Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 10 मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव Textbook Exercise Questions and Answers.
Haryana Board 12th Class Biology Solutions Chapter 10 मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव
प्रश्न 1.
जीवाणुओं को नग्न नेत्रों द्वारा नहीं देखा जा सकता, लेकिन सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखा जा सकता है। यदि आपको . अपने घर से अपनी जीव विज्ञान प्रयोगशाला तक एक नमूना ले ना हो और सूक्ष्मदर्शी की सहायता से इस नमूने से सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति को प्रदर्शित करना हो, तो किस प्रकार का नमूना आप अपने साथ ले जायेंगे और क्यों?
उत्तर:
हम प्रतिदिन सूक्ष्मजीवियों अथवा उनसे व्युत्पन्न उत्पादों का प्रयोग करते हैं। इसका सामान्य उदाहरण दूध से दही का उत्पादन है। सूक्ष्मजीव जैसे लैक्टोबैसिलस तथा अन्य जिन्हें सामान्यतः लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया (एल.ए.बी.) कहते हैं, दूध में वृद्धि करते हैं और उसे दही में परिवर्तित कर देते हैं। इसी प्रकार एक बैकर यीस्ट ( सैकरोमाइसीज सैरीवीसी) का प्रयोग ब्रेड बनाने में किया जाता है।
यदि हमको अपने घर से अपनी जीव विज्ञान प्रयोगशाला तक एक नमूना ले जाना हो और सूक्ष्मदर्शी की सहायता से इस नमूने से सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति को देखना हो तो हम एक सड़ी हुई ( खराब) ब्रेड का टुकड़ा या फिर थोड़ी सी मात्रा में दही ले जायेंगे। क्योंकि ये दोनों चीजें आसानी से उपलब्ध हैं और इनमें सूक्ष्मजीव आसानी से दिखाई दे जाते हैं। ब्रेड पर जो हरा हरा-सा रंग दिखाई देता है, वास्तव में वह फंजाई (Fungus) है। उसके स्पोर वायु में उपस्थित रहते हैं जो खाद्य पदार्थ में वृद्धि करते रहते हैं।
प्रश्न 2.
उपापचय के दौरान सूक्ष्मजीव गैसों का निष्कासन करते हैं; उदाहरण द्वारा सिद्ध करें।
उत्तर:
दाल-चावल का बना ढीला-ढाला आटा जिसका प्रयोग ‘डोसा’ तथा ‘इडली’ जैसे आहार को बनाने में किया जाता है, बैक्टीरिया द्वारा किण्वित होता है। इस आटे की फूली उभरी शक्ल CO2 गैस के उत्पादन के कारण होती है। स्विस चीज में पाए जाने वाले बड़े-बड़े छिद्र प्रोपिओनिबैक्टीरिया शारमैनाई नामक बैक्टीरियम द्वारा बड़ी मात्रा में उत्पन्न CO2 के कारण होते हैं। ‘रॉक्यूफोर्ट चीज’ एक विशेष प्रकार के कवक की वृद्धि से परिपक्व होते हैं जिससे विशेष सुगंध आने लगती है।
प्रश्न 3.
किस भोजन (आहार) में लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया मिलते हैं? इनके कुछ लाभप्रद उपयोगों का वर्णन करें।
उत्तर:
लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया (एल. ए.बी.) दूध में मिलते हैं। ये दूध में वृद्धि करते हैं और दही में परिवर्तित कर देते हैं। वृद्धि के दौरान ये अम्ल उत्पन्न करते हैं जो दुग्ध प्रोटीन को स्कंदित तथा आंशिक रूप से पचा देते हैं। दही बनने पर विटामिन बी12 की मात्रा बढ़ने से पोषण संबंधी गुणवत्ता में भी सुधार हो जाता है। हमारे पेट में भी सूक्ष्मजीवियों द्वारा उत्पन्न होने वाले रोगों को रोकने में लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया एक लाभदायक भूमिका का निर्वाह करते हैं ।
प्रश्न 4.
