Author name: Prasanna

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. संसाधनों के संरक्षण के आधार पर रैनर ने कब वर्गीकरण प्रस्तुत किया?
(A) सन् 1921 में
(B) सन् 1951 में
(C) सन् 1961 में
(D) सन् 1981 में
उत्तर:
(B) सन् 1951 में

2. भौतिक पर्यावरण से प्राप्त संसाधन कहलाते हैं
(A) भौतिक संसाधन
(B) समाप्य संसाधन
(C) असमाप्य संसाधन
(D) संरक्षित भंडार
उत्तर:
(A) भौतिक संसाधन

3. वे संसाधन जिनका बार-बार उपयोग किया जा सकता है, कहलाते हैं-
(A) भौतिक संसाधन
(B) नवीकरणीय संसाधन
(C) संरक्षित भंडार
(D) समाप्य संसाधन
उत्तर:
(B) नवीकरणीय संसाधन

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4. सौर ऊर्जा किस संसाधन के अंतर्गत आता है?
(A) प्राकृतिक संसाधन
(B) समाप्य संसाधन
(C) असमाप्य संसाधन
(D) संरक्षित भंडार
उत्तर:
(C) असमाप्य संसाधन

5. ज्ञान और कौशल किस प्रकार के संसाधनों के अंतर्गत आते हैं?
(A) सांस्कृतिक संसाधन
(B) समाप्य संसाधन
(C) भौतिक संसाधन
(D) चक्रीय संसाधन
उत्तर:
(A) सांस्कृतिक संसाधन

6. वे संसाधन जिनका आर्थिक दृष्टि से विकास संभव है, कहलाते हैं-
(A) भौतिक संसाधन
(B) संरक्षित संसाधन
(C) समाप्य संसाधन
(D) नवीकरणीय संसाधन
उत्तर:
(B) संरक्षित संसाधन

7. भारत में सबसे अधिक शस्य गहनता वाला राज्य है-
(A) उत्तर प्रदेश
(B) कर्नाटक
(C) पंजाब
(D) मिज़ोरम
उत्तर:
(C) पंजाब

8. भारत में सबसे कम शस्य गहनता वाला राज्य है-
(A) उत्तर प्रदेश
(B) कर्नाटक
(C) पंजाब
(D) मिज़ोरम
उत्तर:
(D) मिज़ोरम

9. कौन-सी खाद्य फसल देश में प्रथम स्थान पर है?
(A) चावल
(B) गेहूँ
(C) मक्का
(D) ज्वार
उत्तर:
(A) चावल

10. हरित क्रान्ति से सबसे अधिक लाभ किस फसल को हुआ?
(A) चावल
(B) गेहूँ
(C) चाय
(D) गन्ना
उत्तर:
(B) गेहूँ

11. भारत में गेहूँ उत्पादक सबसे बड़ा राज्य कौन-सा है?
(A) पंजाब
(B) हरियाणा
(C) उत्तर प्रदेश
(D) पश्चिमी बंगाल
उत्तर:
(C) उत्तर प्रदेश

12. रबड़ उत्पादन में भारत का कौन-सा राज्य अग्रणी है?
(A) केरल
(B) असम
(C) हरियाणा
(D) कर्नाटक
उत्तर:
(A) केरल

13. भारत किस फसल का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है?
(A) चावल
(B) गेहूँ
(C) चाय
(D) गन्ना
उत्तर:
(C) चाय

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14. भारत में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है-
(A) पंजाब
(B) हरियाणा
(C) उत्तर प्रदेश
(D) पश्चिमी बंगाल
उत्तर:
(D) पश्चिमी बंगाल

15. कृषि क्षेत्र की नई तकनीक है-
(A) पैकेज टेक्नोलॉजी
(B) जैव-प्रौद्योगिकी
(C) वैश्वीकरण
(D) ड्रीप इरीगेशन
उत्तर:
(B) जैव-प्रौद्योगिकी

16. भारत का संसार में कपास उत्पादन में कौन-सा स्थान है?
(A) पहला
(B) दूसरा
(C) तीसरा
(D) चौथा
उत्तर:
(D) चौथा

17. 75 सें०मी० से अधिक वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाने वाली कृषि कहलाती है
(A) वर्धनकाल
(B) आर्द्र भूमि कृषि
(C) शुष्क भूमि कृषि
(D) शस्य गहनता
उत्तर:
(B) आर्द्र भूमि कृषि

18. 75 सें०मी० से कम वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाने वाली कृषि कहलाती है-
(A) वर्धनकाल
(B) आर्द्र भूमि कृषि
(C) शुष्क भूमि कृषि
(D) शस्य गहनता
उत्तर:
(C) शुष्क भूमि कृषि

19. गहन कृषि की विशेषता है-
(A) भूमि पर जनसंख्या का अधिक दबाव
(B) रासायनिक निवेश
(C) सिंचाई का प्रयोग
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

20. निम्नलिखित में से कौन-सी रोपण फसल नहीं है?
(A) चाय
(B) गेहूँ
(C) कॉफी
(D) रबड़
उत्तर:
(B) गेहूँ

21. भारत में कौन-सी फसल शस्य ऋतु में पाई जाती है?
(A) रबी
(B) खरीफ़
(C) जायद
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

22. रबी की फसलें कब बोई जाती हैं?
(A) अक्तूबर से मध्य दिसंबर
(B) नवंबर से मध्य जनवरी
(C) दिसंबर से मध्य फरवरी
(D) अप्रैल से मई
उत्तर:
(A) अक्तूबर से मध्य दिसंबर

23. ‘काटो व जलाओ’ और ‘झाड़-झंकार परत’ वाली खेती के रूप में निम्नलिखित में से किसे जाना जाता है?
(A) स्थानांतरी कृषि
(B) रोपण कृषि
(C) बागानी कृषि
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) स्थानांतरी कृषि

24. खरीफ की फसलें कब बोई जाती हैं?
(A) जून-जुलाई में
(B) अगस्त-सितंबर में
(C) मार्च-अप्रैल में
(D) अप्रैल-मई में
उत्तर:
(A) जून-जुलाई में

25. निम्नलिखित में से कौन-सी खरीफ की फसल नहीं है?
(A) मक्का
(B) ज्वार-बाजरा
(C) सरसों
(D) अरहर
उत्तर:
(C) सरसों

26. भारत की प्रमुख खाद्य फसल निम्नलिखित में से कौन-सी है?
(A) गेहूँ
(B) चावल
(C) बाजरा
(D) जौ
उत्तर:
(B) चावल

27. भारत की दूसरी मुख्य खाद्य फसल निम्नलिखित में से कौन-सी है?
(A) गेहूँ
(B) चावल
(C) जो
(D) बाजरा
उत्तर:
(A) गेहूँ

28. निम्नलिखित में से कौन-सा उस कृषि प्रणाली को दर्शाता है जिसमें एक ही फसल लंबे-चौड़े क्षेत्र में उगाई जाती है?
(A) बागवानी कृषि
(B) रोपण कृषि
(C) झूम कृषि
(D) गहन कृषि
उत्तर:
(B) रोपण कृषि

29. भारत का विश्व में गन्ना उत्पादन में कौन-सा स्थान है?
(A) प्रथम
(B) दूसरा
(C) सातवाँ
(D) आठवाँ
उत्तर:
(B) दूसरा

30. भारत में गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन-सा है?
(A) बिहार
(B) उत्तर प्रदेश
(C) पंजाब
(D) हरियाणा
उत्तर:
(B) उत्तर प्रदेश

31. निम्नलिखित में से कौन-सी फसल तिलहन है?
(A) सरसों
(B) सूरजमुखी
(C) तिल
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

32. भारत का विश्व में मूंगफली उत्पादन में कौन-सा स्थान है?
(A) पहला
(B) दूसरा
(C) तीसरा
(D) पाँचवाँ
उत्तर:
(A) पहला

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33. इनमें से कौन-सी फसल फलीदार है?
(A) दालें
(B) कपास
(C) ज्वार
(D) मक्का
उत्तर:
(A) दालें

34. कौन-सी फसलें शीत ऋतु की शुरुआत के साथ अक्तूबर से दिसंबर में बोई जाती हैं?
(A) रबी की फसलें
(B) खरीफ की फसलें
(C) जायद फसलें
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) रबी की फसलें

35. कौन-सी फसलें मानसून की शुरुआत के साथ जून-जुलाई में बोई जाती हैं?
(A) रबी की फसलें
(B) खरीफ की फसलें
(C) जायद फसलें
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) खरीफ की फसलें

36. सुनहरा रेशा कहा जाता है
(A) जूट को
(B) कपास को
(C) शहतूत को
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) जूट को

37. शुष्क फसल है-
(A) बाजरा
(B) मूंग
(C) चना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

38. झूम कृषि भारत के किस क्षेत्र में होती है?
(A) उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में
(B) दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्र में
(C) उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में
(D) दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र में
उत्तर:
(A) उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में

39. निम्नलिखित में से कौन-सी फसल खरीफ की फसल के अंतर्गत आती है?
(A) गेहूँ
(B) कपास
(C) चना
(D) सरसों
उत्तर:
(B) कपास

40. निम्नलिखित में से कौन-सी फसल रबी की फसल के अंतर्गत आती है?
(A) चावल
(B) गेहूँ
(C) खरबूजा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) गेहूँ

41. इनमें से कौन-सी फसल सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण अनाज है?
(A) मक्का
(B) बाजरा
(C) जौ
(D) चावल
उत्तर:
(D) चावल

42. इनमें से कौन-सी फसल जायद ऋतु में उगाई जाती है?
(A) मूंगफली
(B) खरबूजा
(C) सोयाबीन
(D) सरसों
उत्तर:
(B) खरबूजा

43. भारत किस फसल का विश्व का सबसे बड़ा निर्यातक है?
(A) जूट
(B) चाय
(C) कॉफी
(D) रबड़
उत्तर:
(B) चाय

44. फलों और सब्जियों की कृषि को क्या कहा जाता है?
(A) कृषि उत्पादन
(B) बागवानी फसलें
(C) रेशम उत्पादन
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) बागवानी फसलें

45. वह भूमि जिस पर फसलें उगाई व काटी जाती हैं, वह कहलाता है-
(A) निवल बोया क्षेत्र
(B) स्थायी चरागाह क्षेत्र
(C) वनों के अधीन क्षेत्र
(D) वर्तमान परती भूमि
उत्तर:
(A) निवल बोया क्षेत्र

46. कृषि किस आर्थिक क्रियाकलाप के अंतर्गत आती है?
(A) चतुर्थ क्रियाकलाप
(B) तृतीयक क्रियाकलाप
(C) द्वितीयक क्रियाकलाप
(D) प्राथमिक क्रियाकलाप
उत्तर:
(D) प्राथमिक क्रियाकलाप

47. भारतीय अर्थव्यवस्था है-
(A) कृषि प्रधान
(B) पूँजी प्रधान
(C) उद्योग प्रधान
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) कृषि प्रधान

48. पश्चिम बंगाल में चावल की बोई जाने वाली फसल है-
(A) औस
(B) अमन
(C) बोरो
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

B. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में दीजिए

प्रश्न 1.
वे संसाधन जिनका बार-बार उपयोग किया जा सकता है, क्या कहलाते हैं?
उत्तर:
नवीकरणीय संसाधन।

प्रश्न 2.
संसाधनों के संरक्षण के आधार पर रैनर ने कब वर्गीकरण प्रस्तुत किया?
उत्तर:
सन् 1951 में।

प्रश्न 3.
सौर ऊर्जा किस संसाधन के अंतर्गत आती है?
उत्तर:
असमाप्य संसाधन।

प्रश्न 4.
पेट्रोलियम किस प्रकार का संसाधन है?
उत्तर:
समाप्य संसाधन।

प्रश्न 5.
भारत व विश्व में अजैविक संसाधनों का वितरण कैसा है?
उत्तर:
असमान।

प्रश्न 6.
भारत में कॉफी का अधिकतम उत्पादक राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
कर्नाटक।

प्रश्न 7.
ज्ञान और कौशल किस प्रकार के संसाधनों के अंतर्गत आते हैं?
उत्तर:
सांस्कृतिक संसाधन।

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प्रश्न 8.
वे संसाधन जिनका आर्थिक दृष्टि से विकास संभव है, क्या कहलाते हैं?
उत्तर:
संरक्षित संसाधन।

प्रश्न 9.
75 सें०मी० से कम वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाने वाली कृषि क्या कहलाती है?
उत्तर:
शुष्क भूमि कृषि।

प्रश्न 10.
फ़सल (शस्य) गहनता ज्ञात करने का सूत्र क्या है?
उत्तर:
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि 1

प्रश्न 11.
औस, अमन और बोरो किस खाद्य फसल के नाम हैं?
उत्तर:
चावल (पश्चिम बंगाल)।

प्रश्न 12.
देश के सर्वाधिक शस्य गहनता वाले राज्य का नाम बताइए।
उत्तर:
पंजाब।

प्रश्न 13.
भारत में अधिकतम गेहूँ पैदा करने वाला राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
भारत में अधिकतम गेहूँ पैदा करने वाला राज्य उत्तर प्रदेश है।

प्रश्न 14.
भारत में चाय का अधिकतम उत्पादन करने वाला राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
भारत में चाय का अधिकतम उत्पादन करने वाला राज्य असम है।

प्रश्न 15.
सन् 2001 में देश की कितने प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी?
उत्तर:
लगभग 53 प्रतिशत।

प्रश्न 16.
फल-सब्जियों के उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर:
दूसरा।

प्रश्न 17.
भारतीय कृषि में विशेषकर असिंचित क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर किस प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है?
उत्तर:
अल्प बेरोजगारी।

प्रश्न 18.
अंग्रेज़ी शासन के दौरान की कोई दो भू-राजस्व प्रणालियाँ बताएँ।
उत्तर:

  1. महालवाड़ी
  2. रैयतवाड़ी।

प्रश्न 19.
अरेबिका, रोबस्ता व लिबेरिका किस फसल की किस्में हैं?
उत्तर:
कॉफी।

प्रश्न 20.
भारत अधिकतर किस किस्म की कॉफी का अधिक उत्पादन करता है?
अथवा
सबसे उत्तम किस्म की कॉफी का क्या नाम है?
उत्तर:
अरेबिका।

प्रश्न 21.
भारत के किस राज्य में सोयाबीन की खेती का सर्वाधिक क्षेत्रफल है?
उत्तर:
मध्य प्रदेश में।

प्रश्न 22.
भारत का कौन-सा (राज्य) सबसे बड़ा मुँगफली उत्पादक राज्य है?
उत्तर:
गुजरात।

प्रश्न 23.
ग्रीन गोल्ड किस फसल की किस्म है?
उत्तर:
चाय की।

प्रश्न 24.
भारत का मुख्य खाद्यान्न कौन-सा है?
उत्तर:
चावल।

प्रश्न 25.
सोयाबीन उत्पादक किन्हीं दो राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. मध्य प्रदेश
  2. महाराष्ट्र।

प्रश्न 26.
चना उत्पादक किन्हीं दो राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. मध्य प्रदेश
  2. राजस्थान।

प्रश्न 27.
वह कौन-सी फसल है जो महाराष्ट्र में ‘श्वेत स्वर्ण’ के नाम से जानी जाती है?
उत्तर:
कपास।

प्रश्न 28.
भारत में किस फसल को सर्वाधिक क्षेत्रफल में पैदा किया जाता है?
उत्तर:
धान या चावल को।

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प्रश्न 29.
राजस्थान में स्थानांतरित कृषि को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
वालरा के नाम से।

प्रश्न 30.
जैविक खाद एवं परम्परागत तरीकों से की जाने वाली कृषि को क्या कहते हैं?
उत्तर:
जैविक कृषि।

प्रश्न 31.
रबी की फसल ऋतु के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. गेहूँ
  2. जौ।

प्रश्न 32.
खरीफ की फसल ऋतु के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. चावल
  2. कपास।

प्रश्न 33.
जायद की फसल ऋतु के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. तरबूज
  2. खीरा।

प्रश्न 34.
रेशेदार फसलों के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. कपास
  2. जूट।

प्रश्न 35.
किस फसल को हरित क्रांति का सर्वाधिक लाभ हुआ?
उत्तर:
गेहूँ।

प्रश्न 36.
किस दाल को लाल चना तथा पिजन पी० के नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
अरहर (तुर) को।

प्रश्न 37.
केरल में स्थानांतरित कृषि को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
पोनम।

प्रश्न 38.
चावल किस प्रकार के क्षेत्र की फसल है?
उत्तर:
उष्ण आर्द्र कटिबंधीय क्षेत्र।

प्रश्न 39.
चना किस प्रकार के क्षेत्र की फसल है?
उत्तर:
उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र।

प्रश्न 40.
कौन-सी फसल गर्म एवं शुष्क जलवायु में बोई जाती है? एक उदाहरण दें।
उत्तर:
बाजरा।

प्रश्न 41.
भारत की प्रमुख तिलहन फसलों के उदाहरण दें।
उत्तर:
तोरिया, सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी आदि।

प्रश्न 42.
मध्य प्रदेश में स्थानांतरित कृषि को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
बेवर के नाम से।

प्रश्न 43.
आंध्र प्रदेश में स्थानांतरित कृषि को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
पोदू के नाम से।

प्रश्न 44.
चावल के उत्पादन में देश का प्रथम राज्य कौन-सा है?
अथवा
भारत में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
पश्चिम बंगाल।

प्रश्न 45.
गन्ने के उत्पादन में देश के किस राज्य का प्रथम स्थान है?
उत्तर:
उत्तर-प्रदेश का।

प्रश्न 46.
चावल के उत्पादन में तमिलनाडु का कौन-सा जिला अग्रणी है?
उत्तर:
तंजावूर।

प्रश्न 47.
केंद्र सरकार ने गहन कृषि विकास कार्यक्रम कब आरंभ किया?
उत्तर:
सन् 1960 में।

प्रश्न 48.
भारत में सब्जी का अधिकतम उत्पादक राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
पश्चिम बंगाल।

प्रश्न 49.
भारत में कपास का अधिकतम उत्पादक राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
महाराष्ट्र।

प्रश्न 50.
भारत के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थानांतरित कृषि को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
झूम कृषि के नाम से।

प्रश्न 51.
हरित क्रांति का जनक किसे माना जाता है?
उत्तर:
नॉर्मन अर्नेस्ट बोरलॉग को।

प्रश्न 52.
हरियाणा के दो प्रमुख कपास उत्पादक जिलों के नाम बताइए।
उत्तर:
हिसार, सिरसा।

प्रश्न 53.
राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान कहाँ स्थित है?
उत्तर:
कटक (ओडिशा) में।

प्रश्न 54.
राष्ट्रीय गन्ना अनुसंधान संस्थान कहाँ स्थित है?
उत्तर:
कोयम्बटूर।

प्रश्न 55.
भारत के किस राज्य में प्रति हैक्टेयर चावल का उत्पादन सर्वाधिक है?
उत्तर:
पंजाब का।

प्रश्न 56.
किस रूसी विद्वान ने भारत को एक कृषि उद्भव केंद्र माना है?
उत्तर:
वेविलोव ने।

प्रश्न 57.
अप्रैल से जून के मध्य का समय किस कृषि ऋतु का होता है?
उत्तर:
जायद का।

प्रश्न 58.
भारत में मानसून का जुआ किसे कहा जाता है?
उत्तर:
भारतीय कृषि को।

प्रश्न 59.
भारत का प्रथम पूर्ण जैविक कृषि वाला राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
सिक्किम।

प्रश्न 60.
भारत का कपास के उत्पादन में विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर:
चौथा।

प्रश्न 61.
भारत में मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
गुजरात।

प्रश्न 62.
तीन ऐसी फसलों के नाम बताइए जिनके उत्पादन में संसार में भारत को प्रथम स्थान प्राप्त है।
उत्तर:
चाय, पटसन और मसाले।

प्रश्न 63.
कच्चा माल किन दो प्रकार के संसाधनों से प्राप्त किया जाता है?
उत्तर:

  1. खनिज
  2. वनस्पति।

प्रश्न 64.
भारतीय कृषि को मानसन का जआ क्यों कहते हैं?
उत्तर:
मानसून या वर्षा पर निर्भरता के कारण।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संसाधन क्या है?
उत्तर:
कोई भी वस्तु अथवा पदार्थ जिसका उपयोग संभव हो और उसके रूपांतरण से उसकी उपयोगिता और मूल्य बढ़ जाए, संसाधन कहलाता है।

प्रश्न 2.
जैव-भौतिक पर्यावरण के ‘उदासीन उपादान’ संसाधन कैसे बन जाते हैं?
उत्तर:
इन उदासीन उपादानों को वस्तुओं और सेवाओं में बदलकर उनका प्राकृतिक संसाधन के रूप में उपयोग करके।

प्रश्न 3.
अहस्तांतरणीय संसाधनों से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वे प्राकृतिक संसाधन जिन्हें अपनी जगह से हटाया नहीं जा सकता और उनका वहीं विकास किया जा सकता है जहाँ वे विद्यमान हैं; जैसे भूमि, भू-दृश्य, समुद्री तट इत्यादि।

प्रश्न 4.
जैव और अजैव संसाधनों के तीन-तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
जैव संसाधन-वन्य पशु, पक्षी तथा वन। अजैव संसाधन-जल, चट्टानें तथा खनिज पदार्थ।

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प्रश्न 5.
खाद्य पदार्थ प्रदान करने वाले संसाधनों के तीन वर्ग बताएँ।
उत्तर:

  1. खनिज जैसे नमक
  2. वनस्पति जैसे खाद्यान्न
  3. पशु एवं जीव-जंतु जैसे मांस और अंडे।

प्रश्न 6.
शुष्क कृषि किसे कहते हैं?
उत्तर:
75 सें०मी० से कम वार्षिक वर्षा वाले प्रदेशों में की जाने वाली कृषि शुष्क कृषि कहलाती है। इस कृषि की मुख्य फसलें गेहूँ, चना, ज्वार, बाज़रा आदि हैं।

प्रश्न 7.
शस्य गहनता का क्या अर्थ है?
उत्तर:
एक खेत में एक कृषि वर्ष में जितनी फसलें उगाई जाती हैं, उसे फसलों की गहनता अथवा शस्य गहनता कहते हैं।

प्रश्न 8.
चकबंदी से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसान को उसके कई छोटे-छोटे खेतों के बदले एक ही स्थान पर बड़ा खेत दे दिए जाने को चकबंदी कहा जाता है।

प्रश्न 9.
शस्यावर्तन क्यों किया जाना चाहिए?
उत्तर:
बार-बार एक ही फसल बोते रहने से मिट्टी की उर्वरा-शक्ति क्षीण हो जाती है। फसलों को हेर-फेर करके बोने से पहली फसल द्वारा समाप्त किए गए मिट्टी के पोषक तत्त्वों की भरपाई दूसरे प्रकार की फ़सल बोने से हो जाती है।

प्रश्न 10.
मिश्रित शस्यन से किसानों को क्या लाभ पहुँचता है?
उत्तर:
दो या तीन फसलों को एक-साथ मिलाकर बोने से मिट्टी में जिन पोषक तत्त्वों को एक फसल कम करती है तो दूसरी फ़सल उन्हें पूरा कर देती है।

प्रश्न 11.
भूमि उपयोग को कौन-से तत्त्व निर्धारित करते हैं?
उत्तर:
किसी देश के भूमि उपयोग को स्थलाकृति, जलवायु, मृदा तथा अनेक प्रकार के सामाजिक-आर्थिक कारक निर्धारित करते हैं।

प्रश्न 12.
वर्तमान परती भूमि किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह भूमि जो उपजाऊ शक्ति बढ़ाने के लिए वर्तमान में खाली पड़ी हो वर्तमान परती भूमि कहलाती है। इस प्रकार की भूमि में निरंतर बदलाव होते रहते हैं।

प्रश्न 13.
जायद क्या है?
उत्तर:
जायद एक अल्पकालिक ग्रीष्मकालीन फसल ऋत है जिसमें तरबूज, खीरा, ककडी व चारे की फसलें उगाई जाती हैं।

प्रश्न 14.
प्राकृतिक संसाधन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आर्थिक तंत्र के बाहर से प्राप्त होने वाले जैव और अजैव पदार्थ ही प्राकृतिक संसाधन हैं जिन्हें मनुष्य अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कच्चे माल के रूप में उपयोग करता है। भौतिक लक्षण; जैसे भूमि, जलवायु, जल तथा जैविक पदार्थ; जैसे प्राकृतिक वनस्पति, वन्य-जीव, मत्स्य क्षेत्र आदि।

प्रश्न 15.
मानव संसाधन तथा सांस्कृतिक संसाधन में क्या अंतर है?
उत्तर:

  1. मानव संसाधन-लोगों की संख्या और गुणवत्ता से मानव संसाधन का निर्माण होता है। निरक्षरं और कुपोषित जनसंख्या विकास में बाधा बन जाती है।
  2. सांस्कृतिक संसाधन – ज्ञान, अनुभव, कौशल और प्रौद्योगिकी के माध्यम से हम अपने उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। इन्हें सांस्कृतिक संसाधन कहते हैं।

प्रश्न 16.
जैव उर्वरक क्या है?
उत्तर:
ऐसे सूक्ष्म जीवाणु जो पौधों के विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व उपलब्ध करवाते हैं, जैव उर्वरक कहलाते हैं।

प्रश्न 17.
भारत में रोपण कृषि की शुरुआत कब हुई? इसकी मुख्य फसलें कौन-कौन-सी हैं?
उत्तर:
भारत में रोपण कृषि की शुरुआत ब्रिटिश सरकार द्वारा 19वीं शताब्दी में की गई। इस कृषि में नकदी फसलों को उगाया जाता है। इसमें उगाई जाने वाली मुख्य फसलें हैं-रबड़, चाय या कॉफी, कोको, मसाले आदि।

प्रश्न 18.
झूम खेती उत्पादक क्षेत्र और फसलों के नाम बताएँ।
उत्तर:
झूम खेती मुख्यतः असम, मेघालय, नागालैण्ड, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम, ओडिशा, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश में रहने वाली जनजातियों द्वारा अपनाई जाती है। इसके अंतर्गत धान, बाजरा, गन्ना, मक्का आदि की खेती की जाती है।

प्रश्न 19.
भारत के ज्वार एवं मक्का उत्पादक तीन-तीन प्रमुख राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर:
ज्वार उत्पादक राज्य-

  • महाराष्ट्र
  • कर्नाटक
  • मध्य प्रदेश।

मक्का उत्पादक राज्य-

  • कर्नाटक
  • आंध्र प्रदेश
  • महाराष्ट्र।

प्रश्न 20.
भारत के गेहूँ एवं चावल उत्पादक तीन-तीन प्रमुख राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर:
गेहूँ उत्पादक राज्य-

  • उत्तर प्रदेश
  • पंजाब
  • हरियाणा।

चावल उत्पादक राज्य-

  • पश्चिम बंगाल
  • उत्तर प्रदेश
  • पंजाब।

प्रश्न 21.
भारत के चाय एवं कहवा उत्पादक तीन-तीन प्रमुख राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर:
चाय उत्पादक राज्य-

  • असम
  • पश्चिम बंगाल
  • तमिलनाडु।

कहवा उत्पादक राज्य-

  • कर्नाटक
  • केरल
  • तमिलनाडु।

प्रश्न 22.
भारत के जूट एवं कपास उत्पादक तीन-तीन प्रमुख राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर:
जूट उत्पादक राज्य-

  • पश्चिम बंगाल
  • बिहार
  • असम

कपास उत्पादक राज्य-

  • महाराष्ट्र
  • गुजरात
  • आंध्र प्रदेश।

प्रश्न 23.
भारत के गन्ना एवं बाजरा उत्पादक तीन-तीन प्रमुख राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर:
गन्ना उत्पादक राज्य-

  • उत्तर प्रदेश
  • महाराष्ट्र
  • कर्नाटक।

बाजरा उत्पादक राज्य-

  • राजस्थान
  • उत्तर प्रदेश
  • गुजरात।

प्रश्न 24.
नकदी फसल क्या है?
उत्तर:
नकदी फसल वह फसल है जो व्यापार के उद्देश्य से किसानों द्वारा उगाई जाती है; जैसे कपास, गन्ना, जूट आदि।

प्रश्न 25.
गैर जैविक या रासायनिक कृषि क्या है?
उत्तर:
रासायनिक खादों और कीटनाशक दवाइयों के प्रयोग से की जाने वाली खेती, रासायनिक कृषि कहलाती है। इसको गैर जैविक कृषि भी कहते हैं।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

प्रश्न 26.
जैविक कृषि क्या है?
उत्तर:
जैविक खाद और परम्परागत तरीकों से की जाने वाली कृषि को जैविक कृषि कहते हैं।

प्रश्न 27.
भारतीय अर्थव्यवस्था को मानसून का जुआ क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था कषि प्रधान है। यहाँ की जलवाय मानसनी है और कषि मानसन या वर्षा पर निर्भर करती है। भारतीय मानसूनी वर्षा अनियमित एवं अनिश्चित है, जिससे वर्षा के आरंभ का समय निश्चित नहीं है। कहीं पर वर्षा बहुत अधिक और कहीं पर बहुत कम होती है। इससे कुछ क्षेत्रों में बाढ़ तो कुछ क्षेत्रों में सूखे की स्थिति पैदा हो जाती है। ये परिस्थितियाँ प्रतिवर्ष बदलती रहती हैं। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव बना रहता है। इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था को मानसून का जुआ कहते हैं।

प्रश्न 28.
भारत में कृषि उत्पादन के कम होने के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:

  • कृषि पर मौसम या जलवायु की मार
  • सिंचाई साधनों का सीमित विकास।

प्रश्न 29.
भूमि उपयोग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी भू-भाग का उसकी वर्तमान उपयोगिता के आधार पर किया जाने वाला वर्गीकरण भूमि उपयोग कहलाता है।

प्रश्न 30.
भारतीय कृषि की कोई दो समस्याएँ लिखें।
उत्तर:

  1. अनिश्चित मौसम या वर्षा पर निर्भरता
  2. कृषि भूमि का निम्नीकरण

प्रश्न 31.
गेहूँ की कृषि के लिए आवश्यक दशा कैसी होनी चाहिए?
उत्तर:
गेहूँ की कृषि के लिए सामान्यतः तापमान 10°-15°C के मध्य होना चाहिए। इसके लिए 50-75 सें०मी० वार्षिक वर्षा की और हल्की-दोमट, बलुआ व चिकनी मिट्टी की आवश्यकता होती है?

प्रश्न 32.
उपयोग के आधार पर फसलों को कितने वर्गों में बाँटा गया है?
अथवा
फसलों का संक्षेप में वर्गीकरण करें।
उत्तर:
उपयोग के आधार पर फसलों को चार वर्गों में बाँटा गया है-

  1. खाद्यान्न फसलें-चावल, गेहूँ, ज्वार, बाजरा आदि।
  2. रोपण फसलें-चाय, कहवा, रबड़, मसाले आदि।
  3. बागानी फसलें सेब, आम, केला आदि।
  4. नकदी व रेशेदार फसलें-कपास, जूट, गन्ना, मूंगफली आदि।

प्रश्न 33.
झूम या कर्तन दहन कृषि प्रणाली किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब किसान जमीन के टुकड़े साफ करके उन पर अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए अनाज उत्पन्न करता है, उसे झूम या कर्तन दहन कृषि प्रणाली कहते हैं।

प्रश्न 34.
आर्द्र कृषि किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिस कृषि को करने के लिए अधिक मात्रा में जल की आवश्यकता होती है उसे आर्द्र कृषि कहते हैं। चावल तथा गन्ना इस प्रकार की कृषि उपज के प्रमुख उदाहरण हैं।

प्रश्न 35.
रोपण कृषि किसे कहते हैं?
उत्तर:
रोपण कृषि एक प्रकार की वाणिज्यिक खेती है। इस प्रकार की कृषि में लंबे-चौड़े क्षेत्र में एक ही फसल बोई जाती है। चाय, कॉफी, रबड़ इस प्रकार की कृषि की प्रमुख उपजें हैं।

प्रश्न 36.
रबी फसलें किन्हें कहते हैं?
उत्तर:
रबी फसलों को शीत ऋतु में अक्तूबर से दिसम्बर के मध्य बोया जाता है और ग्रीष्म ऋतु में अप्रैल से जून के मध्य काट लिया जाता है। गेहूँ, जौ, मटर, चना तथा सरसों रबी की मुख्य फसलें हैं।

प्रश्न 37.
खरीफ फसलें किन्हें कहते हैं?
उत्तर:
खरीफ फसलें देश के विभिन्न क्षेत्रों में मानसून आगमन के साथ जून-जुलाई में बोई जाती हैं और सितम्बर-अक्तूबर में काट ली जाती हैं। चावल, मक्का, कपास, ज्वार तथा बाजरा खरीफ की मुख्य फसलें हैं।

प्रश्न 38.
श्वेत क्रांति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पशुओं में नस्ल सुधार करके और उत्तम चारा देने वाली फसलें पैदा करके दूध के उत्पादन में अप्रत्याशित वृद्धि करने को श्वेत क्रांति कहा जाता है।

प्रश्न 39.
हरित क्रांति या पैकेज टेक्नोलॉजी किसे कहते हैं?
उत्तर:
हरित क्रांति का अर्थ कृषि उत्पादन में हुई उस वृद्धि से है जो नई तकनीक तथा अधिक उपज देने वाले बीजों के उपयोग से हो रही है। यद्यपि हरित क्रांति शब्द का सर्वप्रथम उपयोग विलियम गॉड ने सन् 1968 में किया था किन्तु हरित क्रांति के जन्मदाता होने का श्रेय नोबल पुरस्कार विजेता डॉ० नॉर्मन ई० बोरलॉग को जाता है। भारत में हरित क्रांति की शुरूआत सन् 1966-67 से हुई। भारत में यह क्रांति लाने का रेय एम० स्वामी नाथन को जाता है।

प्रश्न 40.
प्रारंभिक जीविका निर्वाह कृषि से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्रारंभिक जीविका निर्वाह कृषि भूमि के छोटे टुकड़ों परं आदिम कृषि औजारों; जैसे लकड़ी के हल, डाओ और खुदाई करने वाली छड़ी के साथ परिवार के सदस्यों के द्वारा की जाती है।

प्रश्न 41.
चाय की कृषि पहाड़ियों के निचले ढालों पर क्यों की जाती है?
उत्तर:
चाय उष्ण कटिबंधीय रोपण कृषि है। चाय की कृषि पहाड़ियों के निचले ढालों पर इसलिए की जाती है, क्योंकि चाय के पौधों की जड़ों के लिए एकत्रित पानी हानिकारक है। पहाड़ी ढालों पर इसकी खेती करने से वर्षा का पानी आसानी से बह जाता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘प्राकृतिक संसाधनों की संकल्पना संस्कृतिबद्ध है।’ चर्चा कीजिए।
उत्तर:
प्रकृति ने मनुष्य को जल, वाय, भूमि, वन, खनिज पदार्थ तथा शक्ति के साधन निःशुल्क उपहार के रूप में दिए हैं। सांस्कृतिक विकास तथा संसाधनों में परस्पर गहरा संबंध है। प्राचीनकाल में आदिमानव प्रौद्योगिकी के ज्ञान से वंचित होने के कारण खनिज पदार्थों तथा जल-विद्यत का प्रयोग नहीं कर सका। उदाहरणतया चीन निवासियों के लिए कोयला एकमात्र कठोर चट्टान था तथा पेंसिलवेनिया तथा असम में खनिज तेल का कोई महत्त्व नहीं था। यद्यपि आधुनिक मनुष्य ने अपनी बद्धि तथा कार्य-कशलता से इन्हें अपने उपयोग के लिए विकसित कर लिया।

सांस्कृतिक विकास के कारण ही संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस तथा जापान उन्नत देश हैं, जबकि एशिया के विकासशील देश तथा अफ्रीका महाद्वीप पिछड़े हुए क्षेत्र हैं। प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किसी देश द्वारा प्राप्त प्रौद्योगिकी की उन्नति पर निर्भर है। इस तरह संसाधनों का विकास प्रकृति, मानव तथा संस्कृति के संयोग पर आधारित है। मनुष्य अपनी क्षमता के अनुसार प्राकृतिक संसाधनों को आर्थिक संसाधनों में बदल सकता है। उदाहरण के लिए, प्रौद्योगिकी की अविकसितता के कारण ही भारत में बस्तर तथा छोटा नागपुर का पठार संसाधन से धनाढ्य होते हुए भी पिछड़े हुए हैं। इस प्रकार यह कथन सत्य है कि प्राकृतिक संसाधनों की संकल्पना संस्कृतिबद्ध है।

प्रश्न 2.
संसाधन संरक्षण की संकल्पना की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वातावरण के वे सभी तत्त्व, जो मानव के लिए उपयोगी हैं, प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं। ये मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। प्राकृतिक संसाधन वह बहुमूल्य संपत्ति है, जो हमारे पास आने वाली पीढ़ियों की धरोहर है। विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के विकास के कारण वर्तमान युग में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन काफी मात्रा में हो रहा है तथा इनका उपयोग बढ़ रहा है। इससे भविष्य में समाप्य संसाधनों के समाप्त होने का भय बना हुआ है। इसलिए यह हमारा कर्त्तव्य बनता है कि हम संसाधनों का प्रयोग इस प्रकार योजना-बद्ध ढंग से करें कि ये कम-से-कम नष्ट हों तथा अधिक समय तक मानव के हित के लिए इनका प्रयोग हो सके तथा आधुनिक सभ्यता का अस्तित्व बना रहे। मानव की सभी आर्थिक क्रियाएँ इन संसाधनों पर निर्भर करती हैं। तेल, कोयला, खनिज पदार्थों आदि प्राकृतिक संसाधनों के बिना मानव सभ्यता की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसलिए इसे मूल रूप से सुरक्षित रखने के लिए संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता है।

प्रश्न 3.
यह कहना कहाँ तक सही है कि संसाधन केवल प्राकृतिक पदार्थ हैं?
उत्तर:
वातावरण के वे सभी तत्त्व, जो मनुष्य के लिए उपयोगी हैं, उन्हें प्राकृतिक संसाधन कहते हैं। वायु, भूमि, जल, प्राकृतिक वनस्पति, खनिज पदार्थ, मिट्टी, जलवायु तथा वन्य प्राणी मुख्य प्राकृतिक संसाधन हैं, जो मनुष्य को बिना किसी मूल्य के प्राप्त होते हैं। इसलिए इन्हें प्राकृतिक उपहार भी कहते हैं।

प्राकृतिक संसाधन किसी राष्ट्र की आधारशिला हैं, क्योंकि ये राष्ट्र के विकास में सहायक हैं। वनों से लकड़ी तथा कई उद्योगों को कच्चा माल प्राप्त होता है। जल तथा उपजाऊ मिट्टी कृषि के विकास में सहायक हैं। मानव की सभी आर्थिक क्रियाएँ प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित हैं।

प्रश्न 4.
संसाधन और आर्थिक विकास के अंतर्संबंधों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
किसी भी देश की आर्थिक विकास प्रक्रिया अनेक कारकों पर निर्भर करती है और प्राकृतिक संसाधन उनमें से एक महत्त्वपूर्ण कारक हैं। संसाधनों के दोहन और उपयोग के आधार पर विश्व में निम्नलिखित तीन प्रकार की परिस्थितियाँ पाई जाती हैं

  • ऐसे देश जिनमें संसाधनों के विशाल भंडार होते हुए भी आर्थिक विकास कम है। इनमें भारत सहित अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकतर देश इस वर्ग में सम्मिलित किए जाते हैं।
  • कुछ देश प्राकृतिक संसाधनों में संपन्न नहीं हैं। फिर भी अत्यधिक विकसित हैं; जैसे जापान, युनाइटेड किंगडम और स्विट्जरलैंड इत्यादि।
  • कुछ देश ऐसे हैं जिनमें संसाधनों की संपन्नता के साथ-साथ अत्यधिक विकसित अर्थव्यवस्था पाई जाती है; जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस तथा दक्षिणी अफ्रीका इत्यादि।

आर्थिक विकास की प्रारंभिक अवस्था में स्थानीय संसाधनों की उपलब्धता एक महत्त्वपूर्ण कारक है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि संसाधनों का दोहन और उपयोग आर्थिक विकास के अनिवार्य कारक हैं। प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता ही विकास की गारंटी नहीं है। कई बार संपन्न देश बाहर से संसाधनों का आयात करने में समर्थ होते हैं और आर्थिक विकास के क्षेत्र में आगे निकल जाते हैं।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

प्रश्न 5.
संसाधन संरक्षण और संसाधन प्रबंधन में क्या अंतर है?
अथवा
संसाधन प्रबंधन के संरक्षण का नवीन रूप क्यों मानना चाहिए?
उत्तर:
संरक्षण एक व्यापक संकल्पना है जिसमें न केवल वैज्ञानिक अपितु नैतिक, आर्थिक और राजनीतिक पहल भी शामिल हैं। संरक्षण का अर्थ है-मितव्ययिता और बिना बर्बादी के उपयोग। संरक्षण संसाधनों के विवेकपूण अत्यधिक उपयोग, दुरुपयोग और असामयिक उपयोग को छोड़ने के लिए प्रेरित करता है।

आजकल ‘संसाधन संरक्षण’ के स्थान पर ‘संसाधन प्रबंधन’ वाक्यांश अधिक प्रयुक्त किया जाता है। संसाधन प्रबंधन संसाधनों को दीर्घायु और इसका उपयोग प्रारूप में सुधार लाने के लिए किया जाता है। प्रबंधन संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग पर बल दिया जाता है। इसका उद्देश्य वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करना तथा पारितंत्रीय संतुलन को भी बनाए रखना है। इसके अतिरिक्त भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं को भी पूरा करना है। संसाधन प्रबंधन संरक्षण का एक नवीन रूप है। इसमें भावुकता के स्थान पर विवेक, अर्थशास्त्र की जगह नैतिकता और इंजिनियरी के स्थान पर पारिस्थितिकी पर बल दिया जाता है।

प्रश्न 6.
भारत के भू-उपयोग के परिवर्तन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
किसी क्षेत्र में भू-उपयोग मुख्यतः वहाँ की आर्थिक क्रियाओं की प्रवृत्ति पर निर्भर है। समय के साथ-साथ आर्थिक क्रियाएँ बदलती रहती हैं लेकिन भूमि संसाधन क्षेत्रफल की दृष्टि से स्थायी है। भू-उपयोग को प्रभावित करने वाले अर्थव्यवस्था के परिवर्तन निम्नलिखित हैं
(1) अर्थव्यवस्था का आकार समय के साथ बढ़ता है; जो बढ़ती जनसंख्या, बदलता हुआ आय का स्तर, प्रौद्योगिकी की उपलब्धता जैसे कारकों पर निर्भर करता है। फलस्वरूप समय के साथ भूमि पर दबाव बढ़ता है और सीमांत भूमि को भी प्रयोग में लाया जाता है।

(2) अर्थव्यवस्था की संरचना भी समय के साथ बदलती है। प्राथमिक सेक्टर की अपेक्षा द्वितीयक और तृतीयक सेक्टर में तेजी से वृद्धि होती है। इस प्रकार कृषि भूमि, गैर-कृषि संबंधी कार्यों में प्रयुक्त होती है।

(3) समय के साथ कृषि क्रियाकलापों का अर्थव्यवस्था में योगदान कम होता जा रहा है, जबकि भूमि पर कृषि क्रियाकलापों का दबाव कम नहीं होता।

प्रश्न 7.
भारत में कितनी फसल ऋतएँ या शस्य मौसम पाए जाते हैं?
अथवा
भारत में तीन ऋतु फसलों के नाम लिखें।
खरीफ, रबी और जायद फसल ऋतुओं का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
भारत में तीन प्रमुख फसल ऋतुएँ पाई जाती हैं-
1. खरीफ-खरीफ की फसलें अधिकतर दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के साथ बोई जाती हैं। इसकी प्रमुख फसलें चावल, कपास, जूट, ज्वार, बाजरा, अरहर आदि होती हैं। इस ऋतु का समय जून से सितम्बर के मध्य माना जाता है।

2. रबी-रबी की ऋतु अक्तूबर-नवंबर में शरद ऋतु से आरंभ होकर मार्च-अप्रैल में समाप्त होती है। इसकी प्रमुख फसलें गेहूँ, चना, सरसों, जौ, मूंगफली आदि होती हैं। इस ऋतु में वे फसलें उगाई जाती हैं जो कम तापमान और कम वर्षा में उगती है।

3. ज़ायद यह एक अल्पकालिक ग्रीष्मकालीन फसल ऋतु है जो रबी की कटाई के बाद प्रारंभ होती है। इस ऋतु में तरबूज, खीरा, ककड़ी, सब्जियाँ व चारे आदि की फसलें उगाई जाती हैं। इस ऋतु में विभिन्न फसलों की कृषि सिंचित भूमि पर की जाती है।

प्रश्न 8.
कृषि के प्रकारों का वर्गीकरण आर्द्रता के प्रमुख उपलब्ध स्रोत के आधार पर कीजिए।
उत्तर:
आर्द्रता के स्रोत की उपलब्धता के आधार पर कृषि को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
1. सिंचित कृषि में सिंचाई के उद्देश्य के आधार पर अंतर पाया जाता है; जैसे-रक्षित व उत्पादक सिंचाई कृषि। रक्षित सिंचाई का मुख्य उद्देश्य आर्द्रता की कमी के कारण फसलों को नष्ट होने से बचाना है अर्थात् वर्षा के अतिरिक्त जल की कमी को सिंचाई के साधनों द्वारा पूरा किया जाता है। उत्पादक सिंचाई का उद्देश्य फसलों का पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध कराकर अधिकतम उत्पादकता प्राप्त करना है।

2. वर्षा निर्भर कृषि को कृषि ऋतु में उपलब्ध आर्द्रता की मात्रा के आधार पर दो वर्गों में विभाजित किया जाता है; जैसे (i) शुष्क भूमि कृषि (ii) आर्द्र भूमि कृषि। शुष्क भूमि कृषि क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा 75 सें०मी० से कम होती है। इन क्षेत्रों में मुख्यतः रागी, बाजरा, मूंग, चना आदि फसलें उगाई जाती हैं। आर्द्र भूमि कृषि क्षेत्र में मुख्यतः वे फसलें उगाई जाती हैं जिनको अधिक मात्रा में पानी की जरूरत होती है; जैसे-चावल, गन्ना, जूट आदि।

प्रश्न 9.
भारत में कृषि का क्या महत्त्व है? अथवा भारतीय कृषि के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार व धूरी कृषि है, क्योंकि यह भारतवासियों का प्रमुख व्यवसाय है। भारत की 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या कृषि से ही आजीविका कमाती है अर्थात् यह सर्वाधिक रोजगार का साधन प्रदान करती है। देश की कुल राष्ट्रीय आय का काफी भाग कृषि से प्राप्त होता है। कृषि देश के सामाजिक और आर्थिक जीवन का आधार है। कृषि से भोजन ही नहीं, बल्कि उद्योग-धंधों के लिए कच्चा माल भी प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त कृषि उपजों के निर्यात से विदेशी मुद्रा भी प्राप्त होती है। यह पौष्टिक तत्त्वों की प्रमुख स्रोत है।

प्रश्न 10.
भारत में उद्यान कृषि की फसलों के वितरण प्रतिरूप का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कृषि जलवायु में विविधता के कारण भारत में अनेक प्रकार की उद्यान कृषि की जाती है। भारत की प्रमुख उद्यान फसलें हैं-फल, सब्जियाँ, कंद फसलें, औषधीय पौधे, सुगंधित पौधे और मसाले । भारत विश्व में फलों और सब्जियों का दूसरा बड़ा उत्पादक देश है। आम के उत्पादन में उत्तर प्रदेश का मुख्य स्थान है। नागपुर को संतरों का शहर कहा जाता है। तमिलनाडु, महाराष्ट्र और अनेक दक्षिणी राज्य केलों के लिए प्रसिद्ध हैं। उत्तर:प्रदेश और बिहार के लीची और अमरूद बहुत प्रसिद्ध हैं।

आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में अंगूर का उत्पादन बढ़ रहा है। कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में सेब, नाशपाती, खुबानी तथा अखरोट आदि बहुतायत में होते हैं। केरल का पश्चिमी घाट काली मिर्च के लिए प्रसिद्ध है। अदरक देश के पूर्वी राज्यों में होता है। केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश काजू तथा नारियल के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। भारत काजू का सबसे बड़ा निर्यातक देश है तथा संसार का सबसे अधिक नारियल उत्पादक देश है।

