Haryana State Board HBSE 6th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 17 साँस-साँस में बाँस Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 6th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 17 साँस-साँस में बाँस
HBSE 6th Class Hindi साँस-साँस में बाँस Textbook Questions and Answers
साँस-साँस में बाँस HBSE 6th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 17 प्रश्न 1.
पाठ में बताई गई बाँस की चीजों के अलावा और क्या-क्या उपयोग हैं?
उत्तर :
बाँस से घर बनाया जा सकता है, सूखे बाँस को ईंधन की तरह प्रयोग किया जा सकता है। बाँस का कोयला जलाया जा सकता है। बाँस का मचान बनता है। बाँस का पालना बनता है।
साँस-साँस में बाँस HBSE 6th Class Hindi Vasant Chapter 17 प्रश्न 2.
भारत में बाँस कहाँ बहुतायत से होता है?
उत्तर :
भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के सातों राज्यों में बाँस बहुत उगता है। इनमें प्रमुख हैं-असम, नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा आदि।
HBSE 6th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 17 साँस-साँस में बाँस प्रश्न 3.
बाँस से क्या-क्या चीजें बनाई जाती हैं?
उत्तर :
बाँस से चटाइयाँ, टोकरियाँ, बरतन, बैलगाड़ियाँ, फर्नीचर, खिलौने, सजावटी सामान, जाल, मकान, पुल आदि चीजें बनाई जाती हैं।
साँस-साँस में बाँस Question and Answer HBSE 6th Class Hindi Chapter 17 प्रश्न 4.
असम में इसका क्या विशेष उपयोग किया जाता है?
उत्तर :
असम में ऐसे ही एक जाल, जकाई से मछली पकड़ते हैं। छोटी मछलियों को पकड़ने के लिए पानी की सतह पर रखा जाता है या फिर धीरे-धीरे चलते हुए खींचा जाता है। बाँस की खपच्चियों को इस तरह बाँधा जाता है कि वे एक शंकु का आकार ले लें। इस शंकु का ऊपरी सिरा अंडाकार होता है।
निचले नुकीले सिरे पर खपच्चियाँ एक-दूसरे में गुंथी हुई होती हैं। खपच्चियों से तरह-तरह की टोपियाँ भी बनाई जाती हैं। असम के चाय-बागानों के चित्रों में लोग ऐसी टोपियाँ पहने दिख जाएंगे और हाँ, उनकी पीठ पर टंगी बाँस की बड़ी-बड़ी टोकरी भी होती है।
प्रश्न 5.
बाँस एकत्र करने का मौसम कौन-सा होता है?
उत्तर :
जुलाई से अक्टूबर तक वर्षा का मौसम बाँस एकत्र करने के लिए अच्छा होता है। यह समय लोगों के पास खाली होता है। इस समय में लोग जंगलों से बाँस एकत्र कर सकते हैं।
प्रश्न 6.
बाँस कैसे काटे जाते हैं? क्यों?
उत्तर :
एक से तीन साल की उम्रवाले बाँस अधिक काटे जाते हैं। बूढ़े बाँस सख्त होते हैं और टूट भी जाते हैं।
प्रश्न 7.
बाँसों को कैसे साफ किया जाता है?
उत्तर :
पहले बाँस से शाखाएँ और पत्तियों को साफ किया जाता है। इसके बाद ऐसे बाँसों को चुना जाता है जिनमें गठानें दूर-दूर होती हैं। फिर चाकू से छीलकर खपच्चियाँ तैयार की जाती हैं। चौड़े फाल वाले चाकू को दाओ कहा जाता है।
प्रश्न 8.
खपच्चियों को तैयार करने में किस बात का ध्यान रखा जाता है?
उत्तर :
खपच्चियों के लिए ऐसे बाँसों को चुना जाता है जिनमें गठानें दूर-दूर होती हैं। दाओ यानी चौडे, जैसी फाल वाले चाकू से इन्हें छीलकर खपच्चियाँ तैयार की जाती हैं। खपच्चियों की लंबाई पहले से ही तय कर ली जाती है। मसलन, आसन जैसी छोटी चीजें बनाने के लिए बाँस को हरेक गठान से काटा जाता है। लेकिन टोकरी बनाने के लिए हो सकता है कि दो या तीन या चार गठानों वाली लंबी खपच्चियाँ काटी जाएँ। यानी कहाँ से काटा जाएगा, यह टोकरी की लंबाई पर निर्भर करता है।
प्रश्न 9.