कुछ पारंपरिक भारतीय आहार जो गेहूँ, चावल तथा चना ( अथवा उनके उत्पाद) से बनते हैं और उनमें सूक्ष्मजीवों का प्रयोग शामिल हो, उनके नाम बताएँ ।
उत्तर:
बहुत से पारंपरिक भारतीय आहार हैं जो गेहूँ, चावल तथा चना से बनते हैं और उनमें सूक्ष्मजीवों का प्रयोग शामिल होता है। उनके नाम इस प्रकार हैं- दही, पनीर, चीज, डोसा, इडली; कुछ भारतीय ब्रेड जैसे ‘भटूरा’ दक्षिण भारत के कुछ भागों में एक पारंपरिक पेय ‘टोडी’ है। किण्वित मछली, सोयाबीन तथा ब्राँस प्ररोह आदि के भोजन तैयार करने में किया जाता है।
प्रश्न 5.
हानिप्रद जीवाणु द्वारा उत्पन्न करने वाले रोगों के नियंत्रण में किस प्रकार सूक्ष्मजीव महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं?
उत्तर:
हानिप्रद जीवाणु द्वारा उत्पन्न करने वाले रोगों के नियंत्रण में सूक्ष्मजीव महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
प्रतिजैविक (एंटीबॉयोटिक) एक प्रकार के रासायनिक पदार्थ हैं, जिनका निर्माण कुछ सूक्ष्मजीवियों द्वारा होता है। यह अन्य (रोग उत्पन्न करने वाले) सूक्ष्मजीवियों की वृद्धि को मंद अथवा उन्हें मार सकते हैं। पैनीसिलीन सबसे पहला एंटीबॉयोटिक था।
इस एंटीबॉयोटिक का प्रयोग दूसरे विश्व युद्ध में घायल अमेरीकन सिपाहियों के उपचार में व्यापक रूप से किया गया पैनिसिलीन के बाद अन्य सूक्ष्मजीवियों से अन्य एंटीबॉयोटिक को भी परिशुद्ध किया गया। प्लेग, काली खाँसी, डिफ्थीरिया (गलघोट्ट), लैप्रोसी (कुष्ठ रोग) जैसे भयानक रोग जिनसे संसार में लाखों लोग मरे हैं, के उपचार के लिए एंटिबॉयोटिक ने हमारी क्षमता में वृद्धि करके वे एक शक्ति के रूप में उभरकर आये हैं।
प्रश्न 6.
किन्हीं दो कवक प्रजातियों के नाम लिखें, जिनका प्रयोग प्रतिजैविकों (एंटीबॉयोटिक) के उत्पादन में किया जाता है।
उत्तर:
पैनीसिलीन, पैनीसिलीयम नोटेटम और पैनीसिलीन कैरीसोगेनियम नामक मोल्ड से उत्पन्न होता है।
प्रश्न 7.
वाहितमल से आप क्या समझते हैं? वाहितमल हमारे लिए किस प्रकार से हानिप्रद है?
उत्तर:
प्रतिदिन नगर एवं शहरों से व्यर्थ जल की एक बहुत बड़ी मात्रा जनित होती है। इस व्यर्थ जल का प्रमुख घटक मनुष्य का मलमूत्र है । नगर के इस व्यर्थ जल को वाहितमल (सीवेज) भी कहते हैं। इसमें कार्बनिक पदार्थों की बड़ी मात्रा तथा सूक्ष्मजीव पाये जाते हैं जो अधिकाशत रोगजनकीय होते हैं।
प्रश्न 8.
प्राथमिक तथा द्वितीयक वाहितमल उपचार के बीच पाए जाने वाले मुख्य अन्तर कौन से हैं?
उत्तर:
प्राथमिक वाहितमल उपचार वाहितमल से बड़े-छोटे कणों का निस्यंदन (फिल्ट्रेशन) तथा अवसादन (सेडीमेंटेशन) द्वारा भौतिक रूप से अलग कर दिया जाता है। इन्हें भिन्न-भिन्न चरणों में अलग किया जाता है। आरंभ में तैरते हुए कूड़े-करकट को अनुक्रमिक निस्यंदन द्वारा हटा दिया जाता है। इसके बाद शिंतबालुकाश्म (ग्रिट) (मृदा तथा छोटे पुटिकाओ पेवल) को अवसादन द्वारा निष्कासित किया जाता हैं।
सभी ठोस जो प्राथमिक आपंक ( स्लज) के नीचे बैठे कण हैं, वह और प्लावी (सुपरनैटेड) बहि:स्राव (इफ्लुएंट) का निर्माण करता है। बहिःस्राव को प्राथमिक निःसादन (सेटलिंग) टैंक से द्वितीयक उपचार के लिए ले जाया जाता है। द्वितीयक वाहितमल उपचार – प्राथमिक बहि:स्राव को बड़े वायवीय टैंकों में से गुजारा जाता है। जहाँ यह लगातार यांत्रिक रूप से हिलाया जाता है और वायु को इसमें पंप किया जाता है। इससे लाभदायक वायवीय सूक्ष्मजीवियों की प्रबल सशक्त वृद्धि ऊर्णक के रूप में होने लगती है ।
वृद्धि के दौरान यह सूक्ष्मजीव बहि:स्राव में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों के प्रमुख भागों की खपत करता है। यह बहि:स्राव के बी.ओ.डी. (बॉयोकेमीकल ऑक्सीजन डिमांड) को महत्त्वपूर्ण रूप से घटाने लगता है। बी.ओ.डी. ऑक्सीजन की उस मात्रा को संदर्भित करता है जो जीवाणु द्वारा एक लीटर पानी में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों की खपत कर उन्हें ऑक्सीकृत कर दे। वाहितमल का तब तक उपचार किया जाता है जब तक बी.ओ.डी. घट न जाए।
प्रश्न 9.
