Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 12th Class Biology Solutions Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत
प्रश्न 1.
मेंडल द्वारा प्रयोगों के लिए मटर के पौधे चुनने से क्या लाभ हुए?
उत्तर:
मेंडल ने अपने अध्ययन के लिये मटर के पौधों का चयन निम्न कारणों से किया-
(i) मटर का पौधा वार्षिक (Annual) होता है अतः इसमें अल्प जीवन- चक्र होने के कारण कई पीढ़ियों का अध्ययन आसानी से किया जा सकता है।
(ii) मटर के पुष्प द्विलिंगी (Bisexual) अर्थात् नर व मादा जननांग एक ही पुष्प में उपस्थित होते हैं।
(iii) मटर के पुष्प में स्वपरागण (Self-pollination) की अधिकता होती है। इसमें आसानी से कृत्रिम रूप से परपरागण (Artificial cross-pollination) किया जा सकता है।
(iv) स्व-निषेचन (Self-fertilization) होने के कारण मटर के पौधों में गुणों की शुद्धता (Purity of Characters) कई पीढ़ियों तक बनी रहती है।
(v) इनके पौधों में कई लक्षण विपरीत प्रभाव दर्शाते हैं अर्थात् विपर्यासी (Contrasting Characters) गुण उपस्थित होते हैं जैसे कि पौधे का लम्बा (tall) व कद का छोटा (dwarf) होना इत्यादि। मेंडल ने मटर की विभिन्न किस्मों में 7 विपर्यासी लक्षण चुने थे।
प्रश्न 2.
निम्न में भेद करो –
(क) प्रभाविता और अप्रभाविता
(ख) समयुग्मजी और विषमयुग्मजी
(ग) एकसंकर और द्विसंकर।
उत्तर:
(क) प्रभाविता और अप्रभाविता ( Dominant and Recessive ) – मेंडल ने मटर के पादपों पर प्रयोग करते समय देखा कि लम्बे व बौने (dwari) पादपों के मध्य क्रॉस करवाने पर प्रथम संतानीय पीढ़ी (F) में केवल एक ही लक्षण प्राप्त होता है जो प्रभावी लक्षण (Dominant Character) कहलाता है। दूसरा लक्षण जो F में अदृश्य रह जाता है तथा प्रदर्शित नहीं होता, अप्रभावी लक्षण (Recessive Character) कहलाता है।
(ख) समयुग्मजी और विषमयुग्मजी (Homozygous and Heterozygous ) – जब एक जीव में जीन के दोनों सदस्य समान हों तो उसे समयुग्मजी कहते हैं; जैसे – ‘CC’ अथवा ‘cc’। जब जीव के जीन के दोनों सदस्य असमान हों तो उसे विषमयुग्मजी कहते हैं; जैसे- ‘Cc’ या ‘Tt’
(ग) एक संकर और द्विसंकर (Monohybrid and Dihybrid) – जब एक जीन की वंशागति का अध्ययन किया जाता है या प्रयोग में केवल एक ही लक्षण को मुख्य रूप से लिया जाता है अथवा एक लक्षण के युग्म विकल्पों का प्रयोग होता है तो इसे एक संकर संकरण कहते हैं। ऐसे संकरण में F2 पीढ़ी में 31 का अनुपात प्राप्त होता है। जब दो जीन की वंशागति का अध्ययन किया जाता है या प्रयोग में दो जोड़े युग्म विकल्पी लिये जाते हों तब इसे द्विसंकर संकरण कहते हैं। इसमें F2 पीढ़ी में 9 : 3 : 3 : 1 का अनुपात मिलता है।
प्रश्न 3.
कोई द्विगुणित जीन 6 स्थलों के लिये विषमयुग्मजी हैं, कितने प्रकार के युग्मकों का उत्पादन सम्भव है?
उत्तर:
इसके लिये 2 सूत्र का उपयोग करते हैं –
n = स्थल
विषमयुग्मनजी जीव में 6 स्थल हैं।
अतः n = 6
2n = 26 अर्थात् 2 x 2 x 2 x 2 x 2 x 2
विषमयुग्मनजी जीव में 64 प्रकार के युग्मकों का उत्पादन होगा।
प्रश्न 4.
