HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

Haryana State Board HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अफ़गानिस्तान युद्ध एवं खाड़ी युद्धों के सन्दर्भ में एक ध्रुवीय विश्व के विकास की व्याख्या करें।
उत्तर:
सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् शीत युद्ध की भी समाप्ति हो गई। इस प्रकार 1990 के दशक में विश्व में दो गुटों के बीच पाई जाने वाली कड़वाहट नहीं रही। परन्तु द्वि-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था के समाप्त होने के पश्चात् विश्व तेज़ी से एक ध्रुवीय व्यवस्था में तबदील होने लगा और वो एक ध्रुव अमेरिका है। सोवियत संघ के पतन के बाद विश्व में कोई भी देश अमेरिका को चुनौती देने की स्थिति में नहीं था।

इस अवस्था का फायदा उठाकर अमेरिका ने भी विश्व में अपने प्रभाव को और अधिक बढ़ाना शुरू कर दिया तथा विश्व के कई क्षेत्रों में उसने सैनिक हस्तक्षेप किया। निम्नलिखित घटनाओं के वर्णन से एक ध्रुवीय विश्व (अमेरिका का एकाधिकार) के विकास का पता चलता है

1. प्रथम खाड़ी युद्ध (First Gulf War):
अमेरिका के एकाधिकार अर्थात् एक ध्रुवीय विश्व की शुरुआत हम प्रथम खाड़ी युद्ध को मान सकते हैं। जब अमेरिका ने अपनी सैनिक शक्ति के बल पर कुवैत को इराक से स्वतन्त्र करवाया था। अगस्त, 1990 में इराक के तानाशाह शासक सद्दाम हुसैन ने अपने छोटे से पड़ोसी देश कुवैत पर कब्जा कर लिया। अमेरिका ने कुवैत को स्वतन्त्र कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

विश्व के 34 देशों की लगभग 6 लाख, 70 हजार की फ़ौज ने इराक पर हमला कर दिया। इस सैनिक अभियान में लगभग 75% सैनिक अमेरिका के थे और अमेरिका ही इस युद्ध को निर्देशित एवं नियन्त्रित कर रहा था। इतनी बड़ी फ़ौज के सामने इराक ज्यादा दिन तक नहीं टिक सका और उसे कुवैत से पीछे हटना पड़ा। इस युद्ध ने विश्व में अमेरिका की सैनिक ताकत को बहुत अधिक बढा दिया तथा विश्व एक ध्रुवीय व्यवस्था की ओर बढ़ने लगा।

2. सूडान एवं अफ़गानिस्तान पर अमेरिकन प्रक्षेपास्त्र हमला (American Missile Attack on Sudan and Afghanistan):
1998 में नैरोबी (कीनिया) तथा दारे-सलाम (तंजानिया) में अमेरिकन दूतावासों पर बम विस्फोट हुए। इन बम विस्फोटों का जिम्मेदार अल-कायदा को माना गया। परिणामस्वरूप अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिटन ने अल-कायदा के ठिकानों पर प्रक्षेपास्त्र हमले की आज्ञा दी।

जिसके कारण अमेरिका सूडान एवं अफ़गानिस्तान में अल-कायदा के ठिकानों पर क्रूज प्रक्षेपास्त्रों से हमला किया। अमेरिका ने इस सम्बन्ध में विश्व आलोचनाओं को नजरअंदाज कर दिया। इस घटना से साबित हो गया कि अमेरिका विश्व की एकमात्र महाशक्ति है क्योंकि अन्य कोई भी देश इस प्रकार का हमला करने का साहस नहीं कर सकता।

3. 9/11 की घटना एवं अफ़गानिस्तान युद्ध (Incident of 9/11 and Afghanistan War):
विश्व में एक बड़ी आतंकवादी घटना तब घटी जब 11 सितम्बर, 2001 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर एवं पेंटागन पर जबरदस्त आतंकवादी हमला किया गया। इस हमले में लगभग 3000 लोग मारे गए। इस आतंकवादी हमले में भी अल-कायदा के शामिल होने की शंका जाहिर की गई। परिणामस्वरूप अमेरिका ने बदले की कार्यवाही करते हुए अफ़गानिस्तान जोकि अल-कायदा का गढ़ बन चुका था, में युद्ध की घोषणा कर दी।

यद्यपि अमेरिका अल-कायदा तथा तालिबान को पूरी तरह समाप्त नहीं कर पाया, परन्तु उसने इसकी शक्ति को बहुत कम अवश्य कर दिया। इस ले को रोकने के लिए यद्यपि कई देशों ने अमेरिका से आग्रह किया, परन्तु अमेरिका ने किसी बात पर ध्यान न देते हुए हमला जारी रखा। इससे स्पष्ट होता है कि अमेरिका विश्व की एक बड़ी सैनिक ताकत था तथा विश्व एक ध्रुवीय हो गया था।

4. द्वितीय खाड़ी युद्ध (Second Gulf War):
विश्व के एक ध्रुवीय होने की पुष्टि एक अन्य महत्त्वपूर्ण घटना से हुई, जब अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश ने मार्च, 2003 में व्यापक विनाश के हथियारों का आरोप लगाकर इराक के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। इस युद्ध को संयुक्त राष्ट्र की स्वीकृति प्राप्त नहीं थी। इस युद्ध में भी अमेरिका ने इराक के शासक सद्दाम हुसैन को हटाकर उसके स्थान पर अपनी कठपुतली सरकार बना दी, परन्तु अमेरिका वहां पर शान्ति कायम न रख पाया।

विश्व के किसी भी देश की आलोचना की परवाह न करते हुए अमेरिका ने इराक पर युद्ध थोपा था। … उपरोक्त घटनाओं से स्पष्ट होता है कि इन घटनाओं के कारण विश्व तेज़ी से एक ध्रुवीय होता चला गया और अमेरिका विश्व की एकमात्र महाशक्ति है, जबकि अन्य कोई भी देश उसके समान शक्तिशाली नहीं है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 2.
अमेरिका की आर्थिक एवं विचारधारात्मक वर्चस्वता एवं इसकी चुनौती का वर्णन करें।
उत्तर:
1. अमेरिका की आर्थिक वर्चस्वता एवं चुनौतियां (Dominance and Challenges to the U.S. in Economy):
अमेरिका विश्व की एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक महाशक्ति है। विश्व के सभी महत्त्वपूर्ण आर्थिक सम्मेलनों पर अमेरिका का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है। परन्तु वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य में अमेरिका को जापान, चीन एवं भारत से कड़ी चुनौती मिल रही है। जापान 1970 एवं 1980 के दशक से ही आर्थिक एवं तकनीकी क्षेत्र में अमेरिका को चुनौती देता आया है। परन्तु 1980 के बाद से चीन भी एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक शक्ति के रूप में अमेरिका को चुनौती दे रहा है।

जहां जापान अमेरिका का एक सहयोगी रहा है, वहीं चीन अमेरिका का प्रतियोगी माना जाता है। चीन अमेरिका की आर्थिक प्रभावशीलता को कम करने के लिए अपनी ही राष्ट्रीय मुद्रा का अवमूल्यन करने से भी गुरेज नहीं करता। चीन के साथ-साथ 1990 के दशक में भारत ने भी अमेरिका की आर्थिक वर्चस्वता को चुनौती देनी शुरू कर दी। चीन ने अमेरिका को उत्पादन आधारित विकास पर परम्परागत उपायों पर जोर देते हुए चुनौती दी है तो भारत ने वैश्विक सेवा के क्षेत्र में अमेरिका को चुनौती दी है।

2. अमेरिका की विचारधारात्मक वर्चस्वता एवं चुनौतियां (Dominance and Challenges to the U.S. in Ideology)-सोवियत संघ के विघटन एवं शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् विश्व में अमेरिका जनित विचारधारा पूंजीवाद एवं प्रजातन्त्रवाद की वर्चस्वता बढ़ गई। शीत युद्ध दो विचारधाराओं के बीच भी टकराव था, जिसमें अमेरिका की प्रजातन्त्र पर आधारित विचारधारा की विजय हुई।

अत: 1991 के बाद अमेरिका ने विचारधारात्मक रूप से भी विश्व में वर्चस्व कायम किया तथा अधिकांश देश इस ओर बढ़ रहे हैं, परन्तु पिछले 10 वर्षों में अमेरिका की इस विचारधारा को आतंकवादी विचारधारा से लगातार चुनौतियां मिल रही हैं। आतंकवादी संगठनों ने नैरोबी तथा दारे-सलाम के अमेरिकी दूतावासों, अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सैन्टर तथा पेंटागन पर एवं इंग्लैण्ड में बम विस्फोट एवं हवाई हमला करके लगातार अमेरिका की प्रजातन्त्रात्मक विचारधारा को चुनौती दी है।

प्रश्न 3.
1991 के पश्चात् भारत-अमेरिका सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
शीत यद्ध की समाप्ति के पश्चात विश्व राजनीति में बहत महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आए, भारत भी इससे अछता नहीं रहा तथा इसने भी अमेरिका के साथ अपने सम्बन्धों को बढ़ाना शुरू कर दिया। वैसे भी वर्तमान बदलती परिस्थितियों में सभी राष्ट्र एक-दूसरे के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाने के लिए तत्पर हैं। इसी दिशा में भारत एवं अमेरिका भी कदम बढ़ा रहे हैं। भारत एवं अमेरिका के सम्बन्ध अब तनावपूर्ण परिस्थितियों से निकलकर सामान्य बल्कि घनिष्ट एवं मैत्रीपूर्ण हो रहे हैं।

भारत-अमेरिका के सम्बन्धों में एक नया मोड़ देने के लिए भारत के प्रधानमन्त्री पी० वी० नरसिम्हा राव 6 दिन की सरकारी यात्रा पर मई, 1994 को अमेरिका गए। वहां पर आपसी सहयोग के क्षेत्र में 4 समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए, परन्तु परमाणु अप्रसार सन्धि और व्यापक परमाणु प्रसार निषेध सन्धि (C.T.B.T.) पर मतभेद बने रहे। 11 मई और 31 मई, 1998 को वाजपेयी की सरकार ने परमाणु परीक्षण किए, जिस पर अमेरिका ने भारत के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबन्ध लगाए।

इसमें सन्देह नहीं है कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि (सी० टी० बी० टी०) के विषय पर आज भी मतभेद बने हुए हैं, परन्तु मई, 1999 से भारत एवं अमेरिका के सम्बन्धों में सुधार हुआ है। मई, 1999 में भारत ने पाक घुसपैठियों को कारगिल से बाहर निकालने के लिए सैनिक कार्यवाही प्रारम्भ की। पूरे कारगिल संकट के दौरान अमेरिका भारत के साथ खड़ा रहा और उसने पाकिस्तान को उसकी ग़लतियों के लिए फटकारा।

21 मार्च, 2000 को अमेरिकन राष्ट्रपति बिल क्लिटन पांच दिन के लिए भारत की सरकारी यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान अमेरिका एवं भारत ने आर्थिक क्षेत्र में अनेक समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इसके अतिरिक्त भारत अमेरिकी सम्बन्धों की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए विज़न-2000 नामक दस्तावेज़ पर भी हस्ताक्षर किये गए। अमेरिकी राष्ट्रपति की इस यात्रा से भारत-अमेरिकी सम्बन्धों में एक नए युग का सूत्रपात हुआ है।

