Class 11

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

1. निम्नलिखित में से किसका संबंध जीव-भूगोल से है?
(A) भू-विज्ञान
(B) समाजशास्त्र
(C) जीव-विज्ञान
(D) जलवायु, विज्ञान
उत्तर:
(C) जीव-विज्ञान

2. “भू-गर्भ विज्ञान भूतकाल का भूगोल है और भूगोल वर्तमान काल का भू-गर्भ विज्ञान है” यह कथन किस विद्वान् का दिया हुआ है?
(A) रिटर
(B) डेविस
(C) हार्टशोर्न
(D) वेगनर
उत्तर:
(B) डेविस

3. क्रमबद्ध भूगोल (Systematic Geography) का प्रवर्तन किस भूगोलवेत्ता ने किया?
(A) हेट्टनर ने
(B) कार्ल रिटर ने
(C) हार्टशॉर्न ने
(D) अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट ने
उत्तर:
(D) अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट ने

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

4. लंबाई, चौड़ाई और गोलाई भूगोल के तीन आयाम हैं। भूगोल का चौथा आयाम कौन-सा है?
(A) मोटाई
(B) गहराई
(C) ऊँचाई
(D) समय
उत्तर:
(D) समय

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
क्रमबद्ध भूगोल उपागम का विकास किसने किया?
उत्तर:
अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट ने।

प्रश्न 2.
उस विद्वान का नाम बताएँ जिसने नील नदी के डेल्टा के बनने की प्रक्रिया का सर्वप्रथम कारण-सहित वर्णन किया था।
उत्तर:
हेरोडोटस (485-425 ई०पू०)।

प्रश्न 3.
प्राचीनकाल के किस विद्वान् ने मनुष्य पर पर्यावरण के प्रभावों का उल्लेख किया था?
उत्तर:
हिप्पोक्रेट्स (460-377 ई०पू०)।

प्रश्न 4.
सबसे पहले किस विद्वान् ने सूर्य की किरणों के कोण मापकर पृथ्वी की परिधि का आकलन कर लिया था?
उत्तर:
इरेटॉस्थेनीज़ (276-194 ई०पू०)।

प्रश्न 5.
वह कौन-सा भूगोलवेत्ता था जिसने भौतिक भूगोल तथा मानव भूगोल में संश्लेषण (Synthesis) का समर्थन किया?
उत्तर:
एच० जे० मैकिण्डर।

प्रश्न 6.
20वीं सदी के आरम्भ में मानव और प्रकृति के अन्तर्सम्बन्धों को लेकर कौन-सी दो विचारधाराएँ विकसित हुई थी?
उत्तर:
नियतिवाद और सम्भववाद।

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प्रश्न 7.
भूगोल के कौन-से दो दृष्टिकोण हैं?
उत्तर:

  1. प्राचीन दृष्टिकोण
  2. आधुनिक दृष्टिकोण।

प्रश्न 8.
भूगोल में अध्ययन की दो तकनीकें कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. मानचित्रण विधि
  2. मात्रात्मक विधि।

प्रश्न 9.
सर्वप्रथम ‘भूगोल’ शब्द का प्रयोग किसने किया था?
उत्तर:
इरेटॉस्थेनीज़ ने।

प्रश्न 10.
भूगोल के अध्ययन की दो विधियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. क्रमबद्ध विधि
  2. प्रादेशिक विधि।

प्रश्न 11.
भूगोल की दो प्रमुख शाखाओं के नाम बताइए।
उत्तर:

भौतिक भूगोल
मानव भूगोल।

प्रश्न 12.
प्रादेशिक भूगोल उपागम का विकास किसने किया?
उत्तर:
कार्ल रिटर ने।

प्रश्न 13.
प्रादेशिक भूगोल की कोई दो उपशाखाएँ बताएँ।
उत्तर:

  1. प्रादेशिक अध्ययन
  2. प्रादेशिक विश्लेषण।

प्रश्न 14.
“मनुष्य के कार्य प्रकृति द्वारा निर्धारित होते हैं।” यह कथन किस विद्वान् का है?
उत्तर:
रेटजेल का।

प्रश्न 15.
सम्भववाद के प्रमुख समर्थक भूगोलवेत्ताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
विडाल डी ला ब्लाश तथा एस० फैरो।

प्रश्न 16.
नियतिवाद के दो समर्थक भूगोलवेत्ताओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
रेटज़ेल व हंटिंगटन।

प्रश्न 17.
वातावरण या पर्यावरण को किन दो मुख्य भागों में बाँटा जाता है?
उत्तर:

  1. प्राकृतिक वातावरण
  2. मानवीय अथवा सांस्कृतिक वातावरण।

प्रश्न 18.
किन दो भारतीय वैज्ञानिकों ने सर्वप्रथम पृथ्वी के आकार का वर्णन किया था?
उत्तर:

  1. आर्यभट्ट
  2. भास्कराचार्य।

प्रश्न 19.
234 ई० पू० यूनान के किस विद्वान ने पृथ्वी की परिभाषा देने के लिए ‘Geography’ शब्द का प्रयोग किया?
उत्तर:
इरेटॉस्थेनीज़।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भौतिक भूगोल किसे कहते हैं?
उत्तर:
भौतिक भूगोल पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले भौतिक पर्यावरण के तत्त्वों का अध्ययन करता है अर्थात् इसमें स्थलमंडल, जलमंडल, वायुमंडल व जैवमंडल आदि का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 2.
‘सम्भववाद’ क्या होता है?
उत्तर:
फ्रांस से आई इस विचारधारा के अनुसार, मनुष्य के सभी कार्य प्रकृति अथवा पर्यावरण द्वारा ही निर्धारित नहीं होते, बल्कि मनुष्य अपनी बुद्धि व श्रम से सम्भावनाओं का अपनी इच्छानुसार उपयोग कर सकता है।

प्रश्न 3.
‘नियतिवाद’ क्या होता है?
उत्तर:
जर्मनी से आई इस विचारधारा के अनुसार, मनुष्य के सभी कार्य प्रकृति निर्धारित करती है। अतः मनुष्य स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य नहीं कर सकता। वह केवल प्रकृति का दास है।

प्रश्न 4.
भूगोल में किन-किन परिमण्डलों का अध्ययन किया जाता है?
उत्तर:

  1. स्थलमण्डल
  2. जलमण्डल
  3. वायुमण्डल
  4. जैवमण्डल।

प्रश्न 5.
एक विषय के रूप में भूगोल किन तीन कार्यों का अध्ययन करता है?
उत्तर:

  1. भूगोल की प्रकृति तथा कार्य-क्षेत्र
  2. समय के साथ भूगोल का विकास
  3. भूगोल की मुख्य शाखाओं का अध्ययन।

प्रश्न 6.
भौतिक वातावरण और सांस्कृतिक वातावरण में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भौतिक वातावरण-मानव अथवा अन्य पारिस्थितिक समुदायों को प्रभावित करने वाले भौतिक कारकों; जैसे वर्षा, तापमान, भू-आकार, मिट्टी, प्राकृतिक वनस्पति, जल इत्यादि का सम्मिश्रण। सांस्कृतिक वातावरण मानव अथवा अन्य पारिस्थितिक समुदायों को प्रभावित करने वाले सांस्कृतिक कारकों; जैसे ग्राम, नगर, यातायात के साधन, कारखाने, व्यापार, शिक्षा संस्थाओं इत्यादि का सम्मिश्रण।

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प्रश्न 7.
मात्रात्मक विधि तथा मानचित्रण विधि में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
मात्रात्मक विधि तथा मानचित्रण विधि में निम्नलिखित अन्तर हैं-

मात्रात्मक विधिमानचित्रण विधि
1. इस विधि में तथ्यों और आँकड़ों को एकत्रित करके वर्गीकृत किया जाता है।1. इस विधि में आँकड़ों के आधार पर मानचित्र बनाए जाते हैं।
2. इस विधि में आँकड़ों के विश्लेषण से कुछ अर्थपूर्ण अनुमान लगाए जाते हैं।2. इस विधि में मानचित्रों से निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

प्रश्न 8.
भौतिक भूगोल तथा मानव भूगोल में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
भौतिक भूगोल तथा मानव भूगोल में निम्नलिखित अंतर हैं-

भौतिक भूगोलमानव भूगोल
1. भौतिक भूगोल पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले भौतिक पर्यावरण के तत्त्वों का अध्ययन करता है।1. मानव भूगोल पृथ्वी तल पर फैली मानव-निर्मित परिस्थितियों का अध्ययन करता है।
2. भौतिक भूगोल में स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल व जैव मण्डल का अध्ययन किया जाता है।2. मानव भूगोल में मनुष्य के सांस्कृतिक परिवेश का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 9.
क्रमबद्ध भूगोल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
क्रमबद्ध भूगोल, भूगोल की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत भौगोलिक तत्त्वों की क्षेत्रीय विषमताओं का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। क्रमबद्ध भूगोल में हम भौगोलिक तत्त्वों को प्रकरणों (Topics) में बाँट लेते हैं। फिर प्रत्येक प्रकरण का अलग-अलग अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के तौर पर ‘धरातल’ प्रकरण को लेकर हम किसी भी देश, महाद्वीप या विश्व का अध्ययन कर सकते हैं। इसी प्रकार जलवायु, मृदा, वनस्पति, खनिज, फसलें, परिवहन, जनसंख्या आदि तत्त्वों का क्षेत्र विशेष पर पृथक-पृथक अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 10.
प्रादेशिक भूगोल से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रादेशिक भूगोल में हम पृथ्वी तल को भौगोलिक तत्त्वों की समानता के आधार पर अलग-अलग प्राकृतिक प्रदेशों (Region) में बाँट लेते हैं और फिर प्रत्येक प्रदेश में पाए जाने वाले समस्त मानवीय और भौगोलिक तत्त्वों का समाकलित अध्ययन करते हैं; जैसे भूमध्य-रेखीय प्रदेश, पंजाब एवं हरियाणा का मैदान, मरुस्थलीय प्रदेश इत्यादि।

प्रश्न 11.
भूगोल के प्राचीन दृष्टिकोण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
लगभग अठारहवीं शताब्दी तक भूगोल पृथ्वी से सम्बन्धित तथ्यों को एकत्रित करने वाला एक विवरणात्मक शास्त्र माना जाता था, तब भूगोल का मानवीय क्रियाओं से कोई सम्बन्ध नहीं था। इस प्रकार भौगोलिक अध्ययन का प्राचीन दृष्टिकोण एकांगी (Isolated) था।

प्रश्न 12.
भूगोल के आधुनिक दृष्टिकोण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आधुनिक भूगोल पृथ्वी तल पर मनुष्य और उसके भौतिक तथा सांस्कृतिक पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्धों के अध्ययन पर बल देता है। भूगोल अब वर्णनात्मक शास्त्र नहीं रहा बल्कि जीन बूंश के शब्दों में, “भूगोल में अब घटनाओं के बारे में कहाँ, कैसे और क्यों जैसी जिज्ञासाओं के उत्तर देने का प्रयास किया जाता है।” भगोल के आधनिक दृष्टिकोण में कार effect) सम्बन्धों की विवेचना का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

प्रश्न 13.
पुनर्जागरण काल कौन-सा था और उसकी क्या विशेषता थी?
उत्तर:
13वीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के बीच का काल पुनर्जागरण काल कहलाता है। इस काल में अनेक भौगोलिक यात्राएँ, खोजें व आविष्कार हुए।

प्रश्न 14.
क्रमबद्ध और प्रादेशिक भूगोल की प्रमुख उपशाखाओं के नाम लिखें।
उत्तर:
1. क्रमबद्ध भूगोल की कुछ प्रमख उपशाखाएँ हैं-

  • भू-आकृतिक भूगोल
  • मानव भूगोल
  • जैव भूगोल
  • भौगोलिक विधियाँ एवं तकनीकें।

2. प्रादेशिक भूगोल की प्रमुख उपशाखाएँ हैं-

  • प्रादेशिक अध्ययन
  • प्रादेशिक विश्लेषण
  • प्रादेशिक विकास तथा
  • प्रादेशिक आयोजन।

प्रश्न 15.
पारिस्थितिकी (Ecology) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वह विज्ञान जिसके अन्तर्गत विभिन्न जीवों तथा उनके पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 16.
मानव पारिस्थितिकी (Human Ecology) क्या होती है?
उत्तर:
मनुष्य और स्थान के बीच पाए जाने वाले अन्तर्सम्बन्ध का अध्ययन मानव पारिस्थितिकी कहलाता है।

प्रश्न 17.
परिघटना (Phenomena) क्या होती है?
उत्तर:
ऐसी वस्तु जिसे इन्द्रियाँ; जैसे आँख, कान, नाक आदि से देख, सुन और सूंघ व स्पर्श कर सकें। उदाहरण-पर्वत, पठार, मैदान, मन्दिर, सड़क इत्यादि।

प्रश्न 18.
निश्चयवाद तथा संभववाद में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
निश्चयवाद तथा संभववाद में निम्नलिखित अन्तर हैं-

निश्चयवाद (Determinism)संभववाद (Possibilism)
1. निश्चयवाद के अनुसार मनुष्य के समस्त कार्य पर्यावरण द्वारा निर्धारित होते हैं।1. संभववाद के अनुसार मानव अपने पर्यावरण में परिवर्तन करने का सामर्थ्य रखता है।
2. इस विचारधारा के समर्थक रेटज़ेल व हंटिंगटन थे।2. इस विचारधारा के समर्थक विडाल डी ला ब्लाश व फैव्रे थे।
3. यह जर्मन विचारधारा (School of thought) है।3. यह फ्रांसीसी विचारधारा (School of thought) है।

प्रश्न 19.
भूगोल में आधुनिकतम अथवा नवीनतम विकास कौन-सा हुआ है? नवीनतम विधियों का सर्वप्रथम प्रयोग करने वाले प्रमुख भूगोलवेत्ताओं के नाम बताइए।
उत्तर:
भूगोल में नवीनतम विकास मात्राकरण (Quantification) तथा सांख्यिकीय विश्लेषणों के रूप में हुआ है। इसके परिणामस्वरूप भूगोल में गणितीय विधियों, मॉडल निर्माण तथा कम्प्यूटर का प्रयोग बढ़ने लगा है। भूगोल में मात्रात्मक विधियों का सफलतापूर्वक प्रयोग निम्नलिखित भूगोलवेत्ताओं ने किया

  1. एसडब्ल्यू० वूलरिज़ (S.W. Wooldridge)
  2. आरजे० शोरले (R.J. Chorley)
  3. पीव्हैगेट (P. Hagget)

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प्रश्न 20.
सामाजिक विज्ञान के अंग के रूप में भूगोल क्या भूमिका निभाता है?
अथवा
सामाजिक विज्ञान के अंग के रूप में भूगोल पृथ्वी के किन पहलुओं का अध्ययन करता है। उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सामाजिक विज्ञान के अंग के रूप में भूगोल एक सशक्त विषय के रूप में उभरकर सामने आया है। इसमें पृथ्वी के निम्नलिखित पहलुओं का अध्ययन किया जाता है

  • पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले विभिन्न प्राकृतिक और सांस्कृतिक लक्षणों एवं घटनाओं का अध्ययन मानव के सन्दर्भ में करना।
  • स्थानीय, क्षेत्रीय तथा भू-मण्डलीय स्तर पर उभरती मानव-पर्यावरण अन्तःक्रियाओं (Interactions) का अध्ययन।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एक विषय के रूप में भूगोल का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा इसकी प्रमुख परिभाषाएँ बताइए। अथवा भूगोल से आपका क्या अभिप्राय है? इसकी दो परिभाषाएँ लिखें।
उत्तर:
‘भूगोल’ हिन्दी के दो शब्दों भू + गोल की सन्धि से बना है जिसका अर्थ यह है कि पृथ्वी गोल है। भूगोल विषय के लिए अंग्रेज़ी भाषा के शब्द ‘ज्योग्राफी’ (Geography) को सबसे पहले यूनानी विद्वान् इरेटॉस्थेनीज़ (Eratosthenes) ने 234 ई० पू० अपनाया था। Geography शब्द मूलतः यूनानी भाषा के दो पदों Ge अर्थात् पृथ्वी और Graphien अर्थात् लिखना से मिलकर बना है जिसका तात्पर्य है-“पृथ्वी तथा इसके ऊपर जो कुछ भी पाया जाता है, उसके बारे में लिखना या वर्णन करना।”

डडले स्टाम्प के अनुसार, “भूगोल वह विज्ञान है जो पृथ्वी तल और उसके निवासियों का वर्णन करता है।” मोंकहाउस के अनुसार, “भूगोल मानव के आवास के रूप में पृथ्वी का विज्ञान है।” फिन्च व ट्रिवार्था की दृष्टि में, “भूगोल भू-पृष्ठ का विज्ञान है। इसमें भूतल पर विभिन्न वस्तुओं के वितरण प्रतिमानों तथा प्रादेशिक सम्बन्धों के वर्णन एवं व्याख्या करने का प्रयास किया जाता है।”

अतः इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि एक विषय के रूप में भूगोल मानव तथा पृथ्वी के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन करता है। प्रश्न 2. भूगोल के प्रमुख उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए। उत्तर:भूगोल एक प्रगतिशील और सक्रिय क्षेत्रीय विज्ञान है जिसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं
1. स्वाभाविक जिज्ञासा की तुष्टि-भूगोल पृथ्वी से सम्बन्धित घटनाओं, प्रदेशों की विशेषताओं और विविधताओं की जानकारी देकर मानव की स्वाभाविक जिज्ञासा की तुष्टि करता है तथा उसकी सोच व कल्पना को नए आयाम देता है।

2. समग्रता का अध्ययन-भूगोल पृथ्वी के किसी भी भू-भाग का उसकी समग्रता (Totality) मैं सृष्टि के एक जीवन्त पहलू के रूप में अध्ययन करता है।

3. मानवीय संसार का अध्ययन हार्टशॉर्न के अनुसार, “पृथ्वी का मानवीय संसार के रूप में वैज्ञानिक ढंग से वर्णन तथा विकास में योगदान करना ही भूगोल का उद्देश्य है।”

4. संसाधन संरक्षण-भूगोल का उद्देश्य है कि किसी प्रदेश के प्राकृतिक तथा मानवीय संसाधनों को इस प्रकार विकसित किया जाए कि उनके अनुकूलतम (Optimum) प्रयोग से मानव का कल्याण हो सके।

5. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग-भूगोल का उद्देश्य भौतिक संसाधनों के विश्वव्यापी वितरण तथा लोगों के उपभोग प्रारूपों का अध्ययन करके अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग और पारस्परिक निर्भरताओं को सार्थक बनाना है।

6. स्वस्थ तथा सन्तुलित दृष्टिकोण का विकास-जेम्स फेयरग्रीव के अनुसार, “भूगोल का उद्देश्य भावी नागरिकों को इस प्रकार प्रशिक्षित करना है कि वे विश्व रूपी महान् रंगमंच पर पाई जाने वाली परिस्थितियों का सही आकलन कर सकें और आस-पड़ोस में पाई जाने वाली राजनीतिक एवं सामाजिक समस्याओं को सही परिप्रेक्ष्य में देखने में समर्थ हो जाएँ।”

प्रश्न 3.
भौतिक भूगोल की प्रमुख चार शाखाएँ क्या हैं?
उत्तर:
भौतिक भूगोल की प्रमुख चार शाखाएँ निम्नलिखित हैं-
1. भू-आकृति विज्ञान-इस विज्ञान के अन्तर्गत पृथ्वी की संरचना, चट्टानों और भू-आकृतियों; जैसे पर्वत, पठार, मैदान, घाटियों इत्यादि की उत्पत्ति का अध्ययन होता है।

2. जलवायु विज्ञान जलवायु विज्ञान में हम अपने चारों ओर फैले वायुमण्डल में होने वाली समस्त प्राकृतिक घटनाओं; जैसे तापमान, वर्षा, वायुभार, पवनें, वृष्टि, आर्द्रता, वायु-राशियाँ, चक्रवात इत्यादि का अध्ययन करते हैं। जलवायु का मानव की गतिविधियों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन भी इसी विज्ञान में किया जाता है।

3. जल विज्ञान-भौतिक भूगोल की इस नई विकसित हुई उपशाखा में महासागरों, नदियों, हिमनदियों के रूप में जल की प्रकृति में भूमिका का अध्ययन किया जाता है। इसमें यह भी अध्ययन किया जाता है कि जल जीवन के विभिन्न रूपों का पोषण किस प्रकार करता है।

4. समुद्र विज्ञान-इस विज्ञान में समुद्री जल की गहराई, खारापन (Salinity), लहरों व धाराओं, ज्वार-भाटा, महासागरीय नितल (Ocean floor) व महासागरीय निक्षेपों (Ocean Deposits) का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 4.
अठारहवीं शताब्दी में यूरोप के विद्यालयों में भूगोल को लोकप्रियता क्यों मिली?
अथवा
पुनर्जागरण काल (Age of Renaissance) में भूगोल के लोकप्रिय होने के प्रमुख लक्षण कौन-कौन से थे?
उत्तर:
तेरहवीं से सत्रहवीं शताब्दी के बीच का काल इसलिए पुनर्जागरण काल कहलाता है क्योंकि इसमें अनेक यात्राएँ, खोजें व आविष्कार हुए। इस युग में और विशेष रूप से 18वीं शताब्दी में यूरोप के विद्यालयों में भूगोल के लोकप्रिय होने के पीछे निम्नलिखित प्रमुख कारणों का हाथ था
(1) इस युग में नए खोजे गए देशों, बस्तियों, मानव-वर्गों, द्वीपों, तटों व समुद्री मार्गों की रोचक भौगोलिक कथाओं ने भूगोल और मानचित्र कला को और अधिक समृद्ध किया।

(2) इन यात्रा-वृत्तान्तों का पश्चिम के देशों के लिए एक खास राजनीतिक उद्देश्य भी था क्योंकि इन खोजों के साथ यूरोपीय जातियों के विजय अभियानों की शौर्य-गाथाएँ (Heroic Tales) भी जुड़ी हुई थीं, जो विश्व में उनकी श्रेष्ठता को साबित करती थीं।

(3) अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम दौर और उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में जर्मनी के दो बड़े विद्वानों हम्बोल्ट तथा रिटर ने अपनी यात्राओं, आलेखों तथा तब तक की खोजों से एकत्रित हो चुके भूगोल के नए ज्ञान का क्रमबद्ध (Systematic) तरीके से अध्ययन करने का बीड़ा उठाया। इसी के परिणामस्वरूप ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी में विश्व के सामान्य भूगोल (Universal Geography) का प्रकाशन हुआ।

(4) उसी समय भूगोल विषय को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल कर उसे लोकप्रिय बनाया गया क्योंकि भूगोल के ज्ञान से ही वहाँ के उपनिवेशियों, व्यापारियों व भावी प्रशासकों को दूर-दराज़ के भू-भागों को जानने और जीतने में मदद मिल सकती थी।

प्रश्न 5.
भूगोल में समाकलन या संश्लेषण से आपका क्या अभिप्राय है? उन भूगोलवेत्ताओं के नाम बताइए जिन्होंने भौतिक भूगोल तथा मानव भूगोल के संश्लेषण का समर्थन किया है।
उत्तर:
समाकलन व संश्लेषण भूगोल के अध्ययन की ऐसी पद्धति है जिसमें विभिन्न विज्ञानों, जिनकी अपनी अलग पहचान है, की सहायता से भूगोल में विकसित हुए उपक्षेत्रों या घटकों का आपस में संयुक्त रूप से अध्ययन किया जाता है। इससे भौगोलिक अध्ययन न केवल सरल हो जाता है बल्कि किसी प्रदेश के भौतिक व मानवीय तत्त्वों के अन्तर्सम्बन्धों का भी ज्ञान हो जाता है। इसीलिए भूगोल को समाकलन या संश्लेषण का विज्ञान (A science of Integration or Synthesis) भी कहा जाता है। भौतिक भूगोल और मानव भूगोल के संश्लेषण का समर्थन एच०जे० मैकिण्डर ने किया था। उनके अनुसार भौतिक भूगोल के बिना मानव भूगोल का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है।

प्रश्न 6.
भूगोल को प्रायः सभी विज्ञानों की जननी क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
पृथ्वी पर अवतरित होने पर आदि मानव का वास्ता सबसे पहले सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी प्रकृति से पड़ा था। प्रकृति उसके लिए अनेक प्रकार के कौतुहलों का पिटारा था। तार्किक ज्ञान और तकनीकी शक्ति के अभाव के कारण आदि मानव जल-थल और नभ के रहस्यों से भयभीत रहता था। प्रकृति के इन्हीं रहस्यों की वैज्ञानिक व्याख्या का प्रयास करने के कारण भूगोल ज्ञान के प्राचीनतम विषय के रूप में जाना जाता है।

सांस्कृतिक विकास के साथ वैज्ञानिक अन्वेषण की भावना बलवती होने लगी और विश्व के बारे में अधिकाधिक सूचनाओं के प्रति जिज्ञासा बढ़ने लगी। सूचनाओं के अम्बार ने विशिष्टीकरण को अनिवार्य बना दिया। इससे भौतिकी, रसायन शास्त्र, जीव विज्ञान, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र जैसे विषय उभरकर सामने आए जो कभी भूगोल नामक एकीकृत विषय के अंग हुआ करते थे। इसी आधार पर भूगोल को प्रायः सभी विज्ञानों की जननी कहा जाता है।

प्रश्न 7.
विशिष्टीकरण, जिसने क्रमबद्ध विज्ञानों को जन्म दिया, की जरूरत क्यों महसूस हुई थी?
उत्तर:
पुनर्जागरण काल में अनेक यात्राएँ, खोजें तथा आविष्कार हुए। इससे देशों और लोगों के बारे में जानकारी कई गुना बढ़ गई। साथ ही वैज्ञानिक अन्वेषण की भावना भी बलवती होने लगी थी। पृथ्वी तल पर पाई जाने वाली मानवीय व प्राकृतिक परिघटनाओं की व्याख्या वैज्ञानिक आधार पर होने लगी। इन दशाओं ने ज्ञान के अम्बार का विशिष्टीकरण अनिवार्य बना दिया ताकि प्रकृति के हर छोटे-बड़े पक्ष की बारीकी से व्याख्या की जा सके। इस विशिष्टीकरण ने क्रमबद्ध विज्ञानों को जन्म दिया।

प्रश्न 8.
भूगोल में ऐसे कौन-से दो प्रमुख क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए जिन्होंने बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भूगोल को सर्वाधिक प्रभावित किया?
उत्तर:
20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भूगोल में जो पहली क्रान्ति आई उसका नाम मात्रात्मक क्रान्ति था। 1960 और 1970 कों में आई मात्रात्मक विधियों और तकनीकों की इस क्रान्ति ने मानव व प्राकृतिक परिघटनाओं के अन्तर्सम्बन्धों के अध्ययन को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया। भूगोलवेत्ताओं में मात्रात्मक विधियों का प्रयोग उस समय जनन (C कारण यह था कि इन प्रविधियों के सहारे भूगोलवेत्ताओं के लिए बहुत बड़ी संख्या में कारकों और प्रक्रियाओं को साथ लेकर सार्थक परिणाम निकालना आसान हो गया था।

भूगोल में दूसरी क्रान्ति 1990 के दशक में आई। इसे हम सूचना क्रान्ति के नाम से जानते हैं। सूचना क्रान्ति का आधार वास्तव में सुदूर संवेदन (Remote Sensing) है जिसमें अन्तरिक्ष में हज़ारों मीटर की ऊँचाई पर स्थापित कृत्रिम उपग्रह से अथवा वायुयान से फोटोग्राफ लिए जाते हैं जिनके आधार पर अनेक विषयों से जुड़े आँकड़ों व सूचनाओं की रचना की जाती है। भूगोल में आई इन दोनों क्रान्तियों ने भूगोल के स्वरूप को ही बदल दिया है।

प्रश्न 9.
भूगोल में आई नूतन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से भूगोल के दृष्टिकोण में आई परिपक्वता के कारण भूगोल में कुछ नई प्रवृत्तियाँ उभरी हैं जो अग्रलिखित हैं
उत्तर:

  1. भूगोल का विकास एक ऐसे अन्तर-वैज्ञानिक (Inter-disciplinary) विषय के रूप में हो रहा है जो भौतिक विज्ञानों और सामाजिक विज्ञानों को परस्पर जोड़ने वाली एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है।
  2. प्रदेशों के समाकलित अध्ययन और संसाधन मूल्यांकन के लिए भूगोल की भूमिका बढ़ रही है।
  3. मानवीय समृद्धि के लिए बनी आर्थिक विकास योजनाओं में भूगोल का अधिकाधिक प्रयोग बढ़ रहा है।
  4. मॉडल निर्माण (Model Building) से प्रस्तावित योजनाओं के परिणामों व स्वरूप का पूर्वानुमान लगाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
  5. कम्प्यूटर के बढ़ते प्रयोग से मानचित्र विज्ञान की तकनीकें प्रखर हुई हैं।
  6. भू-क्षेत्रों के अध्ययन में उपग्रह-फोटोग्रामेटरी का प्रयोग बढ़ रहा है।

प्रश्न 10.
नियतिवाद या वातावरण निश्चयवाद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
नियतिवाद किसे कहते हैं? इस मत के समर्थक भूगोलवेत्ताओं के नाम बताओ।
अथवा
“मानव प्रकृति का दास है।” नियतिवाद के सन्दर्भ में इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जर्मन विचारधारा नियतिवाद के अनुसार, भौतिक वातावरण के कारक ही किसी प्रदेश में निवास करने वाले मानव वर्ग के क्रियाकलापों और आचार-विचार (Conduct) को निश्चित करते हैं। हम्बोल्ट, रिटर, रेटज़ेल, हंटिंगटन व कुमारी सेम्पल ने इस विचारधारा का विकास किया था। रेटजेल का मत था कि मानव अपने वातावरण की उपज है और वातावरण की प्राकृतिक शक्तियाँ ही मानव-जीवन को ढालती हैं; मनुष्य तो केवल वातावरण के साथ ठीक समायोजन करके स्वयं को वहाँ रहने योग्य बनाता है।

उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र के एस्कीमो, ज़ायरे बेसिन के पिग्मी व कालाहारी मरुस्थल के बुशमैन कबीलों ने आखेट द्वारा जीवन-यापन को अपनी नियति के रूप में स्वीकार कर भौतिक परिवेश से समायोजन का उदाहरण प्रस्तुत किया है। रेटजेल या सेम्पल ने कहीं भी अपने ग्रन्थों . में मानव पर प्रकृति का पूर्ण नियन्त्रण या मानव को अपने वातावरण का दास सिद्ध नहीं किया। उन्होंने तो केवल वातावरण को मानव की क्रियाओं पर प्रभाव डालने वाली महत्त्वपूर्ण शक्ति बताते हुए स्पष्ट किया कि मानव-उद्यम की सफलता का निर्धारण भौतिक परिवेश के द्वारा ही होता है।।

प्रश्न 11.
सम्भावनावाद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
सम्भावनावाद किसे कहते हैं? इस मत के समर्थक भूगोलवेत्ताओं के नाम बताओ।
उत्तर:
फ्रांसीसी विचारधारा संभववाद के अनुसार यह तो स्वीकार किया जाता है कि वातावरण मानव की क्रियाओं को सीमित करता है, परन्तु वातावरण के द्वारा कुछ सम्भावनाएँ (Possibilities) भी प्रस्तुत की जाती हैं, जिनका मनुष्य अपनी छाँट (Choice) के द्वारा उपयोग करना चाहे तो कर सकता है। इस विचारधारा का जनक विडाल डी ला ब्लाश था तथा फैब्रे, ईसा बोमेन, कार्ल सावर, ब्रून्ज़ तथा डिमांजियाँ आदि इसके समर्थक थे। इनका विचार था कि केवल प्रकृति ही समस्त मानवीय क्रियाओं की पूर्ण निर्धारक (All determinant) नहीं है बल्कि मनुष्य की बुद्धि, कौशल, संकल्प शक्ति तथा सांस्कृतिक परिवेश इत्यादि कारक सम्भावनाओं और सफलता के मार्ग प्रशस्त करते हैं।

प्रश्न 12.
“भूगोल, प्राकृतिक तथा सामाजिक विज्ञान दोनों ही है” इस कथन की व्याख्या संक्षेप में करें।
उत्तर:
भूगोल एक समाकलन का विषय है। भूगोल अपनी विषय-सामग्री प्राकृतिक तथा सामाजिक विज्ञानों से प्राप्त करता है। इसका अपना एक अलग दृष्टिकोण है, इसलिए यह अन्य विज्ञानों से भिन्न है। उदाहरण के लिए, किसी क्षेत्र का भौगोलिक चित्र प्रस्तुत करने के लिए भौतिक भूगोल और मानव भूगोल के विभिन्न पक्षों का अध्ययन किया जाता है। किसी क्षेत्र के भौतिक वातावरण के अध्ययन के लिए भौतिकी तथा रसायन विज्ञान जैसे प्राकृतिक विज्ञानों का सहारा लेना पड़ता है।

मानवीय-क्रियाओं का अध्ययन करने के लिए सामाजिक विज्ञान सहायक है। सामाजिक विज्ञान तथा प्राकृतिक विज्ञानों के अध्ययन से भौतिक तत्त्वों के कृषि और मानव बस्तियों पर पड़ने वाले प्रभाव की जानकारी प्राप्त होती है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि भूगोल, प्राकृतिक विज्ञान तथा सामाजिक विज्ञान दोनों में ही कड़ी का कार्य करता है, इसलिए भूगोल को दोनों वर्गों के विज्ञानों में माना जाता है।

प्रश्न 13.
भूगोल मनुष्य को अच्छा नागरिक बनाने में किस प्रकार सहायक है?
उत्तर:
भूगोल अन्य सामाजिक-विज्ञानों; जैसे इतिहास, नागरिक-शास्त्र तथा समाजशास्त्र की तरह मनुष्य को एक अच्छा नागरिक बनाने में निम्नलिखित आधारों पर सहायक है

  • भूगोल से मनुष्य को भौतिक पर्यावरण और मानवीय क्रियाओं के अन्तर्सम्बन्ध का ज्ञान होता है।
  • इस विषय के अध्ययन से अन्तर्राष्ट्रीय भावना को बढ़ावा मिलता है।
  • भूगोल का मूल-मन्त्र स्थान है। इसके अन्तर्गत पृथ्वी का मानव के निवास स्थान के रूप में अध्ययन किया जाता है इसलिए यह विश्व की विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समस्याएँ दूर करने में सहायक है।
  • मानव का आदर्श जीवन प्राकृतिक संसाधनों के उचित प्रयोग पर निर्भर करता है। इसलिए यह मानव के कल्याण हेतु विश्व के संसाधनों का उचित प्रयोग करने में सहायक है।
  • भूगोल के अध्ययन से हमें विश्व के विभिन्न देशों के विकास स्तर में अन्तर होने की जानकारी प्राप्त होती है तथा भूगोल विकास स्तर में अन्तर कम करने में सहायक है।

इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि भूगोल भी अन्य विषयों की तरह मनुष्य को अच्छा नागरिक बनाने में सहायता प्रदान करता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

प्रश्न 14.
भूगोल में प्रादेशीकरण (Regionalization) के बारे में लिखें।
उत्तर:
प्रादेशिक भूगोल उन कारकों की पहचान करता है जो संयुक्त रूप से किसी प्रदेश को विशिष्ट स्वरूप प्रदान करते हैं। ‘प्रदेश’ भमि का वह विशिष्ट भाग होता है जो किसी एक से अधिक विशेषताओं के आधार पर अपने निकटवर्ती भू-भागों से भिन्न होता है। ये विशेषताएँ भिन्न-भिन्न प्रकार की हो सकती हैं; जैसे भौतिक, आर्थिक, सामाजिक व अन्य। यदि किसी प्रदेश को परिभाषित करने का आधार उच्चावच है तो उसे भौतिक प्रदेश और यदि आधार आर्थिक है (जैसे-औद्योगिक संकुल) तो उसे आर्थिक प्रदेश कहा जाएगा।

अतः किसी भू-भाग में भौगोलिक परिघटना की एकरूपता (Uniformity) अथवा समांगता (Homogeneity) के आधार पर प्रदेशों व उप-प्रदेशों के निर्धारण को प्रादेशीकरण कहते हैं। ये प्रदेश संस्पर्शी (Contiguous) भी हो सकते हैं और दूर-दूर स्थित भी हो सकते हैं। विभिन्न भौगोलिक प्रदेशों के विकास-स्तर का तुलनात्मक अध्ययन प्रादेशिक विधि द्वारा ही सम्भव है। इससे क्षेत्रीय आर्थिक विषमताओं के कारणों का पता लगाकर उनके निराकरण की राह निकाली जा सकती है।

प्रश्न 15.
“भूगोल भू-पृष्ठ पर बदलते हुए लक्षणों का अध्ययन है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भू-पृष्ठ निरन्तर बदल रहा है क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। परिवर्तन कहीं मन्द है तो कहीं तीव्र है, कहीं दृश्य है तो कहीं अदृश्य । सामान्यतः प्राकृतिक लक्षण जैसे स्थलाकृतियाँ; जैसे पर्वत, पठार, मैदान इत्यादि धीरे-धीरे परिवर्तित होते हैं जबकि सांस्कृतिक लक्षण; जैसे भवन, सड़कें, फसलें इत्यादि शीघ्रता से बदलते रहते हैं। भूगोल इन बदलते हुए लक्षणों की उत्पत्ति तथा प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है। वह इन लक्षणों का मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अध्ययन करता है।

प्रश्न 16.
भौतिक भूगोल के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भौतिक भूगोल अपने आप में एक स्वतन्त्र विज्ञान नहीं है, बल्कि यह अनेक विज्ञानों से ली हुई ऐसी जानकारी का संकलन है जिसकी सहायता से भू-पृष्ठ पर भिन्न-भिन्न स्थानों में भौतिक परिवेश की भिन्नता तथा इस भिन्न जाता है। मानव द्वारा किया गया सांस्कृतिक एवं आर्थिक विकास प्राकृतिक पर्यावरण की पृष्ठभूमि में ही संभव हो पाता है। प्राकृतिक पर्यावरण जिसमें हम स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल तथा जैवमण्डल का अध्ययन करते हैं ही मनुष्य के सामने प्राकृतिक संसाधनों तथा संभावनाओं का चित्र प्रस्तुत करता है। इन्हीं संसाधनों का उपयोग मनुष्य अपने तकनीकी विकास के स्तर के अनुसार कर पाता है।

भौतिक भूगोल न केवल पेड़-पौधों, पशुओं, सूक्ष्म-जीवों, मनुष्यों, खनिजों, ईंधन के स्रोतों, मृदा, जलवायु, जलीय विस्तारों तथा भू-आकारों का अध्ययन करता है बल्कि अन्तर्जात बलों का मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अध्ययन करता है। भौतिक भूगोल वास्तव में वह आधारी चट्टान है जिस पर मनुष्य विकास की मूर्ति को स्थापित करता है। भौतिक भूगोल के ज्ञान के बिना विश्व रंगमंच पर मनुष्य कोई भूमिका नहीं निभा सकता।

