Class 12

HBSE 12th Class Political Science Important Questions and Answers

Haryana Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions and Answers

HBSE 12th Class Political Science Important Questions in Hindi Medium

HBSE 12th Class Political Science Important Questions: समकालीन विश्व राजनीति

HBSE 12th Class Political Science Important Questions: समकालीन विश्व राजनीति

HBSE 12th Class Political Science Important Questions in English Medium

HBSE 12th Class Political Science Important Questions: Contemporary World Politics

  • Chapter 1 The Cold War Era Important Questions
  • Chapter 2 The End of Bipolarity Important Questions
  • Chapter 3 US Hegemony in World Politics Important Questions
  • Chapter 4 Alternative Centres of Power Important Questions
  • Chapter 5 Contemporary South Asia Important Questions
  • Chapter 6 International Organisations Important Questions
  • Chapter 7 Security in the Contemporary World Important Questions
  • Chapter 8 Environment and Natural Resources Important Questions
  • Chapter 9 Globalisation Important Questions

HBSE 12th Class Political Science Important Questions: Politics in India since Independence

  • Chapter 1 Challenges of Nation Building Important Questions
  • Chapter 2 Era of One-party Dominance Important Questions
  • Chapter 3 Politics of Planned Development Important Questions
  • Chapter 4 India’s External Relations Important Questions
  • Chapter 5 Challenges to and Restoration of the Congress System Important Questions
  • Chapter 6 The Crisis of Democratic Order Important Questions
  • Chapter 7 Rise of Popular Movements Important Questions
  • Chapter 8 Regional Aspirations Important Questions
  • Chapter 9 Recent Developments in Indian Politics Important Questions

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HBSE 12th Class Political Science Solutions Haryana Board

Haryana Board HBSE 12th Class Political Science Solutions

HBSE 12th Class Political Science Solutions in Hindi Medium

HBSE 12th Class Political Science Part 1 Contemporary World Politics (समकालीन विश्व राजनीति भाग-1)

HBSE 12th Class Political Science Part 2 Contemporary World Politics (समकालीन विश्व राजनीति भाग-2)

HBSE 12th Class Political Science Solutions in English Medium

HBSE 12th Class Political Science Part 1 Contemporary World Politics

  • Chapter 1 The Cold War Era
  • Chapter 2 The End of Bipolarity
  • Chapter 3 US Hegemony in World Politics
  • Chapter 4 Alternative Centres of Power
  • Chapter 5 Contemporary South Asia
  • Chapter 6 International Organisations
  • Chapter 7 Security in the Contemporary World
  • Chapter 8 Environment and Natural Resources
  • Chapter 9 Globalisation

HBSE 12th Class Political Science Part 2 Politics in India since Independence

  • Chapter 1 Challenges of Nation Building
  • Chapter 2 Era of One-party Dominance
  • Chapter 3 Politics of Planned Development
  • Chapter 4 India’s External Relations
  • Chapter 5 Challenges to and Restoration of the Congress System
  • Chapter 6 The Crisis of Democratic Order
  • Chapter 7 Rise of Popular Movements
  • Chapter 8 Regional Aspirations
  • Chapter 9 Recent Developments in Indian Politics

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HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 4 बाज़ार एक सामाजिक संस्था के रूप में

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 4 बाज़ार एक सामाजिक संस्था के रूप में Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Important Questions Chapter 4 बाज़ार एक सामाजिक संस्था के रूप में

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एडम स्मिथ किस देश से संबंध रखते थे?
(A) इंग्लैंड
(B) अमेरिका
(C) फ्रांस
(D) जर्मनी।
उत्तर:
इंग्लैंड।

प्रश्न 2.
एडम स्मिथ ने कौन-सी किताब लिखी थी?
(A) द रिचनेस आफ नेशन्स
(B) द वेल्थ ऑफ नेशन्स
(C) द मार्कीट इकॉनामी
(D) द वीकली मार्कीट।
उत्तर:
द वेल्थ ऑफ नेशन्स।

प्रश्न 3.
उस बल को एडम स्मिथ ने क्या नाम दिया था जो लोगों के लाभ की प्रवृत्ति को समाज के लाभ में बदल देता
(A) खुला व्यापार
(B) लेसे-फेयर
(C) अदृश्य हाथ
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
अदृश्य हाथ।

प्रश्न 4.
इनमें से किसका एडम स्मिथ ने समर्थन किया था?
(A) खुला व्यापार
(B) अदृश्य हाथ
(C) लेसे-फेयर
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
अदृश्य हाथ।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 4 बाज़ार एक सामाजिक संस्था के रूप में

प्रश्न 5.
समाजशास्त्री मानते हैं कि ………………. सामाजिक संस्थाएँ हैं जो विशेष सांस्कृतिक तरीकों द्वारा निर्मित है।
(A) बाजार
(B) परिवार
(C) विवाह
(D) नातेदारी।
उत्तर:
बाज़ार।

प्रश्न 6.
ज़िला बस्तर किस प्रदेश में स्थित है?
(A) पंजाब
(B) बिहार
(C) मध्य प्रदेश
(D) छत्तीसगढ़।
उत्तर:
छत्तीसगढ़।

प्रश्न 7.
किन क्षेत्रों में साप्ताहिक बाज़ार एक पुरानी संस्था है?
(A) जन-जातीय
(B) नगरीय
(C) ग्रामीण
(D) औद्योगिक।
उत्तर:
जन-जातीय।

प्रश्न 8.
किस मानवविज्ञानी के अनुसार बाज़ार का महत्त्व केवल उसकी आर्थिक क्रियाओं तक सीमित नहीं है?
(A) एडम स्मिथ
(B) एल्फ्रेड गेल
(C) जोंस
(D) मैकाइवर तथा पेज।
उत्तर:
एल्फ्रेड गेल।

प्रश्न 9.
औपनिवेशिक काल में ग्रामीण क्षेत्रों में कौन-सी व्यवस्था प्रचलित थी?
(A) जजमानी प्रथा
(B) रुपये का लेन-देन
(C) पारंपरिक प्रथा
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
जजमानी प्रथा।

प्रश्न 10.
इनमें से कौन-से समूह का मुख्य कार्य व्यापार करना है?
(A) ब्राह्मण
(B) क्षत्रिय
(C) वैश्य
(D) शूद्र।
उत्तर:
वैश्य।

प्रश्न 11.
किस प्रक्रिया के कारण भारत में नए बाज़ार सामने आए?
(A) आधुनिकीकरण
(B) संस्कृतिकरण
(C) पश्चिमीकरण
(D) उपनिवेशवाद।
उत्तर:
उपनिवेशवाद।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 4 बाज़ार एक सामाजिक संस्था के रूप में

प्रश्न 12.
इनमें से कौन-सा व्यापारिक समुदाय भारत में हर जगह पाया जाने वाला तथा सबसे अधिक जाना माना समुदाय है?
(A) मारवाड़ी
(B) नाकरट्टार
(C) चेट्टीयार
(D) कोई नहीं।
उत्तर:
मारवाड़ी।

प्रश्न 13.
‘अदृश्य हाथ’ की संज्ञा देन है
(A) स्मिथ की
(B) मार्क्स की
(C) दुर्खीम की
(D) एम० एन० श्रीनिवास की।
उत्तर:
स्मिथ की।

प्रश्न 14.
इनमें से सामाजिक संस्था है-
(A) जाति..
(B) जनजाति
(C) बाज़ार
(D) सभी।
उत्तर:
सभी।

प्रश्न 15.
‘द वेल्थ ऑफ नेशंस’ नामक पुस्तक किसने लिखी
(A) एम० एन० श्रीनिवास
(B) कार्ल मार्क्स
(C) एडम स्मिथ
(D) रॉबर्ट माल्थस।
उत्तर:
एडम स्मिथ।

प्रश्न 16.
उदारवाद किस दशक में शुरू हुआ?
(A) 1960
(B) 1980
(C) 1970
(D) 1990.
उत्तर:
1990

प्रश्न 17.
पूंजीवाद का सिद्धांत किसने दिया?
(A) श्रीनिवास
(B) वेबर
(C) दूबे
(D) मार्क्स।
उत्तर:
वेबर।

प्रश्न 18.
आधुनिक काल में किस सदी से जाति तथा व्यवसाय के बीच संबंध ढीले हुए हैं?
(A) 18वीं
(B) 19वीं
(C) 20वीं
(D) इनमें से किसी में नहीं।
उत्तर:
20वीं।

प्रश्न 19.
इनमें से किस राजनीतिक अर्थशास्त्री ने बाज़ार अर्थव्यवस्था को समझने का प्रयास किया?
(A) एडम स्मिथ
(B) मार्क्स
(C) वेबर
(D) इनमें से कोई में नहीं।
उत्तर:
एडम स्मिथ।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एडम स्मिथ कौन थे?
अथवा
‘द वेल्थ ऑफ नेशन्स’ किताब किसकी है?
उत्तर:
एडम स्मिथ इंग्लैंड के सबसे चर्चित राजनीतिक अर्थशास्त्री थे जिन्होंने पुस्तक ‘द वेल्थ ऑफ नेशंस’ लिखी थी।

प्रश्न 2.
एडम स्मिथ ने अपनी पुस्तक में किस बात की व्याख्या की थी?
उत्तर:
एडम स्मिथ ने अपनी पुस्तक ‘द वेल्थ ऑफ नेशंस’ में इस बात की व्याख्या की कि कैसे खुली बाजार अर्थव्यवस्था में तार्किक स्वयं-लाभ आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देता है।

प्रश्न 3.
बाज़ार का क्या अर्थ है?
अथवा
बाज़ार की परिभाषा दें।
अथवा
बाज़ार का अर्थ बताएं।
अथवा
बाज़ार या मंडी किसे कहते हैं?
अथवा
‘द वेल्थ ऑफ नेशन्स’ किलाब किसकी है?
उत्तर:
अर्थशास्त्र में क्रय-विक्रय के स्थान को बाजार कहा जाता है अर्थात् जहां चीजें बेची तथा खरीदी जाती हैं परंतु समाजशास्त्र में बाज़ार सामाजिक संस्थाएं हैं जो विशेष सांस्कृतिक तरीकों द्वारा निर्मित हैं।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 4 बाज़ार एक सामाजिक संस्था के रूप में

प्रश्न 4.
एडम स्मिथ के अनुसार बाज़ारी अर्थव्यवस्था का क्या अभिप्राय है.?
उत्तर:
एडम स्मिथ के अनुसार बाजारी अर्थव्यवस्था व्यक्तियों में आदान-प्रदान या सौदों का एक लंबा क्रम है, जो अपनी क्रमबद्धता के कारण स्वयं ही एक कार्यशील और स्थिर व्यवस्था की स्थापना करती है। यह तब भी होता है जब करोड़ों के लेन-देन में शामिल लोगों में से कोई भी इसकी स्थापना का इरादा नहीं रखता।

प्रश्न 5.
खुले व्यापार का अर्थ बताएं।
अथवा
खुले व्यापार का समर्थन किसने किया?
उत्तर:
एडम स्मिथ के अनुसार खुले व्यापार का अर्थ एक ऐसे बाज़ार से है जो किसी भी प्रकार की राष्ट्रीय या अन्य रोकथाम से मुक्त हो, अर्थात् जिस पर कोई सरकारी नियंत्रण या हस्तक्षेप न हो। अगर हो तो भी वह इतना कम हो कि व्यापार में कोई बाधा उत्पन्न न हो।

प्रश्न 6.
लेसे-फेयर की नीति किसे कहा गया?
उत्तर:
फ्रांसीसी भाषा के शब्द लेसे-फेयर का अर्थ है बाजार को अकेला छोड़ दिया जाए या हस्तक्षेप न किया जाए। इसका अर्थ है कि बाज़ार सरकारी नियंत्रण से मुक्त हो तथा इसमें सरकार का कोई दखल न हो।

प्रश्न 7.
साप्ताहिक बाज़ार का क्या अर्थ है?
अथवा
साप्ताहिक बाज़ार क्या है?
अथवा
साप्ताहिक बाज़ार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मुख्यतया साप्ताहिक बाजार आदिवासी क्षेत्रों में लगते हैं जहां पर आदिवासी वनों से इकट्ठी की हुई चीजें तथा अपनी उत्पादित वस्तुएं बेचने तथा उस कमाए हुए पैसे से अपनी आवश्यकता की वस्तुएं खरीदने आते हैं। यह बाज़ार चीज़ों के विनिमय के साथ-साथ उनके मेल-मिलाप की प्रमुख संस्था भी बन जाती है।

प्रश्न 8.
अल्पकालीन बाज़ार का अर्थ बताएं।
उत्तर:
अल्पकालीन बाज़ार, बाजार की वह स्थिति है जिसमें अगर किसी चीज़ की मांग बढ़ जाती है तो चीज़ के उत्पादक को एक सीमा तक पूर्ति बढ़ाने का समय मिल जाता है। यह सीमा उस उत्पादक के गोदाम अथवा माल इकट्ठा करके रखने तक की क्षमता होती है। इस बाज़ार के मूल्य को बाज़ार मूल्य कहते हैं।

प्रश्न 9.
दीर्घकालीन बाज़ार का अर्थ बताएं।
उत्तर:
दीर्घकालीन बाज़ार, बाज़ार की वह स्थिति है जिसमें वस्तु की मांग के अनुसार उसकी पूर्ति को कम या अधिक किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में वस्तु की मांग तथा पूर्ति में सामन्जस्य स्थापित हो सकता है। इस बाज़ार के मूल्य को सामान्य मूल्य कहते हैं।

प्रश्न 10.
जजमानी व्यवस्था का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यह गांवों में मिलने वाली व्यवस्था थी जिसमें भिन्न जातियां उच्च जातियों को अपनी सेवाएं देती थीं। इस सेवा की एवज में उन्हें फसल के पश्चात् अनाज अथवा और वस्तुएं प्राप्त हो जाती थीं।

प्रश्न 11.
विनिमय का क्या अर्थ है?
उत्तर:
अगर हम आम व्यक्ति के शब्दों में देखें तो विनिमय दो पक्षों के बीच होने वाली वस्तुओं तथा सेवाओं के लेन-देन को कहते हैं। अर्थशास्त्र में विनिमय दो पक्षों के बीच होने वाले वैधानिक, ऐच्छिक तथा आपसी धन का लेन देन होता है।

प्रश्न 12.
पण्यीकरण कब होता है?
अथवा
वस्तुकरण से आप क्या समझते हैं?
अथवा
पण्यीकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पण्यीकरण तब होता है जब कोई वस्तु बाज़ार में बेची खरीदी न जा सकती हो और अक वह बेची-खरीदी जा सकती है अर्थात् अब वह बाज़ार में बिकने वाली चीज़ बन गई है। जैसे श्रम और कौशल अब ऐसी चीजें हैं जो खरीदी व बेची जा सकती हैं।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 4 बाज़ार एक सामाजिक संस्था के रूप में

प्रश्न 13.
उदारीकरण क्या होता है?
उत्तर:
नियंत्रित अर्थव्यवस्था के अनावश्यक प्रतिबंधों को हटाना उदारीकरण है। उद्योगों तथा व्यापार पर से अनावश्यक प्रतिबंध हटाना ताकि अर्थव्यवस्था अधिक प्रतिस्पर्धात्मक, प्रगतिशील तथा खुली बन सके, इसे उदारीकरण कहते हैं। यह एक आर्थिक प्रक्रिया है तथा यह समाज में आर्थिक परिवर्तनों की प्रक्रिया है।

प्रश्न 14.
भूमंडलीकरण क्या होता है?
अथवा
भूमंडलीकरण की परिभाषा लिखें।
अथवा
भूमंडलीकरण का अर्थ बताइए।
उत्तर:
भूमंडलीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक देश की अर्थव्यवस्था का संबंध अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ा जाता है अर्थात् एक देश के अन्य देशों के साथ वस्तु, सेवा, पूंजी तथा श्रम के अप्रतिबंधित आदान-प्रदान को भूमंडलीकरण कहते हैं। व्यापार का देशों के बीच मुक्त आदान-प्रदान होता है।

प्रश्न 15.
उदारीकरण के क्या कारण होते हैं?
उत्तर:

  1. देश में रोजगार के साधन विकसित करने के लिए ताकि लोगों को रोजगार मिल सके।
  2. उद्योगों में ज्यादा-से-ज्यादा प्रतिस्पर्धा पैदा करना ताकि उपभोक्ता को ज्यादा-से-ज्यादा लाभ प्राप्त हो सके।

प्रश्न 16.
निजीकरण क्या होता है?
उत्तर:
लोकतांत्रिक तथा समाजवादी देशों जहां पर मिश्रित प्रकार की अर्थव्यवस्था होती है। इस अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक उपक्रम होते हैं जोकि सरकार के नियंत्रण में होते हैं। इन सार्वजनिक उपक्रमों को निजी
हाथों में सौंपना ताकि यह और ज्यादा लाभ कमा सकें। इन सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों में सौंपने को निजीकरण कहते हैं।

प्रश्न 17.
भारत पर भूमंडलीकरण का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:

  1. भारत की विश्व निर्यात के हिस्से में वृद्धि हुई।
  2. भारत में विदेशी निवेश में वृद्धि हुई।
  3. भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ा।

प्रश्न 18.
हुंडी का क्या अर्थ है?
उत्तर:
हुंडी एक विनिमय बिल कर्ज पत्र की तरह थी जिसे व्यापारी लंबी दूरी के व्यापार में इस्तेमाल करते थे। देश के एक कोने से एक व्यापारी द्वारा जारी हुई हुंडी दूसरे कोने में व्यापारी द्वारा स्वीकार की जाती थी।

प्रश्न 19.
संस्था का क्या अर्थ है?
उत्तर:
समाज ऐसी कार्य प्रणालियों को विकसित करता है जो व्यक्तियों तथा समितियों को समाज द्वारा स्वीकृत तरीके बताती है। इन कार्य प्रणालियों, नियमों तथा तरीकों को संस्थाएँ कहते हैं।

प्रश्न 20.
विनिमय का अर्थ बताएं।
उत्तर:
किसी वस्तु के लेन-देन को विनिमय कहा जाता है अर्थात् वस्तु के स्थान पर किसी अन्य वस्तु के लेन देन को विनिमय कहते हैं।

प्रश्न 21.
‘द डिवीज़न ऑफ लेबर इन सोसायटी’ (The Division of Labour in Society) पुस्तक किसने लिखी थी?
उत्तर:
‘द डिवीज़न ऑफ लेबर इन सोसायटी’ पुस्तक के लेखक इमाइल दुर्खाइम थे।

प्रश्न 22.
पारंपरिक व्यापारिक समुदाय कौन-से होते हैं?
उत्तर:
जो समुदाय प्राचीन समय से लेकर आज तक व्यापार ही करते आये हों उन्हें पारंपरिक व्यापारिक समुदाय कहते हैं। उदाहरण के लिए वैश्य, मारवाड़ी इत्यादि।

प्रश्न 23.
मारवाड़ी व्यापार में क्यों सफल हुए?
उत्तर:
मारवाड़ी व्यापार में सफल अपने गहन सामाजिक तंत्रों की वजह से हुए हैं।

प्रश्न 24.
कब भारत पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से जुड़ गया था?
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में भारत पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से और अधिक जुड़ गया।

प्रश्न 25.
बाज़ार सार्वभौमिक रूप से हर कहीं पाए जाते हैं (हाँ/नहीं)
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 26.
मुद्रा की अनुपस्थिति में विनिमय करने की प्रणाली वस्तु विनिमय कहलाती है। (हाँ/नहीं)
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 27.
सरल समाजों में बाज़ार एक आर्थिक सत्ता होती है। (हाँ/नहीं)
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 28.
जिस काम के लिए कोई पैसा न दिया जाये उसे …………………… कहते हैं।
उत्तर:
जिस काम के लिए कोई पैसा न दिया जाये उसे बेगार कहते हैं।

प्रश्न 29.
‘अदृश्य हाथ’ की अवधारणा किसने दी?
उत्तर:
‘अदृश्य हाथ’ की अवधारणा एडम स्मिथ ने दी थी।

HBSE 12th Class Sociology Important Questions Chapter 4 बाज़ार एक सामाजिक संस्था के रूप में

प्रश्न 30.
उपनिवेशवादी शासन के दौरान प्रचलित दो आधुनिक व्यापारिक नगर कौन-से थे?
उत्तर:
बंबई, मद्रास, कलकत्ता इत्यादि।

प्रश्न 31.
सिल्क रूट प्रसिद्ध व्यापारिक मार्ग हैं। (हा/नहीं)
उत्तर:
हां।

प्रश्न 32.
उपनिवेशवादी शासन में भारतीय मज़दूरों को कहाँ-कहाँ भेजा गया था?
उत्तर:
उपनिवेशवादी शासन में भारतीय मजदूरों को ब्रिटेन के उपनिवेशों जैसे कि दक्षिण अफ्रीका, फिजी इत्यादि देशों में भेजा गया था।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उदारीकरण के क्या मुख्य उद्देश्य हैं?
उत्तर:
उदारीकरण के निम्नलिखित मुख्य उद्देश्य हैं-

  • उदारीकरण का मुख्य उद्देश्य उद्योगों में रोजगार के अवसर बढ़ाना था।
  • विदेशी निवेश को आकर्षित करना ताकि रोज़गार के अवसर बढ़े।
  • अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के साथ भारतीय कंपनियों को प्रतिस्पर्धा में खड़ा करना।
  • निजी क्षेत्र को ज्यादा-से-ज्यादा स्वतंत्रता प्रदान करना।
  • देश की उत्पादन क्षमता में वृद्धि करना।

प्रश्न 2.
उदारीकरण नीति की विशेषताएं बताएं।
उत्तर:

  • उदारीकरण के तहत कुछ विशेष चीजों को छोड़कर लाइसैंस राज की नीति को खत्म कर दिया गया ताकि सारे उद्योग आराम से विकसित हो सकें।
  • उदारीकरण के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण करना शुरू कर दिया गया है ताकि घाटे में चल रहे सार्वजनिक उपक्रमों को लाभ में बदला जा सके।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के लिए अब बहुत कम उद्योग रह गए हैं ताकि सभी उद्योगों को बढ़ावा दिया जा सके।
  • देश में विदेशी निवेश की सीमा भी बढ़ा दी गई है। कई क्षेत्रों में तो यह 51% तथा कई क्षेत्रों में पूर्ण निवेश तथा कई क्षेत्रों में यह 74% तक रखी गई है।

प्रश्न 3.
भूमंडलीकरण की विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने भूमंडलीकरण की चार विशेषताओं का वर्णन किया है-

  • भूमंडलीकरण में लोगों के लिए नए-नए उपकरण आ गए हैं क्योंकि अब विश्व की बड़ी-बड़ी कंपनियां हर देश में आ रही हैं।
  • अब कंपनियों के लिए नए-नए बाज़ार खुल गए हैं क्योंकि भूमंडलीकरण में कंपनियां किसी भी देश में मुक्त व्यापार कर सकती हैं।
  • भूमंडलीकरण में कार्यों के संपादन के लिए नए-नए कर्ता आगे आ गए हैं जैसे रैडक्रास, विश्व व्यापार संगठन (W.T.O.)।
  • भूमंडलीकरण के कारण नए-नए नियम सामने आए हैं जैसे पहले नौकरी पक्की होती थी पर अब यह पक्की न होकर ठेके पर होती है।

प्रश्न 4.
भारत में उदारीकरण को कितने चरणों में बांटा जा सकता है?
उत्तर:
भारत में उदारीकरण की प्रक्रिया को चार चरणों में बांटा जा सकता है-

  • 1975 से 1980 का काल
  • 1980 से 1985 का काल
  • 1985 से 1991 का काल
  • 1991 से आगे का काल।

प्रश्न 5.
भूमंडलीकरण के कोई चार सिद्धांत बताओ।
उत्तर:

  • विदेशी निवेश के लिए देश की अर्थव्यवस्था को खोलना।
  • सीमा शुल्क कम-से-कम करना।
  • सरकारी क्षेत्रों के प्रतिष्ठानों का विनिवेश करना।
  • निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देना।

प्रश्न 6.
जनजातीय साप्ताहिक बाज़ार में क्या परिवर्तन आए हैं?
अथवा
जनजातीय क्षेत्रों में साप्ताहिक बाज़ारों के स्वरूप में क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर:
समय के साथ जनजातीय साप्ताहिक बाज़ार में भी परिवर्तन आए हैं। अंग्रेजों के समय इनके दूर-दराज के इलाकों को क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ दिया गया। इनके क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण किया गया तथा इनके क्षेत्रों को बाहर के लोगों के लिए खोल दिया गया ताकि इनके समृद्ध जंगलों तथा खनिजों तक पहुंचा जा सके।

इस कारण इनके क्षेत्रों में व्यापारी, साहूकार तथा अन्य गैर-जनजातीय लोग आने लग गए। इनके बाजारों में नई प्रकार की वस्तुएं आ गईं। जंगल के उत्पादों को बाहरी लोगों को बेचा जाने लगा। आदिवासियों को खदानों तथा बगानों में मज़दूर रखा जाने लगा। साप्ताहिक बाज़ार में बाहर की वस्तुएं आने से यह लोग पैसा कर्ज़ पर लेकर उन्हें खरीदने लगे जिससे वह दरिद्र हो गए।

प्रश्न 7.
उपभोग का क्या अर्थ है?
उत्तर:
किसी भी वस्तु के उत्पादन के साथ-साथ उपभोग का होना भी अति आवश्यक होता है क्योंकि बिना उत्पादन के खपत नहीं हो सकती। उपभोग का अर्थ है किसी भी वस्तु का उपभोग करना एवं उपभोग का अर्थ है, वह गुण जो किसी वस्तु को मानव की आवश्यकता पूरा करने के योग्य बनाता है। यह प्रत्येक समाज का मुख्य कार्य होता है कि वह उपभोग को समाज के लिए नियमित व नियंत्रित करे।

प्रश्न 8.
विनिमय का अर्थ बताएं।
उत्तर:
किसी भी वस्तु के लेन-देन को वर्तमान में ‘Exchange’ कहते हैं। इसका अर्थ है किसी वस्तु के स्थान पर किसी दूसरी वस्तु को लेना या देना। विनिमय वर्तमान में ही नहीं, बल्कि पुरातन समाज से ही चला आ रहा है। यह कई प्रकार का होता है, वस्तु के बदले वस्तु, सेवा के बदले सेवा, वस्तु के बदले धन, सेवा के बदले धन, यह दो प्रकार का होता है, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष। विनिमय सर्वप्रथम वस्तुओं का वस्तुओं के साथ, सेवा के बदले वस्तुओं के साथ और सेवा के बदले सेवा के लेने-देने के साथ होता है। अप्रत्यक्ष विनिमय में तोहफे का विनिमय सर्वोत्तम होता है।

प्रश्न 9.
विभाजन से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आम व्यक्ति के लिए विभाजन का अर्थ वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान के ऊपर ले जाने से और बेचने से है। परंतु अर्थशास्त्र में विभाजन वह प्रक्रिया है, जिसके साथ किसी आर्थिक वस्तु का कुल मूल्य उन व्यक्तियों में बांटा जाता है, जिन्होंने उस वस्तु के उत्पादन में भाग लिया। भिन्न-भिन्न लोगों एवं समूहों का विशेष योगदान होता है जिस कारण उन्हें मुआवजा मिलना चाहिए। इस तरह उन्हें दिया गया धन या पैसा मुआवजा विभाजन होता है। जैसे ज़मीन के मालिक को किराया, मज़दूर को मज़दूरी, पैसे लगाने वाले को ब्याज, सरकार को टैक्स आदि के रूप में इस विभाजन का हिस्सा प्राप्त होता है।

प्रश्न 10.
पूंजीवाद का क्या अर्थ है?
उत्तर:
पूंजीवाद एक आर्थिक व्यवस्था है, जिसमें निजी संपत्ति की बहुत महत्ता होती है। पूंजीवाद में उत्पादन बड़े स्तर पर होता है और अलग-अलग पूंजीवादियों में बहुत अधिक मुकाबला देखने को मिलता है। पूंजीपति अधिक से-अधिक लाभ प्राप्त करने की कोशिश करता है और इसी कारण से वह निवेश भी करता है। इसमें धन एवं उधार की काफी महत्ता होती है। पूंजीवाद का सबसे बड़ा लक्षण इसके मजदूरों का शोषण होता है।

प्रश्न 11.
पूंजीवाद की विशेषताएं बताएं।
उत्तर:

  • पूंजीवाद में बड़े स्तर पर उत्पादन होता है।
  • पूंजीवाद का आधार निजी संपत्ति होता है।
  • पंजीवाद में भिन्न-भिन्न वर्गों में बहत अधिक उपयोगिता होती है।
  • पूंजीवाद में पूंजीपति लाभ कमाने हेतु निवेश करता है।
  • पूंजीवाद में मज़दूर का शोषण होता है और उसकी स्थिति दयनीय होती है।
  • पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में धन एवं उधार की काफ़ी महत्ता होती है।

प्रश्न 12.
अतिरिक्त मूल्य का क्या अर्थ है?
अथवा
अतिरिक्त मूल्य क्या हैं?
उत्तर:
अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत कार्ल मार्क्स ने दिया था। यह उसने अपनी पुस्तक ‘दास कैपीटल’ में दिया था। मार्क्स के अनुसार किसी व्यक्ति का वह मूल्य है जो उसे अपनी श्रम शक्ति के एवज में प्राप्त होता है। दूसरे शब्दों में पूँजीवादी युग में मज़दूर अपने श्रम को पूँजीपतियों को अपना जीवन चलाने के लिए बेचता है। जिसका मूल्य उसे कुछेक सिक्कों के रूप में मिलता है।

यही मूल्य उसकी मज़दूरी है। इस प्रकार मार्क्स के अनुसार पूंजीपति की यह नीति थी कि मजदूरों को कम से कम मजदूरी देकर अधिक से अधिक कार्य करवाया जो। इस प्रकार जो अधिक लाभ होता है उसे पूँजीपति हड़प कर जाता है तथा जो मार्क्स के अनुसार मजदूरों का ही अधिकार है तथा उन्हें ही मिलना चाहिए। इस मानवीय श्रम के लिए मूल्य को मज़दूरों को उनकी मज़दूरी के रूप में नहीं दिया जाता। यही अतिरिक्त मूल्य है जो मज़दूरों द्वारा उत्पन्न की जाती है तथा पूंजीपतियों द्वारा हड़प कर ली जाती है।

प्रश्न 13.
उत्पादन विधि का क्या अर्थ है?
उत्तर:
उत्पादन विधि वह है जो कुल्हाड़ी, लोहे की कुदाल, हल, ट्रैक्टर, मशीनों इत्यादि की सहायता से की जाती है। मनुष्य उत्पादन के साधनों का प्रयोग करके अपने उत्पादन कौशल के आधार पर ही भौतिक वस्तुओं का उत्पादन करता है तथा यह सभी तत्व इक्ट्ठे मिल कर उत्पादन की शक्तियों का निर्माण करते हैं। उत्पादन की विधियों पर पूंजीपतियों का अधिकार होता है तथा वह इन की सहायता से अतिरिक्त मूल्य का निर्माण करके मज़दूर वर्ग का शोषण करता है। इन उत्पादन की विधियों की सहायता से वह अधिक अमीर होता जाता है जिनका प्रयोग वह मजदूर वर्ग को दबाने के लिए करता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भूमंडलीकरण क्या होता है? इसके सिद्धांतों का वर्णन करो।
अथवा
भूमंडलीकरण की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में 1991 में नयी आर्थिक नीतियां अपनाई गईं। भूमंडलीकरण, उदारीकरण तथा निजीकरण इन नीतियों के तीन प्रमुख पहलू हैं। भारत में 1980 के दशक के दौरान भूमंडलीकरण की प्रक्रिया शुरू की गई। नयी आर्थिक नीतियों या आर्थिक सुधारों के माध्यम से इसे गति प्रदान करने की कोशिश की गई। वैश्वीकरण आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाली एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के चलते भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं में कई प्रकार के परिवर्तन सामने आए।

भूमंडलीकरण का अर्थ (Meaning of Globalization)-भूमंडलीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक देश की अर्थव्यवस्था का संबंध अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ा जाता है। अन्य शब्दों में एक देश के अन्य देशों के साथ वस्तु, सेवा, पूँजी तथा श्रम के अप्रतिबंधित आदान-प्रदान को भूमंडलीकरण कहते हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे के संपर्क में आती हैं। व्यापार का देशों के बीच मुक्त आदान-प्रदान होता है। इस तरह विश्व अर्थव्यवस्थाओं के एकीकरण की प्रक्रिया को वैश्वीकरण कहा जाता है। भूमंडलीकरण के द्वारा सारी दुनिया एक विश्व ग्राम बन गई है।

भूमंडलीकरण के सिद्धांत
(Principles of Globalization)
भूमंडलीकरण के अंतर्गत कई महत्त्वपूर्ण बातों पर बल दिया जाता है। निश्चित कार्यक्रमों को अपनाने तथा आर्थिक नीतियों को अपनाने पर भी जोर दिया जाता है। भूमंडलीकरण के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं
(i) विदेशी निवेश के लिए देश की अर्थव्यवस्था को खोल दिया जाता है क्योंकि इस व्यवस्था में आपको और देशों में भी मुक्त व्यापार की आज्ञा होती है तथा आप भी किसी और देश में निवेश कर सकते हैं। देश में विदेशी निवेश आता है तो एक तरफ देश आर्थिक तौर पर समृद्ध होता है तथा दूसरी तरफ देश में रोजगार के नए साधन उत्पन्न होते हैं।

(ii) इसका दूसरा सिद्धांत यह है कि इसमें सीमा शुल्क को काफ़ी हद तक कम कर दिया जाता है ताकि अगर कोई बाहर से आकर आपके देश में अपनी चीज़ बेचना चाहता है तो वह उत्पाद बहुत महंगी न हो जाए। इसलिए सीमा शुल्क को कम कर दिया जाता है।

(iii) सार्वजनिक क्षेत्रों के प्रतिष्ठानों का विनिवेश भी कर दिया जाता है। भूमंडलीकरण के साथ-साथ निजीकरण भी चलता है। निजीकरण होता है सरकार की कंपनियों का ताकि वह भी निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकें तथा मुनाफा कमा सकें। इसलिए सरकारी कंपनियों का विनिवेश कर दिया जाता है।

(iv) निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा दिया जाता है ताकि निजी क्षेत्र बड़े-बड़े उद्योग लगाएं। इसके कई लाभ हैं। एक तो सरकार को कर के रूप में आमदनी होगी तथा दूसरी तरफ रोज़गार के साधन बढ़ेंगे तथा बेरोज़गारी की समस्या भी हल होगी।

(v) इसमें सरकार बुनियादी ढांचे के विकास पर अधिक पैसा खर्च करती है। इसका कारण यह है कि अगर आप विदेशियों को अपने देश में निवेश के लिए आकर्षित करना चाहते हों तो उन्हें निवेश के लिए बढ़िया बुनियादी ढांचा भी देना पड़ेगा ताकि उनको कोई परेशानी न हो तथा ज्यादा-से-ज्यादा विदेशी निवेश देश में आ सके।

(vi) इसमें मुक्त अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा दिया जाता है। मुक्त व्यापार का अर्थ है बिना सीमा शुल्क दिए किसी भी देश में जाकर व्यापार करना। ऐसा करने से बगैर कीमतों के इज़ाफे के सारी दुनिया की चीजें हमारे सामने होती हैं तथा हम किसी भी चीज़ को खरीद सकते हैं।

(vii) विश्व बैंक, विश्व व्यापार निधि तथा विश्व व्यापार संगठन के दिशा-निर्देशों का पालन किया जाता है क्योंकि एक तो यह व्यापार तथा और सुविधाओं के लिए अलग-अलग देशों को कर देते हैं तथा विश्व व्यापार संगठन पूरे विश्व के व्यापार का संचालन करता है। इसलिए इनके दिशा-निर्देशों का पालन करना ही पड़ता है।

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प्रश्न 2.
भूमंडलीकरण का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1991 में देश में आर्थिक सुधार शुरू होने के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था के भूमंडलीकरण की प्रक्रिया में तेजी आ गई। भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न चरणों में भूमंडलीकरण किया जा रहा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार भूमंडलीकरण में 50 राष्ट्रों में सिंगापुर प्रथम तथा भारत 49वें स्थान पर है। इससे पता चलता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के भूमंडलीकरण की गति अभी धीमी है। भूमंडलीकरण का भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं पर क्या प्रभाव पड़ा उसका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है-
(i) भारत की विश्व निर्यात हिस्से में वृद्धि (Increase of Indian Share in World Export)-भूमंडलीकरण की प्रक्रिया के चलते भारत का विश्व में निर्यात का हिस्सा बढ़ा है। इस तथ्य की पुष्टि निम्नलिखित आंकड़ों से होती है-

भारत का विश्व निर्यात में हिस्सा – (Indian Share in World Export):
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इस तालिका में दर्शाए-प्रिए आंकड़ों से पता चलता है कि 20वीं शताब्दी के आखिरी दशक के दौरान भारत की वस्तुओं तथा सेवाओं में 125% की वृद्धि हुई है। 1990 में भारत का विश्व की वस्तुओं तथा सेवाओं के निर्यात में हिस्सा 0.55% था जोकि 1999 में बढ़कर 0.75% हो गया था।

(ii) भारत में विदेशी निवेश (Foreign Investment in India)-विदेशी निवेश वृद्धि भी भूमंडलीकरण का एक लाभ है क्योंकि विदेशी निवेश से अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता बढ़ती है। भारत में निरंतर विदेशी निवेश बढ़ रहा है। 1995-96 से 2000-01 के दौरान इसमें 53% की वृद्धि हुई। इस अवधि के दौरान वार्षिक औसत लगभग $ 390 करोड़ विदेशी निवेश हुआ।

(iii) विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves)-आयात के लिए विदेशी मुद्रा आवश्यक है। जून, 1991 में विदेशी मद्रा भंडार सिर्फ One Billion $ था जिससे सिर्फ दो सप्ताह की आयात आवश्यकताएं ही परी की जा सकती थीं। जलाई, 1991 में भारत में नयी आर्थिक नीतियां अपनायी गईं। भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण को बढ़ावा दिया गया जिस के कारण देश के विदेशी मुद्रा भंडार में काफ़ी तेजी से बढ़ोत्तरी हुई। फलस्वरूप वर्तमान समय में देश में 390 Billion के करीब विदेशी मुद्रा है। इससे पहले कभी भी देश में इतना विदेशी मुद्रा का भंडार नहीं था।

(iv) सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर (Growth of Gross Domestic Product)-भूमंडलीकरण से सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि होती है। देश में 1980 के दशक में वृद्धि दर 5.63% तथा 1990 के दशक के दौरान वृद्धि दर 5.80% रहा। इस तरह सकल घरेलू उत्पादन में थोड़ी सी वृद्धि हुई। आज कल यह 7% के करीब है।

(v) बेरोज़गारी में वृद्धि (Increase in Unemployment) भूमंडलीकरण से बेरोज़गारी बढ़ती है। 20वीं शताब्दी के आखिरी दशक में मैक्सिको, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, सिंगापुर, इंडोनेशिया तथा मलेशिया में भूमंडलीकरण के प्रभाव के कारण आर्थिक संकट आया। फलस्वरूप लगभग एक करोड़ लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा तथा वे ग़रीबी रेखा से नीचे आ गए। 1990 के दशक के शुरू में देश में बेरोज़गारी दर 6% थी जो दशक के अंत में 7% हो गई। इस तरह भूमंडलीकरण से रोज़गार विहीन विकास हो रहा है।

(vi) कृषि पर प्रभाव (Impact on Agriculture)-देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि तथा इससे संबंधित कार्यों का हिस्सा लगभग 29% है जबकि यह अमेरिका में 2%, फ्रांस तथा जापान में 5.5% है। अगर श्रम शक्ति की नज़र से देखें तो भारत की 69% श्रम शक्ति को कृषि तथा इससे संबंधित कार्यों में रोजगार प्राप्त है जबकि अमेरिका तथा इंग्लैंड में ऐसे कार्यों में 2.6% श्रम शक्ति कार्यरत है। विश्व व्यापार के नियमों के अनुसार विश्व को इस संगठन के सभी सदस्य देशों को कृषि क्षेत्र निवेश के लिए विश्व के अन्य राष्ट्रों के लिए खोलना है। इस तरह आने वाला समय भारत की कृषि तथा अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती भरा रहने की उम्मीद है।

(vii) शिक्षा व तकनीकी सुधार-भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण का शिक्षा पर भी काफ़ी प्रभाव पड़ा है तथा तकनीकी शिक्षा में तो चमत्कार हो गया है। आज संचार तथा परिवहन के साधनों के कारण दूरियां काफ़ी कम हो गई हैं। आज अगर किसी देश में शिक्षा तथा तकनीक में सुधार आते हैं तो वह पलक झपकते ही सारी दुनिया में पहुंच जाते हैं। इंटरनेट तथा कंप्यूटर ने तो इस क्षेत्र में क्रांति ला दी है।

(viii) वर्गों के स्वरूप में परिवर्तन (Change in the form of Classes)-भूमंडलीकरण ने वर्गों के स्वरूप में भी परिवर्तन ला दिया है। 20वीं सदी में सिर्फ तीन प्रमख वर्ग-उच्च वर्ग. मध्यम वर्ग तथा निम्न वर्ग थे पर आजकल वर्गों की संख्या काफ़ी ज्यादा हो गई है। प्रत्येक वर्ग में ही बहुत से उपवर्ग बन गए हैं जैसे मजदूर वर्ग, डॉक्टर वर्ग, शिक्षक वर्ग इत्यादि के उनकी आय के अनुसार वर्ग बन गए हैं।

(ix) निजीकरण (Privatization)-भूमंडलीकरण का एक अच्छा प्रभाव यह है कि निजीकरण देखने को मिल रहा है। विकसित तथा विकासशील देशों में बहुत से सार्वजनिक उपक्रम निजी हाथों में चल रहे हैं तथा यह अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। इसी से प्रेरित होकर और ज्यादा सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण हो रहा है।

(x) उद्योग-धंधों का विकास (Development of Industries)-आर्थिक विकास की ऊँची दर प्राप्त करने के लिए विदेशी पूंजी निवेश से काफ़ी सहायता मिलती है। इससे न सिर्फ उद्योगों को लाभ मिलता है बल्कि उपभोक्ता को अच्छी तकनीक, अच्छे उत्पाद मिलते हैं तथा साथ ही साथ भारतीय उद्योगों को अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा करने की प्रेरणा मिलती है।

प्रश्न 3.
उदारीकरण क्या होता है? उदारीकरण से क्या समस्याएं पैदा होती हैं?
अथवा
उदारीकरण की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
अथवा
उदारवादिता का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1991 में डॉ. मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री बनने के बाद नयी आर्थिक नीति लागू की गई। उदारीकरण, निजीकरण तथा भूमंडलीकरण इस नीति की प्रमुख विशेषताएं थीं। 20वीं शताब्दी के आखिरी दशक के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था का तेज़ गति से उदारीकरण किया जाने लगा तथा यह उदारीकरण की प्रक्रिया अब भी जारी है। यह एक आर्थिक प्रक्रिया तथा समाज में आर्थिक परिवर्तनों की प्रक्रिया है।

उदारीकरण का अर्थ (Meaning of Liberalization)-नियंत्रित अर्थव्यवस्था के गैर-ज़रूरी प्रतिबंधों को हटाना उदारीकरण है। उद्योगों तथा व्यापार पर से गैर-ज़रूरी प्रतिबंध हटाना ताकि अर्थव्यवस्था अधिक प्रतिस्पर्धात्मक. प्रगतिशील तथा खुली बन सके, इसे उदारीकरण कहते हैं।

उदारीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें विश्व के अलग अलग देशों के बीच व्यापारिक तथा आर्थिक संबंधों को ज्यादा विस्तार की नज़र से भूमंडल के सदस्य देशों को ऐसी सुविधाएं प्रदान करने के लिए प्रेरित किया जाता है ताकि विश्व में मुक्त व्यापार फैल सके तथा बेहतर अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों के लक्ष्य तक पहुंचा जा सके। इस नीति से अर्थव्यवस्था की कार्यकुशलता बढ़ती है तथा निजी उद्योगों में सार्वजनिक उद्योगों की अपेक्षा ज्यादा बेहतर परिणाम देने की क्षमता होती है।

उदारीकरण की समस्याएं (Problems of Liberalization)-उदारीकरण से भारत जैसे देश में बहुत-सी समस्याएं पैदा हई हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-
(i) बेरोज़गारी में वृदधि (Increase in Unemployment)-भारत में 1990 में बेरोज़गारी की दर 6% थी जो 1999 में बढ़कर 7% हो गई। यह सिर्फ उदारीकरण का ही परिणाम है। देश में 36% लोग ग़रीबी की रेखा के नीचे रहते हैं क्योंकि उनके पास मूल सुविधाओं की कमी है। घरेलू उद्योगों तथा रोजगार में सीधा संबंध होता है क्योंकि घरेलू रोज़गार बहुत से लोगों को रोजगार देता है।

अगर उद्योगों की संख्या बढ़ेगी जो ज्यादा लोगों को रोजगार प्राप्त होगा पर अगर उद्योग कम होंगे तो बेरोज़गारी बढ़ेगी तथा ग़रीबी भी साथ ही साथ बढ़ेगी। हमारे देश में उदारीकरण की प्रक्रिया 14 वर्ष से चल रही है। बड़े-बड़े उद्योग तो लग रहे हैं, परंतु कुटीर तथा घरेलू उद्योग खत्म हो रहे हैं जिससे कि बेरोज़गारी में वृद्धि हुई है। इस तरह उदारीकरण की प्रक्रिया से बेरोज़गारी में वृद्धि हुई है।

(ii) उदारीकरण के गलत परिणाम (Evil Consequences of Liberalization)- उदारीकरण की प्रक्रिया के साथ-साथ कर्मचारियों को निकालने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। जब उदारीकरण की नीति अपनायी गयी थी तो यह कहा गया था कि इस प्रक्रिया से देश की सारी समस्याएं हल हो जाएंगी। लेकिन 14 वर्षों के उदारीकरण की प्रक्रिया के बाद भी हमारी अर्थव्यवस्था पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा है। आज भी देश की 36% जनता गरीबी की रेखा से नीचे रहती है। इन वर्षों में चाहे भारत को तकनीकी रूप से लाभ ही हुआ है पर बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं, जैसे कि कटीर उदयोगों का खत्म होना, जिनमें उदारीकरण की प्रक्रिया के गलत परिणाम

(iii) विदेशी कर्ज का बढ़ता बोझ (Increasing pressure of foreign debt)-आर्थिक सुधारों का पहला दौर 1991 से 2001 तक चला। 2001 में दूसरा दौर शुरू हुआ। इस दौर में यह सोचा गया कि देश के आर्थिक विकास की दर तेज़ होगी पर हुआ इसका उल्टा। देश के आर्थिक विकास तथा आर्थिक सुधार के रास्ते पर कदम धीरे हो गए हैं।

देश के लिए 8% की आर्थिक विकास की दर का लक्ष्य रखा गया है जोकि बहुत दूर की कौड़ी लगता है। वित्त मंत्री तरह-तरह के उपायों की घोषणा कर रहे हैं पर फिर भी यह मुमकिन नहीं लगता। इसके साथ-साथ देश के ऊपर विदेशी कर्ज का बोझ लगातार बढ़ रहा है। आज हमारे देश के ऊपर 110 अरब डालर के लगभग विदेशी कर्ज़ है जिससे हर भारतीय विदेशों का कर्जदार बन गया है। यह भी उदारीकरण की प्रक्रिया की वजह से ही

(iv) निर्यात में कमी तथा आयात का बढ़ना (Decrease in Export and Increase in Import)-उदारीकरण की प्रक्रिया में निर्यात में भी कमी आती है तथा आयात में भी बढ़ोत्तरी होती है। 1991 के मुकाबले 1996 में निर्यात कम हुआ था तथा आयात बढ़ा था। यह इस वजह से होता है कि उदारीकरण से पश्चिम की या विदेशी चीजें हमारे देश में आईं जिस के कारण लोगों में विदेशी चीजें लेने की प्रवृत्ति भी बढ़ी।

जिस के कारण आयात ज्यादा हो गया पर निर्यात उसी अनुपात में न बढ़ पाया जिस के कारण व्यापार घाटे में बढ़ोत्तरी तथा व्यापार संतुलन में कमी आई। आयात बढ़ने तथा उदारीकरण की प्रक्रिया से देसी उद्योगों पर भी प्रभाव पड़ा। आराम से ठीक दामों पर तथा अच्छी विदेशी चीज़ के मिलने के कारण भी आयात में बढ़ोत्तरी हुई तथा देशी उद्योगों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

(v) रुपये का मूल्य का गिरना (Decline in Value of Rupee)-उदारीकरण की वजह से भारतीय रुपए की कीमत में भी काफ़ी गिरावट आई है। 1991 में जिस डालर की कीमत ₹ 18 थी वह 1996 में ₹ 36तथा 2001 में यह ₹ 47 तक पहुंच गया था। आजकल यह ₹ 71 के लगभग है। यह सब उदारीकरण की वजह से है तथा यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं होता।

किसी देश की मुद्रा की कीमत कम होने से महंगाई बढ़ती है जोकि हमारे देश के गरीब लोगों के लिए ठीक नहीं है। विकसित देशों को तो इससे लाभ हो सकता है पर विकासशील देशों के लिए यह नुकसानदायक है। इस तरह उदारीकरण के कारण रुपए की विनिमय दर में निरंतर गिरावट आ रही है।

(vi) सरकार की आय में कमी आना (Decline in the Income of Govt.)-उदारीकरण की एक विशेषता है कि इसमें सरकार को उत्पादों पर सीमा शुल्क कम करना पड़ता है ताकि विदेशी चीजें उस देश के मूल्य पर मिल सके। सीमा शुल्क कम करने से सरकार के राजस्व या आमदनी कम होती है जिसका सीधा प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। इसके अलावा विदेशी चीज़ों की गुणवत्ता भारतीय उत्पादों के मामले काफ़ी अच्छी होती है तथा कई मामलों में यह सस्ती भी होती है।

जिस वजह से विदेशी चीजें भारतीय चीज़ों के मुकाबले ज्यादा बिकती हैं। इसके अलावा विदेशी चीजें भारतीय चीजों से तकनीक के मामले में भी अच्छी होती हैं क्योंकि भारतीय तकनीक इतनी अच्छी नहीं है। उदाहरण के तौर पर चीनी उत्पादों ने भारतीय बाजार में हलचल ला दी है। इस तरह जितनी ज्यादा ये चीजें हमारे देश में आएंगी उतनी ही सरकार की आमदनी में कमी होगी। अगर भारतीय चीजें बिकेंगी ही नहीं तो यह सरकार को क्या कर देंगे। इस तरह भी आमदनी में कमी आती है।

(vii) सरकारों का बढ़ता घाटा (Increasing deficit of Governments)-उदारीकरण की वजह से केंद्र तथा राज्य सरकारों के घाटे भी बढ़ रहे हैं। आमदनी कम हो रही है। खर्च या तो बढ़ रहे हैं या फिर कम हो रहे हैं। ज़रूरी चीज़ों के दाम बढ़ रहे हैं, बेरोज़गारी बढ़ रही है, ग़रीबी बढ़ रही है। सरकार के पास अपने काम पूरे करने के लिए पैसा नहीं है। देश के बजट का बड़ा हिस्सा कर्ज चुकाने में ही खर्च हो जाता है। सरकार के बढ़ते घाटे की वजह से विकास कार्य या तो नहीं हो रहे हैं या फिर अगर हो रहे हैं तो कम हो रहे हैं जिस वजह से देश पर काफ़ी प्रभाव पड़ रहा है।

इस तरह उदारीकरण के देश पर काफ़ी गलत प्रभाव भी पड़ रहे हैं। अगर हमें उदारीकरण से लाभ लेना है तो वित्तीय अनुशासन को सुधारना होगा। हमें अपने मूलभूत ढांचे को सुधारना होगा, ऊर्जा के क्षेत्र में प्रगति करनी होगी, नयी तकनीकों का प्रयोग करना होगा तथा और भी बहुत से सुधार करने होंगे तभी हम उदारीकरण के लाभ उठा सकते हैं। इनके साथ-साथ कुछ कानूनों में भी सुधार करना होगा तभी उदारीकरण पूर्ण रूप से सफल हो पाएगा।

