापक प्रभाव था उतना प्रभाव किसी अन्य संस्था का नहीं था। इसने लोगों को आपसी भाईचारे एवं प्रेम का संदेश दिया। इसने गरीबों एवं अनाथों को आश्रय प्रदान किया।

इसने रोगियों की देखभाल के लिए अनेक अस्पताल बनवाए। इसने शिक्षा के प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दिया। चर्च एवं मठों के द्वारा लोगों को मुफ्त शिक्षा प्रदान की जाती थी। अनेक चर्च अधिकारी विश्वविद्यालयों में अध्यापन का कार्य भी करते थे। इससे लोगों में एक नव जागृति का संचार हुआ। चर्च ने असभ्य बर्बरों को ईसाई धर्म में सम्मिलित कर उन्हें सभ्य बनाया।

चर्च ने लोगों को युद्ध की अपेक्षा शांति का पाठ पढ़ाया। कोई भी शासक चर्च के आदेशों की उल्लंघना करने का साहस नहीं कर सकता था। 25 दिसंबर को ईसा मसीह के जन्म दिन को क्रिसमस एवं ईसा के शूलारोपण तथा उसके पुनर्जीवित होने को ईस्टर ने त्योहारों का रूप धारण कर लिया था। इन पवित्र दिनों में संपूर्ण यूरोप में छुट्टियाँ होती थीं।

अतः लोग मिल-जुल कर इनका आनंद लेते थे। इससे लोगों में एकता की भावना को बल मिला। संक्षेप में चर्च के यूरोपीय समाज पर दूरगामी एवं व्यापक प्रभाव पड़े।

प्रश्न 16.
मध्यकालीन यूरोप में नगरों के उत्थान के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर:
(1) कृषि का विकास-मध्यकाल यूरोप में कृषि के विकास को बल मिला। फ़सलों के अधिक उत्पादन के कारण कृषक धनी हुए। इन धनी किसानों को अपनी आवश्यकता से अधिक खाद्यान्न को बेचने तथा अपने लिए एवं कृषि के लिए आवश्यक वस्तुओं को खरीदने के लिए एक बिक्री केंद्र की आवश्यकता हुई। शीघ्र ही बिक्री केंद्रों में दुकानों, घरों, सड़कों एवं चर्चों का निर्माण हुआ। इससे नगरों के विकास की आधारशिला तैयार हुई।

(2) व्यापार का विकास-11वीं शताब्दी में यूरोप एवं पश्चिम एशिया के मध्य अनेक नए व्यापारिक मार्गों का विकास आरंभ हुआ। इससे व्यापार को एक नई दिशा मिली। इटली, जर्मनी, इंग्लैंड, पुर्तगाल एवं बेल्जियम के व्यापारियों ने मुस्लिम एवं अफ्रीका के व्यापारियों के साथ संबंध स्थापित किए। व्यापार में आई इस तीव्रता ने नगरों के विकास को एक नया प्रोत्साहन दिया।

(3) धर्मयुद्ध-धर्मयुद्ध यूरोपीय ईसाइयों एवं मुसलमानों के मध्य 1096 ई० से 1272 ई० के मध्य लड़े गए थे। इन धर्मयुद्धों का वास्तविक उद्देश्य ईसाइयों द्वारा अपनी पवित्र भूमि जेरुसलम को मुसलमानों के आधिपत्य से मुक्त करवाना था। इन धर्मयुद्धों के कारण यूरोपियों के ज्ञान में बहुत वृद्धि हुई। वे भव्य मुस्लिम नगरों को देखकर चकित रह गए। इन धर्मयुद्धों के कारण पश्चिम एवं पूर्व के मध्य व्यापार को एक नया प्रोत्साहन मिला। इससे व्यापारी धनी हुए जिससे नगरों के विकास को बल मिला।

प्रश्न 17.
कथील नगरों से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
12वीं शताब्दी में फ्रांस में कथील कहे जाने वाले विशाल चर्चों का निर्माण कार्य आरंभ हुआ। शीघ्र ही यूरोप के अन्य देशों में भी कथीलों का निर्माण शुरू हुआ। इनका निर्माण मठों की देख-रेख में होता था। इनके निर्माण के लिए धनी लोगों द्वारा दान दिया जाता था। सामान्यजन अपने श्रम द्वारा एवं अन्य वस्तुओं द्वारा इनके निर्माण में सहयोग देते थे।

कथील बहुत विशाल एवं भव्य होते थे। इन्हें पत्थर से बनाया जाता था। इनके निर्माण में काफी समय लगता था। अत: कथीड्रल के आस-पास अनेक प्रकार के लोग बस गए। उनकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बाज़ार भी स्थापित हो गए। इस प्रकार कथीलों ने नगरों का रूप धारण कर लिया। कथीलों के भवन अत्यंत मनोरम थे।

इनका निर्माण इस प्रकार किया गया था कि पादरी की आवाज़, भिक्षुओं के गीत, लोगों की प्रार्थना की घंटियाँ दूर-दूर तक सुनाई पड़ें। कथीड्रल की खिड़कियों के लिए अभिरंजित काँच का प्रयोग किया जाता था।

इस कारण दिन के समय सूर्य की पर्याप्त रोशनी अंदर आ सकती थी। रात्रि के समय जब कथीड्रल में मोमबत्तियाँ जलाई जाती थीं तो खिड़कियों के शीशों पर बने ईसा मसीह के जीवन से संबंधित चित्रों को स्पष्ट देखा जा सकता था। निस्संदेह नगरों के विकास में कथीलों की उल्लेखनीय भूमिका थी।

प्रश्न 18.
किन कारणों से 14वीं शताब्दी यूरोप में संकट उत्पन्न हुआ ?
उत्तर:
(1) पर्यावरण में परिवर्तन-13वीं शताब्दी के अंत में उत्तरी यूरोप के पर्यावरण में पुन: परिवर्तन आया। इस कारण गर्मी का स्थान शीत ऋतु ने ले लिया। गर्मी का मौसम बहुत छोटा रह गया। इस कारण भूमि की उत्पादन क्षमता बहुत कम हो गई। इससे घोर खाद्य संकट उत्पन्न हो गया। भयंकर तूफानों एवं सागरीय बाढ़ों ने भी कृषि अधीन काफी भूमि को नष्ट कर दिया। इसने स्थिति को अधिक विस्फोटक बना दिया। .

(2) चाँदी की कमी-14वीं शताब्दी में ऑस्ट्रिया एवं सर्बिया में चाँदी की कमी आ गई। इन दोनों देशों में विश्व की सर्वाधिक चाँदी की खानें थीं। यहाँ से अन्य यूरोपीय देशों को चाँदी का निर्यात किया जाता था। उस समय अधिकाँश यूरोपीय देशों में चाँदी की मुद्रा का प्रचलन था। अतः इस धातु की कमी के कारण यूरोपीय व्यापार को ज़बरदस्त आघात लगा। इसका कारण यह था कि चाँदी के अभाव में मिश्रित धातु की मुद्रा का प्रचलन किया गया। इसे व्यापारी स्वीकार करने को तैयार न थे।

(3) ब्यूबोनिक प्लेग-प्लेग के कारण व्यापक पैमाने पर सामाजिक विस्थापन हुआ। आर्थिक मंदी ने स्थिति को अधिक गंभीर बना दिया। इस कारण विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था को गहरा आघात लगा। जनसंख्या में कमी के कारण मजदूरों की उपलब्धता बहुत कम हो गई। इस कारण मजदूरों की माँग बहुत बढ़ गई। इसके चलते मज़दूरी की दरों में 250 प्रतिशत तक की वृद्धि हो गई।

दूसरी ओर मजदूरी की दरें बढ़ने तथा कृषि संबंधी मूल्यों में गिरावट के कारण लॉर्डों (सामंतों) की आय बहुत कम हो गई। इसके चलते उन्होंने मजदूरी संबंधी कृषकों से किए समझौतों का पालन बंद कर दिया। इस कारण कृषकों एवं लॉर्डों के मध्य तनाव उत्पन्न हो गया।

प्रश्न 19.
मध्य वर्ग के उत्थान ने यूरोप में राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान में क्या भूमिका निभाई ?
उत्तर:
मध्य वर्ग के उत्थान ने राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस वर्ग के लोग धनी एवं व्यापारी थे। उन्होंने अपने व्यापार एवं वाणिज्य के प्रोत्साहन एवं सुरक्षा हेतु निरंकुश राजतंत्र की स्थापना में बड़ा सक्रिय सहयोग दिया। उन्होंने सामंतों के घोर अत्याचारों से बचने एवं अराजकता के वातावरण को दूर करने के लिए निरंकुश राजाओं के हाथ मज़बूत करने का निर्णय किया।

क्योंकि उस समय संसद् में कुलीन वर्ग का बोलबाला था। इसलिए मध्य वर्ग यह कामना करता था कि इस पर राजा की सर्वोच्चता स्थापित हो। इस उद्देश्य से मध्य वर्ग ने राजा को नियमित कर देने का वचन दिया। इन करों के कारण राजा अपनी एक शक्तिशाली सेना का गठन कर सका। इस सेना के चलते राजा अपने राज्य के सामंतों का दमन कर सका।

इसके अतिरिक्त मध्य वर्ग ने राजा को अनेक मेहनती अधिकारी प्रदान किए। इन अधिकारियों के सहयोग से राजा अपनी प्रजा को कुशल शासन प्रदान कर सका। निस्संदेह मध्य वर्ग का उत्थान यूरोपीय इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ।

प्रश्न 20.
राष्ट्रीय राज्य की प्रमुख विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:
राष्ट्रीय राज्यों की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित अनुसार है-

(1) ऐसा विश्वास किया जाता था कि उनका अपना राज्य सर्वोच्च है तथा किसी अन्य राज्य को उनके राज्य की प्रभुसत्ता एवं क्षेत्रीय अखंडता को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है।

(2) ऐसे राज्य में राजा ही सर्वोच्च होता है। वह ही कानून का निर्माण करता है एवं उसकी व्याख्या करता है। उसके निर्णयों को अंतिम समझा जाता है। किसी भी व्यक्ति को उसकी आज्ञा का उल्लंघन करने का अधिकार नहीं होता। वास्तव में जो राजा को अच्छा लगता है उसे ही कानून समझा जाता है।

(3) ऐसे राज्यों में राजा ही राज्य की सुरक्षा एवं उसके विस्तार के लिए उत्तरदायी होता है। इसलिए उन्होंने अपने अधीन एक शक्तिशाली सेना का गठन किया। इस सेना को आधुनिक शस्त्रों से लैस किया जाता था।

(4) ऐसे राज्यों में व्यक्तियों को सभी प्रकार के अधिकारों से वंचित रखा जाता है।

(5) ऐसे राज्य राजनीतिक तौर पर स्वतंत्र होते हैं। इसके अतिरिक्त वे आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर होते हैं।

(6) ऐसे राज्यों में राजा को लोगों पर कर लगाने का अधिकार होता है। लोगों का यह कर्त्तव्य होता है कि वे इन करों की अदायगी समय पर करें।

अति संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मध्यकाल किसे कहते हैं ? इसकी प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • 5वीं शताब्दी ई० से लेकर 15वीं शताब्दी के आरंभ के काल को मध्यकाल कहा जाता है।
  • इस काल के दौरान बड़े-बड़े साम्राज्यों का पतन हो गया तथा छोटे-छोटे राज्य अस्तित्व में आए।
  • यह काल अशांति एवं अव्यवस्था का काल था।

प्रश्न 2.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज के तीन वर्ग कौन-से थे ? ये समाज की किस श्रेणी में सम्मिलित थे ?
उत्तर:

  • मध्यकालीन यूरोपीय समाज के तीन वर्ग पादरी वर्ग, कुलीन वर्ग एवं किसान थे।
  • पादरी वर्ग समाज की प्रथम श्रेणी में, कुलीन वर्ग द्वितीय श्रेणी में एवं किसान तीसरी श्रेणी में सम्मिलित थे।

प्रश्न 3.
पादरी वर्ग को यूरोपीय समाज में क्यों महत्त्वपूर्ण माना जाता था ?
उत्तर:

  • इस वर्ग का चर्च पर पूर्ण नियंत्रण था।
  • शासक भी पोप की आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस नहीं करते थे।
  • इस वर्ग को समाज में अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे।

प्रश्न 4.
‘टीथ’ से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
टीथ एक प्रकार का कर था। इसे चर्च द्वारा किसानों से लिया जाता था। यह किसानों की कुल उपज का दसवां भाग होता था। यह चर्च की आय का एक प्रमुख स्रोत था।

प्रश्न 5.
चर्च की आय के दो प्रमुख स्रोत कौन-से थे ?
उत्तर:

  • किसानों से प्राप्त किया जाने वाला टीथ नामक कर।
  • धनी लोगों द्वारा अपने कल्याण तथा मरणोपरांत अपने रिश्तेदारों के कल्याण के लिए दिया जाने वाला दान।

प्रश्न 6.
मध्यकालीन यूरोप में कुलीन वर्ग को कौन-से विशेषाधिकार प्राप्त थे ? कोई दो बताएँ।
उत्तर:

  • वे सभी प्रकार के करों से मुक्त थे।
  • वे अपने अधीन सेना रखते थे।

प्रश्न 7.
कृषकदासों के कोई दो कर्त्तव्य बताएँ।
उत्तर:

  • वे राजा को टैली नामक कर देते थे।
  • उन्हें वर्ष में कम-से-कम 40 दिन सामंत की सेना में कार्य करना पड़ता था।

प्रश्न 8.
कृषकदासों पर लगे कोई दो प्रतिबंध लिखें।
उत्तर:

  • वे सामंत की अनुमति के बिना उसकी जागीर नहीं छोड़ सकते थे।
  • वे अपने पुत्र-पुत्रियों के विवाह सामंत की अनुमति के बिना नहीं कर सकते थे।

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प्रश्न 9.
सामंतवाद से आपका क्या अभिप्राय है ?
अथवा
आर्थिक संदर्भ में सामंतवाद को समझाइए।
उत्तर:
सामंतवाद जर्मन भाषा के शब्द फ़्यूड से बना है। इससे अभिप्राय है, भूमि का एक टुकड़ा अथवा जागीर। इस प्रकार सामंतवाद का संबंध भूमि अथवा जागीर से है। इस व्यवस्था में राजा को समस्त भूमि का स्वामी समझा जाता था। वह कुछ शर्तों के साथ अपने बड़े सामंतों में भूमि बाँटता था। ये सामंत इसी प्रकार आगे अपने अधीन छोटे सामंतों को भूमि बाँटते थे। संपूर्ण व्यवस्था भूमि के स्वामित्व एवं वितरण पर निर्भर करती थी।

प्रश्न 10.
सामंतवाद के उदय के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् केंद्रीय शक्ति बहुत कमज़ोर हो गई थी।
  • विदेशी आक्रमणों के कारण पश्चिमी यूरोप में अराजकता का बोलबाला था।

प्रश्न 11.
शॉर्लमेन कौन था ?
उत्तर:
शॉर्लमेन फ्रांस का एक प्रसिद्ध एवं शक्तिशाली शासक था। उसने 768 ई० से 814 ई० तक शासन किया। उसने फ्रांस में सामंतवादी व्यवस्था लागू की। उसने फ्रांस में उल्लेखनीय सुधार किए। उसे पोप लियो तृतीय ने 800 ई० में पवित्र रोमन सम्राट् की उपाधि से सम्मानित किया था।

प्रश्न 12.
फ्रांस के प्रारंभिक सामंती समाज के दो लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • सामंतों को अपनी जागीरों पर व्यापक न्यायिक एवं अन्य अधिकार प्राप्त थे।
  • कृषक सामंतों को श्रम सेवा प्रदान करते थे।

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प्रश्न 13.
विलियम कौन था ?
उत्तर:
वह फ्रांस के एक प्रांत नारमंडी का ड्यूक था। उसने 1066 ई० में इंग्लैंड के सैक्सन शासक हैरलड को हैस्टिंग्ज़ की लड़ाई में पराजित कर इंग्लैंड पर अधिकार कर लिया था। इस महत्त्वपूर्ण विजय के पश्चात् उसने इंग्लैंड में सामंतवादी व्यवस्था को लागू किया।

प्रश्न 14.
सामंतवादी व्यवस्था की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • राजा समस्त भूमि का स्वामी होता था। वह इसे कुछ शर्तों के आधार पर बड़े सामंतों में बाँटता था।
  • सामंत अपनी जागीर में सर्वशक्तिशाली होते थे। उन्हें असीम शक्तियाँ प्राप्त थीं।

प्रश्न 15.
मेनर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
मेनर लॉर्ड का आवास क्षेत्र होता था। इसका आकार एक जैसा नहीं होता था। इसमें प्रतिदिन के उपयोग की प्रत्येक वस्तु मिलती थी। यहाँ लॉर्ड का दुर्ग, कृषि फार्म, कारखाने, चर्च, वन एवं कृषकों की झोंपड़ियाँ होती थीं। कोई भी व्यक्ति लॉर्ड की अनुमति के बिना मेनर को छोड़कर नहीं जा सकता था।

प्रश्न 16.
नाइट एक अलग वर्ग क्यों बने और उनका पतन कब हुआ ?
उत्तर:
9वीं शताब्दी यूरोप में स्थानीय युद्ध एक सामान्य बात थी। इन युद्धों के लिए कुशल घुड़सवारों की आवश्यकता थी। इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए नाइट एक अलग वर्ग बने। 15वीं शताब्दी में सामंतवाद के पतन के साथ ही नाइट का पतन हुआ।

प्रश्न 17.
फ़ीफ़ क्या थी ?
उत्तर:
लॉर्ड द्वारा नाइट को जो जागीर दी जाती थी उसे फ़ीफ़ कहते थे। यह 1000 से 2000 एकड़ में फैली होती थी। फ़ीफ़ में नाइट के लिए घर, चर्च और उस पर निर्भर व्यक्तियों के लिए व्यवस्था होती थी। फ़ीफ़ को कृषक जोतते थे। इसकी रक्षा का भार नाइट पर होता था।

प्रश्न 18.
नाइट के कोई दो कर्त्तव्य बताएँ।
उत्तर:

  • वह अपने लॉर्ड को युद्ध में उसकी तरफ से लड़ने का वचन देता था।
  • वह अपने लॉर्ड को एक निश्चित धनराशि देता था।

प्रश्न 19.
सामंतवाद के कोई दो गुण बताएँ।
उत्तर:

  • इसने कानून एवं व्यवस्था की स्थापना की।
  • इसने निरंकुश राजतंत्र पर अंकुश लगाया।

प्रश्न 20.
सामंतवाद की कोई दो हानियाँ लिखें।
उत्तर:

  • इसने शासकों को कमजोर बनाया।
  • इसने युद्धों को प्रोत्साहित किया।

प्रश्न 21.
सामंतवाद के पतन के लिए उत्तरदायी कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • कृषकों के विद्रोह।
  • राष्ट्रीय राज्यों का उत्थान।

प्रश्न 22.
मध्यकाल में चर्च के प्रमुख कार्य क्या थे ?
उत्तर:

  • इसने सामाजिक एवं धार्मिक रीति-रिवाजों संबंधी अनेक नियम बनाए।
  • यहाँ विद्यार्थियों को शिक्षा दी जाती थी।
  • यहाँ गरीबों, अनाथों, रोगियों एवं विधवाओं की देखभाल की जाती थी।

प्रश्न 23.
पोप कौन था ?
उत्तर:
पोप चर्च का सर्वोच्च अधिकारी था। उसे पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था। वह चर्च से संबंधित सभी प्रकार के नियमों को बनाता था। वह चर्च की समस्त गतिविधियों पर नियंत्रण रखता था। वह चर्च से संबंधित विभिन्न अधिकारियों की नियुक्ति भी करता था।

प्रश्न 24.
पादरी के प्रमुख कार्य क्या थे ?
उत्तर:

  • वह लोगों के सुखी जीवन के लिए चर्च में सामूहिक प्रार्थनाएँ करता था।
  • वह पोप से प्राप्त सभी आदेशों को लागू करवाता था।
  • वह जन्म, विवाह एवं मृत्यु से संबंधित सभी प्रकार के संस्कारों को संपन्न करवाता था।

प्रश्न 25.
मध्यकालीन मठों के क्या कार्य थे ?
उत्तर:

  • मठों द्वारा लोगों को पवित्र जीवन व्यतीत करने पर बल दिया जाता था।
  • मठों द्वारा लोगों को शिक्षा दी जाती थी।
  • मठों द्वारा रोगियों की सेवा की जाती थी एवं यात्रियों की देखभाल की जाती थी।

प्रश्न 26.
सेंट बेनेडिक्ट की स्थापना कब और कहाँ हुई थी ?
उत्तर:
सेंट बेनेडिक्ट की स्थापना 529 ई० में इटली में हुई थी।

प्रश्न 27.
सेंट बेनेडिक्ट के भिक्षुओं के लिए बनाए गए कोई दो नियम लिखें।
उत्तर:

  • प्रत्येक मठवासी विवाह नहीं करवा सकता था।
  • उन्हें मठ के प्रधान ऐबट की आज्ञा का पालन करना पड़ता था।

प्रश्न 28.
क्लूनी मठ की स्थापना कब, कहाँ एवं किसने की थी ?
उत्तर:
क्लूनी मठ की स्थापना 910 ई० में फ्रांस में बरगंडी नामक स्थान पर विलियम प्रथम ने की थी।

प्रश्न 29.
आबेस हिल्डेगार्ड कौन थी ?
उत्तर:
आबेस हिल्डेगार्ड जर्मनी की एक प्रतिभाशाली भिक्षुणी थी। उसने क्लूनी मठ के विकास के लिए उल्लेखनीय योगदान दिया। उसने चर्च की प्रार्थनाओं के लिए 77 सामुदायिक गायन लिखे। उसके प्रचार कार्य एवं लेखन ने लोगों के दिलों पर जादुई प्रभाव डाला।

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प्रश्न 30.
फ्रायर कौन थे ?
उत्तर:
13वीं शताब्दी के आरंभ में यूरोप में भिक्षुओं के एक नए समूह का उत्थान हुआ जिसे फ्रायर कहा जाता था। वे मठों में रहने की अपेक्षा बाहर भ्रमण करते थे। वे ईसा मसीह के संदेश को जनता तक पहुँचाते थे। वे जनसाधारण की भाषा में प्रचार करते थे। उन्होंने चर्च के गौरव को स्थापित करने में उल्लेखनीय योगदान दिया।

प्रश्न 31.
संत फ्राँसिस कौन थे ?
उत्तर:
संत फ्रांसिस असीसी के एक प्रसिद्ध संत थे। उन्होंने फ्रांसिस्कन संघ की स्थापना की थी। उन्होंने गरीबों, अनाथों एवं बीमारों की सेवा करने का संदेश दिया। उन्होंने शिष्टता के नियमों का पालन करने, शिक्षा का प्रचार करने एवं श्रम के महत्त्व पर विशेष बल दिया। उनका संघ बहुत लोकप्रिय हुआ।

प्रश्न 32.
संत डोमिनीक कौन थे ?
उत्तर:
संत डोमिनीक स्पेन के एक प्रसिद्ध संत थे। उन्होंने डोमिनिकन संघ की स्थापना की। उन्होंने जन-भाषा में अपना प्रचार किया। उन्होंने पाखंडी लोगों की कटु आलोचना की। उन्होंने पुजारी वर्ग में फैली अज्ञानता को दूर करने का निर्णय किया। उनके शिष्य बहुत विद्वान् थे। उन्होंने लोगों में एक नई जागृति लाने में उल्लेखनीय योगदान दिया।

प्रश्न 33.
14वीं शताब्दी में मठवाद के महत्त्व के कम होने के दो प्रमुख कारण लिखें।
उत्तर:

  • मठों में भ्रष्टाचार बहुत फैल गया था।
  • भिक्षु-भिक्षुणियों ने अब विलासिता का जीवन व्यतीत करना आरंभ कर दिया था।

प्रश्न 34.
मध्यकाल में चर्च के यूरोपीय समाज पर क्या प्रमुख प्रभाव पड़े ?
उत्तर:

  • इसने लोगों को आपसी भाईचारे एवं प्रेम का संदेश दिया।
  • इसने गरीबों एवं अनाथों को आश्रय प्रदान किया।
  • इसने शिक्षा के प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दिया।

प्रश्न 35.
मध्यकालीन यूरोपीय नगरों की कोई दो विशेषताएं बताएँ।
उत्तर:

  • इनमें आधारभूत सुविधाओं की कमी होती थी।
  • इन नगरों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रबंध किया जाता था।

प्रश्न 36.
मध्यकालीन यूरोप में स्थापित श्रेणियों के कोई दो कार्य लिखें।
उत्तर:

  • श्रेणी द्वारा वस्तुओं के मूल्य निर्धारित किए जाते थे।
  • श्रेणी द्वारा व्यापार संबंधी नियम बनाए जाते थे।

प्रश्न 37.
कथीड्रल क्या थे ?
उत्तर:
12वीं शताब्दी में फ्रांस में विशाल चर्चों का निर्माण आरंभ हुआ। इन्हें कथीड्रल कहा जाता था। इनके निर्माण के लिए धनी लोगों द्वारा दान दिया जाता था। इनका निर्माण मठों की देख-रेख में होता था। इन्हें पत्थरों से बनाया जाता था। इनकी खिड़कियों के लिए अभिरंजित काँच का प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 38.
मध्यकालीन यूरोपीय नगरों का महत्त्व क्या था ?
उत्तर:

  • नगरों के उत्थान के कारण राजे शक्तिशाली हुए।
  • नगरों में लोग स्वतंत्र जीवन व्यतीत करते थे।
  • नगरों में व्यापार के कुशल संचालन के लिए श्रेणियों का गठन किया गया।

प्रश्न 39.
मध्यकालीन यूरोप के सामाजिक एवं आर्थिक संबंधों को प्रभावित करने वाले दो महत्त्वपूर्ण कारक कौन-से थे ?
उत्तर:

  • पर्यावरण में परिवर्तन।
  • नई कृषि प्रौद्योगिकी।

प्रश्न 40.
11वीं शताब्दी में यूरोप के वातावरण में हुए परिवर्तन के क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर:

  • इस कारण तापमान में वृद्धि हो गई।
  • इस कारण फ़सलों के उत्पादन में तीव्र वृद्धि हुई।
  • तापमान में वद्धि के कारण यरोप के अनेक भागों के वन क्षेत्रों में कमी आई।

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प्रश्न 41.
11वीं शताब्दी में यूरोप में नई कृषि प्रौद्योगिकी के कोई दो उदाहरण दें।
उत्तर:

  • अब लोहे के हलों का प्रयोग आरंभ हुआ।
  • अब कृषि के लिए तीन खेतों वाली व्यवस्था का प्रचलन आरंभ हुआ।

प्रश्न 42.
मध्यकाल में फ़सलों के उत्पादन में वृद्धि के कारण कौन-से दो महत्त्वपूर्ण परिणाम सामने आए ?
उत्तर:

  • भोजन की उपलब्धता अब पहले की अपेक्षा दुगुनी हो गई।
  • पशुओं के लिए अब अच्छे चारे की उपलब्धता हो गई।

प्रश्न 43.
जनसंख्या के स्तर में होने वाले लंबी अवधि के परिवर्तन ने किस प्रकार यूरोप की अर्थव्यवस्था और समाज को प्रभावित किया ?
उत्तर:

  • अच्छे आहार से जीवन अवधि लंबी हो गई।
  • लोगों द्वारा आवास की माँग बढ़ जाने के कारण कृषि अधीन क्षेत्र कम होने लगा।
  • इससे नगरों के उत्थान में सहायता मिली।

प्रश्न 44.
13वीं शताब्दी में नई कृषि प्रौद्योगिकी के कारण कौन-से दो प्रमुख लाभ हुए ?
उत्तर:

  • नई कृषि प्रौद्योगिकी के कारण किसानों को कम श्रम की आवश्यकता होती थी।
  • किसानों को अब अन्य गतिविधियों के लिए अवसर प्राप्त हुआ।

प्रश्न 45.
कृषि में हुए विकास के परिणामस्वरूप सामंतवाद पर क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर:

  • इससे व्यक्तिगत संबंधों को गहरा आघात लगा।
  • अब कृषक अपनी फ़सल को नकदी के रूप में बेचने लगे।
  • इससे बाजारों के विकास को प्रोत्साहन मिला।

प्रश्न 46.
14वीं शताब्दी यूरोप में आए संकट के कौन-से दो प्रमुख कारण उत्तरदायी थे ?
उत्तर:

  • पर्यावरण में परिवर्तन।
  • चाँदी की कमी।

प्रश्न 47.
13वीं शताब्दी में उत्तरी यूरोप में आए पर्यावरण परिवर्तन के क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर:

  • अब गर्मी का स्थान शीत ऋतु ने ले लिया।
  • गर्मी का मौसम छोटा होने से भूमि की उत्पादन क्षमता बहुत कम हो गई।
  • इससे अकालों का दौर आरंभ हो गया।

प्रश्न 48.
14वीं शताब्दी में किन दो देशों में चाँदी की कमी आई? इसका मुख्य प्रभाव क्या पड़ा ?
उत्तर:

  • 14वीं शताब्दी में ऑस्ट्रिया एवं सर्बिया में चाँदी की कमी आ गई।
  • इस कारण व्यापार को जबरदस्त आघात पहुँचा।

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प्रश्न 49.
14वीं शताब्दी में किस बीमारी को काली मौत कहा जाता था ? यह यूरोप में कब फैली ?
उत्तर:

  • 14वीं शताब्दी में ब्यूबोनिक प्लेग को काली मौत कहा जाता था।
  • यह यूरोप में 1347 ई० से 1350 ई० के मध्य फैली।

प्रश्न 50.
14वीं शताब्दी में यूरोप के किसानों ने विद्रोह क्यों किए ?
उत्तर:
14वीं शताब्दी में यूरोप के किसानों ने इसलिए विद्रोह किए क्योंकि सामंतों ने किसानों से किए मजदूरी संबंधी समझौतों का पालन बंद कर दिया था।

प्रश्न 51.
16वीं शताब्दी में राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान के प्रमुख कारण लिखें।
उत्तर:

  • सामंतवाद का पतन।
  • मध्य वर्ग का उत्थान।
  • चर्च का प्रभाव।

प्रश्न 52.
मैक्यिावेली के प्रसिद्ध ग्रंथ का नाम क्या था ? यह कब प्रकाशित हुआ ?
उत्तर:

  • मैक्यिावेली के प्रसिद्ध ग्रंथ का नाम ‘दि प्रिंस’ था।
  • इसका प्रकाशन 1513 ई० में हुआ था।

प्रश्न 53.
राष्ट्रीय राज्यों की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • उनका अपना राज्य सर्वोच्च है।
  • राजा को असीम शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।

प्रश्न 54.
इंग्लैंड में ट्यूडर वंश की स्थापना किसने तथा कब की ?
उत्तर:
इंग्लैंड में ट्यूडर वंश की स्थापना हेनरी सप्तम ने 1485 ई० में की।

प्रश्न 55.
गुलाबों का युद्ध कब तथा किसके मध्य चला ?
उत्तर:
गुलाबों का युद्ध 1455 ई० से 1485 ई० के मध्य इंग्लैंड एवं फ्रांस के मध्य चला।

प्रश्न 56.
सौ वर्षीय युद्ध कब तथा किन दो देशों के मध्य हुआ ?
उत्तर:
सौ वर्षीय युद्ध 1337 ई० से लेकर 1453 ई० तक इंग्लैंड एवं फ्रांस के मध्य चला।

प्रश्न 57.
लुई ग्यारहवाँ कहाँ का शासक था ? उसका शासनकाल क्या था ?
उत्तर:

  • लुई ग्यारहवाँ फ्रांस का शासक था।
  • उसने 1461 ई० से 1483 ई० तक शासन किया।

प्रश्न 58.
लुई ग्यारहवें की कोई दो सफलताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • उसने सामंतों की शक्ति का दमन किया।
  • उसने चर्च पर अंकुश लगाया।

प्रश्न 59.
राष्ट्रीय राज्यों की कोई दो सफलताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • उन्होंने सामंतों की शक्ति का दमन कर लोगों को उनके अत्याचारों से मुक्त किया।
  • उन्होंने लोगों में एक नई राष्ट्रीय चेतना का संचार किया।

प्रश्न 60.
राष्ट्रीय राज्यों के पतन के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • राष्ट्रीय राज्यों के शासक अपना अधिकाँश समय सुरा एवं सुंदरी के संग व्यतीत करने लगे।
  • राष्ट्रीय राज्यों के शासकों ने अनेक अनुचित कानून लागू किए। इस कारण लोग उनके विरुद्ध हो गए।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में कितने वर्ग प्रचलित थे ?
उत्तर:
तीन।

प्रश्न 2.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज के प्रथम वर्ग में कौन सम्मिलित था ?
उत्तर:
पादरी।

प्रश्न 3.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज के द्वितीय वर्ग में कौन सम्मिलित था ?
उत्तर:
कुलीन वर्ग।

प्रश्न 4.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज के तृतीय वर्ग में कौन सम्मिलित था ?
उत्तर:
कृषक वर्ग।

प्रश्न 5.
टीथ क्या होता था ?
उत्तर:
टीथ किसानों द्वारा चर्च को दिया जाने वाला कर था।

प्रश्न 6.
मध्यकाल में क्या प्रत्येक व्यक्ति पादरी बन सकता था ?
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 7.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज में किन्हें विशेषाधिकार प्राप्त थे ?
उत्तर:
पादरी एवं कुलीन वर्ग को।

प्रश्न 8.
किस वर्ग के लोगों को प्रशासन एवं सेना के उच्च पदों पर नियुक्त किया जाता था ?
उत्तर:
कुलीन वर्ग के।

प्रश्न 9.
मध्यकालीन यूरोपीय समाज की अधिकाँश जनसंख्या किस वर्ग से संबंधित थी ?
उत्तर:
तृतीय वर्ग से।

प्रश्न 10.
राजा कृषकों पर कौन-सा कर लगाता था ?
उत्तर:
टैली।

प्रश्न 11.
कृषकदास को अपने सामंत की सेना में वर्ष में कम-से-कम कितने दिन कार्य करना पड़ता था ?
उत्तर:
40 दिन।

प्रश्न 12.
कृषकदास किस प्रकार का जीवन व्यतीत करते थे ?
उत्तर:
दयनीय।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 6 तीन वर्ग

प्रश्न 13.
यूरोप में सामंतवादी व्यवस्था का उदय कब हुआ ?
उत्तर:
9वीं शताब्दी में।

प्रश्न 14.
फ़यूड शब्द से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
जागीर।

प्रश्न 15.
किसी एक यूरोपीय देश का नाम बताएँ जहाँ मध्यकाल में सामंतवाद का प्रसार हुआ था ?
उत्तर:
फ्राँस।

प्रश्न 16.
फ्रांस के उस महान् विद्वान् का नाम बताएँ जिसने सामंतवादी व्यवस्था पर विस्तृत प्रकाश डाला है ?
उत्तर:
मार्क ब्लॉक।

प्रश्न 17.
जर्मनी की किस जनजाति ने 486 ई० में गॉल पर अधिकार कर लिया था ?
उत्तर:
फ्रैंक।

प्रश्न 18.
शॉर्लमेन फ्रांस का शासक कब बना ?
उत्तर:
768 ई० में।

प्रश्न 19.
पोप ने शॉर्लमेन को पवित्र रोमन सम्राट् की उपाधि से कब सम्मानित किया.था ?
उत्तर:
800 ई० में।

प्रश्न 20.
इंग्लैंड में सामंतवाद का प्रसार कब हुआ ?
उत्तर:
11वीं शताब्दी में।

प्रश्न 21.
हैस्टिग्ज की लड़ाई कब हुई ?
उत्तर:
1066 ई० में।

प्रश्न 22.
इंग्लैंड का नाम किसका रूपांतरण है ?
उत्तर:
एंजिललैंड का।

प्रश्न 23.
सामंतवादी व्यवस्था में मेनर क्या होता था ?
उत्तर:
लॉर्ड का आवास क्षेत्र।

प्रश्न 24.
सामंत द्वारा नाइट को दिए जाने वाला भूमि का टुकड़ा क्या कहलाता था ?
उत्तर:
फ़ीफ़।

प्रश्न 25.
नाइट का पतन कब हुआ ?
उत्तर:
15वीं शताब्दी में।

प्रश्न 26.
सामंतों ने किस शैली में दुर्गों एवं भवनों का निर्माण किया ?
उत्तर:
गोथिक।

प्रश्न 27.
क्या धर्मयुद्ध सामंतवादी व्यवस्था के लिए विनाशकारी सिद्ध हुए ?
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 28.
पोप कौन था ?
उत्तर:
चर्च का सर्वोच्च अधिकारी।

प्रश्न 29.
पोप कहाँ निवास करता था ?
उत्तर:
रोम में।

प्रश्न 30.
प्रांतीय बिशपों पर नियंत्रण कौन रखता था ?
उत्तर:
आर्क बिशप।

प्रश्न 31.
मठ का प्रधान कौन होता था ?
उत्तर:
ऐबट

प्रश्न 32.
मठों में कौन रहता था ?
उत्तर:
भिक्षु।

प्रश्न 33.
भिक्षुणियों को किस नाम से जाना जाता था ?
उत्तर:
नन।

प्रश्न 34.
मठों को किस अन्य नाम से जाना जाता था ?
उत्तर:
ऐबी।

प्रश्न 35.
इटली में सेंट बेनेडिक्ट नामक मठ की स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर:
529 ई० में।

प्रश्न 36.
910 ई० में बरगंडी में किस प्रसिद्ध मठ की स्थापना की गई थी ?
उत्तर:
क्लूनी।

प्रश्न 37.
आबेस हिल्डेगार्ड कौन थी ?
उत्तर:
जर्मनी की एक प्रसिद्ध नन।

प्रश्न 38.
उन भिक्षुओं को क्या कहा जाता था जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूम-घूम कर लोगों को उपदेश देते थे ?
उत्तर:
फ्रायर।

प्रश्न 39.
फ्रायर किन दो संघों में विभाजित थे ?
उत्तर:
फ्राँसिस्कन एवं डोमिनिकन।

प्रश्न 40.
फ्रांसिस्कन संघ का संस्थापक कौन था ?
उत्तर:
संत फ्राँसिस।

प्रश्न 41.
डोमिनिकन संघ का संस्थापक कौन था ?
उत्तर:
संत डोमिनीक।

प्रश्न 42.
इंग्लैंड के किन दो प्रसिद्ध कवियों ने मठवासियों के जीवन पर पर्याप्त प्रकाश डाला है ?
उत्तर:
लैंग्लैंड एवं जेफ्री चॉसर।

प्रश्न 43.
विश्व में 25 दिसंबर क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर:
ईसा मसीह के जन्म के कारण।

प्रश्न 44.
मध्यकाल यूरोप में उदय होने वाले किन्हीं दो प्रसिद्ध नगरों के नाम बताएँ।
उत्तर:

  • रोम
  • वेनिस।

प्रश्न 45.
कथील नगरों का निर्माण कहाँ शुरू हुआ ?
उत्तर:
फ्राँस में।

प्रश्न 46.
कथीड्रल की खिड़कियों में किस काँच का प्रयोग किया जाता था ?
उत्तर:
अभिरंजित।

प्रश्न 47.
किस सदी से यूरोप के तापमान में वृद्धि होती चली गई ?
उत्तर:
11वीं सदी से।

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प्रश्न 48.
किस सदी तक विभिन्न कृषि प्रौद्योगिकियों में बदलाव के प्रमाण मिलते हैं ?
उत्तर:
11वीं सदी तक।

प्रश्न 49.
कोई एक उदाहरण दें जिससे कृषि प्रौद्योगिकी में बदलाव के प्रमाण मिलते हैं ?
उत्तर:
लोहे की भारी नोक वाले हलों का प्रयोग।

प्रश्न 50.
मध्यकालीन यूरोप में कितने खेतों वाली व्यवस्था का प्रयोग आरंभ हुआ ?
उत्तर:
तीन।

प्रश्न 51.
14वीं शताब्दी में यूरोप में आए घोर संकट का कोई एक कारण बताएँ।
उत्तर:
पर्यावरण में परिवर्तन।

प्रश्न 52.
मध्यकाल में यूरोप में सबसे भयंकर अकाल कब पड़े ?
उत्तर:
1315 से 1317 ई० के मध्य।

प्रश्न 53.
‘काली मौत’ किसे कहा जाता था ?
उत्तर:
प्लेग को।

प्रश्न 54.
यूरोप में सर्वप्रथम प्लेग कब फैली ?
उत्तर:
1347 ई० में।

प्रश्न 55.
फ्रांस में कृषकों ने कब विद्रोह किया ?
उत्तर:
1358 ई० में।

प्रश्न 56.
यूरोप में राष्ट्रीय राज्यों का गठन कब आरंभ हुआ ?
उत्तर:
15वीं शताब्दी के अंत में।

प्रश्न 57.
लुई ग्यारहवाँ कहाँ का शासक था ?
उत्तर:
फ्राँस का।

प्रश्न 58.
ऑस्ट्रिया का प्रसिद्ध निरंकुश शासक कौन था ?
उत्तर:
मैक्समिलन।

प्रश्न 59.
हेनरी सातवाँ कहाँ का शासक था ?
उत्तर:
इंग्लैंड का।

प्रश्न 60.
इंग्लैंड में ट्यूडर राजवंश की स्थापना कब हुई ?
उत्तर:
1485 ई० में।

प्रश्न 61.
जेम्स प्रथम इंग्लैंड का शासक कब बना ?
उत्तर:
1603 ई० में।

प्रश्न 62.
चार्ल्स प्रथम को फाँसी कब दी गई ?
उत्तर:
1649 ई० में।

प्रश्न 63.
सौ वर्षीय युद्ध किन दो देशों के मध्य लड़ा गया था ?
उत्तर:
फ्राँस तथा इंग्लैंड।

प्रश्न 64.
लुई तेरहवें ने एस्टेट्स जनरल को कब भंग किया ?
उत्तर:
1614 ई० में।

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प्रश्न 65.
पुर्तगाल एवं स्पेन के मध्य टार्डीसिलास की संधि कब हुई ?
उत्तर:
1494 ई० में।

रिक्त स्थान भरिए

1. सामंतवाद जर्मन भाषा के शब्द ……………… से बना है।
उत्तर:
फ्यूड

2. फ्रांस में 768 ई० से 814 ई० तक ……………… ने शासन किया।
उत्तर:
शॉर्लमेन

3. फ्रांस के समाज के मुख्यतः तीन वर्ग पादरी, अभिजात तथा ……………… वर्ग थे।
उत्तर:
कृषक

4. लॉर्ड का आवास क्षेत्र ………………. कहलाता था।
उत्तर:
मेनर

5. फ्रांस की कुशल अश्वसेना को ……………….. कहा जाता था।
उत्तर:
नाइट

6. फ्रांस में लॉर्ड द्वारा नाइट को दी जाने वाली भूमि को ……………… कहते थे।
उत्तर:
फ़ीफ़

7. चर्च द्वारा कृषकों से लिए जाने वाले कर के अधिकार को ……………….. कहा जाता था।
उत्तर:
टीथ

8. पादरियों के निवास स्थान को ……………… कहा जाता था।
उत्तर:
मोनेस्ट्री

9. आर्थिक संस्था का आधार
उत्तर:
गिल्ड

10. फ्रांस में कृषकों का विद्रोह ……………….. ई० में चला।
उत्तर:
1381

11. फ्रांस एवं इंग्लैंड के मध्य ………………. युद्ध 1337 ई० से 1453 ई० तक चला।
उत्तर:
सौ वर्षीय

12. इंग्लैंड में हेनरी सप्तम द्वारा 1485 ई० में ……………….. वंश की स्थापना की गई।
उत्तर:
ट्यूडर

13. ……………. ई० में पुर्तगाल की स्पेन के साथ टार्डीसिलास की संधि हुई।
उत्तर:
1494

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. मध्यकालीन यूरोपीय समाज कितने वर्गों में विभाजित था ?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच।
उत्तर:
(ख) तीन

2. मध्यकालीन यूरोपीय समाज में किस वर्ग को समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त था ?
(क) कुलीन वर्ग
(ख) अध्यापक वर्ग
(ग) कृषक वर्ग
(घ) पादरी वर्ग।
उत्तर:
(घ) पादरी वर्ग।

3. चर्च किसानों पर जो कर लगाता था वह क्या कहलाता था ?
(क) फ़ीफ़
(ख) टीथ
(ग) ऐबी
(घ) टैली।
उत्तर:
(ख) टीथ

4. मध्यकालीन यरोपीय समाज की अधिकाँश जनसंख्या किस वर्ग से संबंधित थी ?
(क) कृषक वर्ग
(ख) कुलीन वर्ग
(ग) पादरी वर्ग
(घ) व्यापारी वर्ग।
उत्तर:
(क) कृषक वर्ग

5. कृषकदासों पर निम्नलिखित में से कौन-सा प्रतिबंध लगा हुआ था ?
(क) वे सामंत की अनुमति के बिना उसकी जागीर को नहीं छोड़ सकते थे।
(ख) वे अपने पुत्र-पुत्रियों का विवाह सामंत की अनुमति के बिना नहीं कर सकते थे।
(ग) वे अपने स्वामी के अत्याचारी होने पर उसके विरुद्ध कोई अपील नहीं सकते थे।
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

6. फ़्यूड किस भाषा का शब्द है ?
(क) जर्मन
(ख) फ्रैंच
(ग) अंग्रेजी
(घ) फ़ारसी।
उत्तर:
(क) जर्मन

7. शॉर्लमेन किस देश का शासक था ?
(क) चीन
(ख) जापान
(ग) इंग्लैंड
(घ) फ्राँस।
उत्तर:
(घ) फ्राँस।

8. निम्नलिखित में से किस देश में सामंतवाद का सर्वप्रथम उदय हुआ ?
(क) फ्राँस
(ख) जर्मनी
(ग) ऑस्ट्रिया
(घ) स्पेन।
उत्तर:
(क) फ्राँस

9. लॉर्ड का आवास क्षेत्र क्या कहलाता था ?
(क) फ़ीफ़
(ख) नाइट
(ग) मेनर
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) मेनर

10. लॉर्ड अपनी जागीर में से नाइट को जो भाग देता था वह क्या कहलाता था ?
(क) फ़ीफ़
(ख) टैली
(ग) टीथ
(घ) मेनर।
उत्तर:
(क) फ़ीफ़

11. सामंतवाद का पतन किस सदी में हुआ ?
(क) 12वीं सदी में
(ख) 13वीं सदी में
(ग) 14वीं सदी में
(घ) 15वीं सदी में।
उत्तर:
(घ) 15वीं सदी में।

12. सामंतवाद के पतन के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा कारण उत्तरदायी था ?
(क) धर्मयुद्धों का प्रभाव
(ख) राष्ट्रीय राज्यों का उत्थान
(ग) मुद्रा का प्रचलन
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

13. निम्नलिखित में से किसे यूरोप में ‘काली मौत’ के नाम से जाना जाता था ?
(क) हैजा को
(ख) प्लेग को
(ग) कैंसर को
(घ) एड्स को।
उत्तर:
(ख) प्लेग को

14. मध्यकाल में निम्नलिखित में से कौन-सा चर्च का कार्य था ?
(क) सामाजिक एवं धार्मिक रीति-रिवाजों संबंधी नियम बनाना
(ख) विद्यार्थियों को शिक्षा देना
(ग) धर्म विद्रोहियों के विरुद्ध मुकद्दमे चलाना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

15. चर्च का सर्वोच्च अधिकारी कौन था ?
(क) पादरी
(ख) बिशप
(ग) पोप
(घ) आर्क बिशप।
उत्तर:
(ग) पोप

16. कैथोलिक चर्च का मुखिया कौन होता था ?
(क) पोप
(ख) पादरी
(ग) कृषक
(घ) राजा।
उत्तर:
(क) पोप

17. पोप का निवास स्थान कहाँ था ?
(क) पेरिस
(ख) रोम
(ग) लंदन
(घ) जेनेवा।
उत्तर:
(ख) रोम

18. मध्यकाल यूरोप में भिक्षुओं के निवास स्थान क्या कहलाते थे ?
(क) मेनर
(ख) ऐबी
(ग) फ़ीफ़
(घ) जागीर।
उत्तर:
(ख) ऐबी

19. मठ का प्रधान क्या कहलाता था ?
(क) पादरी
(ख) पोप
(ग) आर्क बिशप
(घ) ऐबट।
उत्तर:
(घ) ऐबट।

20. बरगंडी में स्थापित प्रसिद्ध मठ कौन-सा था ?
(क) बेनेडिक्टीन
(ख) क्लूनी
(ग) ऐबी
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) क्लूनी

21. फ्रायर कौन थे ?
(क) चर्च अधिकारी
(ख) प्रांतीय अधिकारी
(ग) मेनर अधिकारी
(घ) भिक्षु।
उत्तर:
(घ) भिक्षु।

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22. क्लूनी मठ को लोकप्रिय बनाने में किसने उल्लेखनीय योगदान दिया ?
(क) आबेस हिल्डेगार्ड
(ख) सेंट बेनेडिक्ट
(ग) संत फ्राँसिस
(घ) संत डोमिनीक।
उत्तर:
(क) आबेस हिल्डेगार्ड

