Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 6 पुष्पी पादपों का शारीर Important Questions and Answers.
Haryana Board 11th Class Biology Important Questions Chapter 6 पुष्पी पादपों का शारीर
(A) बहुविकल्पीय प्रश्न
1. मूल विभज्योतक का प्रशान्त केन्द्र कार्य करता है- (RPMT)
(A) परिपक्वन के दौरान भोजन के भण्डारण स्थल की तरह
(B) वृद्धि हार्मोन के भण्डारण की तरह
(C) विभत्र्योटक की क्षति ग्रस्त कोशिकाओं की पुनः पूर्ति के लिए संचय की तरह
(D) जल अवशोषण के क्षेत्र की तरह।
उत्तर:
(C) विभत्र्योटक की क्षति ग्रस्त कोशिकाओं की पुनः पूर्ति के लिए संचय की तरह
2. काग एथा (crok camblum), काग (cork) तथा द्विपीय वल्कुट (secondary cortex) सामूहिक रूप से कहलाते हैं- (AIPMT)
(A) कागजन
(B) परित्वक
(C) काग
(D) कागज अस्तर ।
उत्तर:
(B) परित्वक
3. वार्षिक वलयों को गिनकर वृक्ष की आयु का पता लगाना कहलाता है- (UPCPMT)
(A) डेण्ड्रोक्रोनोलॉजी
(B) आयुवृद्धि
(C) क्रोनोलॉजी
(D) कॉन्ट्रालोजी
उत्तर:
(A) डेण्ड्रोक्रोनोलॉजी
4. छाल (bark) शब्द सम्बोधित करता है- (RPMT)
(A) फैलम, फैलाडर्म तथा संवहन कैम्बियम को
(B) पैरीडर्म तथा द्वितीयक जाइलम को
(C) कॉर्क, कैम्बियम तथा कॉर्क को
(D) फैलोजन, फैलम, फैलोडम तथा द्वितीयक फ्लोएम को
उत्तर:
(D) फैलोजन, फैलम, फैलोडम तथा द्वितीयक फ्लोएम को
5. कैस्पेरियन स्ट्रिप्स पायी जाती है- (RPMT)
(A) अन्तः स्त्वचा में
(B) बाध्य त्वचा में
(C) बल्कुट में
(D) परिरम्भ में
उत्तर:
(A) अन्तः स्त्वचा में
6. पाश्र्व विभज्योतक निम्नलिखित में वृद्धि हेतु उत्तरदायी होता है। (RPMT)
(A) लम्बाई
(B) मोटाई
(C) मुद्वतक
(D) बल्कुट
उत्तर:
(B) मोटाई
7. ड्यूरोमन पाया जाता है- (UPCPMT)
(A) द्वितीयक वस्तु के भीतरी भाग में
(B) रस वस्तु में
(C) द्वितीयक वस्तु के बाह्य भाग में
(D) परिरम्भ में
उत्तर:
(A) द्वितीयक वस्तु के भीतरी भाग में
8. बन्द संवहन पूलों में नहीं पाया जाता है- (CBSE AIPMT)
(A) भरण ऊतक
(B) कंजक्टिव ऊतक
(C) एधा
(D) मज्जा
उत्तर:
(C) एधा
(B) अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
ऊतक को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
समान संरचना, उत्पत्ति एवं कार्य वाली कोशिकाओं का समूह ऊतक कहलाता है।
प्रश्न 2.
विभज्योतक की क्या विशेषता है ?
उत्तर:
विभाजन की अपार क्षमता का पाया जाना।
प्रश्न 3.
ऊतकों का अध्ययन क्या कहलाता है ?
उत्तर:
औतिकी (Histology) ।
प्रश्न 4.
शीर्षस्थ विभज्योतक कहाँ पाए जाते हैं ?
उत्तर:
मूल तथा प्ररोह के शीर्षो पर ।
प्रश्न 5.
पार्श्व विभज्योतक के उदाहरण लिखिए ।
उत्तर:
संवहन एधा (vascular cambium) तथा कार्क एधा (cork cambium)।
प्रश्न 6.
स्थाई ऊतक के प्रकार लिखिए।
उत्तर:
- सरल ऊतक,
- जटिल ऊतक,
- विशिष्ट ऊतक ।
प्रश्न 7.
मृदूतक कोशिकाएँ जब प्रकाश संश्लेषी हो जाती है तो इसे क्या कहते हैं ?
उत्तर:
[क्लोरेन्काइमा (Chlorenchyma)।
प्रश्न 8.
मृदूतक का प्रमुख कार्य क्या है ?
उत्तर:
भोजन संचय करना ।
प्रश्न 9.
अधिधर्म की उत्पत्ति किससे होती है ?
उत्तर:
त्वचाजन (dermatogen) से ।
प्रश्न 10.
कैस्पेरियन पट्टियाँ कहाँ पायी जाती हैं ?
उत्तर:
जड़ की अन्तस्त्वचा (endodermis ) में।
प्रश्न 11.
अखरोट, नारियल आदि की अन्तःभित्ति कठोर क्यों होती है ?
उत्तर:
दृढ़ कोशिकाओं (stone cells) के कारण ।
प्रश्न 12.
वेलामेन ऊतक किन पौधों में पाए जाते हैं ?
उत्तर:
अधिपादपों (epiphytes ) की जड़ों में।
प्रश्न 13.
वाहिकाएँ किस ऊतक का अवयव हैं
उत्तर;
जाइलम (xylem) का ।
प्रश्न 14.
कम पैरन्काइमा वाला सघन काष्ठ क्या कहलाता है ?
उत्तर:
पिक्नोजाइलिक वुड (Pycnoxylic wood) ।
प्रश्न 15.
वार्षिक वलय किसकी सक्रियता के कारण बनते हैं ?
उत्तर:
कैम्बियम की सक्रियता के कारण।
प्रश्न 16.
रबर क्षीरी ऊतक पाए जाने वाले पौधे का नाम लिखिए।
उत्तर:
मदार, कनेर ।
प्रश्न 17.
किसी वाहिका रहित आवृतबीजी का नाम लिखिए।
उत्तर:
ट्रोकोडेन्ड्रान, हाइड्रिला ।
प्रश्न 18.
कैलिप्ट्रोजन का क्या कार्य है ?
उत्तर:
मूलगोप (root cap) का निर्माण करना ।
प्रश्न 19.
जलीय आवृतबीजियों में प्लावकता प्रदान करने वाले ऊतक का नाम लिखिए।
उत्तर:
ऐरन्काइमा (aerenchyma)।
प्रश्न 20.
ऊतक शब्द का प्रयोग किस वैज्ञानिक ने किया ?
उत्तर:
एन. मयू (grew) ने ।
प्रश्न 21.
एक्सार्क जाइलम तथा पॉलीआर्क संवहन पूल किसमें मिलते
उत्तर:
‘एकबीजपत्री मूल में ।
प्रश्न 22.
भोजपत्र किससे प्राप्त होता है ?
उत्तर:
बेटुला (Batula) नामक पौधे की छाल से ।
प्रश्न 23.
किस एकबीजपत्री पौधे के तने में संवहन पूल एक घेरे में स्थित होते हैं ?
उत्तर:
गेहूँ (Triticum) में ।
प्रश्न 24.
वार्षिक वलय बैण्ड क्या होते हैं ?
उत्तर:
द्वितीयक जाइलम तथा मैड्यूलरी किरणों के छल्ले ।
(C) लघु उत्तरीय प्रश्न – I
प्रश्न 1.
जाइलम के तत्वों के नाम लिखिए।
उत्तर:
वाहिनिकाएँ (tracheids), वाहिकाएँ ( vessels), जाइलम मृदूतक (xylem parenchyma) तथा जाइलम तन्तु (xylem fibres ) ।
प्रश्न 2.
फ्लोएम के तत्वों के नाम लिखिए।
उत्तर:
सहचर कोशिकाएँ (companian cells), चालनी नलिकाएँ (sieve tubes), फ्लोएम पैरन्काइमा (Phloem parenchyma) तथा फ्लोएम तन्तु (phloem fibres ) ।
प्रश्न 3.
यूस्टील किसे कहते हैं ?
उत्तर:
द्विबीजपत्रों तनों में संवहन पूल संयुक्त, कोलेटरल व खुले होते हैं। तथा ये एक वलय में व्यवस्थित होते हैं। दो पूलों के बीच पिथ किरणें होती हैं। यह अतिविकसित स्टील है। इसे यूस्टील (eustele) कहते हैं।
प्रश्न 4.
एटेक्टोस्टील किसे कहते हैं ?
उत्तर:
एक बीजपत्री तनों में संवहन पूल संयुक्त, कोलेटरल व बन्द होते हैं तथा भरण ऊतक में बिखरे रहते हैं। इसे एटेक्टोस्टील ( atactostele) कहते हैं ।
प्रश्न 5.
अरीय संवहन पूल किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जब जाइलम एवं फ्लोएम अलग-अलग समूहों में तथा भिन्न-भिन्न अर्द्धव्यासों पर स्थित होते हैं तब इन्हें अरीय संवहन पूल (radial vascular bundles ) कहते हैं।
प्रश्न 6.
