Class 11

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 6 मृदाएँ

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 6 मृदाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 6 मृदाएँ

HBSE 11th Class Geography मृदाएँ Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर का चयन करें-

1. मृदा का सर्वाधिक व्यापक और सर्वाधिक उपजाऊ प्रकार कौन-सा है?
(A) जलोढ़ मृदा
(B) काली मृदा
(C) लैटेराइट मृदा
(D) वन मृदा
उत्तर:
(A) जलोढ़ मृदा

2. रेगर मृदा का दूसरा नाम है।
(A) लवण मृदा
(B) शुष्क मृदा
(C) काली मृदा
(D) लैटेराइट मृदा
उत्तर:
(C) काली मृदा

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 6 मृदाएँ

3. भारत में मृदा के ऊपरी पर्त हास का मुख्य कारण है।
(A) वायु अपरदन
(B) अत्यधिक निक्षालन
(C) जल अपरदन
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) जल अपरदन

4. भारत के सिंचित क्षेत्रों में कृषि निम्नलिखित में से किस कारण से लवणीय हो रही है?
(A) जिप्सम की बढ़ोतरी
(B) अति सिंचाई
(C) अति चारण
(D) रासायनिक खादों का उपयोग
उत्तर:
(B) अति सिंचाई

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
मृदा क्या है?
उत्तर:
अमेरिकी मिट्टी विशेषज्ञ डॉ० बैनेट के अनुसार, “मिट्टी भू-पृष्ठ पर मिलने वाले असंगठित पदार्थों की वह ऊपरी परत है जो मूल चट्टानों अथवा वनस्पति के योग (ह्यूमस) से बनती है।” सरल शब्दों में, भू-पृष्ठ की सबसे ऊपरी परत, जो पौधों को उगने व बढ़ने के लिए जीवांश और खनिजांश प्रदान करती है, मृदा या मिट्टी कहलाती है।

अतः कहा जा सकता है कि मिट्टी ठोस, तरल व गैसीय पदार्थों का मिश्रण है जो चट्टानों के अपक्षय, जलवायु, पौधों व अनन्त जीवाणुओं के बीच होने वाली अन्तःक्रिया (Interaction) का परिणाम है।

प्रश्न 2.
मृदा-निर्माण के प्रमुख उत्तरदायी कारक कौन-से हैं?
उत्तर:
मृदा-निर्माण विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है। इनके संयोग से मृदा आवरण में विभिन्नता उत्पन्न होती है। मृदा निर्माण के मुख्य उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं-

  • मूल पदार्थ।
  • उच्चावच।
  • जलवायु।
  • प्राकृतिक वनस्पति।

प्रश्न 3.
मृदा परिच्छेदिका के तीन संस्तरों के नामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मृदा परिच्छेदिका के तीन संस्तर निम्नलिखित प्रकार के हैं-

  • ‘क’ संस्तर यह मिट्टी की सबसे ऊपरी परत है जिसे Top Soil कहा जाता है। इस भाग में पौधों की वृद्धि के लिए जैव पदार्थ, खनिज पदार्थ तथा पोषक तत्त्व पाए जाते हैं।
  • ‘ख’ संस्तर-यह बीच का संस्तर होता है जिसमें नीचे व ऊपर दोनों के पदार्थ प्राप्त होते हैं। इसमें कुछ जैव पदार्थ तथा खनिज पदार्थों का अपक्षय पाया जाता है।
  • ‘ग’ संस्तर-यह मिट्टी के बनने की पहली अवस्था को प्रदर्शित करता है जिसमें अपक्षय द्वारा निर्मित मूल चट्टानी पदार्थ होता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 6 मृदाएँ

प्रश्न 4.
मृदा अवकर्षण क्या होता है?
उत्तर:
मृदा की उर्वरता के ह्रास को मृदा अवकर्षण (Soil Degradation) कहते हैं। भारत में मृदा संसाधनों के क्षय का मुख्य कारक मृदा अवकर्षण है। इससे मृदा का पोषण स्तर गिर जाता है और मृदा की गहराई कम हो जाती है।

प्रश्न 5.
खादर और बांगर में क्या अंतर है?
उत्तर:
खादर और बांगर में निम्नलिखित अंतर है-

खादर बांगर
1. वह क्षेत्र जहाँ नवीन जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है, खादर कहलाता है। 1. वह क्षेत्र जहाँ प्राचीन जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है, बांगर कहलाता है।
2. खादर क्षेत्र में प्रतिवर्ष बाढ़ आती है तथा नई जलोढ़ मिट्टी का निर्माण होता है। 2. बांगर क्षेत्र में वर्तमान में बाढ़ नहीं आती। निरंतर जलोढ़ के जमाव के कारण वहाँ चबूतरा-सा बन जाता है, जो बाढ़ के मैदान से ऊँचा होता है।
3. खादर क्षेत्र बांगर की अपेक्षा अधिक उपजाऊ होता है। 3. बांगर क्षेत्र कम उपजाऊ होता है। इसमें प्रतिवर्ष नई उपजाऊ मिट्टी नहीं आती।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
काली मृदाएँ किन्हें कहते हैं? इनके निर्माण तथा विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
काली मृदा या मिट्टी (Black Soil)-यह मिट्टी या मृदा काले रंग के बारीक कणों वाली होती है। इसमें महीन कण वाली मृत्तिका अधिक होती है। इस मिट्टी को ‘रेगर’ और कपास वाली काली मिट्टी भी कहा जाता है। काली मृदाएँ मृण्मय, गहरी व अपारगम्य होती हैं। इस प्रकार की मृदाओं का निर्माण ज्वालामुखी के लावा, लौहमय नीस और शिष्ट चट्टानों से होता है।

काली मृदा या मिट्टी की विशेषताएँ (Features of Black Soil) काली मृदा की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • यह मिट्टी कपास के लिए उपयुक्त होती है।
  • इसमें नमी ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है।
  • इसमें सूखने पर दरारें पड़ जाती हैं।
  • इसमें अधिक जुताई करने की आवश्यकता नहीं होती।
  • इसमें चूना, पोटाश, मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है।
  • गीली होने पर यह फूल जाती है तथा सूखने पर सिकुड़ जाती है।
  • इनमें मृदा के कण इकट्ठे हो सकते हैं।
  • इस मृदा का रंग गाढ़े काले और स्लेटी रंग के बीच की विभिन्न आभाओं का होता है।

प्रश्न 2.
मृदा संरक्षण क्या होता है? मृदा संरक्षण के कुछ उपाय सुझाइए।
उत्तर:
मिट्टी का संरक्षण (Preservation of Soil) भू-संरक्षण के अन्तर्गत भूमि-कटाव पर रोक या बचाव कृषि वैज्ञानिकों के लिए मुख्य समस्या बनती जा रही है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में मिट्टियों की उचित व्यवस्था बहुत महत्त्वपूर्ण है, इसलिए भारत में मिट्टियों को अपरदित होने से रोकने के लिए वैज्ञानिक यान्त्रिक व जैवीय पद्धति अपना रहे हैं। भारत में केन्द्रीय मरुस्थल शोध संस्थान’ (Central Aridzone Research Institute, Jodhpur (Rajasthan) के अन्तर्गत वैज्ञानिक मृदा अपरदन को रोकने के प्रयास में कार्य कर रहे हैं।

मृदा संरक्षण के उपाय (Measures of Preservation of Soil)-मृदा संरक्षण के उपाय निम्नलिखित हैं-
1. यान्त्रिक पद्धति (Instrumental Method) इस पद्धति के अन्तर्गत निम्नलिखित तरीकों से भूमि कटाव को रोका जा सकता है-
(1) समोच्च बन्द (Contour Bonding)-विभिन्न ऊँचाई वाली समोच्च रेखाओं के आधार पर ढालों के सहारे दीवारें बाँध दी जाती हैं, जिससे मृदा अपरदन को रोका जा सकता है। इसमें दीवार बनाकर अन्दर का भाग मिट्टी से भर दिया जाता है। ढलानी भागों पर इस विधि को अपनाकर मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।

(2) बाँध बनाना (Construction of Dam)-वर्षा के पानी को रोकने के लिए बाँध बना देते हैं, जिसके कारण मृदा अपरदन कम होने के साथ-साथ पानी का बहु-उपयोग भी होता है। इस विधि से जल के वेग में कमी आती है और मृदा अपरदन रुक जाता है। पहाड़ी भागों पर नदियों के सहारे कुछ नदियों पर बाँध बना देने चाहिएँ, जिससे पानी की गति अवरुद्ध हो जाती है तथा मृदा अपरदन कम होता है।

(3) प्रवाह नलियाँ (Drainage Channels)-बाँधों के अतिरिक्त पानी प्रवाह पर नियन्त्रित करके मिट्टी का अपरदन होने से बचाया जा सकता है। इन बाँधों द्वारा रोका हुआ पानी नहरों के द्वारा छोड़ा जाता है।

2. जैवीय पद्धति (Biological Method) इस पद्धति के अन्तर्गत जैवीय प्रक्रियाओं को नियमित करके मिट्टियों के कटाव को रोका जा सकता है। मिट्टी की भौतिक संरचना जैवीय प्रक्रियाओं का परिश्रम होती है। इन प्रक्रियाओं में विपरीत परिवर्तन मिट्टी का विघटन करता है, इसलिए ऐसी प्रक्रियाओं को रोककर मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।

(1) वृक्षारोपण (Tree Planting)-इसके अन्तर्गत नए क्षेत्रों में वृक्षों को लगाना चाहिए। नए सिरे से वनस्पति का विकास कर जलवायु की अनुकूलता पैदा की जा सकती है। जिन प्रदेशों में मृदा अपरदन की समस्या गम्भीर हो गई है, वहाँ पर नए पेड़ लगाने चाहिएँ। हमें वनों के अन्धा-धुन्ध कटाव को रोकना चाहिए। वनों से मिट्टियों का जल संगठन बढ़ जाता है और नई वनस्पति के विकास में सहायक है। अतः वृक्षारोपण द्वारा मृदा अपरदन को रोका जा सकता है। वन विकास के अन्तर्गत जंगलों का आरक्षण किया जाता है। वनों को आग से बचाना चाहिए। वृक्षों को गिरने से बचाना चाहिए। उजड़े वनों के क्षेत्रों में पुनः वन लगाने चाहिएँ।

(2) पशुचारण पर प्रतिबन्ध (Restriction on Grazing)-पशुचारण के लिए खेतों से अलग चरागाहों की व्यवस्था होनी चाहिए, क्योंकि खाली खेतों में पशु अपने खुरों से मिट्टी को ढीला कर देते हैं। विस्तृत ढाल के मैदान में भी पशुचारण सीमित करना चाहिए।

(3) मिट्टी को बाँधने वाले पौधे (Soil Binders)-मिट्टी को बाँधने के लिए कुछ विशेष प्रकार की झाड़ियाँ; जैसे मुर्या (Murya), सनडोन (Sundon), सेकरम (Sacharum) तथा स्पान्टेनियम (Spontenium) होती हैं, जिनके लगाने से मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।

(4) विन्ड ब्रेकर रक्षक पेटी (Wind Breakers) हवा की गति को कम करने की विधि को विन्ड ब्रेकर (Wind Breaker) कहते हैं। हवा के मार्ग में ऐसे अवरोधक खड़े किए जाएँ, जिससे हवा की गति कम हो जाए। इसके लिए दीवार के रूप में कुछ रक्षक-क्षेत्र तैयार किए जाते हैं। इस विधि को अपनाकर मृदा अपरदन रोका जा सकता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 6 मृदाएँ

प्रश्न 3.
आप यह कैसे जानेंगे कि कोई मृदा उर्वर है या नहीं? प्राकृतिक रूप से निर्धारित उर्वरता और मानवकृत उर्वरता में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उर्वरता मृदा का विशेष गुण है। ऐसी मृदा जिसमें नमी और जीवांश उपलब्ध होते हैं, उर्वर होती है। महीन कणों वाली लाल और पीली मृदाएँ सामान्यतः उर्वर होती हैं। उर्वर मृदा का पता मृदा में खेती की पैदावार से चलता है। जिस मृदा में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध तत्त्वों के होते हुए बिना किसी मानवीय प्रयास के अच्छी खेती या कृषि पैदा होती है, उस मृदा को उर्वर मृदा माना जाता है। इसके विपरीत मोटे कणों वाली उच्च मृदाओं को अनुर्वर मृदाएँ कहते हैं अर्थात् जिस मृदा में पैदावार नहीं होती, वह अनुर्वर मृदा कहलाती है। इसमें सामान्यतः नाइट्रोजन, फॉस्फोरस की कमी होती है।

प्राकृतिक रूप से निर्धारित उर्वरता और मानवकृत उर्वरता में अंतर

प्राकृतिक रूप से निर्धारित उर्वरता मानवकृत उर्वरता
1. प्राकृतिक रूप से मृदा की उर्वरता पोषक तत्त्चों की उपस्थिति पर निर्भर करती है। 1. मानवकृत उर्वरता में मृदा में पोषक तत्त्वों की कमी को मानव निर्मित रसायनों की सहायता से दूर किया जाता है।
2. इसमें मृदा की उत्पादकता विभिन्न प्राकृतिक एवं भौतिक गुणों पर निर्भर करती है। इसमें बिना किसी रासायनिक उपचार के अच्छी कृषि पैदावार प्राप्त की जाती है। 2. इसमें मृदा की उत्पादकता मानव निर्मित रसायनों; नाइट्रोजन, गंधक, पोटाश और श्रम पर निर्भर करती है। इसमें रासायनिक उपचार के माध्यम से कृषि पैदावार प्राप्त की जाती है।
3. इसमें मृदा की उर्वरता बनाने के लिए प्राकृतिक तरीकों को अपनाया जाता है। 3. इसमें वैज्ञानिक तरीकों का अधिक प्रयोग किया जाता है।
4. इसमें रासायनिक खांद या कम्पोस्ट खाद डालने की आवश्यकता नहीं होती। 4. इसमें रासायनिक खाद या कम्पोस्ट खाद डालने की आवश्यकता होती है।
5. प्राकृतिक रूप से निर्धारित उर्वरता स्थायी होती है। 5. मानवकृत उर्वरता अस्थायी होती है। इसमें बदलाव होता रहता है।

मृदाएँ HBSE 11th Class Geography Notes

→ मृदा (Soil) भू-पृष्ठ की सबसे ऊपरी परत, जो पौधों को उगने व बढ़ने के लिए जीवांश, खनिजांश व नमी प्रदान करती है, मृदा या मिट्टी कहलाती है।

→ मृदा परिच्छेदिका (Soil Profile)-मृदा संस्तरों को दिखाने वाला चित्र मृदा परिच्छेदिका कहलाता है।

→ मृदा अवक्रमण (Soil Degradation) मृदा अवक्रमण का अभिप्राय मृदा की उर्वरता से है।

→ मृदा अपरदन (Soil Erosion)-जल तथा वायु के प्रभाव से मृदा की ऊपरी परत का बह जाना या उड़ जाना, मृदा अपरदन कहलाता है।

→ ह्यूमस (Humus) मृदा में पाए जाने वाले जीव-जन्तुओं व वनस्पति का सड़ा-गला अंश जो मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाता है।

→ मृदा-जनन (Pedogenesis)-मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया मृदा-जनन है।

→ pH मूल्य (pH Value) यह मृदा की अम्लीयता और क्षारीयता के निर्धारण का एक माप होता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. गारो और खासी पहाड़ियाँ निम्नलिखित में से किसका भाग हैं?
(A) शिवालिक का
(B) नीलगिरि का
(C) दक्कन के पठार का
(D) हिमालय का
उत्तर:
(D) हिमालय का

2. नई दिल्ली की अक्षांश रेखा के दक्षिण में स्थित सबसे ऊंची चोटी का नाम है-
(A) माउंट एवरेस्ट
(B) गुरु शिखर
(C) धूपगढ़
(D) दोदा बेटा
उत्तर:
(A) माउंट एवरेस्ट

3. कश्मीर को शेष भारत से जोड़ने वाला दर्रा है-
(A) कराकोरम
(B) बनिहाल
(C) जोजिला
(D) नाथूला
उत्तर:
(B) बनिहाल

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4. हिमालय पर्वत का निर्माण निम्नलिखित में से किसके परिणामस्वरूप हुआ था?
(A) महासागर-महासागर प्लेटों के अभिसरण द्वारा
(B) महाद्वीप-महाद्वीप प्लेटों के अभिसरण द्वारा
(C) महाद्वीप-महासागर प्लेटों के अभिसरण द्वारा
(D) महाद्वीप-द्वीपीय चाप के अभिसरण द्वारा
उत्तर:
(B) महाद्वीप-महाद्वीप प्लेटों के अभिसरण द्वारा

5. निम्नलिखित में से किस नगर की पहाड़ी सही नहीं दर्शाई गई है?
(A) ऊटकमंड-नीलगिरि पहाड़ियाँ
(B) माउंट आबू-अन्नामलाई पहाड़ियाँ
(C) कोडाईकनाल-अन्नामलाई पहाड़ियाँ
(D) शिमला-पीरपंजाल पहाड़ियाँ
उत्तर:
(D) शिमला-पीरपंजाल पहाड़ियाँ

6. निम्नलिखित में से किस पर्वत का निर्माण सबसे पहले हुआ था?
(A) विंध्याचल
(B) अरावली
(C) सतपुड़ा
(D) नीलगिरि
उत्तर:
(B) अरावली

7. चंडीगढ़ किस पहाड़ी के नीचे बसी हुई राजधानी है?
(A) सोलन पहाड़ी
(B) मोरनी हिल्स
(C) शिवालिक पहाड़ी
(D) चंडी हिल्स
उत्तर:
(C) शिवालिक पहाड़ी

8. भारत का प्राचीनतम पर्वतक्रम कौन-सा है?
(A) सतपुड़ा
(B) अरावली
(C) विंध्याचल
(D) हिमालय
उत्तर:
(B) अरावली

9. जोजिला दर्रा निम्नलिखित में से किसको जोड़ता है?
(A) कश्मीर एवं तिब्बत
(B) नेपाल एवं तिब्बत
(C) लेह एवं श्रीनगर
(D) लेह एवं करगिल
उत्तर:
(C) लेह एवं श्रीनगर

10. छोटा नागपुर पठार की सबसे ऊंची पर्वत चोटी है
(A) धूपगढ़
(B) पंचमढ़ी
(C) पारसनाथ
(D) महाबलेश्वर
उत्तर:
(C) पारसनाथ

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11. तमिलनाडु का सबसे ऊंचा पर्वत शिखर है-
(A) दोदा बेट्टा
(B) धूपगढ़
(C) महेंद्रगिरि
(D) कोडाई कनाल
उत्तर:
(A) दोदा बेट्टा

12. कलिमपोंग को ल्हासा से जोड़ने वाला दर्रा है-
(A) जेलेपला
(B) नाथूला
(C) बोमडिला
(D) शिपकीला
उत्तर:
(A) जेलेपला

13. मिकिर पहाड़ियाँ किस राज्य में विस्तृत हैं?
(A) मेघालय
(B) सिक्किम
(C) असम
(D) झारखंड
उत्तर:
(C) असम

14. मानसरोवर झील व कैलाश के दर्शन करने वाले भारतीय यात्री किन दरों से होकर निकलते हैं?
(A) शिपकीला
(B) माना और नीति दर्रे
(C) कराकोरम
(D) बोलन दर्रा
उत्तर:
(B) माना और नीति दर्रे

15. शिवालिक की अत्यधिक कटी-फटी और बंजर दक्षिणी ढलानों को किस राज्य में ‘चो’ कहा जाता है?
(A) उत्तर प्रदेश
(B) पंजाब
(C) हिमाचल प्रदेश
(D) सिक्किम
उत्तर:
(C) हिमाचल प्रदेश

16. भारत की सबसे ऊंची पर्वत चोटी का नाम है-
(A) माउंट एवरेस्ट
(B) गाडविन ऑस्टिन (K²)
(C) नामचा बरवा
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) गाडविन ऑस्टिन (K²)

17. बालटोरो, हिस्पर, बतूरा और बिफाओं क्या हैं?
(A) फर वाले हिमालयी जंतु
(B) तिब्बत हिमालय की चोटियाँ
(C) ट्रांस हिमालय की हिमनदियाँ
(D) कराकोरम की श्रेणियाँ
उत्तर:
(C) ट्रांस हिमालय की हिमनदियाँ

18. केरल के तट पर मिलने वाले लैगून को क्या कहा जाता है?
(A) पयार
(B) बुग्याल
(C) मर्ग
(D) कयाल
उत्तर:
(D) कयाल

19. शिवालिक के गिरिपद क्षेत्र में पहुंचकर जहां छोटी-छोटी नदियां अवसाद के नीचे विलुप्त हो जाती हैं, उसे क्या कहते हैं?
(A) तराई
(B) भाबर
(C) खादर
(D) डेल्टाई प्रदेश
उत्तर:
(B) भाबर

20. निम्नलिखित में से कौन-सा उत्तर से दक्षिण की ओर सही क्रम में है?
(A) विंध्याचल, सतपुड़ा, नीलगिरि, ताप्ती
(B) विंध्याचल, नर्मदा, सतपुड़ा, ताप्ती
(C) नर्मदा, विंध्याचल, ताप्ती, सतपुड़ा
(D) विंध्याचल, ताप्ती, नर्मदा, सतपुड़ा
उत्तर:
(B) विंध्याचल, नर्मदा, सतपुड़ा, ताप्ती

21. धूपगढ़ किस पर्वतमाला की सबसे ऊंची चोटी है?
(A) सतपुड़ा
(B) विंध्याचल
(C) अरावली
(D) पूर्वी घाट
उत्तर:
(A) सतपुड़ा

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22. कौन-सी पहाड़ियाँ पश्चिमी घाट से संबंधित नहीं हैं?
(A) नीलगिरि
(B) अन्नामलाई
(C) पालकोंडा
(D) इलायची
उत्तर:
(C) पालकोंडा

23. मुंबई-कोलकाता रेलमार्ग किस दर्रे से होकर निकलता है?
(A) थालघाट
(B) भोर घाट
(C) पाल घाट
(D) शेनकोटा गैप
उत्तर:
(A) थालघाट

24. निम्नलिखित में से सबसे ऊंची चोटी कौन-सी है?
(A) माउंट आबू
(B) महाबलेश्वर
(C) दोदा बेट्टा
(D) अनाईमुड़ी
उत्तर:
(D) अनाईमुड़ी

25. भारत में कोरोमण्डल तट कहाँ विस्तृत है?
(A) कृष्णा से कावेरी तक
(B) महानदी से कृष्णा तक
(C) गोवा से मंगलौर तक
(D) मंगलौर से कन्याकुमारी तक
उत्तर:
(A) कृष्णा से कावेरी तक

26. निम्नलिखित में से कौन-सी पर्वत चोटी भारत में स्थित नहीं है?
(A) के-2
(B) कामेट
(C) माउंट एवरेस्ट
(D) नन्दा देवी
उत्तर:
(C) माउंट एवरेस्ट

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
हिमालय की उत्पत्ति के बारे में नवीनतम तथा सर्वमान्य सिद्धान्त कौन-सा है?
उत्तर:
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त।

प्रश्न 2.
शिलांग का पठार किस भू-आकृतिक विभाग का अंग है?
उत्तर:
प्रायद्वीपीय पठार।

प्रश्न 3.
भारत के पठारी भाग में भ्रंश घाटी से बहने वाली किसी एक नदी का नाम बताओ।
उत्तर:
नर्मदा।

प्रश्न 4.
कश्मीर की पुरानी झीलों की तली के निक्षेपों को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
करेवा।

प्रश्न 5.
भारत के अवशिष्ट पर्वत का नाम बताइए।
उत्तर:
अरावली।

प्रश्न 6.
हिमालय और अरावली में दो समानताएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. दोनों मोड़दार हैं
  2. दोनों का जन्म भू-अभिनति (Geosyncline) से हुआ है।

प्रश्न 7.
भारतीय भू-पृष्ठ का सबसे प्राचीन भाग अथवा वृद्धावस्था की भू-आकृति वाला भाग कौन-सा है?
उत्तर:
प्रायद्वीपीय पठार।

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प्रश्न 8.
भारत का कौन-सा भू-भाग क्रमिक अपरदन चक्र के कारण घिसकर जीर्णावस्था में पहुंच चुका है?
उत्तर:
प्रायद्वीपीय पठार।।

प्रश्न 9.
प्रायद्वीपीय पठारों का जन्म किस युग में हुआ था?
उत्तर:
पूर्व-कैम्ब्रियन युग में।

प्रश्न 10.
पूर्व-कैम्ब्रियन युग कब शुरू हुआ था?
उत्तर:
60 करोड़ वर्ष पूर्व।

प्रश्न 11.
नूतन युग की शुरुआत कब हुई थी?
उत्तर:
अब से सात करोड़ वर्ष पूर्व।

प्रश्न 12.
अरावली पर्वत-श्रेणी का जन्म कब हुआ था?
उत्तर:
विन्ध्य महाकल्प (पैल्योजोइक) में लगभग 40 करोड़ साल पहले।

प्रश्न 13.
प्रायद्वीपीय पठार में अवतलन के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
गोदावरी, महानदी, दामोदर, नर्मदा, ताप्ती, मालाबार व मेकरान के तट भ्रंश घसाव (अवतलन) के उदाहरण हैं।

प्रश्न 14.
प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर-पश्चिमी लावा प्रदेश में कौन-सी मिट्टी पाई जाती है?
उत्तर:
काली मिट्टी।

प्रश्न 15.
अरब सागर का निर्माण किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
दक्षिणी पठार के पश्चिमी भाग के धंसने से।

प्रश्न 16.
आज से सात करोड़ साल पहले वर्तमान हिमालय के स्थान पर क्या था?
उत्तर:
टेथीस सागर जो एक भू-अभिनति था।

प्रश्न 17.
टेथीस सागर के उत्तर व दक्षिण में कौन-से भूखण्ड थे?
उत्तर:
उत्तर में अंगारालैण्ड व दक्षिण में गोण्डवाना लैण्ड।

प्रश्न 18.
हिमालय का जन्म किस दौर में हुआ था?
उत्तर:
टरश्यरी दौर अथवा आल्पाइन दौर में।

प्रश्न 19.
हिमालय का सर्वमान्य विस्तार किन दो नदियों के बीच है?
उत्तर:
सिन्धु तथा ब्रह्मपुत्र।

प्रश्न 20.
पूर्व-पश्चिम दिशा में हिमालय की कुल कितनी लम्बाई है?
उत्तर:
2,400 कि०मी०।

प्रश्न 21.
भारत की सबसे ऊँची पर्वत चोटी का नाम तथा उसकी स्थिति बताइए।
उत्तर:
K2 कराकोरम पर्वत श्रेणी में।

प्रश्न 22.
दो नदियों के बीच का भू-भाग क्या कहलाता है?
उत्तर:
दोआब।

प्रश्न 23.
‘बारी’ दोआब किन दो नदियों के बीच फैला है?
उत्तर:
ब्यास और रावी।

प्रश्न 24.
प्रायद्वीपीय भारत की सबसे ऊँची चोटी का नाम क्या है?
उत्तर:
अनाईमुड़ी।

प्रश्न 25.
नीलगिरि के दक्षिण में पश्चिमी घाट में स्थित दो दरों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. पाल घाट तथा
  2. शेनकोटा गैप।

प्रश्न 26.
प्रायद्वीपीय पठार की औसत ऊँचाई कितनी है?
उत्तर:
600 से 900 मीटर।

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प्रश्न 27.
अण्डमान तथा निकोबार द्वीप-समूह में कितने द्वीप हैं?
उत्तर:
204

प्रश्न 28.
भारत में ज्वालामुखी कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
बैरन द्वीप, अण्डमान तथा निकोबार द्वीप समूह में।

प्रश्न 29.
भारत का कौन-सा तटीय मैदान अपेक्षाकृत अधिक चौड़ा है?
उत्तर:
पूर्वी तटीय मैदान।

प्रश्न 30.
भारत के प्रवाल द्वीप कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
लक्षद्वीप; अरब सागर में।

प्रश्न 31.
भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में स्थित प्रायद्वीपीय पठार का हिस्सा कौन-सा है?
उत्तर:
शिलांग पठार।

प्रश्न 32.
हिमालय पर्वतमाला किस पर्वत प्रणाली का अंग है?
उत्तर:
पामीर की गाँठ।

प्रश्न 33.
शिवालिक श्रेणी के दो अन्य नाम बताइए।
उत्तर:

  1. उप हिमालय तथा
  2. बाह्य हिमालय।

प्रश्न 34.
किस पर्वत श्रेणी को तिब्बत के पठार की रीढ़ कहा जाता है?
उत्तर:
कराकोरम श्रेणी को।

प्रश्न 35.
कराकोरम श्रेणी की दो प्रमख चोटियों के नाम लिखो।
उत्तर:
गाडविन आस्टिंन (K²), हिडन पीक।

प्रश्न 36.
कराकोरम पर्वत की दो श्रेणियों के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. अघील
  2. मुजताध।

प्रश्न 37.
कराकोरम श्रेणी की दो प्रमुख हिमनदियों के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. बालटोरो
  2. हिस्पर।

प्रश्न 38.
कराकोरम दर्रा किनके बीच द्वार का काम करता है?
उत्तर:
भारत तथा तारिम बेसिन के बीच।

प्रश्न 39.
पंजाब हिमालय कहाँ से कहाँ तक विस्तृत है?
उत्तर:
सिन्धु नदी से सतलुज नदी तक।

प्रश्न 40.
असम हिमालय कहाँ से कहाँ तक है?
उत्तर:
तिस्ता नदी से पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी के दिहांग दर्रे तक।

प्रश्न 41.
भाबर में अवसाद कौन-सी चट्टानें बनाती हैं?
उत्तर:
पारगम्य चट्टानें।

प्रश्न 42.
भारतीय प्रायद्वीप में विविधता और जटिलता के कौन-से दो कारण हैं?
उत्तर:

  1. भ्रंशन
  2. विभंजन।

प्रश्न 43.
अरावली का उच्चतम शिखर कौन-सा है?
उत्तर:
गुरु शिखर।

प्रश्न 44.
सतपुड़ा की सबसे ऊँची चोटी कौन-सी व कहाँ है?
उत्तर:
धूपगढ़ (1350 मीटर)। यह चोटी महादेव पर्वत पर है।

प्रश्न 45.
धुआँधार जलप्रपात किस नदी ने बनाया है और यह कहाँ पर स्थित है?
उत्तर:
नर्मदा नदी ने जबलपुर के पास बनाया है।

प्रश्न 46.
भारत के मुख्य पठार तथा शिलांग के पठार के बीच फैले काँप के निम्न मैदान को क्या कहते हैं?
उत्तर:
गारो-राजमहल खड्ड।

प्रश्न 47.
थालघाट दर्रे से कौन-सा रेलमार्ग निकलता है?
उत्तर:
मुम्बई-कोलकाता रेलमार्ग।

प्रश्न 48.
भोरघाट से कौन-सा रेलमार्ग निकलता है?
उत्तर:
मुम्बई-चेन्नई रेलमार्ग।

प्रश्न 49.
पालघाट से कौन-सा स्थल-मार्ग निकलता है?
उत्तर:
केरल को तमिलनाडु से मिलाने वाली सड़क।

प्रश्न 50.
अण्डमान व निकोबार द्वीप समूह को अलग करने वाले समुद्री भाग का नाम बताओ।
उत्तर:
10° चैनल।

प्रश्न 51.
सिंधु-गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदानों में जलोढ़ की औसत गहराई कितनी है?
उत्तर:
1000 से 2000 मीटर।

प्रश्न 52.
मणिपुर घाटी के मध्य में कौन-सी मील स्थित है?
उत्तर:
लोकताक झील।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान

प्रश्न 53.
भारत के भूगर्भिक इतिहास को कितने कालों में बाँटा गया है?
उत्तर:
चार।

प्रश्न 54.
नूतन जलोढ़ का क्षेत्र किसे कहा जाता है?
उत्तर:
खादर प्रदेश को।

प्रश्न 55.
पुराना जलोढ़ का क्षेत्र किसे कहा जाता है?
उत्तर:
बाँगर प्रदेश को।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय उपमहाद्वीप के तीन भू-आकृतिक विभागों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. हिमालय तथा उससे संबद्ध पर्वत श्रृंखलाएँ
  2. सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान
  3. प्रायद्वीपीय पठार।

प्रश्न 2.
हिमालय की युवावस्था को सिद्ध करने वाले तीन प्रमाण बताइए।
उत्तर:

  1. करेवा
  2. स्तनपायी जीवों के अवशेष
  3. नदी वेदिकाएँ।

प्रश्न 3.
उत्खण्ड क्या होता है?
उत्तर:
पृथ्वी पर ऊपर उठा प्रखण्ड जो पठार के रूप में भ्रंशों के बीच से ऊपर उठता है।

प्रश्न 4.
पठार के भू-स्थलों के उत्थान के दो प्रमाण दीजिए।
अथवा
दक्षिण भारत की जीर्ण एवं वृद्ध स्थलाकृति पर युवा लक्षणों के प्रादुर्भाव के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. पलनी तथा
  2. नीलगिरि पहाड़ियों का उत्थान।

प्रश्न 5.
हिमालय को वलित पर्वत क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि हिमालय का निर्माण टेथीस सागर की तली में एकत्रित तलछट के वलित होकर ऊपर उठने से हुआ है।

प्रश्न 6.
समस्त भूपटल किन छह मुख्य अथवा प्राचीन प्लेटों में बँटा हुआ है?
उत्तर:

  1. प्रशांती प्लेट
  2. यूरेशियाई प्लेट
  3. अमरीकी प्लेट
  4. भारतीय प्लेट
  5. अफ्रीकी प्लेट
  6. अण्टार्कटिका प्लेट।

प्रश्न 7.
भारत के उत्तरी मैदान का विस्तार कहाँ-से-कहाँ तक है?
उत्तर:
पश्चिम में सिन्धु नदी के डेल्टा से पूर्व में गंगा नदी के डेल्टा तक है।

प्रश्न 8.
भू-अवनति से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जल के उथले लम्बे भाग जिसमें तलछट का जमाव होता है।

प्रश्न 9.
द्रोणी घाटी का अर्थ बताइए।
उत्तर:
भ्रंशन के उपरान्त धरती के धंसाव या निकटवर्ती खण्डों के उत्थान से बनी नदी घाटी द्रोणी घाटी कहलाती है।

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प्रश्न 10.
भारत के पाँच भौतिक विभागों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. हिमालय पर्वत समूह
  2. सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान
  3. प्रायद्वीपीय पठार
  4. तटीय मैदान
  5. द्वीप।

प्रश्न 11.
हिमालय की तीन समान्तर श्रेणियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. बृहत् हिमालय
  2. लघु हिमालय
  3. बाह्य हिमालय।

प्रश्न 12.
हिमालय पर्वत समूह के चार तरंगित मैदानों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. अक्साईचिन
  2. दिपसांग
  3. लिंगजिताग (लद्दाख) तथा
  4. देवसाई (नंगा पर्वत के दक्षिण-पूर्व में कश्मीर में)।

प्रश्न 13.
8000 मीटर से ऊँची हिमालय की चार चोटियों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. एवरेस्ट
  2. कंचनजंगा
  3. मकालू
  4. धौलागिरि।

प्रश्न 14.
धाया क्या होता है?
उत्तर:
पंजाब के मैदान में नदियों द्वारा जलौढ़ राशि को तोड़कर बनाए गए वप्र धाया होते हैं।

प्रश्न 15.
पश्चिमी घाट में पाए जाने वाले तीन दरों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. थाल घाट
  2. पाल घाट
  3. भोर घाट।

प्रश्न 16.
दक्कन पठार की पूर्वी और पश्चिमी सीमाओं के नाम बताएँ।
उत्तर:
पूर्वी सीमा पर राजमहल पहाड़ियाँ तथा पश्चिमी सीमा पर अरावली पर्वत।

प्रश्न 17.
किसी देश के भौतिक विकास में किन तीन दशाओं की निर्णायक भूमिका होती है?
उत्तर:

  1. भौगोलिक संरचना
  2. प्रक्रम
  3. विकास की अवस्था।

प्रश्न 18.
बृहत् हिमालय की औसत ऊँचाई व औसत चौड़ाई बताइए।
उत्तर:
औसत ऊँचाई 6,000 मीटर तथा औसत चौड़ाई 25 कि०मी०।

प्रश्न 19.
दून या दुआर किन्हें कहते हैं?
उत्तर:
लघु हिमालय और शिवालिक के बीच विस्तृत घाटियों को पश्चिम में दून और पूर्व में दुआर कहते हैं।

प्रश्न 20.
‘चौ’ कौन-सी भूमियाँ होती हैं?
उत्तर:
शिवालिक की बंजर व अत्यधिक कटी-फटी दक्षिणी ढलान ‘चौ’ भूमियाँ कहलाती हैं।

प्रश्न 21.
उत्तरी भारत के विशाल मैदान की लम्बाई व चौड़ाई बताइए।
उत्तर:
यह मैदान पश्चिम से पूर्व की ओर 3,200 कि०मी० लम्बा है व इसकी चौड़ाई 150 से 300 कि०मी० है।

प्रश्न 22.
गंगा के मैदान में बिछे तलछट की मोटाई कितनी है?
उत्तर:
समुद्र तल से 3,050 मीटर नीचे तथा पृथ्वी की ऊपरी सतह से 4,000 मीटर नीचे तक।

प्रश्न 23.
खादर प्रदेश उपजाऊ क्यों होते हैं?
उत्तर:
प्रतिवर्ष नदियों की बाढ़ से नए जलौढ़ बिछाने के कारण।

प्रश्न 24.
हिमाद्रि के दक्षिण में स्थित हिमालय की बीच वाली श्रृंखला को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
हिमाद्रि के दक्षिण में स्थित हिमालय की बीच वाली श्रृंखला को हिमाचल के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 25.
हिमालय के किस भाग को पंजाब हिमालय के नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
हिमालय के सतलुज और सिंधु के बीच के भाग को पंजाब हिमालय के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 26.
भाबर क्या है?
उत्तर:
शिवालिक की तलहटी में नदियों द्वारा निक्षेपित भूमि को भाबर कहते हैं।

प्रश्न 27.
भांगर (बांगर) क्या है?
उत्तर:
नदियों के बाढ़ वाले मैदानों के ऊपरी भागों में स्थित भूमियों को बांगर कहते हैं।

प्रश्न 28.
भूड़ क्या होते हैं?
उत्तर:
बाँगर भूमि में पाए जाने वाले बालू के ढेरों को भूड़ कहते हैं।

प्रश्न 29.
शंकुपाद मैदानों का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:
जब किसी क्षेत्र में शंक व अन्तः शंक मिल जाते हैं।

प्रश्न 30.
अरावली श्रेणी की लम्बाई व ऊँचाई बताइए।
उत्तर:
अरावली श्रेणी 800 कि०मी० लम्बी व इसकी ऊँचाई समुद्र तल से 800 मीटर है।

प्रश्न 31.
लैगून (अनूप) क्या होते हैं?
उत्तर:
लैगून खारे पानी की झीलें होती हैं।

प्रश्न 32.
लैगूनों की रचना कैसे होती है?
उत्तर:
लैगूनों की रचना तट के पास समुद्री जल का एक हिस्सा रोधिका और भू-जिह्वा द्वारा अलग हो जाता है।

प्रश्न 33.
कोंकण तट किसे कहते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी तटीय मैदान का दमन से गोवा तक का भाग कोंकण तट कहलाता है।

प्रश्न 34.
कनारा या कन्नड़ तट किसे कहते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी तटीय मैदान का गोआ से मंगलौर तक का भाग कन्नड़ तट कहलाता है।

प्रश्न 35.
मालाबार तट किसे कहते हैं?
उत्तर:
मंगलौर से कन्याकुमारी के बीच का पश्चिमी तटीय मैदान मालाबार तट कहलाता है।

प्रश्न 36.
उत्तरी सरकार और कोरोमण्डल तट किसे कहते हैं?
उत्तर:
पूर्वी तटीय मैदान का महानदी से कृष्णा तक का उत्तरी भाग उत्तरी सरकार तथा कृष्णा से कावेरी तक का दक्षिणी भाग कोरोमण्डल तट कहलाता है।

प्रश्न 37.
पूर्वी तट पर पाए जाने वाले प्रमुख लैगूनों का नाम लिखिए।
उत्तर:
चिलका, कोल्लेरू तथा पुलीकट।

प्रश्न 38.
भारत को भू-गर्भीय अजायबघर क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
भारत में सभी महाकल्पों, कल्पों व युगों में उत्पन्न विविध प्रकार की भू-गर्भिक संरचनाएँ एवं भू-आकार देखने को मिलते हैं। इसी आधार पर भारत भू-गर्भीय अजायबघर कहलाता है।

प्रश्न 39.
बृहत् स्तर पर भारत में पाई जाने वाली तीन प्रमुख भू-गर्भिक इकाइयों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. प्रायद्वीपीय पठार
  2. हिमालय की पर्वत श्रेणियाँ
  3. सिन्धु-गंगा एवं ब्रह्मपुत्र का मैदान।

प्रश्न 40.
भारत के प्रायद्वीपीय पठार की उत्खण्ड से तुलना क्यों की जाती है?
उत्तर:
यह पठार प्राचीनतम भू-पर्पटी शैलों से बना हुआ है जिनका जन्म पूर्व कैम्ब्रियन युग में निक्षेपित अवसादों के समुद्र की सतह से ऊपर उठने से हुआ था। एक बार समुद्र से ऊपर उठने के पश्चात् भारत का यह भू-भाग फिर कभी समुद्र में नहीं डूबा। आज तक सपाट भूमि एक दृढ़, अगम्य व अलचीले खण्ड के रूप में कायम है। इसलिए इस पठार की तुलना उत्खण्ड (Horst) से की जाती है।

प्रश्न 41.
भू-अभिनति से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
भू-अभिनति भू-पर्पटी में एक बृहत् गर्त अथवा द्रोणी या सैकड़ों किलोमीटर तक फैली एक गहरी खाई होती है जिसका तल दोनों भू-खण्डों से अपरदित मलबे के निक्षेपण के कारण धीरे-धीरे धंसता जाता है, फलस्वरूप अवसादी शैलों की मोटी परतों का निर्माण होता है। टेथीस सागर भी इसी प्रकार की एक भू-अभिनति था।

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प्रश्न 42.
करेवा क्या है? यह क्या सिद्ध करता है?
उत्तर:
हिमालय के पीरपंजाल क्षेत्र में 1500 से 1850 मीटर की ऊँचाई पर स्थित झीलों की तली में पाए जाने वाली नए अवसादों की परतों को करेवा कहा जाता है। करेवा का होना सिद्ध करता है कि हिमालय एक नवीन वलित पर्वत है जिसके निर्माण की प्रक्रिया प्लीस्टोसीन काल तक होती रही है।

प्रश्न 43.
महाखड्ड क्या होते हैं? दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
महाखड्ड उच्च भूमियों या पर्वतों में गम्भीर और विवर होते हैं जिनमें प्रायः नदी बहती है।
उदाहरण-

  • संयुक्त राज्य अमेरिका की कोलेरेडो नदी का महाखड्ड तथा
  • भारत में सिन्धु नदी का महाखड्ड।

प्रश्न 44.
‘दून’ किसे कहते हैं? हिमालय से इसके तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
लघु हिमालय और शिवालिक के बीच कहीं-कहीं सपाट, तलछटी, संरचनात्मक विस्तृत घाटियाँ पाई जाती है जिन्हें पश्चिम में दून (Doon) व पूर्व की ओर दुआर (द्वार) (Duar) कहा जाता है जो वास्तव में हिमालय के प्रवेश द्वार हैं। देहरादून, कोथरीदून, पटलीदून, ऊधमपुर, कोटली, चौखम्भा व ऊना इसी प्रकार की घाटियों में स्थित हैं।

प्रश्न 45.
तराई से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
तराई भाबर के दक्षिण में मैदान का वह भाग होता है जहाँ भाबर की लुप्त नदियाँ पुनः भूतल पर प्रकट होती हैं। परिणामस्वरूप इस प्रदेश में अत्यधिक नमी व दलदल पाए जाते हैं। तराई की रचना बारीक कंकड, पत्थर, रेत और चिकनी मिट्टी से हुई है। पहले यहाँ घने वन और वन्य प्राणी पाए जाते थे परन्तु अब अधिकांश क्षेत्रों में कृषि होने लगी है। यहाँ ऊँची घास, कांस, हाथी घास, भाबर घास और वृक्ष इत्यादि पाए जाते हैं।

प्रश्न 46.
बाँगर प्रदेश क्या होता है?
उत्तर:
पुरानी जलौढ़ मिट्टी के निक्षेप से बने प्रदेश को बाँगर कहा जाता है। यह मैदान का वह ऊँचा उठा हुआ भाग होता है जहाँ नदियों की बाढ़ का जल नहीं पहुंच पाता। इस भाग में कैल्सियमी संग्रथनों जैसे कंकड़ की अधिकता होती है।

प्रश्न 47.
डेल्टा किसे कहते हैं? भारत में इसके चार उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
नदियों के मुहाने पर तलछट के निक्षेप से बनी भू-आकृति को डेल्टा कहते हैं। यह अधिकतर त्रिभुजाकार स्थल-रूप होता है। यह एक समतल उपजाऊ क्षेत्र होता है। भारत में चार मुख्य डेल्टा हैं-

  • गंगा नदी का डेल्टा
  • महानदी का डेल्टा
  • ब्रह्मपुत्र का डेल्टा
  • कावेरी नदी का डेल्टा।

प्रश्न 48.
पामीर की गाँठ से निकलने वाली प्रमुख पर्वत श्रेणियों के नाम बताओ।
उत्तर:
भारत के उत्तर-पश्चिम में स्थित पामीर की गाँठ से अनेक पर्वत श्रेणियाँ बाहर निकलती हैं। पामीर की गाँठ को हम ‘संसार की छत’ (Roof of the World) भी कहते हैं।

  • महान हिमालय
  • कराकोरम श्रेणी
  • हिन्दुकुश पर्वत
  • कुनलुन पर्वत
  • तियेनशान पर्वत
  • पामीर पर्वत
  • अलाय पर्वत।

प्रश्न 49.
हिमालय का प्रादेशिक वर्गीकरण किस विद्वान ने किया था? हिमालयी प्रदेशों के नाम भी बताइए।
उत्तर:
सर्वप्रथम सर सिडीन बुराई ने हिमालय को पश्चिम से पूर्व की ओर चार प्रादेशिक भागों में विभाजित किया। इस विभाजन का आधार नदी घाटियाँ हैं। इन प्रदेशों के नाम हैं-

  • पंजाब हिमालय
  • कुमाऊँ हिमालय
  • नेपाल हिमालय
  • असम हिमालय।

प्रश्न 50.
पूर्वी तटीय मैदान तथा पश्चिमी तटीय मैदान में कोई दो अंतर बताइए।
उत्तर:

  1. पूर्वी तटीय मैदान अपेक्षाकृत अधिक समतल व चौड़ा है, जबकि पश्चिमी तटीय मैदान बहुत ही असमान एवं संकुचित है।
  2. पूर्वी तटीय मैदान में कई नदी डेल्टा हैं। इसके विपरीत, पश्चिमी तटीय मैदान में कई ज्वारनदमुख हैं।

प्रश्न 51.
प्रायद्वीपीय पठार तथा उत्तर के विशाल मैदानों में कोई दो अंतर बताएँ।
उत्तर:

  1. उत्तर के विशाल मैदानों का निर्माण जलोढ़ मिट्टी से हुआ है, जबकि प्रायद्वीपीय पठार का निर्माण प्राचीन ठोस चट्टानों से हुआ है।
  2. उत्तर के विशाल मैदानों की समुद्र तल से ऊँचाई दक्षिणी पठार की अपेक्षा बहुत कम है।

प्रश्न 52.
अरब सागर कैसे बना?
उत्तर:
जिस समय हिमालय का निर्माण हो रहा था, उस समय दो अन्य महत्त्वपूर्ण घटनाओं ने प्रायद्वीपीय पठार को प्रभावित किया। पठार के उत्तरी-पश्चिमी भाग में एक विस्तृत ज्वालामुखी उद्गार हुआ। इसके अतिरिक्त पठार का पश्चिमी भाग टूटकर निमज्जित हो गया। हिंद महासागर का जल इस निमज्जित गर्त में भर गया और इस प्रकार अरब सागर का जन्म हुआ।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
दिल्ली के आस-पास के इलाके को जल-विभाजक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
दिल्ली और राजमहल की पहाड़ियों के बीच के इलाके में मिट्टी के जमाव की गहराई आस-पास के मैदानी क्षेत्र से अधिक मानी गई है। दिल्ली के आस-पास (अम्बाला, सहारनपुर तथा लुधियाना) का इलाका गंगा-यमुना के मैदान का सबसे अधिक ऊँचा उठा हुआ भाग है। इस भाग के पूर्व की तरफ की नदियाँ बंगाल की खाड़ी तथा पश्चिम की नदियाँ अरब सागर में गिरती हैं। यही कारण है कि इस ऊँचे उठे भाग को जल-विभाजक (Water Divide) कहा जाता है।

प्रश्न 2.
“हिमालय का जन्म भू-अभिनति से हुआ था।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
आज से 7 करोड़ वर्ष पूर्व मेसोजोइक युग (Mesozoic Syncline) में वर्तमान हिमालय के स्थान पर भू-अभिनति (Geo Syncline) के रूप में एक सागर था जिसे टेथिस सागर (Tethys Sea) के नाम से जाना जाता है। उस समय उत्तरी मैदान समेत समस्त हिमालय क्षेत्र टेथिस सागर की सतह (Sea Level) से नीचे था। इस सागर के उत्तर में अंगारालैण्ड (Angaraland) व दक्षिण में गोंडवानालैण्ड (Gondwanaland) नामक दो भू-खण्ड थे।

इन दोनों स्थलीय भागों से आने वाली नदियों ने टेथिस सागर की तली में तलछट का निक्षेपण किया। मेसोजोइक युग के अन्त में कुछ भू-गर्भिक हलचलों के कारण सागर के उत्तर व दक्षिण में स्थित स्थलीय भाग अंगारालैण्ड व गोंडवानालैण्ड एक-दूसरे की ओर बढ़ने लगे। इस संपीडन (compression) के कारण टेथिस सागर की तली में एकत्रित तलछट वलित होकर धीरे-धीरे ऊपर उठने लगे। तलछट के समुद्री सतह से ऊपर उठने से हिमालय पर्वतों का निर्माण हुआ।

प्रश्न 3.
हिमालय पर्वतों की तीन समानांतर शृंखलाओं के नाम लिखें और प्रत्येक की एक-एक विशेषता बताएँ।
उत्तर:
1. सर्वोच्च हिमालय या हिमाद्रि-यह हिमालय की उत्तरी तथा सबसे ऊँची श्रेणी है। हिमालय के सर्वोच्च शिखर इसी श्रेणी में हैं। मांउट एवरेस्ट शिखर संसार का सर्वोच्च शिखर है।

2. मध्य या लघु हिमालय-यह पर्वत श्रेणी हिमालय के दक्षिण में फैली है। इसमें डलहौज़ी, धर्मशाला, शिमला, मसूरी, नैनीताल और दार्जिलिंग आदि प्रमुख पर्वतीय नगर स्थित हैं।

3. बाह्य हिमालय या शिवालिक श्रेणी-यह हिमालय की सबसे दक्षिणी श्रेणी है। यह जलोढ़ अवसादों से बनी है। इस भाग में प्रायः भूकंप आते रहते हैं तथा भूस्खलन होते हैं।

प्रश्न 4.
शिवालिक में अधिक भू-स्खलन क्यों होता है?
उत्तर:

  1. शिवालिक की श्रेणियाँ जलोढ़ अवसादों से बनी हैं। अतः यहाँ प्रायः भू-स्खलन होता रहता है।
  2. दूसरे इन श्रेणियों से बहकर गुजरने वाली नदियाँ इन पहाड़ियों की नींव को कमज़ोर करती रहती हैं, फलस्वरूप ये पहाड़ियाँ खिसक जाती हैं।
  3. मानव द्वारा छेड़छाड़ भी इन पहाड़ियों में भू-स्खलन का एक कारण है।

प्रश्न 5.
सर्वोच्च हिमालय किसे कहते हैं? इसकी कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
हिमालय पर्वत की सबसे उत्तरी श्रृंखला को सर्वोच्च हिमालय के नाम से जाना जाता है। इसकी दो प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. पर्वत श्रृंखला सबसे ऊँची है तथा सदैव बर्फ से ढकी रहती है। यहाँ से निकलने वाली नदियाँ सदानीरा हैं।
  2. विश्व की सर्वोच्च चोटी माऊंट एवरेस्ट इसी श्रृंखला में स्थित है। इसकी ऊँचाई 8848 मीटर हैं।

प्रश्न 6.
हिमालय की युवावस्था को सिद्ध करने के लिए भू-वैज्ञानिकों एवं पुरातत्त्ववेताओं द्वारा दिए गए प्रमाणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हिमालय की युवावस्था को इंगित करने वाले अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं-
1. कश्मीर में पीर-पंजाल के पार्श्व में 1500-1850 मीटर की ऊँचाई पर स्थित झीलों की तली में अवसादों की नई परतें, जिन्हें करेवा कहते हैं, संकेत करती हैं कि हिमालय में उत्थान की क्रिया प्लिओसीन (Pliocene) तथा प्लीस्टोसीन (Pleistocene) कालों तक होती रही है।

2. उप-हिमालय के गिरिपदीय क्षेत्रों में तृतीय कल्प (Tertiary) के स्तनपायी जीवों (Mammals) के अवशेषों का पाया जाना भी सिद्ध करता है कि इस क्षेत्र का उत्थान प्लीस्टोसीन काल तक होता रहा है।

3. बृहत् हिमालय के तलछटों का शिवालिक बेसिन में निक्षेप भी इसी तथ्य की पुष्टि करता है।

4. हिमालय की नदियों की कई वेदिकाओं से मिले उपकरणों से संकेत मिलता है कि हिमालय के उत्थान का एक चरण उस समय पूरा हुआ होगा जब वहाँ मानव का आविर्भाव हो चुका था।

प्रश्न 7.
भारत के उत्तरी विशाल मैदान का निर्माण किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
भू-गर्भशास्त्री सुवेस (Suess) के अनुसार, हिमालय के निर्माण के बाद हिमालय व पठार के बीच एक गर्त (Depression) बन गया था जिसे टेथिस सागर के जल ने भर दिया और कालान्तर में इसी गर्त को सिन्धु, गंगा, ब्रह्मपुत्र व इनकी सहायक नदियों तथा प्रायद्वीपीय भारत से आने वाली नदियों ने अपने निक्षेप से भर दिया और एक विशाल मैदान बना दिया। सर सिडनी बुराई एवं कुछ अन्य भू-वैज्ञानिकों का मत है कि इस मैदान का निर्माण एक भ्रंश घाटी के भराव से हुआ है। इस घाटी का जन्म पटल विरूपणी हलचलों द्वारा हुए चट्टानों के विभंजन से हुआ था। इस मत का अनेक विद्वानों ने खण्डन किया है।

प्रश्न 8.
हिमालय के निर्माण के सम्बन्ध में प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के अनुसार, पर्वत निर्माणकारी घटनाओं का सम्बन्ध प्लेटों की गति से है। समस्त भू-पटल 6 मुख्य प्लेटों अथवा प्राचीन शील्डों में बँटा है। ये प्लेटें धीमी गति से अर्ध-द्रवीय सतह पर सरक रही हैं। प्लेटों का आपसी टकराव उनमें तथा ऊपर की महाद्वीपीय चट्टानों में प्रतिबलों को जन्म देता है जिसके कारण वलन, भ्रंशन व आग्नेय क्रियाएँ होती हैं।

हिमालय पर्वत का निर्माण भारतीय प्लेट के उत्तर दिशा में सरकने और यूरेशियन प्लेट को नीचे से धक्का देने से हुआ। लगभग साढ़े छह से सात करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय प्लेट के उत्तर में खिसकने के कारण टेथिस सागर सिकुड़ने लगा। लगभग तीन से छः करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय व यूरेशियाई प्लेटें एक-दूसरे के काफी निकट आ गईं। परिणामस्वरूप टेथिस क्षेपकार (Thrust Edges) विभंगित होने लगे। लगभग 2 से 3 करोड़ वर्ष पूर्व हिमालय की पर्वत-श्रेणियाँ टेथिस सागर की सतह से ऊपर उभरने लगीं।

प्रश्न 9.
भारत-भूमि के भू-आकृतिक विभाजनों के लक्षणों में अन्तर पाया जाता है। कारण बताइए।
उत्तर:
भारत के मुख्य भू-आकृतिक विभाजनों के लक्षणों में अन्तर पाए जाने का मुख्य कारण इन भू-भागों की अलग-अलग संरचना तथा अलग ही भू-गर्भिक इतिहास का होना है। हिमालय पर्वत का जन्म भौतिक इतिहास के अन्तिम चरण में भू-संचालनों के कारण हआ जबकि भारत का दक्षिण का पठार पूर्व कैम्ब्रियन महाकल्प में निक्षेपित अवसादों के समुद्र की सतह से ऊपर उठ जाने से हुआ। इसी प्रकार भारत के उत्तरी मैदान की रचना, हिमालय पर्वत के बनने के बाद यहाँ से निकलने वाली विशाल नदियों द्वारा लाए गए तलछट के जमाव से हुआ है और आज भी यह क्रम जारी है जो गंगा के सुन्दरवन डेल्टा के निरन्तर बढ़ने से साबित होता है। इस प्रकार इन भू-आकृतियों का निर्माण अलग-अलग कालों में हुआ है। अतः यह स्वाभाविक ही है कि इन मुख्य भागों के लक्षणों में अन्तर पाया जाए।

प्रश्न 10.
भारत के प्रायद्वीपीय पठार को उत्खण्ड (Horst) की संज्ञा क्यों दी गई है?
उत्तर:
भारत का दक्षिणी प्रायद्वीपीय पठार इस उप-महाद्वीप के प्राचीन भू-खण्डों में से एक है। एक बार समद्र से बाहर आने के बाद यह कभी भी पानी में नहीं डूबा। यह उच्च सम-भूमि हमेशा दृढ़ तथा अगम्य खण्ड के रूप में स्थिर रही इसलिए इसकी तुलना प्रायः उत्खण्ड से की जाती है। उत्खण्ड, लगभग दो समानान्तर भ्रंशों के बीच की भूमि होती है जो भ्रंश रेखाओं के सहारे अपने आसपास की भूमि से ऊपर उठ गई हैं। भारतीय प्रायद्वीपीय पठार में जन्म से ही भ्रंशन तथा विभंजन होते रहे हैं; जैसे पुराजीवी-विंध्य महाकाल्प में भू-अभिनति के कारण अरावली पर्वतों का निर्माण होना तथा दक्षिणी भारत के पश्चिमी भाग के धंसने के कारण पश्चिमी घाटों का एक दीवार के रूप में खड़ा रहना।

प्रश्न 11.
प्रायद्वीपीय पठार की उत्पत्ति पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारतीय प्रायद्वीप गोंडवाना भू-खण्ड का ही भाग है। यह अगम्य चट्टानों का उत्खण्ड प्रदेश रहा है जो पूरी तरह से कभी जलमग्न नहीं हुआ। भूगोलवेत्ताओं का विचार है कि इसकी उत्पत्ति आज से 50 करोड़ वर्ष पूर्व हुई। यह भू-भाग, पर्वत-निर्माणकारी भू-संचलन क्रियाओं से पूरी तरह मुक्त रहा है। परन्तु भू-गर्भिक हलचलों के प्रमाण लम्ब रूप में अवश्य मिलते हैं, क्योंकि कई स्थानों पर इस भाग में भ्रंश घाटियाँ तथा हार्ट मिलते हैं। नर्मदा, ताप्ती तथा दामोदर नदियाँ भ्रंश घाटियों के प्रमुख उदाहरण हैं। एक ज्वालामुखी उदभेदन के कारण इसका लगभग 2 लाख वर्ग कि०मी० क्षेत्र लावा से ढका गया, जिससे दक्कन ट्रेप का निर्माण हुआ।

प्रश्न 12.
पूर्वी घाट तथा पश्चिमी घाट में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
पूर्वी घाट तथा पश्चिमी घाट में अंतर निम्नलिखित हैं-

पूर्वी घाट पश्चिमी घाट
1. दक्कन के पठार की पूर्वी सीमा पर मंद ढाल वाली पहाड़ियों की लंबी पर्वतमाला को पूर्वी घाट कहते हैं। 1. दक्कन के पठार की पश्चमी सीमा पर उत्तर से दक्षिण की ओर खम्बात की खाड़ी से कन्याकुमारी तक फैली लंबी पर्वतमाला पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला कहलाती है।
2. पूर्वी घाट अपेक्षाकृत कम ऊँचे हैं। 2. पश्चिमी घाट की ऊँचाई दक्षिण की ओर बढ़ती जाती है।
3. पूर्वी घाट को महानदी, गोदावरी, कृष्गा तथा कावेरी नदियों ने काट दिया है। 3. पश्चिमी घाट सहयाद्रि, नीलगिरि, अन्ना मलाई तथा कार्डामम के रूप में एक सतत पर्वत शृंखला है।
4. पूर्वी घाट पर कम वर्षा होती है। 4. पश्चिमी घाट पर अत्यधिक वर्षा होती है।

प्रश्न 13.
भारतीय पठार और हिमालय पर्वत के उच्चावच लक्षणों में वैषम्य बताइए।
उत्तर:
भारतीय पठार और हिमालय पर्वत के उच्चावच लक्षणों में निम्नलिखित वैषम्यता दिखाई देती है-
1. भारतीय पठार-यह एक अनियमित त्रिभुजाकार पठार है। इसके उच्चावच के वर्तमान लक्षणों का विकास भू-गर्भिक इतिहास काल में हुआ। यह पठार अधिकांश समय से अपना अस्तित्व सागर की सतह से ऊपर बनाए हुए है इसलिए करोड़ों वर्षों तक अपरदन-बलों ने इसे प्रभावित किया है। उत्थान और निमज्जन की क्रियाओं की पुनरावृति तथा भ्रशन और विमगन के कारण उच्च भूमि में विविधता दिखाई देती है।

2. हिमालय पर्वत-यह क्षेत्र अभिनव भू-गर्भिक समय तक सागरीय सतह से नीचे रहा। पृथ्वी पर पर्वत निर्माण क्रिया के अन्तिम चरण में टेथिस सागर में निक्षेपित अवसादों के वलन के कारण हिमालय पर्वत तथा इसकी अन्य शृंखलाओं का निर्माण हुआ। इसमें भू-अभिनति में निक्षेपित अवसादों के संरचनात्मक विस्थापन के कारण भू-पर्पटी का काफी कमजोर क्षेत्र बन गया।

प्रश्न 14.
भाबर क्या है? भाबर पट्टी के तीन प्रमुख लक्षण बताइए।
उत्तर:
हिमालय पर्वत की शिवालिक की पहाड़ियों के दक्षिणी तलहटी प्रदेश को भाबर का मैदान कहते हैं। यह पारगम्य चट्टानों का बना हुआ है। पर्वतीय क्षेत्र में बहने वाली कई नदियाँ भाबर में लुप्त हो जाती हैं।

भाबर के लक्षण-

  • भाबर का मैदान एक संकरी पट्टी के रूप में 8 से 16 कि०मी० की चौड़ाई में मिलता है।
  • यह अत्यधिक नमी का क्षेत्र है, इसलिए यहाँ सघन वन और अनेक प्रकार के वन्य प्राणी मिलते हैं।
  • इसमें बजरी तथा पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े निक्षेपित हैं।

प्रश्न 15.
दोआब से आप क्या समझते हैं? भारतीय उपमहाद्वीप से चार उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
दो नदियों के मध्य के भू-खण्ड को दोआब कहते हैं। इसका निर्माण नदियों द्वारा लाई गई पुरानी कांप मिट्टी से होता है। यह प्रदेश इन नदियों को एक-दूसरे से अलग करता है। भारतीय महाद्वीप में निम्नलिखित दोआब हैं-

  • रावी-चेनाब के मध्य रचना दोआब।
  • रावी-व्यास के मध्य बारी दोआब।
  • व्यास-सतलुज के मध्य स्थित जालन्धर दोआब।
  • गंगा-यमुना के मध्य दोआब।

प्रश्न 16.
“हिमालय का मूल उच्चावच नदियों तथा हिमनदियों के निरन्तर कार्य से रूपान्तरित हुआ है।” व्याख्या कीजिए।
अथवा
हिमालय के उच्चावच के रूपान्तरण पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर:
अनेक नदियों व हिमनदियों ने हिमालय के उत्थान के साथ ही अपनी अपरदन शक्ति से इन पर्वतों के मूल उच्चावच को व्यापक रूप से रूपान्तरित करना आरम्भ कर दिया था। अनाच्छादन के उपर्युक्त दोनों साधनों के प्रभावशाली कार्यों के निम्नलिखित प्रमाण हैं-
1. सिन्धु, गंगा, ब्रह्मपुत्र इत्यादि अनेक नदियों ने हिमालय में हज़ारों मीटर गहरे महाखड्ड (Gorges), कैनियन (Canyon) व गहरी घाटियों (Valleys) का निर्माण कर हिमालय के मूल स्वरूप को प्रभावित किया है।

2. हिमंनदियों ने विशाल शिला-खण्डों को ऊँचे शिखरों से हजारों मील दूर धकेल दिया है।

3.  कश्मीर घाटी में निक्षेपित करेवा (Karewa) में हिमनदीय मृत्तिका व अनेक प्रकार की हिमोढ़ सामग्री इंगित करती है कि हिमनदियाँ कभी विस्तृत क्षेत्रों पर कार्यरत थीं।

4. वर्तमान हिमनदियों से बहुत नीचे, कम ऊँचाई पर ‘U’ आकार की घाटियों व लटकती घाटियों (Hanging Valleys) का मिलना प्रमाणित करता है कि हिमालय क्रमिक रूप से हिमनद की अनेक चक्रीय अवस्थाओं में से गुज़रा है।।

5. अनेक नदी-घाटियों के किनारों के साथ-साथ विस्तृत हिमोढ़ों ने विकसित वेदिकाओं (Terraces) का निर्माण किया है। उपर्युक्त तथ्यों से पुष्टि होती है कि हिमालय का मूल उच्चावच जल व हिमनदियों से रूपान्तरित होता रहा है।

प्रश्न 17.
हिमालय के महत्त्वपूर्ण दरों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हिमालय के कुछ प्रसिद्ध दरें निम्नलिखित हैं-
1. खैबर दर्रा पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच स्थित यह दर्रा उपमहाद्वीप का सबसे महत्त्वपूर्ण दर्रा है जिसने करोड़ों लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। सदियों से आक्रमणकारी भारत पर आक्रमण करने के लिए इसी मार्ग का प्रयोग करते रहे।

2. बोलन दर्रा-पाकिस्तान स्थित यह दर्रा प्राचीन समय से महत्त्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग रहा है। अब इसमें से एक रेलमार्ग व एक महामार्ग गुज़रता है।

3. कराकोरम दर्रा-भारत के जम्मू और कश्मीर में कराकोरम श्रेणी में स्थित यह एक अत्यन्त ऊँचा व कठिन दरों में से एक है।

4. जोजिला-यह दर्रा भी भारत के जम्मू और कश्मीर में स्थित है। यह श्रीनगर से लेह का मार्ग है।

5. शिपकी ला यह हिमाचल प्रदेश में है। शिमला से तिब्बत जाने का मार्ग यहीं से गुज़रता है।

6. माना और नीति-इन दरों से होकर भारतीय यात्री मानसरोवर झील व कैलाश के दर्शन करने जाते हैं।

प्रश्न 18.
हिमालय का भू-वैज्ञानिक विभाजन किस आधार पर किया गया है?
उत्तर:
चट्टानों के रचनाकाल एवं उनके प्रकारों के आधार पर हिमालय के निम्नलिखित चार भू-वैज्ञानिक विभाजन हैं-
1. तिब्बती क्षेत्र-इस भाग का विस्तार बृहत् हिमालय के उत्तर में तिब्बत व निकटवर्ती क्षेत्रों पर है। यहाँ जीवाश्म वाली अवसादी चट्टानें मिलती हैं।

2. वलनों वाला हिमालयी क्षेत्र-इस क्षेत्र में लघु हिमालय व बृहत् हिमालय के कुछ भाग सम्मिलित किए जाते हैं। इस क्षेत्र में रवेदार (Crystalline) तथा रूपान्तरित (Metamorphic) शैलें; जैसे ग्रेनाइट, शिस्ट तथा नीस चट्टानें भी पाई जाती हैं।

3. प्रतिवलनों तथा क्षेप भ्रंशों का हिमालयी क्षेत्र-इस जटिल क्षेत्र में प्राचीन चट्टानों के विशाल समूह स्थानान्तरित होकर एक बड़े क्षेत्र में शयान वलनों (Recumbent Folds) के साथ-साथ नवीन चट्टानों पर धकेल दिए गए हैं। परिणामस्वरूप य ग्रीवा-खण्डों (Nappes) का निर्माण हुआ है। ऐसे लक्षण कश्मीर, हिमाचल तथा गढ़वाल के पर्वतीय क्षेत्रों में मिलते हैं।

4. बाह्य या उपहिमालयी क्षेत्र-शिवालिक का निर्माण भी इसी काल में हुआ था। विद्वानों का मत है कि ये अवसाद हिमालय की अपरदित सामग्री से बने हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान

प्रश्न 19.
“पश्चिमी हिमालय में पर्वत श्रेणियों की एक क्रमिक श्रृंखला पाई जाती है।”-स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हिमालय में अनेक पर्वत श्रेणियाँ हैं जो एक-दूसरे के समानान्तर पाई जाती हैं। इन श्रेणियों को ‘दून’ या. ‘दुआर’ नामक घाटियाँ आपस में अलग करती हैं। पश्चिमी हिमालय में हमें इन श्रेणियों के स्पष्ट क्रम देखने को मिलते हैं। हरियाणा और पंजाब के मैदानों के बाद पहली श्रेणी शिवालिक के रूप में उपस्थित होती है। इसके बाद सिन्धु की सहायक नदियों की घाटियाँ हैं। दूसरी श्रेणी के रूप में पीर-पंजाल व धौलाधार की लघु हिमालयी श्रेणियाँ मिलती हैं। पीर-पंजाल और बृहत् हिमालय के बीच कश्मीर घाटी है। तीसरी श्रेणी के रूप में बृहत् हिमालय की जास्कर श्रेणी पाई जाती है। इसके बाद लद्दाख व कराकोस्म की श्रेणियाँ पाई जाती हैं जिनके बीच सिन्धु घाटी पाई जाती है।

प्रश्न 20.
तटीय मैदानों का भारत के लिए क्या आर्थिक महत्त्व है?
उत्तर:
1. इन तटों की उपजाऊ मिट्टी के व्यापक स्तर पर चावल की खेती की जाती है। यहाँ बड़े पैमाने पर काजू, सुपारी, रबड़, गर्म मसाले, अग्नि व लेमन घास तथा फल उगाए जाते हैं। तटों पर उगाने वाले नारियल की जटाओं से अनेक प्रकार की उपयोगी वस्तुएँ बनती हैं।

2. तट से घाट की ओर पाए जाने वाले ढाल पर चाय और कॉफी के बागान मिलते हैं। ये हमारी निर्यात प्रधान उपजें हैं।

3. भारत का 98 प्रतिशत विदेशी व्यापार तटों पर स्थित प्रमुख बन्दरगाहों द्वारा होता है।

4. केरल तट तथा पूर्वी तट की नदियों के डेल्टाई क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में मछलियाँ पकड़ी जाती हैं।

5. खनिज सम्पदा की दृष्टि से भारत के दोनों तट सम्पन्न हैं। अरब सागर में महाद्वीपीय मग्नतट पर मुम्बई हाई में खनिज तेल पाया जाता है। केरल तट पर मोनोज़ाइट, थोरियम तथा जिरकन (Zircan) नामक बहुमूल्य खनिज मिलते हैं। इनसे परमाणु शक्ति प्राप्त होती है।

6. तटीय क्षेत्रों, विशेष रूप से गुजरात में समुद्री जल का वाष्पीकरण करके नमक बनाया जाता है।

7. तटों पर विकसित अनेक बन्दरगाह नगरों में जलयान निर्माण, तेलशोधन तथा सूती वस्त्र जैसे महत्त्वपूर्ण उद्योग स्थापित हो गए हैं।

8. तट पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। इससे स्थानीय लोगों को रोज़गार व देश को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।

प्रश्न 21.
भारत में बंगाल की खाड़ी के द्वीपों का भौगोलिक विवरण दीजिए।
उत्तर:
निकटवर्ती द्वीपों में पाम्बन द्वीप, न्यू मरे द्वीप, श्री हरिकोटा द्वीप हैं। सुदूरवर्ती द्वीपों में अण्डमान व निकोबार द्वीप समूह हैं। ये 300 कि० मी० की लम्बाई में एक अर्धचन्द्राकार आकृति में फैले हैं। इनका क्षेत्रफल 8,300 वर्ग कि० मी० है। इस द्वीप समूह में कटे-फटे द्वीप हैं जिनकी अधिकतम ऊंचाई 730 मीटर है। इनमें से कुछ की उत्पत्ति ज्वालामुखी उद्गारों से हुई है। इन पर दो ज्वालामुखी द्वीप-बैरन द्वीप (Barren Island) व नरकोण्डम द्वीप (Narcon-dam Island) हैं जो पोर्ट ब्लेयर के उत्तर में स्थित हैं। अण्डमान द्वीप समूह के दक्षिण में 19 द्वीपों का निकोबार द्वीप समूह है जिसके उत्तरी भाग को कार निकोबार व दक्षिणी भाग को महान् निकोबार कहा जाता है। यह द्वीप समूह 6°30′ उत्तरी तथा 9°30′ अक्षांशों के बीच स्थित है। अण्डमान व निकोबार द्वीप समूह गहरे समुद्र द्वारा अलग किए गए हैं। इस समुद्र को ’10° चैनल’ कहा जाता है क्योंकि यह 10° उत्तरी अक्षांश रेखा से संपात (Coincide) होता है। महान् निकोबार के अन्तिम बिन्दु को इन्दिरा प्वाइण्ट (Indira Point) कहा जाता है। यह भारत का सुदूरतम दक्षिणी बिन्दु है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के प्रमुख भू-आकृतिक विभाग कौन-से हैं? हिमालय क्षेत्र तथा प्रायद्वीपीय पठार के उच्चावच लक्षणों में क्या अंतर है?
उत्तर:
भारत के प्रमुख भू-आकृतिक विभाग निम्नलिखित हैं
1. उत्तर के विशाल पर्वत-हिमालय विश्व के सर्वोच्च नवीन वलित पर्वत हैं। इनमें तीन स्पष्ट पर्वत श्रेणियाँ हैं, जो एक-दूसरे के समानांतर फैली हैं। इनमें सबसे उत्तर वाली श्रेणी को ‘विशाल हिमालय’ अथवा ‘हिमाद्रि’ कहते हैं। हिमाद्रि के दक्षिण में ‘मध्य हिमालय’ अथवा ‘हिमाचल श्रेणी’ स्थित हैं। इसकी तीसरी व दक्षिणतम श्रेणी को ‘बाह्य हिमालय’ अथवा ‘शिवालिक की पहाड़ियाँ’ भी कहा जाता है।

2. उत्तर भारत का मैदान-उत्तर भारत के मैदान का निर्माण उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार से निकलने वाली नदियों द्वारा लाकर जमा की गई जलोढ़ गाद से हुआ है। यह संसार का बहुत ही विस्तृत एवं अत्यंत उपजाऊ मैदान है। इसके उच्चावच में बहुत कम अंतर है। उच्चावच के अंतर के आधार पर मैदानी भाग को चार भागों (1) भाबर, (2) तराई, (3) बांगर तथा (4) खादर में विभक्त किया जाता है।

3. प्रायद्वीपीय पठार-प्रायद्वीपीय पठार देश का सबसे प्राचीन भाग है। इस पठार को दो उपभागों-मध्यवर्ती उच्चभूमि तथा दक्कन का पठार में विभाजित किया जा सकता है। नर्मदा नदी की घाटी इसे दो भागों में विभाजित करती है। प्रायद्वीपीय पठार (मध्यवर्ती-उच्चभूमि) का उत्तरी भाग अनेक पठारों, अनाच्छादित पर्वत श्रेणियों तथा नीची पहाड़ियों द्वारा निर्मित है। यह भाग कठोर आग्नेय शैलों द्वारा बना है।
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 2 संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान 1
दक्कन का पठार उत्तर में सतपुड़ा, महादेव तथा मैकाल पहाड़ियों से दक्षिण की ओर प्रायद्वीप के दक्षिणी सिरे तक विस्तृत है। इसका उत्तरी-पश्चिमी भाग मुख्यतः लावा निक्षेपों से बना है।

हिमालय क्षेत्र तथा प्रायद्वीपीय पठार के उच्चावच लक्षणों में अंतर निम्नलिखित हैं-

हिमालय क्षेत्र प्रायद्वीपीय पठार
1. हिमालय अपेक्षाकृत नए तथा युवा वलित पर्वत हैं। 1. प्रायद्वीपीय पठार बहुत ही प्राचीन भू-खंड हैं। इसका निर्माण चट्टानों से हुआ है।
2. हिमालय पर्वत पूर्व में अरुणाचल प्रदेश से लेकर पश्चिमी कश्मीर तक 2400 कि०मी० की लंबाई में फैले हैं। 2. प्रायद्वीपीय पठार उत्तर-पश्चिम में अराबली पर्वत श्रेणी से लेकर उत्तर-पूर्व में शिलांग के पठार तक तथा दक्षिण से कन्याकुमारी तक फैला हुआ है।
3. हिमालय पर्वत का निर्माण तलछटी चट्टानों से हुआ है। यह संसार का सबसे युवा पर्वत है। इसकी औसत ऊँचाई 6000 मीटर है। 3. प्रायद्धीपीय पठार का निर्माण लगभग 50 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ है। यह आग्नेय चट्टानों से बना है।
4. हिमाचल को तीन स्पष्ट श्रेणियों-विशाल हिमालय, मध्य हिमालय तथा बाह्य हिमालय में बाँटा जा सकता है। 4. प्रायद्वीपीय पठार को मुख्यतः दो भागों-मालवा का पठार तथा दक्षिण का पठार में बाँटा जा सकता है।
5. हिमालय पर्वत से निकलने वाली नदियाँ बारहमासी हैं। 5. प्रायद्वीपीय पठार की नदियाँ बरसाती हैं। इनमें गर्मियों में पानी नहीं रहता।
6. हिमालय पर्वत क्षेत्र में खनिजों की कमी है। 6. प्रायद्वीपीय पठार खनिज पदार्थों से भरपूर है।

प्रश्न 2.
“उपमहाद्वीप के वर्तमान भू-आकृतिक विभाग एक लम्बे भू-गर्भिक इतिहास के दौर में विकसित हुए हैं।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
अथवा
भारत के भू-आकृतिक खण्ड की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वृहत स्तर पर भारत को मुख्य रूप से तीन भू-आकृतिक इकाइयों में बाँटा जा सकता है-

  • हिमालय पर्वत तथा इसकी शाखाएँ
  • उत्तरी भारत का मैदान
  • प्रायद्वीपीय पठार।

उप-महाद्वीप की ये तीनों भू-आकृतियाँ एक लम्बे भू-गर्भिक इतिहास के दौर में विकसित हुई हैं। कई भू-वैज्ञानिकों ने इनके निर्माण के सम्बन्ध में बहुत-से प्रमाण प्रस्तुत किए हैं। परन्तु इसके अतीत का पूर्ण रूप से अनावरण नहीं हो पाया है। इनका वर्णन इस प्रकार है
1. हिमालय पर्वत तथा इसकी शाखाएँ-यह एक नवीन वलित पर्वत है। विद्वानों के अनुसार लगभग सात करोड़ वर्ष पहले मध्यजीवी पुराकल्प (Mesozoic) में हिमालय पर्वत के स्थान पर टेथिस सागर नामक एक विशाल भू-अभिनति थी। इसके उत्तर में अंगारालैण्ड तथा दक्षिण में गोंडवानालैण्ड था।

इन दोनों भू-भागों से अनेक नदियों ने इस सागर में तलछट का निक्षेप किया तथा यह क्रम बहुत लम्बे समय तक चलता रहा। मेसोजोइक युग के अन्त में इस क्षेत्र में भू-गर्भीय हलचलें हुईं तथा संपीडन के कारण, टेथिस सागर की तली में एकत्रित पदार्थ धीरे-धीरे ऊपर उठने लगा जिससे हिमालय पर्वतों का निर्माण होता गया। भू-गर्भिक सर्वेक्षण के अध्ययन से पता चला है कि हिमालय पर्वतों में पर्वत निर्माण कार्य की पहली हलचल अल्प नूतन युग में, दूसरी अवस्था मध्य नूतन युग में और तीसरी अवस्था उत्तर अभिनूतन युग में हुई। भू-वैज्ञानिकों के अनुसार उत्थान तथा वलन का क्रम अभी तक जारी है।

2. उत्तरी भारत का मैदान यह मैदान हिमालय पर्वत और दक्षिणी पठार के मध्य स्थित है। यह एक समतल तथा काँप के निक्षेपों से निर्मित उपजाऊ मैदान है। हिमालय के निर्माण के पश्चात्, हिमालय तथा दक्षिणी पठार के बीच एक गर्त बन गया था जिसे टेथिस सागर ने जल से भर दिया था। इस गर्त में हिमालय पर्वत तथा दक्षिणी पठार से बहने वाली नदियाँ तथा उनकी सहायक नदियाँ इसे भरती चली गईं और इसने एक विशाल मैदान का रूप धारण कर लिया। यह मैदान युगों तक नदियों द्वारा लाए गए तथा जमा किए गए पदार्थों से बना है और यह क्रम अब भी जारी है। सुन्दरवन का निरन्तर बढ़ना इस बात का प्रमाण है।

3. प्रायद्वीपीय पठार-भू-गर्भ शास्त्रियों के अनुसार यह प्राचीनतम भू-खण्ड है, जिसकी रचना कैम्ब्रियन-पूर्व युग में हुई। कुछ विद्वानों के मतानुसार यह एक उत्खण्ड है। इसका उत्थान सागर से हुआ। इसके पश्चिमी भाग में अरावली पर्वत तथा दक्षिण में अन्नामलाई पर्वतमाला का उत्थान विंध्य महायुग में हुआ। इसके पश्चात् दक्षिणी पठारी क्षेत्र में एक लम्बे समय तक संपीडन तथा वलन का क्रम चलता गया तथा तनाव के कारण इस क्षेत्र में भ्रंशन तथा विभाजन होते रहे।

