Author name: Bhagya

HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरंग-प्रकाशिकी

Haryana State Board HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरंग-प्रकाशिकी Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरंग-प्रकाशिकी

वस्तुनिष्ठ प्रश्न:

प्रश्न 1.
हाइगेंस के सिद्धान्त में समान अवस्था में कम्पन कर रहे कणों का तल कहलाता है:
(अ) तरंगाग्र
(ब) अर्द्धावर्ती कटिबंध
(स) अर्द्ध तरंग कटिबंध
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) तरंगाग्र

प्रश्न 2.
हाइगेंस का सिद्धान्त लागू होता है:
(अ) केवल प्रकाश तरंगों के लिये
(ब) केवल ध्वनि तरंगों के लिये
(स) केवल यांत्रिक तरंगों के लिये
(द) उपर्युक्त सभी तरंगों के लिये।
उत्तर:
(ब) केवल ध्वनि तरंगों के लिये

HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरंग-प्रकाशिकी

प्रश्न 3.
हाइगेंस तरंग सिद्धान्त द्वारा निम्नलिखित में से किस घटना की व्याख्या नहीं हो सकती है:
(अ) अपवर्तन
(ब) डॉप्लर प्रभाव
(स) व्यतिकरण
(द) प्रकाश-विद्युत प्रभाव।
उत्तर:
(ब) डॉप्लर प्रभाव

प्रश्न 4.
हाइगेंस के द्वितीयक तरंगिकाओं के सिद्धान्त में पीछे की ओर लौटने वाली तरंग की अनुपस्थिति साबित की:
(अ) हाइगेंस ने
(ब) न्यूटन ने
(स) स्टोक ने
(द) फ्रेनल ने।
उत्तर:
(स) स्टोक ने

प्रश्न 5.
जब प्रकाश की किरण ऐसे माध्यम में से गुजरती है जिसमें वेग कम होता है तो उसकी तरंगदैर्घ्य तथा आवृत्ति का मान क्रमश:
(अ) बढ़ेगा, बढ़ेगा
(ब) घटेगा, अपरिवर्तित
(स) बढ़ेगा, अपरिवर्तित
(द) घंटेगा, घटेगा
उत्तर:
(ब) घटेगा, अपरिवर्तित

प्रश्न 6.
वायु में संचरित एक प्रकाश किरण की तरंगदैर्ध्य λ, आवृत्ति v, वेग तथा तीव्रता I है । यदि यह किरण जल में प्रवेश कर जाती है, तो इन राशियों के मान क्रमशः λ,v,I तथा I’ हो जाते हैं। निम्नलिखित में से कौनसा सम्बन्ध सही है:
(अ) λ = λ
(ब) v = v’
(स) v = v’
(द) I = I’
उत्तर:
(ब) v = v’

प्रश्न 7.
यंग के द्विक रेखा छिद्र प्रयोग में एक स्थिर बिन्दु पर जहाँ पथान्तर = λ/6 (λ = प्रयुक्त प्रकाश की तरंगदैर्घ्य) है, तीव्रता I है। यदि I0 अधिकतम तीव्रता होत बराबर है:
(अ) 3/4
(ब) 1/√2
(स) √3/2
(द) 1/2
उत्तर:
(अ) 3/4

प्रश्न 8.
दो तरंगें कला सम्बद्ध कहलाती हैं यदि उनके-
(अ) आयाम समान हों
(ब) केवल तरंग समान हों
(स) आयाम व तरंगदैर्ध्य समान हों
(द) बीच कलान्तर स्थिर रहे तथा तरंगदैर्घ्य समान हो।
उत्तर:
(द) बीच कलान्तर स्थिर रहे तथा तरंगदैर्घ्य समान हो।

प्रश्न 9.
यंग के द्विछिद्र रेखा प्रयोग में श्वेत प्रकाश प्रयुक्त करने पर:
(अ) केवल श्वेत व काली फ्रिंजें प्राप्त होंगी
(ब) श्वेत फ्रिंजें प्राप्त होंगी
(स) केन्द्रीय फ्रिंज श्वेत लेकिन दो-तीन फ्रिंजें रंगीन काली दिखाई देंगी
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) केन्द्रीय फ्रिंज श्वेत लेकिन दो-तीन फ्रिंजें रंगीन काली दिखाई देंगी

प्रश्न 10.
द्विप्रिज्म के प्रयोग में कला सम्बद्ध स्रोत प्राप्त किये जाते हैं:
(अ) परावर्तन द्वारा
(ब) अपवर्तन द्वारा
(स) व्यतिकरण द्वारा
(द) विवर्तन द्वारा
उत्तर:
(ब) अपवर्तन द्वारा

प्रश्न 11.
यह प्रकाश स्रोत से उत्सर्जित दो प्रकाश तरंगों द्वारा P बिन्दु पर विस्थापन क्रमश: Y = 5sinor तथा Y2 = 3cosot है, तो दोनों तरंगें होंगी:
(अ) कला असम्बद्ध
(ब) कला सम्बद्ध
(स) आंशिक कला सम्बद्ध
(द) कुछ नहीं कह सकते हैं।
उत्तर:
(ब) कला सम्बद्ध

प्रश्न 12.
समान आयाम व समान तरंगदैर्घ्य की दो तरंगें विभिन्न कलाओं में अध्यारोपित की जाती हैं परिणामी तरंग का आयाम अधिकतम होगा जब उनके बीच कलान्तर है:
(अ) शून्य
(ब) π/2
(स) π
(द) 3π/2
उत्तर:
(अ) शून्य

प्रश्न 13.
प्रकाश स्रोत कला सम्बद्ध होगा, यदि:
(अ) उनके उद्गम स्थान पर कलान्तर नियत रहता है।
(ब) उनके आयाम समान हों।
(स) उनकी आवृत्ति समान हो।
(द) उपर्युक्त सभी बातें उपस्थित हों।
उत्तर:
(अ) उनके उद्गम स्थान पर कलान्तर नियत रहता है।

प्रश्न 14.
यंग के प्रयोग से यदि d को नियम रखते हुये रेखा छिद्र की चौड़ाई बढ़ाई जाये:
(अ) फ्रिज चौड़ाई बढ़ेगी
(ब) फ्रिज चौड़ाई घटेगी
(स) फ्रिज चौड़ाई अपरिवर्तित रहेगी
(द) धीरे-धीरे फ्रिंजें ही लुप्त हो जायेंगी।
उत्तर:
(द) धीरे-धीरे फ्रिंजें ही लुप्त हो जायेंगी।

प्रश्न 15.
एक व्यतिकरण प्रतिरूप में महत्तम तथा न्यूनतम तीव्रताओं का अनुपात 25 : 1 है। व्यतिकरण उत्पन्न करने वाली तरंगों की तीव्रताओं का अनुपात है:
(अ) 25 : 1
(ब) 5 : 1
(स) 9 : 4
(द) 625 : 1
उत्तर:
(स) 9 : 4

प्रश्न 16.
प्रकाश के कला सम्बद्ध स्रोत हैं संपोषी व्यतिकरण उत्पन्न करते जबकि उनके मध्य कलान्तर होता है:
(अ) π
(ब) π/2
(स) 3π/2
(द) 2π
उत्तर:
(द) 2π

प्रश्न 17.
श्वेत प्रकाश से उत्पन्न व्यतिकरण प्रतिरूप में प्राप्त केन्द्रीय श्वेत दीप्त फ्रिंज के समीप चमकीली फ्रिंज का रंग होगा:
(अ) लाल
(ब) पीला
(स) हरा
(द) बैंगनी।
उत्तर:
(द) बैंगनी।

प्रश्न 18.
यदि यंग के द्वि-स्लिट व्यतिकरण प्रयोग में स्लिटों के बीच की दूरी तीन गुनी कर दी जाये तो फ्रिजों की चौड़ाई हो जाती है:
(अ) \(\frac{1}{3}\) गुनी
(ब) \(\frac{1}{9}\)गुनी
(स) 3 गुनी
(द) 9 गुनी
उत्तर:
(अ) \(\frac{1}{3}\) गुनी

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प्रश्न 19.
यंग के द्वि- स्लिट प्रयोग में सोडियम लैम्प को नीले प्रकाश लैम्प से बदल दिया जाता है, तब:
(अ) फ्रिंजें चमकीली हो जायेंगी
(ब) फ्रिंजें हल्की पड़ जायेंगी
(स) फ्रिज-चौड़ाई बढ़ जायेगी
(द) फ्रिंज-चौड़ाई कम हो जायेगी।
उत्तर:
(अ) \(\frac{1}{3}\) गुनी

प्रश्न 20.
यंग के प्रयोग को पानी में ले जाकर पूरा किया जाये तो फ्रिज चौड़ाई:
(अ) अपरिवर्तित रहेगी
(ब) घट जायेगी
(द) आँकड़े अपर्याप्त हैं।
(स) बढ़ जायेगी
उत्तर:
(ब) घट जायेगी

प्रश्न 21.
यंग के किसी द्वि-झिरी प्रयोग में से एकवर्णी प्रकाश स्रोत का उपयोग किया जाता है। पर्दे पर बनी व्यतिकरण फ्रिजों की आकृति है:
(अ) सरल रेखा
(ब) परवलय
(स) अतिपरवलय
(द) वृत्त।
उत्तर:
(स) अतिपरवलय

प्रश्न 22.
यंग के द्विक रेखा छिद्र प्रयोग में दोनों स्लिटों को एकवर्णी प्रकाश से प्रकाशित करके व्यतिकरण प्रारूप पर्दे पर प्राप्त किया गया है। जब व्यतिकारी पुंजों में से किसी एक के मार्ग में एक माइका की पतली पट्टी रख दी जाती है, तो-
(अ) फ्रिज चौड़ाई बढ़ जाती है
(ब) फ्रिज चौड़ाई घट जाती है।
(स) फ्रिज चौड़ाई समान रहती है, परन्तु व्यतिकरण प्रारूप विस्थापित हो जाता है
(द) व्यतिकरण प्रारूप अदृश्य हो जाता है।
उत्तर:
(स) फ्रिज चौड़ाई समान रहती है, परन्तु व्यतिकरण प्रारूप विस्थापित हो जाता है

प्रश्न 23.
यंग के द्विक रेखा – छिद्र प्रयोग में d, D तथा λ क्रमश: स्लिटों के बीच की दूरी, स्लिटों से पर्दे की दूरी तथा प्रकाश तरंगदैर्ध्य को व्यक्त करते हैं। फ्रिज चौड़ाई β के लिये निम्नलिखित में से कौन सत्य है/हैं:
(अ) β α D
(ब) β α d
(स) β α λ
(द) β α \(\frac{1}{d}\)
उत्तर:
(अ) β α D

प्रश्न 24.
साबुन के बुलबुले श्वेत प्रकाश में देखने पर रंगीन दिखाई देते हैं। इस घटना का कारण है:
(अ) प्रकीर्णन
(ब) व्यतिकरण
(स) विक्षेपण
(द) विवर्तन
उत्तर:
(ब) व्यतिकरण

प्रश्न 25.
I तथा 4I तीव्रताओं की दो प्रकाश तरंगें व्यतिकरण द्वारा पर्दे पर फ्रिंजें बनाती हैं पर्दे के बिन्दु A पर तरंगों के बीच कलान्तर तथा बिन्दु B पर है। तब A तथा B पर परिणामी तीव्रताओं के बीच अन्तर है:
(अ) 2I
(ब) 4I
(स) 5I
(द) I
उत्तर:
(ब) 4I

प्रश्न 26.
यंग के द्विरेखा छिद्र प्रयोग में तरंगदैर्ध्य 6000 À है, पर्दा रेखा- छिद्रों से 40 सेमी की दूरी पर है तथा फ्रिंजों की परस्पर दूरी 0.012 सेमी. है। रेखा छिद्रों के बीच अन्तराल है:
(अ) 0.24 मिमी.
(ब) 0.024 मिमी.
(स) 0.2 मिमी.
(द) 2.0 मिमी.।
उत्तर:
(द) 2.0 मिमी.।

प्रश्न 27.
यंग के द्विस्लिट प्रयोग में दो स्लिटों S1 व S2 के बीच की दूरी 1 मिमी. है। प्रत्येक स्लिट की चौड़ाई कितनी हो कि द्विस्लिट का 10वाँ उच्चिष्ठ स्लिट के केन्द्रीय उच्चिष्ठ पर प्राप्त हो?
(अ) 0.1mm
(ब) 0.2mm
(स) 0.3mm
(द) 0.4mm
उत्तर:
(ब) 0.2mm

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प्रश्न 28.
एकल छिद्र के फ्रॉनहॉफर विवर्तन प्रयोग में n कोटि के द्वितीयक उच्चिष्ठ के लिए पथान्तर (4) की शर्त है:
(अ) ∆ = (2n+1)λ/2
(ब) ∆ = n λ
(स) ∆ = (2n + 1)λ
(द) ∆ = n λ/2
उत्तर:
(अ) ∆ = (2n+1)λ/2

प्रश्न 29.
फ्रॉनहॉफर विवर्तन विवर्तन प्रतिरूप का केन्द्र होता है:
(अ) सदैव दीप्त
(ब) सदैव अदीप्त
(स) कभी दीप्त और
(द) उच्च तरंगदैर्घ्य के लिये दीप्त, लघु तरंगदैर्घ्य के लिये अदीप्त।
उत्तर:
(अ) सदैव दीप्त

प्रश्न 30.
फ्रेनल के द्विप्रिज्म से प्राप्त कला सम्बद्ध स्रोतों के बीच की दूरी बढ़ जाने पर:
(अ) फ्रिंज की चौड़ाई बढ़ जाती है।
(ब) फ्रिंजें स्पष्टतः अपरिवर्तित रहती हैं।
(स) फ्रिंज की चौड़ाई कम हो जाती है, फ्रिंज प्रतिरूप अस्पष्ट हो जाता है।
(द) फ्रिजों की चौड़ाई अपरिवर्तित रहती है।
उत्तर:
(स) फ्रिंज की चौड़ाई कम हो जाती है, फ्रिंज प्रतिरूप अस्पष्ट हो जाता है।

प्रश्न 31.
यंग द्वि- स्लिट प्रयोग को तीन बार क्रमशः हरा लाल और नीला प्रकाश प्रयुक्त करके किया गया एक बार में एक ही प्रयोग किया गया है। तीन फ्रिज चौड़ाई क्रमश: βG. βR और βB पाई गई है, तब:
(अ) βG > βB > βR
(स) βR > βB > βa
(ब) βB > βG > βR
(द) βR > βG > βB
उत्तर:
(द) βR > βG > βB

प्रश्न 32.
समान तीव्रता 1 के दो कला सम्बद्ध स्रोत से प्राप्त व्यतिकरण प्रतिरूप में माध्य तीव्रता होगी:
(अ) Io
(ब) 2Io
(स) 4Io
(द) 0
उत्तर:
(स) 4Io

प्रश्न 33.
प्रकाश के विवर्तन के लिये आवश्यक है कि अवरोधक का आकार प्रकाश तरंगों की तरंगदैर्घ्य से होना चाहिये-
(अ) बहुत बड़ा
(ब) लगभग बराबर
(स) बहुत छोटा
(द) किसी भी आकार का
उत्तर:
(ब) लगभग बराबर

प्रश्न 34.
प्रकाश के विवर्तन की व्याख्या निम्न से संभव है:
(अ) प्रकाश की क्वाण्टम प्रकृति
(ब) प्रकाश की तरंग प्रकृति
(स) प्रकाश के लिये न्यूटन का कणिका सिद्धान्त
(द) उपर्युक्त में कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) प्रकाश की तरंग प्रकृति

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प्रश्न 35.
किसी पारदर्शी पदार्थ पर प्रकाश की किरण का आपतन कोण 60° है। परावर्तित किरण पूर्णतया ध्रुवित है। पदार्थ का अपवर्तनांक
(अ) √3
(ब) 1/√3
(स) 1
(द) 1/√2
उत्तर:
(अ) √3

प्रश्न 36.
प्रकाश के ध्रुवण से पुष्टि होती है:
(अ) प्रकाश की अनुदैर्घ्य तरंग प्रकृति की
(ब) प्रकाश की अनुप्रस्थ तरंग प्रकृति की
(स) प्रकाश की कणीय प्रकृति
(द) प्रकाश की क्वांटम प्रकृति की।
उत्तर:
(ब) प्रकाश की अनुप्रस्थ तरंग प्रकृति की

प्रश्न 37.
प्रकाश तरंगों के अनुप्रस्थ होने की पुष्टि करता है:
(अ) परावर्तन
(ब) व्यतिकरण
(स) विवर्तन
(द) ध्रुवण।
उत्तर:
(द) ध्रुवण।

प्रश्न 38.
अधुवित प्रकाश ध्रुवक तथा विश्लेषक जिनके अक्षों के बीच 6 कोण है, से गुजरता है तो पारगमित प्रकाश की तीव्रता अनुक्रमानुपाती होगी:
(अ) sin θ
(ब) cos θ
(स) cos 2 θ
(द) sin 2 θ
उत्तर:
(स) cos 2 θ

प्रश्न 39.
एकल स्लिट के विवर्तन प्रतिरूप में प्राप्त केन्द्रीय फ्रिंज होती है:
(अ) न्यूनतम तीव्रता की
(ब) अधिकतम तीव्रता की
(स) तीव्रता स्लिट की चौड़ाई पर निर्भर करती है
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) अधिकतम तीव्रता की

प्रश्न 40.
स्रोत प्रकाश सफेद होने की दशा में केन्द्रीय अधिकतम के निकटतम व्यतिकरण फ्रिज का रंग क्या है?
(अ) पीला
(ब) लाल
(स) नीला
(द) बैंगनी।
उत्तर:
(द) बैंगनी।

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प्रश्न 41.
दो कला सम्बद्ध स्रोत जिनकी आवृत्ति का अनुपात 100 1 है, को व्यतिकरण फ्रिंजें उत्पन्न करने के लिये उपयोग किया जाता है। फ्रिजों में अधिकतम व न्यूनतम तीव्रता का अनुपात:
(अ) 100 : 1
(ब) 121 : 81
(स) 1 : 1
(द) 5 : 1
उत्तर:
(ब) 121 : 81

प्रश्न 42.
एक प्रकाशिक यन्त्र में प्रयुक्त प्रकाश की तरंगदैर्घ्य λ1 = 4000À तथा λ2 = 5000Å है। इनके संगत विभेदन क्षमताओं का अनुपात होगा:
(अ) 16 : 25
(ब) 9 : 1
(स) 4 : 5
(द) 5 : 4
उत्तर:
(द) 5 : 4

प्रश्न 43.
किसी पारदर्शी माध्यम में ध्रुवण कोण है तथा उस माध्यम में प्रकाश की चाल है। यदि निर्वात में प्रकाश की चाल c हो तो ip का मान है:
(अ) sin-1 (C/V)
(ब) cos-1 (V/C)
(स) tan-1 (C/V)
(द) cot-1 (V/C)
उत्तर:
(स) tan-1 (C/V)

प्रश्न 44.
प्रकाश के प्रकीर्णन पर विस्तृत अध्ययन के लिये नोबेल पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया था:
(अ) हाइगेन्स को
(ब) यंग को
(स) फ्रेनेल
(द) सी.वी. रमन को।
उत्तर:
(द) सी.वी. रमन को।

प्रश्न 45.
जब किसी ध्रुवण शीट पर 1 होता है तो उस प्रकाश की तीव्रता का अध्रुवित प्रकाश आपतित तीव्रता, जो पारगमित नहीं होता है, यह है:
(अ) 1/4I0
(ब) 1/2I0
(स) Io
(द) शून्य।
उत्तर:
(ब) 1/2I0

प्रश्न 46.
वह आपतन कोण जिस पर परावर्तित प्रकाश वायु से काँच ( अपवर्तनांक 1 ) में परावर्तन के लिये पूर्व ध्रुवित हो जाता है,
(अ) sin-1 (n)
(ब) tan-1 (n)
(स) tan-1(1/n)
(द) sin-1(1/n)
उत्तर:
(ब) tan-1 (n)

प्रश्न 47.
रेखीय ध्रुवित प्रकाश की स्थिति में विद्युत क्षेत्र सदिश का परिमाण-
(अ) समय के साथ परिवर्तित नहीं होता है।
(ब) समय के साथ आवर्ती रूप से बदलता है।
(स) समय के साथ रैखिक रूप से बढ़ता या घटता है।
(द) संचरण की दिशा के समान्तर होता है।
उत्तर:
(ब) समय के साथ आवर्ती रूप से बदलता है।

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प्रश्न 48.
किसी पदार्थ का विशिष्ट प्रकाश किरण के लिये क्रांतिक कोण 45° है। इस पदार्थ के लिये ध्रुवण कोण का मान होगा
(अ) tan-1 \(\frac{1}{\sqrt{2}}\)
(ब) tan-1 \(\sqrt{2}\)
(स) tan-1 \(\frac{1}{2}\)
(द) tan-1(1)
उत्तर:
(ब) tan-1 \(\sqrt{2}\)

प्रश्न 49.
यदि कोई प्रकाश किरण ध्रुवण कोण iB पर किसी अपवर्तनांक n के माध्यम पर आपतित है, तो ब्रस्टर के नियमानसार:
(अ) n = sin iB
(ब) n = tan iB
(स) n = cos iB
(द) n = iB/2
उत्तर:
(ब) n = tan iB

प्रश्न 50.
एक पृष्ठ पर प्रकाश 50° के ध्रुवण कोण पर आधारित होता है, प्रकाश किरण के लिये अपवर्तन कोण होगा:
(अ) 50°
(ब) 40°
(स) 140°
(द) 90°
उत्तर:
(ब) 40°

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1.
यदि एकल स्लिट विवर्तन प्रयोग में स्लिट की चौड़ाई दो गुनी कर दी जाये तो केन्द्रीय उच्चिष्ठ पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि स्लिट चौड़ाई (a) दोगुनी हो जाये तो केन्द्रीय उच्चिष्ठ की चौड़ाई (λ/a) आधी रह जायेगी, तीव्रता चार गुनी हो जायेगी क्योंकि क्षेत्रफल (1/4th) रह जायेगा।

प्रश्न 2.
दो तरंगों के आयामों का अनुपात 2 है तो इनकी तीव्रताओं का अनुपात क्या होगा?
उत्तर:
हम जानते हैं कि
तीव्रता I α [ आयाम (a)]2
अर्थात्
अतः
I α a2
I1: I2 = a12: a22

प्रश्न 3.
तरंगाग्र की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
“किसी एक माध्यम में जिसमें कोई तरंग संचरित हो रही हो, यदि हम कोई ऐसा पृष्ठ (surface) खींचें जिस पर स्थित सभी कण कम्पन की समान कला में हों, तो ऐसे पृष्ठ को ‘तरंगाग्र’ कहते हैं। समांग माध्यम में किसी तरंग का तरंगाग्र सदैव तरंग संचरण की दिशा के लम्बवत् होता है।

प्रश्न 4
तरंगाग्र कितने प्रकार के होते हैं? लिखिए।
उत्तर:
तरंगाग्र तीन प्रकार के होते हैं:
(a) गोलीय तरंगाग्र
(b) बेलनाकार तरंगाग्र
(c) समतल तरंगाग्र।

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प्रश्न 5.
हाइगेन्स के सिद्धान्त का उपयोग किसको ज्ञात करने में किया जाता है?
उत्तर:
हाइगेन्स के सिद्धान्त का उपयोग किसी माध्यम में संचरित होने वाली समतल रंग के तरंगाग्र की आकृति ज्ञात करने के लिए कर सकते हैं

प्रश्न 6.
हाइगेंस सिद्धान्त का उपयोग करते हुए समतल तरंगों का अपवर्तन सम्बन्धी स्नैल नियम को लिखिए।
उत्तर:
n sin i = n2 sin r
n1 तथा n2 क्रमशः माध्यम 1 तथा माध्यम 2 के अपवर्तनांक हैं।

प्रश्न 7.
डॉप्लर प्रभाव को लिखिए।
उत्तर:
दो उत्तरोत्तर तरंगाओं के प्रेक्षक तक पहुँचने में लगने वाला समय स्रोत तक उनके पहुँचने में लगने वाले समय की अपेक्षा अधिक होता है। अतः जब स्रोत प्रेक्षक से दूर जाता है तो प्रेक्षक द्वारा मापी जाने वाली आवृत्ति में कमी होगी। यह डॉप्लर प्रभाव कहलाता है।

प्रश्न 8.
एक बिन्दु स्रोत से निकले प्रकाश की तरंगाग्र की आकृति क्या होगी?
उत्तर:
गोलीय।

प्रश्न 9.
एक संकीर्ण स्लिट के रूप में प्रकाश स्रोत द्वारा उत्सर्जित तरंगा की आकृति कैसी होगी?
उत्तर:
बेलनाकार

प्रश्न 10.
किसी तरंगाग्र पर स्थित किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच कलान्तर कितना होता है?
उत्तर:
शून्य।

प्रश्न 11.
डॉप्लर विस्थापन को व्यक्त करने वाला समीकरण लिखिए।
उत्तर:
-∆v/v = -v/c

प्रश्न 12.
तरंगाग्र के लम्बवत् रेखा किसकी दिशा को व्यक्त करती है?
उत्तर:
तरंग संचरण की दिशा को।

प्रश्न 13.
प्रकाश के परावर्तन का प्रथम नियम बताइये।
उत्तर:
हाइगेन्स के सिद्धान्त के अनुसार प्रकाश के परावर्तन की व्याख्या इस प्रकार की गई है कि-
आपतन कोण Z i = परावर्तन कोण Zr इसमें आपतित तरंगाग्र, परावर्तित तरंगाग्र और अभिलम्ब तीनों एक ही तल में स्थित होते हैं।

प्रश्न 14.
एक्स किरणें ध्वनि तरंगों व रेडियो तरंगों में किन-किन तरंगों का ध्रुवण संभव है?
उत्तर:
X – किरणें व रेडियो तरंगें। X – किरणों का ध्रुवण सम्भव इसलिये होता है, चूँकि ये किरणें अनुप्रस्थ होती हैं जबकि ध्वनि तरंगें अनुदैर्घ्य होने के कारण ध्रुवित नहीं की जा सकती हैं।

प्रश्न 15.
व्यतिकरण में प्रकाश तरंगों की ऊर्जा का क्या होता है?
उत्तर:
व्यतिकरण में ऊर्जा का विनाश नहीं होता है। ऊर्जा का केवल पुनर्वितरण होता है। विनाशी व्यतिकरण के स्थानों पर ऊर्जा जितनी कम हो जाती है तथा संपोषी व्यतिकरण के स्थानों पर उतनी ही ऊर्जा बढ़ जाती है

प्रश्न 16.
ध्रुवित प्रकाश के विश्लेषण में ध्रुवक एवं विश्लेषक की किस व्यवस्था के लिये पारगमित प्रकाश की तीव्रता न्यूनतम होती है?
उत्तर:
ध्रुवक एवं विश्लेषक के अक्ष परस्पर लम्बवत् होने पर।

प्रश्न 17.
यदि प्रकाश की कला सम्बद्ध तरंगें विनाशी व्यतिकरण उत्पन्न करती हैं, तो उनके मध्य कलान्तर क्या होगा?
उत्तर:
कलान्तर का मान Φ = 1, 2, 3,……..

प्रश्न 18.
यंग के प्रयोग में द्वि-स्लिट को (अ) लाल (ब) नीले पारदर्शी कागज से ढककर प्रयोग किया जाये, तो फ्रिज की चौड़ाई में क्या अंतर दिखाई देगा? कारण बताइये।
उत्तर:
लाल रंग में फ्रिंज की चौड़ाई अधिक तथा नीले रंग में कम होगी। इसका मुख्य कारण यह है कि लाल रंग के लिए तरंगदैर्ध्य का मान अधिक और नीले रंग के लिए तरंगदैर्घ्य का मान कम होता है।

प्रश्न 19.
कला सम्बद्ध स्रोत क्या है?
उत्तर:
वे दो स्रोत जिनसे समान आवृत्ति या समान तरंगदैर्घ्य की तरंगें उत्सर्जित हों तथा उनके बीच का कलान्तर समय के साथ नियत रहे कला सम्बद्ध स्रोत कहलाता है।

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प्रश्न 20.
विवर्तन की घटना ध्वनि तरंगों में सामान्यतः देखी जाती है, परन्तु प्रकाश तरंगों में सामान्यतः नहीं, क्यों?
उत्तर:
सामान्यतः अवरोधों तथा द्वारकों का आकार ध्वनि तरंगों की तरंगदैर्ध्य की कोटि का होता है, प्रकाश तरंगों की तरंगदैर्घ्य की कोटि का नहीं, इसलिये ध्वनि का विवर्तन सामान्यतः देखा जा सकता है। परन्तु प्रकाश तरंगों का नहीं। प्रकाश के विवर्तन के लिये अन्य व्यवस्था करनी पड़ती है जिसमें अवरोध या रेखा छिद्र या आकार उसकी तरंगदैर्ध्य की कोटि का लिया जाता है।

प्रश्न 21.
6000 À तरंगदैर्घ्य का प्रकाश 24 x 105 सेमी. चौड़ाई की स्लिट पर अभिलम्बवत् आपतित है। केन्द्रीय उच्चिष्ठ से द्वितीय निम्निष्ठ की कोणीय चौड़ाई की गणना कीजिये।
उत्तर:
अतः केन्द्रीय उच्चिष्ठ से द्वितीय निम्निष्ठ की कोणीय चौड़ाई
= \(\frac{6000 \times 10^{-8}}{24 \times 10^{-5}}\) = \(\frac{6}{24}\) = 0.25

प्रश्न 22.
बिल्कुल एकसमान 15 वाट के दो बल्ब परस्पर अति निकट रखे गये हैं। क्या इनसे व्यतिकरण प्रभाव उत्पन्न होगा?
उत्तर:
दो बल्ब पृथक् स्रोत हैं, जो कभी भी कला सम्बद्ध नहीं हो सकते, अतः व्यतिकरण प्रभाव दृष्टिगोचर नहीं होगा।

प्रश्न 23.
यदि यंग के द्विरेखा छिद्र प्रयोग में रेखा छिद्रों के मध्य दूरी 1 मिमी पर्दे की रेखा छिद्रों से दूरी 1 मी. तथा प्रकाश तरंगदैर्घ्य 5890 A हो तो फ्रिज की चौड़ाई क्या होगी?
उत्तर:
B = λD/d
= \(\frac{5890 \times 10^{-10} \times 1}{10^{-3}}\)
β = 0.589 मिमी.
∵ दिया है:
D = 1 मीटर
d = 1 मिमी.
= 1 x 103 मीटर
= 103 मीटर
λ = 5890À = 5890
x 10-10 मीटर

प्रश्न 24.
जब साधारण प्रकाश पोलेराइड से गुजरता है तो निर्गत ध्रुवित प्रकाश की तीव्रता पोलेराइड पर आपतित प्रकाश की तीव्रता की आधी होती है, क्यों?
उत्तर:
मैलस के नियम से पोलेराइड से निर्गत प्रकाश की तीव्रता I = Io cos2θ जब आपतित प्रकाश साधारण तथा अध्रुवित होता है तो इसमें विद्युत सदिश प्रकाश के संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में सभी दिशाओं में अनियमित रूप से कम्पन करते हैं, अतः उपर्युक्त समीकरण में cos2θ का औसत मान लेना होगा जो कि 1/2 होता है। अतः I = 20

प्रश्न 25.
साधारण काँच की बजाय पोलेराइड द्वारा निर्मित धूप के चश्मों की क्या विशेषता होती है?
उत्तर:
साधारण रंगीन काँच प्रकाश का अवशोषण कर लेता है। इससे वस्तुएँ धुंधली दिखाई पड़ती हैं। इसके विपरीत पोलेराइड केवल आँखों में चकाचौंध उत्पन्न करने वाले धुवित प्रकाश को ही अवशोषित करता है।

प्रश्न 26.
मैलस का नियम बताओ।
उत्तर:
मैलस का नियम “जब अधुवित प्रकाश ध्रुवक एवं विश्लेषक दोनों से पारगमित होता है, तब निर्गत प्रकाश की तीव्रता ध्रुवक तथा विश्लेषक दोनों से पारगमित होती है, तब निर्गत प्रकाश की तीव्रता ध्रुवक तथा विश्लेषक के अक्षों के बीच के कोण के कोज्या के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होती है।” अर्थात् I α ccos2θ
यहाँ पर
I0 = I 2θ
I0 = आपतित ध्रुवित प्रकाश की तीव्रता है।

प्रश्न 27.
व्यतिकरण की घटना में जिन स्थानों पर संपोषी तथा विनाशी व्यतिकरण होता है, उन स्थानों पर अध्यारोपित तरंगों के पथान्तर का मान लिखिये।
उत्तर:
संपोषी व्यतिकरण के लिये पथान्तर nλ व विनाशी व्यतिकरण के लिये (2n – 1)λ/d
होता है। यहाँ पर
n = 0, 1, 2, 3……..

प्रश्न 28.
धुवित तथा अधुवित प्रकाश की अलग-अलग पहचान कैसे कर सकते हैं?
उत्तर:
प्रकाश के आगे पोलेराइड या टूरमैलीन क्रिस्टल को रखकर उसे अक्ष के सापेक्ष घुमाकर देखते हैं। यदि निर्गत प्रकाश की तीव्रता में परिवर्तन नहीं होता है तो आपतित प्रकाश अधुवित होगा तथा यदि तीव्रता दो बार न्यूनतम तथा दो बार अधिकतम होती है, तो अधुवित होगा

प्रश्न 29.
आपतित प्रकाश की तीव्रता को आधा करने के लिये ध्रुवक तथा विश्लेषक के मध्य कितना कोण होगा?
उत्तर:
पारगमित प्रकाश की तीव्रता I
= Iqcos2θ
∴ 21⁄2 16 = 1 cos2θ या cos2θ = 1⁄2
या cosθ = – √2
∴ θ = 45°

प्रश्न 30.
प्रकाश के विवर्तन के लिये आवश्यक शर्त क्या है?
उत्तर:
अवरोध या रेखा छिद्र (द्वारक) का आकार प्रकाश की तरंगदैर्ध्य की कोटि का होना चाहिये।

प्रश्न 31.
पोलेराइड के कोई दो प्रयोग लिखिये।
उत्तर:
(1) धूप के चश्मों में (2) रेलगाड़ी तथा वायुयान की खिड़कियों में

प्रश्न 32.
तरंगाग्र तथा किरण में अन्तर बताइये।
उत्तर:
समान कला में कम्पन करने वाले कणों का बिन्दुपथ तरंगाग्र कहलाता है। तरंगाग्र पर खींची गयी लम्बवत् रेखा तरंग संचरण की दिशा व्यक्त करती है। इसी को किरण कहते हैं।

प्रश्न 33.
फ्रेनेल दूरी किसे कहते हैं?
उत्तर:
विवर्तन प्रकाश किरणों की संकल्पना की सीमा निर्धारित करता है। इससे पहले कि विवर्तन के कारण प्रकाश प्रसारित होना प्रारम्भ करे चौड़ाई a2/λ का एक किरण पुंज एक दूरी फ्रेनेल दूरी कहलाती है।

प्रश्न 34.
ध्रुवण की घटना से प्रकाश के किस गुण की पुष्टि होती है?
उत्तर:
ध्रुवण की घटना से प्रकाश की अनुप्रस्थ तरंग प्रकृति की पुष्टि होती है।

प्रश्न 35.
प्रकाश के ध्रुवण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
प्रकाश सम्बन्धी वह घटना जिसमें प्रकाश के वैद्युत सदिश के कम्पन तरंग संचरण की दिशा के में न होकर किसी एक दिशा में लम्बवत् तल में सभी सम्भव दिशाओं सीमित कर दिये जाते हैं, प्रकाश का ध्रुवण कहलाता है तथा प्रकाश ध्रुवित प्रकाश कहलाता है।

प्रश्न 36.
जब अधुवित प्रकाश वायु से किसी पारदर्शी माध्यम में से गुजरता है तो किस दिशा में परावर्तित प्रकाश ध्रुवित होगा?
उत्तर:
जब वायु-पारदर्शी माध्यम अन्तरापृष्ठ पर प्रकाश का आपतन कोण ध्रुवण कोण के बराबर होगा।

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प्रश्न 37
व्यतिकरण में श्वेत प्रकाश की फ्रिंजें बन सकती हैं या नहीं ? यदि हाँ, तो किन परिस्थितियों में?
उत्तर:
हाँ, यदि द्विप्रिज्म या यंग के द्वि-स्लिट प्रयोग में एकवर्णीय प्रकाश के स्थान पर श्वेत प्रकाश का प्रयोग किया जाये तो केन्द्रीय फ्रिंजें श्वेत होंगी और शेष फ्रिंजें रंगीन होंगी।

प्रश्न 38.
दो तरंगों के मध्य पथान्तर (x) तथा कलान्तर (p) में सम्बन्ध बताने वाला व्यंजक लिखिये।
उत्तर:
पथान्तर (x) = λ/2π x (कलान्तर)
या
x = λ/2πΦ

प्रश्न 39.
ब्रूस्टर कोण किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब परावर्तित तरंग अपवर्तित तरंग पर परावर्तित तरंग एक पूर्ण ध्रुवित तरंग है इस अवस्था में लंबवत् है तो आपतन कोण को ब्रूस्टर कोण कहते हैं तथा इसे iB से निरूपित करते हैं।

प्रश्न 40.
ब्रूस्टर नियम किसे कहते हैं?
उत्तर:
ब्रूस्टर कोण iB सघन माध्यम के अपवर्तनांक से संबंधित
है क्योंकि iB + r = π/2 है।
स्मैल नियम से
n = \(\frac{\sin \mathrm{i}_B}{\sin r}\) = \(\frac{\sin i_B}{\sin \left(\frac{\pi}{2}-i_B\right)}\)
n = \(\frac{\sin i_B}{\cos i_B}\) = taniB
इसे ब्रूस्टर का नियम कहते हैं।

प्रश्न 41.
विवर्तन प्रभावों के कारण, किरण पुंज लगभग किस मान की त्रिज्या के धब्बे के रूप में फोकसित हो जाती है?
उत्तर:
ro = \(\frac{1.22 \lambda f}{2 a}\) = \(\frac{0.61 \lambda f}{a}\)
की त्रिज्या के धब्बे के रूप में फोकसित हो जाती है, जहाँ पर f लेंस की फोकस दूरी तथा 2a वृत्ताकार द्वारक के व्यास अथवा लेंस के व्यास में जो भी कम हो, वही है।

प्रश्न 42.
क्या कारण है कि एक अच्छे विभेदन के लिए दूरदर्शक के अभिदृश्यक का व्यास अधिक होना चाहिए?
उत्तर:
हम जानते हैं कि ∆θ = 0.612 होता है। इससे स्पष्ट है कि यदि अभिदृश्यक का व्यास अधिक है तो 46 छोटा होगा। इससे पता चलता है कि यदि का मान अधिक है तो दूरदर्शी की विभेदन क्षमता अधिक होगी। यही कारण है कि अच्छे विभेदन के लिए दूरदर्शक के अभिदृश्यक का व्यास अधिक होना चाहिए।

प्रश्न 43.
एकल झिर्री द्वारा उत्पन्न विवर्तन पेटर्न के केन्द्रीय उच्च की चौड़ाई का व्यंजक लिखिए। यह झिरी की चौड़ाई से कैसे सम्बन्धित है?
उत्तर:
केन्द्रीय उच्च की चौड़ाई = 2λD/d
स्पष्टतः यह झिर्री की चौड़ाई d के व्युत्क्रमानुपाती है।

प्रश्न 44.
अनुदैर्घ्य तरंगें ध्रुवित क्यों नहीं की जा सकतीं?
उत्तर:
अनुदैर्घ्य तरंग में कण के दोलन की दिशा माध्यम में तरंग के गमन की दिशा में होती है, इसलिए संपीडन और विरलन प्रकाश तरंगों के गमन में झिर्री में से निकल जायेंगे।

प्रश्न 45.
यदि किसी द्रव (अपवर्तनांक n = √3) की सतह से परावर्तित प्रकाश पूर्णतया समतल ध्रुवित हो जाता है तो ध्रुवण कोण कितना होगा?
उत्तर:
ब्रूस्टर नियम से
n = tan iB
ध्रुवण कोण iB = tan-1 (n)
iB = tan-1 (√3) = 60°

प्रश्न 46.
किस प्रकार का तरंगाग्र निकलेगा:
(i) बिन्दुवत् प्रकाश स्रोत से
(ii) दूरस्थ प्रकाश स्रोत से।
उत्तर:
(i) बिन्दुवत् प्रकाश स्रोत से गोलाकार तरंगाग्र निकलेगा।
(ii) दूरस्थ प्रकाश स्रोत से समतल तरंगाग्र प्राप्त होगा।

प्रश्न 47.
क्रॉस पोलेराइड की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
जिन दो पोलेराइड के ध्रुवण तल एक-दूसरे के अभिलम्ब होते हैं, उन्हें क्रॉस पोलेराइड कहते हैं।

प्रश्न 48.
प्रकाशिक यंत्र की विभेदन सीमा की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
वह न्यूनतम दूरी है जिससे दो बिन्दु वस्तुएँ पृथक्कीकृत हैं जिससे उनके बिम्बों को केवल अलग-अलग करके प्रकाशिक यंत्र से देख सकें।

प्रश्न 49.
विवर्तन किन-किन घटकों पर निर्भर होता है?
उत्तर:
यह निम्न दो घटकों पर निर्भर होता है:
(i) द्वारक (बिन्दु) के आकार तथा
(ii) तरंगदैर्ध्य।

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प्रश्न 50.
आकाशगंगा के स्पेक्ट्रम में लाल विस्थापन क्या इंगित करता है?
उत्तर:
आकाशगंगा के स्पेक्ट्रम में लाल विस्थापन डॉप्लर प्रभाव के अनुसार इस बात को इंगित करता है कि आभासी तरंगदैर्घ्य बढ़ रहा है। इसका कारण यह है कि आकाशगंगा पृथ्वी से दूर जा रही है। अर्थात् ब्रह्माण्ड का विस्तार हो रहा है।

प्रश्न 51.
एकल झिर्री विवर्तन प्रतिरूप में यदि केन्द्रीय उच्चिष्ठ की तीव्रता I है तो झिर्री की चौड़ाई दोगुनी करने पर तीव्रता का मान कितना होगा?
उत्तर:
झिर्री की चौड़ाई दोगुनी करने पर तीव्रता चार गुनी हो जायेगी।

प्रश्न 52.
एकल स्लिट विवर्तन प्रयोग में फिन्जों के बीच का कोणीय अन्तराल कैसे परिवर्तित होता है जब स्लिट तथा पर्दे के बीच की दूरी को दुगुनी कर दिया जाये?
उत्तर:
केन्द्रीय विवर्तन बैण्ड की कोणीय चौड़ाई β = 2 λD/a
या β α 1/a β α D तथा β α λ
यदि स्लिट तथा पर्दे के बीच दूरी (D) को दुगुना कर दिया जाये तो केन्द्रीय विवर्तन बैण्ड की कोणीय चौड़ाई दोगुनी हो जायेगी।

प्रश्न 53.
एकल स्लिट विवर्तन प्रयोग में स्लिट की चौड़ाई प्रारम्भिक चौड़ाई की दुगुनी कर दी जाये तो केन्द्रीय विवर्तन बैण्ड का आकार तथा तीव्रता कैसे प्रभावित होती है?
उत्तर:
केन्द्रीय विवर्तन बैण्ड की कोणीय चौड़ाई
β = 2 λD/a
अर्थात्
β α 1/a
जब स्लिट की चौड़ाई (a) को दुगुना कर दिया जाये तो केन्द्रीय बैण्ड की चौड़ाई प्रारम्भिक चौड़ाई की आधी हो जायेगी। चूँकि केन्द्रीय उच्चिष्ठ की तीव्रता 2 के अनुक्रमानुपाती होती है अतः स्लिट चौड़ाई को दुगुना करने पर केन्द्रीय उच्चिष्ठ की तीव्रता पहले की चार गुनी हो जायेगी।

लघुत्तरात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1.
हाइगेंस सिद्धान्त का महत्त्व लिखिए। इस सिद्धान्त की दो धारणाएँ क्या हैं?
उत्तर:
किसी समय दत्त स्थिति से किसी बाद के समय के ज्यामितीय रचना तथा तरंगाग्र की स्थिति के निर्धारण को हाइगेंस सिद्धान्त की महत्ता कहते हैं।
धारणाएँ:
(i) दत्त तरंगा पर जिसे प्रारम्भिक तरंगाग्र कहते हैं, प्रत्येक बिन्दु द्वितीयक तरंगों का स्रोत होता है और सभी सम्भव दिशाओं में एक ही चाल से एक ही प्रकार मूल प्रकाश स्रोत का विक्षोभ प्रसारित करती है।
(ii) किसी समय तरंगाग्र की नई स्थिति उस समय द्वितीयक तरंगिकाओं पर स्पर्शजा खींचने से प्राप्त होती है।

प्रश्न 2.
डॉप्लर प्रभाव को समझाइए और अभिरक्त विस्थापन और नीला विस्थापन को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
दो उत्तरोत्तर तरंगाग्रों के प्रेक्षक तक पहुँचने में लगने वाला समय स्रोत तक उनके पहुँचने में लगने वाले समय की अपेक्षा अधिक होता है। अतः जब स्रोत प्रेक्षक से दूर जाता है तो प्रेक्षक द्वारा मापी जाने वाली आवृत्ति में कमी होगी। यह डॉप्लर प्रभाव कहलाता है। खगोलज्ञ, तरंगदैर्घ्य में डॉप्लर प्रभाव के कारण होने वाली इस वृद्धि को अभिरक्त विस्थापन (red shift) कहते हैं, क्योंकि स्पेक्ट्रम के दृश्य क्षेत्र की मध्यवर्ती तरंगदैर्ध्य लाल छोर की ओर खिसक जाती है। जब स्रोत प्रेक्षक की ओर चलता है तो उससे प्राप्त की जाने वाली तरंगों की तरंगदैर्ध्य में आभासी कमी हो जाती है तरंगदैर्ध्य की इस कमी को नीला विस्थापन ( blue shift) कहते हैं।

आवृत्ति में भिन्नात्मक परिवर्तन 40 को जाता है, जहाँ त्रिज्य प्रेक्षक के सापेक्ष स्रोत वेग
Δυ/v = vत्रिज्य/c के द्वारा दिया का प्रेक्षक को स्रोत से जोड़ने वाली रेखा की दिशा में घटक है जब स्रोत प्रेक्षक से दूर जाता है, त्रिज्य को धनात्मक मानते हैं। इस प्रकार डॉप्लर विस्थापन को व्यक्त कर सकते हैं-
Δυ/v = vत्रिज्य/c
उपर्युक्त सूत्र तभी मान्य है जब स्रोत का वेग प्रकाश के वेग की तुलना में कम होता है।

प्रश्न 3.
व्यतिकरण के उच्च तथा न्यून प्रतिबन्ध पथांतर के पदों में लिखिए।
उत्तर:
हम जानते हैं कि
कलान्तर = 2π/λ x पथान्तर
या Φ = 2π/λy ….(i)
हम यह भी जानते हैं कि रचनात्मक व्यतिकरण के लिए
Φ = 2n2π ………(ii
समीकरण (i) तथा (ii) से
2π/λy = 2n2π
या
y = 2n. λ/2
nth उच्च के लिए माना y = Yn
yn = 2n . λ/2
अर्थात् रचनात्मक व्यतिकरण हो इसके लिए पथान्तर λ/2 समगुणज होना चाहिए।
न्यून तीव्रता के लिए
Φ = (2n + 1)π
या
2π/λy = (2n + 1) π
y = (2n + 1)λ/2
nth निम्निष्ठ के लिए
y = Yn
Yn = (2n + 1)λ/2
इस प्रकार विनाशी व्यतिकरण के लिए पथान्तर λ/2 का विषम गुणज होना चाहिए।

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प्रश्न 4.
दो समरूप कला सम्बद्ध तरंगें जिनमें प्रत्येक की तीव्रता I0 है, व्यतिकरण प्रारूप उत्पन्न कर रही है। (i) संपोषी व्यतिकरण, (ii) विनाशी व्यतिकरण वाले स्थानों पर परिणामी तीव्रता का मान लिखिये।
उत्तर:
I = I1 + I2 + 2 √I1I2 cos Φ
यहाँ पर I1 = I2 = Io
(i) संपोषी व्यतिकरण वाले स्थान पर
( जहाँ n = 0, 1, 2, …..)
Φ = 2nπ
अतः
cos Φ = 1
1 = Io + Io + 2 √IoIo
= I + Io + 2I0 = 4Io

(ii) विनाशी व्यतिकरण वाले स्थान पर
अतः
Φ = (2n – 1)π
( जहाँ n = 1, 2, ….)
cos Φ = – 1
I = Io + Io + 2 √IoIo(-1)
= 2I0 – 2I0 = 0(शून्य)

प्रश्न 5.
दो प्रकाश तरंगें y1 = a1 sin ωt तथा y2 = a2 cos (ωt + Φ) के मध्य पथान्तर कितना होगा?
उत्तर:
पहली तरंग का समीकरण
y1 = a1 sin ωt
दूसरी तरंग का समीकरण
या
y2 = a2 cos (ωt + Φ)
y2 = a2cos (ωt + Φ + π/2)
पहली तरंग तथा दूसरी तरंग के मध्य कलान्तर
∆Φ = Φ2 – Φ1
(ωt + Φ + π/2) – ωt
या
∆Φ = Φ + π/2
∵ पथान्तर के कारण कलान्तर
∆Φ = 2π/ λ × ∆x
∴ पथान्तर ∆x = \(\frac{\Delta \phi \times \lambda}{2 \pi}\)
दी गई तरंगें पहली तथा दूसरी के मध्य पथान्तर
∴ ∆x = λ/2π ( Φ + π/2)

प्रश्न 6.
व्यतिकरण एवं विवर्तन में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:

व्यतिकरणविवर्तन
  1. दो या दो से अधिक समान आवृत्ति की कला सम्बद्ध तरंगों के अध्यारोपण से व्यतिकरण की घटना होती है।
एक ही तरंगाग्र से उत्सर्जित द्वितीयक तरंगिकाओं के अध्यारोपण से विवर्तन की घटना होती है।
2. व्यतिकरण प्रतिरूप में सभी प्रदीप्त फ्रिंजों की तीव्रता समान होती है।विवर्तन प्रतिरूप में केन्द्रीय प्रदीप्त फ्रिंज की तीव्रता अधिकतम होती है और अन्य प्रदीप्त फ्रिंजों की तीव्रता घटते क्रम में होती है।
3. समान आयाम के तरंगों के व्यतिकरण प्रतिरूप में अदीप्त फ्रिंज की तीव्रता शून्य होती है।विवर्तन प्रतिरूप में अदीप्त फ्रिंजें शून्य तीव्रता की नहीं होती हैं।
4. व्यतिकरण प्रतिरूप में फ्रिंजें सामान्यतः समान चौड़ाई की होती हैं।विवर्तन प्रतिरूप में फ्रिंजें सदैव असमान चौड़ाई की होती हैं।
5. दीप्त या अदीप्त फ्रिंजों के बीच अच्छा विपर्यास (good contrast) होता है।दीप्त या अदीप्त फ्रिंजों में मंद विपर्यास (poor contrast) होता है।

प्रश्न 7.
एकवर्णी प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करता है, तो इसकी तरंगदैर्घ्य परिवर्तित हो जाती है। परन्तु आवृत्ति नहीं बदलती है, व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
जब एकवर्णी प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करता है तो प्रकाश का वेग बदल जाता है। तरंग उत्पादक स्रोत एक ही रहने के कारण उसकी आवृत्ति 1 नहीं बदलती है। अतः
सूत्र λ = v/u के आधार पर तरंगदैर्ध्य λ परिवर्तित हो जाती है।

प्रश्न 8.
यंग के द्विक रेखा छिद्र प्रयोग में प्राप्त व्यतिकरण प्रारूप किस प्रकार प्रभावित होगा? जबकि (a) S1 व S2 रेखा- छिद्रों के बीच की दूरी कम कर दी जाये तथा (b) सम्पूर्ण उपकरण जल में डुबो दिया जाये।
उत्तर:
व्यतिकरण प्रारूप में फ्रिंज की चौड़ाई
β = λD/d
(a) जबकि S1 तथा S2 रेखा – छिद्रों के बीच की दूरी d कम कर से फ्रिज की चौड़ाई दी जाये तो उपर्युक्त सूत्र के आधार पर β α 1/d का मान बढ़ जायेगा, अर्थात् व्यतिकरण फ्रिंजें परस्पर फैल जायेंगी।
(b) सम्पूर्ण उपकरण को जल में डुबोने पर सूत्र λω = λ/n के आधार पर तरंगदैर्घ्य 1 का मान बढ़ जायेगा। अतः फ्रिंज की चौड़ाई β का मान घट जायेगा चूँकि उपर्युक्त सूत्र में β α A है, अर्थात् व्यतिकरण फ्रिंजें परस्पर निकट हो जायेंगी।

प्रश्न 9.
फ्रॉनहॉफर एवं फ्रेनेल विवर्तन में मुख्य अन्तर बताइये।
उत्तर:

फ्रॉनहॉफर व्यतिकरणफ्रेनेल विवर्तन
(1) विवर्तन प्रतिरूप का केन्द्र हमेशा दीप्त ही होता है।विवर्तन प्रतिरूप का केन्द्र कभी दीप्त, कभी अदीप्त होता है। स्रोत एवं पर्दा दोनों विवर्तक से सीमित दूरी पर होते हैं।
(2) स्रोत एवं पर्दा दोनों विवर्तक से प्रभावी रूप से या वास्तव में अनन्त दूरी पर स्थित होते हैं।तरंगाग्र गोलीय या बेलनाकार होते हैं।
(3) तरंगाग्र समतल होते हैं।इसमें उत्तल लेंस का उपयोग नहीं करते हैं।
(4) इसमें उत्तल लेंस का उपयोग करते हैं।इसमें केवल एक विवर्तक का विवर्तन प्रभाव होता है।
(5) इसमें एक से अधिक विवर्तकों के विवर्तन का सम्मिलित प्रभाव हो सकता है।इसकी सैद्धान्तिक विवेचना जटिल एवं केवल सन्निकट मान देती है।
(6) इसकी सैद्धान्तिक विवेचना काफी एवं परिशुद्ध गणित की सहायता से होती है।इस विवर्तन में स्रोत एवं पर्दे की विवर्तक से दूरियाँ महत्वपूर्ण होती हैं।
(7) इस प्रकार के विवर्तन में तरंगाग्रों का विवर्तक पर झुकाव महत्वपूर्ण होता है।विवर्तन प्रतिरूप का केन्द्र कभी दीप्त, कभी अदीप्त होता है। स्रोत एवं पर्दा दोनों विवर्तक से सीमित दूरी पर होते हैं।

प्रश्न 10.
यंग के द्विझिरी प्रयोग में झिरियों के बीच द्विगुनित कर दिया जाये और झिरियों तथा पर्दे के बीच दूरी आधी रखी जाये तो फ्रिज चौड़ाई का क्या होगा?
उत्तर:
हम जानते हैं:
β = λD/d
जहाँ
d = झिरियों के बीच पृथक्कीकरण
D = पर्दे की झिरियों से दूरी
β = फ्रिज की चौड़ाई
अब माना d D’ तथा β’ नई विमा है।
d’ = 2d.
D’ = 1⁄2D
β = λ.D/d
= \(\frac{\lambda \times \frac{D}{2}}{2 d}\)
= \(\frac{1}{4}\) \(\frac{\lambda \mathrm{D}}{\mathrm{d}}\) = \(\frac{1}{4}\) β
फ्रिन्ज चौड़ाई मूल फ्रिन्ज चौड़ाई का हो जाती है।

प्रश्न 11.
एकल झिरी विवर्तन पैटर्न के केन्द्रीय चमकीले उच्चतम की कोणीय चौड़ाई किस प्रकार बदली जाती है, जब (a) झिरी की चौड़ाई कम कर दी जाये (b) झिरी और पर्दे के बीच की दूरी बढ़ा दी जाये (c) कम तरंगदैर्घ्य के प्रकाश का उपयोग किया जाये।
उत्तर:
हम जानते हैं कि केन्द्रीय उच्चिष्ठ θ = 2/d द्वारा दिया जाता है।
(a) जब झिरी की चौड़ाई d कम होगी, θ बढ़ेगा।
(b) सूत्र में झिरी और पर्दे के बीच दूरी नहीं आती, अतः कोणीय चौड़ाई अप्रभावित रहती है।
(c) कोणीय चौड़ाई तरंगदैर्ध्य के अनुक्रमानुपाती है अतः छोटी प्रकाश तरंगदैर्ध्य का उपयोग करने पर कोणीय चौड़ाई घट जायेगी।

HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरंग-प्रकाशिकी

प्रश्न 12.
फ्रेनेल दूरी का व्यंजक निकालिये।
उत्तर:
माना, झिरी की चौड़ाई = a
उपयुक्त प्रकाश का तरंग = λ
द्वितीयक निम्निष्ठ की कोणीय स्थिति जिसे केन्द्रीय उच्चिष्ठ की कोणीय चौड़ाई का आधा कहा जाता है।
θ = λ/a से दिया जाता है।
माना झिरी और पर्दे के बीच दूरी = D तब केन्द्रीय उच्चिष्ठ का रैखिक प्रसार
y = Dθ
= D x λ/a
परिभाषा से जब D = Zf, y1 = a
या
a = Zp x λ/a
ZF = a2

प्रश्न 13.
ध्रुवण तल एवं कम्पन तल में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
ध्रुवण तल-जब किसी प्रकाश स्रोत S प्राप्त प्रकाश को टर्मलीन क्रिस्टल से निकाला जाता है तो क्रिस्टल से निकलने वाला प्रकाश ध्रुवित होता है। अर्थात् इस स्थिति में प्रकाश सदिश के कम्पन एक दिशा में, अर्थात् प्रकाश संचरण की दिशा के अभिलम्ब होते हैं। ध्रुवण तल वह तल है जिसमें प्रकाश सदिश E के कम्पन का घटक शून्य होता है।
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरंग-प्रकाशिकी 1
कम्पन तल- समतल ध्रुवित प्रकाश में वह तल जिसमें विद्युत क्षेत्र सदिश तथा तरंग के संचरण की दिशा दोनों स्थित होते हैं, वह कम्पन तल कहलाता है।

प्रश्न 14.
धुवित प्रकाश किन-किन विधियों के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है?
उत्तर:
करने की निम्न विधियाँ हैं:
(i) परावर्तन द्वारा
(ii) अपवर्तन द्वारा
(iii) द्विअपवर्तन द्वारा
(iv) द्विवर्णता द्वारा
(v) प्रकीर्णन द्वारा।

प्रश्न 15.
“प्रकाश तरंगों का ध्रुवण होता है परन्तु ध्वनि तरंगों का नहीं।” उपर्युक्त कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रकाश तरंगें अनुप्रस्थ हैं तथा ध्वनि तरंगें अनुदैर्ध्य हैं। तरंग के ध्रुवण का अर्थ है तरंग के चलने की दिशा में लम्बवत् तल में विभिन्न दिशाओं में होने वाले कम्पनों में से किसी एक दिशा में होने वाले कम्पनों को अलग कर देना। अनुदैर्घ्य तरंग में कम्पन तरंग चलने की दिशा में ही होते हैं। अतः ध्वनि तरंगों का ध्रुवण नहीं हो सकता है।

प्रश्न 16.
दो तरंगों के आयामों का अनुपात ay 82 है तो इनकी तीव्रताओं का अनुपात क्या होगा?
उत्तर:
हम जानते हैं कि
तीव्रता α (आयाम (a)) 2 अर्थात् I (a)2
अतः I1 : I2 = a12 : a22

प्रश्न 17.
पोलेराइड की बनावट को समझाइये
उत्तर:
पोलेराइड की बनावट समतल ध्रुवित प्रकाश उत्पन्न करने के लिये पोलेराइड एक सस्ती व्यापारिक युक्ति है। यह एक विशेष प्रक्रिया से बनी एक फिल्म होती है जिसे दो काँच की प्लेटों के मध्य में रखते हैं। इस फिल्म को बनाने के लिये एक कार्बनिक यौगिक, हरपेथाइट या कुनैन के आयोडोसल्फेट के अति सूक्ष्म आकार के क्रिस्टल नाइट्रोसेलूलोज की पतली चादर पर इस प्रकार फैला दिये जाते हैं कि समस्त क्रिस्टलों के अक्ष अनुदिश हो जायें। ये सूक्ष्म क्रिस्टल उच्च कोटि के द्विवर्णक होते हैं जो द्वि-अपवर्तित किरणों में से एक को पूर्णतया अवशोषित कर लेते हैं।

