Haryana State Board HBSE 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य Important Questions and Answers.
Haryana Board 12th Class Biology Important Questions Chapter 4 जनन स्वास्थ्य
वस्तुनिष्ठ प्रश्न-
1. आपातकालिक गर्भनिरोधक मैथुन के कितने घण्टे के भीतर लेनी चाहिए-
(अ) 72 घण्टे
(ब) 82 घण्टे
(स) 92 घण्टे
(द) 100 घण्टे
उत्तर:
(अ) 72 घण्टे
2. जनसंख्या दिवस मनाया जाता है-
(अ) 11 जुलाई
(ब) 21 जुलाई
(स) 31 जुलाई
(द) 11 अगस्त
उत्तर:
(ब) 21 जुलाई
3. जो दम्पति बच्चे के इच्छुक हैं उनके लिए संतान प्राप्त करने का सर्वोत्तम उपाय है-
(अ) टेस्ट ट्यूब बेबी
(ब) गोद लेकर
(स) पात्रे निषेचन
(द) कृत्रिम गर्भाशय वीर्य सेचन
उत्तर:
(ब) गोद लेकर
4. जनन स्वास्थ्य शब्द से क्या तात्पर्य है-
(अ) शारीरिक स्वास्थ्य
(ब) व्यवहारात्मक स्वास्थ्य
(स) भावात्मक स्वास्थ्य
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
5. रोध (बैरियर) विधि कौन-सी है?
(अ) निरोध
(ब) गर्भाशय ग्रीवा टोपी
(स) डायफ्राम
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
6. कौनसी तकनीकी पुरुषों से सम्बन्धित है?
(अ) मुखीय गोली
(ब) वैसक्टोमी
(स) ट्यूबेक्टोमी
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) वैसक्टोमी
7. सिफलिस (Syphillis) रोग का रोगजनक है-
(अ) ट्राइकोमोनास वेजाइनेलिस
(ब) मानव पैपिलोमा वायरस
(स) ट्रिपोनिमा पैलिडम
(द) निसेरिया गोनोही
उत्तर:
(स) ट्रिपोनिमा पैलिडम
8. निम्न में से ऐसा कौनसा रोग है जो उपचार योग्य नहीं है-
(अ) यकृत शोध (बी)
(ब) जननिक परिसर्प
(स) एच.आई.वी. संक्रमण
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
9. विद्यालयों में यौन शिक्षा की पढ़ाई क्यों जरूरी है?
(अ) सुरक्षित और स्वच्छ यौन क्रियाओं के लिए
(ब) यौन संचारित रोगों एवं एड्स की जानकारी के लिए
(स) यौन सम्बन्धी गलत धारणाओं से छुटकारा पाने के लिए
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
10. परखनली के सम्बन्ध में सत्य है-
(अ) मादा के जननांग में निषेचन तथा परखनली में वृद्धि
(ब) जननांगों से बाहर निषेचन तथा गर्भाशय में परिवर्धन
(स) निषेचन तथा परिवर्धन गर्भाशय के बाहर
(द) जन्मपूर्व शिशु को इन्क्यूबेटर में रखना
उत्तर:
(ब) जननांगों से बाहर निषेचन तथा गर्भाशय में परिवर्धन
11. औषधि रहित आई यू डी निम्न में से कौन-सी है?
(अ) लिप्पेस लूप
(ब) कॉपर-टी
(स) सी यू
(द) प्रोजेस्टासर्ट
उत्तर:
(अ) लिप्पेस लूप
12. उल्बवेधन (ऐमीनोसेंटेसिस) जाँच क्या है?
(अ) गर्भनिरोधक परीक्षण
(ब) बंध्यता परीक्षण
(स) भ्रूणीय लिंग परीक्षण
(द) यौन संचारित रोग परीक्षण
उत्तर:
(स) भ्रूणीय लिंग परीक्षण
13. जनन एवं बाल स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम किस नाम से प्रसिद्ध है?
(अ) एस.सी.एच.
(ब) एच.सी.एच.
(स) आर.सी.एच.
(द) एफ.सी.एच.
उत्तर:
(स) आर.सी.एच.
14. ऐसे मामले में जहाँ स्त्रियाँ अण्डाणु उत्पत्न नहीं कर सकतीं, लेकिन उनके लिए एक विधि अपनाई जाती है, जिसमें दाता से अंडाणु लेकर उन स्त्रियों की फैलोपी नलिका में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। इस तकनीक को क्या कहते हैं?
(अ) जी.आई.एफ.टी.
(ब) ए.आर.टी.
(स) ई.टी.
(द) उत्तर:जेड.आई .एफ.टी.
उत्तर:
(अ) जी.आई.एफ.टी.
15. मानव जनसंख्या की अत्यधिक वृद्धि का कारण है-
(अ) औसत आयुकाल में वृद्धि
(ब) अच्छी चिकित्सीय सुविधाएँ
(स) मृत्युदर में कमी
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
16. परिवार नियोजन की शुरुआत भारत में कब हुई?
(अ) सन् 1951
(ब) सन् 1961
(स) सन् 1941
(द) सन् 197
उत्तर:
(अ) सन् 1951
17. दम्पति के बंध्य होने का कारण हो सकता है-
(अ) शारीरिक
(ब) जन्मजात
(स) रोगजन्य
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
18. निम्न में से यौन संचारित रोग है-
(अ) तपेदिक
(ब) पीलिया
(स) सुजाक
(द) जुकाम
उत्तर:
(स) सुजाक
19. जनन स्वास्थ्य को एक लक्ष्य के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर जननात्मक स्वस्थ समाज को प्राप्त करने की कार्य योजना बनाने वाला विश्व का पहला देश कौनसा था?
(अ) इंग्लैण्ड
(ब) भारत
(स) रूस
(द) अमेरिका
उत्तर:
(ब) भारत
20. स्तनपान अनार्तव विधि प्रसव के बाद ज्यादा से ज्यादा कितने माह की अवधि तक कारगर मानी गई है?
(अ) 6 माह
(ब) 8 माह
(स) 10 माह
(द) 12 माह
उत्तर:
(अ) 6 माह
21. प्रति हजार व्यक्तियों में जन्म लेने वाली संख्या को क्या कहते हैं?
(अ) वृद्धि दर
(ब) लगभग (crude) जन्म दर
(स) गर्भधारण दर
(द) प्रजनन दर
उत्तर:
(ब) लगभग (crude) जन्म दर
22. मुखीय गर्भनिरोधक निम्न में से किसके विभित्न संयोग से बनता है?
(अ) प्रोजेस्ट्रेरॉन-एस्ट्रोजन
(ब) ऑक्सीटोसिन
(स) रिलेक्सीन
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) प्रोजेस्ट्रेरॉन-एस्ट्रोजन
23. सासाहिक रूप से खाने वाली गर्भ निरोधक गोली का व्यापारिक नाम है-
(अ) माला
(ब) सहेली
(स) माला ए
(द) माला डी
उत्तर:
(ब) सहेली
24. दैनिक रूप से खाने वाल गर्भ निरोधक गोली कौनसी है?
(अ) माला C
(ब) माला N तथा माला D
(स) माला A
(द) माला D
उत्तर:
(ब) माला N तथा माला D
25. महिलाओं के लिए एक नया ओरल गर्भ ‘सहेली’ वैज्ञानिकों ने किस संस्थान पर विकसित किया?
(अ) सी.डी.आर.आई.-लखनऊ
(ब) आई.आई .एससी.-बैंगलोर
(स) सी.एस.आई.आर.-नई दिल्ली
(द) आई.सी.एम.आर.-नई दिल्ली
उत्तर:
(अ) सी.डी.आर.आई.-लखनऊ
26. निम्न में से लोगों की जनन सम्बन्धी समस्या है-
(अ) सगर्भता
(ब) गर्भपात
(स) प्रसव
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
27. यौन संचारित रोग का लक्षण है-
(अ) गुसांग में खुजली
(ब) तरल स्राव आना
(स) हल्का दर्द तथा सूजन
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
28. यौन संचारित रोगों का समय पर उपचार न होने पर निम्न में से कौनसी जटिलता पैदा हो सकती है-
(अ) श्रोणि-शोथज रोग (पी.आई.डी.)
(ब) अस्थानिक सगर्भता
(स) जनन मार्ग का केंसर
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
29. गर्भनिरोधक विधियों के सम्भावित दुष्प्रभाव हैं-
(अ) मतली
(ब) उदरीय पीड़ा
(स) अनियमित आर्तव रक्तस्राव
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
30. महिलाओं द्वारा मुँह से लेने वाली गोलियाँ 21 दिन तक प्रतिदिन ली जाती हैं। इन्हें क्या कहते हैं?
(अ) पिल्स
(ब) विल्स
(स) किल्स
(द) मिल्स
उत्तर:
(अ) पिल्स
31. नीचे एक स्तम्भ में गर्भनिरोध प्राप्त करने की चार रीतियाँ (1-4) और दूसरे स्तम्भ में उनके कार्य करने की चार विधियाँ (i-iv) दी गई हैं। इन रीतियों और उनकी कार्य विधियों के सही मिलान को चुनिये-
स्तम्भ-I ( रीतियाँ ) | स्तम्भ-II ( कार्य विधियाँ) |
1. गोली | (i) शुक्रणुओं को सर्विक्स में पहुँचने से रोकना |
2. कंडोम | (ii) अंतर्रोपण को न होने देना |
3. शुक्रवाहिका छेदन | (iii) अण्डोत्सर्ग न होने देना |
4. कॉपर-T | (iv) वीर्य में शुक्राणुओं का न होना। |
मिलान
(अ) | 1-(iii) | 2-(iv) | 3-(i) | 4-(ii) |
(ब) | 1-(ii) | 2-(iii) | 3-(i) | 4-(iv) |
(स) | 1-(iii) | 2-(i) | 3-(iv) | 4-(ii) |
(द) | 1-(iv) | 2-(i) | 3-(ii) | 4-(iii) |
उत्तर:
(स) | 1-(iii) | 2-(i) | 3-(iv) | 4-(ii) |
32. प्रतिनिधि माँ (सरोगेट मदर) का उपयोग के लिए होता है।
(अ) दुगध स्त्रावण के प्रेरण
(ब) कृत्रिम वीर्यसेचित मादा
(स) प्रत्यारोपित भ्रूण वाली भविष्य की माँ
(द) कृत्रिम वीर्यसेचन।
उत्तर:
(स) प्रत्यारोपित भ्रूण वाली भविष्य की माँ
33. एम्नियोसेन्टेसिस विधि में द्रव कहाँ से निकाला जाता है?
(अ) भूण के रक्त से
(ब) माता के रक्त से
(स) माता के शरीर के द्रव से
(द) श्रूण को घेरे हुए द्रव से।
उत्तर:
(द) श्रूण को घेरे हुए द्रव से।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1
सेन्ट्रल ड्रग रिसर्च इन्स्टीट्यूट (CDRI) कहाँ अवस्थित है ?
उत्तर:
सेन्ट्रल ड्रग रिसर्च इन्स्टीट्यूट (CDRI) लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में अवस्थित है ।
प्रश्न 2.
परिवार नियोजन को अब किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
परिवार नियोजन को अब परिवार कल्याण के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 3.
कंडोम के उपयोग से कोई एक लाभ लिखिए।
उत्तर:
गर्भधारण के अलावा यौन संचारित रोगों से बचाव जैसा लाभ है।
प्रश्न 4.
उल्बभेदन (Amniocentesis) का एक धनात्मक तथा एक ऋणात्मक अनुप्रयोग बताइये ।
उत्तर:
- धनात्मक अनुप्रयोग – यह भ्रूणावस्था में आनुवंशिक रोग की जाँच में प्रयुक्त किया जाता है।
- ऋणात्मक अनुप्रयोग – यह मादा भ्रूण हत्या को बढ़ावा देता है।
प्रश्न 5.
हफ्ते में एक बार लेने वाली गर्भनिरोधक गोली का नाम लिखिए।
उत्तर:
हफ्ते में एक बार लेने वाली गर्भनिरोधक गोली का नाम सहेली है।
प्रश्न 6.
आई. यू. डी. गर्भाशय के अन्दर कॉपर (सी.यू.) का आयन मोचित होने के कारण शुक्राणुओं पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
आई. यू. डी. गर्भाशय के अन्दर कॉपर (सी.यू.) का आयन मोचित होने के कारण शुक्राणुओं की भक्षकाणुक्रिया (Phagocytosis) बढ़ा देती है जिससे शुक्राणुओं की गतिशीलता तथा उनके निषेचन की क्षमता को कम करती है।
प्रश्न 7.
मुँह द्वारा ली जाने वाली गर्भनिरोधक गोलियों (पिल्स) में कौनसा हार्मोन पाया जाता है ?
उत्तर:
मुँह द्वारा ली जाने वाली गर्भनिरोधक गोलियों (पिल्स) में प्रोजेस्ट्रोन और एस्ट्रोजन नामक हार्मोन पाया जाता है।
प्रश्न 8.
जो औरतें गर्भावस्था में देरी या बच्चों के जन्म में अंतराल चाहती हैं, उनके लिए कौनसी युक्ति आदर्श गर्भनिरोधक है?
उत्तर:
जो औरतें गर्भावस्था में देरी या बच्चों के जन्म में अंतराल चाहती हैं, उनके लिए आई यू डी आदर्श गर्भनिरोधक युक्ति है।
प्रश्न 9.
चिकित्सीय सगर्भता समापन किसे कहते हैं?
उत्तर:
गर्भावस्था पूर्ण होने से पहले जानबूझकर या स्वैच्छिक रूप से गर्भ के समापन को चिकित्सीय सगर्भता समापन ( एम.टी.पी.) कहते हैं।
प्रश्न 10.
IUCD का पूर्ण रूप लिखिए।
उत्तर:
इन्ट्रा यूटेराइन कान्ट्रासेप्टिव डिवाइस |
प्रश्न 11.
दो वर्ष तक मुक्त या असुरक्षित सहवास के बावजूद गर्भाधान न हो पाने की स्थिति को क्या कहते हैं?
उत्तर:
दो वर्ष तक मुक्त या असुरक्षित सहवास के बावजूद गर्भाधान न हो पाने की स्थिति को बंध्यता ( Infertility) कहते हैं।
प्रश्न 12.
महिला नसबंदी से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर;
महिला के उदर में छोटा-सा चीरा लगाकर अथवा योनि द्वारा डिंबवाहिनी नली का छोटा भाग निकाल या धागे से बाँधने की क्रिया को महिला नसबंदी अथवा नलिका उच्छेदन (टूबैक्टोमी) कहते हैं।
प्रश्न 13.
चिकित्सीय सगर्भता समापन ( एम. टी. पी.) को कानूनी स्वीकृति कब प्रदान की गई ?
उत्तर:
चिकित्सीय सगर्भता समापन ( एम. टी. पी.) को कानूनी स्वीकृति सन् 1971 ई. में प्रदान की गई।
प्रश्न 14.
STD का सम्पूर्ण रूप लिखिए।
उत्तर:
यौन संचारित रोग (Sexually Transmitted Diseases) |
प्रश्न 15.
स्तनपान अनार्तव विधि के दौरान गर्भधारण शून्य होता है, क्यों?
उत्तर:
स्तनपान अनार्तव विधि के दौरान अण्डोत्सर्ग और आर्तव चक्र शुरू नहीं होता है। इसलिए गर्भधारण शून्य होता है।
प्रश्न 16.
पुरुषों के लिए कंडोम का मशहूर ब्रांड नाम क्या है जो काफी लोकप्रिय है ?
उत्तर:
पुरुषों के लिए कंडोम का मशहूर ब्रांड नाम निरोध (Nirodh) काफी लोकप्रिय है 1
प्रश्न 17.
विवाह की वैधानिक आयु स्त्री तथा पुरुष के लिए क्या सुनिश्चित है ?
उत्तर:
विवाह की वैधानिक आयु स्त्री के लिए 18 वर्ष तथा पुरुष के लिए 21 वर्ष सुनिश्चित है।
प्रश्न 18.
दो STD के नाम लिखिए जो संदूषित रक्त से संचारित होते हैं।
उत्तर:
- एड्स
- हिपेटाइटिस – B
प्रश्न 19.
गर्भाशय वीर्य सेचन ( Intrauterine insemination) किसे कहते हैं?
उत्तर:
पति या स्वस्थ दाता से शुक्र लेकर कृत्रिम रूप से या तो स्त्री की योनि (Vagina) में अथवा गर्भाशय ( Uterus) में प्रविष्ट कराना गर्भाशय वीर्य सेचन कहलाता है ।
प्रश्न 20.
माहवारी चक्र में 10वें से 17वें दिन के बीच की अवधि को क्या कहते हैं एवं क्यों?
उत्तर:
माहवारी चक्र में 10वें से 17वें दिन के बीच की अवधि को निषेच्य अवधि (Fertile period) कहते हैं। क्योंकि इस अवधि में निषेचन एवं गर्भधारण के अवसर अधिक होते हैं।
प्रश्न 21.
पुरुष साथी स्त्री को वीर्यसेचित कर सकने योग्य नहीं है अथवा जिसके स्खलित वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या बहुत ही कम है, ऐसे दोष का निवारण किस तकनीक से किया जा सकता है?
उत्तर:
कृत्रिम वीर्य सेचन ( Artificial Insemination)।
प्रश्न 22.
सहेली नामक गर्भनिरोधक गोली की खोज भारत के किस संस्थान में की गई?
उत्तर:
सहेली नामक गर्भनिरोधक गोली की खोज भारत में लखनऊ स्थित केन्द्रीय औषध अनुसंधान संस्थान (CDRI) में की गई।
प्रश्न 23.
लैंगिक सम्पर्क से होने वाले कोई दो रोग बताइए ।
उत्तर:
- सूजाक (Gonorrhoea)
- सिफिलिस (Syphilis)
प्रश्न 24.
छोटे परिवार को प्रोत्साहन देने हेतु गर्भ निरोधक उपाय अपनाने के लिए प्रेरित नारा ‘हम दो हमारा एक’ गाँव में ज्यादा लोकप्रिय है या शहर में ?
उत्तर:
शहरों में कामकाजी युवा दम्पतियों ने ‘हम दो हमारा एक’ का नारा अपनाया है।
प्रश्न 25.
