Haryana State Board HBSE 9th Class Social Science Solutions History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 9th Class Social Science Solutions History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद
HBSE 9th Class History वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद Textbook Questions and Answers
वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद के प्रश्न उत्तर HBSE 9th Class प्रश्न 1.
औपनिवेशिक काल के वन प्रबन्धन में आए परिवर्तनों ने इन समूहों को कैसे प्रभावित किया।
(i) भूमि खेती करने वालों को
(ii) घुमंतु और चरवाहा समुदायों को
(iii) लकड़ी और वन-उत्पादों का व्यापार करने वाली कंपनियों को
(iv) बागान मालिकों को
(v) शिकार खेलने वाले राजाओं और अफसरों को।
उत्तर-
(i) झूम खेती करने वालों को वन्य लकड़ी के प्रयोग की मनाही की गई। पहले उन्हें जंगलों से लकड़ी लेने तथा उसकों जलाने की अनुमति थी। औपनिवेशिक शासकों ने सोचा कि यदि झूम खेती वाले जंगल की लकड़ी को जलाते रहेंगे तो उन्हें देलवे की लाइनें बिछाने हेतु स्टीपर नहीं मिलेंगे। इसके अतिरिक्त लकड़ी जलाने से जंगल में आग भी लगा सकती थी। साथ ही ऐसा, खेती करने वालों से राजस्व लेने व राजस्व निश्चित करने कठिनाई भी आ रही थी।
ii) घुमंतु और चरवाहा समुदायों को भी औपनिवेशिक शासन काल के दौरान काफी कष्ट सहने पड़ रहे थे औपनिवेशिक काल से पहले ऐसे समुदाय वनीय उतपादों का व्यापार किया करते थे। सरकार के कानूनों ने उसने व्यापार करने का पारम्परिक अधिकार छीन लिया। अब वह वनीय उत्पादों जेसे खाल, सींग, रेशम के कोये, हाथी-दांत बाँस, मसाले, रेशे, घास, गोंद और राला आदि का व्यापार नहीं कर सकते थे। इससे उनके हाथों से रोजगार चला गया।
(iii) लकड़ी व वनीय उत्पादों का व्यापार करने वाली कम्पनियों को औपनिवेशिक शासकों द्वारा व्यापार के नए अवसर प्राप्त हुए फलस्वरूप उन्होंने वनीय उत्पादों के व्यापार का एकाधिकार प्राप्त कर लिया। इन कम्पनियों को तो काफी लाभ होने लगा, परन्तु इस प्रक्रिया में स्थानीय लोग बेरोजगार भी हो गए तथा बेघर भी।
(iv) यूरोपीय औपनिवेशिक शासकों ने बागान मालिकों, को चाय, काफी, रबड़ के बागानों के माध्यम से काफी फायदा पहुंचाया। औपनिवेशिकों ने स्थानीय लोगों के व्यापार पर तो रोक लगा दी, परन्तु यूरोपीय व्यापारियों को हर सम्भव लाभ पहुंचाने के अवसर दिए।
(v) शिकार खेलने वाले राजाओं और अफसरों के लिए औपनिवेशिक शासन एक वरदान सिद्ध हुआ ऐसे लोगों के लिए शिकार की खुली छूट थी जबकि स्थानीय लोगों को _शिकार करने की मनाही की गई। वास्तव में, इन बड़े-बड़े
के लिए शिकार एक मनोरंजन के साथ-साथ वीरता का भी प्रतीक समझा जाने लगा। स्वंतत्र भारत में शिकार की मनाही है।
वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद Class 9 Question Answer HBSE प्रश्न 2.
बस्तर और जावा के औपनिवेशिक वन प्रबन्धन में क्या समानताएं हैं?
उत्तर-
बस्तर और जावा के औपनिवेशिक वन प्रबन्धन में पायी जाने वाली समानताओं को निम्नलिखित बताया जा सकता है।
(i) बस्तर व जावा के लोगों ने विदेशियों द्वारा वनीय प्रबन्धन में लाए गए परिवर्तनों का सख्त, विरोध किया।
(ii) बस्तर व जावा के लोगों ने औपनिवेशिक शासकों के विरुद्ध विद्रोह किया था।
(iii) दोनों में विदेशियों ने विद्रोह दबाने के लिए खासा अत्याचार व आतंक फैलाया था।
(iv) दोनों में वनीय कानूनों को इस प्रकार बनाया गया कि स्थानीय लोगों से सुविधाएं वापस ली जाएं तथा औपनिवेशिक व्यापारियों को अधिकाधिक लाभ दिया जाए।
(v) दोनों में वनीय लकड़ी का प्रयोग औपनिवेशिक शासकों ने रेलवे लाइनें व पानी के जहाजों को बनाने में किया था।
(vi) दोनों में स्थानीय श्रम व श्रमिकों को औपनिवेशिक स्वार्थ के लिए शोषण किया गया था।
वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद HBSE 9th Class प्रश्न 3.
सन् 1880 से 1920 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप के वनाच्छादित क्षेत्र में 97 लाख हेक्टेयर की गिरावट आयी। पहले के 10.86 करोड़ हेक्टेयर से घटकर यह क्षेत्र 9.89 करोड़ हेक्टेयर रह गया था। इस गिरावट में निम्नलिखित कारकों की भूमिका बताएं।
(i) रेलवे (ii) जहाज निर्माण (iii) कृषि-विस्तार (iv) व्यावसायिक खेती (v) चाय-कॉफी के बागान (vi) आदिवासी और दूसरे खेतिहर
उत्तर-
1880 से 1920 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप के वनाच्दादित क्षेत्र में 97 लाख हेक्टेयर की गिरावट आई। पहले से 10.86 करोड़ हेक्टेयर से घटकर यह क्षेत्र 9.98 करोड़ हेक्टेयर रह गया था। इन सब में अनेक कारकों की भूमिका बतायी जा सकती है। औपनिवेशिक शासकों ने ऐसे कानून बनाए जिनसे केवल उनको ही फायदा हो सकता था। उन्होंने वनीय लकड़ी को रेलवे लाइनों के बिछाने व जहाजों के निर्माण में प्रयोग किया। वनीय क्षेत्रों के गिरावट का एक अन्य कारण खेती के लिए वनों का काटना था। जिससे कृषि का विस्तार तो हुआ परन्तु वनीय क्षेत्र कम हो गए। बागानों में प्रयोग होने वाली जमीन भी जंगलों को साफ करने से ही उपलब्ध हो सकती थी। इससे यूरोपीय व्यपारियों को काफी लाभ हुआ। औपनिवेशिक काल से पहले भारत में आदिवासी, झूम खेती वाले तथा घुमंतू व चरवाहा समुदायों ने भी वनीय क्षेत्रों तथा वनीय उत्पादों का लाभ उठाया था जिससे वनीय क्षेत्रों में कमी आ गई।
वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद Class 9 HBSE प्रश्न 4.