हिमालय पर्वत के निर्माण के पश्चात् प्लिओसीन युग में पठार के उत्तर:पश्चिमी भाग में धंसने के कारण अरब सागर का निर्माण हुआ तथा पश्चिमी घाट एक दीवार की भाँति समुद्र की ओर खड़े रह गए। एक धारणा के अनुसार पूर्वी तटों की तट रेखा पर पुराजीव काल के पश्चात् कोई परिवर्तन नहीं आया है। यह पठार विशाल गोंडवाना महाद्वीप का एक भाग माना जाता है।

प्रश्न 3.
विभिन्न भू-गर्भिक प्रक्रियाओं द्वारा विकसित प्रायद्वीपीय पठार की भौतिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के प्रायद्वीपीय पठार की भौतिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) आदि गोण्डवाना से अलग हुआ यह प्रखण्ड तीन ओर से समुद्र द्वारा घिरा होने के कारण प्रायद्वीपीय पठार कहलाता है।

(2) क्रमिक अपरदन चक्र के कारण घिसकर जीर्ण अवस्था में पहुंच चुका है। खड़ी कटकें व द्रोणी घाटियाँ यहाँ के अपरदित धरातल की एकरूपता को भंग करती हैं।

(3) जिस मुख्य प्लेट पर हमारा पठार स्थित है उसे भारतीय प्लेट (Indian Plate) कहते हैं। इस चापाकार प्रायद्वीप के पूर्वी कोने पर शिलांग का पठार व पश्चिमी कोने पर केराना की पहाड़ियाँ हैं। वर्तमान में ये दोनों भाग मुख्य पठार से अलग दिखाई पड़ते हैं क्योंकि नदियों ने इन्हें प्रायद्वीप से काटकर वहाँ निक्षेप जमा कर दिए हैं।

(4) यह पठार प्राचीनतम भू-पर्पटी शैलों से बना हुआ है जिनका जन्म पूर्व कैम्ब्रियन युग में निक्षेपित अवसादों के समुद्र की सतह से ऊपर उठने से हुआ था।

(5) एक बार समुद्र से ऊपर उठने के पश्चात् भारत का यह भू-भाग फिर कभी समुद्र में नहीं डूबा। आज तक सपाट भूमि एक दृढ़, अगम्य व अलचीले खण्ड के रूप में कायम है। इसलिए इस पठार की तुलना उत्खण्ड (Horst) से की जाती है।

(6) प्रायद्वीपीय पठार के संरचनात्मक इतिहास की प्रथम प्रमुख घटना विन्ध्य महाकल्प (पैल्योजोइक) (Vindhyan Palaeozoic) में घटी जब अरावली क्षेत्र की भू-अभिनति में जमे अवसाद से विशाल अरावली पर्वत-श्रेणी का निर्माण हुआ।

(7) सम्भवतः अरावली के जन्म-काल के समय ही दक्षिण की नल्लामलाई पर्वत-श्रेणी (Nallamalai Range) का विकास हुआ था।

(8) इसके बाद प्रायद्वीपीय भारत एक लम्बे समय तक संपीडन तथा वलन क्रियाओं से मुक्त रहा। यद्यपि पृथ्वी में तनाव से उत्पन्न ऊर्ध्वाधर हलचलों के कारण भ्रंशन तथा विभंजन होते रहे।

(9) नए उत्थानों के कारण नई अपरदन-क्रिया हुई जिसके कारण यहाँ की जीर्ण और वृद्ध स्थलाकृति पर युवा लक्षणों का प्रादुर्भाव भी होता रहा। पलनी तथा नीलगिरि की पहाड़ियाँ नए उत्थानों के प्रमाण हैं। दूसरी ओर भू-भागों के अवतलन के प्रमाण गोदावरी, महानदी तथा दामोदर घाटियों के द्रोणी भ्रंश तथा नर्मदा, ताप्ती, मालाबार और मेकरान तटों के भ्रंश धंसाव से मिलते हैं।

(10) हिमालय के उत्थान के समय प्रायद्वीपीय पठार पर निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटी

  • पठार के उत्तरी तथा पश्चिमी भागों पर विस्तृत ज्वालामुखी उद्भेदन हुआ जिसके कारण यहाँ का लगभग 5 लाख वर्ग कि० मी० क्षेत्र लावा से ढक गया। इसी लावा प्रदेश की काली उपजाऊ मिट्टी पर कपास की कृषि होती है।
  • दक्षिणी पठार का पश्चिमी भाग धंस गया जिससे अरब सागर का निर्माण हुआ।
  • भूमि के इस निमज्जन ने पश्चिमी घाट को उभारकर पर्वतमाला का रूप दे दिया और भू-आकृतिक विषमता प्रदान की।
  • अरब सागर की आयु के बारे में भू-गर्भ शास्त्रियों में सहमति है कि इसकी उत्पत्ति प्लिओसीन (Pliocene Age) से पहले नहीं हुई थी।

प्रश्न 4.
हिमालय पर्वत की उत्पत्ति कैसे हुई? वर्णन कीजिए। अथवा हिमालय पर्वत श्रेणियों की उत्पत्ति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
हिमालय पर्वत श्रेणियों की उत्पत्ति-हिमालय की चट्टानों से प्रमाणित होता है कि इस पर्वत का जन्म समुद्र के नीचे हुआ था। भू-गर्भ शास्त्रियों के अनुसार आज से 7 करोड़ वर्ष पूर्व मेसोजोइक युग (Mesozoic Syncline) में वर्तमान हिमालय के स्थान पर भू-अभिनति (Geo Syncline) के रूप में एक सागर था जिसे टेथिस सागर (Tethys Sea) के नाम से जाना जाता है। उस समय उत्तरी मैदान समेत समस्त हिमालय क्षेत्र टेथिस सागर की सतह (Sea Level) से नीचे था। इस सागर के उत्तर में अंगारालैण्ड (Angaraland) व दक्षिण में गोंडवानालैण्ड (Gondwanaland) नामक दो भू-खण्ड थे।

इन दोनों स्थलीय भागों से आने वाली नदियों ने टेथिस सागर की तली में तलछट का निक्षेपण किया। मेसोजोइक युग के अन्त में कुछ भू-गर्भिक हलचलों के कारण सागर के उत्तर व दक्षिण में स्थित स्थलीय भाग अंगारालैण्ड व गोंडवानालैण्ड एक-दूसरे की ओर बढ़ने लगे। इस संपीडन (Compression) के कारण टेथिस सागर की तली में एकत्रित तलछट वलित होकर धीरे-धीरे ऊपर उठने लगे। तलछट के समुद्री सतह से ऊपर उठने से हिमालय पर्वतों का निर्माण हुआ। इन पर्वतों का उत्थान धीरे-धीरे अनेक युगों में होता रहा। विद्वानों का मत है कि वर्तमान में ठ रहे हैं। हिमालय पर्वत का निर्माण टरश्यरी दौर में हुआ। अतः इस दौर को अल्पाइन दौर (Alpine Age) भी कहा जाता है क्योंकि यूरोप के आल्पस पर्वत का उत्थान भी इसी काल में हुआ था।

हिमालय व आल्प्स पर्वत के निर्माण सम्बन्धी टेथिस भू-अभिनति सिद्धान्त की मान्यता अब कम हो गई है। इस सिद्धान्त की अपेक्षा प्लेट विवर्तनिकी (Plate Tectonic) के सिद्धान्त को वैज्ञानिक अधिक महत्त्व दे रहे हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार पर्वत निर्माणकारी घटनाओं का सम्बन्ध प्लेटों की गति से है। समस्त भू-पटल 6 मुख्य प्लेटों अथवा प्राचीन शील्डों (Ancient Shields) में बँटा है। ये प्लेटें प्रशांती प्लेट, यूरेशियाई प्लेट, अमरीकी प्लेट, भारतीय प्लेट, अफ्रीकी प्लेट तथा अण्टार्कटिका प्लेट के नाम से विख्यात हैं।

ये प्लेटें धीमी गति से अर्ध-द्रवीय सतह पर सरक रही हैं। प्लेटों का आपसी टकराव उनमें तथा ऊपर की महाद्वीपीय चट्टानों में प्रतिबलों को जन्म देता है जिसके कारण वलन (Folding), भ्रंशन (Faulting) व आग्नेय क्रियाएँ (Igneous Activities) होती हैं।

हिमालय पर्वत का निर्माण भारतीय प्लेट के उत्तर दिशा में सरकने और यूरेशियन प्लेट को नीचे से धक्का देने से हुआ। लगभग साढ़े छः से सात करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय प्लेट के उत्तर में खिसकने के कारण टेथिस सागर सिकुड़ने लगा। लगभग तीन से छः करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय व यूरेशियाई प्लेटें एक-दूसरे के काफी निकट आ गईं। परिणामस्वरूप टेथिस क्षेपकार (Thrust Edges) विभंगित होने लगे। लगभग 2 से 3 करोड़ वर्ष पूर्व हिमालय की पर्वत-श्रेणियाँ टेथिस सागर की सतह से ऊपर उभरने लगीं।

प्रश्न 5.
उच्चावच के आधार पर भारत को कितने भागों में बाँटा जा सकता है? इनमें से किसी एक भाग का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
अथवा
हिमालय पर्वत समूह का विस्तृत भौगोलिक वर्णन कीजिए। उत्तर:उच्चावच के आधार पर भारत को निम्नलिखित पाँच भागों में बाँटा जा सकता है-

  • उत्तरी पर्वतीय प्रदेश
  • सिन्धु-गंगा, ब्रह्मपुत्र का मैदान
  • प्रायद्वीपीय पठार
  • तटीय मैदान
  • द्वीप।

उत्तरी पर्वतीय प्रदेश अथवा हिमालय पर्वत समह भारत के उत्तरी भाग में स्थित पर्व-पश्चिमी दिशा में फैली हिमालय पर्वत-मालाएँ तीन समानान्तर तथा चाप की आकृति में दीवार की भाँति पाई जाती हैं। ये लगभग 2,400 कि०मी० लम्बे तथा 160 से 400 कि०मी० चौड़े क्षेत्र में पाए जाते हैं, जिनका अध्ययन इस प्रकार से है-
1. बृहत हिमालय (Great Himalayas)-ये हिमालय की बहुत ऊँची पर्वत-श्रेणियाँ हैं, जिनकी मध्यमान ऊँचाई 6,000 मीटर। तथा चौड़ाई 25 कि०मी० है। संसार की उच्चतम तथा प्रमुख चोटियाँ इसी क्षेत्र में पाई जाती हैं। यहाँ की महत्त्वपूर्ण चोटियाँ एवरेस्ट, कंचनजंगा, धौलागिरि, मैकालू, नन्दादेवी, अन्नपूर्णा आदि हैं जो सदा बर्फ से ढकी रहती हैं। इसी कारण बृहत हिमालय को ‘हिमाद्रि’ कहा जाता है।

2. मध्य हिमालय (Middle Himalayas) इन्हें लघु हिमालय भी कहते हैं। ये बृहत् हिमालय के दक्षिण में इनके समानान्तर, पूर्व-पश्चिम दिशा में लगभग 80 से 100 कि०मी० की चौड़ाई में फैले हुए हैं। इनकी औसत ऊँचाई 3,500 से 5,000 मीटर तक है। इन पर्वतों की कई शाखाएँ हैं; जैसे पीर-पंजाल तथा धौलाधार आदि। इन पर्वतों में लम्बी-चौड़ी घाटियाँ भी पाई जाती हैं; जैसे कश्मीर घाटी तथा नेपाल की काठमाण्डू घाटी आदि। भारत के अधिकतर स्वास्थ्य-वर्धक तथा रमणीक स्थल इन्हीं पर्वतों में पाए जाते हैं। इस क्षेत्र में ऊबड़-खाबड़ मैदान; जैसे अक्साईचीन, देवसाई, दिपसांग आदि पाए जाते हैं।

3. बाह्य हिमालय (Outer Himalayas)-इन्हें शिवालिक की पहाड़ियाँ भी कहते हैं। ये भी पूर्व-पश्चिम दिशा में लघु हिमालय के समानान्तर 10 से 50 कि०मी० की चौड़ाई में फैले हुए हैं। इनकी औसत ऊँचाई 1,000 से 1,500 मीटर है। मध्य हिमालय तथा बाह्य हिमालय के बीच कुछ घाटियाँ पाई जाती हैं, जिन्हें ‘दून’ कहते हैं। इनको पूर्व में ‘दुआर’ कहते हैं। देहरादून, पटलीदून, कोटली, चौखम्भा व ऊना इसी प्रकार की घाटियों में स्थित हैं।

हिमालय की उत्तरी ढलान पर हिम-नदियों का जमाव अधिक होता है क्योंकि उत्तरी ढलान मन्द है। इसके विपरीत, दक्षिणी ढलान कगार की भाँति तीव्र है। इसी प्रकार पूर्वी तथा पश्चिमी भागों में भी इन पर्वतों की ढाल में अन्तर पाया जाता है। पूर्वी भाग की ओर बिहार तथा पश्चिमी बंगाल की तरफ पर्वतों की ढाल तीव्र है।

हिमालय का प्रादेशिक विभाजन-सर सिडीन बुराई महोदय ने सिन्धु नदी तथा ब्रह्मपुत्र नदी के बीच स्थित भारतीय हिमालय पर्वत को निम्नलिखित चार भागों में बाँटा है-
1. पंजाब हिमालय-यह हिमालय पर्वत-श्रृंखला पश्चिम में सिन्धु नदी से लेकर पूर्व में सतलुज नदी तक फैली हुई है। ये पर्वत अधिकतर जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल राज्यों में फैले हुए हैं। पर्वतों के इस भाग की लम्बाई लगभग 560 कि०मी० है। यहाँ मुख्य पर्वत-श्रेणियाँ धौलाधार तथा पीर-पंजाल हैं। यहाँ का मुख्य दर्रा जोजिला है।

2. कुमाऊँ हिमालय-यह भाग सतलुज नदी से लेकर नेपाल की सीमा पर स्थित काली नदी तक विस्तृत है। इस भाग की लम्बाई 320 कि०मी० है। ये अधिक ऊँचे पर्वत हैं जहाँ अनेक हिमनद झीलें पाई जाती हैं। यहाँ स्वास्थ्य-वर्धक स्थल; जैसे मसूरी, नैनीताल, शिमला, अल्मोड़ा आदि स्थित हैं। यहाँ प्रसिद्ध चोटियाँ बद्रीनाथ, केदारनाथ तथा नन्दा देवी हैं। नीतीपास यहाँ का महत्त्वपूर्ण दर्रा है। गंगा तथा यमुना नदियों के उद्गम-स्थल भी इन्हीं पर्वतों में स्थित हैं।

3. नेपाल हिमालय-ये पर्वत पश्चिम में काली नदी से लेकर पूर्व में तिस्ता नदी तक फैले हुए हैं तथा ये नेपाल देश में स्थित हैं। इनकी लम्बाई लगभग 800 कि०मी० है। इस क्षेत्र में हिमालय की सर्वाधिक ऊँची चोटियाँ मिलती हैं; जैसे एवरेस्ट, कंचनजंगा, धौलागिरि आदि।
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4. असम हिमालय ये पर्वत-श्रेणियाँ पश्चिम में तिस्ता नदी से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी तक फैली हुई हैं तथा लगभग 700 कि०मी० लम्बी हैं। यहाँ पर्वतों की ऊँचाई कुछ कम पाई जाती है। नामचा बरवा तथा कुला कांगड़ी यहाँ की मुख्य चोटियाँ हैं।

हिमालय का भू-वैज्ञानिक विभाजन-हिमालय पर्वत का यह विभाजन चट्टानों के समूहों तथा उनके प्रकार पर आधारित है। इस आधार पर इन पर्वत को चार भू-वैज्ञानिक भागों में बाँटा गया है
1. तिब्बती क्षेत्र-ये क्षेत्र बृहत् हिमालय के उत्तर में स्थित हैं ये पुराजीवी महाकल्प से लेकर आदिनूतन महाकल्प के जीवाश्म वाली चट्टानों से निर्मित हैं, जो तलछटी हैं।

2. वलनों वाला बृहत् हिमालय क्षेत्र-बृहत् हिमालय के साथ-साथ इस वर्ग में कुछ लघु हिमालय भी शामिल हैं और यह क्षेत्र रवेदार तथा कायांतरित चट्टानों; जैसे ग्रेनाइट तथा शिस्ट आदि चट्टानों का बना हुआ है। पुराने क्रम की तलछटी चट्टानें भी यहाँ मिलती हैं।

3. प्रतिवलनों तथा अधिक्षेप भ्रंशों का क्षेत्र यह एक जटिल (Complex) क्षेत्र है जहाँ प्रतिवलन (Overturned Folds) तथा अधिक्षेप भ्रंशों (Overthrust Faults) के समूह बहुत मिलते हैं। प्राचीन चट्टानों के भौतिक रूप से स्थानान्तरण के कारण नवीन चट्टानों के ऊपर आने से शयान वलनों (Recumbent Folds) का निर्माण यहाँ पाया जाता है। ग्रीवा-खण्ड (Nappes) भू-आकृति विशेष रूप से कश्मीर, हिमाचल तथा गढ़वाल क्षेत्र में पाई जाती है।

4. बाह्य या उपहिमालयी क्षेत्र यह क्षेत्र तृतीयक काल के तलछटी निक्षेपों से बना हुआ है। अनुमान है कि ये तलछट मुख्य हिमालय की पर्वत-श्रेणियों से लाए गए हैं। हिमालय का मूल धरातल नदियों तथा हिम नदियों द्वारा रूपान्तरित होता रहा है। अपरदन शक्ति के महत्त्वपूर्ण प्रभाव तथा उनसे बनी भू-आकृतियाँ यहाँ विशेषतया दिखाई देती हैं। विभिन्न क्षेत्रों में बिखरे शिला-खण्ड (Erratic Blocks) काफी दूर-दूर तक पाए जाते हैं और अनेक U-आकार तथा लटकती घाटियों का मिलना प्रभावशाली हिम नदी के प्रभाव को दर्शाते हैं। ऐसा लगता है कि हिमालय क्षेत्र हिमानीकरण (Glaciation) के अनेक चरणों में से गुजरा है। बीच-बीच में उष्ण युगों का आना भी यहाँ नदी-वेदिकाओं से जाहिर होता है।

प्रश्न 6.
सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र के विशाल मैदान का प्रादेशिक प्रारूप का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत की भू-आकृति विज्ञान को बतलाते हुए सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र के मैदानों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
उत्तर भारत का विशाल मैदान पूर्व में बर्मा (म्याँमार) की सीमा से पश्चिम में पाकिस्तान तक फैला है। असम में ब्रह्मपुत्र एवं उसकी सहायक नदियों का यह मैदानी भाग संकरा है, लेकिन पश्चिम में इसकी चौड़ाई अधिक है। पूर्व में यह मैदान 150 कि०मी०। तथा मध्य में इलाहाबाद के आसपास 280 कि०मी० चौड़ा है। लाखों वर्षों से हिमालय से निकलने वाली नदियों ने इसमें अवसाद (तलछट) की मोटी परत बिछा दी है तथा कहीं-कहीं पर इसकी मोटाई 2,000 मीटर तक मापी गई है। जलौढ़ मिट्टी के जमाव के कारण यह मैदानी भाग विश्व के उपजाऊ प्रदेशों में से एक है। इसलिए इसे भारत की ‘रोटी की टोकरी’ (Bread Basket) कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। भू-आकृतिक दृष्टि से पंजाब से असम तक के मैदान की ऊँचाई तथा उच्चावच में काफी असमानताएँ पाई जाती हैं जो निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित की जा सकती हैं-
(1) भाबर-यह शिवालिक श्रेणियों के गिरिपद (Foot hill) पर एक संकरी पट्टी के रूप में विस्तृत है। इस क्षेत्र में नदियों द्वारा पत्थर, कंकड़ तथा बलुई मिट्टी का जमाव किया जाता है तथा छोटी नदियाँ भूमिगत हो जाती हैं।

(2) तराई-भाबर के दक्षिण में अपेक्षाकृत कोमल एवं चिकनी मिट्टी का क्षेत्र है, जहाँ भाबर की लुप्त सरिताएँ पुनः धरातल पर अवतरित हो जाती हैं। परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में आर्द्रता की अधिकता एवं उपजाऊ मिट्टी पाई जाती है। इस क्षेत्र में दलदल एवं वनों तथा वन्य प्राणियों की अधिकता पाई जाती है।

(3) बांगर-बांगर पुरानी जलौढ़ मिट्टी का क्षेत्र है जहाँ बाढ़ का पानी नहीं पहुंच पाता है। यह अपेक्षाकृत ऊँचा उठा हुआ भू-भाग है।

(4) खादर-यह क्षेत्र नीचा है, जहाँ प्रतिवर्ष नदियों की बाढ़ का पानी पहुँच जाता है तथा प्रतिवर्ष जलौढ़ मिट्टी की नई परत बिछती जाती है जिसके फलस्वरूप इस क्षेत्र का उपजाऊपन प्राकृतिक रूप से बना रहता है।

उत्तर के विशाल मैदान का प्रादेशिक विभाजन-उत्तर का विशाल मैदान उच्चावच की दृष्टि से विभिन्नता रखता है। पश्चिम में सिन्ध नदी से लेकर पूर्व में असम तक इसमें प्रादेशिक विभिन्नताएँ पाई जाती हैं। इन विभिन्नताओं के आधार पर इस मैदान को निम्नलिखित तीन भागों (प्रदेशों) में बाँटा जा सकता है-
1. पंजाब तथा हरियाणा का मैदान-उत्तरी-पश्चिमी भारत की पाँच नदियों द्वारा निर्मित इस मैदानी भाग को पंजाब का मैदान कहते हैं जिसमें तीन राज्य (पंजाब, हरियाणा तथा दिल्ली) सम्मिलित हैं। पाँच नदियों के बीच का क्षेत्र, जिसे ‘दोआब’ कहते हैं, इसी से निर्मित है। यह मैदानी भाग अपनी उर्वरता के लिए प्रसिद्ध है। ब्यास, सतलुज, रावी, चेनाब तथा झेलम नदियों द्वारा लाई तलछट के जमाव से इस मैदानी भाग का निर्माण हुआ है। शिवालिक नदियों के साथ-साथ अपरदन अधिक होने के फलस्वरूप बड़ी संख्या में खड्डे मिलते हैं, जिन्हें ‘चो’ (Chos) कहते हैं। दक्षिण में इस मैदानी भाग की सीमा अरावली तथा पश्चिम में राजस्थान के बालू के टिब्बों तथा पूर्व में यमुना नदी द्वारा बनती है। इस मैदान का उत्तरी भाग अपेक्षाकृत अधिक आर्द्र एवं उपजाऊ है।

2. गंगा का मैदान उत्तर:पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आरम्भ होकर पश्चिमी बंगाल तक विस्तृत है, जिसकी उत्तरी सीमा शिवालिक तथा दक्षिणी सीमा दक्कन के पठारी भाग द्वारा निर्धारित होती है। उत्तर में हिमालय से निकलने वाली गंगा, यमुना, रामगंगा, गोमती, गंडक, घाघरा तथा कोसी और दक्षिणी पठारी भाग से उत्तर की ओर बहने वाली नदियों में चम्बल, बेतवा, केन और सोन नदियों के तलछट के जमाव द्वारा इस मैदानी भाग का निर्माण हुआ है। इस मैदान को भूगोल-वेत्ताओं ने प्रादेशिक आधार पर तीन भागों ऊपरी गंगा का मैदान, गंगा का मध्यवर्ती मैदान तथा गंगा का निचला मैदान, में बाँटा है। इन सब में ऊपरी गंगा का मैदान (गंगा तथा यमुना का दोआब) सबसे अधिक उपजाऊ है। यहाँ तलछट की मोटाई 1,000 मीटर से 2,000 मीटर तक है। सम्पूर्ण उत्तर के विशाल मैदान का ढाल उत्तर:पश्चिम से पूर्व की ओर है।

3. ब्रह्मपुत्र का मैदान ब्रह्मपुत्र के मैदान का अधिकांश हिस्सा असम राज्य में सम्मिलित है। असम घाटी (मैदान) धुबरी (Dhubri) से सदिया तक 640 कि०मी० लम्बी है और इसकी चौड़ाई लगभग 100 किलोमीटर है। बीच में मैदान की चौड़ाई कम हो जाती है। मैदान के दक्षिण में पहाड़ियों के ढाल साधारण हैं, जबकि उत्तर में हिमालय का ढाल तीव्र है।

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प्रश्न 7.
प्रायद्वीपीय पठार का भौगोलिक वर्णन कीजिए।
अथवा
दक्षिणी भारत की भू-आकृतिक संरचना का विस्तृत वर्णन करें।
उत्तर:
उत्तरी मैदान के दक्षिण में पठारी प्रदेश तीन ओर से समुद्र से घिरा होने के कारण प्रायद्वीपीय पठार कहलाता है। यह एक त्रिभुजाकार प्रदेश है जिसका आधार दिल्ली एवं राजमहल की पहाड़ियों के बीच तथा शीर्ष दक्षिण में कन्याकुमारी पर स्थित है। शिलांग की पहाडियाँ इसके उत्तरी विस्तार के प्रमाण हैं। नर्मदा तथा ताप्ती की सँकरी घाटियों ने इसे दो असमान भागों में बाँट दिया है। उत्तर में इसे मालवा पठार तथा दक्षिण में दक्कन ट्रेप कहते हैं।

मालवा का पठार-यह पठार नर्मदा, ताप्ती नदियों के उत्तर में तथा विन्ध्य पर्वत के उत्तर:पश्चिम में त्रिभुज आकृति में फैला हुआ है। इसके उत्तर:पश्चिम में अरावली पर्वत तथा उत्तर:पूर्व में गंगा का मैदान है तथा यह ग्रेनाइट चट्टानों का बना हुआ है। यह ऊबड़-खाबड़ तथा बड़े-बड़े बीहड़ एवं खड्ड वाला प्रदेश है। इस पठार की औसत ऊँचाई 800 मी० है। यहाँ विंध्याचल पर्वत की औसत ऊँचाई 730 मीटर तथा एक भ्रंश पर्वत है। इसके दक्षिण में नर्मदा-ताप्ती नदियों के बीच सतपुड़ा पर्वत है, जिसकी लम्बाई 1,120 कि०मी० है। यहाँ सबसे ऊँचा शिखर धूपगढ़ 1,350 मीटर ऊँचा है। ताप्ती नदी का उद्गम-स्थल महादेव पूर्व में स्थित है तथा महादेव के पूर्व में मैकालू है, जहाँ से नर्मदा नदी निकलती है।

अरावली की पहाड़ियाँ मालवा पठार के उत्तर:पश्चिम में स्थित हैं जो अहमदाबाद से दिल्ली तक फैली हुई हैं। ये अवशिष्ट पर्वत हैं। इस पर्वत की सबसे ऊँची चोटी गुरुशिखर, माऊण्ट आबू (राजस्थान) में है और 1,722 मीटर ऊँची है।

मुख्य पठार या दक्कन ट्रेप-यह पठार त्रिभुजाकार में है तथा इसके उत्तर:पश्चिम में सतपडा एवं विंध्याचल, उत्तर में महादेव तथा मैकालू, पूर्व में पूर्वी घाट तथा पश्चिम में पश्चिमी घाट है। यह लावे का बना हुआ है जिसकी औसत ऊँचाई 600 मीटर है। इस 2 लाख वर्ग कि०मी० क्षेत्र में फैले पठार की ढाल पूर्व की ओर है। इस पठार पर बहने वाली मुख्य नदियों-महानदी, संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी, ने पूर्व की ओर बहते हुए अपनी घाटियों को बहुत गहरा किया है तथा समूचे पठार को छोटे-छोटे भागों में विभाजित किया है।

पश्चिमी घाट ये उत्तर में ताप्ती नदी की घाटी से लेकर दक्षिण में कुमारी अन्तरीप तक फैले हुए हैं जो लगभग 1,600 कि०मी० लम्बे हैं तथा इनको सहयाद्रि कहा जाता है। इनको पार करने के लिए थाल घाट, भोर घाट तथा पाल घाट नामक दरों का प्रयोग किया जाता है। पश्चिमी ढलान की ओर सीढ़ियों के रूप में होने के कारण इन पर्वतों को घाट कहा जाता है। इस घाट के दक्षिण में नीलगिरि, पलनी, अन्नामलाई तथा इलायची की पहाड़ियाँ हैं। दक्षिणी भारत का सबसे ऊँचा शिखर अनाईमुड़ी, पलनी की पहाड़ियों में स्थित है, जो 2,695 मीटर ऊँचा है। नीलगिरि में सबसे ऊँची चोटी दोदाबेट्टा है।

पूर्वी घाट-ये घाट ओडिशा के उत्तर:पूर्वी भाग से शुरू होकर नीलगिरि की पहाड़ियों में जा मिलते हैं। इनकी औसत चौड़ाई उत्तर में 200 कि०मी० तथा दक्षिण में 100 कि०मी० है तथा औसत ऊँचाई 600 मीटर है। यहाँ सबसे ऊँची चोटी तिमाइगिरि की ऊँचाई 1,515 मी० है। ये घाट टूटी-फूटी अवशिष्ट पहाड़ियों की श्रृंखला हैं।।

प्रश्न 8.
भारत के तटीय मैदानों का भौगोलिक विवरण दीजिए।
उत्तर:
पश्चिमी तथा पूर्वी घाटों व समुद्र के बीच दो संकरे समुद्र तटीय मैदान हैं, जिन्हें क्रमशः पश्चिमी तटीय मैदान और पूर्वी तटीय मैदान कहते हैं।
1. पश्चिमी तटीय मैदान (Western Coastal Plain)-पश्चिमी घाट और अरब सागर के तट के बीच स्थित यह एक लम्बा, संकरा मैदानी प्रदेश है जो उत्तर में खम्भात की खाड़ी (Bay of Cambay) से दक्षिण में कुमारी अन्तरीप तक विस्तृत है। इस मैदान की औसत चौड़ाई 65 कि० मी० है। इसका उत्तरी भाग चौड़ा व दक्षिणी भाग संकरा है। दमन से गोआ तंक के 500 कि० मी० तक के प्रदेश को कोंकण तट, मध्य भाग में गोआ से मंगलौर तक के 225 कि० मी० के विस्तार को कन्नड़ या कनारा तटीय मैदान तथा मंगलौर व कन्याकुमारी के बीच के 500 कि० मी० क्षेत्र को मालाबार तट कहते हैं।

पश्चिमी घाट से अरब सागर में गिरने वाली असंख्य छोटी-छोटी तीव्रगामी नदियों ने पश्चिमी समुद्री तट को काट-छाँट दिया है। ऐसी स्थिति प्राकृतिक बन्दरगाहों के लिए बहुत अनुकूल होती है। इस मैदान के दक्षिण में मालाबार तट पर बालू के टिब्बे व अनूप (Lagoons) पाए जाते हैं। इन अनूपों को स्थानीय भाषा में कयाल (Kayals) कहा जाता है। अनूप खारे पानी की झीलें होती हैं जिन्हें बालू की रोधिका तथा भू-जिह्वा समुद्र से अलग करती हैं। कोचीन बन्दरगाह एक ऐसे ही अनूप पर स्थित है।

2. पूर्वी तटीय मैदान (Eastern Coastal Plain) यह मैदान पूर्वी घाट और बंगाल की खाड़ी के बीच स्थित है। उत्तर में स्वर्ण रेखा नदी से दक्षिण में कुमारी अन्तरीप तक विस्तृत यह मैदान पश्चिमी तटीय मैदान की अपेक्षा अधिक चौड़ा है। इस मैदान में महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी इत्यादि नदियों ने उपजाऊ डेल्टाओं का निर्माण किया है। इस मैदान के उत्तरी भाग अर्थात् महानदी से कृष्णा तक को उत्तरी सरकार कहते हैं। इसका दक्षिणी भाग अर्थात् कृष्णा से कावेरी तक का भाग कोरोमण्डल (Coromandal) या कर्नाटक (Carnatic) तट कहलाता है। पूर्वी तटीय मैदान में अनेक अनूप (Lagoons) पाए जाते हैं, जिनमें चिल्का, कोल्लेरू व पुलीकट झीलें प्रसिद्ध हैं। ये तटीय मैदान काफी उपजाऊ हैं।

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बहुविकल्पीय प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर का चयन करें-

1. करेवा भू-आकृति कहाँ पाई जाती है?
(A) उत्तरी-पूर्वी हिमालय
(B) पूर्वी हिमालय
(C) हिमाचल-उत्तराखण्ड हिमालय
(D) कश्मीर हिमालय
उत्तर:
(D) कश्मीर हिमालय

2. निम्नलिखित में से किस राज्य में ‘लोकताक’ झील स्थित है?
(A) केरल
(B) मणिपुर
(C) उत्तराखण्ड
(D) राजस्थान
उत्तर:
(B) मणिपुर

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3. अंडमान और निकोबार को कौन-सा जल क्षेत्र अलग करता है?
(A) 11° चैनल
(B) 10° चैनल
(C) मन्नार की खाड़ी
(D) अंडमान सागर
उत्तर:
(B) 10° चैनल

4. डोडाबेटा चोटी निम्नलिखित में से कौन-सी पहाड़ी श्रृंखला में स्थित है?
(A) नीलगिरि
(B) कार्डामम
(C) अनामलाई
(D) नल्लामाला
उत्तर:
(A) नीलगिरि

निम्नलिखित प्रश्नों के लगभग 30 शब्दों में उत्तर दें

प्रश्न 1.
यदि एक व्यक्ति को लक्षद्वीप जाना हो तो वह कौन-से तटीय मैदान से होकर जाएगा और क्यों?
उत्तर:
लक्षद्वीप अरब सागर में स्थित है। यह केरल तट से 280 से 480 कि०मी० की दूरी पर स्थित है। केरल तट मालाबार तट का ही भाग है। इनके बीच की दूरी 280 कि०मी० है। यदि किसी व्यक्ति को लक्षद्वीप जाना हो तो उसे मालाबार तट के मैदानी भाग से होकर जाना होगा, क्योंकि यही उसके लिए निकटतम दूरी वाला रास्ता होगा।

प्रश्न 2.
भारत में ठंडा मरुस्थल कहाँ स्थित है? इस क्षेत्र की मुख्य श्रेणियों के नाम बताएँ।
उत्तर:
भारत में ठंडा मरुस्थल कश्मीर हिमालय के उत्तरी-पूर्वी भाग में लद्दाख श्रेणी में स्थित है जो वृहत हिमालय और कराकोरम श्रेणियों के बीच स्थित है। वर्ष-भर तापमान निम्न रहने के कारण यह संपूर्ण क्षेत्र हिमाच्छादित रहता है। इसलिए यह क्षेत्र ठंडा मरुस्थल कहलाता है। इस क्षेत्र की मुख्य श्रेणियों के नाम हैं-कराकोरम श्रेणी, जास्कर श्रेणी, लद्दाख श्रेणी, पीरपंजाल श्रेणी आदि।

प्रश्न 3.
पश्चिमी तटीय मैदान पर कोई डेल्टा क्यों नहीं है?
उत्तर:
पश्चिमी तट पर बहने वाली मुख्य नदियाँ नर्मदा एवं ताप्ती हैं जो अरब सागर में गिरती हैं। ये नदियाँ डेल्टा न बनाकर ज्वारनदमुख बनाती हैं। इसलिए पश्चिमी तटीय मैदान पर कोई भी डेल्टा नहीं है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  • इन नदियों का अधिक तेजी से बहना।
  • इन नदियों के मार्ग की जल प्रवणता अधिक होना।
  • इन नदियों का एक भाग में बहना।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में स्थित द्वीप समूहों का तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर:
अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में स्थित द्वीप समूहों का तुलनात्मक विवरण इस प्रकार है-

अरब सागर में स्थित द्वीप समूह बंगाल की खाड़ी में स्थित द्वीप समूह
1. अरब सागर में स्थित प्रमुख द्वीप समूह हैं-लक्षद्वीप और मिनिकॉय। 1. बंगाल की खाड़ी में स्थित द्वीप समूह हैं-उत्तर में अंडमान और दक्षिण में निकोबार।
2. अरब सागर में लगभग 36 द्वीप हैं। 2. बंगाल की खाड़ी में लगभग 572 द्वीप हैं।
3. अरब सागर में स्थित द्वीप समूह 80° 12° उत्तर और 71° पूर्व से 74° पूर्व के बीच स्थित हैं। 3. बंगाल की खाड़ी में स्थित द्वीप समूह 6° उत्तर से 14° उत्तर और 92° पूर्व से 94° पूर्व के बीच स्थित हैं।
4. अरब सागर में स्थित लक्षद्वीप और मिनिकॉय का निर्माण प्रवाल निक्षेप से हुआ है। 4. बंगाल की खाड़ी में स्थित द्वीप समूह में जमग्न पर्वतों का हिस्सा है।
5. अरब सागर में स्थित द्वीप समूह पर तूफान निर्मित पुलिन हैं जिन पर अबद्ध गुटिकाएँ, शिंगिल गोलशिमकाएँ तथा गोलाश्म पूर्वी समुद्र तट पाए जाते हैं। 5. ये द्वीप असंगठित, कंकड़, पत्थरों व गोलाश्मों से बने हैं।
6. 9 डिग्री चैनल लक्षद्वीप कवरत्ती को मिनिकॉय से अलग करती है और 8 डिग्री चैनल मिनिकॉय द्वीप को मालद्वीप से अलग करती है। 6. 10 डिग्री चैनल लिटिल अण्डमान एवं कार निकोबार के बीच है। यह अण्डमान को निकोबार से अलग करती है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 2 संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान

प्रश्न 2.
नदी घाटी मैदान में पाए जाने वाली महत्त्वपूर्ण स्थलाकृतियाँ कौन-सी हैं? इनका विवरण दें।
उत्तर:
नदी जब पर्वतीय भाग से उतरकर मैदानी भागों में बहती है तो कई प्रकार की स्थलाकृतियों का निर्माण करती है। अतः नदी घाटी मैदान में पाए जाने वाली महत्त्वपूर्ण स्थलाकृतियाँ इस प्रकार हैं-
1. जलोढ़ पंख तथा जलोढ़ शंकु (Alluvial Fans and Alluvial Cones) जब नदी पर्वतीय प्रदेश को छोड़कर मैदानी भाग में प्रवेश करती है तो एकदम मन्द हो जाता है जिससे जल की गति भी मन्द हो जाती है। इससे नदी की भार ढोने की शक्ति कम हो जाती है और उच्च पर्वतीय प्रदेशों से लाया हुआ तलछट वहीं पर जलोढ़ पंख जमा हो जाता है। परिणामस्वरूप नदी अपने नद-भार को पर्वतीय कंदरा के बाहर एक अर्धचन्द्राकार अथवा अर्ध वृत्ताकार रूप में फैला देती है जिसे जलोढ़ पंख कहते हैं।
HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 2 संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान 1

जलोढ़ पंख की चोटी (Apex) कन्दरा के मुख पर होती है। यहाँ पर नदी अपने आपको कई शाखाओं में बाँट लेती है। जलोढ़ पंखों के अनेक उदाहरण हिमालय, एण्डीज तथा आल्पस पर्वतों के गिरिपदीय क्षेत्रों में मिलते हैं। कई बार जलोढ़ पंखों पर नद-भार अधिक मात्रा में जमा हो जाता है जिससे इसका ढाल तीव्र हो जाता है। इस प्रकार की आकृति को जलोढ़ शंकु कहते हैं। जलोढ़ शंकु प्रायः अर्ध-शुष्क प्रदेशों में पाए जाते हैं।
HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 2 संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान 2

2. गुंफित नदी (Braided River)-नदी के निचले भाग में नदी की भार वहन क्षमता बहुत कम हो जाती है जिसके कारण नदी अपने तल पर ही निक्षेपण करने लगती है और उसकी धारा अवरुद्ध होने लगती है। इस प्रकार नदी की धारा अनेक शाखाओं में विभक्त होने लग जाती है तथा इन धाराओं का एक जाल-सा बन बिजलोट को जाता है जिसे गुंफित नदी कहा जाता है।

3. नदी विसर्प तथा गोखुर झील (River Meanders and Oxbow Lake)-जब नदी समतल मैदान में बहती है तो उसकी गति मंद हो जाती है। ऐसी स्थिति में यदि उसके रास्ते में थोड़ी-सी भी रुकावट पड़ जाए तो उसमें मोड़ पड़ जाता है। इन मोड़ों के अवतल किनारे पर नदी का वेग अधिक होता है जबकि उत्तल किनारे पर नदी अवतल किनारे पर अपरदन करती है तथा उत्तल किनारे पर निक्षेपण करती है। अतः एक बार मोड़ पड़ जाने पर उसमें वृद्धि होती रहती है। जब नदी में कई मोड़ पड़ जाते हैं तो वह साँप की भाँति बल खाती जाती है। इसलिए इसे नदी विसर्प कहा जाता है।
HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 2 संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान 3
गोखुर झील कालान्तर में विसर्प अधिक बड़े तथा घुमावदार हो जाते हैं और दो मोड़ों के बीच चित्र : नदी-विसर्प तथा गोखर पतली-सी ग्रीवा रह जाती है। जब पतली ग्रीवा कट जाती है तो छोड़े हुए भाग के मुख अवसादी झीलों का विकास निक्षेपण से बन्द हो जाते हैं। ऐसा छोड़ा हुआ भाग अपनी आकृति के कारण गोखुर झील कहलाता है। गंगा के मार्ग में कई गोखुर झीलें देखने को मिलती हैं।

4. प्राकृतिक तटबन्ध तथा बाढ़ का मैदान (Natural Levees and Flood Plains)-नदी का वेग किनारों पर कम तथा मध्य में अधिक होता है। अतः मैदानी भागों में नदी अपने तलछट का बहुत-सा भाग किनारों पर जमा करती है। किनारों पर निरन्तर तलछट के जमाव से वे ऊँचे हो जाते हैं और उनकी आकृति बाँधों जैसी हो जाती है। प्रकृति द्वारा बनाए गए नदी के उन बाँधों के आकार के किनारों को प्राकृतिक तटबन्ध (Natural Levees) कहते हैं। चीन की ह्वांग-हो नदी तथा संयुक्त राज्य अमेरिका की मिसीसिपी नदी के प्राकृतिक तटबन्ध विश्वविख्यात हैं।
HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 2 संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान 4
जब कभी वर्षा ऋतु में नदी में बाढ़ आती है तो नदी का जल प्राकृतिक तटबन्धों को पार करके या तोड़कर दूर-दूर तक फैल जाता है और अपने साथ लाई हुई सामग्री को बिछा देता है। इस प्रकार एक विस्तृत उपजाऊ मैदान का निर्माण होता है जिसे बाढ़ का मैदान (Flood Plains) कहते हैं; जैसे भारत में गंगा का मैदान तथा चीन में हांग-हो का मैदान।

5. डेल्टा (Delta)-नदी अपने मुहाने पर अपने साथ लाई हुई मिट्टी, कंकड़, पत्थर आदि जमा करती है। धीरे-धीरे उसके मुहाने पर मिट्टी की परत के ऊपर परत जमती चली जाती है और मुहाना चीरकर नई दलदली भूमि समुद्र में से बाहर निकल आती है जो डेल्टा कहलाती है।

प्रश्न 3.
यदि आप बद्रीनाथ से सुंदरवन डेल्टा तक गंगा नदी के साथ-साथ चलते हैं तो आपके रास्ते में कौन-सी मुख्य स्थलाकृतियाँ आएँगी?
उत्तर:
बद्रीनाथ उत्तराखण्ड के चमोली जिले की फूलों की घाटी के समीप है। यदि हम बद्रीनाथ से गंगा नदी के साथ-साथ सुंदरवन डेल्टा के लिए चलें तो हमें अनेक प्रकार की भू-आकृतियों से होकर जाना पड़ेगा। पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित ऊँची-ऊँची चोटियों, गहरी घाटियों और 4 तीव्र ढाल वाले रास्तों या क्षेत्रों को पार करना पड़ेगा। रास्ते में आने वाली स्थलाकृतियाँ इस प्रकार होंगी

  • जब गंगा नदी हिमाचल पर्वत पर बहती है तो ‘V’ आकार की घाटी का निर्माण करती है।
  • जब यह नदी ‘V’ आकार की घाटी को गहरा करती है तो महाखड्ड का निर्माण करती है। इसके अतिरिक्त हिमालय पर्वत पर जल प्रपात और क्षिप्रिकाओं का भी निर्माण होता है।
  • जब गंगा नदी हिमाचल पर्वत से हरिद्वार के पास मैदानी भाग में उतरती है तो अनेक छोटे-छोटे कंकड़-पत्थर जमा करती है जिनसे जलोढ़ पंख का निर्माण होता है।
  • जैसे-जैसे यह नदी आगे बढ़ती है अपने दोनों किनारों पर अवसादों को जमा करती है जिनसे तटबंध का निर्माण होता है।
  • जब इसका बहाव कम हो जाता है तो यह टेढ़ी-मेढ़ी बहने लगती है जिससे विसर्प का निर्माण होता है। इसके अलावा रोधिका, गोखुर झीलों और गुंफित नदियों का भी निर्माण करती है।
  • जब गंगा नदी अपने मुहाने पर पहुँचती है तो विभिन्न शाखाओं में विभक्त होकर डेल्टा का निर्माण करती है।

इस प्रकार बद्रीनाथ से सुंदरवन डेल्टा तक हमें गंगा नदी द्वारा बनाई गई उपर्युक्त स्थलाकृतियाँ मिलेंगी। हरिद्वार के पास हमारा पर्वतीय मार्ग समाप्त हो जाएगा और मैदानी मार्ग आरंभ हो जाएगा। अंत में हम गंगा नदी निर्मित स्थलाकृतियों को पार कर सुंदरवन डेल्टा पहुँचेंगे।

संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान HBSE 11th Class Geography Notes

→ अनुदैर्घ्य घाटी (Longitudinal Valley)-किसी पर्वत श्रृंखला के समानांतर एक घाटी जो शैल-स्तर के नतिलंब (Strike) के समानांतर पाई जाती है।

→ द्रोणी घाटी (Rift Valley)-भ्रंशन के उपरांत धरती के धंसाव या निकटवर्ती खंडों के उत्थान से बनी नदी घाटी।

→ उत्खंड (Horst)-पृथ्वी पर ऊपर उठा प्रखंड जो पठार के रूप में भ्रंशों के बीच से ऊपर उठता है।

→ भू-अभिनति (Syncline)-जल के उथले लंबे भाग जिसमें तलछटों का जमाव होता है।

→ वलन (Fold)-भू-पर्पटी के संपीडन बलों द्वारा उत्पन्न शैल-स्तर में एक मोड़।

→ संपीडन (Compression)-शैल-स्तरों पर विपरीत दिशाओं में पड़ने वाले बलों से उत्पन्न संकुचन।

→ भ्रंशन (Faulting)-पृथ्वी की आंतरिक हलचलों से शैलों में पड़ने वाली दरार।

→ निमज्जन (Subsidence)-भू-खंड का आन्तरिक हलचलों के कारण धंसाव।

→ विभंजन (Fracture)-तनाव या खिंचाव के कारण शैलों की परतों क टूटना।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भारत-स्थिति

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भारत-स्थिति Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भारत-स्थिति

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. कौन-सा देश भारतीय उपमहाद्वीप में शामिल नहीं है?
(A) पाकिस्तान
(B) अफगानिस्तान
(C) भूटान
(D) बांग्लादेश
उत्तर:
(B) अफगानिस्तान

2. सर्वप्रथम ‘इंडिया’ शब्द का प्रयोग भारत के लिए किस भाषा में किया गया था?
(A) उर्दू
(B) यूनानी
(C) अरबी
(D) फारसी
उत्तर:
(B) यूनानी

3. भारत का पूर्वी देशांतर है
(A) 97° 25’E
(B) 68° 7’E
(C) 77° 9’E
(D) 82° 32’E
उत्तर:
(B) 68° 7’E

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4. उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल व सिक्किम राज्यों की सीमाएँ किस एक देश के साथ मिलती हैं?
(A) चीन
(B) भूटान
(C) नेपाल
(D) म्यांमार
उत्तर:
(C) नेपाल

5. क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा राज्य कौन-सा है?
(A) मध्य प्रदेश
(B) उत्तर प्रदेश
(C) आंध्र प्रदेश
(D) राजस्थान
उत्तर:
(D) राजस्थान

6. गर्मियों की छुट्टियों में यदि आप सिलवासा आए हुए हैं तो आप कहाँ पर अवस्थित हैं?
(A) बंगाल की खाड़ी के किसी द्वीप पर
(B) अरब सागर के किसी द्वीप पर
(C) गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा पर
(D) तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश की सीमा पर
उत्तर:
(C) गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा पर

7. कर्क रेखा किस एक राज्य से नहीं गुज़रती?
(A) गुजरात
(B) राजस्थान
(C) ओडिशा
(D) त्रिपुरा
उत्तर:
(C) ओडिशा

8. निम्नांकित में से कौन-सा भारतीय राज्य म्यांमार देश की सीमा पर स्थित नहीं है?
(A) त्रिपुरा
(B) अरुणाचल प्रदेश
(C) नागालैंड
(D) मणिपुर
उत्तर:
(A) त्रिपुरा

9. रेटक्लिफ रेखा भारत के साथ किस देश की सीमा निर्धारित करती है?
(A) चीन
(B) पाकिस्तान
(C) भूटान
(D) बांग्लादेश
उत्तर:
(B) पाकिस्तान

10. कर्क रेखा भारत के कितने राज्यों से होकर गुज़रती है?
(A) 5
(B) 6
(C) 8
(D) 7
उत्तर:
(C) 8

11. भारत की स्थलीय सीमा कितनी लंबी है?
(A) 15,200 कि०मी०
(B) 20,015 कि०मी०
(C) 17,500 कि०मी०
(D) 7,516 कि०मी०
उत्तर:
(A) 15,200 कि०मी०

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12. किस देश की भारत के साथ सबसे लंबी स्थल सीमा है?
(A) चीन
(B) म्यांमार
(C) पाकिस्तान
(D) बांग्लादेश
उत्तर:
(D) बांग्लादेश

13. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन 82°30’E के संबंध में सही नहीं है?
(A) यह भारत की मानक देशांतर रेखा है
(B) इस रेखा का स्थानीय समय ग्रीनविच समय से 5.30 घंटे आगे है
(C) यह रेखा मिर्जापुर से गुज़रती है
(D) यह रेखा देश को दो बराबर भागों में बाँटती है
उत्तर:
(D) यह रेखा देश को दो बराबर भागों में बाँटती है

14. भारत के किस राज्य की तटरेखा सबसे लंबी है?
(A) गुजरात
(B) आंध्र प्रदेश
(C) तमिलनाडु
(D) कर्नाटक
उत्तर:
(A) गुजरात

15. संपूर्ण विश्व के क्षेत्रफल में भारत का हिस्सा है-
(A) 16%
(B) 2.4%
(C) 4.2%
(D) 1.6%
उत्तर:
(B) 2.4%

16. भारतीय तटरेखा की कुल लंबाई है
(A) 3,500 कि०मी०
(B) 7,516.6 कि०मी०
(C) 6,000 कि०मी०
(D) 9,500 कि०मी०
उत्तर:
(B) 7,516.6 कि०मी०

17. निम्नलिखित में से कौन-सा द्वीप मन्नार की खाड़ी में स्थित है?
(A) न्यूमूर
(B) एलिफेंटा
(C) लक्षद्वीप
(D) पांबन
उत्तर:
(D) पांबन

18. भारत का 30° का देशांतरीय विस्तार पृथ्वी की परिधि का कौन-सा भाग है?
(A) छठा
(B) बारहवाँ
(C) चौथा
(D) आठवाँ
उत्तर:
(B) बारहवाँ

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
सर्वप्रथम ‘इंडिया’ शब्द का प्रयोग भारत के लिए किस भाषा में किया गया था?
उत्तर:
यूनानी।

प्रश्न 2.
क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
राजस्थान।

प्रश्न 3.
रेटक्लिफ रेखा भारत के साथ किस देश की सीमा निर्धारित करती है?
उत्तर:
पाकिस्तान की।

प्रश्न 4.
कर्क रेखा भारत के कितने राज्यों से होकर गुज़रती है?
उत्तर:
आठ।

प्रश्न 5.
भारत के किस राज्य की तटरेखा सबसे लंबी है?
उत्तर:
गुजरात की।

प्रश्न 6.
क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का संसार के देशों में कौन-सा स्थान है?
उत्तर:
सातवाँ।

प्रश्न 7.
भारत के लगभग बीचों-बीच कौन-सी अक्षांश रेखा गुज़रती है?
उत्तर:
कर्क रेखा।

प्रश्न 8.
भारत के किस स्थान पर बंगाल की खाड़ी, अरब सागर तथा हिन्द महासागर मिलते हैं?
अथवा
भारत की मुख्य भूमि का दक्षिणतम बिन्दु कौन-सा है?
उत्तर:
कन्याकुमारी।

प्रश्न 9.
‘संसार की छत’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
पामीर की गाँठ।

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प्रश्न 10.
भारत और श्रीलंका को कौन-सी जल-सन्धि अलग करती है?
उत्तर:
पाक जल-सन्धि।

प्रश्न 11.
मिज़ोरम राज्य की राजधानी का नाम लिखें।
उत्तर:
आइज़ोल।

प्रश्न 12.
मणिपुर राज्य की राजधानी का नाम लिखें।
उत्तर:
इम्फाल।

प्रश्न 13.
नागालैण्ड राज्य की राजधानी का नाम लिखें।
उत्तर:
कोहिमा।

प्रश्न 14.
कर्नाटक राज्य की राजधानी का नाम लिखें।
उत्तर:
बंगलुरु।

प्रश्न 15.
भारतीय यात्री कैलाश और मानसरोवर किन दरों से होकर जाते हैं?
उत्तर:
माना तथा नीति दरों से।

प्रश्न 16.
सिक्किम राज्य की राजधानी का नाम लिखें।
उत्तर:
गंगटोक।

प्रश्न 17.
त्रिपुरा राज्य की राजधानी का नाम लिखें।
उत्तर:
अगरतला।

प्रश्न 18.
मेघालय राज्य की राजधानी का नाम लिखें।
उत्तर:
शिलांग।

प्रश्न 19.
कर्क रेखा भारत को किन दो जलवायु प्रदेशों में बाँटती है?
उत्तर:

  1. उष्ण कटिबन्धीय
  2. उपोष्ण कटिबन्धीय।

प्रश्न 20.
भारत का प्रामाणिक समय किस देशान्तर से लिया जाता है? कौन-सी देशान्तर रेखा भारत के लगभग बीच से गुज़रती है?
अथवा
उत्तर:
82\(\frac { 1 }{ 2 }\)° पूर्वी देशान्तर।

प्रश्न 21.
अरुणाचल प्रदेश की राजधानी का नाम लिखें।
उत्तर:
इटानगर।

प्रश्न 22.
भारत का सबसे छोटा केन्द्र-शासित प्रदेश कौन-सा है?
उत्तर:
लक्षद्वीप।

प्रश्न 23.
गुजरात राज्य की राजधानी का नाम लिखें।
उत्तर:
गाँधीनगर।

प्रश्न 24.
भारत में कुल कितने राज्य व केन्द्र-शासित प्रदेश हैं?
उत्तर:
28 राज्य व 8 केन्द्र-शासित प्रदेश।

प्रश्न 25.
भारत का क्षेत्रफल बताइए।
उत्तर:
32,87,263 वर्ग कि०मी०।

प्रश्न 26.
भारत का क्षेत्रफल विश्व के क्षेत्रफल/स्थलीय धरातल का कितना प्रतिशत है?
उत्तर:
2.4 प्रतिशत।

प्रश्न 27.
भारत के किस राज्य में कर्क रेखा सर्वाधिक दूरी तय करती है?
उत्तर:
मध्य प्रदेश से।

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प्रश्न 28.
कर्क रेखा पर स्थित दो भारतीय नगरों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. गाँधीनगर
  2. जबलपुर।

प्रश्न 29.
82° पूर्वी देशान्तर पर स्थित प्रमुख नगर का नाम लिखें।
उत्तर:
इलाहाबाद।

प्रश्न 30.
तट पर स्थित भारत के केन्द्र-शासित प्रदेशों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. दमन
  2. पुदुच्चेरी।

प्रश्न 31.
भारत के दक्षिण में स्थित दो पड़ोसी देशों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. श्रीलंका
  2. मालदीव।

प्रश्न 32.
कौन-सा चैनल निकोबार द्वीप को अण्डमान द्वीप से अलग करता है?
उत्तर:
10° चैनल।

प्रश्न 33.
अण्डमान व निकोबार द्वीपों का निर्माण कैसे हुआ?
उत्तर:
जलमग्न पहाड़ियों के शिखरों के कारण।

प्रश्न 34.
प्रायद्वीप भारत का दक्षिणतम बिंदु कौन-सा है?
उत्तर:
कन्याकुमारी।

प्रश्न 35.
भारत का मानक समय ग्रीनविच मानक समय से कितना आगे है?
उत्तर:
5 : 30 मिनट आगे।

प्रश्न 36.
भारत की मुख्य भूमि की तटरेखा कितनी है?
उत्तर:
6,100 कि०मी०।

प्रश्न 37.
भारत का सबसे बड़ा पठारी राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
मध्य प्रदेश।

प्रश्न 38.
भारत की प्रामाणिक मध्याह रेखा क्या कहलाती है?
उत्तर:
80°30′ पूर्वी देशांतर।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की मुख्य भूमि का अक्षांशीय तथा देशान्तरीय विस्तार बताइए।
उत्तर:
भारत की मुख्य भूमि 8°4′ उत्तरी अक्षांश से 37°6′ उत्तरी अक्षांश तथा 68°7′ पूर्वी देशान्तर से 97°25′ पूर्वी देशान्तर तक है।

प्रश्न 2.
भारत के दक्षिणतम बिन्दु का नाम और अक्षांश बताइए।
उत्तर:
इन्दिरा प्वाइंट, 6°45′ उत्तरी अक्षांश (ग्रेट निकोबार द्वीप)।

प्रश्न 3.
भारत के उत्तरी छोर से दक्षिण छोर तक तथा पूर्वी छोर से पश्चिमी छोर तक कितनी दूरी है?
अथवा
भारत की पूर्व से पश्चिम छोर के बीच की दूरी कितनी है?
उत्तर:
भारत उत्तर से दक्षिण तक 3,214 कि०मी० तथा पूर्व से पश्चिम तक 2,933 कि०मी० स्थित है। प्रश्न 4. भारत का कौन-सा स्थान व भाग इण्डोनेशिया के निकटतम है? उत्तर:स्थान-इन्दिरा प्वाइंट व भाग-ग्रेट निकोबार द्वीप।

प्रश्न 5.
अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में कौन-कौन से भारतीय द्वीप स्थित है?
उत्तर:
क्रमशः लक्षद्वीप तथा अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह।

प्रश्न 6.
बांग्लादेश की सीमा से लगने वाले पाँच भारतीय राज्यों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. पश्चिम बंगाल
  2. असम
  3. मेघालय
  4. त्रिपुरा
  5. मिज़ोरम।

प्रश्न 7.
इन्दिरा कॉल कहाँ हैं? यहाँ कौन-कौन से देश मिलते हैं?
उत्तर:
भारत के उत्तर में पामीर की गाँठ के पास, भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तजाकिस्तान तथा चीन।

प्रश्न 8.
भारत के उन चार राज्यों के नाम बताओ जो न तो समुद्र को छूते हैं और न ही अन्तर्राष्ट्रीय सीमा को।
उत्तर:

  1. हरियाणा
  2. मध्य प्रदेश
  3. छत्तीसगढ़
  4. झारखण्ड।

प्रश्न 9.
पाकिस्तान की सीमा से लगने वाले भारतीय राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. गुजरात
  2. राजस्थान
  3. पंजाब
  4. जम्मू और कश्मीर (अब जम्मू और कश्मीर केंद्र-शासित प्रदेश बन गया है)।

प्रश्न 10.
भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित सात राज्यों के नाम बताएँ।
अथवा
भारत के किन राज्यों को ‘सेवन सिस्टर्स’ कहा जाता है?
उत्तर:

  1. अरुणाचल प्रदेश
  2. असम
  3. नागालैण्ड
  4. मणिपुर
  5. मिज़ोरम
  6. त्रिपुरा
  7. मेघालय।

प्रश्न 11.
रेटक्लिफ व मैकमोहन रेखाएँ भारत की किन देशों के साथ सीमाएँ निर्धारित करती हैं?
उत्तर:
रेटक्लिफ रेखा-एक कत्रिम रेखा है जो भारत और पाकिस्तान के मध्य सीमा रेखा बनाती है। मैकमोहन रेखा-भारत व चीन के बीच प्राकृतिक अन्तर्राष्ट्रीय सीमा का कार्य करती है।

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प्रश्न 12.
भारत के पूर्व तथा पश्चिम में स्थित तीन-तीन देशों के नाम बताइए।
उत्तर:
पश्चिम में पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा ईरान। पूर्व में बांग्लादेश, म्याँमार तथा थाइलैण्ड।

प्रश्न 13.
नेपाल की सीमा के साथ लगने वाले भारतीय राज्यों के नाम बताएँ।
उत्तर:

  1. उत्तर प्रदेश
  2. उत्तराखंड
  3. बिहार
  4. पश्चिम बंगाल
  5. सिक्किम।

प्रश्न 14.
भूटान की सीमा के साथ लगने वाले भारतीय राज्यों के नाम बताएँ।
उत्तर:

  1. सिक्किम
  2. पश्चिम बंगाल
  3. असम
  4. अरुणाचल प्रदेश।

प्रश्न 15.
म्यांमार की सीमा के साथ लगने वाले भारतीय राज्यों के नाम बताएँ।
उत्तर:

  1. अरुणाचल प्रदेश
  2. नागालैण्ड
  3. मणिपुर
  4. मिज़ोरम।

प्रश्न 16.
मैकमोहन रेखा किसे कहते हैं?
उत्तर:
भूटान से पूर्व में भारत और चीन के बीच हिमालय की शिखर रेखा जो भारत-चीन-म्यांमार की त्रि-सन्धि तक विस्तृत है।

प्रश्न 17.
कर्क रेखा भारत के किन-किन राज्यों से होकर गुजरती है?
उत्तर:
कर्क रेखा गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छतीसगढ़, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों से होकर गुजरती है।

प्रश्न 18.
भारत का जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा और सबसे छोटा राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
सबसे बड़ा राज्य-उत्तर प्रदेश। सबसे छोटा राज्य-सिक्किम।

प्रश्न 19.
भारत का क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा और सबसे छोटा राज्य कौन-सा है?
उत्तर:
सबसे बड़ा राज्य-राजस्थान। सबसे छोटा राज्य-गोवा।

प्रश्न 20.
ग्रीनविच तथा भारतीय मानक समय के बीच 5% घंटों के अंतर का कारण बताइए।
उत्तर:
इलाहाबाद के निकट 82°30′ पू० देशांतर के स्थानीय समय को संपूर्ण भारत का मानक समय माना गया है। एक से दूसरे देशांतर के बीच 4 मिनट का अंतर होता है। इस प्रकार 82°30′ x 4 = 51/2 घंटे 30 मिनट का अंतर आएगा। यही कारण है कि भारत का मानक समय ग्रीनविच मानक समय से 5 घंटे आगे है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“भारत भूगोल और इतिहास दोनों के सन्दर्भ में महान् है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत की सभ्यता और संस्कृति 5,000 वर्षों से भी अधिक पुरानी है। अपनी बहु-आयामी विशिष्टता के कारण भारत आदि काल से ही विश्व के लिए आकर्षण का केन्द्र बना रहा है। भौगोलिक रूप से भी यह एक विस्तृत और विशाल देश है जो उत्तर में हिमालय की गगनचुम्बी श्रेणियों व दक्षिण में हिन्द महासागर के बीच फैला हुआ है। यह विश्व के सबसे बड़े महाद्वीप एशिया के दक्षिण मध्य में स्थित है।

प्रश्न 2.
भारत की धरातलीय विविधता का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत-भूमि विविध प्रकार की है। इसके उत्तर में काँप की मिट्टी से बना विशाल उपजाऊ मैदान है व जीवनदायिनी नदियों के स्रोत, हिमाच्छादित लम्बी पर्वतीय शृंखलाएँ हैं। भारत के उत्तर:पश्चिम में थार का विशाल मरुस्थल है व दक्षिण में प्रायद्वीपीय भाग है, जो ऊबड़-खाबड़ पठारों से बना है। भारत के पूर्व में पूर्वी घाट व पूर्वी तटीय मैदान हैं तथा पश्चिम में पश्चिमी घाट व पश्चिमी तटीय मैदान हैं। ये तटीय मैदान नारियल व लैगून झीलों के लिए प्रसिद्ध हैं। मुख्य भूमि का लगभग 6,100 कि०मी० लम्बा समुद्री तट भारत की स्थिति को व्यापकता प्रदान करता है।

प्रश्न 3.
कर्क रेखा भारत के मध्य से गुज़रती है, इसके क्या प्रभाव हैं?
उत्तर:
कर्क रेखा भारत के मध्य से गुज़रती है। इसके मुख्य प्रभाव निम्नलिखित हैं-
1. दो विभिन्न जलवायु कटिबंध-कर्क रेखा के भारत के मध्य से गुज़रने के कारण देश दो जलवायु कटिबंधों में बँटा हुआ है। इसका उत्तरी भाग समशीतोष्ण कटिबंध में और दक्षिणी भाग उष्ण कटिबंध में स्थित है। यही कारण है कि इसका दक्षिणी भाग . उत्तरी भागों की अपेक्षा अधिक गर्म है।

2. दक्षिणी भारत में सूर्य की लंबवत् किरणें-उत्तरी भारत में किसी भी स्थान पर सूर्य की किरणें लंबवत् नहीं पड़तीं, जबकि दक्षिणी भारत के सभी स्थानों पर वर्ष में दो बार सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं।
भारत-स्थिति

प्रश्न 4.
क्या कारण है कि कन्याकुमारी में दिन और रात के समय में अंतर पता नहीं चलता, परंतु कश्मीर में ऐसा – नहीं है?
उत्तर:
कन्याकुमारी भारत के दक्षिण में स्थित होने के कारण भूमध्य रेखा के बहुत निकट है और कश्मीर भारत के उत्तर में के कारण भूमध्य रेखा से बहुत दूर पड़ता है। क्योंकि भूमध्य रेखा पर दिन और रात लगभग बराबर होते हैं, इसलिए, जो स्थान भूमध्य रेखा के निकट होंगे जैसे कि कन्याकुमारी है, वहाँ दिन और रात के समय का इतना अंतर नहीं होगा। जैसे-जैसे हम भूमध्य रेखा से दूर चलते जाएँगे, वैसे-वैसे दिन और रात के समय में भी अंतर बढ़ता जाएगा। इसी कारण कश्मीर में, जो भूमध्य रेखा से अपेक्षाकृत काफी दूर है, दिन और रात के समय में काफी अंतर पड़ जाएगा।

प्रश्न 5.
भारतीय उप-महाद्वीप से क्या अभिप्राय है? यह किन देशों से मिलकर बना है?
उत्तर:
भारतीय उप-महाद्वीप एशिया में स्थित होते हुए भी एक अलग भौगोलिक इकाई दिखाई देता है। इस उप-महाद्वीप में कई देश सम्मिलित हैं। इसके उत्तर:पश्चिम में पाकिस्तान, केंद्र में भारत, उत्तर में नेपाल, उत्तर:पूर्व में भूटान तथा पूर्व में बांग्लादेश हैं। भारत के दक्षिण में श्रीलंका और मालदीव हिंद महासागर में स्थित हैं। ये दोनों द्वीपीय राष्ट्र हैं। नेपाल में प्रजातंत्र तथा भूटान में राजतंत्र शासन है। शेष सभी देश गणतंत्र हैं।

प्रश्न 6.
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मार्ग की दृष्टि से भारत की स्थिति बहुत ही महत्त्वपूर्ण है-स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत की स्थिति अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मार्ग के संदर्भ में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। अपनी विशेष भौगोलिक स्थिति के कारण भारत एक ओर से स्वेज़ नहर द्वारा यूरोप के देशों से जुड़ा हुआ है और दूसरी ओर से जापान आदि पूर्वी देशों व ऑस्ट्रेलिया से जुड़ा हुआ है। इसके अतिरिक्त भारत की स्थिति खाड़ी तथा अरब देशों के संदर्भ में भी बड़ी महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 7.
“भारत न तो भीमकाय है और न ही बौना।” इस कथन की व्याख्या कीजिए। क्षेत्रफल के आधार पर विश्व के देशों में भारत की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत का क्षेत्रफल विश्व के क्षेत्रफल का 2.4 प्रतिशत है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत विश्व में सातवें स्थान पर है। क्षेत्रफल में भारत से बड़े छः देश क्रमशः रूस, चीन, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राज़ील तथा ऑस्ट्रेलिया है। संयुक्त राज्य अमेरिका भारत से पौने तीन गुना व रूस भारत से साढ़े पाँच गुना बड़ा है। भारत पाकिस्तान से चार गुना, फ्रांस से छह गुना, जर्मनी से नौ गुना व बांग्लादेश से 23 गुना बड़ा है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि “भारत का आकार न तो भीमकाय है और न ही बौना।”

प्रश्न 8.
उन दो भौतिक लक्षणों के नाम बताइए जिन्होंने भारत के एक विशिष्ट भौगोलिक स्वरूप के विकास में सहयोग दिया है।
उत्तर:
निम्नलिखित दो भौतिक लक्षणों ने भारत के विशिष्ट भौगोलिक स्वरूप के विकास में काफी सफल भूमिका निभाई है।
1. उत्तर में हिमालय पर्वत एक अटूट श्रृंखला के रूप में हज़ारों कि०मी० तक फैला हुआ है। विश्व का यह उच्चतम पर्वत भारत को मध्य एशिया से अलग किए हुए है। अपारगम्यता के कारण हिमालय को पार करना कठिन है। इस विशिष्टता ने भारत के जन समूह के एकीकरण की भूमिका निभाई।

2. हिन्द महासागर ने जहाँ देश को एक तरफ विलगता प्रदान की वहाँ उसने पूर्व व पश्चिम के सुदूर स्थित देशों को भारत के साथ जोड़ने का प्रयास किया। इस प्रकार जलीय विस्तार ने अलगाव को भी बढ़ावा दिया तथा सम्पर्कों द्वारा सभ्यता को भी उन्नत किया। इससे भारतीय सभ्यता में एक विशिष्ट एकरूपता विकसित हुई।

प्रश्न 9.
भारत का अक्षांशीय विस्तार बताइए। इसके प्रभाव को समझाइए।
उत्तर:
भारत लगभग 8°4′ उत्तरी अक्षांश तथा 37°6′ उत्तरी अक्षांश के मध्य स्थित है। भारत विषुवत् वृत्त के उत्तर में स्थित होने के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में आता है। प्रधान मध्याह्न रेखा के पूर्व में स्थित होने के कारण भारत की गणना पूर्वी गोलार्द्ध में होती है। वास्तव में भारत का विस्तार एशिया महाद्वीप के दक्षिणी मध्य प्रायद्वीप में है। अपनी इस स्थिति के कारण प्राचीनकाल में भारत ने पश्चिम में अरब देशों से तथा दक्षिण-पूर्व एशिया एवं सुदूर-पूर्व के साथ सांस्कृतिक तथा अन्य प्रकार के संबंध स्थापित कर रखे थे।

प्रश्न 10.
मैकमोहन रेखा किसे कहते हैं? इसका क्या महत्त्व है? इसका निर्धारण कैसे हुआ है?
उत्तर:
भारत और चीन के मध्य सीमा-मान्य रेखा को मैकमोहन रेखा कहते हैं। यह हिमालय के साथ-साथ कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक मान्य है। इस रेखा के उत्तर में चीन के सिक्यांग और तिब्बत के पठार स्थित हैं। इसके उत्तर:पूर्व में म्यांमार, भारत तथा चीन आपस में मिलते हैं। यह सीमा-रेखा मुख्यतः प्राकृतिक है और ऐतिहासिक रूप से निर्धारित की हुई है। हिमालय पर्वत भारतीय उत्तरी सीमा पर एक प्रहरी के रूप में स्थित है। उच्च हिमालय के शिखर जल विभाजक के रूप में फैले हुए हैं जो भारत और चीन को अलग करते हुए सीमारेखा को प्राकृतिक रूप प्रदान करते हैं।

प्रश्न 11.
भारत के अधिक देशान्तरीय विस्तार की भौगोलिक विशेषता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है इसलिए पृथ्वी के पूर्वी भाग पश्चिमी भागों की अपेक्षा सूर्य के समक्ष पहले आते हैं। अरुणाचल प्रदेश सौराष्ट्र के पूर्व में है, इसलिए वहाँ सूर्योदय पहले होगा। सौराष्ट्र और अरुणाचल प्रदेश में 30 देशान्तरों का अन्तर होने के कारण इनके स्थानीय समय में दो घण्टे का अन्तर होता है क्योंकि सूर्य के समक्ष पृथ्वी एक देशान्तर को 4 मिनट में पार करती है (30 x 4 = 120 मिनट)। अतः जब अरुणाचल प्रदेश में सूर्योदय हो चुका होता है तो सौराष्ट्र में रात बाकी होती है। समय के इस भ्रम को 82°30′ पूर्वी देशान्तर के स्थानीय समय को प्रामाणिक समय घोषित करके दूर किया जाता है।

प्रश्न 12.
भारत के कौन-से राज्य किस देश के साथ लगते हैं?
उत्तर:

देश सीमा पर अवस्थित भारतीय राज्य
1. पाकिस्तान 1. गुजरात, 2. राजस्थान, 3. पंजाब।
2. चीन 1. हिमाचल प्रदेश, 2. सिक्किम, 3. अरुणाचल प्रदेश, 4 उत्तराखंड।
3. नेपाल 1. उत्तर प्रदेश, 2. उत्तराखंड, 3. बिहार, 4. पश्चिम बंगाल, 5. सिक्किम।
4. भूटान 1. सिक्किम, 2. पश्चिम बंगाल, 3. असम, 4. अरुणाचल प्रदेश।
5. बांग्लादेश 1. पश्चिम बंगाल, 2. असम, 3. मेघालय, 4. त्रिपुरा।
6. म्यांमार 1. अरुणाचल प्रदेश, 2. नागालैण्ड, 3. मणिपुर, 4. मिज़ोरम।
नोट-वर्तमान में जम्मू कश्मीर केंद्र-शासित प्रदेश बन गया है।

प्रश्न 13.
“हिन्द महासागर वास्तव में हिन्द का सागर है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत के तट को स्पर्श करने वाले समुद्रों के विस्तार ने भारत के साथ निकटस्थ प्रदेशों के परस्पर सम्बन्ध की प्रकृति निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हिन्द महासागर के शीर्ष पर स्थित होने के कारण, भारत यूरोप, अफ्रीका तथा पूर्वी एशिया के व्यापारिक मार्गों से जुड़ा है। प्राचीनकाल में इसी सागर की लहरों पर बेबीलोन, मिस्र तथा फोनेशिया की नौकाएँ यात्रा करती थीं।

अरबों का समुद्री व्यापार भी इसी सागर के माध्यम से होता था। भारतीय नौकाएँ लगभग 4,000 वर्षों तक दजला, फरात एवं नील नदी की घाटियों को अपना माल पहुँचाया करती थीं। स्वेज नहर के खुलने से भूमध्य सागर को हिन्द महासागर से जोड़ दिया गया है और इस प्रकार दक्षिणी यूरोप एवं उत्तरी अफ्रीका भी हिन्द महासागर के प्रभाव क्षेत्र में आ गए हैं।

हिन्द महासागर में भारत की स्थिति बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। हमारे देश के अतिरिक्त संसार के किसी भी अन्य देश की इतनी लम्बी तट-रेखा इस समुद्र के साथ नहीं है। भारत का दक्कन प्रायद्वीप हिन्द महासागर की ओर इस प्रकार प्रक्षेपित है कि इस देश के लिए अपने पश्चिमी तट से पश्चिमी एशिया, अफ्रीका तथा यूरोप तथा पूर्वी तट से दक्षिणी-पूर्वी एशिया तथा सुदूर पूर्व की ओर एक साथ देखना सम्भव है।

प्रश्न 14.
सूर्योदय अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी भाग में गुजरात के पश्चिमी भाग की अपेक्षा 2 घंटे पहले क्यों होता है, जबकि दोनों राज्यों में घड़ी एक ही समय दर्शाती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अरुणाचल प्रदेश 97° 25′ पूर्वी देशांतर पर स्थित है, जबकि भारत के सबसे पश्चिमी छोर जोकि गुजरात में है। वह 68° 7′ पूर्वी देशांतर पर स्थित है। अतः अरुणाचल प्रदेश और गुजरात के देशांतरों में (97° 25′- 68°7′ = 29° 18′) लगभग 30° का अंतर है और देशांतर में 1° का अंतर होने से 4 मिनट के समय का अंतर आ जाता है। इसलिए गुजरात और अरुणाचल प्रदेश में भी सूर्योदय के समय में 30 x 4 = 120 मिनट अर्थात 2 घंटे का अंतर है। लेकिन पूरे भारत वर्ष में एक ही भारतीय मानक समय स्वीकार किया गया है।

प्रश्न 15.
“भारत को हिन्द महासागर में सर्वाधिक केन्द्रीय स्थिति प्राप्त है।” यह कथन कहाँ तक उचित है?
उत्तर:
हिन्द महासागर का विस्तार 40° पूर्व से 120° पूर्व देशान्तर तक है। भारत की मुख्य भूमि का दक्षिणतम सिरा (केरल और तमिलनाडु) लगभग 76° से 80° पूर्वी देशान्तर के बीच स्थित है। इस प्रकार भारत को हिन्द महासागर में केन्द्रीय स्थिति प्राप्त है। भारतीय प्रायद्वीप अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के बीच स्थित है। हिन्द महासागर में किसी भी देश की तट-रेखा भारतीय तट-रेखा जितनी लम्बी नहीं है। भारत पूर्व और पश्चिम दोनों दिशाओं में स्थित देशों के मध्य में स्थित है। इसी केन्द्रीय स्थिति के कारण ही हिन्द महासागर वास्तव में ‘हिन्द का महासागर’ है।

प्रश्न 16.
भारत के पड़ोसी देशों के बीच सीमा विस्तार को सूचीबद्ध करें।
उत्तर:

  • भारत-बांग्लादेश सीमा – 4,096 कि०मी०
  • भारत-चीन सीमा – 3,439 कि०मी०
  • भारत-नेपाल सीमा – 1,761 कि०मी०
  • भारत-पाक सीमा – 3,310 कि०मी०
  • भारत-म्यांमार सीमा – 1,643 कि०मी०
  • भारत-भूटान सीमा – 587 कि०मी०
  • भारत-अफगानिस्तान सीमा – 106 कि०मी०

प्रश्न 17.
भारत के लिए हमें एक मानक मध्याहून रेखा की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर:
विशाल देशांतरीय विस्तार के कारण भारत के पूर्वी तथा पश्चिमी सुदूर बिंदुओं के स्थानीय समय में दो घंटों का अंतर है। उदाहरण के लिए जब अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी भाग में सूर्योदय होता है, तो उस समय गुजरात के पश्चिमी भाग में रात रहती है। इसका तात्पर्य यह है कि हर स्थान का अपना अलग-अलग स्थानीय समय होता है। किंतु हम इस स्थानीय समय को, जो भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होता है, स्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसा करने से परेशानी पैदा होगी तथा चारों ओर अव्यवस्था फैल जाएगी और दुर्घटनाएँ होंगी। इन सभी परिस्थितियों से बचने के लिए सारे देश के लिए एक सामान्य समय स्वीकार कर लिया जाता है, जो उस देश का मानक समय (Standard Time) कहलाता है।

हमारे देश में 82°30′ पूर्वी देशांतर को मानक रेखा स्वीकार किया गया है। इलाहाबाद के निकट से गजरने वाली इस मध्याहन रेखा का समय ही भारत का मानक समय (I.S.T.) है, जो ग्रीनविच समय से 5 1/2 घंटे आगे है। हमने 82°30′ पूर्वी देशांतर को भारत की प्रधान मध्याहून रेखा इसलिए स्वीकार किया है, क्योंकि यह रेखा भारत के लगभग बीचो-बीच से होकर गुज़रती है। भारतीय मानक समय के कारण सारे देश में समय की एकरूपता प्राप्त की जा सकी है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के आकार, स्थिति तथा विस्तार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आकार और स्थिति क्षेत्रफल की दृष्टि से यह विश्व का सातवाँ तथा जनसंख्या की दृष्टि से चीन के बाद दूसरा बड़ा देश है। भारत की मुख्य भूमि 8°4′ उत्तरी अक्षांश से 37°6′ उत्तरी अक्षांश तक तथा 68°7′ पूर्वी देशान्तर से 97°25′ पूर्वी देशान्तर तक विस्तृत है। बंगाल की खाड़ी में स्थित मुख्य भूमि से दूर अण्डमान व निकोबार द्वीप-समूह का दक्षिणतम बिन्दु इन्दिरा प्वाइण्ट (Indira Point), जिसे पहले पिग्मेलियन प्वाइण्ट कहा जाता था, 6°45′ उत्तरी अक्षांश पर स्थित है।

उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में कन्याकुमारी तक भारत की लम्बाई 3,214 कि०मी० है। भारत का अक्षांशीय विस्तार लगभग 30° है जो भू-मध्य रेखा और उत्तरी ध्रुव के बीच कोणीय दूरी का एक तिहाई है। कच्छ के रन से अरुणाचल प्रदेश तक पूर्व-पश्चिम दिशा में भारत की चौड़ाई 2,933 कि०मी० है। भारत का देशान्तरीय विस्तार लगभग 30° है जो पृथ्वी की परिधि का बारहवाँ भाग है। यह देशान्तरीय विस्तार स्पेन, फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैण्ड्स, जर्मनी व पोलैण्ड के सम्मिलित देशान्तरीय विस्तार के समान है। कर्क रेखा (Tropic of Cancer) हमारे देश के लगभग मध्य से गुजरती है।

विस्तार-भारत का क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग कि० मी० है जो विश्व के क्षेत्रफल का 2.4 प्रतिशत है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत विश्व में सातवें स्थान पर है। क्षेत्रफल में भारत से बड़े छः देश क्रमशः रूस (170.75 लाख वर्ग कि०मी०), चीन (95.97 लाख वर्ग कि० मी०), कनाडा (92.15 लाख वर्ग कि० मी०), संयुक्त राज्य अमेरिका (90.72 लाख वर्ग कि०मी०), ब्राजील (85.12 लाख वर्ग कि० मी०) तथा ऑस्ट्रेलिया (76.82 लाख वर्ग कि०मी०) है। संयुक्त राज्य अमेरिका भारत से पौने तीन गुना व रूस भारत से साढ़े पाँच गुना बड़ा है। भारत पाकिस्तान से चार गुना, फ्रांस से छः गुना, जर्मनी से नौ गुना व बांग्लादेश से 23 गुना बड़ा है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि “भारत का आकार न तो भीमकाय है और न ही बौना।”

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 1 भारत-स्थिति

प्रश्न 2.
भारत की भौगोलिक स्थिति की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। अथवा भारत की भौगोलिक स्थिति का क्या महत्त्व है? वर्णन करें।
उत्तर:
भारत की भौगोलिक स्थिति की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. केन्द्रीय स्थिति-भारत की मुख्य भूमि 8°4′ उत्तरी अक्षांश से 37°6′ उत्तरी अक्षांश तक तथा 68°7′ पूर्वी देशान्तर से 97°25′ पूर्वी देशान्तर तक विस्तृत है। इस प्रकार भारत उत्तरी गोलार्द्ध में होने के साथ-साथ पूर्वी गोलार्द्ध के बीचो-बीच स्थित है। परिणामस्वरूप भारत एक ओर यूरोप से व दूसरी ओर उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट से लगभग बराबर दूरी पर स्थित है।

2. अन्तर्राष्ट्रीय महामार्गों पर स्थित अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की दृष्टि से भी भारत की स्थिति अत्यन्त लाभदायक है। अनेक समुद्री व्यापारिक महामार्ग एवं वायुमार्ग भारत से होकर जाते हैं।

3. कर्क रेखा का देश के बीच से गुज़रना-देश के दक्षिणी सिरे से भूमध्य रेखा की निकटता तथा कर्क रेखा (23%° उ०) का देश के बीच से गुज़रना भारत के लिए सारा साल उष्ण व उपोष्ण प्रकार की जलवायुवी दशाएँ पैदा करते हैं। इन दशाओं में पूरे वर्ष खेती की जा सकती है। अपनी इसी स्थिति के कारण ही भारत आज एक कृषि प्रधान देश बना हुआ है।

4. लम्बी तट रेखा भारत की मुख्य भूमि की तट-रेखा 6,100 कि०मी० तथा द्वीपों सहित देश की तट-रेखा 7,516 कि०मी० लम्बी है। समुद्र के इस लम्बे विस्तार ने निकटस्थ प्रदेशों के परस्पर सम्बन्धों की प्रकृति निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लम्बी तट-रेखा के कारण भारत को अनेक बन्दरगाहों की सुविधा उपलब्ध है जिससे हमारे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को बल मिलता है।

5. देश की सुरक्षा-उत्तर में हिमालय पर्वत तथा दक्षिण में हिन्द महासागर ने प्राकृतिक सीमा बनकर युगों से देश की बाहरी तत्त्वों से सुरक्षा की है।

6. मानसूनी जलवायु-हिन्द महासागर के सिरे पर भारत की स्थिति के कारण ही भारत को ग्रीष्म ऋतु में मानसूनी वर्षा प्राप्त होती है जो इस देश के करोड़ों लोगों की आजीविका के साधन-कृषि का आधार है।

इस प्रकार भारत की भौगोलिक स्थिति ने भारत में आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक विकास में अनेक प्रकार से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

प्रश्न 3.
भारत को किन आधारों पर एक उप-महाद्वीप का दर्जा दिया गया है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एक उप-महाद्वीप विशाल भौगोलिक इकाई होती है जो शेष महाद्वीप से भिन्न पहचान रखती है। यूरोपीय विद्वान् डॉ० क्रेसी ने भारत के विस्तार इसकी भौतिक, मानवीय व सांस्कृतिक विभिन्नताओं, विशाल जनसंख्या, हिमालय की लम्बी एवं बर्फीली श्रेणियों द्वारा स्थापित किया गया पृथक्, अस्तित्व, अनेक प्रकार की जलवायु के कारण इसे उप-महाद्वीप की संज्ञा दी है। .. इन आधारों की व्याख्या इस प्रकार है-
1. बड़ा क्षेत्रफल-भारत का क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग कि०मी० है जो विश्व के क्षेत्रफल का 2.4 प्रतिशत है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत विश्व में सातवें स्थान पर है। रूस भारत में साढ़े पाँच गुना बड़ा है जबकि भारत पाकिस्तान से चार गुना, फ्रांस से छः गुना, जर्मनी से नौ गुना व बांग्लादेश से 23 गुना बड़ा है।

2. धरातलीय विभिन्नता-भारत-भूमि विविध प्रकार की है। इसके उत्तर में विशाल उपजाऊ मैदान व जीवनदायिनी नदियों के स्रोत हिमाच्छादित लम्बी पर्वत शृंखलाएँ हैं। भारत के उत्तर-पश्चिम में थार का मरुस्थल तथा दक्षिण में ऊबड़-खाबड़ पठारों से बना विशाल प्रायद्वीपीय भाग है। भारत के लम्बे और विस्तृत तट एवं घाट तथा नदियाँ और झीलें इसकी भौगोलिक विविधता को और अधिक प्रखर करती हैं।

3. विशाल जनसंख्या और उसकी विविधता-लगभग 121.01 करोड़ जनसंख्या (2011) के साथ भारत चीन के बाद विश्व का दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है। भारत की जनसंख्या की नृ-जातीय तथा सामाजिक-सांस्कृतिक विशेषताओं में भी पर्याप्त विविधता पाई जाती है। अनेक जाति-वर्ग, भाषायी व धार्मिक समूह इस देश की विशालता और विविधता को उजागर करते हैं।

4. जलवायु की विविधता-भारत में दुनिया की हर प्रकार की जलवायु पाई जाती है। जलवायु की यह विविधता प्रादेशिक स्तर पर तापमान, वायुदाब, वर्षा की मात्रा, शुष्कता और आर्द्रता में भिन्नता के रूप में देखी जा सकती है। ब्लैंफोर्ड ने सत्य कहा था कि “हम भारत की जलवायुओं के बारे में कह सकते हैं, जलवायु के विषय में नहीं क्योंकि स्वयं विश्व में जलवायु की इतनी विषमताएँ नहीं मिलती जितनी अकेले भारत में।”

5. प्राकृतिक सीमाएँ-भारत उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में हिन्द महासागर के बीच फैला हुआ है। हिमालय भारत के साथ-साथ पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल व भूटान को भी शेष एशिया से अलग करके उन्हें एक अनूठी भौगोलिक विशिष्टता प्रदान करता है। समुद्री मार्गों के कारण भारत ने अन्य देशों के सामाजिक-सांस्कृतिक गुणों को आत्मसात् किया। इन समुद्रों से अलगाव ही बनाए रखा जिससे भारत अपनी भौगोलिक विशिष्टता को बचाए रख सका।

6. परिबद्ध चरित्र-भारत चारों ओर से विशाल तथा कई मध्यम पर्वतों द्वारा घिरा हुआ है। इन पर्वतों ने हज़ारों कि०मी० की दूरी तक अखण्ड रूप से घेर कर भारत को परिबद्ध (Enclosed) चरित्र प्रदान किया है। इस पर्वतीय धेरे ने भारत को एशिया के अन्य भागों से व्यावहारिक रूप से अलग कर दिया है।

7. प्रचुर एवं विविध प्राकृतिक संसाधन-भू-गर्भिक, धरातलीय एवं जलवायविक विविधता ने भारत को नाना प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न किया है। यहाँ के खनिजों, मृदा, जल, वनस्पति, जीव-जन्तुओं की विविधता के साथ-साथ मानवीय संसाधनों ने देश के आर्थिक विकास के आधार को मज़बूत किया है। संसाधनों की इतनी अधिक विविधता एवं सम्पन्नता अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलती।

उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर प्रमाणित होता है कि भारत सही अर्थों में एक उप-महाद्वीप की हैसियत रखता है। इस उप-महाद्वीप में भारत के अतिरिक्त पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश तथा श्रीलंका देश भी शामिल हैं।

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Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 1 भारत-स्थिति Textbook Exercise Questions and Answers.

