HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. भारत में सर्वाधिक विस्तृत क्षेत्र पर पाई जाने वाली मिट्टी है
(A) काली मिट्टी
(B) जलोढ़ मिट्टी
(C) लैटेराइट मिट्टी
(D) मरुस्थलीय मिट्टी
उत्तर:
(B) जलोढ़ मिट्टी

2. निम्नलिखित में से किस मिट्टी का अन्य नाम रेगड़ है?
(A) वनीय मिट्टी का
(B) जलोढ़ मिट्टी का
(C) लैटेराइट मिट्टी का
(D) काली मिट्टी का
उत्तर:
(B) जलोढ़ मिट्टी का

3. गंगा के मैदान का उपजाऊपन किस कारण से बना हुआ है?
(A) लगातार सिंचाई
(B) प्रतिवर्ष बाढ़ द्वारा नई मिट्टी का जमाव
(C) मानसूनी वर्षा
(D) ऊसर भूमि का सुधार
उत्तर:
(B) प्रतिवर्ष बाढ़ द्वारा नई मिट्टी का जमाव

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

4. भारत में जलोढ़ मिट्टी का विस्तार कितना है?
(A) 22%
(B) 35%
(C) 44%
(D) 55%
उत्तर:
(C) 44%

5. काली मिट्टी की रचना हुई है
(A) समुद्री लहरों की निक्षेपण क्रिया द्वारा
(B) कांप की मिट्टी के निक्षेपण द्वारा
(C) पैठिक लावा के जमने से
(D) लोएस के जमाव से
उत्तर:
(C) पैठिक लावा के जमने से

6. काली मिट्टी के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है?
(A) इसमें नमी को धारण करने की पर्याप्त क्षमता होती है।
(B) सूखने पर इसमें दरारें पड़ जाती हैं।
(C) गन्ना, तम्बाकू, गेहूं, तिलहन व कपास के लिए यह मिट्टी श्रेष्ठ सिद्ध हुई है।
(D) काली मिट्टी प्रवाहित मिट्टियों का आदर्श उदाहरण है।
उत्तर:
(D) काली मिट्टी प्रवाहित मिट्टियों का आदर्श उदाहरण है।

7. निम्नलिखित में से कौन-सा युग्म सही नहीं है ?
(A) काली मिट्टी : महाराष्ट्र
(B) कांप मिट्टी : उत्तर प्रदेश
(C) लैटेराइट मिट्टी : पंजाब
(D) लाल और पीली मिट्टी : तमिलनाडु
उत्तर:
(C) लैटेराइट मिट्टी : पंजाब

8. दक्कन के पठार पर किस मिट्टी का विस्तार सबसे ज्यादा है?
(A) काली मिट्टी
(B) कांप मिट्टी
(C) लैटेराइट मिट्टी
(D) जलोढ़ मिट्टी
उत्तर:
(A) काली मिट्टी

9. काली मिट्टी किस फसल के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है?
(A) गेहूँ
(B) चावल
(C) कपास
(D) बाजरा
उत्तर:
(C) कपास

10. मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया कहलाती है
(A) निक्षालन
(B) मृदा-जनन
(C) मृदा अपरदन
(D) मृदा संरक्षण
उत्तर:
(B) मृदा-जनन

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

11. राजस्थान में मृदा अपरदन का सबसे बड़ा कारक कौन-सा है?
(A) तटीय
(B) अवनालिका
(C) परत
(D) पवन
उत्तर:
(D) पवन

12. चरागाहों और झाड़ीनुमा वनों के लिए कौन-सी मिट्टी अनुकूल मानी जाती है?
(A) जलोढ़
(B) लैटेराइट
(C) काली
(D) पर्वतीय
उत्तर:
(B) लैटेराइट

13. मिट्टी का विकास कितनी अवस्थाओं में होता है?
(A) 2
(B) 3
(C) 4
(D) 5
उत्तर:
(B) 3

14. लाल मिट्टी के संबंध में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) लोहे के यौगिकों की उपस्थिति के कारण इसका रंग लाल होता है
(B) यह मिट्टी शुष्क कृषि के लिए अधिक उपयुक्त है
(C) यह अधिकांशतः तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में पाई जाती है
(D) यह तलछटी चट्टानों के टूटने से बनी है
उत्तर:
(D) यह तलछटी चट्टानों के टूटने से बनी है

15. पीट मिट्टी के संबंध में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) यह मिट्टी राजस्थान, गजरात व हरियाणा में पाई जाती है
(B) इसका निर्माण आर्द्र दशाओं में होता है
(C) इसमें लोहांश और जीवांश की मात्रा अधिक पाई जाती है
(D) वर्षा ऋतु में अधिकांशतः पीट मिट्टी जल में डूब जाती है
उत्तर:
(A) यह मिट्टी राजस्थान, गजरात व हरियाणा में पाई जाती है

16. लैटेराइट मिट्टी के संबंध में कौन-सी बात असत्य है?
(A) इसका निर्माण निक्षालन एवं केशिका क्रिया द्वारा होता है
(B) यह मिट्टी अम्लीय प्रकार की होने के कारण कम उपजाऊ है
(C) इसका निर्माण कम वर्षा और ठंडे इलाकों में होता है
(D) यह मिट्टी कंकरीली और छिद्रयुक्त होती है
उत्तर:
(C) इसका निर्माण कम वर्षा और ठंडे इलाकों में होता है

17. लैटेराइट मिट्टी का सबसे ज्यादा उपयोग किस कार्य में किया जाता है?
(A) कृषि में
(B) चरागाहों में
(C) झाड़ीनुमा वनों में
(D) भवन-निर्माण में
उत्तर:
(D) भवन-निर्माण में

18. ‘बेट’ भूमि कहा जाता है
(A) तराई क्षेत्र में पाई जाने वाली नालों व नालियों से कटी-फटी भूमि को
(B) उभरे हुए मिट्टी के दरों को
(C) जलोढ़ की बिछी मिट्टी की नई उपजाऊ चौरस परत को
(D) चंबल क्षेत्र में पाई जाने वाली क्षत-विक्षत भूमि को
उत्तर:
(C) जलोढ़ की बिछी मिट्टी की नई उपजाऊ चौरस परत को

19. भारत में मृदा अपरदन का सबसे प्रमुख कारण है?
(A) वनों का बड़ी मात्रा में विदोहन
(B) वायु द्वारा मिट्टी का अपवाहन
(C) सरिता अपरदन
(D) जलवायविक दशाएँ
उत्तर:
(A) वनों का बड़ी मात्रा में विदोहन