प्रश्न 4.
पूंजीवाद के बारे में आप क्या जानते हैं? विस्तार सहित लिखो।
अथवा
पूँजीवाद को एक सामाजिक व्यवस्था के रूप में समझाइये।
अथवा
पूंजीवाद को एक सामाजिक व्यवस्था के रूप में समझाइये।
उत्तर:
पूंजीवाद एक आर्थिक व्यवस्था है जिसमें निजी संपत्ति की बहुत महत्ता होती है। पूंजीवाद एक दम से ही किसी स्तर पर नहीं पहुंचा बल्कि उसका धीरे-धीरे विकास हुआ है। इसके विकास को देखने के लिए हमें इसका अध्ययन आदिम समाज में करना होगा।

आदिम समाज में वस्तुओं के लेन-देने की व्यवस्था आदान-प्रदान में बदलने की व्यवस्था थी। उस समय लाभ का  विचार प्रत्यक्ष रूप से सामने नहीं आया था। लोग चीजों के लाभ के लिए एकत्र नहीं करते थे बल्कि उन दिनों के लिए एकत्र करते थे जब चीज़ों की कमी होती थी या फिर सामाजिक प्रसिद्धि के लिए एकत्र करते थे। व्यापार आमतौर पर सेवा व चीज़ों के देने पर निर्भर मरता था। आर्थिक कारक जैसे कि मजदूरी, निवेश, व्यापारिक लाभ के बारे में आदिम समाज को पता नहीं था।

मध्यवर्गी समाज में व्यापार व वाणिज्य थोड़े से उन्नत हो गए। चाहे शुरू में व्यापार आदान-प्रदान की व्यवस्था पर आधारित था पर धीरे-धीरे पैसा व्यापार करने का एक माध्यम बन गया। पैसा चाहे संपत्ति नहीं था, पर यह संपत्ति का सूचक था। इसका उत्पादक शक्तियों के लक्षणों पर पूरा प्रभाव था। सिमल के अनुसार पैसे की संस्था के आधुनिक पश्चिमी समाज में व्यवस्थित होने के कारण जिंदगी के हरेक हिस्से पर बहुत गहरे प्रभाव पड़े।

इसने मालिक व नौकर को आजादी दी। वस्तुओं तथा सेवाओं के बेचने तथा खरीदने वाले पर भी असर पड़ा क्योंकि इससे व्यापार के दोनों ओर से रस्मी रिश्ते पैदा हो गए। सिमल के अनुसार पैसे ने हमारी ज़िन्दगी की फिलासफ़ी में बहुत परिवर्तन ला दिए। इसने हमें Practical बना दिया क्योंकि अब हम प्रत्येक चीज़ को पैसे में तोलने लग पड़े। सामाजिक सम्पर्क, सम्बन्ध गैर-रस्मी तथा अव्यक्तक हो गए। मानवीय संबंध भी ठंडे हो गए।

आधुनिक समय के आरंभिक दौर में आर्थिक गतिविधियां आमतौर पर सरकारी ताकतों द्वारा संचालित होती थीं। इससे हमें यूरोपीय लोगों के राज्य की सरकार अधीन इकट्ठे होकर आगे बढ़ने का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है। इस समय में आर्थिक गतिविधियां राजनैतिक सत्ता द्वारा संचालित हैं ताकि राज्य का लभ तथा खज़ाना बढ़ सके। देश व्यापारियों की देख-रेख में चलता था तथा व्यापारी एक आर्थिक संगठन की भान्ति लाभ कमाने में लगे हुए हैं। उत्पादक शक्तियां भी व्यापारिक कानून द्वारा संचालित होती हैं।

इसके पश्चात् औद्योगिक क्रांति आई जिसने उत्पादन के तरीकों को बदल दिया। व्यापारिक नीतियां लोगों का भला करने में असफल रहीं। चीजों के उत्पादन करने के लिए Laissez faire की नीति अपनाई गई। इस नीति के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तिगत हित देख सकता था। उस पर कोई बंधन नहीं था। राज्य ने आर्थिक कार्य में दखल देना बंद कर दिया। समनर के अनुसार राज्य में व्यापार व वाणिज्य पर लगे सारे प्रतिबंध हटा लेने चाहिएं व आदान-प्रदान व पैसे को इकट्ठा करने पर लगी सभी पाबंदियां हटा लेनी चाहिएं। एडम स्मिथ ने इस समय चार सिद्धांतों का वर्णन किया।

  • व्यक्तिगत हित की नीति।
  • दखल न देने की नीति।
  • प्रतियोगिता का सिद्धान्त।
  • लाभ को देखना।

इन सिद्धांतों का उस समय पर काफ़ी प्रभाव पड़ा। इन नियमों के प्रभाव अधीन व औद्योगिक क्रांति के कारण संपत्ति व उत्पादन की मलकीयत की नई व्यवस्था सामने आई। जिसको पूंजीवाद का नाम दिया गया। औद्योगिक क्रांति के कारण घरेलू उत्पादन कारखानों के उत्पादन में बदल गया। कारखानों में काम छोटे-छोटे भागों में बंटा होता था तथा प्रत्येक मज़दूर थोड़ा सा छोटा सा काम करता था। इससे उत्पादन बढ़ गया। समय के साथ-साथ बड़े कारखाने लग गए। इन बड़े कारखानों के मालिक निगम अस्तित्व में आ गए। पूंजीवाद के साथ-साथ श्रम-विभाजन, विशेषीकरण व लेन-देन भी पहचान में आया।

इस उत्पादन व लेन-देन की व्यवस्था में उत्पादन के साधन के मालिक व्यक्तिगत लोग थे और उन पर कोई सामाजिक ज़िम्मेदारी नहीं थी। संपत्ति बिल्कुल निजी थी तथा वह राज्य, धर्म, परिवार व अन्य संस्थाओं की पाबंदियों से स्वतंत्र थे। फैक्टरियों के मालिक कुछ भी करने को स्वतंत्र थे। उनका उद्देश्य केवल लाभ था।

उन पर बिना लाभ की चीजों का उत्पादन करने का कोई बंधन नहीं था। उत्पादन का तरीका लाभ वाला था और सरकार ने दखल न देने की नीति अपनाई तथा इस दिशा में मालिक का साथ दिया।

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प्रश्न 5.
बाज़ार का क्या अर्थ है? बाज़ार के प्रमुख लक्षणों का वर्णन करें।
उत्तर:
दैनिक बोलचाल की भाषा में बाज़ार शब्द को विशेष वस्तु के बाज़ार के रूप में प्रयोग किया जाता है जैसे कि फलों का बाजार, सब्जी का बाजार अर्थात् हम इसे अर्थव्यवस्था से संबंधित करते हैं। परंतु यह एक सामाजिक संस्था भी है। समाजशास्त्रियों के अनुसार बाज़ार वह सामाजिक संस्थाएं है जो विशेष सांस्कृतिक तरीकों द्वारा निर्मित है।

बाजारों का नियंत्रण तो विशेष सामाजिक वर्गों द्वारा होता है तथा इसका अन्य सामाजिक संस्थाओं, सामाजिक प्रक्रियाओं तथा संरचनाओं से भी विशेष संबंध होता है। आर्थिक दृष्टिकोण से बाजार में केवल ऑर्थिक क्रियाओं तथा संस्थाओं को भी शामिल किया जाता है। इसका अर्थ यह है कि बाज़ार में केवल लेन-देन तथा सौदे ही होते हैं जोकि पैसे पर आधारित होते हैं।

ऐली के अनुसार, “बाज़ार का अर्थ हम उन सभी क्षेत्रों से लेते हैं जिसके अंदर किसी वस्तु-विशेष की मूल्य निर्धारण करने वाली शक्तियां कार्यशील होती हैं।” इसी प्रकार मैक्स वैबर के अनुसार, “बाजार स्थिति का अर्थ विनिमय के किसी भी विषय के लिए उसे द्रव्य में परिवर्तित करने के उन सभी अवसरों से है जिनके बारे में बाज़ार स्थिति में सहभागी सभी जानते हैं कि वह उन्हें प्राप्त है तथा वह दामों तथा प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से उनकी मनोवृत्तियों के लिए संदर्भपूर्ण हैं।”

बाज़ार के लक्षण
(Features of Market)
बाज़ार के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-
1. आपसी लेन-देन-बाजार का सबसे प्रमुख लक्षण आपसी लेन-देन का है। बाजार वैसे भी आपसी लेन-देन पर ही आधारित होता है। इसमें या तो चीजों के बदले में चीजें, चीज़ों के बदले में पैसे अथवा चीज़ों के बदले में सेवाएं प्रदान की जाती हैं। अगर आपसी लेन-देन ही नहीं होगा तो हम बाज़ार के बारे में सोच भी नहीं सकते।

2. निरंतर प्रक्रिया-बाज़ार एक निरंतर चलने वाली संस्था है। हम चाहे प्राचीन समाज अथवा आधुनिक समाज, ग्रामीण समाज देखें अथवा जन-जातीय समाज, बाज़ार प्रत्येक प्रकार के समाज में मौजूद है। अगर किसी व्यक्ति को परिवार चलाना है तो वह बाज़ार में आएगा ही तथा खरीददारी भी करेगा। इससे बाज़ार का नियमन भी बना रहता

3. अव्यक्तिगत संबंध-बाजार का एक और महत्त्वपूर्ण लक्षण है कि इसमें अव्यक्तिगत संबंध होते हैं। चाहे लोग बाज़ार के दुकानदारों को जानते होते हैं परंतु उनके संबंध एक सीमा तक ही सीमित होते हैं। अगर संबंध घनिष्ठ भी हैं तो भी यह बाज़ार के नियमों को अधिक प्रभावित नहीं करते हैं। दुकानदार अपना लाभ तो लेगा ही चाहे वह कम ही क्यों न हों। बाजार में संबंध दो अजनबी व्यक्तियों के बीच भी बन सकते हैं।

4. माध्यम के रूप में द्रव्य-बाज़ार के नियमों के अनुसार विनिमय में द्रव्य का प्रयोग किया जाता है। यह द्रव्य किसी भी रूप, चीज़ों, धन अथवा सेवाओं के रूप में हो सकता है। द्रव्य के हिसाब से चीज़ों की मात्रा कम अथवा अधिक भी हो सकती है। द्रव्य की मात्रा के हिसाब से ही सौदे होते हैं तथा चीज़ों का लेन-देन होता है।

5. संबंध समझौते पर आधारित-बाज़ार में संबंध समझौते पर आधारित होते हैं। यह संबंध अव्यक्तिगत होते हैं। समझौते की शर्ते सभी पर मान्य होती हैं तथा सभी को इन्हें मानना ही पड़ता है अन्यथा क्षतिपूर्ति की मांग भी की जा सकती है। आज के औद्योगिक समाजों के समझौते पर आधारित संबंधों की मांग बढ़ती जा रही है।

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HBSE 12th Class Sociology बाज़ार एक सामाजिक संस्था के रूप में Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
अदृश्य हाथ का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
एडम स्मिथ आरंभिक राजनीतिक अर्थशास्त्री थे जिन्होंने अपनी पुस्तक ‘द वेल्थ ऑफ नेशन्स’ में बाज़ार र्थव्यवस्था को समझाने का प्रयास किया जोकि उस समय अपनी आरंभिक अवस्था में थी। स्मिथ का कहना था कि जारी अर्थव्यवस्था व्यक्तियों के आदान-प्रदान अथवा लेन-देन का एक लंबा क्रम है जो अपनी क्रमबदधता के कारण स्वयं ही एक कार्यशील और स्थिर व्यवस्था स्थापित करती है। यह उस समय होता है जब करोड़ों के लेन देन में शामिल व्यक्तियों में से कोई भी व्यक्ति इसको स्थापित करने का इरादा नहीं रखता।

हरेक व्यक्ति अपने लाभ को बढ़ाने के बारे में सोचता है तथा इसके लिए वह जो भी कुछ करता है वह अपने आप ही समाज के हितों में होता है। इस तरह ऐसा लगता है कि कोई एक अदृश्य बल यहां कार्य करता है जो इन व्यक्तियों के लाभ की प्रवृत्ति को समाज के लाभ में परिवर्तित कर देता है। इस बल को ही एडम स्मिथ ने ‘अदृश्य हाथ’ का नाम दिया था।

प्रश्न 2.
बाज़ार एक समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण, आर्थिक दृष्टिकोण से किस तरह अलग है?
उत्तर:
समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से बाज़ार सामाजिक संस्थाएं हैं जो विशेष सांस्कृतिक तरीकों द्वारा निर्मित हैं। जैसे कि बाजारों का नियंत्रण अथवा संगठन विशेष सामाजिक समूहों के द्वारा होता है तथा यह अन्य संस्थाओं, सामाजिक प्रक्रियाओं तथा संरचनाओं से विशेष रूप से संबंधित होता है। परंतु आर्थिक दृष्टिकोण से बाज़ार में केवल आर्थिक क्रियाओं तथा संस्थाओं को भी शामिल किया जाता है। इसका अर्थ यह है कि बाज़ार में केवल लेन-देन तथा सौदे ही होते हैं जोकि पैसे पर आधारित होते हैं।

प्रश्न 3.
किस तरह से एक बाज़ार जैसे कि एक साप्ताहिक ग्रामीण बाज़ार, एक सामाजिक संस्था है?
अथवा
बाज़ार एक सामाजिक संस्था के रूप में स्पष्ट करें।
अथवा
‘बाज़ार एक सामाजिक संस्था है’ स्पष्ट करें।
उत्तर:
ग्रामीण तथा नगरीय भारत में साप्ताहिक बाज़ार अथवा हाट.एक आम नज़ारा होता है। पहाड़ी तथा जंगलाती इलाकों में (विशेषतया जहां आदिवासी रहते हैं) जहां लोग दूर-दूर रहते हैं, सड़कों तथा संचार की स्थिति काफी जर्जर होती है तथा अपेक्षाकृत अर्थव्यवस्था अविकसित होती है, वहां पर साप्ताहिक बाज़ार चीज़ों के लेन देन के साथ-साथ सामाजिक मेलजोल की प्रमुख संस्था बन जाता है। स्थानीय लोग अपने कृषि उत्पाद अथवा जंगलों से इकट्ठी की गई वस्तुएं व्यापारियों को बेचते हैं जिन्हें व्यापारी दोबारा कस्बों में ले जाकर बेचते हैं।

स्थानीय इस कमाए हुए पैसे से ज़रूरी चीजें जैसे कि नमक, कृषि के औजार तथा उपभोग की चीजें जैसे कि चू कि चूड़ियां और गहने खरीदते हैं। परंत अधिकतर लोगों के लिए इस बाज़ार में जाने का प्रमख कारण सामाजिक है। जहां वह अपने रिश्तेदारों से मिल सकता है, घर के जवान लड़के-लड़कियों का विवाह तय कर सकता है, गप्पें मार सकता है तथा कई अन्य कार्य कर सकता है। इस प्रकार साप्ताहिक ग्रामीण बाज़ार एक सामाजिक संस्था बन जाता है।

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प्रश्न 4.
व्यापार की सफलता में जाति एवं नातेदारी संपर्क कैसे योगदान कर सकते हैं?
उत्तर:
अगर हम प्राचीन भारतीय परिदृश्य को देखें तो हमें पता चलता है कि व्यापार की सफलता में जाति एवं नातेदारी काफ़ी महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। व्यापार के कुछ विशेष क्षेत्र विशेष समुदायों द्वारा नियंत्रित होते हैं। व्यापार और खरीद-फरोख्त साधारणतया जाति तथा नातेदारी तंत्रों में ही होती है।

इसका कारण यह है कि व्यापारी अपने स्वयं के समुदायों के लोगों पर विश्वास औरों की अपेक्षा अधिक करते हैं। इसलिए वे बाहर के लोगों की अपेक्षा इन्हीं संपर्कों में व्यापार करते हैं। इससे व्यापार के कुछ क्षेत्रों पर एक जाति का एकाधिकार हो जाता है तथा वह अधिक से अधिक लाभ कमाते हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियों में भी मालिक के साथ बोर्ड ऑफ डायरैक्टर्ज़ में मालिक के नातेदार ही होते हैं जो उसकी व्यापार करने में तथा कंपनी चलाने में सहायता करते हैं।

प्रश्न 5.
उपनिवेशवाद के आने के पश्चात् भारतीय अर्थव्यवस्था किन अर्थों में बदली?
अथवा
उपनिवेशवाद के आने से भारतीय अर्थव्यवस्था में क्या परिवर्तन आये हैं?
अथवा
भारतीय समाज पर उपनिवेशवाद के प्रभाव का वर्णन करें।
अथवा
उपनिवेश आने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में क्या परिवर्तन आये?
उत्तर:
भारत में उपनिवेशवाद के आते ही यहां की अर्थव्यवस्था में काफी परिवर्तन हुए जिससे उत्पादन, व्यापार और कृषि में काफी विघटन हुआ। हम उदाहरण ले सकते हैं हस्तकरघा के कार्य के खत्म हो जाने की। ऐसा इस कारण हुआ कि उस समय इंग्लैंड के बने सस्ते कपड़े की बाज़ार में बाढ़ सी आ गई। चाहे भारत में उपनिवेशवाद के आने से पहले एक जटिल मुद्रीकृत अर्थव्यवस्था मौजूद थी फिर भी इतिहासकार औपनिवेशिक काल को एक संधि काल के रूप में देखते हैं। इस समय दो मुख्य परिवर्तन आए तथा वे हैं :

(i) भारतीय अर्थव्यवस्था का पूंजीवादी अर्थव्यवस्था से जुड़ना-अंग्रेजी राज में भारतीय अर्थव्यवस्था संसार की पूंजीवादी अर्थव्यवस्था से गहरे रूप से जुड़ गई। अंग्रेजों से पहले भारत से बना बनाया सामान काफी अधिक निर्यात होता था। परंतु उपनिवेशवाद के भारत आने के पश्चात् भारत कच्चे माल तथा कृषि उत्पादों का स्रोत और उत्पादित माल का उपभोग करने का मुख्य केंद्र बन गया। इन दोनों कार्यों से इंग्लैंड के उद्योगों को लाभ होना शुरू हो गया।

उसी समय पर नए समूह (मुख्यतः यूरोपीय लोग) व्यापार तथा व्यवसाय करने लगे। वह या तो पहले से जमे हुए व्यापारियों के साथ अपना व्यापार शुरू करते थे या फिर कभी उन समुदायों को अपना व्यापार छोड़ने के बाध्य करते थे। परंतु पहले से ही मौजूद आर्थिक संस्थाओं को पूर्णतया नष्ट करने के स्थान पर भारत में बाज़ार अर्थव्यवस्था के विस्तार ने कुछ व्यापारिक समुदायों को नए मौके प्रदान किए। इन समुदायों ने बदले हुए आर्थिक हालातों के अनुसार अपने आपको ढाला तथा अपनी स्थिति में सुधार किया।

(ii) नए समुदायों का सामने आना-उपनिवेशवाद के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ ऐसे समुदाय सामने आए जो मुख्यता व्यापार से ही संबंधित थे। उदाहरण के तौर पर मारवाड़ी जोकि सबसे जाना माना व्यापारिक समुदाय है तथा जो हरेक स्थान पर पाया जाता है। मारवाड़ी न केवल बिड़ला परिवार जैसे प्रसिद्ध औद्योगिक घरानों से हैं बल्कि यह तो छोटे-छोटे व्यापारी और दुकानदार भी हैं जो हरेक नगर में पाए जाते हैं। अंग्रेजों के समय उन्होंने नए शहरों, कलकत्ता में मिलने वाले नए अवसरों का लाभ उठाया और सफल व्यापारिक समुदाय बन गए।

यह देश के सभी भागों में बस गए। मारवाड़ी अपने गहन सामाजिक तंत्र के कारण सफल हुए जिसने उनकी बैंकिंग व्यवस्था के संचालन के लिए ज़रूरी विश्वास से भरपूर संबंधों को स्थापित किया। बहुत-से मारवाड़ी परिवारों के पास इतनी पंजी इकटठी हो गई कि वह ब्याज पर कर्ज देने लगे। इन बैंकों जैसी आर्थिक प्रवत्ति की सहायता से भारत के वाणिज्यिक विस्तार को भी सहायता प्राप्त हुई।

स्वतंत्रता से कुछ समय पहले तथा स्वतंत्रता के पश्चात् कुछ मारवाड़ी परिवारों ने आधुनिक उद्योग स्थापित किए जिस कारण आज के समय में उद्योगों में मारवाड़ियों की हिस्सेदारी सबसे अधिक है। अंग्रेजों के समय में नए व्यापारिक समूहों का सामने आना तथा छोटे प्रवासी व्यापारियों का बड़े उद्योगपतियों में बदल जाना आर्थिक प्रक्रियाओं में सामाजिक संदर्भ के महत्त्व को प्रदर्शित करता है।

प्रश्न 6.
उदाहरणों की सहायता से ‘पण्यीकरण’ के अर्थ की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
पण्यीकरण उस समय होता है जब कोई चीज़ बाजार में बेची-खरीदी न जा सकती हो तथा अब वह बेची खरीदी जा सकती है अर्थात् अब वह वस्तु बाजार में बिकने वाली बन गई है। उदाहरण के लिए कौशल तथा श्रम अब ऐसी चीजें बन गई हैं जिन्हें बाजार में खरीदा तथा बेचा जा सकता हैं। कार्ल मार्क्स तथा पूंजीवाद के अनुसार पण्यीकरण की प्रक्रिया के नकारात्मक सामाजिक प्रभाव भी है। श्रम का पण्यीकरण एक उदाहरण है, परंतु और भी उदाहरण समाज में मिल जाते हैं।

उदाहरण के लिए आजकल निर्धन लोगों द्वारा अपनी किडनी उन अमीर लोगों को बेचना जिन्हें किडनी बदलने की आवश्यकता है। बहुत से लोगों का कहना है कि मनुष्यों के अंगों का पण्यीकरण नहीं होना चाहिए। कुल समय पहले तक मनुष्यों को गुलामों के रूप में खरीदा तथा बेचा जाता था, परंतु आज के समय में मनुष्यों को वस्तु समझना अनैतिक समझा जाता है। परंतु आधुनिक समाज में यह विचार व्याप्त है कि मनुष्य का श्रम बिकाऊ है अर्थात पैसे के साथ कौशल या अन्य सेवाएं प्राप्त की जा सकती हैं। मार्क्स का कहना था कि यह स्थिति केवल पूंजीवादी समाजों में पाई जाती है जहां पर पण्यीकरण की प्रक्रिया व्याप्त है।

उदाहरणों की सहायता से ‘पण्यीकरण’ के अर्थ की विवेचना कीजिए। – उत्तर:पण्यीकरण उस समय होता है जब कोई चीज़ बाजार में बेची-खरीदी न जा सकती हो तथा अब वह बेची खरीदी जा सकती है अर्थात् अब वह वस्तु बाजार में बिकने वाली बन गई है। उदाहरण के लिए कौशल तथा श्रम अब ऐसी चीजें बन गई हैं जिन्हें बाजार में खरीदा तथा बेचा जा सकता हैं। कार्ल मार्क्स तथा पूंजीवाद के अनुसार पण्यीकरण की प्रक्रिया के नकारात्मक सामाजिक प्रभाव भी है। श्रम का पण्यीकरण एक उदाहरण है, परंतु और भी उदाहरण समाज में मिल जाते हैं।

उदाहरण के लिए आजकल निर्धन लोगों द्वारा अपनी किडनी उन अमीर लोगों को बेचना जिन्हें किडनी बदलने की आवश्यकता है। बहुत से लोगों का कहना है कि मनुष्यों के अंगों का पण्यीकरण नहीं होना चाहिए। कुल समय पहले तक मनुष्यों को गुलामों के रूप में खरीदा तथा बेचा जाता था, परंतु आज के समय में मनुष्यों को वस्तु समझना अनैतिक समझा जाता है। परंतु आधुनिक समाज में यह विचार व्याप्त है कि मनुष्य का श्रम बिकाऊ है अर्थात पैसे के साथ कौशल या अन्य सेवाएं प्राप्त की जा सकती हैं। मार्क्स का कहना था कि यह स्थिति केवल पूंजीवादी समाजों में पाई जाती है जहां पर पण्यीकरण की प्रक्रिया व्याप्त है।

प्रश्न 7.
‘प्रतिष्ठा का प्रतीक’ क्या है?
उत्तर:
अपने रिश्तेदारों, नातेदारों अथवा जाति में ही व्यापार करना प्रतिष्ठा का प्रतीक है क्योंकि इससे अपनी जाति, नातेदारी में प्रतिष्ठा में बढ़ोत्तरी होती है।

प्रश्न 8.
‘भूमंडलीकरण’ के तहत कौन-कौन सी प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं?
उत्तर:
भूमंडलीकरण के कई पहलू हैं, उनमें से विशेष हैं-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वस्तुओं, पूंजी, समाचार और लोगों का संचलन एवं साथ ही प्रौद्योगिकी (कंप्यूटर, दूरसंचार और परिवहन के क्षेत्र में) और अन्य आधारभूत सुविधाओं का विकास, जो इस संचलन को गति प्रदान करते हैं।

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प्रश्न 9.
उदारीकरण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
उदारीकरण एक प्रक्रिया है जिसमें कई प्रकार की नीतियां सम्मिलित हैं जैसे कि सरकारी विभागों का निजीकरण, पूंजी, श्रम और व्यापार में सरकारी हस्तक्षेप कम करना, विदेशी वस्तुओं के आसान आयात के लिए आयात शुल्क में कमी करना तथा विदेशी कंपनियों को देश में उद्योग स्थापित करने में सुविधाएं प्रदान करना।

प्रश्न 10.
आपकी राय में, क्या उदारीकरण के दूरगामी लाभ उसकी लागत की तुलना में अधिक हो जाएंगे? कारण सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था का भूमंडलीकरण मुख्यतः उदारीकरण की नीति के कारण हुआ जोकि 1980 के दशक में शुरू हुई। उदारीकरण में कई प्रकार की नीतियां सम्मिलित हैं जैसे कि सरकारी विभागों का निजीकरण, पूंजी, श्रम तथा व्यापार में सरकारी हस्तक्षेप कम करना, विदेशी वस्तुओं के आसान आयात के लिए सीमा शुल्क कम करना तथा विदेशी कंपनियों को देश में उद्योग स्थापित करने के लिए सुविधाएं देना।

इसमें आर्थिक नियंत्रण को सरकार द्वारा कम या खत्म करना, उदयोगों का निजीकरण तथा मज़दूरी और मूल्यों पर से सरकारी नियंत्रण खत्म करना भी शामिल है। जो लोग बाजारीकरण के समर्थक हैं उनका कहना है कि इससे समाज आर्थिक रूप से समृद्ध होगा क्योंकि निजी संस्थाएं सरकारी संस्थाओं की अपेक्षा अधिक कुशल होती हैं।

उदारीकरण से कई परिवर्तन आए जिनसे आर्थिक संवृद्धि बढ़ी तथा साथ ही भारतीय बाजार विदेशी कंपनियों के लिए खुल गए। जैसे कि अब भारत में बहुत-सी विदेशी वस्तुएं मिलने लग गई हैं जो पहले नहीं मिलती थीं। यह माना जाता है कि विदेशी पूंजी के निवेश से आर्थिक विकास के साथ रोज़गार के अवसर भी बढ़ते हैं। सरकारी कंपनियों का निजीकरण करने से उनकी कुशलता बढ़ती है तथा सरकार पर दबाव कम होता है।

चाहे हमारे देश में उदारीकरण का प्रभाव मिश्रित ही रहा है परंतु फिर भी बहुत-से लोग यह मानते हैं कि उदारीकरण से हम अपनी अधिक चीजें खोकर कम चीजों को पाएंगे तथा इसका भारतीय परिवेश पर प्रतिकल असर हुआ है। उनका कहना है कि भारतीय योग किलोदेवर या पचना तकनीमा सो महणी सफल उत्पादन को वैश्विक बाज़ार से लाभ होगा परंतु कई क्षेत्रों कि आटोमोबाइल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और तेलीय अनाजों के उद्योग पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा क्योंकि हम विदेशी उत्पादकों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगे।

अब भारतीय किसान अन्य देशों के किसानों के उत्पादों से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं क्योंकि अब कृषि उत्पादों का आयात होता है। पहले भारतीय किसान कृषि सहायता मूल्य (M.S.P.) तथा सबसिडी द्वारा विश्व बाजार से सुरक्षित थे। इस समर्थन मूल्य से किसानों की न्यूनतम आय सुनिश्चित होती है क्योंकि इस मूल्य पर सरकार किसानों से उनके उत्पाद खरीदने को तैयार होती है। सबसिडी देने से किसानों द्वारा प्रयोग की जाने वाली चीज़ों जैसे कि डीज़ल, उर्वरक इत्यादि का मूल्य सरकार कम कर देती है।

परंतु उदारवाद इस सरकारी सहायता के विरुद्ध है जिस कारण सबसिडी का समर्थन मूल्य या तो कम कर दिया गया या हटा लिया गया। इससे बहुत-से किसान अपनी रोजी-रोटी कमाने में भी असफल रहे हैं। इसके साथ ही छोटे उत्पादकों को विश्व स्तर के उत्पादकों के उत्पादों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है। इससे हो सकता है कि उनका बिल्कुल ही सफाया हो जाए। निजीकरण से सरकारी नौकरियां भी कम हो गई हैं तथा उनमें स्थिरता कम हो रही है। गैर-सरकारी असंगठित रोज़गार सामने आ रहे हैं। उदारीकरण कामगारों के लिए भी ठीक नहीं है क्योंकि उन्हें कम तनख्वाह तथा अस्थायी नौकरियां ही मिलेंगी।

प्रश्न 11.
बस्तर में एक आदिवासी गांव का बाज़ार।
धोराई एक आदिवासी बाज़ार वाले गांव का नाम है जोकि छत्तीसगढ़ के उत्तरी बस्तर जिले के भीतरी इलाके में बसा है… जब बाज़ार नहीं लगता, उन दिनों धोराई एक उँघता हुआ, पेड़ों के छपरों से छना हुआ, घरों का झुरमुट है जो पैर पसारे उन सड़कों से जा मिलता है जो बिना किसी नाप-माप के जंगल भर में फैली हुई है… धोराई का सामाजिक जीवन, यहां की दो प्राचीन चाय की दुकानों तक सीमित है, जिसके ग्राहक राज्य वन सेवा के निम्न श्रेणी के कर्मचारी हैं जो दुर्भाग्यवश इस दूरवर्ती और निरर्थक इलाके में कर्मवश फंसे पड़े हैं…

धोराई का गैर-बाज़ारी दिनों में या शक्रवार को छोडकर अस्तित्व शन्य के बराबर होता है. पर बाजार वाले दिन वो किसी और जगह में तबदील हो जाता है। टकों से रास्ता जाम हआ होता है…वन के सरकारी कर्मचारी अपनी इस्तरी की हई पोशाकों में इधर से उधर चहलकदमी कर रहे होते हैं और वन सेवा के महत्त्वपूर्ण अधिकारी अपनी डयटी बजाकर वन विभाग के विश्राम गृहों के आँगनों से बाज़ार पर बराबर नज़र बनाए रखते हैं। वे आदिवासी श्रमिकों को उनके काम का भत्ता बांटते हैं…

जब अफ़सरात आराम घर में सभा लगाते हैं तो आदिवासियों की कतार चारों ओर से खिंचती चली जाती है, वो जंगल के समान अपने खेतों की उपज या फिर अपने हाथ से बनाया हुआ कुछ लेकर आते हैं। इनमें तरकारी बेचने वाले हिंदू एवं विशेषज्ञ शिल्पकार, कुम्हार, जुलाहे एवं लोहार सम्मिलित होते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि समृद्धि के साथ अस्त-व्यस्तता है, बाज़ार के साथ-साथ कोई धार्मिक उत्सव भी चल रहा है…लगता है जैसे सारा संसार, इंसान, भगवान् सब एक ही जगह बाज़ार में एकत्रित हो गए हैं। बाज़ार लगभग एक चतुर्भुजीय जमीनी हिस्सा है, लगभग 100 एकड़ के वर्गमूल में बसा हुआ है जिसके बीचों-बीच एक भव्य बरगद का पेड़ है।

बाजार की छोटी-छोटी दुकानों की छत छप्पर की बनी है और यह दुकानें काफी पास-पास हैं, बीच-बीच में गलियारे से बन गए हैं, जिनमें से खरीदार संभलते हुए किसी तरह कम स्थापित दुकानदारों के कमदामी सामानों को पैर से कुचलने से बचाने की कोशिश करते हैं, जिन्होंने स्थाई दुकानों के बीच की जगह का अपनी वस्तुएं प्रदर्शित करने के लिए हर संभव उपयोग किया है।

स्रोत : गेल 1982 : 470-71
दिए गए उद्धरण को पढ़िए एवं नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
(1) यह लेखांश आप को आदिवासियों और राज्य (जिसका प्रतिनिधित्व वन विभाग के अधिकारियों द्वारा होता है) के बीच के संबंध के बारे में क्या बताता है? वन विभाग के अर्दली, आदिवासी जिलों में इतने महत्त्वपूर्ण क्यों हैं? अधिकारी आदिवासी श्रमिकों को भत्ता क्यों दे रहे हैं?

(2) बाज़ार की रूपरेखा उसके संगठन और कार्य-व्यवस्था के बारे में क्या प्रकट करती है? किस प्रकार के लोगों की स्थाई दुकानें होंगी और ‘कम स्थापित’ दुकानदार कौन हैं, जो ज़मीन पर बैठते हैं?

(3) बाज़ार के मुख्य विक्रेता और खरीदार कौन हैं? बाज़ार में किस प्रकार की वस्तुएं होती हैं और इन विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को कौन लोग खरीदते व बेचते हैं? इससे आपको इस क्षेत्र की स्थानीय अर्थव्यवस्था और आदिवासियों के बड़े समाज और अर्थव्यवस्था से संबंध के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर:
(1) इस लेखांश से हमें राज्य तथा आदिवासियों के बीच के संबंध के बारे में पता चलता है कि आदिवासियों का जीवन राज्य कर्मचारियों के बिना पूर्ण नहीं है बल्कि अधूरा है क्योंकि वन के सरकारी कर्मचारी उनके बाज़ारों पर नज़र रखते हैं तथा उनकी सहायता करते हैं। वन विभाग के अर्दली आदिवासी जिलों में महत्त्वपूर्ण होते हैं क्योंकि वह वनों की देख-रेख करते हैं तथा इस कारण कर्मचारियों के आदिवासियों से अच्छे संबंध बन गए हैं।

(2) धोराई एक आदिवासी साप्ताहिक बाज़ार वाला ग्राम है। बाज़ार लगभग एक चतुर्भुजीय जमीनी हिस्सा है जो लगभग 100 एकड़ वर्गमूल में बसा हुआ है। इसके बीचोंबीच एक बहुत बड़ा बरगद का पेड़ है। बाज़ार की छोटी छोटी दुकानों की छत छप्पर की बनी हुई है तथा यह दुकानें काफी पास-पास हैं, बीच-बीच में गलियारे बने हुए हैं जिनमें से खरीदार संभलते हुए, किसी प्रकार कम स्थापित दुकानदारों के कमदामी सामानों को पैर से कुचलने से बचाने की कोशिश करते हैं, जिन्होंने स्थायी दुकानों के बीच की जगह का अपनी वस्तुएं प्रदर्शित करने के लिए हर संभव उपयोग किया है।

(3) इस बाज़ार के मुख्य खरीदार तथा विक्रेता आदिवासी ही हैं। इस बाज़ार में वनों में मिलने वाली चीजें तथा शहर से आने वाली आवश्यकता की चीजें उपलब्ध होती हैं। आदिवासियों की स्थानीय अर्थव्यवस्था एक-दूसरे पर आश्रित होती है तथा इनका काफ़ी बड़ा समाज होता है।

प्रश्न 12.
तमिलनाडु के नाकरट्टारों में जाति आधारित व्यापार।
इसका तात्पर्य यह नहीं है कि नाकारट्टारों की बैंकिंग व्यवस्था अर्थशास्त्रियों के पश्चिमी स्वरूप के बैंकिंग व्यवस्था के प्रारूप से मिलती है…नाकरट्टारों में एक-दूसरे से कर्ज लेना या पैसा जमा करना जाति आधारित सामाजिक संबंधों से जुड़ा होता था जोकि व्यापार के भूभाग, आवासीय स्थान, वंशानुक्रम, विवाह और सामान्य संप्रदाय की सदस्यता पर आधारित था।

आधनिक पश्चिमी बैंकिंग व्यवस्था के विपरीत, नाकरटटारों में नेकनामी (प्रतिष्ठा) निर्णय, क्षमता और जमा पूंजी जैसे सिद्धांतों के अनुसार विनिमय होता था, न कि सरकार नियंत्रित केंद्रीय बैंक के नियमों के अंतर्गत और यही प्रतीक संपूर्ण जाति के प्रतिनिधि की तरह प्रत्येक एकल नाकरट्टर व्यक्ति के इस व्यवस्था में विश्वास को सुनिश्चित करते थे। दूसरे शब्दों में, नाकरट्टारों की बैंकिंग व्यवस्था एक जाति आधारित बैंकिंग व्यवस्था थी।

हर एक नाकरट्टार ने अपना जीवन विभिन्न प्रकार की सामूहिक संस्थाओं में शामिल होने और उसका प्रबंध करने के अनुसार संगठित किया था। यह वह संस्थाएं थीं जो उनके समुदाय में पूंजी जमा करने और बांटने में जुटी हुई थीं।
स्रोत : रुडनर 1994 : 234
कास्ट एंड केपिटेलिज्म इन कॉलोनियल इंडिया (रुडनर 1994) से लिए गए लेखांश को पढ़ें और निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दें-
(1) लेखक के अनुसार, नाकरट्टाओं की बैंकिंग व्यवस्था और आधुनिक पश्चिमी बैंकिंग व्यवस्था में क्या महत्त्वपूर्ण अंतर हैं?
(2) नाकरट्टाओं की बैंकिंग और व्यापारिक गतिविधियां अन्य सामाजिक संरचनाओं से किन विभिन्न तरीकों से जुड़ी हुई हैं।
(3) क्या आप आधुनिक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के अंतर्गत ऐसे उदाहरण सोच सकते हैं जहां आर्थिक गतिविधियां नाकरट्टाओं की ही तरह सामाजिक संरचना में घुली-मिली हों?
उत्तर:
(1) यह अंतर अग्रलिखित हैं:

  • नाकरट्टाओं में एक दूसरे से कर्ज लेना या पैसा जमा करना जाति आधारित संबंधों से जुड़ा होता है जबकि आधुनिक पश्चिमी बैंकिंग व्यवस्था में ऐसा नहीं होता है।
  • नाकरट्टाओं की बैंकिंग व्यवस्था व्यापार के भूभाग, आवासीय स्थान, वंशानुक्रम, विवाह और सामान्य संप्रदाय की सदस्यता पर आधारित थी परंतु पश्चिमी बैंकिंग व्यवस्था पैसे पर आधारित है।
  • नाकरट्टारों की बैंकिंग व्यवस्था एक जाति आधारित बैंकिंग व्यवस्था थी परंतु पश्चिमी बैंकिंग व्यवस्था सरकार द्वारा नियंत्रित होती है।

(2) नाकरट्टारों में एक-दूसरे से कर्ज लेना या पैसा जमा करना जाति आधारित सामाजिक संबंधों से जुड़ा होता था जोकि व्यापार के भूभाग, आवासीय स्थान, वंशानुक्रम, विवाह और सामान्य संप्रदाय की सदस्यता पर आधारित था। उनकी बैंकिंग व्यवस्था जाति पर आधारित व्यवस्था थी। हरेक नाकरट्टार ने अपने जीवन को अलग प्रकार की सामूहिक संस्थाओं में सम्मिलित होने तथा उसका प्रबंध करने के अनुसार संगठित किया हुआ था।

(3) आधुनिक पूंजीवादी व्यवस्था के अंतर्गत सहकारी संस्थाएं होती हैं जहां पर आर्थिक गतिविधियां नाकरट्टाओं की तरह ही सामाजिक संरचना में घुली-मिली होती हैं।

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प्रश्न 13.
इस गद्यांश में दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें।
पण्यीकरण बड़ा शब्द है, जो सुनने में जटिल लगता है। पर जिन प्रक्रियाओं की तरफ़ वो इशारा करता है उनसे हम परिचित हैं और वे हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा हैं। एक साधारण उदाहरण है : बोतल का पानी।

शहर या कस्बे में, यहां तक कि अधिकांश गांवों में भी बोतल का पानी खरीदना अब संभव है, 2, 1 लीटर या उससे छोटे पैमाने में वो हर एक जगह बेची जाती है। अनेक कंपनियां हैं और अनेक ब्रांड के नाम हैं जिससे पानी की बोतलें पहचानी जाती हैं। पर यह एक नयी प्रघटना है जो दस-पंद्रह साल से ज्यादा पुरानी नहीं है। मुमकिन है कि आप खुद उस समय को याद कर सकते हैं जब पानी की बोतलें नहीं बिका करती थीं। बड़ों से पूछो। माता-पिता के पीढ़ी के लोगों को अजीब लगा होगा और आप के दादा-दादी के जमाने में तो इसके बारे में बिरले लोगों ने सुना या सोचा होगा। ऐसा सोचना भी कि पेयजल के लिए कोई पैसा मांग सकता है, उनके लिए अविश्वसनीय होगा।

पर, आज यह हमारे लिए आम बात है, एक साधारण-सी बात, एक वस्तु जिसे हम खरोद (या बेच) सकते हैं। इसी को पण्यीकरण (commoditisation/commodification) कहते हैं, एक प्रक्रिया जिसके द्वारा कोई भी चीज़ जो बाज़ार में नहीं बिकती हो वह बाज़ार में बिकने वाली एक वस्तु बन जाती है और बाजार अर्थव्यवस्था का एक भाग बन जाती है। क्या आप ऐसी चीजों के बारे में सोच सकते हैं जो हाल ही में बाजारों में शामिल हुई हों? याद रहे कि यह ज़रूरी नहीं कि कोई वस्तु ही एक पण्य हो, कोई सेवा भी पण्य हो सकती है।

ऐसी चीजों के बारे में भी सोचें जो आज पण्य भले न हों पर भविष्य में हो सकती हों। आप कारण भी सोचें कि ऐसा क्यों होगा। अंत में, इस बारे में भी सोचें कि पहले जमाने की कुछ चीजें अब बिकनी बंद क्यों हो गई हैं (मतलब जिनका पहले विनिमय में योगदान था पर अब नहीं है) क्यों और कब कोई कमॉडिटी, कमॉडिटी नहीं रह जातो?
उत्तर:
(i) आजकल के समय में बहुत-सी चीजें ऐसी हैं जो हमारे बाजार में शामिल हई हैं जैसे कि बना हुआ पैक्ड खाना, बोतलों में पानी, विदेशी कारें, विदेशी इलेक्ट्रॉनिक्स का सामान. इंटरनेट तथा उस पर मौजूद कई प्रकार की सेवाएं इत्यादि।

(ii) कई चीजें जो हो सकता है आने वाले समय में बाजार में मौजूद हों वे हैं- भगवान के दर्शन, इच्छा अनुसार रूप बदलना, अपनी इच्छा की संतान प्राप्ति इत्यादि।

(iii) बहुत-सी प्राचीन चीजें हमारे समाज में बिकनी बंद हो गई हैं जैसे कि कई प्रकार के आभूषण। हो सकता है कि उनकी समाज के लिए उपयोगिता ही खत्म हो गई हो जिस कारण यह आज बिकनी बंद हो गई हैं।

प्रश्न 14.
जब बाज़ार भी बिकता हो : पुष्कर पशु मेला
“कार्तिक का महीना आते ही…. ऊंटों के गाड़ीवान अपने रेगिस्तानी जहाजों को सजाते हैं और कार्तिक पूर्णिमा के वक्त पहुंचने के लिए समय से पुष्कर की लंबी यात्रा के लिए निकल पड़ते हैं…हर साल लगभग 2,00,000 लोग और 50,000 ऊँट और अन्य पशुओं का यहां जमावड़ा लगता है।

वो उन्माद देखते ही बनता है जब रंग, शोर और चहल-पहल से लोग घिरे होते हैं, संगीतवादक, रहस्यवादी, पर्यटक, व्यापारी, पशु और भक्त सब एक जगह इकट्ठा होते हैं। एक तरह से कहें तो यह ऊंटों को सँवारने का निर्वाण है-जिसमें मकई के बाल की तरह बाल संवारे हुए ऊंटों, पायलों की झनकार, कढ़ाई किए वस्त्रों और टम-टम पर सवार लोगों से आपकी अद्भुत भेंट हो सकती है।”

“ऊंटों के मेले के साथ ही धार्मिक प्रतिष्ठान भी एक जंगली-जादुई चरम पर होता है-अगरबत्तियों का घना धुआं, मंत्रों का शोर और मेले की रात में, हजारों भक्त नदी में डुबकी लगाकर अपने पाप धोते हैं और पवित्र पानी में टिमटिमाते दिए छोड़ते हैं।”

स्रोत : लोनली प्लानेट, भारत के लिए पर्यटन गाइड के ग्यारहवें संस्करण से। पीछे दिए लेखांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें:
(1) पुष्कर के अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन के दायरे में आ जाने से इस जगह पर कौन सी नयी वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी और लोगों के दायरे का विकास हुताा है?
(2) आपके विचार में बड़ी संख्या में भारतीय एवं विदेशी पर्यटकों के आने से मेले का रूप किस तरह बदल गया
(3) इस जगह का धार्मिक उन्माद किस तरह से इसकी बाज़ारी कीमत को बढ़ाता है? क्या हम कह सकते हैं कि भारत में अध्यात्मक का एक बाज़ार है?
उत्तर:
(1) पुष्कर के अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन के दायरे में आ जाने से यहां पर विदेशी वस्तुओं, सभी प्रकार की सुविधाओं, विदेशी पूंजी तथा विदेशी लोगों के आने से यहां के लोगों के दायरे का काफी विकास हुआ है।

(2) पहले इस मेले को एक क्षेत्रीय मेले के रूप में देखा जाता था परंतु भारतीय एवं विदेशी पर्यटकों के आने से यह मेला क्षेत्रीय मेले से अंतर्राष्ट्रीय मेले का रूप धारण कर चुका है।

(3) यह कहा जाता है कि पुष्कर के सरोवर में स्नान करने से व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है। इस समय लाखों लोग यहां पर आते हैं। यहां पर धर्म से संबंधित खूब साहित्य बिकता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि भारत में अध्यात्म का एक काफी बड़ा बाजार है।

बाज़ार एक सामाजिक संस्था के रूप में HBSE 12th Class Sociology Notes

→ दैनिक बोलचाल की भाषा में बाजार शब्द को विशेष वस्तु के बाजार के रूप में प्रयोग किया जाता है जैसे कि फलों का बाज़ार, सब्जी का बाजार अर्थात् हम इसे अर्थव्यवस्था से संबंधित करते हैं। परंतु यह एक सामाजिक संस्था भी है जिसका अध्ययन इस अध्याय में किया जाएगा।

→ समाजशास्त्रियों के अनुसार बाज़ार वह सामाजिक संस्थाएं हैं जो विशेष सांस्कृतिक तरीकों द्वारा निर्मित हैं। बाज़ारों का नियंत्रण तो विशेष सामाजिक वर्गों द्वारा होता है तथा इसका अन्य संस्थाओं, सामाजिक प्रक्रियाओं और संरचनाओं से भी विशेष संबंध होता है।

→ विभिन्न सामाजिक समूह अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अपने बाजार निर्मित कर लेते हैं। जैसे कि जनजातीय क्षेत्रों में साप्ताहिक बाज़ार स्थापित किए गए थे। उपनिवेशिक दौर में तो जनजातीय श्रम का एक बाज़ार विकसित हो गया था।

→ बाजारों का एक सामाजिक संगठन भी होता है तथा समाज में पारंपरिक व्यापारिक समुदाय भी होते हैं। चाहे यह समुदाय वैश्य वर्ण से संबंधित होते हैं परंतु कई और समुदाय भी इनमें जुड़ गए हैं जैसे कि पारसी, सिंधी, बोहरा, जैन इत्यादि।

→ उपनिवेशवाद के कारण प्राचीन बाज़ार नष्ट हो गए तथा नए बाज़ार सामने आ गए। उपनिवेशवाद के कारण भारत कच्चे माल का उत्पादक तथा उत्पादित माल के उपयोग का साधन बन गया। इसका मुख्य उद्देश्य इंग्लैंड को आर्थिक लाभ पहुंचाना था। स्वतंत्रता के बाद तो बाज़ार का स्वरूप ही बदल गया।

→ पूंजीवाद में उत्पादन बाजार के लिए किया जाता है ताकि अधिक से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सके। पूंजीपति धन का निवेश करके लाभ कमाता है। वह श्रमिकों को अधिक पैसा न देकर उनके श्रम से अतिरिक्त मूल्य निकाल लेता है।

→ भूमंडलीकरण का अर्थ है संसार के चारों कोनों में बाजारों का विस्तार और एकीकरण का बढ़ना। इस एकीकरण का अर्थ है कि संसार में किसी एक कोने में किसी बाज़ार में परिवर्तन होता है तो दूसरे कोनों में उसका अनुकूल-प्रतिकूल असर हो सकता है।

→ उदारवादिता में सरकारी दखल कम करना, सीमा शुल्क खत्म करना तथा अपने देश के बाज़ार को और देशों की कंपनियों के लिए खोलना है। इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ती है तथा उपभोक्ताओं का लाभ होता है।

→ भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण के कारण स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय बाजारों का गठजोड़ हो रहा है जिससे स्थानीय क्षेत्र में संसार की हरेक वस्तु उपलब्ध हो रही है।

→ अदृश्य हाथ-वह अदृश्य बल जो व्यक्तियों के लाभ की प्रवृत्ति को समाज के लाभ में बदल देता है।

→ लेसे-फेयर-वह नीति जिसके अनुसार बाज़ार को अकेला छोड़ दिया जाए अथवा हस्तक्षेप न किया जाए।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 4 बाज़ार एक सामाजिक संस्था के रूप में

→ बाज़ार-वह स्थान जहां वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता है या उन्हें खरीदा या बेचा जाता है।

→ जजमानी व्यवस्था-गाँवों में विभिन्न प्रकार की गैर-बाज़ारी विनिमय व्यवस्था अथवा सेवा के बदले चीज़ देने का प्रचलन।

→ खेतिहर-किसान अथवा कषि का कार्य करने वाले लोग।

→ पण्यीकरण-वस्तु को खरीद या बेच सकने की प्रक्रिया।

→ निजीकरण-सरकारी संस्थानों को प्राइवेट कंपनियों को बेच देने की प्रक्रिया।

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HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Important Questions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पर्यावरण प्रदूषण के लिए उत्तरदायी तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
अथवा
पर्यावरण प्रदूषण के लिए उत्तरदायी तत्त्वों का वर्णन करें।
उत्तर:
पर्यावरण प्रदूषण के लिए अनेक कारण उत्तरदायी हैं, जिसमें से महत्त्वपूर्ण निम्नलिखित हैं

1. पश्चिमी विचारधारा (Western Thinking):
पर्यावरण के प्रदूषण की वर्तमान स्थिति के लिए पश्चिमी चिन्तन काफ़ी सीमा तक उत्तरदायी है। पश्चिमी विश्व के भौतिक विकास के मूल में, वहां की भौतिक जीवन दृष्टि है। पश्चिम का ईसाई समाज ईसाई धर्म की इस मान्यता के अनुसार जीवन व्यतीत करता है कि ईश्वर ने मानव को पृथ्वी पर, जो कुछ भी है, उसका उपभोग करने के लिए भेजा है।

रीडर्स डायजेस्ट के लेख में अर्नातड टायन्बी ने स्पष्ट किया है कि आज जो पर्यावरण की समस्या हमारे सामने आ खड़ी हुई है उसका मूल कारण है ईसाइयत की यह अवधारणा, जो कहती है कि भगवान् ने मनुष्य को इस सृष्टि में अपने सुख के लिए उपभोग करने का अधिकार दिया है। ‘Eat drink and be Marry’ इस विचारधारा ने प्रकृति के शोषण को प्रोत्साहित किया है और ईसाइयत की इसी विचारधारा ने पर्यावरण के प्रदूषण को विकसित किया।

