Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 4 कार्यपालिका Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 11th Class Political Science Solutions Chapter 4 कार्यपालिका
HBSE 11th Class Political Science कार्यपालिका Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
संसदीय कार्यपालिका का अर्थ होता है
(क) जहाँ संसद हो वहाँ कार्यपालिका का होना
(ख) संसद द्वारा निर्वाचित कार्यपालिका
(ग) जहाँ संसद कार्यपालिका के रूप में काम करती है
(घ) ऐसी कार्यपालिका जो संसद के बहुमत के समर्थन पर निर्भर हो
उत्तर:
(घ) ऐसी कार्यपालिका जो संसद के बहुमत के समर्थन पर निर्भर हो।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित संवाद पढ़ें। आप किस तर्क से सहमत हैं और क्यों?
अमित – संविधान के प्रावधानों को देखने से लगता है कि राष्ट्रपति का काम सिर्फ ठप्पा मारना है।
शमा – राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है। इस कारण उसे प्रधानमंत्री को हटाने का भी अधिकार होना चाहिए।
राजेश – हमें राष्ट्रपति की ज़रूरत नहीं। चुनाव के बाद, संसद बैठक बुलाकर एक नेता चुन सकती है जो प्रधानमंत्री बने।
उत्तर:
उक्त तीनों संवादों से पता चलता है कि संसदीय व्यवस्था में राष्ट्रपति की स्थिति पर चर्चा की गई है। प्रथम संवाद के अनुसार राष्ट्रपति को रबर स्टांप बताया गया है। उक्त कथन को हमें संसदीय शासन प्रणाली के अनुरूप देखना चाहिए जिसमें राष्ट्रपति की भूमिका संवैधानिक मुखिया के रूप में निश्चित की गई है। इसलिए संविधान में प्रदत अपनी शक्तियों का प्रयोग वह वास्तविक मुखिया प्रधानमंत्री के परामर्श पर ही करता है। इसी कारण उसकी स्थिति संदेहात्मक हो जाती है। लेकिन उसका पद गौरव और गरिमा का पद है।
दूसरा कथन प्रधानमंत्री की नियुक्ति पदच्युति पर राष्ट्रपति के अधिकारों की स्थिति के सम्बन्ध में है। इस कथन के सम्बन्ध में मैं स्पष्ट करना चाहता हूँ कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 75 के अनुसार प्रधानमंत्री की नियुक्ति देश के राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। इस नियक्ति के संबंध में वस्ततः राष्ट्रपति के अधिकार सीमित है क्योंकि संसदीय प्रणाली के सिद्धांत के अनुसार राष्ट्रपति लोकसभा में बहमत दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है।
यद्यपि कुछ विशेष परिस्थिति में राष्ट्रपति को स्वैच्छिक शक्ति का प्रयोग करने का अधिकार प्राप्त है; जैसे यदि लोकसभा में किसी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो तो ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रपति अपनी इच्छानुसार संसद के किसी भी सदन के सदस्य को जिस पर उन्हें लोकसभा में बहुमत सिद्ध करने का विश्वास हो उसे प्रधानमंत्री नियुक्त कर सकता है। यद्यपि उन्हें एक ‘निश्चित’ अवधि में बहुमत सिद्ध करने के लिए कहा जाता है। इसी क्रम यह कहना कि राष्ट्रपति को विशेष परिस्थिति में प्रधानमंत्री को हटाने का अधिकार भी प्राप्त होना चाहिए ताकि वह परिस्थिति के अनुसार उसका प्रयोग कर सके।
यहाँ मैं यह स्पष्ट करना चाहूँगा कि प्रधानमंत्री को लोकसभा के प्रति उत्तरदायी ठहराया गया है। ऐसे में विशेष परिस्थिति में भी यह अधिकार जनता के प्रतिनिधियों को ही होना चाहिए न कि राष्ट्रपति को हटाने का अधिकार दिया जाए। तीसरे संवाद के अनुसार राष्ट्रपति की उपस्थिति व्यर्थ बताई गई है। परंतु इस संदर्भ में यह कहना उचित होगा कि आज जिस तरह छोटे-छोटे दल उभर रहे हैं और कई बार किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
