HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ

Haryana State Board HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class History Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ

निबंधात्मक उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पुनर्जागरण से आपका क्या अभिप्राय है? इसके उत्थान के क्या कारण थे?
उत्तर:
I. पुनर्जागरण का अर्थ

पुनर्जागरण का अंग्रेज़ी रूप रेनेसाँ है जो कि मूल रूप से फ्रांसीसी भाषा का शब्द है। रिनेसाँ का अर्थ है फिर जागना। इतिहास में इसे नया जन्म, नई जागृति, बौद्धिक चेतना तथा सांस्कृतिक जागृति के नामों से भी जाना जाता है। प्रसिद्ध इतिहासकार बी० के० गोखले के अनुसार, “शाब्दिक रूप में पुनर्जागरण से अभिप्राय बाहरी किसी एजेंसी के नियंत्रण के बिना विचारों एवं उस पर कार्य करने की स्वतंत्रता है।”

II. पुनर्जागरण के उत्थान के कारण

पुनर्जागरण के उत्थान के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे

1. सामंतवाद का पतन (Decline of Feudalism):
सामंतवाद के पतन ने पुनर्जागरण की आधारशिला तैयार की। मध्यकालीन समाज में सामंतवाद का व्यापक प्रचलन था। परंतु 14वीं शताब्दी के पश्चात् इसका पतन होना आरंभ हो गया था। इसका पतन मध्य वर्ग की शक्ति के कारण हुआ। इसी मध्य वर्ग ने अपने सम्राटों को सेना के संगठन के लिए आवश्यक धन-राशि प्रदान की थी।

अतः सम्राट् सामंतों पर निर्भर न रहे। व्यापार तथा वाणिज्य में उन्नति होने से मध्य वर्ग के व्यापारियों को बहुत लाभ हुआ। परंतु सामंतों की भूमि के किराये में कोई विशेष वृद्धि न हुई। इस कारण सामंतों को इन व्यापारियों से कर्ज लेने पड़े। इस कर्जे के कारण कई सामंत दीवालिए हो गए और उन्हें अपनी ज़मीनें बेचनी पड़ी। परिणामस्वरूप सामंतवाद को भारी धक्का लगा तथा उसका पतन हो गया।

2. धर्मयुद्ध (Crusades):
11वीं शताब्दी के अंत से लेकर 13वीं शताब्दी के मध्य तक ईसाई मत के पवित्र स्थान जेरुसलम के कारण मुसलमानों तथा ईसाइयों के बीच लगातार युद्ध लड़े गए। इन्हें धर्मयुद्ध का नाम दिया जाता के दौरान पश्चिमी देशों के विद्वान् पूर्वी देशों की सभ्यता के संपर्क में आए। उस समय पूर्वी देशों की सभ्यता पश्चिमी देशों की सभ्यता से प्राचीन तथा विकसित थी। धर्मयुद्धों में भाग लेने वाले व्यक्तियों ने पूर्व के नवीन विचार ग्रहण किये।

इससे उनका बौद्धिक स्तर अधिक उन्नत हो गया। मध्य युग में प्रायः लोगों का विश्वास था कि व्यक्ति के इस लोक तथा परलोक की सभी आवश्यकताएँ केवल चर्च तथा ईसाई धर्म के द्वारा पूर्ण हो सकती हैं। परंतु धर्मयुद्धों से लौटने वाले लोगों ने इस विश्वास का खंडन किया। इस तरह लोगों के मस्तिष्क पर चर्च का प्रभाव कम होने लगा। धर्मयुद्धों के माध्यम से ही यूनान के वैज्ञानिक ग्रंथ, अरबी अंक, बीजगणित, नवीन दिग्दर्शक यंत्र और कागज़ पश्चिमी यूरोप में पहुँचे।

अतः स्पष्ट है कि धर्मयुद्धों ने नवीन विचारों तथा धारणाओं का प्रसार किया और पुराने विचारों, विश्वासों तथा संस्थाओं पर प्रहार किया। फलस्वरूप पुनर्जागरण का प्रारंभ हुआ। विख्यात इतिहासकार बी० के० गोखले का यह कहना ठीक है कि, “धर्मयुद्धों ने ईसाइयों के दृष्टिकोण को परिवर्तित किया तथा उन्हें चर्च के बाहर झांकने के लिए बाध्य किया।”

3. व्यापारिक समृद्धि (Commercial Prosperity):
पुनर्जागरण का एक प्रेरक तत्त्व था-व्यापार का उदय एवं विकास। धर्मयुद्धों के कारण जहाँ नवीन विचारधाराएँ पनपीं, वहाँ यूरोप के पूर्वी देशों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित हुए। अनेक यूरोपीय व्यापारी जेरुसलम तथा एशिया माइनर के तटों पर बस गये। इनके कारण व्यापार में पर्याप्त वृद्धि हुई। व्यापारिक समृद्धि के कारण यूरोपीय व्यापारी विभिन्न देशों में पहुंचे।

उन्हें नये विचारों तथा प्रगतिशील तत्त्वों की जानकारी हुई। स्वदेश वापस लौटने पर ये व्यापारी नये विचारों को अपने साथ लाए। व्यापारी वर्ग ने चर्च की आलोचना करके उसके महत्त्व को कम करने का प्रयास किया। चर्च सूद लेने को पाप मानता था, परंतु व्यापारी वर्ग सूद को व्यापारिक उन्नति के लिए आवश्यक समझता था। इसलिए व्यापारियों ने चर्च का विरोध किया।

4. छापेखाने का आविष्कार (Invention of Press):
यूरोप के लोगों ने अरबवासियों से कागज़ बनाने की कला सीखी। पंद्रहवीं शताब्दी से पूर्व कागज़ पर छपाई कठिन भी थी और महँगी भी, परंतु इसके पश्चात् स्थिति में परिवर्तन आया।

1455 ई० में जर्मनी के जोहानेस गटेनबर्ग (Johannes Gutenberg) नामक व्यक्ति ने एक ऐसी टाइप मशीन का आविष्कार किया जो आधुनिक प्रेस की अग्रदूत कही जा सकती है। मुद्रण यंत्र के इस चमत्कारी आविष्कार ने बौद्धिक विकास का द्वार खोल दिया। इस छापेखाने में 1455 ई० में बाईबल की 150 प्रतियाँ छपी। धीरे-धीरे इस

स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन आए। अब पुस्तकें अधिक और सस्ती छपने लगीं। इस प्रकार ज्ञान के प्रसार से अंध विश्वास तथा रूढियों के बँधन ढीले पड़ने लगे और उनमें आत्म-विश्वास जागने लगा। अत: स्पष्ट है कि छापेखाने का आविष्कार पुनर्जागरण का प्रमुख प्रेरक तत्त्व बना। प्रसिद्ध इतिहासकार बी० वी० राव के अनुसार,

“छापेखाने के आविष्कार ने जो यूरोप में पद्रहवीं शताब्दी के मध्य में हुआ था, को सर्वाधिक महत्त्व का माना जाना चाहिए। यदि छापेखाने का आविष्कार न होता तो संभवतः शेष यूरोप में पुनर्जागरण इतनी शीघ्र न फैलता।”

5. कुंस्तुनतुनिया पर तुर्कों का अधिकार (Occupation of Constantinople by the Turks):
1453 ई० में तुर्कों ने पूर्वी रोमन साम्राज्य (बाइजेंटाइन) की राजधानी कुंस्तुनतुनिया पर अधिकार कर लिया था। यह एक युग प्रवर्तक घटना सिद्ध हुई। पहला, कुंस्तुनतुनिया पर तुर्कों का अधिकार हो जाने से यूरोप से पूर्वी देशों में जाने वाले स्थल मार्ग पर अब तुर्कों का अधिकार हो गया। तुर्क लोग व्यापारियों को लूट लिया करते थे।

अत: यूरोप का पूर्वी देशों के साथ होने वाला व्यापार बंद हो गया। अत: यूरोप के लोग किसी नए व्यापारिक मार्ग की खोज के लिए आतर हो उठे। परिणामस्वरूप अमरीका की खोज हुई तथा भारत और पूर्वी देशों में जलमार्ग ढूँढ निकाला गया। दूसरा, कुंस्तुनतुनिया पिछले दो सौ वर्षों से ज्ञान, दर्शन तथा कला का महान् केंद्र था। तुर्कों के लिए तलवार का तो महत्त्व था परंतु उनके लिए ज्ञान की न कोई उपयोगिता थी और न ही कोई महत्त्व।

अत: इस विख्यात नगर से आजीविका की खोज में हजारों यूनानी विद्वान्, दार्शनिक तथा कलाकार इटली, फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैंड आदि देशों में चले गए। वे अपने साथ प्राचीन रोम तथा यूनान का ज्ञान-विज्ञान तथा नई चिंतन पद्धति भी ले गये। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कुंस्तुनतुनिया पर तुर्कों का अधिकार पुनर्जागरण के उत्थान का कारण बना।

6. मंगोल साम्राज्य का उदय (Rise of Mongol Empire):
मंगोल साम्राज्य के उदय से पुनर्जागरण की धारा को बल मिला। तेरहवीं शताब्दी में प्रसिद्ध मध्य एशियाई विजेता चंगेज़ खाँ की मृत्यु हो गई। उसके बाद कुबलई खाँ ने एक विशाल परंतु शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की। इस विशाल मंगोल साम्राज्य में रूस, पोलैंड, हंगरी आदि प्रदेश सम्मिलित थे। यहाँ विद्वानों, धर्म प्रचारकों और व्यापारियों का सम्मान था। इस संपर्क ने विचार-विनिमय और ज्ञान के आदान-प्रदान का मार्ग खोला। इससे यूरोप के लोगों पर काफी प्रभाव पड़ा।

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प्रश्न 2.
किन कारणों के चलते इटली में पुनर्जागरण का जन्म हुआ?
उत्तर:
यूरोप में पुनर्जागरण का वास्तविक आरंभ इटली से हुआ था। इसके पश्चात् यह यूरोप के अन्य देशों में फैला। इटली में पुनर्जागरण के आरंभ के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित
अनुसार है

1. इटली का एक प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र होना (Italy was a famous Trade Centre):
इटली एक प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र था। इटली का विदेशी व्यापार बडा उन्नत था। इटली की स्थिति ने इसे विशिष्टता प्रदान की। मध्यकाल में अरब व्यापारियों का एशियाई सामान इसी देश में बिकता था। यहीं से फिर ये वस्तुएँ अन्य यूरोपीय देशों
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को भेजी जाती थीं। इसके अतिरिक्त उत्तरी यूरोप से आने वाले व्यापारी भी इटली हो कर ही पश्चिम एशिया जाते थे। इस प्रकार इटली एक सुप्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। इटली के इस बढ़ते व्यापार तथा उसकी समृद्धि ने पुनर्जागरण की प्रवृत्तियों को बल प्रदान किया।

2. प्राचीन रोमन सभ्यता का जन्म स्थान (Birth Place of Ancient Roman Civilisation):
इटली में पुनर्जागरण के पनपने का एक अन्य कारण यह भी था कि यह प्राचीन रोमन सभ्यता का जन्म स्थान रहा था। इटली के नगरों में विद्यमान प्राचीन रोमन सभ्यता के अनेक स्मारक आज भी लोगों को पुनर्जागरण की याद दिलाते हैं।

वे इटली को प्राचीन रोम की भाँति महान् देखना चाहते थे। इस तरह प्राचीन रोमन संस्कृति पुनर्जागरण के लिए प्रेरणा का स्रोत सिद्ध हुई। सर्वप्रथम दाँते की रचनाओं में इस प्रेरणा के चिह्न देखने को मिले हैं।

3. ईसाई धर्म का प्रसिद्ध केंद्र (Famous Centre of Christianity):
रोम सारे पश्चिमी यरोपीय ईसाई जगत का केंद्र था। पोप यहीं निवास करता था। कुछ पोप पुनर्जागरण की भावना से प्रेरित होकर विद्वानों को रोम लाए और उनसे यूनानी पांडुलिपियों का लातीनी भाषा में अनुवाद कराया। पोप निकोलस पंचम (1447-1455 ई०) के कार्य सराहनीय हैं।

उसने वैटिकन पुस्तकालय की स्थापना की। संत पीटर का गिरजाघर भी उसने बनाया। कहते हैं कि उसके अधीन लगभग सारा रोम निर्मित हुआ। इन कार्यों का प्रभाव अन्य स्थानों पर भी पड़ना स्वाभाविक था।

4. उपयुक्त राजनीतिक दशा (Favourable Political Condition):
राजनीतिक दृष्टि से इटली पुनर्जागरण के लिए उपयुक्त था। पवित्र रोमन साम्राज्य का पतन हो रहा था। उत्तरी इटली में अनेक स्वतंत्र नगर-राज्यों का उदय हो चुका था। इसके अतिरिक्त इटली में सामंती प्रथा भी अधिक दृढ़ नहीं थी। परिणामस्वरूप इन नगर-राज्यों में स्वतंत्रता एवं स्वच्छंदता का वातावरण था। इससे वहाँ के नागरिकों ने नवीन विचारों का स्वागत किया और नवीन विचारों को जन्म दिया।

5. शिक्षा का प्रसार (Spread of Education):
मध्यकालीन यूरोप में शिक्षा पर धर्म का प्रभाव था। परंतु इटली में व्यापार के विकास के कारण शिक्षा धर्म के बंधनों से मुक्त थी। यहाँ पाठ्यक्रम में व्यावसायिक ज्ञान, भौगोलिक ज्ञान आदि को उपयुक्त स्थान प्राप्त था। परिणामस्वरूप विज्ञान तथा तर्क को बल मिला।

यहाँ मध्यकाल में यूरोप के सर्वप्रथम विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई थी। इनमें बोलोनिया, पादुआ, रोम एवं फ्लोरेंस विश्वविद्यालयों के नाम प्रसिद्ध हैं। इन्होंने इटली के लोगों में एक नई जागृति लाने में उल्लेखनीय योगदान दिया।

6. तुर्कों का कुंस्तुनतुनिया पर अधिकार (Occupation of Constantinople by the Turks):
1453 ई० में तुर्कों ने कुंस्तुनतुनिया पर अधिकार कर लिया। वहाँ के अधिकाँश यूनानी विद्वान्, कलाकार और व्यापारी भाग कर सबसे पहले इटली के नगरों में आए और यहाँ पर आश्रय लिया और कालांतर में वहीं बस गए।

ये विद्वान् अपने साथ प्राचीन यूनानी साहित्य की अनेक अनमोल पांडुलिपियाँ भी लाए। यूरोप के लोगों को इन ग्रंथों में समाए ज्ञान का कोई परिचय नहीं था। इसके अतिरिक्त इन विद्वानों में से अनेक इटली के विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में शिक्षक नियुक्त

प्रश्न 3.
पुनर्जागरण काल में साहित्य के क्षेत्र में हुए विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पुनर्जागरण काल में साहित्य के क्षेत्र में अद्वितीय विकास हुआ। इस काल में यूरोप में अनेक ऐसे विद्वान् हुए जिन्होंने साहित्य के विकास में चार चाँद लगा दिए। उनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. फ्रांसिस्को पेट्रार्क 1304-1374 ई० (Francesco Petrarch 1304-1374 CE):
फ्रांसिस्को पेट्रार्क को पुनर्जागरण का पिता (Father of Renaissance) कहा जाता है। उसका जन्म 1304 ई० में इटली के नगर फ्लोरेंस में हुआ था। उसने अपनी शिक्षा बोलोनिया (Bologna) विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी। उसने अपना अधिकाँश समय प्राचीन लातीनी ग्रंथों के अध्ययन में लगाया।

उसने संपूर्ण यूरोप में मानवतावादी विचारधारा को प्रोत्साहित किया। उसने लौरा (Laura) नामक एक स्त्री जिसे वह बेहद प्यार करता था पर अनेक कविताएँ लिखीं। साहित्य के क्षेत्र में उसके उल्लेखनीय योगदान के कारण उसे 1341 ई० में रोम में ‘राजकवि’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर अरुण भट्टाचार्जी के अनुसार, “वह मानवतावाद को प्रोत्साहित करने वाला प्रथम व्यक्ति था तथा उसका समकालीनों पर गहरा प्रभाव पड़ा।

2. दाँते अलिगहियरी 1265-1321 ई० (Dante Alighieri 1265-1321 CE):
दाँते अलिगहियरी की गणना इटली के महान् कवियों में की जाती है। उसका जन्म 1265 ई० में फ्लोरेंस के एक समृद्ध परिवार में हुआ था। यद्यपि उसका चर्च में पूर्ण विश्वास था किंतु उसने पादरियों के भ्रष्टाचारी जीवन की कटु आलोचना की। उसने अनेक पुस्तकों की रचना की।

इनमें सर्वाधिक उल्लेखनीय डिवाईन कॉमेडी (Divine Comedy) थी। इस काल्पनिक कथा में दाँते ने नर्क तथा स्वर्ग की यात्रा का वर्णन किया है। दाँते के उल्लेखनीय योगदान के कारण उसे ठीक ही प्राचीन एवं आधुनिक दुनिया के मध्य एक पुल माना जाता है। प्रसिद्ध इतिहासकार बी० के० गोखले का यह कहना ठीक है कि, “उसे (दाँते को) ठीक ही पुनर्जागरण साहित्य का सुबह का तारा कहा जाता है।”

3. जोवान्ने बोकासियो 1313-1375 ई० (Giovanni Boccaccio 1313-1375 CE):
जोवान्ने बोकासियो 14वीं शताब्दी का एक महान् साहित्यकार एवं मानवतावादी था। उसका जन्म 1313 ई० में पेरिस में हुआ था। किंतु उसने अपना जीवन फ्लोरेंस में व्यतीत किया था। वह फ्राँसिस्को पेट्रार्क का शिष्य था। वह एक प्रसिद्ध कहानीकार था।

उसकी सबसे महान् रचना का नाम डेकामेरोन (Decameron) था। इसे इतालवी भाषा में लिखा गया था तथा इसमें 100 कहानियों का वर्णन किया गया है। इसके प्रकाशन से उसकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। इन कहानियों में उसने सामंतवाद एवं समाज में फैले नैतिक भ्रष्टाचार का बाखूबी से वर्णन किया है। वास्तव में बोकासियो का गद्य क्षेत्र में वही स्थान है जो पेट्रार्क एवं दाँते का कविता के क्षेत्र में।

4. जोवान्ने पिको देल्ला मिरांदोला 1463-1494 ई० (Giovanni Pico della Mirandola 1463 1494 CE):
वह फ्लोरेंस का एक महान् मानवतावादी था। वह प्लेटो के विचारों से बहुत प्रभावित था। अत: उसने फ्लोरेंस में मार्सिलो फीसिनो (Marsilo Ficino) के साथ मिलकर प्लेटोनिक अकेडमी (Platonic Academy) की स्थापना की।