प्रश्न 18.
पोलेराइड के उपयोग बताइये।
उत्तर:
पोलेराइड के उपयोग:
1. चकाचौंध को दूर करने में पोलेराइड का उपयोग अत्यधिक श्वेत अथवा चमकीले तलों या गीली सड़कों से प्रकाश के परावर्तन द्वारा उत्पन्न चकाचौंध अथवा सूर्य की चिलचिलाती धूप को कम करने में किया जाता है। चकाचौंध में आंशिक धुवित प्रकाश होता है। यदि आँखों पर पोलेराइड का चश्मा लगा लिया जाये तो यह आंशिक धुवित प्रकाश क्षैतिज कम्पनों को काट देगा। अतः चकाचौंध समाप्त हो जायेगी।
2. दुर्घटना को बचाने में मोटरकारों तथा ट्रकों की हैडलाइट से निकला प्रकाश जब दूसरी ओर से आती मोटरकार या ट्रक हुड पर पड़ता है तो परावर्तित प्रकाश आँख में पहुँचकर चकाचौंध उत्पन्न करता है। इससे आँखों को कष्ट तो होता ही है, साथ ही दुर्घटना होने की सम्भावना भी रहती है। इसको दूर करने के लिये हैडलाइट के कवर ग्लास तथा विण्डस्क्रीन पोलेराइड के बनाते हैं।
3. पोलेराइड कैमरा या फोटोग्राफी में पोलेराइड कैमरा के लेन्स के आगे एक पोलेराइड लगाते हैं जिससे उसकी पृष्ठभूमि में आये ध्रुवित प्रकाश को पोलेराइड रोक लेता है।
4. शक्कर की सान्द्रता ज्ञात करने में शक्कर की सांद्रता पोलेरी मीटर द्वारा ज्ञात की जाती है पोलेरी मीटर में समतल ध्रुवित प्रकाश के उत्पादन एवं विश्लेषण के लिये पोलेराइड का प्रयोग करते हैं।
5. धातुओं के प्रकाशीय गुणों के अध्ययन में।
6. प्रतिबलों के प्रभाव का अध्ययन करने में।

प्रश्न 19.
पोलेराइड की समान्तर व क्रॉसित व्यवस्था क्या होती है?
उत्तर:
पोलेराइड की व्यवस्था: जब अधुवित प्रकाश पोलेराइड में से गुजरता है, तब निर्गत प्रकाश ध्रुवित होता है। इसके विश्लेषक के लिये दूसरे पोलेराइड का उपयोग किया जाता है जब दोनों पोलेराइड परस्पर समान्तर होते हैं तो निर्गत प्रकाश की तीव्रता अधिकतम होती है जैसाकि चित्र (अ) में दिखाया गया है। यदि द्वितीय पोलेराइड को 90° से घुमाकर प्रकाश को देखा जाता है तो निर्गत प्रकाश की तीव्रता शून्य होती है। पोलेराइडों की इस व्यवस्था को क्रॉसित व्यवस्था कहते हैं। इस व्यवस्था में दोनों पोलेराइडों की अक्ष एक-दूसरे के लम्बवत् रहती है। जैसा चित्र (ब) में दिखाया गया है।
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरंग-प्रकाशिकी 2

प्रश्न 20.
वृत्त और दीर्घवृत्त धुवित प्रकाश क्या होते हैं?
उत्तर:
वृत्तीय ध्रुवित प्रकाश जब दो समतल ध्रुवित प्रकाश किरणें विशेष परिस्थितियों में एक-दूसरे पर इस प्रकार अध्यारोपित हों कि परिणामी प्रकाश सदिश एक निश्चित परिमाण से तरंग संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में घूर्णन करने लगे तब प्रकाश सदिश में कम्पन का विस्थापन एक वृत्त के रूप में होता है। ऐसे प्रकाश को वृत्तीय ध्रुवित प्रकाश कहते हैं। इसमें विद्युत सदिश का परिमाण नियत रहता है परन्तु उसकी दिशा नियमित रूप से बदलती रहती है।
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरंग-प्रकाशिकी 3
दीर्घवृत्तीय ध्रुवित प्रकाश- जब दो समतल ध्रुवित प्रकाश किरणें विशेष परिस्थितियों में एक-दूसरे पर इस प्रकार अध्यारोपित हों कि परिणामी प्रकाश सदिश एक परिवर्तित परिमाण से तरंग संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में घूर्णन करने लगे तब प्रकाश सदिश में कम्पन का विस्थापन एक दीर्घवृत्त में होता है। ऐसे प्रकाश को दीर्घवृत्तीय ध्रुवित प्रकाश कहते हैं।

प्रश्न 21.
क्या किसी पारदर्शी माध्यम के लिये, ध्रुवण कोण का मान प्रकाश के तरंगदैर्ध्य पर निर्भर करता है?
उत्तर:
हाँ, ब्रूस्टर के नियमानुसार n = tan ig होता है, माध्यम का अपवर्तनांक (n) प्रकाश के तरंगदैर्घ्य (A) पर निर्भर करता है। इसलिये ध्रुवण कोण (ig) का मान भी तरंगदैर्ध्य पर निर्भर करता है।

प्रश्न 22.
अनुदैर्घ्य तरंग का ध्रुवण क्यों नहीं होता?
उत्तर:
किसी तरंग के ध्रुवण से हमारा तात्पर्य तरंग की चलने की दिशा के लम्बवत् तल में विभिन्न दिशाओं में होने वाले कम्पनों में से किसी एक दिशा में होने वाले कम्पनों को पृथक करने से है। अनुदैर्घ्य तरंग में कम्पन तरंग के चलने की दिशा में ही होते हैं। फलतः ध्रुवण नहीं हो सकता।

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प्रश्न 23.
पोलेराइड से ट्रकों या कारों की हैडलाइट बनाना क्यों लाभदायक होता है?
उत्तर:
मोटरकारों तथा ट्रकों की हैडलाइट की चकाचौंध तथा इससे होने वाली दुर्घटना से बचने के लिये इनके हैडलाइट व वातरोधी पद (wind screen ) में पोलेराइडों को (इनकी अक्ष क्षैतिज से 45° का कोण बनाते हुये ) लगा दिया जाता है जिसके कारण किसी भी ड्राइवर को सामने से आने वाले ट्रक या कार की हैडलाइट के प्रकाश की तीव्रता पोलेराइड होने के कारण कम हो जाती है जबकि अन्य वस्तुयें स्पष्ट दिखाई देती हैं।

प्रश्न 24.
किसी पारदर्शी माध्यम पर ध्रुवण कोण पर आपतित प्रकाश किरण के लिये आपतन कोण तथा अपवर्तन कोण में क्या सम्बन्ध होता है?
उत्तर:
र- चूँकि ध्रुवण कोण in पर आपतित प्रकाश किरण के लिये परावर्तित तथा अपवर्तित किरणें परस्पर लम्बवत् होती हैं, अतः आपतन कोण + अपवर्तन कोण = 90° अथवा ig + r = 90°

प्रश्न 25.
रंगीन काँच से बने धूप के चश्मे की तुलना में पोलेराइडों से युक्त काँच के बने धूप के चश्मे क्यों अच्छे होते हैं?
उत्तर:
साधारण रंगीन काँच कुछ प्रकाश अवशोषित कर लेता है जिससे वस्तु धुंधली दिखायी पड़ती है, जबकि पोलेराइड केवल उस ध्रुवित प्रकाश को अवशोषित करता है जो ऑंख में चौंध उत्पन्न करता है, अतः पोलेराइड से बने चश्मे में से वस्तुयें स्पष्ट दिखायी पड़ती हैं।

प्रश्न 26.
A और B दो पोलेराइडों को इस प्रकार व्यवस्थित किया गया है कि A से निर्गत ध्रुवित प्रकाश B से नहीं गुजर पाता। क्या अन्य पोलेराइड C को इस प्रकार A और B के बीच व्यवस्थित कर सकते हैं कि कुछ प्रकाश B से गुजरने लगे?
उत्तर:
हाँ, A और B परस्पर ‘क्रॉसित’ हैं। अब इनके मध्य पोलेराइड C को रखकर इतना घुमाते हैं कि A से निर्गत प्रकाश का कुछ भाग C से गुजर सके। इस स्थिति में A और C न तो परस्पर क्रॉसित होते हैं और न ही परस्पर समान्तर स्पष्टतः C और B के भी परस्पर क्रॉसित न होने के कारण C से भाग B निर्गत प्रकाश का कुछ में से होकर गुजरने लगेगा।

प्रश्न 27.
प्रकाश में डॉप्लर प्रभाव क्या है? इसमें लाल विस्थापन तथा नीले विस्थापन को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
दो उत्तरोत्तर तरंगाग्रों के प्रेक्षक तक पहुँचने में लगने वाला समय स्रोत तक उनके पहुँचने में लगने वाले समय की अपेक्षा अधिक होता है अतः जब स्रोत प्रेक्षक से दूर जाता है तो प्रेक्षक द्वारा मापी जाने वाली आवृत्ति में कमी होगी। यह डॉप्लर प्रभाव कहलाता है खगोलज्ञ, तरंगदैर्ध्य में डॉप्लर प्रभाव के कारण होने वाली इस वृद्धि को अभिरक्त विस्थापन (red shift ) कहते हैं, क्योंकि स्पेक्ट्रम दृश्य क्षेत्र की मध्यवर्ती तरंगदैर्ध्य लाल छोर की ओर खिसक जाती है जब स्रोत प्रेक्षक की ओर चलता है तो उससे प्राप्त की जाने वाली तरंगों की तरंगदैर्ध्य में आभासी कमी हो जाती है, तरंगदैर्घ्य की इस कमी को नीला विस्थापन (blue shift ) कहते हैं।

प्रश्न 28.
किसी पोलेराइड पर अधुवित प्रकाश आपतित है। इस पोलेराइड को घुमाने पर पारगमित प्रकाश की तीव्रता में किस प्रकार परिवर्तन होगा?
उत्तर:
आपतित अधुवित प्रकाश में विद्युत क्षेत्र वेक्टर संचरण की दिशा के लम्बवत् सभी सम्भव दिशाओं में होते हैं। पोलेराइड से गुजरने पर एक निश्चित दिशा में धुवित प्रकाश प्राप्त होता है, जिसकी तीव्रता आपतित प्रकाश की तीव्रता की आधी होती है. निर्गत ध्रुवित प्रकाश की तीव्रता पोलेराइड की अक्ष की दिशा पर निर्भर नहीं होती। पोलेराइड को घुमाने पर पारगमित प्रकाश की ध्रुवण की दिशा परिवर्तित होगी लेकिन तीव्रता अपरिवर्तित रहेगी।

प्रश्न 29.
सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता को परिभाषित कीजिए। इसका सूत्र लिखिए। यह किस प्रकार प्रभावित होती है, जब:
(a) आपतित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य घटती है?
(b) अभिदृश्यक लेंस का द्वारक घटता है?
उत्तर:
सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता-किसी सूक्ष्मदर्शी की विभेदन सीमा उन दो बिन्दुवत् वस्तुओं के बीच की न्यूनतम दूरी से नापी जाती है जिनके प्रतिबिम्ब सूक्ष्मदर्शी के अभिदृश्यक द्वारा ठीक विभेदित होते हैं।”
सूक्ष्मदर्शी की विभेदन सीमा प्रकाश की तरंगदैर्घ्य 1 के अनुक्रमानुपाती तथा सूक्ष्मदर्शी में प्रवेश करने वाली किरणों के शंकु (Cone) कोण के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
विभेदन सीमा
= 1.22λ/2nsinα
अतः विभेदन क्षमता = 1/विभेदन सीमा = 2nsinα/ 1.22λ
(a) आपतित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य घटती है तो सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता बढ़ जाती है।
(b) अभिदृश्यक लेंस का द्वारक घटने से अर्द्ध-शंकु कोण (a) का मान घटेगा, अतः विभेदन क्षमता भी घटेगी।

प्रश्न 30.
एक प्रकाश किरण पारदर्शी माध्यम पर बूस्टर कोण पर आपतित होती है तो स्नैल नियम का उपयोग करते हुए ब्रूस्टर नियम की व्युत्पत्ति कीजिए।
उत्तर:
परावर्तन द्वारा प्रकाश का ध्रुवण बूस्टर का नियम (Polarisation by Reflection: Brewester’s Law)
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परावर्तन द्वारा प्रकाश का ध्रुवण- जब अधुवित प्रकाश किसी माध्यम जैसे काँच, पानी इत्यादि के पृष्ठ से परावर्तित होता तो वह आंशिक रूप से समतल ध्रुवित हो जाता है। वैज्ञानिक ब्रूस्टर ने यह देखा कि परावर्तित प्रकाश में ध्रुवण की मात्रा आपतन कोण पर निर्भर करती है परन्तु जब प्रकाश माध्यम के पृष्ठ पर एक विशेष आपतन कोण in पर आपतित होता है तो परावर्तित प्रकाश पूर्णतया धुवित होता है। इस आपतन कोण को ध्रुवण कोण (ig) कहते हैं।
ब्रूस्टर ने यह सिद्ध किया कि जब कोई प्रकाश किरण किसी पारदर्शी माध्यम पर ध्रुवण कोण (ig) पर आपतित होती है तो परावर्तित प्रकाश किरण समतल धुवित होती है और परावर्तित किरण तथा अपवर्तित किरण एक-दूसरे के लम्बवत् होती हैं।
IB + r = 90°
स्नेल के नियम से
n = siniB/sin r
अर्थात्
∴ sin iB = n sin r
sin iB = n sin (90° – iB)
sin iB = n cos iB
∵ IB + r = 90°
sin iB = n cos iB
sin iB/cos iB = n
यही ब्रूस्टर नियम है।’

आंकिक प्रश्न:

प्रश्न 1.
यंग के प्रयोग में स्लिटों के बीच अन्तराल 0.4 मिमी. है। 800 मिली. माइक्रॉन तरंगदैर्घ्य के प्रकाश के लिये व्यतिकरण फ्रिंजें 80 सेमी. दूर पर्दे पर बनती हैं। ज्ञात कीजिये – (i) केन्द्रीय फ्रिज से द्वितीय अदीप्त फ्रिंज की दूरी, तथा तृतीय दीप्त फ्रिंज की दूरी
उत्तर:
दिया गया है:
स्लिटों के बीच का अन्तराल
d = 0.4 मिमी
= 0.4 x 10-3 मीटर
प्रयुक्त प्रकाश की तरंगदैर्ध्य
λ = 800 मिली माइक्रॉन
= 800 × 10-3 माइक्रॉन
= 800 × 10-3 x 10-6 मी.
= 8 × 10-7 मी.
स्लिटों से पर्दे की दूरी
D = 80 सेमी = 0.80 मी.

(i) केन्द्रीय फ्रिंज से n वीं अदीप्त फ्रिंज की दूरी
x = \(\frac{(2 \mathrm{n}-1) \mathrm{D} \lambda}{2 \mathrm{~d}}\)
जहाँ n = 1, 2, 3….
यहाँ द्वितीय अदीप्त फ्रिंज के लिये n = 2
अतः
x = \(\frac{(2 \times 2-1) D \lambda}{2 \mathrm{~d}}\) = 3/2
= 2.4 x 10-3 मी.
= 2.4 मिमी.

(ii) केन्द्रीय फ्रिंज से nवीं दीप्त फ्रिंज की दूरी
x = nDλ/d
जहाँ पर n = 0, 1, 2,
यहाँ पर तृतीय दीप्त फ्रिंज के लिये n = 3
= HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरंग-प्रकाशिकी 4
= 4.8 × 10-3
= 4.8

HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरंग-प्रकाशिकी

प्रश्न 2.
यंग के कोणीय चौड़ाई 1° है। प्रयोग में दूरस्थ पर्दे पर बनी फ्रिजों की प्रयुक्त प्रकाश की तरंगदैर्ध्य 6000Å है। स्लिटों के बीच की दूरी ज्ञात कीजिये।
उत्तर:
दिया है:
फ्रिंजों की कोणीय चौड़ाई
θ = 1° = 1 × π/180 रेडियन
θ = 3.14/180 रेडियन
प्रयुक्त प्रकाश का तरंगदैर्ध्य
λ = 6000 A
λ = 6000 x 10-10 मी.
= 6 × 10-7 मी.
परन्तु फ्रिंजों की कोणीय चौड़ाई
θ = λ/d
जहाँ d = स्लिटों के बीच की दूरी
d = \(\frac{\lambda}{\theta}\) = \(\frac{6 \times 10^{-7} \text { }}{3.14 / 180}\)
\(\left(\frac{6 \times 10^{-7} \times 180}{3.14}\right)\)
= 0.03 x 10-3 मी.

प्रश्न 3.
यंग के द्विक रेखा छिद्र प्रयोग में 0.03 मिमी. दोनों स्लिटों के दूरी 140 सेमी. प्रकाशित किया बीच की दूरी 2 मिमी. तथा इनके तल से पर्दे की है, रेखा छिद्रों को 600 nm तरंगदैर्घ्य के प्रकाश से गया है। पर्दे पर प्राप्त व्यतिकरण प्रारूप में केन्द्रीय दीप्त फ्रिंज से तीसरी दीप्त फ्रिंज की दूरी ज्ञात कीजिये। यदि आपतित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य बदलकर 480 nm कर दी जाये तो केन्द्रीय उच्चिष्ठ से तीसरी दीप्त फ्रिंज की स्थिति में विस्थापन ज्ञात कीजिये।
उत्तर:
दिया है:
d = 2 मिमी = 2 x 103 मी.. D = 140 सेमी.
λ = 600nm
= 600 x 10-9 मी.
केन्द्रीय उच्चिष्ठ से nवीं दीप्त फ्रिंज की दूरी
X =\(\frac{\mathrm{nD} \lambda}{\mathrm{d}}\)

यहाँ पर तीसरी दीप्त फ्रिज के लिये n = 3
X3 = \(\frac{3 D \lambda}{\mathrm{d}}\)
= \(\frac{3 \times 1.40 \times 600 \times 10^{-9}}{2 \times 10^{-3}}\)
X3 = 1.26 × 10-3 मी.
= 1.26 मिमी.
बाद में
d = 2 × 10-3 मी.
D = 1.40 मी.
λ = 480 x 10-9 मी. तो
= \(\frac{3 \times 1.40 \times 600 \times 10^{-9}}{2 \times 10^{-3}}\)
= 1.01 x 10-3 मी.
= 1.01 मिमी.
अतः तीसरी दीप्त फ्रिज का विस्थापन
= x3 – x3
= (1.26 – 1.01) मिमी.
= 0.25 मिमी. (केन्द्रीय उच्चिष्ठ की ओर)

प्रश्न 4.
यंग के द्विक रेखा छिद्र प्रयोग में स्लिटों से D दूरी पर रखे पर्दे पर व्यतिकरण फ्रिंजें प्राप्त की जाती हैं। यदि पर्दे को स्लिटों की ओर 5 x 10-2 मी. दूरी पर विस्थापित कर दिया जाता है तो फ्रिज चौड़ाई में 3 x 10-5 मी. का परिवर्तन पाया जाता है। यदि स्लिटों के बीच की दूरी 10-3 मी. है, तो प्रयुक्त प्रकाश की तरंगदैर्ध्य ज्ञात कीजिये।
उत्तर:
प्रारम्भ में फ्रिंज चौड़ाई β = \(\frac{\mathrm{D} \lambda}{\mathrm{d}}\)
तथा बाद में फ्रिज चौड़ाई β = \(\frac{\mathrm{D} \lambda}{\mathrm{d}}\)
β – β = \(\frac{\left(D-D^{\prime}\right) \lambda}{d} \)
\(\frac{\left(\beta-\beta^{\prime}\right) \times d}{\left(D-D^{\prime}\right)}\)
दिया गया है:
D – D’ = 5 × 102 मी.
तथा
β – β = 3 x 105 मी.
d = 10-3 मी.
अतः तरंगदैर्ध्य
= \( \frac{3 \times 10^{-5}}{5 \times 10^{-2}}\) x 103 मी.
= 3/5 x 106 मी.
= \( \frac{30000 \times 10^{-10}}{5}\)
मी. = 6000A

प्रश्न 5.
दो तरंगों की तीव्रताओं का अनुपात 16 : 9 है। उनके आयामों का अनुपात क्या है? यदि दोनों तरंगें व्यतिकरण करें तो महत्तम तथा न्यूनतम तीव्रताओं का अनुपात भी ज्ञात कीजिये।
उत्तर:
माना कि तरंगों के आयाम a1 व a2 हैं तथा तीव्रतायें
I1 व I2 हैं।
\(\frac{I_1}{I_2}\) = \(\frac{a_1^2}{a_2^2}\) = \(\frac{16}{9}\)
\(\frac{a_1}{a_2}\) = \(\frac{4}{3}\)
अथवा
a1 : a2 = 4 : 3
चूँकि व्यतिकरण में महत्तम तथा न्यूनतम परिणामी आयाम क्रमश: (a1 + a2) तथा (a1 – a2) होते हैं, अतः
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरंग-प्रकाशिकी 6
अथवा Imax : Imin = 49 1

प्रश्न 6.
चित्र में S1 व S2 दो पतले छिद्र हैं, जिनके बीच का मध्य-बिन्दु C है जब इन छिद्रों पर 6000 À का एकवर्णी प्रकाश लम्बवत् आपतित होता है तो पर्दे के बिन्दु P पर द्वितीय अदीप्त फ्रिज बनती है। यदि OP = 0.0036 D हो तो S1 व S2 के बीच दूरी ज्ञात कीजिये।
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरंग-प्रकाशिकी 7
उत्तर:
माना कि दो रेखाछिद्रों S1 व S2 के बीच की दूरी = d यदि CP और CO के बीच कोण θ है तब रेखाछिद्रों S1 व S2 से P पर पहुँचने वाली प्रकाश तरंगों में पथान्तर = d sin θ = d tan θ
(यहाँ पर θ का मान बहुत छोटा है।)
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 10 तरंग-प्रकाशिकी 8
∴ OP = 0.0036 D और CO = D
∴ tan θ = 0.0036/D = 0.0036
∴ पथान्तर = d x 0.0036 = 0.0036 d
आगे, चूँकि P पर द्वितीय अदीप्त फ्रिज बनती है
∴ पथान्तर = 3/2λ
= 3/2 x 6000 x 10-10 m
( यहाँ पर λ = 6000 x 10-10 भी दिया हुआ है।)

प्रश्न 7.
यंग के प्रयोग में लाल प्रकाश (λ = 6600 Å ) प्रयुक्त करने पर दृष्टि क्षेत्र में 60 फ्रिंजें दिखाई देती हैं बैंगनी प्रकाश (λ = 4400 A ) प्रयुक्त करने पर कितनी फ्रिंजें दिखाई देंगी?
उत्तर:
यंग के प्रयोग में रेखाछिद्रों की दूरी d हो, और रेखाछिद्रों- के तल से पर्दे की दूरी D हो, तब λ1 व λ2 तरंग लम्बाई के प्रकाश के कारण फ्रिजों की चौड़ाई क्रमश: β1 व β2 हो तब
β1 = \(\frac{\mathrm{D} \lambda_1}{\mathrm{~d}}\) …………(1)
β2 = \(\frac{\mathrm{D} \lambda_2}{\mathrm{~d}}\) ………….(2)
λ1 = 6600 À व λ2 = 4400 À हो तब

माना कि जितनी दूरी में 6600 À तरंग लम्बाई के प्रकाश के कारण 60 फ्रिंजें बनती हैं उसकी जगह 4400 A का प्रकाश प्रयुक्त करने पर x फ्रिंजें बनती हैं।
∴ xβ2 = 60β1
या
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प्रश्न 8.
यंग के द्विस्लिट प्रयोग में फ्रिजों की चौड़ाई 1 x 10-4 मीटर है। यदि परदे की स्लिट से दूरी दुगुनी कर दी जाये और स्लिटों का अन्तराल आधा कर दिया जाये तथा तरंगदैर्ध्य 6.4 x 10-7 मीटर से 4 x 10-7 मीटर बदल दी जाये तो फ्रिज की नई चौड़ाई क्या होगी?
उत्तर:
दिया गया है:
λ = 6.4 x 10-7 मीटर, B = 1 x 10-4 मीटर
हम जानते हैं:
β =\(\frac{\lambda \mathrm{D}}{\mathrm{d}}\)
प्रारम्भ में
β = \(\frac{6.4 \times 10^{-7} \mathrm{D}}{\mathrm{d}}\)
…..(1)
बाद में
β = \(\frac{4.0 \times 10^{-7} \times 2 \mathrm{D}}{\mathrm{d} / 2}\) …….(2)
β/β = \(\frac{16 \times 10^{-7}}{6.4 \times 10^{-7}}\)
β = 2.5β
= 2.5 x 1 x 10-4 मीटर
= 2.5 x 10-4 मीटर

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प्रश्न 9.
द्वि- स्लिट प्रयोग में सोडियम प्रकाश (λ = 5890 A) के लिये व्यतिकरण फ्रिजों की कोणीय चौड़ाई 0.20 À है। तरंगदैर्ध्य के किस मान के लिये यह चौड़ाई 10% अधिक होगी?
उत्तर:
हम जानते हैं कि फ्रिंज की चौड़ाई
β = D/dλ
जहाँ D व d, स्लिट के तल से पर्दे की दूरी व दो स्लिटों के बीच की दूरी है।
और λ द्वि-स्लिट के प्रयोग में प्रयुक्त प्रकाश की तरंगदैर्ध्य की लम्बाई है।
यदि D व d को स्थिर रखकर प्रकाश की तरंग लम्बाई में परिवर्तन किया जाये तब
β = kλ यहाँ K एक स्थिरांक है।
∴ ∆β/ β = ∆λ/λ
या
∆β/ β × 100 = ∆λ/λ × 100
फ्रिंज की चौड़ाई में 10% वृद्धि के लिये
∆β/ β × 100 = 10
∆λ/λ × 100 = 10
या
∆λ = 10/100λ
∵ λ में परिवर्तन करने से पहले λ = 5890Å
∆λ = 10/100 x 5890 A = 589A
फ्रिंज की चौड़ाई 10% से बढ़ाने के लिये प्रयुक्त प्रकाश की
तरंग लम्बाई
= λ + ∆λ
= 5890+ 589 = 6479 Å

प्रश्न 10.
दो पोलेराइड इस प्रकार रखे हैं कि उनसे निर्गत प्रकाश की तीव्रता महत्तम है। यदि एक पोलेराइड को दूसरे के सापेक्ष 300, 90° से घुमा दिया जाये तो नवीन स्थिति में निर्गत प्रकाश की तीव्रता अधिकतम तीव्रता का कौनसा भाग होगी?
उत्तर:
मैलस के नियम के अनुसार
I = I0 cos2θ
जहाँ पर I निर्गत प्रकाश की अधिकतम तीव्रता है और 6 ध्रुवक तथा विश्लेषक की अक्षों के बीच का कोण है।
लेकिन दिया गया है-
θ = 30°, 90°
I = Io cos230°
= 3/4Io
= 0.75 Io
अतः नवीन स्थिति में निर्गत प्रकाश की तीव्रता अधिकतम का 0.75 भाग होगी।
यदि
θ = 90°
I = Io cos2 90
I = Ig x 0 = 0
: cos 90° = 0
अतः I = 0 न्यूनतम मान (यह क्रॉसित व्यवस्था होगी)

प्रश्न 11.
600nm तरंगदैर्घ्य की एक समान्तर प्रकाश किरण पुंज एक पतली झिरी पर आपतित होती है और परिणामी विवर्तन पैटर्न का 1.2m दूर स्थित पर्दे पर अवलोकन किया जाता है। यह प्रेक्षित किया जाता है कि प्रथम निम्निष्ठ पर्दे के केन्द्र से 3 mm दूरी पर है। झिरी की चौड़ाई का परिकलन कीजिये।
उत्तर:
हल दिया गया है:
λ = 600nm = 600 x 109 मी.
= 6 × 107 मी.
D = 1.2 मी.
x = 3 मिमी. = 3 x 10-3 मी.
चौड़ाई a के एकल रेखाछिद्र से उत्पन्न विवर्तन पैटर्न में केन्द्र से प्रथम निम्निष्ठ की कोणीय स्थिति के लिये
sin θ = λ/a ……….(1)
जब θ अल्प हो, तब
sin θ = tan θ = x/D = 3 x 10-3/1.2
समीकरण (1) में मान रखने पर
= \(\frac{3 \times 10^{-3}}{1.2}\) = \(\frac{6 \times 10^{-7}}{a}\)
= 2.4 x 10-4 मी.
a = 0.24 मिमी.
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प्रश्न 12.
यंग के द्विझिर्री प्रयोग में झिर्रियों के बीच की दूरी 0.28mm तथा पर्दे की दूरी 14m है। यदि केन्द्रीय दीप्त फ्रिंज से चौथी दीप्त फ्रिज की दूरी 1.2 cm हो तो प्रयुक्त प्रकाश की तरंगदैर्ध्य ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
दिया है
d = 0.28 मिमी. = 0.28 x 10-3 मी.
D = 1.4 मी.
nवीं दीप्त फ्रिज की केन्द्रीय दीप्त फ्रिंज दूरी
xn = \(\frac{\mathrm{nD} \lambda}{\mathrm{d}}\)
यहाँ n = 4 के लिये = 1.2 सेमी = 1.2 x 10-2 मी.
x4 = \(\frac{4 \times D \lambda}{\mathrm{d}}\) से
तरंगदैर्ध्य  = \(\frac{4 \times D \lambda}{\mathrm{d}}\)
मान रखने पर
= \(\frac{\left(1.2 \times 10^{-2} \text {  }\right) \times\left(0.28 \times 10^{-3} \text {  }\right)}{4 \times 1.4 \text {  }}\)
= 600 x 10-9 मी.
= 6000 A

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प्रश्न 13.
यंग के द्विझिर्री प्रयोग में, दो झिरियों के बीच पृथक्कन 1.5 mm और झिर्रियों के तल से पर्दे के बीच की दूरी 1m है। व्यतिकरण फिन्जों को प्राप्त करने के लिए 650nm और 520 nm दो तरंगदैयों से बने प्रकाश पुंज का उपयोग किया गया है।
(a) λ = 520nm के लिए पर्दे पर केन्द्रीय उच्चिष्ठ से तीसरी चमकीली फ्रिज की दूरी ज्ञात कीजिए।
(b) केन्द्रीय उच्चिष्ठ से वह कम से कम दूरी ज्ञात कीजिए जहाँ पर इन दोनों तरंगदैयों के कारण बनी दीप्त फ्रिन्ज एक-दूसरे के संपाती होंगी।
उत्तर:
दिया है
λι = 650 nm = 650 x 10-9 m
λ2 = 520 nm = 520 x 10-9 m
(i) yn = \(\frac{\mathrm{nDy}_1}{\mathrm{~d}}\) = \(\frac{3 \times 1 \times 520 \times 10^{-9}}{1.5 \times 10^{-3}}\)
y3 = 1.04 × 103 m

(ii) केन्द्रीय उच्चिष्ठ से वह कम से कम दूरी ज्ञात करना, जहाँ पर इन दोनों तरंगदैयों के कारण बनी दीप्त फ्रिव्ज एक-दूसरे के संपाती होगी।
यदि
λι > λ2
n1 < n2
n1 = n2
n2 + n + 1
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HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 3 वनस्पति जगत

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 3 वनस्पति जगत Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Important Questions Chapter 3 वनस्पति जगत


(A) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर देने के लिए चार विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए -.
1. आवतबीजियों में क्रियात्मक गुरुबीजाणु निम्नलिखित में से किसके रूप में विकसित होता है-
(A) भ्रूणकोश
(B) बीजाण्ड
(C) भ्रूणपोष
(D) परागकोष
उत्तर:
(A) भ्रूणकोश

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 3 वनस्पति जगत

2. ब्रायोफाइट्स के युग्मकोदभिद की तुलना में संवहनी पादपों के युग्मकोदभिद होते हैं-
(A) बड़े युग्मकोद्भिद लेकिन छोटे लैंगिक अंगों वाले
(B) बड़े युग्मकोदभिद लेकिन बड़े लैंगिक अंगों वाले
(C) छोटे युग्मकोदभिद लेकिन छोटे लैंगिक अंगों वाले
(D) छोटे युग्मकोदभिद लेकिन बड़े लैंगिक अंगों वाले
उत्तर:
(C) छोटे युग्मकोदभिद लेकिन छोटे लैंगिक अंगों वाले

3. निम्नलिखित में से किसमें युग्मकोदभिद एक स्वतंत्रजीवी स्वावलम्बी पीढ़ी
नहीं है ?
(A) एडिएन्टम
(B) मार्केन्शिया
(C) पाइनस
(D) पॉलीट्राइकम
उत्तर:
(C) पाइनस

4. स्त्रीधानीधर उपस्थित होता है-
(A) कारा में
(B) एडिएण्टम में
(C) फ्यूनेरिया में
(D) मार्केन्शिया में
उत्तर:
(D) मार्केन्शिया में

5. निम्नलिखित में से किसमें बीजाणुदचिद एक आत्मनिर्भर पीढ़ी नहीं है ?
(A) ब्रायोफाइटस में
(B) टेरिडोफाइट्स में
(C) अनावृतबीजियों में
(D) आवृतबीजियों में
उत्तर:
(A) ब्रायोफाइटस में

6. टेरिडोफाइट्स तथा अनावृतबीजी दोनों में पाये जाते हैं- (RPMT)
(A) बीज
(B) आत्मनिर्भर युग्मकोदभिद
(C) स्त्रीधानी
(D) बीजाण्ड
उत्तर:
(C) स्त्रीधानी

7. साइकस में परागण का प्रकार है- (UPCPMT)
(A) कीट परागण
(B) जल परागण
(C) वायु परागण
(D) शंबुक परागण
उत्तर:
(C) वायु परागण

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8. फ्यूनेरिया में कायिक जनन होता है- (UPCPMT)
(A) प्राथमिक प्रोटोनीमा द्वारा
(B) जेमी द्वारा
(C) द्वितीयक प्रोटोनीमा द्वारा
(D) उपरोक्त सभी में
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी में

9. अनावृतबीजियों में फल नहीं पाया जाता क्योंकि-
(A) ये बीजरहित होते हैं।
(B) इनमें परागण नहीं होता है
(C) इनमें अण्डाशय नहीं होता है
(D) इनमें निषेचन नहीं होता है। है
उत्तर:
(C) इनमें अण्डाशय नहीं होता है

10. टेरिडोफाइटस में प्रभावी पीढ़ी होती है-
(A) बीजाणुदभिद
(B) युग्मकोदभिद
(C) युग्मनजी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) युग्मनजी

11. साइकस तथा एडिएण्टम निम्नलिखित की उपस्थिति में समानता प्रदर्शित करते हैं-
(A) बीज
(B) गतिशील शुक्राणु
(C) एधा
(D) वाहिकाएँ
उत्तर:
(B) गतिशील शुक्राणु

12. बहुकोशिकीय कवकों, तन्तुमय शैवालों एवं मॉस के प्रोटोनीमा तीनों के सम्बन्ध में एक समान है-
(A) डिप्लॉन्टिक जीवन-चक्र
(B) पादप जगत की सदस्यता
(D) खण्डन द्वारा गुणन
(C) पोषण विधि
उत्तर:
(D) खण्डन द्वारा गुणन

13. प्रोटोनीमा का निर्माण होता है-
(A) मॉस में
(C) फर्न में
(B) लिवरवर्ट में
(D) साइकेड्स में
उत्तर:
(A) मॉस में

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14. हृदय की आकृति का प्रोथैलस दर्शाता है-
(A) एक लिंगाश्रयी युग्मकोद्भिद्
(B) उभयलिंगाश्रयी बीजाणु भट
(C) उभयलिंगाश्रयी युग्मकोद्भिद्
(D) इनमें से कोई नहीं ।
उत्तर:
(C) उभयलिंगाश्रयी युग्मकोद्भिद्

15. समयुग्मक अवस्था के साथ अवशाभी युग्मक किसमें पाये जाते है ?
(A) क्लेमिडोमोनास
(B) स्पाइरोगाइटा
(D) फ्यूकस
(C) वॉलवाक्स
उत्तर:
(B) स्पाइरोगाइटा

16. गुरुबीजाणुधानी किसके समतुल्य है-
(A) भ्रूणकोष के
(B) फल के
(C) बीजाण्डकाय के
(D) बीजाण्ड के
उत्तर:
(D) बीजाण्ड के

17. निम्नलिखित चनों (1)- (v) को पढ़िए और उसके बाद दिए गये प्रश्न उत्तर दीजिए-
(i) लिवरबर्ट (यकृत कार्य) मॉस और फर्न में युग्मकोदभिद स्वतन्त्राजीवी होता है
(ii) अनावृत्तबीजी और कुछ फर्म विषमबीजाणुक होते हैं
(iii) फ़्यूक्स, वालवाक्स और एस्क्यूगो में लिंगी प्रजनन अण्डयुग्मन होता है
(iv) लिवरपर्ट (यकृत कार्य का बीजानुद्भिद माँस के बीजागुउद्भिद् से अधिक विस्तृत होता है
(v) पाइनस और मार्केन्शिया एक लिंगाश्रयी होते हैं उपरोक्त में कितने कथन सही है-
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर:
(C) तीन

(B) अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्राम 1.
यॉरपॉक्स किस शैवाल वर्ग का सदस्य है ?
उत्तर:
क्लोरोपाइसी (Chlorophyceae) वर्ग का

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प्रश्न 2.
लाल शैवालों का लाल रंग किस वर्णक की उपस्थिति के कारण होता है ?
उत्त:
पाइकोपरिचिन (Phycoerythrin)।

प्रश्न 3.
उन दो टेरिडोफाइट पौधों के नाम लिखिए जिनमें विषम बीजाणुकता पायी जाती है।
उत्तर:
सिलेजिनेला साल्वीनिया ।

प्रश्न 4.
इन नामक औषधि इफेड़ा पीछे से प्राप्त की जाती है. इसे क्यों प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर:
खांसी-जुकाम के उपचार के लिए।

प्रश्न 5.
किसी राजीवी आपका नाम लिखिए।
उत्तर:
बक्सबोमिया एफिल्ला ।

प्रश्न 6.
समुद्री सलाद किसे कहते हैं ?
उत्तर:
अस्या (Ulva) को।

प्रश्न 7.
कौन से समूह के पौधे संवहनी क्रिप्टोगेम्स कहते है ?
उत्तर:
टेरीडोफाइटा (Pteridophyta) समूह के

प्रश्न 8.
लाल शैवालों का संचित भोज्य पदार्थ क्या है ?
उत्तर:
फ्लोरिडियन स्टार्च

प्रश्न 9.
भूरे शैवालों का संचित भोजन क्या है ?
उत्तर:
लैमिनेरिन एवं मेनीटॉल।

प्रश्न 10.
सबसे बड़े ब्रायोफाइटा का नाम लिखिए।
उत्तर:
डाउसोनिया (Dawsonia)।

प्रश्न 11.
दा निर्माण में कौन-सा ब्रायो महत्वपूर्ण भूमिका निभाता
उत्तर:
स्फैगनम (Sphaguum)।

प्रश्न 12.
सबसे बड़े लैवाल का नाम लिखिए।
उत्तर:
मैक्रोसिस्टस पायरीफेरा (Macrocyetis pyrifera)।

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प्राय 13.
एजोला किस समूह का पौधा है ?
उत्तर:
टेरीडोफाइटा समूह का।

प्रश्न 14.
आयोडीन, ब्रोमीन उत्पादित करने वाले शैवाल कौन से है ?
उत्तर:
पूरे सेवाल

प्रश्न 15.
किसी जलीय फर्म का नाम लिखिए।
उत्तर:
मासीलिया, साल्वीनिया ।

प्रश्न 16.
किसी परजीवी शैवाल का
उत्तर:
सिफेल्यूरोस (Cephalurge) नाम लिखिए।

प्रश्न 17.
वैज्ञानिक अनुसन्धानों में सर्वाधिक प्रयुक्त किये जाने वाले शैवाल का नाम लिखिए।
उत्तर:
क्लोरेला (Chlorella) ।

प्रश्न 18.
सकस के फ्लोएम में क्या नहीं पायी जाती हैं ?
उत्तर:
सहकोशिकाएँ (Companian cells) ।

प्रश्न 19
उत्तर:
रिक्सिया में।
के किस सदस्य में सबसे सरल स्पोरोफाइट मिलता

प्रश्न 20.
किसी समबीजाणुक टेरिडोफाइट का उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
लाइकोपोडियम (Lycopodium), ड्रायोप्टेरिस (Dryopteris)।

प्रश्न 21.
फर्म का भूमिगत भाग जो तना बनाता है क्या कहलाता है ?
उत्तर:
राइजोम (Rhizome) ।

प्रश्न 22.
साबूदाना किस पौधे से प्राप्त होता है ?
उत्तर:
साइकस रिवोल्यूटा (Cycas revoluta) से। ग्राम

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प्रश्न 23.
नाम किस पौधे से प्राप्त होता है ?
उत्तर:
एमीज बालसेमिया (Abies balsamia) से।

प्रश्न 24.
किसी जलीय का नाम लिखिए।
उत्तर:
हाइहिला (Hydrilla), सिंघाड़ा (Thapa) |

(C) लघु उत्तरीय प्रश्न -1

प्रश्न 1.
साइकस के पौधों में फलों का निर्माण क्यों नहीं होता है ?
उत्तर:
फलों का विकास अण्डाशय भित्ति से होता है। साइकस में अण्डाशय (ovary) का अभाव होता है, जो कि फल का निर्माण करती है। इनमें भीज सीधे ही बीजाणु पर्ण पर उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 2.
शैवाल तथा कवक में एक प्रमुख अन्तर लिखिए।
उत्तर:
शेवालों में पर्णहरिम उपस्थित होने के कारण ये स्वपोषी होते हैं किन्तु कमकों में पर्णहरिम न होने के कारण ये विवमपोची होते हैं।

प्रश्न 3.
ग्रायोफाइट समूह के चार पौधों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • मार्केन्शिया,
  • एन्योसिरोस,
  • पेलिया
  • फ्यूनेरिया

प्रश्न 4.
जिम्नोस्पर्म के संवहन उतक की क्या विशेषता है ?
उत्तर:
जिम्नोस्पर्म के संवहन ऊतकों के जाइलम में वाहिकाएं (trachea ) तथा फ्लोएम में सखि कोशिकाओं (companion cells) का अभाव होता है।

प्रश्न 5.
बायोफाइट को पादप उभयचर क्यों कहते है ?
(Exemplar Problem NCERT)
उत्तर:
बायोफाइट स्थलीय पौधे है लेकिन इनमें निवेचन केवल बाह्य जल की उपस्थिति में ही होता है एन्यीरोवाइड्स पानी की उपस्थिति में ही आर्कीगोनिया तक पहुँच पाते हैं इसलिए इन्हें पादप उभयचर माना जाता है।

प्रश्न 6.
अगर अगर क्या है ?
उत्तर:
अगर-अगर (Agar-Agar) एक श्लेष्मीय कार्बोहाइड्रेट है जिसे समुद्री शैवाल जिलेडियम, मेसीलेरिया आदि को उबालकर प्राप्त किया जा सकता है। इसका प्रयोग संवर्धन माध्यम बनाने में किया जाता है।

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प्रश्न 7.
टैरीडोफाइटा को कितने वर्गों में बाँटा गया है ?
उत्तर;
चार वर्गों में-

  • साइलोप्सिडा (Psilopsida),
  • लाइकोप्सिडा (Lycopsida),
  • स्फीनोप्सिडा,
  • टेरोप्सिडा (Pteropsida)।

प्रश्न 8.
मॉस के पौधे झुण्डों में क्यों उगते हैं ?
उत्तर:
मॉस में बीजाणुओं के अंकुरण से तन्तुरूपी, अत्यधिक शाखित, हरे रंग की रचना प्रोटीनीमा बनती है। यह उस स्थान पर एक जाल सा बना लेती है। इससे ही पास पास ऊर्ध्वाधर (vertical) पर्णिल पादपों का निर्माण होता है। जिनसे बहुत-सी कलिकाएं उत्पन्न होकर अनेक मॉस पादपों का निर्माण करती हैं।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित किन-किन पौधों में मिलते हैं ?

  • सीढ़ीनुमा संयुग्मन
  • चल बीजाणु
  • समयुग्मक,
  • पाइरीनॉइड ।

उत्तर:

  • स्पाइरोगाइरा
  • यूलोथ्रिक्स,
  • स्पाइरोगाइरा ।

प्रश्न 10.
पेरीगोनियम क्या है ?
उत्तर;
फ्यूनेरिया की पुंधानी (antheridium) तथा पैराफाइसिस (paraphysis) कुछ बड़ी पत्तियों से घिरे होते हैं। पत्तियों सहित पुंधानियों का झुं४ पेरीगोनियम (perigonium) कहलाता है।

प्रश्न 11.
पेरीकीटियम किसे कहते हैं ?
उत्तर:
फ्यूनेरिया की स्त्रीधानियाँ समूह में उत्पन्न होती हैं। स्त्रीधानियों के बीच-बीच में पैराफाइसिस पाये जाते हैं। स्त्रीधानियाँ एवं पैराफाइसिस पत्तियों से घिरे रहते हैं। इस सम्पूर्ण झुण्ड को पेरीकीटियम (perichaetium) कहते हैं।

(D) लघु उत्तरीय प्रश्न-II

प्रश्न 1.
शैवालों के प्रमुख तीन वर्गों की प्रमुख विशेषताओं के लिए एक तालिका बनाइए ।
उत्तर:

वर्ग (Class)सामान्य नाम (Common name)प्रमुख वर्णक (Main Pigment)संचित भोजन (Reserve Food)कोशिका भित्ति (Cell wall)कशाभों की संख्या तथा उनकी निवेशन की स्थितिआवास (Habitat)
1. क्लोरोफाइसी (Chlorophyceae)हरे शैवालक्लोरोफिल a व bमण्ड (Starch)सेल्युलोस युक्त (Cellulogic)2-8, समान शीर्षस्थअलवण जल, लवणीय जल वै खारा जल
2. फियोफाइसी (Pheophyceae)भूरे शैवालक्लोरोफिल  a व b फ्यूकोजैन्थिनमैनीटोल (Mannitol) लैमीनेरिन (Laminarin)सेल्युलोस एल्जिन युक्त2, असमानअलवण जल (बहुतकम), खारा जल, लवणीय जल
3. रोडोफाइसी (Rhodophyceae)लाल शैवालक्लोरोफिल  a व b फाइकोएरिथ्रिनफ्लोरिडियन स्टार्च (Floridian Starch)सेल्युलोसपार्व्वीयअलवण जल (कुछ), खारा जल, लवण जल (अधिकांश)

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प्रश्न 2.
कवक तथा शैवाल में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
कवक तथा शैवाल में अन्तर (Differences between Fungi and Algae)

कवक (Fungl)तैवाल (Algae)
1. पर्णहरिम के अभाव के कारण विषमपोषी अवशोषी (absorptive) होते हैं।1. पर्णहरिम की उपस्थिति के कारण स्वपोषी होते हैं।
2. इनमें कोशाभित्ति काइटिन या फंगल सेल्युलोस की बनी होती है ।2. कोशाभित्ति सेल्युलोस की बनी होती है।
3. खाद्य पदार्थ, वसा, तेल या ग्लाइकोजन के रूप में संचित होता है।3. इनमें खाद्य पदार्थ मण्ड (starch) के रूप में संचित होता है।
4. इनमें जनन अंग विभिन्न प्रकार के होते हैं। विकसित तथा उच्च वर्ग के सदस्यों में जननांग अस्पष्ट या लुप्त हो जाते हैं।4. निम्न श्रेणी के शैवालों में जननांग अविकसित किन्तु विकसित वर्गों में इनकी जटिलता बढ़ जाती है।

प्रश्न 3.
वर्ग क्लोरोफाइसी का संक्षिप्त विवरण दीजिये ।
उत्तर:
वर्ग- क्लोरोफाइसी (Class- Chlorophyceae ) – ये हरे शैवाल होते हैं। इस वर्ग के अधिकांश सदस्य स्वच्छ या अलवण जलीय ( Fresh water) होते हैं, परन्तु कुछ जातियाँ समुद्र में भी पायी जाती हैं। कुछ सदस्य गीली मिट्टी पर भी उगते हैं। जूक्लोरेला (Zoochlorella) सहजीवी शैवाल है जो हाइड्रा (Hydra) के अन्दर उगता है। प्रोटोमी (Protodema) कछुओं की पीठ पर तथा क्लैडोफोरा (Cladophora ) घोंघे के ऊपर उगता है। इनमें क्लोरोफिल ‘a’ तथा ‘b’ प्रकाश संश्लेषी वर्णक पाये जाते हैं।

ये प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं अतः स्वपोषी हैं। हरे शैवाल एक कोशिकी चल या अचल, बहुकोशिकीय, निवही (colonial), शाखाविहीन या शाखामय तन्तुरूपी होते हैं। एसीटाबुलेरिया (Acetabularia) एककोशिकीय सबसे बड़ा शैवाल है। हरे शैवालों में कायिक, अलैंगिक या लैंगिक प्रकार का जनन पाया जाता है।

अलैंगिक जनन, चल बीजाणु (zoospores), अचल बीजाणु सुप्तबीजाणु (hypnospores) एकाइनीट्स या पामेला अवस्था द्वारा होता है। लैंगिक जनन समयुग्मकी, विषमयुग्मकी या असमयुग्मकी प्रकार का होता है। कायिक जनन प्रायः विखण्डन द्वारा होता है। उदाहरण : क्लेमाइडोमोनास, वॉल्वॉक्स क्लोरेला, यूलोथ्रिक्स, स्पाइरोगाइरा कारा आदि ।

प्रश्न 4.
फियोफाइसी वर्ग के प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर:
वर्ग फिओफाइसी (Class – Pheophyceae ) – इस वर्ग के सदस्य भूरे शैवाल (Brown sea weed or kelp) कहलाते हैं। इनके प्रमुख लक्षण निम्न प्रकार हैं-

  • इनमें मुख्य वर्णक क्लोरोफिल ‘a’ क्लोरोफिल c जैन्थोफिल व फ्यूकोजैन्थिन आदि पाये जाते हैं ।
  • कोशिका भित्ति में सेल्युलोस के अतिरिक्त एल्जिनिक तथा फ्यूसिनिक अम्ल भी पाया जाता है।
  • इनमें पायरीनाइड नग्न एवं उभरे होते हैं।
  • कशाभिकाएँ दो तथा असमान होती हैं तथा पार्श्व स्थिति पर होती
  • संचित भोजन लैमिनेरिन अथवा मेनीटॉल के रूप में पाया जाता है।
  • जनन लैंगिक तथा अलैंगिक विधियों से होता है। उदाहरण: एक्ोकार्पस, फ्यूकस, सरगासम, डिक्टियोटा आदि ।

प्रश्न 5.
वर्ग रोडोफाइसी के प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर:
वर्ग रोडोफाइसी (Class Rhodophyceae ) – इस वर्ग के शैवाल लाल शैवाल कहलाते हैं इनके प्रमुख लक्षण अग्रलिखित हैं-

  • मुख्य वर्णक क्लोरोफिल ‘a’ तथा १ ४ एवं फाइकोरिविन (phycoerythrin ) आदि हैं।
  • थायलेकॉइड लवक में बिखरे रहते हैं तथा पायरीनॉइड अनुपस्थित होते हैं।
  • संचित भोजन फ्लोरिडियन स्टार्च होता है।
  • किसी भी अवस्था में कशाभिकाएँ अनुपस्थित होती हैं।
  • कोशाभित्ति पॉलीसैकेराइड्स की बनी होती है।
  • अलवणीय तथा लवणीय जल में पाये जाते हैं। उदाहरण : जैलीडियम, कोन्ड्रेस, पोरफाइरा, रोडीमेनिया आदि ।

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प्रश्न 6.
स्पाइरोगाइरा की कोशिका संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्पाइरोगाइरा (Spirogyra) – स्पाइरोगाइरा एक तन्तुवत् -शाखाविहीन हरा शैवाल है जो प्रायः स्वच्छ जल के तालाबों, झीलों आदि में पाया जाता है। यह पानी की सतह पर पाया जाता है। अतः इसे पांड स्कम (pond scum) कहा जाता है। तन्तु की सभी कोशिकाएँ समरूपी होती हैं। कोशिकाओं की लम्बाई इसकी चौड़ाई से 3-4 गुनी होती हैं। कोशिका भित्ति द्विस्तरीय होती है।

भीतरी स्तर सेल्युलोस का तथा बाह्य स्तर पैक्टिन का बना होता है । बाह्य स्तर जल में घुलकर एक लसलसा पदार्थ बनाता है, इसी कारण स्पाइरोगाइरा चिकने होते हैं। कोशिका में एक केन्द्रीय रिक्तिका होती है। केन्द्रक रिक्तिका के मध्य कोशिकाद्रव्यी तन्तुओं की सहायता से लटका होता है। कोशिका में फीतेनुमा ( ribbon-shaped ) तथा सर्पिलाकार क्लोरोप्लास्ट होते हैं। क्लोरोप्लास्ट पर अनेक पायरीनाइड पाये जाते हैं।
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प्रश्न 7.
अनेक टेरिडोफाइटा व अनावृतबीजियों के नर व मादा जनन अंगों की तुलना आवृतबीजियों की पुष्पीय संरचनाओं से की जा सकती है। टेरिडोफाइटा व अनावृत्तबीजियों के जनन अंगों की तुलना आवृत्तबीजियों के जनन अंगों से करने का प्रयास कीजिए (Exemplar Problem NCERT)
उत्तर:

टेरिडोफाइटअनावृतबीजीआवृतबीजी
1. सूक्ष्मबीजाणुपर्ण (Microsporophyll)सूक्ष्मबीजाणुपर्ण (Microsporophyll)पुंकेसर (Stamen)
2. सूक्ष्मबीजाणुधानी (Microsporangium)सूक्ष्मबीजाणुधानी (Microsporangium)पराग कोष Anther / Poll en Sac)
3. सूक्ष्मबीजाणु (Microspore)सूक्ष्मबीजाणु (Microspore)परागकण; नरयुग्मक
4. गुरुबीजाणुपर्ण | (Megasporophyll)नरयुग्मक गुरुबीजाणुपर्ण (Megasporophyll)अण्डप (Carpel)
5. गुरुबीजाणुधानी (Megasporangium)गुरुबीजाणुधानी (Megasporangium)बीजाण्ड (Ovule)
6. गुरु बीजाणु (Megaspora)बीजाणु गुरु (Megaspore)भ्रूण कोष (Embryo sac)
7. अण्ड कोशिका (egg cell)अण्ड कोशिका (egg (cell)अण्ड कोशिका (egg cell)
8. अनुपस्थितअनुपस्थितफल (परिपक्व अण्डाशय)

प्रश्न 8.
जूस्पोर तथा जाइगोस्पोर में अन्तर लिखिए ।
उत्तर:
जूस्पोर तथा जाइगोस्पोर में अन्तर (Differences between Zoospore and Zygospore)

जूस्पोर (Zoospore)जाइगोस्पोर (Zygospore)
1. ये नग्न बीजाणु होते हैं, इनका निर्माण चलबीजाणुधानी में होता है ।ये मोटी भित्ति वाले निष्क्रिय बीजाणु होते हैं।
2. इनका निर्माण अनुकूल परिस्थितियों में अलैंगिक जनन के समय होता है।इनका निर्माण लैंगिक जनन के समय नर व मादा समयुग्मकों के मिलने से होता है।
3. ये अगुणित होते हैं।ये द्विगुणित (2n) होते हैं।
4. इनमें 2 या अधिक कशाभिकाएँ होती हैं।कशाभिकाएँ नहीं पायी जाती हैं।
5. ये अंकुरित होकर सीधे नया तन्तु बनाते हैं।पहले चल या अचल बीजाणु बनाते हैं जो अगुणित होते हैं अगुणित बीजाणु अंकुरित होकर नया तन्तु बनाते हैं।

प्रश्न 9.
यूलोथ्रिक्स एवं स्पाइरोगाइरा के हरितलवकों में अन्तर बताइए ।
उत्तर:
यूलोजिक्स एवं स्पाइरोगाइरा के हरितलवकों में अन्तर (Differences between Chloroplast of Ulothrix and Spirogyra)

लोक्स का हरितलवकस्पाइरोगाइरा का हरितलवक
1. इसकी प्रत्येक कोशिका में केवल एक क्लोरोप्लास्ट कोशिका दृति | (primordial utricle) में पाया जाता है।1. इसमें 1-16 तक क्लोरोप्लास्ट कोशिका दृति में पाये जाते हैं।
2. क्लोरोप्लास्ट मेखलाकर (girdle shaped ) होते हैं।2. क्लोरोप्लास्ट फीताकार तथा सर्पिल रूप से कुण्डलित होते हैं।
3. एक क्लोरोप्लास्ट में केवल एक पायरीनाइड पाया जाता है।3. एक क्लोरोप्लास्ट में अनेक पायरीनॉइड होते हैं।

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प्रश्न 10.
ब्रायोफाइटा के प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर:
ब्रायोफाइटा (Bryophyta)
ब्रायोफाइटा संवहन ऊतक विहीन एम्ब्रियोफाइट्स (non-vascular embryophytes) होते हैं। ये स्वतन्त्र युग्मकोदभिद (gametophytic) तथा पराश्रयी बीजाणुद्भिद (sporophytic) अवस्थाओं को प्रदर्शित करते हैं। ब्बायोफाइटा समूह के विभेदक लक्षण निम्न प्रकार हैं-
1. आवास (Habitat)-ब्रायोफाइट्स को पादप जगत के उभयचर (amphibians of plant kingdom) कहा जाता है, क्योंकि यह भूमि पर जीवित रह सकते हैं लेकिन लैंगिक जनन के लिए बाह्य जल की उपस्थिति अनिवार्य होती है। ब्रायोफाइटा नम एवं छायादार स्थान पर, गीली मिट्टी, चड्टानों, पेड़-पौधों के तनों पर पाये जाते हैं। रिक्सिया फ्लूटेस जलीय ब्रायोफाइट्स हैं।

2. युग्मकोद्धि (Gametophyte) – यह पौधे के मुख्य काय को प्रदर्शित करती है। यह स्वपोषी (autotraphic) अवस्था है।

3. आकार (Size) – ये छोटे आकार के प्रथम स्थलीय पौधे होते हैं। सबसे छोटा ब्रायोफाइट जूपिस अर्जेन्टस (4-5) mm तथा सबसे बड़ा बायोफाइट डोसोनिया (60-70 cm}) होता है।

4. संवहन ऊतक (Vascular tissue) – इनमें संवहन ऊतकों जैसे जाइलम व फ्लोएम का अभाव होता है।

5. संरचना (Structure)-पादप शरीर या तो थैलाभ (thalloid) या पर्णाभ (foliose) होता है। थैलस शैवालों की अपेक्षा अधिक विकसित होता है तथा शयान (prostate) अर्थात् लेटा हुआ या सीधा (erect) हो सकता है। मुख्यकाय अगुणित (haploid) होता है। फोलिओज ब्रायोकाइट मे पत्ती सदृश उपागों वाले पौधे में अक्ष सदृश तना होता है। वास्तविक पत्तियाँ, तने एवं जड़ें अनुपस्थित होती हैं।

6. मूलाभास (Rhizoids) – पौधों के आधार भाग में एक कोशिकीय या बहुकोशिकीय तन्तुवत् संरचनाएँ मूलाभास (rhizoids) होती हैं। ये पौधों को भूमि में स्थिर रखने तथा जल अवशोषण (absorption) का कार्य करती हैं।

7. वर्धी प्रजनन (Vegetative reproduction) – यह सर्वाधिक रूप से पायी जाने वाली प्रजनन विधि है। वर्धी प्रजनन विखण्डन, अपस्थानिक कलिकाओं, ट्यूबर, अपस्थानिक शाखाओं, प्रोटोनीमा अथवा जैमी द्वारा होता है।

8. अलैंगिक प्रजनन (Asexual reproduction) – ब्रायोफाइट्स में अर्लैंगिक प्रजनन का प्रायः अभाव होता है।

9. लैंगिक प्रजनन (Sexual reproduction) – लैंगिक प्रजनन अण्डयुग्मकी (oogamous) प्रकार का होता है। नर जननांग एन्थीरीडियम (antheridium) तथा मादा जननांग आर्कीगोनियम (archegonium) कहलाते हैं जो बहुकोशिकीय संरचनाएं हैं। एन्थीरीडियम (antheridium) तथा आर्कीगोनियम (archigonium) का निर्माण एक ही थैलस पर अथवा अलग-अलग थैलसों पर होता है।

10. पुंधानी (Antheridium) – यह छोटी वृन्तयुक्त गोलाकार या गदाकार (club-shaped) संरचना है। इसके चारों ओर बन्ध्य कोशिकाओं (sterile cells) का जैकेट पाया जाता है। इसमें पुमणु मातृ कोशिकाओं से पुमपुओं (antherozoids) का निर्माण होता है। पुमणु द्विकशाभिकायुक्त चल संरचनाएँ होती हैं।

11. सीधानी (Archegonium) – यह फ्लास्क के आकार की संरचना है जो नलिकाकार प्रीवा तथा फूले हुए वेन्टर (venter) में विभेदित की जा सकती है। वेन्टर में एक अण्ड (oosphere) उपस्थित होता है।

