Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 12th Class Biology Solutions Chapter 6 वंशागति के आणविक आधार
प्रश्न 1.
निम्न को नाइट्रोजनीकृत क्षार व न्यूक्लियोटाइड के रूप में वर्गीकृत कीजिए- एडेनीन, साइटीडीन, थाइमीन, ग्वानोसीन, यूरेसील व साइटोसीन।
उत्तर:
नाइट्रोजनीकृत क्षार – एडेनीन-प्यूरीन क्षार
न्यूक्लियोटाइड – एडेनीन डिऑक्सीराइबोज न्यूक्लियोटाइड
ग्वानोसीन – प्यूरीन क्षार – ग्वानीन डिऑक्सीराइबोज – न्यूक्लियोटाइड
साइटोसीन – पायरिमिडीन क्षार – साइटोसीन डिऑक्सीराइबोज न्यूक्लियोटाइड
थाइमीन – पायरिमिडीन क्षार – थाइमीडीन न्यूक्लियोटाइड
यूरेसील- पायरिमिडीन क्षार – यूरेसील राइबोस न्यूक्लियोटाइड
नोट- साइटीडीन एक न्यूक्लियोसाइड (Nucleoside ) है।
प्रश्न 2.
यदि एक द्विरज्जुक DNA में 20 प्रतिशत साइटोसीन है तो DNA में मिलने वाले एडेनीन के प्रतिशत की गणना कीजिए।
उत्तर:
इरविन चारगाफ (Erwin Chargaff) ने परीक्षण के आधार पर बताया कि ऐडेनीन व थाइमीन तथा ग्वानीन व साइटोसीन के बीच अनुपात स्थिर व एक-दूसरे के बराबर रहता है। यदि द्विरज्जुक DNA में नाइट्रोजनीकृत क्षार की कुल संख्या 100 है और इसमें साइटोसीन की मात्रा 20 प्रतिशत है तो ग्वानीन की मात्रा भी 20 प्रतिशत होगी। साइटोसीन तथा ग्वानीन की कुल मात्रा 20% + 20% = 40% होगी। इसका तात्पर्य यह है कि ऐडेनीन तथा थाइमीन का कुल प्रतिशत 100 – 40 = 60% होगा। ऐडेनीन तथा थाइमीन की मात्रा बराबर होती है अर्थात् ऐडेनीन 30 प्रतिशत और थाइमीन 30 प्रतिशत होगा। अतः उक्त द्विरज्जुक DNA में ऐडेनीन की मात्रा 30 प्रतिशत होगी।
प्रश्न 3.
यदि DNA के एक रज्जुक के अनुक्रम निम्नवत् लिखे हैं – 5-ATGCATGCATGCATGCATGCATGCATGC-3′ तो पूरक रज्जुक के अनुक्रम को 5-3 ́दिशा में लिखें।
उत्तर:
5′-GCATGCATGCATGCATGCATGCATGCAT-3′
प्रश्न 4.
यदि अनुलेखन इकाई में कूटलेखन रज्जुक के अनुक्रम को निम्नवत् लिखा गया है- 5-ATGCATGCATGCATGCATGCATGCATGC-3 तो दूत RNA के अनुक्रम को लिखें।
उत्तर:
यदि कूटलेखन रज्जुक (Coding strand) के अनुक्रम निम्न प्रकार है –
5′-ATGCATGCATGCATGCATGCATGCATGC-3 तो m. RNA के अनुक्रम निम्न प्रकार होंगे-
5′ – AUGCAUGCAUGCAUGCAUGCAUGCAUGC-3′
प्रश्न 5.
DNA द्विकुंडली की कौन सी विशेषता वाटसन व क्रिक को DNA प्रतिकृति के सेमी- कंजर्वेटिव रूप को कल्पित करने में सहयोग किया। इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
DNA द्विकुण्डली के दोनों रज्जुकों (strands ) का एक-दूसरे का पूरक होना वाटसन व क्रिक को DNA प्रतिकृति के अर्द्ध-संरक्षी (semi-conservative) स्वरूप को कल्पित करने के लिये महत्त्वपूर्ण था।
प्रश्न 6.
टेम्पलेट (DNA or RNA ) के रासायनिक प्रकृति व इससे (DNA or RNA ) संश्लेषित न्यूक्लिक अम्लों की प्रकृति के आधार पर न्यूक्लिक अम्ल पॉलीमरेज के विभिन्न प्रकार की सूची बनाइए।
उत्तर:
(i) DNA आधारित DNA पॉलिमरेज एन्जाइम प्रतिकृति के लिये आवश्यक है । यह DNA संश्लेषण के लिये DNA टेम्पलेट (DNA template) का उपयोग करता है।
(ii) DNA पर निर्भर RNA पॉलिमरेज (DNA dependent RNA polymerase) जो RNA संश्लेषण के लिये DNA टेम्पलेट का उपयोग करता है। RNA पॉलिमरेज अस्थायी रूप से प्रारम्भन कारक या समापन कारक से जुड़कर अनुलेखन का प्रारम्भ या समापन करता है।
केन्द्रक में RNA पॉलीमरेज के अतिरिक्त निम्नलिखित तीन प्रकार के RNA पॉलिमरेज मिलते हैं –
(अ) RNA पॉलिमरेज – I-यह r. RNA ( 28S, 18S व 5.8S) को अनुलेखित करता है ।
(ब) RNA पॉलिमरेज – II-यह t. RNA तथा छोटे केन्द्रकीय RNA का अनुलेखन करता है।
(स) RNA पॉलिमरेज – III-यह m. RNA के पूर्ववर्ती विषमांगी केन्द्रकीय RNA ( heterogenous nuclear RNA= hnRNA) का अनुलेखन करता है।
प्रश्न 7.
