HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 14 पारितंत्र

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 14 पारितंत्र Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Solutions Chapter 14 पारितंत्र

प्रश्न 1.
रिक्त स्थानों को भरो।
(क) पादपों को ……………….. कहते हैं; क्योंकि ये कार्बन डाइऑक्साइड का स्थिरीकरण करते हैं।
(ख) पादप द्वारा प्रमुख पारितंत्र का पिरैमिड ( संख्या का ) ……………………. प्रकार का है।
(ग) एक जलीय पारितंत्र में, उत्पादकता का सीमा कारक …………………. है।
(घ) हमारे पारितंत्र में सामान्य अपरदन …………………….. है।
(च) पृथ्वी पर कार्बन का प्रमुख भंडार ……………….. है।
उत्तर:
(क) उत्पादक,
(ख) उल्टा
(ग) प्रकाश,
(घ) केंचुआ,
(च) समुद्र एवं वायुमंडल ।

HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 14 पारितंत्र

प्रश्न 2.
एक खाद्य श्रृंखला में निम्नलिखित में सर्वाधिक संख्या किसकी होती है-
(क) उत्पादक
(ग) द्वितीयक उपभोक्ता
(घ ) अपघटक ।
(ख) प्राथमिक उपभोक्ता
उत्तर:
(घ) अपघटक

प्रश्न 3.
एक झील में द्वितीय (दूसरी) पोषण स्तर होता है-
(क) पादपप्लवक
(ग) नितलक (बैनथॉस)
(ख) प्राणिप्लवक
(घ) मछलियाँ
उत्तर:
(ख) प्राणिप्लवक ।

प्रश्न 4.
द्वितीयक उत्पादक हैं-
(क) शाकाहारी (शाकभक्षी )
(ख) उत्पादक
(ग) मांसाहारी ( मांसभक्षी)
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(क) शाकाहारी (शाकभक्षी ) ।

प्रश्न 5.
प्रासंगिक सौर विकिरण में प्रकाश संश्लेषणात्मक सक्रिय विकिरण का क्या प्रतिशत होता है?
(क) 100%
(ग) 1-5%
(ख) 50%
(घ) 2-10%
उत्तर;
(ख) 50%

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट करें-
(क) चारण खाद्य श्रृंखला एवं अपरद खाद्य श्रृंखला
(ख) उत्पादन एवं अपघटन
(ग) ऊर्ध्ववर्ती (शिखरांश) व अधोवर्ती पिरैमिड |
उत्तर:
(क) चारण खाद्य श्रृंखला एवं अपरद खाद्य श्रृंखला में अन्तर (Difference between Grazing Food Chain and Detritus Food Chain)
HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 14 पारितंत्र 1

(ख) उत्पादन तथा अपघटन में अन्तर (Difference between Production and Decomposition)

उत्पादन (Production) अपघटन (Decomposition)
1. हरे पादप प्रकाश संश्लेषण क्रिया के फलस्वरूप जल तथा CO2 से कार्बनिक भोज्य पदार्थों का संश्लेषण करते हैं। यह क्रिया सौर प्रकाश तथा पर्णहरित की उपस्थिति में होती है । 1. जीवाणु, कवक आदि अपघटक मृत जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल पदार्थों में विघटित कर देते हैं। इस प्रक्रिया में ऊर्जा, जल तथा CO2 मुक्त होती है।
2. सौर ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा में बदलकर कार्बनिक भोज्य पदार्थों में संचित हो जाती है। इस प्रक्रिया को उत्पादन कहते हैं । 2. रासायनिक ऊर्जा गतिज ऊर्जा तथा ऊष्मा के रूप में मुक्त होती है। इस प्रक्रिया को अपघटन कहते हैं ।

HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 14 पारितंत्र

(ग) ऊर्ध्ववर्ती पिरैमिड व अधोवर्ती पिरैमिड में अन्तर (Difference between Upright Pyramid and Inverted Pyramid)

ऊर्ध्ववर्ती पिरैमिड (Upright pyramid) अधोवर्ती पिरैमिड (Inverted pyramid)
1. ऊर्जा के पिरैमिड सदैव ऊर्ध्ववर्ती होते हैं क्योंकि प्रत्येक पोषक | स्तर पर ऊर्जा की मात्रा कम हो जाती है। 1. वृक्ष के पारितन्त्र की संख्या का पिरैमिड उल्टा या अधोवर्ती होता है ।
2. वन पारितन्त्र, घास के मैदान पारितन्त्र में जीवों की संख्या तथा जैवभार के पिरैमिड सीधे बनते हैं, क्योंकि प्रत्येक पोषक स्तर पर जीवों की संख्या तथा जैवभार कम होता जाता है। 2. तालाब तथा समुद्र के पारितन्त्र में जैवभार का पिरैमिड उल्टा बनता है, क्योंकि मांसाहारी बड़ी मछलियों का जैवभार प्राणीप्लवक व पादप प्लवक से अधिक होता है ।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट कीजिए-
(क) खाद्य श्रृंखला तथा खाद्य जाल (वेब)
(ख) लिटर (कर्कट) एवं अपरद
(ग) प्राथमिक एवं द्वितीयक उत्पादकता ।
उत्तर:
(क) खाद्य श्रृंखला तथा खाद्य जाल में अन्तर (Difference between Food Chain and Food Web)