HIV एवं AIDS का सम्पूर्ण रूप लिखिए।
उत्तर:
HIV- ह्यूमन इम्यूनो डेफीसिएन्सी वाइरस । AIDS – एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिन्ड्रोम ।
प्रश्न 26.
दो घटनाओं के नाम लिखिए जो मनुष्य में गर्भधारण से रोकथाम के लिए मुखीय गर्भनिरोधक गोलियों का प्रयोग करने से होती हैं ?
उत्तर:
मुखीय गर्भनिरोधक गोलियों से अण्डोत्सर्ग की क्रिया परिवर्तित होती है तथा रोपण की क्रिया नहीं होती है। इसके अलावा सर्वाइकल म्यूकस की गुणवत्ता को रूपान्तरित करती है जिससे शुक्राणुओं का प्रवेश बाधित हो जाता है।
प्रश्न 27.
डायफ्राम एवं वाल्ट क्या है? इसका क्या उपयोग है?
उत्तर:
डायफ्राम एवं वाल्ट रबर से बने रोधक उपाय हैं। इनका उपयोग स्त्री के जनन मार्ग में सहवास के पूर्व गर्भाशय ग्रीवा को ढकने में किया जाता है।
प्रश्न 28.
ZI FT का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
युग्मनज अन्तः डिम्बवाहिनी स्थानान्तरण (Zygote Intra Fallopian Transfer)
प्रश्न 29.
लिंग अनुपात किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी समष्टि में प्रति एक हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या लिंग अनुपात कहलाता है।
प्रश्न 30.
जनसंख्या की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
एक विशिष्ट स्थान पर एक समय में पाये जाने वाले एक जाति के सदस्यों के समूह को जनसंख्या कहते हैं ।
प्रश्न 31.
STD क्या है? इसके दो रोगों को बताइए ।
उत्तर:
वे रोग जो मैथुन (Sexual Inter Course) द्वारा संचारित होते हैं, उन्हें सामूहिक तौर पर यौन संचारित रोग (Sexually Transmitted Diseases, STD ) कहते हैं। इन्हें रति रोग अथवा जनन मार्ग संक्रमण (Reproductive Tract Infection) भी कहते हैं।
दो रोग –
- सुजाक (Gonorrhoea)
- सिफलिस (Syphilis ) ।
प्रश्न 32.
परखनली शिशु क्या है?
उत्तर:
परखनली शिशु ( Test Tube baby) – कुछ महिलाएँ गर्भधारण नहीं कर पाती हैं। इन महिलाओं के अण्डाणु को कृत्रिम माध्यम पर शुक्राणु द्वारा निषेचित कराकर पुनः भ्रूण को गर्भाशय में रोपित कर दिया जाता है जहाँ भ्रूण का सामान्य विकास होता है। सामान्य प्रसव के बाद जो शिशु जन्म लेता है इसे परखनली शिशु कहते हैं ।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
एक वर्ष की पुत्री की माता अपने दूसरे बच्चे में अन्तर रखना चाहती है। उसकी डाक्टर ने उसे Cu – T की सलाह दी। इसके गर्भनिरोधक प्रभाव को समझाइए ।
अथवा
Cu-T किस प्रकार महिलाओं के लिए एक असरकारक गर्भनिरोधक है?
उत्तर:
कॉपर-टी एक कॉपर आयन मुक्त करने वाली अन्तः गर्भाशयी युक्ति है। इससे निकलने वाले कॉपर आयन शुक्राणुओं ( Sperms) के लिए भक्षाणुओं की तरह कार्य कर उन्हें समाप्त कर देते हैं इससे शुक्राणुओं की गतिशीलता व निषेचन की क्षमता समाप्त हो जाती है। जिसके परिणामस्वरूप निषेचन (Fertilization ) एवं. गर्भधारण की क्रिया नहीं होती है।
प्रश्न 2.
आदर्श गर्भनिरोधक किसे कहते हैं? गर्भनिरोधक उपायों के संभावित कोई पाँच दुष्प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
एक आदर्श गर्भनिरोधक प्रयोगकर्ता के हितों की रक्षा करने वाला, आसानी से उपलब्ध, प्रभावी तथा जिसका कोई दुष्प्रभाव नहीं हो या हो भी तो बहुत ही कम । इसके साथ ही यह उपयोगकर्ता की कामेच्छा, प्रेरणा तथा मैथुन में बाधक न हो उसे एक आदर्श गर्भनिरोधक ( Ideal Contraceptive ) कहते हैं।
गर्भनिरोधक उपायों के संभावित पाँच दुष्प्रभाव निम्न हैं-
- मतली (Nausea)
- उदरीय पीड़ा (Abdominal pain)
- बीच-बीच में रक्तस्राव ( Breakthrough bleeding).
- अनियमित आर्तव रक्तस्राव (Irregular menstrual bleeding)
- स्तन कैंसर (Breast Cancer) ।
प्रश्न 3.
भारत में गर्भनिरोधक दूसरी प्रभावी और लोकप्रिय विधि कौनसी है? इसका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में दूसरी प्रभावी और लोकप्रिय विधि अंतः गर्भाशयी युक्ति (Intra Uterine Device) है ये युक्तियाँ डाक्टरों एवं अनुभवी नसों द्वारा योनि मार्ग से गर्भाशय ( Uterus) में लगाई जाती हैं। आजकल विभिन्न प्रकार की अंत: गर्भाशयी युक्तियाँ उपलब्ध हैं; जैसे कि औषधिरहित आई यू डी (उदाहरण- लिप्पेस लूप), तांबा मोचक आई यू डी (कॉपर-टी, कॉपर-7 मल्टी लोड 375 कॉपर टी) तथा हार्मोन मोचक आई यू डी (प्रोजेस्टासर्ट, एल एन जी -20) आदि।
आई यू डी गर्भाशय के अन्दर कॉपर (सीयू) का आयन मोचित होने के कारण शुक्राणुओं की भक्षकाणुक्रिया (Phagocytosis) बढ़ा देती है जिससे शुक्राणुओं की गतिशीलता तथा उनकी निषेचन क्षमता को कम करती है। इसके अलावा आई यू डी हार्मोन को गर्भाशय में भ्रूण के रोपण के लिए अनुपयुक्त बनाते तथा गर्भाशय ग्रीवा को शुक्राणुओं का विरोधी बनाते हैं जो औरतें गर्भावस्था में देरी या बच्चों के जन्म में अंतराल चाहती हैं, उनके लिए आई यू डी आदर्श गर्भनिरोधक (Ideal Contraceptives) है।
प्रश्न 4.
कभी-कभी गुणकारी खोज भी हानिकारक हो जाती है। समझाइए ।
उत्तर:
वैज्ञानिकों द्वारा मनुष्य के लाभ के लिए अनेक युक्तियों की खोज की जाती है। विभिन्न बीमारियों के इलाज की विधियाँ खोजी जाती हैं परन्तु मनुष्य अपने स्वार्थवश उनका दुरुपयोग करने लगता है जिसका परिणाम अति भयंकर होता है। उदाहरण के लिए उल्चवेधन ऐसी युक्ति है जिसमें माँ के गर्भ में पल रहे शिशु या गर्भ में उत्पन्न आनुवंशिक कमियों तथा उसकी स्थिति का पता लगाया जा सकता है परन्तु लालची मनुष्य ने इस युक्ति का प्रयोग लिंग की पहचान करने में प्रारम्भ कर दिया है।
लिंग का पता करके मनुष्य अवांछित भ्रूण को गर्भपात द्वारा नष्ट करा देता है। खासकर मानव समाज में लड़की के जन्म को हेय दृष्टि से देखा जाता है और उनकी इस युक्ति से पहचान कर गर्भ में हत्या कर दी जाती है। इसे भ्रूण हत्या कहते हैं। यह एक अमानवीय व्यवहार है। इससे यह सिद्ध होता है कि कभी-कभी गुणकारी खोज भी हानिकारक हो जाती है।
प्रश्न 5.
पिल्स क्या है? यह गर्भनिरोधक के रूप में किस प्रकार कार्य करती है? समझाइए ।
उत्तर:
महिलाओं के द्वारा खाया जाने वाला गर्भनिरोधक प्रोजेस्टोजन अथवा प्रोजेस्टोजन और एस्ट्रोजन का संयोजन है जिसे थोड़ी मात्रा में मुँह द्वारा लिया जाता है। यह मुँह से टिकिया (Tablets) के रूप में ली जाती है और यह पिल्स (Pills) के नाम से लोकप्रिय है। ये गोलियाँ ( Pills ) 21 दिन तक प्रतिदिन ली जाती हैं और इन्हें आर्तव चक्र (Menstrual cycle) के प्रथम पाँच दिनों, मुख्यत: पहले दिन से ही शुरू करना चाहिये। गोलियाँ (Pills)
समाप्त होने के सात दिनों के अंतर के बाद जब पुन: आर्तव चक्र शुरू होता है, फिर से वैसे ही लिया जाता है और यह क्रम तब तक जारी रहता है जब तक गर्भनिरोधक की आवश्यकता होती है । ये अण्डोत्सर्जन (Ovulation) और रोपण (Implantation ) को रोकने के साथ गर्भाशय ग्रीवा की श्लेष्मा गुणता को बदल देती हैं, जिससे शुक्राणुओं के प्रवेश पर रोक लग जाती है, या उनकी गति धीरे अथवा मंद हो जाती है।
ये गोलियाँ ( Pills) बहुत ही प्रभावशाली तथा बहुत कम दुष्प्रभाव वाली होती हैं। महिलाओं द्वारा ये खूब स्वीकार्य हैं । सहेली (Saheli) नामक नयी गर्भनिरोधक गोली है । यह हफ्ते में एक बार ली जाने वाली गोली है। इसके दुष्प्रभाव बहुत कम तथा यह उच्च निरोधक क्षमता वाली होती है।
प्रश्न 6.
जन्मदर व मृत्युदर में कोई चार अन्तर लिखिए ।
उत्तर:
जन्मदर तथा मृत्युदर में कोई चार अन्तर-
जन्मद्र | मृत्युदर |
1.प्रति हजार जनसंख्या में प्रतिवर्ष जन्म लेने वाले प्राणियों की संख्या को जन्मदर कहते हैं। | प्रति ह जार जनसंख्या में प्रतिवर्ष मरने वाले प्राणियों की संख्या को मृत्युदर कहते हैं। |
2. जन्मदर को नियंत्रित करने वाले कारक निम्न हैं-आर्थिक विकास एवं मानव महत्वाकांक्षाएँ। | जबकि मृत्युदर को निम्न कारकों से कम किया जा सकता है -प्राकृ तिक आपदाओं से रक्षा, भण्डारण की सुविधा, कृषि का विकास आदि। |
3. जन्मदर के बढ़ने से जनसंख्या घनत्व का मान भी बढ़ जाता है । | मृत्युदर के बढ़ने से जनसंख्या घनत्व के मान में कमी आती है । |
4. जन्मदर के बढ़ने से जनसंख्या में वृद्धि होती है। | मृत्युदर के बढ़ने से जनसंख्या में कमी आती है। |
प्रश्न 7.
गर्भनिरोध की शल्यक्रिया विधि को नामांकित चित्र की सहायता से समझाइए ।
उत्तर:
शल्यक्रिया विधियाँ (Surgical methods ) – इन्हें बंध्यकरण (Sterilisation) भी कहते हैं । प्रायः यह उन लोगों को सुझाई जाती है, जिन्हें बच्चा नहीं चाहिये तथा इसे स्थाई माध्यम के रूप में (पुरुष / स्त्री में से एक) अपनाना चाहते हैं। शल्यक्रिया द्वारा युग्मक ( Gametes) के परिवहन को रोक दिया जाता है, जिसके फलस्वरूप गर्भाधान नहीं होता है । बंध्यकरण (Sterilisation) प्रक्रिया को पुरुषों के लिए शुक्रवाहक – उच्छेदन (Vasectomy) तथा महिलाओं के लिए डिंबवाहिनी नलिका उच्छेदन ( Tubectomy) कहा जाता है।
जनसाधारण इन क्रियाओं को पुरुष नसबंदी या महिला नसबंदी के नाम से जानते हैं। शुक्रवाहक- उच्छेदन में अंडकोष (Scrotum) शुक्रवाहक में चीरा मार कर छोटा-सा भाग काटकर निकाल या बाँध दिया जाता है। (अ) को। जबकि स्त्री के उदर में छोटा- सा चीरा मारकर या योनि द्वारा डिंबवाहिनी नली (Fallopian Tube) का छोटा-सा भाग निकाल या बाँध दिया जाता है। देखिए चित्र (ब) को । ये तकनीकें बहुत ही प्रभावशाली होती हैं पर इनमें पूर्व स्थिति लाने की गुंजाइश बहुत ही कम होती है।
प्रश्न 8.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जनन स्वास्थ्य का अर्थ क्या है? जनन स्वास्थ्य कार्य योजनाओं के उद्देश्यों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनन स्वास्थ्य का अर्थ विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जनन के सभी पहलुओं सहित एक सम्पूर्ण स्वास्थ्य अर्थात् शारीरिक, भावनात्मक, व्यवहारात्मक तथा सामाजिक स्वास्थ्य है । इसलिए ऐसे समाज को जननात्मक रूप से स्वस्थ समाज कहा जा सकता है, जिसमें लोगों के जनन अंग शारीरिक रूप से प्रकार्यात्मक रूप से सामान्य हों, यौन संबंधी सभी पहलुओं में जिनकी भावनात्मक और व्यावहारिक पारस्परिक क्रियाएँ सामान्य हों।
जनन स्वास्थ्य कार्ययोजनाओं के उद्देश्य – राष्ट्रीय स्तर पर जननात्मक स्वस्थ समाज को प्राप्त करने की कार्ययोजनाएँ बनाई गई हैं। ये सारी कार्ययोजनाएँ वर्तमान में जनन एवं बाल स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम के अन्तर्गत आगे बढ़ाई जा रही हैं। जनन स्वास्थ्य हासिल करने की दिशा में लोगों के बीच जनन अंगों, किशोरावस्था एवं उससे जुड़े बदलावों, सुरक्षित एवं स्वच्छतापूर्ण यौन प्रक्रियाओं, एच.आई.वी.एड्स सहित यौन संचारित रोगों के बारे में परामर्श देना एवं जागरूकता पैदा करना इस दिशा में पहला कदम है।
चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध कराना तथा आर्तव (ऋतुस्राव) में अनियमितताएँ, सगर्भता संबंधी पहलुओं, प्रसव चिकित्सीय सगर्भता समापन आदि से जुड़ी समस्याओं की देखभाल, इनके लिए चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराना और जन्म नियन्त्रण, प्रसवोत्तर शिश् एवं माता की देखभाल एवं प्रबंधन आदि आर. सी. एच. कार्यक्रम से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण पहलू हैं ।
प्रश्न 9.
गर्भनिरोधक किसे कहते हैं? महिलाओं द्वारा उपयोग में लिए जाने वाले किन्हीं दो गर्भनिरोधक का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
प्राकृतिक तथा यांत्रिक विधियों द्वारा निषेचन को रोकना तथा गर्भनिरोधक विधियों द्वारा अण्डे और शुक्राणुओं के संलयन को रोका जाता है।
महिलाओं द्वारा उपयोग किये जाने वाले दो गर्भनिरोधक निम्न हैं-
- गर्भनिरोधक गोलियाँ (Contraceptive Pills ) – गर्भनिरोधक गोलियों को रोज खाना पड़ता है, जिनसे महिला में अण्डोत्सर्ग नहीं होता है। इन गोलियों से केवल अण्डोत्सर्ग नहीं हो सकता है और रजचक्र की रक्तस्राव एवं गर्भाशय की दीवार के अस्तर का उतरना सामान्य रूप से होता रहता है।
- डायाफ्राम ( Diaphragm ) – इसे चिकित्सक द्वारा गर्भाशय के मुख (Cervix) पर फिट किया जाता है जिससे शुक्राणु सर्विक्स नलिका में प्रवेश नहीं कर पाते हैं।
प्रश्न 10.
चिकित्सीय सगर्भता समापन से क्या तात्पर्य है? इसका क्यों एवं कब उपयोग करना चाहिए? समझाइए ।
उत्तर:
चिकित्सीय सगर्भता समापन (Medical Termination of Pregnancy ) – गर्भावस्था पूर्ण होने से पहले जान- बूझकर या स्वैच्छिक रूप से गर्भ के समापन ( abortion ) को चिकित्सीय सगर्भता समापन कहते हैं। इसे प्रेरित गर्भपात (Induced abortion) भी कहते हैं। हमारे देश में चिकित्सीय सगर्भता समापन को वैधानिक मान्यता प्राप्त है।
सामान्य रूप से चिकित्सीय सगर्भता का उपयोग बलात्कार जैसे मामलों से हुई अनचाही सगर्भता तथा सामान्य या कभी-कभार के यौन संबंधों आदि से पैदा हुई सगर्भता को समाप्त कराने हेतु किया जाता है ऐसे मामलों में भी चिकित्सीय सगर्भता समापन (medical termination of pregnancy) किया जाता है जहाँ बार – बार की सगर्भता माँ अथवा भ्रूण अथवा दोनों के लिए हानिकारक हो सकती है।
सगर्भता 12 सप्ताह तक की अवधि में कराया जाने वाला चिकित्सीय सगर्भता समापन अपेक्षाकृत काफी सुरक्षित माना जाता है। इसके बाद द्वितीय तिमाही में गर्भपात बहुत ही घातक होता है। अधिकतर चिकित्सीय सगर्भता समापन ( एम टी पी) गैर-कानूनी रूप से अकुशल नीम-हकीमों से कराए जाते हैं जो कि न केवल असुरिक्षत होते हैं, बल्कि जानलेवा भी सिद्ध हो सकते हैं । आजकल शिशु के लिंग निर्धारण के लिए उल्बवेधन (Amniocentesis) का दुरुपयोग उच्च स्तर पर हो रहा है।
यह प्रवृत्ति शहरी क्षेत्रों में अधिक देखने को मिलती है। दम्पति को मादा भ्रूण का पता लगने पर शीघ्र ही एम.टी.पी. करा लिया जाता है जो पूरी तरह से गैरकानूनी है। इस प्रकार की प्रवृत्ति से बचना चाहिये क्योंकि यह युवा माँ और भ्रूण दोनों के लिए खतरनाक है। इसके साथ ही जनसंख्या में लिंग अनुपात ( Sex Ratio in Population) में अन्तर आ जायेगा जो सामाजिक दृष्टि में अच्छा नहीं रहेगा एवं इससे भविष्य में कई प्रकार की विषमताएँ उत्पन्न हो जायेंगी ।
प्रश्न 11.