DNA आनुवंशिक पदार्थ है, इसे सिद्ध करने हेतु अपने प्रयोग के दौरान हर्षे व चेस ने DNA व प्रोटीन के बीच कैसे अंतर स्थापित किया?
उत्तर:
DNA आनुवंशिक पदार्थ है, इस सम्बन्ध में सुस्पष्ट प्रमाण अल्फ्रेड हर्षे (Alfred Hershay) व मार्था चेस (Martha Chase) द्वारा किये गये प्रयोगों से प्राप्त हुआ। इन्होंने उन विषाणुओं पर कार्य किया जो जीवाणु (Bacteria) को संक्रमित करते हैं, इन्हें जीवाणु (Bacteriophage) कहते हैं। जीवाणुभोजी जीवाणु से चिपकते हैं। अपने आनुवंशिक पदार्थ को जीवाणु कोशिका में भेजते हैं। जीवाणु कोशिका विषाणु के आनुवंशिक पदार्थ को अपना समझने लगते हैं जिससे आगे चलकर अधिक विषाणुओं का निर्माण होता है। हर्षे व चेस ने इस बात का पता लगाने के लिए प्रयोग किया कि विषाणु से प्रोटीन या डीएनए निकल कर जीवाणु में प्रवेश करता है।
हर्षे व चेस ने विषाणुओं का ऐसे माध्यम में संवर्धन (Culture) किया जिसमें रेडियोधर्मी फॉस्फोरस (P32 ) था तथा अन्य विषाणुओं को रेडियोधर्मी सल्फर (S35) युक्त माध्यम में संवर्धन किया। रेडियोधर्मी फॉस्फोरस युक्त माध्यम में विकसित हुए विषाणुओं में रेडियोधर्मिता DNA में पायी गयी क्योंकि फॉस्फोरस प्रोटीन में नहीं होता है, यह केवल DNA में ही होता है। इसी प्रकार प्रोटीन आवरण में रेडियोधर्मी सल्फर पाया गया क्योंकि DNA में सल्फर नहीं होता है। विषाणु का खोल या आवरण प्रोटीन से बना होता है।
विकरणयुक्त जीवाणुभोजी द्वारा ई. कोलाई (Ecoli) को संक्रमित किया गया तथा बाद में विषाणुयुक्त विलियन (Solution) को अच्छी तरह मिक्सर (Blender) द्वारा मिक्स करने से कोशिका भित्ति से प्रोटीन आवरण अलग हो गये। तत्पश्चात् सेन्ट्रीफ्यूज द्वारा संक्रमित कोशिका से विषाणु के शीर्षों को पृथक् कर लिया गया। इस प्रकार जीवाणु कोशिकाओं को विषाणुभोजी के प्रोटीन आवरणों से अलग करके इन दोनों भागों में रेडियोधर्मिता को परखा गया। जब p32 युक्त विषाणु लिये गये तो रेडियोधर्मिता जीवाणु कोशिका में चली गयी जो यह दर्शाता है कि विषाणु DNA जीवाणु में प्रवेश कर गया परन्तु S35 चिन्हित विषाणु को प्रयोग करने पर रेडियोधर्मी पदार्थ विषाणु के आवरणों में से प्राप्त हुआ जो यह सिद्ध करता है कि प्रोटीनयुक्त विषाणु का आवरण जीवाणु कोशिका में प्रवेश नहीं हुआ। इससे यह सिद्ध हुआ कि DNA ही आनुवंशिक पदार्थ है। विषाणु का प्रोटीन संरचनात्मक आवरण बनता है जो DNA को जीवाणु में पहुँचा कर बाहर ही रह जाता है।
प्रश्न 8.