23. ‘पियर्स प्लाउमैन’ का लेखक कौन था ?
(क) जेफ्री चॉसर
(ख) लैंग्लैंड
(ग) आबेस हिल्डेगार्ड
(घ) शॉर्लमेन।
उत्तर:
(ख) लैंग्लैंड

24. ईसा मसीह का जन्म दिन किस दिन मनाया जाता है ?
(क) 15 दिसंबर को
(ख) 20 दिसंबर को
(ग) 25 दिसंबर को
(घ) 1 जनवरी को।
उत्तर:
(ग) 25 दिसंबर को

25. मध्यकालीन यूरोप में नगरों के विकास में किसने योगदान दिया ?
(क) कृषि का विकास
(ख) व्यापार का विकास
(ग) धर्मयुद्ध
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

26. कथील नगरों का निर्माण किस देश में आरंभ हुआ ?
(क) इंग्लैंड
(ख) फ्राँस
(ग) ऑस्ट्रेलिया
(घ) इटली।
उत्तर:
(ख) फ्राँस

27. नगरों में व्यापार के कुशल संचालन के लिए निम्नलिखित में से किसका गठन किया गया ?
(क) मठों का
(ख) मेनर का
(ग) श्रेणी का
(घ) कथीलों का।
उत्तर:
(ग) श्रेणी का

28. 11वीं शताब्दी में निम्नलिखित में से किस कारक ने सामाजिक-आर्थिक संबंधों को प्रभावित किया ?
(क) पर्यावरण के परिवर्तन ने
(ख) कृषि के लिए नई भूमि के उपयोग ने
(ग) नई कृषि प्रौद्योगिकी ने
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

29. 11वीं शताब्दी में कृषि प्रौद्योगिकी में कौन-सा परिवर्तन आया ?
(क) लकड़ी के स्थान पर लोहे के हलों का प्रयोग
(ख) साँचेदार पटरों का प्रयोग
(ग) घोड़े के खुरों पर अब लोहे के नाल लगायी जाने लगी
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

30. 14वीं शताब्दी में यूरोप में आए घोर संकट का प्रमुख कारण क्या था ?
(क) पर्यावरण में परिवर्तन
(ख) प्लेग का फैलना
(ग) चाँदी की कमी
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

31. ‘काली मौत’ के प्रथम लक्षण यूरोप में कब देखने को मिले थे ?
(क) 1347 ई० में
(ख) 1348 ई० में
(ग) 1350 ई० में
(घ) 1357 ई० में।
उत्तर:
(क) 1347 ई० में

32. यूरोप में राष्ट्रीय राज्यों का उत्थान कब हुआ ?
(क) 14वीं शताब्दी में
(ख) 15वीं शताब्दी में
(ग) 16वीं शताब्दी में
(घ) 17वीं शताब्दी में।
उत्तर:
(ख) 15वीं शताब्दी में

33. निम्नलिखित में से किस देश में राष्ट्रीय राज्यों का सर्वप्रथम उत्थान हुआ ?
(क) फ्राँस
(ख) स्पेन
(ग) इंग्लैंड
(घ) पुर्तगाल।
उत्तर:
(ग) इंग्लैंड

तीन वर्ग HBSE 11th Class History Notes

→ 9वीं शताब्दी से लेकर 16वीं शताब्दी तक पश्चिमी यूरोप का समाज तीन वर्गों-पादरी वर्ग, कुलीन वर्ग एवं किसान वर्ग में विभाजित था। समाज में सर्वोच्च स्थान पादरी वर्ग को प्राप्त था। पादरियों को पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि समझा जाता था।

→ इसलिए समाज द्वारा उनका विशेष सम्मान किया जाता था। यहाँ तक कि राजा भी उनकी आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस नहीं करते थे। उन्हें अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। वे सभी प्रकार के करों से मुक्त थे। कृषकदास, अपाहिज व्यक्ति एवं स्त्रियाँ पादरी नहीं बन सकती थीं। कुलीन वर्ग को समाज में दूसरा स्थान प्राप्त था।

→ इस वर्ग के लोग प्रशासन, चर्च एवं सेना के उच्च पदों पर नियुक्त थे। उन्हें भी अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। वे भव्य महलों में रहते थे एवं विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे। किसान यरोपीय समाज के सबसे निम्न वर्ग में सम्मिलित थे। यूरोप की अधिकाँश जनसंख्या इस वर्ग से संबंधित थी।

→ इनमें स्वतंत्र किसानों की संख्या बहुत कम थी। अधिकांश किसान कृषकदास थे। उन्हें अपने गुजारे के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। वास उनका जीवन नरक के समान था।

→ सामंतवाद मध्यकालीन पश्चिमी यूरोप की एक महत्त्वपूर्ण संस्था थी। इसमें राजा अपने बड़े सामंतों एवं बड़े सामंत अपने छोटे सामंतों में जागीरों का बँटवारा करते थे। ऐसा कुछ शर्तों के अधीन किया जाता था।

→ रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् पश्चिमी यूरोप में फैली अराजकता एवं केंद्रीय सरकारों के कमजोर होने के कारण राजाओं के लिए सामंतों का सहयोग लेना आवश्यक हो गया था। सामंतवाद का प्रसार यूरोप के अनेक देशों में हुआ।

→ इनमें फ्राँस, इंग्लैंड, जर्मनी, इटली एवं स्पेन के नाम उल्लेखनीय थे। सामंतवाद के यूरोपीय समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़े। इसने यूरोपीय समाज में कानून व्यवस्था लागू करने, कुशल प्रशासन देने, निरंकुश राजतंत्र पर नियंत्रण लगाने एवं कला एवं साहित्य को प्रोत्साहन देने में प्रशंसनीय भूमिका निभाई।

→ सामंतवादी व्यवस्था ने दूसरी ओर शासकों को कमज़ोर किया, किसानों का घोर शोषण किया, युद्धों को प्रोत्साहित किया एवं राष्ट्रीय एकता के मार्ग में एक प्रमुख बाधा सिद्ध हुई। 15वीं शताब्दी में सामंतवाद का अनेक कारणों के चलते पतन हो गया।

→ मध्यकाल में पश्चिमी यूरोप में चर्च भी एक शक्तिशाली संस्था थी। इसका समाज पर गहन प्रभाव था। वास्तव में चर्च द्वारा ही सभी प्रकार के सामाजिक एवं धार्मिक नियम बनाए जाते थे। पोप चर्च का सर्वोच्च अधिकारी होता था। वह रोम में निवास करता था।

→ चर्च के अन्य अधिकारी-आर्कबिशप, बिशप एवं पादरी आदि पोप के निर्देशों के अनुसार कार्य करते थे। चर्च के विकास में मठवाद ने प्रशंसनीय योगदान दिया। मठ में रहने वाले भिक्षु-भिक्षुणियों के लिए अनेक नियम बनाए गए थे, जिनका पालन करना आवश्यक था।

→ वे लोगों को पवित्र जीवन व्यतीत करने, शिक्षा प्राप्त करने एवं गरीबों एवं रोगियों की सेवा करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। 529 ई० में इटली में स्थापित सेंट बेनेडिक्ट एवं 910 ई० में बरगंडी में स्थापित क्लूनी मठ विशेष रूप से उल्लेखनीय थे।

→ क्लूनी मठ की स्थापना विलियम प्रथम ने की थी। इस मठ को लोकप्रिय बनाने में जर्मनी की भिक्षुणी आबेस हिल्डेगार्ड ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 13वीं शताब्दी में फ्रायर नामक भिक्षुओं का उत्थान हुआ।

→ वे मठों में रहने की अपेक्षा बाहर भ्रमण कर लोगों को ईसा मसीह के संदेश से अवगत करवाते थे। फ्रायर दो संघों फ्रांसिस्कन एवं डोमिनिकन में विभाजित थे। मध्यकाल में चर्च ने लोगों में एक नई जागति उत्पन्न करने में उल्लेखनीय योगदान दिया।

→ मध्यकाल यरोप में नगरों का विकास एक महान उपलब्धि थी। इसका कारण यह था कि रोमन साम्राज्य के पतन के पश्चात् यूरोप के अनेक नगर बर्बर आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दिए गए थे। नगरों के उत्थान में कृषि एवं व्यापार के विकास, धर्मयुद्धों के प्रभाव एवं नगरों की स्वतंत्रता ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

→ इस काल में जिन नगरों का उत्थान हुआ उनमें महत्त्वपूर्ण वेनिस, मिलान, वियाना, प्रेग, रोम, लंदन, नेपल्स एवं जेनेवा आदि थे। इन नगरों की सुरक्षा की ओर विशेष ध्यान दिया जाता था। इसका कारण यह था कि उस समय युद्ध एक साधारण बात थी।

→ इन नगरों में आधारभूत सुविधाओं की कमी थी। मध्यकालीन नगर व्यापार के प्रसिद्ध केंद्र थे। व्यापार को प्रोत्साहित करने में श्रेणियों की प्रमुख भूमिका थी। 1100 ई० के पश्चात् फ्राँस में कथील नगरों का निर्माण हुआ। शीघ्र ही ऐसे नगर यूरोप के अन्य शहरों में भी बनाए जाने लगे।

→ इन नगरों में पत्थर के विशाल चर्च बनाए जाते थे। चर्च में खिड़कियों के लिए अभिरंजित काँच का प्रयोग किया जाता था। मध्यकालीन नगरों ने यूरोपीय सभ्यता एवं संस्कृति पर दूरगामी प्रभाव डाले।

→ 16वीं शताब्दी में यूरोप में राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान को यूरोप के इतिहास में एक युगांतरकारी घटना माना जाता है। इस काल में सामंतवाद के पतन, चर्च के प्रभाव, धर्मयुद्धों के कारण, मध्यवर्ग के उत्थान, शक्तिशाली शासकों के उदय एवं विद्वानों के लेखों के कारण राष्ट्रीय राज्यों के उत्थान में सहायता मिली।

→ राष्ट्रीय राज्य वे राज्य होते हैं जिसमें राजा सर्वोच्च होता है एवं उसकी शक्तियाँ असीम होती हैं। किसी भी व्यक्ति को उसकी आज्ञा का उल्लंघन करने का अधिकार नहीं होता।

→ इंग्लैंड में राष्ट्रीय राज्य स्थापित करने में हेनरी सप्तम, जेम्स प्रथम एवं चार्ल्स प्रथम ने, फ्रांस में लुई ग्यारहवें ने, स्पेन में फर्डीनेंड एवं ईसाबेला ने एवं पुर्तगाल में राजकुमार हेनरी ने उल्लेखनीय योगदान दिया।

→ इन राष्ट्रीय राज्यों ने अनेक उल्लेखनीय सफलताएँ प्राप्त की। बाद में अनेक कारणों से इन राष्ट्रीय राज्यों का पतन हो गया।

HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

Haryana State Board HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई० Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

निबंधात्मक उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
इस्लाम के उदय से पूर्व अरबों के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं राजनीतिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
सातवीं शताब्दी ई० में इस्लाम के उदय से पूर्व अरब में जाहिलिया (Jahiliya) अथवा अज्ञानता के युग का बोलबाला था। उस समय अरब में बदू (Bedouins) लोगों की प्रमुखता थी। बढ़े खानाबदोश कबीले थे। वे चरागाह की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते थे। लूटमार करना एवं आपस में झगड़ना उनके जीवन की एक प्रमुख विशेषता थी।

उस समय अरब समाज में स्त्रियों की स्थिति अत्यंत शोचनीय थी। उन्हें केवल एक भोग-विलास की वस्तु समझा जाता था। समाज में अन्य अनेक कुप्रथाएँ भी प्रचलित थीं। उस समय अरब के लोग एक अल्लाह की अपेक्षा अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे। प्रत्येक कबीले का अपना अलग देवी देवता होता था। उस समय के लोग अनेक प्रकार के अंध-विश्वासों एवं जादू-टोनों में भी विश्वास रखते थे।

क्योंकि अरब का अधिकाँश क्षेत्र बंजर, वनस्पति रहित एवं दुर्गम था इसलिए अरबों का आर्थिक जीवन भी बहुत पिछड़ा हुआ था। अरबों का कोई व्यवस्थित राजनीतिक संगठन भी नहीं था। उनमें एकता एवं राष्ट्रीयता की भावना बिल्कुल नहीं थी। एडवर्ड मैक्नल बर्नस के अनुसार,

“अरब जो कि एक रेगिस्तानी प्रायद्वीप था इस्लाम की स्थापना से पूर्व इतना पिछड़ा हुआ था कि इसके दो प्रमुख पड़ोसी साम्राज्यों-रोम एवं ईरान ने अरब प्रदेशों में अपने साम्राज्य का विस्तार करना उचित नहीं समझा।

I. सामाजिक जीवन

सातवीं शताब्दी ई० में इस्लाम के उदय से पूर्व अरब के सामाजिक जीवन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

1. परिवार (Family):
परिवार अरबों के समाज का मूल आधार था। उस समय अरब में संयुक्त परिवार प्रणाली का प्रचलन था। उस समय परिवार पितृतंत्रात्मक होते थे। परिवार का सबसे वयोवृद्ध व्यक्ति इसका मुखिया होता था। वह समस्त परिवार पर नियंत्रण रखता था। परिवार के सभी सदस्य उसके आदेशों का पालन करते थे। परिवार में पुत्र का होना आवश्यक माना जाता था। मुखिया की मृत्यु के पश्चात् परिवार का दायित्व उसके ज्येष्ठ पुत्र पर आता था। डॉक्टर के० ए० फारिक के अनुसार,

“पिता को अपने परिवार पर निरंकुश शक्ति प्राप्त थी तथा वह उनके जीवन एवं मौत का स्वामी था।”

2. स्त्रियों की स्थिति (Position of Women):
पैगंबर मुहम्मद के जन्म से पूर्व अरब समाज में स्त्रियों की स्थिति बहत बदतर थी। उस समय पत्री के जन्म को परिवार के लिए अपशगन समझा जाता था लड़कियों को जन्म लेते ही जमीन में दफन कर दिया जाता था।

निस्संदेह यह एक निंदनीय कुप्रथा थी। उस समय समाज में जो अधिकार पुरुषों को दिए गए थे स्त्रियों को उनसे वंचित रखा गया था। उस समय स्त्रियों को शिक्षा देने का प्रचलन नहीं था। अतः वे अनपढ़ रहती थीं। उनका विवाह बहुत कम उम्र में ही कर दिया जाता था।

उस समय समाज में बहु-विवाह प्रथा प्रचलित थी। इसके अतिरिक्त उस समय पुरुषों में अनेक रखैलें रखने की प्रथा भी प्रचलित थी। वास्तव में उस समय समाज में स्त्री को केवल एक भोग-विलास की वस्तु समझा जाता था। उस समय समाज में अनैतिकता का बोलबाला था। यहाँ तक कि पुत्र अपनी विधवा माँ के साथ एवं अपनी बहनों के साथ विवाह कर लेता था।

पति की मृत्यु के पश्चात् विधवा उसके निकटतम संबंधियों के साथ अनैतिक संबंध स्थापित करने से नहीं हिचकिचाती थी। उस समय स्त्रियों को संपत्ति के अधिकार से वंचित रखा गया था। इससे समाज में उनकी स्थिति अधिक दयनीय हो गई थी। प्रोफेसर के० अली का यह कहना उचित है कि, “उस समय स्त्रियों की स्थिति किसी भी समकालीन अन्य देश की स्त्रियों की स्थिति की अपेक्षा बहुत खराब थी।”

3. शिक्षा (Education):
अरब शिक्षा के क्षेत्र में बहुत पिछड़े हुए थे। अधिकाँश अरब अनपढ़ थे। उस समय स्त्रियों को शिक्षा देने को कोई प्रचलन नहीं था। अनपढ़ता के कारण अरब समाज में व्यापक अंधविश्वास प्रचलित थे।

4. लोगों का नैतिक स्तर (Standard of People’s Morality):
उस समय अरब समाज में अनैतिकता का व्यापक प्रचलन था। उस समय लूटमार करना तथा लोगों के साथ धोखा करना एक सामान्य बात थी। लोगों में शराब पीने, अन्य नशीले पदार्थों का सेवन करने तथा जुआ खेलने का प्रचलन बहुत था। उस समय स्त्रियों के साथ अनैतिक संबंध स्थापित करना एक सामान्य बात मानी जाती थी। निस्संदेह यह अरब समाज के पतन का संकेत था।

5. मनोरंजन (Entertainments) :
उस समय अरब के लोग विभिन्न साधनों से अपना मनोरंजन करते थे। उनके मनोरंजन का प्रमुख साधन नृत्य एवं गान था। वे बाँसुरी एवं गिटार के बहुत शौकीन थे। उस समय जुए का व्यापक प्रचलन था। वे पशुओं की लड़ाइयाँ भी देखते थे। वे शिकार खेलने के भी शौकीन थे।

6. वेश-भूषा एवं भोजन (Dress and Diet):
उस समय बदू लोगों में लंबे कुर्ते एवं पजामा पहनने का प्रचलन था। वे कुर्तों के ऊपर ऊँट की खाल से बना एक ढीला-ढाला चोगा (cloak) पहनते थे। इसके अतिरिक्त सिर पर पगड़ी बाँधते थे। उच्च वर्ग के लोगों के वस्त्र बहुत कीमती होते थे। स्त्रियाँ सलवार एवं कमीज़ पहनती थीं।

वे इसके ऊपर बुर्का पहनती थीं। उनका प्रमुख भोजन खजूर एवं दूध था। इसके अतिरिक्त वे गेहूँ, बाजरा, अंगूर, खुमानी, सेब, बादाम एवं केले आदि का भी प्रयोग करते थे। वे ऊँट, भेड़ एवं बकरियों का माँस खाते थे। उच्च वर्ग के लोगों में मदिरापान का बहुत प्रचलन था।

7. दास प्रथा (Slavery):
उस समय अरब समाज में दास प्रथा का काफी प्रचलन था। उस समय युद्ध में बंदी बनाए गए लोगों को दास बना लिया जाता था। उस समय दासों के साथ बहुत क्रूर व्यवहार किया जाता था। उन्हें अपनी इच्छा से विवाह करने की अनुमति नहीं थी। ऐसा करने वाले दासों को कठोर दंड दिया जाता था।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

II. आर्थिक जीवन

इस्लाम के उदय से पूर्व अरबों का आर्थिक जीवन पिछड़ा हुआ था। यहाँ की अधिकाँश भूमि बंजर है। यहाँ वर्षा बहुत कम होती है। यहाँ जनसंख्या बहुत विरल है। यहाँ यातायात एवं संचार के साधन बहुत कम थे। इसके बावजूद अरब लोगों ने आर्थिक क्षेत्र में जो प्रगति की उसका संक्षिप्त वर्णन अग्रलिखित अनुसार है

1. कृषि (Agriculture):
अरब की भूमि रेतीली होने के कारण अनउपजाऊ है। यहाँ वर्षा नाम मात्र होती है। कई बार तो लगातार तीन अथवा चार वर्षों तक वर्षा नहीं होती। यहाँ नदियाँ भी बहुत कम हैं। ये नदियाँ भी सदैव नहीं बहतीं। अतः यहाँ सिंचाई के साधनों की बहुत कमी है। अत: यहां फ़सलों का उत्पादन बहुत कम होता है।

फ़सलों का उत्पादन केवल उन्हीं क्षेत्रों में होता है जहाँ सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं तथा भूमि उपजाऊ है। यहाँ की प्रमुख फ़सल खजूर है। अल-हिजाज (al-Hijajh) तथा अल-मदीना (al-Madinah) खजूर उत्पादन के दो प्रसिद्ध केंद्र थे। खजूर का अरब लोगों के जीवन में विशेष महत्त्व है। यह अरब लोगों का प्रमुख खाद्य पदार्थ है। इसका पेय (beverage) बहुत स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है।

इसकी गुठली (crushed stones) ऊँट के लिए रोज़ाना भोजन उपलब्ध करवाती है। खजूर के पेड़ की छाल से रस्सियाँ (ropes) तथा चटाइयाँ (mats) बनाई जाती हैं। इसकी लकड़ी आग जलाने का एकमात्र साधन है। प्रोफेसर के० अली का यह कथन बिल्कुल ठीक है कि,

“अरब में खजूर को पेड़ों की रानी कहा जाता है। यह गरीब तथा धनी दोनों की एक समान मित्र है जिसके बिना रेगिस्तान में जीवन के बारे सोचा नहीं जा सकता है।”

अरब में जौ (barley) का उत्पादन भी बड़े पैमाने पर किया जाता है। इसका चारा घोड़ों को खिलाया जाता है तथा आटा मनुष्यों के काम आता है। यमन में गेहूँ का उत्पादन बहुत बड़ी मात्रा में होता था। उमान में बाजरा (millet) तथा चावल का उत्पादन किया जाता था। इनके अतिरिक्त समुद्र तटीय क्षेत्रों (coastal areas) में अनेक प्रकार की सब्जियों तथा फलों का उत्पादन किया जाता था। फलों में अनार, सेब, खुमानी, बादाम तथा केले प्रसिद्ध थे।

2. पशुपालन (Cattle Rearing):
अरब लोगों का दूसरा प्रमुख व्यवसाय पशुपालन था। ऊँट, घोड़ा, भेड़, तथा बकरी उनके प्रमुख पालतू जानवर थे। इन जानवरों में ऊँट को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता था। उसे रेगिस्तान का जहाज़ (ship of the desert) कहा जाता है। उसके बिना रेगिस्तान में जीवन के बारे में सोचा नहीं जा सकता। ऊँट 57° सेंटीग्रेड के उच्च तापमान में भी एक दिन में 160 किलोमीटर का सफर तय कर सकता है। वह 300 किलोग्राम से अधिक का भार ढो सकता है।

वह कई दिनों तक बिना पानी पीये जीवित रह सकता है। यह बदू लोगों के यातायात का प्रमुख साधन है। लोग ऊँटनी का दूध पीते हैं, इसका माँस खाते हैं, इसकी खाल का तंबू बनाते हैं तथा इसके गोबर का आग के लिए प्रयोग करते हैं। इसके मूत्र से दवाइयाँ बनाई जाती हैं। इसे शेख़ की दौलत का प्रतीक माना जाता है। बद् इसे विवाह के अवसर पर दहेज के रूप में देते हैं। ऊँट के महत्त्व के संबंध में डॉक्टर ए० रहीम ने लिखा है कि, “ऊँट जिसे रेगिस्तान का जहाज़ कहा जाता है अरबों का सबसे उपयोगी पशु है।

ऊँट के बिना रेगिस्तानी जीवन के बारे में सोचा नहीं जा सकता।”

अरबी घोड़े विश्व में अपनी उत्तम नस्ल के लिए प्रसिद्ध हैं। इन्हें दौलत का प्रतीक माना जाता था। बदुओं के जीवन में घोडे का विशेष महत्त्व था। उनके द्वारा किए जाने वाले आक्रमणों में घोड़ों की विशेष भूमिका होती थी। घोड़े तीव्र गति से इधर-उधर आ जा सकते थे। शिकार करते समय भी घोड़ों का प्रयोग किया जाता था। अरब लोग दूध एवं माँस के लिए भेड़ एवं बकरियाँ भी पालते थे। वे भेड़ों से ऊन भी प्राप्त करते थे।

3. व्यापार (Trade):
इस्लाम के उदय से पूर्व अरबों का आंतरिक एवं विदेशी व्यापार अधिक उन्नत न था। इसके लिए चार प्रमुख कारण उत्तरदायी थे। प्रथम, बदुओं की लूटमार द्वारा देश में अराजकता का वातावरण था। दूसरा, उस समय व्यापारिक मार्ग सुरक्षित न थे। तीसरा, उस समय अरब में उद्योग विकसित नहीं थे। चौथा, उस समय यातायात के साधन उन्नत न थे।

अरब अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति शहरों में लगने वाली मंडियों से करते थे। इन मंडियों से वे खाद्य पदार्थ एवं पशु प्राप्त करते थे। कुछ धनी व्यापारी ईरान, मेसोपोटामिया, सीरिया, मिस्र एवं इथियोपिया आदि देशों के साथ व्यापार करते थे। वे इन देशों को ऊँटों, घोड़ों, फलों तथा शराब आदि का निर्यात करते थे।

III. धार्मिक जीवन

इस्लाम के उदय से पूर्व अरब निवासी धार्मिक रूप से भी बहुत पिछड़े हुए थे। वे एक अल्लाह की अपेक्षा अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे। प्रत्येक कबीले का अपना अलग देवी-देवता होता था। एक कबीले के लोग दूसरे कबीले के देवी-देवता से नफरत करते थे। वे अपने देवी-देवता को सर्वोच्च मानते थे। वे इन देवी-देवताओं की स्मृति में विशाल मस्जिदों का निर्माण करते थे तथा उनमें इनकी मूर्तियाँ रखी जाती थीं। अकेले मक्का में 360 देवी-देवताओं की मूर्तियाँ थीं। इसे अरब का सबसे पवित्र स्थान माना जाता था।

प्रत्येक वर्ष अरब के विभिन्न भागों व्या में लोग यहाँ लगने वाले उक्ज (ukaj) मेले के अवसर पर एकत्र होते थे। अरब लोग अपने देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए जानवरों की बलियाँ देते थे। कभी-कभी मानव बलि भी दी जाती थी। हबल (Hubal) अरबों का सबसे प्रसिद्ध देवता था। अल-उज़्ज़ा (al-Uzza), अल-लत (al-Lat) एवं अल-मना (al Manah) को अल्लाह की तीन पुत्रियाँ माना जाता था। अतः इनकी उपासना विशेष श्रद्धा के साथ की जाती थी। प्रोफेसर जोसेफ हेल के अनुसार,

“अरब अभिलेखों में दिए गए विशाल देवताओं के नामों से पता चलता है कि वहाँ धर्म को कितना महत्त्व दिया जाता था। अरबों में अनेक प्रकार के अंध-विश्वास प्रचलित थे। वे सूर्य, चंद्रमा, तारों, पत्थरों एवं वृक्षों की भी उपासना करते थे। वे जादू-टोनों एवं भूत-प्रेतों में भी विश्वास करते थे। उनका मृत्यु के पश्चात् जीवन, कर्म तथा पुनर्जन्म में भी पूर्ण विश्वास था।

IV. राजनीतिक जीवन

इस्लाम उदय से पूर्व अरब के लोगों का राजनीतिक जीवन भी बहुत पिछड़ा हुआ था। उनका कोई व्यवस्थित राजनीतिक संगठन नहीं था। केंद्रीय सत्ता के अभाव के कारण जिसकी लाठी उसकी भैंस (might is right) का बोलबाला था। अरबों में पशुओं, चरागाहों, भूमि तथा पानी के लिए जातीय लड़ाइयाँ चलती रहती थीं। बढ़े लोग लूटपाट में लीन रहते थे।

उस समय अरब लोग अनेक कबीलों में बँटे हुए थे। प्रत्येक कबीला राजनीतिक दृष्टि से स्वतंत्र होता था। उस समय अरबों में राष्ट्रीय भावना का अभाव था। वे केवल अपने कबीले के प्रति वफ़ादार होते थे। प्रत्येक कबीले का अपना मुखिया होता था जिसे शेख़ (sheikh) कहा जाता था। उसका चुनाव व्यक्तिगत साहस, बुद्धिमत्ता एवं उदारता के आधार पर किया जाता था।

कबीले के लोग उसका बहुत सम्मान करते थे। वह अपने कबीले के लोगों की देखभाल करता था तथा उनके झगड़ों का निपटारा करता था। देश में कोई एक कानून नहीं था। प्रत्येक कबीले के अपने अलग कानून थे। उस समय ‘खून का बदला खून’ का नियम बहुत प्रचलित था। शेख़ कबीले के लोगों की प्रसन्नता तक अपने पद पर बना रह सकता था। उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि इस्लाम के उदय से पूर्व अरब के लोग सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं राजनीतिक दृष्टिकोणों से पिछड़े हुए थे। निस्संदेह इसने अरब में इस्लाम के उदय का आधार तैयार किया।

प्रश्न 2.
पैगंबर मुहम्मद के जीवन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
पैगंबर मुहम्मद की गणना विश्व के महान् व्यक्तियों में की जाती है। उनके जीवन का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. जन्म तथा माता-पिता (Birth and Parentage):
पैगंबर मुहम्मद का जन्म 29 अगस्त, 570 ई० को मक्का में हुआ था। उनके पिता का नाम अब्दुल्ला (Abdullah) था। वह अरब के एक प्रसिद्ध कबीले कुरैश (Quraysh) से संबंधित था। अब्दुल्ला एक छोटा व्यापारी था। मुहम्मद के जन्म समय अब्दुल्ला सीरिया में व्यापार के सिलसिले में गया था।

वापसी समय वह मदीना (Medina):
में बीमार पड़ गया तथा वहीं उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार मुहम्मद अपने पिता के प्यार से वंचित रह गया। उसकी माता का नाम अमीना (Amina) था। जब मुहम्मद 6 वर्ष के हुए तो उनकी माता ने भी इस संसार को सदैव के लिए अलविदा कह दी।

2. बचपन (Childhood):
मुहम्मद के माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् मुहम्मद की देखभाल का उत्तरदायित्व उनक चाचा अबू तालिब (Abu Talib) ने संभाला। उसने मुहम्मद का पालन-पोषण बहुत लाड-प्यार के साथ किया। उन्हें बचपन में ही भेड़ों एवं ऊँटों की रखवाली के काम पर लगा दिया गया था। मुहम्मद अपना अवकाश का समय प्रभु भक्ति में व्यतीत करते थे। वह अपने अच्छे स्वभाव एवं ईमानदारी के कारण लोगों में बहुत प्रिय थे।

3. विवाह (Marriages):
मुहम्मद का प्रथम विवाह 595 ई० में खदीज़ा (Khadija) से हुआ। उस समय मुहम्मद की आयु 25 वर्ष थी तथा खदीज़ा की आयु 40 वर्ष थी। खदीज़ा मक्का की एक धनी विधवा थी। वह ऊँटों का व्यापार करती थी। उसने मुहम्मद की ईमानदारी एवं विश्वसनीयता के संबंध में सुन रखा था। अत: उसने मुहम्मद को व्यापार के सिलसिले में अपने पास रख लिया।

उसने मुहम्मद को व्यापार के संबंध में सीरिया भेजा। यहाँ मुहम्मद ने अपनी योग्यता एवं ईमानदारी के बल पर अच्छा मुनाफा कमाया। इससे खदीज़ा बहुत प्रभावित हुई।

अतः खदीजा ने मुहम्मद से विवाह का प्रस्ताव रखा। मुहम्मद ने खदीज़ा के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। यह विवाह मुहम्मद के जीवन में एक नया मोड़ प्रमाणित हुआ। इस विवाह से मुहम्मद की प्रसिद्धि बढ़ गई। 619 ई० में खदीज़ा की मृत्यु के पश्चात् मुहम्मद ने कुछ अन्य विवाह किए थे। मुहम्मद की पत्नियों में आयशा (Aisha) सर्वाधिक प्रसिद्ध थी। वह इस्लाम के प्रथम खलीफ़ा अबू बकर (Abu Bakr) की पुत्री थी। डॉक्टर ए० रहीम के शब्दों में, “मुहम्मद का खदीज़ा के साथ विवाह उसके जीवन की एक अति महत्त्वपूर्ण घटना थी।”

4. इलहाम की प्राप्ति (Attainment of Enlightenment):
पैगंबर मुहम्मद मक्का में स्थित एक पहाड़ी में हीरा नामक गुफा में जाकर ध्यान लगाते थे। मुहम्मद को इलहाम (ज्ञान) की प्राप्ति हुई। इस रात को शक्ति की रात कहा जाता है। यह रात रमजान (Ramadan) के अंत में पड़ती है। उस समय मुहम्मद की आयु 40 वर्ष थी। इसके पश्चात् मुहम्मद पैगंबर मुहम्मद के नाम से लोकप्रिय हुए।

5. मक्का में प्रचार (Preaching in Mecca):
पैगंबर मुहम्मद ने इलहाम प्राप्त करने के पश्चात् अपना प्रचार कार्य अपने परिवार एवं रिश्तेदारों में किया। इसे सर्वप्रथम उसकी पत्नी खदीजा एवं पुत्रियों ने स्वीकार किया। 612 ई० में पैगंबर मुहम्मद ने अपना प्रथम सार्वजनिक उपदेश मक्का में दिया। उन्होंने लोगों को बताया कि अल्लाह एक है तथा मुहम्मद उसके पैगंबर (संदेशवाहक) हैं।

उन्होंने मूर्ति पूजा का कट्टर विरोध किया तथा इन्हें नष्ट करना मुसलमानों का प्रथम धार्मिक कर्त्तव्य बताया। उन्होंने केवल एक अल्लाह की इबादत पर बल दिया। उन्होंने अपने अनुयायियों को जिन्हें मुसलमान कहा जाता था, को अल्लाह के समक्ष आत्म-समर्पण करने के लिए प्रेरित किया। इसलिए उनके धर्म का नाम इस्लाम पड़ा।

6. मदीना को हिजरत (Emigration to Medina):
पैगंबर मुहम्मद की बढ़ती हुई लोकप्रियता के कारण मक्का के अनेक प्रभावशाली लोग उनसे ईर्ष्या करने लगे। इसके दो प्रमुख कारण थे। प्रथम, पैगंबर मुहम्मद मूर्ति पूजा के कटु आलोचक थे। दूसरा, पैगंबर मुहम्मद अरब समाज में प्रचलित अंध-विश्वासों को दूर कर इसे एक नई दिशा देना चाहते थे। इसे मक्का के रूढ़िवादी लोग पसंद नहीं करते थे। अतः बाध्य होकर पैगंबर मुहम्मद 28 जून, 622 ई० को मक्का से मदीना कूच कर गए।

वह 2 जुलाई, 622 ई० को मदीना पहुँचे। इस घटना को मुस्लिम इतिहास में हिजरत कहा जाता है। यह घटना पैगंबर मुहम्मद के जीवन में एक निर्णायक मोड़ सिद्ध हुई। इस वर्ष से मुस्लिम कैलेंडर का आरंभ हुआ। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर जोसेफ हेल के शब्दों में, “यह पैगंबर के जीवन एवं कार्य में एक निर्णायक मोड़ तथा इस्लाम के इतिहास में एक महान् मोड़ सिद्ध हुआ।”

7. बद्र की लड़ाई (Battle of Badr):
मुसलमानों जो कि पैगंबर मुहम्मद के अनुयायी थे तथा मक्का के कुरैशों के मध्य 13 मार्च, 624 ई० को मदीना के निकट एक निर्णायक लड़ाई हुई। यह लड़ाई इतिहास में बद्र की लड़ाई के नाम से प्रसिद्ध है। मदीना में पैगंबर मुहम्मद के बढ़ते हुए प्रभाव को मक्का के कुरैश सहन न कर सके। कुरैश पैगंबर मुहम्मद को एक सबक सिखाना चाहते थे।

बद्र नामक स्थान पर हुई लड़ाई में पैगंबर मुहम्मद के सैनिकों ने रणक्षेत्र में वे जौहर दिखाए कि कुरैशी सैनिकों को कड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। यह पैगंबर मुहम्मद की प्रथम निर्णायक विजय थी। डॉक्टर ए० रहीम के शब्दों में, “बद्र की लड़ाई के इस्लाम के इतिहास में दूरगामी प्रभाव पड़े।

यह उसी प्रकार महत्त्वपूर्ण थी जिस प्रकार बेस्तील के दुर्ग का फ्रांसीसी क्रांतिकारियों द्वारा नष्ट करना।” प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर के० ए० निज़ामी का यह कहना उचित है कि, “बद्र की लड़ाई इस्लाम के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ सिद्ध हुई।”

8. उहुद की लड़ाई (Battle of Uhud):
कुरैश बद्र की लड़ाई में हुई अपनी अपमानजनक पराजय का बदला लेना चाहते थे। अबू सूफयान ने मुसलमानों को पराजित करने का प्रण लिया। इसके अतिरिक्त कुरैश मदीना में पैगंबर मुहम्मद के बढ़ते हुए प्रभाव से चिंतित थे। इससे उनके राजनीतिक एवं व्यापारिक हितों को नुकसान पहुँच सकता था।

अतः अब सफयान के नेतृत्व में लगभग 3000 सैनिक मदीना की ओर चल पड़े। पैगंबर मुहम्मद ने उनका सामना करने का निर्णय किया। 21 मार्च, 625 ई० को दोनों सेनाओं के मध्य उहुद नामक पहाड़ी (Mount Uhud) पर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में पैगंबर मुहम्मद घायल हो गए तथा उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।

9. खंदक की लड़ाई (Battle of Ditch):
उहुद की लड़ाई में पराजित होने के पश्चात् भी मुसलमानों ने अपना धैर्य न खोया। उन्होंने अपनी पराजय का बदला लेने के उद्देश्य से अपनी सेना को संगठित किया। दूसरी ओर जब कुरैशों को मुसलमानों की सैनिक गतिविधियों की सूचना मिली तो वे इसे सहन न कर सके। अतः उन्होंने मुसलमानों को सबक सिखाने का निर्णय किया। पैगंबर मुहम्मद ने शत्रुओं का सामना करने के लिए एक योजना बनाई। इसके अधीन मदीना नगर के चारों ओर खाइयाँ खुदवा दीं।

जब 13 मार्च, 627 ई० को अबू सूफयान के नेतृत्व में गठजोड़ सैनिक मदीना पहुंचे तो वे खाइयों को देख कर भौंचक्के रह गए। यह स्वर्ण अवसर देख मुसलमानों ने उन पर आक्रमण कर दिया। खाई के कारण इस लड़ाई को खंदक की लड़ाई कहा जाता है। इस लड़ाई में मुसलमानों ने मक्का सैनिकों को पराजित कर दिया। इस कड़ी पराजय के पश्चात् मक्का सैनिकों की प्रतिष्ठा धूल में मिल गई। इस निर्णायक विजय से मुसलमानों का साहस बहुत बढ़ गया।

10. मक्का की विजय (Conquest of Mecca):
मक्का की विजय पैगंबर मुहम्मद की एक अन्य महत्त्वपूर्ण सफलता थी। इस लड़ाई का कारण यह था कि हुदेबिया की संधि के अनुसार कुरैशों ने मुसलमानों को मक्का की यात्रा करने की अनुमति न दी। अत: पैगंबर मुहम्मद ने उनसे दो-दो हाथ करने का निर्णय लिया। अत: उसने 1 जनवरी, 630 ई० को 10,000 सैनिकों के साथ मक्का पर आक्रमण कर दिया। मक्का में पैगंबर मुहम्मद का बहुत कम विरोध किया गया।

अतः पैगंबर मुहम्मद ने सुगमता से मक्का पर अधिकार कर लिया। मक्का को इस्लामी राज्य की धार्मिक राजधानी घोषित किया गया। इस निर्णायक विजय से पैगंबर महम्मद के नाम को चार चाँद लग गए। अनेक लोग इस्लाम में सम्मिलित हो गए। प्रसिद्ध इतिहासकार सर अब्दुल्ला सहरावर्दी के अनुसार, प्रोफेसर के० अली के शब्दों में, “मक्का की विजय ने इस्लाम में एक नए युग का आरंभ किया।”

11. पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु (Death of Prophet Muhammad):
पैगंबर मुहम्मद की 8 जून, 632 ई० में मदीना में मृत्यु हो गई। अपनी मृत्यु से पूर्व पैगंबर मुहम्मद ने न केवल अणुओं के समान बिखरे हुए कबीलों में एकता स्थापित की अपितु अरब समाज को एक नई दिशा देने में सफलता भी प्राप्त की। उनके उल्लेखनीय योगदान के कारण इस्लाम के इतिहास में उनका नाम सदैव के लिए अमर रहेगा।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

प्रश्न 3.
पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
इस्लाम की प्रमुख शिक्षाएं क्या थी ?
उत्तर:
पैगंबर मुहम्मद अथवा इस्लाम की शिक्षाएँ बहुत सरल एवं प्रभावशाली थीं। इन शिक्षाओं का लोगों के दिलों पर जादुई प्रभाव पड़ा एवं वे बड़ी संख्या में इस्लाम में सम्मिलित हुए।

1. अल्लाह एक है (God is One):
पैगंबर मुहम्मद ने अपनी शिक्षाओं में बार-बार इस बात पर बल दिया कि अल्लाह एक है। वह सर्वोच्च एवं सर्वशक्तिमान है। वह जो चाहे कर सकता है। वह संसार की रचना करता है। वह इसकी पालना करता है। वह जब चाहे इसे नष्ट कर सकता है। उसकी अनुमति के बिना संसार का पत्ता तक नहीं हिल सकता।

वह अत्यंत दयावान् है । वह पापी लोगों के पापों को क्षमा कर सकता है। वह सदैव रहने वाला है। कोई भी अन्य देवी-देवता उसके सामने ऐसे है जैसे सूर्य के सामने तारा। अत: पैगंबर मुहम्मद ने केवल एक अल्लाह की इबादत का संदेश दिया।

2. इस्लाम के पाँच स्तंभ (Five Pillars of Islam):
इस्लाम में पाँच सिद्धांतों पर विशेष बल दिया गया है। इनका पालन करना प्रत्येक मुसलमान का कर्तव्य है। अतः इन्हें इस्लाम के पाँच स्तंभ कहा जाता है।

(1) कलमा पढना (Reciting Kalma):
प्रत्येक मसलमान का यह धार्मिक कर्तव्य है कि वह कलमा पढे। इसमें बताया गया है कि अल्लाह एक है। वह सर्वोच्च एवं सर्वशक्तिमान है। मुहम्मद साहब उसके रसूल (पैगंबर) हैं। कुरान को अल्लाह द्वारा भेजा गया है।

(2) नमाज़ (Namaz):
प्रत्येक मुसलमान का दूसरा कर्त्तव्य यह है कि वह दिन में पाँच बार नमाज़ अवश्य पढ़े। नमाज़ पढ़ने से व्यक्ति का अल्लाह से संपर्क हो जाता है। उसकी रहमत से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं तथा वह मनभावन फल प्राप्त करता है।
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 4 iMG 1
(3) रोजा (Rauja):
रमजान के महीने रोज़ा (व्रत) रखना प्रत्येक मुसलमान का तीसरा धार्मिक कर्त्तव्य है। इस माह में सूर्योदय से सूर्यास्त तक कुछ भी खाना-पीना वर्जित है। सूर्यास्त के पश्चात् ही मुसलमान कुछ खान-पान कर सकते हैं। इस माह के दौरान मुसलमानों को सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करने पर विशेष बल दिया गया है।

(4) ज़कात (Zakat):
ज़कात का अर्थ है दान देना। इसके अधीन प्रत्येक मुसलमान का यह कर्त्तव्य है कि वह अपनी कुल आय का 2/2% दान दे। इसे गरीबों की सहायता, इस्लाम के प्रचार एवं मस्जिदों के निर्माण पर खर्च किया जाता है।

(5) हज (Hajj):
प्रत्येक मुसलमान का यह धार्मिक कर्त्तव्य है कि वह अपने जीवन में कम-से-कम एक बार हज़ करे भाव मक्का की यात्रा पर जाए। आर० टी० मैथियू एवं एफ० डी० प्लैट के अनुसार, पाँच स्तंभ मुसलमानों के धार्मिक जीवन का आधार हैं।”

3. कर्म सिद्धांत में विश्वास (Belief in Karma Theory):
इस्लाम में कर्म सिद्धांत पर विशेष बल दिया गया है। इसके अनुसार जैसा करोगे वैसा भरोगे, जैसा बीजोगे वैसा काटोगे। यदि कर्म अच्छे होंगे तो अच्छा फल मिलेगा, बुरा करोगे तो बुरा होगा। किसी भी स्थिति में कर्मों से छुटकारा नहीं मिलेगा। कुरान के अनुसार कयामत के दिन स्वर्ग एवं नरक का निर्णय इस जन्म में किए गए कर्मों के अनुसार ही होगा।

4. नैतिक सिद्धांत (Moral Principles):
कुरान में अनेक नैतिक नियमों का वर्णन किया गया है। इसमें कहा गया है कि-

  • सदैव सत्य बोलो।
  • सदैव अपने माता-पिता का सम्मान करो।
  • सदैव अपने अतिथियों का आदर करो।
  • सदैव अपने छोटों से प्यार करो।
  • सदैव सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करो।
  • पापों से सदैव दूर रहो।
  • कभी लालच एवं घृणा मत करो।
  • कभी किसी को धोखा एवं कष्ट न दो।
  • सदैव गरीबों, अनाथों एवं बीमारों की सेवा करो।
  • सदैव नशीले पदार्थों से दूर रहो।।

5. समानता में विश्वास (Faith in Equality):
इस्लाम में समानता को विशेष महत्त्व दिया गया है। इसके अनुसार सभी एक अल्लाह के बच्चे हैं। अतः सभी भाई-बहन हैं । इस्लाम में अमीर-गरीब, जाति, भाषा, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता। सभी को एक समान अधिकार दिए गए हैं।

6. मूर्ति पूजा का खंडन (Denounced Idol Worship):
इस्लाम मूर्ति पूजा का कट्टर विरोधी है। पैगंबर मुहम्मद के समय में अरब देश में मूर्ति पूजा का बहुत प्रचलन था। केवल काबा में ही सैंकड़ों मूर्तियाँ स्थापित की गई थीं। पैगंबर मुहम्मद ने मूर्ति पूजा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने मक्का पर अधिकार करने के पश्चात् काबा में सभी मूर्तियों को नष्ट कर डाला। पैगंबर मुहम्मद का कथन था कि हमें केवल एक अल्लाह की उपासना करनी चाहिए।

7. स्त्रियों की स्थिति (Position of Women):
पैगंबर मुहम्मद से पूर्व अरब समाज में स्त्रियों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। उन्हें केवल मनोरंजन एवं भोग विलास की वस्तु समझा जाता था। समाज ने जो अधिकार पुरुषों को दिए थे स्त्रियों को उन सभी अधिकारों से वंचित रखा गया था। पैगंबर मुहम्मद ने पुरुषों एवं स्त्रियों को बराबर अधिकार दिए जाने के पक्ष में प्रचार किया। उन्होंने मुसलमानों को यह संदेश दिया कि वे अपनी पत्नियों के साथ कभी भी दुर्व्यवहार करें।

उन्होंने बहु-विवाह पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से यह नियम बनाया कि कोई भी पुरुष एक समय में चार से अधिक पत्नियाँ नहीं रख सकता। उन्होंने विधवाओं को सम्मान देने के पक्ष में प्रचार किया। प्रसिद्ध लेखक डॉक्टर ए० रहीम के अनुसार “वास्तव में जो सम्मान पैगंबर मुहम्मद ने स्त्रियों को दिया वह विश्व द्वारा अभी प्राप्त किया जाना है”

प्रश्न 4.
इस्लाम के प्रथम चार खलीफ़ों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पैगंबर मुहम्मद ने अरब समाज को एक नई दिशा देने में उल्लेखनीय योगदान दिया। 632 ई० में उनकी मृत्यु से इस्लाम पर एक घोर संकट उत्पन्न हो गया। इसका कारण यह था कि पैगंबर मुहम्मद का अपना कोई पुत्र न था एवं उन्होंने किसी को भी अपना उत्तराधिकारी नियुक्त नहीं किया था। अतः उम्मा (umma) ने निर्वाचन पद्धति द्वारा अबू बकर को पैगंबर मुहम्मद का उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इससे खिलाफ़त संस्था का उदय हुआ। पैगंबर मुहम्मद के उत्तराधिकारी खलीफ़ा कहलाए। खिलाफ़त के प्रमुख उद्देश्य थे-

  • इस्लाम की रक्षा एवं प्रसार करना,
  • कबीलों पर नियंत्रण कायम रखना,
  • राज्य के लिए संसाधन जुटाना,
  • पैगंबर द्वारा आरंभ किए गए कार्यों को जारी रखना,
  • आवश्यकता पड़ने पर जिहाद (धर्म युद्ध) की घोषणा करना,
  • गरीबों, अपाहिजों एवं यतीमों की सहायता करना। आरंभिक चार खलीफ़ों के पैगंबर मुहम्मद के साथ नज़दीकी एवं गहरे संबंध थे। उन्होंने 632 ई० से लेकर 661 ई० तक शासन किया। उन्ह वपूर्ण योगदान दिया। इसका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

I. अबू बकर : 632-634 ई०
अबू बकर खलीफ़ा के पद पर नियुक्त होने वाले प्रथम व्यक्ति थे। वह इस पद पर 632 ई० से 634 ई० तक रहे। वह पैगंबर मुहम्मद के ससुर थे। जिस समय वह खलीफ़ा के पद पर निर्वाचित हुए तो उस समय उन्हें अनेक विकट समस्याओं का सामना करना पड़ा। प्रथम, पैगंबर मुहम्मद ने किसी उत्तराधिकारी की नियुक्ति नहीं की थी।

इस कारण अरब के विभिन्न भागों में अनेक नकली पैगंबर प्रकट हो गए। दूसरा, मक्का एवं मदीना में अनेक ऐसे लोग थे जो इस्लाम का विरोध कर रहे थे तीसरा, ईसाई एवं यहूदी भी इस्लाम के लिए एक कड़ी चुनौती बने हुए थे। अबू बकर ने सर्वप्रथम नकली पैगंबरों के विद्रोहों का दमन किया। इससे अरब में शांति स्थापित हुई। इसके पश्चात् अबू बकर ने मुस्लिम साम्राज्य के विस्तार की योजना बनाई।