संयुक्त पूल किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जब जाइलम तथा फ्लोएम एक ही पूल में स्थित होते हैं और एक ही अर्द्धव्यास में स्थित होते हैं तो इन्हें संयुक्त पूल (conjoint vascular bundles) कहते हैं।
प्रश्न 7.
अधिचर्म में पाए जाने वाले चार उपांगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- उपत्वचा (cuticle)
- रन्ध्र (stomta)
- रोम (hairs)
- बुल्लीफार्म कोशिकाएँ (bulliform cells) ।
प्रश्न 8.
बाह्यमूल त्वचा क्या होती है ?
उत्तर:
कुछ पौधों की पुरानी मूलों की मूलीय त्वचा नष्ट हो जाने पर वल्कुट की बाहरी कोशिकाएँ क्यूटिन युक्त या लिग्नीभूत होकर रक्षक आवरण बनाती हैं। इसके स्तर को बाह्य मूल त्वचा कहते हैं।
प्रश्न 9.
जड़ के बाहरी स्तर को रोमधर स्तर क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
जड़ का बाहरी स्तर मृदूतक कोशिकाओं का एक कोशिकीय स्तर होता है जिसकी कोशिकाएँ वृद्धि करके रोम बनाती हैं, जिन्हें मूलरोम कहते हैं इसीलिए बाहरी स्तर रोमधर स्तर कहलाता है।
प्रश्न 10.
एक्सार्क तथा एण्डार्क जाइलम में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
एक्सार्क जाइलम में प्रोटोजाइलम परिधि की ओर तथा मेटाजाइलम केन्द्र की ओर होता है, जैसे-जड़ों में, जबकि एण्डार्क जाइलम में प्रोटोजाइलम सदैव केन्द्र की ओर तथा मेटाजाइलम परिधि की ओर होता है, जैसे-तनों में ।
प्रश्न 11.
स्थाई ऊतक क्या होते हैं
उत्तर:
इस श्रेणी के ऊतक ऐसी विभज्योतकी कोशिकाओं से बने होते हैं। जो विभाजन के पश्चात् एक निश्चित स्वरूप और परिमाण ग्रहण कर लेती हैं। ये पतली या मोटी भित्ति वाली जीवित या मृत कोशिकाएँ होती हैं। इनमें विभाजन की क्षमता नहीं होती है।
प्रश्न 12.
भरण विभज्योतक क्या होता है ?
उत्तर:
यह शीर्ष विभज्योतक का प्रमुख भाग होता है। इससे अधस्त्वचा, वल्कुट, अन्तस्त्वचा, परिरम्भ, मज्जा रश्मियाँ तथा मज्जा का निर्माण होता है।
प्रश्न 13.
शान्त क्षेत्र क्या होते हैं ?
उत्तर:
पौधे के जिस भाग की कोशिकाओं में DNA एवं RNA की मात्रा कम होती है एवं विभाजन की क्षमता कम होती है। उसे शान्त क्षेत्र (quiescent centre) कहते हैं।
प्रश्न 14.
पृष्ठाधारी पत्ती की ऊपरी सतह अधिक गहरी क्यों दिखाई देती
उत्तर:
पृष्ठाधारी पत्ती की ऊपरी सतह में स्थित खम्भ मृदूतक (pallisade parenchyma) की कोशिकाएँ परस्पर सटी हुई होती हैं और इनमें हरित लवक अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। अतः हरित लवक की अधिक उपस्थिति के कारण पृष्ठाधारी पत्तियों की ऊपरी सतह अधिक गहरी दिखाई देती है।
प्रश्न 15.
अन्तःकाष्ठ एवं रस-काष्ठ में से कौन-सी अधिक टिकाऊ होती ? कारण बताइए।
उत्तर:
अन्तः काष्ठ (heart wood) रस-काष्ठ (sap wood) की अपेक्षा अधिक टिकाऊ एवं सूक्ष्म जीवियों के लिए प्रतिरोधी होती है। अन्तःकाष्ठ की कोशिकाएँ तेल, रेजिन, गोंद, टेनिन आदि के जमाव के कारण कठोर हो जाती है। जबकि रस- काष्ठ जीवित कोशिकाओं की बनी होती है।
(D) लघु उत्तरीय प्रश्न – II
प्रश्न 1.
मूल शीर्ष तथा प्ररोह शीर्ष में अन्तर लिखिए ।
उत्तर:
मूलशीर्ष तथा प्ररोह शीर्ष में अन्तर (Differences between root apex and shoot apex)
मूल शीर्ष (Root apex) | प्ररोह शीर्ष (Shoot apex ) |
1. यह उपान्तस्थ होता है। | यह शीर्षस्थ होता है। |
2. मूल शीर्ष छोटा होता है । | प्ररोह शीर्ष लम्बा होता है। |
3. शीर्ष पतला होता है। | अपेक्षाकृत चौड़ा होता है। |
4. मूल शीर्ष मूल गोप से ढँका होता है । | शीर्ष पर्ण आद्यकों (leaf premordia) से घिरा होता है। |
5. पार्श्व उपांग नहीं पाए जाते हैं। | पर्ण आधकों (leaf promordia) के रूप में होते हैं । |
6. मूलीय शाखाएँ मूल शीर्ष (root apex) से दूर निकलती है। | प्ररोह शाखाएँ कक्षस्थ कलिकाओं (axillary bud) के रूप में शीर्ष विभज्योतक के बहिर्जात (exogenous) निकलती हैं। |
7. पर्व एवं पर्वसन्धियाँ (nodes) विकसित नहीं होते हैं । | पर्व एवं पर्वसन्धियाँ (nodes) विकसित होते हैं। |
प्रश्न 2.
निम्नलिखित का एक-एक मुख्य कार्य बताइए-
(अ) दृढ़ ऊतक
(आ) वेलामेन
(इ) एधा
(ई) जाइलम
(उ) मृदूतक
(ऊ) चालनी नलिका
(ए) विभज्योतक
(ऐ) वुल्लीफार्म कोशिकाएँ
(ओ) खम्म ऊतक
(औ) वाहिका
(अं) द्वार कोशिकाएँ ।
उत्तर:
(अ) दृढ़ ऊतक ( Sclerenchyma ) – पौधों को यांत्रिक सहारा देता है।
(आ) वेलामेन (Velamen ) – वायु से नमी अवशोषित करता है।
(इ) एधा (Cambium) – पौधों की द्वितीयक वृद्धि में भाग लेता है।
(ई) जाइलम ( Xylem ) – पौधों में जल तथा खनिजों का संवहन करता है ।
(उ) मृदूतक (Parenchyma ) – भोजन संचय करता है।
(ऊ) चालनी नलिका ( Sieve tube ) – संश्लेषित भोजन का करती है।
(ए) विभज्योतक (Meristem) – पौधों की वृद्धि में भाग लेना है।
(ऐ) बुल्लीफार्म कोशिकाएँ (Bulliform cells) – अधिक वाष्पोत्सर्जन (transpiration) से रक्षा करना ।
(ओ) खम्भ ऊतक (Pallisade tissue ) – प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) में भाग लेता है।
(औ) वाहिका (Vessel ) – जल एवं खनिजों का संवहन।
(अं) द्वार कोशिकाएँ (Guard cells) – रन्ध्रों को खोलने एवं बन्द करने का कार्य करती हैं।
प्रश्न 3.