एकसंकर क्रॉस का प्रयोग करते हुए, प्रभाविता नियम की व्याख्या करो।
उत्तर:
मेंडल ने अपने प्रयोग मटर पर किये थे। मेंडल ने प्रयोगों के लिए मटर के सात युग्मविकल्पी (allelomorph ) लक्षणों का चयन किया था। प्रत्येक युग्म में दोनों गुण एक-दूसरे के युग्मविकल्पी (allel) होते हैं; जैसे- लम्बा (tall ) व बौना (dwarf), लाल व सफेद, पीला व हरा आदि। मेंडल ने एक-एक करके सातों युग्मविकल्पों के जनक पादपों से सन्तति में संचारण (transmission) का अध्ययन किया और प्रत्येक दशा में परिणाम को एक-सा पाया।
उदाहरण के लिये, जब शुद्ध लाल पुष्प वाली मटर की किस्म का संकरण शुद्ध सफेद पुष्प वाली किस्म से किया। इससे प्रथम संकरण संतति (first filial generation) या F में लाल पुष्प वाले पौधे बने। लाल पुष्पों वाली प्रथम संकरण संतति (F) को स्वपरागित कर, मेंडल ने F2 या द्वितीय संकर संतति प्राप्त की। इसमें लाल पुष्प वाले पौधे और सफेद पुष्प वाले पौधे दोनों ही पाये गये। इस द्वितीय संकर संतति (F2) में दोनों प्रकार के पौधे एक निश्चित अनुपात 3 :1 में थे। दूसरे शब्दों में दोनों प्रकार के पौधे एक निश्चित अनुपात 3 :1 में थे। दूसरे शब्दों में 75% लाल पुष्प सन्तति व 25% सफेद पुष्प संतति प्राप्त हुई।
RR, Rr, Rr = लाल पुष्प वाली संतति rr = सफेद पुष्प वाली संतति अतः अनुपात 31 होता है। इस संकरण के आधार पर मेंडल ने प्रभाविता का नियम बताया। नियम के अनुसार कारक युग्म (Pairs of Factors) का एक कारक (gene) युग्म के दूसरे कारक के प्रभाव को अभिव्यक्त (express ) नहीं होने देता है। जैसे इस क्रॉस में F पीढ़ी में एक युग्मविकल्प जैसे लाल रंग दूसरे युग्मविकल्प यानी सफेद रंग पर प्रभावी हो जाने से सफेद रंग अभिव्यक्त नहीं हो पाता है। यही कारण है कि पीढ़ी में सफेद रंग की जीन होते हुये भी इस पीढ़ी के सभी पादप लाल पुष्पों वाले होते हैं।
अत: यह लक्षण (लाल रंग ) जो प्रभावी होने के कारण F) पीढ़ी में अभिव्यक्त होता है, उसे मेंडल ने प्रभावी लक्षण (Dominant Character) कहा तथा वह गुण जो प्रभावी कारक या लक्षण की उपस्थिति में अभिव्यक्त नहीं हो पाता है या प्रभावी लक्षण द्वारा ढक जाता है, उसे मेंडल ने अप्रभावी लक्षण (Recessive ) की संज्ञा दी। प्रभावी लक्षण को अंग्रेजी भाषा के बड़े अक्षर जिससे उस गुण का नाम आरम्भ होता है, चिन्हित किया जाता है व अप्रभावी लक्षण को अंग्रेजी भाषा के छोटे अक्षर द्वारा चिन्हित करते हैं (उदाहरण- पुष्प के लाल रंग को R व सफेद रंग को से लिखते हैं )।
प्रश्न 5.
