Author name: Bhagya

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

Haryana State Board HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण Important Questions and Answers.

Haryana Board 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरुत्वाकर्षण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पृथ्वी की सभी वस्तुएँ एक-दूसरे को आकर्षित करती हैं, वस्तुओं के बीच इस आकर्षण बल को गुरुत्वाकर्षण कहते हैं।

प्रश्न 2.
गुरुत्वाकर्षण बल को सबसे पहले किसने बताया?
उत्तर:
सर आइजक न्यूटन ने।

प्रश्न 3.
दो वस्तुओं के बीच का गुरुत्वाकर्षण बल किस दिशा में कार्य करता है?
उत्तर:
दो वस्तुओं के बीच का गुरुत्वाकर्षण बल उनके द्रव्यमान केंद्रों को मिलाने वाली रेखा की दिशा में कार्य करता है।

प्रश्न 4.
हमारे सौरमंडल के अस्तित्व के लिए कौन-सा बल उत्तरदायी है?
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण बल सौरमंडल के लिए उत्तरदायी है।

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 5.
‘G’ किसे व्यक्त करता है?
उत्तर:
‘G’ गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक (नियतांक) को व्यक्त करता है।

प्रश्न 6.
‘G’ का मान कितना है?
उत्तर:
‘G’ का मान 6.673 x 10-11 Nm²/kg² है।

प्रश्न 7.
पृथ्वी का द्रव्यमान कितना है?
उत्तर:
पृथ्वी का द्रव्यमान (Me) = 6 x 1024 kg (लगभग)।

प्रश्न 8.
पृथ्वी का अर्द्धव्यास कितना है?
उत्तर:
पृथ्वी का अर्द्धव्यास (Re) = 6.4 x 106 m है।

प्रश्न 9.
पृथ्वी के किस भाग पर ‘g’ का मान अधिक तथा किस भाग पर कम होता है?
उत्तर:
‘g’ का मान पृथ्वी के ध्रुवों पर अधिक तथा भूमध्य रेखा पर कम होता है।

प्रश्न 10.
R दूरी पर रखी क्रमशः m1 तथा m2 द्रव्यमान वाली दो वस्तुओं के बीच आकर्षण बल का सूत्र लिखें।
उत्तर:
F = \(\frac{\mathrm{Gm}_1 \mathrm{~m}_2}{\mathrm{R}^2}\)

प्रश्न 11.
गुरुत्वीय त्वरण (g) किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह त्वरण जिसके द्वारा पृथ्वी किसी वस्तु को अपने केंद्र की ओर आकर्षित करती है, ‘गुरुत्वीय त्वरण’ कहलाता है।

प्रश्न 12.
क्या पृथ्वी की ओर गिरते हुए पिंड का त्वरण उसके द्रव्यमान पर निर्भर करता है?
उत्तर:
नहीं, पृथ्वी की ओर गिरते हुए पिंड का त्वरण उसके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता।

प्रश्न 13.
दो वस्तुओं के बीच की दूरी दुगुनी कर देने पर उनके बीच लगने वाला आकर्षण बल कितना होगा?
उत्तर:
आकर्षण बल एक-चौथाई रह जाएगा।

प्रश्न 14.
चंद्रमा पर किसी वस्तु का भार पृथ्वी की तुलना में कितना होता है?
उत्तर:
1/6 गुना।

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 15.
अभिकेंद्र त्वरण क्या है?
उत्तर:
जब कोई वस्तु वृत्ताकार पथ पर गति करती है तो उसमें वेग परिवर्तन के कारण त्वरण उत्पन्न होता है जिसे अभिकेंद्र त्वरण कहते हैं।

प्रश्न 16.
अभिकेंद्र बल किसे कहते हैं?
उत्तर:
अभिकेंद्र त्वरण को उत्पन्न करने वाले बल को अभिकेंद्र बल कहते हैं। यह सदैव केंद्र के अनुदिश होता है।
अर्थात् F = \(\frac{\mathrm{mv}^2}{\mathrm{r}}\)

प्रश्न 17.
‘g’ किसको व्यक्त करता है?
उत्तर:
‘g’ गुरुत्वीय त्वरण को व्यक्त करता है।

प्रश्न 18.
‘g’ का मान पृथ्वी तल के निकट कितना है?
उत्तर:
‘g’ (गुरुत्वीय त्वरण) का मान पृथ्वी तल के निकट 9.8 m/s² है।

प्रश्न 19.
किस स्थान पर ‘g’ का मान शून्य होता है?
उत्तर:
पृथ्वी के केंद्र पर ‘g’ का मान शून्य होता है।

प्रश्न 20.
‘g’ तथा ‘G’ का संबंध सूत्र लिखें।
उत्तर:
g = \(\frac{\mathrm{G} \times \mathrm{M}_{\mathrm{e}}}{\mathrm{R}^2}\)

प्रश्न 21.
गुरुत्वाकर्षण बल किन बातों पर निर्भर करता है?
उत्तर:

  • वस्तुओं के द्रव्यमान पर।
  • वस्तुओं के बीच की दूरी पर।

प्रश्न 22.
पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी कितनी है?
उत्तर:
पृथ्वी की त्रिज्या का 60 गुना = 384000 km

प्रश्न 23.
यदि कोई वस्तु किसी ऊँचाई से शून्य वेग से छोड़ी जाए तो t सेकंड में वह कितनी दूरी तय करती है?
उत्तर:
तय की गई दूरी h = \(\frac { 1 }{ 2 }\) gt²

प्रश्न 24.
‘g’ तथा G में से किसका मान स्थिर रहता है और किसका मान स्थिर नहीं रहता है?
उत्तर:
G का मान पृथ्वी के सभी स्थानों पर स्थिर रहता है, परंतु ‘g’ का मान ध्रुवों पर अधिक तथा भूमध्य रेखा पर कम हो जाता है।

प्रश्न 25.
पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करने में कितना समय लेती है?
उत्तर:
पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करने में 365\(\frac { 1 }{ 4 }\) दिन लेती है।

प्रश्न 26.
चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करने में कितना समय लेता है?
उत्तर:
चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करने में 27 दिन, 8 घंटे लेता है।

प्रश्न 27.
द्रव्यमान से क्या अभिप्राय है? इसकी इकाई भी लिखें।
उत्तर:
वस्तु में विद्यमान पदार्थ की मात्रा को द्रव्यमान कहते हैं, इसकी इकाई किलोग्राम है।

प्रश्न 28.
किसी वस्तु के भार से क्या अभिप्राय है? इसकी मानक इकाई क्या है?
उत्तर:
पृथ्वी जिस बल से किसी वस्तु को अपनी ओर खींचती है, उस बल को वस्तु का भार कहते हैं। इसकी मानक इकाई न्यूटन है।

प्रश्न 29.
भारहीनता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यह वस्तु की वह अवस्था है जब किसी ग्रह (पृथ्वी) का गुरुत्व क्रिया करना बंद कर देता है तो अंतरिक्षयान में बैठा व्यक्ति भारहीनता की स्थिति में होता है।

प्रश्न 30.
द्रव्यमान केंद्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी वस्तु का द्रव्यमान केंद्र वह बिंदु है जिस पर वस्तु का समस्त द्रव्यमान आपेक्षित है।

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प्रश्न 31.
गुरुत्व केंद्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी वस्तु का गुरुत्व केंद्र वह बिंदु है जिस पर समस्त गुरुत्व बल कार्य करता है।

प्रश्न 32.
नियमित आकार की वस्तुओं का गुरुत्व केंद्र कहाँ होता है?
उत्तर:
नियमित आकार व एक समान घनत्व वाली वस्तुओं का गुरुत्व केंद्र उनके ज्यामितीय केंद्र पर होता है।

प्रश्न 33.
क्या होगा यदि दो वस्तुओं के द्रव्यमान और त्वरण दोनों बराबर हो जाएँ?
उत्तर:
यदि दो वस्तुओं के द्रव्यमान और त्वरण दोनों बराबर हो जाएँ तो वे एक-दूसरे की ओर चलती हुई दिखाई देंगी।

प्रश्न 34.
गुरुत्व बल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पृथ्वी और किसी वस्तु के बीच के आकर्षण बल को गुरुत्व बल कहते हैं।

प्रश्न 35.
भार को मापने के लिए किस तुला का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
भार को मापने के लिए कमानीदार तुला का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 36.
द्रव्यमान को मापने के लिए किस तुला का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
द्रव्यमान को मापने के लिए भौतिक तुला का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 37.
वस्तु का भार चंद्रमा पर पृथ्वी की तुलना में कम क्यों होता है?
उत्तर:
क्योंकि चंद्रमा पर गुरुत्वीय त्वरण पृथ्वी की तुलना में कम होता है।

प्रश्न 38.
25 kg द्रव्यमान तथा 2 kg द्रव्यमान के दो पत्थरों को एक मीनार की चोटी से एक साथ नीचे गिराने पर कौन-सा पत्थर पहले जमीन पर पहुंचेगा?
उत्तर:
गुरुत्वीय त्वरण वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर न होने के कारण दोनों पत्थर एक-साथ पृथ्वी पर पहुंचेंगे।

प्रश्न 39.
मेज पर रखी हुई दो वस्तुओं के बीच गुरुत्वाकर्षण बल होता है। इस बल के होते हुए भी वे एक-दूसरे की ओर गति क्यों नहीं करते?
उत्तर:
दोनों वस्तुओं के बीच गुरुत्वाकर्षण बल इतना क्षीण होता है जिससे वस्तुएँ गति नहीं कर पातीं।

प्रश्न 40.
पृथ्वी एक लौह पिन को गुरुत्वाकर्षण बल से नीचे की ओर आकर्षित करती है तो भी चुंबक लौह पिन को पृथ्वी के आकर्षण की दिशा के विपरीत ऊपर की ओर उठा लेता है। क्यों?
उत्तर:
क्योंकि चुंबक द्वारा लौह पिन पर लगाया गया आकर्षण बल, पिन पर लगे गुरुत्वाकर्षण बल की अपेक्षा अधिक होता है।

प्रश्न 41.
पृथ्वी पर उपस्थित दो वस्तुओं के बीच गुरुत्वाकर्षण बल अधिक होता है या वस्तु और पृथ्वी के बीच लगा गुरुत्वाकर्षण बल?
उत्तर:
वस्तु और पृथ्वी के बीच लगा गुरुत्वाकर्षण बल अधिक होता है।

प्रश्न 42.
किसी वस्तु का भार शून्य कहाँ होता है?
उत्तर:
पृथ्वी के केंद्र पर वस्तु का भार शून्य होता है।

प्रश्न 43.
u, v, g तथा t में क्या संबंध है?
उत्तर:
v = u + gt

प्रश्न 44.
कार्तीय (कार्टीजियन) निर्देश तंत्र की परिपाटी के अनुसार ‘g’ का चिहन क्या होता है?
उत्तर:
g सदैव ऋणात्मक लिया जाता है।

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 45.
प्रक्षेप्य परास से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी प्रक्षेप्य द्वारा तय की गई अधिकरण क्षैतिज दूरी को प्रक्षेप्य परास कहते हैं।

प्रश्न 46.
प्रक्षेप्य के उच्चतम बिंदु पर वेग तथा त्वरण के बीच कितना कोण होता है?
उत्तर:
समकोण (90°)।

प्रश्न 47.
पृथ्वी की सूर्य से दूरी कितनी है?
उत्तर:
1.5 x 1011 मीटर।

प्रश्न 48.
प्रणोद किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी वस्तु की सतह के लंबवत् लगने वाले बल को प्रणोद कहते हैं।

प्रश्न 49.
प्रणोद बल का दैनिक जीवन में एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
ड्राईंग बोर्ड पर पिन लगाते समय हमारे हाथ के अंगूठे द्वारा लगाया गया बल बोर्ड पर लंबवत् दिशा में कार्य करता है। अतः यह प्रणोद बल होता है।

