HBSE 8th Class Social Science Solutions History Chapter 7 बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक

Haryana State Board HBSE 8th Class Social Science Solutions History Chapter 7 बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Social Science Solutions History Chapter 7 बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक

HBSE 8th Class History बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक Textbook Questions and Answers

आइए कल्पना करें

कल्पना करें कि आप उन्नीसवीं सदी के आखिर के भारतीय बुनकर हैं। भारतीय फैक्ट्रियों में बने कपड़े बाजार में छाए हुए हैं। ऐसी स्थिति में आप अपनी जिंदगी में क्या बदलाव लाएंगे?
उत्तर:
मैंने विभिन्न यूरोपीय कंपनियों के एजेंटों (प्रतिनिधियों) से संपर्क किया होता तथा उनसे बड़ी कठोर शर्तों से सौदेबाजी की होती। मैंने बहुत ही बढ़िया किस्म का वस्त्र बनाया होता। मैं गुणवत्ता से कभी समझौता नहीं करता। मैं अपनी कार्यशाला में लगन के साथ कठोर परिश्रम करता। मैं अपने स्थानीय व्यापारियों (सौदागरों) से भी निवेदन करता कि वे विदेशी बाजारों एवं स्थानीय में भी मेरे हाथों यढ़िया किस्म के उत्पादन की आपूर्ति बढ़ाते।

फिर से याद करें

बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक के प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 1.
यूरोप में किस तरह के कपड़ों की भारी माँग थी?
उत्तर:
यूरोप के बाजारों में निम्न प्रकार का कपड़ा आता था:

  • बढ़िया सूती वस्त्र (Fine cotton cloth) : यूरोप के व्यापारी बाजार में आने वाले सभी बढ़िया प्रकार के वस्त्रों को एक सामान्य नाम से पुकारते थे-‘मसलिन’ (Muslin)|
  • पुर्तगाली सौदागर अपने देश को भारत का कैलिको (Calico) नामक वस्त्र ले जाते। (कैलिको शब्द कालीकट से निकला या बना है।)
  • ऐतिहासिक स्रोत (जैसे कि आर्डर संबंधी पुस्तक आर्डर बुक्स) में हमें एक लंबी सूची मिलती है जो यूरोपीय बाजारों में भारत से आयात किए जाने वाले वस्त्रों की 98 किस्में सूचीबद्ध किए हुए है जिनमें सूती एवं रेशमी वस्त्र शामिल थे, जिनकी यूरोपीय बाजारों में भारी माँग थी। ये वस्त्रों के छोटे-बड़े टुकड़ों (pieces) के रूप में होते थे जिनका आकार 20 गज लंबा तथा 14 गज चौड़ा होता था।

बुनकर लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक के प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 2.
जामदानी क्या है?
उत्तर:
जामदानी (Jamdani):
(i) यह बढ़िया किस्म कीrage मलमल होती थी जिस पर खढ़ी, पर ही बहुत बढ़िया किस्म के डिजाइन (या शक्लें) बुनी जाती थीं, विशेषकर सलेटी (ग्रे) एवं सफेद रंगों में।
HBSE 8th Class Social Science Solutions History Chapter 7 बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक 1
(ii) दिए गए चित्र में जैसा कि दिखाया गया है प्रायः सूती तथा सुनहरे धागों को मिलाकर उसी ढंग का वस्त्र बनाया जाता था। चित्र : जामदानी

(iii) जामदानी नामक इस वस्त्र की किस्म के कपड़े का सर्वाधिक प्रसिद्ध केंद्र बंगाल में ढाका तथा यूनाइटेड प्रोविंस (संयुक्त प्रांत) में लखनऊ था।

बुनकर लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक Notes HBSE 8th Class प्रश्न 3.
बंडाना क्या है?
उत्तर:
बंडाना शब्द का सामान्यतया उस रूमाल (Scarf) के लिए होता है जिसे गले या सिर पर बाँधा जाता है। मूलतः बंडाना शब्द हिंदी (भाषा) के शब्द बंधन (bandhan) से निकला है जिसका संदर्भ चमकीले-भड़कीले रंगों वाले उन वस्त्रों से होता था जिसे बाँधने एवं रंगाई विधि द्वारा पेदा किया जाता था। बंडाना का प्रयोग आमतौर पर (सर्वाधिक) राजस्थान तथा गुजरात में किया जाता था।

बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक Question Answer HBSE 8th Class प्रश्न 4.
अगरिया कौन होते हैं?
उत्तर:
(i) यह उन लोगों का एक समुदाय होता था जो बिहार तथा मध्य भारत के गाँवों में रहते थे। अगारिया लोग लौह को पिघलाने की शिल्प कला में बहुत ही माहिर (निपुण) या कुशल होते थे।

(ii) 19वीं शताब्दी के अंत तक भारत में लोहा पिघलाना बहुत अधिक ही, सामान्य होता था। बिहार और मध्य भारत के प्राय: हर जिले में लौह को पिघलाने वाले अगरिया बड़ी संख्या में होते थे जो स्थानीय लौह अयस्क को कच्चे माल के रूप में प्राप्त करके लौह को पिघला कर दैनिक प्रयोग में आने वाली वस्तुएँ तथा उपकरण बनाया करते थे।

(iii) उनकी ज्यादातर भट्टियाँ चिकनी मिट्टी एवं धूप में सुखाई गई ईंटों से बनाई जाती थी। लौह को पिघलाने का काम तो आदमी करते थे जबकि घर की औरतें उनका हाथ धौंकनी (bellows) द्वारा हवा पम्प करके (चलाकर) करती थी। हवा को पम्प करने से भट्टियों में रखा कोयला जलता था, जो लोहे को पिघलाने में सहायता करता था।

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प्रश्न 5.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
(क) अंग्रेजी का शिट्ज शब्द हिंदी के ………………….. शब्द से निकला है।
(ख) टीपू की तलवार ………………….. स्टील की बनी थी।
(ग) भारत का कपड़ा निर्यात ………………….. सदी में गिरने लगा।
उत्तर:
(क) छींट (ckhint)
(ख) वूटज (Woot:)
(ग) 19वीं (Nineteenth)

आइए विचार करें

प्रश्न 6.
विभिन्न कपड़ों के नामों से उनके इतिहासों के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर:
निम्न तरह से विभिन्न वस्त्रों के नाम हमें उनके इतिहास को बताते हैं: बड़ी भारी मात्रा में जिन कपड़ों की आपूर्ति का आर्डर प्राप्त होता था वे छपे हुए सूती वस्त्र होते थे जिन्हें चिन्टज (Chints), कोस्साएइस या खासा (Cossaes or Khessa) एवं बंदना (bandanna) कहलाते थे।
(i) अंग्रेजी भाषा का चिन्टज़ (Chintz) शब्द हिंदी (भाषा) के शब्द छींट (Chhint) से निकला है जिस पर छोटे-छोटे रंग-बिरंगे फूलों की आकृतियाँ (या डिजाइन) बनी हुई होती थीं। भारत के वस्त्र के बने कपड़े इंग्लैंड के धनी लोग पहना करते थे जिनमें स्वयं इंग्लैंड की महारानी भी शामिल थीं।