12. निषेचन (Fertilization) – निषेचन जल की उपस्थिति में होता है। पुमणु (antherozoids) जल में वैरकर अण्डधानी के मुख तक पहुँचते हैं। केवल एक पुमणु स्त्रीधानी (archegonium) में प्रवेश करके अण्ड से संयुजन करता है। इससे युग्मनज (Zygote) का निर्माण होता है।

13. श्रूण (Embryo) – भूण का निर्माण स्त्रीधानी (archegonium) के अन्दर होता है। यह विकसित होकर बीजाणुदभिद (sporophytc) को जन्म देता है।

14. बीजाणुद्भिद् (Sporophyte)-द्विगुणित (diploid) कोशिकाओं से बना बीजाणुद्भिद् पूर्ण या आंशिक रूप से युग्मकोद्भिद् (gametophyte) पर आंत्रित होता है। बीजाणुद्भिद् (sporophyte) प्राय: फुट, सीटा तथा संपुट (foot, seta and capsule) में विभेदित होता है। फुट एक अवशोषक रचना है। सीटा अवशोषित जल व पोषकों को संपुट तक पहुँचाता है तथा संपुट में बीजाणुओं का निर्माण होता है। बीजीणुओं का निर्माण स्पोरोफाइट की कोशिकाओं में न्यन्वरण विभाजन या मीओसिस (meiosis) द्वारा होता है।

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 3 वनस्पति जगत 14

प्रश्न 11.
फ्यूनेरिया के पौधे की बाह्य आकारिकी समझाइए ।
उत्तर:
फ्यूनेरिया (Fun- aria ) – फ्यूनेरिया अथवा मॉस एक छोटा सीधा पत्तीयुक्त 1-3 सेमी. ऊँचाई का ब्रायोफाइट है। यह सामान्यतः एक बार शाखान्वित होता है। शाखा निर्माण पार्श्व व एक्स्ट्रा एक्सीलरी (extra axillary) होता है। माँस का पौधा अक्ष, पत्ती सदृश्य रचनाएं तथा राइजोइड में विभेदित होता है। पत्ती सदृश्य रचनाएं अक्ष पर सर्पिल क्रम में व्यवस्थित रहती है। शाखाओं के सिरों पर एंथीरिडिया (anthiridia) व आर्कीगोनिया (archegonia) का विकास होता है। निषेचन के बाद आर्कीगोनिया स्थित युग्मनज (Zygote) से बीजाणुद्भिद का निर्माण होता है जो युग्मकोद्भिद् पर निर्भर होता है। यह फुट (foot), सीटा (seta) व सम्पुट (capsule) में विभाजित होता है।
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प्रश्न 12.
ब्रायोफाइटा के आर्थिक महत्व को समझाइए ।
उत्तर:
ब्रायोफाइटा (Bryophyta)
ब्रायोफाइटा संवहन ऊतक विहीन एम्ब्रियोफाइट्स (non-vascular embryophytes) होते हैं। ये स्वतन्त्र युग्मकोदभिद (gametophytic) तथा पराश्रयी बीजाणुद्भिद (sporophytic) अवस्थाओं को प्रदर्शित करते हैं। ब्बायोफाइटा समूह के विभेदक लक्षण निम्न प्रकार हैं-
1. आवास (Habitat)-ब्रायोफाइट्स को पादप जगत के उभयचर (amphibians of plant kingdom) कहा जाता है, क्योंकि यह भूमि पर जीवित रह सकते हैं लेकिन लैंगिक जनन के लिए बाह्य जल की उपस्थिति अनिवार्य होती है। ब्रायोफाइटा नम एवं छायादार स्थान पर, गीली मिट्टी, चड्टानों, पेड़-पौधों के तनों पर पाये जाते हैं। रिक्सिया फ्लूटेस जलीय ब्रायोफाइट्स हैं।

2. युग्मकोद्धि (Gametophyte) – यह पौधे के मुख्य काय को प्रदर्शित करती है। यह स्वपोषी (autotraphic) अवस्था है।

3. आकार (Size) – ये छोटे आकार के प्रथम स्थलीय पौधे होते हैं। सबसे छोटा ब्रायोफाइट जूपिस अर्जेन्टस (4-5) mm तथा सबसे बड़ा बायोफाइट डोसोनिया (60-70 cm}) होता है।

4. संवहन ऊतक (Vascular tissue) – इनमें संवहन ऊतकों जैसे जाइलम व फ्लोएम का अभाव होता है।

5. संरचना (Structure)-पादप शरीर या तो थैलाभ (thalloid) या पर्णाभ (foliose) होता है। थैलस शैवालों की अपेक्षा अधिक विकसित होता है तथा शयान (prostate) अर्थात् लेटा हुआ या सीधा (erect) हो सकता है। मुख्यकाय अगुणित (haploid) होता है। फोलिओज ब्रायोकाइट मे पत्ती सदृश उपागों वाले पौधे में अक्ष सदृश तना होता है। वास्तविक पत्तियाँ, तने एवं जड़ें अनुपस्थित होती हैं।

6. मूलाभास (Rhizoids) – पौधों के आधार भाग में एक कोशिकीय या बहुकोशिकीय तन्तुवत् संरचनाएँ मूलाभास (rhizoids) होती हैं। ये पौधों को भूमि में स्थिर रखने तथा जल अवशोषण (absorption) का कार्य करती हैं।

7. वर्धी प्रजनन (Vegetative reproduction) – यह सर्वाधिक रूप से पायी जाने वाली प्रजनन विधि है। वर्धी प्रजनन विखण्डन, अपस्थानिक कलिकाओं, ट्यूबर, अपस्थानिक शाखाओं, प्रोटोनीमा अथवा जैमी द्वारा होता है।

8. अलैंगिक प्रजनन (Asexual reproduction) – ब्रायोफाइट्स में अर्लैंगिक प्रजनन का प्रायः अभाव होता है।

9. लैंगिक प्रजनन (Sexual reproduction) – लैंगिक प्रजनन अण्डयुग्मकी (oogamous) प्रकार का होता है। नर जननांग एन्थीरीडियम (antheridium) तथा मादा जननांग आर्कीगोनियम (archegonium) कहलाते हैं जो बहुकोशिकीय संरचनाएं हैं। एन्थीरीडियम (antheridium) तथा आर्कीगोनियम (archigonium) का निर्माण एक ही थैलस पर अथवा अलग-अलग थैलसों पर होता है।

10. पुंधानी (Antheridium) – यह छोटी वृन्तयुक्त गोलाकार या गदाकार (club-shaped) संरचना है। इसके चारों ओर बन्ध्य कोशिकाओं (sterile cells) का जैकेट पाया जाता है। इसमें पुमणु मातृ कोशिकाओं से पुमपुओं (antherozoids) का निर्माण होता है। पुमणु द्विकशाभिकायुक्त चल संरचनाएँ होती हैं।

11. सीधानी (Archegonium) – यह फ्लास्क के आकार की संरचना है जो नलिकाकार प्रीवा तथा फूले हुए वेन्टर (venter) में विभेदित की जा सकती है। वेन्टर में एक अण्ड (oosphere) उपस्थित होता है।

12. निषेचन (Fertilization) – निषेचन जल की उपस्थिति में होता है। पुमणु (antherozoids) जल में वैरकर अण्डधानी के मुख तक पहुँचते हैं। केवल एक पुमणु स्त्रीधानी (archegonium) में प्रवेश करके अण्ड से संयुजन करता है। इससे युग्मनज (Zygote) का निर्माण होता है।

13. श्रूण (Embryo) – भूण का निर्माण स्त्रीधानी (archegonium) के अन्दर होता है। यह विकसित होकर बीजाणुदभिद (sporophytc) को जन्म देता है।

14. बीजाणुद्भिद् (Sporophyte)-द्विगुणित (diploid) कोशिकाओं से बना बीजाणुद्भिद् पूर्ण या आंशिक रूप से युग्मकोद्भिद् (gametophyte) पर आंत्रित होता है। बीजाणुद्भिद् (sporophyte) प्राय: फुट, सीटा तथा संपुट (foot, seta and capsule) में विभेदित होता है। फुट एक अवशोषक रचना है। सीटा अवशोषित जल व पोषकों को संपुट तक पहुँचाता है तथा संपुट में बीजाणुओं का निर्माण होता है। बीजीणुओं का निर्माण स्पोरोफाइट की कोशिकाओं में न्यन्वरण विभाजन या मीओसिस (meiosis) द्वारा होता है।
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15. बीजाणु (Spores)- बीजाणु अगुणित संरचना है। बीजाणुघानी के फटने पर इनका प्रकीर्णन होता है। बायोफाइट्स के कुछ वंशों में बीजाणु सीधे ही अंकुरण करके युग्मकोद्भिद्ध (gametophyte) बनाते हैं किन्तु कुछ वंशों में अंकुरण करके प्रोटोनीमा बनाते हैं जिनसे युग्मकोदभभिद का निर्माण होता है।

16. पीढ़ी एकान्तरण (Alternation of generation) – बायोफाइटस के जीवनकाल में दो अवस्थाएँ युग्मकोदभिद्ध तथा बीजाणुदभिद होती है। ये दोनों एक-दूसरे का एकान्तरण करती हैं अर्थात् गेमीटोफाइट से स्पोरोफाइट व स्पोरोफाइट से गैमीटोफाइट बनता है। युग्मकोद्धिभ् स्वतन्तजीवी तथा अगुणित अवस्था को प्रदर्शित करती है जबकि बीजाणुद्धभिद् पराश्रयी एवं द्विगुणित अवस्था है। इसी को पीढ़ी एकान्तकरण कहते हैं। यह पारिस्थितिक रूप से अत्यन्त महत्वपूर्ण है तथा अनुक्रमण (succession) में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 13.
टेरीडोफाइटा समूह के प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर:
टेरीडोफाइटा (Pteridophyta)
जीवाश्मों (fossils) के अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि टेरिडोफाइट 350 मिलियन वर्ष पूर्व प्रभावी वनस्पति थे। उस समय के टेरिडोफाइटा बड़े वायवीय तनों वाले अर्थात् वृक्ष सदृश थे। सजावटी पौछे फर्न जैसे-टेरिस (Pteris), एडिएन्टम (Adiantium) तथा हासटेल (ferse tail) टेरिडोफाइट के सामान्य उदाहरण हैं। टेरीडोफाइटा प्राथमिक बीजविहीन संवहनी पौधे होते हैं जो स्पष्ट बीजाणुद्भिद् पादप काय तथा अस्पष्ट स्वतन्त्र युग्मकोद्भिद् (gamctophyte) में विभेदित होते हैं। इन्हें संकहनी क्रिप्टोगेम्स (vascular cryptogames) भी कहते हैं। टेरिडोफाइटस के निम्नलिखित विभेदक लक्षण हैं-
1. आवास (Habitat)-अधिकांश टेरीडोफाइटा स्थलीय होते हैं जो नम छायादार स्थानों, चट्टानों, पेड़ों के तनों पर उगते हैं। कुछ पादप जलीय तथा मरुस्थलीय आवासों में भी पाये जाते हैं। इक्वीसीटम (Equisetum) की कुछ जातियाँ मरूस्थलीय हैं जबकि एजोला (Azolla), साल्विनिया (Salvina) जलीय जातियाँ हैं। मासीलिया (Marsilia) उभयचर पादप होता है।

2. पादफ्काय (Plant body) – यह बीजाणुद्भिद् द्वारा निरूपित होते हैं अर्थात् मुग्य पौधा स्पोरोफाइट होता है। बीजाणुद्भिद् स्पष्ट जड़, तना तथा पत्तियों में विभेदित होता है।

3. उड़ (Roots) – प्राथमिक जड़ें अल्पकालिक (ephimeral) होती हैं जो अपस्थानिक जड़ों (adventitious roots) द्वारा प्रतिस्थापित कर दी जाती हैं।

4. तना (Stem)-यह शाकीय होता है। अधिकांश फर्न में तना भूमिगत राइजोम (rhizome) होता है।

5. पत्तियाँ (Leaves) – पत्तियाँ दो प्रकार की होती हैं लघुपर्णी तथा गुरुपर्णी (microphyllous and megaphyllous)। सिलैजिनेला में पतियाँ छोटी तथा फर्न में बड़े आकार की होती हैं।

6. संबहलन ऊ्तक (Vascular Tissue)-संवहन ऊतक उपस्थित होता है तथा दो प्रकार के ऊतकों, जाइलम तथा फ्लोएम का बना होता है।
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7. जनन (Reproduction) – जनन कायिक तथा लैंगिक प्रकार का होता है। कायिक प्रजनन अपस्थानिक कलिकाओं, पत्र प्रकलिकाओं (bulbils) या अपस्थानिक शाखाओं द्वारा होता है। लैंगिक जनन विशिष्ट संरचनाओं द्वारा होता है।

8. बीजाणुपर्ण (Sporophyll) – बीजाणु बीजाणुधानियों (sporangia) में बनते हैं तथा बीजाणुधानी धारण करने वाली पत्तियां बीजाणुपर्ण कहलाती हैं। बीजाणु धानियाँ (sporangium) पत्ती की सतह पर उत्पन्न होती हैं।

9. बीजाणुधानियों का वितरण (Distribution of Sporangia)-फर्र्स में बीजाणुधानियाँ बीजाणु पर्णों (sporophylls) की निचली सतह पर समूहों या सोराई (sori) में पायी जाती हैं। एक सोरस (sorus) में 5-6 या अधिक बीजाणुधानी होती हैं।
कुछ टेरिडोफाइट में बीजाणुपर्ण (Sporophylls) सघन होकर शंकु (cone) जैसी सुस्पष्ट रचना बनाते हैं। सिलेजिनेला व इक्वीसीटम में यही रचना जाती है। इन्हुं स्ट्रोविलस (strobilus) कहा जाता है।

10. बीजाणुघानी (Sporangia) – स्पोरोफाइट होने के कारण बीजाणुधानी द्विगुणित (diploid) होती है। यह मोटी भित्चि वाली कोशिकाओं से घिरी रहती है तथा इसके केन्द्र में स्थित बीजाणु मातृ कोशिकाओं (spore mother cells) में हुए अर्धसूत्र विभाजन (meiosis) द्वारा बीजाणुओं का निर्माण होता है।

11. बीज्ञाणु (Spores) – बीजाणुधानी के फटने पर अगुणित बीजाणु हवा द्वारा दूर्दूर वक प्रकीर्णित कर दिए जाते हैं जो अंकुरण कर युग्मकोदभिद् (gametophyte) का निर्माण करते हैं।

12. युग्मकोद्भि्द् (Gametophyte) – यह स्वतन्त्रजीवी छोटी थैलाभ संरचना है जिसे प्रोथैलस (prothallus) कहते हैं। प्रोथेलस बहुकोशिकीय होता है तथा ठण्डे, गीले व छायादार स्थानों पर उगता है। निषेचन के लिए जल की आवश्यकता तथा इसकी अन्य विशिष्ट, सीमित आवश्यकताओं के कारण टेरिडोफाइट भौगोलिक रूप से सीमित क्षेत्रों में पाये जाते हैं। इसी प्रोथैलस पर नर व मादा जनन अंगों का विकास होता है। अधिकांश फर्न में यह हरा व स्वपोषी (autotrophic) होता है। विषमपोषी (heterotrophic) फर्न में, मादा युग्मकोद्भिद् (gametophyte), सामान्यतः दीर्घबीजाणु (megaspore) द्वारा संचित भोजन पर निर्भर करता है।

13. जनन अंग (Sex organs) – नर जनन अंग पुंधानी (Antheridium) तथा मादा जनन अंग रीधानी (Archegonium) कहलाते हैं। समबीजाणुक (homosporous) वंशों में बीजाणु अंकुरण से बनी हरी एवं स्वतन्त्र रचना प्रोथैलस पर जनन अंगों का निर्माण होता है।

14. पुंधानी (Antheridium) – यह वृन्तहीन मुग्दराकार (club-shaped) संरचना है जो एक स्तरीय जैकेट द्वारा घिरी होती है। पुंधानी के अन्दर द्विकशााभक पुमणुओं (biflagellate antherozoids) का निर्माण होता है। इक्वीसीटम तथा सायलोटम में पुमणु (multiflagellate) बहुकशाभिकीय होते हैं।

15. सीधानी (archegonium)-यह फ्लास्कनुमा रचना होती है। यह आंशिक रूप से प्रोथैलस में धँसी होती है। ग्रीवा वायवीय होती है। सीधानी (archegonium) के आधारीय भाग में एक अण्डगोल (oosphere) या अण्ड होता है।

16. निषेचन (Fertilization) – निषेचन बाहा जल की उपस्थिति में होता है। पुमणु अपने कशाभों द्वारा तैरकर स्त्रीधानी (archegonium) के मुख तक पहुँचते हैं। केवल एक पुमणु स्त्रीधानी (archegonium) में प्रवेश करके अण्ड को निषेचित करता है। निषेचित अण्ड प्रूण का निर्माण करता है।

17. भूण (Embryo)-निषेचन के फलस्वरूप बना युग्मनज (zytoge) विभाजन करके प्रूण (embryo) का निर्माण करता है जो वृद्धि करके प्रोधैलस के ऊतकों को फाड़कर भूमि में स्थापित हो जाता है और नये द्विगुणित पौधे अर्थात् स्पोरोफाइट का निर्माण करता है।

18. पीढ़ी एकान्तरण (Alternation of Generation) – सभी टेरीडोफाइट्स के जीवन चक्र में बीजाणुद्भिद (sporophyte) तथा युग्मकोद्भिद् (gametophyte) पीढ़ियों का एकान्तरण होता है। इसे पीढ़ी एकान्तरण (alternation of generation) कहते हैं।

प्रश्न 14.
फर्न के प्रोथैलस पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
फर्न का प्रोथैलस (Prothallus of Fern) – फर्न में बीजाणुधानी से प्रकीर्णित होने के बाद बीजाणु स्वतन्त्र रूप से अंकुरण करके, हृदयाकार हरे रंग की स्वपोषी संरचना का निर्माण करते हैं जिसे प्रोथैलस कहते हैं। यह फर्न की युग्मकोद्भिद् अवस्था को प्रदर्शित करता है। प्रोथैलस पतली, चपटी हृदयाकार संरचना है जो बीच में मोटी तथा किनारों पर पतली होती है। फर्न का प्रोथैल उभयलिंगाश्रयी (monoecious) होता है अर्थात् नर तथा मादा जननांग धारण करता है।

प्रोथैलस का मध्य भाग एक गद्दी जैसी संरचना होता है जिसके नीचे से दोनों ओर को मूलाभास ( rhizoids) निकले होते हैं। पुंधानी पहले विकसित होती है इनका निर्माण मूलभासों के बीच होता है। प्रोथैलस के ऊपरी भाग में शीर्ष खाँच के निकट स्त्रीधानियाँ (Archegonia) विकसित होती हैं। फर्न में पुंपूर्वी दशा (Protandrous) पायी जाती है अर्थात् एन्थीरोजाइड्स आर्कीगोनियम के परिपक्व होने से पहले ही तैयार (परिपक्व हो जाते हैं। अतः स्वनिषेचन नहीं होता है।
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प्रश्न 15.
मॉस तथा फर्न बीजाणुद्भिदों की तुलना कीजिए।
उत्तर:
मॉस तथा फर्न के बीजाणुद्भिदों की तुलना (Comparison between Sporophytes of Moss and Fern)

मॉस बीजाणुद्भिद्फर्न वीजाद्भिद्
1. बीजाणुद्भिद् लगभग 2 सेमी लम्बा स्पोरोगोनियम होता है।1. बीजाणुद्भिद् एक पूर्ण विकसित पौधे के रूप में होता है।
2. यह फुट, सीटा तथा कैप्सूल में विभेदित होता है।2. यह जड़, भूमिगत तना तथा हरी पत्तियों में विभेदित होता है।
3. संवहन ऊतकों का अभाव होता है।3. संवहन ऊतक जाइलम व फ्लोएम | का बना होता है।
4. यह युग्मको पर पूर्ण परजीवी होता है।4. प्रारम्भिक अवस्था में परजीवी किन्तु बाद में स्वतन्त्र जीवी होता है
5. बीजाणु निर्माण कैप्सूल में होता है ।5. बीजाणु निर्माण बीजाणुधानी में होता है।

प्रश्न 16.
अनावृतबीजी (साइकस) तथा टेरीडोफाइटा (फर्न) में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
अनावृतबीजी (साइकस) तथा टेरीडोफाइटा (फर्न) में अन्तर

अनावृतबीजी-साइकसटेरीडोफाइटा-फर्न
1. शुष्क आवासों में पाये जाते हैं।1. प्रायः नम वातावरण में तथा कुछ जल में पाये जाते हैं।
2. युग्मकोद्भिद् ( gametophyte ) पूर्ण रूप से बीजाणुद्भिद् पर आश्रित होता है।2. युग्मकोद्भिद् ( gametophyte ) स्वपोषी होता है।
3. विषम बीजाणुक ( heterosporous) होते हैं।3. प्रायः  समबीजाणु (homosporous) होते हैं।
4. युग्मकोद्भिद् एकलिंगाश्रयी (dioecious) होता है।4. उभयलिंगाश्रयी (monoccious) होता है।
5. बीजों का निर्माण होता है।5. बीजों का निर्माण नहीं होता है।

प्रश्न 17.
जिम्नोस्पर्म तथा एन्जियोस्पर्म में अन्तर लिखिए ।
उत्तर;
जिम्नोस्पर्म तथा एन्जियोस्पर्म में अन्तर (Differences between Gymnosperms and Angiosperms)

जिम्नोस्पर्म (Gymnosperms)एन्जियोस्पर्म (Angiosperms)
1. पौधे शुष्कोद्भिद्, वृक्ष तथा झाड़ी होते हैं।1. पौधे, शाक, झाड़ी व वृक्ष होते हैं। ये जलोद्भिद मरुद्भिद्, समोद्- भिद् एवं लवणोद्भिद होते हैं।
2. बीज किसी आवरण में बन्द नहीं होते ।2. बीज फल के अन्दर बन्द होते हैं।
3. संवहन बण्डल के जाइलम में वाहिकाएँ तथा फ्लोएम में सखिकोशिकाएँ नहीं पायी जाती हैं।3. वाहिकाएँ तथा सहकोशिकाएँ पायी जाती हैं।
4. ये प्रायः एकलिंगी होते हैं।4. ये एकलिंगी या द्विलिंगी होते हैं।
5. परागण वायु द्वारा होता है।5. परागण, वायु, जल, कीट व जन्तुओं द्वारा होता है।
6. द्विनिषेचन (double fertilization) नहीं पाया जाता है ।6. द्विनिषेचन आवृतबीजियों का विशिष्ट लक्षण है।
7. भ्रूणपोष अगुणित होता है।7. भ्रूण पोष त्रिगुणित होता है।
8. फलों का निर्माण नहीं होता।8. फलों का निर्माण होता है।

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(E) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (निबन्धात्मक)

प्रश्न 1.
मॉस (फ्यूनेरिया) के जीवन चक्र का सचित्र वर्णन कीजिए। इसमें पीढ़ी एकान्तर भी समझाइए ।
उत्तर:
मॉस (फ्यूनेरिया) का जीवन चक्र प्रश्नोत्तर देखें प्रश्न 3, पाठ्य-पुस्तक
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प्रश्न 2.
फर्न (ड्रायोप्टेरिस) के जीवन चक्र तथा पीढ़ी एकान्तरण का सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा
फर्न के जीवन-चक्र का प्राफीय निरूपण कीजिए।
उत्तर:
फर्न का जीवन चक्र (Life cycle of Fern Dryopteris) – फर्न का जीवन-चक्र दो अवस्थाओं में पूर्ण होता है- बीजाद्भिद (sporophyte) तथा युग्मकोद्भिद ( gametophyte )। ये दोनों अवस्थाएँ एक के बाद एक आती है। बीजाणुद्भिद् (Sporophyte ) – यह फर्न की प्रमुख अवस्था है जो भूमिगत प्रकन्द ( rhizome), अपस्थानिक जड़ों ( Adventitious roots), वायवीय प्ररोह (arial shoot) तथा पत्तियों (leaves) में विभेदित होती है।

सामान्य पत्तियों में से ही कुछ पत्तियाँ बीजाणुपर्ण का कार्य करती हैं जिन पर बीजाणुधानियों (Sporangia) के समूह इनकी निचली सतह पर उत्पन्न होते हैं। बीजाणुधानियों के समूह सोराई (sori) कहलाते हैं। फर्न समबीजाणुक (homosporous) होते हैं। प्रत्येक बीजाणुधानी में 12-16 तक बीजाणु मातृ कोशिकाएँ होती हैं।

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प्रत्येक बीजाणु मातृ कोशिका अर्द्धसूत्री विभाजन करके अगुणित बीजाणुओं (haploid spores) का निर्माण करती है। बीजाणु प्रकीर्णित होकर तथा अंकुरण करके युग्मकोद्भिद पीढ़ी को जन्म देते हैं। युग्मकोद्भिद (Gametophyte ) – बीजाणु इस पीढ़ी की प्रारम्भिक अवस्था को प्रदर्शित करते हैं। बीजाणुओं के अंकुरण से हृदयाकार (heart shaped), हरे रंग की चपटी संरचना का निर्माण होता है जिसे प्रोथैलस (prothallus ) कहते हैं। यह स्वपोषी होता है और अपने मूलाभासों द्वारा जमीन में सधा रहता है।

प्रोथैलस की अधर सतह पर पुंधानी तथा स्त्रीधानियों का विकास होता है। पुंधानी गोलाकार अवृन्त संरचनाएँ हैं जो प्रोथैलस पर मूलाभासों के बीच-बीच में उत्पन्न होती हैं। इनमें बहुपक्ष्मीय तथा कुण्डलित पुमणुओं (Antherozoids) का निर्माण होता है। प्रत्येक स्त्रीधानी फ्लास्क के आकार की संरचना है, इनका निर्माण प्रोथैलस की शीर्ष खाँच के समीप समूहों में होता है । प्रत्येक स्त्रीधानी में एक अगुणित अण्ड पाया जाता है।

फर्न में निषेचन जल की उपस्थिति में होता है। पुमणु तैरकर स्त्रीधानी के मुँह तक आ जाते हैं तथा स्त्रीधानी का मुख खुलने पर अनेक पुमणु स्त्रीधानी में प्रवेश कर जाते हैं। केवल एक पुमणु अण्ड से संयुजन कर द्विगुणित युग्मनज (zygote) बनाता है। यह अपने ऊपर एक मोटी भित्ति स्रावित कर लेता है। और निषिक्ताण्ड (oosphere) कहलाता है।

निषिक्ताण्ड (oosphere) अंकुरण करके भ्रूण ( embryo) बनाता है। भ्रूण के परिवर्धन से पुनः बीजाणुद्भिद अवस्था स्थापित होती है। फर्न में पीढ़ी एकान्तरण ( alternation of generations ) – फर्न में बीजाणुद्भिद् तथा युग्मकोद्भिद् अवस्थाओं का एकान्तरण होता है। बीजाणुद्भिद् अवस्था प्रमुख होती है जिस पर बीजाणुधानियाँ होती हैं।

इसमें अगुणित बीजाणुओं का निर्माण होता है, जो अंकुरण करके प्रोथैलस बनाते हैं। प्रोथैलस युग्मकोद्भिद् अवस्था को प्रकट करता है। इस पर नर व स्त्री जननांग होते हैं। इसमें युग्मकों के संलयन से जाइगोट बनता है जो पुनः बीजाणुद्भिद् अवस्था को स्थापित करता है।
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प्रश्न 3.
साइकस के जीवन चक्र का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
साइकस का जीवन चक्र (Life cycle of Cycas) -साइकस का पौधा बीजाणुद्भिद होता है जिसमें नर तथा मादा जनन अंग अलग-अलग पौधों पर विकसित होते हैं अर्थात् साइकस एक लिंगाश्रयी (dioecious) होता है। नर पौधे पर नर शंकुओं (Male cones) का निर्माण होता है। प्रत्येक नर शंकु में अनके लघुबीजाणुपर्ण (microsporophylls) होते हैं।

प्रत्येक लघुबीजाणुपर्ण के आधारीय भाग में लघुबीजाणु धानियाँ (microsporangia) होती हैं। इनमें बीजाणु मातृ कोशिकाएँ (microspore mother cells) अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा असंख्य अगुणित लघु बीजाणु या परागकण (microspore or pollen grains) बनाती हैं।मादा पौधों में गुरुबीजापर्ण (Megasporophylls) पाये जाते हैं जिन पर बीजाण्ड (Ovules) लगे होते हैं।

साइकस में गुरुबीजाणुपर्ण शंकु के रुप में व्यवस्थित नहीं होते व शीर्ष पर पत्तियों के बीच में लगे रहते हैं। बीजाण्ड के अन्दर गुरुबीजाणु मातृ कोशिका (Megaspore mother cell) में अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा चार अगुणित गुरुबीजाणु बनते हैं जिनमें से तीन नष्ट हो जाते हैं और केवल एक सक्रिय रहता है। नर युग्मकोद्भिद या परागकण दो नर युग्मकों का निर्माण करता है, मादा युग्मकोद्भिद एक या अधिक स्त्रीधानी बनाता है जिनमें एक-एक मादा युग्मक या अण्ड (egg) होता है। साइकस में वायु द्वारा परागण होता है।

नर युग्मको द्भिद तीन कोशिकीय अवस्था में बीजाणु तक पहुँचता है और परागकोष्ठ (pollen chamber) में पहुँच जाता है। यहाँ नर युग्मकोद्भिद् से एक पराग नलिका (pollen tube) बनती है जिसमें दो नर युग्मक होते हैं। स्त्रीधानी तक पहुँचकर एक नर युग्मक एक स्त्रीधानी में प्रवेश करता है।

प्रायः एक से अधिक स्त्रीधानियाँ निषेचित होती हैं किन्तु पूर्ण रूप से किसी एक का ही विकास होता है। निषेचन के पश्चात् द्विगुणित युग्मनज (zygote) बनता है, जो भ्रूण का निर्माण करता है। भ्रूण बीज में बन्द रहता है। बीजों के अंकुरण से पुनः बीजाणुद्भिद पौधे बनते हैं।
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प्रश्न 4.
समझाइए क्यों आवृत्तबीजियों में लैंगिक जनन को द्विनेषेचन व त्रिसंलयन द्वारा होना बताया जाता है। इस परिघटना को स्पष्ट करने के लिए भ्रूणपोष का चित्र भी बनाइए ।
उत्तर:
परागनलिका में दो नर युग्मक (male gametes) होते हैं। परागनलिका वर्तिका (style) से होती हुई भ्रूणकोष में प्रवेश करके अपने दोनों न युग्मक भ्रूणकोष में छोड़ देती हैं। दोनों नर युग्मकों में से एक अण्ड कोशिका से तथा दूसरा द्वितीयक केन्द्रक से संलयन करता है। पहले संलयन को निषेचन (fertilization) तथा दूसरे को त्रिसंलयन (triple fusion) कहा जाता है। चूंकि निषेचन दो बार होता है अर्थात् पहला नर केन्द्रक अण्ड से तथा दूसरा नर केन्द्रक द्वितीयक केन्द्रक से, अतः इस पूरी प्रक्रिया को द्विनिषेचन (double fertilization) कहा जाता।
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प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक (Primary enbryosac nucleus ) निषेचन के पश्चात् अण्ड कोशिका द्विगुणित युग्मनज (Diploid zygote; 2n) तथा द्वितीयक केन्द्रक त्रिगुणित भ्रूणपोष (triploid endosperm; 3n) बनाते हैं। अब सम्पूर्ण बीजाणु बीज की संरचना करता है। बीजों के अंकुरण से पुनः बीजाणुद्भिद पीढ़ी का निर्माण होता है।

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प्रश्न 5.
किसी अनावृत्तबीजी तथा आवृत्तबीजी के जीवन चक्र का केवल ग्राफीय निरूपण कीजिए।
उत्तर:
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प्रश्न 6.
पौधों के जीवनचक्र में अगुणितक, द्विगुणितक तथा मिश्रित प्रकार के जीवन- पैटर्न की संक्षिप्त व्याख्या रेखाचित्रों द्वारा कीजिए।
उत्तर:
पादप जीवन चक्र तथा संतति या पीड़ी-एकान्तरण (Life Cycle of Plant and Alternation of Generation) पादप में अगुणित तथा द्विगुणित कोशिकाएँ माइटोसिस द्वारा विभक्त होती हैं। इसके कारण विभिन्न काय, अगुणित तथा द्विगुणित बनते हैं।
1. अगुणित पादपकाय माइटोसिस द्वारा युग्मक (gametes) बनाते हैं। इसमें पादपकाय युग्मकोद्भिद् (gametophyte) होता है। निषेचन के बाद युग्मनज भी माइडोसिस द्वारा विभक्त होता है जिसके कारण ह्विगुणित स्पोरोफाइट पादपकाय बनाता है।

2. पादपकाय में मिऑसिस द्वारा अगुणित बीजाणु बनते हैं।

3. ये अगुणित बीजाणु माइटोसिस विभाजन द्वारा पुनः अगुणित पादपकाय बनाते हैं। इस प्रकार किसी भी लैंगिक जनन करने वाले पौरों के जीवन चक्र के दौरान युग्मकों, जो अगुणित युग्मकोद्धिद् (haploid gametophyte) बनाते हैं और बीजाणु जो द्विगुणित स्पोरोफाइट बनाते है, के बीच संतति या पीक़ी-एकान्तरण होता है। विभिन्न पादप वर्गों में निम्नलिखित प्रकार का जीवन चक्र पाया जाता है-
(अ) अगुणितक (Haplontic)
(ब) स्रिणुणितक (Diplontic)
(स) अगुणितक द्विगुणित (Haplo-diplontic)

(अ) अभुजिति (Haplontic)-बीजाणुद्धिद् (sporophyte)- संतति में केवल एक कोशिका वाला युग्मनज होता है। स्योरोफाइट मुक्तजीवी नहीं होता है। युग्मनज में मिओसिस विभाजन होता है विससे अगुणित बीजाणु बनते है। अगुणित बीजाणु में माइटोटिक विभाजन द्वारा युग्मकोदिभद् (gametophyte) बनते हैं। ऐसे पौधों में प्रभावी, प्रकाश संश्लेषी अवस्था मुक्त जीवी युग्मकोदुिद्ध होती है। इस प्रकार के जीवन चक्र को अगुणितक (haplontic) कहते हैं। बहुत से शैवाल, जैसे वरणंक्ता साइोलाखरा तथा क्समाइड्दोमोनोंत की कुछ स्पीशीज में इस प्रकार जीवन चक्र पाया जाता है।

(ब) लिणिंक्ज (Diplontic)-कुछ पादपों में बीजाणुदभिद्ध (sporophyte) प्रभावी प्रकाश संश्लेषी व मुक्त होते है। युग्मकोद्भिद् एक कोशिकीय अथवा कुछ कोशिकीय होते हैं। इस तरह के जीवन चक्र को ऐंयस्पर्म में इस तरह का जीवन चक छोता है। (चित्र 3.7 घ)। बायोफाइट व टैरिडोफाइट समूहों में मिश्रित अवस्था अर्थात् दोनों प्रकार की अवस्थाएँ पायी जाती हैं। दोनों ही अवस्थाएँ बहुकोशिकीय होती हैं, लेकिन उनकी प्रभावी अवस्था में भिन्नता होती है।

(स) अगुणित्र-हिणुणित्क (Haplo-Diplo- ntic)-पादपों के ब्रायोफाइट व टैरिडोफाइट समूहों में मिश्रित अवस्था अर्थात् दोनों प्रकार की अवस्थाएँ पायी जाती हैं। दोनों ही अवस्थाएँ बहुकोशिकीय होती हैं, लेकिन उनकी प्रभावी अवस्था में भिन्नता होती है।
(i) बायोफाइटा (bryophtes) में प्रभावी, मुक्त व प्रकाश संश्लेषी अवस्था अगुणित युग्मकोद्भिद् होती है। यह अल्प आयु की बहुकोशिकीय, द्विगुणित बीजाणुद्धिद् (sporophyte) के साथ पीढ़ी एकान्तरण करती है।

(ii) बीजाणुद्धिद (sporophyte) पूर्ण या आंशिक रूप से जुड़े रहने या पोषण प्राप्त करने के लिये युग्मकोद्धिद्ध पर निर्भर करते हैं।

(iii) टेरिडोफाद्स्स व कुछ शैवालों जैसे-एक्टोकार्पस, पारिंयु कोनिध कैल्प आदि में अगुणितक-द्विगुणितक जीवन चक्र
(Haplo-Diplontic Life Cycle) पाया जाता है। इनमें द्विगुणित बीजाणुदभिद्र प्रभावी, मुक्त, प्रकाशसंश्लेषी, संवहनो पादपकाय होता है जो कि बहुकीशिक, स्वपोषी मुक्त लेकिन अल्पायु अगुणित युग्मकोद्भिद् से पीड़ी एकान्तरण करता है।

(iv) अधिकांश शैवाल में अगुणितक (haplontic) जीवन चक्र होता है। फाइकस एक ऐसे शैवाल का उदाहरण है जिसमें द्विगुणितक (diplontic) जीवन
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Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 1 जीव जगत Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Important Questions Chapter 1 जीव जगत


(A) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. पादप वर्गीकरण की लीनियस पद्धति आधारित है-
(A) आकारिकी एवं शारीरिकी लक्षणों पर
(B) विकास के प्रकार पर
(C) पुष्पीय लक्षणों पर
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) आकारिकी एवं शारीरिकी लक्षणों पर

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2. ICBN का अर्थ है-
(A) इंटरनेशनल कोड ऑफ बोटेनिकल नोमेनक्लेचर
(B) इंटरनेशनल कांग्रेस ऑफ बोटेनीकल नेम्ज
(C) इंडियन कोड ऑफ बोटेनिकल नोमेक्लेचर
(D) इंडियन कॉमेस ऑफ बायोलॉजीकल मेम्ज
उत्तर:
(A) इंटरनेशनल कोड ऑफ बोटेनिकल नोमेनक्लेचर

3. वर्गिकी पदानुक्रम में प्रजाति से जगत की और जाने पर समान लक्षणों
की संख्या-
(A) घटेगी
(B) बढ़ेगी
(C) सम्मान रहेगी
(D) बढ़ भी सकती है व घट भी सकती है।
उत्तर:
(C) सम्मान रहेगी

4. पाँच जगत् वर्गीकरण पद्धति प्रतिपादित की थी-
(A) आर. एच. व्हीटेकर ने
(C) कार्ल बी ने
(B) कोपलैण्ड ने
(D) ई. हेकल ने।
उत्तर:
(A) आर. एच. व्हीटेकर ने

5. निम्नलिखित में कौन-सा कथन सही नहीं है-
(A) पादफलय में शुष्पीकृत, प्रेस किए गए परिरक्षित पादप नमूने होते है।
(B) वानस्पतिक उद्यान, सन्दर्भ के लिए जीवित पादपों का संग्रहण है
(C) संग्रहालय, पादपों और जन्तुओं की तस्वीरों का संग्रहण है
(D) कुंजी नमूनों को पहचानने के लिए एक वर्गिकी सहायक है।
उत्तर:
(C) संग्रहालय, पादपों और जन्तुओं की तस्वीरों का संग्रहण है

6. वैश्विक जैवविविधता में किसकी जातियों की अधिकतम संख्या है ?
(A) सेवाल
(B) लाइकेन
(C) कपक
(D) मॉस एवं फर्न (NEET)
उत्तर:
(C) कपक

7. नीचे दिए गए चार कथनों (I, IV) का अध्ययन कीजिए तथा निम्न स दो सही कथनों का चयन कीजिए-
I. जैविक स्पीशीज की परिभाषा अर्नेस्ट मायर ने दी थी।
II. दीप्तिकाल पौधों में जनन को प्रभावित नहीं करता है।
III. नामकरण की द्विनाम पद्धति आर. एच. विटेकर ने दी थी।
IV. एककोशिकीय जीवों में जनन वृद्धि का पर्याय है ।
(A) II तथा III
(C) I तथा IV
(B) III तथा IV
(D) I तथा II.
उत्तर:
(C) I तथा IV

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8. हरवेरियम शीत पर क्या अंकित नहीं होता है ?
(A) संग्रहण की तिथि
(B) संग्रहकर्ता का नाम
(C) स्थानीय नाम
(D) पौधे की ऊँचाई ।
उत्तर:
(D) पौधे की ऊँचाई ।

9. नामकरण कुछ सार्वत्रिक नियमों पर आधारित है। निम्न में से कौन
नामकरण नियमों के विपरीत है-
(A) जैविक नाम का प्रथम शब्द जीनम को तथा द्वितीय शब्द स्पीशीज को प्रदर्शित करता है ।
(B) नाम तिरछे लिखे जाते हैं ।
(C) हाथ से लिखने पर नाम के नीचे रेखा खींची जाती है।
(D) जैविक नाम किसी भी भाषा में लिखे जा सकते हैं।
उत्तर:
(D) जैविक नाम किसी भी भाषा में लिखे जा सकते हैं।

10. निम्न से कौन घोले का गण दर्शाता है-
(A) रस
(B) एक्विटी
(C) पेरिसोक्टाइल
(D) बैलस।
उत्तर:
(C) पेरिसोक्टाइल

(B) अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ICZN का पूरा नाम क्या है ?    (Exemplar Question NCERT)
उत्तर:
इण्टरनेशनल कोड ऑफ जूलॉजिकल नोमेनक्लेचर (International Code of Zoological Nomenclature)

प्रश्न 2.
अधीक्षा में समसूत्री विभाजन द्वारा गुणन होता है। यह घटना वृद्धि है या प्रजनन ? स्पष्ट कीजिए (Exemplar Question NCERT)
उत्तर:
अजनन व वृद्धि दोनों विभाजन के बाद प्रजनन से बने अमीबा आकार में जनक अमीबा से छोटे होते हैं जो वृद्धि द्वारा सामान्य आकार ग्रहण करते हैं।

प्रश्न 3.
मुख्य वर्गकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
जगत संघ, वर्ग, गण, कुल, वंश तथा जाति।

प्रश्न 4.
जनुओं को सर्वप्रथम किसने वर्गीकृत किया ?
उत्तर:
अरस्तू (Aristotle) ने।

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प्रश्न 5.
द्विनाम पद्धति के प्रतिपादक कौन थे ?
अथवा
वर्गिकी का पितामह (Father of Taxonomy) कहा किसे जाता है ?
उत्तर:
कैरोलस लीनियस (Carolus Linnaeus)।

प्रश्न 6.
प्रोटिस्टा शब्द किसने दिया ?
उत्तर:
अर्नस्ट हेकल ने।

प्रश्न 7.
टैक्सोनॉमी शब्द किसने और कब दिया ?
उत्तर:
डी केण्डोले (D. Candole) ने 1813 में

प्रश्न 8.
तुलनात्मक संरचनाओं के बीच सम्बन्ध क्या कहलाता है ?
उत्तर:
होमोलॉजी (Homology) ।

प्रश्न 9.
एक वंश के अन्दर जातियों के सामान्य गुण किस लक्षण से जाने जाते हैं ?
उत्तर:
सह-सम्बन्धी लक्षण ।

प्रश्न 10.
NBRI का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
नेशनल बोटेनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (National Botanical Research Institute) I

प्रश्न 11.
ICBN का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
इंटरनेशनल कोड ऑफ बोटेनिकल नॉमिनक्लेचर (International Code of Botanical Nomenclature)!

प्रश्न 12.
लीनियस द्वारा लिखी गयीं दो पुस्तकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
स्पीशीज प्लान्टेम (Species Plantarum), सिस्टेमा नेचुरी (Systema Naturae)

प्रश्न 13.
वर्गीकरण का कोई एक उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
विभिन्न स्तरों के समान या सम्बन्धित लक्षणों को दर्शाना।

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प्रश्न 14.
मनुष्य किस संघ का प्राणी है ?
उत्तर:
संघ कोटा (Chordata) का।

प्रश्न 15.
पदानुक्रमिक प्रणाली का एक लाभ लिखिए।
उत्तर:
यह टैक्सॉन को तुरन्त पहचानने में सहायता करती है।

प्रश्न 16.
निम्नलिखित कहाँ स्थित हैं ?
(I) इंडियन बोटेनिकल गार्डन
(II) नेशनल बोटेनिकल रिसर्च इस्टीट्यूट
उत्तर:
(i) हावड़ा (कोलकाता) भारत,
(ii) लखनऊ (उ.म.) भारत

प्रश्न 17.
न्तु संरक्षित स्थानों को प्राप्य किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
चिड़ियाघर (Zoological Park) ।

प्रश्न 18.
(I) घरेलू मक्खी तथा
(II) गेहूं का वैज्ञानिक नाम लिखिए।
उत्तर:
(i) मस्का होमेस्टिका (Musca domestica),
(ii) ट्रिटिकंम एइस्टीयम (Thricum astivum)।

प्रश्न 19.
हरबेरियम का क्या लाभ है ?
उत्तर:
हरबेरियम वर्गिकी अध्ययन के लिए तत्काल सन्दर्भ तन्त्र उपलब्ध कराता है।

प्रश्न 20.
पादप तथा जन्तुओं की कितनी जातियों का ज्ञान हो चुका है ?
उत्तर:
1-7 से 1.8 मिलियन ।

प्रश्न 21.
किसे वनस्पति विज्ञान का पितामह कहा जाता है ?
उत्तर:
थियोफ्रास्टस (Theophrastus) को।

(C) लघु उत्तरीय प्रश्न-1

प्रश्न 1.
उस वैज्ञानिक का नाम लिखिए जिसने जीवधारियों का वर्गीकरण करने का सर्वप्रथम प्रयत्न किया तथा इनके द्वारा जन्तुओं का वर्गीकरण किन दो भागों में किया गया ?
उत्तर:
अरस्तू (Aristotle) ने जीवधारियों को सर्वप्रथम वर्गीकृत करने का प्रयत्न किया। इन्होंने जन्तुओं को हनेहमा (Enaima) तथा एनेइमा (Anaima) में वर्गीकृत किया।

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प्रश्न 2.
हिस्टोरिया प्लेटेरम तथा जेनेरा सेन्टेरम पुस्तकों के लेखकों का नाम लिखिए।
उत्तर:
हिस्टोरिया प्लेन्टेरम-वियोफ्रास्टस (Theophrastus)
जेनेश प्लेन्टेरन कैरोलस लीनियस (Carolus Linnaeus)

प्रश्न 3.
द्विनाम पद्धति क्या है ? इसे कितने प्रतिपादित किया ?
उत्तर:
प्रत्येक जीवधारी के नाम में प्रथम नाम वंश तथा दूसरा नाम जाति का होता है, इसे द्विनाम पद्धति कहते हैं। इसे लीनियस ने प्रतिपादित किया।

प्रश्न 4.
वर्गीकरण को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तुओं एवं पेड़-पौधों को उनकी समानता तथा विभिन्नताओं के आधार पर विभिन्न समूहों एवं वर्गों में रखने की विधि को वर्गीकरण (Classification) कहते हैं।

प्रश्न 5.
जैव विविधता क्या है ?
उत्तर:
पृथ्वी पर 1.7 से 1.8 मिलियन जीवों की खोज हो चुकी है। इसमें सूक्ष्म जीवाणु (Bacteria) से लेकर सिकोया (Cocoya) जैसे बड़े वृक्ष तथा अमीबा (Amoeba) से लेकर हेल (Whoale) मछली तथा विशाल जन्तु सम्मिलित हैं। इन सभी में स्वभाव, आकार, लक्षणों आदि में बहुत अन्तर होते हैं, इसे जैव विविधता कहते हैं।

प्रश्न 6.
वर्गिकी एवं वर्गीकरण विज्ञान में अन्तर कीजिए।
उत्तर:
जीवधारी को उनकी भिन्नता एवं समानता के आधार पर विभिन्न समूहों में रखा जाना वर्गीकरण कहलाता है, जबकि जीव विज्ञान की वह शाखा जिसमें वर्गीकरण का अध्ययन किया जाता है, वर्गीकरण विज्ञान कहलाती है।

प्रश्न 7.
आए आलू शेर तथा मनुष्य के वैज्ञानिक नाम लिखिए।
उत्तर:
आम-मैनीफेरा इंडिका, आलू सोलेनम ट्यूबरोसम, शेर-पैन्वेरा लियो, मनुष्य होमो सैपियन्स ।

प्रश्न 8.
जाति शब्द किसने दिया ? मायर ने जाति को किस प्रकार परिभाषित किया ?
उत्तर:
शब्द जॉन रे ने दिया मायर के अनुसार, “जाति जीवधारियों का वह समूह है जो परस्पर जनन करके प्रजनन योग्य सन्तानें उत्पन्न कर सके।”

प्रश्न 9.
वर्गीकरण के दो प्रमुख कार्य क्या हैं ?
उत्तर:
(i) वर्गीकरण की मूल इकाई या जाति को पहचानकर उसका यथासम्भव वर्णन करना ।
(ii) इन इकाइयों को समानता एवं सम्बन्धों के आधार पर समूहों में रखना ।

प्रश्न 10.
जाति की तीनों धारणाओं के नाम लिखकर इनमें से किसी एक को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:

  • आकारिकीय जाति अवधारणा,
  • जैव वैज्ञानिक जाति अवधारणा तथा
  • जीनिक जाति अवधारणा ।

आकारिकीय जाति अवधारणा को लीनियस तथा समकालीन वैज्ञानिकों ने प्रस्तुत किया। इसके अनुसार जीवों के एक समान समूह को जाति कहते हैं।

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(D) लघु उत्तरीय प्रश्न-II

प्रश्न 1.
वर्गिकी तथा वर्गीकरण विज्ञान में दो अन्तर लिखिए। उत्तर-वर्गिकी तथा वर्गीकरण में निम्नलिखित अन्तर हैं-

वर्गिकी (Taxonomy)वर्गीकरण विज्ञान (Systematics)
विज्ञान की वह शाखा जिसमें जीवों की पहचान व नामकरण वर्गीकरणविज्ञान की वह पद्धति जिसमें जीवों
के नियमों के आधार पर किया जाता है।की विविधता व उनके मध्य पाये जाने वाले सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।
यह वर्गीकरण के नियमों एवं सिद्धान्तों से सम्बन्धित होता है।यह वर्गीकरण के प्रत्येक स्तर पर विभेदक गुणों को दर्शाता है ।

इन शब्दों को पर्यायवाची ( Synonym) के रुप में भी प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 2.
बैंगन व आलू दोनों एक ही वंश सोलेनम (Solanum ) लेकिन दो अलग-अलग प्रजातियों में रखे गये हैं। इनको क्या अलग-अलग प्रजाति के रूप में परिभाषित करता है ? (Exemplar Question NCERT)
उत्तर:
बैंगन व आलू के पौधों में आकारिकीय विभिन्नताएँ तो हैं ही साथ में वह अलग-अलग प्रजाति में इसलिए रखे गये हैं, क्योंकि-

  1. इनमें प्राकृतिक रूप से आपस में प्रजनन नहीं होता अर्थात् यह प्रजननीय पृथक्कृत (Reproductively isolated) है।
  2. उनके आनुवंशिक पदार्थ में भिन्नताएँ हैं।
  3. वह समान पूर्वजों की संतति नहीं हैं।

प्रश्न 3.
नामकरण की अन्तर्राष्ट्रीय संहिता पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
वैज्ञानिकों द्वारा सन् 1898 ई. में जीवधारियों के नामकरण के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय आयोग का गठन किया। सन् 1901 ई. में इस आयोग ने नामकरण के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय सिद्धान्त को स्वीकृत किया तथा 1904 ई. में इसे प्रकाशित किया गया। इसमें नामकरण के अन्तर्राष्ट्रीय नियमों को मान्यता दी गई। इसके प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं-

  1. पौधों या जन्तुओं के नाम लैटिन भाषा में या इससे व्युत्पन्न होने चाहिए।
  2. जीवधारियों का नामकरण द्विनाम पद्धति (Binomial system) के अनुसार होना चाहिए।
  3. द्विनाम पद्धति में प्रथम शब्द वंश का तथा द्वितीय शब्द जाति का होना चाहिए तथा दोनों नाम टेढ़े छपे होने चाहिए।
  4. उपजाति (Sub-species) का नाम जाति के ठीक पश्चात् आना चाहिए।

प्रश्न 4.
जाति तथा व्यष्टि में अन्तर स्पष्ट कीजिये ।
उत्तर:
जाति तथा व्यष्टि में अन्तर-

जाति (Species) जीवधारियों का ऐसा समूह जोव्यष्टि (Individual)
1. प्रकृति में परस्पर संकरण (Cross) द्वारा जनन या सन्तान उत्पन्न कर सकता है, जाति कहलाता है।1. एक ही जाति का वह समूह जो किसी निश्चित क्षेत्र या वातावरण में रहता है उसे समष्टि (Population) कहते हैं।
2. जाति में जीवों की संख्या प्राकृतिक रूप से लगभग निश्चित रहती है।2. समष्टि में जीवों की संख्या अस्थिर रहती है।

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प्रश्न 5.
संवर्ग तथा वंश पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
संवर्ग (Taxon: Plural = Taxa) जीवों के वर्गीकरण में युक्त विभिन्न समूहों को वर्गक कहते हैं चाहे वर्गीकरण में इनका स्थान था कोई भी क्यों न हो। शैवाल, कवक कीट, मछली इत्यादि वर्गकों के उदाहरण ३ एक या कई छोटे-छोटे वर्गक मिलकर बड़े वर्गक और फिर ये मिलकर और बड़े वर्गक और अन्त में जगत का निर्माण करते हैं। वंश (Genus) विभिन्न सम्बन्धित जातियों (Species) के समूहों को कहते हैं। जैसे-आलू, बैंगन, मकोय आदि अलग-अलग जातियाँ हैं किन्तु सभी का एक ही वंश सोलेनम (Solanum) है।

प्रश्न 6.
संग्रहालय की भूमिका का वर्गीकरण में महत्व तथा दो भारतीय संग्रहालयों के नाम लिखिए।
उत्तर:
संघहालय (Museum) का वर्गीकरण में महत्य संग्रहालय में आणियों तथा पादपों के नमूने संग्रह किये जाते हैं। इन नमूनों का उपयोग वर्गिकी अध्ययन के सन्दर्भ (References) के रूप में किया जाता है। ये वर्गिकी -अध्ययन के प्रमुख केन्द्र होते हैं ये स्थानीय तथा अन्य स्थानों के जन्तुजार तथा वनस्पतिजात (Fauna and Flora) के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण सूचनाएँ उपलब्ध कराते हैं। प्राकृतिक इतिहास का राष्ट्रीय म्यूजियम, नई दिल्ली तथा मुम्बई प्राकृतिक इतिहास संस्था का म्यूजियम, प्रमुख भारतीय म्यूजियम हैं।

प्रश्न 7.
कृत्रिम तथा प्राकृतिक वर्गीकरण क्या है ?
उत्तर:
जीवधारियों के कृत्रिम वर्गीकरण में केवल एक ही लक्षण के आधार पर वर्गीकरण किया जाता है। इसमें वर्गीकृत करते समय जीवों के उद्विकासीय सम्बन्धों (Evolutionary relationship) का भी ध्यान रखा जाता है। प्राकृतिक वर्गीकरण में जन्तुओं को उनकी मूल प्रवृत्तियों (Fundamental characters) के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है। इस प्रणाली में जातियों की के उत्पत्ति तथा जैवविकासीय सम्बन्धों पर भी प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 8.
वर्गिकी सहायता साधन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जातियों के अध्ययन एवं सही पहचान के लिए प्रायोगिक एवं क्षेत्र अध्ययन दोनों ही आवश्यक होते हैं। एक बार एकत्रित की गई सूचनाओं को भविष्य के अध्ययन के लिए संचित करना तथा नमूने (Specimens) एकत्रित संरक्षित व स्पष्टीकरण के लिए संचित करना चाहिए। जैव वैज्ञानिकों के पास सूचना व नमूनों के संचय स्थान जो जीवधारियों की एकरूपता एवं वर्गीकरण में सहायता करते हैं, वर्गिकी सहायक साधन (Taxonomic aids) कहलाते हैं। इसके प्रमुख घटक वनस्पति उद्यान, हरबेरियम, म्यूजियम एवं जन्तु पार्क है।

प्रश्न 9.
वनस्पति उद्यानों को जीवित हरबेरियम क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
हरबेरियम तथा वानस्पतिक उद्यान दोनों ही वर्गिकी अध्ययन के लिए सन्दर्भ तन्त्र उपलब्ध कराते हैं। वनस्पति उद्यानों में पौधों का संग्रहण उनकी जीवित अवस्था में किया जाता है। चूंकि हरबेरियम में प्रतिदर्श शुष्क रूप में परिरक्षित होते हैं तथा वानस्पतिक स्थान में जीवित रूप में अतः वानस्पतिक उद्यानों को जीवित हरबेरियम कहा जाता है।

प्रश्न 10.
जन्तु पार्कों का क्या महत्व है ?
उत्तर:
जन्तु पार्क (Zoological parks) पृथ्वी की अमूल्य धरोहर हैं। इनका व्यापक महत्व है, जैसे-

  • व्यक्तियों मुख्यतः छात्रों को जंगली जन्तुओं से परिचित कराना।
  • शोधकर्ताओं द्वारा सजीव जन्तुओं का अध्ययन ।
  • पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र
  • विलुप्त होने जा रही जातियों को प्रयोगशाला के बाहर संरक्षण देना।

प्रश्न 11.
उदाहरण सहित वर्गिकी कुंजी के दो प्रकार सम
उत्तर:
वर्गिकी कुंजियाँ दो प्रकार की होती हैं बैंकेटेड (Bracketed) तथा इन्डेन्टेड (Indented) घिरी हुई या बैकेटेड कुंजी में एकान्तरित लक्षण कोष्ठकों में संख्याओं में दिये जाते हैं इन्डेन्टेड या योक्ड (Yolked) कुंजी में दो या ज्यादा एकान्तरित लक्षण का क्रम होता है जिससे चयन व विलगन होता है। उदाहरण के लिए कहीं पर छः कशेरुकी जन्तु पहचाने गये-मछली, मेड़, पक्षी, चमगादड़, साँप तथा बिल्ली।

विभेदित लक्षण प्रत्येक समूह के लिए निर्धारित होते है-कर्म की उपस्थिति या अनुपस्थिति (स्तनधारी या स्तनधारी विहीन लक्षण), उड़ने की योग्यता या अयोग्यता (पक्षी व चमगादड़ दोनों का लक्षण उड़ना है), पादों की उपस्थिति या अनुपस्थिति (चतुष्पादीय शिवाय साँपों के व अचतुष्पादीय जैसे-मछली), क्लोमों को उपस्थिति व अनुपस्थिति (मयों के लक्षण) अन्य के युवा सदस्यों में अनुपस्थित ।

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प्रश्न 12.
विभिन्न जाति संकल्पनाओं को समझाइये।
उत्तर:
जाति संकल्पनाएँ तीन होती है-
(A) प्रारूप विज्ञानीय जाति संकल्पना यह प्राचीनतम संकल्पना है। इसके अनुसार एक समान दिखाई देने वाले जीवों के समूह को जाति कहते हैं। यह संकल्पना सदस्यों के प्रारूप पर आधारित है। इसकी कमियों निम्नलिखित

  • कई जातियों जैसे-मधुमक्खी, दीमक, तितली आदि में बहुरूपता पायी जाती है।
  • समाभासी जातियाँ (Sibling species) ये जातियाँ हैं जो प्रारूप में समान है परन्तु इनमें परस्पर लैंगिक जनन नहीं होता।

(B) अवास्तविक जाति संकल्पना- इस मान्यता के अनुसार जाति जैसा कोई पृथक समूह नहीं होता है यह मानव की कल्पना मात्र है। अतः यह संकल्पना मान्य नहीं है।

(C) जैव जाति संकल्पना उपरोक्त दोनों संकल्पनाएँ पूर्ण नहीं हैं। अतः एक अन्य संकल्पना जिसे आधुनिक संकल्पना भी कहा जाता है, जाति को व्यापक आधार पर परिभाषित करती है। इसमें जॉन रे मेयर व अन्य आधुनिक संकल्पनाएँ आती हैं। इस संकल्पना के अनुसार किसी भी एक जन्तु जाति के निम्नलिखित लक्षण होते है-

  • यह प्राकृतिक रूप से अन्न (interbreeding) करने वाले जन्तुओं की आबादी होती है।
  • प्रत्येक जाति में एक सामान्य जीन समूह (Gene pool) होता है जिसमें जीन का स्वतन्त्र अपव्यूहन (Independent assortment) होता है।
  • प्रत्येक जाति में अनुकूलन व प्राकृतिक चयन की प्रक्रियाएँ सदैव चलती रहती हैं।
  • इस प्रकार इसमें उद्विकास द्वारा नयी जातियों की उत्पत्ति करने की मूल क्षमता पायी जाती है

(E) दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (निवन्धात्मक प्रश्न)

