HBSE 6th Class Social Science Solutions History Chapter 7 नए प्रश्न नए विचार

Haryana State Board HBSE 6th Class Social Science Solutions History Chapter 7 नए प्रश्न नए विचार Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 6th Class Social Science Solutions History Chapter 7 नए प्रश्न नए विचार

HBSE 6th Class History नए प्रश्न नए विचार Textbook Questions and Answers

कल्पना करो:

तुम लगभग 2500 वर्ष पूर्व के एक उपदेशक को सुनने जाना चाहती हो। वहाँ जाने की अनुमति लेने के लिए तुम अपने माता-पिता को कैसे सहमत करोगी, इसका वर्णन करो।
उत्तर:
चूंकि लगभग 2500 वर्ष पूर्व के उपदेशक गौतम बुद्ध और वर्धमान महावीर थे अतः हम गौतम बुद्ध के उपदेश सुनने जाना चाहेंगे। हम अपने माता-पिता को बताएंगे कि गौतम बुद्ध ने राजकुमार और गृहस्थी होने के बाद भी इन सभी सुखों का त्याग कर दिया है। वे समाज का उद्धार करने के लिए आए हुए हैं। उनका कहना है कि हममें आत्मसंयम रखकर शांति से जीने की कला का आना आवश्यक है। आप लोग जानते ही हैं कि ब्राह्मणों ने वर्ण-व्यवस्था का आश्रय लेकर समाज के टुकड़े-टुकड़े कर दिए हैं। लोग आपस में हुआछूत और भेदभाव रखते हैं जिसके कारण हम सभी असुरक्षित हैं तथा बाहर की शक्ति हमें कभी भी अपना गुलाम (दास) बना सकती है। बुद्ध की भाषा भी हम आम-लोगों की है। अतः हमें आसानी से समझ में आ जाएगी, आपको यह भी बता दें कि बुद्ध समाज के लोगों से यह नहीं कह रहे हैं कि वे घर-द्वार छोड़कर उनके साथ आ जाएँ बल्कि वे तो घर पर रहकर ही सादा जीवन, उच्च विचार रखने को कह रहे हैं। सभी धर्मों और वर्णों के लोग उनके उपदेश सुनने जा रहे हैं अत: कृपया हमें भी अनुमति दीजिए।

HBSE 6th Class Social Science Solutions History Chapter 7 नए प्रश्न नए विचार

आओ याद करें:

Class 6th History Chapter 7 HBSE नए प्रश्न नए विचार प्रश्न 1.
बुद्ध ने लोगों तक अपने विचारों का प्रसार करने के लिए किन-किन बातों पर जोर विया?
उत्तर:
बौद्ध धर्म के सिद्धांतों की प्रसार-विधि:
(i) प्राकृत या जन-सामान्य की भाषा का प्रयोग: युद्ध ने अपने उपदेश स्थान-विशेष के लोगों की अपनी सरल भाषा में दिए। इस कारण लोगों को उनकी बातें आसानी से समझ में आने लगी और वे बौद्ध-धर्म अपनाने लगे।

(ii) निरन्तर भ्रमण: बौद्ध धर्म में दीक्षित भिक्षु और भिक्षुणी पूरे वर्ष स्थान-स्थान पर भ्रमण करते रहते थे और बुद्ध के उपदेशों को जन-मानस में समाविष्ट करते रहते थे। स्वयं बुद्ध भी कभी एक स्थान पर टिके नहीं रहे।

(iii) मठों और विहारों का निर्माण: अपने पतियों से अनुमति लेकर आने वाली महिलाओं, स्वामियों को अनुमति प्राप्त सेवक, कर्जदार अपने देनदार की अनुमति लेकर बौद्ध धर्म में दीक्षित होते थे और उनके निवास करने के लिए विहार बनाए गए। ये आम-लोगों को शिक्षा देते और उनकी यथायोग्य सहायता करते थे। आपसी लड़ाई का निपटारा भी वे सभा आयोजित करके किया करते थे।

(iv) विवेकपूर्ण व्यवहार: मृत पुत्र को जीवित करवाने की लालसा से आई एक महिला को बुद्ध ने कहा कि वह ऐसे घर से सरसों माँग कर लाए जहाँ आज तक किसी की मृत्यु न हुई हो। वह महिला जब असफल रही तो बुद्ध ने उसको सान्त्वना देते हुए कहा कि मृत्यु पर किसी का नियंत्रण नहीं है। अतः व्यर्थ में मृतक के लिए शोक न करे। यह सत्य को समझाने का एक विचित्र तरीका था।

(v) भेद-भाव रहित प्रवेश: बौद्ध-धर्म में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, चण्डाल, अस्पृश्य, नाई. वेश्या, महिलाएँ, दास आदि दीक्षित किए जा सकते थे। इस भेद-भाव रहित व्यवस्था के कारण ही बौद्ध-धर्म का आशातीत प्रचार-प्रसार हा पाया।