इसमें विभिन्न विद्वानों एवं लेखकों को गोष्ठियों के लिए आमंत्रित किया जाता था। उसने 1486 ई० में औरेशन ऑन दि डिगनिटी ऑफ़ मैन (Oration on the Dignity of Man) की रचना की। इसमें उसने मानव एवं वाद-विवाद के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।

5. निकोलो मैक्यिावेली 1469-1527 ई० (Niccolo Machiavelli 1469-1527 CE):
निकोलो मैक्यिावेली इटली का एक महान् विद्वान् एवं देशभक्त था। उसका जन्म 1469 ई० में फ्लोरेंस में हुआ था। उसने चर्च में प्रचलित बुराइयों की कटु आलोचना की। वह इटली की दयनीय राजनीतिक स्थिति को दूर कर उसके प्राचीन गौरव को पुनः स्थापित करना चाहता था।

उसने 1513 ई० में दि प्रिंस (The Prince) नामक एक ग्रंथ की रचना की। यह शीघ्र ही बहुत लोकप्रिय हुआ। इसका यूरोप की अनेक भाषाओं में अनुवाद किया गया था। इसमें उसने उस समय इटली में प्रचलित राजनीतिक दशा एवं राजाओं द्वारा प्रशासन में अपनाए जाने वाले नियमों का विस्तृत वर्णन किया है। इस कारण इस ग्रंथ को राजाओं की बाईबल (Bible of the Kings) कहा जाता है। यह ग्रंथ आने वाले शासकों के लिए भी एक प्रेरणा स्रोत रहा।

6. जेफ्री चॉसर 1340-1400 ई० (Geoffrey Chaucer 1340-1400 CE):
जेफ्री चॉसर की गणना इंग्लैंड के महान् कवियों में की जाती है। वास्तव में यह जेफ्री चॉसर ही था जिसे इंग्लैंड में पुनर्जागरण की स्थापना का श्रेय दिया जाता है। उसने 1390 ई० में दि कैंटरबरी टेल्स (The Canterbury Tales) की रचना की। इससे हमें मध्यकालीन इंग्लैंड के समाज की महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।

इस ग्रंथ के अध्ययन से जेफ्री चॉसर की प्रतिभा का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। यह ग्रंथ शीघ्र ही विश्व में बहुत लोकप्रिय हुआ। प्रसिद्ध इतिहासकारों डॉक्टर एफ० सी० कौल एवं डॉक्टर एच० जी० वारेन के अनुसार, “चॉसर का अंग्रेजी भाषा के लिए वही योगदान था जो कि इतालवी भाषा के लिए दाँते एवं पेट्रार्क का था।”

7. सर टॉमस मोर 1478-1533 ई० (Sir Thomas More 1478-1533 CE):
सर टॉमस मोर इंग्लैंड का एक महान् लेखक था। वह इंग्लैंड के जान कोलेट (John Colet) एवं हालैंड के डेसीडेरियस इरेस्मस (Desiderius Erasmus) से बहुत प्रभावित था। उसकी रचना यूटोपिया (Utopia) जिसका प्रकाशन 1516 ई० में किया गया था ने एक तहलका मचा दिया।

इसमें उसने समकालीन समाज तथा शासन में प्रचलित बुराइयों की कटु आलोचना की तथा एक आदर्श समाज की तस्वीर प्रस्तुत की है। इसे लेखक ने लातीनी भाषा में लिखा था। बाद में इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद किया गया।

8. डेसीडेरियस इरेस्मस 1466-1536 ई० (Desiderius Erasmus 1466-1536 CE):
डेसीडेरियस इरेस्मस हालैंड का सर्वाधिक श्रेष्ठ साहित्यकार था। उसने यूनानी एवं लातीनी भाषाओं का गहन अध्ययन किया था। उसने अनेक पुस्तकों की रचना की। इनमें से सर्वाधिक प्रसिद्ध दि प्रेज़ ऑफ़ फॉली (The Praise of Folly) थी।

इसका प्रकाशन 1509 ई० में हुआ था। इसमें उसने चर्च में फैले भ्रष्टाचार का विस्तृत वर्णन किया है। उसने पादरियों के विलासी जीवन की कटु आलोचना की है। इरेस्मस में व्यंग्य कसने की अद्भुत योग्यता थी।

प्रश्न 4.
पुनर्जागरण काल में कला के क्षेत्र में हुए विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पुनर्जागरण काल में कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई। मध्यकाल में कला का अपना स्वतंत्र स्थान नहीं था। इसमें मौलिकता एवं सुंदरता का अभाव था। पुनर्जागरण काल में कला धार्मिक बँधनों से मुक्त हो गई तथा यह यथार्थवादी (realistic) बन गई। वास्तव में कला ने पुनर्जागरण काल में एक नए युग में प्रवेश किया।

1. चित्रकला (Painting):
मध्यकाल में चित्रकला धर्म की जंजीरों से जकड़ी हुई थी। उस समय केवल ईसाई धर्म से संबंधित चित्र ही बनाए जाते थे। ये चित्र बिल्कुल सादा होते थे। इनमें केवल कुछ निश्चित रंगों का ही प्रयोग किया जाता था। इस प्रकार चित्रकला का क्षेत्र सीमित था। पुनर्जागरण काल में चित्रकला के क्षेत्र में एक नई क्राँति आई। इस काल में चित्रकारों ने धार्मिक नियमों का त्याग कर दिया।

उन्होंने मानव जीवन एवं प्राकृतिक दृश्यों से संबंधित अत्यंत सुंदर चित्र बनाए। अब ये गिरजाघरों के लिए नहीं अपितु व्यक्तिगत भवनों की सजावट के लिए बनाए जाने लगे। इनमें मानवतावाद एवं धर्मनिरपेक्षता की झलक स्पष्ट दिखाई पड़ती है। इन चित्रों को पूर्व की तुलना में अधिक रंगीन एवं चटख बनाया गया। अब चित्रकारी के लिए तेल रंगों (oil painting) का प्रयोग किया जाने लगा। ये रंग पक्के होते थे। अब त्रि-आयामी

(1) जोटो 1267-1337 ई० (Giotto 1267-1337 CE):
जोटो इटली का एक महान् चित्रकार था। उसने चित्रकला को एक नई दिशा प्रदान करने में उल्लेखनीय योगदान दिया। उसने अत्यंत सुंदर प्राकृतिक चित्र बनाए। ये चित्र देखने में बिल्कुल सजीव लगते थे। उसका सर्वाधिक प्रसिद्ध चित्र असिसि (Assis) था। इसमें बाल ईसा मसीह को दिखाया गया है।

उसने चर्च की दीवारों पर भी अनेक चित्र बनाए। उसने चित्रों की पृष्ठभूमि के लिए कुछ नए रंगों का प्रयोग किया। उसके चित्रों ने आने वाले चित्रकारों को एक नई प्रेरणा दी।

(2) लियोनार्डो दा विंसी 1452-1519 ई० (Leonardo da Vinci 1452-1519 CE):
लियोनार्डो दा विंसी बहुमुखी प्रतिभा का व्यक्ति था। वह विश्व में एक चित्रकार के रूप में अधिक लोकप्रिय हुआ। उसका जन्म इटली के फ्लोरेंस नगर में 1452 ई० में हुआ था। उसने अपने जीवनकाल में अनेक चित्र बनाए।

इन चित्रों को देख कर उसकी प्रतिभा का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। उसके बनाए चित्रों मोना लीसा (Mona Lisa) एवं दि लास्ट सपर (The Last Supper) ने विश्व ख्याति प्राप्त की।

ये चित्र देखने में बिल्कुल सजीव लगते हैं। मोना लीसा एक साधारण स्त्री का चित्र है। इस चित्र को बनाने में लियोनार्डो को चार वर्ष लगे। इस चित्र में मोना लीसा की मुस्कान इतनी मधुर है कि इसे देखने वाला व्यक्ति आज भी चकित रह जाता है। प्रसिद्ध इतिहासकार बी० के० गोखले के शब्दों में, “मोना लीसा एक ऐसा चित्र है जिससे उत्कृष्ठ चित्र आज तक नहीं बनाया जा सका।”

दि लास्ट सपर नामक चित्र मिलान स्थित सेंट मेरिया के गिरजाघर की दीवार पर बनाया गया है। इसमें ईसा मसीह को अपने साथियों के साथ एक मेज़ पर अपना अंतिम भोजन करते हुए दिखाया गया है। यह चित्र उच्च कोटि की मानवतावादी भावनाओं को प्रकट करता है। निस्संदेह लियोनार्डो दा विंसी पुनर्जागरण काल का सबसे महान् चित्रकार था। प्रसिद्ध इतिहासकार सी०.जे० एच० हेज़ के अनुसार, “लियोनार्डो ने अन्य कलाकारों के मुकाबले अपने युग को सबसे अधिक प्रभावित किया।”

(3) अल्बर्ट ड्यूरर 1471-1528 ई० (Albrecht Durer 1471-1528 CE):
अल्बर्ट ड्यूरर की गणना जर्मनी के महान् चित्रकारों में की जाती है। उसे बचपन से ही चित्रकारी में विशेष रुचि थी। 1494 ई० में अपनी इटली यात्रा के दौरान वह वहाँ के चित्रकारों से बहुत प्रभावित हुआ।

उसने प्रकृति से एवं मानव से संबंधित अनेक चित्र बनाए। उसके बनाए चित्रों में 1508 ई० में बनाया गया प्रार्थना रत हस्त (Praying Hands) बहुत लोकप्रिय हुआ। इससे 16वीं शताब्दी की इतालवी संस्कृति का आभास होता है।

(4) माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती 1475-1564 ई० (Michael Angelo Buonarroti 1475-1564 CE):
माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती इटली का एक अन्य प्रतिभाशाली व्यक्ति था। वह एक श्रेष्ठ चित्रकार, प्रवीण मूर्तिकार, कुशल भवन निर्माता एवं उच्च कोटि का कवि था। वास्तव में वह प्रत्येक क्षेत्र में असाधारण प्रदर्शन करने की योग्यता रखता था। उसका नाम रोम के

1. सिस्टीन चैपल (Sistine Chapel) की भीतरी छत पर बनाए 145 चित्रों के कारण सदैव के लिए अमर हो गया है। इन चित्रों से माईकल ऐंजेलो के कौशल एवं प्रतिभा का प्रमाण मिलता है। इसी चर्च की दीवार पर माईकल ऐंजेलो ने लास्ट जजमेंट (Last Judgement) नामक एक उच्च कोटि का चित्र को बनाया।

2. भवन निर्माण कला (Architecture):
पुनर्जागरण काल में भवन निर्माण कला के क्षेत्र में भी एक नयी क्राँति आई। इस काल में मध्यकाल में प्रचलित गौथिक शैली को छोड दिया गया। इस काल में भवन निर्माण कला की शास्त्रीय शैली (classical style) को अपनाया गया। इस शैली में डिज़ाइन, सजावट, विशालता एवं भव्यता पर विशेष बल दिया गया। इस काल में शिल्पकारों एवं चित्रकारों ने भवनों को गुंबदों, चित्रों एवं मूर्तियों से सुसज्जित किया।

(1) फिलिप्पो ब्रूनेलेशी 1377-1446 ई० (Philippo Brunelleschi 1377-1446 CE):
फिलिप्पो ब्रूनेलेशी फ्लोरेंस का एक प्रसिद्ध भवन निर्माता था। वह प्रथम ऐसा व्यक्ति था जिसने गौथिक शैली की अपेक्षा शास्त्रीय शैली (classical style) को अपनाया। उसने भवन निर्माण कला के संबंध में काफी गहन अध्ययन किया था।

उसने 1436 ई० में फ्लोरेंस के कथीड्रल में दि ड्यूमा नामक गुंबद तैयार किया। इसने उसका नाम सदैव के लिए अमर कर दिया। यह गुंबद बहुत भव्य एवं विशाल था। इससे आने वाले भवन निर्माताओं को एक नई प्रेरणा मिली।

(2) दोनातल्लो 1386-1466 ई० (Donatello 1386-1466 CE):
दोनातल्लो इटली का एक महान् मूर्तिकार था। उसने 1416 ई० में मूर्तिकला के क्षेत्र में एक नई शैली का विकास किया। उसने यूनानी एवं रोमन मूर्तियों का गहन अध्ययन किया था। उसके द्वारा निर्मित मूर्तियों में से फ्लोरेंस में बनाई गई यंग ऐंजलस (Young Angels) नामक मूर्ति, पादुआ के जनरल गाटामेलाटा (Gattamelata) एवं वेनिस के सेंट मार्क (St. Mark) नामक मूर्तियों के नाम उल्लेखनीय हैं। ये मूर्तियाँ दोनातल्लो की दक्षता का प्रमाण देती हैं।

(3)माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती 1475-1564 ई० (Michael Angelo Buonarroti 1475-1564CE):
इटली के माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती न केवल एक महान् चित्रकार थे अपितु वह अपनी मूर्तिकला एवं भवन निर्माण कला के लिए भी प्रसिद्ध थे। माईकल ऐंजेलो ने अनेक भव्य एवं सुंदर मूर्तियों का निर्माण किया था। इनमें दो मूर्तियाँ दि पाइटा (The Pieta) एवं डेविड (David) के नाम उल्लेखनीय हैं।

इसमें मेरी को ईसा मसीह के मृतक शरीर को गोद में लिए हुए दिखाया गया है। उसकी दूसरी मूर्ति डेविड के नाम से जानी जाती है इन दोनों मूर्तियों को पुनर्जागरण काल की सर्वश्रेष्ठ मूर्तियाँ माना जाता है। इनके अतिरिक्त माईकल ऐंजेलो ने सेंट पीटर गिरजाघर के गुंबद का भव्य डिज़ाइन बनाया।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ

प्रश्न 5.
पुनर्जागरण काल में विज्ञान के क्षेत्र में क्या विकास हुआ?
उत्तर:
पुनर्जागरण काल में विज्ञान के क्षेत्र में अद्वितीय विकास हुआ। मध्यकाल में लोगों के जीवन पर चर्च का जबरदस्त प्रभाव था। इस काल में मानव जीवन का उद्देश्य परमात्मा को पाना एवं परलोक के बारे सोचना था। अत: इस काल में लोगों की विज्ञान में कोई दिलचस्पी नहीं थी। पुनर्जागरण काल में लोगों के दृष्टिकोण में भारी परिवर्तन आ गया।

वे प्रत्येक वस्तु को तर्क की कसौटी पर परखने लगे। इससे नवीन खोजों का मार्ग प्रशस्त हुआ। लोगों को वास्तविक ज्ञान की जानकारी देने के उद्देश्य से 1662 ई० में लंदन में रॉयल सोसाइटी (Royal Society) तथा 1666 ई० में फ्राँस में पेरिस अकादमी (Paris Academy) की स्थापना की गई। संक्षेप में वैज्ञानिक खोजों ने लोगों के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिए।

1. निकोलस कोपरनिकस 1473-1543 ई० (Nicholas Copernicus 1473-1543 CE):
निकोलस कोपरनिकस पोलैंड का एक महान् वैज्ञानिक था। उसने खगोल विज्ञान (astronomy) के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान दिया। उसने उस समय प्रचलित इस सिद्धांत को असत्य सिद्ध किया कि पृथ्वी सभी ग्रहों का केंद्र है तथा सूर्य एवं अन्य ग्रह इसके इर्द-गिर्द चक्कर काटते हैं।

कोपरनिकस ने सिद्ध किया कि पृथ्वी गोल है तथा यह अन्य ग्रहों की तरह सर्य की परिक्रमा करती है। चर्च ने कोपरनिकस के इस सिद्धांत की कट आलोचना की तथा इसे बाईबल की शिक्षा के विरुद्ध माना। यही कारण था कि कोपरनिकस के विचारों संबंधी पस्तक दि रिवल्यशनिबस (De Revolutionibus) का प्रकाशन उसकी मृत्यु के पश्चात् हुआ। निस्संदेह कोपरनिकस के इस सिद्धांत ने विज्ञान के क्षेत्र में एक नए युग का सूत्रपात किया।

2. अंड्रीयस वेसेलियस 1514-1564 ई० (Andreas Vesalius 1514-1564 CE):
अंड्रीयस वेसेलियस इटली के पादुआ विश्वविद्यालय में आयुर्विज्ञान का प्राध्यापक था। वह प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने सूक्ष्म परीक्षण के लिए मनुष्य के शरीर की चीर-फाड़ (dissection) की। निस्संदेह यह एक महान् वैज्ञानिक उपलब्धि थी। इससे आधुनिक शरीर-क्रिया विज्ञान (physiology) का आरंभ हुआ। उसने 1543 ई० में ऑन एनॉटमी (On Anatomy) नामक एक बहुमूल्य ग्रंथ की रचना की।

3. गैलिलियो गैलिली 1564-1642 ई० (Galileo Galilei 1564-1642 CE):
गैलिलियो गैलिली इटली का एक महान् वैज्ञानिक था। उसने कोपरनिकस के इस सिद्धांत का समर्थन किया कि सूर्य ही ब्रह्मांड का केंद्र है तथा पृथ्वी एवं अन्य ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं। उसने 1609 ई० में दूरबीन (Telescope) तैयार की जिससे सूर्य तथा चाँद आदि ग्रहों को देखा जा सकता था।

निस्संदेह यह एक महान् उपलब्धि थी। गैलिलियो ने दि मोशन (The Motion) नामक एक बहुमूल्य ग्रंथ की रचना की। इसमें उसने यह सिद्ध किया कि भारी एवं हल्की वस्तुएँ एक ही गति से पृथ्वी पर गिरती हैं। गैलिलियो को अपने विचारों के लिए चर्च की कटु आलोचना का शिकार होना पड़ा।

4. जोहानेस कैप्लर 1571-1630 (Johannes Kepler 1571-1630 CE):
जोहानेस कैप्लर जर्मनी का एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक था। वह जर्मन विश्वविद्यालय में खगोल विज्ञान का प्रोफैसर था। उसने कॉस्मोग्राफ़िकल मिस्ट्री (Cosmographical Mystery) नामक ग्रंथ की रचना की। इसमें उसने खगोलीय रहस्य के बारे में विस्तृत प्रकाश डाला है। इसमें उसने कोपरनिकस के सिद्धांत को लोकप्रिय बनाया। इसमें उसने यह सिद्ध किया कि सारे ग्रह सूर्य के चारों ओर वृत्ताकार (circles) के रूप में नहीं अपितु अंडाकार गति से घूमते हैं।

5. विलियम हार्वे 1578-1657 ई० (William Harvey 1578-1657 CE):
विलियम हार्वे इंग्लैंड का एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक था। उसने 1628 ई० में यह सिद्ध किया कि रक्त हृदय से चलकर धमनियों तथा नाड़ियों से होता हुआ पुनः वापस हृदय में पहुँच जाता है। इसे रुधिर परिसंचरण (Blood circulation) कहा जाता है। निस्संदेह चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में यह एक क्रांतिकारी देन थी।