प्रश्न 1.
वर्गीकरण क्या है ? वर्गीकरण की आवश्यकता एवं उद्देश्यों को समझाइये।
उत्तर:
जीवधारियों को उनके लक्षणों में समानता एवं विभिन्नता के आधार पर समूहों एवं उप-समूहों के जातिवृत्तीय श्रेणी (phylogenetic series) में व्यवस्थित करने वाली व्यवस्था को जैविक वर्गीकरण (biological classification) कहते हैं।
वर्गीकरण की आवश्यकता (Need of Classification)

  • वर्गीकरण किसी भी जीवधारी को पहचानने के लिए अति आवश्यक है।
  • प्रत्येक वर्ष सैकड़ों नये जीवों की खोज होती रहती है। इन्हें इनकी सही स्थिति में वर्गीकरण प्रणाली (classification system) द्वारा ही रखा जा सकता 1
  • जीवाश्मों के अध्ययन के लिए वर्गीकरण की एक निश्चित प्रणाली की आवश्यकता होती है।
  • यह उद्विकासीय (evolutionary) मार्ग को बनाने में सहायता करता है ।
  • वर्गीकरण भावी संयोजी या छूटने वाली कड़ी को बताने में उपयोगी होता है जिसके द्वारा एक समूह का उद्विकास दूसरे से होता है।
  • यह अन्य स्थानों या देशों के जीवधारियों को जानने के लिए आवश्यक होता है ।
  • समूह में लक्षणों की समानताओं के कारण, समूह के एक या दो जीवधारियों के अध्ययन के द्वारा सम्पूर्ण समूह के बारे में जानना सरल होता है। वर्गीकरण के उद्देश्य व कार्य

(Objectives and Function of Classification) – वर्गीकरण के दो प्रमुख कार्य हैं। पहला वर्गीकरण की इकाई अर्थात् प्रजातियों की पहचान तथा इनसे सम्बन्धित अधिक से अधिक विवरण जुटाना तथा दूसरा ऐसा तरीका विकसित करना जिससे इन वर्गीकरण इकाइयों (प्रजातियों) को उनकी समानताओं (similarities) तथा सम्बन्धों (relationship) के आधार पर विकासोन्मुख समूहों में बाँटा जा सके ।

  1. विभिन्न जातियों को पहचानना एवं उनका पूर्ण विवरण प्राप्त करना ।
  2. ज्ञात व अज्ञात, दोनों जातियों को आसानी से पहचानने के लिए एक प्रणाली का विकास करना ।
  3. विभिन्न स्तरों के समान या सम्बन्धित लक्षणों को दर्शाना।
  4. जीवधारियों को उनके सम्बन्धित लक्षणों के आधार पर, जातियों को वंशानुगत समूहों ( inheritable group) में व्यवस्थित करना ।
  5. जीवधारियों की समानताओं व सम्बन्धों के आधार पर वर्गीकरण की विकासोन्मुखी प्रणाली (evolutionary system) को स्थापित करना एवं प्राकृतिक सम्बन्धों को प्रदर्शित करना। इन्हें विस्तृत रुप में निम्न प्रकार लिखा जा सकता है-

HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 1 जीव जगत

वर्गिकी (Taxonomy)
वर्गिकी, जीव विज्ञान की वह शाखा है, जिसमें जीवों की पहचान व नामकरण, वर्गीकरण के नियमों के आधार पर किया जाता है।
वर्गीकरण विज्ञान या वर्गीकरण पद्धति (Systematics) – विज्ञान की वह पद्धति जिसमें जीवों की विविधता एवं उनके मध्य पाये जाने वाले सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है वह वर्गीकरण विज्ञान कहलाता है।

वर्गीकरण पद्धति में जीवों के विकासीय सम्बन्ध (Evolutionary relations) का भी ध्यान रखा जाता है। सिस्टेमैटिक्स अर्थ का शब्द है जीवों की नियमित व्यवस्था । टेक्सोनॉमी तथा सिस्टेमेटिक्स एक-दूसरे के पूरक (compimentary) हैं। इसलिए कभी-कभी इन्हें पर्यावाची ( synonyms) के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 2.
सजीवों के लक्षण लिखिए।
उत्तर:
1. वृद्धि ( Growth) – वृद्धि सजीवों का एक महत्वपूर्ण गुण है। सजीवों में वृद्धि आन्तरिक एवं बाह्य दोनों प्रकार की होती है और यह उपापचयी क्रियाओं का परिणाम है। इसके फलस्वरूप जीव के ताजे एवं शुष्क भार में वृद्धि होती है। जन्तुओं एवं एककोशिकीय (Unicellular) जीवों में वृद्धि एक निश्चित समय तक होती है। किन्तु पौधों में वृद्धि जीवनपर्यन्त होती रहती है।

अधिकांश उच्च कोटि के प्राणियों तथा पादपों (higher animals and plants) में वृद्धि तथा जनन पारस्परिक विशिष्ट घटनाएँ हैं। यद्यपि निर्जीव पदार्थों के भार में भी वृद्धि होती है जैसे-पर्वत, रेत के टीले, तूतिये का टुकड़ा आदि भी वृद्धि करते हैं किन्तु यह वृद्धि उन पर बाहरी पदार्थों के जमाव के कारण होती है।

2. उपापचय (Metabolism) – जीव एक जीवित मशीन है। जीवधारियों के शरीर में विभिन्न जैव रासायनिक क्रियाएँ होती रहती हैं इन जैव रासायनिक क्रियाओं को सामूहिक रूप से उपापचय कहते हैं । ये दो प्रकार की होती हैं-उपचय (anabolism) जो संश्लेषण (synthesis) क्रियाएँ हैं तथा अपचय ( catabolism) जो विघटनात्मक क्रियाएँ हैं।

3. प्रजनन (Reproduction) सभी जीव अपनी जाति के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए प्रजनन क्रिया के द्वारा अपनी संतति (progeny) उत्पन्न करते हैं। प्रजनन क्रिया लैंगिक, अलैंगिक व कायिक (sexual, asexual and vegetative ) प्रकार की होती है।

4. समस्थापन (Homeostasis) – सजीवों में समस्थापन पर्यावरण में परिवर्तन के बावजूद एक अनुकूल अंतः वातावरण बनाये रखने की योग्यता है।

5. उत्तेजनशीलता (Irritability) प्रत्येक जीवधारी में बाह्य व आन्तरिक उद्दीपनों (Stimuli) को पहचानने तथा वातावरण में हुए बदलाव के प्रति प्रतिक्रिया करने तथा स्वयं अनुकूलित (adapt) होने की क्षमता होती है। बाह्य उद्दीपनों के प्रति संवेदनशीलता (sensitivity) को उत्तेजनशीलता कहते हैं।

6. जैव विकास प्रदर्शित करने की क्षमता (Ability to Show Organic Evolution ) –

जीवधारी में समय के साथ जैव विकास की क्षमता (Ability to evolve in time) होती है।
बीमारियों के अन्य लक्षण इस प्रकार हैं-
1. निश्चित आकृति एवं आकार (Definite shape and size) – प्रत्येक जीवधारी की एक निश्चित आकृति एवं आकार होता है जिसके द्वारा एक पौधे एवं एक जन्तु या मानव तथा पशु में अन्तर किया जाता है। निर्जीव (non-living beings) की कोई एक निश्चित आकृति नहीं होती है, जैसे-पत्थर का टुकड़ा छोटा या बड़ा तथा विभिन्न आकार का हो सकता है जबकि नीम, आम, पपीता आदि सभी पौधे तथा कुत्ता, बिल्ली, बन्दर, मनुष्य आदि सभी जन्तुओं की एक निश्चित आकृति एवं आकार होता है।

2. शारीरिक संगठन (Body organization) – एककोशिकीय (Unicellular) जीवों का शरीर केवल एक कोशिका का बना होता है लेकिन बहुकोशिकीय (Multicellular) जीवों के शरीर का संगठन जटिल होता है। इनमें छोटे-छोटे भाग मिलकर बड़ी संरचना बनाते हैं, जैसे-कोशिकाएँ मिलकर ऊतक, ऊतक मिलकर अंग, अंग मिलकर अंगतन्त्र तथा अंगतन्त्र मिलकर एक सम्पूर्ण शरीर बनाते हैं।

इस प्रकार का संगठन केवल सजीवों में पाया जाता है। कोशिकीय संरचना (Cellular structure ) – प्रत्येक जीवधारी का शरीर एक या अनेक कोशिकाओं का बना होता है। कोशिका शरीर की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई (structural and functional unit) कहलाती है। इसके कुछ अपवाद भी हैं। जैसे – विषाणु ।

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3. पोषण (Nutrition ) – प्रत्येक जीवधारी को जीवन की समस्त प्रक्रियाओं के संचालन के लिए ऊर्जा (energy) की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा इन्हें भोज्य पदार्थों से प्राप्त होती है।

4. श्वसन (Respiration) – इस क्रिया में खाद्य पदार्थों के ऑक्सीकरण (oxidation) से ऊर्जा उत्पन्न होती है जो विभिन्न कार्यों के निष्पादन में काम आती है।

5. उत्सर्जन (Excretion) – प्रत्येक जीवधारी अपने शरीर के अन्दर उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालता है, इसे उत्सर्जन (excretion) कहते हैं।

6. गति (Locomotion ) – कुछ निम्न श्रेणी के पौधों एवं सभी जन्तुओं (कुछ समुद्री जन्तुओं को छोड़कर) में अपनी आवश्यकताओं के लिए प्रचलन की क्षमता होती है।

7. मृत्यु (Death) – समय के एक अन्तराल के पश्चात् प्रत्येक सजीव अन्ततः मृत्यु को प्राप्त होता है। मृत्यु प्राकृतिक रूप से कार्य करते रहने के कारण होने वाले क्षय से हो जाती है।

8. जीवन चक्र (Life cycle ) – प्रत्येक जीवधारी अपने जन्म से लेकर विभिन्न क्रियाएँ करता हुआ एक निश्चित समयान्तराल बाद मृत्यु को प्राप्त होता है। उसके जन्म से मृत्यु तक की सभी क्रियाओं को उसका जीवन चक्र कहते हैं। वह अवधि जितने समय तक उसका जीवन चलता है, जीव की जीवन अवधि (Life-span) कहलाती है। जैसे-कछुए की जीवन-अवधि लगभग 200 वर्ष है व पीपल की जीवन-अवधि लगभग 2000 वर्ष है।

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प्रश्न 3.
हरबेरियम से आप क्या समझाते हैं ? कोई हरबेरियम प्रतिदर्श बनाने के लिए विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हरबेरियम (Herbarium) – पादपों को मोटे कागज की शीट्स अथवा पत्थर पर सुखाकर दबाकर और संरक्षित करके एकत्रित करना हरबरियम (herbarium) कहलाता है। इसे पादप संग्रहण भी कहते हैं और जहाँ पर इन्हें सुरक्षित रखा जाता है, उस स्थान को पादप संग्रहालय (plants museums कहा जाता है।

पादप संग्रहण के औजार (Tools for Plant Collection and Preservation)
हरबेरियम निर्माण- हरबेरियम निर्माण के निम्नलिखित चरण हैं-

  • नमूनों को एकत्र करने के लिए नियमित क्षेत्रीय भ्रमण द्वारा क्षेत्र, आवास, ऋतु एवं संग्रह काल सम्बन्धी सूचनाएँ प्राप्त की जाती हैं।
  • जड़ों को जमीन से खोदने के लिए खुरपी की आवश्यकता होती है, कैंची एवं चाकू से हम शाखाएँ एवं काष्ठिल उपशाखाएँ काटते हैं।
  • संग्राहक (vasculum) नामक एक छोटे लोहे के बक्से में इन प्रदर्शों को नमी के ह्रास से रोकने अथवा सूखने और सिकुड़कर मुड़ने से बचाने के लिए रखा जाता है।
  • वर्गिकी विद्यार्थी विविध संरचनाओं के अभिलेखन के लिए अपने साथ एक क्षेत्र पुस्तिका भी रखते हैं ।
  • नमूनों को शीघ्र से शीघ्र फैलाया जाता है और सूखने के लिए उन्हें पुराने अखबारों में रखा जाता है। समय-समय पर इन अखबारों को बदलना आवश्यक होता है, ताकि अधिकाधिक नमी को सोखा जा सके।
  • सभी नमूनों (specimen) को समतल कार्ड बोर्डों के बीच रखकर सुखाया जाता है।
  • सूखे हुए नमूने मानक आकार की हरबेरियम शीट्स (herbarium sheets) (29×41 सेमी या 30 x 45 सेमी) पर चिपकाए जाते हैं। पूर्व में पहचानी गई जातियों के सन्दर्भ में कुल एवं वंश का नाम भी दिया जाता है।
  • पौधों के सूखने के बाद इन्हें कवकरोधी रसायन (0.1% मरक्यूरिक क्लोराइड, ऐल्कोहॉल के मिश्रण) से उपचारित किया जाता है।
  • निर्मित शीट्स को धातु की बनी अलमारी में निर्धारित रैक में रखा जाता है।
  • रैकों पर भी सूचक लेबल लगा दिये जाते हैं।
  • अलमारियों को भी एक निश्चित क्रम में रखा जाता है।

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HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र

Haryana State Board HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र Important Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Physics Important Questions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र

वस्तुनिष्ठ प्रश्न:

प्रश्न 1.
वस्तु का आभासी तथा बड़ा प्रतिबिम्ब बनाता है:
(अ) उत्तल दर्पण में
(ब) अवतल दर्पण में
(स) समतल दर्पण में
(द) इनमें से किसी में नहीं
उत्तर:
(ब) अवतल दर्पण में

HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र

प्रश्न 2.
प्रायः मोटर ड्राइवर की सीट के आगे लगा दर्पण होता है-
(अ) समतल
(ब) उत्तल
(स) अवतल
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) उत्तल

प्रश्न 3.
जब प्रकाश हवा से काँच में प्रवेश करता है तो किस रंग के लिए विचलन कोण अधिकतम है?
(अ) लाल
(ब) पीला
(स) नीला
(द) बैंगनी
उत्तर:
(द) बैंगनी

प्रश्न 4.
प्रकाश का अपवर्तन होता है:
(अ) प्रकाश की चाल में परिवर्तन के कारण
(ब) प्रकाश की चाल में परिवर्तन न होने के कारण
(स) प्रकाश के रंग में परिवर्तन के कारण
(द) इनमें से किसी के भी कारण नहीं
उत्तर:
(अ) प्रकाश की चाल में परिवर्तन के कारण

प्रश्न 5.
एक अवतल दर्पण की वक्रता त्रिज्या 80 सेमी है, इसकी फोकस दूरी मीटर में होगी:
(अ) 0.40 मीटर
(ब) 0.20 मीटर
(स) 0.80 मीटर
(द) 0.10 मीटर
उत्तर:
(अ) 0.40 मीटर

प्रश्न 6.
सर्चलाइट में निम्न में से कौनसा दर्पण प्रयुक्त करते हैं:
(अ) अवतल
(ब) समतल
(स) उत्तल
(द) बेलनाकार
उत्तर:
(अ) अवतल

प्रश्न 7.
निम्न में से कौनसा दर्पण सदैव आभासी तथा छोटा प्रतिबिम्ब बनाता है:
(अ) समतल दर्पण
(ब) अवतल दर्पण
(स) समतल व अवतल दर्पण
(द) उत्तल दर्पण
उत्तर:
(द) उत्तल दर्पण

प्रश्न 8.
एक अवतल दर्पण की फोकस दूरी 10 सेमी. है। दर्पण के सामने 10 सेमी. पर एक वस्तु रखने पर उसका प्रतिबिम्ब बनेगा:
(अ) अनन्त पर
(स) फोकस पर
(ब) वक्रता त्रिज्या पर
(द) ध्रुव पर
उत्तर:
(अ) अनन्त पर

प्रश्न 9.
गोलीय दर्पण द्वारा प्रतिबिम्ब निर्माण में केवल अक्ष समानान्तर किरणें ही प्रयुक्त की जाती हैं; क्योंकि ये
(अ) ज्यामिति को आसान बना देती हैं।
(ब) न्यूनतम विक्षेपण दर्शाती हैं।
(स) अधिकतम तीव्रता दर्शाती हैं।
(द) एक बिन्दु बिम्ब का बिन्दु प्रतिबिम्ब निर्मित करती हैं।
उत्तर:
(द) एक बिन्दु बिम्ब का बिन्दु प्रतिबिम्ब निर्मित करती हैं।

HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र

प्रश्न 10.
किसी समतल दर्पण पर प्रकाश की किरण अभिलम्बवत् आपतित होती है तो परावर्तन कोण का मान होता है-
(अ) 90°
(ब) 180°
(स) 0°
(द) 45°
उत्तर:
(स) 0°

प्रश्न 11.
f फोकस दूरी वाला एक अवतल दर्पण यदि किसी वस्तु का m आवर्धन का प्रतिबिम्ब बनाता है तो वस्तु की दर्पण से दूरी है:
(अ) \(\frac{(m-1) f}{m}\)
(ब) \(\frac{(m+1) f}{m}\)
(स) (m – 1)f
(द) (m + 1)f
उत्तर:
(अ) \(\frac{(m-1) f}{m}\)

प्रश्न 12.
किसी माध्यम से निर्वात में पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के लिए क्रान्तिक कोण 30° है। माध्यम में प्रकाश की चाल होगी:
(अ) 3 x 108 m/s
(ब) 1.5 x 108 m/s
(स) 6 × 108 m/s
(द) √3 x 108 m/s
उत्तर:
(ब) 1.5 x 108 m/s

प्रश्न 13.
एक 1 अपवर्तनांक के पारदर्शी माध्यम में चलती हुई प्रकाश किरण एक पृष्ठ पर आपतित होती है, जो इस माध्यम को वायु से पृथक कर रही है। आपतन कोण 45° है। n के किस मान आन्तरिक परावर्तन हो सकता है ?
के लिए इस किरण का पूर्ण
(अ) n = 1.33
(ब) n = 1.40
(स) n = 1.50
(द) n = 1.25
उत्तर:
(स) n = 1.50

प्रश्न 14.
हीरे के चमकने का प्रमुख कारण है:
(अ) परावर्तन
(ब) विवर्तन
(स) पूर्ण आंतरिक परावर्तन
(द) विसरण
उत्तर:
(स) पूर्ण आंतरिक परावर्तन

प्रश्न 15.
यदि ∠i = 60° तथा ∠r = 90° हो तो अपवर्तनांक n2 होगा:
(अ) \(\frac{\sqrt{3}}{2}\)
(ब) \(\frac{2}{\sqrt{3}}\)
(स) \(\sqrt{3}\)
(द) \(\frac{1}{\sqrt{3}}\)
उत्तर:
(अ) \(\frac{\sqrt{3}}{2}\)

प्रश्न 16.
धुएँ के आर-पार किसी दूर स्थित प्रकाश स्रोत को देखने पर उसके झिलमिल करते हुए दिखाई देने का कारण है:
(अ) परावर्तन
(ब) अपवर्तन
(स) विवर्तन
(द) वर्ण विक्षेपण
उत्तर:
(ब) अपवर्तन

प्रश्न 17.
किसी गोलीय लेन्स के लिए निम्न में से कौनसा सूत्र सही है:
(अ) \(\frac{1}{f}\) = \(\frac{1}{u}\) + \(\frac{1}{v}\)
(ब) \(\frac{1}{f}\) = \(\frac{1}{v}\) – \(\frac{1}{u}\)
(स) \(\frac{1}{u}\) = \(\frac{1}{v}\) + \(\frac{1}{f}\)
(द) f = \(\frac{u v}{u+v}\)
उत्तर:
(ब) \(\frac{1}{f}\) = \(\frac{1}{v}\) – \(\frac{1}{u}\)

प्रश्न 18.
+ 2.50 D और – 3.75 D क्षमता वाले लेन्सों को मिलाकर एक संयुक्त लेन्स निर्मित किया गया है। इसकी फोकस दूरी का मान सेमी. में होगा:
(अ) 40
(ब) 40
(स) 80
(द) 160
उत्तर:
(स) 80

प्रश्न 19.
उत्तल लेन्स की शक्ति होती है:
(अ) ऋणात्मक
(ब) धनात्मक
(स) शून्य
(द) काल्पनिक
उत्तर:
(ब) धनात्मक

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प्रश्न 20.
किसी लेन्स का आधा भाग काले कपड़े में लपटने पर लेन्स द्वारा निर्मित प्रतिबिम्ब पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(अ) प्रतिबिम्ब लुप्त हो जाएगा
(ब) कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा
(स) प्रतिबिम्ब पहले से नाप में आधा हो जाएगा
(द) प्रतिबिम्ब की चमक कम हो जाएगी
उत्तर:
(द) प्रतिबिम्ब की चमक कम हो जाएगी

प्रश्न 21.
प्रकाश की एक किरण √2 अपवर्तनांक वाले प्रिज्म से इस प्रकार गुजरती है कि उसका आपतन कोण, अपवर्तन कोण का दो गुना है तथा किरण में न्यूनतम विचलन होता है। प्रिज्म का कोण होगा:
(अ) 45°
(ब) 90°
(स) 0°
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) 90°

प्रश्न 22.
एक उत्तल लेन्स की वक्रता त्रिज्यायें क्रमशः 15 सेमी तथा 30 सेमी हैं। इसका अपवर्तनांक 1.5 है लेन्स की फोकस दूरी होगी:
(अ) 20 सेमी.
(ब) -20 सेमी.
(स) 60 सेमी.
(द) – 60 सेमी.
उत्तर:
(अ) 20 सेमी.

प्रश्न 23.
किसी उत्तल लेन्स की फोकस दूरी 2.5 सेमी है इसकी अधिकतम आवर्धन क्षमता का मान होगा:
(अ) 25
(ब) 52
(स) 11
(द) 1.1
उत्तर:
(स) 11

प्रश्न 24.
एक प्रिज्म का अपवर्तनांक √2 तथा अपवर्तन कोण 60° है तो इसका न्यूनतम विचलन कोण होगा:
(अ) 15°
(ब) 30°
(स) 450
(द) 60°
उत्तर:
(ब) 30°

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प्रश्न 25.
जब 1.47 अपवर्तनांक वाले काँच के उभयोत्तल लेन्स को किसी द्रव में डुबाया जाता है, तब यह एक काँच की समतल शीट की भाँति व्यवहार करता है, इसका तात्पर्य है कि द्रव का अपवर्तनांक है:
(अ) काँच के अपवर्तनांक के बराबर
(ब) एक से कम
(स) काँच के अपवर्तनांक से अधिक
(द) काँच के अपवर्तनांक से कम
उत्तर:
(अ) काँच के अपवर्तनांक के बराबर

प्रश्न 26.
एक दूरदर्शी की आवर्धन क्षमता M है। यदि अभिनेत्र लेन्स की फोकस दूरी दो गुनी कर दी जाये तब आवर्धन क्षमता होगी:
(अ) 2M
(ब) 1/2M
(स) √2M
(द) 3M
उत्तर:
(ब) 1/2M

प्रश्न 27.
एक सूक्ष्मदर्शी के अभिदृश्यक और नेत्र लेन्स की फोकस दूरियाँ क्रमशः 4 सेमी और 8 सेमी हैं तथा वस्तु की अभिदृश्यक से दूरी 4.5 सेमी है, तो आवर्धन क्षमता होगी:
(अ) 18
(ब) 32
(स) 64
(द) 20
उत्तर:
(ब) 32

प्रश्न 28.
एक व्यक्ति के चश्मे के लेन्स की क्षमता 2D है। वह निम्न में से किस दोष से पीड़ित है:
(अ) दूर दृष्टिदोष से
(ब) निकट दृष्टिदोष से
(स) वर्णान्धता से
(द) जरा दूर दृष्टिदोष से
उत्तर:
(अ) दूर दृष्टिदोष से

प्रश्न 29.
एक निकट दृष्टिदोष से पीड़ित व्यक्ति स्पष्ट नहीं देख सकता:
(अ) निकट की वस्तुओं को
(ब) दूर की वस्तुओं को
(स) न निकट तथा न ही दूर की वस्तुओं को
(द) क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर रेखाओं को
उत्तर:
(ब) दूर की वस्तुओं को

प्रश्न 30.
एक सूक्ष्मदर्शी के अभिदृश्यक और नेत्र लेन्स की फोकस दूरियाँ क्रमशः 4 सेमी और 8 सेमी हैं तथा वस्तु की अभिदृश्यक से दूरी 4.5 सेमी है, तो आवर्धन क्षमता होगी:
(अ) 18
(ब) 32
(स) 64
(द) 20
उत्तर:
(ब) 32

प्रश्न 31.
जब किसी सूक्ष्मदर्शी के नलिका की लम्बाई बढ़ाई जाती है तो आवर्धन क्षमता:
(अ) घटती है
(ब) बढ़ती है
(स) अपरिवर्तित रहती है।
(द) कम व अधिक हो सकती है
उत्तर:
(अ) घटती है

प्रश्न 32.
प्रकाश की एक किरण काँच (अपवर्तनांक = 3/2) से पानी (अपवर्तनांक = 4/3) में संचरण करती है। क्रान्तिक कोण का मान होगा:
(अ) sin-1(1/2)
(ब) sin-1\(\left(\sqrt{\frac{8}{9}}\right)\)
(स) sin-1(8/9)
(द) sin-1(5/7)
उत्तर:
(स) sin-1(8/9)

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प्रश्न 33.
एक दूरदर्शक के अभिदृश्यक लेन्स तथा अभिनेत्र लेन्स की फोकस दूरियाँ क्रमश: f तथा हैं। इसकी आवर्धन क्षमता लगभग है:
(अ) f0/fc
(ब) fo – fe
(स) fofe
(द) fc + fc/2
उत्तर:
(अ) f0/fc

प्रश्न 34.
एक सूक्ष्मदर्शी में अभिदृश्यक लेन्स की फोकस दूरी, अभिनेत्रक लेन्स की फोकस दूरी से होती है:
(अ) कम
(ब) अधिक
(स) बराबर
(द) कुछ कहा नहीं जा सकता
उत्तर:
(अ) कम

प्रश्न 35.
परावर्तक दूरदर्शी में अभिदृश्यक के रूप में प्रयोग किया जाता है:
(अ) समतल दर्पण
(ब) अवतल दर्पण
(स) उत्तल लेन्स
(द) प्रिज्म
उत्तर:
(ब) अवतल दर्पण

प्रश्न 36.
दूरस्थ वस्तु को खगोलीय दूरदर्शी द्वारा देखने पर इसका प्रतिबिम्ब होता है:
(अ) सीधा
(ब) उल्टा
(स) विकृत
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) उल्टा

प्रश्न 37.
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में अन्तिम प्रतिबिम्ब बनता है:
(अ) वास्तविक एवं सीधा
(ब) आभासी एवं उल्टा
(स) आभासी एवं सीधा
(द) वास्तविक एवं उल्टा
उत्तर:
(ब) आभासी एवं उल्टा

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1.
एक प्रकाश किरण समतल दर्पण पर लम्बवत् आपतित होती है। आपतन कोण तथा परावर्तन कोण के मान क्या होंगे?
उत्तर:
आपतन कोण = 90° तथा परावर्तन कोण r = 0°

प्रश्न 2.
समतल दर्पण की फोकस दूरी कितनी होती है?
उत्तर:
शून्य।

प्रश्न 3.
उत्तल दर्पण का प्रयोग कारों में पीछे की साइड देखने के दर्पण बनाने में क्यों किया जाता है?
उत्तर:
इसका दृष्टि क्षेत्र विस्तृत होने तथा इसके द्वारा सीधा प्रतिबिम्ब बनने के कारण।

प्रश्न 4.
प्रकाश का परावर्तन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जब कोई किरण किसी सतह पर आपतित होकर उसी माध्यम में पुनः वापस लौटती है, तो इस परिघटना को परावर्तन कहते हैं। सघनता से पॉलिश किया हुआ सतह या दर्पण प्रकाश का परावर्तन करता है।

प्रश्न 5
परावर्तन के नियम को लिखिए।
उत्तर:
(i) आपतित किरण परावर्तित किरण तथा अभिलम्ब तीनों एक ही समतल में होते हैं।
(ii) नियमित परावर्तन में आपतन कोण Zi सदैव परावर्तन कोण Zr के बराबर होता है।

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प्रश्न 6.
दर्पण तथा उसके प्रकार लिखिए।
उत्तर:
दर्पण – उच्च पॉलिश की हुई परावर्तक सतह को दर्पण कहते हैं। दर्पण तीन प्रकार के होते हैं:
(i) समतल दर्पण
(ii) अवतल दर्पण
(iii) उत्तल दर्पण|

प्रश्न 7.
अवतल दर्पण तथा उत्तल दर्पण की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
अवतल दर्पण-यदि बाहरी भाग को कलई किया जाये और भीतरी भाग से प्रकाश का परावर्तन हो तो उसे अवतल दर्पण कहते हैं।
उत्तल दर्पण – यदि किसी गोलीय दर्पण का आन्तरिक भाग कलई कर दिया जाये और बाहरी भाग से प्रकाश का परावर्तन हो तो उसे उत्तल दर्पण कहते हैं।

प्रश्न 8.
गोलीय दर्पण का सूत्र लिखिए और उसे समझाइए।
उत्तर:
\(\frac{1}{\mathrm{f}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{u}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{v}}\) जहाँ f, v तथा u क्रमशः फोकस दूरी, प्रतिबिम् की दूरी और वस्तु की दूरी है f, वक्रता त्रिज्या R की आधी होती है। अवतल दर्पण के लिए ऋणात्मक तथा उत्तल दर्पण के लिए f धनात्मक होता है।

प्रश्न 9.
किसी गोलीय दर्पण की आवर्धन को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
आवर्धन (m) – प्रतिबिम्ब का आकार (h) और बिम्ब के आकार (h) के अनुपात को गोलीय दर्पण का आवर्धन कहते हैं अर्थात्
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प्रश्न 10.
न्यूनतम विचलन की अवस्था में प्रिज्म के पदार्थ के अपवर्तनांक ज्ञात करने का सूत्र लिखो।
उत्तर:
n2 = \(\frac{\sin \left(\frac{A+D_m}{2}\right)}{\sin \frac{A}{2}}\)
जहाँ n2 = हवा के सापेक्ष प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक
A = प्रिज्म कोण
Dm = न्यूनतम विचलन कोण

प्रश्न 11.
अपवर्तन का मूल कारण क्या है?
उत्तर:
भिन्न-भिन्न माध्यमों में प्रकाश के वेग का भिन्न-भिन्न होना अपवर्तन का मूल कारण है।

प्रश्न 12.
उत्तल दर्पण में आवर्धन (m) का मान वास्तविक प्रतिबिम्ब और आभासी प्रतिबिम्ब के लिए कैसा होता है?
उत्तर:
वास्तविक प्रतिबिम्ब के लिए ऋणात्मक और आभासी प्रतिबिम्ब के लिए धनात्मक होता है।

प्रश्न 13.
अवतल दर्पण में आवर्धन (m) का मान किस पर निर्भर करता है और उत्तल दर्पण में (m) का मान सदैव किस तरह का होता है?
उत्तर:
प्रतिबिम्ब की स्थिति पर निर्भर करता है और आवर्धन (m) उत्तल दर्पण के लिए हमेशा +ve होता है।

प्रश्न 14.
एक समतल दर्पण पर प्रकाश की किरण 45° कोण पर आपतित होती है तो परावर्तित एवं आपतित किरण के मध्य कोण कितना होगा?
उत्तर:
90°।

प्रश्न 15.
प्रकाश का अपवर्तन परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
जब कोई प्रकाश की किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करती है तो उसका पथ विचलित हो जाता है। इस परिघटना को अपवर्तन कहते हैं।

प्रश्न 16.
अपवर्तन के नियम लिखिए।
उत्तर:
(i) आपतित किरण, अपवर्तित किरण तथा दोनों माध्यमों को अलग करने वाले पृष्ठ पर अभिलम्ब एक ही तल में होते हैं।
(ii) किन्हीं दो माध्यमों के लिए तथा एक निश्चित रंग (तरंगदैर्ध्य ) के प्रकाश के लिए आपतन कोण की ज्या तथा अपवर्तन कोण की ज्या की निष्पत्ति एक नियतांक होती है।
यदि आपतन कोण व अपवर्तन कोण है, तो sini/sin r = नियतांक

HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र

प्रश्न 17.
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन की घटना को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
र-पूर्ण आन्तरिक परावर्तन (Total Internal Reflection ): जब सघन माध्यम में आपतन कोण का मान क्रान्तिक कोण से आगे थोड़ा-सा ही बढ़ाया जाता है, तो सम्पूर्ण आपतित प्रकाश, परावर्तन के नियमों के अनुसार परावर्तित होकर सघन माध्यम में ही वापस लौट आता है। इस घटना को प्रकाश का पूर्ण आन्तरिक परावर्तन कहते हैं।

प्रश्न 18.
क्रान्तिक कोण किसे कहते हैं?
उत्तर:
सघन माध्यम में बना वह आपतन कोण जिसके लिए विरल माध्यम में बना अपवर्तन कोण समकोण अर्थात 90° होता है, दोनों माध्यमों के अन्तरापृष्ठ के लिए क्रान्तिक कोण कहलाता है।

प्रश्न 19.
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के लिए कोई दो शर्तें लिखिए।
उत्तर:
(i) प्रकाश सघन माध्यम से विरल माध्यम की ओर गतिमान होना चाहिए।
(ii) आपतन कोण का मान दिए गए माध्यम में क्रान्तिक कोण से अधिक होना चाहिए।

प्रश्न 20.
किसी गोलीय पृष्ठ पर अपवर्तन के लिए सूत्र लिखिए।
उत्तर:
n2/v – n1/v = n2 – n1/R

प्रश्न 21.
किसी लेन्स द्वारा अपवर्तन के लिए सूत्र को लिखिए।
उत्तर:
\(\frac{1}{\mathrm{f}}\) = n21 – 1 (\(\frac{1}{\mathrm{R1}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{R2}}\))

प्रश्न 22.
लेन्स को परिभाषित करते हुए इसके लिए सूत्र
उत्तर:
दो पृष्ठ से घिरा हुआ कोई पारदर्शी माध्यम, जिसका एक या दोनों पृष्ठ गोलीय हैं, लेन्स कहलाता है लेन्स दो प्रकार के होते हैं:
(1) उत्तल लेन्स
(2) अवतल लेन्स
वस्तु की दूरी, प्रतिबिम्ब की दूरी और लेन्स की फोकस दूरी के मध्य सम्बन्ध लेन्स सूत्र कहलाता है।
अर्थात् –\(\frac{1}{\mathrm{u}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{v}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{f}}\)

प्रश्न 23.
उत्तल अथवा अवतल लेन्स द्वारा बने सीधे (तथा आभासी) प्रतिबिम्ब के लिए m का मान कैसा होता है?
उत्तर:
धनात्मक

प्रश्न 24.
उत्तल अथवा अवतल लेन्स द्वारा बने किसी उलटे (तथा वास्तविक) प्रतिबिम्ब के लिए m का मान किस तरह का होता है?
उत्तर:
m का मान ऋणात्मक होता है।

प्रश्न 25.
एक 1.45 अपवर्तनांक वाला काँच का लेन्स जब किसी द्रव में डुबोया जाता है, तो वह दिखाई नहीं देता है। द्रव का अपवर्तनांक क्या होगा?
उत्तर:
लेन्स के पदार्थ (काँच) के अपवर्तनांक के बराबर अर्थात्

प्रश्न 26.
एक अपवर्तनांक वाला एक उत्तल लेन्स एक ऐसे माध्यम में रखा जाता है, जिसका अपवर्तनांक लेन्स के अपवर्तनांक के बराबर है। इस माध्यम में लेन्स की फोकस दूरी क्या होगी?
उत्तर:
इस दशा में लेन्स काँच की समतल प्लेट की भाँति व्यवहार करेगा अतः इसकी फोकस दूरी अनन्त होगी।

प्रश्न 27.
अभिसारी लेन्सों की क्षमता लेन्स की क्षमता होती “होती है और अपसारी है।
उत्तर:
धनात्मक, ऋणात्मक।

प्रश्न 28.
लेन्स की क्षमता को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
किसी लेन्स की क्षमता को लेन्स की फोकस दूरी के व्युत्क्रम के रूप में परिभाषित किया जाता है।
अर्थात् P = \(\frac{1}{\mathrm{f}}\) (m)

प्रश्न 29.
यदि f1. f2 f3 …… फोकस दूरियों के बहुत से लेन्स एक-दूसरे के सम्पर्क में रखे हैं, तो इस संयोजन की प्रभावी फोकस दूरी क्या होगी?
उत्तर:
\(\frac{1}{\mathrm{f}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{f1}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{f2}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{f3}}\) + …………..
क्षमता के पदों में P = P1 + P2 + P3 + …………

प्रश्न 30.
किसी दिए हुए प्रिज्म के लिए विचलन कोण का मान किस पर निर्भर करता है?
उत्तर:
किसी दिए हुए प्रिज्म के लिए विचलन कोण का मान प्रिज्म पर आपतित प्रकाश किरण के आपतन कोण पर निर्भर करता है।

प्रश्न 31.
किस रंग के लिए विचलन कोण का मान अधिकतम और न्यूनतम होता है?
उत्तर:
बैंगनी रंग के लिए अधिकतम और लाल रंग के लिए न्यूनतम होता है

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प्रश्न 32.
न्यूनतम विचलन कोण को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
एक विशेष आपतन कोण पर विचलन कोण का मान न्यूनतम होता है। उसे न्यूनतम विचलन कोण कहते हैं।

प्रश्न 33.
वर्ण विक्षेपण (Dispersion) को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
प्रिज्म के द्वारा श्वेत प्रकाश की किरण का सात रंगों में विभाजित होना वर्ण विक्षेपण कहलाता है

प्रश्न 34.
वर्ण विक्षेपण का क्या कारण है?
उत्तर:
वर्ण विक्षेपण का कारण पारदर्शी माध्यम में भिन्न-भिन्न रंगों के लिए प्रकाश की चाल भिन्न-भिन्न होना है।

प्रश्न 35.
वर्णक्रम या स्पेक्ट्रम किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रिज्म से श्वेत प्रकाश के विक्षेपण के कारण प्राप्त रंगों की पट्टिकाओं (Bands) को वर्णक्रम या स्पेक्ट्रम कहते हैं। इस स्पेक्ट्रम में रंगों का क्रम VIBGYOR या बैंनी आहपीनाला होता है।

प्रश्न 36.
प्रिज्म की विक्षेपण क्षमता को लिखिए।
उत्तर:
किसी प्रिज्म की वर्ण विक्षेपण क्षमता जितनी अधिक होगी, उस पदार्थ से निर्मित प्रिज्म से प्राप्त स्पेक्ट्रम उतना ही विस्तृत होगा।

प्रश्न 37.
किसी प्रिज्म की वर्ण विक्षेपण क्षमता किस पर निर्भर करती है?
उत्तर:
प्रिज्म की वर्ण विक्षेपण क्षमता उसके पदार्थ पर निर्भर करती है अपवर्तन कोण पर नहीं।

प्रश्न 38.
किसी त्रिभुजाकार प्रिज्म के लिए आपतन कोण (i) तथा विचलन कोण (8) के बीच ग्राफ को खींचिए।
उत्तर:
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(i) तथा विचलण कोण (8) के बीच एक ग्राफ।

प्रश्न 39.
एक उत्तल लेन्स जिसका अपवर्तनांक n2. है. को एक तरल जिसका अपवर्तनांक 11 है, में डुबोया जाता है (n2 > n1 )। लेन्स की कार्य- शैली में क्या अन्तर आयेगा ?
उत्तर;
यह लेन्स अवतल लेन्स की भाँति कार्य करेगा।

प्रश्न 40.
एक उत्तल लेन्स (n = 1.5) की फोकस दूरी पर क्या प्रभाव पड़ेगा जब इसको जल में डुबोया जाता है?
उत्तर:
∴ Whg < ang, अतः जल में लेन्स की फोकस दूरी बढ़ जायेगी परन्तु प्रकृति नहीं बदलेगी।

प्रश्न 41.
क्राउन काँच की विक्षेपण क्षमता फ्लिन्ट काँच से कम होती है या अधिक? लिखिए।
उत्तर:
कम होती है।

प्रश्न 42
प्रकाशीय उपकरण किसे कहते हैं?
उत्तर:
वे उपकरण जो मानव को समीप तथा दूर की वस्तुओं को देखने में सहायता करते हैं, प्रकाशीय उपकरण या यंत्र कहलाते हैं।

प्रश्न 43.
अभिदृश्यक लेन्स की आवर्धन क्षमता को लिखिए।
उत्तर:
अभिदृश्य लेन्स की आवर्धन क्षमता का मान mo =v/u से ज्ञात करते हैं।

प्रश्न 44.
अभिकेन्द्र लेन्स की आवर्धन क्षमता का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
me = D/VC[1 + Ve/fe]

प्रश्न 45.
एक संयुक्त सूक्ष्मदर्शी तथा एक दूरदर्शी की रचना को देखकर आप कैसे भेद करेंगे कि कौन किस प्रकार का प्रकाशिक यन्त्र है?
उत्तर:
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी के अभिदृश्यक का द्वारक बहुत छोटा तथा दूरदर्शी लेन्स का द्वारक बहुत बड़ा होता है। अतः अभिदृश्यक के द्वारकों को देखकर दोनों प्रकार के प्रकाशिक यन्त्रों में भेद किया जा सकता है।

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प्रश्न 46.
सामान्य समायोजन में दूरदर्शी की लम्बाई कितनी होती है?
उत्तर:
(fo + fe)

प्रश्न 47.
मोटर वाहनों में पीछे के ट्रैफिक को देखने हेतु चालक किस दर्पण को उपयोग में लेता है और क्यों ?
उत्तर:
चालक उत्तल दर्पण का उपयोग लेता है। चूँकि इससे बनने वाला प्रतिबिम्ब सीधा, आभासी एवं छोटा होता है, जिसके फलस्वरूप पश्च दृश्य क्षेत्र बड़ा हो जाता है।

प्रश्न 48.
दो पतले लेंस, जिनकी क्षमता + 5D एवं 3D है, परस्पर सम्पर्क में रखे हैं। संयोजन की फोकस दूरी ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
प्रश्नानुसार
P1 = + 5D
P2= – 3D
∴ P = P1 + P2
= + 5D – 3D = + 2D
फोकस दूरी
f = \(\frac{1}{\mathrm{p}}\) (मीटर में)
= \(\frac{1}{\mathrm{2}}\) मीटर = \(\frac{1}{\mathrm{2}}\) x 100 = 50 सेमी.

प्रश्न 49.
खगोलीय दूरदर्शी का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
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प्रश्न 50.
प्राथमिक इन्द्रधनुष तथा द्वितीयक इन्द्रधनुष में बूँद के अन्दर कितनी बार पूर्ण आन्तरिक परावर्तन होता है?
उत्तर:
प्राथमिक इन्द्रधनुष का निर्माण पानी की बूँदों पर सूर्य की किरणों के दो अपवर्तन तथा एक पूर्ण आन्तरिक परावर्तन से होता है, जबकि द्वितीयक इन्द्रधनुष का निर्माण पानी की बूँदों पर प्रकाश के दो अपवर्तन तथा दो पूर्ण आन्तरिक परावर्तन से होता है।

प्रश्न 51.
अवतल दर्पण के लिए बिंब दूरी u, प्रतिबिंब दूरी (v) एवं फोकस दूरी (f) में संबंध लिखिए।
उत्तर:
\(\frac{1}{\mathrm{f}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{u}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{v}}\)

प्रश्न 52.
जब प्रकाश किसी प्रकाशतः सघन माध्यम से विरल माध्यम में गमन करता है, तब आपतन का क्रांतिक कोण प्रकाश के वर्ण (रंग) पर निर्भर क्यों करता है?
उत्तर:
भिन्न-भिन्न रंग की तरंगदैर्ध्य के लिये अपवर्तनांक भिन्न-भिन्न होते हैं। u = a + b/λ2 होता है, इसलिये क्रान्तिक कोण sin ic = 1/μ का मान भी भिन्न-भिन्न रंग के लिये भिन्न-भिन्न होता है।

लघुत्तरात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1.
सिद्ध कीजिए n12 = 1/n21
उत्तर:
सामने के चित्र में यदि n21 माध्यम 2 का माध्यम 1 के सापेक्ष अपवर्तनांक है तब स्नेल नियम से
n21 = sini/sin r1 …..(i)
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इसी तरह से यदि n12 माध्यम 1 का माध्यम 2 के सापेक्ष अपवर्तनांक है तब स्नेल नियम से
n12 = sini2/sin r2 ……….. (ii)
समीकरण (i) तथा (ii) का गुणा करने पर
n21 × n12 = \(\frac{\sin i_1}{\sin r_1}\) × \(\frac{\sin i_2}{\sin r_2}\)
चित्र से ∠r1 = ∠i2
और ∠i1 = ∠r2
∴ n1 x n12 = sini/sin r1 x sini2/sin r2
या
n21 x n12 = 1
या
n12 = 1/n21 इतिसिद्धम्

प्रश्न 2.
जब कोई प्रकाश किरण वायुमण्डल (a) से दो माध्यमों जल (b) तथा काँच (c) के संयोजन से होकर जाती है, तो तीन माध्यमों के अपवर्तनांकों में सम्बन्ध ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
बिन्दुओं A, B तथा C पर स्नेल का नियम को लगाने पर:
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प्रश्न 3.
एक प्रकाश किरण माध्यम (1) से माध्यम (2) में अपवर्तित होती है। इनके अपवर्तनांक क्रमश: n1 तथा n2 हैं तथा n2 < n1 क्रान्तिक आपतन कोण के लिए व्यंजक लिखिए।
उत्तर:
जब आपतन कोण = क्रान्तिक कोण c तो इसके लिए
अपवर्तन कोण r = 90°
परन्तु स्नेल के नियम से n sini = n2 sin r
∴ n1 sin c = n2. sin 90° = n2 x 1 = n2
या sin c = (n2/n1) c = sin-1(n2/n1)

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प्रश्न 4.
क्या किसी माध्यम का दूसरे माध्यम के सापेक्ष अपवर्तनांक 1 से कम हो सकता है?
उत्तर:
हाँ।
उदाहरणार्थ-काँच के सापेक्ष जल का अपवर्तनांक
gnw = nw/ng = 4/3/3/2 = 8/9
जो कि एक से कम है।

प्रश्न 5.
सिद्ध कीजिए कि n12 = 1/sin ic जहाँ पर Ic क्रान्तिक कोण है।
उत्तर:
वह आपतन कोण जिसका तदनुरूपी अपवर्तन कोण 90° होता है, वह दिए हुए माध्यमों के युगल के लिए क्रान्तिक कोण ic कहलाता है। स्नेल के नियम n21 = sini/sinr से हम देखते हैं कि यदि आपेक्षिक अपवर्तनांक एक से कम है, तो क्योंकि sinr का अधिकतम मान एक होता है अतः sini के मान की कोई ऊपरी सीमा है जिस तक यह नियम लागू किया जा सकता है। यह है i = ic इस प्रकार
sinic = n21
i के ic से अधिक मानों के स्नेल के अपवर्तन के नियम को लागू नहीं किया जा सकता है अतः कोई अपवर्तन संभव नहीं होता। सघन माध्यम 2 का विरल माध्यम 1 के सापेक्ष अपवर्तनांक होगा।
n12 = 1/sinic

प्रश्न 6.
क्या कारण है कि सूर्य वास्तविक सूर्योदय से कुछ पहले दृष्टिगोचर होने लगता है तथा वास्तविक सूर्यास्त के कुछ समय पश्चात् तक दृष्टिगोचर होता है? समझाइए।
उत्तर:
इसका मुख्य कारण प्रकाश का अपवर्तन है। वास्तविक सूर्योदय से हमारा तात्पर्य है क्षितिज से सूर्य का ऊपर उठना चित्र में क्षितिज के सापेक्ष सूर्य की वास्तविक एवं आभासी स्थितियाँ दर्शायी गई हैं। चित्र में इस प्रभाव को समझने की दृष्टि से आवर्धित करके दर्शाया गया है। निर्वात के सापेक्ष वायु का अपवर्तनांक 1.00029 है। इसके कारण सूर्य की दिशा में लगभग आधे डिग्री ( 1/2°) का आभासी विस्थापन होता है जिसका वास्तविक सूर्यास्त तथा आभासी सूर्यास्त में तदनुरूपी अंतर लगभग 2 मिनट है। सूर्यास्त तथा सूर्योदय के समय सूर्य का आभासी चपटापन (अंडाकार आकृति) भी इसी परिघटना के कारण ही है।
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प्रश्न 7.
किसी उत्तल लेन्स के पदार्थ का अपवर्तनांक 1.5 है तथा इसकी दोनों सतहों की वक्रता त्रिज्यायें बराबर हैं सिद्ध कीजिए कि उसकी फोकस दूरी वक्रता त्रिज्या के बराबर है।
उत्तर:
\(\frac{1}{\mathrm{f}}\) = (n – 1)(\(\frac{1}{\mathrm{R1}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{R2}}\))
\(\frac{1}{\mathrm{f}}\) = (1.5 – 1)(\(\frac{1}{\mathrm{R}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{R}}\))
⇒ \(\frac{1}{\mathrm{f}}\) = 0.5 × (\(\frac{2}{\mathrm{R}}\)) = \(\frac{1}{\mathrm{R}}\)
अथवा f = R

प्रश्न 8.
वायु का बुलबुला जल में किस प्रकार के लेन्स की भाँति व्यवहार करेगा?
उत्तर:
वायु के बुलबुले के दोनों पृष्ठ उत्तल होते हैं। अतः यह एक उत्तल लेन्स की भाँति व्यवहार करता है लेकिन जल का अपवर्तनांक वायु के अपवर्तनांक से अधिक होता है। अतः जल की टंकी में स्थित वायु के बुलबुले की प्रकृति बदल जाने के कारण यह अवतल लेन्स की भाँति कार्य करेगा।

प्रश्न 9.
एक उत्तल लेन्स की फोकस दूरी किस प्रकार परिवर्तित होगी यदि बैंगनी प्रकाश के स्थान पर लाल प्रकाश प्रयुक्त किया जाये?
उत्तर:
∵ f α \(\frac{1}{(n-1)}\)
तथा nv > nR, अतः बैंगनी प्रकाश के स्थान पर लाल प्रकाश प्रयुक्त करने से लेन्स की फोकस दूरी बढ़ जायेगी।

प्रश्न 10.
प्रकाशिक तंतुओं के बंडल का उपयोग किस प्रकार से किया जा सकता है? समझाइए
उत्तर:
प्रकाशिक तंतुओं के बंडल (गुच्छ) का कई प्रकार से उपयोग किया जा सकता है। प्रकाशिक तंतुओं का बड़े पैमाने पर वैद्युत संकेतों, जिन्हें उचित ट्रांसड्यूसरों द्वारा प्रकाश में परिवर्तित कर लेते हैं, के प्रेषण तथा अभिग्रहण में उपयोग किया जाता है। स्पष्ट है कि प्रकाशिक तंतुओं का उपयोग प्रकाशिक संकेत प्रेषण के लिए भी किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, इन्हें आंतरिक अंगों जैसे ग्रसिका आमाशय तथा आंत्रों के दृश्य अवलोकन के लिए ‘लाइट पाइप’ के रूप में प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 11.
यदि हम किसी अवतल दर्पण के परावर्तक पृष्ठ के नीचे का आधा भाग किसी अपारदर्शी (अपरावर्ती) पदार्थ से ढक देते हैं तब दर्पण के सामने स्थित किसी बिंब के दर्पण द्वारा बने प्रतिबिंब पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
आप सोच सकते हैं कि प्रतिबिंब में बिंब का आधा भाग दिखाई देगा। परंतु यह मानते हुए कि परावर्तन के नियम दर्पण के शेष भाग पर भी लागू होते हैं, अतः दर्पण द्वारा बिंब का पूर्ण प्रतिबिंब बनेगा। तथापि, क्योंकि परावर्ती पृष्ठ का क्षेत्रफल कम हो गया है इसलिए प्रतिबिंब की तीव्रता कम हो जाएगी अर्थात् आधी हो जाएगी।

प्रश्न 12.
किसी अवतल दर्पण के मुख्य अक्ष पर एक मोबाइल फोन रखा है। उचित किरण आरेख द्वारा प्रतिबिंब की रचना दर्शाइए। व्याख्या कीजिए कि आवर्धन एकसमान क्यों नहीं है क्या प्रतिबिंब की विकृति दर्पण के सापेक्ष फोन की स्थिति पर निर्भर करती है?
उत्तर:
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र 7
चित्र में फोन के प्रतिबिंब की रचना का प्रकाश-किरण आरेख दर्शाया गया है। मुख्य अक्ष के लंबवत् समतल में स्थित भाग का प्रतिबिंब उसी समतल में होगा। यह उसी साइज का होगा, अर्थात् BC = BC।

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प्रश्न 13.
उत्तल लेन्स तथा अवतल लेन्स से गुजरने वाली प्रकाश किरणों का अनुरेखन कीजिए।
उत्तर:
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प्रश्न 14.
लेन्स की क्षमता से क्या तात्पर्य है? इसे समझाइए।
उत्तर:
लेन्स की क्षमता किसी लेन्स की क्षमता P को उस कोण की स्पर्शज्या से परिभाषित करते हैं, जिससे यह किसी प्रकाश पुंज को जो प्रकाशिक केंद्र से एकांक दूरी पर आकर गिरता है, अभिसरित या अपसरित करता है। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।
tanδ = h/f; यदि h = 1 tanδ = 1/f
δ = 1⁄2 (δ के लघु मान के लिए)।
अथवा
अतः
p = \(\frac{1}{\mathrm{f}}\) यहाँ पर f को मीटर में लिया गया है।
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र 9
लेन्स की क्षमता का SI मात्रक डाइऑप्टर (D) = 1D=1m-1 है।
अतः 1m फोकस दूरी के लेन्स की क्षमता एक डाइऑप्टर है। अभिसारी लेसों की क्षमता धनात्मक तथा अपसारी लेंस की क्षमता ऋणात्मक होती है। इस प्रकार जब कोई नेत्र चिकित्सक + 2.5 D क्षमता का संशोधक लेन्स निर्धारित करता है, तब + 40 cm फोकस दूरी के उत्तल लेन्स की आवश्यकता होती है। 4.0 D क्षमता के लेन्स से तात्पर्य – 25 cm फोकस दूरी का अवतल लेन्स होता है।

प्रश्न 15.
शुद्ध एवं अशुद्ध स्पैक्ट्रम से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
शुद्ध स्पैक्ट्रम – जब श्वेत प्रकाश की किरणें किसी प्रिज्म में से गुजरती हैं तो प्रत्येक किरण पर्दे पर स्पैक्ट्रम बनाती है। यदि स्पैक्ट्रम में प्रत्येक रंग अलग-अलग रूप से दिखाई दे तो इस प्रकार के स्पैक्ट्रम को ‘शुद्ध स्पैक्ट्रम’ कहते हैं शुद्ध स्पैक्ट्रम प्राप्त करने की निम्न शर्तें होती हैं:
(i) रेखा छिद्र संकरा तथा अभिसारी लेन्स के फोकस पर स्थित होना चाहिये।
(ii) प्रिज्म न्यूनतम विचलन की स्थिति में होना चाहिए।
(iii) प्रिज्म से निर्गत एक ही रंग की किरणें अभिसारी लेन्स द्वारा एक ही स्थान पर फोकसित होनी चाहिये।
(iv) आपतित किरणें समान्तर होनी चाहिये।
अशुद्ध स्पैक्ट्रम जब श्वेत प्रकाश की किरणें किसी प्रिज्म में से गुजरती हैं तो प्रत्येक किरण पर्दे पर स्पैक्ट्रम बनाती है। भिन्न-भिन्न रंगों के अतिव्यापन के कारण पर्दे पर ये रंग पृथक् पृथक् दिखाई नहीं देते हैं, इस प्रकार के स्पैक्ट्रम को ‘अशुद्ध स्पैक्ट्रम’ कहते हैं।

प्रश्न 16.
प्रकाश के प्रकीर्णन से क्या अभिप्राय है? इसका दैनिक जीवन में उपयोग बताइये।
उत्तर:
प्रकाश का प्रकीर्णन जब प्रकाश किसी माध्यम में से संचरित होता है तो वह उस माध्यम के कणों के साथ अन्योन्य क्रिया करता है। ये कण आपतित प्रकाश से कुछ ऊर्जा ले लेते हैं तथा उसे पुनः उत्सर्जित कर देते हैं। इस प्रक्रिया को प्रकीर्णन कहते हैं। प्रकाश के प्रकीर्णन का उपयोग प्रकाश के प्रकीर्णन से हमें वस्तुएँ दिखाई देती हैं। जब प्रकाश की किरणें किसी खुरदरे पृष्ठ पर गिरती हैं तो परावर्तित किरणें विभिन्न दिशाओं में बिखर जाती हैं। इस बिखरे प्रकाश या प्रकीर्णन प्रकाश के कारण ही हमें अपने कमरे में जबकि सूर्य की किरणें प्रत्यक्ष नहीं आती हैं फिर भी सभी वस्तुयें दिखाई देती हैं। आकाश का रंग नीला दिखाई देना, सूर्योदय एवं सूर्यास्त पर सूर्य का लाल दिखाई देना भी प्रकाश प्रकीर्णन की घटना के कारण हैं।

प्रश्न 17.
समान फोकस दूरी का एक अभिसारी लेन्स तथा एक अपसारी लेन्स समाक्षीय रूप से परस्पर सम्पर्क में रखे गये हैं। संयोजन की फोकस दूरी तथा क्षमता ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
र-संयोजन की फोकस दूरी F हो, तो
\(\frac{1}{\mathrm{f}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{f1}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{f2}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{f}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{f}}\)
\(\frac{1}{\mathrm{f}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{f}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{f}}\) = 0
अतः
F = \(\frac{1}{\mathrm{0}}\) = ∞ अर्थात्
F= अनन्त अतः क्षमता P = \(\frac{1}{\mathrm{f}}\)
P = 1/∞ = 0
अतः संयोजन लेन्स की फोकस दूरी अनन्त होगी और संयोजन लेन्स की क्षमता P = शून्य होगी।

प्रश्न 18.
सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता किस रंग के प्रकाश के लिए अधिकतम तथा किस रंग के प्रकाश के लिए न्यूनतम होगी?
उत्तर:
fv < fgRअतः सूत्र m = (1 + D/f) स्पष्ट है कि बैंगनी रंग के लिए आवर्धन क्षमता अधिकतम तथा लाल रंग के लिए न्यूनतम होगी।

प्रश्न 19.
दूरदर्शी द्वारा अन्तिम प्रतिबिम्ब जब अनन्त पर बन रहा हो तब उसकी नली की लम्बाई कितनी होती है? यदि प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बने तब लम्बाई पहले से कम होगी अथवा अधिक?
उत्तर:
जब प्रतिबिम्ब अनन्तता पर बनेगा तो नली की लम्बाई (fo + fe) होगी। यहाँ fo अभिदृश्यक लेन्स की फोकस दूरी है तथा fe नेत्रिका की फोकस दूरी है परन्तु यदि अन्तिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बनता है तब नली की लम्बाई (fo + ue) होगी, जहाँ u अभिदृश्यक लेन्स से बने प्रतिबिम्ब की नेत्रिका से दूरी है। यह लम्बाई (fo + fe) से कम होगी।

प्रश्न 20.
दूरदर्शी का अभिदृश्यक बड़ा और नेत्रिका छोटा है, जबकि सूक्ष्मदर्शी का अभिदृश्यक छोटा तथा नेत्रिका बड़ा होता है। यदि किसी दूरदर्शी को उलट दें, तो क्या वह सूक्ष्मदर्शी की भाँति प्रयुक्त की जा सकती है? क्या इसी प्रकार सूक्ष्मदर्शी को दूरदर्शी की तरह प्रयुक्त कर सकते हैं?
उत्तर:
नहीं। क्योंकि दूरदर्शी के लेन्सों की फोकस – दूरियों में अन्तर सूक्ष्मदर्शी के लेन्सों की फोकस दूरियों में अन्तर की अपेक्षा बहुत अधिक होता है। इस प्रकार दूरदर्शी को उलटकर सूक्ष्मदर्शी की भाँति प्रयुक्त करने पर उसकी आवर्धन क्षमता बहुत कम होगी। इसी तरह सूक्ष्मदर्शी को उलटकर दूरदर्शी की भाँति प्रयुक्त करने पर उसकी आवर्धन क्षमता कम हो जायेगी।

प्रश्न 21.
(a) बहुत दूर स्थित तारे जिन्हें नेत्र द्वारा नहीं देखा जा सकता, वे दूरदर्शी द्वारा देखे जा सकते हैं। क्यों?
(b) दो दूरदर्शियों की आवर्धन क्षमता समान है लेकिन इनके अभिदृश्यक लेन्सों के द्वारक अलग-अलग हैं। इनके द्वारा बनने वाले अंतिम प्रतिबिम्बों में क्या परिवर्तन होगा?
उत्तर:
(a) नेत्र के लेन्स का द्वारक बहुत छोटा होता है तथा बहुत अधिक दूर स्थित तारे से आने वाला प्रकाश बहुत कम होता है तथा हमारे नेत्र के रेटिना को उत्तेजित करने में असमर्थ होता है परन्तु दूरदर्शी का द्वारक, नेत्र की तुलना में बहुत बड़ा होता है। इस कारण यह दूरस्थ तारे से उचित प्रकाश प्राप्त कर सकता है तथा तारे का चमकीला प्रतिबिम्ब बनाता है, जिसे देखा जा सकता है।
(b) प्रतिबिम्बों की चमक अलग-अलग होगी; क्योंकि यह द्वारक के व्यास पर निर्भर करती है। बड़े द्वारक के अभिदृश्यक लेन्स युक्त दूरदर्शी द्वारा बना प्रतिबिम्ब अधिक चमकीला होगा। साथ ही इस दूरदर्शी की विभेदन क्षमता (1.222) भी छोटे द्वारक के अभिदृश्यक लेन्स युक्त दूरदर्शी की तुलना में अधिक होगी।

प्रश्न 22.
(a) किसी दूरदर्शी को उलटकर अभिदृश्यक की ओर देखने पर बहुत छोटी प्रतीत होती है, क्यों?
(b) सूक्ष्मदर्शी में ऐसा क्यों नहीं होता है?
उत्तर:
(a) दूरदर्शी में अभिदृश्यक लेन्स की फोकस दूरी (f0) नेत्रिका की फोकस दूरी (fc) से कहीं अधिक होती है तथा इसकी आवर्धन क्षमता f0/fc होती है। पलटकर देखने पर आवर्धन क्षमता fc/f0 हो जाएगी क्योंकि fo << fc अतः अब वस्तु बहुत ही छोटी दिखाई देगी।
क्योंकि
(b) संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की आर्धन क्षमता का सूत्र v0/u0 × D/fe है; क्योंकि v0 का मान सूक्ष्मदर्शी के अभिदृश्यक की फोकस दूरी f0 से थोड़ा सा ही अधिक होता है, अतः आवर्धन v0/f0 × D/fe माना जा सकता है; fo तथा दोनों के ही मान कम होते हैं। अतः सूक्ष्मदर्शी को उलटने पर भी vo के मान में कोई विशेष अन्तर न होने से आवर्धन क्षमता लगभग अपरिवर्तित रहती है।

प्रश्न 23.
“सूक्ष्मदर्शी एवं दूरदर्शी में उच्च आवर्धन क्षमता के साथ-साथ पर्याप्त विभेदन क्षमता भी होनी चाहिए।” उपर्युक्त कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आवर्धन क्षमता अधिक होने से वस्तु बड़ी एवं स्पष्ट दिखाई देती है, किन्तु यदि विभेदन क्षमता कम है तो उसकी संरचना को स्पष्ट नहीं देखा जा सकता है।

प्रश्न 24.
सुमेलित कीजिए:

कॉलम Iकॉलम II
A μ  = tanipP स्नैल का नियम
B μ = 1/sinicQ ब्रुस्टर का नियम प्रिज्म
C μ = sini/sinrR पूर्ण
D μ =  \(\frac{\sin \left(\frac{A+D_m}{2}\right)}{\sin \frac{A}{2}}\)S आन्तरिक परावर्तन

उत्तर:

AQ
BS
CP
DR

प्रश्न 25.
निम्न को परिभाषित कीजिए:
(a) पूर्ण आन्तरिक परावर्तन
(b) प्रकाश का विवर्तन
(c) प्रकाश का अपवर्तन।
उत्तर:
(a) पूर्ण आन्तरिक परावर्तन (Total Internal Reflection): जब सघन माध्यम में आपतन कोण का मान क्रान्तिक कोण से आगे थोड़ा-सा ही बढ़ाया जाता है, तो सम्पूर्ण आपतित प्रकाश, परावर्तन नियमों के अनुसार परावर्तित होकर सघन माध्यम में ही वापस लौट आता है जैसा कि नीचे चित्र में दिखाया गया प्रकाश का पूर्ण आन्तरिक परावर्तन कहते हैं।
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र 10
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के लिए आवश्यक शर्तें:
(1) प्रकाश सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाना चाहिए।
(2) सघन माध्यम में आपतन कोण का मान क्रान्तिक कोण से बड़ा होना चाहिए।

(b) प्रकाश का विवर्तन (Diffraction of light): विवर्तन तरंगों का एक अभिलाक्षणिक गुण है। जब तरंगों के मार्ग में कोई अवरोध आता है अथवा तरंगें किसी सूक्ष्म छिद्र से गुजरती हैं तो वे अवरोध या छिद्र के किनारे पर ‘आंशिक रूप से मुड़ जाती हैं। इस घटना को विवर्तन कहते हैं। विवर्तन की घटना सभी प्रकार की तरंगों, जैसे प्रकाश तरंगें, ध्वनि तरंगें इत्यादि में देखने को मिलती है। तरंगों का विवर्तन होने के लिये अवरोध का आकार तरंगों की तरंगदैर्घ्य की कोटि का होना चाहिये।

(c) प्रकाश का अपवर्तन (Refraction of light): प्रकाश की किरणें किसी समांगी (homogeneous ) एवं पारदर्शी माध्यम में सीधी रेखाओं में चलती हैं, परन्तु जब प्रकाश की कोई किरण इस प्रकार के एक पारदर्शी माध्यम से दूसरे पारदर्शी माध्यम में जाती है तो किरण का कुछ भाग माध्यमों के सीमा पृष्ठ (boundary surface) पर परावर्तित होकर पहले माध्यम में ही लौट आता है और शेष भाग दूसरे माध्यम में चला जाता है। दूसरे माध्यम में जाने पर प्रायः किरण की दिशा बदल जाती है अर्थात् प्रकाश की किरण अपने प्रारम्भिक मार्ग से विचलित (deviate) हो जाती है। “प्रकाश किरण का एक पारदर्शी माध्यम से दूसरे पारदर्शी माध्यम में जाने पर अपने पथ से विचलित हो जाना प्रकाश का अपवर्तन (Refraction) कहलाता है।”

प्रश्न 26.
तरंगाय की परिभाषा लिखिए। हाइगेन्स के सिद्धान्त का उपयोग करके किसी उत्तल लेंस पर आपतित समतल तरंग के अपवर्तित तरंगाय की आकृति खींचिए।
अथवा
(a) जब कोई तरंग किसी विरल माध्यम से किसी सघन माध्यम संचरण करती है, तब उस तरंग का कौन-सा अभिलक्षण परिवर्तित नहीं होता और क्यों?
(b) दो माध्यमों के अपवर्तनांक μ1 और μ2 हैं, उनमें तरंग के वेगों का अनुपात क्या होगा?
उत्तर:
जब किसी माध्यम में स्थित तरंग स्रोत से तरंगें निकलती हैं तो इसके चारों ओर स्थित माध्यम के कण कम्पन करने लगते हैं। माध्यम में वह पृष्ठ जिसमें स्थित सभी कण कम्पन की समान कला में हों, तरंगाग्र कहलाता है।
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(a) आवृत्ति स्थिर रहती है क्योंकि दो माध्यमों में प्रति सेकण्ड प्रवेश करते समय तरंगों की संख्या समान होती है।
(b) भिन्न-भिन्न माध्यमों में वेग का मान इस प्रकार दिया जा सकता है और इस प्रकार से प्रकाश की चाल अपवर्तनांक के माध्यम के व्युत्क्रमानुपाती होती है।

HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र

प्रश्न 27.
(a) प्रकाश की एक किरण अपवर्तनांक aμg = 1.5 के काँच के समकोणिक प्रिज्म के फलक AB पर अभिलम्बवत आपतित है। यह प्रिज्म किसी अज्ञात अपवर्तनांक के द्रव में आंशिक डूबा है। द्रव के अपवर्तनांक का मान ज्ञात कीजिए ताकि प्रिज्म से अपवर्तन के पश्चात् प्रकाश की किरण फलक BC के अनुदिश पृष्ठसर्पी हो।

(b) उस प्रकरण में किरण का पथ खींचिये जब यह किरण फलक AC पर अभिलम्बवत आपतन करती है।
उत्तर:
(a) स्नेल के नियम से
aμg sinic = aμ1 sin90°
1.5 × 60° =aμ1
aμ1 = 1.5 × 3/2
= 1.3
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(b) आपतित किरण 30° के कोण पर टकराती है जो कि ic से कम है। इस कारण से प्रकाश किरण अभिलम्ब से दूर हट जाती है।
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आंकिक प्रश्न:

प्रश्न 1.
एक अवतल दर्पण की फोकस दूरी 36 सेमी. हो तो इसकी वक्रता त्रिज्या ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
प्रश्नानुसार
f = 36 सेमी.
हम जानते हैं-फोकस दूरी और वक्रता त्रिज्या में सम्बन्ध
f = 1⁄2R
∴ R = 2f
या
R = 2 × 36 = 72 सेमी.