HBSE 6th Class Social Science नए प्रश्न नए विचार प्रश्न 2.
“सही” व “गलत” वाक्य बताओ:
(क) बुद्ध ने पशु बलि को बढ़ावा दिया।
(ख) बुद्ध द्वारा प्रथम उपदेश सारनाथ में देने के कारण इस जगह का बहुत महत्व है।
(ग) बुद्ध ने शिक्षा दी कि कर्म का हमारे जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
(घ) बुद्ध ने बोधगया में ज्ञान प्राप्त किया।
(ङ) उपनिषदों के विचारकों का मानना था कि आत्मा और ब्रह्म वास्तव में एक ही है।
उत्तर:
(क) गलत
(ख) सही
(ग) गलत
(घ) सही
(ङ) सही

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नए प्रश्न नए विचार HBSE 6th Class Social Science प्रश्न 3.
उपनिषदों के विचारक किन प्रश्नों का उतर देना चाहते थे?
उत्तर:
1. पुनर्जन्म
2. यज्ञ की उपयोगिता
3. मृत्यु पश्चात अस्तित्व में रहने वाली चीज आदि पर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देना चाहते थे।

प्रश्न 4.
महावीर की प्रमुख शिक्षाएँ क्या थीं?
उत्तर:
1. जीव हत्या मत करो
2. सदाचारपूर्ण जीवन व्यतीत करो
3. शुभ कर्म करके संसार से मुक्ति पाओ
4. जाति-पाति, छोटा-बड़ा और ऊँच-नीच का भेदभाव व्यर्थ है।
5. तपस्या तथा ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करो।

आओ चर्चा करें:

प्रश्न 5.
अनघा की माँ क्यों चाहती थी कि उसकी बेटी बुद्ध की कहानी से परिचित हो? तुम्हारा इसके बारे में क्या कहना है?
उत्तर:
बुद्ध के जीवन की कहानी प्रत्येक मनुष्य को-
(i) अपने लक्ष्य-मार्ग पर अडिग रहने
(ii) कठोर परिश्रम करने
(iii) तृष्णा और इच्छाओं का दमन करने तथा
(iv) सुख-शांतिपूर्वक जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा देती है। प्रकृति के सभी जीवों (वनस्पतियों, पशु-पक्षी आदि) पर दया करने की शिक्षा बुद्ध ने दी है। एक राजकुमार और गृहस्थ होने पर भी उन्होंने इन सुखों का त्याग कर दिया था।

शायद अनघा में कुछ आदतें अच्छी न हों उदाहरणार्थ-वह भाई-बहनों से झगड़ती हो। आवश्यकता से अधिक इच्छा करने वाली हो या पढ़ाई में परिश्रम न करती हो। यह भी हो सकता है कि वह गौतम बुद्ध के बारे में विस्तार से जानना चाहती हो और अपनी इच्छा स्वयं व्यक्त करने में संकोच कर रही हो इसीलिए माँ के माध्यम से अध्यापिका को कहला रही हो।

प्रश्न 6.
क्या तुम सोचते हो कि दासों के लिए संघ में प्रवेश करना आसान रहा होगा, तर्क सहित उत्तर दो।
उत्तर:
उन दासों के लिए संघ में प्रवेश करना आसान रहा होगा जिनके स्वामी-
1. बौद्ध-धर्म के उपदेशों को सुन चुके होंगे और इसका स्वीकार कर लिया होगा:

2. स्वामियों ने इस शर्त का अनुमोदन अवश्य किया होगा एवं स्वयं को गौरवान्वित समझा होगा।

3. बौद्ध धर्म में भेदभाव के लिए कोई स्थान न रहने के कारण स्वामियों की बुद्धि में सुधार अवश्य आया होगा और लोगों को अपना दास बनाकर उनसे इच्छानुसार कार्य लेने की उनकी प्रवृत्ति पर अंकुश लगा होगा अर्थात् उनमें सर्वजन समभाव आया होगा और दासों को मुक्त करके उन्होंने बौद्ध धर्म में दीक्षित होने की अनुमति अवश्य दी होगी।

4. बौद्ध धर्म के अनुयायी एवं भिक्षु-भिक्षुणी घर-घर जाकर उपदेश देते थे और उनकी जानकारी में वे घर अवश्य आए होंगे, जहाँ लोगों को दास बनाया गया होगा। वहाँ गौतम बुद्ध ने स्वयं जाकर अपनी विलक्षण बुद्धि से ‘अंगुलिमाल डाकू’ की तरह उनके स्वामियों का हृदय परिवर्तन किया होगा।

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आओ करके देखें:

प्रश्न 7.
इस अध्याय में उल्लिखित कम से कम पाँच विचारों तथा प्रश्नों की सूची बनाओ। उनमें से किन्हीं तीन का चुनाव कर चर्चा करो कि वे आज भी क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
विचार तथा प्रश्न

(क) प्रश्न
(i) मानव जीवन क्या है?
(ii) मृत्यु क्यों होती है?
(iii) मनुष्य को रोग, वृद्धावस्था और मानसिक विकार क्यों घेरते हैं?
(iv) मनुष्य के दु:खी रहने का कारण क्या है?
(v) मृत्यु के बाद मनुष्य का क्या होता है?