निम्न के बीच अंतर बताइए –
(क) पुनरावृत्ति DNA एवं अनुषंगी DNA
(ख) m. RNA और t. RNA
(ग) टेम्पलेट रज्जु और कोडिंग रज्जु।
उत्तर:
(क) पुनरावृत्ति DNA एवं अनुषंगी DNA – प्रायः जीवों में DNA की एक से अधिक प्रतियाँ उपस्थित रहती हैं, इन्हें अतिरिक्त DNA कहा जाता है या इसे पुनरावृत्ति DNA (Repetitive DNA) भी कहते हैं। यह DNA का छोटा भाग होता है जिसमें इसकी अनेक बार पुनरावृत्ति होती है। इसका उपयोग DNA अंगुलिछापी (DNA Finger Printing) में किया जाता है। इस पुनरावृत्ति DNA को जीनोमिक DNA (Genomic DNA) में से पृथक् करने के लिये घनत्व प्रवणता अपकेन्द्रीकरण (Density Gradient Centrifugation) की सहायता से विभिन्न शिखर (Peak) बनाते हैं।
पुनरावृत्ति DNA का ऊँचा शिखर (Major Peak) बनता है तथा अन्य छोटेs शिखर (Minor Peak) बनते हैं, उन्हें अनुषंगी DNA (Satellite DNA ) कहते हैं। इनके अनुक्रम सामान्यतया किसी भी प्रोटीन का कूटलेखन नहीं करते हैं। किन्तु दोनों प्रकार के DNA मानव जीनोम के अधिकांश भाग में मिलते हैं। इसके अनुक्रम उच्चश्रेणी बहुरूपता (Polymorphism ) दर्शाते हैं।
(ख) m. RNA और RNA ये दोनों प्रकार के RNA कोशिका में प्रोटीन संश्लेषण हेतु आवश्यक हैं। m. RNA टेम्पलेट प्रदान करता है तो 1. RNA एमीनो अम्लों के लाने व आनुवंशिक कूट को पढ़ने का काम करता है। tRNA स्वतन्त्र रूप से कोशिकाद्रव्य में रहते हैं। आकार में दोनों छोटे होते हैं, इन्हें अन्तरण (transfer) RNA या tRNA कहते हैं। इन्हें विलेय RNA (Soluble RNA or s. RNA ) भी कहा जाता है । अन्तरण RNA में एक प्रतिप्रकूट (anticodon) होता है जिसमें तीन क्षार होते हैं। ये कूट (Code) के पूरक क्षार होते हैं। tRNA में एक अमीनो अम्ल स्वीकार्य छोर होता है जिससे यह अमीनो अम्ल से जुड़ जाता है। प्रत्येक अमीनो अम्ल के लिए विशिष्ट अन्तरण RNA होते हैं। संश्लेषण प्रारम्भन हेतु दूसरा विशिष्ट अन्तरण RNA होता है जिसे प्रारम्भक अन्तरण RNA कहते हैं। tRNA द्वितीयक संरचना में हैं।
संश्लेषण प्रारम्भन हेतु दूसरा विशिष्ट अन्तरण RNA होता है जिसे प्रारम्भक अन्तरण RNA कहते हैं। tRNA द्वितीयक संरचना में क्लोवर की पत्ती जैसा दिखाई देता है। इसकी वास्तविक संरचना के अनुसार tRNA सघन अणु है जो उल्टे एल (L) की तरह दिखाई देता है। संदेशवाहक (Messenger ) RNA या m. RNA संदेश लाता है। यह DNA के द्वारा बनकर केन्द्रक से बाहर कोशिकाद्रव्य में आकर राइबोसोम्स से चिपक जाते हैं। ये लम्बी श्रृंखला के रूप में होते हैं तथा DNA पर उपस्थित कोड्स (Codes) को नकल करके लाते हैं। अतः दूत की भांति कार्य करते हैं। इन पर संदेश, तीन-तीन क्षारकों वाले क्षारक त्रिकों (base-triplets) कोडॉन (codon) के रूप में रहता है। इन संदेशों के अनुसार ही अमीनो अम्लों की श्रृंखला बनकर प्रोटीन का निर्माण होता है (चित्र 6.20 )।
(ग) टेम्पलेट रज्जु और कोडिंग रज्जु (Templet Strand and Coding Strand ) – DNA की प्रतिकृति ( Replication) में देखें या इसकी संरचना को देखें तो रज्जुक विपरीत ध्रुवत्व की ओर होते tRNA स्वतन्त्र रूप से कोशिकाद्रव्य में रहते हैं। आकार में दोनों छोटे होते हैं, इन्हें अन्तरण (transfer) RNA या t. RNA कहते हैं। इन्हें विलेय RNA (Soluble RNA or s. RNA ) भी कहा जाता है। अन्तरण RNA में एक प्रतिप्रकूट (anticodon) होता है जिसमें तीन क्षार होते हैं।
