HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति

Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Solutions Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Biology Solutions Chapter 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति

प्रश्न 1.
मानव कल्याण में पशुपालन की भूमिका की संक्षेप में व्याख्या दीजिये।
उत्तर:
पशुपालन, पशुप्रजनन तथा पशुधन वृद्धि की एक कृषि पद्धति है। पशुपालन का संबंध पशुधन जैसे- भैंसें, गाय, सुअर, घोड़ा, भेड़, ऊँट, बकरी आदि के प्रजनन तथा उनकी देखभाल से होता है जो मानव के लिए लाभप्रद है। इसमें कुक्कुट तथा मत्स्यपालन भी शामिल हैं। अति प्राचीन काल से मानव द्वारा जैसे – मधुमक्खी, रेशमकीट, झींगा, केकड़ा, मछलियाँ, पक्षी, सुअर, भेड़, ऊँट आदि का प्रयोग उनके उत्पादों जैसे- दूध, अंडे, मांस, ऊन, रेशम, शहद आदि प्राप्त करने के लिए किया जाता रहा है।
विश्व की बढ़ती जनसंख्या के साथ खाद्य उत्पादन की वृद्धि एक प्रमुख आवश्यकता है।

पशुपालन खाद्य उत्पादन बनाने के प्रयासों में मुख्य भूमिका निभाता है। शहद का उच्च पोषक मान तथा इसके औषधीय महत्त्व को ध्यान में रखते हुए मधुमक्खी पालन अथवा मौन पालन पद्धति में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। डेयरी उद्योग से मानव खपत के लिए दुग्ध तथा इसके उत्पाद प्राप्त होते हैं। कुक्कुट का प्रयोग भोजन के लिए अथवा उनके अंडों को प्राप्त करने के लिए किया जाता है । हमारी जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग आहार के रूप में मछली, मछली उत्पादों तथा अन्य जलीय जन्तुओं पर आश्रित है। हमारे देश की 70 प्रतिशत जनसंख्या पशुपालन उद्योग से किसी न किसी रूप में जुड़ी हुई है। पशुपालन हमारी अर्थव्यवस्था का आधार है। अतः मानव कल्याण में पशुपालन की बहुत बड़ी भूमिका है।

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प्रश्न 2.
यदि आपके परिवार के पास एक डेयरी फार्म है तब आप दुग्ध उत्पादन में उसकी गुणवत्ता तथा मात्रा में सुधार लाने के लिए कौन-कौनसे उपाय करेंगे?
उत्तर:
दुग्ध उत्पादन मूल रूप से फार्म में रहने वाले पशुओं की नस्ल की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। अच्छी नस्ल, , जिसमें उच्च उत्पादन क्षमता वाली अच्छी नस्ल का चयन तथा उनकी रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। अच्छी उत्पादन क्षमता प्राप्त करने के लिए पशुओं की अच्छी देखभाल जिसमें उनके रहने का अच्छा घर, पर्याप्त जल तथा रोगमुक्त वातावरण होना आवश्यक है। पशुओं को भोजन प्रदान करने का ढंग वैज्ञानिक होना चाहिए। जिसमें विशेषकर चारे की गुणवत्ता तथा मात्रा पर बल दिया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त दुग्धीकरण तथा दुग्ध उत्पादों के भण्डारण तथा परिवहन के दौरान कड़ी सफाई तथा स्वास्थ्य का महत्त्व सर्वोपरि है।

इन कठोर उपायों को सुनिश्चित करने के लिए सही-सही रिकॉर्ड रखने एवं निरीक्षण की आवश्यकता होती है। इससे समस्याओं की परिवहन के दौरान कड़ी सफाई तथा स्वास्थ्य का महत्त्व सर्वोपरि है। इन कठोर उपायों को सुनिश्चित करने के लिए सही-सही रिकॉर्ड रखने एवं निरीक्षण की आवश्यकता होती है। इससे समस्याओं की पहचान और उनका समाधान शीघ्रतापूर्वक निकालना संभव हो जाता है। पशु चिकित्सक का नियमित जाँच हेतु आना अनिवार्य है।

