Class 11

HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

Haryana State Board HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class History Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

निबंधात्मक उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव प्राणियों की उत्पत्ति के संबंध में आप क्या जानते हैं?
अथवा
मानव प्राणियों की उत्पत्ति के संबंध में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर:
मानव प्राणियों की उत्पत्ति कब और कैसे हुई यह एक लंबी एवं जटिल कहानी है। इस संबंध में अनेक उत्तर अभी भी खोजे जाने वाले बाकी हैं। नवीनतम खोजों के आधार पर मानव विकास के अनेक घटनाक्रमों को परिवर्तित करना पड़ा है। मानव विकास अनेक चरणों में हुआ है। निम्नलिखित चरण मानव के विकास पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं

1. प्राइमेट:
प्राइमेट स्तनपायी (mammals) प्राणियों के एक विशाल समूह के अधीन एक उपसमूह (subgroup) है। इस उपसमूह में बंदर (monkeys), पूँछहीन बंदर (apes) एवं मानव (humans) सम्मिलित थे। उनके जिस्म पर बाल होते थे। उनका बच्चा जन्म लेने से पहले अपेक्षाकृत काफी समय तक माता के गर्भ में पलता था। उनकी माताओं के बच्चों को दूध पिलाने के लिए स्तन होते थे। इन प्राइमेट प्राणियों के दाँत विभिन्न प्रकार के होते थे। ऐसे प्राणी 360 से 240 लाख वर्ष पूर्व अफ्रीका एवं एशिया में पाए जाते थे।

2. होमिनॉइड:
होमिनॉइड समूह 240 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया था। यह प्राइमेट श्रेणी का एक उपसमूह था। इसमें पूँछहीन बंदर सम्मिलित थे। इनका मस्तिष्क छोटा होता था। अतः उनमें सोचने की शक्ति कम थी। उनके चार पैर थे। वे चलते समय चारों पैरों का प्रयोग करते थे। उनके शरीर का अगला हिस्सा और दोनों पैर लचकदार होते थे। वे सीधे खड़े होकर चल नहीं सकते थे। होमिनॉइड बंदरों से कई प्रकार से भिन्न होते थे। उनका शरीर बंदरों से बड़ा होता था। उनकी पूँछ भी नहीं होती थी। उनके बच्चों का विकास धीरे-धीरे होता था।

3. होमिनिड:
होमिनिड 56 लाख वर्ष पूर्व होमिनॉइड उपसमूह से विकसित हुए। इनके प्राचीनतम जीवाश्म हमें लेतोली (Laetoli) तंजानिया से एवं हादार (Hadar) इथियोपिया से प्राप्त हुए हैं। दो प्रकार के साक्ष्यों से पता चलता है कि होमिनिडों का उद्भव अफ्रीका में हुआ था। प्रथम, अफ्रीकी वानरों के समूह का होमिनिडों के साथ बहुत गहरा संबंध है। दूसरा, होमिनिडों के सबसे प्राचीन जीवाश्म (fossils) पूर्वी अफ्रीका में पाए गए हैं।

ये 56 लाख वर्ष पुराने हैं। अफ्रीका से बाहर जो जीवाश्म पाए गए हैं वे 18 लाख वर्ष से पुराने नहीं हैं। होमिनिड, होमिनिडेइ (Hominidae) नामक परिवार के साथ संबंधित हैं। इस परिवार में सभी रूपों के मानव प्राणी (human beings) सम्मिलित हैं। इस समूह की प्रमुख विशेषताएँ ये हैं-

    • इनके मस्तिष्क का आकार बड़ा होता था।
    • वे सीधे खड़े हो सकते थे।
    • वे दो पैरों के बल चल सकते थे।
    • उनके हाथ विशेष प्रकार के होते थे।

वे इन हाथों की सहायता से औज़ार (tools) बना सकते थे और उनका प्रयोग कर सकते थे। होमिनिड आगे अनेक शाखाओं में विभाजित थे। इन्हें जीनस (genus) कहा जाता है। इन शाखाओं में आस्ट्रेलोपिथिकस और होमो सबसे महत्त्वपूर्ण हैं। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है …

(क) आस्ट्रेलोपिथिकस:
आस्ट्रेलोपिथिकस के जीवाश्म 56 लाख वर्ष पुराने थे। जीवाश्म हमें तंजानिया के ओल्डवई गोर्ज (Olduvai Gorge) से प्राप्त हए हैं। होमो की तुलना में उनके मस्तिष्क का आकार छोटा था। उनके जबड़े अधिक भारी थे एवं दाँत भी ज्यादा. बड़े होते थे। आस्ट्रेलोपिथिकस बंदरों की अपेक्षा अधिक समझदार थे। वे दो पैरों पर खड़े हो सकते थे।

उनमें सीधे खड़े होकर चलने की क्षमता अधिक नहीं थी। इसका कारण यह था कि वे अभी अपना काफ़ी समय पेड़ों पर गुजारते थे। वे अपनी सुरक्षा के लिए औज़ारों का निर्माण करने लगे थे।

(ख) होमो :
होमो 25 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आए। होमो लातीनी भाषा का एक शब्द है। इसका भाव है आदमी। इसमें पुरुष एवं स्त्रियाँ दोनों सम्मिलित थे। आस्ट्रेलोपिथिकस की तुलना में होमो का मस्तिष्क बड़ा था, जबड़े बाहर की ओर कम निकले हुए थे एवं दाँत छोटे थे। वैज्ञानिकों ने होमो को निम्नलिखित तीन प्रमुख प्रजातियों में उनकी विशेषताओं के आधार पर बाँटा है–

1) होमो हैबिलिस :
होमो हैबिलिस औजार बनाने वाले के नाम से जाने जाते हैं । उनका मस्तिष्क बड़ा था। वे आस्ट्रेलोपिथिकस की अपेक्षा अधिक समझदार थे। वे अपने हाथों का दक्षतापूर्वक प्रयोग कर सकते थे। वे प्रथम होमिनिड थे जिन्होंने पत्थर के औजार बनाए।

2) होमो एरेक्टस :
होमो एरेक्टस वे मानव थे जो सीधे खड़े होकर पैरों के बल चलना जानते थे। वे दौड़ सकते थे। वे अपने हाथों का स्वतंत्रतापूर्वक उपयोग कर सकते थे। उन्होंने होमो हैबिलिस की अपेक्षा अधिक विकसित औजारों का निर्माण किया। उन्होंने भाषा का भी अधिक विकास कर लिया था। उन्होंने आग के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर ली थी। इससे उनके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया।

3) होमो सैपियंस :
होमो सैपियंस से अभिप्राय है समझदार मानव। उसे आधुनिक मानव के नाम से भी जाना जाता है। इस मानव का प्रादुर्भाव 1.95 लाख वर्ष पूर्व से 1.60 लाख वर्ष के दौरान हुआ। आधुनिक मानव की अनेक ऐसी विशेषताएँ थीं, जो उसे पहले के मानव से अलग करती हैं। उस मानव का मस्तिष्क अब तक के सभी मानवों में सबसे बड़ा था।

अत: वह सबसे समझदार था। इस कारण उसके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन हए उसने गुफ़ाओं के अतिरिक्त अपने निवास के लिए झोपड़ियों का निर्माण आरंभ कर दिया था। वह अब एक स्थायी रूप से निवास करने लगा था। उसने अब कृषि करनी आरंभ कर दी थी।
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 1 iMG 1

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

प्रश्न 2.
होमो से आपका क्या अभिप्राय है? होमो हैबिलिस, होमो एरेक्टस तथा होमो सैपियंस के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
होमो से अभिप्राय (Meaning of Homo) होमो 25 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आए। होमो लातीनी (Latin) भाषा का एक शब्द है। इसका भाव है आदमी। इसमें पुरुष एवं स्त्रियाँ दोनों सम्मिलित थे। आस्ट्रेलोपिथिकस की तुलना में होमो का मस्तिष्क बड़ा था, जबड़े बाहर की ओर कम निकले हुए थे एवं दाँत छोटे थे। वैज्ञानिकों ने होमो को अनेक प्रजातियों (species) में उनकी विशेषताओं के आधार पर बाँटा है। इनमें से प्रमुख प्रजातियों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. होमो हैबिलिस :
होमो हैबिलिस औज़ार बनाने वाले (the tool makers) के नाम से जाने जाते हैं। उनके प्राचीनतम जीवाश्म 22 लाख वर्ष पूर्व से 18 लाख वर्ष पूर्व तक हैं। ये जीवाश्म हमें इथियोपिया में ओमो (Omo) एवं तंज़ानिया में ओल्डुवई गोर्ज (Olduvai Gorge) से प्राप्त हुए हैं। उनका मस्तिष्क बड़ा था। वे आस्ट्रेलोपिथिकस की अपेक्षा अधिक समझदार थे। वे अपने हाथों का दक्षता पूर्वक प्रयोग कर सकते थे।

वे प्रथम होमिनिड थे जिन्होंने पत्थर के औज़ार बनाए। ये औज़ार उनके लिए शिकार के लिए बहुत उपयोगी प्रमाणित हुए। शिकार करते समय उन्हें आपसी सहयोग की आवश्यकता होती थी। इससे भाषा का विकास संभव हुआ। प्रसिद्ध इतिहासकार एडवर्ड मैक्नल बर्नस के अनुसार, “होमो हैबिलिस को स्पष्ट रूप से मानव जाति का मुखिया कहना उचित है।”

2. होमो एरेक्टस:
होमो एरेक्टस वे मानव थे जो सीधे खडे होकर पैरों के बल चलना जानते थे। वे दौड़ सकते थे। वे अपने हाथों का स्वतंत्रतापूर्वक उपयोग कर सकते थे। होमो एरेक्टस के प्राचीनतम जीवाश्म 18 लाख वर्ष पूर्व के हैं। ये जीवाश्म हमें अफ्रीका एवं एशिया दोनों महाद्वीपों से प्राप्त हुए हैं। इसके प्रसिद्ध केंद्र कूबी फ़ोरा (Koobi Fora), पश्चिमी तुर्काना (West Turkana), केन्या (Kenya), मोड़ जोकर्तो (Mod Jokerto), संगीरन (Sangiran) एवं जावा (Java) थे। अफ्रीका में पाए गए जीवाश्म एशिया में पाए गए जीवाश्मों की तुलना में अधिक प्राचीनकाल के हैं।

अत: संभव है कि होमो एरेक्टस पूर्वी अफ्रीका से चल कर दक्षिणी एवं उत्तरी अफ्रीका, दक्षिणी एवं पूर्वोत्तर एशिया एवं संभवतः यूरोप में गए। होमो एरेक्टस का मस्तिष्क होमो हैबिलिस की अपेक्षा अधिक बड़ा था। अत: वे अधिक समझदार थे। उन्होंने होमो हैबिलिस की अपेक्षा अधिक विकसित औज़ारों का निर्माण किया। उन्होंने भाषा का भी अधिक विकास कर लिया था।

उन्होंने आग के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर ली थी। इससे उनके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। आग के संबंध में हमें प्रथम साक्ष्य केन्या के चेसोवांजा (Chesowanja) से प्राप्त हुआ है। निस्संदेह होमो एरेक्टस मानव विकास की कड़ी में एक मील पत्थर सिद्ध हुए। उनका लोप 2 लाख वर्ष पूर्व हुआ।

3. होमो सैपियंस :
होमो सैपियंस से अभिप्राय है समझदार मानव (the wise man)। मानव (modern humans) के नाम से भी जाना जाता है। इस मानव का प्रादुर्भाव 1.95 लाख वर्ष से 1.60 लाख वर्ष पूर्व के दौरान हुआ। इस मानव के प्राचीनतम साक्ष्य हमें अफ्रीका के विभिन्न भागों में मिले हैं। इनमें इथियोपिया का ओमो किबिश (Omo Kibish), दक्षिण अफ्रीका के बॉर्डर गुफ़ा (Border Cave), डाई केल्डर्स (Die Kelders) एवं कलासीज नदी का मुहाना (Klasies River Mouth) एवं मोरक्को का दार-एस सोल्तन (Dar-es-Solton) बहुत प्रसिद्ध हैं। इससे प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि आधुनिक मानव का उद्भव कहाँ हुआ? इस प्रश्न पर विद्वानों में दो मत प्रचलित हैं। कुछ विद्वान् प्रतिस्थापन मॉडल (replacement model) का समर्थन करते हैं।

उनके अनुसार आधुनिक मानव का उद्भव एक ही स्थान अफ्रीका में हुआ। अपने पक्ष में वे यह तर्क देते हैं कि आधुनिक मानव में जो शारीरिक (anatomical) एवं जननिक (genetic) समरूपता पाई जाती है उसका कारण यह था कि उनके पूर्वज एक ही क्षेत्र अर्थात् अफ्रीका में उत्पन्न हुए थे। यहाँ से वे अन्य स्थानों को गए।

दूसरी ओर कुछ अन्य विद्वान् क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल (regional continuity model) का समर्थन करते हैं। उनके विचारानुसार आधुनिक मानव की उत्पत्ति अफ्रीका, एशिया एवं यूरोप के विभिन्न भागों में हुई। अपने पक्ष में वे यह तर्क देते हैं कि आधुनिक मानव में जो शारीरिक भिन्नताएँ पाई जाती हैं वे इस कारण हैं कि उसका उद्भव विभिन्न भागों में हुआ। इस अंतर को स्पष्टतः आज भी देखा जा सकता है।
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 1 iMG 2
आधुनिक मानव की अनेक ऐसी विशेषताएँ थीं जो उसे पहले के मानव से अलग करती हैं। इस मानव का मस्तिष्क अब तक के सभी मानवों में सबसे बड़ा था। अतः वह सबसे समझदार था। इस कारण उसके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। उसने गुफ़ाओं के अतिरिक्त अपने निवास के लिए झोंपड़ियों का निर्माण आरंभ कर दिया था। वह अब एक स्थायी रूप से निवास करने लगा था। उसने अब कृषि करनी आरंभ कर दी थी। इससे उसे भोजन की तलाश में भटकना नहीं पड़ा। उसने अब खाना पकाने की विधि की जानकारी प्राप्त कर ली थी।

उसने अब किसी प्राकृतिक संकट के समय भोजन का भंडारण (store) करना सीख लिया था। उसके हथियार बहुत उत्तम थे। उसने अनेक नए हथियारों का निर्माण भी कर लिया था। इससे वह जंगली जानवरों से अपनी सुरक्षा अधिक अच्छे ढंग से कर सका। उसने सूई का आविष्कार कर लिया था। अतः उसने सिले हुए वस्त्र पहनने आरंभ कर दिए थे। उसने कला एवं भाषा के क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति कर ली थी। निस्संदेह आधुनिक मानव की उपलब्धियाँ महान् थीं। प्रसिद्ध इतिहासकार पी० एस० फ्राई का यह कहना ठीक है कि, “नए मानव की ये उपलब्धियाँ स्पष्ट करती हैं कि वह अपने पूर्वजों में सर्वश्रेष्ठ था।”

(क) होमो हाइडलवर्गेसिस :
उन्हें हाइडलबर्ग मानव के नाम से भी जाना जाता है। उनका यह नाम इसलिए रखा गया क्योंकि उनके प्राचीनतम जीवाश्म जर्मनी के शहर हाइडलबर्ग से प्राप्त हुए हैं। ये जीवाश्म यूरोप, एशिया एवं अफ्रीका में पाए गए हैं। हाइडलबर्ग मानव का मस्तिष्क काफ़ी बड़ा था। उसके अंग तथा हाथ बहुत भारी भरकम थे। उसके जबड़े बहुत भारी थे। उसके शरीर पर काफी बाल थे। वह संभवतः बोल सकता था किंतु भाषा का विकास नहीं कर पाया था। वे गुफ़ाओं में निवास करते थे।
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(ख) होमो निअंडरथलैंसिस:
उन्हें निअंडरथल मानव के नाम से भी जाना जाता है। उनका यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि उनके प्राचीनतम जीवाश्म जर्मनी की निअंडर घाटी से प्राप्त हुए हैं। उनके जीवाश्म हमें यूरोप एवं पश्चिमी तथा मध्य एशिया के अनेक देशों से प्राप्त हुए हैं। यह मानव कद में छोटा था। उसका सिर बड़ा था। उसकी नाक चौड़ी थी। उसके कंधे चौड़े थे।

उसका मस्तिष्क कोष काफी बड़ा किंतु निम्नकोटि का था। वह गुफ़ाओं में रहता था। उसे अग्नि की जानकारी थी। उसके प्रमुख भोजन जंगली फल एवं शिकार थे। वे अपने शवों को बहत सम्मान के साथ दफनाते थे।

प्रश्न 3.
प्रारंभिक समाज में मानव के भोजन प्राप्त करने के तरीके क्या थे?
अथवा
आदिकालीन मानव के भोजन प्राप्त करने के तरीकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आदिकालीन मानव अनेक तरीकों से अपना भोजन जुटाते थे। इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण तरीके निम्नलिखित थे

1. संग्रहण :
आदिकालीन मानव पूर्ण रूप से प्रकृति जीवी थे। वे कृषि से अपरिचित थे। इसके अतिरिक्त वे पशुपालन भी नहीं करते थे। अतः आरंभ में आदिकालीन मानव अपना भोजन संग्रहण द्वारा जुटाता था। वे पेड-पौधों से मिलने वाले खाद्य पदार्थों जैसे-बीज, गुठलियाँ (nuts), फल एवं कंदमूल (tubers) एकत्र करते थे। संग्रहण के बारे में तो केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है।

इस संबंध में हमें प्रत्यक्ष प्रमाण बहुत कम मिले हैं। इसका कारण यह है कि हमें हड्डियों के जीवाश्म (fossil bones) तो काफी संख्या में प्राप्त हुए हैं जबकि पौधों के जीवाश्म (fossilised plant remains) बहुत कम प्राप्त हुए हैं। संग्रहण द्वारा भोजन जुटाने का मुख्य कार्य स्त्रियों एवं बच्चों द्वारा किया जाता था। पुरुष मुख्य रूप से शिकार के लिए बाहर जाते थे।

2. अपमार्जन:
 (आदिकालीन मानव अपमार्जन द्वारा अथवा रसदखोरी द्वारा भी अपना भोजन जुटाता था। अपमार्जन (scavenging) से अभिप्राय त्यागी हुई वस्तुओं की सफाई करने से है। रसदखोरी (foraging) से अभिप्राय भोजन की तलाश करना है। आदिकालीन मानव उन जानवरों से जो अपने आप मर जाते थे अथवा किसी अन्य हिंसक जानवर द्वारा मार दिए जाते थे, की लाशों से माँस (meat) एवं मज्जा (marrow) प्राप्त करते थे। इनके अतिरिक्त वे छोटे-छोटे पक्षियों एवं उनके अंडों, सरीसृपों (reptiles), चूहों एवं अनेक प्रकार के कीड़े-मकोड़ों (insects) को खाते थे।

3. शिकार:
शिकार द्वारा भोजन प्राप्त करना आदिकालीन मानव का एक प्रमुख स्रोत रहा है। शिकार प्रमुख तौर पर पुरुषों द्वारा किया जाता था। वे शिकार का पीछा करते हुए अपने निवास स्थान से काफी दूर तक निकल जाते थे। वे छोटे-मोटे पशुओं का शिकार स्वयं कर लेते थे। वे बड़े पशुओं का शिकार सम्मिलित रूप से करते थे। इसका कारण यह था कि बड़े पशुओं का अकेले शिकार करने में उनके स्वयं के मारे जाने की संभावना अधिक रहती थी।

वे जंगली घोड़ों, जंगली भैंसों जिन्हें बाइसन कहा जाता था, गैंडों, रीछों एवं विशालकाय जानवरों जिन्हें मैमथ कहा जाता था का शिकार करते थे। वे शिकार के लिए भालों एवं पत्थरों का प्रयोग करते थे। बाद में आदिमानव ने शिकार के लिए कुत्तों का सहयोग लेना आरंभ कर दिया था।

योजनाबद्ध ढंग से स्तनपायी जानवरों का शिकार एवं उनका वध करने की सबसे पुरानी उदाहरण हमें दो स्थलों है। दूसरी उदाहरण 4 लाख वर्ष पूर्व की है। यह जर्मनी में शोनिंजन (Schoningen) से संबंधित है। लगभग 35 हजार वर्ष पूर्व आदिमानव द्वारा योजनाबद्ध ढंग से शिकार करने के कुछ साक्ष्य हमें कुछ यूरोपीय खोज स्थलों से प्राप्त हुए हैं। ऐसा ही एक स्थल चेक गणराज्य में नदी के पास स्थित दोलनी वेस्तोनाइस (Dolni Vestonice) था।

इस स्थान को बहुत सोच-समझकर चुना गया था। यहाँ अनेक जानवर पानी पीने के लिए आते थे। इसके अतिरिक्त घोड़े एवं रेडियर आदि जानवरों के झुंड पतझड़ एवं वसंत के मौसम में नदी के उस पार जाते थे। इस अवसर पर इन जानवरों का बड़े पैमाने पर शिकार किया जाता था। इन उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि उस समय के लोगों को जानवरों की आवाजाही की पूर्ण जानकारी होती थी।

आदिमानव द्वारा जिन जानवरों का शिकार करना होता था उन्हें घेरे में ले लेते थे। जब कोई विशालकाय पशु बीमार अथवा घायल अवस्था में मिल जाता था तो उसे पानी अथवा बर्फ में फंसा कर सुगमता से मार डालते थे। यदि जिस जानवर का शिकार किया गया हो वह छोटा हो तो उसे गुफ़ा में लाकर खाया जाता था। दूसरी ओर यदि वह जानवर विशालकाय हो तो उसके धड़ को वहीं खा लिया जाता था जबकि शेष भाग को काट कर गुफ़ा में लाया जाता था।

इसका अनुमान इस बात से लगाया जाता है कि हमें मृत पशुओं के लघु अंगों की हड्डियाँ गुफ़ाओं से प्रचुर मात्रा में मिली हैं जबकि उनकी रीढ़ की हड्डियाँ एवं पसलियाँ कम प्राप्त हुई हैं। आदिकालीन मानव मारे गए पशुओं की खाल को साफ करके धूप में सुखा लेता था तथा उससे पहनने एवं बिछाने का काम लेता था।

4. मछली पकड़ना (Fishing) मछली पकड़ना भी आदिकालीन मानव का भोजन जुटाने का एक महत्त्वपूर्ण ढंग था। वे नदियों एवं तालाबों से हाथ द्वारा ही मछली पकड़ लिया करते थे। इसके अतिरिक्त वे छोटी मछली पकड़ने के लिए काँटे का एवं बड़ी मछली पकड़ने के लिए हार्पून का प्रयोग भी करते थे।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

प्रश्न 4.
आदिमानव के निवास स्थान का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आदिमानव कहाँ निवास करता था? वह पेड़ों से गुफ़ाओं तक तथा फिर खुले स्थलों पर कैसे पहुँचा? इस संबंध में हम साक्ष्यों के आधार पर पुनर्निर्माण करने का प्रयास करेंगे। इसका एक ढंग यह है कि उनके द्वारा निर्मित शिल्पकृतियों के फैलाव की जाँच करना (plotting the distribution of artefacts)। शिल्पकृतियाँ मानव निर्मित वस्तुएँ होती हैं।

इसमें अनेक प्रकार की वस्तुएँ सम्मिलित हैं जैसे-औजार, चित्रकारियाँ, मूर्तियाँ, उत्कीर्ण चित्र आदि। उदाहरण के तौर पर हमें केन्या में किलोंबे (Kilombe) तथा ओलोर्जेसाइली (Olorgesailie) नामक स्थलों से बड़ी संख्या में शल्क उपकरण (flake tools) एवं हस्त कुठार (hand axes) मिले हैं।

ये वस्तुएँ 7 लाख वर्ष पूर्व से 5 लाख वर्ष पूर्व पुरानी हैं। इतने सारे औज़ार एक स्थान पर किस प्रकार इकट्ठे हुए। यह अनुमान लगाया जाता है कि जिन स्थानों पर खाद्य प्राप्ति के संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे वहाँ लोग बार-बार आते रहे होंगे। ऐसे क्षेत्रों में वे अपनी शिल्पकृतियाँ छोड़ जाते रहे होंगे। जिन स्थानों में उनका आवागमन कम था वहाँ ऐसी शिल्पकृतियाँ हमें बहुत कम प्राप्त हुई हैं।

1. पेड़:
प्रारंभ में आदि मानव पेड़ों पर रहते थे। वे अपना अधिकाँश समय पेड़ों पर ही बिताते थे। इसका कारण यह था कि पेड़ों पर वे अपना भोजन सुगमता से जटा सकते थे। यहाँ उसे फल, कंदमल, पक्षी एवं उनके अंडे बड़ी मात्रा में उपलब्ध होते थे। अतः उसे भोजन की तलाश में स्थान-स्थान भटकने की आवश्यकता नहीं थी।

उस समय पेड़ों पर ही बंदर, लंगूर एवं तेंदुए (leopards) आदि निवास करते थे। इन जानवरों से अपनी सुरक्षा करना आदिमानव के लिए एक भारी समस्या थी। इसके अतिरिक्त भयंकर तूफ़ान एवं भयंकर शीत से बचाव करना एक अन्य समस्या थी।

2. गुफ़ाएँ :
आज से 4 लाख वर्ष पूर्व आदिमानव ने गुफ़ाओं को अपना निवास स्थान बना लिया था। गुफ़ाओं में रहने के उसे अनेक लाभ हुए। प्रथम, वे भयंकर जानवरों से अपने को सुरक्षित रख सके। दूसरा, गुफ़ाओं में रहने के कारण उन्हें भयंकर तूफ़ानों के समय अथवा शीत के समय किसी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता था।

तीसरा, गुफ़ाओं की दीवारों से पानी रिसता रहता था। अतः उन्हें पानी पीने के लिए किसी दूसरे स्थान पर नहीं जाना पड़ता था। हमें आदिमानव के गुफ़ाओं में निवास करने के जो साक्ष्य प्राप्त हुए हैं उनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध दक्षिण फ्राँस में स्थित लेज़रेट गुफ़ा (Lazaret cave) है। इस गुफ़ा का आकार 12 x 4 मीटर है।

इस गुफा के अंदर से हमें दो चूल्हों (hearths), अनेक प्रकार के फलों, सब्जियों, बीजों, काष्ठफलों (nuts), पक्षियों के अंडों एवं मछलियों जैसे ट्राउट (trout), पर्च (perch) एवं कार्प (carp) आदि के साक्ष्य (evidence) मिले हैं।

3. झोंपड़ियाँ :
आदिमानव ने 1.25 लाख वर्ष पूर्व झोंपड़ियों का निर्माण आरंभ कर दिया था। यह आदिमानव द्वारा प्रगति की दिशा में एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण पग था। उसने अब कृषि आरंभ कर दी थी। इसलिए उसे स्थायी निवास की आवश्यकता हुई।

अतः उसने झोंपड़ियों का निर्माण आरंभ किया। आदिमानव के झोंपड़ियों के निर्माण संबंधी हमें जो साक्ष्य मिले हैं उनमें दक्षिणी फ्रांस में स्थित टेरा अमाटा (TerraAmata) नामक झं बहुत प्रसिद्ध है। यह झोंपड़ी घास-फूस से बनाई गई थी। इसकी छत लकड़ी की थी। इस झोंपड़ी के किनारों को सहारा देने के लिए बड़े पत्थरों का प्रयोग किया गया था।

फ़र्श पर जो पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े बिखरे हुए हैं वे उन स्थानों को दर्शाते हैं जहाँ बैठ कर लोग पत्थर के औजार बनाते थे। यहाँ से हमें चूल्हे को दर्शाने के साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं।

4. अग्नि (Fire)-अग्नि के आविष्कार के कारण आदिमानव के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आए। इसका आविष्कार कब हुआ इस संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। इसके प्रथम साक्ष्य हमें केन्या में चेसोवांजा (Chesowanja) एवं दक्षिणी अफ्रीका में स्वार्टक्रांस (Swartkrans) से प्राप्त हुए हैं। यहाँ से पत्थर के औज़ारों के साथ-साथ आग में पकाई गई चिकनी मिट्टी और जली हुई हड्डियों के अंश प्राप्त हुए हैं। ये 14 लाख वर्ष पूर्व के हैं। इन वस्तुओं को किस प्रकार आग लगी इस संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।

अग्नि का आविष्कार मानव के लिए अनेक पक्षों से लाभकारी प्रमाणित हुआ। प्रथम, आग से जंगली जानवरों को डर लगता था। अतः आदिमानव अग्नि से गुफ़ाओं को प्रज्वलित रखने लगा। इस कारण उसे जंगली जानवरों से सुरक्षा प्राप्त हुई। दूसरा, अग्नि की सहायता से आदिमानव के लिए भयंकर शीत से बचाव सुगम हो गया। तीसरा, इस कारण गुफ़ाओं के अंदर जहाँ अंधेरा रहता था प्रकाश करना संभव हुआ।

चौथा, अग्नि की सहायता से भोजन को पकाना संभव हुआ। यह कच्चे भोजन की अपेक्षा अधिक स्वाद होता था। चूल्हों के प्रयोग के बारे में हमें सबसे प्रथम साक्ष्य 1.25 लाख वर्ष पूर्व का मिला है। पाँचवां, अग्नि औज़ारों के निर्माण में काफी उपयोगी सिद्ध हुई।

प्रश्न 5.
आदिमानव ने औज़ारों का निर्माण किस प्रकार किया ?
उत्तर:
आदिमानव के जीवन में औज़ारों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। वह इनका प्रयोग जंगली जानवरों से अपनी सुरक्षा एवं अपने लिए भोजन जुटाने के लिए करता था। इसमें कोई संदेह नहीं कि कुछ पक्षी एवं वानर आदि भी औज़ारों का निर्माण करते हैं एवं उनका प्रयोग करते हैं। किंतु आदिमानव द्वारा बनाए गए औजार अधिक कौशल एवं स्मरण शक्ति को दर्शाते हैं।

आदिमानव के औज़ार पत्थर से निर्मित थे। संभवत: वे लकड़ी के औजार भी बनाते थे। किंतु लकड़ी के औजार समय के साथ नष्ट हो गए। पत्थर के बने औज़ारों को तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है। प्रथम श्रेणी में आने वाले औज़ारों को हस्त कुठार (hand axes) कहा जाता है। हस्त कुठारों को मुट्ठी (fist) में पकड़ा जाता था। ये अनेक प्रकार के होते थे। इनका प्रयोग किसी वस्तु को काटने अथवा किसी वस्तु को कुचलने के लिए किया जाता था। इस प्रकार के औज़ार हमें बड़ी संख्या में तंजानिया के ओल्डुवई गोर्ज (Olduvai Gorge) से प्राप्त हुए हैं।

दूसरी श्रेणी में गंडासे (choppers) सम्मिलित थे। उन्हें भारी पत्थरों से तैयार किया जाता था। इसमें शल्कों (flakes) को निकाल कर धारदार बनाया जाता था। इनका प्रयोग संभवत: माँस काटने के लिए किया जाता था। इस प्रकार के हथियार हमें बड़ी संख्या में एशिया, अफ्रीका एवं यूरोप के अनेक स्थानों से प्राप्त हुए हैं। तीसरी श्रेणी में शल्क औज़ार (flake tools) सम्मिलित थे। ये हस्त कुठारों एवं गंडासों की अपेक्षा छोटे एवं पतले होते थे। इनके किनारे अधिक पैने होते थे। ये औज़ार अधिक उपयोगी तथा दूर तक प्रहार करने में सक्षम होते थे।

पत्थर के औजार बनाने एवं इनका प्रयोग किए जाने के सबसे प्राचीन साक्ष्य हमें इथियोपिया (Ethiopia) एवं केन्या (Kenya) से प्राप्त हुए हैं। विद्वानों (scholars) के विचारानुसार आस्ट्रेलोपिथिकस ने सबसे पहले पत्थर के औज़ार बनाए थे। लगभग 35,000 वर्ष पूर्व जानवरों के शिकार करने के तरीकों में सुधार हुआ। इसका साक्ष्य यह है कि इस काल में नए प्रकार के भालों का निर्माण किया गया। इसके अतिरिक्त तीर-कमान भी बनाए गए। 21,000 वर्ष पूर्व सिलाई वाली सूई का आविष्कार हुआ।

निस्संदेह यह एक महत्त्वपूर्ण आविष्कार था। अब आदिमानव ने सिले हुए वस्त्र पहनने आरंभ कर दिए थे। अब हड्डी एवं हाथी दाँत से भी औज़ार बनाए जाने लगे। इनके अतिरिक्त अब छेनी (punch blade) जैसे छोटे-छोटे औजार भी बनाए जाने लगे। इनकी सहायता से हड्डी, सींग (antler), हाथी दाँत एवं लकड़ी पर नक्काशी (engravings) की जाने लगी।

हम निश्चित तौर पर यह नहीं कह सकते कि औज़ारों का निर्माण पुरुषों अथवा स्त्रियों अथवा दोनों द्वारा मिल कर किया जाता था। यह संभव है कि स्त्रियाँ अपने और अपने बच्चों के लिए भोजन जुटाने के लिए कुछ विशेष प्रकार के औजारों का निर्माण एवं प्रयोग करती रही होंगी।

प्रश्न 6.
भाषा के प्रयोग से (क) शिकार करने और (ख) आश्रय बनाने के काम में कितनी सुविधा मिली होगी? इस पर चर्चा कीजिए। इन क्रियाकलापों के लिए विचार संप्रेषण के अन्य किन तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता था ?
अथवा
आदिमानव ने भाषा का विकास किस प्रकार किया ? इसका उनके जीवन में क्या महत्त्व था?
उत्तर:
भाषा का विकास आदिमानव की प्रगति की राह में एक मील पत्थर सिद्ध हआ। इनका संक्षिप्त वर्णन
निम्नलिखित अनुसार है
1. भाषा :
प्रारंभिक चरणों में जब भाषा का विकास नहीं हुआ था तो आदिमानव के लिए अपने विचारों की अभिव्यक्ति करना संभव न था। इस कारण उसकी प्रगति करने की रफ्तार बहुत धीमी रही। भाषा के विकास ने उसके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन किए। प्रसिद्ध इतिहासकार जे० ई० स्वैन के अनुसार, “भाषा की श्रेष्ठता ने मानव को अन्य प्राइमेट के मुकाबले सांस्कृतिक तौर पर अधिक विकसित किया।” भाषा का विकास किस प्रकार हुआ इस संबंध में अनेक मत प्रचलित हैं।

  • होमिनिड भाषा में हाव-भाव (gestures) अथवा हाथों का संचालन (hand movements) सम्मिलित था।
  • उच्चरित (spoken) भाषा से पूर्व प्रचलन हुआ।
  • मानव भाषा का आरंभ संभवत: बुलावों (calls) की क्रिया से हआ था जैसा कि अन्य प्राइमेटों द्वारा किया जाता था।

समय के साथ-साथ इन ध्वनियों ने भाषा का रूप धारण कर लिया। बोलने वाली भाषा का आरंभ कब हुआ इस संबंध में विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार भाषा का सबसे पहले विकास 20 लाख वर्ष पूर्व हुआ था। कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार इसका विकास 2 लाख वर्ष पूर्व हुआ था जब स्वरतंत्र (vocal tract) का विकास हुआ था।

इसका संबंध विशेष तौर पर आधुनिक मानव से है। कुछ अन्य विद्वानों के विचारानुसार भाषा का विकास 40,000 से 35,000 वर्ष पूर्व तब हुआ जब कला का विकास आरंभ हुआ। इसका कारण यह है कि ये दोनों ही विचार अभिव्यक्ति के माध्यम हैं। भाषा के प्रयोग से शिकार करने में तथा आश्रय बनाने में अनेक लाभ हुए।

(क) शिकार करने में (In Hunting)-भाषा का प्रयोग शिकार करने में निम्नलिखित पक्षों से लाभकारी प्रमाणित हुआ-

  • लोग शिकार करने की योजना बना सकते थे।
  • वे जानवरों के क्षेत्रों के संबंध में जानकारी प्राप्त कर सकते थे।
  • वे जानवरों की प्रकृति पर विचार-विमर्श कर सकते थे।
  • वे शिकार के लिए आवश्यक औज़ारों पर विचार कर सकते थे।
  • वे मारे गए जानवरों के उपयोग के संबंध में चर्चा कर सकते थे।

(ख) आश्रय बनाने में (In Constructing Shelters)-भाषा का प्रयोग आश्रय बनाने में निम्नलिखित पक्षों से लाभकारी प्रमाणित हुआ-

  • लोग आश्रय बनाने के लिए सुरक्षित क्षेत्रों पर चर्चा कर सकते थे।
  • वे आश्रय बनाने के लिए उपलब्ध सामग्री की जानकारी प्राप्त कर सकते थे।
  • वे आश्रय बनाने के तरीकों के संबंध में चर्चा कर सकते थे।
  • वे आश्रय स्थल के निकट उपलब्ध सुविधाओं पर विचार-विमर्श कर सकते थे।
  • वे आश्रय स्थल को जंगली जानवरों एवं भयंकर तूफ़ानों से सुरक्षित रखने के उपायों के बारे में सोच सकते थे।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

प्रश्न 7.
आदिमानव की कला पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
आदिकालीन मानव को प्रारंभ से ही कला में विशेष दिलचस्पी थी। अतः उसने चित्रकला एवं मूर्तिकला के क्षेत्रों में अपना हाथ आजमाया।

(क) चित्रकला :
प्रारंभ में आदिमानव अपने दैनिक जीवन में जिनसे प्रभावित होता था उन्हें वह पूर्ण भाव के साथ व्यक्त करने का प्रयास करता था। उसने जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों, सूर्य, चंद्रमा, तारों, नदियों आदि के चित्र बनाए। क्योंकि उनके जीवन में शिकार का विशेष महत्त्व था अतः उन्होंने इससे संबंधित सर्वाधिक चित्र बनाए। ये चित्र गुफ़ाओं की दीवारों एवं छतों पर बनाए गए थे।

इनमें से स्पेन में स्थित आल्टामीरा (Altamira) तथा फ्रांस में स्थित लैसकॉक्स (Lascaux) तथा चाउवेट (Chauvet) नामक गुफाएं विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। आल्टामीरा गुफ़ा की खोज 1879 ई० में मार्सिलीनो सैंज दि सउतुओला (Marcelino Sanz de Sautuola) एवं उसकी पुत्री मारिया (Maria) ने की।

इस गुफ़ा से हमें जो अनेक चित्र प्राप्त हुए हैं उनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध एक जंगली भैंसे का चित्र है। 1994 ई० में लैसकॉक्स एवं चाउवेट नामक गुफ़ाओं की खोज हुई। इनमें भी बड़ी संख्या में सुंदर चित्र प्राप्त हुए हैं। इनमें जंगली बैलों (bison), घोड़ों, पहाड़ी बकरों (ibex), हिरणों, मैमथों (mammoths), गैंडों (rhinos), शेरों, भालुओं, चीतों, लकड़बग्धों एवं उल्लुओं आदि के चित्र विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इन चित्रों में विशेष रूप से चार रंगों-काला, लाल, पीला एवं सफ़ेद का प्रयोग किया गया है। इन चित्रों को 30,000 से 12,000 वर्ष पूर्व बनाया गया था।

उपरोक्त चित्रों के संबंध में अनेक प्रश्न उठाए गए हैं। उदाहरणस्वरूप इन चित्रों में अधिकाँश शिकार के चित्र क्यों बनाए गए हैं ? इन्हें गुफ़ाओं के उन स्थानों पर क्यों बनाया गया था जहाँ अंधकार होता था? इन चित्रों में कुछ विशेष चित्रों को ही चित्रित क्यों किया गया है? केवल पुरुषों को ही जानवरों के साथ चित्रित किया गया है स्त्रियों को क्यों नहीं? इन प्रश्नों के संबंध में विद्वानों ने अलग-अलग स्पष्टीकरण दिए हैं। इन चित्रों के उद्देश्यों के संबंध में विद्वानों में मतभेद पाए जाते हैं। कुछ विद्वानों का विचार है कि ये चित्र गुफ़ाओं को सुंदर बनाने के उद्देश्य से बनाए गए थे।

कुछ अन्य का विचार है कि इन चित्रों को इसलिए चित्रित किया गया था ताकि वे भावी पीढ़ियों को शिकार के संबंध में अपनी जानकारी दे सकें। अधिकांश विद्वानों का विचार है कि इन चित्रों का वास्तविक उद्देश्य धार्मिक था। प्रसिद्ध इतिहासकारों जे० एच० बेंटली एवं एच० एफ० जाईगलर का यह कहना ठीक है कि, “इन चित्रों की सादगी एवं उन्हें दर्शाने की शक्ति ने प्रारंभिक 20वीं शताब्दी से आधुनिक आलोचकों पर गहन प्रभाव छोड़ा। प्रागैतिहासिक काल के कलाकारों के कौशल ने मानव प्रजातियों की अद्भुत दिमागी शक्ति को दर्शाया है।

2. मूर्तिकला (Sculpture)-आदिकालीन मानव ने कुछ छोटे आकार की मूर्तियों का निर्माण आरंभ कर दिया था। उन्होंने मानवों एवं जानवरों की अनेक मूर्तियाँ बनाईं। इनमें से अधिकाँश मूर्तियाँ स्त्रियों से संबंधित थीं। इसका कारण यह था कि वे स्त्रियों को जनन (fertility) शक्ति का स्रोत समझते थे। इनमें प्रायः स्त्रियों के मुख को नहीं दर्शाया जाता था। इस प्रकार की अनेक मूर्तियाँ हमें यूरोप के विभिन्न स्थानों से प्राप्त हुई हैं। इन मूर्तियों को वीनस (Venus) देवी के नाम से जाना जाता था।

प्रश्न 8.
हादज़ा जनसमूह का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रसिद्ध मानव विज्ञानी (anthropologist) जेम्स वुडबर्न (James Woodburn) द्वारा 1960 ई० में अफ्रीका के हादज़ा जनसमूह के बारे में महत्त्वपूर्ण प्रकाश डाला गया। इसका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार हादज़ा एक लघु समूह है जो एक खारे पानी की झील ‘लेक इयासी’ (Lake Eyasi) के इर्द-गिर्द रहते हैं। वे शिकारी तथा खाद्य संग्राहक हैं। पूर्वी हादज़ा का क्षेत्र सूखा एवं चट्टानी है। यहाँ सवाना घास, काँटेदार झाड़ियाँ तथा एकासिया (accacia) नामक पेड़ बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। इनके अतिरिक्त यहाँ जंगली खाद्य पदार्थ भी काफी मात्रा में मिलते हैं।

20वीं शताब्दी के आरंभ में हादज़ा प्रदेश में बड़ी मात्रा में जानवर पाए जाते थे। यहाँ पाए जाने वाले बड़े जानवरों में हाथी, शेर, तेंदुए, लकड़बग्घे, गैंडे, भैंसे, चिंकारा, हिरण, बबून बंदर, जेब्रा, जिराफ़, वाटरबक एवं मस्सेदार सूअर (warthog) आदि थे। इनके अतिरिक्त यहाँ अनेक प्रकार के छोटे जानवर भी पाए जाते थे। इनमें खरगोश एवं कछुए आदि थे। हादज़ा लोग केवल हाथी को छोड़ कर अन्य सभी प्रकार के जानवरों का शिकार करते हैं एवं उनका माँस खाते हैं। यहाँ यह बात स्मरण रखने योग्य है कि हादज़ा लोग विश्व में सबसे अधिक माँस खाते हैं। इसके बावजूद वे इस बात का ख्याल रखते हैं कि शिकार को भविष्य में कोई ख़तरा न हो।

साधारण दर्शकों को हादज़ा क्षेत्र में पाए जाने वाले कंदमूल, बेर, बाओबाब पेड़ के फल सुगमता से दिखाई नहीं देते। इसके बावजूद ये अत्यंत सूखे मौसम में भी बड़ी मात्रा में उपलब्ध होते हैं। वहाँ वर्षा ऋतु के 6 महीनों में मिलने वाले खाद्य पदार्थ सूखे के मौसम में मिलने वाले खाद्य पदार्थ से भिन्न होते हैं। किंतु वहाँ कभी भी खाद्य पदार्थ की कोई कमी नहीं रहती। यहाँ पाई जाने वाली सात प्रकार की मधुमक्खियाँ, शहद एवं सूंडियों को विशेष चाव के साथ खाया जाता है। इनकी आपूर्ति (supplies) मौसम के अनुसार बदलती रहती है।

वर्षा ऋतु में संपूर्ण देश में जल स्रोतों की कोई कमी नहीं रहती। ये बड़ी मात्रा में उपलब्ध होते हैं। किंतु सूखे के मौसम में इनमें से अधिकाँश सूख जाते हैं। इसलिए वे प्रायः अपने शिविर जल स्रोतों से एक किलोमीटर से अधिक दूरी पर स्थापित नहीं करते हैं। हादज़ा लोगों के कुछ क्षेत्रों में घास के विशाल मैदान हैं। इसके बावजूद वे कभी भी वहाँ अपना शिविर स्थापित नहीं करते। वे अपने शिविर पेड़ों अथवा चट्टानों के मध्य अथवा उन स्थानों पर लगाते हैं जहाँ ये दोनों सुविधाएँ उपलब्ध हों।