2. जनसंख्या में वृद्धि (Increase in Population) :
विश्व की जनसंख्या में पिछले 50 वर्षों में बड़ी तीव्र गति से वृद्धि हुई है। जनसंख्या अधिक होने के कारण मानव की आवश्यक वस्तुओं-रोटी, कपड़ा और मकान की भी पूर्ति नहीं हो रही है। विश्व की अधिकांश जनसंख्या की मल आवश्यकता रोटी, कपडा, मकान ही है और इन वस्तुओं की पूर्ति लकड़ी, लोहा, भूमि, कच्चा-माल, खाद्य पदार्थ, जल इत्यादि के भण्डारों से हो सकती है अर्थात् प्रकृति का शोषण आवश्यक हो जाता है। अत: विशाल जनसंख्या प्रकृति पर बोझ है और पर्यावरण को प्रदूषित कर रही है।

3. वनों की कटाई व भू-क्षरण (Deforestation and Soil Erosion):
मानव जीवन को सुखी और समृद्ध बनाने में और पर्यावरण के सन्तुलन बनाए रखने में वनों की भूमिका प्राचीन काल से ही बड़ी महत्त्वपूर्ण रही है। हिमालय और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में वनों की निरन्तर कटाई के फलस्वरूप भूमि की कठोरता कम होती जा रही है और भू-क्षरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई है।

भूमि के भू-क्षरण के कारण बाढ़ों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है और ईंधन की लकड़ी व अन्य पशुओं का निरन्तर ह्रास हो रहा है। अनेक वन्य प्रजातियां आज लुप्त हो चुकी हैं। वनवासियों का अधिकतर जीवन वनों पर निर्भर करता है, किन्तु वनों के कटने से, उनके जीवन-यापन में अनेक कठिनाइयां आ रही हैं और इन कठिनाइयों के फलस्वरूप आज वनस्पतियों में भी पर्याप्त असन्तोष फैल रहा है।

वन, वातावरण की स्वच्छता के लिए अनिवार्य तत्त्व है। केवल प्रकृति में वन ही दूषित वायु (Carbon dioxide) के भक्षक हैं और बदले में वे स्वच्छ ऑक्सीजन प्रदान करते हैं जोकि जीवन के लिए अनिवार्य तत्त्व है। आज के युग में जब जनसंख्या व उद्योगों के विस्तार के कारण स्वच्छ हवा का अभाव होता जा रहा है, निरन्तर वनों की कमी से वायु के चक्र में भी बाधा पड़ती है और इस तरह वनों के अभाव से कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा के बढ़ने से पर्यावरण का प्रदूषित होना स्वाभाविक होता जा रहा है।

4. जल प्रदूषण (Water Pollution):
जिस प्रकार वन सम्पदा सीमित है उसी तरह प्रकृति ने जल पूर्ति को भी सीमित बनाया है। पानी न केवल मानव के लिए ही, अपितु पशु-पक्षी, कीट-पतंगे, पेड़-पौधों आदि के लिए भी आवश्यक है। हवा के पश्चात् जीवन के लिए दूसरा अनिवार्य तत्त्व-पानी है। जल की मात्रा सीमित है जबकि जल की पूर्ति, मांग अथवा मात्रा असीमित है। जल की सीमित मात्रा के साथ-साथ मानव ने नदियों व समुद्र के पानी को भिन्न भिन्न ढंगों से प्रदूषित करना शुरू कर दिया है। कारखानों से निकलने वाले विषैले रसायनों, कीटनाशक पदार्थों तथा पेट्रोलियम उत्पादन से नगरों के गन्दे नालों के पानी से नदियों का जल प्रदूषित हो रहा है।

5. वायु प्रदूषण (Air Pollution):
जल प्रदूषण से भी अधिक खतरनाक वायु प्रदूषण है। वर्तमान सभ्यता ने जिस गति से शहरों का आयोजनाबद्ध विकास किया है और जितना अधिक जनसंख्या को घना बनाया है उसी अनुपात में इन नगरों में लोगों को श्वास लेने के लिए स्वच्छ वायु का मिलना कठिन हो गया है। भारत में दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता, लुधियाना इत्यादि बड़े नगरों में वायु प्रदूषित व विषैली बन गई है।

बड़े-बड़े नगरों में वायु प्रदूषण के लिए मुख्य रूप से जिम्मेवार हैं-कल कारखाने, खनन परियोजनाएं (Mining Projects), ताप-बिजली परियोजनाएं (Thermal Power Projects), परमाणु बिजली परियोजनाएं (Nuclear Power Projects), परिवहन के साधन (Mode of Transport) इत्यादि। बड़े-बड़े कारखानों की चिमनियों से निकलते काले धुएं, नगरों के वायुमण्डल को प्रदूषित कर रहे हैं।

6. औद्योगीकरण (Industrialisation):
पर्यावरण को प्रदूषित करने का एक महत्त्वपूर्ण कारण औद्योगीकरण है। औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् उद्योगों का बड़ी तेजी से विकास हुआ है। विश्व के विकसित देशों तथा विकासशील देशों में बड़े-बड़े उद्योग, कारखाने तथा मिलें स्थापित की गई हैं। कारखानों व मिलों को चलाने के लिए ऊर्जा की ज़रूरत होती है।

जिस स्थान पर बड़े-बड़े कारखाने केन्द्रित होंगे वहां पर उतनी ही अधिक ऊर्जा की आवश्यकता पड़ेगी। ऊर्जा की आवश्यकता की पूर्ति के लिए कोयला तथा तेल को जलाना पड़ता है अथवा बिजली व परमाणु शक्ति का उपभोग करना पड़ता है जिनसे विषैली गैसें पैदा होती हैं, जो वायु व जल को प्रदूषित व विषाक्त कर देती हैं।

7. ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) :
विभिन्न प्रकार की ध्वनियों व शोर ने नगरों के पर्यावरण को प्रदूषित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। बड़े-बड़े नगरों में चारों तरफ शोर ही शोर है। सुबह चार बजे से लेकर रात के बारह बजे तक बड़े-बड़े नगरों का पर्यावरण विभिन्न प्रकार के शोरों से प्रदूषित होता रहता है। बसों, ट्रकों, गाड़ियों, दुपहिया आदि वाहनों का शोर, लाऊडस्पीकरों का शोर, जनरेटर का शोर और जुलूस व शोभा यात्राओं तथा जलसों का शोर आदि कानों के पर्दो तथा स्नायुतन्त्र (Nervous System) को बुरी तरह प्रभावित करते हैं।

8. अन्य कारण (Other Reasons)-उपर्युक्त कारकों के अतिरिक्त पर्यावरण को प्रदूषित करने के अनेक और भी कारण हैं। कूड़ा-कर्कट जलाने से कूड़े-कर्कट के ढेरों से पर्यावरण प्रदूषित होता है। कृषि अन्य कूड़ा-कर्कट का जलाया जाना (Burning of Agricultural wastes) पर्यावरण को प्रदूषित करता है। धूल अथवा मिट्टी का उड़ना (अन्धेरी) पर्यावरण को प्रदूषित करता है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

प्रश्न 2.
पर्यावरण की सुरक्षा के लिए विभिन्न उपायों का वर्णन करें।
अथवा
पर्यावरण की सुरक्षा के विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिए।
अथवा
पर्यावरण की सुरक्षा के विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-वर्तमान समय में विश्व की एक बहुत बड़ी चिन्ता पर्यावरण की है। मानवता को बचाने के लिए पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाना अति आवश्यक है। 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने रियो-द-जनेरो (Rio-Do-Janeiro) में पर्यावरण पर विचार-विनिमय के लिए एक सम्मेलन बुलाया, जिसमें एजेंडा-21 (Agenda-21) के नाम से एक कार्यक्रम तैयार किया गया, जिस पर सभी देशों ने सहमति प्रकट की। प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण के मुख्य उपाय निम्नलिखित हैं

1. समग्र चिन्तन की आवश्यकता (Need for Holistic Thinking):
पश्चिमी जगत् के भौतिक चिन्तन में इस बात पर बल दिया गया है कि इस पृथ्वी पर व प्रकृति पर जो कुछ भी है, वह मानव के उपभोग के लिए है। अतः आवश्यकता मानव की सोच को बदलने की है। इसके लिए भारत का समग्र चिन्तन (Holistic or Integrated thinking of India) एक महत्त्वपूर्ण उपाय है। भारतीय चिन्तन मानव को पेड़ों, वनों, नदियों, पशु-पक्षियों आदि की रक्षा पर भी बल देता है।

2. जनसंख्या नियन्त्रण (Population Control):
विश्व की जनसंख्या बड़ी तेज़ी से बढ़ रही है और वर्ल्ड पापुलेशन प्रॉसपेक्ट्स रिपोर्ट के अनुसार विश्व की जनसंख्या 7.2 अरब से बढ़कर वर्ष 2050 तक 9.6 अरब हो जायेगी। पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए जनसंख्या को नियन्त्रित करना अत्यावश्यक है। बिना जनसंख्या की वृद्धि को रोके मानव को स्वच्छ पर्यावरण नहीं मिल पाएगा। इसीलिए जनसंख्या को नियन्त्रित करना, जहां एक ओर देश की अपनी समस्या है वहां दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र भी विश्व जनसंख्या को रोकने के लिए प्रयत्नशील है।

3. वन संरक्षण (Forest Conservation):
पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए तथा देश के सन्तुलित विकास के लिए यह आवश्यक है कि वनों की रक्षा की जाए। वनों की अन्धाधुन्ध कटाई को रोकना अत्यावश्यक है। वनों की रक्षा के लिए यह भी आवश्यक है कि जो व्यक्ति अनाधिकृत ढंग से पेड़ों को काटे तो उसके विरुद्ध कठोर कार्यवाही की जानी चाहिए। भारत में वानिकी अनुसन्धान का मुख्य दायित्व भारतीय वानिकी अनुसन्धान शिक्षा परिषद् (Indian Council of Forestry Research and Education) का है।

4. वन्य-जीवन का संरक्षण (Conserving the Wild Life):
वन संरक्षण के साथ-साथ वन्य जीवन का संरक्षण करना आवश्यक है। भारत में शेर, चीते, हाथियों, घड़ियालों, गैंडे, भालू इत्यादि जीवों की प्रजातियों के नष्ट होने का गम्भीर खतरा पैदा हो गया है। प्रकृति के सन्तुलन को बनाए रखने के लिए तथा पर्यावरण की रक्षा के लिए वन्य जीवन (Wild life) को सुरक्षित रखना अत्यावश्यक हो गया है। इसीलिए भारत सरकार ने शिकार और पशु पक्षियों को मारने तथा उनके अवैध व्यापार पर प्रतिबन्ध लगा दिया है।

5. उचित तकनीक का प्रयोग (Adoption of Proper Technology):
आधुनिक भौतिकवादी युग में मनुष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बड़े-बड़े कारखाने उतने ही आवश्यक हैं जितना कि पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाना। इसलिए कारखानों को चलाने के लिए ऐसे ईंधन का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए जिससे जहरीली गैसें व धुआं निकलकर वायुमण्डल को प्रदूषित करें।

उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन के लिए लघु तथा कुटीर उद्योगों का प्रयोग किया जाना चाहिए। गांव के लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति ग्राम कुटीर उद्योगों के द्वारा की जानी चाहिए। कारखानों में प्रदूषण निरोधक उपकरणों को लगाना अनिवार्य किया जाना चाहिए।

6. जनता को पर्यावरण सम्बन्धी शिक्षा देना (To educate the People about environment):
पर्यावरण की सुरक्षा के लिए यह अत्यावश्यक है कि आम जनता को पर्यावरण सम्बन्धी शिक्षा दी जाए। यह शिक्षा दूरदर्शन, रेडियो, समाचार-पत्रों द्वारा तथा जुलूसों, जलसों व प्रदर्शनियों द्वारा दी जानी चाहिए। विद्यालयों तथा महाविद्यालयों के पाठ्यक्रम में पर्यावरण सम्बन्धी शिक्षा को अवश्य शामिल किया जाना चाहिए।

1978 में ‘राष्ट्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय’ की देख-रेख में भारत के अनेक स्थानों पर प्रदर्शनियां आयोजित की गईं ताकि आम जनता को पर्यावरण के संरक्षण का महत्त्व बतलाया जा सके। 1982 में भारत में पर्यावरण सूचना प्रणाली स्थापित की गई। पर्यावरण सूचना प्रणाली सांसदों और अन्य पर्यावरण प्रेमियों को पर्यावरण के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण सूचना प्रदान कर रही है।

7. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग (International Co-operation):
पर्यावरण प्रदूषण एक देश की समस्या न होकर सारे विश्व की समस्या है। अतः इस समस्या का समाधान भी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों द्वारा ही किया जाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र तथा इसकी एजेंसियां पर्यावरण की सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

8. आवश्यकताएं कम करना (To minimise the wants):
पर्यावरण के संरक्षण के लिए सर्वोत्तम उपाय अपनी आवश्यकताओं को कम करना है।

9. विविध उपाय (Miscellaneous Measures) :
उपर्युक्त उपायों के अतिरिक्त निम्नलिखित उपायों द्वारा पर्यावरण को प्रदूषित होने से रोका जा सकता है

  • ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए लाऊड-स्पीकरों के इस्तेमाल पर प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए। प्रशासन की स्वीकृति के बिना लाऊड-स्पीकरों के प्रयोग पर मनाही होनी चाहिए।
  • कूड़ा-कर्कट के ढेर शहर के समीप इकट्ठे नहीं किए जाने चाहिए और न ही जलाए जाने चाहिए।
  • जल प्रदूषण को रोकने के लिए गन्दे नालों व कारखानों का पानी नदियों में नहीं डाला जाना चाहिए।
  • बसों, ट्रकों, गाड़ियों व दुपहिया से निकलने वाले धुएं को रोकने के लिए कार्यवाही की जानी चाहिए। दिल्ली सरकार ने ‘नियन्त्रित प्रदूषण प्रमाण-पत्र’ न रखने वाले वाहनों पर जुर्माने की रकम पहली बार ₹1000 तक और उसके .. बाद हर बार ₹ 2000 तक जुर्माना 21 जुलाई, 1997 से लागू कर दिया है।

प्रश्न 3.
पर्यावरण संरक्षण के लिये अन्तर्राष्टीय स्तर पर किए गये विभिन्न प्रयासों का वर्णन कीजिये।
अथवा
पर्यावरण संरक्षण के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किये गए प्रयासों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किए गए प्रयास-पर्यावरण संरक्षण के लिए समय समय पर विश्व स्तर पर सम्मेलन होते रहे हैं तथा नियमों एवं उपनियमों का निर्माण किया गया है, जिनका वर्णन इस प्रकार है

1. स्टॉकहोम सम्मेलन (Stockholm Conference) पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित सबसे पहला और महत्त्वपूर्ण सम्मेलन जून, 1972 में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में आयोजित किया गया। इसका आयोजन संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में किया गया था। इस सम्मेलन की महत्त्वपूर्ण सिफ़ारिशें थीं

  • मानवीय पर्यावरण पर घोषणा,
  • मानवीय पर्यावरण पर कार्य योजना,
  • संस्थागत एवं वित्तीय व्यवस्था पर प्रस्ताव,
  • विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रस्ताव,
  • परमाणु शस्त्र परीक्षणों पर प्रस्ताव,
  • दूसरे पर्यावरण सम्मेलन किये जाने के प्रस्ताव तथा
  • राष्ट्रीय स्तर पर कार्य किये जाने के सम्बन्ध में सरकारों को सिफारिशें किये जाने का निर्णय।

2. पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित विश्व समझौतों की पुष्टि (Ratification of Global Convention Regarding Environment Protection)-1975 में अधिकांश राज्यों ने पर्यावरण से सम्बन्धित विश्व स्तरीय समझौतों को अपनी स्वीकृति प्रदान करके पर्यावरण संरक्षण आन्दोलन को और अधिक प्रभावी बना दिया। इनमें समझौतों में शामिल थे- .

  • तेल-प्रदूषण की हानि के लिए असैनिक दायित्व पर अन्तर्राष्ट्रीय अभिसमय-1969।
  • तेल प्रदूषण के उपघातों के विषयों में खुले समुद्र में हस्तक्षेप से सम्बन्धित अन्तर्राष्ट्रीय अभिसमय–1969।
  • अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की नम भूमि तथा विशेषकर पानी में रहने वाले पक्षियों के रहने के स्थान पर अभिसमय 1971।
  • कूड़ा-कर्कट तथा अन्य सामान के ढेर लगाने से सामुद्रिक प्रदूषण को बचाने के लिए अभिसमय-1972।
  • विश्व सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक विरासत के संरक्षण से सम्बन्धित अभिसमय-1972।
  • संकटापन्न या जोखिम में पड़े एवं जंगली पेड़-पौधों के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का अभिसमय-1973।
  • जलपोतों तथा हवाई जहाज़ों द्वारा ढेर लगाने से सामुद्रिक प्रदूषण को बचाने के लिए अभिसमय-1973।

3. नैरोबी घोषणा (Nairobi Declaration):
स्टॉकहोम सम्मेलन की 10वीं वर्षगाँठ का सम्मेलन 1982 में नैरोबी में किया गया। इस सम्मेलन में विलुप्त वन्य जीवों के व्यापार से सम्बन्धित प्रावधान अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक सम्पदा तथा खुले समुद्र में प्रदूषण इत्यादि से सम्बन्धित प्रावधानों को स्वीकार किया गया।

4. पृथ्वी सम्मेलन (Earth Summit):
स्टॉकहोम सम्मेलन के पश्चात् पर्यावरण से सम्बन्धित सबसे महत्त्वपूर्ण सम्मेलन सन् 1992 में ब्राजील की राजधानी रियो डी जनेरियो में हुआ। इस सम्मेलन में 170 देश, हज़ारों स्वयंसेवी संगठन तथा अनेक बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों ने हिस्सा लिया। इस सम्मेलन का आयोजन भी संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में हुआ।

इस सम्मेलन का मुख्य विषय पर्यावरण एवं सन्तुलित विकास था। पृथ्वी सम्मेलन में की गई घोषणा को एंजेण्डा-21 के नाम से जाना जाता है। इस सम्मेलन में स्टॉकहोम के उपबन्धों को स्वीकार करते हुए उन्हें लागू करने पर जोर दिया गया। पृथ्वी सम्मेलन में पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित कुल 27 सिद्धान्तों को स्वीकार किया गया।

5. विश्व जलवायु परिवर्तन बैठक (Global Climate Change Meet):
1997 में नई दिल्ली में विश्व जलवायु परिवर्तन बैठक हुई। इस बैठक में निर्धनता, पर्यावरण तथा संसाधन प्रबन्ध के समाधान के सम्बन्ध में विकसित तथा विकासशील देशों में व्यापार की सम्भावनाओं पर विचार किया गया। इस बैठक में ग्रीन गृह गैसों (Green House Gases) को वातावरण में न छोड़ने की सम्भावनाओं पर चर्चा हुई।

6. क्योटो प्रोटोकोल (Kyoto Protocol):
1997 में पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित एक दूसरी बैठक क्योटो (जापान) में हुई। इसमें लगभग 150 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। बैठक के अन्त में क्योटो घोषणा की गई जिसके अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई कि सूचीबद्ध औद्योगिक देश वर्ष 2008 से 2012 तक 1990 के स्तर से नीचे 5.2% तक अपने सामूहिक उत्सर्जन में कमी कर देंगे। पर्यावरण संरक्षण के लिए स्वच्छ विकास संयंत्रों (Clean Development Machanism) लागू करने की बात की गई।

7. ब्यूनिस-ऐरिस बैठक (Buenus-Aires Convention):
1998 में अर्जेन्टाइना के शहर ब्यूनिस-ऐरिस में क्योटो प्रोटोकोल की समीक्षा के लिए एक बैठक की गई। भारत जैसे देशों की यह दलील थी कि विलासिता और आवश्यकता में अन्तर किया जाना चाहिए।

अर्थात् विलासिता के कारण गैसों का रिसाव न हो और आवश्यकता के कारण इसे छोड़ने से रोका न जाए। बाली सम्मेलन-2007-दिसम्बर, 2007 में इण्डोनेशिया के शहर बाली में पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित एक महत्त्वपूर्ण सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में पर्यावरण को बचाने के लिए क्योटो प्रोटोकोल को लागू करने तथा अन्य साधनों पर विचार किया गया। .

कोपनहेगन सम्मेलन-2009-दिसम्बर, 2009 में डेनमार्क की राजधानी कोपनहेगन में पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित एक विश्व सम्मेलन हुआ था। इस सम्मेलन में लगभग 190 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। इस सम्मेलन में पर्यावरण को बचाने के लिए कई उपायों पर चर्चा की गई। कानकून सम्मेलन 2010-दिसम्बर, 2010 में कानकून (मैक्सिको) में पर्यावरण सरंक्षण पर हुए विश्व सम्मेलन में 193 देश एक मसौदे पर सहमत हुए, जिसके अन्तर्गत 100 अरब डालर के ग्रीन क्लाइमेट फंड बनाने पर सहमित बनी, तथा 2011 तक विवादित मसलों को हल करने का संकल्प लिया गया।

डरबन सम्मेलन-दिसम्बर, 2011 में डरबन (दक्षिण अफ्रीका) में पर्यावरण संरक्षण पर हुए विश्व सम्मेलन में 194 देशों ने भाग लिया। वार्ता में वर्ष 2015 के एक समझौते की रूप रेखा स्वीकार कर ली गई, जिसके अन्तर्गत भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिए पहली बार कानूनी तौर पर देश बाध्य होंगे। रियो + 20 सम्मेलन-20-22 जून, 2012 को ब्राजील के शहर रियो डी जनेरियो में जीवन्त विकास (Sustainable Development) पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन को रियो +20 के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इस सम्मेलन के ठीक बीस साल पहले 1992 में इसी शहर में पृथ्वी सम्मेलन हुआ था।

इस सम्मेलन में लगभग 40000 पर्यावरणविद, 10000 सरकारी अधिकारी तथा 190 देशों से राजनीतिज्ञ शामिल हुए। इस सम्मेलन की दो केन्द्रीय विषय वस्तु है, प्रथम जीवन्त विकास और ग़रीबी निवारण के सम्बन्ध में हरित व्यवस्था तथा द्वितीय जीवन्त विकास के लिए संस्थाओं के ढांचे का निर्माण करना। सम्मेलन में जीवन्त विकास के प्रति राजनीतिक प्रतिबद्धता, ग़रीबी निवारण, जीवन्त विकास के लिए महत्त्वपूर्ण संस्थाओं तथा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कार्यवाही के फ्रेमवर्क की चर्चा की गई।

लीमा सम्मेलन-दिसम्बर, 2014 में संयुक्त राष्ट्र का जलवायु सम्मेलन लीमा (पेरन) में हुआ। सम्मेलन में उपस्थित लगभग 190 देश उस वैश्विक समझौते के मसौदे पर राजी हो गए, जिस पर 2015 में होने वाले पेरिस सम्मेलन में मुहर लगनी है। लीमा में बनी सहमति के अन्तर्गत 31 मार्च, 2015 तक सभी देश ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती की अपनी-अपनी योजनाएं पेश करेंगे। इस घरेलू नीतियों के आधार पर पेरिस सम्मेलन में पेश कि वैश्विक समझौते की रूपरेखा तय की जायेगी। पेरिस में होने वाला समझौता सन् 2020 से प्रभावी होगा।

पेरिस सम्मेलन-नवम्बर-दिसम्बर 2015 में पेरिस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन हुआ, जिसमें लगभग 196 देशों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में यह सहमति बनी कि ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखा जायेगा। इसके लिए विकसित देश प्रतिवर्ष विकासशील देशों को 100 अरब डॉलर की मदद देंगे। यह व्यवस्था सन् 2020 से आरम्भ होगी।

काटोविस सम्मेलन-दिसम्बर, 2018 में पोलैण्ड के शहर काटोविस में संयुक्त राष्ट्र के 24वें जलवायु सम्मेलन में 197 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्य को हासिल करने के लिए नियम कायदों को अंतिम रूप दिया गया।

उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि समय-समय पर पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित सम्मेलन होते रहे हैं परन्तु आवश्यकता इस बात की है कि इन सम्मेलनों में लिए गये निर्णयों को उचित ढंग से लागू किया जाए।

प्रश्न 4.
भारत में पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी किन्हीं छः उपायों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी कोई छ: उपायों का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत सदैव ही पर्यावरण संरक्षण का पक्षधर रहा है। परन्तु भारत ने पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित विकसित देशों के दृष्टिकोण का समर्थन नहीं किया है। इसी कारण यद्यपि भारत ने क्योटो प्रोटोकोल पर हस्ताक्षर किए परन्तु फिर भी इसे (भारत) औद्योगीकरण के दौर में ग्रीन गृह गैसों के उत्सर्जन के विषय में छूट दी गई है।

2005 में हुई G-8 के देशों की शिखर बैठक में भारत ने सभी का ध्यान इस ओर खींचा कि विकासशील देशों की प्रति व्यक्ति ग्रीन गृह गैस की उत्सर्जन दर विकसित देशों के मुकाबले में नाममात्र है। अतः भारत का मानना है कि ग्रीन गृह गैस की उत्सर्जन दर में कमी करने की अधिक जिम्मेदारी विकसित देशों की ही है। भारत विश्व मंचों पर पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित अधिकांश ऐतिहा उत्तरदायित्व का तर्क रखता है। भारत ने सदैव पर्यावरण से सम्बन्धित वैश्विक प्रयासों का समर्थन किया है।

  • भारत ने 2001 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम पास किया। इसमें ऊर्जा के ज्यादा अच्छे ढंग से उपयोग की पहल की गई है।
  • 2003 के बिजली अधिनियम में पुनर्नवा (Renewable) ऊर्जा के प्रयोग पर जोर दिया गया है।
  • भारत में प्राकृतिक गैस के आयात और स्वच्छ कोयले के प्रयोग का रुझान बढ़ा है।
  • भारत इस प्रयास में है कि 2012 तक अपने बायोडीज़ल के राष्ट्रीय मिशन को पूरा कर ले।
  • भारत ने 1992 में ब्राज़ील में हुए पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित पृथ्वी सम्मेलन की समीक्षा के लिए 1997 में एक बैठक आयोजित की।
  • भारत का यह दृष्टिकोण है कि विकासशील देशों को वित्तीय मदद तथा आधुनिक प्रौद्योगिकी तकनीक विकसित देश दें ताकि विकासशील देश पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित अपनी ज़रूरतों को पूरा कर सकें।
  • भारत दक्षिण एशिया में सार्क की मदद से सभी देशों से पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित कदम उठाने का आग्रह करता रहा है।
  • भारत ने सदैव यह प्रयास किया है कि पर्यावरण संरक्षण पर सार्क देश एक राय रखें। इससे स्पष्ट है कि भारत ने सदैव पर्यावरण संरक्षण के लिए उचित एवं कठोर कदम उठाए जिनका पालन अन्य देशों द्वारा भी किया
  • भारत सरकार द्वारा इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा दिया जा रहा है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

प्रश्न 5.
प्राकृतिक पर्यावरण का अर्थ स्पष्ट करें। प्राकृतिक पर्यावरण प्रदूषण को कैसे रोका जा सकता है ?
उत्तर:
प्राकृतिक पर्यावरण का अर्थ है-कोई वस्तु जो हमें घेरे हुए है। इस अर्थ में पर्यावरण में वे सभी वस्तुएं सम्मिलित हैं जो यद्यपि हमसे पृथक् हैं, तथापि हमारे जीवन या हमारी गतिविधि को किसी-न-किसी रूप में प्रभावित करती हैं। पर्यावरण एक जटिल घटना वस्तु है, जिसके कई रूप होते हैं जैसे- भौतिक पर्यावरण प्राणीशास्त्रीय पर्यावरण, सामाजिक पर्यावरण एवं अपार सामाजिक पर्यावरण। पर्यावरण में सब परिस्थितियां शामिल हैं जो प्रकृति ने मानव को ही प्रदान की हैं।

मैकाइवर (Maciver) के शब्दों में, “पृथ्वी का धरातल, उसकी सम्पूर्ण प्राकृतिक दशाएं और प्राकृतिक साधन भूमि, जल, पहाड़, मैदान, खनिज पदार्थ, पेड़-पौधे, पशु, पक्षी, जलवायु, पृथ्वी पर लीला करने वाली तथा मानव जीवन को प्रभावित करने वाली विद्युत् तथा विकीर्णन शक्तियां सम्मिलित हैं।”

पर्यावरण में सम्मिलित सम्पूर्ण ग्रहों, जैसे सूर्य, तारे, वर्षा, समुद्र, ऋतुएं ज्वारभाटे एवं सामुद्रिक धाराएं आदि हैं जो मनुष्य की परिवर्तन शक्ति से बाहर हैं और दूसरी ओर नियन्त्रित भौगोलिक पर्यावरण है, .जैसे—धरती, नदियां, अन्य जल स्रोत, नहरें, वन आदि। इस नियन्त्रित पर्यावरण में कुछ सीमा तक परिवर्तन हो सकता है। प्राकृतिक पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के उपाय- इसके लिए प्रश्न नं० 2 देखें।

प्रश्न 6. पर्यावरण से आपका क्या अभिप्राय है ? इसके प्रदूषण के मुख्य आम प्रभावों का वर्णन करें।
अथवा
पर्यावरण से आपका क्या अभिप्राय है ? पर्यावरण प्रदूषण के मुख्य प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:
पर्यावरण का अर्थ-इसके लिए प्रश्न नं0 5 देखें। प्रदूषण के प्रभाव-प्रदूषण के निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं

  • प्रदूषण के प्रभाव से प्राकृतिक सन्तुलन खराब हुआ है।
  • प्रदूषण के प्रभाव से जीव-जन्तुओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
  • प्रदूषण के प्रभाव से ऋतु चक्र प्रभावित हुआ है।
  • पर्यावरण प्रदूषण से उत्पादन की गुणात्मक क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
  • पर्यावरण प्रदूषण से मानवीय जीवन और कठिन हो गया है।
  • प्रदूषण से पेड़-पौधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
  • संसार में नई-नई एवं गम्भीर बीमारियों की उत्पत्ति हुई है, जो मानव जीवन को हानि पहुंचा रही हैं।
  • प्रदूषण से खेतों की उपजाऊ शक्ति कम हुई है।

प्रश्न 7.
विकास और पर्यावरण में क्या सम्बन्ध है ? विकास कार्यों के पर्यावरण पर बुरे प्रभावों की चर्चा करें।
अथवा
विकास कार्यों के पर्यावरण पर बुरे प्रभावों की चर्चा करें।
उत्तर:
विकास और पर्यावरण में गहरा सम्बन्ध है। विकास एवं पर्यावरण दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। विकास की निरन्तर चलने वाली धारणा ने पर्यावरण को बहुत अधिक प्रभावित किया है। इसीलिए पर्यावरण विद्वानों ने अक्षय विकास की धारणा का समर्थन किया है। अक्षय विकास वह क्षय न होने वाला विकास है, जिसका एक पीढ़ी के द्वारा उपभोग हो लेने पर दूसरी पीढ़ी के लिए विकास और सम्भोग की पूर्ण परिस्थितियां बनी रहें। विकास कार्यों के कारण पर्यावरण पर निम्नलिखित बुरे प्रभाव पड़े हैं

  • विकास कार्यों के लिए वृक्षों को काटा जा रहा है, जिससे वातावरण में शुद्ध वायु की कमी हो रही है।
  • विकास कार्यों के लिए अधिक-से-अधिक भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है, जिसके कारण मनुष्यों के रहने योग्य तथा कृषि योग्य उपजाऊ जमीन कम हो रही है।
  • विकास कार्यों के लिए पानी का अत्यधिक दोहन हो रहा है, जिससे जल स्तर लगातार कम होता जा रहा है।
  • विकास कार्यों के पश्चात् छोड़े गए जहरीले कूड़ा-कबाड़ पर्यावरण को हानि पहुंचाते हैं।
  • विकास कार्यों के लिए जंगलों में लगातार कमी आ रही है।
  • विकास कार्यों से विश्व तापन (Global warming) लगातार बढ़ रहा है।
  • विकास कार्यों के कारण आदिवासियों को लगातार उनके मूल अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।

प्रश्न 8.
‘मूलवासी’ से क्या अभिप्राय है ? मूलवासियों के अधिकार कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
‘मूलवासी’ का अर्थ-मूलवासी से हमारा अभिप्राय किसी क्षेत्र विशेष में रहने वाली वहाँ की मूल जाति या वंश के लोगों से है जो कि अनादिकाल से सम्बन्धित क्षेत्र में रहते आ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा इसे परिभाषित करते हुए बताया गया है कि, “मूलवासी ऐसे लोगों के वंशज हैं जो किसी विद्यमान देश में बहुत दिनों से रहते चले आ रहे थे फिर किसी दूसरी संस्कृति या जातीय मूल के लोग विश्व के अन्य हिस्सों से आए और इन लोगों को अपने अधीन कर लिया।” यह मूलवासी सैंकड़ों वर्ष बीत जाने के बावजूद भी, उस देश जिसमें वह अब रह रहे हैं, कि संस्थाओं के अनुरूप आचरण करने से अधिक अपनी परंपरा, सांस्कृतिक रीति-रिवाज तथा अपने विशेष सामाजिक, आर्थिक ढर्रे पर जीवनयापन करना पसन्द करते हैं, मूलवासी कहलाते हैं।

मूलवासियों को जनजातीय, आदिवासी आदि नामों से भी पुकारा जाता है। विश्व में इनकी जनसंख्या लगभग 30 करोड़ है। यह विश्व के लगभग प्रत्येक देश में किसी-न-किसी नाम से विद्यमान हैं। फिलीपिन्स में कोरडिलेरा क्षेत्र में, चिल्ली में मापुशे नामक समुदाय, अमेरिका में रैड इण्डियन नामक समुदाय, पनामा नहर के पूर्व में कुना नामक समुदाय, भारत में भील-सन्थाल सहित अनेकों जनजातियाँ, ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड में पालिनेशिया, मैलनेशिया और माइक्रोनेशिया वंश के मूलवासी रहते हैं। मूलवासियों के अधिकार

  • विश्व में मूलवासियों को बराबरी का दर्जा प्राप्त हो।
  • मूलवासियों को अपनी स्वतन्त्र पहचान रखने वाले समुदाय के रूप में जाना जाए।
  • मूलवासियों के आर्थिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन न किया जाए।
  • देश के विकास से होने वाला लाभ मूलवासियों को भी मिलना चाहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पर्यावरण से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
पर्यावरण का अर्थ है-कोई वस्तु जो हमें घेरे हुए है। इस अर्थ में पर्यावरण में वे सभी वस्तुएं सम्मिलित हैं जो यद्यपि हमसे पृथक् हैं, तथापि हमारे जीवन या हमारी गतिविधि को किसी-न-किसी रूप में प्रभावित करती हैं। पर्यावरण एक जटिल घटना वस्तु है, जिसके कई रूप होते हैं जैसे- भौतिक पर्यावरण, प्राणीशास्त्रीय पर्यावरण, सामाजिक पर्यावरण एवं अपार सामाजिक पर्यावरण।

पर्यावरण में सब परिस्थितियां शामिल हैं जो प्रकृति ने मानव को ही प्रदान की हैं। मैकाइवर (Maclver) के शब्दों में, “पृथ्वी का धरातल, उसकी सम्पूर्ण प्राकृतिक दशाएं और प्राकृतिक साधन भूमि, जल, पहाड़, मैदान, खनिज पदार्थ, पेड़ पौधे, पशु, पक्षी, जलवायु, पृथ्वी पर लीला करने वाली तथा मानव जीवन को प्रभावित करने वाली विद्युत् तथा विकीर्णन शक्तियाँ सम्मिलित हैं।”

पर्यावरण में सम्मिलित सम्पूर्ण ग्रहों, जैसे सूर्य, तारे, वर्षा, समुद्र, ऋतुएं, ज्वारभाटे एवं सामुद्रिक धाराएं आदि हैं जो मनुष्य की परिवर्तन शक्ति से बाहर हैं और दूसरी ओर नियन्त्रित भौगोलिक पर्यावरण है, जैसे-धरती, नदियां, अन्य जल स्रोत, नहरें, वन आदि हैं। इस नियन्त्रित पर्यावरण में कुछ सीमा तक परिवर्तन हो सकता है।

प्रश्न 2.
पर्यावरण प्रदूषण के कोई चार कारण लिखिए।
उत्तर:
1. पश्चिमी विचारधारा–पर्यावरण के प्रदूषण की वर्तमान स्थिति के लिए पश्चिमी चिन्तन काफ़ी सीमा तक उत्तरदायी है। पश्चिमी विश्व के भौतिक विकास के मूल में, वहां की भौतिक जीवन दृष्टि है। पश्चिम का ईसाई समाज धर्म की इस मान्यता के अनुसार जीवन व्यतीत करता है कि, ईश्वर ने मानव को पृथ्वी पर, जो कुछ भी है, उसका उपभोग करने के लिए भेजा है।

2. जनसंख्या में वृद्धि-जनसंख्या अधिक होने के कारण मानव की आवश्यक वस्तुओं-रोटी, कपड़ा और मकान की पूर्ति नहीं हो रही है, और इन वस्तुओं की पूर्ति लकड़ी, लोहा, भूमि, कच्चा माल, खाद्य पदार्थ, जल इत्यादि के भण्डारों से हो सकती है अर्थात् प्रकृति का शोषण आवश्यक हो जाता है।

3. वनों की कटाई एवं भू-क्षरण-वनों की निरन्तर कटाई के फलस्वरूप भूमि की कठोरता कम होती जा रही है और भू-क्षरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई है। निरन्तर वनों की कमी से कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में बढ़ने से पर्यावरण का प्रदूषित होना स्वाभाविक है।

4. जल-प्रदूषण—जिस प्रकार वन सम्पदा सीमित है, उसी तरह प्रकृति ने जल पूर्ति को भी सीमित बनाया है। इस कारण मानव ने नदियों व समुद्र के पानी को भिन्न-भिन्न ढंगों से प्रदूषित करना शुरू कर दिया। कारखानों से निकलने वाले विषैले रसायनों तथा नगरों के गन्दे पानी से नदियों का जल प्रदूषित हो रहा है।

प्रश्न 3.
‘पर्यावरण संरक्षण’ के किन्हीं चार उपायों का वर्णन कीजिये।
अथवा
पर्यावरण की सुरक्षा के किन्हीं चार उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. समग्र चिन्तन की आवश्यकता-पश्चिमी जगत् के भौतिक चिन्तन में इस बात पर बल दिया जाता है कि इस पृथ्वी पर व प्रकृति पर जो कुछ भी है, वह मानव के उपभोग के लिए है। अतः आवश्यकता मानव की सोच को बदलने की है। इसके लिए भारत का समग्र चिन्तन (Holistic or Integrated thinking of India) एक महत्त्वपूर्ण उपाय है।

2. जनसंख्या नियन्त्रण विश्व की जनसंख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है और आज की 7.2 अरब की जनसंख्या 2050 में 9.6 अरब हो जाएगी। पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए जनसंख्या को नियन्त्रित करना आवश्यक है।

3. वन संरक्षण-पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए तथा देश के सन्तुलित विकास के लिए यह आवश्यक है कि वनों की रक्षा की जाए। वनों की अंधाधुंध कटाई को रोकना अत्यावश्यक है।

4. वन्य-जीवन का संरक्षण-वन संरक्षण के साथ-साथ वन्य जीवन का संरक्षण करना अत्यावश्यक है। भारत में शेर, चीते, हाथियों, घड़ियालों, गैंडों, भालू इत्यादि जीवों की प्रजातियों के नष्ट होने का गम्भीर खतरा पैदा हो गया है। प्रकृति के सन्तुलन को बनाए रखने के लिए तथा पर्यावरण की रक्षा के लिए वन्य जीवन (Wild life) को सुरक्षित रखना अत्यावश्यक हो गया है।

प्रश्न 4.
पोषणकारी अथवा अक्षय विकास की धारणा का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
पोषणकारी विकास अथवा अखण्ड विकास की अवधारणा का अर्थ है-निरन्तर चलने वाला विकास अर्थात् ऐसा विकास जिसमें न कोई. खण्ड हो और न ही विकास का क्षय है। पर्यावरणवाद के समर्थकों ने दो मुख्य विचारधाराओं पर बल दिया है

  • मनुष्य और प्रकृति के टूटे हुए सम्बन्धों को दोबारा जोड़ना।
  • मनुष्य के सामाजिक और राजनीतिक जीवन को नये परिवर्तित रूप में ढालना।

इन दोनों विचारधाराओं के अनुसार आधुनिक औद्योगिक समाज में मनुष्य ने अपने विकास व ज़रूरतों के लिए प्रकृति का लगातार दोहन किया है। इस लगातार दोहन के फलस्वरूप मनुष्य का धीरे-धीरे प्रकृति से सम्बन्ध टूटना शुरू हो गया है और पर्यावरण सम्बन्धी अनेक समस्याएँ जटिल रूप धारण कर रही हैं। इस विचारधारा के अनुसार मनुष्य और प्रकृति के इस टूटे हुए सम्बन्ध को पर्यावरण के प्रति शालीनता का रुख अपनाकर फिर से जोड़ना होगा और प्रकृति की इस धरोहर को अपने तक सीमित न रखकर आने वाली पीढ़ियों के उपभोग के लिए सुरक्षित रखना होगा।

पर्यावरण वेत्ताओं ने अक्षय विकास की अवधारणा को इस प्रकार परिभाषित किया है-“एक ऐसा विकास जो अब तक हुए विकास को तथा उस विरासत को भी सुरक्षित रखें जिस पर उसकी नींव रखी गयी है।” साधारण शब्दों में, “अक्षय विकास वह क्षय न होने वाला विकास है जिसका एक पीढ़ी के द्वारा उपभोग हो लेने पर दूसरी पीढ़ी के लिए विकास और सम्भोग की पूर्ण परिस्थितियाँ बनी रहें।”

प्रश्न 5.
मूलवासियों के कौन-कौन से अधिकार हैं ?
उत्तर:
मूलवासियों (भारत में इन्हें अनुसूचित जनजाति या आदिवासी कहा जाता है।) के अधिकार निम्नलिखित हैं

  • विश्व में मूलवासियों को बराबरी का दर्जा प्राप्त हो।
  • मूलवासियों को अपनी स्वतन्त्र पहचान रखने वाले समुदाय के रूप में जाना जाए।
  • मूलवासियों के आर्थिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन न किया जाए।
  • देश के विकास से होने वाला लाभ मूलवासियों को भी मिलना चाहिए।

प्रश्न 6.
विश्व की ‘साझी विरासत’ का क्या अर्थ है ? इसकी सुरक्षा के दो उपाय बताएं।
अथवा
“विश्व की साझी सम्पदा” पर एक नोट लिखिए।
उत्तर:
1. विश्व की साझी विरासत से अभिप्राय उस सम्पदा से है, जिस पर किसी एक का नहीं बल्कि पूरे समुदाय का अधिकार होता है। जैसे साझी नदी, साझा कुआं, साझा मैदान तथा साझा चरागाह इत्यादि। इसी तरह कुछ क्षेत्र एक देश के क्षेत्राधिकार से बाहर होते हैं, जैसे पृथ्वी का वायुमण्डल, अंटार्कटिका, समुद्री सतह तथा बाहरी अन्तरिक्ष इत्यादि। इसका प्रबन्धन अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा साझे तौर पर किया जाता है। इनकी रक्षा के दो उपाय अग्रलिखित हैं सीमित प्रयोग-विश्व की साझी विरासतों का सीमित प्रयोग करना चाहिए।

2. जागरुकता पैदा करना-विश्व की साझी विरासतों के प्रति लोगों में जागरुकता पैदा करनी चाहिए।

प्रश्न 7.
विश्व राजनीति में पर्यावरण की चिंता के कोई चार कारण लिखिये।
उत्तर:
पर्यावरण निम्नीकरण (क्षरण) के सम्बन्ध में चार चिन्ताओं का वर्णन इस प्रकार है

  • बढ़ता वायु प्रदूषण-पर्यावरण के क्षरण से विश्व में निरन्तर वायु प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है।
  • कृषि योग्य भूमि में कमी-पर्यावरण क्षरण से कृषि योग्य भूमि लगातार कम हो रही है।
  • चरागाहों की समाप्ति-पर्यावरण क्षरण से विश्व में चारागाह समाप्त हो रहे हैं।
  • जलाशयों में कमी-पर्यावरण क्षरण से जलाशयों की जलराशि बड़ी तेजी से कम हुई है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

प्रश्न 8.
पर्यावरण से सम्बन्धित स्टॉकहोम सम्मेलन के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित सबसे पहला और महत्त्वपूर्ण सम्मेलन जून, 1972 में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में आयोजित किया गया। इसका आयोजन संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में किया गया था। इस सम्मेलन की महत्त्वपूर्ण सिफ़ारिशें थीं

  • मानवीय पर्यावरण पर घोषणा,
  • मानवीय पर्यावरण पर कार्ययोजना,
  • संस्थागत एवं वित्तीय व्यवस्था पर प्रस्ताव,
  • विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रस्ताव,
  • परमाणु शस्त्र परीक्षणों पर प्रस्ताव,
  • दूसरे पर्यावरण सम्मेलन ।
  • किये जाने के प्रस्ताव तथा
  • राष्ट्रीय स्तर पर कार्य किये जाने के सम्बन्ध में सरकारों को सिफ़ारिशें किये जाने का निर्णय।

प्रश्न 9.
पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित किन्हीं चार विश्व समझौतों की व्याख्या करें।
उत्तर:

  • तेल-प्रदूषण की हानि के लिए असैनिक दायित्व पर अन्तर्राष्ट्रीय अभिसमय-1969।
  • तेल प्रदूषण के उपघातों के विषयों में खुले समुद्र में हस्तक्षेप से सम्बन्धित अन्तर्राष्ट्रीय अभिसमय-19691
  • अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की नम भूमि तथा विशेषकर पानी में रहने वाले पक्षियों के रहने के स्थान पर अभिसमय 19711
  • कूड़ा-कर्कट तथा अन्य सामान के ढेर लगाने से सामुद्रिक प्रदूषण को बचाने के लिए अभिसमय-1972 ।

प्रश्न 10.
पृथ्वी सम्मेलन के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
स्टॉकहोम सम्मेलन के पश्चात् पर्यावरण से सम्बन्धित सबसे महत्त्वपूर्ण सम्मेलन सन् 1992 में ब्राजील की राजधानी रियो डी जनेरियो में हुआ। इस सम्मेलन में 170 देश, हज़ारों स्वयंसेवी संगठन तथा अनेक बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों ने हिस्सा लिया। इस सम्मेलन का आयोजन भी संयुक्त राष्ट्र के तत्त्वाधान में हुआ। इस सम्मेलन का मुख्य विषय पर्यावरण एवं सन्तुलित विकास था।

पृथ्वी सम्मेलन में की गई घोषणा को एजेण्डा-21 के नाम से जाना जाता है। इस सम्मेलन में स्टॉकहोम के उपबन्धों को स्वीकार करते हुए उन्हें लागू करने पर जोर दिया गया। पृथ्वी सम्मेलन में पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित कुल 27 सिद्धान्तों को स्वीकार किया गया।

प्रश्न 11.
क्योटो प्रोटोकोल के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
1997 में पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित एक दूसरी बैठक क्योटो (जापान) में हुई। इसमें लगभग 150 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। बैठक के अन्त में क्योटो घोषणा की गई जिसके अन्तर्गत यह सूचीबद्ध औद्योगिक देश वर्ष 2008 से 2012 तक 1990 के स्तर के नीचे 5.2% तक अपने सामूहिक उत्सर्जन में कमी कर देंगे। पर्यावरण संरक्षण के लिए स्वच्छ विकास संयन्त्रों (Clean Development Machanism) लागू करने की बात की गई।

प्रश्न 12.
वनों से हमें प्राप्त होने वाले कोई चार लाभ लिखें।
उत्तर:
वनों में हमें निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं

  • वनों से हमें कीमती लकड़ियां मिलती हैं, जो कई प्रकार के प्रयोग में आती हैं।
  • वनों में पाए जाने वाले जैव विविधता के भण्डार सुरक्षित रहते हैं।
  • वन जलवायु एवं पर्यावरण को सन्तुलित करते हैं।
  • वन जल-चक्र को सन्तलित करते समय वर्षा करवाते हैं।

प्रश्न 13.
वनों से सम्बन्धित हमारी चिन्ताएं क्या हैं ?
उत्तर:
वनों से सम्बन्धित निम्नलिखित चिन्ताएं हैं

  • वनों को लोग बड़ी तेज़ी से काट रहे हैं।
  • वनों की कटाई के कारण जैव विविधता के भण्डार समाप्त हो रहे हैं।
  • वनों की कटाई के कारण जलवायु सन्तुलन चक्र अस्थिर हो गया है।
  • वनों के अन्धाधुन्ध कटने से बाढ़ की सम्भावनाएं बढ़ गई हैं।

प्रश्न 14.
सन् 1987 में प्रकाशित ‘ऑवर कॉमन फ्यूचर रिपोर्ट’ में शामिल की गई कोई चार बातें लिखें।
उत्तर:
सन् 1987 में प्रकाशित रिपोर्ट में निम्नलिखित बातें शामिल थीं

  • आर्थिक विकास तथा पर्यावरण प्रबन्धन के परस्पर सम्बन्धों को हल करने के लिए दक्षिणी देश अधिक गम्भीर थे।
  • आर्थिक विकास की वर्तमान विधियां स्थायी नहीं रहेंगी।
  • औद्योगिक विकास की मांग दक्षिणी देशों में अधिक है।
  • विकसित एवं विकासशील देशों में पर्यावरण के सम्बन्ध में अलग-अलग विचार थे।

प्रश्न 15.
अंटार्कटिका महाद्वीप के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
अंटार्कटिका महाद्वीप एक करोड़ चालीस लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यह मुख्यत: एक बर्फीला क्षेत्र है। इस पर किसी एक देश या संगठन का अधिकार नहीं है। यद्यपि कोई भी देश या संगठन शान्तिपर्ण कार्यों के लिए यहां पर अनसन्धान कर सकता है। अंटार्कटिका महाद्वीप विश्व की जलवाय एवं पर्यावरण को सन्तलित करता है।

अंटार्कटिक महाद्वीप की आन्तरिक बर्फीली परत ग्रीन हाऊस गैसों के जमाव का महत्त्वपूर्ण सूचना-स्रोत है। इसके साथ-साथ इससे लाखों-हज़ारों वर्षों के पहले के वायुमण्डलीय तापमान का पता लगाया जा सकता है। इस महाद्वीप को किसी भी देश के राजनीतिक एवं सैनिक हस्तक्षेप से अलग रखने के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं, जिनका पालन करना सभी देशों के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 16.
प्राकृतिक संसाधनों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
प्राकृतिक संसाधनों से हमारा अभिप्राय ऐसे संसाधनों से है जो कि हमें प्रकृति से ठोस, द्रव्य और गैस के रूप में प्राप्त होते हैं। प्राकृतिक संसाधनों को पृथ्वी पर मानवीय जीवन का आधार माना जाता है। मानवीय सभ्यता के विकास में इन प्राकृतिक संसाधनों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

प्रारम्भिक काल में यह संसाधन प्रचुर मात्रा में है, परन्तु जैसे-जैसे जनसंख्या में वृद्धि होती चली गई वैसे-वैसे ही प्राकृतिक संसाधनों का तेज़ी से दोहन आरम्भ हो गया था। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि मानवीय विकास प्राकृतिक संसाधनों के विनाश से हुआ है क्योंकि मानव ने स्वयं ही आत्मनिर्भर जैव मंडल के तन्त्र को प्राकृतिक संसाधन के तन्त्र में परिवर्तित कर दिया है।

प्रश्न 17.
‘भारत के पावन वन-प्रान्तर’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
भारत में प्रचलित कछ धार्मिक कारणों के कारण वनों के कुछ भागों को काटा नहीं जाता। ऐसे स्थानों पर किसी देवता या पुण्यात्मा का निवास माना जाता है। भारत में इस प्रकार के स्थानों को ‘पावन वन-प्रान्तर’ कहा जाता है। भारत में ‘पावन वन-प्रान्तर’ को अलग-अलग नामों से बुलाया जाता है, जैसे राजस्थान में इसे वानी, झारखण्ड में जहेरा स्थान एवं सरना, मेघालय में लिंगदोह, उत्तराखण्ड में थान या देवभूमि, महाराष्ट्र में देव रहतिस तथा केरल में काव कहा जाता है।

पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित साहित्य में भी अब पावन वन-प्रान्तर अर्थात् देव स्थान को स्वीकार किया जाता है। कुछ अनुसन्धानकर्ताओं के अनुसार देव स्थानों की मान्यता के कारण जैव विविधता और पारिस्थितिक तन्त्र को न केवल सुरक्षित रखा जा सकता है, बल्कि सांस्कृतिक विभिन्नता को बनाए रखने में मदद मिलती है।

प्रश्न 18.
विकास कार्यों के पर्यावरण पर पड़ने वाले किन्हीं चार बुरे प्रभावों को लिखें।
अथवा
पर्यावरण पर विकास कार्यों के चार बुरे प्रभाव लिखें।
उत्तर:

  • विकास कार्यों के लिए वृक्षों को काटा जा रहा है, जिसने वातावरण में शुद्ध वायु की कमी हो रही है।
  • विकास कार्यों के लिए अधिक-से-अधिक भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है, जिसके कारण मनुष्यों के रहने योग्य तथा कृषि योग्य उपजाऊ जमीन कम हो रही है।
  • विकास कार्यों के लिए पानी का अत्यधिक दोहन हो रहा है, जिससे जल स्तर लगातार कम होता जा रहा है।
  • विकास कार्यों के पश्चात् छोड़े गए जहरीले कूडा-कबाड़ पर्यावरण को हानि पहुंचाते हैं।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पर्यावरण प्रदूषण के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:

  • पर्यावरण के प्रदूषण की वर्तमान स्थिति के लिए पश्चिमी देश जिम्मेवार हैं। क्योंकि इन्होंने प्राकृतिक संसाधनों का अन्धाधुन्ध दोहन किया है।
  • वनों की निरन्तर कटाई के फलस्वरूप भमि की कठोरता कम हो रही है और भ-क्षरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई है। निरन्तर वनों की कमी से कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा के बढ़ने से पर्यावरण का प्रदूषित होना स्वाभाविक है।

प्रश्न 2.
पर्यावरण संरक्षण के कोई दो उपाय बताएं।
उत्तर:

  • पर्यावरण संरक्षण के लिए जनसंख्या को नियन्त्रित करना आवश्यक है।
  • पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए तथा देश के सन्तुलित विकास के लिए आवश्यक है, कि वनों की रक्षा की जाए।

प्रश्न 3.
पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित स्टॉकहोम सम्मेलन के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित सबसे पहला और महत्त्वपूर्ण सम्मेलन जून 1972 में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुआ। इसका आयोजन संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में किया गया था। इस सम्मेलन में सात महत्त्वपूर्ण प्रस्तावों को पारित किया गया, जिसके आधार पर पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है।

प्रश्न 4.
पृथ्वी सम्मेलन के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
स्टॉकहोम सम्मेलन के पश्चात् पर्यावरण से सम्बन्धित सबसे महत्त्वपूर्ण सम्मेलन जून 1992 में ब्राजील की राजधानी रियो-डी-जनेरियो में हुआ। इस सम्मेलन को पृथ्वी सम्मेलन भी कहा जाता है। इस सम्मेलन का आयोजन भी संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में किया गया था। इस सम्मेलन में 170 देश, हज़ारों स्वयंसेवी संगठन तथा अनेक बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों ने हिस्सा लिया। इस सम्मेलन में स्टॉकहोम के उपबन्धों को स्वीकार करते हुए, उन्हें लागू करने पर जोर दिया गया।

प्रश्न 5.
क्योटो प्रोटोकोल के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
1997 में पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित एक बैठक क्योटो (जापान) में हुई। इसमें लगभग 150 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। क्योटो घोषणा में कहा गया, कि सूचीबद्ध औद्योगिक देश वर्ष 2008 से 2012 तक 1990 के स्तर से नीचे 5.2% तक अपने सामूहिक उत्सर्जन में कमी करेंगे।

प्रश्न 6.
विश्व जलवायु परिवर्तन बैठक के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
1997 में नई दिल्ली में विश्व जलवायु परिवर्तन बैठक हुई। इस बैठक में निर्धनता, पर्यावरण तथा संसाधन प्रबन्ध के समाधान के सम्बन्ध में विकसित तथा विकासशील देशों में व्यापार की सम्भावनाओं पर विचार किया गया। इस बैठक में ग्रीन गृह गैसों को वातावरण में न छोड़ने की सम्भावनाओं पर चर्चा हुई।

प्रश्न 7.
पर्यावरण संरक्षण में भारत की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत सदैव ही पर्यावरण संरक्षण का पक्षधर रहा है। भारत ने प्रायः सभी पर्यावरण सम्मेलनों में शों के पर्यावरण से सम्बन्धित अधिकारों की आवाज़ उठाई है। भारत ने पर्यावरण प्रदूषित होने का जिम्मेदार विकसित देशों को माना है। भारत ने पर्यावरण संरक्षण के लिए अन्तर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर कई प्रयास किए हैं। भारत ने जहां क्योटो प्रोटोकोल पर हस्ताक्षर किये हैं, वहीं घरेलू मोर्चे पर कई कानून बनाए हैं।

प्रश्न 8.
विश्व में खाद्यान्न उत्पादन की कमी के कोई दो कारण बताएं।
उत्तर:

  • विश्व में खाद्यान्न उत्पादन की कमी का एक कारण कृषि योग्य भूमि का न बढ़ना है। इसके कृषि योग्य भूमि की उपजाऊ निरन्तर कम हो रही है।
  • विश्व में खाद्यान्न उत्पादन की कमी का एक कारण चारागाहों का समाप्त होना तथा जल प्रदूषण का बढ़ना है।

प्रश्न 9.
विश्व में साफ पानी का भण्डार कितना है ?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र की विश्व विकास रिपोर्ट 2006 के अनुसार विश्व में साफ पानी का भण्डार बहुत कम है। पीने योग्य साफ पानी के अभाव में प्रत्येक वर्ष लगभग 30 लाख से अधिक बच्चे मारे जाते हैं। विश्व की लगभग एक अरब बीस करोड़ जनता को साफ पानी उपलब्ध नहीं है।

प्रश्न 10.
ओजोन परत में छेद होने की घटना की व्याख्या करें।
उत्तर:
पृथ्वी के ऊपरी वायुमण्डल में ओजोन गैस की मात्रा निरन्तर कम हो रही है। इस प्रकार की घटना को ओजोन परत में छेद होना भी कहते हैं। इससे न केवल पारिस्थितिक तन्त्र पर ही नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, बल्कि लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 11.
लोगों को अकाल के समय मुख्यतः किन दो समस्याओं का सामना करना पड़ता है ?
उत्तर:

  • अकाल के समय लोगों को खाद्य पदार्थों की कमी का सामना करना पड़ता है।
  • अकाल के समय लोगों को पीने के लिए पानी नहीं मिलता, क्योंकि सभी कुएं एवं तालाब सूख जाते हैं।

प्रश्न 12.
वैश्विक सम्पदा की रक्षा के लिए किए गए कोई दो समझौते लिखें।
उत्तर:

  • 1959 में की गई अंटार्कटिक सन्धि।
  • 1987 में किया गया मांट्रियाल न्यायाचार या प्रोटोकोल।

प्रश्न 13.
अंटार्कटिक महाद्वीप के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
अटार्कटिक महाद्वीप एक करोड़ चालीस वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यह मुख्यत: बर्फीला क्षेत्र है। इस पर किसी देश या संगठन का अधिकार नहीं है। यद्यपि कोई भी देश शान्तिपूर्ण कार्यों के लिए यहां पर अनुसन्धान कर सकता है। अंटार्कटिक महाद्वीप विश्व की जलवायु एवं पर्यावरण को सन्तुलित करता है।

प्रश्न 14.
पर्यावरण की समस्याओं के अध्ययन के लिए किये गए कोई दो उपाय लिखें।
उत्तर:

  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम जैसे कई अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों में पर्यावरण से सम्बन्धित सेमिनार एवं सम्मेलन करवाए हैं।
  • राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण के अध्ययन को बढ़ावा दिया गया है।

प्रश्न 15.
पर्यावरण शरणार्थी से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
पर्यावरण के खराब होने से एवं खाद्यान्न की उत्पादकता कम होने से लोगों द्वारा उस स्थान से हटकर कहीं और शरण लेना पर्यावरण शरणार्थी कहलाता है। 1970 के दशक में भयंकर अनावृष्टि से अफ्रीकी देशों के नागरिकों को इस प्रकार की समस्या का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 16.
“विश्व तापन” किसे कहते हैं ?
अथवा
वैश्विक ताप वृद्धि किसे कहते हैं ?
अथवा
भूमण्डलीय ऊष्मीकरण (Global Warming) क्या है ?
पर्यावरण पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन क संसाधन
उत्तर:
विश्व तापन से अभिप्राय विश्व के तापमान का लगातार बढ़ना है। पिछले कई वर्षों से विकास की अच्छी दौड़ ने पर्यावरण को बहुत हानि पहुंचाई है, जिसके कारण जंगलों में कमी आई है, तथा ग्लेशियरों से लगातार बर्फ पिघल रही है। इसी कारण विश्व का तापमान लगातार बढ़ रहा है।

प्रश्न 17.
वैश्विक तापन के कोई दो परिणाम बताएं।
उत्तर:
(1) वैश्विक तापन से ग्लेशियरों का तापमान बढ़ने से बर्फ पिघलनी शुरू हो गई है, जिससे समुद्र तटीय कुछ देशों के जलमग्न होने का खतरा पैदा हो गया है।
(2) वैश्विक तापन से वातावरण का तापमान लगातार बढ़ रहा है, जिससे कई प्रकार की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं पैदा हो गई हैं।

प्रश्न 18.
जून-2005 में हुई जी-8 की बैठक में भारत ने किन दो बातों की ओर विश्व समुदाय का ध्यान आकर्षित किया ?
उत्तर:

  • भारत का यह कहना था, कि विकसित देश विकासशील देशों की अपेक्षा ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन अधिक कर रहे हैं।
  • भारत के अनुसार ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन में कमी करने की ज़िम्मेदारी भी विकसित देशों की अधिक है।

प्रश्न 19.
भारत में ग्रीन हाउस गैसों की उत्सर्जन मात्रा की स्थिति लिखें।
उत्तर:
भारत में ग्रीन हाऊस गैसों की उत्सर्जन मात्रा किसी भी विकसित देश के मुकाबले बहुत कम है। भारत में सन् 2000 तक ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन प्रति व्यक्ति 0.9 टन था। एक अनुमान के अनुसार सन् 2030 तक यह मात्रा बढ़कर 1.6 टन प्रतिव्यक्ति हो जायेगी।

प्रश्न 20.
निर्जन वन का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
निर्जन वन से अभिप्राय ऐसे वनों से है, जिसमें मनुष्य एवं जानवर नहीं पाए जाते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध के कई देशों में निर्जन वन पाए जाते हैं। इन देशों में वन को निर्जन प्रान्त के रूप में देखा जाता है जहां पर लोग नहीं रहते। इस प्रकार का दृष्टिकोण मनुष्य को प्रकृति का अंग नहीं मानता।

प्रश्न 21.
विकसित देशों ने संसाधनों के दोहन के लिए कौन-कौन से कदम उठाए ?
उत्तर:

  • विकसित देशों ने संसाधनों वाले क्षेत्रों में अपनी सेना को रक्षा के लिए तैनात किया।
  • विकसित देशों ने संसाधनों वाले देशों में ऐसी संस्थाएं स्थापित करवाईं जो उनके अनुसार कार्य करें।

प्रश्न 22.
नैरोबी घोषणा (1982) के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
स्टॉकहोम सम्मेलन की 10वीं वर्षगांठ का सम्मेलन 1982 में नैरोबी में किया गया। इस सम्मेलन में विलुप्त वन्य जीवों के व्यापार से सम्बन्धित प्रावधान अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक सम्पदा तथा खुले समुद्र में प्रदूषण इत्यादि से सम्बन्धित प्रावधानों को स्वीकार किया गया।

प्रश्न 23.
विश्व जलवायु परिवर्तन बैठक के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
1997 में नई दिल्ली में विश्व जलवायु परिवर्तन बैठक हुई। इस बैठक में निर्धनता, पर्यावरण तथा संसाधन प्रबन्ध के समाधान के सम्बन्ध में विकसित तथा विकासशील देशों में व्यापार की सम्भावनाओं पर विचार किया गया। इस बैठक में ग्रीन गृह गैसों (Green House Gases) को वातावरण में न छोड़ने की सम्भावनाओं पर चर्चा हुई।

प्रश्न 24.
सन् 1998 में हुई ब्यूनिस-ऐरिस बैठक की व्याख्या करें।
उत्तर:
ब्यूनिस-ऐरिस बैठक (Buenus-Aires Convention)-1998 में अर्जेन्टाइना के शहर ब्यूनिस-ऐरिस में क्योटो प्रोटोकोल की समीक्षा के लिए एक बैठक की गई। भारत जैसे देशों की यह दलील थी कि विलासिता और आवश्यकता में अन्तर किया जाना चाहिए अर्थात् विलासिता के कारण गैसों का रिसाव न हो और आवश्यकता के कारण इसे छोड़ने से रोका न जाए।

प्रश्न 25.
वैश्विक तापवृद्धि और जलवायु परिवर्तन के लिए किन्हें उत्तरदायी माना जाता है ?
उत्तर:
वैश्विक तापवद्धि और जलवायु परिवर्तन के लिए विकसित देशों को उत्तरदायी माना जाता है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

प्रश्न 26.
भारत द्वारा ‘फ्रेमवर्क कन्वेन्शन ऑन क्लाइमेट चेंज’ की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए उठाई गई दो मांगें लिखें।
उत्तर:

  • भारत ने यह मांग की, कि विकसित देशों को आसान दरों पर विकासशील देशों को वित्तीय सहायता देनी चाहिए।
  • भारत ने यह भी मांग की विकसित देश पर्यावरण के सन्दर्भ में अच्छी एवं उन्नत तकनीक विकासशील देशों को प्रदान करें।

प्रश्न 27.
वैश्विक साझा सम्पदा किसे कहते हैं ? किन्हीं दो उदाहरणों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
विश्व का साझी विरासत से अभिप्राय उस सम्पदा से है, जिस पर किसी एक का नहीं बल्कि पूरे समुदाय का अधिकार होता है। जैसे साझी नदी, साझा कुआं, साझा मैदान तथा साझा चरागाह इत्यादि। इसी तरह कुछ क्षेत्र एक देश के क्षेत्राधिकार से बाहर होते हैं, जैसे पृथ्वी का वायुमण्डल, अंटार्कटिका, समुद्री सतह तथा बाहरी अन्तरिक्ष इत्यादि । इसका प्रबन्धन अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा साझे तौर पर किया जाता है।

प्रश्न 28.
मूलवासी किन्हें कहा जाता है ? वे किन संस्थाओं के अनुरूप आचरण करते हैं ?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार उन्हें मूलवासी कहा जाता है, जो किसी मौजूदा देश में बहुत समय से रहते चले आ रहे हैं, तत्पश्चात् किसी दूसरी संस्कृति या जातीय मूल के लोग विश्व के अन्य भागों से उस देश विशेष में आए तथा इन लोगों को अपने अधीन कर लिया। मूलवासी अधिकांशतः अपनी परम्परा, सांस्कृतिक रीति-रिवाज तथा विशेष सामाजिक आर्थिक नियमों के अनुसार ही आचरण करते हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. पर्यावरण संरक्षण को अधिक प्रोत्साहन मिलने का आधार है
(A) निरन्तर बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग के कारण
(B) निरन्तर कृषि भूमि में होती कमी के कारण
(C) वायुमण्डल में ओजोन गैस की मात्रा में लगातार कमी होने के कारण
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

2. किस वर्ष स्टॉकहोम सम्मेलन हुआ ?
(A) 1992 में
(B) 1972 में
(C) 1998 में
(D) 1982 में।
उत्तर:
(B) 1972.

3. सन् 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ का पृथ्वी सम्मेलन कहाँ हुआ था ?
(A) नई दिल्ली
(B) जोहानसवर्ग
(C) बीजिंग
(D) रियो-डी-जनेरियो।
उत्तर:
(D) रियो-डी-जनेरियो।

4. क्योटो-प्रोटोकाल पर किस वर्ष सहमति बनी ?
(A) 1997 में
(B) 1995 में
(C) 1993 में
(D) 1990 में।
उत्तर:
(A) 1997 में।

5. सन् 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ का पृथ्वी सम्मेलन कहां हुआ ?
(A) नई दिल्ली में
(B) जोहान्सबर्ग में
(C) बीजिंग में
(D) रियो डी जनेरियो में।
उत्तर:
(D) रियो डी जनेरियो में।

6. रियो डी जनेरियो (1992) सम्मेलन को किस नाम से पुकारा जाता है ?
(A) पृथ्वी सम्मेलन
(B) जल सम्मेलन
(C) मजदूर सम्मेलन
(D) आर्थिक सम्मेलन।
उत्तर:
(A) पृथ्वी सम्मेलन।

7. पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित उत्तरी गोलार्द्ध एवं दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में
(A) मतभेद नहीं पाए जाते
(B) मतभेद पाए जाते हैं ।
(C) उपरोक्त दोनों
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(B) मतभेद पाए जाते हैं।

8. विकास कार्यों के बुरे प्रभाव हैं
(A) कृषि भूमि में कमी
(B) भूमि की उत्पादकता में कमी
(C) वायु प्रदूषण
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

9. विश्व का कितना प्रतिशत निर्जन क्षेत्र अंटार्कटिका महाद्वीप के अन्तर्गत आता है ?
(A) 40 प्रतिशत
(B) 10 प्रतिशत
(C) 26 प्रतिशत
(D) 35 प्रतिशत।
उत्तर:
(C) 26 प्रतिशत।

10. पर्यावरण किन कारणों से प्रदूषित होता है ?
(A) जनसंख्या में वृद्धि के कारण
(B) वनों की कटाई व भू-क्षरण
(C) औद्योगीकरण के कारण
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

11. पर्यावरण को प्रदूषित होने से कैसे बचाया जा सकता है ?
(A) जनसंख्या को नियन्त्रित करके
(B) वनों का संरक्षण करके
(C) आवश्यकताएं कम करके
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

12. निम्न में से कौन-सा सम्मेलन पर्यावरण से सम्बन्धित है ?
(A) स्टॉकहोम सम्मेलन
(B) पृथ्वी सम्मेलन
(C) विश्व जलवायु परिवर्तन बैठक
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

13. भारत ने ऊर्जा संरक्षण अधिनियम कब पास किया ?
(A) 2005 में
(B) 2002 में
(C) 2003 में
(D) 2001 में।
उत्तर:
(D) 2001 में।

14. भारत ने ‘क्योटो प्रोटोकॉल’ पर कब हस्ताक्षर किए ?
(A) अगस्त, 1991 में
(B) अगस्त, 2000 में
(C) अगस्त, 2001 में
(D) अगस्त, 2002 में।
उत्तर:
(D) अगस्त, 2002 में।

15. पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार के बारे में सही है
(A) जल प्रदूषण
(B) वायु प्रदूषण
(C) ध्वनि प्रदूषण
(D) उपर्युक्त कभी।
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी।

16. रियो सम्मेलन ( पृथ्वी सम्मेलन) में कितने देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था ?
(A) 150
(B) 160
(C) 170
(D) 180.
उत्तर:
(C) 170.

17. भारत ने क्योटो प्रोटोकॉल पर कब हस्ताक्षर किए ?
(A) वर्ष 2003 में
(B) वर्ष 2001 में
(C) वर्ष 1999 में
(D) वर्ष 2002 में।
उत्तर:
(C) वर्ष 2002 में।

18. विश्व में मूलवासियों की लगभग जनसंख्या है
(A) 35 करोड़
(B) 30 करोड़
(C) 40 करोड़
(D) 25 करोड़।
उत्तर:
(B) 30 करोड़।

19. क्लब ऑफ रोम ने ‘लिमिट्स टू ग्रोथ’ (Limits to Growth) नामक पुस्तक कब प्रकाशित की ?
(A) 1962 में
(B) 1971 में
(C) 1972 में।
(D) 1982 में।
उत्तर:
(C) 1972 में।

20. वैश्विक सम्पदा की सुरक्षा के लिए किया गया समझौता
(A) अटार्कटिका समझौता-1959
(B) मांट्रियाल न्यायाचार-1981
(C) अटार्कटिका पर्यावरणीय न्यायाचार 1991
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

21. पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित बॉली सम्मेलन कब हुआ था ?
(A) दिसम्बर, 2007
(B) दिसम्बर, 2008
(C) दिसम्बर, 2005
(D) दिसम्बर, 2002.
उत्तर:
(A) दिसम्बर, 2007.

22. सन् 2009 में ‘पृथ्वी सम्मेलन’ किस देश में हुआ था?
(A) भारत में
(B) चीन में
(C) नेपाल में
(D) कोपनहेगन में।
उत्तर:
(D) कोपनहेगन में।

23. कोपेन हेगन सम्मेलन में कितने देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था ?
(A) 180
(B) 185
(C) 190
(D) 192.
उत्तर:
(D) 192.

24. अक्तूबर 2009 में किस देश ने अपनी देश की कैबिनेट बैठक समुद्र के नीचे की थी ?
(A) मालद्वीप
(B) नेपाल
(C) भूटान
(D) बंग्लादेश।
उत्तर:
(A) मालद्वीप।

25. किस देश ने दिसम्बर, 2009 में अपने देश की कैबिनेट बैठक एवरेस्ट पर की थी ?
(A) मालद्वीप
(B) नेपाल
(C) भूटान
(D) बंग्लादेश।
उत्तर:
(B) नेपाल।

26. विकसित देशों की जनसंख्या विश्व की जनसंख्या की कितनी % है ?
(A) 15%
(B) 20%
(C) 22%
(D) 28%.
उत्तर:
(C) 22%.

27. विकसित देश विश्व के कितने % संसाधनों का प्रयोग करते हैं ?
(A) 50%
(B) 22%
(C) 88%
(D) 70%.
उत्तर:
(C) 88%.

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

28. विकसित देश विश्व की कितनी % ऊर्जा का प्रयोग करते हैं ?
(A) 73%
(B) 65%
(C) 60%
(D) 50%.
उत्तर:
(A) 73%.

29. भारत में ‘मूलवासी’ के लिए किस शब्द का प्रयोग किया जाता है ?
(A) अगड़ा वर्ग
(B) पिछड़ा वर्ग
(C) आदिवासी
(D) स्वर्ण वर्ग।
उत्तर:
(C) आदिवासी।

30. पर्यावरण संरक्षण के लिए भारत में किस प्रकार के वाहनों को बढ़ावा दिया जा रहा है?
(A) इलेक्ट्रिक वाहनों को
(B) पेट्रोल के वाहनों को
(C) डीज़ल के वाहनों को
(D) मिट्टी के तेल के वाहनों को।
उत्तर:
(A) इलेक्ट्रिक वाहनों को।

रिक्त स्थान भरें

(1) 1972 में …………… में पर्यावरण से सम्बन्धित पहला सम्मेलन हुआ।
उत्तर:
स्टॉकहोम

(2) पर्यावरण से सम्बन्धित रियो सम्मेलन, जोकि 1992 में हुआ, को ………….. सम्मेलन भी कहा जाता है।
उत्तर:
पृथ्वी

(3) …………….. प्रोटोकोल सम्मेलन 1997 में जापान में हुआ।
उत्तर:
क्योटो

(4) भारत ने क्योटो प्रोटोकोल पर ……………… में हस्ताक्षर किये।
उत्तर:
अगस्त, 2002

(5) पर्यावरण संरक्षण के लिए दिसम्बर, 2007 में …………… में सम्मेलन हुआ।
उत्तर:
बाली

(6) पर्यावरण संरक्षण का भारत ने सदैव …………….. किया है।
उत्तर:
समर्थन।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
स्टॉकहोम (स्वीडन) सम्मेलन कब हुआ ?
उत्तर:
स्टॉकहोम (स्वीडन) सम्मेलन सन् 1972 में हुआ।

प्रश्न 2.
पृथ्वी सम्मेलन कब और कहां पर हुआ ?
उत्तर:
पृथ्वी सम्मेलन 1992 में रियो डी जनेरियो (ब्राज़ील) में हुआ।

प्रश्न 3.
पर्यावरण प्रदूषण का कोई एक कारण बताएं।
उत्तर:
पर्यावरण प्रदूषण का महत्त्वपूर्ण कारण जनसंख्या वृद्धि है।

प्रश्न 4.
पर्यावरण संरक्षण का कोई एक उपाय लिखें।
उत्तर:
पर्यावरण संरक्षण के लिए जनसंख्या को नियन्त्रित करना आवश्यक है।

प्रश्न 5.
क्योटो प्रोटोकोल (Kyoto Protocol) सम्मेलन कब और किस देश में हुआ ?
उत्तर:
क्योटो प्रोटोकोल सम्मेलन 1997 में जापान में हुआ।

प्रश्न 6.
भारत ने ऊर्जा संरक्षण अधिनियम कब पास किया ?
उत्तर:
भारत ने 2001 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम पास किया।

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HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

HBSE 12th Class Political Science पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
पर्यावरण के प्रति बढ़ते सरोकारों का क्या कारण है ? निम्नलिखित में सबसे बेहतर विकल्प चुनें।
(क) विकसित देश प्रकति की रक्षा को लेकर चिंतित हैं।
(ख) पर्यावरण की सुरक्षा मूलवासी लोगों और प्राकृतिक पर्यावासों के लिए जरूरी है।
(ग) मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण को व्यापक नुकसान हुआ है और यह नुकसान खतरे की हद तक पहुंच गया है।
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण को व्यापक नुकसान हुआ है और यह नुकसान खतरे की हद तक पहुंच गया है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित कथनों में प्रत्येक के आगे सही या गलत का चिह्न लगायें। ये कथन पृथ्वी-सम्मेलन के बारे में हैं
(क) इसमें 170 देश, हज़ारों स्वयंसेवी संगठन तथा अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने भाग लिया।
(ख) यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्रसंघ के तत्वावधान में हुआ।
(ग) वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों ने पहली बार राजनीतिक धरातल पर ठोस आकार ग्रहण किया।
(घ) यह महासम्मेलनी बैठक थी।
उत्तर:
(क) सही,
(ख) सही,
(ग) सही,
(घ) गलत।

प्रश्न 3.
‘विश्व की साझी विरासत’ के बारे में निम्नलिखित में कौन-से कथन सही हैं ?
(क) धरती का वायुमण्डल, अंटार्कटिक, समुद्री सतह और बाहरी अंतरिक्ष को ‘विश्व की साझी विरासत’ माना जाता है।
(ख) ‘विश्व की साझी विरासत’ किसी राज्य के संप्रभु क्षेत्राधिकार में नहीं आते।
(ग) ‘विश्व की साझी विरासत’ के प्रबन्धन के सवाल पर उत्तरी और दक्षिणी देशों के बीच विभेद है।
(घ) उत्तरी गोलार्द्ध के देश ‘विश्व की साझी विरासत’ को बचाने के लिए दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों से कहीं ज्यादा चिंतित हैं।
उत्तर:
(क) सही,
(ख) सही,
(ग) सही,
(घ) गलत।

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प्रश्न 4.
रियो सम्मेलन के क्या परिणाम हुए ?
उत्तर:
रियो सम्मेलन पर्यावरण पर हुआ सबसे महत्त्वपूर्ण सम्मेलन माना जाता है। रियो सम्मेलन के कारण पर्यावरण के मुद्दे पहली बार अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थान बनाने में सफल हुए। रियो सम्मेलन में जलवायु-परिवर्तन, जैव विविधता तथा वानिकी के सम्बन्ध में कुछ नियमों का निर्माण किया गया।

प्रश्न 5.
‘विश्व की साझी विरासत’ का क्या अर्थ है ? इसका दोहन और प्रदूषण कैसे होता है ?
अथवा
विश्व की साझी सम्पदा से क्या अभिप्राय है ? इसका दोहन और प्रदूषण कैसे होता है ?
उत्तर:
‘विश्व की साँझी विरासत’ का अर्थ है कि ऐसी सम्पदा जिस पर किसी एक व्यक्ति, समुदाय या देश का अधिकार न हो, बल्कि विश्व के सम्पूर्ण समुदाय का उस पर हक हो। विश्व की साझी विरासत के अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति को प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करने का अधिकार तथा संरक्षण का उत्तरदायित्व होता है। वर्तमान समय में कारण, निजीकरण एवं पर्यावरण बदलाव के कारण तथा विकसित देशों के निजी स्वार्थ के कारण बड़ी तेजी से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और प्रदूषण हो रहा है।

प्रश्न 6.
‘साझी जिम्मेवारी लेकिन अलग-अलग भूमिकाएँ’ से क्या अभिप्राय है ? हम इस विचार को कैसे लागू कर सकते हैं ?
उत्तर:
विश्व का पर्यावरण तेज़ी से खराब हो रहा है। अधिकांश देश अन्धाधुंध प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहे हैं। इससे मानव सभ्यता खतरे में पड़ गई है। इसीलिए कहा जाता है कि पर्यावरण को बचाने की सभी की साझी ज़िम्मेदारी है अर्थात् पर्यावरण संरक्षण में प्रत्येक देश की बराबर की ज़िम्मेदारी हो। परन्तु उत्तरी एवं दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित विचारों में मतभेद हैं।

उत्तरी गोलार्द्ध के विकसित देशों का तर्क है, कि विश्व के सभी देश समान रूप से मिलकर पर्यावरण को बचायें। परन्तु दक्षिणी गोलार्द्ध के विकासशील देशों का तर्क है, कि क्योंकि विकसित देशों ने पर्यावरण को अधिक खराब किया है, अत: उसे ठीक करने की ज़िम्मेदारी भी उनकी अधिक होनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र संघ के जलवायु परिवर्तन से सम्बन्धित नियमाचार में भी कहा गया है कि प्रत्येक देश अपनी क्षमता, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के अनुपात में अपनी भागीदारी पर साझी परन्तु अलग-अलग भूमिकाएं निभायेंगे।

प्रश्न 7.
वैश्विक पर्यावरण की सुरक्षा से जुड़े मुद्दे सन् 1990 के दशक से विभिन्न देशों के प्राथमिक सरोकार क्यों बन गए हैं ?
अथवा
विश्व राजनीति में पर्यावरण के लिए चिन्ता के कारणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
विश्व राजनीति में पर्यावरण की चिन्ता के प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
अग्रलिखित कारणों से वैश्विक पर्यावरण की सुरक्षा से जुड़े मुद्दे सन् 1990 के दशक से विभिन्न देशों के प्राथमिक सरोकार बन गए हैं

  • पर्यावरण खराब होने से कृषि योग्य भूमि कम हो रही है।
  • जलाशयों में बड़ी तेज़ी से जल स्तर घटा है।
  • मत्स्य उत्पादन कम हुआ है।
  • विकासशील देशों की लगभग 1 अरब बीस करोड़ जनता को पीने के लिए साफ पानी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।
  • साफ़-सफ़ाई के अभाव में लगभग 30 लाख बच्चे प्रति वर्ष मारे जाते हैं।
  • वनों की कटाई से जैव विविधता की हानि हो रही है।
  • ओजोन परत के नुकसान से पारिस्थितिकी तन्त्र और मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है।
  • परमाणु परीक्षणों के कारण वैश्विक पर्यावरण लगातार ख़राब हो रहा है।

प्रश्न 8.
पृथ्वी को बचाने के लिए जरूरी है कि विभिन्न देश सुलह और सहकार की नीति अपनाएँ। पर्यावरण के सवाल पर उत्तरी और दक्षिणी देशों के बीच जारी वार्ताओं की रोशनी में इस कथन की पुष्टि करें।
उत्तर:
पिछले कुछ वर्षों में विश्व का पर्यावरण बड़ी तेजी से खराब हुआ, जिसके कारण पृथ्वी के अस्तित्व को कई गम्भीर खतरे पैदा हो गए हैं। इसलिए विश्व के अधिकांश देशों ने पृथ्वी को बचाने के लिए परस्पर सुलह और सहकार की नीति अपनाई। इसी सन्दर्भ में उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों ने पृथ्वी के संरक्षण के लिए आपस में कई बार बातचीत की। यद्यपि पृथ्वी को बचाने के लिए दोनों गोलार्द्ध के देश वचनबद्ध दिखाई पड़ते हैं, परन्तु पृथ्वी बचाने के तरीकों पर दोनों गोलार्डों के देशों में सहमति नहीं बन पा रही है।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

प्रश्न 9.
विभिन्न देशों के सामने सबसे गम्भीर चुनौती वैश्विक पर्यावरण को आगे कोई नुकसान पहुंचाए बगैर आर्थिक विकास करने की है। यह कैसे हो सकता है ? कुछ उदाहरणों के साथ समझाएं।
उत्तर:
वर्तमान परिस्थितियों में सभी देशों के सामने सबसे महत्त्वपूर्ण समस्या यह है कि कैसे पर्यावरण को बचाकर अपना आर्थिक विकास किया जाए। परन्तु यदि हम कुछ उपायों पर गौर करें तो पर्यावरण को खराब किये बिना ही देश का आर्थिक विकास किया जा सकता है। जैसे प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग सीमित मात्रा में किया जाना चाहिए। जितनी पेड़ों की हम कटाई करते हैं, उतने ही पेड़ लगाने चाहिएं। सौर ऊर्जा का अधिक-से-अधिक प्रयोग करना चाहिए। वर्षा के पानी को संरक्षित करना चाहिए।

पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन HBSE 12th Class Political Science Notes

→ पर्यावरण संरक्षण का मुद्दा वर्तमान समय में विश्व राजनीति का प्रमुख मुद्दा बन गया है।
→ पिछले कुछ वर्षों में पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित जागरूकता में वृद्धि हुई।
→ विश्व के सभी देशों ने पर्यावरण संरक्षण के उपाय ढूंढने शुरू कर दिये हैं।
→ पर्यावरण संरक्षण का सबसे पहला एवं महत्त्वपूर्ण सम्मेलन 1972 में स्टॉकहोम (स्वीडन) में हुआ।
→ पर्यावरण का दूसरा सबसे महत्त्वपूर्ण सम्मेलन 1992 में रियो-डी-जनेरियो (ब्राज़ील) में हुआ।
→ रियो-डी-जनेरियो सम्मेलन को पृथ्वी सम्मेलन भी कहा गया है।
→ 1997 में क्यूटो प्रोटोकाल अस्तित्व में आया।
→ विश्व तापन के खतरे से निपटने के लिए दिसम्बर, 2007 में इण्डोनेशिया (बाली) में पर्यावरण सम्मेलन हुआ।
→ पर्यावरण संरक्षण के लिए एक महत्त्वपूर्ण सम्मेलन दिसम्बर, 2009 में डेनमार्क की राजधानी कोपनहेगन में हुआ।
→ नवम्बर-दिसम्बर-2015, में पेरिस में महत्त्वपूर्ण संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन हुआ।
→ पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित तरीकों को लेकर उत्तरी एवं दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में मतभेद है।
→ उत्तरी गोलार्द्ध (विकसित देश) के देशों का मानना है, कि पर्यावरण संरक्षण के लिए सभी देश समान रूप से प्रयास करें।
→ दक्षिणी गोलार्द्ध (विकासशील देश) के देशों का मानना है, कि क्योंकि पर्यावरण को सबसे अधिक हानि विकसित देशों ने पहुंचाई है, अत: पर्यावरण संरक्षण की अधिक ज़िम्मेदारी उन्हें लेनी चाहिए।
→ भारत ने पर्यावरण सम्मेलनों में विकासशील देशों का कुशलतापूर्वक नेतृत्व किया है।

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HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Important Questions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुरक्षा की परम्परागत चिन्ताओं एवं निःशस्त्रीकरण की राजनीति का वर्णन करें।
उत्तर:
विश्व स्तर पर अधिकांश देशों को अपनी-अपनी सुरक्षा की चिन्ता लगी रहती है, जिसके लिए वे हथियारों का निर्माण करते हैं, परन्तु स्वयं ही हथियारों को समाप्त करने अर्थात् निःशस्त्रीकरण पर भी जोर देते हैं।

1. सुरक्षा की परम्परागत चिन्ताएं (Traditional Concerns of Security):
सुरक्षा की परम्परागत धारणा में सबसे बडी चिन्ता सैनिक खतरे से सम्बन्धित होती है। इस प्रकार के खतरे का स्रोत कोई दूसरा देश होता है। शत्रु देश दूसरे देश को सैनिक हमले की धमकी देकर उसकी प्रभुसत्ता, अखण्डता तथा स्वतन्त्रता के लिए खतरा उत्पन्न करता है। इस प्रकार के सैनिक हमले में न केवल सैनिक ही मारे जाते हैं, बल्कि बड़ी संख्या में सामान्य नागरिक भी हताहत होते हैं, तथा करोड़ों रुपये की सम्पत्ति नष्ट हो जाती है।

सैन्य हमले के साथ-साथ आतंकवाद भी सुरक्षा की एक महत्त्वपूर्ण चिन्ता बनी हुई है। वर्तमान समय में आतंकवाद पूरे विश्व के लिए खतरा बना हुआ है। 11 सितम्बर, 2001 को अमेरिका पर हुए आतंकवादी हमले ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया। भारत भी एक लम्बे समय से आतंकवाद का शिकार रहा है। इस प्रकार की परिस्थितियों ने वर्तमान समय में मौजूद चुनौतियों को अधिक गम्भीर कर दिया है।

2. नि:शस्त्रीकरण की राजनीति (Politics of Disarmament):
वर्तमान समय में अधिकांश देशों के पास हथियारों के बड़े-बड़े ज़खीरे हैं, जोकि सम्पूर्ण मानव सभ्यता के लिए बहुत बड़े खतरे हैं। इसीलिए समय-समय पर इन हथियारों को समाप्त करने के या नियन्त्रित करने की बात की जाती रही है। निःशस्त्रीकरण उस स्थिति में तो और भी आवश्यक हो गया है, जब कई देशों के पास नरसंहार के हथियार (Weapons of Most destruction) हैं जिनमें परमाणु, जैविक और रासायनिक हथियार शामिल हैं।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने नि:शस्त्रीकरण के लिए 1952 में निःशस्त्रीकरण आयोग की स्थापना की। 1963 में आंशिक परमाणु प्रतिबन्ध सन्धि की गई। 1968 में परमाणु अप्रसार सन्धि की गई। 1990 के दशक में व्यापक परमाणु प्रतिबन्ध सन्धि की गई। इसके अतिरिक्त भी निशस्त्रीकरण एवं शस्त्र नियन्त्रण के लिए कई सन्धियां की गईं।

यहां पर यह बात उल्लेखनीय है कि वास्तविक निःशस्त्रीकरण की अपेक्षा इस पर राजनीति अधिक की गई है क्योंकि जो भी शक्तिशाली या परमाणु सम्पन्न (अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस, रूस तथा चीन) देश हैं। किसी भी स्थिति में अपने सैनिक या हथियारों के प्रभुत्व को बनाये रखना चाहते हैं। अतः निःशस्त्रीकरण की दिशा में कोई भी सार्थक प्रयास पूरा नहीं हो पाता।

प्रश्न 2.
वैश्विक ग़रीबी, स्वास्थ्य तथा शिक्षा जैसे गैर-परम्परागत या मानवीय सुरक्षा से सम्बन्धित मुद्दे की व्याख्या करें।
उत्तर:
विश्व में विद्यमान कई मुद्दों में से वैश्विक ग़रीबी, स्वास्थ्य तथा शिक्षा सबसे महत्त्वपूर्ण हैं। क्योंकि ये तीनों मुद्दे सकारात्मक एवं नकारात्मक रूप से मानवाधिकारों से जुड़े हुए हैं। इन सभी मुद्दों का वर्णन इस प्रकार है

1. वैश्विक ग़रीबी (Global Poverty):
विश्व में आज सबसे बड़ी समस्याओं में से एक वैश्विक ग़रीबी है। यद्यपि गरीबी सम्पूर्ण विश्व में पाई जाती है। परन्तु विकासशील तथा नवस्वतन्त्रता प्राप्त देशों में यह अधिक खतरनाक रूप में विद्यमान है। अधिकांश विकासशील देशों में लोगों को खाद्य पदार्थ प्राप्त नहीं हैं, जिसके कारण उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। विभिन्न देशों में रोजगार के अवसर सीमित हैं, जिसके कारण सभी लोगों को रोजगार नहीं मिल पाता।

अतः वे लोग ग़रीबी की अवस्था में जीवन बिताने के लिए विवश रहते हैं। वर्तमान समय में लगभग 1.2 बिलियन जनसंख्या को प्रतिदिन केवल एक डॉलर पर ही गुजारा करना पड़ता है। इस आंकड़े से विश्व में ग़रीबी की भयंकर स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। ग़रीबी के कारण विकासशील देशों के लोगों को कुपोषण, भुखमरी तथा महामारी इत्यादि से समय-समय पर जूझना पड़ता है। ग़रीबी के कारण लोगों में असुरक्षा की भावना पाई जाती है, तथा वे गलत कार्यों की ओर आकर्षित होने लगते हैं।

2. स्वास्थ्य (Health):
विश्व के अधिकांश देशों को आज स्वास्थ्य से सम्बन्धित समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। विश्व स्तर पर बढ़ती आर्थिक सम्पन्नता तथा वैज्ञानिक उन्नति के बावजूद भी विश्व के अधिकांश लोग स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से पीड़ित हैं। उदाहरण के लिए पिछले कुछ वर्षों से 20 मिलियन लोगों की मृत्यु ऐसी बीमारियों से हुई, जिनका इलाज सम्भव था।

इससे स्पष्ट है कि आर्थिक सम्पन्नता एवं चिकित्सा तथा वैज्ञानिक उन्नति का सभी लोगों को फायदा नहीं मिल रहा। इनका फायदा केवल विकसित देशों के कुछ थोड़े से लोगों को पहुंच रहा है। जबकि आज भी विकासशील देशों के लोग चेचक, हैजा, प्लेग तथा एड्स जैसी बीमारियों से मर रहे हैं, परन्तु उनका इलाज नहीं हो पा रहा है। विकासशील देशों के बच्चे असमय मृत्यु एवं कुपोषण के शिकार हो जाते हैं। इन्हें स्वच्छ पानी, उचित चिकित्सा सहायता तथा साफ वातावरण नहीं मिल पाता जिसका नकारात्मक प्रभाव इनके स्वास्थ्य पर पड़ता है।

3. शिक्षा (Education):
वर्तमान समय में विश्व के सभी लोगों को शिक्षा देना भी एक गम्भीर समस्या बनी हुई है। वास्तव में ग़रीबी, शिक्षा एवं स्वास्थ्य आपस में जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए ग़रीब व्यक्ति न तो शिक्षित हो पाता है, और न ही बीमारी के समय अपना इलाज ही करवा पाता है। इसी तरह एक अशिक्षित व्यक्ति न तो उचित रोज़गार कर पाता है, और न ही अपने स्वास्थ्य की देखभाल कर पाता है। विश्व के अधिकांश देशों, विशेषकर विकासशील देशों में बहुत अधिक निरक्षरता पाई जाती है। अशिक्षित व्यक्ति चालाक लोगों की बातों में आकर गलत कार्य करने लगते हैं।

इसीलिए संयुक्त राष्ट्र संघ के एक महत्त्वपूर्ण अभिकरण यूनेस्को (UNESCO-United Nations Educational, Scientific and Cultural Organisation) ने विश्व स्तर पर शिक्षा के प्रसार की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ली है। यूनेस्को के संविधान की प्रस्तावना का प्रथम वाक्य है कि, “चूंकि युद्ध मनुष्य के दिमाग में पैदा होता है, इसलिए शान्ति को सुरक्षित रखने की आधारशिला भी मानव दिमाग में बनाई जानी चाहिए।” अर्थात् लोगों को शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक आधार पर जागरूक एवं शिक्षित बनाया जाये, ताकि वे गलत कार्यों की ओर अग्रसर न हों।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा

प्रश्न 3.
मानवाधिकार एवं प्रवासन से सम्बन्धित मुद्दों की व्याख्या करें।
उत्तर:
विश्व में मानवाधिकार एवं प्रवासन से सम्बन्धित समस्याएं बहुत अधिक हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है

1. मानवाधिकार का मुद्दा (Issue of Human Rights):
मानव अधिकारों की समस्या विश्व की प्रमुख समस्याओं में से एक है। मानव अधिकार वे अधिकार हैं जोकि सभी मनुष्यों को प्राप्त होने चाहिएं। ये अधिकार मानव जीवन के विकास के लिए आवश्यक हैं।

संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने 10 दिसम्बर, 1948 को मानव अधिकार की घोषणा की परन्तु घोषणा के इतने वर्ष के बाद भी संसार के अनेक देशों में लोगों को मानव अधिकार प्राप्त नहीं हैं। कछ देशों में नागरिकों को नागरिक और राजनीतिक अधिकारों से वंचित रखा गया है जबकि कछ देशों में नागरिकों को आर्थिक और सामाजिक अधिकार प्राप्त हैं।

जाति, धर्म, रंग, लिंग आदि के आधार पर आज भी नागरिकों के साथ भेदभाव किया जाता है और इन्हीं आधारों पर नागरिकों को अधिकारों से वंचित रखा जाता है। दक्षिण अफ्रीका में काले लोगों को काफ़ी लम्बे संघर्ष के बाद राजनीतिक अधिकार प्राप्त हुए हैं। आज भी संसार के अनेक देशों में स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त नहीं हैं। अत: मानव अधिकार एक गम्भीर समस्या बनी हुई है।

2. प्रवासन का मुद्दा (Issue of Migration):
आज के वैश्वीकरण एवं उदारीकरण के युग में विश्व ने एक छोटे से गांव का रूप धारण कर लिया है। संचार एवं यातायात के साधनों के विकास के कारण एक देश से दूसरे देश में जाना अब और अधिक आसान हो गया है। परन्तु इससे अब प्रवासन तथा इससे सम्बन्धित अधिकारों की समस्याएं पैदा हो गईं। वर्तमान समय में विकासशील देशों के लोग बड़ी संख्या में अमेरिका, यूरोप तथा ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में जाकर बसने का प्रयास करते हैं। अतः अधिकांश विकसित देश लगातार अपने प्रवासन कानूनों को जटिल बनाते जा रहे हैं ताकि प्रवासियों की संख्या को कम किया जा सके।

पिछले वर्षों से अपने मातृ देश को छोड़कर दूसरे देश में जाकर बसने का प्रचलन बड़ा है। जनसंख्या संसाधन ब्यूरो के अनुसार वर्तमान समय में विश्व आबादी का लगभग 2.5% भाग प्रवासी के तौर पर रहा है। जिस देश में प्रवासियों की संख्या अधिक होती है, वहां पर सुरक्षा एवं सांस्कृतिक खतरों की सम्भावना बढ़ जाती है।

इसी कारण अधिकांश देश प्रवासियों की संख्या में कमी करने का प्रयास कर रहे हैं।संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त ने प्रवासन से सम्बन्धित कई प्रश्नों का हल जानने का प्रयास किया कि बहुत बड़े स्तर पर प्रवासन के क्या कारण एवं परिणाम हो सकते हैं। प्रवासन के समय प्रवासियों को किस प्रकार के संकटों एवं मानवाधिकारों के उल्लंघन का सामना करना पड़ता है। इन प्रश्नों के उत्तर ढूंढ़ने के पश्चात् यह उच्चायुक्त इन समस्याओं को हल करने के लिए प्रयासरत है।

प्रश्न 4.
निःशस्त्रीकरण से आप क्या समझते हो ? आधुनिक युग में इसकी क्या आवश्यकता है ?
उत्तर:
निःशस्त्रीकरण आज अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की ज्वलंत समस्या है जो कि निरन्तर विचार-विमर्श के बावजूद भी गम्भीर बनी हुई है। शस्त्रों की दौड़, खासतौर पर आण्विक शस्त्रों की दौड़ इतनी तेजी से बढ़ रही है कि इसके कारण ‘पागलपन’ (Madness) की स्थिति पैदा हो गई है। इसीलिए आज विश्व समुदाय निःशस्त्रीकरण के ऊपर ज़ोर दे रहा है और यही समय की मांग है। निःशस्त्रीकरण का अर्थ (Meaning of Disarmament)-साधारण शब्दों में नि:शस्त्रीकरण से हमारा अभिप्राय: “शारीरिक हिंसा के प्रयोग के समस्त भौतिक तथा मानवीय साधनों के उन्मूलन से है।”

यह एक ऐसा कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य हथियारों के अस्तित्व और उनकी प्रकृति से उत्पन्न कुछ खास खतरों को कम करना है। इससे हथियारों की सीमा निश्चित करने या उन पर नियन्त्रण करने या उन्हें कम करने का विचार प्रकट होता है। निःशस्त्रीकरण का लक्ष्य आवश्यक रूप से निरस्त्र कर देना नहीं है। इसका लक्ष्य तो यह है कि जो भी हथियार इस समय उपस्थित हैं, उनके प्रभाव को घटा दिया जाए। मॉर्गेन्थो (Morgenthau) के शब्दों में, “निःश्स्त्रीकरण कुछ या सब शस्त्रों में कटौती या उनको समाप्त करना है ताकि शस्त्रीकरण की दौड़ का अन्त हो।”

वी० वी० डायक (V.V. Dyke) के मतानुसार, “सैनिक शक्ति से सम्बन्धित किसी भी तरह के नियन्त्रण अथवा प्रतिबन्ध लगाने के कार्य को निःशस्त्रीकरण कहा जाता है।” वेस्ले डब्ल्यू ० पोस्वार (Wesley W. Posvar) ने अपने एक लेख ‘The New Meaning of Arms Control’ में लिखा है कि, “निःशस्त्रीकरण से हमारा अभिप्राय: सेनाओं और शस्त्रों को घटा देने या समाप्त कर देने से है जबकि शस्त्र-नियन्त्रण में वे सभी उपाय शामिल हैं जिनका उद्देश्य युद्ध के सम्भावित और विनाशकारी परिणामों को रोकना है। इसमें सेनाओं तथा शस्त्रों के घटाने या न घटाने को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता है।”

निःशस्त्रीकरण की आवश्यकता (Necessity of Disarmament):
निम्न कारणों से निःशस्त्रीकरण को आवश्यक माना जाता है 1. विश्व शान्ति व सुरक्षा के लिए-नि:शस्त्रीकरण के द्वारा ही विश्व-शान्ति व सुरक्षा की स्थापना सम्भव है।

2. निःशस्त्रीकरण आर्थिक विकास में सहायक-विश्व के अधिकांश विकसित व अविकसित राष्ट्र अपने धन को आर्थिक क्षेत्र में न लगाकर उसका प्रयोग सैनिक क्षेत्र में करते हैं जो उनकी आर्थिक स्थिति के लिए हानिकारक है। यदि विकासशील देश निःशस्त्रीकरण की प्रक्रिया को अपनाते हुए नि:शस्त्रीकरण के रास्ते पर चलें तो इसके कारण इन देशों का बहुत आर्थिक विकास हो सकता है क्योंकि ये देश जितना धन अपनी रक्षा पर खर्च करते हैं वही धन ये अपने आर्थिक विकास पर खर्च करें तो शीघ्र ही यह आर्थिक शक्ति बन सकते हैं।

3. निःशस्त्रीकरण अन्तर्राष्ट्रीय तनाव को कम करता है- निःशस्त्रीकरण के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय तनाव में कमी आती है क्योंकि शस्त्रों की होड़ के कारण प्रत्येक राष्ट्र अधिक-से-अधिक हथियार एकत्रित करने की सोचता है। हैडली बुल के अनुसार शस्त्रों की होड़ स्वयं तनाव की सूचक है। अतः अन्तर्राष्ट्रीय तनाव को कम करने व आपसी सहयोग की वृद्धि के लिए आवश्यक है कि निःशस्त्रीकरण पर बल दिया जाए।

4. निःशस्त्रीकरण उपनिवेशवाद व साम्राज्यवाद का अन्त करने में सहायक है-जब एक देश के पास बड़ी मात्रा में हथियार जमा होने लगते हैं तो वह इनका प्रयोग अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने में करने लगता है। इसके कारण ही उपनिवेशवाद व साम्राज्यवाद की बुराइयां पैदा हो जाती हैं क्योंकि साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद शक्ति बढ़ाने के ही दूसरे रूप हैं। यदि राष्ट्र निःशस्त्रीकरण पर बल देंगे तो शक्तिशाली राष्ट्र कभी भी अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने की नहीं सोचेंगे जिसके कारण उपनिवेशवाद व साम्राज्यवाद का अन्त होगा तथा राष्ट्रों के मध्य आपसी सहयोग व शान्ति का वातावरण बनेगा।