प्रश्न 3.
‘नस्ल’ शब्द से आप क्या समझते हैं? पशु प्रजनन के क्या उद्देश्य हैं ?
उत्तर:
पशुओं का वह समूह जो वंश तथा सामान्य लक्षणों जैसे- सामान्य दिखावट, आकृति, आकार, संरूपण आदि में समान हो, एक नस्ल (Breed) के कहलाते हैं । पशु प्रजनन का उद्देश्य पशुओं के उत्पादन को बढ़ाना तथा उनके उत्पादों की वांछित गुणवत्ता में सुधार लाना है। पशुओं में श्रेष्ठ मादा वह चाहे गाय अथवा भैंस हो, प्रति दुग्धीकरण पर दूध अधिक देती है। दूसरी ओर, साँड़ों में श्रेष्ठ अन्य नरों में श्रेष्ठ किस्म की संतति उत्पन्न कर सकते हैं।

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प्रश्न 4.
पशु प्रजनन के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली विधियों के नाम बताइये । आपके अनुसार कौन-सी विधि सर्वोत्तम है ? क्यों?
उत्तर:
पशुओं में प्रजनन की निम्न विधियाँ हैं-
(1) अंत:प्रजनन (Inter Breeding) – किसी एक ही नस्ल के विभिन्न जन्तुओं जिनकी वंशावली में कोई उभयनिष्ठ पूर्वज होता है, में क्रॉस अन्तःप्रजनन कहलाता है। अन्तः प्रजनन की विधि में किसी एक ही नस्ल की उत्कृष्ट मादाओं एवं उत्कृष्ट नर सदस्यों की पहचान कर उनके जोड़ों में प्रजनन कराया जाता है। इन जोड़ों से उत्पन्न संततियों का मूल्यांकन कर, उनमें से उत्कृष्ट मादा एवं नर जन्तुओं की पहचान की जाती है। उत्कृष्टता का मानदण्ड अधिक लाभदायक एवं गुणवत्ता के मानक चरों की अभिव्यक्ति को माना जाता है। उदाहरण के लिए गायों में उत्कृष्ट मादा, अन्य गायों की तुलना में प्रति दुग्धस्रवण काल, अधिक दूध देने वाली गाय होती है। इसी प्रकार उत्कृष्ट साँड़ वह होता है जो अन्य नरों की तुलना में उत्कृष्ट संततियां उत्पन्न करता है।

ऐसी उत्कृष्ट संततियों के पुनः जोड़े बनाकर आगे प्रजनन कराया जाता है। अन्तःप्रजनन से प्राप्त संततियों में समयुग्मजता में वृद्धि होती है। व ऐसी समष्टि के सदस्यों में मूल नस्ल की तुलना में कम विविधता पायी जाती है। अन्तःप्रजनन के कारण हानिकारक एवं अप्रभावी युग्मविकल्पियों को अभिव्यक्त होने का अवसर मिलता है जो कि चयन की प्रक्रिया द्वारा समष्टि से निष्कासित कर दिए जाते हैं तथा साथ ही इसके द्वारा लाभदायक एवं श्रेष्ठ जीनों का संचय होता है ।

अतः इस विधि द्वारा जन्तुओं की उत्पादकता एवं गुणवत्ता में वृद्धि होती है किन्तु निरन्तर अन्तःप्रजनन, विशेषत: निकट व्यष्टियों में अन्तःप्रजनन के कारण जनन क्षमता एवं उत्पादकता में कमी आती है। इस परिघटना को अन्तः प्रजनन अवसादन (Inter breeding depression) कहते हैं। अन्तःप्रजनन अवसादन की स्थिति में चयन किये गये जन्तुओं का संगम उसी नस्ल के ऐसे उत्कृष्ट जन्तुओं से कराया जाता है जो उनसे सम्बन्धित नहीं होते।