टोकरी बनाने से पहले क्या जरूरी है?
उत्तर :
टोकरी बनाने से पहले खपच्चियों को चिकना बनाना बहुत जरूरी है। यहाँ फिर दाओ काम में लाया जाता है। खपच्ची बाएँ हाथ में होती है और दाओ दाएँ हाथ में। दाओ का धारदार सिरा खपच्ची को दबाए रहता है जबकि तर्जनी दाओ के एकदम नीचे होती है। इस स्थिति में बाएँ हाथ से खपच्ची को बाहर की ओर खींचा जाता है। इस दौरान दायाँ अँगूठा दाओ को अंदर की ओर दबाता है और दाओ खपच्ची पर दबाव बनाते हुए घिसाई करता है।
प्रश्न 10.
बाँस की बुनाई कैसे होती है?
उत्तर :
बाँस की बुनाई वैसे ही होती है जैसे कोई और बुनाई। पहले खपच्चियों को आड़ा-तिरछा रखा जाता है। फिर बाने को बारी-बारी से ताने के ऊपर-नीचे किया जाता है। इससे चेक का डिजाइन बनता है, पलंग निवाड़ की बुनाई की तरह।
प्रश्न 11.
खपच्चियों की चौड़ाई के बारे में क्या बात ध्यान रखनी चाहिए?
उत्तर :
आमतौर पर खपच्चियों की चौड़ाई एक इंच से ज्यादा नहीं होती है। चौड़ी खपच्चियाँ किसी काम की नहीं होती। इन्हें चीरकर पतली खपच्चियाँ बनाई जाती हैं। पतली खपच्चियाँ लचीली होती हैं। खपच्चियाँ उस्तादी का काम है। हाथों की कलाकारी के बिना खपच्चियों की मोटाई बराबर बनाए रखना आसान नहीं है। हुनर को पाने में काफी समय लगता है।
प्रश्न 12.
टोकरी कैसे तैयार करते हैं?
उत्तर :
टोकरी के सिरे पर खपच्चियों को या तो चोटी की तरह गूंथ लिया जाता है या फिर कटे सिरों को नीचे की ओर मोड़कर फँसा दिया जाता है और हमारी टोकरी तैयार है। चाहो तो बेचो या घर पर ही काम में ले लो।
HBSE 6th Class Hindi साँस-साँस में बाँस Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
असम में बाँस का क्या विशेष उपयोग किया जाता है?
उत्तर :
असम में बाँस के ऐसे ही एक जाल, जकाई से मछली पकड़ते हैं। छोटी मछलियों को पकड़ने के लिए इसे पानी की सतह पर रखा जाता है या फिर धीरे-धीरे चलते हुए खींचा जाता है। बाँस की खपच्चियों को इस तरह बाँधा जाता है कि वे एक शंकु का आकार ले लें। इस शंकु का ऊपरी सिरा अंडाकार होता है।
निचले नुकीले सिरे पर खपच्चियाँ एक-दूसरे में गुंथी हुई होती हैं। खपच्चियों से तरह-तरह की टोपियाँ भी बनाई जाती हैं। असम के चाय-बागानों के चित्रों में लोग ऐसी टोपियाँ पहने दिख जाएँगे। और हाँ, उनकी पीठ पर टंगी बाँस की बड़ी-सी टोकरी भी होती है।
प्रश्न 2.
बाँस इकट्ठा करने का मौसम कौन-सा होता
उत्तर :
जुलाई से अक्टूबर तक वर्षा का मौसम बाँस इकट्ठा करने के लिए अच्छा होता है। यह समय लोगों के पास खाली होता है। इस समय में लोग जंगलों से बाँस इकट्ठा कर सकते हैं।
प्रश्न 3.
बाँसों को कैसे साफ किया जाता है?