प्रश्न 17.
भूगोल के प्राचीन दृष्टिकोण तथा आधुनिक दृष्टिकोण में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
भूगोल के प्राचीन तथा आधुनिक दृष्टिकोण में निम्नलिखित अन्तर हैं-

भूगोल का प्राचीन दृष्टिकोण (Classical Approach)भूगोल का आधुनिक दृष्टिकोण (Modern Approach)
1. 18 वीं शताब्दी तक भूगोल द्वारा प्रतिपादित दृष्टिकोण को प्राचीन दृष्टिकोण कहा जाता है।1. भूगोल के आधुनिक दृष्टिकोण का विकास 19 वीं शताब्दी में हुआ।
2. इस दृष्टिकोण के अनुसार भूगोल मात्र आँकड़ों को एकत्रित करने वाला विवरणात्मक शास्त्र है।2. भूगोल का आधुनिक दृष्टिकोण पृथ्वी की घटनाओं के बारे में कहाँ, कैसे और क्यों जैसे प्रश्नों के उत्तर देता है।
3. प्राचीन दृष्टिकोण एकांगी था।3. आधुनिक दृष्टिकोण समाकलित है।

प्रश्न 18.
आगमन पद्धति तथा निगमन पद्धति में क्या अन्तर हैं?
उत्तर:
आगमन पद्धति तथा निगमन पद्धति में निम्नलिखित अन्तर हैं-

आगमन पद्धति (Inductive Method)निगमन पद्धति (Deductive Method)
1. आगमन पद्धति में एकत्रित तथ्यों तथा उनकी समानता के आधार पर नियम बनाए जाते हैं।1. निगमनं पद्धति में बनाए गए नियमों या कहे गए आधार वाक्य से निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
2. यह विधि विशेष से सामान्य (From Specific to General) के सिद्धान्त पर आधारित है।2. यह विधि सामान्य से विशेष (From General To Specific) के सिद्धान्त पर आधारित है।
3. आगमन पद्धति में निष्कर्षों और नियमों का अनुभवों पर परीक्षण किया जाता है।3. निगमन पद्धति में कुछ अनुभवों फ्के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

प्रश्न 19.
क्रमबद्ध भूगोल तथा प्रादेशिक भूगोल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
क्रमबद्ध भूगोल तथा प्रादेशिक भूगोल में निम्नलिखित अन्तर हैं-

क्रमबद्ध भूगोल (Systematic Geography)प्रादेशिक भूगोल (Regional Geography)
1. क्रमबद्ध भूगोल में किसी एक विशिष्ट भौगोलिक तत्त्व का अध्ययन होता है।1. प्रादेशिक भूगोल में किसी एक प्रदेश का सभी भौगोलिक तत्तों के सन्दर्भ में एक इकाई के रूप में अध्ययन किया जाता है।
2. क्रमबद्ध भूगोल अध्ययन का एकाकी (Isolated) रूप प्रस्तुत करता है।2. प्रादेशिक भूगोल अध्ययन का समाकलित (Integrated) रूप प्रस्तुत करता है।
3. क्रमबद्ध भूगोल में अध्ययन राजनीतिक इकाइयों पर आधारित होता है।3. प्रादेशिक भूगोल में अध्ययन भौगोलिक इकाइयों पर आधारित होता है।
4. क्रमबद्ध भूगोल किसी तत्त्व विशेष के क्षेत्रीय वितरण,4. प्रादेशिक भूगोल किसी प्रदेश विशेष के सभी भौगोलिक तत्त्वों का अध्ययन करता है।
उसके कारणों और प्रभावों की समीक्षा करता है।5. प्रादेशिक भूगोल में प्राकृतिक तत्चों के आधार पर प्रदेशों का निर्धारण किया जाता है। निर्धारण की यह प्रक्रिया प्रादेशीकरण (Regionalisation) कहलाती है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भूगोल के वैज्ञानिक तथा मानवीय आधार की रचना किस प्रकार हुई? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भूगोल में प्राचीन यूनानी तथा भारतीय विद्वानों के योगदान का वर्णन कीजिए।
अथवा
एक विषय के रूप में भूगोल के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूगोल के वैज्ञानिक आधार की रचना-भूगोल को एक ‘विज्ञान’ के रूप में स्थापित करने का श्रेय मुख्यतः यूनान, भारत और अरब के विद्वानों को जाता है। इन्होंने खगोल स्थित पिण्डों का वेध (Astronomical Observations) करके ब्रह्माण्ड में पृथ्वी की स्थिति को जानने का प्रयत्न किया और साथ ही मानव-जीवन को प्रभावित करने वाले धरती और आकाश के अनेक रहस्यों को भेदने का प्रयास किया।

यूनानी विद्वान् पाइथागोरस (Pythagoras) ने ईसा से कई शताब्दी पहले पृथ्वी को गोलाकार समझते हुए इसे अन्य ग्रहों के साथ एक केन्द्रीय आग’ (यहाँ केन्द्रीय आग से मतलब सूर्य से रहा होगा।) के चारों ओर घूमता हुआ बताया।

हेरोडोटस (484-425 ईसा पूर्व) ने नील नदी के डेल्टा के बनने की प्रक्रिया का सकारण वर्णन किया। उन्होंने ही सबसे पहले ‘मिस्र को नील नदी का उपहार’ (Egypt is the Gift of Nile) बताया था।

हिप्पोक्रेट्स (460-377 ईसा पूर्व) नामक यूनानी भूगोलशास्त्री ने सर्वप्रथम वातावरण का मनुष्य पर पड़ने वाले प्रभाव का वर्णन किया। अरस्तु (384-322 ईसा पूर्व) ने पृथ्वी के कटिबन्धों, उसकी गोलीय (Spherical) आकृति के वर्णन तथा ग्रहण लगने की दशाओं (Eclipses) की व्याख्या करके गणितीय भूगोल को संवर्धित किया।

इरेटॉस्थेनीज़ (276-194 ईसा पूर्व) ने मिस्र में साईने व अलेग्जेन्द्रिया नामक स्थानों पर 21 जून को दोपहर में सूर्य की किरणों का कोण मापकर पृथ्वी की परिधि (Circumference) का लगभग सही आकलन कर लिया था।

ईसा की दूसरी शती में टॉल्मी ने अक्षांश-देशान्तरों पर आधारित विश्व का पहला मानचित्र तैयार किया जिससे सैकड़ों वर्षों तक मानचित्र कला प्रभावित रही।

भारत में ईसा की पाँचवीं शताब्दी के आर्यभट्ट, वाराहमिहिर, आठवीं शताब्दी के ब्रह्मगुप्त तथा बारहवीं शताब्दी के भास्कराचार्य जैसे विद्वानों ने न्यूटन से कई शताब्दी पहले ही गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त, सूर्य की स्थिरता, पृथ्वी के अक्ष-भ्रमण (Rotation) तथा कक्ष-भ्रमण (Revolution) से जुड़े सिद्धान्तों का प्रतिपादन कर लिया था।

ईसा की तीसरी शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी के बीच के पूर्व-मध्यकाल में अरब के विद्वान् प्राचीन भौगोलिक ज्ञान का संरक्षण तो करते रहे किन्तु इस दौरान ईसाई विश्व (Christian world) में भूगोल का कोई विशेष विकास नहीं हो पाया। तेरहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के बीच का काल पुनर्जागरण काल (Age of Renaissance or Fact Finding Age) कहलाया, जिसमें अनेक यात्राएँ, खोजें व आविष्कार हुए। इस युग में नए खोजे गए देशों, बस्तियों, मानव-वर्गों, द्वीपों, तटों व समुद्री मार्गों की रोचक भौगोलिक कथाओं ने भूगोल और मानचित्र कला को और अधिक समृद्ध किया। इन यात्रा-वृत्तान्तों का पश्चिम के देशों के लिए एक खास राजनीतिक उद्देश्य भी था, क्योंकि इन खोजों के साथ यूरोपीय जातियों के विजय अभियानों की शौर्य-गाथाएँ (Heroic Tales) भी जुड़ी हुई थीं जो विश्व में उनकी श्रेष्ठता को साबित करती थीं।

अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम दौर और उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में जर्मनी के दो बड़े विद्वानों एलेक्जैण्डर वान हम्बोल्ट (Alexander Von Humboldt) तथा कार्ल रिटर (Karl Ritter) ने अपनी यात्राओं, आलेखों तथा तब तक की खोजों से एकत्रित हो चुके भूगोल के नए ज्ञान का क्रमबद्ध (Systematic) तरीके से अध्ययन करने का बीड़ा उठाया। इसी के परिणामस्वरूप ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी में विश्व के सामान्य भूगोल (Universal Geography) का प्रकाशन हुआ। उसी समय भूगोल विषय को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल कर उसे लोकप्रिय बनाया गया क्योंकि भूगोल के ज्ञान से ही वहाँ के उपनिवेशियों, व्यापारियों व भावी प्रशासकों को दर-दराज के भ-भागों को जानने और जीतने में मदद मिल सकती थी।

भूगोल के मानवीय आधार की रचना (Human Basis of Geography) सन् 1870 में जर्मनी के भूगोलवेत्ता रेटज़ेल (Ratzel) का ग्रन्थ एन्थ्रोपोज्यॉग्राफी (Anthro-pogeographie) प्रकाशित हुआ। इसमें मानव और प्रकृति के सम्बन्धों को भूगोल से जोड़कर इस विषय को मानवीय आधार प्रदान किया गया। इस प्रकार भूगोल केवल स्थानों का वर्णन मात्र नहीं रहा बल्कि विभिन्न प्राकृतिक परिस्थितियों में मानव के प्रत्युत्तरों (Responses) की भी व्याख्या करने लगा।

प्रश्न 2.
भूगोल के अध्ययन की पद्धतियों एवं तकनीकों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भूगोल की पद्धतियाँ (Methods of Geography)-भूगोल अपने लक्ष्यों व उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित पद्धतियों को अपनाता है
1. वैज्ञानिक पद्धति (Scientific Method)-एक क्रमबद्ध ढंग से प्रासंगिक तथ्यों व आँकड़ों को इकट्ठा करना, समानता के आधार पर उनका वर्गीकरण करना तथा तर्क (Logic) के आधार पर कुछ अर्थपूर्ण निष्कर्ष निकालना ही वैज्ञानिक पद्धति है। अन्य विज्ञानों की भांति भूगोल भी तर्क और वैज्ञानिक पद्धति पर आश्रित है। इस पद्धति में निम्नलिखित चरण सम्मिलित होते हैं
(1) परिकल्पना (Hypothesis) सर्वप्रथम अध्ययन की जाने वाली समस्या या परिस्थिति के बारे में आरम्भिक विचारों का एक ताना-बाना बुना जाता है।

(2) अवलोकन (Observation)-परिकल्पना के बाद चुने हुए क्षेत्र में घटनाओं का निरपेक्ष अवलोकन किया जाता है, ताकि भौगोलिक अध्ययन सही व सच्चा हो सके। इन घटनाओं में पाई जाने वाली समानताओं अथवा ऐक्य (Universality) का विशेष ध्यान रखा जाता है।

(3) सत्यापन (Verification) तत्पश्चात् किए गए अवलोकनों व पाई गई घटनाओं की सत्यता को परखा जाता है। भौतिक विज्ञानों में तो यह सत्यापन प्रयोगशालाओं में होता है, जबकि सामाजिक विज्ञानों की प्रयोगशाला स्वयं समाज होता है।

(4) परिणामों का वर्गीकरण (Classification of Results) ऐसे परिणाम जो किसी भी देश और काल में सत्य सिद्ध होते रहें, नियम (Rule) कहलाते हैं। जो परिणाम सत्य के आस-पास तो हों परन्तु सभी परिस्थितियों में पूर्ण सत्य सिद्ध न हो सकें, उन्हें सिद्धान्त (Principle) कहा जाता है।

2. आगमन तथा निगमन पद्धतियाँ (Inductive and Deductive Methods)-आगमन पद्धति के अन्तर्गत तथ्यों का एक समुच्चय (Set of facts) इकट्ठा कर लिया जाता है और इन तथ्यों में पाई जाने वाली समानताओं के आधार पर नियम और सिद्धान्त बनाए जाते हैं। इस प्रकार आगमन विधि तथ्यों से सिद्धान्त या विशेष से सामान्य (From specific to general) की विधि है।

निगमन पद्धति में किसी सिद्धान्त या नियम अर्थात् ‘कहे गए आधार वाक्य’ को ध्यान में रखकर तथ्यों को इकट्ठा किया जाता है। यह विधि सामान्य से विशेष (From general to specific) पर आधारित है।।

भूगोल की तकनीकें (Techniques of Geography) तथ्यों के विश्लेषण (Analysis), प्रक्रम (Processing) और व्याख्या (Interpret) करने के तरीकों को तकनीक कहा जाता है। किसी भी तकनीक का चुनाव और उसका प्रभाव भूगोलवेत्ता के ज्ञान और कुशलता पर निर्भर करता है। भौगोलिक तथ्यों को आसानी से समझाने के लिए भूगोलवेत्ता निम्नलिखित तकनीकों का प्रयोग करता है
(1) मानचित्रण विधि (Cartographic Method) इस विधि में मानचित्रों का प्रयोग किया जाता है। सूचनाओं व आँकड़ों के आधार पर मानचित्र बनाकर सार्थक निष्कर्ष निकाले जाते हैं और उन निष्कर्षों की व्याख्या भी की जाती है।

(2) मात्रात्मक विधि (Quantitative Method) इस विधि में सांख्यिकी के प्रयोग और गणितीय मॉडल निर्माण (Mathematical Model Building) पर बल दिया जाता है। इसमें आँकड़ों का संकलन, उनका वर्गीकरण, विश्लेषण तथा उनसे महत्त्वपूर्ण सार्थक निष्कर्ष निकालना सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 3.
भूगोल के अध्ययन की विधियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भौगोलिक समस्या के अध्ययन की कौन-सी दो विधियाँ हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
किसी भी प्रदेश के भूगोल का अध्ययन निम्नलिखित दो विधियों से किया जा सकता है-

  • क्रमबद्ध विधि (Systematic Approach)
  • प्रादेशिक विधि (Regional Approach)

1. क्रमबद्ध विधि (Systematic Approach) इस विधि के अन्तर्गत भौगोलिक तत्त्वों को प्रकरणों (Topics) में बाँटकर प्रत्येक प्रकरण का अलग-अलग अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, ‘धरातल’ प्रकरण (Topic) को लेकर हम किसी भी देश, महाद्वीप या सारे संसार का अध्ययन कर सकते हैं। इसी प्रकार जलवायु, मिट्टी, खनिज, कृषि, उद्योग, परिवहन, जनसंख्या, व्यापार, ज्वार-भाटा महासागरीय धाराएँ इत्यादि तत्त्वों का क्षेत्र-विशेष पर पृथक्-पृथक् अध्ययन किया जाता है।

अतः क्रमबद्ध विधि में हमारा ध्यान प्रदेश के किसी एक तत्त्व या तत्त्व सम्मिश्रण (Element Complex) के अध्ययन पर रहता है, उस क्षेत्र की अन्य चीज़ों पर नहीं; इसी कारण इस विधि को प्रकरण विधि (Topical Method) भी कहते हैं। क्रमबद्ध विधि की उपयोगिता यह है कि इसके द्वारा हम समस्त यथार्थता (Total reality) में से कुछ चुनिन्दा (Selective) तत्त्वों के वितरण और विश्लेषण पर ध्यान दे सकते हैं।

2. प्रादेशिक विधि (Regional Approach) भू-तल पर भौगोलिक दशाएँ सर्वत्र एक-जैसी नहीं पाई जातीं। अतः इस विधि के द्वारा भूगोल का अध्ययन करने के लिए हम पृथ्वी तल को भौगोलिक तत्त्वों की समानता के आधार पर अलग-अलग प्राकृतिक प्रदेशों (Regions) में बाँटते हैं और फिर प्रत्येक प्रदेश में पाए जाने वाले समस्त मानवीय और भौगोलिक तत्त्वों का समाकलित (Integrated) अध्ययन करते हैं। भू-पृष्ठ पर पाई जाने वाली स्थानिक विभिन्नताओं (Areal differentiations) के कारण कोई भी दो क्षेत्र एक-जैसे नहीं होते परन्तु कई बार हम देखते हैं कि पृथ्वी तल पर आपस में बहुत दूर स्थित कुछ प्रदेशों के भौगोलिक परिवेश में काफ़ी समांगता (Homogeneity) पाई जाती है जिससे इन सभी प्रदेशों में रहने वाले लोगों का जीवन-यापन, रहन-सहन व आर्थिक क्रियाएँ लगभग एक-जैसी होती हैं।

उदाहरणतः, दक्षिणी अमेरिका के ब्राज़ील देश में स्थित अमेजन बेसिन जैसा भौगोलिक वातावरण वहाँ से हज़ारों किलोमीटर दूर अफ्रीका के कांगो और जायरे बेसिन तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया के मलेशिया, इण्डोनेशिया और फिलीपीन्स द्वीप-समूह में भी पाया जाता है। इन सभी भू-भागों को एक प्राकृतिक प्रदेश (Natural region) में सम्मिलित कर लिया जाता है। इस खण्ड को हम भूमध्य रेखीय प्रदेश कहते हैं। इस एक प्राकृतिक खण्ड के दूर-दूर स्थित सभी भू-भागों में पाई जाने वाली लगभग एक जैसी भौगोलिक और मानवीय दशाओं के अध्ययन को ही प्रादेशिक विधि कहते हैं।

इसी प्रकार भारत को प्राकृतिक खण्डों में बाँट कर किए गए अध्ययन को भारत का प्रादेशिक भूगोल कहा जाएगा। प्रादेशिक भूगोल में समस्त भारत का अध्ययन करना आवश्यक नहीं है। हम गंगा का निम्न मैदान, मरुस्थलीय प्रदेश, असम घाटी, मालाबार तट व छोटा नागपुर पठार जैसे कुछ या इनमें से एक प्रदेश को लेकर भी वहाँ के धरातल, जलवायु, कृषि, खनिज, व्यापार, उद्योग, जनसंख्या आदि का अध्ययन करें तो यह प्रादेशिक विधि कहलाएगी। अतः स्पष्ट है कि प्रादेशिक विधि में हम विश्व या किसी बड़े भू-भाग को भौगोलिक प्रदेशों में बाँटकर उनका अध्ययन करते हैं।

प्रश्न 4.
“भूगोल का सम्बन्ध क्रमबद्ध विज्ञान और सामाजिक विज्ञान दोनों से है।” उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
अथवा
भूगोल का अन्य विषयों के साथ क्या सम्बन्ध है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
“भौतिक भूगोल अथवा मानव भूगोल के अतिरिक्त कोई भूगोल नहीं हो सकता।” उचित उदाहरण देकर इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर:
भूगोल भौतिक विज्ञानों और सामाजिक विज्ञानों को परस्पर जोड़ने वाले एक पुल (Bridge) का कार्य करता है। इसका कारण यह है कि भूगोल अपनी अन्तर्वस्तु (Contents) या विषय-सामग्री के लिए काफी हद तक अन्य विज्ञानों पर निर्भर करता है और बदले में अपने ज्ञान के द्वारा अनेक विद्वानों के विकास में योगदान देता है। इस प्रकार वर्तमान में भूगोल एक अन्तअनुशासनिक (Interdisciplinary) विषय बनकर उभरा है। भूगोल का जिन विषयों के साथ निकट का सम्बन्ध है, उन्हें दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-

  • भूगोल तथा भौतिक अथवा प्राकृतिक विज्ञान (Geography and Physical or Natural Science)
  • भूगोल तथा सामाजिक विज्ञान (Geography and Social Science)

(क) भूगोल तथा भौतिक विज्ञान (Geography and Physical Science) भौतिक या प्राकृतिक विज्ञानों को क्रमबद्ध विज्ञान (Systematic Science) भी कहा जाता है। इन विज्ञानों के नियमों को प्रयोगशाला के अन्दर और बाहर दोनों जगह सिद्ध किया जा सकता है। भूगोल का सम्बन्ध भौतिक विज्ञानों की निम्नलिखित प्रमुख शाखाओं से है-
1. भूगोल तथा खगोल विज्ञान (Geography and Astronomy) ब्रह्माण्ड (Universe) की उत्पत्ति, इसमें व्याप्त अनेक सौर-मण्डल (Solar System), प्रत्येक सौर-मण्डल में उपस्थित अनेक तारे व अन्य आकाशीय पिण्ड, उनकी गतियाँ, सूर्य की किरणों का उत्तरायण व दक्षिणायन होना, ऋतु परिवर्तन, दिन-रात का होना जैसी अनेक प्राकृतिक घटनाओं के समुचित उत्तर के लिए भूगोल खगोल विज्ञान का सहारा लेता है। खगोल विज्ञान स्वयं गणित और भौतिकी के नियमों का अनुसरण करता है।

2. भूगोल तथा गणित (Geography and Mathematics)-विभिन्न स्थानों पर समय और समय-अन्तराल की गणना, अक्षांश-देशान्तर के निर्धारण, सांख्यिकीय आरेखों, प्रक्षेपों व ग्राफ़ इत्यादि की रचना के लिए गणित का आधारभूत ज्ञान अनिवार्य है। भू-तल पर होने वाली समस्त आर्थिक क्रियाओं व जनसंख्या की विशेषताओं का अध्ययन गणित के बिना सम्भव नहीं है।

3. भूगोल तथा भौतिकी (Geography and Physics)-भौतिकी के नियमों का ज्ञान पृथ्वी की गतियों, ज्वालामुखी, भूकम्प, ज्वार-भाटा, अपक्षय और अपरदन जैसी अनेक प्रक्रियाओं को समझने में भूगोल की सहायता करता है।

4. भूगोल तथा भू-गर्भ विज्ञान (Geography and Geology)-भू-गर्भ विज्ञान पृथ्वी की उत्पत्ति, भू-आकृतियों का निर्माण, खनिजों व चट्टानों की उत्पत्ति, भूकम्प, ज्वालामुखी जैसी घटनाओं का अध्ययन करता है। भूगोल इन तत्त्वों के वितरण और मानव पर इनके प्रभावों का अध्ययन करता है। भूगोल और भू-गर्भ विज्ञान के गहरे सम्बन्धों के बारे में भूगोलवेत्ता डब्ल्यू०एम० डेविस (W.M. Davis) ने कहा था, “भू-गर्भ विज्ञान भूतकाल का भूगोल है और भूगोल वर्तमान काल का भूगर्भ विज्ञान।”

5. भूगोल तथा रसायन विज्ञान (Geography and Chemistry) वायुमण्डल की विभिन्न गैसों, विभिन्न खनिजों, ऊर्जा के संसाधनों, मृदा व चट्टानों के गुणों के बारे में जानकारी हेतु भूगोल रसायन विज्ञान पर निर्भर रहता है।

6. भूगोल तथा वनस्पति विज्ञान (Geography and Botany)-भूगोल वनस्पति के प्रकार और उसके आर्थिक महत्त्व का अध्ययन करता है। वनस्पति विज्ञान में वृक्षों व पादप-समूह की जीवनी (Plant life) का अध्ययन होता है। वनस्पति जगत (Flora) के आधारभूत ज्ञान के लिए भूगोल वनस्पति विज्ञान से सम्बन्ध रखता है।

7. भूगोल तथा प्राणी विज्ञान (Geography and Zoology)-प्राणी विज्ञान जन्तुओं (Fauna) की विभिन्न प्रजातियों (Species) व उनके जीवन के बारे में अध्ययन करता है। भूगोल स्थलमण्डल, जलमण्डल व वायुमण्डल में पाए जाने वाले जीव-जन्तुओं पर भौगोलिक तत्त्वों के प्रभाव और पर्यावरण के साथ उनके अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन करता है। पारिस्थितिकी (Ecology) का अध्ययन करते समय हम जन्तुओं के विश्व-वितरण का भी अध्ययन करते हैं। इस प्रकार भूगोल और प्राणी विज्ञान में सम्बन्ध है।

इसके अतिरिक्त भूगोल का सम्बन्ध मृदा विज्ञान व जल विज्ञान जैसे क्रमबद्ध विज्ञानों से भी है।

(ख) भूगोल तथा सामाजिक विज्ञान (Geography and Social Science)
1. भूगोल तथा अर्थशास्त्र (Geography and Economics) भूगोल के उपविषय आर्थिक भूगोल में हम विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में मानव की आर्थिक क्रियाओं के वितरण का अध्ययन करते हैं, जबकि अर्थशास्त्र मनुष्य की आर्थिक आवश्यकताओं और उनकी पूर्ति के साधनों की व्याख्या करता है। आर्थिक भूगोल और अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु बहुत कुछ मिलती है, केवल दृष्टिकोण का अन्तर है।

2. भूगोल तथा इतिहास (Geography and History)-भूगोल स्थान का और इतिहास समय का ज्ञान है तथा कोई भी सामाजिक विज्ञान देश और काल के सन्दर्भ के बिना पूरा नहीं हो सकता। इसी कारण वूलरिज़ तथा ईस्ट (Wooldridge and East) ने कहा था, “वास्तव में भूगोल, इतिहास से, जिसने इसे बनाया है, अलग नहीं हो सकता।” भूगोल और इतिहास न केवल एक दूसरे से अन्तर्सम्बन्धित हैं बल्कि एक-दूसरे के पूरक भी हैं। किसी भी प्रदेश की वर्तमान दशा वहाँ पर अतीत में हो चुके घटना-क्रम की उपज होती है क्योंकि भूगोल वह मंच प्रदान करता है, जिस पर इतिहास का नाटक खेला जाता है।

3. भूगोल तथा समाजशास्त्र (Geography and Sociology)-मानव भूगोल और समाजशास्त्र दोनों विषयों में साम व्यवस्थाओं और सांस्कृतिक अवस्थाओं का अध्ययन होता है। दोनों ही विषय भू-तल पर पाए जाने वाले मानव समु सामाजिक संगठन, परिवार-प्रणाली, श्रम-विभाजन, रीति-रिवाज, लोकनीति व प्रथाओं का अध्ययन करते हैं।

4. भूगोल तथा सैन्य विज्ञान (Geography and Military Science) युद्ध भूमि की भौगोलिक स्थिति; जैसे पहाड़, दलदल, मरुस्थल, जंगल, समुद्र इत्यादि तथा वहाँ की जलवायु की जानकारी सेना के लिए अनिवार्य है। सैन्य विज्ञान में हम युद्ध क्षेत्रों, युद्ध कलाओं, युद्धों के कारणों व प्रभावों की व्याख्या करते हैं। इस आधार पर भूगोल का सैन्य विज्ञान से गहरा सम्बन्ध है। दोनों ही विषयों में राष्ट्रों की जनशक्ति, आर्थिक शक्ति, औद्योगिक विकास का अध्ययन किया जाता है। भौगोलिक ज्ञान के आधार पर बने सीमावर्ती क्षेत्रों के मानचित्र देश की सुरक्षा व युद्ध की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होते हैं।

5. भूगोल तथा राजनीतिक विज्ञान (Geography and Political Science) राजनीतिक विज्ञान भिन्न-भिन्न राज्य-व्यवस्थाओं व संगठनों का अध्ययन करता है। प्रत्येक राज्य-व्यवस्था अपनी राजनीतिक सोच के अनुसार ही संसाधनों का विकास करती है। भूगोल संसाधन, उपयोग और संरक्षण से जुड़ा होने के कारण विभिन्न देशों की शासन व्यवस्था से निरपेक्ष नहीं हो सकता। राज्यों व राष्ट्रों की सीमाओं में होने वाले परिवर्तन से उत्पन्न परिणामों का अध्ययन भी दोनों विषय अपने-अपने दृष्टिकोण से करते हैं। दोनों ही विषय भू-राजनीति (Geo-politics) व अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का अध्ययन करते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

प्रश्न 5.
“वास्तव में न तो प्रकृति का ही मनुष्य पर पूर्ण नियन्त्रण है और न ही मनुष्य प्रकृति का विजेता है।” नियतिवाद और सम्भववाद के सन्दर्भ में इस कथन को स्पष्ट करें।
उत्तर:
मनुष्य और प्रकृति के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में आधुनिक भूगोल का आधार बना। मानव और प्रकृति के अन्तर्सम्बन्धों को लेकर दो पृथक् विचारधाराएँ विकसित हुईं

  • नियतिवाद या वातावरण निश्चयवाद (Environmental Determinism)
  • सम्भववाद (Possibilism)

1. जर्मन विचारधारा नियतिवाद के अनुसार, भौतिक वातावरण के कारक ही किसी प्रदेश में निवास करने वाले मानव वर्ग के क्रियाकलापों और आचार-विचार (Conduct) को निश्चित करते हैं। हम्बोल्ट, रिटर, रेटजेल, हंटिंगटन व कुमारी सेम्पल ने इस विचारधारा का विकास किया था। रेटज़ेल का मत था कि मानव अपने वातावरण की उपज है और वातावरण की प्राकृतिक शक्तियाँ ही मानव-जीवन को ढालती हैं; मनुष्य तो केवल वातावरण के साथ ठीक समायोजन करके स्वयं को वहाँ रहने योग्य बनाता है।

उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र के एस्कीमो, ज़ायरे बेसिन के पिग्मी व कालाहारी मरुस्थल के बुशमैन कबीलों ने आखेट द्वारा जीवन-यापन को अपनी नियति के रूप में स्वीकार कर भौतिक परिवेश से समायोजन का उदाहरण प्रस्तुत किया है। रेटज़ेल या सेम्पल ने कहीं भी अपने ग्रन्थों में मानव पर प्रकृति का पूर्ण नियन्त्रण या मानव को अपने वातावरण का दास सिद्ध नहीं किया है। उन्होंने तो केवल वातावरण को मानव की क्रियाओं पर प्रभाव डालने वाली महत्त्वपूर्ण शक्ति बताते हुए स्पष्ट किया कि मानव उद्यम की सफलता का निर्धारण भौतिक परिवेश के द्वारा ही होता है।

2. फ्रांसीसी विचारधारा संभववाद के अनुसार यह तो स्वीकार किया जाता है कि वातावरण मानव की क्रियाओं को सीमित करता है परन्तु वातावरण के द्वारा कुछ सम्भावनाएँ (Possibilities) भी प्रस्तुत की जाती हैं, जिनका मनुष्य अपनी छाँट (Choice) के द्वारा उपयोग करना चाहे तो कर सकता है। इस विचारधारा का जनक विडाल डी ला ब्लाश था तथा फैब्रे, ईसा बोमेन, कार्ल सावर, ब्रून्ज तथा डिमांजियाँ आदि इसके समर्थक थे।

इनका विचार था कि केवल प्रकृति ही समस्त मानवीय क्रियाओं की पूर्ण निर्धारक (All determinant) नहीं है बल्कि मनुष्य की बुद्धि, कौशल, संकल्प शक्ति, अध्यवसाय तथा सांस्कृतिक परिवेश इत्यादि कारक सम्भावनाओं और सफलता के मार्ग प्रशस्त करते हैं। फैक्रे के अनुसार, “मानव प्रकृति द्वारा प्रस्तुत की गई सम्भावनाओं का स्वामी होता है तथा उसके प्रयोग का निर्णायक होता है।” मानव की सूझ-बूझ के द्वारा विपरीत परिस्थितियों में किए गए परिवर्तनों के अनेक उदाहरण प्रत्येक क्षेत्र में विद्यमान हैं।

थार मरुस्थल में नहर पहुँचाना, नीदरलैण्ड्स में समुद्र को पीछे धकेलक करना, तिब्बत-लेह मार्ग के रूप में विश्व की सबसे ऊँची सड़क का निर्माण, उफनती नदियों पर विशालकाय पुल, बाढ़ को रोकने वाले हजारों बाँध, पहाड़ों की तीव्र ढलानों पर सीढ़ीनुमा खेती तथा वायुमण्डल से नाइट्रोजन खींचने के संयन्त्र और ध्वनि से तेज चलने वाले यान सिद्ध करते हैं कि मनुष्य विकसित तकनीक के सहारे भौतिक वातावरण या नियति को बदलने वाला सर्वश्रेष्ठ कारक है। वास्तव में, न तो प्रकृति का ही मनुष्य पर पूरा नियन्त्रण है और न ही मनुष्य ही प्रकृति का विजेता है; दोनों का एक-दूसरे से क्रियात्मक सम्बन्ध है। प्रकृति का सहयोग और मनुष्य की संकल्प शक्ति दोनों ही उन्नति का आधार हैं। बीच के मार्ग की इस विचारधारा को नव-निश्चयवाद (Neo-Determinism) भी कहा जाता है।

प्रश्न 6.
भौतिक भूगोल का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके उप-विषयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भौतिक भूगोल (Physical Geography) भूगोल की वह शाखा जिसमें पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले भौतिक यन किया जाता है, ‘भौतिक भूगोल’ कहलाती है। भौतिक पर्यावरण के तत्त्व भू-आकार, नदियाँ, जलवाय, प्राकृतिक वनस्पति, मृदा, जीव-जन्तु व खनिज इत्यादि होते हैं। इन प्राकृतिक तत्त्वों का निर्माण प्रकृति करती है। इनकी रचना में मनुष्य का कोई हाथ नहीं होता। भौतिक भूगोल में भौतिक पर्यावरण सभी महत्त्वपूर्ण अंगों-स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल और जैवमण्डल का अध्ययन होता है। इसी आधार पर होम्स ने कहा था, “स्वयं भौतिक पर्यावरण का अध्ययन ही भौतिक भूगोल है।”

भौतिक भूगोल के उप-विषय (Sub-Subjects of Physical Geography)-भौतिक भूगोल के उप-विषय इस प्रकार हैं-
1. भू-आकृति विज्ञान (Geomorphology) – इस विज्ञान के अन्तर्गत पृथ्वी की संरचना, चट्टानों और भू-आकृतियों; जैसे पर्वत, पठार, मैदान, घाटियों इत्यादि की उत्पत्ति का अध्ययन होता है।

2. जलवायु विज्ञान (Climatology) – जलवायु विज्ञान में हम अपने चारों ओर फैले वायुमण्डल में होने वाली समस्त प्राकृतिक घटनाओं; जैसे तापमान, वर्षा, वायुभार, पवनें, वृष्टि, आर्द्रता, वायु-राशियाँ, चक्रवात इत्यादि का अध्ययन करते हैं। जलवायु का मानव की गतिविधियों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन भी इसी विज्ञान में किया जाता है।

3. जल विज्ञान (Hydrology) भौतिक भूगोल की इस नई विकसित हुई उपशाखा में महासागरों, नदियों, हिमनदियों के रूप में जल की प्रकृति में भूमिका का अध्ययन किया जाता है। इसमें यह भी अध्ययन किया जाता है कि जल जीवन के विभिन्न रूपों का पोषण किस प्रकार करता है।

4. समुद्र विज्ञान (Oceanography) इस विज्ञान में समुद्री जल की गहराई, खारापन (Salinity), लहरों व धाराओं, ज्वार-भाटा, महासागरीय नितल (Ocean floor) व महासागरीय निक्षेपों (Ocean deposits) का अध्ययन किया जाता है।

5. मृदा भूगोल (Soil Geography or Pedology) इसमें हम मिट्टी का निर्माण, उसके प्रकार, गुण, मिट्टियों का वितरण, उर्वरता (Fertility) तथा उपयोग इत्यादि का अध्ययन करते हैं।

6. जैव भूगोल (Bio-Geography) यह उप-शाखा पृथ्वी तल पर जीवों और वनस्पति (Fauna and Flora) के विकास, वर्गीकरण और वितरण का मानव के सन्दर्भ में अध्ययन करती है।

प्रश्न 7.
मानव भूगोल क्या होता है? मानव भूगोल के उप-क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव भूगोल (Human Geography) भूगोल की वह शाखा, जो भौतिक परिवेश की पृष्ठभूमि में पृथ्वी तल पर फैली मानव-निर्मित परिस्थितियों या लक्षणों का अध्ययन करती है, उसे ‘मानव भूगोल’ कहा जाता है। इन मानवीय लक्षणों की रचना मनुष्य अपनी सुख-सुविधा और विकास के लिए करता है। गाँव, नगर, कृषि, कारखाने, बाँध, सड़कें, पुल, रेलें, नहरें व संस्थाएँ आदि मानवीय लक्षणों के उदाहरण हैं। मानव-निर्मित परिस्थितियों से ही मानव के सांस्कृतिक विकास की झलक मिलती है।

मानव की सभी विकास क्रियात्मक गतिविधियों पर भौतिक वातावरण का भारी असर पड़ता है। इसीलिए मानव भौतिक परिवेश से व्यापक अनुकूलन करके ही सांस्कृतिक परिवेश की रचना करता है। विडाल डी ला ब्लाश के अनुसार, “मानव भूगोल में पृथ्वी को नियन्त्रित करने वाले भौतिक नियमों तथा पृथ्वी पर निवास करने वाले जीवों के पारस्परिक सम्बन्धों का संयुक्त ज्ञान शामिल होता है।” एलन चर्चिल सेम्पल (Ellen Churchill Sample) के अनुसार, “मानव भूगोल क्रियाशील मानव और अस्थायी पृथ्वी के आपसी बदलते हुए सम्बन्धों का अध्ययन है।”

मानव भूगोल के उप-क्षेत्र (Sub-Fields of Human Geography) मानव भूगोल के उप-क्षेत्र इस प्रकार हैं-
1. आर्थिक भूगोल (Economic Geography) एन०जी० पाउण्ड्स के अनुसार, “आर्थिक भूगोल भू-पृष्ठ पर मानव की उत्पादन क्रियाओं के वितरण का अध्ययन करता है।” आर्थिक क्रियाएँ मुख्यतः उत्पादन, वितरण, उपभोग और विनिमय से सम्बन्धित होती हैं।

2. सांस्कृतिक भूगोल (Cultural Geography) मानव भूगोल की इस उप-शाखा में समय और स्थान के सन्दर्भ में मनुष्य के सांस्कृतिक पक्षों-आवास, भोजन, जीने का ढंग, आचार-विचार, रहन-सहन, भाषा, शिक्षा, सुरक्षा, धर्म, सामाजिक संस्थाओं और दृष्टिकोणों का अध्ययन किया जाता है।

3. सामाजिक भूगोल (Social Geography)-सामाजिक भूगोल में मानव का एकाकी रूप से अध्ययन न करते हुए विभिन्न मानव समूहों और उनके पर्यावरण के बीच सम्बन्धों की समीक्षा की जाती है।

4. जनसंख्या भूगोल (Population Geography) इस उप-शाखा में कुल जनसंख्या, जनसंख्या का वितरण, घनत्व, जन्म एवं मृत्यु-दर, साक्षरता, । अनुपात इत्यादि जनांकिकीय विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है।