5. लोक-कल्याण को बढ़ावा-सभी राष्ट्र चाहे वह विकसित हों या विकासशील शस्त्रों पर धन व्यय करते हैं। यदि विकासशील देश निःशस्त्रीकरण की नीति पर चलें तो वह प्रतिवर्ष अपने करोड़ों डालर बचा कर उन्हें लोक कल्याण के कार्यों पर खर्च कर सकते हैं।

6. विदेशी हस्तक्षेप को रोकता है-जब बड़े राष्ट्र शस्त्रों का भारी मात्रा में निर्माण कर लेते हैं तो इन्हें दूसरे देशों व अविकसित देशों में बेचते हैं। कुछ अविकसित देश इन देशों से नवीन तकनीक के सैन्य उपकरणों का आयात करते हैं। इसके कारण वह उन विकासशील देशों के आन्तरिक मामलों में दखल-अंदाजी करते हैं। अत: विकासशील देशों में महाशक्तियों के बढ़ते हुए हस्तक्षेप को रोकने के लिए यह आवश्यक है कि यह देश मिलकर निःशस्त्रीकरण पर बल दें।

7. सैनिकीकरण को रोकता है-प्रायः देखा जाता है कि शस्त्रों की होड़ सैनिकीकरण को जन्म देती है। आज प्रत्येक राष्ट्र अपनी सुरक्षा के लिए लाखों की सेना एकत्रित करता है। अत: बढ़ते हुए सैनिकीकरण को रोकने के लिए नि:शस्त्रीकरण बहत आवश्यक है।

8. सैनिक गठबन्धनों को रोकता है-नि:शस्त्रीकरण सैनिक गठबन्धनों को रोकता है। द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद शस्त्रीकरण की प्रक्रिया आरम्भ हुई। इसके दौरान कई सैनिक गठबन्धन हुए जिनमें नाटो, सीटो, सेंटो, एंजुस गठबन्धन अमेरिका के द्वारा किए गए। परन्तु जैसे ही 1985 के बाद गोर्बोच्योव-रीगन के मध्य वार्ता आरम्भ हुई तो इसमें नि:शस्त्रीकरण की प्रक्रिया आरम्भ हुई और धीरे-धीरे नाटो को छोड़कर सभी सैनिक गठबन्धन समाप्त हो गए हैं। अत: स्पष्ट है कि नि:शस्त्रीकरण सैनिक गठबन्धनों को रोकता है।

9. परमाणु युद्ध से बचाव के लिए आवश्यक-द्वितीय विश्व-युद्ध के दौरान 7 अगस्त, 1945 को अमेरिका ने नागासाकी पर और 9 अगस्त, 1945 को हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराए। इसके कारण भयंकर नरसंहार हुआ। इसके पश्चात् 1949 में सोवियत संघ ने, 1954 में ब्रिटेन ने, 1959 में फ्रांस ने तथा 1963 में चीन ने परमाणु बम का आविष्कार किया।

इन देशों ने मिलकर ‘परमाणु क्लब’ बना लिया और परमाणु क्षमता पर अपना एकाधिकार जमाए रखा। इसका मुख्य कारण था कि परमाणु शक्ति का प्रसार न हो। परन्तु धीरे-धीरे भारत, इज़राइल, ब्राजील, दक्षिणी अफ्रीका, ईराक, पाकिस्तान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों ने भी परमाणु क्षमता प्राप्त कर ली जिसके कारण परमाणु युद्ध होने के आसार बढ़ गए।

इसके कारण परमाणु क्लब के सदस्य राष्ट्रों को चिन्ता हुई और उन्होंने परमाणु युद्ध को रोकने के लिए नि:शस्त्रीकरण पर बल दिया। इस दिशा में व्यापक परमाणु प्रसार निषेध सन्धि (C.T.B.T.) उल्लेखनीय है। 1985 में गोर्बोच्योव-रीगन के मध्य शान्ति वार्ता आरम्भ हुई और इसके कारण नि:शस्त्रीकरण की प्रक्रिया आरम्भ हुई और परमाणु युद्ध का भय टल गया।

प्रश्न 5.
निःशस्त्रीकरण के मार्ग में आने वाली मुख्य बाधाओं का वर्णन करो।
उत्तर:
नैतिक रूप से विश्व को विनाश से बचाने का दायित्व मानव जाति पर ही है। इस दायित्व की पूर्ति तभी हो सकती है यदि विश्व के विभिन्न देश निःशस्त्रीकरण को व्यावहारिकता प्रदान करें। यद्यपि विभिन्न राज्यों ने व्यक्तिगत रूप से नि:शस्त्रीकरण की ओर बढ़ने का प्रयास किया है और संयुक्त राष्ट्र द्वारा भी विभिन्न प्रयास किए गए हैं, लेकिन फिर भी नि:शस्त्रीकरण के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सका है। इसके विपरीत विनाश के नए-नए शस्त्रों का आविष्कार किया जा रहा है और निःशस्त्रीकरण के प्रयासों को विफल किया जा रहा है। नि:शस्त्रीकरण के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधाएं इस प्रकार हैं

1. आपसी अविश्वास की समस्या (The problem of mutual distrust):
निःशस्त्रीकरण का लक्ष्य तभी प्राप्त किया जा सकता है जब विश्व के विभिन्न राष्ट्रों में आपसी विश्वास की भावना सुदृढ़ हो। लेकिन दुर्भाग्य से विश्व व्यवस्था में एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर विश्वास नहीं करता। राष्ट्रों के मध्य इसी अविश्वास की भावना के कारण अब तक निःशस्त्रीकरण की दिशा में जितने भी प्रयास किए गए हैं, उनमें डर व अविश्वास साफ़ तौर पर देखा जा सकता है।

2. राष्ट्रीय हित (National Interest):
प्रत्येक राष्ट्र अपने हित को सर्वोपरि महत्त्व देता है। राष्ट्रीय हितों की पूर्ति के बाद ही वह अपनी सीमाओं से बाहर निकलकर किसी आदर्श की बात करता है। उदाहरणार्थ भारत और पाकिस्तान ने व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, क्योंकि दोनों देश पहले अपने हितों को पूरा करना चाहते हैं।

3. विभिन्न राजनीतिक समस्याएं (Various Political Problems):
निःशस्त्रीकरण के प्रयासों में अनेक राजनीतिक समस्याएं बाधा बनती हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि राजनीतिक समस्याओं के कारण राष्ट्रों के मध्य तनाव पैदा होते हैं जिससे कई बार युद्ध की नौबत आ जाती है। इसलिए हथियारों का होना अत्यावश्यक है। राजनीतिक समस्याओं के कारण राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण प्रदूषित हो जाता है। इनके कारण नि:शस्त्रीकरण के प्रयास असफल हो जाते हैं।

4. राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security):
विश्व का प्रत्येक राज्य प्रत्येक दृष्टिकोण से सुरक्षित होना चाहता है। इसके कारण वह सेना व पुलिस बल को अत्याधुनिक बनाने में बिल्कुल भी पीछे नहीं रहना चाहता। कोई भी राष्ट्र अपनी सुरक्षा व्यवस्था को दूसरे के भरोसे नहीं रहने देना चाहता। अतः राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति बढ़ती आशंका शस्त्रीकरण को बढ़ावा देती है।

5. शक्ति के अनुपात की समस्या (Problem of the Ratio of Power):
नि:शस्त्रीकरण के मार्ग में एक कठिनाई शक्ति के अनुपात पर है। निःशस्त्रीकरण में विभिन्न राष्ट्रों द्वारा आनुपातिक रूप से अपने-अपने शस्त्रास्त्रों को कम किया जाता है। परन्तु प्रश्न उत्पन्न होता है कि शस्त्रों में कटौती के लिए किस अनुपात को स्वीकार किया जाए। निःशस्त्रीकरण के उपरान्त यह नहीं होना चाहिए शक्तिशाली देश तो कमजोर बन जाए और कमज़ोर देश शक्तिशाली बन जाए। इसके अतिरिक्त हथियारों को कम करने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। अलग-अलग राष्ट्र हथियारों को कम करने के लिए अलग-अलग मापदण्ड अपनाते हैं, जो कि उचित नहीं है।

6. वर्चस्व की भावना (Instinct of Hegemony) :
अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में प्रत्येक शक्तिशाली राष्ट्र यह चाहता पर उसका वर्चस्व बरकरार रहे। इसलिए वे अपने आपको सैनिक दृष्टि से अत्यधिक मजबूत बनाने का प्रयास करते हैं। इसके लिए शस्त्रों का संग्रह अर्थात् शस्त्रीकरण और नए शस्त्रों की खोजों को बढ़ावा मिलता है। कई राष्ट्र तो हथियारों के व्यापार को खुले तौर पर प्रोत्साहन देते हैं। वर्चस्व की यह भावना नि:शस्त्रीकरण के सभी प्रयासों पर कुठाराघात करती है।

7. प्राथमिकता निर्धारण में कठिनाई (Problem in the determination of the priority):
नि:शस्त्रीकरण की एक प्रमुख समस्या यह है कि राजनीतिक प्रश्नों को पहले सुलझाया जाए या निःशस्त्रीकरण के प्रयास किए जाएं। ये दोनों प्रश्न एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। ये दोनों ही प्रश्न आपसी अविश्वास, तनाव, भय और संघर्ष को बढ़ावा देते हैं। परन्तु वास्तविक प्रश्न यह है कि इन दोनों में से किसे प्राथमिकता दी जाए।

8. आर्थिक कारण (Economic Causes):
आर्थिक तत्त्व भी नि:शस्त्रीकरण के प्रयासों में बाधक बनता है। अमेरिका, फ्रांस, स्वीडन, इंग्लैण्ड इत्यादि अनेक देशों की बड़ी-बड़ी कम्पनियां हथियार बनाने का काम करती हैं। इन कम्पनियों का निरन्तर यह प्रयास रहता है कि उनको अधिक-से-अधिक हथियार बेचने के अवसर प्राप्त हों। इनका तर्क है कि नि:शस्त्रीकरण किया जाता है तो शस्त्र उद्योग बन्द हो जाने से लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे। कई शक्तिशाली देशों की अर्थव्यवस्थाएं तो काफी हद तक शस्त्र उद्योगों पर टिकी हुई हैं। अतः यदि शस्त्र नियन्त्रण के प्रयास किए जाते हैं तो उनको भारी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ेगा।

9. निःशस्त्रीकरण के प्रयासों में ईमानदारी का अभाव (Lack of Honesty in the efforts of Disarma ment):
विभिन्न राज्यों द्वारा निःशस्त्रीकरण की दिशा में अब तक जितने भी प्रयास किए गए हैं, उनमें ईमानदारी व निष्ठा का साफ़ तौर पर अभाव देखा जा सकता है। प्रत्येक राष्ट्र आदर्शों की बात करके दूसरे राष्ट्र को धोखा देने के प्रयास में लगा रहता है। वास्तव में कोई भी राष्ट्र किसी अन्य राष्ट्र की सैन्य-शक्ति का सही आंकलन नहीं कर सकता। राष्ट्रों द्वारा शस्त्र कटौती के लिए प्रस्तुत समझौते में आंकड़े कुछ और होते हैं, जबकि वास्तविकता कुछ और होती है।

10. निष्कर्ष (Conclusion):
इस प्रकार उपरोक्त विवरण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि नि:शस्त्रीकरण की समस्या एक गम्भीर अन्तर्राष्ट्रीय समस्या है और इसके मार्ग में अनेक समस्याएं हैं। अब समय आ गया है कि अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय निःशस्त्रीकरण की दिशा में ईमानदारी, आपसी विश्वास और सहयोग का परिचय दें तथा मानव जाति के अस्तित्व को चिरकाल तक सुरक्षित रहने दें। यह एक सकारात्मक पक्ष है कि आज विश्व जनमत निःशस्त्रीकरण के पक्ष में है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निःशस्त्रीकरण की आवश्यकता के कोई चार कारण लिखिये।
अथवा
निःशस्त्रीकरण क्यों आवश्यक है ? किन्हीं चार कारणों की व्याख्या करें।
उत्तर:

  • विश्व शांति व सुरक्षा के लिए-नि:शस्त्रीकरण के द्वारा ही विश्व-शांति व सुरक्षा की स्थापना संभव है।
  • आर्थिक विकास में सहायक-नि:शस्त्रीकरण के द्वारा विकासशील देश अपना आर्थिक विकास कर सकते हैं।
  • अन्तर्राष्ट्रीय तनाव में कमी-नि:शस्त्रीकरण अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पाये जाने वाले तनावों में कमी करता है।
  • सैनिक गठबन्धनों में कमी-निःशस्त्रीकरण से सैनिक गठबन्धनों में कमी आती है।

प्रश्न 2.
निःशस्त्रीकरण के मार्ग में आने वाली किन्हीं चार बाधाओं का उल्लेख कीजिये।
अथवा
निःशस्त्रीकरण के मार्ग में आने वाली किन्हीं चार प्रमुख समस्याओं का वर्णन करें।
उत्तर:

  • विभिन्न राजनीतिक समस्याएं-नि:शस्त्रीकरण के प्रयासों में अनेक राजनीतिक समस्याएं बाधा बनती हैं।
  • वर्चस्व की भावना-प्रत्येक राष्ट्र की वर्चस्व की भावना नि:शस्त्रीकरण के मार्ग में बाधा पैदा करती है।
  • शक्ति के अनुपात की समस्या-निःशस्त्रीकरण में एक बाधा शक्ति के अनुपात की समस्या है।
  • ईमानदारी का अभाव-निःशस्त्रीकरण के अब तक जितने भी प्रयास किये गए हैं, उनमें ईमानदारी का अभाव साफ़ तौर पर देखा जा सकता है।

प्रश्न 3.
सुरक्षा की पारम्परिक अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सुरक्षा की परंपरागत धारणा में सबसे बड़ी चिंता सैनिक खतरे से सम्बन्धित होती है। इस प्रकार के खतरे का स्रोत कोई दूसरा देश होता है। शत्रु देश दूसरे देश को सैनिक हमले की धमकी देकर उसकी प्रभुसत्ता, अखंडता तथा स्वतंत्रता के लिए खतरा उत्पन्न करता है। इस प्रकार के सैनिक हमले में न केवल सैनिक ही मारे जाते हैं, बल्कि बड़ी संख्या में सामान्य नागरिक भी हताहत होते हैं, तथा करोड़ों रुपये की संपत्ति नष्ट हो जाती है।

सैन्य हमले के साथ साथ आतंकवाद भी सुरक्षा की एक महत्त्वपूर्ण चिंता बनी हुई है। वर्तमान समय में आतंकवाद पूरे विश्व के लिए खतरा बना हुआ है। 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका पर हुए आंतकवादी हमले ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया। भारत भी एक लंबे समय से आतंकवाद का शिकार रहा है। इस प्रकार की परिस्थितियों ने वर्तमान समय में मौजूद चुनौतियों को अधिक गंभीर कर दिया है।।

प्रश्न 4.
शक्ति सन्तुलन क्या है ? व्याख्या करें।
अथवा
‘शक्ति सन्तुलन’ पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
शक्ति सन्तुलन का अर्थ है कि किसी भी देश को इतना सबल नहीं बनने दिया जाए कि वह दूसरों की सुरक्षा के लिए खतरा बन जाए। शक्ति सन्तुलन के अन्तर्गत विभिन्न राष्ट्र अपने आपसी शक्ति सम्बन्धों को बिना शक्ति के हस्तक्षेप के स्वतन्त्रतापूर्वक संचालित करते हैं। इस प्रकार यह एक विकेन्द्रित व्यवस्था है, जिसमें शक्ति,तथा नीतियां निर्माणक इकाइयों के हाथों में ही रखी जाती हैं।

1. सिडनी बी० फे० के अनुसार, “शक्ति सन्तुलन सभी राष्ट्रों में इस प्रकार की व्यवस्था है, कि उनमें से किसी भी सदस्य को इतना सबल बनने से रोका जाए, कि वह अपनी इच्छा को दूसरों पर न लाद सके।”
2. मॉर्गन्थो के अनुसार, “शक्ति सन्तुलन अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में सामान्य सामाजिक सिद्धान्त की अभिव्यक्ति है।”

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प्रश्न 5.
बाहरी खतरों से सम्बन्धित परम्परागत सुरक्षा की धारणा के चार घटक कौन-कौन से हैं ?
अथवा
परम्परागत सुरक्षा के किन्हीं चार तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बाहरी खतरों से सम्बन्धित परम्परागत सुरक्षा की धारणा के चार घटक निम्नलिखित हैं

  • निःशस्त्रीकरण-बाहरी खतरों से सम्बन्धित परम्परागत सुरक्षा की धारणा का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक निःशस्त्रीकरण है।
  • शस्त्र नियन्त्रण-शस्त्र नियन्त्रण द्वारा भी बाहरी खतरों को कम किया जा सकता है।
  • सन्धियां-बाहरी खतरों से सम्बन्धित परम्परागत सुरक्षा की धारणा का एक अन्य महत्त्वपूर्ण घटक सन्धियां हैं, क्योंकि सन्धि द्वारा दो या दो से अधिक देशों में मित्रता हो सकती है।
  • विश्वास बहाली-दो या दो से अधिक देशों द्वारा परस्पर विश्वास बहाली के प्रयासों द्वारा भी बाहरी खतरों को कम किया जा सकता है।

प्रश्न 6.
आन्तरिक सुरक्षा को प्रभावित करने वाले कोई चार कारण लिखें।
उत्तर:

  • आन्तरिक सुरक्षा को प्रभावित करने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व आतंकवाद है।
  • आन्तरिक सुरक्षा को प्रभावित करने वाला दूसरा महत्त्वपूर्ण कारक अलगाववाद है।
  • साम्प्रदायिकता आन्तरिक सुरक्षा के मार्ग में एक बड़ी बाधा मानी जाती है।
  • जातिवादी हिंसा ने भी आन्तरिक सुरक्षा को बहुत अधिक प्रभावित किया है।

प्रश्न 7.
परमाणु अप्रसार सन्धि (NPT) 1968 के किन्हीं चार प्रावधानों की व्याख्या करें।
उत्तर:

  • NPT के नियमों के अनुसार परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र, परमाणु शक्ति विहीन राष्ट्रों को परमाणु बम बनाने की जानकारी नहीं देंगे।
  • परमाणु शक्ति सम्पन्न राज्य परमाणु अस्त्र प्राप्त करने पर परमाणु शक्ति विहीन राज्यों की मदद नहीं करेंगे।
  • परमाणु शक्तिविहीन राष्ट्र परमाणु बम बनाने का अधिकार त्याग देंगे।
  • परमाणु अस्त्रों के परीक्षण और विस्फोटों पर रोक लगाने की अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था स्थापित की जानी चाहिए।

प्रश्न 8.
आतंकवाद किसे कहते हैं ?
उत्तर:
आतंक को अंग्रेजी में ‘टैरर’ (Terror) कहते हैं, जोकि लैटिन भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ आतंक की गतिविधियों से लिया जाता है। सामान्य रूप से जब एक समूह का संगठन अपनी मांगों को मनवाने के लिए, बम विस्फोट, जहाज़ों का अपचालन तथा अनावश्यक रूप से जान-माल की हानि करता है, तो उसे आतंकवाद की घटना कहा जा सकता है। श्वार्जनबर्गर के अनुसार, “एक आतंकवादी घटना को उसके तात्कालिक लक्ष्य के सन्दर्भ में सर्वश्रेष्ठ तरीके से परिभाषित किया जा सकता है। यह लक्ष्य है, डर पैदा करने के लिए शक्ति का प्रयोग करना और अपने लक्ष्यों को पूरा करना।”

प्रश्न 9.
आतंकवाद की वद्धि के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:
1. असमान विकास-सम्पूर्ण विश्व का समान विकास नहीं हुआ है। अधिकांश विकसित देश, विकासशील देशों का शोषण करके अपना विकास कर रहे हैं, जिसके कारण विकासशील देशों के कुछ वर्गों में ऐसी भावनाएं पैदा होती हैं, कि वे आतंकवादी घटनाओं की ओर अग्रसर हो जाते हैं।

2. कट्टरवादिता में वृद्धि-विश्व स्तर पर आतंकवाद की बढ़ती घटनाओं का एक अन्य कारण विभिन्न धर्मों में बढ़ती कट्टरवादिता है जिसके कारण एक धर्म के लोग, अपने धर्म को बचाने के लिए प्रायः हिंसक गतिविधियां करते हैं।

प्रश्न 10.
आतंकवाद को किस तरह रोका जा सकता है ? कोई चार उपाय बताएं।
उत्तर:

  • विश्व का एक समान विकास करना चाहिए, ताकि कोई भी देश या उस देश के लोग अपने आप को उपेक्षित अनुभव न करें।
  • देशों को ऐसे प्रयास करने चाहिए कि लोगों में नस्ल, धर्म, जाति एवं भाषा के आधार पर कट्टरवादिता न बढ़े।
  • विश्व स्तर पर ग़रीबी एवं निरक्षरता को कम करने का प्रयास करना चाहिए।
  • आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए विभिन्न देशों को कानून बनाने चाहिएं।

प्रश्न 11.
विश्व की सुरक्षा की दृष्टि से किन्हीं चार खतरों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विश्व की सुरक्षा की दृष्टि से चार खतरे निम्नलिखित हैं

  • अकाल, महामारी एवं प्राकृतिक आपदा
  • अभाव तथा भय
  • वैश्विक तापवृद्धि तथा अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद
  • एड्स तथा बर्ड फ्लू।

प्रश्न 12.
वैश्विक ग़रीबी पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
विश्व में आज सबसे बड़ी समस्याओं में से एक वैश्विक ग़रीबी है। यद्यपि ग़रीबी सम्पूर्ण विश्व में पाई जाती है। परन्तु विकासशील तथा नवस्वतन्त्रता प्राप्त देशों में यह अधिक खतरनाक रूप में विद्यमान है। अधिकांश विकासशील देशों में लोगों को खाद्य पदार्थ प्राप्त नहीं हैं, जिसके कारण उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। विभिन्न देशों में रोजगार के अवसर सीमित हैं, जिसके कारण सभी लोगों को रोज़गार नहीं मिल पाता।

अत: वे लोग ग़रीबी की अवस्था में जीवन बिताने के लिए विवश रहते हैं। वर्तमान समय में लगभग 1.2 बिलियन जनसंख्या को प्रतिदिन केवल एक डॉलर पर ही गुजारा करना पड़ता है। इस आंकड़े से विश्व में गरीबी की भयंकर स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। ग़रीबी के कारण विकासशील देशों के लोगों को कुपोषण, भुखमरी तथा महामारी इत्यादि से समय-समय पर जूझना पड़ता है। ग़रीबी के कारण लोगों में असुरक्षा की भावना पाई जाती है, तथा वे गलत कार्यों की ओर आकर्षित होने लगते हैं।

प्रश्न 13.
मानवाधिकारों से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
लॉस्की के अनुसार, अधिकार सामाजिक जीवन की वे परिस्थितियां हैं जिनके बिना कोई मनुष्य अपना पूर्ण विकास नहीं कर सकता। निःसन्देह यह मानवाधिकारों की अत्यन्त व्यापक व्याख्या है। लेकिन कुछ विद्वानों का मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी होनी चाहिएं। उसे सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षणिक, इत्यादि क्षेत्र में अपने स्वाभाविक विकास के पर्याप्त अवसर मिलने चाहिएं। ये अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को नस्ल, जाति, धर्म, वंश, रंग, लिंग, भाषा इत्यादि के भेदभाव के बिना मिलने चाहिएं।

प्रश्न 14.
मानवाधिकार की चार प्रमुख श्रेणियों का वर्णन करें।
उत्तर:
1. राजनीतिक अधिकार-राजनीतिक अधिकारों में वोट का अधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार तथा सरकार की आलोचना करने इत्यादि का अधिकार शामिल है।

2. नागरिक अधिकार-नागरिक अधिकारों में कानून के समक्ष समानता का अधिकार, बिना भेदभाव के समान अधिकारों का अधिकार, जीवन का अधिकार तथा स्वतन्त्रता इत्यादि का अधिकार शामिल है।

3. सामाजिक आर्थिक अधिकार-इन अधिकारों में शिक्षा का अधिकार, विवाह करने एवं परिवार बनाने का अधिकार, काम का अधिकार तथा विश्राम का अधिकार इत्यादि शामिल है।

4. मानवाधिकारों की चौथी श्रेणी में जातीय व धार्मिक समूहों एवं पराधीन राष्ट्रों के अधिकार शामिल हैं।

प्रश्न 15.
भारत मानव अधिकारों का प्रबल समर्थक क्यों हैं ? कोई तीन कारण बताकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत निम्नलिखित कारणों से मानव अधिकारों का समर्थन करता है

  • आधुनिक राज्य मानव अधिकारों के बिना न तो विकास कर सकते हैं और न ही शान्ति व्यवस्था कायम कर सकते हैं।
  • मानवीय विकास एवं प्रगति के लिए मानव अधिकार आवश्यक है।
  • भारतीय विदेश नीति विश्व शान्ति एवं मानवता के उत्थान पर आधारित है, इसलिए भी भारत मानव अधिकारों का समर्थन करता है।

प्रश्न 16.
‘प्रवासन’ क्या है? प्रवासन के कोई तीन कारण लिखें।
उत्तर:
प्रवासन का अर्थ है-प्रवासन से हमारा अभिप्राय एक देश के अधिकाधिक लोगों के बेहतर जीवन, विशेष तौर पर आर्थिक अवसरों की तलाश में विकसित देशों या अन्य देशों की ओर पलायन है। परन्तु इससे प्रवासन तथा इससे सम्बन्धित अधिकारों की समस्याएं पैदा हो गई हैं। अधिकांश विकसित देश लगातार अपने प्रवासन कानूनों को जटिल बना रहे हैं ताकि प्रवासियों की संख्या को कम किया जा सके। इसके साथ-साथ प्रवासन के समय प्रवासियों को कई प्रकार के संकटों एवं मानवाधिकारों के उल्लंघन का सामना करना पड़ता है।

प्रवासन के कारण-

  • प्रवासन का प्रथम कारण रोज़गार की तलाश है।
  • जनसंख्या की वृद्धि के कारण भी प्रवासन होता है।
  • सुरक्षा मुद्दे के कारण भी प्रवासन होता है।

प्रश्न 17.
मानव सुरक्षा (Human Security) से सम्बन्धित किन्हीं चार खतरों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
1. आतंकवाद-आतंकवाद मानव सुरक्षा के खतरों का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। वर्तमान समय में संपूर्ण विश्व की सुरक्षा आतंकवाद के कारण खतरे में है।

2. वैश्विक तापवृद्धि-वैश्विक तापवृद्धि (Global Warming) मानव सुरक्षा के खतरे का एक अन्य नया स्रोत है। वैश्विक तापवृद्धि के कारण विश्व का पर्यावरण लगातार खराब हो रहा है जिससे कई प्रकार की नई समस्याएँ पैदा हो रही हैं।

3. नई महामारियाँ-मानव सुरक्षा के नये खतरों के स्रोत में कुछ नई महामारियों को भी शामिल किया जा सकता है। उदाहरण के लिए बर्ड फ्लू तथा स्वाइन फ्लू ने पिछले वर्षों से विश्व-भर में आतंक मचा रखा है।

4. जनसंहार-मानव सुरक्षा के खतरों में जनसंहार को भी शामिल किया जाता है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निःशस्त्रीकरण किसे कहते हैं ?
उत्तर:
नि:शस्त्रीकरण का अर्थ शारीरिक हिंसा के प्रयोग के समस्त भौतिक तथा मानवीय साधनों के उन्मूलन से है। सैनिक शक्ति से सम्बन्धित किसी भी तरह के नियन्त्रण अथवा प्रतिबन्ध लगाने के कार्य को निःशस्त्रीकरण कहा जाता है। निःशस्त्रीकरण से हथियारों की सीमा निश्चित करने या उन पर नियन्त्रण करने या उन्हें कम करने का विचार प्रकट होता है। नि:शस्त्रीकरण का अर्थ है जो भी हथियार इस समय हैं उनके प्रभाव को कम कर दिया जाए।

प्रश्न 2.
निःशस्त्रीकरण क्यों आवश्यक है ?
उत्तर:
निःशस्त्रीकरण का अर्थ है अस्त्रों-शस्त्रों का अभाव या अस्त्रों-शस्त्रों को नष्ट करना। वर्तमान में विश्व परमाणु अस्त्रों के भण्डार पर बैठा है। इसलिए निःशस्त्रीकरण आवश्यक है।

(1) शीत युद्ध के दौरान दोनों पक्षों ने अत्याधुनिक अस्त्रों-शस्त्रों का निर्माण किया है। यदि निःशस्त्रीकरण के द्वारा इन हथियारों को नष्ट न किया गया तो इसका प्रयोग मानव जाति के अस्तित्व के लिए भयावह सिद्ध होगा।

(2) विश्व के अधिकांश देश शस्त्रीकरण पर प्रतिवर्ष अरबों डालर खर्च कर देते हैं यदि यही धन विश्व में पाई जाने वाली ग़रीबी, पौष्टिक भोजन और बीमारी पर खर्च हो तो मानव जाति को इन भयानक रोगों से मुक्ति दिलाई जा सकती है।

प्रश्न 3.
निःशस्त्रीकरण के मार्ग में आने वाली तीन कठिनाइयां लिखें।
उत्तर:

  • महाशक्तियों में अस्त्र-शस्त्रों के आधुनिकीकरण के प्रति मोह का होना।
  • एक-दूसरे के प्रति अविश्वास की भावना।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा की आवश्यकता।

प्रश्न 4.
वैश्वीकरण के भारत पर पड़ने वाले कोई दो प्रभाव बताओ।
उत्तर:

  • वैश्वीकरण के कारण भारत में विदेशी पूंजी निवेश बढ़ा है। इससे रोजगार के नए-नए अवसर पैदा हुए हैं।
  • वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप मुद्रा स्फीति की दर कम हुई है।

प्रश्न 5.
सुरक्षा से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
साधारण शब्दों में सुरक्षा का अर्थ खतरे या संकट से स्वतन्त्रता से लिया जाता है। परन्तु प्राचीन काल से अब तक तथा विश्व के अलग-अलग देशों में सुरक्षा का अलग-अलग अर्थ लिया जाता है।

प्रश्न 6.
सुरक्षा की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
पामर व परकिन्स के अनुसार, “सुरक्षा का स्पष्ट अर्थ है, शान्ति के खतरे से निपटने के लिए उपाय करना।”

प्रश्न 7.
सुरक्षा की पारम्परिक धारणा का वर्णन करें।
उत्तर:
सुरक्षा की पारम्परिक धारणा का सम्बन्ध मुख्य रूप से बाहरी खतरों से है। इस धारणा में एक-दूसरे को दूसरे देश के सैन्य खतरे की चिन्ता सताती रहती है। अर्थात् सुरक्षा की पारम्परिक धारणा में खतरे का स्रोत विदेशी देश होता है।

प्रश्न 8.
युद्ध की स्थिति में किसी देश के पास कितने विकल्प होते हैं ?
उत्तर:
युद्ध की स्थिति में किसी देश के पास मुख्यतः तीन विकल्प होते हैं

  • आत्मसमर्पण करना,
  • आक्रमणकारी देश की शर्ते मानना,
  • आक्रमणकारी देश को युद्ध में हराना।

प्रश्न 9.
शक्ति सन्तुलन के कोई दो महत्त्व बताएं।
उत्तर:

  • शक्ति सन्तुलन युद्ध की सम्भावना को कम करता है।
  • शक्ति सन्तुलन कमज़ोर राष्ट्रों को सुरक्षा प्रदान करता है।

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प्रश्न 10.
गठबन्धन से आप क्या अर्थ लेते हैं ?
अथवा
गठबन्धन क्यों बनाए जाते हैं ?
उत्तर:
गठबन्धन पारम्परिक सुरक्षा की एक महत्त्वपूर्ण धारणा है। एक गठबन्धन में कई देश सम्मिलित होते हैं। गठबन्धनों को लिखित नियमों एवं उपनियमों द्वारा एक औपचारिक रूप दिया जाता है। प्रत्येक देश गठबन्धन प्रायः अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए करता है।

प्रश्न 11.
राष्ट्रीय हितों के बदलने पर निष्ठाएं भी बदल जाती हैं। उदाहरण देकर व्याख्या करें।
उत्तर:
राष्ट्रीय हितों के बदलने पर प्रायः निष्ठाएं भी बदल जाती हैं। उदाहरण के लिए 1980 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका ने सोवियत संघ के विरुद्ध तालिबान का समर्थन किया, परन्तु 9/11 की घटना के बाद अमेरिका ने तालिबान और अलकायदा के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया।

प्रश्न 12.
नवस्वतन्त्रता प्राप्त देशों के सामने सुरक्षा की क्या समस्याएं आईं थीं ?
उत्तर:

  • नवस्वतन्त्रता प्राप्त देशों के सामने सबसे बड़ी समस्या इन देशों के भीतर उठने वाले अलगाववादी आन्दोलन थे।
  • नवस्वतन्त्रता प्राप्त देशों को अलगाववादी आन्दोलन के साथ-साथ पड़ोसी देशों के साथ पाए जाने वाले तनावपूर्ण सम्बन्धों का भी सामना करना पड़ रहा था।

प्रश्न 13.
किन दो प्रकार के खतरनाक हथियारों के निर्माण पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है ?
उत्तर:

  • जैविक हथियारों के निर्माण को रोकने के लिए 1972 में जैविक हथियार सन्धि (Biological Weapons Convention) की गई।
  • रासायनिक हथियारों के निर्माण को रोकने के लिए 1992 में रासायनिक हथियार सन्धि (Chemical Weapon Conventions) की गई।

प्रश्न 14.
एंटी बैलेस्टिक प्रक्षेपास्त्र सन्धि (ABM) किन दो देशों के बीच हुई ?
उत्तर:
एंटी बैलेस्टिक प्रक्षेपास्त्र सन्धि शीत युद्ध के दौरान (1972) संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत संघ के बीच हुई थी। इस सन्धि के द्वारा दोनों देशों ने बैलेस्टिक प्रक्षेपास्त्रों को रक्षा कवच के रूप में प्रयोग करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। अतः इस सन्धि ने बैलेस्टिक प्रक्षेपास्त्रों के व्यापक उत्पादन पर रोक लगा दी।

प्रश्न 15.
सुरक्षा की गैर-परंपरागत अवधारणा क्या है ?
उत्तर:
सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा के विषय में यह कहा जाता है, कि केवल राज्यों को ही सुरक्षा की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि सम्पूर्ण मानवता को सुरक्षा की आवश्यकता होती है। अतः सुरक्षा की अपारम्परिक धारणा में सम्पूर्ण मानवता को हानि पहुंचाने वाले खतरों को शामिल किया है।

प्रश्न 16.
नागरिक सुरक्षा एवं राज्य सुरक्षा में कोई दो सम्बन्ध बताएं।
उत्तर:

  • नागरिक सुरक्षा एवं राज्य सुरक्षा एक-दूसरे के पूरक हैं।
  • राज्य सुरक्षा पर नागरिक सुरक्षा को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

प्रश्न 17.
विश्व सुरक्षा की धारणा की उत्पत्ति के कोई दो कारण बताएं।
उत्तर:

  • विश्व को निरन्तर वैश्विक तापन, आतंकवाद, महामारियां तथा गृहयुद्ध की समस्याओं ने विश्व सुरक्षा की धारणा पैदा की है।
  • इन समस्याओं का सामना कोई एक देश अकेले नहीं कर सकता, अतः सभी देशों ने मिलकर विश्व सुरक्षा का दायित्व लिया है।

प्रश्न 18.
‘आन्तरिक रूप से विस्थापित जन’ से आप क्या लेते हैं ?
उत्तर:
‘आन्तरिक रूप से विस्थापित जन’ उन्हें कहा जाता है, जो अपने मूल निवास से तो विस्थापित हो चुके हों परन्तु, उन्होंने उसी देश में किसी अन्य भाग पर शरणार्थी के रूप में रहना शुरू कर दिया है। कश्मीरी पण्डित ‘आन्तरिक रूप से विस्थापित जन माने जाते हैं।’

प्रश्न 19.
मैड काऊ (Mad Cow) की घटना के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
1990 के दशक में इंग्लैण्ड में जानवरों में फैलने वाली बीमारी को मैड काऊ (Mad Cow) कहा जाता है। इस महामारी के कारण इंग्लैण्ड को बहुत अधिक आर्थिक हानि उठानी पड़ी।

प्रश्न 20.
क्योटो प्रोटोकोल की व्याख्या करें।
उत्तर:
वैश्विक तापन की समस्या से निपटने के लिए 1997 में भारत सहित कई देशों ने क्योटो प्रोटोकोल पर हस्ताक्षर किये थे। क्योटो प्रोटोकोल के अनुसार ग्रीन हाऊस गैस के उत्सर्जन को कम करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किये गए थे।

प्रश्न 21.
स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
विश्व के अधिकांश देशों को आज स्वास्थ्य से सम्बन्धित समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। पिछले कुछ वर्षों में लगभग 20 मिलियन लोगों की मृत्यु ऐसी बीमारियों से हुई, जिनका इलाज सम्भव था, इससे स्पष्ट है कि आर्थिक सम्पन्नता, चिकित्सा एवं वैज्ञानिक उन्नति का सभी लोगों को फायदा नहीं मिल रहा। आज भी विकासशील देशों के लोग चेचक, हैजा, प्लेग तथा एड्स जैसी बीमारियों से पीड़ित हैं।

प्रश्न 22.
विश्व स्तर पर शिक्षा की समस्या पर नोट लिखें।
उत्तर:
वर्तमान समय में विश्व के सभी लोगों को शिक्षा देना भी एक गम्भीर समस्या बनी हुई है। विश्व के अधिकांश देशों विशेषकर विकासशील देशों में बहुत अधिक निरक्षरता पाई जाती है। अशिक्षित व्यक्ति चालाक लोगों की बातों में आकर गलत कार्य करने लगते हैं। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र संघ के एक महत्त्वपूर्ण अभिकरण यूनेस्को ने विश्व स्तर पर शिक्षा की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली है।

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प्रश्न 23.
‘प्रवासन’ (माइग्रेशन) का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रवासन से हमारा अभिप्राय एक देश के अधिकाधिक लोगों के बेहतर जीवन, विशेष तौर पर आर्थिक अवसरों की तलाश में विकसित देशों या अन्य देशों की ओर पलायन है। परन्तु इससे प्रवासन तथा इससे सम्बन्धित अधिकारों की समस्याएं पैदा हो गई हैं। अधिकांश विकसित देश लगातार अपने प्रवासन कानूनों को जटिल बना रहे हैं ताकि प्रवासियों की संख्या को कम किया जा सके। इसके साथ-साथ प्रवासन के समय प्रवासियों को कई प्रकार के संकटों एवं मानवाधिकारों के उल्लंघन का सामना करना पड़ता है।

प्रश्न 24.
‘आन्तरिक रूप से विस्थापित जन’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जो लोग अपना घर-बार छोड़कर राष्ट्रीय सीमा के अन्दर ही कहीं और रहते हों, उन्हें ‘आन्तरिक रूप से विस्थापित जन’ कहते हैं ।

प्रश्न 25.
मानव सुरक्षा का (Human Security) किसे कहते हैं ?
उत्तर:
मानव सुरक्षा का अर्थ है कि एक व्यक्ति की हर प्रकार से रक्षा की जाए, अर्थात् व्यक्ति की गरीबी, भूख, बेरोज़गारी तथा आतंक से रक्षा की जाए।

प्रश्न 26.
युद्ध से आप क्या अर्थ लेते हैं ? इसके क्या परिणाम होते हैं ?
उत्तर:
दो या दो से अधिक देशों के बीच विनाशकारी अस्त्रों-शस्त्रों से होने वाले झगड़े को युद्ध की संज्ञा दी जाती है। युद्ध के परिणामस्वरूप अत्यधिक विनाश एवं जान माल की क्षति होती है। युद्ध के कारण कई लोग विकलांगता के शिकार हो जाते हैं तथा महिलाएं विधवा हो जाती हैं। अधिकांश लोगों को कई प्रकार की बीमारियां जकड़ लेती हैं। युद्ध के परिणामस्वरूप शहर के शहर तथा गांव के गांव नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 27.
संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानवाधिकारों की घोषणा कब की ? किन्हीं दो मानवाधिकारों के नाम लिखो।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानवाधिकारों की घोषणा 10 दिसम्बर, 1948 को की। दो महत्त्वपूर्ण मानवाधिकारों के नाम इस प्रकार हैं

  • जीवन की सुरक्षा तथा स्वतन्त्रता का अधिकार।
  • विवाह करने एवं पारिवारिक जीवन का अधिकार।

प्रश्न 28.
गठबन्धन मुख्य रूप से किस पर आधारित होता है ?
उत्तर:
गठबन्धन प्रायः राष्ट्रीय हितों पर आधारित होते हैं तथा राष्ट्रीय हितों के बदलने पर गठबन्धन भी बदल जाते हैं।

प्रश्न 29.
परम्परागत सुरक्षा के किन्हीं चार तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
परम्परागत सुरक्षा के चार तत्त्वों का उल्लेख इस प्रकार है

  • निःशस्त्रीकरण-बाहरी खतरों से सम्बन्धित परम्परागत सुरक्षा की धारणा का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक निःशस्त्रीकरण है।
  • शस्त्र नियन्त्रण-शस्त्र नियन्त्रण द्वारा भी बाहरी खतरों को कम किया जा सकता है।
  • सन्धियां-बाहरी खतरों से सम्बन्धित परम्परागत सुरक्षा की धारणा का एक अन्य महत्त्वपूर्ण घटक नि:शस्त्रीकरण।
  • विश्वास बहाली–दो या दो से अधिक देशों द्वारा परस्पर विश्वास बहाली के प्रयासों द्वारा भी बाहरी खतरों को कम किया जा सकता है।

प्रश्न 30.
वर्तमान में विश्व के समक्ष किन्हीं चार प्रमुख खतरों के नाम लिखें।
अथवा
किन्हीं चार विश्वव्यापी खतरों के नाम लिखें।
उत्तर:

  • अकाल, महामारी, प्राकृतिक आपदाओं,
  • अभाव तथा भय,
  • वैश्विक तापवृद्धि तथा अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद,
  • एड्स तथा बर्ड फ्लू से खतरा है।

प्रश्न 31.
विश्वास बहाली की प्रक्रिया से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
विश्वास की बहाली से हमारा अभिप्राय परस्पर प्रतिद्वंद्विता वाले राष्ट्रों के द्वारा अपने प्रतिद्वंद्वी राष्ट्र का विश्वास प्राप्त करने के प्रयत्न करने से है। इसके द्वारा परस्पर विरोधी राष्ट्रों में हिंसात्मक गतिविधियों को कम किया जा सकता है। इसके अन्तर्गत विभिन्न राष्ट्र सैन्य टकराव और प्रतिद्वंद्विता को टालने के उद्देश्य से सूचनाओं तथा विचारों का नियमित आदान-प्रदान करते हैं। ऐसे राष्ट्र अपने सैन्य उद्देश्य व लक्ष्य तथा सीमित मात्रा में सामरिक योजनाओं के विषय में भी जानकारी उपलब्ध करवाते हैं।

प्रश्न 32.
भारतीय संसद् पर आतंकवादी हमला कब हुआ था?
उत्तर:
भारतीय संसद् पर आतंकवादी हमला 13 दिसम्बर, 2001 को हुआ था।

प्रश्न 33.
भारत की सुरक्षा नीति के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:
भारत दक्षिण एशिया का एक महत्त्वपूर्ण देश है। भारत को पारम्परिक और अपारम्परिक दोनों प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ रहा है। अत: भारत ने सरक्षा की दृष्टि से कछ महत्त्वपूर्ण प्रयास किए हैं।

(1) भारत ने अपनी सैन्य शक्ति को मज़बूत बनाया है तथा लगातार उसे आधुनिक बनाने में लगा हुआ है। भारत के दो महत्त्वपूर्ण पड़ोसियों के पास परमाणु हथियार हैं। अतः अपनी सुरक्षा के लिए भारत ने भी परमाणु हथियारों का निर्माण किया है।

(2) भारत ने सुरक्षा की दृष्टि से अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं एवं कानूनों को और अधिक प्रभावशाली बनाने का प्रयास किया है।

प्रश्न 34.
युद्ध की स्थिति में किसी देश के पास मुख्य विकल्प क्या होते हैं ?
उत्तर:

  • युद्ध के आक्रमणकारी देश को हराना।
  • समर्थक न होने पर आत्म-समर्पण कर देना।

वस्तुनिष्ठ

1. सुरक्षा का अर्थ है
(A) अधीनता से आजादी
(B) खतरे से आज़ादी
(C) समानता से आजादी
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(B) खतरे से आज़ादी।

2. वर्तमान समय में मानव जाति को किससे खतरा है ?
(A) परमाणु हथियारों से
(B) आतंकवाद से
(C) प्राकृतिक आपदाओं से
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

3. 11 सितम्बर, 2001 को किस देश पर आतंकवादी हमला हुआ ?
(A) भारत
(B) पाकिस्तान
(C) रूस
(D) संयुक्त राज्य अमेरिका।
उत्तर:
(D) संयुक्त राज्य अमेरिका।

4. भारत के कितने पड़ोसी देशों के पास परमाणु हथियार हैं ?
(A) 2
(B) 4
(C) 5
(D) 6.
उत्तर:
(A) 2.

5. भारत समर्थन करता है ?
(A) युद्ध का
(B) निःशस्त्रीकरण का
(C) आतंकवाद का
(D) परमाणु हथियारों का।
उत्तर:
(B) नि:शस्त्रीकरण का।

6. व्यापक परमाणु परीक्षण सन्धि (C.T.B.T.) पर हस्ताक्षर करने की शुरुआत किस वर्ष हुई ?
(A) 1996
(B) 1998
(C) 2000
(D) 2002.
उत्तर:
(A) 1996.

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा

7. भारतीय संसद् पर आतंकवादी हमला कब हुआ ?
(A) जनवरी, 2001
(B) मार्च, 2001
(C) जून, 2001
(D) दिसम्बर, 2001.
उत्तर:
(D) दिसम्बर, 2001.

8. विश्व की सुरक्षा को किससे खतरा है ?
(A) आतंकवाद से
(B) ग़रीबी से
(C) परमाणु शस्त्रों से
(D) उपरोक्त सभी से।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी से।

9. वैश्विक सुरक्षा को किससे खतरा है ?
(A) आतंकवाद से
(B) ग़रीबी से
(C) शस्त्रीकरण से
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

10. सीमित परमाणु परीक्षण संधि (L.T.B.T.) किस वर्ष की गई ?
(A) सन् 1963 में
(B) सन् 1965 में
(C) सन् 1970 में
(D) सन् 1975 में।
उत्तर:
(A) सन् 1963 में।

11. परमाणु अप्रसार संधि (N.P.T.) कब की गई ?
(A) सन् 1965 में
(B) सन् 1968 में
(C) सन् 1970 में
(D) सन् 1971 में।
उत्तर:
(B) सन् 1968 में।

12. शक्ति सन्तुलन स्थापित करने के तरीके हैं
(A) गठजोड़
(B) निःशस्त्रीकरण
(C) क्षतिपूर्ति
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

13. विश्व में उभरने वाला खतरे का नया स्त्रोत है
(A) एड्स
(B) आतंकवाद
(C) स्वाइन फ्लू
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

14. किस देश ने अभी तक ‘व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध संधि’ (C.T.B.T.) पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं?
(A) ब्रिटेन
(B) फ्रांस
(C) भारत
(D) अमेरिका।
उत्तर:
(C) भारत।

15. “सुरक्षा का अर्थ है शान्ति के खतरे से निपटने के लिए उपाय करना।” यह कथन किसका है ?
(A) लॉस्की
(B) पामर व परकिन्स
(C) सेबाइन
(D) बेंथम।
उत्तर:
(B) पामर व परकिन्स।

16. निम्नलिखित सैन्य संगठन अभी भी मौजूद है :
(A) नाटो (NATO)
(B) सीटो (SEATO)
(C) वारसा पैक्ट (Warsaw Pact)
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) नाटो (NATO).

17. संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) द्वारा मानव-अधिकारों की घोषणा कब की गई ?
(A) 10 दिसम्बर, 1948 को
(B) 15 अगस्त, 1947 को
(C) 24 अक्तूबर, 1945 को
(D) 1 मई, 1950 को।
उत्तर:
(A) 10 दिसम्बर, 1948 को।

18. ‘आतंकवाद’ सुरक्षा के लिये किस प्रकार का खतरा है ?
(A) परम्परागत खतरा
(B) अपरम्परागत खतरा
(C) उपरोक्त दोनों
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(B) अपरम्परागत खतरा।

19. “अन्तिम ग़रीबी समस्त मानव समुदाय के लिए बड़ी समस्या है।” यह कथन किसका है ?
(A) बान की मून
(B) कौफी अन्नान
(C) पं० नेहरू
(D) सरदार पटेल।
उत्तर:
(B) कौफी अन्नान।

20. निम्नलिखित में से कौन-सा सुरक्षा की पारम्परिक धारणा का उपाय नहीं है ?
(A) प्रतिरक्षा
(B) शक्ति सन्तुलन
(C) असीमित सत्ता
(D) नि:शस्त्रीकरण।
उत्तर:
(C) असीमित सत्ता।।

21. पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने पुलवामा में आतंकी हमला कब किया ?
(A) 14 फरवरी, 2019
(B) 4 फरवरी, 2018
(C) 14 फरवरी, 2017
(D) 14 फरवरी, 2016.
उत्तर:
(A) 14 फरवरी, 2019.

22. भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान में स्थित आतंकी ठिकाने बालाकोट पर कब हमला किया ?
(A) 26 फरवरी, 2019
(B) 26 फरवरी, 2018
(C) 26 फरवरी, 2017
(D) 26 फरवरी, 2016.
उत्तर:
(A) 26 फरवरी, 2019.