सहेली क्या है? सहेली एवं मल्टी लोड 375 में कोई तीन विभेद लिखिए।
उत्तर:
सहेली – यह एक गर्भनिरोधक गोली एक गैर-स्टेराइड (Non-steroid) पदार्थ वाली होती है। इसे हफ्ते में एक बार लिया जाता है। इसकी निरोधक क्षमता उच्च तथा दुष्प्रभाव कम होता है।
सहेली | मल्टी लोड 375 |
1. यह प्रोजेस्ट्रोन व एस्ट्रोजन हार्मोन युक्त होती है। | इसमें उक्त हार्मोन का अभाव होता है। |
2. यह मुख द्वारा खायी जाती है। | जबकि इसे स्त्री की योनि मार्ग द्वारा गर्भाशय में लगाया जाता है। |
3. इसके द्वारा अण्डोत्सर्ग व रोपण कार्य को रोका जाता है। | इसके द्वारा मोचित कॉपर आयन शुक्राणुओं की गतिशीलता को कम कर निषेचन क्रिया को रोकती है। |
प्रश्न 12.
IUD क्या है? ये कितनी प्रकार की होती है? औषधि रहित IUD का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
IUD का पूरा नाम अन्तः गर्भाशयी युक्ति ( Intra Uterine Device) है। इसे अनुभवी चिकित्सकों द्वारा स्त्री के योनि मार्ग में गर्भाशय में लगाया जाता है। जब तक यह युक्ति गर्भाशय में रहती है, भ्रूण का रोपण गर्भाशय में नहीं होता है। इस प्रकार की युक्तियाँ शुक्राणुओं को गर्भाशय में पहुँचने से रोकती हैं।
IUD (अन्तः गर्भाशयी युक्तियाँ) तीन प्रकार की होती हैं-
- औषधि रहित IUD
- ताँबा मोचक IUD
- हार्मोन मोचक IUD
औषधिरहित IUD (Non-medicated IUDs) – इसमें कोई किसी प्रकार की औषधि नहीं होती है इसलिए इसे औषधिरहित IUD कहते हैं। केवल अण्डवाहिनी (Oviduct ) में लिप्पेस लूप (Lippes Loops) बनाकर अण्डाणु व शुक्राणु के संयोजन (Fertilization) को रोका जाता है। उदाहरण- लिप्पेस लूप ।
प्रश्न 13.
निम्नलिखित वाक्यों में से बताइए कि कौन-सा वाक्य सत्य है और कौन-सा गलत है?
1. पात्रे – निषेचन के बाद भ्रूण स्थानान्तरण के द्वारा महिला के जनन मार्ग में भ्रूण को स्थापित करके संतान प्राप्त की जाती है। यह एक सामान्य विधि है जिसे टेस्ट ट्यूब बेबी कार्यक्रम कहा जाता है।
उत्तर:
सत्य ।
2. माला-डी गर्भनिरोधक गोली स्टीरॉएड युक्त होती है ।
उत्तर:
सत्य ।
3. एल एन जी -20 एक औषधि रहित IUD है।
उत्तर:
गलत ।
4. मैथुन के समय कंडोम का प्रयोग नहीं करने से यौन संचारित रोग नहीं होते हैं।
उत्तर:
गलत ।
5. जब किसी जनसंख्या में जन्मदर तथा मृत्युदर समान होती है।
और जनसंख्या में कोई भी वृद्धि नहीं होती तो इसे शून्य जनसंख्या वृद्धि कहते हैं।
उत्तर:
सत्य ।
6. विश्व में हमारा देश चौथा ऐसा देश है जिसने राष्ट्रीय स्तर पर जननात्मक स्वस्थ समाज को प्राप्त करने की कार्ययोजनाएँ बनाई हैं ।
उत्तर:
गलत ।
7. बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं तथा जीवन के रहन-सहन की बेहतर परिस्थितियाँ होने के कारण जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि हुई हैं।
उत्तर:
सत्य ।
8. दो वर्ष तक मुक्त या असुरक्षित सहवास के ‘बावजूद गर्भाधान न हो पाने की स्थिति को बंध्यता कहते हैं।
उत्तर:
सत्य ।
प्रश्न 14.
सुजाक रोग क्या है? इसके लक्षण व उपचार लिखिए ।
उत्तर:
सुजाक रोग – इसे गोनोरिया (Gonorrhoea) भी कहते हैं। यह रोग निसेरिया गोनोरिया (Neisseria gonorrhoea) नामक जीवाणु के संक्रमण के कारण उत्पन्न होता है। यह रोग लैंगिक सम्पर्क के माध्यम से फैलता है।
सुजाक रोग के लक्षण-
- मूत्र विसर्जन के समय तेज दर्द ।
- शुक्राणु प्रवाह रुक जाता है।
- संक्रमित नर मनुष्य के मूत्र मार्ग द्वारा श्वेत गाढ़े द्रव का स्राव होता है एवं रोग की अधिकता के कारण अधिवृषण भी संक्रमित हो जाती है।
- महिलाओं में मासिक चक्र में व्यवधान के कारण बाँझपन आ जाता है।
- महिलाओं में बार्थोलिन ग्रन्थि (Bartholian gland) एवं
मूत्र जनन मार्ग के संक्रमण के फलस्वरूप मूत्र त्याग में तेज दर्द होना आदि सुजाक रोग का लक्षण है।
उपचार-
- इस रोग के उपचार में सल्फोनेमाइड तथा स्पेक्टिनोमाइसिम टेट्रासाइक्लिन आदि औषधियाँ दी जाती हैं।
- सुरक्षित यौन सम्बन्ध व रोगी के सम्पर्क में न आवें ।
- वेश्यावृत्ति व समलैंगिकता से बचना ।
प्रश्न 15
परखनली शिशु पर टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर:
परखनली शिशु (Test Tube Babies) – कुछ महिलाओं में अण्डावाहिनी अवरुद्ध हो जाती है जिसके कारण अण्डे का निषेचन नहीं हो पाता। इस समस्या का निदान परखनली शिशु तकनीक की सहायता से किया जा सकता है। इस तकनीक में स्त्री अण्डाशय से एक या अधिक परिपक्व अण्डे एक विशेष पिचकारी ( Syringe ) द्वारा खींचे जाते हैं।
इन अण्डों को स्त्री के पुरुष साथी के शुक्राणुओं के साथ एक डिश में अनुकूलतम परिस्थितियों में कुछ घण्टों के लिए रखा जाता है। शुक्राणु अण्डों को निषेचित करते हैं और इससे एक भ्रूण निर्मित होता है। तब इस भ्रूण को स्त्री के गर्भाशय में प्रवेश कराया जाता है। जहाँ पर यह एक शिशु के रूप में परिवर्धित होता है।
प्रश्न 16.
कॉलम – I के पदों को कॉलम-II के साथ सही-सही क्रम में मिलाइए-
कॉलम-I | कॉलम-II |
(a) जनन स्वास्थ्य लक्ष्य प्राप्ति में विश्व में | 1. अन्तःगर्भाशय वीर्य सेचन |
(b) पहला उल्बवेधन जाँच | 2. एल एन जी-20 |
(c) प्राकृतिक गर्भनिरोधक विधि | 3. भ्रूणलिंग निर्धारण |
(d) हार्मोन मोचक आई यू डी | 4. शुक्रवाहक उच्छेदन (वेसेक्टोमी) |
(e) बंध्यकरण प्रक्रिया पुरुषों के लिए | 5. भारत |
(f) कृत्रिम वीर्य सेचन | 6. स्तनपान अनार्तव |
उत्तर:
कॉलम-I | कॉलम-II |
(a) जनन स्वास्थ्य लक्ष्य प्राप्ति में विश्व में | 5. भारत |
(b) पहला उल्बवेधन जाँच | 3. भ्रूणलिंग निर्धारण |
(c) प्राकृतिक गर्भनिरोधक विधि | 6. स्तनपान अनार्तव |
(d) हार्मोन मोचक आई यू डी | 2. एल एन जी-20 |
(e) बंध्यकरण प्रक्रिया पुरुषों के लिए | 4. शुक्रवाहक उच्छेदन (वेसेक्टोमी) |
(f) कृत्रिम वीर्य सेचन | 1. अन्तःगर्भाशय वीर्य सेचन |
प्रश्न 17.
सिफलिस रोग के रोग जनक, संक्रमण विधि, उद्भवन अवधि, लक्षण, रोकथाम एवं उपचार लिखिए।
उत्तर:
रोगजनक – ट्रोपोनेमा पैलीडम ।
संक्रमण की विधि-संक्रमित व्यक्ति के साथ लैंगिक सम्पर्क | उद्भवन अवधि – सम्पर्क के 10-90 दिन के बाद लक्षण स्पष्ट होते हैं लेकिन सामान्यतया जीवाणु द्वारा संक्रमित होने के 3-4 सप्ताह में लक्षण प्रकट होने लगते हैं।
लक्षण – लक्षण कई चरणों में प्रकट होते हैं। सिलफिस के सामान्य लक्षण निम्न हैं-
- ज्वर, त्वचा में गले में, मूत्र प्रजनन क्षेत्र विशेषकर योनि या लिंग, गुदा, मलाशय व मुँह में अल्सर होते हैं। अल्सर (व्रण) गोल व दृढ़ व बहुधा पीड़ारहित होते हैं
- हाथों, पाँवों व हथेली में दाने ।
- मुँह में सफेद धब्बे ।
- जाँघ में मुँहासे के समान मस्से ।
- संक्रमित क्षेत्र से बालों का झड़ना ।
- अन्तिम तीन लक्षण काफी हो सकते हैं।
ये बहुधा अंदरूनी हो जाते हैं और मस्तिष्क, तन्त्रिका, नेत्रों, रक्त वाहिनियों, अस्थियों व जोड़ों को प्रभावित करते हैं। जो संक्रमण के 10 वर्ष बाद प्रकट होते हैं। इससे पक्षाघात, अंधापन, मनोभ्रम (Dementia) व बंध्यता (Sterility) हो सकती है।
रोकथाम व उपचार-
- केवल एक ही व्यक्ति के साथ लैंगिक सम्पर्क
- वेश्यावृत्ति व समलैंगिकता से बचना ।
- संयम बरतना व कंडोम का प्रयोग करना ।
- व्यक्तिगत स्वच्छता रखनी चाहिए व उचित औषधीय उपचार लेना चाहिये ।
प्रश्न 18.
जीव विज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते बंध्य दम्पतियों को संतान प्राप्ति हेतु आप क्या सुझाव देना चाहेंगे ?
उत्तर:
स्त्री व पुरुष दोनों की बंध्यता क्लीनिक में जाँच करवानी चाहिए तथा सहायक जनन प्रौद्योगिकियों ( ए आर टी) की मदद लेनी चाहिए। इन्हें टेस्ट ट्यूब बेबी कार्यक्रम का लाभ उठना चाहिये ।
प्रश्न 19.
(i) IUD का पूर्ण नाम लिखिए।
(ii) हार्मोन स्रावित करने वाले IUDs को, बच्चों के बीच में अन्तर रखने के लिए उत्तम गर्भनिरोधक माना जाता है। क्यों ?
उत्तर:
(i) IUD का पूर्ण नाम- इन्द्रा यूटेराइन डिवाइस (Intra Uterine Devices)
(ii) हार्मोन स्रावित करने वाले IUDs उत्तम गर्भनिरोधक हैं क्योंकि
(a) शुक्राणुओं की भक्षकाणुक्रिया (Phogocytosis) को बढ़ा देती है।
(b) जिससे शुक्राणुओं की गतिशीलता तथा उनकी निषेचन की क्षमता को कम करती है।
(c) गर्भाशय में भ्रूण के रोपण के लिए अनुपयुक्त बनाने तथा गर्भाशय ग्रीवा को शुक्राणुओं का विरोधी बनाते हैं।
प्रश्न 20.
जन्म नियन्त्रण की स्तनपान अनार्तव (लैक्टेशनल एमेनोरिया) विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्तनपान अनार्तव (Lactational amenorrhoea)- यह विधि इस बात पर निर्भर करती है कि प्रसव के बाद स्त्री द्वारा शिशु को भरपूर स्तनपान कराने के दौरान अण्डोत्सर्ग (Ovulation ) और आर्तव चक्र (Menstrual cycle) शुरू नहीं होता है। इसलिए जितने दिनों तक माता शिशु को पूर्णत: स्तनपान कराना जारी रखती है, गर्भधारण का अवसर शून्य होता है।
इस समय शिशु को माँ के दूध के अतिरिक्त ऊपर से पानी या अतिरिक्त दूध भी नहीं दिया जाना चाहिए। इस दौरान मैथुन क्रिया करने पर अण्डाणु के अनुपस्थित होने के कारण निषेचन की सम्भावना नहीं होती है। यह विधि प्रसव के बाद ज्यादा से ज्यादा 6 माह की अवधि तक कारगर मानी गई है।
प्रश्न 21.
युग्मनज का अन्तः फैलोपियन स्थानान्तरण (ZIFT) तकनीक की व्याख्या करें। यह अन्तः गर्भाशयी स्थानान्तरण (IUT) तकनीक से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
युग्मनज का अन्तः फैलोपियन स्थानान्तरण तकनीक में 8 ब्लास्टोमियर तक के भ्रूण को स्त्री फैलोपियन नलिका (Fallopian Tube) में स्थानान्तरण किया जाता है। जबकि अन्तः गर्भाशयी स्थानान्तरण (IUT) तकनीक में 32 ब्लास्टोमीयर के भ्रूण को गर्भाशय में स्थानान्तरण किया जाता है।
प्रश्न 22.
आपके विचार से यौन संचारित रोगों से बचने का सर्वाधिक उपयुक्त उपाय क्या है? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए ।
उत्तर:
यौन संचारित रोग (Sexually Transmitted Diseases) – यौन संबंधों द्वारा संचारित होने वाले रोगों या संक्रमणों को यौन संचारित रोग (STD) कहा जाता है। इन्हें रतिज रोग (Veneral Diseases) अथवा जनन मार्ग संक्रमण (Reproductive tract infections) भी कहा जाता है। ये रोग निम्न हैं- सुजाक (Gonorrhoea), सिफिलिस (Syphilis), हर्पीस (Herpes), जननिक हर्पिस (Genital herpes), क्लेमिडियता (Chlamydiasis), ट्राइकोमोनसता (Trichomoniasis), यकृत शोध-बी (Hepatitis B ), लैंगिक मस्से ( Genital warts), एड्स (AIDS) आदि। इनसे बचने के लिए निम्न उपाय अपनाने चाहिये-
- मैथुन के समय हमेशा कंडोम (Condoms ) का उपयोग करना चाहिये ।
- किसी अनजान व्यक्ति अथवा बहुत से व्यक्तियों के साथ यौन सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए।
- यदि कोई आशंका है तो तत्काल ही प्रारम्भिक जाँच के लिए किसी योग्य चिकित्सक से मिलें और रोग का पता चले तो पूरा इलाज कराना चाहिए।
प्रश्न 23.
मानव स्त्री द्वारा प्रयोग की जाने वाली किसी एक गर्भ निरोधक गोली का नाम लिखिए। मुखीया गोलियाँ कैसे जन्म नियन्त्रण में सहायता करती हैं?
अथवा
मानव मादाओं द्वारा प्रयोग किये जाने वाले मुख से सेवन किये जाने वाले गर्भनिरोधक का हार्मोनी संघटन बताइए। यह एक गर्भनिरोधक के रूप में किस प्रकार कार्य करता है?
उत्तर:
गर्भनिरोधक गोली का नाम पिल्स (Pills) है। ये गोलियाँ प्रोजेस्ट्रोन व एस्ट्रोजन के संयोजन से बनी होती हैं। इन गोलियों का प्रयोग लगातार 21 दिनों तक किया जाता है और इन्हें माहवारी (Menstrual cycle) के पाँच दिनों में ही किसी दिन प्रारम्भ किया जाता है। अगली माहवारी के बाद पुनः शुरू कर दिया जाता है।
ये गोलियाँ ( Pills) अण्डोत्सर्ग (Ovulation ) और रोपण (Implentation) को रोकने के साथ-साथ गर्भाशय ग्रीवा की श्लेष्मा की गुणवत्ता को मंद कर देती है। जिससे शुक्राणुओं के प्रवेश पर रोक लग जाती है अथवा उनकी गति मंद हो जाती है। जिसके फलस्वरूप गर्भाधान नहीं हो पाता है।
हैं?
b
प्रश्न 24.
कुछ स्त्रियाँ ‘सहेली’ गोलियों का सेवन क्यों करती
अथवा
स्त्री के लिए ‘सहेली’ गर्भनिरोधक को उत्तम माना जाता है। क्यों?
उत्तर:
सहेली एक उत्तम गैर स्टीरॉइड गर्भनिरोधक गोली है। इसे मुँह से सप्ताह में एक बार लेना होता है। इसके दुष्प्रभाव बहुत कम तथा उच्च निरोधक क्षमता वाली है।
प्रश्न 25.
