HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 11 जैव प्रौद्योगिकी-सिद्धांत व प्रक्रम

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 11 जैव प्रौद्योगिकी-सिद्धांत व प्रक्रम Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Solutions Chapter 11 जैव प्रौद्योगिकी-सिद्धांत व प्रक्रम

प्रश्न 1.
क्या आप दस पुनर्योंगज प्रोटीन के बारे में बता सकते हैं जो चिकित्सीय व्यवहार के काम में लाये जाते हैं? पता लगाइये कि वे चिकित्सीय औष्षि के रूप में कहाँ प्रयोग किये जाते हैं?
उत्तर:

प्रोटीन उत्पाद अनुप्रयोग (Applications)
1. इंटरफेरोन (Interferon, IFN) अर्बुद (tumour) उपचार रोगजनक विषाणु संक्रमण तथा कैंसर का उपचार।
2. मानव वृद्धि हार्मोन (Human Growth Hormone, $\mathrm{HGH})=$ सोमेटोट्रोपिन (Somatotropin) पीयूष ग्रन्थि द्वारा उत्पन्न बौनेपन को ठीक करने या बौने मनुष्यों में अनुपलब्ध हार्मोनों का प्रतिस्थापन।
3. एरिथ्रोपोएटिन (Erythropoietin) रक्ताल्पता (anaemia) का उपचार।
4. रुधिर स्कंदन कारक VIII (Blood Clotting Factor VIII) हिमोफीलिया (Haemophilia) का उपचार।
5. इन्सुलिन ( ह्यूमिलिन, Humulin) मधुमेह (Diabetes) के उपचार।
6. यूरोकाइनेज प्रतिस्कंदक (anticoagulant) ।
7. यकृतशोथ-B सतह प्रतिजन (Hepatitis-B Surface antigen, HBS) यकृतशोध-B का टीका (Vaccine)।
8. इंटरल्यूकिन प्रतिरक्षा तंत्र क्रियाशीलता में वृद्धि, ट्यूमर तथा प्रतिरक्षी रोगों व कैंसर के उपचार।
9. केल्सीटोनिन सूखा रोग (Rickets) का उपचार।
10. रक्ताणु उत्पत्तिकारक (एरिथ्रोपिओटिन) वृक्कअपोहन (डाइलेसिस) अथवा एड्स (AIDS) प्रभावित रोगियों के उपचार के कारण हुई रक्तक्षीणता के समय रक्ताणु का निर्माण उत्तेजित करना।

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प्रश्न 2.
एक सचित्र ( चार्ट ) (आरेखित निरूपण के साथ) बनाइए जो प्रतिबंध एंजाइम को (जिस क्रियाधार DNA पर यह कार्य करता है उसे ), उन स्थलों को जहाँ यह DNA को काटता हैव इनसे उत्पन्न उत्पाद को दर्शाता है।
उत्तर:
यहाँ ई.कोलाई से प्राप्त EcoRI नामक प्रतिबंधन एन्जाइम का उदाहरण दिया जा रहा है-
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प्रश्न 3.
कक्षा ग्यारहवं में जो आप पढ़ चुके हैं, उसके आधार पर क्या आप बता सकते हैं कि आण्विक आकार के आधार पर एंजाइम बड़े हैं या DNA? आप इसके बारे में कैसे पता लगायेंगे?
उत्तर:
एन्जाइम प्रोटीन होते हैं। प्रोटीन्स अणु अत्यधिक जटिल संरचना वाले वृहदाणु होते हैं। इनका निर्माण ऐमीनो अम्ल से होता है। प्रकृति में लगभग 300 प्रकार के ऐमीनो अम्ल पाए जाते हैं, परन्तु इनमें से केवल 20 ऐमीनो अम्ल ही जन्तु एवं पादप कोशिकाओं में पाए जाते हैं। ऐमीनो अम्ल शृंखलाबद्ध होकर परस्पर पेप्टाइड बन्ध द्वारा जुड़े रहते हैं। प्रत्येक प्रोटीन अणु की पॉलीपेप्टाइड शृंखला में ऐमीनो अम्ल का क्रम विशिष्ट प्रकार का होता है। प्रोटीन्स का आण्विक भार बहुत अधिक होता है। विभिन्न ऐमीनो अम्ल से बनने वाली प्रोटीन्स विभिन्न प्रकार की होती हैं। हमारे जरीर में लगभग 50,000 प्रकार के प्रोटीन्स पाये जाते हैं।