उत्तर :
पहले बाँस से शाखाएँ और पत्तियों को साफ किया जाता है। इसके बाद ऐसे बाँसों को चुना जाता है जिनमें गठानें दूर-दूर होती हैं। फिर चाकू से छील कर खपच्चियाँ तैयार की जाती हैं। चौड़े फाल वाले चाकू को दाओ कहा जाता है।
प्रश्न 4.
खपच्चियों को तैयार करने में किस बात का ध्यान रखा जाता है?
उत्तर :
खपच्चियों के लिए ऐसे बाँसों को चुना जाता है जिनमें गठानें दूर-दूर होती हैं। दाओ यानी चौड़े, चाँद जैसी फाल वाले चाकू से इन्हें छील कर खपच्चियाँ तैयार की जाती हैं। खपच्चियों की लंबाई पहले से ही तय कर ली जाती है। मसलन, आसन जैसी छोटी चीजें बनाने के लिए बाँस को हरेक गठान से काटा जाता है। लेकिन टोकरी बनाने के लिए हो सकता है कि दो या तीन या चार गठानों वाली लंबी खपच्चियाँ काटी जाएँ। यानी कहाँ से काटा जाएगा, यह टोकरी की लंबाई पर निर्भर करता है।
प्रश्न 5.
टोकरी बनाने से पहले क्या ज़रूरी है?
उत्तर :
टोकरी बनाने से पहले खपच्चियों को चिकना बनाना बहुत ज़रूरी है। यहाँ फिर दाओ काम आता है। खपच्ची बाएँ हाथ में होती है और दाओ दाएँ हाथ में। दाओ का धारदार सिरा खपच्ची को दबाए रहता है, जबकि तर्जनी दाओ के एकदम नीचे होती है। इस स्थिति में बाएँ हाथ से खपच्ची को बाहर की ओर खींचा जाता है। इस दौरान दायाँ अंगूठा दाओ को अंदर की ओर दबाता है और दाओ खपच्ची पर दबाव बनाते हुए घिसाई करता है।
प्रश्न 6.
बाँस की बुनाई कैसे होती है?
उत्तर :
बाँस की बुनाई वैसे ही होती है जैसे कोई और बुनाई। पहले खपच्चियों को आड़ा-तिरछा रखा जाता है। फिर बाने को बारी-बारी से ताने के ऊपर-नीचे किया जाता है। इससे चेक का डिजाइन बनता है, पलंग की निवाड़ की बुनाई की तरह।
प्रश्न 7.
खपच्चियों की चौड़ाई के बारे में क्या बात ध्यान रखनी चाहिए?
उत्तर :
आमतौर पर खपच्चियों की चौड़ाई एक इंच से ज्यादा नहीं होती है। चौडी खपच्चियाँ किसी काम की नहीं होती। इन्हें चीर कर पतली खपच्चियाँ बनाई जाती हैं। पतली खपच्चियाँ लचीली होती हैं। खपच्चियाँ चीरना उस्तादी का काम है। हाथों की कलाकारी के बिना खपच्चियों की मोटाई बराबर बनाए रखना आसान नहीं। इस हुनर को पाने में काफी समय लगता है।
प्रश्न 8.
पाठ में बताई गई बाँस की चीजों के अलावा और क्या-क्या उपयोग हैं?
उत्तर :
बाँस से घर बनाया जा सकता है, सूखे बाँस को ईंधन की तरह प्रयोग किया जा सकता है। बाँस का कोयला जलाया जा सकता है। बाँस का अचार बनता है। बाँस का पालना बनता है।
प्रश्न 9.
भारत में बाँस कहाँ बहुतायत से होता है?
उत्तर :
भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के सातों राज्यों में बाँस बहुत उगता है। इनमें प्रमुख हैं-असम, नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा आदि।
प्रश्न 10.
टोकरी कैसे तैयार करते हैं?
उत्तर :
टोकरी के सिर पर खपच्चियों को या तो चोटी की तरह गूंथ लिया जाता है या फिर कटे सिरों को नीचे की ओर मोड़कर फंसा दिया जाता है और हमारी टोकरी तैयार है। चाहो तो बेचो या घर पर ही काम में ले लो।
प्रश्न 11.
बाँस से क्या-क्या चीजें बनाई जाती हैं?