राष्ट्रपति अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए संसद के किसी भी सदन के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकता है। इसके अतिरिक्त हमने संविधान में संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया है जिसमें दो प्रकार की कार्यपालिका-संवैधानिक एवं वास्तविक होनी अनिवार्य है। प्रधानमंत्री हमारी वास्तविक कार्यपालिका अध्यक्ष है तो राष्ट्रपति संवैधानिक कार्यपालिका की पूर्ति करता है। इसलिए हम राष्ट्रपति के पद को समाप्त नहीं कर सकते।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित को सुमेलित करें
(क) भारतीय विदेश सेवा जिसमें बहाली हो उसी प्रदेश में काम करती है।
(ख) प्रादेशिक लोक सेवा केंद्रीय सरकार के दफ्तरों में काम करती है जो या तो देश की राजधानी में होते हैं या देश में कहीं ओर।
(ग) अखिल भारतीय सेवाएँ जिस प्रदेश में भेजा जाए उसमें काम करती है, इसमें प्रतिनियुक्ति पर केंद्र में भी भेजा जा सकता है।
(घ) केंद्रीय सेवाएँ भारत के लिए विदेशों में कार्यरत।
उत्तर:
(क) भारतीय विदेश सेवा – भारत के लिए विदेशों में कार्यरत।
(ख) प्रादेशिक लोक सेवा – जिसमें बहाली हो उसी प्रदेश में काम करती है।
(ग) अखिल भारतीय सेवाएँ – जिस प्रदेश में भेजा जाए उसमें काम करती है। इसमें प्रतिनियुक्ति पर केंद्र में भी भेजा जा सकता है।
(घ) केंद्रीय सेवाएँ – केंद्रीय सरकार के दफ्तरों में काम करती है जो या तो देश की राजधानी में होते हैं या देश में कहीं ओर।
प्रश्न 4.
उस मंत्रालय की पहचान करें जिसने निम्नलिखित समाचार को जारी किया होगा। यह मंत्रालय प्रदेश की सरकार का है या केंद्र सरकार का और क्यों?
(क) आधिकारिक तौर पर कहा गया है कि सन् 2004-05 में तमिलनाडु पाठ्यपुस्तक निगम कक्षा 7, 10 और 11 की नई पुस्तकें जारी करेगा।
(ख) भीड़ भरे तिरूवल्लुर-चेन्नई खंड में लौह-अयस्क निर्यातकों की सुविधा के लिए एक नई रेल लूप लाइन बिछाई जाएगी। नई लाइन लगभग 80 कि०मी० की होगी। यह लाइन पुटुर से शुरू होगी और बंदरगाह के निकट अतिपटू तक जाएगी।
(ग) रमयमपेट मंडल में किसानों की आत्महत्या की घटनाओं की पुष्टि के लिए गठित तीन सदस्यीय उप-विभागीय समिति ने पाया कि इस माह आत्महत्या करने वाले दो किसान फ़सल के मारे जाने से आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे थे।
उत्तर:
(क)उक्त प्रश्न में प्रथम समाचार राज्य मंत्रिमंडल द्वारा जारी किया गया है, जो राज्य सरकार के अधीन शिक्षा मंत्रालय के कार्यक्षेत्र में आता है। ये पुस्तकें इसलिए जारी करेगा क्योंकि सन् 2004-05 में नए सत्र का आरंभ होगा जिसमें तमिलनाडु पाठ्यपुस्तक निगम कक्षा 7, 10 और 11 में नई पुस्तकें होंगी। शिक्षा संघ एवं राज्य दोनों का विषय है।
(ख) दूसरा समाचार रेल मंत्रालय द्वारा जारी किया गया है। यह कार्य केंद्र सरकार के अधीन रेल मंत्रालय द्वारा लौह-अयस्क निर्यातकों की सुविधा को ध्यान में रखकर किया गया है। रेल सम्बन्धी विषय संघ सूची के अन्तर्गत केन्द्र सरकार के अधीन आता है।
(ग) तीसरा समाचार भी राज्य मंत्रिमण्डल के अधीन कृषि मंत्रालय द्वारा जारी किया गया है। यद्यपि यह विषय समवर्ती सूची के अन्तर्गत आता है। उस आधार पर केंद्र सरकार राज्य सरकार के माध्यम से किसानों को विभिन्न प्रकार की योजनाओं के द्वारा सहायता प्रदान करने का कार्य भी कर सकती है।
प्रश्न 5.
