HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

Haryana State Board HBSE 11th Class History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई० Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class History Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

निबंधात्मक उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
इस्लाम के उदय से पूर्व अरबों के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं राजनीतिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
सातवीं शताब्दी ई० में इस्लाम के उदय से पूर्व अरब में जाहिलिया (Jahiliya) अथवा अज्ञानता के युग का बोलबाला था। उस समय अरब में बदू (Bedouins) लोगों की प्रमुखता थी। बढ़े खानाबदोश कबीले थे। वे चरागाह की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते थे। लूटमार करना एवं आपस में झगड़ना उनके जीवन की एक प्रमुख विशेषता थी।

उस समय अरब समाज में स्त्रियों की स्थिति अत्यंत शोचनीय थी। उन्हें केवल एक भोग-विलास की वस्तु समझा जाता था। समाज में अन्य अनेक कुप्रथाएँ भी प्रचलित थीं। उस समय अरब के लोग एक अल्लाह की अपेक्षा अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे। प्रत्येक कबीले का अपना अलग देवी देवता होता था। उस समय के लोग अनेक प्रकार के अंध-विश्वासों एवं जादू-टोनों में भी विश्वास रखते थे।

क्योंकि अरब का अधिकाँश क्षेत्र बंजर, वनस्पति रहित एवं दुर्गम था इसलिए अरबों का आर्थिक जीवन भी बहुत पिछड़ा हुआ था। अरबों का कोई व्यवस्थित राजनीतिक संगठन भी नहीं था। उनमें एकता एवं राष्ट्रीयता की भावना बिल्कुल नहीं थी। एडवर्ड मैक्नल बर्नस के अनुसार,

“अरब जो कि एक रेगिस्तानी प्रायद्वीप था इस्लाम की स्थापना से पूर्व इतना पिछड़ा हुआ था कि इसके दो प्रमुख पड़ोसी साम्राज्यों-रोम एवं ईरान ने अरब प्रदेशों में अपने साम्राज्य का विस्तार करना उचित नहीं समझा।

I. सामाजिक जीवन

सातवीं शताब्दी ई० में इस्लाम के उदय से पूर्व अरब के सामाजिक जीवन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

1. परिवार (Family):
परिवार अरबों के समाज का मूल आधार था। उस समय अरब में संयुक्त परिवार प्रणाली का प्रचलन था। उस समय परिवार पितृतंत्रात्मक होते थे। परिवार का सबसे वयोवृद्ध व्यक्ति इसका मुखिया होता था। वह समस्त परिवार पर नियंत्रण रखता था। परिवार के सभी सदस्य उसके आदेशों का पालन करते थे। परिवार में पुत्र का होना आवश्यक माना जाता था। मुखिया की मृत्यु के पश्चात् परिवार का दायित्व उसके ज्येष्ठ पुत्र पर आता था। डॉक्टर के० ए० फारिक के अनुसार,

“पिता को अपने परिवार पर निरंकुश शक्ति प्राप्त थी तथा वह उनके जीवन एवं मौत का स्वामी था।”

2. स्त्रियों की स्थिति (Position of Women):
पैगंबर मुहम्मद के जन्म से पूर्व अरब समाज में स्त्रियों की स्थिति बहत बदतर थी। उस समय पत्री के जन्म को परिवार के लिए अपशगन समझा जाता था लड़कियों को जन्म लेते ही जमीन में दफन कर दिया जाता था।

निस्संदेह यह एक निंदनीय कुप्रथा थी। उस समय समाज में जो अधिकार पुरुषों को दिए गए थे स्त्रियों को उनसे वंचित रखा गया था। उस समय स्त्रियों को शिक्षा देने का प्रचलन नहीं था। अतः वे अनपढ़ रहती थीं। उनका विवाह बहुत कम उम्र में ही कर दिया जाता था।

उस समय समाज में बहु-विवाह प्रथा प्रचलित थी। इसके अतिरिक्त उस समय पुरुषों में अनेक रखैलें रखने की प्रथा भी प्रचलित थी। वास्तव में उस समय समाज में स्त्री को केवल एक भोग-विलास की वस्तु समझा जाता था। उस समय समाज में अनैतिकता का बोलबाला था। यहाँ तक कि पुत्र अपनी विधवा माँ के साथ एवं अपनी बहनों के साथ विवाह कर लेता था।

पति की मृत्यु के पश्चात् विधवा उसके निकटतम संबंधियों के साथ अनैतिक संबंध स्थापित करने से नहीं हिचकिचाती थी। उस समय स्त्रियों को संपत्ति के अधिकार से वंचित रखा गया था। इससे समाज में उनकी स्थिति अधिक दयनीय हो गई थी। प्रोफेसर के० अली का यह कहना उचित है कि, “उस समय स्त्रियों की स्थिति किसी भी समकालीन अन्य देश की स्त्रियों की स्थिति की अपेक्षा बहुत खराब थी।”

3. शिक्षा (Education):
अरब शिक्षा के क्षेत्र में बहुत पिछड़े हुए थे। अधिकाँश अरब अनपढ़ थे। उस समय स्त्रियों को शिक्षा देने को कोई प्रचलन नहीं था। अनपढ़ता के कारण अरब समाज में व्यापक अंधविश्वास प्रचलित थे।

4. लोगों का नैतिक स्तर (Standard of People’s Morality):
उस समय अरब समाज में अनैतिकता का व्यापक प्रचलन था। उस समय लूटमार करना तथा लोगों के साथ धोखा करना एक सामान्य बात थी। लोगों में शराब पीने, अन्य नशीले पदार्थों का सेवन करने तथा जुआ खेलने का प्रचलन बहुत था। उस समय स्त्रियों के साथ अनैतिक संबंध स्थापित करना एक सामान्य बात मानी जाती थी। निस्संदेह यह अरब समाज के पतन का संकेत था।

5. मनोरंजन (Entertainments) :
उस समय अरब के लोग विभिन्न साधनों से अपना मनोरंजन करते थे। उनके मनोरंजन का प्रमुख साधन नृत्य एवं गान था। वे बाँसुरी एवं गिटार के बहुत शौकीन थे। उस समय जुए का व्यापक प्रचलन था। वे पशुओं की लड़ाइयाँ भी देखते थे। वे शिकार खेलने के भी शौकीन थे।

6. वेश-भूषा एवं भोजन (Dress and Diet):
उस समय बदू लोगों में लंबे कुर्ते एवं पजामा पहनने का प्रचलन था। वे कुर्तों के ऊपर ऊँट की खाल से बना एक ढीला-ढाला चोगा (cloak) पहनते थे। इसके अतिरिक्त सिर पर पगड़ी बाँधते थे। उच्च वर्ग के लोगों के वस्त्र बहुत कीमती होते थे। स्त्रियाँ सलवार एवं कमीज़ पहनती थीं।

वे इसके ऊपर बुर्का पहनती थीं। उनका प्रमुख भोजन खजूर एवं दूध था। इसके अतिरिक्त वे गेहूँ, बाजरा, अंगूर, खुमानी, सेब, बादाम एवं केले आदि का भी प्रयोग करते थे। वे ऊँट, भेड़ एवं बकरियों का माँस खाते थे। उच्च वर्ग के लोगों में मदिरापान का बहुत प्रचलन था।

7. दास प्रथा (Slavery):
उस समय अरब समाज में दास प्रथा का काफी प्रचलन था। उस समय युद्ध में बंदी बनाए गए लोगों को दास बना लिया जाता था। उस समय दासों के साथ बहुत क्रूर व्यवहार किया जाता था। उन्हें अपनी इच्छा से विवाह करने की अनुमति नहीं थी। ऐसा करने वाले दासों को कठोर दंड दिया जाता था।

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II. आर्थिक जीवन

इस्लाम के उदय से पूर्व अरबों का आर्थिक जीवन पिछड़ा हुआ था। यहाँ की अधिकाँश भूमि बंजर है। यहाँ वर्षा बहुत कम होती है। यहाँ जनसंख्या बहुत विरल है। यहाँ यातायात एवं संचार के साधन बहुत कम थे। इसके बावजूद अरब लोगों ने आर्थिक क्षेत्र में जो प्रगति की उसका संक्षिप्त वर्णन अग्रलिखित अनुसार है

1. कृषि (Agriculture):
अरब की भूमि रेतीली होने के कारण अनउपजाऊ है। यहाँ वर्षा नाम मात्र होती है। कई बार तो लगातार तीन अथवा चार वर्षों तक वर्षा नहीं होती। यहाँ नदियाँ भी बहुत कम हैं। ये नदियाँ भी सदैव नहीं बहतीं। अतः यहाँ सिंचाई के साधनों की बहुत कमी है। अत: यहां फ़सलों का उत्पादन बहुत कम होता है।

फ़सलों का उत्पादन केवल उन्हीं क्षेत्रों में होता है जहाँ सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं तथा भूमि उपजाऊ है। यहाँ की प्रमुख फ़सल खजूर है। अल-हिजाज (al-Hijajh) तथा अल-मदीना (al-Madinah) खजूर उत्पादन के दो प्रसिद्ध केंद्र थे। खजूर का अरब लोगों के जीवन में विशेष महत्त्व है। यह अरब लोगों का प्रमुख खाद्य पदार्थ है। इसका पेय (beverage) बहुत स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है।

इसकी गुठली (crushed stones) ऊँट के लिए रोज़ाना भोजन उपलब्ध करवाती है। खजूर के पेड़ की छाल से रस्सियाँ (ropes) तथा चटाइयाँ (mats) बनाई जाती हैं। इसकी लकड़ी आग जलाने का एकमात्र साधन है। प्रोफेसर के० अली का यह कथन बिल्कुल ठीक है कि,

“अरब में खजूर को पेड़ों की रानी कहा जाता है। यह गरीब तथा धनी दोनों की एक समान मित्र है जिसके बिना रेगिस्तान में जीवन के बारे सोचा नहीं जा सकता है।”

अरब में जौ (barley) का उत्पादन भी बड़े पैमाने पर किया जाता है। इसका चारा घोड़ों को खिलाया जाता है तथा आटा मनुष्यों के काम आता है। यमन में गेहूँ का उत्पादन बहुत बड़ी मात्रा में होता था। उमान में बाजरा (millet) तथा चावल का उत्पादन किया जाता था। इनके अतिरिक्त समुद्र तटीय क्षेत्रों (coastal areas) में अनेक प्रकार की सब्जियों तथा फलों का उत्पादन किया जाता था। फलों में अनार, सेब, खुमानी, बादाम तथा केले प्रसिद्ध थे।

2. पशुपालन (Cattle Rearing):
अरब लोगों का दूसरा प्रमुख व्यवसाय पशुपालन था। ऊँट, घोड़ा, भेड़, तथा बकरी उनके प्रमुख पालतू जानवर थे। इन जानवरों में ऊँट को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता था। उसे रेगिस्तान का जहाज़ (ship of the desert) कहा जाता है। उसके बिना रेगिस्तान में जीवन के बारे में सोचा नहीं जा सकता। ऊँट 57° सेंटीग्रेड के उच्च तापमान में भी एक दिन में 160 किलोमीटर का सफर तय कर सकता है। वह 300 किलोग्राम से अधिक का भार ढो सकता है।

वह कई दिनों तक बिना पानी पीये जीवित रह सकता है। यह बदू लोगों के यातायात का प्रमुख साधन है। लोग ऊँटनी का दूध पीते हैं, इसका माँस खाते हैं, इसकी खाल का तंबू बनाते हैं तथा इसके गोबर का आग के लिए प्रयोग करते हैं। इसके मूत्र से दवाइयाँ बनाई जाती हैं। इसे शेख़ की दौलत का प्रतीक माना जाता है। बद् इसे विवाह के अवसर पर दहेज के रूप में देते हैं। ऊँट के महत्त्व के संबंध में डॉक्टर ए० रहीम ने लिखा है कि, “ऊँट जिसे रेगिस्तान का जहाज़ कहा जाता है अरबों का सबसे उपयोगी पशु है।

ऊँट के बिना रेगिस्तानी जीवन के बारे में सोचा नहीं जा सकता।”

अरबी घोड़े विश्व में अपनी उत्तम नस्ल के लिए प्रसिद्ध हैं। इन्हें दौलत का प्रतीक माना जाता था। बदुओं के जीवन में घोडे का विशेष महत्त्व था। उनके द्वारा किए जाने वाले आक्रमणों में घोड़ों की विशेष भूमिका होती थी। घोड़े तीव्र गति से इधर-उधर आ जा सकते थे। शिकार करते समय भी घोड़ों का प्रयोग किया जाता था। अरब लोग दूध एवं माँस के लिए भेड़ एवं बकरियाँ भी पालते थे। वे भेड़ों से ऊन भी प्राप्त करते थे।

3. व्यापार (Trade):
इस्लाम के उदय से पूर्व अरबों का आंतरिक एवं विदेशी व्यापार अधिक उन्नत न था। इसके लिए चार प्रमुख कारण उत्तरदायी थे। प्रथम, बदुओं की लूटमार द्वारा देश में अराजकता का वातावरण था। दूसरा, उस समय व्यापारिक मार्ग सुरक्षित न थे। तीसरा, उस समय अरब में उद्योग विकसित नहीं थे। चौथा, उस समय यातायात के साधन उन्नत न थे।

अरब अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति शहरों में लगने वाली मंडियों से करते थे। इन मंडियों से वे खाद्य पदार्थ एवं पशु प्राप्त करते थे। कुछ धनी व्यापारी ईरान, मेसोपोटामिया, सीरिया, मिस्र एवं इथियोपिया आदि देशों के साथ व्यापार करते थे। वे इन देशों को ऊँटों, घोड़ों, फलों तथा शराब आदि का निर्यात करते थे।

III. धार्मिक जीवन

इस्लाम के उदय से पूर्व अरब निवासी धार्मिक रूप से भी बहुत पिछड़े हुए थे। वे एक अल्लाह की अपेक्षा अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे। प्रत्येक कबीले का अपना अलग देवी-देवता होता था। एक कबीले के लोग दूसरे कबीले के देवी-देवता से नफरत करते थे। वे अपने देवी-देवता को सर्वोच्च मानते थे। वे इन देवी-देवताओं की स्मृति में विशाल मस्जिदों का निर्माण करते थे तथा उनमें इनकी मूर्तियाँ रखी जाती थीं। अकेले मक्का में 360 देवी-देवताओं की मूर्तियाँ थीं। इसे अरब का सबसे पवित्र स्थान माना जाता था।

प्रत्येक वर्ष अरब के विभिन्न भागों व्या में लोग यहाँ लगने वाले उक्ज (ukaj) मेले के अवसर पर एकत्र होते थे। अरब लोग अपने देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए जानवरों की बलियाँ देते थे। कभी-कभी मानव बलि भी दी जाती थी। हबल (Hubal) अरबों का सबसे प्रसिद्ध देवता था। अल-उज़्ज़ा (al-Uzza), अल-लत (al-Lat) एवं अल-मना (al Manah) को अल्लाह की तीन पुत्रियाँ माना जाता था। अतः इनकी उपासना विशेष श्रद्धा के साथ की जाती थी। प्रोफेसर जोसेफ हेल के अनुसार,

“अरब अभिलेखों में दिए गए विशाल देवताओं के नामों से पता चलता है कि वहाँ धर्म को कितना महत्त्व दिया जाता था। अरबों में अनेक प्रकार के अंध-विश्वास प्रचलित थे। वे सूर्य, चंद्रमा, तारों, पत्थरों एवं वृक्षों की भी उपासना करते थे। वे जादू-टोनों एवं भूत-प्रेतों में भी विश्वास करते थे। उनका मृत्यु के पश्चात् जीवन, कर्म तथा पुनर्जन्म में भी पूर्ण विश्वास था।

IV. राजनीतिक जीवन

इस्लाम उदय से पूर्व अरब के लोगों का राजनीतिक जीवन भी बहुत पिछड़ा हुआ था। उनका कोई व्यवस्थित राजनीतिक संगठन नहीं था। केंद्रीय सत्ता के अभाव के कारण जिसकी लाठी उसकी भैंस (might is right) का बोलबाला था। अरबों में पशुओं, चरागाहों, भूमि तथा पानी के लिए जातीय लड़ाइयाँ चलती रहती थीं। बढ़े लोग लूटपाट में लीन रहते थे।

उस समय अरब लोग अनेक कबीलों में बँटे हुए थे। प्रत्येक कबीला राजनीतिक दृष्टि से स्वतंत्र होता था। उस समय अरबों में राष्ट्रीय भावना का अभाव था। वे केवल अपने कबीले के प्रति वफ़ादार होते थे। प्रत्येक कबीले का अपना मुखिया होता था जिसे शेख़ (sheikh) कहा जाता था। उसका चुनाव व्यक्तिगत साहस, बुद्धिमत्ता एवं उदारता के आधार पर किया जाता था।

कबीले के लोग उसका बहुत सम्मान करते थे। वह अपने कबीले के लोगों की देखभाल करता था तथा उनके झगड़ों का निपटारा करता था। देश में कोई एक कानून नहीं था। प्रत्येक कबीले के अपने अलग कानून थे। उस समय ‘खून का बदला खून’ का नियम बहुत प्रचलित था। शेख़ कबीले के लोगों की प्रसन्नता तक अपने पद पर बना रह सकता था। उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि इस्लाम के उदय से पूर्व अरब के लोग सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं राजनीतिक दृष्टिकोणों से पिछड़े हुए थे। निस्संदेह इसने अरब में इस्लाम के उदय का आधार तैयार किया।

प्रश्न 2.
पैगंबर मुहम्मद के जीवन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
पैगंबर मुहम्मद की गणना विश्व के महान् व्यक्तियों में की जाती है। उनके जीवन का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. जन्म तथा माता-पिता (Birth and Parentage):
पैगंबर मुहम्मद का जन्म 29 अगस्त, 570 ई० को मक्का में हुआ था। उनके पिता का नाम अब्दुल्ला (Abdullah) था। वह अरब के एक प्रसिद्ध कबीले कुरैश (Quraysh) से संबंधित था। अब्दुल्ला एक छोटा व्यापारी था। मुहम्मद के जन्म समय अब्दुल्ला सीरिया में व्यापार के सिलसिले में गया था।

वापसी समय वह मदीना (Medina):
में बीमार पड़ गया तथा वहीं उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार मुहम्मद अपने पिता के प्यार से वंचित रह गया। उसकी माता का नाम अमीना (Amina) था। जब मुहम्मद 6 वर्ष के हुए तो उनकी माता ने भी इस संसार को सदैव के लिए अलविदा कह दी।

2. बचपन (Childhood):
मुहम्मद के माता-पिता की मृत्यु के पश्चात् मुहम्मद की देखभाल का उत्तरदायित्व उनक चाचा अबू तालिब (Abu Talib) ने संभाला। उसने मुहम्मद का पालन-पोषण बहुत लाड-प्यार के साथ किया। उन्हें बचपन में ही भेड़ों एवं ऊँटों की रखवाली के काम पर लगा दिया गया था। मुहम्मद अपना अवकाश का समय प्रभु भक्ति में व्यतीत करते थे। वह अपने अच्छे स्वभाव एवं ईमानदारी के कारण लोगों में बहुत प्रिय थे।

3. विवाह (Marriages):
मुहम्मद का प्रथम विवाह 595 ई० में खदीज़ा (Khadija) से हुआ। उस समय मुहम्मद की आयु 25 वर्ष थी तथा खदीज़ा की आयु 40 वर्ष थी। खदीज़ा मक्का की एक धनी विधवा थी। वह ऊँटों का व्यापार करती थी। उसने मुहम्मद की ईमानदारी एवं विश्वसनीयता के संबंध में सुन रखा था। अत: उसने मुहम्मद को व्यापार के सिलसिले में अपने पास रख लिया।

उसने मुहम्मद को व्यापार के संबंध में सीरिया भेजा। यहाँ मुहम्मद ने अपनी योग्यता एवं ईमानदारी के बल पर अच्छा मुनाफा कमाया। इससे खदीज़ा बहुत प्रभावित हुई।

अतः खदीजा ने मुहम्मद से विवाह का प्रस्ताव रखा। मुहम्मद ने खदीज़ा के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। यह विवाह मुहम्मद के जीवन में एक नया मोड़ प्रमाणित हुआ। इस विवाह से मुहम्मद की प्रसिद्धि बढ़ गई। 619 ई० में खदीज़ा की मृत्यु के पश्चात् मुहम्मद ने कुछ अन्य विवाह किए थे। मुहम्मद की पत्नियों में आयशा (Aisha) सर्वाधिक प्रसिद्ध थी। वह इस्लाम के प्रथम खलीफ़ा अबू बकर (Abu Bakr) की पुत्री थी। डॉक्टर ए० रहीम के शब्दों में, “मुहम्मद का खदीज़ा के साथ विवाह उसके जीवन की एक अति महत्त्वपूर्ण घटना थी।”

4. इलहाम की प्राप्ति (Attainment of Enlightenment):
पैगंबर मुहम्मद मक्का में स्थित एक पहाड़ी में हीरा नामक गुफा में जाकर ध्यान लगाते थे। मुहम्मद को इलहाम (ज्ञान) की प्राप्ति हुई। इस रात को शक्ति की रात कहा जाता है। यह रात रमजान (Ramadan) के अंत में पड़ती है। उस समय मुहम्मद की आयु 40 वर्ष थी। इसके पश्चात् मुहम्मद पैगंबर मुहम्मद के नाम से लोकप्रिय हुए।

5. मक्का में प्रचार (Preaching in Mecca):
पैगंबर मुहम्मद ने इलहाम प्राप्त करने के पश्चात् अपना प्रचार कार्य अपने परिवार एवं रिश्तेदारों में किया। इसे सर्वप्रथम उसकी पत्नी खदीजा एवं पुत्रियों ने स्वीकार किया। 612 ई० में पैगंबर मुहम्मद ने अपना प्रथम सार्वजनिक उपदेश मक्का में दिया। उन्होंने लोगों को बताया कि अल्लाह एक है तथा मुहम्मद उसके पैगंबर (संदेशवाहक) हैं।

उन्होंने मूर्ति पूजा का कट्टर विरोध किया तथा इन्हें नष्ट करना मुसलमानों का प्रथम धार्मिक कर्त्तव्य बताया। उन्होंने केवल एक अल्लाह की इबादत पर बल दिया। उन्होंने अपने अनुयायियों को जिन्हें मुसलमान कहा जाता था, को अल्लाह के समक्ष आत्म-समर्पण करने के लिए प्रेरित किया। इसलिए उनके धर्म का नाम इस्लाम पड़ा।

6. मदीना को हिजरत (Emigration to Medina):
पैगंबर मुहम्मद की बढ़ती हुई लोकप्रियता के कारण मक्का के अनेक प्रभावशाली लोग उनसे ईर्ष्या करने लगे। इसके दो प्रमुख कारण थे। प्रथम, पैगंबर मुहम्मद मूर्ति पूजा के कटु आलोचक थे। दूसरा, पैगंबर मुहम्मद अरब समाज में प्रचलित अंध-विश्वासों को दूर कर इसे एक नई दिशा देना चाहते थे। इसे मक्का के रूढ़िवादी लोग पसंद नहीं करते थे। अतः बाध्य होकर पैगंबर मुहम्मद 28 जून, 622 ई० को मक्का से मदीना कूच कर गए।

वह 2 जुलाई, 622 ई० को मदीना पहुँचे। इस घटना को मुस्लिम इतिहास में हिजरत कहा जाता है। यह घटना पैगंबर मुहम्मद के जीवन में एक निर्णायक मोड़ सिद्ध हुई। इस वर्ष से मुस्लिम कैलेंडर का आरंभ हुआ। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर जोसेफ हेल के शब्दों में, “यह पैगंबर के जीवन एवं कार्य में एक निर्णायक मोड़ तथा इस्लाम के इतिहास में एक महान् मोड़ सिद्ध हुआ।”

7. बद्र की लड़ाई (Battle of Badr):
मुसलमानों जो कि पैगंबर मुहम्मद के अनुयायी थे तथा मक्का के कुरैशों के मध्य 13 मार्च, 624 ई० को मदीना के निकट एक निर्णायक लड़ाई हुई। यह लड़ाई इतिहास में बद्र की लड़ाई के नाम से प्रसिद्ध है। मदीना में पैगंबर मुहम्मद के बढ़ते हुए प्रभाव को मक्का के कुरैश सहन न कर सके। कुरैश पैगंबर मुहम्मद को एक सबक सिखाना चाहते थे।

बद्र नामक स्थान पर हुई लड़ाई में पैगंबर मुहम्मद के सैनिकों ने रणक्षेत्र में वे जौहर दिखाए कि कुरैशी सैनिकों को कड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। यह पैगंबर मुहम्मद की प्रथम निर्णायक विजय थी। डॉक्टर ए० रहीम के शब्दों में, “बद्र की लड़ाई के इस्लाम के इतिहास में दूरगामी प्रभाव पड़े।

यह उसी प्रकार महत्त्वपूर्ण थी जिस प्रकार बेस्तील के दुर्ग का फ्रांसीसी क्रांतिकारियों द्वारा नष्ट करना।” प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर के० ए० निज़ामी का यह कहना उचित है कि, “बद्र की लड़ाई इस्लाम के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ सिद्ध हुई।”

8. उहुद की लड़ाई (Battle of Uhud):
कुरैश बद्र की लड़ाई में हुई अपनी अपमानजनक पराजय का बदला लेना चाहते थे। अबू सूफयान ने मुसलमानों को पराजित करने का प्रण लिया। इसके अतिरिक्त कुरैश मदीना में पैगंबर मुहम्मद के बढ़ते हुए प्रभाव से चिंतित थे। इससे उनके राजनीतिक एवं व्यापारिक हितों को नुकसान पहुँच सकता था।

अतः अब सफयान के नेतृत्व में लगभग 3000 सैनिक मदीना की ओर चल पड़े। पैगंबर मुहम्मद ने उनका सामना करने का निर्णय किया। 21 मार्च, 625 ई० को दोनों सेनाओं के मध्य उहुद नामक पहाड़ी (Mount Uhud) पर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में पैगंबर मुहम्मद घायल हो गए तथा उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।

9. खंदक की लड़ाई (Battle of Ditch):
उहुद की लड़ाई में पराजित होने के पश्चात् भी मुसलमानों ने अपना धैर्य न खोया। उन्होंने अपनी पराजय का बदला लेने के उद्देश्य से अपनी सेना को संगठित किया। दूसरी ओर जब कुरैशों को मुसलमानों की सैनिक गतिविधियों की सूचना मिली तो वे इसे सहन न कर सके। अतः उन्होंने मुसलमानों को सबक सिखाने का निर्णय किया। पैगंबर मुहम्मद ने शत्रुओं का सामना करने के लिए एक योजना बनाई। इसके अधीन मदीना नगर के चारों ओर खाइयाँ खुदवा दीं।

जब 13 मार्च, 627 ई० को अबू सूफयान के नेतृत्व में गठजोड़ सैनिक मदीना पहुंचे तो वे खाइयों को देख कर भौंचक्के रह गए। यह स्वर्ण अवसर देख मुसलमानों ने उन पर आक्रमण कर दिया। खाई के कारण इस लड़ाई को खंदक की लड़ाई कहा जाता है। इस लड़ाई में मुसलमानों ने मक्का सैनिकों को पराजित कर दिया। इस कड़ी पराजय के पश्चात् मक्का सैनिकों की प्रतिष्ठा धूल में मिल गई। इस निर्णायक विजय से मुसलमानों का साहस बहुत बढ़ गया।

10. मक्का की विजय (Conquest of Mecca):
मक्का की विजय पैगंबर मुहम्मद की एक अन्य महत्त्वपूर्ण सफलता थी। इस लड़ाई का कारण यह था कि हुदेबिया की संधि के अनुसार कुरैशों ने मुसलमानों को मक्का की यात्रा करने की अनुमति न दी। अत: पैगंबर मुहम्मद ने उनसे दो-दो हाथ करने का निर्णय लिया। अत: उसने 1 जनवरी, 630 ई० को 10,000 सैनिकों के साथ मक्का पर आक्रमण कर दिया। मक्का में पैगंबर मुहम्मद का बहुत कम विरोध किया गया।