(ii) इसी तरह से शब्द बंदना (bandanna) जिसे अब गर्दन या सिर पर सुंदर रंगीन डिजाइनदार रूप से बाँधा जाता है। मूलत: यह शब्द बांध (हिंदी का शब्द जो बाँधने के लिए प्रयोग में लाया जाता हैं) से निकला है। यह उस वस्त्र के टुकड़ों के लिए प्रयोग होता था जो प्राय: बाँधने एवं रंगने की प्रक्रियाओं द्वारा बनाया जाता था।

(iii) अन्य किस्मों के भी कपड़े हुआ करते थे जैसे कि कासिम बाजार (Kasim bazaar), पटना, कलकत्ता, उड़ीसा एवं चतपुर नामक पाँच स्थानों के नाम से पाँच किस्मों से (नामों से) जाने जाते थे। इनके नामों की उत्पत्ति उन्हीं स्थानों के नामों से हुई थी जहाँ उन्हें बनाया जाता था। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि भारत के विभिन्न नामों के विख्यात कपड़े दुनिया भर में अपने विभिन्न नामों से भली-भाँति जाने जाते थे।

प्रश्न 7.
इंग्लैंड के ऊन और रेशम उत्पादकों ने अठारहवीं सदी की शुरुआत में भारत से आयात होने वाले कपड़े का विरोध क्यों किया था?
उत्तर:
(i) 18वीं शताब्दी के प्रारंभ में इंग्लैंड में ऊन एवं रेशम के वस्त्र उत्पादकों ने भारतीय वस्त्र के आयात का विरोध इसलिए किया क्योंकि वे भारतीय वस्त्रों की बढ़ती लोकप्रियता से बहुत ही चिंतित थे।

(ii) इसीलिए इंग्लैंड के बाजारों ने भी भारतीय वस्त्रों के आगमन (या आयात) का विरोध किया क्योंकि विक्रेताओं पर भी इंग्लैंड के वस्त्र निर्माताओं का दबाव था। स्वदेशी का जनून व्यापारियों के दिमाग पर भी घर करने लगा था।

(iii) इस समय (या हाल में) इंग्लैंड में वस्त्र उद्योगों का विकास होना शुरू हुआ ही था। अंग्रेज ऊन तथा रेशम के उत्पादक भी अपने ही देश (ब्रिटेन) में भारतीय वस्त्र से बाजारों को खाली – करके अपने हितों की रक्षा करना चाहते थे।

(iv) 1720 में, ब्रिटिश सरकार ने एक कानून बनाकर भारत से आने वाले छपे हुए सूती वस्त्रों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया जैसे कि चिन्टज़ (Chints) यह भी बडा रुचिकर प्रतीत होता है। इंग्लैंड में इस अधिनियम को कैलिको अधिनियम (Calico Act) के नाम से जाना गया। अब ब्रिटिश उद्योगपतियों ने अपने यहाँ बनाए जाने वाले वस्त्रों में भारतीय डिजाइनों की ब्रिटेन में नकल की और भारतीय सफेद मसलिन (Muslin) एवं बिना ब्लीच किए (unbleached) भारतीय वस्त्र की छपाई की ताकि भारतीय वस्त्र आयात को रोका जाए।

प्रश्न 8.
ब्रिटेन में कपास उद्योग के विकास से भारत के कपड़ा उत्पादकों पर किस तरह के प्रभाव पड़े?
उत्तर:
ब्रिटेन के वस्त्र उद्योग के विकास ने भारत के वस्त्र उत्पादकों को निम्न ढंग से प्रभावित किया :
(i) ब्रिटेन के वस्त्र उद्योगपतियों एवं निर्माताओं आदि द्वारा | बार-बार की जा रही माँग के दबाव में आकर ब्रिटेन की सरकार ने 1720 में एक अधिनियम (एक्ट) बनाकर भारत से आने वाले वस्त्रों पर पाबंदी लगा दी, विशेषकर छपा हुआ सूती वस्त्र जिन्हें चिन्टज (Chintz) के नाम से जाना जाता था।

(ii) सरकार ने अपनी संरक्षण नीति एवं निर्णय का विस्तार कैलिको छपे हुए भारतीय वस्त्रों तक बढ़ा दिया। भारतीय नमूनों (डिजाइनों) की इंग्लैंड में नकल हुई ताकि भारत से आने वाले सादे बिना ब्लीच किए कपड़ों को ब्रिटेन में ही छापा जा सके।

(iii) भारत के वस्त्रों से हो रही प्रतियोगिता ने इंग्लैंड में अनुसंधान व तकनीकी क्षेत्र में नयी-नयी खोजों को प्रोत्साहित किया। उदाहरणार्थ ऐसे ही प्रयासों के फलस्वरूप 1764 में स्पेनिंग जेनी (Spinning Jenny) का आविष्कार जोहन कोये (John Koye) द्वारा किया गया। इस खोज ने इंग्लैंड में परंपरागत तकुओं की उत्पादन क्षमता को बढ़ा दिया।

(iv) रिचर्ड आर्कराइट (Richard Arkright) द्वारा 1786 में भाप इंजन के अनुसंधान ने सूती वस्त्र बुनने के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला दिया। अब वस्त्र बहुत बड़ी मात्रा में बुना जा सकता था। यह वस्त्र सस्ता भी था। नि:संदेह इन सबका भारतीय वस्त्र तथा वस्त्र उत्पादकों पर विपरीत प्रभाव पड़ा।

(v) जो भी हो, 18वीं शताब्दी के अंत तक भारतीय वस्त्रों ने विश्व में अपने वर्चस्व को बनाए रखा। जो यूरोपीय कंपनियाँ भारत में कार्यरत थीं, उन्होंने इस फलते-फूलते व्यापार से भारी मुनाफा कमाया। ये कंपनियाँ (डच कंपनी, फ्रांसीसी कंपनी एवं अंग्रेजी कंपनी) भारत में अपने-अपने देशों से चाँदी लाकर भारतीय वस्त्रों | को खरीदा करती थीं।