(ख) विचार:
(i) मानव जीवन कष्ट और दुःखों से परिपूर्ण है।
(ii) मोक्ष ही मनुष्य जीवन का चरम लक्ष्य है।
(iii) शुभ-कर्म करने से ही मनुष्य को दु:खों से छुटकारा (मोक्ष) मिलना संभव है।
(iv) आत्मा अजर और अमर है।
(v) समस्त जीवों पर दया करना, तृष्णा (तन्हा) पर नियंत्रण रखना, ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रयास करना और सादगी को अपनाना ही शुभ-कर्म हैं।

आधुनिक युग में प्रासांगिकता:
(i) जीवों पर दया करना:
जैव-पारिस्थितिकी और पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ने के कारण ही आज मौसम में अचानक परिवर्तन होने लगे हैं. भूमण्डलीय तापमान बढ़ रहा है, सागरों का जल-स्तर अत्यधिक तेजी से बढ़ रहा है (इन्दिरा प्वांइट इब चुका है) और प्राकृतिक आपदाएँ (भूस्खलन, बाढ़, सुनामी, चक्रवात आदि) आ रही हैं। मनुष्य ने वनों का विनाश कर दिया है। वनस्पति आवरण लगातार घटता जा रहा है। वन्य पशुओं का निर्ममता से हत्या की जा रही है। इसी कारण यह असुंतलन बढ़ता जा रहा है।

(ii) ज्ञान प्राप्ति का प्रयास:
आज की अत्याधुनिक सभ्यता में बुद्धि का चरम विकास हो चुका है लेकिन ज्ञान (मूल्य आधारित शिक्षा) का पूर्णतः अभाव होता जा रहा है। “शिक्षा क्या स्वर साध सकेगी यदि नैतिक शृंगार नहीं है।” ज्ञान या विवेक वैज्ञानिक निष्कर्ष पर आधारित है जो केवल भौतिक भोग की वस्तुओं तक सीमित नहीं है, बल्कि समष्टि में संतुलित और चिर-निर्वाह की स्थिति को प्राप्त कराता है। भौतिक सोच से हटकर आज जीवों के अस्तित्व को बनाए रखने की दिशा में चिंतन करने की आवश्यकता है।

(iii) सादगीपूर्ण जीवन:
आधुनिक प्रसंग में सादगीपूर्ण – जीवन को अपनाना अति आवश्यक हो गया है। पाश्चात्य भोग-भावना और संस्कृति ने आज हमारी वैज्ञानिक, अनुसंधान, शोध की शक्तियों को अत्यधिक प्रभावित किया है और हम कभी तृप्त न होने वाले भौतिक साधनों को तृष्णा की ओर केन्द्रित हो चुके हैं। अत्यधिक फैशन और व्यसनों का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि सीता, सावित्री और अनुसूया जैसी धर्मपरायण और सच्चरित्र महिलाओं के इस देश में पुरुषों की बुद्धि अब सम्मान भावना को छोड़कर बलात्कार, हत्या, अपहरण जैसे कुकृत्यों को अंजाम देने लगी है। इसका मूल कारण हमारा भोगवादी जीवन बिताना ही है।

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प्रश्न 8.
आज दुनिया का त्याग करने वाले स्त्रियों और पुरुषों के बारे में और अधिक जानने का प्रयास करो। ये लोग कहाँ रहते हैं, किस तरीके के कपड़े कपड़े पहनते हैं तथा क्या खाते हैं? ये दुनिया का त्याग क्यों करते हैं?
उत्तर:
दुनिया का त्याग करने वाले संन्यासी कहलाते हैं। ये लोग मठों और मंदिरों में रहते हैं। इनके वस्त्र गेरुए रंग के होते हैं। इनके हाथ में कमंडल और भिक्षापात्र होता है। कई साधु त्रिशूल भी धारण करते हैं। संन्यासी महिला और पुरुष कई पंथों के होते हैं। प्रत्येक पंथ या संप्रदाय के अपने अलग-अलग नियम होते हैं। कई लोग वन के कंदमूल, फल खाते हैं और निर्जन वन या पहाड़ों के शिखरों में कुटिया बनाकर रहते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो गाँव एवं बस्ती की धर्मशालाओं में रहते हैं तथा ग्रामीण लोगों के साथ उनका

सीधा संपर्क होता है। शहरों में भी बहुत से साधु-संन्यासी रहते हैं। ये लोग आम लोगों जैसा भोजन अर्थात दाल, रोटी-सब्जी आदि खाते हैं। दुनिया का त्याग करने के पीछे इनकी, अपनी-अपनी रुचियाँ, परिस्थितियाँ और विवशताएँ होती हैं। कुछ लोग ज्ञान-प्राप्ति के लिए योगी बनते हैं। कुछ की पत्नी या पति की मृत्यु हो जाने पर घर की आर्थिक दशा खराब हो जाने के कारण और कुछ लोग कामचोर तथा आलसी होने के कारण भी संन्यास ले लेते हैं। कारणों के अनुसार ही ये लोग समाज को कष्ट या सुख प्रदान करते हैं।