खाद्य श्रृंखला (Food Chain) खाद्य जाल (Food Web)
1. खाद्य शृंखला जीवों का वह क्रम है जिसमें समुदाय के एक जीव से दूसरे जीव में ऊर्जा भोज्य पदार्थ के रूप में स्थानान्तरित होती है । 1. अनेक खाद्य श्रृंखलाएँ मिलकर खाद्य जाल बनाती हैं। इसमें जीवधारियों को भोजन प्राप्त करने के अनेक वैकल्पिक रास्ते होते हैं।
2. इसमें जीवों की संख्या सीमित होती है । 2. अपेक्षाकृत जीवों की संख्या अधिक या असीमित होती है।
3. एक खाद्य स्तर का जीव दूसरे खाद्य स्तर के जीव से जुड़ता है। 3. एक जीव का उपयोग खाद्य पदार्थ के रूप में एक से अधिक खाद्य शृंखलाओं के जीवों द्वारा किया जा सकता है।

उदाहरण-

HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 14 पारितंत्र 2

(ख) लिटर (कर्कट) एवं अपरद में अन्तर (Difference between Litter and Detritus)

लिटर (Litter) अपरद (Detritus)
1. यह मृदा (भूमि) की ऊपरी सतह पर पाया जाने वाला जीवधारियों का मृत पदार्थ है; जैसे पत्ते, छाल, टहनियाँ, पुष्प, फल, गोबर आदि एवं मृत पादप व प्राणियों के अवशेष इत्यादि । ये सभी भूमि की सतह पर पाये जाने वाले पदार्थ होते हैं। 1. यह मृदा में पाये जाने वाले पादप व प्राणियों के अवशेष होते हैं ( पत्तियाँ, लकड़ी, टहनियाँ, पुष्प, पादप व प्राणियों के अवशेष मल सहित अपरद बनाते हैं) । यह विघटित अवस्था में होने के कारण पादपों के लिए उपयोगी होता है। यह मृदा में मिलकर मृदा की उर्वरता (fertility) को बढ़ाता है।

HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 14 पारितंत्र

(ग) प्राथमिक तथा द्वितीयक उत्पादकता में अन्तर (Difference between Primary and Secondary Productivity)

प्राथमिक उत्पादकता (Primary Productivity) द्वितीयक उत्पादकता (Secondary Productivity)
1. हरे पादप प्राथमिक उत्पादक होते हैं। एक निश्चित समयावधि में प्रति इकाई क्षेत्र द्वारा उत्पन्न किये गये जैव पदार्थ (कार्बनिक पदार्थ) की मात्रा के उत्पादन की दर को प्राथमिक उत्पादकता कहते हैं। इसे भार g/m2 या ऊर्जा (Kcal/m2) के रूप में व्यक्त किया जा सकता है । 1. एक पारितन्त्र की सकल प्राथमिक उत्पादकता (GPP) प्रकाश- संश्लेषण के दौरान कार्बनिक तत्व की उत्पादन दर होती है। इसमें से पौधे अपनी जैविक क्रियाओं के लिए कार्बनिक भोज्य पदार्थों का उपयोग करते हैं। इस मात्रा को सकल प्राथमिक उत्पादकता (GPP) को घटा देने पर नेट प्राथमिक उत्पादकता (NPP) प्राप्त होती है, जो प्राथमिक उपभोक्ता को उपलब्ध होती है। इसे द्वितीयक उत्पादकता कहते हैं ।
2. प्राथमिक उत्पादकता दो प्रकार की होती है-सकल प्राथमिक उत्पादकता (GPP) तथा शुद्ध या नेट प्राथमिक उत्पादकता (NPP ) । GPP – R = NPP (R= श्वसन में क्षति) 2. द्वितीयक उत्पादकता दो प्रकार की होती है सकल द्वितीयक उत्पादकता (GSP) तथा शुद्ध द्वितीयक उत्पादकता (NSP) NSP = GSP – R ( श्वसन में क्षति)

प्रश्न 8.
पारिस्थितिक तंत्र के घटकों की व्याख्या करें।
उत्तर:
सर्वप्रथम इकोसिस्टम (Ecosystem) शब्द का प्रयोग ए.जी. टैन्सले (A.G. Tansley, 1935 ) ने किया था। ‘Eco’ शब्द का तात्पर्य पर्यावरण से है तथा ‘system’ का बोध अन्योन्य क्रियाओं (Interactions) से है। टेन्सले ने इकोसिस्टम को परिभाषित करते हुए कहा कि “इकोसिस्टम वह तंत्र है जो पर्यावरण के सम्पूर्ण सजीव व निर्जीव कारकों के पारस्परिक सम्बन्धों तथा प्रक्रियाओं द्वारा प्रकट होता है” या इकोसिस्टम प्रकृति का वह तंत्र है जिसमें जीवीय व अजीवीय घटकों की संरचना व कार्यों का पारिस्थितिक सम्बन्ध निश्चित नियमों के अनसार गतिज संतुलन में रहता है तथा ऊर्जा व पदार्थों का प्रवाह सुनियोजित मार्गों से होता रहता है ।