(vi) 1757 से 1765 के मध्य पहली बार ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में राजनीतिक सत्ता स्थापित कर ली। अतः उसे अब अपने देश से कीमती धातुओं का आयात नहीं करना पड़ता | था। उसे भारतीय वस्तुओं को यहाँ कंपनी को मिलने वाले भू-राजस्व तथा अन्य करो की रकमों के बदले खरीदने का मौका मिल गया। कंपनी किसानों तथा जमींदारों से भू-राजस्व इकट्टा किया करती थी तथा उस रकम को वह भारत में वस्त्रों की खरीदारी के लिए व्यय कर देती थी।

(vii) ब्रिटेन में वस्त्र उद्योग के विकास ने भारतीय वस्त्र उद्योग को कई तरह से प्रभावित किया :

प्रश्न 9.
उन्नीसवीं सदी में भारतीय लौह प्रगलन उद्योग का पतन क्यों हुआ?
उत्तर:
भारतीय प्रगलन उद्योगों के पतन के कारण : 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक, भारत के प्रत्येक गाँव में लगभग लौह पिघलाने के उद्योग का पतन हो रहा था, भट्टियों का इस्तेमाल बंद हो गया तथा जितना लोहा उत्पादन किया जाता था उसकी मात्रा भी कम हो गई। यह सब कुछ निम्न कारणों की वजह से हुआ:
(i) प्रथम, ब्रिटिश सरकार ने भारत में जो वन कानून बनाए थे इन कानूनों के द्वारा जब औद्योगिक सरकार ने रिजर्व वनों में प्रवेश करने से लोगों को रोक दिया, तो लौह पिघलाने के लिए सबसे बुरा असर लकड़ी की आपूर्ति पर पड़ा। कोयले के अभाव से भट्टियाँ कैसे गर्म की जा सकती थीं तथा लोहे को कैसे पिघलाया जा सकता था?

(ii) जन विरोधी कानूनों के कारण जो लोग लौह पिघलाने के काम में लगे हुए थे उन्हें लौह अयस्क भी नहीं मिल सकता था। जंगल संबंधी कानूनों को तोड़कर वे चोरी से जंगलों में घुसकर कोयला प्राप्त किया करते थे लेकिन वे लंबे समय तक इस पाबंदी के चलते कोयला पाने के लिए लकड़ियाँ नहीं प्राप्त कर सके। अनेकों ने लौह पिघालने की अपनी शिल्प कला (लोहे पिघलाना) को छोड़ दिया एवं उन्होंने अपनी जीविका के अन्य साधनों की तलाश शुरू कर दी।

(iii) देश के कुछ भागों में ब्रिटिश सरकार ने जंगलों में प्रवेश करने की अनुमति दे दी लेकिन लौह पिघलाने वाले (लोहारों) को अपनी प्रत्येक भट्टी के प्रयोग के लिए वन विभाग को बहुत ऊँचे दर पर कर चुकाने होते थे। इससे उनकी जो कमाई होती थी उसकी आमदनी पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।

(iv) 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक ब्रिटेन से लौह एवं इस्पात आयात किया जाने लगा था। लोहारों ने भारत में आयातित लोहे एवं पात का प्रयोग करना शुरू कर दिया तथा उपयोगी वस्तुओं का बड़ी मात्रा में निर्माण भी शुरू कर दिया। परिणामस्वरूप जो स्थानीय लोहा पिघलाने वाले लोहार थे, उनकी वस्तुओं तथा उत्पाद की मांग पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ने लगा।

(v) 19वीं शताब्दी से उत्तरार्ध के अंतिम वर्षों तथा 20वीं शताब्दी की प्रारंभिक दशाब्दियों में स्थानीय लौह उद्यमियों को आधुनिक ढंग की लगाई गई फैक्ट्रियों से प्रतियोगिता करनी पड़ी, स्वाभाविक तौर पर उसका उन पर बड़ा बुरा प्रभाव पड़ा।

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प्रश्न 10.
भारतीय वस्त्रोद्योग को अपने शुरुआती सालों में किन समस्याओं से जूझना पड़ा?
उत्तर:
भारतीय वस्त्र उद्योग के द्वारा निम्न समस्याओं का सामना किया गया :
(i) ब्रिटिश सूती वस्व का आयात तथा भारतीय सूती वस्त्र में लगे हुए लोगों द्वारा बेरोजगारी की समस्या का सामना किया जाना : 1830 के दशक से ब्रिटिश सूती वस्त्र की जैसे भारतीय बाजारों में बाढ़ सी आ गयी। वस्तुतः भारत में 1860 के दशक के आते-आते दो-तिहाई, सूती वस्त्रों के कुल योग का, पहनावा ब्रिटेन के सूती वस्त्र, का ही बनाया हुआ होता था। इसने न केवल विशेषज्ञ (या निपुण) बुनकरों को ही प्रभावित किया बल्कि कताई करने वाले शिल्पकारों को भी प्रभावित किया। जो हजारों ग्रामीण जुलाहे सूत कात-कात करके अपनी एवं बुनकरों की जीविका अर्जित करने में मददगार थे वे बेचारे सभी बेरोजगार (बिना कामकाज के) हो गये।

(ii) मशीनों द्वारा निर्मित वस्त्रों से प्रतियोगिता : हथकरघा की बुनाई भारत में पूर्णतया खत्म नहीं हुई थी क्योंकि कुछ किस्म के कपड़े की आपूर्ति मशीनों के द्वारा नहीं की जा सकती थी। मशीनें किस प्रकार से बार्डरदार, गोटे या कशीदाकारी वस्त्र बना सकते थीं। ऐसे परंपराओं से जुड़े कपड़ों की बहुत बड़ी माँग न केवल देश के धनी लोगों द्वारा अपितु मध्य श्रेणी के लोगों द्वारा भी की जाती थी। ब्रिटिश के वस्त्र निर्माता भारत के बहुत ही गरीब लोगों द्वारा पहने जाने वाले खुरदरे वस्त्र (Coarse cloth) ही बनाकर आपूर्ति करने के लिए तैयार थे।

(iii) बुनकरों तथा कताई करने वालों द्वारा प्रवास : जुलाहों एवं कताई करने वाले कारीगरों का क्या हुआ या कशीदाकारी जिनका रोजगार चला गया था और जो पूरी तरह बेरोजगार हो गये थे? अनेक जुलाहे (या बुनकर) तो कृषि मजदूर बन गये। कुछ अपने गाँवों को छोड़कर काम की तलाश में शहरों में पलायन कर गये। और तो और कुछ बेचारे तो अफ्रीका तथा अमरीका में बागानों में काम करने के लिए प्रवास ही कर गये। इनमें से कुछ हथकरघों पर काम करने वाले बुनकरों ने नई सूती मिलों में नौकरियाँ भी प्राप्त कर ली जिनकी स्थापना बंबई (जो अब मुंबई कहलाती है), अहमदाबाद, शोलापुर, नागपुर एवं कानपुर में की गयी थी।