प्रश्न 2.
3 सेमी. ऊँची एक वस्तु 30 सेमी. फोकस दूरी के उत्तल दर्पण के सम्मुख इससे 60 सेमी. की दूरी पर रखी है। प्रतिबिम्ब की प्रकृति, स्थिति तथा आकार ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
दिया गया है:
वस्तु की ऊँचाई h = 3 सेमी.
उत्तल दर्पण की फोकस दूरी f = 30 सेमी.
दर्पण से वस्तु की दूरी u = – 60 सेमी.
दर्पण के सूत्र से
\(\frac{1}{\mathrm{f}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{U}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{V}}\)
या
\(\frac{1}{\mathrm{V}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{f}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{U}}\)
= \(\frac{1}{\mathrm{30}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{-60}}\)
= \(\frac{1}{\mathrm{30}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{60}}\)
⇒ v = 20 सेमी. 20
अतः प्रतिबिम्ब आभासी व सीधा बनेगा अतः दर्पण के पीछे अर्थात्
वस्तु की विपरीत दिशा में दर्पण से 20 सेमी. दूरी पर बनेगा
आवर्धन m = h/n = v/u
h/3 = – (20 सेमी/−60 सेमी) = 1/3
h’ = 1 सेमी.
अतः प्रतिबिम्ब की ऊँचाई 1 सेमी. होगी।

प्रश्न 3.
एक उत्तल लेन्स द्वारा एक वस्तु का सीधा प्रतिबिम्ब बनता है तथा इसकी लम्बाई वस्तु की लम्बाई की चार गुनी है। यदि लेन्स की फोकस दूरी 20 सेमी. है तो वस्तु के प्रतिबिम्ब की दूरियाँ ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
दिया है:
f = 20 सेमी. तथा m = 4
∵h’ = 4h दिया
u तथा f के पदों में m का सूत्र
m = f/u+f
⇒ 4 = 20 सेमी/u + 20 सेमी.
4u + 80 = 20
4u = (20 – 80) सेमी.
4u = – 60 सेमी.
लेन्स से वस्तु की दूरी = -15 सेमी.
v तथा f के पदों में m का सूत्र
m = f – v/f
⇒ 4 = 20 सेमी – v/20 सेमी.
80 = 20 – v
v = ( 20 – 80 ) सेमी.
= 60 सेमी.
∴ लेन्स से प्रतिबिम्ब की दूरी v = – 60 सेमी.

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प्रश्न 4.
10 सेमी. फोकस दूरी वाला एक उत्तल लेन्स समाक्षीय रूप से एक 10 सेमी. फोकस दूरी वाले अवतल लेन्स से 5 सेमी. दूरी पर रखा है। यदि एक वस्तु उत्तल लेन्स के सम्मुख 30 सेमी. दूरी पर रखी है तो संयुक्त निकाय द्वारा बने अन्तिम प्रतिबिम्ब की स्थिति ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
यहाँ पर उत्तल लेन्स के लिए
f= + 10 सेमी. तथा u = – 30 सेमी.
\(\frac{1}{\mathrm{V}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{U}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{f}}\) से,
\(\frac{1}{\mathrm{V}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{f}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{U}}\)
= \(\frac{1}{\mathrm{10}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{-30}}\)
= \(\frac{1}{\mathrm{10}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{-30}}\)
= 3-\(\frac{1}{\mathrm{30}}\)
= \(\frac{2}{\mathrm{30}}\)
= \(\frac{1}{\mathrm{15}}\)
v = 15 सेमी.
नीचे चित्र में उत्तल लेन्स द्वारा वस्तु O का बना प्रतिबिम्ब I’ अवतल लेन्स के लिए आभासी वस्तु का कार्य करेगा जिसकी अवतल लेन्स से दूरी u = (15 – 5) सेमी = 10 सेमी.
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र 15
इसकी फोकस दूरी f = -10 सेमी.
\(\frac{1}{\mathrm{V}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{U}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{f}}\) से
\(\frac{1}{\mathrm{V}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{f}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{U}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{-10}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{10}}\) = 0
अतः संयुक्त निकाय द्वारा बना अन्तिम प्रतिबिम्ब अनन्त पर होगा।

प्रश्न 5.
खगोलीय दूरदर्शक के अभिदृश्यक तथा नेत्रिका लेन्सों की फोकस दूरियाँ क्रमशः 2 मीटर तथा 0.05 मीटर हैं। अन्तिम प्रतिबिम्ब यदि (i) स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर (ii) अनन्तता पर बने तो प्रत्येक दशा में दूरदर्शी की आवर्धन क्षमता तथा लम्बाई ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
(i) जब अन्तिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बनता है, तो
आवर्धन क्षमता m = – \(\left[\frac{\mathrm{f}_{\mathrm{o}}}{\mathrm{f}_{\mathrm{e}}}\left(1+\frac{\mathrm{f}_{\mathrm{e}}}{\mathrm{D}}\right)\right]\)
यहाँ अभिदृश्यक की फोकस दूरी f = 2 मीटर = 200 सेमी. तथा नेत्रिका की फोकस दूरी = 0.05 मीटर = 5 सेमी एवं स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी D = 25 सेमी.
m = – 200/5(1 + 5/25) = -48
नेत्रिका के लिए fe = 5 सेमी. तथा Ve = 25 सेमी.
∴ \(\frac{1}{\mathrm{fe}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{ve}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{ue}}\)
\(\frac{1}{\mathrm{ue}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{v}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{fe}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{-2.5}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{5}}\)
= \(\frac{-1}{\mathrm{25}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{5}}\) = -(\(\frac{6}{\mathrm{-25}}\))
∴ u = (25/6) सेमी. 4.167 सेमी.
दूरदर्शी की लम्बाई L = fo + ue
= (200 सेमी. + 4.167 सेमी.) = 204.167 सेमी.
(यहाँ ue का मान चिन्ह छोड़कर रखना होता है)

(ii) जब अन्तिम प्रतिबिम्ब अनन्तता पर बनता है, तो
आवर्धन क्षमता m = -(f0/fe) = -(\(\frac{200}{\mathrm{5}}\))
= -40
इस दशा में
दूरदर्शी की लम्बाई L = f0 + fe = (200 + 5) सेमी.
= 205 सेमी.

प्रश्न 6.
एक सरल सूक्ष्मदर्शी में प्रयुक्त लेन्स की फोकस दूरी 5 सेमी है। स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी 25 सेमी. है। इसकी आवर्धन क्षमता ज्ञात कीजिए:
(i) जबकि अन्तिम प्रतिबिम्ब अनन्त पर बने,
(ii) स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बने।
उत्तर:
यहाँ f = 5 सेमी. D = 25 सेमी.
(i) आवर्धन क्षमता m = D/f = 25 सेमी/5 सेमी. = 5

(ii) आवर्धन क्षमता m = 1+ D/f 1 + 25 सेमी/5 सेमी. = 6

प्रश्न 7.
एक यौगिक सूक्ष्मदर्शी के अभिदृश्यक तथा नेत्रिका की फोकस दूरियाँ क्रमशः 1.0 सेमी. तथा 5.0 सेमी हैं। एक वस्तु अभिदृश्यक से 1.1 सेमी. की दूरी पर रखी जाती है। सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता तथा लम्बाई ज्ञात कीजिए, जबकि अन्तिम प्रतिबिम्ब (i) अनन्त पर बन रहा हो, (ii) स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बन रहा हो।
उत्तर:
(i) यहाँ fo = 1.0 सेमी. fe = 5.0 सेमी. तथा g = -1.1 सेमी. D = 25 सेमी.
सूत्र \(\frac{1}{\mathrm{v0}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{u0}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{f0}}\) से,
\(\frac{1}{\mathrm{v0}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{f0}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{u0}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{1.0}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{-1.1}}\) = 1 – \(\frac{10}{\mathrm{11}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{11}}\)
Vo = 11 सेमी.
अतः आवर्धन क्षमता m
= –\(\left[\frac{v_o}{u_o}\left(1+\frac{D}{f_e}\right)\right]\) = –\(\left[\frac{11}{1.1}\left(1+\frac{25}{5}\right)\right]\) = -60
सूक्ष्मदर्शी की लम्बाई L = Vo + f = (11 + 5) सेमी.
= 16 सेमी

(ii) नेत्रिका के लिए f = 5 सेमी. तथा Ve = -25सेमी.
∴ \(\frac{1}{\mathrm{fe}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{ve}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{ue}}\) से,
\(\frac{1}{\mathrm{ue}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{ve}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{fe}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{-25}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{5}}\) = \(\frac{-6}{\mathrm{5}}\)
अतः आवर्धन क्षमता m =
= \(-\left[\frac{v_0}{u_o}\left(\frac{D}{f_e}\right)\right]\) = \(\left[\frac{11}{1.1}\left(\frac{25}{5}\right)\right]\) = -50
सूक्ष्मदर्शी की लम्बाई L = Vo + ue
= (11 + 4.167) सेमी.
= 15.167 सेमी.

प्रश्न 8.
एक उत्तल लैंस जिसकी वक्रता त्रिज्या R1 = R2 = 24 cm है एवं जिसके पदार्थ का अपवर्तनांक 1.6 है।
(a) वायु में इस लेंस की फोकस दूरी की गणना करो।
(b) यदि इस लैंस को दो समान ऊर्ध्वाधर भागों में बाँट लिया जाये तो प्रत्येक भाग की फोकस दूरी की गणना करिये।
उत्तर:
दिया गया है:
R1 = 24 cm
R2 = – 24 cm
n2 = 1.6, n1 = 1.0
(a) वायु में इस लैंस की फोकस दूरी f का मान निम्न सूत्र से ज्ञात करते हैं
\(\frac{1}{\mathrm{f}}\) = (n2 – n1/n1)[\(\frac{1}{\mathrm{R1}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{R2}}\)]
मान रखने पर-
\(\frac{1}{\mathrm{f}}\) = (1.6 – 1)/1 [\(\frac{1}{\mathrm{24}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{24}}\)]
= 0.6 × 2/24 = 24 = 240
\(\frac{1}{\mathrm{f}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{20}}\)
∴ f = 20 cm
(b) n2 = 1.6, n1 = 1.0
मान रखने पर
R1 = 24 cm, R2 = ∞
\(\frac{1}{\mathrm{f1}}\) = (n2 – \(\frac{n1}{\mathrm{n2}}\))[\(\frac{1}{\mathrm{R1}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{R2}}\)]
मान रखने पर
\(\frac{1}{\mathrm{f}}\) = (1.6 – 1)/1 [\(\frac{1}{\mathrm{24}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{∞}}\)]
= 0.6 × \(\frac{1}{\mathrm{24}}\) = \(\frac{6}{\mathrm{240}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{40}}\)
f1 = 40cm

प्रश्न 9.
निम्न चित्र में दर्शाये लैंस के लिए
HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र 16
(i) प्रतिबिम्ब की स्थिति ज्ञात कीजिए।
(ii) प्रतिबिम्ब की स्थिति को लेंस से और दूर करने हेतु एक अन्य लैंस उपर्युक्त लैंस के सम्पर्क में रखा जाता है। इस द्वितीय लैंस की प्रकृति क्या होगी?
उत्तर:
(i) दिया गया है:
f = 10 cm, U = 30 cm, v = ?
सूत्र \(\frac{1}{\mathrm{f}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{V}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{u}}\) से
मान रखने पर
\(\frac{1}{\mathrm{10}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{V}}\) – (\(\frac{-1}{\mathrm{30}}\))
⇒ \(\frac{1}{\mathrm{10}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{V}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{30}}\)
⇒ \(\frac{1}{\mathrm{V}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{10}}\)– \(\frac{1}{\mathrm{30}}\) = \(\frac{2}{\mathrm{30}}\)
या \(\frac{1}{\mathrm{V}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{15}}\)
∴ v = 15 cm
अतः प्रतिबिम्ब की स्थिति 15 cm की दूरी पर है।
(ii) प्रतिबिम्ब की स्थिति को लेंस से दूर करने हेतु अवतल

प्रश्न 10.
कोई वस्तु 15 सेमी. वक्रता त्रिज्या के अवतल दर्पण से (i) 10 cm तथा (ii) 5 cm दूरी पर रखी है। प्रत्येक स्थिति में प्रतिबिम्ब की स्थिति, प्रकृति तथा आवर्धन परिकलित कीजिए।
उत्तर:
दिया गया है:
वक्रता त्रिज्या = 15 cm.
फोकस दूरी f = 15/2 = -7.5 cm.
(i) बिम्ब की दूरी दर्पण के सूत्र
u = – 10 cm.
\(\frac{1}{\mathrm{V}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{u}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{f}}\)
मान रखने पर
∴ \(\frac{1}{\mathrm{V}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{-10}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{-5}}\)
या \(\frac{1}{\mathrm{V}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{10}}\) = \(\frac{-10}{\mathrm{75}}\) = \(\frac{-2}{\mathrm{15}}\)
या \(\frac{1}{\mathrm{V}}\) = \(\frac{-2}{\mathrm{15}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{10}}\) = \(\frac{-4+3}{30}\) = \(\frac{-1}{\mathrm{30}}\)
या v = – 30cm.
प्रतिबिम्ब बिम्ब की दिशा में दर्पण से 30 cm. दूरी पर बनेगा।
आवर्धन m = v/u = \(\frac{-30}{\mathrm{10}}\)
m =-3
प्रतिबिम्ब आवर्धित वास्तविक तथा उल्टा है।
(ii) बिम्ब दूरी u = -5cm. तब दर्पण सूत्र से
\(\frac{1}{\mathrm{V}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{-5}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{-7.5}}\)
या
\(\frac{1}{\mathrm{V}}\) – \(\frac{1}{\mathrm{5}}\) = \(\frac{-1}{\mathrm{10}}\) = \(\frac{-2}{\mathrm{15}}\)
या
\(\frac{1}{\mathrm{V}}\) = \(\frac{-2}{\mathrm{15}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{5}}\)
या
\(\frac{1}{\mathrm{V}}\) = \(\frac{-2+3}{15}\) = \(\frac{1}{\mathrm{15}}\)
v = 15 cm.
प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे 15 cm दूरी पर बनता है। यह प्रतिबिम्ब आभासी है।
आवर्धन m = \(\frac{-v}{\mathrm{u}}\) = \(\frac{-15}{\mathrm{5}}\) = 3
यह प्रतिबिम्ब आवर्धित, आभासी तथा सीधा है

HBSE 12th Class Physics Important Questions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र

प्रश्न 11.
3 सेमी आकार की कोई वस्तु 40 सेमी वक्रता त्रिज्या के किसी अवतल दर्पण से 30 सेमी दूरी पर स्थित है। दर्पण से प्रतिबिम्ब की दूरी व आकार ज्ञात करें एवं प्रतिबिम्ब की प्रकृति बताइए।
उत्तर:
यहाँ पर वस्तु का आकार h = 3 सेमी
अवतल दर्पण की वक्रता त्रिज्या R = 40 सेमी
अतः दर्पण की फोकस दूरी f = 1\(\frac{1}{\mathrm{2r}}\)
R = \(\frac{-40}{\mathrm{20}}\)
= – 20 सेमी
दर्पण से वस्तु की दूरी u = – 30 सेमी
अतः दर्पण के सूत्र
\(\frac{1}{\mathrm{V}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{U}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{F}}\) में ज्ञात मान रखने पर
\(\frac{1}{\mathrm{V}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{-30}}\) = \(\frac{1}{\mathrm{-20}}\)
\(\frac{1}{\mathrm{V}}\) = \(\frac{-1}{\mathrm{20}}\) + \(\frac{1}{\mathrm{30}}\) = \(\frac{-3+2}{60}\) = \(\frac{-1}{\mathrm{60}}\)
v = 60 सेमी
इसलिये दर्पण से वस्तु के प्रतिबिम्ब की दूरी v = – 60 सेमी अतः प्रतिबिम्ब दर्पण से 60 सेमी वस्तु की ओर (अर्थात् दर्पण के सामने) बनेगा।
प्रतिबिम्ब के आवर्धन के लिये m = h/h = -(\(\frac{V}{\mathrm{U}}\))
इसलिये प्रतिबिम्ब का आकार h’ = – (\(\frac{V}{\mathrm{U}}\)) h
= \(-\left[\frac{-60}{-30}\right]\) × 3
h’ = – 6 सेमी
अर्थात् प्रतिबिम्ब उल्टा ( वास्तविक ) तथा 6 सेमी ऊँचा बनेगा, जो कि वस्तु से बड़ा होगा।

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HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 स्थानिक सूचना प्रौद्योगिकी

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Solutions Practical Work in Chapter 6 स्थानिक सूचना प्रौद्योगिकी Textbook Exercise  Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 स्थानिक सूचना प्रौद्योगिकी

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए-
(i) स्थानिक आंकड़ों के लक्षण निम्नांकित स्वरूप में दिखाई देते हैं-
(क) अवस्थितिक
(ग) क्षेत्रीय
(ख) रैखिक
(घ) उपर्युक्त सभी स्वरूपों में
उत्तर:
(ग) क्षेत्रीय।

(ii) विश्लेषक मॉड्यूल सॉफ्टवेयर के लिए कौन-सा एक
प्रचालन आवश्यक है?
(क) आंकड़ा संग्रहण
(ग) आंकड़ा निष्कर्षण
(ख) आंकड़ा प्रदर्शन
(घ) बफरिंग।
उत्तर:
(ख) आंकड़ा प्रदर्शन।

(iii) चित्ररेखापुंज ( रैस्टर) आंकड़ा फॉरमेट का एक अवगुण क्या है?
(क) सरल आंकड़ा संरचना
(ख) सहज एवं कुशल उपरिशायी
(ग) सुदूर संवेदन प्रतिबिंब के लिए सक्षम
(घ) कठिन परिपथ चाल विश्लेषण।
उत्तर:
(घ) कठिन परिपथ चाल विश्लेषण।

(iv) संदिश ( वेक्टर) आंकड़ा फॉरमेट का एक गुण क्या है?
(क) समिश्र आंकड़ा संरचना
(ख) कठिन उपरिशायी प्रचालन
(ग) सुदूर संवेदन आंकड़ों के साथ कठिन सुसंगतता
(घ) सघन आंकड़ा संरचना |
उत्तर:
(क) समिश्र आंकड़ा संरचना।

(v) भौगोलिक सूचना तंत्र कीट में उपयोग कर नगरीय परिवर्तन की पहचान कुशलतापूर्वक की जाती है-
(क) उपरिशायी प्रचालन
(ख) सामीप्य विश्लेषण
(ग) परिपथ जाल विश्लेषण
(घ) बफरिंग।
उत्तर:
(घ) बफरिंग।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
(i) चित्ररेखापुंज एवं सदिश ( वेक्टर) आंकड़ा मॉडल के मध्य अंतर-
उत्तर:
चित्ररेखापुंज आंकड़ा मॉडल: चित्ररेखापुंज आंकड़े वर्गों के जाल के प्रारूप में आंकड़ों का ग्राफी प्रदर्शन करते हैं। एक चित्र लेखापुंज फाइल एक प्रतिबिंब का प्रदर्शन कागज की उपविभाजित कर छोटी आयतों के आथूह जिन्हें सेल कहते हैं के रूप में करेगी, एक ग्राफ पेपर की शीट की तरह आंकड़ा फाइल में प्रत्येक सेल के स्थान के रूप में बिल्कुल एक ग्राफ पेपर की सीट की तरह आंकड़ा फाइल में हर एक सेल का एक स्थान दिया जाता है।

सदिश आंकड़ा मॉडल: सदिश आंकड़े वस्तु का प्रदर्शन विशिष्ट बिंदुओं के बीच खींची गई रेखाओं के समुच्चय के रूप में करते हैं। हर एक बिंदु की अभिव्यक्ति दो तथा तीन संख्याओं के रूप में होती है। एक सदिश आंकड़ा मॉडल अपने यथार्थ निर्देशांकों द्वारा भंडारित बिंदुओं का प्रयोग करता है।

(ii) उपरिशायी विश्लेषण क्या है?
उत्तर:
उपरिशायी विश्लेषण GIS का हॉलमार्क है। इसका प्रयोग करके मानचित्रों के बहुगुणी स्तरों का समन्वय एक महत्त्वपूर्ण विश्लेषण क्रिया है। अन्य शब्दों में भौगोलिक सूचना तंत्र (GIS) उसी क्षेत्र के मानचित्रों के दो तथा अधिक विषयक स्तरों का अधिचित्रण करके नया मानचित्र स्तर प्राप्त करने को संभव बनाता है। इसके द्वारा प्रकाशीय पेज पर मानचित्रों के अनुरेखाणों का अधिचित्रण किया जाता है।

(iii) भौगोलिक सूचना तंत्र में हस्तचलित विधि के गुण क्या हैं?
उत्तर:
भौगोलिक सूचना तंत्र में हस्तचलित विधि के गुण इस प्रकार हैं-

  1. भौगोलिक सूचना तंत्र की सहायता से संचित भौगोलिक आँकड़ों, आवश्यकता के अनुरूप बने मानचित्रों एवं चयनित आँकड़ा आधार प्राप्त करने की सुविधा मिल जाती है।
  2. मानचित्रीय सूचना एक विशेष ढंग से प्रक्रमित और प्रदर्शित की गई होती है।
  3. एक मानचित्र एक तथा एक से अधिक पूर्व निर्धारित विषय वस्तुओं को दर्शाता है।
  4. स्थानिक प्रचालकों का समन्वित सूचनाधार पर अनुप्रयोग करके सूचनाओं के नए समुच्चय उत्पन्न किए जा सकते हैं।
  5. विशेष आंकड़ों के विभिन्न आइटम एक-दूसरे के साथ अंश अवस्थिति कोड की सहायता से जोड़े जा सकते हैं।

(iv) भौगोलिक सूचना तंत्र के महत्त्वपूर्ण घटक क्या हैं? उत्तर-भौगोलिक सूचना तंत्र के महत्त्वपूर्ण घटक हैं-

  1. हार्डवेयर,
  2. सॉफ्टवेयर
  3. आंकड़े,
  4. लोग,
  5. प्रक्रिया।

(v) भौगोलिक सूचना तंत्र के कोर में स्थानिक सूचना बनाने की विधि क्या है?
उत्तर:
भौगोलिक सूचना तंत्र के कोर में स्थानिक सूचना तंत्र बनाने की विधि इस प्रकार हैं-

  1. स्थानिक आंकड़ा निवेश
  2. गुण न्यास की प्रविष्टि
  3. आंकड़ों का सत्यापन और संपादन
  4. स्थानिक और गुण न्यास आंकड़ों की सहलग्नता
  5. स्थानिक विश्लेषण।

(vi) स्थानिक सूचना प्रौद्योगिकी क्या है?
उत्तर:
स्थानिक शब्द अंतरिक्ष से उत्पन्न हुआ है। इसका अर्थ भौगोलिक रूप से परिभाषित क्षेत्र जिसके भौतिक रूप से नाप योग्य आयास हैं पर लक्षणों और परिघटनाओं के वितरण से है। अधिकांश आँकड़े जिनका आज हम उपयोग करते हैं, वह स्थानिक घटक होते हैं, जैसे कि किसी नगरपालिका का पता तथा कृषि जोत की सीमाएँ इत्यादि। इस प्रकार स्थानिक सूचना प्रौद्योगिकी का संबंध स्थानिक सूचना के संग्रहण, भंडारण, प्रदर्शन, हेरफेर, प्रबंधन और विश्लेषण में प्रौद्योगिक निवेश के प्रयोग से होता है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दीजिए-
(i) चित्ररेखापुंज ( रैस्टर) एवं सदिश ( वेक्टर) आंकड़ा फॉरमेट को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
चित्ररेखापुंज (रैस्टर) आंकड़े वर्गों के जाल के रूप में आंकड़ों का ग्राफी प्रदर्शन करते हैं जबकि सदिश ( वेक्टर) आंकड़े वस्तु का प्रदर्शन विशिष्ट बिंदुओं के बीच खींची गई रेखाओं के समुच्चय के रूप में किया जाता है। कागज के एक पुर्जे पर तिरछी खींची हुई एक रेखा पर ध्यान दीजिए।

एक चित्रलेखापुंज फाइल इस प्रतिबिंब का प्रदर्शन कागज की उपविभाजित करकर छोटी आयतों के आधूह जिन्हें सेल कहते हैं के स्वरूप में करेगी, जैसे ही एक ग्राफ पेपर की सीट की तरह आंकड़ा फाइल में हर एक सेल को एक स्थान दिया जाएगा। इसी प्रकार एक ग्राफ पेपर की शीट की तरह आंकड़ा फाइल में हर एक सेल का एक स्थान होता है तो उस स्थान के गुणों के आधार पर मूल्य पाती हैं इसकी पंक्तियों तथा स्तंभों के निर्देशांक किसी भी व्यक्तिगत पिक्सेल की पहचान करते हैं।
HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 स्थानिक सूचना प्रौद्योगिकी 1
सदिश आंकड़ा फॉमेटः तिरछी रेख का सदिश प्रदर्शन सिर्फ निर्देशकों के आरंभिक एवं अंतिम बिंदुओं की दर्ज कर रेखा की स्थिति की दर्ज करके होगा। हर एक बिंदु की अभिव्यक्ति दो तथा तीन संख्याओं के रूप में होती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि प्रदर्शन 2D तथा 3D, जिसे X, Y तथा X, YZ निर्देशांकों द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है।
HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 स्थानिक सूचना प्रौद्योगिकी 2

(ii) भौगोलिक सूचना तंत्र से संबंधित कार्यों को क्रमबद्ध रूप में किस प्रकार किया जाता है एक व्याख्यात्मक लेख प्रस्तुत
कीजिए।
उत्तर:
भौगोलिक सूचना तंत्र से संबंधित कार्यों को इस प्रकार क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत करते हैं-
(1) स्थानिक आंकड़ा निवेश-
इन्हें निम्नलिखित दो वर्गों में संक्षेपित किया जा सकता है-
(a) आंकड़ा आपूर्तिदाता से आंकिक आंकड़ा समुच्चय का प्रगहण वर्तमान में आंकड़ा आपूर्तिदाता आंकिक आंकड़ों को तैयार रूप में उपलब्ध कराते हैं, जो लघु-मापनी मानचित्रों से लेकर बृहत् मापनी प्लान करती है।

(b) क्रियात्मक स्तर पर यह निश्चित करने के लिए कि आंकड़े अपने अनुप्रयोग के साथ संगत हैं, प्रयोक्ता की उनकी निम्नलिखित विशेषताओं का ध्यान रखिए।

  • आंकड़ों की मापनी
  • प्रयोग में लाई गई भौगोलिक संदर्भ प्रणाली
  • प्रयोग में लाई गई आंकड़े संग्रहण की तकनीकें और निर्देशन सामरिकी
  • आंकड़ा निवेश की हस्तेन विधियाँ इस बात पर निर्भर करती हैं। कि क्या सूचनाधार की संस्थिति सदिश हैं।

(2) गुणन्यास की प्रविष्टि यह मूल न्यास स्थानिक सत्ता की विशेषताओं जिनका निपटान भौगोलिक सूचना का वर्णन करता है। प्रकाशित रिकार्डों, सरकारी जनगणनाओं इत्यादि से उपर्जित गुणन्यास को GIS सूचनाधार में या तो हस्तेन अथवा मानक स्थानांतरण फॉर्मेट का प्रयोग करते हुए आंकड़ों का आयात करके निवेश किया जाता है।

(3) आंकड़ों का सत्यापन तथा संपादन आंकड़ों की शुद्धता को सुनिश्चित करने हेतु त्रुटियों की पहचान और संशोधन के लिए भौगोलिक सूचना तंत्र में प्रग्रहित आंकड़ों की सत्यापन की आवश्यकता होती है।

(4) स्थानिक विश्लेषण भौगोलिक सूचना तंत्र की प्रबलता उसकी विश्लेषणात्मक सामर्थ्य में निहित हैं जो चीज भौगोलिक सूचना तंत्र को अन्य सूचना तंत्रों से अलग करती है वह हैं उसकी स्थानिक विश्लेषण की क्रियाएँ।

अतिरिक्त प्रश्न (Other Questions)

प्रश्न 1.
संगणक से क्या अभिप्राय है? इसकी क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर:
आधुनिक युग संगणक (Computer) का युग है। Computer शब्द अंग्रेज़ी भाषा के शब्द Compute से लिया गया है। जिसका अर्थ गणना है। अतः संगणक एक वैद्युत् यंत्रीय युक्ति (Electronic Device) है जो सूचनाओं की बड़ी तीव्रता एवं शुद्धता के साथ गणना करता है। संगणक द्वारा अरबों गणनाएं संपन्न की जा सकती हैं। यह अंकगणितीय संक्रियाएं (जैसे-जोड़ना, घटाना, गुणा तथा भाग करना) करने की क्षमता रखता है। एक संगणक सूचनाओं को वहन करने के लिए विद्युत् का उपयोग करता है।

संगणक की विशेषताएं-

  1. गति (Speed)-कंप्यूटर तीव्र गति से कार्य करने की क्षमता रखता है।
  2. संग्रहण क्षमता (Storage Capacity ) कंप्यूटर की संग्रहण क्षमता बहुत अधिक है। डिस्क तथा टेप के प्रयोग से बड़ी मात्रा में आँकड़ों का भंडारण किया जा सकता है।
  3. शुद्धता (Accuracy)- कंप्यूटर अपनी शुद्धता के कारण बहुत महत्त्वपूर्ण है। कोई अशुद्धि आने पर भी कंप्यूटर ग़लती को सुधारने का कार्य करेगा।
  4. कार्यों की विविधता (Variety of Jobs)-कंप्यूटर कई प्रकार के कार्य करने में सक्षम है, जैसे आँकड़ों का संग्रहण, पुनः प्राप्ति, विभिन्न डिज़ाइन बनाना, खेल आदि कार्य किए जा सकते हैं।
  5. स्वचालन (Automation )-कंप्यूटर अधिकतर कार्य स्वचालित रूप से करता है। कंप्यूटर विभिन्न कार्य विस्तारपूर्वक कर सकता है।

प्रश्न 2.
संगणक के दो आधारभूत अंग बताओ। यंत्र सामग्री की विभिन्न इकाइयों का वर्णन करो।
उत्तर:
संगणक प्रणाली के भाग (Parts of Computer System)
एक संगणक प्रणाली के दो आधारभूत अंग होते हैं-
1. यंत्र सामग्री (हार्डवेयर) (Hardware)
HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 स्थानिक सूचना प्रौद्योगिकी 3

2. प्रक्रिया सामग्री ( सॉफ्टवेयर) (Software)
1. यंत्र सामग्री (हार्डवेयर) (Hardware)-
यह संगणक प्रणाली का भौतिक भाग है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक, चुंबकीय तथा यांत्रिक उपकरण लगे होते हैं। एक संगणक प्रणाली में निम्नलिखित मुख्य हार्डवेयर इकाइयां होती हैं-
(1) केंद्रीय प्रक्रम इकाई (सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट-सी० पी० यू० ) ( Central Processing Unit-CPU) यह किसी डिजिटल (आंकिक ) कंप्यूटर प्रणाली (Digital System) का तंत्रिका केंद्र (Nerve Centre) होता है। यह सभी अन्य इकाइयों की क्रियाओं का समन्वय एवं नियंत्रण करता है तथा प्रयोग किये जाने वाले आँकड़ों के लिए सभी अंकगणितीय एवं तार्किक प्रक्रमों को संपादित करता है। सी०पी०यू० में तीन पृथक् हार्डवेयर खंड होते हैं-

  • आंतरिक स्मृति (मेमोरी) (Internal Memory),
  • अंकगणितीय इकाई (Arithmetic Unit),
  • एक नियंत्रक खंड ( चिप ) ( Chip) (A Control Section)

एक पतली सिल्किन की पत्ती, जो समन्वित वैद्युत् परिपथ के वृहत् जाल को धारण करती है) संगणक को निर्मित करने वाला ब्लाक होता है तथा विभिन्न कार्यों का संपादन करता है, जैसे- गणितीय संक्रिया करना, संगणक की स्मृति (मेमोरी) के रूप में सहयोग करना या दूसरे चिपों पर नियंत्रण करना।

(2) दृश्य-प्रदर्शक इकाई (विजुअल डिसप्ले यूनिट वी० डी० यू० या टर्मिनल) (Visual Display Unit (VDU) or Terminal)-टेलीविजन की भाँति दृश्य इकाई में एक केथोड-
रे ट्यूब (छोटा पर्दा) लगा होता है जिस पर आँकड़ों को प्रदर्शित करने वाले रेखाचित्रों या विशेषताओं को संगणक की मुख्य स्मृति से पढ़कर प्रदर्शित किया जाता है।

3. निवेश एवं निर्गत उपकरण (Input and Output Devices)- निवेश उपकरण, जैसे ‘की बोर्ड’ (कुंजी-पटल) (Key Board) का प्रयोग आँकड़ों तथा कार्यक्रमों (प्रोग्रामों) को संगणक- स्मृति (मेमोरी) में भरने के लिए किया जाता है। इसी प्रकार चूंकि एक कंप्यूटर के भीतर सभी आँकड़ों कार्यक्रमों को कोड ( कूट) स्वरूप में वैद्युत्-धारा के रूप में संचित किया जाता है, निर्गत- उपकरणों जैसे प्रिंटर, प्लाटर आदि का प्रयोग इन आँकड़ों को सूचनाओं के रूप में (जैसे–विशेषताएं, ड्राइंग या ग्राफिक) बदलने के लिए किया जाता है जिनका मानव द्वारा उपयोग किया जा सके।

4. संग्रहक उपकरण (Storage Device )-एक कंप्यूटर में कई संग्राहक इकाइयाँ जैसे हार्डडिस्क, फ्लापी, टेप, मैगनेटों, आप्टिकल डिस्क, कांपेक्ट डिस्क (सीडी), कार्टिज आदि लगे होते हैं जिनका प्रयोग आँकड़ों तथा कार्यक्रम निर्देशों को संचित करने के लिए होता है। इन युक्तियों की आँकड़ा संग्रहण करने की क्षमता मेगाबाइट (MB) से जीगावाइट (GB) तक होती है।

प्रश्न 3.
संगणक के उपयोग के प्रमुख लाभ क्या हैं?
उत्तर:

  1. संगणक एक वैदयुत् यंत्रीय युक्ति है, जो सूचनाओं की बड़ी तीव्रता एवं शुद्धता के साथ गणना करता है।
  2. अत्यधिक शक्तिशाली संगणकों द्वारा कुछ पलों में, अरबों | गणनाएँ अथवा अंकगणितीय संक्रियाएँ संपन्न की जा सकती हैं।
  3. यह उपकरण समस्याओं के समाधान अथवा आँकड़ों की गणना प्रत्यक्ष प्राप्त कर अंकगणितीय संक्रियाएँ करके (गणितीय निर्देशों का प्रयोग करके जैसे जोड़ना, घटाना, गुणा तथा भाग करना) इन संक्रियाओं के परिणामों की आपूर्ति करने की क्षमता रखता है।
  4. सामान्यतः संगणक विभिन्न संख्याओं, शब्दों, स्थिर बों चलचित्रों एवं ध्वनियों (आवाज़ों) की प्रक्रियायें संपन्न कर सकता है।
  5. एक संगणक सूचनाओं को वहन करने के लिए विदमुत् का उपयोग करता है।
  6. अंक विहीन सूचनाओं जैसे शब्दों, चित्रों या ध्वनियों को एक संगणक में प्रयोग के योग्य बनाने के लिए सूचनाओं का आंकिक परिवर्तन आवश्यक है।

प्रश्न 4.
संगणक के उपयोग की क्या सीमाएं हैं?
उत्तर:
हमारे लिए यहाँ यह समझना आवश्यक है कि संगणक क्या नहीं कर सकता?

  1. एक संगणक हमारे लिए सोचने का कार्य नहीं कर सकता।
  2. संगणक मात्र हमारे द्वारा भरी गई सूचना पर आधारित निश्चित तार्किक चरणों का ही अनुसरण करता है।
  3. एक संगणक सिर्फ वही कार्य करता है जो उससे या तो निर्देशों के एक समूह (प्रोग्राम) द्वारा अथवा एक मानव संचालक द्वारा करवाया जाता है।

प्रश्न 5.
संगणक के मुख्य अंग बताओ।
उत्तर:
एक संगणक प्रणाली के दो आधारभूत अंग होते हैं-

  1. यंत्र सामग्री (हार्डवेयर)
  2. प्रक्रिया सामग्री (सॉफ्टवेयर)

यंत्र सामग्री (हार्डवेयर)-
यह संगणक प्रणाली का भौतिक भाग है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक, चुंबकीय तथा यांत्रिक उपकरण लगे होते हैं। एक संगणक प्रभाव में निम्नलिखित मुख्य हार्डवेयर इकाइयाँ होती हैं-

  1. केंद्रीय प्रक्रम इकाई (CPU)
  2. दृश्य प्रदर्शक इकाई (VDU)
  3. निवेश एवम् निर्गत उपकरण
  4. संग्रहक उपकरण।

प्रश्न 6.
केंद्रीय प्रक्रम इकाई (CPU) पर नोट लिखो।
[T.B.Q. 1 (3)]
उत्तर:
केंद्रीय प्रक्रम इकाई (सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट-सी० पी० यू० )-यह किसी आंकिक (डिजिटल) संगणक प्रणाली का तंत्रिका केंद्र होता है। यह सभी अन्य इकाइयों की क्रियाओं का समन्वय एवं नियंत्रण करता है तथा प्रयोग किये जाने वाले आँकड़ों के लिए सभी अंकगणितीय एवं तार्किक प्रक्रमों को संपादित करता है। सी०पी०यू० में तीन पृथक हार्डवेयर खंड होते हैं-

  1. अतिरिक स्मृति (मेमोरी),
  2. अंकगणितीय इकाई एवं
  3. एक नियंत्रक खंड (चिप एक पतली सिल्किन की पत्ती, जो समन्वित वैद्युत परिपथ के वृहत् जाल को धारण करती है।)

संगणक को निर्मित करने वाला ब्लॉक होता है तथा विभिन्न कार्यों का संपादन करता है, जैसे- गणितीय संक्रिया करना, संगणक की स्मृति (मेमोरी) के रूप में सहयोग करना या दूसरे चियों पर नियंत्रण करना।

प्रश्न 7.
संगणक में कौन-कौन सी संग्रह युक्तियां होती हैं?
उत्तर:
संग्रहक उपकरण-एक संगणक में कई संग्राहक इकाइयाँ जैसे हार्ड डिस्क, फ्लापी, टेप, मैगनेटोआप्टिकल डिस्क, कांपेक्ट डिस्क (सीडी), कार्टिज आदि लगे होते हैं जिनका प्रयोग आँकड़ों तथा कार्यक्रम निर्देशों को संचित करने के लिए होता है। इन युक्तियों की आँकड़ा संग्रहण करने की क्षमता मेगाबाइट (MB) से गीगाबाइट (GB) तक होती है।

प्रश्न 8.
अनुप्रयोग प्रक्रिया सामग्री (Application Software) पर नोट लिखो।
उत्तर:
अनुप्रयोग प्रक्रिया सामग्री (एप्लीकेशन
सॉफ्टवेयर)-

अनुप्रयोग प्रक्रिया सामग्री के भी दो प्रकार होते हैं-
(1) प्रथम प्रकार का अनुप्रयोग सॉफ्टवेटर आँकड़ा आधार या आँकड़ा संचय (डेटाबेस) प्रबंधन, लेखाचित्रों (ग्राफिक्स) तथा शब्दों के प्रक्रम से संबद्ध होता है जिसमें अधिकांश व्यावसायिक संस्थानों तथा व्यक्तियों द्वारा प्रयुक्त कार्यों का बृहत् समूहन होता है।

(2) द्वितीय प्रकार का अनुप्रयोग प्रक्रिया सामग्री विशिष्ट, पेशेवर अथवा तकनीकी अनुप्रयोगों द्वारा विशिष्ट कार्यों हेतु प्रयोग करने के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया प्रक्रिया सामग्री होती है। उदाहरण के लिए, चिकित्सकों, दंत रोग विशेषज्ञों, वास्तु शिल्पियों तथा अभियंताओं द्वारा विशिष्ट कार्यों हेतु प्रयोग करने के लिए विशेष रूप से तैयार की गई प्रक्रिया सामग्री (सॉफ्टवेयर)। विस्तृत परिसर वाली अनुप्रयोग प्रक्रिया सामग्री श्रेणी में व्यक्तिगत एवं व्यावसायिक प्रयोग के लिए निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है-

  1. लेखा संबंधी सामान्य बही, वेतन बही, बीजक, रसीदें आदि।
  2. संचार संबंधी केंद्रीय कार्यालय के मुख्य संगणक से इलेक्ट्रॉनिक -डाक का वाणिज्यिक डेटा बैंकों तथा सूचना-सुविधाओं द्वारा प्रदत्त सेवाओं से अंतसंबधन।
  3. आँकड़ा संजय प्रबंधन ( डेटाबेस )-केंद्रीय पहुँच के लिए.. इसमें डेटा फाइलों की छटाई तथा नवीनीकरण, सांख्यिकी का संचय गणना, प्लाट-दिशा एवं बाजार विश्लेषणों हेतु प्रबंधन किया जाता है।
  4. शैक्षिक कार्यक्रम (प्रोग्राम )-खेलों, ट्यूटोरियल्स, अनुकरणों (सिमूलेशन्स) आदि द्वारा सीखने से संबंधित
  5. लेखाचित्रों (ग्राफिक्स)-रंगीन लेखाचित्रों तथा चार्टों के प्रदर्शन, रंगीन स्लाइड एवं अन्य दृश्य सहायक उपकरणों का निर्माण।
  6. कार्यक्रम निर्माण (प्रोग्रामिंग ) किसी एक समस्या (निर्मेय) को उसके भौतिक पर्यावरण से कंप्यूटर के समझने तथा आदेश पालन करने वाली भाषा में अनुवादित करना।

प्रश्न 9.
तंत्रात्मक प्रक्रिया सामग्री क्या है?
उत्तर:
तंत्रात्मक प्रक्रिया सामग्री ( सिस्टम सॉफ्टवेयर) यह उन प्रोग्रामों में महत्त्वपूर्ण है जो संगणक प्रणाली को चलाते हैं तथा प्रयोगकर्ता (प्रोग्रामर) को अपने कार्य को संपन्न करने में सहायता प्रदान करती हैं। तंत्रात्मक प्रक्रिया प्रणाली में निम्नलिखित समाहित होते हैं- क्रियात्मक प्रणाली (आपरेटिंग सिस्टम )-वह प्रक्रिया सामग्री जो संगणक प्रोग्राम के कार्य को नियंत्रित करती है और अनुसूचीकरण, डीबगिंग, निवेश तथा निर्गत के नियंत्रण, संचयीकरण, आँकड़ा प्रबंधन तथा उससे संबंधित सेवाएँ प्रदान करती है। प्रचलित प्रकार की ऑपरेटिंग प्रणाली में डॉस (डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम), यूनिक्स तथा इसके विभिन्न प्रकार, वी० एम० एस० (वर्चुअल मेमोरी सिस्टम) माइक्रोसाफ्ट विण्डोस आदि सम्मिलित हैं।

प्रश्न 10.
रैम (RAM) तथा रोम (ROM) पर नोट लिखो।
उत्तर:
यादृच्छिक अभिगम स्मृति- रैम (रैंडम एक्सेस मेमोरी )-वह स्मृति (मेमोरी) जिसमें आँकड़ों को लिखा तथा पढ़ा जा सके। केवल पठन स्मृति-रोम ( रीड ओनली मेमोरी )-सूचना धारण करने वाली स्मृति जो विद्यमान तथा स्थायी रूप से उपलब्ध है और जिसे लिखा नहीं जा सकता है, किंतु प्रोग्राम के माध्यम से मात्र पढ़ा जा सकता है।

प्रश्न 11.
रैस्टर के भू-संदर्भपरक तथा भू-कूट पर नोट लिखो।-रेखापुंजों (रैस्टर) चित्रों के भू-संदर्भपरक भू-कूट (जियोकोडिंग) बनाना
उत्तर:
क्रमवीक्षण (स्कैन किये गए रेखापुंज (रैस्टर) चित्रों तथा उपग्रह- चित्रों को एक चित्र में पड़ने वाले भू-नियंत्रक बिंदु (जी० सी० पी० ) से मिलाकर, उनकी विकृतियों में सुधार किया जाता है। भूनियंत्रक बिंदु ज्ञात धरातलीय अवस्थितियों के स्वरूप हैं जिन्हें हवाई-चित्रों अथवा उपग्रह चित्रों पर सही-सही अवस्थित किया जा सकता है। भूनियंत्रक बिंदु निर्देशांक विकृत चित्रों पर दोनों ही रूपों चित्र के रूप (कालम तथा पंक्ति संख्या)

में तथा उनके धरातलीय निर्देशांकों के रूप में अवस्थित होता है (मानचित्रों से मापित अथवा किसी निश्चित प्रक्षेप प्रणाली, जैसे बहु-शंकु प्रक्षेप पर अक्षांश-देशांतर के संदर्भ में धरातल पर निर्धारित) एक न्यून वर्ग प्रतिक्रमण विश्लेषण की सहायता से ज्यामितीय संशोधित (मानचित्र) निर्देशांकों एवं विकृत चित्र निर्देशांकों को अंतर्संबंधित किया जाता है। उसके बाद चित्र का सही ज्यामितीय संबंध प्राप्त करने के लिए संगत धरातलीय स्थिति के संदर्भ में इसका परिवेष्ठन किया जाता है।

प्रश्न 12.
आंकिक मानचित्रण क्या है?
उत्तर:
आंकिक स्पष्ट (फेयर) मानचित्रण भू-कूट वाले रेखापुंज चित्रों का प्रयोग, बिंदु, भू-स्वरूप रेखीय स्वरूपों एवं हवाई भू-दृश्यों की पृष्ठभूमि के रूप में आरेखित तथा समुचित चिह्नों एवं पठन सामग्री से सुसज्जित करने के लिए किया जाता है। विकल्प के रूप में, इन ऊपरी भूदृश्यों तथा रेखापुंज चित्रों को चिह्नों का प्रयोग किये बिना ही मानचित्रात्मक बनाने के लिए सीधे आंकिक किया जा सकता है। आंकिक मानचित्र स्वतः ही स्वचालित मानचित्रीय प्रक्रियाओं, जैसे सामान्यीकरण, वर्गीकरण आदि के अनुरूप हो जाते हैं।

प्रश्न 13.
मानचित्र विज्ञान के आधारभूत तत्व क्या हैं?
उत्तर:
संगणक और दूरसंचार के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के विकास द्वारा मूल रूप से संचालित मानचित्र कला में तीव्रगामी परिवर्तन हुए हैं।
आधुनिक मानचित्र विज्ञान को एक त्रिभुज द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। इस त्रिभुज की तीनों भुजाएँ तीन प्राथमिक तत्वों के महत्त्व को दर्शाती हैं-

  1. नियमन
  2. ज्ञान एवं विश्लेषण
  3. संचार

नियमन त्रिभुज का आधार है। यह मानचित्र उत्पादन के पक्ष को प्रदर्शित करता है। ज्ञान तथा विश्लेषण व संचार अन्य दो भुजाएं हैं। आजकल संगणक, बहुमाध्यम (मल्टीमीडिया) और दूरसंचार के क्षेत्र में तीव्र अभिनव विकास से मानचित्रकला को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। स्थानिक आँकड़ों के प्रक्रमण के लिए मानचित्रकार को अब संगणक और बहुमाध्यम का उपयोग करने के अधिक अवसर उपलब्ध हैं।
HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 स्थानिक सूचना प्रौद्योगिकी 4
प्रतिवर्ष बहुत सी नई प्रक्रिया सामग्री (सॉफ्टवेयर) विकसित की जा रही है। भौगोलिक सूचना तंत्र तथा मानचित्रण के कुछ मुख्य सॉफ्टवेयर हैं- एप्पल, ऑर्क इन्फो, ऑटोकैड मैपइन्फो, ग्राम आदि।

प्रश्न 14.
मानचित्र विज्ञान में संगणक का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
मानचित्र विज्ञान में संगणक का प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से सहायता करता है-

  1. मानचित्रों का निर्माण शीघ्र होता है।
  2. उपयोग की आवश्यकता अनुसार मानचित्रों का निर्माण संभव।
  3. दक्ष मानचित्रकार के उपलब्ध न होने पर भी मानचित्र निर्माण सम्भव है।
  4. मानचित्रों के निर्माण में कम खर्च आता है।
  5. मानचित्रों को अधिक आकर्षक बनाया जा सकता है।
  6. मानचित्रों की अनेक प्रतियां तुरंत बनाई जा सकती हैं।
  7. यदि आँकड़े आंकिक (डिजिटल) स्वरूप में उपलब्ध हैं तो मानचित्र में संशोधन किये जा सकते हैं।

अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का प्रभाव-
मानचित्र में कई प्रकार से परिवर्तन किए हैं। सॉफ्टकापी चित्रों ने अनेक प्रयोगों के लिए प्रकाशित मानचित्रों का स्थान ले लिया है। उत्पादन समय में अत्यधिक कमी आई है। सैन्य गुप्तचरी तथा विज्ञान के लिए सूक्ष्म नियोजन की आवश्यकता होने पर उच्च विभेदन वाले उपग्रह चित्र तुरन्त प्राप्त किए जा सकते हैं।

इसके लिए निकटवर्ती उपग्रह को प्रस्तावित स्थल के ऊपर नई कक्षा में लाना पड़ता है। मानचित्र में दिखाई जा सकने वाली सूचनाओं की गुणवत्ता और विविधता में स्वचालन से भी परिवर्तन आ रहा है। यही नहीं, भौगोलिक सूचना तंत्र स्थानिक मानचित्रण और निर्णय लेने में विश्लेषण की भूमिका का विस्तार कर रहा है।

प्रश्न 15.
स्थानिक सूचना प्रौद्योगिकी पर नोट लिखो।
उत्तर:
स्थानिक सूचना प्रौद्योगिकी किसी प्रदेश का संसाधन प्रबंधन या तो।

  1. हाथ से बने मानचित्रों को अध्यारोपित करके अथवा
  2. संगणक प्रौद्योगिकी द्वारा किया जा सकता है।

इस संगणक प्रौद्योगिकी में संख्यात्मक स्थानिक आँकड़ों के समूह या भू-आधारित फाइलों का उपयोग किया जाता है। पारदर्शी मानचित्रों को हाथ से अध्यारोपित करके बनाए गए बहुकालिक मानचित्रों की अपनी कुछ कमियाँ होती हैं। केवल कुछ ही मानचित्रों को एक साथ अध्यारोपित कर दृश्य विश्लेषण हो सकता है। संगणक सहायक विधि में सूचनाएँ आंकिक स्वरूप में प्राप्त होनी आवश्यक होती हैं। इस पद्धति में संसाधन स्वरूपों का ( गुण या कारक) अंतसंबंध संख्यात्मक रूपांतरण द्वारा संपन्न होता है।

आधुनिक आँकड़ा संग्रह तकनीकों तथा संगणक सहायक मानचित्रकला ने स्थानिक आँकड़ों के संग्रह एवं विनिमय को प्रोत्साहन दिया है। इसके साथ ही भौगोलिक सूचना तंत्र तथा आंकिक चित्र प्रक्रमण (डिजिटल इमेज प्रोसेसिंग DIP) के सम्मिलित प्रयोग से भौगोलिक जाँच एवं पूर्वानुमान विस्तृत क्षेत्र पर सीमित समय में बेहतर तरीके से करते हैं। आगे आने वाले वर्षों में प्रभावकारी सार्वजनिक नीतियों के लिए पूर्वकथन मॉडल निर्धारण की क्षमता को विकसित करना सरल होगा।
HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 6 स्थानिक सूचना प्रौद्योगिकी 5

प्रश्न 20.
भूमि उपयुक्तता विश्लेषण में भौगोलिक सूचना तंत्र के अनुप्रयोग पर नोट लिखो।
उत्तर-भौगोलिक सूचना तंत्र का अनुप्रयोग भूमि तथा वनाच्छादित क्षेत्रों में परिवर्तन, जल तथा वायु की गुणवत्ता का मूल्यांकन, मृदा अपरदन के खतरों का विश्लेषण, प्राकृतिक विपदाओं पर नजर रखना, वनीकरण योग्य क्षेत्रों का चुनाव, भूमि क्षमता एवं उपयुक्तता विश्लेषण एवं आँकड़ा विवरणिका अध्ययन जैसी समस्याओं के समाधान में भौगोलिक सूचना तंत्र का उपयोग करते हैं। विश्वस्तरीय अनुभवों से यह प्रदर्शित होता है कि सुदूर संवेदन एवं भौगोलिक सूचना तंत्र संसाधन प्रबंधन के लिए अत्यंत ही प्रभावकारी युक्तियाँ हैं।