प्रश्न 50.
दाब किसे कहते हैं? इसका S. I मात्रक क्या है?
उत्तर:
एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाले प्रणोद को दाब कहते हैं ।
HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण 18
इसका S.I. मात्रक पास्कल (Pa) है।

प्रश्न 51.
प्रणोद का S. I. मात्रक क्या है ?
उत्तर:
न्यूटन (N)।

प्रश्न 52.
दाब का SI मात्रक पास्कल (Pa) किस वैज्ञानिक के सम्मान में रखा गया?
उत्तर:
वैज्ञानिक ब्लैस पास्कल के सम्मान में।

प्रश्न 53.
दाब के बड़े मात्रक को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
किलो पास्कल (kPa)।

प्रश्न 54.
काटने, चीरने और सुराख निकालने वाले यंत्र हमेशा नुकीले क्यों रखे जाते हैं?
उत्तर:
काटने, चीरने और सुराख निकालने वाले यंत्र हमेशा नुकीले रखे जाते हैं ताकि प्रणोद कम-से-कम क्षेत्रफल को प्रभावित करे जिससे दाब बढ़ जाए और वस्तु आसानी से काटी, चीरी या सुराखी जा सके।

प्रश्न 55.
मनुष्य का दाब जमीन पर बैठे हुए अधिक पड़ता है अथवा एक जगह खड़े रहने पर, क्यों?
उत्तर:
मनुष्य का दाब एक जगह खड़े रहने पर अधिक पड़ता है, क्योंकि एक जगह खड़े रहने पर क्षेत्रफल बैठे हुए की अपेक्षा कम होता है।

प्रश्न 56.
गहराई का द्रव – दाब पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
गहराई के साथ- साथ द्रव – दाब बढ़ता जाता है।

प्रश्न 57.
नमकीन पानी में अंडा क्यों तैरता है?
उत्तर:
पानी में नमक मिलाने से पानी का घनत्व बढ़ जाता है जिससे पानी का उत्प्लावन बल अधिक हो जाता है और अंडा तैरता रहता है।

प्रश्न 58.
वस्तु किस अवस्था में तैरती है?
उत्तर:
यदि वस्तु द्वारा हटाए गए द्रव का भार वस्तु के भार के बराबर होता है तो वस्तु द्रव की सतह पर तैरती रहती है।

प्रश्न 59.
आर्किमिडीज के सिद्धांत पर बनने वाले दो यंत्रों के नाम लिखो।
उत्तर:

  • जलयान
  • पनडुब्बी।

प्रश्न 60.
दूध की शुद्धता मापने के लिए किस यंत्र का प्रयोग किया जाता है और उसका सिद्धांत क्या है?
उत्तर:
दूध की शुद्धता मापने के लिए लैक्टोमीटर का प्रयोग किया जाता है जोकि आर्किमिडीज के सिद्धांत पर कार्य करता है।

प्रश्न 61.
द्रवों के घनत्व को मापने के लिए यंत्र का नाम और उसका सिद्धांत लिखो।
उत्तर:
हाइड्रोमीटर, जोकि आर्किमिडीज़ के सिद्धांत पर कार्य करता है।

प्रश्न 62.
एकांक आयतन के द्रव्यमान को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
घनत्व

प्रश्न 63.
घनत्व का SI मात्रक क्या है?
उत्तर:
किलोग्राम प्रति घनमीटर (kg/m³)।

लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
यदि किसी पत्थर के टुकड़े को किसी निश्चित ऊँचाई से स्वतंत्र अवस्था में गिरने दिया जाए तो उसके वेग में कौन-कौन से परिवर्तन आएँगे?
उत्तर:
किसी पत्थर के टुकड़े को किसी निश्चित ऊँचाई से स्वतंत्र अवस्था में गिरने देने पर निम्नलिखित वेग परिवर्तन होंगे

  • पत्थर का प्रारंभिक वेग शून्य होता है तथा नीचे की ओर आते समय बढ़ता चला जाता है।
  • पृथ्वी के निकटतम पत्थर का वेग अधिकतम होता है।
  • पृथ्वी पर गिर जाने के बाद पत्थर का वेग शून्य हो जाता है।

प्रश्न 2.
गुरुत्वाकर्षण क्या है? यह किस दिशा में कार्य करता है?
उत्तर:
ब्रह्मांड की प्रत्येक वस्तु दूसरी वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करती है। किन्हीं दो वस्तुओं के बीच इस आकर्षण को गुरुत्वाकर्षण कहते हैं। दो वस्तुओं के बीच यह आकर्षण उनके केंद्रों को मिलाने वाली सरल रेखा के अनुदिश कार्य करता है।

प्रश्न 3.
सिद्ध करें कि पृथ्वी की ओर गिराई गई वस्तु में उत्पन्न त्वरण उसके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता।
उत्तर:
यदि m द्रव्यमान की किसी वस्तु को पृथ्वी के केंद्र से ‘R’ दूरी से गिराएँ तो वस्तु पर पृथ्वी द्वारा लगाया गया बल
F = \(\frac{\mathrm{GM}_{\mathrm{e}} \mathrm{m}}{\mathrm{R}^2}\)
जिसमें Me = पृथ्वी का द्रव्यमान, G = गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक है।
अतः वस्तु में उत्पन्न त्वरण = F/m (F = ma; a = \(\frac { F }{ m }\))
= \(\frac{\frac{\mathrm{Gm}_{\mathrm{e}^{\mathrm{m}}}}{\mathrm{R}^2}}{\mathrm{~m}}\)
= \(\frac{\mathrm{GM}_{\mathrm{e}} \mathrm{m}}{\mathrm{R}^2} \times \frac{1}{\mathrm{~m}}=\frac{\mathrm{GM}_{\mathrm{e}}}{\mathrm{R}^2}\)
अतः किसी वस्तु में उत्पन्न त्वरण गिराई गई वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता।

प्रश्न 4.
न्यूटन की गति का तीसरा नियम क्या है? क्या यह नियम गुरुत्वाकर्षण बल पर भी लागू होता है? व्याख्या करो।
उत्तर:
इस नियम के अनुसार, “प्रत्येक क्रिया के समान तथा विपरीत प्रतिक्रिया होती है।” उदाहरणतया गेंद को दीवार पर मारते समय हम गेंद पर क्रिया करते हैं तथा दीवार की प्रतिक्रिया के कारण गेंद वापस आती है अर्थात् यदि कोई वस्तु A किसी दूसरी वस्तु B पर बल लगाती है, तो वस्तु B भी वस्तु A पर बराबर तथा विपरीत बल लगाती है। यह तथ्य गुरुत्वाकर्षण बल के लिए भी सत्य है।

जब कोई पत्थर का टुकड़ा पृथ्वी पर गिरता है तो ऐसा पृथ्वी द्वारा पत्थर के टुकड़े पर लगे गुरुत्व बल के कारण होता है। वास्तव में पत्थर का टुकड़ा भी पृथ्वी को अपनी ओर उतने ही गुरुत्व बल से आकर्षित करता है, परंतु पृथ्वी की तुलना में पत्थर का द्रव्यमान कम होने के कारण, पत्थर द्वारा पृथ्वी पर लगाया गया बल कम होता है। अतः पत्थर पृथ्वी की ओर खिंचता दिखाई देता है।

प्रश्न 5.
एक ऊपर की ओर फेंकी गई वस्तु की गति पर विचार कीजिए।
उत्तर:
जब कोई वस्तु ऊपर की ओर फेंकी जाती है तो पृथ्वी उसे लगातार अपनी ओर आकर्षित करती रहती है, इसलिए गुरुत्वाकर्षण बल गति की दिशा के विपरीत लगता है, इसलिए वस्तु धीमी गति से चलने लगती है। चाल 9.8 ms-2 की दर से कम होती जाती है अर्थात् हर प्रति सेकंड के लिए चाल 9.8 m/s कम हो जाती है और अंत में जब वस्तु सबसे ऊँची स्थिति में पहुँच जाती है तो चाल शून्य हो जाती है। वह वस्तु फिर से पृथ्वी की ओर नीचे 9.8 ms-2 के त्वरण से गिरती है।

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 6.
‘G’ का मात्रक ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
‘G’ बल (F) तथा \(\frac{\mathrm{M}_1 \mathrm{M}_2}{\mathrm{R}_2}\) का अनुपात है, इसलिए इसका मात्रक बल, द्रव्यमान तथा दूरी के मात्रकों पर निर्भर करता है। यदि द्रव्यमान को किलोग्राम में, दूरी को मीटर में तथा समय को सेकंड में मापा जाए तो बल का मात्रक न्यूटन (N) होता है, इसलिए
HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण 1

प्रश्न 7.
G को सार्वत्रिक स्थिरांक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
हम जानते हैं कि F = G\(\frac{\mathrm{m}_1 \mathrm{m}_2}{\mathrm{R}_2}\)
इसमें ‘G’ स्थिरांक है। ‘G’ का मान m1, m2 या R के मान पर निर्भर नहीं करता। इसका मान इस बात पर भी निर्भर नहीं करता कि F को किसने मापा, कब मापा और कहाँ मापा। ब्रह्मांड में स्थित किन्हीं भी दो वस्तुओं के लिए G का मान स्थिर रहता है। F तथा \(\frac{\mathrm{m}_1 \mathrm{m}_2}{\mathrm{R}_2}\) का अनुपात जोकि G के बराबर होता है किन्हीं दो वस्तुओं के लिए समान होता है, इसलिए ‘G’ को सार्वत्रिक स्थिरांक कहा जाता है।

प्रश्न 8.
‘g’ तथा ‘G’ में क्या अंतर है?
उत्तर:
‘g’ तथा ‘G’ में निम्नलिखित अंतर हैं-

gG
1. यह गुरुत्वीय त्वरण को प्रदर्शित करता है।1. यह गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक को प्रदर्शित करता है।
2. इसका मान भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भि है।2. इसका मान सभी स्थानों पर समान होता है, इसलिए इसे सार्वत्रिक स्थिरांक भी कहते हैं।
3. इसका पृथ्वी पर मान 9.8 ms-2 है।3. इसका मान 6.673 x 10-11Nm²/kg² है।
4. यह सदैव ऋणात्मक होता है।4. यह सदैव धनात्मक होता है।

प्रश्न 9.
विभिन्न द्रव्यमानों की वस्तुएँ एक ही ऊँचाई से साथ-साथ नीचे गिराए जाने पर एक साथ नीचे गिरती हैं, सिद्ध करें। (यदि वायु का प्रतिरोध नगण्य मान लिया जाए)
हल:
माना दो विभिन्न द्रव्यमानों की वस्तुएँ ‘h’ ऊँचाई से साथ-साथ गिराई गईं
इस स्थिति में s = h, u = 0
सूत्रानुसार
s = ut + \(\frac { 1 }{ 2 }\) gt²
⇒ h = 0 x t + \(\frac { 1 }{ 2 }\) gt²
या h = \(\frac { 1 }{ 2 }\) gt²
या 2h = gt²
या gt² = 2h
या t² = \(\frac { 2h }{ g }\)
या t = \(\sqrt{\frac{2 h}{g}}\)
समीकरण से स्पष्ट है कि वस्तुओं द्वारा लिया गया समय द्रव्यमानों पर निर्भर नहीं करता अर्थात् दोनों वस्तुएँ समान समय में पृथ्वी पर गिरती हैं। उत्तर

प्रश्न 10.
पृथ्वी की ऊर्ध्वाधर दिशा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण 2
यदि हम पृथ्वी को एकसमान घनत्व का गोला मान लें तो इसका ऊर्ध्वाधर दिशा द्रव्यमान केंद्र इसके केंद्र पर होगा। अतः किसी वस्तु पर पृथ्वी का आकर्षण बल उसके (पृथ्वी के) केंद्र की दिशा में लगता है। यही वह दिशा है जिसे हम ‘ऊर्ध्वाधर दिशा’ कहते हैं।