HBSE 6th Class History नए प्रश्न नए विचार Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अनघा की माँ ने अध्यापिका से बच्चों को सारनाथ दिखाने का आग्रह क्यों किया होगा?
उत्तर:
भगवान गौतम बुद्ध ने बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात् अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया था। बच्चों का संबंध भी ज्ञान-प्राप्ति के साथ होता है। अत: ज्ञान की प्राप्ति और उसके आचरण में परिणित होने की कामना से ऐसा आग्रह किया गया होगा।

प्रश्न 2.
गौतम बुद्ध के जन्म के समय समाज में कौन-कौन से परिवर्तन हो रहे थे?
उत्तर:
समाज में बड़े संगठन यथा-जन, जनपद, महाजनपद और संघ या गण बन रहे थे। लोगों को बोध हो गया था कि सुरक्षित जीवन के लिए उन्हें अपनी सरकार बनानी चाहिए। नगरीय जीवन की शुरुआत भी हो रही थी।

प्रश्न 3.
गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति के लिए महल, परिवार और संतान का त्याग क्यों करना पड़ा होगा?
उत्तर:
प्रखर मानसिक शक्ति के बालक बाल्यकाल में उन चीजों का गूढ़ अर्थ लेते हैं जो सामान्य घटनाएँ होती हैं यथा-बूढ़े व्यक्ति को देखना, मृतक की शव यात्रा देखना। उनका मस्तिष्क अनन्य रूप से एकल विषय पर केन्द्रित हो जाता है अत: भौतिक संबंधों से परे हो जाता है।

प्रश्न 4.
तपस्या से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसी मानसिक या भौतिक विषय पर पूर्ण एकाग्न शक्ति को किसी निश्चित समयावधि तक लगाना तपस्या कहलाता है। उदाहरणार्थ-छात्र का पाठ्यक्रम एवं शैक्षिक विषय का सुरुचि और स्वरुचि से अध्ययन करना।

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प्रश्न 5.
ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् उसके प्रसार के लिए भ्रमण क्यों करते होंगे?
उत्तर:
ज्ञान एक दिशा विशेष (भौतिक या मानसिक स्वरूप) में सिद्धि प्राप्ति या अद्वितीय एवं लोकहितकारी विचार एवं कर्म को उत्पन्न करता है। इस तरह मनुष्य में मनःशक्ति या मनो-ऊर्जा इतनी संचित हो जाती है कि अभिव्यक्ति के लिए छटपटाने लगती है और ज्ञानी पुरुष जन-कल्याण के लिए भ्रमण करते हैं।

प्रश्न 6.
बुद्ध की शिक्षाओं का मूल सार क्या था?
उत्तर:
यह संसार कष्टों से परिपूर्ण है और ऐसे कष्ट और दुःख हमारी कभी पूरी न हो सकने वाली इच्छाओं या तृष्णा (तन्हा) के कारण महसूस होते हैं।

प्रश्न 7.
बुद्ध के अनुसार दुःखों से कैसे उबरा जा सकता
उत्तर:
जब हम अपने मन पर नियंत्रण लगाएँ और यथार्थ के उजाले में स्वयं को पहचानें व अपनी तृष्णा (तन्हा) पर संतुलन की सीमा तक नियंत्रण लगाएँ।

प्रश्न 8.
‘कर्म’ से बुद्ध का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
बुद्ध के अनुसार कर्म या कार्य हमारी अन्तर्जात भावना (अन्त:करण) के प्रेक्षण, निरीक्षण के अंतर्गत प्रयोग (व्यवहार) से संपन्न होता है। उदाहरणार्थ- किसी के लिए अपशब्द (गाली) का प्रयोग करने से बहुत पहले किसी तृष्णा (तन्हा) को चोट पहुंचने पर अहंकार (क्रोध) हमारे मन में उत्पन्न हो चुका होता है। कार्य और परिणाम’ का ‘कर्तव्य और अधिकार’ की तरह चोली-दामन का साथ होने से उसको अवश्य भोगना/झेलना पड़ता है।

प्रश्न 9.
बुद्ध ने ऐसा क्यों कहा होगा कि हमारे कर्मों के अच्छे या बुरे परिणाम वर्तमान जीवन के साथ ही बाद के जीवन को भी प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
कार्य चाहे जो भी किया जाए उसके स्नायु तंत्र में प्रभाव पड़ते हैं और उसकी पुनरावृत्ति तथा लगातार अभ्यास होने लगता है। चूँकि अन्त:करण में सबसे पहले जन्म लेने वाली धारणा या विचार का नेत्रदर्शी रूप नहीं होता अतः यह वर्तमान जीवन के बाद अथवा पुनर्जन्म में भी चेतन या सक्रिय रहता है।

प्रश्न 10.
बुद्ध के अनुसार अच्छे कर्म क्या हैं?
उत्तर:
वह कार्य जिससे किसी भी जीव एवं पदार्थ का अहित, दुरुपयोग, हिंसा, पीड़ा, हानि आदि का परिणाम न दिखाई देता हो।