प्रश्न 11.
पहले महायुद्ध के दौरान अपना स्टील उत्पादन बढ़ाने में टिस्को को किस बात से मदद मिली?
उत्तर:
वे घटनाएँ (अथवा कारक) जिन्होंने टिस्को लौह इस्पात उत्पादन की वृद्धि में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सहायता की थी
(i) टाटा आइरन एवं स्टील कंपनी (या टिस्को = TISCO) जो जमशेदपुर में सुबर्णरेखा (Subarnrakha) नदी के किनारे स्थापित हुई थी, ने 1912 में स्टील उत्पादन शुरू कर दिया था।

(ii) प्रथम विश्व युद्ध 1914 में शुरू हुआ तथा 1918 में समाप्त हुआ। इस संदर्भ में हम कह सकते हैं कि टिस्को औद्योगिक इकाई का प्रारंभ उचित समय पर हुआ था। 19वीं शताब्दी के दूसरे अर्थ भाग में भारत में रेलवे का खूब विस्तार हो रहा था तथा उसके लिए पटरियों (रेलवे लाइनों) को बिछाने के लिए जिस स्टील की आवश्यकता महसूसं की गयी थी उसे पूरी तरह से ब्रिटेन से ही भारत में आयात किया जा रहा था। इस तरह ब्रिटेन में जो इस्पात उत्पन्न हो रहा था उसे भारत में एक विशाल बाजार प्राप्त हो रहा था। काफी लंबे समय तक तो जो लोग भारत में रेलवे तथा अन्य उद्देश्यों के लिए ब्रिटेन से बढ़िया किस्म का इस्पात आयात कर रहे थे, वे इस बात पर यकीन करने के लिए ही तैयार नहीं थे कि भारत भी बढ़िया किस्म का फौलाद (इस्पात = स्टील) पैदा कर सकता था।

(iii) जैसे ही देश में टिस्को (TISCO) की स्थापना हो गयी, वह पहले वाली स्थिति बदल गयी। 1914 में प्रथम विश्व युद्ध शा हो गया। जो स्टील ब्रिटेन में उत्पन्न किया जा रहा था वह युद्ध के कारण सभी यूरोपीय देशों में उठ रही माँग को ही पूरा कर सकता था। इसलिए भारत में ब्रिटिश स्टील का आयात नाटकीय ढंग से घट गया तथा भारतीय रेलवे को टिस्को की तरफ मुड़ना पड़ा ताकि वह (टिस्को) रेलवे को स्टील की आपूर्ति कर सके।

(iv) चूंकि युद्ध कई वर्षों तक चलता रहा इसलिए टिस्को को शैल्स (Shells) एवं डिब्बे, पहिए आदि के लिए बहुत बड़ी मात्रा में आपूर्ति करने के लिए इस्पात की सप्लाई (आपूर्ति) करनी पड़ी।

(v) 1919 तक औपनिवेशिक सरकार टिस्को द्वारा उत्पादित किये गये स्टील का लगभग 90 प्रतिशत भाग खरीदती रही। इतने समय के बीतते ही टिस्को ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत ही सबसे बड़ा स्टील उत्पादक उद्योग (या इकाई) बन गया था।

आइए करके देखें

प्रश्न 12.
जहाँ आप रहते हैं उसके आस-पास प्रचलित किसी हस्तकला का इतिहास पता लगाएं। इसके लिए आप दस्तकारों के समुदाय, उनकी तकनीक में आए बदलावों और उनके बाजारों के बारे में जानकारियाँ इकट्ठा कर सकते हैं। देखें की पिछले 50 सालों के दौरान इन चीजों में किस तरह बदलाव आए हैं?
उत्तर:
विद्यार्थियों के स्वयं अभ्यास करने के लिए।

प्रश्न 13.
भारत के नक्शे पर विभिन्न हस्तकलाओं के अलग-अलग केंद्रों को चिह्नित करें। पता लगाएँ कि ये केंद्र कब पैदा हुए?
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

HBSE 8th Class History बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
17वीं शताब्दी के सूरत के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
(i) सूरत भारत के पश्चिमी समुद्र तट पर स्थित है। वह 17वीं शताब्दी में भारत के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भारतीय सामुद्रिक व्यापारिक बंदरगाहों में से एक था।

(ii) डच एवं अंग्रेज 17वीं शताब्दी के प्रारंभ में ही व्यापारिक जहाजी के केंद्र के रूप में इस बंदरगाह का प्रयोग करने लगे थे।

(iii) इस बंदरगाह शहर का महत्त्व 18वीं शताब्दी में गिर गया क्योंकि औपनिवेशिक शासनकाल में गोवा, कलकत्ता, बंबई एवं मद्रास का बड़ी तीव्रता के साथ व्यापारिक बंदरगाहों के रूप में विकास हो रहा था।

प्रश्न 2.
ब्रिटिश शासन के दौरान भारत के दो सर्वाधिक विकसित महत्त्वपूर्ण उद्योगों के नाम लिखिए। आधुनिक विश्व में उनका क्या महत्त्व है?
उत्तर:

  • वस्त्र उद्योग एवं
  • लौह एवं इस्पात उद्योग

उपर्युक्त दोनों ही उद्योग की आधुनिक विश्व में औद्योगिक क्रांति के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं।

प्रश्न 3.
किन दो आधुनिक उद्योगों ने ब्रिटेन को 19वीं सदी में औद्योगिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बनाया था?
अथवा
किस प्रकार से ब्रिटेन को ‘विश्व की कार्यशाला’ के नाम से जाना गया था?
उत्तर:

  • 19वीं शताब्दी में सूती वस्त्र के यंत्रीकरण ने ब्रिटेन को सर्वाधिक सफल एवं प्रगति वाला प्रसिद्ध देश बनाया।
  • 1850 के दशक से जब ब्रिटेन का लौह-इस्पात उद्योग तीव्रता से प्रगति करने लगा तो ब्रिटेन को ‘विश्व की कार्यशाला’ के नाम से जाना जाने लगा।

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प्रश्न 4.
ब्रिटिश शासन से पूर्व भारतीय वस्त्रों के लिए क्यों ख्याति प्राप्त हुई थी? इसके दो गुणों (विशेषताओं) का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
काफी लंबे समय से भारतीय वस्त्रों को उनकी (i) सुंदर गुणवत्ता तथा (ii) अद्वितीय-शिल्पकला कौशल के लिए ख्याति (प्रसिद्धि) प्राप्त थी।