(2) बहिः प्रजनन (Out Breeding ) – इस विधि या युक्ति के द्वारा दो भिन्न-भिन्न नस्लों में मिलने वाले लाभदायक लक्षणों को एक साथ समाविष्ट कर उन्नत नस्ल का विकास किया जाता है। इस विधि में किसी नस्ल की उत्कृष्ट मादाओं का संगम किसी अन्य नस्ल के उत्कृष्ट नर से कराया जाता है। इनसे प्राप्त संततियों का व्यापारिक उत्पादन हेतु संकर जीवों के रूप में उपयोग किया जाता है अथवा इनमें अन्तःप्रजनन कराकर, चयन पद्धति द्वारा इनसे कोई नई स्थायी व अधिक श्रेष्ठ नस्ल उत्पन्न की जा सकती है। इस विधि द्वारा कई नई जन्तु साथ समाविष्ट कर उन्नत नस्ल का विकास किया जाता है।

इस विधि में किसी नस्ल की उत्कृष्ट मादाओं का संगम किसी अन्य नस्ल के उत्कृष्ट नर से कराया जाता है। इनसे प्राप्त संततियों का व्यापारिक उत्पादन हेतु संकर जीवों के रूप में उपयोग किया जाता है अथवा इनमें अन्तःप्रजनन कराकर, चयन पद्धति द्वारा इनसे कोई नई स्थायी व अधिक श्रेष्ठ नस्ल उत्पन्न की जा सकती है। इस विधि द्वारा कई नई जन्तु नस्लों का विकास किया जा चुका है।

उदाहरणार्थ – भारतीय जेबू नस्ल अपनी अनुकूली क्षमता तथा रोग प्रतिरोधकता के गुणों में विदेशी यूरोपियन नस्लों से बेहतर है किन्तु इनमें दुग्ध उत्पादन क्षमता यूरोपियन नस्लों की तुलना में काफी कम है। अतः भारतीय जेबू नस्ल तथा यूरोपियन नस्लों (होल्सटीन, ब्राउन स्विस, जर्सी, रैड डेन इत्यादि) के मध्य बाह्य संकरण द्वारा संकर गायों की उन्नत नस्ल विकसित की गई है जिनमें कि रोग प्रतिरोधकता, अनुकूली क्षमता एवं अधिक दुग्ध उत्पादन जैसे लाभदायक गुणों का समावेश हो सकता है। राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल द्वारा विकसित करनस्विस नस्ल ऐसी ही एक उन्नत किस्म है।

(3) बहि:संकरण (Out Crossing ) – एक ही नस्ल के भीतर पशुओं के संगम की यह क्रिया बहि:- संकरण कहलाती है । परन्तु इसमें चार से छ: पीढ़ियों तक दोनों ओर की किसी भी वंशावली में उभय पूर्वज नहीं होना चाहिए। इस संगम के परिणामस्वरूप जो संतति उत्पन्न होती है वह बहि: संकरण कहलाती है । प्रजनन की यह विधि ऐसे पशुओं के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है जिनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता तथा मांसदायी दर औसत से कम होती है। एकल बहि: संकरण से बहुधा अंत:प्रजनन अवसादन समाप्त हो जाता है।

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(4) संकरण (Cross Breeding ) – इस विधि में एक नस्ल के श्रेष्ठ नर का दूसरी नस्ल की श्रेष्ठ मादा के साथ संगम कराया जाता है। संकरण दो विभिन्न नस्लों के वांछनीय गुणों के संयोजन में सहायक होता है। संतति संकर पशुओं का प्रयोग व्यापारिक स्तर पर उत्पादन के लिए किया जा सकता है। इनका प्रयोग अंतःप्रजनन के किसी रूप एवं चयन के विकल्पी रूप में विकसित हो सके, जिससे नई स्थायी नस्लें जो वर्तमान नस्लों से हर प्रकार से श्रेष्ठ हो। इस विधि द्वारा पशुओं की अनेक नई नस्लों का विकास हुआ है । हिसरडैल भेड़ की एक नयी नस्ल है, जिसका विकास पंजाब में बीकानेरी एैवीज (भेड़) तथा मैरीनो रेम्स (मेढा या मेष) के बीच संगम कराने से हुआ।