प्रधानमंत्री की नियुक्ति करने में राष्ट्रपति
(क) लोकसभा के सबसे बड़े दल के नेता को चुनता है।
(ख) लोकसभा में बहुमत अर्जित करने वाले गठबंधन-दलों में सबसे बड़े दल के नेता को चुनता है।
(ग) राज्यसभा के सबसे बड़े दल के नेता को चुनता है।
(घ) गठबंधन अथवा उस दल के नेता को चुनता है जिसे लोकसभा के बहुमत का समर्थन प्राप्त हो।
उत्तर:
(घ) गठबंधन अथवा उस दल के नेता को चुनता है जिसे लोकसभा के बहुमत का समर्थन प्राप्त हो।
प्रश्न 6.
इस चर्चा को पढ़कर बताएँ कि कौन-सा कथन भारत पर सबसे ज्यादा लागू होता है
आलोक – प्रधानमंत्री राजा के समान है। वह हमारे देश में हर बात का फ़ैसला करता है।
शेखर – प्रधानमंत्री सिर्फ ‘बराबरी के सदस्यों में प्रथम’ है। उसे कोई विशेष अधिकार प्राप्त नहीं। सभी मंत्रियों और प्रधानमंत्री के अधिकार बराबर हैं।
बॉबी – प्रधानमंत्री को दल के सदस्यों तथा सरकार को समर्थन देने वाले सदस्यों का ध्यान रखना पड़ता है। लेकिन कुल मिलाकर देखें तो नीति-निर्माण तथा मंत्रियों के चयन में प्रधानमंत्री की बहुत ज्यादा चलती है।
उत्तर:
उपर्युक्त कथनों में बॉबी द्वारा व्यक्त किया गया कथन भारत पर सबसे ज्यादा लागू होता है क्योंकि देश का प्रधानमंत्री बहुमत दल का नेता होने के साथ-साथ लोकसभा का नेता भी होता है। प्रधानमंत्री की शक्तियाँ एवं अधिकार व्यापक है।
प्रश्न 7.
क्या मंत्रिमंडल की सलाह राष्ट्रपति को हर हाल में माननी पड़ती है? आप क्या सोचते हैं? अपना उत्तर अधिकतम 100 शब्दों में लिखें।
उत्तर:
भारत में संसदीय शासन-प्रणाली होने के कारण राष्ट्रपति नाममात्र का अध्यक्ष है। भारतीय संविधान के निर्माण के समय डॉ० बी० आर० अम्बेडकर (Dr. B.R. Ambedkar) ने कहा था, “राष्ट्रपति की वैसी ही स्थिति है जैसी ब्रिटिश संविधान में सम्राट की है। वह राज्य का मुखिया है, कार्यपालिका का नहीं।” इसी विचार का समर्थन करते हुए भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद (Dr. Rajendra Prasad) ने कहा था,
“यद्यपि संविधान में कोई ऐसी धारा नहीं रखी गई है जिसके अनुसार राष्ट्रपति के लिए मंत्रिमंडल की सलाह मानना आवश्यक हो, परन्तु यह आशा की जाती है कि जिस संवैधानिक परम्परा के अनुसार इंग्लैण्ड में सम्राट् सदा ही अपने मंत्रियों का परामर्श मानता है, उसी प्रकार की परम्परा भारत में भी स्थापित की जाएगी और राष्ट्रपति एक सवैधानिक शासक अर्थात् मुखिया बन जाएगा।”
इसके बावजूद भी कुछ विद्वानों का यह मत था कि राष्ट्रपति मंत्रिमंडल के परामर्श को मानने के लिए बाध्य नहीं है। परन्तु अब संविधान के 42वें संशोधन (1976) द्वारा राष्ट्रपति की स्थिति को बिल्कुल स्पष्ट कर दिया गया है। अब संविधान के अनुच्छेद 74 में संशोधन करके इसे इस प्रकार बना दिया गया है, “राष्ट्रपति को परामर्श तथा सहायता देने के लिए प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक मंत्रि-परिषद् होगा तथा राष्ट्रपति उसके परामर्श के अनुसार कार्य करेगा।” इस प्रकार अब राष्ट्रपति केवल सवैधानिक मुखिया (Constitutional Head) है और वह मंत्रि-परिषद् के परामर्श के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य है।
प्रश्न 8.