हादज़ा लोग ज़मीन और उसके संसाधनों पर अपना दावा नहीं करते। कोई भी व्यक्ति जहाँ चाहे वहाँ रह सकता है। वह वहाँ से कंदमूल, फल एवं शहद एकत्र कर सकता है तथा पानी ले सकता है। वास्तव में इस संबंध में हादज़ा प्रदेश में कोई प्रतिबंध नहीं है। यद्यपि हादज़ा प्रदेश में बड़ी मात्रा में जानवर शिकार के लिए उपलब्ध हैं फिर भी हादज़ा लोग अपने भोजन का 80 प्रतिशत जंगली साग-सब्जियों से प्राप्त करते हैं। वे अपने भोजन का शेष 20 प्रतिशत माँस एवं शहद से प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 9.
क्या आज के शिकारी संग्राहक समाजों के बारे में प्राप्त सूचनाओं को अतीत के मानव जीवन के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रयोग किया जा.सकता है?
अथवा
क्या वर्तमान शिकारी संग्राहक समाजों के बारे में प्राप्त जानकारी के सुदूर अतीत के मानव के जीवन को पुनर्निर्मित करने के लिए उपयोग में लाया जा सकता है?
उत्तर:
मानव विज्ञानियों (anthropologists) के अध्ययनों के आधार पर वर्तमान समय के शिकारी संग्राहक समाजों के बारे में जैसे-जैसे हमारे ज्ञान में वद्धि हई वैसे-वैसे हमारे सामने यह प्रश्न आता है कि क्या आज के शिकारी संग्राहक समाजों के बारे में प्राप्त सूचनाओं को अतीत के मानव जीवन के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इस संबंध में इतिहासकारों में निम्नलिखित दो मत प्रचलित हैं

(क) कुछ इतिहासकारों के विचारानुसार वर्तमान समय के शिकारी संग्राहक समाजों से प्राप्त तथ्यों को प्राचीनकालीन प्राप्त अवशेषों के अध्ययन के लिए प्रयोग किया गया है। उदाहरण के लिए कुछ पुरातत्त्वविदों (archaeologists) का विचार है कि 20 लाख वर्ष पूर्व के होमिनिड स्थल जो तुर्काना झील (Lake Turkana) के किनारे स्थित हैं वास्तव में आदिकालीन मानवों के निवास स्थान थे। यहाँ वे सूखे के मौसम में जब स्रोतों में कमी आ जाती थी, आकर निवास करते थे। वर्तमान समय में हादज़ा (Hadza) एवं कुंग सैन (Kung San) समाज भी इसी ढंग से रहते हैं।

(ख) दूसरी ओर कुछ अन्य इतिहासकारों का विचार है कि संजातिवृत्त (ethnography) संबंधी तथ्यों का उपयोग अतीत के समाजों को समझने के लिए नहीं किया जा सका क्योंकि दोनों समाज एक-दूसरे से अलग हैं। संजातिवृत्त में समकालीन नृजातीय समूहों (ethnic groups) का विश्लेषणात्मक अध्ययन होता है। इसमें उनके रहन-सहन, खान-पान, आजीविका के साधन, रीति-रिवाजों, सामाजिक रूढ़ियों एवं राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है।

आज के शिकारी संग्राहक समाज शिकार एवं संग्रहण के अतिरिक्त कई अन्य आर्थिक गतिविधियों में भी लगे रहते हैं। उदाहरण के तौर पर वे जंगलों में पाए जाने वाले छोटे-छोटे उत्पादों का आपस में विनिमय (exchange) करते हैं तथा इनका व्यापार भी करते हैं। वे पड़ोसी किसानों के खेतों में मजदूरी का काम भी करते हैं। सबसे बढ़कर वे जिन हालातों में रहते हैं वे आदिकालीन मानवों से पूर्णतः भिन्न हैं।

वर्तमान काल के शिकारी संग्राहक समाजों में आपस में भी बहुत भिन्नता है। उनकी गतिविधियों में बहुत अंतर है। वे शिकार एवं संग्रहण को अलग-अलग महत्त्व देते हैं। उनका आकार भी छोटा-बड़ा होता है। भोजन प्राप्त करने के संबंध में श्रम विभाजन (division of labour) को लेकर भी मतभेद पाए जाते हैं।

यद्यपि आज भी अधिकाँश स्त्रियाँ खाद्य-पदार्थों को एकत्र करने का कार्य करती हैं एवं पुरुष शिकार करते हैं किंतु फिर भी अनेक ऐसे समाजों के उदाहरण मिलेंगे जहाँ स्त्रियाँ एवं पुरुष दोनों ही शिकार करते हैं, संग्रहण का कार्य करते हैं तथा औजार बनाते हैं। निस्संदेह इससे ऐसे समाजों में स्त्रियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका की जानकारी प्राप्त होती है। अतः अतीत के संबंध में कोई अनुमान लगाना कठिन है।

प्रश्न 10.
अध्याय के अंत में दिए गए प्रत्येक कालानुक्रम में से किन्हीं दो घटनाओं को चुनिए और यह बताइए कि इनका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
कालानुक्रम-1

1. होमिनॉइड और होमिनिड की शाखाओं में विभाजन : नोट-इस भाग के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं० 1 के भाग 2 एवं 3 का उत्तर देखें।
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 1 iMG 4

2. होमो एरेक्टस : नोट-इस भाग के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं० 2 के भाग 2 का उत्तर देखें।

कालानुक्रम-2
1. आधुनिक मानव का प्रादुर्भाव : नोट- इस भाग के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं० 2 के भाग 3 का उत्तर देखें।
2. निअंडरथल मानव का प्रादुर्भाव : नोट-इस भाग के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं० 2 के भाग 3 का (ख) भाग देखें।

क्रम संख्या वर्ष घटना
1 . -240 लाख वर्ष पूर्व प्राइमेट प्राणियों का अफ्रीका एवं एशिया में उत्थान।
2 . 240 लाख वर्ष पूर्व होमिनॉइड का उत्थान।
3 . 56 लाख वर्ष पूर्व आस्ट्रेलोपिथिकस अस्तित्व में आए।
4 . 25 लाख वर्ष पूर्व हिम युग का आरंभ, होमो अस्तित्व में आए।
5 . 22 लाख वर्ष पूर्व होमो हैबिलिस का उत्थान।
6 . 20 लाख वर्ष पूर्व होमिनिड का तुर्काना झील पर स्थल।
7 . 18 लाख वर्ष पूर्व होमो एरेक्टस का अस्तित्व में आना।
8 . 13 लाख वर्ष पूर्व आस्ट्रेलोपिथिकस का विलुप्त होना।
9 . 8 लाख वर्ष पूर्व होमो हाइडलबर्गेसिस का अस्तित्व में आना।
10 . 5 लाख वर्ष पूर्व बॉक्सग्रोव, इंग्लैंड से स्तनपायी जानवरों का योजनाबद्ध ढंग से शिकार का साक्ष्य।
11 . 4 लाख वर्ष पूर्व शोनिंजन, जर्मनी से स्तनपायी जानवरों का योजनाबद्ध ढंग से शिकार का साक्ष्य, गुफ़ाओं में निवास।
12. 2 लाख वर्ष पूर्व होमो एरेक्टस का लोप होना।
13. 1.95 लाख वर्ष पूर्व आधुनिक मानव का अस्तित्व में आना।
14. 1.30 लाख वर्ष पूर्व होमो निअंडरथलैंसिस का अस्तित्व में आना।
15. 1.25 लाख वर्ष पूर्व झोंपड़ियों का निर्माण।
16. 35 हज़ार वर्ष पूर्व निअंडरथल मानवों का लोप, शिकार के तरीकों में सुधार।
17. 21 हज़ार वर्ष पूर्व सिलाई वाली सूई का आविष्कार।
18. 1879 ई० आल्टामीरा गुफ़ा की खोज हुई।
19. 1959 ई० ओल्डुवई गोर्ज की खोज हुई।
20. 1960 ई मानव विज्ञानी जेम्स वुडबर्न द्वारा हादज़ा जनसमूह का वर्णन।

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न
(Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
होमिनॉइड और होमिनिड से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
1) होमिनॉइड-होमिनॉइड समूह 240 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया था। यह प्राइमेट श्रेणी का एक उपसमूह था। इसमें पूँछहीन बंदर सम्मिलित थे। इनका मस्तिष्क छोटा होता था। अत: उनमें सोचने की शक्ति कम थी। उनके चार पैर थे। वे चलते समय चारों पैरों का प्रयोग करते थे। उनके शरीर का अगला हिस्सा और दोनों पैर लचकदार होते थे। वे सीधे खड़े होकर चल नहीं सकते थे। होमिनॉइड बंदरों से कई प्रकार से भिन्न होते थे। उनका शरीर बंदरों से बड़ा होता था। उनकी पूँछ भी नहीं होती थी। उनके बच्चों का विकास धीरे-धीरे होता था।

2) होमिनिड-होमिनिड 56 लाख वर्ष पूर्व होमिनॉइड उपसमूह से विकसित हुए। इनके प्राचीनतम जीवाश्म हमें लेतोली तंजानिया से एवं हादार इथियोपिया से प्राप्त हुए हैं। दो प्रकार के साक्ष्यों से पता चलता है कि होमिनिडों का उद्भव अफ्रीका में हुआ था। ये 56 लाख वर्ष पुराने हैं। अफ्रीका से बाहर जो जीवाश्म पाए गए हैं वे 18 लाख वर्ष से पुराने नहीं हैं। होमिनिड, होमिनिडेइ नामक परिवार के साथ संबंधित हैं। इस परिवार में सभी रूपों के मानव प्राणी सम्मिलित हैं। इस समूह की प्रमुख विशेषताएँ ये हैं-

  • इनके मस्तिष्क का आकार बड़ा होता था।
  • वे सीधे खड़े हो सकते थे।
  • वे दो पैरों के बल चल सकते थे।
  • उनके हाथ विशेष प्रकार के होते थे। वे इन हाथों की सहायता से औजार बना सकते थे और उनका प्रयोग कर सकते थे।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

प्रश्न 2.
दिए गए सकारात्मक प्रतिपुष्टि व्यवस्था को दर्शाने वाले आरेख को देखिए। क्या आप उन निवेशों की सूची दे सकते हैं जो औज़ारों के निर्माण में सहायक हुए ? औज़ारों के निर्माण से किन-किन प्रक्रियाओं को बल मिला ?
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 1 iMG 5
उत्तर:
औज़ारों के निर्माण में सहायक निवेश

  • मस्तिष्क के आकार और उसकी क्षमता में वृद्धि।
  • औज़ारों के इस्तेमाल के लिए बच्चों व चीज़ों को ले जाने के लिए हाथों का मुक्त होना।
  • सीधे खड़े होकर चलना।
  • आँखों से निगरानी, भोजन और शिकार की तलाश में लंबी दूरी तक चलना।

प्रक्रियाएँ जिनको औज़ारों के निर्माण से बल मिला

  • सीधे खड़े होकर चलना।
  • आँखों से निगरानी, भोजन और शिकार की तलाश में लंबी दूरी तक चलना।
  • मस्तिष्क के आकार और उसकी क्षमता में वृद्धि।

प्रश्न 3.
मानव और लंगूर तथा वानरों जैसे स्तनपायियों के व्यवहार तथा शरीर रचना में कुछ समानताएँ पाई जाती हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि संभवतः मानव का क्रमिक विकास वानरों से हुआ।
(क) व्यवहार और
(ख)शरीर रचना शीर्षकों के अंतर्गतः दो अलग-अलग स्तंभ बनाइए और उन समानताओं की सूची दीजिए। दोनों के बीच पाए जाने वाले उन अंतरों का भी उल्लेख कीजिए जिन्हें आप महत्त्वपूर्ण समझते हैं।
उत्तर:
(क) समानताएँ-व्यवहार एवं शरीर रचना

मानव वानर तथा लंगूर
1. मानव पेड़ों पर चढ़ सकता है। 1. वानर भी पेड़ों पर चढ़ सकते हैं।
2. माताएँ अपने बच्चों को दूध पिलाती हैं। 2. मादा वानर भी अपने बच्चों को दूध पिलाती है।
3. मानव लंबी दूरी तक चल सकता है। 3. वानर भी लंबी दूरी तक चल सकते हैं।
4. मानव प्रजनन द्वारा अपने जैसी संतान उत्पन्न करते हैं। 4. वानर भी ऐसा ही करते हैं।
5. मानव रीढ़धारी हैं। 5. वानर भी रीढ़धारी होते हैं।

(ख) असमानताएँ-व्यवहार एवं शरीर रचना

मानव वानर तथा लंगूर
1. मानव दो पैरों पर चलता है। 1. वानर चार पैरों पर चलता है।
2. मानव खेती करके अपने भोजन के लिए अनाज उगाता है। 2. वानर ऐसा नहीं कर सकते।
3. मानव सीधे खड़ा होकर चल सकता है। 3. वानर ऐसा नहीं कर सकते।
4. मानव की पूँछ नहीं होती। 4. वानरों की पूँछ होती है।
5. मानव का शरीर बड़ा होता है। 5. वानरों का शरीर अपेक्षाकृत छोटा होता है।

प्रश्न 4.
मानव उद्भव के क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल के पक्ष में दिए गए तर्कों पर चर्चा करिए। क्या आपके विचार से यह मॉडल पुरातात्विक साक्ष्य का युक्तियुक्त स्पष्टीकरण देता है ?
उत्तर:
आधुनिक मानव का उद्भव कहाँ हुआ इस संबंध में इतिहासकार एक मत नहीं है। कुछ विद्वान् क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल का समर्थन करते हैं। उनके विचारानुसार आधुनिक मानव की उत्पत्ति किसी एक विशेष क्षेत्र में नहीं अपितु अफ्रीका, एशिया एवं यूरोप के विभिन्न भागों में हुई है। उनका मानना है कि आधुनिक मानव में जो शारीरिक भिन्नताएँ पाई जाती हैं वे इस कारण हैं कि उसका उद्भव विभिन्न भागों में हुआ।

इस अंतर को स्पष्टतः आज भी देखा जा सकता है। कुछ अन्य विद्वान् प्रतिस्थापन मॉडल का समर्थन करते हैं। उनका कथन है कि आधुनिक मानव का उद्भव एक ही स्थान अफ्रीका में हुआ। अपने पक्ष में वे तर्क देते हैं कि आधुनिक मानव में जो शारीरिक एवं जननिक समरूपता पाई जाती है उसका कारण यह था कि उनके पूर्वज एक ही क्षेत्र अर्थात् अफ्रीका में उत्पन्न हुए थे। यहाँ से वे विश्व के विभिन्न भागों में फैले।

प्रश्न 5.
आस्ट्रेलोपिथिकस मानव के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
आस्ट्रेलोपिथिकस शब्द लातीनी भाषा के शब्द ‘आस्ट्रल’ भाव दक्षिणी एवं यूनानी भाषा के शब्द ‘पिथिकस’ भाव बंदर से मिल कर बना है। इसका कारण यह था कि मानव के इस रूप में बंदर के अनेक लक्षण बरकरार रहे। आस्ट्रेलोपिथिकस के सबसे प्राचीन जीवाश्म हमें तंज़ानिया के ओल्डुवई गोर्ज से प्राप्त हुए हैं। इसकी खोज 17 जुलाई, 1959 ई० को मेरी एवं लुईस लीकी ने की थी। उनके जीवाश्म 56 लाख वर्ष पुराने थे। होमो की तुलना में उनके मस्तिष्क का आकार छोटा था। उनके जबड़े अधिक भारी थे एवं दाँत भी ज़्यादा बड़े होते थे।

आस्ट्रेलोपिथिकस बंदरों की अपेक्षा अधिक समझदार थे। वे दो पैरों पर खड़े हो सकते थे। उनमें सीधे खड़े होकर चलने की क्षमता अधिक नहीं थी। इसका कारण यह था कि वे अभी भी अपना काफी समय पेड़ों पर गुजारते थे। वे अपनी सरक्षा के लिए औज़ारों का निर्माण करने लगे थे। लगभग 25 लाख वर्ष पूर्व ध्रुवीय हिमाच्छादन अथवा हिम युग के प्रारंभ से पृथ्वी के बड़े-बड़े भाग बर्फ से ढक गए। इस कारण जलवायु एवं वनस्पति की स्थिति में बहुत परिवर्तन हुए। तापमान एवं वर्षा में कमी के कारण पृथ्वी पर वन कम हो गए। इसके चलते 13 लाख वर्ष पूर्व आस्ट्रेलोपिथिकस लुप्त हो गए।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

प्रश्न 6.
‘होमो’ शब्द से आप क्या समझते हैं ? इन्हें किन-किन प्रजातियों में बाँटा गया है ?
उत्तर:
होमो 25 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आए। होमो लातीनी भाषा का एक शब्द है। इसका भाव है में पुरुष एवं स्त्रियाँ दोनों सम्मिलित थे। आस्ट्रेलोपिथिकस की तुलना में होमो का मस्तिष्क बड़ा था, जबड़े बाहर की ओर कम निकले हुए थे एवं दाँत छोटे थे। वैज्ञानिकों द्वारा होमो को निम्नलिखित तीन प्रमुख प्रजातियों में बाँटा गया है

1) होमो हैबिलिस-होमो हैबिलिस औज़ार बनाने वाले के नाम से जाने जाते हैं। उनका मस्तिष्क बड़ा था। वे आस्ट्रेलोपिथिकस की अपेक्षा अधिक समझदार थे। वे अपने हाथों का दक्षतापूर्वक प्रयोग कर सकते थे। वे प्रथम होमिनिड थे जिन्होंने पत्थर के औजार बनाए।

2) होमो एरेक्टस-होमो एरेक्टस वे मानव थे जो सीधे खड़े होकर पैरों के बल चलना जानते थे। वे दौड़ सकते थे। वे अपने हाथों का स्वतंत्रतापूर्वक उपयोग कर सकते थे। उन्होंने होमो हैबिलिस की अपेक्षा अधिक विकसित औज़ारों का निर्माण किया। उन्होंने भाषा का भी अधिक विकास कर लिया था। उन्होंने आग के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर ली थी। इससे उनके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया।

3) होमो सैपियंस-होमो सैपियंस से अभिप्राय है समझदार मानव। उसे आधुनिक मानव के नाम से भी जाना जाता है। इस मानव का प्रादुर्भाव 1.95 लाख वर्ष पूर्व से 1.60 लाख वर्ष के दौरान हुआ। आधुनिक मानव की अनेक ऐसी विशेषताएँ थीं जो उसे पहले के मानव से अलग करती हैं। उस मानव का मस्तिष्क अब तक के सभी मानवों में सबसे बड़ा था। अतः वह सबसे समझदार था। इस कारण उसके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। उसने गुफ़ाओं के अतिरिक्त अपने निवास के लिए झोंपड़ियों का निर्माण आरंभ कर दिया था। वह अब एक स्थायी रूप से निवास करने लगा था। उसने अब कृषि करनी आरंभ कर दी थी।

प्रश्न 7.
होमो एरेक्टस से आपका क्या अभिप्राय है ? उनकी क्या विशेषताएँ थीं ?
अथवा
‘होमो एरेक्टस’ मानव के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
उन मानवों को जो सीधे खड़े होकर पैरों के बल चलना जानते थे होमो एरेक्टस कहा जाता था। वे दौड़ सकते थे। वे अपने हाथों का स्वतंत्रतापूर्वक उपयोग कर सकते थे। होमो एरेक्टस के प्राचीनतम जीवाश्म 18 लाख वर्ष पूर्व के हैं। ये जीवाश्म हमें अफ्रीका एवं एशिया दोनों महाद्वीपों से प्राप्त हुए हैं। होमो एरेक्टस का मस्तिष्क होमो हैबिलिस की अपेक्षा अधिक बड़ा था। अत: वे अधिक समझदार थे।

उन्होंने होमो हैबिलिस की अपेक्षा अधिक विकसित औज़ारों का निर्माण किया। उन्होंने भाषा का भी अधिक विकास कर लिया था। उन्होंने आग के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर ली थी। इससे उनके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। आग के संबंध में हमें प्रथम साक्ष्य केन्या के चेसोवांजा से प्राप्त हुआ है। निस्संदेह होमो एरेक्टस मानव विकास की कड़ी में एक मील पत्थर सिद्ध हुए।

प्रश्न 8.
प्रतिस्थापन मॉडल एवं क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
1) प्रतिस्थापन मॉडल-आधुनिक मानव के उद्भव के बारे में कुछ विद्वान् प्रतिस्थापन मॉडल का समर्थन करते हैं। उनके अनुसार आधुनिक मानव का उद्भव एक ही स्थान अफ्रीका में हुआ। अपने पक्ष में वे यह तर्क देते हैं कि आधुनिक मानव में जो शारीरिक एवं जननिक समरूपता पाई जाती है उसका कारण यह था कि उनके पूर्वज एक ही क्षेत्र अर्थात् अफ्रीका में उत्पन्न हुए थे। यहाँ से वे विभिन्न स्थानों में गए।

2) क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल-दूसरी ओर कुछ अन्य विद्वान् क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल का समर्थन करते हैं। उनके विचारानुसार आधुनिक मानव की उत्पत्ति अफ्रीका, एशिया एवं यूरोप के विभिन्न भागों में हुई। अपने पक्ष में वे यह तर्क देते हैं कि आधुनिक मानव में जो शारीरिक भिन्नताएँ पाई जाती हैं वे इस कारण हैं कि उसका उद्भव विभिन्न भागों में हुआ। इस अंतर को स्पष्टतः आज भी देखा जा सकता है।
HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 1 iMG 6

प्रश्न 9.
होमो सैपियंस मानव की प्रमुख विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:
होमो सैपियंस से अभिप्राय है समझदार मानव। उसे आधुनिक मानव के नाम से भी जाना जाता है। इस मानव का प्रादुर्भाव 1.95 लाख वर्ष पूर्व से 1.60 लाख वर्ष पूर्व के दौरान हुआ। आधुनिक मानव की अनेक ऐसी विशेषताएँ थीं जो उसे पहले के मानव से अलग करती हैं। इस मानव का मस्तिष्क अब तक के सभी मानवों में सबसे बड़ा था। अतः वह सबसे समझदार था। इस कारण उसके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। उसने गुफ़ाओं के अतिरिक्त अपने निवास के लिए झोंपड़ियों का निर्माण आरंभ कर दिया था।

वह अब एक स्थायी रूप से निवास करने लगा था। उसने अब कृषि करनी आरंभ कर दी थी। इससे उसे भोजन की तलाश में भटकना नहीं पड़ा। उसने अब खाना पकाने की विधि की जानकारी प्राप्त कर ली थी। उसके हथियार बहुत उत्तम थे। उसने अनेक नए हथियारों का निर्माण भी कर लिया था। इससे वह जंगली जानवरों से अपनी सुरक्षा अधिक अच्छे ढंग से कर सका। उसने सूई का आविष्कार कर लिया था। अतः उसने सिले हुए वस्त्र पहनने आरंभ कर दिए थे। एवं भाषा के क्षेत्रों में काफ़ी विकास कर लिया था।

प्रश्न 10.
आदि मानव के भोजन प्राप्त करने के तरीकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आदिकालीन मानव निम्नलिखित तरीकों से अपना भोजन प्राप्त करते थे
1) संग्रहण-आदिकालीन मानव पूर्ण रूप से प्रकृति जीवी थे। उन्हें कृषि की जानकारी नहीं थी। वे पशुपालन भी नहीं करते थे। अत: आरंभ में आदिकालीन मानव अपना भोजन संग्रहण द्वारा जुटाता था। वे पेड़-पौधों से मिलने वाले खाद्य पदार्थों जैसे-बीज, गुठलियाँ, फल एवं कंदमूल एकत्र करते थे। संग्रहण के बारे में तो केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है। इस संबंध में हमें प्रत्यक्ष प्रमाण बहत कम मिले हैं। संग्रहण द्वारा भोजन जुटाने का मुख्य कार्य स्त्रियों एवं बच्चों द्वारा किया जाता था। पुरुष मुख्य रूप से शिकार के लिए बाहर जाते थे।

2) अपमार्जन-आदिकालीन मानव अपमार्जन द्वारा अथवा रसदखोरी द्वारा भी अपना भोजन प्राप्त करता था। अपमार्जन से अभिप्राय त्यागी हुई वस्तुओं की सफाई करने से है। रसदखोरी से अभिप्राय भोजन की तलाश करना है। आदिकालीन मानव उन जानवरों से जो अपने आप मर जाते थे अथवा किसी अन्य हिंसक जानवर द्वारा मार दिए जाते थे, की लाशों से माँस एवं मज्जा प्राप्त करते थे।

3) शिकार-शिकार द्वारा भोजन प्राप्त करना आदिकालीन मानव का महत्त्वपूर्ण स्रोत रहा है। शिकार मुख्यतः पुरुषों द्वारा किया जाता था। वे शिकार का पीछा करते हुए अपने निवास स्थान से काफ़ी दूर तक निकल जाते थे। वे छोटे-मोटे पशुओं का शिकार स्वयं कर लेते थे। वे बड़े पशुओं का शिकार सम्मिलित रूप से करते थे। इसका कारण यह था कि बड़े पशुओं का अकेले शिकार करने में उनके स्वयं के मारे जाने का खतरा अधिक रहता था।

वे जंगली घोड़ों, जंगली भैंसों जिन्हें बाइसन कहा जाता था, गैंडों, रीछों एवं विशालकाय जानवरों जिन्हें मैमथ कहा जाता था, का शिकार करते थे। वे शिकार के लिए भालों एवं पत्थरों का प्रयोग करते थे। बाद में कुत्तों ने आदिमानव को शिकार के लिए बहुमूल्य योगदान दिया।

4) मछली पकड़ना-मछली पकड़ना भी आदिकालीन मानव का भोजन प्राप्त करने की एक महत्त्वपूर्ण विधि थी। वे नदियों एवं तालाबों से हाथ द्वारा ही मछली पकड़ लिया करते थे। इसके अतिरिक्त वे छोटी मछली पकड़ने के लिए काँटे का एवं बड़ी मछली पकड़ने के लिए हार्पून का प्रयोग भी करते थे।

प्रश्न 11.
संग्रहण और अपमार्जन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
1) संग्रहण-आदिकालीन मानव पूर्ण रूप से प्रकृति जीवी थे। उन्हें कृषि की जानकरी नहीं थी। इसके अतिरिक्त वे पशुपालन भी नहीं करते थे। अतः आरंभ में आदिकालीन मानव अपना भोजन संग्रहण द्वारा जुटाता था। वे पेड़-पौधों से मिलने वाले खाद्य पदार्थों जैसे-बीज, गुठलियाँ, फल एवं कंदमूल एकत्र करते थे। संग्रहण के बारे में तो केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है।

इस संबंध में हमें प्रत्यक्ष प्रमाण बहुत कम मिले हैं। इसका कारण यह है कि हमें हड्डियों के जीवाश्म तो काफ़ी संख्या में प्राप्त हुए हैं जबकि पौधों के जीवाश्म बहुत कम प्राप्त हुए हैं। संग्रहण द्वारा भोजन जुटाने का मुख्य कार्य स्त्रियों एवं बच्चों द्वारा किया जाता था। पुरुष मुख्य रूप से शिकार के लिए बाहर जाते थे।

2) अपमार्जन-आदिकालीन मानव अपमार्जन द्वारा अथवा रसदखोरी द्वारा भी अपना भोजन प्राप्त करता था। अपमार्जन से अभिप्राय त्यागी हुई वस्तुओं की सफाई करने से है। रसदखोरी से अभिप्राय भोजन की तलाश करना है। आदिकालीन मानव उन जानवरों से जो अपने आप मर जाते थे अथवा किसी अन्य हिंसक जानवर द्वारा मार दिए जाते थे, की लाशों से माँस एवं मज्जा प्राप्त करते थे। इनके अतिरिक्त वे छोटे-छोटे पक्षियों एवं उनके अंडों, गों चूहों एवं अनेक प्रकार के कीड़े-मकोड़ों को खाते थे।

प्रश्न 12.
आदिमानव शिकार द्वारा भोजन किस प्रकार प्राप्त करता था ?
उत्तर:
शिकार द्वारा भोजन प्राप्त करना आदिकालीन मानव का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत रहा है। शिकार प्रमुख तौर पर पुरुषों द्वारा किया जाता था। वे शिकार का पीछा करते हुए अपने निवास स्थान से काफ़ी दूर तक निकल जाते थे। वे छोटे-मोटे पशुओं का शिकार स्वयं कर लेते थे। वे बड़े पशुओं का शिकार सम्मिलित रूप से करते थे।

इसका कारण यह था कि बड़े पशुओं का अकेले शिकार करने में उनके स्वयं के मारे जाने की संभावना अधिक रहती थी। वे जंगली घोड़ों, जंगली भैंसों जिन्हें बाइसन कहा जाता था, गैंडों, रीछों एवं विशालकाय जानवरों जिन्हें मैमथ कहा जाता था, का शिकार करते थे। वे शिकार के लिए भालों एवं पत्थरों का प्रयोग करते थे। बाद में आदिमानव ने शिकार के लिए कुत्तों का सहयोग लेना आरंभ कर दिया था।

योजनाबद्ध ढंग से स्तनपायी जानवरों का। उनका वध करने की सबसे परानी उदाहरण हमें दो स्थलों से मिलती है। प्रथम उदाहरण 5 लाख वर्ष पर्व की है। यह दक्षिणी इंग्लैंड में बॉक्सग्रोव से संबंधित है। दूसरी उदाहरण 4 लाख वर्ष पूर्व की है। यह जर्मनी में शोनिंजन से संबंधित है।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

प्रश्न 13.
अग्नि का आविष्कार किस प्रकार आदिमानव के लिए क्रांतिकारी सिद्ध हुआ ?
उत्तर:
अग्नि का आविष्कार आदिमानव के जीवन में क्रांतिकारी प्रमाणित हुआ। इसका आविष्कार कब हुआ इस संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। इसके प्रथम साक्ष्य हमें केन्या में चेसोवांजा एवं दक्षिणी अफ्रीका में स्वार्टक्रांस से प्राप्त हुए हैं। यहाँ से पत्थर के औजारों के साथ-साथ आग में पकाई गई चिकनी मिट्टी और जली हुई हड्डियों के अंश प्राप्त हुए हैं। ये 14 लाख वर्ष पूर्व के हैं। इन वस्तुओं को किस प्रकार आग लगी, इस संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। अग्नि का आविष्कार मानव के लिए अनेक पक्षों से बहुमूल्य प्रमाणित हुआ।

प्रथम, आग से जंगली जावरों को डर लगता था। अत: आदिमानव अग्नि से गुफ़ाओं को प्रज्वलित रखने लगा। इस कारण उसे जंगली जानवरों, से सुरक्षा प्राप्त हुई। दूसरा, अग्नि की सहायता से आदिमानव के लिए भयंकर शीत से बचाव सुगम हो गया। तीसरा, इस कारण गुफ़ाओं के अंदर जहाँ अंधेरा रहता था प्रकाश करना संभव हुआ। चौथा, अग्नि की सहायता से भोजन को पकाना संभव हुआ। यह कच्चे भोजन की अपेक्षा अधिक स्वाद होता था।

प्रश्न 14.
आदिमानव के औज़ारों के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
आदिमानव के औजार पत्थर से निर्मित थे। संभवतः वे लकड़ी के औजार भी बनाते थे। किंतु लकड़ी के औज़ार समय के साथ नष्ट हो गए। पत्थर के बने औज़ारों को तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है। प्रथम श्रेणी में आने वाले औज़ारों को हस्त कुठार कहा जाता है। हस्त कुठारों को मुट्ठी में पकड़ा जाता था। ये अनेक प्रकार के होते थे। इनका प्रयोग किसी वस्तु को काटने अथवा किसी वस्तु को कुचलने के लिए किया जाता था। इस प्रकार के औज़ार हमें बड़ी संख्या में तंजानिया के ओल्डुवई गोर्ज से प्राप्त हुए हैं।

दूसरी श्रेणी में गंडासे सम्मिलित थे। उन्हें भारी पत्थरों से तैयार किया जाता था। इसमें शल्कों को निकाल कर धारदार बनाया जाता था। इनका प्रयोग संभवतः माँस काटने के लिए किया जाता था। इस प्रकार के हथियार हमें बड़ी संख्या में एशिया, अफ्रीका एवं यूरोप के अनेक स्थानों से प्राप्त हुए हैं। तीसरी श्रेणी में शल्क औज़ार सम्मिलित थे। ये हस्त कुठारों एवं गंडासों की अपेक्षा छोटे एवं पतले होते थे। इनके किनारे अधिक पैने होते थे। ये औज़ार अधिक उपयोगी तथा दूर तक प्रहार करने में सक्षम होते थे।

प्रश्न 15.
मानव ने बोलना कैसे सीखा ?
अथवा
भाषा का विकास किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
भाषा का विकास किस प्रकार हुआ इस संबंध में अनेक मत प्रचलित हैं।

  • होमिनिड भाषा में हाव-भाव अथवा हाथों का संचालन सम्मिलित था।
  • उच्चरित भाषा से पूर्व गुनगुनाने का प्रचलन हुआ।
  • मानव भाषा का आरंभ संभवत: बुलावों की क्रिया से हुआ था जैसा कि अन्य प्राइमेटों द्वारा किया जाता था। समय के साथ-साथ इन ध्वनियों ने भाषा का रूप धारण कर लिया।

बोलने वाली भाषा का आरंभ कब हुआ इस संबंध में विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार भाषा का सबसे पहले विकास 20 लाख वर्ष पूर्व हुआ था। कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार इसका विकास 2 लाख वर्ष पूर्व हुआ था जब स्वरतंत्र का विकास हुआ था। इसका संबंध विशेष तौर पर आधुनिक मानव से है। कुछ अन्य विद्वानों के विचारानुसार भाषा का विकास 40,000 से 35,000 वर्ष पूर्व तब हुआ जब कला का विकास आरंभ हुआ। इसका कारण यह है कि ये दोनों ही विचार अभिव्यक्ति के माध्यम हैं। भाषा के प्रयोग से शिकार करने में तथा आश्रय बनाने में अनेक लाभ हुए।।

प्रश्न 16.
भाषा के प्रयोग से (क) शिकार करने और (ख) आश्रय बनाने के काम में कितनी मदद मिली होगी ? उस पर चर्चा करिए।
उत्तर:
1) शिकार करने में-भाषा का प्रयोग शिकार करने में निम्नलिखित पक्षों से बहुमूल्य प्रमाणित हुआ

  • लोग शिकार करने की योजना बना सकते थे।
  • वे जानवरों के क्षेत्रों के संबंध में जानकारी प्राप्त कर सकते थे।
  • वे जानवरों की प्रकृति पर विचार-विमर्श कर सकते थे।
  • वे शिकार के लिए आवश्यक औज़ारों पर विचार कर सकते थे।
  • वे मारे गए जानवरों के उपयोग के संबंध में चर्चा कर सकते थे।

2) आश्रय बनाने में-भाषा का प्रयोग आश्रय बनाने में निम्नलिखित पक्षों से बहुमूल्य प्रमाणित हुआ

  • लोग आश्रय बनाने के लिए सुरक्षित क्षेत्रों पर चर्चा कर सकते थे।
  • वे आश्रय बनाने के लिए उपलब्ध सामग्री की जानकारी प्राप्त कर सकते थे।
  • वे आश्रय बनाने के तरीकों के संबंध में चर्चा कर सकते थे।
  • वे आश्रय स्थल के निकट उपलब्ध सुविधाओं पर विचार-विमर्श कर सकते थे।
  • वे आश्रय स्थल को जंगली जानवरों एवं भयंकर तूफ़ानों से सुरक्षित रखने के उपायों के बारे में सोच सकते थे।

प्रश्न 17.
हादज़ा जन समूह के विषय में आपके क्या जानते हो ?
उत्तर:
हादज़ा एक लघु समूह है जो एक खारे पानी की झील ‘लेक इयासी’ के आस-पास रहते हैं। वे शिकारी तथा खाद्य संग्राहक हैं। हादज़ा लोग केवल हाथी को छोड़ कर अन्य सभी प्रकार के जानवरों का शिकार करते हैं .एवं उनका माँस खाते हैं। यहाँ यह बात स्मरण रखने योग्य है कि हादज़ा लोग विश्व में सबसे अधिक माँस खाते हैं।

इसके बावजूद वे इस बात का ख्याल रखते हैं कि शिकार को भविष्य में कोई ख़तरा न हो। वर्षा ऋतु में संपूर्ण देश में जल स्रोतों की कोई कमी नहीं रहती। ये बड़ी मात्रा में उपलब्ध होते हैं। किंतु सूखे के मौसम में इनमें से अधिकाँश सूख जाते हैं। इसलिए वे प्रायः अपने शिविर जल स्रोतों से एक किलोमीटर से अधिक दूरी पर स्थापित नहीं करते हैं। हादज़ा लोग ज़मीन और उसके संसाधनों पर अपना दावा नहीं करते।

कोई भी व्यक्ति जहाँ चाहे वहाँ रह सकता है। वह वहाँ से कंदमूल, फल एवं शहद एकत्र कर सकता है तथा पानी ले सकता है। वास्तव में इस संबंध में हादज़ा प्रदेश में कोई प्रतिबंध नहीं है। यद्यपि हादज़ा प्रदेश में बड़ी मात्रा में जानवर शिकार के लिए उपलब्ध हैं फिर भी हादज़ा लोग अपने भोजन का 80 प्रतिशत जंगली साग-सब्जियों से प्राप्त करते हैं। वे अपने भोजन का शेष 20 प्रतिशत माँस एवं शहद से प्राप्त करते हैं।

अति संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जीवाश्म से आपका क्या अभिप्राय है ?
अथवा
जीवाश्म से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
जीवाश्म अत्यंत प्राचीन पौधे, जानवर अथवा मानव के वे अवशेष होते हैं जो अब पत्थर का रूप धारण करके किसी चट्टान में समा गए हैं। ये लाखों वर्ष तक सुरक्षित रहते हैं।

प्रश्न 2.
प्रजाति अथवा स्पीशीज़ से आपका क्या भाव है ?
उत्तर:
प्रजाति अथवा स्पीशीज़ जीवों का एक ऐसा समूह होता है जिसके नर एवं मादा मिल कर संतान उत्पन्न कर सकते हैं। किसी एक प्रजाति के जीव किसी दूसरी प्रजाति के जीव के साथ संभोग करके संतान उत्पन्न नहीं कर सकते।

प्रश्न 3.
चार्ल्स डार्विन कौन था ? उसने कौन-सा सिद्धांत पेश किया ?
अथवा
चार्ल्स डार्विन क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर:
चार्ल्स डार्विन (1809-1882 ई०) ब्रिटेन का एक प्रसिद्ध विद्वान् था। उसने 1859 ई० में एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण पुस्तक जिसका नाम ‘ऑन दि ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज़’ प्रकाशित की। इसमें उसने मानव उत्पत्ति के संबंध में विस्तृत प्रकाश डाला है।

प्रश्न 4.
मानव विज्ञान से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
मानव विज्ञान एक ऐसा विषय है जिसमें मानव संस्कृति और मानव जीव विज्ञान के उद्विकासीय पहलुओं का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 5.
प्राइमेट से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
प्राइमेट स्तनधारियों के विशाल समूह में एक छोटा समूह है। इस उपसमूह में बंदर, पूंछहीन बंदर एवं मानव सम्मिलित हैं। प्राइमेट 360 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आए।

प्रश्न 6.
प्राइमेट की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • इनके शरीर पर बाल होते थे।
  • इनका गर्भकाल अपेक्षाकृत लंबा होता था।

प्रश्न 7.
होमिनॉइड कब अस्तित्व में आए ? उनकी कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
होमिनॉइड कौन थे ?
उत्तर:

  • होमिनॉइड 240 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आए।
  • इनका मस्तिष्क छोटा होता था।
  • होमिनॉइड सीधे खड़े होकर नहीं चल सकते थे।

प्रश्न 8.
होमिनॉइड एवं बंदरों में कोई दो अंतर बताएँ।
उत्तर:

  • होमिनॉइड का शरीर बंदरों से बड़ा होता था।
  • उनकी पूँछ नहीं होती थी।

प्रश्न 9.
होमिनिड की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • इनके मस्तिष्क का आकार बड़ा होता था।
  • वे सीधे खड़े हो सकते थे।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

प्रश्न 10.
होमिनिड तथा होमिनॉइड के मध्य कोई दो अंतर बताएँ।
उत्तर:

  • होमिनिड सीधे खड़े होकर चल सकते थे। होमिनॉइड ऐसा नहीं कर सकते थे।
  • होमिनिड का मस्तिष्क होमिनॉइड की अपेक्षा बड़ा था।

प्रश्न 11.
आस्ट्रेलोपिथिकस के सबसे प्राचीन जीवाश्म किसने, कब तथा कहाँ से प्राप्त किए ?
उत्तर:
आस्ट्रेलोपिथिकस के सबसे प्राचीन जीवाश्म मेरी एवं लुईस लीकी ने, 17 जुलाई, 1959 ई० को ओल्डुवई गोर्ज से प्राप्त किए।

प्रश्न 12.
आस्ट्रेलोपिथिकस की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • इनके जबड़े अधिक भारी थे।
  • इनके दाँत बहुत बड़े थे।

प्रश्न 13.
आस्ट्रेलोपिथिकस एवं होमो में कोई दो अंतर लिखें।
उत्तर:

  • आस्ट्रेलोपिथिकस का मस्तिष्क होमो की तुलना में छोटा था।
  • आस्ट्रेलोपिथिकस के जबड़े होमो की तुलना में भारी थे।

प्रश्न 14.
‘होमो’ शब्द से आप क्या समझते हैं ? ‘होमो’ की तीन प्रजातियाँ बताएँ।।
उत्तर:
होमो लातीनी भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ है आदमी। वे 25 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आए। वैज्ञानिकों ने उन्हें उनकी विशेषताओं के आधार पर तीन प्रजातियों-होमो हैबिलिस, होमो एरेक्टस तथा होमो सैपियंस में बाँटा है।

प्रश्न 15.
होमो की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • होमो का मस्तिष्क बड़ा था।
  • उनके जबड़े बाहर की ओर कम निकले हुए थे।

प्रश्न 16.
होमो हैबिलिस कौन थे ?
उत्तर:
होमो हैबिलिस औजार बनाने वाले थे। वे 22 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आए। उनका मस्तिष्क बड़ा था। वे हाथों का दक्षतापूर्वक प्रयोग कर सकते थे। उन्होंने भाषा का प्रयोग आरंभ किया। उनके प्राचीनतम जीवाश्म हमें इथियोपिया में ओमो तथा तंज़ानिया में ओल्डुवई गोर्ज से प्राप्त हुए हैं।

प्रश्न 17.
होमो एरेक्टस से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
होमो एरेक्टस वे मानव थे जो सीधे खड़े होकर पैरों के बल चलना जानते थे। उनके प्राचीनतम जीवाश्म हमें अफ्रीका एवं एशिया से प्राप्त हुए हैं। वे बहुत समझदार थे। उन्होंने भाषा का अधिक विकास कर लिया था। उन्होंने अग्नि के संबंध में जानकारी प्राप्त कर ली थी।

प्रश्न 18.
होमो सैपियंस से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
होमो सैपियंस से अभिप्राय है समझदार मानव। उसे आधुनिक मानव के नाम से भी जाना जाता है। यह मानव 1.95 से 1.60 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया। इस मानव के प्राचीनतम जीवाश्म हमें अफ्रीका से प्राप्त हुए हैं।

प्रश्न 19.
आधुनिक मानव की कोई दो सफलताएँ लिखें।
उत्तर:

  • उसने कृषि आरंभ कर दी थी।
  • उसने सिले हुए वस्त्र पहनने आरंभ कर दिए थे।

प्रश्न 20.
प्रतिस्थापन मॉडल से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
प्रतिस्थापन मॉडल इस बात का समर्थन करता है कि आधुनिक मानव का उद्भव एक ही स्थान अफ्रीका अपने पक्ष में वे तर्क देते हैं कि आधुनिक मानव में जो शारीरिक एवं जननिक समरूपता पाई जाती है उसका कारण यह था कि उसके पूर्वज एक ही क्षेत्र भाव अफ्रीका में उत्पन्न हुए थे। यहाँ से वे अन्य स्थानों को गए।

प्रश्न 21.
क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल इस बात का समर्थन करता है कि आधुनिक मानव की उत्पत्ति अफ्रीका, एशिया एवं यूरोप के विभिन्न भागों में हुई। अपने पक्ष में तर्क देते हुए उनका कथन है कि आधुनिक मानव में जो शारीरिक भिन्नताएँ पाई जाती हैं वे इस कारण हैं कि उसका उद्भव विभिन्न भागों में हुआ।

प्रश्न 22.
हाइडलबर्ग मानव की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • उसका मस्तिष्क काफी बड़ा था।
  • उसके अंग एवं हाथ काफी भारी थे।

प्रश्न 23.
निअंडरथल मानव की कोई दो विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:

  • यह मानव कद में छोटा था।
  • उसका सिर काफी बड़ा था।

प्रश्न 24.
क्रोमैगनन मानव का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
क्रोमैगनन मानव के जीवाश्म हमें फ्राँस से प्राप्त हुए हैं। यह मानव आज से 35 हज़ार वर्ष पहले रहा करता था। वह काफी लंबा होता था। उसका चेहरा काफी चौड़ा होता था। वह आधुनिक मानव से काफी मिलता जुलता था।

प्रश्न 25.
जावा मानव का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जावा मानव के जीवाश्म 1894 ई० में डॉक्टर यूजन दुबोरस ने जावा से प्राप्त किए थे। यह मानव लगभग 5 लाख वर्ष पहले रहा करता था। इसका मस्तिष्क आधुनिक मानव से छोटा था। वह खड़ा होकर चलता था।