भौगोलिक सूचना तंत्र का एक निर्णय देने वाली प्रणाली के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है। इसके द्वारा प्राकृतिक आपदाओं की पहचान, समन्वय, निगरानी और भविष्यवाणी करना संभव है। प्राकृतिक आपदाएं, भारत में अनुभव किए जाने वाले प्रमुख पर्यावरणीय खतरे हैं। समन्वित जल संभर प्रबंधन योजनाएं, हमें आशंकित करने वाले संकटों के दुष्प्रभावों को कम करने में मदद कर सकती हैं।

1. भूमि उपयोग परिवर्तन की निगरानी (Land use change Monitoring ) किसी प्रदेश के ग्रामीण तथा नगरीय संसाधनों की भौगोलिक निगरानी में भू-उपयोग एक महत्त्वपूर्ण निवेश होता है। सामान्य भू-आच्छादन, वर्गीकरण का निर्धारण, भूतकाल में भूमि उपयोग में हुए परिवर्तन द्वारा सामान्य रूप में तथा वनाच्छादन के रूप में विशेष रूप से किया जा सकता है।

उदाहरण के लिए, हिमाचल क्षेत्र में निर्वनीकरण एक गंभीर पारिस्थितिक समस्या है। दो समयों के वन वितरण मानचित्रों द्वारा वनाच्छादन में परिवर्तन की सूचनाएं प्राप्त की जा सकती हैं। उपग्रही सुदूर संवेदन का भूमि उपयोग मानचित्रण और देश के भीतर वन ह्रास की प्रक्रिया की निगरानी के लिए प्रभावशाली ढंग से उपयोग किया जा सकता है। अत्यधिक तीव्रगति से परिवर्तन के कारण, परंपरागत विधियों से एकत्रित सूचनाएं शीघ्र ही पुरानी हो जाती हैं।

2. सामाजिक-आर्थिक नियोजन हेतु भूमि उपयुक्तता विश्लेषण (Land Suitability Analaysis) भूमि उपयोग उपयुक्तता विश्लेषण से भूमि विकास से संबंधित विभिन्न निर्णय लेने में सहायता मिलती है। भौगोलिक सूचना तंत्र विश्लेषण निम्नलिखित तीन प्रकार के मानचित्रों के निर्माण के लिए विभिन्न प्राकृतिक, मानवकृत एवं अंतर्क्रियात्मक कारकों को समन्वित करता है-
(i) पर्यावरणीय पर्यावरणीय प्रक्रियाओं में कम से कम परिवर्तन करने वाले भूमि उपयोग को दिखाने वाला मानचित्र।

(ii) किसी प्रस्तावित विकास की योजना के पर्यावरणीय प्रभावों के गुणात्मक- पूर्वानुमान को प्रदर्शित करने वाला मानचित्र-यह चलाई जाने वाली कुछ निश्चित परियोजनाओं तथा नियंत्रण हेतु विशेष पर्यावरणीय कार्ययोजना भी प्रदान करता है; और

(iii) इन कार्य योजनाओं के लिए सर्वोत्तम तथा सबसे कम उपयुक्त अवस्थिति को प्रदर्शित करने वाला मानचित्र-सीमांत प्रदेशों, जैसे हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मरुस्थल में भूमि उपयोग नियोजन हेतु ऐसे मानचित्रों की आवश्यकता पड़ती है। कृषि हेतु, उच्चभूमि के क्षेत्रों में कृषि के लिए भूमि उपयुक्ता विश्लेषण में मृदा- अपरदन, ढाल, ऊँचाई, जल उपलब्धता तथा पोषक तत्वों की उपलब्धता आदि से संबंधित सूचना तथा मानचित्रों का निर्माण।

अनेक देशों तथा राज्य सरकारों द्वारा नगरपालिका के कार्यों के लिए भूमि तथा अन्य भौगोलिक सूचनाओं के संगणकीकरण का प्रयास किया गया है। विभिन्न विभागों द्वारा उपखंडीय मानचित्रों के स्वचालन का प्रयास किया है। पर्यावरणीय नियोजकों द्वारा भूमि उपयुक्तता क्षमता हेतु पर्यावरणीय कारकों के अध्यारोपण का प्रयास किया गया है।

ऐसी सूचनाओं में आधार मानचित्र पर्यावरणीय अभियांत्रिकी, मानचित्र (प्लान) पारिवका, अपवाह, फसलें, मार्ग या गली का पता संबंधी सारणीय आँकड़े, क्षेत्र सारणी आँकड़े, सड़क, मार्गतंत्र तथा सीमा क्षेत्र आदि सम्मिलित हैं। भौगोलिक सूचना तंत्र प्रक्रिया सामग्री उपकरण विभिन्न आँकड़ा समूहों को मानचित्र या सारणी रूप में प्रस्तुत कर, सुधार करने, अंतसंबंधित करने एवं अनेक प्रकार से वर्णन करने के योग्य बनाता है।

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HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 क्षेत्रीय सर्वेक्षण

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Solutions Practical Work in Chapter 5 क्षेत्रीय सर्वेक्षण Textbook Exercise  Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 क्षेत्रीय सर्वेक्षण

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर का चुनाव कीजिए-
(i) क्षेत्र सर्वेक्षण की योजना के लिए नीचे दी गई विधियों में कौन-सी विधि सहायक है?
(क) व्यक्तिगत साक्षात्कार
(ख) द्वितीयक सूचनाएँ
(ग) मापन
(घ) प्रयोग
उत्तर:
(ख) द्वितीयक सूचनाएँ।

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(ii) क्षेत्र सर्वेक्षण के निष्कर्ष के लिए क्या किया जाना चाहिए?
(क) आंकड़ा प्रवेश एवं सारणीयन
(ख) प्रतिवेदन लेखन
(ग) सूचकांकों का अभिकलन
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) प्रतिवेदन लेखन।

(iii) क्षेत्र सर्वेक्षण के प्रारंभिक स्तर पर अत्यंत महत्त्वपूर्ण क्या है?
(क) उद्देश्य का निर्धारण करना
(ख) द्वितीयक आंकड़ों का संग्रहण
(ग) स्थानिक एवं विषयक सीमाओं को परिभाषित करना (घ) निर्देशन अभिकल्पना।
उत्तर:
(क) उद्देश्य का निर्धारण करना

(iv) क्षेत्र सर्वेक्षण के समय किस स्तर की सूचनाओं को प्राप्त
करना चाहिए?
(क) बृहत् स्तर की सूचनाएँ
(ख) मध्यम स्तर की सूचनाएँ
(ग) लघु स्तर की सूचनाएँ
(घ) उपर्युक्त सभी स्तर की सूचनाएँ।
उत्तर:
(क) बृहत् स्तर की सूचनाएँ।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
(i) क्षेत्र सर्वेक्षण क्यों आवश्यक हैं?
उत्तर:
क्षेत्र सर्वेक्षण विधि से किसी क्षेत्र के स्थानीय भूगोल के बारे में प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त होता है। इस विधि से विद्यार्थियों में आपसी सहयोग तथा नेतृत्व की भावना जागृत होती है। क्षेत्रीय कार्य से भूगोलवेत्ता स्वयं आँकड़े एकत्र करके मानचित्र बनाने का कार्य कर सकते हैं।

(ii) क्षेत्र सर्वेक्षण के उपकरण एवं प्रविधियों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
क्षेत्रीय सर्वेक्षण आयोजित किया जाता है जिसके लिए अलग-अलग किस्मों की विधियों की जरूरत होती है। इनमें मानचित्रों एवं अन्य आंकड़ों सहित द्वितीयक सूचनाएँ, क्षेत्रीय पर्यवेक्षण। लोगों के साक्षात्कार हेतु प्रश्नावलियों से आंकड़ा उत्पाद इत्यादि को शामिल किया जाता है।

(iii) क्षेत्र सर्वेक्षण के चुनाव से पहले किस प्रकार के व्याप्ति क्षेत्र की आवश्यकता पड़ती है?
उत्तर:
जाँच करने वाला खुद यह तय करेगा कि सर्वेक्षण सारी जनसंख्या के लिए जनगणना रूप में संचालित करना है या फिर कुछ चुनिन्दा सैम्पल पर आधारित होगा। अगर सर्वेक्षण का क्षेत्र ज्यादा विशाल न हो पर इसकी रचना विविध तत्वों की है तो अपेक्षा में सारी जनसंख्या का सर्वेक्षण होना चाहिए।

(iv) सर्वेक्षण अभिकल्पना को संक्षिप्त में समझाएँ।
उत्तर:
सैम्पल सर्वेक्षण की संरचना में हम इसके नाप तथा उसके अध्ययन के ढंग को शामिल करते हैं। ऐसे अध्ययन स्थितियों और प्रक्रियाओं की उनकी संपूर्णता और उनके घटना स्थल के परिप्रेक्ष्य में समझने में अन्वेषक को समर्थ बनाते हैं। यह सर्वेक्षण स्थानीय स्तर पर स्थानिक वितरण के प्रारूपों, उनके साहचर्य और संबंधों के बारे में हमारी समझ को बढ़ाते हैं।

(v) क्षेत्र सर्वेक्षण के लिए प्रश्नों की अच्छी संरचना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
क्षेत्र सर्वेक्षण के प्रश्नों की अच्छी संरचना आवश्यक है।
इससे हम पहले बनाए प्रश्न उस व्यक्ति से पूछ सकते हैं जिससे साक्षात्कार चलता है। यह प्रश्नावली सुरक्षित है। यह प्रश्न आर्थिक स्थिति से संबंधित होने चाहिए। ताकि उनकी मुश्किलों के उत्तर मिल सकें। यह बहुत जरूरी है कि उनसे उनकी स्थिति की सही जानकारी ले ली जाए। इस प्रकार एक अच्छी प्रश्नावली बहुत आवश्यक है।

अतिरिक्त प्रश्न (Other Questions)

प्रश्न 1.
क्षेत्रीय कार्य से क्या अभिप्राय है? भूगोल में क्षेत्रीय कार्य की क्या आवश्यकता है? इसके महत्त्व तथा उद्देश्य का वर्णन करो।
उत्तर:
भूगोल एक क्षेत्रीय विज्ञान है या क्षेत्र परक (field oriented) है जिसमें किसी क्षेत्र के विभिन्न भागों में प्राकृतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक तत्वों में विभिन्नताओं का अध्ययन किया जाता है। यह अध्ययन मानचित्रों की सहायता से किया जा सकता है, परंतु किसी क्षेत्र का विस्तारपूर्वक तथा व्यावहारिक ज्ञान अमुक क्षेत्र में स्वयं जाकर ही प्राप्त किया जा सकता है। क्षेत्रीय अध्ययन से हमें स्थाई जानकारी प्राप्त होती है। जैसे- प्रो० फेयरग्रीव ( Fairgrieve) के अनुसार-

‘भूगोल का ज्ञान व्यक्ति अपने जूतों के तले घिसकर प्राप्त करता है।” (Geography comes through the soles of one’s shoes.) प्रो० ई० ए० फ्रीमेन के अनुसार, “भूगोल यात्रा करने तथा स्वयं अपनी आँखों से देखने का विषय है।” (Geography is a matter of travel, a matter of seeing things with our own eyes.)

क्षेत्रीय अध्ययन (Field Work )-
क्षेत्रीय अध्ययन वह क्रिया है। जिसमें किसी क्षेत्र में घूम-फिर कर प्रेक्षण किया जाता है। विशेष रूप से बनाई गई प्रश्नमाला (Questionnaire) द्वारा लोगों से पूछताछ की जाती है तथा एकत्र किए आँकड़ों को मानचित्रों द्वारा व्यक्त किया जाता है।

आवश्यकता (Necessity )-
किसी क्षेत्र के बारे में सरकार द्वारा मुद्रित आँकड़े इतने पर्याप्त नहीं होते कि उनकी मदद से भौगोलिक अध्ययन किया जा सके। इसलिए मानवीय जीवन के विभिन्न तत्वों की प्रत्यक्ष जानकारी तथा विश्लेषण केवल क्षेत्रीय अध्ययन द्वारा ही संभव है। इस प्रकार क्षेत्रीय अध्ययन किसी क्षेत्र के सर्वेक्षण के लिए आवश्यक है। इसलिए वातावरण के प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक लक्षणों का अध्ययन करने के लिए क्षेत्रीय कार्य भूगोल में आवश्यक है। क्षेत्र सर्वेक्षण के दो मौलिक चरण हैं-

  1. आँकड़ों का संग्रहण (Collection of Data)
  2. आँकड़ों का प्रसंस्करण (Processing of Data)

उपग्रह चित्र भौगोलिक अध्ययन के महत्त्वपूर्ण साधन हैं। परंतु क्षेत्र सर्वेक्षण नवीनतम सूचनाएं प्राप्त करने का महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

महत्त्व तथा उद्देश्य (Importance and Objectives) –

  1. क्षेत्रीय अध्ययन से मानवीय क्रियाओं पर प्रभाव डालने वाले वातावरण के प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक तत्वों के संबंध का ज्ञान होता है।
  2. इस विधि से किसी क्षेत्र के स्थानीय भूगोल (Local Geography) के बारे में प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त होता है।
  3. इस विधि से विद्यार्थियों में आपसी सहयोग (Team Spirit) तथा नेतृत्व (Leadership) की भावना जागृत होती है।
  4. इस विधि से लोगों के साथ साक्षात्कार करने का एक सुअवसर प्रदान होता है तथा निकट संबंध स्थापित होता है।
  5. क्षेत्रीय कार्य से भूगोलवेत्ता स्वयं आँकड़े एकत्र करके मानचित्र बनाने का कार्य कर सकता है।
  6. इस विधि से किसी क्षेत्र का व्यावहारिक ज्ञान (Practical knowledge) प्राप्त होता है जिससे यह कार्य सरल और रुचिकर हो जाता है।

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प्रश्न 2.
क्षेत्रीय कार्य की विभिन्न क्रियाओं का वर्णन करो।
उत्तर:
क्षेत्रीय कार्य की विभिन्न क्रियाएं क्षेत्र का निरीक्षण करने, आँकड़े एकत्र करने, विभिन्न प्रकार की जानकारी प्राप्त करने तथा उसे मानचित्रों पर व्यक्त करने पर निर्भर करती हैं। ये सभी कार्य विभिन्न अवस्थाओं में बांटकर एक क्रमबद्ध ढंग से किए जाते हैं। क्षेत्रीय अध्ययन की विभिन्न विधियां क्षेत्रीय अध्ययन के उद्देश्य तथा विषय पर निर्भर करती हैं। इस कार्य को निम्नलिखित चरणों (Stages) में बांटा जाता है-
1. प्रारंभिक अवस्था (Preliminary Stage )- इस चरण में क्षेत्रीय कार्य की योजना तैयार करके निम्नलिखित कार्य किए जाते हैं-

  1. अध्ययन क्षेत्र का चुनाव।
  2. विषय का चुनाव।
  3. क्षेत्र का एक आधार मानचित्र (Base Map) तैयार करना।
  4. आधार मानचित्र की कई प्रतिलिपियां तैयार करना।
  5. क्षेत्र का एक स्थलाकृतिक मानचित्र (Topographical Map)-प्राप्त करना। स्थलाकृतिक मानचित्र से हमें धरातल, जलप्रवाह, भूमि उपयोग, बस्ती प्रतिरूप परिवहन आदि का पता चलता है।

2. क्रियान्वयन अवस्था (Operational Stage )- इस अवस्था में निम्नलिखित कार्य किए जाते हैं-

  1. क्षेत्र में जाकर स्वयं निरीक्षण करना।
  2. विषय से संबंधित प्रश्नावली (Questionnaire) तैयार करना।
  3. नवीनतम आँकड़े एकत्रित करना।
  4. क्षेत्र से कुछ चुने हुए ( लगभग 20%) भागों के नमूने का सर्वेक्षण (Sample Survey) करना।
  5. स्थलाकृतिक मानचित्र से क्षेत्र की पूरी जानकारी प्राप्त करना।

3. परिकलन अवस्था (Tabulation Stage )- इस अवस्था में प्राप्त आँकड़ों को तालिकाओं (Tables) के रूप में लिखा जाता है। इन आँकड़ों की संख्या कम करके कुछ निष्कर्ष तथा औसत आँकड़े प्राप्ता किए जाते हैं।

4. मानचित्रण अवस्था ( Mapping Stage )-

  • आँकड़ों को विभिन्न आरेखों द्वारा प्रकट किया जाता है।
  • आँकड़ों की सहायता से विभिन्न मानचित्र तैयार किए जाते

5. रिपोर्ट विवरण चरण (Reporting Stage ) – सर्वेक्षण पूरा होने पर उस क्षेत्र का पूरा विवरण लिखा जाता है। उसके आधार पर कुछ निष्कर्ष निकाले जाते हैं तथा उद्देश्यों की पूर्ति संबंधी विवरण दिया जाता है।

प्रश्न 3.
क्षेत्रीय कार्य के लिए प्रश्नमाला तैयार करते समय किन- किन बातों का ध्यान रखा जाता है?
उत्तर:
आँकड़े एकत्र करने के लिए एक विशेष प्रकार की प्रश्नमाला तैयार करना आवश्यक है। इस प्रश्नमाला द्वारा लोगों से पूछताछ की जाती है। यह प्रश्नमाला ही वास्तव में क्षेत्रीय कार्य का आधार है। प्रश्नमाला बनाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

  1. सर्वेक्षण का स्वयं निरीक्षण करके ही प्रश्नमाला बनानी चाहिए।
  2. सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य सदा ध्यान में रखना चाहिए।
  3. प्रश्न संक्षिप्त तथा सीधे होने चाहिए।
  4. प्रश्न सरल होने चाहिए ताकि उत्तर देने में कोई कठिनाई न हो।
  5. प्रश्न क्रमबद्ध तथा क्षेत्रीय कार्य से संबंधित हों।
  6. ऐसे प्रश्न नहीं होने चाहिएं जो निजी या धार्मिक हों, जिससे उत्तर देने वाले की भावना को ठेस पहुंचे।

सावधानियां (Precautions)

  1. सर्वेक्षक को उत्तर देने वाले लोगों से अच्छे संबंध स्थापित करने चाहिए।
  2. उत्तर संक्षिप्त लिखने चाहिए।
  3. प्रश्नमाला की प्रत्येक सूची का उत्तर लिखना चाहिए।
  4. अपने निजी विचार नहीं लिखने चाहिए।
  5. उत्तर देने वाले लोगों की सुविधा के अनुसार प्रश्नमाला भरने का समय निश्चित करना चाहिए।

प्रश्न 4.
प्रश्नावली से क्या अभिप्राय है? इसके विभिन्न प्रकार बताएं।
उत्तर:
प्रश्नावली (Questionnaire )
प्रश्नावली विधि में पहले से तैयार किए गए प्रश्नों को कुछ चुने हुए लोगों के समक्ष रखा जाता है। प्रश्नावली संरचनात्मक अथवा असंरचनात्मक हो सकती है जब एक संरचनात्मक प्रश्नावली का प्रयोग किया जाता है तो शोधकर्ता के लिए फेरबदल की कम गुंजाइश होती है, उसे यांत्रिक तरीकों से प्रश्नों को रखते हुए उनके उत्तर लिखने पड़ते हैं। संरचना विहीन प्रश्नावलियों में, सर्वेक्षण की आवश्यकतानुसार प्रश्नों के क्रम को बदला जा सकता है। उत्तर लिखने के साथ एक मानचित्र या रेखाचित्र बनाया जा सकता है। प्रत्येक प्रश्न के साथ कोष्ठक में कुछ टिप्पणियां दी जाती हैं जो उत्तरों को संशोधित करने में प्रेक्षक को मदद देती हैं। प्रश्नों के अनेक प्रकार होते हैं किस प्रकार के प्रश्न बनाए जाएं यह वांछित आँकड़ों की प्रकृति तथा प्रश्नोत्तर देने वाले लोगों की अपनी पृष्ठभूमि पर निर्भर करता है।

प्रश्नावलियों के प्रकार (Types of Questionnaire)-

  1. सरल चयन (Simple Choice Questions)
  2. बहुविकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions)
  3. क्रममापक उत्तर का प्रश्न (Semantic Scale Questions)
  4. मुक्तांत उत्तर का प्रश्न (Open ended Questions)

1. सरल चयन के प्रश्न (Simple Choice Questions ) सरल चयन वाले प्रश्नों के संदर्भ में, ‘हाँ’ या ‘नहीं’ में हो सकता है। उदाहरण के लिए इस प्रश्न- ‘क्या आप खेती करते हैं?’ का उत्तर ‘हाँ’ या ‘नहीं’ होगा। यह प्रश्न लोगों के व्यवसाय की जानकारी देता है।

2. बहुविकल्पी प्रश्न (Multiple Choice Questions ) – बहुविकल्प वाले प्रश्नों के उत्तर में, कुछ विकल्प दिए जाते हैं, किन्तु उनमें से केवल एक विकल्प ही सही उत्तर होता है। उदाहरण – X प्रदेश में A स्थान पर ही चीनी मिल क्यों स्थित है? इसका संभव्य उत्तर है-

  1. भूमि की उपलब्धता
  2. श्रम की उपलब्धता
  3. पूँजी की उपलब्धता
  4. बाजार की सुगमता
  5. मालिकों अथवा उभयकर्ता की स्थान के लिए अपनी व्यक्तिगत पसन्द।
  6. कोई अन्य कारण उपरोक्त उत्तरों में से केवल एक ही उत्तर सही है।

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3. क्रममापक उत्तर का प्रश्न (Semantic Scale Questions)-
यहां पर उत्तरदाता को सोचने की श्रेणी को बिंदुमापक पर अंकित किया जाता है उत्तरदाता की सोच पक्ष अथवा विपक्ष में कितनी शक्तिशाली है, इसलिए किया जाता है।
उदाहरण के लिए गरीबी हटाओ कार्यक्रम को सरकार द्वारा कैसे लागू किया जाता है?

  1. बहुत अच्छा
  2. अच्छा
  3. संतोषजनक
  4. खराब
  5. बहुत खराब यहां पर उत्तरदाता के कामों को लिख लिया जाता है।

4. मुक्तांत उत्तर का प्रश्न (Open Ended Questions )-
इस संदर्भ में, प्रश्नों को पूछा जाता है तथा उत्तरदाता के उत्तर को लिख लिया जाता है।
उदाहरण के लिए-ग़रीबी उन्मूलन हेतु सरकार को क्या कदम उठाने चाहिएं?
इस प्रश्न का उत्तर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के बीच उनकी व्यक्तिगत, सामाजिक तथा आर्थिक पृष्ठभूमि के अनुसार अलग-अलग होगा।

प्रश्न 5.
क्षेत्र सर्वेक्षण संबंधी उपकरणों का वर्णन करें।
उत्तर:
क्षेत्र सर्वेक्षण हेतु आवश्यक व्यवस्था तथा उपकरण (Equipment)-सर्वेक्षण करने के लिए क्षेत्र में जाने से पहले, उससे संबंधित पुस्तकालयों में प्रकाशित जानकारी का अध्ययन आवश्यक होता है। इस प्रकार एकत्रित सूचनाएं, अध्ययन के आधार के रूप में कार्य करती हैं। यह क्षेत्र में मिलने वाले संभावित लक्षणों की पूर्व जानकारी प्रदान करता है। क्षेत्र में ठहरने के लिए समुचित व्यवस्था करना नहीं भूलना चाहिए।

क्षेत्र में जाते समय निम्न उपकरणों को ले जाना चाहिए-

  1. आवश्यक ड्राइंग सामग्री सहित एक लेखन पुस्तिका (Field Book)।
  2. कार्य की प्रकृति तथा शिक्षक द्वारा निर्देश अनुसार सर्वेक्षण- उपकरण (Survey Instruments)।
  3. मानचित्र पर प्रदर्शित लक्षणों का क्षेत्र के लक्षणों से तुलना करने के लिए क्षेत्र का स्थलाकृतिक सर्वेक्षण मानचित्र (Topographical Maps )
  4. विशिष्ट लक्षणों का फोटोचित्र प्राप्त करने के लिए कैमरा (Camera)।
  5. दूर से भूदृश्यों को सरलतापूर्वक देखने के लिए दूरबीन (Birnoculars)।
  6. शैल नमूने तोड़ने के लिए हथौड़ा (Hammer)।
  7. मिट्टी के नमूने लेने के लिए मृदा प्रतिदर्श (Rock Specimens)
  8. शैलों के नमूने रखने के लिए बैग (Bag)
  9. अन्य सामग्रियां।

प्रश्न 6.
किसी गांव का भूमि उपयोग सर्वेक्षण कैसे किया जाता है? इस सर्वेक्षण में प्रयोग की जाने वाली प्रश्नावली तैयार करो।
उत्तर:
भूमि उपयोग सर्वेक्षण (Land Use Survey)
1. परिचय (Introduction )-भारत एक कृषि प्रधान देश है। किसी क्षेत्र में कृषि की विशेषताएं प्रकार तथा भूमि उपयोग की जानकारी प्राप्त करने के लिए किसी एक गांव को इकाई मान कर भूमि उपयोग सर्वेक्षण किया जाता है।
2. उद्देश्य (Aims )-

  1. कृषि क्षेत्र में भूमि उपयोग की जानकारी प्राप्त करना।
  2. भूमि उपयोग को मानचित्र पर दिखाना।
  3. बोई जाने वाली फ़सलों की जानकारी प्राप्त करना।
  4. मिट्टी की किस्में तथा उत्पादकता ज्ञात करना।
  5. सिंचित क्षेत्र की जानकारी प्राप्त करना।

3. विधि (Method)-
(क) प्रारंभिक अवस्था सबसे पहले पटवारी से गांव का भूकर मानचित्र (Cadastral Map) प्राप्त किया जाता है जिस पर प्रत्येक खेत की सीमा तथा खसरा नंबर लिखा जाता है। इस मानचित्र की कई प्रतिलिपियां तैयार की जाती हैं। गांव की स्थिति निर्धारित की जाती है।

(ख) क्रियान्वयन अवस्था इसके पश्चात् गांव के पटवारी के रिकॉर्ड से निम्नलिखित जानकारी प्राप्त की जाती है-

क्रम संख्याभूमि का आकार
1.गांव की कुल भूमि
2.कृषि के लिए प्राप्त न होने वाली भूमि
3.अन्य अकृषित भूमि
4.कृषिकृत भूमि
5.कुल सिंचित भूमि
6.कुल असिंचित भूमि
7.खेतों की कुल संख्या
8.खेतों का औसत आकार

किसानों से पूछे जाने वाले प्रश्नों की सूची तैयार की जाती है। क्षेत्रीय कार्य की तिथि तथा समय निश्चित किया जाता है। खेतों को विभिन्न वर्गों में बांट दिया जाता है।
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(ग) क्षेत्रीय कार्य – गांव के खेतों का क्रमवार निरीक्षण किया जाता है। प्रत्येक किसान से खेतों के आकार, उनका उपयोग तथा फ़सलों की जानकारी प्राप्त की जाती है। इस जानकारी को प्रश्नमाला में लिख लिया जाता है। मुख्यतः आषाढ़ी (Rabi) तथा सावनी (Kharif) दो प्रकार की फ़सलें बोई जाती हैं। भूमि उपयोग तथा मिट्टियों को दिखाने के लिए विभिन्न रंगों तथा आभाओं का प्रयोग किया जाता है। विभिन्न फ़सलों को दिखाने के लिए चिह्नों तथा अक्षर प्रयोग किये जाते हैं।

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(घ) मानचित्र – आँकड़ों की सहायता से भूमि उपयोग दिखाने के लिए मानचित्र बनाए जाते हैं जिनमें विभिन्न प्रविधियां प्रयोग की जाती हैं। फ़सलों के लिए विभिन्न रंगों तथा आभाओं का प्रयोग किया जाता है।

(ङ) रिपोर्ट – इन मानचित्रों का विश्लेषण करके कुछ निष्कर्ष निकाले जाते हैं जिससे कई प्रकार की जानकारी प्राप्त होती है। जैसे-

  1. गांव में कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल
  2. खेतों की कुल संख्या
  3. मिट्टी के मुख्य प्रकार
  4. आषाढ़ी तथा सावनी की मुख्य फ़सलें
  5. कृषिकृत क्षेत्रफल
  6. भूमि उपयोग की सघनता की त्रुटियां
  7. भूमि उपयोग में सुधार तथा अधिक विकास की संभावनाएं (8) कुल सिंचित क्षेत्र।

प्रश्न 7.
कृषि क्षेत्र में मृदा प्रदूषण, औद्योगिक क्षेत्र में वायु प्रदूषण तथा यातायात वाहनों द्वारा नगरीय क्षेत्र में प्रदूषण सर्वेक्षण का वर्णन करो।
उत्तर:
पर्यावरण प्रदूषण का सर्वेक्षण (Survey of Environmental Pollution )-पर्यावरण प्रदूषण में मृदा प्रदूषण, जलप्रदूषण, वायु प्रदूषण तथा शोर प्रदूषण सम्मिलित किए जाते हैं।
(क) सर्वेक्षण विधि –

  1. प्रदूषण के कारणों तथा प्रदूषित करने वाले ठोस अपशिष्ट पदार्थों के बारे में जानकारी क्षेत्र के निवासियों से बातचीत द्वारा प्राप्त की जा सकती है।
  2. प्रदूषण फैलाने वाले कारक, आस-पास के क्षेत्रों पर प्रदूषण का प्रभाव लोगों के द्वारा झेली गई कठिनाइयां तथा
  3. मिट्टी के अनुपजाऊ होने के बारे में भी बता सकते हैं।
  4. क्षेत्र सर्वेक्षण को अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन में प्रयुक्त तकनीकों, विभिन्न लाभान्वित होने वाले लोगों की भूमिका, समस्या के समाधान के लिए किए गए प्रयासों एवं अभी तक के परिणामी विकास को भी देखना चाहिए।

1. औद्योगिक क्षेत्र में प्रदूषण – औद्योगिक क्षेत्र में ईंधन तथा रसायनों द्वारा प्रदूषण होता है।

उद्योगों द्वारा पर्यावरण के प्रदूषण की अनुसूची
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2. यातायात के साधनों द्वारा प्रदूषण – विभिन्न वाहन, जैसे- बसें, ट्रक, कारें, तिपहिया व दुपहिया वाहन आदि पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। यह समस्या नगरीय इलाकों में अधिक होती है।
वाहनों द्वारा प्रदूषण की प्रश्नावली
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3. कृषि क्षेत्र में रासायनिक पदार्थों से प्रदूषण – कृषि | रसायनों का प्रयोग किया जाता है। इससे पर्यावरण का प्रदूषण क्षेत्र में कृषि की उपज को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार के होता है।
मृदा प्रदूषण की प्रश्नावली
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प्रश्न 8.
किसी क्षेत्र में ग़रीबी का क्षेत्र सर्वेक्षण करने की विधि तथा उद्देश्य बताओ।
उत्तर:
गरीबी का क्षेत्र सर्वेक्षण (Field Study of Poverty )-गरीबी के मुख्य कारण बेरोजगारी तथा अशिक्षा हैं। गरीबी का सामाजिक अध्ययन किसी मलिन बस्तियों के प्रत्येक परिवार का अध्ययन हो सकता है।
गरीबी का मापदंड-

  1. लोगों की औसत आमदनी,
  2. उन को प्राप्त कैलोरी की मात्रा
  3. चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता
  4. व्यवसाय आदि
  5. क्षेत्र में जनसंख्या का वितरण
  6. मानव निवास-स्थान,
  7. भोजन, वस्त्र एवं सामाजिक- सांस्कृतिक संबंध।

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उद्देश्य –

  1. सरकार द्वारा विभिन्न गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों द्वारा किए जा रहे प्रयासों, उनका क्षेत्र के लोगों पर प्रभावों का भी प्रभावी प्रश्नावलियों के माध्यम से निश्चय किया जा सकता है।
  2. आँकड़ों का विश्लेषण तथा अध्ययन से क्षेत्र में गरीबी के स्तर का पता लगाया जा सकता है।
  3. गरीबी के मुख्य कारणों का पता लग सकता है।

गरीबी सर्वेक्षण की प्रश्नावली
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प्रश्न 9.
किसी क्षेत्र में मृदा ह्रास, सूखा तथा बाढ़ व ऊर्जा संबंधी अध्ययन की सर्वेक्षण विधि बताओ।
उत्तर:
मृदा ह्रास का अध्ययन (Soil Degradation ) -मृदा पर कृषि उपज तथा उत्पादकता निर्भर करती है। इसलिए मृदा ह्रास सर्वेक्षण आवश्यक है-
ऐसा अध्ययन संपन्न करने के लिए मिट्टी की विभिन्न सतहों पर मिट्टी के प्रतिदर्श (Sample) प्राप्त करने के लिए मृदा नमूना प्राप्त करने वाले उपकरण का प्रयोग किया जा सकता है। क्षेत्र के विभिन्न खेतों से मृदा-प्रतिदर्श प्राप्त किये जा सकते हैं प्रतिदर्शो के विभिन्न थैलों (Bags) में अथवा शीशे की नलियों (Glass Tubes) में रखकर स्थान का नाम तथा क्रमांक लिख देते हैं। ऊपरी मिट्टी (Top Soil), मध्यवर्ती मिट्टी ( Sub Soil), कड़ी तह एवं मूल शैलों (Parent Rocks) आदि को अलग-अलग प्रदर्शित करने के लिए उनकी आरेखीय परिच्छेदिकाएं बनानी चाहिए। मृद्रा ह्रास के मापदंड के लिए तत्व-

  1. क्षेत्र के फसल प्रारूप,
  2. भूमि उपयोग प्रतिरूप,
  3. सिंचाई सुविधाओं की उपलब्धता,
  4. अपवाह,
  5. जल भराव,
  6. खारापन तथा क्षारीय स्तर
  7. वनस्पतियों का अंकन करना। इनका मानचित्र, कटाव के स्तर के आधार पर किया जाता है। परिणाम का विवेचन करते समय क्षेत्र में मिट्टी की दशा के सुधार हेतु विभिन्न रणनीतियों का सुझाव भी देना होता है।

सूखा तथा बाढ़ का अध्ययन (Study of Droughts and Floods)-
सूखा तथा बाढ़ अक्सर आते रहते हैं। इनमें भी मात्रा में जन-धन की हानि होती है। बाढ़ क्षेत्रों तथा सूखाग्रस्त क्षेत्रों के मानचित्र तथा इनके प्रभावों को कम करने वाली योजनाओं को तैयार करना आज का महत्त्वपूर्ण कार्य हो गया है।

मुख्य पक्ष (Main Aspects )-
इन योजनाओं के तीन मुख्य पक्ष होने चाहिए

  1. दिये गए मानक स्तर पर आधारित अधिकतम सीमा तक खतरों में कमी करना (Reduction of Risk),
  2. सीमाओं के भीतर खतरों में अनुकूलतम कमी (Optimum Risk Reduction),
  3. जीवन तथा सम्पत्ति की रक्षा (Saving lives and property)।

मापदंड-

  1. किसी प्राकृतिक (Disaster) विपदा द्वारा की जा सकने वाली अधिकतम क्षति का मात्रात्मक तथा गुणात्मक दोनों ही रूपों में आकलन किया जाना।
  2. किसी प्रदेश की अनुकूलतम वहन क्षमता (Carrying Capacity) का भी आकलन तथा गणना।
  3. उन क्रिया-कलापों का जिनसे आपदाएँ उत्पन्न हो सकती हैं, उनकी सीमाओं को भी निर्धारित किया जाना चाहिए।
  4. नियंत्रक तरीकों को भी विकसित किया जाना चाहिए जिससे आपदाओं में प्रभावशाली तरीके से कमी भी की जा सके।
  5. लोगों की सक्रिय भागीदारी महत्त्वपूर्ण है।
  6. तकनीकी तथा अतकनीकी उपायों दोनों पर ही बल दिया जाना चाहिए।
  7. आपदा प्रवण क्षेत्र सर्वेक्षण द्वारा सांख्यिकीय एवं आंकिक विधियों का कंप्यूटर की सहायता से बने सूक्ष्म मानचित्रों के द्वारा पूर्वानुमान करना चाहिए।

ऊर्जा संबंधी अध्ययन (Study of Energy Issues )-
विद्यार्थियों द्वारा ग्रामीण तथा नगरीय ऊर्जा उपभोग प्रारूप की निगरानी करने वाले सर्वेक्षण किए जा सकते हैं। अनेक पारिस्थितिकी दृष्टि से कमजोर क्षेत्रों में तथा पर्वतीय क्षेत्रों, पहाड़ियों तथा वन क्षेत्रों में जलाऊ लकड़ी (Fire Wood) ईंधन का अभी भी महत्त्वपूर्ण साधन है। बहुत-से शोधकार्य का निष्कर्ष है कि ग्रामीण ईंधन उपभोग निर्वनीकरण का (Deforestation) महत्त्वपूर्ण कारण नहीं था, बल्कि यह बहुत कुछ शाखाओं तथा टहनियों को तोड़ने तक सीमित था।

किंतु नगरीय लकड़ी जलाऊ लट्ठों के रूप में प्राप्त की जाती थी जिसने सीधे जंगलों पर दबाव डाला ऐसा भारत में वर्तमान स्थिति के बाद विशेषज्ञों की राय में ग्रामीण ईंधन उपभोग की वर्तमान स्थिति की समीक्षा के बाद कहा गया जो एक नई रोचक जानकारी है। ऐसे नए मुद्दों पर लगातार सर्वेक्षण किया जा सकता है तथा लोगों के वृक्षारोपण संबंधी कार्य का नियमित सर्वेक्षण किया जा सकता है। सर्वेक्षण का एक अति महत्त्वपूर्ण क्षेत्र ईंधन के मूल्यों से संबंधित भी होगा।

मौखिक परीक्षा के प्रश्न
(Questions For Viva-Voce)

प्रश्न 1.
क्षेत्र सर्वेक्षण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब हम स्वयं किसी क्षेत्र में जाकर अध्ययन करते हैं तो उसे क्षेत्र सर्वेक्षण कहते हैं।

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प्रश्न 2.
क्षेत्र सर्वेक्षण के दो चरण बताओ।
उत्तर:
आँकड़ों का संग्रहण तथा प्रसंस्करण |

प्रश्न 3.
स्थलाकृतिक मानचित्र क्या है?
उत्तर:
वे मानचित्र जो किसी क्षेत्र के धरातल, अपवाह तथा मानवीय लक्षणों को दिखाते हैं।

प्रश्न 4.
सैंपल सर्वेक्षण किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब सारे क्षेत्र का सर्वेक्षण करने की बजाय उसके एक भाग का ही सर्वेक्षण करें, तो उसे सैंपल सर्वेक्षण कहते हैं।

प्रश्न 5.
मानचित्र दिक् विन्यास किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी की प्रमुख दिशाओं के अनुरूप मानचित्र सैट करना।

प्रश्न 6.
पर्यावरण के प्रमुख घटक बताओ।
उत्तर:
जल, स्थल, वायु, जीव-जंतु।

प्रश्न 7.
प्रदूषण के प्रमुख कारण बताओ।
उत्तर:
उद्योग, परिवहन, रसायन तथा अपशिष्ट पदार्थ।

प्रश्न 8.
मानचित्र दिक् विन्यास की तीन विधियां बताओ।
उत्तर:

  1. सूर्य की सहायता से
  2. ट्रफ कंपास की सहायता से
  3. वस्तुओं की सापेक्षिक तुलना से।

प्रश्न 9.
क्षेत्र सर्वेक्षण हेतु तीन उपकरण बताओ।
उत्तर

  1. नोट बुक
  2. स्थलाकृतिक मानचित्र
  3. कैमरा।

प्रश्न 10.
स्थिर तत्व के तीन उदाहरण दें।
उत्तर:
इमारतें, खेत, नहरें।

प्रश्न 11.
प्रश्नावलियों के चार प्रकार बताओ।
उत्तर:

  1. सरल प्रश्न
  2. बहुविकल्पी प्रश्न
  3. क्रममापक प्रश्न
  4. मुक्तांत प्रश्न।

प्रश्न 12.
आँकड़े निर्धारित करने की विधि बताओ।
उत्तर:
मिलान चिह्न।

HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 5 क्षेत्रीय सर्वेक्षण

प्रश्न 13.
भू-उपयोग में विभिन्न फसलें किस प्रकार दिखाई जाती हैं?
उत्तर:
रंगों तथा आभाओं द्वारा।

प्रश्न 14.
भौमजल स्तर किसे कहते हैं?
उत्तर:
भूमिगत जल की ऊपरी सतह।

प्रश्न 15.
प्राकृतिक आपदाओं के दो उदाहरण दो।
उत्तर:
सूखा तथा बाढ़।

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HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 आंकड़ों का प्रक्रमण एवं मानचित्रण में कंप्यूटर का उपयोग

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Solutions Practical Work in Chapter 4 आंकड़ों का प्रक्रमण एवं मानचित्रण में कंप्यूटर का उपयोग Textbook Exercise  Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 आंकड़ों का प्रक्रमण एवं मानचित्रण में कंप्यूटर का उपयोग

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए-
(i) निम्नलिखित आंकड़ों के प्रदर्शन के लिए आप किस प्रकार के ग्राफ का उपयोग करेंगे?

राल्यलौह अयस्क उपादन का आंश (प्रतिशत में)
मध्य प्रदेश23.44
मोवा21.82
कर्नाटक20.95
बिहार16.98
ओडिशा16.30
आंध्र प्रदेश0.45
महाराष्ट्र0.04

(क) रेखा
(ख) बहुदंड आलेख
(ग) वृत्त आरेख
(घ) उपयुक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) वृत्त आरेख।

HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 आंकड़ों का प्रक्रमण एवं मानचित्रण में कंप्यूटर का उपयोग

(ii) राज्य के अंतर्गत जिलों का प्रदर्शन किस प्रकार के स्थानिक आंकड़ों द्वारा होगा?
(क) बिंदु
(ख) रेखाएँ
(ग) बहुभुज
(घ) उपयुक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) बिंदु।

(iii) एक वर्कशीट के सेल में दिए गए सूत्र में वह कौन-सा प्रचालक है जिसका पहले परिकलन किया जाता है?
(क) +
(ख) –
(ग) /
(घ) ×
उत्तर:
(घ) ×

(iv) एक सेल में विजार्ड पंक्शन आपको समर्थ बनाता है-
(क) ग्राफ रचना में
(ख) गणितीय और सांख्यिकीय क्रियाओं को करने में
(ग) मानचित्र आलेखन में
(घ) उपयुक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) ग्राफ रचना में।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
(i) एक्सेल में विजार्ड फंक्शन आपको समर्थ बनाता है।
उत्तर:
एक्सेल विजार्ड फंक्शन हमें वर्कशीट की संख्या चयनित आंकड़ा परिसर और दंड आरेख का पूर्व दर्शन प्रकट करता है क्योंकि आंकड़ों में वर्ग पंक्ति अनुसार व्यवस्थित होते हैं, इसलिए इसे पंक्ति- अनुसार चार्ट निर्माण कहा जाता है।

(ii) एक कंप्यूटर के विभिन्न भागों की हस्तेन विधियों की तुलना में कंप्यूटर के प्रयोग के क्या लाभ हैं?
उत्तर:
कंप्यूटर एक तीव्र तथा सर्वतोमुखी मशीन है जो जोड़ना, घटाना, गुणा अथवा भाग जैसे साधारण अंकगणितीय संक्रियाएँ कर सकता है तथा जटिल गणितीय सूत्रों को भी हल कर सकता है। यह आंकड़ों के प्रक्रमक है जो चलने पर मानव प्रचालक के हस्तक्षेप के बिना अलग-अलग गणितीय अभिकलन कर सकता है।

(iii) आंकड़ा प्रक्रमण और प्रदर्शन की हस्तेन विधियों की तुलना में कंप्यूटर के प्रयोग के क्या लाभ हैं?
उत्तर:
कंप्यूटर के प्रयोग से हम आंकड़ों का समूहन और विश्लेषण अत्यधिक सरलता से कर पाते हैं। कंप्यूटर तुलनात्मक विश्लेषण को मानचित्रों के आरेखन अथवा आलेखन द्वारा अत्यंत सरल बना देता है। यह आसानी से आंकड़ों को प्रमाणीकरण, पड़ताल और सशुद्धि के योग्य बना देता है। कंप्यूटर आंकड़ों की विशाल मात्रा का निपटान कर सकता हैं जो सामान्यतः हाथों द्वारा संभव नहीं है। कंप्यूटर आंकड़ों की प्रतिलिपि बना सकता है, आंकड़ों का संपादन कर सकता है, उन्हें सुरक्षित कर सकता है।

(iv) वर्कशीट क्या होती हैं?
उत्तर:
एम एस एक्सेल को स्प्रैड शीट प्रोग्राम भी कहते है। स्प्रैडशीट एक आयतकार पेज होती है जो सूचना का भंडारण करती है। और यह स्प्रैडशीट वर्कबुक्स और एक्सेल फाइलों में होती है। एक्सेल वर्कशीट में 16384 कतारें तथा 256 कॉलम होते हैं।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों से अधिक न दें
(i) स्थानिक व गैर-स्थानिक आंकड़ों में क्या अंतर है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्थानिक आंकड़े: स्थानिक आंकड़े भौगोलिक दिक् स्थान का प्रतिनिधित्व करते हैं। बिंदु आंकड़े मानचित्र पर प्रदर्शित विद्यालय, अस्पताल, कुएँ, कस्बे तथा गाँव जैसे कुछ भौगोलिक लक्षणों की अवस्थिति संबंधी विशेषताओं का प्रदर्शन करते हैं। इसी प्रकार रेखाएँ सड़कों, रेलवे लाइनों, नहरों, नदियों, शक्ति और संचार पथों जैसे रैखिक लक्षणों को चित्रित करती हैं।

गैर स्थानिक आंकड़े: स्थानिक आंकड़ों का वर्णन करने वाले आंकड़े गैर-स्थानिक आंकड़े तथा गुण न्यास कहलाते हैं। अगर आपके पास आपके विद्यालय की स्थिति दर्शाने वाला मानचित्र है तो आप विद्यालय का नाम, इसके द्वारा प्रदूत विषय – धारा, हर एक कक्षा में विद्यार्थियों की अनुसूची, पुस्तकालय इत्यादि की सुविधा जैसी सूचनाओं को संलग्न कर सकते हैं।

(ii) भौगोलिक आंकड़ों के तीन प्रकार कौन से हैं?
उत्तर:
भौगोलिक आंकड़े अंकीय तथा रेखीय रूप में उपलब्ध होते हैं।
कंप्यूटर के प्रयोगः मानचित्रण सॉफ्टवेयर – मानचित्रण सॉफ्टवेयर स्थानिक तथा गुण न्यास निवेश के माध्यम से स्क्रीन पर क्रमवीक्षित मानचित्रों के अंकीकरण, मापनी के रूपांतरण और प्रक्षेपण, आंकड़ा समन्वय, मानचित्र डिजाइन, प्रदर्शन तथा विश्लेषण की क्रियाएँ प्रदान करता है। एक अंकरूपीय मानचित्र में तीन प्रकार की फाइलें होती है। इन फाइलों के विस्तारण shpishx तथा dbf हैं। डी बेस फाइल हैं जिसमें गुण न्यास होता है तथा यह shx तथा shp से जुड़ी होती हैं।

अतिरिक्त प्रश्न (Other Questions)

लघु उत्तरीय प्रश्न 
(Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कम्प्यूटर हार्डवेयर के मुख्य भाग कौन से है?
उत्तर:
कम्प्यूटर हार्डवेयर के मुख्य भाग निम्नलिखित हैं:-
(i) केंद्रीय प्रक्रमण (CPU) और भंडारण तंत्र
(ii) आलेखी प्रदर्शन तंत्र और मॉनीटर
(iii) निवेश उपकरण
(iv) बहिर्वेश उपकरण

प्रश्न 2.
हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की आवश्यकताएँ स्पष्ट रूप में बताएँ।
उत्तर:
कम्प्यूटर में हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर दोनों ही आंकड़ों के प्रक्रमण तथा मानचित्र के सहायक के रूप में समाविष्ट होते हैं। कम्प्यूटर के हार्डवेयर में भंडारण, प्रदर्शन तथा निवेशी तथा बहिर्वेशी उपतंत्र को शामिल किया जाता है और इसके उलट सॉफ्टवेयर इलैक्ट्रॉनिक संकेतों के द्वारा बनाए गए क्रमादेश को शामिल किया जाता है। कम्प्यूटर सहायता प्राप्त आंकड़ों के प्रक्रमण तथा मानचित्रण में हार्डवेयर घटर तथा संबंधित अनुप्रयोग सॉफ्टवेयर दोनों की ही आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 3.
स्प्रैड शीट क्या होती हैं?
उत्तर:
स्प्रैड शीट एक पेज है जो आयताकार आकार में होता है और यह सूचना का भंडारण भी करती है। वर्कबुक्स तथा एक्सेल फाइलों में भी स्प्रैडशीट अवस्थित होती हैं। एक्सेल स्प्रैडशीट में 16384 कतारें तथा 256 कॉलम होते हैं।

HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 4 आंकड़ों का प्रक्रमण एवं मानचित्रण में कंप्यूटर का उपयोग

प्रश्न 4.
कम्प्यूटर क्या कर सकता है?
उत्तर:
कम्प्यूटर एक इलैक्ट्रॉनिक उपकरण है। इसके अपने कई हिस्से होते हैं जिनमें कुछ हैं, मैमोरी, माइक्रो प्रोसैसर, निवेश एवं निर्गत उपकरण। कम्प्यूटर के यह सारे हिस्से मिलकर बहुत ही अधिक प्रभावशाली उपकरण मतलब कम्प्यूटर का निर्माण करते हैं। इसके द्वारा आंकड़ा पेशकारी प्रक्रिया तथा संचालन का काम अच्छे ढंग के साथ किया जा सकता है। कम्प्यूटर की सहायता के साथ जोड़ तथा घटाव से लेकर तर्क से हल करने वाले सारे साधारण तथा जटिल प्रश्न हल किये जा सकते हैं।

प्रश्न 5.
स्थानीय आंकड़े कौन-से होते हैं?
उत्तर:
जो आंकड़े किसी स्थान की भौगोलिक स्थिति को दर्शाते हैं उनको स्थानीय आंकड़े कहते हैं। इसे आमतौर पर बिन्दु रेखाओं तथा बहुर्भुज के रूप में मिलते हैं। इसमें ट्यूवबैल, कस्बे, गाँव, अस्पताल इत्यादि बिन्दुओं की सहायता के साथ रेल की लाइनों, नदियों इत्यादि रेखाओं की सहायता के साथ भूमि, तालाब, झीलों, जंगल, जिले इत्यादि बहुभुजों की सहायता से दिखाये जाते हैं।

निबंधात्मक प्रश्न
(Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
कम्प्यूटर के अलग-अलग हिस्सों के क्या काम हैं?
उत्तर:
कम्प्यूटर एक इलैक्ट्रॉनिक उपकरण है। आमतौर पर हम इस प्रणाली को दो हिस्सों में विभाजित करते हैं:-
(i) यंत्र सामग्री (Hardware)- सारे कम्प्यूटर के भाग जिनकों हाथ से छुआ जा सके।
(ii) प्रक्रिया सामग्री ( Software) कम्प्यूटर के जिस हिस्से को हाथ से हुआ न जा सके।
(i) यंत्र सामग्री (Hardware)
कम्प्यूटर के भौतिक हिस्से जिनको हम देख या छू सकते हैं, वह हार्डवेयर कहलाते हैं। यह भाग मशीनी, इलैक्ट्रॉनिक या इलैक्ट्रीकल हो सकते हैं वह कम्प्यूटर के यंत्र सामग्री कहलाते हैं। हर कम्प्यूटर की यंत्र सामग्री अलग-अलग हो सकती हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि संगठक किस उद्देश्य के लिए प्रयोग में लाया जा सके तथा व्यक्ति की आवश्यकता क्या है एक कम्प्यूटर में विभिन्न तरह के हार्डवेयर होते हैं जैसे कि सी. पी. .यू.. हार्ड डिस्क, रैम, प्रोसैसर, मॉनीटर, मदरबोर्ड, फ्लापी ड्राइव इत्यादि। कम्प्यूटर के सिर्फ पावर सप्लाई यूनिट की-बोर्ड, माऊस इत्यादि भी यंत्र सामग्री के अंतर्गत आते हैं।

(ii) प्रक्रिया सामग्री (Software) कम्प्यूटर हमारी तरह हिन्दी या अंग्रेजी भाषा नहीं समझता। हम कम्प्यूटर को जो निर्देश देते हैं वह एक नियत भाषा होती है इसको मशीनी लँगवेज ( भाषा) या मशीन की भाषा कहते हैं। कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर लिखित प्रोग्रामों का एक समूह है। जो कि कम्प्यूटर की भंडार शाखा में जमा हो जाता है। आजकल कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जिसमें कम्प्यूटर का उपयोग नहीं होता। आज कम्प्यूटर का प्रयोग हर कार्यालय में किया जाता है।

कम्प्यूटर के भाग हैं-
(1) निवेश एवं निर्गत उपकरण (Input output Device)- इन उपकरणों का प्रयोग कम्प्यूटर में निवेश करने के लिए तथा कम्प्यूटर द्वारा निर्गत दिखाने के लिए किया जाता है। निवेश उपकरण जैसे की-बोर्ड का प्रयोग, आंकड़ों तथा प्रोग्रामों को कम्प्यूटर स्मृति में भरने के लिए किया जाता है। दूसरी प्रकार चूंकि एक कम्प्यूटर के भीतर सभी आँकड़ों कार्यक्रमों को कोड स्वरूप में वैद्युत धारा में संचित किया जाता है, निर्गत उपकरणों जैसे प्रिंटर, प्लाटर इत्यादि का प्रयोग इन आंकड़ों की सूचनाओं के रूप में बदलने के लिए किया जाता है जिनका मानव द्वारा उपयोग किया जा सके।

(2) सिस्टम यूनिट (System Unit)- सिस्टम यूनिट को सिस्टम कैबिनेट भी कहा जाता है। कम्प्यूटर के इस भाग के कई हिस्से हैं जैसे मदरबोर्ड, रैम तथा प्रोसैसर सिस्टम यूनिट के अंदर ही आते हैं।

(3) मैमोरी (Memory) कम्प्यूटर में मैमोरी का प्रयोग प्रोग्राम तथा डाटा को संग्रहित करने के लिए होता है, ताकि बाद में जरूरत के अनुसार उसका प्रयोग किया जा सके। मैमोरी किसी भी कम्प्यूटर का एक काफी महत्त्वपूर्ण अंग होता है। मैमोरी का उपयोग परिणामों को संग्रहित करने के लिए भी किया जाता है। मैमोरी दो प्रकार की होती हैं-
(A) रोम (Rom)- इसको Read only Memory कहते हैं। इसमें जो जानकारी होती है उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता बस सिर्फ उसे पढ़ा जा सकता है।
(B) रैम (Ram)-Random Access Memory इसका प्रयोग तब होता है जब कम्प्यूटर पर काम करते हैं। यह जानकारी सिर्फ तब तक रहती है जब तक आपका कम्प्यूटर काम कर रहा होता है। कम्प्यूटर को बंद करते ही रैम की जानकारी नष्ट हो जाती है।

(4) संग्राहक उपकरण (Storage Unit) एक कम्प्यूटर में कई संग्राहक इकाइयाँ जैसे हार्ड डिस्क, फ्लापी, टेप, मैगनेट, आप्टिकल डिस्क, कांपेकट डिस्क (सीडी), कार्टिज इत्यादि लगे होते हैं जिनका प्रयोग आंकड़ों तथा कार्यक्रम-निर्देशों को संचित करने के लिए होता है। इन युक्तियों की आंकड़ा संग्रहण करने की क्षमता मेगाबाइड (MB) से गीगाबाइड (GB) तक होती है।

(5) संचार (Communication)- संचार के लिए काफी उपकरणों का उपयोग किया जाता है। इन यंत्रों का उपयोग एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर के साथ जोड़ने के लिए तथा इंटरनेट का प्रयोग करने के लिए किया जाता है। वाई फाई रिसीवर, मोड्स इत्यादि इस वर्ग में शामिल हैं।

(6) सॉफ्टवेयर का एक हिस्सा आँकड़ा प्रक्रिया की पेशकारी के लिए प्रयोग के लिए तथा कम्प्यूटर के माध्यम से तालमेल बिठाता है। तत्वों को क्रमवार करने के लिए अशुद्धियों को हटाने के लिए, आंकड़ों के जोड़-तोड़ तथा संभाल इत्यादि काम सॉफ्टवेयर द्वारा किये जाते हैं। प्रमुख सॉफ्टवेयर हैं- MS Excel Spreadsheet, Lotus-1,2,3 तथा D Base, Arc-view, Are GIS Geomedia इत्यादि। इनके द्वारा सॉफ्टवेयर नक्शे बनाने के लिए अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 2.
स्थानिक तथा गैर स्थानिक आंकड़ों में क्या अन्तर है? उदाहरण सहित बताओ।
उत्तर:
स्थानिक तथा गैर-स्थानिक आंकड़ों में अंतर निम्नलिखित
स्थानिक आंकड़े

  1. स्थानीय आंकड़े किसी स्थान की भौगोलिक स्थिति को दर्शाते। यह धरती पर किसी स्थान को दर्शाता है।
  2. स्थानीय आंकड़ों में किसी क्षेत्र जैसे अस्पताल, स्कूल इत्यादि क्षेत्रों की भौगोलिक विशेषताओं के बारे में दिखाया जाता है।
  3. इनको तैयार करना थोड़ा मुश्किल होता है।
  4. इसमें लकीरों की सहायता के साथ नदियों, रेलवे लाइन इत्यादि दिखाये जाते हैं।
  5. जब नक्शे के ऊपर केवल स्कूल को दिखाया जाता है उसको स्थानीय आँकड़े कहते हैं।
  6. Shx तथा Shq फाइलों में स्थानिक आंकड़े होते हैं।

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गैर-स्थानिक आंकड़े

  1. जब कोई डाटा / आंकड़ा हमें धरती की किसी जगह के बारे में ज्ञान करवाए वह गैर-स्थानिक आंकड़े कहलाते हैं।
  2. गैर-स्थानिक आंकड़े में नम्बर, अंक, व्यक्ति या श्रेणियों की संख्या इत्यादि को दिखाया जाता है।
  3. गैर स्थानीय आंकड़े तैयार करने आसान होते हैं।
  4. गैर-स्थानीय आंकड़ों की सहायता के साथ आंकड़ों की विशेषता के बारे में दिखाया जाता है।
  5. अगर स्कूल का नाम, कक्षा कक्षों तथा विद्यार्थियों की संख्या के बारे में बताया जाए। तब वह गैर-स्थानीय आंकड़े कहलाते हैं।
  6. dbf एक dbase फाइल होती है कि shx तथा shp फाइलों से जुड़े होते हैं।

उदाहरण- जब हम किसी स्कूल, कस्बे, गाँव इत्यादि की भौगोलिक विशेषता को बिन्दुओं, बहुभुजों या लकीरों की सहायता से नक्शे पर दिखाते हैं, तो उसे स्थानीय आंकड़े कहते हैं। तथा अगर हम स्कूल का नाम, कक्षा, बच्चों की संख्या, गाँव, कस्बे में घर, घरों में व्यक्तियों की संख्या का अध्ययन करते हैं तब वह गैर-स्थानीय आंकड़ों की उदाहरण मानी जाती है।

प्रश्न 3.
वर्कशीट (कार्यपत्रक) क्या है?
उत्तर:
वर्कशीट (कार्यपत्रक) आमतौर पर एक कागज की शीट होती है जिस पर विद्यार्थियों के लिए कुछ प्रश्न लिखे होते हैं तथा उत्तर लिए जाते हैं। एक्सल वर्कशीट एकहरी स्प्रैडशीट होती है जिसका प्रयोग आंकड़ा प्रक्रिया, नक्शे तथा रेखाचित्र इत्यादि बनाने के लिए किया जाता है। वर्कशीट टर्म का प्रयोग एक स्प्रैडशीट सॉफ्टवेयर के तौर पर भी किया जाता है तथा एक एकाऊंटैंट की तरफ से प्रयोग किए गये एक पेपर जिस पर कोई रिकार्ड लिखा है, को वर्कशीट का नाम दिया जाता है। वर्कशीट शब्द का प्रयोग सबसे पहले 1900 में की गयी।

एक कक्षा के कमरे में वर्कशीट से भाव उन कागज़ों की शीटों से है, जिन पर प्रश्न तथा कुछ अभ्यास योग्य प्रश्न विद्यार्थी के लिए पूरा करने तथा जवाब रिकॉर्ड करने के लिए बनाई गई होती है। एकाऊंट में वर्कशीट का अर्थ है, एक खुले पन्ने होते हैं जिसमें वर्क शैड्यूल, काम का समय, खास हिदायतों इत्यादि का रिकॉर्ड रखा जाता है तथा कम्प्यूटर में एक्सल वर्कशीट में आंकड़े बहुत ही सरल तरीके के साथ दाखिल तथा जमा किये जा सकते हैं।