परीक्षार्थ संकरण की परिभाषा लिखो और चित्र बनाओ।
उत्तर:
जब F1 पीढ़ी के जीवों का अप्रभावी जनक (Recessive Parents) के साथ संकरण कराते हैं, उसे परीक्षार्थ संकरण कहते हैं। ऐसे संकरण से होने वाली संतति में 50% शुद्ध अप्रभावी तथा 50% प्रभावी (संकर गुण लिये हुये ) प्राप्त होते हैं। उदाहरण के लिये, यदि F1 पीढ़ी के लाल फूलों (संकर ) का संकरण अप्रभावी जनक सफेद फूलों (शुद्ध) से करते हैं तब हमें फीनोटाइप तथा जीनोटाइप दोनों ही प्रकार से 11 के अनुपात में लाल तथा सफेद फूलों वाले पौधे मिलते हैं।
फीनोटाइप अनुपात – 2 लाल : 2 सफेद या 11 2m या 1 : 1 जीनोटाइप अनुपात – 2 Rr : 2 rr या 1 : 1
प्रश्न 6.
एक ही जीन स्थल वाले समयुग्मजी मादा और विषमयुग्मजी नर के संकरण से प्राप्त प्रथम संतति पीढ़ी के फीनोटाइप वितरण का पनेट वर्ग बनाकर प्रदर्शन करो।
उत्तर:
मान लीजिये कि यहां पौधे का लक्षण पुष्प का रंग लाल व सफेद ले रहे हैं तो संकरण निम्न प्रकार से होगा। प्रश्न में प्रभावी व अप्रभावी नहीं दिया गया है अतः दोनों प्रकार की क्रॉस बताई जा रही है। एक उदाहरण में प्रभावी समयुग्मजी मादा तथा दूसरे में अप्रभावी समयुग्मजी मादा का क्रॉस बताया जा रहा है-
नर जनक विषमयुग्मजी है तो उसका जीनोटाइप Rr होगा। मादा जनक समयुग्मजी है तो उसका जीनोटाइप RR या rr होगा ।
सभी जनक अर्थात् फीनोटाइप लाल रंग के होंगे (फीनोटाइप अनुपात नहीं होगा)। जीनोटाइप अनुपात 2 RR : 2Rr अर्थात् 1 : 1 होगा।
फीनोटाइप अनुपात – 2 लाल : 2 सफेद अर्थात् 1 : 1 होगा। जीनोटाइप अनुपात – 2 Rr : 2 rr अर्थात् 1 : 1 होगा।
प्रश्न 7.
पीले बीज वाले लंबे पौधों (YyTt) का संकरण हरे बीज वाले लंबे (yyTt) पौधे से करने पर निम्न में से किस प्रकार के फीनोटाइप संतति की आशा की जा सकती है –
(क) लंबे हरे
(ख) बौने – हरे।
उत्तर:
इसमें लंबे-हरे 6 फीनोटाइप होंगे तथा बौने-हरे 2 फीनोटाइप होंगे।
प्रश्न 8.
दो विषमयुग्मजी जनकों का क्रॉस 3 और 4 किया गया। मान लें दो स्थल (loci ) सहलग्न हैं, तो द्विसंकर क्रॉस में F पीढ़ी के फीनोटाइप के लक्षणों का वितरण क्या होगा?
उत्तर:
जब क्रॉस में सहलग्न जीनें होती हैं तो वे मेंडलीय सिद्धान्तों का पालन नहीं करती हैं। सहलग्न जीन सदैव साथ-साथ जाती हैं।
F) अ पीढ़ी में चार प्रकार की संततियाँ होंगी-
प्रश्न 9.
