HBSE 8th Class Social Science Solutions History Chapter 3 ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना

Haryana State Board HBSE 8th Class Social Science Solutions History Chapter 3 ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Social Science Solutions History Chapter 3 ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना

HBSE 8th Class History ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना Textbook Questions and Answers

फिर से याद करें

ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class History प्रश्न 1.
निम्नलिखित के जोड़ बनाएँ:
(i) रैयत – (क) ग्राम-समूह
(ii) महाल – (ख) किसान
(iii) निज – (ग) रैयतों की जमीन पर खेती।
(iv) रैयती – (घ) बागान मालिकों की अपनी जमीन पर खेती
उत्तर:
(i) रैयत – (ख) किसान
(ii) महाल – (क) ग्राम-समूह
(iii) निज – (घ) बागान मालिकों की अपनी जमीन पर खेती
(iv) रैयती – (म) रैयतों की जमीन पर खेती।

ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना HBSE 8th Class History प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए.:
(क) यूरोप में वोड उत्पादकों को …………… से अपनी आमदनी में गिरावट का ख़तरा दिखाई देता था।
(ख) अठारहवीं सदी के आखिर में ब्रिटेन में नील की माँग ………….. के कारण बढ़ने लगी।
(ग) …………… की खोज से नील की अंतर्राष्ट्रीय मांग पर बुरा असर पड़ा।
(घ) चंपारण आंदोलन …………. के ख़िलाफ़ था।
उत्तर:
(क) नील
(ख) औद्योगिक क्रांति
(ग) वोड (Woad)
(घ) नील-बागान मालिकों।

आइए विचार करें

ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना Class 8 HBSE History प्रश्न 3.
स्थायी बंदोबस्त के मुख्य पहलुओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्थायी बंदोबस्त को 22 मार्च, 1773 में लार्ड कार्नवालिस द्वारा बंगाल (बिहार तथा उड़ीसा सहित) में शुरू – किया गया। इसकी तीन प्रमुख विशेषताएँ या पहलू निम्नलिखित हैं –
(i) प्रथम, जमींदारों व लगान वसूल करने वालों को पहले की भाँति अब केवल मात्र मालगुजारी वसूल करने वाले कर्मचारी के स्थान पर उन्हें हमेशा के लिए जमीन का मालिक बना दिया गया तथा स्थायी तौर पर एक ऐसी राशि तय कर दी गई जो वे सरकार को दे सकें। जमींदारों के स्वामित्व के अधिकार को पैतृक व हस्तांतरणीय बना दिया गया।

(ii) दूसरी ओर किसानों को मात्र रैयतों का नीचा दर्जा दिया गया तथा उनसे भूमि संबंधी अन्य परंपरागत अधिकारों को छीन लिया गया।

(iii) तीसरा, अगर किसी जमींदार से प्राप्त लगान की रकम, कृषि-सुधार अथवा प्रसार या किसानों से अधिक रकम उगाहने के कारण राजस्व की रकम बढ़ जाती तो जमींदार को बढ़ी हुई रकम रखने का अधिकार दे दिया गया।

(iv) स्थायी बंदोबस्त से सबसे अधिक हानियाँ किसानों को हुईं। इस व्यवस्था ने उनसे परंपरागत भूमि संबंधी व अन्य अधिकार छीन लिए। इस व्यवस्था के कारण बंगाल, बिहार, उड़ीसा, मद्रास के उत्तरी जिलों, वाराणसी जिले इत्यादि के किसान पूर्णतया जमींदारों की दया पर निर्भर हो गए। वे अपनी जमीन पर ही मजदूरों के रूप में काम करने वालों की स्थिति में आ गए। उनका सरकार के साथ कोई सीधा संबंध नहीं रह गया। उन्हें जमींदारों के अनेक प्रकार के अत्याचार व शोषण सहना पड़ा।

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ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना के प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class History प्रश्न 4.
महालवारी व्यवस्था स्थायी बंदोबस्त के मुकाबले कैसे अलग थी?
उत्तर:
महालवारी व्यवस्था (Mahalwari System):
(i) गंगा के दोआब, पश्चिमोत्तर प्रान्त, मध्य भारत के कुछ भागों और पंजाब में जमींदारी प्रथा का संशोधित रूप लागू किया गया जिसे महालवारी व्यवस्था कहा जाता है।

(ii) इस व्यवस्था में मालगुजारी का बंदोबस्त महालों या अलग-अलग गाँवों के समूहों के आधार पर उन जमींदारों अथवा उन परिवारों के मुखियाओं के साथ किया गया, जो सामूहिक रूप से उन गाँवों अथवा महाल का भू-स्वामी होने का दावा करते थे।

(iii) पंजाब में ग्राम सभा के नाम से जानी जाने वाली एक संशोधित मालगुजारी का समय-समय पर पुनर्निर्धारण किया जाता था।

भिन्नता के बिंदु:
(i) स्थायी बन्दोबस्त में तीस वर्ष से पहले लगान नहीं बढ़ाया जा सकता था। इस प्रथा में किसानों तथा सरकार नहीं बल्कि स्थायी जमींदारों तथा कंपनी का संबंध था।

(ii) महालवारी बाद में शुरू किया गया था। यह 1822 से प्रभावी हुआ जबकि स्थायी बंदोबस्त सन् 1793 से ही शुरू हो गया था।

(iii) महालवारी में एक महाल या गाँव को महत्त्वपूर्ण इकाई | माना गया जबकि स्थायी बंदोबस्त में पूरी जमींदारी को। इससे एक ही गाँव या कभी-कभी कई गाँव भी हो सकते थे।