प्रश्न 11.
वेदों की रचना किस भाषा में हुई और बुद्ध के उपदेश किस भाषा में थे?
उत्तर:
वेदों की रचना संस्कृत में हुई जो जन-सामान्य के लिए बोधगम्य नहीं थी जबकि बुद्ध के उपदेश प्राकृत भाषा (तत्समय प्रचलित सामान्य लोगों की बोली) में थे जो आसानी से समझ में आ जाते थे।

प्रश्न 12.
बुद्ध ने ऐसा क्यों कहा कि लोग किसी शिक्षा को उनका उपदेश मानकर नहीं बल्कि अपने विवेक से उसकी परीक्षा/जाँच करके ग्रहण करें?
उत्तर:
बुद्ध के अनुसार उपदेश केवल सुझाव के स्वरूप का है- एक आदेश नहीं। सुझाव को समझकर मानसिक एवं बौद्धिक विश्लेषण करने के पश्चात् ही निष्कर्ष पर पहुँचना बुद्धिमानी है क्योंकि चिन्तन के समय हमारी चेतना सर्वांगीण जागती है। इससे चिन्तन विषय व्यवहार में शत-प्रतिशत और स्थाई रूप में आ जाता

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प्रश्न 13.
किसागौतमी की कहानी से क्या संकेत मिलता
उत्तर:
उपदेशक के जन-मानस में प्रवेश कर उसे स्वयं अनुभव का अवसर दिलाने वाली कला किसगौतमी को सरसों के बीज माँगते समय मृत्यु के चिरंतन सत्य का स्वयं ज्ञान प्राप्त हुआ।

प्रश्न 14.
उपनिषद् शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
गुरु के समीप बैठना अर्थात् गुणीजन के साथ वार्तालाप के माध्यम से यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना।

प्रश्न 15.
उपनिषद की विषय-वस्तु क्या है?
उत्तर:
पुनर्जन्म और यज्ञों के महत्त्व का विशुद्ध वर्णन प्रश्नोत्तर क्रम म। .

प्रश्न 16.
उपनिषदों की विषय-वस्तु कहाँ से ली गई है?
उत्तर:
सांसारिक जीवन की आम-घटनाओं से। उदाहरणार्थ-बुद्धिमानी भिखारी।

प्रश्न 17.
उपनिषदों में वार्ताकार कौन-कौन हैं?
उत्तर:
जाति, वर्ग, लिंग आदि के भेदभाव से परे सभी विद्वान् पुरुष, महिलाएं, दास एवं निम्न कुलोत्पन्न व्यक्ति।

प्रश्न 18.
उपनिषदों में आत्मा और ब्रह्म दोनों को एक क्यों माना गया है?
उत्तर:
आत्मा एवं ब्रह्म ही सार्वभौम आत्मा (सभी प्राणियों में मौजूद चेतन तत्व) है।

प्रश्न 19.
बुद्ध के उपवेश और उपनिषद् की अभिव्यक्ति शैली एक जैसी क्यों है?
उत्तर:
“बुद्धिमान भिखारी” के दृष्टांत की तरह ये दोनों आम-जीवन की घटनाओं का विशेष प्रसंग में उल्लेख करते हैं। बुद्ध के उपदेश प्रसंग में हम “अँगुलिमाल” की कहानी को ले सकते हैं।

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प्रश्न 20.
पाणिनी नामक प्राचीन विद्वान् की लोकप्रियता किस कारण है?
उत्तर:
उन्होंने संस्कृत भाषा के प्रयोग नियम अर्थात् लघु सूत्र (लगभग 3000) लिखे। स्वर और व्यंजनों को विशेष क्रम में रखकर उनके प्राथमिक सूत्र बनाए अर्थात् संस्कृत व्याकरण के रचयिता थे।

प्रश्न 21.
वर्धमान महाबीर कौन थे? उन्होंने अपने उपवेश कौन सी भाषा में दिए?
उत्तर:
वर्धमान महावीर वज्जि संघ के लिच्छवि कुल में उत्पन्न राजकुमार थे। उन्होंने अपने उपदेश बुद्ध की तरह ही प्राकृत भाषा में दिए।

प्रश्न 22.
जैन धर्म में कौन से नियम प्रचलित थे?
उत्तर:
1. भिक्षा माँगकर अत्यंत सरल और सादा जीवन बिताना
2. अस्तेय (चोरी न करना)
3. ब्रह्मचर्य पालन,
4. दिगम्बर (वस्त्रहीन) एवं सर्वत्यागी रहना।

प्रश्न 23.
जैन धर्म की शिक्षाओं का मूल सार क्या था?
उत्तर:
अहिंसा और क्षमा।

प्रश्न 24.
जैन धर्म के अनुयायी किस कोटि के थे?
उत्तर:
कुछ अनुयायी भिक्षु-भिक्षुणी बनकर संपूर्ण त्यागमय जीवन बिताने लगे जबकि कुछ अन्य गृहस्थ में रहकर भिक्षु-भिक्षुणी आदि को भोजनादि सुविधाएँ प्रदान करने लगे।