प्रश्न 5.
स्पिनिंग जेनी (Spinning Jenny) क्या थी? इसे किसने तथा कौन-से वर्ष में खोजा था?
उत्तर:
(i) स्पिनिंग जेनी (Spinning Jemy) एक ऐसी मशीन थी जिस पर केवल एक ही श्रमिक अनेक तकल (spindles) चला सकता था जिन पर सूत काता जा सकता था। जब भी इस मशीन के पहिए को घुमाया जाता तो मशीन के सभी तकले साथ-साथ घूमकर कई सूत के धागे कात सकता था।

(ii) सन् 1764 में स्पिनिंग जेनी का आविष्कार जोहन काये (John kaye) ने किया था।

प्रश्न 6.
किसके द्वारा एवं किस वर्ष में भाप इंजिन का आविष्कार किया गया था?
उत्तर:
रिचर्ड आर्कराइट द्वारा भाप इंजिन को सन् 1786 में खोजा गया था।

प्रश्न 7.
सूती वस्त्र उद्योग में निम्न का प्रयोग किए जाने के बाद जो सकारात्मक प्रभाव पड़े, उनमें से एक-एक का उल्लेख कीजिए
(क) स्पिनिंग जेनी, तथा
(ख) भाप इंजिन।
उत्तर:
(क) स्पिनिंग जेनी ने पुराने परंपरागत तकले की उत्पादन क्षमता को बढ़ा दिया।

(ख) भाप इंजिन ने सूती वस्त्र की बुनाई में क्रांति ला दी। बहुत बड़ी मात्रा में शीघ्र ही सूती वस्त्र उत्पादित किया जा सकता था और यह कपड़ा कीमत के लिहाज से बहुत ही सस्ता होता था।

प्रश्न 8.
18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारत का सूती वस्व बुनाई का दूसरा प्रमुख केंद्र (या समूह केंद्र) कहाँ पर था?
अथवा
सूती वस्त्र के कारण कोरोमंडल की भौगोलिक स्थिति का क्या महत्त्व था? स्पष्ट करें।
उत्तर:
18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारत का दूसरा महत्त्वपूर्ण केंद्र (याद रहे बंगाल पहला प्रमुख केंद्र था।) कोरोमंडल समुद्र तट के समीप ही स्थित था जहाँ पर इस उद्योग से संबंधित गतिविधियों के लिए मद्रास से उत्तरी आंध्र प्रदेश तक जहाज आया-आया करते थे।

प्रश्न 9.
भारत के पश्चिमी समुद्र तट पर बुनाई के महत्त्वपूर्ण केंद्र कहाँ पर थे?
उत्तर:
भारत के पश्चिमी समुद्र तट पर बुनाई के महत्त्वपूर्ण केंद्र गुजरात में थे।

प्रश्न 10.
पिट लूम (Pit Loom)(अर्थात खड्डी) क्या
उत्तर:
खड्डी अथवा करघा एक ऐसा करपा (लूम) होता है जो किसी गड्ढे में लगाया गया होता है। (और भलीभांति समझने के लिए कृपया साथ संलग्न चित्र को देखिए।)

प्रश्न 11.
बुनाई के दो नये केंद्रों के नाम बताइए, जो 19वीं सदी के उत्तरार्थ में उभरकर आए थे। वे देश के किस हिस्से या क्षेत्र में स्थित थे?
उत्तर:

  • शोलापुर (पहाराष्ट्र, पश्चिमी भारत क्षेत्र में), तथा
  • मदुरै (दक्षिणी भारत में)।

प्रश्न 12.
19वीं शताब्दी में, भारत में सूती वस्त्र के दो नवीन स्थापित केंद्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
बंबई (अब मुंबई), शोलापुर. नागपुर (महाराष्ट्र). अहमदाबाद (गुजरात) तथा कानपुर (उत्तर प्रदेश)।

प्रश्न 13.
19वीं शताब्दी में भारत को किन दो देशों से कपास या सूती वस्त्र उद्योग का कच्चा माल (या रुई) निर्यात किया जाता था?
उत्तर:

  • इंग्लैंड या ब्रिटेन, अब यूनाइटेड किंग्डम) तथा
  • चीन।

प्रश्न 14.
उस मृदा (मिट्टी) की किस्म का नाम लिखिए, जिसे कपास की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त समझा जाता है।
उत्तर:
काली मिट्टी।

प्रश्न 15.
सूती वस्त्र मिलों पर जो-जो काम पुरुष मजदूरों तथा महिला मजदूरों के द्वारा किए जाते थे उनमें एक अंतर (भेद) का उल्लेख करें।
उत्तर:
सूती वस्त्र मिलों के कताई विभाग में प्राय: अधिकांश महिला श्रमिक होते थे, जबकि मिल के बुनाई विभाग में प्रायः पुरुष मजदूरों से ही काम लिया जाता था।

प्रश्न 16.
भारत एवं जापान में जो औद्योगीकरण हुआ उनमें एक भिन्नता (contras) का उल्लेख करें।
उत्तर:
जापान में वों सताब्दी में हुए औद्योगीकरण का इतिहास भारत में हुए औद्योगीकरण से एक बिंदु (या दृष्टि से) भिन्नता बताता है। भारत में औपनिवेशिक सरकार (या शासन) ब्रिटेन में बनी वस्तुओं के लिए भारत में अपना बाजार फैलाना चाहता था और वह भारतीय उद्योगों की मदद करने के लिए इच्छुक नहीं था। जापान में अपनी ही सरकार थी इसलिए वह जापान में आधुनिक ढंग के उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए इच्छुक थी।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
1750 के आसपास भारतीय वस्त्र उद्योग एवं | विश्व बाजार विषय पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
(i) लगभग 1750 में जब तक अंग्रेजों ने बंगाल को विजय नहीं किया था, तब तक भारत विश्व में सूती वस्त्र उत्पादन करने वाला सबसे बड़ा देश था। भारतीय वस्त्र दूर-दूर तक अपनी गुणवत्ता एवं असाधारण शिल्प कौशल के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध था। ।

(ii) भारतीय सूती वस्त्र का व्यापार दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों या भूभागों (जावा, सुमात्रा एवं पेनांग), पश्चिम एशिया के साथ-साथ मध्य एशियाई देशों में भी होता था।

(iii) 16वीं शताब्दी से युरोपीय व्यापारिक कंपनियों ने बड़े पैमाने पर भारतीय वस्त्रों को क्रय करना शुरू कर दिया था ताकि वे पूरे यूरोप में उनका विक्रय कर सके।

(iv) अंग्रेजी एवं विश्व की अन्य भाषाओं के विवरणों में भारतीय वस्तुओं की गुणवत्ता, शिल्प कौशल आदि के विवरणों का उल्लेख आज भी पढ़ने को मिलता है।