प्रश्न 11.
स्वतंत्रतापूर्वक गिरती हुई वस्तुओं से संबंधित समीकरण कौन-कौन से हैं?
हल:
(i) v = u+ gt
(ii) v² – u² = 2gs
(iii) s = ut + \(\frac { 1 }{ 2 }\) gt²
यहाँ पर
u = प्रारंभिक वेग
v = अंतिम वेग
g = गुरुत्वीय त्वरण
s = दूरी या ऊँचाई; t = समय उत्तर

प्रश्न 12.
भार से क्या तात्पर्य है? भार का सूत्र लिखें।
उत्तर:
किसी वस्तु पर, पृथ्वी द्वारा लगाया गया आकर्षण बल उसका भार कहलाता है।
यदि m द्रव्यमान की वस्तु पर पृथ्वी ‘g’ त्वरण उत्पन्न करे तो पृथ्वी द्वारा वस्तु पर लगाया गया आकर्षण बल
F = mg
परंतु पृथ्वी द्वारा वस्तु पर लगाया गया आकर्षण बल (F) = वस्तु का भार (W)
∵ W = mg

प्रश्न 13.
पृथ्वी पर वस्तु का भार तथा किसी अन्य आकाशीय पिंड पर वस्तु के भार की तुलना करने के लिए सूत्र ज्ञात करें।
हल:
माना वस्तु का द्रव्यमान = m
पृथ्वी का द्रव्यमान = Me
पृथ्वी की त्रिज्या = Re
पृथ्वी द्वारा वस्तु पर लगा आकर्षण बल (भार) Fe = \(\frac{\text { GMe m }}{R^2}\) … (i)
माना आकाशीय पिंड का द्रव्यमान = Mm
आकाशीय पिंड की त्रिज्या = Rm
अन्य आकाशीय पिंड द्वारा वस्तु पर लगाया गया आकर्षण बल (भार)
Fm = \(\frac{\mathrm{G} \times \mathrm{Mm} \times \mathrm{m}}{\mathrm{Rm}^2}\) … (ii)
समीकरण (ii) को (i) से भाग देने पर
\(\frac{\mathrm{Fm}}{\mathrm{Fe}}=\frac{\mathrm{Mm}}{\mathrm{Me}} \times\left(\frac{\mathrm{Re}}{\mathrm{Rm}}\right)^2\)

प्रश्न 14.
गुरुत्वीय त्वरण (g) तथा सार्वत्रिक गुरुत्वीय स्थिरांक (G) में संबंध ज्ञात करो।
हल:
माना m द्रव्यमान की एक वस्तु पृथ्वी के केंद्र से ‘R’ दूरी पर रखी है। यदि ‘M’ पृथ्वी का द्रव्यमान हो तो पृथ्वी द्वारा उस वस्तु पर लगाया गया बल
F = G \(\frac{\mathrm{Mm}}{\mathrm{R}^2}\) … (i)
पृथ्वी जिस बल से वस्तु को अपने केंद्र की ओर खींचती है, वह उसका भार होता है । इसे भी ‘F’ द्वारा व्यक्त किया जाता है।
F = द्रव्यमान (m) x गुरुत्वीय त्वरण (g) … (ii)
अर्थात् F = mg
समीकरण (i) और (ii) से
mg = G \(\frac{\mathrm{Mm}}{\mathrm{R}^2}\)
यही अभीष्ट संबंध है। इसकी सहायता से ‘g’ का मान भी ज्ञात किया जा सकता है। उत्तर

प्रश्न 15.
द्रव्यमान किसे कहते हैं? इसको मापने की इकाई क्या है? द्रव्यमान मापने का नियम लिखो।
उत्तर:
द्रव्यमान-किसी वस्तु में पदार्थ का परिमाण उसका द्रव्यमान कहलाता है। यह एक अदिश तथा अचर राशि है। द्रव्यमान को मापने की इकाई किलोग्राम है। इसको भौतिक तुला द्वारा ज्ञात किया जाता है।

द्रव्यमान मापने का नियम – मान लीजिए हमारे पास दो वस्तुएँ हैं जिनके द्रव्यमान m1 तथा m2 हैं। मान लो, हम उन्हें पृथ्वी के केंद्र से समान दूरी पर रखते हैं तो पृथ्वी तथा m1 के बीच आकर्षण बल
F1 = \(\frac{\mathrm{GMem}_1}{\mathrm{R}^2}\)
यहाँ Me = पृथ्वी का द्रव्यमान तथा R = पृथ्वी के केंद्र से m1 द्रव्यमान की दूरी
इसी प्रकार पृथ्वी तथा m2 के बीच आकर्षण बल F2 = \(\frac{\mathrm{GMem}_2}{\mathrm{R}^2}\)
यदि ये दोनों बल समान हों तो F1 = F2
⇒ \(\frac{\mathrm{GMem}_1}{\mathrm{R}^2}\) = \(\frac{\mathrm{GMem}_2}{\mathrm{R}^2}\)
m1 = m2
अर्थात् यदि दोनों बल बराबर हों तो दोनों वस्तुओं के द्रव्यमान भी बराबर होंगे तथा भौतिक तुला के पलड़े बराबर दिखाई देंगे।

प्रश्न 16.
प्रक्षेप्य तथा प्रक्षेपण पथ को परिभाषित करें तथा प्रक्षेप्य गति के उदाहरण दें।
उत्तर:
प्रक्षेप्य क्षैतिज दिशा में फेंकी गई वस्तु को प्रक्षेप्य कहते हैं।
प्रक्षेपण पथ-प्रक्षेप्य के द्वारा चले गए वक्र पथ को प्रक्षेपण पथ कहते हैं।
HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण 3
प्रक्षेप्य गति के उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  • वायुयान से गिराई गई वस्तु का पथ। जैसे की चित्र में 80 m की ऊँची मीनार से गिरती गेंद दिखाई गई है।
  • बंदूक से निकली गोली का पथ।
  • खिलाड़ी द्वारा फेंके गए गोले का पथ।

प्रश्न 17.
अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में भारहीनता क्यों अनुभव करते हैं?
उत्तर:
जब अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में बैठकर पृथ्वी के गिर्द चक्कर लगाते हैं तो पृथ्वी और अंतरिक्षयान के बीच लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी के गिर्द चक्कर लगाने में प्रयुक्त बल के संतुलित हो जाता है जिससे अंतरिक्षयान में बैठे यात्रियों को भारहीनता अनुभव होती है। अंतरिक्षयान में गुरुत्वीय त्वरण का मान शून्य हो जाता है।

प्रश्न 18.
सामान्यतः यदि रुई की गेंद तथा समान आकार के पत्थर को किसी निश्चित ऊँचाई से छोड़कर नीचे गिरने दें तो पृथ्वी के तल पर कौन पहले गिरता है? गैलीलियो ने इस विषय में क्या बताया?
उत्तर:
सामान्यतः रुई की अपेक्षा पत्थर का टुकड़ा पृथ्वी के तल पर पहले पहुँचता है, परंतु सर्वप्रथम गैलीलियो ने यह बताया कि यदि वायु का प्रतिरोध शून्य कर दिया जाए तो रुई की गेंद तथा पत्थर का टुकड़ा दोनों ही समान त्वरण से पृथ्वी के तल पर पहुँचेंगे। गैलीलियो के मतानुसार, “पृथ्वी पर गिरती हुई वस्तुओं के त्वरण उनके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करते।”
HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण 4

प्रश्न 19.
किसी स्थान पर गुरुत्वी प्रवेग कैसे बदलता है-
(1) ऊँचाई के कारण
(2) पृथ्वी के आकार के कारण।
उत्तर:
किसी स्थान पर गुरुत्वी प्रवेग निम्नलिखित प्रकार से बदलता है-
(1) ऊँचाई के कारण – पृथ्वी के तल पर ऊँचाई पर स्थित पहाड़ों पर ‘g’ का मूल्य कम होता है, जबकि मैदानों में यह कुछ अधिक होता है
∴ \(\frac{\mathrm{W}_{\mathrm{h}}}{\mathrm{W}}=\frac{\mathrm{g}_{\mathrm{h}}}{\mathrm{g}}=\frac{\mathrm{R}^2}{(\mathrm{R}+\mathrm{h})^2}\)
इसी प्रकार ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ ‘g’ का मान कम होता जाता है।

(2) पृथ्वी के आकार के कारण – पृथ्वी गेंद की तरह पूरी गोल नहीं है बल्कि यह भूमध्य रेखा के पास उभरी तथा ध्रुवों के पास पिचकी हुई है। पृथ्वी की भूमध्य रेखा और ध्रुवीय रेखा की त्रिज्या में लगभग 22 कि०मी० का अंतर है जिस कारण ‘g’ का मूल्य ध्रुवों पर अधिक तथा भूमध्य रेखा पर कम होता है। क्योंकि
g = \(\frac{\mathrm{GM}}{\mathrm{R}^2}\)
(जहाँ G तथा M स्थिरांक हैं) g ∝ \(\frac{\mathrm{1}}{\mathrm{R}^2}\)

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 20.
‘चंद्रमा पृथ्वी की ओर गिरता रहता है’, इसका तात्पर्य क्या है? यह पृथ्वी तल पर क्यों नहीं गिर जाता?
उत्तर:
चंद्रमा, पृथ्वी की ओर गिरता रहता है, इसका तात्पर्य यह है कि पृथ्वी गुरुत्वाकर्षण बल के कारण चंद्रमा को अपनी ओर आकर्षित करती है।
HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण 5
परंतु चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर वृत्ताकार पथ में गति करने के कारण पृथ्वी तल पर नहीं गिरता, क्योंकि वृत्ताकार पथ पर घूमते हुए किसी पिंड का वेग प्रत्येक बिंदु पर बदलता है। वेग अथवा त्वरण में यह परिवर्तन पिंड की गति की दिशा में परिवर्तन के कारण होता है। इस त्वरण को उत्पन्न करने वाला अभिकेंद्र बल पिंड को वृत्तीय गति में बनाए रखता है, जो सदैव केंद्र के अनुदिश होता है।

प्रश्न 21.
पृथ्वी सेब को आकर्षित करती है तो क्या सेब भी पृथ्वी को आकर्षित करता है? यदि हाँ, तो पृथ्वी सेब की ओर गति क्यों नहीं करती ?
उत्तर:
निश्चित रूप से सेब भी पृथ्वी को अपनी ओर आकर्षित करता है, परंतु सेब का द्रव्यमान पृथ्वी की तुलना में नगण्य होने के कारण यह (पृथ्वी) सेब की ओर गति नहीं करती।

प्रश्न 22.
केप्लर के गति के तीन नियम कौन-से हैं?
उत्तर:
केप्लर की गति के तीन नियम निम्नलिखित हैं-
(1) प्रत्येक ग्रह की कक्षा से एक दीर्घवृत्त होती है और सूर्य इस दीर्घवृत्त के एक फोकस पर होता है। जैसा कि चित्र में सूर्य की स्थिति को 0 से दर्शाया गया है।

(2) सूर्य तथा ग्रह को मिलाने वाली रेखा समान समय में समान क्षेत्रफल तय करती है। इस प्रकार यदि A से B तक गति करने में लगा समय C से D तक गति करने में लगे समय के बराबर हो तो क्षेत्रफल OAB तथा क्षेत्रफल OCD बराबर होंगे।

(3) सूर्य से किसी भी ग्रह की औसत दूरी (r) का घन उस ग्रह के परिक्रमण काल T के वर्ग के समानुपाती होता है। अथवा r³/T² = स्थिरांक यह जानना बहुत महत्त्वपूर्ण है कि ग्रहों की गति की व्याख्या करने के लिए केप्लर कोई सिद्धांत प्रस्तुत नहीं कर सके। न्यूटन ने ही यह दिखाया कि ग्रहों की गति का कारण गुरुत्वाकर्षण का वह बल है जो सूर्य उन पर लगाता है।
HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण 6