प्रश्न 25.
जैन धर्म के समर्थक कौन थे?
उत्तर:
मुख्यत: व्यापारी क्योंविः किसानों के लिए इस सीमा तक अहिंसा का पालन करना कठिन था। उदाहरणार्थ-उनसे कई कीड़े-मकोड़ों की हिंसा संभावित थी।

प्रश्न 26.
विनयपिटक में क्या उल्लेख है?
उत्तर:
घर-द्वार त्यागने वाले अनुयायियों के लिए संघ बनाए गए थे जिनमें महिलाओं और पुरुषों के निवास की अलग-अलग व्यवस्थाएँ थीं।

प्रश्न 27.
संघ में प्रवेश की शर्ते क्या थी?
उत्तर:
1. महिला एवं पुरुष वर्ण, जाति आदि के भेदभाव से परे संघ में प्रवेश ले सकते थे।
2. बच्चों को अपने माता-पिता, दासों को अपने स्वामी, राजसेवकों को राजा और कर्जदारों को अपने लेनदारों की अनुमति प्राप्त करनी होती थी।

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प्रश्न 28.
बहुधा किस तरह के लोग संघ में प्रवेश लेते थे?
उत्तर:
ब्राह्मण, क्षत्रिय, व्यापारी, मजदूर, नाई, वेश्याएँ और

प्रश्न 29.
संघाराम क्या थे?
उत्तर:
उद्यानों में अनुयायियों द्वारा बनवाए गए कृत्रिम निवास स्थल अथवा पहाड़ी क्षेत्रों की प्राकृतिक गुफाएँ।

प्रश्न 30.
बौद्ध भिक्षु संघाराम में निवास कब करते थे?
उत्तर:
वर्षा ऋतु में। क्योंकि इस दौरान भ्रमण कर पाना कठिन हो जाता था।

प्रश्न 31.
विहार क्या थे?
उत्तर:
परिष्कृत संघाराम ही विहार थे। ये ईंट और पत्थरों से निर्मित विशाल इमारतें थीं। लकड़ी से बनाए गए संघाराम भी

प्रश्न 32.
क्या संघों में वेद वर्णित चारों वर्गों को प्रवेश की अनुमति थी?
उत्तर:
हाँ। इन संघों में वर्ण-भेद बिल्कुल भी नहीं था।

प्रश्न 33.
जराथुष्ट्र कौन थे? जराथुष्ट्र की शिक्षाओं का सार क्या है?
उत्तर:
एक ईरानी पैगम्बर थे। इस धर्म की शिक्षाओं का सार ‘सद्विचार, सद्वचन और सद्कार्य’ है।

प्रश्न 34.
जराथुष्ट्र धर्म की शिक्षाएँ कौन से ग्रंथ में संकलित हैं?
उत्तर:
‘अवेस्ता’ नामक ग्रंथ में।

प्रश्न 35.
भारत में जराथुष्ट्र धर्म के अनुयायी कहाँ हैं?
उत्तर:
गुजरात और महाराष्ट्र के पश्चिमी तट क्षेत्रों में।

प्रश्न 36.
जराथुष्ट्र धर्म को पारसी धर्म क्यों कहा जाता
उत्तर:
फारस से तात्पर्य ईरान से है और ईरान के लोगों का धर्म फारसी या जराथुष्ट्र धर्म ही है।

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लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“किसागौतमी की कहानी” का संदर्भ लेकर गौतम बुद्ध को उपदेश-कला पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
इस दृष्टांत के आठ विभाग हैं:
1. एक महिला के पुत्र की मृत्यु होना
2. सड़क पर पुत्र की मृत देह लेकर विलाप करना
3. लोगों से उसको पुनर्जीवित करने का आग्रह करना
4. एक व्यक्ति का उस महिला को गौतम बुद्ध के पास ले जाना
5. क मुट्ठी सरसों मांगकर लाने को कहना
6. ऐसे घर से माँगना जहाँ मृत्यु न हुई हो
7. महिला का द्वार-द्वार भटकना परंतु ऐसा घर न मिलना
8. महिला को इस सत्य का ज्ञान होना कि सभी की मृत्यु होती है।

इसमें हम देखते हैं कि मनुष्य में तृष्णा (तन्हा) का जन्म कैसे होता है, वह किस तरह भटकता है और अंतत: गुणी पुरुष किस युक्ति से उसको सत्य का स्वयं एहसास कराता है। यह आत्मनिरीक्षण और आत्मावलोकन वाली उपदेश शैली है जिसमें उपदेश को सिद्धांत नहीं बल्कि व्यवहार का विषय बनाया जाता है। गौतम बुद्ध स्वयं ही कहते हैं कि उपदेशों का तुरंत पालन करने के स्थान पर उनकी अपने विवेक से जाँच करो, यथार्थ उभरकर सामने आ जाएगा।