पारिस्थितिक तंत्र की संरचना (Structure of Ecosystem)- पारिस्थितिक तंत्र की संरचना के दो मुख्य घटक होते हैं-
I. जीवीय घटक (Biotic Component) तथा
II. अजीवीय घटक (Abiotic Component )
I. जीवीय घटक (Biotic Component ) – पारिस्थितिक तंत्र में जीवीय घटक का प्रथम स्थान होता है। इस तंत्र में नाना प्रकार के प्राणियों व वनस्पति की समष्टि (Population) के समुदाय होते हैं तथा ये सभी जीव आपस में किसी न किसी प्रकार से सम्बन्धित होते हैं। पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार्य या इन विभिन्न जीवों के भोजन प्राप्त करने के प्रकार के अनुसार इस जीवीय घटक को दो प्रमुख भागों में विभक्त किया गया है-

(क) स्वपोषी या उत्पादक (Autotrophs or Producers)-पारिस्थितिक तंत्र के वे सजीव सदस्य, जो साधारण अकार्बनिक पदार्थों को प्राप्त कर, सूर्य प्रकाशीय ऊर्जा को ग्रहण कर जटिल पदार्थों अर्थात् प्रकाश संश्लेषण ( Photosynthesis) की क्रिया कर भोजन का संश्लेषण करते हैं। अपने पोषण हेतु स्वयं भोजन का निर्माण करने में सक्षम होते हैं।

ऐसे सजीव सदस्य स्वपोषी घटक (Autotrophic Component) कहलाते हैं। यह अद्भुत क्षमता प्रायः क्लोरोफिल युक्त हरे पौधों में तथा विशेष प्रकार के रसायन संश्लेषी जीवाणुओं में होती है। स्वपोषी घटक को प्राथमिक उत्पादक भी कहते हैं, क्योंकि हरे पौधे भोजन का निर्माण कर उन्हें संचित करते हैं तथा यह संचित खाद्य पदार्थ ही अन्य समस्त प्रकार के जीवों हेतु प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भोजन के रूप में प्रयुक्त होता है।

स्थल पर उगने वाले समस्त पौधे तथा जलीय माध्यम ( तालाब, झील व समुद्र) में विद्यमान जलोद्भिद पादप शैवाल व सूक्ष्मदर्शी पौधे उत्पादक की श्रेणी में आते हैं । समस्त पौधे कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं न कि ऊर्जा का। वास्तविक रूप से उत्पादक पौधे प्रकाशीय ऊर्जा को जटिल कार्बनिक पदार्थ की रासायनिक स्थितिज ऊर्जा (Potential Chemical Energy ) में परिवर्तित करते हैं । इसी कारण कोरोमेन्डी (Koromondy) ने इन्हें उत्पादक के स्थान पर परिवर्तक या पारक्रमी (Converter or Transducer) कहा है।

(ख) विषमपोषी या उपभोक्ता (Heterotrophs or Consumers) – पारिस्थितिक तंत्र के वे जीव जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उत्पादकों द्वारा निर्मित भोजन पर निर्भर रहते हैं। इन सजीव सदस्यों में भोजन सृजन की क्षमता नहीं होती है। इस प्रकार के जीवों को विषमपोषी कहते हैं । वस्तुतः ये उत्पादकों द्वारा संश्लेषित भोजन का हैं। इन परपोषित या उपभोक्ता जीवों को पुनः दो श्रेणियों में विभक्त किया गया है-

HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 14 पारितंत्र

1. वृहद् या गुरु उपभोक्ता या भक्षपोषी या जीवभक्षी (Macroconsumers or Phagotrophs ) – वे जीव उपभोक्ता जो अपना भोजन जीवित पौधों या जन्तुओं से प्राप्त करते हैं उन्हें वृहद् उपभोक्ता या भक्षपोषी या जीवभक्षी (Phagotroph, Phago = to eat) कहते हैं। इस प्रकार के उपभोक्ता भोजन को ग्रहण कर अपने शरीर के अन्दर उसका पाचन करते हैं। शाक या पादप भक्षी शाकाहारी (Herbivores), जन्तुभक्षी मांसाहारी (Carnivores) तथा शाक व मांस दोनों को खाने वाले को सर्वाहारी (Omnivores) कह सकते हैं। उपभोक्ताओं को तीन श्रेणियों में विभेदित किया गया है-

(i) प्राथमिक उपभोक्ता (Primary Consumers) – वे जीव जो भोजन की प्राप्ति हेतु प्रत्यक्ष रूप से हरे पौधों अर्थात् उत्पादकों पर निर्भर होते हैं। ऐसे प्राथमिक उपभोक्ता मुख्य रूप से शाकाहारी (Herbivores) जन्तु होते हैं। जैसे-कीट, गाय, भैंस, बकरी, खरगोश, भेड़, हिरण, चूहा इत्यादि । स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र के सामान्यतः शाकाहारी प्राथमिक उपभोक्ता होते हैं।

(ii) द्वितीयक उपभोक्ता (Secondary Consumers) – इस श्रेणी के उपभोक्ता अपना भोजन प्रथम श्रेणी के शाकाहारी उपभोक्ताओं से प्राप्त करते हैं । इस श्रेणी के उपभोक्ता प्रायः मांसाहारी (Carnivores) होते हैं, जैसे- मेंढक, लोमड़ी, कुत्ता, बिल्ली, चीता इत्यादि ।