प्रश्न 23.
कारों की अपेक्षा बसों या ट्रकों के टायर चौड़े क्यों रखे जाते हैं?
उत्तर:
बसों या ट्रकों में प्रणोद बल कारों की अपेक्षा अधिक होता है। यदि उनके टायर कारों के टायरों की तरह कम चौड़े रखे जाएँ तो उनका दबाव अधिक हो जाएगा और वे धरती में धंस जाएँगे। इसलिए बसों या ट्रकों के टायर अधिक चौड़े रखे जाते हैं ताकि प्रभावित क्षेत्रफल बढ़ जाए और धरती पर दबाव कम पड़े।

प्रश्न 24.
क्या कारण है कि मरुस्थल में ऊँट आसानी से चल सकता है, जबकि घोड़े के लिए चलना सुगम नहीं है?
उत्तर:
घोड़े के पैरों की अपेक्षा ऊँट के पैरों का क्षेत्रफल अधिक होता है जिससे प्रभावित क्षेत्रफल अधिक होता है और दाब कम हो जाता है। दाब कम होने के कारण ऊँट मरुस्थल से आसानी से चल पाता है। इसके विपरीत घोड़े के पैरों का क्षेत्रफल कम होता है जिससे दाब अधिक होता है। दाब अधिक होने से घोड़े द्वारा मरुस्थल में चलना कठिन हो जाता है।
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प्रश्न 25.
उत्प्लावन बल किसे कहते हैं? यह कैसे मापा जाता है?
उत्तर:
जब किसी वस्तु को द्रव में डुबोया जाता है तो वस्तु पर ऊपर की ओर एक बल लगता है, जिसे उत्प्लावन बल कहते हैं।

उत्प्लावन बल का मापन-
एक ठोस बेलन लो। उसे कमानीदार तुला से लटकाओ तथा उसका भार नोट करो। मान लो उसका भार W1 ग्राम है। अब एक बीकर में पानी डालो और बेलन को बीकर में रखे पानी में धीरे-धीरे ले जाओ। आप देखोगे कि पानी में धीरे-धीरे रखने से बेलन का भार कम प्रतीत होने लगता है जो कि कमानीदार तुला के सूचक से प्रकट होता है। जब ठोस बेलन पूरी तरह से पानी में डूब जाए तो कमानीदार तुला के सूचक का पाठ्यांक नोट करो। मान लो यह पाठ्यांक
W2 ग्राम है अर्थात् पानी में ठोस बेलन का भार W2 ग्राम है।
दोनों भारों का अंतर ठोस बेलन के लिए पानी का उत्प्लावन बल होगा।
उत्प्लावन बल = बेलन का वायु में भार-बेलन का पानी में भार = (W1 – W2) ग्राम।
HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण 8

प्रश्न 26.
क्या कारण है कि लोहे की सूई पानी में डूब जाती है, परंतु लोहे का बना जलयान पानी में तैरता रहता है?
उत्तर:
लोहे की सूई पानी में डूब जाती है, परंतु लोहे का बना हुआ जलयान पानी में तैरता रहता है। इसका कारण यह है कि सूई जितना पानी हटाती है उस पानी का भार सूई के भार से कम होता है। भारी होने के कारण सूई पानी में डूब जाती है। इसके विपरीत लोहे का बना जलयान जितना पानी हटाता है उसका भार जलयान के भार से अधिक होता है। जलयान का भार हटाए गए पानी के भार से कम होने के कारण वह पानी में तैरता रहता है।

प्रश्न 27.
नदी की अपेक्षा समुद्र के पानी में तैरना आसान क्यों होता है?
उत्तर:
नदी की अपेक्षा समुद्र के पानी में तैरना आसान इसलिए होता है, क्योंकि समुद्र के पानी का घनत्व नदी के पानी की अपेक्षा अधिक होता है। अतः समुद्री जल अधिक भारी होने के कारण मनुष्य के शरीर पर अधिक उत्प्लावन बल लगाता है। इसी कारण समुद्र में तैरने में आसानी होती है।

प्रश्न 28.
घनत्व किसे कहते हैं? इसका SI मात्रक क्या है? इसकी क्या महत्ता है?
उत्तर:
घनत्व-किसी वस्तु का घनत्व उसके एकांक आयतन के द्रव्यमान को कहते हैं। इसका SI मात्रक किलोग्राम प्रति घनमीटर (kg/m³) है। विशिष्ट परिस्थितियों में किसी पदार्थ का घनत्व सदैव समान रहता है। जैसे सोने का घनत्व 19300 kg/m³ तथा पानी का घनत्व 1000 kg/m³ है।

महत्त्व-किसी पदार्थ के नमूने का घनत्व, उस पदार्थ की शुद्धता की जाँच में सहायता करता है।

प्रश्न 29.
आपेक्षिक घनत्व से क्या अभिप्राय है? इसके आधार पर पानी में डूबने व तैरने की क्या शर्त है?
उत्तर:
आपेक्षिक घनत्व-किसी पदार्थ का आपेक्षिक घनत्व उस पदार्थ का घनत्व व पानी के घनत्व का अनुपात है। अर्थात्
HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण 9
क्योंकि, आपेक्षिक घनत्व एक अनुपात है, अतः इसका कोई मात्रक नहीं होता। सोने का आपेक्षिक घनत्व 19.3 है। यदि किसी ठोस या द्रव का आपेक्षिक घनत्व 1 से अधिक हो तो वह पानी में डूब जाएगा। यदि पदार्थ का आपेक्षिक घनत्व 1 से कम है तो इसका तात्पर्य है कि वह पदार्थ पानी में तैरेगा।

प्रश्न 30.
बर्फ पानी पर क्यों तैरती है?
उत्तर:
बर्फ पानी पर इसलिए तैरती है, क्योंकि बर्फ का घनत्व पानी के घनत्व से कम होता है। जब बर्फ का टुकड़ा पानी में डाला जाता है तो उसका भार उसके द्वारा हटाए गए पानी के भार से कम होता है।

प्रश्न 31.
आर्किमिडीज के सिद्धांत की परिभाषा लिखो तथा इसकी व्याख्या करो। इस नियम के कौन-कौन से उपयोग हैं?
अथवा
आर्किमिडीज का सिद्धांत लिखिए। आर्किमिडीज के सिद्धांत के दो अनुपयोग लिखिए।
उत्तर:
सिद्धांत की परिभाषा-जब किसी वस्तु को किसी द्रव में पूर्ण या आंशिक रूप से डुबोया जाता है तो इस वस्तु के भार में कमी आ जाती है। यह कमी वस्तु द्वारा हटाए गए द्रव के भार के बराबर होती है।

व्याख्या-जब कोई ठोस द्रव में डुबोया जाता है तो द्रव अपने उत्प्लावन बल द्वारा उसे ऊपर की ओर उठाता है जिससे उसका भार कम हो जाता है, क्योंकि उत्प्लावन बल ठोस द्वारा विस्थापित द्रव के भार के बराबर होता है। इसलिए द्रव में डुबोने पर ठोस के भार में कमी उसके द्वारा हटाए गए द्रव के भार के बराबर होती है।

आर्किमिडीज के सिद्धांत के दैनिक जीवन में निम्नलिखित अनुपयोग हैं-

  • इस सिद्धांत पर जलयान व पनडुब्बियों के डिज़ाइन बनाए जाते हैं।
  • दूध की शुद्धता मापने के लिए लैक्टोमीटर भी इसी सिद्धांत पर तैयार किया गया है।
  • हाइड्रोमीटर इसी सिद्धांत पर कार्य करता है जो द्रवों का घनत्व मापने के काम आता है।

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 32.
दो वस्तुओं के बीच लगने वाले गुरुत्वाकर्षण बल का क्या होगा, यदिः
(1) वस्तुओं के बीच की दूरी एक तिहाई (1/3) कर दी जाए?
(2) दोनों वस्तुओं के द्रव्यमान आधे (1/2) कर दिए जाएँ?
उत्तर:
(1) हम जानते हैं कि दो वस्तुओं के बीच लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। इसलिए वस्तुओं के बीच की दूरी एक-तिहाई (1/3) हो जाने पर उनके बीच लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल नौ गुना हो जाएगा।

(2) हम जानते हैं कि दो वस्तुओं के बीच लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल उनके द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाती होता है इसलिए दोनों वस्तुओं के द्रव्यमान आधे (1/2) कर देने पर उनके बीच लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल एक-चौथाई (1/4) रह जाएगा।

गणनात्मक प्रश्न

महत्त्वपूर्ण सूत्र एवं तथ्य:
1. स्वतंत्रतापूर्वक पृथ्वी की ओर गिर रही वस्तुओं के गति समीकरण
(1) v = u + gt, (2) s = ut + \(\frac { 1 }{ 2 }\)gt², (3) v² – u² = 2gh

2. m1 तथा m2 द्रव्यमानों वाली r दूरी पर स्थित दो वस्तुओं के बीच लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल
(F) = \(\frac{\mathrm{Gm}_1 \mathrm{~m}_2}{\mathrm{R}^2}\)

3. भार (W) = द्रव्यमान (m) x गुरुत्वीय त्वरण (g)

4. गुरुत्वीय त्वरण (g) = HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण 10

5. गुरुत्वीय त्वरण (g) = 9.8 m/s² ≈10 m/s²
गुरुत्वीय स्थिरांक (G) = 6.673 x 10-11 Nm²/kg²

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण 11

प्रश्न 1.
एक गोली क्षैतिज दिशा में 25 m/s से छोड़ी गई। पहले दो सेकंड में यह कितनी दूरी तक नीचे गिरेगी?
हल:
ऊर्ध्वाधर दूरी क्षैतिज वेग से स्वतंत्र होती है।
अतः प्रारंभिक वेग (u) = 0
गुरुत्वीय त्वरण (g) = 9.8 m/s²
समय (t) = 2s
दूरी (s) = ?
हम जानते हैं कि
s = ut + \(\frac { 1 }{ 2 }\)gt²
= 0 x 2 + \(\frac { 1 }{ 2 }\) x 9.8 x (2)²
= 19.6 m उत्तर

प्रश्न 2.
5 kg द्रव्यमान वाले पिंड का भार ज्ञात कीजिए।
हल:
पिंड का द्रव्यमान (m) = 5 kg
गुरुत्वीय त्वरण (g) = 9.8 m/s²
पिंड का भार (W) = ?
हम जानते हैं कि
w = m x g
= 5 x 9.8 = 49 N उत्तर

प्रश्न 3.
यदि आप और आपके मित्र का द्रव्यमान 35 kg हो और आपके बीच की दूरी एक मीटर हो तो आप दोनों के बीच लगने वाला आकर्षण बल क्या होगा?
हल:
यहाँ पर
द्रव्यमान (m1) = 35 kg
द्रव्यमान (m2) = 35 kg
दूरी (r) = 1 m
गुरुत्वीय स्थिरांक (G) = 6.67 x 10-11 Nm²/kg²
आकर्षण बल (F) = ?
हम जानते हैं कि आकर्षण बल (F) = \(\frac{\mathrm{Gm}_1 \mathrm{~m}_2}{\mathrm{R}^2}\)
= \(\frac{6.67 \times 10^{-11} \times 35 \times 35}{(1)^2}\)
= 8.17 x 10-8 N उत्तर

प्रश्न 4.
यदि कोई ऐसा ग्रह हो जिसका द्रव्यमान पृथ्वी से दो गुना तथा अर्द्धव्यास तीन गुना हो तो उस ग्रह की सतह 10 kg द्रव्यमान की वस्तु का भार ज्ञात करो।
हल:
क्योंकि ग्रह के लिए M = 2Me, R = 3 Re
∴ g<sub>1</sub> = \(\frac{\mathrm{G}(2 \mathrm{Me})}{(3 \mathrm{Re})^2}=\frac{2 \mathrm{GMe}}{9 \mathrm{Re}^2}\)
= \(\frac { 2 }{ 9 }\)g
= \(\frac { 2 }{ 9 }\) x 9.8 = \(\frac { 19.6 }{ 9 }\) m/s² [∵ g = 9.8 m/s²]
अतः ग्रह पर 10 kg द्रव्यमान की वस्तु का भार (W) = m x g1
= 10 x \(\frac { 19.6 }{ 9 }\)
= \(\frac { 196 }{ 9 }\)
= 21.78N उत्तर