प्रश्न 26.
आदिकालीन मानव किन-किन तरीकों से अपना भोजन प्राप्त करता था ?
उत्तर:
आदिकालीन मानव संग्रहण द्वारा, अपमार्जन द्वारा, शिकार करके एवं मछलियाँ पकड़ कर अपना भोजन प्राप्त करता था।

प्रश्न 27.
अपमार्जन और संग्रहण से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
संग्रहण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
1) अपमार्जन-अपमार्जन से अभिप्राय त्यागी हुई वस्तुओं की सफ़ाई करने से है। आदिकालीन मानव उन जानवरों से जो अपने आप मर जाते थे अथवा किसी अन्य हिंसक जानवर द्वारा मार दिए जाते थे, की लाशों से माँस एवं मज्जा प्राप्त करते थे।

2) संग्रहण-संग्रहण से अभिप्राय है जुटाना। आदिकालीन मानव अपना भोजन संग्रहण द्वारा जुटाता था। वह पेड़-पौधों से मिलने वाले खाद्य पदार्थों को एकत्र करता था। यह कार्य मुख्य तौर पर स्त्रियों एवं बच्चों द्वारा किया जाता था।

प्रश्न 28.
खाद्य संग्राहक और खाद्य उत्पादक शब्दों का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:

  • खाद्य संग्राहक-इससे अभिप्राय उस मानव से था जो जंगली पौधे खाकर एवं शिकार करके अपना गुजारा करता था।
  • खाद्य उत्पादक-इससे अभिप्राय उस मानव से था जो खेती करता था एवं पशु पालता था।

प्रश्न 29.
योजनाबद्ध ढंग से स्तनपायी जानवरों के शिकार करने की सबसे प्रथम उदाहरण कब और कहाँ से प्राप्त हुई है ?
उत्तर:
योजनाबद्ध ढंग से शिकार करने की सबसे प्रथम उदाहरण 5 लाख वर्ष पूर्व इंग्लैंड में बॉक्सग्रोव से प्राप्त हुई है।

प्रश्न 30.
दोलनी वेस्तोनाइस कहाँ स्थित है ? यह क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:

  • दोलनी वेस्तोनाइस चेक गणराज्य में स्थित है।
  • यह शिकार के स्थल के लिए प्रसिद्ध था।

प्रश्न 31.
आदिमानव के गुफ़ाओं में निवास के कोई दो लाभ बताएँ।
उत्तर:

  • इससे जंगली जानवरों से आदिमानव को सुरक्षा प्राप्त हुई।
  • इससे आदिमानव भयंकर शीत का सामना सुगमता से कर सका।

प्रश्न 32.
लेज़रेट गुफ़ा कहाँ स्थित है ? इसका आकार क्या है ?
उत्तर:

  • लेज़रेट गुफा दक्षिण फ्रांस में स्थित है।
  • इसका आकार 12×4 मीटर है।

प्रश्न 33. टेरा अमाटा कहाँ स्थित है ? इसकी कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • टेरा अमाटा दक्षिण फ्राँस में स्थित है।
  • इसकी छत घास-फस एवं लकडी से बनायी गयी थी।
  • इस झोंपड़ी को सहारा देने के लिए बड़े-बड़े पत्थरों का प्रयोग किया गया था।

प्रश्न 34.
चेसोवांजा कहाँ स्थित है ? वहाँ से हमें किस बात का प्रमाण मिला है ?
उत्तर:

  • चेसोवांजा केन्या में स्थित है।
  • वहाँ से हमें पत्थर के औज़ारों के साथ-साथ आग में पकाई गई चिकनी मिट्टी एवं जली हुई हड्डियों के प्रमाण मिले हैं।

प्रश्न 35.
आग की खोज ने आदिमानव के जीवन को कैसे प्रभावित किया ?
अथवा
आग की खोज का महत्त्व लिखिए।
उत्तर:

  • अग्नि के कारण आदिमानव अपने भोजन को पका सका।
  • अग्नि के कारण आदिमानव भयंकर शीत से अपना बचाव कर सका।
  • अग्नि के कारण आदिमानव जंगली जानवरों से अपनी सुरक्षा कर सका।

प्रश्न 36.
पहिए की खोज का महत्त्व लिखिए।
अथवा
पहिए के आविष्कार ने मानव जीवन में कौन-कौन से परिवर्तन लाए ?
उत्तर:

  • चाक की सहायता से अब पहले की अपेक्षा कहीं सुंदर बर्तन बनाए जाने लगे।
  • चरखे के कारण अब कपास कातना सरल हो गया।
  • पहिए का उपयोग गाड़ी खींचने के लिए भी किया जाने लगा। इससे मनुष्य एवं सामान को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना सुगम हो गया।

प्रश्न 37.
आदिमानव के प्राचीन औज़ार किस वस्तु के बने थे ? किन्हीं दो प्रकार के औज़ारों के नाम लिखें।
उत्तर:

  • आदिमानव के प्राचीन औज़ार पत्थर के बने थे।
  • उस समय हस्त कुठारों एवं गंडासों का प्रयोग होता था।

प्रश्न 38.
मानव ने बोलना कैसे सीखा?
उत्तर:
मानव ने भाषा के विकास के साथ-साथ बोलना सीखा। इसका आरंभ बोलने वाली क्रिया से हुआ। बाद में इसने ध्वनियों का रूप धारण कर लिया।

प्रश्न 39.
भाषा का विकास शिकार करने में किस प्रकार सहायक सिद्ध हुआ ?
उत्तर:

  • इस कारण लोग शिकार संबंधी योजना बना सके।
  • इस कारण वे शिकार के लिए आवश्यक औज़ारों पर विचार कर सके।
  • इस कारण वे मारे गए जानवरों के उपयोग के संबंध में चर्चा कर सके।

प्रश्न 40.
भाषा का विकास किस प्रकार आश्रय बनाने में सहायक सिद्ध हुआ ?
उत्तर

  • इस कारण लोग आश्रय बनाने के लिए सुरक्षित क्षेत्रों की चर्चा कर सके।
  • वे आश्रय बनाने के लिए आवश्यक सामग्री पर चर्चा कर सके।
  • वे आश्रय स्थल की जंगली जानवरों से सुरक्षा के बारे में विचार कर सके।

प्रश्न 41.
आल्टामीरा गुफ़ा कहाँ स्थित है ? इसकी खोज किसने तथा कब की ? यह क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर:

  • आल्टामीरा गुफ़ा स्पेन में स्थित है।
  • इसकी खोज मार्सिलोना सैंज दि सउतुओला एवं उसकी पुत्री मारिया ने की।
  • यह चित्रकारी के लिए प्रसिद्ध है।

प्रश्न 42.
आल्टामीरा एवं चाउवेट गुफ़ाओं से हमें किन जानवरों के चित्र प्राप्त हुए हैं ?
उत्तर:
आल्टामीरा एवं चाउवेट गुफ़ाओं से हमें बड़ी संख्या में जंगली भैंसों, बैलों, घोड़ों, पहाड़ी बकरों, हिरणों, मैमथों, गैंडों, शेरों, भालुओं, चीतों, लकड़बग्घों एवं उल्लुओं के चित्र प्राप्त हुए हैं।

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प्रश्न 43.
मानव विज्ञान से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
मानव विज्ञान से अभिप्राय एक ऐसे विज्ञान से है जिसमें मानव संस्कृति और मानव जीव विज्ञान के उद्विकासीय पहलुओं का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 44.
हादज़ा जनसमूह के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:

  • हादजा एक लघु समूह है जो लेक इयासी के आस-पास के क्षेत्रों में रहते हैं।
  • वे शिकारी एवं खाद्य-संग्राहक थे।
  • वे भूमि एवं उसके संसाधनों पर कभी अधिकार नहीं जमाते।

प्रश्न 45.
हादज़ा जनसमूह के भोजन के बारे में बताएँ।
उत्तर:

  • उनका 80% भोजन जंगली साग-सब्जियाँ हैं।
  • उनका 20% भोजन माँस एवं शहद द्वारा पूरा किया जाता है।
  • वे हाथी को छोड़कर अन्य सभी जानवरों का माँस खाते हैं।

प्रश्न 46.
हादज़ा लोग ज़मीन एवं उसके संसाधनों पर अपना दावा क्यों नहीं करते ?
उत्तर:

  • वे जहाँ चाहें वहाँ रह सकते हैं।
  • उन्हें कहीं भी पशुओं का शिकार करने की पूर्ण स्वतंत्रता है।
  • वे कहीं से भी कंदमूल एवं शहद एकत्र कर सकते हैं।

प्रश्न 47.
हादज़ा लोगों के पास सूखा पड़ने पर भी भोजन की कमी क्यों नहीं होती ?
उत्तर:
हादज़ा लोगों के पास सूखे के मौसम में भी कंदमूल, बेर, बाओबाब पेड़ के फल बड़ी मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इसलिए उनके पास भोजन की कमी नहीं होती।

प्रश्न 48.
हादज़ा लोगों के शिविरों के आकार और स्थिति में मौसम के अनुसार परिवर्तन क्यों होता रहता है?
उत्तर:
नमी के मौसम में हादज़ा लोगों के शिविर आमतौर पर छोटे एवं दूर-दूर तक फैले होते हैं किंतु सूखे के मौसम में जब पानी की कमी होती है तो उनके शिविर पानी के स्रोतों के आसपास एवं घने बसे होते हैं।

प्रश्न 49.
आज के शिकारी समाजों में पाई जाने वाली कोई दो भिन्नताएँ बताओ।
उत्तर:

  • आज के शिकारी समाज शिकार एवं संग्रहण को अलग-अलग महत्त्व देते हैं।
  • उनके आकार भी छोटे-बड़े होते हैं।

प्रश्न 50.
इनमें से कौन-सी क्रिया के साक्ष्य व प्रमाण पुरातात्विक अभिलेख में सर्वाधिक मिलते हैं : (क) संग्रह ) औज़ार बनाना, (ग) आग का प्रयोग।
उत्तर:
इन बनाने के साक्ष्य व प्रमाण पुरातात्विक अभिलेख में सर्वाधिक मिलते हैं।

प्रश्न 51.
ट से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
फ़ट से अभिप्राय उर्वर अर्धचंद्राकार क्षेत्र से है। यह क्षेत्र मध्य सागर तट से लेकर ईरान में जागरोस पर्वतमालागीक फला हुआ था।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
आधुनिक मानव लगभग वर्ष पूर्व पैदा हुए थे ?
उत्तर:
1,60,000.

प्रश्न 2.
‘ऑन दि ओरिजिन ऑफ स्पीशीज़’ नामक पुस्तक की रचना किसके द्वारा की गई थी ?
उत्तर:
चार्ल्स डार्विन।

प्रश्न 3.
चार्ल्स डार्विन द्वारा अपनी पुस्तक ‘ऑन दि ओरिजिन ऑफ स्पीशीज़’ की रचना कब की गई थी?
उत्तर:
1859 ई०।

प्रश्न 4.
प्राइमेट स्तनपायी कब अस्तित्व में आए ?
उत्तर:
360 से 240 लाख वर्ष पूर्व।

प्रश्न 5.
लेतोली कहाँ स्थित है ?
उत्तर:
तंजानिया में।

प्रश्न 6.
पूर्वी अफ्रीका में आस्ट्रेलोपिथिकस वंश कब पाया गया था ?
उत्तर:
लगभग 56 लाख वर्ष पूर्व।

प्रश्न 7.
होमिनॉइड समूह कितने वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया था ?
उत्तर:
240 लाख।

प्रश्न 8.
होमिनिड कितने वर्ष पूर्व होमिनॉइड से विकसित हुए थे ?
उत्तर:
56 लाख वर्ष पूर्व।

प्रश्न 9.
‘होमो’ शब्द किस भाषा का शब्द है ?
उत्तर:
लातिनी।

प्रश्न 10.
लातिनी भाषा के शब्द ‘होमो’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
आदमी।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

प्रश्न 11.
ओल्डुवई गोर्ज की खोज कब हुई ?
उत्तर:
1959 ई० में।

प्रश्न 12.
औज़ार बनाने वाले क्या कहलाते थे ?
उत्तर:
होमो हैबिलिस।

प्रश्न 13.
वे कौन-से मानव थे जो सीधे खड़े होकर पैरों के बल चलना जानते थे ?
उत्तर:
होमो एरेक्टस।

प्रश्न 14.
आग के संबंध में हमें प्रथम साक्ष्य कहाँ से प्राप्त हुआ है ?
उत्तर:
चेसोवांजा से।

प्रश्न 15.
आधुनिक मानव की खोज कब की गई थी ?
उत्तर:
1.95 लाख वर्ष पूर्व।

प्रश्न 16.
आधुनिक मानव सर्वप्रथम कहाँ पाए गए थे ?
उत्तर:
आस्ट्रेलिया।

प्रश्न 17.
आधुनिक मानव किन वस्तुओं से औजारों का निर्माण करते थे ?
उत्तर:
पत्थरों व हड्डियों से।

प्रश्न 18.
दार-एस-सोल्तन कहाँ स्थित है ?
उत्तर:
मोरक्को में।

प्रश्न 19.
जर्मनी के किस नगर से हमें योजनाबद्ध ढंग से स्तनपायी जानवरों के शिकार एवं उनके वध का साक्ष्य प्राप्त हुआ है।
उत्तर:
शोनिंजन से।

प्रश्न 20.
दक्षिणी फ्राँस में स्थित टेरा अमाटा क्या है ?
उत्तर:
एक प्रसिद्ध झोंपड़ी।

प्रश्न 21.
स्वार्टक्रान्स कहाँ स्थित है ?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका में।

प्रश्न 22.
सिलाई वाली सूई का आविष्कार कब हुआ ?
उत्तर:
21,000 वर्ष पूर्व।

प्रश्न 23.
स्पेन का कौन-सा स्थान आदिमानव की चित्रकला के लिए प्रसिद्ध है ?
उत्तर:
आल्टामीरा।

प्रश्न 24.
हादज़ा जनसमूह के बारे में किस विद्वान् ने प्रकाश डाला ?
उत्तर:
जेम्स वुडबर्न ने।

प्रश्न 25.
वर्तमान समय के दो शिकारी संग्राहक समाज कौन-से हैं ?
उत्तर:
हादज़ा एवं कुंग सैन।

प्रश्न 26.
आधुनिक मानव कब अस्तित्व में आया था ?
उत्तर:
1.95 लाख वर्ष पूर्व।

प्रश्न 27.
आदिकालीन मानव किन ढंगों से अपना भोजन एकत्रित करते थे ?
उत्तर:
संग्रहण तथा अपमार्जन।

प्रश्न 28.
होमिनिडों द्वारा संचार के लिए प्रयोग की जाने वाले अंगविक्षेप पद्धति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
हाव-भाव अथवा हाथों को हिला कर अपनी बात समझाना।।

प्रश्न 29.
अफ्रीका के कालाहारी रेगिस्तान में रहने वाले शिकारी संग्राहक का नाम क्या था ?
उत्तर:
कुंग सैन।

प्रश्न 30.
मानव विज्ञान से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
इसमें मानव संस्कृति और मानव जीव विज्ञान के पहलुओं का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 31.
संजातिवृत क्या होता है ?
उत्तर:
इसमें नृजातीय समूहों का विश्लेषण किया जाता है।

प्रश्न 32.
शिकारियों व संग्राहकों के जनसमूह को क्या कहा जाता था ?
उत्तर:
हादजा जनसमूह।

प्रश्न 33.
पूर्ण मानव कहाँ निवास करते थे ?
उत्तर:
गुफ़ाओं व कच्ची झोपड़ियों में।

रिक्त स्थान भरिए

1. आधुनिक मानव लगभग …………….. वर्ष पूर्व पैदा हुए थे।
उत्तर:
1,60,000

2. ‘ऑन दि ओरिजिन ऑफ स्पीशीज़’ नामक पुस्तक की रचना …………….. ने की थी।
उत्तर:
चार्ल्स डार्विन

3. 240 लाख वर्ष पूर्व ‘प्राइमेट’ श्रेणी में एक उपसमूह उत्पन्न हुआ जिसे …………….. कहते हैं।
उत्तर:
होमिनॉइड

4. होमिनिड प्राणियों का साक्ष्य …………….. लाख वर्ष पूर्व प्राप्त हुए हैं।
उत्तर:
56

5. होमिनिड जीवाश्म …………….. वंश से संबंधित है।
उत्तर:
आस्ट्रेलोपिथिकस

6. सर्वप्रथम होमिनिड जीवाश्म …………….. से पाए गए थे।
उत्तर:
पूर्वी अफ्रीका

7. ओल्डुवई गोर्ज की खोज …………….. में हुई थी।
उत्तर:
17 जुलाई, 1959 ई०

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

8. लातिनी भाषा के शब्द ‘होमो’ का अर्थ है ……………. ।
उत्तर:
आदमी

9. जर्मनी के शहर हाइडलवर्ग में पाए गए जीवाश्मों को ……….. कहा गया है।
उत्तर:
होमोहाइडल बर्गेसिस

10. होमो निअंडरथलैंसिस जीवाश्म …………….. से प्राप्त हुए हैं।
उत्तर:
निअंडर घाटी

11. एशिया व यूरोप से प्राप्त जीवाश्मों को ……………. कहा जाता था।
उत्तर:
हाइडवर्ग मानव

12. आधुनिक मानव की खोज …………….. में हुई थी।
उत्तर:
1.95 लाख वर्ष पूर्व

13. आधुनिक मानव सर्वप्रथम …………….. में पाए गए थे।
उत्तर:
आस्ट्रेलिया

14. …………….. तथा …………….. आदिकालीन मानवों के भोजन एकत्रित करने के मुख्य साधन थे।
उत्तर:
संग्रहण, शिकार

15. …………….. से तात्पर्य त्यागी हुई वस्तुओं की सफ़ाई करने से है।
उत्तर:
अपमार्जन

16. ……………. से अभिप्राय भोजन की तलाश करने से है।
उत्तर:
रसदखोरी

17. पूर्व मानव द्वारा …………. नामक स्थान को शिकार के लिए चुना गया था।
उत्तर:
दोलनी वेस्तोनाइस

18. मानव निर्मित वस्तुओं को ……………. कहा जाता था।
उत्तर:
शिल्पकृतियाँ

19. पूर्व मानव द्वारा …………….. तथा …………….. वस्तुओं का निर्माण किया गया।
उत्तर:
औज़ार, चित्रकारियाँ

20. पूर्व मानव …………….. तथा …………….. में निवास करते थे।
उत्तर:
गुफ़ाओं, कच्ची झोपड़ियों

21. पूर्व मानव ने औज़ारों का निर्माण …………….. के लिए किया।
उत्तर:
शिकार

22. पूर्व मानव …………….. तथा …………….. से औज़ारों का निर्माण करते थे।
उत्तर:
हड्डियों, सींगों

23. पूर्व मानव द्वारा औज़ार बनाने व प्रयोग किए जाने का सबसे प्राचीन साक्ष्य ……………. तथा से प्राप्त हुआ है।
उत्तर:
इथियोपिया, केन्या

24. ह्यूमेनिटिज शब्द लातीनी शब्द …………… से बना है।
उत्तर:
ह्यूमिनिटास

25. होमिनिड …………….. विधि द्वारा आपस में संप्रेषण व संचार करते थे।
उत्तर:
अंगविक्षेप

26. होमिनिडों द्वारा संचार के लिए प्रयोग की जाने वाली अंगविक्षेप विधि से अभिप्राय ……………. से था।
उत्तर:
हाथों को हिला कर बात करने

27. भाषा का विकास …………….. वर्ष पूर्व आरंभ हुआ।
उत्तर:
20

28. स्पेन में पूर्व मानव द्वारा निर्मित चित्र ……………. गुफ़ा से प्राप्त हुए हैं।
उत्तर:
आल्टामीरा

29. फ्रांस में पूर्व मानव द्वारा निर्मित चित्र …………….. तथा …………….. की गुफ़ाओं से प्राप्त हुए हैं।
उत्तर:
लैसकॉक्स, शोवे

30. अफ्रीका के कालाहारी रेगिस्तान में रहने वाले शिकारी संग्राहक का नाम …………….. था।
उत्तर:
कुंग सैन

31. मानव संस्कृति और मानव जीव विज्ञान के बारे में जानने वाले विषय को ………… कहा जाता है।
उत्तर:
मानव विज्ञान

32. ‘शिकारियों व संग्राहकों के जन समूह को …………… कहा जाता था।
उत्तर:
हादज़ा जनसमूह

33. …………. में समकालीन नृजातीय समूहों का विश्लेषणात्मक अध्ययन होता है।
उत्तर:
संजातिवृत

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. आधुनिक मानव कब अस्तित्व में आए?
(क) 2.95 से 1.60 लाख वर्ष पहले
(ख) 1.95 से 1.60 लाख वर्ष पहले
(ग) 2.95 से 1.95 लाख वर्ष पहल
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) 1.95 से 1.60 लाख वर्ष पहले

2. जीवाश्म से आपका क्या अभिप्राय है?
(क) बहुत पुराने पौधों, पशुओं एवं जानवरों के अवशेष जो पत्थर का रूप धारण करके चट्टानों में समा जाते हैं
(ख) जीवों का एक समूह जिसके नर तथा मादा मिल कर बच्चे उत्पन्न कर सकते हैं
(ग) आस्ट्रेलोपिथिकस का प्रारंभिक रूप
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(क) बहुत पुराने पौधों, पशुओं एवं जानवरों के अवशेष जो पत्थर का रूप धारण करके चट्टानों में समा जाते हैं

3. ऑन दि ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज़ का लेखक कौन है?
(क) न्यूटन
(ख) आइंसटीन
(ग) गैलिलियो
(घ) चार्ल्स डार्विन।
उत्तर:
(घ) चार्ल्स डार्विन।

4. प्राइमेट कौन थे?
(क) स्तनपायी प्राणियों का समूह
(ख) एशिया के निवासी
(ग) अफ्रीका के निवासी
(घ) आदिमानव।
उत्तर:
(क) स्तनपायी प्राणियों का समूह

5. होमिनॉइड कब अस्तित्व में आए?
(क) 360 लाख वर्ष पहले
(ख) 240 लाख वर्ष पहले
(ग) 56 लाख वर्ष पहले
(घ) 160 लाख वर्ष पहले।
उत्तर:
(ख) 240 लाख वर्ष पहले

6. होमिनिडों का उद्भव कहाँ हुआ?
(क) एशिया में
(ख) अफ्रीका में
(ग) यूरोप में
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(ख) अफ्रीका में

7. होमिनिड समूह की प्रमुख विशेषता क्या है?
(क) मस्तिष्क का बड़ा आकार
(ख) हाथ की विशेष क्षमता
(ग) पैरों के बल सीधे खड़े होना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

8. आस्टूलोपिथिकस किन दो शब्दों के मेल से बना है ?
(क) लैटिन और अंग्रेज़ी
(ख) ग्रीक और संस्कृत
(ग) फ्रेंच और जर्मन
(घ) लैटिन और ग्रीक।
उत्तर:
(घ) लैटिन और ग्रीक।

9. आस्ट्रेलोपिथिकस कब विलुप्त हो गए?
(क) 360 लाख वर्ष पूर्व
(ख) 240 लाख वर्ष पूर्व
(ग) 25 लाख वर्ष पूर्व
(घ) 13 लाख वर्ष पूर्व।
उत्तर:
(घ) 13 लाख वर्ष पूर्व।

10. निम्नलिखित में से कौन-सी होमो की प्रजाति है?
(क) होमो हैबिलिस
(ख) होमो एरेक्टस
(ग) होमो सैपियंस
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

11. निम्नलिखित में से कौन विकसित औज़ार बनाने वाले थे?
(क) होमो सैपियंस
(ख) होमो एरेक्टस
(ग) होमो हैबिलिस
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) होमो हैबिलिस

12. ओल्डुवई गोर्ज कहाँ स्थित है?
(क) इथियोपिया में
(ख) तंजानिया में
(ग) केन्या में
(घ) सूडान में।
उत्तर:
(ख) तंजानिया में

13. होमो एरेक्टस कब अस्तित्व में आए?
(क) 25 लाख वर्ष पूर्व
(ख) 20 लाख वर्ष पूर्व
(ग) 18 लाख वर्ष पूर्व
(घ) 10 लाख वर्ष पूर्व।
उत्तर:
(ग) 18 लाख वर्ष पूर्व

14. होमीनिड के सबसे प्राचीन जीवाश्म हमें किस स्थान से प्राप्त हुए हैं?
(क) पूर्वी अफ्रीका
(ख) दक्षिणी अफ्रीका
(ग) उत्तरी अफ्रीका
(घ) दक्षिणी एशिया।
उत्तर:
(क) पूर्वी अफ्रीका

15. हाइडलबर्ग मानव कब अस्तित्व में आए?
(क) 25 लाख वर्ष पूर्व
(ख) 18 लाख वर्ष पूर्व
(ग) 8 लाख वर्ष पूर्व
(घ) 1 लाख वर्ष पूर्व।
उत्तर:
(ग) 8 लाख वर्ष पूर्व

16. निअंडरथल मानव के जीवाश्म सर्वप्रथम कहाँ मिले हैं ?
(क) एशिया में
(ख) यूरोप में
(ग) अमरीका में
(घ) ऑस्ट्रेलिया में।
उत्तर:
(ख) यूरोप में

17. आधुनिक मानव का वैज्ञानिक नाम क्या है ?
(क) होमो सैपियंस
(ख) होमो एरेक्टस
(ग) नियंडरथल
(घ) होमो हैबिलिस।
उत्तर:
(क) होमो सैपियंस

18. प्रतिस्थापन सिद्धांत के अनुसार मनुष्य का उद्भव कहाँ हुआ?
(क) एशिया में
(ख) अफ्रीका में
(ग) यूरोप में
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(ख) अफ्रीका में

19. आदिकालीन मानव निम्नलिखित में से किस तरीके से अपना भोजन जुटाता था?
(क) संग्रहण
(ख) शिकार
(ग) अपमार्जन
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

20. मानव ने शिकार करना कब आरंभ किया?
(क) 15 लाख वर्ष पूर्व
(ख) 10 लाख वर्ष पूर्व
(ग) 5 लाख वर्ष पूर्व
(घ) 1 लाख वर्ष पूर्व।
उत्तर:
(ग) 5 लाख वर्ष पूर्व

21. शोनिंजन कहाँ स्थित है?
(क) इंग्लैंड में
(ख) पूर्वी अफ्रीका में
(ग) फ्राँस में
(घ) जर्मनी में।
उत्तर:
(घ) जर्मनी में।

22. चेक गणराज्य के किस स्थान से हमें योजनाबद्ध तरीके से शिकार करने का साक्ष्य प्राप्त हुआ है?
(क) दोलनी वेस्तोनाइस
(ख) बॉक्सग्रोव
(ग) शोनिंजन
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) दोलनी वेस्तोनाइस

23. लज़ारेट गुफ़ा कहाँ स्थित है?
(क) उत्तरी फ्रांस में
(ख) दक्षिणी फ्राँस में
(ग) पूर्वी अफ्रीका में
(घ) दक्षिणी अफ्रीका में।
उत्तर:
(ख) दक्षिणी फ्राँस में

24. आदिकालीन मानव के लिए आग का प्रमुख लाभ क्या था?
(क) वह आग द्वारा गुफ़ाओं के अंदर प्रकाश करता था
(ख) वह आग द्वारा जानवरों को डराने का काम लेता था
(ग) वह आग द्वारा भोजन को पकाता था
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 1 समय की शुरुआत से

25. निम्न में से किसने सर्वप्रथम पत्थर के औज़ार बनाए?
(क) आस्ट्रेलोपिथिकस
(ख) होमो एरेक्टस
(ग) होमो हाइडलबर्गसिस
(घ) निअंडरथलैंसिस।
उत्तर:
(क) आस्ट्रेलोपिथिकस

26. सर्वप्रथम भाषा का उपयोग कब आरंभ हुआ?
(क) 35 लाख वर्ष पूर्व
(ख) 30 लाख वर्ष पूर्व
(ग) 25 लाख वर्ष पूर्व
(घ) 20 लाख वर्ष पूर्व।
उत्तर:
(घ) 20 लाख वर्ष पूर्व।

27. स्पेन की किस गुफ़ा से हमें चित्रकला के प्राचीन साक्ष्य प्राप्त हुए हैं ?
(क) आल्टामीरा
(ख) बॉर्डर गुफ़ा
(ग) नियाह गुफ़ा
(घ) चाउवेट गुफ़ा।
उत्तर:
(क) आल्टामीरा

28. आल्टामीरा की खोज कब हुई ?
(क) 1869 ई० में
(ख) 1879 ई० में
(ग) 1885 ई० में
(घ) 1889 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1879 ई० में

29. हादज़ा जनसमूह कहाँ के रहने वाले हैं ?
(क) एशिया
(ख) अफ्रीका
(ग) यूरोप
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(ख) अफ्रीका

30. हादजा लोग निम्नलिखित में से किस जानवर का माँस नहीं खाते हैं ?
(क) हाथी
(ख) शेर
(ग) गैंडा
(घ) जिराफ़।
उत्तर:
(क) हाथी

31. हादज़ा लोग ज़मीन और उसके संसाधनों पर अपना दावा क्यों नहीं करते?
(क) वे जहाँ चाहें रह सकते हैं
(ख) वे कहीं भी पशुओं का शिकार कर सकते हैं
(ग) वे कहीं से भी कंदमूल एवं शहद इकट्ठा कर सकते हैं
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

समय की शुरुआत से HBSE 11th Class History Notes

→ मानव प्राणियों की उत्पत्ति कब हुई, इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। प्राइमेट स्तनपायी 360 से 240 लाख वर्ष पूर्व अफ्रीका एवं एशिया में अस्तित्व में आए। इस समूह में बंदर, पूँछहीन बंदर एवं मानव सम्मिलित थे। होमिनॉइड 240 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया। यह प्राइमेट श्रेणी का एक उपसमूह है।

→ इसमें पूँछहीन बंदर सम्मिलित थे। इनमें सोचने की शक्ति कम थी एवं वे सीधे खड़े होकर चल नहीं सकते थे। 56 लाख वर्ष पूर्व होमिनिड समूह का विकास हुआ। इनके सबसे प्राचीन जीवाश्म हमें अफ्रीका में लेतोली (तंजानिया) एवं हादार (इथियोपिया) से प्राप्त हुए हैं।

→ इनके मस्तिष्क का आकार बड़ा था तथा वे सीधे खड़े होकर चल सकते थे। आस्ट्रेलोपिथिकस के सबसे प्राचीन जीवाश्म हमें 1959 ई० में ओल्डुवई गोर्ज से प्राप्त हुए हैं। इनकी खोज मेरी एवं लुइस लीकी ने की थी। होमो की तुलना में उनके मस्तिष्क का आकार छोटा था एवं जबक भारी थे।

→ 13 लाख वर्ष पूर्व आस्ट्रेलोपिथिकस लुप्त हो गए। होमो 25 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आए। उन्हें उनकी विशेषताओं के आधार पर अनेक प्रजातियों में बाँटा जाता है। होमो हैबिलिस 22 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आए। इनके प्राचीनतम जीवाश्म हमें ओमो एवं ओल्डुवई गोर्ज से प्राप्त हुए हैं।

→ वे औज़ार बनाने वाले के नाम से जाने जाते थे। उन्होंने पत्थर के औज़ार बनाए। उन्होंने शिकार के लिए भाषा का प्रयोग आरंभ किया। होमो एरेक्टस वे मानव थे जो सीधे खड़े होकर चलना जानते थे। वे 18 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आए। वे अफ्रीका से एशिया एवं फिर यूरोप में गए। उन्होंने आग का आविष्कार किया एवं भाषा का अधिक विकास किया। इससे उनके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आए। आधुनिक मानव को होमो सैपियंस के नाम से जाना जाता है। यह मानव 1.95 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया।

→ प्रतिस्थापन मॉडल के अनुसार उनका उद्भव अफ्रीका में हुआ। दूसरी ओर क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल के अनुसार आधुनिक मानव की उत्पत्ति अफ्रीका, एशिया एवं यूरोप के विभिन्न भागों में हुई। यह मानव सबसे समझदार था। उसने खेती सीख ली थी तथा स्थायी निवास आरंभ कर दिया था। उसके औज़ार बहुत उत्तम थे। उसने सूई का आविष्कार कर लिया था। अत: उसने सिले हुए कपड़े पहनने आरंभ कर दिए थे। आदिकालीन मानव संग्रहण द्वारा, अपमार्जन द्वारा, शिकार द्वारा तथा मछली पकड़ कर अपना भोजन जुटाता था।

→ आदिमानव द्वारा योजनाबद्ध ढंग से स्तनपायी जानवरों के शिकार एवं उनके वध करने के सबसे प्राचीन साक्ष्य हमें लाख वर्ष पूर्व इंग्लैंड के बॉक्सग्रोव नामक स्थल से एवं 4 लाख वर्ष पूर्व जर्मनी के शोनिंजन नामक स्थान से प्राप्त हुए हैं। 35 हज़ार वर्ष पूर्व शिकार के तरीकों का सुधार हुआ। इस संबंध में हमें चेक गणराज्य में स्थित दोलनी वेस्तोनाइस नामक स्थल से जानकारी प्राप्त होती है।

→ आदिकालीन मानव का प्रारंभिक निवास पेड़ों पर था। 4 लाख वर्ष पर्व उसने गफ़ाओं में अपना निवास आरंभ कर दिया। इससे उसे भयंकर शीत एवं जंगली जानवरों से सरक्षा मिली। 1.25 लाख वर्ष पर्व उसने झोंपडियों का निर्माण आरंभ कर दिया था। दक्षिणी फ्राँस से प्राप्त टेरा अमाटा नामक झोंपड़ी इसकी प्रसिद्ध उदाहरण है।

→ अग्नि का आविष्कार आदिकालीन मानव के लिए बहुत क्रांतिकारी प्रमाणित हुआ। इसके प्रथम साक्ष्य हमें केन्या में चेसोवांजा तथा दक्षिणी अफ्रीका में स्वार्टक्रांस से प्राप्त हुए हैं। आदिकालीन मानव के जीवन में औज़ारों का विशेष महत्त्व रहा है। प्रारंभिक औजार पत्थर के थे। इनमें हस्त कुठार, गंडासे एवं शल्क औज़ार सम्मिलित थे। इनका प्रयोग आदिमानव जंगली जानवरों से अपनी सुरक्षा एवं उनके शिकार के लिए करता था।

→ भाषा एवं कला के विकास ने आदिमानव के जीवन को एक नई दिशा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्पेन में स्थित आल्टामीरा तथा फ्राँस में स्थित लैसकॉक्स एवं चाउवेट नामक गुफ़ाओं में की गई चित्रकारी को देख कर व्यक्ति चकित रह जाता है। उनकी अधिकाँश मूर्तियाँ स्त्रियों से संबंधित थीं क्योंकि वे उन्हें जनन शक्ति का स्रोत समझते थे।

→ 1960 ई० में प्रसिद्ध मानव विज्ञानी जेम्स वुडबर्न ने अफ्रीका के हादज़ा जनसमूह के बारे में महत्त्वपूर्ण प्रकाश डाला है। उनके अनुसार हादज़ा एक छोटा समूह है जो लेक इयासी के आस-पास रहता है। वे केवल हाथी को छोड़कर अन्य सभी जानवरों का शिकार करते हैं। वे विश्व में सबसे अधिक माँस खाते हैं। वे अपने भोजन का 80% भाग जंगली साग-सब्जियों से प्राप्त करते हैं।

→ उनके प्रदेश में सूखे में भी भोजन की कोई कमी नहीं होती। वे ज़मीन एवं उसके संसाधनों पर अपना दावा नहीं करते क्योंकि वे इनका स्वतंत्रतापूर्वक प्रयोग करते हैं। आज का शिकारी संग्राहक समाज प्राचीन शिकारी समाज से अनेक बातों से भिन्न है। इससे अतीत के संबंध में कोई अनुमान लगाना कठिन है। ब्रिटेन के प्रसिद्ध विद्वान् चार्ल्स डार्विन ने 24 नवंबर, 1859 ई० को एक विश्व प्रसिद्ध पुस्तक ऑन दि ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज़ का प्रकाशन करवाया। इसमें मानव के क्रमिक विकास का विस्तृत वर्णन किया गया।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

HBSE 11th Class Geography जैव-विविधता एवं संरक्षण Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. जैव-विविधता का संरक्षण निम्न में किसके लिए महत्त्वपूर्ण है?
(A) जंतु
(B) पौधे
(C) पौधे और प्राणी
(D) सभी जीवधारी
उत्तर:
(D) सभी जीवधारी

2. निम्नलिखित में से असुरक्षित प्रजातियाँ कौन सी हैं?
(A) जो दूसरों को असुरक्षा दें
(B) बाघ व शेर
(C) जिनकी संख्या अत्यधिक हों अधिक हों
(D) जिन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है
उत्तर:
(D) जिन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

3. नेशनल पार्क (National parks) और पशुविहार (Sanctuaries) निम्न में से किस उद्देश्य के लिए बनाए गए है?
(A) मनोरंजन
(B) पालतू जीवों के लिए
(C) शिकार के लिए
(D) संरक्षण के लिए
उत्तर:
(D) संरक्षण के लिए

4. जैव-विविधता समृद्ध क्षेत्र हैं-
(A) उष्णकटिबंधीय क्षेत्र
(B) शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र
(C) ध्रुवीय क्षेत्र
(D) महासागरीय क्षेत्र
उत्तर:
(A) उष्णकटिबंधीय क्षेत्र

5. निम्न में से किस देश में पृथ्वी सम्मेलन (Earth summit) हुआ था?
(A) यू०के० (U.K.)
(B) ब्राजील
(C) मैक्सिको
(D) चीन
उत्तर:
(B) ब्राजील

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
जैव-विविधता क्या है?
उत्तर:
जैव-विविधता (Bio-diversity)-किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों की संख्या और उनकी विविधता को जैव-विविधता कहा जाता है। यह विकास के लाखों वर्षों के इतिहास का परिणाम है।

प्रश्न 2.
जैव-विविधता के विभिन्न स्तर क्या हैं?
उत्तर:
जैव-विविधता को निम्नलिखित तीन स्तरों पर समझा जाता है-

  • आनुवांशिक जैव-विविधता
  • प्रजातीय जैव-विविधता
  • पारितन्त्रीय जैव-विविधता।

प्रश्न 3.
हॉट स्पॉट (Hot Spot) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
हॉट स्पॉट (Hot Spot)-जिन क्षेत्रों में जैव-विविधता अति समृद्ध एवं संवेदनशील हो और मानवीय गतिविधियों के कारण खतरे में हो ऐसे क्षेत्रों को जैव-विविधता के हॉट स्पॉट कहा जाता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 16 जैव-विविधता एवं संरक्षण

प्रश्न 4.
मानव जाति के लिए जन्तुओं के महत्त्व का वर्णन संक्षेप में कीजिए।
उत्तर:
मानव अपनी मूलभूत आवश्यताएँ; जैसे रोटी, कपड़ा और मकान तथा विकसित सुखी जीवन की अन्य सुविधाएँ भिन्न-भिन्न तरीकों से जैविक विविधता से ही प्राप्त करता है। जीवों की अनेक प्रजातियाँ हमें बहुत-से पदार्थ प्रदान करती हैं जिससे हमारी भौतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक सन्तुष्टि होती है, जो कल्याणकारी जीवन के लिए अति आवश्यक है।

प्रश्न 5.
विदेशज प्रजातियों (Exotic Species) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
विदेशज प्रजातियाँ (Exotic Species)-वे प्रजातियाँ जो स्थानीय आवास की मूल जैव प्रजाति नहीं हैं लेकिन उस तन्त्र में स्थापित की गई हैं, उन्हें विदेशज प्रजातियाँ कहते हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
प्रकृति को बनाए रखने में जैव-विविधता की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:
जैव-विविधता ने मानव संस्कृति के विकास में बहुत योगदान दिया है, इसी प्रकार, मानव समुदायों ने भी आनुवंशिक, प्रजातीय व पारिस्थितिक स्तरों पर प्राकृतिक विविधता को बनाए रखने में बड़ा योगदान दिया है।

दूसरे शब्दों में जिस पारितंत्र में जितनी प्रकार की प्रजातियाँ होंगी, वह पारितंत्र उतना ही अधिक स्थायी होगा।
1. जैव-विविधता की आर्थिक भूमिका-

  • सभी मनुष्यों के लिए दैनिक जीवन में जैव-विविधता एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है, जैव-विविधता का एक महत्त्वपूर्ण भाग ‘फसलों की विविधता’ है, जिसे कृषि जैव विविधता कहा जाता है।
  • जैव-विविधता को संसाधनों के उन भंडारों के रूप में भी समझा जा सकता है, जिनकी उपयोगिता भोज्य-पदार्थ, औषधियाँ और सौंदर्य प्रसाधन आदि बनाने में है।

2. जैव-विविधता की पारिस्थितिकीय भूमिका-

  • जीव व प्रजातियाँ ऊर्जा ग्रहण कर उसका संग्रहण करती हैं। प्रत्येक जीव अपनी जरूरत पूरी करने के साथ-साथ दूसरे जीवों के पनपने में भी सहायक होता है।
  • प्रजातियाँ जलवायु को नियंत्रित करने में सहायक होती है। ये पारितंत्री क्रियाएँ मानव जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण क्रियाएँ हैं।
  • पारितंत्र में जितनी अधिक विविधता होगी, प्रजातियों के प्रतिकूल स्थितियों में भी रहने की संभावना और उनकी उत्पादकता भी उतनी ही अधिक होगी।

3. जैव-विविधता की वैज्ञानिक भूमिका-

  • जैव-विविधता इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि प्रत्येक प्रजाति हमें यह संकेत देती है, कि जीवन का आरंभ कैसे हुआ और भविष्य में कैसे विकसित होगा।
  • पारितंत्र में हम भी एक प्रजाति हैं, तथा मानव प्रजाति की क्या भूमिका है, इसे हम जैव-विविधता से समझ सकते हैं।
  • यह समझना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हमारे साथ सभी प्रजातियों को जीवित रहने का अधिकार हैं। अतः कई प्रजातियों को स्वेच्छा से विलुप्त करना नैतिक रूप से गलत है।

प्रश्न 2.
जैव-विविधता के हास के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारकों का वर्णन करें। इसे रोकने के उपाय भी बताएँ।
उत्तर:
जैव-विविधता के ह्रास के लिए उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं
1. जनसंख्या में वृद्धि जनसंख्या वृद्धि के कारण लोगों को रहने के लिए एवं कृषि के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता होती है जिसकी पूर्ति वनों को काटकर की जाती है। इस प्रकार विभिन्न प्रजातियों के आवास स्थल नष्ट हो जाते हैं और बहुत-सी प्रजातियाँ लुप्त हो जाती हैं। इसलिए बढ़ती जनसंख्या जैव-विविधता के लिए बड़ा खतरा है।

2. वन्य जीवों का अवैध शिकार वन्य प्राणियों से बहुमूल्य पदार्थ प्राप्त करने के लिए उनका अवैध शिकार किया जाता है जिससे बहुत-सी प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं जो जैव-विविधता के लिए एक खतरा हैं।

3. प्रदूषण-पर्यावरण प्रदूषण, विशेषकर जलीय पारितन्त्र को खराब कर देता है, इससे जलीय जीवों के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है।

4. विदेशज प्रजातियों का आगमन किसी भी क्षेत्र में विदेशी प्रजातियों के आगमन से स्थानीय प्रजातियों के आवास एवं भोजन आदि के लिए उनके साथ संघर्ष करना पड़ता है। इस संघर्ष में स्थानीय कमजोर प्रजातियाँ नष्ट हो जाती हैं।

जैव-विविधता हास को रोकने के उपाय-जैव-विविधता ह्रास को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय हैं-

  • संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण के लिए प्रयास किए जाने चाहिएँ।।
  • प्रजातियों को लुप्त होने से बचाने के लिए उचित योजनाएँ व प्रबन्धन किया जाना चाहिए।
  • वन्य जीवों के आवास के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय पार्क बनाए जाने चाहिएँ।
  • वनस्पति एवं प्राणी प्रजातियों की किस्मों को संरक्षित करना चाहिए।

जैव-विविधता एवं संरक्षण HBSE 11th Class Geography Notes

→ जैव-विविधता (Biodiversity)-पृथ्वी अथवा किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्रों के पौधों, प्राणियों व सूक्ष्म जीवों की विविधता को जैव-विविधता कहते हैं।

→ टैक्सोनोमी (Taxonomy)-जीवों के वर्गीकरण के विज्ञान को टैक्सोनोमी कहते हैं।

→ तप्त स्थल (Hot Spots)-संसार के जिन क्षेत्रों में प्रजातीय विविधता पाई जाती है, उन्हें विविधता के ‘तप्त स्थल’ कहा जाता है।

→ आनुवंशिकी (Genetics)-आनुवंशिक लक्षणों के पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचरण की विधियों और कारणों के अध्ययन को आनुवंशिकी कहते हैं।

→ आनुवंशिकता (Heredity)-जीवधारियों की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में विभिन्न लक्षणों के प्रेक्षण या संचरण को आनुवंशिकता कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. पृथ्वी पर कितने परिमंडल हैं?
(A) 2
(B) 3
(C) 4
(D) 5
उत्तर:
(C) 4

2. तटीय मरुस्थलों में प्रायः तापमान रहता है
(A) 21° – 38°C
(B) 2° – 25°C
(C) 15° – 35°C
(D) 29° – 37°C
उत्तर:
(C) 15° – 35°C