युद्धों से जंगल क्यों प्रभावित होते हैं?
उत्तर-
प्रथम तथा दूसरे विश्व युद्धों से भी जंगलों पर काफी प्रभाव पड़ा था। भारत में वनों से सम्बन्धित सभी – योजनाओं को स्थगित कर दिया गया था तथा उसके स्थान पर वनीय विभागों ने पेड़ों को काट कर अंग्रेजों की युद्ध जरूरतों को पूरा करने का प्रयास किया गया। जंगल की लकड़ी युद्ध उद्योगों के लिए काम में लायी जाने लगी
HBSE 9th Class History वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद Important Questions and Answers
Class 9th History Chapter 4 Question Answer In Hindi HBSE प्रश्न 1.
उदाहरण देकर कोई चार वस्तुएं बताइए जो हमें जंगलों से मिलती है।
उत्तर-
बांस, जलावन की लकड़ी कच्चा कोयला, जड़ी-बुटियां आदि।
प्रश्न 2.
कोई एक कारण बताइए जो यह दर्शता हो कि वनीय क्षेत्र लुप्त हो रहे हैं?
उत्तर-
वनों का औद्योगिक इस्तेमाल।
प्रश्न 3.
1700 से 1995 तक कितना वनीय क्षेत्र लुप्त हुआ?
उत्तर-
139 लाख वर्ग किलोमीटर अर्थात संसार का 9. 3 प्रतिशत।
प्रश्न 4.
वन-विनाश का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
वनों का लुप्त होना।
प्रश्न 5.
सन् 1,600 में भारत में इसके कुल भू-भाग के कितने भाग. पर खेती होती थी?
उत्तर-
कुल भू-भाग के लगभग छठे हिस्से पर । ।
प्रश्न 6.
अनुमान लगा कर बताइए कि आज भारत के कुल भू-भाग के कितने हिस्से पर खेती हो रही है?
उत्तर-
लगभग आधे भाग पर।
प्रश्न 7.
खेती के लिए भूमि की आवश्यकता क्यों होती हैं?
उत्तर-
जनसंख्या बढ़ती है तो खाद्यान्नों की आवश्यकता पड़ती है तथा उसके लिए भूमि की जरूरत पड़ती हैं।
प्रश्न 8.
अंग्रेजों ने भारत में वनीय क्षेत्रों को क्यों साफ करना शुरू किया?
उत्तर-
अंग्रेजों ने अपनी व्यावसायिक फसलों जैसे पटसन, गन्ना, गेहूं, कपास के उत्पादन से प्राप्त लाभ के लिए वनीय क्षेत्रों को साफ करना शुरू किया।
प्रश्न 9.
भारत में 1880 से 1920 के बीच खेती के लिए योग्य जमीन में कितने हेक्टेयर की बढ़त हुई तथा क्यों?
उत्तर-
67 लाख हेक्टेयर : कृषि उत्पादों की जरूरत पड़ रही थी।
प्रश्न 10.
किस प्रकार के विस्तार को विकास का सूचक माना जाता हैं?
उत्तर-
खेती के विस्तार को।
प्रश्न 11.
खेती के लिए जंगलों की कटाई की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
उत्तर-
खेती के लिए साफ ज़मीन की ही आवश्यकता पड़ती है अतः जंगलों की कटाई की जरूरत पड़ती हैं।
प्रश्न 12.
‘स्लीपर’ किसे कहते हैं?
उत्तर-
रेल की पटरी के आर-पार लगे लकड़ी के तख्ते स्लीपरों से ही उपलब्ध होते हैं। यह तख्ते पटरियों को उनकी जगह पर रोके रखते हैं।
प्रश्न 13.
इंग्लैंड को शाही नौसेना के लिए लकड़ी की ज़रूरज क्यों पड़ती थी?
उत्तर-
इंग्लैंड में बलूत (ओक) के जंगल लुप्त हो रहे थे। इन पेड़ों से प्राप्त लकड़ी शाही नौसेना के जहाजों के लिए ज़रूरी होती थी। अब नौसेना के लिए लकड़ी की आवश्यकता थी।
प्रश्न 14.
भारत में औपनिवेशिक अंग्रेजों को लकड़ी की ज़रूरत क्यों थी?
उत्तर-
(i) शाही सेना के आवागमन और औपनिवेशिक व्यापार के लिए रेल लाइनें बिछाने के लिए भारत में अंग्रेजों को लकड़ी की ज़रूरत थी।
प्रश्न 15.
डायट्रिय ब्रैडिस कौन था?
उत्तर-
एक जर्मन वन्य विशेषज्ञ। अंग्रेजों ने इसे नियुक्त कर भारत में भेजा था। इसे देश का पहला वन महानिवेशक नियुक्त किया गया था।
प्रश्न 16.
‘वैज्ञानिक वानिकी’ किसे कहते हैं?
उत्तर-
इम्पीरियल फारिस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट में वनों से सम्बन्धिक जिस-पद्धति की शिक्षा दी जाती थी, उसे वैज्ञानिक वानिकी कहा जाता हैं
प्रश्न 17.