(iii) तृतीयक उपभोक्ता ( Tertiary Consumers ) – इस श्रेणी के उपभोक्ता अपना भोजन द्वितीयक श्रेणी के मांसाहारी उपभोक्ताओं से प्राप्त करते हैं और यही नहीं, यहाँ तक सर्वाहारी व शाकाहारी का भी भक्षण कर लेते हैं। कुछ उपभोक्ता उच्च मांसाहारी (Top Carnivores) होते हैं, जो स्वयं तो अन्य मांसाहारी जन्तुओं को खा जाते हैं किन्तु उन्हें कोई प्राणी नहीं खा सकता। इस प्रकार के उपभोक्ताओं को शीर्ष या उच्च उपभोक्ता ( Top Consumers) कहा जाता है; जैसे- शेर, चीता, बाज व गिद्ध इत्यादि ।
अतः उपर्युक्त उपभोक्ताओं की श्रेणियों को देखते हुए यह स्पष्ट है कि भोजन उत्पादकों से होता हुआ उपभोक्ताओं की विभिन्न श्रेणियों से गुजर कर उच्च उपभोक्ताओं तक पहुँच जाता है। अतः भोजन या खाद्य की इस श्रृंखला को खाद्य श्रृंखला (Food Chain) कहते हैं ।

2. सूक्ष्म या लघु उपभोक्ता या अपघटक जीव (Microconsumers or Decomposers) – लघु उपभोक्ता भी पारिस्थितिक तंत्र के महत्त्वपूर्ण सजीव घटक हैं । इस श्रेणी के जीव विभिन्न प्रकार के कार्बनिक पदार्थों को उनके अवयवों में विघटित कर देते हैं । इस क्रिया में यह जीव पाचन विकर का स्रवण कर भोजन को सरल पदार्थों में तोड़कर इस पचित भोजन को अवशोषित करते हैं ।

इनमें मुख्यतः कवक, जीवाणु, एक्टिनोमाइसीटिज तथा मृतोपजीवी होते हैं । इन्हें अपघटक या मृतोपजीवी (Saprotrophs) या परासरणजीवी (Osmotrophs) कहते हैं। इस प्रकार के जीव उत्पादक तथा उपभोक्ता के मृत शरीरों पर क्रिया कर जटिल कार्बनिक पदार्थों को साधारण पदार्थों में परिवर्तित करते हैं। इन साधारण कार्बनिक पदार्थ पर अन्य प्रकार के जीवाणु क्रिया कर अन्त में इन्हें अकार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित कर देते हैं ।
HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 14 पारितंत्र 3
यह प्राणी क्रिया करते समय अपघटन से निर्मित उत्पादों का स्वयं अवशोषण कर अपने पोषण में उपयोग कर लेते हैं व अन्य पदार्थों को वातावरण में मुक्त कर देते हैं। अपघटक व परिवर्तक क्रिया से निर्मित अकार्बनिक पदार्थ पुनः उत्पादकों या हरे पौधों द्वारा उपयोग में ले लिये जाते हैं।

इस प्रकार से हरे पौधों में जिसमें भोजन का निर्माण या संचय हुआ था उसका उपयोग उपभोक्ताओं ने किया तथा उपभोक्ताओं व उत्पादकों के मृत होने पर ये सूक्ष्म उपभोक्ता अपघटन क्रिया कर अकार्बनिक पदार्थों को पर्यावरण में वापस लौटाने का कार्य करते हैं। अतः अपघटनकर्ता तथा परिवर्तक पारिस्थितिक तंत्र के अस्तित्व को बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं ।

HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 14 पारितंत्र

II. अजीवीय घटक (Abiotic Component) – ये पारिस्थितिक तंत्र के अजीवीय घटक हैं तंत्र के प्रथम भाग में जीवीय घटक का उल्लेख करते हुए उसके महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। उसी प्रकार अजीवीय घटक जो कि भौतिक पर्यावरण से बनता है, यह भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। इस भौतिक पर्यावरण को तीन भागों में विभाजित किया गया है-

(क) अकार्बनिक पदार्थ ( Inorganic Substances) – जैसे- मृदा, जल, कार्बन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड, कैल्सियम कार्बोनेट व फॉस्फेट इत्यादि जो पारिस्थितिक तंत्र में चक्रीय पथों से गुजरते हैं, जिसे जैव-भू- रासायनिक चक्र (Biogeochemical Cycle) कहते हैं।

(ख) कार्बनिक पदार्थ ( Organic Substances ) – इसमें वसा, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, ह्यूमस, क्लोरोफिल, लिपिड इत्यादि होते हैं तथा ये पारिस्थितिक तंत्र के अजीवीय और जीवीय घटकों को जोड़ने का सम्बन्ध स्थापित करने में प्रयुक्त होते हैं।