ये कूट (Code) के पूरक क्षार होते हैं। tRNA में एक अमीनो अम्ल स्वीकार्य छोर होता है जिससे यह अमीनो अम्ल से जुड़ जाता है। प्रत्येक अमीनो अम्ल के लिए विशिष्ट अन्तरण RNA होते हैं। संश्लेषण प्रारम्भन हेतु दूसरा विशिष्ट अन्तरण RNA होता है जिसे प्रारम्भक अन्तरण RNA कहते हैं। tRNA द्वितीयक संरचना में क्लोवर की पत्ती जैसा दिखाई देता है। इसकी वास्तविक संरचना के अनुसार tRNA सघन अणु है जो उल्टे एल (L) की तरह दिखाई देता है।
संदेशवाहक (Messenger) RNA या m. RNA संदेश लाता है। यह DNA के द्वारा बनकर केन्द्रक से बाहर कोशिकाद्रव्य में आकर राइबोसोम्स से चिपक जाते हैं। ये लम्बी श्रृंखला के रूप में होते हैं तथा DNA पर उपस्थित कोड्स (Codes) को नकल करके लाते हैं। अतः दूत की भांति कार्य करते हैं। इन पर संदेश, तीन-तीन क्षारकों वाले क्षारक त्रिकों (base-triplets) कोडॉन (codon) के रूप में रहता है। इन संदेशों के अनुसार ही अमीनो अम्लों की श्रृंखला बनकर प्रोटीन का निर्माण होता है (चित्र 6.20 )
(ग) टेम्पलेट रज्जु और कोडिंग रज्जु (Templet Strand and Coding Strand) – DNA की प्रतिकृति ( Replication) में देखें या इसकी संरचना को देखें तो रज्जुक की ओर होते विपरीत ध्रुवत्व हैं, इसलिए DNA – निर्भर RNA पॉलीमरेज बहुलकन (Polymerisation) केवल एक दिशा 5 से 3 (53) की ओर उत्प्रेरित होते हैं। रज्जुक जिसमें ध्रुवत्व 3 से 5 (35) की ओर है। वह टेम्पलेट के रूप में कार्य करते हैं इसलिए यह टेम्पलेट रज्जुक कहलाता है। दूसरी लड़ी जिसमें ध्रुवत्व ( 53 ) व अनुक्रम RNA जैसा होता है (थाइमीन के अलावा इस जगह पर यूरेसिल होता है)। अनुलेखन के दौरान स्थानान्तरित हो जाता है। यह रज्जुक (जो किसी भी चीज के लिये कूटलेखन नहीं करता है) कूटलेखन या कोडिंग रज्जुक कहलाता है।
प्रश्न 9.
स्थानान्तरण के दौरान राइबोसोम की दो मुख्य भूमिकाओं की सूची बनाइए।
उत्तर:
स्थानान्तरण के दौरान राइबोसोम की दो मुख्य भूमिकाएँ निम्न प्रकार से हैं –
(i) राइबोसोम का छोटा सबयूनिट m. RNA के प्रथम कोडोन (AUG ) के साथ बन्धित होकर समारम्भ कॉम्पलेक्स ( Initiation complex) अमीनो एसिल tRNA बनाता है, जिसकी पहिचान प्रारम्भक tRNA द्वारा की जाती है। अमीनो अम्ल tRNA जुड़कर एक जटिल रचना बनाते हैं जो आगे चलकर tRNA के प्रतिक्रूट (anticodon) से पूरक क्षार युग्म बनाकर m. RNA के उचित आनुवंशिक कोडोन से जुड़ जाती है।
(ii) राइबोसोम के बड़े सबयूनिट पर tRNA अणुओं के जुड़ने के लिये दो खाँच होती हैं, इन्हें P-site या दाता स्थल और A site या ग्राही स्थल कहते हैं। P-site पर पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला को धारण करने वाला tRNA जुड़ता है। A site पर अमीनो एसिल tRNA से जुड़ता है। बड़े सबयूनिट के पेप्टाइड सिन्थेटेज (peptide synthetase) एन्जाइम पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला के अमीनो अम्ल के – COOH तथा अमीनो अम्ल tRNA के अमीनो अम्ल के -NH2 के बीच पेप्टाइड बन्ध बनाता है।
प्रश्न 10.
उस संवर्धन में जहाँ ई. कोलाई वृद्धि कर रहा तो लैक्टोज डालने पर लैक- ऑपेरॉन उत्प्रेरित होता है। तब कभी संवर्धन में लैक्टोज डालने पर लैक-ऑपेरॉन कार्य करना क्यों बंद कर देता है?