प्रश्न 11.
फसलों की गहनता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
एक खेत में एक कृषि-वर्ष में जितनी फसलें उगाई जाती हैं, उसे फसलों की गहनता अथवा शस्य गहनता कहते हैं। यदि किसी खेत में एक वर्ष में केवल एक ही फसल उगाई जाती है, तो फसल का सूचकांक 100% होगा। मान लो 5 एकड़ के एक खेत में रबी की फसल पूरे 5 एकड़ में की जाती है तथा उसी वर्ष खरीफ की फसल उसी खेत में 3 एकड़ में की जाती है, तो कुल बोया क्षेत्र 8 एकड़ होगा और सूचकांक 160% हो जाएगा। इसको अग्रलिखित सूत्र से निकाला जाता है
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि 2
शस्य गहनता का सूचकांक जितना अधिक होगा, भूमि उपयोग की क्षमता भी उतनी ही अधिक होगी। सन् 1983-84 में समस्त भारत के लिए शस्य सूचकांक 126% था तथा अधिकतम पंजाब में 160%, हरियाणा में 158% तथा गुजरात में केवल 109% शस्य सूचकांक था। सूचकांक को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक सिंचाई, उर्वरक, उन्नत बीज, यंत्रीकरण और कीटनाशक दवाइयों का फसलों में प्रयोग है।

प्रश्न 12.
शस्य गहनता को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं?
उत्तर:
शस्य गहनता के बढ़ने से फसलों के उत्पादन में वृद्धि होती है। यह निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है-

  1. एक बार से अधिक बोए हुए क्षेत्र का विस्तार
  2. सिंचाई क्षेत्र का विस्तार
  3. उर्वरक का प्रयोग
  4. शीघ्र पकने वाली फसलों के उगाने से कृषि-वर्ष में अधिक फसलें उगाना
  5. कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग
  6. यंत्रीकरण कृषि।

प्रश्न 13.
परती भूमि का क्या अर्थ है? यह कितने प्रकार की होती है?
उत्तर:
यह वह भूमि है जिस पर पहले कृषि की जाती थी, परंतु अब इस भाग पर कृषि नहीं की जाती। इस जमीन पर यदि लगातार खेती की जाए तो भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है और ऐसी जमीन पर कृषि करना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं रहता। अतः इसे कुछ समय के लिए खाली छोड़ दिया जाता है। इस प्रक्रिया से जमीन में फिर से उपजाऊ शक्ति आ जाती है और यह कृषि के लिए उपयुक्त हो जाती है। परती भूमि दो प्रकार की होती है-

  1. वर्तमान परती भूमि
  2. पुरानी परती भूमि।

प्रश्न 14.
खाद्यान्न और खाद्य-फसलों में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
खाद्यान्न और खाद्य-फसलों में निम्नलिखित अंतर हैं-

खाद्यान्नखाद्य-फसल
1. खाद्यान्न मनुष्य के भोजन का प्रमुख अंग हैं।1. खाद्य-फसल फसलों का प्रयोग मनुष्य के भोजन में कम होता है।
2. ये मुख्य रूप से खरीफ तथा रबी के मौसम में बोए जाते हैं।2. दालें खरीफ के मौसम में तथा तिलहन रबी के मौसम में बोए जाते हैं।
3. खाद्यान्न के मुख्य उदाहरण गेहूँ, ज्वार, बाजरा, रागी आदि हैं।3. खाद्य फसल के प्रमुख उदाहरण दालें, तिलहन, चना, मूँगफली, फल आदि हैं।

प्रश्न 15.
खरीफ तथा रबी की फसलों में क्या अंतर है?
उत्तर:
खरीफ तथा रबी की फसलों में निम्नलिखित अंतर हैं-

खरीफ की फसलेंरबी की फसलें
1. खरीफ की फसलें वर्षा ऋतु के प्रारंभ में ग्रीष्म काल में बोई जाती हैं।1. रबी की फसलें वर्षा ऋतु के पश्चात् शीत ऋतु में बोई जाती हैं।
2. ये फसलें शीत ऋतु से पहले पक जाती हैं।2. ये फसलें ग्रीष्म ऋतु में पक जाती हैं।
3. ये फसलें उष्ण जलवायु प्रदेशों की महत्त्वपूर्ण फसलें हैं।3. ये फसलें शीतोष्ण जलवायु प्रदेशों की महत्त्वपूर्ण फसलें हैं।
4. इनके प्रमुख उदाहरण चावल, मक्का, कपास, तिलहन आदि हैं।4. इनके प्रमुख उदाहरण गेहूँ, जौ, चना आदि हैं।

प्रश्न 16.
गन्ने की उपज उत्तर भारत में अधिक है, जबकि भौगोलिक परिस्थितियाँ दक्षिण भारत में गन्ने के अनुकूल हैं, कारण दें।
अथवा
भारत में उत्तर प्रदेश गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है? कारण स्पष्ट करें।
उत्तर:
गन्ने की खेती के लिए जलवायु संबंधी परिस्थितियाँ दक्षिण भारत में अनुकूल पाई जाती हैं, क्योंकि वहाँ सारा साल उच्च तापमान रहता है तथा गन्ने के लिए वर्धनकाल भी काफी मिल जाता है। कर्नाटक, तमिलनाडू तथा आंध्र प्रदेश राज्य 15° उत्तरी अक्षांश के दक्षिण में स्थित हैं तथा गन्ने की उपज के लिए उपयुक्त हैं। यहाँ 80 क्विंटल प्रति हैक्टेयर से भी अधिक गन्ना पैदा होता है, जबकि उत्तर भारत में 40 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से उपज होने के बावजूद भी भारत का 60% गन्ना उत्तर भारत में ही पैदा होता है। इसके निम्नलिखित कारण हैं
(1) गन्ने की उपज के लिए बहुत उपजाऊ मिट्टी की जरूरत होती है जो उत्तर भारत के मैदान में हर जगह उपलब्ध है तथा सिंचाई की विस्तृत सुविधाएँ भी प्राप्त हैं, जबकि दक्षिण भारत में इन दोनों सुविधाओं की कमी है।

(2) गन्ना एक भारी तथा भारह्रास वस्तु है। इसको उद्योगों तक पहुँचाने के लिए गहन तथा तीव्र परिवहन के साधनों की जरूरत है। उत्तर भारत के मैदानों में परिवहन का गहन जाल बिछा हुआ है। ये सुविधाएँ दक्षिणी भारत में नहीं हैं।

(3) गन्ने की कृषि के लिए समतल मैदानों का होना जरूरी है, क्योंकि इसको लगातार सिंचाई की आवश्यकता रहती है। यह परिस्थिति उत्तर भारत के मैदान में है, इसलिए यहाँ गन्ना अधिक पैदा होता है।

प्रश्न 17.
भारत के पूर्वी भाग में जूट (पटसन) तथा पश्चिमी भाग में कपास पैदा होती है, क्यों?
उत्तर:
भारत के पूर्वी राज्यों-पश्चिमी बंगाल तथा असम में जूट (पटसन) की खेती खूब की जाती है। इसका कारण यह है कि यहाँ उच्च तापमान है, भारी वर्षा होती है तथा गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी से ये क्षेत्र निर्मित हैं, जो बहुत उपजाऊ हैं। इन नदियों के डेल्टों में खूब जूट पैदा होता है। अतः जूट के लिए सभी अनुकूल दशाएँ मिलने के कारण यहाँ जूट अधिक पैदा होता है।

इसके विपरीत, भारत के पश्चिमी भाग-महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब तथा हरियाणा के कुछ भागों में कपास खूब पैदा होती है। यहाँ की जलवायु आर्द्र-शुष्क है। महाराष्ट्र तथा गुजरात की काली मिट्टी इसके लिए बहुत अनुकूल है। सिंचाई की सुविधाएँ तथा उचित वर्धनकाल उपलब्ध हैं, इसलिए यहाँ कपास अधिक पैदा की जाती है।

प्रश्न 18.
गेहूँ की उत्पादकता कुछ प्रदेशों में अधिक तथा कुछ प्रदेशों में कम है, क्यों?
उत्तर:
गेहूँ मुख्य रूप से उत्तरी तथा पश्चिमी भारत की फसल है। भारत की कुल गेहूँ का लगभग 50% भाग पंजाब तथा उत्तर प्रदेश उत्पन्न करते हैं। पंजाब में गेहूँ की प्रति हैक्टेयर उपज 30 क्विंटल के लगभग है जो देश की सबसे अधिक उत्पादकता है। इसके अतिरिक्त उपजाऊ मिट्टी, जल सिंचाई के विकसित साधन, शीतकालीन वर्षा तथा अधिक उर्वरक के प्रयोग के कारण हरियाणा, गंगा-यमुना दोआब तथा उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में गेहूँ की उत्पादकता अधिक है। परंतु दक्षिणी भारत में अधिक गर्मी के कारण तथा पूर्वी भारत में अधिक आर्द्र जलवायु के कारण गेहूँ की उत्पादकता बहुत कम है।

प्रश्न 19.
पंजाब तथा हरियाणा में वार्षिक वर्षा कम होते हुए भी चावल की खेती की जाती है, क्यों?
उत्तर:
पंजाब तथा हरियाणा में वार्षिक वर्षा कम होती है। परंतु पिछले कुछ वर्षों में यहाँ चावल के कृषि-क्षेत्र में आधारभूत वृद्धि हुई है। ये प्रदेश देश के अन्य प्रदेशों को चावल भेजते हैं। इसलिए ये ‘चावल का कटोरा’ कहलाते हैं। पंजाब तथा हरियाणा में वर्षा की कमी को जल सिंचाई द्वारा पूरा कर लिया जाता है। यहाँ की मिट्टी उपजाऊ है। उत्तम किस्म के बीजों, अपेक्षाकृत अधिक खाद व कीटनाशकों का प्रयोग और शुष्क जलवायु के कारण फसलों में रोग प्रतिरोधकता आदि कारकों ने इन राज्यों में चावल की पैदावार बढ़ाने में सहायता की है। इसलिए यहाँ चावल की उत्पादकता प्रति हैक्टेयर अधिक है।

प्रश्न 20.
“हरित क्रांति का प्रभाव भारत के सभी भागों में एक जैसा नहीं पड़ा।” व्याख्या कीजिए।
अथवा
हरित क्रांति की योजना भारत में हर जगह क्यों नहीं लागू की जा सकती?
उत्तर:
हरित क्रांति की योजना के भारत में हर जगह न लागू किए जाने के निम्नलिखित कारण हैं-

  1. यह योजना सिंचित क्षेत्रों तक ही सीमित है और बहुत-से भारत के लोगों में सिंचाई के साधन कम हैं।
  2. उर्वरकों का उत्पादन, मांग की पूर्ति के लिए अपर्याप्त है।
  3. नए कृषि साधनों पर अधिक खर्च करने के लिए पूंजी की कमी है, अतः यह योजना केवल बड़े जमींदारों तक ही सीमित रही है। छोटे किसान इससे अप्रभावित हैं।
  4. जहां जल-सिंचाई के पर्याप्त साधन थे, वहीं पर यह योजना सफल रही है।
  5. भारत में अधिकतर खेत बहुत छोटे आकार के हैं। इन पर कृषि यंत्रों का प्रयोग सफल नहीं हो सकता।
  6. अधिक उपज प्रदान करने वाली विधियाँ केवल कुछ ही फसलों के लिए प्रयोग में लाई गई हैं। इसलिए यह योजना भारत में हर जगह नहीं लागू की जा सकती।

प्रश्न 21.
हरित क्रांति के कोई चार सकारात्मक परिणाम बताइए।
अथवा
हरित क्रांति की मुख्य उपलब्धियाँ लिखें।
उत्तर:
हरित क्रांति के चार सकारात्मक परिणाम निम्नलिखित हैं-

  1. देश के सकल घरेलू उत्पाद (G.D.P.) में वृद्धि हुई है।
  2. हरित क्रान्ति से औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिला, रोज़गार उत्पन्न हुआ और ग्रामवासियों के जीवन में गुणात्मक परिवर्तन हुआ।
  3. भारत की साख विश्व बैंक एवं अन्य कर्ज देने वाली संस्थाओं की नज़रों में बढ़ी क्योंकि भारत ने कर्ज को समय रहते चुका दिया था।
  4. भारत खाद्यान्न निर्यात करने वाले देश के रूप में उभरा, जिससे विश्व में उसकी प्रतिष्ठा बढ़ी।

प्रश्न 22.
हरित क्रांति के कोई चार नकारात्मक परिणाम बताइए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति के चार नकारात्मक परिणाम निम्नलिखित हैं-

  1. हरित क्रान्ति से किसानों और भू-स्वामियों के बीच का अन्तर मुखर हो उठा।
  2. हरित क्रान्ति से किसानों और कृषि मजदूरों को कोई विशेष लाभ नहीं पहुंचा।
  3. हरित क्रान्ति से कुछ राज्यों को अधिक आर्थिक लाभ पहुँचा जिससे क्षेत्रीय असन्तुलन की समस्या उत्पन्न हो गई।
  4. इससे देश के विभिन्न हिस्सों में वामपंथी संगठनों के लिए किसानों को लाभबन्द करने की दृष्टि से अनुकूल स्थिति पैदा हुई।

प्रश्न 23.
भारत में कृषि क्षेत्र में हुए नवीनतम विकास का उल्लेख कीजिए।
अथवा
कृषि उत्पादन में वृद्धि और प्रौद्योगिकी के विकास के महत्त्व का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
देश में सन् 1980 के बाद कृषि क्षेत्र में अनेक विकासात्मक परिवर्तन हुए। इन नवीन परिवर्तनों, प्रगति एवं उपलब्धियों को निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत रखा जा सकता है

  1. हरित क्रान्ति के फलस्वरूप फसलों की उत्पादकता में काफी वृद्धि हुई। खाद्यान्न के उत्पादन में अपार वृद्धि के कारण भारत ने आत्म-निर्भरता की ओर कदम बढ़ाया।
  2. सिंचाई साधनों में निरंतर वृद्धि हो रही है। सिंचाई की नई पद्धति ‘ड्रिप सिंचाई’ और स्प्रिंकल सिंचाई द्वारा कृषि क्षेत्र और उत्पादन में सुधार हआ है।
  3. कृषि साख व्यवस्था की ओर ध्यान दिया जा रहा है। यह कार्य अनेक वाणिज्यिक बैंकों एवं संस्थाओं द्वारा किया जा रहा है।
  4. किसान क्रेडिट कार्ड योजना और राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना को लागू किया गया है। इसके अंतर्गत किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
  5. नई राष्ट्रीय कृषि नीति-2000 को लागू किया गया। इसके अंतर्गत कृषि क्षेत्र में हर वर्ष 4% की वृद्धि का लक्ष्य रखा गया।
  6. कृषि खाद्यान्नों के उत्पादन बढ़ाने के साथ अन्य सहायक खाद्य पदार्थों के उत्पादन में वृद्धि हेतु भी अनेक प्रयास किए गए-
    • दूध के उत्पादन में तीव्र वृद्धि को ऑपरेशन फ्लड कहते हैं। यह सबसे बड़ा समन्वित डेयरी विकास कार्यक्रम है।
    • श्वेत क्रांति।
    • नीली क्रांति।
    • पीली क्रांति आदि।

प्रश्न 24.
फसलों का समूह या फसल संयोजन से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
फसल संयोजन से तात्पर्य उस भौगोलिक इकाई अथवा कृषि क्षेत्र से है, जहाँ एक कैलेंडर वर्ष के अंतर्गत उत्पन्न की गई फसलों की संख्या का पता चलता है। इसके निर्धारण के लिए एक वर्ष में उत्पन्न फसलों की सूची बनाना आवश्यक है। इसी सूची के आधार पर फसल संयोजन निर्धारित किया जाता है। कृषि प्रादेशीकरण के निर्धारण में फसल संयोजन एक ऐसी प्रक्रिया है जो उत्पन्न हो रही फसलों में अनुकूलतम समूह को निर्धारित करता है।

प्रश्न 25.
भारतीय कृषि के पिछड़ेपन के क्या कारण हैं?
उत्तर:
भारतीय कृषि के पिछड़ेपन के निम्नलिखित कारण हैं-

  1. भूमि पर लगातार एक ही कृषि के परिणामस्वरूप मिट्टियों की उर्वरा शक्ति कम हो गई है।
  2. वनों की अंधाधुंध कटाई के परिणामस्वरूप मिट्टियों का कटाव हुआ है।
  3. खेतों का आकार अधिक छोटा है जिससे वे आर्थिक रूप से लाभकारी नहीं रहीं।
  4. खेती के ढंग एवं उपकरण पुराने हैं जिसके कारण प्रति हैक्टेयर उपज बहुत कम है।

प्रश्न 26.
गहन कृषि और झूम कृषि में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
गहन कृषि और झूम कृषि में निम्नलिखित अंतर हैं-

गहन कृषिझूम कृषि
1. कृषि करने का ऐसा ढंग जिसमें किसान भूमि के छोटे-छोटे टुकड़ों पर अधिक परिश्रम करके और अच्छे कृषि-साधनों का प्रयोग करके अधिक-से-अधिक उत्पादन करता है, उसे गहन कृषि कहते हैं।1. कृषि करने का ऐसा ढंग जिसमें किसान भूमि के नए-नए तथा विस्तृत क्षेत्रों को हल के नीचे लाकर अधिक उत्पादन करता है, उसे झूम कृषि कहते हैं।
2. गहन कृषि उन भू-भागों में की जाती है, जो घने आबाद हों और कृषि कार्य के लिए जहां नई भूमियाँ उपलब्ध न हों।2. झूम कृषि उन भू-भागों में की जाती है जहाँ जनसंख्या कम हो और कृषि करने के लिए नई भूमि उपलब्ध हो।
3. इस प्रकार की कृषि में जोतों का आकार छोटा होता है।3. इस प्रकार की कृषि में जोतों का आकार बड़ा होता है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

प्रश्न 27.
भारत में फलों की खेती पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
भारत संसार में सबसे अधिक फलों और सब्जियों का उत्पादन करता है। भारत उष्ण और शीतोष्ण कटिबंधीय दोनों ही प्रकार के फलों का उत्पादन करता है। भारतीय फलों जिनमें महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बंगाल के आम, नागपुर और चेरापूँजी के संतरे, केरल, मिजोरम, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के केले, उत्तर प्रदेश और बिहार की लीची, मेघालय के अनानास, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के अंगूर तथा हिमाचल प्रदेश और जम्मू व कश्मीर के सेब, नाशपाती, खूबानी और अखरोट की सारे संसार में बहुत माँग है।

प्रश्न 28.
भारत में तिलहन उत्पादन पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
भारत संसार में सबसे बड़ा तिलहन उत्पादक देश है। देश में कुल बोए गए क्षेत्र के 12 प्रतिशत भाग पर तिलहन की कई फसलें उगाई जाती हैं। मूंगफली, सरसों, नारियल, तिल, सोयाबीन, अरंडी, बिनौला, अलसी और सूरजमुखी भारत में उगाई जाने वाली मुख्य तिलहन फसलें हैं। इनमें से ज्यादातर खाद्य हैं और खाना बनाने में प्रयोग में लाए जाते हैं, किंतु इनमें से कुछ बीज के तेलों को साबुन, श्रृंगार का सामान और ज्यादातर उबटन उद्योग में कच्चे माल के रूप में भी प्रयोग में लाया जाता है।

प्रश्न 29.
एक पेय फसल का नाम बताएँ तथा उसको उगाने के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
चाय एक प्रमुख पेय फसल है। चाय की फसल को उगाने के लिए निम्नलिखित अनुकूल भौगोलिक दशाओं की आवश्यकता है

  1. चाय के पौधों के लिए उष्ण और उपोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है।
  2. ह्यूमस और जीवांश युक्त गहरी मिट्टी होनी चाहिए।
  3. भूमि ढलानदार होनी चाहिए जिससे पौधों की जड़ों में पानी न ठहरे।
  4. वर्ष भर नम और पालारहित जलवायु होनी चाहिए।
  5. वर्ष भर समान रूप से वर्षा की हल्की बौछारें पड़ती रहनी चाहिएँ।

प्रश्न 30.
जैविक एवं गैर जैविक कृषि में क्या अंतर है?
अथवा
जैविक तथा रासायनिक कृषि में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जैविक एवं गैर जैविक कृषि में निम्नलिखित अंतर हैं-

जैविक कृषिरासायनिक/गैर जैविक कृषि
1. जैविक खाद और परम्परागत तरीकों से की जाने वाली कृषि को जैविक कृषि कहते हैं।1. रासायनिक खादों और कीटनाशक दवाइयों के प्रयोग से की जाने वाली खेती को रासायनिक कृषि या गैर जैविक कृषि कहते हैं।
2. इसमें जैव पदार्थों से प्राप्त खादों का प्रयोग किया जाता है।2. इसमें रासायनिक एवं वैज्ञानिक विधियों से निर्मित खाद का प्रयोग किया जाता है।
3. जैव पदार्थों वाली खाद घर या फार्म पर तैयार की जाती है।3. रसायनिक खाद कारखानों में तैयार की जाती है।
4. जैविक कृषि मानव श्रम प्रधान कृषि है।4. रासायनिक कृषि वैज्ञानिक तकनीक प्रधान कृषि है।
5. यह प्रकृति पर आधारित होती है।5. यह पूर्णतः बाजार पर निर्भर करती है।
6. इसमें पानी की कम आवश्यकता होती है।6. इसमें पानी की अधिक आवश्यकता होती है।

प्रश्न 31.
भारत में सब्जियों की कृषि पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
भारत का सब्जियों के उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है। भारत में प्राकृतिक विविधता के कारण लगभग सभी तरह की सब्जियाँ उगाई जाती हैं। इनमें प्रमुख सब्जियाँ हैं–आलू, प्याज, गाजर, भिण्डी, मटर, पालक, लौकी, करेला, बैंगन, शलगम, धनियाँ, पुदीना, फूलगोभी आदि। कुछ सब्जियों के उत्पादन में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है; जैसे मटर।

प्रश्न 32.
स्थानांतरित तथा स्थाई कृषि में क्या अंतर है?
उत्तर:
स्थानांतरित तथा स्थाई कृषि में निम्नलिखित अंतर हैं-

स्थानांतरित कृषिस्थाई कृषि
1. इस कृषि में केवल परिवार की जरूरतों के अनुसार खेती की जाती है।1. इस कृषि में आवश्यकता से अधिक कृषि या खेती की जाती है।
2. इसमें कृषि करने की जगह बदलती रहती है।2. इसमें कृषि करने की जगह नहीं बदलती।
3. इसमें वनों को जलाकर खाद प्राप्त की जाती है।3. इसमें पशुओं से खाद प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 33.
भारत में शुष्क भूमि कृषि की मुख्य विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
भारत में शुष्क भूमि कृषि की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. इसमें वर्षा से खेत जोत दिए जाते हैं।
  2. प्रत्येक वर्षा के बाद गहरी जुताई की जाती है।
  3. इसमें शुष्कता को सहन करने वाली फसलों को ही बोया जाता है।
  4. जोती हुई भूमि में नमी बनाए रखने के लिए उसके ऊपर सूखी मिट्टी की एक परत बिछा दी जाती है।

प्रश्न 34.
चावल की प्रमुख किस्में बताइए।
उत्तर:
भारत में मुख्य रूप से चावल की दो प्रकार की किस्में पाई जाती हैं-

  1. पहाड़ी चावल-यह पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ीदार खेत बनाकर उगाया जाता है। इसकी उपज वर्षा पर निर्भर है। यह जल्दी पक जाता है। यह खाने में सख्त लगता है। इसको उच्च भूमि चावल भी कहते हैं।
  2. मैदानी चावल मैदानी भागों में उत्पन्न किया गया चावल स्वादिष्ट होता है। इसकी प्रति हैक्टेयर उपज जल की पूर्ति के कारण अधिक होती है। इसको निम्न भूमि चावल भी कहते हैं। भारत का अधिकांश चावल इसी किस्म का होता है।

प्रश्न 35.
भारतीय कृषि की कोई चार विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
भारतीय कृषि की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. भारतीय कृषि पर अधिक जनसंख्या की निर्भरता।
  2. इसकी मानसून या वर्षा पर अधिक निर्भरता।
  3. सिंचाई सुविधाओं और तकनीकी का अभाव।
  4. कृषि जोतों का छोटा आकार।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
हरित क्रांति से आपका क्या अभिप्राय है? इसकी विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
हरित क्रांति का अर्थ हरित क्रांति का अर्थ कृषि उत्पादन में हुई उस वृद्धि से है जो नई तकनीक तथा अधिक उपज देने वाले बीजों के उपयोग से हो रही है। यद्यपि हरित क्रांति शब्द का सर्वप्रथम उपयोग विलियम गॉड ने सन् 1968 में किया था किन्तु हरित क्रांति के जन्मदाता होने का श्रेय नोबल पुरस्कार विजेता डॉ० नॉर्मन ई० बोरलॉग को जाता है। भारत में हरित क्रांति की शुरुआत सन् 1966-67 से हुई। भारत में यह क्रांति लाने का श्रेय एम० स्वामी नाथन को जाता है।

हरित क्रांति की विशेषताएँ इस क्रांति की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) अधिक उपज देने वाली तथा शीघ्र पकने वाली फसलों के बीज तैयार करना।

(2) नई कृषि नीति के अंतर्गत रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को प्रोत्साहन देना। भारत अपनी आवश्यकता के 50% उर्वरक पैदा करता है तथा शेष का आयात करता है। सिंचाई क्षेत्र के विस्तार से हरित-क्रांति को बहुत सफलता मिली है। भारत जैसे मानसून प्रदेश में सिंचाई का बड़ा महत्त्व है। भारत में नहरें, कुएँ, नलकूप तथा तालाब सिंचाई के महत्त्वपूर्ण कारक हैं।

(3) अधिक उत्पादन लेने के लिए फसलों को कीड़ों तथा बीमारियों से बचाना है।

(4) आधुनिक मशीनों के प्रयोग को बढ़ावा देना।

(5) भूमि कटाव को रोकने तथा भूमि की उर्वरता शक्ति को बनाए रखने के प्रयास करना।

प्रश्न 2.
भारत में निम्नलिखित फसलों या कृषि उत्पादन के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाओं का उल्लेख करते हुए प्रमुख उत्पादक राज्यों का उल्लेख कीजिए
(क) जूट या पटसन
(ख) कहवा या कॉफी
(ग) रबड़।
उत्तर:
(क) जूट या पटसन-जूट (पटसन) भारत की कपास के पश्चात् दूसरी महत्त्वपूर्ण रेशेदार फसल है। इसका रेशा सस्ता तथा मजबूत होता है। जूट (पटसन) के लिए निम्नलिखित दशाएँ आवश्यक हैं

  • तापमान-जूट की कृषि के लिए 25° से 35° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। यह एक खरीफ की फसल है।
  • वर्षा-जूट की फसल के लिए 90° सापेक्षित आर्द्रता तथा 150 से 200 सें०मी० तक वर्षा की आवश्यकता होती है।
  • मिट्टी-जूट के लिए चीकायुक्त मिट्टी लाभदायक है। नदियों के बाढ़ क्षेत्र तथा डेल्टा प्रदेश जूट के लिए उपयोगी हैं। जूट की फसल मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को शीघ्र क्षीण कर देती है। इसलिए खाद का भी अधिक प्रयोग किया जा है।
  • श्रम-जूट की कृषि के लिए अधिक श्रमिकों की आवश्यकता होती है। इसलिए सस्ते एवं कुशल श्रमिक आवश्यक हैं।

प्रमुख उत्पादक राज्य-जूट पैदा करने वाले प्रमुख उत्पादक राज्य हैं-

  • पश्चिमी बंगाल-यहाँ जूट मुर्शिदाबाद, नादिया, चौबीस-परगना, मालदा, बर्दमान, कूचबिहार, वीरभूम, हुगली आदि जिलों में उत्पादित किया जाता है।
  • असम यहाँ जूट ब्रह्मपुत्र घाटी में बोया जाता है। यहाँ के प्रमुख जूट उत्पादक क्षेत्र हैं-कामरूप, गोलपाड़ा आदि।
  • अन्य राज्य–बिहार में तराई प्रदेश, दक्षिणी भारत में महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टा, उत्तर प्रदेश में गोरखपुर क्षेत्र, आंध्र प्रदेश में विशाखापत्तनम क्षेत्र, मध्य प्रदेश में रायपुर क्षेत्र, केरल में मालाबार तट तथा उत्तर पूर्वी भारत में मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर राज्यों में जूट उगाया जाता है।

(ख) कहवा या कॉफी-कहवा चाय की भांति एक पेय पदार्थ है। यह उष्ण कटिबंध प्रदेश का पौधा है। यह एक प्रकार की झाड़ी के फलों से बीजों को निकालकर तथा सुखाकर पीसकर बनाया जाता है। इसके लिए निम्नलिखित दशाओं की आवश्यकता है

  • तापमान-कहवा के लिए सारा वर्ष उच्च तापमान की आवश्यकता होती है। कहवा के लिए 15° से 20° सेल्सियस तापमान आवश्यक है।
  • वर्षा-कहवा के लिए 150 सें०मी० से 200 सें०मी० वर्षा उपयुक्त है।
  • छायादार वृक्ष कहवे की उपज के लिए सूर्य की सीधी तथा तेज प्रकाश की किरणें हानिकारक होती हैं। इसलिए कहवे के पौधों के आस-पास छाया के लिए केले तथा अन्य छायादार वृक्ष लगाए जाते हैं।
  • मिट्टी कहवा के लिए लोहा, चूना तथा ह्यूमस-युक्त मिट्टी लाभदायक है। लावा की मिट्टी तथा दोमट मिट्टी भी कहवे के लिए अनुकूल होती है।
  • धरातल कहवे के वृक्ष पठारों तथा पर्वतीय ढलानों पर लगाए जाते हैं।
  • श्रमिक कहवे के पेड़ों को छांटने, बीज तोड़ने तथा कहवा तैयार करने के लिए सस्ते तथा कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है।

प्रमुख उत्पादक राज्य कहवा या कॉफी के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं-

  • कर्नाटक-भारत में सबसे अधिक कहवा कर्नाटक में होती है। यहाँ कहवा के प्रमुख उत्पादक जिले काटूर, शिमोगा, हसन, मैसूर, कुर्ग तथा चिकमंगलूर हैं।
  • तमिलनाडु-यहाँ कहवा नीलगिरी की पहाड़ियों तथा पलनी की पहाड़ियों में उगाया जाता है। यहाँ कहवा के प्रमुख उत्पादक जिले कोयंबटूर, सेलम, उत्तरी अर्काट तथा नीलगिरी हैं।
  • केरल-यहाँ कहवा की खेती कोजीकोड़, इदुक्की तथा पालाघाट जिलों में की जाती है।
  • अन्य राज्य-महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश तथा ओडिशा में भी कुछ मात्रा में कहवा की खेती की जाती है।

(ग) रबड़ रबड़ एक लेसदार पदार्थ है जो हैविया वृक्ष के दूध से प्राप्त होता है। इससे वाहनों (मोटर-साइकिल) के ट्यूब, टायर, खिलौने तथा बिजली का सामान आदि बनाया जाता है। इसके लिए निम्नलिखित भौगोलिक परिस्थितियों की आवश्यकता है

  • तापमान रबड़ के पौधों के उत्पादन के लिए 25° से 32° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता है।
  • वर्षा-रबड़ के पौधे के लिए 200 सें०मी० से 250 सें०मी० वर्षा की आवश्यकता है।
  • मिट्टी-रबड़ के पौधे के लिए गहरी, चिकनी तथा दोमट मिट्टी उपयुक्त है।
  • धरातल-साधारण ढाल वाले मैदानी क्षेत्र रबड़ के पौधे के लिए उचित हैं। दलदली भूमि रबड़ के पौधों के लिए हानिकारक है।
  • श्रम-रबड़ इकट्ठा करने के लिए कुशल तथा सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है।

प्रमुख उत्पादक राज्य-रबड़ पैदा करने वाले प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।

  • केरल-यहाँ भारत की सबसे अधिक रबड़ उत्पन्न होती है। यहाँ रबड़ मालाबार तट पर उत्पन्न होती है।
  • तमिलनाडु-यहाँ रबड़ कन्याकुमारी जिले में उत्पन्न की जाती है।
  • अन्य राज्य-कर्नाटक, असम, पश्चिमी बंगाल तथा अंडमान द्वीप में भी कुछ मात्रा में रबड़ की खेती की जाती है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

प्रश्न 3.
भारत में निम्नलिखित फसलों या कृषि के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाओं का उल्लेख कर प्रमुख उत्पादक राज्यों का उल्लेख कीजिए
(क) मक्का, (ख) ज्वार, (ग) बाजरा।
अथवा
भारत में मक्का के विकास के लिए किस प्रकार की भौगोलिक परिस्थितियों की आवश्यकता होती हैं?
उत्तर:
(क) मक्का-मक्का एक खाद्य तथा चारा फसल है जो निम्न कोटिं मिट्टी व अर्ध-शुष्क जलवायवी परिस्थितियों में उगाई जाती है। इसके लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएँ निम्नलिखित हैं

  • तापमान मक्का की फसल के लिए 25°-30° सेल्सियस तक तापमान की आवश्यकता होती है। अधिक तापमान और अधिक सर्दी मक्का की फसल के लिए हानिकारक है।
  • वर्षा भारत में मक्का खरीफ की फसल के रूप में उगाया जाता है। इसके लिए 50-75 सें०मी० वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
  • मिट्टी-इसकी फसल के लिए हल्की दोमट या बलुई मिट्टी की आवश्यकता होती है। जिस मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा अधिक होती है। वह मिट्टी इसके लिए उपयुक्त मानी जाती है।

प्रमुख उत्पादक राज्य – मक्का उत्तर-पूर्वी भाग को छोड़कर देश के लगभग सभी भागों में उगाया जाता है परन्तु उत्तर व मध्य भारत में देश का 80% मक्का उगाया जाता है। इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं

  • महाराष्ट्र देश का सबसे अधिक मक्का महाराष्ट्र में होता है। परन्तु प्रत्येक वर्ष इसके उत्पादन में उतार-चढ़ाव होता रहता है।
  • आंध्र प्रदेश-आंध्र प्रदेश का मक्का उत्पादन में देश में महत्त्वपूर्ण स्थान है। यहाँ देश का लगभग 24% मक्का पैदा होता है।
  • कर्नाटक कर्नाटक में देश का लगभग 19% मक्का की पैदावार होती है।
  • अन्य राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब आदि हैं।

(ख) ज्वार-ज्वार दक्षिण व मध्य भारत के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों की प्रमुख फसल है। यह रबी और खरीफ दोनों ऋतुओं में होती है। जिन क्षेत्रों में आर्द्रता की कमी है, उनमें ज्वार की खेती की जाती है। प्रायद्वीपीय भारत के आंतरिक भागों में जहाँ गेहूँ व चावल नहीं उगाए जा सकते, वहाँ ज्वार की खेती की जाती है। इसका प्रयोग खाद्यान्नों के अतिरिक्त पशुओं के चारे के रूप में भी किया जाता है। ज्वार की फसल के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएँ निम्नलिखित हैं

  • तापमान-ज्वार उष्ण एवं शुष्क प्रदेशों की फसल है। इसके लिए 25°- 30° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है।
  • वर्षा-ज्वार की खेती के लिए 30-100 सें०मी० वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। इसकी खेती अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में नहीं की जाती।
  • मिट्टी-इसकी फसल के लिए हल्की दोमट और काली चिकनी मिट्टी की आवश्यकता होती है।

उत्पादक राज्य – ज्वार उत्पादक राज्यों में प्रथम स्थान महाराष्ट्र का है। यहाँ देश की उपज की लगभग 38% ज्वार की पैदावार होती है। इसके बाद मध्य प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश आदि हैं। ज्वार की सर्वाधिक उत्पादकता आंध्र प्रदेश में पाई जाती है।

(ग) बाजरा-यह अफ्रीकी मूल का पौधा है। भारत के पश्चिम तथा उत्तर:पश्चिम भागों में गर्म और शुष्क जलवायु में बाजरा बोया जाता है। यह एकल एवं मिश्रित फसल के रूप में बोया जाता है। इसकी फसल के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएँ निम्नलिखित हैं

  • तापमान-बाजरे की फसल के लिए 25-30 सेल्सियस तक तापमान की आवश्यकता होती है। इसके लिए ज्वार की अपेक्षा गर्म शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है।
  • वर्षा-इसकी फसल के लिए 30-60 सें०मी० तक वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
  • मिट्टी–इसकी उपज के लिए मरुस्थलीय एवं अर्द्ध-मरुस्थलीय क्षेत्रों की हल्की रेतीली मिट्टी उपयुक्त रहती है।

उत्पादक राज्य – देश में बाजरे के सिंचित क्षेत्र की दृष्टि से राजस्थान का प्रथम स्थान है और उत्पादन की दृष्टि से गुजरात का प्रथम स्थान है। अन्य उत्पादक राज्य -उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा आदि हैं।

प्रश्न 4.
भारत के भूमि संसाधनों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भू-उपयोग संसाधनों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
भूमि एक सीमित किंतु अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। इस भूक्षेत्र में मैदान, पर्वत, पठार, वन, नदियाँ तथा अन्य जलीय इकाइयों को सम्मिलित किया जाता है। जीव-जंतु इस पर अपना जीवनयापन करते हैं। भूमि पर रहते हुए मानव अनेक प्रकार की सामाजिक तथा आर्थिक क्रियाएँ करता है। अनेक उद्देश्यों के लिए भूमि का उपयोग किया जाता है जिसमें आवास, परिवहन, कृषि, खनन, उद्योग आदि प्रमुख हैं।

भूमि संसाधन की वृद्धि संभव नहीं, अतः इसका उपयोग अत्यंत सावधानीपूर्वक तथा योजनाबद्ध तरीके से होना चाहिए। भारत के कल भक्षेत्र का 43% भाग मैदानी, 28% भाग पठारी तथा शेष भाग में पर्वत, पहाड़ियाँ तथा अन्य आते हैं। कुल मिलाकर समस्त भू-क्षेत्रफल का 62% भाग स्थलाकृति के विचार से काम में आने के लिए उपयुक्त है।

किसी भूभाग का उसकी उपयोगिता के आधार पर किया जाने वाला उपयोग भूमि उपयोग कहलाता है। किसी क्षेत्र का भूमि उपयोग उस क्षेत्र के भौतिक तत्त्वों; जैसे स्थलाकृति, जलवायु, मृदा तथा सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था का परिणाम होता है। किसी क्षेत्र के भूमि उपयोग से उस क्षेत्र की आर्थिक दशा का अनुमान लगाया जा सकता है।

देश के विभिन्न भागों में प्राकृतिक तथा मानवीय परिस्थितियों में भिन्नता के कारण भूमि उपयोग के विभिन्न संवर्गों के अंतर्गत क्षेत्रफल के पारस्परिक अनुपात में भी तदानुसार प्रादेशिक भिन्नता मिलती है। भू-राजस्व विभाग द्वारा अपनाए गए सामान्य भूमि उपयोग के प्रमुख संवर्गों के अंतर्गत भूमि का वितरण तथा उसका स्वरूप निम्नलिखित प्रकार से है

1. वनों के अधीन क्षेत्र भारत के लगभग 7,50,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर किसी-न-किसी प्रकार के वन फैले हुए हैं जो देश के समस्त क्षेत्रफल का लगभग 21% से कुछ ही अधिक हैं। विगत वर्षों में वनाच्छादित भूमि में काफी कमी हुई है। भारत की वन नीति के अनुसार, परिस्थिति का संतुलन बनाए रखने के लिए देश के समतल क्षेत्र में एक-तिहाई तथा पर्वतीय क्षेत्र में लगभग 66% भूभाग पर वन का होना आवश्यक है।

इस नीति के अनुसार देश में वन क्षेत्र की अत्यंत कमी है। भारत के उत्तरी-पूर्वी राज्यों; जैसे सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर, मिज़ोरम, नागालैंड एवं अण्डमान निकोबार तथा ओडिशा आदि राज्यों में वनाच्छादित भूमि अधिक है, जबकि उत्तरी मैदान के राज्यों पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में वन भूमि देश के औसत के आधे से भी कम है।

2. गैर-कृषि कार्यों में प्रयुक्त भूमि या गैर-कृषित भूमि इस संवर्ग में वह भूमि आती है जो कृषि-कार्यों के अलावा अन्य कार्यों में उपयोग आ रही है; जैसे नगरीय तथा ग्रामीण अधिवास, औद्योगिक क्षेत्र, सड़कें, रेलमार्ग, नहरें तथा अन्य अवसंरचनात्मक विकास संबंधी क्रियाएँ। भूमि उपयोग के इस संवर्ग में तेजी से वृद्धि हो रही है।

3. बंजर तथा अकृषित भूमि मरुस्थल, बंजर, पहाड़ी क्षेत्र, खड्ड, पथरीला अथवा मृदा रहित भूभाग आदि को इस संवर्ग में शामिल किया जाता है। यद्यपि किसी भी प्रकार से यह भूमि कृषि योग्य नहीं बनाई जा सकती, परंतु इसे गैर-कृषि कार्यों के लिए तैयार किया जा रहा है, जिसके फलस्वरूप भारत में यह भूमि कम हो रही है।

4. परती भूमि-यह वह भूमि है जिसे एक लंबे कृषि उपयोग के पश्चात् कुछ समय के लिए खाली छोड़ दिया जाता है। खाली छोड़ने से इस भूमि की उपजाऊ शक्ति तथा नमी आदि में वृद्धि होती है, परती भूमि कहलाती है। यह भी दो प्रकार की होती है
(i) वर्तमान परती भूमि-इस संवर्ग में उस कृषि भूमि को शामिल किया जाता है जिसे पिछले एक अथवा उससे कम समय से कृषि के उपयोग में नहीं लिया गया हो। बीच-बीच में भूमि को परती रखने की विधि से भूमि की क्षीण हुई पौष्टिकता तथा उर्वरकता प्राकृतिक रूप से बनी रहती है।

(ii) पुरातन परती भूमि-इस संवर्ग में उस कृषि योग्य भूमि को सम्मिलित किया जाता है जो एक वर्ष से अधिक किंतु पांच वर्षों से कम समय तक कृषि रहित रहती है। इस प्रकार भूमि को इतने लंबे समय तक कृषिविहीन रखने के अनेकों कारण हैं।

5. निवल बोया क्षेत्र-वह क्षेत्र या भूमि जिस पर फसलें उगाई व काटी जाती हैं, निवल बोया क्षेत्र कहलाता है।

6. परती भूमि के अलावा अन्य अकृषित भूमि-न तो इस भूमि पर कृषि अथवा कृषि कार्य किए जाते हैं न ही इस भूमि को परती भूमि में शामिल किया जा सकता है। इसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित तीन संवर्ग शामिल हैं

  • स्थाई चरागाह तथा अन्य गोचर भूमि
  • विविध वृक्षों तथा कुंजों के अधीन भूमि
  • कृषि योग्य बंजर भूमि।

प्रश्न 5.
चावल उगाने के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए तथा भारत में इसके उत्पादन एवं वितरण का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में चावल की कृषि का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में चावल की कृषि के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन करते हुए इसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
चावल एक उष्ण आर्द्र कटिबंधीय फसल है। यह भारत की मुख्य खाद्य फसल है। विश्व में इसके उत्पादन में भारत का चीन के बाद दूसरा स्थान है। यह देश के कुल बोए क्षेत्र के एक-चौथाई भाग पर बोया जाता है। दक्षिणी और पूर्वी भागों के अधिकांश निवासियों का मुख्य भोजन चावल है।

रूसी विद्वान वेविलोव के अनुसार चावल का मूल स्थान भारत है, यहाँ से इसका प्रसार पूर्व व चीन की ओर हुआ। वैदिक काल से चावल भारत में धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यों में उपयोग किया जा रहा है।

भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions)-इसकी उपज के लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएँ अनुकूल हैं-
1. तापमान-चावल की बुआई के समय 20° – 21° सेंग्रे०, बढ़ने के समय 22° – 25° सेंग्रे० और पकते समय 27° सेंग्रे० तापमान की आवश्यकता होती है। यही मौसम पौधे के विकास के लिए उपयुक्त है।

2. जल व वर्षा-चावल एक अंकुरित पौधा होने के कारण इसके बोते समय खेत में लगभग 20-30 सें०मी० गहरा जल भरा होना चाहिए। इसकी फसल के समय 100-200. सें०मी० वर्षा होनी चाहि वर्षा कम होती है वहाँ पानी की पूर्ति सिंचाई द्वारा की जाती है।

3. मिट्टी-चावल की कृषि के लिए चिकनी, दोमट मृदा बहुत अच्छी होती है क्योंकि इसमें अधिक समय तक नमी धारण ‘करने की शक्ति होती है और क्षारयुक्त मृदाओं को भी सहन कर सकता है। भारत के डेल्टाई व तटवर्ती भाग इसकी खेती के लिए बहुत उत्तम हैं।

4. भूमि या धरातल-चावल की कृषि के लिए भूमि समतल या हल्के ढाल वाली होनी चाहिए। समतल भूमि में पानी रोकने के लिए मेढ़बंदी करनी पड़ती है। पहाड़ी इलाकों में सीढ़ीदार खेत बनाए जाते हैं।

5. श्रम चावल की कृषि में मशीनी शक्ति की बजाय मानवीय शक्ति की अधिक आवश्यकता होती है, इसलिए श्रम सस्ता होना चाहिए। इसमें ज्यादातर काम हाथों से किया जाता है।

उत्पादन (Production) – चावल के उत्पादन में भारत का विश्व में चीन के बाद दूसरा स्थान है। भारत में कल कृषित भूमि के लगभग 25% भाग पर चावल पैदा होता है। भारत विश्व का लगभग 22% चावल उत्पन्न करता है। भारत की कुल कृषि-भूमि के 23% भाग पर तथा खाद्यान्नों के क्षेत्र के 33.6% भाग पर चावल की खेती की जाती है। चावल के कृषित क्षेत्र का लगभग 47% भाग सिंचित है। 2015-16 में चावल उत्पादन क्षेत्र 434.99 लाख हैक्टेयर था जो 2017-18 में बढकर 437.89 लाख हैक्टेयर हो गया है।

देश में 104.41 मिलियन टन का उत्पादन हुआ जो 2017-18 में बढ़कर 112.91 मिलियन टन हो गया। 2018-19 में चावल का उत्पादन 116.50 मिलियन टन हुआ जो अब तक का रिकॉर्ड है। 2019-20 के दौरान चावल का उत्पादन लगभग 117.40 मिलियन टन होने का अनुमान है।

वितरण (Distribution) – भारत में बोई गई भूमि के अंतर्गत सबसे अधिक क्षेत्रफल चावल का है। भारत के ऊंचे भागों को छोड़कर समस्त भारत में यदि जल उपलब्ध हो तो कृषि की जा सकती है। भारत के मुख्य उत्पादक क्षेत्र उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, पंजाब, मध्य प्रदेश आदि हैं। कई भागों में चावल वर्ष में दो बार उगाया जाता है। गंगा-सतलुज मैदान इसका प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है।
1. पश्चिम बंगाल-पश्चिम बंगाल में चावल का उत्पादन सबसे अधिक होता है। इस राज्य की तीन-चौथाई कृषि भूमि पर देश का 14% से अधिक चावल पैदा होता है। उत्पादन की दृष्टि से इसका भारत में प्रथम स्थान है। जलपाईगुड़ी, बाँकुड़ा, मिदनापुर, पश्चिमी दीनाजपुर, बर्दमान, दार्जिलिंग आदि में चावल का उत्पादन होता है। यहाँ कई क्षेत्रों में चावल की कृषि वर्ष में तीन बार की जाती है जिन्हें अमन, ओस तथा ब्योरो कहा जाता है।

2. उत्तर प्रदेश-देश में चावल के उत्पादन में उत्तर प्रदेश का दूसरा स्थान है। यहाँ देश का लगभग 12% चावल उत्पन्न होता है। प्रमुख उत्पादक जिलों में सहारनपुर, देवरिया, लखनऊ, गोंडा, बलिया, पीलीभीत, गोरखपुर आदि हैं। हर वर्ष इसके कुल उत्पादन में उतार-चढ़ाव होता रहता है।

3. आंध्र प्रदेश-यह राज्य भारत का लगभग 11% चावल पैदा करता है। यहाँ कृष्णा और गोदावरी नदियों के डेल्टाई और निकटवर्ती तटीय मैदानी क्षेत्रों में चावल की पैदावार अच्छी होती है।