प्रश्न 5.
यदि किसी वस्तु का भार 49 N है तो उसका द्रव्यमान क्या होगा?
हल:
वस्तु का भार (W) = 49 N
गुरुत्वीय त्वरण (g) = 9.8 m/s²
भार = द्रव्यमान x गुरुत्वीय त्वरण
या W = mg
⇒ 49 = m x 9.8
या m = \(\frac { 49 }{ 9.8 }\) = 5 kg उत्तर

प्रश्न 6.
एक कार किसी कगार से गिर कर 0.5 s में धरती पर आ गिरती है। g = 10 ms-2 लीजिए।
(1) धरती पर टकराते समय कार की चाल क्या होगी?
(2) 1/2 सेकंड के दौरान इसकी औसत चाल क्या होगी?
(3) धरती से कगार कितनी ऊँचाई पर है?
हल:
समय (t) = 1/2 s
प्रारंभिक वेग (u) = 0 ms-1
गुरुत्वीय त्वरण (g) = 10 ms-2
कार का त्वरण (a) = + 10 ms-2
(अधोमुखी)
(1) चाल (v) = at
v = 10 ms-2 x 1/2 s
= 5 ms-1

(2) औसत चाल =\(\frac { u+v }{ 2 }\)
= (0 ms-1 + 5 ms-1)/2
= 2.5 ms-1

(3) चली गई दूरी (s) = 1/2 at²
= 1/2 x 10 ms-2 x (1/2 s)²
= 1/2 x 10 ms-2 x 1/4 s²
= 1.25 m

अतः

  • धरती पर टकराते समय इसकी चाल = 5 ms-1 उत्तर
  • 1/2 सेकंड के दौरान इसकी औसत चाल = 2.5 ms-1 उत्तर
  • धरती से कगार की ऊँचाई = 1.25 m उत्तर

प्रश्न 7.
किसी पत्थर को किसी भवन की छत के किनारे से गिराया गया-
(1) 4.9 m दूरी तक गिरने में उसे कितना समय लगेगा?
(2) उस समय उसकी चाल क्या थी?
(3) 7.9 m दूरी तक गिरने के बाद उसकी चाल क्या थी?
(4) गिरने के 1 सेकंड तथा 2 सेकंड पश्चात् पत्थर का त्वरण कितना था?
हल:
(1) पत्थर का प्रारंभिक वेग (u) = 0
पत्थर के द्वारा तय की गई दूरी (s) = 4.9 m
g = 9.8 m/s² तथा t = ?
अब s = ut + \(\frac { 1 }{ 2 }\) gt²
4.9 = 0 x t + \(\frac { 1 }{ 2 }\) x 9.8 x t²
या 4.9 = 0 + 4.9 t²
या 4.9 t² = 4.9
या t² = \(\frac { 4.9 }{ 4.9 }\) = 1 s
अतः t = \(\sqrt{1}\) = 1 सेकंड उत्तर

(2) माना उस समय पत्थर की चाल = v
अब v = u + gt
v = 0+ 9.8 x 1
v = 0 + 9.8 = 9.8 m/s उत्तर

(3) पत्थर का प्रारंभिक वेग (u) = 0
पत्थर के द्वारा तय की गई दूरी (s) = 7.9 मीटर
g = 9.8 m/s² तथा
v = ?
अब v² – u² = 2gs
या v² – (0)² = 2 x 9.8 x 7.9
या v² – 0 = 154.84
या v² = 154.84
या v = \(\sqrt{154.84}\) = 12.44 सेकंड उत्तर

(4) क्योंकि वस्तु गुरुत्व के प्रभाव अधीन स्वतंत्र रूप से नीचे गिर रही है।
∴ 1 सेकंड के बाद वस्तु का त्वरण = 9.8 m/s²
2 सेकंड के बाद वस्तु का त्वरण = 9.8 m/s² उत्तर

प्रश्न 8.
यदि ऊपर की ओर फेंकने पर कोई गेंद 100 m की ऊँचाई तक जाए तो उसकी प्रारंभिक चाल ज्ञात कीजिए।
हल:
यहाँ पर
प्रारंभिक चाल (u) = ?
अंतिम चाल (v) = 0
दूरी (s) = 100m
गुरुत्वीय त्वरण (g) = – 9.8 m/s²
हम जानते हैं कि v² – u² = 2gs
⇒ 0² – u² = 2 x (- 9.8) x 100
या – u² = – 1960
या u = \(\sqrt{1960}\) = 44.2m/s उत्तर

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 9.
यदि पत्थर के किसी टुकड़े को किसी भवन की छत से मुक्त रूप से गिरते हुए जमीन पर पहुँचने में 4s का समय लगता हो तो भवन की ऊँचाई क्या होगी?
हल:
यहाँ पर
प्रारंभिक चाल (u) = 0
समय (t) = 4 sec
ऊँचाई या दूरी (s) = ?
गुरुत्वीय त्वरण (g) = 9.8 m/s²
हम जानते हैं कि
s = ut + \(\frac { 1 }{ 2 }\) gt²
= 0 x 4 + \(\frac { 1 }{ 2 }\) x 9.8 x (4)²
= \(\frac { 1 }{ 2 }\) x 9.8 x 4 x 4
= 78.4 m उत्तर

प्रश्न 10.
किसी 500g के सील किए हुए टिन (या डिब्बे) का आयतन 350 cm है। इस सील किए टिन का घनत्व कितना है? यह पानी में डूबेगा या तैरेगा? इस टिन के द्वारा हटाए गए पानी का भार कितना होगा?
हल:
टिन का द्रव्यमान (m) = 500g
= \(\frac { 500 }{ 1000 }\) kg
= 0.5 kg
टिन का आयतन = 350 cm³ = \(\frac{350}{100 \times 100 \times 100} \mathrm{~m}^3\)
= 35 x 10-5
HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण 12
क्योंकि टिन का आपेक्षिक घनत्व 1 से अधिक है इसलिए टिन पानी में डूब जाएगा। अतः टिन द्वारा हटाए पानी का भार टिन के भार से कम होगा। उत्तर

प्रश्न 11.
एक लोहे के टुकड़े का आयतन 20 घन सें०मी० और द्रव्यमान 156 ग्राम है। उसका घनत्व बताओ।
हल:
लोहे का द्रव्यमान = 156
ग्राम लोहे का आयतन = 20 घन सें०मी०
घनत्व = \(\frac {संहति }{ आयतन}\)
= \(\frac {156}{ 20}\)
= 7.8 ग्राम/घन सें०मी० उत्तर

निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक ‘G’ की परिभाषा ज्ञात करो। एस० आई० मानक इकाइयों में ‘G’ के मात्रक लिखो।
उत्तर:
न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम के अनुसार,
F = G\(\mathrm{G} \frac{\mathrm{M}_1 \mathrm{M}_2}{\mathrm{R}^2}\) या \(\frac{\mathrm{FR}^2}{\mathrm{M}_1 \mathrm{M}_2}\)
यदि M1 = M2 = 1 इकाई तथा R = 1 इकाई हो तो
\(\mathrm{G}=\frac{\mathrm{F} \times 1^2}{1 \times 1}=\frac{\mathrm{F} \times 1}{1 \times 1}=\mathrm{F}\)
अतः सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक वह आकर्षण बल है जो इकाई द्रव्यमान वाली ऐसी दो वस्तुओं के बीच आरोपित होता है जो एक-दूसरे से इकाई दूरी पर स्थित हों।
G का एस० आई० मात्रक-
G = \(\frac{\mathrm{FR}^2}{\mathrm{M}_1 \mathrm{M}_2}\)
क्योंकि G बल F तथा M1M2/R² का अनुपात है। इसलिए इसका मात्रक बल, द्रव्यमान तथा दूरी के मात्रकों पर निर्भर करता है। यदि द्रव्यमान को किलोग्राम में, दूरी को मीटर में तथा समय को सेकंड में मापा जाए तो बल का मात्रक न्यूटन (N) होता है, इसलिए G का मात्रक Nm²/kg² होगा। सोने की गेंदों द्वारा किए गए प्रयोगों से G का निम्नलिखित मान प्राप्त हुआ
G = 0.000,000,000,066,734 Nm²/kg²
= 6.673 x 10-11 Nm²/kg²

प्रश्न 2.
गुरुत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम बताइए। M तथा m द्रव्यमान के दो पिण्ड A व B जो कि d दूरी पर स्थित हैं, के मध्य लगने वाले गुरुत्वाकर्षण बल के लिए समीकरण स्थापित कीजिए। 1\(\frac { 1 }{ 2 }\) + 2\(\frac { 1 }{ 2 }\) = 4
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम-विश्व का प्रत्येक पिंड अन्य पिंड को एक बल से आकर्षित करता है, जो दोनों पिंडों के द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाती तथा उनकी बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। यह बल दोनों पिंडों को मिलाने वाली रेखा की दिशा में लगता है।
HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण 13
मान लीजिए M तथा m द्रव्यमान के दो पिंड A तथा B एक-दूसरे से d दूरी पर स्थित हैं जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। मान लीजिए दोनों पिंडों के बीच आकर्षण बल F है। गुरुत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम के अनुसार, दोनों पिंडों के बीच लगने वाला बल उनके द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाती है। अर्थात्
F ∝ M x m …………. (i)
तथा दोनों पिंडों के बीच लगने वाला बल उनकी बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती है, अर्थात्
F ∝ \(\frac{1}{\mathrm{~d}^2}\) ……….. (ii)
समीकरणों (i) तथा (ii) से हमें प्राप्त होगा
F ∝ \(\frac{\mathrm{M} \times \mathrm{m}}{\mathrm{d}^2}\) ………… (iii)
या F = G\(\frac{\mathrm{M} \times \mathrm{m}}{\mathrm{d}^2}\) …………. (iv)
जहाँ G एक आनुपातिकता स्थिरांक है और इसे सार्वत्रिक गुरुत्वीय स्थिरांक कहते हैं।

प्रश्न 3.
किसी वस्तु के भारों में तुलना करो यदि उसको पृथ्वी तथा चंद्रमा पर तोला जाए।
उत्तर:
प्रत्येक ग्रह पर गुरुत्वीय त्वरण (g) का मान उसके द्रव्यमान तथा उसके अर्द्धव्यास पर निर्भर करता है। इसी कारण से चंद्रमा पर किसी वस्तु का भार, उसके पृथ्वी के भार का \(\frac { 1 }{ 6 }\) गुना होता है।
माना वस्तु का द्रव्यमान ‘m’ है। यदि Me पृथ्वी का द्रव्यमान तथा Re पृथ्वी की त्रिज्या हो तो पृथ्वी पर वस्तु का भार (Fe) होगा
Fe = \(\frac{\mathrm{GM}_{\mathrm{e}} \mathrm{m}}{\mathrm{R}_{\mathrm{e}}{ }^2}\)
इसी प्रकार यदि Mm चंद्रमा का द्रव्यमान तथा Rmचंद्रमा की त्रिज्या हो तो चंद्रमा पर वस्तु का भार (Fm) होगा-
HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण 14
∴ पृथ्वी का द्रव्यमान चंद्रमा के द्रव्यमान से लगभग 100 गुना अधिक है तथा अर्द्धव्यास चार गुणा अधिक है।
HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण 15
अतः यह स्पष्ट हो गया है कि चंद्रमा पर वस्तु का द्रव्यमान ‘m’ ही रहता है, परंतु उसका भार चंद्रमा की अपेक्षा पृथ्वी पर 6 गुना अधिक होता है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में अंतर लिखो-
(1) गुरुत्वाकर्षण बल तथा गुरुत्व बल, (2) द्रव्यमान केंद्र तथा गुरुत्व केंद्र।
उत्तर:
(1) गुरुत्वाकर्षण बल तथा गुरुत्व बल में अग्रलिखित अंतर हैं-