20. भारत में मृदा की ऊपरी परत के हास का प्रमुख कारण है-
(A) वायु अपरदन
(B) अत्याधिक निक्षालन
(C) जल अपरदन
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) जल अपरदन

21. देश में हरित क्रांति वाले क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि निम्नलिखित में से किस कारण से लवणीय हो रही है?
(A) जिप्सम का बढ़ता प्रयोग
(B) अतिचारण
(C) अति सिंचाई
(D) रासायनिक खादों का उपयोग
उत्तर:
(C) अति सिंचाई

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
मृदा को मूल पदार्थ अथवा पैतृक पदार्थ कहाँ से प्राप्त होता है?
उत्तर:
चट्टानों से।

प्रश्न 2.
भारत में किस मिट्टी का विस्तार सबसे अधिक क्षेत्रफल पर है?
अथवा
भारत में उत्तरी मैदान में किस मिट्टी का विस्तार अधिक है?
उत्तर:
जलोढ़ मिट्टी का।

प्रश्न 3.
दक्कन के पठार पर किस मिट्टी का सबसे ज्यादा विस्तार पाया जाता है?
उत्तर:
काली मिट्टी।

प्रश्न 4.
काली मिट्टी किस फसल के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है?
उत्तर:
कपास एवं गन्ना।

प्रश्न 5.
लाल मिट्टी के लाल रंग का क्या कारण है?
उत्तर:
लोहांश की अधिक मात्रा।

प्रश्न 6.
राजस्थान में मृदा अपरदन का सबसे बड़ा कारक कौन-सा है?
उत्तर:
पवन।

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प्रश्न 7.
चरागाहों और झाड़ीनुमा वनों के लिए कौन-सी मिट्टी अनुकूल मानी जाती है?
उत्तर:
लैटेराइट मिट्टी।

प्रश्न 8.
कौन-सी मिट्टी खेती के लिए अच्छी नहीं मानी जाती?
उत्तर:
पीली मिटी।

प्रश्न 9.
बांगर मिट्टी को किस अन्य नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
पुरातन काँप मिट्टी।

प्रश्न 10.
लाल या पीले रंग वाली मिट्टी का नाम बताइए।
उत्तर:
लैटेराइट।

प्रश्न 11.
काली मिट्टी पाए जाने वाले किसी एक राज्य का नाम बताएँ।
उत्तर:
गुजरात।

प्रश्न 12.
नदियों के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में जो मृदा मिलती है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर:
नूतन काँप मिट्टी।

प्रश्न 13.
मरुस्थलीय मिट्टी को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
बलुई मिट्टी।

प्रश्न 14.
वायु अपरदन सबसे अधिक कहाँ होता है?
उत्तर:
मरुस्थलीय भागों में।

प्रश्न 15.
खड़ी ढाल वाले क्षेत्रों में मृदा अपरदन रोकने के लिए कौन-सी विधि अपनाई जाती है?
उत्तर:
समोच्चरेखीय जुताई।

प्रश्न 16.
पहाड़ों और पठारों पर मिट्टी की परत पतली क्यों होती है?
उत्तर:
क्योंकि ढाल एवं गुरुत्वाकर्षण के कारण वहाँ मिट्टी टिक नहीं पाती।

प्रश्न 17.
जलोढ़ मिट्टियों का निर्माण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
नदियों द्वारा बहाकर लाए गए अपरदित पदार्थों के निक्षेपण से।

प्रश्न 18.
जलोढ़ मिट्टी में कुएँ, नलकूप व नहरें खोदना आसान क्यों होता है?
उत्तर:
मिट्टी के मुलायम होने के कारण।

प्रश्न 19.
मरुस्थलीय मिट्टी में लहलहाती फसलें कैसे उगाई जा सकती हैं?
उत्तर:
सिंचाई की सुविधाएँ देकर।

प्रश्न 20.
पर्वतीय मिट्टी चाय के लिए उपयोगी क्यों मानी जाती है?
उत्तर:
पर्वतीय मिट्टी तेज़ाबी होती है जो चाय में ‘फ्लेवर’ पैदा करती है।

प्रश्न 21.
वृक्षारोपण मृदा के संरक्षण में कैसे सहायता करते हैं?
उत्तर:
वृक्षों की जड़ें मिट्टी को बांध देती हैं।

प्रश्न 29.
मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया में प्राकृतिक वनस्पति की क्या भूमिका होती है?
उत्तर:
मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया का गहरा सम्बन्ध वनस्पति की वृद्धि और पौधों में पलने वाले सूक्ष्म जीवों से होता है। वनस्पति और जीवों के सड़े-गले अंश जीवांश (ह्यूमस) के रूप में मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाते हैं। इसी कारण वन्य प्रदेशों में अधिक उपजाऊ मिट्टी पाई जाती है। इस प्रकार मृदा या मिट्टी तथा वनस्पति के प्रकारों में रोचक (Interesting) सम्बन्ध पाया जाता है।

प्रश्न 30.
काली मिट्टी का निर्माण कैसे हुआ है? यह भारत में कहाँ-कहाँ पाई जाती है?
उत्तर:
निर्माण आधुनिक मान्यता के अनुसार, काली मिट्टी ज्वालामुखी विस्फोट से बनी दरारों से निकले पैठिक लावा (Basic Lava) के जमाव से बनी है।
विस्तार-यह मिट्टी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात तथा तमिलनाडु के लगभग 5 लाख वर्ग कि०मी० क्षेत्र में पाई जाती है। जलोढ़ मिट्टी के बाद देश में काली मिट्टी का विस्तार सबसे बड़े क्षेत्र पर है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मृदा का हमारे लिए क्या महत्त्व है?
अथवा
मृदा की विशेषताएँ किसी प्रदेश के आर्थिक विकास में किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं? किन्हीं दो उदाहरणों से इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मृदा या मिट्टी एक अत्यन्त मूल्यवान प्राकृतिक संसाधन है। मिट्टी के निर्माणकारी विभिन्न घटकों का संयोजन मिट्टी के उपजाऊपन को निर्धारित करता है। अधिक उपजाऊ और गहरी मिट्टी में कृषि अर्थव्यवस्था समृद्ध तथा अधिक जनसंख्या के पोषण में समर्थ होती है। इसके विपरीत, कम गहरी व कम उपजाऊ मिट्टी में कृषि का विकास कम होता है जिससे वहाँ जनसंख्या का घनत्व और लोगों का जीवन-स्तर दोनों ही निम्न होते हैं। सघन जनसंख्या वाले पश्चिम बंगाल के डेल्टाई प्रदेश एवं केरल के तटीय मैदान दोनों में समृद्ध जलोढ़ मिट्टी के कारण उन्नतशील कृषि पाई जाती है जबकि तेलंगाना की कम गहरी व मोटे कणों वाली मिट्टी और राजस्थान की रेत उन्नत कृषि को आधार प्रदान नहीं कर पाई।