विभाजन के तल के आधार पर विभज्योतकों के प्रकार लिखिए।
उत्तर:
विभाजन के तल के आधार पर विभज्योतक (Meristematic tissue on the basis of Plane of Division ) – ये निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं-
- स्थूल विभज्योतक (Mass meristem) – इनकी कोशिकाओं में विभाजन सभी सम्भव तलों में होते हैं। ये विभाजित होकर अनियमित आकार की संरचनाएँ बना लेती हैं, जैसे- भ्रूणपोष में।
- पटिट्का विभज्योतक (Plate meristem) – इसकी कोशिकाएँ अपनत तल (anticlinal plane) में विभाजित होती है। विभाजन के पश्चात् ये पट्टिका जैसी रचना बनाती हैं। ये एकपंक्तिक फलक का निर्माण करती हैं।
- पट्टी विभज्योतक (Rib meristem) – इन कोशिकाओं में अपनत व परिनत (anticlinal and periclinal) विभाजन होते हैं जिससे अनुदैर्ध्य अक्ष पर पट्टियों का निर्माण होता है।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए-
(क) अष्ठि कोशिकाएँ
(ख) जलरन्ध्र
उत्तर:
(अ) अष्ठि कोशिकाएँ (Stone cells or Scleroids) – अष्ठि कोशिकाएँ समव्यासी (isodimetric) या अनियमित आकृति की निर्जीव कोशिकाएँ हैं जिनकी भित्ति मोटी एवं लिग्निन युक्त होती हैं जिससे इनकी कोशिका गुहा (cell lumen) संकरी हो जाती है। इनकी भित्ति में शाखित या अशाखत गर्त होते हैं।
इन्हें स्क्लीरोटिक कोशिकाएँ ( sclerotic cells) कहते हैं। अष्ठि कोशिकाएँ सख्त बीजों, अष्ठिफलों, के खोल जैसे अखरोट, तथा वृक्षों की छाल के अतिरिक्त द्विबीजपत्री तने व पत्तियों में कार्टेक्स, मज्जा, फ्लोएम में तथा कुछ फलों जैसे नाशपाती नख आदि के गूदे में पायी जाती हैं।
(ब) जलरन्ध्र (Hydathodes) –
रबरक्षीरी ऊतक (Laticiferous tissue ) – यह एक प्रकार का स्रावी (secretory ) ऊतक है जो आवृतबीजियों में बहुतायत से पाया जाता है। इससे एक गाढ़ा या पतला, रंगीन या रंगहीन, चिपिचपा पदार्थ स्त्रावित होता है। यह जल में विलेय या कलिलीय (calloidal ) अवस्था में पड़े कई पदार्थों जैसे- प्रोटीन्स, शर्कराएँ, गोंद, एल्केलॉइडस, एन्जाइम, मण्डकण आदि का मिश्रण है जो हल्का पीला, सफेद, दूधिया या जल के समान हो सकता है ।
इस तरल को रबरक्षीर या लेटेक्स (Latex) कहते हैं। रबर (Hevea) और फाइकस (Ficus ) की कुछ जातियों में मिलने वाले रबरक्षीर से रबर प्राप्त होता है। पपीता में मिलने वाले लेटेक्स में पेपेन (papain) नामक एल्केलॉइड होता है। रबरक्षीरी ऊतकों में मुख्यतः दो प्रकार की रचनाएँ मिलती हैं-
(अ) रबरक्षीरी को शिकाएँ (Laticiferous cells) – ये
लम्बी शाखा युक्त तथा बहुकेन्द्रीय होती हैं। इनका निर्माण भी विभज्योतकों से ही होता है । जैसे -मदार ( Calotropis ), यूफोर्बिया (Euphorbia) आदि ।
(ब) रबर क्षीरी वाहिकाएँ (Laticiferous vessels) – इनका निर्माण अनेक रबरक्षीरी कोशिकाओं के आपस में मिलने से होता है। ये जीवित तथा बहुकेन्द्रीय होती हैं। इनमें अनुप्रस्थ भित्तियाँ नहीं होती हैं। जैसे – पपीता, पोस्त ।
2. ग्रन्थिल ऊतक (Glandular Tissue) – इस ऊतक की कोशिकाएँ ग्रन्थिल (Glandular) होती हैं। ये पौधों के बाहरी तथा भीतरी भागों में पाये जाते हैं, इनसे तेल, गोंद, मकरन्द, विकर, श्लेष्म रॉल, टैनिन आदि अनेक पदार्थों का स्त्रावण होता है। स्थिति के आधार पर ये ग्रन्थियाँ दो प्रकार की होती हैं-
(a) बाह्य ग्रन्थि (External Glands) – य बाह्य त्वचा में मिलती है। कभी-कभी ये बाह्य त्वचा पर निकले छोटे-छोटे रोमों पर होती हैं। इन्हें प्रन्थिल रोम कहते हैं। जलरन्ध्र मन्थिल रोम, मकरन्द, प्रन्थियाँ, कीट भक्षी पौधों की पाचक प्रन्थियाँ आदि इसी प्रकार की प्रन्थियाँ होती हैं।
(i) जलरन्ध्र (Hydathodes) – जलरन्ध्र पौधों की पत्तियों के किनारों या शीर्ष पर पायी जाने वाली वे अन्तः मन्थियाँ हैं जिनसे जल का स्रावण होता है। इस ग्रन्थि के सिरे पर एक छिद्र होता है जो द्वार कोशिकाओं (gaurd cells) द्वारा घिरा रहता है रन्ध्र के नीचे वायु गुहा तथा विशेष मृदूतकीय कोशिकाएँ ( epithem) होती हैं जिनके नीचे के अवकाशों में जल भरा होता है। इनके नीचे जाइलम वाहिकाएँ पायी जाती हैं। यह जल बूंद-बूंद करके पत्तियों के किनारों से टपकता रहता है जैसे-टमाटर, घास आदि ।
(ii) पाचक ग्रन्थियाँ (Digestive glands) – अनेक कीटभक्षी पौधों (insectivorous plants) में पाचक प्रन्थियाँ पायी जाती हैं। इनसे पाचक एन्जाइम स्रावित होते हैं जो कीटों को पचाने का कार्य करते हैं। जैसे – ड्रोसेरा ।
(iii) मकरन्द ग्रन्थियाँ (Nectaries) – मकरन्द प्रन्थियाँ प्रायः अण्डाशय के चारों ओर एक डिस्क के रूप में पायी जाती हैं, जैसे- डिस्कीप्लोरी में ।
(iv) ग्रन्थिल रोम (Glandular hairs) – ये बाह्य त्वचा से निकले छोटे-छोटे रोमों के ऊपर पायी जाती हैं। इनसे गोंद की तरह चिपचिपे पदार्थ का स्त्रावण होता है। जैसे- प्लम्बेगो में ।
(b) आन्तरिक ग्रन्थियाँ (Internal Glands) – ये ऊतकों के अन्दर पायी जाती हैं। नीबू, नारंगी आदि में पायी जाने वाली तेल ग्रन्थि, पाइनस की रेजिन ग्रन्थि पान की म्यूसिलेज, प्रन्थि आदि आन्तरिक प्रन्थि के उदाहरण हैं।
- तेल ग्रन्थि (Oil glands) – इन प्रन्थियों से सुगन्धित तेलों का स्राव होता है। इस प्रकार की ग्रन्थियाँ नीबू नारंगी आदि में होती हैं।
- पाइनस की रेजिन ग्रन्थियाँ- गोंद तथा टेनिंन स्रावित करने वाली ग्रन्थियाँ आन्तरिक प्रन्थियों के उदाहरण हैं ।
प्रश्न 5.
रबरक्षीरी ऊतक कहां पाए जाते हैं ? इससे स्रावित पदार्थ के लक्षण बताइए ।
उत्तर:
रबरक्षीरी ऊतक (Laticiferous Tissue)
यह एक प्रकार का स्रावी (secretory) ऊतक है। आवृतबीजी पौधों में बहुतायत से पाया जाता है। इससे एक प्रकार का तरल स्रावित होता है। यह गाढ़ा या जलीय होता है। यह जल में घुलनशील या कोलॉयडल अवस्था में पाए जाने वाले पदार्थों जैसे प्रोटीन्स, शर्कराएँ, गोंद, ऐल्केलॉयड्स, एन्जाइम्स, मण्ड कण आदि का मिश्रण होता है यह हल्का पीला, सफेद (white) दूध को तरह या जल की तरह हो सकता है। इस तरलं को रबरक्षीर या लेटेक्स (latex) कहते हैं। हेविया (Hevea) और फाइकस (FYeus) की कुछ जातियों से मिलने वाले रबरक्षीर से रबर (rubber) प्राप्त होता है। अफीम पोस्त पादप से स्रावित रबरक्षीर (latex) ही है।
पपीता (Carica) से मिलने वाले रबरक्षीर में पैपेन (papain) नामक एन्जाइम होता है। रबरक्षीरी कोशिकाएँ। रबरक्षीरी ऊतकों में प्रमुखतः दो प्रकार की संरचनाएँ मिलती हैं रबरक्षीरी कोशिकाएँ (Latex cells)-ये लम्बी, शाखायुक्त तथा बहुकेन्द्रकीय होती हैं। ये विभज्योतकों से बनती हैं, जैसे – मदार (Calotropis), यूफोर्बिया (Euphorbia) आदि में। रबरक्षीरी वाहिकाएँ (Latex vessels)-इनका निर्माण अनेक रबरक्षीर कोशिकाओं के जुड़ने से होता है। ये जीवित एवं बहुकेन्द्रकीय होती हैं। इनमें अनुप्रस्थ भित्तियाँ नहीं होती हैं, जैसे-पपीता (Carica), पोस्त (Poppy), हेविया (Hevea), फाइकस (Ficus sp.) आदि।
प्रश्न 6.
वातरन्ध्र क्या है ? सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वार (Lenticel) – द्वितीयक वृद्धि के फलस्वरूप, कार्क एधा (cork cambium) सक्रिय होकर वायुरुद्ध कार्क (cork) बनाती है जिससे जीवित ऊतकों का सम्बन्ध बाह्य बातावरण से समाप्त हो जाता है। कार्क बनने के कारण श्वसन, वाष्पोत्सर्जन आदि जैविक क्रियाओं में बाधा उत्पन्न होती है। कार्क एधा से बाहर की ओर कुछ स्थानों पर तनों में कार्क के स्थान पर ढीली-ढाली मृदूतकीय कोशिकाएँ बनती हैं इन्हें सम्पूरक कोशिकाएँ कहते हैं। अधिक दबाव के कारण बाह्य त्वचा फट जाती हैं। यह संरचना वातरन्ध्र कहलाती है ।
द्वितीयक वृद्धियुक्त तने पर वातरन्ध्र-
- बाह्य स्वरूप,
- काट में संरचना (आवर्द्धित) ।
वातरन्ध्र द्वारा पौधे के उस अंग तथा बाह्य वातावरण से सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। इनके द्वारा गैसों का विनिमय तथा वाष्पोत्सर्जन होता है।
प्रश्न 7.