3. निम्नलिखित में से उच्च प्रदेशीय जीवोम कहाँ पाया जाता है?
(A) एंडीज
(B) स्टैपी
(C) प्रवालभित्ति
(D) रूब-एल-खाली
उत्तर:
(A) एंडीज

4. वायुमंडल में जीवमंडल का विस्तार कितनी ऊँचाई तक है?
(A) 2000 मी०
(B) 3000 मी०
(C) 4000 मी०
(D) 5000 मी०
उत्तर:
(D) 5000 मी०

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

5. वनस्पति जगत और प्राणी जगत किसके वर्ग हैं?
(A) स्थलमंडल
(B) वायुमंडल
(C) जलमंडल
(D) जैवमंडल
उत्तर:
(D) जैवमंडल

6. कौन-सी गैस ‘हरित गृह प्रभाव’ उत्पन्न करती है?
(A) कार्बन-डाइऑक्साइड
(B) ओजोन
(C) हाइड्रोजन
(D) क्लोरो-फ्लोरो कार्बन
उत्तर:
(A) कार्बन-डाइऑक्साइड

7. Ecology’ शब्द यूनानी शब्दों Oikos तथा logos से मिलकर बना है। इनमें ‘आइकोस’ शब्द का क्या अर्थ है?
(A) जीव के प्रजनन का स्थान
(B) वनस्पति
(C) पर्यावरण
(D) रहने का स्थान
उत्तर:
(D) रहने का स्थान

8. ‘Ecology’ शब्द जर्मनी भाषा के किस शब्द से बना है?
(A) Oekology
(B) Oekologie
(C) Ekology
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) Oekologie

9. Ecosystem’ (पारिस्थितिक तंत्र) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किस विद्वान ने किया था?
(A) ए०जी०टांसली
(B) लिंडमैन
(C) मोंकहाऊस
(D) सेंट हिलेयर आइसोडॉट ज्योफ्री
उत्तर:
(A) ए०जी०टांसली

10. जैवमंडल की सर्वप्रथम संकल्पना किसने प्रस्तुत की?
(A) ए०जी०टांसली
(B) लिंडमैन
(C) मोंकहाऊस
(D) एडवर्ड सुवेस
उत्तर:
(D) एडवर्ड सुवेस

11. निम्नलिखित में से अपघटक वर्ग में किसको रखा जा सकता है?
(A) पेड़-पौधे
(B) बकरी
(C) बैक्टीरिया
(D) सौर विकिरण
उत्तर:
(C) बैक्टीरिया

12. निम्नलिखित में से जैवमंडल का सदस्य नहीं है-
(A) शैवाल
(B) कवक
(C) जल
(D) पादप
उत्तर:
(C) जल

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

13. निम्नलिखित में से कौन-सा उदाहरण स्वपोषित घटक का है?
(A) घास
(B) मनुष्य
(C) हिरण
(D) गिद्ध
उत्तर:
(A) घास

14. पारिस्थितिक तंत्र में उपभोक्ता उन्हें कहा जाता है जो-
(A) अपना आहार स्वयं बनाते हैं।
(B) स्वपोषित प्राथमिक उत्पादक (पौधों) से भोजन प्राप्त करते हैं
(C) मृत जंतुओं और पौधों को गलाते-सड़ाते हैं
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) स्वपोषित प्राथमिक उत्पादक (पौधों) से भोजन प्राप्त करते हैं

15. निम्नलिखित में से किसको सर्वाहारी वर्ग में रखा जा सकता है?
(A) कीट, चूहे
(B) गाय, भैंस
(C) मनुष्य
(D) उल्लू, शेर, चीता
उत्तर:
(C) मनुष्य

16. जमीन पर कोई भी शाकाहारी, मांसाहारी और सर्वाहारी नहीं बचेगा, यदि-
(A) सारे पौधे हटा दिए जाएँ
(B) सारे खरगोश और हिरण हटा दिए जाएँ
(C) सारे शेर हटा दिए जाएँ
(D) सारे सूक्ष्म जीव व जीवाणु हटा दिए जाएँ
उत्तर:
(A) सारे पौधे हटा दिए जाएँ

17. निम्नलिखित में से मानव निर्मित पारिस्थितिक तंत्र का हिस्सा नहीं है-
(A) जनजातीय पारिस्थितिक तंत्र
(B) वनीय पारिस्थितिक तंत्र
(C) कृषि पारिस्थितिक तंत्र
(D) ग्रामीण पारिस्थितिक तंत्र
उत्तर:
(B) वनीय पारिस्थितिक तंत्र

18. खाद्य शृंखला के बारे में कौन-सा कथन असत्य है?
(A) आद्य श्रृंखला में एक प्राणी दूसरे को खाकर ऊर्जा का स्थानान्तरण करता है
(B) इसमें केवल 50% ऊर्जा अगले पोषण तल को प्राप्त होती है
(C) इसके तीसरे स्तर पर मांसाहारी जानवर आ जाते हैं
(D) अधिकतर खाद्य शृंखलाएँ चार या पाँच स्तरों तक ही सीमित हो जाती हैं
उत्तर:
(B) इसमें केवल 50% ऊर्जा अगले पोषण तल को प्राप्त होती है

19. गिद्ध इसलिए समाप्त हो चुके हैं क्योंकि-
(A) वर्तमान जलवायु उनके अनुकूल नहीं रही
(B) भोजन व पानी की कमी ने उनका सफाया कर दिया
(C) पोषण तल के उच्चतम स्तर पर होने के कारण उनमें घातक रसायन एकत्रित हो गए
(D) गिद्ध को अन्य मांसाहारी जीव खा गए
उत्तर:
(C) पोषण तल के उच्चतम स्तर पर होने के कारण उनमें घातक रसायन एकत्रित हो गए

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें-

प्रश्न 1.
खाद्य श्रृंखला का एक उदाहरण दें।
उत्तर:
घास।

प्रश्न 2.
उष्ण कटिबंधीय घास के मैदानों को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
सवाना।

प्रश्न 3.
शैलों में उपस्थित लोहांश से ऑक्सीजन की रासायनिक प्रतिक्रिया होने पर क्या बनता है?
उत्तर:
आयरन ऑक्साइड।

प्रश्न 4.
वनस्पति जगत और प्राणी जगत किसके वर्ग हैं?
उत्तर:
जैवमंडल के।

प्रश्न 5.
कौन-सी गैस ‘हरित गृह प्रभाव उत्पन्न करती है?
उत्तर:
कार्बन-डाइऑक्साइड।

प्रश्न 6.
‘Ecosystem’ (पारिस्थितिक तंत्र) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किस विद्वान ने किया था?
उत्तर:
ए०जी० टांसली ने।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

प्रश्न 7.
जैवमंडल की सर्वप्रथम संकल्पना किसने प्रस्तुत की?
उत्तर:
एडवर्ड सुवेस ने।

प्रश्न 8.
जैवमण्डल के दो वर्ग कौन-से हैं?
उत्तर:

  1. वनस्पति जगत और
  2. प्राणी जगत।

प्रश्न 9.
होमोसेपियन्स (Homo Sapiens) क्या है?
उत्तर:
एक प्रजाति के रूप में आधुनिक मानव।

प्रश्न 10.
पारिस्थितिक तन्त्र में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत क्या है?
उत्तर:
सूर्यातप।

प्रश्न 11.
पारिस्थितिक तन्त्र (Ecosystem) के घटकों के दो वर्ग कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. जैव
  2. अजैव।

प्रश्न 12.
सभी प्राकृतिक चक्रों को ऊर्जा प्रदान करने वाला प्रमुख स्रोत कौन-सा है?
उत्तर:
सौर विकिरण।

प्रश्न 13.
एक प्रमुख पारितंत्र का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
वन एक प्रमुख पारितंत्र है।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी के परिमण्डलों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. स्थलमण्डल
  2. वायुमण्डल
  3. जलमण्डल और
  4. जैवमण्डल।

प्रश्न 2.
उपभोक्ताओं के तीन मुख्य वर्ग बताइए। अथवा जीवों के मुख्य वर्ग कौन-से हैं?
उत्तर:

  1. शाकाहारी (Herbivores)
  2. मांसाहारी (Carnivores)
  3. सर्वाहारी (Omnivores)।

प्रश्न 3.
अपघटक (Decomposers) क्या होते हैं?
उत्तर:
अपघटक वे सूक्ष्म जीव व जीवाणु होते हैं जो खाद्य श्रृंखला के सभी स्तरों से गले-सड़े जैव पदार्थ को अपना भोजन बनाते हैं।

प्रश्न 4.
पारिस्थितिक तन्त्र से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
किसी भी क्षेत्र या प्रदेश के भौतिक वातावरण तथा जीवों के पारस्परिक सम्बन्धों के व्यवस्थित अध्ययन को पारिस्थितिक तन्त्र कहते हैं। यह एक जटिल तन्त्र है, जिसमें दोनों के आपसी सम्बन्धों का वैज्ञानिक अध्ययन सम्मिलित है। पारिस्थितिक तन्त्र में जैविक तथा अजैविक जगत की पारस्परिक प्रक्रियाओं तथा सम्बन्धों का विश्लेषण किया जाता है।

प्रश्न 5.
पारितन्त्र क्या है?
उत्तर:
पारितन्त्र पर्यावरण के सभी जैव तथा अजैव घटकों के एकीकरण का परिणाम है। दूसरे शब्दों में, जीव तथा उसके पर्यावरण के बीच की स्वतन्त्र इकाई को पारितन्त्र (Ecosystem) कहा जाता है।

प्रश्न 6.
जैवमण्डल किसे कहते हैं?
उत्तर:
जैवमण्डल से अभिप्राय पृथ्वी के उस अंग से है, जहाँ जीवन सम्भव है। सभी जीवित प्राणी जीव-जन्तु तथा पेड़-पौधे इसी मण्डल में पनपते हैं।

प्रश्न 7.
पारितंत्रीय विविधता क्या है?
उत्तर:
पारितंत्रीय विविधता पारितंत्र के प्रकारों की व्यापक भिन्नता, पर्यावासों की विविधता और प्रत्येक पारितंत्र में घटित हो. रही पारिस्थितिकीय प्रक्रियाओं से नजर आती है। पारितंत्रीय सीमाओं का निर्धारण न केवल जटिल है, बल्कि कठिन भी है।

प्रश्न 8.
शाकाहारी और माँसाहारी में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
शाकाहारी और माँसाहारी में निम्नलिखित अन्तर हैं-

शाकाहारी माँसाहारी
1. शाकाहारी जीव अपने भोजन के लिए पौधों पर निर्भर करते हैं। 1. माँसाहारी जीव अपना भोजन शाकाहारी जीवों के माँस से प्राप्त करते हैं।
2. ये पहले स्तर पर प्राथमिक उपभोक्ता कहलाते हैं। 2. ये गौण उपभोक्ता कहलाते हैं।
3. कीट, चूहे, बकरियाँ, गाय, भैंस आदि इनके प्रमुख उदाहरण हैं। 3. शेर, चीता, उल्लू, गिद्ध आदि इनके प्रमुख उदाहरण हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

प्रश्न 9.
खाद्य श्रृंखला और खाद्य जाल में क्या अन्तर है?
उत्तर:
खाद्य श्रृंखला और खाद्य जाल में निम्नलिखित अन्तर हैं-

खाद्य शृंखला खाद्य जाल
1. किसी पारिस्थितिक तन्त्र में एक स्रोत से दूसरे स्रोत में ऊर्जा स्थानान्तरण की प्रक्रिया को खाद्य शृंखला कहते हैं। 1. जब बहुत-सी खाद्य शृंखलाएँ एक-दूसरे से घुल-मिलकर एक जटिल स्प धारण करती हैं, तो उसे खाद्य जाल कहते हैं।
2. खाद्य शृंखला ऊर्जा का प्रवाह चक्र है। 2. खाद्य जाल अनेक स्रोतों से ऊर्जा के अन्तरण की एक जटिल प्रक्रिया है।

लातुरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जैवमण्डल का पर्यावरण में क्या स्थान है?
उत्तर:
जैवमण्डल प्राकृतिक पर्यावरण का एक विशिष्ट अंग है। इस मण्डल में सभी जीवित प्राणियों, मानव तथा जीव जन्तुओं की क्रियाएँ सम्मिलित हैं। जैवमण्डल के कारण भू-तल पर जीवन है। पर्यावरण के अन्य सभी अंग जैवमण्डल के प्राणियों को उत्पन्न करने तथा उनके क्रियाशील रहने में सहायक हैं। जैवमण्डल वायुमण्डल की ऊपरी परतों से महासागरों की गहराइयों तक विस्तृत रूप से फैला हुआ है। मनुष्य इस जैवमण्डल में पर्यावरण की समग्रता लाने में क्रियाशील है। मनुष्य भू-तल की सम्पदाओं का बुद्धिमत्ता से उपयोग करके इसका संरक्षण कर सकता है, इसलिए जैवमण्डल को प्राकृतिक पर्यावरण का सबसे महत्त्वपूर्ण तथा विशिष्ट मण्डल कहा जाता है।

प्रश्न 2.
उत्पादक तथा उपभोक्ता में क्या अन्तर है?
उत्तर:
उत्पादक तथा उपभोक्ता में निम्नलिखित अन्तर हैं-

उत्पादक उपभोक्ता
1. उत्पादक सौर ऊर्जा का प्रयोग करके अपना भोजन स्वयं तैयार करते हैं। 1. उपभोक्ता अपना भोजन स्वयं उत्पन्न करने में असमर्थ होते हैं। ये अन्य जीवों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं।
2. ये प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा कार्बोहाइड्रेट उत्पन्न करते हैं तथा खाद्य शृंखला के दूसरे उपभोक्ताओं को भोजन प्रदान करते हैं। 2. उपभोक्ता प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा भोजन बनाने में अमसर्थ हैं, इन्हें शाकाहारी, माँसाहारी तथा सर्वाहारी इन वर्गों में बाँटा जाता है ।
3. पेड़-पौधे, नीली-हरी शैवाल तथा कुछ जीवाणु इनके प्रमुख उदाहरण हैं। 3. भेड़, बकरियाँ, उल्लू, मनुष्य आदि इनके प्रमुख उदाहरण हैं।

प्रश्न 3.
जैवमण्डल हमारे लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जैवमण्डल से अभिप्राय पृथ्वी के उस अंग से है, जहाँ सभी प्रकार का जीवन पाया जाता है। स्थलमण्डल, जलमण्डल तथा वायुमण्डल जहाँ मिलते हैं, वहीं जैवमण्डल स्थित है। इस मण्डल में सभी प्रकार का जीवन सम्भव है। सभी जीवित प्राणी जीव-जन्तु तथा पेड़-पौधे इसी मण्डल में पनपते हैं, इसलिए जैवमण्डल हमारे लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 4.
जैवमण्डल का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जैवमण्डल क्षैतिज रूप से सारे भूमण्डल पर और लम्बवत् रूप से सागरों की गहराई से वायुमण्डल की ऊँचाई तक, जहाँ-जहाँ जीवन सम्भव है, तक फैला हुआ है। वैज्ञानिकों के अनुसार, जैवमण्डल का विस्तार महासागरों में 9,000 मीटर की गहराई तक, स्थल के नीचे 300 मीटर की गहराई तक तथा वायुमण्डल में 5,000 मीटर की ऊँचाई तक है। जैवमण्डल की परत पतली किन्तु अत्यन्त जटिल है और किसी भी प्रकार का जीवन इसी परत में सम्भव है।

प्रश्न 5.
ऊर्जा प्रवाह में 10 प्रतिशत ऊर्जा स्थानान्तरण के नियम की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जीवविज्ञानी किन्डलमान (Kindlemann) ने सन् 1942 में एक सामान्यीकरण (Generalisation) प्रस्तुत किया जिसके अनुसार खाद्य श्रृंखला में एक पोषण तल के निकटतम उच्च पोषण तल (Trophic Level) में जब ऊर्जा का स्थानान्तरण होता है तो ऊर्जा का अधिकांश भाग (90%) विभिन्न शारीरिक क्रियाओं में ताप के रूप में नष्ट हो जाता है। केवल 10 प्रतिशत ऊर्जा अगले पोषण तल को प्राप्त होती है। स्पष्ट है कि जैसे-जैसे हम खाद्य के प्राथमिक स्रोत से दूर होते जाते हैं वैसे-वैसे जन्तुओं द्वारा प्राप्त ऊर्जा की मात्रा न्यून होती चली जाती है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि ज्यों-ज्यों हम खाद्य श्रृंखला में ऊपर की ओर जाते हैं तो जन्तुओं की संख्या और उनकी विविधता कम होती जाती है। उदाहरणतः एक जंगल में हज़ारों पेड़-पौधे हो सकते हैं जिनमें सौ हिरण हो सकते हैं, दो चार लक्कड़बग्घे परन्तु शेर एक ही रह सकता है।

प्रश्न 6.
पारिस्थितिक सन्तुलन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
किसी भी पारिस्थितिक तन्त्र की प्राकृतिक अवस्था में विविध चक्रों और ऊर्जा प्रवाहों में पूरा सामंजस्य होता है, जिससे एक गतिशील सन्तुलन स्थापित हो जाता है। इसे पारिस्थितिक सन्तुलन कहते हैं। सन्तुलन की इस दशा में विभिन्न प्रकार के उपभोक्ताओं (जीव-जन्तुओं) की सापेक्षिक संख्या इस प्रकार निश्चित होती है कि किसी भी जीव के लिए खाद्य पदार्थ की कमी नहीं है।

छोटे और कमज़ोर जीवों अर्थात् प्राथमिक उपभोक्ताओं की कम जरूरत के कारण उनकी संख्या अधिक तथा उनकी प्रजनन दर भी तीव्र होती है। बड़े अर्थात् द्वितीय तथा तृतीय स्तर के उपभोक्ता संख्या में कम होते हैं और उनकी प्रजनन दर भी कम होती है। जब कभी किसी पारिस्थितिक तन्त्र में विभिन्न प्रकार के प्राणियों की सापेक्ष संख्या में अन्तर आ जाता है तो विविध चक्रों और ऊर्जा प्रवाहों का सामंजस्य भंग हो जाता है, परिणामस्वरूप पारिस्थितिक सन्तुलन बिगड़ जाता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पारिस्थितिक तन्त्र पर मनुष्य के प्रभाव की विवेचना करें।
उत्तर:
पारिस्थितिक तन्त्र एक स्वचालित प्रक्रिया है जिसमें मनुष्य अथवा किसी भी प्राणी की भूमिका गड़बड़ाने पर इस जटिल किन्तु संवेदनशील तन्त्र की प्रक्रिया में बाधा आ जाती है जिसके कुप्रभाव और दुष्परिणाम समस्त जीव-जगत् को भुगतने पड़ते हैं। इस जैवमण्डल के असंख्य जीवों में से एक होते हुए भी अपनी बुद्धि विज्ञान तथा तकनीकी विकास के सहारे मनुष्य पारिस्थितिक तन्त्र को अधिकाधिक प्रभावित करने की क्षमता धारण करता जा रहा है। मनुष्य द्वारा किए गए जानवरों के वर्णात्मक (Selective) शिकार से वह खाद्य शृंखला भंग हो गई है जिसमें वे जानवर प्रतियोगिता करते थे। एक खाद्य श्रृंखला भंग होने पर खाद्य जाल में कार्यरत अनेक खाद्य शृंखलाएँ बाधित होती हैं।

मनुष्य ने अपने आर्थिक लाभ और उपयोग के लिए अनेक पौधों और पशुओं को पालतू बना लिया है। इस प्रक्रिया में प्राकृतिक चयन का स्थान मानवीय चयन ने ले लिया है। हमारी फसलें और गाय, भैंस, भेड़-बकरी तथा मुर्गी जैसे पालतू पशु-पक्षी इसी पर्यावरणीय नियन्त्रण का परिणाम हैं। इस प्रक्रिया में मानव ने पौधों और प्राणियों की आनुवंशिकी (Genetics) में भी परिवर्तन कर दिए हैं ताकि नई वांछनीय विशेषताएँ आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाई जा सकें। कई बार मनुष्य द्वारा जानबूझ कर अथवा आकस्मिक ढंग से अनेक पौधों और प्राणियों को उनके मूल स्थान से हटा कर नए क्षेत्रों में बसाया गया है। इस पराए वातावरण में कई बार पौधों और प्राणियों को प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं करना पड़ता। परिणामस्वरूप उनकी संख्या अन्य जीवों से अधिक हो जाती है और वे पारिस्थितिक तन्त्र को भंग कर देते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

प्रश्न 2.
पारिस्थितिक तन्त्र की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए इसके विभिन्न अंगों में पदार्थ चक्रण और ऊर्जा प्रवाह को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पारिस्थितिक तन्त्र की अवधारणा-किसी क्षेत्र के भौतिक पर्यावरण तथा उसमें रहने वाले जीवों के बीच होने वाली पारस्परिक क्रियाओं की जटिल व्यवस्था को पारिस्थितिक तन्त्र (Ecosystem) कहते हैं। पारिस्थितिक तन्त्र छोटा या बड़ा किसी भी आकार का हो सकता है। उदाहरणतः गाँव का छोटा-सा तालाब, अमेज़न का वर्षा-वन (Rain forest) जो कई देशों पर विस्तृत है, एक महासागर अथवा सारा संसार एक पारिस्थितिक तन्त्र हो सकता है। पारिस्थितिक तन्त्र के निर्माण, पुनरुत्थान और उसके जीवन-निर्वाह के लिए ऊर्जा का प्रवाह तथा पदार्थ का चक्रण अनिवार्य है।

पारिस्थितिक तन्त्र छोटा हो या बड़ा, उसकी मुख्य विशेषता होती है उसके विभिन्न अंगों में ऊर्जा का प्रवाह और पदार्थ का चक्रण (Circulation)। ऊर्जा तथा पदार्थ का उपयोग पारिस्थितिक तन्त्र के निर्माण, पुनरुत्थान और उसके जीवन निर्वाह के लिए किया जाता है।
1. पदार्थ चक्रण-सभी जीवों का निर्माण मुख्यतः तीन तत्त्वों से मिलकर हुआ है। ये तत्त्व हैं-(1) कार्बन, (2) हाइड्रोजन तथा (3) ऑक्सीजन। थोड़ी मात्रा में अन्य तत्त्वों; जैसे नाइट्रोजन, लोहा, फॉस्फोरस और मैंगनीज़ की भी आवश्यकता पड़ती है। इन सभी तत्त्वों को पोषक कहते हैं। जैवमण्डल में ये तत्त्व पौधों के द्वारा पहुँचते हैं।

पारिस्थितिक तन्त्र के विभिन्न अंगों के बीच पदार्थ चक्रीय ढंग से घूमते हैं। इन पदार्थों में तत्त्व (Elements) और यौ (Compounds) दोनों होते हैं। पदार्थ चक्रण के मार्ग स्पष्ट एवं सुसंगत होते हैं। उदाहरणतः कार्बन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन और जल वायुमण्डल, स्थलमण्डल, जलमण्डल और जैवमण्डल के बीच एक प्राकृतिक व्यवस्था के तहत स्थानान्तरित होते रहते हैं। कुछ पदार्थों का चक्रण थोड़े समय में ही पूरा हो जाता है जबकि अन्य कुछ पदार्थ किसी एक रूप में लम्बे समय तक संचित पड़े रहते हैं और उनका चक्रण हज़ारों, लाखों अथवा करोड़ों वर्षों में पूरा होता है। परन्तु ये पदार्थ कभी भी पृथ्वी के बाहर नहीं जा पाते।

2. ऊर्जा प्रवाह जैसे किसी भी कार्य के लिए ऊर्जा (Energy) की आवश्यकता होती है वैसे ही पारिस्थितिक तन्त्र के विभिन्न अंग ऊर्जा के संचरण द्वारा ही कार्य करते हैं।

पारिस्थितिक तन्त्र में ऊर्जा का प्रवाह क्रमबद्ध स्तरों की एक श्रृंखला में होता है जिसे खाद्य शृंखला (Food Chain) कहते हैं। खाद्य शृंखला वास्तव में एक समुदाय में जीवित प्राणियों का ऐसा अनुक्रम (Sequence) होता है जिसमें एक प्राणी दूसरे प्राणी को खाकर खाद्य ऊर्जा का स्थानान्तरण करता है। सरल शब्दों में, खाद्य श्रृंखला “कौन किसको खाता है” (Who eats whom) की एंक सूची होती है। आइए! निम्नलिखित खाद्य शृंखला के माध्यम से ऊर्जा प्रवाह को क्रमिक ढंग से समझें-

(1) खाद्य श्रृंखला में पहले स्तर पर हरे पौधे आते हैं जिन्हें उत्पादक कहते हैं। ये पौधे प्रकाश ऊर्जा का उपयोग करके कार्बन-डाइऑक्साइड तथा जल को रासायनिक ऊर्जा में बदल देते हैं जो पौधों में कार्बोहाइड्रेट के रूप में संचित हो जाती है। ऊर्जा रूपान्तरण की यह प्रक्रिया प्रकाश-संश्लेषण (Photo-synthesis) कहलाती है जिसके अन्तर्गत जीवनदायक जैव रासायनिक अणुओं की उत्पत्ति होती है। ऐसे पौधे जो प्रकाश-संश्लेषण द्वारा अपना भोजन स्वयं अकार्बनिक पदार्थों से तैयार करते हैं, स्वपोषित (Autotroph) कहलाते हैं।

(2) इन पौधों अथवा उत्पादकों को शाकाहारी (Herbivores) प्राणी खा जाते हैं। ये प्राथमिक उपभोक्ता कहलाते हैं। कीट, चूहे, भेड़, बकरियाँ, गाय-भैंस आदि प्राथमिक उपभोक्ताओं के उदाहरण हैं।

(3) खाद्य शृंखला के तीसरे स्तर पर माँसाहारी (Carnivores) जानवर आते हैं जो प्राथमिक उपभोक्ताओं अर्थात् शाकाहारी जानवरों को खाकर जीवित रहते हैं। इन्हें गौण अथवा द्वितीयक उपभोक्ता कहते हैं। उल्ल, शेर, चीता आदि इसके उदाहरण हैं।

(4) कुछ जातियों को सर्वाहारी (Omnivores) कहते हैं क्योंकि वे शाकाहारी और माँसाहारी दोनों होते हैं। मनुष्य सर्वाहारी श्रेणी में आता है।

(5) कुछ सूक्ष्म जीव तथा जीवाणु जिन्हें अपघटक (Decomposers) कहते हैं, खाद्य श्रृंखला के सभी स्तरों से प्राप्त अवशेष या गले-सड़े जैव पदार्थ को अपना भोजना बना कर जीवित रहते हैं। ये अपघटक पारिस्थितिक तन्त्र में खनिज पोषकों के पुनर्चक्रण में सहायता करके खाद्य-शृंखला को पूरा करते हैं।

प्रश्न 3.
पारिस्थितिकी तथा पारिस्थितिक तन्त्र के बारे में विस्तृत वर्णन करें।
उत्तर:
पारिस्थितिकी (Ecology)-पारिस्थितिकी का सीधा सम्बन्ध जैविक तथा अजैविक तत्त्वों के पारस्परिक सम्बन्धों से है अर्थात् जैव समूहों एवं जीवों तथा भौतिक वातावरण के बीच जो सम्बन्ध होते हैं, उनका अध्ययन पारिस्थितिकी में किया जाता है। प्रसिद्ध जर्मन वैज्ञानिक एरंट हैकल के अनुसार, “पारिस्थितिकी ज्ञान, जिसमें जैविक तत्त्वों का अपने चारों ओर के संसार के साथ सम्बन्धों के योगफल का अध्ययन किया जाता है।”

सन् 1860 में Ernt Haeckel ने सर्वप्रथम (Ecology) पारिस्थितिकी शब्द का प्रयोग किया था, लेकिन 20वीं शताब्दी में इसका व्यापक प्रयोग पर्यावरण के सन्दर्भ में किया जाने लगा। किसी भी क्षेत्र में प्राकृतिक वातावरण का प्रभाव वहाँ की वनस्पति तथा जीव-जन्तओं पर पड़ता है, ये आपस में एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं तथा प्रभावित करते हैं। इसलिए Kerbs ने सन 1972 में लिखा है, “पारिस्थितिकी वातावरण की उन पारस्परिक प्रतिक्रियाओं के अध्ययन का वैज्ञानिक दृष्टिकोण है जो जीव-समूहों के कल्याण, उनके वितरण को विनियमित करने, प्रचुरता पुनरुत्यति तथा विकास को नियन्त्रित करते हैं।”

पारिस्थितिक तन्त्र (Eco-System)-किसी भी क्षेत्र या प्रदेश के भौतिक वातावरण एवं जीवों के पारस्परिक सम्बन्धों का व्यवस्थित अध्ययन पारिस्थितिकी तन्त्र कहलाता है। यह एक जटिल व्यवस्था (तन्त्र) है, जिसमें दोनों के आपसी सम्बन्धों का वैज्ञानिक अध्ययन सम्मिलित है।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि पारिस्थितिकी तन्त्र में जैविक जगत् तथा अजैविक जगत् (Biotic and Abiotic World) की पारस्परिक प्रक्रियाओं एवं सम्बन्धों का विश्लेषण किया जाता है। जैव जगत् (Biotic World) में पशु-पक्षी, मानव, पेड़-पौधों आदि तथा अजैविक जगत् (Abiotic World) में भूमि, मिट्टी, जलवायु आदि तत्त्व सम्मिलित हैं। पारिस्थितिकी तन्त्र के विभिन्न अंग होते हैं जो एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। उदाहरणार्थ किसी वन प्रदेश में विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे, घास, झाड़ी, लताएँ, फफूंदी, जीवाणु, पशु-पक्षी तथा बड़े-बड़े जंगली जीव होते हैं। इन सभी का आपसी सम्बन्ध होता है। पेड़-पौधे तथा घास अपने लिए मिट्टी से पोषक तत्त्व पानी, हवा आदि ग्रहण करते हैं। कुछ पौधे परजीवी होते हैं।

जंगल में रहने वाले जीव-जन्तु कुछ तो वनस्पति से भोजन प्राप्त करते हैं तथा जो माँसाहारी होते हैं, वे छोटे जीवों का शिकार करके अपना भोजन जुटाते हैं। जीव-जन्तुओं के मरने के बाद उसके अवशेषों से मिट्टी का निर्माण अथवा मिट्टी में पोषक तत्त्वों की वृद्धि होती है। यही पोषक तत्त्व वनस्पति के विकास में सहायक होते हैं और फिर जीवों का भोजन बनाते हैं अर्थात् भौतिक वातावरण तथा जैविक वातावरण का पारस्परिक घनिष्ठ सम्बन्ध है और इन सम्बन्धों का वैज्ञानिक और व्यवस्थित अध्ययन पारिस्थितिकी तन्त्र है। यह महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि इन्हीं दोनों तत्त्वों में पोषक चक्र (Nutrient Cycle) गतिज ऊर्जा (Energy Flow) के माध्यम से विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा जीवन-संचार करते हैं।

प्रश्न 4.
जैव भू-रासायनिक चक्र के सम्पन्न होने के क्रमों को समझाइए।
उत्तर:
जैव भू-रासायनिक चक्र के सम्पन्न होने के क्रम-जैव भू-रासायनिक चक्र निम्नलिखित क्रम में सम्पन्न होता है-
1. पौधों के उगने-बढ़ने के लिए कुछ अजैव तत्त्व आवश्यक होते हैं। वे अजैव तत्त्व हैं कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन। थोड़ी मात्रा में अन्य तत्त्वों यथा-नाइट्रोजन, लोहा, गंधक, फॉस्फोरस और मैंगनीज की भी आवश्यकता होती है। इन सभी तत्त्वों को पोषक (Nutrients) कहा जाता है।

2. चट्टानों के अपघटन से प्राप्त अवसादों से मिट्टी बनती है जिसमें लोहा, तांबा, सोडियम और फॉस्फोरस जैसे खनिज (पोषक) तत्त्व स्वतः उपलब्ध होते हैं। वर्षा जल के साथ कुछ रासायनिक पोषक-कार्बन, ऑक्सीजन और नाइट्रोजन वायुमण्डल से निकलकर मिट्टी में मिल जाते हैं।

3. मृदा और वायु से प्राप्त इन पोषक तत्त्वों को पौधे अपनी जड़ों के द्वारा घोल के रूप में प्राप्त करते हैं। सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति से हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा कार्बन डाईऑक्साइड को ऑक्सीजन और कार्बनिक यौगिक (जैव पदार्थ) में परिवर्तित कर देते हैं।

4. पृथ्वी पर पहुँचने वाले सूर्यातप का मात्र 0.1 प्रतिशत भाग ही प्रकाश संश्लेषण में काम आता है। इसका आधे से अधिक भाग पौधों की श्वसन क्रिया में व्यय होता है और शेष ऊर्जा अस्थायी रूप से पौधों के अन्य भागों में संचित हो जाती है।

5. चट्टानों से मिट्टियों में आए कुछ रासायनिक तत्त्वों को वर्षा के जल के माध्यम से नदियाँ समुद्रों में पहुँचा देती हैं और .. वे अजैव तत्त्व जलमण्डल का अंग बन जाते हैं।

6. पौधे जिन पोषक तत्त्वों को मिट्टी से ग्रहण करते हैं वे आहार-शृंखला के माध्यम से विभिन्न पोषक तत्त्वों में स्थानांतरित होते रहते हैं। उदाहरणतः पौधों को शाकाहारी प्राणी खाते हैं। शाकाहारी प्राणियों को माँसाहारी प्राणी खाते हैं और इन दोनों को सर्वाहारी खाते हैं।

7. पौधों के सूखने और प्राणियों के मर जाने के बाद अपघटक जीव इन्हें फिर से अजैव रासायनिक तत्त्वों में बदल देते हैं अर्थात् इनका कुछ भाग गैसों के रूप में वायुमण्डल में जा मिलता है और अधिकांश भाग ह्यूमस तथा रसायनों के रूप में मिट्टी में मिल जाता है।

8. यही तत्त्व पौधों में पुनः उपयोग में आते हैं और यह जैव भू-रसायनिक चक्र अनवरत चलता रहता है। पिछले 100 करोड़ वर्षों में वायुमण्डल और जलवाष्प की संरचना में रासायनिक घटकों का सन्तुलन बिगड़ा नहीं है। रासायनिक तत्त्वों का यह सन्तुलन पौधों व प्राणी ऊतकों में होने वाले चक्रीय प्रवाह से बना हुआ है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

HBSE 11th Class Geography पृथ्वी पर जीवन Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में से कौन जैवमंडल में सम्मिलित हैं।
(A) केवल पौधे
(B) केवल प्राणी
(C) सभी जैव व अजैव जीव
(D) सभी जीवित जीव
उत्तर:
(C) सभी जैव व अजैव जीव

2. उष्णकटिबंधीय घास के मैदान निम्न में से किस नाम से जाने जाते हैं?
(A) प्रेयरी
(B) स्टैपी
(C) सवाना
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) सवाना

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3. चट्टानों में पाए जाने वाले लोहांश के साथ ऑक्सीजन मिलकर निम्नलिखित में से क्या बनाती है?
(A) आयरन सल्फेट
(B) आयरन कार्बोनेट
(C) आयरन ऑक्साइड
(D) आयरन नाइट्राइट
उत्तर:
(C) आयरन ऑक्साइड

4. प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया के दौरान, प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड जल के साथ मिलकर क्या बनाती है?
(A) प्रोटीन
(B) कार्बोहाइड्रेट्स
(C) एमिनोएसिड
(D) विटामिन
उत्तर:
(B) कार्बोहाइड्रेट्स

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
पारिस्थितिकी से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पारिस्थितिकी का सीधा सम्बन्ध जैविक तथा अजैविक तत्त्वों के पारस्परिक सम्बन्धों से है। जैव समूहों तथा जीवों और वातावरण के बीच जो सम्बन्ध होते हैं, उनका अध्ययन पारिस्थितिकी कहलाता है अर्थात् वातावरण तथा जीवों के मध्य पारस्परिक क्रियाओं के अध्ययन को ही पारिस्थितिकी कहते हैं।

प्रश्न 2.
पारितत्र (Ecological system) क्या है? संसार के प्रमुख पारितंत्र प्रकारों को बताएं।
उत्तर:
पारितन्त्र का अर्थ-पारितन्त्र पर्यावरण के सभी जैव तथा अजैव घटकों के एकीकरण का परिणाम है। दूसरे शब्दों में, जीव तथा उसके पर्यावरण के बीच की स्वतन्त्र इकाई को पारितन्त्र (Ecosystem) कहा जाता है।
पारितन्त्र के प्रकार-पारितन्त्र दो प्रकार के होते हैं-

  • जलीय पारितन्त्र (Terrestrial Ecosystem)
  • स्थलीय पारितन्त्र (Aquatic Ecosystem)

संसार के कुछ प्रमुख पारितंत्र निम्नलिखित हैं- वन, घास-क्षेत्र, मरुस्थल, झील, नदी, समुद्र इत्यादि।

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प्रश्न 3.
खाद्य श्रृंखला क्या है? चराई खाद्य शृंखला का एक उदाहरण देते हुए इसके अनेक स्तर बताएं।
उत्तर:
खाद्य श्रृंखला का अर्थ-भोजन अथवा ऊर्जा के एक पोषण तल से अन्य पोषण तलों तक पहुँचने की प्रक्रिया को खाद्य श्रृंखला (Food Chain) कहा जाता है।

एक पारितन्त्र में अनेक खाद्य शृंखलाएँ बनती हैं जिनमें चराई खाद्य शृंखला भी एक प्रमुख श्रृंखला है। यह शृंखला हरे पौधों (उत्पादक) से आरम्भ होकर माँसाहारी तक जाती है। इस श्रृंखला के विभिन्न स्तर निम्नलिखित हैं
घास → हरा टिड्डा → मेंढ़क → साँप → बाज

प्रश्न 4.
खाद्य जाल (Food web) से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित बताएं।
उत्तर:
खाद्य जाल का अर्थ-पारितन्त्र में खाद्य शृंखलाएँ स्वतन्त्र इकाइयों के रूप में नहीं चलती हैं। ये आपस में अन्य खाद्य श्रृंखलाओं से अलग स्तर पर जुड़ी रहती हैं और एक जाल-सा बनाती हैं, जिसे खाद्य जाल (Food Web) कहा जाता है।

उदाहरण-किसी चरागाह पारितन्त्र में हिरण, खरगोश, चरने वाले पशु-चूहे और सुनसुनिया आदि घास को अपना भोजन बनाते हैं। चूहों को साँप या शिकारी पक्षी खा सकते हैं तथा शिकारी पक्षी साँपों को भी खा सकते हैं। इसका अर्थ यह है कि उपभोक्ताओं के पास कई विकल्प मौजूद हैं जिस कारण पारितन्त्र में सन्तुलन बना रहता है।

प्रश्न 5.
बायोम (Biome) क्या है?
उत्तर:
बायोम-विशेष परिस्थितियों में पादप व जन्तुओं के अन्तर्सम्बन्धों के कुल योग को बायोम (Biome) कहते हैं। यह पौधों और प्राणियों का एक समुदाय है जो बड़े भौगोलिक क्षेत्र में पाया जाता है। संसार के प्रमुख बायोम हैं

  • वन बायोम
  • मरुस्थलीय बायोम
  • घास-भूमि बायोम
  • जलीय बायोम
  • उच्च प्रदेशीय बायोम।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
संसार के विभिन्न वन बायोम (Forest Biomes) की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
वन बायोम को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
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1. उष्ण कटिबन्धीय वन-ये दो प्रकार के होते हैं-

  • भूमध्य रेखीय वन
  • उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन।

भूमध्य रेखीय वन-

  • भूमध्य रेखीय वन भूमध्य रेखा से उत्तर व दक्षिण अक्षांश के बीच स्थित होते हैं।
  • इन वनों में तापमान 20° से 25°C के बीच रहता है।
  • इन क्षेत्रों की मिट्टी अम्लीय होती है जिसमें पोषक तत्त्वों की कमी होती है।
  • इन वनों में असंख्य वृक्षों के झुण्ड लम्बे व घने वृक्ष मिलते हैं।

उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन-

  • उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन 10° से 25° उत्तर व दक्षिण अक्षांशों के बीच पाए जाते हैं।
  • इन वनों का तापमान 25° से 30°C के बीच रहता है।
  • इन वनों में वार्षिक औसत वर्षा 1000 मि०मी० होती है।
  • इन वनों में कम घने तथा मध्यम ऊँचाई के वृक्ष मिलते हैं।
  • इन वनों में कीट, पतंगे, चमगादड़, पक्षी व स्तनधारी जीव पाए जाते हैं।

2. शीतोष्ण कटिबन्धीय वन-

  • इन वनों का तापमान 20° से 30° के बीच पाया जाता है।
  • इन वनों में वर्षा समान रूप से वितरित होती है तथा 750-1500 मि०मी० के बीच होती है।
  • इन वनों में पौधों की प्रजातियों में कम विविधता पाई जाती है। यहाँ ओक, बीच आदि वृक्ष पाए जाते हैं।
  • प्राणियों में गिलहरी, खरगोश, पक्षी तथा काले भालू आदि जन्तु पाए जाते हैं।

3. बोरियल वन-

  • इन वनों में छोटी आई ऋतु व मध्यम रूप से गर्म ग्रीष्म ऋतु तथा लम्बी शीत ऋतु पाई जाती है।
  • इन वनों में वर्षा मुख्यतः हिमपात के रूप में होती है जो 400-1000 मि०मी० होती है।
  • वनस्पति में पाइन, स्यूस आदि कोणधारी वृक्ष मिलते हैं।
  • प्राणियों में कठफोड़ा, चील, भालू, हिरण, खरगोश, भेड़िया व चमगादड़ आदि प्रमुख हैं।

प्रश्न 2.
जैव भू-रासायनिक चक्र (Biogeochemical Cycle) क्या है? वायुमंडल में नाइट्रोजन का यौगिकीकरण (Fixation) कैसे होता है? वर्णन करें।
उत्तर:
जैव भू-रासायनिक चक्र (Biogeochemical Cycle) पृथ्वी पर जीवन विविध प्रकार से जीवित जीवों के रूप में पाया जाता है। ये जीवधारी विविध प्रकार के पारिस्थितिक अन्तर्सम्बन्धों में जीवित हैं। जीवधारी बहुलता व विविधता में ही जीवित रह सकते हैं। जीवित रहने की प्रक्रिया में विविध प्रवाह; जैसे ऊर्जा, जल व पोषक तत्त्वों की उपस्थिति सम्मिलित है। विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि पिछले 100 वर्षों में वायुमण्डल व जलमण्डल की संरचना में रासायनिक घटकों का सन्तुलन लगभग एक समान रहा है। रासायनिक तत्त्वों का यह सन्तुलन पौधों व प्राणी ऊत्तकों से होने वाले चक्रीय प्रवाह के द्वारा बना रहता है। जैवमण्डल में जीवधारी व पर्यावरण के बीच में रासायनिक तत्त्वों के चक्रीय प्रवाह को जैव भू-रासायनिक चक्र कहा जाता है।

वायुमंडल में नाइट्रोजन का यौगिकीकरण-(Fixation)वायुमण्डल की स्वतन्त्र नाइट्रोजन को जीव-जन्तु प्रत्यक्ष रूप से ग्रहण करने में असमर्थ हैं परन्तु कुछ फलीदार पौधों की जड़ों में उपस्थित जीवाणु तथा नीली-हरी शैवाल (Blue green Algae) वायुमण्डल की नाइट्रोजन को सीधे ही ग्रहण कर सकते हैं और उसे नाइट्रोजन के यौगिकों में बदल देते हैं। इस प्रक्रिया को नाइट्रोजन यौगिकीकरण कहते हैं। शाकाहारी जन्तुओं द्वारा इन पौधों के खाने पर इसका कुछ भाग उनमें चला जाता है।

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प्रश्न 3.
पारिस्थितिक संतुलन (Ecological balance) क्या है? इसके असंतुलन को रोकने के महत्त्वपूर्ण उपायों की चर्चा करें।
उत्तर:
पारिस्थितिक सन्तुलन का अर्थ-किसी पारितन्त्र या आवास में जीवों के समुदाय में परस्पर गतिक साम्यता की अवस्था ही पारिस्थितिक सन्तुलन है। यह तभी सम्भव है जब जीवधारियों की विविधता अपेक्षाकृत स्थायी रहे। अतः पारितन्त्र में हर प्रजाति की संख्या में एक स्थायी सन्तुलन को भी पारिस्थितिक सन्तुलन (Ecological Balance) कहा जाता है।

पारिस्थितिक असन्तुलन को रोकने के उपाय-

  • जीव-जन्तुओं के आवास स्थानों को नष्ट नहीं करना चाहिए।
  • वन्य जीवों के शिकार पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए।
  • पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाना चाहिए।
  • वृक्षारोपण किया जाना चाहिए।
  • पर्यावरणीय कारकों का सही एवं उचित प्रयोग करना चाहिए।
  • जनसंख्या दबाव से भी पारिस्थितिकी बहुत प्रभावित हुई है अतः जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगानी चाहिए।
  • मानव के अधिक हस्तक्षेप से असंतुलन बढ़ता है, जिससे बाढ़ और कई जलवायु संबंधी परिवर्तन देखने को मिलते है। अतः मानव का पर्यावरण से छेड़छाड़ कम करना भी एक उपाय हो सकता है।

पृथ्वी पर जीवन HBSE 11th Class Geography Notes

→ जैवमण्डल (Biosphere)-जैवमण्डल पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी पौधों, जन्तुओं, प्राणियों और इनके चारों ओर के पर्यावरण के पारस्परिक अन्तर्संबंध से बनता है।