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HBSE 11th Class Geography भारत-स्थिति Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर का चयन करें-

1. निम्नलिखित में से कौन-सा अक्षांशीय विस्तार भारत की संपूर्ण भूमि के विस्तार के संदर्भ में प्रासंगिक है?
(A) 8°41′ उ० से 35°17′ उ०
(B) 8°4′ उ० से 35°6′ उ०
(C) 8°4′ उ० से 37°6′ उ०
(D) 6°45′ उ० से 37°6′ उ०
उत्तर:
(C) 8°4′ उ० से 37°6′ उ०

2. निम्नलिखित में से किस देश की भारत के साथ सबसे लंबी स्थलीय सीमा है?
(A) बांग्लादेश
(B) पाकिस्तान
(C) चीन
(D) म्यांमार
उत्तर:
(A) बांग्लादेश

3. निम्नलिखित में से कौन-सा देश क्षेत्रफल में भारत से बड़ा है?
(A) चीन
(B) फ्रांस
(C) मिस्र
(D) ईरान
उत्तर:
(A) चीन

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4. निम्नलिखित याम्योत्तर में से कौन-सा भारत का मानक याम्योत्तर है?
(A) 69°30′ पूर्व
(B) 75°30′ पूर्व
(C) 82°30′ पूर्व
(D) 90°30′ पूर्व
उत्तर:
(C) 82°30′ पूर्व

5. अगर आप एक सीधी रेखा में राजस्थान से नागालैंड की यात्रा करें तो निम्नलिखित नदियों में से किस एक को आप पार नहीं करेंगे?
(A) यमुना
(B) सिंधु
(C) ब्रह्मपुत्र
(D) गंगा
उत्तर:
(B) सिंधु

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
क्या भारत को एक से अधिक मानक समय की आवश्यकता है? यदि हाँ, तो आप ऐसा क्यों सोचते हैं?
उत्तर:
हाँ, भारत को एक से अधिक मानक समय की आवश्यकता है, क्योंकि देशांतर रेखाओं के मानों से स्पष्ट होता है कि इनमें लगभग 30 डिग्री का अंतर होता है। हमारे देश के सबसे पूर्वी और सबसे पश्चिमी भागों के समय में लगभग 2 घंटे का अंतर है। विश्व में अनेक देश ऐसे हैं जिनमें अधिक पूर्व-पश्चिम विस्तार के कारण एक से अधिक मानक देशांतर रेखाएँ हैं; जैसे अमेरिका में लगभग 7 समय मानक या कटिबंध पाए जाते हैं।

प्रश्न 2.
भारत की लंबी तटरेखा के क्या प्रभाव हैं?
उत्तर:
भारत तीन ओर से समुद्र से घिरा है। भारत की तटीय रेखा द्वीपों सहित 7516.6 कि०मी० है। इतनी लंबी तटीय रेखा के कारण भारत विश्व में मछली उत्पादन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इसके अतिरिक्त समुद्री संसाधनों से खनिज तेल, नमक, मोती आदि की भी प्राप्ति होती है।

बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के रूप में देश की तटरेखा समुद्री यातायात और पर्यावरणीय दृष्टि से लाभदायक है। तटीय रेखाओं पर स्थित समुद्री मार्गों या बंदरगाहों के माध्यम से भारत विदेशों से वस्तुओं का आयात-निर्यात करता है। इनके कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार अधिक होता है।

प्रश्न 3.
भारत का देशांतरीय फैलाव इसके लिए किस प्रकार लाभप्रद है?
उत्तर:
भारत 68°07′ पूर्वी देशांतर से 97°5′ पूर्वी देशांतर के बीच फैला हुआ है। इसका देशांतरीय विस्तार या फैलाव 28°55′ है। इतने कम देशांतरीय फैलाव के कारण ही भारत की एक ही मानक समय रेखा अर्थात् 80°30′ पूर्व है। यह रेखा देश के बीचो-बीच से गुजरती है, इसी कारण इसको देश का मानक समय माना जाता है। आधुनिक संदर्भ में वर्तमान देशांतरीय फैलाव मानक समय की दृष्टि से लाभप्रद है।

प्रश्न 4.
जबकि पूर्व में, उदाहरणतः नागालैंड में, सूर्य पहले उदय होता है और पहले ही अस्त होता है, फिर कोहिमा और नई दिल्ली में घड़ियाँ एक ही समय क्यों दिखाती हैं?
उत्तर:
यह बात सत्य है कि देश के पूर्वी भाग में सूर्य पहले उदय होता है और पहले ही अस्त होता है, लेकिन देश के अन्य भागों में सूर्योदय और सूर्यास्त बाद में होता है। परन्तु दोनों स्थान पर समय एक ही होता है अर्थात् घड़ियाँ एक ही समय दिखाती हैं। इसका मुख्य कारण 80°30′ पूर्व याम्योत्तर को देश की मानक याम्योत्तर चुना गया है जो देश के बीचो-बीच से गुजरती है। देश में घड़ियों के समय का निर्धारण इसी के द्वारा होता है। इसलिए देश के विभिन्न भागों में सूर्योदय और सूर्यास्त के समय में अंतर होने के बावजूद घड़ी के समय में अंतर नहीं होता। यही कारण है कि कोहिमा और नई दिल्ली में घड़ियाँ एक ही समय दिखाती हैं।

परिशिष्ट-I पर आधारित क्रियाकलाप

प्रश्न 1.
एक ग्राफ पेपर पर मध्य प्रदेश, कर्नाटक, मेघालय, गोवा, केरल तथा हरियाणा के जिलों की संख्या को आलेखित कीजिए। क्या ज़िलों की संख्या का राज्यों के क्षेत्रफल में कोई संबंध है?
उत्तर:

राज्य ज़िलों की संख्या राज्यों का क्षेत्रफल (वर्ग कि०मी०)
मध्य प्रदेश 55 3,08,000
कर्नाटक 31 1,91,791
मेघालय 11 22,429
गोवा 02 3,702
केरल 14 38,863
हरियाणा 22 44,212

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हाँ, ज़िलों की संख्या का राज्यों के क्षेत्रफल से संबंध है; जैसाकि रेखाचित्र या ग्राफ से दर्शाया गया है। ग्राफ़ से पता चल रहा है कि जिस राज्य का क्षेत्रफल अधिक है उसमें जिलों की संख्या अधिक है और जिस राज्य का क्षेत्रफल कम है उसमें जिलों की संख्या भी कम है। गोवा और मध्य प्रदेश इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

प्रश्न 2.
उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, त्रिपुरा, राजस्थान तथा जम्मू और कश्मीर में से कौन-सा राज्य सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व वाला और कौन-सा एक न्यूनतम जनसंख्या घनत्व वाला राज्य है?
उत्तर:

2001 की जनगणना के अनुसार 2011 की जनगणना के अनुसार
राज्य जनसंख्या घनत्व (वर्ग कि०मी०) राज्य जनसंख्या घनत्व (वर्ग कि०मी०)
उत्तर प्रदेश 690 उत्तर प्रदेश 829
पशिचम बंगाल 903 पशिचम बंगाल 1,029
गुजरात 258 गुजरात 308
अरुणाचल प्रदेश 13 अरुणाचल प्रदेश 17
तमिलनाडु 480 तमिलनाडु 555
त्रिपुरा 305 त्रिपुरा 350
राजस्थान 165 राजस्थान 201
जम्मू और कशमीर 99 जम्मू और कश्मीर 124

2001 की जनगणना के अनुसार सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व वाला राज्य पश्चिम बंगाल (903 वर्ग कि०मी०) और न्यूनतम जनसंख्या घनत्व वाला राज्य अरुणाचल प्रदेश (13 वर्ग कि०मी०) है। 2011 की जनगणना के अनुसार सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व वाला राज्य पश्चिम बंगाल (1029 वर्ग कि०मी०) और न्यूनतम जनसंख्या घनत्व वाला राज्य अरुणाचल प्रदेश. (17 वर्ग कि०मी०) है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 1 भारत-स्थिति

प्रश्न 3.
राज्य के क्षेत्रफल व जिलों की संख्या के बीच संबंध को ढूंढिए।
उत्तर:
राज्य के क्षेत्रफल व जिलों की संख्या के बीच धनात्मक संबंध पाया जाता है। यदि किसी राज्य का क्षेत्रफल अधिक है, तो उस राज्य के जिलों की संख्या भी अधिक होती है और यदि किसी राज्य का क्षेत्रफल कम है तो उसके जिलों की संख्या भी कम होती है।

प्रश्न 4.
तटीय सीमाओं से संलग्न राज्यों की पहचान कीजिए।
उत्तर:
भारत की तटीय सीमा की कुल लंबाई 7,516.6 कि०मी० है। इतनी लंबी तटीय सीमा को देश के 9 राज्यों की सीमाएँ स्पर्श करती हैं। सबसे लम्बी सीमा गुजरात की और सबसे छोटी सीमा गोवा की है। भारत के तटीय सीमा से लगने वाले राज्य निम्नलिखित हैं

तटीय सीमाओं से संलग्न राज्य अरब सागर की ओर से-

  • गुजरात
  • महाराष्ट्र
  • गोवा
  • कर्नाटक
  • केरल।

बंगाल की खाड़ी की ओर से-

  • तमिलनाडु
  • आंध्र प्रदेश
  • ओडिशा
  • पश्चिम बंगाल।

प्रश्न 5.
पश्चिम से पूर्व की ओर स्थलीय सीमा वाले राज्यों का क्रम तैयार कीजिए।
उत्तर:
पश्चिम से पूर्व की ओर स्थलीय सीमा वाले राज्य निम्नलिखित हैं-

  • जम्मू और कश्मीर (अब जम्मू और कश्मीर केंद्र-शासित प्रदेश बन गया है। इसको जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख दो भागों में ट दिया गया है।)
  • हिमाचल प्रदेश
  • उत्तराखण्ड
  • उत्तर प्रदेश
  • बिहार
  • पश्चिम बंगाल और
  • अरुणाचल प्रदेश।

परिशिष्ट-II पर आधारित क्रियाकलाप

प्रश्न 1.
उन केंद्र-शासित क्षेत्रों की सूची बनाइए जिनकी स्थिति तटवर्ती है।
उत्तर:

  1. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह
  2. पदुच्चेरी
  3. लक्षद्वीप
  4. दमन व दीव
  5. दादर व नगर हवेली।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली तथा अंडमान व निकोबार द्वीप समूह के क्षेत्रफल और जनसंख्या में अंतर की व्याख्या आप किस प्रकार करेंगे?
उत्तर:
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली तथा अंडमान व निकोबार द्वीप समूह के क्षेत्रफल और जनसंख्या में अंतर है-

वर्ग राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली अंडमान व निकोबार द्वीप समूह
क्षेत्रफल (वर्ग कि०मी०) 1,483 8,249
जनसंख्या 1,67,53,235 3,79,944
जनसंख्या घनत्व (प्रति वर्ग कि०मी०) 11,297 46

(i) 2011 की जनगणना के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की जनसंख्या अंडमान व निकोबार द्वीप समूह से अधिक है।

(ii) राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का क्षेत्रफल अंडमान व निकोबार द्वीप समूह से कम है।

प्रश्न 3.
एक ग्राफ पेपर पर दंड आरेख द्वारा केंद्र शासित क्षेत्रों के क्षेत्रफल व जनसंख्या को आलेखित कीजिए।
उत्तर:
2011 की जनगणना के अनुसार-

केंद्र शासित प्रदेश क्षेत्रफल (वर्ग कि०मी०) जनसंख्या
1. दिल्ली 1,483 1,67,53,235
2. चण्डीगढ़ 114 10,54,686
3. लक्षद्वीप 32 64,429
4. पुद्दुच्चेरी 490 12,44,464
5. दमन व दीव 111 2,42,911
6. दादर व नगर हवेली 491 3,42,853
7. अंडमान व निकोबार द्वीप समूह 8,249 3,79,944

Note-विद्यार्थी अध्यापक की सहायता से ग्राफ स्वयं बनाने का प्रयास करें।

भारत-स्थिति HBSE 11th Class Geography Notes

→ अंतःक्रिया (Interaction)-दो या अधिक तत्त्वों का एक-दूसरे पर पड़ने वाला आपसी प्रभाव।

→ स्थानीय समय (Local Time)-किसी स्थान पर सूर्य की अधिकतम ऊंचाई का समय।

→ प्रामाणिक समय (Standard Time) किसी देशांतर विशेष पर सूर्य की अधिकतम ऊंचाई का समय जो उस संपूर्ण क्षेत्र में लागू किया जाए।

→ प्रायद्वीप (Peninsula)-ऐसा स्थलखंड जो तीन ओर से समुद्रों से घिरा हो।

→ सापेक्षिक स्थिति (Relative Position)निकटवर्ती स्थानों के संदर्भ में किसी क्षेत्र की स्थिति।

→ जलडमरुमध्य (Strait)-दो स्थलखंडों को अलग करता पानी का हिस्सा।

→ खाड़ी (Gulf)-विस्तृत घुमाव वाले सागरीय तट से घिरा हुआ समुद्र का एक भाग जिसका नाम निकटवर्ती क्षेत्र के आधार पर होता है; जैसे बंगाल की खाड़ी, मैक्सिको की खाड़ी इत्यादि।

→ भारत की स्थिति (Location of India)-भारत एशिया महाद्वीप का एक ऐसा देश है जो एशिया के दक्षिणी भाग में हिन्द महासागर के शीर्ष पर तीन ओर समुद्र से घिरा हुआ है। संपूर्ण भारत उत्तरी गोलार्द्ध में है।

→ राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश (States and Union Territories)-वर्तमान में भारत में 28 राज्य और 8 केंद्र शासित। प्रदेश हैं।

→ विस्तार (Expansion)-भारत का अक्षांशीय विस्तार 8°4′ उत्तरी अक्षांश से 37°6′ उत्तरी अक्षांश तक और देशांतर विस्तार 68°7′ पूर्वी देशांतर से 97°25′ पूर्वी देशांतर तक है।

→ आकार (Size) भारत त्रिकोणीय आकार का देश है। इसकी उत्तर से दक्षिण तक लम्बाई 3214 कि०मी० और पूर्व से पश्चिम तक लम्बाई 2933 कि०मी० है।

→ क्षेत्रफल एवं जनसंख्या (Area and Population)-क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व में भारत का सातवाँ स्थान है। भारत का क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग कि०मी० है। जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में भारत का दूसरा स्थान है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या लगभग 121.2 करोड़ है।

  • क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा राज्य – राजस्थान
  • क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सबसे छोटा राज्य – गोवा
  • जनसंख्या की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा राज्य – उत्तर प्रदेश
  • जनसंख्या की दृष्टि से भारत का सबसे छोटा राज्य – सिक्किम

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 1 भारत-स्थिति

अन्तिम सीमा बिन्दु (Last Boundary Points)-भारत के अन्तिम सीमा बिंदु हैं-

  • उत्तरी बिंदु – इंदिरा कॉल (जम्मू-कश्मीर)
  • दक्षिणी बिंदु – इंदिरा प्वाइंट (ग्रेट निकोबार द्वीप)
  • पूर्वी बिंदु – किबिथू (अरुणाचल प्रदेश)
  • पश्चिमी बिंदु – राजहर कीक (गुजरात)
  • मुख्य भूमि की दक्षिणी सीमा – कन्याकुमारी (तमिलनाडु)

भारत: राज्य, राजधानी, क्षेत्रफल, जनसंख्या और जनसंख्या घनत्व-2011
HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 1 भारत-स्थिति 1
भारत : केंद्र-शासित प्रदेश, राजधानियाँ, क्षेत्रफल और 2011 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या एवं जनसंख्या घनत्व

राज्य राजधानी क्षेत्रफल जनसंख्या जनसंख्या घनत्व
1. अंडमान व निकोबार द्वीप-समूह पोर्ट ब्लेयर 8,249 3,79,944 46
2. चण्डीगढ़ चण्डीगढ़ 114 10,54,686 9,252
3. दादर व नगर हवेली सिलवासा 491 3,42,853 698
4. दमन व दीव दमन 111 2,42,911 2,169
5. लक्षद्वीप कवरत्ती 32 64,429 2,013
6. पुद्दुच्चेरी पुद्धु्चेरी 490 12,44,464 2,598
7. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली नई दिल्ली 1,483 1,67,53,235 11,297

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 1 भारत-स्थिति 2
नोट – जून, 2014 में तेलगांना भारत का नवगठित राज्य बना। इसकी राजधानी हैदराबाद को बनाया गया।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. प्राकृतिक आपदाएँ प्रतिवर्ष भारत के कितने लोगों को प्रभावित करती हैं?
(A) 2 करोड़
(B) 6 करोड़
(C) 10 करोड़
(D) 12 करोड़
उत्तर:
(B) 6 करोड़

2. विश्व के सर्वाधिक आपदा संभावित देशों में भारत का कौन-सा स्थान है?
(A) दूसरा
(B) तीसरा
(C) चौथा
(D) पाँचवां
उत्तर:
(A) दूसरा

3. सामान्यतः भारत का कितने प्रतिशत क्षेत्र सूखे से ग्रस्त रहता है?
(A) 5%
(B) 10%
(C) 14%
(D) 16%
उत्तर:
(D) 16%

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

4. निम्नलिखित में से कौन-सा एक इलाका भूकंप की दृष्टि से अति जोखिम क्षेत्र के अंतर्गत आता है?
(A) दक्कन पठार
(B) पूर्वी हरियाणा
(C) पश्चिमी उत्तर प्रदेश
(D) कश्मीर घाटी
उत्तर:
(D) कश्मीर घाटी

5. भूकंप किस प्रकार की आपदा है?
(A) वायुमण्डलीय
(B) भौमिकी
(C) जलीय
(D) जीवमण्डलीय
उत्तर:
(B) भौमिकी

6. आपदा प्रबंधन नियम किस वर्ष बनाया गया?
(A) वर्ष 2003 में
(B) वर्ष 2005 में
(C) वर्ष 2007 में
(D) वर्ष 1999 में
उत्तर:
(B) वर्ष 2005 में

7. भारत में सूखे का प्रभाव लगभग कितने क्षेत्र पर होता है?
(A) 5 लाख वर्ग कि०मी०
(B) 7 लाख वर्ग कि०मी०
(C) 10 लाख वर्ग कि०मी०
(D) 15 लाख वर्ग कि०मी०
उत्तर:
(C) 10 लाख वर्ग कि०मी०

8. भुज में विनाशकारी भूकंप कब आया था?
(A) 26 जनवरी, 1999
(B) 26 जनवरी, 2000
(C) 26 जनवरी, 2001
(D) 26 जनवरी, 2002
उत्तर:
(C) 26 जनवरी, 2001

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

9. भुज में 2001 को आए भूकंप की रिक्टर स्केल पर तीव्रता क्या थी?
(A) 2.5
(B) 3.5
(C) 5.2
(D) 7.9
उत्तर:
(D) 7.9

10. आपदाओं के संबंध में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) समय के साथ प्राकृतिक आपदाओं के प्रारूप में परिवर्तन आया है
(B) सभी संकट आपदाएँ होती हैं
(C) समय के साथ आपदाओं द्वारा किए गए नुकसान में वृद्धि हो रही है
(D) आपदाओं के भय ने पूरी दुनिया की चिंता बढ़ा दी है
उत्तर:
(B) सभी संकट आपदाएँ होती हैं

11. उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा एक कथन सही नहीं है?
(A) सर्वाधिक चक्रवात अक्तूबर और नवम्बर में आते हैं
(B) ये पूर्वी प्रशांत महासागर, मैक्सिको तथा मध्य अमेरिकी तट पर भी पैदा होते हैं
(C) इनकी उत्पत्ति भूमध्यरेखा के पास 0° से 5° अक्षांशों के बीच होती है।
(D) इन चक्रवातों में समदाब रेखाएँ एक-दूसरे के नजदीक होती हैं
उत्तर:
(C) इनकी उत्पत्ति भूमध्यरेखा के पास 0° से 5° अक्षांशों के बीच होती है।

12. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात सामान्यतः निम्नलिखित अक्षांश में आते हैं-
(A) 0° – 5° अक्षांशों के बीच
(B) 5° – 15° अक्षांशों के बीच
(C) 15° – 20° अक्षांशों के बीच
(D) 5° – 20° अक्षांशों के बीच
उत्तर:
(D) 5° – 20° अक्षांशों के बीच

13. आपदाओं के संबंध में जो कथन सही नहीं है, उसे चिहनित कीजिए-
(A) देश में 4 करोड़ हैक्टेयर भूमि को बाढ़ प्रभावित घोषित किया गया है
(B) देश के भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 30 प्रतिशत भाग पर सूखे का प्रभाव रहता है
(C) सूखे का अधिक प्रभाव वहाँ पड़ता है जहाँ वर्षा की परिवर्तिता का गुणांक 20 प्रतिशत से अधिक होता है
(D) भूस्खलन की दृष्टि से हरियाणा अधिक सुभेद्यता क्षेत्र में आता है
उत्तर:
(D) भूस्खलन की दृष्टि से हरियाणा अधिक सुभेद्यता क्षेत्र में आता है

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
प्राकृतिक आपदाएँ प्रतिवर्ष भारत के कितने लोगों को प्रभावित करती हैं?
उत्तर:
लगभग 6 करोड़।

प्रश्न 2.
विश्व के सर्वाधिक आपदा सम्भावित देशों में भारत का कौन-सा स्थान है?
उत्तर:
दूसरा।

प्रश्न 3.
भारत के किस राज्य में सर्दी के महीनों में बाढ़ आती है?
उत्तर:
तमिलनाडु में।

प्रश्न 4.
भूकम्पों के आने का क्या कारण है?
उत्तर:
विवर्तनिक हलचलें।

प्रश्न 5.
भारतीय प्लेट किस दिशा में खिसक रही है?
उत्तर:
उत्तर दिशा।

प्रश्न 6.
सामान्यतः भारत का कितना प्रतिशत क्षेत्र सूखे से ग्रस्त रहता है?
उत्तर:
16 प्रतिशत।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 7.
चक्रवात में समदाब रेखाओं की आकृति लगभग कैसी होती है?
उत्तर:
लगभग गोल।

प्रश्न 8.
धरातल के उस बिन्दु का नाम बताएँ जहाँ सबसे पहले भूकम्पीय तरंगें पहुँचती हैं।
उत्तर:
अधिकेन्द्र।

प्रश्न 9.
भूकम्प की तीव्रता को किस स्केल पर मापा जाता है?
उत्तर:
रिक्टर स्केल पर।

प्रश्न 10.
रिक्टर स्केल पर कितनी इकाइयाँ होती हैं?
उत्तर:
1 से 9 तक।

प्रश्न 11.
भुज में 26 जनवरी, 2001 को आए भूकम्प की रिक्टर स्केल पर तीव्रता क्या थी?
उत्तर:
7.9।

प्रश्न 12.
भारत में अत्याधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र के एक जिले का नाम लिखें।
उत्तर:
बीकानेर (राजस्थान)।

प्रश्न 13.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात सामान्यतः किन अक्षांशों में आते हैं?
उत्तर:
5° से 20° अक्षांशों के बीच।

प्रश्न 14.
भारत में बाढ़ों का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
भारी मानसून तथा चक्रवात।

प्रश्न 15.
प्रायद्वीपीय भारत में बातें कम क्यों आती हैं?
उत्तर:
नदियाँ मौसमी होने के कारण।

प्रश्न 16.
उत्तराखण्ड में भयंकर प्राकृतिक आपदा कब आई?
उत्तर:
16 जून, 2013 में।

प्रश्न 17.
पृथ्वी के अन्दर भूकम्प कितनी गहराई तक उत्पन्न होते हैं?
उत्तर:
75 कि०मी० की गहराई तक।

प्रश्न 18.
पृथ्वी के अन्दर भूकम्प उत्पत्ति वाले स्थान का नाम बताओ।
उत्तर:
उद्गम केन्द्र या भूकम्प मूल।

प्रश्न 19.
रिक्टर स्केल का आविष्कारक कौन था?
उत्तर:
चार्ल्स फ्रांसिस रिक्टर।

प्रश्न 20.
महाराष्ट्र के लाटूर में आए भूकम्प का क्या कारण था?
उत्तर:
भारतीय प्लेट का उत्तर दिशा में खिसकना।

प्रश्न 21.
भूकम्प और ज्वालामुखी की सर्वोत्तम व्याख्या कौन-सा सिद्धान्त करता है?
उत्तर:
प्लेट टेक्टोनिक्स सिद्धान्त।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सूखा क्यों पड़ता है?
उत्तर:
वर्षा की परिवर्तनीयता के कारण सूखा पड़ता है।

प्रश्न 2.
भारत में आने वाली प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. बाढ़
  2. सूखा
  3. चक्रवात
  4. भू-स्खलन
  5. भूकम्प
  6. ज्वारीय तरंगें इत्यादि।

प्रश्न 3.
कोयना भूकम्प क्यों आया था?
उत्तर:
कोयना जलाशय में पानी के भारी दबाव के कारण यहाँ भूकम्प आया था।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 4.
चक्रवातों से प्रभावित भारत के तीन राज्यों के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. ओडिशा
  2. आन्ध्र प्रदेश तथा
  3. तमिलनाडु।

प्रश्न 5.
प्राकृतिक आपदा से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जल, स्थल अथवा वायुमण्डल में उत्पन्न होने वाली ऐसी घटना या बदलाव जिसके कुप्रभाव से विस्तृत क्षेत्र में जान-माल की हानि और पर्यावरण का अवक्रमण होता हो, प्राकृतिक आपदा कहलाती है।

प्रश्न 6.
बाढ़ संभावित क्षेत्रों में कौन-कौन से क्षेत्र आते हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने देश में 4 करोड़ हैक्टेयर भूमि को बाढ़ प्रभावित क्षेत्र घोषित किया है। असम, पश्चिम बंगाल और बिहार राज्य सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में से हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर भारत की ज्यादातर नदियाँ, विशेषकर पंजाब और उत्तर प्रदेश में बाढ़ लाती रहती हैं।

प्रश्न 7.
सुनामी लहरें क्या हैं?
उत्तर:
भूकम्प और ज्वालामुखी से उठी समुद्री लहरों को सुनामी लहरें तरंगें कहा जाता है। महासागरों की तली पर आने वाले भूकम्प से महासागरीय जल विस्थापित होता है जिससे ऊर्ध्वाधर ऊँची तरंगें पैदा होती हैं जिन्हें ‘सुनामी’ कहा जाता है। महासागरों के तटीय क्षेत्रों में ये तरंगें ज्यादा प्रभावी होती हैं। कई बार तो इनकी ऊँचाई 15 मीटर या इससे भी अधिक होती है।

प्रश्न 8.
सूखा किसे कहते हैं?
उत्तर:
सूखा एक घातक पर्यावरणीय आपदा है। यह मनुष्य, जीव-जंतुओं, वनस्पति तथा कृषि को प्रभावित करता है। किसी क्षेत्र विशेष अथवा प्रदेश या देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। किसी क्षेत्र में लंबी अवधि तक वर्षा की कमी, कम वर्षा होना, अत्यधिक वाष्पीकरण तथा जलाशयों तथा भूमिगत जल के अत्यधिक प्रयोग से भूतल पर जल की कमी हो जाती है, जिसे सूखा कहते हैं। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार जब किसी क्षेत्र में सामान्य वर्षा से 75 प्रतिशत से कम वर्षा होती है तब सूखा उत्पन्न होता है।

प्रश्न 9.
बाढ़ से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नदी की क्षमता से अधिक जल का बहाव, जिसमें नदी तट के निकट की निम्न व समतल भूमि डूब जाए, बाढ़ कहलाती है। नदी में जल का उसकी क्षमता से अधिक विसर्जन भारी वर्षा, अत्यधिक हिम के पिघलने, प्राकृतिक अवरोध के खण्डित हो जाने तथा बाँध टूटने के परिणामस्वरूप होता है।

प्रश्न 10.
महाराष्ट्र के कोयना क्षेत्र में आए भूकंप के पीछे कौन-सा कारण माना जाता है ?
उत्तर:
कोयना बाँध महाराष्ट्र में दक्षिणी पठार पर बनाया गया है। इस क्षेत्र को स्थिर और भूकंप-रहित समझा जाता था, परन्तु यहाँ 11 दिसम्बर, 1967 में कोयना बाँध पर आए भूकंप ने सभी को अचम्भित कर दिया। यह भूकंप कोयना बाँध के जलाशय में अधिक जल के भर जाने के कारण आया। इस जल के अधिक भार के कारण स्थानीय भू-सन्तुलन बिगड़ गया तथा चट्टानों में दरारें पड़ गईं। इस भूकंप को मानवकृत भूकंप कहा जा सकता है।

प्रश्न 11.
प्राकृतिक आपदा और अकाल में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
जहाँ आपदाएँ और संकट प्राकृतिक परिघटनाएँ हैं, वहाँ अकाल एक मानव-जनित (Man made) स्थिति है। अकाल तब पड़ता है जब भोजन, दवाइयों व राहत-सामग्री की कमी तथा यातायात और संचार की अपर्याप्त सुविधा के कारण लोग भूख, बीमारी और बेबसी से त्रस्त होकर मरने लगते हैं।

प्रश्न 12.
भू-स्खलन को रोकने के दो उपाय बताइए।
उत्तर:

  1. पर्वतीय क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया जाए तथा किसी नीतिगत ढंग से पेड़ों की कटाई पर अंकुश लगाया जाए।
  2. पर्वतों में गैर जरूरी खनन पर रोक लगाई जाए।

प्रश्न 13.
भू-स्खलन क्या होता है?
उत्तर:
पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के प्रभावाधीन पर्वतीय क्षेत्रों में छोटी शिलाओं से लेकर काफी बड़े भू-भाग के ढलान के नीचे की ओर सरकने या खिसकने की क्रिया को भूस्खलन कहा जाता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बाढ़ से आपका क्या अभिप्राय है? बाढ़ आने के किन्हीं चार कारणों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
नदी की क्षमता से अधिक जल का बहाव, जिसमें नदी तट के निकट की निम्न व समतल भूमि डूब जाए, बाढ़ कहलाती है। नदी में जल का उसकी क्षमता से अधिक विसर्जन भारी वर्षा, अत्यधिक हिम के पिघलने, प्राकृतिक अवरोध के खण्डित हो जाने तथा बाँध टूटने के परिणामस्वरूप होता है।

बाढ़ आने के कारण-बाढ़ आने के कारण निम्नलिखित हैं-
(1) भारी वर्षा-दक्षिण-पश्चिम मानसून पवनें सीमित अवधि में भारी वर्षा करती हैं। इस वर्षा का तीन-चौथाई भाग मानसून पवनों द्वारा जून से सितम्बर तक प्राप्त किया जाता है। इस कारण गंगा व उसकी अनेक सहायक नदियों में वर्षा ऋतु में बाढ़ आ जाती है। इसी प्रकार पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढलानों व पश्चिमी तटीय मैदान तथा असम में हिमालय में भारी तथा निरन्तर वर्षा के कारण ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ आ जाती है।

(2) उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात-भारत के पूर्वी तट पर आन्ध्र प्रदेश व उड़ीसा में तथा पश्चिमी तट पर गुजरात में बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर से उठने वाले उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात भयंकर बाढ़ लाते हैं।

(3) विस्तृत जल-ग्रहण क्षेत्र भारत की अधिकांश नदियों के जलग्रहण क्षेत्र बहुत विस्तृत हैं। परिणामस्वरूप इन नदी घाटियों के मध्य व निम्न भागों में भारी मात्रा में जल भर जाता है जो बाढ़ का कारण बनता है।

(4) नदी के प्रवाह में अवरोध नदी के तली में मिट्टी व अन्य अवसादों के जमाव, भूस्खलन तथा नदी विसर्जन (Meandering) आदि से नदी के जल का प्रवाह अवरुद्ध होने लगता है। अवरोध के अचानक टूटने के बाद नदी का जल अत्यन्त तेजी के साथ बहकर निकटवर्ती क्षेत्रों में बाढ़ ला देता है।

प्रश्न 2.
सूखे के चार प्रकारों के नाम लिखिए व किसी एक प्रकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सूखा निम्नलिखित प्रकार का होता है-

  • मौसम विज्ञान सम्बन्धी सूखा
  • जल विज्ञान सम्बन्धी सूखा
  • भौमिक जल सम्बन्धी सूखा
  • कृषि अथवा मृदा जल सम्बन्धी सूखा।

मौसम विज्ञान सम्बन्धी सूखा-यह सूखा सामान्य से कम वर्षा होने की स्थिति में पैदा होता है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (Indian Meteorological Dept.) के अनुसार, यदि दक्षिण-पश्चिम मानसून पवनों से औसत वार्षिक वर्षा के 75 प्रतिशत से कम हो तो सूखा पड़ता है और यदि यह वर्षा सामान्य से 50 प्रतिशत से भी कम हो तो भीषण सूखा पड़ता है।

प्रश्न 3.
भूकम्प के परिणाम बताते हुए इसके प्रभाव को कम करने के सुझाव दीजिए।
उत्तर:
भूकम्प में बड़े पैमाने पर भू-तल और जनसंख्या प्रभावित होती है। इससे जान और माल की भारी क्षति होती है तथा भूकम्प बुनियादी ढाँचे, परिवहन व संचार व्यवस्था, उद्योग और अन्य विकासशील क्रियाओं को ध्वस्त कर देता है। इससे विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट पहुँचती है।

भूकम्प के प्रभाव से होने वाले नुकसान को कम करने के निम्नलिखित तरीके हैं-

  • भूकम्प-नियन्त्रण केन्द्रों की स्थापना की जाए ताकि भूकम्प सम्भावित क्षेत्रों में लोगों को सूचित किया जा सके। GPS प्रणाली की सहायता से प्लेट हलचल का पता लगाया जा सकता है।
  • भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में घरों के प्रकार और भवन डिजाइन में सुधार करना।
  • भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में भूकम्प प्रतिरोधी भवन बनाना और हल्की निर्माण सामग्री का प्रयोग करना।

प्रश्न 4.
भूकम्प आने के किन्हीं दो कारणों की व्याख्या करें।
उत्तर:
1. भू-प्लेटों का खिसकना-जब अधिकांश वैज्ञानिक मानने लगे हैं कि भूकम्प भू-प्लेटों के खिसकने से आते हैं। पृथ्वी का कठोर स्थलमंडल भू-प्लेटों से बना है, जिनकी औसत मोटाई 100 कि०मी० है। इन प्लेटों के नीचे दुर्बलता मंडल स्थित हैं। ये प्लेटें एक साथ गतिशील रहती हैं। इन प्लेटों के आपस में टकराने से भूकम्प पैदा होते हैं। अधिकांश भूकम्प इन प्लेटों के किनारों पर आते हैं।

2. ज्वालामुखी क्रिया-प्रचण्ड वेग से मैग्मा व गैसें जब भूपटल पर आने का प्रयास करती हैं तो कड़ी शैलों के अवशेष के कारण चट्टानों में कम्पन पैदा होता है। इसके अतिरिक्त भूपटल के कमज़ोर भागों को तोड़कर मैग्मा जब भारी विस्फोट के साथ बाहर निकलता है तो इससे चट्टानों में कम्पन आता है। लेकिन इस तरह के झटके छोटे क्षेत्र तक सीमित रहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 5.
भारत में भूकंपीय क्षेत्रों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में कोई भी क्षेत्र भूकम्पों के प्रभाव से अछूता नहीं हैं। भारत मध्य महाद्वीपीय भूकम्प पेटी में आता है। सबसे अधिक भूकम्प भारत के हिमालयी क्षेत्र में आते हैं। इसका कारण यह है कि ये नवीन मोड़दार पर्वत आज भी ऊपर उठ रहे हैं। इससे इस क्षेत्र का सन्तुलन बिगड़ता है और भूकम्प आते हैं। अरावली से पूर्व में असम तक फैले उत्तरी भारत के मैदान में जलोढ़ के भारी जमाव द्वारा उत्पन्न भू-असन्तुलन के कारण भूकम्प आते हैं। मैदानी भाग के भूकम्प कम विनाशकारी होते हैं।

दक्कन पठार अब तक भूकम्पों से इसलिए मुक्त समझा जाता था क्योंकि यह विश्व के सबसे कठोर स्थल खण्डों में से एक है। लेकिन सन् 1967 में कोयना तथा सन् 1993 में लाटूर में आए भूकम्पों ने इस भ्रम को भी तोड़ दिया। फिर भी यह माना जा सकता है कि दक्षिणी पठार पर बहुत कम भूकम्प आते हैं। भारत में अब तक का सबसे बड़ा भूकम्प सन् 2001 में गुजरात के भुज में आया था। इसमें 50,000 से अधिक लोग मारे गए थे। सन् 2005 में कश्मीर में आए भूकम्प में भी 15,000 से अधिक लोग मारे गए थे।

प्रश्न 6.
भूकम्प क्या है? उसके परिणाम लिखिए।
अथवा
भूकम्प के किन्हीं चार दुष्परिणामों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी के आंतरिक भाग में संचित दबाव तथा हलचलों के कारण तरंगों का संचरण चट्टानों में कंपन पैदा करता है, इसे भूकंप कहते हैं। भूकंप पृथ्वी की ऊपरी सतह में होने वाली विवर्तनिक गतिविधियों के कारण उत्पन्न ऊर्जा से पैदा होते हैं। भूकम्प के दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं-

  • भूकम्पों से न केवल हजारों-लाखों लोग मारे जाते हैं, बल्कि भारी संख्या में मकान और खेत इत्यादि भी नष्ट-भ्रष्ट हो जाते हैं।
  • भूकम्प के कारण बड़े पैमाने पर भूस्खलन होता है जिनसे नदियों के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं। इससे बातें आती हैं जो जन और धन की हानि करती हैं।
  • भूकम्प के आने पर समुद्र में ऊँची-ऊँची लहरें उठती हैं। इन भूकम्पीय समुद्री लहरों को जापान में सुनामी तरंगें (Tsunamis) कहा जाता है। ये तरंगें तटीय भागों का विनाश करती हैं।
  • भूकम्प से भूपटल पर पड़ी दरारों के कारण न केवल यातायात अवरुद्ध हो जाता है बल्कि अनेक इम पशु इनमें समा जाते हैं।

प्रश्न 7.
भू-स्खलन निवारण के मुख्य उपायों का वर्णन करें।
उत्तर:
भू-स्खलन निवारण के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग उपाय होने चाहिएँ, जो निम्नलिखित हैं-

  • अधिक भू-स्खलन वाले क्षेत्रों में सड़क और बाँध निर्माण कार्य पर प्रतिबन्ध होना चाहिए।
  • स्थानान्तरी कृषि वाले क्षेत्रों में (उत्तर:पूर्वी भाग) सीढ़ीनुमा खेत बनाकर कृषि की जानी चाहिए।
  • पर्वतीय क्षेत्रों में वनीकरण को बढ़ावा देना चाहिए।
  • जल-बहाव को कम करने के लिए बाँधों का निर्माण किया जाना चाहिए।

प्रश्न 8.
भूकम्पों से होने वाले प्रमुख लाभों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. भूकम्पों के माध्यम से हमें पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के बारे में जानकारी प्राप्त करने में मदद मिलती है।
  2. भूकम्पीय बल से उत्पन्न भ्रंश और वलन अनेक प्रकार के भू-आकारों को जन्म देते हैं; जैसे पर्वत, पठार, मैदान और घाटियाँ आदि। भूमि के धंसने से झरनों और झीलों जैसे नए जलीय स्रोतों की रचना होती है।
  3. समुद्र तटीय भागों में आए भूकम्पों के कारण कम गहरी खाड़ियों का निर्माण होता है जहाँ सुरक्षित पोताश्रय बनाए जा सकते हैं।

प्रश्न 9.
भू-स्खलन के दुष्परिणामों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. बेशकीमती जान और माल की हानि होती है।
  2. नदी मार्ग अवरुद्ध हो जाने से बाढ़ें आती हैं। उदाहरणतः अगस्त, 1998 में पिथौरागढ़ का लामारी गाँव भूस्खलन से अवरुद्ध हुई काली नदी के जल में डूबकर नष्ट हो गया था।
  3. भू-स्खलनों से न केवल पर्यावरण नष्ट हो रहा है, बल्कि उपजाऊ मिट्टी के रूप में प्राकृतिक संसाधनों का भी विनाश हो रहा है।
  4. हरित आवरण विहीन ढलानों पर बहते जल का अवशोषण न हो पाने की स्थिति में जलीय स्रोत सूख रहे हैं।

प्रश्न 10.
“उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात केवल प्रायद्वीपीय भारत में ही अधिक प्रभावशाली होते हैं।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
चक्रवातों की उत्पत्ति के निम्नलिखित कारण हैं-
(1) चक्रवातों की उत्पत्ति के लिए पर्याप्त कॉरियालिस बल चाहिए ताकि पवन चक्राकार घूम सके। भूमध्य रेखा व इसके दोनों ओर 5° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों के बीच कॉरियालिस बल क्षीण होता है। इसीलिए चक्रवात 5° से 20° अक्षांशों के बीच उत्पन्न होते हैं।

(2) विस्तृत समुद्री क्षेत्र जिसके तल का तापमान 27° सेल्सियस से अधिक हो ताकि चक्रवात को भारी मात्रा में आर्द्रता मिल सके। आर्द्र वायु के संघनित होने पर जो गुप्त ऊष्मा मुक्त होती है, वही चक्रवात की अपार ऊर्जा का स्रोत होती है।

(3) शान्त वायु क्षेत्र का होना भी आवश्यक है।

(4) चक्रवात के ऊपर 8 से 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर प्रतिचक्रवात अर्थात् उच्च वायुदाब होना चाहिए ताकि धरातल से ऊपर उठने वाली वायु को बाहर निकलने का मौका मिलता रहें और धरातल में स्थित केन्द्र में निम्न वायुदाब बना रहे। दी गई दशाएँ बंगाल की खाड़ी व अरब सागर में उपलब्ध होती हैं। यही कारण है कि चक्रवात इन जलराशियों में उत्पन्न होकर निकटवर्ती भारतीय प्रायद्वीय पर अत्यधिक प्रभावशाली होते हैं।

प्रश्न 11.
चक्रवातों की उत्पत्ति के मुख्य कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
चक्रवातों की उत्पत्ति के निम्नलिखित कारण हैं-
(1) चक्रवातों की उत्पत्ति के लिए पर्याप्त कॉरियालिस बल चाहिए ताकि पवन चक्राकार घूम सके। भूमध्य रेखा व इसके दोनों ओर 5° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों के बीच कॉरियालिस बल क्षीण होता है। इसीलिए चक्रवात 5° से 20° अक्षांशों के बीच उत्पन्न होते हैं।

(2) विस्तृत समुद्री क्षेत्र जिसके तल का तापमान 27° सेल्सियस से अधिक हो ताकि चक्रवात को भारी मात्रा में आर्द्रता मिल सके। आर्द्र वायु के संघनित होने पर जो गुप्त ऊष्मा मुक्त होती है, वही चक्रवात की अपार ऊर्जा का स्रोत होती है।

(3) शान्त वायु क्षेत्र का होना भी आवश्यक है।

(4) चक्रवात के ऊपर 8 से 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर प्रतिचक्रवात अर्थात उच्च वायुदाब होना चाहिए ताकि धरातल से ऊपर उठने वाली वायु को बाहर निकलने का मौका मिलता रहे और धरातल में स्थित केन्द्र में निम्न वायुदाब बना रहे। यही कारण है कि चक्रवात इन जलराशियों में उत्पन्न होकर निकटवर्ती भारतीय प्रायद्वीय पर अत्यधिक प्रभावशाली होते हैं।

प्रश्न 12.
भूकम्प की आपदा से कैसे बचा जा सकता है?
उत्तर:
भूकम्प कुदरत का एक ऐसा कहर है जिसे रोकना तो सम्भव नहीं किन्तु संगठित प्रयासों से उसके विनाश को कम किया जा सकता है। भूकम्प सैंकड़ों वर्षों के विकास को क्षण-भर में मिटा सकता है। भूकम्प का प्रतिकार करना किसी अत्यन्त शक्तिशाली शत्रु से युद्ध करने जैसा है। अतः भूकम्प के विरुद्ध एक नीतिगत रक्षा कवच बनाया जाना जरूरी है। इसके तहत न केवल भूकम्पमापी केन्द्रों की संख्या बढ़ाई जाए बल्कि भूकम्प की सूचना को कारगर तरीके से आखिरी आदमी तक फैलाया जाए। संवदेनशील भूकम्प क्षेत्रों में लोगों को भूकम्प से पहले, उसके दौरान व बाद में उठाए जाने वाले कदमों का अभ्यास करवाते रहना चाहिए। वहाँ तरंगरोधी मकानों की योजना लागू करना जरूरी है।

भूकम्प के विरुद्ध उपाय और इच्छाशक्ति जन-धन की अपार हानि को कम कर सकती है।

प्रश्न 13.
भारतीय अर्थव्यवस्था पर सूखे के पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था पर सूखे के निम्नलिखित प्रभाव पड़े हैं
(1) कृषि उपज में कमी-वर्ष 1987 के सूखे के कारण II 25 अरब से अधिक कृषि उपज का नुकसान हुआ। केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों ने सूखे पर लगभग II 75 अरब व्यय किए। खाद्यान्नों के उत्पादन में लगभग 165 लाख टन की गिरावट आई। खाद्य समस्या के कारण जन-जीवन अस्त व्यस्त हो गया।

(2) प्रति व्यक्ति आय में कमी-सूखे के परिणामस्वरूप कम कृषि उपज के कारण भारत की प्रति व्यक्ति आय कम हो जाती है, जिसको बढ़ाने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इससे अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।

(3) कृषि मजदूरों की दुर्दशा-सूखे का सबसे बुरा प्रभाव कृषि मजदूरों पर पड़ता है। मज़दूर बेरोज़गार हो जाते हैं, क्योंकि वर्षा न होने के कारण खेतों में कोई काम नहीं रहता और धन के अभाव के कारण मजदूरों का भूख से मरना शुरु हो जाता है।

(4) बीमारियों की बढ़ोत्तरी-सूखे में जल के अभाव के कारण अनेक बीमारियाँ पनपने लगती हैं। पौष्टिक भोजन में कमी होने के कारण बच्चों तथा स्त्रियों में बीमारियाँ बहुत फैल जाती हैं। सरकार के राहत कार्यों पर करोड़ों रुपए खर्च हो जाते हैं, जिससे राजस्व पूँजी में कमी आ जाती है।

(5) पशुधन में कमी-चारे के अभाव के कारण लाखों पशु मर जाते हैं, जिसका खाद्य आपूर्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राकृतिक आपदाएँ क्या हैं? भारत के संदर्भ में विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं का वर्णन कीजिए। अथवा भारत में प्राकृतिक आपदाओं के क्षेत्रों का वर्णन करें।
उत्तर:
प्राकृतिक आपदा का अर्थ (Meaning of Natural Disaster)-जल, थल अथवा वायुमंडल में प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाली एक असामान्य घटना जिसके कुप्रभाव से एक विस्तृत क्षेत्र में जान-माल की हानि तथा पर्यावरण का ह्रास होता है, प्राकृतिक आपदा कहलाती है। यह प्राकृतिक घटना जो सीमित अवधि के लिए आती है उस देश की सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्था को बुरी तरह छिन्न-भिन्न कर देती है। आपदा केवल प्राकृतिक नहीं होती, यह मानव-जनित भी हो सकती है। आपदाओं के विभिन्न स्वरूपों के आधार पर उन्हें निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है

  • प्राकृतिक अथवा भौगोलिक आपदा
  • मानवकृत अथवा कृत्रिम आपदा
  • जैविक आपदा।

विभिन्न प्राकृतिक आपदाएँ (Various Natural Disasters)-प्राकृतिक प्रकोप अथवा कारणों से उत्पन्न आपदाएँ प्राकृतिक आपदाएँ कहलाती हैं। ये धरातल के ऊपर अथवा नीचे कार्यरत शक्तियों की क्रिया का परिणाम होती हैं। विश्व जलवायु संगठन के अनुसार प्राकृतिक घटनाओं का प्रलयकारी परिणाम या इन घटनाओं की संगठित क्रिया जिससे बड़े पैमाने पर जनहानि तथा मानव क्रियाकलापों का उच्छेदन हो, प्राकृतिक आपदा कहलाती है। इनका वर्गीकरण अनेक निम्नलिखित दृष्टियों से किया जा सकता है

  • विवर्तनिक (Tectonic) आपदाएँ भूकंप (Earthquake) तथा ज्वालामुखी उदगार (Volcanic Eruption)।
  • भौमिक अथवा भू-तलीय आपदाएँ-भूस्खलन (Landslide), हिमस्खलन या हिमघाव (Avalanche) तथा भू-क्षरण।
  • वायुमंडलीय आपदाएँ-चक्रवात (Cyclone), तड़ित (Lightning), तड़ितझंझा (Thunder Storm), टारनैडो (Tomado), बादल फटना (Cloud Brust), सूखा (Drought), पाला (Frost), लू (Loo)।
  • जलीय आपदाएँ-बाढ़ (Flood), ज्वार (Tide), महासागरीय धाराएँ (Ocean Currents), सुनामी (Tsunami)।

इनमें से प्रमुख आपदाओं का विवरण इस प्रकार है–
1. भूकंप-पृथ्वी के आंतरिक भाग में संचित दबाव तथा हलचलों के कारण तरंगों का संचरण चट्टानों में कंपन पैदा करता है, इसे भूकंप कहते हैं। भूकंप पृथ्वी की ऊपरी सतह में होने वाली विवर्तनिक गतिविधियों के कारण उत्पन्न ऊर्जा से पैदा होते हैं।
देश को निम्नलिखित पांच भूकंपीय क्षेत्रों में बांटा गया है-
(1) सर्वाधिक तीव्रता का क्षेत्र इस क्षेत्र में उत्तर:पूर्वी राज्य, नेपाल, बिहार सीमावर्ती क्षेत्र, उत्तराखंड, हिमालय पर्वत श्रेणी, पश्चिमी हिमाचल प्रदेश का धर्मशाला क्षेत्र, कश्मीर घाटी के कुछ क्षेत्र, कच्छ प्रायद्वीप तथा अण्डमान निकोबार द्वीप समूह सम्मिलित हैं।

(2) अधिक तीव्रता का क्षेत्र-इसके अंतर्गत कश्मीर, हिमाचल प्रदेश के बचे भाग, उत्तरी पंजाब, पूर्वी हरियाणा, बिहार के उत्तरी मैदानी भाग एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश आते हैं।

(3) मध्यम तीव्रता का क्षेत्र-इसके अंतर्गत उत्तरी प्रायद्वीपीय पठार सम्मिलित हैं।

(4) निम्न तीव्रता का क्षेत्र देश के शेष बचे हुए भागों में से तमिलनाडु, उत्तर:पश्चिम तथा पूर्वी राजस्थान, ओडिशा का प्रायद्वीपीय भाग, उत्तरी मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ आते हैं।

(5) अति निम्न तीव्रता का क्षेत्र इस क्षेत्र में जोन-II के क्षेत्रों के भीतरी भाग शामिल हैं।

2. भूस्खलन-पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में चट्टानों के टुकड़ों का पर्वतीय ढलानों पर अचानक नीचे की ओर सरकना तथा लुढ़कना भूस्खलन कहलाता है। यह प्राकृतिक आपदा मुख्यतया पर्याप्त वर्षा वाले पर्वतीय क्षेत्रों में आती है। भूस्खलन एक त्वरित घटने वाली प्राकृतिक घटना है जिससे जन-धन की हानि होती है। नदियों के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं तथा यातायात प्रभावित होता है। भूस्खलन अनेक प्रकार के होते हैं, जिनमें-

  • अवपात
  • सर्पण
  • अवसर्पण
  • प्रवाह तथा
  • विसर्पण मुख्य होते हैं।

भारत के प्रमुख भूस्खलन क्षेत्र इस प्रकार है।

  • अति उच्च भूस्खलन क्षेत्र-इसमें हिमालय के राज्य; जैसे हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड आते हैं। इन क्षेत्रों में अत्यधिक हानि होती है।
  • उच्च भूस्खलन क्षेत्र इसमें समस्त पूर्वोत्तर राज्य; जैसे अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, त्रिपुरा, मणिपुर, असम आदि आते हैं। यहाँ वर्षाकाल में जानमाल की हानि अधिक होती है।
  • मध्यम भूस्खलन क्षेत्र इसके अंतर्गत पश्चिमी घाट, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल तथा तमिलनाडु राज्यों के नीलगिरी पहाड़ियों के क्षेत्र आते हैं।
  • निम्न भूस्खलन क्षेत्र-इस क्षेत्र में पूर्वीघाट के राज्यों के सागर तटीय क्षेत्र आते हैं। यहाँ वर्षाकाल में हानि अधिक है। सामान्य भूस्खलन की घटनाएँ होती रहती हैं।
  • अतिनिम्न भूस्खलन क्षेत्र इस क्षेत्र में विंध्याचल की पहाड़ियाँ तथा पठारों के भाग शामिल हैं। यहाँ कभी-कभी भूस्खलन की घटनाएँ होती हैं।

3. चक्रवात उष्ण कटिबंधीय चक्रवात 30° उत्तर से 30° दक्षिण अक्षांशों के मध्य पाए जाते हैं। साधारणतया इनका व्यास 500 से 1000 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ होता है। इनकी ऊर्ध्वाधर ऊँचाई 12-14 किलोमीटर तक होती है। प्राकृतिक आपदाओं में उष्ण कटिबंधीय चक्रवात सर्वाधिक शक्तिशाली, विध्वंसक, प्राणघातक तथा खतरनाक होते हैं। चक्रवातों को उनके था मौसम के आधार पर चार प्रकारों में बाँटा जा सकता है-

  • विक्षोभ
  • अवदाब
  • तूफान तथा
  • हरिकेन या टाइफून।

भारत में चक्रवातों का वितरण-भारत के प्रायद्वीपीय पठार के पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। भारत में आने वाले चक्रवात इन्हीं दोनों जलीय क्षेत्रों से उत्पन्न होते हैं। बंगाल की खाड़ी से उठने वाले चक्रवात अधिकतर अक्तूबर व नवम्बर में 16° से. 21° उत्तरी अक्षांश तथा 92° पूर्व देशांतर के पश्चिम में पैदा होते हैं। ये चक्रवात जुलाई के महीने में सुंदरवन डेल्टा के पास 18° उत्तर अक्षांश तथा 90° पूर्व देशांतर के पश्चिम से उत्पन्न होते हैं।

4. सूखा-सूखा एक घातक पर्यावरणीय आपदा है। यह मनुष्य, जीव-जंतुओं, वनस्पति तथा कृषि को प्रभावित करता है। किसी क्षेत्र विशेष अथवा प्रदेश या देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। किसी क्षेत्र में लंबी अवधि तक वर्षा की कमी, कम वर्षा होना, अत्यधिक वाष्पीकरण तथा जलाशयों तथा भूमिगत जल के अत्यधिक प्रयोग से भूतल पर जल की कमी हो जाती है, जिसे सूखा कहते हैं। विभाग ने सूखे को दो वर्गों में बांटा है

  • प्रचंड सूखा-जब वास्तविक वर्षा सामान्य वर्षा से 50 प्रतिशत अथवा इससे भी कम होती है तो इसे प्रचंड सूखा कहते हैं
  • सामान्य सूखा जब वास्तविक वर्षा सामान्य वर्षा से 50 से 75 प्रतिशत के मध्य होती है तो इसे सामान्य सूखा कहते हैं।

भारत में सूखाग्रस्त क्षेत्र भारत में सूखे से प्रभावित होने वाले संभावित क्षेत्र बिहार, झारखंड का पठारी भाग, गुजरात, पश्चिमी राजस्थान, मराठवाड़ा, तेलंगाना, ओडिशा के कालाहाण्डी तथा समीपवर्ती क्षेत्र आदि मुख्य हैं। सूखे की तीव्रता के आधार पर भारत को निम्नलिखित तीन क्षेत्रों में बांटा गया है
(i) अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र-राजस्थान, विशेषकर पश्चिमी राजस्थान का मरुस्थल जिसमें राजस्थान के जैसलमेर तथा बाड़मेर जिले शामिल हैं। यहाँ औसत वर्षा 90 मि०मी० से भी कम होती है तथा गुजरात का रन व कच्छ क्षेत्र आता है।

(ii) अधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र-इस क्षेत्र के अंतर्गत राजस्थान के पूर्वी भाग, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र के पूर्वी भाग, कर्नाटक का पठारी भाग, आंध्र प्रदेश के भीतरी भाग, तमिलनाडु का उत्तरी भाग, दक्षिणी झारखंड तथा ओडिशा के भीतरी भाग सम्मिलित हैं।

(iii) मध्यम सूखा प्रभावित क्षेत्र-इसमें उत्तरी राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के दक्षिणी जिले, पूर्वी गुजरात, झारखंड, तमिलनाडु से कोयम्बटूर पठार तक तथा आंतरिक कर्नाटक शामिल हैं।

5. बाढ बाढ का संबंध अतिवष्टि से है। प्राकतिक आपदाओं में बाढ भी एक अत्यंत तबाही मचाने वाली आपदा है। नदियों में जल-स्तर इतना बढ़ जाता है कि जल की विशाल राशि उन क्षेत्रों में प्रविष्ट कर जाती है जहाँ सामान्यतया उसकी उपेक्षा नहीं की जाती। इस प्रकार जल के अनियंत्रित तथा असीमित फैलाव को बाढ़ कहा जाता है। सामान्य शब्दों में वर्षा जल की अधिकता के कारण जल अपने प्रवाह मार्ग में न बहकर तटबंधों से बाहर आकर मानव अधिवासों तथा समीपवर्ती भूभाग को जलमग्न कर देता है तो उसे बाढ़ कहते हैं। सामान्यतया बाढ़ विशेष ऋतु में तथा विशेष क्षेत्र में ही आती है।

बाढ़ मूलतः प्राकृतिक कारकों का प्रतिफल है, परंतु मानवीय कारक भी इसमें सक्रिय योगदान देते हैं। मानवीय क्रियाकलाप; जैसे नदियों के मार्ग में परिवर्तन, नगरीकरण, बांध का निर्माण, अंधाधुंध वन कटाव, अवैज्ञानिक कृषि, भूमि उपयोग में परिवर्तन, बाढ़ के मैदानों में मानव अधिवास के कारण बाढ़ की तीव्रता, परिमाण तथा विध्वंसता में वृद्धि होती है

6. सुनामी-भूकम्प और ज्वालामुखी से उठी समुद्री लहरों को सुनामी तरंगें कहा जाता है। महासागरों की तली पर आने वाले भूकम्प से महासागरीय जल विस्थापित होता है जिससे ऊर्ध्वाधर ऊँची तरंगें पैदा होती हैं जिन्हें ‘सुनामी’ कहा जाता है। महासागरों के तटीय क्षेत्रों में ये तरंगें ज्यादा प्रभावी होती हैं कई बार तो इनकी ऊँचाई 15 मीटर या इससे भी अधिक होती है।

सुनामी लहरों के क्षेत्र-सुनामी लहरें आमतौर पर प्रशान्त महासागरीय तट जिसमें अलास्का, जापान, फिलीपाइन, दक्षिण-पूर्वी एशिया के दूसरे द्वीप, इण्डोनेशिया और मलेशिया तथा हिन्द महासागर में म्यांमार, श्रीलंका और भारत के तटीय भागों में आती हैं।

सुनामी लहरों के प्रभाव तट पर पहुँचने पर सुनामी लहरें अत्यधिक ऊर्जा निर्मुक्त करती हैं और समुद्र का जल तेजी से तटीय क्षेत्रों में घुस जाता है और तट के निकटवर्ती क्षेत्रों में तबाही फैलाता है। अतः तटीय क्षेत्रों में जनसंख्या अधिक होने के कारण दूसरी प्राकृतिक आपदाओं की अपेक्षा सुनामी अधिक जान-माल का नुकसान पहुँचाती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 2.
भारत में बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का वर्णन कीजिए तथा बाढ़ों से होने वाली क्षति का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नदी में जब पानी की मात्रा उसकी जलमार्ग क्षमता से अधिक हो जाती है तब उसे बाढ़ के रूप में जाना जाता है। बाढ़ की मात्रा घर्षण की मात्रा और तीव्रता, तापमान, तथा ढाल पर निर्भर करती है। लम्बी अवधि तक होने वाली वर्षा से मिट्टी अपनी सम्पूर्ण क्षमता तक पानी से परिपूर्ण हो जाती है और वहाँ का अनुपात बढ़ता जाता है। बजरी, जिसके नीचे अप्रवेश्य पदार्थ न हो, इसका अपवाद है। जहाँ पर झंझावातों द्वारा भारी वर्षा होती है, वहाँ बाढ़ का खतरा अधिक होता है। बाढ़ निम्नलिखित दो प्रकार की होती है

आकस्मिक बाढ़-इनकी अवधि बहुत छोटी होती है, इस प्रकार की बाढ़ गरज के साथ होने वाली प्रबल बौछारों से आती है। दीर्घ अवधि बाद-लम्बे समय तक वर्षा होने के कारण जल की मात्रा बहुत बढ़ जाती है, जिससे सम्पूर्ण जल विभाजक क्षेत्र में बाढ़ आ जाती है।।

भारत में बाढ़ग्रस्त क्षेत्र बाढ़ से जन-जीवन अव्यवस्थित हो जाता है। जन-धन की अपार हानि होती है। शहरी क्षेत्र में पेय जल की समस्या के कारण अनेक बीमारियाँ पनपने लगती हैं। भारत का अधिकांश भाग बाढ़ सम्भावित क्षेत्र है। अधिकांश बाढ़ भारत के उत्तरी भाग में आती है। गंगा तथ ब्रह्मपुत्र नदियों के अप्रवाह क्षेत्र में भारत का 60% बाढ़ग्रस्त क्षेत्र आता है। हर वर्ष गंगा, यमुना, सतलुज, रावी, व्यास, ब्रह्मपुत्र, कृष्णा, कावेरी, महानदी आदि नदियों में बाढ़ आती है।

असम, बिहार, आन्ध्र प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश आदि में बाढ़ का प्रकोप बना रहता है। कोसी, तिस्ता और टोर्सा नदियाँ हिमाचल से उतरकर अवसादों के निक्षेपण से अपने रास्ते बदल लेती हैं। कोसी नदी को ‘शोक की नदी’ कहा जाता है, क्योंकि इससे काफी मात्रा में फसल नष्ट होती है। ब्रह्मपुत्र नदी असम में बाढ़ लाती है। हुगली नदी पश्चिमी बंगाल में बाढ़ लाती है। महानदी से ओडिशा के कई भाग प्रभावित होते हैं। हरियाणा में जल निकास की अव्यवस्था के कारण बाढ़ आ जाती है।

बाढ़ से होने वाली क्षति या प्रभाव-बाढ़ों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा है-

  • बाढ़ों से फसलें समाप्त हो जाती हैं। कृषि उपज में गिरावट आ जाती है।
  • प्रति व्यक्ति आय कम हो जाती है।
  • बिजली आपूर्ति ठप्प होने से करोड़ों रुपए की हानि होती है।
  • कृषि भूमि अनुपजाऊ बन जाती है।
  • परिवहन तन्त्र गड़बड़ा जाता है।
  • उत्पादन प्रक्रिया ठप्प होने से काफी नुकसान होता है।
  • विकास कार्य रुक जाते हैं।
  • राहत कार्यों पर करोड़ों रुपए खर्च हो जाते हैं।
  • पीने का पानी, खाद्य सामग्री की व्यवस्था बिगड़ जाती है।

इस प्रकार प्रत्येक वर्ष भारत में सूखा तथा बाढ़ के प्रकोप से करोड़ों रुपए का नुकसान होता है। हमारी अर्थव्यवस्था में गिरावट का यह मुख्य कारण है। अतः हमें सूखा तथा बाढ़ को रोकने के लिए समय-समय पर उचित कदम उठाने चाहिएँ। हमें योजना बनाकर इस समस्या से निपटना चाहिए। हमारे द्वारा किया गया सही नियोजन करोड़ों रुपयों की पूँजी बचा सकता है।

प्रश्न 3.
एक प्राकृतिक आपदा के रूप में भूकम्प क्या है? इसके कारणों तथा परिणामों की संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी की भीतरी हलचलों के कारण जब धरातल का कोई भाग अकस्मात् काँप उठता है तो उसे भूकम्प कहते हैं। चट्टानों की तीव्र गति के कारण हुआ यह कम्पन अस्थायी होता है। भूकम्प आने के कारण भूकम्प आने का मुख्य कारण पृथ्वी की सन्तुलित अवस्था में व्यवधान का पड़ना है। सन्तुलन की अवस्था में अस्थिरता निम्नलिखित कारणों से आती है-
1. भू-प्लेटों का खिसकना-पृथ्वी का कठोर स्थलमंडल भू-प्लेटों से बना है। इन प्लेटों के नीचे दुर्बलता मंडल स्थित हैं। ये प्लेटें एक साथ गतिशील रहती हैं तथा इन प्लेटों के आपस में टकराने से भूकम्प पैदा होते हैं। अधिकांश भूकम्प इन प्लेटों के किनारे पर आते हैं।

2. ज्वालामुखी क्रिया प्रचण्ड वेग से मैग्मा व गैसें जब भूपटल पर आने का प्रयास करती हैं तो कड़ी शैलों के अवरोध के कारण चट्टानों में कम्पन पैदा होती है। इसके अतिरिक्त भूपटल के कमजोर भागों को तोड़कर मैग्मा जब भारी विस्फोट के साथ बाहर निकलता है तो इससे चट्टानों में कम्पन आती है।

3. भूपटल का संकुचन पृथ्वी के भीतर का भाग धीरे-धीरे ठण्डा होकर सिकुड़ रहा है। ऊपर की चट्टानें जब नीचे की सिकुड़ती हुई चट्टानों से समायोजन करती हैं तो शैलों में आई अव्यवस्था के कारण भूकम्प आते हैं।

4. भूसन्तुलन भूपटल की ऊपरी चट्टानों ने ऊपर-नीचे समायोजित होकर सन्तुलन बना लिया है। कालान्त भू-भागों के अपरदन से उत्पन्न तलछट धीरे-धीरे समुद्री तली में निक्षेपित होने लगता है। इससे पृथ्वी का सन्तुलन भंग हो जाता है। अतः पुनः सन्तुलन प्राप्त करने की प्रक्रिया भूकम्प को जन्म देती है।

5. इलास्टिक रिबाऊन्ड सिद्धान्त-चट्टानें रबड़ की तरह प्रत्यास्थ होती हैं, इनमें पैदा होने वाले सम्पीड़न और तनाव की एक सीमा होती है। उस सीमा के बाद शैल और अधिक तनाव सहन नहीं कर सकती और वह टूट जाती है; ठीक उसी प्रकार जैसे रबड़ अत्यधिक खिंचाव के बाद टूट जाती है। शैल खण्डों का अकस्मात् टूटना और पुनः अपना स्थान ग्रहण करना भूकम्प पैदा करता है।

6. जलीय भार जब कभी मानव-निर्मित बड़े-बड़े जलाशयों में जल एकत्रित कर लिया जाता है तो जल भार से नीचे की चट्टानों पर दबाव बढ़ता है। इससे भूसन्तुलन अस्थिर हो जाता है। अतः उस क्षेत्र में जब भूसन्तुलन पुनः स्थापित होता है तब भूकम्प आते हैं।

7. गैसों का फैलाव-भूगर्भ में ऊँचे ताप के कारण चट्टानों के पिघलने और रिसे हुए समुद्री जल के उबलने से गैसों की उत्पत्ति होती है। चट्टानों पर सतत् बढ़ता हुआ दबाव उनमें कम्पन पैदा करता है।

8. अन्य कारण भस्खलन (Landslide), भारी हिमखण्डों (Avalanches) का ढलानों से नीचे गिरना, चना प्रदेशों (Karst Regions) में बड़ी गुफाओं की छतों का गिरना, खानों (Mines) की छतों का नीचे बैठना, पोखरण जै परीक्षण तथा भारी मशीनों और रेलों का चलना आदि ऐसे कारण हैं जो स्थानीय स्तर पर भूकम्प लाते हैं।

भूकम्पों से होने वाली हानियाँ (परिणाम)-
(1) भूकम्पों से न केवल हजारों-लाखों लोग मारे जाते हैं, बल्कि भारी संख्या में मकान और खेत इत्यादि भी नष्ट-भ्रष्ट हो जाते हैं। बीसवीं शताब्दी में लाखों भूकम्प आए किन्तु इनमें से केवल 34 भूकम्प ऐसे थे जिनके कारण लगभग 67 लाख लोगों की असामयिक मृत्यु हुई।

(2) भूकम्प के कारण बड़े पैमाने पर भूस्खलन होता है जिनसे नदियों के मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं। इससे बातें आती हैं जो जन और धन की हानि करती हैं।

(3) भूकम्प के आने पर समुद्र में ऊँची-ऊँची लहरें उठती हैं। इन भूकम्पीय समुद्री लहरों को जापान में सुनामी तरंगें (Tsunamis) कहा जाता है। ये तरंगें तटीय भागों का विनाश करती हैं। सन् 1960 में चिली में आए भूकम्प से उत्पन्न सुनामी तरंगों ने काफी कहर बरसाया था।

(4) भूकम्प से भूपटल पर पड़ी दरारों के कारण न केवल यातायात अवरुद्ध हो जाता है बल्कि अनेक इमारतें, मनुष्य और पुश इनमें समा जाते हैं। सन् 1897 में असम में आए भूकम्प के कारण वहाँ 12 मील लम्बी व 35 फुट चौड़ी दरार पड़ गई थी।

(5) भूकम्प से पड़ी दरारों में से गैस, जल व कीचड़ आदि बाहर निकलते रहते हैं। गैसें वायु के सम्पर्क में आकर प्रज्ज्वलित हो उठती हैं जिससे भीषण आग लग जाती है। जल और कीचड़ में आसपास के क्षेत्र डूब जाते हैं।

प्रश्न 4.
भूस्खलन के कारणों और प्रभावों पर टिप्पणी कीजिए।
अथवा
भूस्खलन के कारण और इससे होने वाले दुष्परिणामों या संकटों का वर्णन करें।
उत्तर:
भूस्खलन के कारण यद्यपि भूस्खलन प्रकृति-जनित दुर्घटना है, लेकिन इस आपदा की आवृत्ति व उसके प्रभाव को बढ़ाने में मनुष्य की भूमिका को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। भूस्खलन के जिम्मेदार प्रमुख कारण निम्नलिखित हो सकते हैं-
1. वनों का विनाश-वक्षों की जड़ें मिट्टी को जकड़े रहती हैं। इससे वर्षा का बहता जल मिट्टी में कटाव नहीं कर पाता । वनों के विनाश से जल ढाल पर निर्बाध गति से बहता है और वृहत् स्तर पर मिट्टी और मलबे को बहा ले जाता है। वनों का विनाश मुख्यतः निम्नलिखित कारणों से होता है

  • पहाड़ों पर बढ़ती जनसंख्या खेती के लिए वनों को साफ करती है और ईंधन के लिए वृक्षों को काटती है।
  • जनसंख्या के साथ पशुओं-गाय, भेड़-बकरी आदि की संख्या भी बढ़ रही है। पशुओं से होने वाले अति चारण से वनस्पति का आवरण तेजी से हट रहा है।
  • वन विभागों व ठेकेदारों की मिली-भगत से ‘वुड माफ़िया’ पनप जाता है जो भ्रष्ट तरीकों के नियत संख्या से ज्यादा पेड़ काट लेते हैं।

2. भकम्प हिमालयी क्षेत्र में प्रायः आने वाले भूकम्प के झटके शिलाखण्डों को हिला देते हैं जिससे वे टकर नीचे की ओर खिसक जाते हैं।

3. सड़क निर्माण-पहाड़ों में सड़क निर्माण का कार्य तेजी से चल रहा है। वहाँ एक किलोमीटर लम्बी सड़क बनाने के लिए लगभग 6 हजार घन मीटर मलबा हटाना पड़ता है। इतनी बड़ी मात्रा में ढीला मलबा जहाँ भी पड़ता है, वर्षा के जल का अवशोषण कर ढलान के साथ नीचे की ओर सरक कर विनाश का कार्य करता है।

4. भवन निर्माण-पहाड़ों में बढ़ती जनसंख्या के लिए मकान व पर्यटन के विकास के लिए भवन एवं स्थल विकसित किए . जा रहे हैं। इन क्रियाओं से भी भूस्खलन में वृद्धि होती है।

5. स्थनान्तरी कृषि-उत्तर:पूर्वी राज्यों के पर्वतीय क्षेत्रों में आज भी प्रचलित स्थानान्तरी अथवा झूम कृषि वनों को साफ करके की जा रही है। इससे भी भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ती हैं।

भूस्खलन से होने वाले संकट (दुष्परिणाम) अथवा प्रभाव भूस्खलन से होने वाले दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं-

  • बेशकीमती जान और माल की हानि होती है।
  • नदी मार्ग अवरुद्ध हो जाने से बाढ़ें आती हैं। उदाहरणतः अगस्त, 1998 में पिथौरागढ़ का लामारी गाँव भूस्खलन से अवरुद्ध हुई काली नदी के जल में डूबकर नष्ट हो गया था।
  • भूस्खलनों से न केवल पर्यावरण नष्ट हो रहा है, बल्कि उपजाऊ मिट्टी के रूप में प्राकृतिक संसाधनों का भी विनाश हो रहा है।
  • हरित आवरण विहीन ढलानों पर बहते जल का अवशोषण न हो पाने की स्थिति में जलीय स्रोत सूख रहे हैं।

HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 5 यायावर साम्राज्य

Haryana State Board HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 5 यायावर साम्राज्य Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class History Important Questions Chapter 5 यायावर साम्राज्य

निबंधात्मक उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
12वीं शताब्दी में यायावरिता के स्वरूप का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मंगोल मध्य एशिया के आधुनिक मंगोलिया प्रदेश में रहने वाला एक यायावर समूह था। 12वीं शताब्दी में चंगेज़ खाँ के उत्थान से पूर्व मंगोल यायावरिता के स्वरूप की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