DNA के जैविक-वृहदाणु जटिल संरचना वाले होते हैं। ये प्रोटीन्स (एन्जाइम) से भी बड़े जीविक गुरुअणु होते हैं। इनका अणुभार 106 से 109 डाल्टन तक होता है। DNA अणु पॉलीन्यूक्लिओोटाइड भृंखला से बना होता है। DNA से कम अणुभार वाले m-RNAt-RNA तथा r-RNA का निर्माण होता है। RNA प्रोटीन संश्लेषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। RNA संश्लेषण हेतु DNA अणु विभिन्न स्थान पर द्विगुणित होकर छोटी-छोटी अनुपूरक सृंखलायें अर्थात् राइबोन्यूक्लिओटाइड अम्ल का एक छोटा अणु बनाती है। इन्हें प्रवेशक (Primers) कहते है। RNA प्रवेशकों के संश्लेषण का उत्प्रेरण RNA पॉलिमरेज (Polymerase) एन्जाइम करता है। RNA अणु प्रोटीन संश्लेषण के काम आते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि RNA अणु प्रोटीन्स (एन्जाइम्स) से भी बड़े अणु होते है। अतः अण्विक आकार के आधार पर DNA, एन्जाइम से बड़े होते हैं।

प्रश्न 4.
मानव की एक कोशिका में DNA की मोलर सान्द्रता क्या होगी? अपने अध्यापक से परामर्श लीजिए।
उत्तर:
मोलर सान्दता (Molar Concentration)-किसी पदार्थ की सान्द्रता प्रति इकाई आयतन में उसकी माश्रा की माप होती है। इसे सामान्यतया मोलरता (Molarity) के पदों में व्यक्त किया जाता है। किसी पदार्थ की मोलरता एक लीटर आयतन में उपस्थित उसके अणुओं की संख्या होती है। अणुओं की सान्द्रता की गणना निम्न सूत्र से की जा सकती है-
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DNA अणु जटिल जैविक वृहदाणु होते हैं इनका अणुभार 106 से 10 डाल्टन तक होता है हमारे शरीर में DNA के न्यूक्लियोटाइड का औसत आण्विक द्रव्यमान 130.86 होता है। अतः मानव DNA अणु का आण्विक द्रव्यमान 6 × 109 न्यूक्लियोटाइड (मानव जीवोम प्रोजेक्ट के अनुसार ) × 130.86 = 784.56 × 109 g/mol होगा।

प्रश्न 5.
क्या सुकेन्द्रकी कोशिकाओं में प्रतिबंधन एण्डोन्यूक्लिएज मिलते हैं? अपने उत्तर को सही सिद्ध कीजिए ।
उत्तर:
नहीं, सुकेन्द्रकी कोशिकाओं में प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज नहीं मिलते हैं ये कुछ जीवाणुओं में उपस्थित रहते हैं। सन् 1963 में ई. कोलाई (E. Coll) से दो एन्जाइम पृथक् किये गये थे। ये जीवाणुभोजी की वृद्धि को रोक देते हैं। इनमें एक एन्जाइम DNA से मैथिल समूह को जोड़ता है, जबकि दूसरा एन्जाइम DNA को काटता है। दूसरे एन्जाइम को प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज (Restriction Endonuclease) कहते हैं। प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज का उपयोग आनुवंशिक इन्जीनियरिंग में DNA के पुनर्योगज अणु (Recombinant Molecules of DNA) बनाने में किया जाता है जिसका निर्माण विभिन्न जीनोमों से प्राप्त DNA से मिलकर होता है।