अतः उसने शीघ्र ही सीरिया, इराक, ईरान एवं बाइजेंटाइन साम्राज्यों पर विजय प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की। उन्होंने मदीना (Madina) को अपनी राजधानी बनाए रखा। 634 ई० में अबू बकर की मृत्यु हो गई। अपनी मृत्यु से पूर्व उन्होंने उमर को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।

वास्तव में अपने दो वर्षों के शासनकाल में अबू बकर ने इस्लाम को संगठित एवं इसका प्रसार करने में बहुमूल्य योगदान दिया। डॉक्टर माजिद अली खाँ के अनुसार, “उसे इस्लाम के इतिहास में एक विशेष स्थान प्राप्त है।”

II. उमर : 634-644 ई०
उमर आरंभिक चार खलीफ़ाओं में से सबसे महान् थे। वह कुरैश कबीले से संबंधित थे तथा उनकी नियुक्ति अबू बकर द्वारा की गई थी। वह खलीफ़ा के पद पर 634 ई० में नियुक्त हुए। वह इस पद पर 644 ई० तक रहे। वह एक महान खलीफ़ा प्रमाणित हए। उन्होंने अपनी दरदष्टि से जान लिया था कि उम्मा को केवल व्यापार और साधारण करों के बल पर संगठित नहीं रखा जा सकता।

इसके लिए उन्हें अधिक धन की आवश्यकता थी। यह धन उन्हें केवल विजय अभियानों के रूप में मारे जाने वाले छापों से प्राप्त लूट से मिल सकता था इस उद्देश्य से तथा इस्लाम के प्रसार के लिए उन्होंने अबू बकर की विस्तारवादी नीति को जारी रखा। उस समय इस्लामी राज्य के पश्चिम में बाइजेंटाइन (Byzantine) तथा पूर्व में ससानी (Sasanian) साम्राज्य स्थित थे।

बाइजेंटाइन साम्राज्य ईसाई धर्म को एवं ससानी साम्राज्य ज़रतुश्त धर्म (Zoroastrianism) को संरक्षण (patronise) प्रदान करता था। इन दोनों साम्राज्यों की कुछ समय पूर्व तक बहुत धाक थी। किंतु अब धार्मिक संघर्षों तथा अभिजात वर्गों के विद्रोहों के कारण वे अपने पतन की ओर अग्रसर थे।

इस स्वर्ण अवसर का लाभ उठा कर खलीफ़ा उमर ने 637 ई० से 642 ई० के समय के दौरान सीरिया, इराक, ईरान और मिस्र पर महत्त्वपूर्ण विजयें प्राप्त की। उनके अधीन अरबों ने 643 ई० में उत्तरी अफ्रीका में त्रिपोली को अपने अधिकार में कर लिया। मुसलमानों की इन सफलताओं के लिए खलीफ़ा उमर की योजनाएँ, मुसलमानों का धार्मिक जोश, उनके अनुभवी सेनापति एवं विरोधियों की कमज़ोरियाँ उत्तरदायी थीं। खलीफ़ा उमर न केवल एक महान विजेता था अपित एक कशल प्रशासक भी था।

उन्होंने अपने इस्लामी साम्राज्य को 8 प्रांतों में विभाजित किया। प्रत्येक प्राँत एक गवर्नर के अधीन होता था। उसे अमीर अथवा वली कहा जाता था। उसे अनेक शक्तियाँ प्राप्त थीं तथा वह अपने कार्यों के लिए खलीफ़ा के प्रति उत्तरदायी था। प्राँतों को आगे जिलों में विभाजित किया गया था। जिले का अध्यक्ष आमिल कहलाता था। खलीफ़ा उमर ने केंद्रीय राज्यकोष जिसे बैत अल-माल (Bait al-mal) कहा जाता था, को सुदृढ़ करने के लिए अनेक पग उठाए। उसने कृषि में अनेक उल्लेखनीय सुधार किए।

उसने शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक स्कूल खुलवाए। उसने साम्राज्य के विभिन्न भागों में अनेक मस्जिदों का निर्माण भी करवाया। उसने अपनी सेना को भी अच्छी प्रकार संगठित किया था। निस्संदेह खलीफ़ा उमर की उपलब्धियाँ महान् थीं। 3 नवंबर, 644 ई० को खलीफ़ा उमर की मदीना की मस्जिद में नमाज़ पढ़ते समय किसी ने हत्या कर दी। एक अन्य इतिहासकार डॉक्टर माजिद अली खाँ के अनुसार, “उसका खलीफ़ा काल निस्संदेह इस्लाम का स्वर्ण युग था।”

III. उथमान : 644-656 ई०
उथमान मुसलमानों का तीसरा खलीफ़ा था। वह इस पद पर 644 ई० से 656 ई० तक रहा। उसका संबंध उमय्यद वंश के कुरैश परिवार से था। उथमान भी अन्य खलीफ़ाओं की तरह महत्त्वाकांक्षी था। अतः सिंहासन पर बैठते ही उसने सर्वप्रथम इस्लामी साम्राज्य के विस्तार की ओर ध्यान दिया। इस उद्देश्य से उसने अपनी सेना को संगठित किया।

उसने अपने शासनकाल में साइप्रस, खुरासान, काबुल, गज़नी, हेरात, ट्यूनीशिया तथा लीबिया आदि प्रदेशों पर विजय प्राप्त की। उसने प्रजा की भलाई के लिए भी अनेक कार्य किए।

उसने प्रशासन पर अधिक नियंत्रण रखने के उद्देश्य से अपने निकट संबंधियों को राज्य के उच्च पदों पर नियुक्त किया। इससे लोगों में उनके शासन के विरुद्ध असंतोष फैला। परिणामस्वरूप 17 जून, 656 ई० को उथमान की हत्या कर दी गई। डॉक्टर ए० रहीम के अनुसार, “खलीफ़ा उथमान की हत्या इस्लाम के इतिहास की सबसे दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी।

खलीफ़ा उथमान की हत्या के पश्चात् 24 जून, 656 ई० को अली मुसलमानों के चौथे खलीफ़ा बने। वह 661 ई० तक इस पद पर रहे। वह कुरैश कबीले के बानू हाशिम परिवार से संबंधित थे। वह पैगंबर मुहम्मद के चाचा अबू तालिब के पुत्र थे। खलीफ़ा बनने के शीघ्र पश्चात् अली ने अपनी राजधानी मदीना से बदल कर कुफा (Kufa) बना ली। अली के शासनकाल में मुसलमान दो संप्रदायों में विभाजित हो गए। उसके समर्थक शिया कहलाए जबकि उसके विरोधी सुन्नी।

9 दिसम्बर, 656 ई० को अली एवं उसके विरोधियों के मध्य ऊँटों की लड़ाई (Battle of Camels) हुई। इस लड़ाई में अली के विरोधियों का नेतृत्व पैगंबर मुहम्मद की पत्नी आयशा (Aishah) ने किया। इस लड़ाई में यद्यपि अली विजित हुआ किंतु इससे उसकी समस्याएँ कम न हुईं। प्रसिद्ध इतिहासकार पी० के० हिट्टी के अनुसार, “वंशानुगत लड़ाइयों ने जिन्होंने समय-समय पर इस्लाम में उथल-पुथल की तथा जिन्होंने इसकी आधारशिला को हिला दिया था, का आरंभ हुआ।”

अली के शासनकाल में सीरिया का गवर्नर मुआविया (Muawiyah) था। वह उथमान का संबंधी था तथा वह उसकी हत्या के लिए अली को उत्तरदायी समझता था। अली ने उसका दमन करना चाहा। अतः दोनों के मध्य 28 जुलाई, 657 ई० को सिफ्फिन की लड़ाई (Battle of Siffin) हुई। इस लड़ाई में अली पराजित हुआ तथा उसे संधि के लिए बाध्य होना पड़ा।

इस कारण उसके अनुयायी दो धड़ों में बँट गए। एक धड़ा उसके प्रति वफ़ादार रहा। दूसरा धड़ा उसके विरुद्ध हो गया। यह धड़ा खरजी (Kharjis) कहलाया। खरजी धड़े के एक सदस्य द्वारा 24 जनवरी, 661 ई० को कुफा (इराक) की एक मस्जिद में अली की हत्या कर दी गई। इस प्रकार खलीफ़ा अली का दुःखद अंत हुआ।

प्रश्न 5.
उमय्यद वंश के उत्थान एवं पतन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उमय्यद वंश की गणना इस्लाम के इतिहास के महत्त्वपूर्ण राजवंशों में की जाती है। इस वंश की स्थापना 661 ई० में मुआविया ने की थी। इस वंश के शासकों ने 750 ई० तक शासन किया। इस वंश के उत्थान एवं पतन का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है-

I. उमय्यदों का उत्थान

उमय्यदों के उत्थान एवं विकास में निम्नलिखित खलीफ़ों ने प्रशंसनीय योगदान दिया

1. मुआविया 661-680 ई० (Muawiyah 661-680 CE):
उमय्यद वंश का संस्थापक मुआविया था। खलीफ़ा बनने से पूर्व वह सीरिया का गवर्नर था। वह 661 ई० से 680 ई० तक खलीफ़ा के पद पर रहा। जिस समय वह खलीफ़ा बना उस समय उसके समक्ष अनेक चुनौतियाँ थीं। वह एक दृढ़ निश्चय का व्यक्ति था।

अतः उसने इन चुनौतियों का साहसपूर्ण सामना किया। उसने सर्वप्रथम दमिश्क (Damascus) को अपनी राजधानी बनाया। उसने 663 ई० में खरिजाइटों (Kharijites) जिन्होंने खलीफ़ा के विरुद्ध कुफा (Kufa) में विद्रोह कर दिया था, का सख्ती के साथ दमन किया। लगभग इसी समय खलीफ़ा अली के समर्थकों ने इराक में विद्रोह कर दिया।

मुआविया ने एक विशाल सेना भेजकर उनके विद्रोह का दमन किया। 667 ई० में मुआविया के प्रसिद्ध सेनापति उकाबा (Ukaba) ने उत्तरी अफ्रीका के अधिकाँश क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। मुआविया न केवल एक महान् विजेता अपितु एक कुशल शासन प्रबंधक भी सिद्ध हुआ। उसने बाइजेंटाइन साम्राज्य की राजदरबारी रस्मों तथा प्रशासनिक संस्थाओं को अपनाया। उसने खलीफ़ा पद के गौरव में बहुत वृद्धि की। वह प्रथम मुस्लिम शासक था जिसने डाक-व्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार किए।

ऐसा करके उसने साम्राज्य के सभी हिस्सों को एक-दूसरे के साथ जोड़ा। उसने अपराधियों पर नियंत्रण रखने के उद्देश्य से पुलिस विभाग की स्थापना की। उसने न्याय प्रणाली में महत्त्वपूर्ण सुधार किए। उसने राज्य की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से अनेक पग उठाए। उसने एक शक्तिशाली नौसेना का भी गठन किया। प्रोफेसर के० अली के अनुसार, “उसने एक कुशल सरकार का गठन किया तथा अराजकता का कायाकल्प कर एक अनुशासित मुस्लिम समाज की स्थापना की। मुआविया की सफलताओं के कारण उसे मुस्लिम जगत के महान् शासकों में से एक माना जाता है।”

2. याजिद 680-683 ई० (Yazid 680-683 CE):
680 ई० में मुआविया की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र याजिद उसका उत्तराधिकारी बना। मुआविया ने उसे अपने जीवनकाल में ही अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था। वह 683 ई० तक खलीफ़ा के पद पर रहा। उसके खलीफ़ा बनते ही पूर्व खलीफ़ा अली के पुत्र हुसैन (Husayn) ने उसका विरोध किया। अत: उसका सामना करने के लिए याजिद ने उमर-बिन-सेद (Umar bin-Said) के नेतृत्व में 4000 सैनिक भेजे।

दोनों के मध्य 10 अक्तूबर, 680 ई० को करबला की लड़ाई (Battle of Karbala) हुई। इस लड़ाई में हुसैन पराजित हुआ। उसे गिरफ्तार कर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया। इससे शिया मुसलमान उमय्यद वंश के कट्टर विरोधी बन गए। प्रसिद्ध इतिहासकार एलेक्जेंडर पापाडोपोउलो के शब्दों में, “यद्यपि उसकी (हुसैन की) मौत का कम राजनीतिक प्रभाव पड़ा किंतु इसने उसे शिआओं का महान् शहीद बना दिया।”

इस अराजकता का लाभ उठाकर अब्दुल्ला-इब्न-जुबैर (Abdullah-ibn-Zubayr) ने मक्का में अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। उसके भड़काने पर मदीना के लोगों ने भी खलीफ़ा के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। निस्संदेह यह खलीफ़ा की शक्ति के लिए एक गंभीर चुनौती थी। अतः याजिद ने उकबा (Uqbah) के नेतृत्व में 12,000 की सेना मदीना भेजी। इस सेना ने मदीना के विद्रोह का दमन किया। यहाँ तीन दिनों तक भयंकर लूटमार की गई। इसके पश्चात् मक्का को घेरा डाल दिया गया।

इस घेरे के दौरान काबा में आग लग गई। इस कारण मुसलमानों में रोष फैल गया। अतः घेरे को उठा लिया गया। इसके शीघ्र पश्चात् ही याजिद की मृत्यु हो गई। उसका शासनकाल वास्तव में इस्लाम के इतिहास में एक कलंक सिद्ध हुआ।

3. मुआविया द्वितीय एवं मारवान 683-685 ई० (Muawiyah II and Marwan 683-685 CE):
683 ई० में याजिद की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र मुआविया द्वितीय नया खलीफ़ा बना। वह एक नम्र स्वभाव का व्यक्ति था। कुछ माह के शासन के पश्चात् 684 ई० में उसकी मृत्यु हो गई। अतः मारवान को 684 ई० में नया खलीफ़ा बनाया गया। वह मुआविया प्रथम का चचेरा भाई था। उसकी भी एक वर्ष पश्चात् मृत्यु हो गई। अत: उसके शासनकाल को इस्लाम के इतिहास में कोई विशेष महत्त्व प्राप्त नहीं है।

4. अब्द-अल-मलिक 685-705 ई० (Abd-al-Malik 685-705 CE)-अब्द-अल-मलिक की गणना हान् खलीफ़ाओं में की जाती है। वह 685 ई० से 705 ई० तक खलीफा के पद पर रहा। अब्द 17. अल-मलिक ने सर्वप्रथम इराक में अल-मुख्तियार बिन अबू उबैद (Al-Mukhtiar bin Abu Ubayed) के विद्रोह का दमन किया। इसके पश्चात् उसने अपना ध्यान एक अन्य प्रमुख शत्रु इन जुबैर (Ibn Zubayr) की ओर किया। इब्न जुबैर ने मक्का में अपने खलीफ़ा होने की घोषणा कर दी थी।

वह 692 ई० में अब्द-अल-मलिक के साथ हुई एक लड़ाई में मारा गया था। अब्द-अल-मलिक ने बाइजेंटाइन साम्राज्य के अनेक क्षेत्रों पर अधिकार करने में सफलता प्राप्त की। इसके पश्चात् अब्द-अल-मलिक के सेनापति हसन इब्न नूमैन (Hasan Ibn Numan) ने पश्चिमी अफ्रीका के कुछ क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार अब्द-अल-मलिक के शासनकाल में इस्लामी साम्राज्य का खूब विस्तार हुआ। अब्द-अल-मलिक न केवल एक महान् विजेता अपितु एक कुशल शासन प्रबंधक भी था।

उसने इस्लामी साम्राज्य को संगठित करने के लिए अनेक उल्लेखनीय उपाय भी किए। उसने अरबी (Arabic) को राज्य की भाषा घोषित किया। उसने इस्लामी सिक्कों को जारी किया। इनमें सोने के सिक्के को दीनार एवं चाँदी के सिक्के को दिरहम कहा जाता था। ये सिक्के रोमन सिक्के दिनारियस (denarius) तथा ईरानी सिक्के द्राख्या (drachm) की नकल थे। इन सिक्कों पर अरबी भाषा लिखी गई थी। इन सिक्कों पर एक तरफ अब्द-अल-मलिक का नाम तथा उसकी तस्वीर अंकित थी।

इसकी दूसरी तरफ यह लिखा था कि ‘अल्लाह के सिवाय कोई अन्य खुदा नहीं है और अल्लाह का कोई शरीक नहीं है।’ (There is no God but Allah and he had no partner.) अब्द-अल मलिक के ये सिक्के बहुत लोकप्रिय हुए तथा आने वाली कई शताब्दियों तक जारी रहे। उसने साम्राज्य की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से अनेक महत्त्वपूर्ण पग उठाए।

उसे कला से भी बहुत प्यार था। जेरुसलम (Jerusalem) में उसके द्वारा बनवाई गई डोम ऑफ़ दी रॉक (Dome of the Rock) इस्लामी वास्तुकला का प्रथम महत्त्वपूर्ण नमूना है। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर ए० रहीम के शब्दों में, “उसके अधीन अरब साम्राज्य का विस्तार एवं उसकी समृद्धि अपनी चरम सीमा पर थी”

5. वालिद प्रथम 705-715 ई० (Walid I 705-715 CE)—वालिद प्रथम उमय्यद वंश का एक अन्य प्रसिद्ध एवं शक्तिशाली शासक था। वह अब्द-अल-मलिक का पुत्र था। वह 705 ई० में खलीफ़ा के पद पर नियुक्त हुआ था। वह इस पद पर 715 ई० तक रहा। उसने इस्लामी साम्राज्य के विस्तार एवं इसके संगठन में प्रशंसनीय योगदान दिया।

वालिद प्रथम ने सर्वप्रथम मध्य एशिया के अनेक प्रदेशों बुखारा (Bukhara), समरकंद (Samarkand) आदि में इस्लामी झंडा फहराया। 711-12 ई० में वालिद प्रथम के सेनापति मुहम्मद-बिन-कासिम (Muhammad bin-Qasim) ने सिंध के शासक दाहिर को पराजित कर सिंध पर अधिकार कर लिया।

वालिद प्रथम के समय मित्र के गवर्नर मूसा-इन-नूसैर (Musa-ibn-Nusayr) ने पश्चिमी अफ्रीका के अनेक प्रदेशों पर अधिकार करने में सफलता प्राप्त की। 711-12 ई० में वालिद प्रथम के दो सेनापतियों तारिक (Tariq) एवं मूसा (Musa) ने स्पेन पर अधिकार कर लिया। निस्संदेह इसे वालिद प्रथम के शासनकाल की सबसे महत्त्वपूर्ण सफलता माना जाता है।

वालिद प्रथम ने इस्लामी साम्राज्य को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से अनेक प्रजा हितकारी कार्य किए। उसने अनेक सड़कों, अस्पतालों, स्कूलों एवं मस्जिदों का निर्माण करवाया। उसने कृषि तथा व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक उल्लेखनीय पग उठाए। निस्संदेह वालिद प्रथम के शासनकाल ने इस्लाम के इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात किया। अंत में हम प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर के० अली के इन शब्दों से सहमत हैं,

“उसका (वालिद प्रथम का) शासनकाल शाँति एवं खुशहाली का काल था।”20 6. सुलेमान 715-717 ई० (Sulayman 715-717 CE)-715 ई० में वालिद प्रथम की मृत्यु के पश्चात् उसका भाई सुलेमान नया खलीफ़ा बना। वह 717 ई० तक इस पद पर रहा। उसके शासनकाल का इस्लाम के इतिहास में कोई विशेष महत्त्व नहीं है। उसका केवल एक महत्त्वपूर्ण कार्य अपनी मृत्यु से पहले अपने पुत्र उमर द्वितीय को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना था।

7. उमर द्वितीय 717-720 ई० (Umar II 717-720 CE)-उमर द्वितीय 717 ई० से 720 ई० तक खलीफ़ा के पद पर रहा। अपने अल्प शासनकाल में उसने इस्लामी साम्राज्य के विस्तार की अपेक्षा इसके संगठन की ओर विशेष ध्यान दिया। उसने मवालियों (mawalis) के प्रति उदार नीति अपनाई एवं मुसलमानों के बराबर अधिकार दिए।

मवाली वे गैर-अरबी मुसलमान थे जिन्होंने इस्लाम को ग्रहण कर लिया था। उसने इस्लाम के प्रसार के उद्देश्य से इसे ग्रहण करने वाले लोगों को विशेष सुविधाएँ प्रदान की। उसने साम्राज्य में फैले भ्रष्टाचार को दूर किया। उसने लोगों को निष्पक्ष न्याय देने का प्रयास किया। उसने साम्राज्य की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से अनेक महत्त्वपूर्ण पग उठाए। निस्संदेह उमर द्वितीय के शासनकाल को इस्लाम के इतिहास का शाँति काल कहा जा सकता है।

II. उमय्यद वंश का पतन

उमय्यद शासक वंश के पतन के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे।
(1) उमय्यद वंश के कुछ खलीफ़ों को छोड़कर अधिकाँश खलीफ़ों ने प्रशासन की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। अतः ऐसे साम्राज्य का डूबना निश्चित था।

(2) उमय्यद वंश के शासक साम्राज्य के हितों की अपेक्षा अपने स्वार्थी हितों में अधिक व्यस्त रहते थे। ऐसे साम्राज्य के सूर्य को अस्त होने से कोई रोक नहीं सकता था।

(3) उमय्यद शासक गैर-अरबों के साथ बहुत मतभेद करते थे। इससे वे उमय्यद वंश के घोर विरोधी हो गए।

(4) उमय्यद वंश के शासक अपनी सेना को नियमित तन्खवाह न दे सके। इस कारण सैनिक भी अपने शासकों से रुष्ट रहते थे। ऐसा साम्राज्य कभी स्थायी नहीं हो सकता।

(5) शिया वंश के लोग उमय्यदों के कट्टर दुश्मन थे। अत: वे उमय्यदों से बदला लेने के लिए किसी स्वर्ण अवसर की प्रतीक्षा में थे।

(6) उमय्यद साम्राज्य में फैली अराजकता का लाभ उठाते हुए अब्बासियों (Abbasids) ने दवा (dawa) नामक एक सुनियोजित आंदोलन चलाया। इस आंदोलन ने उमय्यद वंश के पतन का डंका बजा दिया।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

प्रश्न 6.
अब्बासी वंश के उत्थान एवं पतन के बारे में आप क्या जानते हैं ? वर्णन कीजिए। उत्तर

I. अब्बासियों का उत्थान

अब्बासियों के उत्थान में निम्नलिखित खलीफ़ों ने उल्लेखनीय योगदान दिया

1. अबू-अल-अब्बास 750-754 ई० (Abu-al-Abbas 750-754 CE) अबू-अल-अब्बास ने 750 ई० में अब्बासी वंश की स्थापना की। जिस समय वह सिंहासन पर बैठा उस समय अरब की राजनीतिक दशा बहुत शोचनीय थी। साम्राज्य के अनेक स्थानों पर विद्रोहियों ने उत्पात मचा रखा था। वे अबू-अल-अब्बास को खलीफ़ा स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। इस कारण नए खलीफ़ा ने सर्वप्रथम अपना ध्यान उमय्यद विद्रोहियों की ओर किया तथा उनका निर्ममता से दमन किया गया। वह इतना क्रूर था कि उसने अल-सफा (Al-Saffah) (रक्तपात करने वाला) की उपाधि धारण की। 754 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

2. अल-मंसूर 754-775 ई० (AI-Mansur 754-775 CE)-754 ई० में अबू-अल-अब्बास की मृत्यु के पश्चात् उसका भाई अल-मंसूर नया खलीफ़ा बना। उसका वास्तविक नाम अबू जफ़र (Abu Jafar) था। उसने अब्बासी वंश को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से अनेक उल्लेखनीय पग उठाए। उसने सर्वप्रथम विद्रोहियों को सबक सिखाया। उसने 762 ई० में बग़दाद (Baghdad) को अब्बासियों की राजधानी घोषित किया। उसने बाइजेंटाइन आक्रमण को भी सफलतापूर्वक रोका। अब्बासी अल-मंसूर ने न केवल अपनी योग्यता से साम्राज्य का विस्तार किया अपितु इसका कुशलतापूर्वक संगठन भी किया।

उसने अपने साम्राज्य को अनेक प्रांतों में विभाजित कि का शासन चलाने के लिए अत्यंत योग्य गवर्नरों को नियुक्त किया गया। उसने शिक्षा को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से साम्राज्य में अनेक शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की। उसे कला से भी बहुत प्यार था। उसने अपनी राजधानी बग़दाद को अनेक महलों, मस्जिदों, भवनों एवं उद्योगों से सुसज्जित किया। उसने अपने दरबार में अनेक विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया। उसने न्याय व्यवस्था को अधिक कुशल बनाया।

उसने कृषि तथा व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए उल्लेखनीय पग उठाए। अल-मंसूर की इन शानदार सफलताओं को देखते हुए उसे ठीक ही अब्बासी साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है। प्रसिद्ध इतिहासकार पी० के० हिट्टी के अनुसार, “अल-मंसूर अब्बासियों के महान् खलीफ़ाओं में से एक था। उसने न कि अल शफा ने नए वंश की सुदृढ़ता से स्थापना की।”

3. अल-महदी 775-785 ई० (AI-Mahdi 775-785 CE)-775 ई० में अल-मंसूर की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र अल महदी अब्बासियों का नया खलीफ़ा बना। वह 785 ई० तक इस पद पर रहा। उसने अपने शासनकाल में लोक भलाई के अनेक कार्य किए। उसने अनेक सड़कों का निर्माण किया। उसने यात्रियों की सुविधा के लिए अनेक कुओं एवं सराओं का निर्माण करवाया। उसने शिक्षा को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से अनेक मकतब एवं मदरसे खुलवाए। उसने गरीबों, अपाहिजों एवं विधवाओं की धन द्वारा सहायता की।

उसने बुजुर्गों के लिए पैंशन निश्चित की। उसने डाक-व्यवस्था का विकास किया। उसने अनेक भवनों एवं मस्जिदों का निर्माण करवाया। उसने कला तथा साहित्य को प्रोत्साहित किया। उसने कृषि तथा व्यापार के विकास के लिए अनेक पग उठाए। उसने सीरिया एवं खुरासान के विद्रोहों का दमन किया। उसने बाइजेंटाइन साम्राज्य के शासक कांस्टैनटाइन छठे (Constantine VI) को पराजित कर उसे एक अपमानजनक संधि करने के लिए बाध्य किया।

4. अल-हादी 785-786 ई० (AI-Hadhi 785-786 CE)-785 ई० में अल-हादी नया खलीफ़ा बना। वह अल-महदी का पुत्र था। वह केवल एक वर्ष तक इस पद पर रहा। उसके शासनकाल का अब्बासियों के इतिहास में कोई विशेष महत्त्व नहीं है।

5. हारुन-अल-रशीद 786-809 ई० (Harun-al-Rashid 786-809 CE) हारुन-अल-रशीद अब्बासियों का सबसे महान् एवं शक्तिशाली खलीफ़ा था। वह खलीफ़ा अल-हादी का छोटा भाई था। वह 786 ई० से 809 ई० तक खलीफ़ा के पद पर रहा। उसने अब्बासी वंश के गौरव को पुनः स्थापित करने के उद्देश्य से अनेक उल्लेखनीय कार्य किए।

उसने अपनी तलवार के बल पर न केवल आंतरिक विद्रोहों का दमन किया अपितु अब्बासी साम्राज्य का दूर-दूर तक विस्तार किया। उसने उस समय के शक्तिशाली फ्रैंक (Frank) शासक शॉर्लमेन (Charlemagne) के साथ मित्रतापूर्वक संबंध स्थापित किए। हारुन-अल-रशीद ने अपने साम्राज्य को संगठित करने के उद्देश्य से प्रशासन में उल्लेखनीय सुधार किए।

उसने प्रजा की भलाई के लिए अनेक पग उठाए। उसने शिक्षा को प्रोत्साहित किया। उसने अनेक प्रसिद्ध विद्वानों, संगीतकारों एवं गायकों को अपने दरबार में संरक्षण प्रदान किया था। उसके शासनकाल में लिखी गई सर्वाधिक प्रसिद्ध पुस्तक एक हजार एक रातें (The Thousand and One Nights) थी। उसने अनेक अस्पतालों एवं सरायों का निर्माण करवाया। उसने अपनी राजधानी में अनेक विशाल महल, भवन, मस्जिदें एवं बाग बनवाए। वह प्रजा के दुःखों को दूर करने के लिए सदैव तैयार रहता था।

वास्तव में उसके शासनकाल में अब्बासी साम्राज्य में इतनी प्रगति हुई कि ‘इसे स्वर्ण युग’ के नाम से स्मरण किया जाता है। निस्संदेह हारुन-अल-रशीद एक महान् शासक था। प्रसिद्ध लेखक प्रोफेसर मासूदुल हसन के अनुसार, “हारुन-अल-रशीद के अधीन अब्बासी राज्य अपनी उन्नति के शिखर पर पहुँच गया था 122 डॉक्टर ए० रहीम के अनुसार, “खलीफ़ा हारुन इतिहास के सर्वाधिक सफल शासकों में से एक था।”

6. अल-अमीन 809-813 ई० (Al-Amin 809-813 CE)-अल-अमीन 809 ई० से 813 ई० तक खलीफ़ा के पद पर रहा। वह एक अयोग्य एवं विलासी खलीफ़ा प्रमाणित हुआ। इसलिए वह जनसाधारण की सहानुभूति खो बैठा था। इस कारण 809 ई० में अल-अमीन एवं उसके भाई अल-मामुन के मध्य गृह-युद्ध आरंभ हो गया। यह गृह-युद्ध 813 ई० तक चलता रहा। इस गृह-युद्ध के अंत में अल-अमीन पराजित हुआ एवं वह मारा गया। इस प्रकार अल-अमीन के यशहीन शासन का अंत हुआ।

7. अल-मामुन 813-833 ई० (AI-Mamun 813-833 CE)-813 ई० में अल-मामुन अब्बासी वंश का नया खलीफ़ा बना। वह 833 ई० तक इस पद पर रहा। वह एक महान् सेनापति एवं योग्य शासक प्रमाणित हुआ। जिस समय वह सिंहासन पर बैठा उस समय अब्बासी साम्राज्य के चारों ओर अराजकता एवं विद्रोह का वातावरण था। अल-मामुन इन समस्याओं से घबराने वाला व्यक्ति नहीं था। उसने ईरान, मिस्र, सीरिया, अर्मीनिया, खुरासान एवं यमन में खिलाफ़त के विरुद्ध उठने वाले विद्रोहों का दमन किया।

उसने बाइजेंटाइन साम्राज्य के विरुद्ध अपनी सेना का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। उसने अपने साम्राज्य में शाँति स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। उसने प्रजा की भलाई के लिए अनेक पग उठाए। अत: उसके शासनकाल में प्रजा बहुत खुशहाल थी। उसने सभी धर्मों के प्रति सहनशीलता की नीति अपनाई। उसे कला एवं साहित्य से बहुत प्यार था। उसके दरबार में अनेक प्रसिद्ध कवियों, इतिहासकारों एवं विद्वानों ने उसके नाम को चार चाँद लगाए।

8. बाद के खलीफ़े (Later Caliphs)-अल-मामुन की मृत्यु के साथ ही अब्बासी राजवंश का पतन आरंभ हो गया था। इसका कारण यह था कि उसके पश्चात् आने वाले सभी खलीफ़े अल-वथिक (al-Wathiq), अल-मुतव्वकिल (al-Mutawakkil) तथा मुनतासिर (Muntasir) आदि सभी अयोग्य एवं निकम्मे निकले। अब्बासी वंश का अंतिम खलीफ़ा अल-मुस्तासिम (al-Mustasim) था। 1258 ई० में चंगेज़ खाँ के पोते हुलेगू (Hulegu) ने बग़दाद पर आक्रमण कर अब्बासी राजवंश का अंत कर दिया।

II. अब्बासी वंश का पतन

अब्बासी वंश के खलीफ़ों ने 750 ई० से 1258 ई० तक शासन किया। इस वंश के पतन के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे–
(1) अल-मामुन के सभी उत्तराधिकारी अयोग्य एवं निकम्मे निकले। उन्होंने प्रशासन की ओर अपना ध्यान नहीं दिया। ऐसे साम्राज्य का पतन निश्चित था

(2) 9वीं शताब्दी में बग़दाद का दूर के प्रांतों पर नियंत्रण कम हो गया। इससे विद्रोहों को प्रोत्साहन मिला। परिणामस्वरूप अब्बासी साम्राज्य में अराजकता फैली।

(3) 9वीं शताब्दी में अब्बासी साम्राज्य में अनेक गुटों एवं छोटे-छोटे राजवंशों का उदय हो गया था। इनकी आपसी लड़ाइयाँ अब्बासी साम्राज्य के लिए घातक सिद्ध हुईं।

(4) अब्बासी खलीफ़ों ने अपनी सेना को शक्तिशाली बनाने की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। ऐसे साम्राज्य के पतन को भला कौन रोक सकता था।

(5) अरबों एवं गैर-अरबों के मध्य चलने वाले लगातार संघर्ष ने अब्बासी साम्राज्य को खोखला बना दिया।

(6) अब्बासी खलीफ़ों ने अपनी विलासिता के लिए लोगों पर भारी कर लगा दिए। इससे लोगों में असंतोष फैला एवं वे उनके विरुद्ध हो गए।

प्रश्न 7.
मध्यकालीन इस्लामी दुनिया की अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ क्या थीं ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन इस्लामी दुनिया की अर्थव्यवस्था काफी अच्छी थी। इस काल में मुसलमानों ने अनेक नए क्षेत्रों को अपने अधीन कर लिया था। इन क्षेत्रों की भूमि बहुत उपजाऊ थी। अतः कृषि को बहुत प्रोत्साहन मिला।

इस काल में अनेक उद्योग धंधों ने बहुत उन्नति कर ली थी। इससे वाणिज्य एवं व्यापार को एक नई दिशा मिली। उमय्यद एवं अब्बासी खलीफ़ों ने एक सुदृढ़ अर्थव्यवस्था को स्थापित करने के उद्देश्य से अनेक प्रशंसनीय पग उठाए। निस्संदेह इससे लोगों का आर्थिक जीवन बहुत समृद्ध हुआ।

1. कृषि (Agriculture)—मध्यकाल में इस्लामी साम्राज्य के लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था। उमय्यद एवं अब्बासी खलीफ़ों ने कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए अथक प्रयास किए। उन्होंने सिंचाई साधनों का विकास, किया।

उन्होंने साम्राज्य के अनेक भागों में बाँधों, नहरों एवं कुओं का निर्माण किया। उन्होंने उन किसानों को भू-राजस्व एवं अन्य करों में रियायत दी जो कृषि के अधीन नयी भूमि को लाते थे। कृषि भूमि पर राज्य का सर्वोपरि नियंत्रण होता था। राज्य द्वारा भू-राजस्व निश्चित किया जाता था एवं इसे एकत्र किया जाता था। अरबों ने जिन नए ।

प्रदेशों को जीता था उन प्रदेशों में जहाँ भूमि गैर-मुसलमानों के हाथों में रही वहीं उन्हें खराज कर देना पड़ता था। यह पैदावार के अनुसार 20% से लेकर 50% होता था। जो कृषि योग्य भूमि मुसलमानों के अधीन होती थी उस पर उन्हें 10% भू-राजस्व कर देना पड़ता था। इस भेदभाव के चलते अनेक गैर-मुसलमानों ने इस्लाम को ग्रहण कर लिया था।

इससे राज्य की आय कम हो गयी। इस स्थिति से निपटने के लिए खलीफ़ाओं ने पहले धर्मांतरण को निरुत्साहित किया एवं बाद में भू-राजस्व की दर एक समान कर दी।

उत्तरी अफ्रीका, उत्तरी इराक, सीरिया एवं मिस्त्र के मैदान अनाज की भरपूर पैदावार के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। अरब एवं इराक खजूरों की पैदावार के लिए विख्यात थे। इस काल में अनेक नयी फ़सलों जैसे कपास, नील, आम, संतरा, केला, तरबूज, पालक (spinach) तथा बैंगन (brinjals) का उत्पादन आरंभ किया गया। इन फ़सलों को यूरोप में निर्यात किया जाता था।

2. उद्योग (Industries)-उमय्यद एवं अब्बासी खलीफ़ों के शासनकाल में उद्योग के क्षेत्र में बहुमुखी विकास हुआ। उस समय समरकंद (Samarkand) कागज़ उद्योग के लिए विशेष रूप से विख्यात था। उस समय बग़दाद काँच के सामान, आभूषण तथा रेशम उद्योग के लिए प्रसिद्ध था। बुखारा दरियों के उद्योग के लिए, दमिश्क इस्पात उद्योग के लिए, कुफा रेशम उद्योग के लिए, कोरडोबा (Cordoba) चमड़ा उद्योग के लिए प्रसिद्ध केंद्र थे। इनके अतिरिक्त उस समय आभूषण, सूती एवं ऊनी वस्त्र, फर्नीचर एवं दैनिक उपयोग की अन्य वस्तुओं के उद्योग भी स्थापित थे।

3. वाणिज्य एवं व्यापार (Trade and Commerce)–अरबों का आंतरिक एवं विदेशी व्यापार दोनों उन्नत थे। आंतरिक व्यापार के लिए मुख्यतः ऊँटों का प्रयोग किया जाता था। इनके अतिरिक्त घोड़ों एवं गधों का भी प्रयोग किया जाता था। विदेशी व्यापार जल एवं स्थल दोनों मार्गों से किया जाता था। अरबी साम्राज्य के यूरोप, अफ्रीका, भारत एवं चीन के देशों के साथ अच्छे व्यापारिक संबंध थे। पाँच शताब्दियों तक अरबी एवं ईरानी व्यापारियों का समुद्री व्यापार पर एकाधिकार रहा।

उस समय व्यापार के लिए लाल सागर, फ़ारस की खाड़ी एवं रेशम मार्ग प्रसिद्ध थे। रेशम मागे चीन से भारत होता हुआ बगदाद तक जाता था। अरबी व्यापारी विदेशों का कागज़, सूती एवं ऊनी वस्त्र, काँच का सामान, चीनी, खजूर एवं बारूद का निर्यात करते थे। इनके बदले वे विदेशों से रेशम, चाय, गर्म 1, सोना, विलासिता का सामान, हाथी दाँत एवं गुलामों का आयात करते थे। उस समय व्यापार संतुलन इस्लामी साम्राज्य के पक्ष में था।

4. शहरीकरण (Urbanization)-इस्लामी साम्राज्य के विस्तार, कृषि एवं उद्योगों के विकास ने शहरीकरण की प्रक्रिया को तीव्र किया। अत: अनेक नए शहर अस्तित्व में आए । इन शहरों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य अरब सैनिकों को बसाना था। ये सैनिक स्थानीय प्रशासन चलाने एवं उनकी पुरक्षा में प्रमुख भूमिका निभाते थे।

इन फ़ौजी शहरों को मिस्त्र (misr) कहा जाता था। इन शहरों में इराक में स्थित कुफा, बसरा एवं बग़दाद, मिस्र में स्थित काहिरा एवं फुस्तात एवं स्पेन में स्थित कोरडोबा नामक शहर प्रसिद्ध थे। ये सभी शहर व्यापार के प्रसिद्ध केंद्र थे। एक शहर का दूसरे शहर के साथ परस्पर संपर्क स्थापित किया गया था। इससे व्यापार को बहुत प्रोत्साहन मिला।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

प्रश्न 8.
सूफ़ी मत से आपका क्या अभिप्राय है ? इसकी प्रमुख शिक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:

I. सूफ़ी मत से अभिप्राय

मध्यकाल में इस्लाम में धार्मिक विचारों वाले लोगों का एक नया समूह अस्तित्व में आया जिसे सूफी कहा जाता था। सूफ़ी शब्द से क्या अभिप्राय है इससे संबंधित विद्वानों के विचारों में विभिन्नता है। कुछेक विद्वानों के विचारानुसार उनको सूफ़ी इसलिए कहा जाता था, क्योंकि वे साफ़ (शुद्ध) हृदय वाले थे। कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार उनको सूफ़ी इसलिए कहा जाता था क्योंकि परमात्मा के दरबार में वे प्रथम सफ़ (पंक्ति) में खड़े होते थे।

II. सूफ़ी मत की शिक्षाएँ

सूफी मत की प्रमुख शिक्षाएँ निम्नलिखित अनुसार हैं

1. अल्लाह एक है (Unity of Allah)-सूफ़ियों के अनुसार परमात्मा एक है जिसको वे अल्लाह कहते हैं। वह सर्वोच्च, शक्तिशाली तथा सर्वव्यापक है। प्रत्येक स्थान पर उसका आदेश चलता है तथा कोई भी उसकी आज्ञा के विरुद्ध नहीं जा सकता। वह प्रत्येक स्थान पर उपस्थित है। वह अमर है तथा आवागमन के चक्करों से मुक्त है। वह ही इस सृष्टि का रचयिता, इसकी सुरक्षा करने वाला तथा इसको नष्ट करने वाला है। इन कारणों से सूफी एक अल्लाह के अतिरिक्त किसी अन्य की पूजा नहीं करते हैं।

2. पूर्ण आत्म-त्याग (Complete Self-surrender)-अल्लाह के समक्ष पूर्ण आत्म-त्याग सूफ़ी मत के प्रमुख सिद्धांतों में से एक है। उनके अनुसार प्रत्येक सूफ़ी को साँसारिक मोह-माया तथा अपनी इच्छाओं को मिटाकर स्वयं को अल्लाह के समक्ष समर्पित कर देना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य उस अल्लाह की दया प्राप्त कर सकता है तथा उसके बिगड़े हुए कार्य ठीक हो सकते हैं।

3. पीर (Pir)-सूफी मत में पीर या गुरु को सर्वाधिक महत्त्व दिया जाता है। वह अपने मुरीदों की रूहानी उन्नति पर पूर्ण दृष्टि रखता है, ताकि वे इस भवसागर से पार हो सकें तथा अल्लाह के साथ एक हो सकें। एक सच्चा पीर जो स्वयं साँसारिक लगाव से दूर हो तथा जिसने रूहानी ज्ञान प्राप्त कर लिया हो, वह ही अपने शिष्यों को अंधकार से ज्योति की ओर ले जा सकता है।

4. इबादत (Worship)-सूफ़ी अल्लाह की इबादत (पूजा) पर जोर देते हैं। उनके अनुसार मात्र अल्लाह की इबादत करने से ही मनुष्य इस संसार से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। उनके अनुसार अल्लाह की इबादत नमाज़ द्वारा, रोज़े रखकर, दान करके तथा मक्का की यात्रा करके की जा सकती है। मनुष्य को शुद्ध हृदय से अल्लाह की इबादत करनी चाहिए।

5. नमाज़ (Prayer) सूफ़ियों के अनुसार नमाज़ पढ़ना मनुष्य का सर्वोत्तम कर्त्तव्य है। इसके द्वारा मनुष्य अपनी आत्मा की आवाज़ परमात्मा तक पहुँचा सकता है। ऐसी नमाज़ सच्चे हृदय से पढ़ी जानी चाहिए। अशुद्ध हृदय से पढ़ी गयी नमाज को पूर्ण रूप से व्यर्थ बताया गया है तथा कुरान में ऐसे व्यक्ति की कड़े शब्दों में आलोचना की गई है।

6. रोजे रखना (Fasting)-सूफ़ी रोज़े रखने में विश्वास रखते थे। ऐसा करने वाले व्यक्ति की आत्मा शुद्ध होती है। रोज़ा रखने से अभिप्राय मात्र खाने-पीने की वस्तुओं से परहेज़ करने को ही नहीं, बल्कि प्रत्येक प्रकार की बुराइयों से दूर रहने के लिए कहा गया है।

7. दान (Charity)-संसार के समस्त धर्मों में दान देने के संबंध में प्रचार किया गया है, परंतु सूफ़ी धर्म वालों ने इसको आवश्यक माना है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए जिसकी अपनी आवश्यकता से अधिक आय है को कुछ भाग दान देना आवश्यक है। ऐसा एकत्रित किया गया धन निर्धनों तथा ज़रूरतमंद लोगों में बाँटा जाता है। मनुष्यों से सहानुभूति करने को दान का ही एक भाग समझा गया है। कुरान में निर्धनों की सेवा करने तथा गुलामों को आज़ाद करने को बहुत अच्छा बताया गया है।

8. मक्का की यात्रा (Pilgrimage to Mecca)-मक्का की यात्रा करने को सूफ़ी विशेष महत्त्व देते हैं। सत्य हृदय से की गई इस यात्रा से मनुष्य इस संसार से मुक्ति प्राप्त कर सकता है तथा उसके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं।

9. भक्ति संगीत (Devotional Music)-सूफ़ी भक्ति संगीत पर बहुत जोर देते हैं। उनका यह पूर्ण विश्वास है कि भक्ति संगीत मानवीय हृदयों में अल्लाह के प्रति प्रेम उत्पन्न करता है। इसके प्रभाव के कारण मनुष्य के बुरे विचार नष्ट हो जाते हैं तथा वह अल्लाह के समीप पहुँच जाता है। सूफ़ियों की धार्मिक संगीत सभाओं को समा कहा जाता है।

10. मानवता से प्रेम (Love of Mankind)-मानवता की सेवा करना सूफ़ी अपना परम कर्त्तव्य मानते हैं। इससे संबंधित वे मनुष्यों के बीच किसी जाति-पाति, रंग या नस्ल आदि का भेदभाव नहीं करते। उनके अनुसार सभी मनुष्य एक ही अल्लाह की संतान हैं। इसलिए उनके बीच किसी प्रकार का भेदभाव करना । का अपमान करना है।

प्रश्न 9.
केंद्रीय इस्लामी प्रदेशों में साहित्य के विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकाल में केंद्रीय इस्लामी देशों ने साहित्य के क्षेत्र में अद्वितीय प्रगति की। अनेक लेखकों ने साहित्य के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया। कुछ महत्त्वपूर्ण लेखकों के योगदान का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. इन सिना (Ibn Sina)—इब्न सिना मध्य काल अरब का एक महान् दार्शनिक एवं चिकित्सक था। उसे यूरोप में एविसेन्ना (Avicenna) के नाम से जाना जाता था। उसका जन्म 980 ई० में बुखारा में हुआ था। इब्न सिना ने चिकित्सा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। उसकी रचना अल-कानून-फिल-तिब (al-Qanun fil-Tibb) विश्व में बहुत लोकप्रिय हुई। इसमें चिकित्सा सिद्धांतों पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है।

इसमें इब्न सिना के प्रयोगों एवं अनुभवों की जानकारी दी गई है। इस पुस्तक का प्रयोग यूरोप में अनेक वर्षों तक एक प्रमाणिक पाठ्य-पुस्तक के रूप में किया जाता रहा है। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर के० अली के अनुसार, “इब्न सिना की कानून’ कई शताब्दियों तक चिकित्सा की बाईबल रही।”24

2. अबू नुवास (Abu Nuwas)—अबू नुवास खलीफ़ा हारुन-अल-रशीद का प्रसिद्ध दरबारी कवि था। उसने दरबारी जीवन पर अनेक कविताएँ लिखीं। उसने शराब एवं प्रेम जैसे नए विषयों को छुआ। उसकी कविताओं में ईरानी कवियों की छाप देखी जा सकती है। उसे आधुनिक अरबी कविता का एक महान् कवि माना जाता है।

3. रुदकी (Rudki)-रुदकी समानी दरबार का एक महान् कवि था। उसे नयी फ़ारसी कविता का जनक माना जाता है। वह प्रथम कवि था जिसने ग़ज़ल (lyrical poems) एवं रुबाइयाँ (quatrains) लिखीं। रुबाई चार पंक्तियों वाले छंद को कहते हैं। इसका प्रयोग प्रियतम के सौंदर्य का वर्णन करने, संरक्षक की प्रशंसा करने एवं दार्शनिक विचारों का वर्णन करने के लिए किया जाता है।

4. उमर खय्याम (Umar Khayyam)-उमर खय्याम एक महान् कवि, खगोल वैज्ञानिक एवं गणितज्ञ था। उसका जन्म 1048 ई० में निशापुर (Nishapur) जो कि सल्जुक साम्राज्य की राजधानी थी, में हुआ। उमर खय्याम की गणना विश्व के प्रसिद्ध फ़ारसी कवियों में की जाती है। उसकी रुबाइयों ने लोगों के दिलों पर जादुई प्रभाव छोड़ा। इसी कारण आज विश्व की अनेक भाषाओं में उसकी रुबाइयों का अनुवाद किया जा चुका है। उसने गणित एवं खगोल विज्ञान के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। उसने रिसाला (Risala) नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की।

5. फिरदौसी (Firdausi) फिरदौसी महमूद गज़नवी का सर्वाधिक प्रसिद्ध फ़ारसी का दरबारी कवि था। उसका जन्म 950 ई० में खरासान में हुआ था। उसने 30 वर्ष की अथक मेहनत के पश्चात् शाहनामा (Shahnama) नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की। इसमें 60,000 पद दिए गए हैं। इसे इस्लामी साहित्य की एक सर्वश्रेष्ठ कृति माना जाता है। इसमें प्रारंभ से लेकर अरबों की विजय तक ईरान के इतिहास का काव्यात्मक शैली में वर्णन किया गया है। फिरदौसी के काव्य क्षेत्र में दिए गए उल्लेखनीय योगदान के कारण उसे ठीक ही ‘फ़ारस का होमर’ (Homer of Persia) कहा जाता है।