अतः पैगंबर मुहम्मद ने सुगमता से मक्का पर अधिकार कर लिया। मक्का को इस्लामी राज्य की धार्मिक राजधानी घोषित किया गया। इस निर्णायक विजय से पैगंबर महम्मद के नाम को चार चाँद लग गए। अनेक लोग इस्लाम में सम्मिलित हो गए। प्रसिद्ध इतिहासकार सर अब्दुल्ला सहरावर्दी के अनुसार, प्रोफेसर के० अली के शब्दों में, “मक्का की विजय ने इस्लाम में एक नए युग का आरंभ किया।”

11. पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु (Death of Prophet Muhammad):
पैगंबर मुहम्मद की 8 जून, 632 ई० में मदीना में मृत्यु हो गई। अपनी मृत्यु से पूर्व पैगंबर मुहम्मद ने न केवल अणुओं के समान बिखरे हुए कबीलों में एकता स्थापित की अपितु अरब समाज को एक नई दिशा देने में सफलता भी प्राप्त की। उनके उल्लेखनीय योगदान के कारण इस्लाम के इतिहास में उनका नाम सदैव के लिए अमर रहेगा।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

प्रश्न 3.
पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा
इस्लाम की प्रमुख शिक्षाएं क्या थी ?
उत्तर:
पैगंबर मुहम्मद अथवा इस्लाम की शिक्षाएँ बहुत सरल एवं प्रभावशाली थीं। इन शिक्षाओं का लोगों के दिलों पर जादुई प्रभाव पड़ा एवं वे बड़ी संख्या में इस्लाम में सम्मिलित हुए।

1. अल्लाह एक है (God is One):
पैगंबर मुहम्मद ने अपनी शिक्षाओं में बार-बार इस बात पर बल दिया कि अल्लाह एक है। वह सर्वोच्च एवं सर्वशक्तिमान है। वह जो चाहे कर सकता है। वह संसार की रचना करता है। वह इसकी पालना करता है। वह जब चाहे इसे नष्ट कर सकता है। उसकी अनुमति के बिना संसार का पत्ता तक नहीं हिल सकता।

वह अत्यंत दयावान् है । वह पापी लोगों के पापों को क्षमा कर सकता है। वह सदैव रहने वाला है। कोई भी अन्य देवी-देवता उसके सामने ऐसे है जैसे सूर्य के सामने तारा। अत: पैगंबर मुहम्मद ने केवल एक अल्लाह की इबादत का संदेश दिया।

2. इस्लाम के पाँच स्तंभ (Five Pillars of Islam):
इस्लाम में पाँच सिद्धांतों पर विशेष बल दिया गया है। इनका पालन करना प्रत्येक मुसलमान का कर्तव्य है। अतः इन्हें इस्लाम के पाँच स्तंभ कहा जाता है।

(1) कलमा पढना (Reciting Kalma):
प्रत्येक मसलमान का यह धार्मिक कर्तव्य है कि वह कलमा पढे। इसमें बताया गया है कि अल्लाह एक है। वह सर्वोच्च एवं सर्वशक्तिमान है। मुहम्मद साहब उसके रसूल (पैगंबर) हैं। कुरान को अल्लाह द्वारा भेजा गया है।

(2) नमाज़ (Namaz):
प्रत्येक मुसलमान का दूसरा कर्त्तव्य यह है कि वह दिन में पाँच बार नमाज़ अवश्य पढ़े। नमाज़ पढ़ने से व्यक्ति का अल्लाह से संपर्क हो जाता है। उसकी रहमत से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं तथा वह मनभावन फल प्राप्त करता है।
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(3) रोजा (Rauja):
रमजान के महीने रोज़ा (व्रत) रखना प्रत्येक मुसलमान का तीसरा धार्मिक कर्त्तव्य है। इस माह में सूर्योदय से सूर्यास्त तक कुछ भी खाना-पीना वर्जित है। सूर्यास्त के पश्चात् ही मुसलमान कुछ खान-पान कर सकते हैं। इस माह के दौरान मुसलमानों को सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करने पर विशेष बल दिया गया है।

(4) ज़कात (Zakat):
ज़कात का अर्थ है दान देना। इसके अधीन प्रत्येक मुसलमान का यह कर्त्तव्य है कि वह अपनी कुल आय का 2/2% दान दे। इसे गरीबों की सहायता, इस्लाम के प्रचार एवं मस्जिदों के निर्माण पर खर्च किया जाता है।

(5) हज (Hajj):
प्रत्येक मुसलमान का यह धार्मिक कर्त्तव्य है कि वह अपने जीवन में कम-से-कम एक बार हज़ करे भाव मक्का की यात्रा पर जाए। आर० टी० मैथियू एवं एफ० डी० प्लैट के अनुसार, पाँच स्तंभ मुसलमानों के धार्मिक जीवन का आधार हैं।”

3. कर्म सिद्धांत में विश्वास (Belief in Karma Theory):
इस्लाम में कर्म सिद्धांत पर विशेष बल दिया गया है। इसके अनुसार जैसा करोगे वैसा भरोगे, जैसा बीजोगे वैसा काटोगे। यदि कर्म अच्छे होंगे तो अच्छा फल मिलेगा, बुरा करोगे तो बुरा होगा। किसी भी स्थिति में कर्मों से छुटकारा नहीं मिलेगा। कुरान के अनुसार कयामत के दिन स्वर्ग एवं नरक का निर्णय इस जन्म में किए गए कर्मों के अनुसार ही होगा।

4. नैतिक सिद्धांत (Moral Principles):
कुरान में अनेक नैतिक नियमों का वर्णन किया गया है। इसमें कहा गया है कि-

  • सदैव सत्य बोलो।
  • सदैव अपने माता-पिता का सम्मान करो।
  • सदैव अपने अतिथियों का आदर करो।
  • सदैव अपने छोटों से प्यार करो।
  • सदैव सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करो।
  • पापों से सदैव दूर रहो।
  • कभी लालच एवं घृणा मत करो।
  • कभी किसी को धोखा एवं कष्ट न दो।
  • सदैव गरीबों, अनाथों एवं बीमारों की सेवा करो।
  • सदैव नशीले पदार्थों से दूर रहो।।

5. समानता में विश्वास (Faith in Equality):
इस्लाम में समानता को विशेष महत्त्व दिया गया है। इसके अनुसार सभी एक अल्लाह के बच्चे हैं। अतः सभी भाई-बहन हैं । इस्लाम में अमीर-गरीब, जाति, भाषा, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता। सभी को एक समान अधिकार दिए गए हैं।

6. मूर्ति पूजा का खंडन (Denounced Idol Worship):
इस्लाम मूर्ति पूजा का कट्टर विरोधी है। पैगंबर मुहम्मद के समय में अरब देश में मूर्ति पूजा का बहुत प्रचलन था। केवल काबा में ही सैंकड़ों मूर्तियाँ स्थापित की गई थीं। पैगंबर मुहम्मद ने मूर्ति पूजा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने मक्का पर अधिकार करने के पश्चात् काबा में सभी मूर्तियों को नष्ट कर डाला। पैगंबर मुहम्मद का कथन था कि हमें केवल एक अल्लाह की उपासना करनी चाहिए।

7. स्त्रियों की स्थिति (Position of Women):
पैगंबर मुहम्मद से पूर्व अरब समाज में स्त्रियों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। उन्हें केवल मनोरंजन एवं भोग विलास की वस्तु समझा जाता था। समाज ने जो अधिकार पुरुषों को दिए थे स्त्रियों को उन सभी अधिकारों से वंचित रखा गया था। पैगंबर मुहम्मद ने पुरुषों एवं स्त्रियों को बराबर अधिकार दिए जाने के पक्ष में प्रचार किया। उन्होंने मुसलमानों को यह संदेश दिया कि वे अपनी पत्नियों के साथ कभी भी दुर्व्यवहार करें।

उन्होंने बहु-विवाह पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से यह नियम बनाया कि कोई भी पुरुष एक समय में चार से अधिक पत्नियाँ नहीं रख सकता। उन्होंने विधवाओं को सम्मान देने के पक्ष में प्रचार किया। प्रसिद्ध लेखक डॉक्टर ए० रहीम के अनुसार “वास्तव में जो सम्मान पैगंबर मुहम्मद ने स्त्रियों को दिया वह विश्व द्वारा अभी प्राप्त किया जाना है”

प्रश्न 4.
इस्लाम के प्रथम चार खलीफ़ों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पैगंबर मुहम्मद ने अरब समाज को एक नई दिशा देने में उल्लेखनीय योगदान दिया। 632 ई० में उनकी मृत्यु से इस्लाम पर एक घोर संकट उत्पन्न हो गया। इसका कारण यह था कि पैगंबर मुहम्मद का अपना कोई पुत्र न था एवं उन्होंने किसी को भी अपना उत्तराधिकारी नियुक्त नहीं किया था। अतः उम्मा (umma) ने निर्वाचन पद्धति द्वारा अबू बकर को पैगंबर मुहम्मद का उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इससे खिलाफ़त संस्था का उदय हुआ। पैगंबर मुहम्मद के उत्तराधिकारी खलीफ़ा कहलाए। खिलाफ़त के प्रमुख उद्देश्य थे-

  • इस्लाम की रक्षा एवं प्रसार करना,
  • कबीलों पर नियंत्रण कायम रखना,
  • राज्य के लिए संसाधन जुटाना,
  • पैगंबर द्वारा आरंभ किए गए कार्यों को जारी रखना,
  • आवश्यकता पड़ने पर जिहाद (धर्म युद्ध) की घोषणा करना,
  • गरीबों, अपाहिजों एवं यतीमों की सहायता करना। आरंभिक चार खलीफ़ों के पैगंबर मुहम्मद के साथ नज़दीकी एवं गहरे संबंध थे। उन्होंने 632 ई० से लेकर 661 ई० तक शासन किया। उन्ह वपूर्ण योगदान दिया। इसका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

I. अबू बकर : 632-634 ई०
अबू बकर खलीफ़ा के पद पर नियुक्त होने वाले प्रथम व्यक्ति थे। वह इस पद पर 632 ई० से 634 ई० तक रहे। वह पैगंबर मुहम्मद के ससुर थे। जिस समय वह खलीफ़ा के पद पर निर्वाचित हुए तो उस समय उन्हें अनेक विकट समस्याओं का सामना करना पड़ा। प्रथम, पैगंबर मुहम्मद ने किसी उत्तराधिकारी की नियुक्ति नहीं की थी।

इस कारण अरब के विभिन्न भागों में अनेक नकली पैगंबर प्रकट हो गए। दूसरा, मक्का एवं मदीना में अनेक ऐसे लोग थे जो इस्लाम का विरोध कर रहे थे तीसरा, ईसाई एवं यहूदी भी इस्लाम के लिए एक कड़ी चुनौती बने हुए थे। अबू बकर ने सर्वप्रथम नकली पैगंबरों के विद्रोहों का दमन किया। इससे अरब में शांति स्थापित हुई। इसके पश्चात् अबू बकर ने मुस्लिम साम्राज्य के विस्तार की योजना बनाई।

अतः उसने शीघ्र ही सीरिया, इराक, ईरान एवं बाइजेंटाइन साम्राज्यों पर विजय प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की। उन्होंने मदीना (Madina) को अपनी राजधानी बनाए रखा। 634 ई० में अबू बकर की मृत्यु हो गई। अपनी मृत्यु से पूर्व उन्होंने उमर को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।

वास्तव में अपने दो वर्षों के शासनकाल में अबू बकर ने इस्लाम को संगठित एवं इसका प्रसार करने में बहुमूल्य योगदान दिया। डॉक्टर माजिद अली खाँ के अनुसार, “उसे इस्लाम के इतिहास में एक विशेष स्थान प्राप्त है।”

II. उमर : 634-644 ई०
उमर आरंभिक चार खलीफ़ाओं में से सबसे महान् थे। वह कुरैश कबीले से संबंधित थे तथा उनकी नियुक्ति अबू बकर द्वारा की गई थी। वह खलीफ़ा के पद पर 634 ई० में नियुक्त हुए। वह इस पद पर 644 ई० तक रहे। वह एक महान खलीफ़ा प्रमाणित हए। उन्होंने अपनी दरदष्टि से जान लिया था कि उम्मा को केवल व्यापार और साधारण करों के बल पर संगठित नहीं रखा जा सकता।

इसके लिए उन्हें अधिक धन की आवश्यकता थी। यह धन उन्हें केवल विजय अभियानों के रूप में मारे जाने वाले छापों से प्राप्त लूट से मिल सकता था इस उद्देश्य से तथा इस्लाम के प्रसार के लिए उन्होंने अबू बकर की विस्तारवादी नीति को जारी रखा। उस समय इस्लामी राज्य के पश्चिम में बाइजेंटाइन (Byzantine) तथा पूर्व में ससानी (Sasanian) साम्राज्य स्थित थे।

बाइजेंटाइन साम्राज्य ईसाई धर्म को एवं ससानी साम्राज्य ज़रतुश्त धर्म (Zoroastrianism) को संरक्षण (patronise) प्रदान करता था। इन दोनों साम्राज्यों की कुछ समय पूर्व तक बहुत धाक थी। किंतु अब धार्मिक संघर्षों तथा अभिजात वर्गों के विद्रोहों के कारण वे अपने पतन की ओर अग्रसर थे।

इस स्वर्ण अवसर का लाभ उठा कर खलीफ़ा उमर ने 637 ई० से 642 ई० के समय के दौरान सीरिया, इराक, ईरान और मिस्र पर महत्त्वपूर्ण विजयें प्राप्त की। उनके अधीन अरबों ने 643 ई० में उत्तरी अफ्रीका में त्रिपोली को अपने अधिकार में कर लिया। मुसलमानों की इन सफलताओं के लिए खलीफ़ा उमर की योजनाएँ, मुसलमानों का धार्मिक जोश, उनके अनुभवी सेनापति एवं विरोधियों की कमज़ोरियाँ उत्तरदायी थीं। खलीफ़ा उमर न केवल एक महान विजेता था अपित एक कशल प्रशासक भी था।

उन्होंने अपने इस्लामी साम्राज्य को 8 प्रांतों में विभाजित किया। प्रत्येक प्राँत एक गवर्नर के अधीन होता था। उसे अमीर अथवा वली कहा जाता था। उसे अनेक शक्तियाँ प्राप्त थीं तथा वह अपने कार्यों के लिए खलीफ़ा के प्रति उत्तरदायी था। प्राँतों को आगे जिलों में विभाजित किया गया था। जिले का अध्यक्ष आमिल कहलाता था। खलीफ़ा उमर ने केंद्रीय राज्यकोष जिसे बैत अल-माल (Bait al-mal) कहा जाता था, को सुदृढ़ करने के लिए अनेक पग उठाए। उसने कृषि में अनेक उल्लेखनीय सुधार किए।

उसने शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक स्कूल खुलवाए। उसने साम्राज्य के विभिन्न भागों में अनेक मस्जिदों का निर्माण भी करवाया। उसने अपनी सेना को भी अच्छी प्रकार संगठित किया था। निस्संदेह खलीफ़ा उमर की उपलब्धियाँ महान् थीं। 3 नवंबर, 644 ई० को खलीफ़ा उमर की मदीना की मस्जिद में नमाज़ पढ़ते समय किसी ने हत्या कर दी। एक अन्य इतिहासकार डॉक्टर माजिद अली खाँ के अनुसार, “उसका खलीफ़ा काल निस्संदेह इस्लाम का स्वर्ण युग था।”

III. उथमान : 644-656 ई०
उथमान मुसलमानों का तीसरा खलीफ़ा था। वह इस पद पर 644 ई० से 656 ई० तक रहा। उसका संबंध उमय्यद वंश के कुरैश परिवार से था। उथमान भी अन्य खलीफ़ाओं की तरह महत्त्वाकांक्षी था। अतः सिंहासन पर बैठते ही उसने सर्वप्रथम इस्लामी साम्राज्य के विस्तार की ओर ध्यान दिया। इस उद्देश्य से उसने अपनी सेना को संगठित किया।

उसने अपने शासनकाल में साइप्रस, खुरासान, काबुल, गज़नी, हेरात, ट्यूनीशिया तथा लीबिया आदि प्रदेशों पर विजय प्राप्त की। उसने प्रजा की भलाई के लिए भी अनेक कार्य किए।

उसने प्रशासन पर अधिक नियंत्रण रखने के उद्देश्य से अपने निकट संबंधियों को राज्य के उच्च पदों पर नियुक्त किया। इससे लोगों में उनके शासन के विरुद्ध असंतोष फैला। परिणामस्वरूप 17 जून, 656 ई० को उथमान की हत्या कर दी गई। डॉक्टर ए० रहीम के अनुसार, “खलीफ़ा उथमान की हत्या इस्लाम के इतिहास की सबसे दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी।

खलीफ़ा उथमान की हत्या के पश्चात् 24 जून, 656 ई० को अली मुसलमानों के चौथे खलीफ़ा बने। वह 661 ई० तक इस पद पर रहे। वह कुरैश कबीले के बानू हाशिम परिवार से संबंधित थे। वह पैगंबर मुहम्मद के चाचा अबू तालिब के पुत्र थे। खलीफ़ा बनने के शीघ्र पश्चात् अली ने अपनी राजधानी मदीना से बदल कर कुफा (Kufa) बना ली। अली के शासनकाल में मुसलमान दो संप्रदायों में विभाजित हो गए। उसके समर्थक शिया कहलाए जबकि उसके विरोधी सुन्नी।

9 दिसम्बर, 656 ई० को अली एवं उसके विरोधियों के मध्य ऊँटों की लड़ाई (Battle of Camels) हुई। इस लड़ाई में अली के विरोधियों का नेतृत्व पैगंबर मुहम्मद की पत्नी आयशा (Aishah) ने किया। इस लड़ाई में यद्यपि अली विजित हुआ किंतु इससे उसकी समस्याएँ कम न हुईं। प्रसिद्ध इतिहासकार पी० के० हिट्टी के अनुसार, “वंशानुगत लड़ाइयों ने जिन्होंने समय-समय पर इस्लाम में उथल-पुथल की तथा जिन्होंने इसकी आधारशिला को हिला दिया था, का आरंभ हुआ।”

अली के शासनकाल में सीरिया का गवर्नर मुआविया (Muawiyah) था। वह उथमान का संबंधी था तथा वह उसकी हत्या के लिए अली को उत्तरदायी समझता था। अली ने उसका दमन करना चाहा। अतः दोनों के मध्य 28 जुलाई, 657 ई० को सिफ्फिन की लड़ाई (Battle of Siffin) हुई। इस लड़ाई में अली पराजित हुआ तथा उसे संधि के लिए बाध्य होना पड़ा।

इस कारण उसके अनुयायी दो धड़ों में बँट गए। एक धड़ा उसके प्रति वफ़ादार रहा। दूसरा धड़ा उसके विरुद्ध हो गया। यह धड़ा खरजी (Kharjis) कहलाया। खरजी धड़े के एक सदस्य द्वारा 24 जनवरी, 661 ई० को कुफा (इराक) की एक मस्जिद में अली की हत्या कर दी गई। इस प्रकार खलीफ़ा अली का दुःखद अंत हुआ।

प्रश्न 5.
उमय्यद वंश के उत्थान एवं पतन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उमय्यद वंश की गणना इस्लाम के इतिहास के महत्त्वपूर्ण राजवंशों में की जाती है। इस वंश की स्थापना 661 ई० में मुआविया ने की थी। इस वंश के शासकों ने 750 ई० तक शासन किया। इस वंश के उत्थान एवं पतन का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है-

I. उमय्यदों का उत्थान

उमय्यदों के उत्थान एवं विकास में निम्नलिखित खलीफ़ों ने प्रशंसनीय योगदान दिया

1. मुआविया 661-680 ई० (Muawiyah 661-680 CE):
उमय्यद वंश का संस्थापक मुआविया था। खलीफ़ा बनने से पूर्व वह सीरिया का गवर्नर था। वह 661 ई० से 680 ई० तक खलीफ़ा के पद पर रहा। जिस समय वह खलीफ़ा बना उस समय उसके समक्ष अनेक चुनौतियाँ थीं। वह एक दृढ़ निश्चय का व्यक्ति था।

अतः उसने इन चुनौतियों का साहसपूर्ण सामना किया। उसने सर्वप्रथम दमिश्क (Damascus) को अपनी राजधानी बनाया। उसने 663 ई० में खरिजाइटों (Kharijites) जिन्होंने खलीफ़ा के विरुद्ध कुफा (Kufa) में विद्रोह कर दिया था, का सख्ती के साथ दमन किया। लगभग इसी समय खलीफ़ा अली के समर्थकों ने इराक में विद्रोह कर दिया।

मुआविया ने एक विशाल सेना भेजकर उनके विद्रोह का दमन किया। 667 ई० में मुआविया के प्रसिद्ध सेनापति उकाबा (Ukaba) ने उत्तरी अफ्रीका के अधिकाँश क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। मुआविया न केवल एक महान् विजेता अपितु एक कुशल शासन प्रबंधक भी सिद्ध हुआ। उसने बाइजेंटाइन साम्राज्य की राजदरबारी रस्मों तथा प्रशासनिक संस्थाओं को अपनाया। उसने खलीफ़ा पद के गौरव में बहुत वृद्धि की। वह प्रथम मुस्लिम शासक था जिसने डाक-व्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार किए।

ऐसा करके उसने साम्राज्य के सभी हिस्सों को एक-दूसरे के साथ जोड़ा। उसने अपराधियों पर नियंत्रण रखने के उद्देश्य से पुलिस विभाग की स्थापना की। उसने न्याय प्रणाली में महत्त्वपूर्ण सुधार किए। उसने राज्य की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से अनेक पग उठाए। उसने एक शक्तिशाली नौसेना का भी गठन किया। प्रोफेसर के० अली के अनुसार, “उसने एक कुशल सरकार का गठन किया तथा अराजकता का कायाकल्प कर एक अनुशासित मुस्लिम समाज की स्थापना की। मुआविया की सफलताओं के कारण उसे मुस्लिम जगत के महान् शासकों में से एक माना जाता है।”

2. याजिद 680-683 ई० (Yazid 680-683 CE):
680 ई० में मुआविया की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र याजिद उसका उत्तराधिकारी बना। मुआविया ने उसे अपने जीवनकाल में ही अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था। वह 683 ई० तक खलीफ़ा के पद पर रहा। उसके खलीफ़ा बनते ही पूर्व खलीफ़ा अली के पुत्र हुसैन (Husayn) ने उसका विरोध किया। अत: उसका सामना करने के लिए याजिद ने उमर-बिन-सेद (Umar bin-Said) के नेतृत्व में 4000 सैनिक भेजे।

दोनों के मध्य 10 अक्तूबर, 680 ई० को करबला की लड़ाई (Battle of Karbala) हुई। इस लड़ाई में हुसैन पराजित हुआ। उसे गिरफ्तार कर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया। इससे शिया मुसलमान उमय्यद वंश के कट्टर विरोधी बन गए। प्रसिद्ध इतिहासकार एलेक्जेंडर पापाडोपोउलो के शब्दों में, “यद्यपि उसकी (हुसैन की) मौत का कम राजनीतिक प्रभाव पड़ा किंतु इसने उसे शिआओं का महान् शहीद बना दिया।”

इस अराजकता का लाभ उठाकर अब्दुल्ला-इब्न-जुबैर (Abdullah-ibn-Zubayr) ने मक्का में अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। उसके भड़काने पर मदीना के लोगों ने भी खलीफ़ा के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। निस्संदेह यह खलीफ़ा की शक्ति के लिए एक गंभीर चुनौती थी। अतः याजिद ने उकबा (Uqbah) के नेतृत्व में 12,000 की सेना मदीना भेजी। इस सेना ने मदीना के विद्रोह का दमन किया। यहाँ तीन दिनों तक भयंकर लूटमार की गई। इसके पश्चात् मक्का को घेरा डाल दिया गया।

इस घेरे के दौरान काबा में आग लग गई। इस कारण मुसलमानों में रोष फैल गया। अतः घेरे को उठा लिया गया। इसके शीघ्र पश्चात् ही याजिद की मृत्यु हो गई। उसका शासनकाल वास्तव में इस्लाम के इतिहास में एक कलंक सिद्ध हुआ।

3. मुआविया द्वितीय एवं मारवान 683-685 ई० (Muawiyah II and Marwan 683-685 CE):
683 ई० में याजिद की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र मुआविया द्वितीय नया खलीफ़ा बना। वह एक नम्र स्वभाव का व्यक्ति था। कुछ माह के शासन के पश्चात् 684 ई० में उसकी मृत्यु हो गई। अतः मारवान को 684 ई० में नया खलीफ़ा बनाया गया। वह मुआविया प्रथम का चचेरा भाई था। उसकी भी एक वर्ष पश्चात् मृत्यु हो गई। अत: उसके शासनकाल को इस्लाम के इतिहास में कोई विशेष महत्त्व प्राप्त नहीं है।

4. अब्द-अल-मलिक 685-705 ई० (Abd-al-Malik 685-705 CE)-अब्द-अल-मलिक की गणना हान् खलीफ़ाओं में की जाती है। वह 685 ई० से 705 ई० तक खलीफा के पद पर रहा। अब्द 17. अल-मलिक ने सर्वप्रथम इराक में अल-मुख्तियार बिन अबू उबैद (Al-Mukhtiar bin Abu Ubayed) के विद्रोह का दमन किया। इसके पश्चात् उसने अपना ध्यान एक अन्य प्रमुख शत्रु इन जुबैर (Ibn Zubayr) की ओर किया। इब्न जुबैर ने मक्का में अपने खलीफ़ा होने की घोषणा कर दी थी।

वह 692 ई० में अब्द-अल-मलिक के साथ हुई एक लड़ाई में मारा गया था। अब्द-अल-मलिक ने बाइजेंटाइन साम्राज्य के अनेक क्षेत्रों पर अधिकार करने में सफलता प्राप्त की। इसके पश्चात् अब्द-अल-मलिक के सेनापति हसन इब्न नूमैन (Hasan Ibn Numan) ने पश्चिमी अफ्रीका के कुछ क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार अब्द-अल-मलिक के शासनकाल में इस्लामी साम्राज्य का खूब विस्तार हुआ। अब्द-अल-मलिक न केवल एक महान् विजेता अपितु एक कुशल शासन प्रबंधक भी था।

उसने इस्लामी साम्राज्य को संगठित करने के लिए अनेक उल्लेखनीय उपाय भी किए। उसने अरबी (Arabic) को राज्य की भाषा घोषित किया। उसने इस्लामी सिक्कों को जारी किया। इनमें सोने के सिक्के को दीनार एवं चाँदी के सिक्के को दिरहम कहा जाता था। ये सिक्के रोमन सिक्के दिनारियस (denarius) तथा ईरानी सिक्के द्राख्या (drachm) की नकल थे। इन सिक्कों पर अरबी भाषा लिखी गई थी। इन सिक्कों पर एक तरफ अब्द-अल-मलिक का नाम तथा उसकी तस्वीर अंकित थी।

इसकी दूसरी तरफ यह लिखा था कि ‘अल्लाह के सिवाय कोई अन्य खुदा नहीं है और अल्लाह का कोई शरीक नहीं है।’ (There is no God but Allah and he had no partner.) अब्द-अल मलिक के ये सिक्के बहुत लोकप्रिय हुए तथा आने वाली कई शताब्दियों तक जारी रहे। उसने साम्राज्य की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से अनेक महत्त्वपूर्ण पग उठाए।

उसे कला से भी बहुत प्यार था। जेरुसलम (Jerusalem) में उसके द्वारा बनवाई गई डोम ऑफ़ दी रॉक (Dome of the Rock) इस्लामी वास्तुकला का प्रथम महत्त्वपूर्ण नमूना है। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर ए० रहीम के शब्दों में, “उसके अधीन अरब साम्राज्य का विस्तार एवं उसकी समृद्धि अपनी चरम सीमा पर थी”

5. वालिद प्रथम 705-715 ई० (Walid I 705-715 CE)—वालिद प्रथम उमय्यद वंश का एक अन्य प्रसिद्ध एवं शक्तिशाली शासक था। वह अब्द-अल-मलिक का पुत्र था। वह 705 ई० में खलीफ़ा के पद पर नियुक्त हुआ था। वह इस पद पर 715 ई० तक रहा। उसने इस्लामी साम्राज्य के विस्तार एवं इसके संगठन में प्रशंसनीय योगदान दिया।