सूक्ष्मजीवों का प्रयोग ऊर्जा के स्रोतों के रूप में भी किया जा सकता है। यदि हाँ, तो किस प्रकार से ? इस पर विचार करें।
उत्तर:
हाँ, सूक्ष्मजीवों का प्रयोग ऊर्जा के स्रोतों के रूप में भी किया जा सकता है। बॉयोगैस एक प्रकार से गैसों का मिश्रण है जो | ये सूक्ष्मजीवी सक्रियता द्वारा उत्पन्न होती है वृद्धि तथा उपापचयन के दौरान सूक्ष्मजीवी विभिन्न किस्मों के गैसीय अंतिम उत्पाद उत्पन्न करते हैं। जैसे मीथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड तथा कार्बन डाइ ऑक्साइड । गैसें बॉयोगैस का निर्माण करती हैं। चूँकि ये ज्वलनशील होती हैं, इस कारण इनका प्रयोग ऊर्जा के स्रोत के रूप में किया जा सकता है। बॉयोगैस को सामान्यतः ‘गोबर गैस’ भी कहते हैं।
प्रश्न 10.
सूक्ष्मजीवों का प्रयोग रसायन उर्वरकों तथा पीड़कनाशियों के प्रयोग को कम करने के लिए भी किया जा सकता है। यह किस प्रकार संपन्न होगा? व्याख्या कीजिए ।
उत्तर:
आज पर्यावरण प्रदूषण चिंता का एक मुख्य कारण है। कृषि उत्पादों की बढ़ती माँगों को पूरा करने के लिए रसायन उर्वरकों का प्रयोग इस प्रदूषण के लिए महत्त्वपूर्ण है। जैव उर्वरक एक प्रकार के जीव हैं, जो मृदा की पोषक गुणवत्ता को बढ़ाते हैं। जैव उर्वरकों का मुख्य स्रोत जीवाणु, कवक तथा सायनोबैक्टीरिया होते हैं। लैग्यूमिनस पादपों की जड़ों पर स्थित ग्रंथियों के बारे में हम पढ़ चुके हैं।
इन ग्रंथियों का निर्माण राइजोबियम के सहजीवी संबंध द्वारा होता है। यह जीवाणु वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिरीकृत कर कार्बनिक रूप में परिवर्तित कर देते हैं। पादप इसका प्रयोग पोषकों के रूप में करते हैं। अन्य जीवाणु ( उदाहरण – ऐजोस्पाइरिलम तथा ऐजोबैक्टर) मृदा में मुक्तावस्था में रहते हैं। यह भी वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को स्थिर कर सकते हैं। इस प्रकार मृदा में नाइट्रोजन बढ़ जाती है।
कवक पादपों के साथ सहजीवी संबंध स्थापित करते हैं। ऐसे संबंधों से युक्त पादप कई अन्य लाभ जैसे-मूलवातोढ़ रोगजनक के प्रति प्रतिरोधकता, लवणता तथा सूखे के प्रति सहनशीलता तथा कुलवृद्धि तथा विकास प्रदर्शित करते हैं। सायनोबैक्टीरिया स्वपोषित, सूक्ष्मजीव हैं जो जलीय तथा स्थलीय वायुमण्डल में विस्तृत रूप से पाए जाते हैं। इनमें बहुत से वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को स्थिरीकृत कर सकते हैं।
पादप रोगों तथा पीड़कों के नियंत्रण के लिए जैव वैज्ञानिक विधि का प्रयोग ही जैव नियंत्रण है आधुनिक समाज में ये समस्याएँ रसायनों, कीटनाशियों तथा पीड़कनाशियों के बढ़ते हुए प्रयोगों की सहायता से नियंत्रित की जाती हैं ये रसायन मनुष्यों तथा जीव-जन्तुओं के लिए अत्यन्त ही विषैले तथा हानिकारक हैं। ये पर्यावरण (मृदा, भूमिगत जल) को प्रदूषित करते हैं तथा फलों, साग-सब्जियों और फसलों पर भी हानिकारक प्रभाव डालते है। खरपतवारनाशियों का प्रयोग खरपतवार को हटाने में किया जाता है।
ये भी हमारी मृदा को प्रदूषित करते हैं। बैक्टीरिया बैसीलस धूरिजिऐसिस (B) का प्रयोग बटरफ्लाई केटरपिलर नियंत्रण में किया जाता है। वैक्यूलोवायरेसिस ऐसे रोगजनक हैं जो कीटों तथा संधिपादों पर हमला करते हैं। न्यूक्लिओ- पॉलीहीड्रोसिस वायरस (NPU) प्रजाति विशेष, संकरे स्पैक्ट्रम कीटनाशीय उपचारों के लिए उत्तम माने गए हैं।
प्रश्न 11.