प्रश्न 2.
‘शब्द हमें भारतीय वस्त्रों की लोकप्रियता के इतिहास को बताते हैं।’ क्या आप इससे सहमत है? इसके संबंध में कुछ तथ्य बताइए।
उत्तर:
मैं इस कथन से सहमत हूँ कि शब्द अर्थात् विवरण हमें भारतीय वस्त्रों की लोकप्रियता के इतिहास को बताते हैं। मैं इस उत्तर के पक्ष में निम्नलिखित तथ्य देता हूँ :
(i) कई लाखों यूरोपियों ने अरब सौदागरों के माध्यम से आधुनिक इराक स्थित मोसूल नामक शहर में भारतीय वस्त्रों को क्रय करके यूरोप में उन्हें बहुत ख्याति दिलाई। इसीलिए उन्होंने इन सुंदर बुने हुए वस्त्रों को ‘मसलिन’ (maslin) नाम से संबोधित किया-एक वह शब्द जो बहुत ज्यादा मुद्रा प्रदान करने वाली चीज के लिए प्रयोग किया जाता है।

(ii) पुर्तगालियों ने जब भारत में अपने पाँव कालीकट तथा कोचीन में जमाये तथा वे भारत के मसालों के साथ-साथ (जो वे कालीकट एवं केरल से खरीदते थे।) और यूरोप वापिस जाते थे तो वे कालीकट से खरीदे भारतीय वस्त्रों को कैलिको (calico). शब्द से संबोधित करते थे। यह शब्द कालीकट संबंध से अपभ्रंश शब्द के रूप में प्रयोग किया गया (या उसी शब्द कालीकट से निकला था)। कालांतर में कैलिको भारत से निर्यात होने वाले सभी वस्त्रों के लिए एक सामान्य शब्द बन गया।

HBSE 8th Class Social Science Solutions History Chapter 7 बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक

प्रश्न 3.
आप कैसे यह दावा कर सकते हैं कि लंदन में रह रहे वस्व-व्यापारीगण भारतीय वस्त्रों के लिए दीवाने थे?
उत्तर:
(i) भारतीय वस्तुओं की प्रत्येक किस्म (या आइटम) की कीमतें आर्डर बुक्स (आज्ञा पुस्तिका) में बहुत ही सावधानीपूर्वक लिखी जाती थी।

(ii) प्रत्येक आर्डर को उन पुस्तकों में दो वर्ष अग्रिम आज्ञा के रूप में लिखा जाता था क्योंकि उस विशेष किस्म के वस्त्र को तैयार करने तथा भारत से जहाजों पर लाद करके भेजने में काफी समय लगा करता था।

(iii) एक बार जब वे कपड़ों के टुकड़े लंदन पहुँच जाते थे तो उन्हें नीलामी पर रखा जाता था तथा उसे बेच दिया जाता था।

प्रश्न 4.
महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान ब्रिटिश आयातों के पड़े बुरे परिणामों के मद्देनजर लोगों को क्या करने का आह्वान किया? उसका क्या असर हुआ?
उत्तर:
(i) महात्मा गाँधी ने लोगों का आह्वान किया कि वे विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करें, स्वयं चरखे तथा तकली की मदद से सूत कातें तथा खड्डियों (करमों) से बुने गये वस्त्र या खादी को पहनें तथा उसी को अपनाए या सर्वत्र प्रयोग में लायें।

(ii) धीरे-धीरे खादी राष्ट्रवाद की पहचान बन गयी। चरखा भारत का प्रतिनिधित्व करने लगा तथा इसे सन् 1931 में कांग्रेस द्वारा अपनाये गये राष्ट्रीय तिरंगे ध्वज में भी अपना लिया गया। खादी का झंडा तीन रंगों में बना हुआ होता था तथा झंडे के मध्य चरखा राष्ट्रीय चिह्न के रूप में केंद्रित होता था।

प्रश्न 5.
जिन भारतीय बुनकरों एवं सूत कातने वालों ने अपनी रोजी-रोटी खो दी थी उनका क्या हुआ?
उत्तर:
(i) अनेक जुलाहे (बुनकर) कृषि-मजदूर बन गये।

(ii) कुछ बेरोजगार काम की तलाश में शहरों में चले गये।

(iii) कुछ बुनकर तथा कताई करने वाले शिल्पकार तथा कारीगर भारत को छोड़ करके विदेशों में जैसे अफ्रीका एवं दक्षिणी अमरीका में बागानों (चाय, कपास आदि) में काम करने के लिए प्रवासी बन गये।

(iv) हस्तकरपों पर काम करने वाले कुछ शिल्पकार देश के विभिन्न शहरों में स्थापित वस्त्र उद्योग संबंधी मिलों में कार्यरत हो गये। ये शहर बंबई (अब मुंबई), अहमदाबाद, शोलापुर, नागपुर एवं कानपुर आदि थे।

प्रश्न 6.
टीपू कौन था? उसकी तलवार ने उसके जीवन में कौन सी भूमिका का निर्वाह किया था?
उत्तर:
(i) टीपू सुलतान (शासक हैदर अली का पुत्र) एवं मैसूर राज्य का एक प्रसिद्ध शासक था। उसने 18वीं शताब्दी में मैसूर पर शासन किया था।

(ii) टीपू सुलतान ने अपनी तलवार का प्रयोग अंग्रेजों के विरुद्ध अनेक युद्ध लड़ने में किया था। वह चौथे आंग्ल-मैसूर युद्ध में एक वीर की भाँति लड़ते हुए इसी तलवार को लिए हुए शहीद हुआ था। अब उसकी वीरता तथा उपलब्धियों की प्रतीक विशेष रूप से उल्लेखनीय वही तलवार एक यादगार के रूप में इंग्लैंड के संग्रहालय में रखी हुई है। यहाँ तक कि आज भी यह तलवार हमें इस बात का स्मरण कराती है कि टीपू सुलतान भारत माँ का एक महान वीर पुत्र या मैसूर राज्य का नरेश था। उसे 18वीं शताब्दी के मैसूर का बाघ (टाइगर) या शेर कहा गया।

दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“ब्रिटेन के औद्योगीकरण का भारत की विजय: एवं औपनिवेशीकरण के साथ गहरा संबंध था।” कैसे? संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
(i) ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1600 ई. में की गयी थी। इसने बहुत शीघ्र ही व्यापार में रुचि लेनी शुरू : की तथा इसमें भागेदारी भी की।

(ii) कंपनी की व्यापार में गहरी रुचि ने ही इसे भू-भाग पर आधिपत्य स्थापित करने की ओर अग्रसर किया। भारत में इसका विजय कार्य लगभग 1856 ई. में पूरा हो गया था।