प्रश्न 2.
भूमि का ढाल अथवा उच्चावच मिट्टी की निर्माण प्रक्रिया को कैसे प्रभावित करता है?
उत्तर:
भूमि का ढाल मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया को कई प्रकार से प्रभावित करता है-
(1) तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों में जल-प्रवाह की गति तेज़ होती है जिससे मिट्टी के निर्माण की बजाय उसका अपरदन होने लगता है। निम्न उच्चावच वाले क्षेत्रों में मिट्टी का निक्षेपण अधिक होता है जिससे मिट्टी की परत गहरी या मोटी हो जाती है।

(2) ढाल की प्रवणता मिट्टी के उपजाऊपन को भी निर्धारित करती है। यही कारण है कि मैदानों के डेल्टा क्षेत्र और नदी बेसिन में मिट्टी गहरी और उपजाऊ होती है जबकि पठारों में अधिक उच्चावच के कारण मिट्टी कम गहरी होती है।

प्रश्न 3.
मिट्टी के निर्माण के सक्रिय एवं निष्क्रिय कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मृदा निर्माण के पाँच कारकों में से दो सक्रिय व तीन निष्क्रिय कारक होते हैं-
(1) सक्रिय कारक (Active Factors) मृदा निर्माण में जलवायु और जैविक पदार्थ सक्रिय कारक माने जाते हैं क्योंकि इनकी क्रियाशीलता के कारण ही चट्टानों का अपघटन (Decomposition) होता है और कुछ नए जैव-अजैव यौगिक (Compounds) तैयार होते हैं।

(2) निष्क्रिय कारक (Passive Factors)-जो कारक मिट्टी निर्माण की प्रक्रिया में स्वयं पहल नहीं करते, निष्क्रिय कारक कहलाते हैं। वे हैं-जनक पदार्थ, स्थलाकृति और विकास की अवधि।

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प्रश्न 4.
जलोढ़ मिट्टी की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जलोढ़ मिट्टी की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • यह मिट्टी हल्के भूरे व पीले रंग की होती है।
  • अधिकतर स्थानों पर यह भारी दोमट व अन्य स्थानों पर यह बलुही और चिकनी होती है।
  • भिन्न-भिन्न प्रदेशों में जलोढ़ मिट्टी की गहराई अलग-अलग होती है।
  • इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस व वनस्पति अंश (ह्यूमस) की कमी होती है, परन्तु पोटाश और चूरा पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए यह मिट्टी अत्यन्त उपजाऊ होती है।
  • यह प्रवाहित (Transported) मिट्टी है जिसमें जन्म से जमाव तक के लम्बे चट्टानी मार्ग में अनेक रासायनिक तत्त्व आ मिलते हैं।
  • मुलायम होने के कारण इस मिट्टी में कुएँ, नलकूप व नहरें खोदना आसान और कम खर्चीला होता है।
  • जलोढ़ मिट्टी में गहन कृषि (Intensive Farming) की जाती है; जैसे चावल, गेहूँ, गन्ना, कपास, तिलहन, दालें, तम्बाकू व हरी सब्ज़ियाँ इस मिट्टी में बहुतायत से उगाई जाती हैं।

प्रश्न 5.
जलोढ़ मिट्टियों के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संरचना और उपजाऊपन के आधार पर जलोढ़ मिट्टियों के तीन उप-विभाग हैं-
1. खादर मिट्टियाँ–नदी तट के समीप नवीन कछारी मिट्टी से बने निचले प्रदेश को खादर कहते हैं। नदियों की बाढ़ के कारण यहाँ प्रतिवर्ष जलोढ़क की नई परत बिछ जाने के कारण यह मिट्टी अधिक उपजाऊ होती है। इसे ‘बेट’ भूमि भी कहा जाता है।

2. बाँगर मिट्टियाँ-पुराने जलोढ़ निक्षेप से बने ऊँचे प्रदेश को बाँगर कहते हैं। यहाँ बाढ़ का जल नहीं पहुँच पाता। बाँगर में मृतिका का अंश अधिक पाया जाता है। इसमें कैल्शियम संग्रथनों अर्थात् कंकड़ों की भरमार होती है। इसे ‘धाया’ भी कहते हैं।

3. न्यूनतम जलोढ़ मिट्टियाँ यह नदियों के डेल्टाओं में पाई जाने वाली दलदली, नमकीन और अत्यन्त उपजाऊ मिट्टियाँ होती हैं। इनके कण अत्यन्त बारीक होते हैं। इनमें ह्यूमस, पोटाश, चूना, मैग्नीशियम व फॉस्फोरस अधिक मात्रा में मिलते हैं।

प्रश्न 6.
भारत के उत्तरी मैदान तथा प्रायद्वीपीय पठार की मिट्टियों में मूलभूत अन्तर क्या है?
उत्तर:
भारत के उत्तरी विशाल मैदान में पाई जाने वाली मिट्टी का निर्माण नदियों की निक्षेपण-क्रिया से हुआ है। यहाँ की मिट्टी हिमालय तथा प्रायद्वीपीय पठार दोनों से ही निकलने वाली नदियों द्वारा बहाकर लाई गई है। इसमें महीन कणों वाली मृत्तिका पाई जाती है। इस मिट्टी का अपनी मूल चट्टानों से सम्बन्ध नहीं रहता। ऐसी मिट्टियों को प्रवाहित मिट्टियाँ कहा जाता है। इसके विपरीत, दक्षिणी पठार की मिट्टियों का अपनी मूल चट्टानों से गहरा सम्बन्ध है क्योंकि ये अपने निर्माण-स्थल से बहुत अधिक दूर प्रवाहित नहीं हुईं। ऐसी मिट्टियाँ स्थायी मिट्टियाँ (Permanent Soils) कहलाती हैं। ये प्रायः मोटे कणों वाली और कम उपजाऊ होती हैं।