1. प्रमुख व्यवसाय (Chief occupations):
12वीं शताब्दी में यायावरी कबीलों का प्रमुख व्यवसाय पशुपालन था। उस समय मंगोलिया में अनेक अच्छी चरागाहें थीं। अल्ताई पहाड़ों की बर्फीली चोटियों से निकलने वाले सैंकड़ों झरनों तथा ओनोन (Onon) एवं सेलेंगा (Selenga) नदियों के पानी के कारण यहाँ हरी घास प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती थी।

मंगोल जिन पशुओं का पालन करते थे उनमें प्रमुख थे घोड़े एवं भेड़ें। इनके अतिरिक्त वे गायों, बकरियों एवं ऊँटों का पालन भी करते थे। इन पशुओं का प्रयोग वे दूध, माँस एवं ऊन प्राप्त करने के लिए तथा सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ढोने के लिए करते थे। घोड़ों का प्रयोग वे घुड़सवारी के लिए करते थे। मंगोल घोड़ों पर सवार होकर ही युद्धों में भाग लेते थे।

कुछ मंगोल शिकार संग्राहक (hunter gatherers) थे। वे जंगली जानवरों का शिकार करते थे एवं मछलियाँ पकडते थे। वे साइबेरियाई वनों में रहते थे। वे पशुपालक लोगों की तुलना में अधिक गरीब होते थे। उस समय मंगोलिया की भौगोलिक परिस्थितियाँ कृषि के अनुकूल नहीं थीं। अतः यायावरी कबीले कृषि कार्य नहीं करते थे। इस कारण यायावरी कबीलों की अर्थव्यवस्था घनी जनसंख्या वाले क्षेत्रों का भरण-पोषण करने में समर्थ नहीं थी। अतः यहाँ कोई नगर नहीं उभर पाया।

2. निवास स्थान (Dwellings):
यायावरी कबीले चरागाहों की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते थे। अतः वे किसी स्थान में स्थाई रूप से नहीं रहते थे। मंगोल गोलाकार तंबुओं में रहते थे जिसे वे जर (ger) कहते थे। जनसाधारण लोगों के तंबू छोटे आकार के होते थे। धनी लोगों के तंबुओं का आकार बड़ा होता था। ये तंबु सन के बने होते थे। इन तंबुओं का प्रवेश द्वार दक्षिण की ओर होता था। इसका कारण यह था कि मंगोलिया में शीत हवाएँ उत्तर की ओर से आती थीं। तंबू को दो भागों में बाँटा जाता था। एक भाग मेहमानों के लिए होता था। दूसरा भाग घर के सदस्यों के लिए होता था।

3. समाज (Society):
यायावरी समाज की मूल इकाई परिवार थी। उस समय परिवार पितृपक्षीय (patriarchal) होते थे। परिवार का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति इसकी देखभाल करता था। धनी परिवार बहुत विशाल होते थे। उनके पास अधिक संख्या में पशु एवं चारागाहें होती थीं। इस कारण उनके अनेक अनुयायी होते थे तथा स्थानीय राजनीति में उनकी उल्लेखनीय भूमिका होती थी।

प्राकृतिक आपदाओं जैसे भीषण शीत ऋतु के दौरान एकत्रित की गई शिकार एवं अन्य सामग्रियों के समाप्त हो जाने की स्थिति में अथवा वर्षा न होने पर घास के मैदानों के सूख जाने की स्थिति चारागाहों की खोज में भटकना पड़ता था।

इस कारण वे लटपाट करने के लिए बाध्य हो जाते थे। अतः परिवारों के समूह अपनी रक्षा हेतु अधिक शक्तिशाली कुलों से मित्रता कर लेते थे तथा परिसंघ का गठन कर लेते थे। अधिकांश परिसंघ छोटे एवं अल्पकालिक होते थे। उस समय परिवार में पुत्र का होना बहुत आवश्यक माना जाता था।

उस समय मंगोल समाज में बहु-विवाह (polygamy) प्रथा प्रचलित थी। उस समय स्त्रियाँ समाज में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं। वे न केवल घरेलू कार्य करती थीं अपितु आवश्यकता पड़ने पर रणभूमि में दुश्मनों से लोहा लेती थीं।

4. भोजन (Diet) :
यायावरी लोगों का प्रमुख भोजन माँस एवं दूध था। मंगोल घोड़े का माँस खाने के बहुत शौकीन थे। वे गायों, भेड़ों एवं बकरियों का माँस भी खाते थे। इनके अतिरिक्त वे कुत्तों, लोमड़ियों, खरगोशों तथा चूहों का माँस भी खाते थे। वे सामान्य तौर पर पकाए हुए अथवा उबले हुए माँस का प्रयोग करते थे। कभी-कभी वे कच्चा माँस भी खा जाते थे। बचे हुए माँस को वे चमड़े के थैले में रख लेते थे।

वे खाने के बर्तनों की सफाई की ओर बहुत कम ध्यान देते थे। वे घोड़ी का दूध पीने के बहुत शौकीन थे। इसे कुम्मी (kumiss) कहा जाता था। धनी लोग शराब पीने के भी शौकीन थे। इसे. चीन से मंगवाया जाता था। इसके सेवन को बहुत सम्मानजनक समझा जाता था।

5. पोशाक (Dress):
यायावरी लोग सूती, रेशमी एवं ऊनी वस्त्र पहनते थे। वे सूती एवं रेशमी वस्त्रों का चीन से आयात करते थे। ऊनी वस्त्र वे स्वयं बनाते थे। जनसाधारण के वस्त्र सामान्य प्रकार के होते थे। धनी लोग बहुमूल्य वस्त्रों को धारण करते थे। सर्दियों से बचाव के लिए वे फर के कोट एवं टोप पहनते थे। स्त्रियों के वस्त्र एवं उनके सिर पर डालने वाला टोप विशेष प्रकार से बना होता था।

6. मृतकों का संस्कार (Disposal of the Dead):
यायावरी लोग रात्रि के समय अपने मृतकों का संस्कार करते थे। वे शवों को जमीन में दफ़न करते थे। मंगोल मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास रखते थे। अतः वे शवों के साथ खाने-पीने की वस्तुएँ एवं बर्तनों आदि को भी रखते थे। धनी व्यक्तियों के साथ अनेक बहुमूल्य वस्तुएँ, उसके घोड़ों, नौकरों एवं स्त्रियों को भी दफ़न किया जाता था। प्रायः शवों को उस स्थान पर दफ़न किया जाता था जिसका चुनाव उसने अपने जीवनकाल में किया हो अथवा जो स्थान उसे सबसे अधिक प्रिय हो।

7. व्यापार (Trade):
स्टेपी क्षेत्र अथवा मंगोलिया में संसाधनों की बहुत कमी थी। अतः यायावरी कबीले व्यापार के लिए अपने पड़ोसी देश चीन पर निर्भर करते थे। उनका व्यापार वस्तु-विनिमय (barter) पर आधारित था। यह व्यवस्था दोनों पक्षों के लिए लाभकारी थी। यायावर कबीले चीन से कृषि उत्पाद एवं लोहे के उपकरणों का आयात करते थे। इनके बदले वे घोड़ों, फर एवं शिकारी जानवरों का निर्यात करते थे।

कभी-कभी दोनों पक्ष अधिक लाभ कमाने हेतु सैनिक कार्यवाही कर बैठते थे एवं लूटपाट में भी सम्मिलित हो जाते थे। इस संघर्ष में यायावरों को कम हानि होती थी। इसका कारण यह था कि वे लूटपाट कर संघर्ष क्षेत्र से दूर भाग जाते थे। चीन को इन यायावरी आक्रमणों से बहुत क्षति पहुँचती थी। अतः चीनी शासकों ने अपनी प्रजा की रक्षा के लिए ‘चीन की महान् दीवार’ को अधिक मज़बूत किया।

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प्रश्न 2.
चंगेज़ खाँ कौन था? उसके प्रारंभिक जीवन एवं उत्थान के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
चंगेज़ खाँ यायावर साम्राज्य अथवा मंगोलों का सबसे महान् एवं प्रसिद्ध शासक था। चंगेज़ खाँ के प्रारंभिक जीवन के बारे में हमें अधिक जानकारी प्राप्त नहीं है। प्राप्त स्रोतों के आधार पर हमें जो जानकारी प्राप्त हुई है उसका संक्षिप्त वर्णन अग्रलिखित अनुसार है

1. जन्म एवं माता-पिता (Birth and Parents):
चंगेज़ खाँ का जन्म कब हुआ इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। अधिकांश इतिहासकारों का कथन है कि चंगेज़ खाँ का जन्म 1162 ई० में हुआ। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि चंगेज खाँ का जन्म 1167 ई० में हुआ। चंगेज़ खाँ का जन्म मंगोलिया के उत्तरी भाग में ओनोन नदी के निकट हुआ था। उसके पिता का नाम येसूजेई (Yesugei) था। वह एक छोटे से कबीले कियात (Kiyat) का मुखिया था। वह बोरजिगिद (Borjigid) कुल से संबंधित था।

चंगेज खाँ की माता का नाम ओलुन-के (Oelun-eke) था। वह ओंगीरत (Onggirat) कबीले से संबंधित थी। चंगेज खाँ का बचपन का नाम तेमुजिन (Temujin) था। कहा जाता है कि जिस समय बालक का जन्म हुआ उस समय उसका पिता येसूजेई अपने एक विरोधी तातार (Tatar) कबीले के मुखिया तेमुजिन को पराजित कर वापस लौटा था। अत: मंगोलियाई परंपरा के अनुसार नव जन्मे बालक का नाम तेमुजिन रखा गया।

2. तेमुजिन की कठिनाइयाँ (DImculties of Temujin):
तेमुजिन की अल्पायु में उसके पिता येसूजेई की धोखे से तातार कबीले द्वारा हत्या कर दी गई थी। येसूजेई की हत्या का समाचार सुनकर तेमुजिन की माँ ओलुन इके पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने पाँच बच्चों को लेकर कहाँ जाए। कियात कबीले के लोग तेमुजिन को अपना मुखिया स्वीकार करने को तैयार नहीं थे क्योंकि वह स्वयं अभी एक बच्चा था।

इस संकट के समय में ओलुन-इके ने अपना धैर्य न खोया। वह शिकार कर एवं जंगली फल खाकर अपना एवं अपने बच्चों का गुजारा करती रही। वह तेमुजिन को अपने कबीले की गौरव गाथाएँ सुनाकर एक नई प्रेरणा स्रोत उत्पन्न करती रही।

3. तेमुजिन के बहादुरी भरे कारनामे (Acts of Bravery of Temujin):
तेमुजिन जब युवा हुआ तो उसमें अदम्य उत्साह था। एक बार उसके विरोधी कबीले वालों ने तेमुजिन पर अचानक आक्रमण कर उसे बंदी बना लिया। निस्संदेह यह तेमुजिन के लिए सबसे विकट स्थिति थी।

ऐसे समय में तेमुजिन ने अपना धैर्य न खोया। एक दिन जब कबीले के लोग रंगरलियों में मस्त थे तो यह स्वर्ण अवसर देखकर तेमुजिन वहाँ से भागने में सफल हुआ। वह वापस अपने परिवार के सदस्यों के साथ आ मिला। यह घटना उसके जीवन में एक नया मोड़ सिद्ध हुई। एक दिन कुछ चोरों ने तेमुजिन के परिवार के आठ घोड़ों को चुरा लिया।

जब तेमुजिन को इसका पता चला तो वह फौरन अपने घोड़े पर अकेला ही उनके पीछे हो लिया। रास्ते में बोघूरचू (Boghurchu) नामक एक युवक उसके साथ हो लिया। इन दोनों ने चोरों को घेर लिया तथा अत्यंत बहादुरी से अपने घोड़ों को छुड़वा लिया। इस प्रकार बोधूरचू तेमुजिन का प्रथम मित्र बना। वे सदैव एक विश्वस्त साथी के रूप में एक-दूसरे के साथ रहे। जब तेमुजिन 18 वर्ष का हुआ तो उसका विवाह बोरटे के साथ हो गया। इस विवाह के कारण तेमुजिन की स्थिति कुछ सुदृढ़ हुई।

तेमुजिन ने जमूका (Jamuqa) को जो कि जजीरात (Jajirat) कबीले से संबंधित था को अपना सगा भाई (आंडा anda) बनाया। इसके पश्चात् तेमुजिन तुगरिल खाँ (Tughril Khan) अथवा ओंग खाँ (Ong Khan) से आशीर्वाद लेने उसके दरबार में पहुंचा।

वह कैराईट (Kereyite) कबीले का मुखिया था तथा तेमुजिन के पिता का सगा भाई (आंडा) बना था। तुगरिल खाँ ने उसका गर्मजोशी से स्वागत किया। इसी समय के दौरान मेरकिट (Merkit) कबीले के मुखिया ने तेमुजिन के कैंप पर आक्रमण कर दिया तथा उसकी पत्नी बोरटे को बंदी बनाकर अपने साथ ले गया।

इस संकट के समय में जमूका एवं तुगरिल खाँ ने तेमुजिन की बहुमूल्य सहायता की। अत: वह अपनी पत्नी बोरटे को मेरकिट कबीले के चंगुल से छुड़ाने में सफल रहा। प्रसिद्ध इतिहासकार जॉर्ज वर्नडस्की के अनुसार, “मेरकिटों के विरुद्ध अभियान के दौरान तेमुजिन ने बहुत बहादुरी दिखायी तथा उसने अनेक नए मित्र बनाए। वास्तव में यह उसके जीवन में एक नया मोड़ प्रमाणित हुई।”

4. तेमुजिन का चंगेज खाँ बनना (Temujin became Genghis Khan):
अपनी आरंभिक सफलताओं न का साहस बढ़ गया था। इसी समय जमूका, तेमुजिन एवं तुगरिल खाँ के मध्य बढ़ते हुए मैत्रीपूर्ण संबंधों के कारण ईर्ष्या करने लगा। उसने तेमुजिन के सभी विरोधी कबीलों के साथ गठजोड़ आरंभ कर दिया था। तेमुजिन इसे सहन करने को तैयार नहीं था। अतः उसने तुगरिल खाँ के सहयोग से जमूका को कड़ी पराजय दी।

निस्संदेह यह तेमुजिन की एक महान् सफलता थी। इसके पश्चात् तेमुजिन ने शक्तिशाली तातार, नेमन एवं कैराईट कबीलों को पराजित किया। स्वयं तुगरिल खाँ जो बाद में तेमुजिन का शत्रु बन गया था उससे पराजित हुआ।

इस कारण तेमुजिन स्टेपी क्षेत्र की राजनीति में सबसे प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में उभरा। तेमुजिन की इन महान् उपलब्धियों को देखते हुए कुरिलताई (quriltai) जो कि मंगोल सरदारों की एक सभा थी, ने 1206 ई० में उसे चंगेज़ खाँ (सार्वभौम शासक) की उपाधि से सम्मानित किया।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 5 यायावर साम्राज्य

प्रश्न 3.
चंगेज खाँ की विजयों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। उसकी सफलता के क्या कारण थे?
उत्तर:
1206 ई० में चंगेज़ खाँ मंगोलों का नया शासक बना। उसने सर्वप्रथम अपनी स्थिति को सुदृढ़ बनाने की ओर ध्यान दिया। इस उद्देश्य से चंगेज़ खाँ ने अपनी एक विधि संहिता यास (Yasa) को लागू किया। इसके पश्चात् उसने एक शक्तिशाली सेना का गठन किया। इस सेना के सहयोग से चंगेज खाँ ने महान् सफलताएँ प्राप्त की। इन सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. उत्तरी चीन की विजय (Conquest of Northern China):
चंगेज़ खाँ ने सर्वप्रथम अपना ध्यान चीन की ओर दिया। उस समय चीन तीन राज्यों में विभाजित था। प्रथम राज्य उत्तर-पश्चिमी प्रांत था। यहाँ तिब्बती मूल के सी सिआ (Hsi Hsia) लोगों का शासन था। दूसरे राज्य में चीन का उत्तरी क्षेत्र आता था। यहाँ चिन राजवंश का शासन था। तीसरे राज्य में चीन का दक्षिणी क्षेत्र सम्मिलित था। यहाँ शंग राजवंश का शासन था।

चीन पर आक्रमण करने से पूर्व चंगेज़ खाँ ने अपनी सेना को संबोधित करते हुए कहा, “चीन के शासकों ने हमारे पूर्वजों एवं मेरे संबंधियों का बहुत अपमान किया है। अब वह महान् परमात्मा मुझे यह भरोसा दिलाता है कि विजय हमारी होगी। चीन के इस राज्य में उसने मुझे अवसर एवं शक्ति दी है ताकि मैं अपने पूर्वजों के अपमान का बदला ले सकूँ।

चीन के विरुद्ध चंगेज़ खाँ का अभियान एक लंबे समय तक चला। 1209 ई० में चंगेज़ खाँ ने सर्वप्रथम सी सिआ लोगों को सुगमता से पराजित कर दिया। 1215 ई० में चंगेज़ खाँ ने पीकिंग (Peking) पर कब्जा करने में सफलता प्राप्त की। इसके पश्चात् चंगेज़ खाँ ने पीकिंग में भयंकर लूटमार मचाई। चिन शासक को भी बाध्य होकर अपनी एक पुत्री का विवाह चंगेज़ खाँ से करना पड़ा। चंगेज़ खाँ की यह विजय उसके लिए बहुत निर्णायक सिद्ध हुई।

2. करा खिता की विजय (Conquest of Qara Khita):
चंगेज़ खाँ ने उत्तरी चीन की विजय के पश्चात् अपना ध्यान करा खिता की विजय की ओर किया। इस उद्देश्य से उसने 1218 ई० में 20,000 सैनिकों को मंगोल सेनापति जेब (Jeb) की अधीनता में करा खिता भेजा। उस समय करा खिता में कुचलुग (Kuchlug) का शासन था।
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 5 iMG 1

जेब ने सुगमता से कुचलुग को पराजित कर करा खिता पर अधिकार कर लिया। इस विजय के कारण मंगोल साम्राज्य की सीमाएँ अमू दरिया (Amu Darya), तूरान (Turan) एवं ख्वारज़म (Khwarazm) राज्य तक फैल गईं।

3. ख्वारज़म शाह के विरुद्ध अभियान (The Campaign against the Khwarazm Shah):
1200 ई० में मुहम्मद (Muhammad) ख्वारज़म का नया शाह बना था। उसने अपने शासनकाल में अनेक क्षेत्रों पर अधिकार कर अपने साम्राज्य का काफी विस्तार कर लिया था। ऐसे शक्तिशाली साम्राज्य से टक्कर लेना चंगेज़ खाँ के लिए कोई सहज कार्य न था। 1218 ई० में चंगेज़ खाँ ने चार सदस्यों का एक व्यापारिक मंडल मुहम्मद के पास भेजा।

जब यह मंडल ख्वारजम साम्राज्य के ओट्रार (Otrar) नामक स्थान पर ठहरा तो वहाँ के गवर्नर इनाल खाँ (Inal Khan) ने मुहम्मद के इशारे पर इन सदस्यों का वध कर दिया तथा उनका सामान लूट लिया। जब यह समाचार चंगेज़ खाँ को मिला तो उसने मुहम्मद को संदेश भेजा कि वह इनाल खाँ के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करे तथा उसे बंदी बनाकर उसके दरबार में भेजे। मुहम्मद ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। परिणामस्वरूप चंगेज़ खाँ आग बबूला हो गया। उसने मुहम्मद को एक अच्छा सबक सिखाने का निर्णय किया।

उसने लगभग एक लाख सैनिकों की विशाल सेना के साथ ख्वारज़म साम्राज्य पर 1219 ई० में आक्रमण कर दिया। मंगोल सेना ने जिस ओर रुख किया वही भयंकर तबाही मचा दी। लाखों की संख्या में लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया एवं अनेक नगरों एवं गाँवों का ऐसा विनाश किया गया कि जिसे सुनकर रूह भी काँप उठे। 1219 ई० से 1222 ई० के दौरान मंगोल सेना ने ओट्रार (1219 ई०), बुखारा (1220 ई०), समरकंद (1220 ई०), बल्ख (1221 ई०), मर्व (1221 ई०), निशापुर (1221 ई०) एवं हेरात (1222 ई०) पर कब्जा कर लिया। मुहम्मद ने मंगोल सेना का सामना करने का साहस न किया।

वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर भागता रहा। उसका पीछा करते हुए मंगोल सेनाएँ अज़रबैजान (Azerbaizan) तक चली गईं। यहाँ मंगोल सेना ने क्रीमिया (Crimea) में रूसी सेना को कड़ी पराजय दी। मुहम्मद का पुत्र जलालुद्दीन भाग कर भारत आ गया। चंगेज़ खाँ उसका पीछा करता हुआ 1221 ई० में भारत आ पहुँचा। यहाँ की भयंकर गर्मी के कारण एवं चंगेज़ खाँ के ज्योतिषी द्वारा दिए गए अशुभ संकेतों के कारण चंगेज़ खाँ ने वापस मंगोलिया लौटने का निर्णय किया।

4. साम्राज्य का विस्तार (Extent of the Empire):
चंगेज़ खाँ की 1227 ई० में मृत्यु हो गई थी। अपनी मृत्यु से पूर्व उसने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना कर ली थी। उसका साम्राज्य अब फ़ारस से लेकर पीकिंग तक तथा साईबेरिया से लेकर सिंध तक फैला था। यह साम्राज्य इतना विशाल था कि किसी भी यात्री को मंगोल साम्राज्य की यात्रा एक सिरे से दूसरे सिरे तक करने के लिए दो वर्ष का समय लग जाता था। चंगेज़ खाँ ने कराकोरम (Karakoram) को मंगोल साम्राज्य की राजधानी घोषित किया था।

चंगेज़ खाँ की गणना विश्व के महान् विजेताओं में की जाती है। उसने 20 वर्ष के अल्प काल में एक विशाल साम्राज्य की स्थापना कर सबको स्तब्ध कर दिया था। उसकी सफलता के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे
1) चंगेज़ खाँ स्वयं जन्मजात सेनापति था। वह जिस ओर रुख करता सफलता उसके कदम चूमती थी।

2) चंगेज़ खाँ ने एक शक्तिशाली सेना का गठन किया था। यह सेना बहुत अनुशासित थी। इस सेना का मुकाबला करना कोई सहज कार्य न था।

3) चंगेज़ खाँ का जासूसी विभाग अत्यंत कुशल था। उनके द्वारा दी गई जानकारी उसके लिए बहुत बहुमूल्य सिद्ध होती थी।

4) चंगेज़ खाँ मनोवैज्ञानिक युद्ध (psychological warfare) के महत्त्व को भली-भाँति जानता था। अत: जब भी किसी स्थान के लोग उसकी सेना का मुकाबला करने का साहस करते तो उसकी सेना वहाँ इतना विनाश करती जिसे सुनकर लोग थर-थर काँपने लगते थे। अतः लोग बिना लड़ाई किए ही उसके समक्ष आत्म-समर्पण कर देते थे।

5) मंगोल सैनिक घुडसवारी एवं तीरंदाजी में इतने कशल थे कि शत्र भौचक्के रह जाते थे।

6) चंगेज़ खाँ आमतौर पर शीत ऋतु में अपने अभियान आरंभ करता था। इस ऋतु में नदियाँ बर्फ के कारण जम जाती थीं। अत: इन नदियों को पार करना सुगम हो जाता था।

7) चंगेज़ खाँ ने शत्रु दुर्गों को नष्ट करने के लिए घेराबंदी यंत्र (siege engine) एवं नेफ़था (naphtha) बमबारी का व्यापक प्रयोग किया। इनके युद्ध में घातक प्रभाव होते थे। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार,

“यद्यपि चंगेज़ ख़ाँ अनपढ़ था किंतु वह साइरस, डेरियस तथा सिकंदर से महान् सेनापति था तथा उसके कारनामों ने नेपोलियन तथा हिटलर को भी मात कर दिया था।”

प्रश्न 4.
मंगोल प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ क्या थीं?
अथवा
मंगोल प्रशासन के सैनिक एवं नागरिक प्रशासन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
चंगेज़ खाँ यद्यपि अपना संपूर्ण जीवन युद्धों में ही उलझा रहा इसके बावजूद वह एक कुशल प्रशासक भी प्रमाणित हुआ। उसने अपनी सेना को शक्तिशाली बनाया। उसने नागरिक प्रशासन में भी अनेक उल्लेखनीय सुधार किए। उसका प्रशासन इतना अच्छा था कि यह लगभग उसी रूप में उसके उत्तराधिकारियों के समय में भी जारी रहा।

I. सैनिक प्रशासन
चंगेज़ खाँ एक महान् योद्धा था। अत: उसने मंगोल साम्राज्य के विस्तार एवं इसकी सुरक्षा के लिए सैनिक प्रशासन की ओर विशेष ध्यान दिया। मंगोलों के सैनिक प्रशासन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

1. भर्ती (Recruitment):
चंगेज़ खाँ के समय सभी स्वस्थ व्यक्तियों के लिए सेना में भर्ती होना अनिवार्य था। केवल पुरोहितों, डॉक्टरों एवं विद्वानों को इसमें छूट दी गई थी। अधिकारियों की भर्ती का कार्य केवल चंगेज़ खाँ के हाथों में था। प्रायः ऊँचे और बहुत ही विश्वसनीय अधिकारियों के पुत्रों को अफसर पद पर नियुक्त किया जाता था।

2. संगठन (Organization) :
चंगेज़ खाँ की सेना पुरानी दशमलव पद्धति के अनुसार गठित की गई थी। यह 10, 100, 1000 एवं 10,000 सैनिकों की इकाइयों में विभाजित थी। 10 सैनिकों की इकाई को पलाटून, 100 सैनिकों की इकाई को कंपनी, 1000 सैनिकों की इकाई को ब्रिगेड तथा 10,000 सैनिकों की इकाई को तुमन कहा जाता था। चंगेज़ खाँ से पूर्व एक इकाई में एक ही कुल (clan) अथवा कबीले (tribe) के सैनिक होते थे। चंगेज़ खाँ ने इस प्रथा को समाप्त कर दिया। उसकी इकाइयों में विभिन्न कुलों एवं कबीलों के सैनिकों को सम्मिलित किया जाता था।

3. रचना (Composition):
चंगेज़ खाँ की सेना में विभिन्न मंगोल जनजातियों के लोग सम्मिलित थे। उसने विभिन्न देशों के लोगों को जिन्हें उसने अपने अधीन किया, को भी सेना में भर्ती किया। इसमें उसकी सत्ता को स्वेच्छा से स्वीकार करने वाले तुर्की मूल के उइगुर (Uighurs) लोग सम्मिलित थे। यहाँ तक कि चंगेज़ खाँ ने अपनी सेना में कैराईटों (Kereyits) को भी सम्मिलित किया। कैराईट चंगेज़ खाँ के कट्टर शत्र थे।

4. प्रशिक्षण (Training):
चंगेज़ खाँ ने सैनिकों के प्रशिक्षण पर विशेष बल दिया। उसने संपूर्ण सेना को अपने चार पुत्रों के अधीन किया। वे विशेष कप्तानों को नियुक्त करते थे जिन्हें नोयान (noyans) कहा जाता था। इनके अतिरिक्त सैनिकों को प्रशिक्षण देने में ऐसे व्यक्तियों ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जिन्हें चंगेज़ खाँ अपना सगा भाई (आंडा) कहता था।

5. अनुशासन (Discipline):
चंगेज़ खाँ सेना में अनुशासन को विशेष महत्त्व देता था। उसने सेना में अनुशासन बनाए रखने के उद्देश्य से अनेक नियम बनाए थे। इनका उल्लंघन करने वाले सैनिकों को मृत्यु दंड दिया जाता था। ये नियम थे-

  • युद्ध के आरंभ होने पर छुट्टी पर गए सभी सैनिक तुरंत रिपोर्ट करें।
  • सभी सैनिकों के लिए आवश्यक था कि वे अपने अधिकारियों के आदेश का पालन करें।
  • कोई भी सैनिक अपनी इकाई को छोड़कर किसी दूसरी इकाई में नहीं जा सकता था।
  • युद्ध में जाने से पहले सभी सैनिकों को अपने हथियारों का निरीक्षण कर लेना चाहिए।
  • कोई भी सैनिक अपने अधिकारियों की अनुमति के बिना लूटपाट न करे।
  • अधिकारियों द्वारा अनुमति मिलने पर ही लूटपाट आरंभ की जाए। लूट के धन से अधिकारियों एवं खाँ का हिस्सा दिया जाना चाहिए।

6. सेना की कुल संख्या (Total Strength of the Army):
चंगेज़ खाँ की सेना की कुल संख्या के बारे में इतिहासकारों में मतभेद हैं। इसका कारण यह है कि आरंभ में उसकी सेना की संख्या कम थी। जैसे-जैसे उसके साम्राज्य का विस्तार होता गया वैसे-वैसे उसके सैनिकों की संख्या में बढ़ोत्तरी होती चली गई। अनुमानतयः यह 1 लाख से 1.5 लाख के मध्य थी।।

7. हथियार एवं सामान (Arms and Equipments):
उस समय घुड़सवार सेना का युग था। अतः प्रत्येक सैनिक के पास एक से अधिक घोड़े होते थे। ये घोड़े बहुत फुर्तीले थे। प्रत्येक घोड़ा एक दिन में सहजता से 100 मील दौड़ सकता था। हल्के घुड़सवार (light cavalry) सैनिकों के पास दो धनुष (bows) एवं दो तरकस (quivers) होते थे जिनमें अनेक तीर रखे जाते थे। मंगोल सैनिक तीरअंदाज़ी में बहुत कुशल थे।

उनके द्वारा छोड़े गए तीर 200 से 300 गज की दूरी तक तबाही मचाने की समर्था रखते थे। उनके तीर इतने नुकीले होते थे कि वे लोहे में भी सुराख कर सकते थे। ये तीर शत्रु सेना में तहलका मचा देते थे। भारी घुड़सवार (heavy cavalry) सैनिक तलवारों एवं भालों से लैस होते थे। मंगोल सैनिक इन्हें चलाने में बहुत दक्ष थे। इनके अतिरिक्त मंगोल सैनिक शत्रु के दुर्गों का विनाश करने के लिए घेराबंदी यंत्र (siege engine) एवं नेफ़था बमबारी (naphtha bombardment) का प्रयोग करते थे।

प्रत्येक मंगोल सैनिक लोहे का टोप (helmet) छाती एवं भुजाओं पर लोहे के कवच (armour) डालते थे। वे चमड़े के भारी बूट डालते थे। वे सर्दियों में फर का कोट एवं फर का टोप पहनते थे। प्रत्येक सैनिक के पास एक चमड़े का बैग होता था। इसमें कुछ खाने-पीने का सामान, व रखे जाते थे। घोड़ों की सुरक्षा के लिए उन्हें चमड़े का कवच पहनाया जाता था।

8. लड़ाई का ढंग (Mode of warfare):
कोई भी अभियान आरंभ करने से पूर्व मंगोल खानों द्वारा कुरिलताई की सभा का आयोजन किया जाता था। इसमें युद्ध के उद्देश्यों एवं योजना के संबंध में विस्तृत चर्चा की जाती थी। इस सभा में सभी कप्तान सम्मिलित होते थे तथा वे खाँ से विशेष निर्देश प्राप्त करते थे। युद्ध आरंभ होने से पूर्व मंगोल जासूसों द्वारा शत्रु देश में झूठी अफ़वाहें फैलाई जाती थीं। इसका उद्देश्य शत्रु सैनिकों के मनोबल को नीचा करना था। शत्रु देश के सैनिकों को बिना लड़ाई के आत्म-समर्पण करने अथवा विनाश की चेतावनी दी जाती थी।

मंगोल सैनिक जिस प्रदेश पर आक्रमण करना होता था उसे चारों ओर से घेरा डाल लेते थे। यदि किसी स्थान पर शत्रु सेना का सामना करना पड़ता तो मंगोल सैनिक वहाँ से पीछे भागने का नाटक करते। शत्रु सेना उन्हें भगौड़ा समझ कर उनका पीछा करती। निश्चित स्थान पर पहुँचने पर मंगोल सैनिक शत्रु सेना पर टूट पड़ते एवं उन्हें कड़ी 167 पराजय देते। इसके पश्चात् मंगोल वहाँ इतनी भयंकर लूटमार करते कि उनका नाम सुनते ही लोग भयभीत हो जाते थे। इससे मंगोलों की विजय का काम सुगम हो जाता था। प्रसिद्ध इतिहासकार जॉर्ज वनडस्की के अनुसार,

“13वीं शताब्दी में मंगोल सेना युद्ध का एक शक्तिशाली यंत्र थी। निस्संदेह यह उस समय के विश्व में सर्वोत्तम थी।”

II. नागरिक प्रशासन

मंगोल यायावर समाज से संबंधित थे। इसलिए उनका नागरिक प्रशासन न तो अधिक उत्तम था एवं न ही अच्छी प्रकार संगठित । इसके बावजूद यह उस समय की परिस्थितियों के अनुकूल था। मंगोलों के नागरिक प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

1. खाँ की स्थिति (Position of Khan):
मंगोल साम्राज्य में खाँ (सम्राट) की स्थिति सर्वोच्च थी। उसे असीम शक्तियाँ प्राप्त थीं। उसके द्वारा राज्य की सभी आंतरिक एवं बाह्य नीतियाँ तैयार की जाती थीं। राज्य की समस्त सेना उसके अधीन होती थी तथा उसके निर्देश अनुसार कार्य करती थी। राज्य के सभी उच्च पदों की नियुक्ति चाहे वे सैनिक हों अथवा असैनिक उसके द्वारा की जाती थी।

उसे किसी देश के साथ युद्ध करने अथवा उससे संधि करने का अधिकार प्राप्त था। वह प्रजा पर कोई भी नया कर लगा सकता था अथवा पुराने करों को हटा सकता था अथवा उन्हें कम या अधिक कर सकता था। उसके मुख से निकला प्रत्येक शब्द प्रजा के लिए कानून होता था। कोई भी व्यक्ति इसका उल्लंघन नहीं कर सकता था। ऐसा करने पर उसे मृत्यु दंड दिया जाता था। यद्यपि खाँ की शक्ति किसी तानाशाह से कम नहीं थी किंतु उसकी शक्तियों पर कुरिलताई द्वारा कुछ अंकुश ज़रूर लगाया जाता था।

2. नागरिक प्रशासकों की भूमिका (Role of Civil Administrators):
चंगेज़ खाँ स्वयं अनपढ़ था तथा वह यायावर समाज से संबंधित था। उसने अपनी बहादुरी से एक विशाल साम्राज्य की स्थापना कर ली थी। इसमें विभिन्न जातियों एवं सभ्य समाजों से संबंधित लोग थे। ऐसे लोगों पर शासन करना कोई सुगम कार्य न था। इस कार्य में मंगोल उसकी सहायता करने में असमर्थ थे।

अतः चंगेज़ खाँ ने अपने अधीन किए गए सभ्य समाजों में से नागरिक प्रशासकों को भर्ती किया। चंगेज़ खाँ उनकी भर्ती के समय केवल उनकी योग्यता को प्रमुख रखता था। वह उनकी जाति अथवा धर्म को कोई महत्त्व नहीं देता था। इन नागरिक प्रशासकों ने मंगोल साम्राज्य की नींव को सुदृढ़ करने एवं उसे संगठित करने में प्रशंसनीय भूमिका निभाई।

यहाँ तक कि इन्होंने मंगोल शासकों को प्रशासन के प्रति अपनी नीतियाँ बदलने में काफी सीमा तक प्रभाव डाला। इनमें चीनी मंत्री ये-लू-चुत्साई (Yeh-lu-Chut sai) तथा इल-खानी शासक गज़न खाँ के वज़ीर रशीदुद्दीन (Rashiduddin) के नाम उल्लेखनीय हैं।

3. उलुस (Ulus):
मंगोल प्रशासन की एक उल्लेखनीय विशेषता चंगेज़ खाँ द्वारा उलुस का गठन करना था। इसके अनुसार चंगेज़ खाँ ने नव-विजित क्षेत्रों पर शासन करने का उत्तरदायित्व अपने चारों पुत्रों को दे दिया। उलुस से भाव किसी निश्चित भू-भाग से नहीं था क्योंकि इनमें लगातार परिवर्तन होता रहता था। उलुस में चंगेज़ खाँ के पुत्रों की स्थिति उप-शासक जैसी थी।

उनके अधीन अलग-अलग सैन्य टुकड़ियाँ (तामा) थीं। वे अपने अधीन क्षेत्रों से लोगों को सेना में भर्ती कर सकते थे। उन्हें लोगों पर नए कर लगाने का अधिकार दिया गया था। इसके चलते बाद में जोची ने दक्षिणी रूस में गोल्डन होर्ड (Golden Horde) एवं तोलूई के वंशजों ने चीन में युआन वंश एवं ईरान में इल-खानी वंशों की स्थापना की।

4. याम (Yam) :
चंगेज़ खाँ की एक बहुमूल्य देन याम की स्थापना करना था। याम एक प्रकार की सैनिक चौकियाँ थीं। मंगोल साम्राज्य में प्रत्येक 25 मील की दूरी पर ऐसी चौकियाँ स्थापित की गई थीं। इन चौकियों में घुड़सवार संदेशवाहक तथा फुर्तीले घोड़े सदैव तैनात रहते थे।

घुड़सवार संदेशवाहक सभी प्रकार के सरकारी संदेशों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते थे। इन यामों में ठहरने वाले यात्रियों की सुविधा के लिए उनके खाने पीने का पूरा इंतजाम किया जाता था। यात्रियों की सुरक्षा के लिए सरकार की तरफ से एक प्रकार के पास जारी किए जाते थे।

इन पासों को फ़ारसी में पैज़ा (paiza) तथा मंगोल भाषा में जेरेज़ (gerege) कहते थे। प्रत्येक याम में यात्रियों को इन पासों के अनुसार सुविधाएँ दी जाती थीं। इन चौकियों के कारण सड़क मार्गों को सुरक्षित बनाया जाता था। इस सुविधा के लिए व्यापारी सरकार को बाज़ (baz) नामक कर देते थे। इस व्यवस्था को बनाए रखने के लिए मंगोल सरकार को अपने पशुओं का दसवाँ हिस्सा देते थे। इसे कुबकुर (kubcur) कहा जाता था।

इस संस्था का उद्देश्य मंगोल साम्राज्य के दूरस्थ स्थानों पर नियंत्रण रखना एवं संपूर्ण साम्राज्य की महत्त्वपूर्ण घटनाओं की जानकारी प्राप्त करना था। याम संस्था अपने उद्देश्य में काफी सीमा तक सफल रही। जॉर्ज वर्नडस्की के अनुसार,

“यह (याम) बहुत ही लाभकारी तथा भली-भाँति संचालित संस्था थी।”

5. यास (Yasa):
मंगोल प्रशासन चलाने में यास की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। यास वे विधि नियम थे जिन्हें चंगेज़ खाँ के शासनकाल में 1206 ई० में कुरिलताई द्वारा पारित किया गया था। इन नियमों को 1218 ई० में अंतिम रूप दिया गया था। ये नियम उसके उत्तराधिकारियों के समय में भी जारी रहे। ये नियम मंगोल सेना, शिकार, डाक प्रणाली, नैतिक एवं सामाजिक व्यवस्था से संबंधित थे।

इन नियमों को मंगोलों ने पराजित लोगों पर भी लागू किया। वास्तव में यास ने मंगोलों को एक सूत्र में पिरोने, उनकी अपनी कबीलाई पहचान बनाए रखने, जटिल शहरी समाजों पर शासन करने तथा एक विश्वव्यापी मंगोल साम्राज्य की स्थापना में प्रशंसनीय योगदान दिया।

6. प्रजा का सुख (Welfare of the Subjects) :
मंगोल प्रशासन की एक अन्य विशेषता यह थी कि मंगोल शासक अपनी प्रजा के सुख का सदैव ध्यान रखते थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि चंगेज़ खाँ एवं अन्य मंगोल शासकों ने अनेक प्रदेशों को विजित करने के उद्देश्य से वहाँ भयंकर विनाश किया।

किंतु इन प्रदेशों को अपने साम्राज्य में सम्मिलित करने के पश्चात् वहाँ नगरों का पुनः निर्माण किया तथा शांति व्यवस्था स्थापित करने के उद्देश्य से अनेक पग उठाए। मंगोल शासकों ने सड़क मार्गों को सुरक्षित बनाया। उन्होंने व्यापारियों को बहुत प्रोत्साहन दिया। लोगों पर बहुत कम कर लगाए गए थे।

7. धार्मिक नीति (Religious Policy):
मंगोल शासकों का धर्म में बहुत विश्वास था। वे मुख्य रूप से तेंगरी (Tengri) भाव सूर्य देवता की उपासना करते थे। वे इसे सर्वशक्तिमान् मानते थे। वे इसे प्रसन्न करने के लिए जानवरों एवं विशेषतः घोड़ों की बलियाँ देते थे। वे पवित्र धार्मिक लोगों जिन्हें शामन (shamans) कहा जाता था का विशेष सम्मान करते थे। मंगोल शासकों की विशेषता थी कि उन्होंने सभी धर्मों ईसाई, मुस्लिम, यहूदी, बौद्ध एवं ताओ आदि के प्रति सहनशीलता की नीति अपनाई।

उन्होंने सब धर्मों के लोगों को अपने रीति-रिवाजों का पालन करने की पूर्ण छूट दी थी। उनके साम्राज्य में नौकरियाँ बिना किसी धार्मिक मतभेद के योग्यता के आधार पर दी जाती थीं। निस्संदेह यायावर समाज के शासकों द्वारा अपनाई गई धार्मिक सहनशीलता की नीति उस युग की एक महान् उपलब्धि थी। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर जे० जे० सांडर्स के अनुसार,

“एशिया के महाद्वीप में कभी भी इतनी धार्मिक स्वतंत्रता नहीं दी गई तथा विभिन्न मिशनरियों ने अपने धर्म का प्रचार करने का इतना प्रयास कभी नहीं किया।”
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 5 iMG 2

क्रम संख्या वर्ष घटना
1. 1162 ई० तेमुजिन का जन्म।
2. 1206 ई。 कुरिलताई द्वारा तेमुजिन को चंगेज़ खाँ घोषित करना। चंगेज़ खाँ द्वारा यास की घोषणा।
3. 1209 ई० चीन के उत्तर-पश्चिमी प्राँत के सी-सिआ लोगों को पराजित करना।
4. 1215 ई० चंगेज़ खाँ द्वारा पीकिंग पर अधिकार करना।
5. 1218 ई。 चंगेज़ खाँ द्वारा करा रिता की विजय।
6. 1219 ई० चंगेज़ खाँ द्वारा ओट्रार पर अधिकार।
7. 1220 ई० चंगेज़ खाँ द्वारा बुखारा एवं समरकंद पर अधिकार।
8. 1221 ई० चंगेज़ खाँ द्वारा बल्ख, मर्व एवं निशापुर पर अधिकार।
9. 1222 ई० चंगेज़ खाँ द्वारा हेरात पर अधिकार।
10. 1227 ई० चंगेज़ खाँ की मृत्यु।
11. 1229-41 ई。 ओगोदेई का शासनकाल।
12. 1234 ई。 ओगोदेई द्वारा चीन पर अधिकार।
13. 1236-42 ई० चंगेज़ खाँ के पोते बाटू द्वारा रूस, हंगरी, पोलैंड एवं ऑस्ट्रिया पर अधिकार।
14. 1246-48 ई० गुयूक का शासनकाल।
15. 1251-59 ई० मोंके का शासनकाल।
16. 1254 ई० फ्राँस के शासक लुई नौवें के राजदूत विलियम का मोंके के दरबार में पहुँचना।
17. 1258 ई० मंगोलों का बगदाद पर अधिकार एवं अब्बासी वंश का अंत।
18. 1260-94 ई० कुबलई खाँ का शासनकाल।
19. 1260 ई० कुबलई खाँ द्वारा चीन में यूआन वंश की स्थापना।
20. 1275-92 ई० वेनिस यात्री माक्को पोलो द्वारा चीन की यात्रा।
21. 1295-1304 ई० गज़न खाँ का शासनकाल।

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मंगोल कौन थे ? उनके समाज की प्रमुख विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:
मंगोल मध्य एशिया में रहने वाला एक यायावर समूह था। ये लोग मूलतः घुमक्कड़ थे। वे पशुपालक एवं शिकार संग्राहक थे। उनका समाज विभिन्न कबीलों में विभाजित था। इन कबीलों में आपसी लड़ाइयाँ चलती रहती थीं। लूटमार करना उनकी जीवन शैली का एक अभिन्न अंग था। वे चरागाहों की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान घूमते रहते थे। वे तंबुओं में निवास करते थे। उनके परिवार पितृपक्षीय थे। अतः परिवार में पुत्र का होना आवश्यक समझा जाता था।

उस समय धनी परिवार बहुत विशाल होते थे। उस समय बहु-विवाह का प्रचलन था। उनका प्रमुख भोजन माँस एवं दूध था। वे सूती, रेशमी एवं ऊनी वस्त्र पहनते थे। मंगोल अपने मृतकों का रात्रि के समय संस्कार करते थे। वे शवों को जमीन में दफ़न करते थे तथा उनके साथ कुछ आवश्यक वस्तुएँ भी रखते थे। क्योंकि उस समय स्टेपी क्षेत्र में संसाधनों की बहुत कमी थी इसलिए मंगोलों ने चीन के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए थे।

प्रश्न 2.
मंगोल और बेदोइन समाज की यायावरी विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए, यह बताइए कि आपके विचार में किस तरह ऐतिहासिक अनुभव एक-दूसरे से भिन्न थे ? इन भिन्नताओं से जुड़े कारणों को समझाने के लिए आप क्या स्पष्टीकरण देगें?
उत्तर:
मंगोल स्टेपी क्षेत्र के यायावर कबीले थे। यह क्षेत्र बहुत मनोरम एवं पहाड़ी था। दूसरी ओर बेदोइन अरब के रेगिस्तानी क्षेत्रों में रहते थे। वे अपने लिए भोजन एवं पशुओं के लिए चारे की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान आते-जाते रहते थे। उनका मुख्य भोजन खजूर एवं मुख्य पशु ऊँट था। इसके विपरीत मंगोल यायावरों के पास हरी-भरी विशाल चरागाहें थीं। उनके पास पानी की कोई कमी नहीं थी।

उनके प्रदेश में ओनोन तथा सेलेंगा जैसी नदियाँ तथा बर्फीली पहाड़ियों से निकलने वाले सैकड़ों झरने भी थे। उनके मुख्य पशु घोड़े एवं भेड़ें थीं। वे शिकारी संग्राहक थे। उनका मुख्य व्यवसाय व्यापार करना था। दूसरी ओर बेदोइन शिकारी संग्राहक नहीं थे। वे मुख्यतः पशुपालक थे। उनकी भिन्नता का मुख्य कारण उनके प्रदेश की भौगोलिक भिन्नताएँ थीं।

प्रश्न 3.
मंगोलों के लिए व्यापार क्यों इतना महत्त्वपूर्ण था ?
उत्तर:
स्टेपी क्षेत्र अथवा मंगोलिया में संसाधनों की बहुत कमी थी। अतः यायावरी कबीले व्यापार के लिए अपने पड़ोसी देश चीन पर निर्भर करते थे। उनका व्यापार वस्तु-विनिमय पर आधारित था। यह व्यवस्था दोनों पक्षों के लिए लाभकारी थी। यायावर कबीले चीन से कृषि उत्पाद एवं लोहे के उपकरणों का आयात करते थे। इनके बदले वे घोड़ों, फर एवं शिकारी जानवरों का निर्यात करते थे। कभी-कभी दोनों पक्ष अधिक लाभ कमाने हेतु सैनिक कार्यवाही कर बैठते थे एवं लूटपाट में भी सम्मिलित हो जाते थे। इस संघर्ष में यायावरों को कम हानि होती थी।

इसका कारण यह था कि वे लूटपाट कर संघर्ष क्षेत्र से दूर भाग जाते थे। चीन को इन यायावरी आक्रमणों से बहुत क्षति पहुँचती थी। अत: चीनी शासकों ने अपनी प्रजा की रक्षा के लिए ‘चीन की महान् दीवार’ को अधिक मज़बूत किया।

प्रश्न 4.
चंगेज़ खाँ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
चंगेज़ खाँ ने यायावर साम्राज्य की स्थापना में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। उसका जन्म 1162 ई० में हुआ था। उसका बचपन का नाम तेमुजिन था। उसके पिता का नाम येसूजेई था तथा वह कियात कबीले का मुखिया था। उसकी माता का नाम ओलुन-इके था। तेमुजिन का विवाह बोरटे के साथ हुआ था। उसके बचपन में ही उसके पिता की एक विरोधी कबीले द्वारा हत्या कर दी गई थी। इसलिए उसे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

इसके बावजूद तेमुजिन ने अपना धैर्य न खोया। इस संकट के समय उसे बोघूरचू, जमूका तथा तुगरिल खाँ ने बहुमूल्य सहयोग दिया। तेमुजिन ने अनेक शक्तिशाली कबीलों को पराजित कर अपने नाम की धाक जमा दी। उसकी सफलताओं को देखते हुए कुरिलताई ने 1206 ई० में तेमुजिन को चंगेज़ खाँ की उपाधि से सम्मानित किया।

चंगेज़ खाँ ने 1227 ई० तक शासन किया। अपने शासनकाल के दौरान चंगेज़ खाँ ने उत्तरी चीन एवं करा खिता को विजित किया। उसने ख्वारज़म के शाह मुहम्मद को पराजित कर उसके अनेक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। उसने कराकोरम को मंगोल साम्राज्य की राजधानी घोषित किया। चंगेज़ खाँ ने मंगोल साम्राज्य की सुरक्षा एवं विस्तार के उद्देश्य से अपनी सेना को शक्तिशाली बनाया।

उसने नागरिक प्रशासन में भी अनेक उल्लेखनीय सुधार किए। उसकी महान् सफलताओं को देखते हुए उसे आज भी मंगोलिया के इतिहास में महान् राष्ट्र-नायक के रूप में स्मरण किया जाता है।

प्रश्न 5.
मंगोल कबीलों की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
(1) मंगोल कबीले नृजातीय और भाषायी संबंधी के कारण आपस में जुड़े हुए थे। परंतु उपलब्ध आर्थिक संसाधनों के अभाव के कारण उनका समाज अनेक पितृपक्षीय वंशों में विभाजित था।

(2) धनी-परिवार विशाल होते थे। उनके पास अधिक संख्या में पशु और चरण भूमि होती थी। स्थानीय राजनीति में भी उनका अधिक दबदबा होता था। इसलिए उनके अनेक अनुयायी होते थे।

(3) समय-समय पर आने वाली प्राकृतिक आपदाओं जैसे कि भीषण शीत-ऋतु के दौरान उनके द्वारा एकत्रित शिकार-सामग्रियाँ तथा अन्य खाद्य भंडार समाप्त हो जाते थे। वर्षा न होने पर घास के मैदान भी सूख जाते थे। इसलिए उन्हें चरागाहों की खोज में भटकना पड़ता था।

(4) मंगोल कबीलों में आपसी संघर्ष भी होता था। पशुधन प्राप्त करने के लिए वे लूटपाट भी करते थे।

(5) प्रायः परिवारों के समूह आक्रमण करने अथवा अपनी रक्षा करने के लिए शक्तिशाली कुलों से मित्रता कर लेते थे और परिसंघ बना लेते थे।

प्रश्न 6.
चंगेज़ खाँ की सफलता के प्रमुख कारण क्या थे ?
उत्तर:
चंगेज़ खाँ की सफलता के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे
1) चंगेज़ खाँ स्वयं जन्मजात सेनापति था। वह जिस ओर रुख करता सफलता उसके कदम चूमती थी। अतः उसका नाम सुनते ही शत्रु की रूह कॉप जाती थी।

2) चंगेज़ खा ने एक शक्तिशाली सेना का गठ यह सेना बहुत अनुशासित थी। इस सेना का मुकाबला करना कोई सहज कार्य न था।

3) चंगेज़ खाँ का जासूसी विभाग अत्यंत कशल था। उसके जासस कोई भी युद्ध आरंभ होने से पूर्व उसके शत्र के संबंध में प्रत्येक छोटी से-छोटी जानकारी उपलब्ध करवाते थे। यह जानकारी उसके लिए बहुत बहमुल्य सिद्ध होती थी।

4) चंगेज़ खाँ मनोवैज्ञानिक युद्ध के महत्त्व को भली-भाँति जानता था। अतः जब भी किसी स्थान के लोग उसकी सेना का मुकाबला करने का साहस करते तो उसकी सेना वहाँ इतना विनाश करती जिसे सुनकर लोग थर-थर काँपने लगते थे। अतः लोग बिना लड़ाई किए ही उसके समक्ष आत्म-समर्पण कर देते थे।

5) मंगोल सैनिक घुड़सवारी एवं तीरंदाज़ी में इतने कुशल थे कि शत्रु भौचक्के रह जाते थे।

6) चंगेज़ खाँ ने शत्रु दुर्गों को नष्ट करने के लिए घेराबंदी यंत्र एवं नेफ़था बमबारी का व्यापक प्रयोग किया। इनके युद्ध में घातक प्रभाव होते थे।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 5 यायावर साम्राज्य

प्रश्न 7.
यास से आपका क्या अभिप्राय है ? इसके प्रमुख नियम क्या हैं ?
उत्तर:
यास वे विधि नियम थे, जिन्हें चंगेज़ खाँ के शासनकाल में कुरिलताई द्वारा पारित किया गया था। इसके प्रमुख नियम निम्नलिखित थे

1) लोगों को एक परमात्मा में विश्वास रखना चाहिए जो कि स्वर्ग एवं पृथ्वी का स्वामी है। वह ही जीवन एवं मृत्यु, अमीरी तथा ग़रीबी देता है।

2) धार्मिक नेताओं, परामर्शदाताओं, पुरोहितों, मस्जिदों की देखभाल करने वालों, डॉक्टरों एवं शवों को स्नान कराने वालों को राज्य की तरफ से मुफ्त भोजन दिया जाना चाहिए।

3) जो भी व्यक्ति कुरिलताई से मान्यता प्राप्त किए बिना अपने आपको खाँ घोषित करता है उसे मृत्यु दंड दिया जाना चाहिए।

4) जिन कबीलों ने मंगोलों की अधीनता स्वीकार कर ली हो उनके मुखिया महत्त्वपूर्ण उपाधियाँ धारण नहीं कर सकते।

5) जो कोई शासक अथवा कबीला मंगोलों की अधीनता स्वीकार नहीं करता उसके साथ किसी प्रकार का कोई समझौता न किया जाए।

6) सभी धर्मों का सम्मान किया जाए। सभी धर्मों के पुरोहितों को सभी प्रकार के करों से मुक्त रखा जाए।

7) किसी चलते हुए दरिया में वस्त्र धोकर अथवा मलमूत्र द्वारा गंदा करने पर कड़ा प्रतिबंध था। ऐसा करने वालों को मृत्यु दंड दिया जाता था।

प्रश्न 8.
चंगेज़ खाँ ने सेना में अनुशासन बनाए रखने के लिए कौन-से नियम बनाए ?
उत्तर:
चंगेज़ खाँ सेना में अनुशासन को विशेष महत्त्व देता था। वह अनुशासनहीन सेना को एक भीड़ मात्र समझता था। उसने सेना में अनुशासन बनाए रखने के उद्देश्य से अनेक नियम बनाए थे। इनका उल्लंघन करने वाले सैनिकों को मृत्यु दंड दिया जाता था। ये नियम थे

  • युद्ध के आरंभ होने पर छुट्टी पर गए सभी सैनिक तुरंत रिपोर्ट करें।
  • सभी सैनिकों के लिए आवश्यक था कि वे अपने अधिकारियों के आदेश का पालन करें।
  • कोई भी सैनिक अपनी इकाई को छोड़कर किसी दूसरी इकाई में नहीं जा सकता था।
  • युद्ध में जाने से पहले सभी सैनिकों को अपने हथियारों का निरीक्षण कर लेना चाहिए।
  • कोई भी सैनिक अपने अधिकारियों की अनुमति के बिना लूटपाट न करे।
  • अधिकारियों द्वारा अनुमति मिलने पर ही लूटपाट आरंभ की जाए। लूट के धन से अधिकारियों एवं खाँ का हिस्सा दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 9.
चंगेज़ खाँ के सैनिक प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • चंगेज़ खाँ के समय सभी स्वस्थ व्यक्तियों के लिए सेना में भर्ती होना अनिवार्य था। केवल पुरोहितों, डॉक्टरों एवं विद्वानों को इसमें छूट दी गई थी।
  • चंगेज़ खाँ की सेना पुरानी दशमलव पद्धति के अनुसार गठित की गई थी। यह 10,100, 1000 एवं 10,000 सैनिकों की इकाइयों में विभाजित थी।
  • चंगेज़ खाँ की सेना में विभिन्न मंगोल जनजातियों के लोग सम्मिलित थे।
  • चंगेज़ खाँ ने सैनिकों के प्रशिक्षण पर विशेष बल दिया। उसने विशेष कप्तानों को नियुक्त किया था, जिन्हें नोयान कहा जाता था।
  • चंगेज़ खाँ सेना में अनुशासन को विशेष महत्त्व देता था। वह अनुशासनहीन सेना को एक भीड़ मात्र समझता था। उसने सेना में अनुशासन बनाए रखने के उद्देश्य में अनेक नियम बनाए थे।

प्रश्न 10.
चंगेज़ खाँ को मंगोलों का सबसे महान् शासक क्यों माना जाता था ?
उत्तर:
चंगेज़ खाँ को निम्नलिखित कारणों से मंगोलों का सबसे महान शासक माना जाता था

  • उसने मंगोलों को एक झंडे के अधीन एकत्रित किया।
  • उसने लंबे समय से चली आ रही कबीलाई लड़ाइयों का अंत किया।
  • उसने मंगोलों को चीनियों द्वारा किए जा रहे शोषण से मुक्ति दिलवाई।
  • उसने एक महान् साम्राज्य की स्थापना की।
  • उसके व्यापार द्वारा मंगोलों को समृद्ध बनाया।
  • उसने एक शक्तिशाली सेना का गठन किया।

प्रश्न 11.
याम से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
चंगेज़ खाँ की एक बहुमूल्य देन याम की स्थापना करना था। याम एक प्रकार की सैनिक चौकियाँ थीं। मंगोल साम्राज्य में प्रत्येक 25 मील की दूरी पर ऐसी चौकियाँ स्थापित की गई थीं। इन चौकियों में घुड़सवार संदेशवाहक तथा फुर्तीले घोड़े सदैव तैनात रहते थे। घुड़सवार संदेशवाहक सभी प्रकार के सरकारी संदेशों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते थे।

प्रत्येक घुड़सवार अपने घोड़े के गले में एक घंटी बाँध कर रखता था। जब वह किसी याम के निकट पहुँचता तो इस घंटी की आवाज़ सुन कर संदेशवाहक अपने घोड़े के साथ आगे गंतव्य तक बढ़ने के लिए तैयार हो जाता।

इन यामों में ठहरने वाले यात्रियों की सुविधा के लिए उनके खाने-पीने का पूरा इंतजाम किया जाता था। यात्रियों की सुरक्षा के लिए सरकार की तरफ से एक प्रकार के पास जारी किए जाते थे। इन पासों को फ़ारसी में पैजा तथा मंगोल भाषा में जेरेज़ कहते थे। ये पास तीन प्रकार-सोने, चाँदी एवं लोहे के होते थे। प्रत्येक याम में यात्रियों को इन पासों के अनुसार सुविधाएँ दी जाती थीं। इन चौकियों के कारण सड़क मार्गों को सुरक्षित बनाया जाता था।

प्रश्न 12.
उलुस से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
मंगोल प्रशासन की एक उल्लेखनीय विशेषता चंगेज़ खाँ द्वारा उलुस का गठन करना था। इसके अनुसार चंगेज़ खाँ ने नव-विजित क्षेत्रों पर शासन करने का उत्तरदायित्व अपने चारों पुत्रों को दे दिया। उसके सबसे ज्येष्ठ पुत्र जोची को रूसी स्टेपी का प्रदेश दिया गया। उसके दूसरे पुत्र चघताई को तूरान का स्टेपी क्षेत्र तथा पामीर पर्वत का उत्तरी क्षेत्र दिया गया। चंगेज़ खाँ ने संकेत दिया कि उसका तीसरा पुत्र ओगोदेई उसका उत्तराधिकारी होगा।

उसके सबसे छोटे पुत्र तोलुई को मंगोलिया का क्षेत्र दिया गया। उलुस से भाव किसी निश्चित भू-भाग से नहीं था क्योंकि इनमें लगातार परिवर्तन होता रहता था। उलुस में चंगेज़ खाँ के पुत्रों की स्थिति उप-शासक जैसी थी। उनके अधीन अलग-अलग सैन्य टुकड़ियाँ (तामा) थीं। वे अपने अधीन क्षेत्रों से लोगों को सेना में भर्ती कर सकते थे। उन्हें लोगों पर नए कर लगाने का अधिकार दिया गया था।

प्रश्न 13.
मंगोलों की हरकारा पद्धति क्या थी?
उत्तर:
चंगेज़ खाँ द्वारा स्थापित एक फुर्तीली संचार व्यवस्था को हरकारा पद्धति कहा जाता था। इस कारण राज्य के दूर स्थित स्थानों में आपसी संपर्क बना रहता था। निश्चित की गई दूरी पर निर्मित सैनिक, चौकियों में स्वस्थ एवं बलवान घोड़े एवं घुड़सवार तैनात रहते थे। इस संचार पद्धति के संचालन के लिए मंगोल यायावर अपने घोड़ों अथवा अन्य पशुओं का दसवां भाग प्रदान करते थे। इसे कुबकुर कर कहते थे। यायावर लोग यह कर अपनी इच्छा से प्रदान करते थे। इससे उन्हें अनेक लाभ प्राप्त होते थे। चंगेज़ खाँ की मृत्यु के पश्चात् मंगोलों ने इस पद्धति में और भी सुधार किए। इस कारण महान् खाँनों को अपने विस्तृत साम्राज्य के सुदूर स्थानों में होने वाली घटनाओं पर निगरानी रखने में सहायता मिलती थी।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 5 यायावर साम्राज्य

प्रश्न 14.
विजित लोग अपने मंगोल शासकों को पसंद नहीं करते थे । क्यों?
उत्तर:
विजित लोग अपने मंगोल शासकों को निम्नलिखित कारणों से पसंद नहीं करते थे

  • मंगोलों ने अपने युद्धों के दौरान अनेक भव्य नगरों को नष्ट कर दिया था।
  • मंगोलों ने कृषि भूमि को भारी हानि पहुँचाई थी।
  • उनके आक्रमणों के दौरान विजित क्षेत्रों के व्यापार को व्यापक पैमाने पर क्षति पहुंची थी।
  • इन युद्धों के कारण दस्तकारी वस्तुओं का उत्पादन लगभग ठप्प हो गया था।
  • इन युद्धों के दौरान बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे तथा कइयों को दास बना लिया गया था।
  • इन युद्धों के दौरान समाज के प्रत्येक वर्ग के लोगों को भारी कष्टों का सामना करना पड़ा था।

प्रश्न 15.
कुबलई खाँ पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
कुबलई खाँ ने 1260 ई० में पीकिंग में यूआन वंश की स्थापना की घोषणा की। कुबलई खाँ ने 1294 ई० तक शासन किया। कुबलई खाँ एक योग्य एवं महान् शासक प्रमाणित हुआ। उसने सर्वप्रथम उत्तरी चीन में अपनी स्थिति को सुदृढ़ किया। उसने अपनी सेना को शक्तिशाली बनाया। उसके पश्चात् उसने अरिक बुका को पराजित किया। 1280 ई० में कुबलई खाँ ने दक्षिण चीन के शुंग शासक को पराजित करने में सफलता प्राप्त की।

निस्संदेह यह कुबलई खाँ की एक महान् सफलता थी। इसके पश्चात् उसने बर्मा, चंपा एवं कंबोडिया के शासकों को पराजित किया। कुबलई खाँ ने न केवल अपने साम्राज्य का विस्तार ही किया अपितु इसे अच्छी प्रकार से संगठित भी किया। उसने चीन में प्रचलित परंपराओं को जारी रखा। उसने अनेक नई सड़कों का निर्माण किया एवं पुरानी की मुरम्मत करवाई। उसने सड़कों के किनारे छाया वाले वृक्ष लगवाए। उसने यात्रियों की सुविधा के लिए सराएँ बनवाईं।

उसने शिक्षा को प्रोत्साहित किया। उसने सिविल सर्विस में उल्लेखनीय सुधार किए। उसने राज्य की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से अनेक कदम उठाए। उसने 1282 ई० में कागज़ की मुद्रा का प्रचलन किया। उसने अकालों से निपटने के लिए भी अनेक प्रयास किए। यद्यपि कुबलई खाँ का झुकाव बौद्ध धर्म की ओर था किंतु उसने अन्य धर्मों के प्रति सहनशीलता की नीति अपनाई।

अति संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मंगोल कौन थे ?
उत्तर:
मंगोल मध्य एशिया के आधुनिक मंगोलिया प्रदेश में रहने वाला एक यायावर समूह था। यह समूह विभिन्न कबीलों में विभाजित था। इनमें प्रमुख थे मंगोल, तातार, नेमन एवं खितान । मंगोल पशुपालक एवं शिकार संग्राहक थे।

प्रश्न 2.
खानाबदोश या यायावर साम्राज्य से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
खानाबदोश या यायावर लोग मूलतः घुमक्कड़ होते हैं। ये सापेक्षिक तौर पर एक अविभेदित आर्थिक जीवन एवं प्रारंभिक राजनैतिक संगठन के साथ परिवारों के समूह में संगठित होते हैं।

प्रश्न 3.
मंगोलों का सबसे बहुमूल्य स्रोत किसे माना जाता है ? इसका रचयिता कौन था ?
उत्तर:

  • मंगोलों का सबसे बहुमूल्य स्रोत ‘मंगोलों का गोपनीय इतिहास’ को माना जाता है।
  • इसका रचयिता ईगोर दे रखेविल्ट्स था।

प्रश्न 4.
मंगोलों के समय में स्टेपी क्षेत्र में कोई नगर क्यों नहीं उभर पाया ?
उत्तर:

  • मंगोलों ने कृषि को नहीं अपनाया था।
  • मंगोलों की पशुपालक एवं शिकार संग्राहक अर्थव्यवस्थाएँ भी घनी आबादी वाले क्षेत्रों का भरण-पोषण करने में असमर्थ थीं।

प्रश्न 5.
मंगोलों के धनी परिवारों के अनेक अनुयायी क्यों होते थे ?
उत्तर:

  • उनके पास अधिक संख्या में पश एवं चारण भमि होती थी।
  • वे स्थानीय राजनीति में काफी प्रभावशाली होते थे।

प्रश्न 6.
मंगोल कबीलों को चरागाहों की खोज में क्यों भटकना पड़ता था ?
उत्तर:

  • शीत ऋतु में मंगोल कबीलों द्वारा एकत्रित की गई खाद्य सामग्री समाप्त हो जाती थी।
  • वर्षा न होने से घास मैदान सूख जाते थे।

प्रश्न 7.
मंगोलों के निवास स्थान को क्या कहा जाता था ? इसकी कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • मंगोलों के निवास स्थान को जर (तंबू) कहा जाता था।
  • इसका प्रवेश द्वार दक्षिण की ओर होता था ताकि उत्तर से आने वाली शीत हवाओं से बचा जा सके।
  • जर को दो भागों में बाँटा जाता था। एक भाग मेहमानों के लिए एवं दूसरा घर के सदस्यों के लिए होता था।

प्रश्न 8.
मंगोल कृषि कार्य क्यों नहीं करते थे ?
उत्तर:

  • उस समय स्टेपी क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियाँ कृषि के अनुकूल नहीं थीं।
  • वहाँ केवल सीमित काल में ही कृषि करना संभव था।

प्रश्न 9.
12वीं शताब्दी में मंगोल समाज की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • उस समय परिवार पितृपक्षीय होते थे।
  • उस समय समाज में बहु-विवाह प्रणाली प्रचलित थी।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 5 यायावर साम्राज्य

प्रश्न 10.
मंगोल अपने मृतकों का संस्कार कैसे करते थे ?
उत्तर:
मंगोल अपने मृतकों के शवों को जमीन में दफनाते थे। वे उनके साथ दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुएँ एवं बर्तनों आदि को भी दफनाते थे। धनी लोगों के शवों के साथ अनेक बहुमूल्य वस्तुओं, घोड़ों, नौकरों एवं स्त्रियों आदि को भी दफ़न किया जाता था।

प्रश्न 11.
मंगोल कौन थे ? मंगोलों के लिए व्यापार क्यों इतना महत्त्वपूर्ण था ?
अथवा
मंगोलों के लिए व्यापार क्यों इतना महत्त्वपूर्ण था ?
अथवा
मंगोलों के लिए व्यापार क्यों इतना महत्त्वपूर्ण था ? कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:
मंगोल स्टेपी क्षेत्र में रहते थे। इस क्षेत्र में संसाधनों की बहुत कमी थी। उनके लिए व्यापार जीविका का एकमात्र साधन था। अतः मंगोलों के लिए व्यापार बहुत महत्त्वपूर्ण था।

प्रश्न 12.
मंगोल चीन से किन वस्तुओं का आयात-निर्यात करते थे ?
अथवा
चीन से मंगोलों को कौन-सी वस्तुएँ निर्यात की जाती थीं?
उत्तर:

  • मंगोल चीन से कृषि उत्पादों एवं लोहे के उपकरणों का आयात करते थे।
  • मंगोल चीन को घोड़े, फर एवं शिकारी जानवरों का निर्यात करते थे।

प्रश्न 13.
वाणिज्यिक क्रियाकलापों में मंगोलों को कभी-कभी तनाव का सामना क्यों करना पड़ता था ?
उत्तर:
कभी-कभी व्यापार करने वाले दोनों पक्ष अधिक लाभ कमाने की होड़ में सैनिक कार्यवाही कर देते थे एवं लूटपाट में सम्मिलित हो जाते थे। इस कारण उन्हें तनाव का सामना करना पड़ता था।

प्रश्न 14.
चीन की महान् दीवार क्यों बनवाई गई थी ?
उत्तर:
चीन की महान् दीवार इसलिए बनवाई गई थी क्योंकि यायावर कबीले चीन पर बार-बार आक्रमण करते रहते थे। इन आक्रमणों से चीन की सुरक्षा के लिए यह दीवार बनवाई गई थी।

प्रश्न 15.
चंगेज़ खाँ कौन था ?
उत्तर:

  • चंगेज़ खाँ मंगोलों का सबसे महान् नेता था।
  • उसने 1206 ई० से 1227 ई० तक शासन किया।

प्रश्न 16.
चंगेज़ खाँ का जन्म कब हुआ ? उसका प्रारंभिक नाम क्या था ?
उत्तर:

  • चंगेज़ खाँ का जन्म 1162 ई० में हुआ।
  • उसका प्रारंभिक नाम तेमुजिन था।

प्रश्न 17.
चंगेज़ खाँ के पिता का नाम क्या था ? वह किस कबीले का मुखिया था ?
उत्तर:

  • चंगेज खाँ के पिता का नाम येसूजेई था।
  • वह कियात कबीले का मुखिया था।

प्रश्न 18.
चंगेज़ खाँ का नाम तेमुजिन क्यों रखा गया था ?
उत्तर:
चंगेज़ खाँ का नाम तेमुजिन इसलिए रखा गया था क्योंकि उसके जन्म के समय उसके पिता येसूजेई ने तातार कबीले के मुखिया तेमुजिन को पराजित किया था। अतः मंगोलियाई परंपरा के अनुसार नव-जन्में बालक का नाम तेमुजिन रखा गया।

प्रश्न 19.
आंडा (anda) से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
आंडा से अभिप्राय ऐसे व्यक्तियों से है जिन्हें मंगोल सौगंध के आधार पर अपना सगा भाई बना लेते थे।

प्रश्न 20.
तेमुजिन को चंगेज़ खाँ की उपाधि से कब तथा किसने सम्मानित किया था ? इससे क्या भाव था ?
उत्तर:

  • तेमुजिन को चंगेज़ खाँ की उपाधि से 1206 ई० में कुरिलताई ने सम्मानित किया था।
  • इससे भाव था सार्वभौम शासक।

प्रश्न 21.
खाँ की उपाधि से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
खाँ की उपाधि से अभिप्राय है सार्वभौम शासक। कुरिलताई ने तेमुजिन को चंगेज़ खाँ की उपाधि से 1206 ई० में सम्मानित किया था।

प्रश्न 22.
कुरिलताई से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
कुरिलताई प्रतिष्ठित मंगोल सरदारों के कबीले की एक सभा थी।

प्रश्न 23.
कुरिलताई के कोई दो प्रमुख कार्य बताएँ।
उत्तर:

  • उत्तराधिकार संबंधी निर्णय लेना।।
  • राज्य के भविष्य एवं अभियानों संबंधी निर्णय लेना।

प्रश्न 24.
चंगेज़ खाँ की कोई दो महत्त्वपूर्ण विजयें बताएँ।
उत्तर:

  • उत्तरी चीन की विजय।
  • ख्वारज़म की विजय।

प्रश्न 25.
चंगेज़ खाँ ने पीकिंग पर कब अधिकार किया ? उस समय वहाँ किस राजवंश का शासन था ?
उत्तर:

  • चंगेज़ खाँ ने पीकिंग पर 1215 ई० में अधिकार किया।
  • उस समय वहाँ चिन राजवंश का शासन था।

प्रश्न 26.
चंगेज खाँ ने खारजम पर आक्रमण कब किया ? इसका तात्कालिक कारण क्या था ?
उत्तर:

  • चंगेज़ खाँ ने ख्वारज़म पर 1219 ई० में आक्रमण किया था।
  • इसका तात्कालिक कारण यह था कि ओट्रार के गवर्नर ने वारज़म शाह के इशारे पर चंगेज़ खाँ के एक व्यापारिक मंडल के चार सदस्यों की हत्या कर दी थी।

प्रश्न 27.
यदि इतिहास नगरों में रहने वाले साहित्यकारों के लिखित विवरणों पर निर्भर करता है तो यायावर समाजों के बारे में हमेशा प्रतिकूल विचार ही रखे जाएँगे। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ?
उत्तर:
हाँ, मैं इस कथन से सहमत हूँ। इसका कारण यह है कि यायावर नगरों में भयंकर लूटमार करते थे तथा उन्हें नष्ट कर देते थे।

प्रश्न 28.
क्या आप इसका कारण बताएँगे कि फ़ारसी इतिवृत्तकारों ने मंगोल अभियानों में मारे गए लोगों की इतनी बढ़ा-चढ़ा कर संख्या क्यों बताई है ?
उत्तर:
फ़ारसी इतिवृत्तकारों ने मंगोल अभियानों में मारे गए लोगों की संख्या इतनी बढ़ा-चढ़ा कर इसलिए बताई है क्योंकि वे मंगोलों को क्रूर हत्यारा दर्शाना चाहते थे।

प्रश्न 29.
चंगेज़ खाँ की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर:
चंगेज़ खाँ की मृत्यु 1227 ई० में हुई।

प्रश्न 30.
चंगेज़ खाँ का साम्राज्य कहाँ से कहाँ तक फैला हुआ था ? उसकी राजधानी का नाम क्या था ?
उत्तर:

  • चंगेज़ खाँ का साम्राज्य फ़ारस से लेकर पीकिंग तक तथा साईबेरिया से लेकर सिंध तक फैला था।
  • उसकी राजधानी का नाम कराकोरम था।

प्रश्न 31.
चंगेज़ खाँ की सफलता के दो प्रमुख कारण क्या थे ?
उत्तर:

  • चंगेज़ खाँ स्वयं एक महान् सेनापति था।
  • चंगेज़ खाँ ने एक शक्तिशाली सेना का गठन किया था।

प्रश्न 32.
चंगेज़ खाँ की अलोकप्रियता के दो कारण लिखिए।
अथवा
चंगेज़ खाँ द्वारा विजित लोगों को अपने नवीन यायावर शासकों से कोई लगाव न था। इसके कोई दो कारण बताएँ।
अथवा
क्या कारण था कि 13वीं शताब्दी में चीन, ईरान और पूर्वी यूरोप के अनेक नगरवासी स्टेपी के गिरोहों को भय और घृणा की दृष्टि से देखते थे ?
उत्तर:

  • मंगोलों ने अपने युद्धों के दौरान अनेक नगरों का विनाश कर दिया था।
  • मंगोलों ने युद्धों के दौरान लाखों की संख्या में लोगों को मौत के घाट उतार दिया था।

प्रश्न 33.
यास से क्या अभिप्राय है ? इसका प्रचलन कब और किसने किया ?
अथवा
यांस से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:

  • यास से अभिप्राय है विधि संहिता।
  • इसका प्रचलन 1206 ई० में चंगेज़ खाँ ने किया।

प्रश्न 34.
यास क्या था? इसके दो सैनिक नियम क्या थे?
उत्तर:

  • यास चंगेज़ खाँ की विधि संहिता थी।
  • युद्ध आरंभ होने की स्थिति में छुट्टी पर गए सभी सैनिक तुरंत रिपोर्ट करें।
  • कोई भी सैनिक अपने कमांडर की अनुमति के बिना लूटमार नहीं कर सकता।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 5 यायावर साम्राज्य

प्रश्न 35.
यास के कोई दो महत्त्वपूर्ण नियम बताएँ।
उत्तर:

  • जो भी व्यक्ति कुरिलताई से मान्यता प्राप्त किए बिना अपने आपको खाँ घोषित करता है उसे मृत्यु दंड दिया जाना चाहिए।
  • सभी धर्मों का सम्मान किया जाना चाहिए तथा उनके पुरोहितों को सभी प्रकार के करों से मुक्त रखा जाना चाहिए।

प्रश्न 36.
यास के बारे में परवर्ती मंगोलों का चिंतन किस तरह चंगेज़ खाँ की स्मृति के साथ जुड़े हुए उनके तनावपूर्ण संबंधों को उजागर करता है ?
उत्तर:
परवर्ती मंगोल यास को चंगेज़ खाँ की विधि संहिता कह कर पुकारते थे। वे स्वयं का यास लागू करना चाहते थे। इससे उनके तनावपूर्ण संबंध उजागर होते हैं।

प्रश्न 37.
चंगेज़ खाँ के सैनिक प्रशासन की कोई दो प्रमुख विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • उसने अपनी सेना को दशमलव पद्धति के अनुसार गठित किया।
  • उसकी सेना में न केवल विभिन्न मंगोल जनजातियों अपितु विभिन्न देशों के लोग सम्मिलित थे।

प्रश्न 38.
मंगोलों के नागरिक प्रशासन की कोई दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • मंगोल प्रशासन में खाँ की स्थिति सर्वोच्च थी।
  • मंगोलों ने अपने नागरिक प्रशासकों को योग्यता के आधार पर भर्ती किया था।

प्रश्न 39.
उलुस से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
उलुस का गठन चंगेज़ खाँ ने किया था। इसके अधीन चंगेज़ खाँ ने अपने पुत्रों को नव-विजित क्षेत्रों पर शासन करने का अधिकार दिया था। उलुस से भाव किसी निश्चित क्षेत्र से नहीं था क्योंकि इसमें लगातार परिवर्तन होता रहता था। उलुस में चंगेज़ खाँ के पुत्रों की स्थिति उप-शासकों जैसी थी।

प्रश्न 40.
ये-लू-चुत्साई कौन था ?
उत्तर:
ये-लू-चुत्साई एक चीनी मंत्री था। उसे मंगोलों ने 1215 ई० के आक्रमण के दौरान बँदी बना लिया था। उसने मंगोल प्रशासन को एक नया स्वरूप देने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई।

प्रश्न 41.
याम (yam) से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
याम की स्थापना चंगेज़ खाँ ने की थी। यह एक प्रकार की सैनिक चौकियाँ थीं। यहाँ से घुड़सवार संदेशवाहक सरकारी संदेशों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते थे। इन यामों में यात्रियों के ठहरने का पूरा प्रबंध था।

प्रश्न 42.
कुबकुर से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
कुबकुर एक प्रकार का कर था। इसके अधीन मंगोल यायावर अपने पशु समूहों से अपने घोड़े अथवा अन्य पशुओं का दसवाँ हिस्सा सरकार को देते थे। मंगोल इन पशुओं का प्रयोग अपनी संचार व्यवस्था को बनाए रखने के लिए करते थे।

प्रश्न 43.
पैज़ा (paiza) से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
पैज़ा एक प्रकार के पास थे जिन्हें यात्रियों की सुरक्षा एवं सुविधा के लिए मंगोल सरकार द्वारा जारी किया जाता था। ये पास तीन प्रकार सोने, चाँदी एवं लोहे के होते थे। इसे यात्री अपने माथे पर बाँधते थे। इन पासों के आधार पर ही इन यात्रियों एवं व्यापारियों को यामों में सुविधाएँ दी जाती थीं।

प्रश्न 44.
मंगोलों के धार्मिक जीवन की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • मंगोलों का प्रमुख देवता तेंगरी था। वे उसे सर्वशक्तिमान समझते थे।
  • मंगोल शासकों ने विभिन्न धर्मों के प्रति सहनशीलता की नीति अपनाई।

प्रश्न 45.
चंगेज़ खाँ का उत्तराधिकारी कौन था ? उसका शासनकाल क्या था ?
उत्तर:

  • चंगेज़ खाँ का उत्तराधिकारी ओगोदेई था।
  • उसने 1229 ई० से 1241 ई० तक शासन किया।

प्रश्न 46.
ओगोदेई की कोई दो प्रमुख सफलताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • उसने उत्तरी चीन में अपनी स्थिति को सुदृढ़ किया।
  • उसने ईरान के शासक जलालुद्दीन को कड़ी पराजय दी।

प्रश्न 47.
ओगोदेई के कोई दो प्रमुख प्रशासनिक सुधार बताएँ।
उत्तर:

  • उसने मंगोल साम्राज्य में अनेक न्यायालयों की स्थापना की।
  • उसने करों को नियमित कर मंगोल अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ किया।