गुरुत्वाकर्षण बलगुरुत्व बल
1. गुरुत्वाकर्षण बल, ब्रह्मांड की किन्हीं दो वस्तुओं के बीच आरोपित होने वाला बल है।1. पृथ्वी तथा किसी वस्तु के बीच आरोपित होने वाला बल, गुरुत्व बल कहलाता है।
2. दो वस्तुओं के बीच आरोपित गुरुत्वाकर्षण बल, उनके द्रव्यमानों के गुणनफलों के समानुपाती होता है।2. गुरुत्व बल वस्तु के द्रव्यमानों के समानुपाती होता है।
3. दो वस्तुओं के बीच आरोपित गुरुत्वाकर्षण बल उनके केंद्रों के बीच की दूरी के व्युत्क्रमानुपाती होता है।3. गुरुत्व बल, गुरुत्वीय त्वरण (g) के समानुपाती होता है।

(2) द्रव्यमान केंद्र तथा गुरुत्व केंद्र-
किसी विस्तृत आकार की वस्तु को हम बहुत-से कणों से मिलकर बना हुआ मान सकते हैं। तब, हमारे लिए वस्तु में उस बिंदु को परिभाषित करना संभव हो जाता है, जहाँ पर वस्तु का सम्पूर्ण द्रव्यमान केंद्रित माना जा सकता है। इस बिंदु को ‘द्रव्यमान केंद्र’ कहा जाता है। पृथ्वी की सतह पर अथवा इसके पास, जहाँ गुरुत्वीय बल स्थिर है, द्रव्यमान केंद्र ही, वह बिंदु हो जाता है, जहाँ सम्पूर्ण वस्तु पर लगे गुरुत्वीय बल को अनुभव किया जा सकता है।
HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण 16

इस स्थिति में द्रव्यमान केंद्र को ‘गुरुत्व केंद्र’ कहते हैं। अतः किसी वस्तु का ‘गुरुत्व केंद्र’ वह बिंदु है जहाँ सम्पूर्ण वस्तु पर लगा गुरुत्वीय बल, क्रिया करता हुआ माना जा सकता है। (चित्रानुसार) नियमित आकार व एकसमान घनत्व वाली वस्तुओं का गुरुत्व केंद्र उनके ज्यामितीय केंद्र पर होता है। इसकी पुष्टि किसी ऐसी वस्तु को, उसके ज्यामितीय केंद्र पर, एक सूई के ऊपर संतुलित करके की जा सकती है। जैसे कि, गोलाकार गेंद या आयताकार लकड़ी के टुकड़े या वृत्ताकार धातु की डिस्क (चक्रिका) का गुरुत्व केंद्र उसके केंद्र पर होता है।

प्रयोगात्मक कार्य

क्रियाकलाप 1.
चंद्रमा की पृथ्वी से चोर गति को समझने के लिए एक क्रियाकलाप का वर्णन करें। कार्य-विधि-
(1) धागे का एक टुकड़ा लीजिए। इसके एक सिरे पर एक छोटा सा पत्थर बांधिए।
(2) धागे के दूसरे सिर को पकड़िए और पत्थर को वृत्ताकार भाग में घुमाइए। जैसे चित्र में दिखाया गया है।
(3) पत्यर की गति की दिशा एक वृत्ताकार गति होगी।
(4) अब धागे को पकड़िए।
(5) फिर से पत्थर की गति की दिशा को देखिए।
HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण 17
धागे को छोड़ने से पहले पत्थर एक निश्चित चाल से वृत्ताकार मार्ग में गति करता है तथा प्रत्येक बिंदु पर उसकी गति की दिशा बदलती है। दिशा में परिवर्तन में वेग-परिवर्तन या त्वरण सम्मिलित है। जिस बल के कारण यह त्वरण होता है तथा जो वस्तु को वृत्ताकार पथ में गतिशील रखता है, वह बल केंद्र की ओर लगता है। इस बल को अभिकेंद्र बल कहते हैं।

क्रियाकलाप 2.
वस्तुओं के मुक्त पतन को समझने के लिए एक क्रियाकलाप का वर्णन करें।

कार्य-विधि-एक पत्थर लीजिए। इसे ऊपर की ओर फेंकिए। यह एक निश्चित ऊँचाई पर पहुँचकर है नीचे गिरने लगता है।
हम जानते हैं कि पृथ्वी वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। पृथ्वी के इस आकर्षण बल को गुरुत्वीय बल कहते हैं। अतः जब भी वस्तुएँ पृथ्वी की ओर गिरती हैं, हम कहते हैं कि वस्तुएँ मुक्त पतन में है।

क्रियाकलाप 3.
प्रयोग द्वारा सिद्ध करो कि सामान्य द्रव्यमानों की दो वस्तुओं के बीच गुरुत्वाकर्षण बल का मान क्षीण होता है।

कार्य-विधि-एक चुंबक लो। उसे पत्थर के टुकड़े के समीप रखे लोहे के पिन के पास ले जाओ। आप देखोगे कि लोहे की पिन पत्थर के टुकड़े की ओर तो नहीं खिंचती, परंतु चुंबक की ओर खिंच जाती है। इससे सिद्ध होता है कि पत्थर तथा लोहे की पिन के बीच गुरुत्वाकर्षण बल बहुत ही क्षीण है, इसलिए लोहे की पिन पत्थर की ओर नहीं खिंचती है। वास्तव में, पत्थर के टुकड़े तथा लोहे की पिन के बीच का गुरुत्वाकर्षण बल चुंबकीय बल से भी बहुत कम होता है, इसलिए लोहे की पिन चुंबक की ओर तो खिंच जाती है, परंतु पत्थर के टुकड़े की ओर नहीं। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि सामान्य द्रव्यमानों की दो वस्तुओं के बीच गुरुत्वाकर्षण बल बहुत क्षीण होता है।

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

क्रियाकलाप 4.
एक क्रियाकलाप द्वारा समझाएँ कि लोहा पानी में क्यों डूब जाता है जबकि कार्क तैरता रहता है?
कार्य-विधि-
(1) पानी से भरा बीकर लीजिए।
(2) एक कील तथा समान द्रव्यमान का एक कार्क का टुकड़ा लीजिए।
(3) इन्हें पानी की सतह पर रखिए। आप देखेंगे कि
(4) कार्क तैरती है जबकि कील डूब जाती है। ऐसा उनके घनत्वों में अंतर के कारण होता है। किसी पदार्थ का घनत्व, उसके एकांक आयतन के द्रव्यमान को कहते हैं। कार्क का घनत्व पानी के घनत्व से कम है। इसका अर्थ है कि कार्क पर लोहे पर पानी का उत्प्लावन बल, कार्क के भार से अधिक है। इसीलिए यह तैरती है।

अध्याय का तीव्र अध्ययन

1. पृथ्वी द्वारा किसी वस्तु पर लगाए जाने वाले बल को कहा जाता है-
(A) गुरुत्व बल
(B) गुरुत्वाकर्षण बल
(C) अभिकेंद्र बल
(D) चुंबकीय बल
उत्तर:
(A) गुरुत्व बल

2. विश्व का प्रत्येक पिंड अन्य पिंड को एक बल से आकर्षित करता है जो दोनों पिंडों के द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाती व उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। इस नियम को कहा जाता है-
(A) गुरुत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम
(B) गुरुत्व का नियम
(C) अभिकेंद्र का सार्वत्रिक नियम
(D) आर्किमिडीज का नियम
उत्तर:
(A) गुरुत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम

3. दो वस्तुओं के बीच की दूरी दुगुनी कर दी जाए, तो उनके मध्य लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल हो जाएगा-
(A) एक-चौथाई
(B) आधा
(C) दुगुना
(D) प्रभावित नहीं होगा
उत्तर:
(A) एक-चौथाई

4. G का मान होता है-
(A) 6.673 x 10-11 Nm²
(B) 6.673 x 1011 Nm²kg-2
(C) 6.673 x 10-11 Nm²kg-2
(D) 6.673 x 1011 Nm²
उत्तर:
(C) 6.673 x 10-11 Nm²kg-2

5. पृथ्वी का अर्द्धव्यास लगभग लिया जाता है-
(A) 6.4 × 105 m
(B) 6.4 × 106 m
(C) 6.4 × 107 m
(D) 6.4 × 108 m
उत्तर:
(A) 6.4 × 105 m

6. पृथ्वी के किस भाग पर गुरुत्वीय त्वरण (g) का मान अधिकतम होता है?
(A) ध्रुवों पर
(B) भूमध्य रेखा पर
(C) केंद्र पर
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) ध्रुवों पर

7. पृथ्वी के किस भाग पर गुरुत्वीय त्वरण (g) का मान कम होता है?
(A) ध्रुवों पर
(B) भूमध्य रेखा पर
(A) गुरुत्वाकर्षण त्वरण
(D) गुरुत्वीय त्वरण
उत्तर:
(A) ध्रुवों पर

8. चन्द्रमा पर किसी वस्तु का भार पृथ्वी पर उसके भार की अपेक्षा कितना होता है?
(A) 6 गुना
(B) 3 गुना
(C) \(\frac { 1 }{ 2 }\) गुना
(D) \(\frac { 1 }{ 3 }\) गुना
उत्तर:
(C) \(\frac { 1 }{ 2 }\) गुना

9. वह त्वरण जिसके द्वारा पृथ्वी किसी वस्तु को अपने केंद्र की ओर आकर्षित करती है, उसे कहा जाता है-
(A) गुरुत्वाकर्षण त्वरण
(B) अभिकेंद्री त्वरण
(C) गुरुत्वीय त्वरण
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) गुरुत्वीय त्वरण

10. किसी व्यक्ति का पृथ्वी पर द्रव्यमान 60kg है, उसका द्रव्यमान चंद्रमा पर होगा-
(A) 60kg
(B) 30 kg
(C) 10 kg
(D) 360 kg
उत्तर:
(A) 60kg

11. किसी व्यक्ति का पृथ्वी पर भार 24 N हो तो चन्द्रमा पर उसका भार होगा
(A) 6 N
(B) 8 N
(C) 4 N
(D) 96 N
उत्तर:
(C) 4 N

12. जब कोई वस्तु वृत्ताकार पथ पर गति करती है तो उसमें वेग परिवर्तन के कारण उत्पन्न त्वरण कहलाता है-
(A) गुरुत्वाकर्षण त्वरण
(B) गुरुत्वीय त्वरण
(C) अभिकेंद्री त्वरण
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) अभिकेंद्री त्वरण

14. पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी है
(A) 384000m
(B) 384000km
(C) 38400km
(D) 38400m
उत्तर:
(B) 384000km

15. पृथ्वी जिस बल से किसी वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करती है, उसे वस्तु का कहा जाता है-
(A) द्रव्यमान
(B) दाब
(C) प्रणोद
(D) भार
उत्तर:
(D) भार

16. भार को मापने के लिए किस तुला का प्रयोग होता है?
(A) भौतिक तुला
(B) कमानीदार तुला
(C) तराजू
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) कमानीदार तुला

17. यदि पृथ्वी का द्रव्यमान तथा अर्द्धव्यास दोनों आधे कर दिए जाएँ तो गुरुत्वीय त्वरण (g) का मान होगा-
(A) 4.9 m/s²
(B) 9.8 m/s²
(C) 19.6 m/s²
(D) 19.6 m/s²
उत्तर:
(C) 19.6 m/s²

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

18. u,v, g तथा t में संबंध होता है-
(A) v = u + gt
(B) v + u = gt
(C) v + gt = u
(D) \(\frac { v }{ g }\) = u + t
उत्तर:
(A) v = u + gt

19. कोई खिलाड़ी गेंद को क्षितिज के साथ किस कोण पर फेंके कि गेंद अधिकतम दूरी पर जा गिरे?
(A) 90°
(B) 0°
(C) 450
(D) 60°
उत्तर:
(C) 45°