आनुवंशिकी में टी. एच. मौरगन के योगदान का संक्षिप्त में उल्लेख करें।
उत्तर:
टी. एच. मौरगन ने आनुवंशिकी क्षेत्र में क्रोमोसोम – वाद या सिद्धांत के प्रयोगात्मक सत्यापन किए तथा गुणसूत्र सहलग्नता सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। मौरगन ने फल मक्खियों (फ्रूटफ्लाई- ड्रोसोफिला मेलनोगैस्टर, Drosophila melanogaster) पर काम किया, जो ऐसे अध्ययनों के लिये उपयुक्त थी। प्रयोगशाला में इसे कृत्रिम माध्यमों पर रखा जा सकता था और इसमें एकल मैथुन से विशाल संख्या में संतति मक्खियों का उत्पादन संभव था। इसके साथ ही इसमें लिंगों का विभेदन स्पष्ट था। इसमें नर व मादा की सरलता से पहचान की जा सकती थी। इसमें आनुवंशिक विविधताओं के अनेक प्रकार थे जो कम क्षमता वाले माइक्रोस्कोप से देखे जा सकते थे मौरगन ने ड्रोसोफिला पर प्रयोग करके सहलग्नता का सम्पूर्ण अध्ययन किया।
प्रश्न 10.
वंशावली विश्लेषण क्या है? यह विश्लेषण किस प्रकार उपयोगी है?
उत्तर:
मानव समाज में वंशागत विकार व्याप्त हैं तथा पुराने समय से इस बात को सुनते आ रहे हैं। कुछ परिवारों में यह भी कहा जाता है कि कुछ लक्षण वंशबद्ध होते हैं। जैसे ही मेंडल के कार्यों की पुनः खोज हुई त्यों ही मानव के लक्षण प्रतिरूपों की वंशागति के विश्लेषण की बात प्रारम्भ हुई। यह तो निश्चित है कि मटर के पौधे व अन्य जीवों में किये गए तुलनार्थ संकर प्रयोग मानव में संभव नहीं हैं। अतः वंशागत विकारों के सम्बन्ध में केवल एक ही रास्ता है कि विशेष लक्षण की वंशागति के संबंध में वंश के इतिहास का अध्ययन किया जाए। अनेक पीढ़ियों तक जारी लक्षणों के ऐसे विश्लेषण को वंशावली विश्लेषण कहते हैं। इस प्रक्रिया में वंश वृक्ष (Family Tree) में एक विशेष लक्षण का पीढ़ी दर पीढ़ी विश्लेषण (Pedigree Analysis ) किया जाता है।
मानव आनुवंशिकी में वंशावली अध्ययन एक महत्वपूर्ण उपकरण है जिसका उपयोग विशेष लक्षण, अपसामान्यता ( abnormality) या रोग का पता लगाने में किया जाता है। वंशावली विश्लेषण में प्रयुक्त कुछ महत्त्वपूर्ण मानक (Symbols) प्रतीकों को चित्र में दर्शाया गया है। (चित्र 5.14 देखें।) जैसा कि हम जानते हैं कि किसी जीव का प्रत्येक लक्षण गुणसूत्र ( Chromosome ) में विद्यमान DNA पर स्थित जीन में निहित होता है। DNA ही आनुवंशिक सूचना का वाहक है और यह बिना किसी परिवर्तन के एक से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होता जाता है। यह भी सुनिश्चित है कि यदा-कदा परिवर्तन या रूपांतरण होते रहते हैं। इस प्रकार के परिवर्तन या रूपांतरण को उत्परिवर्तन (Mutation) कहते हैं। मानव में कई विकार इस प्रकार के हैं, जिनका संबंध क्रोमोसोम या जीन के परिवर्तन या रूपांतरण से जोड़ा जा सकता है।
प्रश्न 11.
मानव में लिंग निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर:
मानव में लिंग निर्धारण XY प्रकार का होता है। मानव में कुल 23 जोड़े अर्थात् 46 गुणसूत्र होते हैं। नर में 44 गुणसूत्र अलिंग गुणसूत्र (Autosomes ) होते हैं तथा दो लिंग गुणसूत्र (Sex Chromosome) ‘X’ तथा ‘Y’ होते हैं। स्त्री या मादा में भी 44 गुणसूत्र ऑटोसोम (Autosomes) होते हैं तथा दो लिंग गुणसूत्र ‘X’ व ‘Y’ होते हैं। जब शुक्राणु बनते हैं तो 50% शुक्राणु 22 + X गुणसूत्र वाले तथा शेष 50% शुक्राणु 22 + Y गुणसूत्र वाले होते हैं। जबकि स्त्री या मादा के सभी अण्डों में 22+ X गुणसूत्र होते हैं। सन्तान में कितनी लड़कियाँ तथा कितने लड़के होंगे यह इस पर निर्भर करता है कि कौनसा शुक्राणु अण्ड से निषेचित करता है। मानव में नर बच्चे का होना ‘Y’ गुणसूत्र की उपस्थिति पर निर्भर करता है। एक शुक्राणु में केवल ‘X’ या ‘Y’ लिंग गुणसूत्र ही हो सकता है, अतः पिता का ‘X’ गुणसूत्र लड़कियों में तथा ‘Y’ गुणसूत्र लड़कों में मिलता है।
प्रश्न 12.