(5) अंतः विशिष्ट (Inter Specific Hybridisation) – जन्तुओं में सुधार हेतु प्रयुक्त इस विधि में एक जाति के नर या मादा जन्तुओं का किसी अन्य जाति के मादा या नर जन्तुओं के साथ संगम कराया जाता है। ऐसे संगम से उत्पन्न संततियाँ सामान्यतः दोनों जनक जातियों से भिन्न लक्षण दर्शाती हैं। दुर्भाग्य से अधिकतर अन्तरजातीय संकर जन्तु बन्ध्य होते हैं तथा इनकी उत्तरजीविता काफी कम होती है किन्तु कई बार ऐसे कुछ संकरों की संततियों में दोनों ही जनक प्रजातियों के वांछनीय लक्षण उपस्थित होते हैं जो कि आर्थिक महत्त्व के हो सकते हैं। उदाहरणार्थ – घोड़ी एवं गधे के बीच संगम से उत्पन्न खच्चर अपनी जनक प्रजातियों की तुलना में अधिक दमदार एवं पुष्ट होता है। यह कठिन मार्गों तथा पर्वतीय क्षेत्रों में ढुलाई जैसे कठिन कार्य के लिए अधिक उपयोगी होते हैं।

कृत्रिम वीर्य सेचन (Artificial Insemination ) – हमारे विचार में सबसे अच्छी (सर्वोत्तम ) पशु प्रजनन विधि है। इस विधि द्वारा अधिकतर महत्त्वपूर्ण प्रजातियाँ पैदा होती हैं। यह विधि गाय, भैंस, कुक्कुट, भेड़, घोड़े, खच्चर तथा बकरी आदि के गुणों को सुधारने के लिए काफी प्रयुक्त की जाती है ।

प्रश्न 5.
मौन (मधुमक्खी ) पालन से आप क्या समझते हैं? हमारे जीवन में इसका क्या महत्त्व है ?
उत्तर:
शहद के उत्पादन के लिए मधुमक्खियों के छत्तों का रख- रखाव ही मधुमक्खी पालन अथवा मौन पालन है।
मधुमक्खी पालन का हमारे दैनिक जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है-
(1) शहद उच्च पोषक महत्त्व का एक आहार है तथा औषधियों की देशी प्रणाली में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
(2) मधुमक्खियाँ मोम भी पैदा करती हैं जिसका कांतिवर्धक वस्तुओं की तैयारी तथा विभिन्न प्रकार के पॉलिश वाले उद्योगों में प्रयोग किया जाता है।
(3) मधुमक्खियाँ हमारी बहुत सी फसलों जैसे- सूर्यमुखी, सरसों, सेब तथा नाशपाती के लिए परागणक हैं। पुष्पीकरण के समय यदि इनके छत्तों को खेतों के बीच रख दिया जाए तो इससे पौधों की परागण क्षमता बढ़ जाती है और इस प्रकार फसल तथा शहद दोनों के उत्पादन में सुधार हो जाता है।

प्रश्न 6.
खाद्य उत्पादन को बढ़ाने में मात्स्यकी की भूमिका का विवेचन करें।
उत्तर:
मात्स्यकी एक प्रकार का उद्योग है जिसका संबंध मछली अथवा अन्य जलीय जीवों को पकड़ना, उनका प्रसंस्करण तथा उन्हें बेचने से होता है। हमारी जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग आहार के रूप में मछली, मछली उत्पादों तथा जलीय जन्तुओं आदि पर आश्रित है। भारतीय अर्थव्यवस्था में मात्स्यकी का महत्त्वपूर्ण स्थान है । यह तटीय राज्यों में विशेषकर लाखों मछुआरों तथा किसानों को आय तथा रोजगार प्रदान करती है।