प्रश्न 7.
काली मिट्टी की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
विशेषताएँ-

  1. रंग की गहराई के आधार पर काली मिट्टी के तीन प्रकार होते हैं-(a) छिछली काली मिट्टी, (b) मध्यम काली मिट्टी तथा (c) गहरी काली मिट्टी।।
  2. यह अपने ही स्थान पर बनकर पड़ी रहने वाली स्थायी मिट्टी है।
  3. इस मिट्टी में चूना, लोहा, मैग्नीशियम, कैल्शियम कार्बोनेट, एल्यूमीनियम व पोटाश अधिक पाया जाता है, परन्तु इसमें जीवित पदार्थों, फॉस्फोरस और नाइट्रोजन की मात्रा कम पाई जाती है।
  4. लोहांश की मात्रा अधिक होने के कारण इस मिट्टी का रंग काला होता है।
  5. उच्च स्थलों पर पाई जाने वाली मिट्टी का उपजाऊपन निम्न स्थलों व घाटियों की काली मिट्टी की अपेक्षा कम होता है।
  6. काली मिट्टी में कणों की बनावट घनी और महीन होती है जिससे इसमें नमी धारण करने की पर्याप्त क्षमता होती है। इसके लिए सिंचाई की आवश्यकता कम पड़ती है।
  7. जल के अधिक देर तक ठहर सकने के गुण के कारण यह मिट्टी शुष्क कृषि के लिए श्रेष्ठ है।
  8. इस मिट्टी का प्रमुख दोष यह है कि ग्रीष्म ऋतु में सूख जाने पर इसकी ऊपरी परत में दरारें पड़ जाती हैं। वर्षा ऋतु में यह मिट्टी चिपचिपी हो जाती है। दोनों दशाओं में इसमें हल चलाना कठिन हो जाता है। अतः पहली बारिश के बाद इस मिट्टी की जुताई ज़रूरी है।
  9. कपास के उत्पादन के लिए यह मिट्टी अत्यन्त उपयोगी है। अतः इसे काली कपास वाली मिट्टी भी कहते हैं। गन्ना, तम्बाकू, गेहूँ व तिलहन के लिए यह मिट्टी श्रेष्ठ सिद्ध हुई है।

प्रश्न 8.
ढाल पर मृदा अपरदन रोकने की दो प्रमुख विधियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
ढाल पर मृदा अपरदन रोकने की दो प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं-
1. वृक्षारोपण-वृक्षारोपण मृदा-संरक्षण का सबसे सशक्त उपाय है। जिन क्षेत्रों में वनों का अभाव है वहाँ वर्षा के जल से मिट्टी के कटाव की समस्या उत्पन्न हो जाती है। ऐसे क्षेत्रों में लगाए गए वृक्षों की जड़ें मिट्टी को बाँध देती हैं व वृक्ष तेज़ हवाओं के कारण होने वाली मिट्टी के क्षरण को रोकते हैं। साथ ही वृक्षों के अनियोजित कटाव को भी रोकना होगा। यदि विकास कार्यों हेतु वृक्ष काटने भी पढ़ें तो आस-पास नये वृक्ष लगाना भी आवश्यक है।

2. कृषि प्रणाली में सुधार भारत के कई स्थानों में की जाने वाले दोषपूर्ण कृषि प्रणाली में सुधार लाकर भी मिट्टी का संरक्षण किया जा सकता है। इसमें फसलों का चक्रण, सीढ़ीदार कृषि व ढलानों पर जल का वेग रोकने के लिए समोच्च रेखीय जुताई करना प्रमुख है। खेतों की मेड़बन्दी करना व उर्वरता बढ़ाने हेतु कृषि-भूमि को कुछ समय के लिए परती (Fallow) छोड़ना भी भूमि-संरक्षण के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 9.
मृदा अपरदन भारतीय कृषि का निर्दयी शत्रु क्यों माना जाता है? मृदा अपरदन की हानियाँ स्पष्ट करें।
उत्तर:
मृदा भारत के करोड़ों लोगों व करोड़ों पशुओं के भोजन का आधार है। भारत में मृदा अपरदन ने भयंकर रूप धारण कर रखा है। इसलिए इसे भारतीय कृषि का निर्दयी शत्रु माना जाता है। मृदा-अपरदन से होने वाली हानियाँ निम्नलिखित हैं

  • भीषण तथा आकस्मिक बाढ़ों का प्रकोप।
  • सूखे (Drought) की लम्बी अवधि जिससे फसलों को नुकसान होता है।
  • कुओं व ट्यूबवलों, नलकूपों का जल-स्तर (चोवा) नीचे चला जाता है व सिंचाई में बाधा पहुँचती है।
  • बालू के जमाव से नदियों, नहरों व बन्दरगाहों के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं।
  • उपजाऊ भूमि के नष्ट होने से कृषि की उत्पादकता कम होती है।
  • अवनालिका अपरदन से कृषि-योग्य भूमि में कमी आती है।

प्रश्न 10.
मृदा की उर्वरा-शक्ति को विकसित करने के लिए कौन-कौन से उपाय करने चाहिएँ?
उत्तर:
कृषि भूमि पर निरन्तर खेती करने से मिट्टी की उर्वरा-शक्ति कम हो जाती है। उर्वरा-शक्ति को बनाए रखने के लिए . निम्नलिखित उपाय करने चाहिएँ-
1. भूमि को परती छोड़ना (Fallow Land) कृषि की जमीन को लगातार जोतने की बजाय उसे एक दो वर्षों के लिए परती छोड़ देनी चाहिए। परती छोड़ने से वायु, वनस्पति (घास), कीड़े-मकौड़े आदि ऐसी जमीन पर उर्वरा-शक्ति बढ़ाते हैं।

2. फसलों का हेर-फेर (Rotation of Crops)-खेत में फसलों को बदल-बदलकर बोना चाहिए। विभिन्न पौधे मिट्टी से विभिन्न प्रकार के पोषक तत्त्व खींचते हैं और कछ तत्त्व छोडते हैं। अतः फसलों के हेर-फेर से मिट्टी में लगातार एक प्रकार के पोषक तत्त्व नष्ट नहीं होते, बल्कि दूसरी फसलों से उनकी पूर्ति हो जाती है।

3. गहरी जुताई (Deep Ploughing) कृषि-भूमि को काफी गहराई तक जोतना चाहिए। ऐसा करने से मिट्टी के खनिज तत्त्वों का मिट्टी में पूरी तरह मिलान हो जाता है।