6. एक हजार एक रातें (The Thousand and One Nights)—यह अनेक प्रसिद्ध कहानियों का संग्रह है। इन कहानियों को अनेक लेखकों द्वारा विभिन्न समयों में लिखा गया था। यह संग्रह मूल रूप से भारतीय-फ़ारसी भाषा में था। दसवीं शताब्दी में इसका अनुवाद अरबी भाषा में बग़दाद में किया गया था। इन कहानियों को शहरज़ाद (Shahrzad) द्वारा अपने पति को हरेक रात को एक-एक करके सुनाया गया था।

इस कारण इस संग्रह को अरबी रातें (The Arabian Nights) के नाम से भी जाना जाता है। बाद में मामलुक काल में इसमें और कहानियाँ जोड़ दी गईं। इन कहानियों को मनुष्य को शिक्षा देने एवं मनोरंजन करने के उद्देश्य से लिखा गया था। ये कहानियाँ अरबी साहित्य में प्रमुख स्थान रखती हैं।

अल-जद्रीज (AIL Iahim) अल-जहीज़ बसरा का एक प्रसिद्ध लेखक था। वह यनानी दर्शन से बहत प्रभावित था। उसने विभिन्न विषयों पर अनेक पुस्तकें लिखीं। इन पुस्तकों में किताब-अल-बखाला (Kitab-al Bukhala) एवं किताब-अल-हैवान (Kitab-al-Hayawan) सर्वाधिक प्रसिद्ध थीं। प्रथम पुस्तक में कंजूसों की कहानियाँ दी गई हैं तथा लालच के बारे में बताया गया है। द्वितीय पुस्तक में जानवरों की कहानियाँ दी गई हैं। इसके अतिरिक्त इसमें अरबी परंपराओं एवं अंध-विश्वासों का वर्णन किया गया है। अल-जहीज़ के लेखों ने आने वाले लेखकों पर गहन प्रभाव डाला है।

8. ताबरी (Tabari)—ताबरी की गणना अरब के महान् इतिहासकारों में की जाती है। उसकी तारीख-अल रसूल वल मुलक (Tarikh-al-Rasul Wal Muluk) एक अमर रचना है। इसमें उसने संसार की रचना से लेकर 915 ई० तक समूचे मानव इतिहास का वर्णन किया है। इसमें उसने इस्लामी धर्म प्रचारकों एवं राजाओं के इतिहास का विशेष वर्णन किया है। ताबरी ने अपनी पुस्तक में क्रमानुसार घटनाओं का वर्णन किया है। अतः इसे अरबी इतिहास की सबसे प्रामाणिक पुस्तक माना जाता है।

9. अल्बरुनी (Alberuni)-अल्बरुनी ग्यारहवीं शताब्दी का एक महान् विद्वान् एवं इतिहासकार था। उसका जन्म 973 ई० में खीवा (Khiva) में हुआ था। उसने खगोल विज्ञान, गणित, भूगोल, दर्शन, इतिहास एवं धर्म का गहन अध्ययन किया था। जब महमूद गजनवी ने 1017 ई० में खीवा पर विजय प्राप्त की तो अल्बरुनी को बंदी बना लिया गया।

अल्बरुनी को गज़नी लाया गया। उसकी प्रतिभा से प्रभावित होकर महमूद गजनवी ने उसे अपने दरबार का रत्न बनाया। वह महमूद गज़नवी के भारतीय आक्रमणों के समय उसके साथ भारत आया। भारत में उसने जो कुछ अपनी आँखों से देखा उसके आधार पर उसने एक बहुमूल्य पुस्तक तहकीक-मा-लिल हिंद (Tahqiq ma-lil Hind) की रचना की।

इसे तारीख-ए-हिंद (Tarikh-i-Hind) के नाम से भी जाना जाता है। इसे अरबी भाषा में लिखा गया था। यह 11वीं शताब्दी के भारतीय इतिहास को जानने के लिए हमारा एक विश्वसनीय एवं प्रमाणिक स्रोत है। उसके इस बहुमूल्य योगदान के कारण भारतीय इतिहास में उसे सदैव स्मरण किया जाता रहेगा। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर जे० एस० मिश्रा के अनुसार, “तहकीक-मा-लिल हिंद उसके (अल्बरुनी) महान् कार्यों में से एक था, जिसमें उसने भारतीय विषयों जैसे विज्ञान, गणित, भूगोल, दर्शन, इतिहास एवं धर्म का बहुत स्पष्ट ढंग से वर्णन किया है।”

प्रश्न 10.
धर्मयुद्धों के बारे में आप क्या जानते हैं ? इनके क्या परिणाम निकले ? .
उत्तर:
मध्यकालीन विश्व इतिहास में धर्मयुद्धों को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। ये धर्मयुद्ध यूरोपीय ईसाइयों एवं मुसलमानों के मध्य 1096 ई० से 1272 ई० के मध्य लड़े गए। इन धर्मयुद्धों की कुल संख्या 8 थी। इन धर्मयुद्धों का उद्देश्य ईसाइयों द्वारा अपनी पवित्र भूमि जेरुसलम (Jerusalem) को मुसलमानों के आधिपत्य से मुक्त करवाना था। इन धर्मयुद्धों के दूरगामी परिणाम निकले।

ईसाइयों एवं मुसलमानों के मध्य धर्मयुद्धों के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. अरबों द्वारा जेरुसलम पर अधिकार (Occupation of Jerusalem by the Arabs)—जेरुसलम ईसा मसीह के जीवन से संबंधित था। इसलिए यह ईसाइयों के लिए बहुत पवित्र भूमि थी। 638 ई० में अरबों ने जेरुसलम पर अधिकार कर लिया था। ईसाइयों के लिए इसे सहन करना कठिन था। अत: वे इसे वापस प्राप्त करने के लिए किसी स्वर्ण अवसर की तलाश में थे।

2. सल्जुक तुर्कों के ईसाइयों पर अत्याचार (Atrocities of Saljuk Turks on Christians)-सल्जुक तुर्कों ने 1071 ई० में जेरुसलम पर अपना अधिकार कर लिया था। वे कट्टर सुन्नी मुसलमान थे। अत: वे अपने साम्राज्य में ईसाई धर्म की उन्नति को सहन नहीं कर सकते थे। अतः उन्होंने ईसाइयों पर घोर अत्याचार शुरू कर दिए। जेरुसलम में रहने वाले ईसाइयों पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगा दिए गए। ईसाइयों को तलवार के बल पर इस्लाम धर्म में सम्मिलित किया जाता।

इस्लाम धर्म स्वीकार न करने वाले ईसाइयों को अनेक प्रकार के कर देने के लिए बाध्य किया गया। निस्संदेह इससे स्थिति विस्फोटक हो गई। डॉक्टर एफ० सी० कौल एवं डॉक्टर एच० जी० वारेन के अनुसार, “इस प्रकार सल्जुक तुर्कों को जंगली जानवर समझा जाने लगा जिससे पवित्र शहर (जेरुसलम) को मुक्त करवाना आवश्यक समझा गया।”26

3. तात्कालिक कारण (Immediate Cause)-ईसाइयों का खून मुसलमानों से बदला लेने के लिए खौल रहा था। वास्तव में युद्ध के लिए बारूद पूर्ण रूप से तैयार था। उसे केवल एक चिंगारी दिखाने की आवश्यकता थी। 1092 ई० में सल्जुक सुलतान मलिक शाह की मृत्यु के पश्चात् उसके साम्राज्य का विखंडन आरंभ हो गया। बाइजेंटाइन सम्राट् एलेक्सियस प्रथम (Alexius I) ने यह स्वर्ण अवसर देख कर जेरुसलम एवं अन्य क्षेत्रों पर अधिकार करने की योजना बनाई।

इस उद्देश्य से उसने पोप अर्बन द्वितीय (Pope Urban II) को सहयोग देने की अपील की। पोप अर्बन द्वितीय इसके लिए तुरंत तैयार हो गया। ऐसा करके वह अपने प्रभाव में वृद्धि करना चाहता था। उसने 26 नवंबर, 1095 ई० को फ्रांस के क्लेयरमांट (Clermont) नामक नगर में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया। इसमें उसने ईसा मसीह के पवित्र स्थान जेरुसलम की रक्षा के लिए समस्त ईसाइयों को धर्मयुद्ध में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित किया।

I. प्रथम धर्मयुद्ध : 1096-1099 ई०

प्रथम धर्मयुद्ध का आरंभ 1096 ई० में हुआ। पोप अर्बन द्वितीय के भाषण से उत्तेजित होकर लगभग 70 हजार धर्मयोद्धा (Crusaders) पीटर दा हरमिट (Peter the Hermit) के नेतृत्व में जेरुसलम को मुसलमानों से मुक्त कराने के लिए चल पड़े। इन धर्मयोद्धाओं ने कुंस्तुनतुनिया (Constantinople) पर आक्रमण कर वहाँ लूटमार आरंभ कर दी।

तुर्क मुसलमानों ने जो कि अत्यधिक संगठित थे ने, अधिकाँश धर्मयोद्धाओं को मौत के घाट उतार दिया। इसी दौरान फ्राँस, जर्मनी एवं इटली के शासकों ने एक विशाल सेना गॉडफ्रे (Godfrey) के नेतृत्व में जेरुसलम की ओर रवाना की। इन सैनिकों ने एडेस्सा (Edessa) एवं एंटीओक (Antioch) पर अधिकार कर लिया।

उन्होंने 15 जुलाई, 1099 ई० में जेरुसलम पर अधिकार कर लिया। निस्संदेह यह उनकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण सफलता थी। जेरुसलम पर अधिकार करने के पश्चात् धर्मयोद्धाओं ने बड़ी संख्या में मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया। इसके साथ ही प्रथम धर्मयुद्ध का अंत हो गया। गॉडफ्रे को जेरुसलम का शासक घोषित कर दिया गया।

इस प्रदेश को आउटरैमर (Outremer) भाव समुद्रपारीय भूमि का नाम दिया गया। ए० जे० ग्रांट एवं डी० पी० जे० फिंक के अनुसार, “प्रथम धर्मयुद्ध प्रत्येक पक्ष से सबसे महान् एवं सर्वाधिक सफल था।”

II. द्वितीय धर्मयुद्ध : 1147-1149 ई०

मुसलमानों ने 25 दिसंबर, 1144 ई० को एडेस्सा (Edessa) पर अधिकार कर लिया। इसके पश्चात् मुसलमानों ने इस नगर में भयंकर लूटमार की। एडेस्सा का पतन निस्संदेह धर्मयोद्धाओं के लिए एक घोर अपमान की बात थी। इससे संपूर्ण यूरोप में मुसलमानों के विरुद्ध एक रोष लहर फैल गई। संत बर्नार्ड (St. Bernard) ने जेरुसलम की सुरक्षा के लिए धर्मयोद्धाओं में एक नई स्फूर्ति का संचार किया।

इससे द्वितीय धर्मयुद्ध के लिए विस्फोट तैयार हो गया। इस धर्मयुद्ध में फ्रांस के शासक लुई सप्तम (Louis VII) एवं जर्मनी के शासक कोनार्ड तृतीय (Conard III) ने हिस्सा लिया। दोनों शासकों की संयुक्त सेनाएँ 1147 ई० में सीरिया की ओर चल पड़ी।

इससे द्वितीय धर्मयुद्ध आरंभ हो गया। ये सैनिक एंटीओक (Antioch) पहुँचे। यहाँ दमिशक (Damascus) को घेरा डालने का निर्णय किया गया। यह घेरा कई माह तक चलता रहा। इस समय के दौरान जर्मनी एवं फ्रांस के शासकों के मध्य गहरे मतभेद उत्पन्न हो गए। परिणामस्वरूप उनके सैनिक वापस लौट गए एवं द्वितीय धर्मयुद्ध विफल हो गया। प्रसिद्ध इतिहासकारों एफ० सी० कौल एवं एच० जी० वारेन का यह कहना ठीक है कि, “द्वितीय धर्मयुद्ध बिना कुछ प्राप्त किए समाप्त हो गया सिवाए इसके कि इसने व्यक्तिगत लालच एवं असमर्थता प्रकट की। 28

III. तृतीय धर्मयुद्ध 1189-1192 ई०

1171 ई० में सलादीन (Saladin) ने मिस्र में सत्ता हथिया ली थी। उसकी सबसे महत्त्वपूर्ण सफलता 1187 ई० में जेरुसलम पर अधिकार करना था। जेरुसलम पर अधिकार से संपूर्ण ईसाई जगत् में तहलका फैल गया। अतः यूरोप के ईसाइयों ने जेरुसलम पर पुनः अधिकार करने का निर्णय किया। इस उद्देश्य से जर्मनी के सम्राट फ्रेडरिक बारबरोसा (Fraderick Barbarosa),

फ्रांस के सम्राट फिलिप ऑगस्ट्स (Philip Augustus) तथा इंग्लैंड के सम्राट रिचर्ड (Richard) ने संयुक्त रूप से आक्रमण करने का निर्णय किया। अतः उन्होंने 1189 ई० में तीसरे धर्मयुद्ध की घोषणा कर दी। किंतु उन्हें कोई विशेष सफलता नहीं मिली। अंत बाध्य होकर रिचर्ड ने 1192 ई० में सलादीन के साथ समझौता कर लिया। इस समझौते के अधीन सलादीन ने ईसाइयों को जेरुसलम में उपासना की आज्ञा दे दी। प्रसिद्ध लेखक पी० एस० फ्राई के अनुसार, “यह सलादीन की उदारता का प्रतिरूप था।”

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

IV. अन्य धर्मयुद्ध 1202-72 ई०

1202 ई० से 1272 ई० के मध्य ईसाइयों एवं यूरोपियों के मध्य पाँच अन्य धर्मयुद्ध हुए। चौथा धर्मयुद्ध 1202 ई० से 1204 ई०, पाँचवां धर्मयुद्ध 1216 ई० से 1220 ई०, छठा धर्मयुद्ध 1228 ई०, सातवां धर्मयुद्ध 1249 ई० से 1254 ई० एवं आठवां धर्मयुद्ध 1270 ई० से 1272 ई० के मध्य हुआ। इन धर्मयुद्धों के दौरान ईसाइयों को बहुत कम सफलताएँ मिलीं। अंततः वे अपने उद्देश्यों में विफल रहे। 1291 ई० में मिस्त्र के शासकों ने पूर्ण रूप से ईसाइयों को फिलिस्तीन से बाहर निकालने में सफलता प्राप्त की।

V. धर्मयुद्धों के परिणाम

धर्मयोद्धा पवित्र भूमि जेरुसलम पर अधिकार करने में विफल रहे किंतु इसके दूरगामी परिणाम निकले।

  • धर्मयुद्धों के कारण पोप की प्रतिष्ठा एवं गौरव में बहुत वृद्धि हुई।
  • धर्मयुद्धों के कारण सामंतों की शक्ति का पतन हुआ एवं राजाओं की शक्ति में वृद्धि हुई।
  • धर्मयुद्धों के दौरान मुसलमानों एवं ईसाइयों ने एक-दूसरे के क्षेत्रों में भारी लूटमार की। इससे दोनों समुदायों के मध्य नफ़रत की भावना फैली।
  • धर्मयुद्धों में यूरोपीय स्त्रियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस कारण उनकी स्थिति में सुधार आया एवं उनका दृष्टिकोण विशाल हुआ।
  • धर्मयुद्धों के कारण सामंतों के प्रभाव में कमी आई। इससे लोगों को उनके अत्याचारों से छुटकारा मिला।
  • धर्मयुद्धों के कारण यूरोपियों के ज्ञान में बहुत वृद्धि हुई। वे मुस्लिम नगरों एवं विज्ञान के क्षेत्रों में हुई प्रगति को देखकर चकित रह गए।
  • धर्मयुद्धों के कारण पश्चिम एवं पूर्व के मध्य व्यापार को एक नया प्रोत्साहन मिला।
  • व्यापार के विकास ने भौगोलिक खोजों को प्रोत्साहित किया।
  • धर्मयुद्धों के कारण यूरोपियों एवं मुसलमानों का एक-दूसरे से संपर्क हुआ। वे एक-दूसरे की संस्कृति से प्रभावित हुए।
  • धर्मयुद्धों ने युद्ध कला को भी प्रभावित किया।

इस काल में सुरक्षा के उद्देश्य से विशाल दुर्गों का निर्माण किया गया। इन दुर्गों को ध्वस्त करने के लिए नए हथियारों एवं बारूद की खोज की गई। धर्मयुद्धों के प्रभाव के बारे में लिखते हुए प्रोफेसर के० अली का कथन है कि, “विश्व के इतिहास में धर्मयुद्धों के महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े।”

क्रम संख्या वर्ष घटटना
1. 570 ई० पैंगंबर मुहम्मद का मक्का में जन्म।
2. 595 ई० पैगंबर मुल्तम्मद का खदीज़ा से विवाहा।
3. 610 ई० पैगंबर मुहम्मद को इलहाम (ज्ञान) प्राप्त हुआ।
4. 612 ई० पैगंबर मुहम्मद द्वारा प्रथम सार्वर्जनिक उपदेश।
5. 622 ई० पैगंबर मुहम्पद द्वारा मक्का से मदीना हिजरत।
6. 624 ई० बढ़ की लड़ाई।
7. 625 ई० उहुद की लड़ाई।
8. 627 ई० खंदक की लड़ाई।
9. 628 ई० प्रेद्षेविया की संधि।
10. 630 ई० मक्का की विजय।
11. 632 ई० पैंगंबर मुहम्मद की मदीना में मृत्यु।
12. 632-634 ई० प्रथन खली फ़्रो अबू बकर का शासनकाल।
13. 634-644 ई० दिलीय खलीक़ा उभर का श्रासनकाल।
14. 638 ई० अरबों द्वारा जेरस्सलम पर अधिकार।
15. 644-656 ई० तृतीय बलीफ़ा उथमान का शासनकाल।
16. 650 ई० कुरान का संकलन।
17. 656-661 ई० चतुर्थ खलीफ़ा अली का श्रासनकाल।
18. 656 ई० रैंटों की लड़ाई।
19. 657 ई० सिष्सिन की लड़ाई।
20. 680 ई० करवला की लक़ाई।
21. 685-705 ई० अब्द-अल-यलिक का शासनकाल। अरबी को साम्राज्य की भाषा घोषित करना एवं इस्लामी सिक्के जारी करना। जैल्सलय में ‘डोम आँफ़ दी रॉक नामक प्रसिद्ध मस्जिद का निर्माण।
22. 750 ई० उमय्यद वंश का अंत। अबू-अल-अब्बास द्वारा अख्बासी वेश की स्थापना।
23. 750-754 ई० अस्बू-अल-अब्यास का शासनकाल।
24. 786-809 ई० हारन-अल-रशीद का शासनकाल।
25. 801 ई० बसरा की प्रसिद्ध सूकी संत राबिया की मृत्यु।
26. 809 ई० अल-अमीन एवं अल-मामुन के मध्य गृहु युद्ध का आरंभ।
27. 820 ई० ताहिरी वंश की बुरासान में ताहिर द्वारा स्थापना। निशापुर को राजधानी बनाना।
28. 850 ई० समारा में अल-मुतव्वकिल नामक मस्जिद का निर्माण।
29. 861 ई० धुलनुन मिस्री की मिस्र में मृत्यु।
30. 868 ई० अहमद-इब्न-तुलुन द्वारा तुलुनी वंश की मिस्न में स्थापना।
31. 873 ई० ताहिरी वंश का याकूब द्वारा अंत।
32. 874-999 ई० समानी वंश का शासन।
33. 909 ई० अल-महदी द्वारा फ़ातिमी वंश की स्थापना।
34. 932 ई० मुइज-उद्-दौला द्वारा डेलाम में बुवाही वंश की स्थापना। शिराज को राजधानी घोषित करना।
35. 945 ई० बुवाहियों द्वारा बग़ाद पर कब्ज़ा।
36. 969 ई० फ़ातिमी खलीफ़ा द्वारा बग़दाद पर अधिकार।
37. 973 ई० काहिरा को फ़ातिमी साम्राज्य की राजधानी घोषित करना।
38. 962-1186 ई० गज़नी वंश का शासन।
39. 980 ई० इब्न सिना (एविसेन्ना) का बुखारा में जन्म।
40. 1030 ई० महमूद गज़नवी की मृत्यु।
41. 1037 ई० तुग़रिल बेग़ एवं छागरी बेग़ द्वारा सल्जुक वंश की स्थापना।
42. 1055 ई० सल्जुक तुर्कों द्वारा बग़दाद पर अधिकार। बुवाही वंश का अंत।
43. 1063-1072 ई० सल्जुक सुल्तान अल्प अरसलन का शासनकाल।
44. 1092 ई० सल्जुक सुल्तान मलिक शाह की मृत्यु।
45. 1095 ई० पोप अर्बन द्वितीय द्वारा प्रथम धर्मयुद्ध का आह्वान।
46. 1096-1099 ई० प्रथम धर्मयुद्ध।
47. 1099 ई० जेरुसलम पर ईसाइयों का अधिकार।
48. 1144 ई० तुर्कों द्वारा एडेस्सा पर अधिकार।
49. 1147-49 ई० दूसरा धर्मयुद्ध।
50. 1171 ई० सलादीन मिस्र का शासक बना।
51. 1187 ई० मुसलमानों द्वारा जेरुसलम पर पुन: अधिकार।
52. 1189-1192 ई० तीसरा धर्मयुद्ध।
53. 1192 ई० इंग्लैंड के शासक रिचर्ड द्वारा सलादीन के साथ समझौता।
54. 1258 ई० मंगोलों द्वारा बग़दाद पर कब्ज़ा।
55. 1291 ई० मिस्न के शासकों द्वारा ईसाइयों को फिलिस्तीन से बाहर निकालना।

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सातवीं शताब्दी के आरंभिक दशकों में बदूओं के जीवन की क्या विशेषताएँ थीं ?
उत्तर:
सातवीं शताब्दी ई० में इस्लाम के उदय से पूर्व अरब में जाहिलिया अथवा अज्ञानता के युग का बोलबाला था। उस समय अरब में बदू लोगों की प्रमुखता थी। बद् खानाबदोश कबीले थे। वे चरागाह की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते थे। लूटमार करना एवं आपस में झगड़ना उनके जीवन की एक प्रमुख विशेषता थी।

उस समय अरब समाज में स्त्रियों की स्थिति अत्यंत शोचनीय थी। उन्हें केवल एक भोग-विलास की वस्तु समझा जाता था। समाज में अन्य अनेक कुप्रथाएँ भी प्रचलित थीं। उस समय अरब के लोग एक अल्लाह की अपेक्षा अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे। प्रत्येक कबीले का अपना अलग देवी-देवता होता था।

उस समय के लोग अनेक प्रकार के अंध-विश्वासों एवं जादू-टोनों में भी विश्वास रखते थे। क्योंकि अरब का अधिकाँश क्षेत्र बंजर, वनस्पति रहित एवं दुर्गम था इसलिए अरबों का आर्थिक जीवन भी बहुत पिछड़ा हुआ था। अरबों का कोई व्यवस्थित राजनीतिक संगठन भी नहीं था। उनमें एकता एवं राष्ट्रीयता की भावना बिल्कुल नहीं थी।

प्रश्न 2.
सातवीं शताब्दी ई० में इस्लाम से पूर्व अरब की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर:
सातवीं वीं शताब्दी ई० में इस्लाम से पूर्व अरब की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं धार्मिक स्थिति बहुत शोचनीय थी। अरब के बदू लोग खानाबदोशी जीवन व्यतीत करते थे। वे लूटमार करते थे एवं आपस में झगड़ते रहते थे। समाज में स्त्रियों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। उन्हें केवल एक विलासिता की वस्तु समझा जाता था। उन्हें किसी प्रकार का कोई अधिकार प्राप्त नहीं था।

लोग नैतिक दृष्टि से बहुत गिर चुके थे। लोगों के साथ धोखा करना, भ्रष्टाचार एवं स्त्रियों की इज्जत लूटना एक सामान्य बात थी। समाज में दासों पर घोर अत्याचार किए जाते थे। उस समय अरब में कृषि, उद्योग एवं व्यापार बहुत पिछड़े हुए थे। अरब लोगों में मूर्ति पूजा का व्यापक प्रचलन था तथा वे अंध-विश्वासों में विश्वास रखते थे। उस समय अरब लोग अनेक कबीलों में बँटे हुए थे। उनमें एकता एवं राष्ट्रीय भावना का अभाव था।

प्रश्न 3.
इस्लाम के उदय से पूर्व अरब कबीलों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
इस्लाम के उदय से पूर्व अरब कबीलों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं
(1) उस समय अरब लोग कबीलों में बँटे हुए थे। प्रत्येक कबीले का मुखिया शेख कहलाता था। उसका चुनाव कुछ हद तक पारिवारिक संबंधों के आधार परंतु मुख्य रूप से व्यक्तिगत साहस तथा बुद्धिमत्ता के आधार पर किया जाता था।

(2) प्रत्येक कबीले के अपने देवी-देवता होते थे। इनका मूर्तियों के रूप में मस्जिदों में उपासना की जाती थी।

(3) अधिकांश कबीले खानाबदोश होते थे। वे अपने लिए भोजन तथा ऊँटों के लिए चारे की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान में आते-जाते रहते थे।

(4) कुछ कबीले स्थायी रूप से शहरों में बस गये थे। ये कबीले व्यापार अथवा कृषि का कार्य करते थे।

(5) गैर-अरब व्यक्ति (मवाली) धर्मांतरण के बाद कबीले का सदस्य बन सकता था, किंतु उसके साथ समानता का व्यवहार नहीं किया जाता था।

प्रश्न 4.
इस्लाम के उदय से पूर्व अरब समाज के सामाजिक जीवन की प्रमुख विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:
(1) अरबों के समाज का मूल आधार परिवार था। उस समय संयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित थी। परिवार पितृतंत्रात्मक होते थे।

(2) मुहम्मद के जन्म से पूर्व अरब समाज में स्त्रियों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। पुत्री के जन्म को परिवार के लिए अपशगुन माना जाता था। समाज में जो अधिकार पुरुषों को दिए गए थे, स्त्रियों को उन सभी अधिकारों से वंचित रखा गया था।

(3) उस समय शिक्षा के क्षेत्र में अरब लोग पिछड़े हुए थे। अधिकाँश अरब अनपढ़ थे। स्त्रियों की शिक्षा की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था।

(4) उस समय अरब समाज में अनैतिकता का बोलबाला था। लूटमार करना तथा लोगों के साथ धोखा करना। उस समय एक सामान्य बात थी। स्त्रियों के साथ अनैतिक संबंध स्थापित करना एक गर्व की बात मानी जाती थी।

(5) उस समय अरब के लोग विभिन्न साधनों से अपना मनोरंजन करते थे। नृत्य एवं गान उनके मनोरंजन का प्रमुख साधन था।

(6) उस समय बदुओं का प्रमुख भोजन खजूर एवं दूध था। वे इसके अतिरिक्त गेहूँ, बाजरा, अंगूर, खुमानी, सेब, बादाम एवं केले आदि का भी प्रयोग करते थे। वे ऊँट, भेड़ एवं बकरियों का माँस खाते थे।

(7) उस समय अरब समाज में दास प्रथा का व्यापक प्रचलन था। युद्ध में बंदी बनाए गए लोगों को दास बना लिया जाता था। दासों के साथ बहुत क्रूर व्यवहार किया जाता था।

प्रश्न 5.
अरब लोगों में ऊँट का क्या महत्त्व था ?
उत्तर:
अरब लोगों के जीवन में ऊँट को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता था। उसे रेगिस्तान का जहाज़ कहा जाता है। उसके बिना रेगिस्तान में जीवन के बारे में सोचा नहीं जा सकता। ऊँट 57° सेंटीग्रेड के उच्च तापमान में भी एक दिन में 160 किलोमीटर का सफर तय कर सकता है। वह 300 किलोग्राम से अधिक का भार ढो सकता है। वह कई दिनों तक बिना पानी पीये जीवित रह सकता है।

यह बदू लोगों के यातायात का प्रमुख साधन है। लोग ऊँटनी का दूध पीते हैं, इसका माँस खाते हैं, इसकी खाल का तंबू बनाते हैं तथा इसके गोबर का आग के लिए प्रयोग करते हैं। इसके मूत्र से दवाइयाँ बनाई जाती हैं। इसे शेख़ की दौलत का प्रतीक माना जाता है। बढ़े इसे विवाह के अवसर पर दहेज के रूप में देते हैं। ऊँट के महत्त्व के संबंध में खलीफ़ा उमर ने लिखा है कि, “अरबवासी वहीं फलते-फूलते हैं जहाँ ऊँट होता है।”

प्रश्न 6.
पैगंबर मुहम्मद के जीवन पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
पैगंबर मुहम्मद इस्लाम के संस्थापक थे। उनका जन्म 570 ई० में कुरैश कबीले में हुआ। उनके माता पिता की शीघ्र मृत्यु हो गई थी। अत: उनका बचपन अनेक कठिनाइयों में व्यतीत हुआ। उनका 595 ई० में खदीज़ा के साथ विवाह हुआ। 610 ई० में पैगंबर मुहम्मद को मक्का की हीरा नामक गुफा में नया ज्ञान प्राप्त हुआ। यह ज्ञान उन्हें महादूत जिबरील द्वारा दिया गया।

612 ई० में पैगंबर मुहम्मद ने मक्का में अपना प्रथम सार्वजनिक उपदेश दिया। इस अवसर पर उन्होंने एक नए समाज का गठन किया जिसे उम्मा का नाम दिया गया। मक्का के लोग पैगंबर मुहम्मद के विचारों से सहमत न थे। अतः वे उसके कट्टर विरोधी बन गए। विवश होकर 622 ई० में पैगंबर मुहम्मद ने मक्का से मदीना को हिजरत की। उन्होंने 630 ई० में मक्का पर विजय प्राप्त की।

यह उनके जीवन की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी। पैगंबर मुहम्मद ने लोगों को एक अल्लाह, आपसी भाईचारे, सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करने एवं स्त्रियों का सम्मान करने का संदेश दिया। उनकी सरल शिक्षाओं से बड़ी संख्या में लोग प्रभावित हुए एवं वे इस्लाम में सम्मिलित हुए। 632 ई० में पैगंबर मुहम्मद जन्नत (स्वर्ग) चले गए।

प्रश्न 7.
पैगंबर मुहम्मद ने हिजरत क्यों की ? इसका इस्लाम में क्या महत्त्व था ?
उत्तर:
पैगंबर मुहम्मद की बढ़ती हुई लोकप्रियता के कारण मक्का के अनेक प्रभावशाली लोग उनसे ईर्ष्या करने लगे। इसके दो प्रमुख कारण थे। प्रथम, पैगंबर मुहम्मद मूर्ति पूजा के कटु आलोचक थे। उस समय मक्का में काबा नामक स्थान पर 360 देवी-देवताओं की मूर्तियाँ थीं। इनके दर्शनों के लिए प्रत्येक वर्ष लाखों लोग मक्का की यात्रा पर आते थे।

यह काबा पर नियंत्रण करने वाले पुजारी वर्ग तथा कुरैश कबीले के लोगों के लिए आय का एक प्रमुख स्रोत था। अत: पैगंबर मुहम्मद द्वारा मूर्ति पूजा की आलोचना उनके लिए एक गंभीर ख़तरे की चेतावनी थी। दूसरा, पैगंबर मुहम्मद अरब समाज में प्रचलित अंध-विश्वासों को दूर कर इसे एक नई दिशा देना चाहते थे। इसे मक्का के रूढ़िवादी लोग पसंद नहीं करते थे। अतः उन्होंने अपने स्वार्थी हितों को देखते हुए लोगों को पैगंबर मुहम्मद

के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया। इन लोगों ने अनेक बार पैगंबर मुहम्मद को जान से मारने का प्रयास किया तथा उनके अनुयायियों को कठोर यातनाएँ दीं। अतः बाध्य होकर पैगंबर मुहम्मद 28 जून, 622 ई० को मक्का से मदीना कूच कर गए। वह 2 जुलाई, 622 ई० को मदीना पहुँचे। इस घटना को मुस्लिम इतिहास में हिजरत कहा जाता है। यह घटना पैगंबर मुहम्मद के जीवन में एक निर्णायक मोड़ सिद्ध हुई। इस वर्ष से मुस्लिम कैलेंडर का आरंभ हुआ।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

प्रश्न 8.
हज़रत मुहम्मद साहिब कौन थे ? उनकी प्रमुख शिक्षाएँ क्या थी ?
अथवा
पैगंबर मुहम्मद की मुख्य शिक्षाओं को लिखिए।
उत्तर:
हज़रत मुहम्मद साहिब इस्लाम के संस्थापक थे। उनकी प्रमुख शिक्षाएँ निम्नलिखित हैं–

(1) अल्लाह एक है-पैगंबर मुहम्मद ने अपनी शिक्षाओं में बार-बार इस बात पर बल दिया कि अल्लाह एक है। वह सर्वोच्च एवं सर्वशक्तिमान है। वह जो चाहे कर सकता है। वह संसार की रचना करता है। वह इसकी पालना करता है। वह जब चाहे इसे नष्ट कर सकता है। संसार की सभी वस्तुएँ उसके नियंत्रण में हैं। उसकी अनुमति के बिना संसार का पत्ता तक नहीं हिल सकता। वह अत्यंत दयावान् है।

(2) कर्म सिद्धांत में विश्वास-इस्लाम में कर्म सिद्धांत पर विशेष बल दिया गया है। इसके अनुसार जैसा करोगे वैसा भरोगे, जैसा बीजोगे वैसा काटोगे। यदि कर्म अच्छे होंगे तो अच्छा फल मिलेगा, बुरा करोगे तो बुरा होगा। किसी भी स्थिति में कर्मों से छुटकरा नहीं मिलेगा। कुरान के अनुसार कयामत के दिन स्वर्ग एवं नरक का निर्णय इस जन्म में किए गए कर्मों के अनुसार ही होगा।

(3) समानता में विश्वास-इस्लाम में समानता को विशेष महत्त्व दिया गया है। इसके अनुसार सभी एक अल्लाह के बच्चे हैं। अत: सभी भाइ-बहन हैं। इस्लाम में अमीर-गरीब, जाति, भाषा, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता। सभी को एक समान अधिकार दिए गए हैं।

(4) मूर्ति पूजा का खंडन-इस्लाम मूर्ति पूजा का कट्टर विरोधी है। पैगंबर मुहम्मद के समय में अरब देश में मूर्ति पूजा का बहुत प्रचलन था। केवल काबा में ही सैंकड़ों मूर्तियाँ स्थपित की गई थीं। पैगंबर मुहम्मद ने मूर्ति पूजा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने मक्का पर अधिकार करने के पश्चात् काबा में सभी मूर्तियों को नष्ट कर डाला। पैगंबर मुहम्मद का कथन था कि हमें केवल एक अल्लाह की उपासना करनी चाहिए।

प्रश्न 9.
इस्लाम के पाँच स्तंभ क्या हैं ?
उत्तर:
इस्लाम में पाँच सिद्धांतों पर विशेष बल दिया गया है। इनका पालन करना प्रत्येक मुसलमान का कर्तव्य है। अतः इन्हें इस्लाम के पाँच स्तंभ कहा जाता है।

(1) कलमा पढ़ना-प्रत्येक मुसलमान का यह धार्मिक कर्तव्य है कि वह कलमा पढ़े। इसमें बताया गया है कि अल्लाह एक है। वह सर्वोच्च एवं सर्वशक्तिमान है। मुहम्मद साहब उसके रसूल (पैगंबर) हैं। कुरान को अल्लाह द्वारा भेजा गया है।

(2) नमाज-प्रत्येक मुसलमान का दूसरा कर्त्तव्य यह है कि वह दिन में पाँच बार नमाज़ अवश्य पढ़े। नमाज़ पढने से व्यक्ति का अल्लाह से संपर्क हो जाता है। उसकी रहमत से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं तथा वह मनभावन फल प्राप्त करता है। नमाज़ से पहले हाथ-पाँव एवं मुँह को धोना ज़रूरी है। नाबालिगों एवं पागलों को छोड़कर अन्य सभी मुसलमानों के लिए नमाज़ पढ़ना अनिवार्य है।

(3) रोज़ा-रमजान के महीने रोज़ा (व्रत) रखना प्रत्येक मुसलमान का तीसरा धार्मिक कर्त्तव्य है। इस माह में सूर्योदय से सूर्यास्त तक कुछ भी खाना-पीना वर्जित है। सूर्यास्त के पश्चात् ही मुसलमान कुछ खान-पान कर सकते हैं। इस माह के दौरान मुसलमानों को सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करने पर विशेष बल दिया गया है।

(4) ज़कात-ज़कात का अर्थ है दान देना। इसके अधीन प्रत्येक मुसलमान का यह कर्त्तव्य है कि वह अपनी कुल आय का 272% दान दे। इसे गरीबों की सहायता, इस्लाम के प्रचार एवं मस्जिदों के निर्माण पर खर्च किया जाता है।

(5) हज-प्रत्येक मुसलमान का यह धार्मिक कर्त्तव्य है कि वह अपने जीवन में कम-से-कम एक बार हज करे भाव मक्का की यात्रा पर जाए।

प्रश्न 10.
कुरान पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर:
कुरान अरबी भाषा का शब्द है। इससे अभिप्राय है पुस्तक। कुरान इस्लाम की पवित्र पुस्तक है। इसे सम्मान से कुरान शरीफ़ कहा जाता है। इसकी रचना अरबी भाषा में की गई है। इसमें 114 अध्याय हैं। इनकी लंबाई क्रमिक रूप से घटती जाती है। इसका आखिरी अध्याय सबसे छोटा है। इसमें इस्लाम की शिक्षाओं एवं नियमों का वर्णन किया गया है।

मुस्लिम परंपरा के अनुसार कुरान उन संदेशों का संग्रह है जो खुदा ने अपने दूत जिबरील द्वारा पैगंबर मुहम्मद को 610 ई० से 632 ई० के मध्य मक्का में एवं मदीना में दिए। इसका संकलन 650 ई० में किया गया। आज जो सबसे प्राचीन कुरान हमारे पास है वह 9वीं शताब्दी से संबंधित है। कुरान शरीफ़ का विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। मुसलमान कुरान को ख़ुदा की वाणी मानते हैं एवं इसका विशेष सम्मान करते हैं।

प्रश्न 11.
खिलाफ़त संस्था का निर्माण कैसे हुआ ? इसके क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:
632 ई० में पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु के पश्चात् कोई भी व्यक्ति वैध रूप से इस्लाम का अगला उत्तराधिकारी होने का दावा नहीं कर सकता था। अत: इस्लामी राजसत्ता उम्मा को सौंप दी गई। इससे नयी प्रक्रियाओं के लिए अवसर उत्पन्न हुए। किंतु इससे मुसलमानों में गहरे मतभेद भी पैदा हो गए। इससे खिलाफ़त संस्था का निर्माण हुआ।

इसमें समुदाय का नेता (अमीर-अल-मोमिनिन) पैगंबर का प्रतिनिधि (खलीफ़ा) बन गया। प्रथम चार खलीफ़ाओं ने पैगंबर के साथ अपने गहरे नज़दीकी संबंधों के आधार पर अपनी शक्तियों का औचित्य स्थापित किया। उन्होंने पैगंबर द्वारा दिए मार्ग-निर्देशों के अनुसार उनके कार्य को आगे बढ़ाया। खिलाफ़त के दो प्रमुख उद्देश्य थे। प्रथम, उम्मा के कबीलों पर नियंत्रण स्थापित करना। द्वितीय, राज्य के लिए संसाधन जुटाना।

प्रश्न 12.
आरंभिक खलीफ़ाओं के अधीन अरब सम्राज्य के प्रशासनिक ढाँचे की मुख्य विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • प्रांतों का अध्यक्ष गवर्नर और कबीलों के मुखिया को बनाया गया।
  • केंद्र के राजस्व के दो मुख्य स्रोत थे। प्रथम मुसलमानों द्वारा अदा किए जाने वाले कर तथा आक्रमणों के दौरान मिलने वाली लट से प्राप्त हिस्सा।
  • खलीफ़ा के सैनिक रेगिस्तान के किनारे बसे शहरों कुफ़ा और बसरा में शिविरों में रहते थे ताकि वे खलीफ़ा के नियंत्रण में बने रहें।
  • शासक वर्ग और सैनिकों को लूट में से हिस्सा मिलता था और मासिक अदायगियाँ प्राप्त होती थीं।
  • गैर-मुस्लिम लोगों द्वारा करों को अदा करने पर उन्हें राज्य के संरक्षित लोग (धिम्मीस) माना जाता था तथा उन्हें काफ़ी अधिक स्वायत्तता दी जाती थी।

प्रश्न 13.
अबू बकर कौन था ? उसकी प्रमुख उपलब्धियों का वर्णन करें।
उत्तर:
अबू बकर खलीफ़ा के पद पर नियुक्त होने वाले प्रथम व्यक्ति थे। वह इस पद पर 632 ई० से 634 ई० तक रहे। जिस समय वह खलीफ़ा के पद पर निर्वाचित हुए तो उस समय उन्हें अनेक विकट समस्याओं का सामना करना पड़ा। अबू बकर इन समस्याओं से घबराने वाला व्यक्ति नहीं था। उसने अपनी योग्यता एवं अथक प्रयासों से इन समस्याओं पर नियंत्रण पाया।

अबू बकर ने सर्वप्रथम नकली पैगंबरों के विद्रोहों से निपटने के लिए एक शक्तिशाली संघ का गठन किया। इसका नेतृत्व खालिद इब्न-अल-वालिद को सौंपा। खालिद ने 6 माह के दौरान ही इन नकली पैगंबरों को एक ऐसा सबक सिखाया कि उन्होंने पुनः विद्रोह करने का कभी साहस नहीं किया। इससे मुसलमानों में जहाँ एक ओर नव-स्फूर्ति का संचार हुआ वहीं दूसरी ओर अरब में शाँति स्थापित हुई।

इसके पश्चात् अबू बकर ने मुस्लिम साम्राज्य के विस्तार की योजना बनाई। अतः उसने शीघ्र ही सीरिया, इराक, ईरान एवं बाइजेंटाइन साम्राज्यों पर विजय प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की। इन विजयों में खालिद ने उल्लेखनीय योगदान दिया। इसलिए उसे अल्लाह की तलवार की उपाधि से सम्मानित किया गया। उन्होंने मदीना को अपनी राजधानी बनाए रखा। 634 ई० में अबू बकर की मृत्यु हो गई। अपनी मृत्यु से पूर्व उन्होंने उमर को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।

प्रश्न 14.
मुआविया कौन था ? उसकी प्रमुख उपलब्धियाँ क्या थी ?
उत्तर:
उमय्यद वंश का संस्थापक मुआविया था। वह 661 ई० से 680 ई० तक खलीफ़ा के पद पर रहा। जिस समय वह खलीफ़ा बना उस समय उसके समक्ष अनेक चुनौतियाँ थीं। वह एक दृढ़ निश्चय वाला व्यक्ति था। अत: उसने इन चुनौतियों का साहसपूर्ण सामना किया। उसने सर्वप्रथम दमिश्क को अपनी राजधानी बनाया। उसने 663 ई० में खरिजाइटों जिन्होंने खलीफ़ा के विरुद्ध कुफा में विद्रोह कर दिया था, का सख्ती के साथ दमन किया।

लगभग इसी समय खलीफ़ा अली के समर्थकों ने इराक में विद्रोह कर दिया। ये लोग बहुत शक्तिशाली थे। इसके बावजूद मुआविया ने अपना धैर्य न खोया। उसने एक विशाल सेना भेजकर उनके विद्रोह का दमन किया। इस प्रकार मुआविया की एक बड़ी सिरदर्दी दूर हुई। 667 ई० में मुआविया के प्रसिद्ध सेनापति उकाबा ने उत्तरी अफ्रीका के अधिकाँश क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया।

मुआविया बाइजेंटाइन साम्राज्य को अपने अधीन करना चाहता था किंतु उसकी यह इच्छा अनेक कारणों से पूर्ण न हो सकी। मुआविया के सैनिक तुर्किस्तान पर अधिकार करने में सफल रहे। मुआविया न केवल एक महान् विजेता अपितु एक कुशल शासन प्रबंधक भी सिद्ध हुआ। उसने बाइजेंटाइन साम्राज्य की राजदरबारी रस्मों तथा प्रशासनिक संस्थाओं को अपनाया। उसने खलीफ़ा पद के गौरव में बहुत वृद्धि की।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

प्रश्न 15.
अब्द-अल-मलिक उमय्यद वंश का सबसे महान खलीफ़ा था। सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
अब्द-अल-मलिक की गणना उमय्यद वंश के महान् खलीफ़ाओं में की जाती है। वह मारवान का पुत्र था। वह 685 ई० में खलीफ़ा के पद पर नियुक्त हुआ। वह 705 ई० तक इस पद पर रहा। उसे अपने शासनकाल के आरंभ में घोर समस्याओं का सामना करना पड़ा था। उसने न केवल इन समस्याओं पर नियंत्रण पाया अपितु मुस्लिम साम्राज्य को संगठित करने में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। अब्द-अल-मलिक की शक्ति को सर्वप्रथम इराक में अल-मुख्तियार बिन अबू उबैद ने चुनौती दी। अब्द-अल-मलिक ने बड़ी कुश्लता से इस विद्रोह का दमन किया।

इसके पश्चात् उसने अपना ध्यान एक अन्य प्रमुख शत्रु इन जुबैर की ओर किया। इन जुबैर ने मक्का में अपने खलीफ़ा होने की घोषणा कर दी थी। वह 692 ई० में अब्द-अल-मलिक के साथ हुई एक लड़ाई में मारा गया था। अब्द-अल-मलिक ने बाइजेंटाइन साम्राज्य के अनेक क्षेत्रों पर अधिकार करने में सफलता प्राप्त की। वह न केवल एक महान् विजेता अपितु एक कुशल शासन प्रबंधक भी था। उसने इस्लामी साम्राज्य को संगठित करने के लिए अनेक उल्लेखनीय उपाय भी किए। उसने अरबी को राज्य की भाषा घोषित किया।

उसने इस्लामी सिक्कों को जारी किया। इनमें सोने के सिक्के को दीनार एवं चाँदी के सिक्के को दिरहम कहा जाता था। इन सिक्कों पर अरबी भाषा लिखी गई थी। अब्द-अल-मलिक के ये सिक्के बहुत लोकप्रिय हुए तथा आने वाली कई शताब्दियों तक जारी रहे।

प्रश्न 16.
अब्बासी क्रांति से आपका क्या तात्पर्य है ?
अथवा
अब्बासी क्रांति के महत्त्व पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
750 ई० में अब्बासियों के आगमन ने इस्लाम के इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात किया। उमय्यद वंश के अधिकाँश खलीफ़े अपना समय सुरा एवं सुंदरी के संग व्यतीत करते थे। इस कारण वे प्रशासन की ओर अपना कोई ध्यान नहीं दे सके। इसके अतिरिक्त मवालियों (यह गैर अरबी मुसलमान थे) को अरबी मुसलमानों के तिरस्कार का शिकार होना पड़ा था। अत: वे उमय्यदों को सत्ता से बाहर निकालने के लिए किसी स्वर्ण अवसर की प्रतीक्षा में थे।

उमय्यद साम्राज्य में फैली अराजकता का लाभ उठाते हुए अबू मुस्लिम ने खुरासान में 747 ई० में उमय्यद वंश के विरुद्ध दवा नामक आंदोलन आरंभ किया। इस आंदोलन का उद्देश्य उमय्यद वंश को सत्ता से बाहर करना था। इस आंदोलन ने उमय्यद शासन को अत्याचारी एवं इस्लामी सिद्धांतों के विरुद्ध बताया। 750 ई० में अबू-अल-अब्बास ने कुफा में अपने खलीफ़ा होने की घोषणा कर दी।

उमय्यद खलीफ़ा मारवान द्वितीय इसे सहन न कर सका। अत: वह 12,000 सैनिकों के साथ अबू-अल-अब्बास का मुकाबला करने के लिए चल पड़ा। उसका सामना करने के लिए अबू-अल-अब्बास ने अपने चाचा अब्दुल्ला-इब्न-अली के नेतृत्व में एक सेना को भेजा।

5 जनवरी, 750 ई० में हुई जबकि लड़ाई में खलीफ़ा मारवान द्वितीय की पराजय हुई। इससे उमय्यद वंश का अंत हुआ। इस प्रकार अब्बासी क्रांति सफल हुई तथा अब्बासियों का शासन स्थापित हुआ।

प्रश्न 17.
अब्बासी शासन का महत्त्व क्या था ?
उत्तर:
अब्बासी शासन निम्नलिखित कारणों से अति महत्त्वपूर्ण था

  • इससे अरबों के प्रभाव में गिरावट आई जबकि ईरानी संस्कृति का महत्त्व बढ़ गया।
  • अब्बासियों ने इराक और खुरासान की अपेक्षाकृत अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सेना एवं नौकरशाही का पुनर्गठन गैर-कबीलाई आधार पर किया।
  • अब्बासी शासकों ने खिलाफ़त की धार्मिक स्थिति और कार्यों को मज़बूत बनाया तथा इस्लामी संस्थाओं और विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया।
  • उन्होंने सरकार और साम्राज्य की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए राज्य के केंद्रीय स्वरूप को बनाए रखा।
  • उन्होंने उमय्यदों के शानदार शाही वास्तुकला और राजदरबार के व्यापक समारोहों की परंपराओं को जारी रखा।