प्रश्न 5.
राजस्व निर्धारण की नयी मुनरो व्यवस्था के कारण पैदा हुई दो समस्याएँ बताइए।
उत्तर:
राजस्व निर्धारण की मुनरो व्यवस्था तथा उससे उत्पन्न समस्याएँ:
(i) मुनरो की नयी भू-राजस्व व्यवस्था रैयतवारी कहलाती थी। इस व्यवस्था का उद्देश्य स्थायी बंदोबस्त से होने वाली (सरकार को) हानियों को रोकना तथा भू-राजस्व वृद्धि के माध्यम से स्वयं ज्यादा-से-ज्यादा राशि वसूल करना था। यह व्यवस्था इसलिए भी शुरू की गई क्योंकि कंपनी के कुछ अधिकारियों का विचार था कि दक्षिण तथा दक्षिण पश्चिम भारत में इतने बड़े जमींदार नहीं हैं जिनके साथ स्थायी रूप से भू-राजस्व संबंधी अनुबंध किये जा सकते।

कहने को रैयतवारी व्यवस्था किसानों के लिए लाभकारी थी तथा यह भारत की परिस्थितियों एवं परंपराओं के अनुकूल थी लेकिन व्यावहारिक रूप में यह व्यवस्था भी किसानों के लिए जमींदारी प्रथा से कम हानिकारक नहीं थी। रैयतवारी व्यवस्था में वस्तुत: जमींदारों का स्थान स्वयं कंपनी ने ले लिया था। कई बार इस व्यवस्था के अंतर्गत भी किसानों से अलग-अलग समझौते कर लिये जाते थे। मालगुजारी का निर्धारण वास्तविक उपज की मत्रा को ध्यान में न रख करके भूमि के कुल क्षेत्रफल (Area) के आधार पर किया जाता था।

(ii) रैयतवारी व्यवस्था ने उन पुराने बंधनों को भी समाप्त कर दिया जिन्होंने हर गाँव की जनता को सूत्र में बाँध रखा था। ग्रामीण समाज के सामाजिक स्वामित्व को इस व्यवस्था ने समाप्त कर दिया। सरकार ने किसानों से मनमाना लगान वसूल किया। कई बार उन्हें भूमि जोतने तथा बोने के लिए विवश किया गया।

इस व्यवस्था में किसान तब तक ही भूमि का स्वामी बना रह सकता था जब तक वह सरकार को निश्चित समय तक लगान देता रहता था। चूँकि अधिकांश क्षेत्रों में लगान उपज का करीब पचास प्रतिशत होता था इसलिए प्राकृतिक विपत्तियों और भू-सुधारों के प्रति सरकार की उपेक्षापूर्ण नीति के कारण किसान लगान नहीं दे पाते थे। इसलिए वे भूमि छोड़कर भाग जाते थे। सरकारी कर्मचारी भी कई किसानों को तंग करते थे।

प्रश्न 6.
रैयत नील की खेती से क्यों कतरा रहे थे?
उत्तर:
(i) नील की खेती से कृषि का वाणिज्यीकरण हुआ और अनेक किसानों को अपने तथा परिवारजनों के लिए आवश्यक खाद्यान्नों का अभाव महसूस होने लगा।

(ii) मार्च 1899 में बंगाल के हजारों किसानों ने नील उगाने से इंकार कर दिया क्योंकि नील बागानों की प्रणाली बहुत ही शोषणपूर्ण थी। लागत तथा परिश्रम बहुत था लेकिन नील की कीमत कंपनी के मुनाफा खोर अधिकारीगण ही तय किया करते थे।

(iii) नील उगाने वाले छोटे-छोटे किसानों को यह भरोसा था कि वे जो कंपनी तथा अंग्रेज सौदागरों के विरुद्ध विद्रोह कर रहे हैं उसमें उनका साथ देने के लिए बंगाल के स्थानीय जमींदार भी हैं। गाँव के मुखिया भी बागान मालिकों के विरुद्ध हैं।

(iv) अनेक गाँवों में चौधरी तथा गाँव के मुखिया जिन्हें कंपनी के अधिकारीगण नील लेन-देन के समझौतों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर कर रहे थे उन्होंने गाँव के नील कृषकों को इकट्ठा किया तथा लठैतों की मदद से अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाइयों के मोर्चे खोल दिए।

(v) अन्य अनेक स्थानों पर स्वयं जमींदार घूम-घूम कर गाँवों में गये तथा उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध नील की खेती करने वाले किसानों को विद्रोह करने के लिए उकसाया। ये जमींदार यूरोपीय बागान मालिकों की बढ़ती हुई शक्ति के अप्रसन्न थे। वे इस बात से भी क्रोधित थे क्योंकि विदेशी बागान मालिक उनसे लंबी-लंबी अवधि के लिए समझौते करने के लिए मजबूर कर रहे थे।

प्रश्न 7.
किन परिस्थितियों में बंगाल में नील का उत्पादन धराशायी हो गया?.
उत्तर:
वे परिस्थितियाँ जिन्होंने अंततः में बंगाल में नील के उत्पादन को धराशायी कर दियाः जे.पी.एच. ऑल-इन-वन सफलता का साधन-VIII (नया कोर्स)
(i) मार्च, 1859 में हजारों किसानों ने बंगाल में नील की खेती | करने से साफ इंकार कर दिया। जैसे-जैसे विप्लव फैलता गया, किसानों ने बागान मालिकों को राजस्व देने से भी मना कर दिया। उन्होंने तलवारें, ढालों, तीर और कमान उठा करके नील की फैक्ट्रियों पर धावे बोल दिए। औरतें भी रसोई के उपकरणों, घड़ों तथा कड़ाहियों आदि को लेकर लड़ने के लिए बाहर आ गयीं।