8 सितम्बर, 2000 को भारतीय प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी अमेरिका की यात्रा पर गए। अपने लम्बे व्यस्त में प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने अमेरिकी राष्टपति बिल क्लिटन सहित अनेक प्रमुख नेताओं और व्यापारिक संस्थाओं से बातचीत की। इस दौरान आपसी हित के विभिन्न विषयों पर व्यापक बातचीत हुई।11 सितम्बर, 2001 को आतंकवादियों ने अमेरिका के अनेक महत्त्वपूर्ण स्थानों पर हमला किया जिसमें हजारों लोगों की मौत हुई। भारत सहित विश्व समुदाय ने इस हमले की कड़ी आलोचना की। भारत ने आतंकवाद को रोकने और उसके उन्मूलन में अमेरिका का समर्थन किया।

नवम्बर, 2001 में अमेरिका के रक्षामन्त्री रूमसफील्ड भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने आतंकवाद के विरुद्ध मिलकर लड़ने का फैसला किया। इस यात्रा की महत्त्वपूर्ण घटना यह रही कि अमेरिका भारत को सैनिक साजो-सामान देने के लिए तैयार हो गया। इसके साथ ही अमेरिका ने जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद पर भारत की चिन्ताओं पर सहमति जताई। नवम्बर, 2001 में भारत के प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अमेरिका की यात्रा की।

वाजपेयी ने अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश के साथ शिखर वार्ता के दौरान आतंकवाद के खिलाफ लड़ने, नई रणनीतिक योजना बनाने, परमाणु क्षेत्र में शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए संयुक्त रूप से कार्य करने, सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने एवं अफ़गानिस्तान के अच्छे भविष्य के लिए मिलकर काम करने की बात की। दिसम्बर, 2001 को भारतीय संसद् पर आतंकवादियों ने हमला किया। इस हमले में शामिल सभी आतंकवादी पाकिस्तानी नागरिक थे। इसके विरोध में पाकिस्तान के प्रति सख्त रवैया अपनाया और भारी मात्रा में सीमा पर सेना की तैनाती कर दी।

इससे भारत व पाकिस्तान के बीच युद्ध का वातावरण बन गया। इस बीच अनेक अमेरिकी उच्चाधिकारियों ने भारत और पाकिस्तान को युद्ध टालने की सलाह दी। अमेरिका ने अनेक बार पाकिस्तान सरकार को आतंकवादी गतिविधियां संचालित करने से मना किया। इन आतंकवादी हमलों से भारत-अमेरिकी सम्बन्धों में एक नया दृष्टिकोण विकसित हुआ है। जनवरी, 2002 में भारत के रक्षामन्त्री श्री जार्ज फर्नांडीस अमेरिका यात्रा पर गए। वहां पर फर्नांडीस ने अमेरिका के रक्षामन्त्री श्री रूम्सफील्ड के साथ एक सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए।

असैनिक परमाणु समझौता–भारत एवं संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने सम्बन्धों की और मज़बूती प्रदान करते हुए 2005 में असैनिक परमाणु समझौता किया, जिस पर पूर्ण रूप से 11 अक्तूबर, 2008 को दोनों देशों द्वारा हस्ताक्षर किए गए। इस समझौते से दोनों देश और भी निकट आ गए। भारत एवं अमेरिका अब तीन विशेष क्षेत्रों पर सहयोग बढ़ाने के लिए सहमत हो गए हैं। ये हैं

  • मानवता के हित में परमाणु कार्यक्रम
  • मानवीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम
  • उच्च तकनीकी व्यापार।

नवम्बर, 2009 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह अमेरिका यात्रा पर गए। इस यात्रा के दौरान प्रधानमन्त्री अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा से मिले तथा दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय सम्बन्धों पर बातचीत की। दोनों देशों ने साझा बयान जारी करते हुए अफ़गानिस्तान एवं पाकिस्तान में आतंकी अभयारण्यों को समाप्त करने का संकल्प लिया। नवम्बर, 2010 में अमेरिका के राष्ट्रपति श्री बराक हुसैन ओबामा भारत यात्रा पर आए। अपनी इस यात्रा के दौरान उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थाई सदस्यता के दावे का समर्थन किया।

सितम्बर, 2013 में भारतीय प्रधानमन्त्री ने अमेरिका की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों में आतंकी गतिविधियों से लेकर एच-1 बी वीजा, सिविल परमाणु करार और सामरिक सहयोग पर बातचीत की। __ जनवरी, 2015 में अमेरिकन राष्ट्रपति ने भारत की यात्रा की। वे 26 जनवरी की गणतंत्र दिवस की परेड में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने नागरिक परमाणु समझौता तथा स्वच्छ ऊर्जा जैसे महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किये।

सितम्बर 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने सामरिक साझेदारी को और बेहतर बनाने का निर्णय लिया तथा सुरक्षा, आतंकवाद से निपटने, रक्षा, आर्थिक साझेदारी तथा जलवायु परिवर्तन पर सहयोग को और गति देने पर सहमति व्यक्त की। जून 2016 एवं 2017 में भारतीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने आतंकवाद, सुरक्षा, स्वच्छ ऊर्जा तथा एन० एस० जी० में भारत को शामिल करने पर बातचीत की।

सितम्बर, 2019 में भारतीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान 22 सितम्बर, 2019 को हयूस्टन में आयोजित ‘हाउदी मोदी’ कार्यक्रम में अमेरिकन राष्ट्रपति श्री डॉनाल्ड ट्रम्प ने भी भाग लिया, जोकि भारत-अमेरिका के लगातार हो रहे अच्छे सम्बन्धों का उदाहरण है। 24 सितम्बर, 2019 को दोनों देशों ने आतंकवाद, ऊर्जा, विश्व सुरक्षा एवं व्यापार पर चर्चा की।

फरवरी 2020 में अमेरिकन राष्ट्रपति श्री डोनाल्ड ट्रम्प भारत यात्रा पर आए। इस दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय सहयोग एव सुरक्षा को बढ़ाने पर जोर दिया। दोनों देशो ने जलवायु परिवर्तन, स्वच्छ ऊजी एव आतंकवाद पर भी चचा की। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि भारत-अमेरिका के सम्बन्ध न केवल सामान्य हो रहे हैं अपितु मैत्रीपूर्ण होते जा रहे हैं।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 4.
एक ध्रुवीय विश्व पर एक निबन्ध लिखें।
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात् विश्व धीरे-धीरे दो गुटों में बंट गया। एक गुट का नेता उदारवादी देश अमेरिका था तो दूसरे गुट का नेता साम्यवादी देश सोवियत संघ था। द्वितीय युद्ध के पश्चात् लगभग 15 वर्षों तक इन दोनों देशों में अधिक-से-अधिक शक्तिशाली बनने की होड़ लगी रही। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि इस समय विश्व पूर्ण रूप से द्वि-ध्रुवीय (Bipolar) था। विश्व के अधिकांश देश इन दोनों गुटों में बंटे हुए थे।

परन्तु द्वितीय विश्व युद्ध के 15 या 20 वर्षों के बाद विश्व राजनीति में धीरे-धीरे परिवर्तन आने लगे जिससे विश्व द्वि-ध्रुवीय के स्थान पर बहु ध्रुवीय (Multi polar) बनने लगा। उदाहरण के लिए 1955 में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की शुरुआत हुई, जिसकी संख्या अधिक-से-अधिक होती चली गई। इस आन्दोलन की स्थापना ही दोनों गुटों से अलग रहने के लिए की गई थी।

क्योंकि भारत गुट निरपेक्ष आन्दोलन का नेता था। इसलिए भारत की स्थिति अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक स्वाभिमानी तथा क्षेत्रीय महाशक्ति के रूप में होने लगी। चीन एशिया में धीरे-धीरे एक महाशक्ति के रूप में उभरने लगा था। उधर पश्चिमी यूरोप के देश अपनी कुशलता एवं संचालन के बल पर एक शक्तिशाली केन्द्र बनते जा रहे थे।

फ्रांस एक और महाशक्ति का रूप लेता जा रहा था। विश्व राजनीति में जापान तथा पश्चिमी जर्मनी आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहे समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व थे। इसके अतिरिक्त ब्राज़ील, इण्डोनेशिया तथा मिस्र इत्यादि जैसे देशों ने भी विश्व राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज करनी शुरू कर दी थी। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि तत्कालीन परिस्थितियों में अमेरिका एवं सोवियत संघ के अतिरिक्त कुछ अन्य शक्तियां भी थीं जो अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित कर रही थीं। अतः विश्व एक प्रकार से द्वि ध्रुवीय के स्थान पर बहु-ध्रुवीय बनने लगा।

इसके पश्चात् 1980 के दशक के अन्त एवं 1990 के दशक के प्रारम्भ में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक स्तर पर परिवर्तन आए। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सबसे बड़ा परिवर्तन सोवियत संघ का विघटन एवं शीत युद्ध की समाप्ति था। शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की सक्रियता भी थोड़ी कम हो गई। पूर्वी यूरोप के अधिकांश साम्यवादी देशों में पूंजीवादी हवा चलने लगी। इन सभी परिस्थितियों ने विश्व को बहु-ध्रुवीय के स्थान पर एक ध्रुवीय (Unipolar) बनाने में मदद की। एक ध्रुवीय विश्व का नेता अमेरिका था, क्योंकि उसे किसी भी अन्य शक्ति से चुनौती नहीं मिल पा रही थी। अतः वह विश्व राजनीति में एकमात्र महाशक्ति रह गया था जिसके कारण विश्व एक ध्रुवीय होता चला गया।

प्रश्न 5.
एक-ध्रुवीय व्यवस्था से आप क्या समझते हैं ? इसके मुख्य कारण लिखो।
उत्तर:
एक ध्रुवीय व्यवस्था का अर्थ-1980 के दशक के अन्त एवं 1990 के दशक के प्रारम्भ में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक परिवर्तन आए। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सबसे बड़ा परिवर्तन सोवियत संघ का विघटन एवं शीत युद्ध की समाप्ति था। शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की सक्रियता भी थोड़ी कम हो गई। पूर्वी यूरोप के अधिकांश साम्यवादी देशों में आतंकवादी हवा चलने लगी।

इन सभी परिस्थितियों ने विश्व को बहु-ध्रुवीय के स्थान पर एक-ध्रुवीय (Unipolar) बनाने में मदद की। एक-ध्रुवीय विश्व का नेता अमेरिका था, क्योंकि उसे किसी भी अन्य शक्ति से चुनौती नहीं मिल पा रही थी। अतः वह विश्व राजनीति में एक महाशक्ति रह गया था जिसके कारण विश्व एक-ध्रुवीय होता चला गया। एक-ध्रुवीय व्यवस्था के मुख्य कारण 1990 के दशक में विश्व के एक ध्रुवीय होने के निम्नलिखित कारण थे