23. आन्तरिक सुरक्षा को कौन-सा तत्व प्रभावित करता है ?
(A) अलगाववाद
(B) आतंकवाद
(C) भूमि-पुत्र का सिद्धान्त
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

24. भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना कब हुई ?
(A) 1993 में
(B) 1994 में
(C) 1990 में
(D) 1996 में।
उत्तर:
(A) 1993 में।

25. मानववाद के प्रति भारत का दृष्टिकोण
(A) सकारात्मक रहा है
(B) विरोधी रहा है
(C) उदासीन रहा है
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) सकारात्मक रहा है।

26. निम्नलिखित में से कौन-सा सुरक्षा की पारम्परिक धारणा का उपाय नहीं है?
(A) प्रतिरक्षा
(B) शक्ति सन्तुलन
(C) असीमित सत्ता
(D) निःशस्त्रीकरण।
उत्तर:
(C) असीमित सत्ता।

27. भारत ने प्रथम परमाणु परीक्षण कब किया?
(A) 1974 में
(B) 1978 में
(C) 1980 में
(D) 1985 में।
उत्तर:
(A) 1974 में।

28. निम्न में से एक विश्वव्यापी खतरा है ?
(A) आतंकवाद
(B) वैश्विक तापवृद्धि
(C) विश्वव्यापी ग़रीबी
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

29. सुरक्षा की पारम्परिक अवधारणा का अभिप्राय है ?
(A) शक्ति सन्तुलन
(B) सैन्य संगठनों का निर्माण
(C) निःशस्त्रीकरण
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

30. संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानवाधिकारों की घोषणा की।
(A) सन् 1945 में
(B) सन् 1947 में
(C) सन् 1948 में
(D) सन् 1950 में।
उत्तर:
(C) सन् 1948 में।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा

31. भारत समर्थन करता है।
(A) युद्ध का
(B) आतंकवाद का
(C) परमाणु हथियारों का
(D) नि:शस्त्रीकरण का।
उत्तर:
(D) नि:शस्त्रीकरण का।

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

(1) सुरक्षा का अर्थ ……………. से आजादी है।
उत्तर:
खतरे

(2) भारतीय संसद् पर आतंकवादी हमला सन् ……….. में हुआ।
उत्तर:
2001

(3) भारत की गरीबी का एक मुख्य कारण उसकी ………… जनसंख्या है।
उत्तर:
बढ़ती

(4) भारत निःशस्त्रीकरण का ………… करता है।
उत्तर:
समर्थन

(5) विश्व में …………. ‘मानव अधिकार दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
उत्तर:
10 दिसम्बर

(6) भारत की ग़रीबी का मुख्य कारण उसकी बढ़ती हुई ………….. है।
उत्तर:
जनसंख्या

(7) …………… वैश्विक सुरक्षा के लिए एक खतरा है।
उत्तर:
आतंकवाद

(8) विश्व में …………… अपनी सुरक्षा पर सबसे अधिक धन खर्च करता है।
उत्तर:
अमेरिका।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानवाधिकारों की घोषणा कब की ?
उत्तर:
10 दिसम्बर, 1948 को।

प्रश्न 2.
वर्तमान में विश्व के समक्ष प्रमुख खतरा कौन-सा है ?
उत्तर:
आतंकवाद।

प्रश्न 3.
क्या एड्स व बर्ड-फ्लू विश्व-सुरक्षा के लिए कोई खतरा है या नहीं ?
उत्तर:
एड्स व बर्ड-फ्लू विश्व-सुरक्षा के लिए गम्भीर खतरा है।

प्रश्न 4.
विश्व सुरक्षा का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
विश्व सुरक्षा का अर्थ है, विश्व की खतरों से मुक्ति।

प्रश्न 5.
‘क्षेत्रीय सुरक्षा’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
किसी क्षेत्र विशेष की रक्षा को क्षेत्रीय सुरक्षा कहा जाता है।

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HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा

HBSE 12th Class Political Science समकालीन विश्व में सरक्षा Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पदों को उनके अर्थ से मिलाएँ
(i) विश्वास बहाली के उपाय (कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजर्स –CBMs) – (क) कुछ खास हथियारों के इस्तेमाल से परहेज़
(ii) अस्त्र-नियन्त्रण – (ख) राष्ट्रों के बीच सुरक्षा-मामलों पर सूचनाओं के आदान-प्रदान की नियमित प्रक्रिया
(iii) गठबन्धन – (ग) सैन्य हमले की स्थिति से निबटने अथवा उसके अपरोध के लिए कुछ राष्ट्रों का आपस में मेल करना।
(iv) निःशस्त्रीकरण – (घ) हथियारों के निर्माण अथवा उनको हासिल करने पर अंकुश।
उत्तर:
(i) विश्वास बहाली के उपाय (कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजर्स -CBMs) – (ख) राष्ट्रों के बीच सुरक्षा मामलों पर सूचनाओं के आदान प्रदान की नियमित प्रक्रिया।
(ii) अस्त्र-नियन्त्रण – (घ) हथियारों के निर्माण अथवा उनको हासिल करने पर अंकुश
(iii) गठबन्धन – (ग) सैन्य हमले की स्थिति से निबटने अथवा उसके अपरोध के लिए कुछ राष्ट्रों का आपस में मेल करना।
(iv) नि:शस्त्रीकरण – (क) कुछ खास हथियारों के इस्तेमाल से परहेज़।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से किसको आप सुरक्षा का परम्परागत सरोकार/सुरक्षा का अपारम्परिक सरोकार/ खतरे की स्थिति नहीं का दर्जा देंगे
(क) चिकेनगुनिया/डेंगी बुखार का प्रसार
(ख) पड़ोसी देश से कामगारों की आमद
(ग) पड़ोसी राज्य से कामगारों की आमद
(घ) अपने इलाके को राष्ट्र बनाने की माँग करने वाले समूह का उदय
(ङ) अपने इलाके को अधिक स्वायत्तता दिए जाने की माँग करने वाले समूह का उदय।
(च) देश की सशस्त्र सेना को आलोचनात्मक नज़र से देखने वाला अखबार।
उत्तर:
(क) अपारम्परिक सरोकार
(ख) पारम्परिक सरोकार
(ग) खतरे की स्थिति नहीं
(घ) अपारम्परिक सरोकार
(ङ) खतरे की स्थिति नहीं
(च) पारम्परिक सरोकार।

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प्रश्न 3.
परम्परागत और अपारम्परिक सुरक्षा में क्या अन्तर है ? गठबन्धनों का निर्माण करना और उनको बनाये रखना इनमें से किस कोटि में आता है ?
अथवा
सुरक्षा की पारम्परिक और अपारम्परिक अवधारणा में कोई चार अंतर बताइये।
अथवा
सुरक्षा की पारम्परिक और अपारम्परिक अवधारणाओं में कोई चार अन्तर लिखिए।
उत्तर:
परम्परागत और अपारम्परिक सुरक्षा में निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं

पारम्परिक सुरक्षाअपारम्परिक सुरक्षा
(1) पारम्परिक सुरक्षा की धारणा का सम्बन्ध मुख्य रूप से बाहरी खतरों से होता है।(1) अपारम्परिक सुरक्षा की धारणा में केवल बाहरी खतरा ही नहीं, बल्कि अन्य खतरनाक खतरों एवं घटनाओं को भी शामिल किया जाता है।
(2) पारम्परिक सुरक्षा की धारणा में एक देश को दूसरे देश के सैन्य खतरे की चिन्ता रहती है।(2) अपारम्परिक सुरक्षा की धारणा में एक देश को केवल दूसरे देश के सैन्य खतरे की चिन्ता ही नहीं रहती बल्कि अन्य स्रोतों से होने वाले खतरों की भी चिन्ता रहती है।
(3) पारम्परिक सुरक्षा की धारणा में एक देश की सेना व नागरिकों को दूसरे देश की सेना से खतरा होता है।(3) अपारम्परिक सुरक्षा की धारणा में देश के नागरिकों को विदेशी सेना के साथ-साथ देश की सरकारों के हाथों से भी बचाना आवश्यक होता है।
(4) पारम्परिक सुरक्षा की धारणा में खतरे का स्रोत विदेशी राष्ट्र या देश होता है।(4) अपारम्परिक सुरक्षा की धारणा में खतरे का स्रोत विदेशी राष्ट्र के साथ-साथ कोई अन्य भी हो सकता है।
(5) पारम्परिक सुरक्षा की धारणा में बाहरी आक्रमण के समय एक राष्ट्र तीन उपायों से उससे छुटकारा पा सकता है-

(क) आत्मसमर्पण करके

(ख) आक्रमणकारी राष्ट्र की बातें मानकर तथा

(ग) आक्रमणकारी राष्ट्र को युद्ध में हराकर।

(5) अपारम्परिक सुरक्षा की धारण्णा में एक राष्ट्र प्राकृतिक आपदाओं, आतंकवाद तथा महामारियों को समाप्त करके लोगों को सुरक्षा प्रदान कर सकता है।

गठबन्धन निर्माण एवं उसको बनाये रखना: गठबन्धन का निर्माण एवं उसको बनाये रखना, पारम्परिक सुरक्षा की धारणा की कोटि में आता है।

प्रश्न 4.
तीसरी दनिया के देशों और विकसित देशों की जनता के सामने मौजद खतरों में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
तीसरी दुनिया के देशों और विकसित देशों की जनता के सामने पैदा होने वाले खतरों में पहला अन्तर यह है, कि जहां विकसित देशों के लोगों को केवल बाहरी खतरे की आशंका रहती है, परन्तु तीसरी दुनिया के देशों को आन्तरिक व बाहरी दोनों प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त तीसरी दुनिया के लोगों को पर्यावरण असन्तुलन के कारण विकसित देशों की जनता के मुकाबले अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

प्रश्न 5.
आतंकवाद सुरक्षा के लिए परम्परागत खतरे की श्रेणी में आता है या अपरम्परागत ?
उत्तर:
अपरम्परागत सुरक्षा।

प्रश्न 6.
सुरक्षा के परम्परागत परिप्रेक्ष्य में बताएँ कि अगर किसी राष्ट्र पर खतरा मण्डरा रहा हो तो उसके सामने क्या विकल्प होते हैं ?
उत्तर:

  • शत्रु देश के सामने आत्मसमर्पण कर देना।
  • शत्रु देश को युद्ध से होने वाले खतरों एवं हानि से डरना।
  • शत्रु देश के साथ युद्ध करके, उसे पराजित करना।

प्रश्न 7.
‘शक्ति-सन्तुलन’ क्या है ? कोई देश इसे कैसे कायम करता है ?
उत्तर:
शक्ति सन्तुलन का अर्थ-शक्ति सन्तुलन का अर्थ है कि किसी भी देश को इतना सबल नहीं बनने दिया जाए कि वह दूसरों की सुरक्षा के लिए खतरा बन जाए। शक्ति सन्तुलन के अन्तर्गत विभिन्न राष्ट्र अपने आपसी शक्ति सम्बन्धों को बिना किसी बड़ी शक्ति के हस्तक्षेप के स्वतन्त्रतापूर्वक संचालित करते हैं। इस प्रकार यह एक विकेन्द्रित व्यवस्था है, जिसमें शक्ति तथा नीतियां निर्माणक इकाइयों के हाथों में ही रखी जाती हैं।

1. सिडनी बी० फे० के अनुसार, “शक्ति सन्तुलन सभी राष्ट्रों में इस प्रकार की व्यवस्था है, कि उनमें से किसी भी सदस्य को इतना सबल बनने से रोका जाए, कि वह अपनी इच्छा को दूसरों पर न लाद सके।”न्थो के अनसार, “शक्ति सन्तलन अन्तर्राष्टीय सम्बन्धों में सामान्य सामाजिक सिद्धान्त की अभिव्यक्ति है।” शक्ति सन्तुलन बनाये रखने के उपाय-एक देश निम्नलिखित उपाय करके शक्ति सन्तुलन को कायम रख सकता है

(1) शक्ति सन्तुलन बनाने के लिए एक साधारण तरीका गठजोड़ एवं प्रति गठजोड़ है। यह प्रणाली बहुत पुरानी है। इसका उद्देश्य होता है, किसी राष्ट्र की शक्ति बढ़ाना। छोटे और मध्यम राज्य इस प्रणाली द्वारा अपना अस्तित्व बनाए रखते हैं।

(2) शक्ति सन्तुलन बनाये रखने का एक तरीका शस्त्रीकरण एवं निःशस्त्रीकरण है। शक्ति सन्तुलन बनाये रखने के लिए विभिन्न राज्यों ने समय-समय पर शस्त्रीकरण एवं नि:शस्त्रीकरण पर जोर दिया है।

(3) शक्ति सन्तुलन बनाए रखने के लिए क्षतिपूर्ति भी एक महत्त्वपूर्ण साधन है। क्षतिपूर्ति का अर्थ यह है, कि एक राज्य को उतना वापिस देना, जितना उससे लिया गया है, ताकि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शक्ति सन्तुलन बना रहे।

(4) बफर राज्य के माध्यम से शत्रु राज्यों को दूर रखकर युद्ध को रोका जा सकता है।

(5) किसी राज्य में हस्तक्षेप करके अथवा अहस्तक्षेप द्वारा भी शक्ति सन्तुलन स्थापित किया जा सकता है।

(6) विरोधियों को बांटना और उनमें से किसी को तटस्थ बना देना और किसी को मित्र बना लेना भी सन्तुलन बनाए रखने का एक तरीका है।

(7) सन्तुलनधारी द्वारा भी सन्तुलन बनाया जा सकता है, जैसे कि वर्तमान समय में अमेरिका विभिन्न राज्यों के बीच एक सन्तुलन की भूमिका निभा रहा है।

प्रश्न 8.
सैन्य गठबन्धन के क्या उद्देश्य होते हैं ? किसी ऐसे सैन्य गठबन्धन का नाम बताएँ जो अभी मौजूद है। इस गठबन्धन के उद्देश्य भी बताएँ।
उत्तर:
सैन्य गठबन्धन का उद्देश्य विरोधी देश के सैन्य हमले को रोकना अथवा उससे अपनी रक्षा करना होता है। सैन्य गठबन्धन बनाकर एक विशेष क्षेत्र में शक्ति सन्तुलन बनाये रखने का प्रयास किया जाता है। वर्तमान समय में नाटो नाम का एक सैन्य गठबन्धन कायम है। नाटो के मुख्य उद्देश्य हैं

  • यूरोप पर हमले के समय अवरोध की भूमिका निभाना।
  • सैन्य एवं आर्थिक विकास के अपने कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए यूरोपीय देशों को सुरक्षा छतरी प्रदान करना।
  • भूतपूर्व सोवियत संघ के साथ होने वाले सम्भावित युद्ध के लिए यूरोप एवं अमेरिका के लोगों को मानसिक तौर पर तैयार रखना।

प्रश्न 9.
पर्यावरण के तेज़ नुकसान से देशों की सुरक्षा को गम्भीर खतरा पैदा हो गया है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? अपने तर्कों की पुष्टि करें।
उत्तर:
विश्व स्तर पर पर्यावरण तेजी से खराब हो रहा है। पर्यावरण खराब होने से निस्संदेह मानव जाति को खतरा उत्पन्न हो गया, ग्लोबल वार्मिंग से हिमखण्ड पिघलने लगे हैं, जिसके कारण मालद्वीप तथा बांग्लादेश जैसे देश तथा भारत के मुम्बई जैसे शहरों के पानी में डूबने की आशंका पैदा हो गई है। पर्यावरण खराब होने से वातावरण में कई तरह की बीमारियां फैल गई हैं, जिसके कारण व्यक्तियों के स्वास्थ्य में गिरावट आ रही है।

प्रश्न 10.
देशों के सामने फिलहाल जो खतरे मौजूद हैं उनमें परमाण्विक हथियार का सुरक्षा अथवा अपरोध के लिए बड़ा सीमित उपयोग रह गया है। इस कथन का विस्तार करें।
उत्तर:
विश्व में जिन देशों ने परमाणु हथियार प्राप्त कर रखे हैं, उनका यह तर्क है कि उन्होंने शत्रु देश के आक्रमण से बचने तथा शक्ति सन्तुलन कायम रखने के लिए इनका निर्माण किया है, परन्तु वर्तमान समय में इन हथियारों के होते हुए भी एक देश की सुरक्षा की पूर्ण गारंटी नहीं दी जा सकती। उदाहरण के लिए आतंकवाद तथा पर्यावरण के खराब होने से वातावरण में जो बीमारियाँ फैल रही हैं, उन पर परमाणु हथियारों के उपयोग का कोई औचित्य नहीं है। इसीलिए यह कहा जाता है, कि वर्तमान समय में जो खतरे उत्पन्न हुए हैं, उनमें परमाण्विक हथियार का सुरक्षा अथवा अपरोध के लिए बड़ा सीमित उपयोग रह गया है।

HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा

प्रश्न 11.
भारतीय परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए किस, किस्म की सुरक्षा को वरीयता दी जानी चाहिए पारम्परिक या अपारम्परिक ? अपने तर्क की पुष्टि में आप कौन-से उदाहरण देंगे ?
उत्तर:
भारतीय परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए भारत को पारम्परिक एवं अपारम्परिक दोनों प्रकार की सुरक्षा को वरीयता देनी चाहिए। क्योंकि भारत सैनिक दृष्टि से भी सुरक्षित नहीं है, एवं अपारम्परिक ढंग से भी सुरक्षित नहीं है। भारत के दो पड़ोसी देशों के पास परमाणु हथियार हैं, तथा उन्होंने भारत पर आक्रमण भी किया है। अत: भारत को पारम्परिक सुरक्षा की वरीयता देना आवश्यक है। इसके साथ-साथ अपारम्परिक सुरक्षा की दृष्टि से भारत में कई समस्याएं हैं, जिसके कारण भारत को अपारम्परिक सुरक्षा को भी वरीयता देनी चाहिए।

प्रश्न 12.
नीचे दिए गए कार्टून को समझें। कार्टून में युद्ध और आतंकवाद का जो सम्बन्ध दिखाया गया है उसके पक्ष या विपक्ष में एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
युद्ध और आतंकवाद का गहरा सम्बन्ध है और पिछले कुछ वर्षों में जो युद्ध लड़े गए हैं उनका प्रमुख कारण आतंकवाद ही था। उदाहरण के लिए 2001 में आतंकवाद के कारण ही अमेरिका ने अफ़गानिस्तान में युद्ध लड़ा। दिसम्बर, 2001 में भारतीय संसद् पर हुए आतंकवादी हमले के कारण भारत एवं पाकिस्तान में युद्ध की स्थिति बन गई थी।

समकालीन विश्व में सरक्षा HBSE 12th Class Political Science Notes

→ वर्तमान समय में मानव सुरक्षा के खतरे बढ़ गए हैं।
→ सुरक्षा का आधारभूत अर्थ है-खतरे से स्वतन्त्रता।
→ राष्ट्रीय सुरक्षा की धारणा को सुरक्षा की पारम्परिक धारणा माना जाता है।
→ 11 सितम्बर, 2001 को अमेरिका पर आतंकवादी हमला हुआ।
→ मानव सुरक्षा देश की आन्तरिक शान्ति एवं कानून व्यवस्था पर भी निर्भर करती है।
→ सुरक्षा के नाम पर कई देशों ने परमाणु हथियारों का निर्माण किया है।
→ सुरक्षा के नाम पर ही निःशस्त्रीकरण की मांग की जाती है।
→ विश्व में ग़रीबी एक महत्त्वपूर्ण समस्या बनी हुई है।
→ विश्व के सभी लोगों को पर्याप्त मात्रा में शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल पातीं।
→ विकासशील देशों के अधिकांश लोग विकसित देशों में जाकर रहने की इच्छा रखते हैं, जिससे प्रायः मानवाधिकार की समस्याएं पैदा होती हैं।
→ भारत ने अपनी सुरक्षा के लिए पर्याप्त कदम उठाए हैं।
→ भारत ने सदैव नि:शस्त्रीकरण का समर्थन किया है।

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HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Important Questions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संयुक्त राष्ट्र संघ के पुनर्गठन एवं उसमें भारत की स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्तूबर, 1945 को की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य युद्धों को रोक कर विश्व में शान्ति की स्थापना करना है। पिछले कुछ वर्षों से विश्व राजनीति में बहत महत्त्वपूर्ण परिव मद्देनज़र संयुक्त राष्ट्र संघ में भी बदलावों की मांग की जा रही है, क्योंकि बदलते परिवेश में संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्यप्रणाली तथा इसके अंगों में कुछ दोष उत्पन्न हो गए, जिन्हें दूर करना आवश्यक है। इसीलिए समय-समय पर संयुक्त राष्ट्र संघ के विभिन्न अंगों में पुनर्गठन की मांग की जाती रही है।

1. सुरक्षा परिषद् का पुनर्गठन-संयुक्त राष्ट्र संघ के जिस अंग में सबसे अधिक सुधारों की मांग या पुनर्गठन की बात की जा रही है, वह है, सुरक्षा परिषद् । वास्तव में यह सुरक्षा परिषद् ही है, जहां सदस्य देशों को समान अधिकार नहीं मिले हैं। सरक्षा परिषद में वर्तमान समय में कल 15 सदस्य देश हैं, जिनमें से 5 स्थाई तथा 10 अस्थाई देश हैं। पांच स्थाई देशों (अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस, रूस तथा चीन) को वीटो का अधिकार प्राप्त है जोकि अन्य देशों को प्राप्त नहीं है।

प्राय: यह कहा जाता है कि सुरक्षा परिषद् की सदस्य संख्या उस अनुपात में नहीं बढ़ी, जिस अनुपात में महासभा की संख्या बढ़ी है। अतः सुरक्षा परिषद् में और सदस्यों को शामिल किए जाने की माँग की जाती रही है। विश्व के कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण देश जैसे भारत, जर्मनी, जापान तथा ब्राज़ील स्थाई सदस्यता के लिए समय-समय पर अपना दावा पेश करते रहें, परन्तु पांचों स्थाई देश ऐसे किसी भी प्रसार का विरोध कर रहे हैं। कुछ सदस्य देशों का तर्क है कि वीटो की धारणा को समाप्त करना चाहिए, परन्तु स्थाई देश इस पर भी सहमत नहीं है। सदस्यता बढ़ाने के साथ साथ सुरक्षा परिषद् में प्रक्रियात्मक, कार्यप्रणाली, पारदर्शिता तथा उत्तरदायी सुधारों की भी आवश्यकता है।

2. महासभा का पुनर्गठन-संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा एक अन्य महत्त्वपूर्ण अंग है। यद्यपि महासभा में सभी 193 सदस्य देशों को समान अधिकार प्राप्त हैं, परन्तु फिर भी इसमें समय-समय पर सुधारों की मांग उठती रही है। रष्ट्र संघ के भतपूर्व महासचिव कोफी अन्नान ने यह सझाव दिया है कि महासभा में सर्वसम्मति की प्रक्रिया को समाप्त कर देना चाहिए, क्योंकि इससे कुछ देश अपने विचारों को दूसरों पर थोपने का प्रयास करते हैं। इसके साथ-साथ कोफी अन्नान ने महासभा के प्रस्तावों को लागू करने, महासभा के अध्यक्ष को अधिक शक्तिशाली बनाने पर भी जोर दिया।

3. मानव अधिकार परिषद्-संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानवाधिकारों की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ मानवाधिकार आयोग का निर्माण किया था, परन्तु समय-समय पर अमेरिका जैसे देशों ने इस आयोग को बदनाम करने का प्रयास किया। तत्पश्चात् भूतपूर्व महासचिव कोफी अन्नान ने मानवाधिकार आयोग को समाप्त करके एक छोटे परन्तु दृढ़ मानव अधिकार परिषद् की स्थापना की बात कही। इसके आधार पर एक 47 सदस्यीय मानवाधिकार परिषद् बनाई गई।

4. संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थाई सेना सम्बन्धी प्रस्ताव-संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य उद्देश्य युद्धों को रोक कर विश्व में शान्ति बनाए रखना है। परन्तु इसकी अपनी स्थायी सेना नहीं है। संकट के समय यह सदस्य देशों की शान्ति सेना का निर्माण करता है, परन्तु इस प्रकार शान्ति सेना के निर्माण की प्रक्रिया में काफ़ी समय लग जाता है तथा संकट और अधिक बढ़ जाता है। इसलिए कई विद्वान् समय-समय पर यह विचार देते रहे कि संयुक्त राष्ट्र संघ की अपनी एक स्थाई सेना होनी चाहिए, जो संकट आने पर जल्दी कार्यवाही कर सके।

भारत की स्थिति-ऊपर जितने भी पुनर्गठन एवं सुधारों की चर्चा की गई है, उन सभी में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका एवं स्थिति है, या हो सकती है। भारत सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता का एक मज़बूत उम्मीदवार है और कई देश इसका समर्थन भी कर रहे हैं। महासभा के पुनर्गठन में भारत अपनी महत्त्वपूर्ण स्थिति दर्ज करा सकता है। नई मानवाधिकार परिषद् के 47 सदस्यों में से एक भारत भी है और यदि संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थाई सेना की धारणा वास्तविकता में बदलती है, तो भारत उसमें भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायेगा।

प्रश्न 2.
विश्व राजनीति में उभरे नए अन्तर्राष्ट्रीय पात्रों की व्याख्या करें।
उत्तर:
विश्व राजनीति में कुछ नए अन्तर्राष्ट्रीय पात्रों का उदय हुआ है, जिन्हें हम अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठनों एवं स्वयं सेवी संगठनों (N.G.O.) के रूप में पहचान सकते हैं।

1. अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठन (International Economic Organisation):
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में उभरे नये अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठनों का वर्णन इस प्रकार है

(1) गैट समझौता (Gatt Agreement):
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् गैट समझौते को सबसे पहला आर्थिक समझौता कहा जा सकता है। गैट समझौते की शुरुआत 1947 में हुई। इसे डंकल समझौता भी कहा जाता है।

(2) विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation-W.T.O.):
1 जनवरी, 1995 को गैट समझौते का स्थान विश्व व्यापार संगठन ने ले लिया। वर्तमान समय में इसकी सदस्य संख्या 161 है। यह संगठन विश्व स्तर पर व्यापार के नियमों को निश्चित करता है।

(3) यूरोपीयन संघ (European Union):
यूरोपीयन संघ यूरोप का एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक क्षेत्रीय संगठन है। इसकी स्थापना 1992 में की गई। आज युरोपीयन संघ को विश्व में प्रभावशाली आर्थिक शक्ति के रूप में देखा जाता है।

(4) आसियान (ASEAN):
आसियान, दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का एक क्षेत्रीय आर्थिक संगठन है। इसकी स्थापना 1967 में की गई। आसियान का मुख्य उद्देश्य दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास की गति में तेजी लाना है।

(5) सार्क (SAARC):
सार्क अर्थात् दक्षिण-एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन, दक्षिण एशिया के आठ देशों का एक संगठन है। इसकी स्थापना 1985 में की गई। सार्क का उद्देश्य सदस्य देशों में आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में आपसी सहयोग को बढ़ावा देना है।

2. गैर-सरकारी संगठन (Non-Governmental Organisation-N.G.0.):
गैर-सरकारी संगठनों को भी अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में उभरे नये पात्रों के रूप में पहचाना जाता है। गैर-सरकारी संगठन उन्हें कहा जाता है, जो सरकार के संगठन के भाग नहीं होते। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुच्छेद 71 के अनुसार, “गैर-सरकारी संगठन वह है, जो न सरकार है और न ही सदस्य राज्य, उनकी भूमिका केवल सलाहकारी होती है।”

गैर-सरकारी संगठनों को 20वीं शताब्दी में अधिक महत्त्व प्राप्त हुआ, जब ऐसा प्रतीत होने लगा कि अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियां एवं समझौते तथा विश्व व्यापार संगठन पूंजीवादियों के पक्ष में कार्य कर रहे हैं, तब इसके प्रति सन्तुलन के लिए मानववादी मुद्दों, पोषणकारी विकास तथा विकासशील देशों की सहायता के लिए गैर-सरकारी संगठनों का उदय हुआ। कुछ महत्त्वपूर्ण गैर-सरकारी संगठन इस प्रकार हैं

(1) अन्तर्राष्ट्रीय रेड क्रॉस सोसायटी (International Red Cross Society):
अन्तर्राष्ट्रीय रेड क्रॉस सोसायटी एक महत्त्वपूर्ण गैर-सरकारी संगठन है। इसका मुख्य कार्य युद्ध एवं संकट के समय असहाय लोगों की मदद करना है।

(2) एमनेस्टी इंटरनेशनल (Amnesty International):
एमनेस्टी इंटरनेशनल एक अन्य महत्त्वपूर्ण गैर सरकारी संगठन है। यह संगठन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों से सम्बन्धित रिपोर्ट तैयार एवं प्रकाशित करवाता है।

(3) ह्यमन राइट्स वॉच (Human Rights Watch):
ह्यमन राइट्स वॉच भी एक गैर-सरकारी संगठन है, जिसका मुख्य कार्य मानवाधिकारों की अवहेलना की ओर विश्वभर के मीडिया का ध्यान आकर्षित करवाना है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन

प्रश्न 3.
संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यों एवं सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
अथवा
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर:
दूसरे विश्व युद्ध के बाद 24 अक्तूबर, 1945 को अनेक प्रयासों के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई। भारत संयुक्त राष्ट्र का प्रारंभिक सदस्य बना। संयुक्त राष्ट्र चार्टर अथवा संविधान में प्रस्तावना के अतिरिक्त 111 अनुच्छेद हैं जिनमें संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यों, नियमों, अंगों तथा इनकी शक्तियों और क्षेत्राधिकारों का उल्लेख है।

संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्य (Objectives of the United Nations):
संयुक्त राष्ट्र की प्रस्तावना में ही इस संगठन के उद्देश्यों का वर्णन किया गया है। प्रस्तावना में एक आदर्श और गरिमामय विश्व समाज की स्थापना की बात कही गयी है। प्रस्तावना में कहा गया है कि, “हम संयुक्त राष्ट्र के लोग आने वाली पीढ़ियों को उस भावी-विश्व युद्ध से बचाएंगे जिसने हमारे जीवन काल में ही दो बार मानव जाति पर बहुत अधिक अत्याचार किए हैं। हम मनुष्यों के मूल अधिकारों, व्यक्ति के सम्मान और छोटे-बड़े सब राष्ट्र के नर-नारियों के समान अधिकारों में फिर से श्रद्धा बनाएंगे।

हम ऐसा वातावरण उत्पन्न करेंगे जिससे न्याय स्थापित हो सके और अन्तर्राष्ट्रीय कानून तथा संधियों के लिए आदर की भावना बढ़ सके। हम अधिक व्यापक स्वतन्त्रता के द्वारा अपने जीवन स्तर को ऊंचा करेंगे और समाज को प्रगतिशील बनाएंगे तथा इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सहिष्णुता और शान्तिपूर्वक अच्छे पड़ोसियों के समान रहने के लिए तथा इस बात को निश्चित करने के लिए कि सैनिक बल प्रयोग सामान्य हित के अतिरिक्त अन्य किसी अवसर पर नहीं किया जाएगा तथा अन्तर्राष्ट्रीय यन्त्र के सब जातियों को आर्थिक सामाजिक उन्नति में प्रयोग करने के लिए यह दृढ निश्चय करते हैं कि उन लक्ष्यों की पूर्ति के लिए हमेशा सहयोग प्रदान करेंगे।

इसलिए हमारी सरकारों ने संयुक्त राष्ट्र संघ के इस घोषणा-पत्र को स्वीकार किया है और हम एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना करते हैं जो संयुक्त राष्ट्र के नाम से प्रसिद्ध होगा।” चार्टर के अनुच्छेद एक में संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों का अधिक विस्तार से वर्णन किया गया है कि संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति सुरक्षा स्थापित करना, राष्ट्रों के बीच जन-समुदाय के लिए समान अधिकारों तथा आत्म-निर्णय के सिद्धान्त सम्बन्धी मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों का विकास करना, आर्थिक, सामाजिक अथवा मानवतावादी स्वरूप पर आश्रित अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को सुलझाने में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना तथा इन सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राष्ट्रों के कार्यों को समन्वय करने के निमित्त एक केन्द्र का कार्य करना।

सानफ्रांसिस्को में आयोजित सम्मेलन में इस उद्देश्य के लिए नियुक्त समिति ने इसके चार उद्देश्य बतलाए

(1) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा कायम रखना तथा आक्रामक कार्यवाही को रोक कर शान्ति और अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरों को रोकने के लिए सामूहिक प्रयास करना और शान्तिपूर्वक उपायों से उन विवादों का हल निकालना।

(2) विविध राष्ट्रों के बीच समान अधिकार, स्वाभिमान तथा जनता के आत्म-निर्णय के अधिकार के आधार पर मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना तथा विश्वशान्ति को सुदृढ़ करने के लिए विविध उपाय करना।

(3) अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा मानवीय समस्याओं के समाधान के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की प्राप्ति करना तथा मानव अधिकारों तथा मूलभूत स्वाधीनता के अधिकार तथा जाति, रंग, भाषा, धर्म तथा लिंग के आधार पर भेदभाव को मिटाने के लिए प्रयास करना तथा इस दिशा में किये जाने वाले प्रयासों को प्रोत्साहित करना।

(4) उपर्युक्त उद्देश्यों के लिए तथा उन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विविध राष्ट्रों के प्रयासों के बीच सामंजस्य की स्थापना के उद्देश्य से एक केन्द्र का कार्य करना। संयक्त राष्ट द्वारा विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति-संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य अत्यन्त आदर्शात्मक, व्यापक तथा अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सहयोग को बढ़ावा देने वाले हैं।

लेकिन अपनी स्थापना से लेकर अब तक संयुक्त राष्ट्र को अपने उद्देश्यों की प्राप्ति से आशानुरूप सफलता प्राप्त नहीं हुई है। विशेष रूप से राजनीतिक विषयों पर तो संयुक्त राष्ट्र महाशक्तियों के द्वन्द्व का शिकार होकर रह गया है।महाशक्तियों ने अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए न तो संयुक्त राष्ट्र की कभी चिन्ता की और न अब कर रही है।

लेकिन गैर-राजनीतिक क्षेत्रों में संयुक्त राष्ट्र की सफलता उल्लेखनीय रही है। बीमारियों को दूर करने, मानवाधिकारों की रक्षा, वैज्ञानिक शोध, सांस्कृतिक आदान-प्रदान आदि के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रयास सराहनीय रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धान्त-इसके लिए प्रश्न नं० 4 देखें।

प्रश्न 4.
संयुक्त राष्ट्र के मुख्य सिद्धान्तों की व्याख्या करो।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र के चार्टर की प्रस्तावना और अनुच्छेद 1 में संघ के उद्देश्यों का वर्णन किया गया है। लेकिन उद्देश्यों का उल्लेख कर देना ही पर्याप्त नहीं होता। इनकी प्राप्ति के लिए यह भी आवश्यक था कि सदस्यों के मार्ग. दर्शन के लिए कुछ सिद्धान्तों का उल्लेख चार्टर में किया जाता। अत: अनुच्छेद 2 में इन प्रमुख सिद्धान्तों की व्यवस्था । की गई है।

ये सिद्धान्त अन्तर्राष्ट्रीय आधार के उन नियमों की तरह हैं जो संयुक्त राष्ट्र और उनके सदस्य राज्यों का मार्गदर्शन करते रहेंगे। अनुच्छेद 2 में स्पष्ट कहा गया है कि अनुच्छेद 1 में दिए गए उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संघ और उसके सदस्य निम्नलिखित सिद्धान्तों के अनुसार कार्य करेंगे

(1) संयुक्त राष्ट्र की स्थापना सदस्य राष्ट्रों की प्रभुसत्ता की समानता के आधार पर की गई है।

(2) संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य ईमानदारी से घोषणा-पत्र के अन्तर्गत निर्धारित दायित्वों का पालन करेंगे ताकि निर्धारित अधिकारों की प्राप्ति सभी को हो सके।

(3) संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य राज्य अपने विवादों का समाधान शान्तिपूर्ण ढंग तथा इस प्रकार करेंगे कि अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति, सुरक्षा और न्याय को किसी प्रकार का भय न हो।

(4) सभी सदस्य राष्ट्र अपने अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के क्षेत्र में किसी भी राष्ट्र की राजनीतिक स्वतन्त्रता तथा प्रभुसत्ता को आघात पहुंचाने वाला कार्य नहीं करेंगे। इसके साथ ही वे कोई भी ऐसा कार्य नहीं करेंगे जो संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा-पत्र और उद्देश्यों के विपरीत या असंगत हो।

(5) संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा-पत्र के अन्तर्गत लिए गए किसी कार्य के सन्दर्भ में सभी प्रकार की सहायता देंगे अर्थात् उस राष्ट्र की मदद नहीं करेंगे जिसके विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ कोई निरोधात्मक अथवा प्रतिरोधात्मक कार्यवाही कर रहा हो।

(6) विश्व-शान्ति तथा अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अपेक्षित उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ इस बात का प्रयास करेगा कि वे सभी राष्ट्र जो संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य नहीं हैं, घोषणा-पत्र के आधार पर आधारभूत सिद्धान्तों के अनुरूप कार्य कर रहे हैं।

(7) संयुक्त राष्ट्र संघ किसी भी राज्य के ऐसे मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा जो उसके आन्तरिक हैं, न यह कोई भी कार्य करेगा, जिसको धमकी या दबाव कहा जा सके।

प्रश्न 5.
संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्य अंग कौन-कौन से हैं ? उनकी रचना तथा उनके मुख्य कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा
संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख अंर्गों का वर्णन करें।
अथवा
संयुक्त राष्ट्र संघ के सुरक्षा परिषद् के संगठन, शक्तियों एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर अनुसार 6 मुख्य अंग हैं जिनके द्वारा संघ अपने बहुमुखी कर्तव्यों को पूरा करता है। ये अंग हैं-महासभा, सुरक्षा परिषद्, आर्थिक तथा सामाजिक परिषद्, ट्रस्टीशिप कौंसिल, अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय . तथा सचिवालय। इन अंगों के संगठन, शक्तियों तथा कामों का विवरण नीचे दिया जा रहा है

1. महासभा (The General Assembly):
महासभा संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे बड़ा तथा मुख्य चार्टर अंग है। यह एक प्रकार की विश्व संसद् है जिसका मुख्य काम विचार-विमर्श करना है। रचना (Composition) महासभा में संयुक्त राष्ट्र संघ के सारे सदस्यों को प्रतिनिधित्व मिलता है। इस समय संयुक्त राष्ट्र संघ के 193 देश सदस्य हैं। इन 193 देशों के प्रतिनिधियों को मिलाकर महासभा बनती है। हर सदस्य देश इसमें अपने 5 प्रतिनिधि भेज सकता है, परन्तु हर देश का एक ही मत होता है। इसके कार्य तथा शक्तियां (Its power and Functions)-महासभा के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं

1. निर्वाचित कार्य-महासभा 2/3 बहुमत से सुरक्षा परिषद् के 10 अस्थायी सदस्यों को दो साल के लिए चुनती है। महासभा आर्थिक तथा सामाजिक परिषद् के सदस्य भी चुनती है। यह ट्रस्टीशिप कौंसिल के कुछ सदस्य चुनती है। सुरक्षा परिषद् तथा महासभा अलग-अलग मत प्रयोग करके अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के 15 जजों का चुनाव करती है। महासभा सुरक्षा परिषद् की सिफ़ारिश पर संयुक्त राष्ट्र के मुख्य सचिव को नियुक्त करती है।

2. विचारशील कार्य-महासभा का सबसे महत्त्वपूर्ण काम चार्टर के अधीन सारे विषयों पर विचार करना तथा उसके आधार पर सिफ़ारिश करना है।

3. अन्य अंगों पर नियन्त्रण महासभा संयुक्त राष्ट्र के दूसरे अंगों एजेन्सियों पर नियन्त्रण करती है तथा उनके कार्यों का नियन्त्रण करती है।

4. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग महासभा राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शिक्षा-सम्बन्धी क्षेत्रों में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने के लिए विचार करके सुझाव दे सकती है।

5. बजट-संयुक्त राष्ट्र संघ के बजट की ज़िम्मेदारी महासभा पर है। महासभा संयुक्त राष्ट्र संघ के बजट पर विचार करती है, उसको पास करती है।

6. संशोधन कार्य-संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में महासभा 2/3 बहुमत से संशोधन करने की सिफ़ारिश कर सकती है।

2. सुरक्षा परिषद् (The Security Council):
सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्यपालिका के समान है। चार्टर के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा बनाने की ज़िम्मेदारी सुरक्षा परिषद् पर है। रचना (Composition)-सुरक्षा परिषद् के कुल 15 सदस्य होते हैं। ये सदस्य दो प्रकार के होते हैं-स्थायी और अस्थायी। पांच सदस्य स्थायी हैं-ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका और साम्यवादी चीन। इसके 10 अस्थायी सदस्य दो वर्षों के लिए महासभा चुनती है।

वोट डालने की विधि (Voting Procedure)-सुरक्षा परिषद् में प्रत्येक सदस्य को एक मत डालने का अधिकार दिया गया है। सुरक्षा परिषद् में कार्य-विधि के मामलों (Procedural matters) में जैसे कार्य सूची (Agenda) को तैयार करने के लिए 15 में से कम-से-कम 9 सदस्यों के मत पक्ष में होने चाहिएं, परन्तु अन्य सभी मामलों के लिए 9 मतों में 5 बड़ी शक्तियों अर्थात् अमेरिका, साम्यवादी चीन, रूस, फ्रांस तथा ग्रेट ब्रिटेन के मत अवश्य ही शामिल होने चाहिएं।

सुरक्षा परिषद् के कार्य तथा शक्तियां (Functions and Powers of the Security Council):
संयुक्त राष्ट्र के अंगों में सुरक्षा परिषद् का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके मुख्य कार्य तथा शक्तियां निम्नलिखित हैं

  • अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को बनाए रखना,
  • संयुक्त राष्ट्र के नए सदस्यों का चुनाव, 3 संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में संशोधन।
  • आर्थिक तथा सामाजिक परिषद् (The Economic and Social Council)

आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक समस्याओं को हल करने के लिए संयुक्त राष्ट्र में आर्थिक तथा सामाजिक परिषद् की स्थापना की गई है।

3. रचना (Composition):
आर्थिक तथा सामाजिक परिषद् की सदस्य संख्या 54 है। ये सदस्य महासभा द्वारा दो-तिहाई बहुमत से तीन वर्ष के लिए चुने जाते हैं और एक-तिहाई सदस्य प्रति वर्ष रिटायर हो जाते हैं। हर सदस्य देश को एक वोट का अधिकार होता है और इस परिषद् के निर्णय साधारण बहुमत से किये जाते हैं।

इसके कार्य (Its Functions) आर्थिक तथा सामाजिक परिषद् के कार्यों का वर्णन चार्टर के अनुच्छेद 55 में किया गया है। सामाजिक-आर्थिक परिषद् सदस्य राज्यों के बीच सामाजिक-आर्थिक सहयोग को बढ़ाने सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण गतिविधियां संचालित करती है।

4. ट्रस्टीशिप कौंसिल (The Trusteeship Council) :
ट्रस्टीशिप कौंसिल जिसने लीग की मैंडेट प्रणाली का स्थान लिया है, का उद्देश्य पिछड़े हुए देशों का विकसित देशों के नेतृत्व में उन्नति दिलाना है ताकि वे शीघ्रता से स्वशासन के लिए तैयार हो सकें। इस प्रणाली के अधीन सुरक्षित प्रदेशों पर निगरानी करने के लिए संयुक्त राष्ट्र-ट्रस्टीशिप कौंसिल की स्थापना की गई। यह परिषद् तीन प्रकार के प्रदेशों की निगरानी करती है

  • वे प्रदेश, जो द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप शत्रु राज्यों से छीने गए।
  • वे प्रदेश, जो लीग के समय मैंडेट प्रणाली के अधीन थे।
  • वे प्रदेश, जो अपनी मर्जी से इस प्रणाली के अधीन किए गए।

रचना (Composition) ट्रस्टीशिप कौंसिल में सुरक्षा परिषद् के सारे स्थाई सदस्य होते हैं। इनके अलावा सुरक्षित प्रदेशों का प्रबन्ध चलाने वाले देश भी इसके सदस्य होते हैं। इन दोनों तरह के कुल सदस्यों के बराबर महासभा इस परिषद् के लिए सदस्य चुनती है। इस परिषद् की साल में दो बैठकें होती हैं। इसके निर्णय बहुमत से होते हैं। इनके उद्देश्य तथा कार्य (Its Aims and Functions) ट्रस्टीशिप कौंसिल के चार मुख्य उद्देश्य हैं, जिनकी पूर्ति यह परिषद् करती हैं। वे अग्रलिखित हैं

  • अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा में वृद्धि करना।
  • सुरक्षित प्रदेशों का विकास करना ताकि वे स्वतन्त्रता के योग्य हो सकें।
  • मौलिक मानवीय अधिकारों के लिए वातावरण बनाना।
  • सामाजिक, आर्थिक तथा व्यापारिक विषयों में संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देशों में समानता लाना।

5. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice) :
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र का न्यायिक अंग है जिसे विश्व न्यायालय भी कहा जाता है। रचना (Composition) अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के 15 जज होते हैं जिन्हें महासभा तथा सरक्षा परिषद अलग-अलग स्वतन्त्र तौर पर चुनती है। जज 9 साल के लिए चुने जाते हैं। एक-तिहाई न्यायाधीश अर्थात् पांच जज हर तीन वर्ष बाद रिटायर होते हैं और उनकी जगह 5 जज चुन लिये जाते हैं।

इसका क्षेत्राधिकार (Its Jurisdiction)-अन्तर्राष्ट्रीय कानून तथा अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों से सम्बन्धित सभी विषय इसके पास ले जाए जा सकते हैं। इस न्यायालय में केवल राज्यों के झगड़े ही ले जाए जा सकते हैं, व्यक्तियों के नहीं। इस न्यायालय का क्षेत्राधिकार तीन प्रकार का है

  • अनिवार्य क्षेत्राधिकार,
  • ऐच्छिक क्षेत्राधिकार,
  • सलाहकारी क्षेत्राधिकार।

6. सचिवालय (The Secretariat):
संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रबन्धक काम चलाने के लिए चार्टर के अनुसार सचिवालय स्थापित किया गया है, जिसमें संगठन की ज़रूरत अनुसार कर्मचारी होते हैं जिनका मुखिया महासचिव होता है। महासचिव जिसे संसार का मुख्य प्रशासकीय अधिकारी कहा जा सकता है, सुरक्षा परिषद् की सिफ़ारिश पर महासभा नियुक्त करती है। यह 5 साल के लिए चुना जाता है।

सचिवालय के 9 विभाग है और हर भाग का मुखिया उप-महासचिव होता है। संयुक्त राष्ट्र के सचिवालय में दुनिया के अनेक देशों के नागरिक काम करते हैं, किन्तु उन सबकी वफ़ादारी विश्व संस्था के प्रति होती है। सचिवालय के अधिकारियों के लिए स्वतन्त्र रूप से अपने कार्यों को करने के लिए कई सुविधाएं दी गई हैं। सचिवालय संयुक्त राष्ट्र संघ के अंगों की कार्यवाहियों को लिखता है तथा अन्तर्राष्ट्रीय संघर्षों को प्रकाशित करता है।

प्रश्न 6.
संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की भूमिका पर एक लेख लिखें।
अथवा
संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आने वाली पीढ़ियों को युद्ध से बचाने के लिए 24 अक्तूबर, 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई। संयुक्त राष्ट्र संघ के आरम्भ में 51 सदस्य थे और वर्तमान में सदस्य संख्या 193 है। भारत संयुक्त राष्ट्र का प्रारम्भिक सदस्य है और इसे विश्व-शान्ति के लिए महत्त्वपूर्ण संस्था मानता है। संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भारत के योगदान का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है

1. भारत और संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना-भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के लिए सान फ्रांसिस्को सम्मेलन में भाग लिया और चार्टर पर हस्ताक्षर करके वह संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रारम्भिक सदस्य बन गया। सान फ्रांसिस्को सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि श्री ए. रामास्वामी मुदालियर ने इस बात पर जोर दिया कि युद्ध को रोकने के लिए आर्थिक और सामाजिक न्याय का महत्त्व सर्वाधिक होना चाहिए। भारत की सिफ़ारिश पर चार्टर में मानव अधिकारों और मौलिक स्वतन्त्रताओं को बिना किसी भेदभाव के प्रोत्साहित करने का उद्देश्य जोड़ा गया।

2. संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता बढ़ाने में भारत की भूमिका-भारत की सदा ही यह नीति रही है कि विश्व शान्ति को बनाए रखने के लिए और संयुक्त राष्ट्र संघ की सफलता के लिए संसार के सभी देशों को, जो संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धान्तों एवं उद्देश्यों में विश्वास रखते हैं, सदस्य बनना चाहिए। इसलिए 1950 से लेकर अगले 20 वर्षों तक लगातार जब भी संयुक्त राष्ट्र संघ में साम्यवादी चीन को सदस्य बनाने का प्रश्न आया, भारत ने सदैव इसका समर्थन किया।

परन्तु अमेरिका सुरक्षा परिषद् में चीन की सदस्यता के प्रस्ताव पर वीटो का प्रयोग करता रहा। 1972 में अमेरिका के चीन के प्रति दृष्टिकोण बदलने पर ही चीन संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बना। भारत ने बंगला देश को संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

3. संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्य अंगों में भारत का स्थान-संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्य अंगों और विशेष एजेन्सियों में भारत को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त रहा है। 1954 में भारत की श्रीमती विजय लक्ष्मी पण्डित महासभा (General Assembly) की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं। 1956 में स्वर्गीय डॉ० राधाकृष्ण यूनेस्को के प्रधान चुने गये।

भारत आठ बार सुरक्षा परिषद् का सदस्य रह चुका है और 30 सितम्बर, 1991 को भारत ने सुरक्षा परिषद् के अध्यक्ष का कार्यभार एक महीने के लिए सम्भाला। सामाजिक और आर्थिक परिषद् का भारत लगभग निरन्तर सदस्य चला आ रहा है। भारत के डॉ० नगेन्द्र सिंह को 1973 और 1982 में पुनः अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का न्यायाधीश चुना गया था। फिर फरवरी, 1985 में उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश चुना गया था। 1989 में भारत के आर० एस० पाठक को अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश चुना गया।

जनवरी, 2003 में प्रथम भारतीय महिला पुलिस अधिकारी किरण बेदी संयुक्त राष्ट्र नागरिक पुलिस सलाहकार नियुक्त हुई। वे इस प्रतिष्ठित पद पर नियुक्त होने वाली न केवल प्रथम भारतीय अपितु विश्व की प्रथम महिला अधिकारी भी हैं। 27 अप्रैल, 2012 को न्यायमूर्ति दलवीर भण्डारी को अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का न्यायाधीश चुना गया। नवम्बर, 2017 में दलवीर भण्डारी को पुनः अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का न्यायाधीश चुन लिया गया।

4. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा की दृष्टि से भारत का योगदान-संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य उद्देश्य विश्व शान्ति एवं सुरक्षा बनाए रखना है। भारत में विश्व-शान्ति सुरक्षा को बनाए रखने में संयुक्त राष्ट्र संघ ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसका वर्णन हम इस प्रकार कर सकते हैं

(i) कोरिया की समस्या-1950 में उत्तर कोरिया ने दक्षिणी कोरिया पर आक्रमण कर दिया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने युद्ध को रोकने के लिए 16 राष्ट्रों की सेनाएं उत्तरी कोरिया के प्रतिरोध के लिए भेजीं। भारत के सैनिकों ने भी इस कार्यवाही में भाग लिया। भारत ने इस युद्ध को समाप्त कराने तथा युद्धबन्दियों का आदान-प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत को तटस्थ राष्ट्र आयोग का अध्यक्ष बनाया गया।

(ii) स्वेज नहर की समस्या-जुलाई, 1956 में मिस्र के राष्ट्रपति ने स्वेज़ नहर का राष्ट्रीकरण कर दिया। इस पर इंग्लैण्ड, फ्रांस और इज़राइल ने मिलकर मित्र पर आक्रमण कर दिया। भारत ने इन देशों की निन्दा की और महासभा द्वारा पारित उस प्रस्ताव का समर्थन किया, जिसमें यह कहा गया कि युद्ध को तुरन्त बन्द कर दिया जाए। स्वेज नहर समस्या को हल करने में भारत ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

(iii) कांगो समस्या-स्वतन्त्रता प्राप्त करने पर कांगो में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो गई। इस परिस्थिति का लाभ उठाते हुए बैल्जियम ने कांगो में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। लुमुम्बा ने संयुक्त राष्ट्र से सैनिक सहायता की अपील की। संयुक्त राष्ट्र संघ की अपील पर भारत ने अपनी सेना कांगो भेजी। वास्तव में संयुक्त राष्ट्र सेना में सबसे बड़ी टुकड़ी भारतीय बटालियन की थी।

(iv) अरब-इजराइल विवाद-1967 में अरब-इज़राइल युद्ध में इज़राइल ने अरब क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। भारत की नीति यह रही है कि इज़राइल को अरब क्षेत्र खाली करने चाहिएं और संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पारित सभी प्रस्तावों को मानना चाहिए।

(v) अफ़गानिस्तान की समस्या-अफ़गानिस्तान की समस्या हल करने में भारत ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

(vi) खाड़ी युद्ध-भारत ने फरवरी, 1991 को खाड़ी युद्ध में गैर-सैनिक ठिकानों को निशाना बनाए जाने पर चिन्ता व्यक्त करते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की तुरन्त बैठक बुलाकर खाड़ी की मौजूदा स्थिति की समीक्षा करने की मांग की। सुरक्षा परिषद् में पूरी स्थिति की समीक्षा कर यह देखा कि खाड़ी में अमेरिका और बहुराष्ट्रीय देशों की सैनिक कार्रवाई सुरक्षा परिषद् के प्रस्ताव 678 के अनुसार है या नहीं। उपर्युक्त समस्याओं के अतिरिक्त भारत ने अन्य समस्याओं को सुलझाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

5. उपनिवेशवाद का विरोध-भारत उपनिवेशवाद का सदा ही विरोधी रहा है और भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ में उपनिवेशवाद के विरुद्ध आवाज बुलन्द की। बंगला देश को स्वतन्त्र करवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। संयुक्त राष्ट्र संघ ने जिन उपनिवेशों को स्वतन्त्रता दिलाने का प्रयत्न किया है, भारत ने इसका समर्थन किया है।