शिशु का रुधिर वर्ग 0 है। पिता का रुधिर वर्ग A और माता का B है। जनकों के जीनोटाइप मालूम कीजिए और अन्य संतति में प्रत्याशित जीनोटाइपों की जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
रुधिर वर्गों में वंशागति मेण्डल के नियमों के अनुसार होती है। इसकी वंशागति दो या अधिक तुलनात्मक लक्षणों वाले जीन्स (Genes) अर्थात् ऐलील्स (Alleles) पर निर्भर करती है। रुधिर वर्गों को स्थापित करने वाले प्रतिजन (Antigens) तथा इसकी उपस्थिति या अनुपस्थिति तीन जीन्स के कारण होती है। प्रतिजन ‘A’ के लिये जीन I, प्रतिजन ‘B’ के लिए जीन 1 तथा दोनों प्रतिजन के अभाव के लिए जीन 1° उत्तरदायी होते हैं। एक मुनष्य में इनमें से कोई एक ही प्रकार के दो जीन्स या दो प्रकार के जीन्स एक निश्चित स्थल (Loci) पर स्थित होते हैं। जीन I तथा I क्रमश: 1° पर प्रभावी होते हैं, जबकि जीन I तथा 1 में प्रभाविता का अभाव होता है अर्थात् ये सहप्रभावी (Codominant) होते हैं –
उदाहरण-A तथा B रुधिर वर्ग वाले माता-पिता की सम्भावित सन्तानों के रृधिर वर्गों का जीनोटाइप (genotype) निम्ननुसार होगा –
विभिन्न रुधिर वर्ग के व्यक्तियों के रुधिर वर्ग की जीनी संरचना निम्न तालिका के अनुसार हो सकती है –
‘O’ रुधिर वर्ग वाले शिशु के माता-पिता का जीनोटाइप 1 1 तथा 1h 1° है। ‘AB’ रुधिर वर्ग वाले का जीनोटाइप 1 1 A रुधिर वर्ग वाले का जीनोटाइप II°, ‘B’ रुधिर वर्ग वाले का जीनोटाइप I” I° और ‘O’ रुधिर वर्ग वाले का जीनोटाइप I° I° होगा।
प्रश्न 13.