यदि पुरुष नसबंदी करते समय चिकित्सक दायीं तरफ की शुक्रवाहक को बाँधना भूल जाता है, तो बन्ध्यकरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
पुरुष नसबंदी में दोनों बायें व दायें शुक्रवाहक को बाँधा जाता है। यदि दायीं तरफ की शुक्रवाहक को नहीं बाँधता है तो युग्मक परिवहन निरन्तर होगा व नसबंदी अपूर्ण होगी।
निबन्धात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
गर्भनिरोधक साधनों को कौनसी श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है ? किन्हीं तीन श्रेणियों (विधियों) का वर्णन कीजिए। उत्तर- गर्भनिरोधक साधनों को निम्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है-
- प्राकृतिक / परम्परागत (Natural / Traditional)
- रोध (Barrier)
- आईयूडीज (IUDS)
- मुँह से लेने योग्य गर्भनिरोधक (Oral Contraceptives)
- टीका ( Injectables)
- अंतरोंप (Implants )
- शल्यक्रियात्मक विधियाँ (Surgical Methods )
1. प्राकृतिक / परम्परागत विधियाँ (Natural / Traditional Methods)- ये विधियाँ अण्डाणु (Ovum) एवं शुक्राणु ( Sperm) के मिलने (संयोजन) को रोकने के सिद्धान्त पर कार्य करती हैं जो निम्न हैं-
(i) आवधिक संयम (Periodic abstinence ) – इस विधि में एक दम्पति माहवारी चक्र ( menstrual cycle) के 10वें से 17वें दिन के बीच की अवधि के दौरान संभोग क्रिया नहीं करते हैं, जिसे अंडोत्सर्जन (Ovulation) की अपेक्षित अवधि मानते हैं। इस अवधि के दौरान निषेचन (Fertilization) एवं उर्वर (गर्भधारण) के अवसर बहुत अधिक होने के कारण इस अवधि को निषेच्य अवधि (Fertile Period) कहते हैं अतः उक्त अवधि में सहवास / संभोग न करके गर्भाधान से बचा जा सकता है।
(ii) बाह्य स्खलन अथवा अंतरित मैथुन (Withdrawal or coitus interruptus) – इस विधि में पुरुष साथी संभोग के दौरान वीर्य स्खलन से ठीक पहले स्त्री की योनि से अपना लिंग (penis) निकाल कर वीर्यसेचन (Insemination) से बच सकता है।
(iii) स्तनपान अनार्तव (Lactational amenorrhoea) – यह विधि भी इस बात पर निर्भर करती है कि प्रसव के बाद स्त्री द्वारा शिशु को भरपूर स्तनपान कराने के दौरान अण्डोत्सर्ग (Ovulation ) और आर्तव चक्र (Menstrual cycle) शुरू नहीं होता है। इसलिए जितने दिनों तक माता शिशु को पूर्णतः स्तनपान कराना जारी रखती है (इस समय शिशु को माँ के दूध के अतिरिक्त ऊपर से पानी या अतिरिक्त दूध भी नहीं दिया जाना चाहिए) गर्भधारण के अवसर लगभग शून्य होते हैं। यह विधि प्रसव के बाद ज्यादा से ज्यादा 6 माह की अवधि तक ही कारगर मानी गई है। उपरोक्त विधियों में किसी दवा या साधन का उपयोग नहीं किया जाता है अतः इसके कोई किसी प्रकार के दुष्प्रभाव नहीं होते हैं।
2. रोध (Barrier) – इन विधियों के अन्तर्गत रोधक साधनों के माध्यम से अंडाणु (Ovum) और शुक्राणु ( Sperm) को भौतिक रूप से मिलने अथवा संयोजन से रोका जाता है। इस प्रकार के उपाय पुरुष व स्त्री दोनों के लिए उपलब्ध हैं। निरोध (Condoms) एक रोधक उपाय है जिसे पतली रबर या लेटेक्स से बनाया जाता है ताकि इसके उपयोग से पुरुष के लिंग (Penis) या स्त्री की योनि (Vagina) एवं गर्भाशय (Uterus) ग्रीवा को संभोग से ठीक पहले, ढक दिया जाए और स्खलित शुक्राणु स्त्री के जननमार्ग में प्रवेश न कर सकें।
यह गर्भाधान से बचा सकता है। पुरुषों के लिए कंडोम (Condoms) का मशहूर ब्रांड नाम निरोध (Nirodh) काफी लोकप्रिय है। देखिए नीचे चित्र में पुरुष व स्त्री के कंडोम । हाल ही के वर्षों में कंडोम के उपयोग में तेजी से वृद्धि हुई है। क्योंकि इससे गर्भधारण के अतिरिक्त यौन संचारित रोगों तथा एड्स से बचाव अथवा सुरक्षा हो जाती है। स्त्री एवं पुरुष दोनों के ही कंडोम उपयोग के बाद फेंकने वाले होते हैं।
इन्हें स्वयं के द्वारा ही लगाया जा सकता है और इस तरह उपयोगकर्ता की गोपनीयता बनी रहती है। डायफ्राम (Diaphragms), गर्भाशय ग्रीवा टोपी (Cervical Cap) तथा वाल्ट (Vaults) आदि भी रबर से बने रोधक उपाय हैं जो स्त्री के जनन मार्ग में सहवास के पूर्व गर्भाशय ग्रीवा को ढकने के लिए लगाए जाते हैं।
ये गर्भाशय ग्रीवा को ढक कर शुक्राणुओं के प्रवेश को रोककर गर्भाधान से छुटकारा दिलाते हैं। इन्हें पुनः उपयोग में लिया जा सकता है। इसके साथ ही इन रोधक साधनों के साथ-साथ शुक्राणुनाशक क्रीम (Spermicidal Creams), जेली (Jelly ) एवं फोम (Foams) का प्रायः उपयोग किया जाता है, जिससे इनकी गर्भनिरोधक क्षमता काफी बढ़ जाती है।
3. अंतर्रोप (Implants) – स्त्रियों द्वारा प्रोजेस्ट्रोन अकेले या फिर एस्ट्रोजन के साथ इसका संयोजन भी टीके या त्वचा के नीचे अंतर्रोप ( Implant) के रूप में किया जाता है । (देखिए चित्र में )
डालिए ।
प्रश्न 2.
जनन स्वास्थ्य समस्याएँ एवं कार्यनीतियों पर प्रकाश
उत्तर:
[ संकेत – बिन्दु 4.1 का अवलोकन करें ।]
जनन स्वास्थ्य-समस्याएँ एवं कार्यनीतियाँ (Reproductive Health-Problems and Strategies)
मानव समुदाय में जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक प्रत्येक सदस्य को आयु स्तर के सोपानों से होकर गुजरना पड़ता है। इन अवस्थाओं में बाल्यावस्था (Childhood), किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था एवं वृद्धावस्था शामिल हैं। इन सभी अवस्थाओं में किशोरावस्था एक महत्त्वपूर्ण अवस्था होती है क्योंकि किसी भी समष्टि के भविष्य की समृद्धि एवं उसका आकार इसके द्वारा निर्धारित होता है।
किशोरावस्था में त्वरित वृद्धि तथा अनेक प्रकार के शारीरिक व मानसिक विकासात्मक परिवर्तन आते हैं। इस अर्वधि में किशोरों में लैंगिक परिपक्वन हेतु परिवर्तन उत्पन्न होते हैं जो कि लैंगिक परिपव्वता तक जारी रहते हैं। लड़कों में यह अवधि 719 वर्ष तक और लड़कियों में 8-18 वर्ष की आयु मानी जाती है। इस कालावधि में दोनों ही विशिष्ट हार्मोन्स का उत्पादन व स्रावण होता है जो कि उनमें शारीरिक, क्रियात्मक एवं व्यवहारात्मक परिवर्तन उत्पन्न करते हैं।
ऐसे युवाओं को आगे चलकर वैवाहिक जीवन में प्रवेश कर सन्तानोत्पत्ति व उनके उचित पालन-पोषण की जिम्मेदारी हेतु शारीरिक व मानसिक रूप से अपने आपको योग्य बनाने की चुनौती का सामना करना पड़ता है। उपरोक्त कारणों से यह अव्वधि अत्यधिक संवेदनशील पायी जाती है।
चूँकि जनन स्वास्थ्य, जनन के सभी पहलुओं सहित एक सम्पूर्ण स्वास्थ्य है अतः जनन सम्बन्धी अनेक समस्याओं जैसे जनन अंगों का सामान्य रूप से कार्य न करना, प्रजनन के समय विपरीत परिस्थितियाँ उत्पन्न होना, विभिन्न प्रकार के जननिक रोगों की उत्पत्ति, शिशु मृत्युदर में वृद्धि, स्त्री एवं पुरुषों में जननिक दशाओं में अनियमितता आदि को जनन स्वास्थ्य समस्याओं के रूप में जाना जाता है।
जिनमें कुछ महत्वपूर्ण पहलू निम्नलिखित हैं-
- लोगों में जनन स्वास्थ्य सम्बन्धी जागरूकता की कमी।
- तेजी से बढ़ती हुई मानव जनसंख्या अर्थात् जनसंख्या विस्फोट।
- गर्भावस्था की जटिलताएँ, शिशु जन्म एवं असुरक्षित गर्भपात।
- प्रसव के समय वांछित सुविधाओं व देखरेख का अभाव।
- जन्मजात एवं उपार्जित बन्ध्यता।
- सन्तानों के बीच का कम अन्तराल व अधिक सन्तानों की उत्पत्ति।
- युवक-युवतियों में लैंगिक संचारित रोगों (Sexually transmitted diseases) का उच्च संक्रमण। एड्स (AIDS) जैसे भयावह व लाइलाज रोग।
- किशोरियों में मासिक चक्र की अनियमितता व उसका रुकना जैसी कार्यियकीय असमानताएँ।
- यौन रोगों को छिपाना।
- विद्यालयों में यौन शिक्षा की कमी।
- समय पर टीकाकरण न कराना। जन्म नियन्त्रक (गर्भनिरोधक) विकल्पों एवं स्तनपान के महत्त्व का अभाव।
- पुत्र को कन्या के मुकाबले अत्यधिक महत्च एवं मादा भुण हत्या।
- कम उम्र में विवाह, प्रजनन, गर्भधारण की अनिवार्यता, गर्भपात आदि 15-19 वर्ष की महिलाओं की मृत्यु के प्रमुख कारण हैं।
उपरोक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने समय-समय पर कुछ कार्ययोजना एवं कार्यक्रमों की शुरुआत की। वास्तव में भारत ही विश्व का पहला ऐससा देश है जिसने राष्ट्रीय स्तर पर सम्पूर्ण जनन स्वास्थ्य को एक लक्ष्य के रूप में प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय कार्ययोजना और कार्यक्रमों की शुरुआत की।
इन कार्यक्रमों को परिवार नियोजन और आधुनिक समय में परिवार कल्याण के नाम से जाना जाता है। इन कार्यक्रमों की शुरुआत 1951 में हुई। पिछले दशकों में समय-समय पर इनका स्थिर मूल्यांकन भी किया गया है। जनन संबंधित और आवधिक क्षेत्रों को इसमें सम्मिलित करते हुए बहुत उन्नत व व्यापक कार्यक्रम फिलहाल ‘जनन एवं बाल स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम’ (Reproductive and Child Health Care RCH Programme)
के नाम से प्रसिद्ध है। इन कार्यक्रमों के अन्तर्गत जनन सम्बन्धी विभिन्न पहलुओं के बारे में जन सामान्य में जागरूकता पैदा करते हुए और जननात्मक रूप से स्वस्थ समाज तैयार करने के लिए अनेक सुविधाएँ एवं प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं। दुश्य एवं श्रव्य (Audio-Visual) और मुद्रित सामग्री की सहायता से सरकारी एवं गैर सरकारी संगठन के माध्यम से जनता के बीच जनन सम्बन्धी सभी पहलुओं के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के लिए विभिन्न उपाय सुझा रहे हैं।
उपरोक्त सूचनाओं को प्रसारित करने में माता-पिता, अन्य निकट सम्बन्धी, शिक्षक एख्वं मित्रों की प्रमुख भूमिका है। विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में यौन शिक्षा (Sex Education) को बढ़ावा देकर युवाओं को सही जानकारी उपलव्य कराना लाकि बच्चों को यौन संबंधी फैली भान्तियों पर विश्वास न हो एवं उन्हें यौन संबंधी गलत धारणाओं से निजात मिल सके।
लोगों को जनन अंगों, किशोराबस्था एवं उससे सम्बन्धित परिवर्तनों, सुरक्षेत और स्वच्छ यौन क्रियाओं, यौन संचारित रोगों एवं एड्स के बारे में जानकारियां उपल्नव्य कराना। विशेष रुप से इस प्रकार की जानकारियां किशोर आयु वर्ग के लोगों के लिए जनन सम्बन्धी र्वस्थ जीवन बिताने में सहायक होती है।
लोगों को शिक्षित करना, विशेष रूप से जननक्षम जोड़ी तथा वे लोग जिनकी आयु विवाह योग्य हैं, उन्हें उपलब्ब जन्म नियन्त्रक (गर्भनिरोधक) विकल्पों तथा गर्भवती माताओं की देखभाल, माँ और बच्चे की प्रसवोत्तर (Postnatal) देखभाल आदि के बारे में तथा स्तनपान के महत्व, लड़का या लड़की को समान महत्व एवं समान अवसर देने की जानकारियों आदि से जागरूक स्वस्थ परिवर्तनों का निर्माण होगा।
लोगों को जनसंख्या विस्फोट के दुष्परिणामों, जनन अपराधों, यौन दुरुपयोग, सामाजिक उत्पीड़नों आदि के प्रति जागरूक करना जिससे वे इन बुराइयों से बचकर एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकें। जनन स्वास्थ्य प्राप्ति के लिए विभिन्न कार्यदोजनाओं के सफलतापूर्वक क्रियान्बयन के लिए मजबूत संरचनात्मक सुविधाओं, व्यावसायिक विशेषजता तथा भरपूर भौतिक सहारों की आवश्यकता होती है।
लोगों को जनन सम्बन्धी समस्याओं जैसे कि सगर्भता (Pragnancy), प्रसव (Parturition), यौन संचारित रोगों, गर्भपात (Abortion), गर्भनिरोधकों (Anti-pregnancy agents), आर्तव चक्र (Menstrual cycle) सम्बन्धी समस्याओं, बांपन (Infertility) आदि के बारे में चिकित्सा सहायता एवं देखभाल उपलब्ध करवाना समय-समय पर बेहतर तकनीकों और नई कार्यनीतियों को क्रियान्वित करने की भी आवश्यकता है, ताकि लोगों की अधिक सुचारु रूप से देखभाल और सहायता की जा सके ।
बढ़ती मादा भूरण हत्या की कानूनी रोक के लिए उल्बवेधन (Aminiocentesis) जाँच (भूणीय लिंग के निर्धारण की जाँच), लिंग परीक्षण पर वैधानिक प्रतिबंध तथा व्यापक बाल प्रतिरक्ष्कीकरण (टीका) आदि कुछ महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों को शामिल किया गया है। जनन सम्बन्धी बिभिन्न अनुसंधानों को बढ़ावा देने के लिए हमारे देश की सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियां नयी विधियाँ तलाशने तथा कार्येशील प्रक्रियाओं को बेहतर बनाने का काम कर रही हैं।
लखनक स्थित केन्द्रीय औषध अनुसंधान संस्थान (Central Drug Research Institute, CDRI) ने ‘सहेली’ नामक गर्भनिरोधक गोली का निर्माण किया। यौन सम्बन्धी मामलों के बारे में बेहतर जागरूकता अधिकाधिक रूप से चिकिल्सा सहायता प्राप्त प्रसव तथा बेहतर प्रसवोत्तर देखभाल से मातृ एवं शिशु मृत्युदर में कमी आई है। छोटे परिवार वाले जोड़ों की संख्या बढ़ी है। यौन संचारित रोगों की सही जाँच तथा देखभाल और लगभग सभी जनन स्वास्थ्य समस्याओं हेतु विकसित चिकित्सा सुविधाओं के होने से बेहतर समाज बेहतर जनन स्वास्थ्य के संकेत प्राप्त हो रहे हैं।
प्रश्न 3.