(iii) भारत के साथ इसके व्यापार का ढाँचा कुछ ही दशाब्दियों में बदल गया। उत्तर 18वीं शताब्दी तक वह भारत में मालों को खरीदती रही और उन्हें वह इंग्लैंड एवं यूरोप को निर्यात करती रही। इस क्रय एवं विक्रय में इसने भारी मुनाफा कमाना जारी रखा।

(iv) औद्योगीकरण के अभ्युदय एवं प्रसार के साथ ही ब्रिटेन में औद्योगिक उत्पादन बहुत ही बढ़ गया और वह अपने माल की बिक्री के लिए भारत को एक विशाल बाजार के रूप में देखने लगा और जैसे समय व्यतीत हुआ, देखते ही देखते भारतीय बाजारों में इंग्लैंड की मशीनों तथा कारखानों में निर्मित मालों की बाढ़ सी आ गयी। भारत की कीमत पर जहाँ ब्रिटेन के उद्योग पनपते चले गये, वहीं भारतीय उद्योग-धंधे बर्बाद होते चले गये।

प्रश्न 2.
भारत में लौह एवं इस्पात की आधुनिक ढंग की फैक्ट्रियों की स्थापना के संदर्भ में निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
(i)1904 में छत्तीसगढ़ में चार्ल्स वेल्ड तथा दोराबजी टाटा (Charles Weld and Dorabji) द्वारा क्या किया जा रहा था? वे क्या करना चाहते थे?

(ii) अगारियन (Agarians) समुदाय के लोगों ने चार्ल्स वेल्ड एवं दोराबजी टाटा के मिशन (महान उद्देश्य) में किस तरह से सहायता की थी?

(iii) भारत के लौह तथा इस्पात के नींव रखने वाले पितामहों के समक्ष राजहारा पहाड़ियों (Rajhara Hills) में समस्याएँ थीं? वे समस्याएँ क्या थीं? इसका समाधान किस तरह से किया गया?
उत्तर:
(i) अप्रैल 1904 में चार्ल्स वेल्ड (जो एक अमरीकी भू-विज्ञानवेत्ता थे।) एवं दोराबजी टाटा (जो जमशेद टाटा, विख्यात उद्योगपति, भारत के बहुत बड़े लोकप्रिय पूँजीपति के सबसे बड़े पुत्र थे।) छत्तीसगढ़ में सफर कर रहे थे (जो उस समय भारत के केंद्रीय प्रांत में पड़ता था)। वे लौह-अयस्क भंडारों की तलाश कर रहे थे। उन्होंने अनेक महीने बिता दिये और एक कीमती साहसी खोज की ताकि अच्छी गुणवत्ता वाला लौह अयस्क भंडार मिले ताकि वहीं आसपास ही भारत में आधुनिक बंग का लौह एवं स्टील प्लांट या संयंत्र (कारखाना) (औद्योगिक इकाई) लगाई जा सके।

(ii) (क) जमशेद जी टाटा ने निर्णय ले लिया था कि वे अपनी पूँजी का एक बहुत बड़ा अंश भारत में लौह-इस्पात उद्योग शुरू करने में निवेश करेंगे, लेकिन ऐसा तब तक वह नहीं कर सकते थे जब तक कि उन्हें भारत में बढ़िया किस्म के लौह-अयस्क भंडारों वाले भू-भाग (क्षेत्र) की पूर्ण जानकारी नहीं मिल जाती।

(ख) एक दिन, जब उन्होंने अनेक पंटों तक वनों में यात्रा कर ली तो वेल्ड (Weld) एवं दोराबजी (Dorabji) की नजर एक छोटे से गांव पर पड़ी। कुछ लोगों का समूह जिसमें आदमी भी थे तथा औरतें भी थी वे अपने-अपने सिरों पर भरी हुए टोकरियाँ ले जा रहे थे जिनमें लौह अयस्क था। वे लोग अगारिया थे। जब दोनों महान व्यक्तियों ने उनसे पूछा कि आप ये लौह अयस्क कहाँ से ‘लाये हो तो उन्होंने उंगलियों से एक पहाड़ी, जो थोड़ी दूर पर थी, ‘की ओर इशारा किया।

(ग) घने जंगलों में से लंबा थका देने वाला सफर तय करने के बाद वेल्ड एवं दोराबजी उस पहाड़ी पर पहुँचे भू-विज्ञान वेत्ता तथा विशेषज्ञ वेल्ड ने घोषित किया कि उन लोगों को अंततः वह चीज मिल गई है जिसकी उन्हें एक अरसे से तलाश थी। राजहरा पहाड़ियों (Rajhara Hills) में विश्व के सबसे बढ़िया किस्म के लौह-अयस्क के भंडार विद्यमान थे।

(iii) राजहरा पहाड़ियों के इस क्षेत्र में एक समस्या थी कि यह क्षेत्र शुष्क था तथा उद्योग या कारखाने को चलाने के लिए जिस जल की जरूरत थी, वह समीप नहीं था। टाटा परिवारजनों को और अधिक उपयुक्त स्थान की खोज करने में समय व्यतीत करना पड़ा ताकि कारखाना लगाया जा सके। जो भी हो, अगारियाओं (Agarias) ने बढ़िया किस्म के लौह-अयस्क भंडारों की खोज में टाटाजी की मदद की जिसकी वजह से ही टाटा आइरन एक स्टील कंपनी तथा भिलाई स्टील उद्योग की स्थापना हो सकी।

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बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक Class 8 HBSE Notes

1. सूरत : यह गुजरात में बंदरगाह शहर है। यह बंदरगाह भारत के पश्चिमी तट पर है। यह भारतीय समुद्र व्यापार के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हिस्सों में केवलमात्र अकेला था।

2. डच : हॉलैंड के लोग (या निवासी)।

3. अंग्रेज : इंग्लैंड के लोग (निवासी) (यूनाइटेड किंग्डम ऑफ ब्रिटेन)।

4. भारत में ब्रिटिश (अंग्रेजी) शासन का कालांश (पीरियड) : 1757 ई. से 14 अगस्त, 1947 ई. तक।

5. ब्रिटिश शासन काल में भारत के दो महत्त्वपूर्ण उद्योग : (i) वस्त्र उद्योग एवं (ii) लौह तथा इस्पात उद्योग।

6. विश्व की कार्यशाला : जब ब्रिटेन में 1850 के दशक से लौह एवं इस्पात उद्योग का विकास होने लगा तो ब्रिटेन को “विश्व की कार्यशाला” (Workshop of the World) के नाम से जाना जाने लगा।

7. पटोला (Patola): एक प्रकार का वस्त्र, जो सूरत, अहमदाबाद तथा पटना में मध्य 19वीं सदी में बुना जाता था। इसे उद्योगों में उच्च स्तर का महत्त्व (मूल्य) प्राप्त था। यह स्थान बुनाई परंपरा का वहाँ एक हिस्सा बन गया।