4. रासायनिक खादों का प्रयोग (Use of Chemical Fertilizers)-मिट्टी में समय-समय पर रासायनिक खाद तथा जैविक उर्वरक आदि का प्रयोग करते रहना चाहिए।

प्रश्न 11.
किसी प्रदेश के आर्थिक विकास में मृदा की विशेषताएँ किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं? इसकी व्याख्या करने के लिए दो उदाहरण बताइए।
उत्तर:
भू-पटल पर पाए जाने वाले असंगठित शैल चूर्ण की पर्त, जो पौधों को उगने तथा बढ़ने के लिए जीवांश तथा खनिजांश प्रदान करती है, उसे मृदा कहते हैं। यह एक बहुमूल्य प्राकृतिक सम्पदा है। इस पर अनेक मानवीय क्रियाएँ निर्भर करती हैं। मिट्टी कृषि, पशु-पालन तथा वनस्पति जीवन का आधार है। बहुत-से देशों की अर्थव्यवस्था मिट्टी के उपजाऊपन पर निर्भर करती है। विश्व के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में मनुष्य अपने भोजन के लिए मृदा की उपजाऊ शक्ति पर निर्भर करते हैं। जिन क्षेत्रों की भूमि अनुपजाऊ होती है, वहाँ जनसंख्या का घनत्व तथा लोगों का जीवन-स्तर निम्न होता है।

उदाहरण के लिए पश्चिमी बंगाल का डेल्टाई क्षेत्र और केरल तट अति उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी से निर्मित हैं। इसलिए ये क्षेत्र सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व के प्रदेश हैं तथा यहाँ उन्नत कृषि की जाती है। इसके विपरीत तेलंगाना में मोटे कणों की मिट्टी पाई जाती है और राजस्थान में रेतीली मिट्टी मिलती है। यह मिट्टी कृषि के योग्य नहीं है। इसलिए उन क्षेत्रों में जनसंख्या विरल है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मृदा-निर्माण करने वाले विभिन्न घटकों या कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मृदा-निर्माण करने वाले मुख्य घटक या कारक निम्नलिखित हैं-
1. जनक-सामग्री अथवा मूल पदार्थ-मिट्टी का निर्माण करने वाले जनक पदार्थों की प्राप्ति चट्टानों से होती है। चट्टानों के अपरदन और अपक्षय से बने चूर्ण से ही मिट्टी का निर्माण होता है। भारत के उत्तरी विशाल मैदान में पाई जाने वाली मिट्टी का निर्माण नदियों की निक्षेपण-क्रिया से हुआ है। इस मिट्टी का अपनी मूल चट्टानों से सम्बन्ध नहीं रहता। ऐसी मिट्टियों को प्रवाहित मिट्टियाँ कहा जाता है। इसके विपरीत, दक्षिणी पठार की मिट्टियों का अपनी मूल चट्टानों से गहरा सम्बन्ध है क्योंकि ये अपने निर्माण-स्थल से बहुत अधिक दूर प्रवाहित नहीं हुईं। ऐसी मिट्टियाँ स्थायी मिट्टियाँ कहलाती हैं।

2. उच्चावच-तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों में जल-प्रवाह की गति तेज़ होती है जिसके कारण मिट्टी के निर्माण की बजाय उसका अपरदन होने लगता है। निम्न उच्चावच वाले क्षेत्रों में मिट्टी का निक्षेपण अधिक होता है जिससे मिट्टी की परत गहरी या मोटी हो जाती है। ढाल की प्रवणता मिट्टी के उपजाऊपन को भी निर्धारित करती है। यही कारण है कि मैदानों के डेल्टा क्षेत्र और नदी बेसिन में मिट्टी गहरी और उपजाऊ होती है जबकि पठारों में अधिक उच्चावच के कारण मिट्टी कम गहरी होती है।

3. जलवायु-भारत में तापमान और वर्षा में पाए जाने वाले विशाल प्रादेशिक अन्तर के कारण विभिन्न प्रकार की मिट्टियों का जन्म हुआ है। उष्ण और आर्द्र प्रदेशों की मिट्टियाँ मोटाई और उपजाऊपन में शीतल एवं शुष्क प्रदेशों की मिट्टियों से काफी भिन्न होती हैं। इसके अतिरिक्त, मिट्टी में जल रिसने की मात्रा और सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति भी, जो मिट्टी को उपजाऊ बनाती हैं, जलवायु द्वारा नियन्त्रित होती है।

4. प्राकृतिक वनस्पति-मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया का गहरा सम्बन्ध वनस्पति की वृद्धि और पौधों में पलने वाले सूक्ष्म जीवों से होता है। वनस्पति और जीवों के सड़े-गले अंश जीवाश्म (ह्यूमस) के रूप में मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाते हैं। इसी कारण वन्य प्रदेशों में अधिक उपजाऊ मिट्टी पाई जाती है। इस प्रकार मृदा या मिट्टी तथा वनस्पति के प्रकारों में रोचक सम्बन्ध पाया जाता है।

5. विकास की अवधि अथवा समय-मिट्टी का निर्माण एक धीमी किन्तु सतत् प्रक्रिया है। ऐसा मानना है कि दो सेण्टीमीटर मोटी मिट्टी की विकसित परत को बनाने में प्रकृति को लगभग दो शताब्दियाँ लग जाती हैं। मिट्टी का विकास तीन अवस्थाओं में होता है-

  • युवा अवस्था
  • प्रौढ़ अवस्था व
  • जीर्ण अवस्था।

अतः कहा जा सकता है कि मिट्टी ठोस, तरल व गैसीय पदार्थों का मिश्रण है जो चट्टानों के अपक्षय, जलवायु, पौधों व अनन्त जीवाणुओं के बीच होने वाली अन्तःक्रिया का परिणाम है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

प्रश्न 2.
भारत में पाई जाने वाली मिट्टियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मृदा क्या है? मृदा के प्रकार बताइए और जलोढ़ मृदा की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मृदा-भू-पृष्ठ की सबसे ऊपरी परत जो पौधों को उगने व बढ़ने के लिए जीवांश और खनिजांश प्रदान करती है मृदा कहलाती है। मिट्टियों के गुण, रंग व बनावट के आधार पर भारत में निम्नलिखित प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती हैं-