निम्न शब्दों को उदाहरण सहित समझाइये –
(अ) सह-प्रभाविता
(ब) अपूर्ण प्रभाविता।
उत्तर:
(अ) सह प्रभाविता (Co-dominance) – सह-प्रभाविता में युग्मविकल्पी जोड़े (allelomorphic pairs) के सदस्य प्रभावी व अप्रभावी नहीं होते हैं और दोनों ही F पीढ़ी में समान रूप से प्रकट होते हैं, यह प्रक्रिया सह प्रभाविता कहलाती है। सह-प्रभाविता का अच्छा उदाहरण मानवों में ABO रुधिर वर्गों का निर्धारण करने वाली विभिन्न प्रकार की लाल रुधिर कोशिकाएँ हैं। ABO रुधिर वर्गों का नियन्त्रण जीन ” से होता है। लाल रुधिर कोशिकाओं की प्लाज्मा झिल्ली में सतह से बाहर निकलते हुए शर्करा बहुलक होते हैं। नियन्त्रण जीन ‘I’ ही बहुलक के प्रकार का निर्धारण करती है। नियन्त्रण जीन ‘I’ के तीन अलील IA, IB और होते हैं।
अलील IA और अलील 1″ कुछ भिन्न प्रकार की शर्करा का उत्पादन करते हैं और अलील किसी भी प्रकार की शर्करा का उत्पादन नहीं करती है। मानव जीन (21) द्विगुणित होता है। इसलिये प्रत्येक व्यक्ति में इन तीन में से दो प्रकार के जीन अलील होते हैं। तथा I तो i के ऊपर पूर्णरूप से प्रभावी होते हैं अर्थात् जब और विद्यमान हों तो केवल I अभिव्यक्त होता है और जब IB और विद्यमान हों तो केवल 1 अभिव्यक्त होता है, तो शर्करा बनाता ही नहीं है। जब I और IB दोनों उपस्थित हों तो ये दोनों अपने-अपने प्रकार की शर्करा को अभिव्यक्त कर देते हैं। यह घटना ही सह प्रभाविता है। इसी कारण लाल रुधिर कोशिकाओं में A और B दोनों प्रकार की शर्करा होती है।
(ब) अपूर्ण प्रभाविता ( Incomplete Dominance) -मेंडल के नियमों को जब मटर वाले प्रयोग को अन्य विशेषकों के सन्दर्भ में दोहराया गया तो पता चला कि कभी-कभार F में ऐसा फीनोटाइप आ जाता है जो किसी भी जनक से नहीं मिलता-जुलता है और इसके बीच का सा लगता है। मेंडल ने अपने प्रयोग में जिन सात जोड़ी लक्षणों का उपयोग किया उनमें से प्रत्येक कारक (जीन) की जोड़ी में एक विकल्पीय सदस्य प्रभावी व दूसरा सदस्य अप्रभावी था। किन्तु बाद में वैज्ञानिकों को ऐसे उदाहरण भी मिले जिनमें F पीढ़ी के दिखने वाले प्रभावी लक्षण के स्थान पर दूसरा लक्षण दिखाई देता है जो प्रभावी व अप्रभावी के बीच का होता है।
श्वान पुष्प (Snapdragon / Antirrhinum) में पुष्प रंग की वंशागति अपूर्ण प्रभाविता को समझने के लिये अच्छा उदाहरण है। शुद्ध प्रजननी लाल फूल वाली (RR) और शुद्ध प्रजननी सफेद फूल वाली (Ir) प्रजाति के संकरण के परिणामस्वरूप F पीढ़ी गुलाबी फूलों (Rr) वाली प्राप्त हुई। जब इस F संतति को स्व- परागित किया गया तो परिणामों का अनुपात 1 ( RR ) लाल था। यहां पर जीनोटाइप अनुपात 1 भी 1 2 1 था।
2 ( Rr) गुलाबी 1(IT) सफेद 21 था तथा फीनोटाइप अनुपात इस प्रयोग से स्पष्ट है कि समयुग्मजी (homozygous) स्थिति में जीन R के प्रभावी (RR) लाल व अप्रभावी (IT) सफेद सदस्य क्रमशः अपने लक्षणों को व्यक्त करते हैं परन्तु विषमयुग्मजी ( heterozygous) अवस्था (अर्थात् Rr) में संकरण प्रभावी लक्षण पूर्ण रूप से व्यक्त न होकर बीच का लक्षण गुलाबी रंग के रूप में अभिव्यक्त होता है। यहाँ R सदस्य, सदस्य पर अपूर्ण (incomplete) रूप से प्रभावी है अतः यह अपूर्ण प्रभाविता कहलाती है। F पीढ़ी के इन पौधों के संकरण कराने से समजीनी व समलक्षणी ( Genotype and Phenotype) अनुपात 3: 1 के स्थान पर 121 प्राप्त होता है।
प्रश्न 14.