टायलोसिस क्या है ? समझाइए ।
उत्तर:
अन्तःकाष्ठ (Heart wood) एवं टायलोसिस (Tylosis) – द्वितीयक वृद्धि के फलस्वरुप नया जाइलम या काष्ठ (wood) बनता है और पुराना जाइलम जो केन्द्र की ओर स्थित होता है व्यर्थ हो जाता है। किसी पुराने वृक्ष के कटे स्तम्भ को देखने पर इसका केंन्द्रीय भाग अन्तः काष्ठ (heart wood) कहलाता है । अन्तः काष्ठ की सभी कोशिकाएँ मृत एवं ज्यादा दृढ़ होती हैं। इस भाग की वाहिकाएँ भी अनेक पदार्थों और रचनाओं में बन जाने के कारण रूंध जाती है। तेल, रेजिन, गोंद आदि पदार्थ इनमें बहुतायत में एकत्रित हो जाने के कारण अन्तः काष्ठ अधिक मजबूत तथा गहरे रंग का हो जाता हैं।
जाइलम मृदूतक से वाहिकाओं के गर्तौ (pits) में होकर गुब्बारे की तरह की रचनाएँ बन जाती हैं, इन्हें टायलोसिस (tylosis) कहते हैं। इनमें उपरोक्त पदार्थ भरे होते हैं। ये वाहिकाओं को अवरुद्ध कर देते हैं। अन्तः काष्ठ केवल कंकाल का ही कार्य करता है। इसमें किसी प्रकार का संवहन नहीं होता। यह भाग अधिक मजबूत एवं टिकाऊ होने के कारण फर्नीचर एवं अन्य सामान बनाने के काम आता है।
प्रश्न 8.
मृदूतक तथा दृढ़ ऊतक में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
मृदूतक तथा दृढ़ ऊतक में अन्तर (Differences between parenchyma and sclerenchyma)
मृदूतक (Parenchyma) | दृढ़ ऊतक (Sclerenchyma) |
1. परिपक्व होकर भी जीवित बनी रहती हैं। | परिपक्व होकर मृत हो जाती हैं। |
2. कोशिकाएँ हरितलवक युक्त होती हैं इनके बीच अन्तराकोशीय स्थान पाए जाते हैं । | हरित लवक एवं अन्तराकोशीय स्थान (intercellula spaces ) नहीं पाए जाते हैं। |
3. कोशिकाओं की भित्तियाँ पतली तथा सेलुलोस की बनी होती हैं। | कोशिका भित्तियाँ लिग्नीकृत होने से स्थूलित हो जाती हैं। |
4. इसकी कोशिकाएँ प्रायः समव्यासी होती हैं। | कोशिकाएँ समव्यासी या रेशामय होती हैं। |
5. कोशिकाएँ जल, भोज्य पदार्थ का संचय करती हैं। इसके अतिरिक्त भोजन निर्माण गैस विनिमय, प्लवन आदि में भाग लेती हैं। | यह पौधों को यांत्रिक सहारा प्रदान करती हैं। |
प्रश्न 9.
वार्षिक वलय क्या होते हैं ? समझाइए ।
उत्तर:
वार्षिक क्लय (Annual rings)-बहुवर्षी (perennial) पौधों के तनों में द्वितीयक जाइलम के स्तरों का निर्माण संकेन्द्रित (concentric) होता है। तने की अनुपस्थ काट में ये स्तर वलयों (rings) के रूप में दिखाई देते हैं जिन्हें वृद्धि वलय कहते हैं। कुछ स्थानों की जलवायु में बहुत अन्तर पाया जाता है जिसके कारण संवहन एधा (vascualr cambium) की सक्रियता बहुत प्रभावित होती है। विश्व के शीतोष्ण (temperate) क्षेत्रों में वर्षभर जलवायु एक जैसी नहीं होती है जिससे केम्बियल सक्रियता भिन्न होती है। शरद ऋतु (winter) में एधा (canbuim) का विभाजन बन्द हो जाता है।
बसन्त ऋतु (spring) में यह अपनी सक्रियता पुनः प्राप्त करके विभाजन करना प्रारम्भ कर देता है। इस ॠतु में वृक्षों की वृद्धि स्पष्ट होती है और III पत्तियों का निर्माण अधिक होता है। इसके लिए जल एवं खाद्य पदार्थों के संवहन की आवश्यकता भी बढ़ जाती है। यह कार्य जाइलम तथा फ्लोएम द्वारा होता है, अत: कैम्बियम की सक्रियता से बड़ी अवकाशों वाली वाहिकाओं का निर्माण होता है। इस प्रकार बने द्वितीयक जाइलम को स्र्रिंग काष्ठ (spring wood) कहते हैं।
प्रश्न 10.
रसकाष्ठ एवं अन्तःकाष्ठ पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
रसकाष्ठ एवं अन्तः काष्ठ (Sap wood and Heart wood) – द्वितीयक वृद्धि के फलस्वरूप बना द्वितीयक जाइलम बहुत क्रियाशील होता है जिसकी ट्रेकियल कोशिकाओं द्वारा पानी विभिन्न भागों में जाता है तथा जाइलम की मृदूतकीय कोशिकाओं (parenchymatous cell) में बहुत कम मात्रा में कार्बनिक भोज्य पदार्थ एकत्रित रहता है। पुराना जाइलम केन्द्र की ओर चला जाता है जिसकी कोशिकाओं का जीवद्रव्य नष्ट हो जाता है तथा उनमें कार्बनिक पदार्थ जैसे- गोंद, टेनिन, तेल आदि जमा हो जाते हैं।
ट्रेकियल कोशिकाओं में टायलोसिस ( tylosis) बन जाते हैं। अतः ये बन्द हो जाती हैं तथा पानी का संवहन नहीं करती हैं। इसे अन्तःकाष्ठ (heart wood) कहते हैं। द्वितीयक जाइलम की जीवित मृदूतकीय कोशिकाएँ जो जल संवहन करती हैं जो हल्के रंग की होती हैं रस काष्ठ (sap wood) कहलाती हैं। वाली वाहिकाओं का निर्माण होता है। इस प्रकार बने द्वितीयक जाइलम को स्र्रिंग काष्ठ (spring wood) कहते हैं।
प्रश्न 11.
एक समद्विपार्श्विक पत्ती की आन्तरिक संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
समद्विपार्श्विक या एकबीजपत्री पत्ती की आन्तरिक संरचना (Internal Structure of Isobilateral or monocot leaf)-
एक बीजपत्री पादपों में पत्तियाँ प्रायः ऊर्ध्व (erect) होती है। जिससे इनकी दोनों सतहों पर सूर्य का प्रकाश लगभग बराबर मात्रा पड़ता है। इसीलिए इन पत्तियों में दोनों बाह्यत्वचाओं के बीच स्थित पर्णमध्योतक (mesophyll) केवल एक ही प्रकार का होता है। एक प्रारुपिक (Typical) एक बीजपत्री पत्ती की काट का सूक्ष्मदर्शीय अध्ययन करने पर निम्नलिखित रचनाएँ दिखाई देती हैं-
1. बाह्य त्वचा (Epidermis ) – यह एक कोशिका मोटी परत है जो ऊपरी तथा निचली बाह्य त्वचा ( epidermis ) कहलाती है। दोनों ही बाह्य त्वचाओं में रन्ध्र (stomata) उपस्थित होते हैं तथा दोनों ही के ऊपर मोटी क्यूटिकल का आवरण पाया जाता है। ऊपरी बाह्यत्वचा में दो रन्ध्रों के बीच की कोशिकाएँ बड़ी तथा रंगहीन होती है। इन्हें आवर्ध त्वक कोशिका (bulliform cells) अथवा मोटर सेल्स (motor cells) कहते हैं।
2. पर्णमध्योतक (Mesophyll) – यह दोनों बाह्य कोशिकाओं के बीच पाया जाने वाला ऊतक है। सम्पूर्ण पर्णमध्योतक (mesophyll) केवल स्पंजी पैरन्काइमा का बना होता है। इसकी कोशिकाएँ विभिन्न आकारों वाली होती हैं तथा इनमें पर्ण हरिम (Chlorophyll) प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। ऊपरी तथा निचली बाह्य त्वचाओं में स्थित रन्ध्रों के नीचे अधोरन्ध्री कोष्ठ पाए जाते हैं।
3. संवहन पूल (Vascular bundles ) – प्रत्येक संवहन पूल मृदूतकीय पूलाच्छद (parenchymatous bundle sheath) से घिरा हुआ होता है। संवहन पूल विभिन्न आमाप के बहिपोषवाही (collateral) और अवर्धी (closed) होते हैं। बड़े पूलों के ऊपर व नीचे दोनों ओर दृढ़ोतक का समूह होता है। मूलाच्छद एक प्रकार के संचयी ऊतक का कार्य करता है। इसकी कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट तथा मण्ड कण पाए जाते हैं।
प्रश्न 12.