6. आइज़क न्यूटन 1642-1717 ई० (Issac Newton 1642-1717 CE):
आइज़क न्यूटन इंग्लैंड का एक महान् वैज्ञानिक था। उसने 1687 ई० में प्रिंसिपिया मैथेमेटिका (Principia Mathematica) नामक प्रसिद्ध ग्रंथ का प्रकाशन किया। इस | विज्ञान के अनेक नए सिद्धांतों की खोज का वर्णन किया है। इनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत (Law of Gravitation) था। इसमें उसने सिद्ध किया कि पृथ्वी की आकर्षण शक्ति के कारण प्रत्येक वस्तु ऊपर से नीचे की ओर खींचती है।

प्रश्न 6.
पुनर्जागरण के यूरोपीय समाज पर पड़े विभिन्न प्रभावों पर प्रकाश डालें।
अथवा
पुनर्जागरण के सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक तथा राजनीतिक प्रभावों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पुनर्जागरण को विश्व इतिहास में एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण आंदोलन माना जाता है। इस आंदोलन के कारण लोगों का सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक तथा राजनीतिक जीवन बहुत प्रभावित हुआ। इन प्रभावों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

I. सामाजिक तथा धार्मिक प्रभाव

1. जिज्ञासा की भावना (Spirit of Inquiry):
पुनर्जागरण का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रभाव यह पड़ा कि लोगों में जिज्ञासा की भावना उत्पन्न हुई तथा उनका दृष्टिकोण वैज्ञानिक हो गया। अब उन्होंने शताब्दियों से प्रचलित अंध विश्वासों तथा रीति-रिवाजों को त्याग दिया। वे अब प्रत्येक विचार को तर्क की कसौटी पर परखने लगे। उनमें अधिक-से-अधिक ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा पैदा हुई। परिणामस्वरूप नए-नए आविष्कार हुए जिससे लोगों की जीवन पद्धति परिवर्तित हो गई।

2. मानवतावाद की भावना (Spirit of Humanism):
मानवतावाद की भावना का उत्पन्न होना पुनर्जागरण की एक अन्य महत्त्वपूर्ण देन है। इस काल के साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में मनुष्य से संबंधित विषयों को प्रमुख स्थान दिया तथा मनुष्य के कल्याण पर बल दिया। उन्होंने धर्म द्वारा मनुष्य पर लगाए गए अनुचित प्रतिबंधों की घोर आलोचना की। उन्होंने मनुष्य की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन किया। पेट्रार्क, दाँते तथा इरेस्मस उस काल के प्रसिद्ध मानवतावादी थे।

3. स्त्रियों की स्थिति में सुधार (Uplift of Women):
पुनर्जागरण से पूर्व स्त्रियों की स्थिति बहुत बदतर थी। उन्हें समाज में कोई सम्मानजनक स्थान प्राप्त नहीं था। पुनर्जागरण काल में स्त्रियों की स्थिति में कुछ सुधार आया तथा उन्हें पुरुषों के समान स्थान प्राप्त हुआ। परिणामस्वरूप उनमें जागृति आई। अब वे शिक्षा ग्रहण करने लगीं। साहित्य के अध्ययन से उनका दृष्टिकोण विशाल हो गया।

4. नैतिकता का पतन (Decline of Morality) :
पुनर्जागरण का समाज पर एक बुरा प्रभाव यह पड़ा कि लोगों की नैतिकता का पतन हो गया। पुनर्जागरण से पूर्व लोग प्रायः धार्मिक होते थे। परंतु अब वे भौतिकवादी बन गए। इससे लोगों के पास काफी धन एकत्र हो गया तथा वे विलासी जीवन बिताने लगे। इस प्रभाव से पादरी भी अछूते न रहे तथा वे भी भ्रष्ट एवं चरित्रहीन हो गए।

5. चर्च के महत्त्व में कमी (Decline in the Importance of Church):
पुनर्जागरण के कारण लोगों का दृष्टिकोण विशाल हो गया था। अब वे आँखें मूंद कर चर्च पर विश्वास नहीं करते थे। इस कारण चर्च की प्रतिष्ठा को चोट पहुँची। विज्ञान में हुए नए-नए आविष्कारों के कारण लोगों में तर्कशीलता की भावना पैदा हुई। अब वे खोखले रीति-रिवाजों तथा अंध-विश्वासों का अनुसरण करने को तैयार न रहे। परिणामस्वरूप चर्च की बुराइयाँ लोगों के सामने आने लगीं तथा समाज में चर्च का महत्त्व कम होने लगा।

II. सांस्कृतिक प्रभाव

1. साहित्य का विकास (Development of Literature):
पुनर्जागरण के कारण साहित्य के क्षेत्र में आश्चर्य विकास हआ। इस विकास के परिणामस्वरूप अनेक नई पस्तकों की रचना हई। इतालवी. फ्राँसीसी. अंग्रेजी, स्पेनी, जर्मन, डच आदि भाषाओं में अनेकों विद्वानों ने अपनी रचनाएँ लिखीं। इस काल के साहित्यकारों में दाँते, पेट्रार्क, बोकासियो, मैक्यिावेली, मिरांदोला, जेफ्री चॉसर, टॉमस मोर तथा इरेस्मस आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इन्होंने अपनी रचनाओं में मानवतावादी विचारों का प्रसार किया तथा साहित्य के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

2. शिक्षा का विकास (Progress of Education):
पुनर्जागरण से पूर्व शिक्षा केवल चर्च द्वारा ही प्रदान की जाती थी। पुनर्जागरण के कारण शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। विभिन्न देशों में नए-नए स्कूलों, कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों की स्थापना होने लगी। अब लोग चर्च से शिक्षा ग्रहण करने की अपेक्षा इन नए शिक्षण संस्थानों में जाने लगे। परिणामस्वरूप आधुनिक शिक्षा का विकास होने लगा। छापेखाने का आविष्कार हो जाने से लोगों को अब शीघ्र तथा सस्ती पुस्तकें प्राप्त होने लगीं।

3. ललित कलाओं का विकास (Development of Fine Arts):
पुनर्जागरण काल में चित्रकला के क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास हुआ। इस काल के चित्रकारों ने मानव जीवन से संबंधित चित्र बनाने आरंभ कर दिये थे तथा इन चित्रों में धर्म-निरपेक्षता की झलक स्पष्ट दिखाई देती थी। इस काल में चित्रों के लिए प्रयोग होने वाले रंगों में भी परिवर्तन आया।

लियोनार्डो द विंसी, माईकल ऐंजेलो, राफेल, ब्रूनेलेशी, दोनातल्लो आदि ने चित्रकला में अपना विशेष योगदान दिया। इस काल में मूर्तिकला के क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास हुआ। इस काल के मूर्तिकारों में लोरेंजो जिबर्टी, दोनातल्लो, माईकल ऐंजेलो आदि के नाम वर्णनीय हैं।

4. वैज्ञानिक आविष्कार (Scientific Inventions):
पुनर्जागरण काल में लोगों का दृष्टिकोण वैज्ञानिक हो गया था। परिणामस्वरूप नए-नए वैज्ञानिक आविष्कार हुए। कोपरनिकस, केप्लर, गैलिलियो आदि ने अपनी खोजों से यह सिद्ध किया कि सूर्य ब्रह्मांड का केंद्र है तथा शेष सभी ग्रह इसके गिर्द चक्कर लगाते हैं। इससे पूर्व यह धारणा थी कि सभी ग्रह पृथ्वी के गिर्द घूमते हैं। न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत पेश किया। छापाखाना, गोला बारूद तथा कंपास आदि के आविष्कारों ने भी मानव जीवन पर क्रांतिकारी प्रभाव डाले।

5. भौगोलिक खोजें (Geographical Discoveries):
पुनर्जागरण काल में हुई भौगोलिक खोजों से एक नए युग का प्रादुर्भाव हुआ। इस काल में अनेक देशों के नाविकों ने समुद्री यात्राएँ की तथा नए-नए समुद्री मार्गों का पता लगाया। कोलंबस, वास्को-डी-गामा, मैगलन, कैबट, लैबरोडोर इस काल के प्रसिद्ध नाविक थे। इन्होंने अमरीका, भारत, कनाडा, अफ्रीका तथा चीन आदि देशों तक पहुँचने के लिए नए-नए समुद्री मार्गों की खोज की। इन भौगोलिक खोजों के कारण यूरोपीय देशों के व्यापार में बड़ी वृद्धि हुई तथा उपनिवेशवाद को प्रोत्साहन मिला।

II. आर्थिक प्रभाव

1. व्यापार तथा वाणिज्य का विकास (Development of Trade and Commerce):
पुनर्जागरण से पूर्व लोग धार्मिक विचारों में विश्वास रखते थे परंतु अब वे तर्कशील तथा भौतिकवादी बन गए थे। वे अपना परलोक सुधारने की अपेक्षा वर्तमान जीवन को सुखी तथा आनंदपूर्ण बनाने की ओर ज्यादा ध्यान देने लगे। उनकी रुचि अब धन-दौलत इकट्ठी करने की हो गई। उनकी यह प्रवृत्ति व्यापार तथा वाणिज्य के विकास में बड़ी सहायक सिद्ध हुई।

2. उद्योगों का विकास (Development of Industry):
पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप पैदा हुए वातावरण के कारण उद्योगों के क्षेत्र में भी पर्याप्त विकास हुआ। अमीर वर्ग अपने धन का प्रयोग करके और अधिक धन कमाना चाहता था। उनकी इसी लालसा ने उद्योगों के विकास को प्रोत्साहन दिया। उद्योगों का विकास होने के परिणामस्वरूप पूँजीवाद का जन्म हुआ।

3. उपनिवेशवाद को प्रोत्साहन (Impetus to Colonialism):
पुनर्जागरण काल में उद्योगों का विकास होने के कारण उद्योगों में अधिक मात्रा में माल बनने लगा। उद्योगपति अपना माल बेच कर अधिक-से-अधिक पैसा कमाना चाहते थे। इस माल को बेचने के लिए उन्हें मंडियों की आवश्यकता थी। अत: विभिन्न देशों के सम्राटों ने अपने नाविकों को दूर-दूर के स्थानों पर जाने के लिए नए समुद्री मार्गों को खोजने के लिए प्रेरित किया। परिणामस्वरूप इन नाविकों ने नए समुद्री मार्गों की खोज की तथा अमरीका, एशिया तथा अफ्रीका आदि में पहुँचने में सफल हुए। वहाँ पर इन देशों ने अपने उपनिवेश स्थापित कर लिए।

IV. राजनीतिक प्रभाव

1. प्रबल राजतंत्र का उदय (Rise of Strong Monarchy):
पुनर्जागरण काल में हुए साहित्य के विकास के कारण लोगों के राजनीतिक विचारों में बड़ा परिवर्तन आया। प्राचीन रोमन साहित्य के अध्ययन से यूरोपीय शासकों को प्राचीन रोमन साम्राज्य की शक्ति तथा शानो-शौकत का पता चला तो उनके मन में भी शक्तिशाली राज्य स्थापित करने का विचार आया।

उनमें यह विचार प्रचलित हो गया था कि नैतिकता के मूल्यों की परवाह किए बिना उन्हें उचित अनुचित ढंग अपना कर अपने राज्यों का विस्तार करना चाहिए। गोला-बारूद का आविष्कार हो जाने के कारण सामंतों का पतन हो चुका था तथा सम्राटों की स्थिति मज़बूत हो गई थी। अब तक चर्च भी शक्तिहीन हो गया था। इन सभी परिस्थितियों ने शक्तिशाली राजतंत्रों के उत्थान को संभव बना दिया।

2. सामंतवाद का पतन (Downfall of Feudalism) :
मध्यकाल में सामंतवाद का बोल-बाला था। सामंत बहुत ही शक्तिशाली थे तथा सम्राट सेना के लिए उन पर ही निर्भर करते थे। परंतु गोला-बारूद के आविष्कार के परिणामस्वरूप स्थिति में परिवर्तन आ गया। इस कारण सम्राट् शक्तिशाली हो गए तथा उनकी सामंतों पर निर्भरता समाप्त हो गई। अब सम्राट विद्रोही सामंतों को कुचलने में सक्षम हो गए।

3. युद्ध के नवीन ढंग (New Mode of Warfare):
मध्यकाल में प्रायः युद्ध में तलवारों, नेजों तथा भालों आदि का ही प्रयोग किया जाता था। परंतु पुनर्जागरण काल में बारूद का आविष्कार हो जाने के कारण युद्ध के ढंग में युद्धों में तोपखाने का प्रयोग होने लगा। इसी शक्तिशाली सेना की सहायता से विभिन्न यूरोपीय सम्राट विभिन्न स्थानों पर विजय प्राप्त करके अपने उपनिवेश स्थापित करने में सफल रहे।

प्रश्न 7.
धर्म सुधार आंदोलन से आपका क्या अभिप्राय है? इसके कारणों तथा उद्देश्यों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
धर्म-सुधार आंदोलन पुनर्जागरण के बाद आधुनिक युग की दूसरी महानतम् घटना मानी जाती है। इस आंदोलन का उदय पुनर्जागरण की कोख से ही हुआ। यह आंदोलन वास्तव में पोप तथा चर्च के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया थी जो 16वीं शताब्दी में यूरोप के देशों में हुई।

एक अन्य इतिहासकार फर्डिनांड शेविल के अनुसार, “वास्तव में यह एक प्रकार का दोहरा आंदोलन था जिसका उद्देश्य एक ओर ईसाइयों के जीवन का नैतिक उत्थान करना था तथा दूसरी ओर पोप की सत्ता को धार्मिक क्षेत्र में कम करना था।”

I. धर्म सुधार आंदोलन से अभिप्राय

16वीं शताब्दी से पूर्व चर्च ग्रीक आर्थोडॉक्स तथा रोमन कैथोलिक नामक दो भागों में बँटा हुआ था। ग्रीक आर्थोडॉक्स का पूर्वी यूरोप तथा रोमन कैथोलिक का पश्चिमी यूरोप में प्रभुत्व था। ग्रीक आर्थोडॉक्स चर्च का केंद्र कुंस्तुनतुनिया था जबकि रोमन कैथोलिक चर्च का केंद्र रोम था। 1453 ई० में तुर्कों ने कुंस्तुनतुनिया सहित पूर्वी यूरोप के बहुत बड़े भाग पर अधिकार कर लिया था।

परिणामस्वरूप आर्थोडॉक्स चर्च का महत्त्व कम हो गया। परंतु रोमन कैथोलिक का महत्त्व अभी भी बना हुआ था। वस्तुतः धर्म-सुधार आंदोलन रोम कैथोलिक चर्च तथा इसको संचालित करने वाले पोप के विरुद्ध ही चलाया गया था।

कैथोलिक चर्च एक शक्ति संपन्न संस्था थी। इसके अनुयायियों पर इसका पूर्ण नियंत्रण था। जन्म से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति की सभी रस्में चर्च के नियमों के अनुसार ही होती थीं। कोई भी व्यक्ति चर्च के नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकता था। पोप की शक्ति के आगे तो सम्राटों की शक्ति भी फीकी पड़ जाती थी। सम्राट् तथा उसकी प्रजा चर्च के अधीन ही होते थे।

चर्च की अपनी सरकार होती थी तथा उसने अपने कानून, अपने न्यायालय एवं अपनी ही पुलिस स्थापित की होती थी। प्रत्येक व्यक्ति को चर्च को कर देना पड़ता था।

सम्राट अपने राज्य के कानून चर्च पर लागू नहीं कर सकता था। यदि कोई चर्च के नियमों का उल्लंघन करता था तो उसे धर्म से निष्कासित कर दिया जाता था। यदि कोई सम्राट् चर्च के विरुद्ध कार्य करता था तो पोप उसे सिंहासन से उतार सकता था। इस प्रकार पोप असीम शक्तियों का स्वामी था। जॉन मैरीमेन के अनुसार, “चर्च एक अर्ध-स्वतंत्र संस्था थी जो लोगों के राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक जीवन के प्रत्येक पक्ष में हस्तक्षेप करता था।”

पोप धर्म का मुखिया तो था ही, इसके साथ-साथ वह राजनीतिक मामलों में भी हस्तक्षेप करता रहता था। परिणामस्वरूप राजाओं के साथ उसके संबंध सुखद नहीं रहते थे। उनमें व्यापक तनाव रहता था। सम्राट् पोप के प्रभाव से मुक्त होने के यत्न करते रहते थे। धीरे-धीरे चर्च में कई दोष आ गए तथा वहाँ पाप के अड्डे बन गए।

पादरी चरित्रहीन हो गए तथा विलासी जीवन बिताने लगे। इस कारण लोगों में रोष उत्पन्न हुआ तथा उन्होंने चर्च के विरुद्ध आवाज़ उठानी आरंभ कर दी। परिणामस्वरूप 16वीं शताब्दी में धर्म-सुधार आंदोलन आरंभ हुआ जिसे सम्राटों तथा जनता ने अपना पूर्ण सहयोग दिया।

II. धर्म-सुधार आंदोलन के कारण

धर्म-सुधार आंदोलन के उदय तथा विकास में जिन कारणों ने सहायता पहुँचाई उनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. चर्च की बुराइयाँ (Evils of the Church):
धर्म-सुधार आंदोलन का मुख्य कारण चर्च में व्याप्त बुराइयाँ थीं जिनके कारण लगभग पिछले 200 वर्षों से चर्च बदनाम हो रहा था। चर्च के संगठन में भ्रष्टाचार तथा दुराचार का बोलबाला था। उच्च अधिकारी से लेकर पादरी तक सभी का चरित्र पतित हो चुका था। चर्च के अधिकारी अपने कर्तव्यों की ओर कोई ध्यान नहीं देते थे तथा बड़े लालची हो गए थे।

वे विलासी जीवन व्यतीत करने लगे थे तथा हर समय रंगरलियों में डूबे रहते थे। कई पादरियों ने शराब पीना, जुआ खेलना तथा शिकार खेलना आरंभ कर दिया था। पादरियों के इन्हीं अनैतिक कार्यों के कारण जन-साधारण चर्च के विरुद्ध हो गया। प्रसिद्ध इतिहासकार बी० के० गोखले के अनुसार, “चर्च के नैतिक पतन से लोगों का विश्वास डगमगा गया।”

2. पोप तथा पादरियों के विशेषाधिकार (Privileges of the Pope and the Priests):
यूरोप की सामाजिक व्यवस्था के अनुसार पादरियों को विशेषाधिकार प्राप्त थे। देश का कोई भी कानून उन पर लागू नहीं होता था। कोई अपराध करने पर भी उनके ऊपर किसी न्यायालय में मुकद्दमा नहीं चलाया जा सकता था। मध्यकाल में पोप बिल्कुल निरंकुश होते थे तथा उनकी शक्ति पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता था।