→ पारिस्थितिकी (Ecology)-भौतिक पर्यावरण और जीवों के बीच घटित होने वाली पारस्परिक क्रियाओं के अध्ययन को पारिस्थितिकी कहते हैं।

→ पारितंत्र (Ecosystem)-पारितंत्र पर्यावरण के सभी जैव तथा अजैव घटकों के समाकलन का परिणाम है।

→ स्वपोषित (Autotroph)- ऐसे पौधे जो प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन स्वयं अकार्बनिक पदार्थों से तैयार करते हैं, स्वपोषित कहलाते हैं।

→ खाद्य शृंखला (Food Chain)-पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह क्रमबद्ध स्तरों की एक श्रृंखला होती है, जिसे खाद्य श्रृंखला कहते हैं।

→ जैव भू-रासायनिक चक्र (Biogeochemical Cycle)-पारितंत्र में अजैव तत्त्वों का जैव तत्त्वों में बदलना तथा पुनः जैव तत्त्वों का अजैव तत्त्वों में बदल जाना, जैव भू-रासायनिक चक्र कहलाता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. महासागरों की सतह पर एक-साथ भिन्न-भिन्न लंबाई व दिशाओं वाली तरंगों के समूह को कहते हैं-
(A) स्वेल
(B) ‘सी’
(C) सर्फ
(D) बैकवाश
उत्तर:
(B) ‘सी’

2. किस महासागर में पवनों की दिशा बदलते ही धाराओं की दिशा बदल जाती है?
(A) हिंद महासागर में
(B) अंध महासागर में
(C) प्रशांत महासागर में
(D) आर्कटिक महासागर में
उत्तर:
(D) आर्कटिक महासागर में

3. तटीय भागों में टूटती हुई तरंगें कहलाती हैं-
(A) स्वेल
(B) ‘सी’
(C) सर्फ
(D) बैकवाश
उत्तर:
(C) सर्फ

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

4. क्यूरोशियो धारा उत्पन्न होती है-
(A) अटलांटिक महासागर में
(B) प्रशांत महासागर में
(C) हिंद महासागर में
(D) आर्कटिक महासागर में
उत्तर:
(B) प्रशांत महासागर में

5. सारगैसो सागर स्थित है-
(A) प्रशांत महासागर में
(B) दक्षिणी ध्रुव के पास
(C) भूमध्य सागर के पास
(D) अटलांटिक महासागर के मध्य में
उत्तर:
(D) अटलांटिक महासागर के मध्य में

6. निम्नलिखित में से कौन-सी धारा अटलांटिक महासागर में नहीं बहती?
(A) गल्फ स्ट्रीम
(B) लैब्रेडोर की धारा
(C) हंबोल्ट धारा
(D) फाकलैंड की धारा
उत्तर:
(C) हंबोल्ट धारा

7. निम्नलिखित में से कौन-सी गर्म धारा है?
(A) लैब्रेडोर की धारा
(B) फाकलैंड की धारा
(C) क्यूराइल की धारा
(D) फ्लोरिडा की धारा
उत्तर:
(D) फ्लोरिडा की धारा

8. दो लगातार शिखरों या गर्तों के बीच की दूरी कहलाती है-
(A) तरंग काल
(B) तरंग गति
(C) तरंग दैर्ध्य
(D) तरंग आवृत्ति
उत्तर:
(C) तरंग दैर्ध्य

9. निम्नलिखित में से कौन-सी समुद्री धारा ‘यूरोप का कंबल’ के उपनाम से जानी जाती है?
(A) कनारी
(B) बेंगुएला
(C) इरमिंजर
(D) गल्फ स्ट्रीम
उत्तर:
(D) गल्फ स्ट्रीम

10. कालाहारी मरुस्थल के पश्चिम में कौन-सी धारा बहती है? ।
(A) कनारी
(B) बेंगुएला
(C) इरमिंजर
(D) गल्फ स्ट्रीम
उत्तर:
(B) बेंगुएला

11. जापान व ताइवान के पूर्व में कौन-सी गर्म धारा बहती है?
(A) लैब्रेडोर की धारा
(B) क्यूरोशियो की धारा
(C) गल्फ स्ट्रीम
(D) फ्लोरिडा की धारा
उत्तर:
(B) क्यूरोशियो की धारा

12. ‘प्रणामी तरंग सिद्धांत’ निम्नलिखित में से किसकी उत्पत्ति की व्याख्या करता है?
(A) महासागरीय तरंग
(B) चक्रवात
(C) ज्वार-भाटा
(D) उपसागरीय भूकंप
उत्तर:
(C) ज्वार-भाटा

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

13. गर्म समुद्री धाराएँ
(A) ध्रुवों की ओर जाती हैं
(B) भूमध्य रेखा की ओर जाती हैं
(C) उष्ण कटिबंध की ओर जाती हैं
(D) कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच चलती हैं
उत्तर:
(A) ध्रुवों की ओर जाती हैं

14. अर्द्ध दैनिक ज्वार-भाटा प्रायः कितने समय बाद आता है?
(A) 24 घंटे बाद
(B) 12 घंटे 26 मिनट बाद
(C) 36 घंटे बाद
(D) 48 घंटे बाद
उत्तर:
(B) 12 घंटे 26 मिनट बाद

15. निम्नलिखित में से कौन-सी तीन गर्म समुद्री धाराएँ हैं?
(A) गल्फ स्ट्रीम – क्यूराइल – क्यूरोशियो
(B) क्यूरेशियो – क्यूराइल – कैलिफोर्निया
(C) क्यूरोशियो – गल्फ स्ट्रीम – मोजांबिक
(D) गल्फ स्ट्रीम – मोजांबिक – ब्राजील
उत्तर:
(D) गल्फ स्ट्रीम – मोजांबिक – ब्राजील

16. जिस द्वीप के द्वारा अगुलहास धारा दो भागों में विभक्त होती है, वह है
(A) जावा
(B) आइसलैंड
(C) क्यूबा
(D) मैडागास्कर
उत्तर:
(D) मैडागास्कर

17. गल्फ स्ट्रीम की धारा उत्पन्न होती है-
(A) बिस्के की खाड़ी में
(B) मैक्सिको की खाड़ी में
(C) हडसन की खाड़ी में
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) मैक्सिको की खाड़ी में

18. निम्नलिखित में से कौन समुद्री धाराओं के प्रवाहित होने का वास्तविक कारण नहीं है?
(A) पानी की लवणता में परिवर्तन
(B) पानी के ताप में परिवर्तन
(C) पानी की गहराई में परिवर्तन
(D) पानी के घनत्व में परिवर्तन
उत्तर:
(C) पानी की गहराई में परिवर्तन

19. सुनामी की उत्पत्ति किस कारणवश होती है?
(A) भूकम्प
(B) ज्वालामुखी
(C) समुद्र गर्भ में भूस्खलन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

20. समुद्री धाराओं के बहने का कारण है
(A) वायुदाब और पवनें
(B) पृथ्वी का परिभ्रमण और गुरुत्वाकर्षण
(C) भूमध्यरेखीय व ध्रुवीय प्रदेशों के असमान तापमान के कारण
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
तरंग की गति किस सूत्र से ज्ञात की जाती है?
उत्तर:
HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन 1

प्रश्न 2.
सुनामी की उत्पत्ति किन कारणों से होती है?
उत्तर:
भूकम्प, ज्वालामुखी, समुद्र के गर्भ में भूस्खलन आदि से।

प्रश्न 3.
समुद्री धाराएँ कितने प्रकार की होती हैं?
उत्तर:
समुद्री धाराएँ दो प्रकार की होती हैं-

  1. गर्म धारा तथा
  2. ठण्डी धारा।

प्रश्न 4.
किस महासागर में पवनों की दिशा बदलते ही धाराओं की दिशा बदल जाती है?
उत्तर:
हिन्द महासागर में।

प्रश्न 5.
‘सी’ क्या होती है?
उत्तर:
अव्यवस्थित व अनियमित समुद्री तरंगों को ‘सी’ कहा जाता है।

प्रश्न 6.
जापान व ताइवान के पूर्व में कौन-सी गर्म धारा बहती है?
उत्तर:
क्यूरोशियो धारा।

प्रश्न 7.
अन्ध महासागर की सबसे महत्त्वपूर्ण गर्म धारा कौन-सी है?
उत्तर:
गल्फ स्ट्रीम धारा।

प्रश्न 8.
न्यू-फाऊंडलैण्ड के निकट कोहरा क्यों उत्पन्न हो जाता है?
उत्तर:
गल्फ स्ट्रीम गर्म धारा तथा लैब्रेडोर ठण्डी धारा के मिलने के कारण।

प्रश्न 9.
कालाहारी मरुस्थल के पश्चिम में कौन-सी धारा बहती है?
उत्तर:
बेंगुएला धारा।

प्रश्न 10.
दो ज्वारों के बीच में कितना समय रहता है?
उत्तर:
12 घण्टे, 26 मिनट।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

प्रश्न 11.
उष्ण धाराएँ कहाँ-से-कहाँ चलती हैं?
उत्तर:
उष्ण क्षेत्रों से ठण्डे क्षेत्रों की ओर।

प्रश्न 12.
ठण्डी धाराएँ कहाँ-से-कहाँ चलती हैं?
उत्तर:
ठण्डे क्षेत्रों से उष्ण क्षेत्रों की ओर।

प्रश्न 13.
सागर की प्रमुख समुद्री धाराएँ किन पवनों का अनुगमन करती हैं?
उत्तर:
सनातनी अथवा प्रचलित पवनों का।

आल-लघलरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
महासागरीय जल के परिसंचरण के मुख्य रूप कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. तरंगें
  2. धाराएँ और
  3. ज्वार-भाटा।

प्रश्न 2.
पवन द्वारा उत्पन्न तरंगें कौन-कौन सी होती हैं?
उत्तर:

  1. सी
  2. स्वेल तथा
  3. सर्फ।

प्रश्न 3.
बृहत् ज्वार कब आता है?
उत्तर:
अमावस्या तथा पूर्णिमा के दिन जब पृथ्वी, चन्द्रमा तथा सूर्य एक सीध में आ जाते हैं।

प्रश्न 4.
लघु ज्वार कब आता है?
उत्तर:
शुक्ल व कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन जब सूर्य तथा चन्द्रमा पृथ्वी के केन्द्र पर समकोण बनाते हैं।

प्रश्न 5.
जल तरंग के दो प्रमुख घटक अथवा भाग कौन-से होते हैं?
उत्तर:

  1. तरंग शीर्ष
  2. तरंग गर्त या द्रोणी।

प्रश्न 6.
‘सी’ क्या होती है?
उत्तर:
अव्यवस्थित व अनियमित समुद्री तरंगों को ‘सी’ कहा जाता है।

प्रश्न 7.
सर्फ किसे कहते हैं?
उत्तर:
तटीय भागों में टूटती हुई तरंगों को सर्फ कहते हैं।

प्रश्न 8.
तरंगों द्वारा कौन-कौन सी स्थलाकृतियों की रचना होती है?
उत्तर:
भृगु, वेदी, खाड़ियाँ, कन्दराएँ, पुलिन तथा लैगून इत्यादि।

प्रश्न 9.
गल्फ स्ट्रीम धारा तथा क्यूरोशियो धारा किन पवनों के प्रभाव से किस दिशा में बहती हैं?
उत्तर:
गल्फ स्ट्रीम धारा तथा क्यूरोशियो धारा पछुआ पवनों के प्रभाव से पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हैं।

प्रश्न 10.
न्यू-फाऊंडलैण्ड के निकट कोहरा क्यों उत्पन्न हो जाता है?
उत्तर:
गल्फ स्ट्रीम गर्म धारा तथा लैब्रेडोर ठण्डी धारा के मिलने के कारण।

प्रश्न 11.
हम्बोल्ट धारा कहाँ बहती है?
उत्तर:
दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट पर दक्षिण से उत्तर की ओर। इसे पीरुवियन ठण्डी धारा भी कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

प्रश्न 12.
प्रशान्त महासागर की दो ठण्डी धाराएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. पूरू की धारा
  2. कैलीफोर्निया की धारा।

प्रश्न 13.
ज्वार-भाटा की उत्पत्ति का कारण क्या है?
उत्तर:
चन्द्रमा, सूर्य और पृथ्वी की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति।

प्रश्न 14.
एक पिण्ड से दूसरे पिण्ड पर गुरुत्व बल की तीव्रता किन दो बातों पर निर्भर करती है?
उत्तर:

  1. उस पिण्ड का भार तथा
  2. दोनों पिण्डों के बीच की दूरी।

प्रश्न 15.
तरंगों के आकार और बल को कौन-से कारक नियन्त्रित करते हैं? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
समुद्री तरंगें जल की सतह पर पवनों के दबाव या घर्षण से उत्पन्न होती हैं। तरंगों का आकार और बल तीन कारकों पर निर्भर करता है

  1. पवन की गति
  2. पवन के बहने की अवधि और
  3. पवन के निर्विघ्न बहने की दूरी अर्थात् समुद्र का विस्तार।

प्रश्न 16.
सागरीय तरंगों के भौगोलिक महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अनाच्छादन के अन्य साधनों की भाँति समुद्री तरंगें भी अपरदन और निक्षेपण कार्यों द्वारा नाना प्रकार की स्थलाकृतियाँ बनाती हैं। तरंगों द्वारा निर्मित मुख्य स्थलाकृतियाँ भृगु (Cliff), वेदी (Platform), खाड़ियाँ (Bays), कन्दराएँ (Caves), पुलिन (Beaches) तथा लैगून (Lagoons) हैं।

प्रश्न 17.
महासागरीय धाराएँ क्या होती हैं?
उत्तर:
महासागरों के एक भाग से दूसरे भाग की ओर निश्चित दिशा में बहुत दूरी तक जल के निरन्तर प्रवाह को महासागरीय धारा कहते हैं। धारा के दोनों किनारों पर तथा नीचे समुद्री जल स्थिर रहता है। वास्तव में समुद्री धाराएँ स्थल पर बहने वाली नदियों जैसी होती हैं लेकिन ये स्थलीय नदियों की अपेक्षा स्थिर और विशाल होती हैं।

प्रश्न 18.
किन-किन कारकों के सम्मिलित प्रयास से महासागरीय धाराओं की उत्पत्ति होती है?
उत्तर:
महासागरीय धाराओं की उत्पत्ति में निम्नलिखित कारक सम्मिलित होते हैं-

  1. प्रचलित पवनें
  2. तापमान में भिन्नता
  3. लवणता में अन्तर
  4. वाष्पीकरण
  5. भू-घूर्णन
  6. तटों की आकृति।

प्रश्न 19.
ज्वार-भाटा दिन में दो बार क्यों आता है?
उत्तर:
एक समय में पृथ्वी के दो स्थानों पर ज्वार व दो स्थानों पर भाटा उत्पन्न होते हैं। पृथ्वी अपने अक्ष पर लगभग 24 घण्टों में घूमकर एक चक्कर (Rotation) पूरा करती है। इससे पृथ्वी के प्रत्येक स्थान को दिन में दो बार ज्वार वाली स्थिति से व दो बार भाटा वाली स्थिति से गुज़रना पड़ता है। अतः पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ही पृथ्वी के प्रत्येक स्थान पर एक दिन में दो बार ज्वार व दो बार भाटा अवश्य आते हैं।

प्रश्न 20.
उदावन (Swash) क्या होता है?
उत्तर:
समुद्री तरंग के टूटने पर तट की ढाल के विरुद्ध ऊपर की ओर चढ़ता हुआ विक्षुब्ध (Turbulent) जल जो बड़े आकार की तटीय अपरदन से उत्पन्न सामग्री को बहा ले जा सकता है उदावन कहलाता हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
तरंगें क्या हैं? तरंगों की विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तरंगें तरंगे महासागरीय जल की दोलायमान गति है जिसमें जल स्थिर रहता है और अपने स्थान पर ही ऊपर-नीचे और आगे-पीछे होता रहता है। तरंग एक ऊर्जा है।

तरंग की विशेषताएँ-

  1. तरंग शिखर एवं गर्त तरंग के उच्चतम और निम्नतम बिन्दुओं को क्रमशः शिखर एवं गर्त कहा जाता है।
  2. तरंग की ऊँचाई-यह एक तरंग के गर्त के अधःस्थल से शिखर के ऊपरी भाग तक की उर्ध्वाधर दूरी है।
  3. तरंग आयाम-यह तरंग की ऊँचाई का आधा होता है।
  4. तरंग काल-तरंग काल एक निश्चित बिन्दु से गुजरने वाले दो लगातार तरंग शिखरों या गर्मों के बीच समयान्तराल है।
  5. तरंगदैर्ध्य यह दो लगातार शिखरों या गर्तों के बीच की दूरी है।
  6. तरंग गति जल के माध्यम से तरंग के गति करने की दर को तरंग गति कहते हैं।
  7. तरंग आवृत्ति-यह एक सैकिण्ड के समयान्तराल में दिए गए बिन्दु से गुजरने वाली तरंगों की संख्या है।

प्रश्न 2.
समुद्री तरंगें क्या हैं? समुद्री तरंग के प्रमुख घटकों (Components) की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
समुद्री तरंगें महासागरों की सतह पर पवनों के घर्षण के प्रभाव से जल अपने ही स्थान पर एकान्तर क्रम से ऊपर-नीचे और आगे-पीछे होने लगता है, इसे समुद्री तरंगें कहते हैं।

समुद्री तरंग के प्रमुख घटक-पवन के प्रभाव से जब तरंग या लहर का जन्म होता है तो इसका कुछ भाग ऊपर उठा हुआ और कुछ भाग नीचे धंसा हुआ होता है। तरंग का ऊपर उठा हुआ भाग तरंग-श्रृंग (Crest of the wave) कहलाता है, जबकि दूसरा नीचे धंसा हुआ भाग तरंग-गर्त या द्रोणी (Trough of the wave) कहलाता है।

तरंग के एक शृंग से दूसरे शृंग तक या एक द्रोणी से दूसरी द्रोणी तक की दूरी को तरंग की लम्बाई (Wavelength) कहा जाता है। द्रोणी से शृंग तक की ऊँचाई को तरंग की ऊँचाई कहा जाता है। किसी भी निश्चित स्थान पर दो लगातार तरंगों के गुज़रने की अवधि को तरंग का आवर्त काल (Wave Period) कहा जाता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

प्रश्न 3.
लहरों (तरंगों) तथा धाराओं में क्या अन्तर है?
उत्तर:
लहरों (तरंगों) तथा धाराओं में निम्नलिखित अन्तर हैं-

लहरें धाराएँ
1. इनका आकार जल की गहराई पर निर्भर करता है। 1. ये जल की विशाल राशियाँ होती हैं।
2. ये अस्थायी होती हैं तथा बनती-बिगड़ती रहती हैं। 2. ये स्थायी होती हैं तथा निरन्तर दिशा में चलती हैं।
3. लहरें महासागरीय जल की दोलायमान गति हैं जिसमें जल ऊपर-नीचे का स्थान छोड़कर आगे नहीं बढ़ता। 3. धाराओं का जल नदी के समान है जिसमें जल अपना स्थान छोड़कर आगे बढ़ता है।
4. ये जल की ऊपरी सतह क्षेत्र तक ही सीमित हों। 4. इनका प्रभाव काफी गहराई तक होता है।
5. लहरें पवनों के वेग पर निर्भर करती हैं। 5. धाराएँ स्थायी पवनों के प्रभाव से निश्चित दिशा में चलती हैं।

प्रश्न 4.
ज्वार-भाटा के महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ज्वार-भाटा का महत्त्व निम्नलिखित प्रकार से है-
1. जब ज्वार-भाटा आता है तो उससे जल-विद्युत उत्पन्न की जा सकती है। कनाडा, फ्रांस, रूस तथा चीन में ज्वार का इस्तेमाल विद्युत शक्ति उत्पन्न करने में किया जा रहा है। एक 3 मैगावाट का विद्युत शक्ति संयंत्र
पश्चिम बंगाल में सुन्दरवन के दुर्गादुवानी में लगाया जा रहा है।

2. ज्वार-भाटा के समय समुद्रों से बहुत-सी बहुमूल्य वस्तुएँ; जैसे सीपियाँ, कोड़ियाँ आदि बाहर आ जाते हैं।

3. ज्वार-भाटा के समय लहरें बन्दरगाहों के तटीय भागों का कूड़ा-कर्कट बहाकर समुद्र में ले जाती हैं, जिससे नगर के समीपवर्ती भाग स्वच्छ हो जाते हैं।

4. ज्वार-भाटा के द्वारा नदियों के मुहाने का कीचड़ तथा तलछट साफ हो जाता है या बहाकर ले जाया जाता है, जिससे जहाज नदियों के मुहाने तक आसानी से आ और जा सकते हैं तथा व्यापार में सुविधा रहती है। माल को तट तक पहुँचाया जा सकता है तथा निर्यातक माल को आसानी से जहाजों में बाहर भेज सकते हैं।

5. समुद्रों के जल में ज्वार-भाटा की गति के कारण सागरीय जल, शुद्ध तथा स्वच्छ रहता है।

6. जब समुद्रों में ज्वार-भाटा आता है तो मछली पकड़ने वाले मछुआरे खुले सागर में मछली पकड़ने जाते हैं और ज्वार के समय आसानी से तट तक लौट आते हैं।

7. ज्वार-भाटा के कारण बन्दरगाह जम नहीं पाते तथा व्यापार के लिए खुले रहते हैं।

प्रश्न 5.
वृहत् ज्वार तथा निम्न ज्वार में क्या अन्तर है?
उत्तर:
वृहत् ज्वार तथा निम्न ज्वार में निम्नलिखित अन्तर हैं-

वृहत्त ज्वार निम्न ज्यार
1. पूर्णमासी (Full Moon) तथा अमावस्या (New Moon) के दिन सूर्य, चन्द्रमा तथा पृथ्वी के एक सीध में होने के कारण संयुक्त गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण समुद्र का जल अधिक ऊँचाई तक पहुँच जाता है, जिसे उच्च ज्वार या वृहत् ज्यार कहते हैं। 1. कृष्ग तथा शुक्ल पक्ष की सप्तमी अथवा अष्टमी के दिन सूर्य तथा चन्द्रमा पृथ्वी के साथ समकोण पर स्थित होने के कारण महासागरों में ज्वार की ऊँचाई कम रह जाती है, जिसे निम्न ज्वार कहते हैं।
2. उच्च ज्वार प्रायः साधारण ज्यार की तुलना में 20% अधिक ऊँचा होता है। 2. निम्न ज्वार प्रायः साधारण ज्वार की तुलना में 20% कम ऊँचा होता है।

प्रश्न 6.
महासागरीय धाराओं के जलवायु पर प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महासागरीय धाराओं का मुख्य रूप से आसपास के क्षेत्रों की जलवायु पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है, जो निम्नलिखित है-
जलवायु पर प्रभाव – किसी भी क्षेत्र में बहने वाली धाराओं का उसके समीपवर्ती भागों पर अत्यधिक प्रभाव देखने को मिलता है। यदि गर्म जल धारा प्रवाहित होती है तो तापक्रम को बढ़ा देती है, जबकि ठण्डी धारा जिस क्षेत्र से गुजरती है वहाँ का तापमान गिर जाता है। उदाहरणार्थ, ब्रिटिश द्वीप समूह का अक्षांश न्यू-फाउण्डलैण्ड के अक्षांश से अधिक है, लेकिन गल्फ स्ट्रीम की गर्म धारा के प्रभाव से ब्रिटिश द्वीप समूहों की जलवायु सुहावनी रहती है और यह कड़ाके की ठण्ड से बचा रहता है, जबकि न्यू-फाउण्डलैण्ड के आसपास लैब्रेडोर की ठण्डी धारा के प्रभाव के कारण तापक्रम काफी गिर जाता है और यहाँ लगभग 9 माह तक बर्फ जमी रहती है।

वर्षा की मात्रा भी जल धाराओं से प्रभावित होती है। गर्म जल धाराओं के ऊपर बहने वाली हवाएँ गर्म होती है तथा अधिक जलवाष्प ग्रहण करती हैं, जबकि इसके विपरीत ठण्डी जल धाराओं के ऊपर की वायु शुष्क तथा शीतल होने से वर्षा नहीं करती। उदाहरणार्थ, पश्चिमी यूरोप के तटवर्ती भागों में गल्फ स्ट्रीम के प्रभाव से अधिक वर्षा होती है, जबकि पश्चिमी आस्ट्रेलिया के तटों के साथ ठण्डी धाराओं के प्रभाव के कारण वर्षा भी कम होती है।

प्रश्न 7.
पवनों द्वारा उत्पन्न तीन प्रकार की समुद्री तरंगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सागरीय जल की सतह पर पवनों की रगड़ द्वारा तरंगों का निर्माण होता है। पवनें तरंगों की गति में भी संचार करती हैं। तरंगों का आकार भी पवनों की गति तथा अवधि पर निर्भर करता है। पवनों द्वारा निर्मित तरंगें तीन प्रकार की हैं-
1. सी (Sea) लहरों के अनियमित तथा अव्यस्थित रूप को ‘सी’ कहते हैं। इनका निर्माण पवनों के महासागरों पर अनियमित रूप से चलने के कारण होता है।

2. स्वेल या महातरंग (Swell) जब समुद्रों में पवन के वेग के कारण तरंगें बनती हैं और तरंगें पवनों के प्रभाव-क्षेत्र से काफी दूर चली जाती हैं तो तरंगें समान ऊँचाई तथा अवधि से आगे बढ़ती हैं, जिसे स्वेल कहते हैं।

3. सर्फ (Surf)-जब तरंगें महासागरीय भागों से समुद्र के तटवर्ती भागों की ओर आती हैं और तटीय भाग पर खड़ी चट्टानों से टकराती हैं तो ऊँचाई की ओर बढ़ती हैं और फिर टकराकर उनका श्रृंग आगे की ओर झुककर और फिर टूटकर सागर में गिर जाता है तो उसे सर्फ या फेनिल तरंग कहते हैं।

प्रश्न 8.
पवनों के अतिरिक्त अन्य कारकों द्वारा उत्पन्न समुद्री तरंगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पवनों के अतिरिक्त अन्य कारकों द्वारा उत्पन्न समुद्री तरंगों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है-
1. प्रलयकारी तरंगें (Catastrophic Waves)-इन तरंगों की उत्पत्ति ज्वालामुखी, भूकम्प या महासागरों में हुए भूस्खलन के कारण होती है, इन्हें सुनामी (Tsunami) भी कहते हैं। सुनामी जापानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है “agreat harbour wave”।

2. तूफानी तरंगें (Stormy Waves) इनकी ऊँचाई भी अधिक होती है और ये तटीय क्षेत्रों पर भारी विनाशलीला करती हैं।

3. अन्तःतरंगें (Internal Waves) अन्तःतरंगें दो भिन्न घनत्व वाली समुद्री परतों के सीमा तल पर उत्पन्न होती हैं।

प्रश्न 9.
तापमान के आधार पर महासागरीय धाराओं के दो मोटे वर्ग कौन-से हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तापमान के आधार पर महासागरीय धाराओं को दो मोटे वर्गों में रखा जाता है-
1. गर्म धाराएँ (Warm Currents) ये धाराएँ उष्ण क्षेत्रों से ठण्डे क्षेत्रों की ओर चलती हैं। ऐसी धाराएँ जो भूमध्य रेखा के निकट से ध्रुवों की ओर चलती हैं, गर्म धाराएँ कहलाती हैं।

2. ठण्डी धाराएँ (Cold Currents) ये धाराएँ ठण्डे क्षेत्रों से उष्ण क्षेत्रों की ओर चलती हैं। ऐसी धाराएँ जो उच्च अक्षांशों व ध्रुवों के निकट से भूमध्य रेखा की ओर चलती हैं, ठण्डी धाराएँ कहलाती हैं।

प्रश्न 10.
महासागरीय जलधाराओं की सामान्य विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
महासागरीय जलधाराओं की सामान्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • जलधाराएँ हमेशा एक निश्चित दिशा में बहती हैं।
  • उच्च अक्षांशों में गर्म जल की धाराएँ महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर तथा ठण्डे जल की धाराएँ महाद्वीपों के पूर्वी तटों पर बहती हैं।
  • निम्न अक्षांशों में गर्म जल की धाराएँ महाद्वीपों के पूर्वी तटों पर तथा ठण्डे जल की धाराएँ महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर बहती हैं।
  • निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों की ओर बहने वाली धाराएँ गर्म जल की धाराएँ कहलाती हैं।
  • उच्च अक्षांशों से निम्न अक्षांशों की ओर बहने वाली धाराएँ ठण्डे जल की धाराएँ कहलाती हैं।

प्रश्न 11.
यदि महासागरीय धाराएँ न होतीं तो विश्व का क्या हुआ होता?
उत्तर:
यदि महासागरीय धाराएँ न होतीं तो विश्व की निम्नलिखित स्थिति होती-

  • तटीय प्रदेशों की वर्षा, तापमान व आर्द्रता पर किसी तरह का प्रभाव न पड़ता।
  • ऊँचे अक्षांशों में बन्दरगाहें जमीं रहतीं और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में बाधा पहुँचती।
  • ठण्डी धाराओं के अभाव में नाशवान वस्तुओं (Perishable Goods) का समुद्री परिवहन सम्भव नहीं हो पाता।
  • विश्व-प्रसिद्ध मत्स्य ग्रहण क्षेत्र विकसित न हो पाते।
  • धाराओं के अभाव में जलयान उनका अनुसरण न कर पाते। परिणामस्वरूप समय व ईंधन की बचत न हो पाती।
  • यूरोप की जलवायु सुहावनी न होती तथा शीतोष्ण कटिबन्ध में वर्षा कम होती।
  • महाद्वीपों के पश्चिमी किनारे मरुस्थलीय न होते।

प्रश्न 12.
समुद्री धाराओं के नकारात्मक प्रभावों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए। अथवा धाराओं से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
समुद्री धाराओं के नकारात्मक प्रभाव या हानियाँ निम्नलिखित हैं-
1. धाराओं के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी होते हैं। भिन्न तापमान वाली धाराओं के मिलन-स्थल पर घना कुहासा उत्पन्न हो जाता है जो जलयानों के आवागमन को बाधित करता है।

2. ध्रवीय क्षेत्रों से आने वाली धाराएँ अपने साथ बड़ी-बड़ी हिमशैलें (Icebergs) बहा लाती हैं जिनके टकराने से बड़े-बड़े जलयान चकनाचूर हो जाते हैं। सन् 1912 में टाईटैनिक (Titanic) नामक विश्व प्रसिद्ध व उस समय का आधुनिक और सबसे बड़ा जहाज, न्यूफाऊंडलैण्ड के निकट एक हिमशैल से टकराकर 1517 सवारियों के साथ उत्तरी अन्ध महासागर की तली में जा टिका।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

प्रश्न 13.
ज्वार-भाटा कैसे उत्पन्न होते हैं?
उत्तर:
ज्वार-भाटा सूर्य, चन्द्रमा तथा पृथ्वी के पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण के कारण उत्पन्न होते हैं। सूर्य, पृथ्वी तथा चन्द्रमा से आकार में कई गुणा बड़ा है, परन्तु सूर्य की अपेक्षा चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण का पृथ्वी पर अधिक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि चन्द्रमा पृथ्वी के निकट है। परिभ्रमण करती हुई पृथ्वी का जो धरातलीय भाग चन्द्रमा के सामने आ जाता है, उसकी दूरी सबसे कम तथा उसके विपरीत वाला धरातलीय भाग सबसे दूर होता है। सबसे नजदीक वाले भाग का ज्वारीय उभार ऊपर होगा, इसे उच्च ज्वार कहते हैं। जिस स्थान पर जल-राशि कम रह जाती है, वहाँ जल अपने तल से नीचे चला जाता है, उसे निम्न ज्वार कहते हैं। पृथ्वी की दैनिक गति के कारण प्रत्येक स्थान पर 24 घण्टे में दो बार ज्वार-भाटा आता है।

प्रश्न 14.
ज्वार-भाटा कितने प्रकार का होता है? व्याख्या कीजिए।
अथवा
बृहत् ज्वार-भाटा और लघु ज्वार-भाटा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ज्वार की ऊँचाई पृथ्वी के सन्दर्भ में सूर्य और चन्द्रमा की सापेक्षिक स्थितियों के बदलने से घटती-बढ़ती रहती है। इस आधार पर ज्वार-भाटा दो प्रकार के होते हैं-
1. बहत ज्वार-भाटा (Spring Tide)-पूर्णमासी (Full Moon) और अमावस्या (New Moon) को सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी एक सीध में आ जाते हैं जिससे पृथ्वी पर चन्द्रमा तथा सूर्य के संयुक्त गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव पड़ता है। परिणामस्वरूप इन दोनों दिनों में साधारण दिनों की अपेक्षा जल का उतार-चढ़ाव अधिकतम होता है। इसे उच्च या बृहत् ज्वार-भाटा कहते हैं।

2. लघु ज्वार-भाटा (Neap Tide) शुक्ल तथा कृष्ण पक्ष की सप्तमी या अष्टमी के दिन सूर्य और चन्द्रमा पृथ्वी के केन्द्र ओं में आ जाते हैं। ऐसी स्थितियों में सर्य और चन्द्रमा के गरुत्व बल पथ्वी पर एक-दूसरे के विरुद्ध काम करते हैं। परिणामस्वरूप इन दोनों दिनों में महासागरों में जल का उतार-चढ़ाव साधारण दिनों के उतार-चढ़ाव की अपेक्षा कम होता है। इसे लघु ज्वार-भाटा कहते हैं।

प्रश्न 15.
ज्वारीय धारा (Tidal Current) क्या होती है?
उत्तर:
जब कोई खाड़ी खुले सागरों और महासागरों के साथ एक संकीर्ण मार्ग के साथ जुड़ी हुई होती है तब ज्वार के समय महासागर का जल-तल खाड़ी के जल-तल से ऊँचा हो जाता है। परिणामस्वरूप खाड़ी के संकीर्ण प्रवेश मार्ग के द्वारा एक द्रव-प्रेरित धारा (Hydraulic Current) खाड़ी में प्रवेश करती है। जब भाटा के समय समुद्र तल नीचा हो जाता है तो खाड़ी का जल-तल महासागर के जल-तल से ऊँचा बना रहता है। ऐसी दशा में एक तीव्र द्रव-प्रेरित धारा खाड़ी से समुद्र की ओर बहने लग जाती है। खाड़ी के अन्दर तथा बाहर की ओर जल के इस प्रवाह को ज्वारीय धारा कहते हैं।

प्रश्न 16.
ज्वारीय भित्ति (Tidal Bore) किसे कहते हैं? इसका क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जब कोई ज्वारीय धारा किसी नदी के छिछले और सँकरे नदमुख (Estuary) में प्रवेश करती है तो वह नदी के विपरीत दिशा में प्रवाह से टकराती है। नदी तल के घर्षण तथा दो विपरीत प्रवाहों के टकराने से जल एक तीव्र चोंच वाली ऊँची दीवार के रूप में नदी में प्रवेश करता है। इसे ज्वारीय भित्ति कहते हैं। भारत में हुगली नदी के मुहाने पर ज्वारीय भित्तियों की उत्पत्ति एक आम बात है। ज्वारीय भित्ति प्रायः दीर्घ ज्वार के समय आती है। इन भित्तियों की ऊँचाई 4 से 50 फुट तक आंकी गई है। ज्वारीय भित्तियों से छमेरी नावों को हानि उठानी पड़ती है।

प्रश्न 17.
प्रवाह (Drift), धारा (Current) तथा विशाल धारा (Stream) में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रवाह-जब पवन से प्रेरित होकर सागर की सतह का जल आगे की ओर बढ़ता है तो उसे प्रवाह (Drift) कहते हैं। इसकी गति और सीमा तय नहीं होती। प्रवाह की गति मन्द होती है और इसमें केवल ऊपरी सतह का जल ही गतिशील होता है; जैसे दक्षिणी अटलांटिक प्रवाह।

धारा-महासागरों के एक भाग से दूसरे भाग की ओर निश्चित दिशा में बहुत दूरी तक जल के निरन्तर प्रवाह को धारा (Current) कहते हैं। यह प्रवाह से तेज़ गति की होती है; जैसे लैब्रेडोर धारा।

विशाल धारा-जब महासागर का अत्यधिक जल स्थलीय नदियों की भाँति एक निश्चित दिशा में गतिशील होता है तो उसे विशाल धारा (Stream) कहते हैं। इसकी गति प्रवाह और धारा दोनों से अधिक होती है; जैसे गल्फ स्ट्रीम।

प्रश्न 18.
ज्वार-भाटा से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ज्वार-भाटे से निम्नलिखित हानियाँ होती हैं-

  1. ज्वार-भाटा या ज्वारीय भित्ति के कारण कई बार छोटे जहाज़ों को हानि पहुँचती है और छोटी नावें तो डूब ही जाती हैं।
  2. ज्वार से बन्दरगाहों के समीप रेत जमना (Siltation) शुरू हो जाता है जिससे जहाजों की आवाजाई में रुकावट पैदा होती है।
  3. ज्वार-भाटा डेल्टा के निर्माण में बाधा उत्पन्न करता है।
  4. ज्वार के समय मछली पकड़ने का काम बाधित होता है।
  5. ज्वार का पानी तटीय प्रदेशों में दलदल जैसी हालत पैदा कर देता है।

प्रश्न 19.
उत्तरी हिन्द महासागर में शीत एवं ग्रीष्म ऋतुओं में समुद्री जलधाराएँ अपनी दिशा क्यों बदलती हैं?
उत्तर:
उत्तरी हिन्द महासागर में शीत एवं ग्रीष्म ऋतुओं में समुद्री जलधाराएँ मानसून पवनों के कारण अपनी दिशा में परिवर्तन करती हैं। शीत ऋतु में उत्तर:पूर्व मानसून पवनों के प्रभाव के कारण उत्तरी हिन्द महासागर की मानसूनी धारा उत्तर पूर्व से भूमध्य रेखा की ओर बहने लगती है जिसे उत्तर-पूर्वी मानसून प्रवाह कहते हैं। ग्रीष्म ऋतु में मानसून की दिशा दक्षिण-पश्चिम हो जाती है जिससे भूमध्य रेखीय धारा का कुछ जल उत्तरी हिन्द महासागर में उत्तर:पूर्वी अफ्रीका तट के सहारे सोमाली की धारा के रूप में बहने लगता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जल धाराओं की उत्पत्ति के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जल धाराओं की उत्पत्ति के निम्नलिखित कारण हैं-

  • पृथ्वी की परिभ्रमण अथवा घूर्णन गति से सम्बन्धित कारक
  • अन्तः सागरीय या महासागरों से सम्बन्धित कारक
  • बाह्य सागरों से सम्बन्धित कारक

1. पृथ्वी की परिभ्रमण अथवा घूर्णन गति से सम्बन्धित कारक-पृथ्वी के घूर्णन या गुरुत्वाकर्षण बल की धाराओं की उत्पत्ति पर प्रभाव पड़ता है। पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूम रही है। सम्पूर्ण पृथ्वी जल तथा स्थल दो मण्डलों में विभक्त होने के कारण परिभ्रमण में जलीय भाग स्थल का साथ नहीं दे पाते। अतः जल तरल होने के कारण विपरीत दिशा में पूर्व से पश्चिम की ओर गति करना आरम्भ कर देता है और उत्तरी गोलार्द्ध में धाराएँ भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर तथा ध्रुवों से भूमध्य रेखा की ओर चलने लगती हैं, अर्थात विक्षेपक बल के कारण धाराएँ दाईं ओर मुड़ जाती हैं। उदाहरणार्थ गल्फ स्ट्रीम और क्यूरोसियो की गरम जल धाराएँ भूमध्य रेखा के उत्तर में दाईं ओर (उत्तर:पूर्व) होती हैं।

2. महासागरों से सम्बन्धित कारक-अन्तः सागरीय कारकों से तात्पर्य है कि सागर से सम्बन्धित कारकों का धाराओं की उत्पत्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है। इनमें तापक्रम की विभिन्नता, सागरीय लवणता तथा घनत्व की विभिन्नता सम्मिलित है।

(क) तापक्रम की विभिन्नता-सूर्य की किरणें पृथ्वी पर अलग-अलग अक्षांशों पर भिन्न-भिन्न कोण बनाती हैं। भूमध्य रेखा तथा कर्क और मकर रेखाओं के मध्य सूर्य की किरणें वर्ष-भर लगभग लम्बवत् चमकती हैं जिससे तापक्रम की मात्रा अधिक होती है। भूमध्य रेखा के निकटवर्ती समुद्र अधिक ताप ग्रहण करते हैं, जिससे समुद्री जल हल्का होकर ध्रुवों की ओर अधिक घनत्व वाले स्थानों की ओर अग्रसर हो जाता है। उसकी आपूर्ति के लिए ध्रुवीय क्षेत्रों से अधिक घनत्व वाला जल आ जाता है। इस प्रकार जल राशि का प्रवाह धाराओं के रूप में होने लगता है।

(ख) महासागरीय लवणता सभी समुद्रों में लवणता पाई जाती है, लेकिन लवणता की मात्रा सर्वत्र समान नहीं है। जो सागरीय भाग अधिक लवणता वाले होते हैं, उनके पानी का घनत्व भी कम होता है इसलिए अधिक खारा पानी अधिक घनत्व के कारण नीचे तथा कम खारा पानी सागर की ओर प्रवाहित होकर धाराओं को जन्म देता है। उदाहरणार्थ उत्तरी अटलांटिक महासागर का जल भूम य रेखीय समुद्रों के जल से कम खारा होता है जिसके फलस्वरूप उत्तरी अटलांटिक का जल जिब्राल्टर से होकर अधिक लवणता वाले भूमध्य सागर की ओर प्रवाहित होता है और भूमध्य सागर का जल खारा होने से नीचे बैठता है और अन्तःप्रवाह द्वारा अटलांटिक महासागर में प्रवेश करता है।

3. बाह्य सागरों से सम्बन्धित कारक महासागरों में वायुमण्डलीय बाह्य कारकों का धाराओं की उत्पत्ति पर प्रभाव पड़ता है। वायुमण्डलीय दाब, पवनें, वर्षा, वाष्पीकरण आदि का धाराओं के विकास पर प्रभाव दिखाई देता है।

(क) प्रचलित पवनें हवाओं की दिशा तथा उनके चलने से महासागरीय जल की सतह पर घर्षण (friction) से पवनें अपनी दिशा में जल का प्रवाह करती हैं अर्थात् पवनें जिस दिशा में चलती हैं समुद्री जल को उसी दिशा में धकेलती हैं। स्थायी पवनें (प्रचलित पवनें) सदैव एक ही दिशा में चलती हैं; जैसे कर्क और मकर रेखाओं के बीच व्यापारिक पवनों की दिशा पूर्व से पश्चिम होती है। इसलिए धाराएँ भी पूर्व से पश्चिम की ओर चलती हैं और शीतोष्ण कटिबन्ध में इनकी दिशा पश्चिम से पूर्व (पछुवा पवनों के अनुरूप) भी होती हैं।

(ख) वाष्पीकरण और वर्षा (Evaporation and Rainfall) वाष्पीकरण और वर्षा का धाराओं पर काफी प्रभाव पड़ता है। जिन समुद्री भागों में वाष्पीकरण अधिक होता है वहाँ वर्षा भी अधिक होती है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में वर्षा अधिक तथा वाष्पीकरण कम होता है। ऐसे महासागरों में लवणता बहुत कम पाई जाती है। ऐसे क्षेत्रों में जल का तल ऊँचा होता है और जहाँ वाष्पीकरण अधिक तथा वर्षा कम होती है, वहाँ जल का घनत्व अधिक तथा पानी का तल निम्न होता है। जल का तल ऊँचा-नीचा होने के फलस्वरूप ऊँचे तल से धाराओं का प्रवाह निम्न तल की ओर होता है। धाराएँ भूमध्य रेखीय उच्च तल से मध्य अक्षांशीय निम्न तल की ओर चलती हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

प्रश्न 2.
जल धाराओं का जलवायु तथा व्यापार पर क्या प्रभाव पड़ता है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महासागरीय धाराओं का मुख्य रूप से आसपास के क्षेत्रों की जलवायु तथा व्यापार पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। जिसका वर्णन निम्नलिखित है-
1. जलवायु पर प्रभाव (Effect on Climate) किसी भी क्षेत्र में बहने वाली धाराओं का उसके समीपवर्ती भागों पर अत्यधिक प्रभाव देखने को मिलता है। यदि गर्म जल धारा प्रवाहित होती है तो तापक्रम को बढ़ा देती है, जबकि ठण्डी धारा जिस क्षेत्र से गुजरती है वहाँ का तापमान गिर जाता है। उदाहरणार्थ, ब्रिटिश द्वीप समूह का अक्षांश न्यू-फाउण्डलैण्ड के अक्षांश से अधिक है, लेकिन गल्फ स्ट्रीम की गर्म धारा के प्रभाव से ब्रिटिश द्वीप समूहों की जलवायु सुहावनी रहती है और यह कड़ाके की ठण्ड से बचा रहता है, जबकि न्यू-फाउण्डलैण्ड के आसपास लैब्रेडोर की ठण्डी धारा के प्रभाव के कारण तापक्रम काफी गिर जाता है और यहाँ लगभग 9 माह तक बर्फ जमी रहती है।