संसदीय-व्यवस्था में कार्यपालिका को नियंत्रण में रखने के लिए विधायिका को बहुत-से अधिकार दिए हैं। कार्यपालिका को नियंत्रित करना इतना जरूरी क्यों है? आप क्या सोचते हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुसार देश में संसदीय शासन की व्यवस्था की गई है। संसदीय शासन व्यवस्था विशेषतः विधानमंडल एवं कार्यपालिका के घनिष्ठ सम्बन्धों पर आधारित होती है। इन्हीं सम्बन्धों के आधार पर ब्रिटेन की तरह भारत में भी मंत्रिमंडल का निर्माण संसद में से किया जाता है। संसद के निम्न सदन लोकसभा में जिस राजनीतिक दल अथवा दलीय गठबन्धन को पूर्ण बहुमत प्राप्त हो जाता है उस दल के नेता को राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाता है और फिर प्रधानमंत्री के परामर्श के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा अन्य मंत्रियों की नियुक्ति की जाती है।
इसके साथ-साथ विधानमंडल के प्रति मंत्रिमंडल का सामूहिक उत्तरदायित्व संसदीय शासन-प्रणाली की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 75 में कहा गया है, “मंत्रि-परिषद् सामूहिक रूप में लोकसभा के सामने उत्तरदायी है।” इसका अर्थ यह है कि मंत्रिमंडल जो भी निर्णय संसद तथा देश के सामने रखता है प्रत्येक मंत्री उसके लिए उत्तरदायी होता है। मंत्रिमंडल तब तक ही कार्य करता है जब तक वह विधायिका के निम्न सदन लोकसभा के प्रति पूर्णतः उत्तरदायित्व का निर्वाह करता है। इसके अतिरिक्त संसद के पास भी कार्यपालिका पर नियन्त्रण रहते अनेक अधिकार; जैसे अधिवेशन के दौरान प्रश्न पूछकर, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, स्थगन प्रस्ताव, निन्दा प्रस्ताव एवं अविश्वास प्रस्ताव आदि दिए गए हैं।
ऐसा करना आवश्यक भी है, क्योंकि कार्यपालिका देश के शासन का सबसे प्रमुख अंग है। इसकी शक्ति असीमित है। इसका वास्तविक अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। चूंकि प्रधानमंत्री जनता द्वारा निर्वाचित होता है अत: वह जनता के प्रति उत्तरदायी भी होना चाहिए, जो वह लोकसभा के प्रति उत्तरदायित्व के आधार पर निभाता है।
यदि कार्यपालिका को विधायिका नियंत्रण में न रखे तो इसके निरंकुश होने की संभावना अत्यधिक हो सकती है और वह कोई भी असंवैधानिक कार्य कर सकता है। परंतु विधायिका का नियंत्रण होने से उसमें यह भय बना रहता है कि यदि ऐसा किया गया तो संसद अथवा विधायिका अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर संघीय मन्त्रि-परिषद् एवं उसके मुखिया प्रधानमंत्री को त्यागपत्र देने के लिए बाध्य कर सकती है। अतः इसीलिए संसदीय शासन को उत्तरदायी शासन कहा जाता है।
प्रश्न 9.