वे अपनी शक्तियों का दुरप्रयोग करने लगे थे। इस काल के पोपों ने धन इकट्ठा करने के साथ भोग-विलास का जीवन भी आरंभ कर दिया था। धर्म के सबसे बड़े व्यक्ति के इस प्रकार के चरित्र से लोगों के मन को बड़ी ठेस पहुँची। इसने धर्म-सुधार आंदोलन का आधार तैयार किया।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 7 बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ

3. चर्च की विशाल धन-संपत्ति (Vast Wealth of the Church) :
यूरोप के विभिन्न देशों में चर्च ने विशाल संपत्ति इकट्ठी कर ली थी। इसी प्रकार फ्राँस तथा अन्य देशों में भी चर्च ने काफी संपत्ति इकट्ठी कर ली थी। चर्च की संपत्ति बढ़ने के कई साधन थे जैसे चर्च को दान दी गई भूमि। चर्च किसानों से उनके उत्पादन का दसवाँ भाग कर के रूप में लेता था।

यह कर भी उसकी आय का एक बड़ा साधन था। सम्राट् चर्च की संपत्ति पर कर नहीं लगा सकते थे। इस विशाल संपत्ति के कारण पादरी भ्रष्ट हो गये थे। उन्होंने धार्मिक कार्यों तथा निर्धनों की सहायता करने की अपेक्षा स्वार्थी हितों की पूर्ति करनी आरंभ कर दी थी। इस कारण लोग चर्च के विरुद्ध हो गए।

4. राजनीतिक क्षेत्र में पोप का हस्तक्षेप (Pope’s Interference in the Political Affairs):
पोप केवल धार्मिक दृष्टि से ही निरंकुश शासक नहीं था, अपितु राजनीतिक क्षेत्र में भी उसका पूरा प्रभाव था। वह स्वयं को पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि समझता था। ईसाई राज्यों पर अपना कड़ा नियंत्रण रखने के उद्देश्य से उसने अपने एजेंट नियुक्त किए हुए थे।

ये एजेंट पोप के आदेशों का पालन करवाने का कार्य करते थे। यदि कोई सम्राट् पोप के आदेशों के विपरीत कार्य करता था तो पोप उसे दंड दे सकता था। वह सम्राट को पदच्युत कर सकता था।

चर्च की संपत्ति के कारण भी कई बार पोप तथा सम्राटों में झगड़ा हो जाता था। पोप का यह विश्वास था कि चर्च की संपत्ति पर कर लगाने का अधिकार किसी सम्राट के पास नहीं है। परंतु कई सम्राटों ने पोप की इस धारणा को चनौती दी। इन सम्राटों ने पोप के आदेशों की कोई परवाह न की तथा चर्च पर कर लगा दिए।

इससे पोप की प्रतिष्ठा तथा शक्ति को गहरा आघात पहँचा। फलस्वरूप पोप की स्थिति दर्बल हो गई और लोग धर्म सधार के लिए प्रेरित हए। फर्डीनांड शेविल के अनुसार, “पोप द्वारा धन इकट्ठा करने तथा उसके राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप करने के कारण यूरोप के लोगों ने उसका विरोध किया।”

5. राष्ट्रीय राज्यों का उदय (Rise of Nation States) :
पुनर्जागरण से पर्व यरोप के कई देशों में सामंतवाद का प्रभुत्व था। इस सामंती व्यवस्था में अनेकों दोष व्याप्त थे। इन दोषों को दूर करने के उद्देश्य से कई राज्यों में शासकों ने सामंतों को शक्तिहीन करने के सफल प्रयास किए। परिणामस्वरूप इंग्लैंड, फ्राँस, पुर्तगाल, स्पेन, हंगरी, पोलैंड, हालैंड, स्काटलैंड, डेनमार्क आदि राष्ट्रीय राज्य उदय हुए।

ये राष्ट्रीय राज्य चर्च के प्रभाव से मुक्ति पाना चाहते थे। इस कार्य के लिए फ्राँस. इंग्लैंड तथा स्पेन के सम्राट आगे आए। उन्होंने अपने राज्य में स्थित चर्च की संपत्ति पर कर लगाया। उनके अनुसार किसी सम्राट को पदच्युत करने का पोप द्वारा दिया जाने वाला आदेश अनुचित है।

6. पुनर्जागरण का प्रभाव (Influence of the Renaissance):
पनर्जागरण एक ऐसी क्रांति थी जिसने धार्मिक अंध-विश्वासों एवं रूढ़िवादी मान्यताओं पर कड़ा प्रहार किया और यूरोपवासियों में एक नई चेतना जागृत की। इसके प्रभाव से यरोप के लोगों का दष्टिकोण आलोचनात्मक एवं तार्किक हो गया। अब वे तर्क की कसौटी पर कसे बिना किसी भी तथ्य को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। छापेखाने के आविष्कार के कारण उनमें नवचेतना का संचार हुआ। वे चर्च में फैले भ्रष्टाचार से अवगत हुए। अत: उनमें व्याप्त असंतोष आक्रोश में बदल गया। इस बात ने धर्म-सुधार आंदोलन का मार्ग प्रशस्त किया।

7. धर्म-सुधारकों द्वारा पोप का विरोध (Opposition of Pope by the Religious Reformers):
धर्म-सुधार आंदोलन के आरंभ तथा प्रसार में यूरोप के धर्म-सुधारकों ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई। इन धर्म-सुधारकों ने लोगों के सामने तत्कालीन धार्मिक व्यवस्था के दोषों का भांडा फोड़ दिया। इन धर्म-सुधारकों में सबसे प्रसिद्ध जॉन वार्डक्लिफ (John Wvcliffe) था।

उसने तथा उसके शिष्य जॉन हस्स (John Huss) ने पोप तथा चर्च के विरुद्ध जोरदार प्रचार किया। चर्च का विरोध करने के कारण पोप ने उन्हें ईसाई धर्म से निकाल दिया। डरेस्मस (Erasmus) एक अन्य विद्वान था। उसने बाईबल की गलतियों में संशोधन किया तथा उसका लातीनी भाषा में रूपांतर तैयार किया। उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘इन प्रेज़ ऑफ़ फॉली’ (In Praise of Folly) में चर्च की भ्रष्टाचारी प्रथाओं का खंडन किया। इस पुस्तक के कारण पोप की प्रतिष्ठा को गहरी चोट पहुँची।

8. तात्कालिक कारण : पाप स्वीकारोक्ति पत्रों की बिक्री (Immediate Cause-Sale of Indulgences):
पोप द्वारा पाप स्वीकारोक्ति पत्रों की बिक्री धर्म-सुधार आंदोलन का तात्कालिक कारण बना। उन दिनों पोप को रोम में सेंट पीटर गिरजाघर के निर्माण के लिए धन चाहिए. था। उसने धन इकट्ठा करने के लिए पाप स्वीकारोक्ति पत्रों को बेचना आरंभ कर दिया।

इन पाप स्वीकारोक्ति पत्रों को खरीद कर कोई भी व्यक्ति अपने पापों से मुक्त हो सकता था। 1517 ई० में जोहानन टेट्ज़ेल (Johanan Tetzel) नामक एक पादरी पाप स्वीकारोक्ति पत्रों को बेचने के लिए विटेनबर्ग पहुँचा। जब वह वहाँ यह पाप स्वीकारोक्ति पत्र बेच रहा था तो मार्टिन लूथर ने उसका विरोध किया।

मार्टिन लूथर विटेनबर्ग में एक प्रोफेसर था। चर्च में व्याप्त दोषों के कारण उसके मन में पहले ही चर्च विरुद्ध तूफान उठ रहा था। मार्टिन लूथर ने इन पाप स्वीकारोक्ति पत्रों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। इसने धर्म सुधार आंदोलन का श्रीगणेश किया।

III. धर्म सुधार आंदोलन का उद्देश्य

धर्म-सुधार आंदोलन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित अनुसार थे

  • पोप तथा अन्य धर्म अधिकारियों के असीमित अधिकारों पर अंकुश लगाना।
  • चर्च अधिकारियों का नैतिक जीवन में सुधार लाना।
  • चर्चों में फैले भ्रष्टाचार को समाप्त करना तथा धर्म अधिकारियों का ध्यान आध्यात्मिकता की ओर लगाना।
  • राष्ट्रीय चर्च की स्थापना पर बल देना।
  • जनसाधारण को मोक्ष-प्राप्ति के लिए पोप पर आश्रित न रख कर परमात्मा पर आश्रित बनाना।
  • प्रत्येक मानव को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करना।

इन सब उद्देश्यों के होते हए भी यह कहा जा सकता है कि मल रूप से यह आंदोलन यरोप की प्राचीन रूढिवादिता को समाप्त करने के लिए चलाया गया जिसके लिए 13वीं शताब्दी में प्रयास किये जा रहे थे। डब्ल्यू० के० फरग्युसन एवं जी ब्रन के शब्दों में, “यद्यपि 13वीं शताब्दी में चर्च की व्यवस्था में कुछ परिवर्तन हुए थे, परंतु ये परिवर्तन आधुनिक युग की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं थे।”

प्रश्न 8.
यूरोप के विभिन्न देशों में चले धर्म सुधार आंदोलनों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
धर्म-सुधार आंदोलन के प्रसार में मुख्य भूमिका जर्मनी के प्रसिद्ध विद्वान् मार्टिन लूथर ने निभाई। मार्टिन लूथर के अतिरिक्त उलरिक ज्विंगली, जौं कैल्विन, जॉन वाईक्लिफ तथा इग्नेशियस लोयोला ने भी उल्लेखनीय योगदान दिया। धर्म-सुधार आंदोलन में विभिन्न नेताओं द्वारा दिए योगदान का वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. मार्टिन लूथर 1483-1546 ई० (Martin Luther 1483-1546 CE)-मार्टिन लूथर ने जर्मनी में धर्म सुधार आंदोलन में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। उसका जन्म 10 नवंबर, 1483 ई० को जर्मनी के एक निर्धन किसान के घर हुआ था। प्रारंभ में लूथर पोप विरोधी नहीं था, परंतु 1517 ई० में एक ऐसी घटना घटी जिससे वह पोप विरोधी हो गया।

लूथर ने देखा कि विटेनबर्ग में टेट्ज़ेल नामक एक पादरी लोगों को पाप स्वीकारोक्ति-पत्र बेच रहा था। टेट्ज़ेल यह प्रचार कर रहा था कि कोई भी व्यक्ति जो इन पाप स्वीकारोक्ति-पत्र को खरीद लेगा वह अपने पापों से मुक्त हो जाएगा तथा सीधे स्वर्ग को जाएगा। भोली-भाली जनता के साथ इस प्रकार किए जा रहे मजाक तथा शोषण के विरुद्ध मार्टिन लूथर ने आवाज़ उठाई।

उसने विटेनबर्ग के चर्च के द्वार पर अपने 95 थिसेज़ लटका दिए। इन थिसेज़ों में उसने चर्च के भ्रष्ट उपायों द्वारा धन इकट्ठा करने की कड़ी आलोचना की। उसने धर्म शास्त्रियों को इन थिसेज़ों के बारे में बहस करना की चुनौती दी। लेकिन पोप ने लूथर के विरोध को कोई महत्त्व नहीं दिया। लूथर ने 1519 ई० में लिपजिग में एक वाद-विवाद में मनुष्य तथा ईश्वर के बीच पोप की मध्यस्थता को निरर्थक बताया।

यह मार्टिन लथर की चर्च की निरंकशता को खली चनौती थी। इसका लोगों के मनों पर गहरा प्रभाव पडा तथा वे चर्च के विरोधी हो गए। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर अरुण भट्टाचार्जी के अनुसार, “मार्टिन लूथर आधुनिक समय के महान् धार्मिक व्यक्तियों में से एक था।

2. उलरिक ज्विंगली 1484-1531 ई० (Ulrich zwingli 1484-1531 CE):
उलरिक ज्विंगली स्विट्ज़रलैंड में हुआ। उसने बेसेल विश्वविद्यालय से एम० ए० की डिग्री प्राप्त की तथा एक पादरी बन गया। 1518 ई० में वह ज्यूरिख के चर्च का पादरी नियुक्त हुआ। परंतु चर्च में फैले भ्रष्टाचार तथा अंध-विश्वासों के कारण शीघ्र ही उसका मन असंतुष्ट हो गया। उस पर मार्टिन लूथर का बहुत प्रभाव था। उसने चर्च में फैले भ्रष्टाचारों एवं दोषों की कड़े शब्दों में आलोचना की। उसने पोप की सर्वोच्चता को मानने से इंकार कर दिया।

उसका कथन था कि लोग चर्च की अपेक्षा बाईबल को अपने जीवन का मार्गदर्शक बनाएँ। उसने उन सभी दूषित प्रथाओं को बंद करने की माँग की जिनके विरुद्ध जर्मनी में मार्टिन लूथर ने आंदोलन चलाया था। उसने लोगों को सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी। उसकी 1531 ई० में कैथोलिकों (Catholics) के साथ हुए एक संघर्ष में मृत्यु हो गई।

3. जौं कैल्विन 1509-64 ई० (Jean Calvin 1509-64 CE):
जौं कैल्विन ने फ्राँस में धर्म-सुधार आंदोलन का नेतृत्व किया था। वह भी मार्टिन लूथर की भाँति 16वीं शताब्दी का एक महान् सुधारक था। जौं कैल्विन का जन्म फ्रांस के नोपॅन (Noyon) नगर में 10 जुलाई, 1509 ई० को हुआ था। वह एक मध्यम वर्गीय परिवार से संबंध रखता था। बचपन से ही उसकी धार्मिक विचारों में रुचि थी। उसने अपनी उच्च शिक्षा पेरिस विद्यालय से प्राप्त की। यहाँ उसने कानून की शिक्षा के साथ-साथ धर्मशास्त्रों का भी गहन अध्ययन किया।

उसके मन पर लूथर के विचारों का बड़ा प्रभाव पड़ा था। उसका ईश्वर की सर्वोच्चता में दृढ़ विश्वास था। उसका विचार था कि ईश्वर सर्वव्यापक तथा सर्वशक्तिमान है तथा उसने इस सृष्टि की रचना की है। वह मनुष्य को ईश्वर का ही रूप मानता था। चर्च तथा राज्य के संबंध में उसके विचार मार्टिन लूथर से कुछ भिन्न थे। मार्टिन लूथर राज्यों को सर्वोच्च मानता था। परंतु जौं कैल्विन का मानना था कि चर्च का ईश्वर की सर्वोच्चता के प्रतिनिधि के रूप में महत्त्व होना चाहिए। वह चर्च में व्याप्त भ्रष्टाचार का विरोधी था।

1533 ई० में जौं कैल्विन कैथोलिक धर्म त्याग कर स्विट्ज़रलैंड में स्थित बेसेल नगर में आ गया। यहाँ रहते हुए 1536 ई० में उसने ‘इंस्टीच्यूट ऑफ़ क्रिश्चियन रिलिजन’ (‘The Institute of the Christian Religion’) नामक प्रसिद्ध पुस्तक प्रकाशित की। यह पुस्तक बहुत लोकप्रिय हुई। इस पुस्तक में उसने ईसाई धर्म की बड़ी सुंदर ढंग से व्याख्या की तथा लोगों को पवित्र जीवन जीने की प्रेरणा दी। जौं कैल्विन पादरियों द्वारा पवित्र जीवन जीने तथा भोग-विलास से दूर रहने पर बल देता था। प्रसिद्ध इतिहासकार ए० जे० ग्रांट के अनुसार, “कुछ ही वर्षों में कैल्विन की प्रसिद्धि महाद्वीप के बहुत से भागों में फैल गई थी।”

4. जॉन वाईक्लिफ 1320-84 ई० (John Wycliffe 1320-84 CE):
चर्च में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा अन्य दोषों के विरुद्ध आवाज़ इंग्लैंड में तो जर्मनी से पहले ही उठने लगी थी। इंग्लैंड में सर्वप्रथम चर्च के विरुद्ध आवाज़ जॉन वाईक्लिफ ने उठाई थी। वह पोप को धरती पर ईश्वर का प्रतीक नहीं मानता था क्योंकि उसके अनुसार पोप द्वारा अपनाया गया जीवन का ढंग धर्म के सिद्धांतों के विपरीत था।

वह तीर्थ स्थानों की यात्रा को व्यर्थ मानता था। उसका मानना था कि भ्रष्ट पादरियों के द्वारा दर्शाए गए रास्ते को अपना कर कोई भी व्यक्ति मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता। उसका महान् कार्य बाईबल का अंग्रेजी में अनुवाद करना था। इसमें उसने लोगों को ईसाई मत के सच्चे सिद्धांतों को अपनाने के लिए कहा।

1384 ई० में जॉन वाईक्लिफ की मृत्यु हो गई। उसके शिष्य लोलार्ड (Lollards) कहलाए। प्रसिद्ध इतिहासकार बी० के० गोखले के अनुसार, “जॉन वाईक्लिफ समाज के सभी वर्गों पर प्रभावशाली प्रभाव डालने में सफल हुआ।”

5. इग्नेशियस लोयोला 1493-1566 ई० (Ignatius Loyola 1493-1566 CE):
इग्नेशियस लोयोला स्पेन का निवासी था। उसने 1540 ई० में सोसाइटी ऑफ़ जीसस (Society of Jesus) की स्थापना की। इसका उद्देश्य रोमन कैथोलिक चर्च के प्रभाव को पुनः स्थापित करना एवं प्रोटेस्टेंटों के बढ़ रहे प्रभाव को रोकना था।

इसके सदस्य बहुत ईमानदार, शिक्षित तथा अनुशासित थे। उन्होंने ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिए अथक प्रयास किए। परिणामस्वरूप यह सोसाइटी न केवल स्पेन अपितु विश्व भर में लोकप्रिय हुई। इग्नेशियस लोयोला के अनुयायी जेसुइट (Jesuits) कहलाए।

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प्रश्न 9.
धर्म सुधार आंदोलनों के विभिन्न प्रभावों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
धर्म-सुधार आंदोलन के यूरोपीय समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़े। निस्संदेह इस आंदोलन ने यूरोपीय समाज को एक नई दिशा देने में महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त की। डॉक्टर अरुण भट्टाचार्जी का यह कहना ठीक है कि, “धर्म-सुधार आंदोलन फ्रांस की क्रांति की तरह एक महान् सामाजिक-राजनीतिक घटना थी जिसके यूरोप के इतिहास पर दूरगामी प्रभाव पड़े।”