मूल तथा तने की आन्तरिक संरचना में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
जड़ (root) तथा तना (stem) की आन्तरिक संरचना में अन्तर-
जड़ (root) | तना (stem) |
1. बाबत्वचा को एपीब्लेमा कंहते हैं जिस पर उपचर्म (culticle) का प्रायः अभाव होता है। | 1. बाहा त्वचा को एपीडर्मिस कहते हैं। इस पर उपचर्म (cuticle) पायी जाती है। |
2. मूलीय त्वचा (epiblend) से अनेक एक कोशिकीय रोम निकलते हैं। | 2. बाहा त्वचा (epidermis) पर बहुकोशिकीय रोम मिलते हैं । |
3. कारेंक्स की कोरिकाएँ हरितलवक (chloroplasts) रहित होती हैं। | 3. तरुण तनों के काटेंक्स में हरित लवक (chloroplasts) होते हैं किन्तु पुराने तर्नों में नहीं। |
4. अन्तस्वचा अंक विकसित होती है। | 4. अन्तस्वचा (endodermis) कम विकसित। एकबीजपत्री में अनुपस्थित। |
5. संवह्न पूल(vascular bundles) अरीय होते हैं। | 5. संवहन पूल (Vacular bundles) संयुक्त, कोलेटरल या बाइकोलेटरल या कमी-कभी संकेन्द्री (concentric) होते हैं। |
6. जाइलम एक्सार्क होता है। | 6. जाइलम एण्डार्क होता है। |
7. मूल शीर्ष की संरचना सरल होती है। | 7. प्ररोह शीर्ष की संरचना जटिल होती है। |
प्रश्न 13.
एकबीजपत्री पत्ती तथा द्विबीजपत्री पत्ती की आन्तरिक संरचना में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
एकबीजपत्री पत्ती तथा द्विबीजपत्री पत्ती की आन्तरिक संरचना में अन्तर-
एकबीजपत्री पत्ती (Monocot leaf) | द्विबीजपत्री पती (Dicot leaf) |
1. समद्विपार्श्विक (isobilateral) पत्ती होती है। | 1. पृष्ठाधारी (dorsoventral) पत्ती होती है। |
2. इसमें दोनों बाह्य त्वचा समान होती हैं। | 2. इसमें दोनों बाह्य त्वचा भिन्न-भिन्न होती हैं। |
3. रन्ध्र दोनों सतहों पर समान रूप से मिलते हैं। | 3. रन्ध्र प्रायः निचली बाह्य त्वचा पर मिलते हैं। |
4. बाह्म त्वचा में बुल्लीफार्म कोशिकाएँ मिलती हैं। | 4. नहीं मिलती हैं। |
5. दोनों अधिर्मों पर क्यूटिकल समान होती हैं। | 5. दोनों अधिचमों पर क्यूटिकल समान नहीं होती। |
6. पर्णमध्योतक की सभी कोशिकाएँ समान होती हैं। | 6. पर्णमध्योतक, खम्भ मूदूतक तथा स्पंजी मृदूतक में विभेदित होता है। |
7. पर्णमध्योतक में छोटे अन्तरा कोशिकीय स्थान होते हैं। | 7. स्पंजी मृदूतक में बड़े-बड़े अन्तरा कोशिकीय स्थान होते हैं। |
8. इसमें बंडल शीथ की कोशिकाओं में हरित लवक मिल सकते हैं। | 8. बण्डल शीथ (bundle sheet) कोशिकाओं में हरित लवक नहीं मिलते हैं। |
9. इसमें संवहन पूल (V.B.) के ऊपर तथा नीचे केवल दढ़ ऊतक पाया जाता है। | 9. इसमें मुख्य संवहन पूल (V.B.) के ऊपर तथा नीचे मृदूतक या स्थूलकोण ऊतक अधिचर्म तक पाया जाता है। |
प्रश्न 14.
पौधों के तनों से उतरने वाली छाल क्या है ? समझाइए ।
उत्तर:
छाल (Bark) – कार्क एधा के बाहर अपारगम्य कार्क (cork) निर्मित होने से इससे बाहर के सभी ऊतक प्रायः मृत हो जाते हैं। संवहन धा एवं कार्क एधा की सक्रियता के फलस्वरूप तने की मोटाई बढ़ती रहती है। इस प्रकार अन्दर से बाहर की ओर एक दबाव उत्पन्न होता है। इस दबाव को मृत कार्क कोशिकाएँ सहन नहीं कर पाती हैं तो ये तिरक जाती हैं और सूख कर तनों पर खुरंट जैसी रचना बनाती हैं इन स्तरों को छाल (bark) कहते हैं।
प्रश्न 15.
संवहन एथा तथा कार्क एधा में अन्तर लिखिए ।
उत्तर:
संवहन एथा तथा कार्क एधा में अन्तर (Differences between vascular cambium and Cork cambium)-
संवहन एधा (Vascular cambium) | करके एथ (Cork camblum) |
1. यह जाइलम तथा फ्लोएम के बीच स्थित होती है। | 1. यह द्वितीयक वृद्धि के समय वल्कुट (cortex) या परिरम्भ कोशिकाओं के पुनः सक्रिय होने से बनती हैं। |
2. उत्पत्ति के आधार पर संवहन एधा (vascular cumbium) प्राथमिक तथा अन्तरा पूलीय एधा (intrafascicular cambium) द्वितीयक होती है । | 2. उत्पत्ति के आधार पर कार्क एधा (cork cambium) द्वितीयक होती है। |
3. इससे केन्द्र की ओर द्वितीयक जाइलम तथा परिधि की ओर द्वितीयक फ्लोएम बनता है। | 3. कार्क एधा से केन्द्र की ओर द्वितीयक वल्कुट (cortex) तथा परिधि की ओर कार्क बनता है। |
प्रश्न 16.
वायु ऊतक क्या होते हैं ? ये किन पौधों में मिलते है ?
उत्तर:
वाय ऊतक (Aerenchyma ) – कभी-कभी मृदूतक कोशिकाओं में जब अपेक्षाकृत बड़े अन्तरकोशिकीय स्थान पाए जाते हैं जिनमें वायु भरी होती है तब इसे वायु ऊतक या एरन्काइमा कहा जाता है। ये जलोद्भिद् पादपों जैसे जलकुम्भी (Eichomia) हाइड्रिला (Hydrilla) कैना (Canna) आदि पौधों में पाए जाते हैं। इनका प्रमुख कार्य इन पादपों को प्लावकता प्रदान करना तथा वातन है।
प्रश्न 17.
पौधों में वितरण के आधार पर रन्ध्रों के प्रकार बताइए। उत्तर- वितरण के आधार पर न्यों के प्रकार-पत्तियों पर रन्ध्रों के वितरण के आधार पर रन्ध्र निम्न प्रकार के होते हैं।
- सेब प्रकार (Apple type ) – रन्ध्र केवल पत्ती की निचली सतह पर मिलते हैं; जैसे सेब, अखरोट आदि। ऐसी पत्ती अधोरन्ध्री कहलाती है।
- आलू प्रकार (Potato type)- पत्ती की निचली सतह पर अधिकांश रन्ध्र तथा ऊपरी सतह पर कम रन्ध्र होते हैं; जैसे- आलू, टमाटर, बैंगन आदि ।
- जई प्रकार (Oat type) – पत्ती की दोनों सतहों पर रन्ध्र बराबर पाए जाते हैं; जैसे मक्का, जई आदि। ऐसी पत्तियाँ उभयरन्ध्रीय कहलाती हैं।
- जल लिली प्रकार (Water lily type) – रन्ध्र केवल पत्ती की ऊपरी सतह पर पाए जाते हैं। निचली सतह पानी में रहती है; जैसे तैरने वाले जलोद्भिद । ऐसी पत्तियाँ अधिरन्ध्री (epistomatic) कहलाती हैं।
- पोटेमोजीटान प्रकार (Potamogeton type ) – सामान्यतः पत्तियाँ रन्ध्रहीन होती हैं। यदि रन्ध्र उपस्थित भी हैं तो अक्रियाशील होते हैं; जैसे- पोटेमोजीटान आदि में ।
प्रश्न 18.
पादप ऊतकों का रेखीय वर्गीकरण दीजिए।
उत्तर:
(E) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (निबन्धात्मक)
प्रश्न 1.
स्थायी ऊतक क्या हैं तथा ये कितने प्रकार के होते हैं ? साधारण स्थायी ऊतकों की संरचना एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 2.