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प्रश्न 6.
अच्छी हवा व मिश्रण विशेषता के अतिरिक्त विलोडन हौज बायोरिएक्टर में कौनसी अन्य कम्पन फ्लास्क सुविधाएँ हैं?
उत्तर:
सभी पुनर्योगज प्रौद्योगिकियों का अंतिम उद्देश्य वांछित प्रोटीन का उत्पादन करना होता है। इसके लिये पुनर्योगज DNA के अभिव्यक्त होने की आवश्यकता होती है। बाहरी जीन उपयुक्त परिस्थितियों में अभिव्यक्त होती है। वांछित जीन को क्लोन करने पर लक्ष्य प्रोटीन की अभिव्यक्ति को प्रेरित करने वाली परिस्थितियों को अनुकूलतम बनाने के पश्चात् इनका व्यापक स्तर पर उत्पादन किया जाता है। उत्पादों की अधिक मात्रा में उत्पादन हेतु बायोरिएक्टर (Bioreactor) की सहायता ली जाती है।

बायोरिएक्टर, वांछित उत्पादन हेतु अनुकूलतम परिस्थितियाँ उपलब्ध करता है। अनुकूलतम परिस्थितियों में तापमान, pH क्रियाधार, लवण, विटामिन, ऑक्सीजन आदि आते हैं। विलोडन हौज बायोरिएक्टर में प्रक्षोभक तंत्र (Agitator System), O2 प्रदाय तंत्र, झाग नियंत्रण तंत्र, तापक्रम तंत्र, पीएच नियंत्रण तंत्र व प्रतिचयन प्रद्वार (Sampling Ports) लगा होता है जिससे संवर्धन की थोड़ी मात्रा समय-समय पर निकाली जा सकती है (प्र. 10 के ‘ख’ में चित्र देखिए)।

प्रश्न 7.
शिक्षक से परामर्श कर पाँच पैलिंड्रोमिक अनुप्रयास करना होगा कि क्षारकयुग्म नियमों का पालन करते हुए पैलिंड्रोमिक अनुक्रम बनाने के उदाहरण का पता लगाइए।
उत्तर:
प्रत्येक सीमाकारी एन्जाइम, DNA स्ट्रेण्ड के विशिष्ट 4 से 6 न्यूक्लियोटाइड क्षार अनुक्रम को पहचानता है। इस क्रम को अभिज्ञेय स्थल (Recognisation Site ) या पैलिन्ड्रोम (Palindrome) कहते हैं पैलिन्ड्रोम वे शब्द होते हैं जिन्हें बायें से दायें अथवा दायें से बायें पढ़ने पर एक समान नजर आते हैं, जैसे-
MOM, BOB, MADAM, MALAYALAM

परन्तु शब्द पैलिंड्रोम और DNA पैलिंड्रोम में अंतर है। DNA में पैलिंड्रोम क्षारक युग्मों का एक ऐसा अनुक्रम होता है जो पढ़ने के अभिविन्यास को समान रखने पर दोनों लड़ियों में एक जैसा पढ़ा जाता है । उदाहरणार्थ – निम्न अनुक्रमों को 5→3 दिशा में पढ़ने पर दोनों लड़ियों में एक जैसा पढ़ा जायेगा । यदि इसे 3→5 दिशा में पढ़ा जाए तब भी यह बात सही बैठती है-
5′ GAATTC 3′
3′ – CTTAAG – 5′
प्रतिबंधन एंजाइम DNA लड़ी को पैलिंड्रोम स्थल के केंद्र से कुछ दूरी पर परन्तु विपरीत लड़ियों में दो समान क्षारकों के बीच काटते हैं । यहाँ पाँच पैलिंड्रोम क्षारकों के क्रम का उदाहरण दिया जा रहा है-
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Note-यहाँ तीर प्रतिबन्धित एन्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम के कट को दर्शाता है।
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प्रश्न 8.
अर्धसूत्री विभाजन को ध्यान में रखते हुए क्या आप बता सकते हैं कि पुनर्योगज DNA किस अवस्था में बनते हैं?
उत्तर:
जैसा कि हम जानते हैं कि अर्धसूत्री विभाजन में गुणसूत्रों की संख्या घटकर आधी रह जाती है । प्रथम अर्धसूत्री विभाजन में प्रत्येक जोड़ी के समजात गुणसूत्रों (Homologous Chromosomes) के मध्य एक या अनेक खण्डों की अदला-बदली अर्थात् पारगमन (Crossing Over ) होता है ।