4. पंजाब-पंजाब में पिछले कुछ सालों में गेहूँ की तुलना में चावल का उत्पादन बढ़ा है। हरित क्रांति के बाद चावल उत्पादन में देश में सबसे ज्यादा वृद्धि यही दर्ज की गई। सन् 2011-12 में पंजाब में लगभग 108.3 लाख टन चावल पैदा किया गया था। होशियारपुर, गुरदासपुर, अमृतसर, जालंधर, कपूरथला, लुधियाना आदि पंजाब के प्रमुख चावल उत्पादक जिले हैं।

5. बिहार-बिहार में वर्ष में चावल की दो फसलें बोई जाती हैं। यहाँ लगभग 40% सिंचित कृषि पर चावल की पैदावार होती है। यहाँ के प्रमुख उत्पादक जिले हैं सारन, चम्पारन, गया, दरभंगा, मुंगेर, पूर्णिया आदि।
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि 3

6. तमिलनाडु-चिंगलेपुर, दक्षिणी अर्काट, नीलगिरि, रामनाथपुरम्, तंजावूर, कोयम्बटूर, सेलम आदि जिलों में चावल पैदा किया जाता है। कावेरी नदी का डेल्टा इसका प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है। राज्य का 25% चावल अकेला तंजावूर जिला पैदा करता है।

7. ओडिशा इस राज्य में भारत का लगभग 6-7% चावल पैदा किया जाता है। कटक, पुरी, सम्बलपुर, बालासोर, मयूरभंज .. आदि जिलों में इसका उत्पादन होता है। कटक में तो भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान स्थित है।

8. मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़-रायपुर, जबलपुर, बस्तर, दुर्ग, गोदिया, देवास आदि जनपदों में चावल की कृषि की जाती है। यहाँ भारत का लगभग 5-7% चावल पैदा होता है। नर्मदा नदी, ताप्ती नदी की घाटियाँ और छत्तीसगढ़ का मैदान चावल की कृषि के लिए बहुत उपयोगी है।

9. अन्य राज्य–अन्य उत्पादक राज्यों में महाराष्ट्र, असम, कर्नाटक, हरियाणा, राजस्थान, गोवा, मणिपुर तथा केरल प्रमुख हैं। हरियाणा में अम्बाला, कुरुक्षेत्र, करनाल, कैथल, जींद मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं।

प्रश्न 6.
गेहूँ की कृषि के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाओं का वर्णन करें। भारत में इसके उत्पादन व वितरण की व्याख्या करें।
अथवा
भारत में गेहूँ की कृषि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में गेहूँ चावल के बाद अन्य प्रमुख खाद्यान्न फसल है। इसकी देश की कुल 14% भाग पर खेती की जाती है। यह मुख्यतः शीतोष्ण कटिबंधीय फसल है इसे शरद् अर्थात् खरीफ ऋतु में बोया जाता है। इस फसल का 85% क्षेत्र भारत के उत्तरी मध्य भाग तक केंद्रित है।

भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions)-भौगोलिक दशाएँ निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती हैं-
1. तापमान-गेहूँ की कृषि के लिए अधिक तापमान एवं वर्षा की आवश्यकता नहीं होती। इसको ते समय औसत तापमान 10° सेंटीग्रेड और बढ़ते व पकते समय 15°-25° सेंटीग्रेड तक होना चाहिए।

2. वर्षा इसकी खेती के लिए वार्षिक वर्षा 50-75 सें०मी० तक होनी चाहिए। अधिक वर्षा इसकी खेती के लिए नुकसानदायक है। लेकिन पौधों की वृद्धि के लिए मृदा में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।

3. मिट्टी-इसको उगाने के लिए जलोढ़, दोमट व चिकनी मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसे काली मिट्टी में भी उगाया जा सकता है।

4. भूमि या धरातल-इसकी खेती के लिए समतल तथा लगातार उतार-चढ़ाव वाले मैदानी भाग उपयुक्त हैं।

5. श्रम विभिन्न कार्यों हेतु सस्ते श्रम की आवश्यकता होती है, लेकिन गेहूँ की कृषि यांत्रिक होने के कारण अब अधिक श्रम की आवश्यकता नहीं है।

उत्पादन (Production) – गेहूँ की कृषि में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। भारत विश्व के कुल गेहूँ क्षेत्र के लगभग 12% एवं कुल उत्पादन का लगभग 11.7% उत्पादन करता है। देश के कुल बोए क्षेत्र के लगभग 14% भाग पर गेहूँ की कृषि की जाती हैं। 2003-04 में देश में गेहूँ का उत्पादन लगभग 72.16 मिलियन टन था। 2015-16 में देश में उत्पादन क्षेत्र 304.18 लाख हैक्टेयर था जो 2017-18 में घटकर 295.76 लाख हैक्टेयर रह गया। 2015-16 में देश में गेहूँ का उत्पादन 92.29 मिलियन टन था जो र 99.70 मिलियन टन हुआ। 2018-19 में देश में गेहूँ का कुल उत्पादन 103.6 मिलियन टन हुआ। कृषि मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2019-20 के दौरान देश में गेहूँ का कुल उत्पादन 106.2 मिलियन टन होने का अनुमान है।

वितरण (Distribution) – भारत में सबसे ज्यादा गेहूँ की कृषि उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा तथा मध्य प्रदेश में की जाती है। यहाँ देश का तीन-चौथाई भाग गेहूँ उत्पन्न होता है। इनके अलावा राजस्थान, बिहार एवं उनके निकटवर्ती क्षेत्रों में गेहूँ की अच्छी कृषि की जाती है।
1. उत्तर प्रदेश गेहूँ के उत्पादन में उत्तर प्रदेश का देश में प्रथम स्थान है। गंगा, घाघरा, दोआब यहाँ के महत्त्वपूर्ण उत्पादक क्षेत्र हैं। इस राज्य के मुख्य उत्पादक जिले मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, रामपुर, बुलंदशहर, इटावा, कानपुर आदि हैं। उत्तर प्रदेश में गंगा-यमुना दोआब तथा गंगा-घाघरा दोआब गेहूँ की खेती के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ राज्य का 75% गेहूँ पैदा होता है।

2. पंजाब हरित क्रांति के पश्चात् से पंजाब में गेहूँ की कृषि में बहुत उन्नति हो रही है। गेहूँ की कृषि अब पंजाब की अर्थव्यवस्था का महत्त्वपूर्ण अंग बन गई है। गेहूँ के उत्पादन में इस राज्य का भारत में दूसरा स्थान है। यहाँ कुल कृषि भूमि के 30% भाग पर गेहूँ की कृषि की जाती है। इसके मुख्य उत्पादक जिले अमृतसर, लुधियाना, पटियाला, संगरूर, जालंधर, भटिण्डा, फिरोजपुर हैं।

3. मध्य प्रदेश-गेहूँ उत्पादन में मध्य प्रदेश का देश में तीसरा स्थान है। राज्य के मालवा क्षेत्र में उपजाऊ मिट्टी और नर्मदा घाटी की गहरी कछारी मिट्टी होने के कारण गेहूँ की अच्छी कृषि की जाती है। ग्वालियर, उज्जैन, भोपाल, जबलपुर आदि जिले प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं।

4. हरियाणा सिंचाई सुविधाओं के कारण यहाँ भी पंजाब की तरह प्रति हैक्टेयर उपज अधिक है। इस राज्य के मुख्य उत्पादक जिले रोहतक, हिसार, करनाल, कुरुक्षेत्र, पानीपत, महेंद्रगढ़, रेवाड़ी हैं। देश के कुल उत्पादन में इस राज्य का महत्त्वपूर्ण योगदान है।

5. राजस्थान राजस्थान की कुल भूमि के लगभग 18% भाग पर गेहूँ की खेती की जाती है। इन्दिरा गाँधी नहर बनने के बाद यहाँ गेहूँ की उपज में वृद्धि हुई है। श्रीगंगानगर, अलवर, भरतपुर, कोटा, जयपुर, भीलवाड़ा, सवाई, माधोपुर आदि यहाँ के प्रमुख गेहूँ उत्पादक जिले हैं।

6. बिहार-बिहार के उत्तरी मैदानी भागों में गेहूँ उत्पादन किया जाता है। इस राज्य की कृषीय भूमि के 14% भाग पर गेहूँ की खेती होती है। यहाँ के प्रमुख गेहूँ उत्पादक जिले चम्पारन, दरभंगा, पटना, सहरसा, गया, मुजफ्फरपुर व शाहबाद इत्यादि हैं।
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7. अन्य राज्य-भारत के अन्य गेहूँ उत्पादक राज्यों में छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और कर्नाटक आदि हैं। इन राज्यों में समतल उपजाऊ भू-भागों में गेहूँ की कृषि की जाती है।

प्रश्न 7.
गन्ने की कृषि के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाओं का वर्णन करें। भारत में इसके उत्पादन व वितरण की व्याख्या करें।
अथवा
भारत में गन्ने की फसल के लिए आवश्यक परिस्थितियों का वर्णन करते हुए इसके उत्पादन एवं वितरण का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गन्ने के उत्पादन में भारत का संसार में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। हमारा देश संसार के कुल उत्पादन का लगभग एक-चौथाई भाग पैदा करता है। गन्ना एक उष्ण कटिबंधीय फसल है और यह देश की सबसे महत्त्वपूर्ण नकदी फसल है। इस फसल की बुआई का समय फरवरी से मई तथा कटाई का समय नवम्बर से मार्च तक का है। कच्चे माल के रूप में कई उद्योगों में इसका प्रयोग होता है; जैसे चीनी उद्योग, गत्ता उद्योग आदि।

भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions)-गन्ने की कृषि के लिए जरूरी भौगोलिक दशाएँ निम्नलिखित हैं-
1. तापमान-गन्ने का वर्धनकाल लगभग 1 वर्ष होता है। इसके लिए 20° से 30° सेल्सियस तापमान की आवश्यकता रहती है। 40° सेंटीग्रेड से अधिक और 15° सेंटीग्रेड से कम तापमान पर गन्ना पैदा नहीं होता। अत्यधिक सर्दी, पाला इसके लिए हानिकारक होता है।

2. वर्षा-गन्ना 100 से 150 सें०मी० वर्षा वाले क्षेत्रों में खूब उगाया जाता है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में यह सिंचाई की सहायता से उगाया जाता है। इसकी कटाई के समय शुष्क मौसम होना चाहिए।

3. मिट्टी-गहरी दोमट और लावायुक्त काली मिट्टी इसके लिए उपयुक्त होती है। मिट्टी में चूने की मात्रा होनी चाहिए। बाढ़ के मैदानों तथा डेल्टाई प्रदेशों में यह खब पैदा होता है। इसके लिए बड़ी मात्रा में खाद की जरूरत रहती है, क्योंकि यह मिट्टी के पोषक तत्त्वों को अधिक समाप्त करता है।

4. भूमि-गन्ने की खेती के लिए मैदानी भाग उपयुक्त होते हैं, क्योंकि यहाँ परिवहन के सस्ते साधन सुलभ होते हैं तथा मशीनों का भी इसकी कटाई में प्रयोग हो सकता है।

5. श्रम गन्ने की खेती का अधिकांश काम हाथों से होता है। अतः सस्ते श्रम की जरूरत पड़ती है।

उत्पादन (Production)-भारत में उत्पादित गन्ने का 40% गुड़ और 50% चीनी बनाने में प्रयुक्त होता है। भारत में गन्ने। की प्रति हैक्टेयर उपज बहुत कम है। इसका कारण यह है कि भारत का अधिकांश गन्ना उत्तर भारत में पैदा किया जाता है, जबकि इसके लिए भौगोलिक दशाएँ दक्षिण भारत में अधिक पाई जाती हैं। विश्व में गन्ना उत्पादन में भारत का दूसरा स्थान है।

यहाँ लगभग 22% गन्ना पैदा किया जाता है। 2015-16 में देश में गन्ने की खेती या उत्पादन क्षेत्र 49.27 लाख हैक्टेयर और 2017-18 में 47.32 लाख हैक्टेयर था। सन् 2015-16 में देश में गन्ने का उत्पादन 348.45 मिलियन टन और 2017-18 में 376.90 मिलियन टन था। वर्ष 2018-19 के दौरान गन्ने का उत्पादन 380.83 मिलियन टन अनुमानित है।

वितरण (Distribution)-भारत का लगभग 75% गन्ना उत्तरी मैदानों में पैदा होता है। भारत में प्रमुख गन्ना उत्पादक क्षेत्र हैं-
1. उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश भारत का लगभग 40% गन्ना पैदा करता है। इसके मुख्य उत्पादक जिले सहारनपुर, मुरादाबाद, मेरठ, फैजाबाद, बुलंदशहर, शाहजहाँपुर, बलिया, आजमगढ़ और गोरखपुर आदि हैं। यहाँ के तराई क्षेत्र और दोआब क्षेत्र में गन्ने की अच्छी पैदावार होती है।

2. महाराष्ट्र महाराष्ट्र देश का दूसरा सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य है। यहाँ उच्च कोटि का गन्ना पैदा होता है और मुख्य उत्पादक जिले नासिक, पुणे, शोलापुर, रत्नागिरि तथा अहमदनगर, सतारा आदि हैं।

3. कर्नाटक यहाँ गन्ने की कृषि नदी-घाटियों में की जाती है। यह राज्य भारत का लगभग 13% गन्ना पैदा करता है। यहाँ के महत्त्वपूर्ण जिले मैसूर, कोलार, रायचूर, बेलारी, तुमकुर तथा बेलगाँव आदि हैं।

4. तमिलनाड-तमिलनाड़ कल उत्पादन और प्रति हैक्टेयर उत्पादन की दृष्टि से देश में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यहाँ देश का लगभग 10% गन्ना पैदा होता है। यहाँ के मुख्य उत्पादक जिले कोयम्बटूर, मदुरई, उत्तरी अर्काट, दक्षिणी अर्काट तथा चेन्नई आदि हैं।

5. आंध्र प्रदेश-यहाँ गन्ने की कृषि गोदावरी तथा कृष्णा नदियों के डेल्टाई क्षेत्रों में की जाती है। यहाँ के मुख्य उत्पादक जिले पश्चिमी गोदावरी, श्री काकुलम, निजामाबाद, विशाखापट्टनम तथा चित्तूर आदि हैं।

6. पंजाब-पंजाब की मिट्टी उपजाऊ है। यह राज्य देश का लगभग 2% गन्ना पैदा करता है। यहाँ के मुख्य उत्पादक जिले जालंधर, अमृतसर, फिरोजपुर तथा गुरदासपुर आदि हैं।

7. हरियाणा-पंजाब की तरह हरियाणा में भी उपजाऊ मृदा और सिंचाई साधनों की सुविधाओं के कारण गन्ना क्षेत्र, उत्पादन और प्रति हैक्टेयर में निरंतर वृद्धि हो रही है। यहाँ के मुख्य उत्पादक जिले अम्बाला, करनाल, रोहतक, सोनीपत, पानीपत और यमुनानगर आदि हैं।
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि 5
8. गुजरात-सूरत, जामनगर, जूनागढ़, राजकोट तथा भावनगर गुजरात के प्रमुख गन्ना उत्पादक जिले हैं।

9. बिहार-निम्न गंगा के मैदान में स्थित होने के कारण बिहार में गन्ने की खेती के लिए सभी अनुकूल दशाएँ विद्यमान हैं। गोपालगंज, सिवान, बक्सर, रोहतास, गया, औरंगाबाद, सारन व वैशाली बिहार के प्रमुख गन्ना उत्पादक जिले हैं।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि

प्रश्न 8.
कपास की कृषि के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाओं का वर्णन करें। भारत में कपास के उत्पादन व वितरण की व्याख्या करें।
अथवा
भारत में कपास की कृषि का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में कपास की फसल के लिए आवश्यक भौगोलिक परिस्थितियों और वितरण का वर्णन कीजिए। अथवा भारत में कपास की खेती के लिए तीन भौगोलिक दशाओं और तीन उत्पादक राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर:
कपास के पौधे का मूल स्थान भारत है। यहाँ प्राचीनकाल से लोग सूती कपड़ों का इस्तेमाल कर रहे हैं। ऋग्वेद में भी कई जगहों पर कपास के बारे में वर्णन मिलता है। कपास एक उष्ण कटिबंधीय फसल है जो देश के अर्ध-शुष्क भागों में खरीफ ऋतु में बोई जाती है।

भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions)-कपास की कृषि के लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएँ आवश्यक हैं-
1. तापमान-कपास के लिए ऊँचे तापमान की आवश्यकता रहती है। इसके लिए 20° से 25° सेल्सियस तापमान उपयुक्त रहता है। पाला इसके लिए हानिकारक होता है।

2. वर्षा कपास की खेती के लिए 50 से 80 सें०मी० तक वर्षा अधिक उपयोगी रहती है। कपास पर फूल आने के समय आकाश बादल रहित होना चाहिए। इसके पकते समय शुष्क मौसम होना चाहिए। कम वर्षा वाले क्षेत्र में सिंचाई की सहायता से इसे उगाया जाता है।

3. मिट्टी-जल को अधिक सोख लेने वाली दोमट मिट्टी इसके लिए उपयुक्त होती है। मिट्टी में चूने के अंश होने चाहिएँ। इसकी उपज के लिए लावा से बनी मिट्टी सर्वोत्तम होती है। कपास की खेती के लिए गहरी एवं मध्यम काली मिट्टी आदर्श मानी जाती है। देश में इसकी उपज गंगा मैदान की काँप मिट्टी और लाल या लैटेराइट मिट्टी में भी की जाती है।

4. श्रम कपास की खेती के लिए सस्ते तथा कुशल श्रम की आवश्यकता होती है। कपास डोंडियों से इसको चुनने का काम हाथों से ही किया जाता है।

उत्पादन (Production) – भारत का कपास के उत्पादन में विश्व में चौथा स्थान है। यह विश्व के समस्त कपास उत्पादन के 8.3% भाग का उत्पादन करता है। देश के समस्त बोए क्षेत्र के लगभग 4.7% क्षेत्र पर कपास बोया जाता है। भारत दो प्रकार की छोटे रेशे वाली (भारतीय) और लंबे रेशे वाली (अमेरिकी) कपास का उत्पादन करता है। अमेरिकी कपास को देश के उत्तर:पश्चिमी भाग में ‘नरमा’ के नाम से जाना जाता है। भारत की लगभग 60% से अधिक कपास दक्षिण भारत में उगाई जाती है।

2015-16 में देश में कपास की खेती उत्पादन क्षेत्र 122.92 लाख हैक्टेयर था और 2017-18 में यह 124.29 लाख हैक्टेयर हो गया। 2019-20 में कपास का उत्पादन क्षेत्र 127.67 लाख हैक्टेयर हो गया। 2015-16 में कपास का उत्पादन 30.01 मिलियन गाँठ था और 2017-18 में यह 34.89 मिलियन गाँठ हो गया। 2019-20 के दौरान कपास का उत्पादन 36.0 मिलियन गाँठ होने की उम्मीद की जा रही है।

1. महाराष्ट्र महाराष्ट्र में देश की लगभग 21% कपास की पैदावार होती है। यहाँ लम्बे रेशे वाली कपास भी उगाई जाती है। यहाँ लावा निर्मित मिट्टी कपास की कृषि के लिए बहत उपयुक्त है। यहाँ के मुख्य कपास उत्पादक जिले नागपर, अमरावती, अंकोला, जलगाँव, वर्धा, शोलापुर और नांदेड़ आदि हैं।

2. गुजरात यह राज्य देश की लगभग 35% कपास का उत्पादन करता है। यहाँ के महत्त्वपूर्ण जिले अहमदाबाद, बड़ौदा, सूरत, साबरमती, भावनगर, राजकोट, पंचमहल, भड़ौंच तथा सुरेंद्रनगर आदि हैं।

3. पंजाब-पंजाब में दोमट तथा उपजाऊ मिट्टी पाई जाती है तथा सिंचाई की सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं। यहाँ के महत्त्वपूर्ण उत्पादक जिले फिरोजपुर, भटिण्डा, लुधियाना, अमृतसर तथा संगरूर आदि हैं। .

4. हरियाणा-पश्चिमी हरियाणा में बलुई मिट्टी में सिंचाई की व्यवस्था हो जाने से यहाँ कपास की कृषि में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। हिसार और सिरसा हरियाणा की लगभग 80 प्रतिशत कपास पैदा करते हैं। जींद, फतेहाबाद और भिवानी कपास के अन्य उत्पादक जिले हैं।

5. कर्नाटक यहाँ भारत की लगभग 4% कपास पैदा होती है। यहाँ भी काली मिट्टी और लाल मिट्टी का कुछ क्षेत्र है जो कपास के लिए उपयुक्त है। महत्त्वपूर्ण उत्पादक जिले धारवाड़, बेलगाँव, बीजापुर तथा बेलारी आदि हैं।

6. राजस्थान-सिंचाई की सहायता से यहाँ कपास पैदा की जाती है। यहाँ के मुख्य उत्पादक जिले भीलवाड़ा, अलवर, श्री गंगानगर, बूंदी, टोंक, कोटा और झालावाड़ आदि हैं।

7. आंध्र प्रदेश-सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि तथा सरकार की अनुकूल नीतियों के कारण आंध्र प्रदेश में कपास के उत्पादन स वर्ष अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। यहाँ छोटे तथा लम्बे दोनों प्रकार के रेशों वाली कपास उगती है। यहाँ के प्रमुख कपास उत्पादक जिले गुंटूर, कृष्णा, पश्चिमी गोदावरी व कर्नूल आदि हैं।

8. मध्य प्रदेश मध्य प्रदेश के पश्चिमी और दक्षिणी भाग कपास की खेती के लिए उपयुक्त हैं। यहाँ के मुख्य उत्पादक जिले हैं-देवास, छिदवाड़ा, खलाम, पश्चिमी नीमाड़ और धार आदि।

9. अन्य उत्पादक क्षेत्र अन्य उत्पादक राज्य तमिलनाडु, केरल, बिहार, ओडिशा, असम आदि हैं जो सभी मिलकर देश की 4% से अधिक कपास पैदा करते हैं।
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि 6

प्रश्न 9.
हरित क्रांति के भारतीय समाज पर पड़े सामाजिक और आर्थिक प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
कृषि क्षेत्र में नई कृषि नीति और तकनीकी परिवर्तनों के कारण उत्पादन में होने वाली वृद्धि को ‘हरित क्रांति’ कहते हैं। यह भारतीय कृषि में उन्नति का प्रतीक है। हरित क्रांति के भारतीय समाज पर निम्नलिखित सामाजिक व आर्थिक प्रभाव पड़े हैं
1. कृषि उत्पादन में वृद्धि हरित क्रांति के फलस्वरूप कृषि उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई है। हरित क्रांति के कारण ही देश खाद्यान्नों के उत्पादन में आत्म-निर्भर बन सका है।

2. कृषि का मशीनीकरण हरित क्रांति के परिणामस्वरूप ही भारतीय कृषि का मशीनीकरण हो रहा है। जुताई से लेकर गहाई तक के लगभग सारे कार्यों का पूरी तरह मशीनीकरण हो चुका है।

3. सुनिश्चित सिंचाई विद्युत् चालित नलकूपों द्वारा सिंचाई को सुनिश्चित कर लिया गया है। अब पूरा साल किसानों को केवल वर्षा की ओर नहीं देखना पड़ता। इन नलकूपों द्वारा कुल सिंचित क्षेत्र में भी अत्यधिक मात्रा में वृद्धि हुई है।

4. ग्रामीण आय में वृद्धि हरित क्रांति के फलस्वरूप कृषि उत्पादन में वृद्धि से ग्रामीण लोगों की आय में अधिक मात्रा में वृद्धि हुई है।

5. ग्रामीण जीवन-स्तर में सुधार हरित क्रांति के कारण लोगों की आय में काफी वृद्धि हुई है, जिससे ग्रामीण जीवन में बहुत ज्यादा सुधार हुआ है। वे अब पक्के, अच्छे, साफ-सुथरे मकानों में रहते हैं। उनमें साक्षरता भी बढ़ी है।

6. कृषि का व्यवसायीकरण भारतीय कृषि अब निर्वाह कृषि का रूप त्यागकर व्यापारिक कृषि बन गई है। किसानों की व्यापारिक फसलों के उत्पादन में काफी रुचि बढ़ी है। उनका उत्पादन सरकार की विभिन्न एजेंसियों द्वारा खरीद लिया जाता है।

7. किसानों के दृष्टिकोण में परिवर्तन हरित क्रांति के कारण किसानों के दृष्टिकोण में महान परिवर्तन आया है। अब किसान कृषि की नई तकनीक अपनाने लगे हैं। अच्छी उपज देने वाले बीजों का ज्यादा-से-ज्यादा प्रयोग होने लगा है। किसानों ने फसलों के वैज्ञानिक हेर-फेर को अपना लिया है।

8. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हरित क्रांति के फलस्वरूप प्रति व्यक्ति आय में काफी वृद्धि हुई है।

9. कीटनाशकों का प्रयोग हरित क्रांति के कारण कृषि में उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग में काफी वृद्धि हुई है।

प्रश्न 10.
‘भारतीय कृषि निर्वाह का स्वरूप त्यागकर व्यापारिक कृषि बन गई है’ इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पहले किसानों की निर्धनता, साधारण खादों और बीजों की पुरानी किस्मों का उपयोग, सिंचाई की सुविधाओं का अभाव और जोतों के छोटे आकार के कारण उत्पादन बहुत कम होता था, जो उत्पादन होता था, वह उसके परिवार में ही खप जाता था। परंतु जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के कारण अब कृषि उत्पादों की माँग बढ़ रही है। इसलिए कृषि अपने निर्वाह स्वरूप को त्यागकर व्यापारिक कृषि बन रही है। इसके बारे में अनेक संकेत मिल रहे हैं।
1. जोतों के आकार में परिवर्तन-चकबंदी ने छोटी जोतों को बड़ी जोतों में बदल दिया है। छोटी जोतों में भारी कमी हुई है। बड़ी जोतें व्यापारिक कृषि के लिए उपयुक्त होती हैं।

2. भूमि संबंधी अधिकार-सरकार ने जमींदारी प्रथा का उन्मूलन करके किसानों को भूमि संबंधी अधिकार दे दिए। इससे कृषि में उनकी रुचि बढ़ गई और अधिक उत्पादन होने लगा।

3. कृषि का मशीनीकरण-कृषि-कार्यों में पशुओं का स्थान मशीनों ने ले लिया। जुताई, बुआई, कटाई, सिंचाई आदि का मशीनीकरण हो गया है। कृषि के आधुनिक उपकरणों, ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, ट्रैक्टर-ट्रॉली, जलपंप और स्प्रिंकलर आदि ने न केवल उपज में वृद्धि की है बल्कि समय की भी बहुत बचत की है।

4. नए बीजों और उर्वरकों का उपयोग–अब अधिक उपज देने वाले नए-नए बीजों का प्रयोग किया जा रहा है। अब उर्वरकों के उपयोग में वृद्धि के कारण अधिक उपज होने लगी।

5. कृषि में वैज्ञानिक तकनीक का प्रयोग-व्यापारिक कृषि के लिए वैज्ञानिक तकनीक की जानकारी और उसका प्रयोग जरूरी होता है। इस तकनीक के प्रयोग में काफी वृद्धि हुई है। यही व्यापारिक कृषि का संकेत है। कृषि के नए-नए ढंगों ने उपज में काफी ज्यादा वृद्धि की है।

6. कीटनाशकों का प्रयोग फसलों को खरपतवार, फफूंदी और अनेक प्रकार के कीड़ों से बचाने के लिए आजकल कीटनाशक आदि दवाइयों का प्रयोग किया जा रहा है।

7. सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीद-अब मंडियों में कृषि उत्पादन की खरीद सरकारी एजेंसियों द्वारा की जाती है। इससे किसानों को अपनी उपज के ठीक दाम मिलते हैं। यह कदम कृषि के व्यापारिक स्वरूप की ओर संकेत है।

प्रश्न 11.
भारतीय कृषि की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय कृषि निम्नलिखित समस्याओं से ग्रस्त है
1. अनियमित व अनिश्चित मानसून पर निर्भरता भारतीय कृषि मानसूनी वर्षा पर निर्भर है। भारत में कृषि क्षेत्र का केवल एक-तिहाई भाग ही सिंचित है। शेष क्षेत्र मानसूनी वर्षा पर निर्भर है। दक्षिणी-पश्चिमी मानसून अनिश्चित व अनियमित होने से नहरों में जल की आपूर्ति प्रभावित होती है। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति व कम वर्षा वाले स्थानों में सूखा एक सामान्य परिघटना है।

2. निम्न उत्पादकता भारत में फसलों की उत्पादकता कम है। भारत में अधिकतर फसलें: जैसे चावल, गेहूँ. कपास व तिलहन की प्रति हैक्टेयर उपज अमेरिका, रूस, जापान से कम है। देश के विस्तृत वर्षा पर निर्भर शुष्क क्षेत्रों में अधिकतर मोटे अनाज, दालें, तिलहन की खेती की जाती है। इनकी उत्पादकता बहुत कम है।

3. छोटी जोतें भारत में छोटे किसानों की संख्या अधिक है। बढ़ती जनसंख्या के कारण खेतों का आकार और भी सिकुड़ रहा है। कुछ राज्यों में तो चकबंदी भी नहीं हुई है। विखंडित व छोटी जोतें आर्थिक दृष्टि से लाभकारी नहीं हैं।

4. भूमि सुधारों की कमी-भूमि के असमान वितरण के कारण भारतीय किसान लंबे समय से शोषण का शिकार रहे है। स्वतन्त्रता से पूर्व किसानों का बहुत शोषण हुआ। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भूमि सुधारों को प्राथमिकता दी गई, लेकिन ये सुधार पूरी तरह से फलीभूत नहीं हुए। भूमि सुधारों के लागू न होने के कारण कृषि योग्य भूमि का असमान वितरण जारी रहा जिससे कृषि विकास में बाधा रही है।

5. कृषि योग्य भूमि का निम्नीकरण-निम्नीकरण एक गंभीर समस्या है, क्योंकि इससे मृदा का उपजाऊपन कम होता है। सिंचित क्षेत्रों में यह समस्या और भी अधिक भयंकर है। कृषि भूमि का एक बड़ा भाग लवणता और मृदा क्षारता के कारण बंजर हो चुका है। कीटनाशक रसायनों के अत्यधिक प्रयोग से भी मृदा का उपजाऊपन नष्ट होता है।

6. वाणिज्यीकरण का अभाव-भारतीय किसान अपनी जीविका के लिए फसलें उगाते हैं, क्योंकि इन किसानों के पास अपनी जरूरत से अधिक फसल उत्पादन के लिए पर्याप्त भू-संसाधन नहीं है इसलिए अधिकतर किसान खाद्यान्नों की कृषि करते हैं ताकि वे अपने परिवार की जरूरतों को पूरा कर सकें। वर्तमान समय में सिंचित क्षेत्रों का कृषि का आधुनिकीकरण तथा वाणिज्यीकरण हो रहा है।

प्रश्न 12.
भारत में चाय की कृषि का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में चाय की कृषि के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन कीजिए। भारत में इसका उत्पादन और विवरण का उल्लेख करें।
अथवा
भारत में चाय की खेती के लिए तीन भौगोलिक दशाओं और तीन उत्पादक राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर:
चाय-भारत संसार की कुल उत्पादित चाय का लगभग एक-तिहाई भाग का उत्पादन करता है। संसार की उत्पादित होने वाली चाय का लगभग 21.1% भाग भारत उत्पादन करता है। चाय का पौधा झाड़ीदार होता है जिसकी कृषि बागानी कृषि कहलाती है। इसके पत्तों में थीन (Theine) नामक तत्त्व होता है जिसके इस्तेमाल से हमारे शरीर में स्फूर्ति आ जाती है। भारत में चाय के पौधे को चीन से लाया गया है। इसके पौधे को शुरू में किसी स्थान पर अंकुरित करके पर्वतीय ढलानों में प्रत्यारोपित किया जाता है। इसे डेढ़ मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। कभी-कभी इस पौधे की ऊंचाई 2 मीटर से भी ऊँची हो जाती है। समय-समय पर इसकी पत्तियों की कटाई-छटाई होती रहती है। समय पर कटाई-छटाई करने से इसका पौधा अधिक पत्तियाँ प्रदान करता है।

भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions) चाय की कृषि के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएँ निम्नलिखित हैं-
1. तापमान-चाय उष्ण एवं आर्द्र जलवायु का पौधा है। इस पौधे के लिए औसत 25° से 30° सेंग्रे० तापमान उपयुक्त रहता है। चाय के पौधों की वृद्धि के लिए अनुकूल व शुष्क हवा प्रतिकूल रहती है।

2. वर्षा-चाय के पौधे के लिए अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है। सामान्यतः इसके लिए 200 से 250 सें०मी० वर्षा उपयुक्त रहती है। बौछारों वाली वर्षा में पौधों में निरंतर नई कोपलें फूटती रहती हैं।

3. भूमि-चाय के पौधे की कृषि के लिए भूमि ढलवाँ होनी चाहिए ताकि पानी इसकी जड़ों में न ठहर सके। पहाड़ी प्रदेश इसकी कृषि के लिए उपयुक्त होते हैं। इसके लिए ऐसी उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है, जिसमें लोहे का अंश पर्याप्त मात्रा में हो और पानी सोखने की क्षमता अधिक हो।

4. श्रम-इसके लिए अधिक श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि अधिकतर कार्य हाथों से करना पड़ता है।
उत्पादन (Production)-भारत विश्व की 21.1 प्रतिशत से अधिक चाय का उत्पादन करता है। चाय-निर्यातक देशों में भारत का चीन के बाद दूसरा स्थान आता है। चाय के उत्पादन में चीन की भूमिका भी भारत के लगभग समान है। भारत में सबसे अधिक चाय की पैदावार असम में होती है। इसके बाद पश्चिम बंगाल का स्थान आता है। सन 2014-15 में देश का औसत उत्पादन 2170 कि०ग्रा० था। बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय चाय का हिस्सा कम हुआ है।

वितरण (Distribution)-भारत में चाय की खेती लगभग 16 राज्यों में की जाती है। इनमें से प्रमुख उत्पादक राज्य हैं-
1. असम यह चाय के उत्पादन में देश का सबसे बड़ा राज्य है। यहाँ देश की लगभग 53.2% चाय का उत्पादन होता है। कुल चाय-क्षेत्र का 50% भाग पाया जाता है। इस राज्य के मुख्य उत्पादक जिले शिवसागर, लखीमपुर, दरांग, नौगाँव, कामरूप, गोलपाड़ा तथा सिलचर आदि हैं। असम में कृषि पर आधारित उद्योग में चाय का प्रमुख स्थान है।
HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 5 भूसंसाधन तथा कृषि 7

2. पश्चिम बंगाल-यहाँ भारत की लगभग 22% चाय पैदा होती है तथा मुख्य उत्पादक जिले दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी तथा कूच बिहार आदि हैं। यहाँ बढ़िया किस्म की चाय पैदा की जाती है तथा देश में इसकी माँग अधिक है।

3. तमिलनाडु-यह राज्य भारत की लगभग 15% चाय का उत्पादन करता है। यहाँ नीलगिरि तथा अन्नामलाई की पहाड़ियों में चाय के बागान लगे हुए हैं। यहाँ के मुख्य उत्पादक जिले नीलगिरि, अन्नामलाई, मदुरई, कोयम्बटूर तथा कन्याकुमारी आदि हैं। नीलगिरि की चाय सर्वोत्तम मानी जाती है। इसकी माँग यूरोप में बहुत अधिक है।

4. केरल-इस राज्य में देश की लगभग 8% चाय का उत्पादन होता है।

5. यहाँ प्रमुख उत्पादक जिले पालघाट, मालापुरम, त्रिवेंद्रम, वायनाड और मालाबार आदि हैं।

6. अन्य राज्य हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, कर्नाटक, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश में चाय का उत्पादन लगभग 1.04% होता है।

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HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3

Haryana State Board HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Exercise 7.3

प्रश्न 1.
प्रत्येक चित्र में छायांकित भागों के लिए भिन्न लिखिए। क्या ये सभी भिन्न तुल्य है?
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 - 1
हल :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 - 2

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3

प्रश्न 2.
छायांकित भागों के लिए भिन्नों को लिखिए और प्रत्येक पंक्ति में से तुल्य भिन्नों को चुनिए :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 - 3
हूल :
दिये गए चित्रों में छायांकित भागों के लिए भिन्न निम्न हैं:
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 - 4
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 - 5
पंक्ति I और पंक्ति II में तुल्य भिन्नों के जोड़े : (a) → (ii), (b) → (iv), (c) → (i), (d) → (v) और (e) → (iii).

प्रश्न 3.
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 - 6
हूल :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 - 7
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 - 8

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3

प्रश्न 4.
के तुल्य वह भिन्न ज्ञात कीजिए, जिसका :
(a) हर 20 है,
(b) अंश 9 है,
(e) हर 30 है
(d) अंश 27 है।
हल :
(a) ∵ 20 ÷ 5 =4
∴ हर को 20 बनाने के लिए भिन्न \(\frac {3}{5}\) के अंश और हर में 4 से गुणा करने पर,
\(\frac{3}{5}=\frac{3 \times 4}{5 \times 4}=\frac{12}{20}\) उत्तर

(b) ∵ 9 ÷ 3 = 3
∴ अंश को 9 बनाने के लिए भिन्न \(\frac {3}{5}\) के अंश और हर में 3 से गुणा करने पर,
\(\frac{3}{5}=\frac{3 \times 3}{5 \times 3}=\frac{9}{15}\) उत्तर

(c) ∵ 30 ÷ 5 = 6
हर को 30 बनाने के लिए भिन्न \(\frac {3}{5}\) के अंश व हर में 6 से गुणा करने पर, \(\frac{3}{5}=\frac{3 \times 6}{5 \times 6}=\frac{18}{30}\) उत्तर

(d) ∵ 27 ÷ 3 = 9
अंश को 27 बनाने के लिए भिन्न \(\frac {3}{5}\) के अंश और हर में 9 से गुणा करने पर,
\(\frac{3}{5}=\frac{3 \times 9}{5 \times 9}=\frac{27}{45}\) उत्तर

प्रश्न 5.
\(\frac {36}{48}\) के तुल्य वह भिन्न ज्ञात कीजिए, जिसका :
(a) अंश 9 है
(b) हर 4 है।
हल :
(a) ∵ 36 ÷ 9 = 4
∴ अंश को 9 बनाने के लिए भिन्न \(\frac {36}{48}\) के अंश और हर में 4 से भाग करते हैं :
\(\frac{36}{48}=\frac{36 \div 4}{48 \div 4}=\frac{9}{12}\) उत्तर

(b) ∵ 48 ÷ 4 = 12
∴ हर को 4 बनाने के लिए भिन्न \(\frac {36}{48}\) के अंश और हर में 12 से भाग करते हैं:
\(\frac{36}{48}=\frac{36 \div 12}{48 \div 12}=\frac{3}{4}\) उत्तर

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3

प्रश्न 6.
जाँच कीजिए कि निम्न भिन्न तुल्य हैं या नहीं :
(a) \(\frac {5}{9}\), \(\frac {30}{54}\)
(b) \(\frac {3}{10}\), \(\frac {12}{50}\)
(c) \(\frac {7}{13}\), \(\frac {5}{11}\)
हल :
(a)
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 - 9
तिर्यक गुणा करने पर
5 × 54 = 270 और 9 × 30 = 270
∵ 270 = 270
∴ दोनों भिन्न तुल्य हैं। उत्तर

(b)
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 - 10
तिर्यक गुणा करने पर
3 × 50 = 150 और 12 × 10 = 120
150 ≠ 120
अतः \(\frac {3}{10}\) और \(\frac {12}{50}\) तुल्य भिन्न नहीं हैं। उत्तर

(c)
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 - 11
तिर्यक गुणा करने पर
7 × 11 = 77 और 13 × 5 = 65
⇒ 77 ≠ 65
\(\frac {7}{13}\) और \(\frac {5}{11}\) तुल्य भिन्न नहीं हैं। उत्तर

प्रश्न 7.
निम्नलिखित भिन्नों को उनके सरलतम रूप में बदलिए:
(a) \(\frac {48}{60}\)
(b) \(\frac {150}{60}\)
(c) \(\frac {84}{98}\)
(d) \(\frac {12}{52}\)
(e) \(\frac {7}{28}\)
हल :
(a) \(\frac {48}{60}\) को सरलतम रूप में लिखने के लिए पहले इम 48 और 60 का म.स. निकालते हैं:
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 - 12
∴ 48 = 2 × 2 × 2 × 2 × 3, 60 = 2 × 2 × 3 × 5
∴ 48 और 60 का म.स. = 2 × 2 × 3 = 12
48 48+12 4 अतः 60-60+12
अतः \(\frac{48}{60}=\frac{48 \div 12}{60 \div 12}=\frac{4}{5}\) उत्तर

(b) \(\frac {150}{60}\) को सरलतम रूप में लिखने के लिए पहले हम 150 और 60 का म.स. निकालते हैं :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 - 13
∴ 150 = 2 × 3 × 5 × 5
और 60 = 2 × 2 × 3 × 5
∴ 150 और 60 का म.स. = 2 × 3 × 5 = 30
\(\frac{150}{60}=\frac{150+30}{60 \div 30}=\frac{5}{2}\) उत्तर

(c) \(\frac {84}{98}\) को सरलतम रूप में लिखने के लिए पहले हम 84 और 98 का म.स. निकालते हैं:
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 - 14
∴ 84 = 2 × 2 × 3 × 7 और 98 = 2 × 7 × 7
∴ 84 और 98 का म.स. = 2 × 7 = 14
अतः \(\frac{84}{98}=\frac{84 \div 14}{98 \div 14}=\frac{6}{7}\) उत्तर

(d) \(\frac {12}{52}\) को सरलतम रूप में व्यक्त करने के लिए पहले हम 12 और 52 का म.स. निकालते हैं :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 - 15
∴ 12 = 2 × 2 × 3 और 52 = 2 × 2 × 13
∴ 12 और 52 का म.स. = 2 × 2 = 4
अत: \(\frac{12}{52}=\frac{12 \div 4}{52 \div 4}=\frac{3}{13}\) उत्तर

(e) \(\frac {7}{28}\) को सरलतम रूप में व्यक्त करने के लिए पहले हम 7 और 28 का म.स. निकालते हैं:
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 - 16
7 = 1 × 7 और 28 = 2 × 2 × 7
∴ 7 और 28 का स.स. = 7
अतः \(\frac{7}{28}=\frac{7 \div 7}{28 \div 7}=\frac{1}{4}\) उत्तर

प्रश्न 8.
रमेश के पास 20 पेंसिल थीं। शीलू के पास 50 पेंसिल और जमाल के पास 80 पेंसिल थीं। 4 महीने के बाद रमेश ने 10 पेंसिल प्रयोग कर ली,शीलू ने 25 पेंसिल प्रयोग कर ली और जमाल ने 40 पेंसिल प्रयोग कर लीं। प्रत्येक ने अपनी पेंसिलों की कौन-सी भिन्न प्रयोग कर ली? जाँच कीजिए कि प्रत्येक ने अपनी पेंसिलों की समान भिन्न प्रयोग की है।
हल :
रमेश, शीलू और जमाल द्वारा प्रयोग की जाने वाली पेंसिलों के भाग क्रमशः
\(\frac {10}{20}\), \(\frac {25}{50}\) और \(\frac {40}{80}\) हैं।
यहाँ \(\frac{10}{20}=\frac{10 \div 10}{20 \div 10}=\frac{1}{2}\)
\(\frac{25}{50}=\frac{25 \div 25}{50 \div 25}=\frac{1}{2}\)
\(\frac{40}{80}=\frac{40 \div 40}{80 \div 40}=\frac{1}{2}\)
ये सभी भिन्न बराबर हैं, अतः प्रत्येक ने अपनी पेंसिलों की समान भिन्न प्रयोग में है। उत्तर

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3

प्रश्न 9.
तुल्य भिन्नों का मिलान कीजिए और प्रत्येक के लिए दो भिन्न और लिखिए :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 - 17
हल :
(i) \(\frac {250}{400}\) को सरलतम रूप में लिखने के लिए पहले हम 250 और 400 का म.स. निकालते हैं :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 - 18
∴ 250 = 2 × 5 × 5 × 5
और 400 = 2 × 2 × 2 × 2 × 5 × 5
∴ म.स. = 2 × 5 × 5 = 50
\(\frac{250}{400}=\frac{250 \div 50}{400 \div 50}=\frac{5}{8}\)
∴ (i) का मिलान (d) से होगा। उत्तर

दो अन्य तुल्य भिन्न
\(\frac{5 \times 2}{8 \times 2}=\frac{10}{16}\) और \(\frac{5 \times 3}{8 \times 3}=\frac{15}{24}\) उत्तर

(ii) \(\frac {180}{200}\) को सरलतम रूप में व्यक्त करने के लिए पहले हम 180 और 200 का म.स. निकालते हैं :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 - 19
∴ 180 = 2 × 2 × 3 × 3 × 5
और 200 = 2 × 2 × 2 × 5 × 5
∴ 180 और 200 का म.स. = 2 × 2 × 5 = 20
\(\frac{180}{200}=\frac{180 \div 20}{200 \div 20}=\frac{9}{10}\)
अत: (ii) का मिलान (e) से होगा। उत्तर

दो अन्य तुल्य भिन्न:
\(\frac{9 \times 2}{10 \times 2}=\frac{18}{20}\) और \(\frac{9 \times 3}{10 \times 3}=\frac{27}{30}\) उत्तर

(iii) \(\frac {660}{990}\) को सरलतम रूप में लिखने के लिए पहले हम 660 और 990 का म.स. निकालते हैं
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 - 20
अत: (iii) का मिलान (a) से होगा।
दो अन्य तुल्य भिन्न : \(\frac{2 \times 2}{3 \times 2}=\frac{4}{6}\) और \(\frac{2 \times 3}{3 \times 3}=\frac{6}{9}\) उत्तर

(iv) \(\frac {180}{360}\) को सरलतम रूप में लिखने के लिए पहले हम 180 और 360 का म.स. निकालते हैं :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 - 21
∴ 180 = 2 × 2 × 3 × 3 × 5
360 = 2 × 2 × 2 × 3 × 3 × 5
∴ अभीष्ट म.स. = 2 × 2 × 3 × 3 × 5 = 180
\(\frac{180}{360}=\frac{180 \div 180}{360 \div 180}=\frac{1}{2}\)
अत: (iv) का मिलान (c) से होगा। उत्तर

दो अन्य तुल्य भिन्न :
\(\frac{1 \times 2}{2 \times 2}=\frac{2}{4}\) और \(\frac{1 \times 3}{2 \times 3}=\frac{3}{6}\) उत्तर

(v) \(\frac {220}{550}\) को सरलतम रूप में लिखने के लिए पहले हम 220 और 550 का म.स. निकालते हैं :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 7 भिन्न Ex 7.3 - 22
अतः (v) का मिलान (b) से होगा। उत्तर
दो अन्य तुल्य भिन्न:
\(\frac{2 \times 2}{5 \times 2}=\frac{4}{10}\) और \(\frac{2 \times 3}{5 \times 3}=\frac{6}{15}\) उत्तर

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HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 11 बीजगणित Ex 11.5

Haryana State Board HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 11 बीजगणित Ex 11.5 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Maths Solutions Chapter 11 बीजगणित Exercise 11.5

प्रश्न 1.
बताइए कि निम्नलिखित में से कौन-से कथन समीकरण (चर-संख्याओं के) हैं? सकारण उत्तर दीजिए। समीकरणों में समबद्ध चर भी लिखिए :
(a) 17 = x + 7
(b) (t – 7) > 5
(c) \(\frac{4}{2}\) = 2
(d) 7 × 3 – 13 = 8
(e) 5 × 4 – 8 = 2x
(f) x – 2 = 0
(g) 2m < 30
(h) 2n + 1 = 11
(i) 7 = 11 × 5 – 12 × 4
(j) 7 = 11 × 2 + p
(k) 20 = 5y
(l) \(\frac{3 q}{2}\) < 5
(m) z + 12 > 24
(n) 20 – (10 – 5)= 3 × 5
(o) 7 – x = 5
हल :
(a) समीकरण है, x चर वाली समीकरण।
(b) समीकरण नहीं है, क्योंकि = का चिह्न नहीं है।
(c) समीकरण नहीं है, क्योंकि इसमें चर नहीं है।
(d) समीकरण नहीं है, क्योंकि इसमें चर नहीं है।
(e) समीकरण है, x चर वाली समीकरण।
(f) समीकरण है, x चर वाली. समीकरण।
(g) समीकरण नहीं है, क्योंकि = का चिहन नहीं है।
(h) समीकरण है, n चर वाली समीकरण।
(i) समीकरण नहीं है, क्योंकि इसमें चर नहीं है।
(j) समीकरण है, p चर वाली समीकरण।
(k) समीकरण है, y चर वाली समीकरण।
(l) समीकरण नहीं है, क्योंकि = का चिह्न नहीं है।
(m) समीकरण नहीं है, क्योंकि = का चिह्न नहीं है।
(n) समीकरण नहीं है, क्योंकि इसमें चर नहीं है।
(o) समीकरण है, x चर वाली समीकरण ।

