HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. प्राकृतिक आपदाएँ प्रतिवर्ष भारत के कितने लोगों को प्रभावित करती हैं?
(A) 2 करोड़
(B) 6 करोड़
(C) 10 करोड़
(D) 12 करोड़
उत्तर:
(B) 6 करोड़

2. विश्व के सर्वाधिक आपदा संभावित देशों में भारत का कौन-सा स्थान है?
(A) दूसरा
(B) तीसरा
(C) चौथा
(D) पाँचवां
उत्तर:
(A) दूसरा

3. सामान्यतः भारत का कितने प्रतिशत क्षेत्र सूखे से ग्रस्त रहता है?
(A) 5%
(B) 10%
(C) 14%
(D) 16%
उत्तर:
(D) 16%

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4. निम्नलिखित में से कौन-सा एक इलाका भूकंप की दृष्टि से अति जोखिम क्षेत्र के अंतर्गत आता है?
(A) दक्कन पठार
(B) पूर्वी हरियाणा
(C) पश्चिमी उत्तर प्रदेश
(D) कश्मीर घाटी
उत्तर:
(D) कश्मीर घाटी

5. भूकंप किस प्रकार की आपदा है?
(A) वायुमण्डलीय
(B) भौमिकी
(C) जलीय
(D) जीवमण्डलीय
उत्तर:
(B) भौमिकी

6. आपदा प्रबंधन नियम किस वर्ष बनाया गया?
(A) वर्ष 2003 में
(B) वर्ष 2005 में
(C) वर्ष 2007 में
(D) वर्ष 1999 में
उत्तर:
(B) वर्ष 2005 में

7. भारत में सूखे का प्रभाव लगभग कितने क्षेत्र पर होता है?
(A) 5 लाख वर्ग कि०मी०
(B) 7 लाख वर्ग कि०मी०
(C) 10 लाख वर्ग कि०मी०
(D) 15 लाख वर्ग कि०मी०
उत्तर:
(C) 10 लाख वर्ग कि०मी०

8. भुज में विनाशकारी भूकंप कब आया था?
(A) 26 जनवरी, 1999
(B) 26 जनवरी, 2000
(C) 26 जनवरी, 2001
(D) 26 जनवरी, 2002
उत्तर:
(C) 26 जनवरी, 2001

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9. भुज में 2001 को आए भूकंप की रिक्टर स्केल पर तीव्रता क्या थी?
(A) 2.5
(B) 3.5
(C) 5.2
(D) 7.9
उत्तर:
(D) 7.9

10. आपदाओं के संबंध में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) समय के साथ प्राकृतिक आपदाओं के प्रारूप में परिवर्तन आया है
(B) सभी संकट आपदाएँ होती हैं
(C) समय के साथ आपदाओं द्वारा किए गए नुकसान में वृद्धि हो रही है
(D) आपदाओं के भय ने पूरी दुनिया की चिंता बढ़ा दी है
उत्तर:
(B) सभी संकट आपदाएँ होती हैं

11. उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा एक कथन सही नहीं है?
(A) सर्वाधिक चक्रवात अक्तूबर और नवम्बर में आते हैं
(B) ये पूर्वी प्रशांत महासागर, मैक्सिको तथा मध्य अमेरिकी तट पर भी पैदा होते हैं
(C) इनकी उत्पत्ति भूमध्यरेखा के पास 0° से 5° अक्षांशों के बीच होती है।
(D) इन चक्रवातों में समदाब रेखाएँ एक-दूसरे के नजदीक होती हैं
उत्तर:
(C) इनकी उत्पत्ति भूमध्यरेखा के पास 0° से 5° अक्षांशों के बीच होती है।

12. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात सामान्यतः निम्नलिखित अक्षांश में आते हैं-
(A) 0° – 5° अक्षांशों के बीच
(B) 5° – 15° अक्षांशों के बीच
(C) 15° – 20° अक्षांशों के बीच
(D) 5° – 20° अक्षांशों के बीच
उत्तर:
(D) 5° – 20° अक्षांशों के बीच

13. आपदाओं के संबंध में जो कथन सही नहीं है, उसे चिहनित कीजिए-
(A) देश में 4 करोड़ हैक्टेयर भूमि को बाढ़ प्रभावित घोषित किया गया है
(B) देश के भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 30 प्रतिशत भाग पर सूखे का प्रभाव रहता है
(C) सूखे का अधिक प्रभाव वहाँ पड़ता है जहाँ वर्षा की परिवर्तिता का गुणांक 20 प्रतिशत से अधिक होता है
(D) भूस्खलन की दृष्टि से हरियाणा अधिक सुभेद्यता क्षेत्र में आता है
उत्तर:
(D) भूस्खलन की दृष्टि से हरियाणा अधिक सुभेद्यता क्षेत्र में आता है

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
प्राकृतिक आपदाएँ प्रतिवर्ष भारत के कितने लोगों को प्रभावित करती हैं?
उत्तर:
लगभग 6 करोड़।

प्रश्न 2.
विश्व के सर्वाधिक आपदा सम्भावित देशों में भारत का कौन-सा स्थान है?
उत्तर:
दूसरा।

प्रश्न 3.
भारत के किस राज्य में सर्दी के महीनों में बाढ़ आती है?
उत्तर:
तमिलनाडु में।

प्रश्न 4.
भूकम्पों के आने का क्या कारण है?
उत्तर:
विवर्तनिक हलचलें।

प्रश्न 5.
भारतीय प्लेट किस दिशा में खिसक रही है?
उत्तर:
उत्तर दिशा।

प्रश्न 6.
सामान्यतः भारत का कितना प्रतिशत क्षेत्र सूखे से ग्रस्त रहता है?
उत्तर:
16 प्रतिशत।

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प्रश्न 7.
चक्रवात में समदाब रेखाओं की आकृति लगभग कैसी होती है?
उत्तर:
लगभग गोल।

प्रश्न 8.
धरातल के उस बिन्दु का नाम बताएँ जहाँ सबसे पहले भूकम्पीय तरंगें पहुँचती हैं।
उत्तर:
अधिकेन्द्र।

प्रश्न 9.
भूकम्प की तीव्रता को किस स्केल पर मापा जाता है?
उत्तर:
रिक्टर स्केल पर।

प्रश्न 10.
रिक्टर स्केल पर कितनी इकाइयाँ होती हैं?
उत्तर:
1 से 9 तक।

प्रश्न 11.
भुज में 26 जनवरी, 2001 को आए भूकम्प की रिक्टर स्केल पर तीव्रता क्या थी?
उत्तर:
7.9।

प्रश्न 12.
भारत में अत्याधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र के एक जिले का नाम लिखें।
उत्तर:
बीकानेर (राजस्थान)।

प्रश्न 13.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात सामान्यतः किन अक्षांशों में आते हैं?
उत्तर:
5° से 20° अक्षांशों के बीच।

प्रश्न 14.
भारत में बाढ़ों का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
भारी मानसून तथा चक्रवात।

प्रश्न 15.
प्रायद्वीपीय भारत में बातें कम क्यों आती हैं?
उत्तर:
नदियाँ मौसमी होने के कारण।

प्रश्न 16.
उत्तराखण्ड में भयंकर प्राकृतिक आपदा कब आई?
उत्तर:
16 जून, 2013 में।

प्रश्न 17.
पृथ्वी के अन्दर भूकम्प कितनी गहराई तक उत्पन्न होते हैं?
उत्तर:
75 कि०मी० की गहराई तक।