1. चर्च में फूट (Schism in the Church):
धर्म-सुधार आंदोलन का यूरोपीय लोगों के जीवन पर एक महत्त्वपूर्ण प्रभाव यह पडा कि चर्च दो भागों में विभाजित हो गया। अब यह कैथोलिक तथा प्रोटेस्टेंट नामक शाखाओं में बँट गया। कैथोलिक शाखा वाले पोप की सर्वोच्चता में विश्वास रखते थे जबकि प्रोटेस्टेंट वालों का मानना था कि पोप अथवा पादरी किसी व्यक्ति को मुक्ति प्राप्त करने में कोई सहायता नहीं कर सकते।

व्यक्ति को मुक्ति केवल बाईबल के सिद्धांतों के अनुसार चल कर ही मिल सकती है। चर्च में पड़ी यह दरार धीरे-धीरे इतनी पक्की हो गई कि यूरोप के भिन्न-भिन्न देशों में कैथोलिक तथा प्रोटेस्टेंट लोगों की विभिन्न शाखाएँ स्थापित हो गई।

2. धार्मिक अत्याचार (Religious Persecution):
धर्म-सुधार आंदोलन के परिणामस्वरूप यूरोप के लोग दो विरोधी संप्रदायों में विभाजित हो गए। धीरे-धीरे इन दोनों संप्रदायों में विरोधी भावनाएँ बढ़ने लगीं। इन विरोधी भावनाओं ने इतना गंभीर रूप धारण कर लिया कि वे धार्मिक असहनशीलता का प्रदर्शन करने लगे। प्रोटेस्टेंट तथा कैथोलिक दोनों संप्रदाय अपने ही ढंग से अपने-अपने सिद्धांतों का प्रचार करने लगे। दोनों संप्रदाय एक-दूसरे की निंदा करने लगे। शासक भी केवल अपने मत के लोगों से सहनशीलता का प्रदर्शन करते थे तथा विरोधी पर बहुत अत्याचार करते थे।

3. गृह युद्ध तथा विद्रोह (Civil Wars and Rebelions):
धर्म-सुधार आंदोलन के कारण प्रोटेस्टेंट तथा कैथोलिक एक-दूसरे के शत्रु बन गए। उनमें शत्रुता इतनी बढ़ गई कि वे एक-दूसरे के खून के प्यासे बन गए। परिणामस्वरूप विभिन्न देशों में धर्म के नाम पर युद्ध हुए जिनमें हजारों लोगों को अपने प्राण गँवाने पड़े।

4. शिक्षा का प्रसार (Spread of Education):
धर्म-सुधार आंदोलन के पश्चात् शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रसार हुआ। ईसाई मत की दोनों शाखाओं के समर्थकों ने अधिक-से-अधिक लोगों को अपने अनुयायी बनाने के लिए शिक्षा पर अधिक बल दिया। प्रोटेस्टेंटों ने शिक्षा के प्रसार के लिए बहुत प्रयत्न किए ताकि अधिक-से-अधिक लोग शिक्षित हो कर बाईबल को पढ़ें तथा उसके सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाएँ।

5. देशी भाषाओं का विकास (Development of Vernacular Languages):
धर्म-सुधार आंदोलन ने विभिन्न देशी भाषाओं के विकास में भी अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। क्योंकि सभी सुधारक लोगों को ईसाई धर्म का वास्तविक ज्ञान दिलाना चाहते थे इस लिए उन्होंने अपने प्रचार के लिए देशी भाषाओं को ही माध्यम बनाया। विभिन्न देशी भाषाओं में बाईबल का अनुवाद किया गया।

6. कला तथा साहित्य का विकास (Development of Art and Literature):
मध्यकाल में कला तथा साहित्य पर चर्च का बहुत प्रभाव था। उस समय कलाकृतियाँ तथा चित्र केवल धर्म से संबंधित ही बनाए जाते थे। गिरजाघरों, ईसा मसीह तथा संतों के चित्रों का कार्य केवल पोप की देख-रेख में ही किया जाता था। धर्म-सुधार आंदोलन के पश्चात् इस क्षेत्र में परिवर्तन आ गया।

अब कला का विषय धार्मिक न हो कर धर्म-निरपेक्ष हो गया। अब साधारण मनुष्य के जीवन से संबंधित कलाकृतियाँ बनाई जाने लगीं। इसी प्रकार साहित्य के क्षेत्र में भी परिवर्तन आ गया। अनेक सुधारकों ने प्राचीन ग्रंथों को पढ़ने तथा देशी भाषाओं में अनुवाद करने की प्रेरणा दी। परिणामस्वरूप अनेक नवीन ग्रंथ रचे गए।

7. व्यापार तथा वाणिज्य का विकास (Development of Trade and Commerce):
पुरातन कैथोलिकों की यह विचारधारा थी कि अधिक धन संचित करना तथा उसे ब्याज के लिए देना धर्म के विरुद्ध कार्य है। परंतु धर्म सुधारक इस विचारधारा को गलत मानते थे। जौं कैल्विन के अनुसार अधिक धन कमाना तथा ब्याज पर उधार देना उचित है।

उसके इस विचार का व्यापारियों, उत्पादकों तथा बैंकरों ने स्वागत किया तथा व्यापार एवं वाणिज्य को विकसित करने के लिए प्रेरित हुए। परिणामस्वरूप विभिन्न यूरोपीय देशों में इसका बहुत विकास हुआ। कई प्रोटेस्टेंट शासकों ने व्यापारियों तथा उद्योगपतियों को संरक्षण प्रदान किया। उन्होंने कैथोलिकों के विचारों की कोई परवाह न की।

8. धार्मिक युद्ध (Religious wars):
धर्म-सुधार आंदोलन के पश्चात् कई देशों ने प्रोटेस्टेंट धर्म को राजकीय धर्म घोषित कर दिया। परंतु दूसरी ओर कई अन्य देशों में प्राचीन कैथोलिक धर्म ही प्रचलित था। इन दोनों धर्मों के देश आपस में शत्रु बन गए। परिणामस्वरूप 16वीं तथा 17वीं शताब्दी में इनमें कई धर्म-युद्ध हुए। इसके विनाशकारी परिणाम निकले।

9. राष्ट्रीय राज्यों की शक्ति में वृद्धि (Strengthening of the Nation States):
राष्ट्रीय राज्यों का उदय धर्म-सुधार आंदोलन से पूर्व ही हो चुका था। धर्म-सुधार आंदोलन के परिणामस्वरूप उनकी शक्ति में और वृद्धि हो गई। नव स्थापित प्रोटेस्टेंट देशों के शासकों ने पोप तथा चर्च की शक्ति को समाप्त करके राष्ट्रीय चर्च स्थापित किए और उन्हें अपने अधीन कर लिया। उन्होंने पोप को भेजी जाने वाली राशि भी बंद कर दी। अब वे इतने शक्तिशाली हो गए कि उनके राज्यों में पोप का हस्तक्षेप बंद हो गया।

क्रम संख्या वर्ष घटना
1. 1300 ई० इटली के पादुआ विश्वविद्यालय में मानवतावाद को पढ़ाया जाने लगा।
2. 1304 ई० फ्राँसिस्को पेट्रार्क का फ्लोरेंस में जन्म।
3. 1341 ई० फ्राँसिस्को पेट्रार्क को रोम में राजकवि की उपाधि से सम्मानित करना।
4. 1390 ई० जेफ्री चॉसर द्वारा दि कैंटरबरी टेल्स का प्रकाशन।
5. 1436 ई० फिलिप्पो ब्रूनेशेशी द्वारा फ्लोरेंस में डयूमा तैयार करना।
6. 1455 ई० जोहानेस गुटेनबर्ग द्वारा बाईबल का प्रकाशन।
7. 1486 ई० जोवान्ने पिको देल्ला मिरांदोला द्वारा ‘ऑरेशन ऑन दि डिगनिटी ऑफ़ मैन’ का प्रकाशन।
8. 1495 ई० लियोनार्डों द विंसी द्वारा दि लास्ट सपर नामक चित्र तैयार करना।
9. 1508 ई० अल्बर्ट ड्यूरर द्वारा प्रार्थना रत हस्त नामक चित्र को तैयार करना।
10. 1509 ई० डेसीडेरियस इरस्मस द्वारा दि प्रेज़ ऑफ़ फ़ॉली का प्रकाशन।
11. 1513 ई० निकोलो मैक्यिावेली द्वारा दि प्रिंस नामक ग्रंथ का प्रकाशन।
12. 1517 ई० जर्मनी के मार्टिन लूथर द्वारा कैथोलिक चर्च के विरुद्ध अभियान छेड़ना।
13. 1543 ई० अंड्रीयस वेसेलियस द्वारा ऑन एनॉटमी नामक ग्रंथ की  रचना।
14. 1540 ई० इग्नेशियस लोयोला द्वारा स्पेन में सोसाइटी ऑफ़ जीसस नामक संस्था की स्थापना।
15. 1628 ई० विलियम हार्वे द्वारा ह्वदय को रुधिर परिसंचरण से जोड़ना।
16. 1662 ई० रॉयल सोसाइटी लंदन की स्थापना।
17. 1666 ई० पेरिस अकादमी की स्थापना।

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पुनर्जागरण के उत्थान के लिए कौन-से प्रमुख कारण उत्तरदायी थे?
उत्तर:
(1) सामंतवाद का पतन-सामंतवाद का पतन पुनर्जागरण के उत्थान के लिए महत्त्वपूर्ण कारणों में से एक था। मध्यकालीन समाज की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता सामंती प्रथा थी। परंतु 14वीं शताब्दी के पश्चात् इसका पतन होना आरंभ हो गया था। इसका पतन मध्य वर्ग की शक्ति के कारण हुआ। इसी मध्य वर्ग ने अपने-अपने सम्राटों को सेना के संगठन के लिए आवश्यक धन-राशि प्रदान की थी जिस कारण सम्राट् सामंतों पर निर्भर न रहे।

(2) धर्मयद-धर्मयद्धों ने यरोप को नवीनता प्रदान की। धर्मयद्धों के माध्यम से ही यनान के वैज्ञानिक ग्रंथ. अरबी अंक, बीजगणित, नवीन दिग्दर्शक यंत्र और कागज़ पश्चिमी यूरोप में पहुँचे। अतः स्पष्ट है कि धर्मयुद्धों ने नवीन विचारों तथा धारणाओं का प्रसार किया और पुराने विचारों, विश्वासों तथा संस्थाओं पर प्रहार किया। फलस्वरूप पुनर्जागरण का प्रारंभ हुआ।

(3) व्यापारिक समृद्धि-पुनर्जागरण का एक प्रेरक तत्त्व था-व्यापार का उदय एवं विकास। धर्मयुद्धों के कारण जहाँ नवीन विचारधाराएँ पनपीं, वहाँ यूरोप के पूर्वी देशों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित हुए। अनेक यूरोपीय व्यापारी जेरुसलम तथा एशिया माइनर के तटों पर बस गये। इनके कारण व्यापार में पर्याप्त वृद्धि हुई। व्यापारिक समृद्धि के कारण यूरोपीय व्यापारी विभिन्न देशों में पहुंचे। उन्हें नये विचारों तथा प्रगतिशील तत्त्वों की जानकारी हुई। स्वदेश वापस लौटने पर ये व्यापारी नये विचारों को अपने साथ लाए।

(4) छापेखाने का आविष्कार-1455 ई० में जर्मनी के जोहानेस गुटेनबर्ग ने एक ऐसी टाइप मशीन का आविष्कार किया जो आधुनिक प्रेस की अग्रदूत कही जा सकती है। मुद्रण यंत्र के इस चमत्कारी आविष्कार ने बौद्धिक विकास का द्वार खोल दिया। कैक्सटन ने 1477 ई० में ब्रिटेन में छापाखाना स्थापित किया। धीरे-धीरे इस यंत्र का प्रयोग इटली, जर्मनी, स्पेन, फ्राँस आदि देशों में आरंभ हो गया। कागज़ और मुद्रण यंत्र के आविष्कार से स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन आए।

प्रश्न 2.
पुनर्जागरण का आरंभ इटली में क्यों हुआ?
अथवा
मानवतावादी विचारों का अनुभव सबसे पहले इतालवी शहरों में क्यों हुआ?
उत्तर:
(1) इटली महान् रोमन साम्राज्य का केंद्र रहा था। अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के कारण यह व्यापार एवं ज्ञान का एक प्रसिद्ध केंद्र था। 1453 ई० में कुंस्तुनतुनिया के पतन के पश्चात् वहाँ से अनेक यूनानी विद्वान् पलायन कर इटली आ बसे थे। इससे इटली में पुनर्जागरण आंदोलन का आधार तैया

(2) इटली के पूर्वी देशों से बढ़ रहे व्यापार के कारण यहाँ के व्यापारियों को काफ़ी धनी बना दिया था। इन धनी व्यापारियों ने कलाकारों एवं साहित्यकारों की खुले दिल से सहायता की। निस्संदेह इससे इटली में पुनर्जागरण को प्रोत्साहन मिला।

(3) इटली प्राचीन रोमन सभ्यता का केंद्र था। इटली के लोग अपने प्राचीनकाल के गौरव को पुनः स्थापित करना चाहते थे। इससे इटली में पुनर्जागरण की एक नई प्रेरणा मिली।

(4) इटली में एक लंबे समय तक शांति का वातावरण रहा। इससे कला तथा साहित्य के विकास को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ।

(5) रोम के कुछ पोप भी विद्वानों एवं कलाकारों का सम्मान करते थे। उन्होंने कुछ प्रसिद्ध यूनानी पांडुलिपियों का लातीनी भाषा में अनुवाद करवाया। पोप निकोलस पंचम (1447-1455 ई०) ने वैटिकन पुस्तकालय की स्थापना की एवं संत पीटर का गिरजाघर भी बनवाया। निस्संदेह पोप के इन कार्यों ने इटली में पुनर्जागरण आंदोलन के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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प्रश्न 3.
मानवतावाद से आपका क्या अभिप्राय है?
अथवा
मानवतावादी विचारों के क्या अभिलक्षण थे?
उत्तर:
मानवतावाद पुनर्जागरण काल की एक प्रमुख विशेषता थी। इसका उदय सर्वप्रथम 14वीं शताब्दी में इटली में हुआ। इसका कारण यह था कि इटली में शिक्षा के प्रसार के कारण लोगों में एक नई जागृति उत्पन्न हो गई थी। इटली के लोग आर्थिक दृष्टिकोण से बहुत खुशहाल थे। उनके विदेशों से बढ़ते हुए संपर्क ने मानवतावादी विचारधारा को जन्म दिया।

मानवतावाद का अर्थ है मानव जीवन में रुचि लेना, मानव की समस्याओं का अध्ययन करना, मानव का आदर करना, मानव जीवन के महत्त्व को स्वीकार करना तथा उसके जीवन को सुखी, समृद्ध एवं उन्नत बनाना। मानवतावादी धर्म द्वारा मनुष्य पर लगाए गए अनुचित बँधनों को समाप्त करके उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के पक्ष में थे।

इसलिए मानवतावादी धर्मशास्त्र के अध्ययन के स्थान पर मानवतावादी अध्ययन पर अधिक बल देते थे। 15वीं शताब्दी के आरंभ में मानवतावादी शब्द उन अध्यापकों के लिए प्रयुक्त होता था जो व्याकरण, अलंकारशास्त्र, कविता, इतिहास एवं नीतिदर्शन विषय पढ़ाते थे। फ्रांसिस्को पेट्रार्क को मानवतावाद का पिता कहा जाता है।

प्रश्न 4.
पुनर्जागरण से क्या अभिप्राय है?
अथवा
नवजागरण की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
नवजागरण की मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
14वीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी तक के समय के दौरान यूरोप की सांस्कृतिक परंपराओं में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए। इससे पूर्व मध्यकाल में यूरोप के लोगों पर चर्च का प्रभाव था। इस काल में लोग इहलोक की अपेक्षा परलोक की अधिक चिंता करते थे। पुनर्जागरण लोगों के लिए एक नए युग का संदेश लेकर आया।

यह आंदोलन सर्वप्रथम इटली में आरंभ हुआ था। इटली के फ्लोरेंस, वेनिस एवं रोम नामक नगरों ने, जो कला एवं विद्या के विश्वविख्यात केंद्र बने लोगों में एक नई जागृति उत्पन्न करने में उल्लेखनीय योगदान दिया। वास्तव में इटली ने जो चिंगारी जलायी वह शीघ्र ही संपूर्ण यूरोप में एक मशाल का रूप धारण कर गई।

यूरोप के साहित्यकारों एवं कलाकारों ने यूरोपीय साहित्य एवं कला को एक नई दिशा प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनका उद्देश्य मानवतावाद का प्रसार करना था। मानवतावाद में मनुष्य को विशेष महत्त्व प्रदान किया गया था। पुनर्जागरण काल में विज्ञान के क्षेत्र में जो प्रगति हुई उसने मनुष्य के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन कर दिए।

प्रश्न 5.
फ्रांसिस्को पेट्रार्क को पुनर्जागरण का पिता क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
फ्रांसिस्को पेट्रार्क को पुनर्जागरण का पिता कहा जाता है। उसका जन्म 1304 ई० में इटली के नगर फ्लोरेंस में हुआ था। उसने अपनी शिक्षा बोलोनिया विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी। उसने कुछ समय वकालत की नौकरी की। किंतु उसकी साहित्य में अधिक दिलचस्पी थी। अतः उसने अपनी नौकरी छोड़ दी तथा अपना अधिकाँश समय प्राचीन लातीनी ग्रंथों के अध्ययन में लगाया।

वह रोमन लेखकों सिसरो एवं वर्जिल से बहुत प्रभावित हुआ था। उसने संपूर्ण यूरोप में मानवतावादी विचारधारा को प्रोत्साहित किया। उसने लौरा नामक एक स्त्री जिसे वह बेहद प्यार करता था पर अनेक कविताएँ लिखीं। साहित्य के क्षेत्र में उसके उल्लेखनीय योगदान के कारण उसे 1341 ई० में रोम में ‘राजकवि’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

प्रश्न 6.
निकोलो मैक्यिावेली कौन था? वह क्यों प्रसिद्ध था?
उत्तर:
निकोलो मैक्यिावेली (1469-1527 ई०) इटली का एक महान् विद्वान् एवं देशभक्त था। उसका जन्म 1469 ई० में फ्लोरेंस में हुआ था। उसने यूनानी एवं लातीनी साहित्य का गहन अध्ययन किया था। उसने चर्च में प्रचलित बुराइयों की कटु आलोचना की। वह इटली की दयनीय राजनीतिक स्थिति को दूर कर उसके प्राचीन गौरव को पुनः स्थापित करना चाहता था।

उसने 1513 ई० में दि प्रिंस नामक एक ग्रंथ की रचना की। यह शीघ्र ही बहुत लोकप्रिय हुआ। इसका यूरोप की अनेक भाषाओं में अनुवाद किया गया था। इसमें उसने उस समय इटली में प्रचलित राजनीतिक दशा एवं राजाओं द्वारा प्रशासन में अपनाए जाने वाले नियमों का विस्तृत वर्णन किया है। इस कारण इस ग्रंथ को राजाओं की बाईबल कहा जाता है। यह ग्रंथ आने वाले शासकों के लिए भी एक प्रेरणा स्रोत रहा।