(ग) जलवायवीय कारक (Climatic Factors) – जैसे – प्रकाश, तापक्रम, आर्द्रता, पवन, वर्षा इत्यादि भौतिक कारक हैं। इन सभी भौतिक कारकों में से सूर्य की विकिरण ऊर्जा पारिस्थितिकी तंत्र के ऊर्जा स्रोत के लिए महत्त्वपूर्ण होती है। किसी पारिस्थितिक तंत्र में नियत समय में उपस्थित अजैव पदार्थों की मात्रा को स्थायी अवस्था (Standing State) या स्थायी गुणता (Standing Quality) कहा जाता है, जबकि जैविक पदार्थों या कार्बनिक पदार्थों की कुल मात्रा को खड़ी फसल या स्थित शस्य (Standing Crop ) कहते हैं। इसे इकाई क्षेत्र में उपस्थित जीवों की संख्या या जैवभार (Biomass) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

उपर्युक्त अजीवीय घटक पारिस्थितिक तंत्र की प्रकृति को सुनिश्चित कर इसमें जीवों को सीमित रखते हुए इस तंत्र के प्रकार्यों को नियंत्रित करते हैं। मृदा में पाये जाने वाले खनिजों को पौधे अवशोषित कर शरीर निर्माण में उपयोग लेते हैं तथा सूर्य के प्रकाश में उपस्थित ऊर्जा के सहयोग से भोजन का निर्माण करते हैं। इन सभी खनिजों में से विशेषत: C, H, N, P इत्यादि पौधों तथा जन्तुओं के शरीर निर्माण हेतु परम आवश्यक हैं। जीवों की मृत्यु पश्चात् इनके शरीर अपघटित कर दिये जाते हैं।

इस क्रिया के फलस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड वायुमण्डल में वापस चली जाती है तथा खजिन लवण पुनः भूमि में मिल जाते हैं तथा इस भूमि से पौधे उनका पुनः अवशोषण करते रहते हैं। अतः इस प्रकार पारिस्थितिक तंत्र में खनिज लवणों का चक्र चलता रहता है। इसे खनिज प्रवाह कहा जाता है। इस खनिज प्रवाह को चलायमान रखने हेतु जीवीय तथा अजीवीय दोनों घटक निरन्तर क्रियाशील रहते हैं । इसलिए इसे खनिज प्रवाह के साथ-साथ जैव- भूरासायनिक चक्र (Bio-geochemical cycle) भी कहते हैं ।

प्रश्न 9.
पारिस्थितिक पिरैमिड को परिभाषित करें तथा जैवमात्रा या जैवभार तथा संख्या के पिरैमिडों की उदाहरण सहित व्याख्या करें।
उत्तर:
यदि पारितंत्र के प्रथम पोष स्तर को आधार मानकर क्रमश: उत्तरोत्तर विभिन्न पोष स्तरों को चित्र में दिखाया जावे तो इससे स्तूपाकार (Pyramid) लेखाचित्र प्रदर्शित होता है तथा इन्हें ही पारिस्थितिक स्तूप या पिरैमिड कहते हैं ।

(i) जीवभार के पिरामिड (Pyramid of Biomass )-
पारिस्थितिक तंत्र में भोजन श्रृंखला तथा प्रत्येक भोजन स्तर के जीवों के पारस्परिक सम्बन्ध दर्शाने का अन्य पारिस्थितिक पिरामिड जीवभार पिरामिड है। एक पारिस्थितिक तंत्र के जीवों का जो इकाई क्षेत्र में शुष्क भार (Dry Weight) होता है उसे जीवभार (Biomass) कहते हैं । इसमें भी यदि प्रत्येक भोजन स्तर के जीवों के जीवभार के आधार पर लेखाचित्र बनाया जावे तो यह ठीक स्तूप जैसा बनता है। जीवभार के आधार पर जो पिरामिड बनते हैं उनसे यह ज्ञात होता है कि प्रायः उत्पादक स्तर का जीवभार सर्वाधिक होता है तथा धीरे-धीरे अन्य स्तरों में यह जीवभार क्रमशः कम होता है।

HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 14 पारितंत्र

जीवभार के आधार पर स्थलीय पारिस्थितिक तंत्रों के पिरामिड सीधे तथा जलीय पारिस्थितिक तंत्र के पिरामिड उल्टे बनते हैं, जैसे- घास स्थलीय व वनों के जीवभार पिरामिड ठीक सीधे बनते हैं। परन्तु उत्पादक से उपभोक्ता की ओर क्रमशः जीवभार की निरन्तर कमी होती जाती है। जलीय माध्यम अर्थात् तालाब के अध्ययन पर जीवभार की निरन्तर कमी होती जाती है। जलीय माध्यम अर्थात् तालाब के अध्ययन पर जीवभार की निरन्तर कमी होती जाती है।

जलीय माध्यम अर्थात् तालाब के अध्ययन पर जीवन भार के आधार पर बनने वाले पिरामिड ठीक उल्टे होते हैं क्योंकि इनमें उत्पादक छोटे जीव होते हैं अतः इनका जीवभार कम होता है तथा जैसे-जैसे उपभोक्ताओं की ओर अग्रसर होते हैं त्यों-त्यों जीवभार में वृद्धि होती जाती है। यदि एक विशाल वृक्ष के पारिस्थितिक तंत्र का जीवभार आधार पर पिरामिड बनाया जावे तो यह भी ठीक सीधा बनता है।
HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 14 पारितंत्र 4