बागान किसे कहते हैं?
उत्तर-
सीधी पंक्ति में एक ही किस्म के पेड़ लगाने के प्रयोजन को बागान कहा जाता है।
प्रश्न 18.
भारत में पहला वन अधिनियम कब बनाया गया था?
उत्तर-
1865 में।
प्रश्न 19.
वन कानून ( 1865 ) में कब-कब संशोधन हुए?
उत्तर-
1878 तथा 1927 में।
प्रश्न 20.
1878 के कानून के अंतर्गत वनों को किन-किन श्रेणियों में बांटा गया? ..
उत्तर-
तीन श्रेणियों में : आरक्षित, सुरक्षित तथा ग्रामीण।
प्रश्न 21.
किस प्रकार के वनों को आरक्षित वन कहा जाता था?
उत्तर-
सबसे अच्छे जंगलों को आरक्षित वन कहा जाता था।
प्रश्न 22.
झूम खेती किसे कहते हैं?
उत्तर-
बदलती खेती प्रक्रिया को झूम खेती कहा जाता
प्रश्न 23.
भारत में घुमंतु खेती के लिए कौन-से स्थानीय नाम हैं?
उत्तर-
धया, पेंदा, बेवर नेवड़, झूम, पोडू, खेदाद, क्रमरी, ऐसे आदि।
प्रश्न 24.
किन लोगों के लिए जंगलों में जानवरों का शिकार एक खेल था?
उत्तर-
राजाओं व बड़े-बड़े अफसरों के लिए जानवरों का शिकार एक खेल हुआ करता था।
प्रश्न 25.
वनों से हमें क्या-क्या प्राप्त होता हैं?
उत्तर-
वनों से हमें अनेक वस्तुएं प्राप्त होती है।, मेज-कुर्सियों, दरवाजे व खिड़कियों के लिए लकड़ी हमें वनों से मिलती हैं। मसाले व जड़ी-बूटियां आदि भी जंगलों से उपलब्ध होती हैं। बीड़ियों के तेंदू पत्ते, गोंद, शहर, काफी, चाय और रबड़ भी वनों की देन हैं। फल-फूल, पशु-पक्षी एवं ढेरों दूसरी वस्तुएं भी जंगलों से आती हैं।
प्रश्न 26.
वनों की विविधता किन कारणों से लुप्त हो रही हैं?
उत्तर-
वनों की विविधता तेज़ी से लुप्त होती जा रही है। औद्योगिकीकरण के दौर में सन 1700 से 1995 के बीच 139 लाख वन किलोमीट जगंल यानी दुनिया के
कुल क्षेत्रफल का 9.3 प्रतिशत भाग औद्योगिक इस्तेमाल खेती-बाड़ी चरागाहों व ईधन की लकड़ी के लिए साफ कर दिया गया।
प्रश्न 27.
बढ़ती आबादी तथा खाद्यान्नों की मांग किस प्रकार वनों को साफ करने का कारक बना?
उत्तर-
सन् 1600 में हिंदुस्तान के कुल भू-भाग के लगभग छठे हिस्से पर खेती होती थी। आज वह आंकड़ा बढ़ कर आधे तक पहुचं गया है। इन सदियों के दौरान जैसे-जैसे आबादी बढ़ती गयी और खाद्य पदार्थों की मांग में भी वृद्धि हुई, वैसे-वैसे खेतिहर भी जंगलों को साफ करके खेती की सीताओं को विस्तार देते गए।
प्रश्न 28.
औपनिवेशिक काल में खेती के फैलाव के क्या कारण रहे हैं?
उत्तर-
औपनिवेशिक काल में खेती का फैलाव भारत में कुछ तेजी से हुआ था। इसकी कई वजहें थीं। पहली, अग्रेजों ने व्यावसायिक फसलों जैसे पटसन, गन्ना, गेहूं व कपास के उत्पादन को जम कर प्रोत्साहित किया। दूसरी, उन्नीसवीं सदी के यूरोप में बढ़ती शहरी आबादी का पेट भरने के लिए खाद्यान्न और औद्योगिक उत्पादन के लिए कच्चे माल की जरूरजत थी। लिहाजा इन फसलों की मांग में इजाफा हुआ। तीसरी वजह यह थी कि उन्नीसवीं सदी की शुरूआत में औपनिवेशिक सरकार ने जंगलों को अनुत्पादक समझा। उनके हिसाब से इस व्यर्थ के बियाबान पर खेती करके उससे राजस्व और कृषि उत्पाद को पैदा किया जा सकता था और इस तरह राज्य की आय में बढ़ोतरी की जा सकती थी। यही वजह थी कि 1880 से 1920 के बीच खेती योग्य जमीन के क्षेत्रफल में 67 लाख हेक्टेयर की बढ़त हुई।
प्रश्न 29.
“बनाना रिपब्लिक” से आपका क्या – अर्थ है?
उत्तर-
गैर-विकसित पड़ी जमीन का प्रयोग किया जाना चाहिए। तथा सदैव किया जाता रहा है। अमेरिकी लेखक रिचर्ड हार्डिग ने (1896) में होनड्यूराय (मध्य-अमेरिका) के बारे में लिखा था आज इससे बढ़कर रोचक सवाल कुछ और नहीं हो सकता कि दुनिया की गैर-विकसित पड़ी जमीन का क्या किया जाए, क्या इसे उस महान शक्ति के हाथों में जाना चाहिए जो इसके परिवर्तन की इच्छा रखती है या कि इसे इसके वास्तविक स्वामी के हाथों में ही रहने देना चाहिए। जो इसके मूल्य को नहीं समझ सकता है।
तीन साल बाद अमेरिकी-आधिपत्य में यूनाइटेड फूट कंपनी का गठन हुआ जिसने व्यापक पैमाने पर मध्य-अमेरिका मे केले उगाना प्रारंभ किया। इस कंपनी ने इन मुल्कों की सरकारों पर इस हद तक अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया था कि इन्हें ‘बनाना रिपब्लिक’ के नाम से जाना गया।
प्रश्न 30.