प्रश्न 7.
लियोनार्डो दा विंसी कौन था? वह क्यों प्रसिद्ध था?
उत्तर:
लियोनार्डो दा विंसी बहुमुखी प्रतिभा का व्यक्ति था। वह न केवल एक महान् चित्रकार अपितु एक कुशल इंजीनियर, वैज्ञानिक, मूर्तिकार एवं संगीतकार भी था। वह विश्व में एक चित्रकार के रूप में अधिक लोकप्रिय हुआ। उसका जन्म इटली के फ्लोरेंस नगर में 1452 ई० में हुआ था। उसे बचपन से ही चित्रकला में विशेष रुचि थी। उसने अपने जीवनकाल में अनेक चित्र बनाए ।

इन चित्रों को देख कर उसकी प्रतिभा का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। उसके चित्रों में प्रकाश एवं छाया, रंगों का चयन एवं मानव शरीर के विभिन्न अंगों का प्रदर्शन बहुत सोच समझ कर किया गया है। उसके बनाए चित्रों मोना लीसा एवं दि लास्ट सपर ने विश्व ख्याति प्राप्त की। ये चित्र देखने में बिल्कुल सजीव लगते हैं। मोना लीसा एक साधारण स्त्री का चित्र है।

इस चित्र को बनाने में लियोनार्डो को चार वर्ष लगे। इस चित्र में मोना लीसा की मुस्कान इतनी मधुर है कि इसे देखने वाला व्यक्ति आज भी चकित रह जाता है। दि लास्ट सपर नामक चित्र मिलान स्थित सेंट मेरिया के गिरजाघर की दीवार पर बनाया गया है।

प्रश्न 8.
माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती कौन था? उसने चित्रकला के क्षेत्र क्या योगदान दिया?
उत्तर:
माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती इटली का एक अन्य प्रतिभाशाली व्यक्ति था। वह एक श्रेष्ठ चित्रकार, प्रवीण मूर्तिकार, कुशल भवन निर्माता एवं उच्च कोटि का कवि था। वास्तव में वह प्रत्येक क्षेत्र में असाधारण प्रदर्शन करने की योग्यता रखता था। उसका नाम रोम के सिस्टीन चैपल की भीतरी छत पर बनाए 145 चित्रों के कारण सदैव के लिए अमर हो गया है।

इन चित्रों को उसने 1508 ई० से 1512 ई० तक बनाया। इन चित्रों से माईकल ऐंजेलो के कौशल एवं प्रतिभा का प्रमाण मिलता है। इन चित्रों को देखकर आज भी कला प्रेमी चकित रह जाते हैं। इसी चर्च की दीवार पर माईकल ऐंजेलो ने लास्ट जजमेंट नामक चित्र को बनाया। इस चित्र को बनाने में उसे 8 वर्ष लगे। निस्संदेह यह संसार का एक उच्च कोटि का चित्र है।

प्रश्न 9.
पुनर्जागरण के समाज पर पड़े प्रमुख प्रभाव बताएँ।
उत्तर:
(1) जिज्ञासा की भावना-पुनर्जागरण का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रभाव यह पड़ा कि लोगों में जिज्ञासा की भावना उत्पन्न हुई तथा उनका दृष्टिकोण वैज्ञानिक हो गया। अब उन्होंने शताब्दियों से प्रचलित अंध-विश्वासों तथा रीति-रिवाजों को त्याग दिया। वे अब प्रत्येक विचार को तर्क की कसौटी पर परखने लगे।

(2) मानवतावाद की भावना-मानवतावाद की भावना का उत्पन्न होना पुनर्जागरण की एक अन्य महत्त्वपूर्ण देन है। इस काल के साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में मनुष्य से संबंधित विषयों को प्रमुख स्थान दिया तथा मनुष्य के कल्याण पर बल दिया। उन्होंने धर्म द्वारा मनुष्य पर लगाए गए अनुचित प्रतिबंधों की घोर आलोचना की। उन्होंने मनुष्य की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन किया।

(3) स्त्रियों की स्थिति में सुधार-पुनर्जागरण से पूर्व स्त्रियों की स्थिति बहुत बदतर थी। उन्हें समाज में कोई सम्मानजनक स्थान प्राप्त नहीं था। पुनर्जागरण काल में स्त्रियों की स्थिति में कुछ सुधार आया तथा उन्हें पुरुषों के समान स्थान प्राप्त हुआ। परिणामस्वरूप उनमें जागृति आई। अब वे शिक्षा ग्रहण करने लगीं। साहित्य के अध्ययन से उनका दृष्टिकोण विशाल हो गया।

(4) साहित्य का विकास-पुनर्जागरण के कारण साहित्य के क्षेत्र में आश्चर्यजनक विकास हुआ। इस विकास के परिणामस्वरूप अनेक नई पुस्तकों की रचना हुई। इतालवी, फ्रांसीसी, अंग्रेजी, स्पेनी, जर्मन, डच आदि भाषाओं में अनेकों विद्वानों ने अपनी रचनाएँ लिखीं। इस काल के साहित्यकारों में दाँते, पेट्रार्क, बोकासियो, मैक्यिावेली, मिरांदोला, जेफ्री चॉसर, टॉमस मोर तथा इरेस्मस आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इन्होंने अपनी रचनाओं में मानवतावादी विचारों का प्रसार किया तथा साहित्य के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रश्न 10.
सत्रहवीं शताब्दी के यूरोपीयों को विश्व किस प्रकार भिन्न लगा ? उसका एक सुचिंतित विवरण दीजिए।
उत्तर:
सत्रहवीं शताब्दी में यूरोपीयों को विश्व निम्नलिखित भागों में भिन्न लगा

  • इस शताब्दी में यूरोप के अनेक देशों में नगरों की संख्या में तीव्रता से बढ़ौतरी हो रही थी।
  • नगरों के लोग यह सोचने लगे थे कि वे गाँवों के लोगों से अधिक सभ्य हैं।
  • फ्लोरेंस, वेनिस और रोम जैसे नगर कला तथा विद्या के केंद्र बन गए थे।
  • मुद्रण के आविष्कार के कारण लोगों में नव चेतना का संचार हुआ।
  • चर्च के बारे में लोगों के विचारों में परिवर्तन आ गया था।

प्रश्न 11.
धर्म-सुधार आंदोलन से आपका क्या अभिप्राय है? उस आंदोलन के प्रमुख उद्देश्य क्या थे?
अथवा
प्रोटेस्टेंट धर्म सुधार का अर्थ बताइए।
उत्तर:
(1) अभिप्राय-धर्म-सुधार आंदोलन से अभिप्राय उस आंदोलन से है जो 16वीं एवं 17वीं शताब्दियों में यूरोप में चर्च में प्रचलित कुरीतियों को दूर करने के लिए चलाया गया था।
(2) उद्देश्य-धर्म-सुधार आंदोलन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित अनुसार थे-

  • पोप तथा अन्य धर्म अधिकारियों के असीमित अधिकारों पर अंकुश लगाना।
  • उनके नैतिक जीवन में सुधार लाना।
  • चर्चों में फैले भ्रष्टाचार को समाप्त करना तथा धर्म अधिकारियों का ध्यान आध्यात्मिकता की ओर लगाना।
  • राष्ट्रीय चर्च की स्थापना पर बल देना।
  • जनसाधारण को मोक्ष-प्राप्ति के लिए पोप पर आश्रित न रख कर परमात्मा पर आश्रित बनाना।
  • प्रत्येक मानव को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करना।

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प्रश्न 12.
धर्म-सुधार आंदोलन के उदय के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर:
(1) चर्च में व्याप्त बुराइयाँ-धर्म-सुधार आंदोलन का मुख्य कारण चर्च में व्याप्त बुराइयाँ थीं। चर्च के संगठन में भ्रष्टाचार तथा दुराचार का बोलबाला था। उच्च अधिकारी से लेकर पादरी तक सभी का चरित्र पतित हो चुका था। चर्च के अधिकारी अपने कर्तव्यों की ओर कोई ध्यान नहीं देते थे तथा बड़े लालची हो गए थे। वे विलासी जीवन व्यतीत करने लगे थे तथा हर समय रंगरलियों में डूबे रहते थे। कई पादरियों ने शराब पीना, जुआ खेलना तथा शिकार खेलना आरंभ कर दिया था। पादरियों के इन्हीं अनैतिक कार्यों के कारण जन-साधारण चर्च के विरुद्ध हो गया।

(2) राजनीतिक क्षेत्र में पोप का हस्तक्षेप-चर्च की संपत्ति के कारण भी कई बार पोप तथा सम्राटों में झगड़ा हो जाता था। पोप का यह विश्वास था कि चर्च की संपत्ति पर कर लगाने का अधिकार किसी सम्राट् के पास नहीं है। परंतु कई सम्राटों ने पोप की इस धारणा को चुनौती दी। इन सम्राटों ने पोप के आदेशों की कोई परवाह न की तथा चर्च पर कर लगा दिए। इससे पोप की प्रतिष्ठा तथा शक्ति को गहरा आघात पहुँचा। फलस्वरूप पोप की स्थिति दुर्बल हो गई और लोग धर्म सुधार के लिए प्रेरित हुए।

(3) राष्ट्रीय राज्यों का उदय-पुनर्जागरण से पूर्व यूरोप के कई देशों में सामंतवाद का प्रभुत्व था। सभी प्रशासकीय शक्तियों का प्रयोग अधिकतर सामंत ही करते थे। इस सामंती व्यवस्था में अनेकों दोष व्याप्त थे। इन दोषों को दूर करने के उद्देश्य से कई राज्यों में शासकों ने सामंतों को शक्तिहीन करने के सफल प्रयास किए। परिणामस्वरूप इंग्लैंड, फ्रांस, पुर्तगाल, स्पेन, हंगरी, पोलैंड, हालैंड, स्काटलैंड तथा डेनमार्क आदि राष्ट्रीय राज्य उदय हुए। ये राष्ट्रीय राज्य चर्च के प्रभाव से मुक्ति पाना चाहते थे।

(4) तात्कालिक कारण-पोप द्वारा पाप स्वीकारोक्ति पत्रों की बिक्री धर्म-सुधार आंदोलन का तात्कालिक कारण बनी। उन दिनों पोप को रोम में सेंट पीटर गिरजाघर के निर्माण के लिए धन चाहिए था। उसने धन इकटा करने के लिए पाप स्वीकारोक्ति पत्रों को बेचना आरंभ कर दिया। इन पाप स्वीकारोक्ति पत्रों को खरीद कर कोई भी व्यक्ति अपने पापों से मुक्त हो सकता था। 1517 ई० में टेट्जेल नामक एक पादरी पाप स्वीकारोक्ति पत्रों को बेचने के लिए विटेनबर्ग पहुँचा। जब वह वहाँ यह पाप स्वीकारोक्ति पत्र बेच रहा था तो मार्टिन लूथर ने उसका विरोध किया।

प्रश्न 13.
मार्टिन लूथर कौन था? उसने धर्म-सुधार आंदोलन में क्या योगदान दिया?
अथवा
मार्टिन लूथर की मुख्य शिक्षाओं को लिखें।
उत्तर:
मार्टिन लूथर ने जर्मनी में धर्म-सुधार आंदोलन में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। उसका जन्म 10 नवंबर, 1483 ई० को जर्मनी के एक निर्धन किसान के घर हुआ था। प्रारंभ में लूथर पोप विरोधी नहीं था, परंतु 1517 ई० में एक ऐसी घटना घटी जिससे वह पोप विरोधी हो गया। लूथर ने देखा कि विटेनबर्ग में टेट्ज़ेल नामक एक पादरी लोगों को पाप स्वीकारोक्ति-पत्र बेच रहा था।

टेट्ज़ेल यह प्रचार कर रहा था कि कोई भी व्यक्ति जो इन पाप स्वीकारोक्ति पत्रों को खरीद लेगा वह अपने पापों से मुक्त हो जाएगा तथा सीधे स्वर्ग को जाएगा। भोली-भाली जनता के साथ इस प्रकार किए जा रहे मजाक तथा शोषण के विरुद्ध मार्टिन लूथर ने आवाज़ उठाई। उसने विटेनबर्ग के चर्च के द्वार पर अपने 95 थिसेज़ लटका दिए। इन थिसेज़ों में उसने चर्च द्वारा भ्रष्ट उपायों द्वारा धन इकट्ठा करने की कड़ी आलोचना की।

उसने धर्म शास्त्रियों को इन थिसेजों के बारे में बहस करने की चुनौती दी। लेकिन पोप ने लूथर के विरोध को कोई महत्त्व नहीं दिया। मार्टिन लूथर ने 1519 ई० में लिपजिग में एक वाद-विवाद में मनुष्य तथा ईश्वर के बीच पोप की मध्यस्थता को निरर्थक बताया। यह मार्टिन लूथर की चर्च की निरंकुशता को खुली चुनौती थी। इसका लोगों के मनों पर गहरा प्रभाव पड़ा तथा वे चर्च के विरोधी हो गए।

प्रश्न 14.
ईसाई धर्म के अंतर्गत वाद-विवाद की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
15वीं एवं 16वीं शताब्दियों में अनेक कारणों से ईसाई धर्म के अंतर्गत वाद-विवाद आरंभ हो गया था। इस काल में उत्तरी यूरोप के विश्वविद्यालयों के अनेक विद्वान् मानवतावादी विचारों की ओर आकर्षित हुए। उन्होंने ईसाई धर्म ग्रंथों के अध्ययन पर अधिक ध्यान दिया। ईसाई चर्च के अनेक सदस्य मानवतावादी सिद्धांत की ओर आकर्षित हुए।

उन्होंने ईसाइयों को आवश्यक कर्मकांडों को त्यागने के लिए प्रेरित किया एवं इनकी कड़ी आलोचना की। वे मानव को एक मुक्त विवेकपूर्ण कर्ता समझते थे। उनका कथन था मानव को अपनी खुशी इसी संसार में वर्तमान में मिलेगी। इंग्लैंड के टॉमस मोर एवं हालैंड के इरेस्मस ने चर्च को जन साधारण की लूट-खसूट करने वाली एक संस्था बताया।

पाप स्वीकारोक्ति नामक दस्तावेज़ यात्रियों द्वारा लोगों को ठगने का सबसे सरल तरीका था। किसान चर्च द्वारा लगाए गए अनेक प्रकार के करों से परेशान थे। राजा भी चर्च की दखलअंदाजी को पसंद नहीं करते थे। अत: 1517 ई० में जर्मनी के मार्टिन लूथर ने कैथोलिक चर्च के विरुद्ध एक ज़ोरदार अभियान चलाया।

प्रश्न 15.
विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में अरबियों का क्या योगदान था ?
उत्तर:
विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में अरबियों का उल्लेखनीय योगदान था। 14वीं शताब्दी में अनेक यूरोपीय विद्वानों ने प्लेटो एवं अरस्तु द्वारा लिखे ग्रंथों के अनुवादों को पढ़ना आरंभ किया। इन ग्रंथों का अनुवाद यूरोपीय विद्वानों ने नहीं अपितु अरब विद्वानों ने किया था। अरबी भाषा में प्लेटो को अफलातून एवं एरिसटोटिल को अरस्तु के नामों से जाना जाता था।

यनानी विद्वानों ने अरबियों के प्राकतिक विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान, औषधि विज्ञान एवं रसायन विज्ञान से संबंधित ग्रंथों का अनुवाद करके उनके ज्ञान को यूरोपियों तक पहुँचाया। मुस्लिम लेखकों जिनमें अरबी हकीम इब्न सिना तथा आयुविज्ञान विश्वकोष के लेखक अल-राज़ी सम्मिलित थे जो इटली में बहुत प्रसिद्ध थे। स्पेन के अरबी दार्शनिक इब्न रुश्द के दार्शनिक ज्ञान को ईसाई दार्शनिकों ने न केवल अपनाया अपितु इसकी बहुत प्रशंसा की।

अति संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
रेनेसाँ से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
रेनेसाँ एक फ्रांसीसी शब्द है जिससे. अभिप्राय है पुनर्जन्म अथवा पुनर्जागरण। यह आंदोलन 14वीं से 17वीं शताब्दी के मध्य यूरोप के अनेक देशों में चला। इस आंदोलन ने कला तथा साहित्य को एक नया प्रोत्साहन दिया। इसने लोगों में एक नई जागृति उत्पन्न की।

प्रश्न 2.
जैकब बहार्ट (Jacob Burckhardt) कौन था ?
उत्तर:
जैकब बर्कहार्ट स्विट्जरलैंड के ब्रेसले विश्वविद्यालय का एक प्रसिद्ध इतिहासकार था। उन्होंने 1860 ई० में ‘दि सिविलाईजेशन ऑफ़ दि रेनेसाँ इन इटली’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की। इसमें उन्होंने इटली में साहित्य, वास्तुकला एवं चित्रकला के क्षेत्रों में हुए विकास पर प्रकाश डाला है।

प्रश्न 3.
कार्डिनल गेसपारो कोंतारिनी कौन था ?
उत्तर:
कार्डिनल गेसपारो कोंतारिनी वेनिस का एक प्रसिद्ध अधिकारी था। उसने 1534 ई० में ‘दि कॉमनवेल्थ एंड गवर्नमेंट ऑफ़ वेनिस’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की। इसमें लेखक ने वेनिस के संयुक्तमंडल (Commonwealth) के संबंध में विस्तृत जानकारी प्रदान की है।

प्रश्न 4.
पुनर्जागरण के उत्थान के लिए उत्तरदायी कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:

  • सामंतवाद का पतन।
  • छापेखाने का आविष्कार।

प्रश्न 5.
धर्मयुद्ध किस प्रकार पुनर्जागरण लाने में सहायक सिद्ध हुए ?
उत्तर:

  • यूरोपवासी पूर्वी देशों के लोगों एवं सभ्यता के संपर्क में आए।
  • इन युद्धों ने भौगोलिक खोजों को प्रोत्साहित किया।

प्रश्न 6.
जोहानेस गुटेनबर्ग कौन था ?
उत्तर:
जोहानेस गुटेनबर्ग मेन्ज़ (जर्मनी) के निवासी थे। उन्होंने 1455 ई० में छापेखाने का आविष्कार किया। इस छापेखाने में 1455 ई० में बाईबल की 150 प्रतियाँ छपी। बौद्धिक क्रांति लाने में छापेखाने का आविष्कार एक मील पत्थर सिद्ध हुआ।

प्रश्न 7.
छापेखाने के आविष्कार ने किस प्रकार पुनर्जागरण में सहायता दी ? कोई दो बिंदु लिखिए।
उत्तर:

  • इससे साहित्य एवं ज्ञान का प्रसार हुआ।
  • इससे लोगों में एक नई जागृति आई।

प्रश्न 8.
पुनर्जागरण यूरोप के किस देश से आरंभ हुआ था ?
उत्तर:
पुनर्जागरण यूरोप के इटली देश से आरंभ हुआ था।

प्रश्न 9.
इटली में पुनर्जागरण के आरंभ होने के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:

  • इटली के अनेक नगर वाणिज्य एवं व्यापार के प्रसिद्ध केंद्र थे।
  • इटली के अनेक विद्वानों ने अंध-विश्वासों का खंडन किया एवं मानवतावाद का प्रचार किया।

प्रश्न 10.
पादुआ और बोलोनिया विश्वविद्यालय विधिशास्त्र के अध्ययन केंद्र थे। क्यों ?
उत्तर:
पादआ और बोलोनिया व्यापार एवं वाणिज्य के प्रसिद्ध केंद्र थे। अत: यहाँ वकीलों एवं नोटरी की बहत अधिक आवश्यकता होती थी। वे नियमों को लिखते, उनकी व्याख्या करते एवं समझौते तैयार करते थे। अत: यहाँ के विश्वविद्यालय विधिशास्त्र के अध्ययन केंद्र बन गए।

प्रश्न 11.
वेनिस और समकालीन फ्रांस में ‘अच्छी सरकार’ के विचारों की तुलना कीजिए।
उत्तर:
वेनिस इटली का एक प्रसिद्ध गणराज्य था। यह चर्च एवं सामंतों के प्रभाव से मुक्त था। नगर के धनी व्यापारी एवं महाजन नगर के प्रशासन में मुख्य भूमिका निभाते थे। दूसरी ओर फ्रांस में निरंकुश राजतंत्र स्थापित था। यहाँ के आम नागरिक सभी प्रकार के अधिकारों से वंचित थे।

प्रश्न 12.
चौदहवीं और पंद्रहवीं शताब्दियों में यूनानी और रोमन संस्कृति के किन तत्त्वों को पुनर्जीवित किया गया ?
उत्तर:
चौदहवीं और पंद्रहवीं शताब्दियों में यूनानी और रोमन संस्कृति के धार्मिक, साहित्यिक तथा कलात्मक तत्त्वों को पुनर्जीवित किया गया।

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प्रश्न 13.
मानवतावादी विचारों का अनुभव सबसे पहले इतालवी शहरों में क्यों हुआ ?
उत्तर:

  • इटली में सर्वप्रथम ऐसे विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई जहाँ मानवतावादी विषयों को पढ़ाया जाता था।
  • इटली के विद्वानों ने अनेक मानवतावादी ग्रंथों की रचना की।

प्रश्न 14.
मानवतावाद से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मानवतावाद से अभिप्राय एक ऐसे आंदोलन से है जिसमें परलोक की अपेक्षा मानव के महत्त्व पर अधिक बल दिया जाता है। इसमें मानव जीवन में रुचि, मानव की समस्याओं का अध्ययन, मानव का सम्मान, मानव जीवन को सुखी, समृद्ध एवं उन्नत बनाने पर विशेष बल दिया गया है। 15वीं शताब्दी में मानवतावाद यूरोप में बहुत लोकप्रिय हुआ।

प्रश्न 15.
फ्रांसिस्को पेट्रार्क कौन था?
उत्तर:
फ्रांसिस्को पेट्रार्क फ्लोरेंस का एक प्रसिद्ध लेखक था। उसे पुनर्जागरण का पिता के नाम से जाना जाता है। उसने साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। उसने मानवतावादी विचारों का प्रसार किया।

प्रश्न 16.
जोटो कौन था?
उत्तर:
जोटो इटली के नगर फ्लोरेंस का एक प्रसिद्ध कलाकार था। उसने ऐसे चित्र बनाए जो देखने में बिल्कुल सजीव लगते थे। उससे पहले कलाकार जिन चित्रों को बनाते थे वे बेजान-से होते थे।

प्रश्न 17.
दाते अलिगहियरी कौन था ? उसकी प्रसिद्ध रचना का नाम लिखें।
उत्तर:

  • दाँते अलिगहियरी फ्लोरेंस का एक प्रसिद्ध कवि था।
  • उसकी प्रसिद्ध रचना का नाम डिवाईन कॉमेडी था।

प्रश्न 18.
‘रेनेसों व्यक्ति’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘रेनेसा व्यक्ति’ का प्रयोग उस मनुष्य के लिए किया जाता है जिसकी अनेक रुचियाँ हों तथा जो अनेक कलाओं में कुशल हो। पुनर्जागरण काल में ऐसे अनेक महान् लोग हुए जो अनेक रुचियों रखते थे और कई कलाओं में कुशल थे। इनमें लियोनार्डो दा विंसी, फिलिप्पो ब्रूनेलेशी एवं लोरेंजो वल्ला आदि थे।

प्रश्न 19.
मानवतावादियों ने 15वीं शताब्दी के आरंभ को नए युग का नाम क्यों दिया ?
उत्तर:
मानवतावादियों ने 15वीं शताब्दी के आरंभ को मध्यकाल से अलग करने के लिए नए युग का नाम दिया। उनका यह तर्क था कि मध्य युग में चर्च ने लोगों की सोच को बुरी तरह जकड़ रखा था इसलिए वे वास्तविक ज्ञान से कोसों दूर थे। 15वीं शताब्दी में लोगों को इस ज्ञान की पुनः जानकारी हुई।

प्रश्न 20.
अल्बर्ट ड्यूरर कौन था ?
उत्तर:
अल्बर्ट ड्यूरर इटली का एक प्रसिद्ध चित्रकार था। उसने 1508 ई० में ‘प्रार्थना रत हस्त’ नामक चित्र बनाया। यह चित्र बहुत लोकप्रिय हुआ। यह चित्र 16वीं शताब्दी की इतालवी संस्कृति का आभास कराता है जब यहाँ के लोग बहुत धार्मिक विचारों के थे।

प्रश्न 21.
दोनातल्लो का नाम क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
दोनातल्लो फ्लोरेंस का एक महान् मूर्तिकार था। उसने 1416 ई० में अनेक भव्य मूर्तियाँ बनाई। इनमें यंग ऐंजलस, सेंट मार्क एवं गाटामेलाटा नामक मूर्तियाँ बहुत प्रसिद्ध हुईं। ये मूर्तियाँ देखने में बिल्कुल सजीव लगती हैं।

प्रश्न 22.
अंडीयस वेसेलियस क्यों प्रसिद्ध थे ?
उत्तर:
अंड्रीयस वेसेलियस पादुआ विश्वविद्यालय में आयुर्विज्ञान के प्राध्यापक थे। वह प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने सूक्ष्म परीक्षण के लिए मनुष्य के शरीर की चीर-फाड़ की। इससे आधुनिक शरीर क्रिया विज्ञान (Physiology) का प्रारंभ हुआ।

प्रश्न 23.
लियोनार्द्ध दा विंसी कौन था ? उसके दो प्रसिद्ध चित्रों के नाम बताएं।
अथवा
लियोनाङ्के दा विंसी कौन था ?
उत्तर:

  • लियोनार्डो दा विंसी फ्लोरेंस का एक महान् चित्रकार एवं मूर्तिकार था।
  • उसके दो प्रसिद्ध चित्रों के नाम मोना लीसा एवं दि लास्ट सपर थे।

प्रश्न 24.
पुनर्जागरण काल में बने चित्रों की कोई दो विशेषताएं लिखिए।
उत्तर:

  • इस काल में बने चित्र अधिक रंगीन एवं चटख थे।
  • इन चित्रों में धर्म-निरपेक्षता की झलक स्पष्ट दिखाई देती है।

प्रश्न 25.
यथार्थवाद से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
पुनर्जागरण काल में शरीर विज्ञान, रेखागणित, भौतिकी एवं सौंदर्य की उत्कृष्ट भावना ने इतालवी कला को एक नया रूप प्रदान किया। इसे यथार्थवाद के नाम से जाना जाने लगा। यथार्थवाद की यह परंपरा 19वीं शताब्दी तक चलती रही।

प्रश्न 26.
पुनर्जागरण काल की वास्तुकला की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • इस काल में शास्त्रीय शैली (classical style) के अनुसार भवनों का निर्माण किया गया।
  • इस काल के चित्रकारों और शिल्पकारों ने भवनों को चित्रों एवं मूर्तियों से सुसज्जित किया।

प्रश्न 27.
माईकल ऐंजेलो बुआनारोती क्यों प्रसिद्ध था?
उत्तर:
माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती पुनर्जागरण काल का सर्वाधिक प्रसिद्ध मूर्तिकार, चित्रकार एवं भवन निर्माता था। उसकी प्रतिभा का प्रमाण हमें रोम के सिस्टीन नामक गिरजाघर के भीतर बनाए गए चित्रों, दि पाइटा नामक प्रतिमा, दि लास्ट जजमेंट नामक चित्र एवं सेंट पीटर गिरजे के गुंबद के डिजाइन को देखने से मिलता है।

प्रश्न 28.
फिलिप्पो ब्रूनेलेशी कौन था ?
उत्तर:
फिलिप्पो ब्रूनेलेशी पुनर्जागरण काल का एक प्रसिद्ध मूर्तिकार एवं भवन निर्माता था। उसने फ्लोरेंस के कथीड्रल के गुंबद का डिजाइन बनाया था। इसे ‘दि ड्यूमा’ के नाम से जाना जाता है। यह अपनी उच्च कोटि की कला शैली के लिए प्रसिद्ध है।

प्रश्न 29.
जेफ्री चॉसर कौन था ?
उत्तर:
जेफ्री चॉसर इंग्लैंड का प्रसिद्ध लेखक था। उसने 1390 ई० में दि कैंटरबरी टेल्स का प्रकाशन किया। यह ग्रंथ अनेक कहानियों का संग्रह है। इससे हमें मध्यकालीन इंग्लैंड के समाज के संबंध में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। यह ग्रंथ संपूर्ण विश्व में बहुत लोकप्रिय हुआ।

प्रश्न 30.
निकोलो मैक्यिावेली क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
वह पुनर्जागरण काल का इटली का सबसे प्रसिद्ध विद्वान् था। उसने 1513 ई० में दि प्रिंस नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की। इसमें उसने उस समय की राजनीतिक समस्याओं का वर्णन किया है एवं शासन संबंधी नियमों पर प्रकाश डाला है।

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प्रश्न 31.
निकोलस कोपरनिकस कौन था ?
अथवा
कोपरनिकस क्रांति पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
निकोलस कोपरनिकस पोलैंड का प्रसिद्ध खगोल विज्ञानी था। उसने इस प्रचलित मत को अपनी पुस्तक ‘दि रिवल्यूशनिबस’ में यह असत्य सिद्ध किया कि पृथ्वी सभी ग्रहों का केंद्र है और अन्य ग्रह इसके इर्द-गिर्द चक्कर काटते हैं। उसने यह प्रमाणित किया कि पृथ्वी सहित सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर काटते हैं।

प्रश्न 32.
जोहानेस कैप्लर क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
जोहानेस कैप्लर जर्मनी का एक प्रसिद्ध खगोल विज्ञानी था। उसने ‘कॉस्मोग्राफ़िकल मिस्ट्री’ नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की। इसमें उसने सिद्ध किया कि पृथ्वी एवं अन्य ग्रह सूर्य के चारों ओर वृत्ताकार रूप से नहीं अपितु अंडाकार गति से घूमते हैं।

प्रश्न 33.
गैलिलियो गैलिली कौन था ?
उत्तर:
गैलिलियो गैलिली इटली का एक महान् वैज्ञानिक एवं गणितकार था। उसने दि मोशन नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की। इसमें उसने प्रमाणित किया कि सूर्य ही ब्रह्मांड का केंद्र है और पृथ्वी एवं अन्य ग्रह इसके इर्द गिर्द चक्कर काटते हैं।

प्रश्न 34.
आइज़क न्यूटन कौन था ?
उत्तर:
आइज़क न्यूटन 17वीं शताब्दी इंग्लैंड का एक महान् वैज्ञानिक था। उसने 1687 ई० में ‘प्रिंसिपिया मैथेमेटिका’ नामक प्रसिद्ध ग्रंथ का प्रकाशन किया। इसमें उसने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का वर्णन किया था। इस कारण उसकी विश्व में ख्याति बहुत बढ़ गई।

प्रश्न 35.
अंड्रीयस वेसेलियस कौन था ?
उत्तर:
अंड्रीयस वेसेलियस 16वीं शताब्दी इटली का एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक था। उसने 1543 ई० में ऑन एनॉटमी नामक ग्रंथ की रचना की। इसमें उसने शरीर रचना विज्ञान पर विस्तृत प्रकाश डाला है।

प्रश्न 36.
विलियम हार्वे क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
विलियम हार्वे (1578-1657 ई०) इंग्लैंड का एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक था। उसने 1628 ई० में यह सिद्ध किया कि रक्त हृदय से चलकर धमनियों तथा नाड़ियों से होता हुआ पुनः हृदय में पहुँच जाता है। इसे रुधिर परिसंचरण (blood circulation) का नाम दिया गया।

प्रश्न 37.
मानवतावादी युग में व्यापारी परिवारों में स्त्रियों की स्थिति के कोई दो बिंदु बताएँ।
उत्तर:

  • दुकानदारों की स्त्रियाँ दुकानों को चलाने में उनकी सहायता करती थीं।
  • व्यापारी परिवार की स्त्रियाँ परिवार के कारोबार को संभालती थीं।

प्रश्न 38.
कसांद्रा फेदले कौन थी ?
उत्तर:
वह वेनिस की एक प्रसिद्ध महिला थी। वह मानवतावादी विचारों की पक्षधर थी। उसने सभी महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। उसने पादुआ विश्वविद्यालय में भाषण दिया था।

प्रश्न 39.
ईसाबेला दि इस्ते कौन थी ?
उत्तर:
वह मंटुआ की एक प्रतिभाशाली महिला थी। उसने अपने पति की अनुपस्थिति में अपने राज्य पर शासन किया था। उसका दरबार बौद्धिक प्रतिभा के लिए प्रसिद्ध था। उसने पुरुष-प्रधान समाज में महिलाओं को अपनी पहचान बनाए रखने पर बल दिया।

प्रश्न 40.
पुनर्जागरण के कोई दो प्रमुख प्रभाव लिखें।
उत्तर:

  • इस कारण सामंतवाद को गहरा आघात लगा।
  • इस कारण कला एवं साहित्य को एक नया प्रोत्साहन मिला।

प्रश्न 41.
धर्म-सुधार आंदोलन क्या था ? इस आंदोलन के दो कारण लिखो।
उत्तर:

  • धर्म-सुधार आंदोलन से अभिप्राय मध्यकालीन समाज में आई धार्मिक कुरीतियों को दूर करने के लिए चलाए गए आंदोलन से है।
  • चर्च में भ्रष्टाचार बहत फैल गया था।
  • पोप द्वारा पाप स्वीकारोक्ति पत्र की बिक्री।

प्रश्न 42.
धर्म-सुधार आंदोलन के कोई दो उद्देश्य बताएँ।
उत्तर:

  • चर्च में फैले भ्रष्टाचार को समाप्त करना।
  • लोगों के जीवन में नैतिक सुधार करना।

प्रश्न 43.
पाप स्वीकारोक्ति (Indulgences) से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
पाप स्वीकारोक्ति एक ऐसा दस्तावेज़ था जो किसी व्यक्ति द्वारा किए गए उसके सभी पापों से मुक्ति दिलवा सकता था। यह वास्तव में पादरियों द्वारा जन-साधारण से धन ऐंठने का एक नया ढंग निकाला गया था। इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति पादरी को धन देकर इसे प्राप्त कर सकता था एवं पापों से छुटकारा पा सकता था।

प्रश्न 44.
मार्टिन लूथर क्यों प्रसिद्ध था?
उत्तर:
मार्टिन लूथर ने जर्मनी में धर्म-सुधार आंदोलन का सफल नेतृत्व किया था। उसने 1517 ई० में कैथोलिक चर्च में फैले भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए एक जोरदार आंदोलन का आरंभ किया था। उसका यह आंदोलन काफी सीमा तक सफल रहा।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
14वीं शताब्दी में यूरोपीय इतिहास की जानकारी देने वाले किसी एक प्रमुख स्त्रोत का नाम लिखें।
उत्तर:
मुद्रित पुस्तकें।

प्रश्न 2.
रेनेसाँ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
पुनर्जन्म।

प्रश्न 3.
‘दि सिविलाईजेशन ऑफ़ दि रेनेसाँ इन इटली’ का लेखक कौन था ?
उत्तर:
जैकब बर्कहार्ट।

प्रश्न 4.
जैकब बर्कहार्ट किस जर्मन इतिहासकार का शिष्य था ?
उत्तर:
लियोपोल्ड वॉन रांके।

प्रश्न 5.
पुनर्जागरण का उत्थान किस शताब्दी में हुआ ?
उत्तर:
14वीं शताब्दी में।

प्रश्न 6.
पुनर्जागरण सर्वप्रथम किस देश में आरंभ हुआ ?
उत्तर:
इटली में।

प्रश्न 7.
छापेखाने का आविष्कार किसने किया ?
उत्तर:
जोहानेस गुटेनबर्ग ने।

प्रश्न 8.
छापेखाने का आविष्कार कब हुआ था ?
उत्तर:
1455 ई० में।

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प्रश्न 9.
‘दि कॉमनवेल्थ एंड गवर्नमेंट ऑफ़ वेनिस’ का लेखक कौन था ?
उत्तर:
कार्डिनल गेसपारो कोंतारिनी।

प्रश्न 10.
11वीं शताब्दी में इटली के दो प्रसिद्ध विश्वविद्यालय कौन-से थे ?
उत्तर:
बोलोनिया एवं पादुआ।

प्रश्न 11.
पुनर्जागरण का पिता किसे माना जाता है ?
उत्तर:
फ्रांसिस्को पेट्रार्क को।

प्रश्न 12.
फ्राँसिस्को पेट्रार्क इटली में किस नगर का निवासी था ?
उत्तर:
फ्लोरेंस।

प्रश्न 13.
डिवाईन कॉमेडी का लेखक कौन था ?
उत्तर:
दाँते अलिगहियरी।

प्रश्न 14.
किसी एक प्रसिद्ध मानवतावादी का नाम लिखें।
उत्तर:
फ्रांसिस्को पेट्रार्क।

प्रश्न 15.
जोवान्ने बोकासियो की महान् रचना का नाम क्या था ?
उत्तर:
डेकामेरोन।

प्रश्न 16.
किस वर्ष जोवान्ने पिको देल्ला मिरांदोला की रचना औरेशन ऑन दि डिगनिटी ऑफ़ मैन प्रकाशित हुई ?
उत्तर:
1486 ई०।