1. शीत युद्ध की समाप्ति:
शीत युद्ध की समाप्ति ने विश्व को एक-ध्रुवीय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सोवियत संघ का 1991 में विघटन हो गया। सोवियत संघ के विघटन के परिणामस्वरूप रूस ने सोवियत संघ का स्थान लिया, परन्तु रूस सोवियत संघ जितना शक्तिशाली कभी नहीं रहा। इन सब कारणों से अमेरिका विश्व की एकमात्र महाशक्ति के रूप में उभरा जिससे विश्व एक-ध्रुवीय बन गया, क्योंकि अमेरिका को कोई भी देश चुनौती देने की स्थिति में नहीं था।

2. रूस की कमज़ोर स्थिति:
जैसा कि हम वर्णन कर चुके हैं कि सोवियत संघ के पतन के बाद उसका स्थान रूस ने लिया। परन्तु रूस कभी भी सोवियत संघ जैसी प्रभावशाली स्थिति प्राप्त न कर सका। इसके कारण अमेरिका पर अंकुश लगाने वाली कोई शक्ति नहीं थी, जिसके कारण विश्व पर अमेरिका का प्रभाव बढ़ता ही गया तथा विश्व एक ध्रुवीय हो गया।

3. पूर्वी यूरोप में परिवर्तन:
सोवियत संघ के पतन के बाद पूर्वी यूरोप में कई ऐसे परिवर्तन हुए जिससे अमेरिका का प्रभाव विश्व राजनीति में बढ़ता ही चला गया। पूर्वी यूरोप के अधिकांश देश, जो पहले सोवियत संघ के प्रभाव क्षेत्र में थे, धीरे-धीरे साम्यवाद के प्रभाव से बाहर आकर पश्चिमी यूरोप के पूंजीवादी देशों से अपने सम्बन्ध बनाने लगे। ये परिवर्तन विश्व राजनीति में अमेरिका के प्रभाव को बढ़ाने वाले साबित हुए।

4. साम्यवादी देशों में उदारवादी परिवर्तन:
सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् न केवल पूर्वी यूरोप के साम्यवादी देशों में ही उदारवादी परिवर्तन हुए, बल्कि विश्व के अन्य साम्यवादी देशों में भी उदारवादी परिवर्तन हुए, जिससे अमेरिका की भूमिका विश्व राजनीति में महत्त्वपूर्ण हो गयी।

5. नाटो का विस्तार:
शीत युद्ध के प्रारम्भिक वर्षों में अमेरिका ने नाटो का निर्माण किया था। शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भी अमेरिका ने नाटो को न केवल बनाए रखा, बल्कि इसका सम्यवादी देशों में विस्तार भी किया। र्तमान समय में रूस भी नाटो का एक सदस्य देश है। अतः स्पष्ट है कि नाटो के और अधिक विस्तार एवं शक्तिशाली होने से अमेरिका की विश्व राजनीति में धमक और अधिक बढ़ी है तथा विश्व एक-ध्रुवीय बन गया।

6. अमेरिका के विश्व राजनीति में बढ़ते प्रभाव एवं विश्व के एक ध्रुवीय होने का एक कारण विश्व राजनीति में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता में कमी आना है।

7. विश्व राजनीति में अमेरिका के प्रभाव के बढ़ने का एक कारण यह है, कि इसके लिए स्वयं अमेरिका ने बहुत अधिक प्रयास किए हैं।

8. आतंकवाद की समस्या ने विश्व राजनीति में अमेरिका के प्रभाव को और अधिक बढ़ाया है। 9. इराक एवं अफ़गानिस्तान में अमेरिका के सैनिक हस्तक्षेप ने भी उसके प्रभाव में वृद्धि की है।

10. उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त वर्तमान समय में अमेरिका विश्व राजनीतिक में जो भूमिका निभा रहा है, उसने भी उसके प्रभाव को बढ़ाया है।

प्रश्न 6.
एक-ध्रुवीय व्यवस्था के लाभ लिखिए।
उत्तर:
एक-ध्रुवीय विश्व के निम्नलिखित लाभ हुए हैं
1. शान्तिपूर्ण व्यवस्था की स्थापना (Establishment of Peaceful System):
एक-ध्रुवीय विश्व का है, कि इससे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शान्तिपूर्ण व्यवस्था की स्थापना हो सकती है। द्वि-ध्रुवीय विश्व में दोनों गुटों, अमेरिका एवं सोवियत संघ में सदैव शीत युद्ध चलता रहा है, जिसके कारण अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भय व आतंक का वातावरण बना रहता था। परन्तु 1991 में सोवियत संघ के पतन एवं शीत युद्ध के समाप्त होने से विश्व स्तर पर शान्ति की स्थापना सम्भव हो सकी।

2. साम्यवाद के उग्रवादी व्यवहार पर नियन्त्रण (Control over Extremism of Communism):
एक ध्रुवीय विश्व का एक और महत्त्वपूर्ण लाभ यह हुआ है कि इसमें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर साम्यवाद के उग्रवादी व्यवहार पर नियन्त्रण लग गया। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् साम्यवादी विचारधारा को बहुत अधिक नुकसान हुआ, साम्यवादी विचारधारा के साधनों में बहुत कमी आ गई है, जिससे रूस तथा चीन जैसे साम्यवादी देशों के उग्रवादी व्यवहार में कुछ कमी आई। शीत युद्ध तथा द्वि-ध्रुवीय विश्व के समय सोवियत संघ विश्व के अन्य देशों में तथा चीन एशिया के देशों में साम्यवादी विचारधारा का बड़ी उग्रता से प्रचार तथा विस्तार करते थे, परन्तु एक ध्रुवीय विश्व में इस प्रकार की उग्रता पर नियन्त्रण लग गया।

3. तकनीकी एवं वैज्ञानिक विकास को बढ़ावा (Encouragement to Technological and Scientific Development):
एक-ध्रुवीय विश्व में तकनीकी एवं वैज्ञानिक विकास को बढ़ावा मिला है। जब सोवियत संघ का विघटन हुआ तथा शीत युद्ध समाप्त हो गया, तब द्वि-ध्रुवीय व्यवस्था भी समाप्त हो गई, इसके पश्चात् अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नव-निर्माण एवं पुनर्निर्माण की भी आवश्यकता अनुभव की गई, जिससे तकनीकी एवं वैज्ञानिक विकास को बढ़ावा दिया गया। क्योंकि नव-निर्माण एवं पुनर्निर्माण तब तक सम्भव नहीं था, जब तक तकनीकी एवं वैज्ञानिक विकास को बढ़ावा न मिले।

4. यूरोप में शान्ति एवं एकीकरण की प्रक्रिया का आरम्भ (Beginning of Peace and Integration Process in Europe):
एक-ध्रुवीय विश्व का एक लाभ यह हुआ, कि इससे यूरोप में शान्ति एवं एकीकरण की प्रक्रिया का आरम्भ हुआ। द्वि-ध्रुवीय विश्व के अन्तर्गत यूरोप में सदैव तनाव बना रहता था, जर्मनी का विभाजन भी हो गया था। परन्तु द्वि-ध्रुवीय के समाप्त होने तथा एक-ध्रुवीय के अस्तित्व में आने से यूरोप में न केवल शान्ति स्थापित हुई, बल्कि जर्मनी जैसे देशों का एकीकरण भी हुआ।

5. उदारवाद का अधिक लोकप्रिय होना (Increasing Popularity of Liberalism)-एक-ध्रुवीय विश्व का एक लाभ यह हुआ है कि इसने उदारवादी विचारधारा या उदारवाद को अधिक लोकप्रिय बनाया। द्वि-ध्रुवीय विश्व में सदैव उदारवाद एवं साम्यवाद में तनाव चलता रहता था जिसके कारण किसी भी विचारधारा को बढ़ावा नहीं मिल पाता था। परन्तु द्वि-ध्रुवीय विश्व की समाप्ति एवं एक-ध्रुवीय विश्व (पूंजीवादी) के अस्तित्व में आने से उदारवाद को अधिक बढ़ावा मिला तथा इसकी लोकप्रियता में वृद्धि हुई।

विश्व के अधिकांश राज्य (यहां तक कि साम्यवादी राज्य भी) उदारवादी विचारधारा को अपनाने लगे। इस विचारधारा के अन्तर्गत मुक्त व्यापार को बढ़ावा दिया गया। उदारवाद के कारण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण को भी बढ़ावा मिला, जिससे विभिन्न निर्धन, विकासशील एवं अविकसित देशों को विकास करने के अधिक अवसर प्राप्त हुए। आधुनिक समय में कल्याणकारी राज्य की धारणा ने जन्म लिया। राज्यों के नागरिकों पर कुछ कर लगाकार उससे जन-कल्याण के कई कार्य किए।

6. शान्ति स्थापना में सहायक (Helpful in Peace Process):
एक-ध्रुवीय विश्व में विश्व स्तर पर शान्ति स्थापना में सहायता मिलती है। द्वि-ध्रुवीय विश्व में दोनों गुटों में तनाव रहता था। परन्तु एक-ध्रुवीय विश्व में ऐसी स्थिति नहीं थी। यदि विश्व के किसी एक भाग में तनाव पैदा होता है, तो विश्व में केवल एक महाशक्ति होने के कारण विश्व स्तर पर शान्ति बनाने का उत्तरदायित्व उस पर ही अधिक होता है, तथा किसी दूसरे शक्तिशाली गुट के न होने से वह शीघ्र निर्णय लेने में भी स्वतन्त्र रहता है ताकि तनाव को समाप्त किया जा सके।

7. जनता के जीवन स्तर में सुधार (Improvement in the Living Standard of People):
एक-ध्रुवीय विश्व का एक महत्त्वपूर्ण लाभ यह हुआ है, कि इससे विश्व स्तर पर जनता के जीवन-स्तर में काफी सुधार आया है। एक ध्रुवीय विश्व में उदारवाद, निजीकरण, वैश्वीकरण तथा कल्याणकारी राज्य की धारणा को अधिक बढ़ावा मिला है, इन सभी परिवर्तनों से जनता को अधिक-से-अधिक रोजगार के अवसर प्राप्त हुए हैं, न केवल अपने देश में ही, बल्कि विश्व के अन्य देशों में भी। इससे उनके जीवन स्तर पर काफ़ी सुधार आया है।

8. आर्थिक विकास को बढ़ावा (Encouragement to Economic Development):
एक-ध्रुवीय विश्व का एक अन्य महत्त्वपूर्ण लाभ यह रहा है कि इसमें आर्थिक विकास को अधिक महत्त्व एवं बढ़ावा दिया गया है। इसमें विश्व स्तर पर आर्थिक सुधार लागू करने, वित्तीय घाटों को कम करने तथा लोगों के आर्थिक जीवन में सुधार जैसे विषय शामिल थे।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 7.
एक-ध्रुवीय विश्व के अवगुण लिखें। (Write the demerits of Unipolar World.)
उत्तर:
एक-ध्रुवीय विश्व के जहां कुछ लाभ हैं, वहीं पर कुछ दोष या हानियां भी हैं, जिनका वर्णन इस प्रकार है

1. नव-साम्राज्यवाद का उदय (Rise of New Imperialism):
एक-ध्रुवीय विश्व का सबसे बड़ा दोष यह है, कि इस एक तरह से पुनः साम्राज्यवाद का उदय हुआ है, इसे हम नव-साम्राज्यवाद भी कह सकते हैं। अमेरिका ने विश्व के अधिकांश देशों में बड़ी-बड़ी कम्पनियां खोलकर वहां पर आर्थिक प्रभुत्व जमाकर साम्राज्यवाद को बढ़ावा दिया है।