जल के तीन नमूने लो एक नदी का जल, दूसरा अनुपचारित वाहितमल जल तथा तीसरा वाहितमल उपचार संयंत्र से निकला द्वितीयक बहिःस्राव। इन तीनों नमूनों पर “अ”, “ब”, “स” के लेबल लगाओ। इस बारे में प्रयोगशाला कर्मचारी को पता नहीं है कि कौन-सा क्या है? इन तीनों नमूनों “अ”,”ब”, “स” का बी.ओ.डी. का रिकॉर्ड किया गया जो क्रमश: 20mg / L, 8mg/ L तथा 400mg/L निकला। इन नमूनों में कौनसा सबसे अधिक प्रदूषित नमूना है ? इस तथ्य को सामने रखते हुए कि नदी का जल अपेक्षाकृत अधिक स्वच्छ है। क्या आप सही लेबल का प्रयोग कर सकते हैं?
उत्तर:
बी.ओ.डी. ऑक्सीजन की उस मात्रा को संदर्भित करता है जो जीवाणु द्वारा एक लीटर पानी में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों की खपत पर उन्हें ऑक्सीकृत कर दे। वाहितमल का तब तक उपचार किया जाता है जब तक बी.ओ.डी. घट न जाए। जल के एक नमूने में सूक्ष्मजीवियों द्वारा ऑक्सीजन के उद्ग्रहण की दर का मापन बी.ओ.डी. परीक्षण से किया जाता है, अतः अप्रत्यक्ष रूप से जल में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों का मापन ही बी.ओ.डी. है। जब व्यर्थ जल का बी.ओ.डी. अधिक होगा, तब उसकी प्रदूषण क्षमता भी अधिक होगी। दिए गए जल के तीन नमूनों में से नदी के जल का बी.ओ.डी.
(अ) 20mg/L है; अनुपचारित वाहितमल जल का बी.ओ.डी.
(ब) 8mg/L तथा द्वितीयक बहि:स्राव के जल का बी.ओ.डी.
(स) 400mg / L है सही लेबल इस प्रकार है-
(अ) नदी का जल (स्वच्छ जल ) ।
(ब) द्वितीयक बहि:स्राव ( उपचारित वाहित जल ) ।
(स) दूसरा अनुपचारित ( वाहितमल जल ) ।
प्रश्न 12.
उस सूक्ष्मजीवी का नाम बताओ जिसमें साइक्लोस्पोरिन ए ( प्रतिरक्षा निषेधात्मक औषधि) तथा स्टैटिन ( रक्त कोलिस्ट्रोल लघुकरण कारक ) को प्राप्त किया जाता है।
उत्तर:
साइक्लोस्पोरिन ए जिसका प्रयोग अंग प्रतिरोपण में प्रतिरक्षा निरोधक (इम्यूनोसप्रेसिव) कारक के रूप में रोगियों में किया जाता है। इसका उत्पादन ट्राइकोडर्मा पॉलोस्पोरम नामक कवक से किया जाता है। मोनॉस्कस परप्यूरीअस यीस्ट से उत्पन्न इस स्टैटिन का व्यापारिक स्तर पर प्रयोग रक्त कॉलिस्ट्रॉल को कम करने वाले कारक के रूप में किया जाता है।
प्रश्न 13.