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 11 बीजगणित Ex 11.5

प्रश्न 2.
सारणी के तीसरे स्तंभ में प्रविष्टियों को पूरा लिखिए :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 11 बीजगणित Ex 11.5 1
हल :
प्रविष्टियों की पूर्ति करने पर :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 11 बीजगणित Ex 11.5 2
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 11 बीजगणित Ex 11.5 3a

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 11 बीजगणित Ex 11.5

प्रश्न 3.
प्रत्येक समीकरण के सम्मुख कोष्ठकों में दिए मानों में से समीकरण का हल चुनिए। दर्शाइए कि अन्य मान समीकरण को संतुष्ट नहीं करते हैं।
(a) 5m = 60, (10, 5, 12, 15)
(b) n + 12 = 20, (12, 8, 20,0)
(c) p – 5 = 5, (0, 10, 5, -5)
(d) \(\frac{q}{2}\) = 7, (7, 2, 10, 14)
(e) r – 4 = 0 (4,- 4, 8, 0)
(f) x + 4 = 2 (-2, 0, 2, 4)
हल :
(a) दी गई समीकरण है : 5m = 60
m = 10 के लिए : 5m = 5 × 10 = 50 ≠ 60
अत: m = 10 समीकरण को सन्तुष्ट नहीं करता है।
m = 5 के लिए : 5m = 5 × 5 = 25 ≠ 60
अतः m = 5 समीकरण को सन्तुष्ट नहीं करता है।
m = 12 के लिए : 5m = 5 × 12 = 60
अतः m = 12 समीकरण को सन्तुष्ट करता है।
∴ m = 12 समीकरण का हल है।
m = 15 के लिए : 5m = 5 × 15 = 75 ≠ 60
अतः m = 15 समीकरण को सन्तुष्ट नहीं करता है।

(b) दी गई समीकरण है : n + 12 = 20
n = 12 के लिए : n + 12 = 12 + 12 = 24 ≠ 20
अत: n = 12 समीकरण को सन्तुष्ट नहीं करता है।
n = 8 के लिए : n + 12 = 8 + 12 = 20
अतः n = 8 समीकरण को सन्तुष्ट करता है।
∴ n = 8 समीकरण का हल है।
n = 20 के लिए : n + 12 = 20 + 12 = 32 ≠ 20
अतः n = 20 समीकरण को सन्तुष्ट नहीं करता है।
n = 0 के लिए : n+ 12 = 0 + 12 = 12 ≠ 20
अतः n = 0 समीकरण को सन्तुष्ट नहीं करता है।

(c) दी गई समीकरण है : p – 5 = 5
p = 0 के लिए : p – 5 = 0 – 5 = – 5 ≠ 5
अतः p = 0 समीकरण को सन्तुष्ट नहीं करता है।
p = 10 के लिए : p – 5 = 10 – 5 = 5
अतः p = 10 समीकरण को सन्तुष्ट करता है।
∴ p = 10 समीकरण का हल है।
p = 5 के लिए : p – 5 = 5 – 5 = 0 ≠ 5
अतः p = 5 समीकरण को सन्तुष्ट नहीं करता है।
p = -5 के लिए : p – 5 = – 5 – 5 = – 10 ≠ 5
अतः p = – 5 समीकरण को सन्तुष्ट नहीं करता है।

(d) दी गई समीकरण है : \(\frac{q}{2}\)
q = 7 के लिए : \(\frac{q}{2}=\frac{7}{2} \neq 7\)
अतः q = 7 समीकरण को सन्तुष्ट नहीं करता है।
q = 2 के लिए : \(\frac{q}{2}=\frac{2}{2}=1 \neq 7\)
अतः q = 2 समीकरण को सन्तुष्ट नहीं करता है।
q = 10 के लिए : \(\frac{q}{2}=\frac{10}{2}=5 \neq 7\)
अतः q = 10 समीकरण को सन्तुष्ट नहीं करता है।
q = 14 के लिए : \(\frac{q}{2}=\frac{14}{2}=7\)
अतः q = 14 समीकरण को सन्तुष्ट करता है।
∴ q = 14 समीकरण का हल है।

(e) दी गई समीकरण है : r – 4 = 0
r = 4 के लिए : r – 4 = 4 – 4 = 0
अत: r = 4 समीकरण को सन्तुष्ट करता है।
∴ r= 4 समीकरण का हल है।
r = -4 के लिए : r – 4 = – 4 – 4 = – 8 ≠ 0
अतः r = – 4 समीकरण को सन्तुष्ट नहीं करता है।
r = 8 के लिए : r – 4 = 8 – 4 = 4 + 0
अतः r = 8 समीकरण को सन्तुष्ट नहीं करता है।
r = 0 के लिए : r – 4 = 0 – 4 = – 4 ≠ 0
अतः r = 0 समीकरण को सन्तुष्ट नहीं करता है।

(f) दी गई समीकरण है : x + 4 = 2
x = -2 के लिए : x + 4 = – 2 + 4 = 2
अतः x = – 2 समीकरण को सन्तुष्ट करता है।
∴ x = – 2 समीकरण का हल है।
x = 0 के लिए : x + 4 = 0 + 4 = 4 ≠ 2
अतः x = 0 समीकरण को सन्तुष्ट नहीं करता है।
x = 2 के लिए : x + 4 = 2 + 4 = 6 ≠ 2
अतः x = 2 समीकरण को सन्तुष्ट नहीं करता है।
x = 4 के लिए: x + 4 = 4 + 4 = 8 ≠ 2
अतः x = 4 समीकरण को सन्तुष्ट नहीं करता है।

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 11 बीजगणित Ex 11.5

प्रश्न 4.
(a) नीचे दी हुई सारणी को पूरा कीजिए और इस सारणी को देखकर ही समीकरण m + 10 = 16 का हल ज्ञात कीजिए।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 11 बीजगणित Ex 11.5 4
हल :
(a) दी गई सारणी को पूरा करने पर,

m

m + 10

11 + 10 = 11
22 + 10 = 121
33 + 10 = 13
44 + 10 = 14
55 + 10 = 15
66 + 10 = 16
77 + 10 = 17
88 + 10 = 18
99 + 10 = 19
1010 + 10 = 20
1111 + 10 = 21
1212 + 10 = 22
1313 + 10 = 23

उपर्युक्त सारणी को देखने पर स्पष्ट है कि m = 6 समीकरण m + 10 = 16 को सन्तुष्ट करता है।
∴ m = 6 समीकरण का हल है। उत्तर

(b) आगे दी हुई सारणी को पूरा कीजिए और इससारणी को देखकर ही समीकरण 5t = 35 का हल ज्ञात कीजिए।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 11 बीजगणित Ex 11.5 5
हल :
दी गई सारणी को पूरा करने पर,

t5t
35 × 3 = 15
45 × 4 = 20
55 × 5 = 25
65 × 6 = 30
75 × 7 = 35
85 × 8 = 40
95 × 9 = 45
105 × 10 = 50
115 × 11 = 55
125 × 12 = 60
135 × 13 = 65
145 × 14 = 70
155 × 15 = 75
165 × 16 = 80

उपर्युक्त सारणी को देखने पर स्पष्ट है कि t = 7, समीकरण 5t = 35 को सन्तुष्ट करता है।
अतः t = 7 समीकरण का हल है। उत्तर

(c) सारणी को पूरा कीजिए और समीकरण \(\frac{z}{3}\) = 4 का हल ज्ञात कीजिए।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 11 बीजगणित Ex 11.5 6
हल :
दी गई सारणी को पूरा करने पर,

z\(\frac{z}{3}\)
8\(\frac{8}{3}\) = 2\(\frac{2}{3}\)
9\(\frac{9}{3}\) = 3
10\(\frac{10}{3}\) = 3\(\frac{1}{3}\)
11\(\frac{11}{3}\) = 3\(\frac{2}{3}\)
12\(\frac{12}{3}\) = 4
13\(\frac{13}{3}\) = 4\(\frac{1}{3}\)
14\(\frac{14}{3}\) = 4\(\frac{2}{3}\)
15\(\frac{15}{3}\) = 5
16\(\frac{16}{3}\) = 5\(\frac{1}{3}\)
17\(\frac{17}{3}\) = 5\(\frac{2}{3}\)
18\(\frac{18}{3}\) = 6
19\(\frac{19}{3}\) = 6\(\frac{1}{3}\)

उपर्युक्त सारणी को देखने पर स्पष्ट है कि z = 12
समीकरण \(\frac{z}{3}\) = 4 को सन्तुष्ट करता है।
अतः z = 12 समीकरण का हल है। उत्तर

(d) सारणी को पूरा कीजिए और समीकरण m – 7 = 3 का हल ज्ञात कीजिए।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 11 बीजगणित Ex 11.5 7
हल :
दी गई सारणी को पूरा करने पर,

mm – 7
55 – 7 = 2
66 – 7 = -1
77 – 7 = 0
88 – 7 = 1
99 – 7 = 2
1010 – 7 = 3
1111 – 7 = 4
1212 – 7 = 5
1313 – 7 = 6
1414 – 7 = 7
1515 – 7 = 8

उपर्युक्त सारणी को देखने पर स्पष्ट है कि m = 10
समीकरण m – 7 = 3 को सन्तुष्ट करता है।
अतः m = 10 समीकरण का हल है। उत्तर

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 11 बीजगणित Ex 11.5

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पहेलियों को हल कीजिए। आप ऐसी पहेलियाँ स्वयं भी बना सकते हैं :
मैं कौन हैं?
(i) एक वर्ग के अनुदिश जाइए।
प्रत्येक कोने को तीन बार
गिनकर और उससे अधिक नहीं,
मुझमें जोड़िए और
ठीक चौंतीस प्राप्त कीजिए।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 11 बीजगणित Ex 11.5 8
(ii) सप्ताह के प्रत्येक दिन के लिए,
मेरे से ऊपर गिनिए।
यदि आपने कोई गलती नहीं की है,
तो आप तेइस प्राप्त करेंगे।
(iii) मैं एक विशिष्ट संख्या हूँ।
मुझमें से एक छः निकालिए,
और क्रिकेट की एक टीम बनाइए।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 11 बीजगणित Ex 11.5 9
(iv) बताइए मैं कौन हूँ।
मैं एक सुन्दर संकेत दे रही हूँ।
आप मुझे वापस पाएँगे,
यदि मुझे बाइस में से निकालेंगे।
हल :
(i) माना ‘मैं’ x हूँ। वर्ग के चार कोने हैं। तीन बार प्रत्येक कोने को गिनने पर = 3 × 4 = 12 प्राप्त होता है।
प्रश्नानुसार, x + 12 = 34
⇒ x = 34 – 12
⇒ x = 22
अतः मैं 22 हैं। उत्तर

(ii) प्रश्नानुसार, x + 7 = 23
(x – 6) + 6 = 11 +6
⇒ x = 23 – 7
⇒ x = 16 उत्तर

(iii) माना विशिष्ट संख्या x है।
प्रश्नानुसार, x – 6 = 11
(∵ क्रिकेट की टीम में 11 सदस्य होते हैं)
⇒ x = 11 +6
⇒ x = 17
अतः विशिष्ट संख्या 17 है। उत्तर

(iv) माना मैं x हूँ।
प्रश्नानुसार, 22 – x = x
⇒ 22 = x + x
⇒ 2x = 22
⇒ \(\frac{2 x}{2}=\frac{22}{2}\)
⇒ x = 11
अतः मैं 11 हैं। उत्तर

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HBSE 12th Class History Solutions Haryana Board

Haryana Board HBSE 12th Class History Solutions

HBSE 12th Class History Solutions in Hindi Medium

HBSE 12th Class History Solutions in English Medium

  • Chapter 1 Bricks, Beads and Bones: The Harappan Civilisation
  • Chapter 2 Kings, Farmers and Towns: Early States and Economies
  • Chapter 3 Kinship, Caste and Class: Early Societies
  • Chapter 4 Thinkers, Beliefs and Buildings: Cultural Developments
  • Chapter 5 Through the Eyes of Travellers: Perceptions of Society
  • Chapter 6 Bhakti-Sufi Traditions: Changes in Religious Beliefs and Devotional Texts
  • Chapter 7 An Imperial Capital: Vijayanagara
  • Chapter 8 Peasants, Zamindars and the State: Agrarian Society and the Mughal Empire
  • Chapter 9 Kings and Chronicles: The Mughal Courts
  • Chapter 10 Colonialism and the Countryside: Exploring Official Archives
  • Chapter 11 Rebels and the Raj: 1857 Revolt and its Representations
  • Chapter 12 Colonial Cities: Urbanisation, Planning and Architecture
  • Chapter 13 Mahatma Gandhi and The Nationalist Movement: Civil Disobedience and Beyond
  • Chapter 14 Understanding Partition: Politics, Memories, Experiences
  • Chapter 15 Framing the Constitution: The Beginning of a New Era

HBSE 12th Class History Question Paper Design

Class: 12th
Subject: History
Paper: Annual or Supplementary
Marks: 80
Time: 3 Hours

1. Weightage to Objectives:

ObjectiveKUASTotal
Percentage of Marks504010100
Marks4032880

2. Weightage to Form of Questions:

Forms of QuestionsESAVSAOTotal
No. of Questions45101635
Marks Allotted2420201680
Estimated Time72483525180

3. Weightage to Content:

Units/Sub-UnitsMarks
1. ईंट, मनके तथा अस्थियाँ (हड़प्पा सभ्यता)9
2. राजा, किसान और नगर (आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्था)6
3. बंधुत्व जाति तथा वर्ग (आरंभिक समाज)3
4. विचारक, विश्वास और इमारतें (सांस्कृतिक विकास)3
5. यात्रियों के नजरिए (समाज के बारे में उनकी समझ)6
6. भक्ति सूफी परंपराएं, धार्मिक विश्वासों में बदलाव9
7. एक साम्राज्य की राजधानी (विजयनगर)5
8. किसान, जमींदार और राज्य6
9. शासक और इतिवृत (मुगल दरबार)3
10. उपनिवेशवाद और देहात4
11. विद्रोह राज और 1857 का विद्रोह6
12. औपनिवेशक शहर और नगरीकरण5
13. महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आन्दोलन9
14. विभाजन को समझना3
15. संविधान का निर्माण3
Total80

4. Scheme of Sections:

5. Scheme of Options: Internal Choice in Long Answer Questions i.e. Essay Type
in Two Questions.

6. Difficulty Level:
Difficult: 10% Marks
Average: 50% Marks
Easy: 40% Marks

Abbreviations: K (Knowledge of elements of language), C (Comprehension), E (Expression), A (Appreciation), S (Skill), E (Essay Type), SA (Short Answer Type), VSA (Very Short Answer Type), O (Objective Type)

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HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.3

Haryana State Board HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Exercise 5.3

प्रश्न 1.
निम्न को सुमेलित (match) कीजिए :

(i) ऋजुकोण(a) \(\frac {1}{4}\)  घूर्णन से कम
(ii) समकोण(b) \(\frac {1}{2}\)  घूर्णन से अधिक
(iii) न्यूनकोण(c) \(\frac {1}{2}\) घूर्णन
(iv) अधिक कोण(d) \(\frac {1}{4}\)  घूर्णन
(v) प्रतिवर्ती कोण(e) \(\frac {1}{4}\) घूर्णन और \(\frac {1}{2}\) घूर्णन के बीच में
(f) एक पूरा या संपूर्ण घूर्णन।

हल :

(i) ऋजुकोण(c) \(\frac {1}{2}\)  घूर्णन
(ii) समकोण(d) \(\frac {1}{4}\) घूर्णन
(iii) न्यूनकोण(a) \(\frac {1}{4}\)  घूर्णन से कम
(iv) अधिक कोण(e) \(\frac {1}{4}\)  घूर्णन और \(\frac {1}{2}\)  घूर्णन के बीच में
(v) प्रतिवर्ती कोण(b) \(\frac {1}{2}\)  घूर्णन से अधिक

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.3

प्रश्न 2.
निम्न में से प्रत्येक कोण को समकोण, ऋजुकोण, न्यूनकोण, अधिक कोण या प्रतिवर्ती कोण के रूप में वर्गीकृत कीजिए :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.3 - 1
हल :
दी गई आकृतियों से स्पष्ट है :
(a) न्यूनकोण
(b) अधिककोण
(c) समकोण
(d) प्रतिवर्ती कोण
(e) ऋजु कोण
(f) न्यूनकोण।

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HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 9 आँकड़ों का प्रबंधन Ex 9.4

Haryana State Board HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 9 आँकड़ों का प्रबंधन Ex 9.4 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Maths Solutions Chapter 9 आँकड़ों का प्रबंधन Exercise 9.4

प्रश्न 1.
एक स्कूल के 120 विद्यार्थियों का इस आशय से सर्वेक्षण किया गया कि वे अपने खाली समय में किस क्रियाकलाप को पसन्द करते हैं। निम्न आँकड़े प्राप्त हुए :

पसन्द का क्रियाकलापविद्यार्थियों की संख्या
खेलना45
कहानी की पुस्तकें पढ़ना30
टी.वी. देखना20
संगीत सुनना10
पेंटिंग15

1इकाई लम्बाई = 5 विद्यार्थी का पैमाना लेकर, एक दण्ड आलेख बनाइए। खेलने के अतिरिक्त कौन-सा क्रियाकलाप अधिकांश विद्यार्थियों द्वारा पसन्द किया जाता है ?
हल :
यहाँ आँकड़ों के 5 मान दिए गये हैं, अतः क्षैतिज रेखा पर बराबर दूरी के 5 बिन्दु अंकित करते हैं तथा समान चौड़ाई और आनुपातिक ऊँचाई के आयत बनाते हैं।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 9 आँकड़ों का प्रबंधन Ex 9.4 1
दण्ड आलेख से, खेलने के अतिरिक्त कहानी की पुस्तके पढ़ना क्रियाकलाप अधिकांश विद्यार्थियों द्वारा पसन्द किया जाता है।

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 9 आँकड़ों का प्रबंधन Ex 9.4

प्रश्न 2.
छः क्रमागत दिनों में दुकानदार द्वारा बेची गई गणित की पुस्तकों की संख्या नीचे दी गई है :

दिनबेची गई पुस्तकों की संख्या
रविवार65
सोमवार40
मंगलवार30
बुधवार50
बृहस्पतिवार20
शुक्रवार70
पेंटिंग15

अपनी पसन्द का पैमाना चुनते हुए उपर्युक्त सूचना के लिए एक दण्ड आलेख खींचिए।
हल :
दिए गए आँकड़ों से आलेख दर्शाने के लिए क्षैतिज रेखा पर बराबर दूरी के 6 बिन्दु अंकित करते हैं और समान चौड़ाई के आयत इन बिन्दुओं पर बनाते हैं तथा आयत की ऊँचाई निम्न प्रकार निकालते हैं :

रविवार65 ÷ 5 = 13 इकाई
सोमवार40 ÷ 5 = 8 इकाई
मंगलवार30 ÷ 5 = 6 इकाई
बुधवार50 ÷ 5 = 10 इकाई
बृहस्पतिवार20 ÷ 5 = 4 इकाई
शुक्रवार70 ÷ 5 = 14 इकाई

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 9 आँकड़ों का प्रबंधन Ex 9.4 2

प्रश्न 3.
वर्ष 1998 से 2002 के बीच एक फैक्ट्री द्वारा निर्मित साइकिलों की संख्या निम्नलिखित सारणी द्वारा दर्शाई गई है:

वर्षनिर्मित साइकिलों की संख्या
1998800
1999600
2000900
20011100
20021200

इन आँकड़ों को एक दण्ड आलेख द्वारा प्रदर्शित कीजिए। अपनी पसन्द का पैमाना चुनिए।
(a) किस वर्ष में अधिकतम संख्या में साइकिलें निर्मित की गईं ?
(b) किस वर्ष में न्यूनतम संख्या में साइकिलें निर्मित की गई ?
हल :
दिए गए आँकड़ों में 5 मान दिए गए हैं। क्षैतिज रेखा पर बराबर दूरी पर 5 बिन्दु अंकित करते हैं और समान चौड़ाई तथा आनुपातिक ऊँचाई के आयत खींचते हैं।
(a) वर्ष 2002 में सबसे अधिक संख्या में साइकिलें निर्मित की गईं।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 9 आँकड़ों का प्रबंधन Ex 9.4 3
(b) वर्ष 1999 में न्यूनतम संख्या में साइकिलें निर्मित की गईं।

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 9 आँकड़ों का प्रबंधन Ex 9.4

प्रश्न 4.
किसी शहर के व्यक्तियों की संख्या विभिन्न आयु समूहों के अनुसार नीचे सारणी में दी हुई है :

आयु समूह (वर्षों में)व्यक्तियों की संख्या
1-142 लाख
15-291 लाख 60 हजार
30-441 लाख 20 हजार
45-591 लाख 20 हजार
60-7480 हजार
75 और उससे ऊपर40 हजार

इन आँकड़ों को एक दण्ड आलेख द्वारा निरूपित कीजिए। (1 इकाई लम्बाई = 20 हजार लीजिए)
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
(a) किन दो आयु समूहों में जनसंख्या बराबर है ?
(b) 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी व्यक्ति वरिष्ठ नागरिक कहलाते हैं। इस शहर में कितने वरिष्ठ नागरिक हैं ?
हल :
आँकड़ों के 6 मान दिए गए हैं। इसलिए क्षैतिज रेखा पर बराबर दूरी के 6 बिन्दु अंकित करते हैं तथा समान चौड़ाई और आनुपातिक ऊँचाई के आयत बनाते हैं।

आयु समूहआयत की ऊँचाई
1-14200000 ÷ 20000 = 10 इकाई
15-29160000 ÷ 20000 = 8 इकाई
30-44120000 ÷ 20000 = 6 इकाई
45-59120000 ÷ 20000 = 6 इकाई
60-7480000 ÷ 20000 = 4 इकाई
75 और उससे ऊपर40000 ÷ 20000 = 2 इकाई

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 9 आँकड़ों का प्रबंधन Ex 9.4 4
(a) आयु समूह 30-44 तथा 45-59 में समान जनसंख्या है।
(b) वरिष्ठ नागरिकों की संख्या = 80000 + 40000
= 120000 = एक लाख 20 हजार

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HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.2

Haryana State Board HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Exercise 5.2

प्रश्न 1.
घड़ी की घण्टे वाली सुई एक घूर्णन के कितनी भिन्न घूम जाती है, जब वह :
(a) 3 से 9 तक पहुँचती है ?
(b) 4 से 7 तक पहुँचती है ?
(c) 7 से 10 तक पहुँचती है ?
(d) 12 से 9 तक पहुँचती है?
(e) 1 से 10 तक पहुँचती है ?
(f) 6 से 3 तक पहुँचती है ?
हल :
(a) आधा घूर्णन
(b) एक-चौथाई घूर्णन
(c) एक-चौथाई घूर्णन
(d) तीन-चौथाई घूर्णन
(e) तीन-चौथाई घूर्णन
(f) तीन-चौथाई घूर्णन

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.2

प्रश्न 2.
एक घड़ी की सुई कहाँ रुक जाएगी, यदि वह:
(a) 12 से प्रारम्भ करे और घड़ी की दिशा में \(\frac {1}{2}\) घूर्णन करे ?
(b) 2 से प्रारम्भ करे और घड़ी की दिशा में \(\frac {1}{2}\) घूर्णन करे ?
(c) 5 से प्रारम्भ करे और घड़ी की दिशा में \(\frac {1}{2}\) घूर्णन करे
(d) 5 से प्रारम्भ करे और घड़ी की दिशा में \(\frac {1}{2}\) घूर्णन करे ?
हल :
(a) यदि घड़ी की सुई 12 से प्रारम्भ करे, तो \(\frac {1}{2}\) घूर्णन के बाद 6 पर पहुंचेगी।
(b) यदि घड़ी की सुई 2 से प्रारम्भ करे, तो \(\frac {1}{2}\) घूर्णन के बाद 8 पर पहुंचेगी।
(c) यदि घड़ी की सुई 5 से प्रारम्भ करें, तो \(\frac {1}{2}\) घूर्णन के बाद 8 पर पहुंचेगी।
(d) यदि घड़ी की सुई 5 से प्रारम्भ करे, तो \(\frac {1}{2}\) घूर्णन के बाद 2 पर पहुंचेगी।

प्रश्न 3.
आप किस दिशा में देख रहे होंगे यदि आप प्रारम्भ में:
(a) पूर्व की ओर देख रहे हों और घड़ी की दिशा में \(\frac {1}{2}\) घूर्णन करें?
(b) पूर्व की ओर देख रहे हों और घड़ी की दिशा में 1\(\frac {1}{2}\) घूर्णन करें?
(c) पश्चिम की ओर देख रहे हों और घड़ी की विपरीत दिशा में \(\frac {3}{4}\) घूर्णन करें ?
(d) दक्षिण की ओर देख रहे हों और एक घूर्णन करें ? (क्या इस अंतिम प्रश्न के लिए, हमें घड़ी की दिशा या घड़ी की विपरीत दिशा की बात करनी चाहिए? क्यों नहीं ?)
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.2 - 1
हल :
(a) पूर्व में देख रहे हों और घड़ी की दिशा में \(\frac {1}{2}\) घूर्णन करें, तो हम पश्चिम दिशा में देखेंगे।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.2 - 2
(b) पूर्व की ओर देख रहे हों और घड़ी की दिशा में 1\(\frac {1}{2}\) घूर्णन करें, तो हम पश्चिम दिशा में देखेंगे।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.2 - 3
(c) पश्चिम की ओर देख रहे हों और घड़ी की विपरीत दिशा में \(\frac {3}{4}\) घूर्णन करें, तो हम उत्तर दिशा में देखेंगे।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.2 - 4
(d) दक्षिण की ओर देख, रहे हों और एक घूर्णन के बाद हम दक्षिण दिशा में देखेंगे।
(नोट : इस प्रश्न में घड़ी की दिशा अथवा विपरीत दिशा का महत्व नहीं है क्योंकि एक घूर्णन के बाद हम मूल स्थिति में वापस आ जाएँगे।)
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.2 - 5

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.2

प्रश्न 4.
आप एक घूर्णन को कितना भाग घूम जाएंगे, यदि आप:
(a) पूर्व की ओर मुख किए खड़े हों और घड़ी की दिशा में घूमकर उत्तर की ओर मुख कर लें?
(b) दक्षिण की ओर मुख किए खड़े हों और घड़ी की दिशा में घूमकर पूर्व की ओर मुख कर लें ?
(c) पश्चिम की ओर मुख किए खड़े हों और घड़ी . की दिशा में घूमकर पूर्व की ओर मुख कर लें ?
हल :
(a) \(\frac {3}{4}\) घूर्णन
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.2 - 6
(b) \(\frac {3}{4}\) घूर्णन
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.2 - 7
(c) \(\frac {1}{2}\) घूर्णन
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.2 - 8

प्रश्न 5.
घड़ी की घण्टे की सुई द्वारा घूमे गए समकोणों की संख्या ज्ञात कीजिए, जब वह
(a) 3 से 6 तक पहुँचती है।
(b) 2 से 8 तक पहुँचती है।
(c) 5 से 11 तक पहुंचती है।
(d) 10 से 1 तक पहुंचती है।
(e) 12 से 9 तक पहुंचती है।
(f) 12 से 6 तक पहुँचती है।
हल:
∵ जब घड़ी की घण्टे की सुई 12 से चलना प्रारम्भ करके घूमती हुई पुनः 12 पर पहुँचने में 1 घूर्णन अथवा 4 समकोण बनाती है अर्थात्
∵ घण्टे की सुई 12 घण्टे में = 4 समकोण बनाती है।
∴ घण्टे की सुई 1 घण्टे में = \(\frac {4}{12}\) समकोण बनाती है।
(a) घड़ी की घण्टे की सुई को 3 से 6 तक पहुँचने में (3-4, 4-5, 5-6) 3 घण्टे लगते हैं।
∴ समकोणों की संख्या = \(\frac {4}{12}\) × 3
= 1 समकोण।
(b) घड़ी की घण्टे की सुई को 2 से 8 तक पहुँचने में (2-3, 3-4, 4-5, 5-6, 6-7, 7-8) 6 घण्टे लगते है।
∴ समकोणों की संख्या = \(\frac {4}{12}\) × 6 = 2 समकोण
(c) घड़ी को घण्टे की सुई को 5 से 11 तक पहुँचने में (5-6, 6-7, 7-8, 8-9, 9-10, 10-11) 6 घण्टे लगते हैं।
∴ समकोणों की संख्या = \(\frac {4}{12}\) × 6 = 2 समकोण।
(d) घड़ी के घण्टे की सुई को 10 से 1 तक पहुँचने में (10-11, 11-12, 12-1) 3 घण्टे लगते हैं।
∴ समकोणों की संख्या = \(\frac {4}{12}\) × 3 = 1 समकोण।
(e) घड़ी की घण्टे की सुई को 12 से 9 तक पहुँचने में (12-1, 1-2, 2-3, 3-4, 4-5, 5-6, 6-7, 8-9)9 घण्टे लगते हैं।
∴ समकोणों की संख्या = \(\frac {4}{12}\) × 9
= 3 समकोण।
(f) घड़ी की घण्टे की सुई को 12 से 6 तक पहुँचने में (12-1, 1-2, 2-3, 3-4, 4-5, 5-6) 6 घण्टे लगते हैं।
∴ समकोणों की संख्या = \(\frac {4}{12}\) × 6
= 2 समकोण।

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.2

प्रश्न 6.
आप कितने समकोण घूम जाएँगे, यदि आप प्रारम्भ में :
(a) दक्षिण की ओर देख रहे हों और घड़ी की दिशा में पश्चिम की ओर घम जाएँ ?
(b) उत्तर की ओर देख रहे हों और घड़ी की विपरीत (वामावर्त) दिशा में पूर्व की ओर घूम जाएँ ?
(c) पश्चिम की ओर देख रहे हों और पश्चिम की ओर घूम जाएँ ?
(d) दक्षिण की ओर देख रहे हों और उत्तर की ओर घूम जाएँ?
हल :
आकृतियों से स्पष्ट है कि कितने समकोण घूम जाएंगे यदि हम प्रारम्भ में :
(a) दक्षिण की ओर देख रहे हों और घड़ी की दिशा में पश्चिम की ओर घूम जाएँ, तो 1 समकोण घूम जाएँगे।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.2 - 9
(b) उत्तर की ओर देख रहे हों और घड़ी की विपरीत (वामावर्त) दिशा में पूर्व की और घूम जाएँ, तो 3 समकोण घूम जाएंगे।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.2 - 10
(c) पश्चिम की ओर देख रहे हों और पश्चिम की ओर घूम जाएँ, तो 4 समकोण घूम जाएँगे।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.2 - 11
(d) दक्षिण की ओर देख रहे हों और उत्तर की ओर घूम जाएँ, तो 2 समकोण घूम जाएँगे।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.2 - 12

प्रश्न 7.
घड़ी की घण्टे वाली सुई कहाँ रुकेगी, यदि वह प्रारम्भ करे:
(a) 6 से और 1 समकोण घूम जाए?
(b) 8 से और 2 समकोण घूम जाए ?
(c) 10 से और 3 समकोण घूम जाए ?
(d) 7 से और 2 ऋजुकोण घूम जाए ?
हल :
हम जानते हैं कि घड़ी की घण्टे की सुई 12 घण्टे में 4 समकोण घूर्णन करती है अर्थात् 3 घण्टे में एक समकोण घूर्णन करती है।
(a) यदि घड़ी की घण्टे की सुई 6 से प्रारम्भ होकर 1 समकोण चलती है, तो घण्टे की सुई (6 + 3 =) 9 पर रुकेगी।
(b) यदि घड़ी की घण्टे की सुई 8 से प्रारम्भ होती है और 2 समकोण चलती है, तो घण्टे की सुई (8 + 2 × 3 =) 14 अर्थात् 2 पर रुकेगी।
(c) यदि घड़ी की घण्टे की सुई 10 से प्रारम्भ होती है और 3 समकोण चलती है, तो घण्टे की सुई (10 + 3 × 3 =) 19 अर्थात् 7 पर रुकेगी।
(d) यदि घड़ी की घण्टे की सुई 7 से प्रारम्भ होती है और 2 ऋजुकोण (4 समकोण) चलती है तो घड़ी के घण्टे की सुई (7 + 4 × 3 =) 19 अर्थात् 7 पर रुकेगी।

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HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 11 बीजगणित Ex 11.4

Haryana State Board HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 11 बीजगणित Ex 11.4 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Maths Solutions Chapter 11 बीजगणित Exercise 11.4

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
(a) सरिता की वर्तमान आयु वर्ष लीजिए।
(i) आज से 5 वर्ष बाद उसकी आयु क्या होगी ?
(ii) 3 वर्ष पहले उसकी आयु क्या थी ?
(iii) सरिता के दादाजी की आयु उसकी आयु की 6 गुनी है। उसके दादाजी की क्या आयु है ?
(iv) उसकी दादीजी दादाजी से 2 वर्ष छोटी हैं। दादीजी की आयु क्या है ?
(v) सरिता के पिता की आयु सरिता की आयु के तीन गुने से 5 वर्ष अधिक है। उसके पिता की आयु क्या है ?
(b) एक आयताकार हॉल की लम्बाई उसकी चौड़ाई के तिगुने से 4 मीटर कम है। यदि चौड़ाई b मीटर है, तो लम्बाई क्या है ?
(c) एक आयताकार बॉक्स की ऊँचाई h सेमी है। इसकी लम्बाई, ऊँचाई की 5 गुनी है और चौड़ाई, लम्बाई से 10 सेमी कम है। बॉक्स की लम्बाई और चौड़ाई को ऊँचाई के पदों में व्यक्त कीजिए।
(d) मीना, बीना और लीना पहाड़ी की चोटी पर पहुँचने के लिए सीढियाँ चढ़ रही हैं। मीना सीढ़ी s पर है। बीना, मीना से 8 सीढ़ियाँ आगे है और लीना मीना से 7 सीढ़ियाँ पीछे है। बीना और लीना कहाँ पर हैं ? चोटी पर पहुँचने के लिए कुल सीढ़ियाँ मीना द्वारा चढ़ी गई सीढ़ियों की संख्या के चार गुने से 10 कम है। सीढ़ियों की कुल संख्या को s के पदों में व्यक्त कीजिए।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 11 बीजगणित Ex 11.4 1
(e) एक बस v किमी प्रति घण्टा की चाल से चल रही है। यह दासपुर से बीसपुर जा रही है। बस के 5 घण्टे चलने के बाद भी बीसपुर 20 किमी दूर रह जाता है। दासपुर से बीसपुर की दूरी क्या है ? इसे v का प्रयोग करते हुए व्यक्त कीजिए।
हल :
(a) माना सरिता की वर्तमान आयु y वर्ष है।
(i) आज से 5 वर्ष बाद सरिता की आयु = (y + 5) वर्ष उत्तर
(ii) 3 वर्ष पहले सरिता की आयु = (y – 3) वर्ष उत्तर
(iii) दादाजी की आयु सरिता की आयु की 6 गुनी है।
∴ दादाजी की आयु = 6y वर्ष उत्तर
(iv) दादीजी की आयु दादाजी की आयु से 2 वर्ष कम है।
∴ दादीजी की आयु = (6y – 2) वर्ष उत्तर
(v) सरिता के पिता की आयु सरिता की आयु के 3 गुने से 5 वर्ष अधिक है।
∴ सरिता के पिता की आयु = (3y + 5) वर्ष उत्तर

(b) हॉल की चौड़ाई = b मीटर उत्तर
हॉल की लम्बाई, चौड़ाई के 3 गुने से 4 मीटर कम है।
∴ हॉल की लम्बाई = (3b – 4) मीटर

(c) आयताकार बॉक्स की ऊँचाई h सेमी है।
लम्बाई, ऊँचाई की 5 गुनी है तथा चौड़ाई, लम्बाई से 10 सेमी कम है।
∴ लम्बाई = 5h सेमी
और चौड़ाई = (5h – 10) सेमी

(d) पहाड़ी पर चढ़ते समय मीना s सीढ़ी पर है।
बीना मीना से 8 सीढ़ी आगे और लीना मीना से 7 सीढ़ी पीछे है।
∴ बीना (s + 8) सीढ़ी पर और लीना (s – 7) सीढ़ी पर होगी। उत्तर
सीढ़ियों की कुल संख्या मीना द्वारा चढ़ी गई कुल सीढ़ियों की संख्या के 4 गुने से 10 कम है।
अतः कुल सीढ़ियों की संख्या = 4s – 10 उत्तर

(e) बस की गति = v किमी प्रति घण्टा
5 घण्टे में बस द्वारा चली गई दूरी = 5v किमी
प्रश्नानुसार, दासपुर से बीसपुर के बीच की दूरी
= 5 घण्टे में चली गई दूरी + 20 किमी
= 5v किमी + 20 किमी = (5v + 20) किमी उत्तर

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 11 बीजगणित Ex 11.4

प्रश्न 2.
व्यंजकों के प्रयोग से बने निम्न कथनों को साधारण भाषा के कथनों में बदलिए:
(उदाहरणार्थ, एक क्रिकेट मैच में सलीम ने रन बनाए और नलिन ने (r + 15) रन बनाए। साधारण भाषा में, नलिन ने सलीम से 15 रन अधिक बनाए हैं।)
(a) एक अभ्यास-पुस्तिका का मूल्य p रु. है। एक पुस्तक का मूल्य 3p रु. है।
(b) टोनी ने मेज पर कंचे रखे। उसके पास डिब्बे में 8q कंचे हैं।
(c) हमारी कक्षा में n विद्यार्थी हैं। स्कूल में 20n विद्यार्थी हैं।
(d) जग्गू की आयु: z वर्ष है। उसके चाचा की आयु 4z वर्ष है और उसकी चाची की आयु (4z – 3) वर्ष है।
(e) बिन्दुओं (dots) की एक व्यवस्था में r पंक्तियाँ हैं। प्रत्येक पंक्ति में 5 बिन्दु हैं।
हल :
(a) पुस्तक का मूल्य अभ्यास-पुस्तिका के मूल्य का तीन गुना है।
(b) टोनी के डिब्बे में मेज पर रखे कंचों से 8 गुने कंचे हैं।
(c) स्कूल में कुल विद्यार्थियों की संख्या हमारी कक्षा के विद्यार्थियों की संख्या की 20 गुना है।
(d) जग्गू के चाचा की आयु जग्गू की आयु की 4 गुना है और उसकी चाची चाचा से 3 वर्ष छोटी है।
(e) एक पंक्ति में बिन्दुओं की संख्या पंक्तियों की संख्या की 5 गुनी है। .

प्रश्न 3.
(a) मुन्नू की आयु x वर्ष दी हुई है। क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि (x – 2) क्या दर्शाएगा ?
(संकेत : मुन्नू के छोटे भाई के बारे में सोचिए।) क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि (x + 4) क्या दर्शाएगा और (3x + 7) क्या दर्शाएगा?
(b) सारा की वर्तमान आयुग वर्ष दी हुई है। उसकी भविष्य की आयु और पिछली आयु के बारे में सोचिए। निम्नलिखित व्यंजक क्या सूचित करते हैं ?
y + 7, y – 3, y + 4\(\frac{1}{2}\), y – 2\(\frac{1}{2}\)
(c) दिया हुआ है कि एक कक्षा के विद्यार्थी फुटबाल खेलना पसन्द करते हैं। 2n क्या दर्शाएगा ? \(\frac{n}{2}\) क्या दर्शा सकता है?
(संकेत : फुटबाल के अतिरिक्त अन्य खेलों के बारे में सोचिए।)
हल :
(a) (x – 2) सम्भवतः उसकी छोटी बहिन की आयु है।
(x + 4) सम्भवतः उसके बड़े भाई की आयु हो सकती है।
(3x + 7) उसके दादाजी की आयु हो सकती है।

(b) व्यंजक (y + 7), (y + 4\(\frac{1}{2}\)) सारा की भविष्य की आयु को सूचित करते हैं।
व्यंजक (y – 3), (y – 2\(\frac{1}{2}\)) सारा की पूर्व आयु को सूचित करते हैं।

(c) व्यंजक 2n हॉकी खेलने वाले छात्रों की संख्या को दर्शा सकता है।
व्यंजक \(\frac{n}{2}\) बास्केटबाल खेलने वाले छात्रों की संख्या को दर्शा सकता है।

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HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

Haryana State Board HBSE 12th Class History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class History Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के अन्तर्गत कुछेक वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। ठीक उत्तर का चयन कीजिए

1. मोहनजोदड़ो की खोज कब की गई?
(A) 1910 ई० में
(B) 1922 ई० में
(C) 1932 ई० में
(D) 1947 ई० में
उत्तर:
(B) 1922. ई० में

2. सार्वजनिक स्नानागार के भवन की बाहर की दीवार कितने फुट मोटी है?
(A) 8
(B) 4
(C) 12
(D) 3
उत्तर:
(A) 8

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

3. मोहनजोदड़ो किस नदी के तट पर स्थित है?
(A) चिनाब
(B) सिन्धु
(C) रावी
(D) सतलुज
उत्तर:
(B) सिन्धु

4. हड़प्पावासी किस धातु से अनभिज्ञ थे?
(A) ताँबा
(B) कांस्य
(C) लोहा
(D) पत्थर
उत्तर:
(C) लोहा

5. मोहनजोदड़ो कराची से लगभग कितने मील दूर है?
(A) 300 मील
(B) 500 मील
(C) 150 मील
(D) 225 मील
उत्तर:
(A) 300 मील

6. किस ई० में पुरातत्व विभाग के महानिदेशक सर जॉन मार्शल ने घोषणा की कि एक नई सभ्यता का पता चला है?
(A) 1912 ई० में
(B) 1900 ई० में
(C) 1924 ई० में
(D) 1928 ई० में
उत्तर:
(C) 1924 ई० में

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

7. “सिंधुवासियों की सामाजिक प्रणाली मिस्र तथा बेबीलोन के लोगों की सामाजिक प्रणाली से कहीं श्रेष्ठ थी।” ये किसके शब्द हैं?
(A) एन०एन० घोष
(B) आर०पी० त्रिपाठी
(C) एस०आर० शर्मा
(D) वी०ए० स्मिथ
उत्तर:
(C) एस०आर० शर्मा

8. “5000 वर्ष पुराने आभूषण ऐसे दिखाई देते हैं, जैसे किसी जौहरी की दुकान से अभी लाए गए हो।” ये शब्द किसके हैं?
(A) सर जॉन मार्शल
(B) ए०पी० मदान
(C) हेमचन्द्र राय
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) सर जॉन मार्शल

9. “मोहरें ही सिंधुवासियों के एकमात्र लेख हैं जिनसे उनकी लिखाई के बारे में कुछ पता चल सकता है।” यह विचार किसने प्रस्तुत किया?
(A) डॉ० मैके
(B) आर०के० मुकर्जी
(C) एन०एन० घोष
(D) ए०एल० बाशम
उत्तर:
(A) डॉ० मैके

10. हड़प्पा संस्कृति के लोग निम्नलिखित पशु से अनभिज्ञ थे
(A) सूअर
(B) कुत्ता
(C) गाय
(D) घोड़ा
उत्तर:
(D) घोड़ा

11. निम्नलिखित भवन हड़प्पा संस्कृति से सम्बन्धित नहीं था
(A) अन्नागार
(B) पिरामिड
(C) स्नानागार
(D) विशाल गोदाम
उत्तर:
(B) पिरामिड

12. हड़प्पावासी कैसे वस्त्र पहनते थे?
(A) पशुओं की खाल के
(B) वृक्षों की छाल के
(C) सूती तथा ऊनी
(D) कागज के
उत्तर:
(C) सूती तथा ऊनी

13. हड़प्पा की खोज की थी
(A) दयाराम साहनी ने
(B) आर०डी० बैनर्जी ने
(C) सर जॉन मार्शल ने
(D) आर०एस० बिष्ट ने
उत्तर:
(A) दयाराम साहनी ने

14. हड़प्पा संस्कृति के लोग पूजा करते थे
(A) विष्णु की
(B) इन्द्र की
(C) वरुण की
(D) मातृदेवी की
उत्तर:
(D) मातृदेवी की

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

15. हड़प्पा सभ्यता किस सभ्यता के समकालीन नहीं थी?
(A) रोमन सभ्यता
(B) मेसोपोटामिया की सभ्यता
(C) नील घाटी की सभ्यता
(D) दजला फरात की सभ्यता
उत्तर:
(A) रोमन सभ्यता

16. हड़प्पा संस्कृति के लोग जहाज निर्माण कला में निपुण थे, इसका पता चलता है
(A) मिट्टी के बर्तनों से
(B) खुदाई से प्राप्त
(C) मोहरों पर जहाज के चित्रों से
(D) गोदामों में प्राप्त अवशेषों के सामान से
उत्तर:
(C) मोहरों पर जहाज के चित्रों से

17. मोहनजोदड़ो की खोज की
(A) सर जॉन मार्शल
(B) आर०डी० बैनर्जी
(C) दयाराम साहनी
(D) सूरजभान
उत्तर:
(B) आर०डी० बैनर्जी

18. बनावली स्थित है
(A) पंजाब में
(B) हरियाणा में
(C) उत्तरप्रदेश में
(D) राजस्थान में
उत्तर:
(B) हरियाणा में

19. हड़प्पा सभ्यता के किस स्थान से डकयार्ड के अवशेष मिले हैं?
(A) लोथल
(B) हड़प्पा
(C) मोहनजोदड़ो
(D) धौलावीरा
उत्तर:
(A) लोथल

20. हड़प्पन मुद्राओं पर रूपायन (चित्र) है
(A) बैल
(B) हाथी
(C) गैंडा
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

21. प्रारम्भिक हड़प्पा की प्रमुख बस्ती है
(A) मेहरगढ़
(B) दंबसादात
(C) अमरी
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

22. हड़प्पा सभ्यता का अन्य नाम है
(A) आर्यों की सभ्यता
(B) मिस्र की सभ्यता
(C) उत्तर वैदिक सभ्यता
(D) सिन्धु घाटी की सभ्यता
उत्तर:
(D) सिन्धु घाटी की सभ्यता

23. हड़प्पा संस्कृति के लोग किस अनाज से अनभिज्ञ थे?
(A) दाल
(B) जौ
(C) गेहूँ
(D) चावल
उत्तर:
(A) दाल

24. आर.एस. बिष्ट ने हड़प्पा सभ्यता से संबंधी धौलावीरा स्थल खोजा
(A) 1946 में
(B) 1971 में
(C) 1981 में
(D) 1990 में
उत्तर:
(D) 1990 में

25. धौलावीरा स्थित है
(A) गुजरात में
(B) सिन्ध में
(C) राजस्थान में
(D) महाराष्ट्र में
उत्तर:
(A) गुजरात में

26. चन्हुदड़ो की सर्वप्रथम खोज किसने की?
(A) एच० जी० मजूमदार ने
(B) एन० जी० मजूमदार ने
(C) आर० सी० मजूमदार ने
(D) आर० जी० मजूमदार ने
उत्तर:
(B) एन०जी० मजूमदार ने

27. आर.ई.एम. व्हीलर द्वारा हड़प्पा में खुदाई शुरू की गई
(A) 1941 ई० में
(B) 1931 ई० में
(C) 1946 ई० में
(D) 1951 ई० में
उत्तर:
(C) 1946 ई० में

28. कालीबंगन में बी. बी. लाल तथा बी. के. थापर ने खुदाई कार्य शुरू किया
(A) 1940 ई० में
(B) 1950 ई० में
(C) 1960 ई० में
(D) 1970 ई० में
उत्तर:
(C) 1960 ई० में

29. हड़प्पा किस नदी के तट पर है?
(A) सिंधु
(B) रावी
(C) सरस्वती
(D) झेलम
उत्तर:
(B) रावी

30. हड़प्पा काल में खेतों को हल से जोतने के प्रमाण मिले हैं
(A) मोहनजोदड़ो से
(B) हड़प्पा से
(C) कालीबंगन से
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) कालीबंगन से

31. जलाशय के साक्ष्य मिले हैं
(A) मोहनजोदड़ो से
(B) धौलावीरा से
(C) कालीबंगन से
(D) शोर्तुघई से
उत्तर:
(B) धौलावीरा से