  • काली मिट्टी
  • लैटेराइट मिट्टी
  • पर्वतीय मिट्टी
  • मरुस्थलीय मिट्टी
  • लाल और पीली मिट्टी
  • जलोढ़ मिट्टी
  • खारी खड़िया मिट्टी
  • दलदली मिट्टी।

1. काली मिट्टी (Black Soil) काली मिट्टी में महीन कण वाली मृत्तिका अधिक होती है। इस कारण इसमें पानी के रिसने की सम्भावना नहीं होती। यह मिट्टी कठोर प्रकार की होती है। यह ज्वालामुखी के लावा से बनती है। यह काले रंग की बारीक कणों वाली होती है। इसे रेगर (Ragur) के नाम से भी जाना जाता है। यह मिट्टी बहुत उपजाऊ होती है। इसमें अधिक जुताई करने की आवश्यकता नहीं होती। यह मिट्टी अधिक मात्रा में नमी ग्रहण कर सकती है। इसमें चूना, पोटाश, मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है। यह मिट्टी दक्षिणी राजस्थान, पश्चिमी आन्ध्र प्रदेश तथा पश्चिमी मध्य प्रदेश में अधिक मात्रा में पाई जाती है। कपास की खेती के लिए यह मिट्टी बहुत उपजाऊ है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ 1

2. लैटेराइट मिट्टी (Laterite Soil)-इस प्रकार की मिट्टी उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में पाई जाती है। भारी वर्षा के कारण इसमें चूना व सिलिका घुल जाते हैं और एल्युमीनियम की मात्रा अधिक हो जाती है। चूने के अभाव के कारण यह मृदा अम्लीय होती है। पठारों और पहाड़ियों पर इस मिट्टी का निर्माण अधिक होता है। इस मिट्टी का रंग लौह-ऑक्साइड तत्त्व के कारण लाल होता है। ओडिशा के पूर्वी घाट क्षेत्र में यह मिट्टी अत्यधिक मात्रा में पाई जाती है। इस मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा नमी क्षेत्र को छोड़कर बहुत कम पाई जाती है। ऊँचे भागों की लेटेराइट मिट्टी अनुपजाऊ होती है। यह नाइट्रोजन, चूना, फास्फोरस तथा मैग्नीशियम की मात्रा कम होने के कारण कम उपजाऊ है। मिट्टी में घास, झाड़ियाँ बहुत उगती हैं। यह मिट्टी छोटा नागपुर. का पठार, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, ओडिशा तथा असम में पाई जाती है।

3. पर्वतीय मिट्टी (Mountaineous Soil)-मैदान की अपेक्षा पर्वतीय मिट्टियों में अधिक विभिन्नताएँ होती हैं। पर्वतों की मिट्टियाँ आग्नेय चट्टानों तथा इनके पदार्थों के विघटन होने के कारण बनी हैं। पर्वतों की मिट्टियाँ ऊँचाई के अनुरूप अलग-अलग पाई जाती हैं। इनके तल की मिट्टियाँ क्षितिजीय वितरण के लिए होती हैं। ऊँचे पर्वत की मिट्टियाँ ऊपरी ढाँचे से युक्त होती हैं। निचले भागों में अपेक्षाकृत पूर्ण निर्मित व समान रूप से वितरित मिट्टियाँ पाई जाती हैं। धरातल व ढालों के प्रभाव के कारण इसकी गहराई में अन्तर मिलता है।

ये मिट्टियाँ लम्बे समय तक कृषि के उपयोग में लाई जाती हैं। पर्याप्त नमी के कारण विभिन्न खनिजों का जमाव, फास्फोरस, जिप्सम, चूना आदि की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है। इस प्रकार की मिट्टियों का निर्माण प्रतिवर्ष होता रहता है।

4. मरुस्थलीय मिट्टी (Desert Soil) भारत की मरुस्थलीय मिट्टी में अनुसन्धान ‘भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद्’ कर रही है। इसने हाल ही में राजस्थान के मरुस्थल के बारे में जानकारी उपलब्ध की है। ये मिट्टियाँ मूल रूप से गंगा सिन्ध मैदान का भाग हैं। ये मिट्टियाँ उच्च तापमान व शुष्कता से निर्मित होती हैं। इसका रंग काला, लाल, भूरा व स्लेटी होता है। ये एक प्रकार की स्थानान्तरित कछारी मिट्टियाँ हैं। इनमें उर्वरा शक्ति बहुत कम होती है। इसमें क्षारीय तत्त्व, जैवकीय तत्त्व, नाइट्रोजन व ह्यूमस की मात्रा कम पाई जाती है। इसकी रन्ध्रता से पानी का अधिक तेजी से रिसाव होता है। पैतृक पदार्थों से विघटित होकर ये मिट्टियाँ खिट के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं।

5. लाल मिट्टी (Red Soil)-लाल मिट्टी भारत के दक्षिण पठार के मुख्य ट्रेप (Trap) के बाहरी भागों तक पाई जाती है। पूर्वी तथा पश्चिम घाटों के ढाल, हजारीबाग तथा छोटा नागपुर पठार, दामोदर की घाटी तथा अरावली पर्वत श्रेणी इसके प्रमुख क्षेत्र हैं। इसकी बनावट बलुई व दोमट कणों की है। यह उपोष्ण प्रदेशों में कम, विक्षलित वर्षा वाले वनों में गहरे लाल रंग के रूप में पाई जाती है। ये मिट्टियाँ अधिक मोटी व उपजाऊ होती हैं। ये मिट्टियाँ ओडिशा, मध्य प्रदेश, उत्तरी मध्य आन्ध्र प्रदेश तथा पूर्वी केरल राज्यों में विस्तृत रूप से फैली होती हैं। लाल दानेदार मिट्टी कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश में पाई जाती है। यह मिट्टी कम उर्वरा शक्ति वाली होती है। इसकी भौतिक संरचना रेगर प्रकार की होती है।

6. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil) यह भारत के उत्तरी मैदान की प्रमुख मिट्टी है। उत्तरी भारत की नदियों द्वारा बिछाई गई मिट्टी भारतीय पठार में पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं, नर्मदा, ताप्ती की निचली घाटियों व गुजरात में पाई जाती है। इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश की मात्रा कम पाई जाती है। यहाँ की पुरानी जलोढ़ मिट्टी को बाँगर कहा जाता है। इस मिट्टी में चूना बहुत कम मात्रा में पाया जाता है। ब्रह्मपुत्र नदी द्वारा बिछाई गई मिट्टी में चूने की मात्रा पूर्ण रूप से पाई जाती है। यह मिट्टी शुष्क छ स्थानों पर खारी मिट्टी के बड़े टुकड़े सोडियम, कैल्शियम, पोटाशियम तथा मैग्नीशियम के जमा होने से बनती है। इस मिट्टी में रेह अथव कल्लर भी पाई जाती है। इस मिट्टी पर जुताई बड़ी आसानी से हो जाती है। इसमें खाद मिलाकर सिंचाई करने के बाद वर्ष में कई फसलें प्राप्त की जा सकती हैं। इस भाग में वर्षा के असमान वितरण के कारण कई तत्त्वों की न्यूनाधिकता पाई जाती है। यह मिट्टी अपनी उपजाऊ शक्ति के कारण भारतीय कृषि में अपना विशिष्ट स्थान रखती है।

7. खारी खड़िया मिट्टियाँ (Brakish Soil)-खारी लवण-युक्त मिट्टियाँ शुष्क मरुस्थल में पाई जाती हैं। इस मिट्टी वाले स्थानों पर लवण धरातल पर विक्षालन की बजाय निचली परतों में एकत्रित हो जाते हैं और धीरे-धीरे मिट्टी को लवण-युक्त बना देते हैं। इसकी ऊपरी सतह पर नमक की परत जमा हो जाती है। यह नमक की परत उपजाऊ शक्ति को कम कर देती है। इसमें सोडियम, कैल्शियम तथा मैग्नीशियम की अधिक मात्रा पाई जाती है। यह मिट्टी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु तथा महाराष्ट्र में पाई जाती है।
मृदाएँ

8. दलदली मिट्टी (Marshy Soil)-दलदली और पीट मिट्टियाँ, जहाँ बहुत गहरा कीचड़ होता है, वहाँ पाई जाती हैं। उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र क्षेत्र जहाँ अपर्याप्त जल प्रवाह होता है, वहाँ दलदली मिट्टियाँ विकसित होती हैं। ये अत्यधिक अम्लीय अपरिष्कृत विनिष्ट वनस्पतिक पदार्थ उत्पन्न करती हैं। ये बाढ़ के मैदानों पर निर्मित होती हैं, जो विभिन्न अवधियों में जलमग्न हो जाती हैं और कीचड़ तथा तलछट के निक्षेपों से युक्त हो जाती हैं। यह मिट्टी केरल, ओडिशा, पश्चिमी बंगाल, मध्य प्रदेश, उत्तरी बिहार, उत्तर प्रदेश तथा तमिलनाडु के तटवर्ती क्षेत्रों में पाई जाती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 6 मृदाएँ

प्रश्न 3.
मृदा अपरदन से आपका क्या तात्पर्य है? इसके प्रकार तथा कारण बताएँ।
अथवा
मृदा अपरदन क्या है? इसके प्रकारों तथा कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
मृदा अपरदन (Soil Erosion)-प्रकृति की विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा मिट्टियों के ह्रास को मृदा अपरदन कहते हैं। मृदा अपरदन जल तथा वायु के परिणामस्वरूप होता है। विभिन्न साधन, जो किसी-न-किसी रूप में सक्रिय रहते हैं, धरातल को निरन्तर काटते-छाँटते रहते हैं, इनमें बहता हुआ जल, हवा, हिमानी आदि प्रमुख प्राकृतिक साधन हैं। मिट्टियों के अपरदन में मानवीय क्रियाकलाप का भी योगदान कम नहीं है। मानव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार के तकनीकी साधन अपनाकर मिट्टी के कटाव को बढ़ावा देता है। वर्तमान समय में भूमि के अधिकतम उपयोग, अधिकतम रासायनिक क्रियाओं व खाद का उपयोग अव्यवस्थित कृषि पद्धति आदि करने से मिट्टी का कटाव अधिक हो रहा है।

मृदा अपरदन के प्रकार (Types of Soil Erosion)-मृदा अपरदन मुख्य रूप से निम्नलिखित तीन प्रकार का होता है-

  • जलीय अपरदन (Fluvial Erosion)
  • वायुद अपरदन (Acolian Erosion)
  • समुद्री अपरदन (Marine Erosion)

1. जलीय अपरदन (Fluvial Erosion)-जल के विभिन्न रूप प्रभावित जल, एकत्रित जल, नदी पोखरों, झरनों, हिमानी द्वारा मिट्टी का कटाव को जलीय अपरदन कहते हैं। इसमें मिट्टियाँ अपनी मूलचट्टानों को छोड़कर दूसरे स्थान पर जाकर जमा हो जाती हैं। बहते हुए जल द्वारा वहाँ अपरदन कई रूप में होता है
(1) अवनलिका अपरदन (Gully Erosion)-प्रथम अवस्था में मिट्टियाँ इस प्रकार का अपरदन पहाड़ी दुर्गम क्षेत्रों के तंग मार्ग में मिट्टी के कटाव करती हैं। इसमें कटाव लम्बवत रूप से होता है तथा घाटी गहरी होती जाती है।

(2) चद्दर अपरदन (Sheet Erosion)-इस प्रकार का अपरदन नदियों के लिए तलीय भाग के पानी द्वारा होता है। इसमें अपरदन परतों के रूप में होता है, इसलिए इसे चद्दर अपरदन कहते हैं।

(3) सरिता अपरदन (River Erosion)-जब नदी अपनी वृद्ध अवस्था में छोटी-छोटी जल धाराओं में बँट जाती है और मिट्टी की ऊपरी परत (महीन व चिकने कणयुक्त) को काट देती है, तो उसे सरिता अपरदन कहा जाता है।

(4) नदी तटीय कटाव (Riparian Erosion) यह अपरदन नदियों के तेज प्रवाह के कारण होता है। इसमें नदियाँ तटीय भागों को अधिक अपरदित करती हैं। इसका निर्माण नदी की सर्पाकार अवस्था में भी मिलता है।

(5) छपछपाना कटाव (Splash Erosion)-जब वर्षा रुक-रुककर होती है, तो इस क्रिया से मिट्टी ढीली हो जाती है, जो बाद में पानी के साथ बह जाती है। इसे छपछपाना कटाव कहते हैं।