(ii) जो भी बागान मालिकों के लिए काम कर रहे थे उन्हें सामाजिक तौर पर बहिष्कार का सामना करना पड़ा। जो गुमाश्ता-एजेन्टस बागान मालिकों के लिए इकट्ठा करने आये थे उन्हें पीटा गया। रैयतों ने शपथ ली कि वे अब भविष्य में नील उगाने के लिए अग्रिम राशि (एडवांस) नहीं लेंगे तथा लोहारों व बढ़इयों ने कस्में खाई कि वे बागान मालिकों के लठैतों के लिए हथियार या लाठियों का निर्माण नहीं करेंगे। उन्हें ये हथियार बिल्कुल भी नहीं बेचेंगे।

(iii) विद्रोहियों की गतिविधियों से चिन्तित होकर, सरकार यूरोपीय बागान मालिकों को उनके क्रोध से बचाने के लिए, आगे आई। उसने एक नील आयोग (Indigo Commission) का गठन किया तथा उसे नील की व्यवस्था में जाँच-पड़ताल की जिम्मेदारी सौंपी गयी। इस आयोग ने नील बागानों को दोषी पाया तथा उनके द्वारा नील बोने वालों के विरुद्ध जो घटिया किस्म के तरीके अपनाये गए थे उनके लिए उन्हें बहुत ही डाँटा तथा लताड़ा। आयोग ने घोषित कर दिया कि रैयतों के लिए नील की खेती लाभकारी नहीं है। उसने (कमीशन ने) किसानों से कहा कि वे अपने पहले के समझौते (Contracts) के अनुसार करें तथा भविष्य में वे नील की खेती करने से इंकार करने की पूरी आजादी रखते हैं।

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आइए करके देखें

प्रश्न 8.
चंपारण आंदोलन और उसमें महात्मा गांधी की भूमिका के बारे में और जानकारियाँ इकट्ठा करें।
उत्तर:
चंपारण आंदोलन एवं महात्मा गाँधी : देश के अनेक भागों में किसानों ने नील की खेती न करने का आंदोलन जारी रखा था। यद्यपि नील आयोग ने किसानों की कठिनाइयों को मान लिया था लेकिन नील बागानों के यूरोपीय मालिक उनका शोषण करते रहे। नील के किसानों ने गाँधी जी को चंपारण बुलाया। महात्मा गाँधी ने चंपारण (बिहार) में सन् 1917 ई. में सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग नील की खेती में लगे किसानों पर किये जा रहे अत्याचारों के विरुद्ध किया। चंपारण में अंग्रेज उद्योगपति नील के बागानों में खेती कराते थे।

अंग्रेज भू-स्वामी काश्तकारों एवं किसानों पर घोर अत्याचार किया करते थे। गाँधी जी ने स्थिति को देखकर सरकार पर दबाव डाला कि वे किसानों की मजदूरी – बढ़ायें तथा उनकी सभी उचित माँगों को तुरंत मान लें। सरकार को गाँधी जी की हठकर्मी के समक्ष झुकना पड़ा। उसने एक समिति गठित की। गाँधी जी भी इस समिति के एक सदस्य थे। गाँधी जी ने सरकार से सिफारिश की कि वह किसानों की कठिनाइयों को तुरंत दूर करे। भारत में उनका यह सत्याग्रह का सफल प्रयोग था। उनके इस प्रयास से राष्ट्रीय आंदोलन ग्रामीण क्षेत्र में फैलता चला गया।

प्रश्न 9.
भारत के शुरुआती चाय या कॉफी बागानों का इतिहास देखें। ध्यान दें कि इन बागानों में काम करने वाले मज़दूरों और नील के बागानों में काम करने वाले मजदूरों के जीवन में क्या समानताएँ या फर्क थे।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें। “आइए कल्पना करें।

प्रश्न 10.
एक किसान को नील की खेती के लिए मजबूर किया जा रहा है। बागान मालिक और उस किसान के बीच बातचीत की कल्पना कीजिए। किसान को राजी करने के लिए बग़ान मालिक क्या कारण बताएगा? किसान किन समस्याओं का ज़िक्र करेगा? इस बातचीत को अभिनय के ज़रिए दिखाएँ।
उत्तर:
(i) किसानों ने बागान मालिक से कहा आप हम लोगों को समझौते के कागजात पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर क्यों कर रहे हैं ? देखिए नील की खेती करना हमारे लिए बिल्कुल भी लाभदायक नहीं है। हम ऐसा करना नहीं चाहते।

(ii) दूसरी बात यह है कि कोई भी समझौता सदैव दोनों पार्टियों के आपसी रजामंदी तथा शर्तों एवं तर्कों पर होना चाहिए। यह किसानों के लिए उपयोगी होना चाहिए। यदि मुझे नील की खेती के लिए विवश करने में आप लोग सफल हो जायें तो मुझे भी पर्याप्त मुद्रा मेरे श्रम के बदले में मिले। वह राशि अन्य परिवारजनों के लिए भी पर्याप्त होनी चाहिए।