निम्नलिखित में सूक्ष्मजीवियों की भूमिका का पता लगाएँ तथा अपने अध्यापक से इनके विषय में विचार-विमर्श करें-
(क) एकल कोशिका प्रोटीन (एस.सी.पी. )
(ख) मृदा ।
उत्तर:
(क) एकल कोशिका प्रोटीन (एस.सी.पी. ) – पशु तथा
मानव पोषण के लिए प्रोटीन के वैकल्पिक स्रोतों में से एक एकल कोशिका प्रोटीन है।
सूक्ष्मजीवों का प्रोटीन के अच्छे स्रोत के रूप में बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा रहा है। वास्तव में अधिकांश लोगों द्वारा मशरूम भोजन के रूप में खाए जाने लगे हैं। अतः बड़े पैमाने में मशरूम – संवर्धन एक प्रकार से बढ़ता हुआ उद्योग है जिससे अब विश्वास होने लगा है कि सूक्ष्मजीव आहार के रूप में स्वीकार्य हो जायेंगे। सूक्ष्मजीवी स्पाइरुलाइना में प्रोटीन, खनिज, वसा कार्बोहाइड्रेट तथा विटामिन प्रचुर मात्रा में विद्यमान हैं। इसका उपयोग पर्यावरणीय प्रदूषण को भी कम करता | सूक्ष्मजीव जैसे मिथाइलोफिलस मिथाइलोट्रोपस की वृद्धि तथा बायोमास उत्पादन की उच्च दर से संभावित 25 टन तक प्रोटीन उत्पन्न कर सकते हैं।
(ख) मृदा जैव उर्वरक एक प्रकार के जीव हैं, जो मृदा की पोषक गुणवत्ता को बढ़ाते हैं जैव उर्वरकों का मुख्य स्रोत जीवाणु, कवक तथा सायनोबैक्टीरिया होते हैं। लैग्यूमिनस पादपों की जड़ों पर स्थित ग्रंथियों का निर्माण राइजोबियम के सहजीवी संबंध द्वारा होता है। ये जीवाणु वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिरीकृत कर कार्बनिक रूप में परिवर्तित कर देते हैं। पादप इसका उपयोग पोषकों के रूप में करते हैं। यह भी वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को स्थिर कर सकते हैं। इस मृदा में नाइट्रोजन अवयव बढ़ जाते हैं।
प्रश्न 14.
निम्नलिखित को घटते क्रम में मानव समाज कल्याण के प्रति उनके महत्त्व के अनुसार संयोजित करें, महत्त्वपूर्ण पदार्थ को पहले रखते हुए कारणों सहित अपना उत्तर लिखें। बायोगैस, सिट्रिक एसिड, पैनीसिलीन तथा दही।
उत्तर:
दी गई सूची में सबसे महत्वपूर्ण पदार्थ पैनीसिलीन है क्योंकि यह मानव सभ्यता के कल्याण के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। यह कई जानलेवा बीमारियों को ठीक कर सकता है। इसके बाद सूची में बॉयोगैस का नम्बर आता है क्योंकि यह ईंधन का स्रोत है। इसके बाद सूची में दही का स्थान आता है क्योंकि यह हमें पोषक दुग्ध उत्पादन प्रदान करता है। इसके बाद सूची में ( अंत में सिट्रिक एसिड का नम्बर आता है जिसका उपयोग प्रोसेसिंग उद्योगों में किया जाता है।
प्रश्न 15.
जैव उर्वरक किस प्रकार से मृदा की उर्वरता को बढ़ाते हैं?
उत्तर:
जैव उर्वरक एक प्रकार के जीव हैं, जो मृदा की पोषक गुणवत्ता को बढ़ाते हैं। जैव उर्वरकों का मुख्य स्रोत कवक, जीवाणु तथा सायनोबैक्टीरिया होते हैं। दूसरे जीवाणु ऐजोस्पाइरिलम तथा ऐजोबैक्टर भी वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को स्थिर कर जाते हैं। धान के खेत में सायनोबैक्टीरिया महत्त्वपूर्ण जैव उर्वरक की भूमिका निभाते हैं। नील हरित शैवाल भी मृदा में कार्बनिक पदार्थ बढ़ा देते हैं, जिससे उसकी उर्वरता बढ़ जाती है।