प्रथम अर्धसूत्री विभाजन की प्रथम पूर्वावस्था (Ist Prophase) की उपअवस्था ज़ाइगोटीन (Zygotene ) में समजात गुणसूत्र जोड़े बनते हैं। इसे सूत्रयुग्मक (Synapsis) कहते हैं। पैकिटीन (Pachytene) उपअवस्था में सूत्रयुग्मक सम्मिश्र ( Synaptonemal Complex) में एक या अधिक स्थानों पर गोल सूक्ष्म घुण्डियाँ दिखाई देने लगती हैं, इन्हें पुनर्संयोजन घुण्डियाँ (Recombination Nodules) कहते हैं ।

समजात गुणसूत्रों के परस्पर जुड़े क्रोमेटिड्स (Chromatids ) के मध्य एक या अधिक खण्डों की पारस्परिक अदला-बदली को पारगमन कहते हैं। इससे ही समजात पुनर्संयोजित DNA (Recombinant DNA) बन जाता है। पुनर्संयोजन घुण्डियाँ उन स्थानों पर बनती हैं जहाँ पर पारगमन हेतु क्रोमेटिड्स के टुकड़े टूटकर पुनः जुड़ते हैं ।

प्रश्न 9.
क्या आप बता सकते हैं कि प्रतिवेदक ( रिपोर्टर) एंजाइम को वरणयोग्य चिन्ह की उपस्थिति में बाहरी DNA को परपोषी कोशिकाओं में स्थानान्तरण के लिये मॉनिटर करने के लिये किस प्रकार उपयोग में लाया जा सकता है?
उत्तर:
DNA द्वारा आदाता (ग्राही) कोशिका में प्रवेश करने का कार्य तभी किया जाता है जब आदाता कोशिका अपने चारों ओर स्थित DNA को धारण करने में सक्षम हो जाती है। यह कार्य अनेक विधियों के द्वारा किया जाता है। यदि पुनर्योगज DNA को जिसमें प्रतिजैविक, जैसे ऐम्पिसिलिन के प्रति प्रतिरोधी जीन स्थित होती है, ई. कोलाई ( E. coli ) कोशिकाओं में स्थानान्तरित किया जाए तो परपोषी कोशिकाएँ प्रतिरोधी कोशिकाओं में रूपान्तरित हो जाती हैं।

यदि रूपान्तरित कोशिकाओं को एगार युक्त प्लेट पर फैलाया जाता है तो केवल रूपान्तरित कोशिकाएँ ही विकसित हो पाती हैं, जबकि अरूपान्तरित आदाता कोशिकाओं की मृत्यु हो जाती है। प्रतिरोधी जीन के कारण कोई भी ऐम्पिसिलिन की उपस्थिति में रूपान्तरित कोशिका का चयन कर सकता है। ऐसे प्रक्रम में प्रतिरोधी जीन को वरणयोग्य चिन्हक कहते हैं।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित का संक्षिप्त वर्णन कीजिए-
(क) प्रतिकृतियन का उद्भव
(ख) बायोरिएक्टर
(ग) अनुप्रवाह संसाधन ।
उत्तर:
(क) प्रतिकृतियन का उद्भव (Origin of Replication = ori)-यह वह अनुक्रम है जहाँ से प्रतिकृतियन की शुरुआत होती है और जब कोई डीएनए का कोई खंड इस अनुक्रम से जुड़ जाता है तब परपोषी कोशिकाओं के अंदर प्रतिकृति कर सकता है। यह अनुक्रम जोड़े गए डीएनए के प्रतिरूपों की संख्या के नियंत्रण के लिए भी उत्तरदायी है। इसलिए यदि कोई लक्ष्य डीएनए की काफी संख्या प्राप्त करना चाहता है तो इसे ऐसे संवाहक में क्लोन करना चाहिए जिसका मूल (ori) अत्यधिक प्रतिरूप बनाने में सहयोग करता है (देखें चित्र 115 ) ।