20. निम्नलिखित में से कौन-सी सदिश राशि है?
(A) द्रव्यमान
(B) भार
(C) द्रव्यमान व भार दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) भार

21. पास्कल को किस संकेत के रूप में व्यक्त किया जाता है?
(A) Pa
(B) Ps
(C) Pcl
(D) P
उत्तर:
(A) Pa

22. दाब का SI मात्रक क्या है?
(A) N
(B) Pa
(C) kg
(D) kpa
उत्तर:
(B) Pa

23. यदि 300 N के बल को 20m- क्षेत्रफल पर लगाया जाए तो उत्पन्न दाब क्या होगा?
(A) 6000 Pa
(B) 30 Pa
(C) 15 Pa
(D) 7.5 Pa
उत्तर:
(C) 15 Pa

24. किसी वस्तु की सतह के लंबवत् लगने वाले बल को कहा जाता है-
(A) प्रणोद
(B) दाब
(C) उत्प्लावन
(D) गुरुत्व
उत्तर:
(A) प्रणोद

25. प्रणोद का S.I. मात्रक है-
(A) न्यूटन
(B) पास्कल
(C) किलो पास्कल
(D) किलोग्राम
उत्तर:
(A) न्यूटन

26. किसी पतली तथा मजबूत डोरी से बने बैग को पकड़ना कठिन होता है क्योंकि प्रणोद प्रभावित करता है-
(A) बड़े क्षेत्रफल को
(B) अधिक क्षेत्रफल को
(C) छोटे क्षेत्रफल को
(D) लंबे क्षेत्रफल को
उत्तर:
(C) छोटे क्षेत्रफल को

27. काटने, चीरने और सुराख करने वाले यंत्र हमेशा नुकीले रखे जाते हैं ताकि-
(A) दाब कम हो जाए
(B) दाब बढ़ जाए
(C) दाब सामान्य रहे
(D) क्षेत्रफल बढ़ जाए
उत्तर:
(B) दाब बढ़ जाए

28. पानी के घनत्व से ………………. घनत्व की वस्तुएँ पानी पर तैरती हैं।
(A) समान
(B) कम
(C) अधिक
(D) अत्यधिक
उत्तर:
(B) कम

29. यदि दो वस्तुओं के बीच की दूरी को आधा कर दिया जाए तो उनके बीच गुरुत्वाकर्षण बल हो जाएगा-
(A) चार गुना
(B) दो गुना
(C) गुना
(D) गुना
उत्तर:
(A) चार गुना

30. पृथ्वी तथा उसकी सतह पर रखी किसी 1kg की वस्तु के बीच लगने वाले गुरुत्वीय बल का परिमाण होगा-
(A) 4.9 N
(B) 9.8 N
(C) 19.6 N
(D) 29.4N
उत्तर:
(B) 9.8 N

31. यदि दो वस्तुओं के बीच की दूरी को तीन गुना कर दिया जाए तो गुरुत्वाकर्षण बल हो जाएगा-
(A) तीन गुना
(B) 9 गुना
(C) \(\frac { 1 }{ 3 }\)गुना
(D) \(\frac { 1 }{ 9 }\)गुना
उत्तर:
(D) \(\frac { 1 }{ 9 }\) गुना

32. यदि दोनों वस्तुओं के द्रव्यमान दुगुने कर दिए जाएँ तो उनके बीच लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल हो जाता है-
(A) 2 गुना
(B) 3 गुना
(C) 4 गुना
(D) 1 गुना
उत्तर:
(C) 4 गुना

33. एक गेंद ऊर्ध्वाधर दिशा में ऊपर की ओर 49m/s के वेग से फेंकी जाती है, तो अधिकतम ऊँचाई जहाँ तक वह पहुँचती है-
(A) 12.25 m
(B) 122.5 m
(C) 1225 m
(D) 1.225 m
उत्तर:
(B) 122.5 m

34. 100 N भार की एक वस्तु किसी द्रव पर तैर रही है, इस पर कार्यरत उत्प्लावक बल होगा-
(A) 10 N
(B) 20 N
(C) 100 N
(D) 50 N
उत्तर:
(C) 100 N

35. 19.6 m ऊँची मीनार की चोटी से छोड़े गए पत्थर का अंतिम वेग होगा-
(A) 19.6 m/s
(B) 9.8 m/s
(C) 4.9 m/s
(D) 98.0 m/s
उत्तर:
(A) 19.6 m/s

36. जल का आपेक्षिक घनत्व कितना होता है?
(A) 1 kg m-3
(B) 1
(C) 1000 kg m-3
(D) 1000
उत्तर:
(B) 1

HBSE 9th Class Science Important Questions Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

37. ऊर्ध्वाधर दिशा में ऊपर की ओर फेंकी गई एक गेंद 6s के पश्चात् फेंकने वाले के पास लौट आती है, तो गेंद किस वेग से ऊपर फेंकी जाती है?
(A) 29.4 m/s
(B) 9.8 m/s
(C) 19.6 m/s
(D) 4.9 m/s
उत्तर:
(A) 29.4 m/s

38. 50g के किसी पदार्थ का आयतन 20 cm है तो पदार्थ का घनत्व होगा-
(A) 1000 g/cm³
(B) 5.2 g/cm³
(C) 2.5 g/cm³
(D) 2.5 kg/m³
उत्तर:
(C) 2.5 g/cm³

39. द्रवों के घनत्व को मापने वाले यंत्र का नाम है-
(A) हाइड्रोमीटर
(B) लैक्टोमीटर
(C) ओडोमीटर
(D) वोल्टामीटर
उत्तर:
(A) हाइड्रोमीटर

40. आपेक्षिक घनत्व का मात्रक होता है-
(A) kg/m³
(B) g/cm³
(C) m/s
(D) कोई मात्रक नहीं
उत्तर:
(D) कोई मात्रक नहीं

41. बर्फ पानी में तैरती है क्योंकि-
(A) बर्फ का घनत्व पानी के घनत्व से कम होता है
(B) बर्फ का घनत्व पानी के घनत्व से अधिक होता है
(C) बर्फ का घनत्व पानी के घनत्व के समान होता है
(D) बर्फ का द्रव्यमान पानी के द्रव्यमान से अधिक होता है
उत्तर:
(A) बर्फ का घनत्व पानी के घनत्व से कम होता है।

42. 5 kg द्रव्यमान वाले पिंड का पृथ्वी पर भार होगा-
(A) 4.9N
(B) 49N
(C) 5N
(D) 50 N
उत्तर:
(B) 49N

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HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संख्यावाचक शब्दः

Haryana State Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Sankhyavachak Shabd संख्यावाचक शब्दः Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संख्यावाचक शब्दः

Sankhyavachak Shabd In Sanskrit HBSE 10th Class

संख्यावाचक शब्द – अंक

पुंल्लिंगस्रीलिंगस्त्रीलिंगनपुंसकलिंग
1. एक:एकाचतस्ब:एकम्
2. द्वौद्वेचतस्र:त्वे
3. त्रय:तिस्र:चतसृभि:त्रीणि
4. चत्वारःचतस्र:चतसृभि:चत्वारे
5. पर्चपञ्चचतसृभ्य:पब्च

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संख्यावाचक शब्दः

संख्यावाचक शब्द अंक
एक:1
द्वौ2
त्रय:3
चत्वार:4
पज्च5
षट्6
अष्ट7
अष्ट8
दश9
एकादश10
द्वादश11
त्रयोदश12
चतुर्दश13
पञ्चदश14
षोडश15
सप्तदश16
अष्टादश17
एकोनविंशति:18
विंशति:19
एकविंशति:20
द्वाविंशति:21
त्रयोविंशति:22
चतुर्विशति:23
पर्चविंशति:24
षड्विंशति:25
सप्तविंशति:26
सप्तविंशति:27
अष्टाविंशति:28
नवविंशति:29
त्रिशत्30
एकत्रिंशत्31
द्वात्रिंशत्32
त्रयस्त्रिशत्33
चतुस्त्रिशत्34
पञ्चत्रिंशत्35
षट्त्रिंशत्36
सप्तत्रिंशत्37
अष्टात्रिंशत्38
नवत्रिंशत्39
चत्वारिशत्40
एकचत्वारिशत्41
द्वाचत्वारिशत्42
त्रयश्चत्वारिशत्43
चतुश्चत्वारिंशत्44
पज्चचत्वारिंशत्45
षट्चत्वारिंशत्46
सप्तचत्वारिशत्47
अष्टचत्वारिंशत्48
नवचत्वारिंशत्49
पर्चाशत्50
एकपज्चाशत्51
द्विप ्चाशत्52
त्रयःपउ्चाशत्53
चतु:पर्चाशत्54
पङ्चपज्चाशत्55
षट्प अच्चाशत्56
सप्तपज्वाशत्57
अष्टपज्चाशत्58
नवपख्चाशत्59
षष्टि:60
एकषष्टि:61
द्विषष्टि:62
त्रय:षष्टि:63
चतु: षष्टि:64
पक्वषष्टि:65
षट्षष्टि:66
सप्तषष्टि:67
अष्टषष्टि:68
नवषष्टि:69
सप्तति:70
एकसप्तति:71
द्विसप्तति:72
त्रय:सप्तति:73
चतुःसप्ततिः74
प््चसप्तति:75
षट्सप्तति:76
सप्तसप्तति:77
अष्टसप्तति:78
नवसप्तति:79
अशीति:80
एकाशीति:81
द्वयशीति:82
त्र्यशीति:83
चतुरशीति:84
पज्चाशीति:85
षडशीति:86
सप्ताशीति:87
अष्टाशीति:88
नवाशीतिः89
नवति:90
एकनवति:91
द्विनवतिः92
त्रयोनवति:93
चतुर्नवति:94
पर्चनवरि:95
षष्णवति:96
सप्तनवति:97
अष्टानवतिः98
नवनवतिः99
शतम्100

Sankhyavachak HBSE 10th Class

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संख्यावाचक शब्दः

नोट-विद्यार्थी निम्नलिखित भी ध्यान से पढ़ें
त्रय:त्रिंशत् अधिकं शतम्-133, एक पञ्चाधिकशत् 151, द्विशतम् (200), त्रिशतम् (300), चतुश्शतम् (400), पञ्चशतम् (500) षट्शतम् (600), सप्तशतम् (700), अष्टशतम् (800), नवशतम् (900),सहस्रम् (1000)।
लक्षम् (1,00,000), द्विलक्षम् (2,00,000), त्रिलक्षम् (3,00,000) इत्यादि। कोटिः (1,00,000,00), द्विकोटि: (2,00,00,000) इत्यादि।

निर्देश-सौ से अधिक संख्या के लिए अधिक अथवा उत्तर शब्द का प्रयोग करते हैं।
101 = एकाधिकं शतम् अथवा एकाधिकशतम्।
110 = दशाधिकशतम
125 = पञ्चविंशत्यधिकं शतम् अथवा पञ्चविशत्यधिकशतम्।
126 = षड्विंशत्यधिकशतम्।
212 = द्वादशोत्तरं द्विशतम्।
संख्यावाचक शब्दों के दो भेद हैं
(1) संख्यावाचक जैसे-एक, द्वि, त्रि।
(2) संख्यापूरक जैसे-प्रथम, द्वितीय, तृतीय।