उत्तर :
बाँस से चटाइयाँ, टोकरियाँ, बरतन, बैलगाडियाँ, फर्नीचर, खिलौने, सजावटी सामान, जाल, मकान, पुल आदि चीजे बनाई जाती हैं।
साँस-साँस में बाँस Summary in Hindi
साँस-साँस में बाँस पाठ का सार
इस पाठ में बाँस के विविध उपयोग बताए गए हैं। एक जादूगर थे-‘चंगकीचंगलनबा’। वे जब मरने लगे तो बोले-“मुझे दफनाए जाने के छठे दिन मेरी कब्र खोदकर देखोगे तो कुछ नया-सा पाओगे।” छठे दिन जब उनकी कब्र खोदी गई तो उसमें से बाँस की टोकरियों के कई डिजाइन निकले। लोगों ने उनकी नकल करके और नए डिजाइन बनाए।
भारत के अनेक हिस्सों में बाँस बहुत अधिक मात्रा में होते हैं। भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के सातों राज्यों में बाँस बहुत उगता है। वहाँ बाँस की चीजें बनाने का बहुत रिवाज है। नागालैंड का प्रत्येक नागा बाँस की चीजें बनाने में उस्ताद होता है। बाँस और इंसान का रिश्ता बहुत पुराना है। बॉस से केवल टोकरियाँ ही नहीं बनाई जातीं, बल्कि बाँस की खपच्चियों से चटाइयाँ, टोपियाँ, टोकरियाँ, बरतन, बैलगाड़ियाँ, फर्नीचर, सजावटी सामान, जाल, मकान, पुल और बहुत सी चीजें बनाई जाती हैं।
असम में एक ऐसे ही जाल, जकाई से मछली पकड़ते हैं। छोटी मछलियों को पकड़ने के लिए इसे पानी की सतह पर रखा जाता है। बाँस की खपच्चियों को इस तरह बाँधा जाता है कि वे एक शंकु का आकार ले लें। इसका ऊपरी सिरा अंडाकार होता है। खपच्चियों से तरह-तरह की टोपियाँ भी बनाई जाती हैं। असम के चाय बागानों में लोग ऐसी ही टोपियाँ पहनते हैं तथा उनकी पीठ पर टोकरी टॅगी होती हैं।
जुलाई से अक्टूबर तक बारिश के महीने होते हैं। तब वहाँ के लोगों को खाली वक्त मिल जाता है। इस वक्त में वे जंगलों से बाँस इकट्ठा करते हैं। वे प्रायः एक से तीन साल की उम्र वाले बाँस काटते हैं। बूढ़े बाँस सख्त होते हैं और टूट भी जाते हैं। बाँस की शाखाएँ पत्तियों से अलग कर दी जाती हैं। दूर-दूर गठानों वाले बाँस चुने जाते हैं। इन्हें छीलकर खपच्चियाँ तैयार की जाती हैं। खपच्चियों की लंबाई पहले से तय कर ली जाती है। आमतौर पर खपच्चियों की चौड़ाई एक इंच से ज्यादा नहीं होती।
चौड़ी खपच्चियों को चीरकर पतली खपच्चियाँ बनाई जाती हैं। पतली खपच्चियाँ लचीली होती हैं। खपच्चियाँ बाएँ हाथ में होती हैं और दाओ दाएँ हाथ में। दाओ का धारदार सिरा खपच्ची को दबाए रहता है। दायाँ अँगूठा दाओ को अंदर की ओर दबाता है। खपच्ची को घिसकर चिकना किया जाता है। खपच्चियों की रँगाई के लिए गुड़हल तथा इमली की पत्तियों का प्रयोग किया जाता है।
काले रंग के लिए उन्हें आम की छाल में लपेटकर कुछ दिनों के लिए मिट्टी में दबाकर रखा जाता है। बाँस की बुनाई वैसे ही होती है जैसे कोई और बुनाई। चेक का डिजाइन भी बनाया जाता है। पलंग की निवाड़ की तरह बुनाई की जाती है। अनेक तरह के डिजाइन भी बनाए जाते हैं। टोकरी के सिरे पर खपच्चियों को या तो चोटी की तरह गूंथ लिया जाता है या फिर कटे सिरों को नीचे की ओर मोड़कर फँसा दिया जाता है। बस टोकरी तैयार हो गई।