बहुत से लोगों के लिए यही जीविका का एकमात्र साधन है। मात्स्यकी की बढ़ती हुई माँग को देखते हुए इसके उत्पादन को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार की तकनीकें अपनाई जा रही हैं। मात्स्यकी उद्योग विकसित हुआ है तथा फला-फूला है। जिससे सामान्यतः देश को तथा विशेषत: किसानों को काफी आमदनी हुई। इसकी प्रगति को देखते हुए अब हम ‘हरित क्रांति’ (Green Revolution) की भाँति ‘नील क्रांति’ (Blue Revolution) की बात करने लगे हैं।

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प्रश्न 7.
पादप प्रजनन में भाग लेने वाले विभिन्न चरणों का संक्षेप में वर्णन करो ।
उत्तर:
पादप प्रजनन कार्यक्रम अत्यन्त सुव्यवस्थित तरीके से पूरे विश्व में सरकारी संस्थानों तथा व्यापारिक कंपनियों द्वारा चलाये जा रहे हैं। फसल की एक नयी आनुवंशिक नस्ल के प्रजनन में निम्न मुख्य पद होते हैं-
(1) परिवर्तनशीलता का संग्रहण – आनुवंशिक परिवर्तनशीलता किसी भी प्रजनन कार्यक्रम का मूलाधार है। विभिन्न जंगली किस्मों, प्रजातियों तथा कृष्टय प्रजातियों के संबंधियों का संग्रहण एवं परिरक्षण तथा उनके अभिलक्षणों का मूल्यांकन उनके समष्टि में उपलब्ध प्राकृतिक जीन के प्रभावकारी समुपयोजन के लिए पूर्वापेक्षित होता है । किसी फसल में पाए जाने वाले सभी जीनों के विविध अलील के समस्त संग्रहण को उसका जननद्रव्य (जर्मप्लाज्म ) संग्रहण कहते हैं ।

(2) जनकों का मूल्यांकन तथा चयन- जननद्रव्य मूल्यांकित किए जाते हैं, ताकि पादपों को उनके लक्षणों के वांछनीय संयोजनों के साथ अभिनिर्धारित किया जा सके। इस प्रकार जहाँ वांछनीय तथा संभव है, वहाँ शुद्ध वंशक्रम उत्पन्न कर ली जाती है।

(3) चयनित जनकों के बीच संकरण – वांछित लक्षणों को बहुधा दो भिन्न पादपों से प्राप्त कर संयोजित किया जाता है, उदाहरणार्थ एक जनक जिसमें उच्च प्रोटीन गुणवत्ता है और अन्य जनक जिसमें रोग निरोधक गुण है, दोनों के संयोजन की आवश्यकता है। यह परसंकरण द्वारा संभव है कि दो जनक ऐसे संकर पैदा करें, जिससे आनुवंशिक वांछित लक्षणों का संगम एक पौधे में हो सके।

(4) श्रेष्ठ पुनर्योगज का चयन तथा परीक्षण – इसके अन्तर्गत संकरों की संतति के बीच से पादप का चयन किया जाता है जिनमें वांछित लक्षण संयोजित हों। प्रजनन उद्देश्यों को प्राप्त करने में चयन की यह प्रक्रिया काफी महत्त्वपूर्ण है।

(5) नये कंषणों का परीक्षण, निर्मुक्त होना तथा व्यापारीकरण – नव चयनित वंशक्रम का उनके उत्पादन तथा अन्य गुणवत्ता वाली शस्यी विशेषकों, रोगप्रतिरोधकता आदि गुणों के आधार पर मूल्यांकित किया जाता है। मूल्यांकित पौधों को अनुसंधान वाले खेतों में जहाँ उन्हें आदर्श उर्वरक प्राप्त हो रहे हैं, उन्हें सिंचाई का पानी मिल रहा हो तथा अन्य समुचित शस्य प्रबंधन आदि उपलब्ध हों, वहाँ पैदा किया जाता है तथा उसमें उपर्युक्त गुणों का मूल्यांकन किया जाता है ।