वालिद प्रथम ने सर्वप्रथम मध्य एशिया के अनेक प्रदेशों बुखारा (Bukhara), समरकंद (Samarkand) आदि में इस्लामी झंडा फहराया। 711-12 ई० में वालिद प्रथम के सेनापति मुहम्मद-बिन-कासिम (Muhammad bin-Qasim) ने सिंध के शासक दाहिर को पराजित कर सिंध पर अधिकार कर लिया।

वालिद प्रथम के समय मित्र के गवर्नर मूसा-इन-नूसैर (Musa-ibn-Nusayr) ने पश्चिमी अफ्रीका के अनेक प्रदेशों पर अधिकार करने में सफलता प्राप्त की। 711-12 ई० में वालिद प्रथम के दो सेनापतियों तारिक (Tariq) एवं मूसा (Musa) ने स्पेन पर अधिकार कर लिया। निस्संदेह इसे वालिद प्रथम के शासनकाल की सबसे महत्त्वपूर्ण सफलता माना जाता है।

वालिद प्रथम ने इस्लामी साम्राज्य को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से अनेक प्रजा हितकारी कार्य किए। उसने अनेक सड़कों, अस्पतालों, स्कूलों एवं मस्जिदों का निर्माण करवाया। उसने कृषि तथा व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक उल्लेखनीय पग उठाए। निस्संदेह वालिद प्रथम के शासनकाल ने इस्लाम के इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात किया। अंत में हम प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर के० अली के इन शब्दों से सहमत हैं,

“उसका (वालिद प्रथम का) शासनकाल शाँति एवं खुशहाली का काल था।”20 6. सुलेमान 715-717 ई० (Sulayman 715-717 CE)-715 ई० में वालिद प्रथम की मृत्यु के पश्चात् उसका भाई सुलेमान नया खलीफ़ा बना। वह 717 ई० तक इस पद पर रहा। उसके शासनकाल का इस्लाम के इतिहास में कोई विशेष महत्त्व नहीं है। उसका केवल एक महत्त्वपूर्ण कार्य अपनी मृत्यु से पहले अपने पुत्र उमर द्वितीय को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना था।

7. उमर द्वितीय 717-720 ई० (Umar II 717-720 CE)-उमर द्वितीय 717 ई० से 720 ई० तक खलीफ़ा के पद पर रहा। अपने अल्प शासनकाल में उसने इस्लामी साम्राज्य के विस्तार की अपेक्षा इसके संगठन की ओर विशेष ध्यान दिया। उसने मवालियों (mawalis) के प्रति उदार नीति अपनाई एवं मुसलमानों के बराबर अधिकार दिए।

मवाली वे गैर-अरबी मुसलमान थे जिन्होंने इस्लाम को ग्रहण कर लिया था। उसने इस्लाम के प्रसार के उद्देश्य से इसे ग्रहण करने वाले लोगों को विशेष सुविधाएँ प्रदान की। उसने साम्राज्य में फैले भ्रष्टाचार को दूर किया। उसने लोगों को निष्पक्ष न्याय देने का प्रयास किया। उसने साम्राज्य की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से अनेक महत्त्वपूर्ण पग उठाए। निस्संदेह उमर द्वितीय के शासनकाल को इस्लाम के इतिहास का शाँति काल कहा जा सकता है।

II. उमय्यद वंश का पतन

उमय्यद शासक वंश के पतन के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे।
(1) उमय्यद वंश के कुछ खलीफ़ों को छोड़कर अधिकाँश खलीफ़ों ने प्रशासन की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। अतः ऐसे साम्राज्य का डूबना निश्चित था।

(2) उमय्यद वंश के शासक साम्राज्य के हितों की अपेक्षा अपने स्वार्थी हितों में अधिक व्यस्त रहते थे। ऐसे साम्राज्य के सूर्य को अस्त होने से कोई रोक नहीं सकता था।

(3) उमय्यद शासक गैर-अरबों के साथ बहुत मतभेद करते थे। इससे वे उमय्यद वंश के घोर विरोधी हो गए।

(4) उमय्यद वंश के शासक अपनी सेना को नियमित तन्खवाह न दे सके। इस कारण सैनिक भी अपने शासकों से रुष्ट रहते थे। ऐसा साम्राज्य कभी स्थायी नहीं हो सकता।

(5) शिया वंश के लोग उमय्यदों के कट्टर दुश्मन थे। अत: वे उमय्यदों से बदला लेने के लिए किसी स्वर्ण अवसर की प्रतीक्षा में थे।

(6) उमय्यद साम्राज्य में फैली अराजकता का लाभ उठाते हुए अब्बासियों (Abbasids) ने दवा (dawa) नामक एक सुनियोजित आंदोलन चलाया। इस आंदोलन ने उमय्यद वंश के पतन का डंका बजा दिया।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

प्रश्न 6.
अब्बासी वंश के उत्थान एवं पतन के बारे में आप क्या जानते हैं ? वर्णन कीजिए। उत्तर

I. अब्बासियों का उत्थान

अब्बासियों के उत्थान में निम्नलिखित खलीफ़ों ने उल्लेखनीय योगदान दिया

1. अबू-अल-अब्बास 750-754 ई० (Abu-al-Abbas 750-754 CE) अबू-अल-अब्बास ने 750 ई० में अब्बासी वंश की स्थापना की। जिस समय वह सिंहासन पर बैठा उस समय अरब की राजनीतिक दशा बहुत शोचनीय थी। साम्राज्य के अनेक स्थानों पर विद्रोहियों ने उत्पात मचा रखा था। वे अबू-अल-अब्बास को खलीफ़ा स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। इस कारण नए खलीफ़ा ने सर्वप्रथम अपना ध्यान उमय्यद विद्रोहियों की ओर किया तथा उनका निर्ममता से दमन किया गया। वह इतना क्रूर था कि उसने अल-सफा (Al-Saffah) (रक्तपात करने वाला) की उपाधि धारण की। 754 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

2. अल-मंसूर 754-775 ई० (AI-Mansur 754-775 CE)-754 ई० में अबू-अल-अब्बास की मृत्यु के पश्चात् उसका भाई अल-मंसूर नया खलीफ़ा बना। उसका वास्तविक नाम अबू जफ़र (Abu Jafar) था। उसने अब्बासी वंश को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से अनेक उल्लेखनीय पग उठाए। उसने सर्वप्रथम विद्रोहियों को सबक सिखाया। उसने 762 ई० में बग़दाद (Baghdad) को अब्बासियों की राजधानी घोषित किया। उसने बाइजेंटाइन आक्रमण को भी सफलतापूर्वक रोका। अब्बासी अल-मंसूर ने न केवल अपनी योग्यता से साम्राज्य का विस्तार किया अपितु इसका कुशलतापूर्वक संगठन भी किया।

उसने अपने साम्राज्य को अनेक प्रांतों में विभाजित कि का शासन चलाने के लिए अत्यंत योग्य गवर्नरों को नियुक्त किया गया। उसने शिक्षा को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से साम्राज्य में अनेक शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की। उसे कला से भी बहुत प्यार था। उसने अपनी राजधानी बग़दाद को अनेक महलों, मस्जिदों, भवनों एवं उद्योगों से सुसज्जित किया। उसने अपने दरबार में अनेक विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया। उसने न्याय व्यवस्था को अधिक कुशल बनाया।

उसने कृषि तथा व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए उल्लेखनीय पग उठाए। अल-मंसूर की इन शानदार सफलताओं को देखते हुए उसे ठीक ही अब्बासी साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है। प्रसिद्ध इतिहासकार पी० के० हिट्टी के अनुसार, “अल-मंसूर अब्बासियों के महान् खलीफ़ाओं में से एक था। उसने न कि अल शफा ने नए वंश की सुदृढ़ता से स्थापना की।”

3. अल-महदी 775-785 ई० (AI-Mahdi 775-785 CE)-775 ई० में अल-मंसूर की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र अल महदी अब्बासियों का नया खलीफ़ा बना। वह 785 ई० तक इस पद पर रहा। उसने अपने शासनकाल में लोक भलाई के अनेक कार्य किए। उसने अनेक सड़कों का निर्माण किया। उसने यात्रियों की सुविधा के लिए अनेक कुओं एवं सराओं का निर्माण करवाया। उसने शिक्षा को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से अनेक मकतब एवं मदरसे खुलवाए। उसने गरीबों, अपाहिजों एवं विधवाओं की धन द्वारा सहायता की।

उसने बुजुर्गों के लिए पैंशन निश्चित की। उसने डाक-व्यवस्था का विकास किया। उसने अनेक भवनों एवं मस्जिदों का निर्माण करवाया। उसने कला तथा साहित्य को प्रोत्साहित किया। उसने कृषि तथा व्यापार के विकास के लिए अनेक पग उठाए। उसने सीरिया एवं खुरासान के विद्रोहों का दमन किया। उसने बाइजेंटाइन साम्राज्य के शासक कांस्टैनटाइन छठे (Constantine VI) को पराजित कर उसे एक अपमानजनक संधि करने के लिए बाध्य किया।

4. अल-हादी 785-786 ई० (AI-Hadhi 785-786 CE)-785 ई० में अल-हादी नया खलीफ़ा बना। वह अल-महदी का पुत्र था। वह केवल एक वर्ष तक इस पद पर रहा। उसके शासनकाल का अब्बासियों के इतिहास में कोई विशेष महत्त्व नहीं है।

5. हारुन-अल-रशीद 786-809 ई० (Harun-al-Rashid 786-809 CE) हारुन-अल-रशीद अब्बासियों का सबसे महान् एवं शक्तिशाली खलीफ़ा था। वह खलीफ़ा अल-हादी का छोटा भाई था। वह 786 ई० से 809 ई० तक खलीफ़ा के पद पर रहा। उसने अब्बासी वंश के गौरव को पुनः स्थापित करने के उद्देश्य से अनेक उल्लेखनीय कार्य किए।

उसने अपनी तलवार के बल पर न केवल आंतरिक विद्रोहों का दमन किया अपितु अब्बासी साम्राज्य का दूर-दूर तक विस्तार किया। उसने उस समय के शक्तिशाली फ्रैंक (Frank) शासक शॉर्लमेन (Charlemagne) के साथ मित्रतापूर्वक संबंध स्थापित किए। हारुन-अल-रशीद ने अपने साम्राज्य को संगठित करने के उद्देश्य से प्रशासन में उल्लेखनीय सुधार किए।

उसने प्रजा की भलाई के लिए अनेक पग उठाए। उसने शिक्षा को प्रोत्साहित किया। उसने अनेक प्रसिद्ध विद्वानों, संगीतकारों एवं गायकों को अपने दरबार में संरक्षण प्रदान किया था। उसके शासनकाल में लिखी गई सर्वाधिक प्रसिद्ध पुस्तक एक हजार एक रातें (The Thousand and One Nights) थी। उसने अनेक अस्पतालों एवं सरायों का निर्माण करवाया। उसने अपनी राजधानी में अनेक विशाल महल, भवन, मस्जिदें एवं बाग बनवाए। वह प्रजा के दुःखों को दूर करने के लिए सदैव तैयार रहता था।

वास्तव में उसके शासनकाल में अब्बासी साम्राज्य में इतनी प्रगति हुई कि ‘इसे स्वर्ण युग’ के नाम से स्मरण किया जाता है। निस्संदेह हारुन-अल-रशीद एक महान् शासक था। प्रसिद्ध लेखक प्रोफेसर मासूदुल हसन के अनुसार, “हारुन-अल-रशीद के अधीन अब्बासी राज्य अपनी उन्नति के शिखर पर पहुँच गया था 122 डॉक्टर ए० रहीम के अनुसार, “खलीफ़ा हारुन इतिहास के सर्वाधिक सफल शासकों में से एक था।”

6. अल-अमीन 809-813 ई० (Al-Amin 809-813 CE)-अल-अमीन 809 ई० से 813 ई० तक खलीफ़ा के पद पर रहा। वह एक अयोग्य एवं विलासी खलीफ़ा प्रमाणित हुआ। इसलिए वह जनसाधारण की सहानुभूति खो बैठा था। इस कारण 809 ई० में अल-अमीन एवं उसके भाई अल-मामुन के मध्य गृह-युद्ध आरंभ हो गया। यह गृह-युद्ध 813 ई० तक चलता रहा। इस गृह-युद्ध के अंत में अल-अमीन पराजित हुआ एवं वह मारा गया। इस प्रकार अल-अमीन के यशहीन शासन का अंत हुआ।

7. अल-मामुन 813-833 ई० (AI-Mamun 813-833 CE)-813 ई० में अल-मामुन अब्बासी वंश का नया खलीफ़ा बना। वह 833 ई० तक इस पद पर रहा। वह एक महान् सेनापति एवं योग्य शासक प्रमाणित हुआ। जिस समय वह सिंहासन पर बैठा उस समय अब्बासी साम्राज्य के चारों ओर अराजकता एवं विद्रोह का वातावरण था। अल-मामुन इन समस्याओं से घबराने वाला व्यक्ति नहीं था। उसने ईरान, मिस्र, सीरिया, अर्मीनिया, खुरासान एवं यमन में खिलाफ़त के विरुद्ध उठने वाले विद्रोहों का दमन किया।

उसने बाइजेंटाइन साम्राज्य के विरुद्ध अपनी सेना का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। उसने अपने साम्राज्य में शाँति स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। उसने प्रजा की भलाई के लिए अनेक पग उठाए। अत: उसके शासनकाल में प्रजा बहुत खुशहाल थी। उसने सभी धर्मों के प्रति सहनशीलता की नीति अपनाई। उसे कला एवं साहित्य से बहुत प्यार था। उसके दरबार में अनेक प्रसिद्ध कवियों, इतिहासकारों एवं विद्वानों ने उसके नाम को चार चाँद लगाए।

8. बाद के खलीफ़े (Later Caliphs)-अल-मामुन की मृत्यु के साथ ही अब्बासी राजवंश का पतन आरंभ हो गया था। इसका कारण यह था कि उसके पश्चात् आने वाले सभी खलीफ़े अल-वथिक (al-Wathiq), अल-मुतव्वकिल (al-Mutawakkil) तथा मुनतासिर (Muntasir) आदि सभी अयोग्य एवं निकम्मे निकले। अब्बासी वंश का अंतिम खलीफ़ा अल-मुस्तासिम (al-Mustasim) था। 1258 ई० में चंगेज़ खाँ के पोते हुलेगू (Hulegu) ने बग़दाद पर आक्रमण कर अब्बासी राजवंश का अंत कर दिया।

II. अब्बासी वंश का पतन

अब्बासी वंश के खलीफ़ों ने 750 ई० से 1258 ई० तक शासन किया। इस वंश के पतन के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे–
(1) अल-मामुन के सभी उत्तराधिकारी अयोग्य एवं निकम्मे निकले। उन्होंने प्रशासन की ओर अपना ध्यान नहीं दिया। ऐसे साम्राज्य का पतन निश्चित था

(2) 9वीं शताब्दी में बग़दाद का दूर के प्रांतों पर नियंत्रण कम हो गया। इससे विद्रोहों को प्रोत्साहन मिला। परिणामस्वरूप अब्बासी साम्राज्य में अराजकता फैली।

(3) 9वीं शताब्दी में अब्बासी साम्राज्य में अनेक गुटों एवं छोटे-छोटे राजवंशों का उदय हो गया था। इनकी आपसी लड़ाइयाँ अब्बासी साम्राज्य के लिए घातक सिद्ध हुईं।

(4) अब्बासी खलीफ़ों ने अपनी सेना को शक्तिशाली बनाने की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। ऐसे साम्राज्य के पतन को भला कौन रोक सकता था।

(5) अरबों एवं गैर-अरबों के मध्य चलने वाले लगातार संघर्ष ने अब्बासी साम्राज्य को खोखला बना दिया।

(6) अब्बासी खलीफ़ों ने अपनी विलासिता के लिए लोगों पर भारी कर लगा दिए। इससे लोगों में असंतोष फैला एवं वे उनके विरुद्ध हो गए।

प्रश्न 7.
मध्यकालीन इस्लामी दुनिया की अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ क्या थीं ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकालीन इस्लामी दुनिया की अर्थव्यवस्था काफी अच्छी थी। इस काल में मुसलमानों ने अनेक नए क्षेत्रों को अपने अधीन कर लिया था। इन क्षेत्रों की भूमि बहुत उपजाऊ थी। अतः कृषि को बहुत प्रोत्साहन मिला।

इस काल में अनेक उद्योग धंधों ने बहुत उन्नति कर ली थी। इससे वाणिज्य एवं व्यापार को एक नई दिशा मिली। उमय्यद एवं अब्बासी खलीफ़ों ने एक सुदृढ़ अर्थव्यवस्था को स्थापित करने के उद्देश्य से अनेक प्रशंसनीय पग उठाए। निस्संदेह इससे लोगों का आर्थिक जीवन बहुत समृद्ध हुआ।

1. कृषि (Agriculture)—मध्यकाल में इस्लामी साम्राज्य के लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था। उमय्यद एवं अब्बासी खलीफ़ों ने कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए अथक प्रयास किए। उन्होंने सिंचाई साधनों का विकास, किया।

उन्होंने साम्राज्य के अनेक भागों में बाँधों, नहरों एवं कुओं का निर्माण किया। उन्होंने उन किसानों को भू-राजस्व एवं अन्य करों में रियायत दी जो कृषि के अधीन नयी भूमि को लाते थे। कृषि भूमि पर राज्य का सर्वोपरि नियंत्रण होता था। राज्य द्वारा भू-राजस्व निश्चित किया जाता था एवं इसे एकत्र किया जाता था। अरबों ने जिन नए ।

प्रदेशों को जीता था उन प्रदेशों में जहाँ भूमि गैर-मुसलमानों के हाथों में रही वहीं उन्हें खराज कर देना पड़ता था। यह पैदावार के अनुसार 20% से लेकर 50% होता था। जो कृषि योग्य भूमि मुसलमानों के अधीन होती थी उस पर उन्हें 10% भू-राजस्व कर देना पड़ता था। इस भेदभाव के चलते अनेक गैर-मुसलमानों ने इस्लाम को ग्रहण कर लिया था।

इससे राज्य की आय कम हो गयी। इस स्थिति से निपटने के लिए खलीफ़ाओं ने पहले धर्मांतरण को निरुत्साहित किया एवं बाद में भू-राजस्व की दर एक समान कर दी।

उत्तरी अफ्रीका, उत्तरी इराक, सीरिया एवं मिस्त्र के मैदान अनाज की भरपूर पैदावार के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। अरब एवं इराक खजूरों की पैदावार के लिए विख्यात थे। इस काल में अनेक नयी फ़सलों जैसे कपास, नील, आम, संतरा, केला, तरबूज, पालक (spinach) तथा बैंगन (brinjals) का उत्पादन आरंभ किया गया। इन फ़सलों को यूरोप में निर्यात किया जाता था।

2. उद्योग (Industries)-उमय्यद एवं अब्बासी खलीफ़ों के शासनकाल में उद्योग के क्षेत्र में बहुमुखी विकास हुआ। उस समय समरकंद (Samarkand) कागज़ उद्योग के लिए विशेष रूप से विख्यात था। उस समय बग़दाद काँच के सामान, आभूषण तथा रेशम उद्योग के लिए प्रसिद्ध था। बुखारा दरियों के उद्योग के लिए, दमिश्क इस्पात उद्योग के लिए, कुफा रेशम उद्योग के लिए, कोरडोबा (Cordoba) चमड़ा उद्योग के लिए प्रसिद्ध केंद्र थे। इनके अतिरिक्त उस समय आभूषण, सूती एवं ऊनी वस्त्र, फर्नीचर एवं दैनिक उपयोग की अन्य वस्तुओं के उद्योग भी स्थापित थे।

3. वाणिज्य एवं व्यापार (Trade and Commerce)–अरबों का आंतरिक एवं विदेशी व्यापार दोनों उन्नत थे। आंतरिक व्यापार के लिए मुख्यतः ऊँटों का प्रयोग किया जाता था। इनके अतिरिक्त घोड़ों एवं गधों का भी प्रयोग किया जाता था। विदेशी व्यापार जल एवं स्थल दोनों मार्गों से किया जाता था। अरबी साम्राज्य के यूरोप, अफ्रीका, भारत एवं चीन के देशों के साथ अच्छे व्यापारिक संबंध थे। पाँच शताब्दियों तक अरबी एवं ईरानी व्यापारियों का समुद्री व्यापार पर एकाधिकार रहा।

उस समय व्यापार के लिए लाल सागर, फ़ारस की खाड़ी एवं रेशम मार्ग प्रसिद्ध थे। रेशम मागे चीन से भारत होता हुआ बगदाद तक जाता था। अरबी व्यापारी विदेशों का कागज़, सूती एवं ऊनी वस्त्र, काँच का सामान, चीनी, खजूर एवं बारूद का निर्यात करते थे। इनके बदले वे विदेशों से रेशम, चाय, गर्म 1, सोना, विलासिता का सामान, हाथी दाँत एवं गुलामों का आयात करते थे। उस समय व्यापार संतुलन इस्लामी साम्राज्य के पक्ष में था।

4. शहरीकरण (Urbanization)-इस्लामी साम्राज्य के विस्तार, कृषि एवं उद्योगों के विकास ने शहरीकरण की प्रक्रिया को तीव्र किया। अत: अनेक नए शहर अस्तित्व में आए । इन शहरों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य अरब सैनिकों को बसाना था। ये सैनिक स्थानीय प्रशासन चलाने एवं उनकी पुरक्षा में प्रमुख भूमिका निभाते थे।

इन फ़ौजी शहरों को मिस्त्र (misr) कहा जाता था। इन शहरों में इराक में स्थित कुफा, बसरा एवं बग़दाद, मिस्र में स्थित काहिरा एवं फुस्तात एवं स्पेन में स्थित कोरडोबा नामक शहर प्रसिद्ध थे। ये सभी शहर व्यापार के प्रसिद्ध केंद्र थे। एक शहर का दूसरे शहर के साथ परस्पर संपर्क स्थापित किया गया था। इससे व्यापार को बहुत प्रोत्साहन मिला।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

प्रश्न 8.
सूफ़ी मत से आपका क्या अभिप्राय है ? इसकी प्रमुख शिक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:

I. सूफ़ी मत से अभिप्राय

मध्यकाल में इस्लाम में धार्मिक विचारों वाले लोगों का एक नया समूह अस्तित्व में आया जिसे सूफी कहा जाता था। सूफ़ी शब्द से क्या अभिप्राय है इससे संबंधित विद्वानों के विचारों में विभिन्नता है। कुछेक विद्वानों के विचारानुसार उनको सूफ़ी इसलिए कहा जाता था, क्योंकि वे साफ़ (शुद्ध) हृदय वाले थे। कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार उनको सूफ़ी इसलिए कहा जाता था क्योंकि परमात्मा के दरबार में वे प्रथम सफ़ (पंक्ति) में खड़े होते थे।

II. सूफ़ी मत की शिक्षाएँ

सूफी मत की प्रमुख शिक्षाएँ निम्नलिखित अनुसार हैं

1. अल्लाह एक है (Unity of Allah)-सूफ़ियों के अनुसार परमात्मा एक है जिसको वे अल्लाह कहते हैं। वह सर्वोच्च, शक्तिशाली तथा सर्वव्यापक है। प्रत्येक स्थान पर उसका आदेश चलता है तथा कोई भी उसकी आज्ञा के विरुद्ध नहीं जा सकता। वह प्रत्येक स्थान पर उपस्थित है। वह अमर है तथा आवागमन के चक्करों से मुक्त है। वह ही इस सृष्टि का रचयिता, इसकी सुरक्षा करने वाला तथा इसको नष्ट करने वाला है। इन कारणों से सूफी एक अल्लाह के अतिरिक्त किसी अन्य की पूजा नहीं करते हैं।

2. पूर्ण आत्म-त्याग (Complete Self-surrender)-अल्लाह के समक्ष पूर्ण आत्म-त्याग सूफ़ी मत के प्रमुख सिद्धांतों में से एक है। उनके अनुसार प्रत्येक सूफ़ी को साँसारिक मोह-माया तथा अपनी इच्छाओं को मिटाकर स्वयं को अल्लाह के समक्ष समर्पित कर देना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य उस अल्लाह की दया प्राप्त कर सकता है तथा उसके बिगड़े हुए कार्य ठीक हो सकते हैं।

3. पीर (Pir)-सूफी मत में पीर या गुरु को सर्वाधिक महत्त्व दिया जाता है। वह अपने मुरीदों की रूहानी उन्नति पर पूर्ण दृष्टि रखता है, ताकि वे इस भवसागर से पार हो सकें तथा अल्लाह के साथ एक हो सकें। एक सच्चा पीर जो स्वयं साँसारिक लगाव से दूर हो तथा जिसने रूहानी ज्ञान प्राप्त कर लिया हो, वह ही अपने शिष्यों को अंधकार से ज्योति की ओर ले जा सकता है।

4. इबादत (Worship)-सूफ़ी अल्लाह की इबादत (पूजा) पर जोर देते हैं। उनके अनुसार मात्र अल्लाह की इबादत करने से ही मनुष्य इस संसार से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। उनके अनुसार अल्लाह की इबादत नमाज़ द्वारा, रोज़े रखकर, दान करके तथा मक्का की यात्रा करके की जा सकती है। मनुष्य को शुद्ध हृदय से अल्लाह की इबादत करनी चाहिए।

5. नमाज़ (Prayer) सूफ़ियों के अनुसार नमाज़ पढ़ना मनुष्य का सर्वोत्तम कर्त्तव्य है। इसके द्वारा मनुष्य अपनी आत्मा की आवाज़ परमात्मा तक पहुँचा सकता है। ऐसी नमाज़ सच्चे हृदय से पढ़ी जानी चाहिए। अशुद्ध हृदय से पढ़ी गयी नमाज को पूर्ण रूप से व्यर्थ बताया गया है तथा कुरान में ऐसे व्यक्ति की कड़े शब्दों में आलोचना की गई है।

6. रोजे रखना (Fasting)-सूफ़ी रोज़े रखने में विश्वास रखते थे। ऐसा करने वाले व्यक्ति की आत्मा शुद्ध होती है। रोज़ा रखने से अभिप्राय मात्र खाने-पीने की वस्तुओं से परहेज़ करने को ही नहीं, बल्कि प्रत्येक प्रकार की बुराइयों से दूर रहने के लिए कहा गया है।

7. दान (Charity)-संसार के समस्त धर्मों में दान देने के संबंध में प्रचार किया गया है, परंतु सूफ़ी धर्म वालों ने इसको आवश्यक माना है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए जिसकी अपनी आवश्यकता से अधिक आय है को कुछ भाग दान देना आवश्यक है। ऐसा एकत्रित किया गया धन निर्धनों तथा ज़रूरतमंद लोगों में बाँटा जाता है। मनुष्यों से सहानुभूति करने को दान का ही एक भाग समझा गया है। कुरान में निर्धनों की सेवा करने तथा गुलामों को आज़ाद करने को बहुत अच्छा बताया गया है।

8. मक्का की यात्रा (Pilgrimage to Mecca)-मक्का की यात्रा करने को सूफ़ी विशेष महत्त्व देते हैं। सत्य हृदय से की गई इस यात्रा से मनुष्य इस संसार से मुक्ति प्राप्त कर सकता है तथा उसके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं।

9. भक्ति संगीत (Devotional Music)-सूफ़ी भक्ति संगीत पर बहुत जोर देते हैं। उनका यह पूर्ण विश्वास है कि भक्ति संगीत मानवीय हृदयों में अल्लाह के प्रति प्रेम उत्पन्न करता है। इसके प्रभाव के कारण मनुष्य के बुरे विचार नष्ट हो जाते हैं तथा वह अल्लाह के समीप पहुँच जाता है। सूफ़ियों की धार्मिक संगीत सभाओं को समा कहा जाता है।

10. मानवता से प्रेम (Love of Mankind)-मानवता की सेवा करना सूफ़ी अपना परम कर्त्तव्य मानते हैं। इससे संबंधित वे मनुष्यों के बीच किसी जाति-पाति, रंग या नस्ल आदि का भेदभाव नहीं करते। उनके अनुसार सभी मनुष्य एक ही अल्लाह की संतान हैं। इसलिए उनके बीच किसी प्रकार का भेदभाव करना । का अपमान करना है।