कहा जाता है कि प्रशासनिक-तंत्र के कामकाज में बहुत ज्यादा राजनीतिक हस्तक्षेप होता है। सुझाव के तौर पर कहा जाता है कि ज्यादा से ज्यादा स्वायत्त एजेंसियाँ बननी चाहिए जिन्हें मंत्रियों को जवाब न देना पड़े।
(क) क्या आप मानते हैं कि इसमें प्रशासन ज्यादा जन-हितैषी होगा?
(ख) क्या आप मानते हैं कि इससे प्रशासन की कार्य कुशलता बढ़ेगी?
(ग) क्या लोकतंत्र का अर्थ यह होता है कि निर्वाचित प्रतिनिधियों का प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण हो?
उत्तर:
(क) जैसा कि सर्वविदित है कि भारत एक लोक कल्याणकारी राज्य है, जहाँ प्रशासनिक तंत्र जनता और सरकार के बीच एक कड़ी का काम करता है। सरकार द्वारा जनहित में बनाए गए कानून इसी तंत्र के द्वारा क्रियान्वित कर जनता तक पहुँचाए जाते हैं। दूसरी ओर यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि प्रशासनिक तंत्र अथवा नौकरशाही में अहंभाव एवं मालिक बनने की भावना होती है जिससे जनसाधारण प्रशासनिक अधिकारियों तक नहीं पहुँच पाते है तथा नौकरशाही भी आम नागरिकों की माँगों और आशाओं के प्रति संवेदनशील नहीं होती है।
इसी कारण लोकतंत्रीय ढंग से निर्वाचित सरकार का महत्त्व नौकरशाही को नियंत्रित करने एवं जन समस्याओं को प्रभावी तरीके से हल करने में बढ़ जाता है। परंतु इसका दूसरा परिणाम यह भी होता है कि इससे नौकरशाही राजनीतिज्ञों के हाथों की कठपुतली बन जाती है। अत: तमाम समस्याओं के निदान के लिए यह सुझाव दिया जा सकता है कि स्वायत्त एजेंसियाँ स्थापित होनी चाहिए। इस तरह की एजेंसियाँ प्रायः सरकार अथवा राजनीतिज्ञ हस्तक्षेप से मुक्त रहती है जिससे प्रशासन के जन-हितैषी बनने की अधिक सम्भावनाएँ होगी।
(ख) स्वायत्त एजेंसियाँ स्थापित होने से प्रशासन की कार्य कुशलता अवश्य बढ़ेगी, क्योंकि राजनीतिक हस्तक्षेप से इनका कार्य बहुत प्रभावित होता है और प्रशासनिक अधिकारी कोई भी कार्य स्वतंत्र एवं निष्पक्ष वातावरण में नहीं कर पाते हैं। स्वायत्त एजेंसियों के स्थापित होने से ये अपना कार्य अधिक से अधिक कुशलता पूर्वक करने में सफल हो सकते हैं।
(ग) लोकतंत्र का अर्थ जनता द्वारा निर्वाचित हुई सरकार से होता है, जहाँ शासन का संचालन जनता की इच्छाओं एवं आकांक्षाओं के अनुरूप हो। परंतु प्रतिनिधियों का प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण हो, यह उचित नहीं है। क्योंकि प्रशासनिक तंत्र एक स्वतंत्र निकाय है। यह सरकार द्वारा बनाई गई नई नीतियों को क्रियात्मक रूप प्रदान करता है। यदि यह राजनीतिज्ञों के नियंत्रण में हो जाएगा तो पूरी व्यवस्था अव्यवस्थित हो जाएगी और जनता के हितों की उपेक्षा होने लगेगी। जिससे प्रशासन का वास्तविक उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा।
प्रश्न 10.