5. ऐतिहासिक भूगोल (Historical Geography)-इसके अन्तर्गत हम विभिन्न प्रदेशों में होने वाले भौगोलिक परिवर्तनों का समय के संदर्भ में अध्ययन करते हैं। हार्टशॉर्न के अनुसार, “ऐतिहासिक भूगोल भूतकाल का भूगोल है।” ऐतिहासिक भूगोल किसी प्रदेश के वर्तमान स्वरूप को समझने में हमारी सहायता करता है।

6. राजनीतिक भूगोल (Political Geography) इस उप-शाखा के अन्तर्गत भू-राजनीति, राजनीतिक व्यवस्था, विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं का संसाधनों के उपयोग पर पड़ने वाले प्रभावों, राज्य और राष्ट्रीय सीमाओं, स्थानीय स्वशासन, प्रादेशिक व राष्ट्रीय नियोजन का अध्ययन किया जाता है।

इनके अतिरिक्त मानव भूगोल के अन्य उप-क्षेत्र आवासीय भूगोल, नगरीय भूगोल, चिकित्सा भूगोल, संसाधन भूगोल, कृषि भूगोल व परिवहन भूगोल इत्यादि हैं।

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HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

HBSE 11th Class Geography खनिज एवं शैल Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्न में से कौन ग्रेनाइट के दो प्रमुख घटक हैं?
(A) लौह एवं निकेल
(B) सिलिका एवं एलूमिनियम
(C) लौह एवं चाँदी
(D) लौह ऑक्साइड एवं पोटैशियम
उत्तर:
(B) सिलिका एवं एलूमिनियम

2. निम्न में से कौन-सा कायांतरित शैलों का प्रमुख लक्षण है?
(A) परिवर्तनीय
(B) क्रिस्टलीय
(C) शांत
(D) पत्रण
उत्तर:
(A) परिवर्तनीय

3. निम्न में से कौन-सा एकमात्र तत्त्व वाला खनिज नहीं है?
(A) स्वर्ण
(B) माइका
(C) चाँदी
(D) ग्रेफाइट
उत्तर:
(B) माइका

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

4. निम्न में से कौन-सा कठोरतम खनिज है?
(A) टोपाज
(B) क्वार्ट्ज़
(C) हीरा
(D) फेल्डस्पर
उत्तर:
(C) हीरा

5. निम्न में से कौन सा शैल अवसादी नहीं है?
(A) टायलाइट
(B) ब्रेशिया
(C) बोरैक्स
(D) संगमरमर
उत्तर:
(D) संगमरमर

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
शैल से आप क्या समझते हैं? शैल के तीन प्रमुख वर्गों के नाम बताएँ।
उत्तर:
शैल-पृथ्वी की पर्पटी शैलों से बनी है। शैल का निर्माण एक या एक से अधिक खनिजों से मिलकर होता है। शैल कठोर या नरम तथा विभिन्न रंगों की हो सकती है। शैलों में खनिज घंटकों का कोई निश्चित संघटक नहीं है। शैल को चट्टान भी कहा जाता है। शैलों को निर्माण पद्धति के आधार पर तीन वर्गों में विभाजित किया गया है

  • आग्नेय शैल
  • अवसादी शैल
  • कायांतरित शैल

प्रश्न 2.
आग्नेय शैल क्या है? आग्नेय शैल के निर्माण की पद्धति एवं उनके लक्षण बताएँ।
उत्तर:
आग्नेय शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के इग्निस (Ienis)शब्द से हुई है, जिसका तात्पर्य है कि अग्नि के समान गरम तप्त लावा के ठण्डे होने से इन चट्टानों का निर्माण हुआ। पृथ्वी अपनी उत्पत्ति के समय गरम, तरल एवं गैसीय पुंज थी, जो धीरे-धीरे ठण्डी हुई। ठण्डी एवं ठोस अवस्था में आने से इन चट्टानों का निर्माण हुआ। पृथ्वी पर सर्वप्रथम इन्हीं चट्टानों का निर्माण हुआ इसलिए इन्हें प्राथमिक चट्टानें भी कहते हैं। आग्नेय चट्टानें पृथ्वी के पिघले हुए पदार्थ (मैग्मा) के ठण्डा एवं ठोस हो जाने के कारण बनी हैं।

आग्नेय शैलों का वर्गीकरण इनकी बनावट के आधार पर किया गया है। इनकी बनावट इनके कणों के आकार एवं व्यवस्था अथवा पदार्थ की भौतिक अवस्था पर निर्भर करती है। यदि पिघले हुए पदार्थ धीरे-धीरे गहराई तक ठंडे होते हैं, तो खनिज के कण पर्याप्त बड़े-बड़े हो सकते हैं। सतह पर हुई आकस्मिक शीतलता के कारण छोटे एवं चिकने कण बनते हैं। शीतलता की मध्यम परिस्थितियाँ होने पर आग्नेय शैल को बनाने वाले कण मध्यम आकार के होते हैं।

प्रश्न 3.
अवसादी शैल का क्या अर्थ है? अवसादी शैल के निर्माण की पद्धति बताएँ।
उत्तर:
अपक्षय तथा अपरदन के विभिन्न साधनों द्वारा प्राप्त बड़ी मात्रा में अवसाद के जमने से बनी हुई चट्टानों को परतदार अथवा अवसादी शैल/चट्टानें कहते हैं। इनका निर्माण अवसाद के परतों में जमने के कारण होता है। भूतल पर लगभग.75% चट्टानें अवसादी शैल/चट्टानें हैं।

निर्माण की पद्धति के आधार पर अवसादी शैलों का वर्गीकरण-

  • यांत्रिकी रूप से निर्मित-बालुकाशम, पिंडशिला, चूना प्रस्तर, विमृदा आदि।
  • कार्बनिक रूप से निर्मित-गीज़राइट, चूना-पत्थर, कोयला आदि।
  • रासायनिक रूप से निर्मित-शृंग, प्रस्तर, चूना-पत्थर, हेलाइट आदि।

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प्रश्न 4.
शैली चक्र के अनुसार प्रमुख प्रकार की शैलों के मध्य क्या संबंध होता है?
उत्तर:
शैली चक्र एक सतत् प्रक्रिया होती है, जिसमें पुरानी शैलें परिवर्तित होकर नवीन रूप लेती हैं। आग्नेय व अन्य शैलें प्राथमिक शैलों से निर्मित होती हैं। आग्नेय एवं कायांतरित शैलों से प्राप्त अंशों से अवसादी शैलों का निर्माण होता है। निर्मित, भूपृष्ठीय शैलें (आग्नेय, कायांतरित एवं अवसादी) प्रत्यावर्तन के द्वारा पृथ्वी के आंतरिक भाग में नीचे की ओर जा सकती हैं। पृथ्वी के आंतरिक भाग में तापमान बढ़ने के कारण ये पिघलकर मैग्मा में परिवर्तित हो जाते हैं, जो आग्नेय शैलों के मूल स्रोत हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
खनिज शब्द को परिभाषित कीजिए और प्रमुख खनिज बताइए।
उत्तर:
खनिज की परिभाषा-‘खनिज’ वे प्राकृतिक पदार्थ होते हैं जिनकी अपनी भौतिक विशेषताएँ तथा एक निश्चित रासायनिक बनावट होती है। अधिकांश खनिज ठोस, जड़ व अकार्बनिक अथवा अजैव पदार्थ होते हैं। चट्टानों की रचना विभिन्न खनिजों के संयोग से होती है। वॉरसेस्टर के अनुसार, “लगभग सभी चट्टानों में दो या दो से अधिक खनिज होते हैं।” कई बार चट्टान केवल एक खनिज से भी बनती है। जैसे चूना, पहाड़ी नमक, बालू-पत्थर इत्यादि।

इसी आधार पर फिन्च व ट्रिवार्था ने कहा है, “एक या एक से अधिक खनिजों के मिश्रण से चट्टानों का निर्माण होता है।” प्रमुख खनिज-प्रमुख खनिज निम्नलिखित हैं-
1. फेल्सपार-सिलिका और ऑक्सीजन सभी फेल्सपारों में उपस्थित होते हैं जबकि सोडियम, पोटैशियम, कैल्शियम व एल्यूमीनियम इत्यादि फेल्सपार के विशिष्ट प्रकार में पाए जाते हैं। इसका उपयोग चीनी मिट्टी व काँच के बर्तन बनाने में होता है।

2. क्वार्टज़-इसका रचनाकारी तत्त्व सिलिका है। यह रेत व ग्रेनाइट का प्रमुख घटक है। यह कठोर होने के कारण पानी में नहीं घुलता। यह सफेद व रंगहीन होता है। इसका उपयोग रेडियो एवं राडार निर्माण में होता है।

3. पाइरॉक्सीन इसमें कैल्शियम, एल्यूमीनियम शामिल हैं। भू-पृष्ठ का लगभग 10% हिस्सा इससे बना है। इसका रंग हरा अथवा काला होता है। सामान्यतः यह उल्का पिंड में पाया जाता है।

4. एम्फीबोल-इसके प्रमुख तत्त्व एल्यूमीनियम, कैल्शियम, सिलिका, लोहा और मैग्नीशियम हैं। भू-पृष्ठ का लगभग 7% भाग इससे बना है। यह हरे और चमकीले काले रंग का होता है। इसका उपयोग एस्बेस्ट्स की तरह होता है। यह विद्युत यंत्र के निर्माण में काम आता है।

5. अभ्रक-इसके प्रमुख तत्त्व पोटैशियम, लौह, सिलिका आदि हैं। भू-पृष्ठ का लगभग 4% भाग इससे बना है। ये मुख्यतः आग्नेय और रूपांतरित चट्टानों में पाए जाते हैं। विद्युत उपकरणों में इसका उपयोग होता है।

6. ऑलिवीन इसमें मैग्नीशियम, लौह आदि शामिल होते हैं। इसका उपयोग आभूषण बनाने में होता है। ये हरे रंग के क्रिस्टल होते हैं।

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प्रश्न 2.
भूपृष्ठीय शैलों में प्रमुख प्रकार की शैलों की प्रकृति एवं उनकी उत्पत्ति की पद्धति का वर्णन करें। आप उनमें अंतर स्थापित कैसे करेंगे?
उत्तर:
भूपृष्ठीय शैलों के प्रमुख तीन प्रकार होते हैं-
1. आग्नेय चट्टानें/शैल-आग्नेय शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के इग्निस (Ignis) शब्द से हुई है, जिसका तात्पर्य है कि अग्नि के समान गरम तप्त लावा के ठण्डे होने से इन चट्टानों का निर्माण हुआ। पृथ्वी अपनी उत्पत्ति के समय गरम, तरल एवं गैसीय पुंज . थी, जो धीरे-धीरे ठण्डी हुई। ठण्डी एवं ठोस अवस्था में आने से इन चट्टानों का निर्माण हुआ। पृथ्वी पर सर्वप्रथम इन्हीं चट्टानों का निर्माण हुआ इसलिए इन्हें प्राथमिक चट्टानें भी कहते हैं। आग्नेय चट्टानें पृथ्वी के पिघले हुए पदार्थ (मैग्मा) के ठण्डा एवं ठोस हो जाने के कारण बनी हैं।

2. अवसादी चट्टानें/शैल-अपक्षय तथा अपरदन के विभिन्न साधनों द्वारा प्राप्त बड़ी मात्रा में अवसाद के जमने से बनी हुई चट्टानों को परतदार अथवा अवसादी शैल/चट्टानें कहते हैं। इनका निर्माण अवसाद के परतों में जमने के कारण होता है। भूतल पर लगभग 75% चट्टानें अवसादी शैल/चट्टानें हैं।

3. कायांतरित चट्टानें/शैल-कायांतरित या रूपान्तरित का अर्थ है-स्वरूप में परिवर्तन। दाब, आयतन व तापमान में परिवर्तन की प्रक्रिया के फलस्वरूप इन शैलों का निर्माण होता है। इसलिए ये कायान्तरित, रूपान्तरित या परिवर्तित शैलें या चट्टानें कहलाती हैं। रंग-रूप एवं संरचना में परिवर्तन आ जाता है तथा वे अपने मौलिक रूप में नहीं रह पाती हैं, जिससे रूपान्तरित चट्टानों का निर्माण हो जाता है।
अंतर:

आग्नेय शैलअवसादी शैलकायांतरित शैल
यह मैरमा व लावा के जमने से बनती है। उदाहरण-ग्रेनाइट, बेसाल्ट, ग्रेबो, पेग्मैटाइट आदि।यह परतदार होती है। इसमें वनस्पति व जीव-जंतुओं का जीवाश्म पाया जाता है। इसका निर्माण अवसाद की परतों में जमने के कारण होता है।यह दाब, आयतन व तापमान में परिवर्तन के द्वारा निर्मित होती हैं।
उदाहरण-चूना पत्थर, चूना प्रस्तर कोयला, विमृदा आदि।उदाहरण-संगमरमर, स्लेट, ग्रेनाइट आदि।

प्रश्न 3.
कायांतरित शैल क्या है? इनके प्रकार एवं निर्माण की पद्धति का वर्णन करें।
उत्तर:
कायांतरित शैल-कायांतरित या रूपान्तरित शब्द अंग्रेज़ी के शब्द ‘Metamorphic’ से बना है। इसकी उत्पत्ति ग्रीक भाषा के Meta = Change तथा Morphe = Form अर्थात् जो मूल रूप में परिवर्तित हो चुकी है, अतः कायांतरित या रूपान्तरित का अर्थ है-स्वरूप में परिवर्तन। दाब, आयतन व तापमान में परिवर्तन की प्रक्रिया के फलस्वरूप इन शैलों का निर्माण होता है। इसलिए ये कायान्तरित, रूपान्तरित या परिवर्तित शैलें या चट्टानें कहलाती हैं। रंग-रूप एवं संरचना में परिवर्तन आ जाता है तथा वे अपने मौलिक रूप में नहीं रह पाती हैं, जिससे रूपान्तरित चट्टानों का निर्माण हो जाता है।

पी०जी० वॉरसेस्टर के अनुसार, “रूपान्तरित चट्टानें वे चट्टानें हैं जो बिना विघटित हुए रूप तथा संरचना में परिवर्तित हो जाती हैं।”

रूपान्तरित या कायान्तरित शैलों/चट्टानों के प्रकार एवं निर्माण प्रक्रिया रूपान्तरित चट्टानों का कायान्तरण दो प्रकारों के अंतर्गत होता है
1. भौतिक कायान्तरण (Physical Metamorphism)-इसे यांत्रिक कायान्तरण भी कहते हैं। धरातल के नीचे अत्यधिक गहराई में दबाव के कारण चट्टानों की संरचना में परिवर्तन आ जाता है; जैसे शैल (Shale) का स्लेट में परिवर्तन। दूसरा रूपान्तरण तापमान के कारण होता है। अत्यधिक ताप के कारण भू-गर्भ की चट्टानें परिवर्तित हो जाती हैं; जैसे चूने के पत्थर का संगमरमर में बदलना।

2. रासायनिक कायान्तरण (Chemical Metamorphism)-जब एक से अधिक खनिजों के मिश्रण से बनी चट्टान मूल खनिजों के पुनर्मिश्रण के कारण दूसरी चट्टान में बदल जाती है या किसी विशेष चट्टान में दूसरी चट्टान का कोई तत्त्व मिश्रित हो जाता है और उसका रूप बदल जाता है उसे रासायनिक कायान्तरण कहते हैं। कार्बन-डाइऑक्साइड तथा ऑक्सीजन जैसी गैसें जल में मिल जाने पर घुलनशीलता में वृद्धि कर देती हैं और विभिन्न घुलनशील खनिज आपस में क्रिया करके एक नई चट्टानी संरचना को जन्म देते हैं।

प्रभाव क्षेत्र के आधार पर रूपान्तरण (Metamorphism on the basis of Effective Areas)-चट्टानों का रूपान्तरण उनके प्रभाव क्षेत्र के आधार पर निम्नलिखित प्रकार से होता है-
1. प्रादेशिक रूपान्तरण (Regional Metamorphism)-जब भू-गर्भ में अधिक तापमान तथा दबाव के कारण एक बहुत बड़े क्षेत्र में चट्टानों का रूपान्तरण होता है तो उसे प्रादेशिक रूपान्तरण कहते हैं। जैसे-जैसे रूपान्तरण की तीव्रता बढ़ती है तो शैल (Shale) स्लेट में, स्लेट शिस्ट में और शिस्ट नाइस में परिवर्तित हो जाती है। यह गतिक रूपान्तरण भी कहलाता है।

2. स्पर्श रूपान्तरण (Contact Metamorphism)-ज्वालामुखी विस्फोट के समय जब मैग्मा का प्रवाह धरातल की ओर होता है तो मैग्मा के सम्पर्क में आने वाली चट्टानों में तापक्रम के कारण परिवर्तन आ जाता है, उसे स्पर्श रूपान्तरण कहते हैं।

खनिज एवं शैल HBSE 11th Class Geography Notes

→ जीवाश्म (Fossil)-परतदार शैलों के बीच जीव-जन्तुओं और वनस्पतियों के अवशेष या उनके छापों का मिलना।

→ प्रवाल (Coral)-एक सूक्ष्म समुद्री जीव जो अपने शरीर से चूना (कैल्शियम कार्बोनेट) निकालकर उससे अपना कवच या खोल तैयार कर लेता है। ये उष्ण कटिबंध के स्वच्छ या सुऑक्सीजनित जल में उत्पन्न होते हैं जहाँ इन्हें सूक्ष्म जीव खाद्य पदार्थ के रूप में मिलते हैं।

→ लोएस (Loess)-पवन द्वारा उड़कर आई हुई सूक्ष्म कणों वाली धूलि का निक्षेप।

→ घड़िया (Crucible)-एक बर्तन जिसमें धातुओं को गलाया जाता है। ऐसा बर्तन ग्रेफाइट से बनता है, क्योंकि ग्रेफाइट का गलनांक 3500° सेल्सियस होता है।

→ गलनांक (Melting Point)-वह तापमान जिस पर कोई ठोस वस्तु तरल बनने लगती है।

→ गठन (Texture)-शैलों की रचना करने वाले कणों का आकार, आकृति और एक-दूसरे से जुड़ने की व्यवस्था अर्थात् कणों का ज्यामितीय स्वरूप।

→ क्वाटर्ज़ (Quartz)-यह प्राकृतिक रवेदार सिलिका (बालू) है। यह कभी-कभी शुद्ध, स्वच्छ और रंगहीन कणों में मिलता है। इसके ऊँचे गलनांक के कारण उद्योगों में इसका बहुत उपयोग होता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

→ घात्विक खनिज (Metallic Minerals)-धात्विक खनिज वे होते हैं, जिन्हें परिष्कृत किया जा सकता है। ये धातुवर्य (Malleable) होते हैं अर्थात् इनसे धातुओं को पीटकर चादर, तार इत्यादि विभिन्न आकारों में ढाला जा सकता है।

→ आग्नेय शैलें (Igneous Rocks)-ऐसी शैलें जिनका निर्माण पृथ्वी के भीतर उपस्थित तरल एवं तप्त द्रव्य के ठण्डा होकर ठोस हो जाने से हुआ हो, आग्नेय शैलें कहलाती हैं।

→ प्राथमिक शैलें (Primary Rocks)-पृथ्वी पर सबसे पहले जीव-जन्तुओं की उत्पत्ति से भी पहले आग्नेय शैलों का निर्माण हुआ। इसी आधार पर इन्हें प्राथमिक शैलें भी कहा जाता है।

→ रूपान्तरित शैलें (Metamorphic Rocks)-ऐसी शैलें जो अन्य शैलों के रूप परिवर्तन के द्वारा बनती हैं, रूपान्तरित शैलें कहलाती हैं।

→ तापीय रूपान्तरण (Thermal Metamorphism)-ऊँचे ताप के प्रभाव से शैलों के खनिजों का रासायनिक परिवर्तन और पुनः क्रिस्टलीकरण हो जाता है। इसे तापीय रूपान्तरण कहते हैं।

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HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

HBSE 11th Class Geography भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. स्थलरूप विकास की किस अवस्था में अधोमुख कटाव प्रमुख होता है?
(A) तरुणावस्था
(B) प्रथम प्रौढ़ावस्था
(C) अंतिम प्रौढ़ावस्था
(D) वृद्धावस्था
उत्तर:
(A) तरुणावस्था

2. एक गहरी घाटी जिसकी विशेषता सीढ़ीनुमा खड़े ढाल होते हैं; किस नाम से जानी जाती है-
(A) U आकार की घाटी
(B) अंधी घाटी
(C) गॉर्ज
(D) कैनियन
उत्तर:
(D) कैनियन

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

3. निम्न में से किन प्रदेशों में रासायनिक अपक्षय प्रक्रिया यांत्रिक अपक्षय प्रक्रिया की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होती है-
(A) आर्द्र प्रदेश
(B) शुष्क प्रदेश
(C) चूना-पत्थर प्रदेश
(D) हिमनद प्रदेश
उत्तर:
(A) आर्द्र प्रदेश

4. निम्न में से कौन-सा वक्तव्य लेपीज (Lapies) शब्द को परिभाषित करता है-
(A) छोटे से मध्यम आकार के उथले गर्त
(B) ऐसे स्थलरूप जिनके ऊपरी मुख वृत्ताकार व नीचे से कीप के आकार के होते हैं
(C) ऐसे स्थलरूप जो धरातल से जल के टपकने से बनते हैं
(D) अनियमित धरातल जिनके तीखे कटक व खाँच हों
उत्तर:
(D) अनियमित धरातल जिनके तीखे कटक व खाँच हों

5. गहरे, लंबे व विस्तृत गर्त या बेसिन जिनके शीर्ष दीवार खड़े ढाल वाले व किनारे खड़े व अवतल होते हैं, उन्हें क्या कहते हैं?
(A) सर्क
(B) पाश्विक हिमोढ़
(C) घाटी हिमनद
(D) एस्कर
उत्तर:
(A) सर्क

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
चट्टानों में अधःकर्तित विसर्प और मैदानी भागों में जलोढ़ के सामान्य विसर्प क्या बताते हैं?
उत्तर:
नदी विकास की प्रारंभिक अवस्था में प्रारंभिक मंद ढाल पर विसर्प लूप विकसित होते हैं और ये लूप चट्टानों में गहराई तक होते हैं जो प्रायः नदी अपरदन या भूतल के लगातार उत्थान के कारण बनते हैं। बाढ़ व डेल्टाई मैदानों पर लूप जैसे प्रारूप विकसित होते हैं, जिन्हें विसर्प कहते हैं। नदी विसर्प के निर्मित होने का एक कारण तटों पर जलोढ़ का अनियमित व असंगठित जमाव है। बड़ी नदियों के विसर्प में उत्तल किनारों पर सक्रिय निक्षेपण होते हैं।

प्रश्न 2.
घाटी रंध्र अथवा युवाला का विकास कैसे होता है?
उत्तर:
धरातलीय प्रवाहित जल घोल रंध्रों व विलयन रंध्रों से गुजरता हुआ अन्तभौमि नदी के रूप में विलीन हो जाता है और फिर कुछ दूरी के पश्चात् किसी कंदरा से भूमिगत नदी के रूप में फिर निकल आता है। जब घोलरंध्र व डोलाइन इन कंदराओं की छत से गिरने से या पदार्थों के स्खलन द्वारा आपस में मिल जाते हैं, तो लंबी, तंग तथा विस्तृत खाइयाँ बनती हैं जिन्हें घाटी रंध्र या युवाला कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

प्रश्न 3.
चूनायुक्त चट्टानी प्रदेशों में धरातलीय जल प्रवाह की अपेक्षा भौम जल प्रवाह अधिक पाया जाता है, क्यों?
उत्तर:
भौम जल का कार्य सभी चट्टानों में नहीं देखा जा सकता। ऐसी चट्टानें जैसे चूना-पत्थर या डोलोमाइट, जिनमें कैल्शियम कार्बोनेट की प्रधानता होती है, वहाँ पर इसकी अधिक मात्रा देखने को मिलती है। इसलिए चूना युक्त चट्टानी प्रदेशों में धरातलीय जल प्रवाह की अपेक्षा भौम जल प्रवाह अधिक पाया जाता है।

प्रश्न 4.
हिमनद घाटियों में कई रैखिक निक्षेपण स्थलरूप मिलते हैं। इनकी अवस्थिति व नाम बताएँ।
उत्तर:
हिमनद घाटियों के रैखिक निक्षेपण स्थलरूप निम्नलिखित हैं-
1. हिमोढ़-हिमोढ़, हिमनद टिल या गोलाश्मी मृत्तिका के जमाव की लंबी कटके हैं। अंतस्थ, हिमोढ़ हिमनद के अंतिम भाग में मलबे के निक्षेप से बनी लंबी कटकें हैं।

2. एस्कर-हिमनद के पिघलने से जल हिमतल के ऊपर से प्रवाहित होता है अथवा इसके किनारों से रिसता है या बर्फ के छिद्रों के नीचे से प्रवाहित होता है। यह जलधारा अपने साथ बड़े गोलाश्म, चट्टानों के टुकड़े और छोटा चट्टानी मलबा बहाकर लाती है जो हिमनद के नीचे इस बर्फ की घाटी में जमा हो जाते हैं फिर ये पिघलकर वक्राकार कटक के रूप में मिलते है, जिन्हें एस्कर कहते हैं।

3. हिमानी धौत मैदान-हिमानी जलोढ़ निक्षेपों से हिमानी धौत मैदान निर्मित होते हैं।

4. ड्रमलिन-ड्रमलिन का निर्माण हिमनद दरारों में भारी चट्टानी मलबे के भरने व उसके बर्फ के नीचे रहने से होता है।

प्रश्न 5.
मरुस्थली क्षेत्रों में पवन कैसे अपना कार्य करती है? क्या मरुस्थलों में यही एक कारक अपरदित स्थलरूपों का निर्माण करता है?
उत्तर:
मरुस्थली धरातल शीघ्र गर्म और ठंडे हो जाते है। ठंड और गर्मी से चट्टानों में दरारें पड़ जाती हैं जो खंडित होकर पवनों द्वारा अपरदित होती रहती हैं। पवनें रेत के कण उड़ाकर अपने आस-पास की चट्टानों का कटाव करती हैं, जिससे कई स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। मरुस्थलों में अपक्षय केवल पवन द्वारा ही नहीं, अपितु वर्षा व वृष्टि से भी प्रभावित होता है। मरुस्थलों में नदियाँ चौड़ी, अनियमित तथा वर्षा के बाद अल्प समय तक ही प्रवाहित होती हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
आई व शुष्क जलवायु प्रदेशों में प्रवाहित जल ही सबसे महत्त्वपूर्ण भू-आकृतिक कारक है। विस्तार से वर्णन करें।
उत्तर:
आर्द्र प्रदेशों में अत्यधिक वर्षा होती है। प्रवाहित जल सबसे महत्त्वपूर्ण भू-आकृतिक कारक है, जो धरातल के निम्नीकरण के लिए उत्तरदायी है। प्रवाहित जल के दो तत्त्व हैं-

  • धरातल पर परत के रूप में फैला हुआ प्रवाह।
  • रैखिक प्रवाह, जो घाटियों में नदियों, सरिताओं के रूप में बहता है।

प्रवाहित जल द्वारा निर्मित अधिकतर अपरदित स्थलरूप ढ़ाल प्रवणता के अनुरूप बहती हुई नदियों की आक्रामक युवावस्था से संबंधित हैं। तेज ढाल लगातार अपरदन के कारण मंद ढाल में परिवर्तित हो जाते हैं, जिससे निक्षेपण आरंभ होता है। तेज ढाल से बहती हुई सरिताएँ भी कुछ निक्षेपित भू-आकृतियाँ बनाती हैं, लेकिन ये नदियों के मध्यम तथा धीमे ढाल पर बने आकारों की अपेक्षा बहुत कम होते हैं। प्रवाहित जल का ढाल जितना मंद होगा उतना ही अधिक निक्षेपण होगा।

जब लगातार अपरदन के कारण नदी तल समतल हो जाए, तो अधोमुखी कटाव कम हो जाता है और तटों का पार्श्व अपरदन बढ़ जाता है और इसके फलस्वरूप पहाड़ियाँ और घाटियाँ समतल मैदानों में परिवर्तित हो जाती हैं। शुष्क क्षेत्रों में अधिकतर स्थलाकृतियों का निर्माण बृहत् क्षरण और प्रवाहित जल की चादर बाढ़ से होता है। मरुस्थलीय चट्टानें अत्यधिक वनस्पति-विहीन होने के कारण तथा दैनिक तापांतर के कारण यांत्रिक एवं रासायनिक अपक्षय से अधिक प्रवाहित होती हैं। मरुस्थलीय भागों में • भू-आकृतियों का निर्माण सिर्फ पवनों से नहीं बल्कि प्रवाहित जल से भी होता है।

प्रश्न 2.
चूना चट्टाने आई व शुष्क जलवायु में भिन्न व्यवहार करती हैं क्यों? चूना प्रदेशों में प्रमुख व मुख्य भू-आकृतिक प्रक्रिया कौन सी हैं और इसके क्या परिणाम हैं?
उत्तर:
चूना-पत्थर एक घुलनशील पदार्थ है, इसलिए चूना-पत्थर आर्द्र जलवायु में कई स्थलाकृतियों का निर्माण करता है जबकि शुष्क प्रदेशों में इसका कार्य आर्द्र प्रदेशों की अपेक्षा कम होता है। चूना पत्थर एक घुलनशील पदार्थ होने के कारण चट्टान पर इसके रासायनिक अपक्षय का प्रभाव सर्वाधिक होता है, लेकिन शुष्क जलवायु वाले प्रदेशों में यह अपक्षय के लिए अवरोधक होता है। लाइमस्टोन की रचना में समानता होती है तथा परिवर्तन के कारण चट्टान में फैलाव तथा संकुचन नहीं होता जिस कारण चट्टान का बड़े-बड़े टुकड़ों में विघटन अधिक मात्रा में नहीं हो पाता। डोलोमाइट चट्टानों के क्षेत्र में भौमजल द्वारा घुलन क्रिया और उसकी निक्षेपण प्रक्रिया से बने ऐसे स्थलरूपों को कार्ट स्थलाकृति का नाम दिया गया है।

अपरदनात्मक तथा निक्षेपणात्मक दोनों प्रकार के स्थलरूप कार्ट स्थलाकृतियों की विशेषताएँ हैं। अपरदित स्थलरूप घोलरंध्र, कुंड, लेपीज और चूना पत्थर चबूतरे हैं। चूनायुक्त चट्टानों के अधिकतर भाग गर्तों व खाइयों के हवाले हो जाते हैं और पूरे क्षेत्र में अत्यधिक अनियमित, पतले व नुकीले कटक आदि रह जाते हैं, जिन्हें लेपीज कहते है। कभी-कभी लेपिज के विस्तृत क्षेत्र समतल चुनायुक्त चूबतरों में परिवर्तित हो जाते हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

प्रश्न 3.
हिमनद ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों को निम्न पहाड़ियों व मैदानों में कैसे परिवर्तित करते हैं या किस प्रक्रिया से यह कार्य सम्पन्न होता है बताएँ?
उत्तर:
महाद्वीपीय हिमनद या गिरिपद हिमनद वे हिमनद हैं, जो वृहत् समतल क्षेत्र पर हिम परत के रूप में फैले हों तथा पर्वतीय या घाटी हिमनद वे हिमनद हैं, जो पर्वतीय ढालों में बहते हैं। प्रवाहित जल के विपरीत हिमनद प्रवाह बहुत धीमा होता है। हिमनद प्रतिदिन कुछ सेंटीमीटर या इससे कम से लेकर कुछ मीटर तक प्रवाहित हो सकते हैं। हिमनद मुख्यतः गुरुत्व बल के कारण गतिमान होते हैं। हिमनदों से प्रबल अपरदन होता है जिसका कारण इसके अपने भार से उत्पन्न घर्षण है। हिमनद द्वारा कर्षित चट्टानी पदार्थ, इसके तल में ही इसके साथ घसीटे जाते हैं या घाटी के किनारों पर अपघर्षण व घर्षण द्वारा अत्यधिक अपरदन करते हैं। हिमनद अपक्षय-रहित चट्टानों का भी प्रभावशाली अपरदन करते हैं जिससे ऊँचे पर्वत छोटी पहाड़ियों व मैदानों में परिवर्तित हो जाते हैं।

हिमनद के लगातार संचलित होने से हिमनद मलबा हटता है, विभाजक नीचे हो जाता है और ढाल इतने निम्न हो जाते हैं कि हिमनद की संचलन शक्ति समाप्त हो जाती है तथा निम्न पहाड़ियों व अन्य निक्षेपित स्थलरूपों वाला एक हिमानी धौत रह जाता है।

भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास HBSE 11th Class Geography Notes

→ लोएस (Loess)-पवन द्वारा उड़ाकर जमा किए गए धूल के पीले या स्लेटी रंग के निक्षेप।

→ भू-आकृति (Land Forms)-छोटे-से मध्यम आकार के भूखण्ड को भू-आकृति कहा जाता है।

→ हिमनदी/हिमानी (Glacier) कर्णहिम (Neve) के पुनर्पटन (Recrystallisation) से बनी हिम की विशाल संहतराशि जो धरातल पर गुरुत्वाकर्षण के प्रभावाधीन बहती है, हिमनदी या हिमानी कहलाती है।

→ जल-प्रपात (Water Falls)-चट्टानी कगार के ऊपरी भाग से नदी का सीधे नीचे गिरना जल-प्रपात कहलाता है।

→ नदी तंत्र (River System) मुख्य नदी और उसकी सहायक नदियों को मिलाकर बना एक तंत्र।

→ भूगु (Cliff)-एकदम खड़े समुद्री तट को भृगु कहा जाता है।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. निम्नलिखित में से कौन-सा ग्रेडेशनल प्रक्रिया का उदाहरण है?
(A) अपरदन
(B) निक्षेप
(C) ज्वालामुखीयता
(D) संतुलन
उत्तर:
(A) अपरदन

2. जलयोजन प्रक्रिया निम्नलिखित में से किसे प्रभावित करती है?
(A) क्ले (चीका मिट्टी)
(B) लवण
(C) क्वार्टज़
(D) ग्रेनाइट
उत्तर:
(A) क्ले (चीका मिट्टी)

3. मलबा अवधाव को किस श्रेणी में सम्मिलित किया जा सकता है?
(A) भू-स्ख लन
(B) मंद संचलन
(C) द्रुत संचलन
(D) अवतलन
उत्तर:
(C) द्रुत संचलन

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

4. अधिवद्धि अथवा तलोच्चयन की प्रक्रिया में निम्नलिखित में से कौन-सा कार्य शामिल नहीं होता?
(A) अपरदन
(B) अपक्षय
(C) अपरदित पदार्थों का परिवहन
(D) निक्षेपण
उत्तर:
(B) अपक्षय

5. चट्टानों का पिंड विच्छेदन किन प्रदेशों में होता है?
(A) आर्द्र प्रदेशों में
(B) हिमाच्छादित प्रदेशों में
(C) ठंडे मरुस्थलों में
(D) शुष्क एवं उष्ण मरुस्थलों में
उत्तर:
(D) शुष्क एवं उष्ण मरुस्थलों में

6. चट्टानों के अपशल्कन के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा कारक प्रमुख रूप से उत्तरदायी है?
(A) चट्टानों का परतों में होना
(B) हिमांक से नीचे तापमान
(C) अत्यधिक उच्च ताप
(D) ताप-विभेदन
उत्तर:
(D) ताप-विभेदन

7. चट्टानों का अपने ही स्थान पर टूटकर या क्षयित होकर पड़े रहने को कहा जाता है-
(A) अपक्षय
(B) अपरदन
(C) अनाच्छादन
(D) अनावृतिकरण
उत्तर:
(A) अपक्षय

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

8. लौह-युक्त चट्टानों के भुरभुरी होकर गलने को कहा जाता है-
(A) कार्बोनेटीकरण
(B) ऑक्सीकरण
(C) जलयोजन
(D) वियोजन
उत्तर:
(B) ऑक्सीकरण

9. ग्रेनाइट चट्टानों में होने वाली अपशल्कन क्रिया के पीछे किस कारक का योगदान होता है?
(A) ऑक्सीकरण
(B) कार्बोनेटीकरण
(C) जलयोजन
(D) विलयन
उत्तर:
(C) जलयोजन

10. निम्नलिखित में से कौन-सा एक कारक बृहत क्षरण को प्रभावित नहीं करता?
(A) गुरुत्वाकर्षण
(B) चट्टानों का प्रकार
(C) विवर्तन
(D) जलवायु
उत्तर:
(B) चट्टानों का प्रकार

11. बृहत क्षरण का निम्नलिखित में से कौन-सा प्रकार मंद संचलन का उदाहरण नहीं है?
(A) मृदा विसर्पण
(B) मृदा प्रवाह
(C) मृदा सर्पण
(D) शैल विसर्पण
उत्तर:
(B) मृदा प्रवाह

12. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन भूस्खलन को परिभाषित करता है?
(A) विखंडित शैल पदार्थ का गुरुत्वाकर्षण के प्रभावाधीन ढाल के अनुसार नीचे सरकना।
(B) स्थायी हिम के ऊपर जल से लबालब मलबे का ढाल के अनुरूप खिसकना
(C) चट्टानी भागों का बड़े पैमाने पर तीव्र गति से सर्पण
(D) वर्षा के जल से सराबोर ऊपर की मिट्टी के बहुत बड़े क्षेत्र का स्थानांतरित होना
उत्तर:
(C) चट्टानी भागों का बड़े पैमाने पर तीव्र गति से सर्पण

13. वक्राकार तल पर घूर्णी गति के फलस्वरूप ढाल के सहारे चट्टान का रुक-रुक कर स्खलन होना कहलाता है-
(A) भूमि सर्पण
(B) मलबा स्खलन
(C) शैल पात
(D) अवसर्पण
उत्तर:
(D) अवसर्पण

14. मृदा परिच्छेदिका का वह कौन-सा संस्तर है जिसके ऊपरी भाग में ह्यूमस तथा निचले भाग में खनिज व जैव पदार्थों की अधिकता होती है?
(A) क संस्तर
(B) ख संस्तर
(C) ग संस्तर
(D) घ संस्तर
उत्तर:
(A) क संस्तर

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
चट्टानों का पिंड विच्छेदन किन प्रदेशों में होता है?
उत्तर:
शुष्क एवं उष्ण मरुस्थलों में।

प्रश्न 2.
चट्टानों का अपने ही स्थान पर टूटकर या क्षयित होकर पड़े रहने को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
अपक्षय।

प्रश्न 3.
लौह-युक्त चट्टानों के भुरभुरी होकर गलने को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
ऑक्सीकरण।

प्रश्न 4.
तल सन्तुलन लाने वाले दो कारकों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. नदी
  2. हिमनदी।

प्रश्न 5.
रासायनिक अपक्षय किन दो क्रियाओं द्वारा होता है?
उत्तर:

  1. ऑक्सीकरण
  2. कार्बोनेटीकरण।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

प्रश्न 6.
सूर्यातप अपक्षय में प्याज के छिलके की तरह चट्टानी परतों के उतरने को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
अपशल्कन।

प्रश्न 7.
तुषार अथवा पाला द्वारा चट्टानें किस प्रकार की जलवायु में टूटती हैं?
उत्तर:
शीत जलवायु में।