(ख) बायोरिएक्टर (Bioreactor ) – लगभग सभी पुनर्योगज प्रौद्योगिकियों का मुख्य उद्देश्य वांछित प्रोटीन का उत्पादन करना होता है। इसके लिये पुनर्योगज डीएनए (recombinant DNA ) के अभिव्यक्त (Express) होने की आवश्यकता होती है। बाहरी जीन उपयुक्त परिस्थितियों में अभिव्यक्त होत हैं।

वांछित जीन को क्लोन करने, लक्ष्य प्रोटीन की अभिव्यक्ति को प्रेरित करने वाली परिस्थितियों को अनुकूलतम बनाने के पश्चात् इनका व्यापक स्तर पर उत्पादन संभव है। लाभकारी जीनों को आश्रय देने वाली कोशिकाओं का छोटे पैमाने पर प्रयोगशाला में वर्धन किया जा सकता है। संवर्धन को वांछित प्रोटीन का निष्कर्षण कर पृथक्करण की विभिन्न विधियों का प्रयोग कर प्रोटीन का शोधन कर सकते हैं।

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कोशिकाओं को सतत संवर्धन तंत्र में गुणित कर सकते हैं, जिसमें उपयोग किये गए माध्यम को एक तरफ से निकालकर दूसरी तरफ से ताजा माध्यम को भरते हैं ताकि कोशिकाएँ अपने क्रियात्मक रूप से सर्वाधिक सक्रिय लॉग (exponential ) प्रावस्था में बनी रहें। यह संवर्धन विधि अधिक जैव मात्रा के उत्पादन में वांछित प्रोटीन के अधिक उत्पादन हेतु उपयोगी है।

इन उत्पादों के अधिक मात्रा में उत्पादन हेतु बायोरिएक्टर का उपयोग किया जाता है। बायोरिएक्टर एक बर्तन के समान होते हैं, जिसमें सूक्ष्मजीवों, पौधों, जंतुओं व मानव कोशिकाओं का उपयोग करते हुए कच्चे माल को जैव रूप से विशिष्ट उत्पादों व्यष्टि एंजाइम आदि में परिवर्तित किया जाता है। बायोरिएक्टर वांछित उत्पाद प्राप्त करने के लिये अनुकूलतम परिस्थितियाँ उपलब्ध करता है।

तापमान, pH, क्रियाधार, लवण, विटामिन, ऑक्सीजन आदि वृद्धि हेतु अनुकूलतम परिस्थितियाँ हैं। प्राय: विलोडन (stirring) प्रकार का बायोरिएक्टर सर्वाधिक उपयोग में लाया जाता है। विलोडित हौज बायोरिएक्टर (stirred tank bioreactor ) बेलनाकार होते हैं। इसके आधार घुमावदार होने से बायोरिएक्टर के अंदर अंतर्वस्तु के मिश्रण में सहायता मिलती है। बायोरिएक्टर में ऑक्सीजन की उपलब्धता तथा मिश्रण मिलाने की विलोडन ( stirrer) सुविधा होती है।

एकान्तर में बायोरिएक्टर में हवा बुलबलों के रूप में भेजी जाती है। बायोरिएक्टर में एक प्रक्षोभक तंत्र (agitator system), ऑक्सीजन प्रदाय तंत्र, झाग नियंत्रण तंत्र, पी एच नियंत्रण तंत्र, तापक्रम नियंत्रण तंत्र व प्रतिचयन प्रद्वार ( sampling ports) लाभ होता है। जिससे संवर्धन की थोड़ी मात्रा समय-समय पर निकाली जा सकती है।