प्रश्न 18.
हारुन-अल-रशीद को अब्बासी वंश का सबसे महान् खलीफ़ा क्यों माना जाता है ?
उत्तर:
हारुन-अल-रशीद अब्बासी वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध खलीफ़ा था। वह 786 ई० से 809 ई० तक खलीफ़ा के पद पर रहा। उसने अब्बासी वंश के गौरव को पुनः स्थापित करने के लिए अथक प्रयास किए। उसने न केवल आंतरिक विद्रोहों को कुचला अपितु अब्बासी साम्राज्य का दूर-दूर तक विस्तार किया। उसने सर्वप्रथम अफ्रीका के लोगों द्वारा वहाँ अरब खलीफ़ा के गवर्नर के विरुद्ध भड़के विद्रोह को कठोरता से कुचला। याहिया बिन-अब्दुल्ला जो कि खलीफ़ा अली से संबंधित था, ने अपने आपको डेलाम में खलीफ़ा घोषित कर दिया था।

निस्संदेह यह हारुन-अल-रशीद की सत्ता के लिए एक गंभीर ख़तरा था। हारुन-अल-रशीद ने एक योजना के अधीन उसे बंदी बना लिया एवं बाद में मौत के घाट उतार दिया। उसने अर्मीनिया में खारिजियों तथा खुरासान के विद्रोह का दमन किया। उसने उस समय के शक्तिशाली फ्रैंक शासक शॉर्लमेन के साथ मित्रतापूर्वक संबंध स्थापित किए। उसने अपने साम्राज्य को संगठित करने के उद्देश्य से प्रशासन में उल्लेखनीय सुधार किए। उसने प्रजा की भलाई के लिए अनेक पग उठाए। उसने शिक्षा को प्रोत्साहित किया।

उसने अनेक प्रसिद्ध विद्वानों, संगीतकारों एवं गायकों को अपने दरबार में संरक्षण प्रदान किया था। उसने अनेक अस्पतालों एवं सरायों का निर्माण करवाया। उसने अपनी राजधानी में अनेक विशाल महल, भवन, मस्जिदें एवं बाग बनवाए। वास्तव में उसके शासनकाल में अब्बासी साम्राज्य में इतनी प्रगति हुई कि इसे ‘स्वर्ण युग’ के नाम से स्मरण किया जाता है।

प्रश्न 19.
इस्लाम धर्म के शीघ्र फैलने के प्रमुख क्या कारण थे ?
उत्तर:

  • अरबवासियों में इस्लाम के प्रसार के लिए विशेष धार्मिक जोश था।
  • पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाएँ बहुत सरल थीं। इनका लोगों के दिलों पर जादुई प्रभाव पड़ा।
  • इस्लाम में अमीर-ग़रीब एवं जाति-पाति का कोई भेदभाव नहीं किया जाता था। इससे यह धर्म शीघ्र ही लोकप्रिय हो गया।
  • इस्लाम के प्रसार में अनेक खलीफ़ों ने उल्लेखनीय योगदान दिया।
  • इस्लाम के उदय के समय रोमन साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो चुका था।

प्रश्न 20.
फ़ातिमी वंश के उत्थान एवं पतन की संक्षिप्त चर्चा करें।
उत्तर:
फ़ातिमी वंश एक प्रसिद्ध राजवंश था। इस वंश की स्थापना 909 ई० में अल-महदी ने उत्तरी अफ्रीका में की थी। यह वंश अपने आपको पैगंबर मुहम्मद की पुत्री फ़ातिमा के वंशज मानते हैं। यह मुसलमानों के शिया संप्रदाय से संबंधित है। अल-महदी ने 909 ई० से 934 ई० तक शासन किया। उसने अनेक प्रदेशों- एलेक्जेंडरिया, सीरिया, माल्टा, सारडीनिया एवं कोर्सिका आदि को अपने अधीन किया।

उसने महदीया को अपनी राजधानी घोषित किया। फ़ातिमी वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध सुल्तान अल-मुइज़ था। उसने 965 ई० से 975 ई० तक शासन किया। उसके शासनकाल की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सफलता 969 ई० में मिस्त्र पर विजय प्राप्त करना था। 973 ई० में काहिरा को फ़ातिमी साम्राज्य की नई राजधानी घोषित किया गया। इसकी स्थापना मंगल ग्रह के उदय होने के दिन की गई थी।

अल-मुइज़ ने न केवल फ़ातिमी साम्राज्य का विस्तार ही किया अपितु इसे अच्छी प्रकार से संगठित भी किया। अल-मुइज़ के उत्तराधिकारियों ने 1171 ई० तक शासन किया। 1171 ई० में सालादीन ने अल-अज़िद को पराजित कर फ़ातिमी वंश का अंत कर दिया।

प्रश्न 21.
सल्जुक वंश के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
गज़नवी वंश के खंडहरों पर सल्जुक वंश की स्थापना हुई। इस वंश की स्थापना तुग़रिल बेग एवं उसके भाई छागरी बेग ने 1037 ई० में खुरासान को जीत कर की थी। उन्होंने निशापुर को अपनी राजधानी घोषित किया। वे तुर्क जाति से संबंधित थे। तुग़रिल बेग ने सल्जुक साम्राज्य के विस्तार में उल्लेखनीय योगदान दिया। उसकी सबसे महत्त्वपूर्ण सफलता 1055 ई० में बग़दाद पर अधिकार करना था। इससे बग़दाद में बुवाही शासन का अंत हुआ एवं इस पर पुनः सुन्नी मुसलमानों का शासन स्थापित हो गया।

इससे प्रभावित होकर खलीफ़ा अल-कायम ने तुगरिल बेग को सुल्तान की उपाधि से सम्मानित किया। 1063 ई० में तुगरिल बेग की मृत्यु के पश्चात् उसका भतीजा अल्प अरसलन नया सुल्तान बना। उसने 1072 ई० तक शासन किया। वह एक योग्य शासक प्रमाणित हुआ। उसके शासनकाल में सल्जुक साम्राज्य का विस्तार अनातोलिया तक हो गया। उसका पुत्र मलिक शाह भी एक योग्य सुल्तान था।

उसने 1072 ई० से 1092 ई० तक शासन किया। उसके वज़ीर निजाम-उल-मुलक ने सल्जुक साम्राज्य के विस्तार एवं संगठन में उल्लेखनीय योगदान दिया। मलिक शाह की मृत्यु के पश्चात् सल्जुक साम्राज्य का विखंडन आरंभ हो गया तथा इसका अंत 1300 ई० में हो गया।

प्रश्न 22.
मध्यकालीन इस्लामी दुनिया की अर्थव्यवस्था की कोई तीन विशेषताएँ लिखो।
उत्तर:
(1) कृषि-मध्यकाल में इस्लामी साम्राज्य के लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था। उमय्यद एवं अब्बासी खलीफ़ों ने कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए अथक प्रयास किए। उन्होंने सिंचाई साधनों का विकास किया। उन्होंने साम्राज्य के अनेक भागों में बाँधों, नहरों एवं कुओं का निर्माण किया। उन्होंने उन किसानों को भू-राजस्व एवं अन्य करों में रियायत दी जो कृषि के अधीन नयी भूमि को लाते थे। कृषि भूमि पर राज्य का सर्वोपरि नियंत्रण होता था।

(2) उद्योग-उमय्यद एवं अब्बासी खलीफ़ों के शासनकाल में उद्योग के क्षेत्र में बहुमुखी विकास हुआ। उस समय समरकंद कागज़ उद्योग के लिए विशेष रूप से विख्यात था। बाद में कागज़ उद्योग के केंद्र मेसोपोटामिया, ईरान, अरब, मिस्र एवं स्पेन में भी स्थापित किए गए। उस समय बग़दाद काँच के सामान, आभूषण तथा रेशम उद्योग के लिए प्रसिद्ध था। बुखारा दरियों के उद्योग के लिए, दमिश्क इस्पात उद्योग के लिए, कुफा रेशम उद्योग के लिए, कोरडोबा चमड़ा उद्योग के लिए प्रसिद्ध केंद्र थे। इनके अतिरिक्त उस समय आभूषण, सूती एवं ऊनी वस्त्र, फर्नीचर एवं दैनिक उपयोग की अन्य वस्तुओं के उद्योग भी स्थापित थे।

(3) वाणिज्य एवं व्यापार-अरबों का आंतरिक एवं विदेशी व्यापार दोनों उन्नत थे। आंतरिक व्यापार के लिए मुख्यतः ऊँटों का प्रयोग किया जाता था। विदेशी व्यापार जल एवं स्थल दोनों मार्गों से किया जाता था। अरबी साम्राज्य के यूरोप, अफ्रीका, भारत एवं चीन के देशों के साथ अच्छे व्यापारिक संबंध थे। अरबी व्यापारी विदेशों को कागज़, सूती एवं ऊनी वस्त्र, काँच का सामान, चीनी, खजूर एवं बारूद का निर्यात करते थे विदेशों से रेशम, चाय, गर्म मसाले, सोना, विलासिता का सामान, हाथी दाँत एवं गुलामों का आयात करते थे। उस समय व्यापार संतुलन इस्लामी साम्राज्य के पक्ष में था।

प्रश्न 23.
इस्लामी साम्राज्य में स्थापित शहरीकरण की प्रमुख विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:
इस्लामी साम्राज्य में स्थापित शहरीकरण की प्रमुख विशेषताएँ अग्रलिखित हैं

(1) ये सभी शहर व्यापार के प्रसिद्ध केंद्र थे। एक शहर का दूसरे शहर के साथ परस्पर संपर्क स्थापित किया गया था। इससे व्यापार को बहुत प्रोत्साहन मिला।

(2) इन सभी शहरों में विशाल जनसंख्या रहती थी तथा इनमें तीव्रता से वृद्धि होती रहती थी। 850 ई० के लगभग बग़दाद की जनसंख्या 10 लाख हो गई थी।

(3) इन सभी शहरों के केंद्र में एक विशाल एवं भव्य मस्जिद का निर्माण किया जाता था। यहाँ सामूहिक नमाज़ पढ़ी जाती थी। इसके अतिरिक्त नागरिकों एवं सैनिकों के घरों के निकट भी मस्जिदों, गिरजाघरों एवं सिनेगोगों की स्थापना की गई थी। मस्जिद मुसलमानों के, गिरजाघर ईसाइयों के तथा सिनेगोग यहूदियों के प्रार्थना घर थे।

(4) प्रत्येक शहर में मंडियों की अच्छी व्यवस्था की जाती थी। इन मंडियों में विभिन्न प्रकार की दुकानें होती थीं।

(5) शहर के बाहर कब्रिस्तान बनाए जाते थे। कसाई की दुकानों एवं चमड़े की वस्तुएँ बनाने वाली दुकानों को भी शहर से बाहर रखा जाता था।

(6) शहरों में नागरिकों को अनेक प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त थीं तथा यहाँ नौकरी के अवसर अधिक होते थे। इसलिए लोग शहरों में रहना पसंद करते थे।

प्रश्न 24.
सूफी मत को परिभाषित कीजिए। इसकी शिक्षाएँ क्या थी ? ।
अथवा
सूफ़ी मत से आपका क्या अभिप्राय है ? इसकी शिक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सूफ़ी मत से अभिप्राय-सूफ़ी मत इस्लाम का एक संप्रदाय था। वे बहुत उदार विचारों वाले थे। वे 12 सिलसिलों अथवा वर्गों में बँटे हुए थे। प्रत्येक सिलसिला एक पीर के अधीन होता था। सूफ़ी मत की प्रमुख शिक्षाएँ निम्नलिखित थीं

(1) अल्लाह एक है-सूफ़ियों के अनुसार परमात्मा एक है जिसको वे अल्लाह कहते हैं। वह सर्वोच्च, शक्तिशाली तथा सर्वव्यापक है। प्रत्येक स्थान पर उसका आदेश चलता है तथा कोई भी उसकी आज्ञा के विरुद्ध नहीं जा सकता। वह प्रत्येक स्थान पर उपस्थित है। वह अमर है तथा आवागमन के चक्करों से मुक्त है। वह ही इस सृष्टि का रचयिता, इसकी सुरक्षा करने वाला तथा इसको नष्ट करने वाला है। इन कारणों से सूफ़ी एक अल्लाह के अतिरिक्त किसी अन्य की पूजा नहीं करते हैं।

(2) पीर-सूफ़ी मत में पीर या गुरु को सर्वाधिक महत्त्व दिया जाता है। वह अपने मुरीदों की रूहानी उन्नति पर पूर्ण दृष्टि रखता है, ताकि वे इस भवसागर से पार हो सकें तथा अल्लाह के साथ एक हो सकें। एक सच्चा पीर जो स्वयं साँसारिक लगाव से दूर हो तथा जिसने रूहानी ज्ञान प्राप्त कर लिया हो, वह ही अपने शिष्यों को अंधकार से ज्योति की ओर ले जा सकता है।

(3) भक्ति संगीत-सूफ़ी भक्ति संगीत पर बहुत ज़ोर देते हैं। उनका यह पूर्ण विश्वास है कि भक्ति संगीत मानवीय हृदयों में अल्लाह के प्रति प्रेम उत्पन्न करता है। इसके प्रभाव के कारण मनुष्य के बुरे विचार नष्ट हो जाते हैं तथा वह अल्लाह के समीप पहुँच जाता है। सूफ़ियों की धार्मिक संगीत सभाओं को समा कहा जाता है।

(4) मानवता से प्रेम-मानवता की सेवा करना सूफ़ी अपना परम कर्त्तव्य मानते हैं। इससे संबंधित वे मनुष्यों के बीच किसी जाति-पाति, रंग या नस्ल आदि का भेदभाव नहीं करते। उनके अनुसार सभी मनुष्य एक ही अल्लाह की संतान हैं। इसलिए उनके बीच किसी प्रकार का भेदभाव करना उस सर्वोच्च अल्लाह का अपमान करना है।

प्रश्न 25.
इल सिना कौन था ? वह क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
इब्न सिना मध्य काल अरब का एक महान् दार्शनिक एवं चिकित्सक था। उसे यूरोप में एविसेन्ना के नाम से जाना जाता था। उसका जन्म 980 ई० में बुखारा में हुआ था। उसका दर्शन यूनानी दर्शन से प्रभावित था। वह इस्लाम के इस सिद्धांत में विश्वास नहीं रखता था कि कयामत के दिन व्यक्ति फिर से जिंदा हो जाता है। इस कारण उसे कट्टर मुसलमानों के घोर विरोध का सामना करना पड़ा। इब्न सिना ने चिकित्सा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। उसकी रचना अल-कानून-फिल-तिब विश्व में बहुत लोकप्रिय हुई।

इसमें चिकित्सा सिद्धांतों पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। इसमें इब्न सिना के प्रयोगों एवं अनुभवों की जानकारी दी गई है। इसमें 760 प्रमुख औषधियों का उल्लेख किया गया है। इसमें पानी से फैलने वाले संक्रामक रोगों का वर्णन किया गया है। इसमें जलवायु और पर्यावरण के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है। इस पुस्तक का प्रयोग यूरोप में अनेक वर्षों तक एक प्रमाणिक पाठ्य-पुस्तक के रूप में किया जाता रहा है।

प्रश्न 26.
अल्बरुनी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
अल्बरुनी ग्यारहवीं शताब्दी का एक महान् विद्वान् एवं इतिहासकार था। उसका जन्म 973 ई० में खीवा में हुआ था। उसने खगोल विज्ञान, गणित, भूगोल, दर्शन, इतिहास एवं धर्म का गहन अध्ययन किया था। जब महमूद गज़नवी ने 1017 ई० में खीवा पर विजय प्राप्त की तो अल्बरुनी को बंदी बना लिया गया।

अल्बरुनी को गज़नी लाया गया। उसकी प्रतिभा से प्रभावित होकर महमद गज़नवी ने उसे अपने दरबार का रत्न बनाया। वह महमद गज़नवी के भारतीय आक्रमणों के समय उसके साथ भारत आया। भारत में जो कुछ अपनी आँखों से देखा उसके आधार पर उसने एक बहुमूल्य पुस्तक तहकीक-मा-लिल हिंद की रचना की।

इसे तारीख-ए-हिंद के नाम से भी जाना जाता है। इसे अरबी भाषा में लिखा गया था। यह 11वीं शताब्दी के भारतीय इतिहास को जानने के लिए हमारा एक विश्वसनीय एवं प्रामाणिक स्रोत है। उसके इस बहुमूल्य योगदान के कारण भारतीय इतिहास में उसे सदैव स्मरण किया जाता रहेगा।

प्रश्न 27.
रोमन साम्राज्य के वास्तुकलात्मक रूपों से इस्लामी वास्तुकलात्मक रूप कैसे भिन्न थे?
उत्तर:
(1) रोमन वास्तुकला-रोमन सम्राटों को वास्तुकला से विशेष लगाव था। उन्होंने विशाल संख्या में महलों, भवनों तथा कोलोसियमों का निर्माण किया था। इन भवनों के निर्माण के लिए पत्थरों, संगमरमर तथा लकड़ी का प्रयोग किया जाता था। इन भवनों को मेहराबों, विशाल गुम्बदों तथा गोलाकार छतों द्वारा सुंदर बनाया जाता था। उनके भवन यूनानी भवन निर्माण कला से प्रेरित थे।

(2) इस्लामी वास्तुकला-इस्लामी वास्तुकला ईरानी वास्तुकला से प्रेरित थी। इस्लामी शासकों ने विशाल संख्या में महलों, मस्जिदों तथा अन्य भवनों को निर्माण करवाया। उनके भवनों में पत्थरों, चट्टानों, संगमरमर तथा लकड़ी का प्रयोग किया जाता था। उनके भवनों को गुम्बदों, मीनारों, मेहराबों तथा स्तंभों से सुसज्जित किया जाता था। इन भवनों की दीवारों पर विभिन्न चित्र बनाए जाते थे।

प्रश्न 28.
धर्मयुद्ध किनके मध्य हुए? इनके लिए कौन-से कारण उत्तरदायी थे?
उत्तर:
धर्मयुद्ध यूरोपीय ईसाइयों एवं मुसलमानों के मध्य हुए। इन धर्मयुद्धों के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे–

(1) जेरुसलम ईसाइयों के लिए बहुत पवित्र भूमि थी। इसका संबंध ईसा के क्रूसीकरण तथा पुनः जीवित होने से था। इस स्थान पर अरबों ने 638 ई० में अधिकार कर लिया था। ईसाई इसे सहन करने को तैयार नहीं थे।

(2) सल्जुक तुर्कों ने 1071 ई० में जेरुसलम पर अपना अधिकार कर लिया था। वे कट्टर सुन्नी मुसलमान थे। अतः वे अपने साम्राज्य में ईसाई धर्म की उन्नति को सहन नहीं कर सकते थे। अत: उन्होंने ईसाइयों पर घोर अत्याचार शुरू कर दिए।

(3) 1092 ई० में सल्जक सल्तान मलिक शाह की मत्य के पश्चात उसके साम्राज्य का विखंडन आरंभ हो गया। बाइजेंटाइन सम्राट एलेक्सियस प्रथम ने यह स्वर्ण देखकर जेरुसलम पर अधिकार करने की योजना बनाई।

(4) पोप अर्बन द्वितीय ने 1095 ई० में फ्राँस के क्लेयरमांट नामक नगर में ईसाइयों को जेरुसलम की रक्षा के लिए समस्त ईसाइयों को धर्मयुद्ध में सम्मिलित होने की अपील की। इसका ईसाइयों पर जादुई प्रभाव पड़ा तथा वे युद्ध के लिए तैयार हो गए।

प्रश्न 29.
प्रथम धर्मयुद्ध पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर:
प्रथम धर्मयुद्ध का आरंभ 1096 ई० में हुआ। पोप अर्बन द्वितीय के भाषण से उत्तेजित होकर लगभग 70 हज़ार धर्मयोद्धा पीटर दा हरमिट के नेतृत्व में जेरुसलम को मुसलमानों से मुक्त कराने के लिए चल पड़े। सम्राट आलेक्सियस प्रथम ने उन्हें धैर्य से काम लेने तथा सैनिकों के वहाँ पहुँचने तक इंतज़ार करने के लिए कहा। किंतु इन धर्मयोद्धाओं ने जो धार्मिक जोश से प्रेरित थे, इस परामर्श को ठुकरा दिया। इन धर्मयोद्धाओं ने कुंस्तुनतुनिया पर आक्रमण कर वहाँ लूटमार आरंभ कर दी।

तुर्क मुसलमानों ने जो कि अत्यधिक संगठित थे, ने अधिकाँश धर्मयोद्धाओं को मौत के घाट उतार दिया। इस घटना से धर्मयोद्धाओं के प्रोत्साहन में कोई कमी नहीं आई। फ्राँस, जर्मनी एवं इटली के शासकों ने एक विशाल सेना गॉडफ्रे के नेतृत्व में जेरुसलम की ओर रवाना की। इन सैनिकों ने एडेस्सा एवं एंटीओक पर अधिकार कर लिया। उन्होंने 15 जुलाई, 1099 ई० में जेरुसलम पर अधिकार कर लिया। निस्संदेह यह उनकी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सफलता थी। जेरुसलम पर अधिकार करने के पश्चात् धर्मयोद्धाओं ने बड़ी संख्या में मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया। इसके साथ ही प्रथम धर्मयुद्ध का अंत हो गया।

प्रश्न 30.
यूरोप व एशिया पर धर्मयुद्धों का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
यूरोप एवं एशिया पर धर्मयुद्धों के निम्नलिखित प्रभाव पड़े

(1) धर्मयुद्धों के कारण पोप की प्रतिष्ठा काफी बढ़ गई। जर्मनी, फ्राँस, इंग्लैंड एवं हंगरी आदि के शासक पोप के निर्देशों का पालन करने के लिए सदैव तैयार रहते थे। परिणामस्वरूप दो शताब्दियों तक पोप ने यूरोप की राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाई।

(2) धर्मयुद्धों के कारण सामंतों की शक्ति का पतन हुआ एवं राजाओं की शक्ति में वृद्धि हुई।

(3) धर्मयुद्धों के सफल संचालन के लिए लोगों ने दिल खोल कर चर्च को दान दिए। इस कारण चर्चों के पास अपार दौलत एकत्र हो गई। इस धन के चलते धीरे-धीरे चर्चों में भ्रष्टाचार फैल गया।

(4) धर्मयुद्धों के दौरान मुसलमानों एवं ईसाइयों ने एक-दूसरे के क्षेत्रों में भारी लूटमार की। इससे दोनों समुदायों के मध्य नफ़रत की भावना फैली।

(5) धर्मयुद्धों में यूरोपीय स्त्रियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस कारण उनकी स्थिति में सुधार आया एवं उनका दृष्टिकोण विशाल हुआ।

(6) धर्मयुद्धों के कारण सामंतों के प्रभाव में कमी आई। इससे लोगों को उनके अत्याचारों से राहत मिली।

(7) धर्मयुद्धों के कारण यूरोपियों के ज्ञान में बहुत वृद्धि हुई। वे मुस्लिम नगरों एवं विज्ञान के क्षेत्रों में हुई प्रगति को देखकर चकित रह गए।

अति संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
इग्नाज़ गोल्डजिहर (Ignaz Goldziher) कौन था ?
उत्तर:

  • वह हंगरी का एक यहूदी था।
  • उसने काहिरा के इस्लामी कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की थी।
  • उसने जर्मन भाषा में इस्लाम से संबंधित अनेक पुस्तकों की रचना की।

प्रश्न 2.
सातवीं शताब्दी के आरंभिक दशकों में बेदुइओं के जीवन की क्या विशेषताएँ थीं ?
उत्तर:

  • वे खानाबदोश जीवन व्यतीत करते थे।
  • वे लूटमार करते थे एवं आपस में झगड़ते रहते थे।
  • ऊँट उनका प्रमुख साथी था एवं खजूर उनका प्रमुख खाद्य पदार्थ था।

प्रश्न 3.
सातवीं शताब्दी ई० में इस्लाम के उदय से पूर्व अरब समाज की कोई दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • उस समय अरब के अधिकाँश लोग अनपढ थे।
  • उस समय अरब समाज में अनैतिकता का बोलबाला था।

प्रश्न 4.
सातवीं शताब्दी ई० में इस्लाम के उदय से पूर्व अरब परिवार कैसे थे ?
उत्तर:

  • उस समय सयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित थी।
  • उस समय परिवार पितृतंत्रात्मक होते थे।
  • परिवार में पुत्र का होना आवश्यक माना जाता था।

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प्रश्न 5.
पैगंबर मुहम्मद के जन्म से पूर्व अरब समाज में स्त्रियों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। कैसे ?
उत्तर:

  • अधिकाँश लड़कियों को जन्म लेते ही मार दिया जाता था।
  • स्त्रियों को लगभग सभी अधिकारों से वंचित रखा जाता था।
  • उन्हें केवल एक भोगविलास की वस्तु समझा जाता था।

प्रश्न 6.
पैगंबर मुहम्मद के जन्म से पूर्व अरब समाज में अनैतिकता का बोलबाला था। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ?
उत्तर:

  • उस समय लूटमार करना एवं धोखा देना एक सामान्य बात थी।
  • उस समय शराब पीने एवं जुआ खेलने का प्रचलन बहुत था।
  • स्त्रियों के साथ अनैतिक संबंध स्थापित करना एक गर्व की बात मानी जाती थी।

प्रश्न 7.
सातवीं शताब्दी ई० में दासों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता था ?
उत्तर:

  • उस समय दासों के साथ बहुत क्रूर व्यवहार किया जाता था।
  • उन पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगाए गए थे।

प्रश्न 8.
सातवीं शताब्दी ई० में अरबों के आर्थिक जीवन की दो प्रमुख विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:

  • उस समय अरबों का आर्थिक जीवन बहुत पिछड़ा हुआ था।
  • यहाँ की जनसंख्या बहुत विरल थी।

प्रश्न 9.
अरबों के जीवन में खजूर का क्या महत्त्व है ?
उत्तर:

  • यह अरब लोगों का प्रमुख खाद्य पदार्थ है।
  • इसका पेय बहुत स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है।
  • इसकी गुठली ऊँट का प्रमुख भोजन है।

प्रश्न 10.
अरबों के जीवन में ऊँट को क्यों महत्त्वपूर्ण माना जाता है ?
उत्तर:

  • ऊँटों को रेगिस्तान का जहाज़ कहा जाता है।
  • वह बदू लोगों के यातायात का प्रमुख साधन है।
  • इसका माँस खाया जाता है, दूध पीया जाता है एवं खालों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 11.
सातवीं शताब्दी ई० में अरबों का व्यापार उन्नत क्यों न था ? कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • उस समय अरब में अराजकता का वातावरण था।
  • उस समय उद्योगों का विकास नहीं हुआ था।

प्रश्न 12.
पैगंबर मुहम्मद के जन्म से पूर्व अरबों के धार्मिक जीवन की दो प्रमुख विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:

  • उस समय लोग एक अल्लाह की अपेक्षा अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे।
  • लोग एक-दूसरे के देवी-देवता से घृणा करते थे।

प्रश्न 13.
अरब कबीलों की कोई दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • प्रत्येक कबीला राजनीतिक दृष्टि से स्वतंत्र होता था।
  • प्रत्येक कबीले का मुखिया शेख़ कहलाता था।

प्रश्न 14.
इस्लाम का संस्थापक किसे माना जाता है ? उनका जन्म कब और कहाँ हुआ ?
अथवा
हज़रत मुहम्मद साहिब का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर:

  • इस्लाम का संस्थापक पैगंबर मुहम्मद को माना जाता है।
  • उनका जन्म 29 अगस्त, 570 ई० को मक्का में हुआ था।

प्रश्न 15.
पैगंबर मुहम्मद का संबंध किस कबीले से था तथा यह कबीला कहाँ रहता था?
उत्तर:

  • पैगंबर मुहम्मद का संबंध कुरैश कबीले से था।
  • यह कबीला मक्का में रहता था।

प्रश्न 16.
खदीजा कौन थी ? पैगंबर मुहम्मद का उससे विवाह कब हुआ ?
उत्तर:

  • खदीज़ा मक्का की एक धनी विधवा थी।
  • पैगंबर मुहम्मद का उससे 595 ई० में विवाह हुआ।

प्रश्न 17.
पैगंबर मुहम्मद को इलहाम (ज्ञान) कहाँ प्राप्त हुआ था ? उस समय उनकी आयु क्या थी ?
उत्तर:

  • पैगंबर मुहम्मद को इलहाम (ज्ञान) मक्का में स्थित हीरा नामक एक गुफ़ा में प्राप्त हुआ।
  • उस समय उनकी आयु 40 वर्ष की थी।

प्रश्न 18.
उस महादूत का नाम बताओ जिसने पैगंबर मुहम्मद को अल्लाह का संदेश दिया था। उस रात को इस्लाम में किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:

  • उस महादूत का नाम जिबरील था जिसने पैगंबर मुहम्मद को अल्लाह का संदेश दिया था।
  • उस रात को इस्लाम में ‘शक्ति की रात’ कहा जाता है।

प्रश्न 19.
पैगंबर मुहम्मद ने किस धर्म की स्थापना की? इस धर्म की पवित्र पुस्तक का नाम लिखिए।
उत्तर:

  • पैगंबर मुहम्मद ने इस्लाम धर्म की स्थापना की।
  • इस धर्म की पवित्र पुस्तक का नाम कुरान है।

प्रश्न 20.
पैगंबर मुहम्मद ने अपना प्रथम सार्वजनिक उपदेश कहाँ और कब दिया ?
उत्तर:
पैगंबर मुहम्मद ने अपना प्रथम सार्वजनिक उपदेश मक्का में 612 ई० में दिया।

प्रश्न 21.
उम्मा (Umma) से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:

  • पैगंबर मुहम्मद द्वारा स्थापित समाज को उम्मा का नाम दिया गया।
  • इसमें सभी को एक समान अधिकार प्राप्त थे।
  • इसमें लोग धर्म द्वारा एक दूसरे से जुड़े हुए थे।

प्रश्न 22.
मक्का के लोग पैगंबर मुहम्मद के विरुद्ध क्यों हुए ? कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • पैगंबर मुहम्मद मूर्ति पूजा के कटु आलोचक थे।
  • रूढ़िवादी पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं को पसंद नहीं करते थे।

प्रश्न 23.
पैगंबर मुहम्मद मक्का से मदीना कब पहुँचे ? इस घटना को इस्लाम में किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:

  • पैगंबर मुहम्मद मक्का से मदीना 2 जुलाई, 622 ई० को पहुँचे।
  • इस घटना को इस्लाम में हिज़रत के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 24.
हिज़रत से क्या अभिप्राय है ? इस्लाम में इसका क्या महत्त्व है ?
अथवा
हिज़रत से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:

  • पैगंबर मुहम्मद द्वारा मक्का से मदीना जाने की घटना को हिज़रत कहा जाता है। यह घटना 622 ई० में हुई।
  • इस वर्ष मुस्लिम कैलेंडर लागू हुआ।

प्रश्न 25.
बद्र की लड़ाई कब एवं किसके मध्य हुई ? इसमें कौन विजयी रहा ?
उत्तर:

  • बद्र की लड़ाई 13 मार्च, 624 ई० को पैगंबर मुहम्मद एवं कुरैशों के मध्य हुई।
  • इसमें पैगंबर मुहम्मद विजयी रहे।

प्रश्न 26.
पैगंबर मुहम्मद ने मक्का पर कब विजय प्राप्त की ? इस विजय का क्या महत्त्व है ?
उत्तर:

  • पैगंबर मुहम्मद ने मक्का पर 1 जनवरी, 630 ई० में विजय प्राप्त की।
  • इस शानदार विजय से पैगंबर मुहम्मद की प्रतिष्ठा में बहुत वृद्धि हुई।

प्रश्न 27.
इस्लाम धर्म के संस्थापक कौन थे ? उनकी दो शिक्षाएँ बताइए।
उत्तर:

  • इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगंबर मुहम्मद थे।
  • अल्लाह एक है। वह सर्वोच्च है।
  • लोगों को सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए।

प्रश्न 28.
इस्लाम के कोई दो स्तंभ बताएँ।
उत्तर:

  • प्रत्येक मुसलमान को एक दिन में पाँच बार नमाज़ पढ़नी चाहिए।
  • प्रत्येक मुसलमान को अपने जीवन काल में एक बार हज की यात्रा करनी चाहिए।

प्रश्न 29.
इस्लाम के धार्मिक ग्रंथ का क्या नाम है ? यह किस भाषा में है ?
अथवा
कुरान क्या है?
उत्तर:

  • इस्लाम के धार्मिक ग्रंथ का नाम कुरान है।
  • यह अरबी भाषा में है।

प्रश्न 30.
पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु कब और कहाँ हुई ?
उत्तर:
पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु 8 जून, 632 ई० को मदीना में हुई।

प्रश्न 31
उलेमा से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उलेमा मुसलमानों के धार्मिक विद्वान् थे। वे अपना समय कुरान पर टीका लिखने और मुहम्मद की प्रामाणिक उक्तियों को लेखबद्ध करने में लगाते थे। वे लोगों को शरीआ के अनुसार जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित करते थे।

प्रश्न 32.
खलीफा किसे कहा जाता था ?
उत्तर:
खलीफ़ा हज़रत मुहम्मद साहिब के उत्तराधिकारियों को कहा जाता था। उनका प्रमुख कार्य इस्लाम की रक्षा एवं प्रसार करना था।

प्रश्न 33.
पहले चार खलीफ़ाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
पहले चार खलीफ़ाओं के नाम अबू बकर, उमर, उथमान एवं अली थे।

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प्रश्न 34.
मुसलमानों का प्रथम खलीफ़ा कौन था ? उसका शासनकाल क्या था ?
उत्तर:

  • मुसलमानों का प्रथम खलीफ़ा अबू बकर था ।
  • उसका शासनकाल 632 ई० से 634 ई० तक था।

प्रश्न 35.
अबू बकर की कोई दो महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ बताएँ।
उत्तर:

  • उसने नकली पैगंबरों के विद्रोहों का दमन किया।
  • उसने सीरिया, इराक, ईरान एवं बाइजेंटाइन साम्राज्य पर विजय प्राप्त की।

प्रश्न 36.
मुसलमानों का दूसरा खलीफ़ा कौन था ? उसका शासनकाल क्या था ?
उत्तर:

  • मुसलमानों का दूसरा खलीफ़ा उमर था।
  • उसका शासनकाल 634 ई० से 644 ई० तक था।

प्रश्न 37.
खलीफ़ा उमर की कोई दो महत्त्वपूर्ण सफलताएँ लिखें।
उत्तर:

  • उसने ससानी साम्राज्य एवं बाइजेंटाइन साम्राज्य पर महत्त्वपूर्ण विजयें प्राप्त की।
  • उसने एक कुशल प्रशासन की स्थापना की।

प्रश्न 38.
हिजरी सन् से आपका क्या अभिप्राय है?
अथवा
इस्लामी पंचांग का वर्णन कीजिए।
अथवा
इस्लामी कैलेंडर के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
हिजरी सन् की स्थापना खलीफ़ा उमर ने की थी। इसका प्रथम वर्ष 622 ई० में पड़ता है। हिजरी सन् की तारीख को जब अंग्रेज़ी में लिखा जाता है तो वर्ष के बाद ए० एच० लगाया जाता है। हिज़री वर्ष चंद्र वर्ष है तथा यह 354 दिनों का होता है।

प्रश्न 39.
जकात से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
जज़िया क्या था ?
अथवा
जकात एवं जज़िया से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:

  • जकात एक धार्मिक कर था जो मुसलमानों से प्राप्त किया जाता था। यह उनकी आय का 212% होता था।
  • जज़िया एक कर था जो गैर-मुसलमानों पर लगाया जाता था। इसके बदले सरकार उन्हें उनकी संपत्ति एवं जीवन की सुरक्षा का वचन देती थी।

प्रश्न 40. धिम्मीस कौन थे ?
उत्तर:
धिम्मीस वे संरक्षित लोग थे जिन्हें अपनी संपत्ति एवं जीवन की सुरक्षा के लिए सरकार को जजिया कर देना पड़ता था।

प्रश्न 41.
खलीफ़ा उथमान की हत्या कब और क्यों की गई ?
उत्तर:

  • खलीफ़ा उथमान की हत्या 17 जून, 656 ई० में की गई।
  • इसका कारण यह था कि उसने अपने निकट संबंधियों को राज्य के उच्च पदों पर नियुक्त कर दिया था।

प्रश्न 42.
ऊँटों की लड़ाई कब एवं किनके मध्य हुई ? इसमें कौन विजयी रहा ?
उत्तर:

  • ऊँटों की लड़ाई 9 दिसंबर, 656 ई० को खलीफ़ा अली एवं पैगंबर मुहम्मद की पत्नी आयशा (Aishah) के मध्य हुई।
  • इसमें विजय अली की हुई।

प्रश्न 43.
उमय्यद वंश का संस्थापक कौन था ? इस वंश का शासनकाल बताएँ।
उत्तर:

  • उमय्यद वंश का संस्थापक मुआविया था।
  • इस वंश ने 661 ई० से 750 ई० तक शासन किया।

प्रश्न 44.
उमय्यद वंश के संस्थापक का नाम एवं उसका शासनकाल बताएँ।
उत्तर:

  • उमय्यद वंश के संस्थापक का नाम मुआविया था।
  • उसने 661 ई० से 680 ई० तक शासन किया।

प्रश्न 45.
मुआविया की दो प्रमुख उपलब्धियाँ बताएँ।
उत्तर:

  • उसने बाइजेंटाइन साम्राज्य की राजदरबारी रस्मों एवं प्रशासनिक संस्थाओं को अपनाया।
  • उसने अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से अनेक पग उठाए।

प्रश्न 46.
उमय्यद वंश का सबसे महान् खलीफ़ा कौन था ? उसका शासनकाल क्या था ?
उत्तर:

  • उमय्यद वंश का सबसे महान् खलीफ़ा अब्द-अल-मलिक था।
  • उसका शासनकाल 685 ई० से 705 ई० तक था।

प्रश्न 47.
अब्द-अल-मलिक की दो महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ बताएँ।
उत्तर:

  • उसने अरबी को प्रशासन की भाषा बनाया।
  • उसने इस्लामी सिक्के जारी किए।

प्रश्न 48.
अब्द-अल-मलिक द्वारा जारी सिक्कों की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • इन सिक्कों पर अरबी भाषा अंकित थी।
  • इन सिक्कों पर अब्द-अल-मलिक का नाम एवं उसकी तस्वीर अंकित थी।

प्रश्न 49.
डोम ऑफ़ दी रॉक नामक मस्जिद का निर्माण किसने तथा कहाँ किया था ?
उत्तर:
डोम ऑफ़ दी रॉक नामक मस्जिद का निर्माण अब्द-अल-मलिक द्वारा जेरुसलम में किया गया।

प्रश्न 50.
उमय्यद वंश के पतन के लिए जिम्मेवार कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • अधिकाँश उमय्यद खलीफ़े विलासप्रिय थे। अतः उन्होंने प्रशासन की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया।
  • उनके अधिकारी स्वार्थी हितों में अधिक व्यस्त रहते थे ।

प्रश्न 51.
अब्बासी क्राँति से आपका क्या तात्पर्य है ?
अथवा
अब्बासी क्राँति से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
अब्बासी क्राँति से हमारा तात्पर्य उस क्राँति से है जिसके अधीन अबू मुस्लिम ने खुरासान से दवा नामक आंदोलन आरंभ किया। इस क्राँति ने 750 ई० में उमय्यद वंश का अंत कर दिया एवं अब्बासी वंश की स्थापना की।

प्रश्न 52.
अब्बासी वंश की स्थापना किसने तथा कब की ?
उत्तर:
अब्बासी वंश की स्थापना 750 ई० में अबू-अल-अब्बास ने की थी।

प्रश्न 53.
खलीफ़ा अल-मंसूर की कोई दो महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ बताएँ।
उत्तर:

  • उसने बग़दाद को अब्बासी साम्राज्य की राजधानी घोषित किया।
  • उसने कला एवं शिक्षा को प्रोत्साहित किया।

प्रश्न 54.
खलीफ़ा अल-महदी का शासनकाल क्या था ? उसका शासनकाल किस लिए प्रसिद्ध था ?
उत्तर:

  • खलीफ़ा अल-महदी का शासनकाल 775 ई० से 785 ई० था।
  • उसका शासनकाल लोक भलाई कार्यों के लिए प्रसिद्ध था।

प्रश्न 55.
अब्बासी वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध खलीफ़ा कौन था ? उसका शासनकाल क्या था ?
उत्तर:

  • अब्बासी वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध खलीफ़ा हारुन-अल-रशीद था ।
  • उसका शासनकाल 786 ई० से 809 ई० तक था।

प्रश्न 56.
खलीफ़ा हारुन-अल-रशीद की दो प्रमुख उपलब्धियाँ क्या थी ?
उत्तर:

  • उलने अफ्रीका के गवर्नर याहिया-बिन-अब्दुल्ला के विद्रोह का दमन किया।
  • उसने शक्तिशाली फ्रैंक शासक शॉर्लमेन (Charlemagne) से मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित किए।

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प्रश्न 57.
खलीफ़ा अल-मामुन का शासनकाल क्या था ? उसकी कोई एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि बताएँ।
उत्तर:

  • खलीफ़ा अल-मामुन ने 813 ई० से 833 ई० तक शासन किया।
  • उसने सभी धर्मों के प्रति सहनशीलता की नीति अपनाई।

प्रश्न 58.
अब्बासी वंश के पतन के दो प्रमुख कारण लिखें।
उत्तर:

  • अल-मामुन के सभी उत्तराधिकारी अयोग्य एवं निकम्मे निकले।
  • अब्बासी साम्राज्य के गुटों में चलने वाले लगातार संघर्षों ने इसके पतन की प्रक्रिया को तीव्र कर दिया।

प्रश्न 59.
फ़ातिमी वंश का संस्थापक कौन था ? उसका शासनकाल क्या था ?
उत्तर:

  • फ़ातिमी वंश का संस्थापक अल-महदी था।
  • उसका शासनकाल 909 ई० से 934 ई० तक था।

प्रश्न 60.
गज़नवी वंश का संस्थापक कौन था ? उसने इस वंश की स्थापना कब तथा कहाँ की थी ?
उत्तर:

  • गज़नवी वंश का संस्थापक अल्पतिगीन था।
  • उसने इस वंश की स्थापना 962 ई० में गज़नी में की थी।

प्रश्न 61.
गज़नवी वंश का सबसे महान् सुल्तान कौन था ? उसका शासनकाल क्या था ?
उत्तर:

  • गज़नवी वंश का सबसे महान् सुल्तान महमूद गज़नी था।
  • उसने 998 ई० से 1030 ई० तक शासन किया

प्रश्न 62.
सल्जुक वंश की स्थापना किसने तथा कब की थी ?
उत्तर:
सल्जुक वंश की स्थापना तुग़रिल बेग एवं उसके भाई छागरी बेग ने 1037 ई० में की थी।

प्रश्न 63.
मध्यकाल में इस्लामी साम्राज्य की अर्थव्यवस्था की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • उस समय के लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था।
  • इस काल में वाणिज्य एवं व्यापार का अभूतपूर्व विकास हुआ।

प्रश्न 64.
मध्यकाल में इस्लामी प्रदेशों की कृषि की कोई दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • कृषि भूमि पर राज्य का सर्वोपरि नियंत्रण होता था।
  • सरकार द्वारा कृषि को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से किसानों को विशेष सहूलतें दी जाती थीं।

प्रश्न 65.
मध्यकाल में इस्लामी प्रदेशों में स्थित किन्हीं चार प्रसिद्ध उद्योगों के नाम बताएँ।
उत्तर:

  • कागज़ उद्योग
  • आभूषण उद्योग
  • रेशम उद्योग
  • चमड़ा उद्योग।

प्रश्न 66.
मध्यकाल में इस्लामी प्रदेशों द्वारा विदेशों को निर्यात की जाने वाली किन्हीं चार वस्तुओं के नाम लिखें।
उत्तर:

  • कागज़
  • चीनी
  • खजूर
  • बारूद।

प्रश्न 67.
मध्यकाल में इस्लामी प्रदेशों द्वारा विदेशों से आयात की जाने वाली किन्हीं चार वस्तुओं के नाम लिखें।
उत्तर:

  • रेशम
  • चाय
  • गर्म मसाले
  • सोना।

प्रश्न 68.
मध्यकाल में इस्लामी साम्राज्य में नए शहरों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य क्या था ? इन शहरों को किस नाम से जाना जाता था ?
उत्तर:

  • मध्यकाल में इस्लामी साम्राज्य में नए शहरों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य अरब सैनिकों को बसाना था।
  • इन शहरों को मिस्र के नाम से जाना जाता था।

प्रश्न 69.
मध्यकाल में इस्लामी प्रदेशों में अस्तित्व में आए चार नए शहरों के नाम बताएँ।
उत्तर:

  • कुफा
  • बसरा
  • काहिरा
  • बग़दाद।

प्रश्न 70.
मध्यकाल में इस्लामी प्रदेशों के शहरीकरण की कोई दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • इन शहरों के केंद्र में एक विशाल एवं भव्य मस्जिद का निर्माण किया जाता था।
  • प्रत्येक शहर में एक केंद्रीय मंडी एवं अन्य छोटी मंडियों का निर्माण किया जाता था।

प्रश्न 71.
सिनेगोग से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
सिनेगोग यहूदियों के प्रार्थना घर को कहा जाता था।

प्रश्न 72.
अरबों, ईरानियों व तुर्कों द्वारा स्थापित राज्यों की बहुसंस्कृति के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(i) अरब साम्राज्य में मुस्लिम, ईसाई एवं यहूदी धर्म के लोग रहते थे।
(ii) ईरानी साम्राज्य में मुस्लिम तथा एशियाई संस्कृतियों का विकास हुआ।
(iii) तुर्की साम्राज्य में मिस्री, इरानी, सीरियाई तथा भारतीय संस्कृतियों का विकास हुआ।

प्रश्न 73.
सूफ़ी कौन थे? उनकी दो शिक्षाएँ लिखें।
उत्तर:

  • सूफ़ी इस्लाम से संबंधित एक संप्रदाय था।
  • अल्लाह एक है। वह सर्वव्यापक एवं सर्वशक्तिशाली है।
  • सूफी मत में पीर को विशेष महत्त्व दिया जाता है। वह अपने शिष्यों को अंधकार से ज्योति की ओर ले जाता है।

प्रश्न 74.
राबिया कौन थी ?
उत्तर:

  • वह सूफ़ी मत से संबंधित प्रथम प्रसिद्ध महिला संत थी।
  • वह बसरा की रहने वाली थी।
  • उसने अल्लाह की प्रशंसा में अनेक छोटी कविताएँ लिखीं।

प्रश्न 75.
बयाज़िद बिस्तामी क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:

  • वह ईरान का एक प्रसिद्ध सूफ़ी संत था।
  • उसके समकालीन प्रसिद्ध सूफी संतों के साथ गहरे संबंध थे।
  • उसने फ़ना (खुदा में लीन) का उपदेश दिया।

प्रश्न 76.
धुलनुन मिस्त्री कौन था ?
उत्तर:

  • वह मिस्र का एक प्रसिद्ध सूफी संत था।
  • उसने लोगों को मानवता के साथ प्रेम का संदेश दिया।
  • उसकी 861 ई० में मिस्र में मृत्यु हो गई।

प्रश्न 77.
इब्न सिना कौन था ?
उत्तर:

  • वह मध्यकाल में अरब का एक महान् दार्शनिक एवं चिकित्सक था।
  • उसने अल-कानून-फिल-तिब नामक प्रसिद्ध चिकित्सक ग्रंथ लिखा।
  • उसे यूरोप में एविसेन्ना के नाम से जाना जाता था।

प्रश्न 78.
अबू नुवास क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:

  • वह खलीफ़ा हारुन-अल-रशीद का प्रसिद्ध दरबारी कवि था।
  • उसने दरबारी जीवन पर अनेक कविताएँ लिखीं।
  • उसने शराब एवं प्रेम जैसे अनेक इस्लाम में प्रतिबंधित विषयों को छुआ।

प्रश्न 79.
रुदकी कौन था ?
उत्तर:

  • वह समानी दरबार का एक महान् कवि था।
  • उसे नयी फ़ारसी कविता का जनक माना जाता है।
  • उसने अनेक गज़लें एवं रुबाइयाँ लिखीं।

प्रश्न 80.
उमर खय्याम क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:

  • वह अरब का एक महान् कवि, खगोल वैज्ञानिक एवं गणितज्ञ था।
  • उसने फ़ारसी में अनेक उच्च कोटि की रुबाइयाँ लिखीं।
  • उसने रिसाला नामक ग्रंथ की रचना की।

प्रश्न 81.
फिरदौसी कौन था? उसकी रचना का नाम लिखिए।
उत्तर:

  • वह महमूद गजनवी का प्रसिद्ध दरबारी कवि था।
  • उसने फ़ारसी में प्रसिद्ध ग्रंथ शाहनामा की रचना की।

प्रश्न 82.
कलीला व दिमना क्या है ?
उत्तर:
कलीला व दिमना एक पुस्तक का नाम है। इसमें जानवरों की कहानियों का संग्रह है। इब्न-अल मुक्फ्फा ने इस पुस्तक का पहलवी से अरबी में अनुवाद किया। यह मूल रूप से संस्कृत की प्रसिद्ध पुस्तक पंचतंत्र का अनुवाद है।