प्रश्न 8.
कार्बनीकरण का प्रमाण किस प्रकार की चट्टानों पर पड़ता है?
उत्तर:
चूना-युक्त चट्टानों पर।

प्रश्न 9.
लवण क्रिस्टलन अपक्षय किन क्षेत्रों में होता है?
उत्तर:
मरुस्थलीय और तटीय क्षेत्रों में।

प्रश्न 10.
बृहत् संचलन का अन्य नाम क्या है?
उत्तर:
अनुढाल संचलन।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बहिर्जात प्रक्रियाएँ क्या होती हैं?
उत्तर:
वे प्रक्रियाएँ जो धरातल के ऊपर उठे भागों को काट-छाँटकर एवं घिसकर उन्हें समतल बनाती हैं, बहिर्जात प्रक्रियाएँ कहलाती हैं।

प्रश्न 2.
पिण्ड-विच्छेदन क्यों होता है?
उत्तर:
पिण्ड-विच्छेदन लम्बे समय तक तापमान के घटने-बढ़ने से चट्टानों के बार-बार फैलने-सिकुड़ने के कारण चट्टानों के तल पर पैदा हुए तनाव के कारण होता है।

प्रश्न 3.
बृहत् क्षरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से स्थलमण्डल के आवरण की ऊपरी असंगठित परत का ढाल के अनुरूप नीचे खिसकना बृहत् . क्षरण कहलाता है।

प्रश्न 4.
अपक्षय से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मौसम के स्थैतिक तत्त्वों के प्रभाव तथा प्राणियों के द्वारा चट्टानों के अपने ही स्थान पर टूटने-फूटने की क्रिया अपक्षय कहलाती है।

प्रश्न 5.
अपघटन (Decomposition) का अर्थ बताइए।
उत्तर:
रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप चट्टानों का कमज़ोर पड़कर टूट जाना अपघटन कहलाता है।

प्रश्न 6.
विघटन (Disintegration) से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भौतिक अपक्षय और अपरदन के फलस्वरूप चट्टानों का छोटे-छोटे टुकड़ों, खण्डों या कणों में टूटकर बिखरना विघटन कहलाता है।

प्रश्न 7.
मृदा विसर्पण के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  1. शीत जलवायु क्षेत्रों में तुषार तथा हिम का पिघलना।
  2. भूकम्पों द्वारा शैल आवरण में कम्पन का पैदा करना।

प्रश्न 8.
प्रवणता सन्तुलन की प्रक्रियाओं से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भू-तल पर कार्यरत वे सभी प्रक्रियाएँ अथवा शक्तियाँ जो धरातल की ऊँची-नीची भूमि को एक सामान्य तल पर लाने की कोशिश करती हैं, प्रवणता सन्तुलन की प्रक्रियाएँ कहलाती हैं।

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प्रश्न 9.
रासायनिक अपक्षय क्या है?
उत्तर:
भौतिक बलों द्वारा टूटने की बजाय जब रासायनिक प्रतिक्रिया से चट्टानों के अवयव ढीले पड़ जाएँ तो इस प्रकार चट्टानों में हुए अपघटन को रासायनिक अपक्षय कहते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भू-पटल पर परिवर्तन लाने वाली बहिर्जात प्रक्रियाओं से आपका क्या तात्पर्य है? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
अंतर्जात प्रक्रियाएँ पर्वत, पठार, घाटी और मैदान जैसे भू-आकारों का निर्माण कर अनेक विषमताओं को उत्पन्न करती हैं। इनके विपरीत भू-तल पर कुछ ताकतें ऐसी भी होती हैं, जो इन विषमताओं को निरन्तर दूर करने में लगी रहती हैं, इन्हें बहिर्जात प्रक्रियाएँ कहते हैं। बहिर्जात प्रक्रियाएँ वे प्रक्रियाएँ हैं जो धरातल के ऊपर उठे भागों को काट-छाँटकर एवं घिसकर उन्हें समतल बनाने का कार्य करती हैं।

प्रश्न 2.
प्रवणता सन्तुलन अथवा तल सन्तुलन की व्याख्या करते हुए यह स्पष्ट कीजिए कि निम्नीकरण और अधिवृद्धि का तल सन्तुलन से क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
धरातल के ऊपर उठे भागों के कट-छटकर समतल हो जाने की प्रक्रिया को प्रवणता सन्तुलन कहते हैं। वास्तव में, सन्तुलित धरातल एक ऐसी अवस्था है जिसमें बहिर्जात प्रक्रियाएँ न तो तल को ऊपर उठा रही होती हैं और न ही उसे नीचे कर रही होती हैं। इसमें अपरदन और निक्षेप का हिसाब बराबर बना रहता है। प्रवणता सन्तुलन कभी भी स्थाई नहीं रह पाता, क्योंकि पृथ्वी की आन्तरिक शक्तियाँ कभी भी भू-तल को चैन से नहीं बैठने देतीं।

प्रवणता सन्तुलन निम्नलिखित दो प्रक्रियाओं के एक-साथ कार्यरत रहने से प्राप्त होता है-

  • निम्नीकरण अथवा तलावचन (Degradation)
  • अधिवृद्धि अथवा तल्लोचन (Aggradation)

बाहरी कारकों द्वारा धरातल के ऊँचे उठे हुए भागों को अपक्षय, अपरदन तथा परिवहन द्वारा नीचे करने की प्रक्रिया को निम्नीकरण कहते हैं। भूगोल में इस प्रक्रिया को अनाच्छादन भी कहा जाता है। निम्नीकरण की प्रक्रिया द्वारा ऊँचे भू-भागों से प्राप्त अपरदित पदार्थों का जब गर्मों व निचले प्रदेशों में निक्षेपण हो जाता है, तो इसे अधिवृद्धि कहते हैं।

प्रश्न 3.
बहिर्जनिक बल तथा अंतर्जनित बल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भ-पर्पटी सदैव परिवर्तित होती रहती है। ये सभी परिवर्तन कछ बलों के प्रभाव से होते हैं। भ-तल के ऊपर कार्य करने वाले बलों को बहिर्जनिक बल तथा पृथ्वी के आंतरिक भाग में कार्य करने वाले बलों को अंतर्जनित बल कहते हैं। बहिर्जनिक बलों के प्रभाव से भू-आकृतियों का निम्नीकरण/तलावचन तथा बेसिन/निम्न क्षेत्रों का भराव होता है। अंतर्जनित बलों से भू-तल के उच्चावच में विषमताएँ आती हैं अर्थात् अंतर्जनित बल पर्वत, पठार, मैदान और घाटी जैसे आकारों की रचना कर अनेक विषमताओं को उत्पन्न करते हैं। बहिर्जनिक बल इन विषमताओं को दूर करने में लगा रहता है।

प्रश्न 4.
भौतिक अपक्षय के विभिन्न कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
चट्टानों का विघटन या भौतिक अपक्षय निम्नलिखित कारकों के माध्यम से होता है-
1. सूर्यातप (Insolation)-शुष्क एवं उष्ण मरुस्थली प्रदेशों में दिन के भीषण ताप से चट्टानें फैलती हैं और रात को तापमान के गिर जाने से चट्टानें सिकुड़ती है। बार-बार चट्टानों के इस प्रकार फैलने और सिकुड़ने से चट्टानों में तनाव पैदा होता है और वे टूट जाती हैं। चट्टानों के टूटने के इस ढंग को पिण्ड विच्छेदन (Block Disintegration) कहते हैं।

अनेक प्रकार के खनिजों और रंगों से मिलकर बनी चट्टानों के खनिज भिन्न-भिन्न दर से फैलते और सिकुड़ते हैं। ऐसी चट्टानें खण्डों में न टूटकर छोटे-छोटे कणों और गुटिकाओं के रूप में चूरा-चूरा होती हैं। इस चूर्ण को शैल मलबा कहा जाता है। चट्टानों के टूटने की यह विधि कणिकामय विखण्डन कहलाती है। जब प्रचण्ड ताप के कारण चट्टानों की ऊपरी पपड़ी प्याज के छिलकों के रूप में उतरने लगती है तो इस विघटन को पल्लवीकरण या अपशल्कन कहा जाता है।

2. पाला (Frost)-ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में तथा उच्च अक्षांशों वाले प्रदेशों में दिन के समय चट्टानी दरारों में वर्षा या हिम से पिघला जल भर जाता है। रात्रि को तापमान के हिमांक से नीचे गिरने पर यह जल दरारों में ही जम जाता है। जमने पर पानी का आयतन (Volume) बढ़ता है। बार-बार जल के जमने और पिघलने (Altermate Freeze and Thaw) की क्रिया से चट्टानों का विखण्डन होता है, जिसे तुषारी अपक्षय (Frost Shattering) कहा जाता है।

3. दाब-मुक्ति (Pressure Release) कई आग्नेय व रूपान्तरित चट्टानें भारी दबाव व ताप की दशाओं में बनती हैं, जिससे उनके कण भी संकुचित और दबे हुए रहते हैं। समय के साथ ऊपर की चट्टानों का जब अपरदन हो जाता है तो युगों से नीचे दबी चट्टाने दाब-मुक्ति के कारण थोड़ा-बहुत फैलती हैं। इससे चट्टानों में दरारें पड़ती हैं, जिससे उनका विघटन और अपशल्कन होता है। यह क्रिया सामान्य रूप से ग्रेनाइट और संगमरमर जैसी चट्टानों में अधिक पाई जाती है।

4. लवण क्रिस्टलन अपक्षय (Salt Crystallisation Weathering) चट्टानों के रन्ध्रों में जमा हुए खारे पानी के वाष्पीकरण से नमक के रवे (Crystals) बन जाते हैं। जैसे-जैसे इन रवों का आकार बढ़ता है, वैसे ही चट्टानों पर दबाव भी बढ़ता है। इससे चट्टानें टूट जाती हैं। यह अपक्षय मरुस्थलों में बलुआ पत्थर में खारे पानी के रिसने से अधिक होता है। समुद्र तट की चट्टानों में भी इसी प्रकार का अपक्षय होता है।

प्रश्न 5.
रासायनिक अपक्षय के कारकों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भौतिक बलों द्वारा टूटने की बजाय जब रासायनिक प्रतिक्रिया से चट्टानों के अवयव ढीले पड़ जाएँ तो इस प्रकार चट्टानों में हुए अपघटन को रासायनिक अपक्षय कहते हैं। रासायनिक अपक्षय के कारक निम्नलिखित हैं
1. ऑक्सीकरण (Oxidation) -जल तथा आई वाय में मिली हई ऑक्सीजन का. जब लौहयक्त चट्टानों से संयोजन होता है. तो चट्टान में स्थित लौह अंश ऑक्साइडों में बदल जाते हैं अर्थात् लोहे में जंग (Rust) लग जाता है। इससे चट्टानों का रंग लाल, पीला या बादामी हो जाता है। इस क्रिया को ऑक्सीकरण कहते हैं। ऑक्सीकरण में लौहयुक्त चट्टानें भुरभुरी होकर गलने लगती हैं।

2. कार्बोनेटीकरण (Carbonation)-जल में घुली कार्बन-डाइऑक्साइड गैस की मात्रा अपने सम्पर्क में आने वाली चट्टानों के खनिजों को कार्बोनेट में बदल देती है, इसे कार्बोनेटीकरण कहते हैं। कार्बन-युक्त जल एक हल्का अम्ल (Carbonic Acid) होता है, जो चूनायुक्त चट्टानों को तेज़ी से घुला देता है। सभी चूना-युक्त प्रदेशों में भूमिगत जल कार्बोनेटीकरण के द्वारा अपक्षय का प्रमुख कारक बनता है।

3. जलयोजन (Hydration) चट्टानों में कुछ खनिज ऐसे भी होते हैं, जो हाइड्रोजन युक्त जल को रासायनिक विधि द्वारा अवशोषित (Absorb) कर लेते हैं, जिससे उनका आयतन लगभग दुगुना हो जाता है। खनिजों का बढ़ा हुआ आयतन चट्टानों के कणों और खनिजों में तनाव, खिंचाव तथा दबाव पैदा करता है। इसके परिणामस्वरूप चट्टानें फूलकर यान्त्रिक विधि द्वारा मूल चट्टान से उखड़ जाती हैं।

4. विलयन (Solution) वर्षा के जल के सम्पर्क में आने पर सभी चट्टानें भिन्न-भिन्न दर से घुलती हैं, लेकिन कुछ खनिज जल में शीघ्र ही घुल जाते हैं, जैसे सेंधा नमक (Rock Salt) और चूना-पत्थर आदि। चट्टानों का यह रासायनिक अपक्षय विलयन कहलाता है।

प्रश्न 6.
बृहत् क्षरण (बृहत् संचलन) की परिभाषा देते हुए मृदा विसर्पण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
परिभाषा (Definition)-स्थलमण्डल के आवरण की ऊपरी असंगठित परत (Regolith) तथा चट्टानी मलबे की विशाल मात्रा का गुरुत्वाकर्षण के कारण ढाल से नीचे की ओर फिसलना या सरकना बृहत् क्षरण कहलाता है। इसे बृहत् संचलन (Mass Movement) तथा अनुढाल संचलन (Downslope Movement) भी कहते हैं।

मृदा विसर्पण (Soil Creep)-शीतोष्ण और उष्ण कटिबन्धीय जलवायु के क्षेत्रों में मन्द ढालों पर भी गुरुत्वाकर्षण के कारण चट्टानों का ऊपरी आवरण नीचे की ओर फिसलने लगता है। वर्षा के जल से सराबोर ऊपर की मिट्टी का बहुत बड़ा क्षेत्र घास के मैट व वृक्षों समेत इस प्रकार स्थानान्तरित होने लगता है कि उस जमीन पर खड़े आदमी को एहसास भी नहीं होता। इस प्रकार स्थानान्तरित पदार्थ ढाल के आधार तल पर एकत्रित होने लगता है। मृदा विसर्पण को हम मृदा परिच्छेदिका व प्रतिरोधी चट्टानों के बड़े खण्डों के अनावरण तथा वृक्षों की जड़ों के व्यवहार, बाड़ (Fence) तथा टेलीफोन के झुके हुए खम्बों द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
भू-स्खलन क्या है? भू-स्खलन कितने प्रकार का होता है? किसी एक प्रकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. भू-स्खलन (Land Slide)-चट्टानी भागों का बड़े पैमाने पर तीव्र गति से सर्पण भू-स्खलन कहलाता है। इसमें जल या हिम की स्नेहक के रूप में जरूरत नहीं पड़ती। भू-स्खलन में भारी मात्रा में मलबे के नीचे आने से जान-माल की हानि होती है।

2. शैल-स्खलन (Rock Slide)-भू-स्खलन के सभी प्रकारों में शैल-स्खलन का सबसे अधिक महत्त्व है। पहाड़ों से बड़े-बड़े शिलाखण्ड अपनी जगह से खिसककर भ्रंश तल (Fault Plane) या संस्तरण तल (Bedding Plane) के सहारे लुढ़कते-फिसलते नीचे आते हैं।

प्रश्न 8.
अपक्षय तथा अपरदन में अन्तर बताइए।
उत्तर:
अपक्षय तथा अपरदन में निम्नलिखित अन्तर हैं-

अपक्षय (Weathering)अपरदन (Erosion)
1. अपक्षय की प्रक्रिया स्थैतिक साधनों द्वारा सम्पन्न होती है।1. अपरदन की प्रक्रिया धरातल पर कार्यरत गतिशील साधनों द्वारा सम्पन्न होती है।
2. अपक्षय में चट्टानें टूटकर अपने मूल स्थान या उसके आस-पास पड़ी रहती हैं।2. अपरदन में अपक्षयित पदार्थों का अपने मूल स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण होता है।
3. अपक्षय में चट्टानों की केवल टूट-फूट होती है।3. अपरदन में चट्टानों की टूट-फूट व स्थानान्तरण दोनों होते हैं।
4. सूर्यातप, पाला, दाबमुक्ति, ऑक्सीकरण, कार्बोनेटीकरण, जलयोजन, विलयन, जीव, वनस्पति तथा मनुष्य अपक्षय के प्रमुख कारक हैं।4. अपरदन के मुख्य कारक हिमनदी, नदी, पवन, समुद्री तरंगें इत्यादि हैं।
5. अपक्षय मृदा-निर्माण का आधार है।5. अपरदन विभिन्न स्थलाकृतियों के विकास के लिए उत्तरदायी है।

प्रश्न 9.
भौतिक अपक्षय तथा रासायनिक अपक्षय में अन्तर बताइए।
उत्तर:
भौतिक अपक्षय तथा रासायनिक अपक्षय में निम्नलिखित अन्तर हैं-

भौतिक अपक्षय (Physical Weathering)रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering)
1. भौतिक अपक्षय में चट्टानें भौतिक बलों के प्रभाव से टूटती हैं।1. इसमें चट्टानें रासायनिक अपघटन द्वारा सड़-गलकर चूर्ण बनती रहती हैं।
2. भौतिक अपक्षय में विधटित चट्टानों के खनिज मूल चट्टानों जैसे ही रहते हैं।2. रासायनिक अपक्षय में अपघटित चट्टानों के रासायनिक तत्त्वों में परिवर्तन हो जाता है।
3. चट्टानों का भौतिक अपक्षय शीत एवं शुष्क प्रदेशों में अधिक होता है।3. रासायनिक अपक्षय उष्ण एवं आर्द्र प्रदेशों में अधिक कारगर होता है।
4. भौतिक अपक्षय के मुख्य कारक ताप, पाला तथा दाब-मुक्ति हैं।4. रासायनिक अपक्षय के मुख्य कारक ऑक्सीकरण, कार्बोनेटीकरण, जलयोजन तथा विलयन हैं।
5. बलकृत अपक्षय में चट्टानें पर्याप्त गहराई तक प्रभावित होती हैं।5. रासायनिक अपक्षय में चट्टानों का केवल तल ही प्रभावित होता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

प्रश्न 10.
ढाल मलबा तथा पाद मलबा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पर्वतीय ढलानों पर छोटे-बड़े अनेक आकार के शैल खण्डों के ढेर जमा हो जाते हैं, जिन्हें ढाल मलबा अथवा पाद मलबा कहा जाता है। ये मलबे के कोणीय ढेर होते हैं जिनका. आकार ढाल जितना होता है। इन ढेरों की ढाल क्षैतिज आधार से 350 से 37° तक रहती है। इन भू-आकृतियों की रचना तुषार अपक्षय (Frost Weathering) वाले इलाके में होती है। । कुछ विद्वान् ढाल मलबे को पाद मलबे का समानार्थक मानते हैं, जबकि अन्य कुछ इन दोनों में फर्क मानते हैं। उनके अनुसार, ढाल मलबा (स्क्री) वह पदार्थ होता है जो पर्वतीय ढाल पर बिखरा हुआ पड़ा होता है, जबकि पाद मलबा (टैलस) भृगु तल पर निश्चित रूप से एकत्र तलछट को कहते हैं। भृगुओं (Cliffs) के ऊपरी सिरों पर अपक्षय द्वारा कीपाकार संकरे खड्डों (Ravines) का निर्माण हो जाता है। अपक्षयित पदार्थ इन संकरे खड्डों में जमा होता-होता भृगु के तल से ऊपर की ओर बढ़ने लगता है, इसे टैलस शंकु कहते हैं। इन टैलस शंकुओं में बड़े आकार की भारी शैलें आधार तल पर पाई जाती हैं, जबकि अपेक्षाकृत हल्के कण ऊपर के स्तरों में पाए जाते हैं।

प्रश्न 11.
जैविक अपक्षय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
ऐसा अपक्षय जिसमें चट्टानों की टूट-फूट के लिए मुख्य रूप से जीव-जन्तु, मनुष्य और वनस्पति उत्तरदायी हों, ‘जैविक अपक्षय’ कहलाता है। कीड़े-मकौड़े और जन्तुओं की सैकड़ों प्रजातियाँ ऐसी हैं जो चट्टानों में बिल बनाकर रहती हैं। बिल बनाने से असंगठित मलबा बाहर आता है और चट्टानें कमज़ोर होकर टूटती हैं। वनस्पति की जड़ें चट्टानों की दरारों में प्रवेश करके उन्हें चौड़ा करती हैं। जड़ों की माध्यम से हवा और पानी का भी चट्टानों में घुसने का राह बन जाता है। इसमें रासायनिक अपक्षय को बल मिलता है। मनुष्य भी कुएँ, झील, नहरें, बाँध, भटे, सुरंगें, तालाब, खाने, नगर, कारखाने व सड़के इत्यादि बनाकर चट्टानों को तोड़ने का काम करता रहता है। ये सभी जैविक अपक्षय के रूप हैं।

प्रश्न 12.
मृदा विसर्पण के कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर:
मृदा विसर्पण निम्नलिखित कारणों से होता है-

  1. शीत जलवायु क्षेत्रों में तुषार तथा हिम का पिघलना
  2. हिम के कणों के सकार से भार के कारण चट्टानी टुकड़ों का ढाल के नीचे की ओर धकेला जाना
  3. शैलों का एकान्तर क्रम से गरम व ठण्डा होना
  4. मृदा का जल में भीगना व सूखना
  5. भूकम्पों द्वारा शैल आवरण में कम्पन का पैदा होना
  6. बिलकारी जीवों द्वारा भूमि का अपक्षय तथा मनुष्य द्वारा ढाल की ‘रोक’ (Barrier) को हटाना इत्यादि।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अपक्षय की परिभाषा दीजिए। यह कितने प्रकार का होता है? किसी एक का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अपक्षय की परिभाषा-मौसम के स्थैतिक तत्त्वों के प्रभाव तथा प्राणियों के कार्यों द्वारा चट्टानों के अपने स्थान पर टूटने-फूटने की क्रिया को अपक्षय कहा जाता है। चट्टानों में टूट-फूट विघटन (Disintegration) तथा अपघटन (Decomposition) क्रियाओं से होती है। विघटन में चट्टानें भौतिक बलों द्वारा चटक कर टूटती हैं, जबकि अपघटन में चट्टानें रासायनिक क्रियाओं द्वारा सड़-गलकर चूर्ण बनती रहती हैं। स्पार्क्स के शब्दों में, “प्राकृतिक कारकों द्वारा चट्टानों के अपने ही स्थान पर भौतिक और रासायनिक क्रियाओं द्वारा होने वाले विघटन और अपघटन को अपक्षय कहते हैं।”

अपक्षय के प्रकार- मौसमी तत्त्वों के अतिरिक्त जीव-जन्तु, वनस्पति और मनुष्य भी चट्टानों की टूट-फूट के लिए उत्तरदायी होते हैं, ऐसा अपक्षय जैविक अपक्षय कहलाता है। जैविक अपक्षय में भी यान्त्रिक और रासायनिक दोनों प्रकार के अपक्षय शामिल होते हैं। इस प्रकार अपक्षय तीन प्रकार के होते हैं

  • भौतिक अथवा यान्त्रिक अपक्षय (Physical or Mechanical Weathering)
  • रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering)
  • जैविक अपक्षय (Biological Weathering)।

यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि भौतिक, रासायनिक तथा जैविक तीनों प्रकार के.अपक्षय कम या अधिक मात्रा में एक साथ घटित हो रहे होते हैं। अपक्षय में उत्पन्न चट्टान चूर्ण का बड़े पैमाने पर परिवहन नहीं होता। यह तल सन्तुलन के कारकों के रंगमंच जरूर तैयार कर देता है।

भौतिक अथवा यान्त्रिक अपक्षय – [Physical or Mechanical Weathering]:
चट्टानों का विघटन निम्नलिखित कारकों के माध्यम से होता है-
(1) सूर्यातप (Insolation)-शुष्क एवं उष्ण मरुस्थली प्रदेशों में जहाँ दैनिक तापान्तर अधिक होता है, सूर्यातप चट्टानों के विघटन का सबसे कारगर साधन सिद्ध होता है। ऐसे प्रदेशों में दिन के भीषण ताप से चट्टानें फैलती हैं और रात को तापमान के असाधारण रूप से गिर जाने से चट्टानें सिकुड़ती हैं। चट्टानों के इस प्रकार लम्बे समय तक बार-बार फैलते और सिकुड़ते रहने से उनके तल पर तनाव उत्पन्न हो जाता है। तनाव चट्टानों में दरारें पैदा करता है जिसके फलस्वरूप चट्टानें बड़े-बड़े टुकड़ों में विघटित होने लगती हैं। चट्टानों की इस प्रकार टूट पिंड विच्छेदन (Block Disintegration) कहलाती है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 1
कई चट्टानें जो अनेक प्रकार के खनिजों और रंगों से मिलकर बनी होती हैं, उनके खनिज ताप के प्रभाव से भिन्न-भिन्न दरों से फैलते और सिकुड़ते हैं, ऐसी चट्टानें खण्डों में न टूटकर छोटे-छोटे कणों और गुटिकाओं के रूप में चूरा-चूरा होती रहती हैं। इस चूर्ण को शैल मलबा (Scree or Talus) कहा जाता है। चट्टानों के टूटने की यह विधि कणिकामय विखण्डन (Granular Disintegration) कहलाती है। मरुस्थलों में सूर्यास्त के बाद चट्टानों के इस प्रकार टूटने से बन्दूक से गोली छूटने जैसी आवाजें सुनाई पड़ती हैं।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 2
कुछ चट्टानें ताप की उत्तम चालक नहीं होतीं। सूर्य के प्रचण्ड ताप द्वारा उनकी ऊपरी पपड़ी तो गरम हो जाती है, जबकि पपड़ी के नीचे का भीतरी भाग ठण्डा ही रहता है। यह ताप विभेदन चट्टानों की समकंकता (Cohesion) भंग कर देता है, जिससे चट्टानों की ऊपरी पपड़ी मूल चट्टानों से ऐसे अलग हो जाती है; जैसे अपशल्कन या पल्लवीकरण प्याज़ का छिलका। चट्टान से अलग होने पर छिलकों जैसी ये परतें टूटकर चूर-चूर हो जाती हैं। चट्टानों के टूटने का यह रूप पल्लवीकरण या अपशल्कन (Exfoliation) कहलाता है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 2a

(2) पाला (Frost)-ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में तथा उच्च अक्षांशों वाले प्रदेशों में दिन के समय चट्टानी दरारों में वर्षा या हिम से पिघला जल भर जाता है। रात्रि को तापमान के हिमांक से नीचे गिरने पर यह जल दरारों में ही जम जाता है। जमने पर पानी का आयतन (Volume) बढ़ता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, 9 घन सेंटीमीटर जल जमने के बाद 10 घन सेंटीमीटर जगह घेरता है, जिससे चट्टानों पर प्रति वर्ग सेंटीमीटर 15 किलोग्राम का प्रतिबल पड़ता है। बार-बार जल के जमने और पिघलने (Alternate Freeze and Thaw) की क्रिया से चट्टानों का विखण्डन होता है, जिसे तुषारी अपक्षय (Frost Shattering) कहा जाता है।

(3) दाब-मुक्ति (Pressure Release)कई आग्नेय व रूपान्तरित चट्टानें भारी दबाव व ताप की दशाओं में बनती हैं, जिससे उनके कण भी संकुचित और दबे हुए रहते हैं। समय के साथ ऊपर की चट्टानों का जब अपरदन हो जाता है तो युगों से नीचे दबी चट्टानें दाब-मुक्ति के कारण थोड़ा-बहुत फैलती हैं। इससे चट्टानों में दरारें पड़ती हैं, जिससे उनका विघटन और अपशल्कन होता है। यह क्रिया सामान्य रूप से ग्रेनाइट और संगमरमर जैसी चट्टानों में अधिक पाई जाती है।

(4) लवण क्रिस्टलन अपक्षय (Salt Crystallisation Weathering)-चट्टानों के रन्ध्रों में जमा हुए खारे पानी के वाष्पीकरण से नमक के रवे (Crystals) बन जाते हैं। जैसे-जैसे इन रवों का आकार बढ़ता है, वैसे ही चट्टानों पर दबाव भी बढ़ता है। इससे चट्टानें टूट जाती हैं। यह अपक्षय मरुस्थलों में बलुआ पत्थर में खारे पानी के रिसने से अधिक होता है। समुद्र तट की चट्टानों में भी इसी प्रकार का अपक्षय होता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

प्रश्न 2.
बृहत् क्षरण से आप क्या समझते हैं? मंद संचलन के अन्तर्गत होने वाले बृहत् क्षरण के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बृहत् क्षरण का अर्थ-स्थलमण्डल के आवरण की ऊपरी असंगठित परत (Regolith) तथा चट्टानी मलबे की विशाल मात्रा का गुरुत्वाकर्षण के कारण ढाल से नीचे की ओर फिसलना या सरकना बृहत् क्षरण कहलाता है। इसे बृहत् संचलन (Mass Movement) तथा अनुढाल संचलन (Downslope Movement) भी कहते हैं।

बृहत् क्षरण के प्रकार – बृहत् क्षरण की गति में बड़ी भारी भिन्नता पाई जाती है। यह गति एक वर्ष में कुछ मिलीमीटर (जो दिखाई भी न दे) से लेकर 100 कि०मी० प्रति घण्टा तक हो सकती है। गति के आधार पर बृहत क्षरण के विभिन्न रूपों को दो मोटे वर्गों में बाँटा जा सकता है-
मन्द संचलन (Slow Movement)-

  1. मृदा विसर्पण (Soil Creep)
  2. शैल विसर्पण (Rock Creep)
  3. ढाल मलबा व पाद मलबा (Scree or Talus)
  4. मृदा सर्पण (Solifluction)।

द्रुत संचलन (Rapid Movement)-

  1. मृदा प्रवाह (Soil Flow)
  2. भू-स्खलन (Land Slide)
    • शैल स्खलन (Rock Slide)
    • अवसर्पण (Slumping)
    • शैल पात (Rock Fall)
    • मलबा स्खलन (Debris Slide)
  3. भूमि सर्पण (Earth Slide)
  4. पंक प्रवाह (Mud Flow)।

1. मन्द संचलन (Slow Movement)-अदृश्य होने के बावजूद मन्द संचलन धरातल को तराशने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भू-गर्भवेताओं के अनुसार, लम्बे समय तक जारी रहने वाले मन्द संचलन विस्फोटक और द्रुत संचलन की अपेक्षा मलबे की अधिक मात्रा को लुढ़का ले जाते हैं।

(i) मृदा विसर्पण (Soil Creep)-शीतोष्ण और उष्ण कटिबन्धीय जलवायु के क्षेत्रों में मन्द ढालों पर भी गुरुत्वाकर्षण के कारण चट्टानों का ऊपरी आवरण नीचे की ओर फिसलने लगता है। वर्षा के जल से सराबोर ऊपर की मिट्टी का बहत बड़ा क्षेत्र घास के मैट व वृक्षों समेत इस प्रकार स्थानान्तरित होने लगता है कि उस जमीन पर खड़े आदमी को एहसास भी नहीं होता। इस प्रकार स्थानान्तरित पदार्थ ढाल के आधार तल पर एकत्रित होने लगता है। मृदा विसर्पण को मृदा परिच्छेदिका व प्रतिरोधी चट्टानों के बड़े खण्डों के अनावरण तथा वृक्षों की जड़ों के व्यवहार, बाड़ तथा टेलीफोन के झुके हुए खम्बों द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 3
मृदा विसर्पण के कारण (Causes of Soil Creep)-

  • शीत जलवायु वाले क्षेत्रों में तुषार (Frost) तथा हिम का पिघलना
  • हिम के कणों के सकार से भार के कारण चट्टानी टुकड़ों का ढाल के नीचे की ओर धकेला जाना
  • शैलों का एकान्तर क्रम से गरम व ठण्डा होना
  • मृदा का जल में भीगना व सूखना
  • भूकम्पों द्वारा शैल आवरण में कम्पन का पैदा होना

(2) शैल विसर्पण (Rock Creep)-वर्षा ऋतु में चट्टानों के ऊपर स्थित शैल चूर्ण और मिट्टी की कमज़ोर परत का आवरण हट जाने के बाद मौसम के कारक आधार शैल (Bed Rock) का विखण्डन करना आरम्भ कर देते है। विखण्डित शैल पदार्थ गुरुत्वाकर्षण के प्रभावाधीन ढाल के अनुसार नीचे की ओर सरकते है, जिसे शैल विसर्पण कहा जाता है।

(3) ढाल मलबा व पाद मलबा (Scree or Talus) पर्वतीय ढलानों पर छोटे-बड़े अनेक आकार के शैल खण्डों के ढेर जमा हो जाते हैं, जिन्हें ढाल मलबा अथवा पाद मलबा कहा जाता है। ये मलबे के कोणीय ढेर होते हैं जिनका आकार ढाल जितना होता है। इन ढेरों की ढाल क्षैतिज आधार से 35° से 37° तक रहती है। इन भू-आकृतियों की रचना तुषार अपक्षय (Frost Weathering) वाले इलाके में होती है।

कुछ विद्वान ढाल मलबे को पाद मलबे का समानार्थक मानते हैं, जबकि अन्य कुछ इन दोनों में फर्क मानते हैं। उनके अनुसार, ढाल मलबा (स्क्री) वह पदार्थ होता है जो पर्वतीय ढाल पर बिखरा हुआ पड़ा होता है, जबकि पाद मलबा (टैलस) भृगु तल पर निश्चित रूप से एकत्र तलछट को कहते हैं। भृगुओं (Cliffs) के ऊपरी सिरों पर अपक्षय द्वारा कीपाकार संकरे खड्डों (Ravines) का निर्माण हो जाता है।

अपक्षयित पदार्थ इन संकरे खड्डों में जमा होता-होता भृगु के तल से ऊपर की ओर बढ़ने लगता है, इसे टैलस शंकु कहते हैं। इन टैलस शंकुओं में बड़े आकार की भारी शैलें आधार तल पर पाई जाती हैं, जबकि अपेक्षाकृत हल्के कण ऊपर के स्तरों में पाए जाते हैं।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 4
(4) मृदा सर्पण (Solifluction)-Solifluction लातीनी भाषा के दो पदों ‘Solum Soil’ (मृदा) तथा ‘Fluere flow’ (बहना) से मिलकर बना है जिसका अर्थ जल से संतृप्त मिट्टी का ढाल के नीचे की ओर प्रवाह है। मृदा सर्पण ऊँचे अंक्षाशों तथा निम्न अंक्षाशों के उच्च पर्वतीय भागों में घटित होता है। आर्कटिक वृत के टुण्ड्रा प्रदेशों में स्थाई हिम (Permafrost) (जहाँ सारा वर्ष तापमान 0° सेल्सियस व उससे भी कम रहता है) के क्षेत्रों में ग्रीष्म ऋतु के आरम्भ में ऊपर की हिम पिघलने लगती है, जबकि नीचे की भूमि अभी हिम से जमी हुई (Frozen) होती है। स्थाई हिम पिघले हुए जल के अन्तःस्राव अर्थात् रिसाव में बाधा डालती है। परिणामस्वरूप पर्माफ्रॉस्ट के ऊपर जल से लबालब मलबा ढाल के अनुरूप खिसकने लगता है। मृदा सर्पण की गति इतनी मन्द होती है कि वह दिखाई ही नहीं देती। पर्वतीय ढालों पर मृदा सर्पण से सोपानों एवं वेदिकाओं का निर्माण होता है।

प्रश्न 3.
भू-स्खलन का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके विभिन्न प्रकारों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भू-स्खलन का अर्थ-चट्टानी भागों का बड़े पैमाने पर तीव्र गति से सर्पण भू-स्खलन कहलाता है। इसमें जल या हिम की स्नेहक के रूप में जरूरत नहीं पड़ती। भू-स्खलन में भारी मात्रा में मलबे के नीचे आने से जान-माल की हानि होती है।

भू-स्खलन के प्रकार भू-स्खलन चार प्रकार का होता है। इनकी संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकार है-
(1) शैल-स्खलन (Rock Slide)-भू-स्खलन के सभी प्रकारों में शैल-स्खलन का सबसे अधिक महत्त्व है। पहाड़ों से बड़े-बड़े शिलाखण्ड अपनी जगह से खिसककर भ्रंश तल (Fault Plane) या संस्तरण तल (Bedding Plane) के सहारे लुढ़कते-फिसलते नीचे आते हैं।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 5

(2) अवसर्पण (Slumping)-अवसर्पण की क्रिया वक्राकार तल पर घूर्णन गति (Rotating) के फलस्वरूप घटित होती है। इसमें चट्टान का स्खलन ढाल के सहारे रुक-रुक कर होता है और कम दूरी तक होता है। जिस ढाल पर चट्टान का अवसर्पण होता है उस पर सीढ़ीनुमा छोटी-छोटी वेदिकाएँ बन जाती हैं। भारत में अवसर्पण के उदाहरण, पश्चिमी तट पर चेन्नई और विशाखापट्टनम के बीच तथा पूर्वी तट पर केरल में कौनिक के निकट मिलते है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ 6

(3) शैल पात (Rock Fall)-शैल पात की क्रिया शैल स्खलन से मिलती-जुलती अवसर्पण है। अन्तर केवल यह है कि शैल पात में किसी खड़े ढाल वाले क्लिफ से विशाल शैल खण्ड अकेले ब्लॉक के रूप में गिरता है। गिरने वाले खण्ड का आकार एक गोलाश्म (Boulder) जितना छोटा भी हो सकता है और गाँव के आकार जितना विशाल भी। गिरने वाले खण्ड का आकार क्लिफ की भौमकीय रचना पर निर्भर करता है। गिरने के बाद वह विशाल खण्ड अनेक प्रकार के बड़े-बड़े और छोटे-छोटे टुकड़ों में बँट सकता है। हिमालय तथा आल्पस पर्वत क्षेत्रों में शैल पात की घटनाएँ प्रायः होती रहती है।

(4) मलबा स्खलन (Debris Slide) मलबा स्खलन वह शैल चूर्ण होता है जो अपने मूल स्थान से हट कर ढाल के नीचे की ओर खिसकता हुआ किसी अन्य स्थान पर दोबारा एकत्र हो जाता है। यदि मलबा समूह तीव्र ढाल पर नीचे की ओर तेजी से विसर्पण करता है तो इस क्रिया को मलबा स्खलन कहते हैं और यदि मलबे का समूह तीव्र गति के साथ ऊंचाई से नीचे की ओर गिरता है तो उसे मलबा पात (Debris Fall) कहते हैं। हिमालय की घाटियों में मलबा स्खलन और मलबा पात की अनेकों घटनाएँ देखने को मिलती हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

प्रश्न 4.
बृहत संचलन के प्रकार बताते हुए किसी एक का संक्षेप में वर्णन करें। द्रूत संचलन के प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बृहत संचलन मुख्यतः तीन प्रकार का होता है-

  • मंद संचलन (Slow Movement)
  • दूत संचलन (Rapid Movement)
  • भू-स्खलन (Land Slide)