32. भारतीय पुरातत्व का जनक कहा जाता है
(A) कनिंघम को
(B) सर जॉन मार्शल को
(C) व्हीलर को
(D) किसी को नहीं
उत्तर:
(A) कनिंघम को

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

33. हड़प्पा सभ्यता के शिल्प कार्य थे
(A) मनके बनाना
(B) औजार बनाना
(C) ईंटों का निर्माण
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

34. कांसे की नर्तकी की मूर्ति कहाँ से प्राप्त हुई है?
(A) हड़प्पा से
(B) मोहनजोदड़ो से
(C) चन्हुदड़ो से
(D) राखीगढ़ी से
उत्तर:
(B) मोहनजोदड़ो से

35. हड़प्पावासी ताँबा आयात करते थे
(A) खेतड़ी से
(B) कोलार से
(C) ओमान से
(D) शोर्तुघई से
उत्तर:
(A) खेतड़ी से

36. पुरातत्वविदों के अनुसार हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा नगर था
(A) हड़प्पा
(B) मोहनजोदड़ो
(C) कालीबंगन
(D) लोथल
उत्तर:
(B) मोहनजोदड़ो

37. हड़प्पा की बस्तियों में पाई गई मोहरों में से अधिकांश बनी थीं
(A) लोहे की
(B) चाँदी की
(C) फिरोजा पत्थर की
(D) सेलखड़ी की
उत्तर:
(D) सेलखड़ी की

38. विशाल स्नानागार स्थित था
(A) हड़प्पा में
(B) लोथल में
(C) मोहनजोदड़ो में
(D) बनावली में
उत्तर:
(C) मोहनजोदड़ो में

39. हड़प्पा संस्कृति के पतन का क्या कारण था?
(A) बाढ़
(B) सूखा
(C) जलवायु परिवर्तन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

40. मोहनजोदड़ो स्थित ‘प्रथम सड़क’ का माप है
(A) 20 मीटर
(B) 15 मीटर
(C) 10.5 मीटर
(D) 5 मीटर
उत्तर:
(C) 10.5 मीटर

41. हड़प्पा संस्कृति के लोग किस धातु से परिचित नहीं थे?
(A) सोना
(B) ताँबा
(C) लोहा
(D) चाँदी
उत्तर:
(C) लोहा

42. हड़प्पा लिपि लिखी जाती थी
(A) ऊपर से नीचे
(B) बायें से दायें
(C) नीचे से ऊपर
(D) दायें से बायें
उत्तर:
(D) दायें से बायें

43. हड़प्पाई लोग पूजा करते थे
(A) मातृदेवी की
(B) वृक्षों की
(C) पशुओं की
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

44. हड़प्पा सभ्यता में दफनाए गए शवों की दिशा है
(A) उत्तर:दक्षिण
(B) पूर्व-पश्चिम
(C) उत्तर:पूर्व
(D) दक्षिण-पश्चिम
उत्तर:
(A) उत्तर:दक्षिण

45. हड़प्पा सभ्यता का कौन-सा स्थल हरियाणा में है?
(A) बनावली
(B) राखीगढ़ी
(C) (A) व (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) व (B) दोनों

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
हड़प्पा सभ्यता का ज्ञान पहली बार कब हुआ?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का ज्ञान पहली बार 1921 ई० में हुआ।

प्रश्न 2.
हड़प्पा सभ्यता की जानकारी का मुख्य साधन क्या है?
उत्तर:
हडप्पा सभ्यता की जानकारी का मुख्य साधन खदाई से प्राप्त अवशेष है।

प्रश्न 3.
सिन्धु घाटी सभ्यता के किन्हीं चार बड़े शहरों के नाम बताइए।
उत्तर:
सिन्धु घाटी सभ्यता के चार बड़े शहर हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्हुदड़ो तथा कालीबंगन थे।

प्रश्न 4.
आधुनिक हरियाणा में सिन्धु सभ्यता के दो केन्द्रों के नाम बताइए।
उत्तर:
आधुनिक हरियाणा में सिन्धु सभ्यता के दो केन्द्र बनावली तथा राखीगढ़ी हैं।

प्रश्न 5.
हड़प्पा सभ्यता के लोग किस पशु की पूजा करते थे?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोग कुबड़े बैल की पूजा करते थे।

प्रश्न 6.
हड़प्पा संस्कृति के समय की लिपि बताइए।
उत्तर:
हड़प्पा संस्कृति के समय की लिपि चित्रमय है।

प्रश्न 7.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के समय के दो आभूषणों के नाम बताइए।
उत्तर:
सिन्धु घाटी की सभ्यता के समय के दो आभूषण अंगूठी तथा हार थे।

प्रश्न 8.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के लोग किन वृक्षों की पूजा करते थे?
उत्तर:
सिन्धु घाटी की सभ्यता के लोग नीम तथा पीपल की पूजा करते थे।

प्रश्न 9.
मोहनजोदड़ो व हड़प्पा नगरों से गन्दे पानी को बाहर निकालने की क्या व्यवस्था थी?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो व हड़प्पा नगरों से गन्दे पानी को बाहर निकालने के लिए पक्की नालियों की व्यवस्था थी।।

प्रश्न 10.
हड़प्पा सभ्यता की किसी समकालीन सभ्यता का नाम बताइए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की समकालीन सभ्यता का नाम मेसोपोटामिया था।

प्रश्न 11.
हड़प्पा सभ्यता के लोग किस पशु से अनभिज्ञ माने जाते हैं?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोग घोड़े से अनभिज्ञ माने जाते हैं।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 12.
सिन्धु सभ्यता के लोग किस धातु से परिचित नहीं थे?
उत्तर:
सिन्धु सभ्यता के लोग लोहे से परिचित नहीं थे।

प्रश्न 13.
प्रसिद्ध कांस्य नर्तकी कहाँ से प्राप्त हुई?
उत्तर:
प्रसिद्ध कांस्य नर्तकी मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई।

प्रश्न 14.
हड़प्पा सभ्यता के लोगों का मुख्य भोजन बताइए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोगों का मुख्य भोजन गेहूँ तथा चावल था।

प्रश्न 15.
आजकल मोहनजोदड़ो व हड़प्पा किस देश में हैं?
उत्तर:
आजकल मोहनजोदड़ो व हड़प्पा पाकिस्तान में हैं।

प्रश्न 16.
सिन्धु घाटी के लोग ‘सोना’ कहाँ से प्राप्त करते थे ?
उत्तर:
सिन्धु घाटी के लोग ‘सोना’ कर्नाटक से प्राप्त करते थे।

प्रश्न 17.
मोहनजोदड़ो की खोज किस व्यक्ति द्वारा हुई?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो की खोज आर०डी० बैनर्जी द्वारा हुई।

प्रश्न 18.
हड़प्पा की खोज किसने की?
उत्तर:
हड़प्पा की खोज सर दयाराम साहनी ने की।

प्रश्न 19.
सिन्धु घाटी की सभ्यता की दो सार्वजनिक इमारतों के नाम बताइए।
उत्तर:
सिन्धु घाटी की सभ्यता की दो सार्वजनिक इमारतों के नाम धान्यागार तथा स्नानागार थे।

प्रश्न 20.
हड़प्पा संस्कृति के दो देवताओं के नाम बताइए।।
उत्तर:
हड़प्पा संस्कृति के दो देवताओं के नाम पशपति शिव तथा मातदेवी थे।

प्रश्न 21.
विशाल स्नानागार के भवन की बाहर की दीवार कितने फुट मोटी है?
उत्तर:
विशाल स्नानागार के भवन की बाहर की दीवार 8 फुट मोटी है।

प्रश्न 22.
स्नानागार का भवन बाहर से कितने फुट लम्बा है?
उत्तर:
स्नानागार का भवन बाहर से 180 फुट लम्बा है।

प्रश्न 23.
र्नानागार का भवन बाहर से कितने फुट चौड़ा है?
उत्तर:
स्नानागार का भवन बाहर से 108 फुट चौड़ा है।

प्रश्न 24.
मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ मृतकों का टीला (मोयाँ-दा-दड़ा) है।

प्रश्न 25.
किस स्थान से खुदाई में एक गोदी के भग्नावशेष प्राप्त हुए हैं?
उत्तर:
लोथल से गोदी के भग्नावशेष मिले हैं।

प्रश्न 26.
गुजरात में हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख पुरास्थल कौन-से हैं?
उत्तर:
लोथल, रंगपुर, सुरकोतदा, धौलावीरा आदि गुजरात में प्रमुख पुरास्थल हैं।

प्रश्न 27.
यह कैसे ज्ञात हुआ है कि हड़प्पाई लोगों का दिलमुन तथा मेसोपोटामिया से व्यापारिक संबंध था?
उत्तर:
दिलमुन व मेसोपोटामिया से प्राप्त हड़प्पाई मोहरों से पता चला कि इन क्षेत्रों से हड़प्पाई लोगों का व्यापारिक संबंध था।

प्रश्न 28.
हड़प्पाई लोग किन पशुओं को पालते थे?
उत्तर:
हड़प्पाई लोग बैल, गाय, भैंस, बकरी, भेड़, सूअर, हाथी, ऊँट, कुत्ता आदि पशुओं को पालते थे।

प्रश्न 29.
हड़प्पा सभ्यता में कौन-सी मूर्तियाँ बहुतायत में मिली हैं?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में मृण्मयी मूर्तियाँ बहुतायत में मिली हैं।

प्रश्न 30.
हड़प्पाई लोग उपमहाद्वीप के किस स्थान से ताँबा प्राप्त करते थे?
उत्तर:
हड़प्पाई लोग खेतड़ी (राजस्थान) से ताँबा प्राप्त करते थे।

प्रश्न 31.
हड़प्पा सभ्यता के लोग सिंचाई के लिए किन साधनों का प्रयोग करते थे?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोग सिंचाई के लिए कुओं, नहरों व जलाशयों का प्रयोग करते थे।

प्रश्न 32.
वैदूर्यमणि किस स्थान से अधिक मात्रा में मिलती थी?
उत्तर:
वैदूर्यमणि शोर्तुघई (अफगानिस्तान) में अधिक मात्रा में पाई जाती थी।

प्रश्न 33.
हड़प्पाई नगरों से मेसोपोटामिया को क्या निर्यात किया जाता था?
उत्तर:
ताँबा, हाथी दाँत, वैदूर्यमणि आदि।

प्रश्न 34.
हड़प्पा सभ्यता में मुख्य कृषि फसलें क्या थीं?
उत्तर:
गेहूँ, जौ, चावल, मटर, कपास आदि मुख्य कृषि फसलें थीं।

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प्रश्न 35.
हड़प्पा कहाँ स्थित है?
उत्तर:
हड़प्पा पश्चिम पंजाब (पाकिस्तान) के मोंटगुमरी जिले में रावी के बाएँ तट पर स्थित है।

प्रश्न 36.
हड़प्पा सभ्यता में सर्वाधिक चित्र व मूर्तियाँ किसकी मिली हैं?
उत्तर:
सर्वाधिक चित्र व मूर्तियाँ कूबड़दार बैल की मिली हैं।

प्रश्न 37.
कालीबंगन कहाँ स्थित है?
उत्तर:
कालीबंगन राजस्थान में स्थित है।

प्रश्न 38.
मोहनजोदड़ो कहाँ स्थित था?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो सिंध के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के तट पर स्थित था।

प्रश्न 39.
हड़प्पा लिपि में कुल कितने चित्राक्षर थे?
उत्तर:
हड़प्पा लिपि में लगभग 250 से 400 तक चित्राक्षर थे।

अति लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रारम्भ में हड़प्पा सभ्यता को ‘सिंधु घाटी की सभ्यता’ का नाम क्यों दिया गया?
उत्तर:
हड़प्पा की खोज के बाद अब तक इस सभ्यता से जुड़ी लगभग 2800 बस्तियों की खोज की जा चुकी है। इन बस्तियों की विशेषताएँ हड़प्पा से मिलती हैं। विद्वानों (सर जॉन मार्शल) ने इस सभ्यता को “सिंधु घाटी की सभ्यता” का नाम दिया क्योंकि शुरू में बहुत-सी बस्तियाँ सिंधु घाटी और उसकी सहायक नदियों के मैदानों में पाई गई थीं। ।

प्रश्न 2.
वर्तमान में पुरातत्वविद् इसे ‘हड़प्पा सभ्यता’ संज्ञा देना उपयुक्त क्यों मानते हैं?
उत्तर:
बाद में इस सभ्यता से जुड़े अनेक स्थानों की खोज हुई जो राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा तथा गुजरात में स्थित थे। अतः इस सभ्यता को केवल सिंधु घाटी की सभ्यता कहना सार्थक नहीं लगा। वर्तमान में पुरातत्ववेत्ता इसे “हड़प्पा की सभ्यता” कहना पसंद करते हैं। यह नामकरण इसलिए उचित है कि इस संस्कृति से संबंधित सर्वप्रथम खुदाई हड़प्पा में हुई थी।

प्रश्न 3.
हड़प्पा सभ्यता की तीन अवस्थाओं के नाम लिखें।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की तीन अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं

  • आरंभिक हड़प्पा काल 3500-2600 ई.पू.,
  • विकसित हड़प्पा काल 2600-1900 ई.पू.,
  • उत्तर हड़प्पा काल 1900-1300 ई.पू.।

प्रश्न 4.
मोहनजोदड़ो का क्या अर्थ है? इसकी खोज कब हुई?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो से अभिप्राय है मृतकों का टीला। सिंधी भाषा में इसे ‘मोयां-दा-दड़ा’ कहते हैं। इसकी खोज 1922 में राखालदास बनर्जी ने की।

प्रश्न 5.
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के पालतू पशुओं के नाम बताइए।
उत्तर:
सभ्यता से प्राप्त शिल्प तथ्यों तथा पुरा-प्राणिविज्ञानियों (Archaeo-zoologists) के अध्ययनों से ज्ञात हुआ हैं कि हड़प्पन भेड़, बकरी, बैल, भैंस, सुअर आदि जानवरों का पालन करने लगे थे। कूबड़ वाला सांड उन्हें विशेष प्रिय था। गधे और ऊँट का पालन बोझा ढोने के लिए करते थे।

प्रश्न 6.
‘हड़प्पा के लोग एकांतता (Privacy) पर बहुत ध्यान देते थे।’ इस पर अपने विचार प्रकट करें।
उत्तर:
ऐसा भी प्रतीत होता है कि घरों के निर्माण में एकान्तता (Privacy) का ध्यान रखा जाता था। भूमि स्तर (Ground level) पर दीवार में कोई भी खिड़की नहीं होती थी। इसी प्रकार मुख्य प्रवेश द्वार से घर के अन्दर या आंगन में नहीं झांका/देखा जा सकता था।

प्रश्न 7.
हड़प्पा सभ्यता की जानकारी का सबसे प्रमुख स्रोत कौन-सा है?
उत्तर:
यहाँ से प्राप्त हुई सामग्री में सबसे महत्त्वपूर्ण हड़प्पन मुद्राएँ (Seals) हैं। ये एक विशेष पाषाण (Steatite) से बनी हैं तथा इन पर पशुओं (बैल, सांड, हाथी, गैण्डा) के मुद्रांकन (Sealing) हैं। इन पर लिपि के संकेत भी गोदे हुए हैं जिन्हें अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। ये मुद्राएँ सभी स्थलों पर बड़ी संख्या में प्राप्त हुई हैं। इसके अतिरिक्त शहरों, दस्तकारी केन्द्रों, दुर्ग स्थानों आदि से अनेक महत्त्वपूर्ण अवशेष प्राप्त हुए हैं।

प्रश्न 8.
धौलावीरा कहाँ पर है? इसकी दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
धौलावीरा गुजरात में स्थित है। इस नगर की खोज 1967-68 में जे.पी. जोशी द्वारा की गई। यह भारत में हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा नगर पाया गया है। यह नगर विशेष रूप से मनके बनाने के लिए प्रसिद्ध था।

प्रश्न 9.
हड़प्पा सभ्यता की सड़कों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के नगर सड़कों के लिए प्रसिद्ध हैं। सड़कें और गलियाँ सीधी होती थीं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। मोहनजोदड़ो में निचले नगर में मुख्य सड़क 10.5 मीटर चौड़ी थी, इसे ‘प्रथम सड़क’ कहा गया है। अन्य सड़कें 3.6 से 4 मीटर तक चौड़ी थीं।

गलियाँ एवं गलियारे 1.2 मीटर (4 फुट) या उससे अधिक चौड़े थे। घरों के बनाने से पहले ही सड़कों व गलियों के लिए स्थान छोड़ दिया जाता था। उल्लेखनीय है कि मोहनजोदड़ो के अपने लम्बे जीवनकाल में इन सड़कों पर अतिक्रमण (encroachments) या निर्माण कार्य दिखाई नहीं देता।

प्रश्न 10.
सी. ई. तथा बी.सी.ई. का अर्थ लिखें।
उत्तर:
सी.ई. (CE.)-कॉमन एरा (Common Era) आजकल ए.डी. के बजाए सी.ई. का प्रयोग किया जाने लगा है।
बी.सी.ई. (BCE)-बिफोर कॉमन एरा (Before Common Era) आजकल बी.सी. (ई.पू.) के स्थान पर बी.सी ई. का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 11.
हड़प्पा सभ्यता के कोई दो विशेष पहचान बिंदुओं के नाम लिखें।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के दो विशेष पहचान बिंदुओं के नाम निम्नलिखित हैं

  • नगर योजना व चबूतरों पर बने दुर्गों में विशेष भवन तथा समकोण पर काटती सीधी सड़कें, गलियाँ व उत्तम निकासी व्यवस्था।
  • चाक से बने पक्के, भारी व मोटी परत वाले मृदभाण्ड (Pottery)। उन पर काले रंग से पीपल के पत्तों, काटते सर्किल व मोर इत्यादि का रूपांकन (Motifs)।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 12.
हड़प्पा सभ्यता से जुड़े किन्हीं तीन उत्पादन केंद्रों की पहचान कीजिए।
उत्तर:
बालाकोट (बलूचिस्तान में समुद्रतट के समीप) व चन्हुदड़ो (सिंध में) सीपीशिल्प और चूड़ियों के लिए प्रसिद्ध थे।

  • लोथल (गुजरात) और चन्हुदड़ो में लाल पत्थर (Carmelian) और गोमेद के मनके बनाए जाते थे।
  • चन्हुदड़ो में वैदूर्यमणि के कुछ अधबने मनके मिले हैं जिससे अनुमान लगाया जाता है कि यहाँ पर दूर-दराज से बहुमूल्य पत्थर आयात किया जाता था तथा उन पर काम करके उन्हें बेचा जाता था।

प्रश्न 13.
हड़प्पा सभ्यता की खोज कब हुई? वर्तमान में इसका विस्तार क्षेत्र क्या है?
उत्तर:
पंजाब में रावी नदी के किनारे पर स्थित हड़प्पा पहला नगर था जिसकी 1921 में खुदाई हुई। इसका फैलाव उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने तक और पश्चिम में बलूचिस्तान से लेकर उत्तर:पूर्व में मेरठ तक का था। यह सारा क्षेत्र त्रिभुज के आधार का था। इसका पूरा क्षेत्रफल लगभग 1,299,600 वर्ग किलोमीटर आंका जाता है। उल्लेखनीय है कि हड़प्पा सभ्यता का विस्तार इसकी समकालीन मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यताओं से काफी बड़ा था।

प्रश्न 14.
हड़प्पा सभ्यता के किन्हीं चार प्रमुख नगरों के नाम बताइए।
उत्तर:
हड़प्पा व मोहनजोदड़ो इस सभ्यता के मुख्य नगर हैं जहाँ से नाना प्रकार के शिल्प तथ्य (Artefact) प्राप्त हुए। यह दोनों नगर अब पाकिस्तान में पड़ते हैं। दोनों के बीच 483 किलोमीटर की दूरी है। सिन्ध क्षेत्र में चन्हुदड़ो नगर प्रकाश में आया . है। यह मोहनजोदड़ो से 130 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। एक अन्य नगर गुजरात लोथल, (कठियावाड़) है। इस स्थल पर बंदरगाह के अवशेष भी पाए गए हैं।

इसके अतिरिक्त धौलावीरा (गुजरात के कच्छ क्षेत्र में) उत्तरी राजस्थान में कालीबंगन (काले रंग की चूड़ियाँ), हरियाणा में बनावली व राखीगढ़ी, बलूचिस्तान में सुत्कागेंडोर व सुरकोतदा, रंगपुर (गुजरात) आदि इस सभ्यता के महत्त्वपूर्ण स्थल हैं।

प्रश्न 15.
हड़प्पा सभ्यता के विनाश के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के विनाश के दो कारण निम्नलिखित हैं

1. आर्यों के आक्रमण (Aryan’s Invasions)-व्हीलर ने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। इसके पक्ष में वे आक्रमण के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। प्रथम, हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में सड़कों पर मानव कंकाल पड़े मिले हैं। एक कमरे में 13 स्त्री-पुरुषों . तथा बच्चों के कंकाल मिले हैं। मोहनजोदड़ो के अन्तिम चरण में सड़कों पर तथा घरों में मनुष्यों के कत्लेआम के प्रमाण मिले हैं। एक सँकरी गली को जॉन मार्शल ने डैडमैन लेन का नाम दिया है। ये कंकाल इस बात का संकेत करते हैं कि बाहरी आक्रमणकारियों ‘ (आय) ने हमला किया।

2. बाढ़ और भूकम्प (Flood and Earthquake)-कुछ विद्वानों ने हड़प्पा सभ्यता के पतन का कारण बाढ़ बताया है। मोहनजोदड़ो में मकानों और सड़कों पर गाद (कीचड़युक्त मिट्टी) भरी पड़ी थी। बाढ़ का पानी उतर जाने पर यहाँ के निवासियों ने पहले के मकानों के मलबे पर फिर से मकान और सड़कें बना लीं। बाढ़ आने का सिलसिला कई बार घटा। खुदाई से पता चला है कि 70 फुट गहराई तक मकान बने हुए थे। बार-बार आने वाली बाढ़ों से नगरवासी गरीब हो गए तथा तंग आकर बस्तियों को छोड़कर चले गए।

प्रश्न 16.
दुर्ग क्षेत्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो को हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा शहरी केंद्र माना जाता है। इस सभ्यता की नगर-योजना, गृह निर्माण, मुद्रा, मोहरों आदि की अधिकांश जानकारी मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई है। यह नगर दो भागों में बँटा था। एक भाग में ईंटों से बनाए ऊँचे चबूतरे पर स्थित बस्ती है। इसके चारों ओर ईंटों से बना परकोटा (किला) था, जिसे ‘नगर दुर्ग’ (Citadel) कहा जाता है। ‘नगर दुर्ग’ का क्षेत्रफल निचले नगर से कम था। इसमें पकाई ईंटों से बने अनेक बड़े भवन पाए गए हैं। दुर्ग क्षेत्र में शासक वर्ग के लोग रहते थे। .

प्रश्न 17.
हड़प्पा लिपि पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
हड़प्पा की मोहरों पर चित्रों के माध्यम से लिखावट है। विद्वानों का मानना है कि इन चित्रों के रूपांकनों (Motifs) के द्वारा अर्थ समझाया गया था। इन चित्रों से अनपढ़ भी संकेत से अर्थ समझ जाते होंगे। अधिकांश अभिलेख छोटे हैं। सबसे लम्बे अभिलेख में लगभग 26 चिहन हैं। यह लिपि संभवतः वर्णात्मक (Alphabetical) नहीं थी। इसमें बहुत-से चिह्न ही प्रयोग में होते थे जिनकी संख्या 375 तथा 400 के बीच बताई गई है। ऐसा लगता है कि यह लिपि दाईं-से-बाईं ओर लिखी जाती थी।

प्रश्न 18.
हड़प्पा काल में यातायात के दो साधन क्या थे?
उत्तर:
पकाई मिट्टी से बनी बैलगाड़ियों के खिलौने इस बात का संकेत हैं कि बैलगाड़ियों का प्रयोग सामान का आयात करने के लिए होता था। सिन्धु व सहायक नदियों का भी मार्गों के रूप में प्रयोग होता था। समुद्र तटीय मार्गों का इस्तेमाल भी माल लाने के लिए किया जाता था। संभवतः इसके लिए नावों का प्रयोग होता था।

प्रश्न 19.
सर जॉन मार्शल कौन था? उसकी पुस्तक का नाम लिखें।
उत्तर:
सर जॉन मार्शल भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के महानिदेशक थे। उन्होंने हड़प्पा की खुदाई में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। हड़प्पा सभ्यता की खोज की योजना मार्शल द्वारा ही की गई। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक का नाम है ‘मोहनजोदड़ो एंड द इंडस सिविलाईजेशन’।

प्रश्न 20.
आर.ई.एम. व्हीलर कौन थे? उनकी पुस्तक का नाम लिखें।
उत्तर:
आर.ई.एम. व्हीलर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के महानिदेशक थे। उन्होंने यह पद-भार 1944 में सम्भाला। हड़प्पा सभ्यता के खुदाई में व्हीलर ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक का नाम है-‘माई आर्कियोलॉजिकल मिशन टू इंडिया एंड पाकिस्तान’।

प्रश्न 21.
कनिंघम कौन थे?
उत्तर:
कनिंघम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पहले महानिदेशक थे। उनकी रुचि छठी सदी ईसा पूर्व से चौथी सदी ईसा पूर्व तथा इसके बाद के प्राचीन इतिहास के पुरातत्व में थी। उन्होंने बौद्धधर्म से संबंधित चीनी यात्रियों के वृत्तांतों का प्रारंभिक बस्तियों की पहचान करने में प्रयोग किया। सर्वेक्षण के कार्य में शिल्प तथ्य एकत्र किए। उनका रिकॉर्ड रखा तथा अभिलेखों का अनुवाद भी किया।

प्रश्न 22.
हड़प्पा लोगों द्वारा शव के अंतिम संस्कार के दो तरीके बताइए। अथवा हड़प्पाकालीन शवाधानों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
हड़प्पा लोगों द्वारा शव के अंतिम संस्कार के दो तरीके इस प्रकार हैं

  • हड़प्पा में भी मृतकों के अन्तिम संस्कार का सबसे ज़्यादा प्रचलित तरीका दफनाना ही था। शव सामान्य रूप से उत्तर:दक्षिण दिशा में रखकर दफनाते थे। कब्रों में कई प्रकार के आभूषण तथा अन्य वस्तुएं भी प्राप्त हुई हैं।
  • कालीबंगन में कब्रों में कंकाल नहीं हैं। वहाँ छोटे-छोटे वृत्ताकार गड्ढों में राखदानियाँ तथा मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए हैं। लोथल में कब्रों में साथ-साथ दफनाए गए महिला और पुरुष मुर्दो के कंकालों के जोड़े मिले हैं।

प्रश्न 23.
भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर उन तीन क्षेत्रों के नाम लिखें जिनसे हड़प्पन व्यापार होता था।
उत्तर:
1. मगान (Magan)-ओमान की खाड़ी पर स्थित रसाल जनैज (Rasal-Junayz) भी व्यापार के लिए महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह थी। सुमेर के लोग ओमान को मगान (Magan) के नाम से जानते थे। मगान में हड़प्पा सभ्यता से जुड़ी वस्तुएँ; जैसे मिट्टी का मर्तबान, बर्तन, इन्द्रगोप के मनके, हाथी-दांत व धातु के कला तथ्य मिले हैं।

2. दिलमुन (Dilmun)-फारस की खाड़ी में भी हड़प्पाई जहाज पहुँचते थे। दिलमुन (Dilmun) तथा पास के तटों पर जहाज जाते थे। दिलमुन से हड़प्पा के कलातथ्य तथा लोथल से दिलमुन की मोहरें प्राप्त हुई हैं।

3. मेसोपोटामिया (Mesopotamain)-वस्तुतः दिलमुन (बहरीन के द्वीपों से बना) मेसोपोटामिया का प्रवेश द्वार था। मेसोपोटामिया के लोग सिंधु बेसिन (Indus Basin) को मेलुहा (Meluhha) के नाम से जानते थे (कुछ विद्वानों के मतानुसार मेलुहा सिंधु क्षेत्र का बिगड़ा हुआ नाम है)। मेसोपोटामिया के लेखों (Texts) में मेलुहा से व्यापारिक संपर्क का उल्लेख है।

प्रश्न 24.
सिन्धु घाटी की सभ्यता की लिपि की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
सिन्धु घाटी की सभ्यता की लिपि की कोई दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • सिन्धु घाटी की मोहरों पर चित्रों के माध्यम से लिखावट है। इन चित्रों से अनपढ़ भी संकेत से अर्थ समझ लेते होंगे।
  • यह लिपि संभवत: वर्णात्मक नहीं थी। इसमें लगभग 375 से 400 चिह्नों का प्रयोग होता होगा। यह लिपि दाईं से बाईं ओर. लिखी जाती थी।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 25.
हड़प्पा सभ्यता का सबसे पहले खोजा गया स्थल कौन था? इसकी दुर्दशा का क्या कारण था?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता का सबसे पहले उत्खनन तथा खोजा गया स्थल हड़प्पा था। इसकी खुदाई 1921 में दयाराम साहनी ने की थी। इस स्थल की दुर्दशा का मुख्य कारण इस स्थल से ईंटों की चोरी था। ईंटें चुराने वालों ने इसे बुरी तरह से नष्ट कर दिया था। इससे यहाँ की बहुत-सी संरचनाएँ नष्ट हो गईं।

प्रश्न 26.
मोहनजोदड़ो के नियोजन पर प्रकाश डालने वाले कुछ साक्ष्य बताइए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो की वास्तुकला के कई लक्षण इस बात के साक्ष्य हैं कि यह एक नियोजित नगर था

  • नगर का दुर्ग क्षेत्र तथा निचले नगर में विभाजन,
  • समकोण काटती सड़क व गलियाँ,
  • उत्तम जल निकास प्रणाली,
  • समान आकार की ईंटों का प्रयोग,
  • विशाल भवनों का वास्तु,
  • घरों का निश्चित योजना से निर्माण।

प्रश्न 27.
फयॉन्स क्या था? इससे बने पात्र महंगे क्यों थे?
उत्तर:
फ़यॉन्स बालू (घिसी हुए रेत), रंग तथा किसी चिपचिपे पदार्थ के मिश्रण को पकाकर बनाया गया एक प्रकार का पदार्थ था। इसके पात्र चमकदार होते थे। इससे बने छोटे पात्र कीमती इस कारण माने जाते थे कि इन्हें बनाना कठिन होता था।

प्रश्न 28.
नागेश्वर तथा बालाकोट कहाँ थे और क्यों प्रसिद्ध थे?
उत्तर:
नागेश्वर गुजरात तथा बालाकोट बलूचिस्तान में स्थित थे। ये दोनों बस्तियाँ समुद्र तट पर बसी हुई थी। ये दोनों स्थल शंख से वस्तुएँ बनाने के विशिष्ट केंद्र थे। इसका कारण यह था कि यह समुद्र तट पर थे तथा यहाँ पर शंख पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध थे। शंख से चूड़ियाँ, पच्चीकारी की वस्तुएँ आदि बनाई जाती थीं।

प्रश्न 29.
मोहनजोदड़ों के घरों की कोई दो मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:मोहनजोदड़ों के घरों की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • मोहनजोदड़ों के ज्यादातर घरों में आंगन होता था और चारों तरफ कमरे बने होते थे।
  • मोहनजोदड़ों के लगभग सभी घरों में कमरे होते थे।

लघु-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हड़प्पा सभ्यता के नामकरण पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
प्रारंभ में विद्वानों ने इस सभ्यता को “सिंधु घाटी की सभ्यता” का नाम दिया था क्योंकि शुरू में बहुत-सी बस्तियाँ सिंधु घाटी और उसकी सहायक नदियों के मैदानों में पाई गई थीं। परंतु बाद में इस सभ्यता से जुड़े अ राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा तथा गुजरात में स्थित थे। अतः इस सभ्यता को केवल सिंधु घाटी की सभ्यता कहना सार्थक नहीं लगा। वर्तमान में पुरातत्ववेत्ता इसे “हड़प्पा की सभ्यता” कहना पसंद करते हैं।

यह नामकरण इसलिए उचित है कि इस संस्कृति से संबंधित सर्वप्रथम खुदाई हड़प्पा में हुई थी। अन्य स्थानों की खुदाई से भी सभ्यता के वही लक्षण प्राप्त हुए जो हड़प्पा से प्राप्त हुए थे। यह भी उल्लेखनीय है कि पुरातत्व-विज्ञान में यह परिपाटी है कि जब किसी प्राचीन सभ्यता या संस्कृति का वर्णन किया जाता है तो उस स्थान के आधुनिक प्रचलित नाम पर उस सभ्यता का नाम रखा जाता है, जहाँ से उसके अस्तित्व का पता चलता है। इसलिए हड़प्पा को आधार मानकर इसे ‘हड़प्पा सभ्यता’ नामकरण देना उपयुक्त है।

प्रश्न 2.
हड़प्पा सभ्यता की पुरातत्वविदों की जानकारी के स्रोतों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की सारी जानकारी पुरातत्वविदों को इस सभ्यता से जुड़ी बस्तियों (नगरों) से प्राप्त विशेष शिल्प तथ्यों (Artefacts) से प्राप्त हुई है। उत्खनन से प्राप्त हुई सामग्री में सबसे महत्त्वपूर्ण हड़प्पन मुद्राएँ (Seals) हैं। ये एक विशेष पाषाण (Steatite) से बनी हैं तथा इन पर पशुओं (बैल, सांड, हाथी, गैण्डा) के मुद्रांकन हैं। इन पर लिपि के संकेत भी गोदे हुए हैं जिन्हें अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। ये मुद्राएँ सभी स्थलों पर बड़ी संख्या में प्राप्त हुई हैं। इसके अतिरिक्त शहरों, दस्तकारी केन्द्रों दुर्ग स्थानों आदि से अनेक महत्त्वपूर्ण अवशेष प्राप्त हुए हैं। कच्ची और पक्की ईंटों से बने घर और घरों में कुएँ मिले हैं।

ऊँचे तथा निचले स्थलों (दो भागों में) पर बसे नगर एवं नगरों में अन्नागार और बड़ी-बड़ी इमारतें हैं। मोटे तथा लाल मिट्टी के अलंकृत बर्तन (मृदभाण्ड) तथा मिट्टी की मुख्य मूर्तियाँ पाई गई हैं। तांबे तथा कांस्य के औजार, मूर्तियाँ तथा बर्तन हैं। पत्थर के बाट और कीमती पत्थरों के मनके हैं। समुद्री शैल तथा हाथी-दाँत के गहने भी हैं। इसके अतिरिक्त कांस्य, सोना तथा चाँदी के आभूषण भी मिले हैं। इस प्रकार पुरातत्वविदों की जानकारी के प्रमुख स्रोत हैं-मुद्राएँ, मुद्रांक, नगर दुर्ग, निचले नगर, नगरों की बसावट, मकान, विशाल इमारतें, ईंटें, मृदभाण्ड, तौल, बर्तन, औजार, मनके, गहने, मूर्तियाँ इत्यादि।

प्रश्न 3.
हड़प्पा के लोगों के जीविका निर्वाह के तरीकों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के आरंभिक चरण में जीविका निर्वाह के तरीके विकसित हो रहे थे। वे अनेक फसलें उगाने लगे थे। इनसे उन्हें खाद्यान्न प्राप्त होते थे। वे कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पाद, जानवरों (मछली सहित) से भोजन प्राप्त करने में सफल थे। अनाज के जले दानों तथा बीजों की खोज से पुरातत्वविदों ने हड़प्पाई लोगों की आहार संबंधी आदतों के बारे में जानकारी प्राप्त की है। पुरावनस्पतिज्ञों के अनुसार हड़प्पाई लोग गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, तिल आदि अनाज के दानों से परिचित थे। बाजरे के दाने गुजरात से मिले। चावल के भी प्रमाण मिले हैं।

हड़प्पा स्थलों से भेड़, बकरी, भैंस, सूअर आदि की हड्डियाँ मिली हैं। पुरा-प्राणिविज्ञानियों के अनुसार ये सभी जानवर पालतू थे। संभवतः वे इनसे दूध तथा मांस प्राप्त करते थे। इसके अलावा जंगली सूअर (वराह), हिरणं तथा घड़ियाल की हड्डियाँ भी मिली हैं। मुर्गे की हड्डियों के प्रमाण भी हैं। कृषि उपज बढ़ाने के लिए खेतों को जोतते होंगे। हल के प्रमाण बनावली तथा जुते हुए खेत के प्रमाण कालीबंगन से मिले हैं। सिंचाई के प्रमाण मिले हैं। कुएँ, जलाशय, झीलों, नहरों से सिंचाई की जाती होगी। यद्यपि सिंचाई के कम ही प्रमाण मिले हैं।

प्रश्न 4.
मोहनजोदड़ो की सड़कों और गलियों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो की सड़कें व गलियाँ पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार बनाई गई थीं। सड़कें और गलियाँ सीधी होती थीं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। सड़कें पूर्व से पश्चिम या उत्तर से दक्षिण दिशा में बिछी हुई थीं। इससे नगर कई भागों में बंट जाते थे। मोहनजोदड़ों में मुख्य सड़क 10.5 मीटर चौड़ी थी, इसे ‘प्रथम सड़क’ कहा गया है। इस ‘प्रथम सड़क’ पर एक साथ पहिए वाले सात वाहन गुजर सकते थे।

अन्य सड़कें 3.6 से 4 मीटर तक चौड़ी थीं। गलियाँ एवं गलियारे 1.2 मीटर (4 फुट) या । उससे अधिक चौड़े थे। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सड़कों, गलियों तथा नालियों की व्यवस्था लागू करने तथा निरंतर देखभाल के लिए नगरपालिका या नगर प्राधिकरण जैसी कोई प्रशासनिक व्यवस्था रही होगी। स्पष्ट है कि नगर में सड़कें व गलियाँ एक योजना के अनुसार बनाई गई थीं। मुख्य मार्ग उत्तर से दक्षिण की ओर जाते थे। अन्य सड़कें और गलियाँ मुख्य मार्ग को समकोण पर काटती थीं जिससे नगर वर्गाकार/आयताकार खंडों में विभाजित होता था।

प्रश्न 5.
‘मोहनजोदड़ो एक नियोजित नगर था।’ इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
इस बात के पुख्ता पुरावशेष हैं कि मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहरी केंद्र था इसको हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा शहरी केंद्र माना जाता है। इस सभ्यता की नगर-योजना, गृह निर्माण, मुद्रा, मोहरों आदि की अधिकांश जानकारी मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई है। यह नगर दो भागों में बँटा था। एक भाग में इंटों से बनाए ऊँचे चबूतरे पर स्थित बस्ती है। इसके चारों ओर ईंटों से बना परकोटा (किला) था, जिसे ‘नगर दुर्ग’ (Citadel) कहा जाता है।

‘नगर दुर्ग’ का क्षेत्रफल निचले नगर से कम था। इसमें पकाई ईंटों से बने अनेक बड़े भवन पाए गए हैं। दुर्ग क्षेत्र में शासक वर्ग के लोग रहते थे। निचले नगर के चारों ओर भी दीवार थी। इस क्षेत्र में भी कई भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था। ये चबूतरे भवनों की आधारशिला (Foundation) का काम करते थे।

दुर्ग क्षेत्र के निर्माण तथा निचले क्षेत्र में चबूतरों के निर्माण के लिए विशाल संख्या में श्रमिकों को लगाया गया होगा। इस नगर की यह भी विशेषता रही होगी कि पहले प्लेटफार्म या चबूतरों का निर्माण किया जाता होगा तथा बाद में इस तय सीमित क्षेत्र में निर्माण कार्य किया जाता होगा। इसका अभिप्राय यह हुआ कि पहले योजना बनाई जाती होगी तथा बाद में उसे योजनानुसार लागू किया जाता था। नगर की पूर्व योजना (Pre-planning) का पता ईंटों से भी लगता है। ये ईंटें पकाई हुई (पक्की) तथा धूप में सुखाई हुई होती थीं। इनका मानक (1:2:4) आकार था। इसी मानक आकार की ईंटें हड़प्पा सभ्यता के अन्य नगरों में भी प्रयोग हुई हैं।
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मोहनजोदड़ो का नक्शा हुई हैं। मोहनजोदड़ो के एक नियोजित नगर होने का प्रमाण वहाँ पर सड़कों तथा नालियों की सुव्यवस्था का प्राप्त होना भी है। गृह स्थापत्य से भी स्पष्ट है कि पहले नक्शे बनाए जाते थे तथा बाद में घर का निर्माण किया जाता था।

प्रश्न 6.
हड़प्पा सभ्यता की निकास व्यवस्था (नालियों की व्यवस्था) के बारे में आप क्या जानते हैं? क्या यह नगर योजना की ओर संकेत करती है?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के शहरों की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक थी- ध्यानपूर्वक नियोजित जल निकास व्यवस्था (नालियों की व्यवस्था)। नियोजित और व्यापक नालियों की व्यवस्था हमें अन्य किसी भी समकालीन सभ्यता के नगरों में प्राप्त नहीं होती है। प्रत्येक घर में छोटी नालियाँ होती थीं जो घर के पानी को बाहर गली या सड़क के किनारे बनी नाली में पहुँचाती थीं। प्रमुख सड़कों एवं गलियों के साथ 1 से 2 फुट गहरी ईंटों तथा पत्थरों से ढकी नालियाँ होती थीं।

मुख्य नालियों में कचरा छानने की व्यवस्था भी होती थी। नालियों में ऐसी व्यवस्था करने के लिए बड़े गड्ढे (शोषगत) होते थे, जो पत्थरों या ईंटों से ढके होते थे जिन्हें सफाई करने के लिए आसानी से हटाया और वापस रख दिया जाता था। मुख्य नालियाँ एक बड़े नाले के साथ जुड़ी होती थीं जो सारे गंदे पानी को नदी में बहा देती थीं। हड़प्पाकालीन नगरों की जल निकास प्रणाली पर टिप्पणी करते हुए ए०एल० बाशम ने लिखा है, नालियों की अद्भुत व्यवस्था सिन्धु घाटी के लोगों की महान सफलताओं में से एक थी।

रोमन सभ्यता के अस्तित्व में आने तक किसी भी प्राचीन सभ्यता की नाली व्यवस्था इतनी अच्छी नहीं थी।” जल निकासी की यह व्यवस्था केवल बड़े-बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं थी वरन् छोटी बस्तियों में भी इसके प्रमाण मिले हैं। उदाहरण के लिए लोथल में भी पक्की ईंटों की नालियां हैं। नालियों के विषय में मैके ने लिखा है, “निश्चित रूप से यह अब तक खोजी गई सर्वथा संपूर्ण प्राचीन प्रणाली है। नालियों की व्यवस्था से यह स्पष्ट संकेत होता है कि नगर योजनापूर्वक बनाए जाते थे।”

प्रश्न 7.
हड़प्पा सभ्यता के गृह स्थापत्य पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखि
उत्तर:
मोहनजोदड़ो से उपलब्ध आवासीय भवनों के नमूनों से सभ्यता के गृह स्थापत्य का अनुमान लगाया जाता है। घरों की बनावट में समानता पाई गई है। ज्यादातर घरों में आंगन (Courtyard) होता था और इसके चारों तरफ कमरे बने होते थे। ऐसा लगता है कि आंगन परिवार की गतिविधियों का केंद्र था। उदाहरण के लिए गर्म और शुष्क मौसम में आंगन में खाना पकाने व कातने जैसे कार्य किए जाते थे।

ऐसा भी प्रतीत होता है कि घरों के निर्माण में एकान्तता (Privacy) का ध्यान रखा जाता था। भूमि स्तर (Ground level) पर दीवार में कोई भी खिड़की नहीं होती थी। इसी प्रकार मुख्य प्रवेश द्वार से घर के अन्दर या आंगन में नहीं झांका/देखा जा सकता था। बड़े घरों में कई-कई कमरे, रसोईघर, शौचालय एवं स्नानघर होते थे। कई मकान तो दो मंजिले थे तथा ऊपर पहुंचने के लिए सीढ़ियाँ बनाई जाती थीं। मोहनजोदड़ो में प्रायः सभी घरों में कुएँ होते थे।
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प्रश्न 8.
शवाधान के आधार पर सभ्यता में पाई गई चित्र : एक घर का स्थापत्य, मोहनजोदड़ो सामाजिक भिन्नता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में शवाधानों में पाए गए अवशेषों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि इस सभ्यता में सामाजिक तथा आर्थिक भिन्नताएँ मौजूद थीं। आपको जानकारी होगी कि मिस्र के विशाल पिरामिड वस्तुतः वहाँ के राजाओं की कबें हैं। इन कब्रों में राजाओं के मृत शरीर हैं तथा इनको सोने या अन्य धातुओं के ताबूत में रखा जाता था। उनके साथ बहुमूल्य सामग्री, वस्तुएँ और धन-संपत्ति भी रखी जाती थी।

हड़प्पा की सभ्यता मिस्र की सभ्यता के समकालीन थी। हड़प्पा में भी मृतकों के अन्तिम संस्कार का सबसे ज़्यादा प्रचलित तरीका दफनाना ही था। शव सामान्य रूप से उत्तर:दक्षिण दिशा में रखकर दफनाते थे। कब्रों में कई प्रकार के आभूषण तथा अन्य वस्तुएं भी प्राप्त हुई हैं। जैसे कुछ कब्रों में ताँबे के दर्पण, सीप और सुरमे की सलाइयाँ पाई गई हैं। कुछ शवाधानों में बहुमूल्य आभूषण और अन्य सामान मिले हैं। कुछ कब्रों में बहुत ही सामान्य सामान मिला है। हड़प्पा की एक कब्र में ताबूत भी मिला है।

यहाँ पर एक कब्र में एक आदमी की खोपड़ी के पास से एक आभूषण मिला है जो शंख के तीन छल्लों, जैस्पर (उपरत्न) के मनकों और सैकड़ों छोटे-छोटे मनकों से बनाया गया है। कालीबंगन में कब्रों में कंकाल नहीं हैं। वहाँ छोटे-छोटे वृत्ताकार गड्ढों में राखदानियाँ तथा मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए हैं। शवाधानों की बनावट से भी विभेद प्रकट होता है। कुछ कळे सामान्य बनी हैं तो कुछ कब्रों में ईंटों की चिनाई की गई है। ऐसा लगता है कि चिनाई वाली कā उच्चाधिकारी वर्ग अथवा अमीर लोगों की हैं। सारांश में हम कह सकते हैं कि शवाधानों से प्राप्त सामग्री से हमें हड़प्पा के समाज की सन्तोषजनक जानकारी अवश्य प्राप्त हो जाती है।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 9.
हड़प्पा सभ्यता के स्थलों से प्राप्त विलासिता की वस्तुओं के आधार पर सामाजिक विभेदन का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के नगरों से प्राप्त कलातथ्यों (Artefacts) से भी सामाजिक विभेदन का अनुमान लगाया जाता है। इन कलातथ्यों को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जाता है-पहले ऐसे अवशेष थे जो दैनिक उपयोग (Utility) के थे तथा दूसरे विलासिता  (Luxury) से जुड़े थे। दैनिक उपयोग के सामान में चक्कियाँ, बर्तन, सुइयाँ, झाँवा आदि को शामिल किया जा सकता है। इन्हें मिट्टी या पत्थर से आसानी से बनाया जा सकता था।

सामान्य उपयोग की ये वस्तुएं हड़प्पा सभ्यता के सभी स्थलों से प्राप्त हुई हैं। दूसरा विलासिता की वस्तुओं में महँगी तथा दुर्लभ वस्तुएँ शामिल थीं। इनका निर्माण बाहर से प्राप्त सामग्री/पदार्थों से या जटिल तरीकों द्वारा किया जाता था। उदाहरण के लिए फ़यॉन्स (घिसी रेत या सिलिका/बालू रेत में रंग और गोंद मिलाकर पकाकर बनाए बर्तन) के छोटे बर्तन इस श्रेणी में रखे जा सकते हैं। ये फयॉन्स से बने छोटे-छोटे पात्र संभवतः सुगन्धित द्रवों को रखने के लिए प्रयोग में लाए जाते थे।

हड़प्पा के कुछ पुरास्थलों से सोने के आभूषणों की निधियाँ (पात्रों में जमीन में दबाई हुई) भी मिली हैं। उल्लेखनीय है कि जहाँ दैनिक उपयोग का सामान हड़प्पा की सभी बस्तियों में मिला है, वहीं विलासिता का सामान मुख्यतः मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे बड़े नगरों में ही मिला है जो संभवतः राजधानियाँ भी थीं। उदाहरण के लिए कालीबंगन जैसी छोटी-छोटी बस्तियों से फ़यॉन्स (Faience) से बने कोई भी पात्र नहीं मिले हैं। इस सबका अभिप्राय है कि विलासिता से संबंधित या महँगा सामान अमीर वर्ग के लोगों के पास होता था तथा मुख्यतः बड़े नगर में ही होता था।