प्रश्न 18.
पृथ्वी के अन्दर भूकम्प उत्पत्ति वाले स्थान का नाम बताओ।
उत्तर:
उद्गम केन्द्र या भूकम्प मूल।

प्रश्न 19.
रिक्टर स्केल का आविष्कारक कौन था?
उत्तर:
चार्ल्स फ्रांसिस रिक्टर।

प्रश्न 20.
महाराष्ट्र के लाटूर में आए भूकम्प का क्या कारण था?
उत्तर:
भारतीय प्लेट का उत्तर दिशा में खिसकना।

प्रश्न 21.
भूकम्प और ज्वालामुखी की सर्वोत्तम व्याख्या कौन-सा सिद्धान्त करता है?
उत्तर:
प्लेट टेक्टोनिक्स सिद्धान्त।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सूखा क्यों पड़ता है?
उत्तर:
वर्षा की परिवर्तनीयता के कारण सूखा पड़ता है।

प्रश्न 2.
भारत में आने वाली प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. बाढ़
  2. सूखा
  3. चक्रवात
  4. भू-स्खलन
  5. भूकम्प
  6. ज्वारीय तरंगें इत्यादि।

प्रश्न 3.
कोयना भूकम्प क्यों आया था?
उत्तर:
कोयना जलाशय में पानी के भारी दबाव के कारण यहाँ भूकम्प आया था।

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प्रश्न 4.
चक्रवातों से प्रभावित भारत के तीन राज्यों के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. ओडिशा
  2. आन्ध्र प्रदेश तथा
  3. तमिलनाडु।

प्रश्न 5.
प्राकृतिक आपदा से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जल, स्थल अथवा वायुमण्डल में उत्पन्न होने वाली ऐसी घटना या बदलाव जिसके कुप्रभाव से विस्तृत क्षेत्र में जान-माल की हानि और पर्यावरण का अवक्रमण होता हो, प्राकृतिक आपदा कहलाती है।

प्रश्न 6.
बाढ़ संभावित क्षेत्रों में कौन-कौन से क्षेत्र आते हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने देश में 4 करोड़ हैक्टेयर भूमि को बाढ़ प्रभावित क्षेत्र घोषित किया है। असम, पश्चिम बंगाल और बिहार राज्य सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में से हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर भारत की ज्यादातर नदियाँ, विशेषकर पंजाब और उत्तर प्रदेश में बाढ़ लाती रहती हैं।

प्रश्न 7.
सुनामी लहरें क्या हैं?
उत्तर:
भूकम्प और ज्वालामुखी से उठी समुद्री लहरों को सुनामी लहरें तरंगें कहा जाता है। महासागरों की तली पर आने वाले भूकम्प से महासागरीय जल विस्थापित होता है जिससे ऊर्ध्वाधर ऊँची तरंगें पैदा होती हैं जिन्हें ‘सुनामी’ कहा जाता है। महासागरों के तटीय क्षेत्रों में ये तरंगें ज्यादा प्रभावी होती हैं। कई बार तो इनकी ऊँचाई 15 मीटर या इससे भी अधिक होती है।

प्रश्न 8.
सूखा किसे कहते हैं?
उत्तर:
सूखा एक घातक पर्यावरणीय आपदा है। यह मनुष्य, जीव-जंतुओं, वनस्पति तथा कृषि को प्रभावित करता है। किसी क्षेत्र विशेष अथवा प्रदेश या देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। किसी क्षेत्र में लंबी अवधि तक वर्षा की कमी, कम वर्षा होना, अत्यधिक वाष्पीकरण तथा जलाशयों तथा भूमिगत जल के अत्यधिक प्रयोग से भूतल पर जल की कमी हो जाती है, जिसे सूखा कहते हैं। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार जब किसी क्षेत्र में सामान्य वर्षा से 75 प्रतिशत से कम वर्षा होती है तब सूखा उत्पन्न होता है।

प्रश्न 9.
बाढ़ से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नदी की क्षमता से अधिक जल का बहाव, जिसमें नदी तट के निकट की निम्न व समतल भूमि डूब जाए, बाढ़ कहलाती है। नदी में जल का उसकी क्षमता से अधिक विसर्जन भारी वर्षा, अत्यधिक हिम के पिघलने, प्राकृतिक अवरोध के खण्डित हो जाने तथा बाँध टूटने के परिणामस्वरूप होता है।

प्रश्न 10.
महाराष्ट्र के कोयना क्षेत्र में आए भूकंप के पीछे कौन-सा कारण माना जाता है ?
उत्तर:
कोयना बाँध महाराष्ट्र में दक्षिणी पठार पर बनाया गया है। इस क्षेत्र को स्थिर और भूकंप-रहित समझा जाता था, परन्तु यहाँ 11 दिसम्बर, 1967 में कोयना बाँध पर आए भूकंप ने सभी को अचम्भित कर दिया। यह भूकंप कोयना बाँध के जलाशय में अधिक जल के भर जाने के कारण आया। इस जल के अधिक भार के कारण स्थानीय भू-सन्तुलन बिगड़ गया तथा चट्टानों में दरारें पड़ गईं। इस भूकंप को मानवकृत भूकंप कहा जा सकता है।

प्रश्न 11.
प्राकृतिक आपदा और अकाल में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
जहाँ आपदाएँ और संकट प्राकृतिक परिघटनाएँ हैं, वहाँ अकाल एक मानव-जनित (Man made) स्थिति है। अकाल तब पड़ता है जब भोजन, दवाइयों व राहत-सामग्री की कमी तथा यातायात और संचार की अपर्याप्त सुविधा के कारण लोग भूख, बीमारी और बेबसी से त्रस्त होकर मरने लगते हैं।

प्रश्न 12.
भू-स्खलन को रोकने के दो उपाय बताइए।
उत्तर:

  1. पर्वतीय क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया जाए तथा किसी नीतिगत ढंग से पेड़ों की कटाई पर अंकुश लगाया जाए।
  2. पर्वतों में गैर जरूरी खनन पर रोक लगाई जाए।

प्रश्न 13.
भू-स्खलन क्या होता है?
उत्तर:
पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के प्रभावाधीन पर्वतीय क्षेत्रों में छोटी शिलाओं से लेकर काफी बड़े भू-भाग के ढलान के नीचे की ओर सरकने या खिसकने की क्रिया को भूस्खलन कहा जाता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बाढ़ से आपका क्या अभिप्राय है? बाढ़ आने के किन्हीं चार कारणों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
नदी की क्षमता से अधिक जल का बहाव, जिसमें नदी तट के निकट की निम्न व समतल भूमि डूब जाए, बाढ़ कहलाती है। नदी में जल का उसकी क्षमता से अधिक विसर्जन भारी वर्षा, अत्यधिक हिम के पिघलने, प्राकृतिक अवरोध के खण्डित हो जाने तथा बाँध टूटने के परिणामस्वरूप होता है।

बाढ़ आने के कारण-बाढ़ आने के कारण निम्नलिखित हैं-
(1) भारी वर्षा-दक्षिण-पश्चिम मानसून पवनें सीमित अवधि में भारी वर्षा करती हैं। इस वर्षा का तीन-चौथाई भाग मानसून पवनों द्वारा जून से सितम्बर तक प्राप्त किया जाता है। इस कारण गंगा व उसकी अनेक सहायक नदियों में वर्षा ऋतु में बाढ़ आ जाती है। इसी प्रकार पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढलानों व पश्चिमी तटीय मैदान तथा असम में हिमालय में भारी तथा निरन्तर वर्षा के कारण ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ आ जाती है।