प्रश्न 83.
‘एक हजार एक रातें’ क्या है ?
उत्तर:
यह अनेक प्रसिद्ध कहानियों का संग्रह है। इसे अरबी रातें के नाम से भी जाना जाता है। इन कहानियों को शहरजाद द्वारा अपने पति को सुनाया गया था। इन कहानियों का उद्देश्य मनोरंजन एवं शिक्षा देना था।

प्रश्न 84.
अल-जहीज कौन था ?
उत्तर:
वह बसरा का एक प्रसिद्ध लेखक था। वह यूनानी दर्शन से बहुत प्रभावित था। उसने किताब-अल बुखाला एवं किताब-अल-हैवान नामक प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं। इनमें कंजूसों एवं जानवरों की कहानियाँ दी गई हैं।

प्रश्न 85.
ताबरी क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
वह अरब का एक महान इतिहासकार था। उसने तारीख-अल-रसल-वल मलक नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की। इसमें संसार के आरंभ से लेकर 915 ई. तक के इतिहास का वर्णन किया गया है। इसे एक प्रामाणिक एवं विश्वसनीय ग्रंथ माना जाता है। इसका अंग्रेजी में 38 खंडों में अनुवाद किया गया है।

प्रश्न 86.
अल्बरुनी कौन था? उसकी रचना का नाम लिखिए।
उत्तर:
वह 11वीं शताब्दी का एक महान् विद्वान् एवं इतिहासकार था। वह महमूद गजनवी का प्रसिद्ध दरबारी था। वह महमूद गज़नवी के साथ भारत आया था। उसने आँखों देखी घटनाओं के आधार पर तहकीक-मा-लिल हिंद नामक ग्रंथ की रचना की। इसे तारीख-ए-हिंद के नाम से भी जाना जाता है। यह 11वीं शताब्दी भारतीय इतिहास को जानने का एक प्रमुख स्रोत है।

प्रश्न 87.
मध्यकाल में इस्लामी प्रदेशों में बनाई गई मस्जिदों की कोई दो विशेषताएं बताएँ।
उत्तर:

  • प्रत्येक मस्जिद में एक खुला बरामदा होता था। यहाँ लोग नमाज पढ़ते थे।
  • प्रत्येक मस्जिद के साथ एक मीनार होती थी। यहाँ मुल्ला चढ़ कर बाँग देता था ताकि लोग नमाज़ के लिए एकत्र हो सकें।

प्रश्न 88.
धर्मयुद्ध किनके मध्य चले ? इन धर्मयुद्धों की संख्या कितनी थी ?
उत्तर:

  • धर्मयुद्ध ईसाइयों एवं मुसलमानों के मध्य चले।
  • इन धर्मयुद्धों की संख्या 8 थी।

प्रश्न 89.
धर्मयों के कोई दो प्रमख कारण लिखें।
उत्तर:

  • अरबों ने 638 ई० में जेरुसलम पर अधिकार कर लिया था। ईसाई इसे सहन करने को तैयार नहीं
  • सल्जुक तुर्क जेरुसलम में रहने वाले ईसाइयों पर घोर अत्याचार कर रहे थे।

प्रश्न 90.
प्रथम धर्मयुद्ध कब से लेकर कब तक चला ? इस धर्मयुद्ध में कौन विजयी रहा ?
उत्तर:

  • प्रथम धर्मयुद्ध 1096 ई० से 1099 ई० तक चला।
  • इस धर्मयुद्ध में ईसाई विजयी रहे।

प्रश्न 91.
द्वितीय धर्मयद्ध कब आरंभ हआ ? यह कब तक चला ?
उत्तर:

  • द्वितीय धर्मयुद्ध 1147 ई० में आरंभ हुआ।
  • यह 1149 ई० तक चला।

प्रश्न 92.
तृतीय धर्मयुद्ध कब आरंभ हुआ ? इसमें सम्मिलित किन्हीं दो यूरोपीय शासकों के नाम लिखें।
उत्तर:

  • तृतीय धर्मयुद्ध 1189 ई० में आरंभ हुआ।
  • इसमें सम्मिलित दो यूरोपीय शासकों के नाम जर्मनी का शासक फ्रेडरिक बारबरोसा एवं फ्रांस का शासक फिलिप ऑगस्ट्स था।

प्रश्न 93.
यूरोप व एशिया पर धर्मयुद्धों का क्या प्रभाव पड़ा ?
अथवा
धर्मयुद्धों के क्या परिणाम निकले ?
उत्तर:

  • धर्मयुद्धों के कारण पोप की प्रतिष्ठा में बहुत वृद्धि हुई।
  • इसने यूरोप में सामंतवाद के पतन की प्रक्रिया को तीव्र कर दिया।
  • धर्मयुद्धों के कारण ईसाइयों एवं मुसलमानों के संबंधों में कटुता आ गई।

रिका स्थान भरिए

1. अरब में इस्लाम का उदय …………….. ई० में हुआ।
उत्तर:
612

2. पैंगबर मुहम्मद का जन्म ……………. ई० में हुआ।
उत्तर:
570

3. पैगंबर मुहम्मद ने …………… के विस्तार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
उत्तर:
इस्लाम

4. पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु …………….. ई० में हुई।
उत्तर:
632

5. पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु के पश्चात् …………… संस्था का निर्माण हुआ।
उत्तर:
खिलाफ़त

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

6. बाइजेंटाइन साम्राज्य …………….. धर्म को बढ़ावा देता था।
उत्तर:
ईसाई

7. ससानी साम्राज्य …………… धर्म को संरक्षण देता था।
उत्तर:
ज़रतुश्त

8. अरब साम्राज्य में गैर-मुस्लिम लोगों को …………….. तथा …………….. कर अदा करने पड़ते थे।
उत्तर:
खराज, जज़िया

9. अरब साम्राज्य में ‘ऊँटों की लड़ाई’ …………… ई० में हुई।
उत्तर:
656

10. अब्बासी क्रांति अरब में …………….. ई० में आई।
उत्तर:
750

11. अब्बासियों ने ……………. को अपनी राजधानी घोषित किया।
उत्तर:
बग़दाद

12. गज़नी सल्तनत की स्थापना …………….. द्वारा की गई थी।
उत्तर:
अल्पतिगीन

13. खलीफ़ा अल-कायम ने ……………. को सुलतान की उपाधि प्रदान की।
उत्तर:
तुगरिल बेग

14. प्रथम धर्मयुद्ध का आरंभ …………….. ई० में हुआ।
उत्तर:
1096

15. ……………. ई० में तीसरे धर्मयुद्ध का आरंभ हुआ।
उत्तर:
1189

16. अरब साम्राज्य के लोगों का मुख्य व्यवसाय …………….. था।
उत्तर:
कृषि

17. बयाज़िद बिस्तामी सूफी संत …………….. का रहने वाला था।
उत्तर:
ईरान

18. शाहनामा नामक पुस्तक की रचना …………….. द्वारा की गई थी।
उत्तर:
फिरदौसी

19. बसरा के अल-जहीज ने …………….. पुस्तक की रचना की।
उत्तर:
किताब अल-बुखाला,

20. मंगोलों ने बगदाद पर ………….. ई० में अधिकार किया।
उत्तर:
1258

बह-विकल्पीय प्रश्न

1. केंद्रीय इस्लामी प्रदेशों की जानकारी का हमारा प्रमुख स्त्रोत क्या है ?
(क) तवारीख
(ख) कुरान
(ग) जीवनियाँ
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

2. प्रशासनिक इतिहास का बढ़िया स्त्रोत किसे माना जाता है ?
(क) पेपाइरस
(ख) सिक्के
(ग) शिलालेख
(घ) हदीथ।
उत्तर:
(क) पेपाइरस

3. इस्लाम के उदय से पूर्व अरबों के धार्मिक जीवन की प्रमुख विशेषता क्या थी ?
(क) अरब अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे
(ख) अरब मूर्तियों की उपासना करते थे ।
(ग) अरबों की तीन प्रमुख देवियां अल-उज्जा, अल-लत एवं अल-मना थीं
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

4. अरब में कबीले का मुखिया क्या कहलाता था ?
(क) शेख
(ख) मवाली
(ग) उम्मा
(घ) मुरव्वा।
उत्तर:
(क) शेख

5. अरब में किन लोगों की प्रमुखता थी ?
(क) कुरैश
(ख) बदू
(ग) मुसलमान
(घ) मवाली।
उत्तर:
(ख) बदू

6. इस्लाम का संस्थापक कौन था ?
(क) पैगंबर मुहम्मद
(ख) अबू बकर
(ग) चंगेज़ खाँ
(घ) उथमान।
उत्तर:
(क) पैगंबर मुहम्मद

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

7. इस्लाम की स्थापना कब की गई थी ?
(क) 7वीं शताब्दी में
(ख) 8वीं शताब्दी में
(ग) 9वीं शताब्दी में
(घ) 10वीं शताब्दी में।
उत्तर:
(क) 7वीं शताब्दी में

8. पैगंबर मुहम्मद का जन्म कब हुआ था ?
(क) 570 ई० पू० में
(ख) 570 ई० में
(ग) 610 ई० में
(घ) 612 ई० में।
उत्तर:
(ख) 570 ई० में

9. पैगंबर मुहम्मद का जन्म कहाँ हुआ था ?
(क) मदीना में
(ख) मक्का में
(ग) कुफा में
(घ) दमिश्क में।
उत्तर:
(ख) मक्का में

10. पैगंबर मुहम्मद का संबंध किस कबीले से था ?
(क) हाशिम
(ख) अब्बास
(ग) कुरैश
(घ) उमय्यद।
उत्तर:
(क) हाशिम

11. पैगंबर मुहम्मद को जब इलहाम प्राप्त हुआ तो उस समय उनकी आयु क्या थी ?
(क) 30 वर्ष
(ख) 35 वर्ष
(ग) 40 वर्ष
(घ) 42 वर्ष।
उत्तर:
(ग) 40 वर्ष

12. मुहम्मद साहिब ने अपने पैगंबर होने की घोषणा कब की ?
अथवा
पैगंबर मुहम्मद ने अपना प्रचार कार्य कब आरंभ किया ?
(क) 610 ई० में
(ख) 612 ई० में
(ग) 615 ई० में
(घ) 622 ई० में।
उत्तर:
(ख) 612 ई० में

13. पैगंबर मुहम्मद ने अपना प्रथम प्रवचन कहाँ किया ?
(क) मक्का में
(ख) मदीना में
(ग) ईरान में
(घ) बद्र में।
उत्तर:
(क) मक्का में

14. इस्लाम में किस घटना को हिजरत कहा जाता है ?
(क) जब पैगंबर मुहम्मद का जन्म हुआ
(ख) जब पैगंबर मुहम्मद को ज्ञान प्राप्त हुआ
(ग) जब पैगंबर मुहम्मद ने अपना प्रचार आरंभ किया
(घ) जब पैगंबर महम्मद मक्का से मदीना गए।
उत्तर:
(घ) जब पैगंबर महम्मद मक्का से मदीना गए।

15. पैगंबर मुहम्मद मक्का से मदीना कब गए ?
अथवा
पैगंबर मुहम्मद ने हिजरत कब की ?
(क) 612 ई० में
(ख) 615 ई० में
(ग) 622 ई० में
(घ) 632 ई० में।
उत्तर:
(ग) 622 ई० में

16. इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत कब से हुई ?
(क) 622 ई० में
(ख) 632 ई० में
(ग) 570 ई० में
(घ) 612 ई० में।
उत्तर:
(क) 622 ई० में

17. बद्र की लड़ाई कब हुई थी ?
(क) 612 ई० में
(ख) 622 ई० में
(ग) 624 ई० में
(घ) 634 ई० में।
उत्तर:
(ग) 624 ई० में

18. पैगंबर महम्मद ने मक्का पर कब विजय प्राप्त की ?
(क) 627 ई० में
(ख) 628 ई० में
(ग) 630 ई० में
(घ) 635 ई० में।
उत्तर:
(ग) 630 ई० में

19. पैगंबर मुहम्मद ने किसे इस्लामी साम्राज्य की राजधानी घोषित किया ?
(क) काबा को
(ख) मक्का को
(ग) मदीना को
(घ) जेरुसलम को।
उत्तर:
(ग) मदीना को

20. पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु कब हुई थी ?
(क) 612 ई० में
(ख) 622 ई० में
(ग) 632 ई० में
(घ) 637 ई० में।
उत्तर:
(ग) 632 ई० में

21. पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु कहाँ हुई थी ?
(क) ईरान में
(ख) मदीना में
(ग) मक्का में
(घ) सीरिया में।
उत्तर:
(ख) मदीना में

22. इस्लाम की धार्मिक पुस्तक है
(क) सुन्नत
(ख) हदीस
(ग) कुरान
(घ) कयास।
उत्तर:
(ग) कुरान

23. कुरान किस भाषा में लिखी गई थी ?
(क) उर्दू में
(ख) फ़ारसी में
(ग) अरबी में
(घ) अंग्रेजी में।
उत्तर:
(ग) अरबी में

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24. पैगंबर मुहम्मद के उपदेशों का संग्रह किस नाम से जाना जाता है ?
(क) कुरान
(ख) हदीस
(ग) सुन्नत
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(क) कुरान

25. पैगंबर मुहम्मद की शिक्षा थी
(क) अल्लाह एक है
(ख) मूर्ति पूजा मत करो
(ग) पवित्र जीवन व्यतीत करो
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

26. प्रत्येक मुसलमान के लिए एक दिन में कितनी बार नमाज पढ़ना आवश्यक है ?
(क) एक बार
(ख) दो बार
(ग) पाँच बार
(घ) सात बार।
उत्तर:
(ग) पाँच बार

27. खिलाफ़त का उद्देश्य क्या था ?
(क) इस्लाम की रक्षा एवं प्रसार करना
(ख) कबीलों पर नियंत्रण स्थापित करना
(ग) राज्य के लिए संसाधन जुटाना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

28. मुसलमानों का प्रथम खलीफ़ा कौन था ?
(क) अबू बकर
(ख) उमर
(ग) अली
(घ) उथमान।
उत्तर:
(क) अबू बकर

29. अबू बकर मुसलमानों का प्रथम खलीफ़ा कब नियुक्त हुआ था ?
(क) 622 ई० में
(ख) 632 ई० में
(ग) 634 ई० में
(घ) 642 ई० में।
उत्तर:
(ख) 632 ई० में

30. निम्नलिखित में से कौन-सा कर गैर-मुसलमानों से प्राप्त किया जाता था ?
(क) जकात
(ख) जज़िया
(ग) फे
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) जज़िया

31. भिम्मीस से क्या अभिप्राय है ?
(क) ये संरक्षित लोग थे
(ख) ये जिला अधिकारी थे
(ग) ये भू-राजस्व अधिकारी थे
(घ) ये शासक वर्ग से संबंधित थे।
उत्तर:
(क) ये संरक्षित लोग थे

32. ऊँटों की लड़ाई कब हुई ?
(क) 644 ई० में
(ख) 645 ई० में
(ग) 656 ई० में
(घ) 657 ई० में।
उत्तर:
(ग) 656 ई० में

33. उमय्यद वंश का संस्थापक कौन था ?
(क) अली
(ख) उथमान
(ग) मुआविया
(घ) अल मंसूर।
उत्तर:
(ग) मुआविया

34. निम्नलिखित में से किस खलीफ़ा ने दमिश्क को अपनी राजधानी बनाया ?
(क) मुआविया
(ख) अली
(ग) अब्द-अल-मलिक
(घ) याजिद।
उत्तर:
(क) मुआविया

35. उमय्यद वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध खलीफ़ा कौन था ?
(क) मुआविया
(ख) अब्द-अल-मलिक
(ग) याजिद
(घ) सुलेमान।
उत्तर:
(ख) अब्द-अल-मलिक

36. उस खलीफ़ा का नाम बताएं जिसे ‘राजाओं का पिता’ कहा जाता था।
अथवा
उस खलीफ़ा का नाम बताएँ जिसने इस्लामी सिक्कों का प्रचलन किया।
(क) अब्द-अल-मलिक
(ख) अल मंसूर
(ग) अल महदी
(घ) उथमान।
उत्तर:
(क) अब्द-अल-मलिक

37. अब्द-अल-मलिक ने ‘डोम ऑफ़ दी रॉक’ नामक प्रसिद्ध मस्जिद का निर्माण कहाँ करवाया था ?
(क) मदीना में
(ख) समारा में
(ग) जेरुसलम में
(घ) बग़दाद में।
उत्तर:
(ग) जेरुसलम में

38. अब्द-अल-मलिक के सिक्कों पर कौन-सी भाषा अंकित थी ?
(क) उर्दू
(ख) अरबी
(ग) फ़ारसी
(घ) पहलवी।
उत्तर:
(ख) अरबी

39. उमय्यद वंश का अंतिम खलीफ़ा कौन था ?
(क) मुआविया
(ख) अब्द-अल-मलिक
(ग) वालिद द्वितीय
(घ) मारवान द्वितीय।
उत्तर:
(घ) मारवान द्वितीय।

40. उमय्यद वंश के पतन के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा कारण उत्तरदायी था ?
(क) उमय्यद वंश के अधिकाँश खलीफे विलासप्रिय थे
(ख) उमय्यद वंश के अधिकारी स्वार्थी थे
(ग) शिया वंश के लोग उमय्यद शासन के कट्टर विरोधी थे
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

41. किस आंदोलन ने उमय्यद वंश को उखाड़ फेंका ?
(क) दवा
(ख) धर्मयुद्ध
(ग) जिहाद
(घ) मवाली।
उत्तर:
(क) दवा

42. अब्बासी वंश का संस्थापक कौन था ?
(क) अबू बकर
(ख) अली
(ग) मुआविया
(घ) अबू-अल-अब्बास।
उत्तर:
(घ) अबू-अल-अब्बास।

43. अब्बासी कौन थे ?
(क) पैगंबर मुहम्मद के चाचा अल-अब्बास के वंशज
(ख) पैगंबर मुहम्मद की पुत्री फ़ातिमा के वंशज
(ग) अबू बकर के वंशज
(घ) अब्बास नगर के निवासी।
उत्तर:
(क) पैगंबर मुहम्मद के चाचा अल-अब्बास के वंशज

44. अब्बासियों की राजधानी का नाम क्या था ?
(क) बग़दाद
(ख) कुफा
(ग) मक्का
(घ) मदीना।
उत्तर:
(क) बग़दाद

45. अब्बासी वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध खलीफ़ा कौन था ?
(क) अबू-अल-अब्बास
(ख) हारुन-अल-रशीद
(ग) अल-अमीन
(घ) अल-मामुन।
उत्तर:
(ख) हारुन-अल-रशीद

46. किस मंगोल नेता ने 1258 ई० में बग़दाद पर कब्जा कर लिया था ?
(क) चंगेज़ खाँ ने
(ख) हुलेगू ने
(ग) अब्दुल्ला ने
(घ) कुबलई खाँ ने।
उत्तर:
(ख) हुलेगू ने

47. ताहिरी वंश का संस्थापक कौन था ?
(क) ताहिर
(ख) याकूब
(ग) तलहा
(घ) अल्पतिगीन।
उत्तर:
(क) ताहिर

48. तुलुनी वंश की स्थापना कहाँ हुई थी ?
(क) मिस्र में
(ख) खुरासान में
(ग) ट्रांसोक्सियाना में
(घ) समरकंद में।
उत्तर:
(क) मिस्र में

49. बुवाही वंश की स्थापना कहाँ की गई थी ?
(क) डेलाम में
(ख) काहिरा में
(ग) समरकंद में
(घ) फुस्तात में।
उत्तर:
(क) डेलाम में

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50. फ़ातिमी वंश की राजधानी का नाम क्या था ?
(क) बग़दाद
(ख) कुफा
(ग) काहिरा
(घ) दमिश्क।
उत्तर:
(ग) काहिरा

51. फ़ातिमा कौन थी ?
(क) पैगंबर मुहम्मद की बेटी
(ख) खलीफ़ा उमर की बेटी
(ग) फ़ातिमी वंश की संस्थापक
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) पैगंबर मुहम्मद की बेटी

52. गजनवी वंश का संस्थापक कौन था ?
(क) सुबकतिगीन
(ख) अल्पतिगीन
(ग) महमूद गज़नवी
(घ) अल्प अरसलन।
उत्तर:
(ख) अल्पतिगीन

53. सल्जुक तुर्कों ने किसे अपनी राजधानी घोषित किया था ?
(क) बग़दाद को
(ख) काहिरा को
(ग) निशापुर को
(घ) मक्का को।
उत्तर:
(ग) निशापुर को

54. केंद्रीय इस्लामी प्रदेशों के लोगों का मुख्य व्यवसाय क्या था ?
(क) कृषि
(ख) व्यापार
(ग) उद्योग
(घ) पशुपालन।
उत्तर:
(क) कृषि

55. अरब की सबसे प्रसिद्ध पैदावार क्या थी ?
(क) खजूर
(ख) कपास
(ग) चाय
(घ) पटसन।
उत्तर:
(क) खजूर

56. मध्यकाल में समरकंद किस उद्योग के लिए प्रसिद्ध था ?
(क) कागज़ उद्योग
(ख) आभूषण उद्योग
(ग) वस्त्र उद्योग
(घ) चमड़ा उद्योग।
उत्तर:
(क) कागज़ उद्योग

57. केंद्रीय इस्लामी प्रदेशों में निम्नलिखित में से कौन-सा नगर व्यापार के लिए प्रसिद्ध था ?
(क) बगदाद
(ख) दमिश्क
(ग) अलेपो
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

58. बसरा शहर कहाँ स्थित है ?
(क) ईरान में
(ख) इराक में
(ग) मिस्र में
(घ) चीन में।
उत्तर:
(ख) इराक में

59. काहिरा शहर कहाँ स्थित है ?
(क) फ्राँस में
(ख) इराक में
(ग) इटली में
(घ) मिस्र में।
उत्तर:
(घ) मिस्र में।

60. केंद्रीय इस्लामी प्रदेशों में किस प्रकार के सिक्के प्रचलित थे ?
(क) स्वर्ण
(ख) चाँदी
(ग) ताँबा
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

61. केंद्रीय इस्लामी प्रदेश स्वर्ण कहाँ से प्राप्त करते थे ?
(क) एशिया से
(ख) अफ्रीका से
(ग) अमरीका से
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(ख) अफ्रीका से

62. गेनिज़ा अभिलेख कहाँ से प्राप्त हुए थे ?
(क) फुस्तात से
(ख) काहिरा से
(ग) बग़दाद से
(घ) समरकंद से।
उत्तर:
(क) फुस्तात से

63. राबिया कहाँ की प्रसिद्ध महिला संत थी ?
(क) कुफा की
(ख) बसरा की
(ग) बग़दाद की
(घ) समरकंद की।
उत्तर:
(ख) बसरा की

64. बयाजिद बिस्तामी का संबंध किस देश से था ?
(क) ईरान से
(ख) इराक से
(ग) स्पेन से
(घ) अफ़गानिस्तान से।
उत्तर:
(क) ईरान से

65. निम्नलिखित में से कौन काहिरा का प्रसिद्ध सूफी संत था ?
(क) बयाज़िद बिस्तामी
(ख) धुलनुन मिस्त्री
(ग) इन-अल-फ़रीद
(घ) मंसूर-अल-हल्लाज।
उत्तर:
(ग) इन-अल-फ़रीद

66. इब्न सिना को यूरोप में किस नाम से जाना जाता था ?
(क) ताबरी
(ख) बालाधुरी
(ग) एविसेन्ना
(घ) अबू नुवास।
उत्तर:
(ग) एविसेन्ना

67. उमर ख्य्याम का नाम क्यों प्रसिद्ध है ?
(क) नाटकों के लिए
(ख) कहानियों के लिए
(ग) गज़लों के लिए
(घ) रुबाइयों के लिए।
उत्तर:
(घ) रुबाइयों के लिए।

68. उमर खय्याम द्वारा लिखित पुस्तक का नाम क्या था ?
(क) शाहनामा
(ख) पंचतंत्र
(ग) एक हजार एक रातें
(घ) रिसाला।
उत्तर:
(घ) रिसाला।

69. शाहनामा का लेखक कौन था ?
(क) फिरदौसी
(ख) रुदकी
(ग) मसूदी
(घ) अल-जहीज।
उत्तर:
(क) फिरदौसी

70. ‘एक हजार एक रातें’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना किस भाषा में की गई थी ?
(क) फ़ारसी में
(ख) अरबी में
(ग) पहलवी में
(घ) उर्दू में।
उत्तर:
(क) फ़ारसी में

71. अल-जहीज़ कहाँ का प्रसिद्ध लेखक था ?
(क) काहिरा का
(ख) कुफा का
(ग) बग़दाद का
(घ) बसरा का।
उत्तर:
(घ) बसरा का।

72. अरब का महान् इतिहासकार किसे माना जाता है ?
(क) ताबरी को
(ख) अल्बरुनी को
(ग) मुकदसी को
(घ) अल-जहीज को।
उत्तर:
(क) ताबरी को

73. ताबरी की प्रसिद्ध रचना का नाम क्या है ?
(क) तहकीक मा लिल हिंद
(ख) तारीख अल-रसूल वल मुलक
(ग) किताब-अल-हैवान
(घ) अहसान-अल-तकसीम।
उत्तर:
(ख) तारीख अल-रसूल वल मुलक

74. ‘तहकीक-मा-लिल हिंद’ का लेखक कौन था ?
(क) अल्बरुनी
(ख) मसूदी
(ग) बालाधुरी
(घ) अल-जहीज।
उत्तर:
(क) अल्बरुनी

75. डोम ऑफ़ दी रॉक नामक प्रसिद्ध मस्जिद का निर्माण कहाँ किया गया था ?
(क) बगदाद में
(ख) काहिरा में
(ग) जेरुसलम में
(घ) कुफा में।
उत्तर:
(ग) जेरुसलम में

76. धर्मयुद्ध किनके मध्य हुए?
(क) यहूदियों एवं ईसाइयों के मध्य
(ख) ईसाइयों एवं मुसलमानों के मध्य
(ग) पारसियों एवं मुसलमानों के मध्य
(घ) मुसलमानों एवं हिंदुओं के मध्य।
उत्तर:
(ख) ईसाइयों एवं मुसलमानों के मध्य

77. किस स्थान को लेकर ईसाइयों एवं मुसलमानों के मध्य धर्मयुद्ध हुए ?
(क) बगदाद
(ख) मक्का
(ग) मदीना
(घ) जेरुसलम।
उत्तर:
(घ) जेरुसलम।

78. प्रथम धर्मयुद्ध कब आरंभ हुआ?
(क) 1095 ई० में
(ख) 1096 ई० में
(ग) 1097 ई० में
(घ) 1098 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1096 ई० में

79. प्रथम धर्मयुद्ध के दौरान निम्नलिखित में से किसकी पराजय हुई ?
(क) ईसाइयों की
(ख) मुसलमानों की
(ग) पारसियों की
(घ) यहूदियों की।
उत्तर:
(ख) मुसलमानों की

80. द्वितीय धर्मयुद्ध कब से लेकर कब तक चला?
(क) 1144 ई० से 1149 ई० तक
(ख) 1145 ई० से 1147 ई० तक
(ग) 1146 ई० से 1150 ई० तक
(घ) 1147 ई० से 1149 ई० तक।
उत्तर:
(घ) 1147 ई० से 1149 ई० तक।

81. सलादीन कहाँ का शासक था?
(क) मिस्र का
(ख) बग़दाद का
(ग) रोम का
(घ) फ्राँस का।
उत्तर:
(क) मिस्र का

82. तृतीय धर्मयुद्ध कब आरंभ हुआ था?
(क) 1187 ई० में
(ख) 1189 ई० में
(ग) 1191 ई० में
(घ) 1291 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1189 ई० में

83. ईसाइयों एवं मुसलमानों में कुल कितने धर्मयुद्ध हुए थे?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) आठ।
उत्तर:
(घ) आठ।

इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई० HBSE 11th Class History Notes

→ सातवीं शताब्दी ई० में इस्लाम के उदय से पूर्व अरब सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में बहुत पिछड़ा हुआ था। अरब के बदू लोग खानाबदोशी जीवन व्यतीत करते थे। लूटमार करना एवं आपस में झगड़ना उनके लिए एक सामान्य बात थी।

→  समाज में स्त्रियों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। लोगों का नैतिक स्तर अपने न्यूनतम स्तर पर था।

→ समाज में दासों के साथ बहुत क्रूर व्यवहार किया जाता था। उस समय अरब में कृषि, उद्योग एवं व्यापार उन्नत न थे। अरब लोगों में मूर्ति पूजा का व्यापक प्रचलन था तथा वे अंध-विश्वासों में विश्वास रखते थे।

→ उस समय अरब लोग अनेक कबीलों में बँटे हुए थे। प्रत्येक कबीले का मुखिया एक शेख होता था। उसका चुनाव व्यक्तिगत साहस एवं बुद्धिमत्ता के आधार पर किया जाता था।

→ 570 ई० में इस्लाम के संस्थापक पैगंबर मुहम्मद का जन्म कुरैश कबीले में हुआ। माता-पिता की शीघ्र मृत्यु के कारण उनका बचपन अनेक कठिनाइयों में व्यतीत हुआ। 595 ई० में खदीजा के साथ उनका विवाह उनके जीवन में एक नया मोड़ प्रमाणित हुआ। 610 ई० में पैगंबर मुहम्मद को मक्का की हीरा नामक गुफ़ा में नया ज्ञान प्राप्त हुआ।

→ यह ज्ञान उन्हें महादूत जिबरील ने दिया। 612 ई० में पैगंबर मुहम्मद ने मक्का में अपना प्रथम सार्वजनिक उपदेश दिया। इस अवसर पर उन्होंने एक नए समाज का गठन किया जिसे उम्मा का नाम दिया गया।

→ मक्का के लोग पैगंबर मुहम्मद के विचारों से सहमत न थे। अत: वे उसके दुश्मन बन गए। बाध्य होकर 622 ई० में पैगंबर मुहम्मद ने मक्का से मदीना को हिज़रत की। 630 ई० में उन्होंने मक्का पर विजय प्राप्त की। निस्संदेह यह उनके जीवन की एक महान् सफलता थी।

→ पैगंबर मुहम्मद ने लोगों को एक अल्लाह, आपसी भाईचारे, सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करने एवं स्त्रियों का सम्मान करने का संदेश दिया। उनकी इन शिक्षाओं का लोगों के दिलों पर जादुई प्रभाव पड़ा एवं वे बड़ी संख्या में इस्लाम में सम्मिलित हुए। 632 ई० में पैगंबर मुहम्मद हमें सदैव के लिए अलविदा कह गए।

→ पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु के पश्चात् खिलाफ़त संस्था का उदय हुआ। इसका प्रमुख उद्देश्य इस्लाम का प्रसार करना एवं कबीलों पर नियंत्रण रखना था। 632 ई० से लेकर 661 ई० के मध्य चार खलीफ़ों-अबू बकर, उमर, उथमान एवं अली ने शासन किया। इन खलीफ़ों ने इस्लाम के प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दिया।

→ ये सभी खलीफ़े पैगंबर मुहम्मद के निकट संबंधी थे। 661 ई० में मुआविया ने उमय्यद वंश की स्थापना की। उसने दमिश्क को इस्लामी साम्राज्य की राजधानी घोषित किया। उमय्यद वंश का सबसे महान् खलीफ़ा अब्द-अल-मलिक था। उसने 685 ई० से 705 ई० तक शासन किया।

→ उसने इस्लामी सिक्के चलाए, अरबी को राज्य की भाषा घोषित किया एवं जेरुसलम में प्रसिद्ध डोम ऑफ़ दी रॉक नामक मस्जिद का निर्माण किया। उमय्यद वंश के शासकों ने 750 ई० तक

→ शासन किया। 750 ई० में अबू-अल-अब्बास ने अब्बासी वंश की स्थापना की। इस वंश के शासकों ने 1258 ई० तक शासन किया। हारुन-अल-रशीद (786-809 ई०) अब्बासी वंश का सबसे महान् खलीफ़ा प्रमाणित हुआ। 9वीं शताब्दी में अब्बासी साम्राज्य का विखंडन आरंभ हो गया था।

→ अतः अनेक सल्तनतों का उदय हुआ। इनमें ताहिरी वंश (820-873 ई०), समानी वंश (874-999 ई०), तुलुनी वंश (868-905 ई०), बुवाही वंश (932-1055 ई०), फ़ातिमी वंश (909-1171 ई०), गज़नवी वंश (962-1186 ई०) एवं सल्जुक वंश (1037-1300 ई०) के नाम उल्लेखनीय हैं।

→ मध्यकालीन इस्लामी देशों की अर्थव्यवस्था काफी प्रफुल्लित थी। इसका कारण यह था कि उन्होंने कृषि एवं उद्योग के क्षेत्र में काफी प्रगति कर ली थी। इस कारण उनके व्यापार को एक नई दिशा प्राप्त हुई। इस काल में सूफ़ी मत का उत्थान हुआ। राबिया, बयाज़िद बिस्तामी, धुलनुन मिस्त्री, मंसूर-अल-हल्लाज़ एवं इब्न-अल-फरीद सूफी मत के लोकप्रिय संत थे।

→ सूफ़ी मत की शिक्षाएँ अत्यंत साधारण थीं। अत: इनका लोगों पर जादुई प्रभाव पड़ा। इस काल में साहित्य के क्षेत्र में अद्वितीय प्रगति हुई। इब्न सिना, अबु नुवास, रुदकी, उमर खय्याम, फिरदौसी, इब्न अल-मुक्फ्फा , अल जहीज, बालाधुरी, ताबरी एवं मसूदी आदि लेखकों ने साहित्य के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान दिया।

→ 1096 ई० से 1272 ई० के मध्य ईसाइयों एवं मुसलमानों में 8 धर्मयुद्ध लड़े गए। इन धर्मयुद्धों का उद्देश्य ईसाइयों द्वारा अपनी पवित्र भूमि जेरुसलम को मुसलमानों के कब्जे से स्वतंत्र करवाना था। इन धर्मयुद्धों के अंत में ईसाई विफल रहे। इन धर्मयुद्धों के दूरगामी परिणाम निकले।

→ 600 ई० से 1200 ई० के दौरान केंद्रीय इस्लामी प्रदेशों के इतिहास की जानकारी के लिए हमें बड़ी संख्या में विभिन्न स्रोत उपलब्ध हैं। इनमें सर्वाधिक उल्लेखनीय ऐतिहासिक एवं अर्ध-ऐतिहासिक रचनाएँ हैं। इनमें से अधिकाँश रचनाएँ अरबी (Arabic) भाषा में हैं।

→ इनमें सर्वाधिक उल्लेखनीय ताबरी (Tabri) की तारीख अल रसूल वल मुलक (Tarikh al-Rasul-Wal Muluk) है। इसमें इस्लामी इतिहास पर बहुमूल्य प्रकाश डाला गया है। अरबी की तुलना में फ़ारसी में लिखे गए ऐतिहासिक ग्रंथ बहुत कम हैं।

→ ये ग्रंथ ईरान एवं मध्य एशिया के इतिहास के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं। सीरियाक (Syriac) भाषा में लिखे गए ईसाई ग्रंथ भी कम संख्या में हैं किंतु ये आरंभिक इस्लाम के इतिहास के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। अर्ध-ऐतिहासिक रचनाओं में जीवन चरित (biographies), पैगंबर मुहम्मद के कथनों एवं कार्यों के रिकॉर्ड (हदीथ) एवं कुरान की टीकाएँ (commentaries) सम्मिलित हैं।

→ इनके अतिरिक्त उस समय की प्रसिद्ध कानूनी पुस्तकें, भूगोल, यात्रा वृतांत एवं साहित्यिक रचनाएँ भी इस्लामी इतिहास के बारे में जानकारी प्रदान करती हैं।

→ दस्तावेज़ी साक्ष्य (documentary evidence) भी इस्लामी इतिहास के बारे में महत्त्वपूर्ण रोशनी डालते हैं। इनसे हमें उस काल की महत्त्वपूर्ण राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं धार्मिक जानकारी प्राप्त होती है। इनका महत्त्व इस बात में है कि ये अपने मूल रूप में उपलब्ध हैं तथा इनमें मनमाने ढंग से परिवर्तन नहीं किया जा सकता।

→ प्रशासनिक इतिहास की जानकारी के लिए यूनानी एवं अरबी पैपाइरस (papyri) तथा गेनिज़ा अभिलेख (Geniza records) काफी उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। मुद्राशास्त्र (सिक्कों का अध्ययन) तथा पुरालेखशास्त्र (शिलालेखों का अध्ययन) उस काल के आर्थिक, राजनीतिक एवं कला इतिहास की महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।

→ वास्तव में इस्लाम के इतिहास ग्रंथ लिखे जाने का कार्य 19वीं शताब्दी में जर्मनी एवं नीदरलैंड के विश्वविद्यालयों के अध्यापकों द्वारा आरंभ किया गया। फ्राँसीसी एवं ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने भी औपनिवेशिक हितों के चलते इस्लाम का अध्ययन किया। ईसाई पादरियों ने भी इस्लाम से संबंधित कुछ पुस्तकें लिखीं।

→ इनका उद्देश्य यद्यपि इस्लाम का ईसाई धर्म से तुलना करना था। इग्नाज़ गोल्डज़िहर (Ignaz Goldziher) जो कि हंगरी का एक प्रसिद्ध यहूदी था

→ हिरा के इस्लामी कॉलेज में अध्ययन किया। उसने जर्मन भाषा में इस्लाम से संबंधित अनेक पुस्तकों की रचना की। इन विद्वानों को अरबी एवं फ़ारसी भाषा की अच्छी जानकारी थी। इन्हें प्राच्यविद (Orientalists) कहा जाता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. अपवाह शब्द व्याख्या करता है
(A) नदी तंत्र की
(B) पर्वत श्रृंखला की
(C) वायुमंडल की
(D) प्राणी मंडल की
उत्तर:
(A) नदी तंत्र की

2. भारतीय नदियों को कितने अपवाह तंत्रों में बाँटा गया है?
(A) 1
(B) 2
(C) 3
(D) 4
उत्तर:
(B) 2

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र

3. हिमालय से निकलने वाली नदी है-
(A) सिंधु
(B) ब्रह्मपुत्र
(C) गंगा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

4. सिंधु नदी का उद्गम होता है
(A) गंगोत्री से
(B) यमुनोत्री से
(C) मानसरोवर झील के निकट तिब्बत से
(D) अमरकंटक से
उत्तर:
(C) मानसरोवर झील के निकट तिब्बत से

5. गंगा का उद्गम स्थल है
(A) देवप्रयाग
(B) अमरकंटक
(C) मानसरोवर
(D) गंगोत्री
उत्तर:
(D) गंगोत्री

6. यमुना का उद्गम स्थल है
(A) यमुनोत्री
(B) गंगोत्री
(C) देवप्रयाग
(D) इलाहाबाद
उत्तर:
(A) यमुनोत्री

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र

7. प्रायद्वीपीय उच्च भूमि से आने वाली गंगा की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं
(A) चंबल
(B) बेतवा
(C) सोन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

8. ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम स्थल है-
(A) अमरकंटक
(B) गंगोत्री
(C) तिब्बत में मानसरोवर झील के पूर्व में
(D) नेपाल में
उत्तर:
(C) तिब्बत में मानसरोवर झील के पूर्व में

9. खारे पानी की झील है
(A) डल झील
(B) चिल्का झील
(C) सांभर झील
(D) पुलीकट झील
उत्तर:
(C) सांभर झील

10. निम्नलिखित में से कौन-सी मीठे पानी की झील है?
(A) डल
(B) भीमताल
(C) बड़ापानी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

11. निम्नलिखित में से कौन-सी मानव-निर्मित झील है?
(A) गुरुगोबिंद सागर झील
(B) डल झील
(C) वूलर झील.
(D) भीमताल
उत्तर:
(A) गुरुगोबिंद सागर झील

12. प्रायद्वीपीय भारत की कौन-सी नदी पूर्व की ओर बहती है?
(A) ताप्ती
(B) महानदी
(C) नर्मदा
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) महानदी

13. गंगा नदी पर कौन-सी प्रांतीय राजधानी स्थित है?
(A) पटना
(B) कोलकाता
(C) लखनऊ
(D) भुवनेश्वर
उत्तर:
(A) पटना

14. जोग प्रपात किस नदी से संबंधित है?
(A) गोदावरी
(B) महानदी
(C) शरवती
(D) नर्मदा
उत्तर:
(C) शरवती

15. निम्नलिखित में से कौन-सी नदी अरब सागर में गिरती है?
(A) गोदावरी
(B) महानदी
(C) कृष्णा
(D) माही
उत्तर:
(D) माही

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र

16. ‘दक्षिण की गंगा’ या ‘वृद्ध गंगा’ किस नदी को कहा जाता है?
(A) गोदावरी
(B) कृष्णा
(C) महानदी
(D) कावेरी
उत्तर:
(A) गोदावरी

17. निम्नलिखित में से कौन-सी खारे पानी की झील है?
(A) सांभर
(B) वूलर
(C) डल
(D) गोविंद सागर
उत्तर:
(A) सांभर

18. निम्नलिखित में से कौन-सी नदी मैकाल श्रेणी से नहीं निकलती?
(A) तापी
(B) नर्मदा
(C) सोन
(D) महानदी
उत्तर:
(A) तापी

19. कौन-सी नदी गंगा के बाएं किनारे पर नहीं मिलती है?
(A) चंबल
(B) गोमती
(C) घाघरा
(D) कोसी
उत्तर:
(A) चंबल

20. काली और तिस्ता नदियों के बीच हिमालय का कौन-सा भाग पड़ता है?
(A) पंजाब हिमालय
(B) कुमाऊं हिमालय
(C) नेपाल हिमालय
(D) असम हिमालय
उत्तर:
(C) नेपाल हिमालय

21. अमरकंटक पठार से कौन-सी नदी नहीं निकलती?
(A) सोन
(B) गोदावरी
(C) नर्मदा
(D) महानदी
उत्तर:
(B) गोदावरी

22. निम्नलिखित में से कौन-सी नदी डेल्टा नहीं बनाती?
(A) गंगा
(B) गोदावरी
(C) तापी/ताप्ती
(D) महानदी
उत्तर:
(C) तापी/ताप्ती

23. हिमालय से निकलने वाली निम्नलिखित नदियों में से कौन-सी एक पूर्ववर्ती नदी है?
(A) घाघरा
(B) घाघर
(C) यमुना
(D) सतलुज
उत्तर:
(D) सतलुज

24. चेमयुंगडुंग हिमनद से कौन-सी नदी निकलती है?
(A) घाघरा
(B) ब्रह्मपुत्र
(C) लोहित
(D) बूढ़ी दिहिंग
उत्तर:
(B) ब्रह्मपुत्र

25. चिल्का झील स्थित है-
(A) कर्नाटक तट पर
(B) उत्तरी सरकार तट पर
(C) कोंकण तट पर
(D) मालाबार तट पर
उत्तर:
(B) उत्तरी सरकार तट पर

26. ‘दक्षिण का उद्यान’ कहा जाने वाला तंजाऊर जिला किस नदी के डेल्टा में बसा है?
(A) पेन्नार
(B) कावेरी
(C) बैगाई
(D) कृष्णा
उत्तर:
(B) कावेरी

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
भारत की नदियों के दो बड़े वर्ग कौन-से हैं?
उत्तर:

  1. हिमालय की नदियाँ
  2. प्रायद्वीपीय नदियाँ।

प्रश्न 2.
सिन्धु नदी का उद्गम क्षेत्र बताइए।
उत्तर:
तिब्बत में मानसरोवर झील के निकट।

प्रश्न 3.
ब्रह्मपुत्र नदी ने किस पर्वत-चोटी के पास महाखण्ड (Gorge) बनाया है?
उत्तर:
नामचा बरवा।

प्रश्न 4.
बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र नदी किस नाम से प्रवेश करती है?
उत्तर:
जमना।

प्रश्न 5.
गंगा की उन दो शीर्ष नदियों के नाम बताइए, जो देवप्रयाग में एक-दूसरे से मिलती हैं?
उत्तर:
अलकनन्दा तथा भागीरथी।

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प्रश्न 6.
गंगा किस स्थान पर मैदानी भाग में प्रवेश करती है?
उत्तर:
हरिद्वार।

प्रश्न 7.
गंगा के बाएँ किनारे की मुख्य सहायक नदियों के नाम बताइए।
अथवा
गंगा नदी की दो सहायक नदियों के नाम लिखें।
उत्तर:
रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी।

प्रश्न 8.
प्रायद्वीपीय भारत का सबसे बड़ा तंत्र कौन-सा है?
उत्तर:
गोदावरी।

प्रश्न 9.
प्रायद्वीपीय भारत की कौन-सी नदी को ‘वृद्ध गंगा’ या ‘दक्षिणी गंगा’ कहा जाता है?
उत्तर:
गोदावरी।

प्रश्न 10.
प्रायद्वीपीय भारत की अरब सागर में गिरने वाली दो सबसे बड़ी नदियों के नाम बताएँ।
उत्तर:
नर्मदा, ताप्ती।

प्रश्न 11.
तिब्बत में सिंधु नदी को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
सिंगी खंबान या शेरमुख।

प्रश्न 12.
दरार घाटियों में बहने वाली दो नदियों के नाम लिखें।
उत्तर:
नर्मदा और ताप्ती।

प्रश्न 13.
उत्तरी भारत की नदियों तथा प्रायद्वीपीय भारत की नदियों के मध्य जल-विभाजक का नाम बताएँ।
उत्तर:
विन्ध्य-सतपुड़ा श्रेणी।

प्रश्न 14.
एक ट्रांस हिमालयी नदी का नाम बताएँ जो सिन्धु की सहायक नदी बनती है?
उत्तर:
सतलुज।

प्रश्न 15.
प्रायद्वीपीय भारत की सबसे लम्बी नदी का नाम बताएँ।
उत्तर:
गोदावरी।

प्रश्न 16.
दक्षिणी भारत की कौन-सी नदी ज्वारनदमुख बनाती है?
उत्तर:
नर्मदा।

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प्रश्न 17.
कृष्णा नदी कहाँ-से निकलती है?
उत्तर:
महाबलेश्वर से।

प्रश्न 18.
बांग्लादेश में गंगा नदी किस नाम से बहती है?
उत्तर:
पद्मा के नाम से।

प्रश्न 19.
प्रायद्वीपीय भारत की बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों के नाम लिखें।
उत्तर:
महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी।

प्रश्न 20.
जल संभर क्षेत्र के आकार के आधार पर भारतीय अपवाह द्रोणियों को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
तीन भागों में।

प्रश्न 21.
पूर्ववर्ती जल-प्रवाह के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सिन्धु नदी, ब्रह्मपुत्र नदी, सतलुज नदी इत्यादि।

प्रश्न 22.
झेलम नदी कहाँ से निकलती है?
उत्तर:
यह नदी शेषनाग झील से निकलकर अन्त में वूलर झील में मिलती है।

प्रश्न 23.
नदियाँ अपनी घाटी को पीछे कैसे सरकाती हैं?
उत्तर:
शीर्ष कटाव व सरिता-हरण से।

प्रश्न 24.
हिमालयी और प्रायद्वीपीय नदियों में से कौन-सी नदियाँ पुरानी हैं?
उत्तर:
प्रायद्वीपीय नदियाँ।

प्रश्न 25.
सतलुज नदी का उद्गम स्थल बताइए।
उत्तर:
कैलाश पर्वत के दक्षिण में मानसरोवर झील के निकट राक्षस ताल से निकलती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र

प्रश्न 26.
डेल्टाई मैदान में गंगा किन नामों से जानी जाती है?
उत्तर:
भागीरथी व हुगली।

प्रश्न 27.
सन्दरवन डेल्टा का निर्माण कौन-सी नदी करती है?
उत्तर:
गंगा।

प्रश्न 28.
साबरमती नदी का उद्गम क्षेत्र बताइए।
उत्तर:
अरावली की पहाड़ियों में डूंगरपुर ज़िला।

प्रश्न 29.
अन्तःस्थलीय अपवाह का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
घग्घर नदी।

प्रश्न 30.
हिमालय की नदियों की प्रवृत्ति कैसी है?
उत्तर:
मानसूनी भी और हिमनदीय भी।

प्रश्न 31.
प्रायद्वीपीय नदियों की प्रवृत्ति कैसी है?
उत्तर:
मानसूनी।

प्रश्न 32.
खम्भात की खाड़ी में गिरने वाली किसी नदी का नाम बताइए।
उत्तर:
माही।

प्रश्न 33.
प्रायद्वीपीय नदियों के मुख्य जल विभाजक का नाम क्या है?
उत्तर:
पश्चिमी घाट।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रायद्वीपीय पठार की नदियों की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
इन नदियों ने चौड़ी, संतुलित व उथली घाटियों का निर्माण किया है। यहाँ की सभी नदियाँ आधार तल को प्राप्त कर चुकी हैं।

प्रश्न 2.
नदी तन्त्र क्या है?
उत्तर:
मुख्य नदी तथा उसकी सहायक नदियों से मिलकर बना तन्त्र नदी तन्त्र कहलाता है।

प्रश्न 3.
अपवाह-तन्त्र क्या है?
उत्तर:
स्थान विशेष में एक निश्चित क्रम में प्रवाहित होने वाली नदियों एवं उनकी शाखाओं के सम्मिलित अध्ययन को अपवाह-तन्त्र कहते हैं।