प्रश्न 9.
केंद्रीय इस्लामी प्रदेशों में साहित्य के विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्यकाल में केंद्रीय इस्लामी देशों ने साहित्य के क्षेत्र में अद्वितीय प्रगति की। अनेक लेखकों ने साहित्य के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया। कुछ महत्त्वपूर्ण लेखकों के योगदान का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. इन सिना (Ibn Sina)—इब्न सिना मध्य काल अरब का एक महान् दार्शनिक एवं चिकित्सक था। उसे यूरोप में एविसेन्ना (Avicenna) के नाम से जाना जाता था। उसका जन्म 980 ई० में बुखारा में हुआ था। इब्न सिना ने चिकित्सा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। उसकी रचना अल-कानून-फिल-तिब (al-Qanun fil-Tibb) विश्व में बहुत लोकप्रिय हुई। इसमें चिकित्सा सिद्धांतों पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है।

इसमें इब्न सिना के प्रयोगों एवं अनुभवों की जानकारी दी गई है। इस पुस्तक का प्रयोग यूरोप में अनेक वर्षों तक एक प्रमाणिक पाठ्य-पुस्तक के रूप में किया जाता रहा है। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर के० अली के अनुसार, “इब्न सिना की कानून’ कई शताब्दियों तक चिकित्सा की बाईबल रही।”24

2. अबू नुवास (Abu Nuwas)—अबू नुवास खलीफ़ा हारुन-अल-रशीद का प्रसिद्ध दरबारी कवि था। उसने दरबारी जीवन पर अनेक कविताएँ लिखीं। उसने शराब एवं प्रेम जैसे नए विषयों को छुआ। उसकी कविताओं में ईरानी कवियों की छाप देखी जा सकती है। उसे आधुनिक अरबी कविता का एक महान् कवि माना जाता है।

3. रुदकी (Rudki)-रुदकी समानी दरबार का एक महान् कवि था। उसे नयी फ़ारसी कविता का जनक माना जाता है। वह प्रथम कवि था जिसने ग़ज़ल (lyrical poems) एवं रुबाइयाँ (quatrains) लिखीं। रुबाई चार पंक्तियों वाले छंद को कहते हैं। इसका प्रयोग प्रियतम के सौंदर्य का वर्णन करने, संरक्षक की प्रशंसा करने एवं दार्शनिक विचारों का वर्णन करने के लिए किया जाता है।

4. उमर खय्याम (Umar Khayyam)-उमर खय्याम एक महान् कवि, खगोल वैज्ञानिक एवं गणितज्ञ था। उसका जन्म 1048 ई० में निशापुर (Nishapur) जो कि सल्जुक साम्राज्य की राजधानी थी, में हुआ। उमर खय्याम की गणना विश्व के प्रसिद्ध फ़ारसी कवियों में की जाती है। उसकी रुबाइयों ने लोगों के दिलों पर जादुई प्रभाव छोड़ा। इसी कारण आज विश्व की अनेक भाषाओं में उसकी रुबाइयों का अनुवाद किया जा चुका है। उसने गणित एवं खगोल विज्ञान के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। उसने रिसाला (Risala) नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की।

5. फिरदौसी (Firdausi) फिरदौसी महमूद गज़नवी का सर्वाधिक प्रसिद्ध फ़ारसी का दरबारी कवि था। उसका जन्म 950 ई० में खरासान में हुआ था। उसने 30 वर्ष की अथक मेहनत के पश्चात् शाहनामा (Shahnama) नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की। इसमें 60,000 पद दिए गए हैं। इसे इस्लामी साहित्य की एक सर्वश्रेष्ठ कृति माना जाता है। इसमें प्रारंभ से लेकर अरबों की विजय तक ईरान के इतिहास का काव्यात्मक शैली में वर्णन किया गया है। फिरदौसी के काव्य क्षेत्र में दिए गए उल्लेखनीय योगदान के कारण उसे ठीक ही ‘फ़ारस का होमर’ (Homer of Persia) कहा जाता है।

6. एक हजार एक रातें (The Thousand and One Nights)—यह अनेक प्रसिद्ध कहानियों का संग्रह है। इन कहानियों को अनेक लेखकों द्वारा विभिन्न समयों में लिखा गया था। यह संग्रह मूल रूप से भारतीय-फ़ारसी भाषा में था। दसवीं शताब्दी में इसका अनुवाद अरबी भाषा में बग़दाद में किया गया था। इन कहानियों को शहरज़ाद (Shahrzad) द्वारा अपने पति को हरेक रात को एक-एक करके सुनाया गया था।

इस कारण इस संग्रह को अरबी रातें (The Arabian Nights) के नाम से भी जाना जाता है। बाद में मामलुक काल में इसमें और कहानियाँ जोड़ दी गईं। इन कहानियों को मनुष्य को शिक्षा देने एवं मनोरंजन करने के उद्देश्य से लिखा गया था। ये कहानियाँ अरबी साहित्य में प्रमुख स्थान रखती हैं।

अल-जद्रीज (AIL Iahim) अल-जहीज़ बसरा का एक प्रसिद्ध लेखक था। वह यनानी दर्शन से बहत प्रभावित था। उसने विभिन्न विषयों पर अनेक पुस्तकें लिखीं। इन पुस्तकों में किताब-अल-बखाला (Kitab-al Bukhala) एवं किताब-अल-हैवान (Kitab-al-Hayawan) सर्वाधिक प्रसिद्ध थीं। प्रथम पुस्तक में कंजूसों की कहानियाँ दी गई हैं तथा लालच के बारे में बताया गया है। द्वितीय पुस्तक में जानवरों की कहानियाँ दी गई हैं। इसके अतिरिक्त इसमें अरबी परंपराओं एवं अंध-विश्वासों का वर्णन किया गया है। अल-जहीज़ के लेखों ने आने वाले लेखकों पर गहन प्रभाव डाला है।

8. ताबरी (Tabari)—ताबरी की गणना अरब के महान् इतिहासकारों में की जाती है। उसकी तारीख-अल रसूल वल मुलक (Tarikh-al-Rasul Wal Muluk) एक अमर रचना है। इसमें उसने संसार की रचना से लेकर 915 ई० तक समूचे मानव इतिहास का वर्णन किया है। इसमें उसने इस्लामी धर्म प्रचारकों एवं राजाओं के इतिहास का विशेष वर्णन किया है। ताबरी ने अपनी पुस्तक में क्रमानुसार घटनाओं का वर्णन किया है। अतः इसे अरबी इतिहास की सबसे प्रामाणिक पुस्तक माना जाता है।

9. अल्बरुनी (Alberuni)-अल्बरुनी ग्यारहवीं शताब्दी का एक महान् विद्वान् एवं इतिहासकार था। उसका जन्म 973 ई० में खीवा (Khiva) में हुआ था। उसने खगोल विज्ञान, गणित, भूगोल, दर्शन, इतिहास एवं धर्म का गहन अध्ययन किया था। जब महमूद गजनवी ने 1017 ई० में खीवा पर विजय प्राप्त की तो अल्बरुनी को बंदी बना लिया गया।

अल्बरुनी को गज़नी लाया गया। उसकी प्रतिभा से प्रभावित होकर महमूद गजनवी ने उसे अपने दरबार का रत्न बनाया। वह महमूद गज़नवी के भारतीय आक्रमणों के समय उसके साथ भारत आया। भारत में उसने जो कुछ अपनी आँखों से देखा उसके आधार पर उसने एक बहुमूल्य पुस्तक तहकीक-मा-लिल हिंद (Tahqiq ma-lil Hind) की रचना की।

इसे तारीख-ए-हिंद (Tarikh-i-Hind) के नाम से भी जाना जाता है। इसे अरबी भाषा में लिखा गया था। यह 11वीं शताब्दी के भारतीय इतिहास को जानने के लिए हमारा एक विश्वसनीय एवं प्रमाणिक स्रोत है। उसके इस बहुमूल्य योगदान के कारण भारतीय इतिहास में उसे सदैव स्मरण किया जाता रहेगा। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर जे० एस० मिश्रा के अनुसार, “तहकीक-मा-लिल हिंद उसके (अल्बरुनी) महान् कार्यों में से एक था, जिसमें उसने भारतीय विषयों जैसे विज्ञान, गणित, भूगोल, दर्शन, इतिहास एवं धर्म का बहुत स्पष्ट ढंग से वर्णन किया है।”

प्रश्न 10.
धर्मयुद्धों के बारे में आप क्या जानते हैं ? इनके क्या परिणाम निकले ? .
उत्तर:
मध्यकालीन विश्व इतिहास में धर्मयुद्धों को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। ये धर्मयुद्ध यूरोपीय ईसाइयों एवं मुसलमानों के मध्य 1096 ई० से 1272 ई० के मध्य लड़े गए। इन धर्मयुद्धों की कुल संख्या 8 थी। इन धर्मयुद्धों का उद्देश्य ईसाइयों द्वारा अपनी पवित्र भूमि जेरुसलम (Jerusalem) को मुसलमानों के आधिपत्य से मुक्त करवाना था। इन धर्मयुद्धों के दूरगामी परिणाम निकले।

ईसाइयों एवं मुसलमानों के मध्य धर्मयुद्धों के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है

1. अरबों द्वारा जेरुसलम पर अधिकार (Occupation of Jerusalem by the Arabs)—जेरुसलम ईसा मसीह के जीवन से संबंधित था। इसलिए यह ईसाइयों के लिए बहुत पवित्र भूमि थी। 638 ई० में अरबों ने जेरुसलम पर अधिकार कर लिया था। ईसाइयों के लिए इसे सहन करना कठिन था। अत: वे इसे वापस प्राप्त करने के लिए किसी स्वर्ण अवसर की तलाश में थे।

2. सल्जुक तुर्कों के ईसाइयों पर अत्याचार (Atrocities of Saljuk Turks on Christians)-सल्जुक तुर्कों ने 1071 ई० में जेरुसलम पर अपना अधिकार कर लिया था। वे कट्टर सुन्नी मुसलमान थे। अत: वे अपने साम्राज्य में ईसाई धर्म की उन्नति को सहन नहीं कर सकते थे। अतः उन्होंने ईसाइयों पर घोर अत्याचार शुरू कर दिए। जेरुसलम में रहने वाले ईसाइयों पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगा दिए गए। ईसाइयों को तलवार के बल पर इस्लाम धर्म में सम्मिलित किया जाता।

इस्लाम धर्म स्वीकार न करने वाले ईसाइयों को अनेक प्रकार के कर देने के लिए बाध्य किया गया। निस्संदेह इससे स्थिति विस्फोटक हो गई। डॉक्टर एफ० सी० कौल एवं डॉक्टर एच० जी० वारेन के अनुसार, “इस प्रकार सल्जुक तुर्कों को जंगली जानवर समझा जाने लगा जिससे पवित्र शहर (जेरुसलम) को मुक्त करवाना आवश्यक समझा गया।”26

3. तात्कालिक कारण (Immediate Cause)-ईसाइयों का खून मुसलमानों से बदला लेने के लिए खौल रहा था। वास्तव में युद्ध के लिए बारूद पूर्ण रूप से तैयार था। उसे केवल एक चिंगारी दिखाने की आवश्यकता थी। 1092 ई० में सल्जुक सुलतान मलिक शाह की मृत्यु के पश्चात् उसके साम्राज्य का विखंडन आरंभ हो गया। बाइजेंटाइन सम्राट् एलेक्सियस प्रथम (Alexius I) ने यह स्वर्ण अवसर देख कर जेरुसलम एवं अन्य क्षेत्रों पर अधिकार करने की योजना बनाई।

इस उद्देश्य से उसने पोप अर्बन द्वितीय (Pope Urban II) को सहयोग देने की अपील की। पोप अर्बन द्वितीय इसके लिए तुरंत तैयार हो गया। ऐसा करके वह अपने प्रभाव में वृद्धि करना चाहता था। उसने 26 नवंबर, 1095 ई० को फ्रांस के क्लेयरमांट (Clermont) नामक नगर में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया। इसमें उसने ईसा मसीह के पवित्र स्थान जेरुसलम की रक्षा के लिए समस्त ईसाइयों को धर्मयुद्ध में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित किया।

I. प्रथम धर्मयुद्ध : 1096-1099 ई०

प्रथम धर्मयुद्ध का आरंभ 1096 ई० में हुआ। पोप अर्बन द्वितीय के भाषण से उत्तेजित होकर लगभग 70 हजार धर्मयोद्धा (Crusaders) पीटर दा हरमिट (Peter the Hermit) के नेतृत्व में जेरुसलम को मुसलमानों से मुक्त कराने के लिए चल पड़े। इन धर्मयोद्धाओं ने कुंस्तुनतुनिया (Constantinople) पर आक्रमण कर वहाँ लूटमार आरंभ कर दी।

तुर्क मुसलमानों ने जो कि अत्यधिक संगठित थे ने, अधिकाँश धर्मयोद्धाओं को मौत के घाट उतार दिया। इसी दौरान फ्राँस, जर्मनी एवं इटली के शासकों ने एक विशाल सेना गॉडफ्रे (Godfrey) के नेतृत्व में जेरुसलम की ओर रवाना की। इन सैनिकों ने एडेस्सा (Edessa) एवं एंटीओक (Antioch) पर अधिकार कर लिया।

उन्होंने 15 जुलाई, 1099 ई० में जेरुसलम पर अधिकार कर लिया। निस्संदेह यह उनकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण सफलता थी। जेरुसलम पर अधिकार करने के पश्चात् धर्मयोद्धाओं ने बड़ी संख्या में मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया। इसके साथ ही प्रथम धर्मयुद्ध का अंत हो गया। गॉडफ्रे को जेरुसलम का शासक घोषित कर दिया गया।

इस प्रदेश को आउटरैमर (Outremer) भाव समुद्रपारीय भूमि का नाम दिया गया। ए० जे० ग्रांट एवं डी० पी० जे० फिंक के अनुसार, “प्रथम धर्मयुद्ध प्रत्येक पक्ष से सबसे महान् एवं सर्वाधिक सफल था।”

II. द्वितीय धर्मयुद्ध : 1147-1149 ई०

मुसलमानों ने 25 दिसंबर, 1144 ई० को एडेस्सा (Edessa) पर अधिकार कर लिया। इसके पश्चात् मुसलमानों ने इस नगर में भयंकर लूटमार की। एडेस्सा का पतन निस्संदेह धर्मयोद्धाओं के लिए एक घोर अपमान की बात थी। इससे संपूर्ण यूरोप में मुसलमानों के विरुद्ध एक रोष लहर फैल गई। संत बर्नार्ड (St. Bernard) ने जेरुसलम की सुरक्षा के लिए धर्मयोद्धाओं में एक नई स्फूर्ति का संचार किया।

इससे द्वितीय धर्मयुद्ध के लिए विस्फोट तैयार हो गया। इस धर्मयुद्ध में फ्रांस के शासक लुई सप्तम (Louis VII) एवं जर्मनी के शासक कोनार्ड तृतीय (Conard III) ने हिस्सा लिया। दोनों शासकों की संयुक्त सेनाएँ 1147 ई० में सीरिया की ओर चल पड़ी।

इससे द्वितीय धर्मयुद्ध आरंभ हो गया। ये सैनिक एंटीओक (Antioch) पहुँचे। यहाँ दमिशक (Damascus) को घेरा डालने का निर्णय किया गया। यह घेरा कई माह तक चलता रहा। इस समय के दौरान जर्मनी एवं फ्रांस के शासकों के मध्य गहरे मतभेद उत्पन्न हो गए। परिणामस्वरूप उनके सैनिक वापस लौट गए एवं द्वितीय धर्मयुद्ध विफल हो गया। प्रसिद्ध इतिहासकारों एफ० सी० कौल एवं एच० जी० वारेन का यह कहना ठीक है कि, “द्वितीय धर्मयुद्ध बिना कुछ प्राप्त किए समाप्त हो गया सिवाए इसके कि इसने व्यक्तिगत लालच एवं असमर्थता प्रकट की। 28

III. तृतीय धर्मयुद्ध 1189-1192 ई०

1171 ई० में सलादीन (Saladin) ने मिस्र में सत्ता हथिया ली थी। उसकी सबसे महत्त्वपूर्ण सफलता 1187 ई० में जेरुसलम पर अधिकार करना था। जेरुसलम पर अधिकार से संपूर्ण ईसाई जगत् में तहलका फैल गया। अतः यूरोप के ईसाइयों ने जेरुसलम पर पुनः अधिकार करने का निर्णय किया। इस उद्देश्य से जर्मनी के सम्राट फ्रेडरिक बारबरोसा (Fraderick Barbarosa),

फ्रांस के सम्राट फिलिप ऑगस्ट्स (Philip Augustus) तथा इंग्लैंड के सम्राट रिचर्ड (Richard) ने संयुक्त रूप से आक्रमण करने का निर्णय किया। अतः उन्होंने 1189 ई० में तीसरे धर्मयुद्ध की घोषणा कर दी। किंतु उन्हें कोई विशेष सफलता नहीं मिली। अंत बाध्य होकर रिचर्ड ने 1192 ई० में सलादीन के साथ समझौता कर लिया। इस समझौते के अधीन सलादीन ने ईसाइयों को जेरुसलम में उपासना की आज्ञा दे दी। प्रसिद्ध लेखक पी० एस० फ्राई के अनुसार, “यह सलादीन की उदारता का प्रतिरूप था।”

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

IV. अन्य धर्मयुद्ध 1202-72 ई०

1202 ई० से 1272 ई० के मध्य ईसाइयों एवं यूरोपियों के मध्य पाँच अन्य धर्मयुद्ध हुए। चौथा धर्मयुद्ध 1202 ई० से 1204 ई०, पाँचवां धर्मयुद्ध 1216 ई० से 1220 ई०, छठा धर्मयुद्ध 1228 ई०, सातवां धर्मयुद्ध 1249 ई० से 1254 ई० एवं आठवां धर्मयुद्ध 1270 ई० से 1272 ई० के मध्य हुआ। इन धर्मयुद्धों के दौरान ईसाइयों को बहुत कम सफलताएँ मिलीं। अंततः वे अपने उद्देश्यों में विफल रहे। 1291 ई० में मिस्त्र के शासकों ने पूर्ण रूप से ईसाइयों को फिलिस्तीन से बाहर निकालने में सफलता प्राप्त की।

V. धर्मयुद्धों के परिणाम

धर्मयोद्धा पवित्र भूमि जेरुसलम पर अधिकार करने में विफल रहे किंतु इसके दूरगामी परिणाम निकले।

  • धर्मयुद्धों के कारण पोप की प्रतिष्ठा एवं गौरव में बहुत वृद्धि हुई।
  • धर्मयुद्धों के कारण सामंतों की शक्ति का पतन हुआ एवं राजाओं की शक्ति में वृद्धि हुई।
  • धर्मयुद्धों के दौरान मुसलमानों एवं ईसाइयों ने एक-दूसरे के क्षेत्रों में भारी लूटमार की। इससे दोनों समुदायों के मध्य नफ़रत की भावना फैली।
  • धर्मयुद्धों में यूरोपीय स्त्रियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस कारण उनकी स्थिति में सुधार आया एवं उनका दृष्टिकोण विशाल हुआ।
  • धर्मयुद्धों के कारण सामंतों के प्रभाव में कमी आई। इससे लोगों को उनके अत्याचारों से छुटकारा मिला।
  • धर्मयुद्धों के कारण यूरोपियों के ज्ञान में बहुत वृद्धि हुई। वे मुस्लिम नगरों एवं विज्ञान के क्षेत्रों में हुई प्रगति को देखकर चकित रह गए।
  • धर्मयुद्धों के कारण पश्चिम एवं पूर्व के मध्य व्यापार को एक नया प्रोत्साहन मिला।
  • व्यापार के विकास ने भौगोलिक खोजों को प्रोत्साहित किया।
  • धर्मयुद्धों के कारण यूरोपियों एवं मुसलमानों का एक-दूसरे से संपर्क हुआ। वे एक-दूसरे की संस्कृति से प्रभावित हुए।
  • धर्मयुद्धों ने युद्ध कला को भी प्रभावित किया।

इस काल में सुरक्षा के उद्देश्य से विशाल दुर्गों का निर्माण किया गया। इन दुर्गों को ध्वस्त करने के लिए नए हथियारों एवं बारूद की खोज की गई। धर्मयुद्धों के प्रभाव के बारे में लिखते हुए प्रोफेसर के० अली का कथन है कि, “विश्व के इतिहास में धर्मयुद्धों के महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े।”

क्रम संख्या वर्ष घटटना
1. 570 ई० पैंगंबर मुहम्मद का मक्का में जन्म।
2. 595 ई० पैगंबर मुल्तम्मद का खदीज़ा से विवाहा।
3. 610 ई० पैगंबर मुहम्मद को इलहाम (ज्ञान) प्राप्त हुआ।
4. 612 ई० पैगंबर मुहम्मद द्वारा प्रथम सार्वर्जनिक उपदेश।
5. 622 ई० पैगंबर मुहम्पद द्वारा मक्का से मदीना हिजरत।
6. 624 ई० बढ़ की लड़ाई।
7. 625 ई० उहुद की लड़ाई।
8. 627 ई० खंदक की लड़ाई।
9. 628 ई० प्रेद्षेविया की संधि।
10. 630 ई० मक्का की विजय।
11. 632 ई० पैंगंबर मुहम्मद की मदीना में मृत्यु।
12. 632-634 ई० प्रथन खली फ़्रो अबू बकर का शासनकाल।
13. 634-644 ई० दिलीय खलीक़ा उभर का श्रासनकाल।
14. 638 ई० अरबों द्वारा जेरस्सलम पर अधिकार।
15. 644-656 ई० तृतीय बलीफ़ा उथमान का शासनकाल।
16. 650 ई० कुरान का संकलन।
17. 656-661 ई० चतुर्थ खलीफ़ा अली का श्रासनकाल।
18. 656 ई० रैंटों की लड़ाई।
19. 657 ई० सिष्सिन की लड़ाई।
20. 680 ई० करवला की लक़ाई।
21. 685-705 ई० अब्द-अल-यलिक का शासनकाल। अरबी को साम्राज्य की भाषा घोषित करना एवं इस्लामी सिक्के जारी करना। जैल्सलय में ‘डोम आँफ़ दी रॉक नामक प्रसिद्ध मस्जिद का निर्माण।
22. 750 ई० उमय्यद वंश का अंत। अबू-अल-अब्बास द्वारा अख्बासी वेश की स्थापना।
23. 750-754 ई० अस्बू-अल-अब्यास का शासनकाल।
24. 786-809 ई० हारन-अल-रशीद का शासनकाल।
25. 801 ई० बसरा की प्रसिद्ध सूकी संत राबिया की मृत्यु।
26. 809 ई० अल-अमीन एवं अल-मामुन के मध्य गृहु युद्ध का आरंभ।
27. 820 ई० ताहिरी वंश की बुरासान में ताहिर द्वारा स्थापना। निशापुर को राजधानी बनाना।
28. 850 ई० समारा में अल-मुतव्वकिल नामक मस्जिद का निर्माण।
29. 861 ई० धुलनुन मिस्री की मिस्र में मृत्यु।
30. 868 ई० अहमद-इब्न-तुलुन द्वारा तुलुनी वंश की मिस्न में स्थापना।
31. 873 ई० ताहिरी वंश का याकूब द्वारा अंत।
32. 874-999 ई० समानी वंश का शासन।
33. 909 ई० अल-महदी द्वारा फ़ातिमी वंश की स्थापना।
34. 932 ई० मुइज-उद्-दौला द्वारा डेलाम में बुवाही वंश की स्थापना। शिराज को राजधानी घोषित करना।
35. 945 ई० बुवाहियों द्वारा बग़ाद पर कब्ज़ा।
36. 969 ई० फ़ातिमी खलीफ़ा द्वारा बग़दाद पर अधिकार।
37. 973 ई० काहिरा को फ़ातिमी साम्राज्य की राजधानी घोषित करना।
38. 962-1186 ई० गज़नी वंश का शासन।
39. 980 ई० इब्न सिना (एविसेन्ना) का बुखारा में जन्म।
40. 1030 ई० महमूद गज़नवी की मृत्यु।
41. 1037 ई० तुग़रिल बेग़ एवं छागरी बेग़ द्वारा सल्जुक वंश की स्थापना।
42. 1055 ई० सल्जुक तुर्कों द्वारा बग़दाद पर अधिकार। बुवाही वंश का अंत।
43. 1063-1072 ई० सल्जुक सुल्तान अल्प अरसलन का शासनकाल।
44. 1092 ई० सल्जुक सुल्तान मलिक शाह की मृत्यु।
45. 1095 ई० पोप अर्बन द्वितीय द्वारा प्रथम धर्मयुद्ध का आह्वान।
46. 1096-1099 ई० प्रथम धर्मयुद्ध।
47. 1099 ई० जेरुसलम पर ईसाइयों का अधिकार।
48. 1144 ई० तुर्कों द्वारा एडेस्सा पर अधिकार।
49. 1147-49 ई० दूसरा धर्मयुद्ध।
50. 1171 ई० सलादीन मिस्र का शासक बना।
51. 1187 ई० मुसलमानों द्वारा जेरुसलम पर पुन: अधिकार।
52. 1189-1192 ई० तीसरा धर्मयुद्ध।
53. 1192 ई० इंग्लैंड के शासक रिचर्ड द्वारा सलादीन के साथ समझौता।
54. 1258 ई० मंगोलों द्वारा बग़दाद पर कब्ज़ा।
55. 1291 ई० मिस्न के शासकों द्वारा ईसाइयों को फिलिस्तीन से बाहर निकालना।

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सातवीं शताब्दी के आरंभिक दशकों में बदूओं के जीवन की क्या विशेषताएँ थीं ?
उत्तर:
सातवीं शताब्दी ई० में इस्लाम के उदय से पूर्व अरब में जाहिलिया अथवा अज्ञानता के युग का बोलबाला था। उस समय अरब में बदू लोगों की प्रमुखता थी। बद् खानाबदोश कबीले थे। वे चरागाह की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते थे। लूटमार करना एवं आपस में झगड़ना उनके जीवन की एक प्रमुख विशेषता थी।

उस समय अरब समाज में स्त्रियों की स्थिति अत्यंत शोचनीय थी। उन्हें केवल एक भोग-विलास की वस्तु समझा जाता था। समाज में अन्य अनेक कुप्रथाएँ भी प्रचलित थीं। उस समय अरब के लोग एक अल्लाह की अपेक्षा अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे। प्रत्येक कबीले का अपना अलग देवी-देवता होता था।

उस समय के लोग अनेक प्रकार के अंध-विश्वासों एवं जादू-टोनों में भी विश्वास रखते थे। क्योंकि अरब का अधिकाँश क्षेत्र बंजर, वनस्पति रहित एवं दुर्गम था इसलिए अरबों का आर्थिक जीवन भी बहुत पिछड़ा हुआ था। अरबों का कोई व्यवस्थित राजनीतिक संगठन भी नहीं था। उनमें एकता एवं राष्ट्रीयता की भावना बिल्कुल नहीं थी।

प्रश्न 2.
सातवीं शताब्दी ई० में इस्लाम से पूर्व अरब की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर:
सातवीं वीं शताब्दी ई० में इस्लाम से पूर्व अरब की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं धार्मिक स्थिति बहुत शोचनीय थी। अरब के बदू लोग खानाबदोशी जीवन व्यतीत करते थे। वे लूटमार करते थे एवं आपस में झगड़ते रहते थे। समाज में स्त्रियों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। उन्हें केवल एक विलासिता की वस्तु समझा जाता था। उन्हें किसी प्रकार का कोई अधिकार प्राप्त नहीं था।

लोग नैतिक दृष्टि से बहुत गिर चुके थे। लोगों के साथ धोखा करना, भ्रष्टाचार एवं स्त्रियों की इज्जत लूटना एक सामान्य बात थी। समाज में दासों पर घोर अत्याचार किए जाते थे। उस समय अरब में कृषि, उद्योग एवं व्यापार बहुत पिछड़े हुए थे। अरब लोगों में मूर्ति पूजा का व्यापक प्रचलन था तथा वे अंध-विश्वासों में विश्वास रखते थे। उस समय अरब लोग अनेक कबीलों में बँटे हुए थे। उनमें एकता एवं राष्ट्रीय भावना का अभाव था।