(iii) मुझे रहने के लिए पर्याप्त अच्छा घर मिलना ही चाहिए। श्रमिकों के लिए अस्पताल होना चाहिए। सभी श्रमिकों को चिकित्सा संबंधी सुविधाएँ मिलनी चाहिए। हमारी बस्ती के समीप ही एक स्कूल होना चाहिए, जहाँ पर बच्चे अपनी शिक्षा ले सकें। मेरे काम के घंटे निर्धारित (fixed) होने चाहिए। हर शनिवार को हमें हमारे श्रम का वेतन तथा हमारे परिवार के सभी सदस्यों को मजदूरी मिलनी चाहिए।

(iv) भू-राजस्व जमींदारों से सीधे प्रत्यक्ष रूप से ही लिया जाना चाहिए। यदि आप मेरी शर्तों को नहीं मानते तो मैं नील की खेती नहीं करूँगा। यदि आप या आपके एजेन्ट मेरी शर्तों से सहमत होंगे तो मैं केवल एक या दो फसलों के लिए ही काम करूँगा।

(v) इसके बाद के काल या फसलों के लिए आपको कुछ और ज्यादा अनुकूल मेरी शर्ते माननी होंगी। उत्पादन की लागत एवं बिक्री या मूल्य दोनों पक्षों की पारंपरिक सहमति से ही तय होने चाहिए।

नोट : विद्यार्थी इस वाद-विवाद पर कक्षा में अभिनय कर सकते हैं।

HBSE 8th Class Social Science Solutions History Chapter 3 ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना

HBSE 8th Class History ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘मुक्त व्यापार’ पद के अर्थ की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मुक्त व्यापार (Free Trade) : सरकार को व्यापार या उद्योग में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। यह ‘अहस्तक्षेप का सिद्धांत’ कहलाता है। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एडम स्मिथ (Adam Smith) ने 1776 ई. में किया था। उसका विचार था कि सरकार को न तो किसी प्रकार का आयात कर लगाना चाहिए और न ही व्यापार के संबंध में कोई कानून बनाने चाहिएँ।

प्रश्न 2.
पूँजीवाद पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
पूँजीवाद (Capitalism) : पूँजीवाद का जन्म औद्योगिक क्रांति के कारण हुआ। इस क्रांति से उत्पादन में वृद्धि हुई और बड़े-बड़े कारखानों के स्वामी पूँजीपति बन गये। कारखानों से होने वाला सारा लाभ उन्हीं की जेब में जाता था। मजदूरों को काम के बदले केवल थोड़ी-बहुत मजदूरी मिलती थी।

प्रश्न 3.
आर्थिक निष्कासन की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
आर्थिक निष्कासन का अर्थ धन-दोहन से ही लिया जाता है। संपत्ति दोहन का अर्थ है भारत का धन (नकदी, बहुमूल्य पदार्थ, खनिज संपदा, कच्चा माल आदि) किसी न किसी तरह इंग्लैंड पहुँचाना तथा उसे भारत में न आने देना।

प्रश्न 4.
नवाब की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
ईस्ट इंडिया कंपनी के जो ऑफिसर भारत में ठाठ-बाट से भारतीय नवाबों की जीवनशैली का अनुसरण करते हुए रहते थे उन्हें भारत तथा इंग्लैंड में नवाब कहा जाता था। यह इंग्लैंड के लोग उन्हें चिढ़ाने के लिए कहते थे।

प्रश्न 5.
‘महाल’ पद की व्याख्या करें।
उत्तर:
महाल (Mahal) : अंग्रेजों के राजस्व रिकार्डों में ‘महाल’ शब्द का प्रयोग राजस्व सम्पदा के लिए प्रयोग किया गया। यह एक गाँव या गाँवों का समूह भी हो सकता था।

प्रश्न 6.
‘बागान’ पद की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
बागान (Plantation) : विशाल आकार के खेतों में मालिक प्रायः अनुबंधित मजदूरों से काम कराते थे। चाय या कॉफी, नील, तंबाकू आदि के बागान होते थे।

प्रश्न 7.
‘दास’ शब्द की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
दास (Slave) : कोई भी एक व्यक्ति जिसका स्वामी कोई अन्य व्यक्ति होता है तथा वह उससे (गुलाम से) अपनी मर्जी अनुसार काम लेता है। उसे प्रायः मालिक के लिए काम करने के लिए विवश किया जाता है।

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प्रश्न 8.
‘बीघा’ पद की व्याख्या करें।
उत्तर:
भूमि की माप की एक इकाई बीघा कहलाती है। अंग्रेजी शासन से पूर्व, बीघा का आकार जगह-जगह पर भिन्न-भिन्न होता था। सबसे पहले बंगाल में अंग्रेजों ने इसका मानक (Standard) तय किया। इसे एकड़ का तीसरा हिस्सा मान लिया।

प्रश्न 9.
चार्टर एक्ट क्या थे?
उत्तर:

  • आज्ञापत्र (या प्रपत्रों) को चार्टर एक्ट कहा जाता है। सन् 1600 ई. में इंग्लैंड की महारानी एलीजाबेथ प्रथम द्वारा इसे जारी करके ईस्ट इंडिया कंपनी को पूर्व के साथ व्यापार करने का एकाधिकार दिया गया।
  • 1813 के चार्टर एक्ट के अनुसार भारतीय व्यापार पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का एकाधिकार समाप्त हो गया और सभी ब्रिटिश नागरिकों को भारत के साथ व्यापार करने की छूट दे दी गई।
  • चाय और चीन के साथ व्यापार करने पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का एकाधिकार बना रहा।
  • भारत की सरकार तथा उसके राजस्व ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में ही बने रहे।
  • भारत में अधिकारियों की नियुक्ति का अधिकार भी कंपनी के ही हाथों में बना रहेगा। हर बीस वर्षों के बाद सन् 1853 तक ये एक्ट जारी होते रहे।