उत्तर:
उपरोक्त प्रश्न को समझाने के लिए लैक प्रचालक (Lac operon) को जानना आवश्यक है। इसे जैकब व मोनाड (Jacob & Monad) ने बताया था। ई. कोलाई नामक जीवाणु पर कार्य करते हुये इन्होंने पहली बार अनुलेखनीय नियमित तंत्र के विषय में बताया। इसके अन्तर्गत β-गैलेटओसाइडेज (Lac Operon में β – Galactosidase) नामक एन्जाइम के संश्लेषण की क्रियाविधि के विषय में गहन अध्ययन किया गया। यह एन्जाइम लैक्टोज (Lactose) शर्करा का जल अपघटन गैलेक्टोज एवं ग्लूकोज शर्कराओं में निम्न प्रकार से करता है –
लैक्टोज B – गैलेक्टोसाइडेज ग्लूकोज + गैलेक्टोज
लैक-ऑपेरॉन (लैक = लैक्टोज) में पॉलीसीस्ट्रॉनिक संरचनात्मक जीन (Polycistronic structural gene) का नियमन एक सामान्य प्रोमोटर व नियामक जीन (Promotor and Regulatory Gene) द्वारा होता है। लैक- ऑपेरॉन एक नियामक जीन – i (i-gene) व तीन संरचनात्मक जीन (Z, Y व a) से मिलकर बना होता है। आई (i) जीन का तात्पर्य मंदक ( inhibitor) से है। इसमें आई (i) जीन लैक-ऑपेरॉन में दमनकारी (Repressor) का कूटलेखन (Code) करता है। Z gene बीटा- गैलेक्टोसाइडेज (B- Galactosidase) का कूटलेखन करता है जो डाइसैकेराइड लैक्टोज के जल विघटन से गैलेक्टोज व ग्लूकोज का निर्माण करता है। Y जीन परमीएज का कूटलेखन करता है जो कोशिका हेतु – Galactosidase की पारगम्यता को बढ़ाता है। जीन a द्वारा ट्रांसएसिटीलेज का कूटलेखन होता है। इस प्रकार लैक- ऑपेरान की सभी तीनों जीन के उत्पाद लैक्टोज उपापचय हेतु आवश्यक हैं (चित्र 6.22)।
लैक्टोज एंजाइम B-galactosidase हेतु क्रियाधार का कार्य करता है जो ऑपेरॉन की सक्रियता के आरंभ ( on ) या निष्क्रियता समाप्ति (off) को नियमित करता है। इसे प्रेरक (inducer) कहते हैं। कार्बन स्रोत जैसे ग्लूकोज की अनुपस्थिति में यदि जीवाणु के संवर्धन माध्यम में लैक्टोज डाल दिया जाता है तब परमिऐज (Permease) क्रिया द्वारा लैक्टोज कोशिका के अंदर अभिगमन करता है। लैक्टोज कोशिका के भीतर सक्रिय दमनकारी (repressor) के साथ बंधकर उसकी संरचना को बदल देता है। यह दमनकारी जब ऑपरेटर के साथ बंध (bond) नहीं बना सकता है। इस समय RNA पॉलीमरेज प्रमोटर स्थल P के साथ जुड़कर ऑपेरॉन का अनुलेखन प्रारम्भ कर देता है। कुछ समय बाद तीनों एन्जाइम उपापचय में भाग लेकर लैक्टोज अणुओं को समाप्त कर देते हैं तब उस अवस्था में कोई प्रेरक लैक्टोज ( inducer lactose) उपस्थित नहीं होता है जो दमनकारी के साथ बंध बना सके। इस समय दमनकारी पुनः सक्रिय हो जाता है व ऑपेरटर से जुड़कर ऑपेरॉन को बंद (switch off) कर देता है।
प्रश्न 11.
निम्न के कार्यों का वर्णन (एक या दो पंक्तियों से) करो-
(क) उन्नायक (प्रोमोटर)
(ख) अंतरण RNA (t.RNA)
(ग) एक्जान।
(क) उन्नायक (प्रोमोटर )
(ख) अंतरण RNA (tRNA)
(ग) एक्जान।
उत्तर:
(क) उन्नायक ( Promotor ) – यह DNA खण्ड होता है, इससे RNA Polymerase बन्धित होता है। यह संरचनात्मक जीन के अनुलेखन (Transcription) को प्रारम्भ करता है।
(ख) अंतरण RNA ( tRNA ) – इसे विलेय RNA (Soluble RNA ) भी कहते हैं। इसकी द्वितीयक संरचना क्लोवर की पत्ती जैसे होती है। इसमें एक प्रति प्रकूट (Anticodon) फंदा होता है व इसमें एक अमीनो अम्ल स्वीकार्य छोर होता है। यह प्रोटीन संश्लेषण में विभिन्न प्रकार के अमीनो अम्लों को राइबोसोम पर लाते हैं तथा प्रकूट (Codon) की स्थिति पर आ जाते हैं।
(ग) एक्जान ( Exons ) – कूटलेखन अनुक्रम (coding sequences) या अभिव्यक्त अनुक्रमों (expressed sequences) को व्यक्तेक ( exons) कहते हैं। ये वे अनुक्रम हैं जो परिपक्व या संसाधित RNA (Processed RNA ) में मिलते हैं। ये अवयक्तेक (introns) द्वारा अंतरापित ( interrupted ) होते हैं।
प्रश्न 12.
मानव जीनोम परियोजना को महापरियोजना क्यों कहा गया?
उत्तर:
मानव जीनोम परियोजना ( Human Genome Project = HGP) एक महायोजना (Mega project) है क्योंकि इसमें मानव सम्बन्ध में बड़ी संख्या में आँकड़े तैयार किये जाते हैं, जैसे- मानव जीनोम में लगभग 3 x 10 क्षार युग्म मिलते हैं; यदि अनुक्रम जानने के लिए प्रति क्षार तीन अमेरिकन डॉलर (US $3) खर्च होते हैं तो पूरी योजना पर खर्च होने वाली लागत लगभग 9 बिलियन अमेरिकी डॉलर होगा। प्राप्त अनुक्रमों को टंकणित रूप में किताब में 1000 पृष्ठ होंगे तब इस तरह से एक मानव कोशिका के डीएनए सूचनाओं को संकलित करने हेतु 3300 किताबों की आवश्यकता होगी। इस प्रकार बड़ी संख्या में आँकड़ों की प्राप्ति के लिए उच्च गतिकीय संगणक साधन की आवश्यकता होती है जिससे आँकड़ों के संग्रह, विश्लेषण व पुन: उपयोग में सहायता मिलती है HGP एक बहुत बड़ी परियोजना है, इसके अन्तर्गत विश्व की अनेक प्रयोगशालायें कार्यरत हैं। अतः यह एक अन्तर्राष्ट्रीय परियोजना है, इस कारण इसे महापरियोजना कहा गया है।
प्रश्न 13.