प्रश्न 48.
बाटू कौन था ?
उत्तर:
बाटू चंगेज़ खाँ का पोता था। उसने 1236 ई० से 1242 ई० तक अपने अभियानों के दौरान रूस, हंगरी, पोलैंड एवं ऑस्ट्रिया पर अधिकार कर मंगोल साम्राज्य के विस्तार में प्रशंसनीय योगदान दिया। उसने दक्षिण रूस में सुनहरा गिरोह की स्थापना की।

प्रश्न 49.
मोंके कौन था ?
उत्तर:
मोंके चंगेज़ खाँ का पोता एवं तोलूई का पुत्र था। वह 1251 ई० से 1259 ई० तक मंगोलों का महान् खाँ रहा। वह चंगेज़ खाँ के उत्तराधिकारियों में सबसे योग्य प्रमाणित हुआ।

प्रश्न 50.
कुबलई खाँ कौन था ?
उत्तर:
कुबलई खाँ चीन में मंगोलों का एक प्रसिद्ध शासक था। उसने 1260 ई० से 1294 ई० तक शासन किया। उसने दक्षिण चीन को अपने अधीन किया। उसने शिक्षा को प्रोत्साहित किया एवं अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाया। उसकी राजधानी का नाम पीकिंग था।

प्रश्न 51.
प्रसिद्ध वेनिस यात्री मार्को पोलो ने चीन की यात्रा कब की तथा वह किसके दरबार में रहा ?
अथवा
मार्को पोलो कौन था ?
उत्तर:

  • प्रसिद्ध वेनिस यात्री मार्को पोलो ने चीन की यात्रा 1275 ई० से 1292 ई० तक की।
  • वह कुबलई खाँ के दरबार में रहा।
  • उसने कुबलई खाँ के शासनकाल के बारे में महत्त्वपूर्ण प्रकाश डाला है।

प्रश्न 52.
हुलेगु ने बग़दाद पर कब अधिकार किया ? उसने किस खलीफ़ा का वध किया ? वह किस वंश से संबंधित था ?
उत्तर:

  • हुलेगु ने बग़दाद पर 1258 ई० में अधिकार किया।
  • उसने खलीफ़ा अल-मुस्तासिम का वध किया।
  • वह अब्बासी वंश से संबंधित था।

प्रश्न 53.
फ़ारसी का प्रसिद्ध इतिहासकार जुवाइनी किस शासक का दरबारी इतिहासकार था ? उसकी रचना का नाम क्या था ?
उत्तर:

  • फ़ारसी का प्रसिद्ध इतिहासकार जुवाइनी हुलेगु का दरबारी इतिहासकार था।
  • उसकी रचना का नाम हिस्ट्री ऑफ़ द कनकरर ऑफ़ द वर्ल्ड था।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
मंगोल कौन थे ?
उत्तर:
मध्य एशिया का एक यायावर समूह।

प्रश्न 2.
बर्बर शब्द यूनानी भाषा के किस शब्द से उत्पन्न हुआ है ?
उत्तर:
बारबोस।

प्रश्न 3.
मंगोल कहाँ का रहने वाला एक यायावर समूह था ?
उत्तर:
मध्य एशिया का।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 5 यायावर साम्राज्य

प्रश्न 4.
मंगोलों का गोपनीय इतिहास का लेखक कौन था ?
उत्तर:
ईगोर दे रखेविल्ट्स।।

प्रश्न 5.
मंगोल जिन तंबुओं में रहते थे उन्हें क्या कहा जाता था ?
उत्तर:
जर।

प्रश्न 6.
मंगोलों का सर्वाधिक प्रसिद्ध नेता कौन था ?
उत्तर:
चंगेज़ खाँ।

प्रश्न 7.
चंगेज़ खाँ का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर:
1162 ई० में।

प्रश्न 8.
चंगेज़ खाँ किस कुल से संबंधित था ?
उत्तर:
बोरजिगिद।

प्रश्न 9.
चंगेज खाँ के बचपन का नाम क्या था ?
उत्तर:
तेमुजिन।

प्रश्न 10.
मंगोलों के किस शासक को समुद्री खाँ की उपाधि दी गई थी ?
उत्तर:
चंगेज़ खाँ।

प्रश्न 11.
मंगोलों द्वारा बुखारा पर आधिपत्य कब स्थापित किया गया ?
उत्तर:
1221 ई०।

प्रश्न 12.
मंगोलों ने हिरात पर अपना अधिकार कब स्थापित किया ?
उत्तर:
1222 ई०।

प्रश्न 13.
चंगेज़ खाँ ने पीकिंग पर कब अधिकार किया था ?
उत्तर:
1215 ई० में।

प्रश्न 14.
चंगेज़ खाँ ने यास का प्रचलन कब किया था ?
उत्तर:
1206 ई० में।

प्रश्न 15.
चंगेज़ खाँ ने सैनिकों के प्रशिक्षण के लिए किन्हें नियुक्त किया था ?
उत्तर:
नोयान को।

प्रश्न 16.
ये-लू-चुत्साई कौन था ?
उत्तर:
एक चीनी मंत्री।

प्रश्न 17.
मंगोल साम्राज्य में व्यापारी अपनी सुरक्षा के लिए कौन-सा कर देते थे ?
उत्तर:
बाज़।

प्रश्न 18.
चंगेज़ खाँ का उत्तराधिकारी कौन था ?
उत्तर:
ओगोदेई।

प्रश्न 19.
मंगोलों ने बग़दाद पर कब अधिकार कर लिया था ?
उत्तर:
1258 ई० में।

प्रश्न 20.
पीकिंग में यूआन वंश का संस्थापक कौन था ?
उत्तर:
कुबलई खाँ ने।

प्रश्न 21.
इल-खानी वंश का संस्थापक कौन था ?
उत्तर:
हुलेगु।

प्रश्न 22.
हिस्ट्री-ऑफ़ द कनकरर ऑफ़ द वर्ल्ड का लेखक कौन था ?
उत्तर:
जुवाइनी।

प्रश्न 23.
मंगोलों ने अब्बासी वंश का अंत कब किया ?
उत्तर:
1258 ई०।

प्रश्न 24.
चीन में यूआन राजवंश का अंत कब हुआ ?
उत्तर:
1368 ई०।

प्रश्न 25.
गजन खाँ किस वंश का शासक था ?
उत्तर:
इल-खानी।

प्रश्न 26.
मंगोलों ने गोल्डन होर्ड की स्थापना कहाँ की थी ?
उत्तर:
दक्षिण रूस में।

रिक्त स्थान भरिए

1. चंगेज़ खाँ का जन्म .. ……………. ई० में हुआ।
उत्तर:
1162

2. चंगेज़ खाँ का प्रारंभिक नाम …………….. था।
उत्तर:
तेमुजिन

3. मंगोलों द्वारा चंगेज़ खाँ को …………….. तथा …………….. उपाधि से नवाजा गया।
उत्तर:
समुद्री खाँ, सार्वभौम शासक

4. मंगोलों का महानायक …………….. को घोषित किया गया।
उत्तर:
चंगेज़ खाँ

5. मंगोलों द्वारा निशापुर पर आधिपत्य …………….. ई० में किया गया।
उत्तर:
122

6. मंगोलों ने बग़दाद पर अधिकार व अब्बासी खिलाफ़त का अंत …………….. ई० में किया।
उत्तर:
1258

7. चीन में 1368 ई० में …………….. राजवंश का अंत हो गया।
उत्तर:
यूआन

8. मंगोलों द्वारा पीकिंग को ……………. ई० में लूटा गया।
उत्तर:
1215

9. ईरान में 1295-1304 ई० तक ……………. का शासन काल रहा।
उत्तर:
गज़न खाँ

10. गज़न खाँ सिंहासन पर …………….. ई० में बैठा।
उत्तर:
1295 ई०

11. जोची की मृत्यु …………….. ई० में हुई थी।
उत्तर:
1227

12. चंगेज़ खाँ के बड़े पुत्र जोची के पुत्र का नाम …………….. था।
उत्तर:
बाटू

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. 13वीं-14वीं शताब्दी में स्थापित विश्व का सबसे महत्त्वपूर्ण खानाबदोश साम्राज्य था
(क) मंगोल
(ख) हूण
(ग) हुआंग डी
(घ) गोवांग।
उत्तर:
(क) मंगोल

2. मंगोल कहाँ के निवासी थे ?
(क) मध्य एशिया के
(ख) भूमध्यसागर के
(ग) टुंड्रा के
(घ) चीन के।
उत्तर:
(क) मध्य एशिया के

3. यायावर से आपका क्या अभिप्राय है ?
(क) लुटेरे
(ख) कबीला
(ग) घुमक्कड़
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) घुमक्कड़

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 5 यायावर साम्राज्य

4. मंगोलों का प्रमुख व्यवसाय क्या था ?
(क) कृषि
(ख) पशुपालन
(ग) व्यापार
(घ) शिकार।
उत्तर:
(ख) पशुपालन

5. मंगोल निम्नलिखित में से किस जानवर को सबसे अधिक महत्त्व देते थे ?
(क) ऊँट
(ख) भेड़
(ग) घोड़ा
(घ) गाय।
उत्तर:
(ग) घोड़ा

6. मंगोलों के समय में स्टेपी क्षेत्र में कोई नगर क्यों नहीं उभर पाया ?
(क) मंगोलों ने कृषि को नहीं अपनाया था
(ख) मंगोलों की अर्थव्यवस्था घनी आबादी वाले क्षेत्रों का भरण-पोषण करने में असमर्थ थी
(ग) मंगोलों का निवास स्थाई नहीं था
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

7. मंगोलों ने कृषि कार्य को क्यों नहीं अपनाया ?
(क) क्योंकि वे कृषि को पसंद नहीं करते थे
(ख) क्योंकि वे अपनी सभी खाद्य वस्तुएँ चीन से मंगवाते थे
(ग) क्योंकि मंगोलिया की भौगोलिक परिस्थितियाँ कृषि के अनुकूल नहीं थीं
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(ग) क्योंकि मंगोलिया की भौगोलिक परिस्थितियाँ कृषि के अनुकूल नहीं थीं

8. 12वीं शताब्दी में यायावरी समाज में धनी परिवार विशाल क्यों होते थे ?
(क) उनके पास बड़ी संख्या में पशु एवं चारण भूमि होती थी
(ख) उनके बड़ी संख्या में अनुयायी होते थे
(ग) उनका स्थानीय राजनीति में बहुत दबदबा होता था
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

9. मंगोलों को चरागाहों की खोज में क्यों भटकना पडता था ?
(क) क्योंकि मंगोलिया में चरागाहों की बहत कमी थी
(ख) वर्षा न होने पर घास के मैदान सूख जाते थे
(ग) क्योंकि मंगोल बड़ी संख्या में पशुपालन का कार्य करते थे
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(ख) वर्षा न होने पर घास के मैदान सूख जाते थे

10. मंगोलों के लिए व्यापार क्यों महत्त्वपूर्ण था ?
(क) क्योंकि इनसे राज्य को काफी धन प्राप्त होता था
(ख) क्योंकि इससे व्यापारी बहुत प्रसन्न थे।
(ग) क्योंकि मंगोलिया में संसाधनों की बहुत कमी थी
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) क्योंकि मंगोलिया में संसाधनों की बहुत कमी थी

11. मंगोल साम्राज्य की स्थापना किसने की थी?
(क) रोमानोव
(ख) माँचू
(ग) तैमूर लंग
(घ) चंगेज़ खाँ।
उत्तर:
(घ) चंगेज़ खाँ।

12. चंगेज खाँ कौन था ?
(क) चीनियों का प्रसिद्ध नेता
(ख) मंगोलों का प्रसिद्ध नेता
(ग) ईरानियों का प्रसिद्ध नेता
(घ) जापानियों का प्रसिद्ध नेता।
उत्तर:
(ख) मंगोलों का प्रसिद्ध नेता

13. चंगेज़ खाँ का जन्म कब हुआ ?
(क) 1160 ई० में
(ख) 1162 ई० में
(ग) 1165 ई० में
(घ) 1167 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1162 ई० में

14. चंगेज़ खाँ का वास्तविक नाम क्या था ?
(क) तेमुजिन
(ख) माँचू
(ग) तातार
(घ) कगान।
उत्तर:
(क) तेमुजिन

15. कुरिलताई से क्या भाव है ?
(क) मंगोल सरदारों की सभा
(ख) मंगोलिया का प्रसिद्ध पर्वत
(ग) मंगोलिया की प्रसिद्ध नदी
(घ) मंगोलिया का प्रसिद्ध नेता।
उत्तर:
(क) मंगोल सरदारों की सभा

16. चंगेज़ खाँ मंगोलों का शासक कब बना ?
(क) 1203 ई० में
(ख) 1205 ई० में
(ग) 1206 ई० में
(घ) 1209 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1206 ई० में

17. चंगेज़ खाँ ने पीकिंग पर कब अधिकार किया था ?
(क) 1206 ई० में
(ख) 1209 ई० में
(ग) 1213 ई० में
(घ) 1215 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1215 ई० में।

18. चंगेज खाँ की राजधानी का नाम क्या था ?
(क) कराकोरम
(ख) बुखारा
(ग) पीकिंग
(घ) हेरात।
उत्तर:
(क) कराकोरम

19. यास से आपका क्या अभिप्राय है?
(क) विधि संहिता
(ख) मंगोल प्राँत
(ग) मंगोल सेनापति
(घ) मंगोल हरकारा पद्धति।
उत्तर:
(क) विधि संहिता

20. यास का प्रचलन किसने किया ?
(क) ओगोदेई ने
(ख) अल-मुस्तासिम ने
(ग) चंगेज़ खाँ ने
(घ) जुवाइनी ने।
उत्तर:
(ग) चंगेज़ खाँ ने

21. ये-लू-चुत्साई कौन था ?
(क) फ़ारसी का प्रसिद्ध इतिहासकार
(ख) एक चीनी मंत्री
(ग) मंगोलों का प्रसिद्ध नेता
(घ) तातारों का प्रसिद्ध नेता।
उत्तर:
(ख) एक चीनी मंत्री

22. पैजा अथवा जेरेज़ क्या था ?
(क) यात्रियों को दिया जाने वाला पास
(ख) सेना का एक महत्त्वपूर्ण पद
(ग) प्रांत का मुखिया
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) यात्रियों को दिया जाने वाला पास

23. चंगेज़ खाँ की मृत्यु कब हुई थी?
(क) 1206 ई० में
(ख) 1226 ई० में
(ग) 1227 ई० में
(घ) 1237 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1227 ई० में

24. चंगेज़ खाँ के बाद मंगोलिया का शासक कौन बना ?
(क) ओगोदेई
(ख) जोची
(ग) तोलुई
(घ) चघताई।
उत्तर:
(क) ओगोदेई

25. ओगोदेई ने चीन पर कब अधिकार कर लिया था ?
(क) 1231 ई० में
(ख) 1232 ई० में
(ग) 1234 ई० में
(घ) 1241 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1234 ई० में

26. बाटू कौन था ?
(क) चंगेज़ खाँ का पोता
(ख) कुबलई खाँ का पोता
(ग) तैमूर का पुत्र
(घ) मोंके का पुत्र।
उत्तर:
(क) चंगेज़ खाँ का पोता

27. मोंके कौन था ?
(क) चंगेज़ खाँ का पोता
(ख) ओगोदेई का पोता
(ग) जमूका का पुत्र
(घ) ओंग खाँ का पुत्र।
उत्तर:
(क) चंगेज़ खाँ का पोता

28. मंगोलों के किस नेता ने बग़दाद पर अधिकार कर लिया था ?
(क) चंगेज़ खाँ
(ख) ओगोदेई
(ग) जोची
(घ) हुलेगु।
उत्तर:
(घ) हुलेगु।

29. यूआन वंश का संस्थापक कौन था ?
(क) चंगेज़ खाँ
(ख) ओगोदेई
(ग) बाटू
(घ) कुबलई खाँ।
उत्तर:
(घ) कुबलई खाँ।

30. कुबलई खाँ की राजधानी का नाम क्या था ?
(क) कराकोरम
(ख) पीकिंग
(ग) शंघाई
(घ) बगदाद।
उत्तर:
(ख) पीकिंग

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 5 यायावर साम्राज्य

31. कुबलई खाँ के दरबार में कौन-सा महान् यात्री पहुंचा था ?
(क) मार्कोपोलो
(ख) कोलंबस
(ग) ह्यनसांग
(घ) वास्कोडिगामा।
उत्तर:
(क) मार्कोपोलो

32. इल-खानी वंश का संस्थापक कौन था ?
(क) ओगोदेई
(ख) कुबलई खाँ
(ग) हुलेगु
(घ) जोची।
उत्तर:
(ग) हुलेगु

33. जुवाइनी की प्रसिद्ध रचना का नाम क्या था ?
(क) हिस्ट्री ऑफ़ द कनकरर ऑफ़ द वर्ल्ड
(ख) मंगोलों का गोपनीय इतिहास
(ग) हिस्ट्री ऑफ़ द मंगोलस
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) हिस्ट्री ऑफ़ द कनकरर ऑफ़ द वर्ल्ड

34. गज़न खाँ किस वंश का प्रसिद्ध शासक था ?
(क) सी सिया
(ख) तातार
(ग) इल-खानी
(घ) यूआन।
उत्तर:
(ग) इल-खानी

35. गोल्डन होर्ड की स्थापना कहाँ की गई थी?
(क) रूसी स्टेपी क्षेत्र में
(ख) मंगोलिया में
(ग) ईरान में
(घ) जापान में।
उत्तर:
(क) रूसी स्टेपी क्षेत्र में

यायावर साम्राज्य HBSE 11th Class History Notes

→ मंगोल मध्य एशिया में रहने वाला एक यायावर समूह था। ये लोग मूलतः घुमक्कड़ थे। वे पशुपालक एवं शिकार संग्राहक थे। उनका समाज विभिन्न कबीलों में विभाजित था। इन कबीलों में आपसी लड़ाइयाँ चलती रहती थीं। लूटमार करना उनकी जीवन शैली का एक अभिन्न अंग था।

→ वे चरागाहों की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान घूमते रहते थे। वे तंबुओं में निवास करते थे। उनके परिवार पितृपक्षीय थे। अतः परिवार में पुत्र का होना आवश्यक समझा जाता था। उस समय धनी परिवार बहुत विशाल होते थे।

→ उस समय बहु-विवाह का प्रचलन था। उनका प्रमुख भोजन माँस एवं दूध था। वे सूती, रेशमी एवं ऊनी वस्त्र पहनते थे। मंगोल अपने मृतकों का रात्रि के समय संस्कार करते थे। वे शवों को जमीन में दफ़न करते थे तथा उनके साथ कुछ आवश्यक वस्तुएँ भी रखते थे।

→ क्योंकि उस समय स्टेपी क्षेत्र में संसाधनों की बहुत कमी थी इसलिए मंगोलों ने चीन के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए थे। मंगोलों एवं चीनियों द्वारा की जाने वाली लूटमार के कारण इनके संबंधों में आपसी दरार भी उत्पन्न हो जाती थी।

→ चंगेज़ खाँ ने यायावर साम्राज्य की स्थापना में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। उसका जन्म 1162 ई० में हुआ था। उसका बचपन का नाम तेमुजिन था। उसके पिता का नाम येसूजेई था तथा वह कियात कबीले का मुखिया था।

→ उसकी माता का नाम ओलुन-इके था। तेमुजिन का विवाह बोरटे के साथ हुआ था। उसके बचपन में ही उसके पिता की एक विरोधी कबीले द्वारा हत्या कर दी गई थी। इसलिए उसे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद तेमुजिन ने अपना धैर्य न खोया।

→ इस संकट के समय उसे बोघूरचू, जमुका तथा तुगरिल खाँ ने बहुमूल्य सहयोग दिया। तेमुजिन ने अनेक शक्तिशाली कबीलों को पराजित कर अपने नाम की धाक जमा दी। उसकी सफलताओं को देखते हुए कुरिलताई ने 1206 ई० में तेमुजिन को चंगेज़ खाँ की उपाधि से सम्मानित किया।

→ चंगेज़ खाँ ने 1227 ई० तक शासन किया। अपने शासनकाल के दौरान चंगेज़ खाँ ने उत्तरी चीन एवं करा खिता को विजित किया। उसने ख्वारज़म के शाह मुहम्मद को पराजित कर उसके अनेक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया।

→ उसने कराकोरम को मंगोल साम्राज्य की राजधानी घोषित किया। चंगेज़ खाँ ने मंगोल साम्राज्य की सुरक्षा एवं विस्तार के उद्देश्य से अपनी सेना को शक्तिशाली बनाया। उसने नागरिक प्रशासन में भी अनेक उल्लेखनीय सुधार किए। उसकी महान् सफलताओं को देखते हुए उसे आज भी मंगोलिया के इतिहास में महान् राष्ट्र-नायक (national hero) के रूप में स्मरण किया जाता है।

→ चंगेज़ खाँ की मृत्यु के पश्चात् ओगोदेई (1229-41 ई०), गुयूक (1246-48 ई०) एवं मोंके (1251-59 ई०) ने शासन किया। उन्होंने मंगोल साम्राज्य के विस्तार एवं संगठन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। मोंके की मृत्यु के पश्चात् मंगोल साम्राज्य अनेक वंशों में विभाजित हो गया था।

→ इनमें चीन में कुबलई खाँ द्वारा स्थापित किया गया यूआन वंश, ईरान में हुलेगु द्वारा स्थापित किया गया इल-खानी वंश एवं दक्षिण रूस में बाटू द्वारा स्थापित किया गया गोल्डन होर्ड वंश उल्लेखनीय थे। स्टेपी निवासियों का अपना साहित्य लगभग न के बराबर था।

→ अतः यायावरी समाज के बारे हमारा ज्ञान मुख्य तौर पर इतिवृत्तों (chronicles), यात्रा वृत्तांतों (travelogues) तथा नगरीय साहित्यकारों के दस्तावेजों (documents produced by city based literateurs) से प्राप्त होता है। इन लेखकों की यायावरों के जीवन संबंधी सूचनाएँ अज्ञात एवं पूर्वाग्रहों (biased) से ग्रस्त हैं।

→ इनमें यायावर समुदायों को आदिम बर्बर (primitive barbarians) एवं मंगोलों को स्टेपी लुटेरों के रूप में पेश किया गया। मंगोलों पर सबसे बहुमूल्य शोध कार्य 18वीं एवं 19वीं शताब्दी में रूसी विद्वानों ने किया।

→ इनमें बोरिस याकोवालेविच ब्लाडिमीरस्टॉव (Boris Yakovlevich Vladimirtsov) एवं वैसिली ब्लैदिमिरोविच बारटोल्ड (Vasily Vladimirovich Bartold) के नाम उल्लेखनीय हैं। हमें पारमहाद्वीपीय (transcontinental) मंगोल साम्राज्य के विस्तार से संबंधित महत्त्वपूर्ण जानकारी चीनी, मंगोलियाई, फ़ारसी, अरबी, इतालवी, लातीनी, फ्रांसीसी एवं रूसी स्रोतों से मिलती है।

→ मंगोलों के इतिहास पर बहुमूल्य प्रकाश डालने वाले दो महत्त्वपूर्ण स्रोत ईगोर दे रखेविल्ट्स (Igor de Rachewiltz) की रचना मंगोलों का गोपनीय इतिहास (The Secret History of the Mongols) तथा मार्को पोलो (Marco Polo) का यात्रा वृत्तांत (travels) हैं।

HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ एक साम्राज्य

Haryana State Board HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ एक साम्राज्य Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class History Important Questions Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ एक साम्राज्य

निबंधात्मक उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
“ऑगस्ट्स का शासनकाल रोमन साम्राज्य के इतिहास का एक स्वर्ण काल था” इस कथन की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
ऑगस्ट्स रोमन साम्राज्य का प्रथम सम्राट् था। उसने 27 ई० पूर्व से 14 ई० तक शासन किया। उसने रोमन साम्राज्य में फैली अराजकता को दूर कर वहाँ शाँति की स्थापना की। उसने अनेक उल्लेखनीय प्रशासनिक, आर्थिक एवं धार्मिक सुधारों को लागू कर रोमन साम्राज्य की नींव को सुदृढ़ किया। उसने रोम में भव्य एवं विशाल भवनों तथा मंदिरों का निर्माण किया। उसके शासनकाल में रोमन साहित्य का भी अद्वितीय विकास हुआ। संक्षेप में ऑगस्ट्स के शासनकाल में रोमन साम्राज्य ने विभिन्न क्षेत्रों में इतनी प्रगति की कि इसे ठीक ही रोमन इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है।

डॉक्टर आर्थर ई० आर० बोक ने ठीक कहा है कि, “उसका नाम रोम के अथवा वास्तव में मानव वंश के इतिहास के महान् शासकों में से एक के रूप में सदैव स्मरण किया जाता रहेगा।” एक अन्य प्रसिद्ध इतिहासकार बी० के० गोखले के शब्दों में, “उसने रोम को उसके इतिहास का सबसे महत्त्वपूर्ण अध्याय दिया जो कि प्रत्येक दृष्टिकोण से स्वर्ण युग कहलाने योग्य था।”

ऑगस्ट्स ने अपने शासनकाल के दौरान अनेक महत्त्वपूर्ण सफलताएँ प्राप्त की। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. रोमन शाँति :
ऑगस्ट्स (वास्तविक नाम ऑक्टेवियन) के सिंहासनारूढ़ के समय (27 ई० पू०) चारों ओर अराजकता का वातावरण था। 44 ई० पू० में रोमन सम्राट् जूलियस सीजर (Julius) की हत्या के कारण रोमन साम्राज्य में गृहयुद्ध भड़क उठा था। सीजर के हत्याकांड में ब्रटस (Brutus) तथा कैसियस (Casius) सम्मिलित थे।

इन हत्यारों को सबक सिखाने के उद्देश्य से ऑक्टेवियन (Octavian) जो कि जूलियस सीजर की बहन का पोता था ने एंटोनी (Antony) तथा लेपीडस (Lepidus) के साथ मिल कर एक त्रिगुट (Triumvirate) स्थापित किया। इस त्रिगुट ने जूलियस सीजर के हत्याकांड में सम्मिलित सभी दोषियों को यमलोक पहुँचा दिया। इसके शीघ्र पश्चात् ही इस त्रिगुट में सत्ता के लिए आपसी फूट पड़ गई।

ऑक्टेवियन ने एंटोनी को 31 ई० पू० में ऐक्टियम के युद्ध (Battle of Actium) में पराजित कर दिया। निस्संदेह यह ऑक्टेवियन की एक शानदार सफलता प्रमाणित हुई। इस युद्ध के पश्चात् रोमन साम्राज्य में शाँति स्थापित हुई।
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 3 iMG 1

2. सैनेट से संबंध :
सैनेट रोमन गणतंत्र के समय रोम की सर्वाधिक प्रभावशाली संस्था थी। इसने अनेक शताब्दियों तक रोम के इतिहास में प्रमुख भूमिका निभाई। ऑगस्ट्स ने केवल रोम के धनी, ईमानदार एवं कर्त्तव्यपरायण लोगों को ही सैनेट में प्रतिनिधित्व दिया। उसने सदैव सैनेट के प्रति सम्मान प्रकट किया।

इसे देखते हुए सैनेट ने स्वेच्छा से सैन्य संचालन, सीमांत प्रदेशों के नियंत्रण, सुरक्षा, युद्ध एवं संधि संबंधी सभी अधिकार ऑगस्ट्स को सौंप दिए। परिणामस्वरूप ऑगस्ट्स ने शासन की इस सर्वोच्च संस्था पर नियंत्रण स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। डोनाल्ड कागन एवं एफ० एम० टर्नर के अनुसार, “यद्यपि ऑगस्ट्स को सभी शक्तियाँ प्राप्त थीं किंतु उसने सदैव सैनेट की प्रतिष्ठा एवं सम्मान का उचित ध्यान रखा।”

3. सैन्य सुधार:
ऑगस्ट्स ने अपने शासनकाल के दौरान रोमन सेना को एक नया स्वरूप प्रदान किया। ऑगस्ट्स से पूर्व रोमन सेना की कुल संख्या 6 लाख थी। रोमन साम्राज्य के विस्तार में उसकी भूमिका प्रमुख थी। ऑगस्ट्स क्योंकि शाँति का समर्थक था इसलिए उसने रोमन सेना की संख्या कम करके 3 लाख कर दी। इसके अतिरिक्त उसने 9 हज़ार प्रेटोरियन गॉर्ड (Praetorian guard) की स्थापना की।

इनका कार्य सम्राट की सुरक्षा करना था। ऑगस्ट्स ने एक स्थायी सेना का गठन किया। इसमें प्रत्येक सैनिक को न्यूनतम 25 वर्ष तक सेवा करनी पड़ती थी। इन सैनिकों को नियमित वेतन देने की व्यवस्था की गई। सेवा निवृत्त होने पर सैनिकों को पैंशन दी जाती थी। रोमन सेना के उच्च पदों पर केवल उन्हीं सैनिकों को नियुक्त किया जाता था जो ऑगस्ट्स के प्रति पूर्ण वफ़ादार थे। इन सैन्य सुधारों के कारण ऑगस्ट्स की प्रतिष्ठा में काफी वृद्धि हुई।।

4. प्रांतीय प्रशासन :
ऑगस्ट्स ने प्रांतीय प्रशासन में अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किए। उसने केवल ईमानदार लोगों को गवर्नर के पद पर नियुक्त किया। उन्हें प्रांतीय लोगों के कल्याण हेतु कदम उठाने के निर्देश दिए गए। ऑगस्ट्स ने उन सभी अधिकारियों को पदमुक्त कर दिया जो जनता पर अत्याचार करते थे। उसने प्रांतों में फैले भ्रष्टाचार को दूर किया।

उसने प्रांतीय लोगों पर लगे अनेक करों को कम किया। ऑगस्ट्स स्वयं प्राँतों का भ्रमण कर इन सुधारों का जायजा लेता था। संक्षेप में उसके सुधार प्रांतीय जनता के लिए एक वरदान सिद्ध हुए। रोबिन डब्ल्यू० विंकस के अनुसार,”रोमन प्रांतों का शासन निस्संदेह गणतंत्र के अधीन शासन से कहीं बेहतर था।”

5. आर्थिक सुधार:
ऑगस्ट्स के शासनकाल में आर्थिक क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई। इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे।

1. ऑगस्ट्स के शासनकाल में रोमन साम्राज्य में पूर्ण शाँति एवं व्यवस्था कायम रही।

2. उसने यातायात के साधनों के विकास की ओर विशेष ध्यान दिया। इससे साम्राज्य के विभिन्न भागों एवं विदेशों से संपर्क स्थापित करना एवं माल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना सुगम हो गया।

3. उसने समुद्री डाकुओं का सफाया करने के उद्देश्य से एक स्थायी जल बेड़े का निर्माण करवाया।

4. उसने कृषि एवं उद्योगों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से अनेक प्रशंसनीय पग उठाए।

5. उसने रोमन साम्राज्य के अनेक देशों के साथ घनिष्ठ व्यापारिक संबंध स्थापित किए। ऑगस्ट्स के इन आर्थिक सुधारों के चलते रोमन लोग आर्थिक पक्ष से समृद्ध हुए।

6. कला तथा साहित्य को प्रोत्साहन:
ऑगस्ट्स कला तथा साहित्य का महान् प्रेमी था। इसलिए उसके शासनकाल में इन क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति हुई। उसने रोम में अनेक भव्य भवनों एवं मंदिरों का निर्माण करवाया। इनमें उसके द्वारा बनवाया गया पैंथियन (Pantheon) मंदिर सर्वाधिक प्रसिद्ध है। उसने ईंटों के स्थान पर संगमरमर का प्रयोग करके रोमन भवन निर्माण कला को एक नई दिशा प्रदान की। उसके शासनकाल में रोमन साहित्य ने एक नए शिखर को छुआ। लिवि, वर्जिल, होरेस तथा ओविड
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 3 iMG 2
आदि ने ऑगस्ट्स के शासनकाल को चार चाँद लगा दिए। लिवि (Livy) रोमन साम्राज्य का सबसे महान् इतिहासकार था। वर्जिल (Virgil) ऑगस्ट्स के शासनकाल का सबसे महान् कवि था। होरेस तथा ओविड भी प्रसिद्ध कवि थे। बी० के० गोखले के अनुसार, “ऑगस्ट्स ने एक ऐसा प्रशासन दिया जो इतना कुशल था कि इसे आने वाली दो शताब्दियों से अधिक समय तक जारी रखा गया।”

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ एक साम्राज्य

प्रश्न 2.
रोमन साम्राज्य के इतिहास में तीसरी शताब्दी में आए संकट के प्रमुख कारण क्या थे? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य के इतिहास में सबसे भयंकर संकट का सामना करना पड़ा। इस संकट के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे

1. 224 ई० में ईरान में एक नया वंश ससानी (Sasanians) सत्ता में आया। इस वंश के शासक शापुर प्रथम (241-272 ई०) के एक प्रसिद्ध शिलालेख में इस बात का दावा किया गया है कि उसने 60,000 रोमन सेना का विनाश करके पूर्वी रोमन साम्राज्य की राजधानी एंटीओक (Antioch) को अपने अधीन कर लिया है।

2. तीसरी शताब्दी के दौरान जर्मन मूल की अनेक जनजातियों जिनमें एलमन्नाई (Almannai), फ्रैंक (Franks) तथा गोथ (Goth) प्रमुख थे ने अपने लगातार आक्रमणों द्वारा रोमन साम्राज्य को चैन की साँस नहीं लेने दी। यहाँ तक कि रोमवासियों को डेन्यूब (Danube) से आगे का क्षेत्र छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा।

3. तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य की राजनीतिक स्थिति अत्यंत डावाँडोल थी। स्थिति का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि 47 वर्षों के दौरान 25 सम्राट् सत्तासीन हुए। इन सभी सम्राटों की या तो हत्या की गई या वो गृह-युद्धों में मारे गए।

4. रोमन साम्राज्य में फैली अराजकता के कारण उद्योग एवं व्यापार चौपट हो गए। रोज़मर्रा की वस्तुओं की कीमतें आसमान छूने लगीं। सरकार ने स्थिति पर नियंत्रण पाने के उद्देश्य से कुछ प्रयास किए किंतु वे विफल रहे।

5. प्रत्येक सम्राट् सेना के सहयोग से सत्ता में आता था। अत: सैनिकों का समर्थन पाने के उद्देश्य से उनकी तनख्वाहों एवं अन्य सुविधाओं में वृद्धि कर दी जाती थी। इससे रोमन अर्थव्यवस्था को गहरा आघात लगा।

6. रोमन साम्राज्य पर लगातार होने वाले बर्बर आक्रमणों तथा चोरों एवं डाकुओं आदि ने अपनी लूटमार द्वारा लोगों का जीवन दूभर बना दिया था।

7. रोमन साम्राज्य में फैली अराजकता का लाभ उठाते हुए अनेक प्रांतों ने स्वतंत्रता के लिए विद्रोह आरंभ कर दिए थे। इससे स्थिति अधिक विस्फोटक हो गई।

8. तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य को भयानक अकालों एवं प्लेगों का सामना करना पड़ा। इसमें लाखों की संख्या में लोगों की मृत्यु हो गई। इससे रोमन साम्राज्य को गहरा आघात लगा। थॉमस एफ० एक्स० नोबल के अनुसार, “तीसरी शताब्दी रोमन साम्राज्य एवं इसके शासकों के लिए अत्यंत कठिनाई का समय था। गृह-युद्धों एवं राजनीतिक हत्याओं का बोलबाला था। साम्राज्य की सीमाओं को सदैव ख़तरा था तथा कभी-कभी इनका उल्लंघन किया गया। अर्थव्यवस्था अव्यवस्थित थी।”

प्रश्न 3.
रोमन साम्राज्य के पतन के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य के पतन के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. रोमन साम्राज्य की विशालता:
प्राचीनकाल में रोमन साम्राज्य बहुत विशाल था। उस समय रोमन साम्राज्य में रोम, इटली, स्पेन, फ्राँस, यूनान, सिसली, मिस्र, उत्तरी अफ्रीका तथा ब्रिटेन के कुछ हिस्से सम्मिलित थे। उस समय यातायात के साधन अधिक विकसित नहीं थे। अत: इतने विशाल साम्राज्य पर नियंत्रण रखना कोई सहज कार्य न था। इस स्वर्ण अवसर का लाभ उठाकर अनेक प्रांतों के गवर्नर अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर देते थे। इससे रोमन साम्राज्य की एकता को गहरा आघात लगा।

2. रोमन शासकों की साम्राज्यवादी नीति :
रोमन शासकों की साम्राज्यवादी नीति भी रोमन साम्राज्य के पतन का एक महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुई। सभी रोमन शासकों ने साम्राज्यवादी नीति पर बहुत बल दिया। अतः उन्हें एक विशाल सेना का गठन करना पड़ा। इस सेना पर बहुत धन खर्च हुआ। लगातार युद्धों में जन तथा धन की भी अपार क्षति हुई। इससे लोगों में भारी असंतोष फैला। इसके अतिरिक्त रोमन शासकों की साम्राज्यवादी नीति ने अनेक देशों को भी अपना कट्टर शत्रु बना लिया। अतः उनकी दुश्मनी रोमन साम्राज्य को ले डूबी।

3. रोमन शासकों की विलासिता:
रोमन शासकों की विलासिता रोमन साम्राज्य के पतन का एक महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुई। कुछ रोमन शासकों को छोड़कर अधिकाँश रोमन शासक विलासप्रिय सिद्ध हुए। वे अपना अधिकाँश समय सुरा एवं सुंदरी के संग व्यतीत करते थे। इन पर वे देश का बहुमूल्य धन पानी की तरह बहा देते थे। रोमन रानियाँ भी अपनी विलासिता पर बहुत धन व्यय करती थीं।

दूसरी ओर रोमन शासकों ने लगातार कम हो रहे खजाने को भरने के लिए लोगों पर भारी कर लगा दिए। इससे लोगों में भारी असंतोष फैला तथा वे ऐसे साम्राज्य के विरुद्ध होते चले गए।

4. उत्तराधिकार कानून का अभाव :
रोमन साम्राज्य के पतन के महत्त्वपूर्ण कारणों में से एक उत्तराधिकार के कानून का अभाव था। अतः जब किसी शासक की आकस्मिक मृत्यु हो जाती तो यह पता नहीं होता था कि उसका उत्तराधिकारी कौन बनेगा। ऐसे समय में विभिन्न दावेदारों में गृह युद्ध आरंभ हो जाते थे। ये गृह-युद्ध अनेक बार भयंकर रूप धारण कर लेते थे। इन युद्धों के परिणामस्वरूप जन तथा धन की अपार क्षति होती थी।

इससे जहाँ एक ओर रोमन साम्राज्य की शक्ति क्षीण हुई वहीं दूसरी ओर इसने , बाहरी शत्रुओं को रोमन साम्राज्य पर आक्रमण करने का स्वर्ण अवसर प्रदान किया।

5. साम्राज्य का विभाजन :
रोमन शासक डायोक्लीशियन ने प्रशासनिक कुशलता के उद्देश्य से रोमन साम्राज्य को दो भागों-पूर्वी रोमन साम्राज्य एवं पश्चिमी रोमन साम्राज्य में विभाजित कर दिया। उसका यह निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण सिद्ध हुआ। इससे रोमन साम्राज्य की एकता को गहरा आघात लगा। इससे रोमन साम्राज्य राजनीतिक दृष्टिकोण से दुर्बल हो गया।

इसे देखते हुए बर्बर जनजातियों ने रोमन साम्राज्य पर अपने आक्रमण तीव्र कर दिए। इन आक्रमणों ने रोमन साम्राज्य के पतन का डंका बजा दिया।

6. दुर्बल सेना :
किसी भी साम्राज्य की सुरक्षा एवं विस्तार में उसकी सेना की प्रमुख भूमिका होती है। कुछ रोमन शासकों ने एक विशाल एवं शक्तिशाली सेना का गठन किया था। किंतु बाद के रोमन शासक अयोग्य एवं निकम्मे सिद्ध हुए। वे अपना अधिकाँश समय सुरा एवं सुंदरी के संग व्यतीत करते थे। अतः उन्होंने रोमन साम्राज्य की सेना की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया।

परिणामस्वरूप रोमन सेना कमज़ोर हो गई। इसके अतिरिक्त कुछ रोमन शासकों ने विदेशियों को भी रोमन सेना में भर्ती कर इसे खोखला बना दिया। ऐसे साम्राज्य के पतन को रोका नहीं जा सकता था।

7. आर्थिक पतन :
रोमन साम्राज्य का आर्थिक पतन उसके लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ। रोमन शासकों की साम्राज्यवादी नीति एवं उनकी विलासिता ने रोमन साम्राज्य की अर्थव्यवस्था पर घातक प्रहार किया। रोमन साम्राज्य में होने वाले युद्धों एवं विद्रोहों ने यहाँ की अर्थव्यवस्था को अधिक शोचनीय बना दिया। विदेशी आक्रमण भी रोमन अर्थव्यवस्था के लिए घातक सिद्ध हुए।

रोमन साम्राज्य में रोजाना वस्तुओं के भाव आसमान छूने लगे। इससे जनसाधारण में भारी असंतोष फैला। परिणामस्वरूप रोमन साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया।

बी० के० गोखले के अनुसार,
“आर्थिक नींव की कमजोरी ने साम्राज्य के विनाश में योगदान दिया।

8. विदेशी आक्रमण :
रोमन साम्राज्य के पतन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारण विदेशी आक्रमण सिद्ध हुए। 378 ई० में जर्मन मूल के गोथों (Goths) ने एड्रियनोपोल में रोमन सेनाओं को कड़ी पराजय दी। इसने रोमन साम्राज्य के पतन का डंका बजा दिया। 410 ई० में विसिगोथों (Visigoths) ने अपने नेता आलारक (Alaric) के नेतृत्व में रोम को नष्ट कर दिया। इस पराजय से रोमन साम्राज्य के गौरव को गहरा आघात लगा।

428 ई० में जर्मन मूल के सैंडलों (Vandals) ने उत्तरी अफ्रीका पर अधिकार कर लिया। 451 ई० में हूण नेता अटिला (Attila) ने गॉल (Gaul) पर अधिकार कर लिया। 493 ई० में ऑस्ट्रोगोथों (Ostrogoths) ने इटली पर अधिकार कर लिया। 568 ई० में लोंबार्डों (Lombards) ने इटली पर आक्रमण कर वहाँ भारी विनाश किया। निस्संदेह इन विदेशी आक्रमणों ने रोमन साम्राज्य की नींव को डगमगा दिया।

प्रश्न 4.
रोमन साम्राज्य के सामाजिक जीवन की प्रमुख विशेषताएँ क्या थी ? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य के सामाजिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं 1. तीन श्रेणियाँ (Three Classes)-रोमन समाज में प्रमुखतः तीन श्रेणियाँ प्रचलित थीं। ये श्रेणियाँ थीं उच्च श्रेणी, मध्यम श्रेणी एवं निम्नतर श्रेणी। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

(1) उच्च श्रेणी :
रोमन समाज की उच्च श्रेणी में अभिजात वर्ग के लोग सम्मिलित थे। इनमें प्रमुखतः सैनेटर एवं नाइट सम्मिलित थे। इन्हें सम्मिलित रूप से पैट्रिशियन (Patrisian) कहा जाता था। वे बहुत शक्तिशाली थे। वे रोमन साम्राज्य के समस्त उच्च पदों पर नियुक्त थे। वे काफी धनवान होते थे। वे आलीशान महलों में रहते थे। वे विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे। उनकी देख-रेख के लिए बड़ी संख्या में नौकर एवं दास-दासियाँ होते थे।

(2) मध्यम श्रेणी :
इस श्रेणी में नौकरशाही एवं सेना से जुड़े लोग, व्यापारी और किसान सम्मिलित थे। इन्हें सामूहिक रूप से प्लीबियन (Plebeians) के नाम से जाना जाता था। वे भी प्रशासन के महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्त थे। उनका जीवन भी सुखमय था। उनकी सेवा के लिए भी अनेक दास-दासियाँ होती थीं।

(3) निम्नतर श्रेणी :
रोमन समाज के अधिकाँश लोग निम्नतर श्रेणी से संबंधित थे। इनमें मज़दूर एवं दास सम्मिलित थे। इन्हें सामूहिक रूप से ह्यमिलिओरिस (Humiliores) कहा जाता था। उनकी दशा बहुत शोचनीय थी। वे गंदी झोंपड़ियों में रहते थे। उन्हें दो वक्त का खाना कभी नसीब नहीं होता था। उनके मालिक उन पर घोर अत्याचार करते थे। वास्तव में उनका जीवन पशुओं से भी बदतर था।

2. परिवार :
परिवार को रोमन समाज की आधारशिला माना जाता था। उस समय एकल परिवार प्रणाली (nuclear family) प्रचलित थी। परिवार में पति, पत्नी, बच्चे एवं दास सम्मिलित होते थे। उस समय परिवार पितृतंत्रात्मक (patriarchal) होते थे। परिवार में पिता परिवार का मुखिया होता था। उसके परिवार के सभी सदस्य उनके अधीन होते थे। वह अपने बच्चों की शिक्षा, उनके कार्यों तथा विवाह आदि का प्रबंध करता था।

परिवार के सभी सदस्य उसकी आज्ञा का पालन करते थे। इसके बावजूद परिवार का मुखिया स्वेच्छाचारी नहीं होता था। जे० एच० बेंटली एवं एच० एफ० जाईगलर के अनुसार, “यद्यपि रोमन पितृतंत्रात्मक परिवारों को कानूनी तौर पर विशाल शक्तियाँ प्राप्त थीं वे कम ही अपने अधीन सदस्यों पर अत्याचारी ढंग से शासन करते थे।”

3. स्त्रियों की स्थिति :
रोमन समाज में स्त्रियों की स्थिति सम्मानजनक थी। वे सार्वजनिक, धार्मिक एवं सामाजिक उत्सवों में बढ़-चढ़ कर भाग लेती थीं। संपन्न परिवार की लड़कियाँ उच्च शिक्षा प्राप्त करती थीं। उस समय लड़कियों का विवाह 16 से 23 वर्ष के मध्य किया जाता था। उस समय विवाह बहुत शानो-शौकत से किए जाते थे। उस समय दहेज प्रथा प्रचलित थी। पुत्री को अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार प्राप्त था।

विवाहिता का अपने परिवार पर काफी प्रभाव होता था। वह अपने बच्चों की शिक्षा तथा परिवार के अन्य कार्यों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती थी। उस समय तलाक लेना अपेक्षाकृत आसान था। ऐसी सूरत में पति को अपनी नी से प्राप्त दहेज उसके पिता को वापस लौटाना होता था। उस समय रोमन समाज में वेश्यावृत्ति (prostitution) का प्रचलन था।

4. शिक्षा :
रोमन साम्राज्य में शिक्षा का प्रचलन बहुत कम था। पुरुषों में साक्षरता की दर (literacy rate) 20% एवं स्त्रियों में यह दर 10% थी। ग्रामीण क्षेत्रों जहाँ शहरों की अपेक्षा बहुत कम स्कूल थे यह दर इससे भी कम थी। साक्षरता की दर रोमन साम्राज्य के विभिन्न भागों में अलग-अलग थी। पोम्पई (Pompeii) नगर जो 79 ई० में ज्वालामुखी फटने से दफन हो गया था वहाँ काम चलाऊ साक्षरता (Casual literacy) विद्यमान थी।

इसके विपरीत मिस्त्र में बड़ी संख्या में पैपाइरस (Papyri) पाए गए हैं। इनसे हमें पता चलता है कि कुछ व्यक्ति बिल्कुल अनपढ़ थे। किंतु दूसरी ओर सैनिकों, सेना अधिकारियों एवं प्रशासनिक अधिकारियों में साक्षरता दर बहुत ऊँची थी। ऑगस्ट्स, त्राजान एवं हैड्रियन ने शिक्षा के विकास के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण पग उठाए। एडवर्ड मैक्नल बर्नस के अनुसार, “बुद्धिमानी के तौर पर रोमनों का विकास बहुत धीरे हुआ।”

5. मनोरंजन :
रोमन साम्राज्य के लोग मनोरंजन के बहुत शौकीन थे। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि वहाँ एक वर्ष में कम-से-कम 176 दिन कोई न कोई मनोरंजन कार्यक्रम अवश्य होता था। रोमन लोगों को सर्कस देखने एवं नृत्य एवं संगीत का बहुत शौक था। धनी वर्ग के लोग दासों के मध्य होने वाले युद्धों अथवा हिंसक जानवरों एवं दासों के मध्य होने वाले युद्धों को देखने के बहुत शौकीन थे।

इन युद्धों में पराजित होने वाले दास को मौत के घाट उतार दिया जाता था। इन युद्धों को देखने के लिए विशाल अखाड़े बनाए जाते थे जिन्हें कोलोसियम (colosseum) कहा जाता था। इनमें हजारों की संख्या में दर्शक बैठ सकते थे। उस समय नाटकों का भी प्रचलन था। बच्चे अपना मनोरंजन खिलौनों द्वारा करते थे। ये खिलौने मिट्टी, लकडी एवं धातुओं से बने होते थे।

6. सांस्कृतिक विविधता :
रोमन साम्राज्य में व्यापक सांस्कृतिक विविधता पाई जाती थी।

  • उस समय रोमन साम्राज्य में अनेक धार्मिक संप्रदायों एवं देवी-देवताओं की उपासना का प्रचलन था।
  • उस समय रोमन साम्राज्य में अनेक भाषाएँ-कॉप्टिक, प्यूनिक, बरबर, कैल्टिक ऊर्मिनियाई एवं लातीनी प्रचलित थीं।
  • उस समय वेशभूषा की विविध शैलियाँ प्रचलित थीं।
  • उस समय लोग विभिन्न प्रकार का भोजन खाते थे।
  • उस समय सामाजिक संगठनों एवं उनकी बस्तियों के विभिन्न रूपों का प्रचलन था।

प्रश्न 5.
रोमन साम्राज्य के आर्थिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य के लोगों के आर्थिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

1. कृषि:
रोमन साम्राज्य के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। उस समय ज़मींदारों के पास विशाल जागीरें होती थीं। इस पर वे दासों की सहायता से खेती करते थे। खेतों की गहाई एवं बिजाई का कार्य हलों द्वारा किया जाता था। हलों को बैलों द्वारा जोता जाता था। उस समय फ़सलों के अधिक उत्पादन के लिए खादों का प्रयोग किया जाता था। सिंचाई के साधन भी उन्नत थे।

उस समय गैलिली में गहन् खेती का प्रचलन था। उस समय कैंपेनिया (Campania), सिसली (Sicily), फैय्यूम (Fayum), गैलिली (Galilee), बाइजैक्यिम (Byzacium), दक्षिणी गॉल (Southern Gaul) तथा बाएटिका (Baetica) फ़सलों के भरपूर उत्पादन के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। उस समय रोमन साम्राज्य में गेहूँ, जौ, मक्का, जैतून, विभिन्न प्रकार की दालों, सब्जियों एवं फलों का उत्पादन होता था। फलों में सबसे अधिक उत्पादन अंगूर का किया जाता था। उस समय अंगूर की शराब का बहुत प्रचलन था।

2. पशुपालन:
रोमन साम्राज्य के लोगों का दूसरा मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। इसका कारण यह था कि उस समय रोमन साम्राज्य के विभिन्न भागों में अनेक उन्नत चरागाहें मौजूद थीं। नुमीडिया (आधुनिक अल्जीरिया) में बड़ी संख्या में भेड़-बकरियाँ पाली जाती थीं। यहाँ ऋतु प्रवास (transhumance) बहुत व्यापक पैमाने पर होता था। यहाँ चरवाहे (pastorals) एवं अर्ध यायावर (semi-nomadic) अपने साथ में अवन (oven) आकार की झोंपड़ियाँ (huts) लिए घूमते रहते थे। इन्हें मैपालिया (mapalia) कहा जाता था।

स्पेन में भी पशुपालन का धंधा काफी विकसित था। यहाँ चरवाहे पहाड़ियों की चोटियों पर बसे गाँवों में रहते थे। इन गाँवों को कैस्टेला (Castella) कहते थे। उस समय रोमन साम्राज्य के विभिन्न भागों के लोग भेड़-बकरियों के अतिरिक्त गाय, बैल, भैंस, घोड़े, सूअर एवं कुत्ते आदि जानवरों को भी पालते थे। इन पशुओं को खेती करने, बोझा ढोने, दूध-दही, मक्खन, माँस एवं ऊन आदि प्राप्त करने के उद्देश्य से पाला जाता था। निस्संदेह पशुपालन की रोमन साम्राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका थी।

3. उद्योग (Industry):
रोमन साम्राज्य में विभिन्न उद्योगों ने भी उल्लेखनीय विकास किया था। इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। प्रथम, रोमन सम्राटों ने उद्योगों के विकास के लिए विशेष पग उठाए। द्वितीय, रोमन साम्राज्य में विभिन्न प्रकार की धातुएँ–सोना, चाँदी, लोहा एवं टिन आदि भारी मात्रा में उपलब्ध थीं। तीसरा, रोमन साम्राज्य के उद्योगों के विकास में व्यापारिक संघों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उस समय रोमन साम्राज्य में जैतून का तेल (olive oil) निकालने तथा अंगूरी शराब (grape wine) बनाने के उद्योग प्रमुख थे। इनके प्रमुख केंद्र स्पेन, गैलिक प्राँत, उत्तरी अफ्रीका एवं मिस्त्र थे। जैतून का तेल, शराब तथा अन्य तरल पदार्थों की ढुलाई ऐसे मटकों अथवा कंटेनरों द्वारा की जाती थी जिन्हें एम्फ़ोरा (Amphora) कहते थे। रोम में मोंटी टेस्टैकियो (Monte Testaccio) नामक स्थल से इस प्रकार के 5 करोड़ से अधिक कंटेनरों के अवशेष पाए गए हैं। स्पेन में जैतून के तेल निकालने का उद्योग 140-160 ई० के दौरान अपने चरमोत्कर्ष पर था।

4. व्यापार (Trade):
रोमन साम्राज्य का आंतरिक एवं विदेशी व्यापार काफी उन्नत था। इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे-

  • रोमन शासकों ने व्यापार को प्रोत्साहन देने के लिए विशेष पग उठाए।
  • ऑगस्ट्स के शासनकाल से लेकर आने वाले काफी समय तक संपूर्ण रोमन साम्राज्य में शांति एवं व्यवस्था बनी रही।
  • यातायात के साधनों का काफी विकास किया गया था। सड़क मार्गों एवं बंदरगाहों द्वारा रोमन साम्राज्य के महत्त्वपूर्ण नगरों को आपस में जोड़ा गया था।
  • सिक्कों के प्रचलन एवं बैंकों की स्थापना ने भी रोमन साम्राज्य के व्यापार के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया।
  • उस समय रोमन साम्राज्य की कृषि एवं उद्योग ने अद्वितीय प्रगति की थी।
  • रोमन पुलिस एवं नोसैना द्वारा सड़क मार्गों एवं समुद्री मार्गों की सुरक्षा के लिए व्यापक प्रबंध किए गए थे।

रोमन साम्राज्य का विदेशी व्यापार अनेक यूरोपीय देशों, उत्तरी अफ्रीका, मिस्त्र, चीन, भारत, अरब एवं सीरिया आदि देशों के साथ होता था। रोमन साम्राज्य इन देशों को अंगूर की शराब, चाँदी का सामान, सोना, बहुमूल्य पत्थर, ताँबा एवं टिन आदि का निर्यात करता था। इसके बदले वह इन देशों से सूती एवं रेशमी वस्त्र, श्रृंगार का सामान, हाथी दाँत, गर्म मसाले, संगमरमर एवं कागज आदि का निर्यात करता था। निस्संदेह अनेक शताब्दियों तक रोमन साम्राज्य विश्व के व्यापार का एक प्रमुख केंद्र रहा।

5. श्रमिकों पर नियंत्रण (Controlling Workers)-रोमन साम्राज्य की अर्थव्यवस्था में दासों की उल्लेखनीय भूमिका थी। दासों से प्रतिदिन 16 से 18 घंटे कठोर कार्य लिया जाता था। इसके बावजूद उन्हें न तो कोई वेतन दिया जाता था तथा न ही भरपेट खाना। हाँ उन पर घोर अत्याचार ज़रूर किए जाते थे। पहली शताब्दी में जब रोमन साम्राज्य ने अपनी विस्तार की नीति का लगभग त्याग कर दिया तो दासों की आपूर्ति में कमी आने लगी। बाध्य होकर दास श्रम का प्रयोग करने वालों को दास प्रजनन (slave breeding) एवं वेतनभोगी मज़दूरों (wage labourers) का सहारा लेना पड़ा।

वेतनभोगी मज़दूर सस्ते पड़ते थे। इसका कारण यह था कि उन्हें आवश्यकता के अनुसार रखा एवं छोड़ा जा सकता था। दूसरी ओर वेतनभोगी मजदूरों के विपरीत दास श्रमिकों को वर्ष भर भोजन देना पड़ता था तथा अन्य खर्चे भी करने पड़ते थे। इससे दास श्रमिकों की लागत बहुत बढ़ जाती थी। दासों एवं मजदूरों पर घोर अत्याचारों के कारण एवं कर्जे के कारण वे भागने के लिए बाध्य हो जाते थे। 398 ई० के एक कानून में कहा गया है कि उस समय श्रमिकों को दागा जाता था ताकि यदि वे भागने का प्रयास करें तो उन्हें पहचाना जा सके।

6. सिक्के (Coins)-रोमन साम्राज्य में 366 ई० पू० में सिक्कों का प्रचलन आरंभ हुआ। ये सिक्के काँसे के बने होते थे। इन सिक्कों के प्रचलन से पूर्व वस्तुओं का लेन-देन वस्तु विनिमय (barter system) के आधार पर चलता था। सिक्कों के प्रचलन से आंतरिक एवं विदेशी व्यापार को एक नया प्रोत्साहन मिला। कुछ समय के पश्चात् रोमन साम्राज्य में चाँदी के सिक्कों का प्रचलन आरंभ हुआ।

इस सिक्के को दीनारियस (denarius) कहा जाता था। तीसरी शताब्दी में स्पेन की चाँदी की खानें खत्म हो गई थीं। अतः सरकार के पास चाँदी की धातु का भंडार समाप्त हो गया था। बाध्य होकर रोमन साम्राज्य को अपनी चाँदी की मुद्रा का प्रचलन छोड़ना पड़ा। चौथी शताब्दी में कांस्टैनटाइन ने सोने पर आधारित नई मुद्रा प्रणाली का प्रचलन किया। इसका नाम सॉलिडस (Solidus) रखा गया। यह 4.5 ग्राम शुद्ध सोने का बना होता था।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ एक साम्राज्य

प्रश्न 6.
रोमन साम्राज्य के लोगों के धार्मिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य के लोगों में अनेक देवी-देवताओं की पूजा का प्रचलन था। वे अपने सम्राटों की भी देवता के रूप में उपासना करते थे। वे अनेक अंध-विश्वासों में भी विश्वास रखते थे। ईसाई धर्म का उदय इस काल की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। रोमन लोगों के धार्मिक जीवन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं–

1. रोमन देवते (Roman Deities) रोमन लोग बहुदेववादी (polytheist) थे। वे अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे। उनके कुछ प्रसिद्ध देवी-देवता निम्नलिखित थे

(1) जूपिटर (Jupiter)-जूपिटर रोमन लोगों का सबसे सर्वोच्च देवता था। वह आकाश का बड़ा देवता था। सूर्य, चंद्रमा एवं तारे सभी उसी की आज्ञा का पालन करते थे। वह विश्व की सभी घटनाओं को जानता था। वह पापियों को सज़ा भी देता था।

(2) मॉर्स (Mars)-मॉर्स युद्ध का देवता था। युद्ध में होने वाली पराजय अथवा विजय उसकी कृपा पर निर्भर करती थी।

(3) जूनो (Juno)-जूनो रोमन लोगों की प्रमुख देवी थी। उसे स्त्रियों की देवी समझा जाता था। लोगों का विश्वास था कि जूनो की कृपा होने पर ही स्त्रियाँ गर्भ धारण करती हैं। इस देवी की उपासना सभी घरों में की जाती थी।

(4) मिनर्वा (Minerva)—मिनर्वा को ज्ञान की देवी माना जाता था। उसकी कृपा से मनुष्य का अंधकार दूर होता था तथा वह ज्ञान का प्रकाश प्राप्त करता था।

(5) डायना (Dyana) वह प्रेम की देवी थी।

(6) इसिस (Isis)-इसिस को स्त्रियों एवं परिवार से संबंधित देवी माना जाता था। वह पतियों को अपनी पत्नियों से प्यार करने तथा बच्चों को अपने माता-पिता का सम्मान करने के लिए बाध्य करती थी। इसिस की उपासना पुरुषों एवं स्त्रियों दोनों द्वारा की जाती थी।

2. उपासना विधि (Method of Worship)-रोमन लोग अपने देवी-देवताओं की स्मृति में भव्य मंदिरों का निर्माण करते थे। इसमें वे विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित करते थे। इनकी उपासना बहुत धूमधाम से की जाती थी। देवी-देवताओं को विभिन्न प्रकार के चढ़ावे चढ़ाए जाते थे। इसके अतिरिक्त पशुओं की बलियाँ भी दी जाती थीं।

उस समय यह माना जाता था कि विधिवत् पूजा करने से देवता प्रसन्न होते हैं तथा मन की इच्छा पूर्ण होती है। नाराज़ होने पर देवता अनिष्ट करते हैं। अतः विधिवत् उपासना के उद्देश्य से बड़ी संख्या में पुरोहितों को नियुक्त किया जाता था। उनका समाज में बहुत सम्मान होता था।

3. सम्राटों की उपासना (Worship of Emperors)-रोमन सम्राट् ऑगस्ट्स ने सम्राटों की उपासना प्रथा को रोमन साम्राज्य में प्रचलित किया। इस प्रथा को प्रचलित करके वह रोमन साम्राज्य की विभिन्न जातियों के लोगों को एकता के सूत्र में बाँधना चाहता था। उसका यह प्रयास सफल प्रमाणित हुआ। अत: उसके उत्तराधिकारियों ने इस प्रथा को जारी रखा। डायोक्लीशियन (Diocletian) ने अपने आप को सूर्य देवता घोषित कर दिया। इन सम्राटों की स्मृति में भी विशाल एवं भव्य मंदिर बनाए जाते थे। यहाँ पुरोहितों द्वारा उनकी विधिवत् उपासना की जाती थी।

4. मिथ धर्म (Mithraism)–उस समय रोमन साम्राज्य में जो धर्म प्रचलित थे उनमें मिथ्र धर्म को भी एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। इस धर्म के लोग मुख्य रूप से सूर्य देवता की उपासना करते थे। स्त्रियों को इस धर्म में प्रवेश की अनुमति नहीं थी।

5. यहूदी धर्म (Judaism)—यहूदी धर्म रोमन साम्राज्य का एक लोकप्रिय धर्म था। इस धर्म का संस्थापक पैगंबर मूसा (Prophet Musa) था। यहूदी एकेश्वरवादी (monolith) थे। वे जेहोवा (Jehova) के अतिरिक्त किसी अन्य की उपासना नहीं करते थे। उनके विचारानुसार जेहोवा ने सृष्टि की रचना की है तथा वह ही इसकी पालना करता है। इस धर्म में मूर्ति पूजा पर प्रतिबंध है। यह धर्म आपसी भाईचारे एवं नैतिकता पर बल देता है। इस धर्म की पवित्र पुस्तक को तोरा (Torah) कहा जाता है। इस धर्म के मंदिर सिनेगोग (synegogue) कहलाते

6. ईसाई धर्म (Christianity)-ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह (Jesus Christ) थे। ईसा मसीह के उपदेश बिल्कुल साधारण थे तथा उनका उद्देश्य मानव जाति का कल्याण करना था। उन्होंने लोगों को आपसी भाईचारे एवं प्रेम का संदेश दिया। वह एक परमात्मा में विश्वास रखते थे। उनका कथन था कि हमें सदैव ग़रीबों एवं असहायों की सहायता करनी चाहिए। वह सदाचार पर बहुत बल देते थे। वह अनैतिक कार्य करने एवं झूठ बोलने के विरुद्ध थे।

वह मूर्ति पूजा के विरुद्ध थे। ईसाइयों की पवित्र पुस्तक बाईबल (Bible) कहलाती है। ईसाई गिरजाघरों (churches) में उपासना करते हैं। कांस्टैनटाइन ने 313 ई० में ईसाई धर्म को राज्य धर्म घोषित कर दिया। इससे ईसाई धर्म को एक नया प्रोत्साहन मिला। प्रसिद्ध इतिहासकार बी० के० गोखले के अनुसार, “रोमन बहुत धार्मिक थे तथा वे प्रथाओं और संस्कारों को बहुत महत्त्व देते थे।”

प्रश्न 7.
रोमन साम्राज्य में प्रचलित दास प्रथा तथा इसके प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दास प्रथा की रोमन समाज में एक महत्त्वपूर्ण विशेषता थी। वास्तव में यह उनके समाज का एक अभिन्न अंग बन चुका था। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि ऑगस्टस के शासनकाल में इटली की 75 लाख की जनसंख्या में दासों की संख्या 30 लाख थी। जिस व्यक्ति के पास जितने अधिक दास होते थे समाज में उसे उतना सम्मान दिया जाता था। अतः अमीरों में अधिक-से-अधिक दास रखने की एक होड़ सी लगी रहती थी।

स्थिति इतनी भयावह थी कि साधारण से साधारण नागरिक भी अपने अधीन 7-8 दास रखता था। इनमें से अधिकांश दास युद्ध में बंदी बनाए गए होते थे। रोमन समाज में अवांछित बच्चों को उनके पिताओं द्वारा फेंक दिया जाता था। इन बच्चों को व्यापारियों द्वारा दास बना लिया जाता था। वास्तव में दास प्रथा रोमन समाज के माथे पर एक कलंक समान थी। प्रसिद्ध इतिहासकार डब्ल्यू० आर० ब्रोनलो के अनुसार, “जीवन के सभी पक्षों में दासों एवं जानवरों में एकरूपता थी।”

1. दासों की स्थिति (Position of Slaves)-रोमन समाज में दासों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। गाँवों में रहने वाले दास पशुओं से भी बदतर जीवन व्यतीत करते थे। दासों पर मालिक घोर अत्याचार करते थे। उन्हें जागीरों पर 16 से 18 घंटे प्रतिदिन कार्य करने के लिए बाध्य किया जाता था। खेतों में काम करते समय दासों को एक दूसरे से जंजीरों से बाँधा जाता था ताकि वे भागने का दुस्साहस न करें। रात के समय उन्हें तहखानों में भेज दिया जाता था। यहाँ न तो कोई स्वास्थ्य का प्रबंध होता था तथा न ही कोई रोशनी का।

घोर मेहनत के बावजूद उन्हें भरपेट खाना भी नसीब नहीं होता था। शहरों में रहने वाले दासों की स्थिति भी अच्छी न थी। वे विभिन्न प्रकार करते थे। उदाहरण के तौर पर वे घरेल नौकर, दकानदारों के सहायक, मज़दर एवं व्यापारियों के एजेंट तौर पर कार्य करते थे। वे विभिन्न प्रकार से अपने मालिकों का मनोरंजन भी करते थे। दासों को किसी प्रकार का कोई अधिकार प्राप्त नहीं था। वे अपने मालिक की अनुमति के बिना विवाह तक नहीं करवा सकते थे।

वे अपने स्वामी को छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते थे। ऐसा प्रयास करने वाले दासों को मौत के घाट उतार दिया जाता था। दासों के साथ किए जाने वाले अपमानजनक व्यवहार के कारण अनेक बार दास सामहिक रूप से विद्रोह कर देते थे।

2. स्त्री दासों की स्थिति (Position of Female Slaves)-रोमन समाज में स्त्री दासों की संख्या भी काफी थी। समाज में उनकी स्थिति भी अच्छी न थी। वे पुरुषों का विभिन्न प्रकार से मनोरंजन करती थीं। पुरुष उन्हें केवल एक विलासिता की वस्तु समझते थे। उनका खुलेआम यौन शोषण किया जाता था। इंकार करने वाली दासी पर घोर अत्याचार किए जाते थे। घर में काम करने वाली दासियों को विभिन्न प्रकार के कार्य करने पड़ते थे। घरेलू कार्यों के अतिरिक्त वे अपनी मालकिनों को तैयार करती थीं। वे अपनी मालकिनों के बच्चों की देखभाल का कार्य भी करती थीं। इनके अतिरिक्त दासियों को घर में आने वाले मेहमानों को भी प्रसन्न रखना पड़ता था।

3. दास बच्चों की स्थिति (Position of Children Slaves)-रोमन समाज में दास बच्चों की स्थिति भी शोचनीय थी। दास बच्चों पर उनके माता-पिता का कोई अधिकार नहीं था। उन पर उनके मालिकों का पूर्ण अधिकार होता था। उस समय दास बच्चों को दहेज में देने की प्रथा भी प्रचलित थी।

दास बच्चों पर भी उनके मालिक घोर अत्याचार करते थे। 5-6 वर्ष के बच्चों को ख़तरनाक कामों पर लगा दिया जाता था। उन्हें भरपेट खाना नहीं दिया था तथा वे अर्धनग्न घूमते रहते थे। वास्तव में दास बच्चों का जीवन भी नरक समान था। इतिहासकार एच० टी० रोवेल के अनुसार, “दासों के बच्चे अपने मालिकों की उसी प्रकार संपत्ति थे जैसे कि बागों के सेब अथवा पशुओं के झुंड।”

4. दास व्यापार (Slave Trade)-रोमन साम्राज्य में दास प्रथा का व्यापक प्रचलन था। अतः दास व्यापार काफी जोरों पर था। युद्ध में बनाए गए सभी बंदियों को दास बना लिया जाता था। उन्हें दास व्यापारियों द्वारा खरीद लिया जाता था। एक दास पुरुष को 18 से 20 पौंड तथा एक दासी को 6 से 8 पौंड तक खरीदा जाता था। सुंदर दिखने वाली दासी की कीमत कुछ अधिक होती थी। क्योंकि उस समय प्रत्येक रोमन नाग अनुसार कुछ न कुछ दास अवश्य रखता था इसलिए प्रत्येक दुकानदार दास अवश्य रखता था। निस्संदेह दास व्यापार काफी लाभप्रद था।

5. दासता से मुक्ति (Manumission)-रोमन साम्राज्य में कुछ दयावान मालिक दास-दासियों की सेवा से प्रसन्न होकर उन्हें दासता से मुक्त कर देते थे। कुछ दास मालिक अपनी मृत्यु से पूर्व दान के रूप में कुछ दासों को मुक्त कर देते थे। कुछ दास अपने मालिकों को दासता से मुक्ति प्राप्त करने के उद्देश्य से कीमत देते थे। यह कीमत सामान्यतः 20 से 25 पौंड होती थी। कभी-कभी यह इससे भी ऊपर होती थी। दासों द्वारा यह धन अपने जीवन काल में थोड़ा-थोड़ा करके एकत्र किया जाता था।

कुछ दास मालिक अपनी दासियों से विवाह करने हेतु उन्हें दासता से मुक्त कर देते थे। यद्यपि दासों को मुक्त कर दिया जाता था किंतु फिर भी उन पर कुछ प्रतिबंध जारी रहते थे। वे रोमन साम्राज्य के उच्च पदों एवं सेना में भर्ती नहीं हो सकते थे। वे अपने मालिक के विरुद्ध अदालत में कोई गवाही नहीं दे सकते थे। मार्क किशलेस्की के अनुसार, “मुक्त दास भी अपने संपूर्ण जीवनकाल में अपने पूर्व मालिक के प्रति बाध्य रहता था।

वे उसका विशेष सम्मान करते थे तथा उसका अदालतों अथवा अन्य संघर्षों के समय विरोध नहीं कर सकते थे। ऐसा करने पर उसे सज़ा के तौर पर पुनः दास बनाया जा सकता था।

6. दास प्रथा के प्रभाव (Effects of Institution of Slavery) दास प्रथा के रोमन साम्राज्य पर गहन प्रभाव पड़े। इस प्रथा के व्यापक प्रचलन के कारण रोमन लोग विलासप्रिय बन गए। दासों पर लगे प्रतिबंधों एवं घोर अत्याचारों के कारण उनमें निराशा फैली। इससे विद्रोहों का जन्म हुआ। ये विद्रोह रोमन साम्राज्य के लिए घातक सिद्ध हुए। रोमन लोगों को दासियों का यौन-शोषण करने की खुली छूट थी।

इस कारण लोगों का तीव्रता से नैतिक पतन हुआ। दास प्रथा के कारण रोमन साम्राज्य के छोटे स्वतंत्र किसानों का सर्वनाश हुआ। अतः उन्हें अपनी जमीनें बेचनी पड़ी। दास प्रथा का एक अच्छा प्रभाव यह पड़ा कि यूनानी दासों ने अपने देश की संस्कृति को रोमन साम्राज्य में फैलाया।

क्रम संख्या वर्ष घटना
1. 509 ई० पू० रोम में गणतंत्र की स्थापना।
2. 27 ई० पू० रोम में गणतंत्र का अंत एवं ऑगस्ट्स द्वारा प्रिंसिपेट की स्थापना।
3. 27 ई० पू० से 14 ई० रोमन साम्राज्य के प्रथम प्रिंसिपेट ऑगस्ट्स का शासनकाल।
4. 14 ई० से 37 ई० ऑगस्ट्स के उत्तराधिकारी टिबेरियस का शासनकाल।
5. 54 ई० से 68 ई० रोमन साम्राज्य के सर्वाधिक अत्याचारी शासक नीरो का शासनकाल।
6. 64 ई० रोम में भयंकर आग।
7. 66 ई० यहूदियों का विद्रोह।
8. 69 ई० रोमन साम्राज्य पर चार सम्राटों ने शासन किया।
9. 79 ई० विसूवियस ज्वालामुखी के फटने से पोम्पई का दफन। वरिष्ठ प्लिनी की मृत्यु।
10. 98 ई० से 117 ई० त्राजान का शासनकाल।
11. 113 ई०-117 ई० सम्राट् त्राजान का पार्थियन शासक के विरुद्ध अभियान। राजधानी टेसीफुन पर अधिकार।
12. 117 ई० से 138 ई० हैड्रियन का शासनकाल।
13. 161 ई० से 180 ई० मार्स्स आरेलियस का शासनकाल, मेडिटेशंस नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना।
14. 193 ई० से 211 ई० सेप्टिमियस सेवेरस का शासनकाल।
15. 224 ई० ईरान में ससानी वंश की स्थापना।
16. 241 ई० से 272 ई० ईरान में शापुर प्रथम का शासन।
17. 253 ई० से 268 ई० सम्राट् गैलीनस का शासनकाल।
18. 233 ई० से 280 ई० रोमन साम्राज्य पर जर्मन बर्बरों के आक्रमण।
19. 284 ई० से 305 ई० डायोक्लीशियन का शासनकाल, रोमन साम्राज्य को दो भागों में विभाजित करना।
20. 301 ई० डायोक्लीशियन द्वारा सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें निश्चित करना।
21. 309 ई० से 379 ई० ईरान में शापुर द्वितीय का शासनकाल।
22. 306 ई० से 337 ई० कांस्टैनटाइन का शासनकाल।
23. 313 ई० कांस्टैनटाइन ने ईसाई धर्म को स्वीकार किया।
24. 330 ई० कांस्टैनटाइन ने कुंस्तुनतुनिया को रोमन साम्राज्य की दूसरी राजधानी घोषित किया।
25. 408 ई० से 450 ई० थियोडोसियस द्वितीय का शासनकाल।
26. 410 ईo विसिगोथों द्वारा रोम का विध्वंस।
27. 428 ई० वैंडलों द्वारा अफ्रीका पर कब्ज़ा।
28. 438 ईo थियोडोसियस कोड को जारी करना।
29. 493 ई० ऑस्ट्रोगोथों द्वारा इटली में राज्य स्थापित करना।
30. 527 ई० से 565 ई० जस्टीनियन का शासनकाल।
31. 533 ई० जस्टीनियन कोड को जारी करना।
32. 568 ई० लोंबार्डों द्वारा इटली पर आक्रमण।

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
ऑगस्ट्स काल को रोमन साम्राज्य का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है ?
अथवा
रोमन साम्राज्य के ऑगस्ट्स काल से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
ऑगस्ट्स की गणना रोमन साम्राज्य के महान् शासकों में की जाती है। उसने रोमन साम्राज्य पर 27 ई० पू० से 14 ई० तक शासन किया। उसके शासनकाल को निम्नलिखित कारणों से रोमन साम्राज्य का स्वर्ण युग कहा जाता है

  • उसने रोमन साम्राज्य में जुलियस सीज़र के पश्चात् फैली अराजकता को दूर कर शांति की स्थापना की।
  • उसने सैनेट जोकि रोमन साम्राज्य की सर्वाधिक शक्तिशाली संस्था थी, के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए।
  • उसने रोमन साम्राज्य की सुरक्षा के लिए एक शक्तिशाली सेना का निर्माण किया। इसे आधुनिक शस्त्रों से लैस किया गया।
  • उसने प्रांतीय प्रशासन में अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किए।
  • उसने रोमन साम्राज्य को अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ किया।
  • उसने कला तथा साहित्य के विकास के लिए अनेक कार्य किए।

प्रश्न 2.
ऑगस्ट्स के सैनेट के साथ किस प्रकार के संबंध थे ?
उत्तर:
ऑगस्ट्स रोमन साम्राज्य का एक महान् शासक था। यद्यपि राज्य की वास्तविक शक्तियाँ उसके हाथ में थीं किंतु उसने कभी भी अपने आपको निरंकुश शासक घोषित नहीं किया। वह अपने आपको केवल प्रिंसेप्स अथवा प्रथम नागरिक कहलाता था। ऐसा सैनेट के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए किया गया था। सैनेट रोमन गणतंत्र के समय रोम की सर्वाधिक प्रभावशाली संस्था थी। इसने अनेक शताब्दियों तक रोम के इतिहास में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। ऑगस्ट्स ने केवल रोम के धनी, ईमानदार एवं कर्त्तव्यपरायण लोगों को ही सैनेट में प्रतिनिधित्व दिया।

उसने सदैव सैनेट के प्रति सम्मान प्रकट किया। इसे देखते हुए सैनेट ने स्वेच्छा से सैन्य संचालन, सीमाँत प्रदेशों के नियंत्रण, सुरक्षा, युद्ध एवं संधि संबंधी सभी अधिकार ऑगस्ट्स को सौंप दिए। ऑगस्ट्स ने कुछ समय के पश्चात् सैनेट के सदस्यों की संख्या 1000 से कम कर के 600 कर दी। इस प्रकार उसने बड़ी चतुराई से सैनेट के अवांछित सदस्यों को हटा दिया। इस प्रकार ऑगस्ट्स ने सैनेट पर नियंत्रण स्थापित करने में सफलता प्राप्त की।

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प्रश्न 3.
रोमन साम्राज्य में सेना की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य में सेना की उल्लेखनीय भूमिका थी। इसे सम्राट् एवं सैनेट के पश्चात् प्रशासन की एक महत्त्वपूर्ण संस्था माना जाता था। रोमन सेना एक व्यावसायिक सेना थी। प्रत्येक सैनिक को कम-से-कम 25 वर्षों तक सेवा करनी पड़ती थी। प्रत्येक सैनिक को नकद वेतन दिया जाता था। चौथी शताब्दी तक इसमें 6 लाख सैनिक थे। सैनिक अधिक वेतन और अच्छी सेवा शर्तों के लिए लगातार आंदोलन करते रहते थे।

कभी-कभी ये आंदोलन सैनिक विद्रोहों का रूप भी ले लेते थे। सैनेट सेना से घृणा करती थी और उससे डरती भी थी। इसका कारण यह था कि सेना हिंसा का स्रोत थी। सम्राटों की सफलता इस बात पर निर्भर करती थी कि वे सेना पर कितना नियंत्रण रख पाते थे। जब सेनाएँ विभाजित हो जाती थीं तो इसका परिणाम गृह युद्ध होता था।

प्रश्न 4.
ऑगस्ट्स ने रोमन साम्राज्य की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ करने के लिए कौन-से कदम उठाए ?
उत्तर:
ऑगस्ट्स के शासनकाल में आर्थिक क्षेत्र में अद्वितीय विकास किया। इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। प्रथम, ऑगस्ट्स के शासनकाल में रोमन साम्राज्य में पूर्ण शाँति एवं व्यवस्था कायम रही। द्वितीय, उसने यातायात के साधनों के विकास की ओर विशेष ध्यान दिया। इससे साम्राज्य के विभिन्न भागों एवं विदेशों से संपर्क स्थापित करना एवं माल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना सुगम हो गया।

तीसरा, उसने समुद्री डाकुओं का सफाया करने के उद्देश्य से एक स्थायी जल बेडे का निर्माण करवाया। चौथा. उसने कषि एवं उद्योगों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से अनेक महत्त्वपूर्ण कदम उठाए। पाँचवां, उसने रोमन साम्राज्य के अनेक देशों के साथ घनिष्ठ व्यापारिक संबंध स्थापित किए। ऑगस्ट्स के इन आर्थिक सुधारों के चलते जहाँ एक ओर रोमन लोग आर्थिक पक्ष से समृद्ध हुए वहीं दूसरी ओर इससे रोमन साम्राज्य की नींव सुदृढ़ हुई।

प्रश्न 5.
ऑगस्ट्स ने कला तथा साहित्य को किस प्रकार प्रोत्साहित किया ?
उत्तर:
ऑगस्ट्स कला तथा साहित्य का महान् प्रेमी था। इसलिए उसके शासनकाल में इन क्षेत्रों में अद्वितीय प्रगति हुई। उसने रोम में अनेक भव्य भवनों एवं मंदिरों का निर्माण करवाया। इनमें उसके द्वारा बनवाया गया पैंथियन सर्वाधिक प्रसिद्ध है। उसने ईंटों के स्थान पर संगमरमर का प्रयोग करके रोमन भवन निर्माण कला को एक नई दिशा प्रदान की। उसके शासनकाल में रोमन साहित्य ने उल्लेखनीय विकास किया। लिवि, वर्जिल, होरेस तथा ओविड आदि ने ऑगस्ट्स के शासनकाल को चार चाँद लगा दिए।