बिंदु – उत्परिवर्तन क्या है? एक उदाहरण दें।
उत्तर:
उत्परिवर्तन वह क्रिया है जो DNA अनुक्रम में बदलाव ला देती है। DNA के एकल क्षार युग्म (base pair) के परिवर्तन को बिंदु – उत्परिवर्तन (Point Mutation) कहते हैं। इस प्रकार के उत्परिवर्तन का उदाहरण दात्र- कोशिका अरक्तता (Sickle-cell anaemia) है। दात्र- कोशिका अरक्तता एक अलिंग गुणसूत्र लग्न अप्रभावी लक्षण (autosome linked recessive trait) है जो जनकों में संतति में तभी प्रवेश करता है जबकि दोनों जनक जीन के वाहक होते हैं अर्थात् विषमयुग्मजी (Heterozygous) अवस्था में इस रोग का नियंत्रण अलील का एक जोड़ा Ho और H करता है। रोग का लक्षण (phenotype) तीन संभव समजीनी (genotype ) में से केवल \(\mathrm{H}_{\mathrm{b}^8}\left(\mathrm{H}_{\mathrm{b}^8} \mathrm{H}_{\mathrm{b}^8}\right)\) वाले समयुग्मजी व्यक्तियों में दिखाई देता है। विषमयुग्मजी \(\left(\mathrm{H}_{b^{\mathrm{A}}} \mathrm{H}_{\mathrm{b}^{\mathrm{s}}}\right)\) व्यक्ति रोगमुक्त होते हैं किन्तु वे रोग के वाहक होते हैं।
उत्परिवर्तित जीन के संतति में पहुंचने की 50% संभावना (अर्थात् दात्र कोशिका के लक्षण आने की) होती है। इस विकार का कारण हीमोग्लोबिन अणु की बीटा ग्लोबिन श्रृंखला की छठी स्थिति में एक एमीनो अम्ल ग्लूटैमिक अम्ल (Glu) का वैलीन द्वारा प्रतिस्थापन है। (चित्र 5.17 देखें)। ग्लोबिन प्रोटीन में एमीनो अम्ल का यह प्रतिस्थापन बीटा ग्लोबिन जीन के छठे कोडोन में GAG का GUG द्वारा प्रतिस्थापन के कारण होता है। निम्न ऑक्सीजन तनाव में उत्परिवर्तित हीमोग्लोबिन अणु में बहुलीकरण (Polymerisation) हो जाता है जिसके कारण RBC का आकार द्वि- अवतल बिंब (biconcave disc) में बदलकर दात्राकार हंसिए के आकार जैसा (Elongated sickle like structure) हो जाता है।
प्रश्न 15.
वंशागति के क्रोमोसोम वाद को किसने प्रस्तावित किया?
उत्तर:
मेंडल द्वारा किये गये कार्य का प्रकाशन यद्यपि 1865 में हो चुका था परन्तु अनेक कारणों से 1900 तक यह कार्य अज्ञात ही रहा। 1900 में तीन वैज्ञानिकों (डी ब्रीज, कॉरेन्स और वॉन शेरमाक) ने स्वतन्त्र रूप से लक्षणों की वंशागति संबंधी मेंडल के परिणामों की पुनः खोज की। इसी समय माइक्रोस्कोपी तकनीक में प्रगति होती जा रही थी। वैज्ञानिक इसमें कोशिका विभाजन को देखने में समर्थ हो चुके कोशिका के केन्द्रक में एक संरचना की खोज हो चुकी थी, जो कोशिका विभाजन के पहले द्विगुणित एवं विभाजित भी हो जाता है। इन्हें गुणसूत्र (Chromosome ) कहा गया। 1902 तक अर्धसूत्रणी कोशिका विभाजन के दौरान गुणसूत्र की गति (संचालन) का ज्ञान हो चुका था। वाल्टर सटन और थियोडोर बोवेरी (Walter Sutton and Theodore Boveri) ने देखा कि गुणसूत्र का व्यवहार भी जीन जैसा है। इन्होंने मेंडल के नियमों (तालिका) को गुणसूत्र की गतिविधि (चित्र 5.7 ) द्वारा समझाया। तालिका – क्रोमोसोम और जीन के व्यवहार में तुलना