गुरुत्वाकर्षण के कारण मृदा अथवा चट्टान का अचानक एवं तीव्र गति से संचलन बहुत हानिकारक होता है। मलबे के द्रुत संचलन के लिए वर्षा के जल या हिम के पिघले जल की भारी मात्रा में आवश्यकता होती है। इसमें से द्रुत संचलन का वर्णन निम्नलिखित है
1. भूमि सर्पण (Earth Slide) इसमें भूमि का एक पूरा-का-पूरा विशाल ब्लॉक पर्वत या पहाड़ी के नीचे की ओर खिसकता है। यह टूटकर खण्डित नहीं होता, बल्कि पूरा ब्लॉक ही ज्यों-का-त्यों रहता है। यह खिसकी हुई भूमि मार्ग में कितने ही लम्बे अथवा थोड़े समय तक रुकी रह सकती है।

2. मृदा प्रवाह (Soil Flow)-आर्द्र जलवायु के क्षेत्रों में जल के संतृप्त मिट्टी, ऊपरी भाग का चट्टान चूर्ण, चिकनी मिट्टी तथा शैल मृत्तिका आदि गुरुत्वाकर्षण की शक्ति द्वारा तीव्र गति से कुछ ही घंटों में ढाल के नीचे की ओर खिसक आते हैं, इसे मृदा प्रवाह कहते हैं। मृदा प्रवाह में जल अथवा हिमजल स्नेहक (Lubricant) का काम करते हैं।

3. पंक प्रवाह (Mud Flow)-अधिक वर्षा वाले प्रदेशों में जल से संतृप्त होकर शैल पदार्थ अपने मूल स्थान की ढाल से अलग होकर प्लास्टिक पदार्थ की भाँति नीचे की ओर निकली हुई जिह्वाओं की आवृति में बहने लगते हैं।

ज्वालामुखी उद्गार के बाद होने वाली वर्षा में ज्वालामुखी राख और धूलकण गीले होकर पंक का रूप धारण कर लेते है आर ढाल के साथ नीचे की ओर खिसकते हैं।

4. मलबा अवधाव (Debris Avalanche) मलबा अवधाव द्रुत संचलन आर्द्र प्रदेशों में, जिनमें वनस्पति का आवरण हो या न हो, पाया जाता है। यह मलबा तीव्र ढालों पर संकरे मार्गों से बहता है। मलबा अवधाव हिम अवधाव जैसा होता है और पंक प्रवाह की अपेक्षा बहुत तेज बहता है।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. महाद्वीपों की स्थिरता की विचारधारा को खारिज कर प्रतिस्थापना परिकल्पना प्रस्तुत करने वाले विद्वान् का क्या नाम था?
(A) फ्रांसिस बेकन
(B) एफ०बी० टेलर
(C) अल्फ्रेड वेगनर
(D) ओंटानियो पैलीग्रिनी
उत्तर:
(C) अल्फ्रेड वेगनर

2. पेंजिया का अर्थ है-
(A) संपूर्ण जल
(B) संपूर्ण भूमि
(C) संपूर्ण वायुमण्डल
(D) संपूर्ण जैवमण्डल
उत्तर:
(B) संपूर्ण भूमि

3. टेथिस से अभिप्राय है-
(A) पैंथालसा से बाहर निकली कटक
(B) पेंजिया के मध्य स्थित उथली भू-सन्नति
(C) अटलांटिक महासागर में स्थित अंतःसमुद्री कटक
(D) कार्बोनिफेरस युग की खारे पानी की झील
उत्तर:
(B) पेंजिया के मध्य स्थित उथली भू-सन्नति

4. किस बल के प्रभावाधीन उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका यूरोप और अफ्रीका से अलग हो गए?
(A) द्रव के उछाल से
(B) ज्वारीय बल से
(C) अपकेंद्री बल से
(D) अभिकेंद्री बल से
उत्तर:
(B) ज्वारीय बल से

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5. निम्नलिखित में से कौन-सी मुख्य प्लेट नहीं है?
(A) अफ्रीकी
(B) अंटार्कटिक
(C) यूरेशियाई
(D) अरेबियन
उत्तर:
(D) अरेबियन

6. टेथिस के उत्तर में स्थित लारेशिया भू-खंड में निम्नलिखित में से कौन-सा प्रदेश शामिल नहीं था?
(A) यूरेशिया
(B) ऑस्ट्रेलिया
(C) ग्रीनलैंड
(D) उत्तरी अमेरिका
उत्तर:
(B) ऑस्ट्रेलिया

7. वेगनर के अनुसार कार्बोनिफेरस युग में दक्षिणी ध्रुव कहां स्थित था?
(A) टेरा डेल फ्यूगो में
(B) सान साल्वेडोर में
(C) नेटाल (डरबन) में
(D) मेलबोर्न में
उत्तर:
(C) नेटाल (डरबन) में

8. पर्वतों और महाद्वीपीय चापों की उत्पत्ति के संबंध में निम्नलिखित में कौन-सा कथन वेगनर का नहीं है?
(A) पश्चिमी द्वीप समूह की उत्पत्ति उत्तरी अमेरिका व दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी प्रवाह के कारण हुई
(B) रॉकीज व एंडीज पर्वतों का जन्म प्रशांत महासागर की तली के उत्थान से हुआ
(C) एशिया महाद्वीप के पश्चिम की ओर प्रवाह के कारण क्यूराइल, जापान व फिलीपींस द्वीपों की उत्पत्ति हुई
(D) हिमालय पर्वत टेथिस भू-सन्नति में जमा जलोढ़ से बना है।
उत्तर:
(B) रॉकीज व एंडीज पर्वतों का जन्म प्रशांत महासागर की तली के उत्थान से हुआ

9. वेगनर ने अपनी प्रतिस्थापना परिकल्पना में ब्राजील के उभार को किस भू-खंड के साथ मिलाने की बात की है?
(A) बंगाल की खाड़ी से
(B) अफ्रीका में गिनी की खाड़ी से
(C) अरब प्रायद्वीप से
(D) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं
उत्तर:
(B) अफ्रीका में गिनी की खाड़ी से

10. वेगनर ने अंटार्कटिका में कोयले के भंडारों की उपस्थिति के लिए कौन-सा साक्ष्य प्रस्तुत किया है?
(A) प्राचीनकाल में कोयले का निर्माण ठंडे प्रदेशों में भी संभव था
(B) कभी सूर्य अंटार्कटिका पर सीधा चमकता था, इसलिए वह उष्ण कटिबंध था
(C) अंटार्कटिका कभी निम्न अक्षांशों में स्थित था, बाद में ध्रुव की ओर चला गया
(D) कोयला विस्थापित होकर उष्ण कटिबंध से कटिबंध से अंटार्कटिका की ओर चला गया
उत्तर:
(C) अंटार्कटिका कभी निम्न अक्षांशों में स्थित था, बाद में ध्रुव की ओर चला गया

11. वेगनर के अनुसार महाद्वीपीय विस्थापन जिस दिशा में हुआ, वह है
(A) भूमध्य रेखा व उत्तरी ध्रुव
(B) भूमध्य रेखा व पश्चिमी ध्रुव
(C) भूमध्य रेखा व दक्षिणी ध्रुव
(D) भूमध्य रेखा व पूर्व ध्रुव
उत्तर:
(B) भूमध्य रेखा व पश्चिमी ध्रुव

12. यूनानी भाषा के शब्द ‘टेक्टोनिकोज़’ का क्या अर्थ है?
(A) भू-आकार
(B) दरार का बनना
(C) निर्माण या रचना
(D) विनाश या विध्वंस
उत्तर:
(C) निर्माण या रचना

13. निम्नलिखित में से किस विषय का अध्ययन प्लेट विवर्तनिकी में नहीं किया जाता?
(A) बाढ़ का मैदान
(B) ज्वालामुखी क्रिया
(C) वलन
(D) विभंजन
उत्तर:
(A) बाढ़ का मैदान

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14. पुराचुंबकत्व के बारे में कौन-सा कथन सत्य नहीं है?
(A) पृथ्वी एक छड़ चुंबक की तरह व्यवहार करती है; यह बात विलियम गिलबर्ट ने बताई थी
(B) उत्तर-दक्षिण रेखा तथा चुंबकीय उत्तर-दक्षिण रेखा के बीच विद्यमान दिशाकोणीय अंतर चुंबकीय दिकपात कहलाता है
(C) चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता या बल स्थायी रहता है
(D) वर्तमान में भू-चुंबकीय अक्ष पृथ्वी के परिभ्रमण अक्ष के साथ 11/2° का कोण बनाता है
उत्तर:
(C) चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता या बल स्थायी रहता है

15. महाद्वीपीय नितल के प्रसरण की संकल्पना का प्रतिपादन किसने किया था?
(A) वाहन एव मैथ्यूज़ ने
(B) हैरी एच० हैस व रॉबर्ट एस० डीज़ ने
(C) कॉक्स व डोयल ने
(D) मैसन ने
उत्तर:
(B) हैरी एच० हैस व रॉबर्ट एस० डीज़ ने

16. ‘प्लेट’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किस वैज्ञानिक ने किया?
(A) पी० मककैनी
(B) आर०एल० पार्कर
(C) जे० टूजो विल्सन
(D) डीज़
उत्तर:
(C) जे० टूजो विल्सन

17. निम्नलिखित में से कौन-सा एक स्थलमण्डल का भाग नहीं है?
(A) सियाल
(B) साइमा
(C) निचला मेंटल स्तर
(D) ऊपरी मेंटल स्तर
उत्तर:
(C) निचला मेंटल स्तर

18. प्लास्टिक दुर्बलतामण्डल किसे कहा जाता है?
(A) महाद्वीपीय पटल को
(B) महासागरीय बेसाल्ट पटल को
(C) निचले मेंटल को
(D) भू-क्रोड को
उत्तर:
(C) निचले मेंटल को

19. एक-दूसरे से दूर जाने वाली प्लेटों को कहा जाता है-
(A) अभिसारी प्लेटें
(B) अपसारी प्लेटें
(C) संरक्षी प्लेटें
(D) विस्थापित प्लेटें
उत्तर:
(B) अपसारी प्लेटें

20. मृत सागर की निम्न भूमि किन सीमाओं द्वारा बनी दरार घाटी है?
(A) अपसारी सीमाओं द्वारा
(B) पारवर्ती सीमाओं द्वारा
(C) अभिसारी सीमाओं द्वारा
(D) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं
उत्तर:
(B) पारवर्ती सीमाओं द्वारा

21. रॉकीज व एंडीज़ पर्वतों का निर्माण किस प्रकार के अभिसरण से हुआ था?
(A) महासागर →← महासागर
(B) महाद्वीप → ← महासागर
(C) महाद्वीप → ← महाद्वीप
(D) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं
उत्तर:
(B) महाद्वीप → ← महासागर

22. प्लूम अथवा तप्त स्थल के बारे में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) प्लूम संक्रमण क्षेत्र से 670 कि०मी० नीचे उत्पन्न होते हैं
(B) प्लूम के ऊपर प्लेट का जो भाग आता है, गर्म होने लगता है
(C) एक प्लूम 10 करोड़ वर्ष तक सक्रिय रहता है
(D) प्लूम के ऊपर स्थित प्लेट पर ज्वालामुखी उद्भेदन की संभावना समाप्त हो जाती है
उत्तर:
(D) प्लूम के ऊपर स्थित प्लेट पर ज्वालामुखी उद्भेदन की संभावना समाप्त हो जाती है

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
पैंजिया का क्या अर्थ है?
उत्तर:
संपूर्ण भूमि।

प्रश्न 2.
वेगनर के अनुसार सारा विस्थापन किस महाद्वीप के संदर्भ में हुआ?
उत्तर:
अफ्रीका।

प्रश्न 3.
1912 ई० में ‘महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत किसने प्रस्तुत किया?
उत्तर:
जर्मन मौसमविद अल्फ्रेड वेगनर ने।

प्रश्न 4.
‘पैंथालासा’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जल ही जल या संपूर्ण जल।

प्रश्न 5.
‘रिंग ऑफ फायर’ किस महासागर को कहा जाता है?
उत्तर:
प्रशांत महासागर को।

प्रश्न 6.
वेगनर के अनुसार कार्बोनिफेरस युग में दक्षिणी ध्रुव कहाँ स्थित था?
उत्तर:
नेटाल (डरबन) में।

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प्रश्न 7.
यूनानी भाषा के शब्द ‘टेक्टोनिकोज़’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
निर्माण या रचना।

प्रश्न 8.
महाद्वीपीय नितल के प्रसरण की संकल्पना का प्रतिपादन किसने किया था?
उत्तर:
हैरी एच० हैस व रॉबर्ट एस० डीज़ ने।

प्रश्न 9.
‘प्लेट’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किस वैज्ञानिक ने किया?
उत्तर:
जे० टूजो विल्सन।

प्रश्न 10.
प्लास्टिक दुर्बलतामण्डल किसे कहा जाता है?
उत्तर:
निचले मेंटल को।

प्रश्न 11.
एक-दूसरे से दूर जाने वाली प्लेटों को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
अपसारी प्लेटें।

प्रश्न 12.
प्लेटों में गति क्यों होती है?
उत्तर:
प्लेटों का संचलन तापीय संवहन क्रिया द्वारा होता है।

प्रश्न 13.
संवहन धारा सिद्धान्त किस पर आधारित था?
उत्तर:
शैलों की रेडियोधर्मिता पर।

प्रश्न 14.
वेगनर ने महाद्वीपीय विस्थापन का सिद्धान्त कब प्रस्तुत किया?
उत्तर:
सन् 1912 में।

प्रश्न 15.
पैंजिया के भू-खण्डों का विस्थापन कब शुरू हुआ?
उत्तर:
15 करोड़ वर्ष पूर्व इयोसिन युग में।

प्रश्न 16.
प्लेट विवर्तन का सिद्धान्त किस बारे में है?
उत्तर:
महाद्वीपों और महासागरों की उत्पत्ति के बारे में है।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
महाद्वीप किसे कहते हैं?
उत्तर:
समुद्र तल से ऊपर उठे पृथ्वी के विशाल भू-खंड महाद्वीप कहलाते हैं। विश्व में सात महाद्वीप हैं।

प्रश्न 2.
महासागर किसे कहते हैं?
उत्तर:
सीमांत सागरों; जैसे भूमध्य सागर व कैरेबियन सागर, बाल्टिक सागर इत्यादि को छोड़कर महासागरीय द्रोणियों में एकत्रित जल के विस्तार को महासागर कहते हैं।

प्रश्न 3.
अपसारी प्लेटें क्या हैं?
उत्तर:
जब दो प्लेटें एक-दूसरे से विपरीत दिशा में अलग हटती हैं, तो उन्हें अपसारी प्लेटें कहा जाता है।

प्रश्न 4.
अभिसरण क्या है?
उत्तर:
जब कुछ प्लेटें एक-दूसरे की तरफ बढ़कर निकट आती हैं और आपस में टकराती हैं तो इसे अभिसरण कहा जाता है।

प्रश्न 5.
समुद्री नितल का प्रसरण क्या होता है?
उत्तर:
महासागरीय द्रोणी का फैलना या चौड़ा होना समुद्री नितल का प्रसरण कहलाता है।

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प्रश्न 6.
प्लेट सीमान्त कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
प्लेट सीमान्त तीन प्रकार के होते हैं-

  1. अपसरण सीमान्त
  2. अभिसरण सीमान्त तथा
  3. पारवर्ती सीमान्त।

प्रश्न 7.
पृथ्वी की प्रमुख प्लेटों का नाम बताइए।
उत्तर:

  1. प्रशान्तीय प्लेट
  2. यूरेशियाई प्लेट
  3. इण्डो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट
  4. अफ्रीकन प्लेट
  5. उत्तरी अमेरिकन प्लेट
  6. दक्षिण अमेरिकन प्लेट
  7. अंटार्कटिक प्लेट।

प्रश्न 8.
पैंथालासा क्या था?
उत्तर:
पैंजिया के चारों तरफ एक महासागर फैला हुआ था जिसका नाम थालासा’ था। पैथालासा का अर्थ है-‘सम्पूर्ण जल’।

प्रश्न 9.
अभिसारी (अभिसरण) तथा अपसारी प्लेटों में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
अभिसरण प्लेट-जब कुछ प्लेटें एक-दूसरे की ओर बढ़कर निकट आती हैं और आपस में टकराती हैं, तो इसे अभिसरण कहते हैं। ऐसी प्लेटों को अभिसरण प्लेट (Convergent Plates) और उनके बीच वाले किनारों को अभिसरण किनारे कहा जाता है।

अपसरण प्लेट-प्लेटों के एक-दूसरे से दूर जाने की स्थिति को अपसरण तथा ऐसी प्लेटों को अपसारी प्लेटें (Divergent Plates) कहते हैं। इन प्लेटों के किनारों को अपसारी किनारे कहते हैं।

प्रश्न 10.
पारवर्तन क्या होता है?
उत्तर:
जब दो भू-प्लेटें ट्रांसफार्म भ्रंश के सहारे क्षैतिज दिशा में संचालित होती है, तो ऐसी प्लेटों को पारवर्ती प्लेटें और उनके किनारों को पारवर्ती किनारे कहा जाता है।

प्रश्न 11.
हिमयुग (हिमकाल) किसे कहते हैं?
उत्तर:
लाखों वर्षों तक ग्रीनलैण्ड तथा अण्टार्कटिका की तरह महाद्वीपों के अधिकतर क्षेत्र बर्फ की मोटी चादर से ढके हुए थे। पृथ्वी पर इस अवधि को हिमकाल कहते हैं। बर्फ की ये मोटी-मोटी चादरें कुछ ही हज़ार वर्ष पहले पिघल गईं तथा महासागरों के जल स्तर में वृद्धि हो गई।

प्रश्न 12.
प्लेट गति के तीन कारण कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. संवहन धाराएँ
  2. गुरुत्व बल
  3. चट्टानों का भार।

प्रश्न 13.
प्लेटों की प्रमुख गतियाँ कौन-कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. अभिसरण
  2. अपसरण
  3. परावर्तन।

प्रश्न 14.
मल महाद्वीप का क्या नाम था? यह कब बना?
उत्तर:
मूल महाद्वीप का नाम पैंजिया था। इसका निर्माण कार्बनिक कल्प में आज से 280 मिलियन वर्ष पहले हुआ था।

प्रश्न 15.
पैंजिया से पृथक होने वाले उत्तरी तथा दक्षिणी महाद्वीपों का नाम लिखिए।
उत्तर:
उत्तरी महाद्वीप का नाम लारेशिया तथा दक्षिणी महाद्वीप का नाम गोण्डवानालैण्ड था।

प्रश्न 16.
गोण्डवानालैण्ड में कौन-कौन-से भू-खण्ड शामिल थे?
उत्तर:
गोण्डवानालैण्ड में दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका नामक भू-खण्ड शामिल थे।

प्रश्न 17.
महासागरीय तल का प्रसरण क्या होता है?
उत्तर:
विपरीत दिशा में जाने से प्लेटों के बीच अन्तर आ जाता है। गहरे मैन्टल से तप्त मैग्मा संवाहित होकर ऊपर उठता है और उस अन्तर में भर जाता है। इस प्रकार अपसारी सीमाओं में नवीन रचनात्मक प्लेट का निर्माण होता है और महासागरीय तल (Floor) का प्रसरण (Spreading) होता रहता है।

प्रश्न 18.
महासागरों की उत्पत्ति किस प्रकार हुई?
उत्तर:
जब पृथ्वी अपने निर्माण की आरम्भिक अवस्था में थी तब वायुमण्डल की गरम गैसों के ठण्डा होने पर उनसे घने और विशाल बादल बने। इन बादलों ने हजारों वर्षों तक पृथ्वी पर वर्षा की। वर्षा का यह जल बहकर द्रोणियों में चला गया। इस प्रकार पृथ्वी पर महासागरों की उत्पत्ति हुई।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्लेट विवर्तन सिद्धान्त (Theory of Plate Tectonics) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्लेट विवर्तनिकी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग टूज़ो विल्सन (Tuzo Wilson) ने सन् 1965 में किया था और प्लेट विवर्तन सिद्धान्त का पहली बार प्रतिपादन मोरगन ने सन् 1967 में किया था। महाद्वीपों और महासागरों की उत्पत्ति का यह सिद्धान्त वास्तव में वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त का संशोधित रूप है। इस सिद्धान्त के अनुसार पृथ्वी सात मुख्य प्लेटों में बँटी हुई है। ये प्लेटें अर्द्ध-तरल (Semi-liquid) अधःस्तर पर तैर रही हैं, जिसके कारण इन प्लेटों में आन्तरिक गतियाँ होती हैं और प्लेटें खिसकती रहती हैं। इन्हीं प्लेटों द्वारा भू-आकृतियों का निर्माण होता है। संवहन क्रिया द्वारा ये भू-प्लेटें खिसकती हैं तथा इनके साथ-साथ महाद्वीप भी गति करते हैं।

प्रश्न 2.
प्लेटों की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्लेटों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. किसी भी प्लेट की पर्पटी महाद्वीपीय, महासागरीय अथवा दोनों प्रकार की मिश्रित भी हो सकती है।
  2. प्लेटें आपस में कभी दूर व कभी पास होती रहती हैं।
  3. प्रत्येक प्लेट का क्षेत्र उसकी मोटाई से ज्यादा होता है।
  4. विवर्तन की सभी घटनाएँ; जैसे भूकम्प, ज्वालामुखी तथा पर्वत निर्माण आदि इन्हीं प्लेटों के किनारों पर घटित होती हैं।

प्रश्न 3.
प्लेटों की गति के मुख्य कारण कौन-से हैं?
उत्तर:
सभी प्लेटें स्वतन्त्र रूप से पृथ्वी के दुर्बलता-मण्डल (Asthenosphere) पर भिन्न-भिन्न दिशाओं में भ्रमण (Wandering) करती रहती हैं। प्लेटों का भ्रमण पृथ्वी के आन्तरिक भागों में ऊष्मा की भिन्नता के कारण उत्पन्न होने वाली संवहन धाराओं के कारण होता है। कई विद्वान् संवहन धाराओं के साथ-साथ गुरुत्व बल (Gravity) तथा चट्टान भार (Weight of Rocks) को भी प्लेटों के संचलन का कारण मानते हैं।

प्रश्न 4.
अभिसरण (Convergence) और अपसरण (Divergence) में क्या अन्तर होता है?
अथवा
अभिसारी तथा अपसारी प्लेटों में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
अभिसरण-जब कुछ प्लेटे एक-दूसरे की ओर बढ़कर निकट आता ह आर आपस मट की ओर बढ़कर निकट आती हैं और आपस में टकराती हैं, तो इसे अभिसरण कहते हैं। ऐसी प्लेटों को अभिसरण प्लेट (Convergent Plates) और उनके बीच वाले किनारों को अभिसरण किनारे कहा जाता है।

अपसरण-प्लेटों के एक-दूसरे से दूर जाने की स्थिति को अपसरण तथा ऐसी प्लेटों को अपसारी प्लेटें (Divergent Plates) कहते हैं। इन प्लेटों के किनारों को अपसारी किनारे कहते हैं।

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प्रश्न 5.
पारवर्तन क्या होता है और इसका क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जब दो भू-प्लेटें ट्रांसफार्म भ्रंश के सहारे क्षैतिज दिशा में संचालित होती है, तो ऐसी प्लेटों को पारवर्ती प्लेटें और उनके किनारों को पारवर्ती किनारे कहा जाता है। ये संरक्षी अथवा निष्क्रिय (Conservative or Passive) किनारे होते हैं। इसमें नवीन स्थलों का न तो निर्माण होता है और न विनाश। हाँ, परस्पर सरकने से स्थलमण्डल में दरारें भी पड़ती हैं और भूकम्प भी आते हैं।

प्रश्न 6.
“साम्य स्थापना” पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
विश्व में जलवायु, वनस्पति और चट्टानों के वितरण के आधार पर वेगनर ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि महाद्वीप पैंजिया से टूटकर विस्थापित हुए हैं। वर्तमान महाद्वीपों को पुनः जोड़कर पैंजिया का रूप दिया जा सकता है। वेगनर ने इसे साम्य-स्थापना (Jig-saw-fit) का नाम दिया है।
(1) अटलांटिक महासागर के पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच चट्टानों की संरचना में अद्भुत एवं त्रुटि-रहित साम्य दिखाई देता है। दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट को अफ्रीका के पश्चिमी तट से मिला दिया जाए, तो वे एकाकार दिखने लगेंगे। इसी प्रकार, उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट को यूरोप के पश्चिमी तट से मिलाया जा सकता है।

(2) इसी प्रकार पूर्वी अफ्रीका में इथिओपिया का उभार (Bulge) पश्चिमी भारत तथा पाकिस्तान की तट रेखा से जोड़ा जा सकता है। ऑस्ट्रेलिया भी बंगाल की खाड़ी में फिट बैठ सकता है।

प्रश्न 7.
भौतिक परिवेश भूमण्डलीय तन्त्र के रूप में संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए
उत्तर:
पृथ्वी पर स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल और जैवमण्डल से ही भौतिक परिवेश का निर्माण होता है। पर्यावरण के सभी अंग ऊर्जा (Energy) तथा पदार्थ (Matter) के प्रवाह द्वारा एक-दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं। अतः किसी भी भौतिक तथ्य को अन्य तथ्यों से अलग करके नहीं समझा जा सकता। उदाहरणतया जल एक भौतिक तथ्य है, जो भौतिक परिवेश के सभी अंगों स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल और जैवमण्डल में संचरित (Circulate) होता रहता है, अतः जल का अध्ययन सम्पूर्ण प्राकृतिक परिवेश से अलग नहीं किया जा सकता। एक सम्पूर्ण इकाई के रूप में प्रकृति अत्यन्त जटिल है। सुविधा के लिए इसका खण्डों में अध्ययन हो सकता है, परन्तु ऐसा करते समय प्राकृतिक वातावरण के रूप में पृथ्वी की अखण्डता की अनदेखी नहीं करनी चाहिए।

प्रश्न 8.
पैंजिया की उत्पत्ति कब हुई? इसमें कौन-कौन से भू-खण्ड शामिल थे? पैंजिया में ‘टूट’ की क्रिया कैसे आरम्भ हुई?
अथवा
पैंजिया का क्या अर्थ है? इसके विभिन्न भागों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पैंजिया का अर्थ है संपूर्ण पृथ्वी। लगभग 35 करोड़ साल पहले अन्तिम कार्बोनिफ़रस युग में सभी महाद्वीप आपस में जुड़े हुए थे। इस विशाल स्थलखण्ड का नाम वेगनर ने पैंजिया रखा। मध्य जुरैसिक कल्प अर्थात् अब से लगभग 20 करोड़ वर्ष पूर्व पैंजिया दो भागों में बँट गया। इसका उत्तरी भाग लारेशिया तथा दक्षिणी भाग गोण्डवानालैण्ड कहलाया। लगभग 6.5 करोड़ वर्ष पहले अर्थात् क्रिटेशस कल्प के अन्त में गोण्डवानालैण्ड फिर से खण्डित हुआ और इससे कई महाद्वीपों; जैसे दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और अण्टार्कटिका की रचना हुई। भारत इस गोण्डवानालैण्ड से टूटकर स्वतन्त्र रूप से एक अलग पथ पर उत्तर पूर्व की ओर अग्रसर हुआ।

प्रश्न 9.
प्रवालों (Corals) की उपस्थिति किस प्रकार सिद्ध करती है कि भू-खण्ड उत्तर की ओर विस्थापित हुए थे?
उत्तर:
प्रवाल एक चूना-स्रावी समुद्री पॉलिप होता है जो छिछले उष्ण कटिबन्धीय सागरों में पाया जाता है। इस लघु समुद्री जीव का कंकाल कठोर होता है जिसकी रचना समुद्र के पानी से प्राप्त कैल्शियम कार्बोनेट से होती है। उष्ण कटिबन्ध के बाहर प्रवालों का पाया जाना इस बात का सबल प्रमाण है कि प्राचीन भू-वैज्ञानिक काल में ये महाद्वीप भूमध्य रेखा के निकट स्थित थे। महाद्वीप उत्तर की ओर खिसके हैं और वे आज भिन्न जलवायु का अनुभव कर रहे हैं।

प्रश्न 10.
ध्रुवों के घूमने अथवा ‘पोलर वान्डरिंग’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भू-वैज्ञानिक काल में ध्रुवों की बार-बार बदलती हुई स्थिति को ध्रुवों का घूमना (Polar Wandering) कहा जाता है। लगभग 35 करोड़ वर्ष पहले सभी महाद्वीप पैंजिया के रूप में आपस में जुड़े हुए थे। पुरा चुम्बकत्व के प्रमाण बताते हैं कि मैग्मा, लावा तथा असंगठित अवसादों में उपस्थित चुम्बकीय गुणों वाले खनिज; जैसे मैग्नेटाइट, हैमेटाइट, इल्मेनाइट और पाइरोटाइट आदि इसी गुण के कारण उस समय के चुम्बकीय क्षेत्र के समानान्तर एकत्र हो गए। यह गुण शैलों में स्थायी गुण के रूप में रह जाता है। चुम्बकीय ध्रुव की स्थिति में कालिक (Temporal) परिवर्तन होता रहा है, जो शैलों में स्थायी चुम्बकत्व के रूप में अभिलेखित किया जाता है। आज ऐसी अनेक वैज्ञानिक विधियाँ उपलब्ध हैं जो पुरानी शैलों में हुए ऐसे परिवर्तनों को उजागर कर सकती है तथा प्राचीनकाल में ध्रुवों की बदलती हुई स्थिति की जानकारी दे सकती हैं।

प्रश्न 11.
भारतीय प्लेट की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय प्लेट की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. हिन्द महासागर के नितल पर ऊँचे पठारों और कटकों सहित नाना प्रकार की स्थलाकृतियाँ पाई जाती हैं।
  2. 90 ईस्ट कटक तथा चैगोस-मालदीव-लक्षद्वीप द्वीपीय कटक ज्वालामुखी क्रिया के केन्द्र हैं।
  3. 90 ईस्ट का उत्तरी विस्तार एक महासागरीय खाई में समाप्त हो जाता है।
  4. चैगोस-लक्षद्वीप कटक 5 करोड़ साल पहले आदि नूतन कल्प में कार्ल्सबर्ग कटक को दक्षिण-पूर्वी इण्डियन कटक से जोड़ती थी।
    मध्य हिन्द महासागर कटक का विस्तार तेजी से अर्थात 14 से 20 सें०मी० प्रतिवर्ष हो रहा है।
  5. कार्ल्सबर्ग तथा दक्षिण-पूर्व हिन्द महासागर कटक के जुड़ने के बाद यूरेशियम प्लेट व भारतीय प्लेट का उत्तर में टकराव हुआ जिससे हिमालय पर्वत श्रेणी का जन्म हुआ।

प्रश्न 12.
पैंजिया, पैन्थालसा और टेथीज़ के बारे में लिखें।
उत्तर:
प्रो० अलफ्रेड वेगनर ने अपने विस्थापन सिद्धान्त में यह स्पष्ट किया है कि पृथ्वी पर महाद्वीपों की जो स्थिति आज है, वह पहले ऐसी नहीं थी। इस सिद्धान्त के अनुसार, आज से लगभग 35 करोड़ वर्ष पहले कार्बोनिफरस युग में सभी महाद्वीप एक स्थल खण्ड के रूप में मिले हुए थे जिसे पैंजिया कहते थे। यह पैंजिया चारों ओर से ‘पैन्थालसा’ नामक सागर से घिरा हुआ था। पैंजिया के उत्तरी भाग में उत्तरी अमेरिका, यूरोप तथा एशिया थे जिन्हें संयुक्त रूप से लारेशिया कहा जाता था। पैंजिया के दक्षिणी भाग में दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, भारतीय प्रायद्वीप, ऑस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका महाद्वीप थे, जिन्हें गोण्डवानालैण्ड कहा जाता था। इन दोनों विशाल भू-खण्डों के मध्य एक संकरा महासागर था, जिसे टेथीज़ सागर कहा जाता था।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
अथवा
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूमिका महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त का प्रतिपादन जर्मनी के विद्वान् अल्फ्रेड वेगनर ने सर्वप्रथम सन् 1912 में किया था, जिसका अंग्रेज़ी अनुवाद सन् 1924 में विश्व के सामने आया। उनका विचार था कि महाद्वीप एक-दूसरे से दूर खिसक रहे हैं।

सिद्धान्त की रूपरेखा-लगभग 35 करोड़ वर्ष पहले अन्तिम कार्बोनिफरस युग में सभी महाद्वीप आपस में जुड़े हुए थे। इस विशाल स्थलखण्ड का नाम वेगनर ने पैंजिया (Pangaea) रखा। पैंजिया के चारों ओर एक महासागर फैला हुआ था, जिसका नाम पैन्थालासा (Panthalasa) रखा गया। पैंजिया नामक यह विशाल स्थलखण्ड कई छोटे खण्डों में बँट गया, जो एक-दूसरे से अलग हो गए। परिणामस्वरूप महाद्वीपों और महासागरों को वर्तमान स्वरूप प्राप्त हुआ।

लगभग 15 करोड़ वर्ष पूर्व इयोसीन युग में उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका और यूरेशिया से अलग होकर पश्चिम की ओर खिसक गए। इन दोनों महाद्वीपों के पश्चिम की ओर खिसकने के कारण इन महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर नीचे की तली से रगड़ के कारण रॉकी व एण्डीज़ पर्वत-श्रेणियों का निर्माण हो गया अर्थात् साइमा (Sima) द्वारा सियाल (Sial) परत पर रुकावट पैदा होने से इन मोड़दार पर्वतों का जन्म हुआ। उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका तथा अफ्रीका एवं यूरेशिया के बीच पैदा हो गए गर्त में अटलांटिक महासागर प्रकट हो गया।

अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया, मेडागास्कर तथा प्रायद्वीपीय भारत भी आपस में जुड़े हुए थे और एक खण्ड के रूप में अफ्रीका के दक्षिणी छोर के पास स्थित थे। लगभग 5-6 करोड़ साल पहले पूर्व प्लीस्टोसिन युग में, ये चारों भू-भाग भी आपस में अलग-थलग होकर अपनी वर्तमान स्थिति में पहुंच गए और इनके बीच हिन्द महासागर का अवतरण हुआ। प्रायद्वीपीय भारत के उत्तर की ओर सरकने में टेथीज़ सागर में पड़े अवसाद में वलन पड़ गए। इससे हिमालय और आल्पस पर्वतों का निर्माण हुआ।

सिद्धान्त के पक्ष में प्रमाण-वर्तमान महाद्वीपों को पुनः जोड़कर पैंजिया का रूप दिया जा सकता है। वेगनर ने इसे साम्य स्थापना (Jig-saw-fit) का नाम दिया है।
(1) अटलांटिक महासागर के पूर्वी और पश्चिमी तटों के आकार में आश्चर्यजनक समानता पाई जाती है। दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट को अफ्रीका के पश्चिमी तट से मिला दिया जाए, तो वे एकाकार दिखने लगेंगे। इसी प्रकार, उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट को यूरोप के पश्चिमी तट से मिलाया जा सकता है।

(2) इसी प्रकार पूर्वी अफ्रीका में इथिओपिया का उभार (Bulge) पश्चिमी भारत तथा पाकिस्तान की तट रेखा से जोड़ा जा सकता है। ऑस्ट्रेलिया भी बंगाल की खाड़ी में फिट बैठ सकता है।

(3) अटलांटिक महासागर के दोनों तटों पर पाई जाने वाली चट्टानों की संरचना, उनकी आयु तथा चट्टानों के बीच पाए जाने वाले जीवावशेषों (Fossils) में समानता पाई जाती है जो इंगित करती है कि कभी ये दोनों तट मिले हुए थे।

प्रवाहित करने वाले बल-वेगनर के अनुसार, महाद्वीपों का प्रवाह दो बलों द्वारा सम्भव हुआ-

  • भू-खण्डों का भूमध्य रेखा की ओर प्रवाह गुरुत्व बल और प्लवनशीलता के बल (Force of buoyancy) के कारण हुआ।
  • महाद्वीपों का पश्चिम की ओर प्रवाह सूर्य व चन्द्रमा के ज्वारीय बल के कारण हुआ।

सिद्धान्त की पुष्टि आरम्भ में, अनेक वैज्ञानिक वेगनर के इस सिद्धान्त से असहमत थे, क्योंकि भू-भौतिकी के उस समय उपलब्ध ज्ञान के आधार पर उन्हें महाद्वीपों का विस्थापन असम्भव लगता था, लेकिन विगत कुछ वर्षों में पृथ्वी के पुरा-चुम्बकीय अध्ययन तथा महासागरीय नितल की नई खोजों ने वेगनर की इस प्रवाह संकल्पना को बल दिया है।

आलोचना-वेगनर के सिद्धान्त की आलोचना निम्नलिखित आधारों पर की गई है-

  • अफ्रीका तथा गिन्नी तट का पूर्ण रूप से न सटना अर्थात् (Jig-saw-fit) पूर्ण रूप से ठीक न होना।
  • ज्वारीय शक्ति का कम होना।
  • बहाव दिशा का सही न होना।
  • मध्यवर्ती अन्धमहासागर में कटक (Ridge) की उत्पत्ति।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

प्रश्न 2.
प्लेट विवर्तन के सिद्धान्त का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
प्लेट विवर्तन के सिद्धान्त के बारे में आप क्या जानते है? इसके महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर:
विवर्तनिकी का अभिप्राय पृथ्वी के आन्तरिक बलों के फलस्वरूप हुए पटल विरूपण से है, जो स्थलमण्डल पर अनेक प्रकार के भू-आकारों को जन्म देता है। प्लेट विवर्तनिकी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग टूजो विल्सन (Tuzo Wilson) ने सन् 1965 में किया था और प्लेट विवर्तन सिद्धान्त का पहली बार प्रतिपादन डब्ल्यूजे० मोरगन (W.J. Morgan) ने सन् 1967 में किया था।
महाद्वीपों और महासागरों की उत्पत्ति का यह सिद्धान्त वास्तव में महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त का संशोधित रूप है।

सिद्धान्त की रूपरेखा पृथ्वी का बाह्य भाग जो हमें ऊपर से एक दिखाई देता है, वास्तव में कई दृढ़ खण्डों के संयोजन से बना है। इन दृढ़ खण्डों को प्लेट कहते हैं। अन्य शब्दों में, पृथ्वी का स्थलमण्डल अनेक प्लेटों में बँटा हुआ है।

प्लेटों की विशेषताएँ-

  • किसी भी प्लेट की पर्पटी महाद्वीपीय, महासागरीय अथवा दोनों प्रकार की मिश्रित भी हो सकती है।
  • प्लेटें आपस में कभी दूर व कभी पास होती रहती हैं।
  • प्रत्येक प्लेट का क्षेत्र उसकी मोटाई से ज्यादा होता है।
  • विवर्तन की सभी घटनाएँ; जैसे भूकम्प, ज्वालामुखी तथा पर्वत निर्माण आदि, इन्हीं प्लेटों के किनारों पर घटित होती हैं।

स्थलमण्डल की प्लेटे-ला पिचोन (La Pichon) ने सन् 1968 में पृथ्वी को 6 बड़ी और 9 छोटी प्लेटों में बाँटा था बड़ी प्लेटें (Major Plates)-