2. अमेरिका का बढ़ता प्रभुत्व (Increasing Importance of America):
एक-ध्रुवीय विश्व का एक दोष यह है कि इसके अन्तर्गत विश्व राजनीति में अमेरिका का अनावश्यक प्रभुत्व बढ़ गया। प्रभुत्व बढ़ने से अमेरिका ने अनावश्यक हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। विश्व का कोई भी क्षेत्र अमेरिकन हस्तक्षेप से अछूता नहीं रहता है। इराक, अफ़गानिस्तान, पनामा, क्यूबा, सोमालिया, उत्तरी कोरिया तथा ईरान जैसे राज्य अमेरिकन हस्तक्षेप के उदाहरण हैं। समय-समय पर विश्व के अन्य राज्यों द्वारा अमेरिका की इस प्रकार की कार्यवाहियों की आलोचना भी होती रही है, परन्तु अमेरिका पर इसका कोई प्रभाव नहीं।

3. वैश्विक आतंकवाद की समस्या (Problem of Global Terrorism):
वर्तमान समय की एक महत्त्वपूर्ण समस्या वैश्विक आतंकवाद है। हालांकि आतंकवाद की समस्या द्वि-ध्रुवीय विश्व में भी थी, परन्तु तब इसका क्षेत्र बहत अधिक नहीं था, परन्तु एक-ध्रुवीय विश्व में आतंकवाद की समस्या ने पूरे विश्व को चिन्तित कर रखा है। सितम्बर, 2001 में अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सैन्टर पर आतंकवादी हमला, दिसम्बर, 2001 में भारतीय संसद् पर हमला, मार्च 2003 में रूस के एक सिनेमा घर में दर्शकों को बन्दी बनाना, जून 2006 में लन्दन में बम विस्फोट तथा जुलाई, 2006 में बम्बई की ट्रेनों में सिलसिलेवार बम विस्फोट इस आतंकवादी समस्या के उदाहरण हैं।

4. आर्थिक सहायता में पक्षपात (Discrimination Regarding Financial Help):
एक-ध्रुवीय विश्व में अमेरिका एक महाशक्ति के रूप में समय-समय पर विश्व के ग़रीब एवं पिछड़े देशों को आर्थिक सहायता प्रदान करता है, परन्तु कुछ देशों का यह आरोप है, कि अमेरिका विभिन्न देशों की आर्थिक सहायता देते समय पक्षपात करता है। अमेरिका उन देशों को अधिक आर्थिक सहायता देता है, जो उसकी नीतियों का आंख मूंदकर समर्थन करते हैं, या जो देश अमेरिका के पिछलग्गू हैं।

5. संयुक्त राष्ट्र की प्रभावशीलता में कमी (Decline of effectiveness of U.N.O.):
एक-ध्रुवीय विश्व का सबसे बड़ा दोष यह रहा है कि इसमें संयुक्त राष्ट्र की प्रभावशाली में बहुत कमी आई है। अमेरिका के द्वारा विश्व राजनीति में जो अनावश्यक हस्तक्षेप किया जाता है, उसमें संयुक्त राष्ट्र रोकने में असफल रहा है। संयुक्त राष्ट्र की बैठकों में अमेरिका अपने प्रभाव से कई विषयों में अपने पक्ष में प्रस्ताव पास कर लेता है।

6. आर्थिक संकट (Economic Crises):
एक-ध्रुवीय विश्व में यद्यपि उदारवाद, निजीकरण, वैश्वीकरण एवं आर्थिक विकास की बात की जाती है, परन्तु वास्तविकता यह है कि, इस आर्थिक उदारीकरण के दौर में भी कई देशों में भुखमरी, बेरोज़गारी तथा ग़रीबी पाई जाती है।

प्रश्न 8.
क्या अमेरिका के वर्चस्व की कोई सीमाएं हैं ? संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य में अमेरिका बहुत शक्तिशाली देश है, विशेषकर शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात्। विश्व की प्रत्येक अन्तर्राष्ट्रीय घटना चाहे वह आर्थिक हो, राजनीतिक हो, सांस्कृतिक हो, या कोई अन्य हो, सभी पर अमेरिका के प्रभाव को देखा जा सकता है। परन्तु इस प्रभाव पर कुछ सीमाएं भी हैं। ऐतिहासिक तौर पर कोई भी साम्राज्य अजेय नहीं रहा तथा लगभग सभी साम्राज्यों का समय के साथ-साथ नाश हो गया। इसी तरह अमेरिकन व्यवस्था में कुछ इस प्रकार की सीमाएं हैं, जो उसे आगे बढ़ने से रोकती हैं

अमेरिकी वर्चस्व की राह में मुख्य रूप से तीन व्यवधान हैं

1. अमेरिका की संस्थागत बनावट-अमेरिका के वर्चस्व का प्रथम व्यवधान अमेरिका की स्वयं की संस्थागत बनावट है। अमेरिका में सरकार के तीनों अंग एक-दूसरे से स्वतन्त्र हैं तथा कार्यपालिका अमेरिकी सैनिक अभियानों पर अंकुश लगाता है।

2. उन्मुक्त समाज-अमेरिकन वर्चस्व की राह में दूसरा व्यवधान अमेरिकी उन्मुक्त समाज है। अमेरिकी उन्मुक्त समाज में शासन के उद्देश्य और ढंगों को लेकर संदेह बना रहता है।

3. नाटो-अमेरिकन वर्चस्व के मार्ग का तीसरा महत्त्वपूर्ण व्यवधान ‘नाटो’ है और आने वाले दिनों में अमेरिकी वर्चस्व को नाटो द्वारा ही कम किया जा सकता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एक-ध्रुवीय विश्व से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात् विश्व धीरे-धीरे दो गुटों में बंट गया। एक गुट का नेता उदारवादी देश अमेरिका था तो दूसरे गुट का नेता साम्यवादी देश सोवियत संघ था। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् लगभग 15 वर्षों तक इन दोनों देशों में अधिक-से-अधिक शक्तिशाली बनने की होड़ लगी रही। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि इस समय विश्व पूर्ण रूप से द्वि-ध्रुवीय (Bipolar) था। परन्तु 1980 के दशक के अन्त एवं 1990 के दशक के प्रारम्भ में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक स्तर पर परिवर्तन आए।

अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सबसे बड़ा परिवर्तन सोवियत संघ का विघटन एवं शीत युद्ध की समाप्ति था। शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की सक्रियता भी थोड़ी कम हो गई। पूर्वी यूरोप के अधिकांश साम्यवादी देशों में आतंकवादी हवा चलने लगी। इन सभी परिस्थितियों ने विश्व को बह-ध्रुवीय के स्थान पर एक-ध्रवीय (Unipolar) बनाने में मदद की। एक ध्रुवीय विश्व का नेता अमेरिका था, क्योंकि उसे किसी भी अन्य शक्ति से चुनौती नहीं मिल पा रही थी। अतः वह विश्व राजनीति में एकमात्र महाशक्ति रह गया था जिसके कारण विश्व एक-ध्रुवीय होता चला गया।

प्रश्न 2.
विश्व के एक-ध्रुवीय होने के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:
1. शीत युद्ध की समाप्ति:
शीत युद्ध की समाप्ति ने विश्व को एक-ध्रुवीय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही अमेरिका एवं सोवियत संघ में एक-दूसरे से अधिक शक्तिशाली होने के लिए युद्ध चल रहा था। विश्व में शक्ति सन्तुलन इन दो महाशक्तियों के हाथ में ही थी। परन्तु 1980 के दशक में सोवियत संघ के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचोव ने पैट्राइस्का तथा ग्लासनोस्ट की नीति अपनाई, जिसके कारण सोवियत संघ का 1991 में विघटन हो गया।

सोवियत संघ के विघटन के परिणामस्वरूप रूस ने सोवियत संघ का स्थान लिया, परन्तु रूस सोवियत संघ जितना शक्तिशाली कभी नहीं रहा। इन सब कारणों से अमेरिका विश्व की एकमात्र महाशक्ति के रूप में उभरा जिससे विश्व एक-ध्रुवीय बन गया, क्योंकि अमेरिका को कोई भी देश चुनौती देने की स्थिति में नहीं था।

2. रूस की कमज़ोर स्थिति:
सोवियत संघ के पतन के बाद उसका स्थान रूस ने लिया। परन्तु रूस कभी भी सोवियत संघ जैसी प्रभावशाली स्थिति प्राप्त न कर सका। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में रूस कभी निर्णायक भूमिका नहीं निभा सका। अफ़गानिस्तान समस्या तथा इराक समस्या इनका उदाहरण है। इसके कारण अमेरिका पर अंकुश लगाने वाली कोई शक्ति नहीं थी, जिसके कारण विश्व पर अमेरिका का प्रभाव स्थापित हो गया तथा विश्व एक-ध्रुवीय हो गया।

प्रश्न 3.
प्रथम खाड़ी युद्ध के कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:

  • इराक द्वारा कुवैत पर कब्ज़ा : प्रथम खाड़ी युद्ध का सबसे बड़ा कारण इराक द्वारा कुवैत पर कब्जा करना था।
  • अमेरिका की युद्ध की इच्छा : प्रथम खाड़ी युद्ध के लिए अमेरिका की युद्ध की इच्छा भी ज़िम्मेदार थी।
  • सोवियत संघ का पतन : सोवियत संघ के पतन के पश्चात् अमेरिका पर लगाम कसने वाला कोई था।
  • सयुक्त राष्ट्र संघ की असफलता : प्रथम खाड़ी युद्ध के पहले संयुक्त राष्ट्र संघ अपनी सही भूमिका नहीं निभा पाया।

प्रश्न 4.
अमेरिका ने अफ़गानिस्तान पर हमला क्यों किया ?
उत्तर:

1. 9/11 की घटना:
11 सितम्बर, 2001 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर एवं पेंटागन आतंकवादी हमला किया गया। इस हमले में लगभग 3000 लोग मारे गए। इस आतंकवादी हमले में अल-कायदा के शामिल होने की शंका जाहिर की गई। परिणामस्वरूप अमेरिका ने बदले की कार्यवाही करते हुए अफ़गानिस्तान जोकि अल-कायदा का गढ़ बन चुका था, में युद्ध की घोषणा कर दी।

2. अफ़गानिस्तान में तालिबान एवं अल-कायदा का शासन:
अमेरिका ने अफ़गानिस्तान में युद्ध इसलिए शुरू गानिस्तान में 2001 में तालिबान एवं अलकायदा जैसे आतंकवादी संगठनों का शासन था, जो विश्व स्तर पर आतंकवादी गतिविधियां कर रहे थे। अतः अमेरिका ने इन आतंकवादी संगठनों को समाप्त करने के लिए भी अफ़गानिस्तान में युद्ध किया।

प्रश्न 5.
शीत युद्ध के बाद भारत-अमेरिकी सम्बन्धों पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
1990-91 में प्रमुख साम्यवादी देश सोवियत संघ विखंडित हो गया और इसके 15 गणराज्य नए राज्यों के रूप में सामने आए। विश्व परिदृश्य पर यह घटना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। सोवियत संघ के विखण्डन से अमेरिका और सोवियत संघ के बीच चलने वाला शीत युद्ध भी समाप्त हो गया। पूर्व और पश्चिम के देशों में विचारधारात्मक शत्रुता की कड़वाहट समाप्त हो गई।