6. रंग-भेद के विरुद्ध संघर्ष- भारत ने रंग-भेद की नीति को विश्व-शान्ति के लिए खतरा माना है। रंग-भेद पक्षपात का सबसे व्यापक अभ्यास तथा भ्रष्टपूर्ण प्रदर्शित उदाहरण एशिया तथा अफ्रीका के काले वर्गों के प्रति गोरों की धारणा थी। रंग-भेद नीति में दक्षिण अफ्रीकी सरकार सबसे आगे रही है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में कई बार रंग-भेद की नीति के विरुद्ध आवाज़ उठाई और विश्व जनमत तैयार किया, जिसके फलस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ ने अनेक प्रस्ताव पारित किए।

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7. निःशस्त्रीकरण के प्रयासों में भारत का सहयोग-संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में महासभा और सुरक्षा परिषद् दोनों के ऊपर यह जिम्मेवारी डाली गई है कि वे निःशस्त्रीकरण के लिए कार्य करें। भारत की नीति यही है कि निःशस्त्रीकरण के द्वारा ही विश्व-शान्ति को बनाए रखा जा सकता है और अणु शक्ति का प्रयोग केवल मानव कल्याण के लिए होना चाहिए। भारत पूर्ण निःशस्त्रीकरण के पक्ष में है और उसने संयुक्त राष्ट्र के निःशस्त्रीकरण सम्बन्धी प्रयासों का हमेशा समर्थन किया है।

8. मानव अधिकारों की रक्षा-भारत मानव अधिकारों का महान् समर्थक है। भारत ने अपने नागरिकों को लगभग वे सभी अधिकार दिए हैं, जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित किए गए हैं। जब भी किसी देश ने मानव अधिकारों का उल्लंघन किया है, भारत ने संयुक्त राष्ट्र में उसके विरुद्ध आवाज उठाई और संयुक्त राष्ट्र ने मानव अधिकारों की रक्षा के लिए उचित कार्यवाही की।

9. गट-निरपेक्ष आन्दोलन-भारत गट-निरपेक्ष आन्दोलन का संस्थापक है और इस आन्दोलन ने शीत यद्ध को कम किया है और संयुक्त राष्ट्र को पूरी तरह दो गुटों में विभक्त होने से बचाया है।

10. आर्थिक और सामाजिक समस्याओं को हल करने में भारत की भूमिका-भारत का सदा यह विचार रहा है कि विश्व-शान्ति की स्थायी स्थापना तभी हो सकती है, यदि आर्थिक और सामाजिक अन्याय को समाप्त किया जाए। भारत ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किए हैं। भारत ने आर्थिक दशा से पिछड़े देशों के विकास पर विशेष बल दिया है और विकसित देशों को अविकसित देशों की अधिक-से-अधिक सहायता करने के लिए कहा है।

11. पर्यावरण की रक्षा-पर्यावरण का प्रदषण मानवता के लिए खतरा बन गया है। संसार के जीवनदायी वन एवं नदियां ही नहीं, धरती, वनस्पतियां और विश्व महासागर भी प्रदूषण की चपेट में आते जा रहे हैं। प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने कई बार कहा था कि विश्व पर्यावरण की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र को प्रभावशाली कदम उठाने चाहिएं।

12. संयुक्त राष्ट्र की कार्य प्रणाली सुधारने में भारत की भूमिका-1 फरवरी, 1992 को सुरक्षा परिषद् की शिखर बैठक हुई ताकि सुरक्षा परिषद् को अधिक प्रभावशाली बनाया जा सके। भारत के प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव ने 15 – सदस्यीय सुरक्षा परिषद् के विस्तार और विश्व के सबसे बड़े संगठन को और अधिक लोकतान्त्रिकरण पर जोर दिया।

संयुक्त राष्ट्र की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर भारत के प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव ने संयुक्त राष्ट्र के पूर्वगठन और सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता पर बल दिया। इसके अतिरिक्त भारत ने संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अंगों में विकासशील देशों को उचित प्रतिनिधित्व देने की मांग की। निष्कर्ष-भारत विश्व-शान्ति व सुरक्षा को बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र के साथ सहयोग देता है और भारत का अटल विश्वास है कि संयुक्त राष्ट्र विश्व-शान्ति को बनाए रखने का महत्त्वपूर्ण यन्त्र है।

प्रश्न 7.
शीत युद्ध की समाप्ति के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार के लिए कुछ सुझाव दीजिए।
अथवा
शीत युद्ध की समाप्ति के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ के सुधार के लिये सुझाव दीजिये।
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे शक्तिशाली अंग है। सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र की कार्यपालिका है। अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा का पूरा उत्तरदायित्व सुरक्षा परिषद् को सौंप दिया गया है। यद्यपि सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है, तथापि इसमें कुछ कमियां हैं, जिनमें सुधारों की मांग समय-समय पर उठती रहती है। निम्नलिखित कारणों से सुरक्षा परिषद् में सुधारों की मांग की जाती रही है

1. संयुक्त राष्ट्र की बढ़ती हुई सदस्य संख्या-सुरक्षा परिषद् में सुधारों की मांग करने वाले राष्ट्रों, जिनमें भारत भी शामिल है, का कहना है कि जिस अनुपात में संयुक्त राष्ट्र में सदस्य राष्ट्रों की संख्या बढ़ी है, उसी अनुपात में सुरक्षा परिषद् में सदस्य राष्ट्रों की संख्या नहीं बढ़ी है। अत: सुरक्षा परिषद् को अधिक लोकतान्त्रिक बनाने के लिए सुरक्षा परिषद् में सदस्यों की संख्या, विशेषकर स्थाई सदस्यों की संख्या बढ़ायी जानी चाहिए।

2. नई चुनौतियां-विश्व में उभर रही नई चुनौतियों का सामना करने के लिए भी सुरक्षा परिषद् में सुधारों की मांग चल रही है।

3. असमान प्रभुसत्ता-सुरक्षा परिषद् की सदस्य संख्या 15 है, जिनमें 5 स्थाई सदस्य हैं, जिन्हें वीटो (Veto) प्राप्त है, जबकि 10 अस्थाई सदस्य हैं। इससे पता चलता है कि सुरक्षा परिषद् में समानता के अधिकार को मान्यता न देकर असमान प्रभुसत्ता का अस्तित्व पाया जाता है, अतः कई सदस्य राष्ट्र इस भेदभाव को समाप्त करना चाहते हैं।

4. वीटो की समस्या-वीटो की समस्या को समाप्त करने के लिए भी सुरक्षा परिषद् में सुधारों की मांग की जा रही है।

5. महाशक्तियों के प्रभत्व को कम करना-सरक्षा परिषद में 5 सदस्य राष्ट्रों (अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस, रूस और चीन) को वीटो शक्ति दी गई है, जिससे वे अधिक शक्तिशाली हो गये हैं, अतः उनके प्रभुत्व को कम करने के लिए भी सुरक्षा परिषद् में सुधारों की मांग की जा रही है।

सुरक्षा परिषद् में किए जाने वाले सुधार

1. सुरक्षा परिषद् की सदस्य संख्या बढ़ाई जाए-सुधारों की मांग करने वाले सदस्य राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के सदस्यों की संख्या बढ़ाकर इसे अधिक लोकतान्त्रिक बनाने की मांग कर रहे हैं। विशेषकर स्थाई सदस्यों की संख्या में बढ़ोत्तरी की मांग जोर पकड़ती जा रही है।

2. वीटो की समाप्ति-सुरक्षा परिषद् की कार्यप्रणाली को व्यवस्थित एवं लोकतान्त्रिक बनाने के लिए या तो वीटो की शक्ति को समाप्त कर देना चाहिए, या फिर इसे सीमित कर देना चाहिए।

3. समान सदस्यता-सुरक्षा परिषद् में अस्थाई सदस्यों की धारणा को समाप्त करके सबको समान स्तर की सदस्यता प्रदान करनी चाहिए।

4. सुरक्षा परिषद् को महासभा के प्रति अधिक जवाबदेह बनाया जाए-सुरक्षा परिषद् में सुधारों की मांग करने वालों का कहना है कि यदि सुरक्षा परिषद् को विश्व के लोगों का विश्वास जीतना है, तो इसे महासभा के प्रति और अधिक जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।

5. सामाजिक और आर्थिक कार्य सुरक्षा परिषद् को दिए जाने की मांग-कई विचारक कहते हैं कि सुरक्षा परिषद् को केवल राजनीतिक कार्य ही दिये जाते हैं जिससे इसके सदस्यों में सदैव मतभेद उत्पन्न होते रहते हैं, अतः इनमें सहयोग उत्पन्न करने के लिए सुरक्षा परिषद् को कुछ सामाजिक और आर्थिक कार्य भी दिये जाने चाहिएं।

प्रश्न 8.
एक विश्व संस्था के रूप में संयुक्त राष्ट्र की सफलताओं और असफलताओं पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना 24 अक्तूबर, 1945 को भावी पीढ़ियों को युद्ध की विभीषिका से बचाने के लिए हुई थी। संयुक्त राष्ट्र ने 1945 से लेकर अब तक अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को हल किया है। संयुक्त राष्ट्र ने विश्व शान्ति को बनाए रखने, युद्धों को रोकने तथा महाशक्तियों में टकराव को रोकने में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है। संयुक्त राष्ट्र को जहां अनेक सफलताएं प्राप्त हुई हैं वहीं इसे असफलताओं का भी सामना करना पड़ा है। संयुक्त राष्ट्र की सफलताओं एवं असफलताओं का वर्णन इस प्रकार है

1. राजनीतिक उपलब्धियां-संयुक्त राष्ट्र ने अनेक अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को हल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनमें से कुछ विवाद इस प्रकार हैं-रूस-ईरान विवाद, यूनान विवाद, सीरिया और लेबनान की समस्या, इण्डोनेशिया की समस्या कोर्फ़ चैनल विवाद, कोरिया समस्या, स्वेज़ नहर की समस्या, कांगो समस्या, यमन विवाद, कुवैत-ईराक विवाद आदि।

2. निःशस्त्रीकरण-संयक्त राष्ट्र ने नि:शस्त्रीकरण के लिए अनेक प्रयास किए हैं और आज भी कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने नि:शस्त्रीकरण के लिए अनेक सम्मेलनों का आयोजन किया है।

3. अन्तरिक्ष का मानव कल्याण के लिए प्रयोग-संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों के फलस्वरूप ही महासभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया कि बाहरी अन्तरिक्ष का प्रयोग केवल शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए होगा।

4. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग-संयुक्त राष्ट्र ने विश्व के देशों को एक ऐसा मंच प्रदान किया है जहां अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर विचार-विमर्श होता है। संयुक्त राष्ट्र ने विभिन्न देशों के बीच राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, वैज्ञानिक आदि अनेक क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा दिया है।

5. अन्य उपलब्धियां-संयुक्त राष्ट्र ने सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, वैज्ञानिक इत्यादि गैर-राजनीतिक क्षेत्रों में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

संयुक्त राष्ट्र की असफलताएं-संयुक्त राष्ट्र को निम्नलिखित मामलों में असफलताओं का मुंह देखना पड़ा है

  • संयुक्त राष्ट्र की स्थापना का उद्देश्य युद्धों को रोकना और विश्व में शान्ति स्थापित करना है। परन्तु संयुक्त राष्ट्र इस उद्देश्य में पूर्णरूप से सफल नहीं हुआ।
  • संयुक्त राष्ट्र अनेक राजनीतिक तथा अन्य झगड़ों को दूर करने में असफल रहा है।
  • नि:शस्त्रीकरण की दिशा में संयुक्त राष्ट्र की कोई महान् उपलब्धि नहीं रही है।
  • दक्षिणी अफ्रीका की रंगभेद की नीति के विषय में संयुक्त राष्ट्र कारगर नहीं रहा।
  • मानवाधिकारों की सुरक्षा के बारे में संयुक्त राष्ट्र प्रभावकारी भूमिका नहीं निभा सका।
  • महाशक्तियों की मनमानी रोकने में संयुक्त राष्ट्र बुरी तरह से असफल रहा है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संयुक्त राष्ट्र कब स्थापित हुआ? क्या भारत इसका मूल रूप से सदस्य है ?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसकी स्थापना 24 अक्तूबर, 1945 को की गई थी। संयुक्त राष्ट्र संघ का अपना संविधान है जिसे चार्टर (Charter) कहा जाता है और यह चार्टर सान फ्रांसिस्को सम्मेलन में तैयार किया गया था। संयुक्त राष्ट्र का मुख्य कार्यालय अमेरिका के प्रसिद्ध नगर न्यूयार्क में स्थित है।

आरम्भ में संयुक्त राष्ट्र के 51 सदस्य थे, परन्तु आजकल इसकी सदस्य संख्या 193 है। भारत इसके आरम्भिक सदस्यों में से है। संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा स्थापित करना, राष्ट्रों के बीच जन समुदाय के लिए समान अधिकारों तथा आत्म निर्णय के सिद्धान्त पर आश्रित मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों का विकास करना और इन सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राष्ट्रों के कार्यों को चलाने के लिए एक केन्द्र का कार्य करना है।

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प्रश्न 2.
संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) के किन्हीं चार उद्देश्यों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:

  • संयुक्त राष्ट्र का मुख्य उद्देश्य शान्ति एवं सुरक्षा कायम रखना है तथा युद्धों को रोकना और अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को शान्तिपूर्ण साधनों द्वारा हल करना है।
  • भिन्न-भिन्न राज्यों के बीच समान अधिकारों के आधार पर मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना करना है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और मानवीय समस्याओं के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की प्राप्ति करना।
  • मानवीय अधिकारों और मौलिक स्वतन्त्रताओं के लिए सम्मान बढ़ाना।

प्रश्न 3.
भारत की संयुक्त राष्ट्र के भिन्न-भिन्न अंगों में क्या भूमिका रही है ?
उत्तर:
भारत अनेक बार संयुक्त राष्ट्र के भिन्न-भिन्न अंगों का सदस्य रह चुका है, जैसे कि

  • भारत सुरक्षा परिषद् का आठ बार अस्थायी सदस्य रह चुका है। भारत ने सुरक्षा परिषद् के सदस्य के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • भारत सामाजिक तथा आर्थिक परिषद् का सदस्य अनेक बार रह चुका है और अब पिछले कुछ वर्षों से भारत इस परिषद् का निरन्तर सदस्य चला आ रहा है।
  • 1956 में भारत की श्रीमती विजयलक्ष्मी पण्डित महासभा की अध्यक्षा चुनी गई।
  • 1956 ई० में राधाकृष्णन यूनेस्को के अध्यक्ष चुने गए।
  • सर बेनेगल राव 1950 के दशक में अन्तर्राष्टीय न्यायालय के जज रह चके हैं।

डॉ० नगेन्द्र सिंह अन्तर्राष्ट्रीय य के न्यायाधीश और बाद में मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं। इसके अतिरिक्त श्री रामस्वरूप पाठक अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं। 27 अप्रैल, 2012 को न्यायमूर्ति दलवीर भण्डारी को अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का न्यायाधीश चुना गया। नवम्बर, 2017 में दलवीर भण्डारी को पुन: अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का न्यायाधीश चुन लिया गया।

प्रश्न 4.
सुरक्षा परिषद् पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र की कार्यपालिका के समान है। इसके कुल 15 सदस्य होते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं- स्थायी और अस्थायी। पांच स्थायी सदस्य हैं-अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और इंग्लैंड। इसके अलावा 10 अस्थायी सदस्य दो वर्षों के लिए महासभा द्वारा चुने जाते हैं। सुरक्षा परिषद् के पांच स्थायी सदस्यों को निषेधाधिकार (Veto) प्राप्त है। इसका अभिप्राय यह है कि यदि कोई स्थायी सदस्य सुरक्षा परिषद् में रखे गए प्रस्ताव के विरोध में अपना मत देता है तो वह प्रस्ताव पास नहीं हो सकता।

उल्लेखनीय है कि यदि कोई सदस्य विरोध स्वरूप सुरक्षा परिषद् की बैठक से अनुपस्थित रहता है तो उसे निषेधाधिकार का प्रयोग नहीं माना जाता। सुरक्षा परिषद् का प्रमुख कार्य अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाए रखना है। इसके अतिरिक्त सुरक्षा परिषद् नए सदस्यों को महासभा की सिफारिश पर संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनाती है। इसके अलावा यह अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों व महासचिव के चुनाव में भी भाग लेती है। संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में संशोधन के विषय में भी सुरक्षा परिषद् महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

प्रश्न 5.
संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव के कोई चार कार्य लिखिये।
अथवा
संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) के महासचिव के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र का एक सचिवालय होता है जिसका मुखिया महासचिव होता है। महासचिव जिसे विश्व का प्रमुख प्रशासकीय अधिकारी कहा जा सकता है। महासचिव की नियुक्ति सुरक्षा परिषद् की सिफ़ारिश पर महासभा करती है। यह 5 वर्ष के लिए चुना जाता है। इस समय श्री एन्टोनियो गुटेरस संयुक्त राष्ट्र के महासचिव हैं।

(1) महासचिव सचिवालय के सभी कर्मचारियों पर निरीक्षण रखता है। महासचिव संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न गतिविधियों में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

(2) यह महासभा, सुरक्षा परिषद्, आर्थिक व सामाजिक परिषद्, ट्रस्टीशिप कौंसिल की कार्यवाही में हिस्सा ले सकता है।

(3) यह महासभा के सामने संयुक्त राष्ट्र के कार्यों की वार्षिक रिपोर्ट पेश करता है।

(4) महासचिव सुरक्षा परिषद् का ध्यान किसी ऐसे विषय की ओर दिलाने का कार्य भी करता है जो अन्तर्राष्टीय शांति एवं सरक्षा के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकता है। महासचिव का अन्तर्राष्टीय शांति बनाने रखने में बड़ा हाथ होता है।

प्रश्न 6.
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों का हल करने के लिए हेग में एक न्याय का अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय स्थापित किया गया है। इस न्यायालय में 15 न्यायाधीश होते हैं। न्यायाधीशों का चुनाव महासभा तथा सुरक्षा सुरक्षा परिषद् द्वारा अलग अलग स्वतन्त्र तौर पर किया जाता है। न्यायाधीश 9 वर्ष के लिए चुने जाते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के पास अन्तर्राष्ट्रीय कानून तथा अन्तर्राष्ट्रीय संधियों से सम्बन्धित सभी विषय ले जाए जा सकते हैं। इस न्यायालय में केवल राज्यों के ही झगड़े ले जाए जा सकते हैं, व्यक्तियों के नहीं। अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का क्षेत्राधिकार तीन प्रकार का है

  • अनिवार्य क्षेत्राधिकार
  • ऐच्छिक क्षेत्राधिकार
  • सलाहकारी क्षेत्राधिकार।

अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय संधियों, अन्तर्राष्ट्रीय कानून, अन्तर्राष्ट्रीय दायित्व को भंग करने वाले तथ्यों व क्षतिपूर्ति से सम्बन्धित मामलों में सम्बन्धित पक्षों को सुनता है। अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय सम्बन्धित राज्यों की सहमति से ही किसी अभियोग की सुनवाई करता है। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र महासभा व सुरक्षा परिषद् को आवश्यकतानुसार किसी मामले में सलाह भी दे सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को सुलझाने में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।

प्रश्न 7.
संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) में भारत की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत ने संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के लिए 1945 में सानफ्रांसिस्को सम्मेलन में भाग लिया और चार्टर पर हस्ताक्षर करके वह संयुक्त राष्ट्र का प्रारम्भिक सदस्य बन गया। भारत की सिफारिश पर चार्टर में मानवाधिकारों और मौलिक स्वतन्त्रताओं को बिना किसी भेदभाव के प्रोत्साहित करने का उद्देश्य जोड़ा गया। संयुक्त राष्ट्र के मुख्य अंगों और विशेष एजेन्सियों में भारत को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त रहा है। भारत सुरक्षा परिषद् का आठ बार अस्थायी सदस्य रह चुका है।

भारत ने विश्व शान्ति तथा सुरक्षा को बनाए रखने में संयुक्त राष्ट्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जब भी संसार में किसी भी भाग में तनाव या झगड़ा उत्पन्न हुआ है तो भारत ने तनाव को कम करने तथा झगड़े को हल करने के प्रयास किए हैं। कोरिया, स्वेज़ नहर, कांगो, साइप्रस, अलजीरिया, लीबिया, अफ़गानिस्तान आदि की समस्याओं को हल करने में भारत ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। जब कभी सुरक्षा परिषद् ने किसी देश में शान्ति स्थापित करने के लिए सेनाओं की मांग की तो भारत ने अपनी सेनाएं भेजी हैं।

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प्रश्न 8.
अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा की दृष्टि से भारत के योगदान की चर्चा करो।
अथवा
भारत ने विश्व शान्ति की स्थापना में क्या भूमिका अभिनीत की है ?
उत्तर:
भारत ने विश्व-शान्ति तथा सुरक्षा को बनाए रखने में संयुक्त राष्ट्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसका वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है
1. कोरिया समस्या-1950 में उत्तरी कोरिया ने दक्षिणी कोरिया पर आक्रमण कर दिया। संयुक्त राष्ट्र ने युद्ध को रोकने के लिए 16 राष्ट्रों की सेनाएं उत्तरी कोरिया के विरुद्ध भेजी। भारत के सैनिकों ने भी इस कार्यवाही में भाग लिया।

2. स्वेज नहर की समस्या-जुलाई, 1956 में मिस्र के राष्ट्रपति ने स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इस पर इंग्लैण्ड, फ्रांस तथा इज़राइल ने मिलकर मिस्र पर आक्रमण कर दिया। भारत ने इन देशों की निन्दा की और महासभा द्वारा पारित उस प्रस्ताव का समर्थन किया जिसमें कहा गया कि युद्ध को तुरन्त बन्द कर दिया जाए।

3. कांगो समस्या-स्वतन्त्रता प्राप्त करने पर कांगो में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो गई। लुमुम्बा ने संयुक्त राष्ट्र से सैनिक सहायता की अपील की। संयुक्त राष्ट्र की अपील पर भारत ने अपनी सेना कांगो में भेजी।।

4. अरब-इजराइल विवाद-1967 में अरब-इज़राइल युद्ध में इज़राइल ने अरब क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। भारत की नीति यह रही है कि इज़राइल को अरब क्षेत्र खाली करना चाहिए और संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारित सभी प्रस्तावों को मानना चाहिए।

प्रश्न 9.
संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
अथवा
संयुक्त राष्ट्र के कोई चार सिद्धांत लिखिए।
उत्तर:
(1) संयुक्त राष्ट्र की स्थापना सदस्य राष्ट्रों की प्रभुसत्ता की समानता के आधार पर की गई है।

(2) संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य ईमानदारी से घोषणा-पत्र के अंतर्गत निर्धारित दायित्वों का पालन करेंगे ताकि निर्धारित अधिकारों की प्राप्ति सभी को हो सके।

(3) संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य राज्य अपने विवादों का समाधान शांतिपूर्ण ढंग तथा इस प्रकार करेंगे कि अंतर्राष्ट्रीय शांति, सुरक्षा और न्याय को किसी प्रकार का भय न हो।

(4) सभी सदस्य राष्ट्र अपने अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के क्षेत्र में किसी भी राष्ट्र की राजनीतिक स्वतन्त्रता तथा प्रभुसत्ता को आघात पहुंचाने वाला कार्य नहीं करेंगे। इसके साथ ही वे कोई भी ऐसा कार्य नहीं करेंगे जो संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा-पत्र और उद्देश्यों के विपरीत या असंगत हो।

प्रश्न 10.
शीत युद्ध की समाप्ति के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ को सफल बनाने के लिए चार सुझाव दीजिए।
उत्तर:

  • संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रासंगिक सुधार करना चाहिए।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए।
  • विश्व शान्ति को बढ़ावा देने के लिए एक शांति संस्थापक आयोग का गठन करना चाहिए।
  • विश्व में व्याप्त किसी भी प्रकार के आतंकवाद की निंदा एवं उसे नियन्त्रित करना।

प्रश्न 11.
संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संघ (UNESCO) पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र के शैक्षणिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन जिसे प्रायः यूनेस्को के नाम से पुकारा जाता है, ने राष्ट्र संघ के अधीन बनाई गई अन्तर्राष्ट्रीय विद्वानों के सहयोगी संगठन का स्थान लिया है। यूनेस्को की स्थापना 4 नवम्बर, 1946 की गई। इनकी स्थापना के लिए लन्दन में 1 नवम्बर से 16 नवम्बर, 1945 तक एक सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में 44 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

सम्मेलन की कार्यवाही बड़ी उत्साहपूर्ण वातावरण में चली। विभिन्न पहलुओं पर गम्भीरता पूर्वक विचार किया गया। इंग्लैंड तथा फ्रांस की सरकारों के प्रतिनिधियों ने इस संगठन के संविधान का निर्माण किया। लगभग एक वर्ष के बाद संविधान के स्वीकृत होने पर यूनेस्को की 4 नवम्बर, 1946 को विधिवत् स्थापना की गई। समझौते द्वारा संयुक्त राष्ट्र ने इस संगठन को अपने विशिष्ट अभिकरण के रूप में स्वीकार कर लिया। इसका प्रमुख उद्देश्य शिक्षा, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक कार्यों का प्रचार-प्रसार करना है।

प्रश्न 12.
अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की कोई चार विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • अन्तर्राष्ट्रीय संगठन प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्यों का एक संगठन होता है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय संगठन में सभी सदस्य राज्यों को समान समझा जाता है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय संगठन का संचालन स्थायी अभिकरणों एवं प्रक्रियाओं द्वारा चलाया जाता है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना सदस्य राज्यों द्वारा अपने सामान्य हितों की प्राप्ति के लिए होती है।

प्रश्न 13.
भारत के सुरक्षा परिषद् के स्थाई सदस्यता के दावे को मजबूत करने वाले दो कारण बताएं।
उत्तर:
1. विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश-भारत के सुरक्षा परिषद् के स्थाई सदस्यता के दावे का प्रमुख कारण यह है कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक एवं जिम्मेदार देश है। भारत में नियमित समय पर चुनाव होते हैं तथा सभी लोगों को समान रूप से मताधिकार प्राप्त हैं।

2. संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की भूमिका-भारत के सुरक्षा परिषद् के स्थाई सदस्यता के दावे का एक अन्य प्रमुख कारण यह है कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ में सदैव सकारात्मक भूमिका निभाई है तथा विश्व में शान्ति एवं व्यवस्था बनाए रखने के संयुक्त राष्ट्र के कार्य में सदैव सहयोग दिया है।

प्रश्न 14.
एक ध्रुवीय युग में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) की आवश्यकता के कोई चार कारण लिखिए।
अथवा
संयुक्त राष्ट्र संघ की आवश्यकता के कोई चार कारण लिखिये।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र निम्नलिखित कारणों से एक अपरिहार्य संगठन हैं

1. विश्व में शान्ति एवं व्यवस्था बनाये रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व में शान्ति एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए अपरिहार्य है। विश्व में बढ़ते आतंकवाद एवं भय को समाप्त करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्था की ही आवश्यकता है।

2. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए संयुक्त राष्ट्र ने विश्व के देशों को एक ऐसा मंच प्रदान किया है जहां अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर विचार-विमर्श होता है। संयुक्त राष्ट्र ने विभिन्न देशों के बीच राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, वैज्ञानिक आदि अनेक क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा दिया है।

3. मानवाधिकार की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र की आवश्यकता है।

4. निःशस्त्रीकरण के लिए संयुक्त राष्ट्र की आवश्यकता है।

प्रश्न 15.
भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता से क्या लाभ प्राप्त हुए हैं ?
उत्तर:
भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता से निम्नलिखित लाभ प्राप्त हुए हैं

  • भारत के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विश्व बैंक ने पंचवर्षीय योजनाओं के लिए तकनीकी विशेषज्ञ एवं ऋण उपलब्ध करवाया है।
  • यूनेस्को ने भारत में शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया है।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ ने उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान के कई क्षेत्रों को कृषि युक्त बनाने का प्रयास किया है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत में कई प्रकार की बीमारियों को रोकने एवं समाप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन

प्रश्न 16.
सुरक्षा परिषद् के स्थायी और अस्थायी सदस्यता के लिए सुझाए गए किन्हीं चार मानदण्डों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • सुरक्षा परिषद् में उन नये देशों को शामिल किया जाए, जिनका मानवाधिकारों से सम्बन्धित रिकॉर्ड अच्छा है।
  • सुरक्षा परिषद् में नये सदस्यों को शामिल करने का एक अन्य मानदण्ड भूगोलिक आधार है।
  • आर्थिक आधार पर भी सुरक्षा परिषद् की सदस्यता बढ़ाये जाने का सुझाव दिया जा रहा है।
  • कुछ विद्वानों का विचार है कि उन देशों को सुरक्षा परिषद् में शामिल किया जाए जिन्होंने विश्व शांति स्थापना में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रश्न 17.
संयुक्त राष्ट्र महासभा के संगठन एवं कार्य लिखें।
उत्तर:
महासभा संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे बड़ा मुख्य चार्टर अंग है। यह एक प्रकार की विश्व संसद् है जिसका मुख्य काम विचार-विमर्श करना है। महासभा में संयुक्त राष्ट्र संघ के सारे सदस्यों को प्रतिनिधित्व मिलता है। इस समय संयुक्त राष्ट्र संघ के 193 देश सदस्य हैं। इन 193 देशों के प्रतिनिधियों को मिलाकर महासभा बनती है। हर सदस्य देश इसमें अपने 5 प्रतिनिधि भेज सकता है, परन्तु हर देश का एक ही मत होता है।

1. निर्वाचित कार्य-महासभा 2/3 बहुमत से सुरक्षा परिषद् के 10 अस्थायी सदस्यों को दो साल के लिए चुनती है। महासभा आर्थिक तथा सामाजिक परिषद् के सदस्य भी चुनती है। यह ट्रस्टीशिप कौंसिल के कुछ सदस्य चुनती है। सुरक्षा परिषद् तथा महासभा अलग-अलग मत प्रयोग करके अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के 15 जजों का चुनाव करती है। महासभा सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर संयुक्त राष्ट्र के मुख्य सचिव को नियुक्त करती है।।

2. विचारशील कार्य-महासभा का सबसे महत्त्वपूर्ण काम चार्टर के अधीन सारे विषयों पर विचार करना तथा उसके आधार पर सिफ़ारिश करना है।

प्रश्न 18.
राष्ट्र संघ की असफलता के कोई चार कारण बताएं।
उत्तर:
राष्ट्र संघ की असफलता के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हैं

  • राष्ट्र संघ में विभिन्न देशों को असमान प्रतिनिधित्व प्राप्त था।
  • राष्ट्र संघ की अपनी कोई सेना नहीं थी।
  • राष्ट्र संघ में ब्रिटेन तथा फ्रांस जैसे बड़े देशों का प्रभाव अधिक था, जबकि कमज़ोर देशों को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता था।
  • राष्ट्र संघ की असफलता के लिए सदस्य देशों की अव्यावहारिक नीतियां भी ज़िम्मेदार हैं।

प्रश्न 19.
अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के समाधान के लिए सुरक्षा परिषद् किन चार तरीकों का प्रयोग करती है ?
उत्तर:
1. वार्ता-इससे अभिप्राय है कि दो राष्ट्रों में अपने विवाद का समाधान करने हेतु बातचीत करना। बातचीत राष्ट्रों के मध्य भी हो सकती है और ऐसी बातचीत उनके प्रतिनिधियों के मध्य भी हो सकती है।

2. सत्सेवा और मध्यस्थता-यदि सम्बद्ध दोनों पक्षों में वार्ता का ढंग अपनाने पर समस्या का कोई समाधान नहीं निकलता तो अन्य देशों द्वारा उस विवाद के समाधान के लिए अपनी सेवाएं प्रदान की जा सकती हैं।

3. वाद-विवाद-यह विधि महासभा या सुरक्षा परिषद् द्वारा ग्रहण की जाती है। महासभा या सुरक्षा परिषद् द्वारा विवादग्रस्त दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों को अपने तर्क एवं दावे प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है। इस प्रकार दोनों विरोधी ‘पक्षों को बिना किसी भय के अपने विचार व्यक्त करने के लिए एक मंच मिल जाता है और वाद-विवाद के माध्यम से विवाद के समाधान की आशा बढ़ जाती है।

4. जांच-इस विधि में विवाद के तथ्यों की जांच की जाती है। इस जांच द्वारा उन वास्तविकताओं का पता लगाया जाता है जिनसे विवादी पक्षों के मतभेदों को समाप्त किया जा सके।

प्रश्न 20.
शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् विश्व में हुए ऐसे कोई चार परिवर्तन लिखें जिनसे संयुक्त राष्ट्र संघ प्रभावित हुआ है ?
उत्तर:

  • 1991 में सोवियत संघ का पतन हो गया एवं संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व की एकमात्र महाशक्ति बन गया।
  • पिछले कुछ वर्षों में चीन ने उभरती हुई महाशक्ति के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।
  • 9/11 की आतंकवादी घटना ने भी संयुक्त राष्ट्र संघ को प्रभावित किया है।
  • विश्व में एड्स, आतंकवाद, जनसंहार, परमाणु हथियार, पर्यावरण क्षरण, वैश्विक तापन, महामारी तथा गृह युद्ध जैसी समस्याएं संयुक्त राष्ट्र संघ को प्रभावित कर रही हैं।

प्रश्न 21.
विश्व बैंक के किन्हीं चार कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
विश्व बैंक निम्नलिखित कार्य करता है

  • विश्व बैंक मानवीय विकास से सम्बन्धित कई महत्त्वपूर्ण कार्य करता है।
  • विश्व बैंक विश्व स्तर आधारभूत ढांचा तैयार करवाने में अपनी भूमिका निभाता है।
  • विश्व बैंक सदस्य देशों को अनुदान एवं ऋण प्रदान करता है।
  • विश्व बैंक अधिक ग़रीब देशों को अनुदान या ऋण देकर उन्हें वापिस नहीं लेता।

प्रश्न 22.
सितम्बर, 2005 में संयुक्त राष्ट्र संघ को अधिक प्रभावशाली एवं प्रांसगिक बनाने के लिए पास किए गए कोई चार प्रस्ताव लिखें।
अथवा
संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) में सुधार के कोई चार सुझाव दीजिये।
उत्तर:

  • विश्व शान्ति को बढ़ावा देने के लिए एक शान्ति संस्थापक आयोग का गठन करना चाहिए।
  • विश्व में व्याप्त किसी भी प्रकार के आंतकवाद की निन्दा एवं उसे नियन्त्रित करना।
  • एक लोकतान्त्रिक कोष का गठन करना।
  • यदि कोई देश अपने नागरिकों की रक्षा में सक्षम नहीं है, तो विश्व समुदाय को उसकी रक्षा करनी चाहिए।

प्रश्न 23.
संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) की सुरक्षा परिषद् के कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा
संयुक्त राष्ट्र संघ के सुरक्षा परिषद् के किन्हीं चार कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
सुरक्षा-परिषद् के निम्नलिखित कार्य हैं

(1) सुरक्षा परिषद् किसी ऐसे मामले पर तुरन्त विचार कर सकती है, जिससे अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा के भंग होने का भय हो।

(2) सुरक्षा-परिषद् आक्रामक कार्यवाहियों, विश्व शान्ति के लिए खतरे की सम्भावनाओं और शान्ति भंग किए जाने वाले कार्यों के विषय में कार्यवाही कर सकता है।

(3) सुरक्षा परिषद् प्रादेशिक समस्याएं सुलझाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

(4) चार्टर के अनुच्छेद 83 के अनुसार सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के सम्बन्ध में संयुक्त राष्ट्र ने जो दायित्व ग्रहण किए हैं, उन्हें निभाने की ज़िम्मेदारी सुरक्षा परिषद् की है।

प्रश्न 24.
विश्व व्यापार संगठन के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन की स्थापना 1995 में हुई थी। यह संगठन ‘जेनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड एवं टैरिफ’ के उत्तराधिकारी के रूप में सामने आया है। वर्तमान समय में इसके सदस्यों की संख्या 161 है। यह संगठन वैश्विक व्यापार के नियमों को निश्चित करता है। इस संगठन में प्रत्येक निर्णय सदस्य देशों की सहमति पर लिया जाता है।

यद्यपि यह संगठन विश्व स्तर पर व्यापारिक नियमों को निश्चित करता है, परन्तु फिर भी इस पर अमेरिका, यूरोपीय देशों तथा जापान जैसे देशों का प्रभाव अधिक है, जोकि अपने आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए इस संगठन का दुरुपयोग करते हैं। इसीलिए विकासशील देश इस संगठन की कार्यप्रणाली से सन्तुष्ट नहीं रहते। विकासशील देशों का यहां आरोप है कि विश्व व्यापार संगठन की कार्यप्रणाली पारदर्शी नहीं है तथा यह संगठन बड़ी शक्तियों के प्रभाव में कार्य करता है।

प्रश्न 25.
ह्यूमन राइट वॉच के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:

  • ह्यूमन राइट वॉच विश्व स्तर पर मानवाधिकारों को बढ़ावा देने वाला एक स्वयं सेवी संगठन है।
  • ह्यूमन राइट वॉच मानवाधिकारों के उल्लंघन की ओर विश्व मीडिया का ध्यान आकर्षित करता है।
  • ह्यूमन राइट वॉच ने बारूदी सुरंगों पर रोक लगाने का प्रयास किया है।
  • ह्यूमन राइट वॉच बाल सैनिकों के प्रयोग को रोकने के लिए प्रयासरत है।।

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प्रश्न 26.
विश्व के किन्हीं चार प्रमख अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठनों का वर्णन करें।
उत्तर:

  • विश्व व्यापार संगठन-विश्व व्यापार संगठन की स्थापना सन् 1995 में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एवं आर्थिक गतिविधियों के विषय में नियम बनाने के लिए की गई थी।
  • अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष-अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष वैश्विक स्तर पर वित्त व्यवस्था की देखभाल करता है।
  • गैट समझौता-गट समझौते का मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में विकासशील देशों को समान रूप से भागीदार बनाना है।
  • विश्व बैंक-विश्व बैंक की स्थापना सन् 1946 में हुई। इसका मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों में पुनर्निर्माण एवं विकास में सहायता देना है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संयुक्त राष्ट्र संघ क्या है ?
अथवा
संयुक्त राष्ट्र का निर्माण कब हुआ था ?
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध की भयानक तबाही देखकर संसार के सभी भागों में प्रत्येक मनुष्य सोचने लगा कि यदि ऐसा एक और युद्ध हुआ तो विश्व तथा मानव जाति का सर्वनाश हो जाएगा। अतः अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति स्थापित करने की दिशा में प्रयास किए जाने लगे। इसके लिए किसी विश्व समुदाय का होना ज़रूरी था।

अत: 24 अक्तूबर, 1945 को संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की गई जिसका उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा स्थापित करना, राष्ट्रों के बीच जन समुदाय के लिए समान अधिकारों तथा आत्म-निर्णय के सिद्धान्त के लिए राष्ट्रों के कार्यों को समन्वय करने के लिए एक केन्द्र का कार्य करना है। आरम्भ में उसके 51 राष्ट्र सदस्य थे और वर्तमान में इसके 193 राष्ट्र सदस्य हैं।

प्रश्न 2.
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् में वीटो’ शक्ति का प्रयोग करने वाले देशों के नाम बताइये।
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र की कार्यपालिका है। सुरक्षा परिषद् की कुल सदस्य संख्या 15 है। इनमें 10 अस्थायी सदस्य हैं तथा 5 स्थायी सदस्य हैं। 5 स्थायी सदस्यों को सुरक्षा परिषद् में वीटो अधिकार प्राप्त है। ये देश हैं-अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस, रूस तथा चीन।

प्रश्न 3.
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव की नियुक्ति कैसे की जाती है ?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र महासचिव की नियुक्ति सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर महासभा करती है। महासचिव के लिए उम्मीदवार का नाम सुरक्षा परिषद् के 9 सदस्यों द्वारा समर्थित होना चाहिए। इन नौ सदस्यों में से पांच सदस्य राजनीतिक विज्ञान ( स्थायी होने चाहिए।

यदि पांच स्थायी सदस्यों में से एक स्थायी सदस्य भी निषेधाधिकार का प्रयोग कर दे तो महासचिव के पद के नामांकित व्यक्ति का नाम निरस्त हो जाता है। सुरक्षा परिषद् द्वारा नामित उम्मीदवार को महासभा में उपस्थिति तथा मतदान करने वाले सदस्यों का बहुमत प्राप्त करना पड़ता है। बहुमत प्राप्त करने के पश्चात् सम्बन्धित उम्मीदवार को संयुक्त राष्ट्र का महासचिव चुन लिया जाता है।

प्रश्न 4.
संयुक्त राष्ट्र की चार विशिष्ट एजेन्सियों (Specialised Agencies) के नाम लिखो।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र की चार विशिष्ट एजेन्सियों के नाम इस प्रकार हैं

  • अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन।
  • संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन।
  • खाद्य एवं कृषि संगठन।

प्रश्न 5.
निषेधाधिकार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
निषेधाधिकार या वीटो सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों की महत्त्वपूर्ण शक्ति है। निषेधाधिकार का अर्थ है स्थायी सदस्यों द्वारा संयुक्त राष्ट्र में किसी प्रस्ताव को पास होने से रोकना। इसका अभिप्राय यह है कि यदि पांच स्थायी सदस्यों में से कोई भी एक सदस्य संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में रखे गए प्रस्ताव के विरोध में वोट डाल दे तो वह प्रस्ताव पास नहीं होगा। उल्लेखनीय है कि सुरक्षा परिषद् में यदि कोई सदस्य अनुपस्थित रहता है तो उसको निषेधाधिकार का प्रयोग नहीं माना जाएगा।

  • प्रश्न 6.
    संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N.O.) के कोई दो उद्देश्य बताइए।
    उत्तर:
  • संयुक्त राष्ट्र का मुख्य उद्देश्य शान्ति एवं सुरक्षा कायम रखना है तथा युद्धों को रोकना और अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को शान्तिपूर्ण साधनों द्वारा हल करना है।
  • भिन्न-भिन्न राज्यों के बीच समान अधिकारों के आधार पर मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना करना है।

प्रश्न 7.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) के कोई दो कार्य लिखें।
उत्तर:
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुख्य कार्य इस प्रकार हैं

  • दवाओं और स्वास्थ्य से सम्बद्ध वस्तुओं के लिए उचित मानक (Standard) निर्धारित करना।
  • स्वास्थ्य के लिए प्रशासकीय नियमों का अध्ययन करके उनमें सुधारार्थ प्रयास करना।

प्रश्न 8.
हमें अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की क्यों आवश्यकता पड़ती है? कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:

  • अन्तर्राष्ट्रीय संगठन युद्ध और शान्ति के विषयों में मदद करते हैं।
  • राष्ट्रों के समक्ष कई बार ऐसी मुश्किल एवं बड़ी समस्या आ जाती है कि वे अकेला उसका हल नहीं निकाल सकता। इसके लिए अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 9.
संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N.O.) के कोई दो सिद्धान्त बताइए।
उत्तर:

  • संयुक्त राष्ट्र सदस्यों की संप्रभु समानता पर आधारित है।
  • संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य ईमानदारी से घोषणा-पत्र के अन्तर्गत निर्धारित दायित्वों का पालन करेंगे।

प्रश्न 10.
उन भारतीय अधिकारियों के नाम लिखो जो संयुक्त राष्ट्र में महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य करते रहे हैं।
उत्तर:

  • 1953 में श्रीमती विजय लक्ष्मी पण्डित महासभा की अध्यक्ष चुनी गई।
  • डॉ० राधाकृष्णन और मौलाना अबुल कमाल आजाद यूनेस्को के अध्यक्ष चुने गए।
  • राजकुमारी अमृतकौर विश्व स्वास्थ्य संगठन की अध्यक्ष चुनी गई थी।
  • 1956 में श्री वी० आर० सेठ खाद्य और कृषि संगठन के अध्यक्ष चुने गए थे।
  • डॉ० नगेन्द्र सिंह अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश और बाद में मुख्य न्यायाधीश बनाए गए थे।

प्रश्न 11.
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना में भारत की भूमिका का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना 24 अक्तूबर, 1945 को की गई। भारत ने संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के लिए सानफ्रांसिस्को सम्मेलन में भाग लिया और चार्टर पर हस्ताक्षर करके संयुक्त राष्ट्र का प्रारम्भिक सदस्य बना। सानफ्रांसिस्को सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि श्री ए. रामास्वामी मुदालियर ने इस बात पर जोर दिया कि युद्ध को रोकने के लिए आर्थिक और सामाजिक न्याय का महत्त्व सर्वाधिक होना चाहिए। भारत की सिफ़ारिश पर चार्टर में मानव अधिकारों और मौलिक स्वतन्त्रताओं को बिना किसी भेदभाव के प्रोत्साहन करने का उद्देश्य जोड़ा गया।

प्रश्न 12.
संयुक्त राष्ट्र संघ के पुनर्गठन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ के पुनर्गठन से अभिप्राय इस संगठन में कुछ महत्त्वपूर्ण बदलाव करने से है। पिछले कुछ वर्षों से विश्व राजनीति में बहुत बदलाव आए हैं और बदलते परिवेश में संयुक्त राष्ट्र संघ के अंगों एवं कार्यप्रणाली में कुछ दोष उत्पन्न हो गए हैं, जिससे कारण समय-समय इसके पुनर्गठन की मांग की जाती है।

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प्रश्न 13.
संयुक्त राष्ट्र संघ के किन दो महत्त्वपूर्ण अंगों में सुधार की मांग की जा रही है ?
उत्तर:
1. सुरक्षा परिषद्-संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् में सुधार की सबसे अधिक मांग की जा रही है। क्योंकि इसमें सदस्य देशों के साथ समान व्यवहार नहीं किया जाता।

2. महासभा-संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में भी समय-समय पर सुधार की मांग ली जाती रही है। भूतपूर्व महासचिव कोफी अन्नान के अनुसार महासभा में सर्वसम्मति की प्रक्रिया को समाप्त कर देना चाहिए तथा महासभा अध्यक्ष को आर्थिक शक्तिशाली बनना चाहिए।

प्रश्न 14.
संयुक्त राष्ट्र संघ के पुनर्गठन में भारत की स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ के पुनर्गठन में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। भारत सुरक्षा परिषद् की स्थाई सदस्यता का एक मजबूत उम्मीदवार है। नई मानवाधिकार परिषद् के 47 सदस्यों में से एक भारत भी है। संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में सुधारों तथा इसकी स्थाई सेना की धारणा में भी भारत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

प्रश्न 15.
वैश्विक तापवृद्धि (Global Warming) का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
वैश्विक तापवृद्धि से अभिप्राय कई कारणों से विश्व के तापमान के बढ़ने से है। वैश्विक तापवृद्धि क्लोरो फ्लोरो कार्बन कहलाने वाले कुछ रसायनों के फैलाव के कारण हो रही है। वैश्विक तापवृद्धि से समुद्री तटीय देशों के डूबने का खतरा बढ़ गया है क्योंकि समुद्र तल की ऊंचाई बढ़ने लगी है।

प्रश्न 16.
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के कोई दो कार्य बताएं।
उत्तर:

  • अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष विश्व स्तर पर वित्त व्यवस्था को नियन्त्रित करता है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष विभिन्न देशों की अपील पर उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करता है।

प्रश्न 17.
विश्व को संयुक्त राज्य अमेरिका से क्यों डर लगता है ? कोई दो कारण बताएं।
उत्तर:

  • शीत युद्ध की समाप्ति एवं सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् अमेरिका विश्व की एकमात्र महाशक्ति रह गया है।
  • अमेरिका को अपनी इच्छानुसार कार्य करने से कोई देश या संगठन रोकने में सक्षम नहीं है।

प्रश्न 18.
संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतीक चिन्ह का वर्णन करें।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ एक विश्व संस्था है। अत: संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतीक चिन्ह में विश्व का मानचित्र बना हुआ है, तथा इसे चारों तरफ जैतून की पत्तियां हैं जोकि विश्व शान्ति का सन्देश देती हैं।

प्रश्न 19.
भारत कितनी बार सुरक्षा परिषद् का अस्थायी सदस्य रह चुका है ?
उत्तर:
भारत अब तक आठ बार सुरक्षा परिषद् का अस्थायी सदस्य रह चुका है। भारत सन् 1950, 1967, 1977, 1972, 1984, छठी बार 1991 में सुरक्षा परिषद् का अस्थायी सदस्य रह चुका है। भारत सातवीं बार सुरक्षा परिषद् का अस्थायी सदस्य जनवरी 2011 से दिसम्बर 2012 तथा आठवीं बार जनवरी 2021 से दिसम्बर, 2022 तक चुना गया है।

प्रश्न 20.
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की व्याख्या करें।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र का न्यायिक अंग है जिसे विश्व न्यायालय भी कहा जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में 15 जज होते हैं जिन्हें महासभा तथा सुरक्षा परिषद् अलग-अलग स्वतन्त्र तौर पर चुनती है। जज 9 साल के लिए चुने जाते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय कानून तथा अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों से सम्बन्धित सभी विषय इसके पास ले जाए जा सकते हैं।

प्रश्न 21.
अन्तर्राष्ट्रीय आण्विक ऊर्जा एजेन्सी (IAEA) के कोई दो कार्य लिखें।
उत्तर:

  • अन्तर्राष्टीय आण्विक ऊर्जा एजेन्सी परमाण उर्जा के शान्तिपर्ण उपयोग को बढावा देती है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय आण्विक ऊर्जा एजेन्सी समय-समय पर परमाणु सुविधाओं की जांच करती है ताकि नागरिक संयन्त्रों का प्रयोग सैनिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए न किया जा सके।

प्रश्न 22.
एमनेस्टी इंटरनेशनल के कोई दो कार्य लिखें।
उत्तर:

  • एमनेस्टी इंटरनेशनल सम्पूर्ण विश्व में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए कार्य करता है।
  • एमनेस्टी इंटरनेशनल विश्व स्तर पर मानवाधिकारों से सम्बन्धित रिपोर्ट तैयार करता है तथा उसे प्रकाशित करता है।

प्रश्न 23.
अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर संगठन के कोई दो कार्य लिखें।
उत्तर:

  • अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर संगठन विभिन्न देशों के मजदूरों के वेतन तथा काम करने का समय निश्चिय करता है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर संगठन मज़दूरों में प्रचलित बेकारी को रोकने का प्रयास करता है।

प्रश्न 24.
सुरक्षा परिषद् के स्थाई सदस्यों के विशेषाधिकार को क्यों समाप्त नहीं किया जा सकता है ? कोई दो कारण दीजिए।
उत्तर:
(1) सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों के विशेषाधिकार इसलिए समाप्त नहीं किए जा सकते, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा-पक्ष में इन देशों को विशेष महत्त्व दिया गया है।

(2) यदि स्थाई सदस्यों के विशेषाधिकार समाप्त कर दिए जाएं, तो हो सकता है कि इन शक्तिशाली देशों की रुचि संयुक्त राष्ट्र संघ में न रहे, तथा ये देश इस संगठन से बाहर आकर अपनी इच्छानुसार कार्य करना शुरू कर दें।

प्रश्न 25.
भारत के संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता के दावे के लिए कोई दो तर्क दीजिए।
उत्तर:
(1) भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् की स्थाई सदस्यता इसलिए मिलनी चाहिए, क्योंकि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है। भारत में कुल जनसंख्या का 1/5 भाग निवास करता है।

(2) भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी अंगों में दी गई अपनी भूमिका को प्रभावशाली ढंग से निभाया है।

प्रश्न 26.
भारत की संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् की स्थाई सदस्यता का विरोध करने वाले देशों के द्वारा दिए किन्हीं दो तर्कों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • आलोचक देश भारत के परमाणु हथियारों को लेकर चिंतित हैं।
  • आलोचकों का कहना है, कि भारत पाकिस्तान के साथ सम्बन्धों को लेकर सुरक्षा परिषद् में अप्रभावी रहेगा।

प्रश्न 27.
संयुक्त राष्ट्र के मुख्य अंगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र के 6 अंग हैं-

  • महासभा
  • सुरक्षा परिषद्
  • आर्थिक तथा सामाजिक परिषद्
  • ट्रस्टीशिप कौंसिल
  • अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय
  • सचिवालय।