(2) उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात-भारत के पूर्वी तट पर आन्ध्र प्रदेश व उड़ीसा में तथा पश्चिमी तट पर गुजरात में बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर से उठने वाले उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात भयंकर बाढ़ लाते हैं।

(3) विस्तृत जल-ग्रहण क्षेत्र भारत की अधिकांश नदियों के जलग्रहण क्षेत्र बहुत विस्तृत हैं। परिणामस्वरूप इन नदी घाटियों के मध्य व निम्न भागों में भारी मात्रा में जल भर जाता है जो बाढ़ का कारण बनता है।

(4) नदी के प्रवाह में अवरोध नदी के तली में मिट्टी व अन्य अवसादों के जमाव, भूस्खलन तथा नदी विसर्जन (Meandering) आदि से नदी के जल का प्रवाह अवरुद्ध होने लगता है। अवरोध के अचानक टूटने के बाद नदी का जल अत्यन्त तेजी के साथ बहकर निकटवर्ती क्षेत्रों में बाढ़ ला देता है।

प्रश्न 2.
सूखे के चार प्रकारों के नाम लिखिए व किसी एक प्रकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सूखा निम्नलिखित प्रकार का होता है-

  • मौसम विज्ञान सम्बन्धी सूखा
  • जल विज्ञान सम्बन्धी सूखा
  • भौमिक जल सम्बन्धी सूखा
  • कृषि अथवा मृदा जल सम्बन्धी सूखा।

मौसम विज्ञान सम्बन्धी सूखा-यह सूखा सामान्य से कम वर्षा होने की स्थिति में पैदा होता है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (Indian Meteorological Dept.) के अनुसार, यदि दक्षिण-पश्चिम मानसून पवनों से औसत वार्षिक वर्षा के 75 प्रतिशत से कम हो तो सूखा पड़ता है और यदि यह वर्षा सामान्य से 50 प्रतिशत से भी कम हो तो भीषण सूखा पड़ता है।

प्रश्न 3.
भूकम्प के परिणाम बताते हुए इसके प्रभाव को कम करने के सुझाव दीजिए।
उत्तर:
भूकम्प में बड़े पैमाने पर भू-तल और जनसंख्या प्रभावित होती है। इससे जान और माल की भारी क्षति होती है तथा भूकम्प बुनियादी ढाँचे, परिवहन व संचार व्यवस्था, उद्योग और अन्य विकासशील क्रियाओं को ध्वस्त कर देता है। इससे विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट पहुँचती है।

भूकम्प के प्रभाव से होने वाले नुकसान को कम करने के निम्नलिखित तरीके हैं-

  • भूकम्प-नियन्त्रण केन्द्रों की स्थापना की जाए ताकि भूकम्प सम्भावित क्षेत्रों में लोगों को सूचित किया जा सके। GPS प्रणाली की सहायता से प्लेट हलचल का पता लगाया जा सकता है।
  • भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में घरों के प्रकार और भवन डिजाइन में सुधार करना।
  • भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में भूकम्प प्रतिरोधी भवन बनाना और हल्की निर्माण सामग्री का प्रयोग करना।

प्रश्न 4.
भूकम्प आने के किन्हीं दो कारणों की व्याख्या करें।
उत्तर:
1. भू-प्लेटों का खिसकना-जब अधिकांश वैज्ञानिक मानने लगे हैं कि भूकम्प भू-प्लेटों के खिसकने से आते हैं। पृथ्वी का कठोर स्थलमंडल भू-प्लेटों से बना है, जिनकी औसत मोटाई 100 कि०मी० है। इन प्लेटों के नीचे दुर्बलता मंडल स्थित हैं। ये प्लेटें एक साथ गतिशील रहती हैं। इन प्लेटों के आपस में टकराने से भूकम्प पैदा होते हैं। अधिकांश भूकम्प इन प्लेटों के किनारों पर आते हैं।

2. ज्वालामुखी क्रिया-प्रचण्ड वेग से मैग्मा व गैसें जब भूपटल पर आने का प्रयास करती हैं तो कड़ी शैलों के अवशेष के कारण चट्टानों में कम्पन पैदा होता है। इसके अतिरिक्त भूपटल के कमज़ोर भागों को तोड़कर मैग्मा जब भारी विस्फोट के साथ बाहर निकलता है तो इससे चट्टानों में कम्पन आता है। लेकिन इस तरह के झटके छोटे क्षेत्र तक सीमित रहते हैं।

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प्रश्न 5.
भारत में भूकंपीय क्षेत्रों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में कोई भी क्षेत्र भूकम्पों के प्रभाव से अछूता नहीं हैं। भारत मध्य महाद्वीपीय भूकम्प पेटी में आता है। सबसे अधिक भूकम्प भारत के हिमालयी क्षेत्र में आते हैं। इसका कारण यह है कि ये नवीन मोड़दार पर्वत आज भी ऊपर उठ रहे हैं। इससे इस क्षेत्र का सन्तुलन बिगड़ता है और भूकम्प आते हैं। अरावली से पूर्व में असम तक फैले उत्तरी भारत के मैदान में जलोढ़ के भारी जमाव द्वारा उत्पन्न भू-असन्तुलन के कारण भूकम्प आते हैं। मैदानी भाग के भूकम्प कम विनाशकारी होते हैं।

दक्कन पठार अब तक भूकम्पों से इसलिए मुक्त समझा जाता था क्योंकि यह विश्व के सबसे कठोर स्थल खण्डों में से एक है। लेकिन सन् 1967 में कोयना तथा सन् 1993 में लाटूर में आए भूकम्पों ने इस भ्रम को भी तोड़ दिया। फिर भी यह माना जा सकता है कि दक्षिणी पठार पर बहुत कम भूकम्प आते हैं। भारत में अब तक का सबसे बड़ा भूकम्प सन् 2001 में गुजरात के भुज में आया था। इसमें 50,000 से अधिक लोग मारे गए थे। सन् 2005 में कश्मीर में आए भूकम्प में भी 15,000 से अधिक लोग मारे गए थे।

प्रश्न 6.
भूकम्प क्या है? उसके परिणाम लिखिए।
अथवा
भूकम्प के किन्हीं चार दुष्परिणामों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी के आंतरिक भाग में संचित दबाव तथा हलचलों के कारण तरंगों का संचरण चट्टानों में कंपन पैदा करता है, इसे भूकंप कहते हैं। भूकंप पृथ्वी की ऊपरी सतह में होने वाली विवर्तनिक गतिविधियों के कारण उत्पन्न ऊर्जा से पैदा होते हैं। भूकम्प के दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं-

  • भूकम्पों से न केवल हजारों-लाखों लोग मारे जाते हैं, बल्कि भारी संख्या में मकान और खेत इत्यादि भी नष्ट-भ्रष्ट हो जाते हैं।
  • भूकम्प के कारण बड़े पैमाने पर भूस्खलन होता है जिनसे नदियों के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं। इससे बातें आती हैं जो जन और धन की हानि करती हैं।
  • भूकम्प के आने पर समुद्र में ऊँची-ऊँची लहरें उठती हैं। इन भूकम्पीय समुद्री लहरों को जापान में सुनामी तरंगें (Tsunamis) कहा जाता है। ये तरंगें तटीय भागों का विनाश करती हैं।
  • भूकम्प से भूपटल पर पड़ी दरारों के कारण न केवल यातायात अवरुद्ध हो जाता है बल्कि अनेक इम पशु इनमें समा जाते हैं।