ऐसे में अमेरिका की रुचि पूर्वी देशों की अर्थव्यवस्थाओं या बाज़ारों में बढ़ गई। भारतीय अर्थव्यवस्था भी विविधतापूर्ण और व्यापक है। भारत को अपने आर्थिक विकास के लिए तकनीकी, आर्थिक और भौतिक मंदद की आवश्यकता है। अमेरिका भी आर्थिक दृष्टि से भारत के महत्त्व को पहचानने लगा है। धीरे-धीरे दोनों देशों के विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ रहा है।

दूसरी ओर भारत और अमेरिका को आतंकवादी गतिविधियों का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए भी दोनों देशों के बीच आपसी सूझ-बूझ का वातावरण तैयार हुआ है। शीत युद्ध के बाद अमेरिका व भारत के बीच अनेक समझौते हुए और दोनों देशों के राष्ट्रपतियों व उच्चाधिकारियों ने एक-दूसरे के यहां यात्राएं की।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 6.
आर्थिक क्षेत्र में अमेरिका को किन देशों से चुनौती मिल रही है ?
उत्तर:
अमेरिका विश्व की एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक महाशक्ति है। विश्व के सभी महत्त्वपूर्ण आर्थिक सम्मेलनों पर अमेरिका का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है, परन्तु वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य में अमेरिका को जापान, चीन एवं भारत से कड़ी चुनौती मिल रही है। जापान 1970 एवं 1980 के दशक से ही आर्थिक एवं तकनीकी क्षेत्र में अमेरिका को चुनौती देता आया है। परन्तु 1980 के बाद से चीन भी एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक शक्ति के रूप में अमेरिका को चुनौती दे किर रहा है।

जहां जापान, अमेरिका का एक सहयोगी रहा है, वहीं चीन अमेरिका का प्रतियोगी माना जाता है। चीन अमेरिका . की आर्थिक प्रभावशीलता को कम करने के लिए अपनी ही राष्ट्रीय मुद्रा का अवमूल्यन करने से भी गुरेज नहीं करता। चीन के साथ-साथ 1990 के दशक में भारत ने भी अमेरिका की आर्थिक वर्चस्वता को चुनौती देनी शुरू कर दी। चीन ने अमेरिका को उत्पादन आधारित विकास पर परम्परागत उपायों पर जोर देते हुए चुनौती दी है, तो भारत ने वैश्विक सेवा के क्षेत्र में अमेरिका को चुनौती दी है।

प्रश्न 7.
अमेरिकी वर्चस्व के रास्ते में उत्पन्न किन्हीं चार चुनौतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अमेरिकी वर्चस्व के मार्ग में मुख्य रूप से निम्न चुनौतियां हैं

1. अमेरिका की संस्थागत बनावट:
अमेरिका के वर्चस्व की प्रथम चुनौती अमेरिका की स्वयं की संस्थागत बनावट है। अमेरिका में सरकार के तीनों अंग एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं तथा कार्यपालिका अमेरिकी सैनिक अभियानों पर अंकुश लगाती है।

2. उन्मुक्त समाज:
अमेरिकन वर्चस्व की राह में दूसरी चुनौती अमेरिकी उन्मुक्त समाज है। अमेरिकी उन्मुक्त समाज में शासन के उद्देश्य और ढंगों को लेकर संदेह बना रहता है।

3. नाटो:
अमेरिकन वर्चस्व के मार्ग की तीसरी महत्त्वपूर्ण चुनौती ‘नाटो’ है और आने वाले दिनों में अमेरिकी वर्चस्व को नाटो द्वारा ही कम किया जा सकता है।

4. आर्थिक क्षेत्र में चुनौती:
अमेरिका को चीन, भारत, यूरोपीय संघ तथा जापान से लगातार चुनौती मिल रही है जो उसके वर्चस्व में बाधा बनती है।

प्रश्न 8.
‘आपरेशन डेजर्ट स्टार्म’ पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
प्रथम खाड़ी युद्ध, जोकि 1990-1991 में हुआ था, को ‘ऑपरेशन डेजर्ट-स्टॉर्म’ के नाम से जाना जाता है। यह युद्ध इराक एवं अमेरिका गठबन्धन सेनाओं के बीच लड़ा गया। 1990 में इराक के तानाशाह शासक सद्दाम हुसैन ने अपने छोटे से पड़ोसी देश कुवैत पर कब्जा कर लिया। कुवैत को स्वतन्त्र कराने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में 34 देशों के लगभग 6 लाख 70 हजार सैनिकों ने इराक के खिलाफ़ युद्ध छेड़ दिया।

प्रश्न 9.
अमेरिकी वर्चस्व से निपटने के कोई चार सुझाव दीजिए।
उत्तर:

  • अमेरिकी वर्चस्व से निपटने का सबसे अच्छा उपाय बैंड बैगन की रणनीति है।
  • एक देश को अपने आपको अमेरिका की नजरों से छुपा कर रखना चाहिए।
  • अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं को मज़बूत करना चाहिए।
  • विभिन्न देशों को सामूहिक सुरक्षा का सिद्धान्त अपनाना चाहिए।

प्रश्न 10.
वर्चस्वता के इतिहास की व्याख्या करें।
उत्तर:
विश्व राजनीति में ऐसे बहुत कम अवसर आए हैं, जब सम्पूर्ण विश्व पर किसी एक देश की वर्चस्वता स्थापित हुई। इतिहास में अमेरिका से पहले ऐसे अवसर केवल दो बार ही आए हैं, जब किसी देश या संघ ने अमेरिका की तरह अपना वर्चस्व कायम किया हो। 1660 से लेकर 1713 ई० तक फ्रांस का वर्चस्व था जबकि 1860 से लेकर 1910 तक ब्रिटेन का वर्चस्व रहा।

ब्रिटेन ने समुद्री व्यापार के बल पर अपना वर्चस्व कायम किया। वर्चस्वता के विषय में इतिहास से हमें यह भी सीख मिलती है कि सदैव किसी एक देश का वर्चस्व स्थापित नहीं रह सकता। समय आने पर एक शक्तिशाली देश का स्थान दूसरा देश ले लेता है।

प्रश्न 11.
1990 के दशक में विश्व के एक-ध्रुवीय होने के क्या कारण थे ?
अथवा
विश्व को एक-धुव्रीय बनाने के लिए उत्तरदायी किन्हीं चार अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का वर्णन करें।
उत्तर:
1990 के दशक में विश्व के एक-ध्रुवीय होने के निम्नलिखित कारण थे

1. शीत युद्ध की समाप्ति (End of Cold War):
शीत युद्ध की समाप्ति ने विश्व को एक-ध्रुवीय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् अमेरिका विश्व की एकमात्र महाशक्ति के रूप में उभरा, जिससे विश्व एक-ध्रुवीय बन गया, क्योंकि अमेरिका को कोई भी देश चुनौती देने की स्थिति में नहीं था।

2. रूस की कमज़ोर स्थिति (Weaker Position of Russia):
जैसा कि हम ऊपर वर्णन कर चुके हैं जो सोवियत संघ के पतन के बाद उसका स्थान रूस ने लिया। परन्तु रूस कभी भी सोवियत संघ जैसी प्रभावशाली स्थिति प्राप्त न कर सका।

3. पूर्वी यूरोप में परिवर्तन (Changes in East Europe):
सोवियत संघ के पतन के बाद पूर्वी यूरोप में कई ऐसे परिवर्तन हुए जिससे अमेरिका का प्रभाव विश्व राजनीति में बढ़ता ही चला गया।

4. साम्यवादी देशों में उदारवादी परिवर्तन (Liberal Changes in Communist Countries):
सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् न केवल पूर्वी यूरोप के साम्यवादी देशों में ही उदारवादी परिवर्तन हुए, बल्कि विश्व के अन्य साम्यवादी देशों में भी उदारवादी परिवर्तन हुए, जिससे अमेरिका की भूमिका विश्व राजनीति में महत्त्वपूर्ण हो गयी।

प्रश्न 12.
वर्तमान विश्व में अमेरिका के एकाधिकार का क्या अर्थ है ? अमेरिका के एकाधिकार को बनाए रखने वाले कोई दो तत्त्व बताएं।
उत्तर:
वर्तमान विश्व में अमेरिका के एकाधिकार का अर्थ यह है कि अमेरिका आज विश्व का सर्वाधिक शक्तिशाली देश है तथा पूरे विश्व में उसका प्रभाव है। विश्व राजनीति में अमेरिका की इच्छानुसार ही निर्णय लिए जाते हैं तथा यदि कोई देश अमेरिका की इच्छानुसार कार्य नहीं करता तो अमेरिका उस पर कई तरह के प्रतिबन्ध लगा देता है तथा आवश्यकता पड़ने पर सैनिक शक्ति का भी प्रयोग करता है। वर्तमान विश्व में अमेरिका के एकाधिकार को बनाये रखने में दो तत्त्वों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

  • सैनिक शक्ति-वर्तमान विश्व में अमेरिका के एकाधिकार को बनाये रखने में अमेरिका की सैनिक शक्ति का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
  • आर्थिक शक्ति-सैनिक शक्ति के साथ-साथ अमेरिका की अर्थव्यवस्था ने भी विश्व में अमेरिका के एकाधिकार को बनाये रखा है।

प्रश्न 13.
एक ध्रुवीय व्यवस्था के कोई चार लाभ लिखिए।
उत्तर:
1. शान्तिपूर्ण व्यवस्था की स्थापना- एक ध्रुवीय विश्व का सर्वप्रथम लाभ यह है, कि इससे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शान्तिपूर्ण व्यवस्था की स्थापना हो सकती है।

2. साम्यवाद के उग्रवादी व्यवहार पर नियन्त्रण-एक-ध्रुवीय विश्व का एक और महत्त्वपूर्ण लाभ यह हआ है कि इसमें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर साम्यवाद के उग्रवादी व्यवहार पर नियन्त्रण लग गया।

3. तकनीकी एवं वैज्ञानिक विकास को बढ़ावा-एक-ध्रुवीय विश्व में तकनीकी एवं वैज्ञानिक विकास को बढ़ावा मिला है।

4. यूरोप में शान्ति एवं एकीकरण की प्रक्रिया का आरम्भ-एक-ध्रुवीय विश्व का एक लाभ यह हुआ, कि इससे यूरोप में शान्ति एवं एकीकरण की प्रक्रिया का आरम्भ हुआ।

प्रश्न 14.
सैन्य शक्ति के रूप में अमेरिका के वर्चस्व की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अमेरिका की वर्तमान शक्ति की रीढ़ उसकी सैन्य क्षमता है। वर्तमान समय में अमेरिका की सैन्य शक्ति अन्य देशों के मुकाबले अद्भुत एवं अनूठी है। वर्तमान समय में अमेरिका अपनी सैन्य क्षमता के बल पर विश्व के किसी भी भाग पर हमला कर सकता है उसका हमला भी अचूक एवं संहारक होता है। अमेरिका अपनी सेना को यद्धभमि में दर रखकर भी विरोधी देश को उसके अपने घर में ही पूरी तरह से शक्तिहीन करके लाचार बना सकता है। आज अमेरिका की सैन्य शक्ति का अंदाजा इसी बाते से लगाया जा सकता है कि वह 12 सर्वाधिक सैन्य खर्च करने वाले देशों से भी ज्यादा अकेला ही अपनी सेना पर खर्च करता है।