प्रश्न 4.
अपवाह द्रोणी क्या है?
उत्तर:
धरातल का वह क्षेत्र जिसका जल एक ही नदी तन्त्र द्वारा बहाकर ले जाया जाता है, अपवाह द्रोणी कहलाता है।

प्रश्न 5.
अन्तःस्थलीय अपवाह क्या होता है?
उत्तर:
ऐसी नदियाँ जो किसी सागर में न गिरकर स्थलमण्डल की किसी झील अथवा मरूभूमि में विलीन हो जाती हैं।

प्रश्न 6.
नदी प्रवृत्ति क्या होती है?
उत्तर:
नदी में ऋतुवत् जल-विसर्जन को उसकी प्रवृत्ति कहा जाता है।

प्रश्न 7.
नर्मदा नदी कौन-सा विख्यात जल-प्रपात बनाती है और कहाँ बनाती है?
उत्तर:
जबलपुर के नीचे भेड़ाघाट की संगमरमर शैलों को काटते हुए मनोरम धुआँधार प्रपात बनाती है।

प्रश्न 8.
जल विभाजक का क्या कार्य है? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
जल विभाजक का कार्य दो पड़ोसी प्रवाह श्रेणियों को अलग करना है। यह विभाजक अपनी एक ओर की ढाल पर बहने वाली नदियों को एक ओर तथा दूसरी ढाल पर बहने वाली नदियों को दूसरी ओर मोड़ देता है। हिमालय पर्वत एक प्रमुख जल विभाजक है।

प्रश्न 9.
भारत में सबसे विशाल नदी द्रोणी कौन-सी है?
उत्तर:
भारत की सबसे विशाल नदी द्रोणी गंगा नदी द्रोणी है। इसकी लंबाई लगभग 2500 कि०मी० है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र

प्रश्न 10.
सिंधु एवं गंगा नदियाँ कहाँ से निकलती हैं?
उत्तर:
सिंधु नदी तिब्बत में मानसरोवर झील के निकट से निकलती है और गंगा नदी गंगोत्री नामक हिमानी से निकलती है।

प्रश्न 11.
गंगा की दो मुख्य धाराओं के नाम लिखिए। ये कहाँ पर एक-दूसरे से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती हैं?
उत्तर:
गंगा नदी की दो मुख्य धाराएँ हैं-भागीरथी और अलकनंदा। ये दोनों धाराएँ उत्तराखंड के देवप्रयाग में आपस में मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती हैं।

प्रश्न 12.
हिमालय के तीन प्रमुख अपवाह-तन्त्रों के नाम बताइए।
उत्तर:
हिमालय पर्वत की विभिन्न श्रेणियों से अनेक नदियाँ उतरकर भारत की ओर प्रवाहित होती हैं। इन समस्त नदियों को तीन अपवाह-तन्त्रों में विभाजित किया जाता है

  1. सिन्धु अपवाह-तन्त्र
  2. गंगा अपवाह-तन्त्र
  3. ब्रह्मपुत्र अपवाह-तन्त्र।

प्रश्न 13.
किसी देश का अपवाह-तन्त्र किन कारकों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
किसी भी देश का अपवाह-तन्त्र वहाँ की धरातलीय रचना, भूमि के ढाल, शैलों के स्वभाव, विवर्तनिक क्रियाओं, जल की प्राप्ति एवं अपवाह क्षेत्र के भू-गर्भिक इतिहास पर निर्भर करता है।

प्रश्न 14.
गंगा तथा महानदी डेल्टा के बीच बहने वाली नदियों के नाम लिखें।
उत्तर:
गंगा नदी का डेल्टा पश्चिमी बंगाल में तथा महानदी का डेल्टा ओडिशा में फैला हुआ है। इनके बीच फैले राज्यों बिहार, झारखण्ड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में ब्राह्मणी तथा स्वर्णरेखा नदियाँ बहती हैं।

प्रश्न 15.
गंगा अपवाह-तन्त्र की रचना कौन-सी नदियाँ करती हैं?
उत्तर:
गंगा अपवाह-तन्त्र का निर्माण हिमालय एवं प्रायद्वीपीय उच्च भागों से निकलने वाली नदियों द्वारा होता है। हिमालय के हिमाच्छादित भागों से आने वाली गंगा, यमुना, घाघरा, गंडक, गोमती तथा कोसी नदियाँ और प्रायद्वीपीय उच्च भागों से निकलने वाली चम्बल, बेतवा, टोंस, केन, सोन, इत्यादि नदियाँ गंगा अपवाह-तन्त्र का निर्माण करती हैं।

प्रश्न 16.
अपवाह किसे कहते हैं?
उत्तर:
निश्चित वहिकाओं के माध्यम से हो रहे जल-प्रवाह को अपवाह कहते हैं।

प्रश्न 17.
वृक्षाकार अपवाह प्रतिरूप किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब किसी अपवाह की आकृति वृक्ष के समान हो तो ऐसे अपवाह के प्रतिरूप को वृक्षाकार अपवाह प्रारूप कहते हैं।

प्रश्न 18.
जालीनुमा अपवाह प्रतिरूप किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब मुख्य नदियाँ एक-दूसरे के समानांतर प्रवाहित होती हो और सहायक नदियाँ उनसे समकोण पर मिलती हो तो अपवाह के ऐसे प्रारूप को जालीनुमा अपवाह प्रारूप कहते हैं।

प्रश्न 19.
नमामी गंगे परियोजना क्या है?
उत्तर:
यह भारत सरकार का एक एकीकृत जल संरक्षण मिशन है। इसमें राष्ट्रीय नदी गंगा से संबंधित दो महत्त्वपूर्ण उद्देश्य हैं-

  • प्रदूषण को कम करना
  • इसके संरक्षण और कायाकल्प को पूरा करना।

प्रश्न 20.
नदी प्रवृत्ति क्या होती है?
उत्तर:
नदियों में अलग-अलग मौसम में जल का बहाव भी अलग-अलग होता है। नदी में जल के मौसमी बहाव अर्थात् ऋतुवत् जल-विसर्जन को नदी प्रवृत्ति कहा जाता है।

प्रश्न 21.
जल-विसर्जन क्या होता है?
उत्तर:
किसी समय विशेष पर किसी नदी में बहने वाली जल-राशि को जल-विसर्जन कहा जाता है। जल-विसर्जन के मापने की इकाई को क्यूसेक्स अर्थात् घन फुट प्रति सैकिण्ड अथवा क्यूमेक्स अर्थात् घन मीटर प्रति सैकिण्ड कहते हैं।

प्रश्न 22.
कोसी नदी को ‘बिहार का शोक’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
यह नदी कंचनजंगा से निकलकर बिहार में प्रवेश करती है। यह नदी कई धाराओं में बहती है। रास्ता बदलना तथा आकस्मिक बाढ़ लाना इसका स्वभाव रहा है। यह नदी बिहार में धन, जन तथा फसलों को बाढ़ के कारण अपार क्षति पहुँचाती है। इसलिए इस नदी को बिहार का दुःख या शोक कहा जाता है।

प्रश्न 23.
तटीय नदी तन्त्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्रायद्वीपीय पश्चिमी तटीय मैदान में छोटी-छोटी लगभग 600 नदियाँ बहती हैं। इन नदियों के मैदान सँकरे व तल सामान्यतः खड़े ढाल वाले हैं। ये नदियाँ बड़ी मात्रा में तलछट बहाकर लाती हैं। तीव्र गति वाली होने के कारण ये नदियाँ समुद्र तट पर तलछट जमा नहीं कर पातीं। अतः ये नदियाँ डेल्टा बनाने में असमर्थ हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की सभ्यता, संस्कृति एवं आर्थिक विकास में नदियों के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन काल से भारत की नदियाँ सिंचाई, जल-विद्युत् उत्पादन, मत्स्योत्पादन, जल-परिवहन एवं व्यापार का महत्त्वपूर्ण साधन रही हैं। भारतीय नदियों के तटों पर अनेक धार्मिक, सांस्कृतिक एवं व्यापारिक केन्द्र स्थापित हुए। नदियों की उपजाऊ घाटियों एवं डेल्टा प्रदेशों में सघन जनसंख्या का निवास पाया जाता है। उपर्युक्त कारणों से भारत की सभ्यता, संस्कृति एवं आर्थिक विकास में नदियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।

प्रश्न 2.
उत्पत्ति के आधार पर भारत की नदियों के दो मुख्य तथा दो गौण वर्ग कौन-से हैं?
उत्तर:
उत्पत्ति के आधार पर भारत की नदियों के दो मुख्य वर्ग हैं-

  • हिमालय की नदियाँ तथा
  • प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ।

इनके अतिरिक्त दो गौण नदी-तन्त्र है-

  • तटीय नदी तन्त्र
  • अन्तः स्थली अपवाह।

प्रश्न 3.
सिंधु एवं गंगा अपवाह में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
सिंधु एवं गंगा अपवाह में निम्नलिखित अंतर हैं

सिंधु अपवाह गंगा अपवाह
1. सिन्धु अपवाह की नदियाँ गॉर्ज का निर्माण करती हैं। 1. गंगा अपवाह की नदियाँ विशाल मैदानी भाग का निर्माण करती हैं।
2. इसमें दोआब पाए जाते हैं। 2. इसमें संगम पाए जाते हैं।
3. इस अपवाह में बहने वाली नदियाँ मुख्यतः अरब सागर में गिरती हैं। 3. इस अपवाह में बहने वाल्की नदियाँ मुख्यतः बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं।

प्रश्न 4.
भारतीय प्रवाह तंत्र का उल्लेख कीजिए
अथवा
भौगोलिक आधार पर भारतीय प्रवाह तंत्र को सूचीबद्ध करें।
उत्तर:
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र 1

प्रश्न 5.
गोदावरी को अक्सर ‘वृद्ध गंगा’ या ‘दक्षिणी गंगा’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
गोदावरी दक्षिणी भारत की सबसे बड़ी नदी है। इसका उद्गम स्थान महाराष्ट्र का नासिक ज़िला है। यह बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसका अपवाह क्षेत्र 1,36,090 वर्ग कि० मी० है और इसका जल-ग्रहण क्षेत्र महाराष्ट्र, कर्नाटक, ओडिशा तथा आन्ध्र प्रदेश तक है। इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ प्रवरा, पेनगंगा, वेनगंगा, इन्द्रावती, वर्षा, मनेर आदि हैं। अतः इसका आकार तथा विस्तार बहत विशाल है। इसी विशालता, पवित्रता व प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण इसे ‘वृद्ध गंगा’ या ‘दक्षिण की गंगा’ कहा जाता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र

प्रश्न 6.
पश्चिमी तट पर नदियाँ डेल्टा क्यों नहीं बनाती, जबकि वे बड़ी मात्रा में तलछट बहाकर लाती हैं?
उत्तर:
पश्चिमी घाट से निकलने वाली मुख्य नदियाँ नर्मदा, ताप्ती व अनेक छोटी-छोटी नदियाँ बहुत तेज़ गति से बहकर अरब सागर में गिरती हैं। इसका कारण अरब सागर की ओर पश्चिमी घाट के ढाल का तीव्र होना है। ये नदियाँ अपनी तेज़ गति के कारण अपने साथ बहाकर लाए गए अवसाद को गहरे सागर में ले जाती हैं, उनका तट पर जमाव नहीं कर पातीं। नर्मदा और ताप्ती नदियाँ भ्रंश घाटियों में बहती हैं। ये नदियाँ अपने अवसाद को मूल दरारों में भरती रहती हैं। इस कारण ये नदियाँ डेल्टा नहीं बनातीं। इन नदियों के मुहानों पर आने वाला ज्वार-भाटा भी इनके अवसादों को गहरे समुद्र में बहा ले जाता है। एक और कारण भी है-अरब सागर का निर्माण प्रायद्वीपीय खण्ड के पश्चिमी पार्श्व के अवतलन के कारण हुआ था। अतः पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों की घाटियाँ भी जल में डूब गई थीं।

प्रश्न 7.
गॉर्ज किसे कहते हैं? भारत की कौन-सी नदियों ने गॉर्ज बनाए हैं? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
पर्वतीय प्रदेशों में नदी युवावस्था में होती है और अपनी लम्बवत् अपरदन क्रिया द्वारा बहुत गहरी तथा संकरी घाटी का निर्माण करती हैं जिसे गॉर्ज़ कहते हैं। गॉर्ज के किनारे खड़े ढालों वाले होते हैं। ये ऐसे क्षेत्रों में बनते हैं, जहाँ चट्टानें कठोर व संक्षारण-प्रतिरोधी होती हैं। विशाल आकार वाले महाखड्ड को कैनयन (Canyon) कहते हैं। सिन्धु, सतलुज, अलकनन्दा, गंडक, कोसी और ब्रह्मपुत्र नदियों ने हिमालय में गॉर्ज बनाए हैं।

प्रश्न 8.
सहायक नदी और वितरिका में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सहायक नदी और वितरिका में अंतर निम्नलिखित हैं-

सहायक नदी वितरिका
1. जब एक छोटी नदी एक मुख्य नदी में मिलती है तो वह सहायक नदी कहलाती है। 1. डेल्टा क्षेत्र में अवसादों की रुकावट के कारण जब नदी कई शाखाओं में बँट जाती है तो उन शाखाओं को वितरिकाएँ कहा जाता है।
2. सहायक नदी मुख्य नदी में कहीं भी मिल सकती है। 2. वितरिका सदैव डेल्टा प्रदेश में ही मिलती है।
3. परिवहन तथा सिंचाई दोनों के लिए सहायक नदी का उपयोग किया जाता है। 3. मुख्यतः परिवहन के लिए वितरिका उपयोगी होती है।
4. सहायक नदी मुख्य नदी में अपना जल डालती हैं। 4. वितरिका मुख्य नदी से जल ले जाती है और दोबारा नदी में नहीं मिलती।
5. गंगा नदी की सहायक नदी यमुना है। 5. गंगा नदी की वितरिका हुगली है।

प्रश्न 9.
अन्तःस्थलीय अपवाह का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसका उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अन्तःस्थलीय अपवाह में उन नदियों को सम्मिलित किया जाता है जो किसी सागर में न गिरकर स्थलमण्डल पर ही किसी झील में विलीन हो जाती हैं अथवा मरुभूमि में ही विलीन हो जाती हैं। आन्तरिक अपवाह प्रदेश उत्तरी कश्मीर, दक्षिण-पूर्वी असम, पश्चिमी राजस्थान और हरियाणा तक सीमित है। राजस्थान की लूनी, माही और साबरमती नदियों को छोड़कर अन्य सभी नदियाँ मरुभूमि में ही विलीन हो जाती हैं अथवा साँभर झील में गिर जाती हैं। हरियाणा की घग्घर नदी भी अन्तःस्थलीय अपवाह का उदाहरण है।

प्रश्न 10.
सिन्धु नदी का उद्गम स्थल कहाँ है? इसकी पाँच सहायक नदियों के नाम बताइए।
उत्तर:
सिन्धु नदी का उद्गम स्थल कैलाश पर्वत-श्रेणी के उत्तरी ढलान से तिब्बत में लगभग 5,000 मीटर की ऊँचाई पर मानसरोवर झील है। अपने स्रोत से यह उत्तर तथा उत्तर:पश्चिम दिशा में लगभग 320 कि०मी० बहने के बाद जम्मू-कश्मीर में से भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करती है। इसकी सहायक नदियाँ हैं-

  • सतलुज
  • व्यास
  • रावी
  • चिनाब
  • झेलम।

प्रश्न 11.
प्रायद्वीपीय भारत की पश्चिम की ओर बहने वाली दो मुख्य नदियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
प्रायद्वीपीय भारत का सामान्य ढाल पूर्व की ओर है। इसलिए अधिकांश नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलकर खाड़ी बंगाल में प्रवेश करती हैं। पश्चिम की ओर बहने वाली नदियाँ अरब सागर में गिरती हैं। उनमें दो प्रमुख नदियाँ निम्नलिखित हैं

  • नर्मदा नदी-यह मध्य प्रदेश में अमरकंटक पहाड़ी से निकलकर अरब सागर की खम्भात की खाड़ी में जा गिरती है। इसकी लम्बाई 1,300 कि०मी० है।
  • ताप्ती नदी-यह मध्य प्रदेश में महादेव की पहाड़ियों से निकलकर खम्भात की खाड़ी में गिर जाती है। इसकी लम्बाई 338 कि०मी० है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
हिन्द ब्रह्म नदी अवधारणा की व्याख्या कीजिए। उन मुख्य तर्कों का विवरण दीजिए जिनके आधार पर इस अवधारणा पर आपत्ति की गई है।
उत्तर:
हिन्द-ब्रह्म नदी अवधारणा-भू-गर्भ वैज्ञानिकों का अनुमान है कि शिवालिक पहाड़ियों के संस्तरों का निक्षेपण एक ऐसी विशाल नदी द्वारा किया गया था जो मायोसीन काल में असम से हिमालय के गिरिपद के साथ-साथ अनुदैर्ध्य विस्तार में बहती हुई सुलेमान, किरथर के सहारे उत्तर:पश्चिम कोने तक पहुँचकर दक्षिण में मुड़कर अरब सागर में जा मिलती थी। पेस्को ने इस नदी को हिन्द-ब्रह्म तथा पिलग्रिम ने शिवालिक का नाम दिया। ऐसा विश्वास है कि हिन्द-ब्रह्म नदी सिन्धु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र सहित हिमालय से निकलने वाली सभी नदियों के समस्त जल को अरब सागर तक ले जाती थी। कालान्तर में यह ऐतिहासिक नदी निम्नलिखित तन्त्रों व उपतन्त्रों में बँट गई

  • सिन्धु नदी
  • पंजाब में सिन्धु नदी की पाँचों सहायक नदियाँ (सतलुज, रावी, चिनाब, ब्यास व झेलम)
  • गंगा तथा हिमालय से निकलने वाली उसकी सहायक नदियाँ
  • ब्रह्मपुत्र का वह भाग जो असम में है व हिमालय से निकलने वाली उसकी सहायक नदियाँ।

हिन्द-ब्रह्म नदी का उपर्युक्त विच्छेदन निम्नलिखित कारणों से हुआ-

  • अत्यन्त नूतन या प्लिस्टोसीन युग में हुई भू-गर्भिक हलचलें जिनमें पोतवार पठार का उत्थान भी सम्मिलित है।
  • इस नदी की निचली घाटी में इसकी सहायक नदियों द्वारा शीर्षाभिमुख अपरदन।

इन परिवर्तनों से हिन्द-ब्रह्म नदी की प्रवाह-दिशा में प्रत्यावर्तन हुआ। नदी का उत्तरी-पश्चिमी भाग सिन्धु नदी के रूप में विकसित हुआ तथा मध्य में विच्छेदित हुआ मुख्य धारा का शेष भाग वर्तमान गंगा के रूप में प्रवाहित होकर बंगाल की खाड़ी में गिरने लगा। गंगा ने यमुना को अपनी सहायक नदी के रूप में मिला लिया। इस घटना से पूर्व यमुना सम्भवतः दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहती थी और सिन्धु की सहायक नदी थी। सिन्धु तथा गंगा तन्त्रों के बीच सहायक नदियों का विनिमय उनके मध्य स्थित प्रदेश में पिछले प्राअभिनव काल की सामान्य घटना रही है। इस प्रकार हिन्द-ब्रह्म ही वह मूल नदी थी जिससे हिमालय के वर्तमान नदी-तन्त्रों का विकास हुआ है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र

प्रश्न 2.
प्रायद्वीपीय भारत की नदियों का विस्तृत वर्णन कीजिए। अथवा प्रायद्वीपीय नदी तंत्र का वर्णन करें।
अथवा
बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में गिरने वाली नदियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दक्षिण भारत में अनेक छोटी-बड़ी नदियाँ हैं। इनमें से अधिकांश बंगाल की खाड़ी में, कुछ अरब सागर में व कुछ अन्य खम्भात की खाड़ी में गिरती हैं। पठार की प्रायः सभी नदियाँ करोड़ों वर्षों से अपने मार्गों को काटती चली आ रही हैं। अतः इनकी घाटियाँ चौड़ी और छिछली हैं। नगण्य ढाल क्रम के कारण इन नदियों की अपरदन शक्ति नष्टप्रायः हो चुकी है।

I. बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ-
1. महानदी-यह नदी कोयना और संख नदियों के संगम से मिलकर छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में सिहावा के निकट निकलती है और छत्तीसगढ़ व आन्ध्र प्रदेश से होती हुई ओडिशा में बड़ा डेल्टा बनाती है। इस नदी की कुल लम्बाई 880 कि० मी० है और अपवाह-क्षेत्र लगभग 1,41,600 वर्ग कि० मी० है। प्रसिद्ध हीराकुड बाँध इसी नदी पर बना हुआ है।

2. गोदावरी यह प्रायद्वीपीय नदियों में सबसे लम्बी नदी है जिसकी लम्बाई 1,465 कि० मी० है। यह महाराष्ट्र के नासिक जिले में पश्चिमी घाट से निकलती है और आन्ध्र प्रदेश में बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है। गोदावरी का कुल अपवाह-क्षेत्र 3,12,812 वर्ग कि० मी० है। अपनी पवित्रता, सौन्दर्य, उपयोगिता, विशाल आकार एवं विस्तार के कारण इसे वृद्ध गंगा तथा दक्षिण गंगा के नाम से भी पुकारा जाता है।

3. कृष्णा-इस नदी का उद्गम महाराष्ट्र में पश्चिमी घाट पर स्थित महाबलेश्वर के निकट है। गोदावरी के बाद यह प्रायद्वीप की दूसरी सबसे बड़ी नदी है जिसकी लम्बाई 1,400 कि०मी० लम्बी है। इस नदी का कुल अपवाह-क्षेत्र 2,58,948 वर्ग कि०मी० है जो महाराष्ट्र, कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश में विस्तृत है। कोयना, तुंगभद्रा, घाटप्रभा, मालप्रभा, भीमा व मूसी इत्यादि इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।

4. कावेरी यह नदी कर्नाटक के कुर्ग जिले में पश्चिमी घाट की ब्रह्मगिरि श्रेणी से निकलती है और तमिलनाडु राज्य में पत्तनम के निकट बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करती है। 800 कि० मी० लम्बी इस नदी का अपवाह-क्षेत्र लगभग 87,900 वर्ग कि० मी० है, जो केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों में फैला है। मैसूर के पठार पर बहते समय यह नदी अनेक सुन्दर जल-प्रपात बनाती है जिनमें शिवसमुद्रम तथा होगेनकाल प्रपात दर्शनीय हैं। इस नदी पर मैटूर सहित अनेक बाँध बनाए गए हैं। कावेरी के डेल्टा में बसा तंजाऊर जिला अपने उपजाऊपन के कारण दक्षिण का उद्यान कहलाता है।

II. अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ
1. नर्मदा यह नदी मध्य प्रदेश में अमरकंटक पहाड़ी से निकलकर विन्ध्याचल और सतपुड़ा पर्वत-श्रेणियों के बीच पश्चिम की ओर बहती हुई भड़ौच के निकट अरब सागर की खम्भात की खाड़ी (Bay of Cambay) में जा मिलती है। इस नदी की लम्बाई 1,300 कि० मी० और अपवाह-क्षेत्र 98,796 वर्ग कि० मी० है। मध्य प्रदेश में जबलपुर के नीचे भेड़ाघाट की संगमरमर चट्टानों में नर्मदा का महाखड्डु और कपिलधारा प्रपात मनोहारी दृश्य प्रस्तुत करते हैं।

2. ताप्ती-यह नदी मध्य प्रदेश के बेतूल जिले में महादेव की पहाड़ियों से निकलती है। सतपुड़ा श्रेणी के दक्षिण में स्थित दरार घाटी (Rift Valley) में नर्मदा के समानान्तर पश्चिम की ओर बहती हुई खम्भात की खाड़ी में मिल जाती है। ताप्ती नदी 724 कि०मी० लम्बी है। इस नदी का अपवाह-क्षेत्र 65,145 वर्ग कि० मी० है जो मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा गुजरात में विस्तृत है।

3. माही नदी-इसकी उत्पत्ति विन्ध्याचल के पश्चिमी भाग से हुई है। यह गुजरात में बहती हुई खम्भात की खाड़ी में गिरती है।

4. साबरमती नदी राजस्थान के डूंगरपुर जिले में अरावली की पहाड़ियाँ इसका उद्गम स्थान है, जो 300 कि०मी० बहने के बाद खम्भात की खाड़ी में गिरती है। इसका अपवाह क्षेत्र 21,600 वर्ग कि०मी० है जो राजस्थान तथा गुजरात में फैला है।।

5. लूनी नदी-यह नदी राजस्थान के अजमेर के दक्षिण-पश्चिम से निकलकर 300 किलोमीटर बहने के बाद कच्छ की खाड़ी में गिरती है।

उपरोक्त नदियों के अतिरिक्त प्रायद्वीपीय भारत की नदियों में चम्बल, केन, बेतवा तथा सोन प्रमुख नदियाँ हैं, जो प्रायद्वीपीय पठार से निकलकर यमुना तथा गंगा में मिलती हैं, इनकी प्रवाह दिशा दक्षिण से उत्तर की ओर है। चम्बल, केन तथा बेतवा नदियाँ बीहड़-खड्डों से प्रवाहित होती हैं। प्रायद्वीपीय पठार का ढाल उत्तर में सतलुज-गंगा के मैदान की ओर होने के कारण ये नदियाँ उत्तर दिशा की ओर प्रवाहित होती हैं तथा गंगा और यमुना को जल प्रदान करती हैं।

प्रश्न 3.
हिमालय की नदियों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
अथवा
उत्तर भारतीय नदियों का वर्णन करें।
अथवा
सिन्धु अपवाह तंत्र का वर्णन कीजिए।
अथवा
गंगा अपवाह तंत्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उत्तर भारतीय नदी तंत्र को हिमालयी अपवाह तंत्र भी कहा जाता है। हिमालय की नदियों के अपवाह तंत्र को निम्नलिखित तीन वर्गों में रखा जा सकता है-

  • सिन्धु अपवाह तंत्र
  • गंगा अपवाह तंत्र
  • ब्रह्मपुत्र अपवाह तंत्र

(1) सिन्धु अपवाह तंत्र-इस तंत्र के अन्तर्गत उत्तरी भारत की प्रमुख नदियाँ सिन्धु, झेलम, चेनाब, सतलुज, रावी और व्यास सम्मिलित हैं।
1. सिन्धु नदी-यह नदी तिब्बत में 5,180 मीटर की ऊँचाई पर मानसरोवर के निकट से निकलती है। यह अपने उद्गम स्थान से उत्तर:पश्चिम दिशा में 320 किलोमीटर बहने के बाद भारतीय क्षेत्र में पहुँचती है। लद्दाख तथा गिलगित से होकर यह नदी एटक के निकट मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है। सिन्धु नदी की लम्बाई लगभग 2,900 कि०मी० तथा जलग्रहण क्षेत्र लगभग 11,66,700 वर्ग कि०मी० है, जिसमें से 3,21,300 वर्ग कि०मी० भारत में है। पाकिस्तान के साथ हुए सिन्धु जल-सन्धि के अनुसार भारत सिन्धु नदी का केवल 20% पानी प्रयुक्त कर सकता है।

2. झेलम नदी-यह नदी कश्मीर की शेषनाग झील से निकलकर 120 किलोमीटर उत्तर:पश्चिम दिशा में बहती हुई वूलर झील से मिलती है। इसकी लम्बाई 400 किलोमीटर तथा अपवाह क्षेत्र 28,500 कि०मी० है।

3. चेनाब नदी-यह नदी हिमाचल से निकलती है, जहाँ दो नदियाँ चन्द्र और भागा मिलती हैं। हिमाचल में इसे चन्द्रभागा नदी कहते हैं। यह नदी पश्चिम की ओर पीर-पंजाल के समानान्तर बहती है और अखनूर के पास मैदान में प्रवेश करती है तथा कुछ दूर जाने पर पाकिस्तान में चली जाती है। भारत में यह लगभग 1,200 कि०मी० तक बहती है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 3 अपवाह तंत्र 2

4. सतलुज नदी-यह नदी मानसरोवर झील के निकट राक्षस ताल से लगभग 4,555 मीटर की ऊंचाई से निकलती है। 1,440 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद यह नदी व्यास नदी में मिल जाती है। शिपकी-ला दर्रे के निकट यह भारत में प्रवेश करती है। पर्वतीय क्षेत्र की यात्रा करने के पश्चात् रूपनगर (रोपड़) के पास यह पंजाब में प्रवेश करती है। भारत की प्रमुख बहु-उद्देश्यीय ‘भाखड़ा-नांगल परियोजना’ इसी नदी पर निर्मित है।

5. रावी नदी-यह पंजाब की सबसे छोटी नदी है, जो धौलपुर पर्वतमाला के उत्तरी तथा पीर-पंजाल में दक्षिण ढालों से बहती हुई मैदानी भाग में प्रवेश करती है।

6. व्यास नदी-यह नदी हिमाचल में स्थित रोहतांग दर्रे के व्यास कुण्ड से निकलती है। यह हिमाचल में कुल्लू, मण्डी और कांगड़ा जिलों से बहती हुई पंजाब में अमृतसर तथा कपूरथला जिलों से बहती हुई कपूरथला के निकट सतलुज में मिल जाती है। इसका अपवाह क्षेत्र 25,900 वर्ग किलोमीटर है तथा कुल लम्बाई 615 किलोमीटर है।

(2) गंगा अपवाह तंत्र-गंगा अपवाह तंत्र उत्तरी भारत का प्रमुख तंत्र है जिसमें गंगा तथा उसकी सहायक नदियाँ सम्मिलित हैं।
1. गंगा नदी-यह नदी अलकनन्दा एवं भागीरथी का सम्मिलित नाम है, जो क्रमशः उत्तराखण्ड के गढ़वाल हिमालय से बद्रीनाथ के निकट तथा गोमुख से निकलकर देवप्रयाग में आपस में मिलकर गंगा के नाम से जानी जाती है। अलकनन्दा बद्रीनाथ के निकट तिब्बत की सीमा से 7,800 मीटर की ऊंचाई से निकलकर विष्णुप्रयाग में धौलीगंगा, नन्दप्रयाग में नन्दाकिनी, कर्णप्रयाग में पिण्डर तथा रुद्रप्रयाग में मन्दाकिनी नदियों का जल ग्रहण कर देवप्रयाग में भागीरथी से मिलती है, जबकि भागीरथी 6,600 मीटर की ऊँचाई से गंगोत्री ग्लेशियर से निकलकर टिहरी में मिलंगना नदी को अपने साथ मिलाकर देवप्रयाग में अलकनन्दा से मिलती है। गंगा नदी हरिद्वार में मैदानी भाग में प्रवेश करती है। इलाहाबाद में यमुना इसमें मिलती है और इसकी दिशा पूर्वी हो जाती है। बिहार तथा बंगाल होती हुई अन्त में यह बंगाल की खाड़ी में गिरती है।

2. यमुना नदी यह गंगा की प्रमुख सहायक नदी है जो गढ़वाल में यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलती है। ताजेवाला नामक स्थान से यह उत्तरी मैदान में प्रवेश करती है और यह इलाहाबाद में गंगा में विलीन हो जाती है। चम्बल, बेतवा तथा केन नदियाँ, जो विन्ध्याचल से निकलकर दक्षिण से उत्तर की ओर बहती हैं, यमुना में मिल जाती हैं।

3. घाघरा नदी-पहाड़ी क्षेत्र में इसे करनाली नदी कहते हैं। यह हिमालय में मप्सातुंग ग्लेशियर से निकलती है, नेपाल के बाद यह भारत में प्रवेश करती है तो शारदा नदी का जल लेकर छपरा के निकट गंगा नदी में मिल जाती है। यह उत्तर प्रदेश के अयोध्या, फैजाबाद और बलिया जिलों में बहती है।

4. गंडक नदी-यह चीन तथा तिब्बत की सीमा से निकलकर नेपाल से होती हुई बिहार से पटना के पास गंगा में मिल जाती है। नेपाल में इसे नारायणी नदी कहते हैं।

5. कोसी नदी-यमुना के बाद यह नदी गंगा की दूसरी बड़ी सहायक नदी है। यह 730 कि०मी० लम्बी है इस नदी में बाढ़ें अधिक आती हैं तथा अपार जन-धन की हानि होती है, इसलिए इसे ‘बिहार का शोक’ (Sorrow of Bihar) कहते हैं।

(3) ब्रह्मपुत्र अपवाह तंत्र यह तिब्बत में मानसरोवर झील के दक्षिण-पूर्व में 85 किलोमीटर की दूरी से निकलती है। तिब्बत में इसकी दिशा हिमालय के समानान्तर पश्चिम से पूर्व की ओर है, जहाँ इसे साँपो (Tsangpo) कहते हैं। भारत में यह नामचा बरवा के निकट दक्षिण की ओर मुड़ जाती है, जहाँ इसे दिहांग (अरुणाचल प्रदेश में) कहते हैं।

उसके बाद असम में प्रवेश करने पर इसे ब्रह्मपत्र के नाम से जाना जाता है। गारो पहाडियों से मडकर यह दक्षिण दिशा में बहती हई दक्षिण-पर्व में मेघना नदी में मिल जाती है। यह भारत की सबसे लम्बी नदी है, जिसकी लम्बाई लगभग 2,900 किलोमीटर है। इसकी सहायक नदियों में मुख्य रूप से सबनसीरी, भारेली तथा मनास जो इसके दाहिने किनारे मिलती हैं। बाएं किनारे मिलने वाली सहायक नदियों में लुहित, दिहिंग, बूढ़ी दिहिंग तथा कापिली प्रमुख नदियाँ हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 3 अपवाह तंत्र

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 3 अपवाह तंत्र Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 3 अपवाह तंत्र

HBSE 11th Class Geography अपवाह तंत्र Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर का चयन करें-

1. निम्नलिखित में से कौन-सी नदी ‘बंगाल का शोक’ के नाम से जानी जाती थी?
(A) गंडक
(B) कोसी
(C) सोन
(D) दामोदर
उत्तर:
(D) दामोदर

2. निम्नलिखित में से किस नदी की द्रोणी भारत में सबसे बड़ी है?
(A) सिंधु
(B) बह्मपुत्र
(C) गंगा
(D) कृष्णा
उत्तर:
(C) गंगा

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 3 अपवाह तंत्र

3. निम्नलिखित में से कौन-सी नदी पंचनद में शामिल नहीं है?
(A) रावी
(B) सिंधु
(C) चेनाब
(D) झेलम
उत्तर:
(B) सिंधु

4. निम्नलिखित में से कौन-सी नदी भ्रंश घाटी में बहती है?
(A) सोन
(B) यमुना
(C) नर्मदा
(D) लूनी
उत्तर:
(C) नर्मदा

5. निम्नलिखित में से कौन-सा अलकनंदा व भागीरथी का संगम स्थल है?
(A) विष्णु प्रयाग
(B) रूद्र प्रयाग
(C) कर्ण प्रयाग
(D) देव प्रयाग
उत्तर:
(D) देव प्रयाग

अंतर स्पष्ट करें-
(i) नदी द्रोणी और जल-संभर
(ii) वृक्षाकार और जालीनुमा अपवाह प्रारूप
(iii) अपकेंद्रीय और अभिकेंद्रीय अपवाह प्रारूप
(iv) डेल्टा और ज्वारनदमुख।
उत्तर:
(i) नदी द्रोणी और जल-संभर

नदी द्रोणी जल संभर
1. बड़ी नदियों के जल-ग्रहण क्षेत्र को नदी द्रोणी संभर (River Basin) कहते हैं। 1. छोटी नदियों या नालों द्वारा अप्रवाहित क्षेत्र को जल (Water shed) कहते हैं।
2. इसका आकार विशाल होता है। 2. इसका आकार नदी द्रोणी से छोटा होता है।

(ii) वृक्षाकार और जालीनुमा अपवाह प्रारूप

वृक्षाकार अपवाह प्रारूप जालीनुमा अपवाह प्रारूप
1. जब किसी अपवाह की आकृति वृक्ष के समान हो तो ऐसे अपवाह के प्रतिरूप को वृक्षाकार अपवाह प्रारूप कहते हैं। 1. जब मुख्य नदियाँ एक-दूसरे के समानांतर प्रवाहित होती हो और सहायक नदियाँ उनसे समकोण पर मिलती हो तो अपवाह के ऐसे प्रारूप को जालीनुमा अपवाह प्रारूप कहते हैं।
2. इसमें एक मुख्य नदी धारा से विभिन्न शाखाओं में उपधाराएँ प्रवाहित होती हैं। 2. इसमें प्राथमिक सहायक नदियाँ समांतर और गैण शाखाएँ या नदियाँ समकोण पर काटती हुई प्रवाहित होती हैं।

(iii) अपकेंद्रीय और अभिकेंद्रीय अपवाह प्रारूप

अपरैद्रीय अपवाह प्रारूप अभिकेंद्रीय अपवाह प्रारूप
1. जब नदियाँ किसी उच्च भाग या पर्वत से निकलकर सभी दिशाओं में प्रवाहित होती हैं तो उसे अपकेंद्रीय अपवाह प्रारूप कहते हैं। इसको अरीय अपवाह प्रतिरूप भी कहते हैं। 1. जब नदियाँ सभी दिशाओं में बहकर किसी झील या दलदल में मिल जाती हैं तो उसे अभिकेंद्रीय अपवाह प्रारूप कहते हैं।
2. ऐसे प्रारूप किसी ज्वालामुखी पर्वत, गुम्बद या उसे टीलों पर विकसित होते हैं। 2. रेगिस्तानी या मरुस्थलीय क्षेत्रों में जहाँ अंतःस्थानीय प्रवाह मिलता है, ऐसी अपवाह प्रणाली देखने को मिलती है अर्थात् मरुस्थलीय भागों में बहने वाली नदियाँ इस प्रकार के प्रारूप बनाती हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 3 अपवाह तंत्र

(iv) डेल्टा और ज्वारनद्मुख

डेल्टा ज्वारनदमुख
1. जब नदियों द्वारा समुद्री मुहाने पर मिट्टी एवं बालू के महीन कणों से त्रिभुजाकार अवसाद बनते हैं, जिन्हें डेल्टा (Delta) कहते हैं। 1. जब नदियाँ अपने साथ लाए हुए अवसाद को अपने मुहाने पर जमा नहीं करती, बल्कि इनको समुद्र में बहा देती. हैं। इससे नदियाँ डेल्टाओं का निर्माण नहीं कर पातीं। ऐसी नदियों के मुहाने ज्यारनदमुख कहलाते हैं।
2. इसका आकार त्रिभुजाकार, पंखाकार व पंजाकार होता है। 2. इसका कोई भी स्वरूप या आकार नहीं बनता।
3. नदी के मुहाने पर मलबा जमा रहता है, क्योंकि नदी मंद गति से प्रवाहित होती है। 3. नदी के मुहाने साफ रहते हैं, क्योंकि नदी तेज गति से प्रवाहित होती है।

निम्नलिखित प्रश्नों के लगभग 30 शब्दों में उत्तर दें

प्रश्न 1.
भारत में नदियों को आपस में जोड़ने के सामाजिक-आर्थिक लाभ क्या है?
उत्तर:
भारत में अनेक नदियाँ बहती हैं। इनमें से कुछ नदियों में साल-भर पानी बहता है और कुछ में साल-भर पानी नहीं बहता। ये नदियाँ प्रतिवर्ष जल की विशाल मात्रा वहन करती हैं परन्तु देश में जल का प्रवाह समान नहीं है। यह अंतर समय और स्थान की दृष्टि से है।

वर्षा ऋतु के समय अधिकांश जल बाढ़ में व्यर्थ हो जाता है और समुद्र में बह जाता है। ग्रीष्म ऋतु में देश के कुछ क्षेत्र सूखाग्रस्त हो जाते हैं। इस प्रकार देश : छ भाग में बाढ़ जाती है तो कुछ सूखाग्रस्त हो जाता है। यदि सभी नदियों को आपस में जोड़ दिया जाए तो इससे निम्नलिखित सामाजिक-आर्थिक लाभ होंगे-

  • बाढ़ और सूखे की समस्या से राहत मिलेगी।
  • पीने के पानी की समस्या हल होगी।
  • फसलों की पैदावार में वृद्धि होगी और किसानों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी।
  • जल की व्यवस्था करने में खर्च होने वाले करोड़ों रुपए की बचत होगी।

प्रश्न 2.
प्रायद्वीपीय नदी के तीन लक्षण लिखें।
उत्तर:
प्रायद्वीपीय नदी के लक्षण निम्नलिखित हैं-

  • प्रायद्वीपीय नदी/नदियाँ मुख्यतः वर्षा से जल प्राप्त करती हैं। ये बारहमासी न होकर मौसमी होती हैं।
  • इनकी जलग्रहण क्षमता हिमालय अपवाह तंत्र की नदियों से कम है।
  • ये टेढ़ी-मेढ़ी नहीं बहतीं और विसर्प नहीं बनातीं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
उत्तर भारतीय नदियों की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ क्या हैं? ये प्रायद्वीपीय नदियों से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर:
उत्तर भारतीय नदियों को हिमालयी-प्रवाह तंत्र के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि अधिकांश उत्तर भारत की नदियाँ हिमालय से निकलती हैं। इसी कारण ये नित्यवाही एवं शुष्ककाल में भी जल प्रदान करती रहती हैं। उत्तर भारतीय नदियों की विशेषताएँ और प्रायद्वीप नदियों से भिन्नता अग्रलिखित प्रकार से हैं-

उत्तर भारतीय नदियाँ प्रायद्धीपीय नदियाँ
1. उत्तर भारत की अधिकांश नदियाँ बारहमासी हैं अर्थात् इनमें साल-भर पानी बहता है, क्योंकि ये हिमालय से निकलती हैं। 1. प्रायद्दीपीय नटियाँ मौसरी हैं अर्थात् से मौसम या वर्घा से जल ग्रहण करती हैं। कुछ नदियों पटारी भागों से भी जस्ष ग्रहण करती है जिनका जल गर्मी में सूल जाता है।
2. अधिकांश उत्तर भारतीय नदियों मैदानी भागों में बहती हैं और इनसे अनेक छोटी-छोटी नदियों, नहरें एवं नाले निकलते हैं। 2. ये नदियों न तो समतल भागों में बहती हैं और न ही इनसे नहरें, नाले निकाले जा सकते है।
3. इन नदियों की उत्पत्ति हिमानियों से हुई है। 3. इन नदियों की उत्पत्ति मध्ययत्ती उध्य भूमि खा पठारों से हुई है।
4. ये नदियाँ सिंचाई के लिए अधिक महत्वपूर्ण एवं उपयोगी हैं। 4. ये नदियाँ विद्युत उत्पादन की दृष्टि से अधिक उप्योगी है।
5. इन नदियों का अपयाह क्षेत्र अधिक विशाल है और इनकी जल-ग्रहण क्षमता भी अधिक है। इसमें सम्मिलित मुख्य नदियाँ हैं- गंगा, यमुना, कोसी, सिंधु, सतलुज, रावी, झेलम, घाघरा, चिनाब, व्यास, रामगंगा, सोन, ब्रह्मपुत्र, गंडक, दिवांग आदि। 5. इन नदियों का अपवाह क्षेत्र अधिक घोटा है और इनकी जल-ग्रहण क्षमता भी कम है। इसमें सम्मिलित मुख्य नदियों हैं-ताप्ती, गोदाबरी, कृष्गा, कावेरी, दामोदर, हुगली, स्वर्णरेखा, पैनार, ज्ञावती आदि।
6. ये नदियों विशाल डेल्टाओं का निर्माण करती हैं। 6. ये नदियाँ मुख्यतः ज्वारनदमुख बनाती हैं।
7. इन नदियों में धार्मिक केंद्र और संगम अधिक पाए जाते हैं। 7. इन नदियों में घाट और प्रफात “अधिक पाए जाते हैं।
8. इन नदियों को जल की प्राप्ति मुख्यतः बर्फ के पिघलने से होती है। 8. इन नदियों को जल्त की प्राप्ति मुख्यतः वर्षा से होती है।
9. इन नदियों को सिन्धु, गंगा और ब्रह्यपुत्र नदी क्रम के रूप में विभाजित किया गया है। 9. इन नदियों को बंगाल की खाड़ी और अरव सागर में गिरने बाल्ती नदियों के रूप में विभाजित किया गया है।
10. ये नदियाँ गहरी घाटियों एवं गॉर्ज से होकर गुजरती हैं। 10. ये नदियां कम गहरी घाटियों से होकर गुज़ती है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 3 अपवाह तंत्र

प्रश्न 2.
मान लीजिए आप हिमालय के गिरिपद के साथ-साथ हरिद्वार से सिलीगुड़ी तक यात्रा कर रहे हैं। इस मार्ग में आने वाली मुख्य नदियों के नाम बताएँ। इनमें से किसी एक नदी की विशेषताओं का भी वर्णन करें।
उत्तर:
यदि हम हिमालय के गिरिपद के साथ-साथ हरिद्वार से सिलीगुड़ी तक यात्रा कर रहे हैं तो हमें उत्तर भारत की अधिकांश नदियों और बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों को पार करना होगा। इस मार्ग में आने वाली मुख्य नदियाँ इस प्रकार होंगी-

  • गंगा
  • यमुना
  • रामगंगा
  • गोमती
  • सरयू
  • शारदा
  • गंडक
  • कमला
  • कोसी
  • महानदी आदि।

गंगा नदी की विशेषताएँ-गंगा नदी की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • गंगा उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में गोमुख के निकट गंगोत्री हिमनद से निकलती है।
  • इसकी लम्बाई लगभग 2525 कि०मी० है।
  • यह हरिद्वार के समीप मैदान में प्रवेश करती है।
  • भारतीय संस्कृति के अनुसार गंगा नदी को एक पवित्र नदी माना जाता है और इसको ‘राष्ट्रीय नदी’ का दर्जा प्राप्त है।
  • उत्तर-भारत की लगभग 85 प्रतिशत कृषि व्यवस्था इस नदी पर निर्भर करती है। इसी कारण यह भारत की जीवन रेखा कहलाती है।
  • इस नदी की मुख्य सहायक नदियाँ हैं यमुना, सोन, घाघरा, गोमती, गंडक, कोसी आदि।
  • गंगा अपनी द्रोणी और धार्मिक-सांस्कृतिक महत्त्व की दृष्टि से भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी है।

अपवाह तंत्र HBSE 11th Class Geography Notes

→ अपवाह-तंत्र (Drainage System)-स्थान विशेष में एक निश्चित क्रम में प्रवाहित होने वाली नदियों एवं उनकी शाखाओं के सम्मिलित अध्ययन को अपवाह-तंत्र कहते हैं। शीर्ष-कटाव (Headward Erosion) नदी का पीछे की ओर कटाव जिससे वह अपनी घाटी को ऊर्ध्वप्रवाह की ओर लंबा करती है तथा उसका उद्गम स्थान पीछे की ओर हटता जाता है।

→ सरिता हरण (River Capture)-शीर्ष-कटाव करती नदी का उद्गम स्थान जब पीछे को हटता है तो कभी-कभी वह किसी अन्य नदी को अपने में मिला लेती है। इसे नदी अपहरण या सरिता हरण कहते हैं।

→ अनुवर्ती नदियां (Consequent Rivers)-ऐसी नदियां जो जल-विभाजक के समानांतर या भूमि के मूल ढाल के अनुरूप बहती हों।

→ पूर्ववर्ती नदियां (Antecedent Rivers)-वे नदियां जो स्थल-खंड के उत्थान से पहले भी बहती थीं तथा स्थल-खंड के उत्थान के बाद उसे काटकर अपने मार्ग को यथावत बनाए रखती हैं।

→ ज्वारनदमुख (Estuary)-नदी का ज्वार (Tide) में मिलने वाला हिस्सा (मुंह) जिसमें ताजा व लवण-युक्त पानी आपस में मिलते हैं।

→ लंबवत अपरदन (Vertical Erosion)-नदी द्वारा किनारों की अपेक्षा तली में किया गया ज्यादा अपरदन, जिसमें घाटी गहरी होती है।

→ पाश्विक अपरदन (Lateral Erosion)-तली की अपेक्षा नदी द्वारा किनारों पर किया गया अधिक अपरदन जिसमें घाटी चौड़ी होती है।

→ डेल्टा (Delta)-जलोढ़ भूमि का लगभग त्रिकोणीय भू-भाग जो नदी के मुहाने पर निर्मित होता है। गंगा-ब्रह्मपुत्र, महानदी, कृष्णा तथा कावेरी डेल्टा भारत के प्रसिद्ध डेल्टा हैं।

→ महाखड्ड (Gorge)-खड़े पावों वाली एक गहरी एवं संकीर्ण चट्टानी नदी घाटी।

→ सुंदरवन (Sundarbans)-गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा को ही सुंदरवन डेल्टा कहते हैं। यहां सुंदरी नामक वृक्ष बहुत मात्रा में पाए जाते हैं।

→ नदी-प्रवृत्ति (River Regime) नदी में जल के मौसमी बहाव को नदी प्रवृत्ति कहा जाता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. भारत में सर्वाधिक विस्तृत क्षेत्र पर पाई जाने वाली मिट्टी है
(A) काली मिट्टी
(B) जलोढ़ मिट्टी
(C) लैटेराइट मिट्टी
(D) मरुस्थलीय मिट्टी
उत्तर:
(B) जलोढ़ मिट्टी