प्रश्न 17.
निकोलो मैक्यिावेली की प्रसिद्ध रचना का नाम क्या था ?
उत्तर:
दि प्रिंस।

प्रश्न 18.
दि कैंटरबरी टेल्स का लेखक कौन था ?
उत्तर:
जेफ्री चॉसर।

प्रश्न 19.
सर टॉमस मोर की रचना यूटोपिया का प्रकाशन कब हुआ था ?
उत्तर:
1516 ई०।

प्रश्न 20.
दि प्रेज़ ऑफ फॉली का लेखक कौन था ?
उत्तर:
डेसीडेरियस इरेस्मस।

प्रश्न 21.
जोटो किस देश का प्रसिद्ध चित्रकार था ?
उत्तर:
इटली।

प्रश्न 22.
किस प्रसिद्ध चित्रकार ने ‘मोना लीसा’ एवं ‘दि लास्ट सपर’ नामक प्रसिद्ध चित्र बनाए ?
उत्तर:
लियोनार्डो दा विंसी।

प्रश्न 23.
मोना लीसा कौन थी ?
उत्तर:
एक साधारण स्त्री।

प्रश्न 24.
अल्बर्ट ड्यूरर के प्रसिद्ध चित्र का नाम क्या था ?
उत्तर:
प्रार्थना रत हस्त।

प्रश्न 25.
माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती किस देश का निवासी था ?
उत्तर:
इटली।

प्रश्न 26.
फिलिप्पो ब्रूनेलेशी ने भवनों के निर्माण के लिए किस शैली को अपनाया ?
उत्तर:
शास्त्रीय शैली।

प्रश्न 27.
‘दि पाइटा’ एवं ‘डेविड’ नामक प्रसिद्ध चित्रों का निर्माण किसने किया ?
उत्तर:
माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती।

प्रश्न 28.
लंदन में रॉयल सोसाइटी की स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर:
1662 ई० में।

प्रश्न 29.
फ्रांस में पेरिस अकादमी की स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर:
1666 ई० में।

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प्रश्न 30.
पुनर्जागरण काल के किसी एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक का नाम लिखें।
उत्तर:
आइज़क न्यूटन।

प्रश्न 31.
निकोलस कोपरनिकस किस देश का प्रसिद्ध विज्ञानी था ?
उत्तर:
पोलैंड का।

प्रश्न 32.
‘ऑन एनॉटमी’ का लेखक कौन था ?
उत्तर:
अंड्रीयस वेसेलियस।।

प्रश्न 33.
जोहानेस कैप्लर ने किस प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की थी ?
उत्तर:
कॉस्मोग्राफ़िकल मिस्ट्री।

प्रश्न 34.
विलियम हार्वे ने ‘रुधिर परिसंचरण’ का आविष्कार कब किया ?
उत्तर:
1628 ई० में।

प्रश्न 35.
गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत किस विज्ञानी से जुड़ा है ?
उत्तर:
आइज़क न्यूटन।

प्रश्न 36.
पुनर्जागरण काल की किसी एक प्रसिद्ध स्त्री का नाम लिखें।
उत्तर:
कसांद्रा फेदेले।

प्रश्न 37.
ईसाबेला दि इस्ते कहाँ की निवासी थी ?
उत्तर:
मंटुआ की।

प्रश्न 38.
यूरोप में धर्म सुधार आंदोलन कब आरंभ हुआ ?
उत्तर:
16वीं शताब्दी में।

प्रश्न 39.
यूरोप में धर्म सुधार आंदोलन को आरंभ करने का प्रमुख कारण क्या था ?
उत्तर:
चर्च में व्याप्त बुराइयाँ।

प्रश्न 40.
‘इन प्रेज़ ऑफ़ फॉली’ का लेखक कौन था ?
उत्तर:
डेसीडेरियस इरेस्मस।

प्रश्न 41.
जर्मनी में धर्म सुधार आंदोलन का संस्थापक कौन था ?
उत्तर:
मार्टिन लूथर।

प्रश्न 42.
वर्मज की सभा कब हुई ?
उत्तर:
18 अप्रैल, 1521 ई०।

प्रश्न 43.
मार्टिन लूथर की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर:
1546 ई० में।

प्रश्न 44.
उलरिक ग्विंगली किस देश से संबंधित था ?
उत्तर:
स्विट्जरलैंड।

प्रश्न 45.
इंस्टीच्यूट ऑफ क्रिश्चियन रिलिजन का संस्थापक कौन था ?
उत्तर:
जाँ कैल्विन।

प्रश्न 46.
जॉन वाइक्लिफ के शिष्य क्या कहलाए ?
उत्तर:
लोलार्ड।

प्रश्न 47.
सोसाइटी ऑफ़ जीसस की स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर:
1540 ई० में।

बह-विकल्पीय प्रश्न

1. 14वीं शताब्दी में फ्लोरेंस, वेनिस तथा रोम …………….. तथा …………… के मुख्य केंद्र बन गए थे।
उत्तर:
कला, विद्या

2. 19वीं शताब्दी में स्विट्जरलैंड के प्रसिद्ध इतिहासकार …………. ने पुनर्जागरण शब्द पर अत्यधिक बल दिया।
उत्तर:
जैकब बर्कहार्ट

3. ‘दि सिविलाईजेशन ऑफ़ दि रेनेसाँ इन इटली’ नामक पुस्तक की रचना …………….. ने की थी।
उत्तर:
जैकब बहार्ट

4. बहार्ट द्वारा ‘दि सिविलाईजेशन ऑफ़ दि रेनेसौं इन इटली’ नामक पुस्तक की रचना ……………….. ई० ___ में की गई।
उत्तर:
1860

5. “दि कॉमनवेल्थ एंड गवर्नमेंट ऑफ़ वेनिस’ नामक ग्रंथ की रचना …………….. द्वारा की गई थी।
उत्तर:
कार्डिनल गेसपारो

6. पेट्रार्क को रोम में ……………….. ई० में राजकवि की उपाधि से सम्मानित किया गया था।
उत्तर:
1341

7. दि कैंटरबरी टेल्स का प्रकाशन ……………….. द्वारा किया गया।
उत्तर:
जेफ्री चॉसर

8. कोलंबस ……………… ई० में अमेरिका पहुँचे।
उत्तर:
1492

9. लियोनार्डो दा विंसी की प्रसिद्ध रचना ……………….. है।
उत्तर:
मोना लीसा

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10. 11वीं शताब्दी में ‘पादुआ’ तथा ……………… विश्वविद्यालय विधिशास्त्र के अध्ययन केंद्र रहे।
उत्तर:
बोलोनिया

11. फ्लोरेंस ……………….. के सबसे जीवंत बौद्धिक नगर के रूप में जाना जाता था।
उत्तर:
इटली

12. फलोरेंस के मानवतावादी जोवान्ने पिको देल्ला मिरांढोला ने …………….. पुस्तक की रचना की।
उत्तर:
औरेशन ऑन दि डिगनिटी ऑफ़ मैन

13. बेल्जियम मूल के ………………. ने सूक्ष्म-परीक्षण के लिए मनुष्य के शरीर की चीर-फाड़ की।
उत्तर:
अंड्रीयस वेसेलियस

14. जोहानेस गुटेनबर्ग ………………. के रहने वाले थे।
उत्तर:
जर्मनी

15. निकोलो मैक्यावेली ने ……………… ग्रंथ की रचना की।
उत्तर:
दि प्रिंस

16. मटुंआ राज्य की सर्वाधिक प्रतिभाशाली स्त्री का नाम …………… था।
उत्तर:
ईसाबेला दि इस्ते

17. मार्टिन लूथर द्वारा ……………….. ई० में कैथोलिक चर्च के विरुद्ध अभियान आरंभ किया गया।
उत्तर:
1517

18. इग्नेशियस लोयोला ने 1540 ई० में …………….. नामक संस्था की स्थापना की।
उत्तर:
सोसायटी ऑफ़ जीसस

19. ………….. ने यह घोषणा की कि पृथ्वी समेत सारे ग्रह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं।
उत्तर:
निकोलस कोपरनिकस

20. फ्रांस में पेरिस अकादमी की स्थापना ………….. में की गई थी।
उत्तर:
1666 ई०

रिका स्थान भरिए

1. छापेखाने का आविष्कारक किसे माना जाता है ?
(क) फाँसिस्को पेट्रार्क को
(ख) सर टामस मोर को
(ग) फिलिप्पो ब्रूनेलेशी को
(घ) जोहानेस गुटेनबर्ग को।
उत्तर:
(घ) जोहानेस गुटेनबर्ग को।

2. गुटेनबर्ग किस देश का रहने वाला था?
(क) फ्रॉस
(ख) इंग्लैंड
(ग) चीन
(घ) जर्मनी।
उत्तर:
(घ) जर्मनी।

3. तुर्कों ने कुंस्तुनतुनिया पर कब अधिकार किया था ?
(क) 1433 ई० में
(ख) 1453 ई० में
(ग) 1463 ई० में
(घ) 1473 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1453 ई० में

4. पुनर्जागरण का आरंभ किस देश से हुआ था ?
(क) इंग्लैंड
(ख) फ्राँस
(ग) इटली
(घ) जर्मनी।
उत्तर:
(ग) इटली

5. मानवतावाद का पिता किसे कहा जाता है ?
(क) फ्राँसिस्को पेट्रार्क
(ख) जोवान्ने बोकासियो
(ग) दाँते अलिगहियरी
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) फ्राँसिस्को पेट्रार्क

6. डिवाईन कॉमेडी की रचना किसने की है ?
(क) गुटेनबर्ग ने
(ख) दाँते ने
(ग) कोपरनिकस ने
(घ) लूथर ने।
उत्तर:
(ख) दाँते ने

7. औरेशन ऑन दि डिगनिटी ऑफ़ मैन का प्रकाशन किस वर्ष हुआ था ?
(क) 1476 ई० में
(ख) 1480 ई० में
(ग) 1485 ई० में
(घ) 1486 ई० में।
उत्तर:
(घ) 1486 ई० में।

8. दि प्रिंस का लेखक कौन था ?
(क) निकोलो मैक्यिावेली
(ख) सर टॉमस मोर
(ग) दोनातल्लो
(घ) मार्टिन लूथर।
उत्तर:
(क) निकोलो मैक्यिावेली

9. जेफ्री चॉसर ने किस प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की ?
(क) यूटोपिया
(ख) दि प्रिंस
(ग) दि कैंटरबरी टेल्स
(घ) दि प्रेज ऑफ़ फॉली।
उत्तर:
(ग) दि कैंटरबरी टेल्स

10. यूटोपिया का लेखक कौन था ?
(क) डेसीडेरियस इरेस्मस
(ख) सर टॉमस मोर
(ग) फिलिप्पो ब्रूनेलेशी
(घ) अल्बर्ट ड्यूरर।
उत्तर:
(ख) सर टॉमस मोर

11. दि प्रेज़ ऑफ़ फॉली का प्रकाशन किस वर्ष हुआ था ?
(क) 1309 ई० में
(ख) 1409 ई० में
(ग) 1509 ई० में
(घ) 1609 ई० में।
उत्तर:
(ग) 1509 ई० में

12. जोटो किस देश का महान् चित्रकार था ?
(क) जर्मनी
(ख) फ्राँस
(ग) ऑस्ट्रेलिया
(घ) इटली।
उत्तर:
(घ) इटली।

13. ‘मोना लीसा’ नामक चित्र किसने बनाया था ?
(क) लियोनार्डो दा विंसी
(ख) माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती
(ग) फिलिप्पो ब्रूनेलेशी
(घ) दोनातल्लो ।
उत्तर:
(क) लियोनार्डो दा विंसी

14. अल्बर्ट ड्यूरर ने प्रार्थना रत हस्त चित्र को कब बनाया था ?
(क) 1507 ई० में
(ख) 1508 ई० में
(ग) 1509 ई० में
(घ) 1512 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1508 ई० में

15. निम्नलिखित में से किस कलाकार ने दि पाइटा नामक मूर्ति का निर्माण किया ?
(क) माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती
(ख) दोनातल्लो
(ग) लियोनार्डो दा विंसी
(घ) जोटो।
उत्तर:
(क) माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती

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16. रॉयल सोसाइटी की स्थापना कहाँ की गई थी ?
(क) लंदन
(ख) पेरिस
(ग) रोम
(घ) नेपल्स।
उत्तर:
(क) लंदन

17. ‘स्फटिक प्रासाद’ कहाँ स्थित है ?
(क) लंदन में
(ख) पेरिस में
(ग) मास्को में
(घ) सिडनी में।
उत्तर:
(क) लंदन में

18. पेरिस अकादमी की स्थापना कब की गई थी ?
(क) 1662 ई० में
(ख) 1666 ई० में
(ग) 1675 ई० में
(घ) 1680 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1666 ई० में

19. निकोलस कोपरनिकस किस देश का महान् विज्ञानी था ?
(क) इंग्लैंड
(ख) चीन
(ग) पोलैंड
(घ) भारत।
उत्तर:
(ग) पोलैंड

20. ऑन एनॉटमी का लेखक कौन था ?
(क) निकोलस कोपरनिकस
(ख) जोहानेस कैप्लर
(ग) आइज़क न्यूटन
(घ) अंड्रीयस वेसेलियस।
उत्तर:
(घ) अंड्रीयस वेसेलियस।

21. निम्नलिखित में से किसने दूरबीन का आविष्कार किया ?
(क) विलियम हार्वे
(ख) जोहानेस कैप्लर
(ग) गैलिलियो गैलिली
(घ) अंड्रीयस वेसेलियस।
उत्तर:
(ग) गैलिलियो गैलिली

22. जोहानेस कैप्लर द्वारा लिखित पुस्तक का नाम लिखें।
(क) दि रिवल्यूशनिबास
(ख) ऑन एनॉटमी
(ग) दि मोशन
(घ) कॉस्मोग्राफ़िकल मिस्ट्री।
उत्तर:
(घ) कॉस्मोग्राफ़िकल मिस्ट्री।

23. विलियम हार्वे ने रुधिर परिसंचरण को कब सिद्ध किया ?
(क) 1618 ई० में
(ख) 1628 ई० में
(ग) 1638 ई० में
(घ) 1648 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1628 ई० में

24. किस विज्ञानी ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत प्रस्तुत किया ?
(क) आइज़क न्यूटन
(ख) विलियम हार्वे
(ग) निकोलस कोपरनिकस
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) आइज़क न्यूटन

25. कसांद्रा फेदेले कहाँ की निवासी थी ?
(क) पादुआ
(ख) वेनिस
(ग) मंटुआ
(घ) रोम।
उत्तर:
(ख) वेनिस

26. मार्टिन लूथर किस देश का निवासी था ?
(क) जर्मनी
(ख) फ्राँस
(ग) अमरीका
(घ) इटली।
उत्तर:
(क) जर्मनी

27. मार्टिन लूथर ने कैथोलिक चर्च के विरुद्ध अभियान कब छेड़ा ?
(क) 1507 ई० में
(ख) 1517 ई० में
(ग) 1527 ई० में
(घ) 1537 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1517 ई० में

28. उलरिक धिंगली किस देश से संबंधित था ?
(क) जर्मनी
(ख) इटली
(ग) फ्राँस
(घ) स्विट्जरलैंड।
उत्तर:
(घ) स्विट्जरलैंड।

29. लोलार्ड किसके शिष्य थे ?
(क) जॉन वाईक्लिफ
(ख) जौं कैल्विन
(ग) इग्नेशियस लोयोला
(घ) मार्टिन लूथर।
उत्तर:
(क) जॉन वाईक्लिफ

30. सोसाइटी ऑफ़ जीसस का संस्थापक कौन था ?
(क) जौं कैल्विन
(ख) उलरिक ज्विंगली
(ग) इग्नेशियस लोयोला
(घ) जॉन वाईक्लिफ।
उत्तर:
(ग) इग्नेशियस लोयोला

बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ HBSE 11th Class History Notes

→ 14वीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी तक के समय के दौरान यूरोप की सांस्कृतिक परंपराओं में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए। इससे पूर्व मध्यकाल में यूरोप के लोगों पर चर्च का प्रभाव था। इस काल में लोग इहलोक की अपेक्षा परलोक की अधिक चिंता करते थे।

→ पुनर्जागरण लोगों के लिए एक नए युग का संदेश लेकर आया। यह आंदोलन सर्वप्रथम इटली में आरंभ हुआ था। इटली के फ्लोरेंस, वेनिस एवं रोम नामक नगरों ने, जो कला एवं विद्या के विश्वविख्यात केंद्र बने लोगों में एक नई जागृति उत्पन्न करने में उल्लेखनीय योगदान दिया।

→ वास्तव में इटली ने जो चिंगारी जलायी वह शीघ्र ही संपूर्ण यूरोप में एक मशाल का रूप धारण कर गई। यूरोप के साहित्यकारों एवं कलाकारों ने यूरोपीय साहित्य एवं कला को एक नई दिशा प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनका उद्देश्य मानवतावाद का प्रसार करना था।

→ मानवतावाद में मनुष्य को विशेष महत्त्व प्रदान किया गया था। पुनर्जागरण काल में विज्ञान के क्षेत्र में जो प्रगति हुई उसने मनुष्य के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन कर दिए।

→ इसी काल में यूरोप में धर्म-सुधार आंद का उदय हुआ। इसका उद्देश्य चर्च में फैली बुराइयों को दूर करना था। इस आंदोलन को सफल बनाने में जर्मनी के मार्टिन लूथर, स्विटज़रलैंड के उलरिक ज्विंगली एवं फ्रांस के जौं कैल्विन का उल्लेखनीय योगदान था।

→ वास्तव में पुनर्जागरण एवं धर्म-सुधार आंदोलन ने यूरोपीय समाज की सांस्कृतिक परंपराओं को बदलने में प्रमुख भूमिका निभाई। इस काल के यूरोपीय इतिहास की जानकारी के लिए बहुत अधिक सामग्री दस्तावेजों, पुस्तकों, चित्रों, मूर्तियों, भवनों एवं वस्त्रों से प्राप्त होती है।

→ इन्हें यूरोप तथा अमरीका के अभिलेखागारों, कला चित्रशालाओं एवं संग्रहालयों में सुरक्षित रखा हुआ है। स्विट्जरलैंड के ब्रेसले विश्वविद्यालय के इतिहासकार जैकब बर्कहार्ट (Jacob Burckhardt) ने रेनेसाँ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1860 ई० में प्रकाशित अपनी पुस्तक दि सिविलाईजेशन ऑफ़ दि रेनेसाँ इन इटली (The Civilisation of the Renaissance in Italy) में किया है। वह जर्मन इतिहासकार लियोपोल्ड वॉन रांके (Leopold Von Ranke) का विद्यार्थी था।

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