(ग) अनुप्रवाह संसाधन (Downstream Processing ) – जैव संश्लेषित अवस्था के पूर्ण होने के बाद परिष्कृत तैयार होने व विपणन (marketing) के लिए भेजे जाने से पहले कई प्रक्रमों से होकर गुजरता है। इन प्रक्रमों में पृथक्करण व शोधन सम्मिलित है और इसे सामूहिक रूप से अनुप्रवाह संसाधन कहते हैं। उत्पाद को उचित परिरक्षक के साथ संरूपित करते हैं।

औषधि के मामले में ऐसे संरूपण ( फार्मुलेशन) को चिकित्सीय परीक्षण से गुजारते हैं । प्रत्येक उत्पाद के लिए सुनिश्चित गुणवत्ता नियंत्रण परीक्षण की भी आवश्यकता होती है। अनुप्रवाह संसाधन व गुणवत्ता नियंत्रण परीक्षण प्रत्येक उत्पाद के लिए भिन्न-भिन्न होता है।

प्रश्न 11.
संक्षेप में बताइए –
(क) पी सी आर (ख) प्रतिबंधन एंजाइम और डी एन ए (ग) काइटिनेज ।
उत्तर:
(क) पी सी आर (PCR ) – पी सी आर का अर्थ पोलीमरेज श्रृंखला अभिक्रिया (Polymerase Chain Reaction PCR) है। यह एक जीन प्रवर्धन की तकनीक है। वस्तुतः यह एक फोटोकॉपी करने वाले यंत्र की भांति है। DNA के छोटे से टुकड़े की सहायता से कुछ ही समय में करोड़ों कापियाँ बनाई जा सकती हैं।

इस क्रिया में प्राइमर्स (छोटे रासायनिक संश्लेषित ओलिगोन्यूक्लियोटाइड्स जो DNA क्षेत्र के पूरक होते हैं) के दो सेट तथा DNA पॉलिमरेज एंजाइम का उपयोग कर पात्रे (in vitro) विधि द्वारा उपयोगी जीन की अनेक प्रतिकृतियों का संश्लेषण होता है। यह एंजाइम जिनोमिक DNA को टेंपलेट (template) के रूप में काम में लेकर, अभिक्रिया से मिलने वाले न्यूक्लियोटाइडों का उपयोग करते हुये प्राइमर्स को विस्तृत कर देता है।

यदि DNA प्रतिकृतियन प्रक्रम अनेक बार दोहराया जाता है तब DNA खंड को लगभग एक अरब गुना (एक बिलियन) प्रवर्धित किया जा सकता है अर्थात् एक अरब प्रतिरूपों का निर्माण होता है। यह सतत प्रवर्धन तापस्थायी (Thermostable) DNA पॉलीमरेज (जीवाणु, थर्मस एक्वेटिकस से पृथक् किया गया है) द्वारा किया जाता है। उच्च तापमान द्वारा प्रेरित द्विलड़ीय DNA के विकृतीकरण (Denaturation) के समय भी सदैव सक्रिय बना रहता है। प्रवर्धित खंड को यदि चाहें तो संवाहक के साथ बांध कर आगे क्लोनिंग में प्रयोग कर सकते हैं ।

(ख) प्रतिबंधन एन्जाइम और डी एन ए (Restriction Enzyme and DNA)-वे एन्जाइम जो DNA को निश्चित बिन्दुओं पर काटकर उसको निश्चित आकार के छोटे-छोटे टुकड़ों में कर देते हैं, उन्हें प्रतिबंधन एन्जाइम कहते हैं। वर्तमान में 900 से अधिक प्रतिबंधन एन्जाइमों के विषय में जानकारी है जो जीवाणुओं की 230 से अधिक प्रभेदों (Strains) से पृथक् किये गये हैं। ये प्रत्येक विभिन्न पहचान अनुक्रमों को पहचानते हैं।