2. निम्नलिखित में से किस मिट्टी का अन्य नाम रेगड़ है?
(A) वनीय मिट्टी का
(B) जलोढ़ मिट्टी का
(C) लैटेराइट मिट्टी का
(D) काली मिट्टी का
उत्तर:
(B) जलोढ़ मिट्टी का

3. गंगा के मैदान का उपजाऊपन किस कारण से बना हुआ है?
(A) लगातार सिंचाई
(B) प्रतिवर्ष बाढ़ द्वारा नई मिट्टी का जमाव
(C) मानसूनी वर्षा
(D) ऊसर भूमि का सुधार
उत्तर:
(B) प्रतिवर्ष बाढ़ द्वारा नई मिट्टी का जमाव

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

4. भारत में जलोढ़ मिट्टी का विस्तार कितना है?
(A) 22%
(B) 35%
(C) 44%
(D) 55%
उत्तर:
(C) 44%

5. काली मिट्टी की रचना हुई है
(A) समुद्री लहरों की निक्षेपण क्रिया द्वारा
(B) कांप की मिट्टी के निक्षेपण द्वारा
(C) पैठिक लावा के जमने से
(D) लोएस के जमाव से
उत्तर:
(C) पैठिक लावा के जमने से

6. काली मिट्टी के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है?
(A) इसमें नमी को धारण करने की पर्याप्त क्षमता होती है।
(B) सूखने पर इसमें दरारें पड़ जाती हैं।
(C) गन्ना, तम्बाकू, गेहूं, तिलहन व कपास के लिए यह मिट्टी श्रेष्ठ सिद्ध हुई है।
(D) काली मिट्टी प्रवाहित मिट्टियों का आदर्श उदाहरण है।
उत्तर:
(D) काली मिट्टी प्रवाहित मिट्टियों का आदर्श उदाहरण है।

7. निम्नलिखित में से कौन-सा युग्म सही नहीं है ?
(A) काली मिट्टी : महाराष्ट्र
(B) कांप मिट्टी : उत्तर प्रदेश
(C) लैटेराइट मिट्टी : पंजाब
(D) लाल और पीली मिट्टी : तमिलनाडु
उत्तर:
(C) लैटेराइट मिट्टी : पंजाब

8. दक्कन के पठार पर किस मिट्टी का विस्तार सबसे ज्यादा है?
(A) काली मिट्टी
(B) कांप मिट्टी
(C) लैटेराइट मिट्टी
(D) जलोढ़ मिट्टी
उत्तर:
(A) काली मिट्टी

9. काली मिट्टी किस फसल के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है?
(A) गेहूँ
(B) चावल
(C) कपास
(D) बाजरा
उत्तर:
(C) कपास

10. मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया कहलाती है
(A) निक्षालन
(B) मृदा-जनन
(C) मृदा अपरदन
(D) मृदा संरक्षण
उत्तर:
(B) मृदा-जनन

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

11. राजस्थान में मृदा अपरदन का सबसे बड़ा कारक कौन-सा है?
(A) तटीय
(B) अवनालिका
(C) परत
(D) पवन
उत्तर:
(D) पवन

12. चरागाहों और झाड़ीनुमा वनों के लिए कौन-सी मिट्टी अनुकूल मानी जाती है?
(A) जलोढ़
(B) लैटेराइट
(C) काली
(D) पर्वतीय
उत्तर:
(B) लैटेराइट

13. मिट्टी का विकास कितनी अवस्थाओं में होता है?
(A) 2
(B) 3
(C) 4
(D) 5
उत्तर:
(B) 3

14. लाल मिट्टी के संबंध में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) लोहे के यौगिकों की उपस्थिति के कारण इसका रंग लाल होता है
(B) यह मिट्टी शुष्क कृषि के लिए अधिक उपयुक्त है
(C) यह अधिकांशतः तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में पाई जाती है
(D) यह तलछटी चट्टानों के टूटने से बनी है
उत्तर:
(D) यह तलछटी चट्टानों के टूटने से बनी है

15. पीट मिट्टी के संबंध में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) यह मिट्टी राजस्थान, गजरात व हरियाणा में पाई जाती है
(B) इसका निर्माण आर्द्र दशाओं में होता है
(C) इसमें लोहांश और जीवांश की मात्रा अधिक पाई जाती है
(D) वर्षा ऋतु में अधिकांशतः पीट मिट्टी जल में डूब जाती है
उत्तर:
(A) यह मिट्टी राजस्थान, गजरात व हरियाणा में पाई जाती है

16. लैटेराइट मिट्टी के संबंध में कौन-सी बात असत्य है?
(A) इसका निर्माण निक्षालन एवं केशिका क्रिया द्वारा होता है
(B) यह मिट्टी अम्लीय प्रकार की होने के कारण कम उपजाऊ है
(C) इसका निर्माण कम वर्षा और ठंडे इलाकों में होता है
(D) यह मिट्टी कंकरीली और छिद्रयुक्त होती है
उत्तर:
(C) इसका निर्माण कम वर्षा और ठंडे इलाकों में होता है

17. लैटेराइट मिट्टी का सबसे ज्यादा उपयोग किस कार्य में किया जाता है?
(A) कृषि में
(B) चरागाहों में
(C) झाड़ीनुमा वनों में
(D) भवन-निर्माण में
उत्तर:
(D) भवन-निर्माण में

18. ‘बेट’ भूमि कहा जाता है
(A) तराई क्षेत्र में पाई जाने वाली नालों व नालियों से कटी-फटी भूमि को
(B) उभरे हुए मिट्टी के दरों को
(C) जलोढ़ की बिछी मिट्टी की नई उपजाऊ चौरस परत को
(D) चंबल क्षेत्र में पाई जाने वाली क्षत-विक्षत भूमि को
उत्तर:
(C) जलोढ़ की बिछी मिट्टी की नई उपजाऊ चौरस परत को

19. भारत में मृदा अपरदन का सबसे प्रमुख कारण है?
(A) वनों का बड़ी मात्रा में विदोहन
(B) वायु द्वारा मिट्टी का अपवाहन
(C) सरिता अपरदन
(D) जलवायविक दशाएँ
उत्तर:
(A) वनों का बड़ी मात्रा में विदोहन

20. भारत में मृदा की ऊपरी परत के हास का प्रमुख कारण है-
(A) वायु अपरदन
(B) अत्याधिक निक्षालन
(C) जल अपरदन
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) जल अपरदन

21. देश में हरित क्रांति वाले क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि निम्नलिखित में से किस कारण से लवणीय हो रही है?
(A) जिप्सम का बढ़ता प्रयोग
(B) अतिचारण
(C) अति सिंचाई
(D) रासायनिक खादों का उपयोग
उत्तर:
(C) अति सिंचाई

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
मृदा को मूल पदार्थ अथवा पैतृक पदार्थ कहाँ से प्राप्त होता है?
उत्तर:
चट्टानों से।

प्रश्न 2.
भारत में किस मिट्टी का विस्तार सबसे अधिक क्षेत्रफल पर है?
अथवा
भारत में उत्तरी मैदान में किस मिट्टी का विस्तार अधिक है?
उत्तर:
जलोढ़ मिट्टी का।

प्रश्न 3.
दक्कन के पठार पर किस मिट्टी का सबसे ज्यादा विस्तार पाया जाता है?
उत्तर:
काली मिट्टी।

प्रश्न 4.
काली मिट्टी किस फसल के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है?
उत्तर:
कपास एवं गन्ना।

प्रश्न 5.
लाल मिट्टी के लाल रंग का क्या कारण है?
उत्तर:
लोहांश की अधिक मात्रा।

प्रश्न 6.
राजस्थान में मृदा अपरदन का सबसे बड़ा कारक कौन-सा है?
उत्तर:
पवन।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

प्रश्न 7.
चरागाहों और झाड़ीनुमा वनों के लिए कौन-सी मिट्टी अनुकूल मानी जाती है?
उत्तर:
लैटेराइट मिट्टी।

प्रश्न 8.
कौन-सी मिट्टी खेती के लिए अच्छी नहीं मानी जाती?
उत्तर:
पीली मिटी।

प्रश्न 9.
बांगर मिट्टी को किस अन्य नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
पुरातन काँप मिट्टी।

प्रश्न 10.
लाल या पीले रंग वाली मिट्टी का नाम बताइए।
उत्तर:
लैटेराइट।

प्रश्न 11.
काली मिट्टी पाए जाने वाले किसी एक राज्य का नाम बताएँ।
उत्तर:
गुजरात।

प्रश्न 12.
नदियों के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में जो मृदा मिलती है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर:
नूतन काँप मिट्टी।

प्रश्न 13.
मरुस्थलीय मिट्टी को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
बलुई मिट्टी।

प्रश्न 14.
वायु अपरदन सबसे अधिक कहाँ होता है?
उत्तर:
मरुस्थलीय भागों में।

प्रश्न 15.
खड़ी ढाल वाले क्षेत्रों में मृदा अपरदन रोकने के लिए कौन-सी विधि अपनाई जाती है?
उत्तर:
समोच्चरेखीय जुताई।

प्रश्न 16.
पहाड़ों और पठारों पर मिट्टी की परत पतली क्यों होती है?
उत्तर:
क्योंकि ढाल एवं गुरुत्वाकर्षण के कारण वहाँ मिट्टी टिक नहीं पाती।

प्रश्न 17.
जलोढ़ मिट्टियों का निर्माण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
नदियों द्वारा बहाकर लाए गए अपरदित पदार्थों के निक्षेपण से।

प्रश्न 18.
जलोढ़ मिट्टी में कुएँ, नलकूप व नहरें खोदना आसान क्यों होता है?
उत्तर:
मिट्टी के मुलायम होने के कारण।

प्रश्न 19.
मरुस्थलीय मिट्टी में लहलहाती फसलें कैसे उगाई जा सकती हैं?
उत्तर:
सिंचाई की सुविधाएँ देकर।

प्रश्न 20.
पर्वतीय मिट्टी चाय के लिए उपयोगी क्यों मानी जाती है?
उत्तर:
पर्वतीय मिट्टी तेज़ाबी होती है जो चाय में ‘फ्लेवर’ पैदा करती है।

प्रश्न 21.
वृक्षारोपण मृदा के संरक्षण में कैसे सहायता करते हैं?
उत्तर:
वृक्षों की जड़ें मिट्टी को बांध देती हैं।

प्रश्न 29.
मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया में प्राकृतिक वनस्पति की क्या भूमिका होती है?
उत्तर:
मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया का गहरा सम्बन्ध वनस्पति की वृद्धि और पौधों में पलने वाले सूक्ष्म जीवों से होता है। वनस्पति और जीवों के सड़े-गले अंश जीवांश (ह्यूमस) के रूप में मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाते हैं। इसी कारण वन्य प्रदेशों में अधिक उपजाऊ मिट्टी पाई जाती है। इस प्रकार मृदा या मिट्टी तथा वनस्पति के प्रकारों में रोचक (Interesting) सम्बन्ध पाया जाता है।

प्रश्न 30.
काली मिट्टी का निर्माण कैसे हुआ है? यह भारत में कहाँ-कहाँ पाई जाती है?
उत्तर:
निर्माण आधुनिक मान्यता के अनुसार, काली मिट्टी ज्वालामुखी विस्फोट से बनी दरारों से निकले पैठिक लावा (Basic Lava) के जमाव से बनी है।
विस्तार-यह मिट्टी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात तथा तमिलनाडु के लगभग 5 लाख वर्ग कि०मी० क्षेत्र में पाई जाती है। जलोढ़ मिट्टी के बाद देश में काली मिट्टी का विस्तार सबसे बड़े क्षेत्र पर है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मृदा का हमारे लिए क्या महत्त्व है?
अथवा
मृदा की विशेषताएँ किसी प्रदेश के आर्थिक विकास में किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं? किन्हीं दो उदाहरणों से इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मृदा या मिट्टी एक अत्यन्त मूल्यवान प्राकृतिक संसाधन है। मिट्टी के निर्माणकारी विभिन्न घटकों का संयोजन मिट्टी के उपजाऊपन को निर्धारित करता है। अधिक उपजाऊ और गहरी मिट्टी में कृषि अर्थव्यवस्था समृद्ध तथा अधिक जनसंख्या के पोषण में समर्थ होती है। इसके विपरीत, कम गहरी व कम उपजाऊ मिट्टी में कृषि का विकास कम होता है जिससे वहाँ जनसंख्या का घनत्व और लोगों का जीवन-स्तर दोनों ही निम्न होते हैं। सघन जनसंख्या वाले पश्चिम बंगाल के डेल्टाई प्रदेश एवं केरल के तटीय मैदान दोनों में समृद्ध जलोढ़ मिट्टी के कारण उन्नतशील कृषि पाई जाती है जबकि तेलंगाना की कम गहरी व मोटे कणों वाली मिट्टी और राजस्थान की रेत उन्नत कृषि को आधार प्रदान नहीं कर पाई।

प्रश्न 2.
भूमि का ढाल अथवा उच्चावच मिट्टी की निर्माण प्रक्रिया को कैसे प्रभावित करता है?
उत्तर:
भूमि का ढाल मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया को कई प्रकार से प्रभावित करता है-
(1) तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों में जल-प्रवाह की गति तेज़ होती है जिससे मिट्टी के निर्माण की बजाय उसका अपरदन होने लगता है। निम्न उच्चावच वाले क्षेत्रों में मिट्टी का निक्षेपण अधिक होता है जिससे मिट्टी की परत गहरी या मोटी हो जाती है।

(2) ढाल की प्रवणता मिट्टी के उपजाऊपन को भी निर्धारित करती है। यही कारण है कि मैदानों के डेल्टा क्षेत्र और नदी बेसिन में मिट्टी गहरी और उपजाऊ होती है जबकि पठारों में अधिक उच्चावच के कारण मिट्टी कम गहरी होती है।

प्रश्न 3.
मिट्टी के निर्माण के सक्रिय एवं निष्क्रिय कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मृदा निर्माण के पाँच कारकों में से दो सक्रिय व तीन निष्क्रिय कारक होते हैं-
(1) सक्रिय कारक (Active Factors) मृदा निर्माण में जलवायु और जैविक पदार्थ सक्रिय कारक माने जाते हैं क्योंकि इनकी क्रियाशीलता के कारण ही चट्टानों का अपघटन (Decomposition) होता है और कुछ नए जैव-अजैव यौगिक (Compounds) तैयार होते हैं।

(2) निष्क्रिय कारक (Passive Factors)-जो कारक मिट्टी निर्माण की प्रक्रिया में स्वयं पहल नहीं करते, निष्क्रिय कारक कहलाते हैं। वे हैं-जनक पदार्थ, स्थलाकृति और विकास की अवधि।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

प्रश्न 4.
जलोढ़ मिट्टी की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जलोढ़ मिट्टी की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • यह मिट्टी हल्के भूरे व पीले रंग की होती है।
  • अधिकतर स्थानों पर यह भारी दोमट व अन्य स्थानों पर यह बलुही और चिकनी होती है।
  • भिन्न-भिन्न प्रदेशों में जलोढ़ मिट्टी की गहराई अलग-अलग होती है।
  • इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस व वनस्पति अंश (ह्यूमस) की कमी होती है, परन्तु पोटाश और चूरा पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए यह मिट्टी अत्यन्त उपजाऊ होती है।
  • यह प्रवाहित (Transported) मिट्टी है जिसमें जन्म से जमाव तक के लम्बे चट्टानी मार्ग में अनेक रासायनिक तत्त्व आ मिलते हैं।
  • मुलायम होने के कारण इस मिट्टी में कुएँ, नलकूप व नहरें खोदना आसान और कम खर्चीला होता है।
  • जलोढ़ मिट्टी में गहन कृषि (Intensive Farming) की जाती है; जैसे चावल, गेहूँ, गन्ना, कपास, तिलहन, दालें, तम्बाकू व हरी सब्ज़ियाँ इस मिट्टी में बहुतायत से उगाई जाती हैं।

प्रश्न 5.
जलोढ़ मिट्टियों के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संरचना और उपजाऊपन के आधार पर जलोढ़ मिट्टियों के तीन उप-विभाग हैं-
1. खादर मिट्टियाँ–नदी तट के समीप नवीन कछारी मिट्टी से बने निचले प्रदेश को खादर कहते हैं। नदियों की बाढ़ के कारण यहाँ प्रतिवर्ष जलोढ़क की नई परत बिछ जाने के कारण यह मिट्टी अधिक उपजाऊ होती है। इसे ‘बेट’ भूमि भी कहा जाता है।

2. बाँगर मिट्टियाँ-पुराने जलोढ़ निक्षेप से बने ऊँचे प्रदेश को बाँगर कहते हैं। यहाँ बाढ़ का जल नहीं पहुँच पाता। बाँगर में मृतिका का अंश अधिक पाया जाता है। इसमें कैल्शियम संग्रथनों अर्थात् कंकड़ों की भरमार होती है। इसे ‘धाया’ भी कहते हैं।

3. न्यूनतम जलोढ़ मिट्टियाँ यह नदियों के डेल्टाओं में पाई जाने वाली दलदली, नमकीन और अत्यन्त उपजाऊ मिट्टियाँ होती हैं। इनके कण अत्यन्त बारीक होते हैं। इनमें ह्यूमस, पोटाश, चूना, मैग्नीशियम व फॉस्फोरस अधिक मात्रा में मिलते हैं।

प्रश्न 6.
भारत के उत्तरी मैदान तथा प्रायद्वीपीय पठार की मिट्टियों में मूलभूत अन्तर क्या है?
उत्तर:
भारत के उत्तरी विशाल मैदान में पाई जाने वाली मिट्टी का निर्माण नदियों की निक्षेपण-क्रिया से हुआ है। यहाँ की मिट्टी हिमालय तथा प्रायद्वीपीय पठार दोनों से ही निकलने वाली नदियों द्वारा बहाकर लाई गई है। इसमें महीन कणों वाली मृत्तिका पाई जाती है। इस मिट्टी का अपनी मूल चट्टानों से सम्बन्ध नहीं रहता। ऐसी मिट्टियों को प्रवाहित मिट्टियाँ कहा जाता है। इसके विपरीत, दक्षिणी पठार की मिट्टियों का अपनी मूल चट्टानों से गहरा सम्बन्ध है क्योंकि ये अपने निर्माण-स्थल से बहुत अधिक दूर प्रवाहित नहीं हुईं। ऐसी मिट्टियाँ स्थायी मिट्टियाँ (Permanent Soils) कहलाती हैं। ये प्रायः मोटे कणों वाली और कम उपजाऊ होती हैं।

प्रश्न 7.
काली मिट्टी की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
विशेषताएँ-

  1. रंग की गहराई के आधार पर काली मिट्टी के तीन प्रकार होते हैं-(a) छिछली काली मिट्टी, (b) मध्यम काली मिट्टी तथा (c) गहरी काली मिट्टी।।
  2. यह अपने ही स्थान पर बनकर पड़ी रहने वाली स्थायी मिट्टी है।
  3. इस मिट्टी में चूना, लोहा, मैग्नीशियम, कैल्शियम कार्बोनेट, एल्यूमीनियम व पोटाश अधिक पाया जाता है, परन्तु इसमें जीवित पदार्थों, फॉस्फोरस और नाइट्रोजन की मात्रा कम पाई जाती है।
  4. लोहांश की मात्रा अधिक होने के कारण इस मिट्टी का रंग काला होता है।
  5. उच्च स्थलों पर पाई जाने वाली मिट्टी का उपजाऊपन निम्न स्थलों व घाटियों की काली मिट्टी की अपेक्षा कम होता है।
  6. काली मिट्टी में कणों की बनावट घनी और महीन होती है जिससे इसमें नमी धारण करने की पर्याप्त क्षमता होती है। इसके लिए सिंचाई की आवश्यकता कम पड़ती है।
  7. जल के अधिक देर तक ठहर सकने के गुण के कारण यह मिट्टी शुष्क कृषि के लिए श्रेष्ठ है।
  8. इस मिट्टी का प्रमुख दोष यह है कि ग्रीष्म ऋतु में सूख जाने पर इसकी ऊपरी परत में दरारें पड़ जाती हैं। वर्षा ऋतु में यह मिट्टी चिपचिपी हो जाती है। दोनों दशाओं में इसमें हल चलाना कठिन हो जाता है। अतः पहली बारिश के बाद इस मिट्टी की जुताई ज़रूरी है।
  9. कपास के उत्पादन के लिए यह मिट्टी अत्यन्त उपयोगी है। अतः इसे काली कपास वाली मिट्टी भी कहते हैं। गन्ना, तम्बाकू, गेहूँ व तिलहन के लिए यह मिट्टी श्रेष्ठ सिद्ध हुई है।

प्रश्न 8.
ढाल पर मृदा अपरदन रोकने की दो प्रमुख विधियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
ढाल पर मृदा अपरदन रोकने की दो प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं-
1. वृक्षारोपण-वृक्षारोपण मृदा-संरक्षण का सबसे सशक्त उपाय है। जिन क्षेत्रों में वनों का अभाव है वहाँ वर्षा के जल से मिट्टी के कटाव की समस्या उत्पन्न हो जाती है। ऐसे क्षेत्रों में लगाए गए वृक्षों की जड़ें मिट्टी को बाँध देती हैं व वृक्ष तेज़ हवाओं के कारण होने वाली मिट्टी के क्षरण को रोकते हैं। साथ ही वृक्षों के अनियोजित कटाव को भी रोकना होगा। यदि विकास कार्यों हेतु वृक्ष काटने भी पढ़ें तो आस-पास नये वृक्ष लगाना भी आवश्यक है।

2. कृषि प्रणाली में सुधार भारत के कई स्थानों में की जाने वाले दोषपूर्ण कृषि प्रणाली में सुधार लाकर भी मिट्टी का संरक्षण किया जा सकता है। इसमें फसलों का चक्रण, सीढ़ीदार कृषि व ढलानों पर जल का वेग रोकने के लिए समोच्च रेखीय जुताई करना प्रमुख है। खेतों की मेड़बन्दी करना व उर्वरता बढ़ाने हेतु कृषि-भूमि को कुछ समय के लिए परती (Fallow) छोड़ना भी भूमि-संरक्षण के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 9.
मृदा अपरदन भारतीय कृषि का निर्दयी शत्रु क्यों माना जाता है? मृदा अपरदन की हानियाँ स्पष्ट करें।
उत्तर:
मृदा भारत के करोड़ों लोगों व करोड़ों पशुओं के भोजन का आधार है। भारत में मृदा अपरदन ने भयंकर रूप धारण कर रखा है। इसलिए इसे भारतीय कृषि का निर्दयी शत्रु माना जाता है। मृदा-अपरदन से होने वाली हानियाँ निम्नलिखित हैं

  • भीषण तथा आकस्मिक बाढ़ों का प्रकोप।
  • सूखे (Drought) की लम्बी अवधि जिससे फसलों को नुकसान होता है।
  • कुओं व ट्यूबवलों, नलकूपों का जल-स्तर (चोवा) नीचे चला जाता है व सिंचाई में बाधा पहुँचती है।
  • बालू के जमाव से नदियों, नहरों व बन्दरगाहों के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं।
  • उपजाऊ भूमि के नष्ट होने से कृषि की उत्पादकता कम होती है।
  • अवनालिका अपरदन से कृषि-योग्य भूमि में कमी आती है।

प्रश्न 10.
मृदा की उर्वरा-शक्ति को विकसित करने के लिए कौन-कौन से उपाय करने चाहिएँ?
उत्तर:
कृषि भूमि पर निरन्तर खेती करने से मिट्टी की उर्वरा-शक्ति कम हो जाती है। उर्वरा-शक्ति को बनाए रखने के लिए . निम्नलिखित उपाय करने चाहिएँ-
1. भूमि को परती छोड़ना (Fallow Land) कृषि की जमीन को लगातार जोतने की बजाय उसे एक दो वर्षों के लिए परती छोड़ देनी चाहिए। परती छोड़ने से वायु, वनस्पति (घास), कीड़े-मकौड़े आदि ऐसी जमीन पर उर्वरा-शक्ति बढ़ाते हैं।

2. फसलों का हेर-फेर (Rotation of Crops)-खेत में फसलों को बदल-बदलकर बोना चाहिए। विभिन्न पौधे मिट्टी से विभिन्न प्रकार के पोषक तत्त्व खींचते हैं और कछ तत्त्व छोडते हैं। अतः फसलों के हेर-फेर से मिट्टी में लगातार एक प्रकार के पोषक तत्त्व नष्ट नहीं होते, बल्कि दूसरी फसलों से उनकी पूर्ति हो जाती है।

3. गहरी जुताई (Deep Ploughing) कृषि-भूमि को काफी गहराई तक जोतना चाहिए। ऐसा करने से मिट्टी के खनिज तत्त्वों का मिट्टी में पूरी तरह मिलान हो जाता है।

4. रासायनिक खादों का प्रयोग (Use of Chemical Fertilizers)-मिट्टी में समय-समय पर रासायनिक खाद तथा जैविक उर्वरक आदि का प्रयोग करते रहना चाहिए।

प्रश्न 11.
किसी प्रदेश के आर्थिक विकास में मृदा की विशेषताएँ किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं? इसकी व्याख्या करने के लिए दो उदाहरण बताइए।
उत्तर:
भू-पटल पर पाए जाने वाले असंगठित शैल चूर्ण की पर्त, जो पौधों को उगने तथा बढ़ने के लिए जीवांश तथा खनिजांश प्रदान करती है, उसे मृदा कहते हैं। यह एक बहुमूल्य प्राकृतिक सम्पदा है। इस पर अनेक मानवीय क्रियाएँ निर्भर करती हैं। मिट्टी कृषि, पशु-पालन तथा वनस्पति जीवन का आधार है। बहुत-से देशों की अर्थव्यवस्था मिट्टी के उपजाऊपन पर निर्भर करती है। विश्व के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में मनुष्य अपने भोजन के लिए मृदा की उपजाऊ शक्ति पर निर्भर करते हैं। जिन क्षेत्रों की भूमि अनुपजाऊ होती है, वहाँ जनसंख्या का घनत्व तथा लोगों का जीवन-स्तर निम्न होता है।

उदाहरण के लिए पश्चिमी बंगाल का डेल्टाई क्षेत्र और केरल तट अति उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी से निर्मित हैं। इसलिए ये क्षेत्र सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व के प्रदेश हैं तथा यहाँ उन्नत कृषि की जाती है। इसके विपरीत तेलंगाना में मोटे कणों की मिट्टी पाई जाती है और राजस्थान में रेतीली मिट्टी मिलती है। यह मिट्टी कृषि के योग्य नहीं है। इसलिए उन क्षेत्रों में जनसंख्या विरल है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मृदा-निर्माण करने वाले विभिन्न घटकों या कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मृदा-निर्माण करने वाले मुख्य घटक या कारक निम्नलिखित हैं-
1. जनक-सामग्री अथवा मूल पदार्थ-मिट्टी का निर्माण करने वाले जनक पदार्थों की प्राप्ति चट्टानों से होती है। चट्टानों के अपरदन और अपक्षय से बने चूर्ण से ही मिट्टी का निर्माण होता है। भारत के उत्तरी विशाल मैदान में पाई जाने वाली मिट्टी का निर्माण नदियों की निक्षेपण-क्रिया से हुआ है। इस मिट्टी का अपनी मूल चट्टानों से सम्बन्ध नहीं रहता। ऐसी मिट्टियों को प्रवाहित मिट्टियाँ कहा जाता है। इसके विपरीत, दक्षिणी पठार की मिट्टियों का अपनी मूल चट्टानों से गहरा सम्बन्ध है क्योंकि ये अपने निर्माण-स्थल से बहुत अधिक दूर प्रवाहित नहीं हुईं। ऐसी मिट्टियाँ स्थायी मिट्टियाँ कहलाती हैं।

2. उच्चावच-तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों में जल-प्रवाह की गति तेज़ होती है जिसके कारण मिट्टी के निर्माण की बजाय उसका अपरदन होने लगता है। निम्न उच्चावच वाले क्षेत्रों में मिट्टी का निक्षेपण अधिक होता है जिससे मिट्टी की परत गहरी या मोटी हो जाती है। ढाल की प्रवणता मिट्टी के उपजाऊपन को भी निर्धारित करती है। यही कारण है कि मैदानों के डेल्टा क्षेत्र और नदी बेसिन में मिट्टी गहरी और उपजाऊ होती है जबकि पठारों में अधिक उच्चावच के कारण मिट्टी कम गहरी होती है।

3. जलवायु-भारत में तापमान और वर्षा में पाए जाने वाले विशाल प्रादेशिक अन्तर के कारण विभिन्न प्रकार की मिट्टियों का जन्म हुआ है। उष्ण और आर्द्र प्रदेशों की मिट्टियाँ मोटाई और उपजाऊपन में शीतल एवं शुष्क प्रदेशों की मिट्टियों से काफी भिन्न होती हैं। इसके अतिरिक्त, मिट्टी में जल रिसने की मात्रा और सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति भी, जो मिट्टी को उपजाऊ बनाती हैं, जलवायु द्वारा नियन्त्रित होती है।

4. प्राकृतिक वनस्पति-मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया का गहरा सम्बन्ध वनस्पति की वृद्धि और पौधों में पलने वाले सूक्ष्म जीवों से होता है। वनस्पति और जीवों के सड़े-गले अंश जीवाश्म (ह्यूमस) के रूप में मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाते हैं। इसी कारण वन्य प्रदेशों में अधिक उपजाऊ मिट्टी पाई जाती है। इस प्रकार मृदा या मिट्टी तथा वनस्पति के प्रकारों में रोचक सम्बन्ध पाया जाता है।

5. विकास की अवधि अथवा समय-मिट्टी का निर्माण एक धीमी किन्तु सतत् प्रक्रिया है। ऐसा मानना है कि दो सेण्टीमीटर मोटी मिट्टी की विकसित परत को बनाने में प्रकृति को लगभग दो शताब्दियाँ लग जाती हैं। मिट्टी का विकास तीन अवस्थाओं में होता है-

  • युवा अवस्था
  • प्रौढ़ अवस्था व
  • जीर्ण अवस्था।

अतः कहा जा सकता है कि मिट्टी ठोस, तरल व गैसीय पदार्थों का मिश्रण है जो चट्टानों के अपक्षय, जलवायु, पौधों व अनन्त जीवाणुओं के बीच होने वाली अन्तःक्रिया का परिणाम है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

प्रश्न 2.
भारत में पाई जाने वाली मिट्टियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मृदा क्या है? मृदा के प्रकार बताइए और जलोढ़ मृदा की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मृदा-भू-पृष्ठ की सबसे ऊपरी परत जो पौधों को उगने व बढ़ने के लिए जीवांश और खनिजांश प्रदान करती है मृदा कहलाती है। मिट्टियों के गुण, रंग व बनावट के आधार पर भारत में निम्नलिखित प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती हैं-

  • काली मिट्टी
  • लैटेराइट मिट्टी
  • पर्वतीय मिट्टी
  • मरुस्थलीय मिट्टी
  • लाल और पीली मिट्टी
  • जलोढ़ मिट्टी
  • खारी खड़िया मिट्टी
  • दलदली मिट्टी।

1. काली मिट्टी (Black Soil) काली मिट्टी में महीन कण वाली मृत्तिका अधिक होती है। इस कारण इसमें पानी के रिसने की सम्भावना नहीं होती। यह मिट्टी कठोर प्रकार की होती है। यह ज्वालामुखी के लावा से बनती है। यह काले रंग की बारीक कणों वाली होती है। इसे रेगर (Ragur) के नाम से भी जाना जाता है। यह मिट्टी बहुत उपजाऊ होती है। इसमें अधिक जुताई करने की आवश्यकता नहीं होती। यह मिट्टी अधिक मात्रा में नमी ग्रहण कर सकती है। इसमें चूना, पोटाश, मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है। यह मिट्टी दक्षिणी राजस्थान, पश्चिमी आन्ध्र प्रदेश तथा पश्चिमी मध्य प्रदेश में अधिक मात्रा में पाई जाती है। कपास की खेती के लिए यह मिट्टी बहुत उपजाऊ है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ 1

2. लैटेराइट मिट्टी (Laterite Soil)-इस प्रकार की मिट्टी उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में पाई जाती है। भारी वर्षा के कारण इसमें चूना व सिलिका घुल जाते हैं और एल्युमीनियम की मात्रा अधिक हो जाती है। चूने के अभाव के कारण यह मृदा अम्लीय होती है। पठारों और पहाड़ियों पर इस मिट्टी का निर्माण अधिक होता है। इस मिट्टी का रंग लौह-ऑक्साइड तत्त्व के कारण लाल होता है। ओडिशा के पूर्वी घाट क्षेत्र में यह मिट्टी अत्यधिक मात्रा में पाई जाती है। इस मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा नमी क्षेत्र को छोड़कर बहुत कम पाई जाती है। ऊँचे भागों की लेटेराइट मिट्टी अनुपजाऊ होती है। यह नाइट्रोजन, चूना, फास्फोरस तथा मैग्नीशियम की मात्रा कम होने के कारण कम उपजाऊ है। मिट्टी में घास, झाड़ियाँ बहुत उगती हैं। यह मिट्टी छोटा नागपुर. का पठार, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, ओडिशा तथा असम में पाई जाती है।

3. पर्वतीय मिट्टी (Mountaineous Soil)-मैदान की अपेक्षा पर्वतीय मिट्टियों में अधिक विभिन्नताएँ होती हैं। पर्वतों की मिट्टियाँ आग्नेय चट्टानों तथा इनके पदार्थों के विघटन होने के कारण बनी हैं। पर्वतों की मिट्टियाँ ऊँचाई के अनुरूप अलग-अलग पाई जाती हैं। इनके तल की मिट्टियाँ क्षितिजीय वितरण के लिए होती हैं। ऊँचे पर्वत की मिट्टियाँ ऊपरी ढाँचे से युक्त होती हैं। निचले भागों में अपेक्षाकृत पूर्ण निर्मित व समान रूप से वितरित मिट्टियाँ पाई जाती हैं। धरातल व ढालों के प्रभाव के कारण इसकी गहराई में अन्तर मिलता है।

ये मिट्टियाँ लम्बे समय तक कृषि के उपयोग में लाई जाती हैं। पर्याप्त नमी के कारण विभिन्न खनिजों का जमाव, फास्फोरस, जिप्सम, चूना आदि की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है। इस प्रकार की मिट्टियों का निर्माण प्रतिवर्ष होता रहता है।

4. मरुस्थलीय मिट्टी (Desert Soil) भारत की मरुस्थलीय मिट्टी में अनुसन्धान ‘भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद्’ कर रही है। इसने हाल ही में राजस्थान के मरुस्थल के बारे में जानकारी उपलब्ध की है। ये मिट्टियाँ मूल रूप से गंगा सिन्ध मैदान का भाग हैं। ये मिट्टियाँ उच्च तापमान व शुष्कता से निर्मित होती हैं। इसका रंग काला, लाल, भूरा व स्लेटी होता है। ये एक प्रकार की स्थानान्तरित कछारी मिट्टियाँ हैं। इनमें उर्वरा शक्ति बहुत कम होती है। इसमें क्षारीय तत्त्व, जैवकीय तत्त्व, नाइट्रोजन व ह्यूमस की मात्रा कम पाई जाती है। इसकी रन्ध्रता से पानी का अधिक तेजी से रिसाव होता है। पैतृक पदार्थों से विघटित होकर ये मिट्टियाँ खिट के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं।

5. लाल मिट्टी (Red Soil)-लाल मिट्टी भारत के दक्षिण पठार के मुख्य ट्रेप (Trap) के बाहरी भागों तक पाई जाती है। पूर्वी तथा पश्चिम घाटों के ढाल, हजारीबाग तथा छोटा नागपुर पठार, दामोदर की घाटी तथा अरावली पर्वत श्रेणी इसके प्रमुख क्षेत्र हैं। इसकी बनावट बलुई व दोमट कणों की है। यह उपोष्ण प्रदेशों में कम, विक्षलित वर्षा वाले वनों में गहरे लाल रंग के रूप में पाई जाती है। ये मिट्टियाँ अधिक मोटी व उपजाऊ होती हैं। ये मिट्टियाँ ओडिशा, मध्य प्रदेश, उत्तरी मध्य आन्ध्र प्रदेश तथा पूर्वी केरल राज्यों में विस्तृत रूप से फैली होती हैं। लाल दानेदार मिट्टी कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश में पाई जाती है। यह मिट्टी कम उर्वरा शक्ति वाली होती है। इसकी भौतिक संरचना रेगर प्रकार की होती है।

6. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil) यह भारत के उत्तरी मैदान की प्रमुख मिट्टी है। उत्तरी भारत की नदियों द्वारा बिछाई गई मिट्टी भारतीय पठार में पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं, नर्मदा, ताप्ती की निचली घाटियों व गुजरात में पाई जाती है। इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश की मात्रा कम पाई जाती है। यहाँ की पुरानी जलोढ़ मिट्टी को बाँगर कहा जाता है। इस मिट्टी में चूना बहुत कम मात्रा में पाया जाता है। ब्रह्मपुत्र नदी द्वारा बिछाई गई मिट्टी में चूने की मात्रा पूर्ण रूप से पाई जाती है। यह मिट्टी शुष्क छ स्थानों पर खारी मिट्टी के बड़े टुकड़े सोडियम, कैल्शियम, पोटाशियम तथा मैग्नीशियम के जमा होने से बनती है। इस मिट्टी में रेह अथव कल्लर भी पाई जाती है। इस मिट्टी पर जुताई बड़ी आसानी से हो जाती है। इसमें खाद मिलाकर सिंचाई करने के बाद वर्ष में कई फसलें प्राप्त की जा सकती हैं। इस भाग में वर्षा के असमान वितरण के कारण कई तत्त्वों की न्यूनाधिकता पाई जाती है। यह मिट्टी अपनी उपजाऊ शक्ति के कारण भारतीय कृषि में अपना विशिष्ट स्थान रखती है।

7. खारी खड़िया मिट्टियाँ (Brakish Soil)-खारी लवण-युक्त मिट्टियाँ शुष्क मरुस्थल में पाई जाती हैं। इस मिट्टी वाले स्थानों पर लवण धरातल पर विक्षालन की बजाय निचली परतों में एकत्रित हो जाते हैं और धीरे-धीरे मिट्टी को लवण-युक्त बना देते हैं। इसकी ऊपरी सतह पर नमक की परत जमा हो जाती है। यह नमक की परत उपजाऊ शक्ति को कम कर देती है। इसमें सोडियम, कैल्शियम तथा मैग्नीशियम की अधिक मात्रा पाई जाती है। यह मिट्टी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु तथा महाराष्ट्र में पाई जाती है।
मृदाएँ

8. दलदली मिट्टी (Marshy Soil)-दलदली और पीट मिट्टियाँ, जहाँ बहुत गहरा कीचड़ होता है, वहाँ पाई जाती हैं। उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र क्षेत्र जहाँ अपर्याप्त जल प्रवाह होता है, वहाँ दलदली मिट्टियाँ विकसित होती हैं। ये अत्यधिक अम्लीय अपरिष्कृत विनिष्ट वनस्पतिक पदार्थ उत्पन्न करती हैं। ये बाढ़ के मैदानों पर निर्मित होती हैं, जो विभिन्न अवधियों में जलमग्न हो जाती हैं और कीचड़ तथा तलछट के निक्षेपों से युक्त हो जाती हैं। यह मिट्टी केरल, ओडिशा, पश्चिमी बंगाल, मध्य प्रदेश, उत्तरी बिहार, उत्तर प्रदेश तथा तमिलनाडु के तटवर्ती क्षेत्रों में पाई जाती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

प्रश्न 3.
मृदा अपरदन से आपका क्या तात्पर्य है? इसके प्रकार तथा कारण बताएँ।
अथवा
मृदा अपरदन क्या है? इसके प्रकारों तथा कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
मृदा अपरदन (Soil Erosion)-प्रकृति की विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा मिट्टियों के ह्रास को मृदा अपरदन कहते हैं। मृदा अपरदन जल तथा वायु के परिणामस्वरूप होता है। विभिन्न साधन, जो किसी-न-किसी रूप में सक्रिय रहते हैं, धरातल को निरन्तर काटते-छाँटते रहते हैं, इनमें बहता हुआ जल, हवा, हिमानी आदि प्रमुख प्राकृतिक साधन हैं। मिट्टियों के अपरदन में मानवीय क्रियाकलाप का भी योगदान कम नहीं है। मानव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार के तकनीकी साधन अपनाकर मिट्टी के कटाव को बढ़ावा देता है। वर्तमान समय में भूमि के अधिकतम उपयोग, अधिकतम रासायनिक क्रियाओं व खाद का उपयोग अव्यवस्थित कृषि पद्धति आदि करने से मिट्टी का कटाव अधिक हो रहा है।

मृदा अपरदन के प्रकार (Types of Soil Erosion)-मृदा अपरदन मुख्य रूप से निम्नलिखित तीन प्रकार का होता है-

  • जलीय अपरदन (Fluvial Erosion)
  • वायुद अपरदन (Acolian Erosion)
  • समुद्री अपरदन (Marine Erosion)

1. जलीय अपरदन (Fluvial Erosion)-जल के विभिन्न रूप प्रभावित जल, एकत्रित जल, नदी पोखरों, झरनों, हिमानी द्वारा मिट्टी का कटाव को जलीय अपरदन कहते हैं। इसमें मिट्टियाँ अपनी मूलचट्टानों को छोड़कर दूसरे स्थान पर जाकर जमा हो जाती हैं। बहते हुए जल द्वारा वहाँ अपरदन कई रूप में होता है
(1) अवनलिका अपरदन (Gully Erosion)-प्रथम अवस्था में मिट्टियाँ इस प्रकार का अपरदन पहाड़ी दुर्गम क्षेत्रों के तंग मार्ग में मिट्टी के कटाव करती हैं। इसमें कटाव लम्बवत रूप से होता है तथा घाटी गहरी होती जाती है।

(2) चद्दर अपरदन (Sheet Erosion)-इस प्रकार का अपरदन नदियों के लिए तलीय भाग के पानी द्वारा होता है। इसमें अपरदन परतों के रूप में होता है, इसलिए इसे चद्दर अपरदन कहते हैं।

(3) सरिता अपरदन (River Erosion)-जब नदी अपनी वृद्ध अवस्था में छोटी-छोटी जल धाराओं में बँट जाती है और मिट्टी की ऊपरी परत (महीन व चिकने कणयुक्त) को काट देती है, तो उसे सरिता अपरदन कहा जाता है।

(4) नदी तटीय कटाव (Riparian Erosion) यह अपरदन नदियों के तेज प्रवाह के कारण होता है। इसमें नदियाँ तटीय भागों को अधिक अपरदित करती हैं। इसका निर्माण नदी की सर्पाकार अवस्था में भी मिलता है।

(5) छपछपाना कटाव (Splash Erosion)-जब वर्षा रुक-रुककर होती है, तो इस क्रिया से मिट्टी ढीली हो जाती है, जो बाद में पानी के साथ बह जाती है। इसे छपछपाना कटाव कहते हैं।

2. वायुद अपरदन (Acolian Erosion)-वायु अपनी प्राकृतिक शक्ति द्वारा मैदानी तथा मरुस्थलों की मिट्टी को अपने साथ उड़ा ले जाती है और उसे दूसरे स्थान पर निक्षेपण कर देती है। हवा द्वारा मिट्टियों का अपरदन व निक्षेपण विस्तृत भागों में होता है। मरुस्थलों में इस प्रकार का अपरदन व निक्षेपण कई कि०मी० तक होता रहता है। इसमें वायु का वेग तेज होता है। जिन क्षेत्रों में अव्यवस्थित कृषि होती है और भूमि बारम्बार जोत से ढीली हो जाती है, उसे वायु अपने साथ उड़ा ले जाती है। इस प्रकार का अपरदन उपजाऊ भाग की मिट्टियाँ उड़ाकर उसे अनुपजाऊ बना देता है। मिट्टियों की निक्षेपण क्रिया द्वारा विभिन्न प्रकार की मरुस्थलीय स्थलाकृतियाँ बनती व बिगड़ती रहती हैं। जिन भागों पर ये मिट्टियाँ बिछा दी जाती हैं, वहाँ मिट्टी की पतली परत का निर्माण हो जाता है, जो बहुत उपजाऊ होती है, लेकिन पानी के अभाव के कारण अनुपजाऊ हो जाती है।

3. समुद्री अपरदन (Marine Erosion)-नदियों व झीलों आदि की लहरों द्वारा समुद्र के तटवर्ती भागों का अपरदन होता है। ये लहरें धीरे-धीरे तटीय भागों को अपरदित करना शुरू कर देती हैं और वहाँ अनेक स्थलाकृतियों का निर्माण कर देती हैं। ये लहरें दलदल का भी निर्माण करती हैं, जिससे खारी मिट्टियों का निर्माण होता है। लहरें तटीय भागों पर गहरी नालियों का निर्माण कर देती हैं तथा उपजाऊ भूमि को अनुपयुक्त बना देती हैं। ज्वार-भाटा भी तटीय कटावों में सहयोगी होता है।

इस प्रकार पानी की क्रियाओं द्वारा या हवाओं द्वारा निरन्तर मिट्टियों का कटाव होता रहता है। मिट्टी अपरदन के कारण (Causes of Soil Erosion) मृदा अपरदन के निम्नलिखित कारण हैं-
1. वर्षा की भिन्नता (Variability of Rainfall) अलग-अलग क्षेत्रों में वर्षा के वितरण में भिन्नता पाई जाती है। जहाँ पर कम वर्षा होती है, वहाँ मिट्टी शुष्क होकर अपरदित होने लगती है। कहीं-कहीं पर पानी से दरारें व मिट्टी भुरभुरी होकर बिखर जाती है। अतः वर्षा का असमान वितरण भी मिट्टी कटाव में सहायक होता है।

2. निरन्तर कृषि (Regular Cultivation)-लगातार कई वर्षों तक एक ही क्षेत्र पर कृषि करने से मिट्टियों का कटाव होता है। इसकी उपजाऊ शक्ति धीरे-धीरे कम होती जाती है और मिट्टी में रासायनिक तत्त्वों की कमी आ जाती है। स्थानान्तर कृषि से वनों का नाश होता है, इसके द्वारा भी काफी मात्रा में मिट्टी अपरदन होता है।

3. जंगलों की कटाई (Deforestation)-वर्तमान समय में जनसंख्या के विस्फोट के कारण वनों की निरन्तर कटाई से वन धीरे-धीरे कम हो रहे हैं और ताप व वर्षा की दशाओं पर विपरीत प्रभाव डाल रहे हैं, जिसका प्रभाव वनस्पति के विकास व वृद्धि पर पड़ता है। इस प्रकार धीरे-धीरे वन उजड़ जाते हैं और मृदा अपरदन बढ़ता जाता है।

4. नदियाँ (Rivers)-बहती हुई नदियाँ अपने रास्ते से मिट्टी बहाकर ले जाती हैं और रास्ते में अनेक खड्डों का निर्माण कर देती हैं। कई बार नदियाँ अपना रास्ता बदल देती हैं और नए तरीके से अपने मार्ग का निर्माण कर देती हैं। इस निर्माण क्रिया में भी मृदा अपरदन होता रहता है। बाढ़ के समय मृदा अपरदन काफी मात्रा में होता है।

5. हवाएँ (Airs) मरुस्थलीय भागों में वायु द्वारा मृदा अपरदन तीव्र गति से होता है। वायु अपने साथ मिट्टी को उड़ाकर ले जाती है और दूसरे स्थान पर उसका निक्षेपण कर देती है। वायु की तीव्रता के अनुसार मृदा अपरदन कम या ज्यादा होता है।

6. अनियन्त्रित पशुचारण (Uncontrolled Pastroalis) पशुचारण से पेड़-पौधों का विनाश होता है। पशु घास को जड़ सहित खींच लेते हैं, जिसके परिणामस्वरूप भूमि-क्षरण प्रारम्भ हो जाता है। पशुओं के चलने-फिरने से भी मिट्टी ढीली पड़ जाती है। इस प्रकार पशुओं के अनियमित चराने से मृदा अपरदन होता है।

7. कृषि के गलत तरीके (Faulty Methods ofCultivation)-आधुनिक समय में विज्ञान के क्षेत्र में उन्नति के कारण के अनेक विकसित तरीकों की खोज हो चुकी है। मानव अधिक फसल के लिए इन तरीकों का गलत प्रयोग करता है। इस कारण भी मृदा अपरदन होता है। खेतों को बारम्बार जोतना या आवश्यकता न होने पर जोतना, अनियन्त्रित सिंचाई, अधिक कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग करना आदि से मिट्टियाँ अपना गुण खो देती हैं और इनका विघटन प्रारम्भ हो जाता है।

8. वनस्पति का विनाश (Destruction of Vegetation) प्राकृतिक वातावरण में धीरे-धीरे परिवर्तन से ताप में भिन्नता तथा इन क्षेत्रों की मिट्टियों के निर्माण में परिवर्तन होना शुरू हो जाता है। इस परिवर्तन के कारण पौधों व वनस्पति पर विपरीत प्रभाव पड़ते हैं। वनस्पति नष्ट होनी शुरू हो जाती है। धीरे-धीरे शुष्कता भी बढ़ती जाती है। वनस्पति आवरण के कम होने के कारण ताप की तीव्रता अधिक होती जाती है और मिट्टियों का क्षरण प्रारम्भ हो जाता है।