प्रश्न 7.
भू-स्खलन निवारण के मुख्य उपायों का वर्णन करें।
उत्तर:
भू-स्खलन निवारण के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग उपाय होने चाहिएँ, जो निम्नलिखित हैं-

  • अधिक भू-स्खलन वाले क्षेत्रों में सड़क और बाँध निर्माण कार्य पर प्रतिबन्ध होना चाहिए।
  • स्थानान्तरी कृषि वाले क्षेत्रों में (उत्तर:पूर्वी भाग) सीढ़ीनुमा खेत बनाकर कृषि की जानी चाहिए।
  • पर्वतीय क्षेत्रों में वनीकरण को बढ़ावा देना चाहिए।
  • जल-बहाव को कम करने के लिए बाँधों का निर्माण किया जाना चाहिए।

प्रश्न 8.
भूकम्पों से होने वाले प्रमुख लाभों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. भूकम्पों के माध्यम से हमें पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के बारे में जानकारी प्राप्त करने में मदद मिलती है।
  2. भूकम्पीय बल से उत्पन्न भ्रंश और वलन अनेक प्रकार के भू-आकारों को जन्म देते हैं; जैसे पर्वत, पठार, मैदान और घाटियाँ आदि। भूमि के धंसने से झरनों और झीलों जैसे नए जलीय स्रोतों की रचना होती है।
  3. समुद्र तटीय भागों में आए भूकम्पों के कारण कम गहरी खाड़ियों का निर्माण होता है जहाँ सुरक्षित पोताश्रय बनाए जा सकते हैं।

प्रश्न 9.
भू-स्खलन के दुष्परिणामों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. बेशकीमती जान और माल की हानि होती है।
  2. नदी मार्ग अवरुद्ध हो जाने से बाढ़ें आती हैं। उदाहरणतः अगस्त, 1998 में पिथौरागढ़ का लामारी गाँव भूस्खलन से अवरुद्ध हुई काली नदी के जल में डूबकर नष्ट हो गया था।
  3. भू-स्खलनों से न केवल पर्यावरण नष्ट हो रहा है, बल्कि उपजाऊ मिट्टी के रूप में प्राकृतिक संसाधनों का भी विनाश हो रहा है।
  4. हरित आवरण विहीन ढलानों पर बहते जल का अवशोषण न हो पाने की स्थिति में जलीय स्रोत सूख रहे हैं।

प्रश्न 10.
“उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात केवल प्रायद्वीपीय भारत में ही अधिक प्रभावशाली होते हैं।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
चक्रवातों की उत्पत्ति के निम्नलिखित कारण हैं-
(1) चक्रवातों की उत्पत्ति के लिए पर्याप्त कॉरियालिस बल चाहिए ताकि पवन चक्राकार घूम सके। भूमध्य रेखा व इसके दोनों ओर 5° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों के बीच कॉरियालिस बल क्षीण होता है। इसीलिए चक्रवात 5° से 20° अक्षांशों के बीच उत्पन्न होते हैं।

(2) विस्तृत समुद्री क्षेत्र जिसके तल का तापमान 27° सेल्सियस से अधिक हो ताकि चक्रवात को भारी मात्रा में आर्द्रता मिल सके। आर्द्र वायु के संघनित होने पर जो गुप्त ऊष्मा मुक्त होती है, वही चक्रवात की अपार ऊर्जा का स्रोत होती है।

(3) शान्त वायु क्षेत्र का होना भी आवश्यक है।

(4) चक्रवात के ऊपर 8 से 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर प्रतिचक्रवात अर्थात् उच्च वायुदाब होना चाहिए ताकि धरातल से ऊपर उठने वाली वायु को बाहर निकलने का मौका मिलता रहें और धरातल में स्थित केन्द्र में निम्न वायुदाब बना रहे। दी गई दशाएँ बंगाल की खाड़ी व अरब सागर में उपलब्ध होती हैं। यही कारण है कि चक्रवात इन जलराशियों में उत्पन्न होकर निकटवर्ती भारतीय प्रायद्वीय पर अत्यधिक प्रभावशाली होते हैं।

प्रश्न 11.
चक्रवातों की उत्पत्ति के मुख्य कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
चक्रवातों की उत्पत्ति के निम्नलिखित कारण हैं-
(1) चक्रवातों की उत्पत्ति के लिए पर्याप्त कॉरियालिस बल चाहिए ताकि पवन चक्राकार घूम सके। भूमध्य रेखा व इसके दोनों ओर 5° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों के बीच कॉरियालिस बल क्षीण होता है। इसीलिए चक्रवात 5° से 20° अक्षांशों के बीच उत्पन्न होते हैं।

(2) विस्तृत समुद्री क्षेत्र जिसके तल का तापमान 27° सेल्सियस से अधिक हो ताकि चक्रवात को भारी मात्रा में आर्द्रता मिल सके। आर्द्र वायु के संघनित होने पर जो गुप्त ऊष्मा मुक्त होती है, वही चक्रवात की अपार ऊर्जा का स्रोत होती है।

(3) शान्त वायु क्षेत्र का होना भी आवश्यक है।

(4) चक्रवात के ऊपर 8 से 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर प्रतिचक्रवात अर्थात उच्च वायुदाब होना चाहिए ताकि धरातल से ऊपर उठने वाली वायु को बाहर निकलने का मौका मिलता रहे और धरातल में स्थित केन्द्र में निम्न वायुदाब बना रहे। यही कारण है कि चक्रवात इन जलराशियों में उत्पन्न होकर निकटवर्ती भारतीय प्रायद्वीय पर अत्यधिक प्रभावशाली होते हैं।

प्रश्न 12.
भूकम्प की आपदा से कैसे बचा जा सकता है?
उत्तर:
भूकम्प कुदरत का एक ऐसा कहर है जिसे रोकना तो सम्भव नहीं किन्तु संगठित प्रयासों से उसके विनाश को कम किया जा सकता है। भूकम्प सैंकड़ों वर्षों के विकास को क्षण-भर में मिटा सकता है। भूकम्प का प्रतिकार करना किसी अत्यन्त शक्तिशाली शत्रु से युद्ध करने जैसा है। अतः भूकम्प के विरुद्ध एक नीतिगत रक्षा कवच बनाया जाना जरूरी है। इसके तहत न केवल भूकम्पमापी केन्द्रों की संख्या बढ़ाई जाए बल्कि भूकम्प की सूचना को कारगर तरीके से आखिरी आदमी तक फैलाया जाए। संवदेनशील भूकम्प क्षेत्रों में लोगों को भूकम्प से पहले, उसके दौरान व बाद में उठाए जाने वाले कदमों का अभ्यास करवाते रहना चाहिए। वहाँ तरंगरोधी मकानों की योजना लागू करना जरूरी है।