DNA अंगुलिछापी क्या है? इसकी उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
विभिन्न जीवों में DNA पाया जाता है किन्तु अलग- अलग जीवों में पाये जाने वाले DNA के क्षार अनुक्रम में अन्तर होता है। DNA के अनुक्रम में मिलने वाले ये अन्तर व्यक्ति विशेष के समलक्षणीय रूप आकार को निर्धारित करते हैं। यदि किन्हीं दो व्यक्तियों या किसी जनसंख्या के व्यक्तियों के बीच आनुवंशिक विभिन्नता का पता लगाना हो तो सदैव DNA का अनुक्रम ज्ञात करना होगा । यह एक कठिन व महंगा कार्य है। दो व्यक्तियों के DNA अनुक्रमों के बीच तुलना करने के लिए DNA अंगुलिछापी एक त्वरित विधि है। इस विधि में DNA अनुक्रम में स्थित कुछ विशिष्ट स्थलों के मध्य विभिन्नता का पता लगाते हैं, इसे पुनरावृत्ति DNA ( Repetitive DNA) कहते हैं। अनुक्रमों में DNA का छोटा भाग अनेक बार पुनरावृत्त होता है। इस पुनरावृत्त DNA को जीनोमिक DNA के ढेर में से घनत्व प्रवणता अपकेन्द्रीकरण द्वारा पृथक करते हैं।
उपयोगिता:
(1) अपराधी की पहचान अपराधी की पहचान हेतु संदेह के घेरे में पाये जाने वाले व्यक्ति / व्यक्तियों के DNA फिंगर प्रिन्ट्स से प्राप्त होने वाले बैण्ड्स (bands) की तुलना, टेस्ट DNA फिंगर प्रिन्ट्स में से प्राप्त होने वाले बैण्ड्स से की जाती है, जिसे अपराधी द्वारा छोड़े गये. प्रमाण जैसे- रक्त तथा वीर्य के धब्बों या बालों आदि से प्राप्त किया जाता है। यदि दोनों में पूर्ण समानता पायी जाती है तभी वास्तविक अपराधी की पहचान हो पाती है।
(2) बच्चे के वास्तविक जनकों की पहचान- जब किसी बच्चे के असली माँ व पिता होने का विवाद हो, ऐसे मामलों में बच्चे के DNA फिंगर प्रिन्ट्स की तुलना माँ तथा सन्देहिल पिता दोनों के DNA फिंगर प्रिन्ट्स से की जाती है। पहले बच्चे के DNA फिंगर प्रिन्ट से प्राप्त होने वाले बैण्ड्स से किया जाता है। इसके पश्चात् बच्चे के DNA फिंगर प्रिन्ट में बचे हुए बैण्ड्स का मिलान माता के DNA फिंगर प्रिन्ट में प्राप्त होने वाले बैण्ड्स की तुलना पिता के DNA फिंगर प्रिन्ट में उपस्थित बैण्ड्स से की जाती है। यदि दोनों में समानता होती है तो वही बच्चे का असली पिता होता है।
(3) चिकित्सा में उपयोग- इसका प्रयोग आनुवंशिक परामर्शों में, बोन मैरो ट्रांसप्लान्ट में दाता कोशिकाओं की आवृत्ति जानने हेतु, ऊतक संवर्धन में कोशिकाओं की पहचान आदि में किया जाता है। इसके अतिरिक्त पेटेन्ट (Patent ) कराने के लिए पादप किस्मों की पहचान तथा उनके जनकों व लक्षणों को चिन्हित करने तथा सूक्ष्म जीवों के प्रभेदों की पहचान करने में DNA फिंगर प्रिन्टिंग विधि अधिक उपयोगी साबित हुई है।
प्रश्न 14.