प्राकृतिक रूप से ये एन्जाइम जीवाणुओं में पाये जाते हैं। प्रतिबंधन एन्जाइम जीवाणुओं पर आक्रमण करने वाले विषाणु या वांछित DNA से जीवाणु की सुरक्षा करते हैं क्योंकि ये आक्रमणकारी विषाणु या वांछित DNA का अपघटन कर देते हैं। प्रतिबंधन एन्जाइम जीवाणु DNA का अपघटन नहीं करते हैं। प्रत्येक प्रतिबंधन एन्जाइम, DNA स्ट्रेण्ड के विशिष्ट 4 से 6 न्यूक्लियोटाइड क्षार अनुक्रम को पहचानता है। इस क्रम को अभिज्ञेय स्थल (Recognisation Site ) या पेलिन्ड्रोम (Palindrome) कहते हैं। विशिष्ट क्रम की अभिज्ञेयता के पश्चात् प्रतिबंधन एन्जाइम अभिज्ञेय स्थल की प्रत्येक लड़ी में एक-एक काट (Cut) लगाता है।

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प्रतिबंधन एन्जाइम, न्यूक्लिएज कहलाने वाले एंजाइमों के बड़े वर्ग में आते हैं। ये दो प्रकार के एक्सोन्यूक्लिएज व एंडोन्यूक्लिएज होते हैं। एक्सोन्यूक्लिएज DNA के सिरे से न्यूक्लियोटाइड को अलग करते हैं जबकि एंडोन्यूक्लिएज DNA को भीतर विशिष्ट स्थलों पर काटते हैं। प्रत्येक प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज DNA अनुक्रम की लंबाई के ‘निरीक्षण’ उपरान्त कार्य करता है। जब यह अपना विशिष्ट पहचान अनुक्रम पा जाता है तब यह DNA से जुड़ता है तथा द्विकुंडलिनी की दोनों लड़ियों को शर्करा- फॉस्फेट आधारस्तंभों में विशिष्ट केन्द्रों पर काटता है।

इनके नामकरण में नाम का प्रथम अक्षर वंश व दूसरा तथा तीसरा शब्द प्राकेंद्रकी (prokaryotic) कोशिकाओं की जाति से लिया गया है, जिनसे ये पृथक् किये गये हैं। जैसे EcoRI, Eco एशरिशिया कोलाई से तथा ‘R’ प्रभेद के नाम से लिया गया है। नाम के बाद रोमन अंक उस क्रम को दर्शाते हैं जिसको जीवाणु के प्रभेद से एंजाइम पृथक् किये गये हैं।

(ग) काइटिनेज (Chitinase) – DNA को पृथक् करने के लिये प्रतिबंधन एंजाइम का उपयोग लिया जाता है। परन्तु इसमें यह आवश्यक है कि यह DNA दूसरे अन्य वृहत् – अणुओं से मुक्त होकर शुद्ध रूप में होना चाहिये। हम जानते हैं कि DNA झिल्लियों के द्वारा घिरा होता है । अतः इसमें कोशिका को तोड़ना होता है। यह प्रक्रिया विशेष एंजाइमों द्वारा होती है जैसे लाइसोजाइम जीवाणु कोशिका को, सेलुलेज पादप कोशिका को व काइटिनेज कवक कोशिकाओं को तोड़ने का कार्य करते हैं। कवक कोशिका की भित्ति में काइटिन (Chitin) रसायन होता है अत: काइटिन को तोड़ने वाला एंजाइम काइटिनेज होता है।

प्रश्न 12.
अपने अध्यापक से चर्चा करके पता लगाइए कि निम्नलिखित के बीच कैसे भेद करेंगे-
(क) प्लाज्मिड DNA और गुणसूत्रीय DNA
(ख) RNA और DNA
(ग) एक्सोन्यूक्लिएज और एंडोन्यूक्लिएज ।
उत्तर:
(क) प्लाज्मिड DNA और गुणसूत्रीय DNA
(Plasmind DNA and Chromosomal DNA ) – प्लाज्मिड अतिरिक्त गुणसूत्री रचनाएँ होती हैं जो जीवाणुओं के अन्दर स्वतः गुणित होती रहती हैं। इनका DNA दो सूत्रों का बना, प्रायः गोलाकार (Circular) होता है। इन पर अन्य जीनों के अतिरिक्त प्लाज्मिड की प्रतिकृति करने वाले जीन भी पाए जाते हैं। पुनर्योगज DNA तकनीक में प्रयुक्त प्लाज्मिड में प्रतिजैविक रोधिता वाले जीन भी होते हैं जिनसे पुनर्योगज DNA अणुओं की पहचान सम्भव हो पाती है ।