भूकम्प के विरुद्ध उपाय और इच्छाशक्ति जन-धन की अपार हानि को कम कर सकती है।

प्रश्न 13.
भारतीय अर्थव्यवस्था पर सूखे के पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था पर सूखे के निम्नलिखित प्रभाव पड़े हैं
(1) कृषि उपज में कमी-वर्ष 1987 के सूखे के कारण II 25 अरब से अधिक कृषि उपज का नुकसान हुआ। केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों ने सूखे पर लगभग II 75 अरब व्यय किए। खाद्यान्नों के उत्पादन में लगभग 165 लाख टन की गिरावट आई। खाद्य समस्या के कारण जन-जीवन अस्त व्यस्त हो गया।

(2) प्रति व्यक्ति आय में कमी-सूखे के परिणामस्वरूप कम कृषि उपज के कारण भारत की प्रति व्यक्ति आय कम हो जाती है, जिसको बढ़ाने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इससे अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।

(3) कृषि मजदूरों की दुर्दशा-सूखे का सबसे बुरा प्रभाव कृषि मजदूरों पर पड़ता है। मज़दूर बेरोज़गार हो जाते हैं, क्योंकि वर्षा न होने के कारण खेतों में कोई काम नहीं रहता और धन के अभाव के कारण मजदूरों का भूख से मरना शुरु हो जाता है।

(4) बीमारियों की बढ़ोत्तरी-सूखे में जल के अभाव के कारण अनेक बीमारियाँ पनपने लगती हैं। पौष्टिक भोजन में कमी होने के कारण बच्चों तथा स्त्रियों में बीमारियाँ बहुत फैल जाती हैं। सरकार के राहत कार्यों पर करोड़ों रुपए खर्च हो जाते हैं, जिससे राजस्व पूँजी में कमी आ जाती है।

(5) पशुधन में कमी-चारे के अभाव के कारण लाखों पशु मर जाते हैं, जिसका खाद्य आपूर्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राकृतिक आपदाएँ क्या हैं? भारत के संदर्भ में विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं का वर्णन कीजिए। अथवा भारत में प्राकृतिक आपदाओं के क्षेत्रों का वर्णन करें।
उत्तर:
प्राकृतिक आपदा का अर्थ (Meaning of Natural Disaster)-जल, थल अथवा वायुमंडल में प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाली एक असामान्य घटना जिसके कुप्रभाव से एक विस्तृत क्षेत्र में जान-माल की हानि तथा पर्यावरण का ह्रास होता है, प्राकृतिक आपदा कहलाती है। यह प्राकृतिक घटना जो सीमित अवधि के लिए आती है उस देश की सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्था को बुरी तरह छिन्न-भिन्न कर देती है। आपदा केवल प्राकृतिक नहीं होती, यह मानव-जनित भी हो सकती है। आपदाओं के विभिन्न स्वरूपों के आधार पर उन्हें निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है

  • प्राकृतिक अथवा भौगोलिक आपदा
  • मानवकृत अथवा कृत्रिम आपदा
  • जैविक आपदा।

विभिन्न प्राकृतिक आपदाएँ (Various Natural Disasters)-प्राकृतिक प्रकोप अथवा कारणों से उत्पन्न आपदाएँ प्राकृतिक आपदाएँ कहलाती हैं। ये धरातल के ऊपर अथवा नीचे कार्यरत शक्तियों की क्रिया का परिणाम होती हैं। विश्व जलवायु संगठन के अनुसार प्राकृतिक घटनाओं का प्रलयकारी परिणाम या इन घटनाओं की संगठित क्रिया जिससे बड़े पैमाने पर जनहानि तथा मानव क्रियाकलापों का उच्छेदन हो, प्राकृतिक आपदा कहलाती है। इनका वर्गीकरण अनेक निम्नलिखित दृष्टियों से किया जा सकता है

  • विवर्तनिक (Tectonic) आपदाएँ भूकंप (Earthquake) तथा ज्वालामुखी उदगार (Volcanic Eruption)।
  • भौमिक अथवा भू-तलीय आपदाएँ-भूस्खलन (Landslide), हिमस्खलन या हिमघाव (Avalanche) तथा भू-क्षरण।
  • वायुमंडलीय आपदाएँ-चक्रवात (Cyclone), तड़ित (Lightning), तड़ितझंझा (Thunder Storm), टारनैडो (Tomado), बादल फटना (Cloud Brust), सूखा (Drought), पाला (Frost), लू (Loo)।
  • जलीय आपदाएँ-बाढ़ (Flood), ज्वार (Tide), महासागरीय धाराएँ (Ocean Currents), सुनामी (Tsunami)।

इनमें से प्रमुख आपदाओं का विवरण इस प्रकार है–
1. भूकंप-पृथ्वी के आंतरिक भाग में संचित दबाव तथा हलचलों के कारण तरंगों का संचरण चट्टानों में कंपन पैदा करता है, इसे भूकंप कहते हैं। भूकंप पृथ्वी की ऊपरी सतह में होने वाली विवर्तनिक गतिविधियों के कारण उत्पन्न ऊर्जा से पैदा होते हैं।
देश को निम्नलिखित पांच भूकंपीय क्षेत्रों में बांटा गया है-
(1) सर्वाधिक तीव्रता का क्षेत्र इस क्षेत्र में उत्तर:पूर्वी राज्य, नेपाल, बिहार सीमावर्ती क्षेत्र, उत्तराखंड, हिमालय पर्वत श्रेणी, पश्चिमी हिमाचल प्रदेश का धर्मशाला क्षेत्र, कश्मीर घाटी के कुछ क्षेत्र, कच्छ प्रायद्वीप तथा अण्डमान निकोबार द्वीप समूह सम्मिलित हैं।

(2) अधिक तीव्रता का क्षेत्र-इसके अंतर्गत कश्मीर, हिमाचल प्रदेश के बचे भाग, उत्तरी पंजाब, पूर्वी हरियाणा, बिहार के उत्तरी मैदानी भाग एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश आते हैं।

(3) मध्यम तीव्रता का क्षेत्र-इसके अंतर्गत उत्तरी प्रायद्वीपीय पठार सम्मिलित हैं।

(4) निम्न तीव्रता का क्षेत्र देश के शेष बचे हुए भागों में से तमिलनाडु, उत्तर:पश्चिम तथा पूर्वी राजस्थान, ओडिशा का प्रायद्वीपीय भाग, उत्तरी मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ आते हैं।

(5) अति निम्न तीव्रता का क्षेत्र इस क्षेत्र में जोन-II के क्षेत्रों के भीतरी भाग शामिल हैं।

2. भूस्खलन-पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में चट्टानों के टुकड़ों का पर्वतीय ढलानों पर अचानक नीचे की ओर सरकना तथा लुढ़कना भूस्खलन कहलाता है। यह प्राकृतिक आपदा मुख्यतया पर्याप्त वर्षा वाले पर्वतीय क्षेत्रों में आती है। भूस्खलन एक त्वरित घटने वाली प्राकृतिक घटना है जिससे जन-धन की हानि होती है। नदियों के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं तथा यातायात प्रभावित होता है। भूस्खलन अनेक प्रकार के होते हैं, जिनमें-