19वीं शताब्दी के दौरान अंग्रेजी औपनिवेशिकों को वनीय लकड़ी की आवश्यकता क्यों पड़ी थी? समझाइए।
उत्तर-
उन्नीसवीं सदी की शुरुआत तक इंग्लैंड में बलूत (ओक) के जंगल लुप्त होने लगे थे। इसकी वजह से शाही नौसेना के लिए लकड़ी की आपूर्ति में मुश्किल आ खड़ी हुई। मज़बूत और टिकाऊ लकड़ी की नियमित आपूर्ति के बिना अंग्रेजी जहाज भला कैसे बन सकते थे? और जहाजों के बिना शाही सत्ता कैसे बचाई और बनाए रखी जा सकती थी? 1820 के दशक में खोजी दस्ते हिंदुस्तान की वन-संपदा का अन्वेषण करने के लिए भेजे गए। एक दशक के भतर बड़े पैमाने पर पेड़ काटे जाने लगे और भारी मात्रा में लकड़ी का हिंदुस्तान से निर्यात होने लगा।
प्रश्न 31.
एक मील लंबी रेल की पटरी के लिए 1,760 से 2,000 तक स्लीपर की ज़रूरत थी। यदि 3 मीटर लंबी बड़ी लाइन की पटरी बिछाने के लिए एक औसत कद के पेड़ से 3-5 स्लीपर बन सकते हैं तो हिसाब लगा कर देखें कि एक मील लंबी पटरी बिछाने के लिए कितने पेड़ काटने होंगे?
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें अथवा अपने अध्यापक की सहायता से इस प्रश्न का उत्तर-तैयार करें।
प्रश्न 31.
भारत में बागान क्यों बनाए गए। यूरोप में चाय, कॉफी, और रबड़ की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए इन वस्तुओं के बागान बने और इनके लिए भी प्राकृतिक वनों को एक भारी हिस्सा साफ किया गया। औपनिवेशिक सरकार ने जंगलों को अपने कब्जे में लेकर उनके विशाल हिस्सों को बहुत ही सस्ती दरों पर यूरोपीय बागानी मालिकों को सौंप दिया। इन दलाकों की बाड़ाबंदी करके जंगलों को अपने कब्जे में लेकर उनके विशाल हिस्सों को बहुत ही सस्ती देरों पर यूरोपीय बागानी मालिकों को सौंप दिया। इन इलाकों की बाड़ाबंदी करके जंगलों को साफ कर दिया गया और चाय-कॉफी की खेती की जाने लगी।
प्रश्न 32.
वैज्ञानिक वानिकी ने किस प्रकार वनों/पेड़ों के रूपों को बदला?
उत्तर-
वैज्ञानिक वानिकी के नाम पर विविध प्रजाति वाले प्राकृतिक वनों को काट डाला गया। इनकी जगह सीधी पंक्ति में ऐसे ही किस्म के पेड़ लगा दिए गए। इसे बागान कहा जाता है वन विभाग के अधिकारियों ने जंगलों का सर्वेक्षण किया, विभिन्न किस्म के पेड़ों वाले क्षेत्र की नाप-जोख की और वन-प्रबंधन के लिए योजनाएं बनायीं। उन्होंने यह भी तय किया कि बागाल का कितना क्षेत्र प्रतिवर्ष काटा जाएगा। कटाई के बाद खाली जमीन पर पुनः पेड़ लगाए जाने थे ताकि कुछ ही वर्षों में यह क्षेत्र पुनः कटाई के लिए तैयार हो जाएं।
प्रश्न 33.
वन अधिनियम ने वनों को कितने भागों में बांटा? क्या गांव वाले वनों का प्रयोग कर सकते थे?
उत्तर-
1865 में वन अधिनियम के लागू होने के बाद इसमें दो बाद संशोधन किए गए। पहले 1878 में और फिर 1927 में 1878 वाले अधिनियम में जंगलों को तीन श्रेणियों में बांटा गया आरक्षित, सुरक्षित व ग्रामीण। सबसे अच्छे जंगलों को ‘आरक्षित वन’ कहा गया। गांव वाले इन जंगलों से अपने उपयोग के लिए कुछ भी नहीं ले सकते थे। वे घर . बनाने या ईधन के लिए सुरक्षित या ग्रामीण वनों से ही लकड़ी ले सकते थे।
प्रश्न 34.
एक अच्छे जंगल के विषय में वनपाल व ग्रामीण की सोच में क्या भिन्नता बतायी जा सकती है?
उत्तर-
एक अच्छे जंगल के विषय में वनपालों व ग्रामीणों विचारों अलग-अलग होते हैं, जहां एक ओर एक ग्रामीण अपनी अगल-अलग जरूरतों ईधन चारे व पत्तों की पूर्ति के लिए वन में विभिन्न प्रजातियों का मेल चाहते थे, वहीं वन-विभाग को ऐसे पेड़ों की जरूरत थी जो जहाजों और रेलवे के लिए इमारती लकड़ी मुहैया करा सकें, ऐसी लकड़ियां जो सख्त, लंबी और सीधी हों। इसलिए सागौन और साल जैसी प्रजातियों को प्रोत्साहित किया गया और दूसरी किस्में काट डाली गई।
प्रश्न 35.
वन अधिनियम के कारण लोगो की बढ़ती मुश्किलों को ब्यौरा दीजिए।
उत्तर-
वन अधिनियम के चलते देश भर में गांव वालों की मुश्किलें बढ़ गई। इस कानून के बाद घर के लिए लकड़ी काटना, पशुओं को चराना, कंद-मूल-फल __ इकट्ठा करना आदि रोजमर्रा की सारी गतिविधियां गैरकानूनी बना गई। अब उनके पास जंगलों से लकड़ी चुराने के अलावा कोई चारा नहीं बचा और पकड़े जाने की स्थिति में वे वन-रक्षकों की दया पर होते जो उनसे घूस ऐंठते थें जलावनी लकड़ी एकत्र करने वाली औरतें विशेष तौर से परेशान रहने लगीं।
प्रश्न 36.