(ii) जीवों की संख्या के स्तूप (Pyramid of Numbers of Organisms ) – जब किसी पारिस्थितिक तंत्र के उत्पादक व प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक श्रेणी के उपभोक्ताओं के जीवों की संख्या का चित्रण किया जाता है तो उसे जीवों की संख्या का पिरामिड कहते हैं । इसमें जैसे-जैसे उत्पादक से उपभोक्ताओं की तरफ बढ़ते हैं वैसे-वैसे जीवों की संख्या कम होती जाती है अर्थात् इसमें उत्पादकों की संख्या सर्वाधिक एवं प्रथम, द्वितीय व तृतीय श्रेणी के उपभोक्ताओं की संख्या क्रमशः कम तथा उच्चतम उपभोक्ताओं की संख्या सबसे कम होती है। इसके चित्रण में यह पिरामिड सीधा (Upright ) होता है।

परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि यह स्तूप सदैव सीधे ही होते हैं, जैसे परजीवी खाद्य श्रृंखला वाले तंत्र में यह स्तूप उल्टा (Inverted) होता है। इसी प्रकार एक विशाल वृक्ष के पारिस्थितिक तंत्र का स्तूप भी उल्टा बनेगा। घास स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र के उत्पादक मुख्य रूप से घास होती है, जो संख्या में सर्वाधिक होती है। परन्तु इसके पश्चात् उपभोक्ताओं की संख्या में निरन्तर कमी आती जाती है। अतः इसका पिरामिड सीधा होता है।
HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 14 पारितंत्र 4
इसी प्रकार तालाब का पारिस्थितिक तंत्र सीधा होता है। इसमें पादप प्लावक (शैवाल) मुख्य उत्पादक होते हैं तथा संख्या में सर्वाधिक होते हैं। इसके पश्चात् विभिन्न श्रेणी के उपभोक्ताओं की संख्या में कमी होती जाती है। वन ( Forest) पारिस्थितिक तंत्र में जीवों की संख्या को पिरामिड की आकृति कुछ अलग ही प्रकार की होती है। क्योंकि इनमें उत्पादक बड़े आकार (Size) के वृक्ष होते हैं परन्तु संख्या में कम होते हैं। इनमें शाकाहारी उपभोक्ताओं की संख्या में निरन्तर कमी आती जाती है परन्तु फिर भी यह सीधा होता है।

HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 14 पारितंत्र

परजीवी भोजन श्रृंखला में पिरामिड सदैव उल्टा होता है क्योंकि एक पौधा अनेक परजीवियों की वृद्धि हेतु पर्याप्त होता है तथा ये परजीवी अनेक परात्पर जीवों (Hyperparasite) को पोषणता प्रदान करने में सक्षम होते हैं और इस प्रकार से निरन्तर उत्पादक से उपभोक्ताओं की ओर संख्या बढ़ने के कारण चित्र में उल्टी आकृति का पिरामिड बनता है।

प्रश्न 10.
प्राथमिक उत्पादकता क्या है? उन कारकों की संक्षेप में चर्चा करें जो प्राथमिक उत्पादकता को प्रभावित करते हैं।
उत्तर:
हरे पादपों द्वारा उत्पादित द्रव्यों की कुल मात्रा को प्राथमिक उत्पादन (Primary Production) कहा जाता है। इसे प्रति इकाई समय में प्रति इकाई क्षेत्र में उत्पादित जैव भार या संचित ऊर्जा के रूप में व्यक्त करते हैं। सामान्यतया इसे ग्राम / मीटर / वर्ष या कि. कैलोरी / मीटर / वर्ष के रूप में व्यक्त किया जाता है। प्राथमिक उत्पादकता दो प्रकार की होती है-
(i) सकल (Gross ) तथा
(ii) नेट (Net)
या वास्तविक या शुद्ध । प्राथमिक उत्पादकों द्वारा ऊर्जा के पूर्ण अवशोषण की दर को या कार्बनिक पदार्थों यथा जैव भार के कुल उत्पादन की दर को सकल प्राथमिक उत्पादकता (Gross Primary Productivity) कहते हैं तथा उत्पादकों की श्वसन क्रिया के पश्चात् बचे हुए जैव भार या ऊर्जा की दर को वास्तविक या नेट प्राथमिक उत्पादकता कहते हैं अर्थात् वास्तविक या नेट प्राथमिक उत्पादकता (NPP) सकल प्राथमिक उत्पादकता (GPP) श्वसन दर (R) प्राथमिक उत्पादकता, प्रकाश संश्लेषण तथा श्वसन को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारकों से सर्वाधिक प्रभावित होती है, जैसे विकिरण, तापमान, प्रकाश, मृदा की आर्द्रता आदि जलीय पारिस्थितिक तंत्र में उत्पादकता प्रकाश के कारण सीमित रहती है। महासागरों (गहरे) में पोषक तत्त्व (जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस आदि) उत्पादकता को सीमित करते हैं।