लिवि रोमन साम्राज्य का सबसे महान् इतिहासकार था। उसने रोम के इतिहास को 142 जिल्दों में लिखा। वर्जिल ऑगस्ट्स के शासनकाल का सबसे महान् कवि था। उसकी सबसे प्रसिद्ध रचना का नाम ईनिड है। यह एक महाकाव्य है। इसमें रोम के संस्थापक ट्रोजन के साहसिक कार्यों का विवरण दिया गया है। होरेस ऑगस्ट्स के शासनकाल का एक अन्य प्रसिद्ध कवि था। उसने अपनी कविताओं में ऑगस्ट्स की बहुत प्रशंसा की है तथा उसे एक देवता माना है। ओविड भी एक महान् कवि था। उसकी कविताओं का मूल विषय प्रेम था।

प्रश्न 6.
नीरो को रोमन साम्राज्य के इतिहास का सबसे क्रूर शासक क्यों माना जाता है ?
उत्तर:
नीरो रोमन साम्राज्य का सबसे बदनाम शासक था। उसने 54 ई० से 68 ई० तक शासन किया। वह एक अत्यंत अयोग्य एवं क्रूर शासक प्रमाणित हुआ। वह बहुत शंकालु स्वभाव का था। इस कारण उसने राज्य के अनेक उच्च अधिकारियों को मौत के घाट उतार डाला। यहाँ तक कि उसने अपने सौतेले भाई ब्रिटानिक्स, अपने शिक्षक सेनेका, अपनी माँ अग्रीपिना तथा अपनी पत्नी ऑक्टेविया को भी मरवा डाला।

उसने अपनी अय्याशी एवं गलत कार्यों से रोम के खजाने को खाली कर दिया। उसने इसे भरने के उद्देश्य से जनता पर भारी कर लगा दिए। इससे लोगों में भारी रोष फैला। 64 ई० में रोम में एक भयंकर आग लग गई। इस कारण लगभग आधे से अधिक हो गया।

नीरो ने इस आग के लिए ईसाइयों को दोषी ठहराया तथा उन्हें बडी संख्या में मौत के घाट उतार डाला। उसने रोम को पुनः भव्य भवनों से सुसज्जित किया। इससे रोमन अर्थव्यवस्था को एक गहरा आघात लगा। उसके बढ़ते हुए अत्याचारों के कारण गॉल, स्पेन एवं अफ्रीका में विद्रोह भड़क उठे। इस कारण रोमन साम्राज्य की नींव डगमगा गई।

प्रश्न 7.
अगर सम्राट् बाजान भारत पर विजय प्राप्त करने में वास्तव में सफल रहे होते और रोमवासियों का इस देश पर अनेक सदियों तक कब्जा रहा होता, तो आप क्या सोचते हैं कि भारत वर्तमान समय के देश से किस प्रकार भिन्न होता ?
उत्तर:
यदि भारत अनेक सदियों तक रोमवासियों के कब्जे में रहा होता, तो भारत वर्तमान समय के देश से निम्नलिखित दृष्टियों से भिन्न होता

  • भारत में लोकतंत्र के स्थान पर राजतंत्र की स्थापना होती।
  • भारत में सोने के सिक्के प्रचलित होते।
  • ग्रामीण क्षेत्र नगरों के नियंत्रण में होते।
  • ग्रामीण क्षेत्र राज्य के राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत होता।
  • ईसाई धर्म देश का राजधर्म होता।
  • लोगों के मनोरंजन के मुख्य साधन सर्कस, थियेटर के तमाशे तथा जानवरों की लड़ाइयाँ होतीं।
  • देश में दास प्रथा का प्रचलन होता।

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प्रश्न 8.
तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य में उत्पन्न संकट के प्रमुख कारण क्या थे ?
अथवा
रोमन साम्राज्य में तीसरी शताब्दी का संकट क्या था ?
उत्तर:
तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य को अनेक संकटों का सामना करना पड़ा। इसके लिए निम्न कारण उत्तरदायी थे

(1) तीसरी शताब्दी के दौरान जर्मन मूल की अनेक जनजातियों जिनमें एलमन्नाई, फ्रैंक तथा गौथ प्रमुख थे, ने अपने लगातार आक्रमणों द्वारा रोमन साम्राज्य की नींव को डगमगा दिया।

(2) तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य की राजनीतिक स्थिति बहुत शोचनीय थी। 47 वर्षों के दौरान 25 शासक सिंहासन पर बैठे। इन सभी शासकों की या तो हत्या की गई या वो गृह-युद्ध में मारे गए।

(3) रोमन साम्राज्य में फैली अराजकता के कारण कृषि, उद्योग तथा व्यापार को गहरा आघात लगा। अतः दैनिक प्रयोग की सभी वस्तुओं की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि होने लगी। इसे लोग सहन करने को तैयार नहीं थे।

(4) प्रत्येक शासक सेना के सहयोग से सत्ता में आता था। अतः सैनिकों का समर्थन पाने के उद्देश्य से उनकी तनख्वाहों एवं अन्य सुविधाओं में वृद्धि कर दी जाती थी। इससे रोमन अर्थव्यवस्था को एक गहरा धक्का लगा।

(5) रोमन साम्राज्य में फैली अराजकता का लाभ उठाते हुए अनेक प्रांतों ने स्वतंत्रता के लिए विद्रोह आरंभ कर दिए थे। इससे स्थिति ने विस्फोटक रूप धारण कर लिया।

(6) तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य में अनेक भयानक अकाल पड़े एवं प्लेग फैली। इसमें बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु हो गई। अतः रोमन साम्राज्य तीव्रता से विघटन की ओर बढ़ने लगा।

प्रश्न 9.
डायोक्लीशियन ने रोमन साम्राज्य के विकास के लिए कौन-से पग उठाए ?
उत्तर:
डायोक्लीशियन ने रोमन साम्राज्य के विकास के लिए निम्नलिखित पग उठाए

(1) डायोक्लीशियन ने सर्वप्रथम सम्राट् के सम्मान में वृद्धि की। उसने अपने आप को सूर्य देवता घोषित किया। उसने दरबार में नए नियमों को प्रचलित किया।

(2) उसने रोमन साम्राज्य पर नियंत्रण पाने के उद्देश्य से 285 ई० में रोमन साम्राज्य को दो भागों में विभाजित किया। पूर्वी साम्राज्य पर उसने स्वयं शासन किया।

(3) उसने निकोमेडिया को पूर्वी रोमन साम्राज्य की नयी राजधानी घोषित किया। उसने पश्चिमी रोमन साम्राज्य का प्रशासन चलाने के लिए मैक्सीमीअन को सम्राट तथा कांस्टैनटीयस को सहायक सम्राट नियुक्त किया।

(4) उसने रोमन साम्राज्य की सुरक्षा के उद्देश्य से सेना को अधिक शक्तिशाली बनाया तथा सीमाओं पर अनेक नए किलों का निर्माण करवाया।

(5) उसने 100 प्रांतों का गठन किया। उसने प्रांतों में शासन करने वाले अधिकारियों की संख्या में वृद्धि कर दी।

(6) उसनें रोमन साम्राज्य की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से अनेक पग उठाए। उसने 301 ई० में एक आदेश द्वारा सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें निश्चित कर दी।

प्रश्न 10.
कांस्टैनटाइन की प्रमुख उपलब्धियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कांस्टैनटाइन की गणना रोमन साम्राज्य के प्रसिद्ध शासकों में की जाती है। उसने 306 ई० से 337 ई० तक शासन किया। उसने अपने शासनकाल के दौरान रोमन साम्राज्य की स्थिति को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से अनेक उल्लेखनीय कार्य किए। उसने सर्वप्रथम अपना ध्यान रोमन साम्राज्य की अर्थव्यवस्था की ओर दिया। उसने रोमन साम्राज्य में तीन शताब्दियों से प्रचलित मौद्रिक प्रणाली में परिवर्तन किया।

उस समय में सभी मुद्राएँ चाँदी से बनी होती थीं। यह चाँदी स्पेन से रोमन साम्राज्य में आती थी। चाँदी की कमी के कारण सरकार के पास इस धातु का भंडार खत्म हो गया। इस स्थिति से निपटने के लिए कांस्टैनटाइन ने 310 ई० में सोने पर आधारित नई मुद्रा चलाई। इसका नाम सॉलिडस रखा गया। यह मुद्रा रोमन साम्राज्य के अंत के पश्चात् भी चलती रही।

कांस्टैनटाइन ने रोमन साम्राज्य में उद्योगों के विकास पर विशेष बल दिया। उसने यातायात के साधनों का विकास किया। उसने रोमन साम्राज्य के विदेशों के साथ व्यापार को भी प्रोत्साहित किया। कांस्टैनटाइन ने रोमन साम्राज्य की सरक्षा के लिए एक शक्तिशाली सेना का गठन किया।

उसकी एक अन्य महत्त्वपर्ण सफलता 313 ई० में ईसाई को रोमन साम्राज्य का राज्य धर्म घोषित करना था। इससे ईसाई धर्म के इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। उसके शासनकाल का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य 330 ई० में कुंस्तुनतुनिया को रोमन साम्राज्य की दूसरी राजधानी घोषित करना था।

प्रश्न 11.
जस्टीनियन पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
जस्टीनियन पूर्वी रोमन साम्राज्य का सबसे प्रसिद्ध सम्राट् था। उसने 527 ई० से 565 ई० तक शासन किया। उसने रोमन साम्राज्य के गौरव को पुनः स्थापित करने में उल्लेखनीय योगदान दिया। जस्टीनियन ने सर्वप्रथम ईरान के ससानी शासक को पराजित किया। इसके पश्चात् उसने 533 ई० में उत्तरी अफ्रीका के सैंडलों को पराजित कर कार्थेज़ पर अधिकार कर लिया। इसके पश्चात् उसने ऑस्ट्रोगोथों को पराजित कर इटली पर अधिकार कर लिया। जस्टीनियन ने प्रशासन को कुशल बनाने के उद्देश्य से अनेक पग उठाए।

उसने साम्राज्य में फैले भ्रष्टाचार को दूर करने के प्रयास किए। उसने लोक भलाई के अनेक कार्य किए। उसने अनेक भव्य एवं विशाल चर्चों का निर्माण करवाया। इनमें उसके द्वारा कुंस्तुनतुनिया में बनाया गया हागिया सोफ़िया नामक चर्च सर्वाधिक प्रसिद्ध था। उसके शासनकाल में लोग आर्थिक पक्ष से बहुत समृद्ध थे।

इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि उसके शासनकाल में अकेला मित्र प्रतिवर्ष 25 लाख सॉलिडस की राशि करों के रूप में देता था। विश्व इतिहास में जस्टीनियन का नाम 533 ई० में उसके द्वारा जारी किए गए जस्टीनियन कोड के लिए विख्यात है। यह कोड अनेक यूरोपीय देशों के कानूनों की आधारशिला बना।

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प्रश्न 12.
रोमन साम्राज्य के पतन के क्या कारण थे ?
अथवा
रोमन सभ्यता के पतन के पाँच कारण बताओ।
उत्तर:
(1) रोमन साम्राज्य की विशालता-प्राचीनकाल में रोमन साम्राज्य बहुत विशाल था। उस समय यातायात के साधनों का विकास बहुत कम हुआ था। अतः इतने विशाल साम्राज्य पर नियंत्रण रखना कोई सहज कार्य न था। इस स्वर्ण अवसर का लाभ उठाकर अनेक प्रांतों के गवर्नर अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर देते थे। इससे रोमन साम्राज्य की एकता को गहरा आघात लगा।

(2) रोमन शासकों की साम्राज्यवादी नीति-रोमन शासकों की साम्राज्यवादी नीति भी रोमन साम्राज्य के पतन का एक महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुई। सभी रोमन शासकों ने साम्राज्यवादी नीति पर बहुत बल दिया। अतः उन्हें एक विशाल सेना का गठन करना पड़ा। इस सेना पर धन पानी की तरह बहाया गया। लगातार युद्धों में जन तथा धन की भी अपार क्षति हुई।

(3) रोमन शासकों की विलासिता-रोमन शासकों की विलासिता रोमन साम्राज्य के पतन का एक महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुई। कुछ रोमन शासकों को छोड़कर अधिकाँश रोमन शासक विलासप्रिय सिद्ध हुए। वे अपना अधिकाँश समय सुरा एवं सुंदरी के संग व्यतीत करते थे। रोमन शासकों ने लगातार कम हो रहे खज़ाने को भरने के लिए लोगों पर भारी कर लगा दिए। इससे लोगों में भारी असंतोष फैला तथा वे ऐसे साम्राज्य के विरुद्ध होते चले गए।

(4) उत्तराधिकार कानून का अभाव-रोमन साम्राज्य के पतन के महत्त्वपूर्ण कारणों में से एक उत्तराधिकार के कानून का अभाव था। अतः जब किसी शासक की आकस्मिक मृत्यु हो जाती तो यह पता नहीं होता था कि उसका उत्तराधिकारी कौन बनेगा। ऐसे समय में विभिन्न दावेदारों में गृह-युद्ध आरंभ हो जाते थे। इन युद्धों के परिणामस्वरूप जहाँ एक ओर रोमन साम्राज्य की शक्ति क्षीण हुई वहीं दूसरी ओर इसने बाहरी शत्रुओं को रोमन साम्राज्य पर आक्रमण करने का स्वर्ण अवसर प्रदान किया।

(5) दुर्बल सेना—किसी भी साम्राज्य की सुरक्षा एवं विस्तार में उसकी सेना की प्रमुख भूमिका होती है। कुछ रोमन शासकों ने एक विशाल एवं शक्तिशाली सेना का गठन किया था। किंतु बाद के रोमन शासक अयोग्य एवं निकम्मे सिद्ध हुए थे। उन्होंने रोमन साम्राज्य की सेना की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। परिणामस्वरूप रोमन सेना कमजोर हो गई। ऐसे साम्राज्य के पतन को रोका नहीं जा सकता था।

प्रश्न 13.
अध्याय को ध्यानपूर्वक पढ़कर उसमें से रोमन समाज और अर्थव्यवस्था को आपकी दृष्टि में आधुनिक दर्शाने वाले आधारभूत अभिलक्षण चुनिए।
उत्तर:
1. समाज

  • समाज में एकल परिवार का व्यापक प्रचलन था।
  • रोभ की महिलाओं को संपत्ति के स्वामित्व व संचालन के व्यापक कानूनी अधिकार प्राप्त थे।
  • उस समय पत्नी को पूर्ण वैधिक स्वतंत्रता प्राप्त थी। उस समय तलाक देना बेहद सुगम था।
  • उस समय लड़कियों का विवाह 16 से 23 वर्ष के मध्य एवं लड़कों का विवाह 28 से 32 वर्ष के मध्य किया जाता था।

2. अर्थव्यवस्था

  • उस समय के लोग बहुत समृद्ध थे। देश में स्वर्ण मुद्राएँ प्रचलित थीं।
  • रोमन साम्राज्य में बंदरगाहों, खानों एवं उद्योगों की संख्या काफ़ी अधिक थी।
  • उस समय गहन खेती का प्रचलन था।
  • रोमन साम्राज्य का व्यापार काफी विकसित था।
  • उस समय बैंकिंग व्यवस्था तथा धन का व्यापक रूप से प्रचलन था।

प्रश्न 14.
रोमन समाज में स्त्रियों की दशा कैसी थी ?
अथवा
रोमन साम्राज्य में सेंट ऑगस्टीन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
रोमन समाज में स्त्रियों की स्थिति को समूचे रूप से अच्छा कहा जा सकता है। समाज में उनका सम्मान किया जाता था। वे सार्वजनिक, धार्मिक एवं सामाजिक उत्सवों में बढ़-चढ़ कर भाग लेती थीं। संपन्न परिवार की लड़कियाँ उच्च शिक्षा प्राप्त करती थीं। उस समय लड़कियों का विवाह 16 से 23 वर्ष के बीच किया जाता था। लड़की का विवाह करना उसके पिता अथवा बड़े भाई का ज़रूरी कर्त्तव्य समझा जाता था। उस समय विवाह बहुत धूमधाम से किए जाते थे। उस समय दहेज प्रथा प्रचलित थी।

पुत्री को अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार प्राप्त था। विवाहिता का अपने परिवार पर काफी प्रभाव होता था। वह अपने बच्चों की शिक्षा तथा परिवार के अन्य कार्यों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती थी। उस समय तलाक लेना अपेक्षाकृत आसान था। ऐसी सूरत में पति को अपनी पत्नी से प्राप्त दहेज उसके पिता को वापस लौटाना होता था। उत्तरी अफ्रीका के एक महान् बिशप सेंट ऑगस्टीन ने लिखा है कि उनका पिता अक्सर उनकी माता की पिटाई करता था। इस प्रकार की कुछ अन्य शिकायतों का उसने वर्णन किया है। उस समय रोमन समाज में वेश्यावृत्ति भी प्रचलित थी।

प्रश्न 15.
रोमन साम्राज्य में व्यापक सांस्कृतिक विविधता पाई जाती थी। प्रमाणित कीजिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य में व्यापक सांस्कृतिक विविधता निम्नलिखित तथ्यों से प्रमाणित होती है

  • रोमन साम्राज्य में धार्मिक संप्रदायों तथा स्थानीय देवी-देवताओं में भरपूर विविधता थी।
  • उस समय रोमन साम्राज्य में अनेक भाषाएँ-कॉप्टिक, कैल्टिक, प्यूनिक, बरबर, आमिनियाई तथा लातिनी प्रचलित थीं।
  • उस समय वेशभूषा की विविध शैलियाँ अपनाई जाती थीं।
  • उस समय के लोग विभिन्न प्रकार के भोजन खाते थे।
  • उस समय सामाजिक संगठनों के विभिन्न रूप प्रचलित थे।
  • उस समय बस्तियों के भी अनेक रूप प्रचलित थे।

प्रश्न 16.
रोमन साम्राज्य के लोगों के आर्थिक जीवन के संबंध में आप क्या जानते हैं ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य के आर्थिक जीवन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं।
(1) उस समय के लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था। ज़मींदारों के पास विशाल जागीरें होती थीं। वे दासों की सहायता से खेती करते थे। गैलिली गहन् खेती के लिए प्रसिद्ध था। उस समय की प्रमुख फ़सलें गेहूँ, जौ, मक्का एवं जैतून थीं।

(2) रोमन साम्राज्य के लोगों का दूसरा प्रमुख व्यवसाय पशुपालन था। उस समय के लोग भेड़-बकरियाँ, गाय, बैल, भैंस, सूअर, घोड़े एवं कुत्ते आदि पालते थे। इन पशुओं को खेती करने, यातायात के लिए , दूध, माँस एवं ऊन आदि प्राप्त करने के लिए पाला जाता था।

(3) उस समय रोमन साम्राज्य का तीसरा प्रमुख व्यवसाय उद्योग था। उस समय जैतून का तेल बनाने एवं अंगूरी शराब बनाने के उद्योग सर्वाधिक प्रसिद्ध थे।

(4) उस समय रोम का आंतरिक एवं विदेशी व्यापार बहुत उन्नत था। यह व्यापार सड़क एवं समुद्री दोनों मार्गों से होता था। रोमन साम्राज्य शताब्दियों तक विश्व व्यापार का एक प्रसिद्ध केंद्र रहा।

(5) रोमन साम्राज्य की अर्थव्यवस्था में श्रमिकों की प्रमुख भूमिका थी। अधिकाँश श्रमिक दास होते थे। श्रमिकों पर उनके मालिकों द्वारा कठोर नियंत्रण रखा जाता था।

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प्रश्न 17.
रोमन साम्राज्य में व्यापारिक उन्नति के लिए कौन-से कारण उत्तरदायी थे ?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य का आंतरिक एवं विदेशी व्यापार अपनी चरम सीमा पर था। इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे-

  • रोमन शासकों ने व्यापार को प्रोत्साहन देने के लिए विशेष पग उठाए।
  • ऑगस्ट्स के शासनकाल से लेकर आने वाले काफी समय तक संपूर्ण रोमन साम्राज्य में शांति एवं व्यवस्था बनी रही।
  • यातायात के साधनों का काफी विकास किया गया था। सड़क मार्गों एवं बंदरगाहों द्वारा रोमन साम्राज्य के महत्त्वपूर्ण नगरों को आपस में जोड़ा गया था।
  • सिक्कों के प्रचलन एवं बैंकों की स्थापना ने भी रोमन साम्राज्य के व्यापार के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया।
  • उस समय रोमन साम्राज्य की कृषि एवं उद्योग ने अद्वितीय प्रगति की थी।
  • रोमन पुलिस एवं नोसैना द्वारा सड़क मार्गों एवं समुद्री मार्गों की सुरक्षा के लिए व्यापक प्रबंध किए गए थे।

प्रश्न 18.
रोमन साम्राज्य में श्रमिकों पर किस प्रकार नियंत्रण रखा जाता था ?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य की अर्थव्यवस्था में अधिकाँश श्रम दासों द्वारा किया जाता था। दासों से प्रतिदिन 16 से 18 घंटे कठोर कार्य लिया जाता था। इसके बावजूद उन्हें न तो कोई वेतन दिया जाता था तथा न ही भरपेट खाना। हाँ उन पर घोर अत्याचार ज़रूर किए जाते थे। पहली शताब्दी में जब रोमन साम्राज्य ने अपनी विस्तार की नीति का लगभग त्याग कर दिया तो दासों की आपूर्ति में कमी आने लगी।

बाध्य होकर दास श्रम का प्रयोग करने वालों को दास प्रजनन एवं वेतनभोगी मज़दूरों का सहारा लेना पड़ा। वेतनभोगी मज़दूर सस्ते पड़ते थे। इसका कारण थह था कि उन्हें आवश्यकता के अनुसार रखा एवं छोडा जा सकता था। दूसरी ओर वेतनभोगी मज़दूरों के विपरीत दास श्रमिकों को वर्ष भर भोजन देना पड़ता था तथा अन्य खर्चे भी करने पड़ते थे।

इससे दास श्रमिकों की लागत बहुत बढ़ जाती थी। दासों एवं मजदूरों पर घोर अत्याचारों के कारण एवं कर्जे के कारण वे भागने के लिए बाध्य हो जाते थे। ग्रामीण ऋणग्रस्तता इतनी व्यापक थी कि 66 ई० के यहूदी विद्रोह के दौरान क्रांतिकारियों ने लोगों का समर्थन प्राप्त करने के लिए साहूकारों के ऋण-पत्रों को नष्ट कर दिया। 398 ई० के एक कानून में कहा गया है कि उस समय श्रमिकों को दागा जाता था ताकि यदि वे भागने का प्रयास करें तो उन्हें पहचाना जा सके।

प्रश्न 19.
यूनान एवं रोमवासियों की पारंपरिक धार्मिक संस्कृति बहुदेववादी थी। उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(1) रोमन लोग बहुदेववादी थे। वे अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे। उनके प्रमुख देवी देवताओं के नाम जपिटर, मॉर्स. जनो, मिनर्वा. डायना एवं इसिस थे।

(2) रोमन लोग आपने देवी-देवताओं की स्मृति में विशाल एवं भव्य मंदिरों का निर्माण करते थे। इसमें वे विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित करते थे। इनकी उपासना बहुत धूमधाम से की जाती थी।

(3) रोमन साम्राज्य के लोग आपने सम्राटों की देवी-देवताओं की तरह उपासना करते थे एवं इन सम्राटों की स्मृति में भी विशाल एवं भव्य मंदिर बनाते थे एवं मूर्तियों की भी स्थापना करते थे।

(4) उस समय रोमन साम्राज्य में जो धर्म प्रचलित थे उनमें मिथ्र धर्म को भी एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। इस धर्म के लोग मुख्य रूप में सूर्य देवता की उपासना करते थे।

(5) यहूदी धर्म रोमन साम्राज्य का एक लोकप्रिय धर्म था। इस धर्म का संस्थापक (पैगंबर मूसा) था। यहूदी एकेश्वरवादी थे। वे जोहोवा के अतिरिक्त किसी अन्य की उपासना नहीं करते थे।

प्रश्न 20.
रोमन साम्राज्य में प्रचलित दास प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
दास प्रथा का रोमन समाज में व्यापक प्रचलन था। ऑगस्ट्स के शासनकाल में कुल 75 लाख की जनसंख्या में 30 लाख दास थे। उस समय अमीर लोग दास रखना अपनी एक शान समझते थे। उस समय युद्धबंदियों को दास बनाया जाता था। कुछ लोग गरीबी के कारण अपने बच्चों को दास के रूप में बेच देते थे। रोमन समाज में स्त्री दासों की संख्या बहुत अधिक थी। पुरुष उन्हें केवल एक विलासिता की वस्तु समझते थे।

दासों के मालिक अपने दासों के साथ अमानुषिक व्यवहार करते थे। अनेक बार दास बाध्य होकर विद्रोह भी कर देते थे। रोमन सम्राटों हैड्रियन, मार्क्स आरेलियस, कांस्टैनटाइन एवं जस्टीनियन ने दास प्रथा का अंत करने के प्रयास किए। दास प्रथा के रोमन साम्राज्य पर दूरगामी प्रभाव पड़े। इस प्रथा के व्यापक प्रचलन के कारण रोमन लोग विलासप्रिय बन गए।

दासों पर लगे प्रतिबंधों एवं घोर अत्याचारों के कारण उनमें आत्म-सम्मान एवं आगे बढ़ने की आशा खत्म हो गई। दासों में फैली निराशा के कारण वे अनेक बार विद्रोह करने के लिए बाध्य हुए। ये विद्रोह रोमन साम्राज्य के लिए घातक सिद्ध हुए। रोमन लोगों को दासियों का यौन-शोषण करने की खुली छूट थी। इस कारण लोगों का तीव्रता से नैतिक पतन हुआ।

प्रश्न 21.
रोमन सभ्यता की विश्व को क्या देन है ?
उत्तर:

  • रोमन सभ्यता ने एक विशाल साम्राज्य का निर्माण करके अन्य देशों को विस्तृत साम्राज्य स्थापित करने का मार्ग दिखाया।
  • इसने विशाल रोमन साम्राज्य में शांति स्थापित करके अन्य देशों को एकता का महत्त्व बताया।
  • इसने विश्व के देशों को सहनशीलता का पाठ पढ़ाया। उन्होंने राजनीति को सदैव धर्म से अलग रखा।
  • रोम ने विश्व विख्यात कानूनवेत्ता पैदा किए। इनके द्वारा बनाए गए कानूनों ने अन्य देशों के लिए मार्ग दर्शक का कार्य किया।
  • रोमन साम्राज्य ने ईसाई धर्म के प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दिया।
  • रोमन साम्राज्य में अनेक विख्यात विद्वान् पैदा हुए। उन्होंने विश्व साहित्य को अमूल्य देन दी।
  • रोमन साम्राज्य ने विश्व को भवन निर्माण कला की नई शैलियों से परिचित करवाया।

अति संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
रोमन साम्राज्य किन तीन महाद्वीपों में फैला हुआ था ? नाम लिखिए।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य यूरोप, एशिया एवं अफ्रीका के महाद्वीपों में फैला हुआ था।

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प्रश्न 2.
रोमन साम्राज्य एवं ईरान के मध्य कौन-सी नदी बहती थी ?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य एवं ईरान के मध्य फ़रात (Euphrates) नदी बहती थी।

प्रश्न 3.
किस सागर को रोमन साम्राज्य का हृदय माना जाता था ? यह कहाँ से कहाँ तक फैला हुआ था ?
उत्तर:

  • भूमध्यसागर को रोमन साम्राज्य का हृदय माना जाता था।
  • यह पश्चिम में स्पेन से लेकर पूर्व में सीरिया तक फैला हुआ था।

प्रश्न 4.
रोमन साम्राज्य के काल के दौरान ईरान में किन दो प्रसिद्ध राजवंशों ने शासन किया ?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य के काल के दौरान ईरान में पार्थियाई (Parthians) तथा ससानी (Sasanians) राजवंशों ने शासन किया।

प्रश्न 5.
रोम में गणतंत्र का प्रचलन कब से कब तक रहा ? उत्तर:रोम में गणतंत्र का प्रचलन 509 ई०पू० से 27 ई०पू० तक रहा। प्रश्न 6. पैपाइरस किसे कहते हैं ?
उत्तर:

  • यह एक सरकंडा जैसा पौधा था जो मिस्त्र में नील नदी के किनारे उत्पन्न होता था।
  • इससे लिखने वाले विद्वानों को पैपाइरोलोजिस्ट कहा जाता था।

प्रश्न 7.
वर्ष वृत्तांत (Annals) से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
समकालीन इतिहासकारों द्वारा लिखा गया उस समय का इतिहास वर्ष वृत्तांत कहलाता था। इसे वार्षिक आधार पर लिखा जाता था।

प्रश्न 8.
जुलियस सीज़र कौन था ?
उत्तर:
जुलियस सीज़र रोम का एक महान् शासक था। उसने 49 ई० पू० से 44 ई० पू० तक शासन किया। उसने अपने शासनकाल के दौरान अनेक महत्त्वपूर्ण विजयें प्राप्त की। वह एक तानाशाह की तरह शासन करने लगा। अतः 44 ई० पू० में ब्रटस एवं उसके साथियों ने सीज़र की हत्या कर दी।

प्रश्न 9.
प्रिंसिपेट से क्या अभिप्राय है ? इसकी स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर:

  • प्रिंसिपेट से अभिप्राय उस राज्य से है जिसकी स्थापना ऑगस्ट्स ने की थी।
  • इसकी स्थापना 27 ई०पू० में की गई थी।

प्रश्न 10.
रोमन साम्राज्य के राजनीतिक इतिहास के तीन प्रमुख खिलाड़ी कौन-कौन थे ?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य के राजनीतिक इतिहास के तीन प्रमुख खिलाड़ी सम्राट्, अभिजात वर्ग और सेना थे।

प्रश्न 11.
रोमन साम्राज्य का प्रथम प्रिंसिपेट कौन था ? उसका शासनकाल क्या था ?
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य का प्रथम प्रिंसिपेट ऑगस्ट्स था।
  • उसका शासनकाल 27 ई०पू० से 14 ई० तक था।

प्रश्न 12.
ऑगस्ट्स के शासनकाल की कोई दो प्रमुख उपलब्धियाँ बताएँ।
उत्तर:

  • उसने रोमन साम्राज्य में शांति की स्थापना की।
  • उसने सैनेट के साथ अच्छे संबंध स्थापित किए।

प्रश्न 13.
ऑगस्टस के शासनकाल को रोमन साम्राज्य के इतिहास का स्वर्ण यग क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:

  • उसने रोमन साम्राज्य में फैली अराजकता को दर कर वहाँ शाँति की स्थापना की।
  • उसने रोमन साम्राज्य की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाया।
  • उसने कला तथा साहित्य को प्रोत्साहन दिया।

प्रश्न 14.
ऑगस्ट्स ने रोमन सैनेट में कौन-से दो प्रमुख सुधार किए ?
उत्तर:

  • उसने केवल रोम के धनी, ईमानदार एवं कर्त्तव्यपरायण लोगों को ही सैनेट में प्रतिनिधित्व दिया।
  • उसने सैनेट में अवांछित सदस्यों को हटा दिया।

प्रश्न 15.
ऑगस्ट्स ने रोमन सेना में कौन-से दो प्रमुख सुधार किए ?
उत्तर:

  • उसने एक स्थायी सेना का गठन किया।
  • उसने प्रोटोरियन गॉर्ड की स्थापना की।

प्रश्न 16.
ऑगस्ट्स ने प्रांतीय प्रशासन में कुशलता लाने हेतु कौन-से प्रमुख पग उठाए ?
उत्तर:

  • उसने केवल ईमानदार लोगों को गवर्नर के पद पर नियुक्त किया।
  • उसने प्रांतों में फैले भ्रष्टाचार को दूर किया।
  • उसने जनता पर अत्याचार करने वाले अधिकारियों को हटा दिया।

प्रश्न 17.
ऑगस्ट्स द्वारा किए गए कोई दो उल्लेखनीय आर्थिक सुधार लिखें।
उत्तर:

  • उसने कृषि तथा उद्योगों को प्रोत्साहित किया।
  • उसने अनेक देशों के साथ घनिष्ठ व्यापारिक संबंध स्थापित किए।

प्रश्न 18.
ऑगस्ट्स के शासनकाल का सबसे महान् इतिहासकार कौन था ? उसने रोमन साम्राज्य का इतिहास कितने जिल्दों में लिखा ?
उत्तर:

  • ऑगस्ट्स के शासनकाल का सबसे महान् इतिहासकार लिवि था।
  • उसने रोमन साम्राज्य का इतिहास 142 जिल्दों में लिखा।

प्रश्न 19.
ऑगस्ट्स के शासनकाल का सबसे प्रसिद्ध कवि एवं उसकी रचना का नाम लिखें।
उत्तर:

  • ऑगस्ट्स के शासनकाल के सबसे प्रसिद्ध कवि का नाम वर्जिल था।
  • उसकी प्रसिद्ध रचना का नाम ईनिड (Aenid) था।

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प्रश्न 20.
ऑगस्ट्स का उत्तराधिकारी कौन था ? उसका शासनकाल क्या था ?
उत्तर:

  • ऑगस्ट्स का उत्तराधिकारी टिबेरियस था।
  • उसका शासनकाल 14 ई० से लेकर 37 ई० तक था।

प्रश्न 21.
नीरो कौन था? वह क्यों अलोकप्रिय था? अथवा नीरो कौन था ?
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य का सबसे अत्याचारी शासक नीरो था।
  • उसका शासनकाल 54 ई० से लेकर 68 ई० तक था।
  • वह अपने अत्याचारों के कारण प्रजा में अलोकप्रिय था।

प्रश्न 22.
सम्राट् त्राजान ने पार्थियन के शासक के विरुद्ध कब अभियान चलाया ? इस अभियान के दौरान उसने किन क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था ?
उत्तर:

  • सम्राट् त्राजान ने पार्थियन के शासक के विरुद्ध 113 ई० से 117 ई० तक अभियान चलाया।
  • इस अभियान के दौरान उसने आरमीनिया, असीरिया, मेसोपोटामिया तथा पार्थियन राजधानी टेसीफुन पर अधिकार कर लिया था।

प्रश्न 23.
सम्राट् हैड्रियन के कोई दो महत्त्वपूर्ण सुधार बताएँ।
उत्तर:

  • उसने लोक भलाई के अनेक कार्य किए।
  • उसने सैनेट के साथ अच्छे संबंध स्थापित किए।

प्रश्न 24.
मार्क्स आरेलियस क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:

  • उसने गरीबों एवं दासों की दशा सुधारने के लिए अनेक पग उठाए।
  • उसने पार्थियनों एवं जर्मन बर्बरों द्वारा रोमन साम्राज्य पर किए गए आक्रमणों को पछाड़ दिया।
  • उसने रोमन साम्राज्य के प्रसिद्ध सेनापति कैसियस के विद्रोह का दमन किया।

प्रश्न 25.
तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य में आए संकट के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य पर विदेशी बर्बरों के लगातार आक्रमण आरंभ हो गए थे।
  • इस शताब्दी के दौरान गह-यद्धों ने भयंकर रूप धारण कर लिया था। 47 वर्षों में रोमन साम्राज्य में 25 सम्राट् सत्तासीन हुए।।

प्रश्न 26.
सम्राट् डायोक्लीशियन ने रोमन साम्राज्य को छोटा क्यों कर दिया ?
उत्तर:
सम्राट् डायोक्लीशियन ने अनुभव किया कि साम्राज्य के अनेक प्रदेशों का कोई सामरिक अथवा आर्थिक महत्त्व नहीं है। अतः उसने इन प्रदेशों को छोड़ना बेहतर समझा।

प्रश्न 27.
डायोक्लीशियन के शासनकाल की कोई दो महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ बताएँ।
उत्तर:

  • उसने रोमन साम्राज्य की सुरक्षा के उद्देश्य से रोमन सेना को अधिक शक्तिशाली बनाया।
  • उसने प्रांतीय प्रशासन की कुशलता के उद्देश्य से प्रांतों की संख्या 100 कर दी।

प्रश्न 28.
कांस्टैनटाइन का नाम रोमन साम्राज्य के इतिहास में क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर:

  • उसने सॉलिडस नामक एक नई मुद्रा का प्रचलन किया।
  • उसने 313 ई० में ईसाई धर्म को रोमन साम्राज्य का राज्य धर्म घोषित किया।
  • उसने 330 ई० में कुंस्तुनतुनिया को रोमन साम्राज्य की दूसरी राजधानी घोषित किया।

प्रश्न 29.
कांस्टैनटाइन के दो प्रमुख आर्थिक सुधार बताएँ।
उत्तर:

  • उसने उद्योगों के विकास पर विशेष बल दिया।
  • उसने सॉलिडस नामक सोने की मुद्रा का प्रचलन किया।

प्रश्न 30.
कांस्टैनटाइन द्वारा चलाई गई नई मुद्रा का नाम क्या था ? यह किस धातु से बनी थी ?
अथवा सॉलिडस क्या था ?
उत्तर:

  • कांस्टैनटाइन द्वारा चलाई गई नई मुद्रा का नाम सॉलिडस था।
  • यह सोने की धातु की बनी थी।

प्रश्न 31.
दीनारियस क्या होता था ?
उत्तर:
दीनारियस रोमन साम्राज्य में प्रचलित चाँदी का सिक्का था। इसमें लगभग 4.5 ग्राम विशुद्ध चाँदी होती थी।

प्रश्न 32.
पूर्वी रोमन साम्राज्य का सबसे प्रसिद्ध शासक कौन था ? उसका शासनकाल क्या था ?
उत्तर:

  • पूर्वी रोमन साम्राज्य का सबसे प्रसिद्ध शासक जस्टीनियन था।
  • उसका शासनकाल 527 ई० से 565 ई० तक था।

प्रश्न 33.
जस्टीनियन की प्रसिद्धि के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • उसने साम्राज्य में फैले भ्रष्टाचार को दूर किया।
  • उसने जस्टीनियन कोड का प्रचलन किया।

प्रश्न 34.
रोमन साम्राज्य के पतन के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
रोमन सभ्यता के पतन के दो कारण निम्नलिखित थे :

  • रोमन साम्राज्य के शासकों की साम्राज्यवादी नीति ही उसके लिए विनाशकारी सिद्ध हुई।
  • रोमन शासकों की विलासिता रोमन साम्राज्य की नैया डुबोने में एक महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुई।

प्रश्न 35.
रोमोत्तर राज्य (Post-Roman) किसे कहा जाता था ? किन्हीं दो ऐसे राज्यों के नाम बताइए।
उत्तर:

  • रोमोत्तर राज्य ऐसे राज्यों को कहा जाता था जिनकी स्थापना जर्मन बर्बरों द्वारा की गई थी।
  • दो ऐसे राज्य थे-स्पेन में विसिगोथों का राज्य एवं गॉल में फ्रैंकों का राज्य।

प्रश्न 36.
रोमन साम्राज्य के सामाजिक जीवन की कोई दो विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:

  • रोमन समाज तीन श्रेणियों में विभाजित था।
  • रोमन समाज में एकल परिवार प्रणाली प्रचलित थी।

प्रश्न 37.
रोमन समाज में स्त्रियों की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर:
रोमन समाज में स्त्रियों की स्थिति समूचे रूप से अच्छी थी। समाज में उनका सम्मान किया जाता था। वे उत्सवों में बढ़-चढ़ कर भाग लेती थीं। उन्हें शिक्षा एवं संपत्ति का अधिकार प्राप्त था। उस समय लड़कियों का विवाह 16 से 23 वर्ष के मध्य किया जाता था। उस समय समाज में दहेज प्रथा एवं वेश्यावृत्ति का प्रचलन था।

प्रश्न 38.
एकल परिवार से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
एकल परिवार से हमारा अभिप्राय एक ऐसे परिवार से है जिसमें पति-पत्नी एवं उनके बच्चे रहते हैं।

प्रश्न 39.
सेंट ऑगस्टीन कौन थे ?
अथवा सेंट ऑगस्टीन कौन था ? उसके किस कथन से स्पष्ट होता है कि उस समय पतियों का अपनी पत्नियों पर पूर्ण अधिकार था ?
उत्तर:

  • सेंट ऑगस्टीन उत्तरी अफ्रीका के एक महान् बिशप थे।
  • उसके इस कथन से-कि उसके पिता द्वारा नियमित रूप से उनकी माता की पिटाई की जाती थी स्पष्ट होता है कि उस समय पतियों का अपनी पत्नियों पर पूर्ण अधिकार था।

प्रश्न 40.
रोमन साम्राज्य में साक्षरता की दर क्या थी ?
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य में साक्षरता की दर विभिन्न भागों में अलग-अलग थी।
  • यह पुरुषों में सामान्यता: 20% एवं स्त्रियों में 10% थी।

प्रश्न 41.
रोमन साम्राज्य का पोम्पई नगर कब ज्वालामुखी के फटने से दफ़न हो गया था ? किन दो उदाहरणों से पता चलता है कि उस समय वहाँ कामचलाऊ साक्षरता का व्यापक प्रचलन था ?
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य का पोम्पई नगर 79 ई० में ज्वालामुखी के फटने से दफ़न हो गया था।
  • पोम्पई नगर की दीवारों पर अंकित विज्ञापनों तथा वहाँ पाए गए अभिरेखणों (Graffiti) से पता चलता है कि उस समय वहाँ कामचलाऊ साक्षरता का व्यापक प्रचलन था।

प्रश्न 42.
निकटवर्ती पूर्व (Near East) से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:

  • निकटवर्ती पूर्व से अभिप्राय है भूमध्यसागर के बिल्कुल पूर्व का प्रदेश।
  • इसमें सीरिया, फ़िलिस्तीन, मेसोपोटामिया तथा अरब के क्षेत्र सम्मिलित थे।

प्रश्न 43.
निकटवर्ती पूर्व एवं मिस्त्र में कौन-सी भाषाएँ बोली जाती थीं ?
उत्तर:

  • निकटवर्ती पूर्व में अरामाइक एवं
  • मिस्र में कैल्टिक भाषाएँ बोली जाती थीं।

प्रश्न 44.
उत्तरी अफ्रीका एवं स्पेन में कौन-सी भाषाएँ बोली जाती थीं ?
उत्तर:

  • उत्तरी अफ्रीका में प्यूनिक तथा बरबर भाषाएँ बोली जाती थीं।
  • स्पेन में कैल्टिक भाषा बोली जाती थी।

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प्रश्न 45.
कल्पना कीजिए कि आप रोम की एक गृहिणी हैं जो घर की ज़रूरत की वस्तुओं की खरीददारी की सूची बना रही हैं। अपनी सूची में आप कौन-सी वस्तुएँ शामिल करेंगी ?
उत्तर:
यदि मैं रोम की गृहिणी होती तो मैं घर की ज़रूरत की वस्तुओं की खरीददारी की सूची में ब्रेड, मक्खन, दूध, अंडे, माँस, तेल, फल, सब्जियाँ, विभिन्न प्रकार की दालों, नहाने एवं कपड़े धोने के साबुनों, सौंदर्य प्रसाधन, बच्चों की ज़रूरी वस्तुओं एवं दवाइयाँ आदि को शामिल करती।

प्रश्न 46.
रोमन साम्राज्य के लोगों के आर्थिक जीवन की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था।
  • उस समय रोमन साम्राज्य के दो प्रमुख उद्योग जैतून का तेल निकालने तथा अंगूरी शराब बनाने के थे।

प्रश्न 47.
रोमन साम्राज्य की कृषि की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • उस समय कृषि दासों की सहायता से की जाती थी।
  • उस समय फ़सलों के अधिक उत्पादन के लिए खादों का प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 48.
रोमन साम्राज्य में सबसे अधिक किस फल का उत्पादन होता था ? इसका प्रयोग किस लिए किया जाता था ?
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य में सबसे अधिक उत्पादन अंगूर का किया जाता था।
  • इसका प्रयोग शराब बनाने के लिए किया जाता था।

प्रश्न 49.
रोमन साम्राज्य में सबसे अधिक भेड़-बकरियाँ कहाँ पाली जाती थीं ? यहाँ चरवाहे जिन झोपड़ियों में रहते थे उन्हें क्या कहा जाता था ?
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य में सबसे अधिक भेड़-बकरियाँ नुमीडिया में पाली जाती थीं।
  • यहाँ चरवाहे जिन झोपड़ियों में रहते थे उन्हें मैपालिया कहा जाता था।

प्रश्न 50.
रोमन साम्राज्य के किस प्रदेश में पशुपालन का धंधा बहुत विकसित था ? यहाँ चरवाहों के गाँवों को किस नाम से जाना जाता था ?
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य के स्पेन प्रदेश में पशुपालन का धंधा बहुत विकसित था।
  • यहाँ चरवाहों के गाँवों को कैस्टेला के नाम से जाना जाता था।

प्रश्न 51.
मैपालिया एवं कैस्टेला से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:

  • मैपालिया अवन आकार की झोंपड़ियाँ थीं जिन्हें चरवाहे इधर-उधर उठा कर घूमते रहते थे।
  • कैस्टेला स्पेन में चरवाहों के गाँवों को कहा जाता था। यह गाँव पहाड़ियों की चोटियों पर बने होते थे।

प्रश्न 52.
एम्फोरा (Amphora) से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
एम्फोरा ढुलाई (transportation) के ऐसे मटके अथवा कंटेनर थे जिनमें शराब, जैतून का तेल तथा दूसरे तरल पदार्थ लाए एवं ले जाए जाते थे। रोम में मोंटी टेस्टैकियो नामक स्थल से ऐसे 5 करोड़ से अधिक एम्फोरा प्राप्त हुए हैं।

प्रश्न 53.
ड्रेसल 20 (Dressel 20) से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:

  • ड्रेसल 20 उन कंटेनरों को कहा जाता था जिनके द्वारा जैतून के तेल की ढुलाई की जाती थी।
  • इन कंटेनरों के अवशेष भूमध्यसागरीय क्षेत्रों में अनेक उत्खनन स्थलों पर पाए गए हैं।

प्रश्न 54.
पाँचवीं एवं छठी शताब्दियों के मध्य रोमन साम्राज्य के चार केंद्रों के नाम बताएँ जो जैतून के तेल एवं अंगूरी शराब बनाने के लिए प्रसिद्ध थे।
उत्तर:

  • एगियन
  • दक्षिणी एशिया माइनर
  • सीरिया
  • फिलिस्तीन।

प्रश्न 55.
रोमन साम्राज्य के आंतरिक एवं विदेशी व्यापार के प्रफुल्लित होने के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य में काफी समय तक शांति एवं व्यवस्था बनी रही।
  • रोमन साम्राज्य में यातायात के साधन काफी विकसित थे।

प्रश्न 56.
दास प्रजनन से क्या अभिप्राय है ? रोमन साम्राज्य में दास प्रजनन की आवश्यकता क्यों हुई ?
उत्तर:

  • दास प्रजनन से अभिप्राय उस प्रथा से है जिसमें दासों को अधिक-से-अधिक बच्चे उत्पन्न करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था।
  • प्रथम शताब्दी में रोमन साम्राज्य ने अपनी विस्तार नीति का लगभग त्याग कर दिया था। इसलिए दासों की आपूर्ति (supply) में कमी आ गई।

प्रश्न 57.
रोमन साम्राज्य में सरकारी निर्माण कार्यों में दासों की अपेक्षा वेतनभोगी मज़दूरों का व्यापक प्रयोग क्यों किया जाता था ?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य में सरकारी निर्माण कार्यों में दासों की अपेक्षा वेतनभोगी मजदूरों का व्यापक प्रयोग इसलिए किया जाता था क्योंकि वेतनभोगी मज़दूर सस्ते पड़ते थे। दूसरी ओर दास श्रमिकों को वर्ष भर खाना देना पड़ता था तथा अन्य खर्च करने पड़ते थे। इसलिए उनकी लागत बहुत बढ़ जाती थी।

प्रश्न 58.
रोमन साम्राज्य में श्रमिकों पर नियंत्रण किस प्रकार रखा जाता था ?
उत्तर:

  • उस समय श्रमिकों को दागा जाता था ताकि यदि वे भागें तो उन्हें पहचाना जा सके।
  • उन्हें जंजीरों द्वारा बाँध कर रखा जाता था।

प्रश्न 59.
रोमन साम्राज्य में प्रचलित दो प्रसिद्ध सिक्के कौन से थे ? ये किस धातु के बने थे ?
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य में प्रचलित दो प्रसिद्ध सिक्के दीनारियस एवं सॉलिडस थे।
  • ये सिक्के क्रमश: चाँदी एवं सोने के बने हुए थे।

प्रश्न 60.
आपको क्या लगता है कि रोमन सरकार ने चाँदी में मुद्रा को ढालना क्यों बंद किया होगा और वह सिक्कों के उत्पादन के लिए कौन-सी धातु का उपयोग करने लगी ?
उत्तर:

  • रोमन सरकार ने चाँदी में मुद्रा को ढालना इसलिए बंद किया क्योंकि स्पेन में चाँदी की खाने खत्म हो गईं। इसलिए रोमन साम्राज्य में चाँदी की कमी हो गई।
  • रोमन सरकार अब सिक्कों के लिए सोने का उपयोग करने लगी।

प्रश्न 61.
यदि आप रोमन साम्राज्य में रहे होते तो कहाँ रहना पसंद करते-नगरों में या ग्रामीण क्षेत्र में ? कारण बताइये।
उत्तर:
यदि मैं रोमन साम्राज्य में रहा होता तो निम्नलिखित कारणों से नगरों में रहना अधिक पसंद करता

  • नगरों में ग्रामीण क्षेत्र की तुलना में बेहतर सुविधाएँ उपलब्ध थीं।
  • अकाल के दिनों में नगरों में अनाज की कोई कमी नहीं होती थी।
  • नगरों में ग्रामीण क्षेत्र की अपेक्षा यातायात के साधन अधिक विकसित थे।
  • नगरों में लोगों को उच्च स्तर के मनोरंजन उपलब्ध थे।

प्रश्न 62.
रोमन साम्राज्य के लोगों के धार्मिक जीवन की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • रोमन साम्राज्य के लोग अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे।
  • वे अनेक प्रकार के अंध-विश्वासों में भी विश्वास रखते थे।

प्रश्न 63.
जूपिटर कौन था ?
उत्तर:
जूपिटर रोमन लोगों का सबसे सर्वोच्च देवता था। वह आकाश का देवता था। सूर्य, चंद्रमा एवं तारे सभी उसी की आज्ञा का पालन करते थे। वह विश्व की सभी घटनाओं की जानकारी रखता था। वह पापियों को सज़ा देता था।

प्रश्न 64.
जूनो और मिनर्वा कौन थी ?
उत्तर:

  • जूनो रोमन लोगों की प्रमुख देवी थी। उसे स्त्रियों की देवी समझा जाता था।
  • मिनर्वा रोमन लोगों की ज्ञान की देवी थी।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ एक साम्राज्य

प्रश्न 65.
मिथ्र धर्म मुख्य रूप से किसकी उपासना करता है ? यह धर्म सैनिकों में क्यों लोकप्रिय हुआ ?
उत्तर:

  • मिथ्र धर्म मुख्य रूप से सूर्य की उपासना करता है।
  • यह धर्म सैनिकों में इसलिए लोकप्रिय था क्योंकि इसमें शौर्य एवं अनुशासन पर बल दिया गया था।

प्रश्न 66.
यहूदी धर्म का संस्थापक कौन था ? इस धर्म की कोई दो शिक्षाएँ लिखें।
उत्तर:

  • यहूदी धर्म का संस्थापक पैगंबर मूसा था।
  • यह धर्म मूर्ति पूजा के विरुद्ध था।
  • यह धर्म कानून के पालन पर विशेष बल देता है।

प्रश्न 67.
यहूदी धर्म किसकी उपासना करता है ? इस धर्म की पवित्र पुस्तक एवं मंदिर क्या कहलाते हैं ?
उत्तर:

  • यहूदी धर्म जेहोवा की उपासना करता है।
  • इस धर्म की पवित्र पुस्तक तोरा एवं मंदिर सिनेगोग कहलाते हैं।

प्रश्न 68.
ईसाई धर्म का संस्थापक कौन था ? इस धर्म की पवित्र पुस्तक क्या कहलाती है ?
उत्तर:

  • ईसाई धर्म का संस्थापक ईसा मसीह था।
  • इस धर्म की पवित्र पुस्तक बाईबल कहलाती है।

प्रश्न 69.
ईसाई धर्म की कोई दो शिक्षाएँ लिखें।
उत्तर:

  • यह धर्म एक परमात्मा की उपासना में विश्वास रखता है।
  • यह धर्म आपसी भाईचारे का संदेश देता है।

प्रश्न 70.
रोमन दास प्रथा की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • रोमन समाज में जिस व्यक्ति के पास जितने दास होते थे समाज में उसे उतना ऊँचा दर्जा दिया जाता था।
  • दासों के मालिक उन पर घोर अत्याचार करते थे।

प्रश्न 71.
दास प्रथा के रोमन समाज पर पड़े कोई दो प्रभाव बताएँ।
उत्तर:

  • दास प्रथा के व्यापक प्रचलन के कारण उनके मालिक विलासप्रिय हो गए।
  • दासों पर किए जाने वाले घोर अत्याचारों के कारण वे विद्रोह करने के लिए बाध्य हुए। इससे समाज में अराजकता फैली।

प्रश्न 72.
रोमन सभ्यता की विश्व को क्या देन रही है ?
उत्तर:

  • इसने ईसाई धर्म के प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दिया।
  • इसने विश्व को भवन निर्माण कला की नई शैलियों से परिचित करवाया।

एक शब्द या एक वाक्य वाले उत्तर

प्रश्न 1.
प्राचीन काल में रोमन साम्राज्य कितने महाद्वीपों में फैला हुआ था ?
उत्तर:
तीन महाद्वीपों में।

प्रश्न 2.
मिस्त्र में नील नदी के किनारे पैदा होने वाला प्रसिद्ध पौधा कौन-सा था ?
उत्तर:
पैपाइरस।

प्रश्न 3.
रोमन साम्राज्य में गणतंत्र की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर:
509 ई० पू० में।

प्रश्न 4.
ऑगस्टस कब सिंहासन पर बैठा था ?
उत्तर:
27 ई० पू० में।

प्रश्न 5.
ऑगस्टस का उत्तराधिकारी कौन था ?
उत्तर:
टिबेरियस।

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प्रश्न 6.
पार्थिया की राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर:
टेसीफुन।

प्रश्न 7.
रोमन साम्राज्य को किस शताब्दी में सबसे भयंकर संकट का सामना करना पड़ा था ?
उत्तर:
तीसरी शताब्दी में।

प्रश्न 8.
कांस्टैनटाइन द्वारा प्रचलित सोने की मुद्रा का नाम क्या था ?
उत्तर:
सॉलिडस।

प्रश्न 9.
रोमन साम्राज्य के किस शासक ने कुंस्तुनतुनिया को राजधानी बनाया ?
उत्तर:
कांस्टैनटाइन ने।

प्रश्न 10.
रोमन समाज कितनी श्रेणियों में विभाजित था ?
उत्तर:
तीन।

प्रश्न 11.
प्रेटोरियन गार्ड का प्रमुख उद्देश्य क्या था ?
उत्तर:
सम्राट् की सुरक्षा करना।

प्रश्न 12.
ससानी वंश ईरान में कब सत्ता में आया था ?
उत्तर:
224 ई० में।

प्रश्न 13.
रोम में कब भयानक आग लगी थी ?
उत्तर:
64 ई० में।

प्रश्न 14.
रोमन साम्राज्य का कौन-सा नगर 79 ई० में ज्वालामुखी के फटने से नष्ट हो गया था ?
उत्तर:
पोम्पई नगर।

प्रश्न 15.
प्राचीन काल में रोमन साम्राज्य के दो प्रसिद्ध उद्योग कौन-से थे ?
उत्तर:
जैतून का तेल एवं अंगूरी शराब के उद्योग।

प्रश्न 16.
ड्रैसल 20 क्या था ?
उत्तर:
स्पेन में जैतून का तेल ले जाने वाले कंटेनर।

प्रश्न 17.
रोमन साम्राज्य का प्रमुख देवता कौन था ?
उत्तर:
जूपिटर।

प्रश्न 18.
रोम के किस शासक को प्रिंसिपेट कहा जाता था ?
उत्तर:
ऑगस्ट्स ।

प्रश्न 19.
27 ई० पू० में रोम का प्रथम सम्राट् कौन बना ?
उत्तर:
ऑगस्ट्स ।

प्रश्न 20.
पार्थियनों की राजधानी का क्या नाम था ?
उत्तर:
टेसीफुन।

प्रश्न 21.
भूमध्यसागर के तटों पर स्थापित दो बड़े शहरों के नाम क्या थे ?
उत्तर:
सिकंदारिया व एंटिऑक।

प्रश्न 22.
ईरान में 225 ई० में कौन-सा आक्रामक वंश उभर कर सामने आया था ?
उत्तर:
ससानी वंश।

प्रश्न 23.
एक दिनारियस (दीनार ) में लगभग कितने ग्राम चाँदी होती थी ?
उत्तर:
4.5 ग्राम।

प्रश्न 24.
रोमन समाज में किस प्रकार की परिवारिक प्रणाली का प्रचलन था ?
उत्तर:
एकल।

प्रश्न 25.
रोमन समाज में उत्तरी अफ्रीका में कौन-सी भाषा बोली जाती थी ?
उत्तर:
प्यूनिक।

प्रश्न 26.
रोमन समाज में स्पेन व उत्तर पश्चिमी में कौन-सी भाषा का प्रयोग किया जाता था ?
उत्तर:
कैल्टिक।

प्रश्न 27.
रोमन साम्राज्य में तरल पदार्थों की ढुलाई में प्रयोग किए जाने वाले कंटेनरों को क्या कहा जाता था ?
उत्तर:
एम्फोरा।

प्रश्न 28.
कांस्टैनटाइन ने ईसाई धर्म कब स्वीकार किया था ?
उत्तर:
313 ई०।

प्रश्न 29. लोंबार्डो द्वारा इटली पर आक्रमण कब किया गया ?
उत्तर:
568 ई०।

रिक्त स्थान भरिए

1. 27 ई० पू० में रोम का प्रथम सम्राट् ……………. बना।
उत्तर:
ऑगस्ट्स
2. ऑगस्ट्स रोम का प्रथम सम्राट् ……………. में बना।
उत्तर:
27 ई० पू०

3. रोम सम्राट् ऑगस्ट्स द्वारा स्थापित राज्य को …………….. कहा जाता था।
उत्तर:
प्रिंसिपेट

4. टिबेरियस …………….. ई० तक रोम का सम्राट रहा।
उत्तर:
14-37

5. पार्थियन की राजधानी का नाम …………….. था।
उत्तर:
टेसीफुन

6. ईरान में ससानी वंश की स्थापना …………… ई० में हुई।
उत्तर:
224

7. रोमन समाज ………. प्रधान समाज था।
उत्तर:
पुरुष

8. स्पेन व उत्तर पश्चिमी में ……………. भाषा बोली जाती थी।
उत्तर:
कैल्टिक

9. रोमन साम्राज्य में तरल पदार्थों की ढुलाई में प्रयोग किए जाने वाले कंटेनरो को ……. …… कहा जाता था।
उत्तर:
एम्फोरा

10. कांस्टैनटाइन द्वारा सोने का सिक्का ……………. ई० में चलाया गया।
उत्तर:
310

11. कुंस्तुनतुनिया नगर की स्थापना …………….. ने की।
उत्तर:
कांस्टैनटाइन

12. …………… में लोंबार्डो द्वारा इटली पर आक्रमण किया गया।
उत्तर:
568 ई०

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. उस साम्राज्य का नाम बताएँ जो तीन महाद्वीपों में फैला हुआ था ?
(क) यूनानी साम्राज्य
(ख) रोमन साम्राज्य
(ग) रूसी साम्राज्य
(घ) ब्रिटिश साम्राज्य।
उत्तर:
(ख) रोमन साम्राज्य

2. निम्नलिखित में से किस सागर को रोमन साम्राज्य का हृदय कहा जाता था ?
(क) भूमध्यसागर
(ख) लाल सागर
(ग) एगियन सागर
(घ) आयोनियन सागर।
उत्तर:
(क) भूमध्यसागर

3. निम्नलिखित में से कौन-सी भाषाएँ रोमन साम्राज्य की प्रशासनिक भाषाएँ थीं ?
(क) लातीनी एवं अंग्रेज़ी
(ख) लातीनी एवं यूनानी
(ग) यूनानी एवं फ्रांसीसी
(घ) रोमन एवं रूसी।
उत्तर:
(ख) लातीनी एवं यूनानी

4. रोमन साम्राज्य में गणतंत्र की स्थापना कब हुई थी ?
(क) 529 ई० पू० में
(ख) 519 ई० पू० में
(ग) 509 ई० पू० में
(घ) 27 ई० पू० में।
उत्तर:
(ग) 509 ई० पू० में

5. रोमन साम्राज्य में गणतंत्र का अंत कब हुआ ?
(क) 37 ई० पू० में
(ख) 27 ई० पू० में
(ग) 17 ई० पू० में
(घ) 27 ई० में।
उत्तर:
(ख) 27 ई० पू० में

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6. रोम का प्रथम सम्राट् कौन था ?
(क) जूलियस सीजर
(ख) ट्राजन
(ग) टाईबेरियस
(घ) ऑगस्ट्स
उत्तर:
(घ) ऑगस्ट्स

7. ऑगस्ट्स कब सिंहासन पर बैठा था ?
(क) 27 ई० पू० में
(ख) 27 ई० में
(ग) 17 ई० पू० में
(घ) 14 ई० में।
उत्तर:
(क) 27 ई० पू० में

8. निम्नलिखित में से कौन रोमन साम्राज्य के राजनीतिक इतिहास का मुख्य खिलाड़ी नहीं था ?
(क) सम्राट
(ख) सेना
(ग) अभिजात वर्ग
(घ) दास।
उत्तर:
(घ) दास।

9. प्रेटोरियन गॉर्ड का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
(क) दुर्ग की सुरक्षा करना
(ख) सम्राट् की सुरक्षा करना
(ग) प्रांतों की सुरक्षा करना
(घ) विदेशों पर आक्रमण करना।
उत्तर:
(ख) सम्राट् की सुरक्षा करना

10. ऑगस्ट्स की मृत्यु कब हुई थी ?
(क) 27 ई० पू० में
(ख) 17 ई० पू० में
(ग) 14 ई० में
(घ) 12 ई० में।
उत्तर:
(ग) 14 ई० में

11. ऑगस्ट्स का उत्तराधिकारी कौन था ?
(क) त्राजान
(ख) टिबेरियस
(ग) गैलीनस
(घ) मार्क्स आरेलियस।
उत्तर:
(ख) टिबेरियस

12. रोमन साम्राज्य का सबसे अत्याचारी शासक कौन था ?
(क) त्राजान
(ख) जूलियस सीज़र
(ग) नीरो
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) नीरो

13. सम्राट् बाजान ने फ़ारस के शासक के विरुद्ध अभियान के दौरान निम्नलिखित में से किस प्रदेश पर अधिकार किया ?
(क) आरमीनिया
(ख) असीरिया
(ग) टेसीफुन
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

14. ईरान में ससानी वंश की स्थापना कब हुई ?
(क) 224 ई० में
(ख) 225 ई० में
(ग) 234 ई० में
(घ) 241 ई० में।
उत्तर:
(क) 224 ई० में

15. ईरान के किस शासक ने पूर्वी रोमन साम्राज्य की राजधानी एंटिओक पर अधिकार कर लिया था ?
(क) शापुर प्रथम ने
(ख) शापुर द्वितीय ने
(ग) अट्टिला ने
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) शापुर प्रथम ने

16. ‘डायोक्लीशियन ने किसे पूर्वी रोमन साम्राज्य की राजधानी घोषित किया ?
(क) निकोमेडिया
(ख) टेसीफुन
(ग) दासिया
(घ) सिकंदरिया।
उत्तर:
(क) निकोमेडिया

17. किस रोमन सम्राट् ने 301 ई० में रोमन साम्राज्य में सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें निश्चित कर दी थी ?
(क) टिबेरियस
(ख) ऑगस्ट्स
(ग) गैलीनस
(घ) डायोक्लीशियन।
उत्तर:
(घ) डायोक्लीशियन।

18. कांस्टैनटाइन का नाम रोमन साम्राज्य के इतिहास में क्यों प्रसिद्ध है ?
(क) उसने ईसाई धर्म को रोमन साम्राज्य का राज्य धर्म घोषित किया
(ख) उसने सॉलिडस नामक एक नई मुद्रा का प्रचलन किया
(ग) उसने कुंस्तुनतुनिया को रोमन साम्राज्य की दूसरी राजधानी घोषित किया
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

19. कांस्टैनटाइन द्वारा चलाई गई नई मुद्रा का नाम क्या था ?
(क) फ्रैंक
(ख) सॉलिडस
(ग) रूबल
(घ) रुपया।
उत्तर:
(ख) सॉलिडस

20. कांस्टैनटाइन ने किस धर्म को राज्य धर्म घोषित किया था ?
(क) हिंदू धर्म को
(ख) ईसाई धर्म को
(ग) इस्लाम को
(घ) यहूदी धर्म को।
उत्तर:
(ख) ईसाई धर्म को

21. कांस्टैनटाइन ने किसे रोमन साम्राज्य की दूसरी राजधानी घोषित किया था ?
(क) निकोमेडिया
(ख) दासिया
(ग) कुंस्तुनतुनिया
(घ) सॉलिडस।
उत्तर:
(ग) कुंस्तुनतुनिया

22. ‘जस्टीनियन कोड’ का प्रचलन कब हुआ ?
(क) 527 ई० में
(ख) 533 ई० में
(ग) 560 ई० में
(घ) 565 ई० में।
उत्तर:
(ख) 533 ई० में

23. रोमन साम्राज्य के पतन के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा कारण उत्तरदायी था ?
(क) रोमन साम्राज्य की विशालता
(ख) दासों पर अत्याचार
(ग) उत्तराधिकार कानून का अभाव
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

24. रोमोत्तर राज्य किसे कहा जाता था ?
(क) ईरानी बर्बरों द्वारा स्थापित राज्य
(ख) मंगोलों द्वारा स्थापित राज्य
(ग) जर्मन बर्बरों द्वारा स्थापित राज्य
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) जर्मन बर्बरों द्वारा स्थापित राज्य

25. किस वर्ष रोमन साम्राज्य पूर्वी और पश्चिमी भागों में विभक्त हुआ था ?
(क) 285 ई०
(ख) 518 ई०
(ग) 565 ई०
(घ) 395 ई०
उत्तर:
(क) 285 ई०

26. निम्नलिखित में से किसने रोमोत्तर राज्य की स्थापना की थी ?
(क) गोथ
(ख) बैंडल
(ग) लोंबार्ड
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

27. बैंडलों ने उत्तरी अफ्रीका पर कब अधिकार किया ?
(क) 410 ई० में
(ख) 428 ई० में
(ग) 451 ई० में
(घ) 493 ई० में।
उत्तर:
(ख) 428 ई० में

28. रोमन समाज कितनी श्रेणियों में विभाजित था ?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच।
उत्तर:
(ख) तीन

29. निम्नलिखित में से कौन रोमन साम्राज्य का प्रसिद्ध इतिहासकार था ?
(क) टैसिटस
(ख) अल्बरुनी
(ग) मार्कोपोलो
(घ) जूलियस सीज़र।
उत्तर:
(क) टैसिटस

30. रोमन समाज में स्त्रियों को निम्नलिखित में से कौन-सा अधिकार प्राप्त था ?
(क) शिक्षा का अधिकार
(ख) संपत्ति का अधिकार
(ग) तलाक का अधिकार
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

31. सेंट ऑगस्टीन (St. Augustine) कहाँ का महान् बिशप था ?
(क) दक्षिणी अफ्रीका
(ख) उत्तरी अफ्रीका
(ग) जर्मनी
(घ) फ्राँस।
उत्तर:
(ख) उत्तरी अफ्रीका

32. रोमन साम्राज्य का पोम्पई नगर कब ज्वालामुखी फटने से दफ़न हो गया था ?
(क) 71 ई० में
(ख) 75 ई० में
(ग) 79 ई० में
(घ) 89 ई० में।
उत्तर:
(ग) 79 ई० में

33. निम्नलिखित में से कहाँ कॉप्टिक भाषा बोली जाती थी ?
(क) उत्तरी अफ्रीका में
(ख) स्पेन में
(ग) मिस्र में
(घ) जर्मनी में।
उत्तर:
(ग) मिस्र में

34. निम्नलिखित में से कौन-सी भाषा स्पेन में बोली जाती थी ?
(क) कॉप्टिक
(ख) बरबर
(ग) कैल्टिक
(घ) जर्मन।
उत्तर:
(ग) कैल्टिक

35. रोमन साम्राज्य के लोगों का मुख्य व्यवसाय क्या था ?
(क) कृषि
(ख) उद्योग
(ग) व्यापार
(घ) पशु-पालन।।
उत्तर:
(क) कृषि

36. रोमन साम्राज्य के किस प्रदेश में बड़ी संख्या में भेड़-बकरियाँ पाली जाती थीं ?
(क) नुमीडिया
(ख) गैलिली
(ग) बाइजैक्यिम
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(क) नुमीडिया

37. मैपालिया से आपका क्या अभिप्राय है ?
(क) ये अवन आकार की झोंपड़ियाँ थीं
(ख) ये पहाड़ों की चोटियों पर बसे हुए गाँव थे
(ग) ये रोमन साम्राज्य के प्रसिद्ध उद्योग थे
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) ये अवन आकार की झोंपड़ियाँ थीं

38. कैस्टेला किसे कहा जाता था ?
(क) रोमन साम्राज्य के प्रांतों को
(ख) रोमन साम्राज्य के पहाड़ों पर बसे हुए गाँवों को
(ग) रोमन साम्राज्य की प्रमुख फ़सल को
(घ) रोमन साम्राज्य के प्रमुख सिक्के को।
उत्तर:
(ख) रोमन साम्राज्य के पहाड़ों पर बसे हुए गाँवों को

39. रोमन साम्राज्य में जैतून का तेल जिन कंटेनरों में ले जाया जाता था उन्हें कहा जाता था
(क) ड्रेसल 10
(ख) ड्रेसल 20
(ग) एम्फोरा
(घ) मोंटी टेस्टैकियो।
उत्तर:
(ख) ड्रेसल 20

40. निम्नलिखित में से किस देश के साथ रोमन साम्राज्य का व्यापार चलता था ?
(क) उत्तरी अफ्रीका
(ख) मिस्त्र
(ग) सीरिया
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

41. निम्नलिखित में से किस लेखक ने रोमन साम्राज्य के श्रमिकों की दयनीय दशा का वर्णन किया है ?
(क) कोलूमेल्ला
(ख) ऐनस्टैसियस
(ग) गिब्बन
(घ) जे०एम० राबर्टस।
उत्तर:
(क) कोलूमेल्ला

42. रोमन साम्राज्य के किस शासक ने श्रमिकों को ऊँचे वेतन देकर पूर्वी सीमांत क्षेत्र में दारा शहर का निर्माण करवाया ?
(क) ऑगस्ट्स
(ख) कांस्टैनटाइन
(ग) ऐनस्टैसियस
(घ) जस्टीनियन।
उत्तर:
(ग) ऐनस्टैसियस

43. रोमन साम्राज्य में किस शासक ने सोने की मुद्रा का प्रचलन किया ?
(क) कांस्टैनटाइन
(ख) जस्टीनियन
(ग) गैलीनस
(घ) ऑगस्ट्स
उत्तर:
(क) कांस्टैनटाइन

44. रोमन साम्राज्य द्वारा चाँदी की मुद्रा का प्रचलन क्यों बंद किया गया था ?
(क) क्योंकि चाँदी के आभूषणों की माँग बहुत बढ़ गई थी
(ख) क्योंकि चाँदी का विदेशों में निर्यात किया जाने लगा था
(ग) क्योंकि स्पेन में चाँदी की खानें खत्म हो गई थीं
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(ग) क्योंकि स्पेन में चाँदी की खानें खत्म हो गई थीं

45. रोमन लोगों का सबसे बड़ा देवता कौन था ?
(क) जूपिटर
(ख) मॉर्स
(ग) जूनो
(घ) मिनर्वा
उत्तर:
(क) जूपिटर

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ एक साम्राज्य

46. रोमन लोगों की प्रमुख देवी कौन थी ?
(क) इसिस
(ख) डायना
(ग) जूनो
(घ) मिनर्वा।
उत्तर:
(ग) जूनो

47. निम्नलिखित में से कौन-सा धर्म रोमन सैनिकों में लोकप्रिय था ?
(क) मिथ्र धर्म
(ख) ईसाई धर्म
(ग) यहूदी धर्म
(घ) सिख धर्म।
उत्तर:
(क) मिथ्र धर्म

48. यहूदी धर्म का संस्थापक कौन था ?
(क) पैगंबर मूसा
(ख) हज़रत मुहम्मद
(ग) ईसा मसीह
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) पैगंबर मूसा

49. ईसाई धर्म की पवित्र पुस्तक क्या कहलाती है ?
(क) तोरा
(ख) गीता
(ग) बाईबल
(घ) गुरु ग्रंथ साहिब जी।
उत्तर:
(ग) बाईबल

तीन महाद्वीपों में फैला हुआ एक साम्राज्य HBSE 11th Class History Notes

→ प्राचीनकाल में रोमन साम्राज्य तीन महाद्वीपों यूरोप, पश्चिमी एशिया भाव उर्वर अर्द्धचंद्राकार क्षेत्र (Fertile Crescent) तथा उत्तरी अफ्रीका में फैला हुआ था। उस समय इस साम्राज्य में यद्यपि अनेक भाषाएँ बोली जाती थी किंतु प्रशासन द्वारा केवल लातीनी (Latin) एवं यूनानी (Greek) भाषाओं का प्रयोग किया जाता था।

→ रोमन साम्राज्य का अपने पड़ोसी साम्राज्य ईरान के साथ एक दीर्घकालीन संघर्ष चलता रहा था। ईरान में 224 ई० में ससानी राजवंश की स्थापना हुई थी। उस समय रोमन साम्राज्य एवं ईरान के मध्य फ़रात नदी बहा करती थी। रोमन साम्राज्य की उत्तरी सीमा का निर्धारण दो प्रसिद्ध नदियों राइन एवं डेन्यूब द्वारा होता था।

→ इसकी दक्षिणी सीमा का निर्धारण सहारा नामक विशाल रेगिस्तान द्वारा होता था। भूमध्यसागर को रोमन साम्राज्य का हृदय कहा जाता था।

→ रोमन साम्राज्य में गणतंत्र (Republic) की स्थापना 509 ई० पू० में हुई थी। यह 27 ई० पू० तक चला। 27 ई० पू० में जूलियस सीज़र के दत्तक पुत्र ऑक्टेवियन ने जो ऑगस्ट्स के नाम से प्रसिद्ध हुआ सत्ता संभाली। उसके राज्य को प्रिंसिपेट (Principate) कहा जाता था। उसने 14 ई० तक शासन किया। उसके शासनकाल में रोमन साम्राज्य ने सर्वपक्षीय प्रगति की। उसने सैनेट के साथ अच्छे संबंध स्थापित किए। उसने रोमन सेना को शक्तिशाली बनाया।

→ उसने अनेक प्रशासनिक, आर्थिक, धार्मिक एवं नैतिक सुधार किए। उसके शासनकाल में कला तथा साहित्य के क्षेत्रों में भी अद्वितीय प्रगति हुई। लिवि, वर्जिल, ओविड तथा होरेस जैसे लेखकों ने साहित्य के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान दिया। निस्संदेह ऑगस्ट्स का शासनकाल रोमन साम्राज्य का स्वर्ण काल था।

→ ऑगस्ट्स के पश्चात् टिबेरियस ने 14 से 37 ई० तक शासन किया। वह एक अयोग्य शासक प्रमाणित हुआ। नीरो (54-68 ई०) रोमन साम्राज्य का सबसे अत्याचारी शासक प्रमाणित हुआ। उसने अपने शासनकाल में बड़ी संख्या में लोगों की हत्या करवा दी थी।

→ बाजान (98-117 ई०) रोमन साम्राज्य का एक प्रसिद्ध सम्राट् था। उसने दासिया, अरमीनिया, असीरिया, मेसोपोटामिया तथा पार्थियन राजधानी टेसीफुन पर अधिकार कर रोमन साम्राज्य का विस्तार किया।

→ उसने अनेक प्रशंसनीय सुधार भी लागू किए। उसके पश्चात् तीसरी शताब्दी तक हैड्रियन (117 138 ई०), मार्क्स आरेलियस (161 -180 ई०), सेप्टिमियस सेवेरस (193 -211 ई०) तथा गैलीनस (253-268 ई०) नामक महत्त्वपूर्ण शासकों ने शासन किया।

→ तीसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य को सबसे भयंकर संकट का सामना करना पड़ा। ससानी वंश के शासक शापुर प्रथम ने पूर्वी रोमन साम्राज्य की राजधानी एंटिओक पर कब्जा कर लिया था। इस काल में जर्मन मूल की अनेक जातियों ने अपने आक्रमणों के कारण रोमन साम्राज्य को गहरा आघात पहुँचाया। इस समय रोमन साम्राज्य राजनीतिक पक्ष से भी बहुत कमजोर हो चुका था।

→ केवल 47 वर्षों के दौरान वहाँ 25 सम्राट सिंहासन पर बैठे। रोमन साम्राज्य में फैली अराजकता के कारण वहाँ विद्रोह एवं लूटमार एक सामान्य बात हो गई थी। वहाँ फैले भयानक अकालों एवं प्लेग ने स्थिति को अधिक विस्फोटक बना दिया था।

→ सम्राट् डायोक्लीशियन ने अपने शासनकाल (284-305 ई०) के दौरान रोमन साम्राज्य के गौरव को पुनः स्थापित करने के उद्देश्य से अनेक प्रशंसनीय पग उठाए। उसने प्रशासन की कुशलता के उद्देश्य से 285 ई० में रोमन साम्राज्य को दो भागों में विभाजित किया।

→ उसने निकोमेडिया को पूर्वी रोमन साम्राज्य की राजधानी घोषित किया। कांस्टैनटाइन परवर्ती पुराकाल के सम्राटों में सर्वाधिक प्रसिद्ध था। उसने 306 ई० से 337 ई० तक शासन किया। उसने रोमन साम्राज्य की आर्थिक दशा को सुदृढ़ बनाया।

→ इस उद्देश्य से उसने यातायात के साधनों, उद्योगों एवं विदेशी व्यापार को प्रोत्साहित किया। उसने सॉलिडस नामक सोने की मुद्रा चलाई। उसने 313 ई० में ईसाई धर्म को रोमन साम्राज्य का राज्य धर्म घोषित किया। उसने 330 ई० में कुंस्तुनतुनिया को रोमन साम्राज्य की राजधानी बनाया।

→ निस्संदेह रोमन साम्राज्य के गौरव को स्थापित करने में उसने उल्लेखनीय योगदान दिया। बाद में अनेक कारणों से रोमन साम्राज्य का पतन हो गया। रोमन समाज तीन श्रेणियों में विभाजित था। प्रथम श्रेणी में अभिजात वर्ग के लोग सम्मिलित थे।

→ वे बहत ऐश्वर्य का जीवन व्यतीत करते थे। मध्य श्रेणी में सैनिक, व्यापारी एवं किसान सम्मिलित थे। वे भी अच्छा जीवन व्यतीत करते थे। रोमन समाज का अधिकाँश वर्ग निम्नतर श्रेणी से संबंधित था। इसमें मज़दूर एवं दास सम्मिलित थे। वे अधिक मेहनत के बावजूद नरक समान जीवन व्यतीत करते थे। उस समय रोमन समाज में एकल परिवार प्रणाली प्रचलित थी। परिवार में पत्र का होना आवश्यक समझा जाता था।

→ उस समय रोमन समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी। वे शिक्षित होती थीं। उन्हें संपत्ति का अधिकार प्राप्त था। रोम के लोग आर्थिक पक्ष से एक खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे। इसका कारण यह था कि उस समय कृषि, उद्योग एवं व्यापार काफी उन्नत थे। उस समय रोम के लोग अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे।

→ जूपिटर उनका प्रमुख देवता था। उस समय रोमन लोग अपने सम्राट की उपासना भी करते थे। उस समय रोमन साम्राज्य में मिथ्र धर्म एवं यहूदी धर्म प्रचलित थे। ईसाई धर्म का उत्थान इस काल की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। दास प्रथा का रोमन समाज में व्यापक प्रचलन था।

→ ऑगस्ट्स के शासनकाल में कुल 75 लाख की जनसंख्या में 30 लाख दास थे। उस समय अमीर लोग दास रखना अपनी एक शान समझते थे। उस समय युद्धबंदियों को दास बनाया जाता था। कुछ लोग ग़रीबी के कारण अपने बच्चों को दास के रूप में बेच देते थे।

→ रोमन समाज में स्त्री दासों की संख्या बहुत अधिक थी। पुरुष उन्हें केवल एक विलासिता की वस्तु समझते थे। दासों के मालिक अपने दासों के साथ अमानुषिक व्यवहार करते थे। अनेक बार दास बाध्य होकर विद्रोह भी कर देते थे। रोमन सम्राटों हैड्रियन, मार्क्स आरेलियस, कांस्टैनटाइन एवं जस्टीनियन ने दास प्रथा का अंत करने के प्रयास किए। दास प्रथा के रोमन साम्राज्य पर दूरगामी प्रभाव पड़े। रोमन साम्राज्य के इतिहास की जानकारी के लिए हमारे पास अनेक प्रकार के स्रोत उपलब्ध हैं।

→ इन स्रोतों को तीन वर्गों-पाठ्य सामग्री (texts), दस्तावेज (documents) एवं भौतिक अवशेष (material remains) में विभाजित किया जाता है। पाठ्य स्रोतों में समकालीन व्यक्तियों द्वारा लिखा गया उस काल का इतिहास सम्मिलित था। इसे वर्ष वृत्तांत (Annals) कहा जाता था क्योंकि यह प्रत्येक वर्ष लिखा जाता था। इसके अतिरिक्त इसमें पत्र, व्याख्यान (speeches), प्रवचन (sermons) एवं कानून आदि भी सम्मिलित थे।

→ दस्तावेजी स्रोत मुख्य रूप से पैपाइरस पेड़ के पत्तों पर पाँडुलिपियों के रूप में मिलते हैं। इन्हें लिखने वाले विद्वानों को पैपाइरोलोजिस्ट (papyrologists) अथवा पैपाइरस शास्त्री कहा जाता है। पैपाइरस एक प्रकार का पौधा था जो मिस्र में नील नदी के किनारे बड़ी मात्रा में उपलब्ध था। भौतिक अवशेषों में भवन, स्मारक, सिक्के, बर्तन आदि सम्मिलित हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

HBSE 11th Class Geography प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर का चयन करें-

1. निम्नलिखित में से भारत के किस राज्य में बाढ़ अधिक आती है?
(A) बिहार
(B) पश्चिमी बंगाल
(C) असम
(D) उत्तर प्रदेश
उत्तर:
(A) बिहार

2. उत्तरांचल अब उत्तराखण्ड के किस जिले में मालपा भूस्खलन आपदा घटित हुई थी?
(A) बागेश्वर
(B) चंपावत
(C) अल्मोड़ा
(D) पिथौरागढ़
उत्तर:
(D) पिथौरागढ़

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

3. निम्नलिखित में से कौन-से राज्य में सर्दी के महीनों में बाढ़ आती है?
(A) असम
(B) पश्चिमी बंगाल
(C) केरल
(D) तमिलनाडु
उत्तर:
(D) तमिलनाडु

4. इनमें से किस नदी में मजौली नदीय द्वीप स्थित है?
(A) गंगा
(B) बह्मपुत्र
(C) गोदावरी
(D) सिंधु
उत्तर:
(B) बह्मपुत्र

5. बर्फानी तूफान किस प्रकार की प्राकृतिक आपदा है?
(A) वायुमंडलीय
(B) जलीय
(C) भौमिकी
(D) जीवमंडलीय
उत्तर:
(A) वायुमंडलीय

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
संकट किस दशा में आपदा बन जाता है?
उत्तर:
संकट से हमारा तात्पर्य उन प्राकृतिक तत्त्वों से है जिनमें जान-माल को क्षति पहुँचाने की सम्भाव्यता होती है जैसे नदी के तट पर बसे लोगों के लिए नदी एक संकट है क्योंकि नदी में कभी भी बाढ़ आ सकती है। संकट उस समय आपदा बन जाता है, जब वह अचानक उत्पन्न हो और उससे निपटने के लिए पूर्ण तैयारी भी न हो।

प्रश्न 2.
हिमालय और भारत के उत्तर:पूर्वी क्षेत्रों में अधिक भूकम्प क्यों आते हैं?
उत्तर:
इसका कारण यह है कि इण्डियन प्लेट उत्तर और उत्तर:पूर्व दिशा में 1 सें०मी० खिसक रही है और यूरेशियन प्लेट से टकराकर ऊर्जा निर्मुक्त करती है जिससे इस क्षेत्र में भूकम्प आते हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 3.
उष्ण कटिबन्धीय तूफान की उत्पत्ति के लिए कौन-सी परिस्थितियाँ अनुकूल हैं?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय तूफान की उत्पत्ति के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. महासागरीय तल का तापमान 27°C से अधिक हो ताकि तूफान को अधिक मात्रा में आर्द्रता मिल सके जिससे बहुत बड़ी मात्रा में गुप्त ऊष्मा निर्मुक्त हो।
  2. तीव्र कॉरियालिस बल जो केन्द्र के निम्न वायुदाब को भरने न दे।
  3. क्षोभमंडल में अस्थिरता जिससे स्थानीय स्तर पर निम्न वायुदाब क्षेत्र बनते जाते हैं।

प्रश्न 4.
पूर्वी भारत की बाढ़, पश्चिमी भारत की बाढ़ से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
पूर्वी भारत की नदियों में बाढ़ बार-बार आती है जिसका कारण है वहाँ मानसून की तीव्रता, जबकि पश्चिमी भारत में बाढ़ कभी-कभी आती है। इसके अतिरिक्त पूर्वी भारत में बाढ़ अधिक विनाशकारी होती है जबकि पश्चिमी भारत की बातें कम विनाशकारी होती हैं।

प्रश्न 5.
पश्चिमी और मध्य भारत में सूखे ज्यादा क्यों पड़ते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी और मध्य भारत में वर्षा बहुत कम होती है जिसके कारण भूतल पर जल की कमी हो जाती है। पश्चिमी भाग मरुस्थलीय और मध्यवर्ती भाग पठारी लेने के कारण भी सूखे के स्थिति पैदा होती है। अतः कम वर्षा, अत्यधिक वाष्पीकरण और जलाशयों तथा भूमिगत जल के अत्यधिक प्रयोग से सूखे की स्थिति पैदा होती है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
भारत में भू-स्खलन प्रभावित क्षेत्रों की पहचान करें और इस आपदा से निवारण के कुछ उपाय बताएँ।
उत्तर:
भारत में भू-स्खलन प्रभावित क्षेत्रों को निम्नलिखित भागों में बाँटा गया है-
1. अत्यधिक सुभेद्यता वाले क्षेत्र-अस्थिर हिमालय की युवा पर्वत श्रृंखलाएँ, अण्डमान और निकोबार, पश्चिमी घाट और अधिक वर्षा वाले क्षेत्र, उत्तर:पूर्वी क्षेत्र, भूकम्प प्रभावी क्षेत्र और अत्यधिक मानव गतिविधियों वाले क्षेत्र अत्यधिक सुभेद्यता क्षेत्र के अन्तर्गत रखे गए हैं।

2. अधिक सुभेद्यता वाले क्षेत्र इस क्षेत्र में हिमालय क्षेत्र के सारे राज्य और उत्तर:पूर्वी भाग (असम को छोड़कर) शामिल किए गए हैं।

3. मध्यम और कम सुभेद्यता वाले क्षेत्र-इसके अन्तर्गत ट्रांस हिमालय के कम वृष्टि वाले क्षेत्र, लद्दाख और हिमाचल प्रदेश में कम वर्षा वाले क्षेत्र, पश्चिमी व पूर्वी घाट के व दक्कन पठार के वृष्टि छाया क्षेत्र शामिल हैं। जहाँ कभी-कभी भू-स्खलन होता है।

4. अन्य क्षेत्र अन्य क्षेत्रों में राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल (दार्जिलिंग को छोड़कर) असम और दक्षिण प्रान्तों के तटीय क्षेत्र भी भू-स्खलन युक्त हैं।

भू-स्खलन निवारण के उपाय-भू-स्खलन निवारण के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग उपाय होने चाहिएँ, जो निम्नलिखित हैं-

  • अधिक भू-स्खलन वाले क्षेत्रों में सड़क और बाँध निर्माण कार्य पर प्रतिबन्ध होना चाहिए।
  • स्थानान्तरी कृषि वाले क्षेत्रों में (उत्तर:पूर्वी भाग) सीढ़ीनुमा खेत बनाकर कृषि की जानी चाहिए।
  • पर्वतीय क्षेत्रों में वनीकरण को बढ़ावा देना चाहिए।
  • जल-बहाव को कम करने के लिए बाँधों का निर्माण किया जाना चाहिए।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

प्रश्न 2.
सुभेद्यता क्या है? सूखे के आधार पर भारत को प्राकृतिक आपदा भेद्यता क्षेत्रों में विभाजित करें और इसके निवारण के उपाय बताएँ।
उत्तर:
सुभेद्यता का अर्थ सुभेद्यता किसी व्यक्ति, जन-समूह या क्षेत्र में हानि पहुँचाने का भय है जिससे वह व्यक्ति, जन-समूह या क्षेत्र प्रभावित होता है।

भारत के प्राकृतिक आपदा भेद्यता क्षेत्रों का विभाजन-भारत को सूखे के आधार पर निम्नलिखित प्राकृतिक आपदा वाले भेद्यता क्षेत्रों में बाँटा गया है-
(1) अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र-राजस्थान का अधिकांश भाग विशेषकर अरावली के पश्चिम में स्थित मरुस्थली और गुजरात का कच्छ क्षेत्र अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र है। यहाँ 90 मि०मी० से कम औसत वार्षिक वर्षा होती है।

(2) अधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र-इसमें राजस्थान का पूर्वी भाग, मध्य प्रदेश के अधिकांश भाग, महाराष्ट्र के पूर्वी भाग, आन्ध्र प्रदेश के अन्दरूनी भाग, कर्नाटक का पठार, तमिलनाडु के उत्तरी भाग, झारखण्ड के दक्षिणी भाग और ओ आते हैं।

(3) मध्यम सूखा प्रभावित क्षेत्र इस वर्ग में राजस्थान के पूर्वी भाग, हरियाणा, उत्तर:प्रदेश के दक्षिणी जिले, कोंकण को छोड़कर महाराष्ट्र, झारखण्ड, तमिलनाडु में कोयम्बटूर पठार और आन्तरिक कर्नाटक शामिल हैं।

भारत के शेष भाग में बहुत कम या न के बराबर सूखा पड़ता है।
सूखा निवारण के उपाय-

  • सूखा निवारण के लिए सरकार द्वारा राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर अनेक योजनाएँ चलानी चाहिए।
  • भूजल के भंडारों की खोज के लिए सुदूर संवेदन, उपग्रह मानचित्रण तथा भौगोलिक सूचना तंत्र जैसी विविध युक्तियों का उपयोग किया जाना चाहिए।
  • लोगों के सक्रिय सहयोग से वर्षा के जल संग्रहण के समन्वित कार्यक्रम भी अपनाए जाने चाहिए।
  • जल संग्रह के लिए छोटे बाँधों का निर्माण, वन रोपण तथा सूखारोधी फसलें उगानी चाहिए।

प्रश्न 3.
किस स्थिति में विकास कार्य आपदा का कारण बन सकता है?
उत्तर:
विकास कार्य निम्नलिखित परिस्थितियों में संकट का कारण बन सकते हैं-

  1. मानव द्वारा ऊँचे बाँधों का निर्माण गम्भीर संकट पैदा कर सकता है। यदि इस प्रकार का बाँध टूट जाए तो निकटवर्ती क्षेत्र डूब सकता है।
  2. पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क निर्माण कार्य भू-स्खलन का प्रमुख कारण बन सकता है।
  3. बड़े स्तर पर पेड़ों की कटाई से कई प्रकार के संकट पैदा होते हैं। इससे अपरदन क्रिया तेज होती है तथा पारिस्थितिक सन्तुलन बिगड़ सकता है।
  4. नगरीकरण तथा औद्योगीकरण की बढ़ती प्रवृत्तियाँ सारे वायुमंडल को प्रदूषित कर रही हैं। उद्योगों से CO2 गैस और CFC का विसर्जन गम्भीर संकट पैदा कर सकता है।
  5. उद्योगों से अर्थव्यवस्था का विकास होता है लेकिन औद्योगिक दुर्घटना कई बार आपदा का रूप ले लेता है; जैसे भोपाल गैस कांड में काफी लोग मारे गए थे।

प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ HBSE 11th Class Geography Notes

→ आपदा (Disaster) जल, स्थल अथवा वायुमंडल में उत्पन्न होने वाली ऐसी घटना या बदलाव जिसके कुप्रभाव से विस्तृत क्षेत्र में जान-माल की हानि और पर्यावरण का अवक्रमण होता है, आपदा कहलाती है।

→ संकट (Hazards) वह वस्तु या हालात जिससे आपदा आ सकती है, संकट कहलाती है।

→ भूकम्प (Earthquake)-पृथ्वी की भीतरी हलचलों के कारण जब धरातल का कोई भाग अकस्मात काँप उठता है तो उसे भूकम्प कहते हैं।

→ सुनामी (Tsunami) बंदरगाह पर आने वाली ऊँची लहरें अथवा भूकम्पीय लहरें।

→ भूस्खलन (Landslide)-पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के प्रभावाधीन पर्वतीय क्षेत्रों में छोटी शिलाओं से लेकर काफी बढ़े भू-भाग के ढलान के नीचे की तरफ सरकने या खिसकने की क्रिया को भूस्खलन कहा जाता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. जैव-विविधता में शामिल हैं
(A) पेड़-पौधे
(B) अति सूक्ष्म जीवाणु
(C) जीव-जंतु
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

2. भारत में लगभग कितनी पादप प्रजातियाँ पाई जाती हैं?
(A) लगभग 25,000
(B) लगभग 30,000
(C) लगभग 45,000
(D) लगभग 50,000
उत्तर:
(C) लगभग 45,000

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

3. भारत में कितनी जीव प्रजातियाँ पाई जाती हैं?
(A) लगभग 75,261
(B) लगभग 81,251
(C) लगभग 85,271
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) लगभग 81,251

4. समान भौतिक लक्षणों वाले जीवों के समूह को क्या कहते हैं?
(A) समाज
(B) प्रजाति
(C) जीन
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) प्रजाति

5. भारत में पाई जाने वाली कुल पक्षी प्रजातियों में से कितने % स्थानिक हैं?
(A) 12%
(B) 14%
(C) 18%
(D) 25%
उत्तर:
(B) 14%

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

6. ‘World Wild Life Fund’ की स्थापना कब की गई?
(A) 1950
(B) 1952
(C) 1955
(D) 1962
उत्तर:
(B) 1952

7. ‘World Wild Life Fund’ -WWF का मुख्यालय है-
(A) न्यूयार्क
(B) लंदन
(C) पेरिस
(D) स्विट्ज़रलैंड
उत्तर:
(D) स्विट्ज़रलैंड

8. 1992 में ब्राजील के रियो-डी-जेनेरो में जैव-विविधता के पृथ्वी शिखर सम्मेलन में कितने देशों ने हस्ताक्षर किए?
(A) 152
(B) 154
(C) 156
(D) 158
उत्तर:
(C) 156

9. भारत में कितने जीवमंडल आरक्षित क्षेत्र स्थापित किए गए हैं?
(A) 12
(B) 14
(C) 16
(D) 18
उत्तर:
(B) 14

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
जैव-विविधता का संरक्षण किसके लिए महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
सभी जीवधारियों के लिए।

प्रश्न 2.
समान. भौतिक लक्षणों वाले जीवों के समूह को क्या कहते हैं?
उत्तर:
प्रजाति।

प्रश्न 3.
‘World Wild Life Fund’ की स्थापना कब की गई?
उत्तर:
सन् 1962 में।

प्रश्न 4.
‘World Wild Life Fund’ (WWF) का मुख्यालय कहाँ है?
उत्तर:
स्विट्ज़रलैंड में।

प्रश्न 5.
जीवन-निर्माण के लिए एक मूलभूत इकाई बताएँ।
उत्तर:
जीवन-निर्माण के लिए जीन (Gene) एक मूलभूत इकाई है।

प्रश्न 6.
भारत में वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम कब पास हुआ?
उत्तर:
भारत में वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम सन् 1972 में पास हुआ।

प्रश्न 7.
पंजाब में स्थित एक तराई क्षेत्र का नाम बताएँ।
उत्तर:
हरिके तराई क्षेत्र (Wetland)।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

प्रश्न 8.
जैव-विविधता विश्व सम्मेलन कब और कहाँ हआ?
उत्तर:
यह 1922 ई० में रियो डी जेनेरो में हुआ।

प्रश्न 9.
जैव-विविधता के संरक्षण का एक उपाय बताएँ।
उत्तर:
जैव-विविधता संरक्षण का एक उपाय कृत्रिम संरक्षण है।

प्रश्न 10.
मानव आनुवांशिक रूप से किस प्रजाति से संबंधित है?
उत्तर:
मानव आनुवांशिक रूप से होमोसेपियन प्रजाति से संबंधित है।

प्रश्न 11.
भारत में तट-रेखा की लम्बाई बताएँ।
उत्तर:
भारत की तट-रेखा लगभग 7500 किलोमीटर लम्बी है।

प्रश्न 12.
किन्हीं दो संकटापन्न प्रजातियों के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. रेड पांडा
  2. बाघ

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
टैक्सोनोमी क्या है?
उत्तर:
जीवों के वर्गीकरण के विज्ञान को टैक्सोनोमी कहते हैं।

प्रश्न 2.
तप्त स्थल क्या है?
उत्तर:
संसार के जिन क्षेत्रों में प्रजातीय विविधता पाई जाती है, उन्हें विविधता के ‘तप्त स्थल’ कहा जाता है।

प्रश्न 3.
आनुवंशिकी क्या है?
उत्तर:
आनुवंशिक लक्षणों के पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचरण की विधियों और कारणों के अध्ययन को आनुवंशिकी कहते हैं।

प्रश्न 4.
आनुवंशिकता क्या है?
उत्तर:
जीवधारियों की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में विभिन्न लक्षणों के प्रेक्षण या संचरण को आनुवंशिकता कहते हैं।

प्रश्न 5.
प्रजाति का विलुप्त होना क्या है?
उत्तर:
प्रजाति के विलुप्त होने का अभिप्राय है कि उस प्रजाति का अन्तिम सदस्य भी मर गया है।

प्रश्न 6.
भारत के प्राचीनतम राष्ट्रीय उद्यान (National Park) का नाम लिखें। इसकी स्थापना कब की गई थी?
उत्तर:
भारत का प्राचीनतम राष्ट्रीय उद्यान कोर्बेट राष्ट्रीय उद्यान (Corbet National Park) है। इसकी स्थापना सन् 1936 में की गई थी।

प्रश्न 7.
जैव-विविधता के विभिन्न स्तर क्या हैं?
उत्तर:
जैव-विविधता को निम्नलिखित तीन स्तरों पर समझा जाता है-

  1. आनुवांशिक जैव-विविधता
  2. प्रजातीय जैव-विविधता
  3. पारितन्त्रीय जैव-विविधता।

प्रश्न 8.
जैव-विविधता संरक्षण के मुख्य उद्देश्य बताएँ।
उत्तर:

  1. जैव-विविधता का संरक्षण तथा संवर्द्धन।
  2. पारिस्थितिकीय प्रक्रियाओं और जैव भू-रसायन चक्रों को बनाए रखना।
  3. पारितन्त्रों की उत्पादकता एवं प्रजातियों के स्थायी उपयोग को निश्चित करना।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘मानव अस्तित्व के लिए जैव-विविधता अति आवश्यक है।’ अपने तर्क देकर स्पष्ट करें।
अथवा
जैव विविधता का संक्षिप्त महत्त्व लिखिए।
उत्तर:
मानव पर्यावरण एक प्रमुख घटक है। जैव-मण्डल में वह एक उपभोक्ता की भूमिका भी निभाता है। वस्तुतः मानव का अस्तित्व जैव-विविधता पर ही आधारित है, क्योंकि जीवन की सारी आवश्यकताओं की पूर्ति जैव-विविधता से ही होती है; जैसे खाद्य सामग्री, प्राणदायिनी ऑक्सीजन, ईंधन, जीवन रक्षक दवाइयाँ और जीवनोपयोगी अन्य समान भी उसे वनस्पति और जीव-जन्तुओं से ही प्राप्त होता है।

प्रश्न 2.
मनुष्य को जैव-विविधता से खाद्य पदार्थ किस प्रकार प्राप्त होते हैं?
उत्तर:
विभिन्न पारितन्त्रों में रहने वाले मानवों की खाद्य आदतें (Food Habits) काफी हद तक उस पारितन्त्र में मिलने वाले खाद्य पदार्थ से बनती हैं। उदाहरण के लिए समुद्रों के समीप रहने वाले लोग समुद्री जीवों (मछली आदि) का भक्षण करते हैं। इसी प्रकार मैदानों में रहने वाले लोग वहाँ पैदा होने वाले अनाजों से अपना भोजन ग्रहण करते हैं। इसी प्रकार वनों में रहने वाले लोग वनों में उपलब्ध फलों तथा पशु-पक्षियों को खाकर अपना पेट भरते हैं। संक्षेप में, कहा जाए तो सभी प्रकार के अनाज, फल, सब्जियाँ, माँस, मसाले, तेल, चाय, कॉफी व अन्य खाद्य पदार्थों की आपूर्ति जीवों व वनस्पतियों से ही होती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

प्रश्न 3.
‘प्राणदायिनी ऑक्सीजन का आधार भी जैव-विविधता ही है।’ उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मनुष्य भोजन व पानी के बगैर तो कुछ समय तक जीवित रह सकता है, परन्तु ऑक्सीजन के बिना तो वह कुछ मिनट भी नहीं जी सकता। वस्तुतः मानव सहित सभी जीवों का अस्तित्व प्राणदायिनी ऑक्सीजन पर निर्भर है। यह प्राणदायिनी ऑक्सीजन हमें वृक्षों से प्राप्त होती है। वृक्षों से जीवों को ऑक्सीजन प्राप्त होती है तथा वृक्ष पर्यावरण से कार्बन-डाइऑक्साइड ग्रहण करते हैं। यदि हम वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई करते हैं तो इसका अवसर पर्यावरण में उपस्थित ऑक्सीजन व अन्य गैसों पर भी पड़ेगा, जिसका असर मानव स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।

प्रश्न 4.
“जैव-विविधता औषधियों के लिए खजाना है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जैव-विविधता से हमें अनेक प्रकार की औषधियाँ प्राप्त होती हैं। मनुष्य प्रागैतिहासिक काल से ही जड़ी-बूटियों तथा जीवों का औषधियों के लिए प्रयोग करता रहा है। कहते हैं कि सर्वप्रथम चीन में वनस्पतियों का औषधियों के लिए प्रयोग किया गया। हमारे ऋग्वेद व अन्य वेदों में सैकड़ों जड़ी-बूटियों का उल्लेख है, जो हमें वनस्पतियों से मिलती थीं। चरक संहिता में वनस्पतियों की औषधियों से गम्भीर रोगों के निदान के फार्मूले दिए गए हैं। आयुर्वेद में जड़ी-बूटियों से विभिन्न औषधियों द्वारा रोगों का निदान किया जाता रहा है। आज भारत और विश्व में अनेक रोगों से सम्बन्धित औषधियाँ वनस्पति जीवों से प्राप्त की जा रही हैं।

प्रश्न 5.
जैव-विविधता के संरक्षण की आवश्यकता क्यों है?
अथवा
जैव-विविधता के संरक्षण के उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
मानव सहित पृथ्वी का भविष्य जैव-विविधता पर निर्भर है परन्तु पिछली तीन शताब्दियों से प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया गया है, इससे जैव-विविधता को खतरा उत्पन्न हो गया है। अतः जैव-विविधता का संरक्षण पर्यावरण और मानव के लिए अत्यधिक जरूरी है। जैव-विविधता के संरक्षण के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं–

  • जैव-विविधता का संरक्षण तथा संवर्द्धन।
  • पारिस्थितिकीय प्रक्रियाओं और जैव भू-रसायन चक्रों को बनाए रखना।
  • पारितन्त्रों की उत्पादकता एवं प्रजातियों के स्थायी उपयोग को निश्चित करना।

प्रश्न 6.
खतरे में पड़ चुके जैव-विविधता क्षेत्र का क्या अर्थ है?
उत्तर:
विश्व की जैव-विविधता विशेष भौगोलिक परिस्थितियों तथा जलवायु के कारण विशेष प्रकार के इकोलोजिकल क्षेत्रों में विभाजित है। परन्तु मानवीय गतिविधियों खासतौर पर औद्योगिक क्रान्ति के बाद जैव-विविधता के अन्धाधुन्ध दोहन से ऐसे क्षेत्र खतरे में पड़ चुके हैं। उदाहरण के लिए भारतीय पश्चिमी घाट, उत्तर-पूर्व क्षेत्र तथा अण्डमान-निकोबार खतरे में पड़ चुके क्षेत्र हैं।

प्रश्न 7.
‘सभी भौतिक तत्त्व सजीवों (Living Organism) को प्रभावित करते हैं। बताइए कैसे?
उत्तर:
पारिस्थितिक तन्त्र क्रियाशील रहता है अर्थात पारितन्त्र के घटकों में आपस में अन्तक्रिया सदैव चलती रहती है। पारितन्त्र की इस क्रियाशीलता में ऊर्जा प्रवाह (Energy Flow), पोषक तत्त्वों का चक्र, जीवों की अन्तक्रिया तथा पर्यावरण नियन्त्रण शामिल होता है जो सामूहिक रूप से इस तन्त्र को चलाते हैं। यह सारी क्रिया एक चक्र के रूप में चलती रहती है, जिसे जैव भू-रासायनिक चक्र (Biogeochemical Cycle) के नाम से जाना जाता है। जैव भू-रासायनिक चक्र में सूर्य ऊर्जा का प्रमुख स्रोत होता है, जो जलवायु व्यवस्था के अनुसार ऊर्जा प्रदान करता है। इन भौतिक तत्त्वों से ही सजीव तत्त्व अपना भोजन बनाते हैं या प्राप्त करते हैं। वस्तुतः प्रकृति के भौतिक तत्त्व सजीवों को जीवन का आधार प्रदान करते हैं।

प्रश्न 8.
आवासों की क्षति का जैव-विविधता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
प्रकृति का वह स्थान जहाँ जीव वास एवं अपना विकास करते हैं, आवास स्थान कहलाता है। कृषि क्षेत्र के विस्तार, औद्योगीकरण तथा अनेक विकास योजनाओं के परिणामस्वरूप आज तेजी से जीवों के आवास स्थल नष्ट हो रहे हैं। जंगल नष्ट होने से हाथी, शेर व अन्य छोटे-मोटे सभी जानवरों की प्रजातियाँ खतरे में पड़ गई हैं। इसी प्रकार जल-प्रदूषण व विकास योजनाओं के कारण नदी, झील व समुद्र के आवास भी नष्ट होते जा रहे हैं। पानी के जीवों की दुनिया भी उजड़ रही है।

प्रश्न 9.
‘प्रदूषण जैव-विविधता के लिए खतरनाक है।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण प्रदूषण जैव-विविधता के लिए प्रमुख खतरा बन गया है। इससे प्राकृतिक आवासों में बदलाव आने से इकोसिस्टम की कार्य-प्रणाली प्रभावित होती है। नदियों के प्रदूषित होने से नदियों तथा डेल्टा के प्राणियों का अत्यधिक नुकसान हुआ है। इसी प्रकार झीलों, तालाबों, समुद्रों इत्यादि के पानी में भी पीड़क, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन और तेल से जलीय जीव खतरे में पड़ रहे हैं। पर्यावरण प्रदूषण से मौसम में परिवर्तन, तापमान में वृद्धि, ओजोन परत में छेद सभी जैव-विविधता के लिए खतरे का कारण बनते जा रहे हैं।

प्रश्न 10.
प्रकृति में सन्तुलन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
लाखों-करोड़ों वर्षों के अन्तराल में पृथ्वी पर प्राकृतिक व्यवस्था कायम हुई तथा इसमें सन्तुलन बनता चला गया। धरातलीय परिवर्तन, मौसम में परिवर्तन, जीवों की पुरानी प्रजातियाँ विलुप्त हुईं तथा नई प्रजातियाँ आईं। ये सभी घटनाएँ प्राकृतिक थीं-चाहे वे विपदाएँ हों या विकास की घटनाएँ या मौसम में परिवर्तन या प्रजातियों का लुप्त होना या उनका विकास इत्यादि। ये घटनाएँ एक लम्बे अन्तराल में हुआ करती थीं। इसलिए उन्हें पुनः परस्पर सन्तुलित होने, आपसी समन्वय और समायोजन का जैव-विविधता एवं संरक्षण अवसर मिल जाया करता था। एक प्रजाति विलुप्त होती थी तो उसकी जगह नई प्रजाति स्वयं ही पैदा हो जाती थी। इस प्रकार जैव-विविधता व परस्पर उनकी निर्भरता बनी रहती थी। हम कह सकते हैं कि प्राकृतिक कारणों से प्रकृति मूलतः नष्ट नहीं हुआ करती। उसका स्वरूप बदल जाया करता है। मसलन अपने विकास के बाद धरती पर जंगल कभी नष्ट नहीं हुए, हाँ उनका स्वरूप जरूर बदल गया।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जैव-विविधता की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जैव-विविधता-जैव-विविधता से तात्पर्य पृथ्वी पर (जैवमण्डल में) जीवन की सम्पूर्ण विविधता से है अर्थात् स्थल व जल में सभी प्रकार के सूक्ष्मजीवों (Micro Organisms), वनस्पति जगत (Plants) व जानवरों का जोड़ ही जैव-विविधता है। विश्व संसाधन संस्थान (World Resources Institute) द्वारा जैव-विविधता की अवधारणा पर प्रकाश डालते हुए स्पष्ट किया है कि जैव-विविधता विश्व में जीवों की विविधता है, जिसमें आनुवंशिक विविधता (Genetic Diversity) तथा उनके द्वारा बनाया गया समुच्चय शामिल होता है।

यह प्राकृतिक जैव सम्पदा का पर्याय है, जो मानव जीवन व उसके कल्याण में सहायक है। इस अवधारणा में आनुवंशिक प्रजातियों व पारितन्त्रों के बीच पारस्परिक अन्तर्सम्बन्धता झलकती है। उल्लेखनीय है कि गुणसूत्र (Genes) प्रजातियों के घटक होते हैं तथा प्रजातियाँ पारितन्त्रों की घटक होती हैं। अतः इनमें से किसी भी स्तर में कोई भी परिवर्तन दूसरे को बदल देता है। वस्तुतः प्रजातियाँ जैव-विविधता की अवधारणा का केन्द्र बिन्दु हैं।

रियो डी जेनेरो (1992 ई०) ने जैव-विविधता के विश्व सम्मेलन (Global Convention on Biological Diversity) में जैव-विविधता को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है-“Biological diversity is the variability among living organisms from all sources including inter alia, terrestrial, marine and other aquatic. Eco-systems and the ecological complexes of which they are a part, this includes diversity with in species and eco-system.”

‘जैव-विविधता’ अपेक्षाकृत नया शब्द है। यह जैविक विविधता (Biological Diversity) का संक्षिप्त रूप है। ‘जैविक विविधता’ शब्द का प्रयोग 1980 ई० के आसपास एक क्षेत्र में उपस्थित प्रजातियों के सन्दर्भ में ई.ओ. विल्सन (E.O. Wilson) द्वारा किया गया। जबकि ‘जैव-विविधता’ की परिकल्पना में बहुत-सी बातें शामिल हैं। विशेष रूप से प्रजातियाँ व आवासों की हानि, जैविक संस्थाओं का उपयोग, महत्त्व तथा प्रबन्धन विषय इसके अन्तर्गत आते हैं। जैव-विविधता में इसके संरक्षण के लिए तत्काल कार्रवाई को भी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। वस्तुतः रियो पृथ्वी सम्मेलन में जैव-विविधता की अवधारणा ने जन-साधारण का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है।

प्रश्न 2.
‘मानव हस्तक्षेप ने प्राकृतिक सन्तुलन में गड़बड़ी पैदा कर दी है।’ कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आज प्रकृति में मानव के हस्तक्षेप के कारण प्राकृतिक सन्तुलन में गड़बड़ी पैदा हो चुकी है। उसके विभिन्न अंगों, घटकों को जोड़ने वाली कड़ियाँ टूट चुकी हैं। निरन्तर जटिल प्रक्रियाओं वाली प्रकृति से कई प्रक्रियाएँ लुप्त हो चुकी हैं। पर्यावरण में बड़ी तेजी से हानिकारक एवं जहरीले पदार्थ फैलते जा रहे हैं, जो प्राकृतिक नहीं बल्कि कृत्रिम प्रक्रियाओं की देन है।

जो प्राकृतिक विनाश पहले लाखों-करोड़ों वर्षों से होता था, अब वह केवल कुछ ही सदियों, यहाँ तक कि मात्र कुछ दशकों में ही हो रहा है। विनाश की अवधि कम हो रही है, उसकी तीव्रता एवं व्यापकता बढ़ती जा रही है। बड़े पैमाने पर प्रकृति का विनाश मूलतः औद्योगिक क्रान्ति से आरम्भ हुआ। जनसंख्या में वृद्धि एवं प्रकृति-दोहन की नित-नई तकनीक ने इस विनाश को असाधारण रूप से बढ़ा दिया है।

इस प्रकार आज मानव-जनित प्रदूषण तथा प्रकृति विनाश कोई स्वाभाविक-प्राकृतिक प्रक्रिया न होकर कृत्रिम सामाजिक प्रक्रिया है। यह विनाश एवं प्रदूषण अब ऐसे बिन्दु पर बड़ी तेजी से पहुँचता जा रहा है, जहाँ से वापस लौटना असम्भव-सा होगा, कुछ अर्थों और क्षेत्रों में वह बिन्दु पहुँच भी चुका है। इसलिए आज जब हम प्रकृति के विनाश और प्रदूषण की बात कर रहे हैं तो मानव-जनित प्रक्रिया की बात कर रहे हैं। प्रकृति एवं पर्यावरण में फैलता प्रदूषण हर प्रकार से जीवों के लिए खतरा बन चुका है। प्राणियों एवं वनस्पतियों की समाप्ति का खतरा पैदा हो गया है।

प्रश्न 3.
जैव-विविधता पर्यावरण को स्वस्थ बनाए रखने में किस प्रकार सहायक है?
उत्तर:
जैसा कि हम जानते हैं कि पर्यावरण में मुख्यतः तीन घटक हैं-(1) भौतिक घटक, (2) जैविक घटक व (3) ऊर्जा । भूमि, जल, वायु, मुद्रा, तापमान, वर्षा, आर्द्रता आदि पर्यावरण के भौतिक घटक हैं जबकि पृथ्वी पर उपस्थित पादप व जीव जैव घटक का निर्माण करते हैं। सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा से यह पर्यावरण चलायमान होता है। वस्तुतः ये तीनों घटक आपस में अन्तः सम्बन्धित और परस्पर निर्भर होते हैं। यदि जैविक पयाँवरण (घटक) में कुछ असामान्यता आती है तो उसका प्रतिकूल प्रभाव निश्चित। रूप से पर्यावरण के भौतिक घटकों पर भी पड़ता है। उदाहरण के लिए, वनों की अन्धाधुन्ध कटाई से, जल-चक्र, ऑक्सीजन की मात्रा, मृदा के उपजाऊपन आदि पर सीधा प्रभाव पड़ता है।

इसी तरह वनों की कटाई से पृथ्वी के तापमान, वर्षा आदि भी प्रभावित होते हैं। वनों की कटाई से जीवों के आवास नष्ट होते हैं तथा प्रजातियाँ समाप्त होती हैं। पर्यावरण में कार्बन की मात्रा बढ़ जाती हैं। इससे वायुमण्डल, जलमण्डल बुरी तरह से प्रभावित होते हैं। इसका मानव स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। यह भी उल्लेखनीय है कि मानव सहित सभी जीवों को ऊर्जा पादपों के माध्यम से ही प्राप्त होती है। संक्षेप में, वनस्पति व जीव जगत पर्यावरण का अभिन्न अंग है एवं उसे स्वस्थ बनाए रखने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। वस्तुतः इसी पर मानव का अस्तित्व भी निर्भर है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

प्रश्न 4.
‘जैव-विविधता असीमित नहीं है।’ टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
जैव-विविधता मानव के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संसाधन है। मानव को भोजन, ऑक्सीजन व जीवन के लिए अन्य उपयोगी सामान जैव-विविधता से ही प्राप्त होता है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि मानव का अस्तित्व और उसकी समृद्धि पूरी तरह से जैव-विविधता पर निर्भर है। वनस्पति से एक ओर, जहाँ जीवनोपयोगी उपज प्राप्त होती है तो दूसरी ओर, समस्त जैविक व मानवीय विकास के लिए पादप, कल्याणकारी पर्यावरण की रचना करते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से मानवीय हस्तक्षेप के कारण आज. जैव-विविधता संकट में है, क्योंकि मानव ने इसे असीमित समझकर इसका अन्धाधुन्ध उपयोग करना शुरू कर दिया है।

इससे कई प्रजातियाँ आज विश्व-परिदृश्य से लुप्त हो चुकी हैं तथा कुछ लुप्त होने के कगार पर हैं। दूसरे शब्दों में, यदि कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि लाखों करोड़ों वर्षों में पृथ्वी पर पैदा हुआ ‘जीवन’ मौत के कगार पर है। विश्व पर्यावरण आयोग के अनुसार प्राचीनकाल में पृथ्वी पर पौधों व जीवों की कोई पाँच अरब प्रजातियाँ थीं, जो घटते-बढ़ते वर्तमान में कुछ लाख ही रह गई हैं। विश्व संसाधन संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार यदि उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र वनों की कटाई इस प्रकार निर्बाध रूप से जारी रही तो जल्द ही भूमण्डल के 5 से 10 प्रतिशत तक पादप व वन्य जीव विलुप्त हो जाएँगे।

1. वनस्पति प्रजातियों का कम होना-वनों के बड़े पैमाने पर काटे जाने के कारण कुछ वनस्पतियाँ और वृक्ष प्रजातियाँ आज विलुप्त होने के कगार पर हैं। एक अनुमान के मुताबिक वृक्षों की कम-से-कम 20 प्रजातियाँ आज विलोपन के खतरे से जूझ रही हैं।

2. जीवों का कम होना-वनों की कटाई से वन्य जीवों के आवास स्थान नष्ट होते जा रहे हैं। साथ ही प्राणियों के अवैध शिकार व पारितन्त्रों में प्रदूषण के कारण वन्य तथा जलीय जीवों की संख्या कम होती जा रही है। भारत में भी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं या लुप्त होने के कगार पर हैं। उदाहरण के लिए कश्मीरी हिरण, एशियाई शेर, भारतीय गोरखर, सोन चिड़ियाँ, चीता, हिमाचली बटेर, गलाबी सिर वाली बत्तख आदि पश-पक्षी विलुप्त होते जा रहे हैं। प्राकृतिक संग्रहालय, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित पुस्तिका “वर्ल्ड ऑफ मैमल्स” के आँकड़ों के अनुसार लगभग 44 वन्य जीवों को संकटग्रस्त जीवों की सूची में रखा गया है, जिससे उपरोक्त पशु-पक्षियों के अलावा गगीय डॉल्फिन, लाल पाण्डा, जंगली भैंसा, एशियाई हाथी, सफेद सारस, चिंकारा, अजगर, गेंडा, हिम तेन्दुआ, बाघ, भूरा बारहसिंघा, भूरी बिल्ली आदि मुख्य हैं। इनके अतिरिक्त सुनहरी बिल्ली, जंगली गधा, ओरंग ऊटान, चिम्पैंजी बबून आदि भी शामिल हैं।

प्रश्न 5.
विभिन्न प्रजातियाँ एक-दूसरे पर किस प्रकार अन्तःनिर्भर हैं? अथवा भोजन शृंखला व खाद्य जाल का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जैसा कि हम जानते हैं कि करोड़ों वर्षों के जैविक विकास के दौरान धरती पर विभिन्न पारितन्त्रों का विकास हुआ है। यह पारितन्त्र जीवों की विविधता व ऊर्जा प्रवाह के कारण स्वयं सन्तुलित और गतिमान है। इनमें एक जीव प्रजाति दूसरी प्रजाति पर निर्भर है। यह निर्भरता मुख्यतः उनकी भोजन की जरूरत से विकसित हुई है। सूर्य की ऊर्जा से पौधे अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। पौधों से जीव प्रजातियाँ अपना भोजन प्राप्त करती हैं। फिर जीव दूसरे जीवों को खाकर अपना पेट भरते हैं। इस प्रकार यह भोजन श्रृंखला सभी प्रजातियों को एक-दूसरे से जोड़ती है एवं अन्तः निर्भरता का निर्माण करती है। प्रजातियों में इस अन्तः निर्भरता को हम अग्रलिखित आहार श्रृंखलाओं व आहार जाल से भली-भाँति समझ सकते हैं-
1. भोजन शृंखला (Food Chain) जीवों में ऊर्जा का प्रवाह भोजन शृंखला के माध्यम से होता है। जीवों द्वारा ऊर्जायुक्त पदार्थ या भोजन ग्रहण करने की अपनी आदतें एवं आवश्यकताएँ होती हैं। इससे जीवों में पोषण-स्तर का निर्माण होता है। ऊर्जा का भोजन के माध्यम से एक पोषण स्तर से दूसरे पोषण स्तर में प्रवेश प्रकृति के नियमों के अनुसार होता है। इससे भोजन श्रृंखला का निर्माण होता है।

यह तो सब जानते हैं कि छोटी मछली को बड़ी मछली खाती है और बड़ी मछली को उससे बड़ी मछली खा जाती है, सार रूप में यही भोजन श्रृंखला है। दूसरे शब्दों में “किसी पारिस्थिति तन्त्र में एक जीवधारी से दूसरे जीवधारी में खाद्य ऊर्जा का प्रवाह ही भोजन श्रृंखला है।” हरे पौधे जमीन पोषित तत्त्वों (Nutrients) तथा सूर्य से प्रकाश प्राप्त कर प्रकाश-संश्लेषण द्वारा भोजन तैयार करते हैं। यह उनका अपना भोजन होता है। इस रूप में पौधे प्रथम पोषी तथा जैविक जगत् में उत्पादक कहे जाते हैं।

पौधे से ऊर्जा भोजन के माध्यम से आगे बढ़ती है। पौधों पर शाकाहारी जीव निर्भर हैं। इस प्रकार पौधों से ऊर्जा शाकाहारी जीवों में पहुँचती है। शाकाहारी जीवों से ऊर्जा शाकाहारी जीवों को खाने वाले माँसाहारी जीवों में पहुँचती है। अन्त में ऊर्जा सर्वाहारी जीवों में पहुँचती है। सर्वाहारी जीवों से अभिप्राय है, जो पेड़-पौधों से भी भोजन प्राप्त करते हैं तथा साथ ही शाकाहारी तथा माँसाहारी जीवों को भी ग्रहण करते हैं। एक पारिस्थितिक तन्त्र में भोजन शृंखला ऊर्जा के एकल मार्गीय प्रवाह मार्ग को दर्शाती है। कुछ भोजन शृंखलाओं के उदाहरण निम्नलिखित प्रकार से दर्शाए जा सकते हैं-
पौधे → शाकाहारी → माँसाहारी → सर्वाहारी
पादप → हिरण → शेर
घास → हिरण → मेंढक → सर्प → बाज

2. खाद्य जाल (Food Webs) भोजन श्रृंखला एक जटिल प्रक्रिया है, जो जीवों की खाद्य आदतों के अनुसार चलती है। प्रकृति में यह बहुत ही कम होता है कि खाद्य शृंखलाएँ सीधी ही चलें। एक जीव कई प्रकार से भोजन ग्रहण कर सकता है। यहाँ तक कि एक जीव को अनेक जीवों द्वारा भोजन के रूप में खाया जा सकता है। संक्षेप में, एक पारितन्त्र में भोजन शृंखलाएँ आपस में गुंथी होती हैं, जिससे इन भोजन श्रृंखलाओं का एक जाल बन जाता है। इस प्रकार खाद्य जाल का निर्माण होता है। स्पष्ट है कि भोजन श्रृंखला तथा खाद्य जाल से सभी जीव एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं।

प्रश्न 6.
जैव-विविधता के संरक्षण में ‘प्राकृतिक संरक्षण’ का तरीका कितना कारगर है? वर्णन कीजिए। अथवा प्राकृतिक संरक्षण के लाभ व दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक संरक्षण (In-Situ Conservation) की प्रणाली के द्वारा प्रजातियों का संरक्षण उनके प्राकृतिक वातावरण में ही किया जाता है। इस प्रणाली में वातावरण में मौजूद उन कारकों को समाप्त करने का प्रयास किया जाता है, जिसके कारण जीवों को संकट पैदा होता है, बाकी सम्पूर्ण व्यवस्था प्राकृतिक ही होती है। इस विधि के तहत राष्ट्रीय पार्क (National Park), वन्य जीव अभ्यारण्य (Wild Life Sanctuary) एवं जैवमण्डल संरक्षित क्षेत्र (Biosphere Reserves) का निर्माण कर प्रजातियों को संरक्षण प्रदान किया जाता है। इस विधि से तराई क्षेत्रों (Wetland), मेंग्रोवस (Mangroves) तथा समुद्रों में प्रवाल भित्ति (Coral Reefs) की पहचान कर संरक्षण प्रदान किया जा रहा है।

प्राकृतिक संरक्षण के लाभ/महत्त्व/उपयोगिता-प्राकृतिक संरक्षण के लाभ निम्नलिखित हैं-

  • यह संरक्षण प्रणाली सरल एवं सस्ती है। इसमें मानव एक सहायक के रूप में कार्य करता है।
  • इस प्रणाली से एक साथ अनेक जीव-जन्तुओं की प्रजातियों का संरक्षण किया जा सकता है।
  • इस प्रकार संरक्षण से प्राणी न केवल जीवित रहते हैं, अपितु नए प्रकार के जीवों की उत्पत्ति की प्रक्रिया भी जारी रहती है।

प्राकृतिक संरक्षण के दोष-प्राकृतिक संरक्षण के दोष निम्नलिखित हैं-

  • स्वस्थाने या प्राकृतिक संरक्षण में बड़े भू-खण्ड की आवश्यकता होती है।
  • पारितन्त्र की विशाल जैव-विविधता के कारण संरक्षण के पैमानों को निश्चित करने में कठिनाई होती है।
  • इस प्रकार के संरक्षण से वन में रहने वाले मानव समुदाय को स्थानान्तरित करना पड़ता है।
  • ऐसे संरक्षित क्षेत्रों में चोरी छिपे मानव हस्तक्षेप की सम्भावनाएँ बनी रहती हैं जिससे संकटापन्न प्रजातियों को खतरा बना रहता है।फिर भी यह स्वीकार किया जा सकता है कि प्राकृतिक संरक्षण प्रजातियों के संरक्षण का आदर्श तरीका है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

प्रश्न 7.
जैव-विविधता के संरक्षण के किसी एक तरीके का वर्णन कीजिए।
अथवा
जैव विविधता संरक्षण के उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कृत्रिम संरक्षण के लाभ व दोषों को समझाइए।
अथवा
कृत्रिम संरक्षण क्या है? इसके लाभ व दोषों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जैव-विविधता पर मानव सहित सभी जीव-जन्तुओं, वनस्पति तथा अन्ततः हमारी पृथ्वी का भविष्य निर्भर है, परन्तु पिछली दो तीन शताब्दियों से (विशेष तौर पर औद्योगिक क्रान्ति के बाद) प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया गया है। इससे सभी प्राकृतिक संसाधनों, जिसमें वनस्पति और जीव-जन्तु भी शामिल हैं, को संकटापन्न की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। पृथ्वी से अनेक जीव विलुप्त हो चुके हैं तथा विलोपन की प्रक्रिया अत्यधिक तीव्र हो गई है। ऐसी स्थिति में विश्व में जैव-विविधता को बचाने तथा बनाए रखने के प्रयास भी शुरू हो गए हैं।

जैव-विविधता संरक्षण के उद्देश्य-

  • जैव-विविधता का संरक्षण तथा संवर्द्धन।
  • पारिस्थितिकीय प्रक्रियाओं और जैव भू-रसायन चक्रों को बनाए रखना।
  • पारितन्त्रों की उत्पादकता एवं प्रजातियों के स्थायी उपयोग को निश्चित करना।

जैव-विविधता के संरक्षण के तरीके (Methods of Conservation of Biodiversity) वर्तमान में जैव-विविधता को संरक्षित करने के दो तरीके अपनाए जाते हैं

  • कृत्रिम संरक्षण (Ex-Situ Conservation)
  • स्वस्थाने या प्राकृतिक संरक्षण (In-Situ Conservation)।

इनमें से कृत्रिम संरक्षण का संक्षेप में विवरण निम्नलिखित प्रकार से दिया जा सकता है-
कृत्रिम संरक्षण (Ex-Situ Conservation)-इस विधि से विलुप्त हो सकने वाली प्रजातियों (वनस्पति एवं जीव-जन्तु) को नियन्त्रित दशाओं; जैसे बगीचे, नर्सरी, चिड़ियाघर या प्रयोगशाला आदि में रखकर संरक्षण प्रदान किया जाता है अर्थात् विलुप्त होने के खतरे से बचाने के लिए प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवास स्थान से हटाकर नियन्त्रित आवास स्थान पर रखा जाता है।

कृत्रिम संरक्षण प्रणाली में चिड़ियाघरों की स्थापना, वनस्पति, बगीचों की स्थापना या ऐक्वेरियम आदि की स्थापना की जाती है। चिड़ियाघरों में स्तनपायी जानवरों, पक्षियों, सरीसृपों आदि को रखा जाता है। वर्तमान में विश्व में चिड़ियाघरों में लगभग 5,00,000 इस प्रकार के विलुप्त हो सकने वाले प्राणियों को संरक्षण प्रदान किया जा रहा है।

कृत्रिम संरक्षण के लाभ (Merits of Ex-Situ Conservation) कृत्रिम संरक्षण के लाभ निम्नलिखित हैं-

  • संरक्षण स्थल पर जीवों की संख्या कम होने के कारण सभी जीवों का समान रूप से ध्यान रखा जा सकता है तथा उनका संरक्षण सुरक्षित ढंग से किया जा सकता है।
  • इस विधि में भोजन, धन व अन्य संसाधनों का सुनिश्चित तथा उचित उपयोग किया जा सकता है।
  • कभी-कभी संरक्षण प्रक्रिया के बाद जीवों को उनके प्राकृतिक आवासों में छोड़ना सफलतापूर्ण होता है।

कृत्रिम संरक्षण के दोष (Demerits of Ex-Situ Conservation)-प्राकृतिक वातावरण से दूर होने के कारण इस संरक्षण प्रणाली में जीवों को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस संरक्षण प्रणाली के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं

  • इस प्रणाली से विलुप्त होने का खतरा झेल रही बहुत कम प्रजातियों को ही संरक्षण प्रदान किया जा सकता है।
  • संरक्षित किए गए प्राणियों की क्षमता में परिवर्तन हो जाता है। वे प्राकृतिक आवासों में रहने की योग्यता खो देते हैं। उदाहरण के लिए शिकारी जीव की शिकार करने की क्षमता में कमी आ जाती है।
  • इस विधि को सुचारु रूप से चलाने के लिए अत्यधिक संसाधनों तथा धन की आवश्यकता होती है।
  • कभी-कभी संरक्षण स्थल पर त्रासदी (आग लगने, भूकम्प, बाढ़ आदि) होने पर बड़े पैमाने पर जानवरों की मृत्यु हो जाती है।

HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

Haryana State Board HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class History Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

निबंधात्मक उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मेसोपोटामिया से आपका क्या अभिप्राय है? इसकी प्रमुख भौगोलिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

I. मेसोपोटामिया से अभिप्राय

मेसोपोटामिया जिसे आजकल इराक कहा जाता है भौगोलिक विविधता का देश है। मेसोपोटामिया नाम यूनानी भाषा के दो शब्दों मेसोस (Mesos) भाव मध्य तथा पोटैमोस (Potamos) भाव नदी से मिलकर बना है। इस प्रकार मेसोपोटामिया का अर्थ है दो नदियों के बीच का प्रदेश। ये नदियाँ हैं दजला (Tigris) एवं फ़रात (Euphrates) । इन नदियों को यदि मेसोपोटामिया सभ्यता की जीका रेखा कह दिया जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

II. मेसोपोटामिया की भौगोलिक विशेषताएँ

1. दजला एवं फ़रात नदियाँ :
दजला एवं फ़रात नदियों का उद्गम आर्मीनिया के उत्तरी पर्वतों तोरुस (Torus) से होता है। इन पर्वतों की ऊँचाई लगभग 10,000 फुट है। यहाँ लगभग सारा वर्ष बर्फ जमी रहती है। इस क्षेत्र में वर्षा भी भरपूर होती है। दजला 1850 किलोमीटर लंबी है। इसका प्रवाह तीव्र है तथा इसके तट ऊँचे एवं अधिक कटे-फटे हैं।

इसलिए प्राचीनकाल में इस नदी के तटों पर बहुत कम नगरों की स्थापना हुई थी। दूसरी ओर फ़रात नदी ने मेसोपोटामिया के इतिहास में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। यह नदी 2350 किलोमीटर लंबी है। इसका प्रवाह कम तीव्र है। इसके तट कम ऊँचे एवं कम कटे-फटे हैं। इस कारण प्राचीनकाल में मेसोपोटामिया के प्रसिद्ध नगरों की स्थापना इस नदी के तटों पर हई।

2. मैदान :
मेसोपोटामिया के पूर्वोत्तर भाग में ऊँचे-नीचे मैदान हैं। ये मैदान बहुत हरे-भरे हैं। यहाँ अनेक प्रकार के जंगली फल पाए जाते हैं। यहाँ के झरने (streams) बहत स्वच्छ हैं। इन मैदानों में कषि के लिए आवश्यक वर्षा हो जाती है। यहाँ 7000 ई० पू० से 6000 ई० पू० के मध्य खेती आरंभ हो गई थी। मेसोपोटामिया के उत्तर में ऊँची भूमि (upland) है जिसे स्टेपी (steppe) के मैदान कहा जाता है। इन मैदानों में घास बहुत होती है। अतः यह पशुपालन के लिए अच्छा क्षेत्र है।

पूर्व में मेसोपोटामिया की सीमाएँ ईरान से मिली हुई थीं। दज़ला की सहायक नदियाँ (tributaries) ईरान के पहाड़ी क्षेत्रों में जाने का उत्तम साधन हैं। मेसोपोटामिया का दक्षिणी भाग एक रेगिस्तान है। यहाँ सबसे पहले मेसोपोटामिया के नगरों एवं लेखन कला का विकास हुआ। इन रेगिस्तानों में नगरों के विकास का कारण यह था कि दजला एवं फ़रात नदियाँ उत्तरी पर्वतों से निकल कर अपने साथ उपजाऊ मिट्टी लाती थीं।

इस उपजाऊ मिट्टी के कारण एवं नदियों से सिंचाई के लिए निकाली गई नहरों के कारण यहाँ फ़सलों का भरपूर उत्पादन होता था। यद्यपि यहाँ फ़सल उपजाने के लिए आवश्यक वर्षा की कुछ कमी रहती थी इसके बावजूद दक्षिणी मेसोपोटामिया में रोमन साम्राज्य सहित सभी प्राचीन सभ्यताओं में से सर्वाधिक फ़सलों का उत्पादन होता था। यहाँ की प्रमुख फ़सलें गेहूँ, जौ, मटर (peas) एवं मसूर (lintel) थीं।

3. कृषि संकट :
मेसोपोटामिया में प्राकृतिक उपजाऊपन होने के बावजूद कृषि अनेक बार संकटों से घिर जाती थी। इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। प्रथम, दजला एवं फ़रात नदियों में कभी-कभी भयंकर बाढ़ आ जाती थी। इस कारण फ़सलें नष्ट हो जाती थीं। दूसरा, कई बार पानी की तीव्र गति के कारण ये नदियाँ अपना रास्ता बदल लेती थीं। इससे सिंचाई व्यवस्था चरमरा जाती थी।

मेसोपोटामिया में वर्षा की कमी होती थी। अतः फ़सलें सूख जाती थीं। तीसरा, नदी के ऊपरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग नहरों का प्रवाह अपने खेतों की ओर मोड़ लेते थे। इस कारण निचले क्षेत्रों में बसे हुए गाँवों को खेतों के लिए पानी नहीं मिलता था। चौथा, ऊपरी क्षेत्रों के लोग अपने हिस्से की सरणी में से मिट्टी (silt from their stretch of the channel) नहीं निकालते थे। इस कारण निचले क्षेत्रों में पानी का बहाव रुक जाता था। अत: पानी के लिए गाँववासियों में अनेक बार झगड़े हुआ करते थे।

4. समृद्धि के कारण :
मेसोपोटामिया में पशुपालन का धन्धा काफ़ी विकसित था। मेसोपोटामिया के लोग स्टेपी घास के मैदानों, पूर्वोत्तरी मैदानों एवं पहाड़ों की ढालों पर भेड़-बकरियाँ एवं गाएँ पालते थे। इनसे वे दूध एवं माँस प्राप्त करते थे। नदियों से बड़ी संख्या में मछलियाँ प्राप्त की जाती थीं। मेसोपोटामिया में खजूर (date palm) का भी उत्पादन होता था। इन सबके कारण मेसोपोटामिया के लोग समृद्ध हुए। मेसोपोटामिया की समृद्धि के कारण इसे प्राचीन काल में अनेक विदेशी आक्रमणों का सामना करना पड़ा।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

प्रश्न 2.
नगरीकरण से आपका क्या अभिप्राय है? मेसोपोटामिया में नगरीकरण के प्रमुख कारण क्या थे?
अथवा
मेसोपोटामिया में नगरीकरण के कारणों तथा महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
मेसोपोटामिया नगर की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
I. नगरीकरण से अभिप्राय

नगर किसे कहते हैं इसकी कोई एक परिभाषा देना अत्यंत कठिन है। साधारणतया नगर उसे कहते हैं जिसके अधीन एक विशाल क्षेत्र हो, जहाँ काफी जनसंख्या हो, जहाँ के लोग पक्के मकानों में रहते हों, जहाँ की सड़कें पक्की हों, जहाँ यातायात एवं संचार के साधन विकसित हों, जहाँ लोगों को प्रत्येक प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त हों तथा जहाँ लोगों को पूर्ण सुरक्षा प्राप्त हो। विश्व में नगरों का सर्वप्रथम विकास मेसोपोटामिया में हुआ।

यहाँ नगरों का निर्माण 3000 ई० पू० में कांस्य युग में आरंभ हुआ। यहाँ तीन प्रकार के नगरों का निर्माण हुआ। प्रथम, धार्मिक नगर थे जो मंदिरों के चारों ओर विकसित हुए। दूसरा, व्यापारिक नगर थे जो प्रसिद्ध व्यापारिक मार्गों एवं बंदरगाहों के निकट स्थापित हुए। तीसरा, शाही नगर थे जहाँ राजा, राज परिवार एवं प्रशासनिक अधिकारी रहते थे। ये नगर ऐसे स्थान पर होते थे जहाँ से संपूर्ण साम्राज्य पर नियंत्रण रखा जा सकता था। इन नगरों का विशेष महत्त्व होता था।

II. नगरीकरण के कारण

मेसोपोटामिया में नगरीकरण के विकास के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. अत्यंत उत्पादक खेती:
मेसोपोटामिया में नगरीकरण के विकास में सर्वाधिक उल्लेखनीय योगदान अत्यंत उत्पादक खेती ने दिया। यहाँ की भूमि में प्राकृतिक उर्वरता थी। इससे खेती को बहुत प्रोत्साहन मिला। प्राकृतिक उर्वरता के कारण पशुओं को चारे के लिए कोई कमी नहीं थी। अत: पशुपालन को भी बल मिला। खेती एवं पशुपालन के कारण मानव जीवन स्थायी बन गया क्योंकि उसे भोजन की तलाश में स्थान-स्थान पर घूमने की ज़रूरत नहीं थी। इससे नए-नए व्यवसाय आरंभ हो गए। इससे नगरीकरण की प्रक्रिया को बहुत प्रोत्साहन मिला।

2. जल-परिवहन :
नगरीकरण के विकास के लिए कुशल जल-परिवहन का होना अत्यंत आवश्यक है। भारवाही पशुओं तथा बैलगाड़ियों के द्वारा नगरों में अनाज एवं अन्य वस्तुएँ लाना तथा ले जाना बहुत कठिन होता था। इसके तीन कारण थे। प्रथम, इसमें बहुत समय लग जाता था। दूसरा, इस प्रक्रिया में खर्चा बहुत आता था। तीसरा, रास्ते में पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था भी करनी पड़ती थी। नगरीय अर्थव्यवस्था इतना खर्च उठाने के योग्य नहीं होती। दूसरी ओर जल-परिवहन सबसे सस्ता साधन होता था।

3. धातु एवं पत्थर की कमी :
किसी भी नगर के विकास में धातुओं एवं पत्थर की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। धातुओं का प्रयोग विभिन्न प्रकार के औजार, बर्तन एवं आभूषण बनाने के लिए किया जाता है। औज़ारों से पत्थर को तराशा जाता है। बर्तन सभ्य समाज की निशानी हैं। इनका प्रयोग खाद्य वस्तुएँ बनाने, उन्हें खाने एवं संभालने के लिए किया जाता है।

नगरों की स्त्रियाँ विभिन्न प्रकार के आभूषण पहनने की शौकीन होती हैं। पत्थरों का प्रयोग भवनों, मंदिरों, मूर्तियों एवं पुलों आदि के निर्माण के लिए किया जाता है। मेसोपोटामिया में धातओं एवं पत्थरों की कमी थी। इसके चलते मेसोपोटामिया ने तर्की, ईरान एवं खाडी पार के देशों से ताँबा, टिन. सोना, चाँदी. सीपी एवं विभिन्न प्रकार के पत्थरों का आयात करके इनकी कमी को दर किया।

4. श्रम विभाजन :
श्रम विभाजन को नगरीय विकास का एक प्रमुख कारक माना जाता है। नगरों के लोग आत्मनिर्भर नहीं होते। उन्हें विभिन्न प्रकार की सेवाओं के लिए एक-दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है। उदाहरण के लिए एक पत्थर की मुद्रा (stone seal) बनाने वाले को पत्थर पर उकेरने के । औजारों (bronze tools) की आवश्यकता होती है। ऐसे औजारों का वह स्वयं निर्माण नहीं करता।

इस प्रकार नगर के लोग अन्य लोगों पर उनकी सेवाओं के लिए अथवा उनके द्वारा उत्पन्न की गई वस्तुओं पर निर्भर करते हैं। संक्षेप में श्रम विभाजन को शहरी जीवन का एक प्रमुख आधार माना जाता है।
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5. मुद्राओं का प्रयोग:
मेसोपोटामिया के नगरों से हमें बड़ी संख्या में मुद्राएँ मिली हैं। ये मुद्राएँ पत्थर की होती थीं तथा इनका आकार बेलनाकार (cylinderical) था। इन्हें अत्यंत कुशल कारीगरों द्वारा उकेरा जाता था। इन मुद्राओं पर कभी-कभी इसके स्वामी का नाम, उसके देवता का नाम तथा उसके रैंक आदि का वर्णन भी किया जाता था।

इन मुद्राओं का प्रयोग व्यापारियों द्वारा अपना सामान एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुरक्षित भेजने के लिए किया जाता था। इस प्रकार यह मुद्रा उस सामान की प्रामाणिकता का प्रतीक बन जाती थी। यदि यह मुद्रा टूटी हुई पाई जाती तो पता लग जाता कि रास्ते में सामान के साथ छेड़छाड़ की गई है अन्यथा भेजा गया सामान सुरक्षित है। निस्संदेह मुद्राओं के प्रयोग ने नगरीकरण के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

III. नगरीकरण का महत्त्व

मेसोपोटामिया में नगरों के निर्माण ने समाज के विकास में उल्लेखीय भूमिका निभाई। नगरों के निर्माण के कारण लोगों को सुविधाएँ देने के लिए अनेक संस्थाएँ अस्तित्व में आईं। नगरों में सुविधाओं के कारण लोग गाँवों को छोड़कर नगरों में बसने लगे। नगरों में कुशल परिवहन व्यवस्था, शिक्षण संस्थाएँ एवं स्वास्थ्य संबंधी देखभाल केंद्र स्थित थे। नगरों के कारण उद्योगों एवं व्यापार को प्रोत्साहन मिला। नगरों के लोग पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं थे।

उन्हें खाद्यान्न के लिए गाँवों पर निर्भर रहना पड़ता था। इसलिए उनमें आपसी लेन-देन होता रहता था। नगरों में भव्य मदिरों का निर्माण हुआ। मंदिरों के निर्माण के कारण बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ। नगरों के निर्माण ने श्रम विभाजन को प्रोत्साहित किया। नगरों के लोग अधिक सुरक्षित महसूस करते थे। नगरों में विभिन्न समुदायों के लोग रहते थे। इससे आपसी एकता एवं विभिन्न संस्कृतियों के विकास को बल मिला।

प्रश्न 3.
मेसोपोटामिया के प्रसिद्ध नगरों एवं उनके महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
मेसोपोटामिया सभ्यता में विभिन्न प्रकार के शहरों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन काल मेसोपोटामिया में नगरीकरण की प्रक्रिया 3000 ई० पू० में आरंभ हुई थी। इस काल के कुछ प्रसिद्ध नगरों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. उरुक :
उरुक मेसोपोटामिया का सबसे प्राचीन नगर था। यह नगर आधुनिक इराक की राजधानी बग़दाद से 250 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व की ओर फ़रात (Euphrates) नदी के तट पर स्थित था। इसका उत्थान 3000 ई० पू० में हुआ था। इसकी गणना उस समय विश्व के सबसे विशाल नगरों में की जाती थी। यह उस समय 250 हैक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ था। 2800 ई० पू० के आस-पास इसका आकार बढ़ कर 400 हैक्टेयर हो गया था।

इस नगर की स्थापना सुमेरिया के प्रसिद्ध शासक एनमर्कर (Enmerkar) ने की थी। उसने इस नगर में प्रसिद्ध इन्नाना देवी (Goddess Inanna) के मंदिर का निर्माण किया था। उरुक के एक अन्य प्रसिद्ध शासक गिल्गेमिश (Gilgamesh) ने इसे अपने साम्राज्य की राजधानी घोषित किया था।

उसने इस नगर की सुरक्षा के लिए इसके चारों ओर एक विशाल दीवार का निर्माण किया था। इस नगर के उत्खनन (excavation) का वास्तविक कार्य जर्मनी के जूलीयस जोर्डन (Julius Jordan) ने 1913 ई० में आरंभ किया। 3000 ई० पू० के आस-पास उरुक नगर ने तकनीकी क्षेत्र में अद्वितीय विकास किया। इसका अनुमान इस बात से लगाया जाता है कि उस समय के लोगों ने अनेक प्रकार के शिल्पों के लिए काँसे के औज़ारों का प्रयोग आरंभ कर दिया था।

इसके अतिरिक्त वास्तुविदों (architects) ने ईंटों के स्तंभों को बनाना सीख लिया था। इससे भवन निर्माण कला के क्षेत्र में एक नयी क्राँति आई। उस समय बड़ी संख्या में लोग चिकनी मिट्टी के शंकु (clay cones) बनाने एवं पकाने का कार्य करते थे। इन शंकुओं को भिन्न-भिन्न रंगों से रंगा जाता था। इसके पश्चात् इन्हें मंदिरों की दीवारों पर लगाया जाता था।

इससे मंदिरों की सुंदरता बहुत बढ़ जाती थी। उरुक नगर के लोगों ने मूर्तिकला के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति की। इसका अनुमान 3000 ई० पू० में उरुक नगर से प्राप्त वार्का शीर्ष (Warka Head) से लगाया जा सकता है। यह एक स्त्री का सिर था। इसे सफ़ेद संगमरमर को तराश कर बनाया गया था। कम्हार के चाक (potter’s wheel) के निर्माण से प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया। इस कारण बड़ी संख्या में एक जैसे बर्तन बनाना सुगम हो गया।

2. उर:
उर मेसोपोटामिया का एक अन्य प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण नगर था। यह बग़दाद से 300 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व की ओर स्थित था। यह फ़रात नदी से केवल 15 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम की ओर स्थित था। इस नगर की सबसे पहले खुदाई एक अंग्रेज़ जे० ई० टेलर (J. E. Taylor) द्वारा 1854-55 ई० में की गई। इस नगर की व्यापक स्तर पर खुदाई का कार्य 1920 एवं 1930 के दशक में की गई।

उर नगर की खुदाई से जो निष्कर्ष सामने आता है उससे यह पता चलता है कि इसमें नगर योजना का पालन नहीं किया गया था। इसका कारण यह था कि इस नगर की गलियाँ संकरी एवं टेढ़ी-मेढ़ी थीं। अतः पहिए वाली गाड़ियों का घरों तक पहुँचना संभव न था। अतः अनाज के बोरों तथा ईंधन के गट्ठों को संभवतः गधों पर लाद कर पहुँचाया जाता था। उर नगर में मोहनजोदड़ो की तरह जल निकासी के लिए गलियों के किनारे नालियाँ नहीं थीं।

ये नालियाँ घरों के भीतरी आँगन में पाई गई हैं। इससे यह सहज अनुमान लगाया जाता है कि घरों की छतों का ढलान भीतर की ओर होता था। अत: वर्षा के पानी का निकास नालियों के माध्यम से आँगन के भीतर बनी हुई हौजों (sumps) में ले जाया जाता था।

ऐसा इसलिए किया गया था ताकि तीव्र वर्षा के कारण घरों के बाहर बनी कच्ची गलियों में कीचड़ न एकत्र हो जाए। नगर की खुदाई से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि उस समय के लोग अपने घर का सारा कूड़ा-कचरा बाहर गलियों में फैंक देते थे। इस कारण गलियों की सतहें ऊँची उठ जाती थीं। इस कारण कुछ समय बाद घरों के बरामदों को भी ऊँचा करना पड़ता था ताकि वर्षा के दिनों में बाहर से पानी एवं कूड़ा बह कर घरों के अंदर न आ जाए। उर नगर के घरों की एक अन्य विशेषता यह थी कि कमरों के अंदर रोशनी खिड़कियों से नहीं अपितु दरवाज़ों से होकर आती थी।

ये दरवाज़े आँगन में खुला करते थे। इससे घरों में परिवारों की गोपनीयता (privacy) बनी रहती थी। उस समय घरों के बारे में उर के लोगों में अनेक प्रकार के अंध-विश्वास प्रचलित थे। जैसे यदि घर की दहलीज़ (threshold) ऊँची उठी हुई हो तो धन-दौलत प्राप्त होता है। यदि सामने का दरवाजा किसी दूसरे के घर की ओर न खुले तो वह सौभाग्य प्रदान करता है। किंतु यदि घर का मुख्य दरवाजा बाहर की ओर खुले तो पत्नी अपने पति के लिए एक सिरदर्द बनेगी।

उर नगर की खुदाई से जो हमें सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु मिली है वह थी शाही कब्रिस्तान । यहाँ से 16 राजाओं एवं रानियों की कब्र प्राप्त हुई हैं। इन कब्रों में शवों के साथ सोना, चाँदी एवं बहुमूल्य पत्थरों को दफनाया गया है। इसके अतिरिक्त उनके प्रसिद्ध राजदरबारियों, सैनिकों, संगीतकारों, सेवकों एवं खाने-पीने की वस्तुओं को भी उनके शवों के साथ दफनाया गया था।

इससे अनुमान लगाया जाता है कि उर के लोग मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास रखते थे। साधारण लोगों के शवों को वैसे ही दफ़न कर दिया जाता था। कुछ लोगों के शव घरों के फ़र्शों के नीचे भी दफ़न पाए गए थे।

3. मारी:
मारी प्राचीन मेसोपोटामिया का एक अन्य महत्त्वपूर्ण नगर था। यह नगर 2000 ई० पू० के पश्चात् खूब फला-फूला। मारी में लोग खेती एवं पशुपालन का धंधा करते थे। पशुचारकों को जब अनाज एवं धातु 431 के औज़ारों आदि की आवश्यकता पड़ती थी तो वे अपने पशुओं, माँस एवं चमड़े के बदले इन्हें प्राप्त करते थे। पशुओं के गोबर की खाद फ़सलों के अधिक उत्पादन के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होती थी। यद्यपि किसान एवं गड़रिये एक-दूसरे पर निर्भर थे फिर भी उनमें आपसी लड़ाइयाँ होती रहती थीं।

इन लड़ाइयों के मुख्य कारण ये थे-प्रथम. गडरिये अक्सर अपनी भेड-बकरियों को पानी पिलाने के लिए बोए हए खेतों में से गज़ार कर ले जाते थे। इससे फ़सलों को बहुत नुकसान पहुँचता था। दूसरा, कई बार ये गड़रिये जो खानाबदोश होते थे, किसानों के गाँवों पर आक्रमण कर उनके माल को लूट ले जाते थे। तीसरा, अनेक बार किसान इन पशुचारकों का रास्ता रोक लेते थे तथा उन्हें अपने पशुओं को जल स्रोतों तक नहीं ले जाने देते थे। गड़रियों के कुछ समूह फ़सल काटने वाले मज़दूरों अथवा भाड़े के सैनिकों के रूप में आते थे। समृद्ध होने पर वे यहीं बस जाते थे।

मारी में अक्कदी, एमोराइट, असीरियाई तथा आर्मीनियन जाति के लोग रहते थे। मारी के राजा एमोराइट समुदाय से संबंधित थे। उनकी पोशाक वहाँ के मूल निवासियों से भिन्न होती थी। मारी के राजा मेसोपोटामिया के विभिन्न देवी-देवताओं का बहुत सम्मान करते थे। उन्होंने डैगन (Dagan) देवता की स्मृति में मारी में एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था। इस प्रकार मारी में विभिन्न जातियों एवं समुदायों के मिश्रण से वहाँ एक नई संस्कृति का जन्म हआ।

मारी में क्योंकि विभिन्न जन-जातियों के लोग रहते थे इसलिए वहाँ के राजाओं को सदैव सतर्क रहना पड़ता था। खानाबदोश पशुचारकों की गतिविधियों पर विशेष नज़र रखी जाती थी। मारी के प्रसिद्ध शासक ज़िमरीलिम (Zimrilim) ने वहाँ एक विशाल राजमहल का निर्माण (1810 1760 ई० पू०) करवाया था। यह 2.4 हैक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ था। इसके 260 कमरे थे। यह अपने समय में न केवल अन्य राजमहलों में सबसे विशाल था अपितु यह अत्यंत सुंदर भी था।

इसका निर्माण विभिन्न रंगों के सुंदर पत्थरों से किया गया था। इस राजमहल में लगे भित्ति चित्र (wall paintings) इतने आकर्षक थे कि इसे देखने वाला व्यक्ति चकित रह जाता था। इस राजमहल की भव्यता को अपनी आँखों से देखने सीरिया एवं अलेप्पो (Aleppo) के शासक स्वयं आए थे। मारी नगर व्यापार का एक प्रसिद्ध केंद्र भी था। इसके न केवल मेसोपोटामिया के अन्य नगरों अपितु विदेशों, ती. सीरिया. लेबनान.ईरान आदि देशों के साथ व्यापारिक संबंध थे।

मारी में आने-जाने वाले जहाजों के सामान की अधिकारियों द्वारा जाँच की जाती थी। वे जहाजों में लदे हुए माल की कीमत का लगभग 10% प्रभार (charge) वसूल करते थे। मारी की कुछ पट्टिकाओं (tablets) में साइप्रस के द्वीप अलाशिया (Alashiya) से आने वाले ताँबे का उल्लेख मिला है। यह द्वीप उन दिनों ताँबे तथा टिन के व्यापार के लिए विशेष रूप से जाना जाता था। मारी के व्यापार ने निस्संदेह इस नगर की समृद्धि में उल्लेखनीय योगदान दिया था।

4. निनवै :
निनवै प्राचीन मेसोपोटामिया के महत्त्वपूर्ण नगरों में से एक था। यह दज़ला नदी के पूर्वी तट पर स्थित था। यह 1800 एकड़ भूमि में फैला हुआ था। इसकी स्थापना 1800 ई० पू० में नीनस (Ninus) ने की थी। असीरियाई शासकों ने निनवै को अपने साम्राज्य की राजधानी बनाया था। सेनाचारिब (Sennacharib) ने अपने शासनकाल (705 ई० पू० से 681 ई० पू०) में निनवै का अद्वितीय विकास किया। उसने यहाँ एक विशाल राजमहल का निर्माण करवाया। यह 210 मीटर लंबा एवं 200 मीटर चौड़ा था। इसमें 80 कमरे थे। इसे अत्यंत सुंदर मूर्तियों एवं चित्रकारी से सुसज्जित किया गया था। इस राजमहल में अनेक फव्वारे एवं उद्यान लगाए गए थे।

इसके अतिरिक्त उसने निनवै में अनेक भवनों एवं मंदिरों का निर्माण करवाया। उसने यातायात के साधनों का विकास किया। उसने कृषि के विकास के लिए अनेक नहरें खुदवाईं। उसने निनवै की सुरक्षा के लिए चारों ओर एक विशाल दीवार का निर्माण करवाया। निनवै के विकास में दूसरा महत्त्वपूर्ण योगदान असुरबनिपाल (Assurbanipal) ने दिया। उसने 668 ई० पू० से 627 ई० पू० तक शासन किया था। उसे भवन निर्माण कला से विशेष प्यार था।

अतः उसने अपने साम्राज्य से अच्छे कारीगरों एवं कलाकारों को निनवै में एकत्र किया। उन्होंने अनेक भव्य भवनों एवं मंदिरों का निर्माण किया। पुराने भवनों एवं मंदिरों की मुरम्मत भी की गई। अनेक उद्यान स्थापित किए गए। इससे निनवै की सुंदरता में एक नया निखार आ गया। उसे साहित्य से विशेष लगाव था। अतः उसकी साहित्य के विकास में बहुत दिलचस्पी थी। उसने निनवै में नाबू (Nabu) के मंदिर में एक विशाल पुस्तकालय की स्थापना की थी। इस पुस्तकालय में उसने अनेक प्रसिद्ध लेखकों को बुला कर उनकी प्रसिद्ध पुस्तकों को रखवाया था।

इस पुस्तकालय में लगभग 1000 मूल ग्रंथ एवं 30,000 पट्टिकाएँ (tablets) थीं। इन्हें विषयानुसार वर्गीकृत किया गया था। इनमें प्रमुख विषय ये थे इतिहास, महाकाव्य, ज्योतिष, दर्शन, विज्ञान एवं कविताएँ। असुरबनिपाल ने स्वयं भी अनेक पट्टिकाएँ लिखीं। असुरबनिपाल के पश्चात् निनवै ने अपना गौरव खो दिया।

5. बेबीलोन :
बेबीलोन दज़ला नदी के उत्तर-पश्चिम में स्थित था। इसकी राजधानी का नाम बेबीलोनिया था। इस नगर ने प्राचीन काल मेसोपोटामिया के इतिहास में अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस नगर की स्थापना अक्कद (Akkad) के शासक सारगोन (Sargon) ने अपने शासनकाल (2370 ई० पू०-2315 ई० पू०) के दौरान की थी। उसने यहाँ अनेक भवनों का निर्माण करवाया। उसने देवता मर्दुक (Marduk) की स्मृति में एक विशाल मंदिर का निर्माण भी करवाया। हामूराबी के शासनकाल (1780 ई० पू०-1750 ई० पू०) में बेबीलोन ने उल्लेखनीय विकास किया।

बाद में असीरिया के शासक तुकुती निर्ता (Tukuti Ninarta) ने बेबीलोन पर अधिकार कर लिया था। 625 ई० पू० में नैबोपोलास्सर (Nabopolassar) ने बेबीलोनिया को असीरियाई शासन से स्वतंत्र करवा लिया था। इस प्रकार नैबोपोलास्सर ने बेबीलोन में कैल्डियन वंश की स्थापना की। उसके एवं उसके उत्तराधिकारियों के अधीन बेबीलोन में एक गौरवपूर्ण युग का आरंभ हुआ। इसकी गणना विश्व के प्रमुख नगरों में की जाने लगी।

उस समय इसका क्षेत्रफल 850 हैक्टेयर से अधिक था। इसके चारों ओर एक तिहरी दीवार (triple wall) बनाई गई थी। इसमें अनेक विशाल एवं भव्य राजमहलों एवं मंदिरों का निर्माण किया गया था। एक विशाल ज़िगुरात (Ziggurat) भाव सीढ़ीदार मीनार (stepped tower) बेबीलोन के आकर्षण का मुख्य केंद्र था।

बेबीलोन एक प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र भी था। इस नगर ने भाषा, साहित्य, विज्ञान एवं चिकित्सा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। 331 ई० पू० में सिकंदर ने बेबीलोन पर अधिकार कर लिया था। नैबोनिडस (Nabonidus) स्वतंत्र बेबीलोन का अंतिम शासक था।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

प्रश्न 4.
मेसोपोटामिया सभ्यता के ‘मारी नगर’ का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नोट-इस प्रश्न के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया करके प्रश्न नं० 3 के भाग 3 का उत्तर देखें।

प्रश्न 5.
मेसोपोटामिया के प्रारंभिक शहरी समाजों के स्वरूप की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
मेसोपोटामिया के शहरी जीवन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शहरी जीवन की शुरुआत 3000 ई० पू० में मेसोपोटामिया में हुई थी। उर, उरुक, मारी, निनवै एवं बेबीलोन आदि मेसोपोटामिया के प्रमुख शहर थे। प्रारंभिक शहरी समाजों के स्वरूप के बारे में हम अग्रलिखित तथ्यों से अनुमान लगा सकते हैं

1. नगर योजना:
मेसोपोटामिया के नगर एक वैज्ञानिक योजना के अनुसार बनाए गए थे। नगरों में मज़बूत भवनों का निर्माण किया जाता था। अत: मकानों की नींव में पकाई हुई ईंटों का प्रयोग किया जाता था। उस समय अधिकतर घर एक मंजिला होते थे। इन घरों में एक खुला आँगन होता था। इस आँगन के चारों ओर कमरे बनाए जाते थे। गर्मी से बचने के लिए धनी लोग अपने घरों के नीचे तहखाने बनाते थे।

मकानों में प्रकाश के लिए खिड़कियों का प्रबंध होता था। उर नगर के लोग परिवारों की गोपनीयता बनाए रखने के लिए खिड़कियाँ नहीं बनाते थे। पानी की निकासी के लिए नालियों का प्रबंध किया जाता था। नगरों में यातायात की आवाजाही के लिए सड़कों का उचित प्रबंध किया जाता था। प्रशासन सड़कों की सफाई की ओर विशेष ध्यान देता था। सड़कों पर रोशनी का भी प्रबंध किया जाता था।

2. प्रमुख वर्ग :
उस समय प्रारंभिक शहरी समाजों में सामाजिक असमानता के भेद का प्रचलन हो चुका था। उस समय समाज में तीन प्रमुख वर्ग प्रचलित थे। प्रथम वर्ग कुलीन लोगों का था। इसमें राजा, राज्य के अधिकारी, उच्च सैनिक अधिकारी, धनी व्यापारी एवं पुरोहित सम्मिलित थे। इस वर्ग को समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त था। इस वर्ग के लोग बहुत ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। वे भव्य महलों एवं भवनों में रहते थे। वे बहुमूल्य वस्त्रों को पहनते थे।

वे अनेक प्रकार के स्वादिष्ट भोजन खाते थे। उनकी सेवा में अनेक दास-दासियाँ रहती थीं। दूसरा वर्ग मध्य वर्ग था। इस वर्ग में छोटे व्यापारी, शिल्पी, राज्य के अधिकारी एवं बुद्धिजीवी सम्मिलित थे। इनका जीवन स्तर भी काफी अच्छा था। तीसरा वर्ग समाज का सबसे निम्न वर्ग था। इसमें किसान, मजदूर एवं दास सम्मिलित थे। यह समाज का बहुसंख्यक वर्ग था।