नियुक्ति आधारित प्रशासन की जगह निर्वाचन आधारित प्रशासन होना चाहिए – इस विषय पर 200 शब्दों में एक लेख लिखो।
उत्तर:
इस प्रश्न के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि नियुक्ति आधारित प्रशासन की जगह निर्वाचन आधारित प्रशासन होना सर्वथा अनुचित होगा, क्योंकि भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश, जहाँ कि जनसंख्या ही लगभग 130 करोड़ से अधिक है और जहाँ ..कि लोकतांत्रिक व्यवस्था अभूतपूर्व है लेकिन प्रशासनिक कार्य कुशलता की दृष्टि से निम्न श्रेणी में आता हो वहाँ निर्वाचन पद्धति को आधार बनाकर नियुक्ति करने का कोई औचित्य नहीं है। इसके अतिरिक्त ऐसी पद्धति से सत्ता में बैठे भ्रष्ट नेताओं को, जो अपने-अपने क्षेत्र की जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं, अपने चेहतों एवं समर्थकों को प्रशासनिक अधिकारी बनाने का मौका मिल जाएगा।
जिसके द्वारा वे प्रशासनिक मामले में ज्यादा से ज्यादा हस्तक्षेप करने लगेंगे। जिसके परिणामस्वरूप प्रशासनिक भ्रष्टाचार जाएगी। अतः ऐसा करना बिल्कुल भी सही नहीं होगा क्योंकि अपराध से ग्रस्त इस देश में अपराधी न सिर्फ खुली हवा में इन नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से घूम सकेंगे बल्कि इससे अपराध का ग्राफ भी काफी बढ़ जाएगा।
अन्य महत्त्वपूर्ण बात यह है कि प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति एक स्वतंत्र निकाय के द्वारा परीक्षाओं के माध्यम से होने से प्रतिभागियों की विभागीय क्षमता और प्रशासनिक कार्य कुशलता को आँका जाता है। इसके साथ-साथ उनसे ये अपेक्षा भी की जाती है कि वे विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी इस विशाल देश की जनता की भावनाओं और संवेदनाओं का आदर करते हुए अपनी कार्यक्षमता का परिचय देंगे और विषम से विषम परिस्थितियों का सामना भी सफलतापूर्वक करेंगे, जो निर्वाचन आधारित प्रशासन के . द्वारा कतई संभव नहीं लगता है।
कार्यपालिका HBSE 11th Class Political Science Notes
→ सरकार राज्य का आवश्यक तत्त्व है। यह राज्य का कार्यवाहक यन्त्र है जो राज्य की इच्छा को निर्धारित, व्यक्त व क्रियान्वित करता है। सरकार के बिना राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती, क्योंकि सरकार राज्य का मूर्त रूप है।
→ सरकार को राज्य की आत्मा कहा जा सकता है। सरकार राज्य का वह यन्त्र है जिस पर राज्य को कानून बनाने, उन्हें क्रियान्वित तथा उनकी व्याख्या करने की जिम्मेवारी होती है।
→ सरकार के तीनों अंगों में से कार्यपालिका सरकार का दूसरा महत्त्वपूर्ण अंग है, जो विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानूनों को लागू करता है। वास्तव में यह वह धुरी है जिसके चारों ओर राज्य का शासन तन्त्र घूमता है।
→ विशाल अर्थों में ‘कार्यपालिका’ शब्द का प्रयोग सरकार के उन सभी अधिकारियों के लिए किया जाता है जो विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानूनों को लागू करने का कार्य करते हैं।
→ इस प्रकार राज्य के अध्यक्ष से लेकर छोटे-से-छोटे कर्मचारी तक कार्यपालिका में आ जाते हैं परन्तु राजनीतिक विज्ञान में कार्यपालिका का विशेष अर्थ है।
→ इस अध्याय में हम कार्यपालिका के अर्थ, प्रकार, कार्य तथा भारत की संसदीय व्यवस्था के अधीन संघीय एवं राज्य स्तरीय कार्यपालिका के गठन एवं इसके कार्यों का उल्लेख करते हुए नौकरशाही रूपी कार्यपालिका पर भी दृष्टिपात करेंगे।