प्रश्न 10.
मोहरों व मुद्रांकनों पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
हल्की चमकदार सतह वाली सफेद रंग की आकर्षक मोहरें (Seals) हड़प्पा सभ्यता की अति महत्त्वपूर्ण कलातथ्य हैं। सेलखड़ी की वर्गाकार व आयताकार मुद्राएँ सभी स्थलों से मिली हैं। अकेले मोहनजोदड़ो में 1200 मुद्राएँ प्राप्त हुई हैं। इन पर लेख भी अंकित थे। कूबड़ वाला बैल, कूबड़ रहित बैल, सिंह, हाथी, गैंडे आदि पशु इन मुद्राओं पर चित्रित हैं। पशुपति वाली मुद्रा सबसे अधिक उल्लेखनीय है।

इतने बड़े पैमाने पर मुद्रा तथा मुद्रांकनों की प्राप्ति इस तथ्य की ओर संकेत करती है कि इन मोहरों और मुद्रांकनों का प्रयोग लम्बी दूरी के साथ व्यापार संपर्कों को सुविधाजनक बनाने के लिए किया जाता था। सामान से भरे थैले के मुँह को रस्सी से बाँधकर या सिलकर उन पर गीली मिट्टी लगाई जाती थी। इसके बाद इस पर मुद्रांकन छापा जाता था जिसका संबंध सामान की सही व सुरक्षित पहुँच तथा भेजने वाले की पहचान से होता था।
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प्रश्न 11.
माप-तौल के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता की एक अन्य विशेषता माप और तौल व्यवस्था में समरूपता का पाया जाना था। दूर-दूर तक फैली बस्तियों में एक ही प्रकार के बाट-बट्टे पाए गए हैं। हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने तौल की इस प्रणाली से आपसी व्यापार और विनिमय को नियन्त्रित किया होगा। ये बाट (तौल) निम्न मूल्यांकों (Lower Denominations) में द्विचर (binary) प्रणाली के अनुसार हैं-1, 2, 4, 8, 16, 32……… से 12,800 तक। ऊपरी मूल्यांकों (Higher Denominations) में दशमलव प्रणाली का अनुसरण किया जाता था।

ये बाट चकमकी पत्थर, चूना पत्थर, सेलखड़ी आदि से बने होते थे। यह आकार में घनाकार या गोलाकार होते थे। छोटे बाट भी थे जिनका प्रयोग संभवतः आभूषण व मनके तोलने के लिए किया जाता था। धातु के पैमाने जैसे कला तथ्य भी पाए गए हैं। जिनकी लम्बाई 37.6 सेंटीमीटर की एक फुट की इकाई पर आधारित होती थी। ऐसे डंडे भी पाए गए हैं जिन पर माप के निशान लगे हुए हैं। इनमें एक डंडा कांसे का भी है।
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प्रश्न 12.
पुरातत्वविद् एक उत्पादन केंद्र की पहचान कैसे करते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
1. पहचान का तरीका-पुरातत्वविद् किसी उत्पादन केंद्र को पहचानने में कुछ चीजों का प्रमाण के रूप में सहारा लेते हैं। पत्थर के टुकड़ों, पूरे शंखों, सीपी के टुकड़ों, तांबा, अयस्क जैसे कच्चे माल, अपूर्ण वस्तुओं, छोड़े गए माल और कूड़ा-कर्कट आदि चीजों से उत्पादन केंद्रों की पहचान की जाती है। कारीगर वस्तुओं को बनाने के लिए पत्थर को काटते समय या शंख-सीपी को काटते हुए अनुपयोगी सामग्री छोड़ देते थे। कार्यस्थलों (Work Shops) से प्राप्त ऐसी सामग्री के ढेर होने पर अनुमान लगाया जाता है कि वह स्थल उत्पादन केंद्र रहा होगा।

2. प्रमुख उत्पादन केंद्र

  • बालाकोट (बलूचिस्तान में समुद्रतट के समीप) व चन्हुदड़ो (सिंध में) सीपीशिल्प और चूड़ियों के लिए प्रसिद्ध थे।
  • लोथल (गुजरात) और चन्हुदड़ो में लाल पत्थर (Carnelian) और गोमेद के मनके बनाए जाते थे।
  • चन्हुदड़ो में वैदूर्यमणि के कुछ अधबने मनके मिले हैं जिससे अनुमान लगाया जाता है कि यहाँ पर दूर-दराज से बहुमूल्य पत्थर आयात किया जाता था तथा उन पर काम करके उन्हें बेचा जाता था।

प्रश्न 13.
हड़प्पाई लोगों द्वारा माल प्राप्ति की क्या नीतियाँ थीं?
उत्तर:
हड़प्पाई शिल्प उत्पादों के लिए अनेक प्रकार के कीमती व अर्द्ध कीमती पत्थरों, ताँबा, जस्ता, कांसा, सोना, चाँदी, टिन, लकड़ी, कपास आदि सामान की जरूरत पड़ती थी। इसके लिए उन्हें भारतीय उपमहाद्वीप तथा इससे दूरस्थ क्षेत्रों से माल प्राप्त करना पड़ता था। इसके लिए निम्नलिखित नीतियाँ अपनाई जाती थीं

1. बस्तियों की स्थापना-सिन्ध, बलूचिस्तान के समुद्रतट, गुजरात, राजस्थान तथा अफ़गानिस्तान तक के क्षेत्र से कच्चा माल  प्राप्त करने के लिए उन्होंने बस्तियों का निर्माण किया हुआ था। इन क्षेत्रों में प्रमुख बस्तियां थीं-नागेश्वर (गुजरात), बालाकोट, शोर्तुघई (अफगानिस्तान), लोथल आदि। नागेश्वर और बालाकोट से शंख प्राप्त करते थे। शोर्तुघई (अफगानिस्तान) से कीमती लाजवर्द मणि (नीलम) आयात, करते थे। लोथल के संपर्कों से भड़ौच (गुजरात) में पाई जाने वाली इन्द्रगोपमणि (Carnelian) मँगवाई जाती थी। इसी प्रकार उत्तर गुजरात व दक्षिण राजस्थान क्षेत्र से सेलखड़ी का आयात करते थे।

2. अभियानों से माल प्राप्ति-हड़प्पा सभ्यता के लोग उपमहाद्वीप के दूर-दराज क्षेत्रों तक अभियानों (Expeditions) का आयोजन कर कच्चा माल प्राप्त करने का तरीका भी अपनाते थे। इन अभियानों से वे. स्थानीय क्षेत्रों के लोगों से संपर्क स्थापित करते थे। इन स्थानीय लोगों से वे वस्तु विनिमय से कच्चा माल प्राप्त करते थे। ऐसे अभियान भेजकर राजस्थान के खेतड़ी क्षेत्र से तांबा तथा दक्षिण भारत में कर्नाटक क्षेत्र से सोना प्राप्त करते थे। उल्लेखनीय है कि इन क्षेत्रों से हड़प्पाई पुरा वस्तुओं तथा कला तथ्यों के साक्ष्य मिले हैं। पुरातत्ववेत्ताओं ने खेतड़ी क्षेत्र से मिलने वाले साक्ष्यों को गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति का नाम दिया है जिसके विशिष्ट मृदभांड हड़प्पा के मृदभांडों से भिन्न हैं।

3. दूरस्थ व्यापार-हड़प्पावासी समुद्री मार्गों से दूरस्थ प्रदेश से व्यापार का आयोजन करते थे। इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि हड़प्पा के व्यापारी मगान, दिलमुन तथा मेसोपोटामिया से व्यापार कर ताँबा, सोना, चाँदी, कीमती लकड़ी आदि आयात करते थे।

प्रश्न 14.
हड़प्पाई ‘रहस्यमय लिपि’ पर टिप्पणी करें।
उत्तर:
हड़प्पा की मोहरों पर चित्रों के माध्यम से लिखावट है। मुद्राओं के अतिरिक्त ताम्र उपकरणों व पट्टिकाओं, मिट्टी की लघु पट्टिकाओं, कुल्हाड़ियों, मृदभांडों आभूषणों, अस्थि छड़ों और एक प्राचीन सूचनापट्ट पर भी हड़प्पा लिपि के कई नमूने प्राप्त हुए हैं। उल्लेखनीय है कि यह लिपि अभी तक पढ़ी न जा सकने के कारण रहस्य बनी हुई है। अतः यह नहीं कहा जा सकता कि हड़प्पा निवासी कौन-सी भाषा बोलते.थे और उन्होंने क्या लिखा। विद्वानों का मानना है कि इन चित्रों के रूपाकंनों (Motifs) के द्वारा अर्थ समझाया गया था। इन चित्रों से अनपढ़ भी संकेत से अर्थ समझ जाते होंगे।
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अधिकांश अभिलेख छोटे हैं। सबसे लम्बे अभिलेख में लगभग 26 चिहन हैं। यह लिपि संभवतः वर्णात्मक (Alphabetical) नहीं थी। इसमें बहुत-से चिह्न ही प्रयोग में होते थे जिनकी संख्या 375 तथा 400 के बीच बताई गई है। ऐसा लगता है कि यह लिपि दाईं-से-बाईं ओर लिखी जाती थी। ऐसा अनुमान इसलिए भी लगाया जाता है कि कुछ मोहरों पर दाईं तरफ चौड़ा अंतराल (Space) है और बाईं तरफ काफी कम अंतराल है।

प्रश्न 15.
हड़प्पा सभ्यता की खोज कैसे हुई?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के प्रकाश में आने की कहानी रोचक है। इस सभ्यता को खोज निकालने में अनेक व्यक्तियों का योगदान है। 1826 में चार्ल्स मेसेन हड़प्पा गाँव में आया तथा उसने यहाँ किसी प्राचीन स्थल के विद्यमान होने का सबसे पहले उल्लेख किया। इसी प्रकार 1834 में बर्नेस ने सिन्धु के किनारे किसी ध्वस्त किले के होने की बात की। 1853 तथा पुनः 1856 में कनिंघम (भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक) ने हड़प्पा की यात्रा की तथा वहाँ टीले के नीचे किसी प्राचीन सभ्यता के दबे होने की सम्भावना जताई। कनिंघम ने उक्त स्थल की सीमित खुदाई भी करवाई तथा प्राप्त अवशेषों (मोहरों) एवं उत्खनन स्थल मानचित्र का प्रकाशन भी किया।

1886 में एम०एल० डेम्स एवं 1912 में पलीट ने भी हड़प्पाकालीन कुछ मुद्राओं के चित्र प्रकाशित किए। 1920 के प्रारम्भिक दशक में सिन्ध में जब रेलवे लाईन बिछाई जा रही थी तब खुदाई के दौरान अज्ञात सभ्यता के अवशेष प्रकाश में आए। 1921 में दयाराम साहनी द्वारा हड़प्पा और 1922 में राखाल दास बनर्जी द्वारा मोहनजोदड़ो में किए गए खुदाई कार्यों से इस सभ्यता का अस्तित्व निर्णायक रूप से सिद्ध हो गया।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तत्कालीन महानिदेशक सर जॉन मार्शल ने इस उत्खनन में रुचि ली तथा 1924 में लंदन से प्रकाशित एक साप्ताहिक पत्र में इस सभ्यता की खोज के बारे में घोषणा की। इससे पुरातत्वविदों में सनसनी फैल गई। इन उत्खननों से यह बात उभरकर आई कि यह एक विशिष्ट सभ्यता थी। जिसके अज्ञात निर्माताओं ने नगरों का निर्माण किया। यह सभ्यता मिस्र एवं मेसोपोटामिया की सभ्यताओं के समकालीन थी।

प्रश्न 16.
खोज में कनिंघम के प्रयासों तथा उसकी उलझन पर नोट लिखें।
उत्तर:
कनिंघम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पहले महानिदेशक थे। 1853 तथा पुनः 1856 में कनिंघम ने हड़प्पा की यात्रा की तथा वहाँ टीले के नीचे किसी प्राचीन सभ्यता के दबे होने की संभावना जताई। उन्होंने वहाँ पर कुछ खुदाई भी करवाई। इसकी रिपोर्ट तथा एक मोहर का चित्र भी छापा। परंतु वे हड़प्पा के स्वतंत्र अस्तित्व को नहीं आंक सके। उनकी रुचि छठी सदी ईसा पूर्व से चौथी सदी ईसा पूर्व तथा इसके बाद के प्राचीन इतिहास के पुरातत्व में थी। उन्होंने बौद्धधर्म से संबंधित चीनी यात्रियों के वृत्तांतों का प्रारंभिक बस्तियों की पहचान करने में प्रयोग किया। सर्वेक्षण के कार्य में शिल्प तथ्य एकत्र किए। उनका रिकॉर्ड रखा। कनिंघम ने उपलब्ध कलातथ्यों के सांस्कृतिक अर्थों को भी समझने का प्रयास किया।

परंतु हड़प्पा जैसे स्थल की इन चीनी वृत्तांतों में न तो विवरण था, न ही इन नगरों की ऐतिहासिकता की कोई जानकारी। अतः यह नगर ठीक प्रकार से उनकी खोजों के दायरे में नहीं समा पा रहे थे। वस्तुतः वे यहाँ से प्राप्त कला-तथ्यों की पुरातनता नगा पाए। उदाहरण के लिए एक अंग्रेज ने कनिंघम को हड़प्पा की एक मोहर दी। कनिंघम ने अपनी रिपोर्ट में इसका चित्र भी दिया परंतु वह इसे इसके समय-संदर्भ में रख पाने में असफल रहे। इसका कारण यह रहा होगा कि अन्य विद्वानों की भांति वह भी यह मानते थे कि भारत में पहली बार नगरों का अभ्युदय गंगा-घाटी में 6 वीं, 7वीं सदी ई०पू० से हुआ। अतः यह आश्चर्य की बात नहीं है कि वे हड़प्पा के महत्त्व को नजरअंदाज कर गए।

प्रश्न 17.
हड़प्पा की खोज में सर जॉन मार्शल के योगदान का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1921 में दयाराम साहनी ने हड़प्पा स्थल से अनेक मोहरें उत्खनन में प्राप्त की। ऐसा ही कार्य 1922 में राखालदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो में किया। दोनों स्थलों की मोहरों में समानता थी। इससे यह निष्कर्ष निकाल पुरातात्विक संस्कृति का हिस्सा है। इन खोजों के आधार पर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के तत्कालीन महानिदेशक सर जॉन मार्शल ने 1924 ई० में (लन्दन में प्रकाशित एक साप्ताहिक पत्र में) सारी दुनिया के समक्ष इस नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की।

सारी दुनिया में इससे सनसनी फैल गई। इस बारे में एस.एन.राव ने ‘द स्टोरी ऑफ़ इंडियन आर्कियोलॉजी’ में लिखा, “मार्शल ने . भारत को जहाँ पाया था, उसे उससे तीन हजार वर्ष पीछे छोड़ा।” उल्लेखनीय है कि हड़प्पा जैसी मोहरें मेसोपोटामिया से भी मिली थीं। अब यह स्पष्ट हुआ कि यह एक नई सभ्यता थी जो मेसोपोटामिया के समकालीन थी।

सर जॉन मार्शल द्वारा हड़प्पा सभ्यता की घोषणा के साथ-साथ उन्होंने उत्खनन प्रणाली में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। वे भारत में कार्य करने वाले पेशेवर पुरातत्वविद् थे। उनके पास यूनान व क्रिट में उत्खननों का अनुभव था। उन्हें आकर्षक खोजों में रुचि थी परंतु वे इन खोजों में दैनिक जीवन पद्धतियों को जानना चाहते थे। सर जॉन मार्शल ने उत्खनन की नई तकनीक को शुरू किया। उन्होंने पुरास्थल के स्तर विन्यास को पूरी तरह अनदेखा कर । पूरे टीले में समान परिमाण वाली नियमित क्षैतिज इकाइयों के साथ-साथ उत्खनन करने का प्रयास किया।

प्रश्न 18.
हड़प्पा सभ्यता से जुड़े उत्खनन में व्हीलर के योगदान को स्पष्ट करें।
उत्तर:
1944 ई० में व्हीलर महोदय भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (Archeological Survey and India) के महानिदेशक बने। उन्होंने पुरानी खुदाई तकनीक व उससे जुड़ी समस्या को ठीक करने का प्रयास किया। उनसे पहले सर जॉन मार्शल ने पुरा स्थल की स्तर विन्यास (Stratigraphy) पर ध्यान न देकर सारे टीले को समान आकार की क्षैतिज इकाइयों में उत्खनन करवाया। फलतः अलग-अलग स्तरों से संबंधित पुरावशेषों को एक इकाई विशेष में वर्गीकृत कर दिया गया।

इसका नतीजा यह हुआ कि इन खोजों के संदर्भ से जुड़ी महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ सदैव के लिए खो गईं। उन्होंने एक समान क्षैतिजीय इकाइयों के आधार पर खुदाई की अपेक्षा स्तर विन्यास (Stratigraphy) का ध्यान रखना भी जरूरी माना। वे सेना में ब्रिगेडियर रह चुके थे। अतः उन्होंने पुरातत्व प्रणाली में एक सैन्य परिशुद्धता (Precision) का भी समावेश किया।

व्हीलर महोदय ने अत्यंत मेहनत व साहस की भावना से कार्य किया। वे सबह 5:30 बजे अपनी टीम के साथ कार्य पर लगते थे तथा गर्मी में सूर्य की तेज रोशनी में कुदालियों और चाकुओं के साथ कठिन परिश्रम करते रहते थे। उन्होंने इस प्रकार संस्मरण अपनी पुस्तक ‘माई आर्कियोलॉजिकल मिशन टू इंडिया एंड पाकिस्तान (1976)’ में दिए हैं।

प्रश्न 19.
शिल्प तथ्यों के वर्गीकरण के आधार स्पष्ट करें।
उत्तर:
पुरातत्वविद् भौतिक अवशेषों को प्राप्त कर, उनका विश्लेषण करते हैं। इससे इस सभ्यता के जीवन का पुनर्निर्माण करते हैं। ये भौतिक अवशेष या कला तथ्य मृदभाण्ड (बर्तन), औजार, गहने, घर का सामान आदि हैं। इसके अलावा कपड़ा, चमड़ा, लकड़ी का सामान जैसे जैविक पदार्थ हमारे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में गल (Decompose) गए हैं। जो बचे हैं वे हैं पाषाण, जली मिट्टी से बनी टेराकोटा की (मृण्य) मूर्तियाँ, धातु आदि।

शिल्प तथ्यों को खोज लेना पुरातत्व के कार्य में मात्र शुरुआत होती है। बाद में पुरातत्वविद् इन्हें विभिन्न आधार पर वर्गीकृत करते हैं। सामान्यतः निम्नलिखित आधारों पर इनका वर्गीकरण किया जाता है

(i) सामान्यतः वर्गीकरण सामग्री के आधार पर होता है; जैसे पत्थर, मिट्टी, धातु, हड्डी, हाथीदांत आदि।

(ii) वर्गीकरण का अन्य तरीका प्राप्त वस्तु के कार्य (Function) के आधार पर होता है; जैसे एक कला तथ्य औजार है या गहना या वह किसी अनुष्ठान के लिए प्रयोग का एक उपकरण है। यह वर्गीकरण सरल अनुष्ठान नहीं है।

(iii) कई बारं यह वर्गीकरण वर्तमान में चीजों के प्रयोग के आधार पर भी किया जाता है; जैसे मनके, चक्कियाँ, पत्थर के ब्लेड या पात्र आदि।

(iv) मिलने के स्थान के आधार पर भी पुराविद् इनका वर्गीकरण करते हैं। क्या वस्तु घर में मिली है या निकासी या अन्य स्थान पर।

(v) कभी-कभार पुरातत्वविद् परोक्ष तथ्यों का सहारा लेकर वर्गीकरण करते हैं। उदाहरण के लिए कुछ हड़प्पा स्थलों पर कपड़ों के अंश मिले हैं। तथापि कपड़ा होने के प्रमाण के लिए दूसरे स्रोत जैसे मूर्तियों का सहारा लिया जाता है। किसी भी शिल्प तथ्य को समझने के लिए पुरातत्ववेत्ता को उसके संदर्भ की रूपरेखा विकसित करनी पड़ती है। उदाहरण के लिए हड़प्पा की मोहरों को तब तक नहीं समझा जा सका जब तक उन्हें सही संदर्भ में नहीं रख पाए। वस्तुतः इन मोहरों को उनके सांस्कृतिक अनुक्रम (Cultural Sequence) एवं मेसोपोटामिया में हुई खोजों की तुलना के आधार पर ही सही अर्थों में समझा जा सका।

प्रश्न 20.
हड़प्पा सभ्यता के धर्म के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के धार्मिक विश्वासों का पता लगाने के लिए पुरातत्वविदों व इतिहासकारों को उपलब्ध पुरावशेषों से निष्कर्ष निकालने पड़ते हैं। इस प्रकार के पुरावशेषों में विशेषतौर पर मोहरों और मृण्मूर्तियों का सहारा लिया जाता है। मिट्टी की बनी मूर्ति, जिसे मातृदेवी की मूर्ति बताया जाता है, उससे अनुमान लगाया जाता है कि यह भूमि की उर्वरता से जुड़ी है. तथा यह धरती देवी की मूर्ति है। एक पत्थर की मोहर पर पुरुष देवता को विशेष मुद्रा में बैठा दिखाया गया है तथा उसके आसपास कई जानवर हैं, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि यह पशुपति की मूर्ति है जो बाद में शिव के रूप में उभरकर आए। लिंग तथा योनि की पूजा के भी संकेत मिले हैं।

कुछ वृक्षों को पवित्र माना जाता था। कूबड़ सांडों की भी सम्भवतः पूजा की जाती थी। आज भी भारत में सांडों को पवित्र दृष्टि से देखा जाता है। हड़प्पावासी मृतकों को दफनाने के ऐसे प्रमाण कुछ नगरों (हड़प्पा) के समीप प्राप्त कब्रिस्तानों से लगाए जाते हैं जहाँ कब्रों में घर का सामान, गहने तथा शीशे आदि प्राप्त हुए हैं। परंतु मिस्र सभ्यता के समान कब्रों पर किसी प्रकार के बड़े ढाँचे (पिरामिड जैसे) देखने को नहीं मिलते हैं।

प्रश्न 21.
हड़प्पा सभ्यता का आविर्भाव (उदय) किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
यह प्रश्न.रोचक और महत्त्वपूर्ण है कि हड़प्पा सभ्यता के नगरों का आविर्भाव कैसे हुआ। मोर्टियर व्हीलर महोदय ने यह व्याख्या दी थी कि कुछ बाहर से आई जातियों द्वारा इस क्षेत्र को जीतकर नगरों की स्थापना की गई। परंतु बाद के अन्वेषणों के आधार पर विद्वानों ने इस व्याख्या को अस्वीकार कर दिया तथा अब यह आम धारणा बन गई है कि हड़प्पा के नगरों के स्थापित होने से पहले (प्राक हड़प्पा काल में) यहाँ पर कृषि समुदायों के विकास की एक दीर्घ प्रक्रिया रही है। इस प्रक्रिया को समझने के लिए अग्रलिखित प्राक बस्तियों के उदय को जानना जरूरी है

1. मेहरगढ़ (Mehargarh)-ऐसे समुदाय के विकास के प्रमाण मेहरगढ़ नामक स्थान से मिले हैं। यहाँ पर ईसा से पाँच हजार वर्ष पूर्व लोग गेहूँ तथा जौ की खेती करते थे एवं भेड़-बकरियाँ पालते थे। धीरे-धीरे इन्होंने सिंधु की बाढ़ पर नियंत्रण करना सीखा। इसके मैदानों का खेती के लिए उपयोग किया। इससे जनसंख्या में वृद्धि हुई। यह लोग पशु चराने के लिए दूर-दूर तक जाते थे। इससे परस्पर आदान-प्रदान बढ़ा तथा व्यापार शुरू हुआ। मेहरगढ़ के लोग कई प्रकार की मालाएँ बनाते थे। यहाँ से मोहरें भी मिली हैं। इसके अलावा यहाँ से डिजाइनदार मिट्टी के बर्तन, मिट्टी की मूर्तियाँ व तांबे तथा पत्थर की वस्तुएँ भी मिली हैं।

2. दंबसादात (Dambsadat)-मेहरगढ़ की भांति क्वेटाघाटी में दंबसादात से भी प्राक-हड़प्पन सभ्यता के प्रमाण मिले हैं। इनमें चित्रधारी किए बर्तन, पक्की मिट्टी की मोहरें, ईंटें आदि मुख्य हैं।

3. रहमान ढेरी (Rahman Dheri) यहाँ से भी हड़प्पा सभ्यता की शुरुआत के प्रमाण मिलते हैं। यह स्थल सिंधु मैदान के पश्चिम भाग में है। यहाँ योजनाबद्ध बने मकान, सड़कें और गलियाँ मिली हैं। इसके चारों ओर ऊँची दीवार है। टूटे-फूटे बर्तनों की चित्रकला हड़प्पा लिपि की ओर संकेत करती है।

4. अमरी (Amri)-सिंधु मैदान के निचले भाग में अमरी (Amri) नामक स्थल से भी शिल्प तथ्य मिले हैं। यहाँ के लोगों ने अन्नागार बनाए। बर्तनों पर कूबड़ बैल की आकृति भी है। वे अपनी बस्ती की दुर्गबन्दी करने लगे थे। बाद में यही स्थल हड़प्पा सभ्यता के नगर के रूप में उभरा। कुछ अन्य स्थलों, जैसे कोटडीजी (Kot Diji), कालीबंगन (Kalibangn) से भी आरंभिक हड़प्पा काल के प्रमाण मिले हैं।

स्पष्ट है कि प्राक हड़प्पा काल में सिंधु क्षेत्र में रहने वाले विभिन्न कृषक समुदायों में सांस्कृतिक परम्पराओं में समानता लगती है। इन छोटी-छोटी परंपराओं के मेल से एक बड़ी परंपरा प्रकट हुई। परंतु यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि ये समुदाय कृषक व पशुचारी थे। कुछ शिल्पों में पारंगत थे। इनकी बस्तियाँ सामान्यतः छोटी थीं तथा कोई भी बड़ी इमारतें नहीं थीं। कुछ प्राक हड़प्पा बस्तियों का परित्याग भी हुआ तथा कुछ स्थलों पर जलाये जाने के भी प्रमाण मिले हैं। तथापि यह स्पष्ट लगता है कि हड़प्पा सभ्यता का आविर्भाव लोक संस्कृति के आधार पर हुआ।

प्रश्न 22.
‘परातत्वविदों को अतीत का पनर्निर्माण करते हए कला तथ्यों (Artefacts) की व्याख्या संबंधी समस्या का सामना करना पड़ता है। उदाहरण सहित इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
यह सत्य है कि पुरातत्वविदों को अतीत का पुनर्निर्माण करते हुए कला तथ्यों की व्याख्या संबंधी समस्या का सामना करना पड़ता है। विशेष तौर पर यह समस्या धार्मिक प्रथाओं के पुनर्निर्माण में ज्यादा आती है। आरंभिक पुरातत्वविदों को लगता था कि कुछ वस्तुएँ, जो असामान्य और अपरिचित लगती थीं, संभवतः धार्मिक महत्त्व की होती थीं। कुछ कलातथ्य की धार्मिक व्याख्याओं के उदाहरण निम्नलिखित प्रकार से हैं

(i) हड़प्पा से नारी की मृण्मूर्तियाँ प्राप्त हुईं। ये आभूषणों (हार) से लदी हुई थीं। सिर पर विस्तृत प्रसाधन (मुकुट जैसा) धारण किया हुआ है। इन्हें मातृदेवी की संज्ञा दी गई। इसी प्रकार दुर्लभ पाषाण से बनी पुरुष की मूर्तियाँ, जिनमें उन्हें एक मानकीकृत मुद्रा में एक साथ घुटने पर रख बैठा हुआ दिखाया गया था, ‘पुरोहित राजा’ की भांति, धर्म से जोड़कर वर्गीकृत कर दिया गया।
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(ii) इसी प्रकार विशाल ढाँचों को भी धार्मिक आनुष्ठानिक महत्त्व का करार दे दिया गया। इसमें विशाल स्नानागार तथा कालीबंगन और लोथल से मिली वेदियाँ शामिल हैं।

(iii) इसी प्रकार कुछ मोहरों का विश्लेषण कर धार्मिक आस्थाओं व प्रथाओं का पुनर्निर्माण किया गया। इनमें से कुछ मोहरों की आनुष्ठानिक क्रियाओं के रूप में.व्याख्या की गई। दूसरी मोहरें (जिन पर पेड़ों के चित्र उत्कीर्ण किए हुए थे) को प्रकृति की पूजा का संकेत स्वीकार किया गया इसी प्रकार कुछ मोहरों की देवता और पूज्य पशुओं के रूप में व्याख्या दी है।

आद्य शिव-एक मोहर पर एक पुरुष देवता को योगी की मुद्रा में दिखाया गया है। इसके दाईं ओर हाथी तथा बाघ एवं बाईं ओर गैंडा तथा भैंसा हैं। पुरुष देवता के सिर पर दो सींग हैं। पुरातत्वविदों ने इस देवता को ‘आद्य शिव’ की संज्ञा दी है। इस ‘आद्य शिव’ वाली मोहर की ऋग्वेद में उल्लेखित रुद्रदेवता से सम तुलना की गई है।
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• एक श्रृंगी पशु-एक मोहर में एक शृंगी पशु उत्कीर्णित है। यह घोड़े जैसा पशु है, जिसके सिर के बीच में एक सींग निकला हुआ है। यह कल्पित तथा संश्लिष्ट लगता है। ऐसा बाद में हिन्दू धर्म के अन्य देवता (नरसिंह देवता) के बारे में कहा जा सकता है।

पुरातत्वविद् ज्ञात से अज्ञात की ओर अर्थात् वर्तमान के ज्ञान के आधार पर अतीत को पुनर्निर्मित करने का तरीका भी अपनाते हैं। हड़प्पा के धर्म की व्याख्या में बाद के काल की परंपराओं के समानांतरों (उसी प्रकार की मिलती-जुलती परंपराओं) का सहारा भी लिया जाता है। पात्रों आदि के संबंध में तो इस प्रकार का सहारा लेना ठीक लगता है परंतु धार्मिक पहचान बिंदुओं (Religion Symbols) को समझने में इस प्रकार का तरीका अपनाना अधिक कल्पनाशील (Speculative) हो जाता है।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 23.
हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न केंद्रों से जो मोहरें प्राप्त हुई हैं, उनका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न स्थलों से व्यापक पैमाने पर मोहरें प्राप्त हुई हैं। यह इस सभ्यता की सर्वोत्तम कलाकृतियाँ स्वीकार की गई हैं। अब तक लगभग 2000 से अधिक मोहरें प्राप्त हुई हैं। इनमें से अधिकांश मोहरों पर लघु लेख के साथ-साथ जानवरों (कूबड़ सांड, एक सिंगी जानवर, बाघ, बकरी, हाथी आदि) की आकृतियाँ उकेरी हुई हैं। इन मोहरों का महत्त्व यह है कि इनसे हमें हड़प्पा सभ्यता के संबंध में अनेक प्रकार की जानकारी प्राप्त होती है। विशेषतौर पर यह हड़प्पा के लोगों के धार्मिक विश्वासों पर प्रकाश डालती है। इनमें से कुछ मोहरों की आनुष्ठानिक क्रियाओं के रूप में व्याख्या की गई।

दूसरी मोहरों (जिन पर पेड़ों के चित्र उत्कीर्ण किए हुए थे) को प्रकृति की पूजा का संकेत स्वीकार किया गया इस कुछ मोहरों की देवता और पूज्य पशुओं के रूप में व्याख्या दी है। एक मोहर पर एक पुरुष देवता को योगी की मुद्रा में दिखाया गया है। इसके दाईं ओर हाथी तथा बाघ एवं बाईं ओर गैंडा तथा भैंसा हैं। पुरुष देवता के सिर पर दो सींग हैं। पुरातत्वविदों ने इस देवता को ‘आद्य शिव’ की संज्ञा दी है। एक अन्य मोहर में एक श्रृंगी पश उत्कीर्णित है। यह घोड़े जैसा पश है, जिसके सिर के बीच में एक सींग निकला हुआ है। यह कल्पित तथा संश्लिष्ट लगता है।

ऐसा बाद में हिन्दू धर्म के अन्य देवता (नरसिंह देवता) के बारे में कहा जा सकता है। कला की दृष्टि से भी इनका महत्त्व बताया जाता है। मोहरों पर खुदे हुए सांड, हाथी, बारहसिंगा आदि के चित्र देखते ही बनते हैं। ये चित्र अपनी सुंदरता और वास्तविकता में अद्वितीय हैं। मोहरों का एक अन्य महत्त्व यह है कि इन पर अभिलेख खुदे हुए हैं जो ऐतिहासिक दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण हैं। यह ठीक है कि अभी तक इन्हें पढ़ा नहीं जा सका है। भविष्य में यदि इन्हें पढ़ लिया जाता है तो इन मोहरों का महत्त्व और भी बढ़ जाएगा।

प्रश्न 24.
मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा के अतिरिक्त हड़प्पा सभ्यता से जुड़े किन्हीं पाँच स्थलों का विवरण कीजिए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा इस सभ्यता के सबसे महत्त्वपूर्ण स्थल हैं। सबसे पहले खुदाई भी इन्हीं नगरों की हुई है। हमारी अधिकतर जानकारी का आधार इन स्थानों से प्राप्त पुरावशेष ही हैं। इन स्थानों के अतिरिक्त इस सभ्यता से जुड़े अनेक स्थल प्रकाश में आए हैं। कुछ स्थलों का विवरण निम्नलिखित प्रकार से है

1. चन्हुदडो-सिन्ध क्षेत्र में यह स्थान सिन्धु नदी के बाएँ तट पर स्थित है। इस स्थान पर दुर्ग नहीं था। यह एक शिल्प उत्पादन केन्द्र था। यहाँ मोहरें बनाई जाती थीं। यहाँ से मिट्टी की बनी गाड़ियाँ, काँसे का खिलौना, हड्डियों की वस्तुएँ, सीपी की चूड़ियाँ आदि प्राप्त हुए हैं। मोहनजोदड़ो की तरह यहाँ पर कई बार बाढ़ आने के चिहन हैं।

2. कालीबंगन-यह स्थान राजस्थान में गंगानगर जिले में है। यह सूखे घग्घर नदी के दक्षिणी तट पर था। यहाँ से प्राक हड़प्पा के प्रमाण मिले हैं। यहाँ पर खेत जोते जाने के प्रमाण हैं। यहाँ पर अग्निकुंड के अवशेष खोजे गए हैं। इसके अलावा यहाँ पर गोमेद तथा स्फटिक फलक, बर्तन तथा चूड़ियों के अवशेष मिले हैं।

3. लोथल-यह स्थल भोगवा तथा साबरमती नदी के मध्य घोलका तालुका (गुजरात) में खंभात खाड़ी से 12 किलोमीटर दूर के प्रमाण भी लोथल से मिले हैं। यहाँ पर एक अन्नागार भी मिला है। इसके अलावा सुमेरियन सभ्यता से संबंधित सोने के मनके, मनका कारखाना, कब्रिस्तान आदि भी यहाँ मिले हैं।

4. बनावली-हरियाणा में फतेहाबाद जिले में सरस्वती तट पर स्थित है। यहाँ पर पूर्व हड़प्पा तथा उत्तर हड़प्पा के अवशेष मिले हैं। यहाँ प्राप्त हुए कलातथ्यों में मिट्टी का हल, हल के टुकड़े, चक्के, ताँबे का मछली पकड़ने का काँटा, सोना परखने की कसौटी आदि प्रमुख हैं।

5. धौलावीरा-हड़प्पा सभ्यता से जुड़ा यह नवीनतम स्थल है, जहाँ हाल ही में खुदाई हुई है। यह इस सभ्यता का एक मात्र स्थल है जो तीन भागों में विभाजित है। यहाँ पर जलाशय के अवशेष मिले हैं। यहाँ पर मनके बनाने की कार्यशालाएँ थीं। यहाँ पर खेल का मैदान भी मिला है। इसके अलावा पत्थर की बनी नेवले की मूर्ति भी प्राप्त हुई है।

दीर्घ-उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हड़प्पा सभ्यता के शिल्प उत्पादों पर लेख लिखें।
उत्तर:
हड़प्पा के लोगों ने शिल्प उत्पादों में महारत हासिल कर ली थी। मनके बनाना, सीपी उद्योग, धातु-कर्म (सोना-चांदी के आभूषण, ताँबा, कांस्य के बर्तन, खिलौने उपकरण आदि), तौल निर्माण, प्रस्तर उद्योग, मिट्टी के बर्तन बनाना, ईंटें बनाना, मद्रा निर्माण आदि हड़प्पा के लोगों के प्रमुख शिल्प उत्पाद थे। कई बस्तियाँ तो इन उत्पादों के लिए ही प्रसिद्ध थीं।

1. मनके बनाना-हड़प्पा सभ्यता के लोग गोमेद, फिरोजा, लाल पत्थर, स्फटिक (Crystal), क्वार्ट्ज (Quartz), सेलखड़ी (Steatite), जैसे बहुमूल्य एवं अर्द्ध-कीमती पत्थरों के अति सुन्दर मनके बनाते थे। मनके व उनकी मालाएं बनाने में ताँबा, कांस्य और सोना जैसी धातुओं का भी प्रयोग किया जाता था। शंख, फयॉन्स (faience), टेराकोटा या पक्की मिट्टी से भी मनके बनाए जाते थे। इन्हें अनेक आकारों चक्राकार, गोलाकार, बेलनाकार और खंडित इत्यादि में बनाया जाता था। कई पर चित्रकारी की जाती थी। रेखाचित्र उकेरे जाते थे। कुछ मनके अलग-अलग पत्थरों को जोड़कर बनाए जाते थे। पत्थर के ऊपर सोने के टोप वाले सुन्दर मनके भी पाये गए हैं।

2. धातुकर्म हड़प्पा सभ्यता के लोगों को अनेक धातुओं की जानकारी थी। वे इन धातुओं से विविध सामान बनाते थे। तांबे का प्रयोग सबसे ज्यादा किया गया है। इसके उपकरण उस्तरा, छैनी, चाकू, तीर व भाले का अग्रभाग, कुल्हाड़ी, मछली पकड़ने के कांटे, आरी तलवार आदि बनाए जाते थे। तांबे में संखिया व टिन मिलाकर काँसा बनाया जाता था। ताँबे और काँसे के बर्तन भी बनाए जाते थे। कांस्य की मूर्तियाँ भी बनाई जाती थीं। सोने के आभूषणों के संचय मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा से मिले हैं।

सोना हल्के रंग का था। इसमें चाँदी की मिलावट काफी मात्रा में थी। भारत में चाँदी का सर्वप्रथम प्रयोग हड़प्पा काल में हुआ। चाँदी के आभूषण और बर्तन बनाए जाते थे। सर जॉन मार्शल लिखते हैं कि सोने-चांदी के आभूषणों को देखकर ऐसा महसूस होता है कि यह पांच हजार वर्ष पूर्व की कला कृतियाँ नहीं, अपितु इन्हें अभी-अभी लन्दन स्थित जौहरी बाजार (बांडस्ट्रीट) से खरीदा गया है।
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3. पाषाण उद्योग-इस काल में पत्थर के उपकरण भी बनाए जाते थे। सुक्कूर में इसके प्रमाण मिले हैं। पत्थर के विशेष प्रकार के बरमें, खुरचनियाँ, काटने के उपकरण, दरांती, फलक आदि बनाए जाते थे। ये उपकरण खेती, मणिकारी, दस्तकारी, नक्काशी (लकड़ी, सीपी) छेद करने में प्रयोग किए जाते थे। पत्थर की मूर्तियाँ भी बनाई जाती थीं। इसमें सेलखड़ी तथा चूना पत्थर का उपयोग होता था।

4. मिट्टी के बर्तन-हड़प्पा सभ्यता के सभी स्थलों से सादे और अलंकृत बर्तन प्राप्त हुए हैं। इन बर्तनों पर पहले लाल रंग का घोल चढ़ाया जाता था, फिर काले रंग के गाढ़े घोल से डिजाइन बनाए जाते थे। ये बर्तन चाक पर बनाए जाते थे तथा भट्ठियों में पकाए जाते थे। बर्तनों पर नदी तल की चिकनी मिट्टी का प्रयोग होता था। इस मिट्टी में बालू, अभ्रक या चूना के कण मिलाए जाते थे। बर्तनों पर वृक्ष व. पशु की आकृतियाँ बनी मिली हैं।

विकसित हड़प्पा काल में उच्चकोटि के चमकदार मृदभाण्डों का उत्पादन होने लगा था। बर्तनों के अतिरिक्त मिट्टी की मूर्तियाँ, खिलौने, घरेलू सामान, चूड़ियाँ, छोटे मनके एवं पशुओं की छोटी मूर्तियाँ भी बनाई जाती थीं।
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5. ईंटें बनाना तथा राजगिरी-हड़प्पा सभ्यता के नगरों में विशाल भवनों का निर्माण तथा बड़े पैमाने पर ईंटों का प्रयोग इस बात की तरफ संकेत करता है कि वहाँ पर ईंटों का निर्माण करने का अलग उद्योग रहा होगा। परकोटों तथा भवनों को बनाने वाले मिस्त्री का काम करने वाला समुदाय भी रहा होगा।

6. सीपी उद्योग-इस सभ्यता के समय सीपी के कई उत्पाद बनाए जाते थे। समुद्री शंख का प्रयोग चूड़ियाँ, मनके, जड़ाऊ वस्तुएँ एवं छोटी आकृतियाँ बनाने में किया जाता था। बालाकोट, लोथल एवं कुतांसी स्थलों से कच्चा माल प्राप्त किया जाता था। यहाँ पर स्थानीय कार्यशालाएँ थीं।

7. कताई और बुनाई-घरों में तकुए तथा तकलियाँ मिली हैं। इनका प्रयोग सूती ऊनी वस्त्रों की बुनाई में किया जाता था। तकलियों को मिट्टी, सीपी और ताँबे से बनाया हुआ था। यहाँ से कपड़े का कोई टुकड़ा नहीं मिला है। परंतु यह तथ्य सत्य है कि कपास का उत्पादन होता था तथा वस्त्रों का प्रयोग किया जाता था। कपड़ों की रंगाई भी की जाती थी।

प्रश्न 2.
हड़प्पा सभ्यता के अंतर्खेत्रीय व दूरस्थ प्रदेशों से व्यापार-वाणिज्य संबंधी संपर्कों का विवरण दीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता के नगरीकरण (Urbanisation) में व्यापार का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा होगा। हड़प्पाकालीन नगर हस्तशिल्प उद्योगों के केन्द्र थे। इन हस्तशिल्पों को कच्चा माल उपलब्ध करवाने तथा पक्के माल को विभिन्न नगरों में पहुँचाने में व्यापारी वर्ग की भूमिका थी।

इस रूप में ये नगर व्यापारिक केन्द्र भी थे। ये नगर नदियों के किनारे, समुद्र तटों तथा अन्य व्यापार मार्गों पर बसे थे। अन्तर्खेत्रीय व्यापार तथा बाह्य व्यापार के पर्याप्त प्रमाण मिले हैं। मोहरों पर अंकित चित्र, माप-तौल की समान प्रणाली, पत्थरों तथा धातुओं के उपकरण और औजारों का सभी क्षेत्रों में मिलना, मिट्टी की छोटी नावें, लोथल में गोदी (डॉकयाडी सभी उन्नत व्यापार के संकेत हैं।

1. अन्तक्षेत्रीय व्यापार-पत्थर व धातु के उपकरण, सीपियों का सामान, मोहरें, बाट, रसोई का सामान, कलात्मक वस्तुएं, कीमती मनके, अनाज व कपास आदि एक स्थान से दूसरे स्थान (शहरों तथा ग्राम्य बस्तियों में) पर भेजे जाते थे। वस्तु विनिमय पर आधारित इस व्यापार में व्यापारी वर्ग तथा खानाबदोश व्यापारी शामिल होते थे। रोहड़ी तथा सूक्कूर में चकमक पत्थर मिलता था। नदी मार्गों से यह प्रमुख नगरों में भेजा जाता था।

यहाँ पर इस पत्थर से औज़ार और हथियार बनाए जाते थे। बालाकोट और चन्हुदड़ो में सीपियों की चूड़ियाँ तथा अन्य सामान बनता था। यहाँ से सामान अन्य नगरों तथा बस्तियों में भेजा जाता था। मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा में बाट, मोहरें तथा ताँबे का सामान बनाया जाता था।

ये वस्तुएं भी सारे क्षेत्र में बेची जाती थीं। औज़ारों और हथियारों के अलावा यहाँ पर रसोई के उपयोग की वस्तुएँ तथा विभिन्न कलात्मक वस्तुएँ भी बनती थीं। लोथल तथा सुरकोतदा से कपास हड़प्पा, मोहनजोदड़ो आदि नगरों को भेजी जाती थी। अनाज का भी व्यापार होता था। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में बने गोदामों से यह संकेत मिलता है कि आन्तरिक भागों से अनाज को नदी मार्गों से यहाँ पर पहुँचाया जाता था।

2. दूरस्थ प्रदेशों से व्यापार-हड़प्पा सभ्यता के नगरों का एशियाई देशों से व्यापारिक संबंध था, इसके पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं। मेसोपोटामिया के सूसा, उए, निप्पुर, किश और उम्मा शहरों से दो दर्जन से अधिक हड़प्पा की मोहरें प्राप्त हुई हैं। फारस की खाड़ी में स्थित फैलका और बैहरेन नामक स्थानों से भी मोहरें मिली हैं। इसके अतिरिक्त हड़प्पाकालीन बाट, मृण्य मूर्तियाँ, कीमती पत्थर आदि अनेक प्रकार का सामान भी फारस की खाड़ी तथा मेसोपोटामिया से प्राप्त हुआ है।

मेसोपोटामिया के सम्राट् सारगॉन (Sargon, 2350 B.C.) का यह दावा था कि दिलमुन (Dilmun), मगान (Magan) और मेलुहा (Meluhha) के जहाज उसकी राजधानी में लंगर डालते थे। विद्वान इन नामों (स्थानों) को हड़प्पा सभ्यता के नगरों से जोड़ते हैं। माना जाता है कि मगान तथा मकरान समुद्रतट एक ही था।

(i) निर्यात-हड़प्पाकालीन व्यापारी इन बाह्य देशों में अपने यहाँ उत्पादित पत्थरों के फलकों, मोहरों, मनकों, ताँबे का सामान, हाथी-दाँत व सीपी आदि का निर्यात करते थे। तेल असमार (Tel Asmar) में नक्काशी किए हुए लाल पत्थर के मनके पाए गए हैं। मेसोपोटामिया के नगर निप्पुर में मृण्य मूर्तियाँ मिली हैं। हड़प्पा जैसे बाट भी मिले हैं।
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तालिका

हड़्पांकाल में आयातित वस्ताएँ एवं क्षेत्र

आयात की जाने वाली वस्ताएँक्षेत्रआयात की जाने वाली वस्तुएँक्षेत्र
टिनईरान, मध्य एशिया, अफ़गानिस्तान ।चांदीईरान, अफगानिस्तान ।
स्वर्णअफ्गानिस्तान, दक्षिण भारत (कर्नाटक)।लाजवर्दमेसोपोटामिया, बदख्शां।
फिरोजाईरान।सीसाईरान, दक्षिण भारत, अफगानिस्तान ।
शिलाजीतहिमालय क्षेत्र ।शंख एवं कौड़ियाँदक्षिणी भारत।
नील रलबदख्शां-अफगानिस्तान।

(ii) आयात-हड़प्पा सभ्यता के व्यापारी बाहर के क्षेत्रों से कीमती धातुओं का आयात करते थे। चाँदी का आयात अफगानिस्तान या ईरान से किया जाता था। अफगानिस्तान एवं कर्नाटक से सोना लाया जाता था। ताँबे का आयात अरब देशों, पश्चिमी बलूचिस्तान तथा राजस्थान में खेतड़ी से किया जाता होगा। टिन ईरान, मध्य एशिया तथा अफगानिस्तान से मँगाया जाता था। सीसे को ईरान पूर्वी या दक्षिण भारत तथा अफगानिस्तान से लाया जाता होगा। फिरोजा मध्य एशिया या ईरान से मंगाया जाता था। नीलम अफगानिस्तान के बदख्शां से लाया जाता था। सेलखड़ी पत्थर बलूचिस्तान, अरावली एवं दक्षिण भारत से प्राप्त होता था।

गोमेद, स्फटिक एवं इन्द्रगोप जैसे कीमती पत्थर भी बाहर से आयात किए जाते थे। अफगानिस्तान से कीमती पत्थर प्राप्त करने के लिए शोर्तुघई नामक स्थान पर हड़प्पा के व्यापारियों ने एक बस्ती बसा रखी थी। बाह्य व्यापार स्थल तथा समुद्री मार्ग दोनों से होता था। लोथल, सुरकोतदा तथा बालाकोट जैसे तटीय नगरों से बाहर देशों से समुद्री व्यापार होता होगा।

3. परिवहन के साधन- परिवहन के साधनों में नौकाएँ, मस्तूल वाले छोटे जहाज, बैलगाड़ियाँ तथा लद्रू जानवर प्रमुख थे। . हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से पाई गई मोहरों में जहाजों और नावों को चित्रित किया गया है। लोथल में पक्की मिट्टी से बने जहाज का नमूना पाया गया है जिसमें मस्तूल के लिए एक लकड़ी तथा मस्तूल लगाने के लिए छेद हैं। लोथल में बनी गोदी को जहाजीमाल घाट के रूप में पहचाना जाता है।

अरब सागर के तट पर अन्य भी अनेक बन्दरगाह थे; जैसे रंगपुर, सोमनाथ तथा बालाकोट । नदियों में भी छोटी नौकाओं का प्रयोग अनाज लाने के लिए किया जाता होगा। बैलगाड़ी अंतर्देशीय यातायात का साधन थी। बस्तियों से मिट्टी के बने बैलगाड़ी के अनेक नमूने पाए गए हैं। हड़प्पा में एक कांसे की गाड़ी का नमूना पाया गया है जिसमें एक चालक बैठा है। छोटी गाड़ियों के नमूने भी मिले हैं। हाथी, बैल, ऊँटों का भी भार ढोने में प्रयोग होता था। ऐतिहासिक काल में खानाबदोश चरवाहे सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजते थे। शायद हड़प्पावासी भी ऐसा करते होंगे। परन्तु उस समय नौ परिवहन ..