प्रश्न 15.
अमेरिका के वर्चस्व के ढांचागत शक्ति के रूप की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अमेरिका के वर्चस्व में ढांचागत शक्ति का भी विशेष योगदान है। वर्चस्व के ढांचागत शक्ति का अर्थ वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी इच्छा चलाने वाले एक देश की आवश्यकता होती है, जो अपने मतलब की वस्तुओं को बनाये रखता है। अमेरिका विश्व की अर्थव्यवस्था तथा प्रौद्योगिकी के प्रत्येक भाग में विद्यमान है। अमेरिका की विश्व अर्थव्यवस्था में 28% की भागेदारी है।

विश्व की तीन अग्रणी कम्पनियों में से एक अमेरिकन कम्पनी है। विश्व के आर्थिक संगठनों जैसे-विश्व व्यापार संगठन, विश्व बैंक तथा विश्व मुद्रा कोष पर अमेरिकन प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। इससे स्पष्ट है कि अमेरिकन वर्चस्व में उसकी ढांचागत शक्ति की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

प्रश्न 16.
अमेरिका के वर्चस्व की सांस्कृतिक शक्ति के रूप का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1990 के दशक में सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् विश्व में अमेरिका ही एकमात्र महाशक्ति रह गया था तथा उसने शक्ति तेजी से और भी बढ़ानी शुरू कर दी। परिणामस्वरूप उसका कई पक्षों से विश्व पर वर्चस्व स्थापित हो गया, जैसे-सैनिक शक्ति के रूप, ढांचागत व्यवस्था के रूप में तथा सांस्कृतिक रूप में। सांस्कृतिक वर्चस्व का अर्थ सहमति गढ़ने की ताकत से है।

कोई प्रभुत्वशाली वर्ग या देश अपने प्रभाव में रहने वाले लोगों को इस तरह सहमत करता है, कि वे दुनिया को उसी दृष्टिकोण से देखें । अमेरिका भी वर्तमान समय में सांस्कृतिक रूप में ताकतवर है। बीसवीं शताब्दी तथा 21वीं शताब्दी के आरम्भ में सांस्कृतिक क्षेत्र में जो बदलाव या परिवर्तन आ रहे हैं वे सब अमेरिकन संस्कृति के ही प्रतिबिम्ब हैं। उदाहरण के लिए अमेरिका में प्रचलित जीन्स को आज अधिकांश देशों के लोग पहनने के अभ्यस्त हो गये हैं।

प्रश्न 17.
अमेरिका की आर्थिक प्रबलता उसकी ढांचागत शक्ति से पृथक् नहीं है। वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अमेरिका की आर्थिक प्रबलता उनकी ढांचागत शक्ति में ही पाई जाती है। अमेरिका अपनी ढांचागत शक्ति के कारण ही विश्व में आर्थिक प्रभुत्व बनाए हुए है, तथा विश्व आर्थिक संस्थाओं को नियन्त्रित कर रहा है। विश्व में सार्वजनिक वस्तुओं को उपलब्ध कराने में अमेरिका ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। क्योंकि अमेरिका के पास इस प्रकार का आधारभूत ढांचा है, कि वह सम्पूर्ण विश्व से सम्पर्क कर सके।

उदाहरण के लिए अमेरिका अपनी नौसेना की शक्ति के कारण व्यापारिक जलयानों को नियन्त्रित करता है। कम्प्यूटर एवं इंटरनेट की शक्ति के कारण विश्व में आदान-प्रदान होने वाली सूचनाओं पर नियन्त्रण रखता है। अमेरिका की विश्व अर्थव्यवस्था में लगभग 28% भागेदारी है। एम० बी० ए० अमेरिकन ढांचागत शक्ति का एक अन्य उदाहरण है। अतः स्पष्ट है कि अमेरिका की आर्थिक प्रबलता उनकी ढांचागत शक्ति में ही पाई जाती है।

प्रश्न 18.
एक आक्रमण में सैनिक बल प्राय: जिन चार नियत कार्यों को पूरा करना चाहते हैं, उनका उल्लेख कीजिए। इराक पर आक्रमण में किस कार्य में अमेरिका की गम्भीर कमज़ोरी सामने प्रतिबिम्बित हुई ?
उत्तर:
एक आक्रमण में सैनिक बल प्रायः जिन चार नियत कार्यों को पूरा करना चाहते हैं, वे हैं-

  • युद्ध जीतना,
  • अपरोध करना,
  • दण्ड देना,
  • कानून व्यवस्था बहाल करना।

अमेरिका ने इराक युद्ध में दिखा दिया, कि उसकी युद्ध जीतने की क्षमता बहुत अधिक है, तथा वह सैनिक शक्ति में बाकी अन्य देशों से बहुत आगे है। अमेरिका की अवरोध करने एवं दण्ड देने की क्षमता भी बहुत अधिक है। इराक के विषय में अमेरिका की सैन्य क्षमता बल की केवल एक कमज़ोरी नज़र आती है, और वह यह है कि अमेरिका इराक में कानून एवं व्यवस्था स्थापित नहीं कर पाया।

प्रश्न 19.
‘बैंड-वैगन’ की रणनीति से क्या अभिप्राय है ? यह छुपा’ की रणनीति से कैसे भिन्न है ?
उत्तर:
‘बैंड वैगन’ की रणनीति अमेरिका के वर्चस्व से सम्बन्धित है। विश्व के रणनीतिकारों के लिए सदैव यह एक कठिन प्रश्न रहा है, कि अमेरिका के वर्चस्व से कैसे निपटा जाए। कुछ रणनीतिकारों का मानना है, कि अमेरिका से संघर्ष करने की अपेक्षा उसके वर्चस्व के साये में आकर अधिक-से-अधिक लाभ उठाना चाहिए।

उदाहरण के लिए एक देश के आर्थिक विकास के लिए निवेश करना, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा व्यापार को बढ़ावा देना आवश्यक है और ये सभी आवश्यकताएं अमेरिका के साथ रह कर पूरी हो सकती हैं। इस रणनीति को ही ‘बैंड वैगन’ रणनीति कहा जाता है। ‘छुपा’ की रणनीति ‘बैंड वैगन’ की रणनीति से अलग है। इस नीति के अन्तर्गत एक देश अपने आप को इस प्रकार छुपा लेता है, कि वह अमेरिका की नज़रों में न चढ़ पाए।

प्रश्न 20.
एक-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था के कोई चार दोष लिखें।
अथवा
एक-ध्रुवीय व्यवस्था के किन्हीं चार दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. नव-साम्राज्यवाद का उदय:
एक-ध्रुवीय विश्व का सबसे बड़ा दोष यह है, कि इस एक तरह से पुनः साम्राज्यवाद का उदय हुआ है, इसे हम नव-साम्राज्यवाद भी कह सकते हैं।

2. अमेरिका का बढ़ता प्रभुत्व:
एक-ध्रुवीय विश्व का एक दोष यह है कि इसके अन्तर्गत विश्व राजनीति में अमेरिका का अनावश्यक प्रभुत्व बढ़ गया। प्रभुत्व बढ़ने से अमेरिका ने विश्व के कई राज्यों में अनावश्यक हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया।

3. वैश्विक आतंकवाद की समस्या:
एक-ध्रुवीय विश्व में आतंकवाद की समस्या ने पूरे विश्व को चिन्तित कर रखा है।

4. आर्थिक सहायता में पक्षपात:
अमेरिका उन देशों को अधिक आर्थिक सहायता देता है, जो उसकी नीतियों का आँख मूंदकर समर्थन करते हैं, या जो देश अमेरिका के पिछलग्गू हैं।

प्रश्न 21.
अमेरिकी वर्चस्व के रास्ते की किन्हीं चार चुनौतियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
अमेरिकी वर्चस्व के रास्ते में उत्पन्न किन्हीं तीन बाधाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1. अमेरिका की संस्थागत बनावट:
अमेरिका के वर्चस्व का प्रथम व्यवधान अमेरिका की स्वयं की संस्थागत बनावट है। अमेरिका में सरकार के तीनों अंग एक-दूसरे से स्वतन्त्र हैं, तथा कार्यपालिका अमेरिकी सैनिक अभियानों पर अंकुश लगाता है।

2. उन्मुक्त समाज:
अमेरिकन वर्चस्व की राह में दूसरा व्यवधान अमेरिकी उन्मुक्त समाज है। अमेरिकी अनमुक्त समाज में शासन के उद्देश्य और ढंगों को लेकर संदेह बना रहता है।

3. नाटो:
अमेरिकन वर्चस्व के मार्ग का तीसरा महत्त्वपूर्ण व्यवधान ‘नाटो’ है और आने वाले दिनों में अमेरिकी वर्चस्व को नाटो द्वारा ही कम किया जा सकता है।

4. आर्थिक क्षेत्र में चुनौती-अमेरिका को चीन, भारत, यूरोपीय यूनियन तथा जापान से निरन्तर चुनौती मिल रही है, जो उसके वर्चस्व में बाधा बनती है।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 22.
भारत और अमेरिका के बीच तनाव के कोई चार कारण लिखिये।
उत्तर:

  • भारत के पास परमाणु हथियारों का होना, दोनों देशों के बीच तनाव का कारण है।
  • अमेरिका चाहता है कि भारत सी० टी० बी० टी० एवं एन० पी० टी० पर हस्ताक्षर करें, परन्तु भारत सदैव इनकार करता रहा है।
  • भारत के विरोध के बावजूद भी अमेरिका पाकिस्तान के हथियारों की पूर्ति करता है।
  • पर्यावरणीय मुद्दों पर भी दोनों देशों में मतभेद पाया जाता है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एक-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर
विश्व राजनीति में जब किसी एक देश का ही अधिक प्रभाव हो तथा अधिकांश अन्तर्राष्ट्रीय निर्णय उसकी इच्छानुसार लिए जाएं, तो उसे एक-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था कहा जाता है। जैसे वर्तमान समय में विश्व एक-ध्रुवीय है तथा अमेरिका इसका नेता बना हुआ है।

प्रश्न 2.
विश्व व्यवस्था के एक-ध्रुवीय होने के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • विश्व व्यवस्था को एक-ध्रुवीय होने का एक सोवियत संघ का पतन होना था।
  • शीत युद्ध की समाप्ति के कारण भी विश्व व्यवस्था एक-ध्रुवीय बन गई।

प्रश्न 3.
एक-ध्रुवीय विश्व में अमेरिका कैसे अपना प्रभाव जमा रहा है ?
उत्तर:

  • अमेरिका अधिकांश देशों में आर्थिक हस्तक्षेप कर रहा है।
  • अमेरिका आवश्यकता पड़ने पर सैनिक शक्ति भी प्रयोग कर रहा है।