वर्षा की मात्रा भी जल धाराओं से प्रभावित होती है। गर्म जल धाराओं के ऊपर बहने वाली हवाएँ गर्म होती हैं तथा अधिक जलवाष्प ग्रहण करती हैं, जबकि इसके विपरीत ठण्डी जल धाराओं के ऊपर की वायु शुष्क तथा शीतल होने से वर्षा नहीं करती। उदाहरणार्थ, पश्चिम यूरोप के तटवर्ती भागों में गल्फ स्ट्रीम के प्रभाव से अधिक वर्षा होती है, जबकि पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के तटों के साथ ठण्डी धाराओं के प्रभाव के कारण वर्षा भी कम होती है।

2. व्यापार पर प्रभाव (Effect on Trade) गर्म धाराओं के प्रभाव-क्षेत्र में आने वाले बन्दरगाह शीत ऋतु में भी जमने नहीं पाते तथा साल भर व्यापार के लिए खुले रहते हैं। जैसे पश्चिमी यूरोप के बन्दरगाहों पर गल्फ स्ट्रीम का प्रभाव रहता है, जबकि लैब्रेडोर की ठण्डी धारा के प्रभाव के कारण बन्दरगाह जम जाते हैं तथा व्यापार नहीं हो पाता। – ठण्डी तथा गर्म धाराओं के मिलने से कोहरा उत्पन्न हो जाता है, जिससे व्यापार में कठिनाइयाँ आती हैं। साथ ही इन धाराओं के आपस में मिलने से चक्रवातों की भी उत्पत्ति होती है; जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी तट पर हरीकेन (Hurricane), जापान के समीप टाइफून तथा प्रशान्त महासागर में टारनैडो (Tarnado) तूफानी चक्रवातों के कारण ही जन्म लेते हैं।

प्रश्न 3.
जल धाराओं के प्रभावों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महासागरीय धाराओं के प्रभावों का वर्णन निम्नलिखित है-
(1) समुद्री धाराएँ निकटवर्ती समुद्रतटीय प्रदेशों के तापमान, आर्द्रता और वर्षा की मात्रा को प्रभावित करके वहाँ की जलवायु का स्वरूप निर्धारित करती हैं।

(2) उच्च अक्षांशों में गर्म धाराएँ सारा साल बन्दरगाहों को जमने से बचाकर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में सहायक सिद्ध होती हैं। इसी प्रकार ठण्डी धाराएँ नाशवान वस्तुओं (Perishable goods) के समुद्री परिवहन को प्रोत्साहित करती हैं।

(3) ठण्डी धाराएँ ध्रुवीय तथा उपध्रुवीय क्षेत्रों में अपने साथ प्लवक (Plankton) नामक सूक्ष्म जीवों को बहाकर लाती है जो मछलियों का उत्तम आहार सिद्ध होता है। इसी कारण ठण्डी धाराओं के मार्ग में मछलियाँ खूब फलती-फूलती हैं।

(4) ठण्डी और गर्म धाराओं के मिलन स्थल विश्व प्रसिद्ध मत्स्य ग्रहण क्षेत्रों के रूप में विकसित हुए हैं।

(5) महासागरों के व्यावसायिक समुद्री जलमार्ग यथासम्भव समुद्री धाराओं का अनुसरण करते हैं। इससे जलयानों की गति में तीव्रता आती है और ईंधन व समय की बचत होती है।

(6) धाराओं के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी होते हैं। भिन्न तापमान वाली धाराओं के मिलन-स्थल पर घना कुहासा उत्पन्न हो जाता है जो जलयानों के आवागमन को बाधित करता है। ध्रुवीय क्षेत्रों से आने वाली धाराएँ अपने साथ बड़ी-बड़ी हिमशैलें (Icebergs) बहा लाती हैं जिनके टकराने से बड़े-बड़े जलयान चकनाचूर हो जाते हैं। सन् 1912 में टाईटेनिक (Titanic) नामक विश्व प्रसिद्ध व उस समय का आधुनिक और सबसे बड़ा जहाज़, न्यू-फाऊंडलैण्ड के निकट एक हिमशैल से टकराकर 1517 सवारियों के साथ उत्तरी अन्ध महासागर की तली में जा टिका।

प्रश्न 4.
ज्वार-भाटा क्या है? इसकी उत्पत्ति के कारण व प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ज्वार-भाटा-“सूर्य और चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति समुद्री जल को प्रतिदिन क्रमशः ऊपर-नीचे करती रहती है, ज्वार-भाटा कहलाती है।” ज्वार-भाटा के कारण समुद्रों का जल एक दिन में दो बार ऊपर चढ़ता है तथा उतरता है। ज्वार-भाटा के समय नदियों के जल-तल में परिवर्तन हो जाते हैं। जब समुद्रों में ज्वार आता है, तो नदियों के जल-तल ऊँचे हो जाते हैं तथा इसके विपरीत भाटे के समय नीचे हो जाते हैं।

ज्वार-भाटा की उत्पत्ति-ज्वार-भाटा सूर्य, चन्द्रमा तथा पृथ्वी के पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण के कारण उत्पन्न होते हैं। सूर्य तथा चन्द्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण पृथ्वी का भाग उनकी ओर खिंचता है और स्थलीय भाग की अपेक्षा जलीय भाग पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव अधिक होता है। सूर्य, पृथ्वी तथा चन्द्रमा से आकार में कई गुना अधिक बड़ा है, लेकिन सूर्य की अपेक्षा चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण का पृथ्वी पर अधिक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि चन्द्रमा पृथ्वी के निकट है।

परिभ्रमण करती हुई पृथ्वी का जो धरातलीय भाग चन्द्रमा के सामने आ जाता है, उसकी दूरी सबसे कम तथा उसके विपरीत वाला धरातलीय भाग सबसे दूर होता है। सबसे नजदीक वाले भाग का ज्वारीय उभार ऊपर होगा, जबकि पीछे वाला भाग सबसे कम गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में होता है, लेकिन इस पीछे वाले भाग में भी उच्च ज्वार की स्थिति होती है। इस प्रकार पृथ्वी का चन्द्रमा के सामने तथा पीछे (विपरीत दिशा) वाला भाग जलीय (तरल पदाथ) होने के कारण पृथ्वी के साथ गति नहीं कर पाता। यह भाग पृथ्वी की गति से पीछे रह जाता है। आगे तथा पीछे के जलीय भाग उभरी हुई या खिंची हुई अवस्था में होते हैं। यह स्थिति एक दिन में दो बार ज्वार की तथा दो बार भाटे की होती है।

ज्वार-भाटा के प्रकार-विश्व के अनेक महासागरों तथा सागरों में जो ज्वार-भाटा आते हैं, उनकी आवृत्ति तथा ऊँचाई में अन्तर देखने को मिलता है। भूमध्य रेखीय भागों के आसपास दिन में दो बार उच्च ज्वार तथा दो बार निम्न ज्वार देखने को मिलते हैं, जबकि ध्रुवीय प्रदेशों में एक ही बार उच्च तथा निम्न ज्वार देखने को मिलते हैं, इंग्लैण्ड के दक्षिणी तट पर स्थित साऊथैप्टन (Southampton) में ज्वार प्रतिदिन चार बार आता है। इसके कारण यह है कि ज्वार दो बार तो इंग्लिश चैनल से होकर और दो बार उत्तरी सागर से होकर विभिन्न अन्तरालों पर वहाँ पहुँचते हैं। यह पृथ्वी तथा चन्द्रमा की गतियों के परिणामस्वरूप है। इस प्रकार ज्वार-भाटा दो प्रकार के होते हैं

1. उच्च या वृहत् ज्वार-भाटा जब सूर्य, चन्द्रमा तथा पृथ्वी तीनों एक ही सीध में होते हैं तो उस समय उच्च या वृहत् ज्वार-भाटा आता है। ऐसी स्थिति पूर्णमासी (Full Moon) तथा अमावस्या (New Moon) के दिन होती है। इन दिनों दिन में पृथ्वी पर सूर्य तथा चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव अधिक होता है। जब सूर्य और पृथ्वी एक ही दिशा में स्थित होते हैं, तो बीच में चन्द्रमा के आ जाने से सूर्य ग्रहण होता है और जब सूर्य और चन्द्रमा के बीच में पृथ्वी आ जाती है, तो चन्द्रग्रहण होता है।

2. लघु ज्वार-भाटा-कृष्ण तथा शुक्ल पक्ष की सप्तमी अथवा अष्टमी के दिन सूर्य तथा चन्द्रमा पृथ्वी के साथ समकोण पर स्थित होते हैं। इस समकोण स्थिति के कारण चन्द्रमा तथा सूर्य पृथ्वी को विभिन्न दिशाओं से आकर्षित करते हैं, जिसके कारण गुरुत्वाकर्षण बल अन्य तिथियों की अपेक्षा कम रहता है और महानगरों में ज्वार की ऊँचाई भी कम रहती है जिसे लघु ज्वार कहते हैं।

प्रश्न 5.
हिन्द महासागर की धाराओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हिन्द महासागर की धाराएँ-हिन्द महासागर में मानसूनी पवनें चला करती हैं जो छः महीने बाद अपनी दिशा बदल देती हैं। फलस्वरूप हिन्द महासागर में चलने वाली धाराएँ भी मानसून के साथ अपनी दिशा बदल देती हैं। हिन्द महासागर की धाराओं को दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है-
(क) स्थायी धाराएँ-हिन्द महासागर में विषुवत् रेखा के दक्षिण में चलने वाली धाराएँ वर्ष भर एक ही क्रम में चलती हैं, अतः इन्हें ‘स्थायी धाराएँ’ कहते हैं। इन धाराओं में दक्षिणी विषुवत रेखीय जलधारा, मोजम्बिक धारा, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया की जलधारा और अगुलहास धारा मुख्य हैं।

(ख) परिवर्तनशील धाराएँ-विषुवत् रेखा के उत्तर की ओर हिन्द महासागर की समस्त धाराएँ मौसम के अनुसार अपनी दिशा और क्रम बदल देती हैं। इसलिए ये परिवर्तनशील धाराएँ कहलाती हैं। इन धाराओं की दिशा व क्रम मानसून हवाओं से प्रभावित होते हैं। अतः इन्हें मानसून प्रवाह भी कहा जाता है।
1. दक्षिणी विषुवरेखीय जलधारा-यह धारा दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनों के प्रभाव से ऑस्ट्रेलिया के पश्चिम से पूर्व की ओर चलती है। मलागसी तट के समीप यह दक्षिण की ओर मुड़ जाती है।

2. मोजम्बिक जलधारा-यह एक गरम जल की धारा है जो अफ्रीका के पूर्वी तट और मलागसी के बीच बहती है। यह उत्तर से आकर दक्षिणी विषुवत् रेखीय धारा की दक्षिणी शाखा से मिल जाती है।

3. अगुलहास जलधारा-अफ्रीका से दक्षिण में अगुलहास अन्तरीप में पछुआ पवनों के प्रभाव द्वारा पूर्व की ओर एक धारा चलने लगती है। इसी धारा को अगुलहास की गर्म धारा कहते हैं।

4. पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया की धारा-अण्टार्कटिक प्रवाह की एक शाखा ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण-पश्चिमी भाग से मुड़कर उत्तर की ओर पूर्व को ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट के साथ-साथ बहने लगती है। यही पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया की ठण्डी जलधारा कहलाती है।

5. ग्रीष्मकालीन मानसून प्रवाह-ग्रीष्म ऋतु में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनों के प्रवाह से एशिया महाद्वीप के पश्चिमी तटों से एक उष्ण प्रवाहपूर्व की तरफ चलने लगता है। उत्तरी विषुवत् रेखीय धारा भी मानसून के प्रभाव से पूर्व की ओर बहकर मानसून प्रवाह के साथ ग्रीष्मकाल की समुद्री धाराओं का क्रम बनाती है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Solutions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

HBSE 11th Class Geography महासागरीय जल संचलन Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. महासागरीय जल की ऊपर एवं नीचे की गति किससे संबंधित है?
(A) ज्वार
(B) तरंग
(C) धाराएँ
(D) ऊपर में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) ज्वार

2. वृहत ज्वार आने का क्या कारण है?
(A) सूर्य और चंद्रमा का पृथ्वी पर एक ही दिशा में गुरुत्वाकर्षण बल
(B) सूर्य और चंद्रमा द्वारा एक दूसरे की विपरीत दिशा से पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण बल
(C) तटरेखा का दंतुरित होना
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) सूर्य और चंद्रमा का पृथ्वी पर एक ही दिशा में गुरुत्वाकर्षण बल

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

3. पृथ्वी तथा चंद्रमा की न्यूनतम दूरी कब होती है?
(A) अपसौर
(B) उपसौर
(C) उपभू
(D) अपभू
उत्तर:
(C) उपभू

4. पृथ्वी उपसौर की स्थिति कब होती है?
(A) अक्तूबर
(B) जुलाई
(C) सितंबर
(D) जनवरी
उत्तर:
(D) जनवरी

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
तरंगें क्या हैं?
उत्तर:
तरंगे महासागरीय जल की दोलायमान गति है जिसमें जल स्थिर रहता है और अपने स्थान पर ही ऊपर-नीचे और आगे-पीछे होता रहता है। तरंग एक ऊर्जा है। वायु जल को ऊर्जा प्रदान करती है, जिससे तरंगें उत्पन्न होती है।

प्रश्न 2.
महासागरीय तरंगें ऊर्जा कहाँ से प्राप्त करती हैं?
उत्तर:
वायु जल को ऊर्जा प्रदान करती है, जिससे तरंगें उत्पन्न होती हैं। वायु के कारण तरंगें महासागर में गति करती हैं, तथा ऊर्जा तटरेखा पर निर्मुक्त होती है। तरंगें वायु से ऊर्जा को अवशोषित करती हैं। अधिकतर तरंगें वायु के जल के विपरीत दिशा में गतिमान होने से उत्पन्न होती हैं।

प्रश्न 3.
ज्वार-भाटा क्या है?
उत्तर:
समुद्रों का जल-स्तर कभी भी स्थित नहीं रह पाता अपितु नियमित रूप से दिन (24 घण्टे की अवधि का सौर्यिक दिवस) में दो बार एकान्तर क्रम से ऊपर चढ़ता और नीचे उतरता रहता है। तटीय किनारों पर समुद्री जल के ऊपर चढ़ने को ज्वार तथा नीचे उतरने को भाटा कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 14 महासागरीय जल संचलन

प्रश्न 4.
ज्वार-भाटा उत्पन्न होने के क्या कारण हैं?
उत्तर:

  1. चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी के पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण के कारण ज्वार-भाटाओं की उत्पत्ति होती है।
  2. दूसरा कारक-अपकेंद्रीय बल है, जोकि गुरुत्वाकर्षण को संतुलित करता है।
  3. गुरुत्वाकर्षण बल तथा अपकेंद्रीय बल दोनों मिलकर पृथ्वी पर महत्त्वपूर्ण ज्वार-भाटाओं को उत्पन्न करते हैं।

प्रश्न 5.
ज्वार-भाटा नौसंचालन से कैसे संबंधित है?
उत्तर:
पृथ्वी, चंद्रमा व सूर्य की स्थिति ज्वार की उत्पत्ति का कारण है और इनकी स्थिति के सही ज्ञान से ज्वारों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। यह नौसंचालकों व मछुआरों को उनके कार्य-संबंधी योजनाओं में मदद करता है। नौसंचालन में ज्वारीय प्रवाह का अत्यधिक महत्व है। ज्वार के समय तट के निकट जल की गहराई अधिक हो जाती है जिससे बड़े-बड़े जहाज भी बन्दरगाहों के निकट पहुँच सकते हैं तथा भाटे के समय चले जाते हैं।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
जल धाराएँ तापमान को कैसे प्रभावित करती हैं? उत्तर पश्चिम यूरोप के तटीय क्षेत्रों के तापमान को ये किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
जल धाराएँ किसी प्रदेश के तापमान और जलवायु को प्रभावित करती हैं। गर्म महासागरीय धाराएँ ठण्डे क्षेत्रों में तापमान को बढ़ा देती हैं जबकि ठण्डी धाराएँ गर्म महासागरीय क्षेत्रों में तापमान को घटा देती हैं। गल्फ स्ट्रीम एक गर्म महासागरीय धारा है जो उत्तर:पश्चिम यूरोप के तट के पास से बहती है तथा इस क्षेत्र के तापमान को बढ़ा देती है। जल वाले क्षेत्रों से कम तापमान वाले क्षेत्रों की ओर तथा इसके विपरीत कम तापमान वाले क्षेत्रों से अधिक तापमान वाले क्षेत्रों की ओर बहती हैं। जब ये धाराएँ एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर बहती हैं, तो यह उन क्षेत्रों के तापमान को प्रभावित करती हैं। किसी भी जलराशि के तापमान का प्रभाव उसके ऊपर की वायु पर पड़ता है। इसी कारण विषुवतीय क्षेत्रों से उच्च अक्षांशों वाले ठंडे क्षेत्रों की ओर बहने वाली जलधाराएँ उन क्षेत्रों की वायु के तापमान को बढ़ा देती हैं।

तापमान को प्रभावित करना-

  • गर्म उत्तरी अटलांटिक अपवाह जो उत्तर की ओर यूरोप के पश्चिम तट की ओर बहती है।
  • यह ब्रिटेन और नार्वे के तट पर शीत ऋतु में भी बर्फ नहीं जमने देती।
  • जलधाराओं का जलवायु पर प्रभाव और अधिक स्पष्ट हो जाता है, जब आप समान अक्षांशों पर स्थित ब्रिटिश द्वीप समूह की शीत ऋतु की तुलना कनाड़ा के उत्तरी-पूर्वी तट की शीत ऋतु से करते हैं।
  • कनाडा का उत्तरी-पूर्वी तट लेब्राडोर की ठंडी धारा के प्रभाव में आ जाता है। इसलिए यह शीत ऋतु में बर्फ से ढका रहता है।

प्रश्न 2.
जल धाराएँ कैसे उत्पन्न होती हैं?
उत्तर:
जल धाराओं को उत्पन्न करने के निम्नलिखित कारक हैं-
1. ऋतु परिवर्तन-उत्तरी हिंद महासागर में समुद्री धाराओं की दिशा ऋतु परिवर्तन के साथ बदल जाती है। हिंद महासागर में भूमध्य-रेखीय विपरीत धारा केवल शीत ऋतु में ही होती है और भूमध्यरेखीय धारा केवल ग्रीष्म ऋतु में बहती है।

2. भूघूर्णन-पृथ्वी का अपने कक्ष में घूर्णन के कारण कोरिऑलिस बल उत्पन्न होता है। इसी बल के कारण बहता हुआ जल मुड़कर दीर्घ वृत्ताकार मार्ग का अनुसरण करता है, जिसे गायर्स कहते है। “फेरेल” के नियम के अनुसार, उत्तरी गोलार्द्ध में धाराएँ अपनी दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर मुड़ जाती हैं। इससे नई धाराएँ बनती हैं।

3. लवणता में अंतर-अधिक लवणता वाला जल भारी होता है, जो नीचे बैठ जाता है। उसके स्थान पर कम लवणता व घनत्व वाला जल आ जाता है जो धारा के रूप में बह जाता है।

4. वाष्पीकरण-जिन स्थानों पर वाष्पीकरण अधिक होता है, वहाँ पर जल का तल नीचे हो जाता है फिर वहाँ अन्य क्षेत्रों का जल जमा हो जाता है। इसी प्रकार एक धारा उत्पन्न होती है।

5. तटरेखा की आकृति-उत्तरी हिंद महासागर में पैदा होने वाली धाराएँ भारतीय प्रायद्वीप की तट रेखा का अनुसरण करती हैं।

महासागरीय जल संचलन HBSE 11th Class Geography Notes

→ तरंग शृंग (Crest of the Wave)-तरंग का ऊपर उठा हुआ भाग तरंग शृंग कहलाता है।

→ स्वेल (Swell) महासागर पर तूफान केन्द्र के बाहर की तरफ दूरी पर एक-समान ऊँचाई और आवर्तकाल के साथ समुद्री तरंगें नियमित रूप से चल रही होती हैं, जिन्हें स्वेल कहा जाता है।

→ महासागरीय धारा (Ocean Currents) महासागरों के एक भाग से दूसरे भाग की ओर निश्चित दिशा में बहुत दूरी तक जल के निरन्तर प्रवाह को महासागरीय धारा कहते हैं।

→ प्रलयकारी तरंगें (Catastrophic Waves)-इन तरंगों की उत्पत्ति ज्वालामुखी, भूकम्प या महासागरों में हुए भूस्खलन के कारण होती है। इन्हें सुनामी भी कहते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 13 महासागरीय जल

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 13 महासागरीय जल Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 13 महासागरीय जल

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. पृथ्वी के कितने % भाग पर जल है?
(A) 70.8%
(B) 30%
(C) 29.2%
(D) 28%
उत्तर:
(A) 70.8%

2. पृथ्वी के कुल जल का कितने % भाग महासागरों में विद्यमान है?
(A) 70%
(B) 81%
(C) 97%
(D) 99%
उत्तर:
(C) 97%

3. दक्षिणी गोलार्द्ध के कितने % भाग पर जल है?
(A) 70%
(B) 81%
(C) 99%
(D) 97%
उत्तर:
(B) 81%

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 13 महासागरीय जल

4. महासागरों की औसत गहराई कितनी है?
(A) 2225 मीटर
(B) 3322.5 मीटर
(C) 3525.5 मीटर
(D) 3732.5 मीटर
उत्तर:
(B) 3322.5 मीटर

5. सबसे बड़ा महासागर कौन-सा है?
(A) अंध महासागर
(B) प्रशांत महासागर
(C) हिंद महासागर
(D) आकटिक महासागर
उत्तर:
(B) प्रशांत महासागर

6. प्रशांत महासागर धरातल के कितने भाग पर विस्तृत है?
(A) 1/3
(B) 1/5
(C) 1/7
(D) 1/8
उत्तर:
(A) 1/3

7. किस महासागर में सर्वाधिक गर्त पाए जाते हैं?
(A) अंध महासागर में
(B) प्रशांत महासागर में
(C) हिंद महासागर में
(D) आर्कटिक महासागर में
उत्तर:
(B) प्रशांत महासागर में

8. महाद्वीपीय मग्नतट पर विश्व के कितने % खनिज तेल व प्राकृतिक गैस के भंडार पाए जाते हैं?
(A) 15%
(B) 20%
(C) 25%
(D) 30%
उत्तर:
(C) 25%

9. समुद्री तट के समीप वाला एक समुद्री भाग जो लगभग 200 मीटर तक गहरा होता है, कहलाता है
(A) महाद्वीपीय मग्नतट
(B) महाद्वीपीय ढाल
(C) गंभीर सागरीय मैदान
(D) महासागरीय गर्त
उत्तर:
(A) महाद्वीपीय मग्नतट

10. जलमग्न गों का जन्म किस कारण होता है?
(A) वलन अथवा भ्रंशन
(B) उत्थापन
(C) अवतलन
(D) निमज्जन
उत्तर:
(A) वलन अथवा भ्रंशन

11. विश्व के प्रसिद्ध सदस्य क्षेत्र ग्रांड बैंक तथा डॉगर बैंक कहाँ पर स्थित है?
(A) नितल मैदान
(B) महान् झीलों के किनारे
(C) महाद्वीपीय ढाल
(D) महाद्वीपीय मग्नतट
उत्तर:
(D) महाद्वीपीय मग्नतट

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 13 महासागरीय जल

12. विश्व की सबसे गहरी खाई कौन-सी है?
(A) प्यूरिटो रिको
(B) सुंडा गर्त
(C) मेरियाना खाई
(D) मिंडनाओ खाई
उत्तर:
(C) मेरियाना खाई

13. मेरियाना खाई किस महासागर में है?
(A) अटलांटिक महासागर में
(B) हिंद महासागर में
(C) प्रशांत महासागर में
(D) आर्कटिक महासागर में
उत्तर:
(C) प्रशांत महासागर में

14. गाईऑट किसे कहते हैं?
(A) सपाट शीर्ष वाले अंतः समुद्री कटक
(B) सपाट शीर्ष वाले समुद्री पर्वत
(C) समुद्री तली पर स्थित प्रतिरोधी चट्टानों के टीले
(D) समुद्री तली पर अवसादों के निक्षेप
उत्तर:
(B) सपाट शीर्ष वाले समुद्री पर्वत

15. महासागरीय जल के लिए ऊष्मा का स्रोत क्या है?
(A) सूर्य
(B) गर्म समुद्री धाराएँ
(C) ज्वालामुखी
(D) ज्वारीय ऊर्जा
उत्तर:
(A) सूर्य

16. निम्नलिखित में से कौन-सा महासागर उत्तरी अमेरिका को स्पर्श नहीं करता?
(A) अटलांटिक महासागर
(B) प्रशांत महासागर
(C) हिंद महासागर
(D) आर्कटिक महासागर
उत्तर:
(C) हिंद महासागर

17. निम्नलिखित में से सबसे कम गहरा सागर कौन-सा है?
(A) उत्तरी सागर
(B) बाल्टिक सागर
(C) हडसन की खाड़ी
(D) पीत सागर
उत्तर:
(D) पीत सागर

18. गंभीर सागरीय मैदानों की गहराई कितनी होती है?
(A) 3000-6000 मीटर
(B) 6000-8000 मीटर
(C) 2000-4000 मीटर
(D) 8000-10,000 मीटर
उत्तर:
(A) 3000-6000 मीटर

19. सामान्यतः महासागरीय जल का तापमान कितना रहता है?
(A) -2°C से 25°C
(B) -5°C से 33°C
(C) -10°C से 35°C
(D) 5°C से 30°C
उत्तर:
(B) -5°C से 33°C

20. डॉल्फिन उभार क्या है?
(A) एक समुद्रतटीय पठार जो डॉल्फिन के प्रजनन के लिए संरक्षित स्थली मानी जाती है
(B) आल्प्स पर्वत के उत्तरी भाग में भ्रंशोत्थ पर्वत
(C) वह पठार जिसे कोलोरेडो नदी ने काटकर विश्वविख्यात कैनयन बनाया है
(D) उत्तरी अंध महासागर में मध्य अटलांटिक कटक का नाम
उत्तर:
(D) उत्तरी अंध महासागर में मध्य अटलांटिक कटक का नाम

21. महाद्वीपीय मग्नतट, महासागर के कितने % भाग पर फैला है?
(A) 2.5%
(B) 3.5%
(C) 5.4%
(D) 7.5%
उत्तर:
(D) 7.5%

22. सबसे अधिक तापमान वाले सागर का क्या नाम है?
(A) लाल सागर
(B) पीत सागर
(C) बाल्टिक सागर
(D) उत्तरी सागर
उत्तर:
(A) लाल सागर

23. किस समुद्र में सर्वाधिक लवणता पाई जाती है?
(A) लाल सागर
(B) मृत सागर
(C) उत्तरी सागर
(D) बाल्टिक सागर
उत्तर:
(B) मृत सागर

24. महाद्वीपीय ढाल, महासागरों के कुल क्षेत्रफल के कितने % भाग पर विस्तृत है?
(A) 4.5%
(B) 5.2%
(C) 6.5%
(D) 7.5%
उत्तर:
(C) 6.5%

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 13 महासागरीय जल

25. किस महासागर का आकार अंग्रेजी के ‘S’ अक्षर जैसा है?
(A) अंध महासागर
(B) प्रशांत महासागर
(C) हिंद महासागर
(D) आर्कटिक महासागर
उत्तर:
(A) अंध महासागर

26. किस समुद्र में सबसे कम लवणता पाई जाती है?
(A) आर्कटिक सागर
(B) काला सागर
(C) लाल सागर
(D) बाल्टिक सागर
उत्तर:
(A) आर्कटिक सागर

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
पृथ्वी के कुल जल का कितने प्रतिशत भाग महासागरों में विद्यमान है?
उत्तर:
97 प्रतिशत भाग।।

प्रश्न 2.
दक्षिणी गोलार्द्ध के कितने प्रतिशत भाग पर जल का आवरण है?
उत्तर:
81 प्रतिशत भाग पर।

प्रश्न 3.
सबसे बड़ा महासागर कौन-सा है?
उत्तर:
प्रशान्त महासागर।

प्रश्न 4.
महासागरों की औसत गहराई कितनी है?
उत्तर:
3322.5 मीटर।

प्रश्न 5.
प्रशान्त महासागर धरातल के कितने भाग पर विस्तृत है?
उत्तर:
1/3 भाग पर।

प्रश्न 6.
महाद्वीपीय मग्नतट, महासागर के कितने प्रतिशत भाग पर फैला है?
उत्तर:
7.5 प्रतिशत भाग पर।

प्रश्न 7.
महाद्वीपीय मग्नतट पर विश्व के कितने प्रतिशत खनिज तेल व प्राकृतिक गैस के भण्डार पाए जाते हैं?
उत्तर:
25 प्रतिशत।

प्रश्न 8.
हिन्द महासागर की सबसे गहरी खाई का नाम लिखिए।
उत्तर:
सुंडा खाई।

प्रश्न 9.
गाईऑट का शीर्ष कैसा होता है?
उत्तर:
सपाट।

प्रश्न 10.
महासागरीय नितल की गहराइयों को किस वैज्ञानिक विधि द्वारा मापा जाता है?
उत्तर:
ध्वनि तरंगों द्वारा।

प्रश्न 11.
महाद्वीपीय मग्नतट की औसत चौड़ाई कितनी होती है?
उत्तर:
80 कि०मी०।

प्रश्न 12.
किस महासागर के मध्य में ‘S’ आकार की समुद्री कटक पाई जाती है?
उत्तर:
अटलांटिक महासागर में।

प्रश्न 13.
किस महासागर में सर्वाधिक गर्त पाए जाते हैं?
उत्तर:
प्रशान्त महासागर में।

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प्रश्न 14.
सबसे बड़ा महासागर कौन-सा है?
उत्तर:
प्रशान्त महासागर।

प्रश्न 15.
किस महासागर का आकार अंग्रेजी के ‘S’ अक्षर जैसा है?
उत्तर:
अन्ध महासागर।

प्रश्न 16.
सबसे अधिक तापमान वाले सागर का क्या नाम है?
उत्तर:
लाल सागर।

प्रश्न 17.
महासागरों की औसत लवणता कितनी है?
उत्तर:
35 प्रति हज़ार अंश।

प्रश्न 18.
किस समुद्र में सर्वाधिक लवणता पाई जाती है?
उत्तर:
मृत सागर।

प्रश्न 19.
महासागरीय जल में दैनिक तापान्तर (Daily Range of Temperature) कितना होता है?
उत्तर:
नगण्य (Negligible)।

प्रश्न 20.
पृथ्वी के कितने प्रतिशत भाग पर जल है?
उत्तर:
लगभग 71 प्रतिशत भाग पर।

प्रश्न 21.
महासागरों की सबसे गहरी खाई का नाम क्या है?
उत्तर:
मेरियाना खाई (11,033 मीटर)।

प्रश्न 22.
अत्यधिक उच्चावच वाले जलमग्न कटकों की लम्बाई कितनी है?
उत्तर:
75,000 कि०मी० से अधिक।

प्रश्न 23.
महाद्वीपीय ढाल की प्रवणता बताइए।
उत्तर:
2° से 5° तक।

प्रश्न 24.
प्रशान्त महासागर में कितने द्वीप हैं?
उत्तर:
20,000 से भी अधिक।

प्रश्न 25.
समुद्र के एक घन किलोमीटर जल में लवणों की कितनी मात्रा होती है?
उत्तर:
1 करोड़ 10 लाख टन लवण।

प्रश्न 26.
महाद्वीपीय ढाल की गहराई कितनी होती है?
उत्तर:
इसकी गहराई 200 से 3,000 मीटर तक होती है।

प्रश्न 27.
गम्भीर सागरीय मैदानों की गहराई कितनी होती है?
उत्तर:
3000 से 6000 मीटर तक।

प्रश्न 28.
गम्भीर सागरीय मैदानों का विस्तार कितना है?
उत्तर:
कुल महासागरीय तल के 77 प्रतिशत भाग पर।

प्रश्न 29.
प्रशान्त महासागर का क्षेत्रफल कितना है?
उत्तर:
16.52 करोड़ वर्ग कि०मी० (पृथ्वी के क्षेत्रफल का 1/3 भाग)।

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प्रश्न 30.
मध्य अटलांटिक कटक (Mid Atlantic Ridge) के दो भागों के नाम लिखें।
उत्तर:
उत्तर में डाल्फिन उभार तथा दक्षिण में चैलेंजर उभार।

प्रश्न 31.
उभरा हुआ विशाल समुद्री स्थल हवाई उभार (Hawaiin Swell) कहाँ पर है?
उत्तर:
यह प्रशान्त महासागर में स्थित है।

प्रश्न 32.
अन्ध महासागर में पाए जाने वाले दो ज्वालामुखी द्वीपों (Volcanic Islands) के नाम लिखें।
उत्तर:

  1. कैनरी द्वीप और
  2. केपवर्डे द्वीप।

प्रश्न 33.
हिन्द महासागर में पाए जाने वाले एक सक्रिय ज्वालामुखी का नाम बताइए।
उत्तर:
बंगाल की खाड़ी में निकोबार द्वीप के पास बैरन द्वीप।

प्रश्न 34.
अरब सागर में पाए जाने वाले ‘मूंगे के द्वीप’ कौन-से हैं?
उत्तर:
लक्षद्वीप व मालद्वीप।

प्रश्न 35.
महाद्वीपीय ढाल महासागरों के कुल क्षेत्रफल के कितने प्रतिशत भाग पर विस्तृत है?
उत्तर:
6.5 प्रतिशत भाग पर।

प्रश्न 36.
महासागरीय जल का सामान्य तापमान कितना रहता है?
उत्तर:
लगभग -5° सेल्सियस से 33° सेल्सियस तक।

अति-लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जलीय चक्र की तीन प्रक्रियाएँ कौन सी हैं?
उत्तर:

  1. वाष्पीकरण
  2. संघनन तथा
  3. वर्षण।

प्रश्न 2.
रचना के आधार पर महाद्वीपीय मग्नतट कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:

  1. नदियों से निर्मित
  2. हिमानीकृत
  3. प्रवालभित्ति निर्मित।

प्रश्न 3.
महाद्वीपीय मग्नतट के दो आर्थिक महत्त्व बताइए।
उत्तर:

  1. मत्स्य क्षेत्रों का स्थित होना
  2. खनिज तेल, प्राकृतिक गैस तथा बालू, बजरी का मिलना।

प्रश्न 4.
समुद्री पर्वत (Sea Mount) किसे कहते हैं?
उत्तर:
जल में डूबे ऐसे पर्वत जिनकी चोटी नितल से 1,000 मीटर से अधिक ऊँची हो।

प्रश्न 5.
गतॊ या जलमग्न खाइयों की रचना क्यों होती है?
उत्तर:
वलन अथवा भ्रंशन के कारण जलमान खाइयों की रचना होती है।

प्रश्न 6.
महासागरीय गों के चार उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. मेरियाना गर्त
  2. पियोर्टो टिको गर्त
  3. फिलीपिन्स गर्त
  4. प्लैनेट गर्त

प्रश्न 7.
महासागरों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. प्रशान्त महासागर
  2. अन्ध महासागर
  3. हिन्द महासागर
  4. आर्कटिक महासागर।

(कई विद्वान् अण्टार्कटिक महासागर अथवा दक्षिणी महासागर को पाँचवाँ महासागर मानते हैं।)

प्रश्न 8.
समुद्री केनियन के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. ओश्नोग्राफ़र केनियन
  2. बेरिंग केनियन
  3. प्रिबिलोफ़ केनियन
  4. हडसन केनियन।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 13 महासागरीय जल

प्रश्न 9.
वर्तमान में मनुष्य द्वारा भक्षण किए जाने वाले प्रमुख समुद्री खाद्य पदार्थों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. मछली
  2. मोलस्क
  3. क्रस्टेशियन।

प्रश्न 10.
महासागरीय जल के गर्म होने की दो प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. सौर विकिरण का अवशोषण
  2. पृथ्वी के आन्तरिक भाग की ऊष्मा।

प्रश्न 11.
महासागरीय जल के ठण्डा होने की तीन प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. विकिरण
  2. संवहन तथा
  3. वाष्पीकरण।

प्रश्न 12.
महासागरीय जल का तापमान किन तत्त्वों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
अक्षांश, प्रचलित पवनें, महासागरीय धाराएँ, समीपवर्ती स्थलखण्ड, लवणता और प्लावी हिमशैल।

प्रश्न 13.
भूमध्य रेखा (0°), 40° तथा 60° अक्षांश पर महासागरीय जल का तापमान कितना होता है?
उत्तर:

  1. भूमध्य रेखा पर 26°C
  2. 40° अक्षांश पर 14°C, 60° अक्षांश पर 1°C

प्रश्न 14.
महासागरों में लवणता के स्रोत बताइए।
उत्तर:

  1. महासागरों के निर्माण के समय अधिकांश लवण उसके जल में घुल गए थे।
  2. नदियाँ
  3. लहरें
  4. ज्वालामुखी उभेदन
  5. रासायनिक क्रियाएँ।

प्रश्न 15.
समुद्री जल में पाए जाने वाले सात प्रमुख लवणों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. सोडियम क्लोराइड
  2. मैग्नीशियम क्लोराइड
  3. मैग्नीशियम सल्फेट
  4. कैल्शियम सल्फेट
  5. पोटाशियम सल्फेट
  6. कैल्शियम कार्बोनेट
  7. मैग्नीशियम क्रोमाइड।

प्रश्न 16.
महासागरों में मिलने वाले दो प्रमुख लवणों के नाम तथा उनकी मात्रा लिखिए।
उत्तर:

  1. सोडियम क्लोराइड = 77.8 प्रतिशत
  2. मैग्नीशियम क्लोराइड = 10.9 प्रतिशत।

प्रश्न 17.
महासागरीय लवणता को प्रभावित करने वाले कारकों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. स्वच्छ व मीठे जल की आपूर्ति
  2. वाष्पीकरण की दर व मात्रा
  3. समुद्री धाराएँ आदि।

प्रश्न 18.
सागरीय जल का उच्चतम वार्षिक तापमान तथा न्यूनतम वार्षिक तापमान किस-किस महीने में अंकित किया जाता है?
उत्तर:
क्रमशः अगस्त व फरवरी के महीनों में।

प्रश्न 19.
वार्षिक तापान्तर की सबसे अधिक मात्रा किस महासागर में और कहाँ पाई जाती है? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. उत्तरी-पश्चिमी अन्ध महासागर में न्यूफाउण्डलैण्ड के निकट (20°C)
  2. उत्तरी-पश्चिमी प्रशान्त महासागर में व्लाडिवॉस्टक के निकट (25°C)।

प्रश्न 20.
महासागरों का जल खारा क्यों होता है?
उत्तर:
क्योंकि महासागरों और समुद्रों के जल में अनेक प्रकार के लवण घुले हुए होते हैं।

प्रश्न 21.
महाद्वीपीय मग्नतट क्या होता है?
उत्तर:
किसी महाद्वीप के मन्द ढाल वाले किनारे जो समुद्र के नीचे डूबे रहते हैं और जिनका विस्तार महाद्वीपीय ढाल तक होता है, महाद्वीपीय मग्नतट कहलाते हैं।

प्रश्न 22.
पृथ्वी को जलीय ग्रह क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
पृथ्वी का लगभग 71 प्रतिशत भाग जल से घिरा होने के कारण यह जलीय ग्रह कहलाता है। पृथ्वी पर पर्याप्त जल का होना ही इसे सौरमण्डल के ग्रहों में विशिष्टता प्रदान करता है।

प्रश्न 23.
खुले महासागर की औसत लवणता कितनी होती है?
उत्तर:
खुले महासागर की औसत लवणता 35 प्रति हजार होती है।

प्रश्न 24.
विवर्तनिक संचरण (Tectonic Movements) क्या होता है?
उत्तर:
पृथ्वी के आन्तरिक भाग से उठने वाले अन्तर्जात बल दो तरह के संचलन उत्पन्न करते हैं-(1) क्षैतिज संचलन, (2) लम्बवत् संचलन। ये दोनों गतियाँ भूतल पर अनेक विषमताएँ उत्पन्न करती हैं। ऐसे संचलनों को विवर्तनिक संचरण कहते हैं।

प्रश्न 25.
महासागरीय नितल की गहराई कैसे मापते हैं?
उत्तर:
महासागरीय नितल की गहराई गम्भीरता मापी यन्त्र (Sonic Depth Recorder) द्वारा मापी जाती है। इस यन्त्र से ध्वनि तरंगें महासागरीय नितल में भेजी जाती हैं। इन तरंगों की गति तथा समय से इसकी गहराई मापी जा सकती है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 13 महासागरीय जल

प्रश्न 26.
विश्व का सबसे गहरा स्थान कौन-सा है?
उत्तर:
विश्व में सबसे गहरा स्थान प्रशान्त महासागर में गुआम द्वीपमाला के निकट मेरिआना गर्त है। जिसकी गहराई 11,033 मीटर है। यदि माउण्ट एवरेस्ट को इस गर्त में डुबो दिया जाए तो इसकी चोटी समुद्र जल की सतह से 2 कि०मी० नीचे रहेगी।

प्रश्न 27.
महाद्वीपीय ढाल क्या होती है?
उत्तर:
महाद्वीपीय मग्नतट के किनारे और महाद्वीपीय उत्थान के बीच स्थित खड़े अथवा अधिक तीव्र ढाल को महाद्वीपीय ढाल कहा जाता है। इसका ढाल 2° से 5 तक होता है तथा इसकी गहराई 200 मीटर से 3000 मीटर तक होती है।

प्रश्न 28.
जलमग्न कटकों का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:
सारी दुनिया में पाई जाने वाली जलमग्न कटकें पृथ्वी पर विवर्तनिक हलचलों की गवाह हैं। इनकी रचना ज्वालामुखी क्रिया तथा भू-पटल में विरूपण से होती है।

प्रश्न 29.
महासागरों के जल का दैनिक तापान्तर नगण्य क्यों होता है?
उत्तर:
जल स्थलखण्ड की अपेक्षा धीरे-धीरे गर्म और धीरे-धीरे ठण्डा होता है। इसलिए एक दिन अथवा 24 घण्टों में दिन की गर्मी और रात की ठण्डक का समुद्री जल के तापमान पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता।।

प्रश्न 30.
महासागरों के जल में तापमान के लम्बवत् वितरण को नियन्त्रित करने वाले कारकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
महासागरों के जल में तापमान के लम्बवत् वितरण को मुख्य रूप से सूर्यातप की मात्रा, जल का घनत्व, वर्षा की अधिकता, हिमखण्ड, भूमध्य रेखा से दूरी और जलमग्न अवरोध नियन्त्रित करते हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्थल गोलार्द्ध तथा जल गोलार्द्ध पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी के दोनों गोलार्डों में जल तथा स्थल का वितरण समान नहीं है। अनुमान है कि उत्तरी गोलार्द्ध के 40 प्रतिशत भाग पर जल तथा 60 प्रतिशत भाग पर स्थल है। इसके विपरीत दक्षिणी गोलार्द्ध के 81 प्रतिशत भाग पर जल तथा 19 प्रतिशत भाग पर स्थल है। जल और स्थल के असमान वितरण के कारण ही पृथ्वी को दो विशिष्ट गोलार्डों में बाँटा जाता है जिन्हें क्रमशः जल गोलार्द्ध तथा स्थल गोलार्द्ध कहा जाता है। जल गोलार्द्ध का केन्द्र न्यूज़ीलैण्ड के दक्षिण-पूर्व में है जबकि स्थल गोलार्द्ध का केन्द्र फ्रांस में ब्रिटेनी (Brittaney) में है। स्थल गोलार्द्ध में पृथ्वी का 83 प्रतिशत स्थलीय भाग है तथा जल गोलार्द्ध में पृथ्वी का 90.5 प्रतिशत जल विद्यमान है।

प्रश्न 2.
महासागरीय नितलों पर पाई जाने वाली सबसे अधिक सामान्य आकृतियों के नाम लिखें।
उत्तर:
महासागरीय नितलों पर महाद्वीपीय मग्नतट, महाद्वीपीय ढाल, महासागरीय मैदान तथा महासागरीय गर्त के अतिरिक्त निम्नलिखित आकृतियाँ देखने को मिलती हैं

  • पहाड़ियाँ (Hills)
  • निमग्न द्वीप (Guyots)
  • टीले (Sea Mounts)
  • कटक (Ridges)
  • खाइयाँ (Trenches)
  • प्रवाल भित्तियाँ (Coral Reefs)
  • केनियन (Canyons)।

प्रश्न 3.
महाद्वीपीय मग्नतट के विभिन्न प्रकार बताइए।
उत्तर:
उत्पत्ति के आधार पर महाद्वीपीय मग्नतट निम्नलिखित प्रकार के हैं-

  • हिमानीकृत मग्नतट।
  • बड़ी नदियों के मुहानों के मग्नतट।
  • प्रवाल भित्ति मग्नतट।
  • द्रुमाकृतिक घाटियों वाले मग्नतट।
  • नवीन वलित पर्वत के पार्श्व मग्नतट।

प्रश्न 4.
महासागरीय खाइयों तथा गों को विवर्तनिक उत्पत्ति वाला क्यों समझा जाता है?
उत्तर:
महासागरों की तली में पाए जाने वाले लम्बे, गहरे तथा संकरे खड्ड को महासागरीय गर्त कहा जाता है। इनकी उत्पत्ति समुद्री तली पर दरारें पड़ने तथा वलन (Folding) पड़ने के कारण हुई है। ये गर्त प्रायः उन दुर्बल क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ भूकम्प आते हैं और ज्वालामुखी उद्भेदन होता है। ये अधिकतर वलित पर्वतों तथा द्वीपीय चापों के समान्तर स्थित पाए जाते हैं। इस कारण इन गों को पृथ्वी की हलचलों से जुड़ा और विवर्तनिक उत्पत्ति वाला समझा जाता है।