अंग्रेज सरकार ने झूम तथा घुमंतु खेती पर रोक क्या लगा दी थी?
उत्तर-
यूरोपीय उपनिवेशिवाद का सबसे गहरा प्रभाव झूम या घुमंतु खेती की प्रथा पर दिखायी पड़ता है। एशिया, अफ्रीका व दक्षिण अमेरिका के अनेक भागों में यह खेती का एक परंपरागत तरीका है। इसके कई स्थानीय नाम हैं जैसे-दक्षिण-पूर्व एशिया में लादिंग, मध्य अमेरिका में मिलपा, अफ्रीका में चितमेन या तावीव श्रीलंका में चेना। हिंदुस्तान में घुमंतु खेती के लिए धया, पेंदा, बेवर, नेवड़, – झूम, पोडू, खंदाद और कुमरी ऐसे ही कुछ स्थानीय नाम __ हैं। घुमंतु खेती के कारण सरकार के लिए लगान का हिसाब रखना भी मुकिल था। इसलिए सरकार ने घुमंतु खेती पर रोक लगाने का फैसला किया। इसके परिणामस्वरूप, अनेक समुदायों को जंगलों में उनके घरों से जबरन विस्थापित कर दिया गया। कुछ को अपना पेशा बदलना पड़ा तो कुछ और न छोटे-बड़े बिद्रोहों के जरिए प्रतिरोध किया।
प्रश्न 37.
वन-उत्पादों के व्यापार की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
हिंदुस्तान में वन-उत्पादों का व्यापार कोई अनोखी बात नहीं थी। मध्य युग से ही आदिवासी समुदायों द्वारा बंजारा आदि घुमंतु समुदायों के माध्यम से हाथियों और दूसरे सामान जेसे खाल, सींग, रेशम के कोये, हाथी-दांत, बांस, मसाले, रेशे, घास, गोंद और राल के व्यापार के सबूत मिलते हैं। लेकिन अंग्रेजों के आने के बाद व्यापार पूरी तरह सरकारी नियंत्रण में चला गया। ब्रिटिश सरकार ने कई बड़ी यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों को विशेष इलाकों में वन-उत्पादों के व्यापस की इजारेदारी सौंप दी।
प्रश्न 38.
वन अधिनियमों से किस प्रकार लोगों की स्थिति बदतर हो गई थी?
उत्तर-
स्थानीय लोगों द्वारा शिकार करने और पशुओं . को चराने पर बंदिशे लगा दी गई। इस प्रक्रिया में पद्रास प्रेसीडेंसी के कोरावा, कराचा व येरुकुला जैसे अनेक चरवाहे और घुमतुं समुदाय अपनी जीविका से हाथ धो बैठे। इनमें से कुछ को ‘अपराधी कबीले’ कहा जाने लगा और ये सरकार की निगरानी में फैक्ट्रियों, खदानों व बागनों में काम करने को मजूबर हो गए। काम के नए अवसरों का मतलब यह नहीं था कि उनकी जीवन स्थिति में हमेशा सुधार ही हुआ हो। असम के चाय बागनों में काम करने के लिए झारखंड के संथाल और उराँव व छत्तीसगढ़ के गोंड जैसे आदिवासी मर्द व औरतों, दोनों की भर्ती की गयी। उनकी मज़दूरी बहुत कम थीं और कार्यपरिस्थितियां उतनी ही खराब।
प्रश्न 39.
अंग्रेज शासकों को भारत में लकड़ी की ज़रूतर क्यों पड़ी थी? इस ज़रूरत को पूरा करने के लिए अंग्रेजों ने क्या किया?
उत्तर-
1850 के दशक में रेल लाइनों के प्रसार ले लकड़ी के लिए एक नयी तरह की मांग पैदा कर दी। शाही सेना के आवागमन और औपनिवेशिक व्यापार के लिए रेल लाइनें अनिवार्य थीं। इजानें को चलाने के लिए इधन के तौर पर और रेल की पटरियों को जोड़े रखने के लिए ‘स्लीपरों’ के रूप में लकड़ी की भारी जरूरत थी। एक मील लंबी रेल की पटरी के लिए 1760-2000 स्लीपरों की आवश्यकता पड़ती थी। . भारत में रेल-लाइनों का जाल 1860 के दशक से तेजी से फैला। 1890 तक लगभग 25,500 कि, मी लंबी लाइनें बिछायी जा चुकी थीं। 1946 में इन लाइनों की लंबाई 7,65,000 कि.मी. तक बढ़ चुकी थ्ञी। रेल लाइनों के प्रसार के साथ-साथ ज्यादा-से-ज्यदा तादाद में पेड़ भी काटे गए, अकेले मद्रास प्रसीडेंसी में 1850 के दशक में प्रतिवर्ष 35,000 पेड़ स्लीपरों के लिए काटे गए। सरकार ने आवश्यक मात्रा की आपूर्ति के लिए निजी ठेके दिए। इन ठेकेदारों ने बिना सोचे-समझे पेड़ काटना शुरू कर दिया। रेल लाइनों के इर्द-गिर्द जंगल तेजी से गायब होने लगे।
प्रश्न 40.