प्रश्न 11.
अपघटन की परिभाषा दें तथा अपघटन की प्रक्रिया एवं उसके उत्पादों की व्याख्या करें।
उत्तर:
आपने शायद सुना होगा कि केंचुए किसान के मित्र होते हैं, क्योंकि ये खेतों व बगीचों में जटिल कार्बनिक पदार्थों का खण्डन करने के साथ-साथ मृदा को भुरभुरा बनाते हैं। इसी प्रकार अपघटक (Decomposer ) जटिल कार्बनिक पदार्थों को अकार्बनिक तत्वों  सेCO2 जल व पोषक पदार्थों में खण्डित करने में सहायता करते हैं व इस प्रक्रिया को अपघटन ( Decomposition) कहते हैं। पादपों के मृत अवशेष जैसे- पत्तियाँ, छाल, टहनियाँ, पुष्प तथा प्राणियों (पशुओं) के मृत अवशेष, मल सहित अपरद (Detritus) बनाते हैं, जो कि अपघटन हेतु कच्चे माल का काम करते हैं।

इस प्रक्रिया में कवक, जीवाणुओं, अन्य सूक्ष्म जीवों के अतिरिक्त छोटे प्राणियों जैसे निमेटोड कीट, केंचुए आदि का मुख्य योगदान रहता है। अपघटन की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण चरण खण्डन (fragmentation), निक्षालन (leaching ), अपचयन (reduction) ह्यूमीफिकेशन (humification), खनिजीकरण (mineralization) है।

अपरदहारी (जैसे कि केंचुए) अपरद को छोटे-छोटे कणों में खण्डित कर देते हैं, इस प्रक्रिया को खण्डन कहते हैं। निक्षालन (leaching) प्रक्रिया के अन्तर्गत जल विलेय अकार्बनिक पोषक भूमि मृदा संस्तर में प्रविष्ट कर जाते हैं व अनुपलब्ध लवण के रूप में अवक्षेपित हो जाते हैं। जीवाणुवीय एवं कवकीय एन्जाइम्स अपरदों को सरल अकार्बनिक तत्वों में तोड़ देते हैं। इस प्रक्रिया को अपचय (reduction) कहते हैं।

ह्यूमीफिकेशन (humification) तथा खनिजीकरण (mineralization) की प्रक्रियाएँ अपघटन के समय मृदा में सम्पन्न होती हैं। ह्यूमीफिकेशन के कारण एक गहरे रंग का क्रिस्टल रहित पदार्थ का निर्माण होता है जिसे ह्यूमस (humus) कहते हैं। ह्यूमस सूक्ष्मजैविकी क्रियाओं के लिए उच्च प्रतिरोधी होता है और इसका अपघटन बहुत धीमी गति से होता है। स्वभाव में कोलॉइडल होने के कारण यह पोषक के भण्डार का कार्य करता है। ह्यूमस पुनः सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटित होता है। और खनिजीकरण प्रक्रिया के द्वारा अकार्बनिक पोषक उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 12.
एक पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा प्रवाह का वर्णन करें।
उत्तर:
पारिस्थितिक तन्त्र में ऊर्जा का प्रवेश, स्थानान्तरण, रूपान्तरण एवं वितरण ऊष्मागतिकी के दो मूल नियमों (Law of thermodynamics) के अनुरूप होता है। कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं। प्रत्येक जीव को अपनी जैविक क्रियाओं के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। किसी भी पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का एकमात्र एवं अन्तिम मुख्य स्रोत सूर्य है (देखें चित्र 14.2) । पृथ्वी पर पहुँचने वाली कुल प्रकाश ऊर्जा का केवल 1% भाग प्रकाश संश्लेषण द्वारा खाद्य ऊर्जा या रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरित हो पाता है।

HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 14 पारितंत्र

वन वृक्षों में यह दक्षता 5% तक हो सकती है। शेष ऊर्जा का ऊष्मा के रूप में ह्रास हो जाता है। पृथ्वी पर कुल प्रकाश संश्लेषण का लगभग 90% भाग जलीय पौधों विशेषत: समुद्रीय डायटमों (Diatoms) शैवालों द्वारा सम्पन्न होता है और शेष भाग स्थलीय पौधों द्वारा होता है। इनमें भी वन वृक्ष सबसे अधिक प्रकाश संश्लेषण करते हैं। इसके बाद कृष्य (cultivated) पौधे तथा घास जातियाँ आती हैं।

कोई भी जीव प्राप्त की गई ऊर्जा के औसतन 10% से अधिक ऊर्जा अपने शरीर निर्माण में प्रयोग नहीं कर पाता है तथा शेष 90% ऊर्जा का ऊष्मा के रूप में श्वसन आदि क्रियाओं में ह्रास हो जाता है अर्थात् खाद्य शृंखला में ऊर्जा के स्थानान्तरण में एक पोष स्तर पर लगभग 10% ऊर्जा ही संग्रहित होती है। इसे पारिस्थितिक दशांश का नियम (Rule of ecological tenthe) कहते हैं।