प्रश्न 3.
हड़प्पा सभ्यता के लोगों की जीविका निर्वाह प्रणाली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
परिपक्व हड़प्पा अवस्था में लोगों की आजीविका निर्वाह का मुख्य आधार कृषि प्रणाली थी। साथ ही वे मांस, मछली, फल, दूध भी प्राप्त करते थे। हड़प्पाई जीविका निर्वाह प्रणाली का विवरण निम्नलिखित प्रकार से है

1. कृषि-इस सभ्यता के लोगों के जीवन-निर्वाह या भरण पोषण का मुख्य आधार कृषि व्यवस्था थी। सिंधु नदी बड़ी मात्रा में जलोढ़ मिट्टी बहाकर लाती तथा इसे बाढ़ वाले मैदानों में छोड़ देती थी। इन मैदानों में यहाँ के किसान अनेक फसलें उगाते थे। सभ्यता के विभिन्न स्थलों से गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, राई और मटर जैसे अनाज के दाने मिले हैं। गेहूँ की दो किस्में पैदा की जाती थीं। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगन से गेहूँ और जौ प्राप्त हुए हैं। गुजरात में ज्वार और रागी का उत्पादन होता था। सौराष्ट्र में बालाकोट में बाजरा व ज्वार के प्रमाण मिले हैं। 1800 ई.पू. में लोथल में चावल उगाने के प्रमाण मिले हैं। हड़प्पा सभ्यता के लोग सम्भवतः दनिया में पहले थे जो कपास का उत्पादन करते थे।

2. कृषि तकनीक-खेती करने के तरीकों को समझना ज़्यादा कठिन है। क्या जोते हुए खेतों में बीजों को बिखेरा जाता था . या अन्य तरीके थे? उपलब्ध साक्ष्यों से कृषि तकनीक से संबंधित कुछ निष्कर्ष निकाले गए हैं। उदाहरण के लिए बनावली (हरियाणा) से मिट्टी के हल का नमूना मिला है। बहावलपुर से भी ऐसा नमूना मिला है। कालीबंगन (राजस्थान) में प्रारंभिक हड़प्पा काल के खेत को जोतने के प्रमाण मिले हैं। पक्की मिट्टी से बनाए वृषभ (बैल) के खिलौनों के साक्ष्य तथा मोहरों पर पशुओं के चित्रों से अनुमान लगाया जा सकता है कि वे बैलों का खेतों की जुताई के लिए प्रयोग करते थे।
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3. सिंचाई-क्या हड़प्पा के लोग फसलों को सींचते थे? यदि हाँ तो उनके सिंचाई के साधन क्या थे। संभवतः हड़प्पन लोगों ने भूमिगत जल का विश्व में पहले-पहल कुओं के द्वारा प्रयोग किया। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि गाँवों में कच्चे कुएँ खोदे जाते थे। कारीगरों द्वारा निर्मित पक्के कुएँ भी मिले हैं। परंतु इन कुओं का प्रयोग खेतों की सिंचाई के लिए होता था, इसमें सन्देह है। नदियों, ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ झीलों तथा तालाबों के पानी का ढेकली (lever lift) के माध्यम से खेतों में सिंचाई करने की संभावना है।

शोर्तुघई (अफगानिस्तान) में नहर के अवशेष उपलब्ध हुए हैं। इससे अनुमान लगाया जाता है कि संभवतः सिंधु मैदानों में भी इसी प्रकार की नहरें खोदी गई होंगी। जलाशयों का निर्माण भी सिंचाई के उद्देश्य से किया जाता होगा। धौलावीरा (गुजरात) से ऐसे जलाशय का साक्ष्य मिला है।
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4. फसल काटने के औजार-पुरातत्ववेत्ताओं ने फसल काटने के औजारों की पहचान करने का भी प्रयास किया है। संभवतः लकड़ी के हत्थों में लगाए गए पत्थर के फलकों (Stone blades) का प्रयोग फसलों को काटने के लिए किया जाता था। धातु के औजार (तांबे की हँसिया) भी मिले हैं परंतु महंगी होने की वजह से इसका प्रयोग कम होता होगा।
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5. पशुपालन-सभ्यता से प्राप्त शिल्प तथ्यों तथा पुरा-प्राणिविज्ञानियों (Archaeo-zoologists) के अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि हड़प्पन भेड़, बकरी, बैल, भैस, सुअर आदि जानवरों का पालन करने लगे थे। कूबड़ वाला सांड उन्हें विशेष प्रिय था। गधे और ऊँट का पालन बोझा ढोने के लिए करते थे। ऊँटों की हड्डियाँ बड़ी मात्रा में पाई गई है परंतु मोहरों पर उनके चित्र नहीं हैं। इसके अतिरिक्त भालू, हिरण, घड़ियाल जैसे पशुओं की हड्डियाँ भी मिली हैं। मछली व मुर्गे की हड्डियाँ भी प्राप्त हुई हैं। परंतु हमें यह जानकारी नहीं मिलती कि वे इनका स्वयं शिकार करते थे या इन्हें शिकारी समुदायों से प्राप्त करते थे।

प्रश्न 4.
हड़प्पा सभ्यता की राजसत्ता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा समाज में राजसत्ता के संबंध में विद्वान एक मत नहीं हैं। परन्तु हड़प्पा समाज के सभी पक्षों का अध्ययन करने पर इस बात के पत्ता संकेत मिलते हैं कि समाज से जड़े जटिल निर्णय लेने और उन्हें लागू करवाने के लिए कोई राजसत्ता और उससे जुड़ा अधिकारी वर्ग भी रहा होगा। उल्लेखनीय है कि सारे सभ्यता क्षेत्र (जम्मू से गुजरात तथा पश्चिम उत्तर प्रदेश से बलूचिस्तान) में मानक ईंटें, मानक माप-तौल पाया गया है। विशेष मुद्रा/मुद्रांक, (मृदभांड) तथा उन पर रूपायन (Motifs) विद्यमान है। योजनाबद्ध नगर, नालियों की उत्तम व्यवस्था और व्यापक व्यापार है।

यह सब तथ्य इस बात को सुझाते हैं कि कोई जिम्मेदार केंद्रीकृत राजसत्ता रही होगी। हमने यह भी पढ़ा है कि हड़प्पावासियों ने कच्चा माल प्राप्त करने, पक्का माल तैयार करने, व्यापार में सहायता के लिए विशेष स्थलों पर बस्तियों का निर्माण किया हुआ था। साथ ही नगरों में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य करवाने के लिए मानव संसाधनों को संचालित करने के लिए अधिकारी वर्ग अवश्य रहा होगा। कुल मिलाकर इस बारे में विद्वानों ने निम्नलिखित विचार प्रकट किए हैं

1. राजा और राजप्रासाद-पुरातत्वविदों ने पुरावशेषों से सत्ता के चिह्नों को पहचानने का प्रयास किया है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल भवन को ‘राजप्रासाद’ का नाम दिया जाता है। यद्यपि विशाल इमारत में अन्य कोई अद्भुत अवशेष नहीं मिले हैं। इसी प्रकार मोहनजोदड़ो से प्राप्त पत्थर की प्रतिमा प्राप्त हुई है। इसे ‘पुरोहित-राजा’ का नाम दिया जाता रहा है। व्हीलर महोदय ने तो इस आधार पर हड़प्पा की शासन प्रणाली को ‘धर्मतन्त्र’ नाम दिया है।

पुरातत्ववेत्ताओं द्वारा ऐसा निष्कर्ष इसलिए भी निकाला जाता है क्योंकि मेसोपोटामिया की सभ्यता हड़प्पा सभ्यता के समकालीन थी। वहाँ राजा ही सर्वोच्च पुरोहित होते थे। लेकिन हड़प्पा के संबंध में इस निष्कर्ष पर पहुँच पाना कठिन है क्योंकि हड़प्पा से जुड़े रीति-रिवाजों को अभी तक पूरी तरह नहीं समझा जा सका है। दूसरा, यहाँ पर धार्मिक रीति-रिवाज निभाने वाले लोगों के पास राजसत्ता भी थी यह कह पाना भी कठिन है।

2. एक अन्य मत यह है कि हड़प्पा सभ्यता में कोई एक शासक नहीं था, वरन् कई शासक थे। जैसे मोहनजोदड़ो का अलग शासक था। हड़प्पा का अलग शासक था तथा अन्य नगरों के भी अलग-अलग राजा थे।
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3. कुछ विद्वानों का तो यह भी मानना है कि हड़प्पा समाज में कोई राजा ही नहीं था। सभी लोग बराबर की स्थिति में खुश थे। परंतु विलासिता से जुड़े कला तथ्यों व दुर्ग क्षेत्रों में भवनों से ऐसा मान लेना कठिन है।

4. अधिकतर विद्वानों का यह मत है कि कला तथ्यों में समरूपता को देखते हुए यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि यहाँ एक राज्य व्यवस्था विद्यमान थी। शासक वर्ग ने क्षेत्र के संसाधनों पर नियन्त्रण रखने के लिए विशेष बस्तियाँ बसाईं। व्यापार को विनियमित किया। वस्तुतः यह विचार सबसे ठीक लगता है क्योंकि इतने विशाल क्षेत्र में फैले इतने बड़े समाज के समस्त लोगों द्वारा एक साथ जटिल राजनैतिक निर्णय ले पाना तथा उन्हें लागू करवा पाना आसान नहीं था।

प्रश्न 5.
हड़प्पा सभ्यता के अवसान/पतन के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1800 B.C.E. के आसपास हड़प्पा नगरों का पतन होने लगा था। लोग नगरों को छोड़कर जाने लगे थे। हड़प्पाई नाप-तौल, मोहरें तथा लिपि गायब होने लगी। पक्की ईंटों के योजनाबद्ध घर बनने बंद हो गए। दस्तकारियाँ; जैसे मनकों तथा अन्य उद्योग समाप्त होने लगे थे। दूरस्थ व्यापार बंद होने लगे थे। वस्तुतः सभ्यता का अवसान शुरू हो चुका था। हड़प्पा सभ्यता के अंत के निम्नलिखित कारण बताए जा सकते हैं

1. बाढ़ और भूकम्प कुछ विद्वानों ने हड़प्पा सभ्यता के पतन का कारण बाढ़ बताया है। मोहनजोदड़ो में मकानों और सड़कों पर गाद (कीचड़युक्त मिट्टी) भरी पड़ी थी। बाढ़ का पानी उतर जाने पर यहाँ के निवासियों ने पहले के मकानों के मलबे पर फिर से मकान और सड़कें बना लीं। बाढ़ आने का सिलसिला कई बार घटा। खुदाई से पता चला है कि 70 फुट गहराई तक मकान बने हुए थे। बार-बार आने वाली बाढ़ों से नगरवासी गरीब हो गए तथा तंग आकर बस्तियों को छोड़कर चले गए।

आर०एल० रेइक्स ने 1965 में अपने लेख ‘The Mohanjodaro Floods’ में लिखा है कि हड़प्पा सभ्यता के ह्रास का कारण महाभयंकर बाढ़ थी। इस बाढ़ से 30 फुट तक पानी भर गया। इस बाढ़ से सिंधु नदी घाटी के नगर लम्बे समय तक डूबे रहे। रेइक्स ने यह बताया कि यह क्षेत्र अशांत भूकम्प क्षेत्र है। बाढ़ के साथ भूकम्प भी आया होगा। इस भूकम्प से नदी का मार्ग भी अवरुद्ध हो गया। इस महाभयंकर बाढ़ तथा भूकम्प ने नदियों का मार्ग रोक दिया, शहर जलमग्न हो गए, व्यापार और वाणिज्य गतिविधियाँ भंग हो गईं। इससे हड़प्पा सभ्यता नष्ट हो गई। परंतु यह व्याख्या सिंधु घाटी के बाहर की बस्तियों के ह्रास को स्पष्ट नहीं करती।।

2. सिंधु नदी का मार्ग बदलना-एच०टी० लैमब्रिक (H.T. Lambrick) का कहना है कि सिंधु नदी मार्ग में परिवर्तन मोहनजोद नगर के विनाश का कारण हो सकता है। यह नदी अपना मार्ग बदलती रहती थी। स्पष्ट है कि नदी नगर से 30 किलोमीटर दूर चली गई। पानी की कमी के कारण शहर और आस-पास के अनाज पैदा करने वाले गाँवों के लोग क्षेत्र छोड़कर पलायन कर गए। इससे मोहनजोदड़ो के लोगों का शहर छोड़ना तो समझाया जा सकता है, परंतु हड़प्पा सभ्यता के पूरी तरह हास को स्पष्ट नहीं किया जा सकता।

3. क्षेत्र में बढ़ती शुष्कता और घग्घर नदी का सूख जाना- डी०पी० अग्रवाल और कुछ अन्य विद्वानों का विचार है कि इस सभ्यता का ह्रास इस क्षेत्र में शुष्कता के बढ़ने के कारण और घग्घर नदी (हाकड़ा क्षेत्र) के सूख जाने के कारण हुआ। ऐसी स्थिति में हड़प्पा जैसे अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र पर सबसे अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ा होगा। इससे कृषि की पैदावार पर प्रभाव पड़ा। पैदावार में कमी आई। परिणामस्वरूप नगरों की अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ा।

साथ ही यह भी व्याख्या दी जाती है कि धरती में हुए आन्तरिक परिवर्तनों के कारण इस क्षेत्र के नदी तरंगों (मार्गों) पर भी प्रभाव पड़ा। घग्घर एक शक्तिशाली नदी होती थी तथा पंजाब, राजस्थान, कच्छ रन से गुजरकर समुद्र में गिरती थी। सतलुज और यमुना इसकी सहायक नदियाँ थीं। विवर्तनिक विक्षोभ (पृथ्वी के धरातल के बहुत बड़े क्षेत्र का ऊपर उठ जाना) के कारण सतलुज सिंधु में मिल गई तथा यमुना मार्ग बदलकर गंगा में मिल गई। इससे घग्घर जलविहीन हो गई। इससे हाकड़ा क्षेत्र सूख गया जिससे इस क्षेत्र में बसे नगरों के लिए समस्याएँ पैदा हो गईं और ये नगर समाप्त हो गए।

4. आर्यों के आक्रमण-व्हीलर ने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। इसके पक्ष में वे आक्रमण के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। प्रथम, हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में सड़कों पर मानव कंकाल पड़े मिले हैं। एक कमरे में 13 स्त्री-पुरुषों तथा बच्चों के कंकाल मिले . हैं। मोहनजोदड़ो के अन्तिम चरण में सड़कों पर तथा घरों में मनुष्यों के कत्लेआम के प्रमाण मिले हैं। एक संकरी गली को जॉन लि ने डैडमैन लेन का नाम दिया है। दूसरा, ऋग्वेद में आर्यों के देवता इन्द्र को ‘पुरन्धर’ कहा जाता था अर्थात् ‘किले तोड़ने वाला’।

तीसरा, ऋग्वेदकालीन आर्यों के आवास क्षेत्र में पंजाब एवं घग्घर क्षेत्र भी शामिल था तथा ऋग्वेद में एक स्थान पर ‘हरियूपिया’ नामक स्थान का उल्लेख है। व्हीलर ने कहा है कि यह स्थान हड़प्पा ही है और आर्यों ने यहाँ पर एक युद्ध लड़ा था। अतः हड़प्पा के शहरों को आर्यों ने ही आक्रमण करके नष्ट कर दिया। परंतु यह सिद्धान्त अब मान्य नहीं है। पहली बात तो यह है कि हड़प्पा सभ्यता के ह्रास का समय 1800 ई०पू० माना जाता है। आर्यों के आने का काल लगभग 1500 ई०पू० बताया जाता है।

5. पर्यावरण असन्तुलन तथा आर्थिक-राजनीतिक प्रणाली का ढहना-हाल ही में पुरातत्वविदों ने हड़प्पा सभ्यता के ह्रास को पारिस्थितिक (Ecological) कारणों में ढूँढना शुरु किया है। पुरातत्त्वविदों द्वारा दिए गए तर्कों की संक्षेप में जानकारी इस प्रकार है

(i) फेयर सर्विस ने हड़प्पा सभ्यता के नगरों की जनसंख्या तथा उसकी खाद्य आवश्यकता का हिसाब लगाया। उनका मानना है कि एक ओर तो जनसंख्या और पशु संख्या बढ़ रही थी, दूसरी ओर इसके दबाव से जंगल समाप्त होने लगे। इससे बाढ़ और सूखे जैसी समस्याएँ बढ़ीं। इसका अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ा। लोग इस क्षेत्र को छोड़कर जीविका के लिए अच्छे स्थानों पर चले गए।

(ii) बी०के० थापर और रफीक मुगल का विचार है कि घग्घर-हाकड़ा नदी प्रणाली के धीरे-धीरे सूखने या विलुप्त हो जाने से समस्याएँ बढ़ीं। वनों का विनाश होने लगा। पशुओं द्वारा अधिक चराई से जमीन का कटाव तथा क्षारीयता बढ़ी। साथ-ही-साथ जल संसाधनों का सीमा से अधिक प्रयोग हुआ। सरीन रत्नाकर का मानना है कि उत्थापक सिंचाई प्रणाली (Lift Irrigation) द्वारा जल का सीमाओं से अधिक उपयोग से जल-स्तर कम हो गया अर्थात् जिन अनुकूल परिस्थितियों और संसाधनों के कारण सभ्यता का उदय और विकास हुआ, उन्हीं के अभाव में सभ्यता का विनाश हो गया।

(iii) जंगलों की कटाई को भी हड़प्पा सभ्यता के विनाश का कारण बताया गया है। यह सभ्यता कांस्ययुगीन थी। ताँबे तथा काँसे के उत्पादन के लिए बड़ी मात्रा में लकड़ी का प्रयोग होता था। रत्नागर का कहना है कि लकड़ी के बड़े पैमाने पर प्रयोग के कारण वन नष्ट हो गए होंगे। वनों की कटाई का प्रकृति की छटा, वर्षा, जमीन की उत्पादकता पर प्रभाव पड़ा होगा। इससे पारिस्थितिक असन्तुलन (Ecological Imbalance) हो गया होगा।

एम० केनोयर ने भी इसका समर्थन किया है तथा लिखा है, “हड़प्पाकालीन लोग पर्यावरण के प्रति सचेत नहीं थे। उन्होंने अन्य लोगों की भाँति घने वनों को बेपरवाही से कांटकर उनकी लकड़ी का प्रयोग कर लिया।” स्पष्ट है कि हड़प्पा सभ्यता का पतन अनेक कारणों की वजह से हुआ।

प्रश्न 6.
हड़प्पा सभ्यता के अनुसंधान की कहानी पर लेख लिखिए।
उत्तर:
हड़प्पा की खोज की कहानी काफी रोचक है कि आखिर हड़प्पा सभ्यता की खोज हुई कैसे? हड़प्पा के पतन के बाद – लोग धीरे-धीरे इन नगरों को भूल गए। फिर सैकड़ों वर्षों बाद इस क्षेत्र में लोग पुनः रहने लगे। बाढ़, मृदा क्षरण या भूमि जोतते हुए यहाँ से कला-तथ्य निकलने पर स्थानीय लोग यह समझ नहीं पाते थे कि इनका क्या करें। अन्ततः पुरातत्वविदों ने हड़प्पा सभ्यता को खोज निकाला। खोज की कहानी निम्नलिखित प्रकार से है

1. चार्ल्स मोसन तथा बर्नेस के कार्य-हड़प्पा सभ्यता को खोज निकालने में अनेक व्यक्तियों का योगदान है। 1826 ई० में चॉर्ल्स मोसन नामक एक अंग्रेज पश्चिमी पंजाब में हड़प्पा नामक गाँव में आया। उसने वहाँ बहुत पुरानी बस्ती के बुों और अद्भुत ऊँची-ऊँची दीवारों को देखा। उसने यह समझा कि यह शहर सिकन्दर महान् के समय का है। दूसरा, बर्नेस नामक व्यक्ति ने भी . 1834 में सिंधु क्षेत्र की यात्रा की। उसने भी सिंधु नदी के किनारे किसी ध्वस्त किले की बात कही।

2. कनिंघम के प्रयास, रिपोर्ट और उलझन-कनिंघम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पहले महानिदेशक थे। उनकी रूचि छठी सदी ईसा पूर्व से चौथी सदी ईसा पूर्व तथा इसके बाद के प्राचीन इतिहास के पुरातत्व में थी। उन्होंने बौद्धधर्म से संबंधित चीनी यात्रियों के वृत्तांतों का प्रारंभिक बस्तियों की पहचान करने में प्रयोग किया। सर्वेक्षण के कार्य में शिल्प तथ्य एकत्र किए। उनका रिकॉर्ड रखा तथा अभिलेखों का अनुवाद भी किया।

कनिंघम ने उपलब्ध कला-तथ्यों के सांस्कृतिक अर्थों को भी समझने का प्रयास किया। परंतु हड़प्पा जैसे स्थल की इन चीनी वृत्तांतों में न तो विवरण था, न ही इन नगरों की ऐतिहासिकता की कोई जानकारी। अतः यह नगर ठीक प्रकार से उनकी खोजों के दायरे में नहीं समा पा रहे थे।
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वस्तुतः वे यहाँ से प्राप्त कला-तथ्यों की पुरातनता का अनुमान नहीं लगा पाए। उदाहरण के लिए एक अंग्रेज ने कनिंघम को हड़प्पा की एक मोहर दी (चित्र देखें)। कनिंघम ने अपनी रिपोर्ट में इसका चित्र भी दिया परंतु वह इसे इसके समय-संदर्भ में रख पाने में असफल । रहे। इसका कारण यह रहा होगा कि अन्य विद्वानों की भांति वह भी यह मानते । थे कि भारत में पहली बार नगरों का अभ्युदय गंगा-घाटी में 6 वीं, 7वीं सदी ई०पू० से हुआ। अतः यह आश्चर्य की बात नहीं है कि वे हड़प्पा के महत्त्व को नजरअंदाज कर गए।

3. नवीन सभ्यता की खोज-1921 में दयाराम साहनी ने हड़प्पा स्थल से । अनेक मोहरें उत्खनन में प्राप्त की। ऐसा ही कार्य 1922 में राखालदास बनर्जी चित्र : कनिंघम द्वारा दिया मोहर का चित्र ने मोहनजोदड़ो में किया। दोनों स्थलों की मोहरों में समानता थी। इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि यह स्थल एक ही पुरातात्विक संस्कृति का हिस्सा है। इन खोजों के आधार पर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के तत्कालीन महानिदेशक सर जॉन मार्शल ने 1924 ई० में (लन्दन में प्रकाशित एक साप्ताहिक पत्र में) सारी दुनिया के समक्ष इस नवीन सभ्यता की खोज की घोषणा की।

सारी दुनिया में इससे सनसनी फैल गई। इस बारे में एस.एन.राव ने ‘द स्टोरी ऑफ इंडियन आर्कियोलॉजी’ में लिखा, “मार्शल ने भारत को जहाँ पाया था, उसे उससे तीन हजार वर्ष पीछे छोड़ा।” उल्लेखनीय है कि हड़प्पा जैसी मोहरें मेसोपोटामिया से भी मिली थीं। अब यह स्पष्ट हुआ कि यह एक नई सभ्यता थी जो मेसोपोटामिया के समकालीन थी।

HBSE 12th Class history Important Questions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 7.
हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना व भवन निर्माण प्रणाली पर लेख लिखिए।
उत्तर:
नगरीय प्रणाली हड़प्पा की विकसित अवस्था (Mature Stage) से सम्बन्ध रखती है। इस नगरीकरण को विद्वानों ने नगरीय क्रान्ति की संज्ञा दी है। इसका विकास किसी शक्तिशाली केन्द्रीय सत्ता के बिना नहीं हो सकता था। सड़कों की व्यवस्था, बड़े पैमाने पर जल निकास प्रणाली का विकास एवं उसकी देख-रेख, विशाल नगर, किले आदि सभी एक शक्तिशाली केन्द्रीय शासन प्रणाली के मौजूद होने का संकेत देते हैं। हड़प्पा सभ्यता के नगरीकरण की दूसरी मुख्य बात यह थी कि इन नगरों में बड़े पैमाने पर दक्ष शिल्पकार थे। तीसरा इन नगरों के एशिया के सुदूर देशों के साथ व्यापार सम्पर्क थे। मेसोपोटामिया के साथ समुद्री व्यापार उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा था।

1. नगर योजना-हड़प्पा सभ्यता की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता उसकी नगर योजना तथा सफाई व्यवस्था है। नगरों में सड़कें और गलियाँ एक योजना के अनुसार बनाई गई थीं। मुख्य मार्ग उत्तर से दक्षिण की ओर जाते थे। उनको काटती सड़कें और गलियाँ मुख्य मार्ग को समकोण पर काटती थीं जिससे नगर वर्गाकार या आयताकार खण्डों में विभाजित हो जाते थे।

मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगन जैसे नगर दो भागों (पूर्वी तथा पश्चिमी) में बंटे थे। पूर्वी भाग में ईंटों से बनाए ऊँचे चबूतरे पर स्थित बस्ती के चारों ओर परकोटा (किला) होता था जिसे ‘नगर दुर्ग’ कहा जाता है। इसके पश्चिम की ओर के आवासीय क्षेत्र को निचला नगर कहा जाता है। नगर दुर्ग का क्षेत्रफल निचले नगर से कम था। मोहनजोदड़ो के नगर दुर्ग में पकाई ईंटों से बने अनेक बड़े भवन पाए गए हैं, जैसे विशाल स्नानागार, प्रार्थना भवन, सभा भवन एवं अन्नागार। हड़प्पा में ‘नगर-दुर्ग’ के उत्तर में कारीगरों के मकान, उनके कार्य-स्थान (चबूतरे) और एक अन्नागार था।

कालीबंगन की नगर योजना में दुर्ग क्षेत्र तथा निचले नगर दोनों के परकोटा (मोटी दीवार) था। सुरकोतदा की नगर-योजना कालीबंगन के समान थी। नगर दुर्ग तथा निचला नगर आपस में जुड़े हैं तथा दोनों के चारों ओर परकोटा है। धौलावीरा (कच्छ में) नगर तीन मुख्य भागों (नगर दुर्ग, मध्यम नगर तथा निचला नगर) में विभाजित था। हड़प्पा के नगरों में नगर दुर्ग में पुरोहित एवं शासक रहते थे तथा निचले नगर में व्यापारी, दस्तकार, शिल्पकार एवं अन्य लोग रहते थे।

2. नगर द्वार-जैसा कि ऊपर बताया गया है कि अधिकांश में विशेषकर दुर्ग-नगर के चारों ओर मोटी दीवार होती थी। इस परकोटे में स्थान-स्थान पर प्रवेश द्वार बने होते थे। धौलावीरा और सुरकोतदा में नगर प्रवेश द्वार काफी विशाल एवं सुन्दर थे, जबकि अन्य नगरों में प्रवेश द्वार साधारणं थे। कुछ नगर द्वारों के निकट सुरक्षाकर्मियों के कक्ष भी बने हुए थे जो साधारणतः बहुत छोटे होते थे। हड़प्पा सभ्यता के नगरों के चारों ओर दीवारों तथा नगर द्वारों के निर्माण का उद्देश्य शत्रुओं के आक्रमण से रक्षा, लुटेरों एवं पशुचोरों से सुरक्षा करना तथा बाढ़ों से नगरों की रक्षा करना रहा होगा।

3. सड़कें और गलियाँ-हड़प्पा कालीन नगर पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार बनाए जाते थे। सड़कें और गलियाँ सीधी होती थीं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। सड़कें पूर्व से पश्चिम या उत्तर से दक्षिण दिशा में बिछी हुई थीं। इससे नगर कई भागों में बंट जाते थे। मोहनजोदड़ो में मुख्य सड़क 10.5 मीटर चौड़ी थी, इसे ‘प्रथम सड़क’ कहा गया है। इस ‘प्रथम सड़क’ पर . एक साथ पहिए वाले सात वाहन गुजर सकते थे। अन्य सड़कें 3.6 से 4 मीटर तक चौड़ी थीं। गलियाँ एवं गलियारे 1.2 मीटर (4 फुट) या उससे अधिक चौड़े थे। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सड़कों, गलियों और नालियों की व्यवस्था लागू करने तथा निरन्तर देखभाल के लिए नगरपालिका या नगर प्राधिकरण जैसी कोई प्रशासनिक व्यवस्था रही होगी।

4. नालियों की व्यवस्था व्यापक नालियों की व्यवस्था हड़प्पा सभ्यता की अद्वितीय विशेषता थी, जो हमें अन्य किसी भी समकालीन सभ्यता के नगरों में प्राप्त नहीं होती है। प्रत्येक घर में छोटी नालियाँ होती थीं जो घर के पानी को बाहर गली या सड़क के किनारे बनी नाली में पहुँचाती थीं। प्रमुख सड़कों एवं गलियों के साथ 1 से 2 फुट गहरी ईंटों तथा पत्थरों से ढकी नालियाँ होती थीं। मुख्य नालियों में कचरा छानने की व्यवस्था भी होती थी।

नालियों में ऐसी व्यवस्था करने के लिए बड़े गड्ढे (शोषगत) होते थे, जो पत्थरों या ईंटों से ढके होते थे जिन्हे सफाई करने के लिए आसानी से हटाया और वापस रख दिया जाता था। मुख्य नालियाँ एक बड़े नाले के साथ जुड़ी होती थीं जो सारे गदे पानी को नदी में बहा देती थीं। हड़प्पाकालीन नगरों की जल निकास प्रणाली पर टिप्पणी करते हुए ए०एल० बाशम ने लिखा है, नालियों की अद्भुत व्यवस्था सिन्धु घाटी के लोगों की महान सफलताओं में से एक थी। रोमन सभ्यता के अस्तित्व में आने तक किसी भी प्राचीन सभ्यता की नाली व्यवस्था इतनी अच्छी नहीं थी।”

5. ईंटें-हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और अन्य प्रमुख नगरों में ईंटों का व्यापक पैमाने पर प्रयोग हुआ है। ये ईंटें कच्ची और पक्की दोनों प्रकार की थीं। मोहदजोदड़ो में चबूतरों पर धूप में सुखाई गई ईंटों का प्रयोग किया गया है। हड़प्पा में कच्ची ईंटों की पर्त पर पक्की ईंटों का इस्तेमाल हुआ है। कालीबंगन में पक्की ईंटों का प्रयोग कुओं, नालियों एवं स्नानगृहों के बनाने में किया गया है। इन ईंटों का मुख्य आकार 20%2″× 10/2″× 31/4″ होता था जो 1 : 2 : 4 अनुपात में है। नालियों को ढकने के लिए काफी बड़ी ईंटों का प्रयोग हुआ है।

6. भवन-हड़प्पा सभ्यता के नगरों के भवन निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं

  1. आवासीय मकान,
  2. विशाल भवन,
  3. सार्वजनिक स्नानागार,
  4. अन्नागार,
  5. जलाशय तथा डॉकयार्ड आदि।

1. आवासीय मकान-हड़प्पा तथा मोहदजोदड़ो स्थानों में नागरिक निचले नगर में भवन समूहों में रहते थे। ये मकान योजनापूर्वक बनाए जाते थे। प्रत्येक मकान के बीच एक खला आंगन तथा चारों तरफ छोटे-बड़े कमरे होते थे। बाढ से सरक्षा हेत मकान ऊँचे चबूतरे पर तथा गहरी नींव के होते थे। दीवारें मोटी एवं पक्की ईंटों तथा गारे की थीं। छतों में लकड़ी और ईंटों तथा फर्श में भी ईंटों का प्रयोग था। प्रकाश व हवा के लिए दरवाजे, खिड़कियाँ तथा रोशनदान बनाए जाते थे।

दरवाजे खिड़कियाँ मुख्य सड़क की तरफ न खुलकर गली की तरफ खुलती थी। घर में रसोईघर, शौचालय एवं स्नानघर होते थे। बड़े घरों में कुआँ भी होता था। कई मकान तो दो मंजिलों के बने होते थे। मकानों में भी विविधता थी। गरीब लोगों के मकान छोटे थे। छोटी बैरकों में मजदूर तथा दास रहते थे। निचले शहर के मकानों में बड़ी संख्या में कर्मशालाएँ (कारखाने) (Workshops) भी थीं।

2. विशाल भवन-हड़प्पाकालीन नगरों के दुर्ग वाले भाग में विशाल भवन प्राप्त हुए हैं। मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा में ऐसे अनेक विशाल भवन मिले हैं जो शायद शासक वर्ग के लोगों द्वारा प्रयोग में लाए जाते होंगे।

3. सार्वजनिक स्नानागार-हड़प्पाकालीन सबसे प्रसिद्ध भवन मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार है। आयताकार में बना यह स्नानागार 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.45 मीटर गहरा है। इसके उत्तर और दक्षिण में सीढ़ियाँ बनी हैं। ये सीढ़ियाँ स्नानागार के तल तक जाती हैं। यह स्नानागार पक्की ईंटों से बना है। इसे बनाने में चूने तथा तारकोल का प्रयोग किया गया था। इसके साथ ही कुआँ था जिससे इसे पानी से भरा जाता था। साफ करने के लिए इसकी पश्चिमी दीवार में तल पर नालियाँ बनी थीं। स्नानागार के चारों ओर मंडप एवं कक्ष बने हुए थे। विद्वानों का मानना है कि इस स्नानागार और भवन का धार्मिक समारोहों के लिए प्रयोग किया जाता था।

4. अन्नागार-हड़प्पा में 50 × 40 मीटर के आकार का एक भवन मिला है जिसके बीच में 7 मीटर चौड़ा गलियारा था। पुरातत्ववेत्ताओं ने इसे विशाल अन्नागार बताया है जो अनाज, कपास तथा व्यापारिक वस्तुओं के गोदाम के काम आता था।

5. जलाशय तथा डॉकयार्ड-धौलावीरा में एक विशाल जलाशय के अवशेष मिले हैं। यह जलाशय 80.4 मीटर लम्बा, 12 मीटर चौड़ा तथा 7.5 मीटर गहरा था। कच्छ क्षेत्र में पानी की कमी रहती थी अतः ऐसे जलाशय का प्रयोग जल संग्रहण के लिए किया जाता होगा। इसी प्रकार लोथल में अन्नागार तथा डॉकयार्ड (गोदी) मिला है। पक्की ईंटों से बना यह स्थल 214 मीटर लम्बा, 36 मीटर चौड़ा तथा 4.5 मीटर गहरा है। यह डॉकयार्ड एक जलमार्ग से पास की खाड़ी से जुड़ा है।

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HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.1

Haryana State Board HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.1 Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Exercise 5.1

प्रश्न 1.
रेखाखण्ड की तुलना केवल देखकर करने से क्या हानि है ?
हल :
रेखाखण्ड की तुलना केवल देखकर करने पर गलत माप होने की सम्भावना होती है।

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.1

प्रश्न 2.
एक रेखाखण्ड की लम्बाई मापने के लिए रूलर की अपेक्षा डिवाइडर का प्रयोग करना क्यों अधिक अच्छा है?
हल :
एक रेखाखण्ड की लम्बाई मापने के लिए रूलर की अपेक्षा डिवाइडर का प्रयोग करने से माप शुद्ध प्राप्त होती है।

प्रश्न 3.
कोई रेखाखण्ड AB खींचिए। A और B के बीच स्थित कोई बिन्दु C लीजिए। AB, BC और CA की लम्बाई मापिए। क्या AB = AC + CB है ?
(टिप्पणी : यदि किसी रेखा पर बिन्द . B (इस प्रकार स्थित हों कि AC + CB = AB है, तो निश्चित रूप से बिन्दु C बिन्दु A और B के बीच स्थित होता है।)
हल :
रेखाखण्ड की लम्बाई रूलर से नापने पर AB, BC और AC की माप निम्न है :
और
AB = 8.5 सेमी AC = 3.2 सेमी CB = 5.3 सेमी
AB = AC + CB है।

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.1

प्रश्न 4.
एक रेखा पर बिन्दु A, B और C इस प्रकार स्थित हैं कि AB = 5 सेमी, BC = 3 सेमी और AC = 8 सेमी है। इनमें से कौन-सा बिन्दु अन्य दोनों बिन्दुओं के बीच स्थित है?
हल :
∵ AB + BC = 5 सेमी + 3 सेमी = 8 सेमी = AC
∴ A, B और C सरेखी बिन्दु हैं और बिन्दु A तथा C के बीच बिन्दु B स्थित है।

प्रश्न 5.
जाँच कीजिए कि दी गई आकृति में D रेखाखण्ड \(\overline{A G}\) का मध्य-बिन्दु है।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.1 - 1
हल :
∵ AD = AB + BC + CD = 3 इकाई
DG = DE + EF + FG = 3 इकाई
अत: D, रेखाखण्ड \(\overline{A G}\) का मध्य-बिन्दु है।

प्रश्न 6.
B रेखाखण्ड \(\overline{A C}\) का मध्य-बिन्दु है और C रेखाखण्ड \(\overline{B D}\) का मध्य-बिन्दु है, जहाँ A, B, C और D एक ही रेखा पर स्थित हैं। बताइए कि AB = CD क्यों है ?
हल :
∵ रेखाखण्ड \(\overline{A C}\) का मध्य-बिन्दु B है।
∴ AB = BC ….(i)
∵ रेखाखण्ड \(\overline{B D}\) का मध्य-बिन्दु C है।
∴ BC = CD ….(ii)
अत: (i) व (ii) से,
AB = BC = CD
AB = CD
अत: AB = CD है।

HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.1

प्रश्न 7.
पाँच त्रिभुज खींचिए और उनकी भुजाओं को मापिए। प्रत्येक स्थिति में जाँच कीजिए कि किन्हीं दो भुजाओं की लम्बाइयों का योग तीसरी भुजा की लम्बाई से सदैव बड़ा है।
हल :
कोई पाँच त्रिभुज माना A1, A2, A3, A4 और A5 बनाए। प्रत्येक दशा में भुजाएँ AB = c, BC = a तथा CA = b मापा।
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.1 - 2
भुजाओं की माप की सारणी :
HBSE 6th Class Maths Solutions Chapter 5 प्रारंभिक आकारों को समझना Ex 5.1 - 3
उपर्युक्त सारणी से स्पष्ट है :
b + c – a, c + a – b और a + b – c प्रत्येक का मान धनात्मक है।
अब, b + c – a धनात्मक है ⇒ b + c – a > 0
⇒ b + c > a
c + a – b धनात्मक है ⇒ c + a – b > 0
⇒ c + a > b
और a + b – c धनात्मक है ⇒ a + b – c > 0
⇒ a + b > c
अतः स्पष्ट है कि त्रिभुज में किन्हीं दो भुजाओं का योग तीसरी भुजा से बड़ा होता है।

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HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Geography Important Questions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए

1. प्रदूषकों के परिवहित एवं विसरित होने के माध्यम के आधार पर प्रदूषण को निम्नलिखित प्रकार में वर्गीकृत किया जाता है-
(A) वायु प्रदूषण
(B) जल प्रदूषण
(C) भूमि प्रदूषण
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

2. भारत में जल का कितने प्रतिशत (%) भाग प्रदूषित हो चुका है?
(A) लगभग 20%
(B) लगभग 40%
(C) लगभग 70%
(D) लगभग 90%
उत्तर:
(C) लगभग 70%

3. गंगा और उसकी सहायक नदियों में प्रतिदिन कितने लीटर मल-जल डाला जाता है?
(A) 4 अरब लीटर
(B) 6 अरब लीटर
(C) 8 अरब लीटर
(D) 10 अरब लीटर
उत्तर:
(B) 6 अरब लीटर

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

4. किस नगर में वाहनों से कार्बन मोनोक्साइड अधिक पैदा होती है?
(A) शिमला में
(B) दिल्ली में
(C) कुल्लू में
(D) अमृतसर में
उत्तर:
(B) दिल्ली में

5. निम्नलिखित में से मानव-जनित प्रदूषक का उदाहरण है-
(A) बैक्टीरिया
(B) ज्वालामुखी राख
(C) खनन
(D) उल्कापात
उत्तर:
(C) खनन

6. निम्नलिखित में से नैसर्गिक प्रदूषक का उदाहरण है
(A) ज्वालामुखी राख
(B) खनन
(C) परमाणु विस्फोट
(D) रासायनिक प्रक्रियाएँ
उत्तर:
(A) ज्वालामुखी राख

7. अम्लीय वर्षा जल का pH मान होता है
(A) 5 से 2.5
(B) 5 से 7.5 के बीच
(C) 7.5 से अधिक
(D) 7.5 से कम
उत्तर:
(A) 5 से 2.5

8. विश्व जैव-विविधता दिवस प्रतिवर्ष कब मनाया जाता है? ।
(A) 22 अप्रैल
(B) 25 जून
(C) 22 मई
(D) 1 दिसम्बर
उत्तर:
(C) 22 मई

9. ओजोन परत के क्षरण के लिए सर्वाधिक उत्तरदायी गैस है-
(A) कार्बन-डाइऑक्साइड
(B) ऑक्सीजन
(C) क्लोरो-फ्लोरो कार्बन
(D) सल्फर-डाइऑक्साइड
उत्तर:
(C) क्लोरो-फ्लोरो कार्बन

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

10. डेसीबल इकाई है-
(A) वायुताप की
(B) वायुदाब की
(C) शोर के स्तर की
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) शोर के स्तर की

11. हमारे वायुमंडल में कितने प्रतिशत कार्बन-डाइऑक्साइड गैस विद्यमान है?
(A) 21 प्रतिशत
(B) 78 प्रतिशत
(C) 0.01 प्रतिशत
(D) 0.03 प्रतिशत
उत्तर:
(D) 0.03 प्रतिशत

12. वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं-
(A) उद्योग व कारखाने
(B) खनन
(C) जीवाश्म ईंधन का दहन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

13. किस प्रकार के प्रदूषण के कारण श्वसन व तंत्रिका प्रणाली संबंधी अनेक बीमारियाँ होती हैं?
(A) भू-प्रदूषण
(B) शोर-प्रदूषण
(C) वायु-प्रदूषण
(D) जल-प्रदूषण
उत्तर:
(C) वायु-प्रदूषण

14. कोहरा मानव स्वास्थ्य के लिए ……………… सिद्ध होता है
(A) लाभकारी
(B) अत्यंत घातक
(C) हानिकारक एवं लाभकारी दोनों
(D) न हानिकारक, न लाभकारी
उत्तर:
(B) अत्यंत घातक

15. ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा देने वाले स्रोत हैं
(A) सायरन
(B) लाउडस्पीकर
(C) तीव्र चालित मोटर-वाहन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

16. भारत के कई बड़े शहरों एवं महानगरों में कौन-सा प्रदूषण अधिक खतरनाक हैं?
(A) जल प्रदूषण
(B) भू-प्रदूषण
(C) ध्वनि प्रदूषण
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) ध्वनि प्रदूषण

17. धूम्र कुहरा संबंधित होता है-
(A) जल प्रदूषण से
(B) भू प्रदूषण से
(C) वायु प्रदूषण से
(D) शोर प्रदूषण से
उत्तर:
(C) वायु प्रदूषण से

18. वायु प्रदूषण से वायुमंडल में किस गैस की मात्रा बढ़ती है?
(A) ऑक्सीजन की
(B) नाइट्रोजन की
(C) कार्बन-डाइऑक्साइड की
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(C) कार्बन-डाइऑक्साइड की

19. कृषि/खेती में रासायनिक पदार्थों को डालने से किस प्रदूषण को बढ़ावा मिलता है?
(A) भू-प्रदूषण को
(B) शोर-प्रदूषण को
(C) वायु प्रदूषण को
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) भू-प्रदूषण को

20. किस नगर में वाहनों से कार्बन मोनोक्साइड अधिक पैदा होती है?
(A) शिमला में
(B) दिल्ली में
(C) कुल्लू में
(D) अमृतसर में
उत्तर:
(B) दिल्ली में

21. निम्नलिखित में से मानव-जनित प्रदूषक का उदाहरण है-
(A) बैक्टीरिया
(B) ज्वालामुखी राख
(C) खनन
(D) उल्कापात
उत्तर:
(C) खनन

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

22. निम्नलिखित में से नैसर्गिक प्रदूषक का उदाहरण है-
(A) ज्वालामुखी राख
(B) खनन
(C) परमाणु विस्फोट
(D) रासायनिक प्रक्रियाएँ
उत्तर:
(A) ज्वालामुखी राख

B. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में दें

प्रश्न 1.
ओजोन परत को पतला करने वाली गैस कौन-सी है?
उत्तर:
क्लोरो-फ्लोरो कार्बन।

प्रश्न 2.
शोर का स्तर मापने की इकाई क्या है?
अथवा
ध्वनि की उच्चता मापने की इकाई का क्या नाम है?
उत्तर:
डेसीबल।

प्रश्न 3.
अम्लीय वर्षा किस प्रदूषण से होती है?
उत्तर:
वायु प्रदूषण से।

प्रश्न 4.
मदा लवणता का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
नहरी सिंचाई का अत्यधिक उपयोग।

प्रश्न 5.
पर्यावरण दिवस प्रतिवर्ष कब मनाया जाता है?
उत्तर:
5 जून को।

प्रश्न 6.
ओज़ोन गैस के कारण कौन-सी झिल्ली नष्ट हो जाती है?
उत्तर:
श्लेष्मिक झिल्ली।

प्रश्न 7.
वायुमंडल में ऑक्सीजन कितने प्रतिशत होती है?
उत्तर:
लगभग 21 प्रतिशत।

प्रश्न 8.
वायुमंडल में नाइट्रोजन की मात्रा कितने प्रतिशत होती है?
उत्तर:
लगभग 78 प्रतिशत।

प्रश्न 9.
वायु में सबसे अधिक प्रतिशत में कौन-सी गैस होती है?
उत्तर:
नाइट्रोजन।

प्रश्न 10.
हम श्वसन क्रिया में कौन-सी गैस छोड़ते हैं?
उत्तर:
कार्बन-डाइऑक्साइड।

प्रश्न 11.
पृथ्वी का सुरक्षा कवच किसे कहा जाता है?
उत्तर:
ओजोन परत को।

प्रश्न 12.
विश्व की किसी एक प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संस्था का नाम बताएँ।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)।

प्रश्न 13.
विश्व ओजोन दिवस प्रतिवर्ष कब मनाया जाता है?
उत्तर:
16 दिसम्बर को।

प्रश्न 14.
भोपाल गैस त्रासदी दिवस प्रतिवर्ष कब मनाया जाता है?
उत्तर:
2 दिसम्बर को।