प्रश्न 5.
महासागरीय नितलों पर अनेक प्रकार के उच्चावच के लिए कौन-सी मुख्य प्रक्रियाएँ उत्तरदायी हैं?
उत्तर:
महासागरीय नितलों पर अनेक प्रकार के उच्चावच के लिए निम्नलिखित चार मुख्य प्रक्रियाएँ उत्तरदायी हैं

  • भूगर्भिक हलचलें (Interior Movements)
  • ज्वालामुखी क्रियाएँ (Volcanic Activities)
  • अपरदन क्रिया (Erosion)
  • निक्षेपण क्रिया (Deposition)।

प्रश्न 6.
आकृति की दृष्टि से महाद्वीपीय ढाल के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर:
आकृति की दृष्टि से महाद्वीपीय ढाल के पाँच प्रकार होते हैं-

  • अधिक तीव्र ढाल, जिनके धरातल केनियन के रूप में कटे होते हैं।
  • मन्द ढाल जिन पर लम्बी-लम्बी पहाड़ियाँ तथा बेसिन होती हैं।
  • भ्रंशित ढाल।
  • सीढ़ीनुमा ढाल।
  • वे ढाल जिन पर समुद्री पर्वत स्थित होते हैं।

प्रश्न 7.
महाद्वीपीय उत्थान क्या होता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समुद्र के नीचे जहाँ महाद्वीपीय ढाल का अन्त होता है, वहीं मन्द ढाल वाले महाद्वीपीय उत्थान का आरम्भ होता है। इसकी ढाल 0.5° से 1° तक होती है। इसका सामान्य उच्चावच भी कम होता है। गहराई बढ़ने के साथ यह लगभग समतल होकर नितल मैदान में विलीन हो जाता है। यहीं पर महाद्वीपीय खण्डों (Continental Blocks) का अन्त माना जाता है।

प्रश्न 8.
जलमग्न कटकें क्या होती हैं? इनकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
गम्भीर समद्री उद्रेख (कटक) क्या होते हैं?
उत्तर:
अर्थ-महासागरों की तली पर स्थित सैकड़ों कि०मी० चौड़ी तथा हजारों कि०मी० लम्बी जल में डूबी पर्वत-श्रेणियों को जलमग्न कटक या गम्भीर समुद्री उद्रेख कहते हैं।

विशेषताएँ-

  • ये जलमग्न कटक पृथ्वी पर सबसे लम्बे पर्वत-तन्त्र का निर्माण करते हैं।
  • अत्यधिक उच्चावच वाले इन जलमग्न पर्वतों की कुल लम्बाई 75,000 कि०मी० से अधिक है।
  • ये पर्वत-तन्त्र प्रायः महासागरों के मध्य पाए जाते हैं।
  • इनके शिखर कहीं-कहीं समुद्र तल से ऊपर निकलकर द्वीपों का निर्माण करते हैं। अजोर्स तथा केपवर्ड द्वीप ऐसी ही निमग्न कटकों की समुद्र से बाहर निकली चोटियाँ हैं।

मिल-अटलांटिक रिज ऐसी समुद्री कटकों का सर्वोत्तम उदाहरण है।

प्रश्न 9.
महासागरीय खाइयाँ या गर्त (Submarine Trenches) क्या होते हैं? इनकी रचना कैसे होती है? गर्तों की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर:
अर्थ महासागरीय नितल पर स्थित तीव्र ढाल वाले पतले और गहरे अवनमन (Depressions) को खाई या गर्त कहते हैं। रचना इनकी उत्पत्ति वलन (Folding) अथवा भ्रंशन (Faulting) के कारण होती है।

विशेषताएँ-

  • गर्तों की गहराई सामान्यतः 5,500 मीटर होती है।
  • ये महासागरों के सबसे गहरे भाग होते हैं जिनका तल महासागरों के औसत नितल से काफी नीचे होता है।
  • ये जलमग्न संकीर्ण खाइयाँ अपने निकटवर्ती मोड़दार पर्वतों अथवा द्वीपमालाओं के समानान्तर स्थित होती हैं।

प्रश्न 10.
जलमग्न केनियन क्या होते हैं? इनकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अर्थ महासागरीय नितल पर तीव्र ढाल वाली गहरी व संकरी ‘V’ आकार की घाटियों अथवा गाों को जलमग्न केनियन कहते हैं।

विशेषताएँ-

  • ये महासागरों के किनारों पर समुद्र तटों के बाहर मिलती हैं और मुख्यतः महाद्वीपीय मग्नतट, मग्न ढाल तथा उत्थान तक पाई जाती हैं।
  • ये तीव्र ढाल वाली गहरी घाटियाँ हैं जिनके किनारे तीव्र ढाल वाले होते हैं।
  • नदियों के मुहाने पर बनी अधिकांश कन्दराओं का ढाल मन्द होता है, परन्तु द्वीपों के सहारे बनी कन्दराओं का ढाल अधिक होता है।
  • विश्व में लगभग 102 जलमग्न केनियन हैं। विश्व के सबसे अधिक केनियन प्रशान्त महासागर में पाए जाते हैं।
  • विश्व के सबसे लम्बे जलमग्न केनियन अलास्का के पास बेरिंग सागर में पाए जाते हैं।
  • विश्व में सर्वाधिक विख्यात केनियन हडसन केनियन है जो हडसन नदी के मुहाने से लेकर अन्ध महासागर तक चला गया है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 13 महासागरीय जल

प्रश्न 11.
जलमग्न केनियनों के प्रमुख प्रकार बताइए।
उत्तर:
जलमग्न केनियन तीन प्रकार के होते हैं-

  • छोटे गार्ज जो महाद्वीपीय मग्नतट के बाहरी किनारों से शुरू होकर महाद्वीपीय ढाल तक पहुंचते हैं। न्यू इंग्लैण्ड के पास ओश्नोग्राफर केनियन (Oceanographer Canyon) इसका उदाहरण है।
  • वे केनियन, जो किसी नदी के मुहाने से आरम्भ होकर महाद्वीपीय मग्नतट तक फैले होते हैं; जैसे ज़ायरे, मिसीसिपी, हडसन तथा सिन्धु नदी के जलमग्न केनियन।
  • ऐसे गहरे कटे वृक्षाकार जलमग्न केनियन जो महाद्वीपीय मग्नतट के किनारे और ढाल पर मिलते हैं; जैसे दक्षिणी कैलिफोर्निया तट के केनियन।

प्रश्न 12.
महासागरीय नितल के अध्ययन का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
महासागरीय नितलों की प्राकृतिक आकृतियाँ समुद्री जल के स्वभाव तथा गति को नियन्त्रित करती हैं। महासागरीय धाराएँ समुद्री जीवों और वनस्पति के साथ-साथ तटवर्ती क्षेत्रों की जलवायु को प्रभावित करती हैं। महासागरीय नितलों का उच्चावच नौसंचालन, मत्स्य-ग्रहण, समुद्री खनन तथा मनुष्य की अन्य महत्त्वपूर्ण क्रियाओं को प्रभावित करता है।

प्रश्न 13.
महाद्वीपों तथा महासागरों की प्रतिध्रुवीय स्थिति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी पर महाद्वीप तथा महासागर एक-दूसरे के विपरीत स्थित हैं, जिसे प्रतिध्रुवीय स्थिति कहते हैं। उदाहरण के लिए, यूरोप तथा अफ्रीका महाद्वीप, प्रशान्त महासागर के अण्टार्कटिका महाद्वीप, आर्कटिक महासागर तथा उत्तरी अमेरिका हिन्द महासागर के विपरीत स्थित है।

प्रश्न 14.
जलमण्डल किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के जल से डूबे हुए क्षेत्र को जलमण्डल कहते हैं। सम्पूर्ण पृथ्वी के लगभग 71% भाग पर जल का विस्तार है। सम्पूर्ण जलमण्डल को महासागर, सागर, खाड़ियों तथा झीलों आदि में विभक्त किया गया है। ये भूतल के लगभग 36.1 वर्ग करोड़ कि०मी० में फैले हुए हैं। उत्तरी गोलार्द्ध का लगभग 61 प्रतिशत तथा दक्षिणी गोलार्द्ध का 81 प्रतिशत भाग महासागरों से घिरा हुआ है। जल की अधिकता के कारण ही दक्षिणी गोलार्द्ध को जल गोलार्द्ध कहकर पुकारा जाता है।

प्रश्न 15.
महासागरों में पाए जाने वाले महत्त्वपूर्ण खनिजों के नाम बताइए। इन खनिजों के स्रोत क्या हैं?
उत्तर:
महासागर अनेक प्रकार के धात्विक व अधात्विक खनिजों के स्रोत हैं। समुद्री जल में लवण, मैग्नीशियम तथा ब्रोमीन जैसे खनिज मिलते हैं। इन खनिजों का स्रोत स्थलीय भाग ही हैं। महासागरों में पाए जाने वाले अन्य खनिज गन्धक, खनिज तेल, सोना, मोनोजाइट, टिन व लौह-अयस्क प्रमुख हैं।

प्रश्न 16.
समुद्र में नीचे जाने पर आप ताप की किन परतों का सामना करेंगे? गहराई के साथ तापमान में भिन्नता क्यों आती है?
उत्तर:
समुद्र में नीचे जाने पर महासागर की सबसे ऊपरी परत 500 मीटर मोटी होती है जिसका तापमान 20°C-25°C के बीच होता है। दूसरी परत 500-1000 मीटर गहरी होती है जिसमें गहराई के बढ़ने के साथ तापमान में भी गिरावट आती है। तीसरी परत बहुत ठण्डी होती है जो महासागरीय तल तक विस्तृत होती है।

महासागरों का उच्चतम तापमान उनकी ऊपरी सतह पर होता है, क्योंकि वे सूर्य की ऊष्मा को प्रत्यक्ष रूप से लेते हैं। यह ऊष्मा संवहन द्वारा महासागरों के निचले भाग में पारेषित होती है जिससे गहराई के साथ तापमान घटता है।

प्रश्न 17.
जलीय चक्र के विभिन्न तत्त्व किस प्रकार अन्तर सम्बन्धित हैं?
उत्तर:
जल एक चक्र के रूप में महासागर से धरातल और धरातल से महासागर तक पहुँचता है। जल चक्र पृथ्वी पर, इसके नीचे तथा इसके ऊपर वायुमण्डल में जल के संचलन की व्याख्या करता है। जल गैस, तरल तथा ठोस अवस्था में परिसंचरण करता है। इसका सम्बन्ध महासागरों, वायुमण्डल, भूपृष्ठ, अधःस्थल और जीव-जन्तुओं के बीच जल के सतत् आदान-प्रदान से है। सूर्य की ऊष्मा से महासागरों का जल वाष्पीकरण द्वारा वाष्प के रूप में वायुमण्डल में जाता है फिर यह संघनित होकर वर्षा के रूप में धरातल पर बहता है जिसका कुछ भाग भूमि में रिस जाता है और कुछ भाग नदियों द्वारा महासागरों में पुनः चला जाता है।

प्रश्न 18.
महासागरीय जल के तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महासागरीय जल के तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं-
1. अक्षांश-ध्रुवों की ओर प्रवेशी सौर विकिरण की मात्रा घटने के कारण महासागरों के जल की सतह का तापमान की सतह का तापमान विषुवत् वृत्त से ध्रुवों की ओर घटता चला जाता है।

2. स्थल एवं जल का असमान वितरण-स्थल खण्ड से जुड़े होने के कारण उत्तरी गोलार्द्ध के महासागर दक्षिणी गोलार्द्ध के महासागरों से अधिक मात्रा में ऊष्मा प्राप्त करते हैं।

3. सनातनी पवनें सनातनी पवनें अपने साथ समुद्री जल को बहा ले जाती हैं। इसकी पूर्ति के लिए समुद्र के निचले भाग से ठण्डा जल ऊपर चला जाता है। परिणामस्वरूप तापमान में देशान्तरीय अन्तर आ जाता है।

4. महासागरीय धाराएँ-गर्म महासागरीय धाराएँ ठण्डे क्षेत्रों के तापमान को भी बढ़ा देती हैं जबकि ठण्डी धाराएँ गर्म महासागरीय क्षेत्रों में तापमान को घटा देती हैं। लेब्रेडोर की ठण्डी धारा उत्तरी अमेरिका के उत्तर:पूर्वी तट के नजदीक तापमान को कम कर देती है जबकि गल्फ स्ट्रीम (गर्म धारा) उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट तथा यूरोप के पश्चिमी तट के तापमान को बढ़ा देती है।

प्रश्न 19.
महासागरीय जल के तापमान में अन्तर होने से विभिन्न क्षेत्रों में क्या क्या प्रभाव पड़ते हैं?
उत्तर:
महासागरीय जल के तापमान में अन्तर के कारण महासागरीय जलराशियों में बृहत् स्तर पर संचरण (Circulation) उत्पन्न होता है जिससे समुद्री लहरें और धाराएँ (Currents) चलती हैं। महासागरीय जल का तापमान और धाराओं द्वारा इसका परिवहन न केवल समुद्री जीवन और वनस्पतियों को प्रभावित करता है, अपितु तटवर्ती स्थलीय भागों की जलवायु को भी प्रभावित करता है।

प्रश्न 20.
महासागरीय जल के गर्म होने की विभिन्न प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
महासागरीय जल दो विधियों द्वारा गर्म होता है-
1. सौर विकिरण के अवशोषण द्वारा-सूर्य की किरणें काफी गहराई तक पहुँचकर समुद्री जल को गर्म करती हैं। इससे समद्री जल में पर्याप्त ऊष्मा जमा हो जाती है। समुद्री जल मुख्यतः सूर्यातप से ही गर्म होता है।

2. पृथ्वी के आन्तरिक भाग की ऊष्मा द्वारा-पृथ्वी के तप्त आन्तरिक भाग से महासागरीय नितल में ऊष्मा प्रवेश करती है जिससे समुद्रों का जल गर्म हो जाता है। ऊष्मा का यह स्रोत नगण्य है।

प्रश्न 21.
महासागरीय जल के ठण्डा होने की विधियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महासागरीय जल तीन विधियों द्वारा ठण्डा होता है जिनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है-
1. विकिरण द्वारा रात के समय समुद्री जल की सतह से ऊष्मा का विकिरण होता है। यह ऊष्मा जल से निकलकर वायुमण्डल में चली जाती है और जल ठण्डा हो जाता है।

2. संवहन द्वारा-समुद्री जल की ऊपरी सतह की ऊष्मा संवहनीय धाराओं द्वारा जल की निचली सतहों में जाती रहती है। इस प्रक्रिया से जल की ऊपरी सतह का तापमान कुछ कम हो जाता है।

3. वाष्पीकरण द्वारा-जल के वाष्पीकरण में जल की ऊष्मा घटती है, ठीक वैसे ही जैसे पसीना सूखने पर हमें ठण्डक का अनुभव होता है। समुद्री जल प्रत्येक तापमान पर वाष्पीकृत होता रहता है।

प्रश्न 22.
महासागरीय जल का वार्षिक अथवा मौसमी तापान्तर किन-किन कारकों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
महासागरीय जल का वार्षिक अथवा मौसमी तापान्तर निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है-

  • सूर्य का आभासी वार्षिक संचरण
  • पवन-पेटियों का उत्तर व दक्षिण की ओर खिसकाव
  • सागर का आकार
  • जलराशियों का पार्श्व विस्थापन।।

प्रश्न 23.
महासागरीय जल का वार्षिक तापान्तर सबसे कम कहाँ और कितना रहता है? इसका कारण भी बताइए
उत्तर:
भूमध्य रेखीय तथा ध्रुवीय प्रदेशों में समुद्री जल का वार्षिक तापान्तर सबसे कम अर्थात् 5.5° होता है। इसका कारण यह है कि भूमध्य रेखा पर सारा साल गर्मी पड़ती है जबकि शीत कटिबन्ध में सारा वर्ष सर्दी पड़ती है। इन दोनों ताप कटिबन्धों में वर्ष भर एक-जैसा मौसम रहने के कारण महासागरीय जल का वार्षिक तापान्तर कम रहता है।

प्रश्न 24.
महासागरीय जल के तापमान के लम्बवत् वितरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
महासागरीय जल के तापमान के लम्बवत् ह्रास की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • लगभग 100 मीटर की गहराई तक तापमान समुद्र तल के तापमान के लगभग बराबर रहता है।
  • समुद्र तल से 1,800 मीटर की गहराई पर तापमान 15°C से घटकर 2°C रह जाता है।
  • 4,000 मीटर की गहराई पर यह तापमान घटकर 1.6°C ही रह जाता है परन्तु महासागरों के सर्वाधिक गहरे भागों में भी जल का तापमान हिमांक से ऊपर रहता है।
  • यदि स्थलीय भागों में अंशतः घिरा हुआ कोई सागर अपने महासागर से किसी जलमग्न कगार (Submerged Cliff) द्वारा अलग हुआ हो तो दोनों जलराशियों में ताप के ह्रास की दर भिन्न होगी।
  • वायुमण्डल की भाँति अधस्तलीय (Sub-surface) जल में भी तापमान की विलोमता पाई जाती है।

प्रश्न 25.
महासागरीय जल में लवणता कहाँ से और कैसे आई है?
अथवा
महासागरों में लवणता की उत्पत्ति के स्रोत कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  • कुछ विद्वानों के अनुसार, पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद जब महासागरों का निर्माण हुआ था, शायद उसी समय अधिकांश लवण उनके जल में घुल गए थे।
  • इसके पश्चात् स्थल पर बहने वाली नदियों के जल द्वारा घोल के रूप में लाए गए नमक के कारण इसकी मात्रा में बढ़ोतरी होती रही।
  • नदियों की भाँति समुद्री तरंगें भी तटीय चट्टानों का अपरदन करके उनमें पाए जाने वाले लवणों को घोलकर समुद्रों में डाल देती हैं।

इस प्रकार सागरीय लवणता का मुख्य स्रोत पृथ्वी का धरातल ही है।

प्रश्न 26.
महासागरों में लवणता का क्या महत्त्व होता है?
अथवा
महासागरीय जल की लवणता किन-किन तत्त्वों को प्रभावित करती है?
अथवा
महासागरीय जल की लवणता की उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
महासागरीय लवणनता का महत्त्व अथवा उपयोगिता-

  • महासागरों की लवणता न केवल समुद्री जीव-जगत को प्रभावित करती है, अपितु महासागरों की भौतिक विशेषताओं; जैसे तापमान, घनत्व, दबाव और धाराओं इत्यादि को भी प्रभावित करती है।
  • समुद्रों का हिमांक (Freezing point) उसकी लवणता पर निर्भर करता है। अधिक खारा जल देर से जमता है।
  • इसी प्रकार समुद्री जल का उबलांक (क्वथनांक) बिन्दु भी सामान्य जल से ऊँचा होता है।
  • अधिक लवणयुक्त समुद्री जल का वाष्पीकरण न्यूनतम होता है।
  • समुद्रों में लवणता की अधिक मात्रा जल का घनत्व बढ़ाती है।
  • इसी प्रकार समुद्री जल की सम्पीडनता, मछली, सागरीय जीव व प्लैंकटन आदि लवणता द्वारा ही नियन्त्रित होते हैं।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 13 महासागरीय जल

प्रश्न 27.
महासागरीय जल में मिलने वाले प्रमुख लवणों के नाम और उनकी मात्रा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समुद्र के जल में 47 विभिन्न प्रकार के लवण पाए जाते हैं, जिनमें से निम्नलिखित 7 प्रमुख हैं-

लवण का नाम कुल लवणों का प्रतिशत
1. सोडियम क्लोराइड 77.8
2. मैग्नेशियम क्लोराइड 10.9
3. मैग्नेशियम सल्फेट 4.7
4. कैल्शियम सल्फेट 3.6
5. पोटैशियम सल्फेट 2.5
6. कैल्शियम कार्बोनेट 0.3
7. मैग्नेशियम ब्रोमाइड 0.2
योग 100.0

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
महासागरीय अधःस्थल या नितल के उच्चावच का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गहराई तथा आकार के अनुसार महासागरीय नितल पर निम्नलिखित आकृतियाँ पाई जाती हैं-

  • महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelf)
  • महाद्वीपीय ढाल (Continental Slope)
  • गम्भीर सागरीय मैदान (Deep Sea Plain)
  • महासागरीय गर्त (Ocean Deeps)।

1. महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelf)-समुद्र तट के समीप वाला वह समुद्री भाग जो 180 मीटर अर्थात् 100 फैदम गहरा हो ‘महाद्वीपीय मग्नतट’ कहलाता है। वस्तुतः यह महाद्वीप का ही अग्र भाग होता है जो अस्थायी रूप से जलमग्न हो जाता है। महाद्वीपीय मग्नतट की चौड़ाई इसके ढाल पर निर्भर करती है। अधिक ढाल वाले मग्नतट की चौड़ाई कम तथा कम ढाल वाले मग्नतट की चौड़ाई अधिक होती है। इस भाग में नदियाँ तथा हिमनदियाँ निक्षेप करती रहती हैं। यहाँ समुद्री लहरें भी तोड़-फोड़ का काम करती रहती हैं। सूर्य की किरणें भी इतनी ही गहराई तक पहुँच पाती हैं। विभिन्न क्षेत्रों में महाद्वीपीय मग्नतट का विस्तार भिन्न होता है। इनकी औसत चौड़ाई 80 कि०मी० होती है। जबकि साइबेरिया में इसकी चौड़ाई सर्वाधिक अर्थात् 1500 कि०मी० है। कई तटों पर यह बिल्कुल ही नहीं है।

2. महाद्वीपीय ढाल (Continental Slope)-महाद्वीपीय मग्नतट के समाप्त होने पर महासागरीय नितल का ढाल एकदम तीव्र हो जाता है और महाद्वीपीय ढाल आरम्भ हो जाता है। इसकी गहराई 200 मीटर से 3000 मीटर के बीच होती है। महाद्वीपीय ढाल ने महासागरों के कुल नितल का लगभग 6.5 प्रतिशत भाग घेरा हुआ है। इस भाग की ढलान महाद्वीपीय मग्नतट की ढलान की अपेक्षा अधिक होती है। इनका ढाल 2° से 5 तक होता है। यद्यपि यहाँ पर गम्भीर सागरीय पदार्थों का निक्षेप अधिक होता है फिर भी यहाँ काँच के अत्यन्त सूक्ष्म कण पहुँच जाते हैं। नदियों द्वारा लाया गया चीकायुक्त जल इन ढलानों पर बह आता है और समस्त मलबा यहाँ एकत्रित हो आता है। ये ढलान स्थलीय भागों के पर्वतीय ढलानों से मिलते-जुलते होते हैं। इनमें भी पर्वतों के अनुरूप बड़े-बड़े खड्ड पाए जाते हैं। कुछ ढालों पर बीच-बीच में पठार तथा श्रेणियाँ हैं और कुछ ढालों पर भृगु भी देखी जाती है।

3. गम्भीर सागरीय मैदान (Deep Sea Plain)-महाद्वीपीय मग्न ढाल के पश्चात् गम्भीर सागरीय मैदान आरम्भ होते हैं। समुद्र की तली का लगभग 77 प्रतिशत भाग इन मैदानों से घिरा हुआ है। अन्ध महासागर में 55 प्रतिशत, प्रशान्त महासागर में 80.3 प्रतिशत और हिन्द महासागर में 80.1 प्रतिशत इन मैदानों का क्षेत्र है। इनकी औसत गहराई 3,000 से 6,000 मीटर है। इनका क्षेत्रफल लगभग 98 लाख वर्ग मील है। ये एक प्रकार के ऊँचे-नीचे मैदान हैं, परन्तु इनका ढाल क्रमिक होता है।

धरातल से नदियों द्वारा बहाकर लाई गई कोई भी वस्तु यहाँ तक नहीं पहुँच पाती। एल्बेट्रॉस (Albatross) अन्वेषक-दल को निरन्तर ध्वनिकरण ounding) द्वारा यह ज्ञात हआ है कि महासागरीय तल का पेंदा बहुत अधिक ऊबड़-खाबड़ है। विस्तृत अन्तःसमुद्री पठार तथा लम्बी आढ़ी-तिरछी कटके (Ridges) यत्र-तत्र मिलती हैं। ऐसी कटकें कहीं-कहीं समुद्र तल से ऊपर निकली होती हैं जो द्वीपों का निर्माण करती हैं। जापान द्वीप इसी प्रकार की कटक के ऊँचे उठे हुए भाग हैं। इनके किनारे बड़े ढालू होते हैं।

महासागरीय तल का धरातल ठोस शैलों का बना हुआ नहीं होता। ये क्षेत्र मूलतः समुद्री जीव-जन्तुओं के अवशेषों, सूक्ष्म वनस्पति पदार्थों तथा कई प्रकार की बारीक पंकों (Oozes) द्वारा ढंके रहते हैं। अधिक गहरे स्थलों पर लाल मृत्तिका और ज्वालामुखी राख के निक्षेप पाए जाते हैं।

4. महासागरीय गर्त (Ocean Deeps)-ये समुद्र की तली में यत्र-तत्र बिखरे हुए पाए जाते हैं। इनके किनारे प्रायः ढले हुए होते हैं, परन्तु क्षेत्रफल में ये बहुत कम हैं। संपूर्ण समुद्र का लगभग 10 हजार वर्गमील क्षेत्र (अर्थात् 6.15 प्रतिशत भाग) घेरे हुए हैं। समुद्र तल के मध्य में इनका पूर्ण अभाव पाया जाता है। ये प्रायः समुद्र तटों की ओर हटकर पाए जाते हैं। जिन समुद्र तटीय भागों में प्रायः भूचाल के झटके और ज्वालामुखी का प्रकोप होता रहता है, वहाँ ये बहुतायत में मिलते हैं।

प्रशान्त महासागर के दोनों किनारों पर ऐसे कई गर्त हैं। ये गहरे गर्त घोर अन्धकार और अत्यन्त शीतल जल से पूर्ण रहते हैं। इन गों की गहराई 3 कि०मी० से 5 कि०मी० के बीच पाई जाती है। संसार का सबसे गहरा गर्त फिलीपीन्स के निकट स्वायर गर्त है जिसकी गहराई 35,400 फुट है। सन् 1957 में सोवियत अनुसन्धान-पोत वित्यात पर सवार सोवियत महासागरविदों ने पश्चिमी प्रशान्त महासागरों में 68 मील गहरे मेरिआनास गर्त की खोज की है जो सभी महासागरों में गहनतम हो सकता है।

संसार के समस्त महासागरों में लगभग 57 गर्मों का ज्ञान हुआ है। इन गर्तों में से 32 प्रशांत महासागर, 19 अटलांटिक महासागर एवं 6 हिन्द महासागर में हैं।

प्रश्न 2.
महासागरों (सागरों) में लवणता के लम्बवत् वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महसागरों (सागरों) में लवणता का लम्बवत् वितरण-
महासागरों (सागरों) में लवणता का लम्बवत वितरण किसी निश्चित नियम का अनुसरण नहीं करता है क्योंकि कहीं पर लवणता गहराई के साथ घटती जाती है तो कहीं बढ़ती है। लवणता का लम्बवत् वितरण प्रायः जल राशि के स्वभाव से प्रभावित है। गहराई की ओर लवणता कम होती जाती है। किन्तु ठण्डी या गर्म जल धाराओं की उपस्थिति के कारण लवणता में अचानक अन्तर उत्पन्न हो जाता है। लवणता के लम्बवत् वितरण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) उच्च अक्षांशों में सतह पर लवणता कम होती है, गहराई पर बढ़ती जाती है।

(2) मध्य अक्षांशों में लवणता की वृद्धि 400 मीटर तक होती है तत्पश्चात् अधिक गहराई में कम हो जाती है।

(3) भूमध्य रेखा पर स्वच्छ जल की प्राप्ति के कारण सतह पर लवणता कम होती है, कुछ गहराई पर अधिक लवणता तथा वनों की तरफ पुनः कम लवणता पाई जाती है।

(4) जहाँ अर्द्ध खुले सागर, खुले सागरों में मिलते हैं वहाँ लवणता के वितरण की स्थिति पूर्णतया भिन्न होती है जैसे-भूमध्य सागर में जिब्रान्टर जल संधि के समीप गहराई की तरफ लवणता निरन्तर बढ़ती है। 36.5 प्रतिशत से 38 प्रतिशत हो जाती है, जबकि जिब्रान्टर की पश्चिमी सतह पर 36 प्रतिशत से कम तथा 7,000 मीटर गहराई पर 36.5 प्रतिशत तथा पुनः 1,200 मीटर की गहराई पर 36 प्रतिशत पाई जाती है। इसके बाद लवणता की मात्रा घटती जाती है।

(5) प्रशान्त महासागर व हिन्द महासागर में लवणता की लम्बवत् वितरण में उपर्युक्त प्रकार की स्थिति पाई जाती है।

(6) यह प्रमाणित हो चुका है कि 2000 मीटर की गहराई के बाद लवणता निरन्तर कम होती जाती है।

(7) उत्तरी अटलांटिक महासागर में लवणता का लम्बवत् वितरण दक्षिणी अटलांटिक महासागर से भिन्न है। उत्तरी अटलांटिक महासागर में लवणता के अन्तर की दर अधिक होती है। अटलांटिक महासागर के दक्षिणी सतह पर लवणता 33 प्रतिशत है। 400 मीटर की गहराई पर बढ़कर 34.5 प्रतिशत हो जाती है तथा 1,200 मीटर पर 34.75 प्रतिशत होती है, परन्तु 20° दक्षिणी अक्षांश के समीप सतह पर 37 प्रतिशत है जो घटकर तली के समीप 35 प्रतिशत रह जाती है। इसके विपरीत विषुवत् रेखा पर लवणता 34 प्रतिशत है जबकि गहराई पर 35 प्रतिशत है। अटलांटिक महासागर के लवणता के लम्बवत् वितरण पर ‘S’ आकृति की महासागरीय श्रेणी (Mid Oceanic Ridge) के चैलेन्जर राइज व डाल्फिन राइज का विशेष प्रभाव होता है।

(8) नियमानुसार बढ़ती गहराई के साथ लवणता कम न होकर बढ़ जाती है तो उसे ‘लवण विलोमता’ कहते हैं। यह सभी महासागरों सागरों में पाई जाती है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल Textbook Exercise Questions and Answers.

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HBSE 11th Class Geography महासागरीय जल Textbook Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. उस तत्त्व की पहचान करें जो जलीय चक्र का भाग नहीं है।
(A) वाष्पीकरण
(B) वर्षण
(C) जलयोजन
(D) संघनन
उत्तर:
(C) जलयोजन

2. महाद्वीपीय ढाल की औसत गहराई निम्नलिखित के बीच होती है।
(A) 2-20 मी०
(B) 20-200 मी०
(C) 200-3,000 मी०
(D) 2,000-20,000 मी०
उत्तर:
(C) 200-3,000 मी०

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

3. निम्नलिखित में से कौन-सी लघु आकृति महासागरों में नहीं पाई जाती है?
(A) समुद्री टीला
(B) महासागरीय गंभीर
(C) प्रवाल द्वीप
(D) निमग्न द्वीप
उत्तर:
(B) महासागरीय गंभीर

4. लवणता को प्रति समुद्री मक (ग्राम) की मात्रा से व्यक्त किया जाता है-
(A) 10 ग्राम
(B) 100 ग्राम
(C) 1,000 ग्राम
(D) 10,000 ग्राम
उत्तर:
(C) 1,000 ग्राम

5. निम्न में से कौन-सा सबसे छोटा महासागर है?
(A) हिंद महासागर
(B) अटलांटिक महासागर
(C) आर्कटिक महासागर
(D) प्रशांत महासागर
उत्तर:
(C) आर्कटिक महासागर

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
हम पृथ्वी को नीला ग्रह क्यों कहते हैं?
उत्तर:
जल पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्रकार के जीवों के लिए आवश्यक घटक है। पृथ्वी के जीव सौभाग्यशाली हैं कि यह एक जलीय ग्रह है। पृथ्वी ही सौरमण्डल का एकमात्र ऐसा ग्रह है जिसकी सतह पर 71% जल पाया जाता है। जल की उपस्थिति के कारण ही पृथ्वी को नीला ग्रह या जलीय ग्रह कहा जाता है।

प्रश्न 2.
महाद्वीपीय सीमांत क्या होता है?
उत्तर:
महाद्वीपीय सीमांत प्रत्येक महादेश का विस्तृत किनारा होता है जोकि अपेक्षाकृत छिछले समुद्रों तथा खाड़ियों से घिरा भाग होता है। यह महासागर का सबसे छिछला भाग होता है, जिसकी औसत प्रवणता 1 डिग्री या उससे भी कम होती है। इस सीमा का किनारा बहुत ही खड़े ढाल वाला होता है।

प्रश्न 3.
विभिन्न महासागरों के सबसे गहरे गर्तों की सूची बनाइये।
उत्तर:
वर्तमान समय में लगभग 57 गर्मों की खोज हो चुकी है जो निम्नलिखित अनुसार हैं-
32 प्रशांत महासागर
19 अटलांटिक महासागर
6 हिंद महासागर

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

प्रश्न 4.
ताप-प्रवणता क्या है?
उत्तर:
यह सीमा समुद्री सतह से लगभग 100 से 400 मीटर नीचे प्रारंभ होती है, एवं कई सौ मीटर नीचे तक जाती है। वह सीमा क्षेत्र जहाँ तापमान में तीव्र गिरावट आती है, उसे ताप-प्रवणता (थर्मोक्लाइन) कहा जाता है।

प्रश्न 5.
समुद्र में नीचे जाने पर आप ताप की किन परतों का सामना करेंगे? गहराई के साथ तापमान में भिन्नता क्यों आती है?
उत्तर:
समुद्र में नीचे जाने पर हमें तीन परतों से गुजरना पड़ता है
1. पहली परत-

  • यह महासागरीय जल की सबसे उपरी परत होती है
  • यह परत 500 मीटर तक मोटी होती है
  • इसका तापमान 20° सेंटीग्रेड से -25° सेंटीग्रेड के बीच होता है।

2. दूसरी परत-

  • इसे तापप्रवणता परत कहा जाता है
  • यह पहली परत के नीचे स्थित होती है
  • ताप प्रवणता की मोटाई -500 से 1000 मीटर तक होती है।

3. तीसरी परत-

  • यह परत बहुत ठंडी होती है
  • यह परत गम्भीर महासागरीय तली तक विस्तृत होती है
  • आर्कटिक एवं अंटार्कटिक वृत्तों में सतही जल का तापमान 0° से० के निकट होता है और इसलिए गहराई के साथ तापमान में बहुत कम परिवर्तन आता है।

प्रश्न 6.
समुद्री जल की लवणता क्या है?
उत्तर:
सागरीय जल की मात्रा और उसमें घुले हुए लवणों की मात्रा के बीच पाए जाने वाले अनुपात को समुद्री जल की लवणता कहा जाता है। लवणता को प्रति हजार भागों में व्यक्त किया जाता है अर्थात् प्रति 1,000 ग्राम समुद्री जल में कितने ग्राम लवण की मात्रा है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
जलीय चक्र के विभिन्न तत्व किस प्रकार अंतर-संबंधित हैं?
उत्तर:
जल एक चक्रीय संसाधन है जिसका प्रयोग एवं पुनः प्रयोग किया जा सकता है। जब समुद्री जल वाष्प बनकर बादल का रूप धारण करता है और वो ही बादल जब वायुमंडलीय अवरोधों से टकराता है तो वर्षा करता है वर्षा का जल प्रवाहित होकर नदी, नालों से होते हुए सागरों में मिल जाता है। फिर सूर्यताप से सागरों के जल वाष्प बन जाते है। इस प्रक्रिया को जल चक्र कहा जाता है। इसी प्रकार जलीय चक्र में एक तत्व दूसरे तत्व से अंतर-संबंधित है।

जलीय चक्र पृथ्वी के जलमंडल में विभिन्न रूपों जैसे-गैस, तरल व ठोस में जल का परिसंचलन है। इसका संबंध महासागरों, वायुमंडल, भूपृष्ठ, स्तल एवं जीवों के बीच सतत् आदान-प्रदान से भी है। पर्यावरण में जल तीनों मण्डलों में तीनों अवस्थाओं (ठोस, तरल तथा गैस) में पाया जाता है। वर्षा होने तथा हिम पिघलने से जल का अधिकतर भाग ढाल के अनुरूप बहकर नदियों के द्वारा समुद्र में चला जाता है। इस जल का कुछ भाग महासागरों, झीलों तथा नदियों से जलवाष्प (Water Vapour) बनकर वायुमण्डल में लौट जाता है व कुछ भाग वनस्पति द्वारा अवशोषित होकर वाष्पोत्सर्जन (Evapotranspiration) द्वारा वायुमण्डल में जा मिलता है।

वर्षा और हिम के पिघले जल का शेष भाग रिसकर या टपक-टपककर भूमिगत हो जाता है। वायुमण्डल में उपस्थित जलवाष्प संघनित (Condense) होकर बादलों का रूप धारण करते हैं। बादलों से वर्षा होती है और वर्षा का जल नदियों के रास्ते फिर से पहुँच जाता है। झरनों के माध्यम से भूमिगत जल भी कहीं-न-कहीं धरातल पर निकलकर नदियों से होता हुआ समुद्रों में जा पहुँचता है। “अतः महासागरों, वायुमण्डल तथा स्थलमण्डल में परस्पर होने वाला जल का समस्त आदान-प्रदान जलीय-चक्र कहलाता है।” इस जलीय चक्र में जल कभी रुकता नहीं और अपनी अवस्था (State) तथा स्थान बदलता रहता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

प्रश्न 2.
महासागरों के तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
महासागरों के तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
स्थलमण्डल और वायुमण्डल के तापमान को प्रभावित करने वाले कारकों की अपेक्षा जलमण्डल के तापमान को प्रभावित करने वाले कारक अधिक जटिल (Complex) होते हैं। महासागरों पर तापमान वितरण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं

1. अक्षाश (Latitude)-भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें लम्बवत् और ध्रुवों की ओर तिरछी पड़ती हैं। फलस्वरूप भूमध्यरेखीय क्षेत्र में महासागरीय जल का औसत वार्षिक तापमान अधिक रहता है और ध्रुवों की ओर जाने पर समुद्री जल का तापमान घटता जाता है। उदाहरणतः भूमध्य रेखा पर महासागरीय जल का औसत वार्षिक तापमान 26°C, 20° अक्षांश पर 23°C, 40° अक्षांश पर -14°C तथा 60° अक्षांश पर 1°C रह जाता है। 0°C की समताप रेखा ध्रुवीय क्षेत्रों के चारों ओर टेढ़ा-मेढ़ा वृत्त बनाती है और सर्दियों के मौसम में थोड़ा-सा भूमध्य रेखा की ओर खिसक आती है।

2. प्रचलित पवनें (Prevailing Winds)-स्थल से जल की ओर बहने वाली प्रचलित पवनें समुद्री जल को तट से परे बहा ले जाती हैं। हटे हुए गर्म जल का स्थान लेने के लिए नीचे से समुद्र का ठण्डा पानी ऊपर आता रहता है। परिणामस्वरूप वहाँ सागरीय का तापमान कम हो जाता है। उदाहरणतः उष्ण कटिबन्ध से पूर्व से आने वाली सन्मार्गी पवनों (Trade Winds) के प्रभाव से महासागरों के पूर्वी तटों पर समुद्री जल का तापमान कम और पश्चिमी तटों पर समुद्री जल का तापमान अपेक्षाकृत अधिक होता है। इसके विपरीत शीतोष्ण कटिबन्ध में पछुवा पवनों (Westerlies) के प्रभाव से महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर समुद्री जल का तापमान कम और पूर्वी तटों पर समुद्री जल का तापमान अपेक्षाकृत अधिक होता है।

3. महासागरीय धाराएँ (Ocean Currents)-महासागरीय जल के तापमान को वहाँ चलने वाली गर्म अथवा ठण्डी जल धाराएँ भी प्रभावित करती हैं। उदाहरणतः मैक्सिको की खाड़ी से चलने वाली गल्फ स्ट्रीम (Gulf Stream) नामक गर्म जल धारा उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट के पास तथा उत्तरी-पश्चिमी यूरोप के पास समुद्री जल के तापमान को बढ़ा देती है। इसी कारण नार्वे के तट पर 60° उत्तरी अक्षांश पर भी समुद्री जल जम नहीं पाता। इसके विपरीत लैब्रेडोर की ठण्डी जलधारा के कारण शीत ऋतु में उत्तरी अमेरिका के उत्तरी-पूर्वी तट पर 50° उत्तर अक्षांश पर ही तापमान हिमांक तक पहुँच जाता है।

4. समीपवर्ती स्थलखण्डों का प्रभाव (Effect ofAdjacent Land Masses) खुले महासागरों के तापमान सारा साल लगभग एक-जैसे रहते हैं, परन्तु पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से स्थल खण्डों से घिरे हुए समुद्रों का तापमान ग्रीष्म ऋतु में अधिक व शीत ऋतु में कम हो जाता है। ऐसे समुद्रों पर निकटवर्ती स्थल खण्डों का प्रभाव पड़ता है जो जल की अपेक्षा शीघ्र गर्म और शीघ्र ठण्डे हो जाते हैं। उदाहरणतः भूमध्य रेखा पर ग्रीष्म ऋतु में खुले महासागरीय जल का तापमान 26°C होता है जबकि लाल सागर (Red Sea) का तापमान उन्हीं दिनों 30°C तक पहुँचा होता है।

5. लवणता (Salinity)-प्रायः अधिक लवणता वाला महासागरीय जल अधिक ऊष्मा ग्रहण कर लेता है जिससे उसका तापमान भी बढ़ जाता है। इसके विपरीत समुद्र का कम खारा जल कम ऊष्मा ग्रहण करने के कारण अपेक्षाकृत ठण्डा रहता है।

6. प्लावी हिमखण्ड तथा प्लावी हिमशैल (Ice floes and Icebergs)-ध्रुवीय क्षेत्रों से टूटकर आने वाले बहुत अधिक प्लावी हिमखण्ड (Ice floes) और प्लावी हिमशैल (Icebergs) जिन महासागरों में मिलते हैं, वहाँ के जल का तापमान अपेक्षाकृत कम हो जाता है। उत्तरी ध्रुव के पास ग्रीनलैंड से टूटकर आने वाले हिमखण्ड और हिमशैल पर्याप्त दूरी तक अन्धमहासागर के जल का तापमान नीचे कर देते हैं। इसी प्रकार दक्षिणी ध्रुव के पास अंटार्कटिका से टूटकर आने वाले हिमखण्ड व हिमशैल निकटवर्ती दक्षिणी महासागर (Southern Ocean) के जल का तापमान कम कर देते हैं।

7. वर्षा का प्रभाव (Effect of Rain)-जिन समुद्री भागों में वर्षा अधिक होती है, वहाँ सतह (सागर की सतह) का तापक्रम अपेक्षाकृत कम तथा नीचे के जल का तापमान अधिक होता है। भूमध्य रेखीय महासागरों में अधिक वर्षा के कारण ऊपरी सतह का तापक्रम कम तथा नीचे गहराई में तापक्रम अधिक होता है अर्थात् तापक्रम की विलोमता देखने को मिलती है।

महासागरीय जल HBSE 11th Class Geography Notes

→ महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelf) महाद्वीपीय मग्नतट महासागर का एक ऐसा निमज्जित प्लेटफॉर्म होता है जिस पर महाद्वीपीय उच्चावच स्थित है।

→ जलमग्न केनियन (Submarine Canyons) महासागरीय नितल पर तीव्र ढालों वाली गहरी व संकरी ‘V’ आकार की घाटियों या गॉর্जो को जलमग्न केनियन कहते हैं। जलमग्न कटक (Submarine Ridges) महासागरों की तली पर स्थित सैंकड़ों कि०मी० चौड़ी तथा हज़ारों कि०मी० लम्बी पर्वत श्रेणियों को जलमग्न कटक कहते हैं।

→ गाईऑट (Guyot)-सपाट शीर्ष वाले समुद्री पर्वतों को गाईऑट कहा जाता है।

HBSE 11th Class Geography Solutions Chapter 13 महासागरीय जल

→ महाद्वीपीय सीमान्त (Continental Margin) यह महाद्वीपों की पर्पटी की अंतः समुद्री सीमा है। इसमें महाद्वीपीय मग्नतट, ढाल और उत्थान शामिल हैं।

→ ग्रांड बैंक्स (Grand Banks)-कनाडा के न्यूफाउंडलैंड द्वीप के दक्षिण-पूर्व में विश्व के सर्वश्रेष्ठ मत्स्य-ग्रहण क्षेत्रों में से एक।

→ अयन वृत्त (Tropics)-कर्क रेखा (23.5° उ०) व मकर रेखा (23.5° द०) को अयन वृत्त कहा जाता है, क्योंकि यहाँ सूर्य का प्रखर प्रकाश पड़ता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

Haryana State Board HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

भाग-I : सही विकल्प का चयन करें

1. ट्रिवार्था के वर्गीकरण में वर्षण पर आधारित जलवायु वर्ग का नाम लिखो-
(A) A वर्ग
(B) C वर्ग
(C) B वर्ग
(D) H वर्ग
उत्तर:
(C) B वर्ग

2. अमेजन बेसिन में कौन-सी जलवायु पाई जाती है?
(A) भूमध्यरेखीय
(B) सवाना
(C) ध्रुवीय
(D) मानसूनी
उत्तर:
(A) भूमध्यरेखीय