जनसंख्या विस्फोट किसे कहते हैं? जनसंख्या विस्फोट के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या विस्फोट और जन्म नियन्त्रण (Population Explosion and Birth Control)
चिकित्सीय सुविधाओं की उपलब्धता एवं व्यापक जागरूकता के कारण विश्व में मृत्युदर में कमी व जन्मदर में वृद्धि होने के फलस्वरूप जनसंख्या में वृद्धि हुई है। सन् 1900 ई. में पूरे विश्व की जनसंख्या लगभग 2 अरब थी जो सन् 2000 ई. में तेजी से बढ़कर 6 अरब हो गई।
हमारे देश भारत की जनसंख्या आजादी के समय लगभग 35 करोड़ थी जो सन् 2000 ई. में बढ़कर एक अरब से ऊपर पहुँच गई अर्थात् आज दुनिया का हर छठा आदमी भारतीय है। हमारे जन स्वास्थ्य के अथक प्रयासों से हमारी जनसंख्या वृद्धि दर में कमी आई है जो नाममात्र है।
]हमारी जनसंख्या वृद्धि दर जो 1991 में 2.1 प्रतिशत थी, वह 2001 में घटकर 1.7 प्रतिशत रह गई। इस वृद्धि दर के साथ भी हम 2033 तक 200 करोड़ हो जायेंगे। इस प्रकार कम समयावधि में जनसंख्या में होने वाली इस प्रकार
की तीव्र वृद्धि को जनसंख्या विस्फोट (Population Explosion) कहा जाता है।
जनसंख्या विस्फोट के कारण-किसी देश की जनसंख्या की वृद्धि के लिए निम्न प्रमुख तीन कारण हैं-
(1) उच्च जन्म दर-अधिकतर देशों में जन्मदर मृत्युदर से अधिक होती है। उच्च जन्मदर के लिए निम्न आर्थिक एवं सामाजिक कारक जिम्मेदार हैं-
(क) आर्थिक कारक-
- कृषि प्रधानता
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था
- निर्धनता।
(ख) सामाजिक कारक-
- अशिक्षा
- धार्मिक मान्यताएँ
- बाल विवाह
- अन्धविश्वास
- विवाह की अनिवार्यता
- संयुक्त परिवार एवं परिवार नियोजन के प्रति उदासीनता आदि।
(2) अपेक्षाकृत निम्न मृत्युदर-प्रति हजार जनसंख्या में प्रति वर्ष मरने वाले प्राणियों की जनसंख्या को मृत्युदर कहते हैं। जनसंख्या में विस्फोट का मुख्य कारण लगातार घटती हुई मृत्युदर है। भारत में पिछले दशकों में मृत्युदर में निरन्तर कमी आई है जो कि जनसंख्या वृद्धि में एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
वर्ष 1901 में हमारे देश में मृत्युदर (प्रति हजार व्यक्ति) 44.4 थी जो कि 1951 में घटकर 27.4 रह गई व अगले वर्षों में भी इस प्रवृत्ति में और कमी आकर वर्ष 1999 में यह मात्र 8.7 के स्तर तक रह गई। इस प्रवृत्ति में और कमी आकर वर्ष 2007 में यह मात्र 8.0 के स्तर तक आ चुकी थी। इसके निम्न कारण हैं-
- प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा-मनुष्य अपनी सुरक्षा हेतु मकान बनाकर रहने लगा जिससे उसे प्राकृतिक आपदाओं से बचाव हो सका, जैसे-सर्दी, गर्मी, वर्षा, आग तथा तूफान आदि।
- कृषि का विकास-इसके कारण अनाज की पैदावार में बढ़ोतरी हुई और बढ़ती हुई जनसंख्या को पर्याप्त मात्रा में इसकी पूर्ति किया जाना सम्भव हुआ।
- भण्डारण की सुविधा-भण्डारण की सुविधा से मानव को पूरे साल खाद्यान्न आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
- उन्नत परिवहन-उन्नत परिवहन तन्त्र से ऐसे स्थान जहाँ खाद्यान्न की कमी है वहाँ तुरन्त प्रभाव से तथा कम समय में खाद्यान्न पहुँचना सम्भव हो सका।
- रोगों पर नियन्त्रण-विभिन्न रोगों पर नियन्त्रण होने के कारण तथा स्वास्थ्य उपायों के बढ़ने के फलस्वरूप मृत्युदर में कमी आई है तथा मानव की आयु 30 वर्ष से वृद्धि कर 60 वर्ष हो गई।
(3) आप्रवासन-किसी स्थान पर बाहर से आकर कुछ सदस्य शामिल हो जायें तो इसे आप्रवासन कहा जाता है। यह जनसंख्या को बढ़ाता है। भारत की सीमाओं में विभिन्न देशों के शरणार्थियों व घुसपैठियों के आगमन से जनसंख्या में इस प्रकार की वृद्धि दर्ज की गई है।
उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त निम्न कारक भी जनसंख्या वृद्धि हेतु जिम्मेदार हैं-
- विश्व के अधिकतर देशों में औसत आयु में वृद्धि होना।
- पारस्परिक समाज में नर शिशु की चाहत।
- मनोरंजन सुर्विधाओं का अभाव।
- जनसंख्या में नवयुवकों की संख्या अधिक होना।
जनसंख्या वृद्धि दर की समस्या से बचने का सबसे सरल उपाय छोटा परिवार को बढ़ावा देने हेतु गर्भनिरोधक उपाय अपनाने के लिए प्रेरित किया जाये। दूर संचार माध्यमों की सहायता से विज्ञापन द्वारा सुखी परिवार का प्रचार-प्रसार किया जाता है। विज्ञापन में ‘ हम दो हमारे दो’ नारे सहित दंपति व दो बच्चों का परिवार प्रदर्शित किया जाता है।
शहरों के कामकाजी युवा दंपतियों ने ‘हम दो हमारे एक’ का नारा अपनाया है। कानूनन विवाह योग्य स्त्री की आयु 18 वर्ष तथा पुरुष की आयु 21 वर्ष सुनिश्चित है। सरकार ऐसे युवा जोड़े को प्रोत्साहन देती है जो सुखी छोटे परिवार में विश्वास रखते हैं। जन्मदर कम करने का अच्छा व आसानी से स्वीकार्य उपाय है एक आदर्श गर्भनिरोधक।
एक आदर्श गर्भनिरोधक की मुख्य विशेषताएँ निम्न होनी चाहिए-
- एक आदर्श गर्भनिरोधक प्रयोगकर्ता के हितों की रक्षा करने वाला एवं आसानी से उपलब्ध होने वाला चाहिए।
- गर्भनिरोधक का कोई अनुषंगी प्रभाव या दुष्प्रभाव नहीं हो या हो भी तो कम से कम होना चाहिए।
- गर्भनिरोधक के उपयोग से उपयोगकर्ता की कामेच्छा, प्रेरणा तथा मैथुन में बाधक नहीं होना चाहिए।
- गर्भनिरोधक प्रभावी होना चाहिए।
गर्भनिरोधक साधनों को निम्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है-
- प्रकृ तिक/परम्परागत विधियाँ (Natural/ Traditional Methods)
- रोध (Barrier)
- अन्तः गभर्शाशयी युक्तियाँ (Intra Uterine Devices-IUD)
- मुँह से लेने योग्य गर्भनिरोधक (Oral Contraceptives)
- अंतर्रोप एवं टीका (Implants and Injectables)
- शल्यक्रियात्मक विधियाँ (Surgical Methods)
(1) प्रकृ तिक / परम्परागत विधियाँ (Natural/ Traditional Methods)-ये विधियाँ अण्डाणु (Ovum) एवं शुक्राणु (Sperm) के मिलने को रोकने के सिद्धान्त पर कार्य करती हैं जो निम्न तीन प्रकार की होती हैं-
(i) आवधिक संयम (Periodic Abstinence)-इस विधि में एक दम्पति माहवारी चक्र (Menstrual cycle) के 10 वें से 17 वें दिन के बीच की अवधि के दौरान संभोग क्रिया नहीं करते हैं, जिसे अण्डोत्सर्जन (Ovulation) की अपेक्षित अव्वध मानते हैं। इस अवधि के दौरान निषेचन (Fertilization) एवं उर्वर ( गर्भधारण )
के अवसर बहुत अधिक होने के कारण इस अवधि को निषेच्य अवधि (Fertile Period) कहते हैं। अतः उक्त अवधि में सहवास/संभोग न करके गभर्भाधान से बचा जा सकता है। इस विधि में संयम की अत्यधिक आवश्यकता होती है तथा माहवारी के पूर्ण चक्र की जानकारी होनी चाहिए।
(ii) बाह्य स्खलन अथवा अंतरित मैथुन (Withdrawal or Coitus interruptus)-इस विधि में पुरुष साथी संभोग के दौरान वीर्य स्खलन से ठीक पहले स्वी की योनि (Vagina) से अपना लिंग (Penis) निकाल कर वीर्यसेचन (Insemination) से बच सकता है।
(iii) स्तनपान अनार्तव (Lactational amenorrhoea)-बह विधि इस बात पर निर्भर करती है कि प्रसव के बाद स्त्री द्वारा शिशु को भरपूर स्तनपान कराने के दौरान अण्डोत्सर्ग (Ovulation) और आर्वव चक्र (Menstrual cycle) शुरू नहीं होता है। इसलिए जितने दिनों तक माता शिशु को पूर्णतः स्तनपान कराना जारी रखती है (इस समय शिशु को माँ के दूध के अतिरिक्त ऊपर से प्रानी या अतिरिक्त दूध भी नहीं दिया जाना चाहिए) गर्भाधारण के अवसर शुन्य होते है।
इस दौरान मैधुन क्रिया करने पर अण्डाणु के अनुपस्थित होने के कारण निषेचन की सम्भावना शुन्य (नहीं) होती है। यह विधि प्रसव के बाद ज्यादा से ज्यादा 6 माह की अवधि तक कारगर मानी गई है। उपरोक्त विधियों में किसी दवा या साधन का उपयोग नहीं किया जाता है। अतः इसके कोई किसी प्रकार के दुष्प्रभाव नहीं होते हैं।
(2) रोध (Barrier)-इन विधियों के अन्तर्गत रोधक साधनों के माध्यम से अण्डाणु (Ovum) और शुक्राणु (Sperm) को भौतिक रूप से मिलाने अथवा संयोजन से रोका जाता है। इस प्रकार के उपाय पुरुष एवं स्ती दोनों के लिए उपलब्ध हैं।
(i) निरोध (Condom)-रबड़ या लेटेक्स (Rubber or Latex) से निर्मित पतली दीवार वाली धैलीनुमा संरचना होती है। इसे संभोग के समब उत्तेजना अवस्था में शिर्न (Penis) पर चढ़ा लिया जाता है जिससे स्खलन के फलस्वरूप वीर्य निरोध में ही रह जाता है अर्थात् गर्भाशय में नहीं पहुँच पाता है। इससे अनचाहे गर्भंधारण से बचा जा सकता है।
आजकल स्त्रियों के लिए भी निरोध बाजारों में उपलब्ध हैं। इनके द्वारा संभोग से पहले स्वी की योनि एवं गर्भाशय के सर्बिक्स (Cervix) भाग को ढक दिया जाता है जिससे शुक्राणु स्वी के जनन मार्ग में प्रवेश नहीं कर पाते हैं। पुरुषों के लिए कंडोम (Condom) का महशूर ब्रांड नाम निरोध (Nirodh) काफी लोकप्रिय है। देखिए आगे पृष्ठ पर चित्र में पुरुष व स्वी के कंडोम।
हाल ही के वर्षों में कंडोम के उपयोग में वेजी से वृद्धि हुई है क्योंकि इससे गर्भधारण के अतिरिक्त यौन संचारित रोगों तथा एडस से बचाव अथवा सुरक्षा हो जाती है। ये बाजारों में आसानी से उपलब्ब तथा सस्ते होते हैं। यह सरकार द्वारा मुफ्त भी वितरित किये जाते हैं। यह साधारण और प्रभावशाली युक्ति है, इससे कोई नुकस्तान भी नहीं होता है। निरोध का प्रयोग नियमित रूप से किया जा सकता है।
स्त्री एवं पुरुष दोनों के ही कंडोम उपयोग के बाद फेंकने वाले होते हैं। इन्हें स्वयं के द्वारा ही लगाया जा सकता है और इस तरह उपयोगकर्ता की गोपनीयता बनी रहती है।
(ii) डायाफ्राम (Diaphragms), गभर्भाशय ग्रीवा टोपी (Cervical Cap) तथा वाल्ट (Vault)-ये रबर के बने गुम्बदाकार रोधक उपाय होते हैं। ये स्त्री की योनि के सर्विक्स (Cervix) पर संभोग से पूर्व फिट कर दिए जाते हैं। ये गर्भाशय की ग्रीवा को ढककर गर्भाशय में शुक्राणुओं के प्रवेश को रोक कर गर्भाधान नहीं होने देते हैं। अगली बार प्रयोग करने से पहले इन्हें शुक्राणुनाशक क्रीम (Spermicidal Cream), जेली (Jelly) एवं फोम (Foams) आदि से साफ कर लिया जाता है, जिससे इनकी गर्भनिरोधक क्षमता काफी बढ़ जाती है।
(3) अन्तः गभर्शाशयी युक्तियाँ (Intra Uterine Devices-IUD)-हमारे देश में दूसरी प्रभावशाली और लोकप्रिय विधि अन्तः गर्भाशयी युक्ति का उपयोग है। अन्तः गर्भाशयी युक्ति योनि मार्ग द्वारा गर्भाशय में लगाई जाती है। परन्तु इन्हें प्रशिक्षित डाक्टर या नर्स द्वारा ही लगवाया जाना चाहिए। आजकल निम्न तीन प्रकार की IUDs उपलब्ध हैं-
- औषधिहीन आई यू डी (Non-Medicated IUDs)उदाहरण-लिप्पेस लूप।
- तांबा मोचक आई यू डी (Copper releasing IUD) – उदाहरण-कॉपर टी, कॉपर-7, मल्टीलोड 375 कॉपर टी।
- हार्मोन मोचक आई यू डी (Hormone Releasing IUD)-उदाहरण-प्रोजेस्टासर्ट, एल एन जी- 20 आदि। देखिए चित्र में।
आई यू डी गर्भाशय के अन्दर कॉपर Cu का आयन मोचित होने के कारण शुक्राणुओं की भक्षकाणुक्रिया (Phagocytosis) बढ़ा देती है जिससे शुक्राणुओं की गतिशीलता तथा उनकी निषेचन की क्षमता को कम करती है। इसके अतिरिक्त आई यू डी हार्मोन को गर्भाशय में भूरण के रोपण के लिए अनुपयुक्त बनाने तथा गर्भाशय ग्रीवा को शुक्राणुओं का विरोधी बनाते हैं। जो महिलाएँ गभावस्था में देरी या बच्चों के जन्म में अन्तराल चाहती हैं उनके लिए आई यू डी आदर्श गर्भनिरोधक है। भारत में गर्भनिरोध की ये विधियाँ व्यापक रूप से प्रचलित हैं।
(4) मुँह से लेने योग्य गर्भनिरोधक (गोलियाँ) (Oral Contraceptives)-मुँह से लेने योग्य गर्भ निरोधक (गोलियाँ) महिलाओं द्वारा ली जाती हैं। ये गोलियाँ प्रोजेस्ट्रोन व एस्ट्रोजन के संयोजन से बनी होती हैं। ये गोलियाँ पिल्स (Pills) के नाम से लोकप्रिय हैं। इन गोलियों का प्रयोग लगातार 21 दिनों तक किया जाता है और इन्हें माहवारी (Menstrual cycle) के पाँच दिनों में ही किसी दिन प्रारम्भ किया जाता है।
अगली माहवारी के बाद इन्हें पुनः शुरू कर दिया जाता है। ये गोलियाँ (Pills) अण्डोत्सर्ग (ovulation) और रोपण (Implantation) को रोकने के साथ-साथ गर्भाशय ग्रीवा की श्लेष्मा की गुणवत्ता को मंद कर देती हैं। जिससे शुक्राणुओं के प्रवेश पर रोक लग जाती है अथवा उनकी गति मंद हो जाती है। जिसके फलस्वरूप गर्भाधान नहीं हो पाता है।
ये गोलियाँ बहुत ही प्रभावशाली तथा कम दुष्प्रभाव वाली होती हैं। इसी प्रकार माला-डी तथा पर्ल नामक गोली भी प्रतिदिन ली जा सकती है। इस प्रकार साप्ताहिक ली जाने वाली गोली भी खूब प्रचलित है जिसे सहेली के नाम से जाना जाता है। सहेली एक उत्तम गैर स्टीरॉइड गर्भनिरोधक गोली है। इसे मुँह से सप्ताह में एक बार लेना होता है।
इसके दुष्प्रभाव बहुत कम तथा उच्य निरोधक क्षमता वाली है। भारत में लखनक के केन्द्रीय औषध अनुसंधान संस्थान (Central Drug Research InstitutionCDRI) ने सहे ली (गोली) का निर्माण किया। आजकल कु छ गोलियाँ संभोग के बाद 72 घण्टे के भीतर ली जाने वाली भी आती हैं। जिनका प्रयोग बलात्कार (Rape), असुरक्षित यौन संसर्ग (Unprotected Intercourse) के बाद् आपातकालीन अवस्था में किया जा सकता है जिससे गर्भ सगर्भता से बचा जा सकता है।
(5) अंतर्रोप एवं टीका (Implants and Injectables)स्त्रियों द्वारा प्रोजेस्ट्रोन अकेले या फिर एस्ट्रोजन के साथ इसका संयोजन भी टीके या त्वचा के नीचे अंतर्रोप (Implant) के रूप में किया जाता है। इसके कार्य की विधि ठीक गर्भनिरोधक गोलियों की भाँति होती है तथा काफी लम्बी अवधि के लिए प्रभावशाली होते हैं।
(6) शल्यक्रियात्मक विधियाँ (Surgical Methods)-इन्हें बन्ध्यकरण (Sterilisation) भी कहते हैं। प्रायः उन व्यक्तियों को बताया जाता है, जिन्हें बच्या नहीं चाहिये तथा इसे स्थाई माध्यम के रूप में (पुरुष/स्त्री में से एक) अपनाना चाहते हैं। शल्यक्रिया द्वारा युग्मक के परिवहन को रोक दिया जाता है जिसके फलस्वरूप गर्भाधान नहीं होता है।
बन्ध्यकरण (Sterilisation) की प्रक्रिया दो प्रकार की होती है-
(1) वेसेक्टोमी/शुक्रवाहक उच्छेदन (Vasectomy)-पुरुषों में शुक्रवाहिका, जिनसे होकर शुक्राणु अधिवृषणों (Epididymis) से बाहर आते, एक शल्य चिकित्सक द्वारा बाँध दी जाती है ताकि शुक्राणु शरीर से बाहर न निकाल सकें, यह विधि अस्थायी है और आवश्यकता पड़ने पर शल्य चिकित्सक द्वारा प्रतिवर्तित की जा सकती है।
निषेचन को स्थायी रूप से रोकने के लिए शुक्रवाहिकाओं को काट दिया जाता है और खुले सिरों को धागे से बाँध दिया जाता है। शुक्रवाहिकाओं को शल्य चिकित्सक द्वारा काटने की क्रिया को वे से क्टोमी (Vasectomy) कहते हैं। में। इसे पुरुष नसबंदी के नाम से भी जाना जाता है।
(2) ट्यूबैक्टोमी/नलिका उच्छेदन (Tubec-tomy)महिलाओं का बन्धीकरण अंडवाहिकाओं (Oviducts) को शल्य
चिकित्सक द्वारा बाँधकर व काटकर किया जाता है। इससे अण्डाशयों में बने अण्डे गर्भाशय एवं जनन मार्ग तक नहीं आ पाते हैं। जिससे निषेचन अथवा गर्भधारण नहीं होता है लेकिन आर्तव चक्र (Menstrual cycle) सामान्य रूप से चलता रहता है। अण्डवाहिकाओं को शल्य चिकित्सक द्वारा काटना ही ट्यूबेक्टोमी (Tubectomy) कहते हैं। इसे महिला नसबंदी के नाम से जाना जाता है। उपरोक्त सभी गर्भनिरोधक उपायों का चुनाव एवं उपयोग योग्य चिकित्सक की सलाह से करना चाहिये क्योंक सभी गर्भनिरोधक साधन प्राकृतिक प्रक्रिया जनन जैसे गर्भाधान/सगर्भता को रोकते हैं।
इनका लम्बे समय तक उपयोग करने से इनके कुप्रभाव भी देखे जाते हैं, जो निम्न हैं-
- मतली आना
- उदरीय पीड़ा
- बीच-बीच में रक्तस्राव
- अनियमित आर्तव रक्तस्राव
- स्तन कैंसर।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि उक्त विधियों के व्यापक उपयोग ने जनसंख्या की अनियन्त्रित वृद्धि को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। फिर भी इनके उपयोग से कुछ कुप्रभाव पड़ते हैं तो उन्हें नजरअदांज किया जा सकता है।
प्रश्न 4.