प्रश्न 4.
‘ऑपरेशन डेजर्ट-स्टॉर्म’ से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
‘ऑपरेशन डेजर्ट-स्टॉर्म’ क्या था ?
उत्तर:
प्रथम खाड़ी युद्ध, जोकि 1990-1991 में हुआ था, को ऑपरेशन डेजर्ट-स्टॉर्म के नाम से जाना जाता है। यह युद्ध इराक एवं अमेरिका गठबन्धन सेनाओं के बीच लड़ा गया। अगस्त, 1990 में इराक के तानाशाह शासक सद्दाम हुसैन ने अपने छोटे से पड़ोसी देश कुवैत पर कब्जा कर लिया। कुवैत को स्वतन्त्र कराने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में 34 देशों के लगभग 6 लाख 70 हजार सैनिकों ने इराक के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।

प्रश्न 5.
आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका ने कब और कौन-सा ऑपरेशन चलाया।
अथवा
सन् 2001 में अमेरिका पर हुए आतंकी हमले के लिए किस आंतकवादी गुट को जिम्मेदार माना गया?
उत्तर:
11 सितम्बर, 2001 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर एवं पेंटागन पर ज़बरदस्त आतंकवादी हमला किया गया। इस हमले में लगभग 3000 लोग मारे गए। इस आतंकवादी हमले के लिए अलकायदा को ज़िम्मेदार माना गया। परिणामस्वरूप अमेरिका ने बदले की कार्यवाही करते हुए अफ़गानिस्तान जोकि अल-कायदा का गढ़ बन चुका था, में युद्ध की घोषणा कर दी।

प्रश्न 6.
अमेरिका द्वारा 2003 में इराक पर किये गए हमले के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश ने मार्च 2003 में व्यापक विनाश के हथियारों का आरोप लगाकर इराक के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। इस युद्ध को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्वीकृति प्राप्त नहीं थी। इस युद्ध में अमेरिका ने इराक के शासक सद्दाम हुसैन को हटाकर उनके स्थान पर कठपुतली सरकार बना दी, परन्तु अमेरिका वहां पर शान्ति कायम न रख पाया।

पश्न 7.
आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका ने कब और कौन-सा आपरेशन चलाया?
उत्तर:
आंतकवाद के खिलाफ अमेरिका ने अक्तूबर, 2001 में आपरेशन एन्ड्रयूरिंग फ्रीडम चलाया।

प्रश्न 8.
कोई दो उदाहरण देते हुए एक-ध्रुवीय विश्व के विकास की व्याख्या करें।
उत्तर:
1. प्रथम खाड़ी युद्ध-एक-ध्रुवीय विश्व की शुरुआत प्रथम खाड़ी युद्ध से मानी जा सकती है, जब अमेरिका ने अपनी सैनिक शक्ति के बल पर कुवैत को इराक से स्वतन्त्र करवाया था।

2. 9/11 की घटना एवं अफ़गानिस्तान युद्ध-11 सितम्बर, 2001 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर एवं पेंटागन पर जबरदस्त आतंकवादी हमला हुआ। अमेरिका ने इस घटना के लिए तालिबान एवं अलकायदा को दोषी मानते हुए अफ़गानिस्तान पर हमला किया।

प्रश्न 9.
आर्थिक क्षेत्र में अमेरिका को किन देशों से चुनौती मिल रही है ?
उत्तर:
आर्थिक क्षेत्र में अमेरिका को जापान, चीन एवं भारत से कड़ी चुनौती मिल रही है। जापान 1970 एवं 1980 के दशक से ही आर्थिक एवं तकनीकी क्षेत्र में अमेरिका को चुनौती देता आया है। चीन ने अमेरिका को उत्पादन आधारित विकास पर परम्परागत उपायों पर जोर देते हुए चुनौती दी है, तो भारत ने वैश्विक सेवा के क्षेत्र में अमेरिका को चुनौती दी है।

प्रश्न 10.
विचारधारात्मक क्षेत्र में अमेरिका को किस प्रकार की चुनौतियां मिल रही हैं ?
उत्तर:
1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद अमेरिका ने विचारधारात्मक रूप से भी विश्व में वर्चस्व कायम किया, परन्तु पिछले 10 वर्षों में अमेरिका की इस विचारधारा को आतंकवादी विचारधारा से लगातार चुनौतियां मिल रही हैं। आतंकवादी संगठनों ने नैरोबी तथा दारे-सलाम के अमेरिकी दूतावासों, अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर तथा पेंटागन पर एवं इंग्लैण्ड में बम विस्फोट एवं हवाई हमला करके लगातार अमेरिका की प्रजातान्त्रिक विचारधारा को च

प्रश्न 11.
प्रथम खाड़ी युद्ध के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:

  • इराक द्वारा कुवैत पर कब्जा-प्रथम खाड़ी युद्ध का सबसे बड़ा कारण इराक द्वारा कुवैत पर कब्जा करना था।
  • अमेरिका की युद्ध की इच्छा-प्रथम खाड़ी युद्ध के लिए अमेरिका की युद्ध की इच्छा भी ज़िम्मेदार थी।

प्रश्न 12.
वर्चस्व से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में वर्चस्व का अर्थ शक्ति का केवल एक ही केन्द्र का होना है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में प्राय: सभी देश शक्ति प्राप्त करना एवं उसे बनाये रखना चाहते हैं। यह शक्ति सैनिक शक्ति, राजनीतिक प्रभाव, आर्थिक शक्ति और सांस्कृतिक प्रभाव के रूप में होती है।

प्रश्न 13.
इराक पर अमेरिकी आक्रमण के कोई दो उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:

  • इराक पर अमेरिकी आक्रमण का प्रथम उद्देश्य अमेरिका द्वारा इराक के तेल भण्डारों पर कब्जा करना था।
  • अमेरिका की यह इच्छा थी कि इराक में उसकी पसन्द के अनुसार सरकार का निर्माण हो ताकि तेल उत्पादक देश उसके मित्र एवं सहयोगी बने रहें।

प्रश्न 14.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका के शक्तिशाली होने के कोई दो कारण बताएं।
उत्तर:

  • अमेरिका का युद्ध के समय एवं बाद में निर्यात बहुत बढ़ चुका था, जिससे विश्व में उसका प्रभाव बढ़ गया।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के समय अमेरिका ने जापान के विरुद्ध परमाणु बमों का प्रयोग किया, जिससे विश्व में उसका प्रभाव बहुत बढ़ गया।

प्रश्न 15.
अमेरिकी वर्चस्व के रास्ते में किन्हीं दो चुनौतियों का उल्लेख करें।
उत्तर:
1. अमेरिका की संस्थागत बनावट-अमेरिका के वर्चस्व का प्रथम व्यवधान अमेरिका की स्वयं की संस्थागत बनावट है। अमेरिका में सरकार के तीनों अंग एक-दूसरे से स्वतन्त्र हैं, तथा कार्यपालिका अमेरिकी सैनिक अभियानों पर अंकुश लगाता है।

2. उन्मुक्त समाज-अमेरिका वर्चस्व की राह में दूसरा व्यवधान अमेरिकी उन्मुक्त समाज है। अमेरिकी अनमुक्त समाज में शासन के उद्देश्य और ढंगों को लेकर संदेह बना रहता है।

प्रश्न 16.
विश्व का पहला बिजनेस स्कूल कब और कहां खोला गया था ?
उत्तर:
विश्व का पहला बिजनेस स्कूल सन् 1881 में अमेरिका में खुला था।

प्रश्न 17.
अमेरिकी वर्चस्व के तीन रूप कौन-से हैं ?
अथवा
अमेरिकी वर्चस्व के तीनों रूपों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • सैन्य शक्ति के रूप में अमेरिका का वर्चस्व।
  • ढांचागत शक्ति के रूप में अमेरिका का वर्चस्व।
  • सांस्कृतिक शक्ति के रूप में अमेरिका का वर्चस्व ।

प्रश्न 18.
प्रथम खाड़ी युद्ध को कम्प्यूटर युद्ध या वीडियो गेमवार क्यों कहा जाता है ? व्याख्या करें।
उत्तर:
प्रथम खाड़ी युद्ध में अमेरिका ने बहुत ही उच्च तकनीक के स्मार्ट बमों का प्रयोग किया, इसलिए इसे कम्प्यूटर युद्ध की संज्ञा दी जाती है। इस युद्ध का विभिन्न देशों के टेलीविज़नों पर व्यापक प्रसार हुआ। इसलिए इसे वीडियो गेमवार भी कहा जाता है।

प्रश्न 19.
वैश्विक स्तर पर सार्वजनिक वस्तओं से आप क्या अर्थ लेते हैं ?
उत्तर:
वैश्विक स्तर पर सार्वजनिक वस्तुओं से अभिप्राय ऐसी वस्तुओं से है, जिसका उपयोग प्रत्येक देश या प्रत्येक व्यक्ति समान रूप से कर सके। उस पर किसी प्रकार की रुकावट या कमी न आए। वायु, पानी, सड़क तथा समुद्री व्यापार वैश्विक सार्वजनिक वस्तुओं के महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं।

प्रश्न 20.
ब्रेटनवुड प्रणाली से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
ब्रेटनवुड प्रणाली के अन्तर्गत विश्व व्यापार के नियम एवं उपनियम बनाए जाते हैं। इस प्रणाली के अन्तर्गत बनाए गए नियम एवं कानून संयुक्त राज्य अमेरिका के पक्ष में थे और ये नियम एवं कानून आज भी विश्व व्यापार में बुनियादी संरचना की भूमिका निभा रहे हैं।

प्रश्न 21.
अमरीकी वर्चस्व से निबटने के कोई दो सुझाव दीजिये।
उत्तर:

  • अमेरिका के वर्चस्व के साये में (बैंड वैगन) आकर अधिक से अधिक लाभ उठाया जाए।
  • एक देश को अपने आप को इस प्रकार छुपा लेना चाहिए ताकि वह अमेरिका की नज़रों में न आ पाए।

प्रश्न 22.
बैंड-वैगन राजनीति का क्या अर्थ है ?
अथवा
‘बैंड-वैगन’ रणनीति क्या है ?
उत्तर:
रणनीतिकारों का मानना है, कि अमेरिका से संघर्ष करने की अपेक्षा उसके वर्चस्व के साये में आकर अधिक-से-अधिक लाभ उठाना चाहिए। उदाहरण के लिए एक देश के आर्थिक विकास के लिए निवेश करना, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा व्यापार को बढ़ावा देना आवश्यक है और ये सभी आवश्यकताएं अमेरिका के साथ रह कर पूरी हो सकती हैं। इस रणनीति को ही ‘बैंड वैगन’ रणनीति कहा जाता है।

प्रश्न 23.
अमेरिका के सांस्कृतिक वर्चस्व के कोई दो उदाहरण दीजिये।
उत्तर:

  • विश्व में लोगों द्वारा अमेरिका द्वारा प्रचलित जीन्स पहनी जा रही है।
  • अमेरिका में प्रचलित जंक फूड (फास्टफूड) विश्व में लोकप्रिय हो गया है।

प्रश्न 24.
‘पेंटागन’ अमेरिका में क्या है ?
उत्तर:
‘पेंटागन’ अमेरिका में रक्षा मन्त्रालय है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. शीत युद्ध के बाद विश्व बना हुआ है :
(A) एक-ध्रुवीय
(B) द्वि-ध्रुवीय
(C) बहु-ध्रुवीय
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) एक-ध्रुवीय।