गुणसूत्रों में उपस्थित DNA गुणसूत्रीय DNA होता है। यह भी दो सूत्रों का होता है परन्तु गोलाकार नहीं होता तथा कोशिका के केन्द्रक में होता है। इसमें प्रतिजैविक रोधिता वाले जीन नहीं होते हैं। यह प्लाज्मिड DNA की तुलना में अधिक लम्बा तथा अधिक न्यूक्लियोटाइड युक्त होता है ।

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(ख) RNA व DNA की तुलना-

RNA DNA
1. इसमें रिबोस (Ribose) शर्करा होती है। 1. इसमें डिऑक्सीरिबोस (Deoxyribose) शर्करा होती है।
2. RNA अणु में फॉस्फेरिक अम्ल होता है, जो शर्करा के एक अणु को दूसरे अणु से जोड़ता है। 2. RNA के समान।
3. इसमें निम्नलिखित नाइट्रोजन क्षार (base) होते हैं-

(अ) प्यूरीन्स (एडीनीन व ग्वानीन)

(ब) पिरिमीडिन्स (साइटोसीन व यूरेसिल)

3. निम्नलिखित नाइट्रोजन बेस होते हैं-

(अ) प्यूरीन्स (एडीनीन व ग्वानीन)

(ब) पिरिमीडिन्स (साइटोसीन व थायमीन)

4. अणुओं के चार न्यूक्लियोटाइड इस प्रकार होते हैं-

(अ) एडिनोसीन मोनोफॉस्फेट

(ब) ग्वानोसीन मोनोफॉस्फेट

(स) साइटोसीन मोनोफॉस्फेट

(द) यूरिडीन मोनोफॉस्फेट

4. अणुओं के चार न्यूक्लियोटाइड इस प्रकार हैं-

(अ) डिऑक्सीएडिनोसीन मोनोफॉस्फेट

(ब) डिऑक्सीग्वानोसीन मोनोफॉस्फेट

(स) डिऑक्सीसाइटोसीन मोनोफॉस्फेट

(द) डिऑक्सीथायमिडीन मोनोफॉस्फेट

5. RNA में अनेक न्यूक्लियोटाइट्स का बना एक लम्बा सूत्र होता है। 5. DNA में दो लम्बे सूत्रों की बनी कुण्डली (helix) होती है, जिसमें अनेक न्यूक्लियोटाइड्स के जोड़े क्रम में लगे रहते हैं।
6. यह आनुवंशिक सूचनावाहक है और प्रोटीन के संश्लेषण में विशेष योगदान करता है, परन्तु अपवादस्वरूप आनुवंशिक पदार्थ का कार्य कर सकता है। 6. DNA आनुवंशिक पदार्थ है और कोशिका में होने वाली सभी क्रियाओं पर नियन्त्रण करता है।
7. यह केन्द्रिका (Nucleolus), Nucleoplasm, cytoplasm में पाया जाता है। 7. यह Chromosome, Nucleoplasm, Mito-chondria व Chloroplast में पाया जाता है।

(ग) एक्सोन्यूक्लिएज और एंडोन्यूक्लिएज (Exonuclease and Endonuclease)-

एक्सोन्यूक्लिएज एंडोन्यूक्लिएज
ये DNA के सिरे से न्यूक्लियोटाइड को अलग करते हैं। ये DNA के भीतर विशिष्ट स्थलों पर काटते हैं। प्रत्येक प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज DNA अनुक्रम की लम्बाई के निरीक्षण पश्चात् कार्य करता है। जब यह अपना विशिष्ट पहचान अनुक्रम पा जाता है तब यह DNA से जुड़ता है तथा द्विकुंडलिनी की दोनों लड़ियों को शर्करा-फॉस्फेट आधारस्तम्भों के विशिष्ट केन्द्रों पर काटता है।

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