प्रश्न 3.
इस्लाम के उदय से पूर्व अरब कबीलों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
इस्लाम के उदय से पूर्व अरब कबीलों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं
(1) उस समय अरब लोग कबीलों में बँटे हुए थे। प्रत्येक कबीले का मुखिया शेख कहलाता था। उसका चुनाव कुछ हद तक पारिवारिक संबंधों के आधार परंतु मुख्य रूप से व्यक्तिगत साहस तथा बुद्धिमत्ता के आधार पर किया जाता था।

(2) प्रत्येक कबीले के अपने देवी-देवता होते थे। इनका मूर्तियों के रूप में मस्जिदों में उपासना की जाती थी।

(3) अधिकांश कबीले खानाबदोश होते थे। वे अपने लिए भोजन तथा ऊँटों के लिए चारे की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान में आते-जाते रहते थे।

(4) कुछ कबीले स्थायी रूप से शहरों में बस गये थे। ये कबीले व्यापार अथवा कृषि का कार्य करते थे।

(5) गैर-अरब व्यक्ति (मवाली) धर्मांतरण के बाद कबीले का सदस्य बन सकता था, किंतु उसके साथ समानता का व्यवहार नहीं किया जाता था।

प्रश्न 4.
इस्लाम के उदय से पूर्व अरब समाज के सामाजिक जीवन की प्रमुख विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:
(1) अरबों के समाज का मूल आधार परिवार था। उस समय संयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित थी। परिवार पितृतंत्रात्मक होते थे।

(2) मुहम्मद के जन्म से पूर्व अरब समाज में स्त्रियों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। पुत्री के जन्म को परिवार के लिए अपशगुन माना जाता था। समाज में जो अधिकार पुरुषों को दिए गए थे, स्त्रियों को उन सभी अधिकारों से वंचित रखा गया था।

(3) उस समय शिक्षा के क्षेत्र में अरब लोग पिछड़े हुए थे। अधिकाँश अरब अनपढ़ थे। स्त्रियों की शिक्षा की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था।

(4) उस समय अरब समाज में अनैतिकता का बोलबाला था। लूटमार करना तथा लोगों के साथ धोखा करना। उस समय एक सामान्य बात थी। स्त्रियों के साथ अनैतिक संबंध स्थापित करना एक गर्व की बात मानी जाती थी।

(5) उस समय अरब के लोग विभिन्न साधनों से अपना मनोरंजन करते थे। नृत्य एवं गान उनके मनोरंजन का प्रमुख साधन था।

(6) उस समय बदुओं का प्रमुख भोजन खजूर एवं दूध था। वे इसके अतिरिक्त गेहूँ, बाजरा, अंगूर, खुमानी, सेब, बादाम एवं केले आदि का भी प्रयोग करते थे। वे ऊँट, भेड़ एवं बकरियों का माँस खाते थे।

(7) उस समय अरब समाज में दास प्रथा का व्यापक प्रचलन था। युद्ध में बंदी बनाए गए लोगों को दास बना लिया जाता था। दासों के साथ बहुत क्रूर व्यवहार किया जाता था।

प्रश्न 5.
अरब लोगों में ऊँट का क्या महत्त्व था ?
उत्तर:
अरब लोगों के जीवन में ऊँट को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता था। उसे रेगिस्तान का जहाज़ कहा जाता है। उसके बिना रेगिस्तान में जीवन के बारे में सोचा नहीं जा सकता। ऊँट 57° सेंटीग्रेड के उच्च तापमान में भी एक दिन में 160 किलोमीटर का सफर तय कर सकता है। वह 300 किलोग्राम से अधिक का भार ढो सकता है। वह कई दिनों तक बिना पानी पीये जीवित रह सकता है।

यह बदू लोगों के यातायात का प्रमुख साधन है। लोग ऊँटनी का दूध पीते हैं, इसका माँस खाते हैं, इसकी खाल का तंबू बनाते हैं तथा इसके गोबर का आग के लिए प्रयोग करते हैं। इसके मूत्र से दवाइयाँ बनाई जाती हैं। इसे शेख़ की दौलत का प्रतीक माना जाता है। बढ़े इसे विवाह के अवसर पर दहेज के रूप में देते हैं। ऊँट के महत्त्व के संबंध में खलीफ़ा उमर ने लिखा है कि, “अरबवासी वहीं फलते-फूलते हैं जहाँ ऊँट होता है।”

प्रश्न 6.
पैगंबर मुहम्मद के जीवन पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
पैगंबर मुहम्मद इस्लाम के संस्थापक थे। उनका जन्म 570 ई० में कुरैश कबीले में हुआ। उनके माता पिता की शीघ्र मृत्यु हो गई थी। अत: उनका बचपन अनेक कठिनाइयों में व्यतीत हुआ। उनका 595 ई० में खदीज़ा के साथ विवाह हुआ। 610 ई० में पैगंबर मुहम्मद को मक्का की हीरा नामक गुफा में नया ज्ञान प्राप्त हुआ। यह ज्ञान उन्हें महादूत जिबरील द्वारा दिया गया।

612 ई० में पैगंबर मुहम्मद ने मक्का में अपना प्रथम सार्वजनिक उपदेश दिया। इस अवसर पर उन्होंने एक नए समाज का गठन किया जिसे उम्मा का नाम दिया गया। मक्का के लोग पैगंबर मुहम्मद के विचारों से सहमत न थे। अतः वे उसके कट्टर विरोधी बन गए। विवश होकर 622 ई० में पैगंबर मुहम्मद ने मक्का से मदीना को हिजरत की। उन्होंने 630 ई० में मक्का पर विजय प्राप्त की।

यह उनके जीवन की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी। पैगंबर मुहम्मद ने लोगों को एक अल्लाह, आपसी भाईचारे, सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करने एवं स्त्रियों का सम्मान करने का संदेश दिया। उनकी सरल शिक्षाओं से बड़ी संख्या में लोग प्रभावित हुए एवं वे इस्लाम में सम्मिलित हुए। 632 ई० में पैगंबर मुहम्मद जन्नत (स्वर्ग) चले गए।

प्रश्न 7.
पैगंबर मुहम्मद ने हिजरत क्यों की ? इसका इस्लाम में क्या महत्त्व था ?
उत्तर:
पैगंबर मुहम्मद की बढ़ती हुई लोकप्रियता के कारण मक्का के अनेक प्रभावशाली लोग उनसे ईर्ष्या करने लगे। इसके दो प्रमुख कारण थे। प्रथम, पैगंबर मुहम्मद मूर्ति पूजा के कटु आलोचक थे। उस समय मक्का में काबा नामक स्थान पर 360 देवी-देवताओं की मूर्तियाँ थीं। इनके दर्शनों के लिए प्रत्येक वर्ष लाखों लोग मक्का की यात्रा पर आते थे।

यह काबा पर नियंत्रण करने वाले पुजारी वर्ग तथा कुरैश कबीले के लोगों के लिए आय का एक प्रमुख स्रोत था। अत: पैगंबर मुहम्मद द्वारा मूर्ति पूजा की आलोचना उनके लिए एक गंभीर ख़तरे की चेतावनी थी। दूसरा, पैगंबर मुहम्मद अरब समाज में प्रचलित अंध-विश्वासों को दूर कर इसे एक नई दिशा देना चाहते थे। इसे मक्का के रूढ़िवादी लोग पसंद नहीं करते थे। अतः उन्होंने अपने स्वार्थी हितों को देखते हुए लोगों को पैगंबर मुहम्मद

के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया। इन लोगों ने अनेक बार पैगंबर मुहम्मद को जान से मारने का प्रयास किया तथा उनके अनुयायियों को कठोर यातनाएँ दीं। अतः बाध्य होकर पैगंबर मुहम्मद 28 जून, 622 ई० को मक्का से मदीना कूच कर गए। वह 2 जुलाई, 622 ई० को मदीना पहुँचे। इस घटना को मुस्लिम इतिहास में हिजरत कहा जाता है। यह घटना पैगंबर मुहम्मद के जीवन में एक निर्णायक मोड़ सिद्ध हुई। इस वर्ष से मुस्लिम कैलेंडर का आरंभ हुआ।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

प्रश्न 8.
हज़रत मुहम्मद साहिब कौन थे ? उनकी प्रमुख शिक्षाएँ क्या थी ?
अथवा
पैगंबर मुहम्मद की मुख्य शिक्षाओं को लिखिए।
उत्तर:
हज़रत मुहम्मद साहिब इस्लाम के संस्थापक थे। उनकी प्रमुख शिक्षाएँ निम्नलिखित हैं–

(1) अल्लाह एक है-पैगंबर मुहम्मद ने अपनी शिक्षाओं में बार-बार इस बात पर बल दिया कि अल्लाह एक है। वह सर्वोच्च एवं सर्वशक्तिमान है। वह जो चाहे कर सकता है। वह संसार की रचना करता है। वह इसकी पालना करता है। वह जब चाहे इसे नष्ट कर सकता है। संसार की सभी वस्तुएँ उसके नियंत्रण में हैं। उसकी अनुमति के बिना संसार का पत्ता तक नहीं हिल सकता। वह अत्यंत दयावान् है।

(2) कर्म सिद्धांत में विश्वास-इस्लाम में कर्म सिद्धांत पर विशेष बल दिया गया है। इसके अनुसार जैसा करोगे वैसा भरोगे, जैसा बीजोगे वैसा काटोगे। यदि कर्म अच्छे होंगे तो अच्छा फल मिलेगा, बुरा करोगे तो बुरा होगा। किसी भी स्थिति में कर्मों से छुटकरा नहीं मिलेगा। कुरान के अनुसार कयामत के दिन स्वर्ग एवं नरक का निर्णय इस जन्म में किए गए कर्मों के अनुसार ही होगा।

(3) समानता में विश्वास-इस्लाम में समानता को विशेष महत्त्व दिया गया है। इसके अनुसार सभी एक अल्लाह के बच्चे हैं। अत: सभी भाइ-बहन हैं। इस्लाम में अमीर-गरीब, जाति, भाषा, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता। सभी को एक समान अधिकार दिए गए हैं।

(4) मूर्ति पूजा का खंडन-इस्लाम मूर्ति पूजा का कट्टर विरोधी है। पैगंबर मुहम्मद के समय में अरब देश में मूर्ति पूजा का बहुत प्रचलन था। केवल काबा में ही सैंकड़ों मूर्तियाँ स्थपित की गई थीं। पैगंबर मुहम्मद ने मूर्ति पूजा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने मक्का पर अधिकार करने के पश्चात् काबा में सभी मूर्तियों को नष्ट कर डाला। पैगंबर मुहम्मद का कथन था कि हमें केवल एक अल्लाह की उपासना करनी चाहिए।

प्रश्न 9.
इस्लाम के पाँच स्तंभ क्या हैं ?
उत्तर:
इस्लाम में पाँच सिद्धांतों पर विशेष बल दिया गया है। इनका पालन करना प्रत्येक मुसलमान का कर्तव्य है। अतः इन्हें इस्लाम के पाँच स्तंभ कहा जाता है।

(1) कलमा पढ़ना-प्रत्येक मुसलमान का यह धार्मिक कर्तव्य है कि वह कलमा पढ़े। इसमें बताया गया है कि अल्लाह एक है। वह सर्वोच्च एवं सर्वशक्तिमान है। मुहम्मद साहब उसके रसूल (पैगंबर) हैं। कुरान को अल्लाह द्वारा भेजा गया है।

(2) नमाज-प्रत्येक मुसलमान का दूसरा कर्त्तव्य यह है कि वह दिन में पाँच बार नमाज़ अवश्य पढ़े। नमाज़ पढने से व्यक्ति का अल्लाह से संपर्क हो जाता है। उसकी रहमत से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं तथा वह मनभावन फल प्राप्त करता है। नमाज़ से पहले हाथ-पाँव एवं मुँह को धोना ज़रूरी है। नाबालिगों एवं पागलों को छोड़कर अन्य सभी मुसलमानों के लिए नमाज़ पढ़ना अनिवार्य है।

(3) रोज़ा-रमजान के महीने रोज़ा (व्रत) रखना प्रत्येक मुसलमान का तीसरा धार्मिक कर्त्तव्य है। इस माह में सूर्योदय से सूर्यास्त तक कुछ भी खाना-पीना वर्जित है। सूर्यास्त के पश्चात् ही मुसलमान कुछ खान-पान कर सकते हैं। इस माह के दौरान मुसलमानों को सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करने पर विशेष बल दिया गया है।

(4) ज़कात-ज़कात का अर्थ है दान देना। इसके अधीन प्रत्येक मुसलमान का यह कर्त्तव्य है कि वह अपनी कुल आय का 272% दान दे। इसे गरीबों की सहायता, इस्लाम के प्रचार एवं मस्जिदों के निर्माण पर खर्च किया जाता है।

(5) हज-प्रत्येक मुसलमान का यह धार्मिक कर्त्तव्य है कि वह अपने जीवन में कम-से-कम एक बार हज करे भाव मक्का की यात्रा पर जाए।

प्रश्न 10.
कुरान पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर:
कुरान अरबी भाषा का शब्द है। इससे अभिप्राय है पुस्तक। कुरान इस्लाम की पवित्र पुस्तक है। इसे सम्मान से कुरान शरीफ़ कहा जाता है। इसकी रचना अरबी भाषा में की गई है। इसमें 114 अध्याय हैं। इनकी लंबाई क्रमिक रूप से घटती जाती है। इसका आखिरी अध्याय सबसे छोटा है। इसमें इस्लाम की शिक्षाओं एवं नियमों का वर्णन किया गया है।

मुस्लिम परंपरा के अनुसार कुरान उन संदेशों का संग्रह है जो खुदा ने अपने दूत जिबरील द्वारा पैगंबर मुहम्मद को 610 ई० से 632 ई० के मध्य मक्का में एवं मदीना में दिए। इसका संकलन 650 ई० में किया गया। आज जो सबसे प्राचीन कुरान हमारे पास है वह 9वीं शताब्दी से संबंधित है। कुरान शरीफ़ का विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। मुसलमान कुरान को ख़ुदा की वाणी मानते हैं एवं इसका विशेष सम्मान करते हैं।

प्रश्न 11.
खिलाफ़त संस्था का निर्माण कैसे हुआ ? इसके क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:
632 ई० में पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु के पश्चात् कोई भी व्यक्ति वैध रूप से इस्लाम का अगला उत्तराधिकारी होने का दावा नहीं कर सकता था। अत: इस्लामी राजसत्ता उम्मा को सौंप दी गई। इससे नयी प्रक्रियाओं के लिए अवसर उत्पन्न हुए। किंतु इससे मुसलमानों में गहरे मतभेद भी पैदा हो गए। इससे खिलाफ़त संस्था का निर्माण हुआ।

इसमें समुदाय का नेता (अमीर-अल-मोमिनिन) पैगंबर का प्रतिनिधि (खलीफ़ा) बन गया। प्रथम चार खलीफ़ाओं ने पैगंबर के साथ अपने गहरे नज़दीकी संबंधों के आधार पर अपनी शक्तियों का औचित्य स्थापित किया। उन्होंने पैगंबर द्वारा दिए मार्ग-निर्देशों के अनुसार उनके कार्य को आगे बढ़ाया। खिलाफ़त के दो प्रमुख उद्देश्य थे। प्रथम, उम्मा के कबीलों पर नियंत्रण स्थापित करना। द्वितीय, राज्य के लिए संसाधन जुटाना।

प्रश्न 12.
आरंभिक खलीफ़ाओं के अधीन अरब सम्राज्य के प्रशासनिक ढाँचे की मुख्य विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • प्रांतों का अध्यक्ष गवर्नर और कबीलों के मुखिया को बनाया गया।
  • केंद्र के राजस्व के दो मुख्य स्रोत थे। प्रथम मुसलमानों द्वारा अदा किए जाने वाले कर तथा आक्रमणों के दौरान मिलने वाली लट से प्राप्त हिस्सा।
  • खलीफ़ा के सैनिक रेगिस्तान के किनारे बसे शहरों कुफ़ा और बसरा में शिविरों में रहते थे ताकि वे खलीफ़ा के नियंत्रण में बने रहें।
  • शासक वर्ग और सैनिकों को लूट में से हिस्सा मिलता था और मासिक अदायगियाँ प्राप्त होती थीं।
  • गैर-मुस्लिम लोगों द्वारा करों को अदा करने पर उन्हें राज्य के संरक्षित लोग (धिम्मीस) माना जाता था तथा उन्हें काफ़ी अधिक स्वायत्तता दी जाती थी।

प्रश्न 13.
अबू बकर कौन था ? उसकी प्रमुख उपलब्धियों का वर्णन करें।
उत्तर:
अबू बकर खलीफ़ा के पद पर नियुक्त होने वाले प्रथम व्यक्ति थे। वह इस पद पर 632 ई० से 634 ई० तक रहे। जिस समय वह खलीफ़ा के पद पर निर्वाचित हुए तो उस समय उन्हें अनेक विकट समस्याओं का सामना करना पड़ा। अबू बकर इन समस्याओं से घबराने वाला व्यक्ति नहीं था। उसने अपनी योग्यता एवं अथक प्रयासों से इन समस्याओं पर नियंत्रण पाया।

अबू बकर ने सर्वप्रथम नकली पैगंबरों के विद्रोहों से निपटने के लिए एक शक्तिशाली संघ का गठन किया। इसका नेतृत्व खालिद इब्न-अल-वालिद को सौंपा। खालिद ने 6 माह के दौरान ही इन नकली पैगंबरों को एक ऐसा सबक सिखाया कि उन्होंने पुनः विद्रोह करने का कभी साहस नहीं किया। इससे मुसलमानों में जहाँ एक ओर नव-स्फूर्ति का संचार हुआ वहीं दूसरी ओर अरब में शाँति स्थापित हुई।

इसके पश्चात् अबू बकर ने मुस्लिम साम्राज्य के विस्तार की योजना बनाई। अतः उसने शीघ्र ही सीरिया, इराक, ईरान एवं बाइजेंटाइन साम्राज्यों पर विजय प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की। इन विजयों में खालिद ने उल्लेखनीय योगदान दिया। इसलिए उसे अल्लाह की तलवार की उपाधि से सम्मानित किया गया। उन्होंने मदीना को अपनी राजधानी बनाए रखा। 634 ई० में अबू बकर की मृत्यु हो गई। अपनी मृत्यु से पूर्व उन्होंने उमर को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।

प्रश्न 14.
मुआविया कौन था ? उसकी प्रमुख उपलब्धियाँ क्या थी ?
उत्तर:
उमय्यद वंश का संस्थापक मुआविया था। वह 661 ई० से 680 ई० तक खलीफ़ा के पद पर रहा। जिस समय वह खलीफ़ा बना उस समय उसके समक्ष अनेक चुनौतियाँ थीं। वह एक दृढ़ निश्चय वाला व्यक्ति था। अत: उसने इन चुनौतियों का साहसपूर्ण सामना किया। उसने सर्वप्रथम दमिश्क को अपनी राजधानी बनाया। उसने 663 ई० में खरिजाइटों जिन्होंने खलीफ़ा के विरुद्ध कुफा में विद्रोह कर दिया था, का सख्ती के साथ दमन किया।

लगभग इसी समय खलीफ़ा अली के समर्थकों ने इराक में विद्रोह कर दिया। ये लोग बहुत शक्तिशाली थे। इसके बावजूद मुआविया ने अपना धैर्य न खोया। उसने एक विशाल सेना भेजकर उनके विद्रोह का दमन किया। इस प्रकार मुआविया की एक बड़ी सिरदर्दी दूर हुई। 667 ई० में मुआविया के प्रसिद्ध सेनापति उकाबा ने उत्तरी अफ्रीका के अधिकाँश क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया।

मुआविया बाइजेंटाइन साम्राज्य को अपने अधीन करना चाहता था किंतु उसकी यह इच्छा अनेक कारणों से पूर्ण न हो सकी। मुआविया के सैनिक तुर्किस्तान पर अधिकार करने में सफल रहे। मुआविया न केवल एक महान् विजेता अपितु एक कुशल शासन प्रबंधक भी सिद्ध हुआ। उसने बाइजेंटाइन साम्राज्य की राजदरबारी रस्मों तथा प्रशासनिक संस्थाओं को अपनाया। उसने खलीफ़ा पद के गौरव में बहुत वृद्धि की।

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

प्रश्न 15.
अब्द-अल-मलिक उमय्यद वंश का सबसे महान खलीफ़ा था। सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
अब्द-अल-मलिक की गणना उमय्यद वंश के महान् खलीफ़ाओं में की जाती है। वह मारवान का पुत्र था। वह 685 ई० में खलीफ़ा के पद पर नियुक्त हुआ। वह 705 ई० तक इस पद पर रहा। उसे अपने शासनकाल के आरंभ में घोर समस्याओं का सामना करना पड़ा था। उसने न केवल इन समस्याओं पर नियंत्रण पाया अपितु मुस्लिम साम्राज्य को संगठित करने में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। अब्द-अल-मलिक की शक्ति को सर्वप्रथम इराक में अल-मुख्तियार बिन अबू उबैद ने चुनौती दी। अब्द-अल-मलिक ने बड़ी कुश्लता से इस विद्रोह का दमन किया।

इसके पश्चात् उसने अपना ध्यान एक अन्य प्रमुख शत्रु इन जुबैर की ओर किया। इन जुबैर ने मक्का में अपने खलीफ़ा होने की घोषणा कर दी थी। वह 692 ई० में अब्द-अल-मलिक के साथ हुई एक लड़ाई में मारा गया था। अब्द-अल-मलिक ने बाइजेंटाइन साम्राज्य के अनेक क्षेत्रों पर अधिकार करने में सफलता प्राप्त की। वह न केवल एक महान् विजेता अपितु एक कुशल शासन प्रबंधक भी था। उसने इस्लामी साम्राज्य को संगठित करने के लिए अनेक उल्लेखनीय उपाय भी किए। उसने अरबी को राज्य की भाषा घोषित किया।

उसने इस्लामी सिक्कों को जारी किया। इनमें सोने के सिक्के को दीनार एवं चाँदी के सिक्के को दिरहम कहा जाता था। इन सिक्कों पर अरबी भाषा लिखी गई थी। अब्द-अल-मलिक के ये सिक्के बहुत लोकप्रिय हुए तथा आने वाली कई शताब्दियों तक जारी रहे।

प्रश्न 16.
अब्बासी क्रांति से आपका क्या तात्पर्य है ?
अथवा
अब्बासी क्रांति के महत्त्व पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
750 ई० में अब्बासियों के आगमन ने इस्लाम के इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात किया। उमय्यद वंश के अधिकाँश खलीफ़े अपना समय सुरा एवं सुंदरी के संग व्यतीत करते थे। इस कारण वे प्रशासन की ओर अपना कोई ध्यान नहीं दे सके। इसके अतिरिक्त मवालियों (यह गैर अरबी मुसलमान थे) को अरबी मुसलमानों के तिरस्कार का शिकार होना पड़ा था। अत: वे उमय्यदों को सत्ता से बाहर निकालने के लिए किसी स्वर्ण अवसर की प्रतीक्षा में थे।

उमय्यद साम्राज्य में फैली अराजकता का लाभ उठाते हुए अबू मुस्लिम ने खुरासान में 747 ई० में उमय्यद वंश के विरुद्ध दवा नामक आंदोलन आरंभ किया। इस आंदोलन का उद्देश्य उमय्यद वंश को सत्ता से बाहर करना था। इस आंदोलन ने उमय्यद शासन को अत्याचारी एवं इस्लामी सिद्धांतों के विरुद्ध बताया। 750 ई० में अबू-अल-अब्बास ने कुफा में अपने खलीफ़ा होने की घोषणा कर दी।

उमय्यद खलीफ़ा मारवान द्वितीय इसे सहन न कर सका। अत: वह 12,000 सैनिकों के साथ अबू-अल-अब्बास का मुकाबला करने के लिए चल पड़ा। उसका सामना करने के लिए अबू-अल-अब्बास ने अपने चाचा अब्दुल्ला-इब्न-अली के नेतृत्व में एक सेना को भेजा।

5 जनवरी, 750 ई० में हुई जबकि लड़ाई में खलीफ़ा मारवान द्वितीय की पराजय हुई। इससे उमय्यद वंश का अंत हुआ। इस प्रकार अब्बासी क्रांति सफल हुई तथा अब्बासियों का शासन स्थापित हुआ।

प्रश्न 17.
अब्बासी शासन का महत्त्व क्या था ?
उत्तर:
अब्बासी शासन निम्नलिखित कारणों से अति महत्त्वपूर्ण था

  • इससे अरबों के प्रभाव में गिरावट आई जबकि ईरानी संस्कृति का महत्त्व बढ़ गया।
  • अब्बासियों ने इराक और खुरासान की अपेक्षाकृत अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सेना एवं नौकरशाही का पुनर्गठन गैर-कबीलाई आधार पर किया।
  • अब्बासी शासकों ने खिलाफ़त की धार्मिक स्थिति और कार्यों को मज़बूत बनाया तथा इस्लामी संस्थाओं और विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया।
  • उन्होंने सरकार और साम्राज्य की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए राज्य के केंद्रीय स्वरूप को बनाए रखा।
  • उन्होंने उमय्यदों के शानदार शाही वास्तुकला और राजदरबार के व्यापक समारोहों की परंपराओं को जारी रखा।

प्रश्न 18.
हारुन-अल-रशीद को अब्बासी वंश का सबसे महान् खलीफ़ा क्यों माना जाता है ?
उत्तर:
हारुन-अल-रशीद अब्बासी वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध खलीफ़ा था। वह 786 ई० से 809 ई० तक खलीफ़ा के पद पर रहा। उसने अब्बासी वंश के गौरव को पुनः स्थापित करने के लिए अथक प्रयास किए। उसने न केवल आंतरिक विद्रोहों को कुचला अपितु अब्बासी साम्राज्य का दूर-दूर तक विस्तार किया। उसने सर्वप्रथम अफ्रीका के लोगों द्वारा वहाँ अरब खलीफ़ा के गवर्नर के विरुद्ध भड़के विद्रोह को कठोरता से कुचला। याहिया बिन-अब्दुल्ला जो कि खलीफ़ा अली से संबंधित था, ने अपने आपको डेलाम में खलीफ़ा घोषित कर दिया था।

निस्संदेह यह हारुन-अल-रशीद की सत्ता के लिए एक गंभीर ख़तरा था। हारुन-अल-रशीद ने एक योजना के अधीन उसे बंदी बना लिया एवं बाद में मौत के घाट उतार दिया। उसने अर्मीनिया में खारिजियों तथा खुरासान के विद्रोह का दमन किया। उसने उस समय के शक्तिशाली फ्रैंक शासक शॉर्लमेन के साथ मित्रतापूर्वक संबंध स्थापित किए। उसने अपने साम्राज्य को संगठित करने के उद्देश्य से प्रशासन में उल्लेखनीय सुधार किए। उसने प्रजा की भलाई के लिए अनेक पग उठाए। उसने शिक्षा को प्रोत्साहित किया।

उसने अनेक प्रसिद्ध विद्वानों, संगीतकारों एवं गायकों को अपने दरबार में संरक्षण प्रदान किया था। उसने अनेक अस्पतालों एवं सरायों का निर्माण करवाया। उसने अपनी राजधानी में अनेक विशाल महल, भवन, मस्जिदें एवं बाग बनवाए। वास्तव में उसके शासनकाल में अब्बासी साम्राज्य में इतनी प्रगति हुई कि इसे ‘स्वर्ण युग’ के नाम से स्मरण किया जाता है।

प्रश्न 19.
इस्लाम धर्म के शीघ्र फैलने के प्रमुख क्या कारण थे ?
उत्तर:

  • अरबवासियों में इस्लाम के प्रसार के लिए विशेष धार्मिक जोश था।
  • पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाएँ बहुत सरल थीं। इनका लोगों के दिलों पर जादुई प्रभाव पड़ा।
  • इस्लाम में अमीर-ग़रीब एवं जाति-पाति का कोई भेदभाव नहीं किया जाता था। इससे यह धर्म शीघ्र ही लोकप्रिय हो गया।
  • इस्लाम के प्रसार में अनेक खलीफ़ों ने उल्लेखनीय योगदान दिया।
  • इस्लाम के उदय के समय रोमन साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो चुका था।