प्रश्न 8.
जैव प्रबलीकरण का क्या अर्थ है? व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
जैव प्रबलीकरण (biofortification) उन्नत खाद्य गुणवत्ता रखने वाली पादप प्रजनन फसलें हैं । जैवपुष्टि-कारण-विटामिन तथा खनिज के उच्च स्तर वाली अथवा उच्च प्रोटीन तथा स्वास्थ्यवर्धक वसा वाली प्रजनित फसलें जन स्वास्थ्य को सुधारने के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रायोगिक माध्यम हैं । उन्नत पोषण / पोषक गुणवत्ता के लिए निम्न को सुधारने के उद्देश्य से प्रजनन किया गया है –
(1) प्रोटीन अंश तथा गुणवत्ता
(2) तेल अंश तथा गुणवत्ता
(3) विटामिन अंश
(4) सूक्ष्म पोषक तथा खनिज अंश
पहले से विद्यमान संकर मक्का की तुलना में 2000 में विमुक्त संकर मक्का में अमीनो एसिड, लायसीन तथा ट्रिप्टोफैन की दुगुनी मात्रा विकसित की गयी है। गेहूँ की किस्म जिसमें उच्च प्रोटीन अंश हो, एटलस 66 कृष्य गेहूँ की ऐसी उन्नतशील किस्म तैयार करने के लिए दाता की तरह से प्रयोग किया गया है। लौह तत्व बहुल धान की किस्म को विकसित करना अब संभव हो गया है, इसमें सामान्यतः प्रयोग में लाई गई किस्मों की तुलना में लौह तत्व की मात्रा पाँच गुणा अधिक होती है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नयी दिल्ली ने बहुत सी सब्जियों की फसलों का मोचन किया है जिनमें विटामिन तथा खनिज प्रचुर मात्रा में होते हैं जैसे- गाजर, पालक, कद्दू में विटामिन- – ए; : करेला, बथुआ, सरसों, टमाटर में विटामीन सी; पालक तथा बथुआ जिसमें आयरन तथा कैल्सियम प्रचुर मात्रा में तथा ब्रॉड बींस, लबलब, फ्रेंच तथा गार्डन मटर में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पायी जाती है।

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प्रश्न 9.
विषाणु मुक्त पादप तैयार करने के लिए पादप का कौन-सा भाग सबसे अधिक उपयुक्त है तथा क्यों?
उत्तर:
विषाणु मुक्त पादप तैयार करने के लिए पादप का तना (meristems apical and axillary) एपिकल तथा एक्सीलरी भाग हमेशा विषाणु मुक्त रहता है। पादप विषाणु जड़, भूमिगत तना, बल्ब, राइजोम (root, tubers, bulb, rhizome etc.) आदि संचारित होते हैं विषाणु मुक्त स्वस्थ पादप प्राप्त करने के लिए यदि ऊतक संवर्धन (tissue culture) तकनीक का प्रयोग किया जाये तो हमें एक स्वस्थ रोगाणु मुक्त पादप प्राप्त होगा। यह तकनीक आलू, गन्ना तथा स्ट्राबेरी आदि में सफलतापूर्वक प्रयोग की जा रही है।