प्रश्न 10.
‘स्थायी बंदोबस्त’ पद की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
स्थायी बंदोबस्त (Permanent Settlement) : अंधाधुंध बोली देने वाले इजारेदारों के कारण इजारेदारी प्रथा (ठेकेदारी प्रथा) फेल हो गई। बंगाल, बिहार और उड़ीसा. की आर्थिक व्यवस्था बिगड़ गई थी। सर्वत्र दरिद्रता का राज्य था। अनेक स्थानों पर अकाल के कारण भुखमरी व्याप्त थी। 1779 जे.पी.एच. ऑल-इन-वन सफलता का साधन-VIII (नया कोर्स) ई. में गवर्नर-जनरल लार्ड कार्नवालिस ने कहा “कंपनी की एकतिहाई भूमि अब जंगल है तथा वहाँ पर जंगली जानवर ही बसते हैं।” एक लंबे विचार-विमर्श के बाद और बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल की स्वीकृति लेकर लार्ड कार्नवालिस ने 22 मार्च, 1793 ई. को बंगाल, बिहार और उड़ीसा और बाद में उत्तरी मद्रास के कुछ इलाकों के लिए इस्तमरी बंदोबस्त अथवा स्थायी भूमि बंदोबस्त लागू किया।

प्रश्न 11.
कार्नवालिस कौन था? उसका एक आर्थिक कार्य लिखिए।
उत्तर:
कार्नवालिस भारत में अंग्रेज गवर्नर-जनरल था। उसने 1793 में भारत में स्थायी बंदोबस्त बंगाल (बिहार तथा उड़ीसा सहित) में लागू किया था।

प्रश्न 12.
नील कहाँ पैदा किया जाता था ? भारत की इसके निर्यात की दृष्टि से क्या स्थिति थी?
उत्तर:

  • गहरा नीला रंग या नील को एक पौधे से पैदा किया जाता था। इसे विभिन्न तरह के सूती वस्त्रों को रंगने तथा वस्त्रों की छपाई के लिए प्रयोग किया जाता था। इसकी खेती बंगाल तथा बिहार में खूब होती थी।
  • 19वीं शताब्दी में भारत दुनिया भर में नील का निर्यात किया करता था। वस्तुत 13वीं शताब्दी से ही भारतीय नील इटली, फ्रांस एवं ब्रिटेन में कपड़े बनाने एवं रंगने में प्रयोग होता चला आ रहा था।

प्रश्न 13.
भारत में नील की खेती कैसे की जाती थी?
उत्तर:
भारत में नील की खेती की प्रमुख विधियाँ (Main Systems of Indigo cultivation in India) : भारत में नील की खेती करने की दो विधियाँ थीं जिन्हें निज (nij) तथा रैयती (Ryoti) कहते थे।
(क) निज प्रणाली में किसान उस भूमि में नील उगाते थे जिस पर उनका सीधा नियंत्रण होता था। यह भूमि या तो उसके द्वारा सीधे खरीदी जाती थी या वह उसे जमींदार से किराये पर लिया करता था। वह स्वयं ही किराये के मजदूर रखकर उस पर खेती कराता था।

(ख) रैयती प्रणाली के अंतर्गत, बागान मालिक किसानों को नील की खेती करने के लिए विवश करता था। वह उसे समझौतों पर (Contract) पर हस्ताक्षर करने के लिए समझौता पत्र (सट्टा-Satta agreement) पेश किया करता था।

प्रश्न 14.
वाट (VAT) पद की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
तरल (liquids) पदार्थों को रखने के लिए रोगन या रंग इसमें घोला जाता है।

प्रश्न 15.
निम्नलिखित पदों/शब्दों का अर्थ बताइए।
(i) अकाल, (i) नील, (iii) व्यावसायिक अथवा नकदी फसलें, (iv) गिरवी रखना।
उत्तर:
(i) अकाल (Famine) : वह भयंकर समय जब किसी क्षेत्र में बहुत ज्यादा खाद्यान्न तथा चारे आदि की कमी हो जाये तथा मनुष्य एवं पशु भूख से मरने लगें या अन्यत्र अनाज/चारे वाली जगहों पर जाने के लिए विवश हो जायें।

(ii) नील (Indigo) : गहरा नीला रंग जो रंगाई के काम आता है।

(iii) व्यावसायिक फसलें/नकदी फसलें (Commercial Crops/Cash Crops) : जो फसलें बाजार में बेचने के लिए उगायी जाती हैं। चाय, काफी, नील, तंबाकू, कपास, जूट आदि व्यावसायिक या नकदी फसलें कहलाती हैं।

(iv) गिरवी रखना (Mortgage) : यदि किसी सूदखोर या ब्याज पर उधार देने वाले साहूकार एवं किसान में समझौता हो तथा कुछ रकम साहूकार से ब्याज पर लेने तथा शर्तनामे से वह वायदा करे कि यदि वह समय पर मूलधन तथा ब्याज नहीं चुकाएगा तब तक भूमि साहूकार के पास गिरवी रहेगी।