इस वर्ग की स्थिति अत्यंत शोचनीय थी। उर में मिली शाही कब्रों में राजाओं एवं रानियों के शवों के साथ अनेक बहुमूल्य वस्तुएँ विशाल मात्रा में मिली हैं। दूसरी ओर साधारण लोगों के शवों के साथ केवल मामूली वस्तुओं को दफनाया जाता था। इससे स्पष्ट अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय धन-दौलत का अधिकाँश हिस्सा एक छोटे-से वर्ग में केंद्रित था।

3. परिवार :
परिवार को समाज की आधारशिला माना जाता था। प्राचीन काल में मेसोपोटामिया के समाज में एकल परिवार (nuclear family) का प्रचलन अधिक था। इस परिवार में पुरुष, उसकी पत्नी एवं उनके बच्चे सम्मिलित होते थे। पिता परिवार का मुखिया होता था। परिवार के अन्य सदस्यों पर उसका पूर्ण नियंत्रण होता था। अतः परिवार के सभी सदस्य उसके आदेशों का पालन करते थे। उस समय परिवार में पुत्र का होना आवश्यक माना जाता था। माता-पिता अपने बच्चों को बेच सकते थे। बच्चों का विवाह माता-पिता की सहमति से होता था। उस समय विवाह बहुत हर्षोल्लास के साथ किए जाते थे।

4. स्त्रियों की स्थिति:
प्रारंभिक शहरी समाज में स्त्रियों की स्थिति काफी अच्छी थी। उन्हें अनेक अधिकार प्राप्त थे। वे पुरुषों के साथ धार्मिक एवं सामाजिक उत्सवों में समान रूप से भाग लेती थीं। पति की मृत्यु होने पर वह पति की संपत्ति की संरक्षिका मानी जाती थीं। पत्नी को पती से तलाक लेने एवं पुनः विवाह करने का अधिकार प्राप्त था। वे अपना स्वतंत्र व्यापार कर सकती थीं।

वे अपने पथक दास-दासियाँ रख सकती थीं। वे पुरोहित एवं समाज के अन्य उच्च पदों पर नियुक्त हो सकती थी। उस समय समाज में देवदासी प्रथा प्रचलित थी। उस समय पुरुष एक स्त्री से विवाह करता था किंतु उसे अपनी हैसियत के अनुसार कुछ उप-पत्नियाँ रखने का भी अधिकार प्राप्त था।

5. दासों की स्थिति :
प्रारंभिक शहरी समाजों में दासों की स्थिति सबसे निम्न थी। उस समय दास तीन प्रकार के थे-(i) युद्धबंदी (ii) माता-पिता द्वारा बेचे गये बच्चे एवं (iii) कर्ज न चुका सकने वाले व्यक्ति । दास बनाए गए व्यक्तियों के साथ बहुत क्रूर व्यवहार किया जाता था। इन दासों को किसी प्रकार का कोई अधिकार प्राप्त न था। उन्हें अपने स्वामी के आदेशों का पालन करना पड़ता था। ऐसा न करने वाले दास अथवा दासी को कठोर दंड दिए जाते थे। यदि कोई दास भागने का प्रयास करते हुए पकड़ा जाता तो उसे मृत्यु दंड दिया जाता था।

स्वामी जब चाहे किसी दास की सेवा से प्रसन्न होकर उसे मुक्त कर सकता था। कोई भी दास अपने स्वामी को धन देकर अपनी मुक्ति प्राप्त कर सकता था। कोई भी स्वतंत्र नागरिक अपनी दासी को उप-पत्नी बना सकता था। दासी से उत्पन्न संतान को स्वतंत्र मान लिया जाता था।

6. मनोरंजन :
प्रारंभिक शहरी समाजों के लोग विभिन्न साधनों से अपना मनोरंजन करते थे। नृत्य गान उनके जीवन का एक अभिन्न अंग था। मंदिरों में भी संगीत एवं नृत्य-गान के विशेष सम्मेलन होते रहते थे। वे शिकार खेलने, पशु-पक्षियों की लड़ाइयाँ देखने एवं कुश्तियाँ देखने के भी बहुत शौकीन थे। वे शतरंज खेलने में भी बहुत रुचि लेते थे। खिलौने बच्चों के मनोरंजन का मुख्य साधन थे।

प्रश्न 6.
दक्षिणी मेसोपोटामिया के मंदिरों तथा उनके महत्त्व के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा
दक्षिणी मेसोपोटामिया के मंदिरों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
दक्षिणी मेसोपोटामिया के मंदिरों ने यहाँ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मेसोपोटामिया के लोग अपने देवी-देवताओं की स्मृति में अनेक मंदिरों का निर्माण करते थे। इनमें प्रमुख मंदिर नन्ना (Nanna) जो चंद्र देव था, अनु (Anu) जो सूर्य देव था, एनकी (Enki) जो वायु एवं जल देव था तथा इन्नाना (Inanna) जो प्रेम एवं युद्ध की देवी थी, के लिए बनाए गए थे। इनके अतिरिक्त प्रत्येक नगर का अपना देवी-देवता होता था जो अपने नगर की रक्षा के लिए सदैव तैयार रहते थे।

1. आरंभिक मंदिर :
दक्षिणी मेसोपोटामिया में आरंभिक मंदिर छोटे आकार के थे तथा ये कच्ची ईंटों के बने हुए थे। समय के साथ-साथ जैसे-जैसे इन मंदिरों का महत्त्व बढ़ता गया वैसे-वैसे ये मंदिर विशाल एवं भव्य होते चले गए। इन मंदिरों को पर्वतों के ऊपर बनाया जाता था। उस समय मेसोपोटामिया के लोगों की यह धारणा थी कि देवता पर्वतों में निवास करते हैं। ये मंदिर पक्की ईंटों से बनाए जाते थे।

इन मंदिरों की विशेषता यह थी कि मंदिरों की बाहरी दीवारें कुछ खास अंतरालों के पश्चात् भीतर और बाहर की ओर मुड़ी होती थीं। साधारण घरों की दीवारें ऐसी नहीं होती थीं। इन मंदिरों के आँगन खुले होते थे तथा इनके चारों ओर अनेक कमरे बने होते थे। प्रमुख कमरों में देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित की जाती थीं। कुछ कमरों में मंदिरों के परोहित निवास करते थे। अन्य कमरे मंदिर में आने वाले यात्रियों के लिए थे।

2. मंदिरों के क्रियाकलाप :
दक्षिणी मेसोपोटामिया के समाज में मंदिरों की उल्लेखनीय भूमिका थी। उस समय मंदिरों को बहुत-सी भूमि दान में दी जाती थी। इस भूमि पर खेती की जाती थी एवं पशु पालन किया जाता था। इनके अतिरिक्त इस भूमि पर उद्योगों की स्थापना की जाती थी एवं बाजार स्थापित किए जाते थे। इस कारण मंदिर बहुत धनी हो गए थे।

मेसोपोटामिया के मंदिरों में प्राय: विद्यार्थियों को शिक्षा भी दी जाती थी। शिक्षा का कार्य पुरोहितों द्वारा किया जाता था। अनेक मंदिरों में बड़े-बड़े पुस्तकालय भी स्थापित किए गए थे। मंदिरों द्वारा सामान की खरीद एवं बिक्री भी की जाती थी। मंदिरों द्वारा व्यापारियों को धन सूद पर दिया जाता था। इस कारण मंदिरों ने एक मुख्य शहरी संस्था का रूप धारण कर लिया था।

3. उपासना विधि:
दक्षिणी मेसोपोटामिया के लोग परलोक की अपेक्षा इहलोक की अधिक चिंता करते थे। वे अपने देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिए अन्न, दही, खजूर एवं मछली आदि भेंट करते थे। इनके अतिरिक्त वे बैलों, भेड़ों एवं बकरियों आदि की बलियाँ भी देते थे। इन्हें विधिपूर्ण पुरोहितों के सहयोग से देवी-देवताओं को भेंट किया जाता था। उस समय मेसोपोटामिया के लोगों के कर्मकांड न तो अधिक जटिल थे एवं न ही अधिक खर्चीले। इसके बदले उपासक यह आशा करते थे कि उनके जीवन में कभी कष्ट न आएँ।

4. मनोरंजन के केंद्र :
दक्षिणी मेसोपोटामिया के मंदिर केवल उपासना के केंद्र ही नहीं थे अपितु वे मनोरंजन के केंद्र भी थे। इन मंदिरों में स्थानीय गायक अपनी कला से लोगों का मनोरंज करते थे। इन मंदिरों में समूहगान एवं लोक नृत्य भी हुआ करते थे। यहाँ नगाड़े एवं अन्य संगीत यंत्रों को बजाया जाता था। त्योहारों के अवसरों पर यहाँ बड़ी संख्या में लोग आते थे। वे एक-दूसरे के संपर्क में आते थे तथा उनमें एक नया प्रोत्साहन उत्पन्न होता था।

5. लेखन कला के विकास में योगदान :
दक्षिणी मेसोपोटामिया में लेखन कला के विकास में मंदिरों ने उल्लेखनीय योगदान दिया। लेखन कला के अध्ययन एवं अभ्यास के लिए अनेक मंदिरों में पाठशालाएँ स्थापित की गई थीं। यहाँ विद्यार्थियों को सर्वप्रथम संकेतों की नकल करना सिखाया जाता था। धीरे-धीरे वे कठिन शब्दों को लिखने में समर्थ हो जाते थे। क्योंकि उस समय बहत कम लोग लिपिक का कार्य कर सकते थे इसलिए समाज में इस वर्ग की काफी प्रतिष्ठा थी।

प्रश्न 7.
लेखन पद्धति के विकास के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
लेखन पद्धति के विकास के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मानव इतिहास पर लेखन कला का क्या प्रभाव पड़ा ?
अथवा
लेखन कला की दुनिया को सबसे बड़ी देन क्या है ?
उत्तर:
I. लेखन कला का विकास

किसी भी देश की सभ्यता के बारे में जानने के लिए हमें उस देश की लिपि एवं भाषा का ज्ञात होना अत्यंत आवश्यक है। प्रारंभिक नगरों की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि लेखन कला का विकास था। इसे सभ्यता के विकास की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पग माना जाता है। मेसोपोटामिया में सर्वप्रथम लिपि की खोज सुमेर में 3200 ई० पू० में हुई। इस लिपि का आरंभ वहाँ के मंदिरों के पुरोहितों ने किया। उस समय मंदिर विभिन्न क्रियाकलापों और व्यापार के प्रसिद्ध केंद्र थे। इन मंदिरों की देखभाल पुरोहितों द्वारा स्वतंत्र रूप से की जाती थी।

पुरोहित मंदिरों की आय-व्यय तथा व्यापार का पूर्ण विवरण एक निराले ढंग से रखते थे। वे मिट्टी की पट्टिकाओं पर मंदिरों को मिलने वाले सामानों एवं जानवरों के चित्रों जैसे चिह्न बनाकर उनकी संख्या भी लिखते थे। हमें मेसोपोटामिया के दक्षिणी नगर उरुक के मंदिरों से संबंधित लगभग 5000 सूचियाँ मिली हैं। इनमें बैलों, मछलियों एवं रोटियाँ आदि के चित्र एवं संख्याएँ दी गई हैं। इससे वस्तुओं को स्मरण रखना सुगम हो जाता था। इस प्रकार मेसोपोटामिया में चित्रलिपि (pictographic script) का जन्म हुआ।

मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की पट्टिकाओं (tablets of clay) पर लिखा करते थे। लिपिक चिकनी मिट्टी को गीला करता था। इसके पश्चात् उसे गूंध कर एक ऐसे आकार की पट्टी का रूप दे देता था जिसे वह सुगमता से अपने हाथ में पकड़ सके। इसके बाद वह सरकंडे की तीली की तीखी नोक से उसकी नम चिकनी सतह पर कीलाकार चिह्न (cuneiform) बना देता था। इसे बाएं से दाएँ लिखा जाता था। इस लिपि का प्रचलन 2600 ई० पू० में हुआ था। 1850 ई० पू० में कीलाकार लिपि के अक्षरों को पहचाना एवं पढ़ा गया। ये पट्टिकाएँ विभिन्न आकारों की होती थीं। जब इन पट्टिकाओं पर लिखने का कार्य पूर्ण हो जाता था तो इन्हें पहले धूप में सुखाया जाता था तथा फिर आग में पका लिया जाता था।

इस कारण वे पत्थर की तरह कठोर हो जाया करती थीं। इसके तीन लाभ थे। प्रथम, वे पेपिरस (pepirus) की तरह जल्दी नष्ट नहीं होती थीं। दूसरा, उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुरक्षित ले जाया जा सकता था। तीसरा, एक बार लिखे जाने पर इनमें किसी प्रकार का परिवर्तन करना संभव नहीं था। इस लिपि का प्रयोग अब मंदिरों को दान में प्राप्त वस्तुओं का ब्योरा रखने के लिए नहीं अपितु शब्द कोश बनाने, भूमि के हस्तांतरण को कानूनी मान्यता देने तथा राजाओं के कार्यों का वर्णन करने के लिए किया जाने लगा।

मेसोपोटामिया की सबसे पुरानी ज्ञात भाषा सुमेरियन (Sumerian) थी। 2400 ई० पू० के आस-पास सुमेरियन भाषा का स्थान अक्कदी (Akkadi) भाषा ने ले लिया। 1400 ई० पू० से धीरे-धीरे अरामाइक (Aramaic) भाषा का प्रचलन आरंभ हुआ। 1000 ई० पू० के पश्चात् अरामाइक भाषा का प्रचलन व्यापक रूप से होने लगा। यद्यपि मेसोपोटामिया में लिपि का प्रचलन हो चुका था किंतु इसके बावजूद यहाँ साक्षरता (literacy) की दर बहुत कम थी।

इसका कारण यह था कि केवल चिह्नों की संख्या 2000 से अधिक थी। इसके अतिरिक्त यह भाषा बहुत पेचीदा थी। अतः इस भाषा को केवल विशेष प्रशिक्षण प्राप्त लोग ही सीख सकते थे। मेसोपोटामिया की लिपि के कारण ही इतिहासकार इस सभ्यता पर विस्तृत प्रकाश डाल सके हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार रिचर्ड एल० ग्रीवस का यह कथन ठीक है कि, “सुमेरियनों की सबसे महत्त्वपूर्ण एवं दीर्घकालीन सफलता उनकी लेखन कला का विकास था।”1

II. लेखन कला की देन

मेसोपोटामिया में लेखन कला के आविष्कार को मानव इतिहास की एक अति महत्त्वपूर्ण घटना माना जाता था। यह मानव सभ्यता के विकास में एक मील का पत्थर सिद्ध हुई। लेखन कला के कारण सम्राट के आदेशों, उनके समझौतों तथा कानूनों को दस्तावेज़ों का रूप देना संभव हुआ। मेसोपोटामिया ने विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों-गणित, खगोल विद्या तथा औषधि विज्ञान में आश्चर्यजनक उन्नति की थी। उनके लिखित दस्तावेजों के कारण विश्व को उनके अमूल्य ज्ञान का पता चला।

उनके द्वारा दी गई वर्ग, वर्गमूल, चक्रवृद्धि ब्याज, गुणा तथा भाग, वर्ष का 12 महीनों में विभाजन, 1 महीने का 4 हफ्तों में विभाजन, 1 दिन का 24 घंटों में तथा 1 घंटे का 60 मिनटों में विभाजन, सूर्य ग्रहण तथा चंद्र ग्रहण, आकाश में तारों तथा तारामंडल की स्थिति को आज पूरे विश्व में मान्यता दी गई है। लेखन कला के विकास के कारण मेसोपोटामिया में शिक्षा एवं साहित्य के विकास में आशातीत विकास हुआ। निनवै से प्राप्त हुआ एक विशाल पुस्तकालय इसकी पुष्टि करता है। इस कारण लोगों में नव-चेतना का संचार हुआ। संक्षेप में इसने मेसोपोटामिया के समाज पर दूरगामी प्रभाव डाले।

क्रम संख्या

क्रम संख्या काल घटना
1. 7000-6000 ई० पू० मेसोपोटामिया में कृषि का आरंभ।
2. 3200 ई० पू० मेसोपोटामिया में लेखन कला का विकास।
3. 3050 ई० पू० लगश के प्रथम शासक उरनिना का सिंहासन पर बैठना।
4. 3000 ई० पू० मेसोपोटामिया में नगरों का उत्थान, उरुक नगर का आरंभ, वार्का शीर्ष का प्राप्त होना।
5. 2000-1759 ई० पू० मारी नगर का उत्थान।
6. 2800-2370 ई० पू० किश नगर का विकास।
7. 2670 ई० पू० मेसनीपद का उर के सिंहासन पर बैठना।
8. 2600 ई० पू० कीलाकार लिपि का प्रचलन।
9. 2400 ई० पू० सुमेरियन के स्थान पर अक्कदी भाषा का प्रयोग।
10. 2200 ई० पू० एलमाइटों द्वारा उर नगर का विनाश।
11. 2000 ई० पू० गिल्गेमिश महाकाव्य को 12 पट्टिकाओं पर लिखवाना।
12. 1810-1760 ई० पू० ज़िमरीलिम के मारी स्थित राजमहल का निर्माण।
13. 2400 ई० पू० सुमेरियन भाषा का प्रचलन बंद होना।
14. 1800 ई० पू० नीनस द्वारा निनवै की स्थापना।
15. 1780-1750 ई० पू० हामूराबी का शासनकाल।
16. 1759 ई० पू० हामूराबी द्वारा मारी नगर का विनाश।
17. 1400 ई० पू० अरामाइक भाषा का प्रचलन।
18. 705-681 ई० पू० निनवै में सेनाचारिब का शासनकाल।
19. 668-627 ई० पू० असुरबनिपाल का शासनकाल।
20. 625 ई० पू० नैबोपोलास्सर द्वारा बेबीलोनिया को असीरियाई शासन से स्वतंत्र करवाना।
21. 612 ई० पू० नैबोपोलास्सर द्वारा निमरुद नगर का विनाश।
22. 1840 ई मेसोपोटामिया में पुरातत्त्वीय खोजों का आरंभ।
23. 1845-1851 ई० हेनरी अस्टेन लैयार्ड द्वारा निमरुद नगर का उत्खनन।
24. 1850 ई कीलाकार लिपि के अक्षरों को पहचाना एवं पढ़ा गया। जुलीयस जोर्डन द्वारा उरुक नगर की खुदाई।
25. 1913 ई० सर लियोनार्ड वूले द्वारा उर नगर की खुदाई।
26 1920-1930 ई。 फ्रांसीसियों द्वारा मारी नगर का उत्खनन।
27. 1933 ई० नैबोपोलास्सर द्वारा निमरुद नगर का विनाश।

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
दजला एवं फ़रात नदियों ने मेसोपोटामिया के इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। कैसे ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया से अभिप्राय है दो नदियों के मध्य का प्रदेश। ये नदियाँ हैं दजला एवं फ़रात । इन नदियों को मेसोपोटामिया सभ्यता की जीवन रेखा कहा जाता है। दजला एवं फ़रात नदियों का उद्गम आर्मीनिया के उत्तरी पर्वतों तोरुस से होता है। इन पर्वतों की ऊँचाई लगभग 10,000 फुट है। यहाँ लगभग सारा वर्ष बर्फ जमी रहती है। इस क्षेत्र में वर्षा भी पर्याप्त होती है। दजला 1850 किलोमीटर लंबी है।

इसका प्रवाह तीव्र है तथा इसके तट ऊँचे एवं अधिक कटे-फटे हैं। इसलिए प्राचीनकाल में इस नदी के तटों पर बहुत कम नगरों की स्थापना हुई थी। दूसरी ओर फ़रात नदी ने मेसोपोटामिया के इतिहास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

यह नदी 2350 किलोमीटर लंबी है। इसका प्रवाह कम तीव्र है। इसके तट कम ऊँचे एवं कम कटे-फटे हैं। इस कारण प्राचीनकाल के प्रसिद्ध नगरों की स्थापना इस नदी के तटों पर हुई। दजला एवं फ़रात नदियाँ उत्तरी पर्वतों से निकल कर अपने साथ उपजाऊ मिट्टी लाती थीं। इस उपजाऊ मिट्टी के कारण एवं नहरों के कारण यहाँ फ़सलों का भरपूर उत्पादन होता था।

प्रश्न 2.
मेसोपोटामिया में प्राकृतिक उपजाऊपन के बावजूद कृषि अनेक बार संकट से घिर जाती थी। क्यों ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया में प्राकृतिक उपजाऊपन होने के बावजूद कृषि अनेक बार संकटों से घिर जाती थी। इसके अनेक कारण थे। प्रथम, दजला एवं फ़रात नदियों में कभी-कभी भयंकर बाढ़ आ जाती थी। इस कारण फ़सलें नष्ट हो जाती थीं। दूसरा, कई बार पानी की तीव्र गति के कारण ये नदियाँ अपना रास्ता बदल लेती थीं। इससे सिंचाई व्यवस्था चरमरा जाती थी। मेसोपोटामिया में वर्षा की कमी होती थी।

अतः फ़सलें सूख जाती थीं। तीसरा, नदी के ऊपरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग नहरों का प्रवाह अपने खेतों की ओर मोड़ लेते थे। इस कारण निचले क्षेत्रों में बसे हुए गाँवों को खेतों के लिए पानी नहीं मिलता था। चौथा, ऊपरी क्षेत्रों के लोग अपने हिस्से की सरणी में से मिट्टी नहीं निकालते थे। इस कारण निचले क्षेत्रों में पानी का बहाव रुक जाता था। इस कारण पानी के लिए गाँववासियों में अनेक बार झगड़े हुआ करते थे।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

प्रश्न 3.
आप यह कैसे कह सकते हैं कि प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ही आरंभ में शहरीकरण के कारण थे ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया में शहरीकरण के विकास में प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर का बहुमूल्य योगदान था। यहाँ की भूमि में प्राकृतिक उर्वरता थी। इससे खेती को बहुत प्रोत्साहन मिला। प्राकृतिक उर्वरता के कारण पशुओं को चारे के लिए कोई कमी नहीं थी। अत: पशुपालन को भी प्रोत्साहन मिला। पशुओं से न केवल दूध, माँस एवं ऊन प्राप्त किया जाता था अपितु उनसे खेती एवं यातायात का कार्य भी लिया जाता था। खेती एवं पशुपालन के कारण मानव जीवन स्थायी बन गया।

अत: उसे भोजन की तलाश में स्थान-स्थान पर घूमने की आवश्यकता नहीं रही। स्थायी जीवन होने के कारण मानव झोंपड़ियाँ बना कर साथ-साथ रहने लगा। इस प्रकार गाँव अस्तित्व में आए। खाद्य उत्पादन के बढ़ने से वस्तु विनिमय की प्रक्रिया आरंभ हो गई। इस कारण नये-नये व्यवसाय आरंभ हो गए। इससे नगरीकरण की प्रक्रिया को बहुत बल मिला।

प्रश्न 4.
नगरीय विकास में श्रम विभाजन का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
श्रम विभाजन को नगरीय विकास का एक महत्त्वपूर्ण कारक माना जाता है। नगरों के लोग आत्मनिर्भर नहीं होते। उन्हें विभिन्न प्रकार की सेवाओं के लिए एक-दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है। उदाहरण के लिए एक पत्थर की मुद्रा बनाने वाले को पत्थर पर उकेरने के लिए काँसे के औज़ारों की आवश्यकता होती है। ऐसे औजारों का वह स्वयं निर्माण नहीं करता। इसके अतिरिक्त वह मुद्रा बनाने के लिए आवश्यक रंगीन पत्थर के लिए भी अन्य व्यक्तियों पर निर्भर करता है।

वह व्यापार करना भी नहीं जानता। उसकी विशेषज्ञता तो केवल पत्थर उकेरने तक ही सीमित होती है। इस प्रकार नगर के लोग अन्य लोगों पर उनकी सेवाओं के लिए अथवा उनके द्वारा उत्पन्न की गई वस्तुओं पर निर्भर करते हैं। संक्षेप में श्रम विभाजन को शहरी जीवन का एक महत्त्वपूर्ण आधार माना जाता है।

प्रश्न 5.
मेसोपोटामिया में मुद्राएँ किस प्रकार बनाई जाती थीं तथा इनका क्या महत्त्व था ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के नगरों से हमें बड़ी संख्या में मुद्राएँ मिली हैं। ये मुद्राएँ पत्थर की होती थीं तथा इनका आकार बेलनाकार था। ये बीच में आर-पार छिदी होती थीं। इसमें एक तीली लगायी जाती थी। इसे फिर गीली मिट्टी के ऊपर घुमा कर चित्र बनाए जाते थे। इन्हें अत्यंत कुशल कारीगरों द्वारा उकेरा जाता था। इन मुद्राओं पर कभी-कभी इसके स्वामी का नाम, उसके देवता का नाम तथा उसके रैंक आदि का वर्णन भी किया जाता था।

इन मुद्राओं का प्रयोग व्यापारियों द्वारा अपना सामान एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुरक्षित भेजने के लिए किया जाता था। ये व्यापारी अपने सामान को एक गठरी में बाँध कर ऊपर गाँठ लगा लेते थे। इस गाँठ पर वह मुद्रा का ठप्पा लगा देते थे। इस प्रकार यह मुद्रा उस सामान की प्रामाणिकता का प्रतीक बन जाती थी। यदि यह मुद्रा टूटी हुई पाई जाती तो पता लग जाता कि रास्ते में सामान के साथ छेड़छाड़ की गई है अन्यथा भेजा गया सामान सुरक्षित है। निस्संदेह मुद्राओं के प्रयोग ने नगरीकरण के विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभाई।

प्रश्न 6.
3000 ई० पू० में उरुक नगर ने तकनीकी क्षेत्र में अद्वितीय विकास किया गया। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ?
उत्तर:
3000 ई० पू० के आस-पास उरुक नगर ने तकनीकी क्षेत्र में अद्वितीय विकास किया। इसका अनुमान इस बात से लगाया जाता है कि उस समय के लोगों ने अनेक प्रकार के शिल्पों के लिए काँसे के औज़ारों का प्रयोग आरंभ कर दिया था। इसके अतिरिक्त वास्तुविदों ने ईंटों के स्तंभों को बनाना सीख लिया था। इससे भवन निर्माण कला के क्षेत्र में एक नयी क्राँति आई।

इसका कारण यह था कि उस समय बड़े-बड़े कमरों की छतों के बोझ को संभालने के लिए शहतीर बनाने के लिए उपयुक्त लकड़ी उपलब्ध नहीं थी। बड़ी संख्या में लोग चिकनी मिट्टी के शंकु बनाने एवं पकाने का कार्य करते थे। इन शंकुओं को भिन्न-भिन्न रंगों से रंगा जाता था। इसके पश्चात् इन्हें मंदिरों की दीवारों पर लगाया जाता था।

इससे मंदिरों की सुंदरता बहुत बढ़ जाती थी। उरुक नगर के लोगों ने मूर्तिकला के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति की। इसका अनुमान 3000 ई० पू० में उरुक नगर से प्राप्त वार्का शीर्ष से लगाया जा सकता है। यह एक स्त्री का सिर था। इसे सफ़ेद संगमरमर को तराश कर बनाया गया था। इसके सिर के ऊपर एक खाँचा बनाया गया था जिसे शायद आभूषण पहनने के लिए बनाया गया था। कुम्हार के चाक के निर्माण से प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया। इस कारण बड़ी संख्या में एक जैसे बर्तन बनाना सुगम हो गया।

प्रश्न 7.
उर नगर में नगर योजना का पालन नहीं किया गया था। उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
उर नगर के उत्खनन से जो निष्कर्ष सामने आता है उससे यह ज्ञात होता है कि इसमें नगर योजना का पालन नहीं किया गया था। इस नगर की गलियाँ संकरी एवं टेढ़ी-मेढ़ी थीं। अतः पहिए वाली गाड़ियों का घरों तक पहुँचना संभव न था। अतः अनाज के बोरों तथा ईंधन के गट्ठों को संभवतः गधों पर लाद कर पहुँचाया जाता था।

उर नगर में मोहनजोदड़ो की तरह जल निकासी के लिए गलियों के किनारे नालियाँ नहीं थीं। ये नालियाँ घरों के भीतरी आँगन में पाई गई हैं। इससे यह सहज अनुमान लगाया जाता है कि घरों की छतों का ढलान भीतर की ओर होता था। अत: वर्षा के पानी का निकास नालियों के माध्यम से आँगन के भीतर बनी हुई हौजों में ले जाया जाता था। ऐसा इसलिए किया गया था ताकि तीव्र वर्षा के कारण घरों के बाहर बनी कच्ची गलियों में कीचड़ न एकत्र हो जाए।

उर नगर की खुदाई से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि उस समय के लोग अपने घर का सारा कूड़ा कचरा बाहर गलियों में फेंक देते थे। इस कारण गलियों की सतहें ऊँची उठ जाती थीं। इस कारण कुछ समय बाद घरों के बरामदों को भी ऊँचा करना पड़ता था ताकि वर्षा के दिनों में बाहर से पानी एवं कूड़ा बह कर घरों के अंदर न आ जाए।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

प्रश्न 8.
मारी नगर क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
1) मारी में अक्कदी, एमोराइट, असीरियाई तथा आर्मीनियन जाति के लोग रहते थे। मारी के राजा एमोराइट समुदाय से संबंधित थे। उनकी पोशाक वहाँ के मूल निवासियों से भिन्न होती थी। मारी के राजा मेसोपोटामिया के विभिन्न देवी-देवताओं का बहुत सम्मान करते थे। इस प्रकार मारी में विभिन्न जातियों एवं समुदायों के मिश्रण से वहाँ एक नई संस्कृति का जन्म हुआ।

2) मारी के प्रसिद्ध शासक ज़िमरीलिम ने वहाँ एक विशाल राजमहल का निर्माण करवाया था। यह 2.4 हैक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ था। इसके 260 कमरे थे। यह अपने समय में न केवल अन्य राजमहलों में सबसे विशाल था अपितु यह अत्यंत सुंदर भी था। इसका निर्माण विभिन्न रंगों के सुंदर पत्थरों से किया गया था।

3) मारी नगर व्यापार का एक प्रसिद्ध केंद्र भी था। इसके न केवल मेसोपोटामिया के अन्य नगरों अपितु विदेशों, तुर्की, सीरिया, लेबनान, ईरान आदि देशों के साथ व्यापारिक संबंध थे। मारी में आने-जाने वाले जहाजों के सामान की अधिकारियों द्वारा जाँच की जाती थी। वे जहाजों में लदे हुए माल की कीमत का लगभग 10% प्रभार वसूल करते थे।

प्रश्न 9.
यह कहना क्यों सही होगा कि खानाबदोश पशुचारक निश्चित रूप से शहरी जीवन के लिए ख़तरा थे ?
उत्तर:
खानाबदोश पशुचारक निश्चित रूप से शहरी जीवन के लिए एक ख़तरा थे। इसके निम्नलिखित कारण थे।

  • गड़रिये आमतौर पर अपनी भेड़-बकरियों को पानी पिलाने के लिए बोए हुए खेतों में से गुज़ार ले जाते थे। इससे फ़सलों को भारी क्षति पहुँचती थी।
  • कई बार ये गड़रिये जो खानाबदोश होते थे, किसानों के गाँवों पर आक्रमण कर उनके माल को लूट लेते थे। इससे शहरी अर्थव्यवस्था को आघात पहुँचता था।
  • अनेक बार किसान इन पशुचारकों का रास्ता रोक लेते थे तथा उन्हें पशुओं को जल स्रोतों तक नहीं ले जाने देते थे। इस कारण उनमें आपसी झगड़े होते थे।
  • कुछ गड़रिये फ़सल काटने वाले मजदूरों अथवा भाड़े के सैनिकों के रूप में शहर आते थे। समृद्ध होने पर वे वहीं बस जाते थे।
  • खानाबदोश समुदायों के पशुओं के अतिचारण से बहुत-ही उपजाऊ जमीन बंजर हो जाती थी।

प्रश्न 10.
मारी स्थित ज़िमरीलिम के राजमहल के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
मारी के प्रसिद्ध शासक ज़िमरीलिम ने मारी में एक भव्य राजमहल का निर्माण (1810-1760 ई० पू०) करवाया था। यह 2.4 हैक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ था। इसके 260 कमरे थे। यह अपने समय में न केवल अन्य राजमहलों में सबसे विशाल था अपितु यह अत्यंत सुंदर भी था। इसका निर्माण विभिन्न रंगों के सुंदर पत्थरों से किया गया था। इस राजमहल में लगे भित्ति चित्र बहुत सुंदर एवं सजीव थे।

इस राजमहल की भव्यता को अपनी आँखों से देखने सीरिया एवं अलेप्पो के शासक स्वयं आए थे। यह राजमहल वहाँ के शाही परिवार का निवास स्थान था। यह प्रशासन का मुख्य केंद्र था। यहाँ कीमती धातुओं के आभूषणों का निर्माण भी किया जाता था। इस राजमहल का केवल एक ही द्वार था जो उत्तर की ओर बना हुआ था।

प्रश्न 11.
असुरबनिपाल पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
असुरबनिपाल की गणना निनवै के महान् शासकों में की जाती है। उसने 668 ई० पू० से 627 ई० पू० तक शासन किया था। वह महान् भवन निर्माता था। अतः उसने अपने साम्राज्य में अनेक भव्य भवनों एवं मंदिरों का निर्माण करवाया। उसने पुराने भवनों एवं मंदिरों की मुरम्मत भी करवाई। उसने अनेक उद्यान स्थापित किए। इससे निनवै की सुंदरता को चार चाँद लग गए। वह महान् साहित्य प्रेमी भी था।

उसने निनवै में नाबू मंदिर में एक विशाल पुस्तकालय की स्थापना की थी। इस पुस्तकालय में उसने अनेक प्रसिद्ध लेखकों को बुला कर उनकी प्रसिद्ध पुस्तकों को रखवाया था। इस पुस्तकालय में लगभग 1000 मूल ग्रंथ एवं 30,000 पट्टिकाएँ थीं। इन्हें विषयानुसार वर्गीकृत किया गया था। इनमें प्रमुख विषय ये थे-इतिहास, महाकाव्य, ज्योतिष, दर्शन, विज्ञान एवं कविताएँ। असुरबनिपाल ने स्वयं भी अनेक पट्टिकाएँ लिखीं।

प्रश्न 12.
मेसोपोटामिया के नगर बेबीलोन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
बेबीलोन दजला नदी के उत्तर-पश्चिम में स्थित था। इसकी राजधानी का नाम बेबीलोनिया था। इस नगर ने प्राचीन काल मेसोपोटामिया के इतिहास में अत्यंत उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी। इस नगर की स्थापना अक्कद के शासक सारगोन ने की थी। उसने यहाँ अनेक भवनों का निर्माण करवाया। हामूराबी के शासनकाल में बेबीलोन ने अद्वितीय विकास किया। बाद में असीरिया ने बेबीलोन पर अधिकार कर लिया था। 625 ई० पू० में नैबोपोलास्सर ने बेबीलोनिया को असीरियाई शासन से स्वतंत्र करवा लिया था। उसके एवं उसके उत्तराधिकारियों के अधीन बेबीलोन में एक गौरवपूर्ण युग का आरंभ हुआ।

इसकी गणना विश्व के प्रमुख नगरों में की जाने लगी। इसका क्षेत्रफल 850 हैक्टेयर से अधिक था। इसके चारों ओर एक तिहरी दीवार बनाई गई थी। इसमें अनेक विशाल एवं भव्य राजमहलों एवं मंदिरों का निर्माण किया गया था। बेबीलोन एक प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र भी था। इस नगर ने भाषा, साहित्य, विज्ञान एवं चिकित्सा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। नगर में एक ज़िगुरात यानी सीढ़ीदार मीनार थी एवं नगर के मुख्य अनुष्ठान केंद्र तक शोभायात्रा के लिए एक विस्तृत मार्ग बना हुआ था।

प्रश्न 13.
मेसोपोटामिया के प्रारंभिक शहरी समाजों में सामाजिक असमानता का भेद आरंभ हो चुका था। कैसे ?
उत्तर:
उस समय प्रारंभिक शहरी समाजों में सामाजिक असमानता का भेद आरंभ हो चुका था। उस समय समाज में तीन प्रमुख वर्ग प्रचलित थे। प्रथम वर्ग कुलीन लोगों का था। इसमें राजा, राज्य के अधिकारी, उच्च सैनिक अधिकारी, धनी व्यापारी एवं पुरोहित सम्मिलित थे। इस वर्ग को समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त था। इस वर्ग के लोग बहुत ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। वे सुंदर महलों एवं भवनों में रहते थे।

वे मूल्यवान वस्त्रों को पहनते थे। वे अनेक प्रकार के स्वादिष्ट भोजन खाते थे। उनकी सेवा में अनेक दास-दासियाँ रहती थीं। दूसरा वर्ग मध्य वर्ग था। इस वर्ग में छोटे व्यापारी, शिल्पी, राज्य के अधिकारी एवं बुद्धिजीवी सम्मिलित थे। इनका जीवन स्तर भी काफी अच्छा था। तीसरा वर्ग समाज का सबसे निम्न वर्ग था। इसमें किसान, मजदूर एवं दास सम्मिलित थे।

यह समाज का बहुसंख्यक वर्ग था। इस वर्ग की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। उर में मिली शाही कब्रों में राजाओं एवं रानियों के शवों के साथ अनेक बहुमूल्य वस्तुएँ जैसे आभूषण, सोने के पात्र, सफेद सीपियाँ और लाजवर्द जड़े हुए लकड़ी के वाद्य यंत्र, सोने के सजावटी खंजर आदि विशाल मात्रा में मिले हैं। दूसरी ओर साधारण लोगों के शवों के साथ केवल मामूली से बर्तनों को दफनाया जाता था। इससे स्पष्ट अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय धन-दौलत का अधिकांश हिस्सा एक छोटे-से वर्ग में केंद्रित था।

प्रश्न 14.
शहरी अर्थव्यवस्था में एक सामाजिक संगठन का होना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर:
शहरी अर्थव्यवस्था में एक सामाजिक संगठन का होना निम्नलिखित कारणों से ज़रूरी है
1) शहरी विनिर्माताओं के लिए ईंधन, धातु, विभिन्न प्रकार के पत्थर तथा लकड़ी इत्यादि आवश्यक वस्तुएँ विभिन्न स्थानों से आती हैं। इसके लिए संगठित व्यापार और भंडारण की आवश्यकता होती है।

2) शहरों में अनाज एवं अन्य खाद्य पदार्थ गाँवों से आते हैं। अतः उनके संग्रहण एवं वितरण के लिए व्यवस्था की आवश्यकता होती है।

3) अनेक प्रकार के क्रियाकलापों में तालमेल की ज़रूरत होती है। उदाहरण के लिए मोहरों को बनाने वालों को केवल पत्थर ही नहीं, अपितु उन्हें तराश्ने के लिए औज़ार भी चाहिए।

4) शहरी अर्थव्यवस्था में अपना हिसाब-किताब भी लिखित रूप में रखना होता है।

5) ऐसी प्रणाली में कुछ लोग आदेश देते हैं एवं दूसरे उनका पालन करते हैं।

प्रश्न 15.
आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि पुराने मंदिर बहुत कुछ घर जैसे ही होंगे।
उत्तर:
इसमें कोई संदेह नहीं कि मेसोपोटामिया के कुछ मंदिर घर जैसे ही थे। ये मंदिर छोटे आकार के थे तथा ये कच्ची ईंटों के बने हुए थे। समय के साथ-साथ जैसे-जैसे इन मंदिरों का महत्त्व बढ़ता गया वैसे-वैसे ये मंदिर विशाल एवं भव्य होते चले गए। इन मंदिरों को पर्वतों के ऊपर बनाया जाता था। उस समय मेसोपोटामिया के लोगों की यह धारणा थी कि देवता पर्वतों में निवास करते हैं। ये मंदिर पक्की ईंटों से बनाए जाते थे।

इन मंदिरों की विशेषता यह थी कि मंदिरों की बाहरी दीवारें कुछ खास अंतरालों के पश्चात् भीतर और बाहर की ओर मुड़ी होती थीं। साधारण घरों की दीवारें ऐसी नहीं होती थीं। इन मंदिरों के आँगन खुले होते थे तथा इनके चारों ओर अनेक कमरे बने होते थे। प्रमुख कमरों में देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित की जाती थीं। कुछ कमरों में मंदिरों के पुरोहित निवास करते थे। अन्य कमरे मंदिर में आने वाले यात्रियों के लिए थे।

प्रश्न 16.
गिल्गेमिश के महाकाव्य के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
गिल्गेमिश के महाकाव्य को विश्व साहित्य में विशेष स्थान प्राप्त है। गिलोमिश रुक का एक प्रसिद्ध शासक था जिसने लगभग 2700 ई० पू० वहाँ शासन किया था। उसके महाकाव्य को 2000 ई० पू० में 12 पट्टिकाओं पर लिखा गया था। इस महाकाव्य में गिल्गेमिश के बहादुरी भरे कारनामों एवं मृत्यु की मानव पर विजय का बहुत मर्मस्पर्शी वर्णन किया गया है। गिल्गेमिश उरुक का एक प्रसिद्ध एवं शक्तिशाली शासक था।

वह एक महान् योद्धा था। उसने अनेक प्रदेशों को अपने अधीन कर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना कर ली थी। जहाँ एक ओर गिल्गेमिश बहुत बहादुर था वहीं दूसरी ओर वह बहुत अत्याचारी भी था। उसके अत्याचारों से देवताओं ने उसके अत्याचारों से प्रजा को मुक्त करवाने के उद्देश्य से एनकीडू को भेजा। दोनों के मध्य एक लंबा युद्ध हुआ।

इस युद्ध में दोनों अविजित रहे। इस कारण दोनों में मित्रता स्थापित हो गई। इसके पश्चात् गिल्गेमिश एवं एनकीडू ने अपना शेष जीवन मानवता की सेवा करने में व्यतीत किया। कुछ समय के पश्चात् एनकोडू एक सुंदर नर्तकी के प्रेम जाल में फंस गया। इस कारण देवता उससे नाराज़ हो गए एवं दंडस्वरूप उसके प्राण ले लिए। एनकीडू की मृत्यु से गिल्गेमिश को गहरा सदमा लगा। वह स्वयं मृत्यु से भयभीत रहने लगा।

इसलिए उसने अमृत्तव की खोज आरंभ की। वह अनेक कठिनाइयों को झेलता हुआ उतनापिष्टिम से मिला। अंतत: गिल्गेमिश के हाथ निराशा लगी। उसे यह स्पष्ट हो गया कि पृथ्वी पर आने वाले प्रत्येक जीव की मृत्यु निश्चित है। अत: वह इस बात से संतोष कर लेता है कि उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र एवं उरुक निवासी जीवित रहेंगे।

प्रश्न 17.
मेसोपोटामिया की लेखन प्रणाली के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के लोग मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखा करते थे। लिपिक चिकनी मिट्टी को गीला करता था। इसके पश्चात् उसे गूंध कर एक ऐसे आकार की पट्टी का रूप दे देता था जिसे वह सुगमता से अपने हाथ में पकड़ सके। इसके बाद वह सरकंडे की तीली की तीखी नोक से उसकी नम चिकनी सतह पर कीलाकार चिह्न बना देता था। इसे बाएँ से दाएँ लिखा जाता था।

इस लिपि का प्रचलन 2600 ई० पू० में हुआ था। 1850 ई० पू० में कीलाकार लिपि के अक्षरों को पहचाना एवं पढ़ा गया। ये पट्टिकाएँ विभिन्न आकारों की होती थीं। जब इन पट्टिकाओं पर लिखने का कार्य पूर्ण हो जाता था तो इन्हें पहले धूप में सुखाया जाता था तथा फिर आग में पका लिया जाता था। इस कारण वे पत्थर की तरह कठोर हो जाया करती थीं। इसके तीन लाभ थे।

प्रथम, वे पेपिरस की तरह जल्दी नष्ट नहीं होती थीं। दूसरा, उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुरक्षित ले जाया जा सकता था। तीसरा, एक बार लिखे जाने पर इनमें किसी प्रकार का परिवर्तन करना संभव नहीं था। इस लिपि का प्रयोग अब मंदिरों को दान में प्राप्त वस्तुओं का ब्योरा रखने के लिए नहीं अपितु शब्द कोश बनाने, भूमि के हस्तांतरण को कानूनी मान्यता देने तथा राजाओं के कार्यों का वर्णन करने के लिए किया जाने लगा।

प्रश्न 18.
विश्व को मेसोपोटामिया की क्या देन है?
उत्तर:
विश्व को मेसोपोटामिया ने निम्नलिखित क्षेत्रों में बहुमूल्य योगदान दिया

  • उसकी कालगणना तथा गणित की विद्वत्तापूर्ण परंपरा को आज तार्किक माना जाता है।
  • उसने गुणा और भाग की जो तालिकाएँ, वर्ग तथा वर्ममूल और चक्रवृद्धि ब्याज की जो सारणियाँ दी हैं उन्हें आज सही माना जाता है।
  • उन्होंने 2 के वर्गमूल का जो मान दिया है वह आज के वर्गमूल के मान के बहुत निकट है।
  • उन्होंने एक वर्ष को 12 महीनों, एक महीने को 4 हफ्तों, एक दिन को 24 घंटों तथा एक घंटे को 60 मिनटों में विभाजित किया है। इसे आज पूर्ण विश्व द्वारा अपनाया गया है।
  • उनके द्वारा सूर्य एवं चंद्र ग्रहण, तारों और तारामंडल की स्थिति को आज तार्किक माना जाता है।
  • उन्होंने आधुनिक विश्व को लेखन कला के अवगत करवाया।

अति संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मेसोपोटामिया से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया यूनानी भाषा के दो शब्दों ‘मेसोस’ तथा ‘पोटैमोस’ से बना है। मेसोस से भाव है मध्य तथा पोटैमोस का अर्थ है नदी। इस प्रकार मेसोपोटामिया से अभिप्राय है दो नदियों के मध्य स्थित प्रदेश।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

प्रश्न 2.
मेसोपोटामिया का आधुनिक नाम क्या है ? यह किन दो नदियों के मध्य स्थित है ?
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया का आधुनिक नाम इराक है।
  • यह दजला एवं फ़रात नदियों के मध्य स्थित है।

प्रश्न 3.
मेसोपोटामिया के बारे में ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ में क्या लिखा हुआ है ?
उत्तर:
यूरोपवासियों के लिए मेसोपोटामिया इसलिए महत्त्वपूर्ण था क्योंकि बाईबल के प्रथम भाग ओल्ड टेस्टामेंट में मेसोपोटामिया का उल्लेख अनेक संदर्भो में किया गया है। ओल्ड टेस्टामेंट की ‘बुक ऑफ जेनेसिस’ में ‘शिमार’ का उल्लेख हैं जिसका अर्थ सुमेर ईंटों से बने शहरों की भूमि से हैं।

प्रश्न 4.
मेसोपोटामिया की कोई दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया के पूर्वोत्तर भाग में हरे-भरे, ऊँचे-नीचे मैदान हैं। यहाँ 7000 ई० पू० से 6000 ई० पू० के मध्य खेती शुरू हो गई थी।
  • मेसोपोटामिया के उत्तर में स्टेपी घास के मैदान हैं। यहाँ पशुपालन का व्यवसाय काफी विकसित हैं।

प्रश्न 5.
मेसोपोटामिया का दक्षिणी भाग एक रेगिस्तान है। इसके बावजूद यहाँ नगरों का विकास क्यों हुआ ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के दक्षिणी भाग में नगरों का विकास इसलिए हुआ क्योंकि यहाँ दजला एवं फ़रात नदियाँ पहाड़ों से निकल कर अपने साथ उपजाऊ मिट्टी लाती हैं। अतः यहाँ फ़सलों का भरपूर उत्पादन होता है। इसे नगरों के विकास के लिए रीढ़ की हड्डी माना जाता है।

प्रश्न 6.
मेसोपोटामिया में प्राकृतिक उपजाऊपन होने के बावजूद कृषि अनेक बार संकटों से क्यों घिर जाती थी ? कोई दो कारण बताएँ।
अथवा
मेसोपोटामिया में कृषि संकट के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर:

  • दजला एवं फ़रात नदियों में बाढ़ के कारण फ़सलें नष्ट हो जाती थीं।
  • कई बार वर्षा की कमी के कारण फ़सलें सूख जाती थीं।

प्रश्न 7.
मेसोपोटामिया में नगरों का विकास कब आरंभ हुआ ? किन्हीं दो प्रसिद्ध नगरों के नाम लिखें।
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया में नगरों का विकास 3000 ई०पू० में आरंभ हुआ।
  • मेसोपोटामिया के दो प्रसिद्ध नगरों के नाम उरुक एवं मारी थे।

प्रश्न 8.
मेसोपोटामिया में कितने प्रकार के नगरों का निर्माण हुआ ? इनके नाम क्या थे ?
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया में तीन प्रकार के नगरों का निर्माण हुआ।
  • इनके नाम थे-धार्मिक नगर, व्यापारिक नगर एवं शाही नगर।

प्रश्न 9.
मेसोपोटामिया में नगरीकरण के उत्थान के कोई दो कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:

  • अत्यंत उत्पादक खेती।।
  • जल-परिवहन की कुशल व्यवस्था।

प्रश्न 10.
आप यह कैसे कह सकते हैं कि प्राकृतिक उर्वरता तथा खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ही आरंभ में शहरीकरण के कारण थे ?
उत्तर:

  • प्राकृतिक उर्वरता के कारण कृषि एवं पशुपालन को प्रोत्साहन मिला।
  • खाद्य उत्पादक बन जाने के कारण मनुष्य का जीवन स्थायी बन गया।
  • प्राकृतिक उर्वरता एवं खाद्य उत्पादन के उच्च स्तर ने नए व्यवसायों को आरंभ किया। ]

प्रश्न 11.
श्रम विभाजन से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
श्रम विभाजन से अभिप्राय उस व्यवस्था से है जब व्यक्ति आत्मनिर्भर नहीं रहता। इसे विभिन्न सेवाओं के लिए विभिन्न व्यक्तियों पर आश्रित होना पड़ता है।

प्रश्न 12.
मेसोपोटामिया के लोग किन देशों से कौन-सी वस्तुएँ मंगवाते थे ? इन वस्तुओं के बदले वे क्या निर्यात करते थे ?
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया के लोग तुर्की, ईरान एवं खाड़ी पार के देशों से लकड़ी, ताँबा, सोना, चाँदी, टिन एवं पत्थर मँगवाते थे।
  • इन वस्तुओं के बदले वे कपड़ा एवं कृषि उत्पादों का निर्यात करते थे।

प्रश्न 13.
मेसोपोटामिया की मुद्राओं की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • ये मुद्राएँ पत्थर की बनी होती थीं।
  • इनका आकार बेलनाकार होता था।

प्रश्न 14.
मेसोपोटामिया का सबसे प्राचीन नगर कौन-सा था ? इसका उत्थान कब हुआ ?
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया का सबसे प्राचीन नगर उरुक था।
  • इसका उत्थान 3000 ई० पू० में हुआ था।

प्रश्न 15.
उरुक नगर का संस्थापक कौन था ? इसे किस शासक ने अपनी राजधानी घोषित किया था ?
उत्तर:

  • उरुक नगर का संस्थापक एनमर्कर था।
  • इसे गिल्गेमिश ने अपने साम्राज्य की राजधानी घोषित किया था।

प्रश्न 16.
3000 ई० पू० के आसपास उरुक नगर ने तकनीकी क्षेत्र में अद्वितीय विकास किया। कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  • उरुक में अनेक प्रकार के शिल्पों के लिए काँसे के औज़ारों का प्रयोग आरंभ हो गया था।
  • यहाँ के वास्तुविदों ने ईंटों के स्तंभों को बनाना सीख लिया था।

प्रश्न 17.
वार्का शीर्ष की मूर्ति कहाँ से प्राप्त हुई है ? इसकी कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • वार्का शीर्ष की मूर्ति उरुक नगर से प्राप्त हुई है।
  • इसे सफेद संगमरमर को तराश कर बनाया गया था।
  • इसके सिर के ऊपर एक खाँचा बनाया गया था।

प्रश्न 18.
उर नगर का संस्थापक कौन था ? इस नगर ने किस राजवंश के अधीन उल्लेखनीय विकास किया ?
उत्तर:

  • उर नगर का संस्थापक मेसनीपद था।
  • इस नगर ने चालदी राजवंश के अधीन उल्लेखनीय विकास किया।

प्रश्न 19.
उर नगर में नियोजन पद्धति का अभाव था। कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  • इस नगर की गलियाँ संकरी एवं टेढ़ी-मेढ़ी थीं।
  • जल निकासी के लिए घरों के बाहर नालियों का प्रबंध नहीं था।

प्रश्न 20.
उर नगर की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • उर नगर में नियोजन पद्धति का अभाव था।
  • उर नगर के लोगों में कई प्रकार के अंध-विश्वास प्रचलित थे।

प्रश्न 21.
उर नगर में घरों के बारे में प्रचलित कोई दो अंध-विश्वास लिखें।
उत्तर:

  • यदि घर की दहलीज ऊँची उठी हुई हो तो वह धन-दौलत लाती है।
  • यदि घर के सामने का दरवाज़ा किसी दूसरे के घर की ओर न खुले तो वह सौभाग्य प्रदान करता

प्रश्न 22.
उरुक एवं उर नगरों के प्रमुख देवी-देवता का नाम बताएँ।
उत्तर:

  • उरुक नगर की प्रमुख देवी इन्नाना थी।
  • उर नगर का प्रमुख देवता नन्ना था।

प्रश्न 23.
मेसोपोटामिया के किस नगर से हमें एक कब्रिस्तान मिला है ? यहाँ किनकी समाधियाँ पाई गई
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया के उर नगर से हमें एक कब्रिस्तान मिला है।
  • यहाँ शाही लोगों एवं साधारण लोगों की समाधियाँ पाई गई हैं।

प्रश्न 24.
मारी नगर की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • मारी शासक एमोराइट वंश से संबंधित थे।
  • मारी लोगों के दो प्रमुख व्यवसाय कृषि एवं पशुपालन थे।

प्रश्न 25.
यह कहना क्यों सही होगा कि खानाबदोश पशुचारक निश्चित रूप से शहरी जीवन के लिए ख़तरा थे ? कोई दो कारण लिखें।
अथवा
क्या खानाबदोश पशुचारक निश्चित रूप से शहरी जीवन के लिए ख़तरा थे ?
उत्तर:

  • खानाबदोश पशुचारक अपनी भेड़-बकरियों को पानी पिलाने के लिए बोए गए खेतों से गुज़ार कर ले जाते थे। इससे फ़सलों को क्षति पहुँचती थी।
  • खानाबदोश पशुचारक कई बार आक्रमण कर लोगों का माल लूट लेते थे।

प्रश्न 26.
मारी स्थित ज़िमरीलिम के राजमहल की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • यह 2.4 हैक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ था।
  • यह बहत विशाल था तथा इसके 260 कमरे थे।

प्रश्न 27.
लगश की राजधानी का नाम क्या था ? इसके दो प्रसिद्ध शासक कौन-से थे ?
उत्तर:

  • लगश की राजधानी का नाम गिरसू था।
  • इसके दो प्रसिद्ध शासक इनन्नातुम द्वितीय एवं उरुकगिना थे।

प्रश्न 28.
मेसोपोटामिया में जलप्लावन के पश्चात् स्थापित होने वाला प्रथम नगर कौन-सा था ? इसके प्रथम शासक का नाम बताएँ।
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया में जलप्लावन के पश्चात् स्थापित होने वाला प्रथम नगर किश था।
  • इसके प्रथम शासक का नाम उर्तुंग था।

प्रश्न 29.
असुरबनिपाल क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:

  • उसने अपने साम्राज्य में भव्य भवनों एवं मंदिरों का निर्माण करवाया।
  • उसने नाबू के मंदिर में एक विशाल पुस्तकालय की स्थापना की।

प्रश्न 30.
बेबीलोन नगर की कोई दो महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • यह नगर 850 हैक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फैला था।
  • इसमें अनेक विशाल राजमहल एवं मंदिर बने हुए थे।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

प्रश्न 31.
मेसोपोटामिया की नगर योजना की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • उस समय घरों में एक खुला आँगन होता था जिसके चारों ओर कमरे होते थे।
  • नगरों में यातायात की आवाजाही के लिए सड़कों का उचित प्रबंध किया गया था।

प्रश्न 32.
मेसोपोटामिया में धन-दौलत का ज्यादातर हिस्सा समाज के एक छोटे से वर्ग में केंद्रित था। इस बात की पुष्टि किस तथ्य से होती है ?
उत्तर:
उर में राजाओं एवं रानियों की कुछ कब्रों में शवों के साथ बहुमूल्य वस्तुएँ दफ़नाई गई थीं जबकि जनसाधारण लोगों के शवों के साथ मामूली सी वस्तुओं को दफनाया गया था। इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि मेसोपोटामिया में धन-दौलत का ज्यादातर हिस्सा समाज के एक छोटे से वर्ग में केंद्रित था।

प्रश्न 33.
एकल परिवार से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
एकल परिवार से हमारा अभिप्राय ऐसे परिवार से है जिसमें पति, पत्नी एवं उनके बच्चे रहते हैं।

प्रश्न 34.
मेसोपोटामिया के प्रारंभिक शहरी समाजों में स्त्रियों की स्थिति काफ़ी अच्छी थी। कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  • वे पुरुषों के साथ सामाजिक एवं धार्मिक उत्सवों में समान रूप से भाग लेती थीं।
  • उन्हें पति से तलाक लेने तथा पुनः विवाह करने का अधिकार प्राप्त था।

प्रश्न 35.
मेसोपोटामिया के प्रारंभिक शहरी समाजों में दासों की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया के प्रारंभिक शहरी समाजों में दासों की स्थिति अच्छी नहीं थी। उन्हें पशुओं की तरह खरीदा एवं बेचा जा सकता था। उन्हें किसी प्रकार का कोई अधिकार प्राप्त न था।

प्रश्न 36.
शहरी जीवन शुरू होने पर कौन-कौन सी नयी संस्थाएँ अस्तित्व में आईं ? आपके विचार में कौन सी संस्थाएँ राजा के पहल पर निर्भर थीं ?
उत्तर:

  • शहरी जीवन शुरू होने पर व्यापार, मंदिर, लेखन कला, मूर्ति कला एवं मुद्रा कला नामक संस्थाएँ अस्तित्व में आईं।
  • इनमें व्यापार, मंदिर एवं लेखन कला राजा के पहल पर निर्भर थीं।

प्रश्न 37.
मेसोपोटामिया में युद्ध एवं प्रेम की देवी तथा चंद्र देव कौन था ?
उत्तर:

  • प्राचीनकाल मेसोपोटामिया में युद्ध एवं प्रेम की देवी इन्नाना थी।
  • प्राचीन काल मेसोपोटामिया में चंद्र देव नन्ना था।

प्रश्न 38.
मेसोपोटामिया के लोगों के कोई दो धार्मिक विश्वास बताएँ।
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया के लोग अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे।
  • वे मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास रखते थे।

प्रश्न 39.
आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि पुराने मंदिर बहुत कुछ घर जैसे ही होंगे?
उत्तर:

  • पुराने मंदिर घरों की तरह छोटे आकार के थे।
  • ये कच्ची ईंटों के बने होते थे।
  • इन मंदिरों के आँगन घरों की तरह खुले होते थे तथा इनके चारों ओर कमरे बने होते थे।

प्रश्न 40.
प्राचीन काल मेसोपोटामिया के मंदिरों के कोई दो कार्य बताएँ।
उत्तर:

  • मंदिरों द्वारा विद्यार्थियों को शिक्षा दी जाती थी।
  • मंदिरों की भूमि पर खेती की जाती थी।

प्रश्न 41.
प्राचीन काल मेसोपोटामिया में पुरोहितों के शक्तिशाली होने के कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • इस काल में मेसोपोटामिया के मंदिर बहुत धनी थे।
  • पुरोहितों ने लोगों से विभिन्न करों को वसलना आरंभ कर दिया था।

प्रश्न 42.
गिल्गेमिश कौन था ?
उत्तर:
गिल्गेमिश उरुक का एक प्रसिद्ध शासक था। वह 2700 ई० पू० में सिंहासन पर बैठा था। वह एक महान् योद्धा था तथा उसने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी। उसके महाकाव्य को विश्व साहित्य में एक प्रमुख स्थान प्राप्त है।

प्रश्न 43.
मेसोपोटामिया की लिपि की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • यह लिपि मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखी जाती थी।
  • इस लिपि को बाएँ से दाएँ लिखा जाता था।

प्रश्न 44.
मेसोपोटामिया की सबसे पुरानी ज्ञात भाषा कौन-सी थी ? 2400 ई० पू० में इसका स्थान किस भाषा ने लिया ?
उत्तर:

  • मेसोपोटामिया की सबसे पुरानी ज्ञात भाषा सुमेरियन थी।
  • 2400 ई० पू० में इसका स्थान अक्कदी भाषा ने ले लिया।

प्रश्न 45.
लेखन कला का क्या महत्त्व है ?
उत्तर:

  • इससे शिक्षा के प्रसार को बल मिला।
  • इससे व्यापार को प्रोत्साहन मिला।
  • इस कारण मंदिरों को दान में प्राप्त वस्तुओं का ब्योरा रखा जाने लगा।

प्रश्न 46.
विश्व को मेसोपोटामिया की क्या देन है?
अथवा
मेसोपोटामिया सभ्यता की विश्व को क्या देन है ?
उत्तर:

  • इसने विश्व को सर्वप्रथम शहर दिए।
  • इसने विश्व को सर्वप्रथम लेखन कला की जानकारी दी।
  • इसने विश्व को सर्वप्रथम कानून संहिता प्रदान की।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राचीन काल में ईराक को किस नाम से जाना जाता था ?
उत्तर:
मेसोपोटामिया।

प्रश्न 2.
मेसोपोटामिया यूनानी भाषा के किन शब्दों से मिलकर बना है ?
उत्तर:
मेसोस व पोटैमोस।

प्रश्न 3.
मेसोपोटामिया में नगरों का विकास कब आरंभ हुआ ?
उत्तर:
3000 ई० पू०।

प्रश्न 4.
मेसोपोटामिया की दो प्रमुख नदियाँ कौन-सी हैं ?
उत्तर:
दज़ला एवं फ़रात।

प्रश्न 5.
मेसोपोटामिया में पुरातत्वीय खोजों का आरंभ कब किया गया था ?
उत्तर:
1840 ई०।

प्रश्न 6.
मेसोपोटामिया का प्रसिद्ध फल कौन-सा है ?
उत्तर:
खजूर।

प्रश्न 7.
मेसोपोटामिया का सबसे प्राचीन नगर कौन-सा था ?
उत्तर:
उरुक।

प्रश्न 8.
बाईबल के किस भाग में मेसोपोटामिया के बारे में उल्लेख किया गया है ?
उत्तर:
ओल्ड टेस्टामेंट।

प्रश्न 9.
मेसोपोटामिया के उत्तरी भाग में किस प्रकार की घास के मैदान पाए जाते थे ?
उत्तर:
स्टैपी घास।

प्रश्न 10.
मेसोपोटामिया के प्राचीनतम नगरों का तथा कांस्य युग के निर्माण का आरंभ कब हुआ था ?
उत्तर:
3000 ई० पू०

प्रश्न 11.
वार्का शीर्ष क्या था ?
उत्तर:
3000 ई० पू० उरुक नगर में जिस स्त्री का सिर संगमरमर को तराशकर बनाया गया था उसे वार्का शीर्ष कहा जाता था।

प्रश्न 12.
मेसोपोटामिया में लेखन कार्य पद्धति का आरंभ कब हुआ था ?
उत्तर:
3200 ई० पू०।

प्रश्न 13.
मेसोपोटामिया में कीलाकार लिपि का विकास कब हुआ था ?
उत्तर:
2600 ई० पू०।

प्रश्न 14.
दक्षिणी मेसोपोटामिया में सबसे प्राचीन मंदिरों का निर्माण कब किया गया था ?
उत्तर:
5000 ई० पू०।

प्रश्न 15.
चालदी कहाँ का प्रसिद्ध राजवंश था ?
उत्तर:
उर का।

प्रश्न 16.
मारी किस समुदाय के थे ?
उत्तर:
एमोराइट।

प्रश्न 17.
ज़िमरीलियम का राजमहल कहाँ स्थित था ?
उत्तर:
मारी में।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

प्रश्न 18.
किश नगर पर शासन करने वाली प्रथम रानी कौन थी ?
उत्तर:
कू-बबा।

प्रश्न 19.
असुरबनिपाल कहाँ का शासक था ?
उत्तर:
निनवै का।

प्रश्न 20.
बेबीलोन की राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर:
बेबीलोनिया।

प्रश्न 21.
बेबीलोनिया का अंतिम राजा कौन था ?
उत्तर:
असुरबनिपाल।

प्रश्न 22.
गिल्गेमिश कौन था ?
उत्तर:
उरुक का एक प्रसिद्ध शासक।

प्रश्न 23.
मेसोपोटामिया में सर्वप्रथम लिपि की खोज कब हुई थी ?
उत्तर:
3200 ई० पू० में।

प्रश्न 24.
मेसोपोटामिया की सबसे पुरानी ज्ञात भाषा कौन-सी थी ?
उत्तर:
सुमेरियन।

प्रश्न 25.
मेसोपोटामिया में अक्कदी भाषा का प्रचलन कब आरंभ हुआ ?
उत्तर:
2400 ई० पू० में।

प्रश्न 26.
सिकंदर ने बेबीलोन को कब विजित किया था ?
उत्तर:
331 ई० पू०।

प्रश्न 27.
मेसोपोटामिया नगर में हौज़ क्या था ?
उत्तर:
घरों के बरामदे में बना छोटा गड्डा जहाँ गंदा पानी एकत्र होता था।

प्रश्न 28.
स्टेल क्या होते हैं ?
उत्तर:
पट्टलेख।

प्रश्न 29.
मेसोपोटामिया समाज में किस प्रकार के परिवार को आदर्श परिवार माना जाता था ?
उत्तर:
एकल परिवार।

प्रश्न 30.
मारी में स्थित जिमरीलिम के राजमहल की क्या मुख्य विशेषता थी ?
उत्तर:
यह प्रशासन व उत्पादन तथा कीमती धातुओं के आभूषणों के निर्माण का मुख्य केंद्र था।

प्रश्न 31.
मेसोपिटामिया की संस्कृति का वर्णन किस महाकाव्य से प्राप्त होता है ?
उत्तर:
गिल्गेमिश।

प्रश्न 32.
मेसोपोटामिया की खुदाई के समय अलाशिया द्वीप किन वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
ताँबे व टिन।

रिक्त स्थान भरिए

1. मेसोपोटामिया यूनानी भाषा के दो शब्दों ……………. तथा ……………. से मिलकर बना है।
उत्तर:
मेसोस, पोटैमोस

2. मेसोपोटामिया …………….. तथा …………….. नामक दो नदियों के मध्य स्थित है।
उत्तर:
फ़रात, दजला

3. मेसोपोटामिया में पुरातत्वीय खोजों का आरंभ ……………. ई० पू० में हुआ।
उत्तर:
1840

4. मेसोपोटामिया में …………….. तथा …………….. की खेती की जाती थी।
उत्तर:
जौ, गेहूँ

5. मेसोपोटामिया के प्राचीनतम नगरों का तथा कांस्य युग के निर्माण का आरंभ …………… में हुआ था।
उत्तर:
3000 ई० पू०

6. मेसोपोटामिया में लेखन कार्य का आरंभ ……………. ई० पू० में हुआ।
उत्तर:
3200

7. मेसोपोटामिया में कीलाकार लिपि का विकास …………… ई० पू० में हुआ।
उत्तर:
2600

8. मेसोपोटामिया की सबसे प्राचीन भाषा सुमेरियन का स्थान …………….. ई० पू० के पश्चात् अक्कदी भाषा ने ले लिया था।
उत्तर:
2400

9. दक्षिणी मेसोपोटामिया में सबसे पुराने मंदिरों का निर्माण ……………. ई० पू० में हुआ।
उत्तर:
5000

10. उरुक नामक नगर का एक विशाल नगर के रूप में विकास …………….. ई० पू० में हुआ।
उत्तर:
3000

11. मारी नगर ……………. तथा ……………. के निर्माण का मुख्य केंद्र था।
उत्तर:
कीमती धातुओं, आभूषणों

12. गणितीय मूलपाठों की रचना ……….. ई० पू० में की गई थी।
उत्तर:
1800

13. मेसोपोटामिया में असीरियाई राज्य की स्थापना ……………. में हुई थी।
उत्तर:
1100 ई० पू०

14. मेसोपोटामिया में लोहे का प्रयोग ……………. पू० में हुआ था।
उत्तर:
1000 ई०

15. सिकंदर ने बेबीलोन पर ……………. में अधिकार कर लिया था।
उत्तर:
331 ई० पू०

16. बेबीलोनिया का अंतिम राजा …………….. था।
उत्तर:
असुरबनिपाल

17. असुरबनिपाल ने अपनी राजधानी ……………. में एक पुस्तकालय की स्थापना की थी।
उत्तर:
निनवै

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. आधुनिक काल में मेसोपोटामिया को किस नाम से जाना जाता है?
(क) ईरान
(ख) इराक
(ग) कराकोरम
(घ) पीकिंग।
उत्तर:
(ख) इराक

2. मेसोपोटामिया निम्नलिखित में से किन दो नदियों के मध्य स्थित है?
(क) गंगा एवं यमुना
(ख) दजला एवं फ़रात
(ग) ओनोन एवं सेलेंगा
(घ) हवांग हो एवं दज़ला।
उत्तर:
(ख) दजला एवं फ़रात

3. मेसोपोटामिया की सभ्यता क्यों प्रसिद्ध थी?
(क) अपनी समृद्धि के लिए
(ख) अपने शहरी जीवन के लिए
(ग) अपने साहित्य, गणित एवं खगोलविद्या के लिए
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

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4. मेसोपोटामिया में प्राकृतिक उपजाऊपन होने के बावजूद कृषि अनेक बार संकटों से क्यों घिर जाती थी?
(क) दजला एवं फ़रात नदियों में आने वाली बाढ़ के कारण
(ख) वर्षा की कमी हो जाने के कारण
(ग) निचले क्षेत्रों में पानी का अभाव होने के कारण
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

5. मेसोपोटामिया का दक्षिणी भाग एक रेगिस्तान है। इसके बावजूद यहाँ नगरों का विकास क्यों हुआ?
(क) क्योंकि यहाँ फ़सलों का भरपूर उत्पादन होता था
(ख) क्योंकि यहाँ के दृश्य बहुत सुंदर थे
(ग) क्योंकि यहाँ बहुत मज़दूर उपलब्ध थे
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) क्योंकि यहाँ फ़सलों का भरपूर उत्पादन होता था

6. मेसोपोटामिया में नगरों का निर्माण कब आरंभ हुआ?
(क) 3000 ई० पू० में
(ख) 3200 ई० पू० में
(ग) 4000 ई० पू० में
(घ) 5000 ई० पू० में।
उत्तर:
(क) 3000 ई० पू० में

7. मेसोपोटामिया सभ्यता थी?
(क) काँस्य युगीन
(ख) ताम्र युगीन
(ग) लौह युगीन
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) काँस्य युगीन

8. निम्नलिखित में से कौन-सा मेसोपोटामिया का सबसे प्राचीन नगर था?
(क) उर
(ख) मारी
(ग) उरुक
(घ) लगश।
उत्तर:
(ग) उरुक

9. उरुक नगर का संस्थापक कौन था ?
(क) असुरबनिपाल
(ख) एनमर्कर
(ग) गिल्गेमिश
(घ) सारगोन।
उत्तर:
(ख) एनमर्कर

10. हमें वार्का शीर्ष की मूर्ति मेसोपोटामिया के किस नगर से प्राप्त हुई है?
(क) मारी
(ख) उरुक
(ग) किश
(घ) निनवै।
उत्तर:
(ख) उरुक

11. मारी के राजा किस समुदाय के थे?
(क) अक्कदी
(ख) एमोराइट
(ग) असीरियाई
(घ) आर्मीनियन।
उत्तर:
(ख) एमोराइट

12. मारी नगर के शासकों ने किस देवता की स्मृति में एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था?
(क) डैगन
(ख) नन्ना
(ग) इन्नना
(घ) अनु।
उत्तर:
(क) डैगन

13. मारी नगर के किसानों एवं पशुचारकों में लड़ाई का प्रमुख कारण क्या था?
(क) पशुचारक किसानों की फ़सलों को नष्ट कर देते थे
(ख) पशुचारक किसानों के गाँवों पर आक्रमण कर उन्हें लूट लेते थे
(ग) अनेक बार किसान पशुचारकों को जल स्रोतों तक जाने नहीं देते थे
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

14. साइप्रस का द्वीप अलाशिया (Alashiya) निम्नलिखित में से किस वस्तु के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था?
(क) ताँबा
(ख) लोहा
(ग) सोना
(घ) चाँदी।
उत्तर:
(क) ताँबा

15. जलप्लावन (flood) के पश्चात् स्थापित होने वाला प्रथम नगर कौन-सा था?
(क) लगश
(ख) मारी
(ग) किश
(घ) निनवै।
उत्तर:
(ग) किश

16. लगश का सबसे महान् शासक कौन था?
(क) गुडिया
(ख) उरनिना
(ग) उरुकगिना
(घ) इनन्नातुम द्वितीय।
उत्तर:
(क) गुडिया

17. असुरबनिपाल क्यों प्रसिद्ध था?
(क) उसने एक विशाल पुस्तकालय की स्थापना की थी
(ख) उसने अनेक भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया
(ग) उसने अपनी राजधानी निनवै को अनेक भव्य भवनों से सुसज्जित किया
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

18. मेसोपोटामिया के समाज में कितने प्रमुख वर्ग थे?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच।
उत्तर:
(ख) तीन

19. उर में मिली शाही कब्रों में निम्नलिखित में से कौन-सी वस्तु प्राप्त हुई है?
(क) आभूषण
(ख) सोने के सजावटी खंजर
(ग) लाजवर्द
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

20. मेसोपोटामिया में धन-दौलत का ज्यादातर हिस्सा समाज के एक छोटे-से वर्ग में केंद्रित था। इस बात की पुष्टि किस तथ्य से होती है?
(क) उर में मिली शाही कब्रों से
(ख) ज़िमरीलिम के राजमहल से
(ग) व्यापारी वर्ग से
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(क) उर में मिली शाही कब्रों से

21. निम्नलिखित में से कौन मेसोपोटामिया की प्रेम एवं युद्ध की देवी थी?
(क) इन्नाना
(ख) नन्ना
(ग) एनकी
(घ) अनु।
उत्तर:
(क) इन्नाना

22. मेसोपोटामिया में चंद्र देवता को किस नाम से पुकारा जाता था?
(क) नन्ना
(ख) अनु
(ग) गिल्गेमिश
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) नन्ना

23.. गिल्गेमिश कौन था?
(क) उर का प्रसिद्ध लेखक
(ख) उरुक का प्रसिद्ध शासक
(ग) अक्कद का प्रमुख अधिकारी
(घ) लगश का महान् शासक।
उत्तर:
(ख) उरुक का प्रसिद्ध शासक

24. मेसोपोटामिया में सर्वप्रथम लिपि की खोज कब हुई?
(क) 3200 ई० पू० में
(ख) 3000 ई० पू० में
(ग) 2800 ई० पू० में
(घ) 2500 ई० पू० में
उत्तर:
(क) 3200 ई० पू० में

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन

25. मेसोपोटामिया की ज्ञात सबसे प्राचीन भाषा कौन-सी थी ?
(क) हिब्रू
(ख) अक्कदी
(ग) सुमेरियन
(घ) अरामाइक
उत्तर:
(ग) सुमेरियन

26. 2400 ई० पू० में मेसोपोटामिया में किस भाषा का प्रचलन आरंभ हुआ?
(क) अक्कदी
(ख) अरामाइक
(ग) अंग्रेजी
(घ) फ्रांसीसी।
उत्तर:
(क) अक्कदी

लेखन कला और शहरी जीवन HBSE 11th Class History Notes

→ आधुनिक इराक को प्राचीन काल में मेसोपोटामिया के नाम से जाना जाता था। यहाँ की विविध भौगोलिक विशेषताओं ने यहाँ के इतिहास पर गहन प्रभाव डाला है। मेसोपोटामिया की सभ्यता के विकास में यहाँ की दो नदियों दजला एवं फ़रात ने उल्लेखनीय योगदान दिया।

→ 3000 ई० प० में मेसोपोटामिया में नगरों का विकास आरंभ हुआ। यहाँ 1840 ई० के दशक में पुरातत्त्वीय खोजों की शुरुआत हुई थी। मेसोपोटामिया में तीन प्रकार के नगर धार्मिक नगर, व्यापारिक नगर एवं शाही नगर अस्तित्व में आए थे। इन नगरों के उत्थान के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे।

→ मेसोपोटामिया में जिन नगरों का उत्थान हुआ उनमें उरुक, उर, मारी, किश, लगश, निनवै, निमरुद एवं बेबीलोन बहुत प्रसिद्ध थे। इन नगरों ने मेसोपोटामिया के इतिहास को एक नई दिशा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। मेसोपोटामिया के प्रारंभिक शहरी समाजों में सामाजिक असमानता का भेद आरंभ हो गया था।

→  उस समय समाज में तीन प्रमुख वर्ग प्रचलित थे। प्रथम वर्ग जो अभिजात वर्ग कहलाता था बहुत ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करता था। दूसरा वर्ग जो मध्य वर्ग कहलाता था का भी जीवन सुगम था।

→ तीसरा वर्ग जो निम्न वर्ग कहलाता था में समाज का बहुसंख्यक वर्ग सम्मिलित था। इनकी दशा बहुत दयनीय थी। उस समय मेसोपोटामिया के समाज में एकल परिवार प्रचलित थे। परिवार में पुत्र का होना आवश्यक माना जाता था। उस समय समाज में स्त्रियों का सम्मान किया जाता था। उन्हें अनेक प्रकार के अधिकार प्राप्त थे। निस्संदेह ऐसे अधिकार आज के देशों के अनेक समाजों में स्त्रियों को प्राप्त नहीं हैं। मेसोपोटामिया के समाज के माथे पर दास प्रथा एक कलंक समान थी। दासों की स्थिति पशुओं से भी बदतर थी।

→ उन्हें अपने स्वामी की आज्ञानुसार काम करना पड़ता था। उस समय के लोग विभिन्न साधनों से अपना मनोरंजन करते थे। मेसोपोटामिया के समाज में मंदिरों की उल्लेखनीय भूमिका थी। ये मंदिर आरंभ में घरों जैसे छोटे आकार एवं कच्ची ईंटों के थे।

→ किंतु धीरे-धीरे ये मंदिर बहुत विशाल एवं भव्य बन गए। ये मंदिर धनी थे तथा उनके क्रियाकलाप बहुत व्यापक थे। अत: इन मंदिरों की देखभाल करने वाले पुरोहित भी बहुत शक्तिशाली हो गए थे। इन मंदिरों ने व्यापार एवं लेखन कला के विकास में प्रशंसनीय भूमिका निभाई।

→ विश्व साहित्य में गिल्गेमिश के महाकाव्य को विशेष स्थान प्राप्त है। इसे 2000 ई० पू० में 12 पट्टिकाओं पर लिखा गया था। गिल्गेमिश उरुक का सबसे प्रसिद्ध शासक था। वह एक महान् एवं बहादुर योद्धा था। दूसरी ओर वह बहुत अत्याचारी था।

→  उसके अत्याचारों से प्रजा को मुक्त करवाने के उद्देश्य से देवताओं ने एनकीडू को भेजा। दोनों के मध्य एक लंबा युद्ध हुआ जिसके अंत में दोनों मित्र बन गए। इसके पश्चात् गिल्गेमिश एवं एनकीडू ने अपना शेष जीवन लोक भलाई कार्यों में लगा दिया। कुछ समय के पश्चात् एनकीडू एक नर्तकी के प्रेम जाल में फंस गया।

→ इस कारण देवताओं ने रुष्ट होकर उसके प्राण ले लिए। एनकीडू जैसे शक्तिशाली वीर की मृत्यु के बारे में सुन कर गिल्गेमिश स्तब्ध रह गया। अत: उसे अपनी मृत्यु का भय सताने लगा। इसलिए उसने अमरत्व की खोज आरंभ की। वह अनेक कठिनाइयों को झेलता हुआ उतनापिष्टिम से मिला।

→ अंततः गिल्गेमिश के हाथ निराशा लगी। उसने यह निष्कर्ष निकाला कि पृथ्वी पर आने वाला प्रत्येक जीव मृत्यु के चक्कर से नहीं बच सकता। वह केवल इस बात से संतोष कर लेता है कि उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र एवं उरुक निवासी जीवित रहेंगे।

→ मेसोपोटामिया में 3200 ई० पू० में लेखन कला का विकास आरंभ हुआ। इसके विकास का श्रेय मेसोपोटामिया के मंदिरों को दिया जाता है। इन मंदिरों के पुरोहितों को मंदिर की आय-व्यय का ब्यौरा रखने के लिए लेखन कला की आवश्यकता महसूस हुई। आरंभ में मेसोपोटामिया में चित्रलिपि का उदय हुआ।

→ यह लिपि बहुत कठिन थी। इस लिपि को मिट्टी की पट्टिकाओं पर लिखा जाता था। इस पर कोलाकार चिह्न बनाए जाते थे जिसे क्यूनीफार्म कहा जाता था। जब इन पट्टिकाओं पर लेखन कार्य पूरा हो जाता था तो उन्हें धूप में सुखा लिया जाता था। मेसोपोटामिया की सबसे पुरानी ज्ञात भाषा सुमेरियन थी। 2400 ई० पू० में अक्कदी ने इस भाषा का स्थान ले लिया। 1400 ई० पू० में अरामाइक भाषा का भी प्रचलन आरंभ हो गया।

→ मेसोपोटामिया लिपि की जटिलता के कारण मेसोपोटामिया में साक्षरता की दर बहुत कम रही। यूरोपवासियों के लिए मेसोपोटामिया का विशेष महत्त्व रहा है। इसका कारण यह था कि बाईबल के प्रथम भाग ओल्ड टेस्टामेंट में मेसोपोटामिया का उल्लेख अनेक संदर्भो में किया गया है। मेसोपोटामिया सभ्यता की जानकारी हमें अनेक स्रोतों से प्राप्त होती है। इनमें से प्रमुख हैं-भवन, मंदिर, मूर्तियाँ, आभूषण, औज़ार, मुद्राएँ, कब्र एवं लिखित दस्तावेज़।