  • अवपात
  • सर्पण
  • अवसर्पण
  • प्रवाह तथा
  • विसर्पण मुख्य होते हैं।

भारत के प्रमुख भूस्खलन क्षेत्र इस प्रकार है।

  • अति उच्च भूस्खलन क्षेत्र-इसमें हिमालय के राज्य; जैसे हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड आते हैं। इन क्षेत्रों में अत्यधिक हानि होती है।
  • उच्च भूस्खलन क्षेत्र इसमें समस्त पूर्वोत्तर राज्य; जैसे अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, त्रिपुरा, मणिपुर, असम आदि आते हैं। यहाँ वर्षाकाल में जानमाल की हानि अधिक होती है।
  • मध्यम भूस्खलन क्षेत्र इसके अंतर्गत पश्चिमी घाट, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल तथा तमिलनाडु राज्यों के नीलगिरी पहाड़ियों के क्षेत्र आते हैं।
  • निम्न भूस्खलन क्षेत्र-इस क्षेत्र में पूर्वीघाट के राज्यों के सागर तटीय क्षेत्र आते हैं। यहाँ वर्षाकाल में हानि अधिक है। सामान्य भूस्खलन की घटनाएँ होती रहती हैं।
  • अतिनिम्न भूस्खलन क्षेत्र इस क्षेत्र में विंध्याचल की पहाड़ियाँ तथा पठारों के भाग शामिल हैं। यहाँ कभी-कभी भूस्खलन की घटनाएँ होती हैं।

3. चक्रवात उष्ण कटिबंधीय चक्रवात 30° उत्तर से 30° दक्षिण अक्षांशों के मध्य पाए जाते हैं। साधारणतया इनका व्यास 500 से 1000 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ होता है। इनकी ऊर्ध्वाधर ऊँचाई 12-14 किलोमीटर तक होती है। प्राकृतिक आपदाओं में उष्ण कटिबंधीय चक्रवात सर्वाधिक शक्तिशाली, विध्वंसक, प्राणघातक तथा खतरनाक होते हैं। चक्रवातों को उनके था मौसम के आधार पर चार प्रकारों में बाँटा जा सकता है-

  • विक्षोभ
  • अवदाब
  • तूफान तथा
  • हरिकेन या टाइफून।

भारत में चक्रवातों का वितरण-भारत के प्रायद्वीपीय पठार के पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। भारत में आने वाले चक्रवात इन्हीं दोनों जलीय क्षेत्रों से उत्पन्न होते हैं। बंगाल की खाड़ी से उठने वाले चक्रवात अधिकतर अक्तूबर व नवम्बर में 16° से. 21° उत्तरी अक्षांश तथा 92° पूर्व देशांतर के पश्चिम में पैदा होते हैं। ये चक्रवात जुलाई के महीने में सुंदरवन डेल्टा के पास 18° उत्तर अक्षांश तथा 90° पूर्व देशांतर के पश्चिम से उत्पन्न होते हैं।

4. सूखा-सूखा एक घातक पर्यावरणीय आपदा है। यह मनुष्य, जीव-जंतुओं, वनस्पति तथा कृषि को प्रभावित करता है। किसी क्षेत्र विशेष अथवा प्रदेश या देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। किसी क्षेत्र में लंबी अवधि तक वर्षा की कमी, कम वर्षा होना, अत्यधिक वाष्पीकरण तथा जलाशयों तथा भूमिगत जल के अत्यधिक प्रयोग से भूतल पर जल की कमी हो जाती है, जिसे सूखा कहते हैं। विभाग ने सूखे को दो वर्गों में बांटा है

  • प्रचंड सूखा-जब वास्तविक वर्षा सामान्य वर्षा से 50 प्रतिशत अथवा इससे भी कम होती है तो इसे प्रचंड सूखा कहते हैं
  • सामान्य सूखा जब वास्तविक वर्षा सामान्य वर्षा से 50 से 75 प्रतिशत के मध्य होती है तो इसे सामान्य सूखा कहते हैं।

भारत में सूखाग्रस्त क्षेत्र भारत में सूखे से प्रभावित होने वाले संभावित क्षेत्र बिहार, झारखंड का पठारी भाग, गुजरात, पश्चिमी राजस्थान, मराठवाड़ा, तेलंगाना, ओडिशा के कालाहाण्डी तथा समीपवर्ती क्षेत्र आदि मुख्य हैं। सूखे की तीव्रता के आधार पर भारत को निम्नलिखित तीन क्षेत्रों में बांटा गया है
(i) अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र-राजस्थान, विशेषकर पश्चिमी राजस्थान का मरुस्थल जिसमें राजस्थान के जैसलमेर तथा बाड़मेर जिले शामिल हैं। यहाँ औसत वर्षा 90 मि०मी० से भी कम होती है तथा गुजरात का रन व कच्छ क्षेत्र आता है।

(ii) अधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र-इस क्षेत्र के अंतर्गत राजस्थान के पूर्वी भाग, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र के पूर्वी भाग, कर्नाटक का पठारी भाग, आंध्र प्रदेश के भीतरी भाग, तमिलनाडु का उत्तरी भाग, दक्षिणी झारखंड तथा ओडिशा के भीतरी भाग सम्मिलित हैं।

(iii) मध्यम सूखा प्रभावित क्षेत्र-इसमें उत्तरी राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के दक्षिणी जिले, पूर्वी गुजरात, झारखंड, तमिलनाडु से कोयम्बटूर पठार तक तथा आंतरिक कर्नाटक शामिल हैं।

5. बाढ बाढ का संबंध अतिवष्टि से है। प्राकतिक आपदाओं में बाढ भी एक अत्यंत तबाही मचाने वाली आपदा है। नदियों में जल-स्तर इतना बढ़ जाता है कि जल की विशाल राशि उन क्षेत्रों में प्रविष्ट कर जाती है जहाँ सामान्यतया उसकी उपेक्षा नहीं की जाती। इस प्रकार जल के अनियंत्रित तथा असीमित फैलाव को बाढ़ कहा जाता है। सामान्य शब्दों में वर्षा जल की अधिकता के कारण जल अपने प्रवाह मार्ग में न बहकर तटबंधों से बाहर आकर मानव अधिवासों तथा समीपवर्ती भूभाग को जलमग्न कर देता है तो उसे बाढ़ कहते हैं। सामान्यतया बाढ़ विशेष ऋतु में तथा विशेष क्षेत्र में ही आती है।

बाढ़ मूलतः प्राकृतिक कारकों का प्रतिफल है, परंतु मानवीय कारक भी इसमें सक्रिय योगदान देते हैं। मानवीय क्रियाकलाप; जैसे नदियों के मार्ग में परिवर्तन, नगरीकरण, बांध का निर्माण, अंधाधुंध वन कटाव, अवैज्ञानिक कृषि, भूमि उपयोग में परिवर्तन, बाढ़ के मैदानों में मानव अधिवास के कारण बाढ़ की तीव्रता, परिमाण तथा विध्वंसता में वृद्धि होती है

6. सुनामी-भूकम्प और ज्वालामुखी से उठी समुद्री लहरों को सुनामी तरंगें कहा जाता है। महासागरों की तली पर आने वाले भूकम्प से महासागरीय जल विस्थापित होता है जिससे ऊर्ध्वाधर ऊँची तरंगें पैदा होती हैं जिन्हें ‘सुनामी’ कहा जाता है। महासागरों के तटीय क्षेत्रों में ये तरंगें ज्यादा प्रभावी होती हैं कई बार तो इनकी ऊँचाई 15 मीटर या इससे भी अधिक होती है।

सुनामी लहरों के क्षेत्र-सुनामी लहरें आमतौर पर प्रशान्त महासागरीय तट जिसमें अलास्का, जापान, फिलीपाइन, दक्षिण-पूर्वी एशिया के दूसरे द्वीप, इण्डोनेशिया और मलेशिया तथा हिन्द महासागर में म्यांमार, श्रीलंका और भारत के तटीय भागों में आती हैं।