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लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मुगल बादशाह द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल (बिहार तथा उड़ीसा सहित) की दीवानी दिए जाने (1765 में) का बंगाल के किसानों, शिल्पकारों एवं सामान्य लोगों पर अगले पाँच वर्षों तक क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय के द्वारा इलाहाबाद की संधि द्वारा 1765 में कंपनी को बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी (राजस्व वसूल का अधिकार) दे दी गई। इसके अगले पाँच वर्षों (अर्थात् 1765 से 1770 तक) में कई अर्थों में बहुत ही हानिकारक प्रभाव पड़े :
(i) कंपनी ने ज्यादा से ज्यादा राजस्व की रकम वसूल कर के लिए नीलामी की व्यवस्था को शुरू किया। इजारेदारों ने भू-राजस्व की अधिकतम रकम वसूल की। उन्हें कंपनी के कारिन्दे तथा गुमाश्ते मदद करते थे। किसान गरीब से और भी जयादा गरीब हो गया। जितनी भू-राजस्व की रकम की माँग उससे की जाती थी वे भुगतान नहीं कर सकते थे। कई बार उन्होंने भूमि गिरवी रखकर साहूकारों से ऊँची ब्याज पर कर्जे लिए।

(ii) शिल्पकारों को भी बर्बाद होना पड़ा। कंपनी के दलाल उन्हें अच्छी कपास खरीदने नहीं देते थे। वे उनसे कपास के ज्यादा मूल्य वसूल करते थे। बंगाल के नवाब शिल्पकारों को कई तरह से मदद तथा संरक्षण देते थे। कंपनी ने उनके प्रति भी शत्रुता की नीति अपनायी एवं व्यवहार किया। उन्हें कंपनी के द्वारा कम कीमतों पर उत्पाद बेचने के लिए कहा जाता था। कई शिल्पकार बंगाल से गाँव छोड़कर भाग गये।

प्रश्न 2.
रैयतवारी प्रणाली की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
रैयतवारी प्रणाली (Ryorwari System) : जिन प्रान्तों में कार्नवालिस द्वारा चालू की गयी स्थायी बंदोबस्त की व्यवस्था की गई थी वहाँ यह असफल रही थी इसलिए कंपनी ने बंबई और मद्रास प्रेसीडेंसियों में एक भिन्न प्रकार का भूराजस्व प्रबन्ध किया जिसको रैयतवारी व्यवस्था कहते थे। इसके अनुसार बंदोबस्त जमींदारों की अपेक्षा (ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा) सी किसानों के साथ किया गया। किसानों को भूमि का स्वामी स्वीक कर लिया गया जो सोधे सरकार को भूमि कर देने के लि उत्तरदायी थे। प्रत्येक गाँव की भूमि को माप कर भूमि मालिकों अधिकारों का पंजीकरण किया गया। भूमि कर की दर भूमि व उपजाऊ शक्ति के आधार पर निश्चित की गई जो साधारणतः 40 प्रतिशत से 55 प्रतिशत तक होती थी।

प्रश्न 3.
महालवारी व्यवस्था (या प्रणाली) की परिभार लिखिए।
उत्तर:
महालवारी व्यवस्था (या प्रणाली) (Mahalwa System) : आधुनिक उत्तर प्रदेश (उस समय यह यूनाइटे प्रोविन्स कहलाता था।) तथा मध्य भारत के कुछ भागों में ए अन्य भूमि कर प्रणाली की व्यवस्था की गई जिसे महालवा व्यवस्था कहा जाता था। शब्द ‘महाल’ का अर्थ है गाँव र प्रतिनिधि। इस प्रणाली के अनुसार बंदोबस्त गाँव के प्रतिनिधिर (जो कि छोटे-छोटे जमींदार होते थे और गाँव की अधिकतर भू के स्वामी होते थे) के साथ सामूहिक रूप से किया जाता था। सरकार को भूमि कर की निश्चित राशि देने के लिए जिम्मेदार हो थे। उनको गाँव से भूमि कर वसूल करने का अधिकार दिया जा था। लार्ड विलियम बैंटिक ने अपने शासनकाल में फिर से भू की माप करवाई और भूमि कर उपज का 1/3 से 1/2 भा निश्चित किया और यह बंदोबस्त 30 वर्ष के लिए कर दिया गय इससे कंपनी की आय में और अधिक वृद्धि हुई।

प्रश्न 4.
कंपनी ने यूरोप के लिए भारत में किन फसल की खेती करवाने की आवश्यकता महसूस की? इसके लि क्या किया गया?
उत्तर:
(i) ब्रिटिश ईस्ट इंडिया का मूल उद्देश्य ज्यादा से ज्या मुनाफा कमाना था। इसके लिए उसने भारत में उन फसलों व खेती-बाड़ी किए जाने,पर जोर दिया जिनकी माँग यूरोपीय बाजा में थी। उदाहरण के लिए उसने अफीम एवं नील की अंतर्राष्ट्री माँग को देखकर 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से ही इनकी खेती पर जोर दिया। लगभग 100 वर्ष के व्यतीत होने पर इंग्लैंड सहित अनेक यूरोपीय देशों में औद्योगिक क्रांति हो गई थी। वहाँ पटसन की वस्तुओं, चाय, कॉफी, चीनी, गेहूँ, कपास, चावल आदि की भी मांग उठने लगी।

(ii) ईस्ट इंडिया कंपनी ने अफीम की खेती राजस्थान के अनेक भागों में शुरू की थी। नील, बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा से उगाया गया। जो लोग नील की खेती करने से इंकार करते थे उन्हें इसके लिए विवश किया गया। उनके साथ या उनके जमींदारों के साथ लिखित समझौते किए गये। उन्हें अग्रिम धनराशियाँ भी दी गईं।

दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्थायी बंदोबस्त के द्वारा विभिन्न लोगों के लिए उत्पन्न की गयी समस्याओं पर चर्चा कीजिए।
अथवा
निम्नलिखित पर स्थायी बन्दोबस्त के पड़े प्रभावों की चर्चा कीजिए:
(i) कंपनी पर
(ii) जमींदारों पर
(iii) भूमि या कृषि पर
(iv) किसानों (या काश्तकारों) पर।
उत्तर:
I. स्थायी बन्दोबस्त के दोष अथवा बुरे प्रभाव (Demerits of Permanent Settlement): कई लेखकों ने इस बंदोबस्त की बहुत आलोचना की है। होम्ज ने इसे ‘एक भयानक भूल’ बताया है।

(i) स्थायी बंदोबस्त से किसानों के हितों की रक्षा नहीं की गई। जमींदार भूमि से अधिक उपज लेने के लिए किसानों के साथ कठोर व्यवहार करने लगे। बब्रिज के अनुसार, “केवल जमींदारों के साथ बंदोबस्त करके सरकार ने एक भारी भूल एवं घोर अन्याय किया।”

(ii) सरकार को भूमिकर से होने वाली आय में वृद्धि की कोई आशा नहीं थी क्योंकि उसको मिलने वाली राशि तो पहले ही निश्चित हो चुकी थी।

(iii) धन की कमी को पूरा करने के लिए सरकार ने बंगाल और बिहार को छोड़कर अन्य प्रान्तों के लोगों पर कर लगाए जो सरासर एक अन्याय था।

(iv) स्थायी बंदोबस्त के कारण जमींदार आलसी हो गए और ऐश्वर्य का जीवन व्यतीत करने लगे।

(v) बंगाल में धनी जमींदार वर्ग और निर्धन वर्ग में आपसी विरोध बढ़ने लगा।

II. स्थायी बंदोबस्त के लाभ अथवा अच्छे प्रभाव (Merits of Permanent Settlement):
(i) इस बन्दोबस्त से कंपनी या सरकार की आय निश्चित हो गई। यदि जमींदार किसी कारणवश यह निश्चित राशि सरकार को न दे सके तो सरकार उनकी भूमि बेचकर यह राशि प्राप्त कर सकती थी।

(ii) सरकार को बार-बार बंदोबस्त करने की परेशानी से छुटकारा मिल गया।

(iii) क्योंकि स्थायी बंदोबस्त सरकार ने स्थापित किया था इसलिए जमींदार जिनको इससे लाभ पहुंचा था सरकार के स्वामिभक्त बन गए। उनमें अनेकों ने 1857 ई. के विद्रोह में सरकार का पूरा साथ दिया।

(iv) भूमि कर का स्थायी बंदोबस्त हो जाने से सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को लोक कल्याण के कामों के लिए अधिक समय मिलने लगा यद्यपि वे ऐसा करने में रुचि नहीं रखते थे।

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प्रश्न 2.
“रैयतों की जमीन पर नील की खेती” विषय पर एक लेख लिखिए।
अथवा
नील की खेती से जुड़ी रैयती व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं, समस्याओं आदि पर विचार-विमर्श कीजिए।
उत्तर:
I. रैयती व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ:
(i) रैयती व्यवस्था के तहत बागान मालिक रैयतों के साथ एक अनुबंध (सट्टा) करते थे। कई बार वे गाँव के मुखियाओं को भी रैयतों की तरफ से समझौता करने के लिए बाध्य कर देते थे।

(ii) जो अनुबंध पर दस्तखत कर देते थे उन्हें नील उगाने के लिए कम ब्याज दर पर बागान मालिकों से नकद कर्ज मिल जाता था।

(iii) कर्ज लेने वाले रैयत (कृषक) को अपनी कम से कम 25 प्रतिशत जमीन पर नील की खेती करनी होती थी।

II. नील की खेती से संबंधित रैयती व्यवस्था की समस्यायें :
(i) कों की समस्याएँ (Problems of loans) : जब कटाई के बाद फसल बागान मालिक को सौंप दी जाती थी तो रैयत को नया कर्ज मिल जाता था और वही चक्र दोबारा शुरू हो जाता था। जो किसान पहले इन कों से बहत आकर्षित थे उन्हें जल्दी ही समझ में आ गया कि यह व्यवस्था कितनी कठोर है। वह ऋण में जन्म लेता, ऋण में पलता तथा अपनी संतान के लिए ऋण छोड़ कर मर जाता था।

(ii) कम कीमत (Less Price) : उन्हें नील की जो कीमत मिलती थी वह बहुत कम थी और कों का सिलसिला कभी खत्म ही नहीं होता था।

ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना Class 8 HBSE Notes

1. महाल (Mahal) : ब्रिटिश राजस्व रिकार्डों के अनुसार महल एक गाँव या संपदा (Estate) होता था जहाँ से राजस्व वसूल किया जाता था।

2. स्थायी बंदोबस्त (Permanent Settlement) : सन् 1793 में लार्ड कार्नवालिस द्वारा बंगाल(बिहार और उड़ीसा सहित) जो नयी स्थायी राजस्व भू-प्रणाली चालू की गयी थी, वह स्थायी बंदोबस्त कहलाती थी।

3. रैयतवाड़ी प्रणाली (Ryotwari System) : जो भू-राजस्व प्रणाली मद्रास तथा बंबई प्रेसीडेन्सियों में अंग्रेजों द्वारा शुरू की गई थी, वह रैयत प्रणाली कहलाती थी। इस प्रणाली के अनुसार रैयत (अर्थात् किसान) सीधे सरकार को भू-राजस्व दिया करते थे।