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

3. विश्व की जलवायु के वर्गीकरण को कितने प्रकारों में बाँटा जा सकता है?
(A) 2
(B) 3
(C) 4
(D) 5
उत्तर:
(A) 2

4. वे काल्पनिक रेखाएँ जो समुद्रतल के अनुसार समानीत ताप वाले स्थानों को मिलाती हैं-
(A) समदाब रेखाएँ
(B) समताप रेखाएँ
(C) समान रेखाएँ
(D) सम समुद्रतल रेखाएँ
उत्तर:
(B) समताप रेखाएँ

5. वायुमंडल में उपस्थित ग्रीन हाऊस गैसों में सबसे अधिक सांद्रण किस गैस का है?
(A) CO2
(B) CFCs
(C) CHA
(D) NO
उत्तर:
(A) CO2

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

6. उपोष्ण मरुस्थलीय जलवायु दोनों गोलार्डों में कितने अक्षांशों के बीच पाई जाती है?
(A) 5°- 20°
(B) 15°- 30°
(C) 15°- 35°
(D) 30°- 40°
उत्तर:
(B) 15°- 30°

7. भारत में किस प्रकार की जलवायु पाई जाती है?
(A) उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु
(B) उष्ण कटिबन्धीय मानसून जलवायु
(C) उपोष्ण कटिबन्धीय स्टैपीज
(D) भूमध्य सागरीय जलवायु
उत्तर:
(B) उष्ण कटिबन्धीय मानसून जलवायु

भाग-II : एक शब्द या वाक्य में उत्तर दें

प्रश्न 1.
ट्रिवार्था ने विश्व की जलवायु को कितने प्रकारों में विभाजित किया है?
उत्तर:
16 प्रकारों में।

प्रश्न 2.
ट्रिवार्था के जलवायु वर्गीकरण का क्या आधार था?
उत्तर:
तापमान तथा वर्षण।

प्रश्न 3.
ट्रिवार्था ने विश्व की जलवायु को कितने मुख्य भागों में बाँटा?
उत्तर:
छह।

प्रश्न 4.
ट्रिवार्था के वर्गीकरण में वर्षण पर आधारित जलवायु वर्ग का नाम लिखो।
उत्तर:
B वर्ग।

प्रश्न 5.
अमेज़न बेसिन में कौन-सी जलवायु पाई जाती है?
उत्तर:
भूमध्य रेखीय जलवायु।

प्रश्न 6.
टैगा जलवायु में कौन-से वन मिलते हैं?
उत्तर:
शंकुधारी टैगा वन।

प्रश्न 7.
टैगा जलवायु में न्यूनतम तापमान कहाँ नापा गया है?
उत्तर:
वल्यान्सक (-50° सेल्सियस)।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जलवायु वर्गीकरण की पद्धतियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
जलवायु का वर्गीकरण तीन वृहद उपागमों द्वारा किया गया है जो निम्नलिखित हैं-

  1. आनुभविक
  2. जननिक और
  3. अनुप्रयुक्त।

प्रश्न 2.
यूनानियों ने संसार को कौन-कौन से ताप कटिबन्धों में विभाजित किया था?
उत्तर:

  1. उष्ण
  2. शीतोष्ण तथा
  3. शीतकटिबन्ध।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

प्रश्न 3.
विश्व की जलवायु का वर्गीकरण करने वाले तीन वैज्ञानिकों के नाम बताओ।
उत्तर:
कोपेन, थार्नथ्वेट तथा ट्रिवार्था।

प्रश्न 4.
विश्व के सभी जलवायु वर्गीकरणों को कितने प्रकारों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर:
दो प्रकारों में-

  1. आनुभविक वर्गीकरण
  2. जननिक वर्गीकरण।

प्रश्न 5.
कोपेन ने अपने वर्गीकरण के लिए जलवायु के किन तत्त्वों को आधार बनाया?
उत्तर:

  1. तापमान
  2. वर्षा तथा
  3. वर्षा के मौसमी स्वभाव को।

प्रश्न 6.
थानथ्वेट ने अपने वर्गीकरण के लिए जलवायु के किन तत्त्वों को आधार बनाया?
उत्तर:

  1. वर्षण प्रभाविता
  2. तापीय दक्षता
  3. वर्षा का मौसमी वितरण।

प्रश्न 7.
ट्रिवार्था ने सवाना जलवायु तथा भूमध्य सागरीय जलवायु के लिए किन संकेताक्षरों का उपयोग किया है?
उत्तर:
A, C, D, E, H तथा B क्रमशः Aw तथा Cs।

प्रश्न 8.
प्रमुख ग्रीन हाऊस गैसों के नाम बताइए।
उत्तर:
कार्बन-डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन, ओज़ोन व जलवाष्प।

प्रश्न 9.
भूमण्डलीय तापन क्या होता है?
उत्तर:
पृथ्वी के तापमान का औसत से अधिक होना।

प्रश्न 10.
ट्रिवार्था के जलवायु वर्गीकरण में ताप पर आधारित पाँच वर्ग कौन-से हैं?
उत्तर:
A, C, D, E तथा H वर्ग।

प्रश्न 11.
Aw प्रकार की जलवायु कौन-सी होती है?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय सवाना जलवायु।

प्रश्न 12.
Bwh प्रकार की जल न-सी होती है?
उत्तर:
उष्ण तथा उपोष्ण कटिबन्धीय गर्म मरुस्थल।

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प्रश्न 13.
किन्हीं दो उष्ण मरुस्थलों के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. सहारा तथा
  2. थार।

प्रश्न 14.
ध्रुवीय जलवायु के कौन से दो प्रकार हैं?
उत्तर:

  1. टुण्ड्रा और
  2. ध्रुवीय हिमाच्छादित जलवायु।

प्रश्न 15.
उष्ण कटिबन्ध में पाई जाने वाली तीन प्रकार की जलवायु का नाम बताओ।
उत्तर:

  1. भूमध्य रेखीय
  2. सवाना
  3. मानसूनी।

प्रश्न 16.
भूमध्य सागरीय प्रदेश में सर्दियों में वर्षा होने का प्रमुख कारण क्या है?
उत्तर:
पवन पेटियों का खिसकना।

प्रश्न 17.
टैगा जलवायु कहाँ पाई जाती है?
उत्तर:
केवल 50° से 70° उत्तरी अक्षांशों में, दक्षिणी गोलार्द्ध में नहीं।

प्रश्न 18.
टैगा जलवायु में वार्षिक तापान्तर कितना होता है?
उत्तर:
65.5° सेल्सियस तथा इससे ज्यादा वार्षिक तापान्तर कहीं नहीं मिलता।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्रीनहाऊस गैसों से आपका क्या अभिप्राय है? ग्रीनहाऊस प्रभाव बढ़ाने वाले प्रमुख तत्त्वों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
ग्रीनहाऊस गैसें ऐसी गैसें जो धरती पर एक आवरण बनाकर कम्बल की भाँति काम करती हैं और धरती की ऊष्मा को बाहर जाने से रोकती हैं, ग्रीनहाऊस गैसें कहलाती हैं। ये पृथ्वी के तापमान को बढ़ाने में सहायक हैं। कार्बन-डाइ-ऑक्साइड के अतिरिक्त भूमण्डलीय तापन की प्रक्रिया को तेज करने वाले कुछ अन्य तत्त्व निम्नलिखित हैं
1. जलवाष्प तापमान बढ़ने से जल की वाष्पन दर बढ़ जाती है। ज्यादा जलवाष्प तापमान को और ज्यादा बढ़ाते हैं क्योंकि जलवाष्प एक प्राकृतिक ग्रीन हाऊस गैस है।

2. नाइट्रस ऑक्साइड-कृषि में नाइट्रोजन उर्वरकों के प्रयोग, पेड़-पौधों को जलाने, नाइट्रोजन वाले ईंधन को जलाने आदि के कारण वायुमण्डल में नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है। इसका प्रत्येक अणु कार्बन डाइ-ऑक्साइड की तुलना में 250 गुना अधिक ताप प्रगृहित करता है।

3. मीथेन गैस-मीथेन गैस सागरों, ताजे जल, खनन कार्य, गैस ड्रिलिंग तथा जैविक पदार्थों के सड़ने से उत्पन्न होती है। पशु व दीमक आदि को भी मीथेन गैस छोड़ने का जिम्मेदार माना गया है।

4. क्लोरो-फ्लोरो कार्बन-ये संश्लेषित यौगिकों का समूह है जो वातानुकूलन व प्रशीतन की मशीनों, आग बुझाने के उपकरणों तथा छिड़काव यन्त्रों में प्रणोदक के रूप में प्रयुक्त होते हैं।

प्रश्न 2.
जलवायु परिवर्तन के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन के कारणों को दो वर्गों में बाँटा गया है-

  • खगोलीय कारण
  • पार्थिव कारण।

(1) खगोलीय कारणों में सौर कलंक जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख कारण है। सौर कलंक सूर्य पर काले धब्बे होते हैं जो एक चक्रीय ढंग से घटते-बढ़ते रहते हैं। मौसम वैज्ञानिक के अनुसार सौर कलंकों की संख्या बढ़ने पर मौसम ठण्डा और आर्द्र हो जाता है और तूफानों की संख्या बढ़ जाती है।

(2) पार्थिव कारणों में ज्वालामुखी क्रिया जलवायु परिवर्तन का एक अन्य प्रमुख कारण है। ज्वालामुखी उभेदन के दौरान वायुमण्डल में बड़ी मात्रा में ऐरोसोल छोड़ दिए जाते हैं। ये ऐरोसोल वायुमण्डल में लम्बे समय तक रहते हैं और पृथ्वी की सतह पर पहुंचने वाले सौर विकिरण को कम करते हैं, जिससे पृथ्वी का औसत तापमान कुछ हद तक कम हो जाता है।

इसके अतिरिक्त ग्रीनहाऊस गैसों का सान्द्रण जलवाय को सबसे अधिक प्रभावित करता है। इससे पथ्वी का ता

प्रश्न 3.
भूमण्डलीय तापन में मनुष्य की भूमिका पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
वर्तमान युग में बढ़ता भूमण्डलीय तापन संसाधनों के अनियोजित उपयोग और हमारी भोगवादी जीवन शैली की देन है। चूल्हे से धमन भट्टी तक तथा जुगाड़ से रॉकेट तक हुआ तकनीकी विकास, बढ़ता औद्योगीकरण, नगरीकरण, परिवहन तथा कृषि के क्षेत्र में आए क्रान्तिकारी बदलावों, भूमि की जुताई तथा वनों के विनाश जैसी मनुष्य की गतिविधियों ने वायुमण्डल में ग्रीन हाऊस गैसों की मात्रा जरूरत से ज्यादा बढ़ा दी है। ये गैसें वायुमण्डल में एक कम्बल या काँच घर (Glass House) का कार्य करती हैं, जिसमें गर्मी आ तो जाती है पर आसानी से जाने नहीं पाती।

प्रश्न 4.
भूमण्डलीय तापन के दुष्परिणामों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूमण्डलीय तापन के प्रमुख दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं-

  1. विश्व में औसत तापमान बढ़ने से हिमाच्छादित क्षेत्रों में हिमानियाँ पिघलेंगी।
  2. समुद्र का जल-स्तर ऊँचा उठेगा जिससे तटवर्ती प्रदेश व द्वीप जलमग्न हो जाएँगे। करोड़ों लोग शरणार्थी बन जाएँगे।
  3. वाष्पीकरण की प्रक्रिया तेज़ होगी। पृथ्वी का समस्त पारिस्थितिक तन्त्र प्रभावित होगा। शीतोष्ण कटिबन्धों में वर्षा बढ़ेगी और समुद्र से दूर उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा घटेगी।।
  4. आज के ध्रुवीय क्षेत्र पहले की तुलना में अधिक गर्म हो जाएँगे।
  5. जलवायु के दो तत्त्वों तापमान और वर्षा में जब परिवर्तन होगा तो निश्चित रूप से धरातल की वनस्पति का प्रारूप (Patterm) बदलेगा।
  6. हरित गृह प्रभाव के कारण कृषि क्षेत्रों, फसल प्रारूप तथा कृषि प्राकारिकी (Topology) में परिवर्तन होना निश्चित है।

प्रश्न 5.
भूमण्डलीय जलवायविक परिवर्तन से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वायुमण्डलीय दशाएँ केवल एक स्थान से दूसरे स्थान पर ही नहीं बदलती वरन् ये समय के साथ-साथ भी बदल जाती हैं। अतः जलवायु परिवर्तन से आशय 30-35 वर्षों में या हजारों वर्षों में मिलने वाली जलवायवी भिन्नताओं के अध्ययन से नहीं है। वरन् इसमें लाखों वर्षों से चले आ रहे समय मापकों में होने वाली जलवायु की भिन्नताओं का अध्ययन शामिल किया जाता है।

प्रश्न 6.
जलवायु परिवर्तन के पार्थिव कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन के पार्थिव कारक निम्नलिखित हैं-
1. महाद्वीपीय विस्थापन-भू-गर्भिक काल में महाद्वीपों के विखण्डन व विभिन्न दिशाओं में संचलन के कारण विभिन्न भू-खण्डों में जलवायु परिवर्तन हुए हैं। ध्रुवीय क्षेत्रों के समीप स्थित भू-भागों का भू-मध्य रेखा के निकट आने पर जलवायु परिवर्तन होना एक सामान्य प्रक्रिया है। दक्षिणी भारत में हिमनदों के चिह्नों तथा अंटार्कटिका में कोयले का मिलना इस जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रमाण हैं।

2. पर्वत निर्माण प्रक्रिया यह जलवायु को दो प्रकार से प्रभावित करती है-(a) पर्वतों के उत्थान तथा घिसकर उनके नीचे हो जाने से स्थलाकृतियों की व्यवस्था भंग हो जाती है। इसका प्रभाव पवन प्रवाह, सूर्यातप तथा मौसमी तत्त्वों; जैसे तापमान एवं वर्षा के वितरण पर पड़ता है। (b) पर्वत निर्माण की प्रक्रिया से ज्वालामुखी उद्गार की सम्भावनाएँ प्रबल हो जाती हैं। ज्वालामुखी उद्गार से भारी मात्रा में वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें और जलवाष्प निष्कासित होते हैं। इससे वायुमण्डल की पारदर्शिता (Transparency) प्रभावित होती है, जिसका सीधा प्रभाव प्रवेशी सौर्य विकिरण तथा पार्थिव विकिरण पर पड़ता है। ये सभी प्रक्रियाएँ पृथ्वी के ऊष्मा सन्तुलन (Heat Balance) को भंग कर जलवायु परिवर्तन की भूमिका तैयार करती हैं।

3. मनुष्य के क्रिया-कलाप मनुष्य अपनी विकासात्मक गतिविधियों से हरित-गृह गैसों (कार्बन-डाइ-ऑक्साइड, ओजोन, जलवाष्प) की मात्रा वायुमण्डल में बढ़ाता रहता है। वायुमण्डल में इन अवयवों के प्राकृतिक संकेन्द्रण में भिन्नता आने से भूमण्डलीय ऊष्मा सन्तुलन प्रभावित होता है। इससे वायुमण्डल की सामान्य प्रणाली, जिस पर जलवायु भी निर्भर करती है, प्रभावित होती है।

प्रश्न 7.
जलवायु परिवर्तन के खगोलीय कारकों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन से जुड़े खगोलीय कारक तीन तथ्यों पर आधारित हैं-
1. पृथ्वी की कक्षा की उत्केन्द्रीयता (Ecentricity) में परिवर्तन-पृथ्वी की उत्केन्द्रीयता में लगभग 92 हजार वर्षों में परिवर्तन आ जाता है अर्थात् सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के परिक्रमण पथ की आकृति कभी अण्डाकार तो कभी गोलाकार हो जाती है। उदाहरणतः वर्तमान में पृथ्वी की सूर्य के निकटतम रहने की स्थिति–उपसौर (Perihelion) जनवरी में आती है। यह उपसौर स्थिति 50 हजार वर्ष बाद जुलाई में आने लगेगी। इसका परिणाम यह होगा कि आगामी 50 हजार वर्षों में उत्तरी गोलार्द्ध में ग्रीष्मकाल अधिक गर्म व शीतकाल अधिक ठण्डा हो जाएगा।

2. पृथ्वी की काल्पनिक धुरी के कोण में परिवर्तन सूर्य की परिक्रमा करते समय पृथ्वी की धुरी (Axes) अपने कक्षा-पथ के साथ एक कोण बनाती है। वर्तमान युग में यह कोण 239° का है, लेकिन प्रत्येक 41-42 हजार वर्षों के बाद पृथ्वी की धुरी के कोण में 1.5° का अन्तर आ जाता है। कभी यह झुकाव 22° तो कभी 241/2° हो जाता है। पृथ्वी के झुकाव में परिवर्तन से मौसमी दशाओं व तापमान में तो अन्तर होंगे ही साथ ही भौगोलिक पेटियों की भिन्नताएँ कम या विलुप्त हो जाएँगी।

3. विषुव का पुरस्सरण (Precession)-वर्तमान में चार मौसमी दिवसों की स्थितियाँ इस प्रकार हैं-21 मार्च-बसन्त विषव, 23 सितम्बर-शरद विषुव, 21 जून-कर्क संक्रांति तथा 22 दिसम्बर मकर संक्रांति। प्रत्येक 22 हजार वर्षों में इन स्थितियों में परिवर्तन आता है जिसका सीधा प्रभाव जलवायु पर पड़ता है।

प्रश्न 8.
जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रमाणों का संक्षिप्त ब्योरा दीजिए।
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी प्रमाणों को भी निम्नलिखित दो वर्गों में रखा जा सकता है-
1. भू-वैज्ञानिक अतीत काल में हुए जलवायु परिवर्तन के प्रमाण

  • अवसादी चट्टानों में प्राणियों और वनस्पति के जीवाश्म
  • गहरे महासागरों के अवसादों से प्राप्त प्राणियों और वनस्पति के जीवाश्म
  • वृक्षों के वलय
  • झीलों के अवसाद
  • चट्टानों की प्रकृति
  • हिमनदियों के आकार में परिवर्तन
  • समुद्रों तथा झीलों के जल-स्तर में परिवर्तन
  • भू-आकारों के प्रमाण।

2. ऐतिहासिक काल में हुए जलवायु परिवर्तन के प्रमाण-

  • अभिलेखों में जलवायु परिवर्तन के उल्लेख
  • पुराने पुस्तकालयों में मौसम सम्बन्धी जानकारी
  • फसलों के बोने तथा काटने के मौसम
  • सूखे व बाढ़ से जुड़ी लोक कथाएँ
  • पत्तनों के जल का जम जाना
  • सूखी झीलें, नदियाँ व नहरे
  • पुरानी बस्तियों के खण्डहर
  • लोगों का बड़े पैमाने पर प्रवास
  • लुप्त वन तथा अतीत में वनस्पति का वितरण।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

प्रश्न 9.
मनुष्य और जलवायु में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
प्राचीनकाल से ही मनुष्य और वातावरण का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है। मानव का रहन-सहन, उसके अधिवास, आर्थिक क्रिया-कलाप आदि पर जलवायु का विशेष प्रभाव पड़ता है। यह प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप से मानव के प्रत्येक क्रिया-कलाप को प्रभावित करता है। विश्व के कई क्षेत्रों में मनुष्य की लापरवाही से वनों की कटाई के कारण मृदा अपरदन होता है जिससे अधिकतर अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। कुछ शताब्दियों से कोयले और तेल की खपत बढ़ जाने से वायुमण्डल में कार्बन-डाइऑक्साइड में वृद्धि हो गई है जिससे वायुमण्डल का तापमान भी अधिक हो गया है।

प्रश्न 10.
विश्व के मुख्य ताप कटिबन्धों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संसार की जलवायु के वर्गीकरण का संभवतः सबसे पहला प्रयास प्राचीन यूनानियों ने किया था। उन्होंने ताप को आधार मानते हुए संसार को तीन ताप अथवा जलवायु कटिबन्धों में बाँटा था

  • उष्ण कटिबन्ध-यह भूमध्य रेखा के दोनों और 23 1/2° उत्तर तथा 23 1/2° दक्षिण अक्षांशों के मध्य स्थित है। यहाँ सारा वर्ष ऊँचा तापमान रहता है।
  • शीतोष्ण कटिबन्ध-यह कटिबन्ध दोनों गोलार्डों में 23 1/2° उत्तर से 66 1/2° उत्तर तथा 23 1/2° दक्षिण से 66 1/2° दक्षिण अक्षांशों के मध्य स्थित है।
  • शीत कटिबन्ध यह कटिबन्ध उत्तर तथा दक्षिण में 66 1/2° से ध्रुवों तक फैला हुआ है। ध्रुवीय क्षेत्रों में तापमान वर्ष भर कम रहता है।

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जलवायु का मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्राकतिक पर्यावरण की रचना वायमण्डल, जलमण्डल, स्थलमण्डल और जैवमण्डल से मिलकर होती है। जलवाय इस प्राकृतिक पर्यावरण का एक महत्त्वपूर्ण घटक (Constituent) होता है। जलवायु का प्रभाव मानव की समस्त क्रियाओं पर देखा जा सकता है।
1. मृदा-निर्माण-मूल चट्टान को मृदा में बदलने में जलवायु अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मिट्टी का रंग, संरचना, बनावट, उपजाऊपन, कटाव और निक्षालन (Leaching) इत्यादि गुण जलवायु पर निर्भर करते हैं। मृदा ही अन्य कारकों के साथ कृषि की उत्पादकता का स्तर निर्धारित करती है।

2. वनस्पति और प्राणी-वनस्पतियों और प्राणियों का धरातल पर वितरण जलवायु ही करती है। इसी कारण वनस्पति को जलवायु का दर्पण (Mirror of Climate) कहा जाता है। मनुष्य के जीवन की बहुत सारी आवश्यकताएँ वनों और प्राणियों से पूरी होती हैं।

3. कृषि-कृषि, जो मानव और पशुओं के भोजन का आधार तथा अनेक उद्योगों के लिए कच्चे माल का स्रोत है। केवल अनुकूल जलवायुवी दशाओं में ही की जा सकती है।

4. जनसंख्या का वितरण-प्रतिकूल जलवायु वाले प्रदेशों में जनसंख्या विरल होती है, जबकि अनुकूल जलवायु वाले क्षेत्रों में जनसंख्या का सर्वाधिक सान्द्रण पाया जाता है।

5. आर्थिक उन्नति-जलवायु अपनी विशेषताओं के आधार पर मानव के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, जिसका अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक-आर्थिक उन्नति पर प्रभाव पड़ता है। यूरोप व उत्तरी अमेरिका की शीत व शीतोष्ण जलवायु में व्यक्ति फुर्तीला रहता है, जबकि भूमध्यरेखीय उष्ण व आर्द्र जलवायु में आदमी आलस्यपूर्ण हो जाता है।

6. शारीरिक बनावट-जलवायु के प्रकार शरीर की बनावट व चमड़ी के रंग को प्रभावित करते हैं। मध्य अफ्रीका में रहने वाली जन-जातियों का रंग काला और यूरोप में रहने वाली जन-जातियों का रंग गोरा जलवायु का ही परिणाम है।

7. सभ्यताओं का उदय-निर्बाध जलापूर्ति, उपजाऊ मिट्टी के साथ-साथ अनकल जलवायु ने विश्व में अनेक प्राचीन सभ्यताओं के उदय में भूमिका निभाई है। सामाजिक, सांस्कृतिक व वैज्ञानिक उन्नति में सुखद जलवायु का अत्यन्त महत्त्व होता है।

इनके अतिरिक्त सिंचाई, वन प्रबन्धन, भूमि उपयोग, परिवहन, भवन निर्माण तथा अनेकानेक आर्थिक कार्यक्रम प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जलवायु द्वारा प्रभावित होते हैं।

प्रश्न 2.
कोपेन द्वारा प्रस्तुत जलवायु वर्गीकरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रसिद्ध जलवायुवेत्ता डॉ० व्लाडिमीर कोपेन का जलवायु वर्गीकरण अत्यधिक प्रचलित है। उन्होंने 1918 ई० में संसार की जलवायु का वर्गीकरण मूल रूप में प्रस्तुत किया जिसको बाद में उन्होंने संशोधित कर 1936 ई० में उसे अन्तिम रूप दिया। उनका उद्देश्य वर्गीकरण की एक ऐसी विधि विकसित करना था जो जलवायु तत्त्वों का संख्यात्मक आधार पर प्रदेशों का सीमांकन कर सके। उन्होंने तापमान, वर्षा और उनकी मौसमी विशेषताओं को महत्त्वपूर्ण स्थान देकर प्रदेशों का सीमांकन किया। उन्होंने अपना वर्गीकरण प्राकृतिक वनस्पति के वितरण को मद्देनज़र रखते हुए किया। उनका कहना था कि प्राकृतिक वनस्पति वर्षा की मात्रा तथा तापमान से प्रभावित होती है। जैसा कि उन्होंने कहा है, “Natural Vegetation is considered to be the best expression of the totality of the climate.”

कोपेन के वर्गीकरण को निम्नलिखित पाँ वर्गों में बाँटा गया है जिन्हें उन्होंने अंग्रेजी के बड़े अक्षरों के रूप में व्यक्त किया है-

कोपेन का वर्गीकरण
A – आर्द्र उष्ण कटिबन्धीय जलवायु 1. उष्ण कटिबन्धीय प्रचुर वर्षा वाले क्षेत्र
2. सवाना जलवायु (Af)
3. मानसूनी जलवायु (Aw)
B – शुष्क जलवायु 1. मरुस्थलीय जलवायु (BW)
2. स्टेपी जलवायु (BS)
C – आर्द्र शीतोष्ण कटिबन्धीय जलवायु 1. भूमध्य सागरीय जलवायु (Cf)
2. चीनी प्रकार की जलवायु (Cs)
3. पश्चिमी यूरोपीय जलवायु (CW)
D – आर्द्र शीतोष्ण जलवायु 1. टैगा जलवायु (Df)
2. शीत पूर्वी जलवायु (Dw)
3. महाद्वीपीय जलवायु (Dfb)
E – ध्रुवीय जलवायु
H – उच्च पर्वतीय जलवायु
1. टुण्ड्रा जलवायु (ET)
2. हिमाच्छादित प्रदेश जलवायु (Ef)
हिमाच्छादित उच्च भूमियाँ (H)

A – आर्द्र उष्ण कटिबन्धीय जलवायु।
B – शुष्क जलवायु।
C – आर्द्र शीतोष्ण कटिबन्धीय जलवायु [मृदु शीतकाल]।
D – आर्द्र शीतोष्ण जलवायु [कठोर शीतकाल]।
E – ध्रुवीय जलवायु।
इन अक्षरों के अतिरिक्त कुछ अन्य अक्षरों का भी प्रयोग किया गया है जोकि वर्षा की अवधि को प्रदर्शित करते हैं।
f- वर्ष भर वर्षा
s – ग्रीष्मकाल शुष्क
S – अर्द्ध-शुष्क या स्टेपी जलवायु।
W – शुष्क ऋतु।
आधुनिक समय में भी कोपेन का जलवायु वर्गीकरण सर्वमान्य है। जलवायु के मुख्य वर्ग अंग्रेजी के बड़े अक्षरों द्वारा तथा उप-वर्ग छोटे अक्षरों द्वारा दर्शाए गए हैं। यह एक सरल, महत्त्वपूर्ण तथा लाभदायक विधि है। वायुमण्डल परिसंचरण के अनुसार भी यह विधि उचित तथा सही है, परन्तु इस वर्गीकरण में भी कुछ निम्नलिखित त्रुटियाँ हैं जिससे विपक्षीय विचार प्रकट होते हैं

  • यह वर्गीकरण केवल वर्षा की प्रभावशीलता पर आधारित है।
  • इसमें समुद्री धाराओं, पवनों आदि जलवायु तत्वों के प्रभाव को ध्यान में नहीं रखा गया।
  • कोपेन ने जलवायु वर्गीकरण में कृषि जैसे महत्त्वपूर्ण कारक की अवहेलना की है।

प्रश्न 3.
ग्रीन हाऊस प्रभाव क्या होता है? विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
“भू-तल के परावर्तित विकिरण द्वारा वायुमण्डल का अप्रत्यक्ष रूप से गर्म होना ग्रीन हाऊस प्रभाव कहलाता है।” अत्यधिक ठण्डे देशों में उष्ण कटिबन्धीय पौधों को सुरक्षित रखने अथवा फल या सब्जियाँ उगाने के लिए काँच या पारदर्शी प्लास्टिक की दीवारों वाले घर बनाए जाते हैं। काँच ऊष्मा का अवशोषण तो करता है, लेकिन तापमान को बाहर नहीं जाने देता, जिसमें ठण्डे देशों में भी उच्च ताप प्राप्त कर पौधे जीवित रहते हैं, हरे रहते हैं, इसलिए उन्हें हरित-गृह कहते हैं। हम सभी जानते हैं कि सूर्य से पृथ्वी पर आने वाली विकिरण ऊर्जा, जिसे हम सूर्यातप (Insolation) कहते हैं, लघु तरंगों (Short-waves) के रूप में होती है। इस प्रवेशी सौर विकिरण से पृथ्वी गर्म होती है, वायुमण्डल तो इस ऊर्जा का केवल 20 प्रतिशत भाग ही अवशोषित कर पाता है।

सरल शब्दों में, सूर्य की किरणों से वायुमण्डल सीधे गर्म नहीं होता, बल्कि पहले पृथ्वी गर्म होती है। जब पृथ्वी को प्राप्त यह ऊष्मा दीर्घ तरंगों (Long waves) के रूप में वापस लौटने लगती है तो वायुमण्डल में उपस्थित कुछ गैसें इसे अवशोषित कर लेती हैं और पृथ्वी का तापमान 15° सेल्सियस तक बनाए रखती हैं। इस प्रकार वायुमण्डल को गर्म करने का मुख्य स्रोत पार्थिव विकिरण (Terrestrial Radiation) है।

वायुमण्डल की इसी गर्मी के कारण धरती पर जीव-जन्तु, पेड़-पौधे इत्यादि जीवित रह सकते हैं। पृथ्वी पर वनस्पतियों तथा प्राणियों के जीने योग्य तापक्रम बनाए रखने की इस प्राकृतिक व्यवस्था को ही ग्रीन हाऊस प्रभाव कहा जाता है। वे सभी गैसें जो इस प्रक्रिया में सहायक होती हैं, ‘ग्रीन हाऊस गैसें’ कहलाती हैं। इनमें प्रमुख स्थान कार्बन-डाइऑक्साइड का है। अन्य प्रमुख गैसें मीथेन व सी०एफ०सी० गैसें तथा जलवाष्प हैं।

प्रश्न 4.
भू-वैज्ञानिक अतीतकाल तथा ऐतिहासिक काल में होने वाले भूमण्डलीय जलवायविक परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अभिप्राय (Meaning)-वायुमण्डल स्थिर न रहकर सदा गतिशील रहता है। वायुमण्डल की यह गत्यात्मकता इसके निचले स्तरों में बहुत ज्यादा जटिल है। वायमुण्डलीय विशेषताएँ केवल एक स्थान से दूसरे स्थान पर ही नहीं बदलती वरन् ये समय के साथ-साथ भी बदल जाती हैं। पृथ्वी का भू-गर्भिक इतिहास इस बात का साक्षी है कि अतीत में हर युग की अपनी विशिष्ट जलवायुवी दशाएँ रही हैं। स्पष्ट है कि यहाँ जलवायु परिवर्तन से आशय 30-35 वर्षों में या हजारों वर्षों में मिलने वाली जलवायुवी भिन्नताओं के अध्ययन से नहीं है वरन् इसमें लाखों वर्षों से चले आ रहे समय मापकों में होने वाली जलवायु की भिन्नताओं का अध्ययन शामिल किया जाता है।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि जब से वायुमण्डल बना है तब से जलवायु में परिवर्तन हो रहे हैं, लेकिन ये परिवर्तन स्थायी कभी नहीं रहे। एक परिवर्तन दूसरे परिवर्तन के लिए जगह बनाता आया है।

विश्व में जलवायुवी परिवर्तनों की पड़ताल दो खण्डों में की जा सकती है-

  • भू-वैज्ञानिक अतीत काल (Geological Past Period)
  • ऐतिहासिक काल (Historical Period)।

(A) भू-वैज्ञानिक अतीत काल (Geological Past Period)-
1. अनुमान है कि आज से 425 करोड़ साल पूर्व वायुमण्डल का तापमान 37° सेल्सियस रहा होगा। लगभग 250 करोड़ साल पहले ये तापमान घटकर 25° सेल्सियस हो गया। तापमान घटने का यह सिलसिला जारी रहा और 250 करोड़ से 180 करोड़ वर्ष पहले की अवधि के दौरान हिमयुग आया। हिमयुग के आने का संकेत हमें उस समय की हिमनदियों से बनी स्थलाकृतियों से मिलता है।

2. इसके बाद आने वाले 95 करोड़ वर्षों तक जलवायु उष्ण रही और हिमनदियाँ लुप्त हो गईं।

3. वैज्ञानिक अध्ययन प्रमाणित करते हैं कि कैम्ब्रियन युग (लगभग 60 करोड़ वर्ष पूर्व) से पहले भू-पटल से अधिकांश भागों पर हिम की चादर बिछी हुई थी, जिस कारण भू-पटल पर शीत जलवायु का प्रभुत्व था।

4. ओरडोविशियन कल्प (50 करोड़ वर्ष पहले) तथा सिल्युरियन कल्प (44 करोड़ वर्ष पहले) में जलवायु गर्म रही। यह जलवायु हमारी वर्तमान जलवायु जैसी थी।

5. इसी प्रकार जुरैसिक कल्प (18 करोड़ वर्ष पहले) में पृथ्वी की जलवायु वर्तमान समय की जलवायु की तुलना में अधिक गर्म थी।

6. इयोसीन युग (6 करोड़ वर्ष पहले) शीतोष्ण वनस्पति ध्रुवीय भागों के अधिक निकट थी। इसी प्रकार 60° अक्षांश रेखा पर प्रवालों के अवशेष प्रदर्शित करते हैं कि इयोसीन काल में इन अक्षांशीय क्षेत्रों के महासागरीय जल का तापमान वर्तमान तापमान से 10°F अधिक था।

7. प्लीस्टोसीन अर्थात् अत्यन्त नूतन युग (30 लाख साल पहले) में हिमनदियों का विस्तार हुआ। वर्तमान युग की हिम की टोपियाँ इस समय के हिम के अवशेष हैं।

8. विगत 20 लाख वर्षों में कई ठण्डी और गर्म जलवायु आईं और गईं।

9. उत्तरी गोलार्द्ध में अन्तिम हिमनदन का अन्तिम दौर आज से 18,000 वर्ष पहले अपनी चरम सीमा पर था। उस समय समुद्र तल आज की तुलना में 85 मीटर नीचे था।

(B) ऐतिहासिक काल (Historical Period)
1. अब से 16,000 वर्ष पूर्व हिम ने पिघलना शुरू किया। तापमान ऊँचा और वर्षा पर्याप्त होने लगी। 7,000 से 10,000 साल पहले जलवायु आज की तुलना में गर्म थी। आज जहाँ टुण्ड्रा प्रदेश है, वहाँ उस समय वन उगे हुए थे।

2.  सन् 1450 से 1850 के बीच की अवधि को लघु हिमयुग (Little Ice Age) कहा जाता है। इस युग में आल्पस पर्वतों पर हिमनदियों का विस्तार हुआ।

3. औद्योगिक क्रान्ति (सन 1780) के बाद मानव की बढती गतिविधियों के कारण ग्रीन हाऊस गैसों के सान्द्रण से वायुमण्डल का तापमान बढ़ने लगा है।

एल्सवर्थ हंटिंगटन (E. Huntington) ने अपनी पुस्तक सभ्यता एवं जलवायु (Civilization and Climate) में ऐतिहासिक काल में हुए भूमण्डलीय जलवायु परिवर्तन के तीन सन्दर्भ दिए हैं-

  • उन मरुस्थलीय भागों में जहाँ आज काफिले (Caravans) भी नहीं जा सकते, पुराने नगरों के अवशेष देखने को मिलते हैं।
  • अफ्रीका तथा अमेरिका के ऐसे भागों में नगरों के खण्डहर देखने को मिलते हैं, जहाँ इस समय पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं हैं।
  • आज कई ऐसे क्षेत्रों में कृषि, सिंचाई तथा नहरों के चिह्न देखने को मिलते हैं, जहाँ जल का अभाव है और वर्तमान में अति न्यून वर्षा होती है।

प्रश्न 5.
पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन के कारकों को निम्नलिखित तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

  • पार्थिव कारक (Terrestrial Factors)
  • खगोलीय कारक (Astronomical Factors)
  • पार्थिवेत्तर कारक (Extra Terrestrial Factors)।

(A) पार्थिव कारक (Terrestrial Factors)
1. महाद्वीपीय विस्थापन भू-गर्भिक काल में महाद्वीपों के विखण्डन व विभिन्न दिशाओं में संचलन के कारण विभिन्न भू-खण्डों में जलवायु परिवर्तन हुए हैं। ध्रुवीय क्षेत्रों के समीप भू-भागों का भूमध्य रेखा के निकट आने पर जलवायु परिवर्तन होना एक सामान्य प्रक्रिया है। दक्षिणी भारत में हिमनदों के चिह्नों तथा अंटार्कटिका में कोयले का मिलना इस जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रमाण हैं।

2. पर्वत निर्माण प्रक्रिया-यह जलवायु को दो प्रकार से प्रभावित करती हैं-
(a) पर्वतों के उत्थान तथा घिसकर उनके नीचे हो जाने से स्थलाकृतियों की व्यवस्था भंग हो जाती है। इसका प्रभाव पवन प्रवाह, सूर्यातप तथा मौसमी तत्त्वों; जैसे तापमान एवं वर्षा के वितरण पर पड़ता है।

(b) पर्वत निर्माण की प्रक्रिया से ज्वालामुखी उद्गार की सम्भावनाएँ प्रबल हो जाती हैं। ज्वालामुखी उद्गार से भारी मात्रा में वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें और जलवाष्प निष्कासित होते हैं। इससे वायुमण्डल की पारदर्शिता (Transparency) प्रभावित होती है, जिसका सीधा प्रभाव प्रवेशी सौर विकिरण तथा पार्थिव विकिरण पर पड़ता है। ये सभी प्रक्रियाएँ पृथ्वी के ऊष्मा सन्तुलन (Heat Balance) को भंग कर जलवायु परिवर्तन की भूमिका तैयार करती हैं।

3. मनुष्य के क्रिया-कलाप मनुष्य अपनी विकासात्मक गतिविधियों से हरित-गृह गैसों (कार्बन-डाइऑक्साइड, आज़ोन, जलवाष्प) की मात्रा वायुमण्डल में बढ़ाता रहता है। वायुमण्डल में इन अवयवों के प्राकृतिक संकेन्द्रण में भिन्नता आने से भूमण्डलीय ऊष्मा सन्तुलन प्रभावित होता है। इससे वायुमण्डल की सामान्य प्रणाली, जिस पर जलवायु भी निर्भर करती है, प्रभावित होती है।

(B) खगोलीय कारक (Astronomical Factors) जलवायु परिवर्तन से जुड़े खगोलीय कारक तीन तथ्यों पर आधारित हैं
1. पृथ्वी की कक्षा की उत्केन्द्रीयता (Ecentricity) में परिवर्तन-पृथ्वी की उत्केन्द्रीयता में लगभग 92 हजार वर्षों में परिवर्तन आ जाता है अर्थात् सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के परिक्रमण पथ की आकृति कभी अण्डाकार तो कभी गोलाकार हो जाती है। उदाहरणतः वर्तमान में पृथ्वी की सूर्य के निकटतम रहने की स्थिति-उपसौर (Perihelion) जनवरी में आती है। यह उपसौर स्थिति 50 हजार वर्ष बाद जुलाई में आने लगेगी। इसका परिणाम यह होगा कि आगामी 50 वर्षों में उत्तरी गोलार्द्ध में ग्रीष्मकाल अधिक गर्म व शीतकाल अधिक ठण्डा होता जाएगा।

2. पृथ्वी की काल्पनिक धरी के कोण में परिवर्तन सर्य की परिक्रमा करते समय पृथ्वी की धरी (Axes) अपने कक्षा-पथ के साथ कोण बनाती है। वर्तमान युग में यह कोण 23/2° का है, लेकिन प्रत्येक 41-42 हजार वर्षों के बाद पृथ्वी की धुरी के कोण में 1.5° का अन्तर आ जाता है। कभी यह झुकाव 22° तो कभी 24% हो जाता है। पृथ्वी के झुकाव में परिवर्तन से मौसमी दशाओं व तापमान में तो अन्तर होंगे ही, साथ ही भौगोलिक पेटियों की भिन्नताएँ कम या विलुप्त हो जाएँगी।

3. विषुव का पुरस्सरण (Precession) वर्तमान में चार मौसमी दिवसों की स्थितियाँ इस प्रकार हैं-21 मार्च-बसन्त विषुव, 23 सितम्बर-शरद विषुव, 21 जून कर्क संक्रांति तथा 22 दिसम्बर मकर संक्रांति। प्रत्येक 22 हजार वर्षों में इन स्थितियों में परिवर्तन आता है जिसका सीधा प्रभाव जलवायु पर पड़ता है।

HBSE 11th Class Geography Important Questions Chapter 12 विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन

(C) पार्थिवेत्तर कारक (Extra Terrestrial Factors) इन कारकों में पृथ्वी पर पहुँचने वाली सौर ऊर्जा की मात्रा में परिवर्तनों को शामिल किया जाता है
1. सौर विकिरण की प्राप्ति में भिन्नता-पृथ्वी पर ऊर्जा का एकमात्र स्रोत सूर्य है। सूर्य में होने वाली उथल-पुथल से पृथ्वी को मिलने वाली ऊर्जा में अन्तर आ जाता है। सूर्यातप की मात्रा में परिवर्तन वायुमण्डल द्वारा सौर विकिरण के अवशोषण की मात्रा में परिवर्तन से भी हो सकता है।

2. सौर कलंक सूर्य के सौर कलंकों (Sun Spots) की संख्या में प्रत्येक 11 वर्षों बाद परिवर्तन आता रहता है। सौर कलंकों की संख्या बढ़ना अधिक उष्ण व तर (Cooler and Wetter) दशाओं से जुड़ा है, जबकि सौर कलंकों की संख्या में कमी, गर्म तथा शुष्क (Warm and Drier) दशाओं से सम्बन्धित होती है। यही नहीं सौर कलंकों की संख्या का प्रभाव सूर्य से निष्कासित होने वाली पराबैंगनी किरणों पर भी पड़ता है। इन्हीं पराबैंगनी किरणों की मात्रा में वायुमण्डल में ओज़ोन गैस की मात्रा निर्धारित होती है। वायुमण्डल में ओज़ोन गैस की मात्रा भू-मण्डल पर ताप सन्तुलन को प्रभावित करती है।

पृथ्वी एक जीवन्त जीव (Living Organism) की भाँति है। इसकी प्रक्रियाएँ (Processes) स्व-नियन्त्रित हैं। पृथ्वी बृहद् स्तर पर जलवायुवी सन्तुलन बनाए रखने में सक्षम है। लेकिन ये प्रक्रियाएँ अत्यन्त जटिल और सूक्ष्म भी हैं। तापमान वृद्धि के रूप में प्रकृति से की गई अनावश्यक छेड़छाड़ दुष्परिणाम ला सकती है।

HBSE 11th Class History Solutions Haryana Board

Haryana Board HBSE 11th Class History Solutions

HBSE 11th Class History Solutions in Hindi Medium

  • Chapter 1 समय की शुरुआत से
  • Chapter 2 लेखन कला और शहरी जीवन
  • Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ एक साम्राज्य
  • Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०
  • Chapter 5 यायावर साम्राज्य
  • Chapter 6 तीन वर्ग
  • Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ
  • Chapter 8 संस्कृतियों का टकराव
  • Chapter 9 औद्योगिक क्रांति
  • Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन
  • Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

HBSE 11th Class History Solutions in English Medium

  • Chapter 1 From the Beginning of Time
  • Chapter 2 Writing and City Life
  • Chapter 3 An Empire Across Three Continents
  • Chapter 4 Rise and Spread of Islam: About 570-1200 C.E.
  • Chapter 5 Nomadic Empires
  • Chapter 6 Three Orders
  • Chapter 7 Changing Cultural Traditions
  • Chapter 8 Confrontation of Cultures
  • Chapter 9 The Industrial Revolution
  • Chapter 10 Displacing Indigenous Peoples
  • Chapter 11 Paths to Modernization

HBSE 11th Class History Important Questions and Answers

Haryana Board HBSE 11th Class History Important Questions and Answers

HBSE 11th Class History Important Questions in Hindi Medium

HBSE 11th Class History Important Questions in English Medium

  • Chapter 1 From the Beginning of Time Important Questions
  • Chapter 2 Writing and City Life Important Questions
  • Chapter 3 An Empire Across Three Continents Important Questions
  • Chapter 4 Rise and Spread of Islam: About 570-1200 C.E. Important Questions
  • Chapter 5 Nomadic Empires Important Questions
  • Chapter 6 Three Orders Important Questions
  • Chapter 7 Changing Cultural Traditions Important Questions
  • Chapter 8 Confrontation of Cultures Important Questions
  • Chapter 9 The Industrial Revolution Important Questions
  • Chapter 10 Displacing Indigenous Peoples Important Questions
  • Chapter 11 Paths to Modernization Important Questions