प्रश्न 20.
फ़ातिमी वंश के उत्थान एवं पतन की संक्षिप्त चर्चा करें।
उत्तर:
फ़ातिमी वंश एक प्रसिद्ध राजवंश था। इस वंश की स्थापना 909 ई० में अल-महदी ने उत्तरी अफ्रीका में की थी। यह वंश अपने आपको पैगंबर मुहम्मद की पुत्री फ़ातिमा के वंशज मानते हैं। यह मुसलमानों के शिया संप्रदाय से संबंधित है। अल-महदी ने 909 ई० से 934 ई० तक शासन किया। उसने अनेक प्रदेशों- एलेक्जेंडरिया, सीरिया, माल्टा, सारडीनिया एवं कोर्सिका आदि को अपने अधीन किया।

उसने महदीया को अपनी राजधानी घोषित किया। फ़ातिमी वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध सुल्तान अल-मुइज़ था। उसने 965 ई० से 975 ई० तक शासन किया। उसके शासनकाल की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सफलता 969 ई० में मिस्त्र पर विजय प्राप्त करना था। 973 ई० में काहिरा को फ़ातिमी साम्राज्य की नई राजधानी घोषित किया गया। इसकी स्थापना मंगल ग्रह के उदय होने के दिन की गई थी।

अल-मुइज़ ने न केवल फ़ातिमी साम्राज्य का विस्तार ही किया अपितु इसे अच्छी प्रकार से संगठित भी किया। अल-मुइज़ के उत्तराधिकारियों ने 1171 ई० तक शासन किया। 1171 ई० में सालादीन ने अल-अज़िद को पराजित कर फ़ातिमी वंश का अंत कर दिया।

प्रश्न 21.
सल्जुक वंश के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
गज़नवी वंश के खंडहरों पर सल्जुक वंश की स्थापना हुई। इस वंश की स्थापना तुग़रिल बेग एवं उसके भाई छागरी बेग ने 1037 ई० में खुरासान को जीत कर की थी। उन्होंने निशापुर को अपनी राजधानी घोषित किया। वे तुर्क जाति से संबंधित थे। तुग़रिल बेग ने सल्जुक साम्राज्य के विस्तार में उल्लेखनीय योगदान दिया। उसकी सबसे महत्त्वपूर्ण सफलता 1055 ई० में बग़दाद पर अधिकार करना था। इससे बग़दाद में बुवाही शासन का अंत हुआ एवं इस पर पुनः सुन्नी मुसलमानों का शासन स्थापित हो गया।

इससे प्रभावित होकर खलीफ़ा अल-कायम ने तुगरिल बेग को सुल्तान की उपाधि से सम्मानित किया। 1063 ई० में तुगरिल बेग की मृत्यु के पश्चात् उसका भतीजा अल्प अरसलन नया सुल्तान बना। उसने 1072 ई० तक शासन किया। वह एक योग्य शासक प्रमाणित हुआ। उसके शासनकाल में सल्जुक साम्राज्य का विस्तार अनातोलिया तक हो गया। उसका पुत्र मलिक शाह भी एक योग्य सुल्तान था।

उसने 1072 ई० से 1092 ई० तक शासन किया। उसके वज़ीर निजाम-उल-मुलक ने सल्जुक साम्राज्य के विस्तार एवं संगठन में उल्लेखनीय योगदान दिया। मलिक शाह की मृत्यु के पश्चात् सल्जुक साम्राज्य का विखंडन आरंभ हो गया तथा इसका अंत 1300 ई० में हो गया।

प्रश्न 22.
मध्यकालीन इस्लामी दुनिया की अर्थव्यवस्था की कोई तीन विशेषताएँ लिखो।
उत्तर:
(1) कृषि-मध्यकाल में इस्लामी साम्राज्य के लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था। उमय्यद एवं अब्बासी खलीफ़ों ने कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए अथक प्रयास किए। उन्होंने सिंचाई साधनों का विकास किया। उन्होंने साम्राज्य के अनेक भागों में बाँधों, नहरों एवं कुओं का निर्माण किया। उन्होंने उन किसानों को भू-राजस्व एवं अन्य करों में रियायत दी जो कृषि के अधीन नयी भूमि को लाते थे। कृषि भूमि पर राज्य का सर्वोपरि नियंत्रण होता था।

(2) उद्योग-उमय्यद एवं अब्बासी खलीफ़ों के शासनकाल में उद्योग के क्षेत्र में बहुमुखी विकास हुआ। उस समय समरकंद कागज़ उद्योग के लिए विशेष रूप से विख्यात था। बाद में कागज़ उद्योग के केंद्र मेसोपोटामिया, ईरान, अरब, मिस्र एवं स्पेन में भी स्थापित किए गए। उस समय बग़दाद काँच के सामान, आभूषण तथा रेशम उद्योग के लिए प्रसिद्ध था। बुखारा दरियों के उद्योग के लिए, दमिश्क इस्पात उद्योग के लिए, कुफा रेशम उद्योग के लिए, कोरडोबा चमड़ा उद्योग के लिए प्रसिद्ध केंद्र थे। इनके अतिरिक्त उस समय आभूषण, सूती एवं ऊनी वस्त्र, फर्नीचर एवं दैनिक उपयोग की अन्य वस्तुओं के उद्योग भी स्थापित थे।

(3) वाणिज्य एवं व्यापार-अरबों का आंतरिक एवं विदेशी व्यापार दोनों उन्नत थे। आंतरिक व्यापार के लिए मुख्यतः ऊँटों का प्रयोग किया जाता था। विदेशी व्यापार जल एवं स्थल दोनों मार्गों से किया जाता था। अरबी साम्राज्य के यूरोप, अफ्रीका, भारत एवं चीन के देशों के साथ अच्छे व्यापारिक संबंध थे। अरबी व्यापारी विदेशों को कागज़, सूती एवं ऊनी वस्त्र, काँच का सामान, चीनी, खजूर एवं बारूद का निर्यात करते थे विदेशों से रेशम, चाय, गर्म मसाले, सोना, विलासिता का सामान, हाथी दाँत एवं गुलामों का आयात करते थे। उस समय व्यापार संतुलन इस्लामी साम्राज्य के पक्ष में था।

प्रश्न 23.
इस्लामी साम्राज्य में स्थापित शहरीकरण की प्रमुख विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:
इस्लामी साम्राज्य में स्थापित शहरीकरण की प्रमुख विशेषताएँ अग्रलिखित हैं

(1) ये सभी शहर व्यापार के प्रसिद्ध केंद्र थे। एक शहर का दूसरे शहर के साथ परस्पर संपर्क स्थापित किया गया था। इससे व्यापार को बहुत प्रोत्साहन मिला।

(2) इन सभी शहरों में विशाल जनसंख्या रहती थी तथा इनमें तीव्रता से वृद्धि होती रहती थी। 850 ई० के लगभग बग़दाद की जनसंख्या 10 लाख हो गई थी।

(3) इन सभी शहरों के केंद्र में एक विशाल एवं भव्य मस्जिद का निर्माण किया जाता था। यहाँ सामूहिक नमाज़ पढ़ी जाती थी। इसके अतिरिक्त नागरिकों एवं सैनिकों के घरों के निकट भी मस्जिदों, गिरजाघरों एवं सिनेगोगों की स्थापना की गई थी। मस्जिद मुसलमानों के, गिरजाघर ईसाइयों के तथा सिनेगोग यहूदियों के प्रार्थना घर थे।

(4) प्रत्येक शहर में मंडियों की अच्छी व्यवस्था की जाती थी। इन मंडियों में विभिन्न प्रकार की दुकानें होती थीं।

(5) शहर के बाहर कब्रिस्तान बनाए जाते थे। कसाई की दुकानों एवं चमड़े की वस्तुएँ बनाने वाली दुकानों को भी शहर से बाहर रखा जाता था।

(6) शहरों में नागरिकों को अनेक प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त थीं तथा यहाँ नौकरी के अवसर अधिक होते थे। इसलिए लोग शहरों में रहना पसंद करते थे।

प्रश्न 24.
सूफी मत को परिभाषित कीजिए। इसकी शिक्षाएँ क्या थी ? ।
अथवा
सूफ़ी मत से आपका क्या अभिप्राय है ? इसकी शिक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सूफ़ी मत से अभिप्राय-सूफ़ी मत इस्लाम का एक संप्रदाय था। वे बहुत उदार विचारों वाले थे। वे 12 सिलसिलों अथवा वर्गों में बँटे हुए थे। प्रत्येक सिलसिला एक पीर के अधीन होता था। सूफ़ी मत की प्रमुख शिक्षाएँ निम्नलिखित थीं

(1) अल्लाह एक है-सूफ़ियों के अनुसार परमात्मा एक है जिसको वे अल्लाह कहते हैं। वह सर्वोच्च, शक्तिशाली तथा सर्वव्यापक है। प्रत्येक स्थान पर उसका आदेश चलता है तथा कोई भी उसकी आज्ञा के विरुद्ध नहीं जा सकता। वह प्रत्येक स्थान पर उपस्थित है। वह अमर है तथा आवागमन के चक्करों से मुक्त है। वह ही इस सृष्टि का रचयिता, इसकी सुरक्षा करने वाला तथा इसको नष्ट करने वाला है। इन कारणों से सूफ़ी एक अल्लाह के अतिरिक्त किसी अन्य की पूजा नहीं करते हैं।

(2) पीर-सूफ़ी मत में पीर या गुरु को सर्वाधिक महत्त्व दिया जाता है। वह अपने मुरीदों की रूहानी उन्नति पर पूर्ण दृष्टि रखता है, ताकि वे इस भवसागर से पार हो सकें तथा अल्लाह के साथ एक हो सकें। एक सच्चा पीर जो स्वयं साँसारिक लगाव से दूर हो तथा जिसने रूहानी ज्ञान प्राप्त कर लिया हो, वह ही अपने शिष्यों को अंधकार से ज्योति की ओर ले जा सकता है।

(3) भक्ति संगीत-सूफ़ी भक्ति संगीत पर बहुत ज़ोर देते हैं। उनका यह पूर्ण विश्वास है कि भक्ति संगीत मानवीय हृदयों में अल्लाह के प्रति प्रेम उत्पन्न करता है। इसके प्रभाव के कारण मनुष्य के बुरे विचार नष्ट हो जाते हैं तथा वह अल्लाह के समीप पहुँच जाता है। सूफ़ियों की धार्मिक संगीत सभाओं को समा कहा जाता है।

(4) मानवता से प्रेम-मानवता की सेवा करना सूफ़ी अपना परम कर्त्तव्य मानते हैं। इससे संबंधित वे मनुष्यों के बीच किसी जाति-पाति, रंग या नस्ल आदि का भेदभाव नहीं करते। उनके अनुसार सभी मनुष्य एक ही अल्लाह की संतान हैं। इसलिए उनके बीच किसी प्रकार का भेदभाव करना उस सर्वोच्च अल्लाह का अपमान करना है।

प्रश्न 25.
इल सिना कौन था ? वह क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
इब्न सिना मध्य काल अरब का एक महान् दार्शनिक एवं चिकित्सक था। उसे यूरोप में एविसेन्ना के नाम से जाना जाता था। उसका जन्म 980 ई० में बुखारा में हुआ था। उसका दर्शन यूनानी दर्शन से प्रभावित था। वह इस्लाम के इस सिद्धांत में विश्वास नहीं रखता था कि कयामत के दिन व्यक्ति फिर से जिंदा हो जाता है। इस कारण उसे कट्टर मुसलमानों के घोर विरोध का सामना करना पड़ा। इब्न सिना ने चिकित्सा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। उसकी रचना अल-कानून-फिल-तिब विश्व में बहुत लोकप्रिय हुई।

इसमें चिकित्सा सिद्धांतों पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। इसमें इब्न सिना के प्रयोगों एवं अनुभवों की जानकारी दी गई है। इसमें 760 प्रमुख औषधियों का उल्लेख किया गया है। इसमें पानी से फैलने वाले संक्रामक रोगों का वर्णन किया गया है। इसमें जलवायु और पर्यावरण के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है। इस पुस्तक का प्रयोग यूरोप में अनेक वर्षों तक एक प्रमाणिक पाठ्य-पुस्तक के रूप में किया जाता रहा है।

प्रश्न 26.
अल्बरुनी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर:
अल्बरुनी ग्यारहवीं शताब्दी का एक महान् विद्वान् एवं इतिहासकार था। उसका जन्म 973 ई० में खीवा में हुआ था। उसने खगोल विज्ञान, गणित, भूगोल, दर्शन, इतिहास एवं धर्म का गहन अध्ययन किया था। जब महमूद गज़नवी ने 1017 ई० में खीवा पर विजय प्राप्त की तो अल्बरुनी को बंदी बना लिया गया।

अल्बरुनी को गज़नी लाया गया। उसकी प्रतिभा से प्रभावित होकर महमद गज़नवी ने उसे अपने दरबार का रत्न बनाया। वह महमद गज़नवी के भारतीय आक्रमणों के समय उसके साथ भारत आया। भारत में जो कुछ अपनी आँखों से देखा उसके आधार पर उसने एक बहुमूल्य पुस्तक तहकीक-मा-लिल हिंद की रचना की।

इसे तारीख-ए-हिंद के नाम से भी जाना जाता है। इसे अरबी भाषा में लिखा गया था। यह 11वीं शताब्दी के भारतीय इतिहास को जानने के लिए हमारा एक विश्वसनीय एवं प्रामाणिक स्रोत है। उसके इस बहुमूल्य योगदान के कारण भारतीय इतिहास में उसे सदैव स्मरण किया जाता रहेगा।

प्रश्न 27.
रोमन साम्राज्य के वास्तुकलात्मक रूपों से इस्लामी वास्तुकलात्मक रूप कैसे भिन्न थे?
उत्तर:
(1) रोमन वास्तुकला-रोमन सम्राटों को वास्तुकला से विशेष लगाव था। उन्होंने विशाल संख्या में महलों, भवनों तथा कोलोसियमों का निर्माण किया था। इन भवनों के निर्माण के लिए पत्थरों, संगमरमर तथा लकड़ी का प्रयोग किया जाता था। इन भवनों को मेहराबों, विशाल गुम्बदों तथा गोलाकार छतों द्वारा सुंदर बनाया जाता था। उनके भवन यूनानी भवन निर्माण कला से प्रेरित थे।

(2) इस्लामी वास्तुकला-इस्लामी वास्तुकला ईरानी वास्तुकला से प्रेरित थी। इस्लामी शासकों ने विशाल संख्या में महलों, मस्जिदों तथा अन्य भवनों को निर्माण करवाया। उनके भवनों में पत्थरों, चट्टानों, संगमरमर तथा लकड़ी का प्रयोग किया जाता था। उनके भवनों को गुम्बदों, मीनारों, मेहराबों तथा स्तंभों से सुसज्जित किया जाता था। इन भवनों की दीवारों पर विभिन्न चित्र बनाए जाते थे।

प्रश्न 28.
धर्मयुद्ध किनके मध्य हुए? इनके लिए कौन-से कारण उत्तरदायी थे?
उत्तर:
धर्मयुद्ध यूरोपीय ईसाइयों एवं मुसलमानों के मध्य हुए। इन धर्मयुद्धों के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे–

(1) जेरुसलम ईसाइयों के लिए बहुत पवित्र भूमि थी। इसका संबंध ईसा के क्रूसीकरण तथा पुनः जीवित होने से था। इस स्थान पर अरबों ने 638 ई० में अधिकार कर लिया था। ईसाई इसे सहन करने को तैयार नहीं थे।

(2) सल्जुक तुर्कों ने 1071 ई० में जेरुसलम पर अपना अधिकार कर लिया था। वे कट्टर सुन्नी मुसलमान थे। अतः वे अपने साम्राज्य में ईसाई धर्म की उन्नति को सहन नहीं कर सकते थे। अत: उन्होंने ईसाइयों पर घोर अत्याचार शुरू कर दिए।

(3) 1092 ई० में सल्जक सल्तान मलिक शाह की मत्य के पश्चात उसके साम्राज्य का विखंडन आरंभ हो गया। बाइजेंटाइन सम्राट एलेक्सियस प्रथम ने यह स्वर्ण देखकर जेरुसलम पर अधिकार करने की योजना बनाई।

(4) पोप अर्बन द्वितीय ने 1095 ई० में फ्राँस के क्लेयरमांट नामक नगर में ईसाइयों को जेरुसलम की रक्षा के लिए समस्त ईसाइयों को धर्मयुद्ध में सम्मिलित होने की अपील की। इसका ईसाइयों पर जादुई प्रभाव पड़ा तथा वे युद्ध के लिए तैयार हो गए।

प्रश्न 29.
प्रथम धर्मयुद्ध पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर:
प्रथम धर्मयुद्ध का आरंभ 1096 ई० में हुआ। पोप अर्बन द्वितीय के भाषण से उत्तेजित होकर लगभग 70 हज़ार धर्मयोद्धा पीटर दा हरमिट के नेतृत्व में जेरुसलम को मुसलमानों से मुक्त कराने के लिए चल पड़े। सम्राट आलेक्सियस प्रथम ने उन्हें धैर्य से काम लेने तथा सैनिकों के वहाँ पहुँचने तक इंतज़ार करने के लिए कहा। किंतु इन धर्मयोद्धाओं ने जो धार्मिक जोश से प्रेरित थे, इस परामर्श को ठुकरा दिया। इन धर्मयोद्धाओं ने कुंस्तुनतुनिया पर आक्रमण कर वहाँ लूटमार आरंभ कर दी।

तुर्क मुसलमानों ने जो कि अत्यधिक संगठित थे, ने अधिकाँश धर्मयोद्धाओं को मौत के घाट उतार दिया। इस घटना से धर्मयोद्धाओं के प्रोत्साहन में कोई कमी नहीं आई। फ्राँस, जर्मनी एवं इटली के शासकों ने एक विशाल सेना गॉडफ्रे के नेतृत्व में जेरुसलम की ओर रवाना की। इन सैनिकों ने एडेस्सा एवं एंटीओक पर अधिकार कर लिया। उन्होंने 15 जुलाई, 1099 ई० में जेरुसलम पर अधिकार कर लिया। निस्संदेह यह उनकी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सफलता थी। जेरुसलम पर अधिकार करने के पश्चात् धर्मयोद्धाओं ने बड़ी संख्या में मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया। इसके साथ ही प्रथम धर्मयुद्ध का अंत हो गया।

प्रश्न 30.
यूरोप व एशिया पर धर्मयुद्धों का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
यूरोप एवं एशिया पर धर्मयुद्धों के निम्नलिखित प्रभाव पड़े

(1) धर्मयुद्धों के कारण पोप की प्रतिष्ठा काफी बढ़ गई। जर्मनी, फ्राँस, इंग्लैंड एवं हंगरी आदि के शासक पोप के निर्देशों का पालन करने के लिए सदैव तैयार रहते थे। परिणामस्वरूप दो शताब्दियों तक पोप ने यूरोप की राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाई।

(2) धर्मयुद्धों के कारण सामंतों की शक्ति का पतन हुआ एवं राजाओं की शक्ति में वृद्धि हुई।

(3) धर्मयुद्धों के सफल संचालन के लिए लोगों ने दिल खोल कर चर्च को दान दिए। इस कारण चर्चों के पास अपार दौलत एकत्र हो गई। इस धन के चलते धीरे-धीरे चर्चों में भ्रष्टाचार फैल गया।

(4) धर्मयुद्धों के दौरान मुसलमानों एवं ईसाइयों ने एक-दूसरे के क्षेत्रों में भारी लूटमार की। इससे दोनों समुदायों के मध्य नफ़रत की भावना फैली।

(5) धर्मयुद्धों में यूरोपीय स्त्रियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस कारण उनकी स्थिति में सुधार आया एवं उनका दृष्टिकोण विशाल हुआ।

(6) धर्मयुद्धों के कारण सामंतों के प्रभाव में कमी आई। इससे लोगों को उनके अत्याचारों से राहत मिली।

(7) धर्मयुद्धों के कारण यूरोपियों के ज्ञान में बहुत वृद्धि हुई। वे मुस्लिम नगरों एवं विज्ञान के क्षेत्रों में हुई प्रगति को देखकर चकित रह गए।

अति संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
इग्नाज़ गोल्डजिहर (Ignaz Goldziher) कौन था ?
उत्तर:

  • वह हंगरी का एक यहूदी था।
  • उसने काहिरा के इस्लामी कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की थी।
  • उसने जर्मन भाषा में इस्लाम से संबंधित अनेक पुस्तकों की रचना की।

प्रश्न 2.
सातवीं शताब्दी के आरंभिक दशकों में बेदुइओं के जीवन की क्या विशेषताएँ थीं ?
उत्तर:

  • वे खानाबदोश जीवन व्यतीत करते थे।
  • वे लूटमार करते थे एवं आपस में झगड़ते रहते थे।
  • ऊँट उनका प्रमुख साथी था एवं खजूर उनका प्रमुख खाद्य पदार्थ था।

प्रश्न 3.
सातवीं शताब्दी ई० में इस्लाम के उदय से पूर्व अरब समाज की कोई दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • उस समय अरब के अधिकाँश लोग अनपढ थे।
  • उस समय अरब समाज में अनैतिकता का बोलबाला था।

प्रश्न 4.
सातवीं शताब्दी ई० में इस्लाम के उदय से पूर्व अरब परिवार कैसे थे ?
उत्तर:

  • उस समय सयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित थी।
  • उस समय परिवार पितृतंत्रात्मक होते थे।
  • परिवार में पुत्र का होना आवश्यक माना जाता था।

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प्रश्न 5.
पैगंबर मुहम्मद के जन्म से पूर्व अरब समाज में स्त्रियों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। कैसे ?
उत्तर:

  • अधिकाँश लड़कियों को जन्म लेते ही मार दिया जाता था।
  • स्त्रियों को लगभग सभी अधिकारों से वंचित रखा जाता था।
  • उन्हें केवल एक भोगविलास की वस्तु समझा जाता था।

प्रश्न 6.
पैगंबर मुहम्मद के जन्म से पूर्व अरब समाज में अनैतिकता का बोलबाला था। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ?
उत्तर:

  • उस समय लूटमार करना एवं धोखा देना एक सामान्य बात थी।
  • उस समय शराब पीने एवं जुआ खेलने का प्रचलन बहुत था।
  • स्त्रियों के साथ अनैतिक संबंध स्थापित करना एक गर्व की बात मानी जाती थी।

प्रश्न 7.
सातवीं शताब्दी ई० में दासों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता था ?
उत्तर:

  • उस समय दासों के साथ बहुत क्रूर व्यवहार किया जाता था।
  • उन पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगाए गए थे।

प्रश्न 8.
सातवीं शताब्दी ई० में अरबों के आर्थिक जीवन की दो प्रमुख विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:

  • उस समय अरबों का आर्थिक जीवन बहुत पिछड़ा हुआ था।
  • यहाँ की जनसंख्या बहुत विरल थी।

प्रश्न 9.
अरबों के जीवन में खजूर का क्या महत्त्व है ?
उत्तर:

  • यह अरब लोगों का प्रमुख खाद्य पदार्थ है।
  • इसका पेय बहुत स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है।
  • इसकी गुठली ऊँट का प्रमुख भोजन है।

प्रश्न 10.
अरबों के जीवन में ऊँट को क्यों महत्त्वपूर्ण माना जाता है ?
उत्तर:

  • ऊँटों को रेगिस्तान का जहाज़ कहा जाता है।
  • वह बदू लोगों के यातायात का प्रमुख साधन है।
  • इसका माँस खाया जाता है, दूध पीया जाता है एवं खालों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 11.
सातवीं शताब्दी ई० में अरबों का व्यापार उन्नत क्यों न था ? कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • उस समय अरब में अराजकता का वातावरण था।
  • उस समय उद्योगों का विकास नहीं हुआ था।

प्रश्न 12.
पैगंबर मुहम्मद के जन्म से पूर्व अरबों के धार्मिक जीवन की दो प्रमुख विशेषताएँ क्या थी ?
उत्तर:

  • उस समय लोग एक अल्लाह की अपेक्षा अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे।
  • लोग एक-दूसरे के देवी-देवता से घृणा करते थे।

प्रश्न 13.
अरब कबीलों की कोई दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • प्रत्येक कबीला राजनीतिक दृष्टि से स्वतंत्र होता था।
  • प्रत्येक कबीले का मुखिया शेख़ कहलाता था।

प्रश्न 14.
इस्लाम का संस्थापक किसे माना जाता है ? उनका जन्म कब और कहाँ हुआ ?
अथवा
हज़रत मुहम्मद साहिब का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर:

  • इस्लाम का संस्थापक पैगंबर मुहम्मद को माना जाता है।
  • उनका जन्म 29 अगस्त, 570 ई० को मक्का में हुआ था।

प्रश्न 15.
पैगंबर मुहम्मद का संबंध किस कबीले से था तथा यह कबीला कहाँ रहता था?
उत्तर:

  • पैगंबर मुहम्मद का संबंध कुरैश कबीले से था।
  • यह कबीला मक्का में रहता था।

प्रश्न 16.
खदीजा कौन थी ? पैगंबर मुहम्मद का उससे विवाह कब हुआ ?
उत्तर:

  • खदीज़ा मक्का की एक धनी विधवा थी।
  • पैगंबर मुहम्मद का उससे 595 ई० में विवाह हुआ।

प्रश्न 17.
पैगंबर मुहम्मद को इलहाम (ज्ञान) कहाँ प्राप्त हुआ था ? उस समय उनकी आयु क्या थी ?
उत्तर:

  • पैगंबर मुहम्मद को इलहाम (ज्ञान) मक्का में स्थित हीरा नामक एक गुफ़ा में प्राप्त हुआ।
  • उस समय उनकी आयु 40 वर्ष की थी।

प्रश्न 18.
उस महादूत का नाम बताओ जिसने पैगंबर मुहम्मद को अल्लाह का संदेश दिया था। उस रात को इस्लाम में किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:

  • उस महादूत का नाम जिबरील था जिसने पैगंबर मुहम्मद को अल्लाह का संदेश दिया था।
  • उस रात को इस्लाम में ‘शक्ति की रात’ कहा जाता है।

प्रश्न 19.
पैगंबर मुहम्मद ने किस धर्म की स्थापना की? इस धर्म की पवित्र पुस्तक का नाम लिखिए।
उत्तर:

  • पैगंबर मुहम्मद ने इस्लाम धर्म की स्थापना की।
  • इस धर्म की पवित्र पुस्तक का नाम कुरान है।

प्रश्न 20.
पैगंबर मुहम्मद ने अपना प्रथम सार्वजनिक उपदेश कहाँ और कब दिया ?
उत्तर:
पैगंबर मुहम्मद ने अपना प्रथम सार्वजनिक उपदेश मक्का में 612 ई० में दिया।

प्रश्न 21.
उम्मा (Umma) से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:

  • पैगंबर मुहम्मद द्वारा स्थापित समाज को उम्मा का नाम दिया गया।
  • इसमें सभी को एक समान अधिकार प्राप्त थे।
  • इसमें लोग धर्म द्वारा एक दूसरे से जुड़े हुए थे।

प्रश्न 22.
मक्का के लोग पैगंबर मुहम्मद के विरुद्ध क्यों हुए ? कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • पैगंबर मुहम्मद मूर्ति पूजा के कटु आलोचक थे।
  • रूढ़िवादी पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं को पसंद नहीं करते थे।

प्रश्न 23.
पैगंबर मुहम्मद मक्का से मदीना कब पहुँचे ? इस घटना को इस्लाम में किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:

  • पैगंबर मुहम्मद मक्का से मदीना 2 जुलाई, 622 ई० को पहुँचे।
  • इस घटना को इस्लाम में हिज़रत के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 24.
हिज़रत से क्या अभिप्राय है ? इस्लाम में इसका क्या महत्त्व है ?
अथवा
हिज़रत से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:

  • पैगंबर मुहम्मद द्वारा मक्का से मदीना जाने की घटना को हिज़रत कहा जाता है। यह घटना 622 ई० में हुई।
  • इस वर्ष मुस्लिम कैलेंडर लागू हुआ।

प्रश्न 25.
बद्र की लड़ाई कब एवं किसके मध्य हुई ? इसमें कौन विजयी रहा ?
उत्तर:

  • बद्र की लड़ाई 13 मार्च, 624 ई० को पैगंबर मुहम्मद एवं कुरैशों के मध्य हुई।
  • इसमें पैगंबर मुहम्मद विजयी रहे।

प्रश्न 26.
पैगंबर मुहम्मद ने मक्का पर कब विजय प्राप्त की ? इस विजय का क्या महत्त्व है ?
उत्तर:

  • पैगंबर मुहम्मद ने मक्का पर 1 जनवरी, 630 ई० में विजय प्राप्त की।
  • इस शानदार विजय से पैगंबर मुहम्मद की प्रतिष्ठा में बहुत वृद्धि हुई।

प्रश्न 27.
इस्लाम धर्म के संस्थापक कौन थे ? उनकी दो शिक्षाएँ बताइए।
उत्तर:

  • इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगंबर मुहम्मद थे।
  • अल्लाह एक है। वह सर्वोच्च है।
  • लोगों को सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए।

प्रश्न 28.
इस्लाम के कोई दो स्तंभ बताएँ।
उत्तर:

  • प्रत्येक मुसलमान को एक दिन में पाँच बार नमाज़ पढ़नी चाहिए।
  • प्रत्येक मुसलमान को अपने जीवन काल में एक बार हज की यात्रा करनी चाहिए।

प्रश्न 29.
इस्लाम के धार्मिक ग्रंथ का क्या नाम है ? यह किस भाषा में है ?
अथवा
कुरान क्या है?
उत्तर:

  • इस्लाम के धार्मिक ग्रंथ का नाम कुरान है।
  • यह अरबी भाषा में है।

प्रश्न 30.
पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु कब और कहाँ हुई ?
उत्तर:
पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु 8 जून, 632 ई० को मदीना में हुई।

प्रश्न 31
उलेमा से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उलेमा मुसलमानों के धार्मिक विद्वान् थे। वे अपना समय कुरान पर टीका लिखने और मुहम्मद की प्रामाणिक उक्तियों को लेखबद्ध करने में लगाते थे। वे लोगों को शरीआ के अनुसार जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित करते थे।

प्रश्न 32.
खलीफा किसे कहा जाता था ?
उत्तर:
खलीफ़ा हज़रत मुहम्मद साहिब के उत्तराधिकारियों को कहा जाता था। उनका प्रमुख कार्य इस्लाम की रक्षा एवं प्रसार करना था।

प्रश्न 33.
पहले चार खलीफ़ाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
पहले चार खलीफ़ाओं के नाम अबू बकर, उमर, उथमान एवं अली थे।

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प्रश्न 34.
मुसलमानों का प्रथम खलीफ़ा कौन था ? उसका शासनकाल क्या था ?
उत्तर:

  • मुसलमानों का प्रथम खलीफ़ा अबू बकर था ।
  • उसका शासनकाल 632 ई० से 634 ई० तक था।

प्रश्न 35.
अबू बकर की कोई दो महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ बताएँ।
उत्तर:

  • उसने नकली पैगंबरों के विद्रोहों का दमन किया।
  • उसने सीरिया, इराक, ईरान एवं बाइजेंटाइन साम्राज्य पर विजय प्राप्त की।

प्रश्न 36.
मुसलमानों का दूसरा खलीफ़ा कौन था ? उसका शासनकाल क्या था ?
उत्तर:

  • मुसलमानों का दूसरा खलीफ़ा उमर था।
  • उसका शासनकाल 634 ई० से 644 ई० तक था।

प्रश्न 37.
खलीफ़ा उमर की कोई दो महत्त्वपूर्ण सफलताएँ लिखें।
उत्तर:

  • उसने ससानी साम्राज्य एवं बाइजेंटाइन साम्राज्य पर महत्त्वपूर्ण विजयें प्राप्त की।
  • उसने एक कुशल प्रशासन की स्थापना की।

प्रश्न 38.
हिजरी सन् से आपका क्या अभिप्राय है?
अथवा
इस्लामी पंचांग का वर्णन कीजिए।
अथवा
इस्लामी कैलेंडर के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
हिजरी सन् की स्थापना खलीफ़ा उमर ने की थी। इसका प्रथम वर्ष 622 ई० में पड़ता है। हिजरी सन् की तारीख को जब अंग्रेज़ी में लिखा जाता है तो वर्ष के बाद ए० एच० लगाया जाता है। हिज़री वर्ष चंद्र वर्ष है तथा यह 354 दिनों का होता है।

प्रश्न 39.
जकात से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
जज़िया क्या था ?
अथवा
जकात एवं जज़िया से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:

  • जकात एक धार्मिक कर था जो मुसलमानों से प्राप्त किया जाता था। यह उनकी आय का 212% होता था।
  • जज़िया एक कर था जो गैर-मुसलमानों पर लगाया जाता था। इसके बदले सरकार उन्हें उनकी संपत्ति एवं जीवन की सुरक्षा का वचन देती थी।

प्रश्न 40. धिम्मीस कौन थे ?
उत्तर:
धिम्मीस वे संरक्षित लोग थे जिन्हें अपनी संपत्ति एवं जीवन की सुरक्षा के लिए सरकार को जजिया कर देना पड़ता था।

प्रश्न 41.
खलीफ़ा उथमान की हत्या कब और क्यों की गई ?
उत्तर:

  • खलीफ़ा उथमान की हत्या 17 जून, 656 ई० में की गई।
  • इसका कारण यह था कि उसने अपने निकट संबंधियों को राज्य के उच्च पदों पर नियुक्त कर दिया था।

प्रश्न 42.
ऊँटों की लड़ाई कब एवं किनके मध्य हुई ? इसमें कौन विजयी रहा ?
उत्तर:

  • ऊँटों की लड़ाई 9 दिसंबर, 656 ई० को खलीफ़ा अली एवं पैगंबर मुहम्मद की पत्नी आयशा (Aishah) के मध्य हुई।
  • इसमें विजय अली की हुई।

प्रश्न 43.
उमय्यद वंश का संस्थापक कौन था ? इस वंश का शासनकाल बताएँ।
उत्तर:

  • उमय्यद वंश का संस्थापक मुआविया था।
  • इस वंश ने 661 ई० से 750 ई० तक शासन किया।

प्रश्न 44.
उमय्यद वंश के संस्थापक का नाम एवं उसका शासनकाल बताएँ।
उत्तर:

  • उमय्यद वंश के संस्थापक का नाम मुआविया था।
  • उसने 661 ई० से 680 ई० तक शासन किया।

प्रश्न 45.
मुआविया की दो प्रमुख उपलब्धियाँ बताएँ।
उत्तर:

  • उसने बाइजेंटाइन साम्राज्य की राजदरबारी रस्मों एवं प्रशासनिक संस्थाओं को अपनाया।
  • उसने अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से अनेक पग उठाए।

प्रश्न 46.
उमय्यद वंश का सबसे महान् खलीफ़ा कौन था ? उसका शासनकाल क्या था ?
उत्तर:

  • उमय्यद वंश का सबसे महान् खलीफ़ा अब्द-अल-मलिक था।
  • उसका शासनकाल 685 ई० से 705 ई० तक था।

प्रश्न 47.
अब्द-अल-मलिक की दो महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ बताएँ।
उत्तर:

  • उसने अरबी को प्रशासन की भाषा बनाया।
  • उसने इस्लामी सिक्के जारी किए।

प्रश्न 48.
अब्द-अल-मलिक द्वारा जारी सिक्कों की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • इन सिक्कों पर अरबी भाषा अंकित थी।
  • इन सिक्कों पर अब्द-अल-मलिक का नाम एवं उसकी तस्वीर अंकित थी।

प्रश्न 49.
डोम ऑफ़ दी रॉक नामक मस्जिद का निर्माण किसने तथा कहाँ किया था ?
उत्तर:
डोम ऑफ़ दी रॉक नामक मस्जिद का निर्माण अब्द-अल-मलिक द्वारा जेरुसलम में किया गया।

प्रश्न 50.
उमय्यद वंश के पतन के लिए जिम्मेवार कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • अधिकाँश उमय्यद खलीफ़े विलासप्रिय थे। अतः उन्होंने प्रशासन की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया।
  • उनके अधिकारी स्वार्थी हितों में अधिक व्यस्त रहते थे ।

प्रश्न 51.
अब्बासी क्राँति से आपका क्या तात्पर्य है ?
अथवा
अब्बासी क्राँति से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
अब्बासी क्राँति से हमारा तात्पर्य उस क्राँति से है जिसके अधीन अबू मुस्लिम ने खुरासान से दवा नामक आंदोलन आरंभ किया। इस क्राँति ने 750 ई० में उमय्यद वंश का अंत कर दिया एवं अब्बासी वंश की स्थापना की।

प्रश्न 52.
अब्बासी वंश की स्थापना किसने तथा कब की ?
उत्तर:
अब्बासी वंश की स्थापना 750 ई० में अबू-अल-अब्बास ने की थी।

प्रश्न 53.
खलीफ़ा अल-मंसूर की कोई दो महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ बताएँ।
उत्तर:

  • उसने बग़दाद को अब्बासी साम्राज्य की राजधानी घोषित किया।
  • उसने कला एवं शिक्षा को प्रोत्साहित किया।

प्रश्न 54.
खलीफ़ा अल-महदी का शासनकाल क्या था ? उसका शासनकाल किस लिए प्रसिद्ध था ?
उत्तर:

  • खलीफ़ा अल-महदी का शासनकाल 775 ई० से 785 ई० था।
  • उसका शासनकाल लोक भलाई कार्यों के लिए प्रसिद्ध था।

प्रश्न 55.
अब्बासी वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध खलीफ़ा कौन था ? उसका शासनकाल क्या था ?
उत्तर:

  • अब्बासी वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध खलीफ़ा हारुन-अल-रशीद था ।
  • उसका शासनकाल 786 ई० से 809 ई० तक था।

प्रश्न 56.
खलीफ़ा हारुन-अल-रशीद की दो प्रमुख उपलब्धियाँ क्या थी ?
उत्तर:

  • उलने अफ्रीका के गवर्नर याहिया-बिन-अब्दुल्ला के विद्रोह का दमन किया।
  • उसने शक्तिशाली फ्रैंक शासक शॉर्लमेन (Charlemagne) से मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित किए।

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प्रश्न 57.
खलीफ़ा अल-मामुन का शासनकाल क्या था ? उसकी कोई एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि बताएँ।
उत्तर:

  • खलीफ़ा अल-मामुन ने 813 ई० से 833 ई० तक शासन किया।
  • उसने सभी धर्मों के प्रति सहनशीलता की नीति अपनाई।

प्रश्न 58.
अब्बासी वंश के पतन के दो प्रमुख कारण लिखें।
उत्तर:

  • अल-मामुन के सभी उत्तराधिकारी अयोग्य एवं निकम्मे निकले।
  • अब्बासी साम्राज्य के गुटों में चलने वाले लगातार संघर्षों ने इसके पतन की प्रक्रिया को तीव्र कर दिया।

प्रश्न 59.
फ़ातिमी वंश का संस्थापक कौन था ? उसका शासनकाल क्या था ?
उत्तर:

  • फ़ातिमी वंश का संस्थापक अल-महदी था।
  • उसका शासनकाल 909 ई० से 934 ई० तक था।

प्रश्न 60.
गज़नवी वंश का संस्थापक कौन था ? उसने इस वंश की स्थापना कब तथा कहाँ की थी ?
उत्तर:

  • गज़नवी वंश का संस्थापक अल्पतिगीन था।
  • उसने इस वंश की स्थापना 962 ई० में गज़नी में की थी।

प्रश्न 61.
गज़नवी वंश का सबसे महान् सुल्तान कौन था ? उसका शासनकाल क्या था ?
उत्तर:

  • गज़नवी वंश का सबसे महान् सुल्तान महमूद गज़नी था।
  • उसने 998 ई० से 1030 ई० तक शासन किया

प्रश्न 62.
सल्जुक वंश की स्थापना किसने तथा कब की थी ?
उत्तर:
सल्जुक वंश की स्थापना तुग़रिल बेग एवं उसके भाई छागरी बेग ने 1037 ई० में की थी।

प्रश्न 63.
मध्यकाल में इस्लामी साम्राज्य की अर्थव्यवस्था की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:

  • उस समय के लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था।
  • इस काल में वाणिज्य एवं व्यापार का अभूतपूर्व विकास हुआ।

प्रश्न 64.
मध्यकाल में इस्लामी प्रदेशों की कृषि की कोई दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • कृषि भूमि पर राज्य का सर्वोपरि नियंत्रण होता था।
  • सरकार द्वारा कृषि को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से किसानों को विशेष सहूलतें दी जाती थीं।

प्रश्न 65.
मध्यकाल में इस्लामी प्रदेशों में स्थित किन्हीं चार प्रसिद्ध उद्योगों के नाम बताएँ।
उत्तर:

  • कागज़ उद्योग
  • आभूषण उद्योग
  • रेशम उद्योग
  • चमड़ा उद्योग।

प्रश्न 66.
मध्यकाल में इस्लामी प्रदेशों द्वारा विदेशों को निर्यात की जाने वाली किन्हीं चार वस्तुओं के नाम लिखें।
उत्तर:

  • कागज़
  • चीनी
  • खजूर
  • बारूद।

प्रश्न 67.
मध्यकाल में इस्लामी प्रदेशों द्वारा विदेशों से आयात की जाने वाली किन्हीं चार वस्तुओं के नाम लिखें।
उत्तर:

  • रेशम
  • चाय
  • गर्म मसाले
  • सोना।

प्रश्न 68.
मध्यकाल में इस्लामी साम्राज्य में नए शहरों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य क्या था ? इन शहरों को किस नाम से जाना जाता था ?
उत्तर:

  • मध्यकाल में इस्लामी साम्राज्य में नए शहरों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य अरब सैनिकों को बसाना था।
  • इन शहरों को मिस्र के नाम से जाना जाता था।

प्रश्न 69.
मध्यकाल में इस्लामी प्रदेशों में अस्तित्व में आए चार नए शहरों के नाम बताएँ।
उत्तर:

  • कुफा
  • बसरा
  • काहिरा
  • बग़दाद।

प्रश्न 70.
मध्यकाल में इस्लामी प्रदेशों के शहरीकरण की कोई दो विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:

  • इन शहरों के केंद्र में एक विशाल एवं भव्य मस्जिद का निर्माण किया जाता था।
  • प्रत्येक शहर में एक केंद्रीय मंडी एवं अन्य छोटी मंडियों का निर्माण किया जाता था।

प्रश्न 71.
सिनेगोग से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
सिनेगोग यहूदियों के प्रार्थना घर को कहा जाता था।

प्रश्न 72.
अरबों, ईरानियों व तुर्कों द्वारा स्थापित राज्यों की बहुसंस्कृति के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
(i) अरब साम्राज्य में मुस्लिम, ईसाई एवं यहूदी धर्म के लोग रहते थे।
(ii) ईरानी साम्राज्य में मुस्लिम तथा एशियाई संस्कृतियों का विकास हुआ।
(iii) तुर्की साम्राज्य में मिस्री, इरानी, सीरियाई तथा भारतीय संस्कृतियों का विकास हुआ।

प्रश्न 73.
सूफ़ी कौन थे? उनकी दो शिक्षाएँ लिखें।
उत्तर:

  • सूफ़ी इस्लाम से संबंधित एक संप्रदाय था।
  • अल्लाह एक है। वह सर्वव्यापक एवं सर्वशक्तिशाली है।
  • सूफी मत में पीर को विशेष महत्त्व दिया जाता है। वह अपने शिष्यों को अंधकार से ज्योति की ओर ले जाता है।

प्रश्न 74.
राबिया कौन थी ?
उत्तर:

  • वह सूफ़ी मत से संबंधित प्रथम प्रसिद्ध महिला संत थी।
  • वह बसरा की रहने वाली थी।
  • उसने अल्लाह की प्रशंसा में अनेक छोटी कविताएँ लिखीं।

प्रश्न 75.
बयाज़िद बिस्तामी क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:

  • वह ईरान का एक प्रसिद्ध सूफ़ी संत था।
  • उसके समकालीन प्रसिद्ध सूफी संतों के साथ गहरे संबंध थे।
  • उसने फ़ना (खुदा में लीन) का उपदेश दिया।

प्रश्न 76.
धुलनुन मिस्त्री कौन था ?
उत्तर:

  • वह मिस्र का एक प्रसिद्ध सूफी संत था।
  • उसने लोगों को मानवता के साथ प्रेम का संदेश दिया।
  • उसकी 861 ई० में मिस्र में मृत्यु हो गई।

प्रश्न 77.
इब्न सिना कौन था ?
उत्तर:

  • वह मध्यकाल में अरब का एक महान् दार्शनिक एवं चिकित्सक था।
  • उसने अल-कानून-फिल-तिब नामक प्रसिद्ध चिकित्सक ग्रंथ लिखा।
  • उसे यूरोप में एविसेन्ना के नाम से जाना जाता था।

प्रश्न 78.
अबू नुवास क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:

  • वह खलीफ़ा हारुन-अल-रशीद का प्रसिद्ध दरबारी कवि था।
  • उसने दरबारी जीवन पर अनेक कविताएँ लिखीं।
  • उसने शराब एवं प्रेम जैसे अनेक इस्लाम में प्रतिबंधित विषयों को छुआ।

प्रश्न 79.
रुदकी कौन था ?
उत्तर:

  • वह समानी दरबार का एक महान् कवि था।
  • उसे नयी फ़ारसी कविता का जनक माना जाता है।
  • उसने अनेक गज़लें एवं रुबाइयाँ लिखीं।

प्रश्न 80.
उमर खय्याम क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:

  • वह अरब का एक महान् कवि, खगोल वैज्ञानिक एवं गणितज्ञ था।
  • उसने फ़ारसी में अनेक उच्च कोटि की रुबाइयाँ लिखीं।
  • उसने रिसाला नामक ग्रंथ की रचना की।

प्रश्न 81.
फिरदौसी कौन था? उसकी रचना का नाम लिखिए।
उत्तर:

  • वह महमूद गजनवी का प्रसिद्ध दरबारी कवि था।
  • उसने फ़ारसी में प्रसिद्ध ग्रंथ शाहनामा की रचना की।

प्रश्न 82.
कलीला व दिमना क्या है ?
उत्तर:
कलीला व दिमना एक पुस्तक का नाम है। इसमें जानवरों की कहानियों का संग्रह है। इब्न-अल मुक्फ्फा ने इस पुस्तक का पहलवी से अरबी में अनुवाद किया। यह मूल रूप से संस्कृत की प्रसिद्ध पुस्तक पंचतंत्र का अनुवाद है।

प्रश्न 83.
‘एक हजार एक रातें’ क्या है ?
उत्तर:
यह अनेक प्रसिद्ध कहानियों का संग्रह है। इसे अरबी रातें के नाम से भी जाना जाता है। इन कहानियों को शहरजाद द्वारा अपने पति को सुनाया गया था। इन कहानियों का उद्देश्य मनोरंजन एवं शिक्षा देना था।

प्रश्न 84.
अल-जहीज कौन था ?
उत्तर:
वह बसरा का एक प्रसिद्ध लेखक था। वह यूनानी दर्शन से बहुत प्रभावित था। उसने किताब-अल बुखाला एवं किताब-अल-हैवान नामक प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं। इनमें कंजूसों एवं जानवरों की कहानियाँ दी गई हैं।

प्रश्न 85.
ताबरी क्यों प्रसिद्ध था ?
उत्तर:
वह अरब का एक महान इतिहासकार था। उसने तारीख-अल-रसल-वल मलक नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की। इसमें संसार के आरंभ से लेकर 915 ई. तक के इतिहास का वर्णन किया गया है। इसे एक प्रामाणिक एवं विश्वसनीय ग्रंथ माना जाता है। इसका अंग्रेजी में 38 खंडों में अनुवाद किया गया है।

प्रश्न 86.
अल्बरुनी कौन था? उसकी रचना का नाम लिखिए।
उत्तर:
वह 11वीं शताब्दी का एक महान् विद्वान् एवं इतिहासकार था। वह महमूद गजनवी का प्रसिद्ध दरबारी था। वह महमूद गज़नवी के साथ भारत आया था। उसने आँखों देखी घटनाओं के आधार पर तहकीक-मा-लिल हिंद नामक ग्रंथ की रचना की। इसे तारीख-ए-हिंद के नाम से भी जाना जाता है। यह 11वीं शताब्दी भारतीय इतिहास को जानने का एक प्रमुख स्रोत है।

प्रश्न 87.
मध्यकाल में इस्लामी प्रदेशों में बनाई गई मस्जिदों की कोई दो विशेषताएं बताएँ।
उत्तर:

  • प्रत्येक मस्जिद में एक खुला बरामदा होता था। यहाँ लोग नमाज पढ़ते थे।
  • प्रत्येक मस्जिद के साथ एक मीनार होती थी। यहाँ मुल्ला चढ़ कर बाँग देता था ताकि लोग नमाज़ के लिए एकत्र हो सकें।

प्रश्न 88.
धर्मयुद्ध किनके मध्य चले ? इन धर्मयुद्धों की संख्या कितनी थी ?
उत्तर:

  • धर्मयुद्ध ईसाइयों एवं मुसलमानों के मध्य चले।
  • इन धर्मयुद्धों की संख्या 8 थी।

प्रश्न 89.
धर्मयों के कोई दो प्रमख कारण लिखें।
उत्तर:

  • अरबों ने 638 ई० में जेरुसलम पर अधिकार कर लिया था। ईसाई इसे सहन करने को तैयार नहीं
  • सल्जुक तुर्क जेरुसलम में रहने वाले ईसाइयों पर घोर अत्याचार कर रहे थे।

प्रश्न 90.
प्रथम धर्मयुद्ध कब से लेकर कब तक चला ? इस धर्मयुद्ध में कौन विजयी रहा ?
उत्तर:

  • प्रथम धर्मयुद्ध 1096 ई० से 1099 ई० तक चला।
  • इस धर्मयुद्ध में ईसाई विजयी रहे।

प्रश्न 91.
द्वितीय धर्मयद्ध कब आरंभ हआ ? यह कब तक चला ?
उत्तर:

  • द्वितीय धर्मयुद्ध 1147 ई० में आरंभ हुआ।
  • यह 1149 ई० तक चला।

प्रश्न 92.
तृतीय धर्मयुद्ध कब आरंभ हुआ ? इसमें सम्मिलित किन्हीं दो यूरोपीय शासकों के नाम लिखें।
उत्तर:

  • तृतीय धर्मयुद्ध 1189 ई० में आरंभ हुआ।
  • इसमें सम्मिलित दो यूरोपीय शासकों के नाम जर्मनी का शासक फ्रेडरिक बारबरोसा एवं फ्रांस का शासक फिलिप ऑगस्ट्स था।

प्रश्न 93.
यूरोप व एशिया पर धर्मयुद्धों का क्या प्रभाव पड़ा ?
अथवा
धर्मयुद्धों के क्या परिणाम निकले ?
उत्तर:

  • धर्मयुद्धों के कारण पोप की प्रतिष्ठा में बहुत वृद्धि हुई।
  • इसने यूरोप में सामंतवाद के पतन की प्रक्रिया को तीव्र कर दिया।
  • धर्मयुद्धों के कारण ईसाइयों एवं मुसलमानों के संबंधों में कटुता आ गई।

रिका स्थान भरिए

1. अरब में इस्लाम का उदय …………….. ई० में हुआ।
उत्तर:
612

2. पैंगबर मुहम्मद का जन्म ……………. ई० में हुआ।
उत्तर:
570

3. पैगंबर मुहम्मद ने …………… के विस्तार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
उत्तर:
इस्लाम

4. पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु …………….. ई० में हुई।
उत्तर:
632

5. पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु के पश्चात् …………… संस्था का निर्माण हुआ।
उत्तर:
खिलाफ़त

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

6. बाइजेंटाइन साम्राज्य …………….. धर्म को बढ़ावा देता था।
उत्तर:
ईसाई

7. ससानी साम्राज्य …………… धर्म को संरक्षण देता था।
उत्तर:
ज़रतुश्त

8. अरब साम्राज्य में गैर-मुस्लिम लोगों को …………….. तथा …………….. कर अदा करने पड़ते थे।
उत्तर:
खराज, जज़िया

9. अरब साम्राज्य में ‘ऊँटों की लड़ाई’ …………… ई० में हुई।
उत्तर:
656

10. अब्बासी क्रांति अरब में …………….. ई० में आई।
उत्तर:
750

11. अब्बासियों ने ……………. को अपनी राजधानी घोषित किया।
उत्तर:
बग़दाद

12. गज़नी सल्तनत की स्थापना …………….. द्वारा की गई थी।
उत्तर:
अल्पतिगीन

13. खलीफ़ा अल-कायम ने ……………. को सुलतान की उपाधि प्रदान की।
उत्तर:
तुगरिल बेग

14. प्रथम धर्मयुद्ध का आरंभ …………….. ई० में हुआ।
उत्तर:
1096

15. ……………. ई० में तीसरे धर्मयुद्ध का आरंभ हुआ।
उत्तर:
1189

16. अरब साम्राज्य के लोगों का मुख्य व्यवसाय …………….. था।
उत्तर:
कृषि

17. बयाज़िद बिस्तामी सूफी संत …………….. का रहने वाला था।
उत्तर:
ईरान

18. शाहनामा नामक पुस्तक की रचना …………….. द्वारा की गई थी।
उत्तर:
फिरदौसी

19. बसरा के अल-जहीज ने …………….. पुस्तक की रचना की।
उत्तर:
किताब अल-बुखाला,

20. मंगोलों ने बगदाद पर ………….. ई० में अधिकार किया।
उत्तर:
1258

बह-विकल्पीय प्रश्न

1. केंद्रीय इस्लामी प्रदेशों की जानकारी का हमारा प्रमुख स्त्रोत क्या है ?
(क) तवारीख
(ख) कुरान
(ग) जीवनियाँ
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

2. प्रशासनिक इतिहास का बढ़िया स्त्रोत किसे माना जाता है ?
(क) पेपाइरस
(ख) सिक्के
(ग) शिलालेख
(घ) हदीथ।
उत्तर:
(क) पेपाइरस

3. इस्लाम के उदय से पूर्व अरबों के धार्मिक जीवन की प्रमुख विशेषता क्या थी ?
(क) अरब अनेक देवी-देवताओं की उपासना करते थे
(ख) अरब मूर्तियों की उपासना करते थे ।
(ग) अरबों की तीन प्रमुख देवियां अल-उज्जा, अल-लत एवं अल-मना थीं
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

4. अरब में कबीले का मुखिया क्या कहलाता था ?
(क) शेख
(ख) मवाली
(ग) उम्मा
(घ) मुरव्वा।
उत्तर:
(क) शेख

5. अरब में किन लोगों की प्रमुखता थी ?
(क) कुरैश
(ख) बदू
(ग) मुसलमान
(घ) मवाली।
उत्तर:
(ख) बदू

6. इस्लाम का संस्थापक कौन था ?
(क) पैगंबर मुहम्मद
(ख) अबू बकर
(ग) चंगेज़ खाँ
(घ) उथमान।
उत्तर:
(क) पैगंबर मुहम्मद

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

7. इस्लाम की स्थापना कब की गई थी ?
(क) 7वीं शताब्दी में
(ख) 8वीं शताब्दी में
(ग) 9वीं शताब्दी में
(घ) 10वीं शताब्दी में।
उत्तर:
(क) 7वीं शताब्दी में

8. पैगंबर मुहम्मद का जन्म कब हुआ था ?
(क) 570 ई० पू० में
(ख) 570 ई० में
(ग) 610 ई० में
(घ) 612 ई० में।
उत्तर:
(ख) 570 ई० में

9. पैगंबर मुहम्मद का जन्म कहाँ हुआ था ?
(क) मदीना में
(ख) मक्का में
(ग) कुफा में
(घ) दमिश्क में।
उत्तर:
(ख) मक्का में

10. पैगंबर मुहम्मद का संबंध किस कबीले से था ?
(क) हाशिम
(ख) अब्बास
(ग) कुरैश
(घ) उमय्यद।
उत्तर:
(क) हाशिम

11. पैगंबर मुहम्मद को जब इलहाम प्राप्त हुआ तो उस समय उनकी आयु क्या थी ?
(क) 30 वर्ष
(ख) 35 वर्ष
(ग) 40 वर्ष
(घ) 42 वर्ष।
उत्तर:
(ग) 40 वर्ष