प्रश्न 28.
सुरक्षा परिषद् के कार्य लिखिए।
उत्तर:

  • सुरक्षा परिषद् किसी ऐसे मामलों पर तुरन्त विचार कर सकती है, जिससे अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा के भंग होने का भय हो।
  • सुरक्षा परिषद् आक्रामक कार्यवाहियों, विश्व शान्ति के लिए खतरे की सम्भावनाओं और शान्ति भंग किए जाने वाले कार्यों के विषय में कार्यवाही कर सकती है।

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प्रश्न 29.
भारत ने विश्व शान्ति की स्थापना में क्या भूमिका अदा की है ?
उत्तर:
भारत ने विश्व शान्ति की स्थापना में बहुत-ही महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। 1950 में संयुक्त राष्ट्र के अन्तर्गत उत्तर कोरिया के विरुद्ध भेजी गई सेनाओं में भारत ने भी अपनी सेना भेजी थी। सन् 1956 में मिस्त्र में स्वेज़ नहर के संकट को हल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत ने संयुक्त राष्ट्र के निवेदन पर कांगों में अपनी सेनाएं भेजी तथा 1976 में अरब-इज़रायल विवाद को सुलझाने में अपना योगदान दिया।

प्रश्न 30.
विश्व के किन्हीं दो अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • संयुक्त राष्ट्र संघ-संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्तूबर, 1945, को विश्व में शान्ति एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए की गई थी।
  • विश्व व्यापार संगठन-विश्व व्यापार संगठन की स्थापना 1995 में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एवं आर्थिक गतिविधियों के विषय में नियम बनाने के लिए की गई थी।

प्रश्न 31.
अन्तर्राष्ट्रीय संगठन का अर्थ लिखें।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय संगठन का अर्थ सम्प्रभु राज्यों द्वारा अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बनाए गए संगठनों से लिया जाता है। टुंकिन के अनुसार, “अन्तर्राष्ट्रीय संगठन राज्यों का ऐसा समूह है, जिसकी स्थापना सन्धि के आधार पर होती है तथा जिसका उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना होता है।”

प्रश्न 32.
संयुक्त राष्ट्र की प्रस्तावना की कोई दो व्यवस्थाएं बताएं।
उत्तर:

  • भविष्य की पीढ़ियों को युद्ध की विभीषका से बचाना।
  • मानवाधिकारों, मनुष्य के गौरव और उसके महत्त्व, पुरुषों एवं महिलाओं एवं छोटे और बड़े राष्ट्रों के समान अधिकारों पर विश्वास का अनुमोदन करना।

प्रश्न 33.
विश्व व्यापार संगठन कब बना?
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन सन् 1995 में बना।

प्रश्न 34.
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् के पांच स्थाई सदस्य देशों के नाम लिखें।
उत्तर:

  • अमेरिका
  • इंग्लैण्ड
  • फ्रांस
  • रूस
  • चीन।

प्रश्न 35.
“विश्व व्यापार संगठन” (W.T.0.) क्या है ?
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन का निर्माण 1 जनवरी, 1995 को हुआ था। यह संगठन विश्व व्यापार को नियमित और नियन्त्रित करने के लिए उत्तरदायी है। यह संगठन सभी सदस्य राष्ट्रों को अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में बिना किसी भेदभाव के व्यापार करने की व्यवस्था करता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. निम्न में से किसे अन्तर्राष्ट्रीय संगठन माना जाता है ?
(A) सार्क
(B) आसियान
(C) संयुक्त राष्ट्र संघ
(D) यूरोपीयन संघ।
उत्तर:
(C) संयुक्त राष्ट्र संघ।

2. निम्न में से कौन-सा क्षेत्रीय आर्थिक संगठन है ?
(A) यूरोपीयन संघ
(B) आसियान
(C) सार्क
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

3. निम्न में से कौन-सा गैर सरकारी संगठन है ?
(A) अन्तर्राष्ट्रीय रेडक्रास सोसाइटी
(B) एमनेस्टी इंटरनेशनल
(C) ह्यमन राइट्स वॉच
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

4. संयुक्त राष्ट्र संघ के वर्तमान महासचिव कौन हैं ?
(A) एन्टोनियो गुटेरस
(B) बुतरस घाली
(C) कोफी अन्नान
(D) सी० घनपाला।
उत्तर:
(A) एन्टोनियो गुटेरस।

5. निम्न में से कौन-सा संयुक्त राष्ट्र संघ का एक अभिकरण है ?
(A) अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन
(B) विश्व स्वास्थ्य संगठन
(C) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

6. संयुक्त राष्ट्र संघ के अंग हैं
(A) 6
(B) 5
(C) 4
(D) 13
उत्तर:
(A) 6

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन

7. संयुक्त राष्ट्र के सहस्त्राब्दिक प्रस्ताव (Millennium Declaration) पर कब हस्ताक्षर किये गए ?
(A) सितम्बर, 1995
(B) जून, 1999
(C) सितम्बर, 2000
(D) मार्च, 2001
उत्तर:
(C) सितम्बर, 2000

8. संयुक्त राष्ट्र संघ के अधीन ‘शान्ति निर्माण आयोग’ की स्थापना कब की गई ?
(A) दिसम्बर, 2005
(B) मार्च, 2003
(C) जून, 2002
(D) अगस्त, 2000
उत्तर:
(A) दिसम्बर, 2005

9. विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.0.) का मुख्यालय कहाँ पर स्थित है ?
(A) जेनेवा
(B) काठमाण्डू
(C) पेरिस
(D) लंदन।
उत्तर:
(A) जेनेवा।

10. संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) की स्थापना हुई ?
(A) वर्ष, 1951 में
(B) वर्ष, 1955 में
(C) वर्ष, 1941 में
(D) वर्ष, 1945 में।
उत्तर:
(D) वर्ष, 1945 में

11. संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में कुल कितने अनुच्छेद हैं?
(A) 395
(B) 111
(C) 174
(D) 152
उत्तर:
(B) 111

12. निम्न में से कौन-सा देश संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रारम्भिक सदस्य है ?
(A) पाकिस्तान
(B) बंग्लादेश
(C) भारत
(D) नेपाल।
उत्तर:
(C) भारत।

13. संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय स्थित है
(A) लंदन में
(B) न्यूयार्क में
(C) नई दिल्ली में
(D) हेग में।
उत्तर:
(B) न्यूयार्क में।

14. प्रारम्भ में संयुक्त राष्ट्र संघ के कितने सदस्य थे ?
(A) 47
(B) 46
(C) 51
(D) 55
उत्तर:
(C) 51

15. वर्तमान समय में संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्यों की संख्या है
(A) 197
(B) 196
(C) 193
(D) 195
उत्तर:
(C) 193

16. संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव का कार्यकाल होता है
(A) 2 वर्ष
(B) 4 वर्ष
(C) 5 वर्ष
(D) 6 वर्ष।
उत्तर:
(C) 5 वर्ष।

17. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय स्थित है
(A) न्यूयार्क में
(B) बीजिंग में
(C) हेग में
(D) दिल्ली में।
उत्तर:
(C) हेग में।

18. ‘संयुक्त राष्ट्र बाल आपात्कालीन कोष’ (UNICEF) का मुख्यालय स्थित है :
(A) पेरिस में
(B) रोम में
(C) जेनेवा में
(D) न्यूयार्क में।
उत्तर:
(D) न्यूयार्क में।

19. वह पहला कौन-सा भारतीय था, जो महासभा का अध्यक्ष बना ?
(A) जवाहर लाल नेहरू
(B) सी० राजगोपालाचार्य
(C) एस० राधाकृष्णन
(D) विजयलक्ष्मी पण्डित।
उत्तर:
(D) विजयलक्ष्मी पण्डित।

20. संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् के कितने देश स्थायी सदस्य हैं ?
(A) 5
(B) 10
(C) 15
(D) 27
उत्तर:
(A) 5

21. संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) का मुख्यालय कहां पर स्थित है ?
(A) बीजिंग में
(B) नई दिल्ली में
(C) हेग में
(D) न्यूयार्क में।
उत्तर:
(D) न्यूयार्क में।

22. संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में संशोधन की विधि का उल्लेख किस अनुच्छेद में किया गया है ?
(A) 108
(B) 99
(C) 111
(D) 102
उत्तरं:
(A) 108

23. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय कहाँ पर स्थित है ?
(A) न्यूयार्क में
(B) हेग में
(C) नई दिल्ली में
(D) ढाका में।
उत्तर:
(B) हेग में।

24. ‘यूनेस्को’ (UNESCO) का मुख्यालय कहाँ पर स्थित है ?
(A) नई दिल्ली
(B) पेरिस
(C) कराची
(D) लंदन।
उत्तर:
(B) पेरिस।

25. विश्व व्यापार संगठन (WTO) की स्थापना कब हुई ?
(A) 1 जनवरी, 1995 को
(B) 4 दिसम्बर, 1995 को
(C) 8 जनवरी, 1995 को
(D) 3 सितम्बर, 2000 को।
उत्तर:
(A) 1 जनवरी, 1995 को।

26. विश्व व्यापार संगठन (W.T.O.) अस्तित्व में कब आया ?
(A) 1 जनवरी, 1995 को
(B) 1 फरवरी, 1995 को
(C) 1 दिसम्बर, 1994 को
(D) 1 दिसम्बर, 1995 को।
उत्तर:
(A) 1 जनवरी, 1995 को।

27. निम्न एक भारतीय सन् 1982 में अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश चुने गये थे ?
(A) डॉ० नगेंद्र सिंह
(B) डॉ० राधाकृष्णन
(C) एच० एम० बेग
(D) ए० एन० रे।
उत्तर:
(A) डॉ० नगेंद्र सिंह।

28. अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का मुख्यालय स्थित है :
(A) जेनेवा में
(B) न्यूयार्क में
(C) वाशिंगटन में
(D) पेरिस में।
उत्तर:
(D) जेनेवा में।

रिक्त स्थान भरें

(1) प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस ……………….. को मनाया जाता है।
उत्तर:
24 अक्तूबर,

(2) संयुक्त राष्ट्र संघ में ……………….. मूल संस्थापक सदस्य हैं।
उत्तर:
51

(3) संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना ……………… 1945 को हुई।
उत्तर:
24, अक्तूबर

(4) भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का …………. देश है।
उत्तर:
संस्थापक

(5) संयुक्त राष्ट्र संघ के ………….. अंग हैं।
उत्तर:
6

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन

(6) संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य उद्देश्य …………….. की स्थापना करना है।
उत्तर:
विश्व शांति

(7) संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में कुल …………….. अनुच्छेद है।
उत्तर:
111

(8) संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य देशों की संख्या …… है।
उत्तर:
5

(9) संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना का मुख्य उद्देश्य …………. है।
उत्तर:
विश्व शांति

(10) सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों की कुल संख्या …………… है।
उत्तर:
5

एक शब्द/वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में कितने अनुच्छेद हैं ?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में कुल 111 अनुच्छेद हैं।

प्रश्न 2.
संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय कहां स्थित है ?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय न्यूयार्क में स्थित है।

प्रश्न 3.
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के समय इसके कुल कितने सदस्य थे ?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के समय इसके कुल 51 सदस्य थे।

प्रश्न 4.
संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव का कार्यकाल कितना होता है ?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव का कार्यकाल 5 वर्ष होता है।

प्रश्न 5.
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय कहां स्थित है ?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में स्थित है।

प्रश्न 6.
कौन-सी भारतीय नागरिक संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष बनी ?
उत्तर:
विजयलक्ष्मी पण्डित संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष बनी।

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HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Solutions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Solutions Chapter 6 अंतर्राष्ट्रीय संगठन

HBSE 12th Class Political Science अंतर्राष्ट्रीय संगठन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निषेधाधिकार (वीटो) के बारे में नीचे कुछ कथन दिए गए हैं। इनमें प्रत्येक के आगे सही या गलत का चिह्न लगाएँ।
(क) सुरक्षा-परिषद् के सिर्फ स्थायी सदस्यों को ‘वीटो’ का अधिकार है।
(ख) यह एक तरह की नकारात्मक शक्ति है।
(ग) सुरक्षा परिषद् के फैसलों से असन्तुष्ट होने पर महासचिव ‘वीटो’ का प्रयोग करता है।
(घ) एक ‘वीटो से भी सुरक्षा परिषद् का प्रस्ताव नामंजूर हो सकता है।
उत्तर:
(क) सही,
(ख) सही,
(ग) गलत,
(घ) सही।

प्रश्न 2.
संयुक्त राष्ट्र संघ के कामकाज के बारे में नीचे कुछ कथन दिए गए हैं। इनमें से प्रत्येक के सामने सही या गलत का चिह्न लगाएँ।।
(क) सुरक्षा और शान्ति से जुड़े सभी मसलों का निपटारा सुरक्षा परिषद में होता है।
(ख) मानवतावादी नीतियों का क्रियान्वयन विश्व भर में फैली मुख्य शाखाओं तथा एजेंसियों के मार्फत होता है।
(ग) सुरक्षा के किसी मसले पर पाँचों स्थायी सदस्य देशों का सहमत होना। उसके बारे में लिए गए फैसले के क्रियान्वयन के लिए जरूरी है।
(घ) संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के सभी सदस्य संयुक्त राष्ट्र संघ के बाकी प्रमुख अंगों और विशेष एजेंसियों के स्वतः सदस्य हो जाते हैं।
उत्तर:
(क) सही,
(ख) सही,
(ग) सही,
(घ) गलत।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा तथ्य सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के प्रस्ताव को ज्यादा वज़नदार बनाता है ?
(क) परमाणु क्षमता
(ख) भारत संयुक्त राष्ट्र संघ के जन्म से ही उसका सदस्य है।
(ग) भारत एशिया में है।
(घ) भारत की बढ़ती हुई आर्थिक ताकत और स्थिर राजनीतिक व्यवस्था।
उत्तर:
(घ) भारत की बढ़ती हुई आर्थिक ताकत और स्थिर राजनीतिक व्यवस्था।

प्रश्न 4.
परमाणु प्रौद्योगिकी के शान्तिपूर्ण उपयोग और उसकी सुरक्षा से संबद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसी का नाम है
(क) संयुक्त राष्ट्र संघ निःशस्त्रीकरण समिति
(ख) अन्तर्राष्ट्रीय आण्विक ऊर्जा एजेंसी
(ग) संयुक्त राष्ट्रसंघ अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा समिति
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) अन्तर्राष्ट्रीय आण्विक ऊर्जा एजेंसी

प्रश्न 5.
विश्व व्यापार संगठन निम्नलिखित में से किस संगठन का उत्तराधिकारी है ?
(क) जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड एंड टैरिफ
(ख) जनरल एरेंजमेंट ऑन ट्रेड एंड टैरिफ
(ग) विश्व स्वास्थ्य संगठन
(घ) संयुक्त राष्ट्र संघ विकास कार्यक्रम।
उत्तर:
(क) जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड एंड टैरिफ

प्रश्न 6.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
(क) संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य उद्देश्य . ……………….
(ख) संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे जाना-पहचाना पद ………………… का है।
(ग) संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् में ……………….. स्थायी और …………… अस्थायी सदस्य हैं।
(घ) ……………. संयुक्त राष्ट्र संघ के वर्तमान महासचिव है।
(ङ) मानवाधिकारों की रक्षा में सक्रिय दो स्वयंसेवी संगठन ……………….. और ……………….. हैं।
उत्तर:
(क) संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य उद्देश्य शान्ति स्थापना है।
(ख) संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे जाना-पहचाना पद महासचिव का है।
(ग) संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् में 5 स्थायी और 10 अस्थायी सदस्य हैं।
(घ) श्री एन्टोनियो गुटेरस संयुक्त राष्ट्र संघ के वर्तमान महासचिव हैं।
(ङ) मानवाधिकारों की रक्षा में सक्रिय दो स्वयंसेवी संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यमन राइट्स वॉच हैं।

प्रश्न 7.
संयुक्त राष्ट्रसंघ की मुख्य शाखाओं और एजेंसियों का सुमेल उनके काम से करें
1. आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् – (क) वैश्विक वित्त-व्यवस्था की देख-रेख।
2. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय – (ख) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा का संरक्षण।
3. अन्तर्राष्ट्रीय आण्विक ऊर्जा एजेंसी – (ग) सदस्य देशों के आर्थिक और सामाजिक कल्याण की चिन्ता।
4. सुरक्षा परिषद् – (घ) परमाणु प्रौद्योगिकी का शान्तिपूर्ण उपयोग और सुरक्षा।
5. संयुक्त राष्ट्र संघ शरणार्थी उच्चायोग – (ङ) सदस्य देशों के बीच मौजूद विवादों का निपटारा।
6. विश्व व्यापार संगठन – (च) आपात्काल में आश्रय तथा चिकित्सीय सहायता मुहैया करना।
7. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष – (छ) वैश्विक मामलों पर बहस-मुबाहिसा।
8. आम सभा – (ज) संयुक्त राष्ट्र संघ के मामलों पर समायोजन और प्रशासन।
9. विश्व स्वास्थ्य संगठन – (झ) सबके लिए स्वास्थ्य।
10. सचिवालय – (ब) सदस्य देशों के बीच मुक्त व्यापार की राह आसान बनाना।
उत्तर:
1. आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् – (ग) सदस्य देशों के आर्थिक और सामाजिक कल्याण की चिन्ता।
2. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय – (ङ) सदस्य देशों के बीच मौजूद विवादों का निपटारा।
3. अन्तर्राष्ट्रीय आण्विक ऊर्जा एजेंसी – (घ) परमाणु प्रौद्योगिकी का शान्तिपूर्ण उपयोग और सुरक्षा।
4. सुरक्षा परिषद् – (ख) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा का संरक्षण।
5. संयुक्त राष्ट्र-संघ शरणार्थी – (च) आपात्काल में आश्रय तथा चिकित्सीय सहायता मुहैया उच्चायोग करना।
6. विश्व व्यापार संगठन – (ब) सदस्य देशों के बीच मुक्त व्यापार की राह आसान बनाना।
7. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष – (क) वैश्विक वित्त-व्यवस्था की देख-रेख।
8. आम सभा – (छ) वैश्विक मामलों पर बहस-मुबाहिसा।
9. विश्व स्वास्थ्य संगठन – (झ) सबके लिए स्वास्थ्य।
10. सचिवालय – (ज) संयुक्त राष्ट्र संघ के मामलों पर समायोजन और प्रशासन।

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प्रश्न 8.
सुरक्षा परिषद् के कार्य क्या हैं ?
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् के निम्नलिखित कार्य हैं
(1) सुरक्षा परिषद् किसी ऐसे मामले पर तुरन्त विचार कर सकती है, जिससे अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा के भंग होने का भय हो।

(2) सुरक्षा-परिषद् आक्रामक कार्यवाहियों, विश्व शान्ति के लिए खतरे की सम्भावनाओं और शान्ति भंग किए जाने वाले कार्यों के विषय में कार्यवाही कर सकता है।

(3) सुरक्षा परिषद् प्रादेशिक समस्याएं सुलझाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

(4) चार्टर के अनुच्छेद 83 के अनुसार सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के सम्बन्ध में संयुक्त राष्ट्र ने जो दायित्व ग्रहण किए हैं, उन्हें निभाने की ज़िम्मेदारी सुरक्षा परिषद् की है।

(5) सुरक्षा-परिषद् को विशिष्ट प्रदेशों की निगरानी का अधिकार प्रदान किया गया है।

(6) चार्टर के अनुच्छेद 4 के अनुसार नए सदस्यों को महासभा सुरक्षा परिषद् की सिफारिश से ही संयुक्त खण्ड का सदस्य बनाती हैं।

(7) चार्टर के अनुच्छेद 6 के अनुसार यदि कोई सदस्य चार्टर के सिद्धान्तों की बार-बार अवहेलना करता है, तो सुरक्षा परिषद् की सिफ़ारिश पर महासभा उस सदस्य राष्ट्र को सदस्यता से निष्कासित कर सकती है।

(8) सुरक्षा परिषद् की सिफ़ारिश के आधार पर ही महासभा न्यायालय के न्यायाधीशों का चुनाव करती है। महासचिव भी सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर ही महासभा के द्वारा नियुक्त किया जाता है।

(9) सुरक्षा परिषद् चार्टर के संशोधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

प्रश्न 9.
भारत के नागरिक के रूप में सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के पक्ष का समर्थन आप कैसे करेंगे ? अपने प्रस्ताव का औचित्य सिद्ध करें। .
अथवा
संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी के पक्ष में तर्क दीजिये।
उत्तर:
भारत को निम्नलिखित आधार पर सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता प्राप्त होनी चाहिए

  • भारत विश्व का सर्वाधिक आबादी वाला दूसरा देश है। भारत में कुल जनसंख्या का 1/5 भाग निवास करता है।
  • भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा की गई प्रायः सभी पहलकदमियों में भारत ने सक्रिय रूप से भाग लिया है।
  • भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के झण्डे के नीचे कई देशों में शान्ति स्थापना के लिए अपनी सेनाएं भेजी हैं।
  • भारत में विश्व में तेजी से उभरती एक आर्थिक शक्ति है।
  • भारत ने नियमित तौर पर संयुक्त राष्ट्र संघ के बजट में अपना योगदान दिया है।
  • भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी अंगों में दी गई अपनी भूमिका को प्रभावशाली ढंग से निभाया है।

प्रश्न 10.
संयुक्त राष्ट्र संघ के ढाँचे को बदलने के लिए सुझाए गए उपायों के क्रियान्वयन में आ रही कठिनाइयों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ के ढांचे को बदलने के लिए सुझाए गए उपायों के क्रियान्वयन में निःसन्देह समस्याएं आ रही हैं। उदाहरण के लिए सबसे बड़ी समस्या यह आ रही है कि किस मापदण्ड के आधार पर सुरक्षा परिषद् की स्थायी एवं अस्थायी सदस्यता बढ़ाई जाए। यदि हम मानवाधिकार के अच्छे रिकॉर्ड के आधार पर सुरक्षा परिषद् की सदस्यता बढ़ाते हैं, तो ऐसे देशों की संख्या बहुत अधिक है, जिनका मानवाधिकार रिकार्ड बहुत अच्छा है, अतः सभी को सुरक्षा परिषद् की सदस्यता नहीं दी जा सकती।

एक समस्या यह है कि सदस्य देशों को भौगोलिक आधार पर प्रतिनिधित्व दिया जाए या किसी अन्य आधार पर। यदि हम आर्थिक आधार पर सुरक्षा परिषद् की सदस्य संख्या बढ़ाते हैं, तो विकासशील देशों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है। कुछ विद्वानों का विचार है कि पांच स्थायी सदस्यों की वीटो की शक्ति समाप्त कर देनी चाहिए, परन्तु ऐसे किसी प्रस्ताव पर स्थायी देश सहमत नहीं होंगे। इस प्रकार की समस्याएं संयुक्त राष्ट्र के सुधारों में बाधाएं उत्पन्न कर रही हैं।

प्रश्न 11.
हालांकि संयुक्त राष्ट्र संघ युद्ध और इससे उत्पन्न विपदा को रोकने में नाकामयाब रहा है लेकिन विभिन्न देश अभी भी इसे बनाए रखना चाहते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ को एक अपरिहार्य संगठन मानने के क्या
कारण हैं ?
अथवा
अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ क्यों आवश्यक है ? कारण बताइए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ को विभिन्न देश निम्नलिखित कारणों से बनाये रखना चाहते हैं
1. विश्व शान्ति में सहायक- अन्तर्राष्ट्रीय संगठन विश्वशांति की स्थापना में सहायक होते हैं।

2. राजनीतिक उपलब्धियां-संयुक्त राष्ट्र ने अनेक अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को हल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनमें से कुछ विवाद इस प्रकार हैं-रूस-ईरान विवाद, यूनान विवाद, सीरिया और लेबनान की समस्या, इण्डोनेशिया की समस्या कोर्फ़ चैनल विवाद, कोरिया समस्या, स्वेज़ नहर की समस्या, कांगो समस्या, यमन विवाद, कुवैत-ईराक विवाद आदि।

3. निःशस्त्रीकरण-संयुक्त राष्ट्र ने नि:शस्त्रीकरण के लिए अनेक प्रयास किए हैं और आज भी कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने निःशस्त्रीकरण के लिए अनेक सम्मेलनों का आयोजन किया है।

4. अन्तरिक्ष का मानव कल्याण के लिए प्रयोग-संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों के फलस्वरूप ही महासभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया कि बाहरी अन्तरिक्ष का प्रयोग केवल शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए होगा।

5. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग-संयुक्त राष्ट्र ने विश्व के देशों को एक ऐसा मंच प्रदान किया है जहां अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर विचार-विमर्श होता है। संयुक्त राष्ट्र ने विभिन्न देशों के बीच राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, वैज्ञानिक आदि अनेक क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा दिया है।

6. अन्य उपलब्धियां-संयुक्त राष्ट्र ने सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, वैज्ञानिक इत्यादि और-राजनीतिक क्षेत्रों में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

प्रश्न 12.
संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार का अर्थ है सुरक्षा परिषद् के ढाँचे में बदलाव। इस कथन का सत्यापन करें।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार का अर्थ है सुरक्षा परिषद् के ढांचे में बदलाव अर्थात् सुरक्षा परिषद् में ही अधिकांश सुधारों की बात की जाती है, क्योंकि संयुक्त राष्ट्रसंघ के अन्य अंगों जैसे महासभा में सभी सदस्य राज्यों को समान अधिकार प्राप्त हैं, परन्तु सुरक्षा परिषद् में सभी राज्यों को समान अधिकार प्राप्त नहीं हैं, बल्कि पांच स्थाई देशों को सर्वाधिक शक्तियां प्राप्त हैं। अतः सुरक्षा परिषद् में बदलाव को ही संयुक्त राष्ट्र में सुधार के रूप में पुकार लिया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय संगठन HBSE 12th Class Political Science Notes

→ संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व का सबसे महत्त्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है।
→ संयुक्त राष्ट्र संघ की वर्तमान सदस्य संख्या 193 है। इसकी स्थापना 1945 में की गई।
→ संयुक्त राष्ट्र संघ के वर्तमान महासचिव पुर्तगाल के श्री एन्टोनियो गुटेरस हैं।
→ संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य उद्देश्य युद्धों को रोकना एवं विश्व शान्ति की स्थापना करना है।
→ अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष संयुक्त राष्ट्र संघ का एक महत्त्वपूर्ण अभिकरण है।
→ 1990 के दशक से संयुक्त राष्ट्र संघ में पुनर्गठन की मांग जोर पकड़ती रही है।
→ महासभा एवं सुरक्षा परिषद् में सर्वाधिक सुधारों की मांग की जा रही है।
→ भारत सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता का एक मज़बूत उम्मीदवार है।
→ विश्व व्यापार संगठन की स्थापना 1995 में हुई।
→ अन्तर्राष्ट्रीय आण्विक ऊर्जा एजेंसी संयुक्त राष्ट्र संघ का एक महत्त्वपूर्ण अभिकरण है।
→ अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर रैडक्रास सोसाइटी, एमनेस्टी इंटरनेशनल तथा ह्यूमन राइट्स जैसे गैर-सरकारी संगठन (N.G.O.) भी काम कर रहे हैं।
→ गैर-सरकारी संगठनों में लोकतन्त्र एवं उत्तरदायित्व का अभाव होता है।

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HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

Haryana State Board HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

HBSE 12th Class Sociology भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसांख्यिकीय संक्रमण के सिद्धांत के बुनियादी तर्क को स्पष्ट कीजिए। संक्रमण अवधि जनसंख्या विस्फोट के साथ क्यों जुड़ी है?
अथवा
जनसांख्यिकीय संक्रमण सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
जनसांख्यिकीय विषय में एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत जनसांख्यिकीय संक्रमण का सिद्धांत है। इसका अर्थ है कि जनसंख्या में वदधि आर्थिक विकास के सभी स्तरों के साथ जडी होती है तथा हरेक समाज विकास से संबंधित जनसंख्या वृद्धि के एक निश्चित स्वरूप के अनुसार चलता है। जनसंख्या वृद्धि के तीन मुख्य स्तर होते हैं। पहले स्तर में जनसंख्या वृद्धि कम होती है क्योंकि समाज कम विकसित तथा तकनीकी रूप से पिछड़ा होता है। वृद्धि दर के कम होने का कारण जन्म दर तथा मृत्यु दर काफ़ी ऊँची होने के कारण कम अंतर होता है। तीसरे चरण में भी विकसित समाजों में भी जनसंख्या वृद्धि दर कम होती है क्योंकि जन्म दर तथा मृत्यु दर दोनों ही कम होते हैं।

इसलिए उनमें अंतर भी काफी कम होता है। इन दोनों स्तरों के बीच एक तीसरी संक्रमणकालीन अवस्था होती है जब समाज पिछड़ी अवस्था से उस अवस्था में पहुँच जाता है जब जनसंख्या वृद्धि की दर काफ़ी अधिक होती है। संक्रमण अवधि जनसंख्या विस्फोट से इसलिए जुड़ी होती है क्योंकि मृत्यु दरों को रोग नियंत्रण, स्वास्थ्य सुविधाओं से तेज़ी से नीचे कर दिया जाता है। परंतु जन्म दर इतनी तेजी से कम नहीं होती तथा जिस कारण वृद्धि दर ऊँची हो जाती है। बहुत से देश जन्म दर घटाने को संघर्ष कर रहे हैं परंतु वह कम नहीं हो पा रही है।

प्रश्न 2.
माल्थस का यह विश्वास क्यों था कि अकाल और महामारी जैसी विनाशकारी घटनाएँ, जो बड़े पैमाने पर मृत्यु का कारण बनती हैं, अपरिहार्य हैं?
अथवा
माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
जनसांख्यिकी के सबसे अधिक प्रसिद्ध सिद्धांतों में से एक सिद्धांत अंग्रेज़ राजनीतिक अर्थशास्त्री थॉमस माल्थस के नाम से जुड़ा है। माल्थस का कहना था कि जनसंख्या उस दर की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ती है जिस दर पर मनुष्य के भरण पोषण के साधन बढ़ सकते हैं। इस कारण ही मनुष्य निर्धनता की स्थिति में रहने को बाध्य होता है क्योंकि जनसंख्या वृद्धि की दर कृषि उत्पादन की वृद्धि दर से अधिक होती है। क्योंकि जनसंख्या वृद्धि दर कृषि उत्पादन की वृद्धि दर से अधिक होती है इसलिए समाज की समृद्धि को एक ढंग से बढ़ाया जा सकता है तथा वह है जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रण में रखा जाए।

या तो मनुष्य अपनी इच्छा से जनसंख्या को नियंत्रण में रख सकते हैं या फिर प्राकृतिक आपदाओं से। माल्थस का मानना था कि अकाल तथा महामारी जैसी विनाशकारी घटनाएं जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए अपरिहार्य होती हैं। इन्हें प्राकृतिक निरोध कहा जाता है क्योंकि यह ही बढ़ती जनसंख्या तथा खाद्य आपूर्ति के बीच बढ़ते असंतुलन को रोकने का प्राकृतिक उपाय है।

HBSE 12th Class Sociology Solutions Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

प्रश्न 3.
मृत्यु दर तथा जन्म दर का क्या अर्थ है? कारण स्पष्ट कीजिए कि जन्म दर में गिरावट अपेक्षाकृत धीमी गति से क्यों आती है जबकि मृत्यु दर बहुत तेज़ी से गिरती है।
अथवा
जन्म दर तथा मृत्यु दर से क्या अभिप्राय है? जब मृत्यु दर में कमी आती है तो जन्म दर में अपेक्षाकृत गिरावट क्यों हो जाती है?
अथवा
मृत्यु दर क्या है?
उत्तर:
जन्म दर-किसी विशेष क्षेत्र में एक वर्ष में प्रति एक हजार व्यक्तियों के पीछे जितने बच्चे जन्म लेते हैं, उसे जन्म दर कहते हैं। इसका अर्थ है कि किसी क्षेत्र में एक वर्ष में एक हजार व्यक्तियों के पीछे कितने बच्चों ने जन्म लिया है।

मृत्यु दर-किसी विशेष क्षेत्र में एक वर्ष में प्रति एक हजार व्यक्तियों के पीछे मरने वाले व्यक्तियों की संख्या को मृत्यु दर कहते हैं अर्थात् एक वर्ष में एक हजार व्यक्तियों के पीछे कितने व्यक्तियों की मृत्यु हुई।

यह सच है कि जन्म दर में गिरावट मृत्यु दर की तुलना में काफ़ी धीमी गति से आती है। इसका कारण यह है कि मृत्यु दर को तो स्वास्थ्य सुविधाओं की सहायता से तथा अकाल, बीमारियों जैसी आपदाओं पर काबू करके आसानी से कम किया जा सकता है परंतु जन्म दर को उतनी तेजी से कम नहीं किया जा सकता। जन्म दर अधिक प्रजनन क्षमता, धार्मिक विचारों, सामाजिक विचारों, निर्धनता, भाग्यवाद, शारीरिक रोगों से मुक्ति इत्यादि के कारण अधिक होती है तथा लोगों के विचारों को बदलना बेहद मुश्किल होता है। वे सोचते हैं कि बच्चे तो भगवान ने दिए हैं इसलिए वह ही पाल लेगा। इसलिए जन्म दर उतनी तेज़ी से कम नहीं होती जितनी तेज़ी से मृत्यु दर कम होती है।

प्रश्न 4.
भारत में कौन-से राज्य जनसंख्या संवृद्धि के प्रतिस्थापन स्तरों को प्राप्त कर चुके हैं अथवा प्राप्ति के बहुत नज़दीक हैं? कौन-से राज्यों में अब भी जनसंख्या संवृद्धि की दरें बहुत ऊँची हैं? आपकी राय में इन क्षेत्रीय अंतरों के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर:
प्रतिस्थापन स्तर का अर्थ है हरेक जोड़े अर्थात् पति पत्नी द्वारा दो बच्चों को जन्म देना। जो राज्य प्रतिस्थापन स्तर को प्राप्त कर चुके हैं वे हैं तमिलनाडु, त्रिपुरा, गोवा, पंजाब, केरल, जम्मू कश्मीर, नागालैंड इत्यादि हैं। जिन राज्यों में जनसंख्या संवृद्धि की दरें अभी भी बहुत ऊँची हैं वे बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान इत्यादि हैं। जो राज्य प्रतिस्थापन स्तरों को प्राप्त करने के नज़दीक हैं वे हैं : महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, कर्नाटक, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश इत्यादि।

प्रतिस्थापन स्तरों तथा जनसंख्या संवदधि की दरों में अंतरों के क्षेत्रीय कारण हो सकते हैं जो कि इस प्रकार हैं-
(i) अगर जनता साक्षर है तो उनकी सोच सकारात्मक होगी। परंतु अगर जनसंख्या अनपढ़ है तो उनकी सोच नकारात्मक होगी तथा उनमें अज्ञानता होगी। जो राज्य साक्षर हैं वहां संवृद्धि दर कम हैं तथा जहां अनपढ़ लोग अधिक हैं वहां संवृद्धि दर अधिक है।

(ii) हरेक राज्य की अपनी-अपनी रूढ़ियां तथा संस्कार होते हैं जो इस संवृद्धि दर तथा प्रतिस्थापन दर को प्रभावित करते हैं।

(iii) बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो अधिक बच्चे पैदा करने के समर्थक हैं तथा वह किसी विशेष राज्य में पाए जाते हैं। इस कारण भी अलग-अलग क्षेत्रों की दरों में अंतर होता है।

(iv) हरेक क्षेत्र की सामाजिक सांस्कृतिक संरचना तथा साक्षरता की दर अलग-अलग होती है तथा इसका भी संवृद्धि दर पर बहुत प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 5.
जनसंख्या की आयु संरचना का क्या अर्थ है? आर्थिक विकास और संवृद्धि के लिए उसकी क्या प्रासंगिकता है?
अथवा
जनसंख्या की आयु संरचना पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
जनसंख्या की आयु संरचना का अर्थ है कि कुल जनसंख्या के संदर्भ में विभिन्न आयु वर्गों में व्यक्तियों का अनुपात क्या है। इसमें तीन आयु वर्ग लिए जाते हैं तथा वे हैं-

  • 0-14 वर्ष
  • 1 5-59 वर्ष तथा
  • 60 वर्ष से ऊपर।

पहले वर्ग में बच्चे अर्थात् आश्रित वर्ग होते हैं। दूसरे वर्ग में युवाओं को कार्यशील वर्ग कहते हैं तथा तीसरे वर्ग अर्थात् बुर्जुगों को पराश्रितता जनसंख्या कहते हैं। आगे दी गई सारणी से यह स्पष्ट हो जाएगा-

वर्ष           आयु वर्गजोड़
0-14 वर्ष15-59 वर्ष60 वर्ष से अधिक
1961411006100
1971421005100
1981401006100
1991381007100
2001341007100
201129.71005.5100

इस सारणी से पता चलता है कि हमारे देश में कार्यशील वर्ग के लोग सबसे अधिक हैं। 1961-2001 तक के समय में यह अधिक ही रहे हैं। इसके बाद आश्रित वर्ग अर्थात् बच्चे आते हैं। चाहे इनकी संख्या लगातार कम हो रही है। सबसे अंत में पराश्रितता वर्ग अर्थात बुजुर्ग लोग आते हैं। हमारे देश में जीवन प्रत्याशा 66 वर्ष के लगभग है जिस कारण इनकी संख्या कम है।

आर्थिक विकास तथा संवृद्धि में जनसंख्या की आयु संरचना की प्रासंगिकता (Importance of Age Structure in Economic Development and Growth) इसका वर्णन निम्नलिखित है-
(i) ऊपर दी गई सारणी से हमें पता चलता है कि 0-14 वर्ष की आयु वर्ग में 1961 के बाद से लगातार कमी हो रही है। इसका कारण है कि 1976 के बाद से राष्ट्रीय जनसंख्या नीति को लागू किया गया तथा जनता को कम जनसंख्या के फायदों का पता चल गया है।

(ii) इस सारणी से हमें यह भी पता चलता है कि 60 वर्ष से अधिक आय के लोगों की संख्या बढ़ रही है। इससे हमें यह पता चलता है कि हमारे देश में जीवन प्रत्याशा लगातार बढ़ रही है। इसका कारण यह है कि देश में प्रगति हो रही है तथा स्वास्थ्य सुविधाएं लगातार बढ़ रही हैं जिससे 60 वर्ष से अधिक लोग लंबा जीवन जी रहे हैं।

(iii) इस सारणी से हमें यह भी पता चलता है कि कार्यशील जनसंख्या अर्थात् युवाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। वे तरक्की करने में लगे हुए हैं जिससे देश की प्रगति हो रही है।

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प्रश्न 6
स्त्री-पुरुष अनुपात का क्या अर्थ है? एक गिरते हुए स्त्री-पुरुष अनुपात के क्या निहितार्थ हैं? क्या आप यह महसूस करते हैं कि माता-पिता आज भी बेटियों की बजाए बेटों को अधिक पसंद करते हैं? आपकी राय में इस पसंद के क्या-क्या कारण हो सकते हैं?
अथवा
भारत में गिरते हुए स्त्री-पुरुष अनुपात के कारण दीजिए।
अथवा
स्त्री-पुरुष अनुपात में गिरावट आने के कारण बताइए।
उत्तर:
किसी विशेष क्षेत्र में एक हजार पुरुषों के पीछे मिलने वाली स्त्रियों की संख्या के अनुपात को स्त्री-पुरुष अनुपात कहते हैं। स्त्री-पुरुष अनुपात जनसंख्या में लिंग संतुलन का एक महत्त्वपूर्ण सूचक है। अगर ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो स्त्री-पुरुष अनुपात स्त्रियों के पक्ष में रहा है परंतु पिछली एक शताब्दी में भारत में यह गिरता चला जा रहा भी की शरुआत में यह कम होकर 1000 : 972 था परंता 21वीं शताब्दी की शरुआत में यह कम होकर 1000 : 933 हो गया है। यह गिरता अनुपात समाज के लिए काफ़ी चिंता का विषय बना हुआ है।

जी हाँ, यह सच है कि आज भी माता-पिता बेटियों के स्थान पर बेटों को अधिक पसंद करते हैं। आज भी भ्रूण हत्या होती है, बेटा प्राप्त करने के लिए बलि दी जाती है, तरह-तरह के प्रयास किए जाते हैं ताकि बेटा प्राप्त किया जा सके। यहां महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस बात का निर्धनता से कम संबंध होता है बल्कि इसका अधिक संबंध तो सामाजिक सांस्कृतिक कारकों के साथ होता है। लड़की की अपेक्षा लड़के को पसंद करने के कई कारण हो सकते हैं जैसे कि-
(i) सबसे पहला कारण तो धर्म ही है। धर्म यह कहता है कि व्यक्ति को मृत्यु के बाद तब तक मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता जब तक कि उसकी चिता को उसका बेटा अग्नि न दे। इसके साथ ही धर्म में कुछ संस्कार ऐसे दिए गए हैं जिनमें बेटे की आवश्यकता है। इन सभी के कारण लोग लड़के को अधिक पसंद करते हैं।

(ii) अकसर लोग यह सोचते हैं कि अगर लड़का न हुआ तो उसके साथ ही उसके खानदान का नाम समाप्त हो जाएगा क्योंकि लड़की तो विवाह के बाद अपने पति के घर चली जाएगी। उसके खानदान को आगे बढ़ाने के लिए कोई भी न होगा। इस प्रकार खानदान को आगे बढ़ाने की इच्छा लोगों को लड़का प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है।

(iii) कई लोग यह सोचते हैं कि अगर लड़की हुई तो उसे विवाह के समय बहुत सा दहेज देना पड़ेगा तथा विवाह के पश्चात् भी बहुत कुछ देना पड़ेगा। इसमें बहुत सा खर्चा होगा परंतु लड़के के साथ तो दहेज आएगा। इस प्रकार खर्चा बचाने के लिए अथवा निर्धनता के कारण भी लोग लड़की की अपेक्षा लड़के को पसंद करते हैं।

भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना HBSE 12th Class Sociology Notes

→ अगर हम जनसंख्या की दृष्टि से संसार में भारत की स्थिति देखें तो इसमें भारत का स्थान दूसरा है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 121 करोड़ के करीब लोग रहते हैं।

→ जनसंख्या के व्यवस्थित अध्ययन को जनसांख्यिकी कहते हैं। जनसांख्यिकी शब्द का अर्थ है लोगों का वर्णन। जनसांख्यिकी विषय के अंतर्गत जनसंख्या से संबंधित अनेक प्रवृत्तियों तथा प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जैसे जनसंख्या के आकार में परिवर्तन, जन्म, मृत्यु तथा प्रवसन के स्वरूप, तथा जनसंख्या की संरचना और गठन अर्थात् उसमें स्त्रियों, पुरुषों और विभिन्न आयु वर्ग के लोगों का क्या अनुपात है।

→ जनसांख्यिकी कई प्रकार की होती है, जैसे आकारिक जनसांख्यिकी जिसमें जनसंख्या के आकार अर्थात् मात्रा का अध्ययन किया जाता है तथा सामाजिक जनसांख्यिकी जिसमें जनसंख्या के सामाजिक, आर्थिक अथवा राजनीतिक पक्षों पर विचार किया जाता है।

→ जनसांख्यिकी का अध्ययन समाजशास्त्र की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। समाजशास्त्र के उद्भव तथा एक अलग अकादमिक विषय के रूप में इसकी स्थापना का क्षेत्र काफ़ी हद तक जनसांख्यिकी को ही जाता है। वैसे भी जनसांख्यिकीय आँकड़े राज्य की नीतियों, विशेष रूप से आर्थिक विकास और सामान्य जन कल्याण संबंधी नीतियाँ बनाने और कार्यान्वित करने के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं।

→ जनसांख्यिकी के प्रसिद्ध सिद्धांतों में से एक सिद्धांत अंग्रेज़ राजनीतिक अर्थशास्त्री थॉमस रोबर्ट माल्थस ने दिया था। उनका सिद्धांत एक निराशावादी सिद्धांत था। उनके अनुसार समृद्धि को बढ़ाने का एक ढंग यह है कि जनसंख्या की वृद्धि को नियंत्रित किया जाए। उन्होंने दो प्रकार के ढंग दिए हैं जिनसे जनसंख्या को नियंत्रित किया जा सकता है। पहला है कृत्रिम निरोध जिन्हें व्यक्ति स्वयं पर नियंत्रण करके जनसंख्या कम कर सकता है।

→ दूसरा है प्राकृतिक निरोध अर्थात् अकालों तथा बीमारियों से जनसंख्या वृद्धि का रुकना। जनसांख्यिकीय विषय में एक अन्य उल्लेखनीय सिद्धांत है-जनसांख्यिकीय संक्रमण का सिद्धांत। इसका अर्थ यह है कि जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास के समग्र स्तरों से जुड़ी होती है तथा प्रत्येक समाज विकास से संबंधित जनसंख्या वृद्धि के एक निश्चित स्वरूप का अनुसरण करता है।

→ जनसांख्यिकीय में बहुत सी संकल्पनाओं का प्रयोग किया जाता है जैसे कि प्राकृतिक वृद्धि दर, जनसंख्या वृद्धि दर, प्रजनन दर, जन्म दर, मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर, स्त्री पुरुष अनुपात, आयु संरचना, पराश्रितता अनुपात जनसंख्या इत्यादि। इन सभी का वर्णन आगे अध्याय में दिया गया है।

→ भारत विश्व में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा जनसंख्या वाला देश है। 2011 में इसकी आबादी 121 करोड़ के लगभग थी। भारत में जनसंख्या संवृद्धि दर हमेशा बहुत ऊँची नहीं रही है। अगर हम भारत सरकार द्वारा प्रकाशित चार्ट को देखें तो यह अधिकतम 2.22% रही है। इस चार्ट को देखने से ही स्पष्ट हो जाएगा कि संवदधि दर कितनी है।

वर्षकुल जनसंख्या (लाखों में)औसत वार्षिक संवृद्धि दर
19513611.25
19614391.96
19715482.22
19816832.20
19918462.14
200110281.93
201112101.8

इस चार्ट को देखने से पता चलता है कि 1971 के बाद से यह लगातार कम हो रही है।

→ स्वतंत्रता से पहले हमारे देश में जन्म दर तथा मृत्यु दर में कोई अधिक अंतर नहीं था क्योंकि स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं थीं। अगर जन्म दर अधिक थी तो मृत्यु दर भी अधिक थी। इसलिए अधिक जनसंख्या नहीं बढ़ती थी। परंतु स्वतंत्रता के पश्चात् स्वास्थ्य सेवाओं के बढ़ने से मृत्यु दर तो अप्रत्याशित रूप से कम हो गई परंतु जन्म दर इतनी अधिक कम न हुई। इसलिए दोनों में अंतर बढ़ता जा रहा है।

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→ भारत की जनसंख्या बहुत जवान है अर्थात् अधिकांश भारतीय युवावस्था में हैं तथा यहां की आयु का औसत भी अधिकांश अन्य देशों की तुलना में कम है। निम्न सारणी देखने से यह स्पष्ट हो जाएगा-

वर्ष                      आयु वर्गजोड़
0-14 वर्ष15-59 वर्ष60 वर्ष से अधिक
196141536100
197142535100
198140546100
199138567100
200134597100
201129.764.95.5100

→ इस प्रकार इस सारणी से यह स्पष्ट है कि भारत में 15-59 वर्ष की आयु में सबसे अधिक लोग होते हैं। उससे कम 0-14 वर्ष की आयु के लोग आते हैं तथा 60 वर्ष से अधिक लोग सबसे कम हैं। इसका कारण यह है कि भारत में आयु प्रत्याशा 63 वर्ष के करीब है।

→ स्त्री पुरुष अनुपात जनसंख्या में लैंगिक या लिंग संतुलन का एक महत्त्वपूर्ण सूचक है। स्त्री पुरुष अनुपात का अर्थ है कि किसी विशेष क्षेत्र में एक वर्ष में 1000 पुरुषों के पीछे कितनी स्त्रियां हैं। सन् 2011 में स्त्री पुरुष अनुपात 1000 : 940 था। स्त्रियों की कम होती संख्या का सबसे बड़ा कारण लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा है।

→ अगर जनता शिक्षित होगी तो उन्हें जनसंख्या के अधिक होने के दुष्परिणामों के बारे में पता होगा तथा वह जनसंख्या को कम रखने का प्रयास करेंगे। इसलिए जनसंख्या कम करने में शिक्षा एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण सापान बन सकती है।

→ मुख्यतः भारत एक ग्रामीण देश है जहां की लगभग 72% जनसंख्या अभी भी गांवों में रहती है। केवल 28% जनसंख्या ही शहरों में रहती है। 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में यह लगभग 11% थी जोकि एक ही शताब्दी में लगभग ढाई गुना बढ़ गई है। नीचे दी गई सारणी से हमें इसका पता चल जाता है-

वर्षजनसंख्या(दस लाख में)कुल जनसंख्या का प्रतिशत
त्रामीणनगरीयग्रामीणनगरीय
19012132689.210.8
19112262689.710.3
19212232888.811.2
19312463388.012.0
19412754486.113.9
19512996282.717.3
19613607982.018.0
197143910980.119.9
198152415976.723.3
199162921874.325.7
200174328672.227.8
201183337768.8431.16

इस सारणी को देखकर पता चलता है कि स्वतंत्रता के पश्चात् नगरीय जनसंख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है।

→ जनसंख्या संवृद्धि दर (Growth Rate of Population)-जन्म दर तथा मृत्यु दर के बीच का अंतर। जब यह अंतर शून्य होता है तब हम कह सकते हैं कि जनसंख्या स्थिर हो गई है।

→ प्रजनन दर (Fertility Rate)-बच्चे पैदा करने वाली प्रति 1000 स्त्रियों की इकाई के पीछे जीवित जन्मे बच्चों की संख्या।

→ शिश मत्य दर (Infant Mortality Rate)-यह उन बच्चों की मत्य की संख्या दर्शाती है जो जीवित पैदा हुए 1000 बच्चों में से एक वर्ष की आयु प्राप्त होने से पहले ही मौत के मुँह में चले जाते हैं।

→ स्त्री-परुष अनपात (Sex Ratio)-यह अनपात यह दर्शाता है कि किसी क्षेत्र विशेष में एक निश्चित अवधि के दौरान 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या क्या है।

→ जनसंख्या की आयु संरचना (Age Structure of Population)-कुल जनसंख्या के संदर्भ में विभिन्न आयु वर्गों में व्यक्तियों का अनुपात। आयु संरचना विकास के स्तरों और औसत आयु संभाविता के स्तरों में होने वाले परिवर्तनों के अनुसार बदलती रहती है।

→ पराश्रितता अनुपात जनसंख्या (Dependency Ratio)-यह जनसंख्या के पराश्रित और कार्यशील हिस्सों को मापने का साधन है। पराश्रित वर्ग में बुजुर्ग लोग तथा छोटे बच्चे आते हैं। कार्यशील वर्ग में 15-64 वर्ष की आयु के लोग आते हैं।

→ जनसंख्या घनत्व (Population Density)-किसी विशेष क्षेत्र के प्रति वर्ग कि० मी० क्षेत्रफल में रहने वाले लोगों की संख्या।

→ जन्म दर (Birth Rate)-किसी विशेष क्षेत्र में प्रति 1000 जनसंख्या के पीछे जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या।

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→ मृत्यु दर (Death Rate)-किसी विशेष क्षेत्र में प्रति एक हज़ार व्यक्तियों के पीछे मरने वाले व्यक्तियों की संख्या।

→ जनसंख्या वृद्धि (Population Growth)-जनसंख्या का लगातार बढ़ना जनसंख्या वृद्धि होता है।

→ ग्रामीण समुदाय (Rural Society)-प्रकृति से निकटता वाला समुदाय जिसमें प्राथमिक संबंधों की बहुलता होती है, कम जनसंख्या, सामाजिक एकरूपता, गतिशीलता का अभाव तथा कृषि मुख्य व्यवसाय होता है।

→ नगरीय समुदाय (Urban Society)-वह समुदाय जो प्रकृति से दूर रहता है, जहां अधिक जनसंख्या, पेशों की भरमार, अधिक गतिशीलता, द्वितीय संबंध होते हैं तथा वहां 75% से अधिक लोग गैर-कृषि कार्यों में लगे होते हैं।

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