बंध्यता से क्या तात्पर्य है? इसके निवारण से सम्बन्धित तकनीकों का वर्णन कीजिए।
अथवा
सहायक जनन प्रौद्योगिकी किसे कहते हैं ? विभिन्न तकनीकों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर:
दो वर्ष तक मुक्त या असुरक्षित सहवास के बावजूद गर्भाधान न हो पाने की स्थिति को बन्ध्यता (Sterility) कहते हैं।
बन्ध्यता के अनेक कारण हो सकते हैं जिनमें मुख्य निम्न हैं-
- शारीरिक
- जन्मजात
- औषधिक
- प्रतिरक्षात्मक
- मनोवैज्ञानिक आदि।
ये समस्याएँ पुरुष अथवा स्त्री किसी में भी हो सकती हैं। हमारे देश में बच्चा न होने की स्थिति में प्रायः सिर्फ स्त्री को ही दोष दिया जाता है जबकि हमेशा ऐसा नहीं होता है। यह समस्या पुरुष में भी हो सकती है। इसके लिए अर्थात् सामान्य विकारों को बन्ध्यता क्लीनिक के योग्य चिकित्सकों की सेवायें लेकर दोषों की जाँच एवं उपचार के माध्यम से संतान उत्पन्न करने में सफलता मिल सकती है।
फिर भी जहाँ ऐसे विकार या दोषों को ठीक करना सम्भव नहीं है वहाँ कुछ विशेष तकनीकों की सहायता द्वारा संतान पैदा करने में सहायता की जा सकती है। ऐसी तकनीकों को सहायक जनन प्रौद्योगिकी (Addid Reproductive Technique) कहते हैं। इनमें कुछ महत्वपूर्ण निम्नलिखित हैं-
(1) पात्रे निषेचन (In vitro fertilization)-पात्रे निषेचन से तात्पर्य है कि शरीर के बाहर लगभग शरीर के भीतर जैसी स्थितियाँ निर्मित करना व निषेचन कराना अर्थात् निषेचन की क्रिया पात्र (Test Tube) में की जाती है इसलिए इसे पात्रे निषेचन कहते हैं। यह विधि टेस्ट ट्यूब बेबी (Test Tube Baby) कार्यक्रम के नाम से लोकप्रिय है।
इस तकनीक में पत्नी या दाता स्त्री के अण्डे से पति अथवा दाता पुरुष से प्राप्त शुक्राणुओं (Sperms) को प्रयोगशाला में एकत्रित किया जाता है। इसके बाद अनुकूल परिस्थितियों में निषेचन कराकर युग्मनज (Zygote) बनने के लिए प्रेरित किया जाता है। अब इस युग्मनज (Zygote) को स्त्री के गर्भाशय में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। स्थानान्तरण दो विधियों द्वारा किया जा सकता है-
(i) अन्तः डिम्ब वाहिनी (फैलोपी) स्थानान्तरण (Intra Fallopian Tube Transfer)-इसे युग्मनज अन्त: डिम्ब वाहिनी स्थानान्तरण (Zygote Intra Fallopian Transfer) के नाम से भी जाना जाता है। इसके अन्तर्गत युग्मनज या 8 ब्लास्टोमियर तक के भूरण को स्त्री की फैलोपियन नलिका (Fallopian Tube) में स्थानान्तरित किया जाता है।
(ii) इन्द्रा यूटेराइन ट्रांसफर (Intra Uterine Transfer)-इस तकनीक के अन्तर्गत 8 ब्लास्टोमीयर से अधिक के भ्रूण को गर्भाशय (Uterus) में स्थानान्तरित किया जाता है। इसलिए इसे इन्ट्रा यूटेराइन ट्रांसफर कहते हैं। अब निषेचित भ्रूण का स्त्री में स्थानान्तरण के बाद परिवर्धन शरीर के भीतर होता है।
(2) जीवे निषेचन (In vitro Fertilization)-ऐसी स्त्रियाँ जिनको गर्भधारण करने में समस्या आती है उनके लिए यह तकनीक सर्वोत्तम है। इसके अन्तर्गत युग्मकों का निषेचन स्त्री के भीतर ही होता है।
(3) युग्मक फैलोपी नलिका में स्थानान्तरण (Gamete Intra Fallopian Transfer)-ऐसी स्त्रियाँ जिनमें अण्डाणु उत्पन्न नहीं होते हैं परन्तु निषेचन और भ्रूण के परिवर्धन के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान कर सकती हैं। ऐसी स्त्रियों के लिए GIFT तकनीक अपनाई जाती है।
इसके अन्तर्गत दाता के अण्डाणु प्राप्त करके फैलोपी नलिका में स्थानान्तरित किया जाता है। जिसके परिणामस्वरूप निषेचन क्रिया प्राकृतिक होती है।
(4) अन्तःकोशिकीय शुक्राणु निक्षेपण (Intracytoplasm Sperm Injection)-इस तकनीक द्वारा प्रयोगशाला में शुक्राणु (Sperm) को सीधे ही अण्डाणु में अंतःक्षेपित (Injected) किया जाता है।
(5) कृत्रिम वीर्य सेचन (Artificial Insemination)-ऐसे पुरुष जो स्त्री को वीर्य सेचित करने में सक्षम नहीं हैं अथवा उनके वीर्य में शुक्राणुओं (Sperms) की संख्या बहुत ही कम होती है, उन पुरुषों के दोष के निवारण हेतु कृत्रिम वीर्य सेचन तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इस तकनीक में पति या स्वस्थ दाता से शुक्राणु (Sperm) लेकर कृत्रिम रूप से या तो स्त्री की योनि (Vagina) में अथवा उसके गर्भांशय (Uterus) में प्रविष्ट कराया जाता है। इसे गभराशय वीर्य सेचन (Intra Uterine Insemination) कहते हैं।
इस प्रकार हमारे पास बहुत सारी तकनीकें हैं लेकिन इनका उपयोग करने हेतु विशेषीकृत व्यावसायिक विशेषजों की आवश्यकता होती है। ये तकनीकें मंहगी होती हैं। इसलिए ये सुविधाएँ भारत के कुछ शहरों में ही उपलब्थ हैं। अतः इनका लाभ कुछ ही लोगों को मिल पाता है। इन विधियों को अपनाने में धार्मिक, सामाजिक व भावात्मक घटक बाधक होते हैं।
इन सभी विधियों का लक्ष्य मात्र केवल संतान प्राप्ति का है। भारत में अनेक अनाथ और दीनहीन बच्चे हैं जिनकी देखभाल नहीं की जावे तो वे जीवित नहीं रहेंगे। ऐसे निःसंतान दम्पतियों को यदि संतान चाहिए तो इन्हें गोद् लेकर माता-पिता बन सकते हैं। यह संतान प्राप्त करने का सर्वोत्तम उपाय है। हमारे देश में कानून शिशु को गोद लेने की इजाजत भी देता है।
प्रश्न 5.
गर्भनिरोधक साधन कौन-सी श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है? प्रत्येक का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या विस्फोट और जन्म नियन्त्रण (Population Explosion and Birth Control)
चिकित्सीय सुविधाओं की उपलब्धता एवं व्यापक जागरूकता के कारण विश्व में मृत्युदर में कमी व जन्मदर में वृद्धि होने के फलस्वरूप जनसंख्या में वृद्धि हुई है। सन् 1900 ई. में पूरे विश्व की जनसंख्या लगभग 2 अरब थी जो सन् 2000 ई. में तेजी से बढ़कर 6 अरब हो गई।
हमारे देश भारत की जनसंख्या आजादी के समय लगभग 35 करोड़ थी जो सन् 2000 ई. में बढ़कर एक अरब से ऊपर पहुँच गई अर्थात् आज दुनिया का हर छठा आदमी भारतीय है। हमारे जन स्वास्थ्य के अथक प्रयासों से हमारी जनसंख्या वृद्धि दर में कमी आई है जो नाममात्र है।
]हमारी जनसंख्या वृद्धि दर जो 1991 में 2.1 प्रतिशत थी, वह 2001 में घटकर 1.7 प्रतिशत रह गई। इस वृद्धि दर के साथ भी हम 2033 तक 200 करोड़ हो जायेंगे। इस प्रकार कम समयावधि में जनसंख्या में होने वाली इस प्रकार
की तीव्र वृद्धि को जनसंख्या विस्फोट (Population Explosion) कहा जाता है।
जनसंख्या विस्फोट के कारण-किसी देश की जनसंख्या की वृद्धि के लिए निम्न प्रमुख तीन कारण हैं-
(1) उच्च जन्म दर-अधिकतर देशों में जन्मदर मृत्युदर से अधिक होती है। उच्च जन्मदर के लिए निम्न आर्थिक एवं सामाजिक कारक जिम्मेदार हैं-
(क) आर्थिक कारक-
- कृषि प्रधानता
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था
- निर्धनता।
(ख) सामाजिक कारक-
- अशिक्षा
- धार्मिक मान्यताएँ
- बाल विवाह
- अन्धविश्वास
- विवाह की अनिवार्यता
- संयुक्त परिवार एवं परिवार नियोजन के प्रति उदासीनता आदि।
(2) अपेक्षाकृत निम्न मृत्युदर-प्रति हजार जनसंख्या में प्रति वर्ष मरने वाले प्राणियों की जनसंख्या को मृत्युदर कहते हैं। जनसंख्या में विस्फोट का मुख्य कारण लगातार घटती हुई मृत्युदर है। भारत में पिछले दशकों में मृत्युदर में निरन्तर कमी आई है जो कि जनसंख्या वृद्धि में एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
वर्ष 1901 में हमारे देश में मृत्युदर (प्रति हजार व्यक्ति) 44.4 थी जो कि 1951 में घटकर 27.4 रह गई व अगले वर्षों में भी इस प्रवृत्ति में और कमी आकर वर्ष 1999 में यह मात्र 8.7 के स्तर तक रह गई। इस प्रवृत्ति में और कमी आकर वर्ष 2007 में यह मात्र 8.0 के स्तर तक आ चुकी थी। इसके निम्न कारण हैं-
- प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा-मनुष्य अपनी सुरक्षा हेतु मकान बनाकर रहने लगा जिससे उसे प्राकृतिक आपदाओं से बचाव हो सका, जैसे-सर्दी, गर्मी, वर्षा, आग तथा तूफान आदि।
- कृषि का विकास-इसके कारण अनाज की पैदावार में बढ़ोतरी हुई और बढ़ती हुई जनसंख्या को पर्याप्त मात्रा में इसकी पूर्ति किया जाना सम्भव हुआ।
- भण्डारण की सुविधा-भण्डारण की सुविधा से मानव को पूरे साल खाद्यान्न आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
- उन्नत परिवहन-उन्नत परिवहन तन्त्र से ऐसे स्थान जहाँ खाद्यान्न की कमी है वहाँ तुरन्त प्रभाव से तथा कम समय में खाद्यान्न पहुँचना सम्भव हो सका।
- रोगों पर नियन्त्रण-विभिन्न रोगों पर नियन्त्रण होने के कारण तथा स्वास्थ्य उपायों के बढ़ने के फलस्वरूप मृत्युदर में कमी आई है तथा मानव की आयु 30 वर्ष से वृद्धि कर 60 वर्ष हो गई।
(3) आप्रवासन-किसी स्थान पर बाहर से आकर कुछ सदस्य शामिल हो जायें तो इसे आप्रवासन कहा जाता है। यह जनसंख्या को बढ़ाता है। भारत की सीमाओं में विभिन्न देशों के शरणार्थियों व घुसपैठियों के आगमन से जनसंख्या में इस प्रकार की वृद्धि दर्ज की गई है।
उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त निम्न कारक भी जनसंख्या वृद्धि हेतु जिम्मेदार हैं-
- विश्व के अधिकतर देशों में औसत आयु में वृद्धि होना।
- पारस्परिक समाज में नर शिशु की चाहत।
- मनोरंजन सुर्विधाओं का अभाव।
- जनसंख्या में नवयुवकों की संख्या अधिक होना।
जनसंख्या वृद्धि दर की समस्या से बचने का सबसे सरल उपाय छोटा परिवार को बढ़ावा देने हेतु गर्भनिरोधक उपाय अपनाने के लिए प्रेरित किया जाये। दूर संचार माध्यमों की सहायता से विज्ञापन द्वारा सुखी परिवार का प्रचार-प्रसार किया जाता है। विज्ञापन में ‘ हम दो हमारे दो’ नारे सहित दंपति व दो बच्चों का परिवार प्रदर्शित किया जाता है।
शहरों के कामकाजी युवा दंपतियों ने ‘हम दो हमारे एक’ का नारा अपनाया है। कानूनन विवाह योग्य स्त्री की आयु 18 वर्ष तथा पुरुष की आयु 21 वर्ष सुनिश्चित है। सरकार ऐसे युवा जोड़े को प्रोत्साहन देती है जो सुखी छोटे परिवार में विश्वास रखते हैं। जन्मदर कम करने का अच्छा व आसानी से स्वीकार्य उपाय है एक आदर्श गर्भनिरोधक।
एक आदर्श गर्भनिरोधक की मुख्य विशेषताएँ निम्न होनी चाहिए-
- एक आदर्श गर्भनिरोधक प्रयोगकर्ता के हितों की रक्षा करने वाला एवं आसानी से उपलब्ध होने वाला चाहिए।
- गर्भनिरोधक का कोई अनुषंगी प्रभाव या दुष्प्रभाव नहीं हो या हो भी तो कम से कम होना चाहिए।
- गर्भनिरोधक के उपयोग से उपयोगकर्ता की कामेच्छा, प्रेरणा तथा मैथुन में बाधक नहीं होना चाहिए।
- गर्भनिरोधक प्रभावी होना चाहिए।
गर्भनिरोधक साधनों को निम्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है-
- प्रकृ तिक/परम्परागत विधियाँ (Natural/ Traditional Methods)
- रोध (Barrier)
- अन्तः गभर्शाशयी युक्तियाँ (Intra Uterine Devices-IUD)
- मुँह से लेने योग्य गर्भनिरोधक (Oral Contraceptives)
- अंतर्रोप एवं टीका (Implants and Injectables)
- शल्यक्रियात्मक विधियाँ (Surgical Methods)
(1) प्रकृ तिक / परम्परागत विधियाँ (Natural/ Traditional Methods)-ये विधियाँ अण्डाणु (Ovum) एवं शुक्राणु (Sperm) के मिलने को रोकने के सिद्धान्त पर कार्य करती हैं जो निम्न तीन प्रकार की होती हैं-
(i) आवधिक संयम (Periodic Abstinence)-इस विधि में एक दम्पति माहवारी चक्र (Menstrual cycle) के 10 वें से 17 वें दिन के बीच की अवधि के दौरान संभोग क्रिया नहीं करते हैं, जिसे अण्डोत्सर्जन (Ovulation) की अपेक्षित अव्वध मानते हैं। इस अवधि के दौरान निषेचन (Fertilization) एवं उर्वर ( गर्भधारण )
के अवसर बहुत अधिक होने के कारण इस अवधि को निषेच्य अवधि (Fertile Period) कहते हैं। अतः उक्त अवधि में सहवास/संभोग न करके गभर्भाधान से बचा जा सकता है। इस विधि में संयम की अत्यधिक आवश्यकता होती है तथा माहवारी के पूर्ण चक्र की जानकारी होनी चाहिए।
(ii) बाह्य स्खलन अथवा अंतरित मैथुन (Withdrawal or Coitus interruptus)-इस विधि में पुरुष साथी संभोग के दौरान वीर्य स्खलन से ठीक पहले स्वी की योनि (Vagina) से अपना लिंग (Penis) निकाल कर वीर्यसेचन (Insemination) से बच सकता है।
(iii) स्तनपान अनार्तव (Lactational amenorrhoea)-बह विधि इस बात पर निर्भर करती है कि प्रसव के बाद स्त्री द्वारा शिशु को भरपूर स्तनपान कराने के दौरान अण्डोत्सर्ग (Ovulation) और आर्वव चक्र (Menstrual cycle) शुरू नहीं होता है। इसलिए जितने दिनों तक माता शिशु को पूर्णतः स्तनपान कराना जारी रखती है (इस समय शिशु को माँ के दूध के अतिरिक्त ऊपर से प्रानी या अतिरिक्त दूध भी नहीं दिया जाना चाहिए) गर्भाधारण के अवसर शुन्य होते है।
इस दौरान मैधुन क्रिया करने पर अण्डाणु के अनुपस्थित होने के कारण निषेचन की सम्भावना शुन्य (नहीं) होती है। यह विधि प्रसव के बाद ज्यादा से ज्यादा 6 माह की अवधि तक कारगर मानी गई है। उपरोक्त विधियों में किसी दवा या साधन का उपयोग नहीं किया जाता है। अतः इसके कोई किसी प्रकार के दुष्प्रभाव नहीं होते हैं।
(2) रोध (Barrier)-इन विधियों के अन्तर्गत रोधक साधनों के माध्यम से अण्डाणु (Ovum) और शुक्राणु (Sperm) को भौतिक रूप से मिलाने अथवा संयोजन से रोका जाता है। इस प्रकार के उपाय पुरुष एवं स्ती दोनों के लिए उपलब्ध हैं।