प्रश्न 10.
सूक्ष्म प्रवर्धन द्वारा पादपों के उत्पादन के मुख्य लाभ क्या हैं?
उत्तर:
ऊतक संवर्धन द्वारा कृषि, उद्यान तथा वानिकी के लिए उपयुक्त पादप सामग्री के त्वरित गुणन को सूक्ष्म प्रवर्धन कहते हैं । सूक्ष्म प्रवर्धन द्वारा पादपों के उत्पादन के मुख्य लाभ इस प्रकार हैं-
(1) बहु प्ररोहिका उत्पादन (Multiple Shootlet Production) – प्ररोह शिखाग्र को संवर्धित करके, किसी विलक्षण पौधे या संकर की अनेक प्रतिकृतियाँ प्राप्त की जा सकती हैं। विशिष्ट उपचारों के फलस्वरूप कैलस के बजाय अनेक कलिकाएँ बनती हैं, जिन्हें उगाकर प्ररोह प्राप्त किये जा सकते हैं, जिनमें हार्मोनों की सहायता से जड़ों के निर्माण को प्रेरित कर सकते हैं। आलू, इलायची, केला, क्रिसेन्थिमम आदि के प्रवर्धन में इससे काफी सहायता मिली है।

(2) कायिक भ्रूण विकास (Somatic Embryogenesis)- कायिक भ्रूण या एम्ब्रयॉयड ( embryoids) वे भ्रूण हैं जो ऊतक संवर्धन में कायिक कोशिकाओं से विकसित होते हैं। ये उन सभी प्रावस्थाओं में से गुजरते हैं, जिनमें से लैंगिक जनन के फलस्वरूप उत्पन्न भ्रूण गुजरते हैं। थोड़े से संवर्धन माध्यम से गाजर के हजारों एम्ब्रयॉयड प्राप्त किये जा सकते हैं, जिनसे पौधे विकसित किये जा सकते हैं।

(3) रोग-मुक्त पौधों के उत्पादन में (Production of Disease-free Plants) – कायिक प्रवर्धन करने वाले पौधों में रोगाणु विषाणुओं का संचरण आसानी से प्रवर्ध्य (Propagules) द्वारा होता है। ऐसा पाया गया है कि रोगग्रस्त पौधे प्ररोह शीर्ष के विभज्योतक की कोशिकाओं में रोगाणु नहीं होते। इन कोशिकाओं के संवर्धन से आलू, गन्ना, स्ट्राबेरी इत्यादि अनेक पौधों को रोगमुक्त अवस्था में प्राप्त किया जाता है।

(4) पुंजनिक अगुणित पौधों की प्राप्ति (Production of Androgenic Haploids) – अगुणित पौधों का पादप प्रजनन कार्यक्रमों में काफी महत्त्व है। आप लानते हैं कि शुद्ध (समजात) पौधों को प्राप्त करना अति कठिन काम है। कई पीढ़ियों तक स्वपरागण कराना पड़ता है। परन्तु ऊतक संवर्धन द्वारा यह काफी सरल हो गया है। आप जानते हैं कि प्रत्येक परागकोष में कई हजार अगुणित कोशिकाएँ (परागकण ) होती हैं। इनको संवर्धित करके, इनसे अगुणित पौधे प्राप्त किये जाते हैं । कोलचिसिन की सहायता से इनके गुणसूत्रों को दुगुना करके समजात द्विगुणित पौधे भी प्राप्त किए जा सकते हैं। इस प्रकार समजात विभेदों की प्राप्ति के लिए लम्बे समय तक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती। सर्वप्रथम गुहा एवं माहेश्वरी (Guha and Maheshwari, 1965 ) ने धतुरा इनोक्सिया (Datura inoxia) के पुंजनिक अगुणित पौधे प्राप्त किए थे।

(5) भ्रूण रक्षा (Embryo Rescue ) – अन्तर्जातीय संकरण के फलस्वरूप उत्पन्न भ्रूण की प्रायः मृत्यु हो जाती है तथा बीज बेकार हो जाता है। नव-उत्पन्न भ्रूण को निकालकर, उसे संवर्धित करके बचाया जा सकता है।