4. चार्टर एक्ट (Charter Act) : इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने जो अनुमति पत्र देकर ईस्ट इंडिया कंपनी को पूर्व (पूर्वी गोलार्द्ध में बसे देशों) से व्यापार का एकाधिकार दिया था, वह चार्टर एक्ट कहलाया। यह एक्ट प्रत्येक 20 वर्षों के बाद दोहराया जाता था।

5. बागान (Plantation) : एक बहुत बड़ा खेत जिसमें बागान स्वामी विभिन्न प्रकार के अनुबंधित मजदूरों की कई तरह के काम करने के लिए विवश करता था।

6. दास (Slave) : वह व्यक्ति जिसका स्वामी कोई अन्य व्यक्ति (जिसे प्रायः दास का स्वामी कहा जाता है) हो, दास कहलाता

7. बीघा (Bigha) : यह भूमि की एक माप है।

8. औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) : उद्योग के क्षेत्र में उत्पादन के संगठन तथा तकनीक में बड़े पैमाने पर हुआ क्रांतिकारी परिवर्तन, जिसमें हर काम प्रायः मशीनों से होने लगा था।

9. नागरिक सेवाएँ (Civic Services) : भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन भू-भाग में प्रशासन चलाने वाले विभिन्न उच्च अधिकारी नागरिक सेवाओं की परीक्षाएँ पास किया करते थे। ये अधिकारी ही आई. सी. एस. (ICS) कहलाये।

10. वंशानुगत व्यवसाय (या धंधा) (Hereditary Profession) : वह व्यवसाय जो एक व्यक्ति अपने घर पर ही अपने अभिभावकों (Parents = माता-पिता) से सीखता है तथा वह उसे अपनी आजीविका अर्जन के लिए अपना लेता है।

11. तालुकदार (Taluqdar) : यहाँ तालुक एक भू-भाग की इकाई के लिए प्रयोग किया गया था। उस इकाई का स्वामी तालुकदार कहलाता था।

12. अमलाह (Amlah) : वह जमींदार का एक आफिसर होता था, जो राजस्व संकलन के वक्त गाँव में आता था।

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13. जोतदार (Jotedar) : कुछ क्षेत्रों में गाँव का मुखिया जोतदार कहलाता था। यह धनी किसान होते थे तथा जिनके पास काफी बड़े-बड़े भू-भाग हुआ करते थे। वे स्थानीय व्यापार तथा धन उगाही पर भी नियंत्रण रखते थे।

14. किस वर्ष अंग्रेजों ने बंगाल में अपनी सत्ता स्थापित की थी : 1757 से।

15. किस वर्ष मुगल सम्राट ने ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल का दीवान नियुक्त किया था : 1765

16. किस वर्ष रेगुलेटिंग एक्ट पास किया गया था : 1773

17. कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना किस वर्ष की गई थी? : 1774

18. किस वर्ष पिट्स इंडिया एक्ट पास किया गया था : 1784

19. किस वर्ष बंगाल रेगुलेशन एक्ट पास किया गया था : 1793

20. किस वर्ष राजा राम मोहन राय का जन्म हुआ था : 1774

21. किस वर्ष कलकत्ता तथा मद्रास शहरों की स्थापना की गई थी : 1781

22. किस वर्ष कलकत्ता में एशियाटिक सोसाइटी (Asiatic Society) की नींव रखी गई थी : 1784

23. किस वर्ष वनारस संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना की गई थी : 1791.

24. किस वर्ष कार्नवालिस ने बंगाल में स्थायी बंदोबस्त लागू किया था : 1793

25. किस कालांश के मध्य ईस्ट इंडिया कंपनी ने मैसूर तथा कर्नाटक को अपने अधीन ले लिया था : 1799 से 1801 के मध्या

26. किस वर्ष कलकत्ता के हिन्दू कालेज की नींव रखी गई थी : 1817

27. डिरोजियो ने हिन्दू कालेज में एक अध्यापक के रूप में सेवा शुरू की थी : 1826

28. किस वर्ष सती प्रथा को अवैध घोषित किया गया था : 1829

29. किस वर्ष भारत में कंपनी प्रशासन को और अधिक केन्द्रीयकृत करने के लिए चार्टर एक्ट पास किया गया था: 1833

30. किस वर्ष अंग्रेजों ने पंजाब का हथिया लिया था : 1849

31. किस वर्ष तक कंपनी ने बंगाल से चीजें खरीदीं और उनकी कीमतें चुकाने के लिए ब्रिटेन से सोना और चाँदी लाती रही थी : 1765

32. किस वर्ष में एक भयंकर अकाल ने बंगाल के 10 मिलियन लोगों को मार दिया था : 1770

33. भारतवासियों ने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए बड़े पैमाने पर कब प्रथम स्वतंत्रता संग्राम शुरू किया था : 1857

34. किस वर्ष अंग्रेजी को उच्च शिक्षा का माध्यम बनाया गया था : 1885

35. यूरोप के लिए भारत में कौन-कौन सी फसलें तथा मुख्य रूप से कहाँ उगायी जाती थी:

  • जूट, बंगाल में।
  • चाय, असम में
  • गन्ना, संयुक्त प्रान्त में
  • गेहूँ, पंजाब में
  • कपास, महाराष्ट्र तथा पंजाब में
  • चावल, मद्रास में।

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