निम्न का संक्षिप्त वर्णन कीजिए-
(क) अनुलेखन
(ख) बहुरूपता
(ग) स्थानांतरण
(घ) जैव सूचना विज्ञान
उत्तर:
(क) अनुलेखन (Transcription ) – DNA अणुओं के विशेष खण्डों पर उनकी अनुपूरक प्रतिलिपियों के रूप में m.RNA अणुओं का संश्लेषण होता है। यह कोशिका चक्र की अन्तराल अवस्था (Interphase) की G1 तथा G2 उपअवस्थाओं में होती है। प्रत्येक जीन या सिस्ट्रॉन के प्रारम्भ में प्रोमोटर स्थल (Promotor Site) तथा अन्त में समापन स्थल (terminator site) होता है। अतः m.RNA का संश्लेषण प्रोमोटर स्थल के समीप स्थित प्रारम्भन स्थल ( Initiation से शुरू होता है व समापन स्थल पर समाप्त होता है।
अनुलेखन की क्रियाविधि (Mechanism of transcription)-यह क्रिया निम्न चरणों में पूर्ण होती है –
- RNA पॉलिमरेज एन्जाइम का DNA द्विकुण्डलिनी से जुड़ना।
- DNA की दोनों श्रृंखलाओं का पृथक होना।
- क्षारक युग्मन (अनुपूरक क्षारक हाइड्रोजन बन्धों द्वारा जुड़ते हैं)।
- राइबोन्यूक्लियोटाइड ट्राइफॉस्फेट्स का मोनोफॉस्फेट में परिवर्तन।
- राइबोन्यूक्लियोटाइड मोनोफॉस्फेट अणुओं का फॉस्फोडाइ एस्टिर बन्धों द्वारा जुड़कर RNA पॉलिन्यूक्लियोटाइड्स श्रृंखला का निर्माण।
- पॉलिन्यूक्लियोटाइड्स श्रृंखला का समापन।
- DNA खण्ड का पूर्व स्थिति में वापस आ जाना।
(ख) बहुरूपता (Polymorphism ) – बहुरूपता (आनुवंशिक आधार पर विभिन्नता ) उत्परिवर्तन के कारण ही उत्पन्न होती है। किसी व्यक्ति में नये उत्परिवर्तन उनकी कायिक कोशिकाओं या जनन कोशिकाओं में पैदा होते हैं। यदि जनन कोशिका उत्परिवर्तन किसी व्यक्ति की संतानोत्पत्ति क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित नहीं करते तो यह उत्परिवर्तन स्थानांतरित होता है जिससे जनसंख्या के दूसरे सदस्यों (लैंगिक प्रजनन द्वारा) में यह फैल जाता है। विकल्पी अनुक्रम विभिन्नता जिसे परंपरागत रूप से DNA बहुरूपता कहते हैं। मानव जनसंख्या में 0.01 से अधिक आवृत्ति में एक विस्थल में असंगति मिलने से होती है।
साधारणतया यदि एक वंशागति उत्परिवर्तन जनसंख्या में उच्च आवृत्ति से मिलता है तो इसे DNA बहुरूपता कहते हैं। इस प्रकार की संभावना अव्यक्तेक DNA (intron DNA) अनुक्रम में ज्यादा होती है व इन अनुक्रमों में होने वाला उत्परिवर्तन व्यक्ति की प्रजनन क्षमता को प्रभावित नहीं कर पाता है। इस तरह के उत्परिवर्तन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में एकत्रित होते रहते हैं जिसके फलस्वरूप विभिन्नता / बहुरूपता उत्पन्न होती है। बहुरूपता विभिन्न प्रकार की होती है जिसमें एक न्यूक्लियोटाइड में या विस्तृत स्तर पर परिवर्तन होता है। विकास व जाति उद्भवन में उपरोक्त बहुरूपता की बहुत बड़ी भूमिका होती है।
(ग) स्थानांतरण (Translation) – स्थानांतरण क्रिया के अन्तर्गत अमीनो अम्लों के बहुलकन (Polymerisation) से पॉलीपेप्टाइड का निर्माण होता है। अमीनो अम्लों के क्रम व अनुक्रम m.RNA में पाये जाने वाले क्षारों के अनुक्रमों पर निर्भर करता है। अमीनो अम्ल पेप्टाइड बंध द्वारा जुड़े रहते हैं। पेप्टाइड बंध के निर्माण में ऊर्जा की आवश्यकता होती है। प्रथम अवस्था के दौरान अमीनो अम्ल स्वयं ATP की उपस्थिति में सक्रिय हो जाते हैं व सजातीय tRNA से जुड़ जाते हैं। इस प्रक्रिया को t RNA का आवेशीकरण (Charging) या tRNA एमीनोएसिलेशन (tRNA aminoacylation) कहते हैं। इस प्रकार से आवेशित दो t. RNA का एक-दूसरे से काफी पास में आने से उनमें पेप्टाइड बंध का निर्माण होता है। उत्प्रेरक की उपस्थिति में पेप्टाइड बंध बनने की दर बढ़ जाती है (चित्र 6.21 )।