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(6) उत्परिवर्तनों का प्रेरण व चयन (Induction and Selection of Mutants) – कोशिकाओं को तरल संवर्धन माध्यम से उगाकर अच्छी तरह हिलाया जाता है ताकि कोशिकाएँ माध्यम में निलंबित हो जायें। तत्पश्चात् इन कोशिकाओं की विभिन्न पैट्रीडिशों में ऐसे संवर्धन माध्यम पर स्थानान्तरित कर देते हैं, जिनमें उत्परिवर्तक प्रेरक रसायन हो। प्राप्त उत्परिवर्तक में से लाभदायक विभेदकों को चुन लिया जाता है। इसी प्रकार माध्यम में अपतृणनाशक, लवण आदि डालने से सभी कोशिकाओं की मृत्यु हो जायेगी। केवल वे बच पायेंगी जो इनका प्रतिरोध कर सकती हैं। उनसे पौधे की रोधी किस्में विकसित की जा सकती हैं।

(7) जीवद्रव्यक संलयन (Protoplast Fusion ) – इस विधि से ऐसे पौधों के संकर तैयार किये जा सकते हैं, जिनके बीच लैंगिक प्रजनन संभव नहीं है। पौधों की कोशिकाओं से एंजाइम की सहायता से कोशिका भित्ति हटा दी जाती है तथा जीवद्रव्य को संवर्धन माध्यम में उगाया जाता है। इससे पूर्व कि कोशिका भित्ति पुनः बने दोनों जातियों तथा उपजातियों के जीवद्रव्यकों को पॉलिइथाइलीन ग्लाइकोल (PEG) अथवा अन्य उपयुक्त पदार्थों की सहायता से संलयन करा दिया जाता है। इन संकर जीवद्रव्यकों को संवर्धित करके उनसे संकर पौधे प्राप्त किये जाते हैं। आलू तथा टमाटर का संकर पोटोमेटो इसका अच्छा उदाहरण है।

प्रश्न 11.
पत्ती में कर्तोंतकी पादप के प्रवर्धन में जिस माध्यम का प्रयोग किया गया है, उनसे विभिन्न घटकों का पता लगाओ ।
उत्तर:
एक पूर्ण पादप कर्तोतकी से पुनर्जनित किया जा सकता है। जैसे- पादप का कोई भाग ले लीजिये, उसे विशिष्ट पोषक मीडिया तथा रोगाणुरहित स्थिति में एक टेस्टट्यूब में उगने दिया जाये। किसी कोशिका कर्त्तेतकी से पूर्ण पादप में जनित्र होने की यह क्षमता पूर्णशक्तता (Totipotency) कहलाती है ।
पोषक माध्यम कार्बन स्रोत जैसे- स्युक्रोज तथा अकार्बनिक लवण, विटामिन, अमीनो अम्ल तथा वृद्धि नियंत्रक हार्मोन जैसे – ऑक्सिन, सायटोकाइनिन आदि प्रदान करे। इन विधियों द्वारा अत्यंत ही अल्प अवधि में हजारों पादपों का प्रवर्धन संभव हो सका।

प्रश्न 12.
शस्य पादपों के किन्हीं पाँच संकर किस्मों के नाम बताएँ, जिनका विकास भारतवर्ष में हुआ है ।
उत्तर:
भारत में शस्य पादपों की संकरी किस्म गेहूँ, मक्का, चावल (धान), ज्वार तथा बाजरा का सफलतापूर्वक विकास किया जा चुका है। इन किस्मों के कुछ नाम इस प्रकार हैं –

फसल किस्म
धान आई.आर. 8, जया, पद्मा, बाला, पूसा, आर. एच. 20 , शक्ति, रतन
गेहूँ शरबती, सोनारा, सोनालिका, कल्याण सोना, हीरा-मोती, आर.आर. 21, यू.पी. 301 तथा एच. यू. डब्ल्यू, 468
मक्का गंगा 101, रंकित और दक्किन हाइब्रिड, प्रोटीना
भिंडी पूस आवनी
बैंगन पूसा बैंगनी, पूसा क्रांति और मुक्तवेशी

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