पौधों में पाये जाने वाले विभिन्न जटिल स्थायी ऊतकों का सचित्र वर्णन करें।
अथवा
जाइलम तथा फ्लोएम की संरचना का सचित्र वर्णन कीजिये।
उत्तर:
जटिल अतक (Complex Tissues) –
जटिल स्थाई ऊतक अथवा संवहन ऊतक (Complex Permanent or Vascular Tissues) विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं से निर्मित होते हैं। सभी कोशिकाएँ मिलकर किसी कार्य को सामूहिक रूप से सम्पन्न करते हैं। जाइलम (xylem) तथा फ्लोएम (phloem) जटिल स्थाई ऊतक के दो प्रकार हैं। ये पौधों में जल एवं खाद्य पदार्थों के संवहन का कार्य करते हैं, इसलिए इन्हें संवहन ऊतक (vascular tissues) भी कहते हैं।
(A) जाइलम या दारु (Xylem) – यह एक संवहन ऊतक (vascular tissue) है जो पौधों में जल एवं इसमें घुलित खनिज लवणों का संवहन करता है। यह चार प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बनता है जो निम्न प्रकार है-
1. वाहिनिकाएँ (Tracheids) – ये जाइलम की आधारभूत कोशिकाएँ हैं जो अधिक लम्बी तथा संकरी होती हैं। इनके सिरे नुकीले होते हैं। परिपक्व होने पर ये कोशिकाएँ मृत हो जाती हैं तथा इनकी भित्तियाँ लिग्नीकृत (lignified) हो जाती हैं। अनुप्रस्थ काट में देखने पर ये कोणीय प्रतीत होती हैं। भित्तियों पर अनेक गर्त (pits) पाये जाते हैं। वाहिनिकाएँ पौधे के लम्बवत् अक्ष के समान्तर रहती हैं तथा नुकीले सिरों पर दूसरी वाहिनिकाओं से जुड़ती हैं। वाहिनिकाएँ पौधों में जल संवहन के साथ-साथ दृढ़ता भी प्रदान करती हैं।
प्रश्न 3.
विशिष्ट ऊतक कितने प्रकार के होते हैं ? रबर क्षीरी ऊतक का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
रबरक्षीरी ऊतक (Laticiferous tissue) – यह एक प्रकार का स्रावी (secretory) एक गाढ़ा या पतला, रंगीन या रंगहीन, चिपिचपा पदार्थ स्रावित होता है। यह जल में विलेय या कलिलीय (calloidal) अवस्था में पड़े कई पदार्थों जैसे-प्रोटीन्स, शर्कराएँ, गोंद, एल्केलॉइडस, एन्जाइम, मण्डकण आदि का मिश्रण है जो हल्का पीला, सफेद, दूधिया या जल के समान हो सकता है। इस तरल को रबरक्षीर या लेटेक्स (Latex) कहते हैं। रबर (Hevea) और फाइकस (Ficus) की कुछ जातियों में मिलने वाले रबरक्षीर से रबर प्राप्त होता है। पपीता में मिलने वाले लेटेक्स में पेपेन (papain) नामक एल्केलॉइड होता है। रबरक्षीरी ऊतकों में मुख्यत: दो प्रकार की रचनाएँ मिलती हैं-
प्रश्न 4.
आवृत बीजी में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के संवहन पूलों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
का प्राथमिक फ्लोएम के अन्तर्गत दिया गया भाग (IV) का अवलोकन करें।
संवहन पूलों के प्रकार (Types of Vascular Bundles) जाइलम और फ्लोएम की एक दूसरे के सापेक्ष स्थिति के आधार पर संवहन पूल निम्नलिखित चार प्रकार के होते हैं-
1. बदि:पोषवाही (Collateral or Exophloic) – ऐसे संवहन पूल जिनमें जाइलम व फ्लोएम एक ही त्रिज्या पर स्थित हों तथा जाइलम अन्दर की ओर
- वर्धी (Open)-जब जाइलम तथा फ्लोएम के बीच एधा (cambium) उपस्थित होती है, जैसे-द्विबीज पत्री पौधीं में।
- अवर्धी (Closed) – जब जाइलम तथा फ्लोएम के बीच एधा अनुपस्थित हो जैसे एकबीजपत्री पौधे।
2. उभय पोषवाही (Bicollateral or Amphiph- loic) – इस प्रकार के संवहन पूलों में फ्लोएम समूह जाइलम समूह के अन्दर व बाहर, दोनों ओर स्थित होते हैं। बाह्य फ्लोएम समूह व जाइलम के बीच स्थित कैम्बियम पट्टी बाहा कैम्बियम तथा आंतरिक फ्लोएम पट्टी आंतरिक कैम्बियम कहलाती है। इस प्रकार के संवहन पूल कुकरबिटेसी, सोलेनेसी आदि कुल के पौधों में पाए जाते हैं।
3. अरीय (Radial) – इन संवहन पूलों में जाइलम व फ्लोएम समूह अलग-अलग त्रिज्याओं (radius) पर एकान्तर क्रम में व्यवस्थित होते हैं। ऐसे संवहन पूल (vascular boundles) जड़ों में पाए जाते हैं।
4. संकेन्द्री (Concentric) – इन संवहन पूलों (vasclar bundles) में एक प्रकार का संवहन ऊतक दूसरे संवहन ऊतक से पूर्णत: घिरा होता है। ये निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं-
- दासकेन्द्री (Amphicribal or Hadrocentric) – इन संवहन पूलों का मध्य भाग जाइलम का बना तथा इसके चारों ओर फ्लोएम पाया जाता है।
- पोषवाह केन्दी (Amphivasal or Lepto- centric) – इन पूलों के मध्य भाग में फ्लोएम होता है तथा इसके चारों ओर जाइलम होता है।
प्रश्न 5.
एक बीज पत्री जड़ की आंतरिक संरचना का सचित्र वर्णन् कीजिए।
उत्तर:
एकबीजपप्री जड़ (मक्का) की आंतरिक संरचना [Internal Structure of Monocot root (Maize)] एकबीजपत्री जड़ की अनुप्रस्थ काट को सूक्ष्मदर्शी में देखने पर इसमें निम्नलिखित संरचनाएँ दिखाई देती हैं-
1. मूलीय वचा (Epiblema)-जड़ की सबसे बाहरी परत एपीब्लेमा कहलाती है। यह मृदूतकीय कोशिकाओं की बनी होती है। इसमें अनेक एक कोशिकीय मूलरोम (Root hairs) पाये जाते हैं।
2. वस्कुट (Cortex)-यह मृद्तकीय कोशिकाओं (parenchymatous celsl) का बना तथा कई कोशिका मोटा स्तर होता है। इसकी कोशिकाओं के बीच अन्तराकोशिकीय स्थान (intercellular spaces) मिलते हैं। कभी-कभी जब मूलीय त्वचा नृ हो जाती है तब करेंक्स की बाहर की कोशिकाएँ क्यूटिनीकृत (cutinized) होकर एक्सोडर्मिस बनाती है। यह एक रक्षात्मक परत (protective layer) का कार्य करती है।
3. अन्नसवच्चा (Endodermis) – यह रम्भ के चारों ओर एक घेरा बनाती है। इसकी कोशिकाएँ अरीय तथा स्पशरेखीय भित्तियाँ (tegnetial wall) मोटी होती हैं। परन्तु प्रोटो जाइलम के सम्पुख मिलने वाली कोशिकाओं की कोशिका भित्तियाँ पतली होती हैं। इन कोशिकाओं को पाथ कोशिकाएँ कहते हैं।
4. परिरम्घ (Pericycle)-यह मृद्तकीय कोशिकाओं की बनी एक कोशिकीय मोटी परत है। जो एन्डोड़िंस के नीचे मिलती है। कभी-कभी इसमें प्रोटोजाइलम के पास स्क्लेर्क्काइमा कोशिकाएँ या इनके समूह मिलते हैं।
5. संवहन पूल (Vascular bundles)-संवहुन पूल में जाइलम व फ्लोएम समान संख्या में मिलते हैं। पूल संख्या में बहुत अधिक (प्राय: 6 से अधिक) होते हैं। जाइलम एक्सार्क (exarch) होता है। प्रोटोजाइलम व मेटाजाइलम स्पष्ट होते हैं। जाइलम में वलयाकार, सर्पिलाकार, जालिकावत, व गर्ती स्थूलन (thickning) मिलते हैं।
6. पिथ (Pith)- यह केन्द्रीयु भाग में मृदूतकीय कोशिकाओं का बना होता है। इसमें मण्ड कण मिल सकते हैं। पिथ स्पष्ट व विकसित होता है।
प्रश्न 6.