A | B |
जोड़ों में होते हैं। | जोड़ों में होते हैं। |
युग्मकजनन के दौरान इस प्रकार विसंयोजित होते हैं कि एक युग्मक जोड़े में से केवल एक ही जा पाता है । | युग्मकजनन के दौरान विसंयोजित होते हैं और जोड़े में से केवल एक ही युग्मक को प्राप्त होता है। |
अलग-अलग जोड़े एक-दूसरे से स्वतंत्र, विसंयोजित होते हैं। | एक जोड़ा, दूसरे से स्वतंत्र, विसंयोजित होता है। |
अर्धसूत्री विभाजन (Meiosis or Reduction Division ) व समसूत्री विभाजन (Mitosis or Equational division) के अध्ययन में गुणसूत्रों के व्यवहार देखते हैं। इसमें सबसे मुख्य बात यह है कि गुणसूत्र व जीन सदैव जोड़े में होती हैं। एक जीन जोड़े के दोनों अलील समजात गुणसूत्रों (Homologous Chromosomes ) के समजात स्थान (Homologous sites) पर विद्यमान या स्थित होते हैं (चित्र 5.7 देखें)।
अर्धसूत्री विभाजन प्रथम ( Meiosis I) की पश्चावस्था (Anaphase) में गुणसूत्र के दो जोड़े मध्यावस्था पट्टिका ( Metaphase Plate) पर एक-दूसरे से स्वतंत्र रूप से पंक्तिबद्ध होते हैं (नीचे दिया गया चित्र देखें)। इसे समझने के लिये दायें और बायें स्तम्भों में चार पृथक् रंगों के गुणसूत्रों की तुलना करनी होगी। बायें स्तम्भ अर्थात् संभावना I में नारंगी और हरे एक साथ विसंयोजित (Segregating ) होते हैं परन्तु दाहिने स्तम्भ अर्थात् संभावना II में नारंगी गुणसूत्र लाल गुणसूत्रों के साथ विसंयोजित हो रहे हैं।
सटन व बोवेरी ने इस सम्बन्ध में तर्क प्रस्तुत किया कि गुणसूत्र युग्म का जोड़ा बन जाना या पृथक् होना अपने में ले जाये जा रहे कारकों के विसंयोजन का कारण है। सटन ने गुणसूत्रों के विसंयोजन के ज्ञान को मेंडल के सिद्धान्तों के साथ जोड़कर ‘वंशागति का गुणसूत्रवाद या सिद्धान्त’ दिया।
प्रश्न 16.
किन्हीं दो अलिंगी सूत्री आनुवंशिक विकारों का उनके लक्षणों सहित उल्लेख करो।
उत्तर:
दात्र कोशिका – अरक्तता (सिकेल सेल एनीमिया) तथा फीनाइल कीटोनूरिया दोनों विकार अलिंगी सूत्री आनुवंशिक विकार हैं।
(i) दात्र कोशिका – अरक्तता (Sickle Cell Anaemia) – इसे प्रश्न संख्या 14 में देखें।
(ii) फीनाइल कीटोनूरिया ( Phenyl Ketonuria) – यह एक जन्मजात उपापचयी विकार है जो अलिंग गुणसूत्र अप्रभावी लक्षण की जैसी ही वंशागति प्रदर्शित करती है। रोगी व्यक्ति में ऐलेनीन अमीनो- अम्ल को टाइरोसीन (Tyrosin) अमीनो अम्ल में बदलने के लिये आवश्यक एक एन्जाइम की कमी हो जाती है। इस कारण से फीनाइल ऐलेनीन एकत्रित होता जाता है और फीनाइलपाइरुविक अम्ल तथा अन्य व्युत्पन्नों में बदलता जाता है। इनके एकत्रीकरण से मानसिक दुर्बलता आ जाती है। वृक्क द्वारा कम अवशोषित हो सकने के कारण ये मूत्र के साथ उत्सर्जित हो जाते हैं।