प्रोटीन संश्लेषण के लिये राइबोसोम आवश्यक है। राइबोसोम संरचनात्मक RNA व लगभग 80 विभिन्न प्रोटीनों से मिलकर बना होता है। राइबोसोम निष्क्रिय अवस्था में दो उपएककों- एक बड़ी उपएकक व एक छोटी उपकक से मिलकर बना होता है। जब छोटा उपएकक m. RNA में मिलता है तब m. RNA का प्रोटीन में स्थानांतरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। बड़े उपकक में दो स्थल होते हैं जिससे बाद में अमीनो अम्ल जुड़कर एक- दूसरे के काफी पास में आ जाते हैं जिससे पॉलीपेप्टाइड बंध बन जाता है। राइबोसोम पेप्टाइड बंध के निर्माण में उत्प्रेरक (23r. RNA जीवाणु में एंजाइम – राइबोजाइम) का कार्य करता है।
mRNA में स्थानांतरण इकाई RNA का अनुक्रम है जिसके किनारों पर प्रारंभक प्रकूट (AUG Start Codon) व रोध प्रकूट (Stop Codon) मिलते हैं जो पॉलीपेप्टाइड का कूटलेखन करते हैं। mRNA में कुछ अतिरिक्त अनुक्रम होते हैं जो स्थानांतरित नहीं होते हैं उन्हें अस्थानांतरित स्थल (Untranslated Regions, UTR) कहते हैं। UTR दोनों 5- किनारा (प्रारंभक प्रकूट के पूर्व) व 3 – किनारा ( रोध प्रकूट के पश्चात् ) पर स्थित होता है। ये प्रभावी स्थानांतरण प्रक्रिया हेतु आवश्यक हैं।
प्रारंभन के लिये राइबोसोस m. RNA के प्रारंभक प्रकूट (AUG ) से बंधता है जिसकी पहचान tRNA द्वारा की जाती है। राइबोसोम इसके बाद प्रोटीन संश्लेषण की दीर्घीकरण प्रावस्था की ओर बढ़ता है। इस अवस्था में एमीनो अम्ल tRNA से जुड़कर एक जटिल रचना का निर्माण करते हैं जो आगे चलकर tRNA के प्रति प्रकूट (anticodon) से पूरक क्षार युग्म बनाकर m. RNA के उचित प्रकूट से जुड़ जाते हैं। राइबोसोम m. RNA के साथ एक प्रकूट से दूसरे प्रकूट की ओर जाता है। एक के बाद एक अमीनो अम्लों के जुड़ने से पॉलीपेप्टाइड अनुक्रमों का स्थानांतरण होता है जो DNA द्वारा निर्देशित व m. RNA द्वारा निरूपित होते हैं। अंत में विमोचक कारक (Release Factor) का रोध प्रकूट से जुड़ने से स्थानांतरण प्रक्रिया का समापन हो जाता है व राइबोसोम से पूर्ण पॉलीपेप्टाइड अलग हो जाते हैं।
(घ) जैव सूचना विज्ञान (Bioinformatics) – अध्ययनानुसार यह ज्ञात है कि किसी भी जीव की आनुवंशिक व्यवस्था उसके DNA में मिलने वाले अनुक्रम से निर्धारित होती है। दो विभिन्न व्यक्तियों में मिलने वाला DNA अनुक्रम कुछ जगहों पर भिन्न-भिन्न होता है। आनुवंशिक अभियांत्रिक तकनीकों के विकास से किसी भी DNA खंड को विलगित (isolate) व क्लोन किया जा सकता है व DNA अनुक्रमों को जाना जा सकता है। सन् 1990 में मानव जीनोम के अनुक्रमों को ज्ञात करने के लिये मानव जीनोम योजना (Human Genome Project = HGP) प्रारम्भ हुई और यह एक महायोजना थी।
इस योजना के अन्तर्गत एक अन्तर्राष्ट्रीय मानव जीनोम बैंक की स्थापना की गई है जहाँ विश्व में पायी जाने वाली मानव प्रजातियों की कोशिकाओं व DNA नमूनों को संग्रहित किया जा रहा है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य मानव के पूर्ण जीनोम के DNA के न्यूक्लियोटाइडों का अनुक्रम ज्ञात कर, सम्पूर्ण जीनों का जीन चित्रण (Genetic map) बनाना है। मानव जीनोम की सम्पूर्ण सूचना एकत्र करना व उसका संग्रह करना अत्यन्त दुष्कर है परन्तु जीव विज्ञान के नये क्षेत्र जैव सूचना विज्ञान (Bioinformatics) ने इस समस्या का समाधान कर दिया है। क्योंकि मानव जीनोम में लगभग 3 x 10 क्षार युग्म मिलते हैं।
यदि इन अनुक्रमों को टंकणित रूप (typed form ) में पुस्तक में संग्रहित किया जाए तो जिसके प्रत्येक पृष्ठ में 1000 अक्षर हों तो इस प्रकार इस पुस्तक में 1000 पृष्ठ होंगे तब इस तरह से एक मानव कोशिका के DNA सूचनाओं को संकलित करने हेतु 3300 पुस्तकों की आवश्यकता होगी। इस प्रकार बड़ी संख्या में आँकड़ों की प्राप्ति के लिये उच्च गतिकीय संगणक साधन (High Speed Computational Devices) की आवश्यकता होती है जिससे आँकड़ों के संग्रह, विश्लेषण व पुनः उपयोग में सहायता मिलती है। इन सब कार्यों का निष्पादन सुगमता से जैव सूचना विज्ञान के द्वारा किया जाता है।