द्विबीज पत्री जड़ की अनुप्रस्थ काट का नामांकित चित्र बनाकर इसकी संरचना का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
उत्तर:
हिबीजजपत्री जड़ की आन्तरिक सरच्चा (Internal Structure of Dicot Root) –
द्विबीजपत्री पौधे (चने) की जड़ की अनुप्रस्थ काट को सूक्ष्मदर्शी में देखने पर उसमें निम्न संरचनाएँ दिखाई देती हैं-
1. मूलीयत्वच्वा (Epiblema) – यह सबसे बाहर स्थित एक कोशिका मोटी परत है। इसकी कोशिकाओं की कोशिका भित्तियाँ पतली तथा ये एक कोशिकीय रोम (unicellular hairs) युक्त होती हैं। इस पर उपचर्म (cuticle) तथा रन्श्रों (stomata) का अभाव होता है।
2. क्क्कुट (Cortex)- यह मूलीय त्वचा के ठीक नीचे पाया जाने वाला कई कोशिका मोटा स्तर होता है। इसकी कोशिकाएँ पतली भित्ति वाली, गोल या अण्डाकार अथवा बहुभुजी (polygonal) होती हैं। कोशिकाओं के बीच बड़े-बड़े अन्तराकोशिकीय स्थान (intercellular spaces) पाये जाते हैं। कोशिकाओं में स्टार्च कण व अवर्णी लवंक (leucoplasts) मिलते हैं। कभी-कभी मूलीय त्वचा नष्ट हो जाती है तो वल्कुट की कोशिकाएँ क्यूटिनीकृत होकर एक्सोडर्मिस (exodermis) बनाती हैं।
3. अन्नस्चचचा (Endodermis)-वल्कुट की भीवरी परत अन्तस्वचा बनाती है जो स्टील बनाती है। इसकी कोशिकाएं ढोलकाकार होती है। इनकी अराय भित्तियों पर कैस्पेरियन पह्टियाँ उपस्थित होती हैं। प्रोटोजाइलम के सम्मुख स्थित अन्तस्त्वचा (endodermis) की कोशिका भित्तियाँ पाथ कोशिकाएँ कहलाती हैं।
4. परिरम्म (Pericycle) – यह मृदूतकीय कोशिकाओं (parenchymatous cells) का बना एक कोशा मोटा स्तर है जो अन्तस्वचा (endodermis) के ठीक नीचे पाया जाता है। इसकी कोशिकाएँ पतली भित्ति वाली (thin walled) होती हैं।
5. संवहन पूल (Vascular bundles)-संवहन पूल अरीय (radial) होते हैं अर्थात् जाइलम तथा फ्लोएम एकांतर अर्धव्यासों पर मिलते हैं। जाइलम एक्सार्क होता है। प्रोटोजाइलम केन्द्र से दूर तथा मेटाजाइलम केन्द्र की ओर मिलता है। संवहन पूलों की संख्या 2 से 6 तक होती है। जाइलम तथा फ्लोएम के बीच एथा (cambium) का अभाव होता है। द्वितीयक वृद्धि के समय ऐधा (cambium) का निर्माण हो जाता है। जाइलम तथा फ्लोएम के बीच में चारों ओर पाया जाने वाला ऊतक संयोजी ऊतक (connective tissue) कहलाता है।
6. मग्दा (Pith)-जड का केन्द्रीय भाग पिथ (pith) कहलाता है तथा यह बहुत कम विकसित होता है, इसकी कोशिकाएँ मृदूतकीय होती हैं।
प्रश्न 7.
एक बीजपत्री तने की अनुप्रस्थ काट का सचित्र वर्णन कीजिये।
उत्तर:
एकबीजपत्री तने की आन्तरिक संरचना (Anatomy of Monocot Stem) – एकबीजपत्री तने (मक्का) की आन्तरिक संरचना में निम्नलिखित भाग दिखाई देते हैं-
1. बहु त्वचा (Epidermis) – यह. सबसे बाहरी परत. है, जो उपचर्म (cuticle) से ढँकी रहती है। इसमें रोम का अभाव होता है। कोमल तनों की बाह्म त्वचा में रन्ध्र (stomata) मिल सकते हैं।
2. अघस्तचा (Hypodermis) – यह दृढ़ोतकी कोशिकाओं की बनी दो-तीन कोशा मोटी परत है। इसमें अन्तराकोशिकीय स्थान अनुपस्थित होते हैं। यह पौधे को यांत्रिक शक्ति प्रदान करती है।
3. भरण ऊतक (Ground Tissue) – यह अधस्तचा से लेकर तने में केन्द्र तक फैला होता है। इसकी कोशिकाएँ मृदूतकीय (parencymatous) तथा अन्तरा कोशिक स्थान युक्त होती हैं। भरण ऊतक में संवहन पूल विखेे रहते हैं। कुछ पौहों जैसे-ोहुँ, घासों में भरण ऊतक का केन्द्रीय भाग खोखला हो जाता है जिसे मज्जा गुहा (pith cavity) कहते हैं।
4. संवहन पूल (Vascular bundles) – संवहन पूल अधिक संख्या में मिलते हैं जो भरण ऊतक में बिखे हुए पाये जाते हैं। संवहन पूल संयुक्त (conjoint), कोलेटरल (collateral) तथा बन्द (closed) होते हैं। प्रत्येक पूल दृणोतकीय कोशिकाओं की बनी एक बलय से घिरा होता है जिसे बण्डल छाद (bundle sheath) कहते हैं।
जाइलम ‘y’ के आकार में व्यवस्थित होते हैं। बड़े आकार व गर्त वाली मेटाजाइलम की दो वाहिकाएँ ‘ y ‘ की दो भुजाएँ बनाती हैं। एक या दो वाहिकाएँ का आधार बनाती हैं। प्रोटोजाइलम के पास कुछ वाहिनिकाओं (trachieds) की भित्तियाँ गलकर एक बड़ी गुहा बनाती हैं। फ्लोएम चालनी नलिका, संहचर कोशिकाओं व अन्य तत्वों से मिलकर बनता है। फ्लोएम का बाहरी टूटा हुआ भाग प्रोटोफ्लोएम तथा भीतरी भाग मेटाफ्लोएम कहलाता है। इसमें पिथ का अभाव होता है।
प्रश्न 8.
द्विबीजपत्री तने की आंतरिक संरचना का सचित्र वर्णन कीजिये।
उत्तर:
द्विबीजपत्री तने की आन्तरिक संरचना (Anatomy of dicot stem) – द्विबीजपत्री तने (सूर्यमुखी का तना) की अनुप्रस्थ काट में निम्नलिखित संरचनाएँ दिखाई देती हैं-
1. बाह़ त्वचा (Epidermis)- यह सबसे बाहरी एक स्तरीय परत है। यह उपचर्म (cuticle) से ढकी होती है। इसमें कहीं-कहीं पर बहुकोशिकीय रोम तथा रन्प्र (stomata) मिलते हैं।
2. वस्कुट (Cortex)- यह बाह्य तचा के ठीक नीचे स्थित होता है इसे तीन भागों में विभेदित किया जा सकता है-
(a) अधस्त्वचा (Hypodermis)-यह कोलेन्काइमी कोशिकाओं से बना 4-5 कोशिका मोटा स्तर है। इसकी कोशिकाएँ जीवित एवं हरितलवक (chloroplasts) युक्त होती है। कोशिका भित्तियाँ कोनों पर पेक्टिनीकृत सेल्युलोस से स्थूलित होती हैं।
(b) सामान्य काटेंक्स (General Cortex) – यह अधस्तचा तथा अन्तस्तचा के बीच का भाग है। यह मृदुतकीय कोशिकाओं का बना काफी चौड़ा भाग है। इसकी कोशिकाए पतली कोशिकाभित्ति वाली, गोल या अण्डाकार एवं अन्तराकोशिकीय स्थान युक्त होती हैं। कार्टेक्स में कहीं-कहीं रेजिन नलिकाएँ (Rasin canals) पायी जाती हैं।
(c) अन्तस्वची (Endo- dermis) – यह वल्कुट की सबसे भीतरी परत है जो वल्कुट को स्टील से अलग करती है । इसकी कोशिकाएँ ठोलकनुमा (barrelshaped) एवं स्टार्चयुक्त होती हैं।
3. स्टील (Stele) – अन्तस्ववचा (endodermis) से घिरा मध्य भाग स्टील कहलाता है। यह परिरम्भ (pericycle), पिथ, पिथ किरणें एवं संवहन पूलों (vascular bundle) से मिलकर बनता है ।
(i) परिरम्भ (Pericycle) – यह स्क्लेर्काइमेटस तथा पैरन्काइमेटस कोशिकाओं से मिलकर बनता है। स्क्लेर्काइमा के समूह अन्तस्वचा एवं संवहन पूल के बीच मिलते हैं। इन समूहों का संबंध संवहन पूल के फ्लोएम से होता है। इस समूह को बास्ट तन्तु (bast fibre) या कठोर बास्ट (hard bast) भी कहते हैं।
(ii) पिथ किरणें (Pith rays) – यह दो संवहहन पूलों के मध्य मृदृतकीय, बड़ी बहुभुजी तथा लम्बी कोशिकाओं से बनी होती हैं।
(iii) पिथ (Pith)-यह तने के मध्य भाग में मिलता है जो मृदूतकी, गोल या बहुभुजी कोशिकाओं (polygonal cells) का बना होता है। इसकी कोशिकाओं के बीच अन्तराकोशिक अवकाश (intercellular spaces) मिलते हैं।
(iv) संवहन पूल (Vascular bundles) – प्रत्येक संवहन पूल जाइलम, फ्लोएम तथा कैम्बयम का बना होता है। संवहन पूल संयुक्त कोलेटराल खुले तथा एक वलय (ring) में व्यवस्थित होते हैं।
प्रश्न 9.
परिचर्म क्या है ? इसमें कितने प्रकार के ऊतक पाये जाते हैं तथा इनका निर्माण कैसे होता है ?