स्टेबिंग द्वारा रचित द फारिस्ट ऑफ इण्डिया (1923) में वनों की कटाई से जुड़े वर्णन को वर्णित कीजिए।
उत्तर-
स्टेबिंग ने अपनी पुस्तक द फारिस्ट ऑफ इण्डिया (1923) में वनों की कटाई का जो वर्णन किया, उसे उसने स्वयं निम्नलिखित वर्णित किया है। . ‘मुल्तान और सुक्कूर के बीच इंडस वैली रेलवे नाम से लगभग 300 मील लंबी एक नई लाइन बनायी जानी थी। 2,000 स्लीपर प्रति मील की दर से, इसके लिए 10 फुट 10 इंच 5 इंच (या 3.5 क्यूबिक फीट प्रति इकाई) के 6,00,000 स्लीपर की ज़रूरत होगी या कि 2,00,000 क्यूबिक फीट से ऊपर लकड़ी की। इन इंजनों को ईधन के लिए लकड़ी चाहिए। दोनों तरफ प्रतिदिन एक ट्रेन व एक मन प्रति ट्रेन-मील के हिसाब से सालाना 2,10,000 मन की जरूरत होगी। इसके अलावा ईटों के लिए भी भारी मात्रा में ईधन की ज़रूरत होगी। स्लीपर मुख्य रूप से सिंध के जंगलों से आया करेंगे। यह ईधार, सिंध और पंजाब के झाऊ (Tamarisk) और झांड (jhand) जंगलों से लाया जाना था। दूसरी नयी लाइन नॉर्दन स्टेट रेलवे, लाहौर से मुल्तान तक थी। आँकड़ों के हिसाब से इसके निर्माण के लिए 2,200,000 स्लीपर की ज़रूरत होगी।”
प्रश्न 41.
जर्मन वन विशेषज्ञ बैंडिस के वन अधिकारी नियुक्त किए जाने के फलस्वरूप वनीय क्षेत्रों के लिए क्या सुझाव दिए?
उत्तर-
जर्मन वन विशेषज्ञ बैंडिस के वन अधिकारी नियुक्त किए जाने के पश्चात् उन्होंने अनेक सुझाव दिए। उसने महसूस किया कि लोगों को संरक्षण के विज्ञान में. शिक्षित व प्रशिक्षित करना और जंगलों के प्रबंधन के लिए एक व्यवस्थित तंत्र विकसित करना होगा। वन संपदा के उपयोग संबंधी नियम तब करने पडेंगे। पेड़ों की कटाई और पशुओं को चराने जैसी गतिविधियों पर पाबंदी लगा कर ही जंगलों को लकड़ी उत्पादन के लिए आरक्षित किया जा सकेगा। इस तंत्र की अवमानना करके पेड़ काटने वाले किसी भी व्यक्ति को सजा का भागी बनना होगा इस तरह चैंडिस ने 1854 में भाराती वन सेवा की स्थापना की और 1865 के भारतीय वन अधिनियम को सूत्रबद्ध करने में सहयोग दिया। इम्पीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना 1906 में देहरादून में हुई। यहां जिस पद्धति की शिक्षा दी जाती थी। उसे ‘वैज्ञानिक वानिकी’ (साइंटिफिक फॉरेस्ट्री) कहा गया। आज पारिस्थितिकी विशेषज्ञों सहित ज्यादातर लोग मानते हैं कि यह पद्धति कतई वैज्ञानिक नहीं
प्रश्न 42.
वन्य इलाकों से प्राप्त उत्पाद किस प्रकार लोगों के लिए उपयोगी होते हैं? समझाइए।
उत्तर-
वन्य इलाकों में लोग कंद-मूल-फल पत्ते आदि वन-उत्पदों का विभिन्न जरूरतों के लिए उपयोग किया करते थे। फल और कंद अत्यंत पोषक खाद्य हैं, विशेषक मानसून के दौरान जब फसल कट कर घर न आयी हो। दवाओं के लिए जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल होता है, लकड़ी का प्रयोग हल जैसे खेती के औजार बनाने में किया जाता है, बाँस से बेहतरीन बाड़ें बनायी जा सकती हैं और इसका उपयोग छतरी तथा टोकरी बनाने के लिए भी किया जा सकता एक सूखे हुए कुम्हड़े के खोल का प्रयोग पानी की बोतल के रूप में किया जा सकता है। जंगलों में लगभग सब कुछ उपलब्ध है पत्तों को जोड़-जोड़ कर ‘खाओं-फेंको’ किस्म के पत्तल और दोने बनाए जा सकते हैं, सियादी की लताओं से रस्सी बनायी जा सकती है, सेमूर की कांटेदार छाल पर सब्जियाँ छीली जा सकती हैं, महुए के पेड़ से खाना पकाने और रोशनी के लिए तेल निकाला जा सकता
प्रश्न 43.
औपनिवेशिक काल के दौरान जानवरों का आखेट क्यों प्रचलित था?
उत्तर-
जहां एक तरफ वन कानूनों ने लोगों को शिकार के परंपरागत अधिकार से वंचित किया, वहीं बड़े जानवरों का आखेट एक खेल बन गया। हिंदुस्तान में बाघों और दूसरे जानवरों का शिकर करना सदियों से दरबारी और नवाबी संस्कृति का हिस्सा रहा था। अनेक मुगल कलाकृतियों में शहज़ादों और सम्राटों को शिकर का मज़ा लेते हुए दिखाया गया है किंतु औपनिवेशिक शासन के दौरान शिकार का चलन इस पैमाने तक बढ़ा कि कई प्रजातियों लगभग पूरी तरह लुप्त हो गई। अंग्रेजों की नज़र में बड़े जानवर जंगली, बर्बर और आदि समाज के प्रतीक-चिह्न थे। उनका मानना था कि खतरनाक जानवरों को मार कर वे हिन्दुस्तान को सभ्य बनाएंगे। बाघ, भेड़िये और दूसरे बड़े जानवरों के शिकार पर यह कह कर ईनाम दिए गए कि इनसे किसानों को खतरा है। 1875 से 1925 के बीच ईनाम के लालच में 80,000 से ज्यादा बाघ, 1,50,000 तेंदुए और 2,00,000 भेड़िये मारे गए। धीरे-धीरे बाघ के शिकार को एक खेल की ट्रॉफी के रूप देखा जाने लगा। अकेले जॉर्ज यूल नामक अंग्रेज अफसर ने 400 बाघों की हत्या की थी।
प्रश्न 44.