इस प्रकार यदि किसी स्थान पर सौर ऊर्जा की मात्रा 100 कैलोरी हो तो पादपों (प्राथमिक उत्पादक) को 10 कैलोरी, उन पादपों का चारण करके शाक भक्षी को केवल 1 कैलोरी और उस शाकाहारी (प्राथमिक उपभोक्ता) को खाकर मांसाहारी (द्वितीयक उपभोक्ता) में केवल 0.1 कैलोरी ऊर्जा संग्रहित होगी तथा अपघटक तक यह बहुत न्यून मात्रा में पहुँचेगी। वास्तव में ऊर्जा संकल्पना में ऊर्जा का एक पोष स्तर से दूसरे पोष स्तर में स्थानान्तरण एवं रूपान्तरण है।
HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 14 पारितंत्र 6

प्रश्न 13.
एक पारिस्थितिक तंत्र में एक अवसादीय चक्र की महत्त्वपूर्ण विशिष्टताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
एक पारिस्थितिक तन्त्र में अवसादी चक्र की महत्त्वपूर्ण विशिष्टताएँ अग्रलिखित हैं-
(i) अवसादन चक्र जैव भू-रसायन चक्र (Biogeochemical Cycle) का एक प्रकार है।
(ii) अवसादीय चक्र (Sedimentary cycle) में पोषक तत्वों का संचय पृथ्वी की चट्टानों में होता है। उदाहरण के लिए फॉस्फोरस, पोटैशियम, कैल्सियम, सल्फर आदि के चक्र ।
(iii) ये चक्र अपेक्षाकृत अधिक धीमे होते हैं। ये अधिक परिपूर्ण (perfect) भी नहीं होते क्योंकि चक्रित तत्व किसी भी संचय स्थल में फँसकर रह जाते हैं तथा चक्रण से बाहर हो जाते हैं अतः इनकी प्रकृति में ( पारितन्त्र) में उपलब्धता पर गहरा प्रभाव पड़ता है, हो सकता है। यह रुकावट सैकड़ों से सहस्रों वर्षों के लिए बनी रहे।

प्रश्न 14
एक पारिस्थितिक तंत्र में कार्बन चक्रण की महत्वपूर्ण विशिष्टताओं की रूपरेखा प्रस्तुत करें।
उत्तर:
(Ecosystem-Carbon cycle) सजीवों की संरचना का अध्ययन करने पर यह ज्ञात होता है कि जीवों के शुष्क भार का 49 प्रतिशत भाग कार्बन से बना होता है। जल के पश्चात् सर्वाधिक मात्रा कार्बन की ही होती है। यदि भूमण्डलीय कार्बन की कुल मात्रा का ध्यान करें तो हम यह पाते हैं कि समुद्र में 71 प्रतिशत कार्बन विलेय के रूप में विद्यमान है।

यह सागरीय कार्बन भंडार वायुमण्डल में CO2 की मात्रा को नियमित करता है।  कुल भूमण्डलीय कार्बन का केवल एक प्रतिशत भाग ही वायुमण्डल में समाहित है। जीवाश्मी ईंधन भी कार्बन के भंडार का प्रतिनिधित्व करता है। कार्बन चक्र वायुमण्डल, सागर तथा जीवित व मृतजीवों द्वारा सम्पन्न होता है।

HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 14 पारितंत्र

अनुमानानुसार जैव मण्डल में प्रकाश-संश्लेषण के द्वारा प्रतिवर्ष 4×1013 कि.ग्रा. कार्बन का स्थिरीकरण होता है। एक महत्वपूर्ण कार्बन की मात्रा CO2 के रूप में उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं के श्वसन क्रिया के माध्यम से वायुमण्डल में वापस आती है। इसके साथ ही भूमि एवं सागरों की कचरा सामग्री एवं मृत कार्बनिक सामग्री की अपघटन प्रक्रियाओं के द्वारा भी CO2 की काफी मात्रा अपघटकों द्वारा छोड़ी जाती है।
HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 14 पारितंत्र 7
कार्बन भू-शैलों में भी मुख्यतः कैल्सियम और मैग्नीशियम कार्बोनेट के रूप में पाया जाता है। यह कार्बन अधिकांशतः उत्पत्ति में कार्बन होता है परंतु यह्समुद्री जंतुओं के कंकालों में खानिज के रूप में होता है। कार्बोनेट शैल स्थल पर भी पाये जाते हैं और अपक्षय द्वारा मृदापोषक और पादप पोषक में जुड़ते हैं।

जब कुल प्राथमिक उत्पादन, श्वसन से अधिक होता है तब पारिस्थितिक तंत्र में कार्बन-समृद्ध जैविक पदार्थ संचित होता है। प्राचीन समय में इस प्रकार का संचयन जीवाष्मी ईंधन, कोयला और तेल के रूप में होता था। यौगिकीकृत कार्बन की कुछ मात्रा अवसादों में नष्ट होती है और संचरण द्वारा निकाली जाती है।

लकड़ी के जलाने, जंगली आग एवं जीवाश्मी ईंधन के जलने के कारण, कार्बनिक सामग्री, ज्वालामुखीय क्रियाओं आदि के अतिरिक्त स्रोतों द्वारा वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड को मुक्त किया जाता है। कार्बन चक्र में मानवीय क्रियाकलापों का महत्वपूर्ण प्रभाव है। तेजी से जंगलों का विनाश तथा परिवहन एवं ऊर्जा के लिए जीवाश्मी ईंधनों को जलाने आदि से महत्वपूर्ण रूप से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड को मुक्त करने की दर बढ़ी है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *