HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 4 सामाजिक न्याय

Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 4 सामाजिक न्याय Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Political Science Solutions Chapter 4 सामाजिक न्याय

HBSE 11th Class Political Science सामाजिक न्याय Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का क्या मतलब है? हर किसी को उसका प्राप्य देने का मतलब समय के साथ-साथ कैसे बदला?
उत्तर:
एक समाज में हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का यह मतलब है कि वह व्यक्ति क्या पाने का अधिकारी है। उसे वह दे देना ही न्याय है। हर किसी को उसका प्राप्य देने का मतलब समय के साथ-साथ बदला है। प्राचीन काल में गलत व्यक्ति का प्राप्य दंड और सही व्यक्ति का प्राप्य पुरस्कार था। लेकिन यह विचार है कि न्याय में हर व्यक्ति को उसका उचित शामिल है। जो आज भी न्याय की हमारी समझ का महत्त्वपूर्ण अंग बना हुआ है। इसीलिए न्याय की अवधारणाओं में आज यह एक महत्त्वपूर्ण बिंदु है कि मनुष्य होने के नाते हर व्यक्ति का प्राप्य क्या है?

जैसे भारतीय संविधान के अनुसार हर मनुष्य को गरिमा प्रदान की गई है। यदि संविधान के अनुसार सभी व्यक्तियों की गरिमा स्वीकृत है, तो उनमें से हर एक का प्राप्य यह होगा कि उन्हें अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए समान रूप से मूल अधिकार प्राप्त हो एवं अपनी प्रतिभा के विकास और लक्ष्य की पूर्ति के लिए समान अवसर प्राप्त हो तथा कानून द्वारा सभी की गरिमा एवं अधिकारों को सुरक्षित रखा जाए। अत: न्याय के लिए आवश्यक है कि हम सभी व्यक्तियों को समुचित और बराबर महत्त्व प्रदान करें।

HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 4 सामाजिक न्याय

प्रश्न 2.
अध्याय में दिए गए न्याय के तीन सिद्धांतों की संक्षेप में चर्चा करो। प्रत्येक को उदाहरण के साथ समझाइये।
उत्तर:
आधुनिक समाज में प्राय: यह आम सहमति है कि समाज में सभी लोगों को समान महत्त्व दिया जाए। यद्यपि यह निर्णय करना बहुत मुश्किल है कि हर व्यक्ति को उसका प्राप्य कैसे दिया जाए। इस संबंध में निम्नलिखित तीन सिद्धांत दिए गए हैं

1.समकक्षों के साथ समान बरताव का सिद्धांत-यह माना जाता है कि मनुष्य होने के नाते सभी व्यक्तियों में कुछ समान चारित्रिक विशेषताएँ होती हैं। इसलिए वे समान अधिकार और समान बरताव के अधिकारी भी है। आधुनिक राज्यों में व्यक्तियों को जो महत्त्वपूर्ण अधिकार दिए गए हैं, उनमें जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकार शामिल हैं जो नागरिक होने के नाते सभी को समान रूप से प्राप्त हैं एवं राज्य सभी के अधिकारों का समान रूप से संरक्षण भी करता है।

इसके अतिरिक्त समकक्षों के साथ समान बरताव के सिद्धांत का अर्थ यह भी है कि लोगों के साथ वर्ग, जाति, नस्ल या लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाए एवं उन्हें उनके काम और कार्यकलापों के आधार पर जाँचा जाना चाहिए, न कि इस आधार पर कि वे किस समुदाय एवं वर्ग के सदस्य हैं; जैसे यदि स्कूल में पुरुष शिक्षक को महिला शिक्षक से अधिक वेतन मिलता है तो यह अनुचित एवं अन्यायपूर्ण है।

2. समानुपातिक न्याय का सिद्धांत-किसी विशेष स्थिति में हर व्यक्ति के साथ समान बरताव अन्याय हो सकता है; जैसे परीक्षा में शामिल होने वाले सभी विद्यार्थियों को बराबर अंक दे देना पूर्णतः गलत होगा। प्रत्येक विद्यार्थी को उसकी मेहनत, क्षमता और कार्यकौशल के आधार पर अंक मिलने चाहिए तभी उनके साथ न्याय होगा। दूसरे शब्दों में, लोगों को उनके प्रयास के पैमाने और योग्यता के अनुपात में पुरस्कृत करना न्यायसंगत होता है। इसलिए, समाज में न्याय के लिए समान बरताव के सिद्धांत का समानुपातिकता के सिद्धांत के साथ संतुलन बैठाना भी बहुत आवश्यक है।

3. विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल रखने का सिद्धांत यह सिद्धांत सामाजिक न्याय को बढावा देने का एक साधन है। यह समान बरताव के सिद्धांत का विस्तार करता है क्योंकि समकक्षों के साथ समान बरताव के सिद्धांत में यह भी अंतर्निहित है कि जो लोग कुछ महत्त्वपूर्ण संदर्भो में समान नहीं हैं, उनके साथ भिन्न ढंग से बरताव किया जाए; जैसे दिव्यांगता वाले लोगों को कुछ विशेष मामलों में असमान और विशेष सहायता के योग्य समझा जा सकता है।