आंकड़ों की नकल की जा सकती है या एक सैल से दूसरे सैल में भेजे जाते हैं। इसके द्वारा आंकड़े मिटाये जा सकते हैं। इस वर्कशीट द्वारा काम के आंकड़े स्थाई तौर पर संभाले जा सकते हैं। इस तरह आंकड़े सरलता से दाखिल किये जाते हैं। कालम बनाकर आंकड़े दाखिल करने के समय नम्बर- पैड के साथ ऐंटर की क्रिया या डाऊन चिह्नित का प्रयोग किया जाता है। स्तरों में आंकड़ों को दाखिल करते समय नम्बर पैड के साथ राइट चिह्नित का भी प्रयोग किया जाता है।

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HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Solutions Practical Work in Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण Textbook Exercise  Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए-
(i) जनसंख्या वितरण दर्शाया जाता है-
(क) वर्णमात्री मानचित्रों द्वारा
(ख) सममान रेखा मानचित्रों द्वारा
(ग) बिंदुकित मानचित्रों द्वारा
(घ) ऊपर में से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) बिंदुकित मानचित्रों द्वारा।

HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण

(ii) जनसंख्या की दशकीय वृद्धि को सबसे अच्छा प्रदर्शित
करने का तरीका है-
(क) रेखा ग्राफ
(ग) वृत्त आरेख
(ख) दंड आरेख
(घ) ऊपर में से कोई भी नहीं।
उत्तर:
(क) रेखा ग्राफ।

(iii) बहुरेखाचित्र की रचना प्रदर्शित करती है-
(क) केवल एक बार
(ख) दो चरों से अधिक
(ग) केवल दो चर
(घ) ऊपर में से कोई भी नहीं।
उत्तर:
(ख) दो चरों से अधिक।

(iv) कौन-सा मानचित्र “गतिदर्शी मानचित्र” जाना जाता है-
(क) बिंदुकित मानचित्र
(ख) सममान रेखा मानचित्र
(ग) वर्णमात्री मानचित्र
(घ) प्रवाह संचित्र।
उत्तर:
(घ) प्रवाह संचित्र।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
(i) थिमैटिक मानचित्र क्या हैं?
उत्तर:
थिमैटिक मानचित्र मानचित्रों की विविधता। प्रादेशिक वितरणों के प्रतिरूपों अथवा स्थानों पर विविधताओं की विशेषताओं को समझने के लिए विविध मानचित्रों को बनाया जाता हैं। यह मानचित्र अलग-अलग विशेषताओं को पेश करने वाले आंकड़ों में आंतरिक विभिन्नताओं के मध्य की तुलना दिखाने के लिए भी उपयोगी प्रयोजन प्रदान करते हैं।

(ii) आंकड़ों के प्रस्तुतीकरण से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
आंकड़े उन तथ्यों की विशेषताओं को हमारे सामने लाते हैं जो प्रदर्शित किए जाते हैं। आंकड़ो के प्रस्तुतीकरण की आलेखी विधि हमारी समझ के क्षेत्र को बढ़ाती हैं अथवा तुलनाओं को आसान बना देती हैं। इसके अतिरिक्त इस प्रकार की विधियाँ एक लंबे समय के लिए मस्तिष्क पर अपनी छाप छोड़ देती हैं।

(iii) बहुदंड आरेख और यौगिक दंड आरेख में अंतर बताइए।
उत्तर:
दंड आरेख-आँकड़े दिखाने के लिए यह सबसे सरल विधि है। इसमें आँकड़ों को समान चौड़ाई वाले दंडी या स्तंभों द्वारा दिखाया जाता हैं। इन दंडों की लंबाई वस्तुओं की मात्रा के अनुपात के अनुसार छोटी-बड़ी होती है। बहुदंड आरेख-यदि एक दंड को अनेक भागों में बांटकर उसके द्वारा कई वस्तुओं को एक साथ दिखाया जाए तो बहुदंड आरेख का निर्माण होता है। इस विधि के द्वारा आंकड़ों के कुल योग तथा उसके विभिन्न भागों को दिखाया जाता है।

(iv) एक बिंदुकित मानचित्र की रचना के लिए क्या आवश्यकताएँ हैं?
उत्तर:
बिंदु विधि द्वारा मानचित्र की रचना के लिए आवश्यकता होती है-

  1. जिस वस्तु का वितरण प्रकट करना हो उसके सही-सही आँकड़े उपलब्ध होने चाहिए। ये आंकड़े प्रशासकीय इकाइयों के आधार पर होने चाहिए।
  2. उस प्रदेश का एक सीमा चित्र हो जिसमें जिले या राज्य आदि शासकीय भाग दिखाए हों।
  3. उस प्रदेश का धरातलीय मानचित्र हो जिसमें contours, marshes इत्यादि धरातल की आकृतियां दिखाई गई हों।
  4. उस प्रदेश का जलवायु मानचित्र हो जिसमें वर्षा तथा तापमान का ज्ञान हो सके।
  5. विभिन्न कृषि पदार्थों की उपज वाले मानचित्रों में भूमि के मानचित्र जरूरी हैं।

(v) सममान रेखा मानचित्र क्या हैं? एक क्षेपक का किस प्रकार कार्यान्वित किया जाता है?
उत्तर:
सममान रेखा शब्द Isopleth दो शब्दों के जोड़ से बना है ISO + Pleth अर्थ है समान रेखाएँ। इस प्रकार सममान रेखाएं वे रेखाएं हैं जिनका मूल्य, तीव्रता तथा घनत्व समान हो। ये रेखाएं उन स्थानों को आपस में जोड़ती हैं जिनका मान समान हो।
क्षेत्रक की कार्यान्वित करने का तरीका-

  1. सबसे पहले मानचित्र पर दिए गए न्यूनतम तथा अधिकतम मान को निश्चित करना चाहिए।
  2. उसके बाद परास की गणना की जानी चाहिए।
  3. उसके बाद श्रेणी के आधार पर, एक पूर्ण संख्या जैसे 5, 10, 15 इत्यादि में अंतराल निश्चित करनी चाहिए।
  4. सममान रेखा के चित्रण के बिल्कुल सही बिंदु को निम्नलिखित सूत्र द्वारा निश्चित किया जाता है-

सममान रेखा का बिंदु =
HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण 1

(vi) एक वर्णमात्री मानचित्र को तैयार करने के लिए अनुसरण करने वाले महत्त्वपूर्ण चरणों की सचित्र व्याख्या की कीजिए।
उत्तर:
वर्णमात्री मानचित्र को तैयार करने के लिए अनुसरण करने वाले महत्त्वपूर्ण चरणों को सचित्र इस प्रकार हैं-

  1. आंकड़ों को चढ़ते अथवा उतरते हुए क्रम में व्यवस्थित किया जाता है।
  2. अति उच्च, उच्च, मध्यम, निम्न तथा अति निम्न केंद्रीकरण को दर्शाने के लिए आंकड़े को 5 श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है।
  3. श्रेणियों के मध्य अंतराल की, निम्नलिखित सूत्र परास / 5 तथा अधिकतम मान-न्यूनतम मान, द्वारा पहचाना जा सकता है।
  4. प्रतिरूपी, छापाओं और रंगों का उपयोग चुनी हुई श्रेणियों को चढ़ते और उतरते क्रम में दर्शाने के लिए किया जाता है।

(vii) आंकड़े की वृत आरेख की सहायता से प्रदर्शित करने के लिए महत्त्वपूर्ण चरणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
आंकड़े की वृत आरेख की सहायता से प्रदर्शित करने के लिए महत्त्वपूर्ण चरणों की विवेचना इस प्रकार है-

  1. आंकड़ों को चढ़ते क्रम में व्यवस्थित करो।
  2. मानों को दिखाने के लिए कोणों के अंशों की गणना करो। खींचे जाने वाले वृत्त के लिए एक उपयुक्त त्रिज्या को चुनना चाहिए।
  3. वृत्त के बीच से चाप एक त्रिज्या की तरह रेखा खींचनी चाहिए।
  4. वृत्त को विभागों की आवश्यक संख्या में विभाजन द्वारा आंकड़े को प्रदर्शित करते हैं।
  5. एक रेखा लगाओ केन्द्रीय धुरे से लेकर वृत्त तक।
  6. इसके बाद वृत्त तक के कोण को मापा जाए और हर एक वर्ग के वाहनों को चढ़ते क्रम में लिखा जाए। वाहनों की प्रत्येक श्रेणी के लिए चढ़ते हुए क्रम में, दक्षिणावर्त, छोटे कोण से शुरू करके वृत्त के चाप से कोणों को नापते हैं। उसके बाद शीर्षक उपशीर्षक और सूचिका द्वारा आरेख को पूर्ण किया जाता है।

क्रिया-कलाप
1. निम्न आंकड़ों को अनुकूल / उपयुक्त आरेख द्वारा प्रदर्शित कीजिए:
भारत : नगरीकरण की प्रवृत्ति 1901-2001

वर्षदशवार्षिक वृर्धि (%)
19110.35
19218.27
193119.12
194131.97
195141.42
196126.41
197138.23
198146.14
199136.47
200131.13

HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण 2

रेखाग्राफ़ की रचना –

  • रेखाग्राफ़ में सबसे पहले आंकड़ों को पूर्णांक में बदला जाता है। ताकि इसे सरल बनाया जा सके। जैसे कि ऊपर दी गई तालिका में 1961 और 1981 के लिए दर्शाई गई नगरीकरण की प्रवृत्ति दर को क्रमश: 26.4 और 46.1 पूर्णांक में बदला जा सकता है।
  • इसके बाद x और y अक्ष खींचो। समय क्रम चरों को x अक्ष पर तथा आंकड़ों के मात्रा को अक्ष पर अंकित करें।
  • एक योग्य मापनी को चुनकर y अक्ष पर अंकित कर दो। यदि आंकड़ा एक ऋणात्मक मूल्य में हैं तो चुनी हुई मापनी को इसे भी दर्शाना चाहिए।
  • y अक्ष पर चुनी हुई मापनी के अनुसार वर्ष बार दर्शाने के लिए आंकड़े अंकित कीजिए तथा बिंदु द्वारा अंकित मूल्यों की स्थिति चिह्नित करें तथा हाथ से रेखा खींचकर मिला दो।

HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण

2. निम्नलिखित आंकड़े को उपयुक्त आरेख की सहायता से प्रदर्शित कीजिए:
भारत: प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय में साक्षरता और नामांकन अनुपात।

अतिरिक्त प्रश्न (Other Questions)

प्रश्न 1.
सांख्यिकीय आरेख से क्या अभिप्राय है? इनके लाभ तथा सीमाओं का वर्णन करो।
उत्तर:
सांख्यिकीय आरेख (Statistical Diagram) –
आवश्यकता (Necessity)-आर्थिक भूगोल के अध्ययन में आँकड़ों का विशेष महत्त्व है। विभिन्न प्रकार के आँकड़े किसी वस्तु की मात्रा, गुण, घनत्व, वितरण आदि को स्पष्ट करते हैं। ये आँकड़े अनेक तथ्यों की पुष्टि करते हैं। किसी क्षेत्र की जलवायु के अध्ययन में तापमान, वर्षा आदि के आँकड़ों का भी अध्ययन किया जाता है। इन आँकड़ों का विश्लेषण करके निष्कर्ष निकाले जाते हैं, परंतु इस विश्लेषण के लिए अनुभव, समय तथा परिश्रम की आवश्यकता होती है।

बड़ी- बड़ी तालिकाओं को याद करना बहुत कठिन तथा नीरस होता है। लंबी-लंबी सारणियां कई बार भ्रम उत्पन्न कर देती हैं। इन्हें सरल और स्पष्ट बनाने के लिये ये आँकड़े रेखाचित्रों द्वारा प्रकट किए जाते हैं। इन सांख्यिकीय आँकड़ों पर आधारित रेखाचित्रों तथा आरेखों को सांख्यिकीय आरेख कहा जाता है। “सांख्यिकीय आँकड़ों को चित्रात्मक ढंग से प्रदर्शित करने वाले रेखाचित्रों को सांख्यिकीय आरेख कहते हैं।” इन विधियों में विभिन्न प्रकार की ज्यामितीय आकृतियां रेखाएं, वक्र रेखाएं, रचनात्मक ढंग से प्रयोग की जाती हैं। ये आँकड़ों को एक दर्शनीय रूप (visual impression) देकर मस्तिष्क पर गहरी छाप डालते हैं।

सांख्यिकीय आरेखों के लाभ
(Advantages of Statistical Diagrams)

  1. आँकड़ों का सजीव रूप प्राय: किसी विषय संबंधी आँकड़े नीरस व प्रेरणा रहित होते हैं। रेखाचित्र इन विषयों को एक सजीव तथा रोचक रूप देते हैं। एक ही दृष्टि में रेखाचित्र तथ्यों का मुख्य उद्देश्य व्यक्त करने में सहायक होते हैं।
  2. सरल रचना-रेखाचित्रों की रचना सरल होने के कारण अनेक विषयों में इनका प्रयोग किया जाता है।
  3. तुलनात्मक अध्ययन-रेखाचित्रों द्वारा विभिन्न आँकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन सरल हो जाता है
  4. अधिक समय तक स्मरणीय-रेखाचित्रों का दर्शनीय रूप मस्तिष्क पर एक लंबे समय के लिए गहरी छाप छोड़ जाता है। यह आरेख दृष्टि सहायता (Visual Aid ) का एक महत्त्वपूर्ण साधन है।
  5. विश्लेषण में उपयोगी शोध कार्य में किसी तथ्य के विश्लेषण में रेखाचित्र सहायक होते हैं।
  6. साधारण व्यक्ति के लिए उपयोगी – साधारण व्यक्ति आँकड़ों को चित्र द्वारा आसानी से समझ सकता है।
  7. समय की बचत-रेखाचित्रों द्वारा तथ्यों को शीघ्र ही समझा जा सकता है, जिससे समय की बचत होती है।

आरेख चित्रों की सीमाएं
(Limitations of Statistical Diagrams)

  1. आँकड़ों का शुद्ध रूप से निरूपण का संभव न होना- रेखाचित्र आँकड़ों को कई बार शुद्ध रूप में प्रदर्शित नहीं करते। इनमें थोड़ा-बहुत परिवर्तन किया जाता  है।
  2. आरेख आँकड़ों के प्रतिस्थापन नहीं हैं- मापक के अनुसार रेखाचित्रों का आकार बदल जाता है तथा कई भ्रम उत्पन्न हो जाते हैं।
  3. बहुमुखी आँकड़ों का निरूपण संभव नहीं है- एक ही रेखाचित्र पर एक से अधिक प्रकार के आँकड़े नहीं दिखाए जा सकते हैं। इसके द्वारा एक ही इकाई में मापे जाने वाले समान गुणों वाले आँकड़ों को ही दिखाया जा सकता है।
  4. उच्चतम तथा न्यूनतम मूल्य में अधिक अंतर- जब उच्चतम तथा न्यूनतम मूल्य में बहुत अधिक अंतर हो तो रेखाचित्र नहीं बनाए जा सकते।
  5. भ्रमात्मक परिणाम उपयुक्त आरेख का प्रयोग न करने से गलत तथा भ्रमात्मक परिणाम निकलने की संभावना होती है।

प्रश्न 2.
आँकड़ों को प्रदर्शित करने की कौन-कौन सी विधियां हैं?
उत्तर:
आँकड़े रेखाचित्रों तथा वितरण मानचित्रों द्वारा प्रकट किए जाते हैं।
आँकड़ों के विस्तार तथा प्रकृति के अनुसार ये रेखाचित्र निम्नलिखित प्रकार से हैं-

  1. रेखा आरेख चित्र (Line graph )
  2. दंड आरेख चित्र ( Bar diagram)
  3. चलाकृति चित्र (Wheel diagram)
  4. तारक चित्र (Star diagram)
  5. क्लाइमोग्राफ (Climograph)
  6. हीधरग्राफ (Hythergrahp)
  7. चित्रीय आरेख (Prictorial diagram)
  8. आयत चित्र (Rectangular diagram)
  9. मुद्रिक चित्र ( Ring diagram)
  10. मेखला चित्र (Circular diagram)

प्रश्न 3.
दंड आरेख (Bar diagrams ) क्या होते हैं? इनके विभिन्न प्रकारों का वर्णन करो।
उत्तर:
दंड आरेख (Bar Diagrams) आँकड़े दिखाने की यह सबसे सरल विधि है। इसमें आँकड़ों को समान चौड़ाई वाले दंडों (Bar या स्तंभों (Columns) द्वारा दिखाया जाता है। इन दंडों की लंबाई वस्तुओं की मात्रा के अनुपात के अनुसार छोटी-बड़ी होती है। प्रत्येक दंड किसी एक वस्तु की कुल मात्रा को प्रदर्शित करता है। इन आरेखों के प्रयोग से संख्याओं का तुलनात्मक अध्ययन आसानी से किया जा सकता है।

दंड आरेखों की रचना (Drawing of Bar Diagrams)
दंडचित्र बनाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाता है-
1. मापक (Scale) वस्तु को मात्रा के अनुसार मापक निश्चित करना चाहिए। भाषक तीन बातों पर निर्भर करता है-
(क) कागत का विस्तार।
(ख) अधिकतम संख्या।
(ग) न्यूनतम संख्या।
मापक अधिक बड़ी या अधिक छोटी नहीं होनी चाहिए।
2. दंडों की लंबाई (Length of Bars) दंडों की चौड़ाई समान रहती है, परंतु लंबाई मात्रा के अनुसार घटती-बढ़ती है।
3. शेड करना (Shading) दंड रेखा खींचने के पश्चात् उसे काला कर दिया जाता है या छायांकन का प्रयोग किया जाता है।
4. मध्यांतर (Interval) दंड रेखाओं के मध्य अंतर रखा जाता है।
5. आँकड़ों को निश्चित करना ( Determination of Datas) सर्वप्रथम आँकड़ों को संख्या के अनुसार क्रमवार तथा पूर्णांक बना लेना चाहिए।

गुण-दोष (Merits and Demerits)-

  1. यह आँकड़े दिखाने की सबसे सरल विधि है।
  2. इनके द्वारा तुलना करना आसान है।
  3. दंडचित्र बनाने कठिन हैं जब समय अवधि बहुत अधिक हो।
  4. जब अधिकतम तथा न्यूनतम संख्या में बहुत अधिक अंतर | हो, तो दंडचित्र नहीं बनाए जा सकते हैं।

दंड आरेखों के प्रकार (Types of Bar Diagrams ) दंड आरेख मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार के होते हैं
1. क्षैतिज दंड आरेख (Horizontal Bars) ये सरल दंड आरेख हैं। इन दंडों से किसी वस्तु का कुछ वर्षों का वार्षिक उत्पादन, जनसंख्या आदि दिखाए जाते हैं ये समान चौड़ाई के होते हैं। ये आसानी से पढ़े जा सकते हैं। सरल दंड आरेख किसी वस्तु के मूल्यों के केवल एक ही गुण को प्रदर्शित करते हैं। इन मूल्यों को आरोही (Ascending) क्रम में व्यवस्थित कर लेना चाहिए। इससे आरेख दंडों की ऊंचाई लगातार बढ़ती जाती है या घटती जाती है। इस विधि से मूल्यों की तुलना करना आसान हो जाता है। क्षैतिज दंड आरेख लंबवत् दंड ओरेखों की अपेक्षा में अच्छे माने जाते हैं क्योंकि इन पर मापक लिखने तथा पढ़ने में सुविधा रहती है।

2. लंबवत् दंड आरेख (Vertical Bars) ये आरेख किसी आधार रेखा के ऊपर खड़े देशों के रूप में बनाए जाते हैं। इन्हें स्तम्भी आरेख (Columnar diagrams) भी कहते हैं। आधार रेखा को शून्य माना जाता है और दंडों की ऊंचाई पैमाने के अनुसार मापी जाती है। इन दंडों से वर्षा का वितरण भी दिखाया जाता है जब उच्चतम तथा निम्नतम संख्याओं में अंतर बहुत अधिक हो तो दंड आरेख प्रयोग नहीं किए जाते दंड की लंबाई कागज के विस्तार से अधिक नहीं होनी चाहिए। यदि दंडों की संख्या बहुत अधिक हो तो भी ये आरेख प्रयोग नहीं किए जाते।

3. संश्लिष्ट दंड आरेख (Compound Bar )-यदि एक दंड को अनेक भागों में बांट कर उसके द्वारा कई वस्तुओं को एक साथ दिखाया जाए तो संश्लिष्ट दंड का निर्माण होता है। इन्हें मिश्रित या संयुक्त दंड आरेख भी कहा जाता है। इनसे आँकड़ों के कुल योग तथा उसके विभिन्न भागों को प्रदर्शित किया जाता है। विभिन्न भागों में अलग-अलग Shade कर दिए जाते हैं ताकि विभिन्न वस्तुएं स्पष्टतया अलग दृष्टिगोचर हों। इस विधि से जल सिंचाई के विभिन्न साधन और शक्ति के विभिन्न साधन आदि दिखाए जाते हैं।

4. प्रतिशत दंड आरेख (Percentage Bar ) किसी वस्तु के विभिन्न भागों को उस वस्तु के कुल मूल्य के प्रतिशत अंश के रूप में दिखाना हो तो प्रतिशत दंड बनाए जाते हैं। दंड की कुल लंबाई 100% को प्रकट करती है।

प्रश्न 4.
रेखाग्राफ की रचना तथा महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर:
सांख्यिकीय चित्रों में रेखाग्राफ का महत्व बहुत अधिक है। इसमें प्रत्येक वस्तु को दो निर्देशकों की सहायता से दिखाया जाता है यह ग्राफ किसी निश्चित समय में किसी वस्तु के शून्य में परिवर्तन को प्रकट करता है। आधार रेखा पर समय को प्रदर्शित किया जाता है जिसे ‘X’ अक्ष कहते हैं ‘Y’ अक्ष या खड़ी रेखा या किसी वस्तु मूल्य को प्रदर्शित किया जाता है। दोनों निर्देशकों के प्रतिच्छेदन के स्थान पर बिंदु लगाया जाता है। इस प्रकार विभिन्न बिंदुओं को मिलाने से एक वक्र रेखा प्राप्त होती है ये रेखाग्राफ दो प्रकार के होते है।

  1. जब किसी निरंतर परिवर्तनशील वस्तु (तापमान, नमी, वायु, भार आदि) को दिखाना हो तो उसे वक्र रेखा (Smooth Curve) से दिखाया जाता है।
  2. जब किसी रुक-रुक कर बदलने वाली वस्तु का प्रदर्शन करना हो तो विभिन्न बिंदुओं को सरल रेखा द्वारा मिलाया जाता है। जैसे वर्षा, कृषि उत्पादन, जनसंख्या।

HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण

महत्त्व (Importance)-
रेखाग्राफ से तापमान, जनसंख्या वृद्धि, जन्म-दर, विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन दिखाया जाता है। यह आसानी से बनाए जा सकते हैं। रेखाग्राफ समय तथा उत्पादन में एक स्पष्ट संबंध प्रदर्शित करते हैं। इसलिए मापक चुना जाता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित आँकड़ों की सहायता से हिसार तथा अंबाला नगर के उच्चतम मासिक तापमान तथा औसत मासिक तापमान को रेखाग्राफ से दिखाओ-
तापमान-1990

नगरज०फ०म०अ०म०जू०जु०अ०सि०अ०न०दि०
हिसार उच्चतम तापमान °C 24.126.835.243.145.045.640.140.339.035.234.327.5
अंबाला औसत तामयान °C14.815.719.226.530.833.029.028.524.134.015.014.6

HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण 3
उत्तर:
तापमान के आँकड़ों को दिखाने के लिए रेखाग्राफ का प्रयोग किया जाता है। ग्राफ पेपर पर एक आधार रेखा लो। इस रेखा पर समय दिखाने के लिए एक पैमाना निश्चित करो। पांच-पांच छोटे खानों के अंतर पर 12 मास दिखाओ। इसे क्षैतिज पैमाना कहते हैं। लंबात्मक पैमाने पर तापमान दिखाने के लिए एक खाना1°C का पैमाना निश्चित करो। प्रत्येक मास के लिए तापमान के लिए बिंदु लगाओ। इन 12 बिंदुओं को मिलाने से एक रेखाग्राफ बन जाएगा।
HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण 4

प्रश्न 6.
वृत्त चक्र किसे कहते हैं? इनकी रचना और गुण-दोष बताओ।
उत्तर:
चक्र चित्र (Pie-Diagram )-यह वृत्त चित्र (Circular Diagrams) का ही एक रूप है। इसमें विभिन्न राशियों के जोड़ को एक वृत्त द्वारा दिखाया जाता है। फिर इस वृत्त को विभिन्न भागों (Sectors) में बांटकर विभिन्न राशियों का आनुपातिक प्रदर्शन अंशों में किया जाता है। इस चित्र को चक्र चित्र (Pic Diagram). पहिया चित्र (Wheel diagram) या सिक्का चित्र (Coin diagram) भी कहते हैं।

रचना- इस चित्र में वृत्त का अर्धव्यास मानचित्र के आकार के अनुसार अपनी मर्जी से लिया जाता है। इसका सिद्धांत यह है कि कुल राशि वृत्त ‘के क्षेत्रफल के बराबर होती है। एक वृत्त के केंद्र पर 360° का कोण बनता है। प्रत्येक राशि के लिए वृत्तांश ज्ञात किए जाते हैं। इसलिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
किसी राशि के लिए कोण =
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कई बार वृत्त के विभिन्न भागों को प्रभावशाली रूप से दिखाने के लिए इनमें भिन्न-भिन्न शेड (छायांकन) कर दिए जाते हैं। गुण-दोष (Merits-Demerits)

  1. चक्र चित्र विभिन्न वस्तुओं के तुलनात्मक अध्ययन के लिए उपयोगी है।
  2. ये कम स्थान घेरते हैं। इन्हें वितरण मानचित्रों पर भी दिखावा जाता है।
  3. इसका चित्रीय प्रभाव (Pictorial Effect) भी अधिक है।
  4. इसमें पूरे आँकड़ों का ज्ञान नहीं होता तथा गणना करनी कठिन होती है।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित आँकड़ों को लंबवत् (Vertical) दंड आरेख द्वारा प्रस्तुत कीजिए।
POPULATION OF INDIA FROM 1901 TO 2001

Census yearPopulationCensus yearPopulation
190123,83,96,327196143,92.34.77
191125,20,93,390197154,81 i9,652
192125,13,21,213198168,38,10051
193127,89,77,238199134,39,30,861
194131,86,60,58020011,02,70,15,247
195136,10,88,09020111,21,01.93,42

उत्तर:
रचना-

  1. आधार रेखा (X-Axis) पर समय का पैमाना निश्चित करके जनगणना वर्ष दिखाओ।
  2. आधार रेखा के सिरों पर लंब रेखाएं (v- Axis) खींचो।
  3. बाई ओर लंब रेखा पर जनसंख्या दिखाने के लिए मापक निश्चित करो जैसे।” = 10 करोड़
  4. मापक के अनुसार प्रत्येक वर्ष के लिए जनसंख्या के लिए दंड की ऊँचाई ज्ञात करो आधार रेखा पर समान चौड़ाई वाली दंड रेखाएं खींचो तथा इन्हें काली छाया से सजाओ।

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से कोलकाता की माध्य मासिक वर्षा का आरेख बनाओ।

वर्षा(सेमी.)
J1
F3
M3
A5
M14
J25
J30
A30
S25
O13
N3
D1

उत्तर:
रचना- आधार रेखा पर पांच-पांच छोटे खानों के अंतर पर 12 मास दिखाओ आधार रेखा के बाएँ सिरे पर एक लंब रेखा खींचो। इस रेखा पर एक छोटा खाना 1 सेंटीमीटर वर्षा का मापक बना कर प्रत्येक मास के लिए लंबवत् दंड रेखा खींचो। इन्हें काले रंग से छायांकन (Shade) करो।
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प्रश्न 9.
निम्नलिखित आंकड़ों को क्षैतिज दंड रेखाचित्र से प्रकट करो।
भारत में पक्की सडकों का वितरण

राज्यपककी सड़कों की लंबाई (कि० मी०)
1. कर्नाटक49,753
2. मध्य प्रदेश45,756
3. उत्तर प्रदेश45,361
4. आध्र प्रदेश35,714
5. तमिलनाडु35,138
6. पंजाब31,862

उत्तर:
रचना-सबसे पहले एक आधार रेखा खींचो। इस रेखा पर मापक बनाओ। सुविधा अनुसार मापक एक सेंटीमीटर = 10000 कि० मी० है तो मापक के अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए दंड रेखा की लंबाई ज्ञात करो। समान चौड़ाई वाले क्षैतिज दंड खींचो। विभिन्न राज्यों के लिए दंड रेखाओं की लंबाई इस प्रकार होगी- कर्नाटक = 4.9 सेंटीमीटर, मध्य प्रदेश = 4.5 सेंटीमीटर, उत्तर प्रदेश = 4.5 सेंटीमीटर, आंध्र प्रदेश = 3.5 सेंटीमीटर, तमिलनाडु =3.5 सेंटीमीटर, पंजाब =3.1 सेंटीमीटर।
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प्रश्न 10.
निम्नलिखित आंकड़ों को मिश्रित दंड आरेख से स्पष्ट करो।
भारत का विदेशी व्यापार (₹ करोड़ में )

बहैआयातनिर्यातकुल
1979-809,1426,45815,700
1980-8112,5606,71019,270
1981-8213,6717,80221,473
1982-8314,0478,63722,684

उत्तर:
रचना (Construction )-आधार रेखा को शून्य मान कर समय दिखाओ। पांच छोटे खाने एक वर्ष के बराबर मान कर समय दिखाएं | आधार पर रेखा की बाईं ओर एक लंब रेखा लो। इस पर एक पैमाना बनाओ जिसमें एक सेंटीमीटर = ₹ 5000 करोड़ का मापक लो। विभिन्न वर्षों के लिए कुल मूल्य के अनुसार खड़े दंड रेखाओं की ऊंचाई ज्ञात करो। प्रत्येक दंड रेखा को दो उप-भागों में बांटकर आयात तथा निर्यात प्रकट करो।
HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण 9

प्रश्न 11.
निम्नलिखित आँकड़ों को प्रतिशत दंड आरेख तथा वृत्तारेख से दिखाओ।
भारत में प्रमुख धर्म

धर्मपतिशत जनसंखा (सम 1991)
1. हिंदू (Hindus)82.41
2. मुसलमान (Muslims)11.67
3. ईसाई (Christians)2.32
4. सिक्ख (Sikhs)1.99
5. अन्य (Others)1.61
कुल =100.00

उत्तर:
रचना-10 सें० मी० लंबी रेखा प्रतिशत दंड बनाओ। इस पर 1 सेंटीमीटर = 10 प्रतिशत का लो। मापक के अनुसार विभिन्न धर्मों के लिए लंब ज्ञात करो और प्रत्येक भाग को दिखाकर अंकित करो।
HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण 10
वृत्तारेख (Piegraph) द्वारा-यह एक द्विमित्तीय आरेख है। इसे पाई अथवा वृत्त अथवा चक्र रेखाचित्र भी कहा जाता है। इस चित्र में विभिन्न उप-भागों को वृत्तांश के कोणों द्वारा दिखाया जाता है।

वृत्त में कुल कोण 360° होते हैं जो कि वस्तु की कुल संख्या को दिखाते हैं। प्रत्येक संख्या के लिए कोण ज्ञात कर लिए जाते हैं।
HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण 19
अर्थात् दी गई संख्या के प्रतिशत को 3.6 से गुणा करो। हिंदू धर्म के लिए कोण = 296.7°, मुसलमान धर्म के लिए कोण 42°, ईसाई धर्म के लिए कोण 8.4°, सिख धर्म के लिए कोण 7.1° है तथा अन्य के लिए 5.8° है।

भारत में धार्मिक आधार पर जनसंख्या 1991
HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण 11

प्रश्न 12.
निम्नलिखित आँकड़ों को रेखाग्राफ़ द्वारा प्रकट करो।
भारत की जनसंख्या वृद्धि (मिलियन में)

वर्षजनसंख्यावर्षजनसेख्य
19012381961439
19112521971548
19212511981683
19312791991844
194131920011027
1951361

उत्तर:
रचना-आधार रेखा को शून्य मानकर इस रेखा पर समय दिखाओ। पांच खाने एक वर्ष के बराबर रखकर विभिन्न वर्ष दिखाओ | आधार रेखा पर बाईं ओर लंब रेखा खींचकर मापक बनाओ। सुविधा के अनुसार मापक 1 सें० मी० = 100 मिलियन हो। प्रत्येक वर्ष की जनसंख्या के लिए खड़े अक्ष पर बिंदु निर्धारित करो। विभिन्न बिंदुओं को सरल रेखा से मिला कर रेखाग्राफ बनाओ।
HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण 12 (2)

प्रश्न 13.
निम्नलिखित आँकड़ों की सहायता से बंबई (मुंबई ) नगर का तापमान तथा वर्षा का रेखाग्राफ बनाओ।

जि०फ०मा०अ०म०जू०जु०अ०सि०अ०न०दि०
तापमान °C22.522.27302928282828272625
वर्षा (सें० मी०)22××45060362664×

उत्तर:
तापमान तथा वर्षा को जब इकट्ठा प्रदर्शित किया जाए तो इसे संयुक्त रेखा तथा दंड ग्राफ कहते हैं। वर्षा को खड़े दंडों द्वारा दिखाया जाता है तथा तापमान को रेखाग्राफ द्वारा दिखाया जाता है। रचना-ग्राफ पेपर पर एक आधार रेखा लो। इस पर समय दिखाने के लिए एक पैमाना निश्चित करो। पांच-पांच छोटे खानों के अंतर पर 12 मास दिखाओ। इसे क्षैतिज पैमाना (Horizontal Scale) कहते हैं। आधार रेखा के सिरों पर लंब खींचो। एक लंब पर तापमान के लिए मापक बनाओ। दूसरे लंब पर वर्षा दिखाने के लिए मापक बनाओ। इसे लंबवत् मापक (Vertical Scale) कहते हैं। मापक के अनुसार वर्षा को खड़ी दंड रेखाओं द्वारा दिखाओ। प्रत्येक भाग के तापमान के लिए बिंदु लगाओ। इन 12 बिंदुओं को मिलाने से एक रेखाग्राफ बन जाएगा।
HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण 12

प्रश्न 14.
प्रवाह आरेखों पर एक नोट लिखें।
उत्तर:
प्रवाह आरेख ( Flow Diagrams)-इन आरेखों से विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की गतिशीलता एवं गति सघनता को दिखाया जाता है। इस प्रकार यह मानचित्र दो तथ्यों पर आधारित है-

  •  प्रवाह की दिशा
  • प्रवाह की मात्रा

ऐसे मानचित्रों को प्रवाह मानचित्र (Flow maps ) भी कहते हैं।

HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण

उदाहरण-

  • जल, रेल, राजमार्गों पर वाहनों की संख्या।
  • ढोया गया माल जैसे गेहूँ, इस्पात आदि।
  • आयात-निर्यात व्यापार।

रचना-

  • क्षेत्र का रेखा-मानचित्र दो जिसमें सभी नगर तथा परिवहन मार्ग निश्चित हों।
  • प्रदर्शित किए जाने वाले तत्व के आँकड़े उपलब्ध हों।
  • एक मापक के अनुसार प्रत्येक मार्ग की मोटाई वाहनों की संख्या के अनुपात में मापी जाए।

गुण-दोष (Merits-Demerits)-

  • इन मानचित्रों द्वारा सभी मार्गों पर प्रवाह की मात्रा का महत्त्व एक साथ प्राप्त हो जाता है।
  • विभिन्न दिशाओं से मार्गों के मिलने के कारण संगम नगरों का महत्त्व बढ़ जाता है।
  • विभिन्न नगरों के प्रभाव क्षेत्र का ज्ञान होता है।
  • विभिन्न केंद्रों के अंतर्संबंधों का पता चलता है।

उदाहरण-निम्नलिखित बस सेवा संबंधी आँकड़ों को प्रवाह मानचित्र द्वारा दिखाइए।

पानीपत से प्रमुख स्थानों की बस सेवा

नूहारबर सेवा संख्या
करनाल70
दिल्ली50
रोहतक20
अंबाला90
जींद25
  1. रेखा-मानचित्रों पर इन नगरों की स्थिति दिखाओ।
  2. इन नगरों के मध्य सड़क मार्ग बनाओ।
  3. प्रत्येक सड़क मार्ग पर रेखा की मोटाई बसों की संख्या ( मापक के अनुसार) अंकित करें।
  4. प्रत्येक मार्ग पर बसों की संख्या तथा दिशा के लिए तीर बनाओ।
  5. मानचित्र पर बसों की संख्या का मापक बनाओ।

HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण 13

प्रश्न 15.
वितरण मानचित्रों से क्या अभिप्राय है? इनकी क्या आवश्यकता है? इसका महत्त्व बताओ।
उत्तर:
वितरण मानचित्र (Distribution Maps )-वितरण मानचित्र वे मानचित्र हैं जो पृथ्वी के किसी भाग में किसी तत्व के वितरण को या मूल्य या घनत्व को प्रकट करते हैं। इन मानचित्रों पर विभिन्न भौगोलिक तत्व तथा वस्तुओं के उत्पादन को अंकित किया जाता है। जैसे- जनसंख्या, पशुधन, फसलें, खनिज आदि। इन मानचित्रों को बनाने के लिए कई विधियों का प्रयोग किया जाता है।

वितरण मानचित्रों की आवश्यकता (Necessity of distribution Maps)-
प्रारंभ में किसी वस्तु के वितरण को प्रकट करने के लिए नामांकन विधि (Writing the name of commodity) का प्रयोग किया था। जिस क्षेत्र में जो वस्तु उत्पन्न हो वहां पर उस वस्तु का नाम लिख दिया जाता था। जैसे- भारत में चावल का उत्पादन प्रकट करने के लिए गंगा के डेल्टा में Rice लिखा जाता था। परंतु इस विधि से न तो वस्तु का कुल उत्पादन और न ही उत्पादन क्षेत्र का ठीक ज्ञान होता था। इसलिए वितरण मानचित्र बनाए गए, जिनमें वैज्ञानिक ढंग पर शुद्धता हो।

भूगोल में विभिन्न तथ्यों की पुष्टि के लिए कई प्रकार के आँकड़ों (Data) का प्रयोग किया जाता है। ये आँकड़े तालिकाओं के रूप (Tables) में लिखे जाते हैं। इन आँकड़ों का अध्ययन बड़ा नीरस, कठिन होता है तथा बहुत समय नष्ट हो जाता है। आँकड़ों को इकट्ठा देखकर किसी परिणाम पर पहुंचना कठिन है। इसलिए इन आँकड़ों को वितरण मानचित्रों द्वारा प्रकट करके मस्तिष्क में एक वास्तविक चित्र की कल्पना की जा सकती है। इसलिए भौगोलिक तत्त्वों को चित्रों की भाषा में प्रकट किया जाता है।

गुण (Advantages) –
(1) यह आर्थिक भूगोल के अध्ययन में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है। पृथ्वी पर विभिन्न साधन तथा मानव का वितरण इन मानचित्रों द्वारा स्पष्ट रूप से प्रकट किया जा सकता है।

(2) इन मानचित्रों से कारण तथा प्रभाव का नियम स्पष्ट हो जाता है। (They help the geographer to study the cause and effect of any distribution.) वस्तु विशेष के वितरण पर प्रभाव डालने वाले भौगोलिक तत्व समझ आ जाते हैं।

(3) आँकड़ों की लंबी-लंबी तालिकाओं को याद करना कठिन हो जाता है। परंतु वितरण मानचित्र एक तथ्य की स्थायी छाप मस्तिष्क पर छोड़ जाते हैं। (They give a visual impression.)

(4) इनका उपयोग शिक्षा संबंधी कार्य (Educational purposes) के लिए अधिक होता है।

(5) इन मानचित्रों द्वारा एक दृष्टि में ही किसी वस्तु के वितरण का तुलनात्मक ज्ञान हो जाता है। (They represent the pattern of distribution of any element.) यह स्पष्ट हो जाता है कि अमुक वस्तु किस क्षेत्र में अधिक और किस क्षेत्र में कम मिलती है।

(6) इन मानचित्रों द्वारा क्षेत्रफल और उत्पादन की मात्रा का तुलनात्मक अध्ययन होता है। (The contrast and comparison become clear at a glance.) वितरण मानचित्र वास्तविक आँकड़ों का स्थान नहीं ले सकते हैं। वास्तव में मानचित्रों के द्वारा एक भूगोलवेत्ता, केवल तथ्य प्रस्तुत कर सकता है। (Such maps supplement the data, but these do not replace the tables.)

HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण

बिंदु मानचित्र (Dot Maps)

प्रश्न 16.
बिंदु मानचित्र से क्या अभिप्राय है? इसकी रचना के लिए क्या आवश्यकताएं हैं? इनकी रचना संबंधी समस्याओं का वर्णन करो तथा गुण-दोष बताओ।
उत्तर:
बिंदु मानचित्र ( Dot Maps )-इस विधि के अंतर्गत किसी वस्तु के उत्पादन तथा वितरण के आँकड़ों को बिंदुओं द्वारा प्रकट किया जाता है। ये बिंदु समान आकार के होते हैं। प्रत्येक बिंदु द्वारा एक निश्चित संख्या (Specific Value) प्रकट की जाती है, किसी वस्तु की निश्चित संख्या तथा मात्रा (Absolute Figures) उपलब्ध हों। वितरण मानचित्र बनाने की यह सबसे अधिक प्रचलित जब सर्वोत्तम विधि है। (This is the most common method used for showing the distribution of population, livestock, crops, minerals etc.) बिंदु मानचित्र बनाने के लिए आवश्यकताएं (Requirements for drawing Dot Maps )-बिंदु विधि द्वारा मानचित्र बनाने के लिए कुछ चीज़ों की आवश्यकता होती है।
1. निश्चित आँकड़े (Definite and Detailed Data )-जिस वस्तु का वितरण प्रकट करना हो उसके सही-सही आँकड़े उपलब्ध होने चाहिए। ये आँकड़े प्रशासकीय इकाइयों (Administrative Units) के आधार पर होने चाहिएं। जैसे जनसंख्या तहसील या जिले के अनुसार होनी चाहिए।

2. रूप-रेखा मानचित्र ( Outline Map)-उस प्रदेश का एक सीमा चित्र हो जिसमें ज़िले या राज्य आदि शासकीय भाग दिखाए हों। यह सीमा-चित्र समक्षेत्र प्रक्षेप (Equal Area Projection) पर बना हो।

3. धरातलीय मानचित्र (Relief Map)-उस प्रदेश का धरातलीय मानचित्र हो जिसमें Contours, Hills, Marshes आदि धरातल की आकृतियां दिखाई गई हों।

4. जलवायु मानचित्र (Climatic Map)-उस प्रदेश का जलवायु मानचित्र हो जिसमें वर्षा तथा तापमान का ज्ञान हो सके।

5. मृदा मानचित्र (Soil Map )-विभिन्न कृषि पदार्थों की उपज वाले मानचित्रों में भूमि के मानचित्र आवश्यक हैं क्योंकि हर प्रकार की मिट्टी का उपजाऊपन विभिन्न होता है।
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6. स्थलाकृतिक मानचित्र (Topographical Map )-जनसंख्या के वितरण के लिए भूपत्रक मानचित्रों की आवश्यकता होती है जिनमें शहरी (Urban) तथा ग्रामीण ( Rural Settlements) नगर आवागमन के साधन और नहरें आदि प्रकट की जाती हैं।

रचना-विधि (Procedure )

  1. वितरण मानचित्र की सभी आवश्यक सामग्री को इकट्ठा कर लेना चाहिए।
  2. मानचित्र पर प्रशासकीय इकाइयों (Administrative Units) को दिखाओ।
  3.  राजनीतिक या प्रशासकीय इकाइयों के विस्तार को देखकर तथा आँकड़ों के कम-से-कम और अधिक से अधिक मूल्य को देखकर एक बिंदु का मूल्य ज्ञात करो।
  4. प्रत्येक इकाई के लिए बिंदुओं की संख्या गिनकर पूर्ण अंक बनाओ।
  5. प्रत्येक इकाई में बिंदुओं की संख्या हल्के हाथ से पेंसिल से लिख दो।
  6. धरातल, जलवायु और मिट्टी के मानचित्रों की सहायता से उस क्षेत्र में नकारात्मक प्रदेश (Negative areas) को ज्ञात करो और मानचित्र में पेंसिल से अंकित करो ताकि इन स्थानों को रिक्त छोड़ा जा सके।
  7. बिंदुओं के आकार को समान कर लो।
  8. घनत्व के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों में बिंदु प्रकट करके मानचित्र बनाओ।

बिंदु मानचित्र की समस्याएं (Problems of Dot Map)

1. बिंदुओं का मान (Value of a dot)
बिंदुओं को अंकित करने से पहले एक बिंदु का मूल्य निश्चित कर लेना चाहिए। (The success of the map depends upon the choice of the value of a dot.) मानचित्र को प्रभावशाली बनाने के लिए बिंदु का मूल्य ध्यानपूर्वक निश्चित करना चाहिए। कई बार गलत मूल्य के कारण बिंदुओं की संख्या बहुत अधिक हो जाती है या बहुत थोड़ी रह जाती है। मापक या मूल्य ऐसा निश्चित करना चाहिए जिसमें क्षेत्र में बिंदुओं की संख्या इतनी अधिक न हो कि उन्हें गिनना कठिन हो जाए। बिंदुओं की संख्या इतनी कम भी न हो कि कुछ प्रदेश खाली रह जाएं। मूल्य का चुनाव निश्चित करना तीन बातों पर निर्भर करता है-

  • मानचित्र का मापक (Scale of the map)
  • अधिकतम तथा न्यूनतम आंकड़े (Maximum and Minimum Figures)
  • प्रदर्शित तत्व के प्रकार (Types of the Element).

2. मानचित्र का मापक (Scale of the Map)
यदि मानचित्र लघु मापक (Small Scale) पर बना हुआ है तो बिंदुओं की संख्या बहुत अधिक नहीं होनी चाहिए। एक बिंदु का मूल्य अधिक होना चाहिए ताकि बिंदुओं की संख्या इतनी हो जो उस छोटे मानचित्र में अंकित की जा सके नहीं तो अधिक बिंदुओं के कारण मानचित्र का प्रभाव स्पष्ट नहीं होगा। (The areas having low density will also appear dark and give a misleading idea.) यदि मानचित्र दीर्घ मापक पर हो तो एक बिंदु का मूल्य बहुत अधिक नहीं होना चाहिए। एक बिंदु के अधिक मूल्य के कारण कई क्षेत्रों में बिंदुओं की संख्या बहुत कम होगी (With very few dots the map will look blank.)

3. बिंदुओं को लगाना (Placing of dots)
बिंदु मानचित्र बनाते समय ऋणात्मक क्षेत्र (Negative areas) में बिंदु नहीं लगाने चाहिए। ऐसे क्षेत्र प्रायः दलदली भागों में, मरुस्थलों में, पर्वतों पर या बंजर भूमि में मिलते हैं ये क्षेत्र धरातलीय मानचित्र, मृदा मानचित्र तथा जलवायु मानचित्र की सहायता से मानचित्र पर लगाए जा सकते हैं। इन स्थानों को रिक्त छोड़ दिया जाता है क्योंकि यहां उत्पादन असंभव होता है। दीर्घ मापक मानचित्र पर क्षेत्र आसानी से दिखाए जा सकते हैं परंतु लघु मापक मानचित्रों पर इन्हें दिखाना कठिन होता है।

  • बिंदुओं की अधिक संख्या के कारण बिंदु एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं। (Dots should not merge together.) इसमें मानचित्र पर संख्या गिनना असंभव हो जाता है।
  • बिंदु बिखरे हुए रूप में लगाना चाहिए अन्यथा नियमित बिंदुओं के कारण समान वितरण दिखाई देगा। (Straight rows of dots should be avoided.) जैसे कि शेडिंग मानचित्र (Shading Maps ) में दिखाई देता है। यह भौगोलिक नियम में विपरीत भी है क्योंकि उत्पादन में विभिन्नता होती है।
  • गुरुत्वीय केंद्र (Centre of Gravity) बिंदु अंकित करते समय प्रत्येक बिंदु अपने चित्र के आकर्षण केंद्र को प्रकट करे; जैसे- जनसंख्या मानचित्र में बिंदुओं के केंद्र नगरों के स्थान पर लगाने चाहिए।
  • अधिक उत्पादन के क्षेत्रों में बिंदु इकट्ठे होने चाहिए।

4. बिंदुओं का आकार (Size of the dots)
बिंदु मानचित्र की शुद्धता और सुंदरता इस बात पर निर्भर करती है कि प्रत्येक बिंदु समान आकार का हो। इनका आकार दो बातों पर निर्भर करता है-

  • मानचित्र मापक (Scale of the Map)
  • बिंदुओं की संख्या (Number of Dots)

यदि मानचित्र दीर्घ मापक पर बना हुआ है तो बिंदु कुछ बड़े हो सकते हैं परंतु लघु मापक मानचित्रों पर बिंदुओं का आकार अपेक्षाकृत छोटा होगा। इसी प्रकार यदि बिंदुओं की संख्या अधिक है तो भी बिंदु का आकार छोटा होगा। बिंदुओं को समान आकार करने के लिए विशेष प्रकार की निब प्रयोग की जाती है जैसे Le Roy Nib तथा Pazent Nib आदि।

गुण (Merits)
(1) यह मानचित्र किसी वस्तु के क्षेत्रफल के साथ-साथ उसका मूल्य या मात्रा भी प्रकट करते हैं। (This method is both quantitative and qualitative.)

(2) मानचित्र में नकारात्मक क्षेत्रों को खाली छोड़ा जा सकता है। (Waste land can be avoided.).

(3) यह मानचित्र मस्तिष्क पर एक छाप छोड़ जाते हैं कि कहां उत्पादन अधिक है और कहां कम है। (It gives visual impression.)

(4) इन मानचित्रों में रंग का गहरापन उत्पादन की मात्रा के अनुसार होता है। इसलिए यह मानचित्र वितरण के स्वरूप (Pattern of Distribution) को ठीक ढंग से प्रस्तुत करते हैं। इस विधि द्वारा बिंदुओं को सरलतापूर्वक गिना जा सकता है और बिंदुओं को पुनः आँकड़ों में बदला जा सकता है। इस प्रकार किसी वस्तु की मात्रा का भी सही ज्ञान हो जाता है।

(5) इन मानचित्रों को शेडिंग मानचित्र (Shading Map) में बदला जा सकता है। अधिक बिंदुओं वाले क्षेत्र को शेड (Shade) में पूरा दिखाया जा सकता है। एक ही मानचित्र कई अन्य क्षेत्रों के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है। जैसे-Markets, Fairs, Coal Fields Villages आदि दिखाने के लिए यह एक शुद्ध विधि है जिनमें वितरण तथा तीव्रता ठीक प्रकार से दिखाई जा सकती है।

दोष (Demerits)

  1. एक ही मानचित्र पर एक-से-अधिक वस्तुओं का वितरण नहीं दिखाया जा सकता।
  2. इनके बनाने में काफ़ी समय लगता है और यह कठिन कार्य
  3. इनका प्रयोग शिक्षा संबंधी कार्यों में किया जाता है परंतु वैज्ञानिक कार्यों के लिए सम मान रेखा-विधि ( Isopleth) का प्रयोग किया जाता है।
  4. यह मानचित्र अनुपात, प्रतिशत तथा औसत आँकड़ों के लिए प्रयोग नहीं किए जा सकते। (This method cannot be used for ratios and percentages and average figures.)
  5. बिंदु अधिक स्थान घेरते हैं।

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वर्णमात्री मानचित्र
(Shading Map)

प्रश्न 17.
वर्णमात्री मानचित्र किसे कहते हैं? इसका सिद्धान्त क्या है? इसकी रचना-विधि तथा गुण-दोष का वर्णन करो।
उत्तर:
वर्णमात्री मानचित्र (Shading Map)- इस विधि को Choropleth Method भी कहते हैं। इस विधि में किसी एक वस्तु के वितरण को मानचित्र पर विभिन्न आभाओं या रंगों द्वारा प्रकट किया जाता है। (In this method distribution of an element is shown by different shades.) किसी रंग की अपेक्षा Black and white shading का प्रयोग करना उचित समझा जाता है।

सिद्धांत (Principle of Shading)
जैसे-जैसे किसी वस्तु में वितरण का घनत्व बढ़ता जाता है उसी प्रकार आभा (Shade ) भी अधिक गहरी होती जाती है (The lighter shades show lower densities and deeper shades show higher densities.) आभा को अधिक सघन करने के कई तरीके हैं-

  1. बिंदुओं का आकार बड़ा करके (By enlarging the dots)
  2. रेखाओं को मोटा करके (By thickening the lines)
  3. बिंदु रेखाओं को निकट करके (By bringing the lines closed together)
  4. रेखा जाल बनाकर (By crossing the lines)
  5. रंगों को गहरा करके (By increasing the depth of the colours)

प्रत्येक मानचित्र के नीचे Scheme of shades का एक सूचक (Index) दिया जाता है।

रचना-विधि (Procedure)

  1. किसी वस्तु के निश्चित आँकड़े प्राप्त करो। यह आँकड़े प्रशासकीय इकाइयों के आधार पर हों।
  2. ये आँकड़े औसत के रूप में हों या प्रतिशत या अनुपात के रूप में, जैसे- जनसंख्या का घनत्व।
  3. घनत्व को प्रकट करने के लिए उचित अंतराल (Interval) चुन लेना चाहिए।
  4. अंतराल के अनुसार Shading का सूचक मानचित्र के कोने में बनाना चाहिए।
  5. यह आभा घनत्व के अनुसार गहरी होती चली जाए।
  6. प्रत्येक प्रशासकीय इकाई में घनत्व के अनुसार शेडिंग करके मानचित्र तैयार किया जा सकता है।

समस्याएं (Problems)-
1. प्रशासकीय इकाई का चुनाव (Choice Administrative Unit)-
प्राय: आँकड़े प्रशासकीय इकाइयों के आधार पर एकत्रित किए जाते हैं, जिसे जिले या तहसील के अनुसार मानचित्र बनाने के लिए सबसे पहले प्रशासकीय इकाई का चुनाव करना होता है। प्रशासकीय इकाई न बहुत बड़ी होनी चाहिए और न ही बहुत छोटी। यदि काफ़ी बड़ी इकाई को चुन लिया जाए तो मानचित्र से भ्रम उत्पन्न हो सकता है कि इतने बड़े क्षेत्र में समान वितरण है। कई बार कई आँकड़े छोटी इकाइयों के आधार पर उपलब्ध नहीं होते, इसलिए उस दशा में बड़ी इकाइयां चुनी जाती हैं।

2. अंतराल का चुनाव (Choice of Intervals) –
घनता के अनुसार शेडिंग में अंतर रखा जाता है। इसी अंतर के अनुसार Scheme of Shading या Scale of Densities या सूचक बनाया जाता है। इस उद्देश्य के लिए सारे आँकड़ों को कुछ वर्गों में बांटा जाता है। यह वर्ग बनाते समय इन आँकड़ों की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है।

  • अधिकतम संख्या (Maximum figures)
  • निम्नतम संख्या (Minimum figures)
  • दरमियानी संख्या (Intermediate figures)

श्रेणियों की संख्या काफ़ी होनी चाहिए ताकि प्रत्येक इकाई का सापेक्षिक महत्त्व (Comparative importance) स्पष्ट रूप से दिखाई दे बहुत अधिक श्रेणियां नक्शे पर गड़बड़ कर देती हैं और बहुत कम श्रेणियों के कारण वितरण की विभिन्नता प्रकट नहीं होती। (Too many categories can be confusing and too few categories can result in little differentiation) प्रायः अंतराल नियमित (Regular) होता है परंतु यह आवश्यक नहीं है कि हर श्रेणी में अंतर समान हो।

गुण (Merits)
(1) इस विधि के द्वारा किसी वस्तु के क्षेत्रीय घनत्व (Areal density) के औसत वितरण को प्रकट किया जा सकता है। (It is useful for showing average figures or percentage or ratios.)

(2) यह विधि अधिकतर फसलें, पशु, भू-उपयोग और जनसंख्या घनत्व को प्रकट करने के लिए प्रयोग की जाती है। इसके लिए क्षेत्रफल की प्रत्येक इकाई (Per unit area) के औसत आँकड़े दिए जाते हैं; जैसे-Numbers of persons per sq. km. या Number of livestock per sq. km. Yield of a crop per hectare.
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(3) एक जैसे प्रभाव के कारण यह रंग-विधि से मिलता-जुलता है। (This method is somewhat similar to colour method.)
(4) विभिन्न रंग प्रयोग करने से यह मानचित्र मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ जाते हैं। (It gives visual impression on the mind.)
(5) यह मानचित्र गुणात्मक होते हैं जिनमें केवल क्षेत्रफल के साथ-साथ आँकड़ों का ज्ञान हो जाता है।
(6) इस विधि से विभिन्न प्रकार के अन्य मानचित्र भी बनाए जा सकते हैं।
(7) जनसंख्या के घनत्व को प्रकट करने के कारण इसे मानवीय भूगोल का मुख्य उपकरण कहा जाता है। (Choropleth map is the chief tool of human Geographer.)