उत्तर:
नमस्कार दोस्तों हमारा आज का प्रश्न है परीक्षण किया है री बीज पत्री तने में परिचय कैसे बनता है तो देखते हैं दोस्तों सर्वप्रथम परीक्षण होता क्या है दोस्तों यह पौधों में पाया जाता है यानी कि यह पौधों में कार्य था कार्य दैनिक दोस्तों कोर्ट कैंबियम की जीवित मृत कोशिका से परिचय बनता है दोस्तों को और कोई था यानी कि कोर को कम दिया कि जो जीवित मृत्यु तक कोशिका से ही परिचय का निर्माण होता है
अधिकतर सुदी बीज पत्री तने में परिचय बनता कैसे हैं तो दोस्तों को रिझाया कागज इसे कहते हैं यानी कि कोर्ट कैंबियम यह कोर को कैंबियम की कोशिका जो होते हैं वह कोशिका विभाजित होकर परिधि की ओर इसकी और परिधि की तरफ या परिधि की ओर जो कोशिका का निर्माण करती है खुशी को बनाती हैं वे से बुरी युक्त होता है यानी कि शबुरी नाइस होती है और इससे बुरी नियत कोशिका से
बना यह स्तर कोर्ट या इसे से लंबी कहते हैं और कोर कैदा यानी कि कोर्ट को पीएम से भीतर की ओर जो बनने वाली मरुधर की कोशिका होती हैं वह कोशिका भित्ति एक्वल कुटिया सिलोडर्म का निर्माण करती है फिर ऑर्डर में बनाती हैं और से लाभ तथा यानी कि कोर्ट और कोर्ट कैंबियम और इसके अतिरिक्त दीदी अक्कलकोट यह सब मिलकर परिजनों का निर्माण करती हैं परिजनों को बनाती हैं तो दोस्तों हमने देखा कि और कोई ध्यान की कोर को हम भी उनकी जीवित मृत कोशिका से परिचय धन्यवाद दोस्तों आशा करता हूं आपको यह उत्तर जरूर समझ में आया होगा ।
प्रश्न 10.
नामांकित चित्रों की सहायता से द्विबीजपत्री पौधे की जड़ में पायी जाने वाली द्वितीय वृद्धि का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
द्वितीयंक वृद्धि (Secondary growth)-शीर्षस्थ विभज्योतक की कोशिकाओं के विभाजन, विभेदन और परिवर्द्धन के फलस्वरूप प्राथमिक ऊतकों का निर्माण होता है। अतः शीर्षस्थ विभज्योतक के कारण पौधे की लम्बाई में वृद्धि होती है। इसे प्राथमिक वृद्धि कहते हैं। द्विवीजपत्री आवृतबीजी तथा अनावृतबीजी काष्ठीय पौधों में पार्श्व विभज्योतक के कारण तने तथा जड़ की मोटाई में वृद्धि होती है। इस प्रकार मोटाई में होने वाली वृद्धि को द्वितीयक वृद्धि (secondary growth) कहते हैं।
जाइलम और पलोएम.के मध्य विभज्योतक को संवहन एघा (vascular cambium) तथा वल्कुट या परिरम्भ में विभज्योतक को कॉर्क एधा (cork cambium) कहते हैं। द्विबीजपत्री. जड़ में द्वितीयक वृद्धि (Secondary Growth in Dicot Root) जड़ों में प्राथमिक एधा (cambium) नहीं होती है। द्विबीजपत्री जड़ों में द्वितीयक एधा दो प्रकार की होती है ।
I. संवहन एधा (vascular cambium) तथा
II. कॉर्क कैम्बियम (cork cambium)
I. संवहन एधा का निर्माण तथा क्रियाशीलता (Formation and Activity of Vascular Camblum).
पौधे की आयु एक वर्ष हो जाने के पश्चात् अरीय संवहन बण्डल में फ्लोएम के नीचे स्थित मर्दूतकीय संयोजक ऊतक.को कोशिकाएँ विभज्योतकी (meristematic) होकर वक्राकृति द्वितीयक संवहन एथा (secondary vascular cambium) बनाती हैं। आदिदारु (protoxylem) के बाहर स्थित परिरम्भ की कोशिकाएं भी विभज्योतको (meristematic) होकर संवहन एधा बनाती हैं। इसके फलस्वरूप द्वितीयक संवहन एघा का एक लहरदार वलय बन जाता है।
II कॉर्क कैम्बियम का निर्माण और क्रियाशीलता (Formation and Activity of Cork Cambium)
द्वितीयक संवहन ऊतक बनने के कारण बाहरी ऊतकों पर दबाव बढ़ जाता है तो प्रायः परिरम्भ की कोशिकाओं का एक घेरा सक्रिय होकर विभज्योतक हो जाता है। इसके फलस्वरूप कॉर्क एया (cork cambium) बनती है।
कॉर्क एधा कोशिकाओं के विभाजन से बाहर की ओर कॉर्क (cork) और केन्द्र की ओर द्वितीयक कॉर्टेक्स (secondary cortex) का निर्माण होता है।. कॉर्क की कोशिकाएँ सुबेरिनयुक्तं (suberinized) होती हैं। अत: अपारगम्य कॉर्क के बाहर के सभी ऊतक (वल्कुट, अन्तस्त्वचा, बाह्यत्वचा) मृत हो जाते हैं। मृत ऊतक छाल (bark) बनाते हैं। द्वितीयक कॉर्टेक्स की कोशिकाएँ मृदूतकीय तथा जीवित होती हैं। कॉर्क एधा से स्थान-स्थान पर वांतरन्ध्र lenticels) बनते हैं।
प्रश्न 11.
मृदूतक, स्थूल कोण ऊतक तथा दृढोतक का तुलनात्मक वर्णन कीजिये ।
उत्तर:
सरल ऊतक (Simple Tissues) –
1. मृदूतक या पैरन्काइमा (Parenchyma) – यह ऊतक पौधे के लगभग सभी अंगों का आधार बनाता है। यह मूल तथा स्तम्भों के कार्टेक्स (cortex), पिथ (pith), परिरम्भ (pericyle) में पत्तियों के पर्णमध्योतक (mesophyll) में तथा फलों के गूदे तथा बीजों के भ्रूणपोष में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त यह प्राथमिक व द्वितीयक संवहन ऊतक व मज्जा किरणों (medullary rays) का भी प्रमुख घटंक है। यह ऊतक पतली कोशिका भित्ति वाली जीवित कोशिकाओं का बना होता है। कोशिका भित्ति सेलुलोस की बनी होती है। कोशिकाएँ समव्यासी (isodiametric), जैसे-गोल, अण्डाकार या कोणीय होती हैं।
कोशिकाओं के मध्य अन्तराकोशिकीय स्थान (intercellular space) पाए जाते हैं। मांसल पौधों की पत्तियों में इनके बीच ये स्थान नहीं पाए जाते हैं। मृदूतकीय कोशिकाओं में एक बड़ी केन्द्रीय रिक्तिका (central vacuole) होती है। मृदूतक विभिन्न आवास रुपों तथा विशिष्ट कार्यों से सम्बद्ध पादप अंगों में विभेदन दर्शाते हैं। जलीय पौधों के मृदूतक में अन्तरा कोशिक अवकाश सबसे अधिक विकसित होते हैं। इनमें पौधे के सभी अन्तराकोशिक अवकाश मिलकर एक सरल वातन तन्त्र (aeriation system) बनाते हैं। इस ऊतक को वायूतक (aerenchyma) कहते हैं।
यह पौधों को उत्लावकता (buyoncy) प्रदान करता है । जिन मृद्तरकों में पर्णहरिम (chlorophyll) उपस्थित होता है, हरित ऊतक (chlorenchyma) कहलाते हैं। जब मृदूतक विभिन्न पदार्थों के संम्रह का कार्य करते हैं तो ये संचयी पैरेन्काइमां (storage parenchyma) कहलाते हैं। कुछ मृदूतकी कोशिकाएँ अनेक प्रकार के पाचक विकर (digestive enzymes) स्रावित करने लगती हैं, तब इन्हें इडियोब्लास्ट (Idioblasts) कहते हैं।मृदूतक के कार्य (Functions of Parenchyma)
- ये भोज्य पदार्थों एवं जल का संप्रह करते हैं।
- शाकीय पौध़ों में इनकी स्फीतिता (turgidity) यांत्रिक शक्ति प्रदान करती है।
- इनकी कोशिकाओं में जब हरित लवक (chloroplasts) उत्पन्न हो जाते हैं तब इन्हें क्लोरन्काइमा (chlorenchyma) कहते हैं जो प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) में भाग लेते हैं।
- जब इनकी कोशिकाओं के बीच बड़े-बड़े वायु आशय (air spaces) बन जाते हैं तो इन्हें एन्काइमा (aerenchyma) कहते हैं और ये जलीय पौधों को प्लावकता (buyoncy) प्रदान करते हैं।
- कभी-कभी इनकी कोशिकाएँ विभाजित होकर घाव भरने का कार्य करती हैं।