प्रश्न 2.
उस युग में सत्यकाम जाबाल के अलावा अन्य निर्धन व्यक्ति धर्म चर्चाओं में भाग क्यों नहीं लेते थे? सुस्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निर्धन व्यक्तियों के वाताओं में भाग न लेने के निम्नलिखित कारण रहे होंगे:
(i) साधनों का अभाव: निर्धन व्यक्ति का मन और मस्तिष्क केवल अपनी आजीविका तक सीमित रहता होगा जैसा कि प्रमाण मिलते हैं। इस युग में शिल्प पर भी कर वसूली होती थी। व्यक्तियों के पास इतना समय ही न रहता होगा कि वे आजीविका के अलावा कुछ और करने की सोच भी सकें।

(ii) ग्रंथों को खरीदने के लिए धन का अभाव: धर्म परिचर्चा करने में सक्षम वही व्यक्ति हो सकता था जिसने वेद, उपनिषद् आदि ग्रंथों का अध्ययन किया हो और मन में मंथन के पश्चात किसी विषय विशेष के बारे में उसकी जिज्ञासा जागी हो। निर्धन व्यक्ति के पास इन ग्रंथों को खरीदने के लिए धन नहीं था

इसलिए वह इन चर्चाओं में रुचि नहीं लेता था। उदाहरणार्थ-भिखारी का शौनक मुनि से भीख माँगना परंतु विद्वान होने पर भी उनके द्वारा भी उसकी उदर पूर्ति न कराई जानी। इससे संकेत मिलता है कि उस युग में भिखारी भी बड़ी संख्या में थे। ऐसी दशा में वे क्या धर्मचर्चा कर सकते थे।

प्रश्न 3.
केवल व्यापारी वर्ग ही जैन धर्म का अनुयायी क्यों बना होगा, कृषक वर्ग क्यों नहीं? सकारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस प्रश्न के संदर्भ में सबसे पहले यह उल्लेख करना समीचीन रहेगा कि जैन धर्म में अहिंसा, अस्तेय (चोरी न करना) और क्षमा जैसे गुणों पर बल दिया गया था। व्यापारी वर्ग का कार्य द्वितीयक व्यवसाय के रूप का होता है। उसको केवल दुकान पर लाए गए खाद्यान्नों, वस्त्रों तथा अन्य माल की बिक्री करनी होती है। अत: इस कार्य में उक्त नियमों का पालन करना संभव है।

इसके विपरीत जब हम किसान की बात करते हैं तो वह कृषि में कई जीवों यथा-चूहा, साँप, चींटी, जंगली पशु, टिड्डी. खरगोश आदि की जान-बूझकर हत्या करता है। ऐसा न करने पर उसकी फसल बर्बाद हो जाएगी। गाय या भैंस के बछड़ों का हिस्सा (दूध) स्वयं छीनकर वह चोरी भी करता है। बकरी, भेड़ आदि पशुओं को हत्या करने के लिए ही पालता है। इन कारणों से किसानों के लिए इन नियमों का पालन करना कठिन रहा होगा।

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प्रश्न 4.
“घर-बाहर के त्याग” को सुस्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
घर-बाहर से तात्पर्य केवल मिट्टी, पत्थर से बने भवन से नहीं बल्कि पारिवारिक रिश्ते (भाई, बहन, माता-पिता) और सामाजिक रिश्ते (परिजन तथा विविध व्यवसायरत लोगों के साथ संबंध) भी है। इन संबंधों को शारीरिक, मानसिक, भावात्मक और आध्यात्मिक स्तर पर बाधक बनने से रोकने की मनोवृत्ति ही त्याग है। देह-चेतना से उठकर मनश्चेतना के स्तर तक पहुँचने की एक तपस्या सिंचित प्रक्रिया या अनुक्रिया ही त्याग है। संक्षेप में एक ही अग्रता (एकाग्रता) वाली तपस्या ही मानसिक लक्ष्य तक पहुँचाती है।

प्रश्न 5.
वैदिक काल के ‘संघ’ और जैन तथा बौद्ध धर्म के ‘संघों’ में विभेद सुस्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

वैदिक काल के संघ धर्म-संघ
(i) ये राजनैतिक संगठन थे। (i) ये धर्म-संगठन थे।
(ii) इनमें कई राजा मिलकर एक सभा बनाते थे जिनमें सामूहिक निर्णय लिया जाता था। (ii) ये घर-द्वार त्याग कर ज्ञान की सच्ची जिज्ञासा वाले विचारकों हेतु बनाए गए।
(iii) इनका स्वरूप दृष्ट था अर्थात् राजा, जनता, समितियाँ, सभाएँ आदि सभी प्रत्यक्ष देखी जाने वाली व्यवस्थाएँ और उन व्यवस्थाओं के वाहक थे। (iii) ये भावात्मक संगठन थे। संघ किसी इमारत या भवन का नाम नहीं बल्कि विशेष मनोदशा और मानसिक चिंतन का नाम था। इसका इष्टस्वरूप नहीं था।
(iv) इनके नियमों में प्रत्यक्ष लाभ, भौतिक प्राप्ति उपलब्धि आदि की दिशा में कार्य-प्रवाह था। (iv) इनका कार्य-प्रवाह सत्य के अनुसंधान की ओर था। समस्त त्याग के साथ जीवन के भौतिक कष्टों को झेल कर यथार्थ सुख की ओर बढ़ना ही धर्म संघ का उद्देश्य है।