दोष (Demerits)

  1. ऐसे मानचित्रों के लिए आँकड़े इकट्ठे करना कठिन होता है।
  2. इन मानचित्रों से केवल औसत का ही पता चलता है तथा कुल उत्पादन का अनुमान लगाना कठिन होता है।
  3. इस विधि द्वारा किसी क्षेत्र में समान वितरण (Uniform distribution) प्रकट किया जाता है जो भौगोलिक नियम के अनुसार नहीं है। किसी क्षेत्र के विभिन्न भागों में उत्पादन विभिन्न होता है।
  4. प्राय: अधिक घनत्व वाले छोटे क्षेत्र अधिक महत्त्वपूर्ण दिखाई देते हैं जबकि किसी बड़े क्षेत्र में बहुत अधिक उत्पादन है परंतु औसत घनत्व कम है। ऐसा क्षेत्र अधिक उत्पादन होते हुए भी कम महत्त्वपूर्ण दिखाई देगा।
  5. इस विधि द्वारा ऋणात्मक प्रदेश में भी उत्पादन प्रकट किया जाता है जैसे मरुस्थल, दलदल, झील आदि ऐसे क्षेत्रों में 1 उत्पन्न नहीं होता परंतु वहां उत्पादन अंकित होता है।

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प्रश्न 18.
सममान रेखा मानचित्र किसे कहते हैं? इसके विभिन्न प्रकार बताओ। इन मानचित्रों की रचना कैसे की जाती है? इनके गुण तथा दोष बताओ।
उत्तर:
सममान रेखाएं (Isopleths )-शब्द Isopleth दो शब्दों के जोड़ से बना (Isos + plethron) है Isos शब्द का अर्थ है समान तथा Plethron शब्द का अर्थ है मान इस प्रकार सममान रेखाएं वे रेखाएं हैं जिनका मूल्य, तीव्रता तथा घनत्व समान हो। ये रेखाएं उन स्थानों को आपस में जोड़ती हैं जिनका मान (value) समान हो। (Isopleths are lines of equal value in the form of quantity, intensity and density.)
सममान रेखाओं के प्रकार (Types of Isopleths) विभिन्न तत्वों को दिखाने वाली सम-रेखाओं को क्रमशः इन नामों से पुकारा जाता है-
1. समदाब रेखाएं (Isobars) समान वायु दाब वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को समदाब रेखा कहते हैं।
HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण 162. समताप रेखाएं (Isotherms)-समान तापमान वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को समताप रेखा कहते हैं।
3. समंवृष्टि रेखा (Isohyets) समान वर्षा वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को समवृष्टि रेखा कहते हैं।
4. समोच्य रेखाएं (Contours)-समान ऊंचाई वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को समोच्च रेखा कहते हैं।
5. सममेघ रेखा (Iso Npeh) समान मेघावरण वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को सममेघ रेखा कहते हैं।
6. अन्य (Others)-जैसे समगंभीरता रेखा (Isobath), समलवणता रेखा (Iso Haline), समभूकंभ रेखा (Iso Seismal), समधूप रेखा (Isohets) अन्य उदाहरण हैं।

सममान रेखाओं की रचना (Drawing of Isopleths)-
(1) संबंधित क्षेत्र का रूप रेखा मानचित्र (Outline map) की आवश्यकता होती है। इस मानचित्र पर सभी स्थानों की स्थिति अंकित हो।
(2) इस क्षेत्र के अधिक-से-अधिक स्थानों के आँकड़े प्राप्त होने चाहिए।
(3) अधिकतम तथा न्यूनतम आँकड़ों के अनुसार इन रेखाओं के मध्य अंतराल (Interval) चुनना चाहिए। अंतराल या सममान रेखाओं की संख्या न तो कम हो और न ही अधिक हो।
(4) अंतराल का चुनाव किसी तत्व के परिवर्तन की दर पर निर्भर करता है। बड़े क्षेत्र पर दूर-दूर स्थित रेखाएँ मंद परिवर्तन प्रकट करती हैं। यदि परिवर्तन दर तीव्र हो तथा क्षेत्र कम हो तो ये रेखाएं उपयोगी सिद्ध नहीं होतीं।
(5) समान मान वाले स्थानों को मिलाकर सम-मान रेखाएँ खींची जाती हैं। यदि समान मूल्य वाले स्थान प्राप्त न हों तो विभिन्न मूल्य वाले स्थानों के बीच समानुपात दूरी पर इन रेखाओं का अन्तर्वेशन किया जाता है।
HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण 17(6) कई बार विभिन्न मूल्य वाले क्षेत्रों को अलग-अलग स्पष्ट करने के लिए इनके बीच आभाओं (Shades ) या रंगों का प्रयोग भी किया जाता है।

गुण (Merits) –

  • सम-मान रेखाएँ वर्षा, तापमान आदि आँकड़ों के परिवर्तन को शुद्ध रूप से प्रदर्शित करती हैं।
  • ये रेखाएँ किसी स्थान पर उपस्थित मूल्य को प्रकट करती हैं।
  • अन्य विधियों की अपेक्षा यह एक अधिक वैज्ञानिक विधि है।
  • बिंदु मानचित्र तथा वर्णमात्री मानचित्रों को सम-मान रेखा, मानचित्रों में बदला जा सकता है।
  • इन मानचित्रों का प्रशासकीय इकाइयों से कोई संबंध नहीं होता है।

दोष (Demerits) –

  •  सम-मान रेखाओं का अंतर्वेशन एक कठिन कार्य है।
  • यदि आँकड़े अनेक स्थानों पर प्राप्त न हों तो ये मानचित्र नहीं बनाए जा सकते।
  • घनत्व में अधिक तथा तीव्र परिवर्तन हो तो ये मानचित्र अर्थपूर्ण नहीं रहते।
  • सम- मान रेखा-मानचित्रों पर ग्रामीण तथा शहरी जनसंख्या को एक साथ नहीं दिखाया जा सकता।

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मौखिक परीदा के प्रश्न (Questions For Viva-Voce)

प्रश्न 1.
आँकड़े प्रायः किस रूप में लिखे जाते हैं?
उत्तर:
तालिकाओं के रूप में।

प्रश्न 2.
दंड आरेख के मुख्य प्रकार बताओ।
उत्तर:

  1. क्षैतिज दंड आरेख
  2. लंबवत् दंड आरेख
  3. संश्लिष्ट दंड आरेख
  4. प्रतिशत दंडारेख।

HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण

प्रश्न 3.
दंडारेख में मापक चुनते समय किस बात का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
अधिकतम तथा न्यूनतम आँकड़ों का।

प्रश्न 4.
कौन-से दंडारेख अच्छे माने जाते हैं- क्षैतिज अथवा लंबवत्?
उत्तर:
क्षैतिज दंडारेख इनमें मापक दृष्टि के सामने होने से पढ़ने-लिखने में सुविधा रहती है।

प्रश्न 5.
भारत का विदेशी व्यापार ( आयात-निर्यात ) किस दंड आरेख द्वारा दिखाया जाता है?
उत्तर-:
संश्लिष्ट दंड आरेख

प्रश्न 6.
भारत की जनसंख्या वृद्धि किस रेखाग्राफ से दिखाई जाती है?
उत्तर:
सरल रेखाग्राफ से।

प्रश्न 7.
वृत्त चक्र कितने प्रकार के हैं?
उत्तर:

  1. चक्र चित्र (Pie-graph)
  2. मुद्रिका चित्र ( Ring Diagram)
  3. वृत्त चित्र (Circular Diagram)
  4. अंशंकित वृत्त।

प्रश्न 8.
वृत्त चित्रों का सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
वृत्त का क्षेत्रफल मात्रा के अनुपात होता है।

प्रश्न 9.
भारत में विभिन्न धर्मों के लोगों की संख्या किस दंड आरेख से दिखाई जाती है?
उत्तर:
प्रतिशत दंड आरेख से।

प्रश्न 10.
वितरण मानचित्र के दो मुख्य प्रकार बताओ।
उत्तर:

  1. गुणात्मक (Qualitative)
  2. मात्रात्मक (Quantitative)

प्रश्न 11.
हरियाणा राज्य की जिलावार कुल जनसंख्या वितरण किस विधि से दिखाई जाती है?
उत्तर:
बिंदु विधि (Dot Method)।

प्रश्न 12.
एक बिंदु का मूल्य चयन किन दो तत्वों पर निर्भर
उत्तर:

  1. अधिकतम न्यूनतम आँकड़े।
  2. मानचित्र का विस्तार।

प्रश्न 13.
नकारात्मक प्रदेश क्या होते हैं?
उत्तर:
मरुस्थल, दलदली प्रदेश यहां कुछ नहीं होता।

प्रश्न 14.
बिंदु विधि से किस प्रकार के मानचित्र बनते हैं?
उत्तर:
गुणात्मक तथा मात्रात्मक।

प्रश्न 15.
वर्णं मात्री मानचित्र किस प्रकार के मानचित्र हैं?
उत्तर:
गुणात्मक।

प्रश्न 16.
हरियाणा राज्य की जिलावार जनसंख्या घनत्व किस विधि से दिखाई जाती है?
उत्तर:
वर्णमात्री मानचित्र।

HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण

प्रश्न 17.
वर्णमात्री मानचित्र का सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
किसी क्षेत्र में आभा का गहरापन घनत्व के अनुपात में होता है।

प्रश्न 18.
किसी वर्णमात्री मानचित्र (राज्य के) में प्रशासकीय इकाई क्या होती है?
उत्तर:
जिला या तहसील।

प्रश्न 19.
वर्णमात्री मानचित्र में वर्ग अंतराल क्या समान होता है?
उत्तर:
नहीं।

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HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 आंकड़े : स्रोत और संकलन

Haryana State Board HBSE 12th Class Geography Solutions Practical Work in Chapter 1 आंकड़े: स्रोत और संकलन Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 आंकड़े : स्रोत और संकलन

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए- (i) एक संख्या अथवा लक्षण को जो मापन को प्रदर्शित करता है, कहते हैं-
(क) अंक
(ग) संख्या
(ख) आंकड़े
(घ) लक्षण
उत्तर:
(ख) आंकड़े।

HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 आंकड़े : स्रोत और संकलन

(ii) एकल आधार सामग्री एकमात्र माप हैं-
(क) तालिका
(ग) वास्तविक संसार
(ख) आवृत्ति
(घ) सूचना।
उत्तर:
(क) तालिका।

(iii) एक मिलान चिह्न में, फोर एंड क्रासिंग फिफ्थ द्वारा समूहीकरण को कहते हैं-
(क) फोर एंड क्रास विधि
(ख) मिलान चिह्न विधि
(ग) आवृत्ति अंकित विधि
(घ) समावेश विधि
उत्तर:
(क) फोर एंड क्रास विधि

(iv) ओजाइव एक विधि है जिसमें-
(क) साधारण आवृत्ति नापी जाती हैं
(ख) संचयी आवृत्ति नापी जाती हैं।
(ग) साधारण आवृत्ति अंकित की जाती हैं
(घ) संचयी आवृत्ति अंकित की जाती हैं।
उत्तर:
(घ) संचयी आवृत्ति अंकित की जाती हैं।

(v) यदि वर्ग के दोनों अंत आवृत्ति समूह में लिए गए हों, इसे कहते हैं-
(क) बहिष्कार विधि
(ख) समावेश विधि
(ग) चिह्न विधि
(घ) सांख्यिकीय विधि।
उत्तर:
(ख) समावेश विधि।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
(i) आंकड़ा और सूचना के बीच अंतर।
उत्तर:
सभी प्रकार के स्वीकृत तथ्य, व्यक्ति, वस्तु, स्थानों इत्यादि के नाम उनसे जुड़े तथ्य विवरण व आंकड़ों को डेटा (आंकड़ा) कहते हैं। इन आंकड़ों की कंप्यूटर द्वारा प्रोसेस कर एंड यूजर के लिए उपलब्ध करवाई जाने वाली उपयोगी जानकारियों को सूचना कहते हैं।

(ii) आंकड़ों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सभी प्रकार के स्वीकृत तथ्य, व्यक्ति, स्थानों इत्यादि के नाम उनसे जुड़े तथ्य, विवरण व आंकड़ों को डेटा या आंकड़े कहते हैं।

(iii) एक तालिका में पाद टिप्पणी से क्या लाभ हैं?
उत्तर:
एक तालिका में पाद टिप्पणी से लाभ इस प्रकार हैं- तालिका में, पाद टिप्पणी कुछ विशिष्ट सेल (cells) से जुड़ी होती है। इस सेल (cells) में कॉलम शीर्षक अथवा कतार शीर्षक शामिल होते हैं।

(iv) आंकड़ों के प्राथमिक स्त्रोतों से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
वे आंकड़े जो क्षेत्र से सीधे किसी तत्व की गणना द्वारा अथवा लोगों से साक्षात्कार करके प्राप्त किये जाते हैं, उन्हें प्राथमिक आँकड़े कहते हैं।

(v) द्वितीयक आंकड़ों के पाँच स्त्रोत बताइए।
उत्तर:
द्वितीयक आंकड़ों के पाँच प्रकाशित व अप्रकाशित स्त्रोत इस प्रकार हैं-

  1. सरकारी
  2. अर्ध सरकारी
  3. अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन
  4. निजी प्रकाशन
  5. समाचार पत्र और पत्रिकाएं।

(vi) आवृत्ति वर्गीकरण की अपवर्ती विधि क्या है?
उत्तर:

वर्गfCf
00-1044
10-2059
20-30514
30-40721
40-50627
50-601037
60-70845
70-80651
80-90556
90-100460

जैसे कि इस तालिका में दर्शाया गया है कि एक वर्ग की उच्च सीमा अगले वर्ग की निम्न सीमा जैसी है। इस विधि में कोई भी अवलोकन जिसका मूल्य 30 है उसी वर्ग में रखा जाएगा जिसमें यह निम्न सीमा पर आता है और यह उस वर्ग से निकाल दिया जाता है जिसमें यह उच्च सीमा पर है। इसलिए इस विधि को अपवर्ती विधि कहते हैं।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दीजिए-
(i) राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अभिकरणों की चर्चा कीजिए। जहाँ से द्वितीयक आंकड़े एकत्र किए जा सकते हैं?
उत्तर:
द्वितीयक आंकड़ों को राष्ट्रीय अथवा अंतर्राष्ट्रीय अभिकरणों द्वारा एकत्र किया जा सकता है जैसे कि-
सरकारी प्रकाशन – विभिन्न मंत्रालयों और भारत सरकार के विभागों, राज्य सरकारों के प्रकाशन और जिलों के बुलेटिन द्वितीयक सूचनाओं के महत्वपूर्ण साधन हैं। इनके अंतर्गत भारत के महापंजीयक कार्यालय द्वारा प्रकाशित भारत की जनगणना राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण की रिपोर्ट, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की मौसम रिपोर्ट, राज्य सरकारों द्वारा प्रकाशित सांख्यिकीय सारांश और विभिन्न आयोगों द्वारा प्रकाशित आवधिक रिपोर्ट सम्मिलित किए जाते हैं।

HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 आंकड़े : स्रोत और संकलन

(ii) सूचकांक का क्या महत्व है? सूचकांक की परिकलन की प्रक्रिया को बताने के लिए एक उदाहरण लीजिए और परिवर्तनों को दिखाइए।
उत्तर:
सूचकांक एक सांख्यिकीय मापदण्ड है जो किसी परिवर्ती में आए बदलाव को दिखाने के लिए अथवा समय को ध्यान में रखकर परिवर्तीयों से जुड़े ग्रुप, भौगोलिक स्थानों तथा तापों को दिखाने के लिए डिजाइन किया गया है। सूचकांक न केवल समय के साथ हुए परिवर्तनों की माप करता है बल्कि विभिन्न स्थानों, उद्योगों, नगरों अथवा देशों की आर्थिक दशाओं की तुलना भी करता है। सूचकांक का प्रयोग व्यापक रूप में अर्थशास्त्र तथा व्यवसाय में लागत तथा मात्रा में आए बदलाव को देखने के लिए किया जाता है। सूचकांक के परिकलन के लिए अलग-अलग प्रकार की विधियाँ हैं। इसे इस प्रकार प्राप्त किया जाता है-
\(\frac{\sum q 1}{\sum q 0} \times 100\)
∑q1 = वर्तमान वर्ष के उत्पादन का योग
∑q0= आधार वर्ष के उत्पादन का योग
HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 1 आंकड़े स्रोत और संकलन 1

लघु उत्तरीय प्रश्न
(Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भौगोलिक आँकड़े किन्हें कहते हैं?
उत्तर:
भौगोलिक आँकड़े (Geographical Data)- भौगोलिक आँकड़े संख्याओं तथा सूचना के समूह का विवरण है।
आँकड़े किसी तथ्य के घनत्व, वितरण तथा विस्तार की जानकारी प्रदान करते हैं। भौगोलिक आँकड़े विभिन्न प्रकार के होते हैं जिनमें उच्चावच, चट्टानें, जलवायु, वनस्पति, कृषि, उद्योग, व्यापार, परिवहन तथा मानव संबंधी आँकड़े हैं।

प्रश्न 2.
आँकड़ों के वर्गीकरण के कौन-कौन से चरण हैं?
उत्तर:
आँकड़ों के वर्गीकरण के निम्नलिखित मुख्य चरण हैं-

  1. समय, प्रदेश, गुण, मात्रा आदि के आधार पर आँकड़ों के वर्ग बनाना (Classification)
  2. आँकड़ों का शुद्ध रूप में सारणीयन (Tabulation)
  3. उपयुक्त सांख्यिकीय तकनीकों का प्रयोग करते हुए आँकड़ों को संसाधित करना (Processing)

प्रश्न 3.
आँकड़ों के प्राथमिक स्रोतों एवं गौण स्रोतों की तुलना करो।
उत्तर:
आँकड़ों के स्रोत (Sources of Data)- भौगोलिक आँकड़ों के दो मुख्य स्रोत होते हैं- प्राथमिक (Primary) तथा गौण (Secondary)।

  1. प्राथमिक आँकड़े-वे आँकड़े जो क्षेत्र से सीधे किसी तत्त्व की गणना द्वारा अथवा लोगों से साक्षात्कार करके प्राप्त किए जाते हैं, उन्हें प्राथमिक आँकड़े कहते हैं।
  2. गौण आँकड़े-गौण आँकड़े प्रयोगकर्ता द्वारा स्वयं एकत्र नहीं किए जाते हैं। ये बहुधा प्रकाशित होते हैं अथवा किसी दूसरे के पास उपलब्ध होते हैं। प्रयोगकर्ता ऐसे आँकड़ों को लेकर उन्हें सही व विश्वसनीय मानते हुए अपना निष्कर्ष निकालते हैं।

प्रश्न 4.
आँकड़ों के स्रोत कौन-से हैं?
उत्तर:
प्राथमिक आँकड़ों के स्त्रोत (Sources of Primary Data)- प्राथमिक आँकड़ों का मुख्य स्रोत क्षेत्र सर्वेक्षण (Field work) होता है गौण सूचनाओं के स्रोतों की संख्या अनगिनत है। प्रत्येक विशिष्ट संस्था अपने अलग-अलग आँकड़े एकत्र करके प्रकाशित करती है।
(1) भारत का जनगणना विभाग (Census Deptt.) जनसंख्या आँकड़ों का प्रकाशन करता है।
(2) कृषि विभाग (Agriculture Deptt.) द्वारा कृषि संबंधी आँकड़े प्रकाशित किए जाते हैं।
(3) भारत में मानचित्रों के प्रकाशन की दो सरकारी संस्थाएं हैं। पहली भारतीय सर्वेक्षण विभाग (Survey of India) तथा दूसरी राष्ट्रीय मानचित्र एवं विषयक मानचित्रण संगठन (नैटमी) (NATMO)। भारतीय सर्वेक्षण विभाग विभिन्न मापकों पर मुख्यतः स्थलाकृतिक मानचित्रों का प्रकाशन करता है जबकि नैटमो विभिन्न प्रकार के विषयक मानचित्रों को प्रकाशित करता है।

प्रश्न 5.
आँकड़ों का आरेखीय प्रदर्शन किस प्रकार महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
आरेखीय प्रदर्शन – आँकड़ों का आरेखीय प्रदर्शन भूगोल की दूसरी महत्त्वपूर्ण विशेषता है। हम बड़े-बड़े आँकड़ों का लेखाचित्र चार्ट या मानचित्र में बदल सकते हैं तथा इसकी प्रमुख विशेषताओं को दृश्य स्वरूप प्रदान करते हैं। ऐसे मानचित्रों में चुने हुए तथ्यों के वितरण तथा उसके आपसी संबंधों का प्रदर्शन किया जाता है।

प्रश्न 6.
आँकड़ों के विश्लेषण के दो चरण बताओ।
उत्तर:
आंकड़ों का विश्लेषण ( Data Analysis) – आँकड़ों का विश्लेषण निम्नलिखित चरणों में होता है-
1. आँकड़ों का संकलन (Collection of Data) – इनके प्रयोग का प्रथम चरण होता है सही आँकड़े प्राप्त करने का यथासंभव प्रयास किया जाता है त्रुटिपूर्ण आँकड़ों से त्रुटिपूर्ण परिणाम मिलते हैं।
2. आँकड़ों का वर्गीकरण (Data Classification ) संकलित आँकड़ों को संक्षिप्त रूप देने के लिए उनका संपादन (Editing), वर्गीकरण (Classification) तथा संगठन (Organisation) किया जाता है। गणना करना, सारणीबद्ध करना और यथाप्राप्त सूचनाओं का एक उपयुक्त आधार पर संख्यात्मक स्वरूप प्रदान करना आदि क्रियाओं को सम्मिलित रूप में आँकड़ा विश्लेषण कहते हैं। इस प्रक्रिया में पहला चरण किन्हीं समान विशेषताओं के आधार पर आँकड़ों का वर्गीकरण करना होता है। यही आँकड़ों का वर्गीकरण है।

निबंधात्मक प्रश्न
(Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
आंकड़ों के सारणीयन (Tabulation) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आँकड़ों का सारणीयन (Tabulation of Data)- एकत्रित आँकड़े अव्यवस्थित तथा अवर्गीकृत रूप में प्राप्त होते हैं। इन आँकड़ों को सरल रूप में समझना तथा कोई निष्कर्ष निकालना कठिन होता है। इन आँकड़ों को सारणीबद्ध रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इन आँकड़ों को स्तम्भ और पंक्तियों में रखा जाता है। इससे इनकी तुलना करना आसान हो जाता है। पंक्तियों को समान्तर क्षैतिजीय (Horizontal) रूप में रखा जाता है तथा स्तंभों को लंबवत् (Vertical) रूप में लिखा जाता है।
सारणी के प्रमुख भाग (Main Parts of a Table )-एक अच्छी सारणी के प्रमुख भागों को नीचे सारणी में एक प्रतिरूप (Format) द्वारा दिखाया गया है-
1. सारणी संख्या (Table Number ) सब से ऊपर सारणी का संकेत (Reference) देने के लिए नंबर दिया जाता है।
2. सारणी शीर्षक (Title of the Table)-सारणी के उद्देश्य को प्रकट करने के लिए शीर्षक दिया जाता है।

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HBSE 12th Class Geography Solutions Chapter 1 आंकड़े स्रोत और संकलन 2
3. शीर्षक टिप्पणी (Head-note) अधिक जानकारी के लिए शीर्षक टिप्पणी लिखी जाती है।
4. प्रतिपर्ण (Stubs) पंक्तियों के इकट्ठे शीर्षक को प्रतिपर्ण कहा जाता है। इसके आगे प्रतिपर्ण की प्रविष्टियां (enteries) होती हैं।
5. कक्ष शीर्ष (Book- head) सारणी के स्तंभों में लिखे जाने वाले विवरण को कक्ष शीर्ष कहा जाता है।
6. मुख्य भाग (Body) सारणी के आँकड़ों को कोशिकाओं के रूप में लिखा जाता है।
7.याद टिप्पणी (Foot-note)- सारणी के नीचे आँकड़ों से संबंधित आवश्यक सूचना लिखी जाती है तथा एक तारे (*) का चिह्न लगाया जाता है।
8. खोत (Source) सारणी में सबसे नीचे आँकड़ों के लोत के बारे में लिखा जाता है।

प्रश्न 2.
आँकड़ों के वर्गीकरण से क्या अभिप्राय है? इसे कितने प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है?
उत्तर:
आँकड़ों का वर्गीकरण (Classification of Data)- आँकड़ों को सरल रूप में समझने के लिए विभिन्न वर्गों में रखा जाता है। वर्गीकरण एक ऐसी क्रिया है जिसके द्वारा आँकड़ों को उनके एक जैसे गुण के आधार पर समान वर्गों में या अलग गुणों के आधार पर अलग-अलग वर्गों में रखा जाता है। इन आँकड़ों को आरोही क्रम (Ascending order) तथा अवरोही क्रम (Descending order) में लिखा जाता है। आरोही क्रम में आँकड़ों का क्रम बढ़ता जाता है, परंतु अवरोही क्रम में आंकड़ों का क्रम घटता जाता है।
उदाहरण-नीचे दिए गए कुछ विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त अंकों को वर्गों तथा सारणी के रूप में रखो-

चिहन (Tally Bar) कहते हैं। जब इन मिलान चिहनों को संख्या के रूप में लिखते हैं तो इसे आवृत्ति (Frequency) कहते हैं। किसी वर्ग की ऊपरी तथा निम्न सीमा के मध्य अंतर को वर्ग अंतराल (Class Interval) कहा जाता है।
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उत्तर:
आरोही क्रम (Ascending order)

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अवरोही क्रम (Descending order)
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बारंबारता बंटन सारणी (Frequency Distribution Table ) – बारंबारता बंटन सारणी एक ऐसी सारणी है जिसमें आँकड़ों को एक व्यवस्थित रूप में रखा जाता है। आँकड़ों को विभिन्न वर्गों में बांटा जाता है। इन वर्गों को मिलान चिह्नों द्वारा प्रकट किया जाता है। प्रत्येक वर्ग में जितने आँकड़े या संख्याएं आती हैं उन्हें एक खड़ी लाइन
(1) से लिखा जाता है। पांच संख्यात्मक मूल्यों को दिखाने के लिए चार लाइनें खींच कर पांचवीं लाइन से काट देते हैं। इसे मिलान

प्रश्न 3.
वर्गीकरण की मुख्य रीतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वर्गीकरण की विधियां ( Methods of Classification)
आँकड़ों को सरल व संक्षिप्त बनाया जाता है ताकि उनसे आसानी से निष्कर्ष निकाले जा सकें। जलवायु, तापमान, वर्षा आदि के आँकड़ों

3. अखंडित श्रृंखला – अखंडित अथवा अविच्छिन्न अथवा स श्रृंखला वह श्रृंखला होती है जिसमें इकाइयों का निश्चित माप संभव नहीं होता। इसी कारण उन्हें कुछ सीमाओं में व्यक्त किया जाता है। इन सीमाओं को वर्गन्तर कहते हैं। प्रत्येक वर्गातर के साथ उसकी आवृत्तियां लिखी जाती हैं।
आगे 30 विद्यार्थियों के अर्थशास्त्र में प्राप्त अंक दिए गए हैं जिन्हें हम 5-5 के वर्गांतर से अखंडित श्रृंखला अथवा श्रेणी में बदल सकते हैं।
अखंडित श्रृंखला को निम्नलिखित चार प्रकारों में बांटा जाता

(i) अपवर्जी शृंखला (Exclusive Series)
(ii) समावेशी श्रृंखला (Inclusive Series)
(iii) खुले सिरे वाली शृंखला (Open End Series)
(iv) संचयी आवृत्ति ( Cumulative Frequency Series)

(i) अपवर्जी श्रृंखला (Exclusive Series ) – यह विधि समावेशी विधि से अधिक प्रचलित है। इस रीति में एक वर्ग की जगह सीमा तथा अगले वर्ग की निचली सीमा एक ही होती है।
दिया उदाहरण इस विधि का उदाहरण है-

अंकविद्यार्थियों की संख्या
0-10

10-20

20-30

30-40

40-50

50-40

60-70

10

30

15

35

8

7

2

योग =107

इसमें पहला वर्ग 0-10 तथा 10-20 है। इसमें विदित होता है कि पहले वर्ग की उच्च सीमा तथा दूसरे वर्ग की निम्न सीमा एक हैं। जब वर्ग इस प्रकार होते हैं तो यह शंका होती है कि 10 को किस वर्ग में रखा जाए पहले में या दूसरे में? इस विषय में यह नियम है कि किसी वर्ग की उच्च सीमा को इस वर्ग के अंतर्गत सम्मिलित नहीं किया जाता बल्कि उसके बाद वाले वर्ग में सम्मिलित किया जाता है। इस प्रकार 10 पहले वर्ग में नहीं अपितु दूसरे में किया जाएगा।

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(ii) समावेशी श्रृंखला ( Inclusive Series) – इस प्रकार के वर्गीकरण में निम्न सीमा तथा उच्च सीमा दोनों की उसी वर्ग में सम्मिलित कर लिया जाता है। संदेह को दूर करने के लिए पहले वर्ग की उच्च सीमा दूसरे वर्ग की निम्न सीमा से 1 या कोई अन्य संख्या कम कर दी जाती है। जैसे-

वेतनमजनूरों की संख्या
100-14920
150-19925
200-24960
250-29915
300-3495
योग =125

(iii) खुले सिरे वाली शृंखला (Open End Series)-इस शृंखला में प्रथम वर्ग की निचली सीमा में ‘कम’ (Below) तथा ऊपरी सीमा में ‘अधिक’ (Above) का प्रयोग किया जाता है। जैसे-

अंक (Marks)विद्यार्थियों की संख्या
10 से कम(Frequency)
10-207
20-307
30 से अधिक5
1

(iv) संचयी आवृत्ति भृंखला (Cumulative Frequency Series)-इस शृंखला में आवृत्तियों को जोड़ दिया जाता है। दूसरे वर्ग की आवृत्ति को जोड़कर संचयी आवृत्ति प्राप्त की जाती है। जैसे-

आय (रुपए में) (x)परिवारों की संख्या (f)संचयी आवृति (c)
0-50044
500-100064+6=10
1000-15001010+10=20
1500-2000520+5=25
2000-2500325+3=8

प्रश्न 5.
आँकड़ों के प्राथमिक व द्वितीयक स्रोतों का वर्णन करें।
उत्तर:
आँकड़ों के स्रोत आँकड़ों को दो प्रकार से एकत्रित किया जाता है –
1. प्राथमिक स्रोत
2. द्वितीयक स्रोत।
जिन आँकड़ों को हम पहली बार व्यक्तिगत रूप से अथवा किसी समूह इत्यादि के द्वारा एकत्रित किया जाता है उन्हें आँकड़ों के प्रथम स्त्रोत कहते हैं और जिन आँकड़ों को किसी प्रकाशित या अप्रकाशित साधनों के द्वारा एकत्रित किया जाता है उन्हें द्वितीयक स्रोत कहते हैं।

प्राथमिक आँकड़ों के साधन
1. व्यक्तिगत प्रेक्षण-
यह व्यक्तिगत या व्यक्तियों के समूह के संग्रह की ओर संकेत करता है जिस द्वारा क्षेत्र में प्रत्यक्ष प्रेक्षण के द्वारा एकत्र किया जाता है। इस प्रेक्षण द्वारा क्षेत्र सर्वेक्षण के अंतर्गत भू-आकृति के लक्षणों, मिट्टी तथा प्राकृतिक वनस्पति के प्रकारों के साथ ही जनसंख्या संरचना, लिंग अनुपात, साक्षरता, परिवहन तथा संचार के साधन नगरीय तथा ग्रामीण अधिवास इत्यादि की सूचना प्रदान की जाती हैं। परंतु व्यक्तिगत प्रेक्षण करते समय उसमें शामिल व्यक्तियों की निष्पक्ष मूल्यांकन के लिए ज्ञान का तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण होना आवश्यक है।

2. साक्षात्कार-
इस विधि के द्वारा सूचना उत्तर देने वाले से शोधकर्ता संवाद तथा बातचीत द्वारा प्राप्त करता है फिर भी साक्षात्कार करते समय साक्षात्कारकर्ता को क्षेत्र के लोगों से निम्नलिखित सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए-
(1) जिन सूचनाओं को लोगों से साक्षात्कार द्वारा इकट्ठा करना है, उन विषयों की एक परिशुद्ध सूची तैयार की जानी चाहिए।
(2) साक्षात्कार लेने वाले व्यक्तियों को सर्वेक्षण के उद्देश्यों के बारे में जानकारी होनी आवश्यक है।
(3) अगर कोई भी संवेदनशील प्रश्न पूछना है तो पहले उत्तर देने वालों को विश्वास में लेना आवश्यक है और उसे विश्वास दिलाना चाहिए कि गोपनीयता बनाई रखी जाएगी।
(4) वातावरण का अनुकूल होना भी आवश्यक है। इससे उत्तर देने वाला बिना किसी झिझक के तथ्यों को स्पष्ट कर सकेगा।
(5) प्रश्नावली की भाषा सरल और स्पष्ट होनी चाहिए ताकि उत्तर देने वाला प्रेरित होकर तथा सहज होकर प्रश्नों से संबंधित सूचना देने के लिए सहमत हो जाए।
(6) जिस प्रश्नों से उत्तर देने वाले के आत्मसम्मान अथवा धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचे ऐसे प्रश्नों को पूछने से परहेज करना चाहिए।
(7) अंत में उत्तर देने वाले से यह पूछना चाहिए कि जो भी सूचना वह दे चुके हैं, इसके अतिरिक्त और क्या जानकारी वह और दे सकते हैं?
(8) उत्तर देने वाले का अपना बहुमूल्य समय प्रदान करने के लिए धन्यवाद किया जाना भी आवश्यक है।

3. प्रश्नावली अनुसूची-
यह एक ऐसी विधि है जिसमें साधारण प्रश्नों और उनके उत्तर एक सादे कागज पर लिखे जाते हैं तथा उत्तर देने वाले व्यक्ति से दिए गए विकल्पों में से किसी एक विकल्प पर निशान लगाना होता है। कई बार संरचनात्मक प्रश्नों का एक समूह भी प्रश्नावली में शामिल किया जाता है और उत्तर देने वाले के विचारों को ज्ञात करने के लिए उचित स्थान भी छोड़ दिया जाता है। यदि केवल विवृत्तांत प्रश्नों के माध्यम से लोगों के विचारों को एकत्र करने की आवश्यकता तो इसे प्रश्नावली कहते हैं सर्वेक्षण के उद्देश्य भी स्पष्ट रूप से प्रश्नावली में उल्लिखित होने चाहिए।

यह विधि बड़े क्षेत्र के सर्वेक्षण के लिए भी उपयोगी होती हैं इस विधि की सीमा यह है कि सूचनाओं को उपलब्ध कराने के लिए आवश्यक है कि केवल साक्षर और शिक्षित लोगों से ही संपर्क किया जा सकता है। इसमें एक अनुसूची होती है। जो प्रश्नावली से मिलती-जुलती होती है जिसमें जांच-पड़ताल से जुड़े प्रश्न दिए रहते हैं। अनुसूची और प्रश्नावली में केवल यह अंतर है कि प्रश्नावली में उत्तर देने वाला प्रश्नावलियों को स्वयं भरता तथा सूची में परिगणक उत्तर देने वाले से प्रश्न पूछकर वह खुद भरता है। प्रश्नावली की तुलना में अनुसूची का मुख्य लाभ यह है कि इसके द्वारा सूचना शिक्षित तथा अशिक्षित दोनों ही उत्तर देने वालों से एकत्र की जाती हैं। एक अनुसूची को भरने के लिए गणनाकर्ता को पूरी तरह से प्रशिक्षित होना आवश्यक है।

4. अन्य विधियां
जल तथा मृदा से संबंधित आँकड़े सीधे क्षेत्रों से उनकी विशेषताओं का मापन करके मृदा किट तथा जल गुणवत्ता किट का प्रयोग करके एकत्र किया जाता है। इस प्रकार क्षेत्र वैज्ञानिक के प्रयोग से फसलों तथा वनस्पति के स्वास्थ्य के बारे में आँकड़े एकत्र किए जाते हैं। आँकड़ों के द्वितीयक स्त्रोत इन स्रोतों के अंतर्गत आँकड़ों को प्रकाशित और अप्रकाशित रूप में एकत्र किया जाता है जिसमें सरकारी प्रकाशन, प्रलेख और रिपोर्ट सम्मिलित किए जाते हैं।

HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 आंकड़े : स्रोत और संकलन

प्रकाशित साधन

1. सरकारी प्रकाशन-
भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों, राज्य सरकारों के प्रकाशन और बुलेटिन द्वितीयक सूचनाओं के उपयोगी स्रोत हैं। भारत के महापंजीयक कार्यालय द्वारा प्रकाशित भारत की जनगणना, राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण की रिपोर्टें, राज्य सरकारों के द्वारा प्रकाशित सांख्यिकीय सारांश और विभिन्न आयोगों द्वारा प्रकाशित आवधिक रिपोर्ट इसके अंतर्गत शामिल किए जाते हैं।

2. अर्ध सरकारी प्रकाशन-
विभिन्न नगरों और शहरों के नगर निगमों और नगर विकास प्राधिकरणों और जिला परिषदों के प्रकाशन तथा रिपोर्ट इत्यादि इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।

3. अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन-
वार्षिकी, संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अभिकरण जैसे कि वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, विश्व स्वास्थ्य संगठन, खाद्य व कृषि परिषद् इत्यादि द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट और मोनोग्राफ अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशनों के अंतर्गत शामिल किए जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र के कुछ महत्वपूर्ण प्रकाशन जो आवधिक रूप में छपते हैं वह हैं – डेमोग्राफिक इयर बुक और मानव विकास रिपोर्ट इत्यादि।

4. निजी प्रकाशन-
समाचार पत्र और निजी संस्थाओं द्वारा प्रकाशित वार्षिकी पुस्तिका, सर्वेक्षण शोध रिपोर्ट तथा प्रबंध इत्यादि इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।

5. समाचार पत्र और पत्रिकाएं-
इस श्रेणी के अंतर्गत दैनिक समाचार पत्र और साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक पत्रिकाएं आसानी से प्राप्त स्रोत हैं।

अप्रकाशित साधन

1. सरकारी आलेख-
इस श्रेणी के अंतर्गत अप्रकाशित रिपोर्ट, मोनोग्राफ और प्रलेख इत्यादि शामिल हैं। यह प्रलेख सरकार के अलग-अगल स्तरों पर अप्रकाशित रिकॉर्ड के रूप में मिलते हैं और इनको अनुरक्षित रखा जाता है जैसे कि गांव के स्तर पर, राजस्व अभिलेख, गाँव के पटवारियों के द्वारा तैयार किए जाते हैं जो कि एक गांव स्तर की जानकारी प्रदान करने का महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

2. अर्ध-सरकारी प्रलेख-
इस श्रेणी के अंतर्गत विभिन्न नगर-निगम, जिला परिषदों और लोक सेवा विभागों द्वारा बनाए और अनुरक्षित की गई रिपोर्ट और विकास की योजनाएं शामिल की जाती हैं।

3. निजी प्रलेख-
इस श्रेणी के अंतर्गत व्यापार संघों, विभिन्न राजनैतिक और अराजनैतिक संगठनों तथा कंपनियों इत्यादि अप्रकाशित रिपोर्ट और रिकॉर्ड शामिल किए जाते हैं।

मौखिक परीक्षा के प्रश्न
(Questions For Viva-Voce)

प्रश्न 1.
मानचित्र (Map) शब्द की उत्पत्ति किस शब्द से हुई?
उत्तर:
‘मैप’ शब्द लैटिन भाषा के शब्द मप्पा (Mappa) का बिगड़ा हुआ रूप है।

प्रश्न 2.
संसार में सर्वप्रथम मानचित्र किसने बनाया?
उत्तर:
संसार में सर्वप्रथम मानचित्र ट्यूरिन पैपीरस नामक विद्वान् ने तैयार किया।

प्रश्न 3.
आँकड़े किन-किन इकाइयों के आधार पर एकत्र होते हैं?
उत्तर:
आँकड़े प्राय: प्रशासनिक इकाइयों जैसे गांव, ब्लाक, जिला, नगर, राज्य के आधार पर एकत्र होते हैं।

प्रश्न 4.
आँकड़ों के दो प्रकार बताओ।
उत्तर:

  1. मात्रात्मक आँकड़े (Quantitation Data)
  2. गुणात्मक आँकड़े (Qualitation Data)

प्रश्न 5.
आँकड़ों के दो प्रमुख स्त्रोत बताओ।
उत्तर(:

  1. प्राथमिक आँकड़े (Primary Data)
  2. गौण आँकड़े (Secondary Data)।

प्रश्न 6.
NATMO किसे कहते हैं?
उत्तर:
भारत में राष्ट्रीय मानचित्र एवं विषयक मानचित्रण संघटन (National Atlas and Thematic Mapping Organisation) NATMO कहते हैं।

प्रश्न 7.
आँकड़ों का विश्लेषण किसे कहते हैं?
उत्तर:
आँकड़ों की गणना करना, सारणीबद्ध करना तथा संख्यात्मक रूप देना।

HBSE 12th Class Practical Work in Geography Solutions Chapter 1 आंकड़े : स्रोत और संकलन

प्रश्न 8.
आँकड़ों का वर्गीकरण किसे कहते हैं?
उत्तर:
समान विशेषताओं के आधार पर वर्ग बनाना।

प्रश्न 9.
आँकड़ों के संगठन (Organisation of Data) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आँकड़ों को तर्कसंगत क्रम में व्यवस्थित करना तथा उन्हें सारणीबद्ध करना।

प्रश्न 10.
आँकड़ों के संक्षिप्तीकरण (Summarisation of Data) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आरेख, लेखाचित्र (Graphs ) तथा विषयक मानचित्रों में आँकड़ों को बदलना।

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HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes

Haryana State Board HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes Notes.

Haryana Board 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes

Introduction
So far, in all our study, we have been dealing with figures that can be easily drawn on page of our note book or blackboards. These are called plane figures. In previous classes, we have learnt about the perimeters and areas of rectangles, squares, rhombus and circles. If we cut out many of these plane figures of same shape and size from cardboard sheet and stack them up in a vertical pile, then by this process, we will obtain some solid figures such as a cuboid, a cylinder etc. In this chapter, we will learn to find the surface areas and volumes of cubes, cuboids, cylinders, cones and spheres.
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes 1

Units measurement of Area:
1 km2 = 1 km × 1 km = 10 hm × 10 hm = 100 hm2 or 100 hectares
1 hm2 = 1 hm × 1 hm = 10 dam × 10 dam = 100 dam2
1 hm2 = 1 hm × 1 hm = 100 m × 100 m = 10000 m2
1 dam2 = 1 dam × 1 dam = 10 m × 10 m = 100 m2
1 m2 = 1m × 1m = 10 dm × 10 dm = 100 dm2
1 m2 = 1m × 1m = 100 cm × 100 cm = 10000 cm2
1 dm2 = 1 dm × 1 dm = 10 cm × 10 cm = 100 cm2
1 cm2 = 1 cm × 1 cm = 10 mm × 10 mm = 100 mm2
1 km2 = 1 km × 1 km = 1000 m × 1000 m = 106 m2
1m2 = 1m × 1m = 1000 mm × 1000 mm = 106 mm2

HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes

Units measurement of volume:
1 km3 = 1 km × 1 km × 1 km = 1000 m × 1000 m × 1000 m = 109 m3
1 km3 = 1 km × 1 km × 1 km = 10 hm × 10 hm × 10 hm = 1000 hm3
1 hm3 = 1 hm × 1 hm × 1 hm = 10 dam × 10 dam × 10 dam = 1000 dam3
1 hm3 = 1 hm × 1 hm × 1 hm = 100 m × 100 m × 100 m = 106 m3
1 dam3 = 1 dam × 1 dam × 1 dam = 10 m × 10 m × 10 m = 1000 m3
1 m3 = 1 m × 1 m × 1 m = 100 cm × 100 cm × 100 cm = 106 cm3
1 m3 = 1 m × 1 m × 1 m = 1000 mm × 1000 mm × 1000 mm = 109 mm3
1m3 = 1m × 1m × 1m = 10 dm × 10 dm × 10 dm = 1000 dm3
1 cm3 = 1 ml = 1 cm × 1 cm × 1 cm = 10 mm × 10 mm × 10 mm = 1000 mm3
1 litre = 1000 ml = 1000 cm3
1 m3 = 106 cm3 = 1000 litre = 1 kilolitre

Key Words:
→ Solids: Bodies which have three dimensions in space are called solids.

→ Volume: The amount of space occupied by a solid or bounded by a closed surface is known as the volume of solid.

→ Surface area: Surface area is the total sum of all the areas of all the shapes that cover the surface of solid.

→ Lateral surface area: Lateral surface in a solid is the sum of surface areas of all its faces excluding the bases of solid.

→ Cubold: A cuboid is a solid bounded by six rectangular plane regions.

→ Cube: When all the edges of cuboid are equal in length, it is called a cube.

→ Right circular cylinder: If a rectangle is revolved about one of its sides, the solid thus formed is called a right circular cylinder.

→ Right circular cone: If a right angled triangle is revolved about one of the sides containing a right angle, the solid thus generated is called a right circular cone.

→ Sphere: The set of all points in space which are equidistant from a fixed point, is called a sphere.

→ Hemisphere: A plane through the centre of a sphere divides the sphere into two equal parts. Each part is called a hemisphere.

HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes

Basic Concepts
Surface Area of a Cuboid and a Cube:
(a) Cuboid: A solid bounded by six rectangular faces is called a cuboid.
e.g., a book, a brick, a matchbox, a tile etc. A cuboid has 6 rectangular faces, 12 edges and 8 vertices.
6 rectangular faces are ABCD, EFGH, BCGF, ADHE, ABFE and DCGH.
ABCD is the bottom face and EFGH is the top face and these are one pair of opposite faces. Similarly, other pairs of opposite faces are BCGF, ADHE and ABFE, DCGH.
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes 2
Out of these six faces, BCGF, ADHE, ABFE and DCGH are called the lateral faces of the cuboid. Any two faces other than the opposite faces are called adjacent faces.

In the given figure, ABCD and ABFE are adjacent faces.
Similarly, EFGH and ADHE are adjacent faces.
AB, BC, CD, DA, EF, FG, GH, HE, AE, BF, CG and DH are 12 edges of a cuboid. A, B, C, D, E, F, G and H are its 8 vertices.
(i) Total surface area of a cuboid:
Area of the face ABCD = Area of the face EFGH = (1 × b) sq. units
Area of the face BCGF = Area of the face ADHE = (b × h) sq. units
Area of the face ABFE = Area of the face DCGH = (1 × h) sq. units
Total surface area of the cuboid = Sum of the areas of six faces
= 2(l × b) + 2(b × h) + 2(l × h).
= 2(l × b + b × h + h × l)
= 2(lb + bh + hl) sq. units
where l = length, b = breadth and h = height.

(ii) Lateral surface area of the cuboid: Out of the six faces of a cuboid, we only find the area of the four faces, leaving the bottom and top faces. In such a case, area of these four faces is called the lateral surface of the cuboid.
Lateral surface area of the cuboid = Area of face BCGF+ Area of face ADHE + Area of face ABFE + Area of face DCGH
=bxh+bxh+lxh+lxh
= 2(l × h) + 2(b × h)
=2(l + b) × h sq. units
= Perimeter of the base × height.

(iii) Diagonal of a cuboid = \(\sqrt{l^2+b^2+h^2}\) units
(b) Cube: A cuboid whose length, breadth and height are all equal is called a cube eg., ice cubes, dice etc.
Each edge of a cube is called its edge. A cube has six faces, All the six faces of a cube are congruent square faces. Length of each edge of the cube is same. It has also 12 edges and 8 vertices.
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes 3
(i) Total surface area of the cube : Total surface area of the cube is the sum of the areas of the six congruent square faces. Area of the one face is a3, where a is the edge of a cube.
∴ Total surface of the cube = 6a3 sq. units
(ii) Lateral surface area of the cube = 4a3 sq. units
Diagonal of the cube = \(\sqrt{3}\)a units

HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes

(a) Right Circular Cylinder: If we take a number of circular sheets of paper and stack them vertical pile, we will get a solid called a right circular cylinder.
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes 4
eg., circular pipes, circular pillars, road rollers, gas cylinders, measuring jars etc. In case if circular sheets are not stack up vertically as shown figure 13.8 (I) then the cylinder is not a right circular cylinder. Of course, if we have a cylinder with a non-circular base as shown in figure 13.8 (II), then we also cannot call it a right circular cylinder.
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes 5
Remarks: 1. From now onwards, the word cylinder would mean a right circular cylinder.

(b) Some Terms Related to the Cylinder:
(i) Base: Two circular ends of cylinder are called its bases.
(ii) Radius: The radius of the circular bases is called the radius of the cylinder. In the adjoining figure AO, OB, A’O’ and O’B’ are equal radii of the cylinder.
(iii) Axis: A line segment joining the centres of two circular bases is the called the axis of the cylinder.
In the figure 13.9, OO’ is the axis of the cylinder.
(iv) Height: The length of the axis of the right circular cylinder is called the height of the cylinder. In the figure, OO’ is the height of the cylinder.
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes 6

(c) Surface Area of Right Circular Cylinder:
(i) Lateral surface area of right circular cylinder: We take a rectangular sheet of paper, whose length is just enough to go round the cylinder and whose breadth is equal to the height of the cylinder as shown figure below.
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes 7
If we fold rectangular sheet along its length, we get a right circular cylinder of height h. Lateral surface area of the cylinder is the area of the rectangular sheet. The length of the sheet is equal to the circumference of the circular base which is equal to 2πr. Lateral surface area of a cylinder is also called the curved surface area of the cylinder.
Lateral or curved surface area of the cylinder = Area of the rectangular sheet
= length × breadth
=2πr × h = 2πrh sq. units
Therefore, lateral surface area of a cylinder = 2πrh sq. units.

(ii) Total surface area of the right circular cylinder: If we include areas of top and bottom of the cylinder to its lateral surface area, we get the total surface area of the cylinder.
If r is the radius of the cylinder and h its height.
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes 8
∴ Total surface area of the cylinder = lateral surface area + 2 bases area
= 2πrh + 2πr2[∵ base area = πr2]
= 2πr(h + r) sq. units
Therefore, total surface area of the cylinder = 2πr(h + r) sq. units

(d) Surface Area of Hollow Cylinder: Hollow cylinder is a solid bounded by two coaxial cylinders of the same height and different radii.
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes 9
eg., iron pipes, rubber tubes etc.
Let external and internal radii of a hollow cylinder be R and r and h be its height as shown in the given figure.
(i) Area of each base = π(R2 – r2) sq, units
(ii) Lateral or curved surface area of the cylinder = External surface area + Internal surface area
= 2πRh + 2πrh = 2πh(R + r) sq units
(iii) Total surface area of the cylinder
= Lateral surface area + 2 area of the base ring
= 2πh(R + r) + 2π(R2 – r2)
= 2πh(R + r) + 2π(R + r) (R – r)
= 2π(R + r) [h + R – r] sq. units.

HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes

(a) Right Circular Cone: A solid described by the revolution of a right angled triangle about one of its sides (containing the right angle) which remains fixed. In the given figure revolves about side AO. It generates a cone. O is the centre of base BC and A is its vertex.
eg., ice cream cone, clow’s cap, conical vessel etc.

(b) Some Terms Related to the Cone : (i) Radius of the cone: The length segment OB = OC is called radius of the cone. It is usually denoted by r.
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes 10
(ii) Height of the cone: The length segment AO is called the height of the cone. It is usually denoted by h.
(iii) Slant height of the cone: Slant height of a right circular cone is the distance of its vertex from any point on the circumference of the base. In the given figure, AB and AC represents the slant height of the cone. It is usually denoted by l.
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes 11
(iv) Vertical angle of the cone: ∠BAC is called the vertical angle of the cone.

(c) Surface Area of a Right Circular Cone: (i) Lateral surface area of a right circular cone: On a sheet of paper, we draw a circle with centre O and radius l. Now cut out a circular region from the sheet of a paper. We obtain a circular disc of paper [see in figure 13.19 (I)].
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes 12
Now cut cone OAB from the circular disc of paper [see figure 13.19 (II, III) and open it out (see in figure 13.19 (IV)]. AB is the perimeter of base of cone OAB. The cone OAB is cut into small pieces of triangles such as ΔOAb1, ΔOb1b2, ΔOb2b3, …… whose height is the slant height of the cone.
Area of each small triangle = \(\frac{1}{2}\)base of each triangle × l
Area of entire piece of paper (cone ΔOAB) = Sum of the areas of all triangles
= \(\frac{1}{2}\)b1l + \(\frac{1}{2}\)b2l + \(\frac{1}{2}\)b3l + ……..
= \(\frac{1}{2}\)l(b1 + b2 + b3 + ………)
\(\frac{1}{2}\) × l × AB
\(\frac{1}{2}\)l × 2πr = πrl
So, curved surface area of a cone = πrl.

(ii) Total surface area of a right circular cone:
Total surface of the cone = Lateral surface area + Area of the base of a cone
= πrl + πr2 = πr(l + r)
So, total surface area of the cone = πr(l + r),
where r is its base radius and l its slant height.

(iii) Relation between the height, slant height and radius of cone:
l2 = h2 + r2
⇒ l = \(\sqrt{h^2+r^2}\)

HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes

1. (a) Sphere: A sphere is a solid described by the revolution of a semicircle about its diameter, which remains fixed, e.g., football, volleyball, throwball, etc.
In the given figure 13.27 (i) semicircle ABC by revolving about its diameter AB describes the sphere [(see in figure 13.27 (ii)]

The mid point of AB is the centre. Any line which passes through the centre and is terminated both ways by the surface is a diameter. Any line drawn from the centre to the surface is known as radius. A sphere may also defined as:
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes 13
A sphere is a three dimensional figure (solid figure) which is made up of all points in the space, which lie at a constant distance from a fixed point is called the radius and the fixed point called the centre of the sphere.

(b) Surface Area of a Sphere: Let us take a rubber ball and drive a nail into it. Let us wind a string around the ball. When you reached the fullest part of the ball, use pins to keep the string in place and continue to wind the string around the remaining part of the ball till it is fully covered [see in figure 13.28 (I) and (II)].
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes 14
Now, we unwind the string from the surface of the ball.

Start filling the circles one by one, with the string you had wound around the wall (see fig. 13.28). Then, on a sheet of paper, we draw four circles with radius equal to the radius of the ball. Now string is used to completely fill the regions of four circles, all of the same radius as of the sphere. It means, the surface area of a sphere of radius r = 4 times the area of a circle of radius r.
Therefore,surface area of sphere = 4πr2.

2. Hemisphere: A plane through the centre of a sphere divides the sphere into two equal parts. Each part is called a hemisphere.
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes 15
For a hemisphere of radius r, we have
(i) Curved surface area of the hemisphere = 2πr2
(ii) Total surface area of the hemisphere
= 2πr2 + πr2
= 3πr2.

3. (a) Spherical Shell: The difference of two solid concentric spheres is called a spherical shell.
(b) Surface Area of Spherical Shell: If R and be the external and internal radii of a spherical shell, then
Total surface area of spherical shell = 4π(R2 + l2).
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HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes

1. Volume of a Cuboid: In previous classes, we have learnt about of certain figures. Recall that solids occupy space. The measure of this occupied space is called the volume of the object.
If the object is hollow, then interior is empty and can be filled with air or some liquid that will take the shape of its container. In this case, the volume of the substance that can fill the interior is called the capacity of the container. Thus, we may say that the volume of an object is the measure of the space it occupies and the capacity of an object is the volume of substance its interior can accommodate. Unit of measurement of volume is cubic unit. If we take some rectangular sheets and place it one over the other. If we place these sheets vertically in pile, we get a cuboid. (see figure below)
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes 17
If area of each rectangle is A, the height upto which the rectangles are stacked is h. Measure of the space occupied by the cuboid
= Area of a rectangular sheet × height
= A × h = l × b × h [∵ A = l × b]
Hence, volume of the cuboid = l × b × h
= length × breadth × height
Also, volume of the cuboid = Area of the base × height

2. Volume of Cube: If length, breadth and height of a cuboid are equal, then it is known as the cube.
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes 18
Volume of a cube = edge × edge × edge
= a × a × a = a3,
where a is the edge of a cube. Unit of measurement of volume is cubic unit.

HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes

(a) Volume of a Cylinder: If we stack the circular sheets of radius r vertically, we will get a solid called a right circular cylinder of radius r and height h.
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes 19
Volume of the cylinder = The area of each circular sheet × height
= πr2 × h = πr2h
or Volume of the cylinder = Area of the base × height
= πr2h.

(b) Volume of the Hollow Cylinder: Let the external and internal radii of the hollow cylinder be R and r respectively and h be its height, then
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes 20
Volume of the material = External volume – Internal volume.
= πR2h – πr2h
= πh(R2 – r2).

Volume of a Right Circular Cone:
Experiment: Take a hollow cylinder and a hollow cone of the same base radius and the same height.
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes 21
Fill the cone with water to the brim and empty it into the cylinder. Repeat the process two times more. We observe that 3 cone full to brim will fill the cylinder competely. With this, we can safely come to the conclusion that three times the volume of a cone, makes up the volume of a cylinder.
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes 22
It means volume of a cone of radius ‘r’ and height ‘h’
= \(\frac{1}{3}\) of volume of cylinder of radius ‘r’ and height ‘h’
Volume of a cone = \(\frac{1}{3}\) × πr2h
or Volume of a cone = \(\frac{1}{3}\) × Area of the base × height

HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes

1. Volume of a Sphere: We take a cylindrical container and two or three spheres of different radii. Also take a large trough in which we can place the cylindrical container. Then fill the container up to the brim with water.
Now, we place a sphere in the container. Some of the water will overflow into the trough in which it is kept (see in figure given below).
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 13 Surface Areas and Volumes 23
We pour out the water from the trough into a measuring cylinder and find the volume of the over flowed water. If r is the radius of immersed sphere on evaluating \(\frac{4}{3}\)πr3, we find this value atmost equal to the volume of over flowed water.

We repeat this process with two or three spheres of different radii, we find:
Volume of overflowed water = The volume of the sphere immersed in the water
= \(\frac{4}{3}\)πr3
Thus,volume of the sphere = \(\frac{4}{3}\)πr3.

2. Volume of the hollow sphere: If R and r are respectively the outer and inner radii of hollow sphere.
Volume of the material = Volume of outer sphere – Volume of inner sphere
= \(\frac{4}{3}\)πrR3 – \(\frac{4}{3}\)πr3
= \(\frac{4}{3}\)π(R3 – r3)

3. Volume of the hemisphere :
Volume of the hemisphere \(\frac{2}{3}\)πr3
where r is the radius of the hemisphere.

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HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 12 Heron’s Formula

Haryana State Board HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 12 Heron’s Formula Notes.

Haryana Board 9th Class Maths Notes Chapter 12 Heron’s Formula

Introduction
In previous classes, we have studied about various plane figures such as squares, rectangles, triangles, quadrilaterals etc. We have also learnt the formula for finding the areas and the perimeters of these figures like rectangle, square, triangle etc. as given below:
1. Triangle :
(i) \(\frac{1}{2}\) × Base × Height
\(\frac{1}{2}\) × BC × AD
(ii) Perimeter = sum of the sides of a triangle
= AB + BC + CA
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 12 Heron’s Formula 1

2. Right angled triangle:
(i) Area = \(\frac{1}{2}\) × base × height
= \(\frac{1}{2}\) × BC × AB
(ii) Perimeter = AB + BC + CA
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 12 Heron’s Formula 2

3. Equilateral triangle: Let each side of an equilateral triangle be a units.
(i) Area = \(\frac{1}{2}\) × base × height
= \(\frac{1}{2}\) × BC × AD
[∵ AD = \(\sqrt{a^2-\frac{a^2}{4}}\)
⇒ AD = \(\sqrt{\frac{3 a^2}{4}}\)
⇒ AD = \(\frac{\sqrt{3} a}{2}\) ]
= \(\frac{1}{2}\) × a × \(\frac{\sqrt{3} a}{2}\)
(ii) Perimeter = a + a + a
3a = 3 × side
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 12 Heron’s Formula 3

4. Parallelogram:
(i) Area = base x height
= AB × DE
(ii) Perimeter = sum of the sides of ||gm
= AB + BC + CD + AD
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 12 Heron’s Formula 4

5. Square: (i)
Area = side × side = side2
or Area = \(\frac{1}{2}\) × d2
(where d = diagonal of a square)
(ii) Perimeter = side + side + side + side
= 4 × side
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 12 Heron’s Formula 5

HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 12 Heron’s Formula

6. Rectangle :
(i) Area = base × height
= length × breadth
(ii) Perimeter = AB + BC + CD + DA
= L + B + L + B
= 2L + 2B
= 2(L + B)
where L = length of a rectangle
and B = breadth of a rectangle
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 12 Heron’s Formula 6

7. Rhombus :
(i) Area = base × height
or Area = \(\frac{1}{2}\) × d1 × d2
where d1 and d2 are the diagonals of a rhombus.
(ii) Perimeter = side + side + side + side
= 4 × side
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 12 Heron’s Formula 7

8. Trapezium:
(i) Area = \(\frac{1}{2}\) × (sum of parallel sides) × distance between them
= \(\frac{1}{2}\) × (AB + DC) × DE
(ii) Perimeter = AB + BC + CD + AD
Unit of measurement for length, breadth, height and perimeter is taken as metre (m) or centimetre (cm), milimetre (mm) etc.
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 12 Heron’s Formula 8
Units measurement of Perimeter
1 m = 10 dm, 1 m = 100 cm, 1 m = 1000 mm, 1 km = 10 hm, 1 km = 100 dakm, 1 km = 1000 m Unit of measurement for area of any plane figure is taken as square metre (m2) or square centimetre (cm2) or square millimetre (mm2) etc.
Units measurement of Area
1 km2 = 1 km × 1 km = 10 hm × 10 hm = 100 hm2
1 km2 = 1 km × 1 km = 1000 m × 1000 m = 1000000 m2 = 106 m2
1 hectare = 10000 m2
1 m2 = 1m × 1m = 100 cm × 100 cm = 10000 cm2
1m2 = 1m × 1m = 10 dm × 10 dm = 100 dm2 etc.

HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 12 Heron’s Formula

Key Words
→ Area: The area of a triangle or a polygon is the measure of the surface enclosed by its sides.

→ Perimeter: The perimeter of a plane figure is the length of its boundary.
OR
A perimeter is the sum of lengths of sides of a polygon.

→ Right angled triangle: A triangle with one angle a right angle (90°) is called a right angled triangle.

→ Scalene triangle: If all three sides of a triangle are unequal or different, it is called scalene triangle.

→ Isosceles triangle: If at least two sides of a triangle are equal, it is called isosceles triangle.

→ Equilateral triangle: If all three sides of a triangle are equal, it is called. equilateral triangle.

→ Quadrilateral: A plane figure bounded by four line segments is called a quadrilateral.

→ Parallelogram: A quadrilateral in which opposite sides are parallel and equal is known as a parallelogram.

→ Square: A quadrilateral whose each angle is 90° and all sides are equal to each other is known as a square.

→ Rectangle: A quadrilateral each of whose angles is 90° is called a rectangle.

→ Rhombus: A quadrilateral having all the four sides equal is called a rhombus.

→ Trapezium: A quadrilateral in which one pair of opposite sides are parallel is called a trapezium.

→ Diagonal: A line joining any two vertices of a polygon that are not connected by an edge and which does not go outside the polygon.

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Basic Concepts
Area of a Triangle by Heron’s Formula: Heron was born in about 10 AD possibly in Alexandria in Egypt. He worked in applied mathematics and wrote three books on mensuration. Book I deals with the area of rectangles, squares, triangles, trapezia, various other specialized quadri- laterals, regular polygons, circles, surfaces of cylinders, cones and spheres etc.
HBSE 9th Class Maths Notes Chapter 12 Heron’s Formula 9
He derived the famous formula for finding the area of a triangle in terms of its three sides.
The formula for finding the area of a triangle was given by Heron is stated as below:
Area of a triangle = \(\sqrt{s(s-a)(s-b)(s-c)}\),
where a, b and c are the sides of a triangle and s = semi-perimeter of the triangle, ie.,
\(\frac{a+b+c}{2}\)
This formula is helpful where it is not possible to find the height of the triangle.

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Application of Heron’s Formula in Finding Areas of Quadrilaterals: In this section, we have studied the areas of such figures which are the shape of a quadrilaterals. We need to divide the quadrilateral in two triangles and then use the formula 12.25 area of the triangle.

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