12. मुहम्मद साहिब ने अपने पैगंबर होने की घोषणा कब की ?
अथवा
पैगंबर मुहम्मद ने अपना प्रचार कार्य कब आरंभ किया ?
(क) 610 ई० में
(ख) 612 ई० में
(ग) 615 ई० में
(घ) 622 ई० में।
उत्तर:
(ख) 612 ई० में

13. पैगंबर मुहम्मद ने अपना प्रथम प्रवचन कहाँ किया ?
(क) मक्का में
(ख) मदीना में
(ग) ईरान में
(घ) बद्र में।
उत्तर:
(क) मक्का में

14. इस्लाम में किस घटना को हिजरत कहा जाता है ?
(क) जब पैगंबर मुहम्मद का जन्म हुआ
(ख) जब पैगंबर मुहम्मद को ज्ञान प्राप्त हुआ
(ग) जब पैगंबर मुहम्मद ने अपना प्रचार आरंभ किया
(घ) जब पैगंबर महम्मद मक्का से मदीना गए।
उत्तर:
(घ) जब पैगंबर महम्मद मक्का से मदीना गए।

15. पैगंबर मुहम्मद मक्का से मदीना कब गए ?
अथवा
पैगंबर मुहम्मद ने हिजरत कब की ?
(क) 612 ई० में
(ख) 615 ई० में
(ग) 622 ई० में
(घ) 632 ई० में।
उत्तर:
(ग) 622 ई० में

16. इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत कब से हुई ?
(क) 622 ई० में
(ख) 632 ई० में
(ग) 570 ई० में
(घ) 612 ई० में।
उत्तर:
(क) 622 ई० में

17. बद्र की लड़ाई कब हुई थी ?
(क) 612 ई० में
(ख) 622 ई० में
(ग) 624 ई० में
(घ) 634 ई० में।
उत्तर:
(ग) 624 ई० में

18. पैगंबर महम्मद ने मक्का पर कब विजय प्राप्त की ?
(क) 627 ई० में
(ख) 628 ई० में
(ग) 630 ई० में
(घ) 635 ई० में।
उत्तर:
(ग) 630 ई० में

19. पैगंबर मुहम्मद ने किसे इस्लामी साम्राज्य की राजधानी घोषित किया ?
(क) काबा को
(ख) मक्का को
(ग) मदीना को
(घ) जेरुसलम को।
उत्तर:
(ग) मदीना को

20. पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु कब हुई थी ?
(क) 612 ई० में
(ख) 622 ई० में
(ग) 632 ई० में
(घ) 637 ई० में।
उत्तर:
(ग) 632 ई० में

21. पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु कहाँ हुई थी ?
(क) ईरान में
(ख) मदीना में
(ग) मक्का में
(घ) सीरिया में।
उत्तर:
(ख) मदीना में

22. इस्लाम की धार्मिक पुस्तक है
(क) सुन्नत
(ख) हदीस
(ग) कुरान
(घ) कयास।
उत्तर:
(ग) कुरान

23. कुरान किस भाषा में लिखी गई थी ?
(क) उर्दू में
(ख) फ़ारसी में
(ग) अरबी में
(घ) अंग्रेजी में।
उत्तर:
(ग) अरबी में

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

24. पैगंबर मुहम्मद के उपदेशों का संग्रह किस नाम से जाना जाता है ?
(क) कुरान
(ख) हदीस
(ग) सुन्नत
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(क) कुरान

25. पैगंबर मुहम्मद की शिक्षा थी
(क) अल्लाह एक है
(ख) मूर्ति पूजा मत करो
(ग) पवित्र जीवन व्यतीत करो
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

26. प्रत्येक मुसलमान के लिए एक दिन में कितनी बार नमाज पढ़ना आवश्यक है ?
(क) एक बार
(ख) दो बार
(ग) पाँच बार
(घ) सात बार।
उत्तर:
(ग) पाँच बार

27. खिलाफ़त का उद्देश्य क्या था ?
(क) इस्लाम की रक्षा एवं प्रसार करना
(ख) कबीलों पर नियंत्रण स्थापित करना
(ग) राज्य के लिए संसाधन जुटाना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

28. मुसलमानों का प्रथम खलीफ़ा कौन था ?
(क) अबू बकर
(ख) उमर
(ग) अली
(घ) उथमान।
उत्तर:
(क) अबू बकर

29. अबू बकर मुसलमानों का प्रथम खलीफ़ा कब नियुक्त हुआ था ?
(क) 622 ई० में
(ख) 632 ई० में
(ग) 634 ई० में
(घ) 642 ई० में।
उत्तर:
(ख) 632 ई० में

30. निम्नलिखित में से कौन-सा कर गैर-मुसलमानों से प्राप्त किया जाता था ?
(क) जकात
(ख) जज़िया
(ग) फे
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) जज़िया

31. भिम्मीस से क्या अभिप्राय है ?
(क) ये संरक्षित लोग थे
(ख) ये जिला अधिकारी थे
(ग) ये भू-राजस्व अधिकारी थे
(घ) ये शासक वर्ग से संबंधित थे।
उत्तर:
(क) ये संरक्षित लोग थे

32. ऊँटों की लड़ाई कब हुई ?
(क) 644 ई० में
(ख) 645 ई० में
(ग) 656 ई० में
(घ) 657 ई० में।
उत्तर:
(ग) 656 ई० में

33. उमय्यद वंश का संस्थापक कौन था ?
(क) अली
(ख) उथमान
(ग) मुआविया
(घ) अल मंसूर।
उत्तर:
(ग) मुआविया

34. निम्नलिखित में से किस खलीफ़ा ने दमिश्क को अपनी राजधानी बनाया ?
(क) मुआविया
(ख) अली
(ग) अब्द-अल-मलिक
(घ) याजिद।
उत्तर:
(क) मुआविया

35. उमय्यद वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध खलीफ़ा कौन था ?
(क) मुआविया
(ख) अब्द-अल-मलिक
(ग) याजिद
(घ) सुलेमान।
उत्तर:
(ख) अब्द-अल-मलिक

36. उस खलीफ़ा का नाम बताएं जिसे ‘राजाओं का पिता’ कहा जाता था।
अथवा
उस खलीफ़ा का नाम बताएँ जिसने इस्लामी सिक्कों का प्रचलन किया।
(क) अब्द-अल-मलिक
(ख) अल मंसूर
(ग) अल महदी
(घ) उथमान।
उत्तर:
(क) अब्द-अल-मलिक

37. अब्द-अल-मलिक ने ‘डोम ऑफ़ दी रॉक’ नामक प्रसिद्ध मस्जिद का निर्माण कहाँ करवाया था ?
(क) मदीना में
(ख) समारा में
(ग) जेरुसलम में
(घ) बग़दाद में।
उत्तर:
(ग) जेरुसलम में

38. अब्द-अल-मलिक के सिक्कों पर कौन-सी भाषा अंकित थी ?
(क) उर्दू
(ख) अरबी
(ग) फ़ारसी
(घ) पहलवी।
उत्तर:
(ख) अरबी

39. उमय्यद वंश का अंतिम खलीफ़ा कौन था ?
(क) मुआविया
(ख) अब्द-अल-मलिक
(ग) वालिद द्वितीय
(घ) मारवान द्वितीय।
उत्तर:
(घ) मारवान द्वितीय।

40. उमय्यद वंश के पतन के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा कारण उत्तरदायी था ?
(क) उमय्यद वंश के अधिकाँश खलीफे विलासप्रिय थे
(ख) उमय्यद वंश के अधिकारी स्वार्थी थे
(ग) शिया वंश के लोग उमय्यद शासन के कट्टर विरोधी थे
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

41. किस आंदोलन ने उमय्यद वंश को उखाड़ फेंका ?
(क) दवा
(ख) धर्मयुद्ध
(ग) जिहाद
(घ) मवाली।
उत्तर:
(क) दवा

42. अब्बासी वंश का संस्थापक कौन था ?
(क) अबू बकर
(ख) अली
(ग) मुआविया
(घ) अबू-अल-अब्बास।
उत्तर:
(घ) अबू-अल-अब्बास।

43. अब्बासी कौन थे ?
(क) पैगंबर मुहम्मद के चाचा अल-अब्बास के वंशज
(ख) पैगंबर मुहम्मद की पुत्री फ़ातिमा के वंशज
(ग) अबू बकर के वंशज
(घ) अब्बास नगर के निवासी।
उत्तर:
(क) पैगंबर मुहम्मद के चाचा अल-अब्बास के वंशज

44. अब्बासियों की राजधानी का नाम क्या था ?
(क) बग़दाद
(ख) कुफा
(ग) मक्का
(घ) मदीना।
उत्तर:
(क) बग़दाद

45. अब्बासी वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध खलीफ़ा कौन था ?
(क) अबू-अल-अब्बास
(ख) हारुन-अल-रशीद
(ग) अल-अमीन
(घ) अल-मामुन।
उत्तर:
(ख) हारुन-अल-रशीद

46. किस मंगोल नेता ने 1258 ई० में बग़दाद पर कब्जा कर लिया था ?
(क) चंगेज़ खाँ ने
(ख) हुलेगू ने
(ग) अब्दुल्ला ने
(घ) कुबलई खाँ ने।
उत्तर:
(ख) हुलेगू ने

47. ताहिरी वंश का संस्थापक कौन था ?
(क) ताहिर
(ख) याकूब
(ग) तलहा
(घ) अल्पतिगीन।
उत्तर:
(क) ताहिर

48. तुलुनी वंश की स्थापना कहाँ हुई थी ?
(क) मिस्र में
(ख) खुरासान में
(ग) ट्रांसोक्सियाना में
(घ) समरकंद में।
उत्तर:
(क) मिस्र में

49. बुवाही वंश की स्थापना कहाँ की गई थी ?
(क) डेलाम में
(ख) काहिरा में
(ग) समरकंद में
(घ) फुस्तात में।
उत्तर:
(क) डेलाम में

HBSE 11th Class history Important Questions Chapter 4 इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई०

50. फ़ातिमी वंश की राजधानी का नाम क्या था ?
(क) बग़दाद
(ख) कुफा
(ग) काहिरा
(घ) दमिश्क।
उत्तर:
(ग) काहिरा

51. फ़ातिमा कौन थी ?
(क) पैगंबर मुहम्मद की बेटी
(ख) खलीफ़ा उमर की बेटी
(ग) फ़ातिमी वंश की संस्थापक
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) पैगंबर मुहम्मद की बेटी

52. गजनवी वंश का संस्थापक कौन था ?
(क) सुबकतिगीन
(ख) अल्पतिगीन
(ग) महमूद गज़नवी
(घ) अल्प अरसलन।
उत्तर:
(ख) अल्पतिगीन

53. सल्जुक तुर्कों ने किसे अपनी राजधानी घोषित किया था ?
(क) बग़दाद को
(ख) काहिरा को
(ग) निशापुर को
(घ) मक्का को।
उत्तर:
(ग) निशापुर को

54. केंद्रीय इस्लामी प्रदेशों के लोगों का मुख्य व्यवसाय क्या था ?
(क) कृषि
(ख) व्यापार
(ग) उद्योग
(घ) पशुपालन।
उत्तर:
(क) कृषि

55. अरब की सबसे प्रसिद्ध पैदावार क्या थी ?
(क) खजूर
(ख) कपास
(ग) चाय
(घ) पटसन।
उत्तर:
(क) खजूर

56. मध्यकाल में समरकंद किस उद्योग के लिए प्रसिद्ध था ?
(क) कागज़ उद्योग
(ख) आभूषण उद्योग
(ग) वस्त्र उद्योग
(घ) चमड़ा उद्योग।
उत्तर:
(क) कागज़ उद्योग

57. केंद्रीय इस्लामी प्रदेशों में निम्नलिखित में से कौन-सा नगर व्यापार के लिए प्रसिद्ध था ?
(क) बगदाद
(ख) दमिश्क
(ग) अलेपो
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

58. बसरा शहर कहाँ स्थित है ?
(क) ईरान में
(ख) इराक में
(ग) मिस्र में
(घ) चीन में।
उत्तर:
(ख) इराक में

59. काहिरा शहर कहाँ स्थित है ?
(क) फ्राँस में
(ख) इराक में
(ग) इटली में
(घ) मिस्र में।
उत्तर:
(घ) मिस्र में।

60. केंद्रीय इस्लामी प्रदेशों में किस प्रकार के सिक्के प्रचलित थे ?
(क) स्वर्ण
(ख) चाँदी
(ग) ताँबा
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।

61. केंद्रीय इस्लामी प्रदेश स्वर्ण कहाँ से प्राप्त करते थे ?
(क) एशिया से
(ख) अफ्रीका से
(ग) अमरीका से
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(ख) अफ्रीका से

62. गेनिज़ा अभिलेख कहाँ से प्राप्त हुए थे ?
(क) फुस्तात से
(ख) काहिरा से
(ग) बग़दाद से
(घ) समरकंद से।
उत्तर:
(क) फुस्तात से

63. राबिया कहाँ की प्रसिद्ध महिला संत थी ?
(क) कुफा की
(ख) बसरा की
(ग) बग़दाद की
(घ) समरकंद की।
उत्तर:
(ख) बसरा की

64. बयाजिद बिस्तामी का संबंध किस देश से था ?
(क) ईरान से
(ख) इराक से
(ग) स्पेन से
(घ) अफ़गानिस्तान से।
उत्तर:
(क) ईरान से

65. निम्नलिखित में से कौन काहिरा का प्रसिद्ध सूफी संत था ?
(क) बयाज़िद बिस्तामी
(ख) धुलनुन मिस्त्री
(ग) इन-अल-फ़रीद
(घ) मंसूर-अल-हल्लाज।
उत्तर:
(ग) इन-अल-फ़रीद

66. इब्न सिना को यूरोप में किस नाम से जाना जाता था ?
(क) ताबरी
(ख) बालाधुरी
(ग) एविसेन्ना
(घ) अबू नुवास।
उत्तर:
(ग) एविसेन्ना

67. उमर ख्य्याम का नाम क्यों प्रसिद्ध है ?
(क) नाटकों के लिए
(ख) कहानियों के लिए
(ग) गज़लों के लिए
(घ) रुबाइयों के लिए।
उत्तर:
(घ) रुबाइयों के लिए।

68. उमर खय्याम द्वारा लिखित पुस्तक का नाम क्या था ?
(क) शाहनामा
(ख) पंचतंत्र
(ग) एक हजार एक रातें
(घ) रिसाला।
उत्तर:
(घ) रिसाला।

69. शाहनामा का लेखक कौन था ?
(क) फिरदौसी
(ख) रुदकी
(ग) मसूदी
(घ) अल-जहीज।
उत्तर:
(क) फिरदौसी

70. ‘एक हजार एक रातें’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना किस भाषा में की गई थी ?
(क) फ़ारसी में
(ख) अरबी में
(ग) पहलवी में
(घ) उर्दू में।
उत्तर:
(क) फ़ारसी में

71. अल-जहीज़ कहाँ का प्रसिद्ध लेखक था ?
(क) काहिरा का
(ख) कुफा का
(ग) बग़दाद का
(घ) बसरा का।
उत्तर:
(घ) बसरा का।

72. अरब का महान् इतिहासकार किसे माना जाता है ?
(क) ताबरी को
(ख) अल्बरुनी को
(ग) मुकदसी को
(घ) अल-जहीज को।
उत्तर:
(क) ताबरी को

73. ताबरी की प्रसिद्ध रचना का नाम क्या है ?
(क) तहकीक मा लिल हिंद
(ख) तारीख अल-रसूल वल मुलक
(ग) किताब-अल-हैवान
(घ) अहसान-अल-तकसीम।
उत्तर:
(ख) तारीख अल-रसूल वल मुलक

74. ‘तहकीक-मा-लिल हिंद’ का लेखक कौन था ?
(क) अल्बरुनी
(ख) मसूदी
(ग) बालाधुरी
(घ) अल-जहीज।
उत्तर:
(क) अल्बरुनी

75. डोम ऑफ़ दी रॉक नामक प्रसिद्ध मस्जिद का निर्माण कहाँ किया गया था ?
(क) बगदाद में
(ख) काहिरा में
(ग) जेरुसलम में
(घ) कुफा में।
उत्तर:
(ग) जेरुसलम में

76. धर्मयुद्ध किनके मध्य हुए?
(क) यहूदियों एवं ईसाइयों के मध्य
(ख) ईसाइयों एवं मुसलमानों के मध्य
(ग) पारसियों एवं मुसलमानों के मध्य
(घ) मुसलमानों एवं हिंदुओं के मध्य।
उत्तर:
(ख) ईसाइयों एवं मुसलमानों के मध्य

77. किस स्थान को लेकर ईसाइयों एवं मुसलमानों के मध्य धर्मयुद्ध हुए ?
(क) बगदाद
(ख) मक्का
(ग) मदीना
(घ) जेरुसलम।
उत्तर:
(घ) जेरुसलम।

78. प्रथम धर्मयुद्ध कब आरंभ हुआ?
(क) 1095 ई० में
(ख) 1096 ई० में
(ग) 1097 ई० में
(घ) 1098 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1096 ई० में

79. प्रथम धर्मयुद्ध के दौरान निम्नलिखित में से किसकी पराजय हुई ?
(क) ईसाइयों की
(ख) मुसलमानों की
(ग) पारसियों की
(घ) यहूदियों की।
उत्तर:
(ख) मुसलमानों की

80. द्वितीय धर्मयुद्ध कब से लेकर कब तक चला?
(क) 1144 ई० से 1149 ई० तक
(ख) 1145 ई० से 1147 ई० तक
(ग) 1146 ई० से 1150 ई० तक
(घ) 1147 ई० से 1149 ई० तक।
उत्तर:
(घ) 1147 ई० से 1149 ई० तक।

81. सलादीन कहाँ का शासक था?
(क) मिस्र का
(ख) बग़दाद का
(ग) रोम का
(घ) फ्राँस का।
उत्तर:
(क) मिस्र का

82. तृतीय धर्मयुद्ध कब आरंभ हुआ था?
(क) 1187 ई० में
(ख) 1189 ई० में
(ग) 1191 ई० में
(घ) 1291 ई० में।
उत्तर:
(ख) 1189 ई० में

83. ईसाइयों एवं मुसलमानों में कुल कितने धर्मयुद्ध हुए थे?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) आठ।
उत्तर:
(घ) आठ।

इस्लाम का उदय और विस्तार : लगभग 570-1200 ई० HBSE 11th Class History Notes

→ सातवीं शताब्दी ई० में इस्लाम के उदय से पूर्व अरब सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में बहुत पिछड़ा हुआ था। अरब के बदू लोग खानाबदोशी जीवन व्यतीत करते थे। लूटमार करना एवं आपस में झगड़ना उनके लिए एक सामान्य बात थी।

→  समाज में स्त्रियों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। लोगों का नैतिक स्तर अपने न्यूनतम स्तर पर था।

→ समाज में दासों के साथ बहुत क्रूर व्यवहार किया जाता था। उस समय अरब में कृषि, उद्योग एवं व्यापार उन्नत न थे। अरब लोगों में मूर्ति पूजा का व्यापक प्रचलन था तथा वे अंध-विश्वासों में विश्वास रखते थे।

→ उस समय अरब लोग अनेक कबीलों में बँटे हुए थे। प्रत्येक कबीले का मुखिया एक शेख होता था। उसका चुनाव व्यक्तिगत साहस एवं बुद्धिमत्ता के आधार पर किया जाता था।

→ 570 ई० में इस्लाम के संस्थापक पैगंबर मुहम्मद का जन्म कुरैश कबीले में हुआ। माता-पिता की शीघ्र मृत्यु के कारण उनका बचपन अनेक कठिनाइयों में व्यतीत हुआ। 595 ई० में खदीजा के साथ उनका विवाह उनके जीवन में एक नया मोड़ प्रमाणित हुआ। 610 ई० में पैगंबर मुहम्मद को मक्का की हीरा नामक गुफ़ा में नया ज्ञान प्राप्त हुआ।

→ यह ज्ञान उन्हें महादूत जिबरील ने दिया। 612 ई० में पैगंबर मुहम्मद ने मक्का में अपना प्रथम सार्वजनिक उपदेश दिया। इस अवसर पर उन्होंने एक नए समाज का गठन किया जिसे उम्मा का नाम दिया गया।

→ मक्का के लोग पैगंबर मुहम्मद के विचारों से सहमत न थे। अत: वे उसके दुश्मन बन गए। बाध्य होकर 622 ई० में पैगंबर मुहम्मद ने मक्का से मदीना को हिज़रत की। 630 ई० में उन्होंने मक्का पर विजय प्राप्त की। निस्संदेह यह उनके जीवन की एक महान् सफलता थी।

→ पैगंबर मुहम्मद ने लोगों को एक अल्लाह, आपसी भाईचारे, सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करने एवं स्त्रियों का सम्मान करने का संदेश दिया। उनकी इन शिक्षाओं का लोगों के दिलों पर जादुई प्रभाव पड़ा एवं वे बड़ी संख्या में इस्लाम में सम्मिलित हुए। 632 ई० में पैगंबर मुहम्मद हमें सदैव के लिए अलविदा कह गए।

→ पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु के पश्चात् खिलाफ़त संस्था का उदय हुआ। इसका प्रमुख उद्देश्य इस्लाम का प्रसार करना एवं कबीलों पर नियंत्रण रखना था। 632 ई० से लेकर 661 ई० के मध्य चार खलीफ़ों-अबू बकर, उमर, उथमान एवं अली ने शासन किया। इन खलीफ़ों ने इस्लाम के प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दिया।

→ ये सभी खलीफ़े पैगंबर मुहम्मद के निकट संबंधी थे। 661 ई० में मुआविया ने उमय्यद वंश की स्थापना की। उसने दमिश्क को इस्लामी साम्राज्य की राजधानी घोषित किया। उमय्यद वंश का सबसे महान् खलीफ़ा अब्द-अल-मलिक था। उसने 685 ई० से 705 ई० तक शासन किया।

→ उसने इस्लामी सिक्के चलाए, अरबी को राज्य की भाषा घोषित किया एवं जेरुसलम में प्रसिद्ध डोम ऑफ़ दी रॉक नामक मस्जिद का निर्माण किया। उमय्यद वंश के शासकों ने 750 ई० तक

→ शासन किया। 750 ई० में अबू-अल-अब्बास ने अब्बासी वंश की स्थापना की। इस वंश के शासकों ने 1258 ई० तक शासन किया। हारुन-अल-रशीद (786-809 ई०) अब्बासी वंश का सबसे महान् खलीफ़ा प्रमाणित हुआ। 9वीं शताब्दी में अब्बासी साम्राज्य का विखंडन आरंभ हो गया था।

→ अतः अनेक सल्तनतों का उदय हुआ। इनमें ताहिरी वंश (820-873 ई०), समानी वंश (874-999 ई०), तुलुनी वंश (868-905 ई०), बुवाही वंश (932-1055 ई०), फ़ातिमी वंश (909-1171 ई०), गज़नवी वंश (962-1186 ई०) एवं सल्जुक वंश (1037-1300 ई०) के नाम उल्लेखनीय हैं।

→ मध्यकालीन इस्लामी देशों की अर्थव्यवस्था काफी प्रफुल्लित थी। इसका कारण यह था कि उन्होंने कृषि एवं उद्योग के क्षेत्र में काफी प्रगति कर ली थी। इस कारण उनके व्यापार को एक नई दिशा प्राप्त हुई। इस काल में सूफ़ी मत का उत्थान हुआ। राबिया, बयाज़िद बिस्तामी, धुलनुन मिस्त्री, मंसूर-अल-हल्लाज़ एवं इब्न-अल-फरीद सूफी मत के लोकप्रिय संत थे।

→ सूफ़ी मत की शिक्षाएँ अत्यंत साधारण थीं। अत: इनका लोगों पर जादुई प्रभाव पड़ा। इस काल में साहित्य के क्षेत्र में अद्वितीय प्रगति हुई। इब्न सिना, अबु नुवास, रुदकी, उमर खय्याम, फिरदौसी, इब्न अल-मुक्फ्फा , अल जहीज, बालाधुरी, ताबरी एवं मसूदी आदि लेखकों ने साहित्य के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान दिया।

→ 1096 ई० से 1272 ई० के मध्य ईसाइयों एवं मुसलमानों में 8 धर्मयुद्ध लड़े गए। इन धर्मयुद्धों का उद्देश्य ईसाइयों द्वारा अपनी पवित्र भूमि जेरुसलम को मुसलमानों के कब्जे से स्वतंत्र करवाना था। इन धर्मयुद्धों के अंत में ईसाई विफल रहे। इन धर्मयुद्धों के दूरगामी परिणाम निकले।

→ 600 ई० से 1200 ई० के दौरान केंद्रीय इस्लामी प्रदेशों के इतिहास की जानकारी के लिए हमें बड़ी संख्या में विभिन्न स्रोत उपलब्ध हैं। इनमें सर्वाधिक उल्लेखनीय ऐतिहासिक एवं अर्ध-ऐतिहासिक रचनाएँ हैं। इनमें से अधिकाँश रचनाएँ अरबी (Arabic) भाषा में हैं।

→ इनमें सर्वाधिक उल्लेखनीय ताबरी (Tabri) की तारीख अल रसूल वल मुलक (Tarikh al-Rasul-Wal Muluk) है। इसमें इस्लामी इतिहास पर बहुमूल्य प्रकाश डाला गया है। अरबी की तुलना में फ़ारसी में लिखे गए ऐतिहासिक ग्रंथ बहुत कम हैं।

→ ये ग्रंथ ईरान एवं मध्य एशिया के इतिहास के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं। सीरियाक (Syriac) भाषा में लिखे गए ईसाई ग्रंथ भी कम संख्या में हैं किंतु ये आरंभिक इस्लाम के इतिहास के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। अर्ध-ऐतिहासिक रचनाओं में जीवन चरित (biographies), पैगंबर मुहम्मद के कथनों एवं कार्यों के रिकॉर्ड (हदीथ) एवं कुरान की टीकाएँ (commentaries) सम्मिलित हैं।

→ इनके अतिरिक्त उस समय की प्रसिद्ध कानूनी पुस्तकें, भूगोल, यात्रा वृतांत एवं साहित्यिक रचनाएँ भी इस्लामी इतिहास के बारे में जानकारी प्रदान करती हैं।

→ दस्तावेज़ी साक्ष्य (documentary evidence) भी इस्लामी इतिहास के बारे में महत्त्वपूर्ण रोशनी डालते हैं। इनसे हमें उस काल की महत्त्वपूर्ण राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं धार्मिक जानकारी प्राप्त होती है। इनका महत्त्व इस बात में है कि ये अपने मूल रूप में उपलब्ध हैं तथा इनमें मनमाने ढंग से परिवर्तन नहीं किया जा सकता।

→ प्रशासनिक इतिहास की जानकारी के लिए यूनानी एवं अरबी पैपाइरस (papyri) तथा गेनिज़ा अभिलेख (Geniza records) काफी उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। मुद्राशास्त्र (सिक्कों का अध्ययन) तथा पुरालेखशास्त्र (शिलालेखों का अध्ययन) उस काल के आर्थिक, राजनीतिक एवं कला इतिहास की महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।

→ वास्तव में इस्लाम के इतिहास ग्रंथ लिखे जाने का कार्य 19वीं शताब्दी में जर्मनी एवं नीदरलैंड के विश्वविद्यालयों के अध्यापकों द्वारा आरंभ किया गया। फ्राँसीसी एवं ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने भी औपनिवेशिक हितों के चलते इस्लाम का अध्ययन किया। ईसाई पादरियों ने भी इस्लाम से संबंधित कुछ पुस्तकें लिखीं।

→ इनका उद्देश्य यद्यपि इस्लाम का ईसाई धर्म से तुलना करना था। इग्नाज़ गोल्डज़िहर (Ignaz Goldziher) जो कि हंगरी का एक प्रसिद्ध यहूदी था

→ हिरा के इस्लामी कॉलेज में अध्ययन किया। उसने जर्मन भाषा में इस्लाम से संबंधित अनेक पुस्तकों की रचना की। इन विद्वानों को अरबी एवं फ़ारसी भाषा की अच्छी जानकारी थी। इन्हें प्राच्यविद (Orientalists) कहा जाता है।

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