औपनिवेशिक काल में बस्तर के लोगों ले किस प्रकार अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया था? अंग्रेजों ने विद्रोह दबाने के लिए कौन-से से प्रयास किये थे?
उत्तर-
औपनिवेशिक सरकार ने 1905 में जब जंगल के – दो-तिहाई हिस्से को आरक्षित करने, घुमंतु खेती को रोकन और शिकार व वन्य-उत्पादों के संग्रह पर पांबदी लगाने जैसे प्रस्ताव रखे तो बस्तर के लोग बहुत परेशान हो गए। कुछ गांवों को आरक्षित वनों में इस शर्त पर रहने दिया गया कि वे वन-विभाग के लिए पेड़ों की कटाई और ढुलाई में मुफ्त काम करेंगे और जंगल को आग से बचाए रखेंगे। बाद में इन्हीं गांवों को ‘वन ग्राम’ कहा जान लगा। बाकी गाँवों के लोग बगैर किसी सूचना त्या मुआवजे के हटा दिए गए। काफी समय से गाँव वाले ज़मीन के बढ़े हुए लगान और औपनिवेशिक अफसरों के हाथों बेगार और चीजों की निरंतर माँग से त्रस्त थे इसके बाद भयानक अकाल का दौर आया : पहले 1899-1900 में और फिर 1907-1908 में। वन आरक्षण ने चिंगारी का काम किया।
लोगों ने बाजारों में, त्योहारों के मौके पर और जहाँ कहीं भी गाँवों के मुखिया और पुजारी इकट्ठा होते थे वहाँ जमा होकर इन मुद्दों पर चर्चा करना प्रारंभ कर दिया। काँगेर वनों के ध्रुरवों ने पहल की क्योंकि आरक्षण सबसे पहले यहीं लागू हुआ। हालांकि कोई एक व्यक्ति इनका नेता नहीं था लेकिन बहुत सारे लोग नेथानार गाँव के गुडा धूर को इस आंदोलन की एक बहत शख्सियत मानते हैं। 1910 में आम की टहनियाँ, मिट्टी के ढेले, मिर्च और तीर गाँव-गाँव चक्कर काटने लगे। यह गाँवों में अंग्रजों के खिलाफ बगावत का संदेश था।
अंग्रेजों ने बगावत को कुचल देने के लिए सैनिक भेजे। आदिवासी नेताओं ने बातचीत करनी चाही लेकिन अंग्रेज फौज ने उनके तंबुओं को घेर कर उन पर गोलियाँ चला दीं। इसके बाद बगावत में शरीक लोगों पर कोड़े बरसाते और उन्हें सज़ा देते सैनिक गाँव-गाँव घूमने लगे। ज्यादातर गाँव खाली हो गए क्योंकि लोग भाग कर जंगलों __ में चले गए थे।
प्रश्न 45.
जावा क्षेत्र में डच औपनिवेशिक विदेशियों ने वनीय क्षेत्रों की कटाई क्यों की तथा उसके फलस्वरूप स्थानीय लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
उन्नीसवीं सदी में जब लोगों के साथ-साथ जावा इलाकों पर भी नियंत्रण स्थापित करना जरूरी लगने लगा तो डच उपनिवेशिकों ने जावा में वन-कानून लागू कर ग्रामीणों की जंगल तक पहुँच पर बंदिशें थोप दीं। इसके बाद नाव या घर बनाने जैसे खास उद्देश्यों के लिए, सिर्फ चुने हुए जंगलों से लकड़ी काटी जा सकती थी और वह भी कड़ी निगरानी में ग्रामीणों को मवेशी चराने, बिना परमिट लकड़ी ढोन या जंगल से गुजरने वाली सड़क पर घोड़ा-गाड़ी अथवा जानवरों पर चढ़ कर आने-जाने के लिए दंडित किया जाने लगा।
भारत की ही तरह यहाँ भी जहाज और रेल-लाइनों के निर्माण ने वन-प्रबंधन और वन सेवाओं को लागू करने की आवश्यकता पैदा कर दी। 1882 में अकेले जावा से ही 2,80,000 स्लीपर का निर्यात किया गया। जाहिर है कि पेड़ काटने, लट्रों को ढोन और स्लीपर के तैयार करने के लिए श्रम की आवश्यकता थी। डचों ने पहले तो जंगलों में खेती की ज़मीन पर लगान लगा दिया और बाद में कुछ गाँवों को इस शर्त पर इससे मुक्त कर दिया कि सामुहिक रूप पेड़ काटने और लकड़ी ढोने के लिए भैंस उपलब्ध कराने का काम मुफ्त में किया करेंगे। इस व्यवस्था को ब्लैन्डाँगडिएन्स्टेन के नाम से नाम से जाना गया। बाद में वन ग्रामवासियों को लगान-माफी के बजाय थोड़ा-बहुत मेहनताना तो दिया जाने लगा लेकिन वन-भूमि पर खेती करने के लिए उनके अधिकार सीमित कर दिए गए।
वस्तुष्ठि प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों में सही व गलत का वयन करें।
(i) बनाना रिपब्लिक का सम्बन्ध मध्य अमेरिकी क्षेत्रों से था।
(ii) रेलवे लाइनों के लिए लकड़ी के स्लीपरों की आवश्यकता होती है।
(iii) बैंडिस ऐ अंग्रेज वन विशेषज्ञ अधिकारी था।
(iv) भारतीय वन सेवा 1865 में स्थापित की गयी थी।
(v) बस्तर आज बिहार का एक हिस्सा है।
उत्तर-
(i) √,
(ii) √,
(iii) x,
(iv) x,
(v) √,
(vi) x.