(i) निरोध (Condom)-रबड़ या लेटेक्स (Rubber or Latex) से निर्मित पतली दीवार वाली धैलीनुमा संरचना होती है। इसे संभोग के समब उत्तेजना अवस्था में शिर्न (Penis) पर चढ़ा लिया जाता है जिससे स्खलन के फलस्वरूप वीर्य निरोध में ही रह जाता है अर्थात् गर्भाशय में नहीं पहुँच पाता है। इससे अनचाहे गर्भंधारण से बचा जा सकता है।
आजकल स्त्रियों के लिए भी निरोध बाजारों में उपलब्ध हैं। इनके द्वारा संभोग से पहले स्वी की योनि एवं गर्भाशय के सर्बिक्स (Cervix) भाग को ढक दिया जाता है जिससे शुक्राणु स्वी के जनन मार्ग में प्रवेश नहीं कर पाते हैं। पुरुषों के लिए कंडोम (Condom) का महशूर ब्रांड नाम निरोध (Nirodh) काफी लोकप्रिय है। देखिए आगे पृष्ठ पर चित्र में पुरुष व स्वी के कंडोम।
हाल ही के वर्षों में कंडोम के उपयोग में वेजी से वृद्धि हुई है क्योंकि इससे गर्भधारण के अतिरिक्त यौन संचारित रोगों तथा एडस से बचाव अथवा सुरक्षा हो जाती है। ये बाजारों में आसानी से उपलब्ब तथा सस्ते होते हैं। यह सरकार द्वारा मुफ्त भी वितरित किये जाते हैं। यह साधारण और प्रभावशाली युक्ति है, इससे कोई नुकस्तान भी नहीं होता है। निरोध का प्रयोग नियमित रूप से किया जा सकता है।
स्त्री एवं पुरुष दोनों के ही कंडोम उपयोग के बाद फेंकने वाले होते हैं। इन्हें स्वयं के द्वारा ही लगाया जा सकता है और इस तरह उपयोगकर्ता की गोपनीयता बनी रहती है।
(ii) डायाफ्राम (Diaphragms), गभर्भाशय ग्रीवा टोपी (Cervical Cap) तथा वाल्ट (Vault)-ये रबर के बने गुम्बदाकार रोधक उपाय होते हैं। ये स्त्री की योनि के सर्विक्स (Cervix) पर संभोग से पूर्व फिट कर दिए जाते हैं। ये गर्भाशय की ग्रीवा को ढककर गर्भाशय में शुक्राणुओं के प्रवेश को रोक कर गर्भाधान नहीं होने देते हैं। अगली बार प्रयोग करने से पहले इन्हें शुक्राणुनाशक क्रीम (Spermicidal Cream), जेली (Jelly) एवं फोम (Foams) आदि से साफ कर लिया जाता है, जिससे इनकी गर्भनिरोधक क्षमता काफी बढ़ जाती है।
(3) अन्तः गभर्शाशयी युक्तियाँ (Intra Uterine Devices-IUD)-हमारे देश में दूसरी प्रभावशाली और लोकप्रिय विधि अन्तः गर्भाशयी युक्ति का उपयोग है। अन्तः गर्भाशयी युक्ति योनि मार्ग द्वारा गर्भाशय में लगाई जाती है। परन्तु इन्हें प्रशिक्षित डाक्टर या नर्स द्वारा ही लगवाया जाना चाहिए। आजकल निम्न तीन प्रकार की IUDs उपलब्ध हैं-
- औषधिहीन आई यू डी (Non-Medicated IUDs)उदाहरण-लिप्पेस लूप।
- तांबा मोचक आई यू डी (Copper releasing IUD) – उदाहरण-कॉपर टी, कॉपर-7, मल्टीलोड 375 कॉपर टी।
- हार्मोन मोचक आई यू डी (Hormone Releasing IUD)-उदाहरण-प्रोजेस्टासर्ट, एल एन जी- 20 आदि। देखिए चित्र में।
आई यू डी गर्भाशय के अन्दर कॉपर Cu का आयन मोचित होने के कारण शुक्राणुओं की भक्षकाणुक्रिया (Phagocytosis) बढ़ा देती है जिससे शुक्राणुओं की गतिशीलता तथा उनकी निषेचन की क्षमता को कम करती है। इसके अतिरिक्त आई यू डी हार्मोन को गर्भाशय में भूरण के रोपण के लिए अनुपयुक्त बनाने तथा गर्भाशय ग्रीवा को शुक्राणुओं का विरोधी बनाते हैं। जो महिलाएँ गभावस्था में देरी या बच्चों के जन्म में अन्तराल चाहती हैं उनके लिए आई यू डी आदर्श गर्भनिरोधक है। भारत में गर्भनिरोध की ये विधियाँ व्यापक रूप से प्रचलित हैं।
(4) मुँह से लेने योग्य गर्भनिरोधक (गोलियाँ) (Oral Contraceptives)-मुँह से लेने योग्य गर्भ निरोधक (गोलियाँ) महिलाओं द्वारा ली जाती हैं। ये गोलियाँ प्रोजेस्ट्रोन व एस्ट्रोजन के संयोजन से बनी होती हैं। ये गोलियाँ पिल्स (Pills) के नाम से लोकप्रिय हैं। इन गोलियों का प्रयोग लगातार 21 दिनों तक किया जाता है और इन्हें माहवारी (Menstrual cycle) के पाँच दिनों में ही किसी दिन प्रारम्भ किया जाता है।
अगली माहवारी के बाद इन्हें पुनः शुरू कर दिया जाता है। ये गोलियाँ (Pills) अण्डोत्सर्ग (ovulation) और रोपण (Implantation) को रोकने के साथ-साथ गर्भाशय ग्रीवा की श्लेष्मा की गुणवत्ता को मंद कर देती हैं। जिससे शुक्राणुओं के प्रवेश पर रोक लग जाती है अथवा उनकी गति मंद हो जाती है। जिसके फलस्वरूप गर्भाधान नहीं हो पाता है।
ये गोलियाँ बहुत ही प्रभावशाली तथा कम दुष्प्रभाव वाली होती हैं। इसी प्रकार माला-डी तथा पर्ल नामक गोली भी प्रतिदिन ली जा सकती है। इस प्रकार साप्ताहिक ली जाने वाली गोली भी खूब प्रचलित है जिसे सहेली के नाम से जाना जाता है। सहेली एक उत्तम गैर स्टीरॉइड गर्भनिरोधक गोली है। इसे मुँह से सप्ताह में एक बार लेना होता है।
इसके दुष्प्रभाव बहुत कम तथा उच्य निरोधक क्षमता वाली है। भारत में लखनक के केन्द्रीय औषध अनुसंधान संस्थान (Central Drug Research InstitutionCDRI) ने सहे ली (गोली) का निर्माण किया। आजकल कु छ गोलियाँ संभोग के बाद 72 घण्टे के भीतर ली जाने वाली भी आती हैं। जिनका प्रयोग बलात्कार (Rape), असुरक्षित यौन संसर्ग (Unprotected Intercourse) के बाद् आपातकालीन अवस्था में किया जा सकता है जिससे गर्भ सगर्भता से बचा जा सकता है।
(5) अंतर्रोप एवं टीका (Implants and Injectables)स्त्रियों द्वारा प्रोजेस्ट्रोन अकेले या फिर एस्ट्रोजन के साथ इसका संयोजन भी टीके या त्वचा के नीचे अंतर्रोप (Implant) के रूप में किया जाता है। इसके कार्य की विधि ठीक गर्भनिरोधक गोलियों की भाँति होती है तथा काफी लम्बी अवधि के लिए प्रभावशाली होते हैं।
(6) शल्यक्रियात्मक विधियाँ (Surgical Methods)-इन्हें बन्ध्यकरण (Sterilisation) भी कहते हैं। प्रायः उन व्यक्तियों को बताया जाता है, जिन्हें बच्या नहीं चाहिये तथा इसे स्थाई माध्यम के रूप में (पुरुष/स्त्री में से एक) अपनाना चाहते हैं। शल्यक्रिया द्वारा युग्मक के परिवहन को रोक दिया जाता है जिसके फलस्वरूप गर्भाधान नहीं होता है।
बन्ध्यकरण (Sterilisation) की प्रक्रिया दो प्रकार की होती है-
(1) वेसेक्टोमी/शुक्रवाहक उच्छेदन (Vasectomy)-पुरुषों में शुक्रवाहिका, जिनसे होकर शुक्राणु अधिवृषणों (Epididymis) से बाहर आते, एक शल्य चिकित्सक द्वारा बाँध दी जाती है ताकि शुक्राणु शरीर से बाहर न निकाल सकें, यह विधि अस्थायी है और आवश्यकता पड़ने पर शल्य चिकित्सक द्वारा प्रतिवर्तित की जा सकती है।
निषेचन को स्थायी रूप से रोकने के लिए शुक्रवाहिकाओं को काट दिया जाता है और खुले सिरों को धागे से बाँध दिया जाता है। शुक्रवाहिकाओं को शल्य चिकित्सक द्वारा काटने की क्रिया को वे से क्टोमी (Vasectomy) कहते हैं। देखिए चित्र 4.5 में। इसे पुरुष नसबंदी के नाम से भी जाना जाता है।
(2) ट्यूबैक्टोमी/नलिका उच्छेदन (Tubec-tomy)महिलाओं का बन्धीकरण अंडवाहिकाओं (Oviducts) को शल्य
चिकित्सक द्वारा बाँधकर व काटकर किया जाता है। इससे अण्डाशयों में बने अण्डे गर्भाशय एवं जनन मार्ग तक नहीं आ पाते हैं। जिससे निषेचन अथवा गर्भधारण नहीं होता है लेकिन आर्तव चक्र (Menstrual cycle) सामान्य रूप से चलता रहता है। अण्डवाहिकाओं को शल्य चिकित्सक द्वारा काटना ही ट्यूबेक्टोमी (Tubectomy) कहते हैं। इसे महिला नसबंदी के नाम से जाना जाता है। उपरोक्त सभी गर्भनिरोधक उपायों का चुनाव एवं उपयोग योग्य चिकित्सक की सलाह से करना चाहिये क्योंक सभी गर्भनिरोधक साधन प्राकृतिक प्रक्रिया जनन जैसे गर्भाधान/सगर्भता को रोकते हैं।
इनका लम्बे समय तक उपयोग करने से इनके कुप्रभाव भी देखे जाते हैं, जो निम्न हैं-
- मतली आना
- उदरीय पीड़ा
- बीच-बीच में रक्तस्राव
- अनियमित आर्तव रक्तस्राव
- स्तन कैंसर।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि उक्त विधियों के व्यापक उपयोग ने जनसंख्या की अनियन्त्रित वृद्धि को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। फिर भी इनके उपयोग से कुछ कुप्रभाव पड़ते हैं तो उन्हें नजरअदांज किया जा सकता है।
प्रश्न 6.
निम्न लैंगिक संचारित रोग के रोगजनक एवं लक्षण लिखिए-
- सिफिलस
- सुजाक
- हर्पीज जेनाइटेलिस
- ट्राइकोमोनियासिस
- क्लेमाइडियेसिस
- एड्स
- जेनाइटल मस्सा
- वेजाइनिटिस (Vaginitis ) I
उत्तर:
लैंगिक संचारित रोग, उनके रोगजनक एवं लक्षण
रोग का नाम (Diseases) | रोग जनक (Pathogens) | लक्षण (Symptoms) |
1. सिफिलस (Syphilis) | नि पोनिमा पैलिडम Pallidum) | जनन अंगों पर उभरते हुए गोलाकार घाव |
2. सुजाक या गोनोरिया (Gonorrhea) | निसेरिया गोनोही (Neisseria Gonorrhoeae) | नर में-मूत्रमार्ग का संक्रमण, मूत्र मार्ग से श्वेत गाढ़े द्रव का स्राव व मूत्र विसर्जन में पीड़ा। मादा में-गर्भाशय ग्रीवा (Cervix) में संक्रमण तथा मूत्र त्यागने में जलन व दर्द। |
3. हर्पीज जेनाइटेलिस (Herpes genealis) | एच एस वी-2 (डी एन ए) वाइरस (HSV-2, DNA Virus) | नर में शिश्नमुंडछद (Prepuce), शिश्नमुंड (Glans) व शिश्न पर पीड़ा युक्त फफोले मादा में-भग द्वार (Vulva) एवं योनि (Vagina) के ऊपरी भाग में फफोले |
4. ट्राइकोमोनियासिस (Trichomoniasis) | ट्राइकोमोनास वेजाइनेलिस (Trichomonas Vaginalis) | योनि से हरित-पीत स्राव (Greenish-Yellow Vaginal discharge) |
5. क्लेमाइडियेसिस (Chlamydiasis) | क्लेमाइडिया ट्रेकोमैटिस (ChlamydiaTrachomatis) | मूत्र मार्ग में पुनरावर्ती पीड़ा व संक्रमण |
6. एड्स (AIDS) | ह्यूमन इम्यूनोडेफीशियेन्सी विषाणु (HIV) | प्रतिरक्षित तन्त्र का पूर्णतः निष्क्रिय होना, ज्वर, अतिसार इत्यादि। |
7. जेनाइटल मस्सा (Genital Warts) | मानव पैपिलोमा वायरस (Human Papilloma Virus) | गुदा के आसपास, शिश्न, लेबिया एवं योनि के पास मस्से बनना। |
8. वेजाइनिटिस (Vaginitis) | गार्नेरेला वैजाइनैलिस (Gardnerella Vaginalis) | मादा में योनि से श्वेत-धूसर स्राव |
प्रश्न 7.
यौन संचारित रोग किसे कहते हैं? इनके नाम लिखिए। इनमें से किन्हीं दो रोगों के संचरण के माध्यम, रोग के लक्षण एवं बचने के उपाय लिखिए।
उत्तर:
यौन संचारित रोग (Sexually Transmitted Diseases) – वे रोग जो मैथुन (Sexual intercourse) द्वारा संचारित होते हैं, उन्हें सामूहिक तौर पर यौन संचारित रोग (Sexually transmitted diseases) कहते हैं । इन्हें रतिरोग (Veneral diseases) अथवा जनन मार्ग संक्रमण (Reproductive tract infections) भी कहते हैं।
यौन संचारित रोग (Sexually Transmitted Diseases)- निम्न हैं-
- सुजाक (Gonorrhoea)
- सिफिलिस (Syphilis)
- हर्पीस (Herpes)
- जननिक परिसर्प ( Genital Herpes)
- क्लेमिडियता (Chlamydiasis)
- ट्राइकोमोनसता (Trichomoniasis)
- लैगिंक मस्से (Genital Warts)
- यकृतशोथ – बी (Hepatitis-B)
- एड्स (AIDS)
यकृतशोथ-बी (Hepatitis B ) तथा एच. आई. वी. के संचरण के माध्यम
- संक्रमित व्यक्ति के साझे प्रयोग वाली सूई (टीका)
- शल्य क्रिया के औजार
- संदूषित रक्ताधान (Blood Transfusion)
- संक्रमित माता से गर्भस्थ शिशु ( नर से मादा, मादा से नर, माता से शिशु में जरायु के माध्यम से आदि)
- समलैंगिकता ।
रोग के लक्षण (Symptoms of Diseases) – इन सभी रोगों के शुरुआती लक्षण बहुत ही हल्के-फुल्के होते हैं जो कि जननिक क्षेत्र (Genital region) गुप्तांगों में खुजली, तरल स्राव (Fluid discharge) आना, हल्का दर्द तथा सूजन आदि होते हैं । संक्रमित महिलाओं में लक्षण कभी-कभी प्रकट भी नहीं होते हैं । इसलिए लम्बे समय तक उनका पता ही नहीं चल पाता। इसके साथ ही संक्रमित व्यक्ति समाज के भय से जाँच एवं उपचार भी नहीं करा पाता है ।
इसके कारण आगे चलकर जटिलताएँ उत्पन्न हो जाती हैं । जैसे- श्रोणि-शोथज रोग (Pelvic inflammatory diseases), • गर्भपात (Abortions), मृतशिशु जन्म ( Still-births), अस्थानिक सगर्भता (Ectopic pregnancies ), बंध्यता ( Infertility) अथवा जनन मार्ग (Reproductive tract) का कैंसर (Cancer) हो सकता है । यौन संचारित रोग स्वस्थ समाज के लिए खतरा हैं। यद्यपि सभी लोग इन संक्रमणों के प्रति अतिसंवेदनशील हैं लेकिन 15 से 24 वर्ष की आयु के लोग इन रोगों से ज्यादा ग्रसित हैं ।
निम्न नियमों का पालन करने पर इन रोगों के संक्रमण से बचा जा सकता है-
- किसी अनजान व्यक्ति या बहुत से व्यक्तियों के साथ यौन सम्बन्ध न रखें।
- मैथुन (Sexual intercourse) के समय सदैव निरोध (Condom) का इस्तेमाल करें।
- समलैंगिकता को नकारा जाना चाहिए ।
- सदैव निर्जर्मीकृत सूई का प्रयोग करना चाहिए।
- रक्त आधान में एच. आई. वी. मुक्त रक्त ही स्थानान्तरित करना चाहिए ।
- नशीली दवाओं के रक्त के माध्यम से प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- यदि कोई आशंका है तो तुरन्त ही प्रारम्भिक जाँच के लिए किसी योग्य चिकित्सक से मिलें और रोग का पता चले तो पूरा इलाज कराएँ।
प्रश्न 8.
एक गर्भवती महिला को सगर्भता का चिकित्सीय समापन (MTP) कराने की सलाह दी गयी। उसके डॉक्टर ने जाँच में पाया था कि उस महिला के गर्भ में पल रहा भ्रूण एक ऐसे युग्मनज से परिवर्धित हुआ जो Y-धारक शुक्राणु द्वारा निषेचित हुए X X – अण्डे से बना है। उस महिला को M. T. P. कराने की सलाह क्यों दी गई ?