2. वायुद अपरदन (Acolian Erosion)-वायु अपनी प्राकृतिक शक्ति द्वारा मैदानी तथा मरुस्थलों की मिट्टी को अपने साथ उड़ा ले जाती है और उसे दूसरे स्थान पर निक्षेपण कर देती है। हवा द्वारा मिट्टियों का अपरदन व निक्षेपण विस्तृत भागों में होता है। मरुस्थलों में इस प्रकार का अपरदन व निक्षेपण कई कि०मी० तक होता रहता है। इसमें वायु का वेग तेज होता है। जिन क्षेत्रों में अव्यवस्थित कृषि होती है और भूमि बारम्बार जोत से ढीली हो जाती है, उसे वायु अपने साथ उड़ा ले जाती है। इस प्रकार का अपरदन उपजाऊ भाग की मिट्टियाँ उड़ाकर उसे अनुपजाऊ बना देता है। मिट्टियों की निक्षेपण क्रिया द्वारा विभिन्न प्रकार की मरुस्थलीय स्थलाकृतियाँ बनती व बिगड़ती रहती हैं। जिन भागों पर ये मिट्टियाँ बिछा दी जाती हैं, वहाँ मिट्टी की पतली परत का निर्माण हो जाता है, जो बहुत उपजाऊ होती है, लेकिन पानी के अभाव के कारण अनुपजाऊ हो जाती है।

3. समुद्री अपरदन (Marine Erosion)-नदियों व झीलों आदि की लहरों द्वारा समुद्र के तटवर्ती भागों का अपरदन होता है। ये लहरें धीरे-धीरे तटीय भागों को अपरदित करना शुरू कर देती हैं और वहाँ अनेक स्थलाकृतियों का निर्माण कर देती हैं। ये लहरें दलदल का भी निर्माण करती हैं, जिससे खारी मिट्टियों का निर्माण होता है। लहरें तटीय भागों पर गहरी नालियों का निर्माण कर देती हैं तथा उपजाऊ भूमि को अनुपयुक्त बना देती हैं। ज्वार-भाटा भी तटीय कटावों में सहयोगी होता है।

इस प्रकार पानी की क्रियाओं द्वारा या हवाओं द्वारा निरन्तर मिट्टियों का कटाव होता रहता है। मिट्टी अपरदन के कारण (Causes of Soil Erosion) मृदा अपरदन के निम्नलिखित कारण हैं-
1. वर्षा की भिन्नता (Variability of Rainfall) अलग-अलग क्षेत्रों में वर्षा के वितरण में भिन्नता पाई जाती है। जहाँ पर कम वर्षा होती है, वहाँ मिट्टी शुष्क होकर अपरदित होने लगती है। कहीं-कहीं पर पानी से दरारें व मिट्टी भुरभुरी होकर बिखर जाती है। अतः वर्षा का असमान वितरण भी मिट्टी कटाव में सहायक होता है।

2. निरन्तर कृषि (Regular Cultivation)-लगातार कई वर्षों तक एक ही क्षेत्र पर कृषि करने से मिट्टियों का कटाव होता है। इसकी उपजाऊ शक्ति धीरे-धीरे कम होती जाती है और मिट्टी में रासायनिक तत्त्वों की कमी आ जाती है। स्थानान्तर कृषि से वनों का नाश होता है, इसके द्वारा भी काफी मात्रा में मिट्टी अपरदन होता है।

3. जंगलों की कटाई (Deforestation)-वर्तमान समय में जनसंख्या के विस्फोट के कारण वनों की निरन्तर कटाई से वन धीरे-धीरे कम हो रहे हैं और ताप व वर्षा की दशाओं पर विपरीत प्रभाव डाल रहे हैं, जिसका प्रभाव वनस्पति के विकास व वृद्धि पर पड़ता है। इस प्रकार धीरे-धीरे वन उजड़ जाते हैं और मृदा अपरदन बढ़ता जाता है।

4. नदियाँ (Rivers)-बहती हुई नदियाँ अपने रास्ते से मिट्टी बहाकर ले जाती हैं और रास्ते में अनेक खड्डों का निर्माण कर देती हैं। कई बार नदियाँ अपना रास्ता बदल देती हैं और नए तरीके से अपने मार्ग का निर्माण कर देती हैं। इस निर्माण क्रिया में भी मृदा अपरदन होता रहता है। बाढ़ के समय मृदा अपरदन काफी मात्रा में होता है।

5. हवाएँ (Airs) मरुस्थलीय भागों में वायु द्वारा मृदा अपरदन तीव्र गति से होता है। वायु अपने साथ मिट्टी को उड़ाकर ले जाती है और दूसरे स्थान पर उसका निक्षेपण कर देती है। वायु की तीव्रता के अनुसार मृदा अपरदन कम या ज्यादा होता है।

6. अनियन्त्रित पशुचारण (Uncontrolled Pastroalis) पशुचारण से पेड़-पौधों का विनाश होता है। पशु घास को जड़ सहित खींच लेते हैं, जिसके परिणामस्वरूप भूमि-क्षरण प्रारम्भ हो जाता है। पशुओं के चलने-फिरने से भी मिट्टी ढीली पड़ जाती है। इस प्रकार पशुओं के अनियमित चराने से मृदा अपरदन होता है।

7. कृषि के गलत तरीके (Faulty Methods ofCultivation)-आधुनिक समय में विज्ञान के क्षेत्र में उन्नति के कारण के अनेक विकसित तरीकों की खोज हो चुकी है। मानव अधिक फसल के लिए इन तरीकों का गलत प्रयोग करता है। इस कारण भी मृदा अपरदन होता है। खेतों को बारम्बार जोतना या आवश्यकता न होने पर जोतना, अनियन्त्रित सिंचाई, अधिक कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग करना आदि से मिट्टियाँ अपना गुण खो देती हैं और इनका विघटन प्रारम्भ हो जाता है।

8. वनस्पति का विनाश (Destruction of Vegetation) प्राकृतिक वातावरण में धीरे-धीरे परिवर्तन से ताप में भिन्नता तथा इन क्षेत्रों की मिट्टियों के निर्माण में परिवर्तन होना शुरू हो जाता है। इस परिवर्तन के कारण पौधों व वनस्पति पर विपरीत प्रभाव पड़ते हैं। वनस्पति नष्ट होनी शुरू हो जाती है। धीरे-धीरे शुष्कता भी बढ़ती जाती है। वनस्पति आवरण के कम होने के कारण ताप की तीव्रता अधिक होती जाती है और मिट्टियों का क्षरण प्रारम्भ हो जाता है।

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