सुनामी लहरों के प्रभाव तट पर पहुँचने पर सुनामी लहरें अत्यधिक ऊर्जा निर्मुक्त करती हैं और समुद्र का जल तेजी से तटीय क्षेत्रों में घुस जाता है और तट के निकटवर्ती क्षेत्रों में तबाही फैलाता है। अतः तटीय क्षेत्रों में जनसंख्या अधिक होने के कारण दूसरी प्राकृतिक आपदाओं की अपेक्षा सुनामी अधिक जान-माल का नुकसान पहुँचाती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 2.
भारत में बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का वर्णन कीजिए तथा बाढ़ों से होने वाली क्षति का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नदी में जब पानी की मात्रा उसकी जलमार्ग क्षमता से अधिक हो जाती है तब उसे बाढ़ के रूप में जाना जाता है। बाढ़ की मात्रा घर्षण की मात्रा और तीव्रता, तापमान, तथा ढाल पर निर्भर करती है। लम्बी अवधि तक होने वाली वर्षा से मिट्टी अपनी सम्पूर्ण क्षमता तक पानी से परिपूर्ण हो जाती है और वहाँ का अनुपात बढ़ता जाता है। बजरी, जिसके नीचे अप्रवेश्य पदार्थ न हो, इसका अपवाद है। जहाँ पर झंझावातों द्वारा भारी वर्षा होती है, वहाँ बाढ़ का खतरा अधिक होता है। बाढ़ निम्नलिखित दो प्रकार की होती है

आकस्मिक बाढ़-इनकी अवधि बहुत छोटी होती है, इस प्रकार की बाढ़ गरज के साथ होने वाली प्रबल बौछारों से आती है। दीर्घ अवधि बाद-लम्बे समय तक वर्षा होने के कारण जल की मात्रा बहुत बढ़ जाती है, जिससे सम्पूर्ण जल विभाजक क्षेत्र में बाढ़ आ जाती है।।

भारत में बाढ़ग्रस्त क्षेत्र बाढ़ से जन-जीवन अव्यवस्थित हो जाता है। जन-धन की अपार हानि होती है। शहरी क्षेत्र में पेय जल की समस्या के कारण अनेक बीमारियाँ पनपने लगती हैं। भारत का अधिकांश भाग बाढ़ सम्भावित क्षेत्र है। अधिकांश बाढ़ भारत के उत्तरी भाग में आती है। गंगा तथ ब्रह्मपुत्र नदियों के अप्रवाह क्षेत्र में भारत का 60% बाढ़ग्रस्त क्षेत्र आता है। हर वर्ष गंगा, यमुना, सतलुज, रावी, व्यास, ब्रह्मपुत्र, कृष्णा, कावेरी, महानदी आदि नदियों में बाढ़ आती है।

असम, बिहार, आन्ध्र प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश आदि में बाढ़ का प्रकोप बना रहता है। कोसी, तिस्ता और टोर्सा नदियाँ हिमाचल से उतरकर अवसादों के निक्षेपण से अपने रास्ते बदल लेती हैं। कोसी नदी को ‘शोक की नदी’ कहा जाता है, क्योंकि इससे काफी मात्रा में फसल नष्ट होती है। ब्रह्मपुत्र नदी असम में बाढ़ लाती है। हुगली नदी पश्चिमी बंगाल में बाढ़ लाती है। महानदी से ओडिशा के कई भाग प्रभावित होते हैं। हरियाणा में जल निकास की अव्यवस्था के कारण बाढ़ आ जाती है।

बाढ़ से होने वाली क्षति या प्रभाव-बाढ़ों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा है-

  • बाढ़ों से फसलें समाप्त हो जाती हैं। कृषि उपज में गिरावट आ जाती है।
  • प्रति व्यक्ति आय कम हो जाती है।
  • बिजली आपूर्ति ठप्प होने से करोड़ों रुपए की हानि होती है।
  • कृषि भूमि अनुपजाऊ बन जाती है।
  • परिवहन तन्त्र गड़बड़ा जाता है।
  • उत्पादन प्रक्रिया ठप्प होने से काफी नुकसान होता है।
  • विकास कार्य रुक जाते हैं।
  • राहत कार्यों पर करोड़ों रुपए खर्च हो जाते हैं।
  • पीने का पानी, खाद्य सामग्री की व्यवस्था बिगड़ जाती है।

इस प्रकार प्रत्येक वर्ष भारत में सूखा तथा बाढ़ के प्रकोप से करोड़ों रुपए का नुकसान होता है। हमारी अर्थव्यवस्था में गिरावट का यह मुख्य कारण है। अतः हमें सूखा तथा बाढ़ को रोकने के लिए समय-समय पर उचित कदम उठाने चाहिएँ। हमें योजना बनाकर इस समस्या से निपटना चाहिए। हमारे द्वारा किया गया सही नियोजन करोड़ों रुपयों की पूँजी बचा सकता है।

प्रश्न 3.
एक प्राकृतिक आपदा के रूप में भूकम्प क्या है? इसके कारणों तथा परिणामों की संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी की भीतरी हलचलों के कारण जब धरातल का कोई भाग अकस्मात् काँप उठता है तो उसे भूकम्प कहते हैं। चट्टानों की तीव्र गति के कारण हुआ यह कम्पन अस्थायी होता है। भूकम्प आने के कारण भूकम्प आने का मुख्य कारण पृथ्वी की सन्तुलित अवस्था में व्यवधान का पड़ना है। सन्तुलन की अवस्था में अस्थिरता निम्नलिखित कारणों से आती है-
1. भू-प्लेटों का खिसकना-पृथ्वी का कठोर स्थलमंडल भू-प्लेटों से बना है। इन प्लेटों के नीचे दुर्बलता मंडल स्थित हैं। ये प्लेटें एक साथ गतिशील रहती हैं तथा इन प्लेटों के आपस में टकराने से भूकम्प पैदा होते हैं। अधिकांश भूकम्प इन प्लेटों के किनारे पर आते हैं।

2. ज्वालामुखी क्रिया प्रचण्ड वेग से मैग्मा व गैसें जब भूपटल पर आने का प्रयास करती हैं तो कड़ी शैलों के अवरोध के कारण चट्टानों में कम्पन पैदा होती है। इसके अतिरिक्त भूपटल के कमजोर भागों को तोड़कर मैग्मा जब भारी विस्फोट के साथ बाहर निकलता है तो इससे चट्टानों में कम्पन आती है।

3. भूपटल का संकुचन पृथ्वी के भीतर का भाग धीरे-धीरे ठण्डा होकर सिकुड़ रहा है। ऊपर की चट्टानें जब नीचे की सिकुड़ती हुई चट्टानों से समायोजन करती हैं तो शैलों में आई अव्यवस्था के कारण भूकम्प आते हैं।

4. भूसन्तुलन भूपटल की ऊपरी चट्टानों ने ऊपर-नीचे समायोजित होकर सन्तुलन बना लिया है। कालान्त भू-भागों के अपरदन से उत्पन्न तलछट धीरे-धीरे समुद्री तली में निक्षेपित होने लगता है। इससे पृथ्वी का सन्तुलन भंग हो जाता है। अतः पुनः सन्तुलन प्राप्त करने की प्रक्रिया भूकम्प को जन्म देती है।