प्रश्न 2. निम्नलिखित विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए।
(i) बस्तर की सीमाओं में निम्न राज्य स्थित है।
(a) उड़ीसा
(b) तमिलनाडु
(c) कर्नाटक
(d) राजस्थान
उत्तर-
(a) उड़ीसा
(ii) गुडांधुर का सम्बन्ध निम्नलिखित गाँव से था
(a) बस्तर
(b) जनदालपुर
(c) नेशनार
(d) पालम
उत्तर-
(c) नेशनार
(iii) जावा का क्षेत्र निम्न देश में स्थित हैं
(a) थाईलैंड
(b) सिंगापुर
(c) इन्डोनेशिया,
(d) म्यान्मार
उत्तर-
(c) इन्डोनेशिया,
(iv) इम्पीरियल वन अनुसंधान इन्स्टीट्यूट निम्नलिखित में स्थापित किया गया था।
(a) हरद्विार
(b) देहरादून
(c) काशीपुर
(d) बादली
उत्तर-
(b) देहरादून
(v) पहला वन अधिनियम निम्नलिखित वर्ष पास किया गया था
(a) 1864
(b) 1886
(c) 1865
(d) 1871
उत्तर-
(d) 1871
प्रश्न 3. निम्नलिखित रिक्त स्थानों को उपयुक्त गब्दों से भरें
(i) 1850 के दशक में मद्रास में………35,000 पेड़ों को काटा गया। (वार्षिक, अर्ध-वार्षिक)
(ii) बैंडिंस एक……वन विशेषज्ञ था। (जर्मन, ब्राजीलियन)
(iii) इम्पीरियल वन अनुसंधान इन्स्टीट्यूट की स्थापना देहरादून में….में की गयी थी। (1905, 1906)
(iv) जॉर्ज यूल एक …..प्रशासनिक अधिकारी था। (जर्मन, अंग्रेज)
उत्तर-
(i) वार्षिक,
(ii) जर्मन,
(iii) 1906,
(iv) अंग्रेज।
वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद Class 9 HBSE Notes in Hindi
अध्याय का सार
लोगों के लिए वन आत्याधिक उपयोगी होते हैं। इनमें लोगों को लकड़ी के अतिरिक्त अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियां कागज आदि उपलब्ध होते हैं तथा अन्य अनेक ऐसी वस्तुएं जो लोगों के लिए काफी फायदेमंद होती हैं। परन्तु आज जंगलों की बड़े पैमाने पर कटाई ही रही है तथा वन तेजी से लुप्त हो रहे हैं। औद्योगिकीकरण के दौर में सन् 17,00 से 1995 के बीच 139 लाख वर्ग किलोमीटर जंगल अर्थात् संसार के कुल क्षेत्र पुल का 9.3% भाग औद्योगिक इस्तेमाल, खेती-बाड़ी चरागाहों व ईधन की लकड़ी के लिए साफ कर दिया गया।
जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती है खाद्यान्नों की जरूरत भी उसी तेजी से बढ़ती है तथा उसी गति से फसल के लिए ज़मीन की ज़रूरत भी बढ़ती रहती है। ज़मीन तो कृषि के लिए भी ज़रूरी होती है तथा उद्योगों के लिए भी। उपनिवेशवाद के साथ-साथ वनों का शोषण भी किया जाने लगा। अंग्रेज साम्राज्यवादियों ने भारत के प्राकृतिक वन्य संसाधनों का पूरा शोषण किया, वनों का स्थानीय लोग प्रयोग कर सकें, कानून बनाए गए। अंग्रेजों ने भारतीय वन्य लकड़ियों को अपने प्रयोग के लिए प्राकृतिक संसाधनों का शोषण किया।
चाय, कॉफी व रबड़ बागान हेतु भारत में जंगलों को साफ किया गया। अंग्रेजों ने एक जर्मन अधिकारी ब्रैडिस को भारत में वन्य कर्मचारी के रूप में नियुक्त किया, 1864 में वन्य सेवा आरंभ की तथा 1865 में वनीय कानून बनाया, 1906 में देहरादून में साम्राज्यवादी भारतीय अनुसंधान इन्स्टीट्यूट स्थापित किया। 1865 के कानून को 1979 तथा 1927 में संशोधित किया गया। इन कानूनों द्वारा वनों को आरक्षित सुरक्षित तथा ग्रामीण वनों में विभाजिम किया गया, लोगों से कहा गया कि वह वनीय लकड़ी का प्रयोग नहीं करेंगे, उन्हें शिकार व चारागाह के लिए मना कर दिया गया, सार्वजनिक वनों पर खेती पर रोक लगा दी गयी।
स्पष्ट था कि ऐसे कानूनों से लोगों पर बुरा प्रभाव पड़ने लगा, कुछ लोगों को तो काफी कष्टों का सामना करना पड़ा, पारम्परिक काम छोड़ किसी नए रोज़गार के लिए दौड़-धूप करनी पड़ी। वह लोग जिनकी रोटी-रोजी वन्य उत्पादों पर निर्भर रहती थी, उन्हें अनेक कठिनाइयों से जूझना पड़ा था उनके लिए रोज़गार की समस्या बढ़ गई, जीविका के लाले पड़े गए।
वानिकी ने तो अनकों के लिए रोजगार के अवसर प्रदान कर दिए। कुछेक ने साफ जंगल पर बड़े पैमाने पर खेती आरंभ कर दी, कुछ ने चाय, कॉफी व रबड़ के बागान का कार्य आरंभ कर दिए, औपनिवेशिक साम्राज्यवादियों ने वनों का साम्राज्यवादी ढंग से शोषण आरंभ कर दिया। इससे स्थानीय लोगों की मुश्किलें और अधिक बढ़ गई कहीं-कहीं तो स्थानीय लोगों ने विद्रोह भी किया तथा अंग्रेजों के अत्याचार के शिकार भी हुए।
ऐसे अत्याचार की कहानी केवल भारत में अंग्रेज साम्राज्यवादियों द्वारा ही न केवल सुनने को मिलती हैं, परन्तु ऐसे कुछ अन्य क्षेत्रों में अन्य साम्राज्यवादियों द्वारा भी ऐसे अत्याचार की कहानियां देखने-सुनने को मिलती हैं। जावा इंडोनेशिया में डच साम्राज्यवादी इसी प्रकार का एक अन्य उदाहरण है।