प्रश्न 15.
वायु प्रदूषण के स्रोतों को कितने भागों में बाँटा जाता है?
उत्तर:
दो भागों में।

प्रश्न 16.
हमारे चारों ओर जो प्राकृतिक, भौतिक व सामाजिक आवरण है, क्या कहलाता है?
उत्तर:
पर्यावरण।

प्रश्न 17.
कौन-सी गैस अम्लीय वर्षा का प्रमुख कारण है?
उत्तर:
सल्फर डाइऑक्साइड।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

प्रश्न 18.
रेफ्रिजरेटर एवं एयर कंडीशनर्स के प्रयोग से वायुमण्डल में किस गैस की मात्रा बढ़ती है?
उत्तर:
क्लोरो-फ्लोरो कार्बन की।

प्रश्न 19.
भूमि के गुणों का हास होना क्या कहलाता है?
उत्तर:
भू-निम्नीकरण।

प्रश्न 20.
वायु प्रदूषण के दो स्रोतों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. कोयला, पेट्रोल व डीजल का जलना
  2. घरेलू कूड़ा-कर्कट।

प्रश्न 21.
विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस प्रतिवर्ष कब मनाया जाता है?
उत्तर:
26 नवम्बर को।

प्रश्न 22.
एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस का नाम लिखें।
उत्तर:
कार्बन-डाइऑक्साइड (CO)।

प्रश्न 23.
हमारे आसपास का वातावरण कैसा होना चाहिए?
उत्तर:
हमारे आसपास का वातावरण स्वच्छ व शांतिमय होना चाहिए।

प्रश्न 24.
वायु-प्रदूषण का कोई एक प्राकृतिक स्रोत बताएँ।
उत्तर:
ज्वालामुखी।

प्रश्न 25.
ध्वनि प्रदूषण का कोई एक प्राकृतिक स्रोत बताएँ।
उत्तर:
आसमान में बिजली का कड़कना।

प्रश्न 26.
झबआ जिला किस राज्य में स्थित है?
उत्तर:
मध्य प्रदेश।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वायु का संघटन लिखिए।
अथवा
हमारे वायुमंडल में कौन-कौन-सी मुख्य गैसें उपस्थित हैं?
उत्तर:
भौतिक दृष्टि से वायु विभिन्न गैसों का सम्मिश्रण है। वायु के संघटन में निम्नलिखित प्रमुख गैसें होती हैं-

गैसेंआयतन (% में)गैसेंआयतन (% में)
नाइट्रोजन78.03नियोन0.0018
ऑक्सीजन20.99हीलियम0.0005
ऑर्गन0.93क्रिप्टॉन0.0001
कार्बन-डाइऑक्साइड0.03जेनॉन0.000005
हाइड्रोजन0.01ओजोन0.0000001

प्रश्न 2.
पर्यावरण कितने प्रकार के होते हैं? नाम बताएँ।
उत्तर:
पर्यावरण मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-

  1. प्राकृतिक या भौतिक पर्यावरण इसमें हमारे चारों ओर की वस्तुएँ; जैसे भूमि, नदियाँ, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, मौसम, जलवायु आदि शामिल होते हैं।
  2. सामाजिक पर्यावरण-इसमें घर, गलियाँ, स्कूल, रीति-रिवाज, परंपराएँ, कानून, व्यापारिक प्रतिष्ठान आदि शामिल होते हैं।

प्रश्न 3.
वायु-प्रदूषण (Air Pollution) क्या है?
उत्तर:
जब वायु में निश्चित मात्रा में अधिक विषैली और हानिकारक गैसें तथा धूलकण मिल जाते हैं, तो उसे वायु-प्रदूषण (Air Pollution) कहते हैं।

प्रश्न 4.
ध्वनि-प्रदूषण क्या है?
उत्तर:
जब ध्वनि अवांछनीय हो या कानों और मस्तिष्क में हलचल करे, तो उसे ध्वनि-प्रदूषण कहते हैं। यह एक ऐसा अवांछनीय परिवर्तन है जो मानव के जीवन पर हानिकारक प्रभाव डालता है।

प्रश्न 5.
जल-प्रदूषण कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
जल-प्रदूषण मुख्यतः पाँच प्रकार का होता है-

  1. पृथ्वी तल पर जल-प्रदूषण
  2. पृथ्वी के अन्दर जल-प्रदूषण
  3. नदी जल-प्रदूषण
  4. झीलों, झरनों व तालाबों का जल-प्रदूषण
  5. समुद्रीय जल-प्रदूषण।

प्रश्न 6.
मृदा-प्रदूषण के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:
मृदा-प्रदूषण के दो कारण निम्नलिखित हैं-

  1. भूमि में रासायनिक पदार्थों; जैसे जस्ता, कीटनाशक, रासायनिक खाद को डालने से मृदा प्रदूषित हो जाती है।
  2. उद्योगों के कूड़े-कर्कट में बहुत-से हानिकारक रासायनिक तत्त्व होते हैं, जो वायु के द्वारा मिट्टी में पहुँचकर उसे प्रदूषित कर देते हैं।

प्रश्न 7.
भू-निम्नीकरण के क्या कारण हैं?
उत्तर:

  1. अति-पशुचारण
  2. अत्यधिक खनन क्रिया
  3. अत्यधिक सिंचाई क्रिया।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

प्रश्न 8.
ध्वनि प्रदूषण से क्या-क्या हानियाँ होती हैं?
उत्तर:

  1. मस्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  2. चिड़चिड़ापन, बहरापन, तनाव व सिर दर्द के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
  3. श्रवण क्षमता स्थायी रूप से समाप्त हो जाती है।

प्रश्न 9.
जल-प्रदूषण के स्रोत कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. औद्योगिक अपशिष्ट
  2. घरेलू वाहित जल
  3. कृषि अपशिष्ट
  4. तापीय दूषित जल
  5. रेडियोधर्मी अपशिष्ट
  6. खनिज तेल का रिसाव
  7. वायुमण्डलीय कण आदि।।

प्रश्न 10.
पर्यावरण संरक्षण से संबंधित भारत की किन्हीं तीन संस्थाओं (संस्थानों) के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून-1986
  2. राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी शोध संस्थान (NEERI), नागपुर 1958
  3. वन शोध संस्थान, देहरादून-1906।

प्रश्न 11.
ग्रीन हाउस प्रभाव से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
ग्रीन हाउस प्रभाव एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा पृथ्वी के वातावरण में उपस्थित कार्बन-डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन .. ऑक्साइड तथा मीथेन जैसी ग्रीन हाउस गैसें पृथ्वी के तापमान को बढ़ाती हैं।

प्रश्न 12.
अम्लीय वर्षा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
औद्योगिक इकाइयों की विभिन्न उत्पादन क्रियाओं से निकली गैसों; जैसे कार्बन-डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड आदि का जलवाष्प के साथ मिलकर वर्षा के रूप में गिरना अम्लीय वर्षा कहलाती है।

प्रश्न 13.
धूम्र कुहरा क्या है?
उत्तर:
नगरीय एवं औद्योगिक क्षेत्रों में वायुमण्डल की निचली परत में भारी मात्रा में विद्यमान प्रदूषित गैसें और प्रदूषक तत्त्व जब सामान्य रूप से पड़ने वाले कोहरे से मिल जाते हैं तो धूम्र कुहरा पैदा हो जाता है जोकि मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत घातक सिद्ध होता है।

प्रश्न 14.
वायु-प्रदूषण के अप्राकृतिक स्रोत कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर:

  1. जीवाश्म ईंधन का दहन
  2. खनन
  3. औद्योगिक प्रक्रम
  4. परिवहन या यातायात के साधन
  5. धूम्रपान
  6. रेडियोधर्मिता आदि।

प्रश्न 15.
ग्रीन हाउस प्रभाव को कम करने के उपाय बताएँ।
उत्तर:

  1. जीवाश्म ईंधन का कम उपयोग करना
  2. अधिक से अधिक पौधे रोपण करना
  3. क्लोरो-फ्लोरो कार्बन के प्रयोग को प्रतिबंधित करना
  4. पर्यावरण संतुलन बनाए रखने हेतु सहयोग करना या पर्यावरण के प्रति जागरूक रहना।

प्रश्न 16.
भौतिक वातावरण (Physical Environment) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भौतिक वातावरण को प्राकृतिक वातावरण भी कहते हैं, क्योंकि इसमें हमारे चारों ओर उपस्थित घटकों या वस्तुओं को शामिल किया जाता है। जैसे-हवा, पानी, भूमि, पेड़-पौधे, मौसम, जलवायु, आकाश, अशु-पक्षी, जीव-जन्तु आदि।

प्रश्न 17.
प्रदूषक (Pollutants) किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब पर्यावरणीय तत्त्वों; जैसे पानी, हवा, भूमि आदि में कुछ अवांछनीय पदार्थ मिल जाते हैं तो इन अवांछनीय पदार्थों से पर्यावरणीय तत्त्व प्रदूषित हो जाते हैं। इन पर्यावरणीय तत्त्वों को दूषित करने वाले अवांछनीय पदार्थों को प्रदूषक कहा जाता है। उदाहरण के लिए, कारखानों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ, घरेलू कूड़ा-कर्कट और वाहनों से निकलने वाला धुआँ आदि।

प्रश्न 18.
जल प्रदूषण क्या है?
उत्तर:
सारे जीव-जंतुओं के जीवित रहने के लिए जल का लगातार मिलते रहना बहुत आवश्यक है। जल में घुलनशील व अघुलनशील अशुद्धियों या पदार्थों के मिल जाने से जल का दूषित होना जल-प्रदूषण कहलाता है।

प्रश्न 19.
प्रदूषण की कोई दो परिभाषाएँ लिखें।
उत्तर:
1. ई०पी० ओडम के अनुसार, “प्रदूषण से अभिप्राय हमारे जल, हवा और जमीन में भौतिक, रासायनिक और जीव-विज्ञान में आने वाले परिवर्तन हैं जो कि जीवन और आवश्यक नस्लों पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं।”

2. टी० जी० मैक्लालिन के अनुसार, “मनुष्य ने व्यर्थ पदार्थ और अतिरिक्त ऊर्जा का जो सिलसिला वातावरण में । आरम्भ किया है, वह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य और वातावरण को हानि पहुँचाने वाला है।”

प्रश्न 20.
पर्यावरण प्रदूषण को कितने वर्गों में बाँटा गया है?
उत्तर:
पर्यावरण प्रदूषण मुख्यतः दो वर्गों में बाँटा गया है-

  1. प्रत्यक्ष पर्यावरण प्रदूषण-यह वह प्रदूषण है जिसका प्रभाव पेड़-पौधों, प्राणी और जीव-जन्तुओं (जैवमंडल) पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है।
  2. अप्रत्यक्ष पर्यावरण प्रदूषण-यह वह प्रदूषण है जिसका प्रभाव जैवमंडल पर अप्रत्यक्ष रूप से पड़ता है।

प्रश्न 21.
मृदा-प्रदूषण क्या है?
उत्तर:
मनुष्य के हस्तक्षेप एवं दुरुपयोग द्वारा जब मृदा में ऐसे भौतिक, जैविक एवं रासायनिक परिवर्तन हो जाएँ जिनसे उसकी वास्तविक गुणवत्ता एवं उत्पादकता का ह्रास हो जाए, तो उसे भूमि या मृदा-प्रदूषण कहते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वातावरण को प्रदूषित होने से बचाने के साधनों या उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वातावरण को प्रदूषित होने से बचाने के साधन या उपाय निम्नलिखित हैं-

  1. फैक्ट्रियों की चिमनियाँ काफी ऊँची होनी चाहिएँ ताकि धुआँ और कई अन्य गैसें वातावरण को प्रदूषित न कर सकें।
  2. कारों, बसों, ट्रकों आदि से निकलने वाले धुएँ को रोकने के लिए इनमें नए यन्त्र लगाकर वातावरण को प्रदूषित होने से रोका जा सकता है।
  3. गंदगी के ढेरों को इकट्ठे नहीं होने देना चाहिए, क्योंकि इनमें से निकलती हुई बदबू वातावरण को प्रदूषित करती है।
  4. औद्योगिक स्थान आबादी से दूर होने चाहिएँ ताकि लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ने से रोका जा सके।
  5. घनी जनसंख्या में सफाई का ध्यान रखना चाहिए ताकि वातावरण को दूषित होने से बचाया जा सके।
  6. पेड़-पौधे अधिक-से-अधिक लगाए जाने चाहिएँ।
  7. मनुष्य और जीव-जंतुओं के मृतक शरीरों को जलाने का ठीक प्रबंध करना चाहिए।

प्रश्न 2.
अम्लीय वर्षा के क्या कारण हैं?
उत्तर:
कोयला तथा खनिज तेल जैसे जीवाश्म ईंधनों के जलने से उत्पन्न धुएँ में 3 से 4 प्रतिशत तक गंधक की मात्रा होती है। चिमनियों से धुएँ के रूप में जब यह गंधक वायुमंडल में मिलती है तो सल्फ्यूरिक एसिड बनकर वायु को प्रदूषित करती है। ये ईंधन पूरी तरह से नहीं जलते उनसे कार्बन मोनोऑक्साइड निकलती है जो जल को प्रदूषित करती है। कारखानों से निकलकर सल्फ्यूरिक एवं नाइट्रोजन ऑक्साइड वायु में उपस्थित जलवाष्प से मिलकर क्रमशः सल्फ्यूरिक एवं नाइट्रिक एसिड में बदल जाते हैं। फिर यही एसिड अम्ल वर्षा (Acid Rain) के रूप में पुनः धरातल पर पहुँच जाते हैं।

प्रश्न 3.
गरीबी का भूख से क्या रिश्ता है? वर्णन करें।
उत्तर:
गरीबी-यह वह मजबूरी है जिसमें व्यक्ति अपने या अपने परिवार के लिए दो वक्त का खाना नहीं जुटा पाता। योजना आयोग राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर गरीबी के विस्तार का आकलन करता रहा है। गरीबी का स्वरूप गाँव या शहर में एक जैसा होता है। गरीबी एक अभिशाप है जिसमें जीवन जीना भी एक अभिशाप जैसा होता है। यह एक ऐसा चक्रव्यूह है जिसके दलदल में फँसने पर बाहर निकलने के लिए व्यक्ति हाथ-पैर मारता रहता है।

भूख-स्वस्थ रहने के लिए दो वक्त की रोटी न मिल पाना भूख कहलाती है। गरीबी और भूख एक सिक्के के दो पहलू हैं, क्योंकि गरीबी के अनुपात और भूखे लोगों के प्रतिशत में विशेष अंतर नहीं होता, क्योंकि जिस आय से गरीबी रेखा का निर्धारण किया जाता है वह न्यूनतम जरूरतें पूरी करती हो। ऐसा आवश्यक था परन्तु अब खाद्यान्न के प्रति व्यक्ति की बढ़ती हुई उपलब्धता से भी गरीबी और भूख के कम होने का पता चलता है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

प्रश्न 4.
ध्वनि प्रदूषण को रोकने के कोई चार उपाय बताएँ।
उत्तर:
ध्वनि प्रदूषण को रोकने के कोई चार उपाय निम्नलिखित हैं-

  1. रिहायशी बस्तियों की तरफ मोटरों, कारों और ट्रकों का यातायात बन्द कर देना चाहिए।
  2. जहाँ शोर-प्रदूष। हो वहाँ रिहायशी बस्तियाँ नहीं बनने देनी चाहिएँ। बस्तियों में और सड़कों के साथ-साथ नीम और अशोक वृक्ष लगाने चाहिएँ।
  3. ध्वनि-प्रदूषण को कम करने के लिए कानून बनाना चाहिए ताकि इस तरह से प्रदूषण पैदा करने वाले को कानून के दायरे में सजा दी जा सके।
  4. बड़े-बड़े उद्योग, रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डे आवासीय क्षेत्रों से संतुलित दूरी पर होने चाहिएँ।

प्रश्न 5.
मृदा अपरदन के प्रमुख कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
मृदा अपरदन के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  1. वर्षा ऋतु में नदियों में बाढ़ आने से उनका जल-स्तर बढ़ जाता है तथा नदियों का जल, कृषि और पशुचारण के क्षेत्र में प्रवेश कर मिट्टी का अपरदन करता है।
  2. ढालू भूमि में पानी का बहाव तीव्र होने के कारण मिट्टी की ऊपरी सतह बह जाती है।
  3. वनस्पति-विहीन क्षेत्रों में हवा के कारण मिट्टी का उत्तरी आवरण बह जाता है या हवा द्वारा उड़ा लिया जाता है।
  4. अधिक पशुचारण के कारण पशुओं द्वारा वनस्पति या घास की जड़ें कमजोर होकर उन्हें हानि पहुँचाती हैं, जिससे मिट्टी खोखली होकर बह जाती है।
  5. एक खेत में बार-बार एक ही फसल बोने से मिट्टी के आवश्यक खनिज तत्त्व नष्ट हो जाते हैं और मिट्टी असन्तुलित हो जाती है।
  6. स्थानान्तरी कृषि में जंगलों को साफ करके कृषि करने से भी मिट्टी के कटाव को बढ़ावा मिलता है।

प्रश्न 6.
ध्वनि प्रदूषण के प्राकृतिक व मानवीय स्रोत बताएँ।
अथवा
ध्वनि प्रदूषण के अप्राकृतिक स्रोत कौन-कौन से हैं?
अथवा
शोर प्रदूषण के कौन-कौन से स्रोत हैं?
उत्तर:
ध्वनि प्रदूषण के स्रोत दो प्रकार के हैं-

  1. प्राकृतिक स्त्रोत-ध्वनि के प्राकृतिक स्रोतों से अभिप्राय ज्वालामुखी फटना, बिजली कड़कना, बादलों का गरजना, आंधी-तूफान, लहरों की आवाज, तेज गति की पवनें इत्यादि शामिल हैं।
  2. मानवीय स्रोत-औद्योगिक मशीनें, स्वचालित वाहन, डाइनामाइट विस्फोट, युद्धाभ्यास, पुलिस द्वारा चलाई गोलियाँ, लाउडस्पीकर्स, रेडियो, बैंड-बाजे, आतिशबाजी, भवन निर्माण इत्यादि मानवीय स्रोत को दर्शाता है।

प्रश्न 7.
अम्लीय वर्षा के क्या दुष्प्रभाव हैं?
उत्तर:
अम्तीय वर्षा के दुष्प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  1. मिट्टी में अम्लीयता बढ़ जाती है।
  2. मिट्टी के खनिज व पोषक तत्त्व समाप्त हो जाते हैं।
  3. मिट्टी की उत्पादकता कम हो जाती है।
  4. पेय जल भण्डार दूषित हो जाते हैं।
  5. आँखों में जलन, श्वसन एवं त्वचा संबंधी अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
  6. इसका वनों पर भी बुरा असर पड़ता है।

प्रश्न 8.
जल-प्रदूषण के प्रमुख दुष्प्रभाव या दुष्परिणाम बताएँ।
अथवा
जल-प्रदूषण से क्या-क्या हानि हो सकती है?
उत्तर:
जल-प्रदूषण के दुष्प्रभाव या दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं-

  1. दूषित जल पीने से हमें पीलिया, हैजा, मियादी बुखार आदि अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं।
  2. दूषित जल में जल-जीवों के लिए खुराक की कमी होने के कारण इनकी संख्या में कमी आ जाती है।
  3. वनस्पति एवं कृषि पर भी जल-प्रदूषण का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। दूषित जल पेड़-पौधों की जड़ों को नष्ट कर देता है और उनका विकास रुक जाता है।
  4. जल-प्रदूषण से जैव-विविधता का संकट व पारिस्थितिकीय असंतुलन उत्पन्न होता है। इससे विभिन्न जीवों की भोज्य श्रृंखला प्रभावित होती है।

प्रश्न 9.
हमारा वातावरण किन-किन कारणों से प्रदूषित हो रहा है?
अथवा
पर्यावरण प्रदूषण के मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण प्रदूषण के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  1. आवश्यकता से अधिक प्राकृतिक संसाधनों का दोहन।
  2. बढ़ती जनसंख्या।
  3. शहरीकरण एवं औद्योगीकरण।
  4. रासायनिक खादों व कीटनाशक दवाइयों का अधिक मात्रा में प्रयोग।
  5. वनों की निरंतर कटाई।
  6. बढ़ती प्राकृतिक आपदाएँ।
  7. पर्यावरण संतुलन के प्रति लोगों में जागरुकता का अभाव आदि।

प्रश्न 10.
वायु-प्रदूषण के प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
वायु को अशुद्ध करने वाले कारण लिखें।
उत्तर:
वायु-प्रदूषण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  1. तंबाकू का उपयोग विभिन्न प्रकार से धूम्रपान करने के लिए किया जाता है। धूम्रपान से वायुमंडल में धुआँ लगातार फैलता रहता है जो वायु को प्रदूषित करता है।
  2. कारखानों एवं वाहनों द्वारा छोड़े गए धुएँ के कारण वायु प्रदूषित होती है।
  3. कीटनाशक तथा उर्वरक पदार्थ वायु में मिल जाते हैं और लटकते कणों के रूप में वहीं मौजूद रहते हैं। ये भी वायु को प्रदूषित करते हैं।
  4. खुले में घरेलू कूड़ा फेंकने से भी वायु प्रदूषित होती है।
  5. ‘लकड़ी, ईंधन, कूड़ा, पटाखे और अन्य पदार्थों को जलाने से वायु-प्रदूषण को बढ़ावा मिलता है।
  6. तेलशोधक, धातुशोधक तथा रासायनिक उद्योगों आदि से निकलने वाली जहरीली गैसें वायु को दूषित करती हैं।

प्रश्न 11.
प्रदूषित जल की रोकथाम के किन्हीं चार उपायों का वर्णन कीजिए। अथवा जल को प्रदूषित होने से कैसे रोका जा सकता है?
उत्तर:
प्रदूषित जल की रोकथाम के उपाय निम्नलिखित हैं-
(i) प्रकृति प्रदूषित जल को धूप, हवा और गर्म मौसम द्वारा साफ करती है। घरेलू और औद्योगिक जल एक तालाब में इकट्ठा कर लिया जाता है। इसमें काई और बैक्टीरिया पैदा हो जाते हैं, जो जहरीले पदार्थों को खा जाते हैं। यह जल प्रयोग करने के योग्य हो जाता है। इस जल को बिना किसी खतरे के कृषि में प्रयोग किया जा सकता है। जल में रहने वाली मछलियाँ भी जल को शुद्ध करने में सहायता करती हैं।

(ii) रासायनिक पदार्थ; जैसे फिटकरी, चूना और पोटैशियम परमैंगनेट, क्लोरीन आदि का प्रयोग करके जल को प्रदूषित होने से रोका जा सकता है। फिटकरी अशुद्ध जल को नीचे बिठा देती है। चूना जल के भारीपन को दूर करता है। पोटैशियम परमैंगनेट, क्लोरीन जल के सूक्ष्म जीवाणुओं को समाप्त कर देती हैं।

(iii) कीटनाशक दवाइयों और खादों को समय के अनुसार प्रयोग में लाकर और कम-से-कम मात्रा में प्रयोग करके जल को प्रदूषित होने से रोका जा सकता है।

(iv) जल को प्रदूषित होने से रोकने के लिए सख्त कानून का होना बहुत जरूरी है। इसके साथ-साथ सामाजिक और औद्योगिक इकाइयाँ बहते हुए जल में व्यर्थ पदार्थ न फेंकें, जिससे जल को प्रदूषित होने से रोका जा सकता है।

प्रश्न 12.
पर्यावरण के बचाव (संरक्षण) हेतु हमारी क्या भूमिका होनी चाहिए?
अथवा
पर्यावरण संरक्षण के मुख्य उपाय बताएँ।
अथवा
वातावरण को प्रदूषित होने से बचाने के उपायों का वर्णन करें।
उत्तर:
पर्यावरण का बचाव करना किसी एक व्यक्ति का दायित्व न होकर संपूर्ण मानव जाति का दायित्व है। इसके बचाव या संरक्षण हेतु हमें निम्नलिखित उपाय करने चाहिएँ-

  1. हमें घरेलू कूड़े-कर्कट को कूड़ेदान या उचित स्थान पर ही डालना चाहिए।
  2. हमें पॉलिथीन के लिफाफों का उपयोग कम-से-कम करना चाहिए।
  3. जंगलों और वन्य-जीवों के संरक्षण हेतु हमें वृक्षों को नहीं काटना चाहिए।
  4. हमें पानी को व्यर्थ में बहने नहीं देना चाहिए।
  5. वातावरण से मेल रखने वाले उत्पादों को ही उपयोग में लाना चाहिए।
  6. अधिक-से-अधिक वृक्षारोपण कर पर्यावरण के संरक्षण हेतु योगदान देना चाहिए।
  7. जीव-जन्तुओं के मृतक शरीरों को दबाने के लिए उचित स्थान का प्रबंध करना चाहिए।
  8. फैक्ट्रियों की चिमनियाँ काफी ऊँची होनी चाहिएँ, ताकि धुआँ और अन्य विषैली गैसें वातावरण को प्रदूषित न कर सकें।
  9. पर्यावरण के संरक्षण हेतु लोगों को जागरूक करना चाहिए।

दीर्घ-उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जल-प्रदूषण (Water Pollution) की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
अथवा
भारत में जल-प्रदूषण पर एक टिप्पणी लिखिए।
अथवा
जल-प्रदूषण क्या है? इसके कारण तथा रोकथाम के उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जल-प्रदूषण (Water Pollution)-सारे जीव-जंतुओं के जीवित रहने के लिए जल का साफ-सुथरा और लगातार मिलते रहना बहुत आवश्यक है। जल में घुलनशील व अघुलनशील अशुद्धियों या चीजों के मिल जाने से जल का दूषित होना जल-प्रदूषण कहलाता है।

जल-प्रदूषण के कारण (Causes of Water Pollution)-जल-प्रदूषण के कारण निम्नलिखित हैं-
(i) मल प्रवाह और घर के कूड़ा-कर्कट से लगभग 75% जल प्रदूषित होता है। बहते हुए जल की अपेक्षा खड़ा जल जल्दी प्रदूषित होता है। इसमें से बदबू आनी शुरू हो जाती है।

(ii) उद्योगों के फालतू रासायनिक पदार्थों को बहते हुए जल में बहा दिया जाता है ताकि इनसे छुटकारा पाया जा सके। ये रासायनिक पदार्थ जल को जहरीला बनाते हैं और जल में रह रहे जानवरों के लिए खतरा पैदा करते हैं।

(iii) कीटनाशक दवाइयाँ तेज रसायन पदार्थ होती हैं, जो कीड़े मारने के लिए प्रयोग में लाई जाती हैं। साधारणतया किसानों द्वारा इनका प्रयोग आवश्यकता से अधिक किया जाता है। खेतों का जल जिसमें कीटनाशक दवाइयाँ मिली होती हैं, बहकर झीलों, तालाबों, नहरों और नदियों में चला जाता है और उनके जल को प्रदूषित कर देता है।

(iv) मैल निवारक से अभिप्राय उस चीज से है, जो सफाई का कार्य करती है, जिसमें साधारण साबुन भी आ जाता है। मैल निवारक में फॉस्फोरस होने के कारण जल प्रदूषित होता है।

(v) आज के युग में खेती की पैदावार को बढ़ाने के लिए किसानों द्वारा प्रायः रासायनिक खादों का प्रयोग किया जाता है। इन खादों में नाइट्रेट और फॉस्फोरस की मात्रा अधिक होती है। खेतों में सिंचाई और वर्षा के कारण ये खादें बहकर। नदियों और तालाबों में मिल जाती हैं और उनके जल को दूषित कर देती हैं।

प्रदूषित जल की रोकथाम के उपाय (Control Measures of Water Pollution)-जल को दूषित होने से रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं-
(i) प्रकृति प्रदूषित जल को धूप, हवा और गर्म मौसम द्वारा साफ करती है। कर का जल और औद्योगिक जल एक तालाब में इकट्ठा कर लिया जाता है। इसमें काई और बैक्टीरिया पैदा हो जाते हैं, जो जहरीले पदार्थों को खा जाते हैं। यह जल प्रयोग करने के योग्य हो जाता है। इस जल को बिना किसी खतरे के कृषि में प्रयोग किया जा सकता है। जल में रहने वाली मछलियाँ भी जल को शुद्ध करने में सहायता करती हैं।

(ii) रसायन पदार्थ; जैसे फिटकरी, चूना और पोटैशियम परमैंगनेट, क्लोरीन आदि का प्रयोग करके जल को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है। फिटकरी अशुद्ध जल को नीचे बिठा देती है। चूना जल के भारीपन को दूर करता है। – पोटैशियम रोगों के रोगाणओं को नष्ट करती है। क्लोरीन द्वारा भी जल को साफ किया जा सकता है।

(iii) कीटनाशक दवाइयों और खादों को समय के अनुसार प्रयोग में लाकर और कम-से-कम मात्रा में प्रयोग करके जल को प्रदूषित होने से रोका जा सकता है।

(iv) जल को प्रदूषित होने से रोकने के लिए सख्त कानून का होना जरूरी है। इसके साथ-साथ नगरपालिकाएँ और औद्योगिक इकाइयाँ बहते हुए जल में कम-से-कम व्यर्थ पदार्थ फेंकें, जिससे जल को प्रदूषित होने से रोका जा सकता है।

HBSE 12th Class Geography Important Questions Chapter 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

प्रश्न 2.
ध्वनि या शोर प्रदूषण (Noise Pollution) पर विस्तृत नोट लिखें।
अथवा
ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) क्या है? इसके प्रभावों तथा रोकथाम के उपायों का वर्णन कीजिए।
अथवा
शोर प्रदूषण के कारण, प्रभाव और उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ध्वनि या शोर प्रदूषण (Noise Pollution)-शोर शब्द लेटिन भाषा में से लिया गया है जिसको “Nausea” कहते हैं जिसका अर्थ पेट की परेशानी के कारण उल्टी का आना है। परन्तु आजकल न चाहने वाली आवाज, जिसका कोई मूल्य न हो और असीमित आवाज जैसे नामों के साथ इसकी व्याख्या की जाती है। शोर चाहे थोड़ा हो या ज्यादा, यह मनुष्य के संवेग और व्यवहार पर प्रभाव डालता है। जब ध्वनि अवांछनीय हो या कानों और मस्तिष्क में हलचल करे, तो उसे ध्वनि-प्रदूषण कहते हैं। यह एक ऐसा अवांछनीय परिवर्तन है, जो मानव के जीवन पर हानिकारक प्रभाव डालता है।

ध्वनि-प्रदूषण के कारण (Causes of Noise Pollution)-ध्वनि-प्रदूषण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  • कारखानों में मशीनें बहुत अधिक ध्वनि पैदा करती हैं जिससे शोर-प्रदूषण फैलता है।
  • यातायात वाहनों (मोटरगाड़ियों, रेलों, जहाजों) के द्वारा शोर प्रदूषण होता है।
  • शादियों, पर्यों में उपयोग किए जाने वाले लाउडस्पीकर एवं पटाखे आदि शोर प्रदूषण के कारण हैं।

ध्वनि-प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Noise Pollution)-ध्वनि-प्रदूषण के प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं
1. सुनने की शक्ति पर प्रभाव-ध्वनि-प्रदूषण के कारण मनुष्य की सुनने की शक्ति कम हो जाती है। विशेषतौर पर बुनाई वाले कर्मियों पर इसका सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है।

2. स्वास्थ्य पर प्रभाव-ध्वनि-प्रदूषण के कारण केवल सुनने पर ही प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि कई प्रकार की मानसिक बीमारियाँ . भी लग जाती हैं; जैसे कि परेशानी, तनाव, नींद का न आना, मानसिक थकावट, दिमाग आदि पर प्रभाव पड़ता है।

ध्वनि-प्रदूषण की रोकथाम के उपाय (Control Measures of Noise Pollution)-आज के युग में ध्वनि-प्रदूषण एक समस्या बन गई है। इसकी आम रोकथाम तभी हो सकती है यदि साधारण लोगों को इससे होने वाले शारीरिक और मानसिक नुकसान की जानकारी दी जाए। ध्वनि-प्रदूषण को निम्नलिखित तरीकों से रोका जा सकता है

  • रिहायशी बस्तियों की तरफ मोटरों, कारों और ट्रकों का यातायात बन्द कर देना चाहिए।
  • जहाँ शोर-प्रदूषण हो वहाँ रिहायशी बस्तियाँ नहीं बनने देनी चाहिएँ। बस्तियों में और सड़कों के साथ-साथ नीम और
  • ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए कानून बनाना चाहिए ताकि इस तरह से प्रदूषण पैदा करने वाले को कानून के दायरे में सजा दी जा सके।
  • बड़े-बड़े उद्योग, रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डे आवासीय क्षेत्रों से संतुलित दूरी पर होने चाहिएँ।
  • समाचार-पत्रों, रेडियो, टी.वी. आदि के माध्यम से लोगों को ध्वनि-प्रदूषण के दुष्परिणामों से अवगत करवाना चाहिए।

प्रश्न 3.
वायु-प्रदूषण (Air Pollution) पर विस्तृत नोट लिखें। अथवा वायु-प्रदूषण (Air Pollution) क्या है? वायु-प्रदूषण के कारणों एवं रोकथाम के उपायों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
वायु-प्रदूषण के कारणों एवं प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:
वायु-प्रदूषण (Air Pollution)-जब वायु में निश्चित मात्रा में अधिक विषैली और हानिकारक गैसें तथा धूलकण मिल जाते हैं, तो उसे वायु-प्रदूषण कहते हैं।

वाय-प्रदूषण के कारण (Causes of Air Pollution) वायु निम्नलिखित कारणों से प्रदूषित होती है-

  • तेज हवाओं से ऊपर उठी धूल, गलियों और सड़कों को साफ करने से उठे धूलकण हवा में लटकते रहते हैं।
  • कारखानों एवं मोटरगाड़ियों द्वारा छोड़े गए धुएँ के कारण वायु प्रदूषित होती है।
  • कीटनाशक तथा उर्वरक पदार्थ वायु में मिल जाते हैं और लटकते कणों के रूप में वहीं मौजूद रहते हैं। ये भी वायु को प्रदूषित करते हैं।
  • खुले में घरेलू कूड़ा फेंकने से वायु प्रदूषित होती है।
  • लकड़ी, ईंधन, कूड़ा, पटाखे और अन्य चीज़ों को जलाने से वायु-प्रदूषण को बढ़ावा मिलता है।

वायु-प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Air Pollution)-वायु-प्रदूषण के प्रभाव निम्नलिखित हैं
1. स्वास्थ्य पर प्रभाव-वायु के बिना मनुष्य का जीवित रहना असंभव है। वायु द्वारा ऑक्सीजन हमारे शरीर में पहुँचती है और शरीर की क्रियाएँ जारी रहती हैं, इसलिए शुद्ध वायु स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है। परन्तु जब कई प्रकार की गैसें और धूल-कण वायु में मिलते हैं तो वायु प्रदूषित हो जाती है, जो मनुष्य के लिए हानिकारक होती है। इसका मनुष्य के सभी तंत्रों पर बुरा प्रभाव पड़ता है जिसके कारण मनुष्य का स्वास्थ्य खराब हो जाता है।

2. भीषण रोग-प्रदूषित वायु के कारण मनुष्य दमा और फेफड़ों के कैंसर जैसी बीमारियों का शिकार हो जाता है। भिन्न-भिन्न स्रोतों से निकला हुआ रासायनिक पदार्थ कई प्रकार की अन्य बीमारियाँ पैदा करता है; जैसे कार्बन मोनोऑक्साइड मनुष्य के दिल को प्रभावित करती है। सल्फर डाइऑक्साइड साँस लेने में कठिनाई पैदा करती है। नाइट्रिक एसिड और सल्फर एसिड साँस की बीमारियाँ पैदा करते हैं।

3. पौधों पर प्रभाव प्रदूषित वायु फसलों तथा पौधों पर भी बहुत प्रभाव करती है। ओज़ोन (Ozone) विशेषतौर पर पत्तों वाली सब्जियों, चारे की फसलों और जंगली पौधों के लिए हानिकारक है।

4. जलवायु पर प्रभाव-शहरों में फैक्ट्रियाँ ज्यादा होने के कारण ठोस कण बादलों की आकृति बनाए रखते हैं, जिसके कारण धुंध और कोहरा उन स्थानों से ज्यादा पड़ता है जहाँ फैक्ट्रियाँ कम होती हैं। कणों के कारण तापमान और वायु के बहाव में परिवर्तन आता रहता है।

वायु-प्रदूषण की रोकथाम के उपाय (Control Measures of Air Pollution) वायु-प्रदूषण की रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं-

  • शहर या गाँव के आस-पास प्रदूषण उत्पन्न करने वाले कारखानों को लगाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
  • प्रदूषण को कम करने के लिए कारखानों की चिमनियाँ ऊँची होनी चाहिएँ, क्योंकि ये अधिक प्रदूषण फैलाती हैं।
  • कारखानों और मोटरगाड़ियों द्वारा छोड़े जाने वाले धुएँ को नियंत्रित करना चाहिए।
  • कीटनाशक एवं उर्वरकों से वायु प्रदूषित होती है। इसलिए इनका उपयोग कम-से-कम करना चाहिए।
  • घरेलू कूड़े-कर्कट को खुले में न फेंककर किसी गड्ढे आदि में फेंकना चाहिए।

प्रश्न 4.
मृदा अपरदन (Soil Erosion) पर संक्षिप्त नोट लिखें।
अथवा
मृदा अपरदन (Soil Erosion) क्या है? इसको नियंत्रित करने के उपायों का वर्णन करें।
उत्तर:
मृदा अपरदन (Soil Erosion)-मृदा के कटाव के कारण उसमें निहित आवश्यक उपजाऊ तत्त्व जो ऊपरी परत में विद्यमान होते हैं, वे समाप्त हो जाते हैं। उसकी उर्वरा शक्ति कम हो जाती है, जिससे वह फसलों तथा वनस्पति के उगाने योग्य नहीं। रहती। आर्द्र जलवायु वाले प्रदेशों (जहाँ वर्षा अधिक होती है) में अपक्षालन की प्रक्रिया से मिट्टी के आवश्यक तत्त्व घुलकर निचली परतों में चले जाते हैं, जिससे मृदा की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है। मरुस्थलीय तथा अर्द्ध-मरुस्थलीय प्रदेशों में मृदा की ऊपरी परत हवा द्वारा एक स्थान से उड़ाकर दूसरे स्थान पर ले जाई जाती है, जिससे भूमि कटाव होता है और मिट्टी की पैदावार करने की क्षमता का ह्रास होता है।

मृदा अपरदन को रोकने के उपाय (Measures to Prevent Soil Erosion) मृदा के संरक्षण एवं प्रबन्धन में मृदा संसाधनों के दीर्घकालीन उपयोग हेतु मृदा के कटाव को नियन्त्रित करना, उसकी उर्वरता को बनाए रखना तथा उसमें सुधार कर उर्वरता में वृद्धि करना सम्मिलित हैं। मृदा के संरक्षण या मृदा अपरदन को रोकने के लिए निम्नलिखित विधियाँ अपनानी चाहिएँ-
1. सम्मोच रेखीय जुताई (Contour Ploughing)-इसमें पहाड़ी ढालों के अनुरूप जुताई की जाती है। ढलानों को कई भागों में बाँटा जाता है, जिससे मिट्टी के कटाव की दर कम हो सके। इस प्रकार की जुताई में कतारों में फसलों को बोकर वर्षा के जल का अवशोषण अधिकतम किया जाता है।

2. फसलों का हेर-फेर (Shifting of Cultivation)-किसी भी खेत या क्षेत्र में एक ही फसल को दो साल से अधिक नहीं बोना चाहिए, क्योंकि इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है तथा आवश्यक खनिज तत्त्व समाप्त हो जाते हैं। यदि किसी खेत में दो साल तक गेहूँ की फसल बोई जाती है तो उसके बाद चना या सरसो बोनी चाहिए।

3. नियन्त्रित पशुचारण (Controlling Animal Grazing)-पशुचारण पर प्रतिबन्ध या नियन्त्रण लगाना चाहिए। कुछ चुने हुए स्थानों या क्षेत्रों में पशुचारण होना चाहिए, जिससे मिट्टी का कटाव सीमित रहे।

4. वृक्षारोपण (Tree Plantation)-जिन क्षेत्रों में मिट्टी के कटाव की समस्या है, वहाँ अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाने चाहिए। वृक्षों की कटाई पर रोक लगानी चाहिए। जिन क्षेत्रों में मरुस्थल है, वहाँ लम्बी-लम्बी कतारों में वृक्षारोपण करना चाहिए।

5. मेंडबन्दी (Plugging)-जो क्षेत्र प्रतिवर्ष बाढ़ग्रस्त हो जाते हैं, वहाँ अवनालिका अपरदन द्वारा बड़े-बड़े गड्ढे बन जाते हैं। इसलिए खेतों के चारों ओर मेंडबन्दी कर देनी चाहिए तथा अवनालिका अपरदन वाले क्षेत्रों में लम्बी-लम्बी दीवारें बना देनी चाहिए।

इनके अतिरिक्त मृदा अपरदन को रोकने के उद्देश्य से सिंचाई के साधनों का विकास किया जाना चाहिए। वर्षा ऋतु में अतिरिक्त जल के संचयन की व्यवस्था जिसको शुष्क ऋतु में प्रयोग में लाया जा सके, की जानी चाहिए। पहाड़ी क्षेत्रों में मेंड्युक्त खेतों से भी मृदा अपरदन को नियन्त्रित किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
भू-निम्नीकरण पर एक नोट लिखिए।
अथवा
भू-निम्नीकरण से आपका क्या तात्पर्य है? इसके कारणों और इसको नियंत्रित करने के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भू-निम्नीकरण-भू-निम्नीकरण से तात्पर्य स्थायी अथवा अस्थायी तौर पर भूमि की उत्पादकता में कमी है। मृदा अपरदन, लवणता एवं भू-क्षरता के कारण भू-निम्नीकरण होता है।

भू-निम्नीकरण के कारण-भू-निम्नीकरण मुख्यतः दो कारणों से संभव होता है-
1. प्राकृतिक कारण वैसे तो सभी निम्न कोटी भूमि क्षेत्र व्यर्थ नहीं होता, लेकिन भूमि पर होने वाली अनियंत्रित प्रक्रियाएँ इसको व्यर्थ भूमि क्षेत्र में बदल देती है। इन प्रक्रियाओं के आधार पर इनको वर्गीकृत किया जा सकता है प्राकृतिक खड्डे, मरुस्थलीय व रेतीली भूमि, तटीय भूमि, बंजर व चट्टानी भूमि, तीव्र ढाल वाली भूमि एवं हिमानी क्षेत्र आदि।

2. मानवीय या अप्राकृतिक कारण-मानवजनित प्रक्रियाओं ने भूमि की उत्पादकता एवं उर्वरता को बहुत अधिक प्रभावित किया है। जैसे मृदा (भूमि) का कुप्रबंधन, भूमि का अविरल उपयोग, भूमि अपरदन को प्रोत्साहन देने वाली क्रियाएँ, जलाक्रांतता, सारीयता में वृद्धि आदि। इन क्रियाओं से भू-निम्नीकरण को बहत अधिक बढ़ावा मिला है। खनन और अति सिंचाई भी इसका कारण है।

भू-निम्नीकरण को नियंत्रित करने के उपाय भू-निम्नीकरण को नियंत्रित करने के उपाय निम्नलिखित हैं-

  • जो भूमि मानवीय क्रियाओं के कारण बंजर या व्यर्थ हुई है उसको कृषि योग्य बनाने के लिए नई प्रौद्योगिकी का प्रयोग करना चाहिए।
  • रेतीली, मरुस्थलीय व तटीय भूमि को उर्वरकों, कम्पोस्ट एवं सिंचाई की सुविधाओं के माध्यम से उपयोगी एवं कृषि योग्य बनाया जा सकता है।
  • जनाकांत भूमि व दलदली भूमि को कुशल प्रबंधन के द्वारा उपजाऊ बनाया जा सकता है।
  • भू-निम्नीकरण की समस्या को सरकारी एवं गैर-सरकारी संगठनों की सहायता से सुलझाया जा सकता है।

प्रश्न 6.
मृदा-प्रदूषण (Soil Pollution) पर विस्तारपूर्वक नोट लिखें।
अथवा
मृदा-प्रदूषण किसे कहते हैं? इसके मुख्य कारण क्या हैं? इसे नियंत्रित करने के उपाय बताइए।
अथवा
मृदा-प्रदूषण किसे कहते हैं? कौन-कौन से प्राकृतिक व भौतिक कारक मृदा को प्रदूषित करते हैं? इसे नियन्त्रित करने के उपाय समझाइए।
अथवा
भूमि-प्रदूषण से क्या अभिप्राय है? भूमि-प्रदूषण के प्रभावों व रोकथाम के उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूमि/मृदा-प्रदूषण का अर्थ (Meaning of Land or Soil Pollution)-मनुष्य के हस्तक्षेप एवं दुरुपयोग द्वारा जब मृदा में ऐसे भौतिक, जैविक एवं रासायनिक परिवर्तन हो जाएँ जिनसे उसकी वास्तविक गुणवत्ता एवं उत्पादकता का ह्रास हो, तो उसे भूमि या मृदा-प्रदूषण कहते हैं।

मृदा-प्रदूषण के कारण (Causes of Soil Pollution)-मृदा-प्रदूषण के निम्नलिखित कारण हैं-

  • भूमि में रासायनिक पदार्थों; जैसे जस्ता, कीटनाशक, दवाइयाँ, रासायनिक खाद आदि अधिक मात्रा में डालने से मृदा-प्रदूषण होता है।
  • उद्योगों से निकलने वाले कूड़े-कर्कट में बहुत से हानिकारक रासायनिक तत्त्व होते हैं जो वायु व पानी के माध्यम से मिट्टी में पहुँचकर उसे प्रदूषित कर देते हैं।
  • बढ़ती जनसंख्या की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वनों की कटाई लगातार बढ़ती जा रही है जिसका दुष्परिणाम यह है
  • कि भूक्षरण की समस्याएँ निरंतर बढ़ रही हैं।
  • भूमि का जल-स्तर कम होने से भूमि प्रदूषित होती है।
  • दूषित जल को जब सिंचाई के काम में उपयोग किया जाता है तो इससे भूमि की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • घरेलू कूड़ा-कर्कट भूमि को निरंतर प्रदूषित कर रहा है, क्योंकि घरेलू कूड़े में काँच, प्लास्टिक व पॉलिथीन आदि पदार्थ भूमि के लिए हानिकारक होते हैं।
  • अम्लीय वर्षा के कारण भी मृदा का अपक्षय होता है।
  • कृषि में रासायनिक पदार्थों व खनन गतिविधियों से भी भूमि प्रदूषण को बढ़ावा मिलता है।

मृदा-प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Soil Pollution)-मृदा-प्रदूषण के प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  • दूषित भूमि के बैक्टीरिया मानव शरीर में पहुँचकर अनेक बीमारियाँ; जैसे पेचिश, हैजा, टायफाइड आदि फैलाते हैं।
  • भूमि में कीटनाशक दवाइयों के प्रयोग से फसलों या अनाजों में भी अनेक विषैले तत्त्व पैदा हो जाते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं।
  • मृदा-प्रदूषण से भूमि की गुणवत्ता एवं उपजाऊ शक्ति लगातार कम होती जाती है।
  • मृदा-प्रदूषण से भूक्षरण की समस्याएँ निरंतर बढ़ती जाती हैं।

मृदा-प्रदूषण की रोकथाम/नियंत्रण के उपाय (Measures of Prevention/Control of Soil Pollution)-मृदा प्रदूषण की रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिएँ-

  • मृदा-प्रदूषण को रोकने के लिए वायु-प्रदूषण एवं जल-प्रदूषण को रोकना चाहिए।
  • भूमि में रासायनिक पदार्थों (उर्वरकों व कीटनाशकों) का कम-से-कम उपयोग करना चाहिए। इनके स्थान पर जैव नियंत्रण विधि अपनानी चाहिए।
  • ठोस पदार्थों; जैसे टिन, ताँबा, लोहा, काँच आदि को मृदा में नहीं दबाना चाहिए।
  • ठोस पदार्थों को गलाकर या चक्रीकरण द्वारा नवीन उपयोगी वस्तुएँ बनानी चाहिएँ।
  • खेती वाली भूमि में गोबर से बनी खाद का प्रयोग करना चाहिए।
  • वनों (जंगलों) के संरक्षण हेतु सख्त कानून बनाए जाने चाहिएँ, ताकि वनों की अवैध कटाई पर रोक लगाई जा सके।
  • वृक्षारोपण को अधिक-से-अधिक बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

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