  • अफ्रीकी प्लेट
  • अमेरिकी प्लेट
  • अंटार्कटिक प्लेट
  • ऑस्ट्रेलियाई प्लेट
  • यूरेशियाई प्लेट
  • प्रशान्तीय प्लेट।

छोटी प्लेटें (Minor Plates)-

  • अरेबियन प्लेट
  • बिस्मार्क प्लेट
  • कैरीबियन प्लेट
  • कैरोलीना प्लेट
  • कोकोस प्लेट
  • जुआन डी प्यूका प्लेट
  • नाज़का या पूर्वी प्रशांत प्लेट
  • फ़िलीपीन्स प्लेट
  • स्कोशिया प्लेट।।

प्लेट गति के कारण-सभी प्लेटें स्वतन्त्र रूप से पृथ्वी के दुर्बलता-मण्डल (Asthenosphere) पर भिन्न-भिन्न दिशाओं में भ्रमण (Wandering) करती रहती हैं। प्लेटों का भ्रमण पृथ्वी के आन्तरिक भागों में ऊष्मा की भिन्नता के कारण उत्पन्न होने वाली संवहन धाराओं के कारण होता है। कई विद्वान् संवहन धाराओं के साथ-साथ गुरुत्व बल (Gravity) तथा चट्टान भार (Weight of Rocks) को भी प्लेटों के संचलन का कारण मानते हैं।

प्लेट गति के प्रकार-प्लेटें तीन प्रकार से गति करती हैं-
(1) अभिसरण-जब कुछ प्लेटें एक-दूसरे की ओर बढ़कर निकट आती हैं और आपस में टकराती हैं, तो इसे अभिसरण कहते हैं। ऐसी प्लेटों को अभिसरण प्लेट (Converging Plates) और उनके बीच वाले किनारों को अभिसरण किनारे कहा जाता है। प्लेटों के टकराने पर दो दशाएँ उत्पन्न होती हैं

  • किसी एक प्लेट का दूसरी प्लेट के नीचे धंसना।
  • किसी भी प्लेट का नीचे न धंसना।

(a) जब एक महासागरीय (Oceanic) प्लेट किसी महाद्वीपीय (Continental) प्लेट से टकराती है, तो महाद्वीपीय प्लेट भारी घनत्व की चट्टानों से बनी होने के कारण हल्की चट्टानों से बनी महाद्वीपीय प्लेट के नीचे धंस जाती है। अधिक गहराई में जाने पर इस धंसती हुई प्लेट का कुछ भाग पिघलकर मैग्मा बन जाता है। ऊपर की चट्टानों का दबाव भी भीतरी ऊष्मा को बढ़ाता है। पिघला हुआ मैग्मा महाद्वीपीय प्लेट के किनारे के निकट ऊपर उमड़कर ज्वालामुखी पर्वतों का निर्माण करता है। अगर ज्वालामुखी पर्वत न बने तो विकल्प के रूप में एक गहरी खाई बन जाती है। पेरू की खाई नाजका महासागरीय प्लेट तथा दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीपीय प्लेट के टकराव का परिणाम है। इसी कारण अभिसरण प्लेटों के सीमान्तों (Margins) को विनाशात्मक सीमान्त (Destructive Margins) कहा जाता है।

(b) जब दो प्लेटें एक-दूसरे के निकट आती हैं और उनके टकराने पर कोई भी प्लेट नीचे नहीं धंसती, तो उनके बीच स्थित अवसाद में वलन की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है। इससे मोड़दार (Fold) पर्वतों का निर्माण होता है। हिमालय तथा आल्पस जैसे वलित पर्वतों का निर्माण प्लेटों के अभिसरण का परिणाम है।

(2) अपसरण-प्लेटों के एक-दूसरे से दूर जाने की स्थिति को अपसरण तथा ऐसी प्लेटों को अपसारी प्लेटें कहते हैं। इन प्लेटों के किनारों को अपसारी किनारे कहते हैं। विपरीत दिशा में जाने से प्लेटों के बीच गैप आ जाता है। गहरे मैन्टल से तप्त मैग्मा संवाहित होकर ऊपर उठता है और उस गैप में भर जाता है। इस प्रकार अपसारी सीमाओं में नवीन रचनात्मक प्लेट का निर्माण होता है और महासागरीय नितल (Floor) का प्रसरण (Spreading) होता रहता है।

(3) पारवर्तन-जब दो भू-प्लेटें ट्रांसफार्म भ्रंश के सहारे क्षैतिज दिशा में संचलित होती है, तो ऐसी प्लेटों को पारवर्ती प्लेटें और उनके किनारों को पारवर्ती किनारे कहा जाता है। ये संरक्षी अथवा निष्क्रिय (Conservative or Passive) किनारे होते हैं। इसमें नवीन स्थलों का न तो निर्माण होता है और न विनाश। हाँ, परस्पर सरकने से स्थलमण्डल में दरारें भी पड़ती हैं और भूकम्प भी आते हैं।

प्लेट विवर्तन सिद्धान्त का महत्त्व – जो स्थान जीव विज्ञान में उविकास सिद्धान्त (Theory of Evolution) का है, वही स्थान भू-गर्भ विज्ञान में प्लेट विवर्तन के सिद्धान्त का है। इस क्रान्तिकारी सिद्धान्त ने 20वीं सदी के भू-विज्ञानों (Earth Sciences) के उस हर प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास किया है, जो सदियों से आज तक दुनिया के सामने पहेली (Puzzle) बने खड़े थे।

  • महासागरों की चौड़ाई कहीं बढ़ रही है तो कहीं घट रही है। प्लेट विवर्तन के सिद्धान्त का यह तथ्य महाद्वीपीय विस्थापन की पुष्टि करता है।
  • यह सिद्धान्त मोड़दार पर्वतों की रचना की व्याख्या करता है।
  • प्लेट विवर्तन का सिद्धान्त ही अच्छी तरह से स्पष्ट करता है कि विश्व में द्वीपीय पर्वतों (Island Mountains) तथा द्वीप तोरणों (Island Festoons) की रचना कैसे हुई?
  • ज्वालामुखी क्यों फूटते हैं? भूकम्प क्यों आते हैं? कहाँ आते हैं? इन प्रश्नों की वैज्ञानिक और तार्किक व्याख्या प्लेट विवर्तनिकी से ही सम्भव हो पाई है।
  • प्लेट विवर्तन के सिद्धान्त ने ही यह रहस्योदघाटन किया है कि पैंजिया टूटकर बिखरते और बिखरकर फिर जुड़ते रहे हैं। जिस पैंजिया के बिखरे भू-खण्डों पर आज हम बैठे हैं, उससे पहले भी एक पैंजिया था।

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HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

HBSE 11th Class Geography भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में से कौन सी एक अनुक्रमिक प्रक्रिया है?
(A) निक्षेप
(B) ज्वालामुखीयता
(C) पटल-विरूपण
(D) अपरदन
उत्तर:
(D) अपरदन

2. जलयोजन प्रक्रिया निम्नलिखित पदार्थों में से किसे प्रभावित करती है?
(A) ग्रेनाइट
(B) क्वार्ट्ज़
(C) चीका (क्ले) मिट्टी
(D) लवण
उत्तर:
(D) लवण

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

3. मलवा अवधाव को किस श्रेणी में सम्मिलित किया जा सकता है?
(A) भू-स्ख लन
(B) तीव्र प्रवाही बृहत् संचलन
(C) मंद प्रवाही बृहत् संचलन
(D) अवतलन/धसकन
उत्तर:
(B) तीव्र प्रवाही बृहत् संचलन

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
अपक्षय पृथ्वी पर जैव विविधता के लिए उत्तरदायी है। कैसे?
उत्तर:
अपक्षय प्रक्रियाएँ चट्टानों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने एवं मृदा-निर्माण में सहायक हैं। जैव मात्रा एवं जैव विविधता दोनों ही मुख्यतः वनों पर निर्भर करते हैं तथा वन अपक्षयी प्रवाल की गहराई अर्थात् न केवल आवरण प्रस्तर एवं मिट्टी अपरदन बृहत् अपरदन पर निर्भर करता है। यह कुछ खनिजों; जैसे लोहा, मैंगनीज, एल्यूमिनियम आदि के संकेंद्रण में भी सहायक होता है।

प्रश्न 2.
बृहत् संचलन जो वास्तविक, तीव्र एवं गोचर/अवगम्य (Perceptible) हैं, वे क्या हैं? सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
बृहत् संचलन के अंतर्गत वे सभी संचलन आते हैं, जिनमें शैलों का बृहत् मलबा गुरुत्वाकर्षण के सीधे प्रभाव के कारण ढाल के अनुरूप स्थानांतरित होता है। भू-स्खलन अपेक्षाकृत तीव्र एवं अवगम्य संचलन है। तीव्र ढाल के कारण शिखरों से पत्थर, मलबा, मिट्टी आदि घाटी की ओर गिरने लगते हैं। असंबद्ध कमजोर पदार्थ, छिछले संस्तर वाली शैलें, भ्रंश, तीव्रता से झुके हुए संस्तर, खड़े भृगु या तीव्र ढाल, पर्याप्त वर्षा, मूसलाधार वर्षा तथा वनस्पति का अभाव बृहत् संचलन में सहायक होते हैं।

प्रश्न 3.
विभिन्न गतिशील एवं शक्तिशाली बहिर्जनिक भ-आकतिक कारक क्या हैं तथा वे क्या प्रधान कार्य संपन्न करते हैं?
उत्तर:
बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ अपनी ऊर्जा सूर्य द्वारा निर्धारित वायुमंडलीय ऊर्जा एवं अंतर्जनित शक्तियों से नियंत्रित विवर्तनिक कारकों से उत्पन्न प्रवणता से प्राप्त करती हैं। सभी बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं को एक सामान्य शब्दावली अनाच्छादन (निरावृत्त करना या आवरण हटाना) के अंतर्गत रखा जा सकता है। अपक्षय, बृहत क्षरण, संचलन, अपरदन, परिवहन आदि अनाच्छादन प्रक्रिया में सम्मिलित होते हैं। बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न-भिन्न होती हैं जैसे कि पृथ्वी के धरातल पर तापीय प्रवणता के कारण भिन्न-भिन्न जलवायु प्रदेश स्थित हैं जो कि अक्षांशीय, मौसमी एवं जल-थल विस्तार में भिन्नता के द्वारा उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 4.
क्या मृदा निर्माण में अपक्षय एक आवश्यक अनिवार्यता है?
उत्तर:
मृदा निर्माण सर्वप्रथम अपक्षय पर निर्भर करती है। सर्वप्रथम अपक्षयित प्रावार पदार्थों के निक्षेप, बैक्टीरिया या अन्य निकृष्ट पौधों द्वारा उपनिवेशित किए जाते हैं। मृदा निर्माण में मूल शैल एक निष्क्रिय नियंत्रक कारक है। अपक्षय मूल शैल को छोटे-छोटे कणों में परिवर्तित करता है, जो धीरे-धीरे मृदा का रूप ले लेता है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए कीजिए।

प्रश्न 1.
“हमारी पृथ्वी भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के दो विरोधात्मक (Opposing) वर्गों के खेल का मैदान है,” विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भू-पर्पटी का निर्माण करने वाले पृथ्वी के भीतर सक्रिय आंतरिक बलों में पाया जाने वाला अंतर ही पृथ्वी के बाह्य सतह में अंतर के लिए उत्तरदायी है। धरातल पृथ्वी मंडल के अंतर्गत उत्पन्न हुए बाह्य बलों एवं पृथ्वी के अंदर उद्भूत आंतरिक बलों से अनवरत प्रभावित होता है। बाह्य बलों को बहिर्जनिक तथा आंतरिक बलों को अंतर्जनित बल कहते हैं।

अंतर्जनित शक्तियाँ निरंतर धरातल के भागों को ऊपर उठाती हैं या उनका निर्माण करती हैं तथा बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ उच्चावच में भिन्नता को सम (बराबर) करने में असफल रहती हैं। यह भिन्नता तब तक बनी रहती है जब तक बहिर्जनिक एवं अंतर्जनित बलों के विरोधात्मक कार्य चलते रहते हैं। अंतर्जनित बल मूल रूप से भू-आकृतिक निर्माण करने वाले बल हैं तथा बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ मुख्य रूप से भूमि विघर्षण बल होती हैं। इस प्रकार बाह्य बलों के संतुलन के कारकों के लगातार क्रियाशील रहने के कारण विविध प्रकार के स्थलरूप बनते रहते है। धरातल पर पाए जाने वाले प्रमुख स्थल रूप पर्वत, पठार और मैदान हैं। अंतर्जनित शक्तियाँ मूल रूप से आकृति निर्मात्री शक्तियाँ होती हैं। धरातल का निर्माण एवं विघटन क्रमशः अंतर्जनित एवं बहिर्जनिक शक्तियों का परिणाम हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

प्रश्न 2.
“बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ अपनी अंतिम ऊर्जा सूर्य की गर्मी से प्राप्त करती हैं।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ अपनी ऊर्जा ‘सूर्य द्वारा निर्धारित वायुमंडलीय ऊर्जा एवं अंतर्जनित शक्तियों से नियंत्रित विवर्तनिक – कारकों से उत्पन्न प्रवणता से प्राप्त करती हैं। गर्मी के कारण शैलें फैलती हैं और सर्दी के कारण सिकुड़ जाती हैं। दैनिक ताप के अधिक होने के कारण शैलें फैलती और सिकुड़ती रहती हैं। इस कारणवश शैलों में दरारें आ जाती हैं तथा दरारों के कारण शैलें छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाती हैं।

अधिक गर्मी के कारण शैलों की बाहरी परतें जल्दी फैल जाती हैं, लेकिन भीतरी परतें गर्मी से लगभग अप्रभावित रहती हैं। क्रमिक रूप से फैलने और सिकुड़ने से शैलों की बाहरी परतें शैल के मुख्य भाग से अलग हो जाती हैं। विभिन्न प्रकार की शैलें अपनी संरचना में भिन्नता के कारण भू-आकृतिक प्रतिक्रियाओं के प्रति विभिन्न प्रतिरोध क्षमता प्रस्तुत करती हैं। एक विशेष शैल एक प्रक्रिया के प्रति प्रतिरोधपूर्ण तथा वही दूसरी प्रक्रिया के प्रति प्रतिरोध रहित हो सकती है। विभिन्न जलवायवी दशाओं में एक विशेष प्रकार की शैलें भू-आकृतिक प्रतिक्रियाओं के प्रति भिन्न-भिन्न दरों पर कार्यरत रहती हैं तथा स्थलाकृति में भिन्नता का कारण बन जाती है।

प्रश्न 3.
क्या भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं? यदि नहीं तो क्यों? सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भौतिक अपक्षय प्रक्रियाएँ-भौतिक प्रक्रियाएँ कुछ अनुप्रयुक्त बलों पर निर्भर करती हैं। ये बल निम्नलिखित हैं-

  • गुरुत्वाकर्षक बल
  • तापक्रम में परिवर्तन
  • शुष्कन एवं आर्द्रन चक्रों से नियंत्रित जल का दबाव।

भौतिक अपक्षय प्रक्रियाओं में अधिकांश तापीय विस्तारण एवं दबाव के निर्मुक्त होने के कारण होता है। ये प्रक्रियाएँ लघु एवं मंद होती हैं परन्तु कई बार संकुचन एवं विस्तारण के कारण शैलों के सतत् श्रांति (फैटीग्यू) के फलस्वरूप ये शैलों को बड़ी हानि पहुँचा सकती हैं।

रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ-अपक्षय प्रक्रियाओं का एक समूह जैसे कि विलयन, कार्बोनेटीकरण, जलयोजन, आक्सीकरण तथा न्यूनीकरण शैलों के अपघटन, विलयन अथवा न्यूनीकरण का कार्य करते हैं, जोकि रासायनिक क्रिया द्वारा सूक्ष्म अवस्था में परिवर्तित हो जाती हैं। ऑक्सीजन, धरातलीय जल, मृदा-जल एवं अन्य अम्लों की प्रक्रिया द्वारा चट्टानों का न्यूनीकरण होता है।

लेकिन कई क्षेत्रों में भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय की प्रक्रियाएँ अंतर्संबंधित हैं। ये साथ-साथ चलती हैं तथा अपक्षय प्रक्रिया को त्वरित बना देती हैं। ये दोनों प्रक्रियाएँ ही चट्टानों का विखंडन करती हैं। दोनों मूल पदार्थों में अपघर्षण करती हैं।

प्रश्न 4.
आप किस प्रकार मृदा निर्माण प्रक्रियाओं तथा मृदा निर्माण कारकों के बीच अंतर ज्ञात करते हैं? जलवायु एवं जैविक क्रियाओं की मृदा निर्माण में दो महत्त्वपूर्ण कारकों के रूप में क्या भूमिका है?
उत्तर:
मृदा-निर्माण या मृदा जनन सर्वप्रथम अपक्षय पर निर्भर करती है। यह अपक्षयी प्रावार ही मृदा निर्माण का मूल निवेश होता है। सर्वप्रथम अपक्षयित प्रावार या लाए गए पदार्थों के निक्षेप बैक्टीरिया या अन्य निकृष्ट पौधे जैसे काई एवं लाइकेन द्वारा अवशोषित किए जाते हैं।

मृदा निर्माण के कारक-मृदा निर्माण पाँच मूल कारकों द्वारा नियंत्रित होता है जो निम्नलिखित अनुसार हैं-

  • मूल पदार्थ (शैलें)
  • स्थलाकृति
  • जलवायु
  • जैविक क्रियाएँ
  • मय।

उपर्युक्त कारक संयुक्त रूप से कार्य करते हैं एवं एक-दूसरे के कार्य को प्रभावित करते हैं। जलवायु कारक की मृदा-निर्माण में निम्नलिखित भूमिका है-

  • प्रवणता, वर्षा एवं वाष्पीकरण की बारंबारता व आर्द्रता।
  • तापक्रम में मौसमी एवं दैनिक भिन्नता।

जैविक क्रियाओं की मदा निर्माण में निम्नलिखित भूमिका है

  • मृदा में जैव पदार्थ, नमी धारण की क्षमता तथा नाइट्रोजन इत्यादि जोड़ने में सहायक होते हैं। मृत पौधे मृदा को सूक्ष्म विभाजित जैव पदार्थ-ह्यूमस प्रदान करते हैं।
  • ठंडी जलवायु में ह्यूमस एकत्रित हो जाता है, क्योंकि यहाँ बैक्टीरियल वृद्धि धीमी होती है।
  • आई, उष्ण एवं भूमध्य रेखीय जलवायु में बैक्टीरियल वृद्धि एवं क्रियाएँ सघन होती हैं तथा मृत वनस्पति शीघ्रता से ऑक्सीकृत हो जाती है जिससे मृदा में ह्यूमस की मात्रा बहत कम रह जाती है।
  • बैक्टीरिया एवं मृदा के जीव हवा से गैसीय नाइट्रोजन प्राप्त कर उसे रासायनिक रूप से परिवर्तित कर देते हैं जिसका पौधों द्वारा उपयोग किया जा सकता है। इस प्रक्रिया को नाइट्रोजन निर्धारण कहते हैं।

भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ HBSE 11th Class Geography Notes

→ समंककता (Cohesion)-पदार्थों का आपस में जुड़े रहने का गुण और शक्ति समंककता कहलाती है।

→ निक्षालन या प्रक्षालन (Leaching)-आर्द्र जलवायु के प्रदेशों का वह प्रक्रम जिसके द्वारा जैव तथा खनिज लवण जैसे घुलनशील पदार्थ मिट्टी की ऊपरी परत से वर्षा जल के रिसाव के साथ निचली परत में पहुंच जाते हैं।

→ केशिका क्रिया (Capillary Action)-वर्षण से ज्यादा वाष्पीकरण वाले क्षेत्रों में मिट्टी में उपलब्ध जल का कोशिका के समान पतली नलिकाओं द्वारा नीचे से ऊपर की ओर उठना, केशिका क्रिया कहलाता है। जल के ऊपर की ओर स्थित संचरण का क्षेत्र Capillary.Fringe कहलाता है। बालू मिट्टी की बजाय चीका मिट्टी में नमी केशिका क्रिया अधिक प्रभावी होती है। मोमबत्ती के धागे में पिघले मोम का पहुंचना, जल-स्तर स्याही चूस (Blotting Paper) द्वारा स्याही का चूसना व दीए में रखी कपास की बाट में तेल या घी का पहुंचना, केशिका क्रिया द्वारा ही होता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

→ मृदा वातन (Aeration of Soil)-वह प्रक्रिया जिसमें वायुमंडलीय हवा मिट्टी की हवा को प्रतिस्थापित (Replace) करती है। एक भली-भांति वातित मिट्टी में बाहर और अंदर की हवा एक-जैसी होती है, किंतु अल्पवातित मिट्टियों में वायुमंडल की अपेक्षा ऑक्सीजन का प्रतिशत कम और कार्बन डाईऑक्साइड का प्रतिशत अधिक होता है।

→ pH मूल्य (pH Value)-मिट्टी में अम्ल या क्षार का सांद्रण व्यक्त करने वाला एक अंक। इस विधि का आविष्कार S.P. Sorensen ने सन् 1909 में किया था। इस मापक में 0 से 14 अंक होते हैं तथा तटस्थ घोल की pH Value 7 होती है। क्षारीय घोल 7 से 14 तक के अंकों द्वारा व्यक्त होता है, जबकि अम्लीय घोल 0 से 7 तक के अंकों द्वारा व्यक्त किया जाता है।

→ पॉडजोलाइज़ेशन (Podzolization)-अत्यंत ठंडी जलवायु में जीवाणुओं की कमी के कारण जैव तत्त्वों के धीरे-धीरे सड़ने-गलने से मिट्टी का धीमा विकास।

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HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

HBSE 11th Class Geography महासागरों और महाद्वीपों का वितरण Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्न में से किसने सर्वप्रथम यूरोप, अफ्रीका व अमेरिका के साथ स्थित होने की संभावना व्यक्त की?
(A) अल्फ्रेड वेगनर
(B) अब्राहम ऑरटेलियस
(C) एनटोनियो पेलेग्रिनी
(D) एडमंड हैस
उत्तर:
(B) अब्राहम ऑरटेलियस

2. पोलर फ्लीइंग बल (Polar fleeing force) निम्नलिखित में से किससे संबंधित है?
(A) पृथ्वी का परिक्रमण
(B) पृथ्वी का घूर्णन
(C) गुरुत्वाकर्षण
(D) ज्वारीय बल
उत्तर:
(B) पृथ्वी का घूर्णन

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

3. इनमें से कौन-सी लघु (Minor) प्लेट नहीं है?
(A) नजका
(B) फिलीपीन
(C) अरब
(D) अंटार्कटिक
उत्तर:
(D) अंटार्कटिक

4. सागरीय अधस्तल विस्तार सिद्धांत की व्याख्या करते हुए हेस ने निम्न में से किस अवधारणा पर विचार नहीं किया?
(A) मध्य-महासागरीय कटकों के साथ ज्वालामुखी क्रियाएँ
(B) महासागरीय नितल की चट्टानों में सामान्य व उत्क्रमण चुंबकत्व क्षेत्र की पट्टियों का होना
(C) विभिन्न महाद्वीपों में जीवाश्मों का वितरण
(D) महासागरीय तल की चट्टानों की आयु
उत्तर:
(C) विभिन्न महाद्वीपों में जीवाश्मों का वितरण

5. हिमालय पर्वतों के साथ भारतीय प्लेट की सीमा किस तरह की प्लेट सीमा है?
(A) महासागरीय-महाद्वीपीय अभिसरण
(B) अपसारी सीमा
(C) रूपांतर सीमा
(D) महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण
उत्तर:
(D) महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
महाद्वीपों के प्रवाह के लिए वेगनर ने किन बलों का उल्लेख किया?
उत्तर:
अल्फ्रेड वेगनर जर्मन के प्रसिद्ध मौसमविद थे, जिन्होंने सन् 1912 में “महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत” प्रस्तावित किया। महाद्वीपीय प्रवाह के लिए वेगनर ने दो बलों का उपयोग किया। पहला ध्रुवीय बल, दूसरा ज्वारीय बल।

ध्रुवीय बल-यह बल पृथ्वी के घूर्णन से संबंधित है।

  • ज्वारीय बल-यह बल सूर्य एवं चंद्रमा के आकर्षण से संबंधित है, जिससे महासागरों में ज्वार पैदा होते हैं।
  • वेगनर के अनुसार करोड़ों वर्षों से ये दो बल प्रभावशाली होकर विस्थापन के लिए सक्षम हैं।

प्रश्न 2.
मैंटल में संवहन धाराओं के आरंभ होने और बने रहने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
आर्थर होम्स ने मैंटल भाग में संवहन-धाराओं के प्रभाव की संभावना व्यक्त की। ये धाराएँ रेडियोएक्टिव तत्त्वों से उत्पन्न ताप भिन्नता से मैंटल भाग में उत्पन्न होती हैं। आर्थर होम्स ने तर्क दिया कि पूरे मैंटल भाग में इस प्रकार की धाराओं का तंत्र विद्यमान है।

प्रश्न 3.
प्लेट की रूपांतर सीमा, अभिसरण सीमा और अपसारी सीमा में मुख्य अंतर क्या है?
उत्तर:

  1. रूपांतर सीमा-जहाँ न तो नई पर्पटी का निर्माण होता है और न ही पर्पटी का विनाश होता है, उन्हें रूपांतर सीमा कहते हैं। इसका कारण है कि इस सीमा पर प्लेटें एक-दूसरे के साथ-साथ क्षैतिज दिशा में सरक जाती हैं।
  2. अभिसरण सीमा-जब एक प्लेट, दूसरी प्लेट के नीचे धंसती है और भूपर्पटी नष्ट होती है तो वह अभिसरण सीमा कहलाती है। यह सीमा तीन प्रकार की होती है।
  3. अपसारी सीमा-जब दो प्लेटें एक-दूसरे से विपरीत दिशा में अलग हटती हैं और नई पर्पटी का निर्माण होता है तो वह अभिसरण सीमा कहलाती है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

प्रश्न 4.
दक्कन ट्रेप के निर्माण के दौरान भारतीय स्थलखंड की स्थिति क्या थी?
उत्तर:
भारतीय प्लेट का एशियाई प्लेट की तरफ प्रवाह होने के दौरान लावा उत्पन्न हुआ और इसी लावा प्रवाह से दक्कन ट्रेप का निर्माण हुआ। इसका निर्माण लगभग 6 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ। उस समय भारतीय स्थलखंड सुदूर दक्षिण में 50° दक्षिणी अक्षांश पर स्थित था।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के पक्ष में दिए गए प्रमाणों का वर्णन करें।
उत्तर:
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के पक्ष में दिए गए प्रमाण निम्नलिखित हैं-
1. महाद्वीपों में साम्य-दक्षिण अमेरिका व अफ्रीका के आमने-सामने की तटरेखाएँ अद्भुत व त्रुटि-रहित साम्य दिखाती हैं। 1964 ई० में बुलर्ड ने अपने प्रोग्राम में अटलांटिक तटों को जोड़ते हुए एक मानचित्र तैयार किया। तटों का यह साम्य बिल्कुल सही सिद्ध हुआ।

2. महासागरीय चट्टानों की आयु में समानता-रेडियोमिट्रिक विधि से महासागरों के पार महाद्वीपों की चट्टानों के निर्माण के समय का पता लगाया जा सकता है। उदाहरणतः 200 करोड़ वर्ष प्राचीन शैल समूहों की एक पट्टी ब्राजील तट और पश्चिमी अफ्रीका के तट पर मिलती है जो आपस में मेल खाती है।

3. टिलाइट-टिलाइट वे अवसादी चट्टानें हैं, जो हिमानी निक्षेपण से निर्मित होती हैं। भारत में पाए जाने वाले गोंडवाना श्रेणी के तलछटों के प्रतिरूप दक्षिण गोलार्ध के छः विभिन्न स्थलखंडों से मिलते हैं। हिमानी निर्मित टिलाइड चट्टानें पुरातन जलवायु और महाद्वीपों के विस्थापन के स्पष्ट प्रमाण प्रस्तुत करती हैं।

4. प्लेसर निक्षेप सोना-युक्त शिराएँ ब्राजील में पाई जाती हैं। अतः घाना में मिलने वाले सोने के निक्षेप ब्राजील पठार से उस समय निकले होंगे, जब ये दोनों महाद्वीप एक-दूसरे से जुड़े थे।

5. जीवाश्मों का वितरण यदि समुद्री अवरोधक के दोनों विपरीत किनारों पर जल एवं स्थल में पाए जाने वाले पौधों व जंतुओं की समान प्रजातियाँ पाई जाएँ तो उनके वितरण के विवरण में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।

इस प्रेक्षण से “लैमूर” भारत, मैडागास्कर व अफ्रीका में मिलते हैं। वैज्ञानिकों ने इन तीनों स्थलखंडों को जोड़कर एक स्थलखंड “लेमूरिया” की उपस्थिति को माना।

प्रश्न 2.
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत व प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत में मूलभूत अंतर बताइए।
उत्तर:
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत व प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत में मूलभूत अंतर निम्नलिखित हैं-

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांतप्लेट विवर्तनिक सिद्धांत
(1) यह सिद्धान्त महाद्वीपों के विस्थापन के अध्ययन पर बल देता है। यह सिद्धांत महासागरों और महाद्वीपों के वितरण का अध्ययन करता है।(1) यह सिद्धान्त महाद्वीपों व महासागरों की उत्पत्ति पर आधारित है।
(2) इस सिद्धान्त की आधारभूत संकल्पना यह थी कि एक बड़ा भू-भाग था, जिसकी “पैंजिया” कहा गया, जो कुछ समय के बाद अन्य भू-खंडों में विभाजित हुआ।(2) प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी का स्थलमंडल सात मुख्य प्लेटों व कुछ छोटी प्लेटों में विभक्त है।
(3) यह सिद्धांत महाद्वीपों में साम्य, प्लेसर निक्षेप तथा जीवाश्मों के वितरण पर बल देता है।(3) यह सिद्धांत धरातल के अंदर की प्रक्रियाओं का विश्लेषण करता है।
(4) यह सिद्धांत भविष्य की घटनाओं पर व्याख्या नहीं करता।(4) इस सिद्धांत के अनुसार सभी प्लेटें भविष्य में गतिमान रहेंगी।
(5) यह सिद्धांत अल्फ्रेड वेगनर ने सन् 1912 में प्रस्तुत किया।(5) यह सिद्धांत मोरगन ने सन् 1967 में प्रस्तुत किया।

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प्रश्न 3.
महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत के उपरांत की प्रमुख खोज क्या है, जिससे वैज्ञानिकों ने महासागर व महाद्वीपीय वितरण के अध्ययन में पुनः रुचि ली?
उत्तर:

  1. विशेष रूप से, समुद्र तल मानचित्रण से एकत्रित जानकारी महासागरों और महाद्वीपों के वितरण के अध्ययन के लिए नए आयाम प्रदान करती है।
  2. महासागरीय पर्पटी की चट्टानें महाद्वीपीय पर्पटी की चट्टानों की अपेक्षा अधिक नई हैं। महासागरीय पर्पटी की चट्टानें 20 करोड़ वर्ष से अधिक पुरानी नहीं हैं।
  3. महासागरीय कटक के मध्य भाग के दोनों तरफ समान दूरी पर पाई जाने वाली चट्टानों के निर्माण का समय, संरचना, संघटन और चुम्बकीय गुणों में समानता पाई जाती हैं।
  4. महासागरीय कटकों के समीप की चट्टानें नवीनतम तथा कटकों के शीर्ष से दूर चट्टानों की आयु भी अधिक है।
  5. गहरी खाइयों में भूकंप उद्गम केंद्र अधिक गहराई पर स्थित हैं, जबकि मध्य-सागरीय कटकों के क्षेत्र में भूकंप उद्गम केंद्र कम गहराई पर स्थित हैं।

महासागरों और महाद्वीपों का वितरण HBSE 11th Class Geography Notes

→ महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत (Continental Drift Theory)-सन् 1912 में प्रसिद्ध जर्मन मौसमविद अलफ्रेड वेगनर ने यह सिद्धांत प्रस्तावित किया। यह सिद्धांत महाद्वीपों और महासागरों के वितरण से संबंधित था।

→ महाद्वीप (Continent) समुद्र तल से ऊपर उठे. पृथ्वी के विशाल भू-खंड महाद्वीप कहलाते हैं। विश्व में सात महाद्वीप हैं।

→ महासागर (Ocean)-सीमांत सागरों; जैसे भूमध्य सागर व कैरेबियन सागर, बाल्टिक सागर इत्यादि को छोड़कर महासागरीय द्रोणियों में एकत्रित जल के विस्तार को महासागर कहते हैं। वर्तमान में विश्व को पाँच महासागरों में बाँटा गया है-प्रशांत महासागर, हिंद महासागर, अध या अटलांटिक महासागर, आकटिक महासागर एवं अण्टाकटिक महासागर।

→ प्रतिस्थापना परिकल्पना (Displacement Hypothesis)-वह सिद्धांत जिसके अनुसार भू-मण्डल के सभी महाद्वीप किसी समय उपस्थित एक बड़ी भू-संहति के रूप में थे। इस भू-संहति के खंडित हो जाने पर इसके अलग-अलग भाग महाद्वीपों के रूप में विस्थापित हो गए।

→ जीवाश्म (Fossil)-कुछ अवशेष अथवा पादप या जंतुओं के प्रतिरूप, जो भू-पर्पटी (Earth Crust) में पाए जाने वाली विभिन्न शैलों में एक लंबी अवधि तक दबे अथवा आरक्षित रहे हों।

→ हिमयुग (IceAge)-नवीनतम हिमयुग चतुर्थ महाकल्प के आदि से आरंभ होता है, उस समय यूरोप और उत्तरी अमेरिका के अधिकांश भाग पर बर्फ जम गई थी। ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की वर्तमान बर्फ चादरें इस हिमयुग की अवशेष हैं।

→ प्लेट टेक्टोनिक्स (Plate Tectonics)-यूनानी भाषा में टेक्टोनिक्स का अर्थ है-Builder अर्थात् निर्माता। प्लेट टेक्टोनिक्स 60 के दशक में विकसित एक ऐसी वैज्ञानिक संकल्पना है जिसके अनुसार पृथ्वी का बाहरी, ठोस स्थलमण्डल 7 बडी और कछ छोटी प्लेटों से बना हआ है। कछ वैज्ञानिक इन प्लेटों की संख्या अब लगभग 20 मानते हैं।

→ अपसारी प्लेटें (Divergent Plates)-जब दो प्लेटें एक-दूसरे से विपरीत दिशा में अलग हटती हैं, तो उन्हें अपसारी प्लेटें कहा जाता है।

→ अभिसरण (Covergence)-जब कुछ प्लेटें एक-दूसरे की तरफ बढ़कर निकट आती हैं और आपस में टकराती हैं तो इसे अभिसरण कहा जाता है।

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HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

HBSE 11th Class Geography भूगोल एक विषय के रूप में Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में से किस विद्वान् ने भूगोल (Geography) शब्द (Term) का प्रयोग किया?
(A) हेरोडोट्स
(B) गैलीलियो
(C) इरेटॉस्थेनीज़
(D) अरस्तु
उत्तर:
(C) इरेटॉस्थेनीज़

2. निम्नलिखित में से किस लक्षण को भौतिक लक्षण कहा जा सकता है?
(A) पत्तन
(B) मैदान
(C) सड़क
(D) जल उद्यान
उत्तर:
(B) मैदान

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

3. स्तंभ I एवं II के अंतर्गत लिखे गए विषयों को पढ़िए।

स्तंभ-कस्तंभ-ख
प्राकृतिक/सामाजिक विज्ञानभूगोल की शाखाएँ
1. मौसम विज्ञानअ. जनसंख्या भूगोल
2. जनांकिकीब. मृदा भूगोल
3. समाजशास्त्रस. जलवायु विज्ञान
4. मृदा विज्ञानद. सामाजिक भूगोल

सही मेल को चिहांकित कीजिए।
(A) 1.ब. 2.स. 3.अ. 4.द.
(B) 1.द. 2.ब. 3.स. 4.अ.
(C) 1.अ. 2.द. 3.ब. 4.स.
(D) 1.स. 2.अ. 3.द. 4.ब.
उत्तर:
(D) 1.स. 2.अ. 3.द. 4.ब.