8. उद्योगों के प्रमुख क्षेत्र :

  • जावा
  • सुमात्रा और
  • पेनांग (Penang)

9. मोसुल (Mosurl): इराक में स्थित एक व्यापारिक केंद्र जहाँ व्यापारियों द्वारा भारत से कपास्त्र आयात किया जाता था। लोकप्रिय (विख्यात) कस्बे के रूप में भारत में चलाया जाता था।

10. “मसलिन” (Muslin) : भारत में बहुत बढ़िया किस्म के सभी बुने गए वस्त्रों को ‘मसलिन’ कहा जाता था, जिनसे बहुत बड़ी मात्रा में मुद्रा अर्जित की जाती थी।

11. पुर्तगाली : पुर्तगाल के लोग।

12. कालीकट : भारत के दक्षिण-पश्चिम में स्थित केरल का एक बंदरगाह शहर (कस्बा) था।

13. कैलीको (Calico): वह सूती वस्त्र जो यूरोप के सौदागर वापस ले जाते थे, उसे कैलीको’ (जो शब्द कालीकट से लिया गया है) कहा जाता था। कालांतर में भारत के सभी सूती वस्त्रों के लिए सामान्यतया इसी नाम का प्रयोग हुआ।

14. चिन्टज (Chinte): यह एक अंग्रेजी (भाषा) का शब्द या पद है। इस पद (शब्द) को हिंदी (भाषा) शब्द छींट (Chint) से लिया गया है। यह वह वस्त्र है जो सुगंध एवं रंगीन पुष्टों के डिजाइनों (नमूनों) की भांति दिखाई देता है।

15. बंडन (Bandanna) (यानी बंधन) : अब इस शब्द का प्रयोग गले अथवा सिर पर रंगीन किसी भी स्कार्फ (Scarf) या रूमाल को बाँधे जाने वाले वस्त्र के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह एक हिंदी (भाषायो) शब्द है। इसे बाँधने (oving) के लिए
प्रयोग में लाया जाता है।

16. स्पिनिंग जेनी (Spinning.Jenny): एक वह मशीन है जिस पर केवल एक कर्मचारी (अमिक) अनेक तकला को घुमाकर (काम में लाते हुए) अनेक धागों को कात सकता था। जब पहिया घुमाया जाना तो इस गशीन पर लगे सभी तकवे एक साथ घूमा करते थे।

17. डेल्टा (Delta): एक नदी के बहाव से बना मुहाने पर त्रिभुजाकार का भू-क्षेत्र।

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18. ढाका (Dacaa): ब्रिटिश शासनकाल में पूर्वी बंगाल (जो अब बंग्लादेश है) 18वीं सदी में एक प्रसिद्ध वस्त्र केंद्र था। यह मलमल तथा जानदानी बुनाई के लिए प्रसिद्ध था।

19. कोरोमंडल (Coromandal): यह मद्रास (अब जिसे चेन्नई कहा जाता है।) के तट से लेकर उत्तरी आंध्र प्रदेश तक फैला

20. चरखा (Charkha or Spinning wheel and Takii): चरखा एवं तकली दोनों ही घरों में परिवार के सदस्यों द्वारा कताई . के उपकरणों के रूप में प्रयोग किए जाते थे।

21. रंगरेज (Rangrez): रंगाई करने वाला।

22. छिपाईगार्स (Chhipigars) : ब्लॉक की मदद से छपाई करने वालों को छिपाईगार्स के नाम से जाना जाता था।

23. औरंग (Aurang) : इसे कार्यशाला भी कहते हैं। यह एक फारसी शब्द है जिसे गोदाम के लिए प्रयोग किया जाता था, जहाँ विक्रय (बेचने) से पूर्व वस्तुओं को संग्रह करके रखा जाता था।

24. शोलापुर (Sholapur): 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पश्चिमी भारत में एक नये महत्त्वपूर्ण केंद्र के रूप में (वस्त्र केंद्र के रूप) उभरा, उसे शोलापुर के नाम से जाना गया।

25. मदुरा (Madura): 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जो व्यापारिक शहर (कस्बे) के रूप में दक्षिण भारत में उभरा था।

26. पिघलाने की प्रक्रिया : किसी चट्टान (Rock) (शैल) से धातु प्राप्ति की प्रक्रिया, जिसे बहुत ही ऊँचे तापमान पर पिघला करके प्राप्त किया जाता है। पिघले हुए पदार्थ जो धातु से प्राप्त किया गया हो तथा पिघला करके नई (मनचाही) चीजें बनाई जा सकें या
उन्हें मनचाहा आकार दिया जा सके।

27. बूटन (Woot:) : यह कन्नड़ भाषा के शब्द उक्कूर (UKkur) का बदला हुआ रूप है। तेलुगु का हुक्कू एवं तमिल तथा मलयालम (दोनों भाषाओं) के उपुक्कू (Urkku) शब्दों का अर्थ एक ही अर्थात फौलाद (स्टील) है।

28. धौंकनी (Bellows): वह औजार या उपकरण जिससे हवा को पम्प किया जा सकता है-दबाया जा सकता है।

29. स्लाग के ढेर (Slag heaps) : वह अपशिष्ट या व्यर्थ का पदार्थ जिसे किसी धातु के पिघलाने के बाद छोड़ दिया जाता है।

30. टिस्को (TISCO) : 1907 में स्थापित देश का पहला इस्पात केंद्र।

31. प्रथम विश्व युद्ध की अवधि (या कालांश) (Period of the First World War) : 1914 से 1918.

32. हस्तशिल्प (Handicraft or Craft) : हाथों द्वारा बनायी गई कलात्मक वस्तुएँ।

33. औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) : इंग्लैंड में बड़ी मात्रा में औद्योगिक वस्तुओं के उत्पादन के लिए बड़ी संख्या में (1750-60 के दशकों से लेकर 1850 तक की काल अवधि) विभिन्न प्रकार के उद्योगों की स्थापना। इस क्रांति ने सर्वप्रथम
इंग्लैंड में औद्योगिक क्षेत्र में बड़े पैमाने पर तकनीकी तथा उत्पादन के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया।

34. कच्चे माल (Raw Material) : वस्तुओं के विनिर्माण अथवा बनाने के लिए जिन बिना निर्मित वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है, वे कच्चे माल कहलाते हैं।

35. वि-औद्योगीकरण (De-Industrialization) : किसी देश में विनिर्मित उद्योगों की महत्ता (या महत्त्व) में कमी आना।

36. एकाधिकार (Monopoly) : किसी बाजार में किसी उत्पादन या उससे जुड़ी सेवा पर अकेला नियंत्रण।

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