2. 1990-91 में अमेरिका एवं भिन्न देशों द्वारा इराक पर किए गए हमले को क्या नाम दिया गया ?
(A) ऑपरेशन इराकी फ्रीडम
(B) ऑपरेशन एन्ड्यूरिंग फ्रीडम
(C) ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(C) ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म।

3. 9/11 की घटना के समय अमेरिका का राष्ट्रपति कौन था ?
(A) बिल क्लिटन
(B) जार्ज बुश
(C) जिमी कार्टर
(D) निक्सन।
उत्तर:
(B) जार्ज बुश।

4. मार्च 2003 को संयुक्त राज्य अमेरिका ने इराक पर आक्रमण किस नाम से किया?
(A) आपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम
(B) आपरेशन डेजर्ट स्टार्म
(C) आपरेशन इराकी फ्रीडम
(D) आपरेशन ब्लू-स्टार।
उत्तर:
(C) आपरेशन इराकी फ्रीडम।

5. अमेरिका की आर्थिक वर्चस्वता को कौन चुनौती दे रहा है ?
(A) जापान
(B) चीन
(C) भारत
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

6. इराक ने कुवैत पर कब आक्रमण किया ?
(A) 1990 में
(B) 1991 में
(C) 1992 में
(D) 1993 में।
उत्तर:
(A) 1990 में।

7. 9/11 की आतंकवादी घटना के लिए किसे ज़िम्मेदार माना जाता है ?
(A) इंग्लैण्ड
(B) फ्रांस
(C) चीन
(D) तालिबान एवं अलकायदा।
उत्तर:
(D) तालिबान एवं अलकायदा।

8. अमेरिकन वर्चस्व का क्षेत्र है-
(A) राजनीतिक क्षेत्र
(B) आर्थिक क्षेत्र
(C) सांस्कृतिक क्षेत्र
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

9. विश्व राजनीति में अमेरिकन प्रभुत्व की शुरुआत कब से हुई ?
(A) 1985
(B) 1980
(C) 1986
(D) 1991.
उत्तर:
(D) 1991.

10. ‘कम्प्यूटर युद्ध’ किस युद्ध को कहा जाता है ?
(A) प्रथम खाड़ी युद्ध
(B) द्वितीय खाड़ी युद्ध
(C) इराक युद्ध
(D) अफ़गान युद्ध।
उत्तर:
(A) प्रथम खाड़ी युद्ध।

11. प्रथम खाड़ी युद्ध कब हुआ था ?
(A) 1990-91
(B) 1995-96
(C) 1997-98
(D) 1998-99.
उत्तर:
(A) 1990-91.

12. प्रथम खाड़ी युद्ध हुआ था
(A) भारत एवं इराक के बीच
(B) इरान एवं इराक के बीच
(C) इरान एवं मिस्त्र के बीच
(D) इराक एवं अमेरिकी गठबंधन सेनाओं के बीच।
उत्तर:
(D) इराक एवं अमेरिकी गठबंधन सेनाओं के बीच।

13. प्रथम खाड़ी युद्ध का क्या कारण था ?
(A) इराक द्वारा कुवैत पर कब्जा
(B) अमेरिका की युद्ध की इच्छा
(C) सोवियत संघ का पतन
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

14. दूसरा खाड़ी युद्ध कब हुआ था ?
(A) मार्च, 2003
(B) मई, 2008
(C) अक्तूबर, 2004
(D) जनवरी, 2005.
उत्तर:
(A) मार्च, 2003.

15. दूसरा खाड़ी युद्ध किनके बीच हुआ था ?
(A) इरान एवं मिस्र के बीच
(B) भारत एवं इराक के बीच
(C) इरान एवं इराक के बीच ।
(D) इराक एवं अमेरिकी गठबंधन सेनाओं के बीच।
उत्तर:
(D) इराक एवं अमेरिकी गठबंधन सेनाओं के बीच।

16. अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने कोसावो में सैन्य कार्यवाही कब की थी ?
(A) 1996
(B) 1999
(C) 2000
(D) 2001.
उत्तर:
(B) 1999.

17. पेंटागन क्या है ?
(A) अमेरिकी रक्षा मन्त्रालय
(B) अमेरिकी गृह मन्त्रालय
(C) अमेरिकी शिक्षा मन्त्रालय
(D) अमेरिकी कानून मन्त्रालय।
उत्तर:
(A) अमेरिकी रक्षा मन्त्रालय।

18. विश्व अर्थव्यवस्था में अमेरिका की हिस्सेदारी कितनी है ?
(A) 28%
(B) 25%
(C) 20%
(D) 15%.
उत्तर:
(A) 28%.

19. निम्न में से प्रभुत्व (वर्चस्व) का क्या अर्थ लिया जाता है ?
(A) अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में शक्ति का एक ही केन्द्र होना
(B) अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में शक्ति के दो केन्द्र होना
(C) अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में शक्ति के अनेक केन्द्र होना
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(A) अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में शक्ति का एक ही केन्द्र होना।

20. संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति कौन हैं ?
(A) जार्ज बुश
(B) बराक ओबामा
(C) हिलेरी क्लिंटन
(D) डोनाल्ड ट्रम्प।
उत्तर:
(B) बराक ओबामा।

21. अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति हैं
(A) हिलेरी क्लिंटन
(B) जो बाइडेन
(C) बराक ओबामा
(D) कमला हैरिस
उत्तर:
(B) जो बाइडेन।

22. कौन-सा देश विश्व में सबसे अधिक रक्षा पर खर्च करता है ?
(A) भारत
(B) चीन
(C) अमेरिका
(D) रूस।
उत्तर:
(C) अमेरिका।

23. अमेरिका कब एक देश बना ?
(A) 1770 में
(B) 1776 में
(C) 1789 में
(D) 1792 में।
उत्तर:
(B) 1776 में।

24. दूसरा खाड़ी युद्ध कब हुआ था ?
(A) मार्च, 2003
(B) मार्च, 2008
(C) मई, 2004
(D) जून, 2005.
उत्तर:
(A) मार्च, 2003.

25. 9/11 की आतंकवादी घटना का संबंध किस देश से है ?
(A) भारत से
(B) चीन से
(C) अमेरिका से
(D) पाकिस्तान से।
उत्तर:
(C) अमेरिका से।

26. 1881 में विश्व का प्रथम बिजनेस स्कूल कहां खुला था ?
(A) भारत में
(B) चीन में
(C) अमेरिका में
(D) जापान में।
उत्तर:
(C) अमेरिका में।

27. संयुक्त राज्य अमेरिका पर हुए आतंकवादी हमले को किस नाम से पुकारा जाता है?
(A) इलेवन-नाइन
(B) नाइन-इलेवन
(C) गृहयुद्ध
(D) तालिबानी युद्ध।
उत्तर:
(B) नाइन-इलेवन।

28. सद्दाम हुसैन कब पकड़े गए ?
(A) मार्च, 2001 में
(B) जून, 2003 में
(C) दिसम्बर, 2003 में
(D) जुलाई, 2005 में।
उत्तर:
(C) दिसम्बर, 2003 में।

29. किस युद्ध को कम्प्यूटर युद्ध के नाम से जाना जाता है ?
(A) इराकी युद्ध
(B) प्रथम खाड़ी युद्ध
(C) द्वितीय खाड़ी युद्ध
(D) वियतनाम युद्ध।
उत्तर:
(B) प्रथम खाड़ी युद्ध।

रिक्त स्थान भरें

(1) विश्व का प्रथम बिजनेस स्कूल ……………… में खुला था।
उत्तर:
अमेरिका,

(2) अमेरिका के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति ……………… हैं ।
उत्तर:
बराक हुसैन ओबामा,

(3) इराक ने कुवैत पर वर्ष …………….. में आक्रमण किया।
उत्तर:
1990,

(4) प्रथम खाड़ी युद्ध सन् ………………. में लड़ा गया।
उत्तर:
1991,

(5) शीत युद्ध के बाद विश्व व्यवस्था ………………. बन गई।
उत्तर:
एक-धुव्रीय।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
नाइन-इलेवन की घटना का संबंध किस देश से है ?
उत्तर:
अमेरिका।

प्रश्न 2.
पेंटागन अमेरिका में क्या है ?
अथवा
संयुक्त राज्य अमेरिका में पेंटागन किसे कहा गया है ?
उत्तर:
रक्षा मन्त्रालय।

प्रश्न 3.
अमेरिका में हुए आतंकवादी हमले को किस नाम से पुकारा जाता है ?
उत्तर:
नाइन-इलेवन की आतंकवादी घटना।

प्रश्न 4.
वर्ल्ड-ट्रेड सेंटर पर 9/11 के आक्रमण में लगभग कितने लोग मारे गए थे ?
उत्तर:
लगभग 3000 लोग मारे गए थे।

प्रश्न 5.
अमेरिका में आजकल किन भारतीयों की मांग अधिक है ?
उत्तर:
कम्प्यूटर इंजीनियर ।

प्रश्न 6.
अमेरिका ने किस वर्ष इराक पर आक्रमण किया था ?
उत्तर:
सन् 2003 में।

प्रश्न 7.
अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति का नाम बताएं।
उत्तर:
श्री जो बाइडेन।

प्रश्न 8.
भारत-पाकिस्तान सीमा विवाद में अमेरिका ने किस देश का साथ दिया?
उत्तर:
पाकिस्तान का।

प्रश्न 9.
सद्दाम हुसैन किस वर्ष कारावास के लिए पकड़ा गया था?
उत्तर:
दिसम्बर, 2003 में।

प्रश्न 10.
2001 में विश्व व्यापार केन्द्र (अमेरिका) पर आक्रमण के लिए उत्तरदायी कौन था?
अथवा
विश्व व्यापार केन्द्र (अमेरिका) पर 2001 के आक्रमण के लिए कौन उत्तरदायी था ?
उत्तर:
अल कायदा नामक आतंकवादी संगठन।

प्रश्न 11.
भारत-पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद पर अमेरिका ने किसका साथ दिया?
उत्तर:
पाकिस्तान का।

प्रश्न 12.
1881 में विश्व का प्रथम बिजनस स्कूल कहां खुला था?
उत्तर:
अमेरिका में।

प्रश्न 13.
अमेरिका के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति कौन थे?
उत्तर:
श्री बराक हुसैन ओबामा।

HBSE 12th Class Political Science Important Questions Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व

प्रश्न 14.
अमेरिका की आर्थिक वर्चस्वता को कौन चुनौती दे रहा है ?
उत्तर:
(1) यूरोपियन यूनियन,
(2) आसियान,
(3) चीन,
(4) भारत,
(5) जापान।

प्रश्न 15.
किस वर्ष में आतंकवादियों ने विश्व व्यापार केन्द्र को धराशायी किया था ?
उत्तर:
सन् 2001 में।

प्रश्न 16.
कम्प्यूटर युद्ध किस युद्ध को कहा जाता है ?
उत्तर:
प्रथम खाड़ी युद्ध को कम्प्यूटर युद्ध कहा जाता है। यह युद्ध सन् 1990-91 में हुआ था।

प्रश्न 17.
9/11 की घटना के समय अमेरिका का राष्ट्रपति कौन था ?
उत्तर:
श्री जॉर्ज बुश।

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