4. निम्नलिखित में से कौन-सा प्रश्न कार्य-कारण संबंध से जड़ा हआ है?
(A) क्यों
(B) क्या
(C) कहाँ
(D) कब
उत्तर:
(A) क्यों

5. निम्नलिखित में से कौन-सा विषय कालिक संश्लेषण करता है?
(A) समाजशास्त्र
(B) मानवशास्त्र
(C) इतिहास
(D) भूगोल
उत्तर:
(C) इतिहास

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
आप विद्यालय जाते समय किन महत्वपूर्ण सांस्कृतिक लक्षणों का पर्यवेक्षण करते हैं? क्या वे सभी समान हैं अथवा असमान? उन्हें भूगोल के अध्ययन में सम्मिलित करना चाहिए अथवा नहीं? यदि हाँ तो क्यों?
उत्तर:
जब हम विद्यालय जाते हैं तो रास्ते में दुकान, सड़क, घर, मंदिर, चर्च आदि सांस्कृतिक लक्षणों का पर्यवेक्षण करते हैं। ये सभी असमान हैं। इन्हें भूगोल के अध्ययन में सम्मिलित करना चाहिए, क्योंकि ये सभी सांस्कृतिक लक्षण सांस्कृतिक भूगोल तथा मानव भूगोल के अभिन्न अंग हैं।

प्रश्न 2.
आपने एक टेनिस गेंद, क्रिकेट गेंद, संतरा एवं लौकी देखा होगा। इनमें से कौन-सी वस्तु की आकृति पृथ्वी की आकृति से मिलती-जुलती है? आपने इस विशेष वस्तु को पृथ्वी की आकृति को वर्णित करने के लिए क्यों चुना है?
उत्तर:
संतरे की आकृति पृथ्वी से मिलती-जुलती है इसलिए हमने संतरे को पृथ्वी की आकृति से जोड़ा है, क्योंकि पृथ्वी भी ध्रुवों से चपटी है। जबकि अन्य कोई भी वस्तु पृथ्वी की आकृति से मेल नहीं खाती।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

प्रश्न 3.
क्या आप अपने विद्यालय में वन-महोत्सव समारोह का आयोजन करते हैं? हम इतने पौधारोपण क्यों करते हैं? वृक्ष किस प्रकार पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखते हैं?
उत्तर:
हमने अपने विद्यालय में अनेक बार वन-महोत्सव का आयोजन किया है। इनमें हम अपने विद्यालय में पेड़-पौधे लगाते हैं। पेड़-पौधे हमें ऑक्सीजन देते हैं तथा हमारे द्वारा छोड़ी गई कार्बन-डाइऑक्साइड को ग्रहण कर लेते हैं, जोकि पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन के लिए बहुत सहायक है। इस प्रकार पेड़-पौधे अथवा वृक्ष पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखते हैं।

प्रश्न 4.
आपने हाथी, हिरण, केंचुए, वृक्ष एवं घास देखा है। वे कहाँ रहते एवं बढ़ते हैं? उस मंडल को क्या नाम दिया गया है? क्या आप इस मंडल के कुछ लक्षणों का वर्णन कर सकते हैं?
उत्तर:
जिस स्थान पर हाथी, हिरण, केंचुए, वृक्ष एवं घास बढ़ते हैं, उस स्थान को जैवमंडल कहा जाता है। पृथ्वी का वह घेरा जहाँ स्थलमंडल, वायुमंडल, जलमंडल मिलकर जीवन को संभव बनाते हैं, उसे जीवमंडल कहते हैं। जीवमंडल में गतिशील और स्थिर भूगोल एक विषय के रूप में दोनों तरह के जीव पाए जाते हैं। गतिशील जीवों में वन्य-प्राणी, जल जीव, मानव आदि आते हैं और स्थिर जीवों में वनस्पति, पेड़-पौधे इत्यादि शामिल हैं।

प्रश्न 5.
आपको अपने निवास से विद्यालय जाने में कितना समय लगता है? यदि विद्यालय आपके घर की सड़क के उस पार होता तो आप विद्यालय पहुंचने में कितना समय लेते? आने-जाने के समय पर आपके घर एवं विद्यालय के बीच की दूरी का क्या प्रभाव पड़ता है? क्या आप समय को स्थान या इसके विपरीत स्थान को समय में परिवर्तित कर सकते हैं?
उत्तर:
हमें अपने घर से विद्यालय जाते हुए आधा घण्टा लगता है। यदि विद्यालय घर की सड़क के उस पार होता तो हमें सिर्फ पाँच मिनट विद्यालय जाने में लगते। आने-जाने के समय में पढ़ाई का नुकसान होता है। हाँ, स्थान को आने-जाने के आधार पर परिवर्तित किया जा सकता है; जैसे हम कहते हैं कि इस स्थान पर हम 30 मिनट में पहुँच जाएँगे। परन्तु समय को स्थान में परिवर्तित नहीं कर सकते।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
आप अपने परिस्थान (Surrounding) का अवलोकन करने पर पाते हैं कि प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक दोनों तथ्यों में भिन्नता पाई जाती है। सभी वृक्ष एक ही प्रकार के नहीं होते। सभी पशु एवं पक्षी जिसे आप देखते हैं भिन्न-भिन्न होते हैं। ये सभी भिन्न तत्त्व धरातल पर पाए जाते हैं। क्या अब आप यह तर्क दे सकते हैं कि भूगोल प्रादेशिक/क्षेत्रीय भिन्नता का अध्ययन है?
उत्तर:
पृथ्वी तल पर प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक दोनों तथ्यों में भिन्नता पाई जाती है। ये भिन्नताएँ भौतिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरण में पाई जाने वाली भिन्नताओं से उपजती हैं। इसी क्षेत्रीय भिन्नता (Areal Differentiation) का अध्ययन करना भूगोल के मुख्य उद्देश्यों में से एक है। भूगोल पृथ्वी पर केवल क्षेत्रीय भिन्नताओं का अध्ययन ही नहीं करता बल्कि उन कारकों का भी अध्ययन करता है जो इन भिन्नताओं को जन्म देते हैं या प्रभावित करते हैं।

उदाहरणतः फसल प्रारूप (Cropping Pattern) में भिन्नता पाई जाती है जो मिट्टी के प्रकार, जलवायु, उत्पाद की माँग, किसानों की कम क्षमता, तकनीकी निवेश की उपलब्धता आदि की भिन्नता पर निर्भर करती है। इसी प्रकार किसी क्षेत्र में औद्योगिक विकास का स्तर अनेक तत्त्वों से प्रभावित होता है। भूगोल कारण संबंध (Cause-effect relationship) भी ज्ञात करता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हेट्टनर ने कहा था, “भूगोल पृथ्वी के विभिन्न भागों में कार्य-कारण संबंध का अध्ययन करता है।

प्रश्न 2.
आप पहले ही भूगोल, इतिहास, नागरिकशास्त्र एवं अर्थशास्त्र का सामाजिक विज्ञान के घटक के रूप में अध्ययन कर चुके हैं। इन विषयों के समाकलन का प्रयास उनके अंतरापृष्ठ (Interface) पर प्रकाश डालते हुए कीजिए।
यन सामाजिक विज्ञान के एक घटक के रूप में किया है। सामाजिक विज्ञान का भूगोल की एक शाखा से अंतरापृष्ठ संबंध है।

  1. भूगोल और इतिहास में अंतर्संबंध है। प्रत्येक विषय का एक दर्शन होता है, जो उस विषय के लिए मूल-आधार होता है।
  2. सामाजिक विज्ञान, अर्थशास्त्र, जनांकिकी सामाजिक यथार्थता का अध्ययन करते हैं।
  3. भूगोल की सभी शाखाएँ-सामाजिक भूगोल, राजनीतिक भूगोल, आर्थिक भूगोल, जनसंख्या भूगोल, अधिवास भूगोल विषयों को घनिष्ठता से जोड़ती हैं।
  4. राजनीतिक भूगोल एक क्षेत्रीय इकाई के रूप में राज्य तथा उसकी जनसंख्या के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन करता है।
  5. अर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था की मूल विशेषताओं; जैसे उत्पादन, विवरण, विनिमय एवं उपभोग का विवेचन करता है।
  6. उत्पादन, विनिमय, वितरण तथा उपभोग के स्थानिक पक्ष का अध्ययन आर्थिक भूगोल के अंतर्गत आता है।

समाकलन विषय होने के कारण भूगोल अनेक सामाजिक विज्ञानों से जुड़ा है। इन विज्ञानों का भूगोल से संबंध होने का मुख्य कारण यह है कि इन विषयों के कई कारकों में भी क्षेत्रीय भिन्नताएँ पाई जाती हैं।

अतः विवेचन से स्पष्ट है कि भूगोल प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञानों से घनिष्ठता से जुड़ा हुआ है।

भूगोल एक विषय के रूप में HBSE 11th Class Geography Notes

→ भूगोल (Geography)-पृथ्वी तल पर पाए जाने वाले इन्हीं भौतिक एवं मानवीय सांस्कृतिक तत्त्वों की भिन्नता का वर्णन ही भूगोल कहलाता है।

→ पारिस्थितिकी (Ecology)-वह विज्ञान जिसके अंतर्गत विभिन्न जीवों तथा उनके पर्यावरण के अंतर्संबंधों का अध्ययन किया जाता है। मानव पारिस्थितिकी (Human Ecology) के संदर्भ में इसका अर्थ मनुष्य और स्थान के बीच पाए जाने वाले अंतर्संबंध के अध्ययन से है।

→ भौतिक पर्यावरण/वातावरण (Physical Environment) मानव अथवा अन्य पारिस्थितिक समुदायों को प्रभावित करने वाले भौतिक कारकों; जैसे वर्षा, तापमान, भू-आकार, मिट्टी, प्राकृतिक वनस्पति, जल इत्यादि का सम्मिश्रण।

→ सांस्कृतिक पर्यावरण/वातावरण (Cultural Environment) मानव अथवा अन्य पारिस्थितिक समुदायों को प्रभावित करने वाले सांस्कृतिक कारकों; जैसे ग्राम, नगर, यातायात के साधन, कारखाने, व्यापार, शिक्षा संस्थाओं इत्यादि का सम्मिश्रण।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 1 भूगोल एक विषय के रूप में

→ कार्य-कारण संबंध (Cause and Effect Relationship) मानव द्वारा किया गया कोई उद्यम और उसके द्वारा उत्पन्न प्रभाव व परिणाम के बीच संबंधों का होना। उदाहरणतः, अर्जित शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति के व्यवहार, सामाजिक व आर्थिक स्तर में होने वाले परिवर्तन में शिक्षा कारण है और बदलाव कार्य है। इसी प्रकार सिंचाई व्यवस्था होने से कृषि क्षेत्र में होने वाले सकारात्मक आर्थिक बदलाव कार्य-कारण संबंध का उदाहरण है।

→ क्रमबद्ध भूगोल (Systematic Geography) भूगोल की वह शाखा, जिसके अंतर्गत भौगोलिक तत्त्वों की क्षेत्रीय-विषमताओं का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है।

→ प्रादेशिक भूगोल (Regional Geography)-भू-पृष्ठ पर विभिन्न प्राकृतिक प्रदेशों; जैसे मानसून प्रदेश, टुण्ड्रा प्रदेश आदि का भौगोलिक अध्ययन।

→ परिघटना (Phenomena)-ऐसी वस्तु जिसे इंद्रियों; जैसे आंख, कान , नाक आदि से देखा, सुना, सूंघा व स्पर्श किया जा सकता है। उदाहरणतः पर्वत या पठार प्राकृतिक परिघटनाएँ हैं, जबकि सड़क, मंदिर, खेत सांस्कृतिक परिघटनाएँ हैं।

→ अंतरापृष्ठ (Interface)-वह जगह या धरातल जहां दो विषय आपस में मिलते हैं और एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।

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HBSE 11th Class Geography Important Questions and Answers

Haryana Board HBSE 11th Class Geography Important Questions and Answers

HBSE 11th Class Geography Important Questions in Hindi Medium

HBSE 11th Class Geography Important Questions: भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत

HBSE 11th Class Geography Important Questions: भारत-भौतिक पर्यावरण

HBSE 11th Class Geography Important Questions in English Medium

HBSE 11th Class Geography Important Questions: Fundamentals of Physical Geography

  • Chapter 1 Geography as a Discipline
  • Chapter 2 The Origin and Evolution of the Earth
  • Chapter 3 Structure of the Earth’s Interior
  • Chapter 4 Distribution of Oceans and Continents
  • Chapter 5 Minerals and Rocks
  • Chapter 6 Geomorphic Processes
  • Chapter 7 Landforms and Their Evolution
  • Chapter 8 Composition and Structure of Atmosphere
  • Chapter 9 Solar Radiation, Heat Balance and Temperature
  • Chapter 10 Atmospheric Circulation and Weather Systems
  • Chapter 11 Water in the Atmosphere
  • Chapter 12 World Climate and Climate Change
  • Chapter 13 Oceanic Water
  • Chapter 14 Movement of the Ocean Water
  • Chapter 15 Life on the Earth
  • Chapter 16 Biodiversity and Conservation

HBSE 11th Class Geography Important Questions: India: Physical Environment

  • Chapter 1 India-Location
  • Chapter 2 Structure and Physiography
  • Chapter 3 Drainage System
  • Chapter 4 Climate
  • Chapter 5 Natural Vegetation
  • Chapter 6 Soils
  • Chapter 7 Natural Hazards and Disasters

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HBSE 11th Class Geography Solutions Haryana Board

Haryana Board HBSE 11th Class Geography Solutions

HBSE 11th Class Geography Solutions in Hindi Medium

HBSE 11th Class Geography Part 1 Fundamentals of Physical Geography (भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत भाग-1)

HBSE 11th Class Geography Part 2 India: People and Economy (भारत-भौतिक पर्यावरण भाग-2)

HBSE 11th Class Geography Part 3 Practical Work in Geography (भूगोल में प्रयोगात्मक कार्य)

HBSE 11th Class Geography Solutions in English Medium

HBSE 11th Class Geography Part 1 Fundamentals of Physical Geography

  • Chapter 1 Geography as a Discipline
  • Chapter 2 The Origin and Evolution of the Earth
  • Chapter 3 Structure of the Earth’s Interior
  • Chapter 4 Distribution of Oceans and Continents
  • Chapter 5 Minerals and Rocks
  • Chapter 6 Geomorphic Processes
  • Chapter 7 Landforms and Their Evolution
  • Chapter 8 Composition and Structure of Atmosphere
  • Chapter 9 Solar Radiation, Heat Balance and Temperature
  • Chapter 10 Atmospheric Circulation and Weather Systems
  • Chapter 11 Water in the Atmosphere
  • Chapter 12 World Climate and Climate Change
  • Chapter 13 Oceanic Water
  • Chapter 14 Movement of the Ocean Water
  • Chapter 15 Life on the Earth
  • Chapter 16 Biodiversity and Conservation

HBSE 11th Class Geography Part 2 India – Physical Environment

  • Chapter 1 India-Location
  • Chapter 2 Structure and Physiography
  • Chapter 3 Drainage System
  • Chapter 4 Climate
  • Chapter 5 Natural Vegetation
  • Chapter 6 Soils
  • Chapter 7 Natural Hazards and Disasters

HBSE 11th Class Geography Part 3 Practical Work in Geography

  • Chapter 1 Introduction to Maps
  • Chapter 2 Map Scale
  • Chapter 3 Latitude, Longitude and Time
  • Chapter 4 Map Projections
  • Chapter 5 Topographical Maps
  • Chapter 6 Introduction to Air Photos
  • Chapter 7 Introduction to Remote Sensing
  • Chapter 8 Weather Instruments, Maps and Charts

HBSE 11th Class Geography Question Paper Design

Class: 11th
Subject: Geography
Paper: Annual or Supplementary
Marks: 60
Time: 3 Hours

1. Weightage to Objectives:

ObjectiveKUASTotal
Percentage of Marks40252510100
Marks241515660

2. Weightage to Form of Questions:

Forms of QuestionsESAVSAOTotal
No. of Questions44415+128
Marks Allotted2012815+560
Estimated Time80502525180

3. Weightage to Content:

Units/Sub-UnitsMarks
1. भूगोल एक विषय के रूप में4
2. पृथ्वी10
3. भू-आकृतियां8
4. जलवायु6
5. जल (महासागर)6
6. पृथ्वी पर जीवन4
7. भारत स्थिति4
8. भू आकृति विज्ञान6
9. जलवायु, वनस्पति एवं मृदा8
10. प्राकृतिक संकट एवं आपदाएं : कारण, परिणाम तथा प्रबन्ध4
Total60

4. Scheme of Sections:

5. Scheme of Options: Internal Choice in Long Answer Question i.e. Essay Type

6. Difficulty Level:
Difficult: 10% Marks
Average: 50% Marks
Easy: 40% Marks

Abbreviations: K (Knowledge), U (Understanding), A (Application), E (Essay Type), SA (Short Answer Type), VSA (Very Short Answer Type), O (Objective Type)

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HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राकृतिक पदार्थ शैल की रचना करता है?
(A) बालू और चीका
(B) बजरी और रोड़ी
(C) ग्रेनाइट
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

2. आग्नेय शैलों को प्राथमिक शैलें इसलिए कहा जाता है क्योंकि
(A) ये भू-पृष्ठ पर सबसे ऊपर पाई जाती हैं।
(B) इनका भू-पृष्ठ पर सबसे अधिक विस्तार है
(C) इन शैलों का पृथ्वी पर सबसे पहले निर्माण हुआ था
(D) ये आर्थिक दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण शैलें हैं
उत्तर:
(C) इन शैलों का पृथ्वी पर सबसे पहले निर्माण हुआ था

3. ‘प्लूटो’ का अर्थ है-
(A) ग्रहों का देवता
(B) जल देवता
(C) अग्नि देवता
(D) पाताल देवता
उत्तर:
(D) पाताल देवता

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

4. अंतर्वेधी आग्नेय शैलों के संबंध में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) पातालीय शैलें केवल उत्थापन अथवा पृथ्वी के ऊपरी भाग के अनाच्छादन के बाद ही नजर आती हैं
(B) पाताल के अन्दर शीघ्र ठण्डी होने के कारण इन शैलों के रवे अत्यन्त छोटे होते हैं
(C) पातालीय आग्नेय शैलों के उदाहरण गेब्रो व ग्रेनाइट हैं
(D) पातालीय शैलें अपने मूल स्थान पर मैग्मा के जम जाने से बनती हैं
उत्तर:
(B) पाताल के अन्दर शीघ्र ठण्डी होने के कारण इन शैलों के रवे अत्यन्त छोटे होते हैं

5. स्थलमण्डल के लगभग तीन-चौथाई भाग में कौन-सी शैलें पाई जाती हैं?
(A) अवसादी
(B) आग्नेय
(C) कायांतरित
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) अवसादी

6. भूगर्भ में मैग्मा का सबसे बड़ा व सबसे गहरा भण्डार क्या कहलाता है?
(A) लैकोलिथ
(B) फैकोलिथ
(C) बैथोलिथ
(D) स्टॉक
उत्तर:
(C) बैथोलिथ

7. मोड़दार पर्वतों की अपनति व अभिनति में हुए मैग्मा के लहरदार जमाव को क्या कहते हैं?
(A) सिल
(B) डाइक
(C) फैकोलिथ
(D) लैकोलिथ
उत्तर:
(C) फैकोलिथ

8. गन्ना व कपास के लिए उपजाऊ काली मिट्टी किस शैल के क्षरण से बनती है?
(A) बेसाल्ट शैलें
(B) बालू-प्रधान अवसादी शैलें
(C) ग्रेनाइट शैलें
(D) आब्सीडियन
उत्तर:
(A) बेसाल्ट शैलें

9. निम्नलिखित में से कौन-सी अवसादी शैल है?
(A) बलुआ-पत्थर
(B) अभ्रक
(C) ग्रेनाइट
(D) नाईस
उत्तर:
(A) बलुआ-पत्थर

10. ग्रेनाइट शैल को आप किस वर्ग में रखेंगे?
(A) पैठिक आग्नेय शैल
(B) मध्यवर्ती आग्नेय शैल
(C) पातालीय आग्नेय शैल
(D) बहिर्वेधी आग्नेय शैल
उत्तर:
(C) पातालीय आग्नेय शैल

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

11. रासायनिक क्रिया से बनी परतदार शैल का उत्तम उदाहरण है-
(A) जिप्सम
(B) बालू पत्थर
(C) शैल
(D) खड़िया
उत्तर:
(A) जिप्सम

12. निम्नलिखित में से कौन-सी आग्नेय शैल अंतर्वेधी है?
(A) लावा पठार
(B) गौण शंकु
(C) ज्वालामुखी शंकु
(D) डाइक
उत्तर:
(D) डाइक

13. किस मूल शैल से कायांतरित होकर हीरा बना?
(A) नीस
(B) बलुआ पत्थर
(C) कोयला
(D) ग्रेनाइट
उत्तर:
(C) कोयला

14. पैंसिल का सिक्का बनाने के लिए किस शैल का प्रयोग किया जाता है?
(A) स्लेट
(B) एस्बेस्टस
(C) कोयला
(D) ग्रेफाइट
उत्तर:
(D) ग्रेफाइट

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
पृथ्वी के आंतरिक भाग में खनिजों का मूल स्रोत क्या है?
उत्तर:
मैग्मा।

प्रश्न 2.
खनिजों का निर्माण करने वाले तत्त्वों की संख्या बताइए।
उत्तर:
खनिजों का निर्माण करने वाले तत्त्वों की संख्या 8 है।

प्रश्न 3.
चट्टान बनाने वाले सामान्य खनिज कितने हैं?
उत्तर:
चट्टान बनाने वाले सामान्य खनिज 12 हैं।

प्रश्न 4.
भू-पर्पटी पर पाए जाने वाले खनिजों में सिलीकेट की प्रतिशत मात्रा कितनी है?
उत्तर:
भू-पर्पटी पर पाए जाने वाले खनिजों में सिलीकेट की प्रतिशत मात्रा लगभग 87 प्रतिशत है।

प्रश्न 5.
अधिसिलिक आग्नेय चट्टानों में सिलिका का प्रतिशत कितना होता है?
उत्तर:
अधिसिलिक आग्नेय चट्टानों में सिलिका का प्रतिशत लगभग 55 प्रतिशत होता है।

प्रश्न 6.
अल्पसिलिक आग्नेय चट्टान का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
बेसाल्ट/गेब्रो।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 7.
बेसाल्ट के अपक्षय से दक्षिणी भारत में पाई जाने वाली उपजाऊ काली मिट्टी का नाम क्या है?
उत्तर:
बेसाल्ट के अपक्षय से दक्षिणी भारत में पाई जाने वाली उपजाऊ काली मिट्टी का नाम रेगड़ है।

प्रश्न 8.
स्थिति के आधार पर आग्नेय चट्टानों के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर:
स्थिति के आधार पर आग्नेय चट्टानें दो प्रकार की होती हैं-

  1. बहिर्वेधी और
  2. अंतर्वेधी।

प्रश्न 9.
शैलें (चट्टानें) कितने प्रकार की होती हैं?
उत्तर:
तीन।

  1. याग्नेय शैलें
  2. अवसादी शैलें
  3. कायांतरित शैलें।

प्रश्न 10.
लाल रंग के बलुआ पत्थर से बनी किन्हीं दो प्रसिद्ध इमारतों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. दिल्ली का लाल किला
  2. फतेहपुर सीकरी का महल।

प्रश्न 11.
हिमानी द्वारा जमा किए गए अवसादों से बनी चट्टान का क्या नाम है?
उत्तर:
गोलाश्म मृत्तिका (Till)।

प्रश्न 12.
अवसादी चट्टानों में कौन-से दो खनिज ईंधन पाए जाते हैं?
उत्तर:

  1. कोयला और
  2. खनिज तेल।

प्रश्न 13.
पेन्सिल बनाने, धातु गलाने, परमाणु ऊर्जा संयन्त्रों के निर्माण तथा बिलियर्डस की मेज़ बनाने के लिए कौन-सी चट्टान का उपयोग किया जाता है?
उत्तर:
पेन्सिल बनाने, धातु गलाने, परमाणु ऊर्जा संयन्त्रों के निर्माण तथा बिलियर्ड्स की मेज़ बनाने के लिए ग्रेफाइट का उपयोग किया जाता है।।

प्रश्न 14.
अवसादी चट्टानें स्थलमण्डल के कितने प्रतिशत भाग पर विस्तृत हैं?
उत्तर:
अवसादी चट्टानें स्थलमण्डल के 75 प्रतिशत भाग पर विस्तृत हैं।

प्रश्न 15.
भारत में स्लेट किन-किन राज्यों में मिलती है?
उत्तर:
झारखण्ड, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा में।

प्रश्न 16.
जिप्सम किस प्रकार की उत्पत्ति वाली चट्टान है?
उत्तर:
जिप्सम रासायनिक उत्पत्ति वाली चट्टान है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 17.
जैविक उत्पत्ति वाली दो अवसादी चट्टानों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. चूने का पत्थर और
  2. कोयला।

प्रश्न 18.
रूपान्तरण कितनी गहराई पर और कितने तापमान पर होता है?
उत्तर:
धरातल से 12 से 16 कि०मी० की गहराई पर और 150°C से 800°C तापमान तक।

प्रश्न 19.
ग्रेफाइट का गलनांक कितना होता है?
उत्तर:
ग्रेफाइट का गलनांक 3500°C सेल्सियस होता है।

प्रश्न 20.
आग्नेय चट्टानों/शैलों की उत्पत्ति का स्रोत क्या है?
उत्तर:
आग्नेय चट्टानों की उत्पत्ति का स्रोत ज्वालामुखी उदभेदन है।

प्रश्न 21.
धरातल पर आते ही लावा तेजी से ठण्डा क्यों हो जाता है?
उत्तर:
क्योंकि वह वायुमण्डल के सम्पर्क में आ जाता है।

प्रश्न 22.
अधिसिलिक या अम्लीय आग्नेय चट्टानों में सिलिका की मात्रा कितनी होती है?
उत्तर:
65 से 85 प्रतिशत तक।

प्रश्न 23.
अल्पसिलिक या क्षारीय या पैठिक आग्नेय चट्टानों में सिलिका की मात्रा कितनी होती है?
उत्तर:
45 से 55 प्रतिशत तक।

प्रश्न 24.
पश्चिमी भारत में बेसाल्ट से घिरे विस्तृत प्रदेश का क्या नाम है?
उत्तर:
दक्कन ट्रैप।

प्रश्न 25.
तलछट को कठोरता से जोड़ने का काम कौन-से तत्त्व करते हैं?
उत्तर:
सिलिका और कैल्साइट।

प्रश्न 26.
यांत्रिक क्रिया द्वारा बनी अवसादी चट्टानों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
काँग्लोमरेट, ब्रेसिया, शेल (Shale) तथा चीका मिट्टी।

प्रश्न 27.
वह कौन-सा मापक है जो खनिज कणों के आकार का कोटि-निर्धारण करता है?
उत्तर:
वेंटवर्थ (Wentworth) मापक।

प्रश्न 28.
स्थलजात पदार्थ (Terrigenous Material) क्या होते हैं?
उत्तर:
स्थल से प्राप्त होने वाला अवसाद जो समुद्रों में निक्षेपित होता है।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्पत्ति के आधार पर अवसादी चट्टानें कितने प्रकार की होती हैं?
उत्तर:
उत्पत्ति के आधार पर अवसादी चट्टानें तीन प्रकार की होती हैं-

  1.  यांत्रिक
  2. जैविक और
  3. रासायनिक।

प्रश्न 2.
चट्टानों का रूपान्तरण कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
चट्टानों का रूपांतरण तीन प्रकार का होता है-

  1. गतिक
  2. तापीय और
  3. क्षेत्रीय।

प्रश्न 3.
उत्पत्ति के आधार पर चट्टानों के कितने प्रकार हैं?
उत्तर:
उत्पत्ति के आधार पर चट्टानें तीन प्रकार की होती हैं-

  1. आग्नेय चट्टानें
  2. परतदार अथवा तलछटी चट्टानें
  3. कायान्तरित चट्टानें।

प्रश्न 4.
IGNEOUS’ शब्द कहाँ से आया है? इसका अर्थ भी बताइए।
उत्तर:
इग्नियस शब्द लातीनी (Latin) भाषा के ‘Ignis’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है-आग (Fire)।

प्रश्न 5.
‘Plutonic’ शब्द कहाँ से आया है? इसका अर्थ भी बताइए।
उत्तर:
प्लूटोनिक शब्द ‘Pluto’ से बना है जिसका अर्थ है ‘पाताल देवता’।

प्रश्न 6.
गेब्रो तथा ग्रेनाइट की चट्टानों से रवे (Crystals) बड़े-बड़े क्यों बनते हैं?
उत्तर:
इन चट्टानों को पाताल के अन्दर ठण्डा होने में बहुत समय लग जाता है जिससे इन चट्टानों की रचना करने वाले रवे बड़े बनते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 7.
बेसाल्ट में रखे नहीं के बराबर होते हैं, क्यों?
उत्तर:
शान्त उद्गार से बनी इस चट्टान में लावा शीघ्र जम जाता है जिसमें इन चट्टानों के खनिजों के रवे लगभग नहीं बनते।

प्रश्न 8.
ज्वालामुखी काँच क्या होता है?
उत्तर:
यदि लावा बहुत शीघ्र ठण्डा हो जाए तो काँच जैसी चट्टानों का निर्माण होता है जिसे ज्वालामुखी काँच (Volcanic Glass) या आब्सीडियन कहा जाता है।

प्रश्न 9.
पातालीय, अधिवितलीय तथा बहिर्वेधी चट्टानों के दो-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. पातालीय – ग्रेबो तथा ग्रेनाइट।
  2. अधिवितलीय या मध्यवर्ती – डोलेराइट तथा माइका पैग्मेटाइट।
  3. बहिर्वेधी – बेसाल्ट तथा आब्सीडियन।

प्रश्न 10.
बैथोलिथ क्या होता है?
उत्तर:
यह मैग्मा का सबसे बड़ा गुम्बदाकार जमाव होता है जो अत्यधिक गहराई में पाया जाता है।

प्रश्न 11.
लैकोलिथ क्या होता है?
उत्तर:
भू-गर्भ से धरातल की ओर बढ़ता हुआ विस्फोटक मैग्मा जब किन्हीं कारणों से धरातल पर नहीं पहुंच पाता तो वह परतदार चट्टानों में छतरीनुमा रूप ले लेता है जिसे लैकोलिथ कहते हैं।

प्रश्न 12.
स्टॉक किसे कहते हैं?
उत्तर:
छोटे आकार के बैथोलिथ को स्टॉक कहते हैं।

प्रश्न 13.
निर्माणकारी साधनों के आधार पर अवसादी चट्टानें कितने प्रकार की हैं?
उत्तर:
निर्माणकारी साधनों के आधार पर अवसादी चट्टानें तीन प्रकार की होती हैं-

  1. जलीय चट्टानें
  2. हिमनद निर्मित
  3. वायु निर्मित।

प्रश्न 14.
जलीय अवसादी चट्टानें कितने प्रकार की होती हैं?
उत्तर:
जलीय अवसादी चट्टानें तीन प्रकार की होती हैं-

  1. नदीकृत
  2. सरोवरी
  3. समुद्री।

प्रश्न 15.
काँग्लोमरेट क्या होता है?
उत्तर:
जब बालू के कणों के साथ गोल व चिकने रोड़े गारे के साथ आपस में जुड़ जाते हैं तो उसे काँग्लोमरेट कहते हैं।

प्रश्न 16.
चूना-प्रधान तथा कार्बन-प्रधान जैव अवसादी चट्टानों के दो-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
चूना-प्रधान अवसादी चट्टानें सेलखड़ी और खड़िया कार्बन-प्रधान अवसादी चट्टानें कोयला, पीट।

प्रश्न 17.
कार्बन की मात्रा के आधार पर कोयले की श्रेष्ठता का क्रम निर्धारित कीजिए।
उत्तर:

  1. पीट
  2. लिग्नाइट
  3. बिटुमिनस
  4. एन्थ्रेसाइट।

प्रश्न 18.
रासायनिक क्रिया से बनी निर्जेव अवसादी चट्टानों के तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. सेंधा नमक (Salt Rock)
  2. जिप्सम व
  3. शोरा।

प्रश्न 19.
रूपान्तरण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
रूपान्तरण से अभिप्राय चट्टानों के रंग, रूप तथा रचना में बदलाव से है।

प्रश्न 20.
रूपान्तरण किन कारणों से होता है?
उत्तर:
चट्टानों का रूपान्तरण ताप और दबाव के कारण होता है।

प्रश्न 21.
रूपान्तरित होकर बलुआ पत्थर तथा चूने का पत्थर किन चट्टानों में बदल जाता है?
उत्तर:
बलुआ पत्थर क्वार्टज़ाइट में तथा चूने का पत्थर संगमरमर में।

प्रश्न 22.
शैल गठन से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
चट्टानों में खनिजों के क्रिस्टलों का आकार तथा उनका प्रतिरूप (Pattern) शैल गठन कहलाता है।

प्रश्न 23.
शिलीभवन (Solidification) क्या होता है?
उत्तर:
महासागरों के नितलों पर दबाव के कारण अवसादी परतों का सघन और कठोर हो जाना शिलीभवन कहलाता है।

प्रश्न 24.
जीवांश (Humus) का अर्थ बताइए।
उत्तर:
मिट्टी में पाए जाने वाले जन्तु एवं वनस्पति के विघटित एवं अंशतः विघटित जैव पदार्थ जो मिट्टी के उपजाऊपन को बढ़ाते हैं, जीवांश कहलाते हैं।

प्रश्न 25.
जीवाश्म (Fosil) क्या होता है?
उत्तर:
परतदार चट्टानों के बीच जीव-जन्तुओं और वनस्पति के अवशेष या उनके छापों का मिलना, जीवाश्म होता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 26.
चट्टानों के गठन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
चट्टानों की रचना करने वाले कणों का आकार, आकृति और एक-दूसरे से जुड़ने की व्यवस्था अर्थात् कणों का ज्यामितीय स्वरूप चट्टानों का गठन कहलाता है।

प्रश्न 27.
क्वाटर्ज क्या है और इसकी क्या विशेषता है?
उत्तर:
यह प्राकृतिक रवेदार सिलिका (बालू) है। यह कभी-कभी शुद्ध, स्वच्छ और रंगहीन कणों में मिलता है। इसके ऊँचे गलनांक के कारण उद्योगों में इसका बहुत उपयोग होता है।

प्रश्न 28.
रासायनिक संरचना के आधार पर आग्नेय चट्टानों के कितने भेद हैं?
उत्तर:
रासायनिक संरचना के आधार पर आग्नेय चट्टानों (अन्तर्वेधी और बहिर्वेधी दोनों) के दो वर्ग हैं-]

  1. अधिसिलिक या अम्लीय चट्टानें।
  2. अल्पसिलिक या क्षारीय या पैठिक चट्टानें।

प्रश्न 29.
खनिज की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
‘खनिज’ वे प्राकृतिक पदार्थ होते हैं जिनकी अपनी भौतिक विशेषताएँ तथा एक निश्चित रासायनिक बनावट होती है। अधिकांश खनिज ठोस, जड़ व अकार्बनिक अथवा अजैव पदार्थ होते हैं। चट्टानों की रचना विभिन्न खनिजों के संयोग से होती है। वॉरसेस्टर के अनुसार, “लगभग सभी चट्टानों में दो या दो से अधिक खनिज होते हैं।” कई बार चट्टान केवल एक खनिज से भी बनती है; जैसे चूना, पहाड़ी नमक, बालू-पत्थर इत्यादि। इसी आधार पर फिन्च व ट्रिवार्था ने कहा है, “एक या एक से अधिक खनिजों के मिश्रण से चट्टानों का निर्माण होता है।”

प्रश्न 30.
बहिर्वेधी आग्नेय चट्टानें क्या होती हैं?
उत्तर:
वे चट्टानें जो ज्वालामुखी क्रिया द्वारा धरातल के ऊपर आए लावा के ठण्डा होकर ठोस होने से बनती हैं बहिर्वेधी आग्नेय चट्टानें कहलाती हैं। इन्हें ज्वालामुखी चट्टानें भी कहा जाता है। काले या लाल रंग के गाढ़े द्रव्य के बहते हुए चादर के रूप में जमने के कारण इन चट्टानों को लावा स्तर (Lava flows) भी कहा जाता है।

प्रश्न 31.
आग्नेय चट्टानी पिण्ड क्या होते हैं?
उत्तर:
मैग्मा के ठोसावस्था में आने पर अनेक तरह के आग्नेय चट्टानी पिण्डों की रचना होती है। इनका नामकरण इनके रूप, आकार, स्थिति तथा आस-पास पाई जाने वाली चट्टानों के आधार पर किया जाता है। अधिकांश चट्टानी पिण्ड अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानों से बने हुए हैं।

प्रश्न 32.
गतिक रूपान्तरण क्या होता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी की आन्तरिक हलचलों के कारण चट्टानों में नमन (Bending) और वलन (Folding) आ जाते हैं। इससे चट्टानों पर भारी दबाव पड़ता है और परिणामस्वरूप चट्टानों के रूप व संघटन में परिवर्तन आ जाता है। इसे गतिक रूपान्तरण कहते हैं। इस प्रकार के रूपान्तरण से ग्रेनाइट का नीस तथा चिकनी मिट्टी व शैल का शिस्ट व स्लेट में कायान्तरण हो जाता है।

प्रश्न 33.
अधिसिलिक या अम्लीय आग्नेय चट्टानें क्या होती हैं?
उत्तर:
अधिसिलिक चट्टानों में सिलिका की मात्रा 65 से 85 प्रतिशत होती है। इन चट्टानों के शेष तत्त्वों में सोडियम, पोटाशियम व कैल्शियम के फेल्सपार नामक खनिजों की प्रधानता होती है। लोहे की कम मात्रा के कारण इन चट्टानों का घनत्व कम (लगभग 2.75) होता है तथा रंग भी हल्का होता है। ग्रेनाइट (अन्तर्वेधी) और आब्सीडियन (बहिर्वेधी) अधिसिलिक आग्नेय चट्टानों के प्रमुख उदाहरण हैं। .