5. इलास्टिक रिबाऊन्ड सिद्धान्त-चट्टानें रबड़ की तरह प्रत्यास्थ होती हैं, इनमें पैदा होने वाले सम्पीड़न और तनाव की एक सीमा होती है। उस सीमा के बाद शैल और अधिक तनाव सहन नहीं कर सकती और वह टूट जाती है; ठीक उसी प्रकार जैसे रबड़ अत्यधिक खिंचाव के बाद टूट जाती है। शैल खण्डों का अकस्मात् टूटना और पुनः अपना स्थान ग्रहण करना भूकम्प पैदा करता है।

6. जलीय भार जब कभी मानव-निर्मित बड़े-बड़े जलाशयों में जल एकत्रित कर लिया जाता है तो जल भार से नीचे की चट्टानों पर दबाव बढ़ता है। इससे भूसन्तुलन अस्थिर हो जाता है। अतः उस क्षेत्र में जब भूसन्तुलन पुनः स्थापित होता है तब भूकम्प आते हैं।

7. गैसों का फैलाव-भूगर्भ में ऊँचे ताप के कारण चट्टानों के पिघलने और रिसे हुए समुद्री जल के उबलने से गैसों की उत्पत्ति होती है। चट्टानों पर सतत् बढ़ता हुआ दबाव उनमें कम्पन पैदा करता है।

8. अन्य कारण भस्खलन (Landslide), भारी हिमखण्डों (Avalanches) का ढलानों से नीचे गिरना, चना प्रदेशों (Karst Regions) में बड़ी गुफाओं की छतों का गिरना, खानों (Mines) की छतों का नीचे बैठना, पोखरण जै परीक्षण तथा भारी मशीनों और रेलों का चलना आदि ऐसे कारण हैं जो स्थानीय स्तर पर भूकम्प लाते हैं।

भूकम्पों से होने वाली हानियाँ (परिणाम)-
(1) भूकम्पों से न केवल हजारों-लाखों लोग मारे जाते हैं, बल्कि भारी संख्या में मकान और खेत इत्यादि भी नष्ट-भ्रष्ट हो जाते हैं। बीसवीं शताब्दी में लाखों भूकम्प आए किन्तु इनमें से केवल 34 भूकम्प ऐसे थे जिनके कारण लगभग 67 लाख लोगों की असामयिक मृत्यु हुई।

(2) भूकम्प के कारण बड़े पैमाने पर भूस्खलन होता है जिनसे नदियों के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं। इससे बातें आती हैं जो जन और धन की हानि करती हैं।

(3) भूकम्प के आने पर समुद्र में ऊँची-ऊँची लहरें उठती हैं। इन भूकम्पीय समुद्री लहरों को जापान में सुनामी तरंगें (Tsunamis) कहा जाता है। ये तरंगें तटीय भागों का विनाश करती हैं। सन् 1960 में चिली में आए भूकम्प से उत्पन्न सुनामी तरंगों ने काफी कहर बरसाया था।

(4) भूकम्प से भूपटल पर पड़ी दरारों के कारण न केवल यातायात अवरुद्ध हो जाता है बल्कि अनेक इमारतें, मनुष्य और पुश इनमें समा जाते हैं। सन् 1897 में असम में आए भूकम्प के कारण वहाँ 12 मील लम्बी व 35 फुट चौड़ी दरार पड़ गई थी।

(5) भूकम्प से पड़ी दरारों में से गैस, जल व कीचड़ आदि बाहर निकलते रहते हैं। गैसें वायु के सम्पर्क में आकर प्रज्ज्वलित हो उठती हैं जिससे भीषण आग लग जाती है। जल और कीचड़ में आसपास के क्षेत्र डूब जाते हैं।

प्रश्न 4.
भूस्खलन के कारणों और प्रभावों पर टिप्पणी कीजिए।
अथवा
भूस्खलन के कारण और इससे होने वाले दुष्परिणामों या संकटों का वर्णन करें।
उत्तर:
भूस्खलन के कारण यद्यपि भूस्खलन प्रकृति-जनित दुर्घटना है, लेकिन इस आपदा की आवृत्ति व उसके प्रभाव को बढ़ाने में मनुष्य की भूमिका को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। भूस्खलन के जिम्मेदार प्रमुख कारण निम्नलिखित हो सकते हैं-
1. वनों का विनाश-वक्षों की जड़ें मिट्टी को जकड़े रहती हैं। इससे वर्षा का बहता जल मिट्टी में कटाव नहीं कर पाता । वनों के विनाश से जल ढाल पर निर्बाध गति से बहता है और वृहत् स्तर पर मिट्टी और मलबे को बहा ले जाता है। वनों का विनाश मुख्यतः निम्नलिखित कारणों से होता है

  • पहाड़ों पर बढ़ती जनसंख्या खेती के लिए वनों को साफ करती है और ईंधन के लिए वृक्षों को काटती है।
  • जनसंख्या के साथ पशुओं-गाय, भेड़-बकरी आदि की संख्या भी बढ़ रही है। पशुओं से होने वाले अति चारण से वनस्पति का आवरण तेजी से हट रहा है।
  • वन विभागों व ठेकेदारों की मिली-भगत से ‘वुड माफ़िया’ पनप जाता है जो भ्रष्ट तरीकों के नियत संख्या से ज्यादा पेड़ काट लेते हैं।

2. भकम्प हिमालयी क्षेत्र में प्रायः आने वाले भूकम्प के झटके शिलाखण्डों को हिला देते हैं जिससे वे टकर नीचे की ओर खिसक जाते हैं।

3. सड़क निर्माण-पहाड़ों में सड़क निर्माण का कार्य तेजी से चल रहा है। वहाँ एक किलोमीटर लम्बी सड़क बनाने के लिए लगभग 6 हजार घन मीटर मलबा हटाना पड़ता है। इतनी बड़ी मात्रा में ढीला मलबा जहाँ भी पड़ता है, वर्षा के जल का अवशोषण कर ढलान के साथ नीचे की ओर सरक कर विनाश का कार्य करता है।

4. भवन निर्माण-पहाड़ों में बढ़ती जनसंख्या के लिए मकान व पर्यटन के विकास के लिए भवन एवं स्थल विकसित किए . जा रहे हैं। इन क्रियाओं से भी भूस्खलन में वृद्धि होती है।

5. स्थनान्तरी कृषि-उत्तर:पूर्वी राज्यों के पर्वतीय क्षेत्रों में आज भी प्रचलित स्थानान्तरी अथवा झूम कृषि वनों को साफ करके की जा रही है। इससे भी भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ती हैं।

भूस्खलन से होने वाले संकट (दुष्परिणाम) अथवा प्रभाव भूस्खलन से होने वाले दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं-

  • बेशकीमती जान और माल की हानि होती है।
  • नदी मार्ग अवरुद्ध हो जाने से बाढ़ें आती हैं। उदाहरणतः अगस्त, 1998 में पिथौरागढ़ का लामारी गाँव भूस्खलन से अवरुद्ध हुई काली नदी के जल में डूबकर नष्ट हो गया था।
  • भूस्खलनों से न केवल पर्यावरण नष्ट हो रहा है, बल्कि उपजाऊ मिट्टी के रूप में प्राकृतिक संसाधनों का भी विनाश हो रहा है।
  • हरित आवरण विहीन ढलानों पर बहते जल का अवशोषण न हो पाने की स्थिति में जलीय स्रोत सूख रहे हैं।

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