संविधान में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों के लिए सरकारी नौकरियों में तथा शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले के लिए आरक्षण का प्रावधान इसी सिद्धांत के अंतर्गत हुआ है। इस प्रकार न्याय के उपर्युक्त तीनों सिद्धांतों के बीच उचित सामंजस्य स्थापित करने पर ही शासन द्वारा एक न्यायपरक समाज की स्थापना की जा सकती है।

प्रश्न 3.
क्या विशेष जरूरतों का सिद्धांत सभी के साथ समान बरताव के सिद्धांत के विरुद्ध है?
उत्तर:
किसी समाज में लोगों की विशेष ज़रूरतों को ध्यान में रखने का सिद्धांत समान बरताव के सिद्धांत के विरुद्ध नहीं है, बल्कि यह सिद्धांत समान व्यवहार के सिद्धांत का विस्तार करता है क्योंकि समकक्षों के साथ समान बरताव के सिद्धांत में यह अंतर्निहित है कि जो लोग कुछ महत्त्वपूर्ण संदर्भो में समान नहीं हैं, उनके साथ भिन्न ढंग से बरताव या व्यवहार किया जाए। जैसे यदि दिव्यांगता वाले लोगों को कुछ विशेष परिस्थितियों या मामलों में असमान और विशेष सहायता दी जाती है तो यह पूर्णत: न्यायसंगत कहा जाएगा।

प्रश्न 4.
निष्पक्ष और न्यायपूर्ण वितरण को युक्तिसंगत आधार पर सही ठहराया जा सकता है। रॉल्स ने इस तर्क को आगे बढ़ाने में अज्ञानता के आवरण’ के विचार का उपयोग किस प्रकार किया?
उत्तर:
जॉन रॉल्स एक उदारवादी चिन्तक थे। उन्होंने निष्पक्ष और न्यायपूर्ण वितरण को उचित ठहराया है। वे तर्क देते हैं कि निष्पक्ष एवं न्यायसंगत नियम तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता यही है कि हम स्वयं को ऐसी परिस्थिति में होने की कल्पना करें जहाँ हमें यह निर्णय लेना है। इसी संदर्भ में जॉन रॉल्स ने अज्ञानता के आवरण के विचार का उपयोग किया है। रॉल्स के अनुसार समाज में अपने संभावित स्थान और हैसियत के बारे में हर व्यक्ति पूरी तरह अनभिज्ञ होगा अर्थात् उसे अपने विषय में कोई जानकारी नहीं होगी।

अज्ञानता की हालत में हर व्यक्ति अपने हितों को ध्यान में रखकर फैसला करेगा कि उसके लिए क्या लाभप्रद होगा? इसलिए हर कोई सबसे बुरी स्थिति के मद्देनजर समाज की कल्पना करेगा। स्वयं के लिए सोच-विचारकर चलने वाले व्यक्ति के सामने यह स्पष्ट रहेगा कि जो जन्म से सुविधा-संपन्न हैं, वे कुछ विशेष अवसरों का उपभोग करेंगे।

लेकिन यदि उनका जन्म वंचित समुदाय में होता है, तब वैसी स्थिति में रॉल्स का कहना है कि जब व्यक्ति खुद को इस स्थिति में रखकर सोचेगा तब वह अवश्य ही ऐसे समाज के बारे में सोचेगा जो कमजोर वर्ग के लिए यथोचित अवसर सुनिश्चित कर सके। वह व्यक्ति अवश्य ही संगठन के ऐसे नियमों की सिफारिश करेगा जिससे यथार्थ में पिछड़े वर्ग को लाभ पहुँचे। व्यक्ति के इस प्रयास से दिखेगा कि शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास जैसे महत्त्वपूर्ण सुविधाएँ समाज के सभी उच्च एवं कमजोर वर्ग के लोगों को प्राप्त हो। ‘अज्ञानता के आवरण’ वाली स्थिति की विशेषता है कि यह लोगों को विवेकशील बनाए रखती है।

उनमें अपने लिए सोचने और अपने हित में जो अच्छा हो, उसे चुनने की अपेक्षा रहती है। यद्यपि प्रासंगिक बात यह है कि जब वे ‘अज्ञानता के आवरण’ में रहकर चुनते हैं तो वे पाएँगे कि सबसे बुरी स्थिति में ही सोचना उनके लिए लाभकारी होगा। इस प्रकार, अज्ञानता का कल्पित आवरण ओढ़ना उचित कानूनों तथा नीतियों की प्रणाली तक पहुँचने का पहला कदम है। इससे यह प्रकट होगा कि विवेकशील मनुष्य न केवल सबसे बुरे संदर्भ के मद्देनजर चीजों को देखेंगे बल्कि वे यह भी सुनिश्चित करने का प्रयत्न करेंगे कि उनके द्वारा निर्मित नीतियाँ सम्पूर्ण समाज के लिए लाभदायक एवं कल्याणकारी हों।