प्रश्न 34.
अल्पसिलिक या क्षारीय या पैठिक आग्नेय चट्टानें क्या होती हैं?
उत्तर:
अल्पसिलिक आग्नेय चट्टानों में सिलिका की मात्रा 45 से 55 प्रतिशत तक होती है। इन चट्टानों के अन्य रचक तत्त्वों में लोहा व मैग्नीशियम के खनिजों की प्रधानता होती है, इसी कारण इन चट्टानों का रंग गहरा व घनत्व अधिक (लगभग 3) होता है। बेसाल्ट (बहिर्वेधी) और गेब्रो (अन्तर्वेधी) इसी वर्ग की चट्टानें हैं।

प्रश्न 35.
भारत में कायान्तरित चट्टानें कहाँ-कहाँ पाई जाती हैं?
उत्तर:

  1. शिस्ट व नीस दक्षिणी भारत, बिहार व राजस्थान के कुछ भागों में पाई जाती है।
  2. क्वार्टज़ाइट राजस्थान, झारखण्ड, मध्य प्रदेश व तमिलनाडु में पाया जाता है।
  3. संगमरमर राजस्थान के अलवर, अजमेर, जयपुर व जोधपुर में व मध्य प्रदेश में जबलपुर के निकट नर्मदा घाटी में पाया जाता है।
  4. स्लेट हरियाणा (रेवाड़ी, कुण्ड, अटेली, नारनौल), हिमाचल प्रदेश (काँगड़ा) तथा झारखण्ड में पाई जाती है।

प्रश्न 36.
चट्टानी चक्र से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
आग्नेय और अवसादी चट्टानें ताप, दबाव, भू-संचलन व रासायनिक क्रियाओं के प्रभावाधीन रूपान्तरित चट्टानों में बदलती रहती हैं। जब चट्टानें अपने किसी वर्ग में स्थिर न रहकर परिस्थितियों के कारण अपना वर्ग बदलती रहती हैं, इसे चट्टानी चक्र कहते हैं। इसमें कोई भी चट्टान कोई भी रूप धारण कर सकती है।

प्रश्न 37.
ब्रेसिआ तथा काँग्लोमरेट का निर्माण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
ब्रेसिआ तथा काँग्लोमरेट का निर्माण तलछटी चट्टानों से यान्त्रिक क्रिया द्वारा होता है। अपरदन क्रिया द्वारा पत्थरों तथा कंकड़ों का आकार गोल हो जाता है। जब ये पत्थर आपस में जुड़ जाते हैं तो उनसे काँग्लोमरेट का निर्माण होता है। ये पत्थर क्वार्ट्ज के कारण आपस में जुड़ते हैं। ब्रेसिआ का निर्माण पत्थरों के बीच गारा भर जाने के कारण जुड़ने से होता है। ब्रेसिआ में पत्थरों की आकृति नुकीली होती है।

प्रश्न 38.
निम्नलिखित चट्टानों का आग्नेय, अवसादी तथा रूपान्तरित चट्टानों में वर्गीकरण कीजिए-
(1) ट्रैप
(2) बेसाल्ट
(3) डोलेराइट
(4) क्वार्ट्ज़ाइट
(5) कोयला
(6) एन्थ्रासाइट
(7) चूनाश्म
(8) खड़िया
(9) संगमरमर
(10) चीका
(11) शैल
(12) नाइस
(13) शिस्ट
(14) बलुआ पत्थर
(15) ग्रेनाइट
(16) सेंधा नमक
(17) ब्रेसिआ
(18) फाइलाइट
(19) प्रवाल
(20) काँग्लोमरेट।
उत्तर:

आग्नेय चट्टानेंअवसादी चट्टानेंरूपान्तरित चट्टानें
ट्रैप, बेसाल्ट, डोलेराइट ग्रेनाइट।कोयला, चीका, एन्थ्रासाइट, शैल, चूना पत्थर, खड़िया, बलुआ पत्थर, सेंधा नमक, ब्रेसिआ, प्रवाल, काँग्लोमरेट।क्वार्ट्रज़ाइट, संगमरमर, नाइस, शिस्ट, फाइलाइट।

प्रश्न 39.
अवसादी चट्टानों के गुणों को नियन्त्रित करने वाले कारकों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. उत्पत्ति क्षेत्र में उपस्थित शैलों के प्रकार
  2. उत्पत्ति क्षेत्र का वातावरण
  3. उत्पत्ति क्षेत्र एवं निक्षेपण क्षेत्र में भू-संचरण (Earth Movements)
  4. निक्षेपण क्षेत्र में वातावरण
  5. निक्षेपण के बाद तलछटों में हुए परिवर्तन।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आग्नेय चट्टान क्या है?
उत्तर:
आग्नेय शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के इग्निस (Ignis) शब्द से हुई है, जिसका तात्पर्य है कि अग्नि के समान गरम तप्त लावा के ठण्डे होने से इन चट्टानों का निर्माण हुआ। पृथ्वी अपनी उत्पत्ति के समय गरम, तरल एवं गैसीय पुंज थी, जो धीरे-धीरे ठण्डी हुई। ठण्डी एवं ठोस अवस्था में आने से इन चट्टानों का निर्माण हुआ। पृथ्वी पर सर्वप्रथम इन्हीं चट्टानों का निर्माण हुआ इसलिए इन्हें प्राथमिक चट्टानें भी कहते हैं। आग्नेय चट्टानें पृथ्वी के पिघले हुए पदार्थ (मैग्मा) के ठण्डा एवं ठोस हो जाने के कारण बनी हैं।

प्रश्न 2.
चट्टान बनाने वाले खनिज कौन-से होते हैं? इनकी रचना किन तत्त्वों से होती है?
उत्तर:
चट्टानों की रचना 2,000 विभिन्न खनिजों से हुई है। इनमें से केवल 12 खनिज ऐसे हैं जो पृथ्वी तल पर हर जगह पाए जाते हैं। प्रायः प्रत्येक खनिज में दो या दो से अधिक रासायनिक तत्त्व होते हैं। उदाहरणतः क्वार्टज़ दो तत्त्वों सीलिकॉन व ऑक्सीजन से मिलकर बना है। इसी प्रकार कैल्शियम कार्बोनेट कैल्शियम (चूना), कार्बन और ऑक्सीजन से बना रासायनिक यौगिक है। कुछ खनिज एक ही तत्त्व से बने हुए पाए जाते हैं; जैसे सोना, ताँबा, सीसा (Lead) व गन्धक इत्यादि। अधिकांश खनिजों की रचना आठ मुख्य रासायनिक तत्त्वों से हुई है। भू-पर्पटी के कुलं भार का 97.3% इन्हीं 8 तत्त्वों के कारण है। स्थलमण्डल के लगभग 87% खनिज सिलिकेट हैं।

प्रश्न 3.
धात्विक तथा अधात्विक खनिजों में आप कैसे अन्तर करेंगे?
उत्तर:
धात्विक खनिज (Metallic Minerals) वे होते हैं जिन्हें परिष्कृत किया जा सकता है। परिष्कृत करने पर उनका ‘धरातल चिकना (Smooth) व चमकीला हो जाता है। इनसे हमें धातुएँ प्राप्त होती हैं जिन्हें पीटकर चादर, तार इत्यादि विभिन्न आकारों में ढाला जा सकता है। लोहा, चाँदी, सोना, ताँबा, टीन, एल्यूमीनियम, जस्ता, मैंगनीज़ इत्यादि महत्त्वपूर्ण धात्विक खनिज हैं। अधात्विक खनिज (Non-metallic Minerals) वे होते हैं जिन्हें परिष्कृत नहीं किया जा सकता। इनमें धातु का अंश नहीं होता। इन्हें केवल खुरचकर या काटकर विभिन्न आकारों में परिवर्तित किया जा सकता है। कोयला, चूना-पत्थर, गन्धक, जिप्सम, नमक व खनिज तेल इत्यादि अधात्विक खनिजों के उदाहरण हैं।

प्रश्न 4.
“शैलें पृथ्वी के इतिहास के पन्ने हैं और जीवावशेष उसके अक्षर” स्पष्ट कीजिए।
अथवा
“शैलें पृथ्वी के इतिहास की जानकारी प्रदान करती हैं।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भू-पृष्ठ का निर्माण शैलों से हुआ है। भू-वैज्ञानिक इतिहास के बारे में शैलें महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती हैं। शैलों में खनिज पदार्थ पाए जाते हैं तथा इनसे मिट्टी का निर्माण होता है, जो प्राकृतिक पर्यावरण का एक महत्त्वपूर्ण तथा आवश्यक भाग है। शैलों की परतों में जीव-जन्तु तथा प्राकृतिक वनस्पतियों के अवशेष पाए जाते हैं। इन जीवावशेषों से पृथ्वी की उत्पत्ति तथा समय की जानकारी प्राप्त होती है। इसलिए यह कहना सत्य है कि शैलें पृथ्वी के इतिहास के पन्ने हैं और जीवावशेष उसके अक्षर हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 5.
आग्नेय चट्टानों को प्राथमिक चट्टानें क्यों कहा जाता है? स्थिति के आधार पर आग्नेय चट्टानों को कितने भागों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर:
स्थलमण्डल करोड़ों वर्ष पहले तरल पृथ्वी के ऊपरी भाग के कठोर हो जाने से बना है। इसलिए पृथ्वी पर सबसे पहले आग्नेय चट्टानों का निर्माण हुआ था। इसी आधार पर इन्हें प्राथमिक चट्टानें (Primary Rocks) भी कहा जाता है। अवसादी और रूपान्तरित चट्टानों की अन्य दो किस्में, आग्नेय चट्टानों पर पड़ने वाले प्राकृतिक कारकों के प्रभावों से बनती हैं।
स्थिति के आधार पर आग्नेय चट्टानों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-

  • अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानें
  • बहिर्वेधी आग्नेय चट्टानें।

प्रश्न 6.
अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टान से क्या अभिप्राय है? इसे कितने वर्गों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर:
जब मैग्मा धरातल के ऊपर न पहुँचकर उसके नीचे ही अलग-अलग गहराइयों पर ठण्डा होकर ठोस रूप धारण कर लेता है तो इससे अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानों का निर्माण होता है। भू-पटल के नीचे गहराई के आधार पर अन्तर्वेधी चट्टानें दो प्रकार की होती हैं

  • पातालीय चट्टानें
  • अधिवितलीय चट्टानें।

प्रश्न 7.
पातालीय चट्टानें क्या होती हैं और इनकी क्या विशेषताएँ होती हैं?
उत्तर:
पातालीय चट्टानों का नामकरण ‘प्लूटो’ (Pluto) के नाम पर किया गया है, जिसका अर्थ होता है ‘पाताल देवता’। अतः ऐसी आग्नेय चट्टानें जो स्थलमण्डल में काफ़ी गहराई पर अपने मूल स्थान पर ही मैग्मा के जम जाने से बनती हैं, पातालीय चट्टानें कहलाती हैं। मैग्मा की विशाल राशि को पाताल के अन्दर ठण्डा होकर जमने में बहुत समय लग जाता है। फलस्वरूप इन चट्टानों की रचना करने वाले खनिजों के रवे (Crystals) बड़े-बड़े बनते हैं। पृथ्वी के ऊपरी भाग के अत्यधिक अनाच्छादन या उत्थापन (Uplifting) के बाद ही ये चट्टानें भू-तल पर प्रकट होती हैं। पातालीय आग्नेय चट्टानों का सबसे महत्त्वपूर्ण उदाहरण गेब्रो तथा ग्रेनाइट हैं। सामान्यतः ग्रेनाइट का रंग भूरा, लाल, गुलाबी व सफेद होता है।

प्रश्न 8.
आग्नेय चट्टानों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
आग्नेय चट्टानों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. आग्नेय चट्टानें कठोर, ठोस व संहत (Compact) होती हैं, इसलिए ये टिकाऊ भी होती हैं।
  2. इन चट्टानों में परतें नहीं होती, बल्कि ये स्थूल होती हैं।
  3. इन चट्टानों में रन्ध्र (Pores) नहीं होते, अतः जल इनमें प्रवेश नहीं कर पाता।
  4. आग्नेय चट्टानें रवेदार होती हैं किन्तु रवों का आकार मैग्मा के ठण्डा होने की गति पर निर्भर करता है। अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानों के रवे बड़े और बहिर्वेधी चट्टानों के रवे छोटे होते हैं।
  5. तप्त और तरल द्रव्य से बनने के कारण इन प्राथमिक चट्टानों में जीवावशेष (Fossils) नहीं पाए जाते।
  6. इन चट्टानों का अपक्षय कम होता है। इनमें यान्त्रिक अपक्षय (Mechanical Weathering) की प्रक्रिया इनके सन्धि-तलों व भ्रंशों से आरम्भ होती है।
  7. इन चट्टानों में अनेक प्रकार के खनिज बहुतायत में पाए जाते हैं।
  8. सिलिका की मात्रा अधिक होने पर इन चट्टानों का रंग हल्का व सिलिका कम होने पर रंग गहरा हो जाता है।

प्रश्न 9.
आग्नेय चट्टानों का आर्थिक महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. इन चट्टानों में आर्थिक महत्त्व के बहुमूल्य खनिज पदार्थों; जैसे सोना, चाँदी, हीरा, निकिल, प्लैटिनम, मैंगनीज़, लोहा, टीन, जस्ता, ग्रेफाइट, ताँबा, सीसा आदि के विशाल भण्डार पाए जाते हैं।
  2. ग्रेनाइट व बेसाल्ट चट्टानों का प्रयोग सड़क और भवन निर्माण में प्राचीनकाल से होता रहा है। भारत में अनेक भव्य किले, महल और मन्दिर आदि इन चट्टानों से बने हुए हैं।
  3. बेसाल्ट चट्टानों के क्षरण से उपजाऊ काली मिट्टी बनती है जो गन्ना और कपास जैसी फसलों के लिए श्रेष्ठ है।
  4. आग्नेय चट्टानों के क्षेत्र में खनिज मिश्रित गरम जल के स्रोत पाए जाते हैं।

प्रश्न 10.
अवसादी चट्टानें किस प्रकार बनती हैं?
अथवा
अवसादी चट्टानों की निर्माण प्रक्रिया समझाइए।
अथवा
“अवसादी चट्टानें अन्य चट्टानों से बनती हैं।” इस कथन को सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
अपक्षय तथा अपरदन क्रिया द्वारा चट्टानें ट-फट कर छोटे-बड़े कणों में परिवर्तित होती रहती हैं जिसे अवसाद कहते हैं। बालू, मिट्टी, बज़री, रोड़ी इत्यादि अवसाद के विभिन्न रूप हैं। अनाच्छादन के साधन लाखों वर्षों तक इस अवसाद को परतों में जमा करते रहते हैं। कालान्तर में ये परतें ठोस होकर अवसादी चट्टानें बनती हैं। स्तरों में मिलने के कारण इन्हें स्तरित चट्टानें (Stratified Rocks) भी कहा जाता है। अवसाद के अतिरिक्त इन चट्टानों के निर्माण में पौधों और जानवरों के अवशेषों से उत्पन्न जीवांश (Humus) तथा घुलनशील तत्त्व भी योगदान देते हैं।

प्रश्न 11.
आग्नेय शैलों/चट्टानों का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल 1

प्रश्न 12.
अवसादी शैलों का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल 2

प्रश्न 13.
आग्नेय तथा रूपान्तरित चट्टानों में खनिज रवों की व्यवस्था लगभग एक-समान क्यों होती है?
उत्तर:
आग्नेय चट्टानों और रूपान्तरित चट्टानों का निर्माण लगभग एक समान परिस्थितियों में होता है। इन चट्टानों का निर्माण भू-तल के आन्तरिक भाग में होता है तथा इनके निर्माण में प्रमुख कारक मैग्मा है। आन्तरिक भाग में चट्टानें पिघली हुई अवस्था में होती हैं। जब इनसे आग्नेय चट्टानों का निर्माण होता है, तो इनके रवे ढेरों के रूप में बनते हैं, परन्तु जब दबाव तथा तापक्रम के कारण रूपान्तरित चट्टानों का निर्माण होता है, तो इनके रवे तहों में समानान्तर रूप में स्थिर रहते हैं।

प्रश्न 14.
जीवाश्म केवल अवसादी चट्टानों में ही सुरक्षित रहते हैं, न कि आग्नेय चट्टानों में। ऐसा क्यों होता है?
उत्तर:
प्राकृतिक वनस्पति तथा विभिन्न जीव-जन्तुओं के अवशेषों अथवा अस्थि-पिंजरों को जीवाश्म कहते हैं। जीवाश्म केवल अवसादी चट्टानों में ही सुरक्षित रहते हैं क्योंकि अवसादी चट्टानें परतदार होती हैं। इन परतों में जीवाश्म सुरक्षित रहते हैं तथा इनसे चट्टानों की उत्पत्ति के समय का ज्ञान होता है। जीवाश्म आग्नेय चट्टानों में सुरक्षित नहीं रह सकते, क्योंकि ये चट्टानें परतरहित होती हैं तथा इनके मूल पदार्थ मैग्मा की गर्मी के कारण ये जीवाश्म झुलस जाते हैं।

प्रश्न 15.
भू-पर्पटी में किन परिस्थितियों में खनिज तेल के भण्डार पाए जा सकते हैं? समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
खनिज तेल सूक्ष्म सागरीय जीव-जन्तुओं और प्राकृतिक वनस्पति के गलने-सड़ने से अवसादी चट्टानों में पाया जाता है। इन चट्टानों की संरचना परतदार तथा विशेष प्रकार की होती है। खनिज तेल भू-पर्पटी में निम्नलिखित परिस्थितियों में पाया जाता है

  1. खनिज तेल तलछट के जमाव के कारण तलछटी चट्टानों में मिलता है।
  2. जब दो अप्रवेशीय चट्टानों के मध्य एक प्रवेशीय परत होती है।
  3. दो परतों के मध्य बलुआ पत्थर की परत से खनिज तेल का निर्माण होता है, क्योंकि गर्मी और दबाव के कारण बलुआ पत्थर में उपस्थित प्राकृतिक वनस्पति तथा जीव-जन्तुओं के अवशेष खनिज तेल में परिवर्तित हो जाते हैं।
  4. अवसादी चट्टानों में वलन होते हैं। खनिज तेल इन वलनों के शिखर से प्राप्त होता है।
  5. नदियों, घाटियों एवं डेल्टाई क्षेत्रों की अवसादी चट्टानों में खनिज तेल के विस्तृत भण्डार संचित हैं। उदाहरण के लिए, सम्पूर्ण उत्तरी भारत की चट्टानों में खनिज तेल मिलने की सम्भावनाएँ हैं।

प्रश्न 16.
अवसादी चट्टानों की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
अवसादी चट्टानों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. अवसादी चट्टानें परतों में पाई जाती हैं।
  2. इन चट्टानों में रवे नहीं पाए जाते।
  3. इन चट्टानों में प्राणिज अवशेष (Fossils) पाए जाते हैं जो जीवन के विकास काल को प्रदर्शित करते हैं।
  4. ये चट्टानें अपेक्षाकृत नरम होती हैं। इन्हें चाकू से खुरचने पर इनमें से महीन कण झड़ते हैं।
  5. आग्नेय व कायान्तरित शैलों की तुलना में इनका अपक्षय व अपरदन आसानी से होता है।
  6. अवसादी चट्टानें सरन्ध्र होती हैं। इनमें जल सुगमता से प्रवेश कर सकता है।

प्रश्न 17.
“रूपान्तरित चट्टानें आग्नेय चट्टानों और अवसादी चट्टानों का ही परिवर्तित रूप है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ऐसी चट्टानें जो अन्य चट्टानों के रूप परिवर्तन द्वारा बनती हैं, रूपान्तरित चट्टानें कहलाती हैं। पी०जी० वॉरसेस्टर के घटन हए बिना गर्मी. दबाव तथा रासायनिक क्रियाओं के फलस्वरूप उनके रूप, बनावट व खनिजों का पूर्ण कायान्तरण हो जाता है, वे कायान्तरित चट्टानें कहलाती हैं। रूपान्तरण केवल आग्नेय व अवसादी शैलों का नहीं होता, बल्कि प्राचीन कायान्तरित शैलों का भी होता है जिसे पुनः रूपान्तरण या अति-रूपान्तरण कहा जाता है।

प्रश्न 18.
कायान्तरित चट्टानों का आर्थिक महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. कायान्तरित चट्टानों में अनेक महत्त्वपूर्ण खनिज पाए जाते हैं; जैसे नीस, क्वार्टज़ाइट, ग्रेफाइट, एन्थ्रासाइट, स्लेट व संगमरमर इत्यादि।
  2. क्वार्टज़ाइट का प्रयोग काँच उद्योग में होता है क्योंकि यह एक कठोरतम खनिज है।
  3. स्लेट का प्रयोग छप्पर व फर्श बनाने के लिए तथा स्कूली बच्चों के लिखने के लिए होता है। बिलियर्ड्स की मेज़ मोटी स्लेट से बनाई जाती है।
  4. नीस व संगमरमर का प्रयोग इमारती पत्थर के रूप में किया जाता है। विश्व प्रसिद्ध ताजमहल संगमरमर का बना हुआ है।
  5. ग्रेफाइट का प्रयोग पेन्सिल का सिक्का बनाने तथा धातु गलाने की घड़िया (Crucible) बनाने के काम आता है। ग्रेफाइट का गलनांक $3500^{\circ}$ सेल्सियस होतां है। परमाणु बिजली-घरों के लिए ग्रेफाइट अनिवार्य है।
  6. रूपान्तरित चट्टानों में ही बहुमूल्य जवाहरात; जैसे रत, माणिक, नीलम इत्यादि उत्पन्न होते हैं।
  7. सेलखड़ी और टेल्क का प्रयोग टेलकम पाउडर जैसे सौन्दर्य प्रसाधन बनाने में किया जाता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 5 खनिज एवं शैल

प्रश्न 19.
तापीय अथ्वा स्पर्श रूपान्तरण क्या होता है?
उत्तर:
ऊँचे ताप के प्रभाव से चट्टानों में होने वाला रूपान्तरण तापीय रूपान्तरण कहलाता है। भू-गर्भ से ऊपर की ओर बढ़ता हुआ गरम मैग्मा अपने सम्पर्क में आने वाली स्थानीय शैलों को पिघलाकर या भूनकर उनके रूप, रंग, संरचना और गुणों में परिवर्तन ला देता है। इस तापीय रूपान्तरण से बलुआ पत्थर बदलकर क्वार्टज़ाइट, चूने का पत्थर बदलकर संगमसमर, चीका मिट्टी और शैल बदलकर स्लेट और बिटुमिनस कोयला बदलकर एंग्रासाइट और ग्रेफाइट बन जाते हैं। ये सभी परिवर्तन लगभग 50 से 80 डिग्री सेल्सियस तक होते हैं। 150 से 200 सेल्सियस में स्लेट पुनः कायान्तरित होकर फाइलाइट (Philite) में बदल जाती है।

प्रश्न 20.
खनिज संसाधरों का वर्गीकरण कीजिए-
उत्तर:
खनिज संसाधन निम्नलिखित वर्गों में बाँटे जाते हैं-

  1. आवश्यक संसाधन-आधारभूत संसाधनों के इस वर्ग से हमें जल तथा मृदा उपलब्ध होते हैं।
  2. ऊर्जा संसाधन-इनमें हमें जीवाशुमी ईंधन; जैसे कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, कोयला, तारकोल, बालू तथा परमाणु ईंधन; जैसे यूरेनियम, थोरियम तथा भूतापीय ऊर्जा उपलब्ध होती है।
  3. धात्विक संसाधन-इनमें हमें संरचनात्मक धातुएँ; जैसे लोहा, एल्यूमीनियम, टिटैनियम, सोना, प्लैटिनम तथा सैलियम इत्यादि प्राप्त होते हैं।
  4. औधोगिक संसाधन-औद्योगिक खनिजों से हमें 30 से अधिक पदार्थ प्राप्त होते हैं; जैसे बालू, नमक व एस्बेस्टस इत्यादि।

प्रश्न 21.
निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट कीजिए-
(क) खनिज तथा चट्टान
(ख) डाइक तथा सिल
(ग) आग्नेय तथा अवसादी चट्टारें।
उत्तर:
(क) खनिज तया चट्टान-

खनिज (Mineral)चट्टान (Rock)
1. खनिज एक या अधिक तत्त्वों के योग से बनते हैं। प्रायः ये यौगिक रूप में मिलते हैं।1. चट्टान एक या अधिक खनिजों के मिश्रण से बनती हैं।
2. खनिज प्राकृतिक अवस्था में पाया जाने वाला एक अजैविक पदार्थ है।2. चट्टान भू-पृष्ठ पर पाया जाने वाला जैविक और अजैविक, कठोर और नरम पदार्थ है।
3. खनिजों की एक निश्चित रासायनिक संरचना होती है।3. चट्टानों की निश्चित रासायनिक संरचना नहीं होती।
4. खनिजों से चट्टान बनती है।4. चट्टानों से भू-पर्पटी बनती है।
5. लोहा, तांबा, सोना, अभ्रक, फेल्सपार आदि खनिजों के उदाहरण हैं।5. चूना पत्थर, बलुआ पत्थर, स्लेट, ग्रेनाइट आदि चट्टानों के उदाहरण हैं।

(ख) डाइक तथा सिल

डाइकसिल
1. इनका निर्माण भूतल के आन्तरिक भाग में मैग्मा के लम्बवत् रूप में दरारों में जम जाने के कारण होता है।1. इनका निर्माण भूतल के आन्तरिक भाग में मैग्मा के क्षैतिज परतों के मध्य दरारों में जम जाने के कारण होता है।
2. यह अन्तर्वेधी आग्नेय शैल है।2. यह भी अन्तर्वेधी आग्नेय शैल है।
3. ये भूतल के लम्बवत् बनते हैं।3. ये भूतल के समानान्तर क्षैतिज अवस्था में बनते हैं।

(ग) आग्नेय तथा अवसादी चट्टानें

आग्नेय चट्टानेंअवसादी चट्टानें
1. आग्नेय शैलों का निर्माण लावा के ठण्डा तथा ठोस होने से होता है।1. अवसादी शैलों का निर्माण तलछट की परतों के निरन्तर जमने से होता है।
2. ये शैलें ढेरों में मिलती हैं।2. ये शैलें परतदार होती हैं।
3. इन शैलों में रवे मिलते हैं।3. इन शैलों में विभिन्न प्रकार के गोल कण मिलते हैं।
4. इनमें जीवावशेष नहीं मिलते।4. इनमें प्राकृतिक वनस्पति तथा जीव-जन्तुओं के अवशेष मिलते हैं।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आग्नेय चट्टानें किसे कहते हैं? इनका वर्गीकरण कीजिए।
अथवा
विभिन्न आधारों पर आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
आग्नेय चट्टानों का अर्थ (Meaning of Igneous Rocks)-आग्नेय शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के इग्निस (Ignis) शब्द से हुई है, जिसका तात्पर्य है कि अग्नि के समान गरम तप्त लावा के ठण्डे होने से इन चट्टानों का निर्माण हुआ। पृथ्वी अपनी उत्पत्ति के समय गरम, तरल एवं गैसीय पुंज थी, जो धीरे-धीरे ठण्डी हुई। ठण्डी एवं ठोस अवस्था में आने से इन चट्टानों का निर्माण हुआ। पृथ्वी पर सर्वप्रथम इन्हीं चट्टानों का निर्माण हुआ इसलिए इन्हें प्राथमिक चट्टानें भी कहते हैं। आग्नेय चट्टानें पृथ्वी के पिघले हुए पदार्थ (मैग्मा) के ठण्डा एवं ठोस हो जाने के कारण बनी हैं।

आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण (Classification of Igneous Rocks)-आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधार पर किया जाता है

  • स्थिति के आधार पर
  • रासायनिक संरचना के आधार पर

I. स्थिति के आधार पर-स्थिति के आधार पर आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण इस प्रकार है-
1. बाह्य या बहिर्वेधी आग्नेय चट्टानें (Extrusive Ieneous Rocks) जब भू-गर्भ का तप्त एवं गरम मैग्मा धरातल पर आकर ठण्डा होता है तो बाह्य आग्नेय चट्टानों का निर्माण होता है। इन चट्टानों का प्रमुख उदाहरण बेसाल्ट है। प्रायद्वीपीय भारत के उत्तर:पश्चिमी क्षेत्र में इस प्रकार की चट्टानें पाई जाती हैं।

2. आन्तरिक या अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानें (Intrusive Igneous Rocks)-ज्वालामुखी उद्गार के समय जब भू-गर्भ का मैग्मा पृथ्वी के तल के नीचे दरारों में जम जाता है तो आन्तरिक आग्नेय चट्टानों का निर्माण होता है। भू-गर्भ में मैग्मा का जमाव दो विभिन्न स्थितियों में होता है, इसलिए इन्हें निम्नलिखित दो उपवर्गों में बाँटा जा सकता है
(i) पातालीय चट्टानें (Plutonic Rocks)-भू-गर्भ में अत्यधिक गहराई पर मैग्मा के जमाव द्वारा बनी चट्टानों को पातालीय चट्टानें कहते हैं। यहाँ मैग्मा के ठण्डा होने में पर्याप्त समय लगता है, इसलिए इनके रवे बड़े होते हैं। ग्रेनाइट तथा गेब्रो (Gabro) इनके प्रमुख उदाहरण हैं। ये आन्तरिक आग्नेय चट्टानों के बड़े-बड़े पिण्ड होते हैं, इन्हें बैथोलिथ कहते हैं। भारत में छोटा नागपुर के पठार, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान में इसी प्रकार की चट्टानें पाई जाती हैं।

(ii) मध्यवर्ती चट्टानें (Hypabyssal Rocks)-जब भू-गर्भ का मैग्मा धरातल के ऊपर नहीं आ पाता और भू-गर्भ की चट्टानों हो जाता है तो उन्हें मध्यवर्ती आग्नेय चट्टानें कहते हैं। यदि लावे का जमाव लम्बवत् रूप में होता है तो उन्हें डाइक कहते हैं और यदि क्षैतिज रूप में हो तो उन्हें सिल कहते हैं।

II. रासायनिक संरचना के आधार पर रासायनिक संरचना के आधार पर आग्नेय चट्टानों को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है
1. अम्लीय आग्नेय चट्टानें (Acid Igneous Rocks)-इनमें सिलिका की मात्रा 65% से अधिक होती है। इसके अतिरिक्त इन चट्टानों में सोडियम, पोटाशियम तथा एल्यूमीनियम आदि महत्त्वपूर्ण रासायनिक तत्त्व होते हैं। ग्रेनाइट, क्वार्ट्ज़ाइट, पेग्मैटाइट तथा राओलाइट इस प्रकार की चट्टानों के प्रमुख उदाहरण हैं।

2. क्षारीय आग्नेय चट्टानें (Basic Igneous Rocks) इनमें सिलिका की मात्रा 40% से 55% तक होती है। बेसाल्ट, गेब्रो तथा डोलेराइट इस प्रकार की चट्टानों के प्रमुख उदाहरण हैं।

प्रश्न 2.
आग्नेय चट्टानी पिण्डों से आपका क्या तात्पर्य है? विभिन्न आग्नेय चट्टानी पिण्डों का वर्णन करें।
उत्तर:
आग्नेय चट्टानी पिण्ड का अर्थ (Meaning of Masses of Igneous Rocks)-मैग्मा के ठोसावस्था में आने पर अनेक तरह के चट्टानी पिण्डों की रचना होती है। इनका नामकरण इनके रूप, आकार, स्थिति तथा आस-पास पाई जाने वाली चट्टानों के आधार पर किया जाता है। अधिकांश चट्टानी पिण्ड अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानों से बने हुए हैं।

आग्नेय चट्टानी पिण्डों के प्रकार (Types of Masses of lgneous Rocks)-आग्नेय चट्टानी पिण्डों के प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. बैथोलिथ (Batholith) यह मैग्मा का सबसे बड़ा गुम्बदाकार जमाव है जो अत्यधिक गहराई में पाया जाता है। हज़ारों वर्ग कि०मी० क्षेत्र में विस्तृत इस पिण्ड का ऊपरी तल ऊबड़-खाबड़ तथा ढाल खड़ा होता है। इसकी मोटाई इतनी अधिक होती है कि इसके आधार पर पहुँच पाना कठिन होता है। अनाच्छादन के बाद इसका केवल ऊपरी भाग ही देखा जा सकता है। बैथोलिथ की जड में होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के इडाहो (Idaho) राज्य में 40 हजार वर्ग कि०मी० से भी ज्यादा क्षेत्र में फैला बैथोलिथ तथा पश्चिमी कनाडा में कोस्ट रेन्ज बैथोलिथ इसके प्रमुख उदाहरण हैं। बैथोलिथ मूलतः ग्रेनाइट चट्टानों के जमाव होते हैं।

2. स्टॉक (Stock)-छोटे आकार के बैथोलिथ को स्टॉक कहते हैं। स्टॉक की ऊपरी सतह का विस्तार 100 वर्ग कि०मी० से कम क्षेत्र में होता है। यह खड़ी अवस्था में होता है जिसका ऊपरी भाग अधिक विषम किन्तु गोलाकार होता है। इसकी अन्य विशेषताएँ बैथोलिथ जैसी होती हैं।

3. लैकोलिथ (Lacolith) भू-गर्भ से धरातल की ओर बढ़ता हुआ विस्फोटक मैग्मा जब किन्हीं कारणों से धरातल पर नहीं पहुँच पाता तो वह परतदार चट्टानों में छतरीनुमा रूप धारण कर लेता है। लैकोलिथ की निचली परत सीधी होती है जो नली के द्वारा मैग्मा भण्डार से जुड़ी होती है। लैकोलिथ बहिर्वेधी ज्वालामुखी पर्वत का अन्तर्वेधी प्रतिरूप है। उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी भाग में अनेक लैकोलिथ देखने को मिलते हैं।

4. लैपोलिथ (Lapolith)-जब मैग्मा का जमाव धरातल के नीचे किसी अवतल आकार वाले उथले बेसिन में हो जाता है तब एक तश्तरीनुमा चट्टानी पिण्ड का निर्माण होता है, जिसे लैपोलिथ कहते हैं। इसका उदाहरण दक्षिण अफ्रीका के ट्रांसवाल क्षेत्र में मिलता है।

5. फैकोलिथ (Phacolith) मोड़दार पर्वतों की अपनति (Anticline) व अभिनति (Syncline) में मैग्मा के जमाव को फैकोलिथ कहते हैं। यह लहरदार आकृति का होता है।

6. सिल (Sill)-परतदार चट्टानों के बीच भू-पृष्ठ के समानान्तर मैग्मा से बनी अधिवितलीय चट्टान को सिल कहते हैं। इसकी मोटाई सैकड़ों मीटर तक होती है किन्तु एक मीटर से पतली सिल को शीट (Sheet) कहा जाता है।

7. डाइक (Dike or Dyke)-जब भू-तल के नीचे मैग्मा लम्बवत् जोड़ों या दरारों में जमता है तो डाइक कहलाता है। कठोर होने के कारण इस पर अपरदन का कम प्रभाव पड़ता है। आस-पास की चट्टानों के अपरदन द्वारा नष्ट होने पर डाइक एक खड़ी या झुकी विशाल दीवार की भान्ति दिखाई पड़ते हैं। डाइक कुछ मीटर से कई कि०मी० तक लम्बे व कुछ सेंटीमीटर से कई मीटर तक चौड़े होते हैं। झारखण्ड के सिंहभूम जिले में डोलेराइट के अनेक डाइक देखने को मिलते हैं।

उपर्युक्त अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानी पिण्डों के अतिरिक्त अनेक बहिर्वेधी आग्नेय चट्टानी पिण्ड भी पाए जाते हैं। इनसे महाद्वीपों और महासागरों की तली पर ज्वालामुखी पर्वतों और ज्वालामुखी पठारों का निर्माण होता है।

प्रश्न 3.
परतदार अथवा अवसादी चट्टानें किसे कहते हैं? इनका वर्गीकरण कीजिए।
अथवा
तलछटी चट्टानों या शैलों का वर्गीकरण करते हुए इसकी मुख्य किस्मों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अवसादी (परतदार) चट्टानों का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Sedimentary Rocks) अपक्षय तथा अपरदन के विभिन्न साधनों द्वारा प्राप्त बड़ी मात्रा में अवसाद के जमने से बनी हुई चट्टानों को परतदार अथवा अवसादी चट्टानें अवसाद के परतों में जमने के कारण होता है। भूतल पर लगभग 75% चट्टानें अवसादी चट्टानें हैं। पी०जी० वॉरसेस्टर के अनुसार, “अवसादी शैल, धरातलीय चट्टानों के टूटे मलबे तथा खनिज एक स्थान से दूसरे स्थान पर एकत्रित होते रहते हैं जो धीरे-धीरे एक परत का रूप धारण कर लेते हैं।”

अवसादी चट्टानों का वर्गीकरण (Classification of Sedimentary Rocks)-अवसादी चट्टानों की निर्माण-विधि तथा संरचना के आधार पर इन्हें अग्रलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है

  • जैव अवसादी चट्टानें (Organic Sedimentary Rocks)
  • अजैव अवसादी चट्टानें (Inorganic Sedimentary Rocks)

I. जैव अवसादी चट्टानें (Crganic Sedimentary Racks)-जिन चट्टानों का निर्माण विभिन्न जीव-जन्तुओं या वनस्पति के जमाव द्वारा होता है, उन्हें जैव अवसादी चट्टानें कहते हैं। ये चट्टानें निम्नलिखित प्रकार की होती हैं-
(1) चूना प्रधान अवसादी चट्टानें (Calcareous Sedimentary Rocks) महासागरीय तथा सागरीय जल में विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तु रहते हैं। इन जीव-जन्तुओं की मृत्यु के पश्चात् इनके अवशेष समुद्र की तलहटी में जमा होते रहते हैं जिनसे चूना प्रधान अवसादी चट्टानों का निर्माण होता है। चूना पत्थर, खड़िया, डालोमाइट तथा सेलखड़ी इनके प्रमुख उदाहरण हैं। प्रवाल भित्तियों या प्रवाल द्वीपों का निर्माण चूना-युक्त चट्टानों से होता है।

(2) कार्बनयुक्त अवसादी चट्टानें (Carbonaceous Sedimentary Rocks) इस प्रकार की चट्टानों का निर्माण जीव-जन्तुओं तथा प्राकृतिक वनस्पति द्वारा होता है। पृथ्वी में उथल-पुथल के कारण जीव-जन्तु तथा प्राकृतिक वनस्पति भू-तल के नीचे दब जाती है। भू-गर्भ के तापमान तथा ऊपरी चट्टानों के दबाव के कारण इन जीव-जन्तुओं और वनस्पतियों के अंश कालान्तर में कोयले के रूप में बदल जाते हैं जिसमें कार्बन की प्रधानता होती है। कार्बन की मात्रा के अनुसार पीट, लिग्नाइट, बिटुमिनस तथा एन्थ्रासाइट कोयले का निर्माण होता है।

(3) रासायनिक प्रक्रिया द्वारा बनी अवसादी चट्टानें (Chemically formed Sedimentory Rocks)-खारी झीलों या समुद्रों का पानी जलवाष्प बनकर उड़ जाता है तथा अवसाद नीचे रह जाते हैं जिससं अवसादी चट्टानें बनती हैं। रासायनिक प्रक्रिया द्वारा बनी चट्टानों के प्रमुख उदाहरण सेंधा नमक, जिप्सम तथा शोरा हैं।

II. अजैव अवसादी चट्टानें (Inorganic Sedimentary Rocks)-अपक्षय तथा अपरदन की क्रियाओं द्वारा चट्टानें टूटती-फूटती रहती हैं तथा उनका मलबा जमा होता रहता है। अजैव अवसादी चट्टानों को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है

  • प्रधान अवसादी चट्टानें (Arenaceous Sedimentary Rocks)-इन चट्टानों का निर्माण बालू के कणों के संगठन से होता है। बलुआ पत्थर इनका प्रमुख उदाहरण है।
  • चीका प्रधान अवसादी चट्टानें (Argillaceous Sedimentary Rocks)-इनका निर्माण चिकनी मिट्टी तथा दलदल के कठोर होने के कारण होता है।

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प्रश्न 4.
अवसादी या परतदार चट्टानों की विशेषताओं तथा आर्थिक महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अवसादी चट्टानों की विशेषताएँ (Characterstics of Sedimentary Rocks) अवसादी चट्टानों की विशेषताएँ। निम्नलिखित हैं

  • आग्नेय चट्टानों की तुलना में ये चट्टानें कोमल अथवा नरम होतो हैं।
  • ये चट्टानें परतों के रूप में पाई जाती हैं।
  • ये चट्टानें छिद्रमय होती हैं। बलुई चट्टानें अधिक छिद्रमय तथा चीका-युक्त चट्टानें कम छिद्रमय होती हैं।
  • इन चट्टानों में जीव-जन्तुओं एवं वनस्पति के अवशेष पाए जाते हैं।
  • ये चट्टानें रवे-रहित होती हैं।
  • ये चट्टानें प्रवेश्य चट्टानें हैं।

अवसादी चट्टानों का आर्थिक महत्त्व (Economical Significance of Sedimentary Rocks)-अवसादी चट्टानों का महत्त्व निम्नलिखित कारकों पर आधारित है

  • अवसादी चट्टानें उपजाऊ मिट्टी का अभूतपूर्व भण्डार हैं। उदाहरण के लिए, सतलुज, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र के मैदान की उपजाऊ मिट्टी अवसादी चट्टानों की ही देन हैं।
  • इन चट्टानों में शक्ति के प्रमुख स्रोत; जैसे कोयला तथा पेट्रोलियम मिलते हैं। उदाहरण के लिए, महानदी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टाई क्षेत्रों में कोयले के भण्डार हैं तथा सम्पूर्ण उत्तरी भारत की अवसादी चट्टानों में खनिज तेल के भण्डार मिलने की सम्भावनाएँ हैं।
  • उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में अवसादी चट्टानों के अपक्षय से बॉक्साइट, मैंगनीज, टिन आदि खनिजों के गौण अयस्क मिलते हैं।
  • अवसादी चट्टानों में लौह-अयस्क, फास्फेट, इमारती पत्थर, कोयला तथा सीमेण्ट बनाने वाले पदार्थों के स्रोत मिलते हैं।
  • इन चट्टानों में विभिन्न प्रकार के खनिज पदार्थ पाए जाते हैं।

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