उत्तर:
इस गर्भवती महिला के गर्भ में पल रहा भ्रूण का चिकित्सीय समापन (MTP) करने की सलाह दी क्योंकि भ्रूण में लिंग गुणसूत्र दो के बजाय तीन और प्राय: XXY होगा। अर्थात् 44 + XXX होगा। क्योंकि अण्डजनन (Oogenesis) की प्रक्रिया में अवियोजन के कारण होता है। यदि अण्डा Y गुणसूत्र युक्त शुक्राणु के साथ मिलता है तो भ्रूण में गुणसूत्र की संख्या 47 (44+XXY) हो जायेगी ।
अर्थात् भ्रूण क्लाईनफेल्टर सिण्ड्रोम (Klinefelter’s Syndrome) से ग्रसित होगा । Y गुणसूत्र की उपस्थिति के कारण, भ्रूण का शरीर लगभग सामान्य पुरुषों जैसा होगा, लेकिन एक अतिरिक्त X गुणसूत्र की उपस्थिति के कारण वृषण छोटे होंगे और इनमें शुक्राणु नहीं बनेंगे। अतः यह नपुंसक होंगे। प्रायः इनमें स्त्रियों जैसे स्तनों का विकास हो जाता है। गाइनीकोमास्टि (Gynaecomastia) औसतन 500 पुरुषों में एक क्लाइनफेल्टर सिन्ड्रोम होता है। इसलिए डॉक्टर द्वारा महिला को M. T. P. कराने की सलाह दी गई।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न-
1. निम्न में से किस तकानीक की सहायता से ऐसी स्वियाँ जो गर्भधारण नहीं कर सकर्तीं, में भूण को स्थानान्तरित किया जाता है? (NEET-2020)
(अ) GIFT एवं ZIFT
(ब) ICSI एवं ZIFT
(स) GIFT एवं ICSI
(द) ZIFT एवं IUT
उत्तर:
(द) ZIFT एवं IUT
2. यौन संचारित रोगों के सही विकल्प का चयन करो। (NEET-2020)
(अ) सुजाक, मलेरिया, जननिक परिसर्प
(ब) AIDS, मलेरिया, फाइलेरिया
(स) कैंसर, AIDS, सिफिलिस
(द) सुजाक, सिफिलिस, जननिक परिसर्प
उत्तर:
(द) सुजाक, सिफिलिस, जननिक परिसर्प
3. निम्न में से किन गर्भनिरोधक तरीकों में हॉमोंन भूमिका अदा करता है? (NEET-2019)
(अ) गोलियाँ, आपातकालीन गर्भनिरोधक, रोध विधियाँ
(ब) स्तनपान, अनार्रव, गोलियाँ, आपातकालीन गर्भनिरोधक
(स) रोध विधियाँ, स्तनपान, अनार्तब, गोलियाँ
(द) CuT गोलियाँ, आपातकालीन गर्भनिरोधक।
उत्तर:
(ब) स्तनपान, अनार्रव, गोलियाँ, आपातकालीन गर्भनिरोधक
4. हॉर्मोन मोचक अंतःगर्भाशयी युकियों का चयन करो- (NEET-2019)
(अ) लिप्पेस लूप, मल्टीलोड 375
(ब) बाल्टस, LNG-20
(स) मल्टीलोड 375 , प्रोजेस्टासर्ट
(द) प्रोजेस्टासर्ट, LNG-20
उत्तर:
(द) प्रोजेस्टासर्ट, LNG-20
5. निम्न में कौनसा यौन संचारित रोग पूर्णतः साध्य नहीं है- (NEET-2019)
(अ) क्लेमिडियता
(ब) सुजाक
(स) लैंगिक मस्से
(द) जननिक परिसमें
उत्तर:
(द) जननिक परिसमें
6. गर्भ निरोधक ‘सहेली’- (NEET-2018)
(अ) एक IUD है।
(ब) मादाओं में एस्ट्रोजन की सान्द्रता को बड़ाती है एवं अण्डोत्सर्ग को रोकती है।
(स) गर्भाशय में एस्ट्रोजन ग्राही को अवरुद्ध करती है एवं अण्डों के रोपण को रोकती है।
(द) एक पश्च-मैधुन गर्भनिरोधक है।
उत्तर:
(स) गर्भाशय में एस्ट्रोजन ग्राही को अवरुद्ध करती है एवं अण्डों के रोपण को रोकती है।
7. स्वस्भ I में दिए गए, यौन संचारित रोगों को उनके रोग कारकों (स्तम्भ II) के साथ सुमेलित कीजिए और सही़ी विकल्प का चयन कीजिए- (NEET-2017)
स्तम्भ-I | स्तम्भ-II |
1. सुजाक | (i) HIV |
2. सिफिलिस | (ii) नाइडिरिया (Neisseria) |
3. जनन मस्से | (iii) ट्रेखोनिया |
4. AIDS | (iv) ह्यामन पैपिलोमा। |
कूट : | 1 | 2 | 3 | 4 |
(अ) | (ii) | (iii) | (iv) | (i) |
(ब) | (iii) | (iv) | (i) | (ii) |
(स) | (iv) | (ii) | (iii) | (i) |
(द) | (iv) | (iii) | (ii) | (i) |
उत्तर:
(अ) | (ii) | (iii) | (iv) | (i) |
8. एक दंपति जिसके पुरुष में शुक्राणुओं की संख्या बहुत कम है, उनके लिए निषेचन की कौन-सी तकनीक उचित रहेगी? (NEET-2017)
(अ) अंतः गभाशय स्थानान्तरण
(ब) गैमीट इन्ट्रा फैल्लोपियन ट्रांसफर
(स) कृत्रिम बीर्य सेचन
(द) अंतः कोशिकीय शुक्राणु निक्षेपण
उत्तर:
(द) अंतः कोशिकीय शुक्राणु निक्षेपण
9. कॉपर मोचित ‘IUD’ कोंपर आयनों का क्या कार्य होता है? (NEET-2017)
(अ) ये शुक्राणुओं की गतिशीलता एवं निषेचन क्षमता कम करते हैं।
(ब) ये युग्मक जनन को रोकते हैं।
(स) बे गभाशशय को रोपण के लिए अनुपयुक बना देते है।
(द) ये अण्डोत्सर्ग को संदमित करते है।
उत्तर:
(अ) ये शुक्राणुओं की गतिशीलता एवं निषेचन क्षमता कम करते हैं।
10. शुक्रवाहक-उच्छेदन के बारे में निम्नलिखित में से कौनसा गलत है? (NEET II-2016)
(अ) शुक्रवाहक को काटकर बांध दिया जाता है
(य) अनुक्फ्रमणीय बंध्यता
(स) बीर्य में शुक्राणु नहीं होते है
(द) पपिड्डीडाइलिस में शुक्राणु नहीं होते है।
उत्तर:
(द) पपिड्डीडाइलिस में शुक्राणु नहीं होते है।
11. एम्नीओसेटेसिस के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौनसा कथन गलत है? (NEET 1-2016)
(अ) इसे छडन सिन्ड्रेम का पता लगाने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
(ब) इसे खांडतालु (क्लेफ्ट पैलेट) का पता लगाने के लिए प्रयुक किया जाता है।
(स) यह आमतौर पर तब किया जाता है जब स्त्री को 14-16 सताह के बीच का गर्भ होता है।
(द) इसे प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण के लिए प्रबुक्त किया जाता है।
उत्तर:
(ब) इसे खांडतालु (क्लेफ्ट पैलेट) का पता लगाने के लिए प्रयुक किया जाता है।
12. निम्नलिखित उपागमों में से कौनसा उपागम किसी गर्भनिरोधक को परिभाषित क्रिया नहीं बताता- (NEET II-2016)
(अ) हॉर्मोनी गर्भनिरोधक | शुक्राणुओं के प्रवेश को रोकते हैं। उसकी दर को धीमा कर देते हैं, अण्डोत्सर्ग और निषेचन नहीं होने देते। |
(ब) शुक्रवाहक उच्छेदन | शुकाणुजनन नहीं होने देते। |
(स) रोध (बैरियर विधियाँ) | निषेचन रोकती है। |
(द) अन्तःगर्भाशयी युक्तियाँ | शुक्राणुओं की भक्ष कोशिकता बढ़ा देती हैं, शुक्राणुओं की गतिशीलता एवं निषेचन क्षमता का मंदन करती हैं। |
उत्तर:
(ब) शुक्रवाहक उच्छेदन | शुकाणुजनन नहीं होने देते। |
13. पात्रे निषेचन द्वारा निमिंत 16 से अधिक कोरकखण्ड्डों (Blasomeres) वाले भ्रूण को स्थानान्तरित कर दिया जाता है- (NEET-2016)
(अ) झालर में
(ब) ग्रीवा में
(स) गर्भाशय में
(द) फैलोपियन नली
उत्तर:
(स) गर्भाशय में
14. एक निःसंत्रान दम्यति को GIFT नामक तकनीक के जरिये बच्चा प्रास करने में मदद की जा सकती है। इस तकनीक का पूरा नाम है- (NEET-2015)
(अ) युग्मक आंतरिक निषेचन और स्थानान्तरण
(ब) जनन कोशिका का आंतरिक फैलोपियन नलिका स्थानान्तरण
(स) युग्मक वीर्य सेचित का फैलोपियन स्थानान्तरण
(द) युग्मक अंतः फैलोपियन नलिका का स्थानान्तरण।
उत्तर:
(द) युग्मक अंतः फैलोपियन नलिका का स्थानान्तरण।
15. निम्नलिखित में से कौन एक होंमोन मोचित करने वाली इंट्रायूटेराइन युकि (आई.यू.डी.) है? (NEET-2014)
(अ) मल्टीलोड-375
(ब) एल.एन.जी-20
(स) ग्रीवा टोपी
(द) वाल्ट।
उत्तर:
(ब) एल.एन.जी-20
16. ट्यूबेक्टोमी बंध्यकरण की एक विधि है जिसमें- (NEET-2014)
(अ) डिबवाहिनी नली का छोटा भाग निकाल या बांध दिया जाता है ।
(ब) अण्डाशय को शस्य क्रिया विधि से निकाल दिया जाता है।
(स) वास डेफरेन्स का छोटा भाग निकाल दिया जाता है या बांध दिया जाता है।
(द) गर्भांशय शल्य क्रिया विधि द्वारा निकाल दिया जाता है।
उत्तर:
(अ) डिबवाहिनी नली का छोटा भाग निकाल या बांध दिया जाता है ।
17. सहायक जनन प्रौद्योगिकी आई,वी,एक. के अन्तर्गत किसका स्थानान्तरण होता है ? (NEET-2014)
(अ) अण्डाणु का फैलोपियन नलिका में
(ब) युग्मनज का फैलोपियन नलिका में
(स) युग्मनज का गर्भाशय में
(द) 16 ब्लास्टोमीयर्स वाले श्रूण का फैलोपियन नलिका में
उत्तर:
(ब) युग्मनज का फैलोपियन नलिका में
18. कृत्रिम वीर्य सेचन से आपका क्या वात्पर्य है? (NEET-2013)
(अ) किसी स्वस्थ दाता के शुक्राणुओं को ऐसी परखनली में स्षानान्तरित का देना जिसमें अण्डाणु मौजूद हों
(ब) पति के शुक्राणुओं को ऐसी परखनली में स्थानान्तरित कर देना जिसमें अण्डाणु मौजूद हों
(स) स्वस्थ दाता के शुक्राणुओं को कृत्रिम तरीके से सीधे ही योनि के भीतर डाल देना।
(द) स्वस्थ दाता के शुक्राणुओं को सीधे ही अण्छाशय के भीतर डाल देना।
उत्तर:
(स) स्वस्थ दाता के शुक्राणुओं को कृत्रिम तरीके से सीधे ही योनि के भीतर डाल देना।
19. जन्म नियंग्नण (बर्थ कंट्रोल) के लिए एक वैध विधि है- (NEET-2013)
(अ) उपयुक्त औरधि द्वारा गर्भपात करवा देना
(ब) आर्तव-चक्र के 10 वें दिन से लेकर 17 वे दिन तक मैधुन से बचन
(स) प्रातःकाल मैथुन करना
(द) मैध्युन के दौरान कालपूर्व स्ललन करना।
उत्तर:
(अ) उपयुक्त औरधि द्वारा गर्भपात करवा देना
20. नीचे दिए जा रहे चित्र में विशिएथत क्या दर्शाया गया है? (CBSE PMT-2012, NEET-2012)
(अ) अण्डाशबी कैंसर
(ब) गभाशायी कैंसर
(स) ट्युबेक्टोमी
(द) बासेक्टोमी
उत्तर:
(स) ट्युबेक्टोमी
21. परखनली शिशु (टेस्टट्यूब्ब बेबी) कार्यक्रम में निम्नलिखित में से किस एक तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है- (NEET-2012, CBSE PMT (Pre)-2012)
(अ) अंतःकोशिकीय द्रव्यी शुक्राणु इन्जेषशन (ICSI)
(ब) अंतःगभांशयी वीर्य सेचन (IUI)
(स) युग्मक अंतः फैलोपी स्थानान्तरण (GIFT)
(द) युग्मनज अंतः फैलोपी स्थानान्तरण (ZIFT)
उत्तर:
(द) युग्मनज अंतः फैलोपी स्थानान्तरण (ZIFT)
22. चिकित्सीय सगर्धता समापन (MTP) को कितने ससाह की गर्भावस्था तक सुरक्षिता माना जाता है? (NEET-2011)
(अ) आठ ससाह
(ब) बारह सताह
(स) अट्ठारह ससाह
(द) हैः सताह
उत्तर:
(ब) बारह सताह
23. वर्तमान समय में भारत में गर्भनिरोध की सर्वाधिक मान्य विधि है- (NEET-2011)
(अ) ट्यूबेक्टॉमी
(ब) डायफ्राम
(स) अन्तःगर्भाशयी युक्तियाँ
(द) सर्वाइकल कैप
उत्तर:
(स) अन्तःगर्भाशयी युक्तियाँ
24. सहेली है- (Kerala PMT-2011)
(अ) महिलाओं के लिए मुखीय गर्भनिरोधक
(ब) महिलाओं के लिए बंध्यकरण की शल्य विधि
(स) महिलाखं के लिए डायफ्राम
(द) नरों में बंध्यकरण की शल्य विधि
उत्तर:
(अ) महिलाओं के लिए मुखीय गर्भनिरोधक
25. कॅपर मोचक अन्तरा-गर्भाशायी युक्तिर्यों (Intra Uterine Device, IUD) से निर्मुक्त होने वाले कॉपर आयन- (NEET-2010)
(अ) गर्भाशाय को रोपण के प्रति अनुपयुक्त बनाते हैं
(ब) शुक्रापुओं के भक्षकाणु क्रिया में वृद्धि करते है
(स) शुक्राणुओं की गति का संदमन करते हैं
(द) अण्डोत्सर्ग को रोकते हैं।
उत्तर:
(अ) गर्भाशाय को रोपण के प्रति अनुपयुक्त बनाते हैं
26. गैमीट इन्ट्रफेलोंपियन ट्रंस्रफर (GIFT) अर्थात् युग्मक अन्तःफैलोपी स्थानान्तरण तक्नीक की सलाह उन महिलाओं के लिए दी जाती है- [NEET-2011, CBSE PMT (Main) 2011]
(अ) जिनकी गर्भारय ग्रीवा नाल इतनी संकीर्ण होती है कि उसमें से शुक्राणु प्रवेश नहीं कर सकते
(ब) जिनमें निषेचन प्रक्रिया के लिए उपयुक्त पर्यावरण उपलब्ध? नहीं हों सकता
(स) जिनमें अण्डाणु नहीं बन सकत्ता
(द) जो भ्राण को गर्भाशय के मीतर बनाए नहीं रख सकती।
उत्तर:
(स) जिनमें अण्डाणु नहीं बन सकत्ता
27. जीवे (In vitro) निषेचन की तकनीक के अन्तर्गत निम्नलिखित में से किसका स्थानान्तरण फैल्लोपियन नलिका में किया जाता है? (NEET-2010)
(अ) केवल भूरण का आठ-कोशिकीय अवस्था तक
(ब) युग्मनज अथवा आठ-कोशिकीय अवस्था तक के प्राकृष्षुण का
(स) बत्तीस-कोशिकीय अवस्था के भ्र्ण का
(द) केवल युग्मनज का
उत्तर:
(ब) युग्मनज अथवा आठ-कोशिकीय अवस्था तक के प्राकृष्षुण का
28. एम्नियोसेण्टेसिस की तकनीक का अनुमोदित डपयोग है- (NEET-2010)
(अ) अजन्मे गभं के लिए लिंग की जाँच
(ब) कृत्रिम बीर्य सेचन
(स) सरोगेट माता के गर्भाशय कें भ्रृण का स्थानान्तरण
(द) आनुवंशिक असामान्यता की जांच
उत्तर:
(द) आनुवंशिक असामान्यता की जांच
29. निम्न में ओरल पिलों का अवयख है- (AFMC-2009)
(अ) प्रोजेस्टेरोन
(ब) अंक्सीटोसिन
(स) रिलेक्सिन
(द) उपयुंक से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) प्रोजेस्टेरोन
30. परखनली शिशु को उत्पग्न करने के लिए भ्रृण को कौनसी अवस्था में स्त्री के इरीर में रोषित किया जाता है ? (CPMT-2009)
(अ) 32 कोशिकीय अवस्था में
(ब) 64 कोशिकीय अवस्था में
(स) 100 कोशिकीय अवस्था में
(द) 164 कोशिकीय अवस्था में
उत्तर:
(अ) 32 कोशिकीय अवस्था में
31. गर्भनिरोधक के सम्बन्ध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए और उनके आगे पूछे जा रहे प्रश्न का उत्तर दीजिए- (CBSE-2008)
(1) प्रथम त्रिमास में चिकित्सीय गर्भ समापन (MTP) सामान्यत: निरापद (खतरे से बाहर) होता है
(2) जब तक माँ अपने शिशु को दो वर्ष तक स्तनपान कराती रहती है तब तक गर्भाधान की सम्भावनाएँ नहीं होती हैं
(3) कॉपर-T जैसी आंतर गर्भाशय युक्तियाँ कारगर गर्भनिरोधक होती हैं
(4) संभोग के बाद गर्भनिरोधक गोलियों का एक सताह तक सेवन करने से गर्भाधान रुक जाता है।
(अ) 2,3
(ब) 3,4
(स) 1,3
(द) 1,2
उत्तर:
(स) 1,3
32. अंडवाहिनी में सीधे ही युग्मक प्रवेश करने की तकनीक है- (Manipal-2004)
(अ) MTS
(ब) IVF
(स) POST
(द) ET
उत्तर:
(ब) IVF
33. मादा में मुखीय गर्भनिरोधक किसे रोकती है- (JK. CMEE-2004)
(अ) अण्डोत्सर्ग
(ब) निषेचन
(स) रोपण
(द) योनि में शुक्राणु का प्रवेश
उत्तर:
(अ) अण्डोत्सर्ग
34. कॉपर-T का कार्य क्या है- (AFMC-2010, BHU-2002)
(अ) विद्लन रोकना
(ब) निषेचन रोकना
(स) उत्परिवर्तन रोकना
(द) गेस्ट्रुलेशन रोकना
उत्तर:
(ब) निषेचन रोकना
35. गर्भनिरोधक गोलियों में प्रोजेस्ट्रोन- (AIPMT-2000)
(अ) अण्डोत्सर्ग रोकता है
(ब) एस्ट्रेजन को बाधित करता है
(स) एन्ड्रोमेट्रियम से युग्मनज के जुड़ाव को रोकता है
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(अ) अण्डोत्सर्ग रोकता है