प्रश्न 6.
उत्तर वैदिक काल के बाद बौद्ध और जैन धर्म की नई विचारधाराएँ क्यों आ गई होंगी?
उत्तर:
उत्तर वैदिक काल वस्तुत: सिन्धु घाटी की सभ्यता की तरह क्रमिक विकास के बीच का एक स्फुलिंग अथवा स्फुरण चमत्कार जैसा था। इसके सामवेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद जैसे वेदों में सामाजिक नियमों के कठोर से कठोरतम होने का उल्लेख है। यह संकेत देता है कि पूर्व वैदिक काल (ऋग्वेद रचना काल) तक मनुष्य क्रमिक विकास का अवलंबन लिए हुए था जबकि उत्तर वैदिक काल में राजा और पुरोहित के बीच विशिष्ट संबंध बनने के कारण पुरोहितवाद का सृजन हुआ। इसने समूचे समाज की पीड़ा बढ़ा दी।

संस्कृत शिक्षित विशिष्ट वर्ग के अलावा अन्य वर्ग द्रविड़ बन गया और भाषा का यह संघर्ष आरंभ हो गया। प्राकृत भाषा आम लोगों की बोली थी जिसके द्वारा उन्हें उचित दिनचर्या, उचित खान-पान, उचित कार्य-चयन आदि से परिचित कराने वाले उपदेश गौतम बुद्ध और वर्धमान महावीर द्वारा दिए गए। समाज की इस आवश्यकता को देखते हुए उपनिषद् (गुरु के पास बैठना) लिखे जाने लगे। इनमें प्रश्नोत्तर के क्रम में आम-मानव की बौद्धिक जिज्ञासाओं का शमन किया गया है।

इनकी भाषा भी सहज प्रवाहमय और सरल है। वेदों की गूळ संस्कृत इनमें व्याख्यात्मक (स्पष्टीकरण) रूप में पाई जाती है। छांदोग्य उपनिषद् की बुद्धिमान भिखारी वाली कहानी और गौतम बुद्ध के “किसागौतमी की कहानी” में तत्कालीन उपदेशकों की आत्मनिरीक्षण शैली के एक समान दर्शन होते हैं। इस युग के मानव को अपनी ही चेष्टा (शारीरिक, मानसिक, भावात्मक) से उपदेशित सत्य को पहचानने की शैली अपेक्षित थी और यह शैली उपनिषद एवं जैन और बौद्ध धर्म ग्रंथों में दिखाई पड़ती है। वर्ण-भेद से उत्पन्न विकारों का भी इस युग में शमन करने की चेष्टा की गई।

HBSE 6th Class Social Science Solutions History Chapter 7 नए प्रश्न नए विचार

नए प्रश्न नए विचार Class 6 HBSE Notes in Hindi

1. सारनाथ कहाँ है?: वाराणसी में।
2. बुद्ध का जन्म कब हुआ?: लगभग 2500 वर्ष पूर्व।
3. लोगों के जीवन में क्या परिवर्तन हो रहे थे?: समाज-व्यवस्था, नगरों का विकास, सरकार की स्थापना आदि।
4. बोधगया कहाँ है?: आधुनिक बिहार में।
5. गौतम बुद्ध का मृत्यु स्थल: कुशी नगर।
6. संतुष्ट न होने की मनुष्य की प्रवृत्ति को क्या कहते हैं?: तन्हा (तृष्णा)।
7. प्राकृत भाषा क्या थी?: तत्समय प्रचलित आम लोगों की बोली।
8. जीवन का अटल सत्य क्या है?: प्रत्येक जीव की मृत्यु।
9. उपनिषद का क्या अर्थ है?: गुरु के निकट बैठना।
10. मृत्यु उपरांत भी शेष रहने वाली चीज क्या है?: आत्मा।
11. सत्यकाम जाबाल किसके पुत्र थे?: एक दासी के।
12. संस्कृत भाषा के व्याकरण का रचनाकार कौन था?: आचार्य पाणिनी।
13. वर्धमान महावीर कौन थे?: वज्जि संघ और लिच्छवी कुल के एक राजकुमार।
14. जैन धर्म का मुख्य उपदेश क्या था?: जीवों की हिंसा न करो।
15. मगध राज्य में बोली जाने वाली प्राकृत भाषा को क्या कहते थे?: मागधी।
16. किसानों के लिए जैन-धर्म का पालन कठिन क्यों था?: उन्हें फसल की रक्षा के लिए कीड़े-मकोड़ो को मारना पड़ता था जिसका धर्म में निषेध था।
17. संघ क्या था?: घर-बार त्याग कर बनाया गया धर्म दीक्षित भिक्षु और भिक्षुणियों का एक संगठन।
18. मठ क्या थे?: भिक्षु और भिक्षुणियों के लिए बनाए गए शरण-स्थल या विहार।
19. आश्रम व्यवस्था का विकास किसने किया?: ब्राह्मणों ने।
20. भिक्षुओं के नियम कौन से ग्रंथ में वर्णित हैं?: विनयपिटक में।

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