प्रश्न 5.
आम तौर पर एक स्वस्थ और उत्पादक जीवन जीने के लिए व्यक्ति की न्यूनतम बुनियादी जरूरतें क्या मानी गई हैं? इस न्यूनतम को सुनिश्चित करने में सरकार की क्या जिम्मेदारी है?
उत्तर:
विभिन्न सरकारों और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं की गणना के लिए विभिन्न तरीके सुझाए हैं। लेकिन सामान्यतः इस पर सहमति है कि स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक पोषक तत्त्वों की बुनियादी मात्रा, आवास, शुद्ध पेयजल की आपूर्ति, शिक्षा और न्यूनतम मजदूरी इन बुनियादी स्थितियों के महत्त्वपूर्ण हिस्से होंगे। यद्यपि किसी भी समाज में मनुष्यों की न्यूनतम बुनियादी जरूरतों को सुनिश्चित करने में सरकार की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, जो इस प्रकार हैं-

(1) किसी भी समाज के लिए बेरोजगारी एक सामाजिक अभिशाप है। जब तक सरकार इसका निवारण नहीं करती तब तक लोग अपनी बुनियादी आवश्यकताएँ पूरी करने में असमर्थ होंगे। अतः सरकार का दायित्व है कि वह प्रत्येक व्यक्ति को उसकी योग्यता और आवश्यकता के अनुसार काम दे।

(2) सरकार का यह भी कर्त्तव्य है कि जिन लोगों को रोजगार नहीं मिल सका, उन्हें बेरोजगारी भत्ता दे ताकि वे अपने जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति आसानी से कर सकें।

(3) सरकार शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए ग्रामीण क्षेत्रों के लिए विद्यालयों की स्थापना कराए और उनमें शिक्षकों की नियुक्ति करे ताकि उन इलाकों के सभी बच्चे शिक्षा ग्रहण कर सकें।

(4) सरकार किसानों की दशा सुधारने की दिशा में अहम् भूमिका निभा सकती है। वह गरीब और छोटे किसानों को सस्ती दरों पर ऋण उपलब्ध करा सकती है एवं फसल का उचित मूल्य निर्धारण कर सकती है।

HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 4 सामाजिक न्याय

प्रश्न 6.
सभी नागरिकों को जीवन की न्यूनतम बुनियादी स्थितियाँ उपलब्ध कराने के लिए राज्य की कार्यवाई को निम्न में से कौन-से तर्क से वाजिब ठहराया जा सकता है?
(क) गरीब और जरूरतमंदों को निशुल्क सेवाएँ देना एक धर्म कार्य के रूप में न्यायोचित है।
(ख) सभी नागरिकों को जीवन का न्यूनतम बुनियादी स्तर उपलब्ध करवाना अवसरों की समानता सुनिश्चित करने का एक तरीका है।
(ग) कुछ लोग प्राकृतिक रूप से आलसी होते हैं और हमें उनके प्रति दयालु होना चाहिए।
(घ) सभी के लिए बुनियादी सुविधाएँ और न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित करना साझी मानवता और मानव अधिकारों की स्वीकृति है।
उत्तर
(ख) सभी नागरिकों को जीवन का न्यूनतम बुनियादी स्तर उपलब्ध करवाना अवसरों की समानता सुनिश्चित करने का एक तरीका है।
(घ) सभी के लिए बुनियादी सुविधाएँ और न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित करना साझी मानवता और मानव अधिकारों की स्वीकृति है।

सामाजिक न्याय HBSE 11th Class Political Science Notes

→ न्याय की अवधारणा बहुत प्राचीन है। यह राजनीतिक सिद्धांत में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इसका संबंध व प्रभाव मनुष्य-जीवन के प्रत्येक पक्ष से है। इसलिए मनुष्य न्याय प्राप्त करने के लिए संघर्ष करता आया है और कर रहा है।

→ यहाँ तक कि जब मनुष्य को समाज में न्याय प्राप्त नहीं होता तो वह भगवान से न्याय की मांग करता है। न्याय द्वारा ही व्यक्ति अत्याचार से छुटकारा पा सकता है।

→ न्याय ही अराजकता, कलह, अशांति, भ्रष्टाचार और शोषण की अवस्था को दूर करता है। सामाजिक व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए न्याय की आवश्यकता पड़ती है।

→ न्याय की भावना मानव-जीवन और सामाजिक व्यवस्था की आधारशिला है। न्याय की भावना सामाजिक संबंधों और व्यक्तिगत स्वार्थ के बीच संतुलन पैदा करती है और सामाजिक व्यवस्था को नैतिक आधार प्रदान करके उसे सुदृढ़ करती है।

→ न्याय ही प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपने अधिकारों व स्वतंत्रताओं का लाभ उठाने का वातावरण उत्पन्न करता है। न्याय के बिना किसी का जीवन और संपत्ति सुरक्षित नहीं रह सकते।

→ न्याय के बिना समाज और राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। न्याय-विहीन समाज में तो जंगल जैसा वातावरण ही मिल सकता है। प्रस्तुत अध्याय में हम न्याय के संबंध में चर्चा करेंगे।

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