Sankhyavachak In Sanskrit HBSE 10th Class

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संख्यावाचक शब्दः

उचित शब्द भरकर रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए

(1) चित्रे ——– वायुयानम् अस्ति। (एकः । एकम् । एकेन)
(2) भगवतः शिवस्य ——- नेत्राणि सन्ति। (त्रयः / तिस्रः / त्रीणि)
(3) हस्तौ ———- स्तः। (द्वौ / द्वे)
(4) वेदाः ——- सन्ति। (चत्वारः / चतस्रः / चत्वारि)
(5) अश्वस्य ——– पादाः भवन्ति। (चतस्रः/चत्वार:/चत्वारि)
(6) गणेशस्य ——- दन्तः अस्ति। (एकः / एका / एकम्)
(7) दशरथस्य ——- पत्न्यः आसन्। (त्रयः / तिस्रः / त्रीणि)
(8) मम ———— कर्णौ स्तः। (द्वौ / द्वे)
(9) नासिकायां ——– छिद्रे स्तः। (द्वौ/द्वे)
(10) सः ——– पुस्तकम् पठति। (एकः / एका / एकम्)
(11) तस्य ——— भ्रातरः सन्ति। (त्रयः / तिस्रः / त्रीणि)
(12) सः ——- वृक्षाणि अकृन्तत्। (चत्वारः । चतस्रः / चत्वारि)
(13) मम ——– नासिका अस्ति। (एकः / एकम् / एका)
(14) तस्मिन् उद्याने ——- बालिके भ्रमतः । (द्वौ / द्वे)
(15) अस्मिन् आम्रवृक्षे ——- आम्राणि सन्ति । (चत्वारः । चतस्रः । चत्वारि)
(16) चित्रे ——- मूषकाः सन्ति । (त्रयः / तिस्रः / त्रीणि)
(17) तडागे ——- मत्स्याः आसन्। (चत्वारः । चतस्रः । चत्वारि)
(18) ——- पथिक: नगरम् गच्छति। (एकम् । एकः / एका)
(19) तत्र ——- शिशवः क्रीडन्ति। (त्रयः । तिस्रः / त्रीणि)
(20) पुस्तकालये —— मित्रे पठतः। (द्वौ / द्वे)
(21) सः ——– पृष्ठानि वाचयति। (चत्वारः / चतस्रः / चत्वारि)
(22) मम —— एव भ्राता अस्ति। (एकः / एका / एकम्)
(23) वृक्षे ———- लताः सन्ति। (त्रयः / तिस्रः / त्रीणि)
(24) तस्य —— हस्तौ स्तः। (द्वौ / द्वे)
(25) मम गृहे —— पुस्तकानि सन्ति। (चत्वारः / चतस्रः । चत्वारि)
उत्तराणि:
(1) एकम्।
(2) त्रीणि।
(3) द्वौ।
(4) चत्वारः।
(5) चत्वारः ।
(6) एकः।
(7) तिस्रः ।
(8) द्वौ।
(9) टे।
(10) एकम्।
(11) त्रयः ।
(12) चत्वारि।
(13) एका।
(14) द्वे।
(15) चत्वारि ।
(16) त्रयः ।
(17) चत्वारः।
(18) एकः ।
(19) त्रयः।
(20) द्वे।
(21) चत्वारि।
(22) एकः ।
(23) तिस्रः ।
(24) द्वौ।
(25) चत्वारि।

संख्यावाचक शब्द HBSE 10th Class

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संख्यावाचक शब्दः

अन्य महत्त्वपूर्ण उदाहरण

I. अधोलिखितवाक्येषु अङ्कानां स्थाने संख्यावाचक-विशेषणपदानि शब्देषु प्रयुज्य उत्तराणि उत्तरपुस्तिकायां लिखत
अस्माकं पृथ्वी (i) (7)…… द्वीपेषु विभक्ता। (ii) (3)…….सागराः भारतभूमेः चरणप्रक्षालनं कुर्वन्ति। (iii) (5)……. नदीभिःपञ्चापप्रदेश: शोभते। (iv) (9)…….ग्रहेषु पृथिवी अन्यतमः ग्रहः, तत्र भारतभूमिः विराजते।।
उत्तराणि:
(i) सप्तसु
(ii) त्रयः
(iii) पञ्चभिः
(iv) नवसु।

II. अड्कानां स्थाने संख्यावाचक विशेषणपदानि प्रयुज्य उत्तराणि उत्तरपुस्तिकायां लिखत
उत्सवे प्रायः (i) 100 जनाः उपस्थिताः आसन्। मञ्चे (ii) 4 विशिष्टाः अतिथयः आसन्। (iii) 10 छात्रैः स्वागतगानं गीतम् । (iv) 3 बालिकाभिः श्लोकपाठः कृतः।
उत्तराणि:
(i) शतं,
(ii) चत्वारः,
(iii) दशभिः,
(iv) तिसृभिः ।

III. अधोलिखित-अनुच्छेदे अड्कानां स्थाने संख्यावाचक-विशेषणानि प्रयुज्य उत्तराणि उत्तरपुस्तिकायां लिखत
वेदाः (i) ………..4………. सन्ति। पुराणानां संख्या (ii) ………..18………. अस्ति । रामायणे (iii) ………..7………. काण्डानि सन्ति। अस्य विपुलस्य साहित्यस्य कीर्तिः (iv) ……….10……….. दिक्षु व्याप्ता।
उत्तराणि:
(i) चत्वारः ,
(ii) अष्टादश,
(iii) सप्त,
(iv) दश।

IV. अधोलिखितवाक्येषु अड्कानां स्थाने संख्यावाचकविशेषणैः रिक्तस्थानपूर्ति संस्कृतेन कृत्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखत
मम विद्यालये (i) ………..(12)….. कक्षाः सन्ति । तेषु प्रायः (ii) ………..(500)….. छात्राः पठन्ति । (iii) ………..(50)….. अध्यापकाः परिश्रमेण अस्मान् पाठयन्ति। गतवर्षे परीक्षापरिणामः (iv) ………..(90)….. प्रतिशतम् आसीत्।
उत्तराणि:
(i) द्वादश
(ii) पञ्चशतम्
(iii) पञ्चाशत्
(iv) नवतिः

V. अड्कानां स्थाने संस्कृत संख्यावाचक-विशेषणपदानि प्रयुज्य उत्तराणि उत्तरपुस्तिकायां लिखत
अस्माकं ग्रामे (i) ……….85………. कृषकाः सन्ति। तेषु ……….3………. (ii) ………. कृषकाः अस्मिन् वर्षे पारितोषिकं लब्धवन्तः। (iii) ………………… भगिन्यौ मङ्लगीतम् आगायताम्। (iv) ………1……… भगिनी जलपानव्यवस्थामकरोत् ।
उत्तराणि:
(i) 85 = पञ्चाशीतिः
(ii) 3 = त्रयः
(iii) 2 = द्वे
(iv) 1 = एका।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संख्यावाचक शब्दः

VI. अधोलिखितानि वाक्यानि (अङ्कानां स्थाने) संस्कृतसंख्याविशेषणैः पूरयित्वा पुनः लिखत
प्रातःकाले भ्रमणाय अहं वाटिकां गच्छामि। तत्र (49) आम्रवृक्षाः सन्ति। जम्बूफलवृक्षाणां (76) वृक्षाः तथा च (11) निम्बवृक्षाः मध्ये च विशालः (1) पिप्पलः शोभते।
उत्तरम्:
प्रात:काले भ्रमणाय अहं वाटिकां गच्छामि। तत्र एकोनपञ्चाशत् आम्रवृक्षाः सन्ति । जम्बूफलवृक्षाणां षट्सप्ततिः वृक्षाः तथा च एकादश निम्बवृक्षाः मध्ये च विशालः एकः पिप्पल: शोभते।

VII. अधोदत्तेषु वाक्येषु अड्कानां स्थाने संस्कृतसंख्यावाचकविशेषणानि पूरयत
मम गृहस्य समीपे 3………… तरणताला: सन्ति। तत्र 1……… तरणप्रतियोगिता आयोजिता अभवत्। प्रतियोगितायाम् अस्याम् 30……….. बालिकाः 45……….. बालकाः च भागं गृहीतवन्तः।
उत्तरम्:
मम गृहस्य समीपे 3 त्रयः तरणतालाः सन्ति । तत्र 1 एका तरणप्रतियोगिता आयोजिता अभवत् । प्रतियोगितायाम् अस्याम् 30 त्रिंशत् बालिकाः 45 पञ्चचत्वारिंशत् बालकाः च भागं गृहीतवन्तः ।

VIII. अङ्कानां स्थाने संस्कृतसंख्यावाचक-विशेषणपदानि प्रयुज्य उत्तराणि लिखत
ग्रामस्य प्राथमिकपाठशालायां 20 छात्राः, 15 बालिकाः, 3 अध्यापकाः 2 अध्यापिके च प्रतिदिनम् स्वस्वकार्यं कुर्वन्ति ।
उत्तरम्:
ग्रामस्य प्राथमिकपाठशालायां विंशतिः छात्राः, पञ्चदश बालिकाः, त्रय: अध्यापका: द्वे अध्यापिके च प्रतिदिनम् स्वस्वकार्यं कुर्वन्ति।

IX. अङ्कानां स्थाने संस्कृत-संख्यावाचक-विशेषणपदानि प्रयुज्य उत्तराणि लिखत
विद्यालये दशमकक्षायां (i) 97 छात्राः संस्कृतविषये उत्तीर्णाः । तेषु (ii) (54) बालिकाः सन्ति । प्रथमे (iii) (4) बालिकाः (iv) (3) बालकाः च संस्कृत-अकादम्याः छात्रवृत्तिं लब्धवन्तः ।
उत्तर:
म्विद्यालये दशमकक्षायां (i) सप्तनवतिः छात्राः संस्कृतविषये उत्तीर्णाः । तेषु (ii) चतुःपञ्चाशत् बालिकाः सन्ति । प्रथमे (iii) चतस्रः बालिकाः (iv) त्रयः बालकाः च संस्कृत-अकादम्याः छात्रवृत्तिं लब्धवन्तः ।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संख्यावाचक शब्दः

x. अङ्कानां स्थाने संस्कृतसंख्यावाचकविशेषणपदानि प्रयुज्य उत्तराणि लिखत
वृक्षे (i) ……………………………….. । (ii) ……………………………….कोकिलाः स्थिताः। अकस्मात् (iii) …………………………….. कपोताः कुतश्चिद् उड्डीय समागताः। इदानीं वृक्षे। (iv) ………………26 ……………. पक्षिणः सन्ति।
उत्तरम्:
(i) चत्वारः
(ii) त्रयः/तिस्रः
(iii) नवदश/एकोनविंशतिः
(iv) षड्विंशतिः

XI. अङ्कानां स्थाने संस्कृतसंख्यावाचकविशेषणपदानि प्रयुज्य उत्तराणि लिखत
विद्यालये दशमकक्षायां (i) ………………..42……………………छात्राः संस्कृतं पठन्ति। तेषु । (ii) ……………………………बालिकाः सन्ति। गत वर्षे (iii) ……………………………. बालकौ (iv) ……………………. बालिकाः च छात्रवृत्तिं प्राप्नुवन्।
उत्तरम्:
(i) द्विचत्वारिंशत्
(ii) नवविंशतिः/एकोनत्रिंशत्
(iii) द्वौ
(iv) चतस्रः ।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संख्यावाचक शब्दः

अभ्यासार्थम्

1. अधोदत्तेषु वाक्येषु अड्कानां स्थाने संस्कृत संख्यावाचकविशेषणानि पूरयत
(i) राज्ञः —4— पुत्राः आसन्।
(ii) एकदा –1—- वृद्धा अपतत् ।
(iii) तत्र —-2– मित्रे अवसताम् ।
(iv) विद्यालये —3— बालिकाः पठन्ति।

2. कोष्ठकात् शुद्धम् उत्तरं विचित्य रिक्तस्थानानि पूरयत
(i) अहम् —— पत्रम् लिखामि। (एकः / एका / एकम्)
(ii) ————- लोचनानि यस्य सः महादेवः । (त्रयः । तिस्रः । त्रीणि)
(iii) मम —— कर्णौ स्तः। (द्वौ / द्वे)
(iv) चित्रे ——- मृगाः सन्ति । (चत्वारः / चतस्रः / चत्वारि)

3. कोष्ठकात् शुद्धम् उत्तरं विचित्य रिक्तस्थानानि पूरयत.
(i) पाण्डवाः —— आसन्। (पञ्चाः / पञ्च / पञ्चानि)
(ii) गजस्य —— पादाः भवन्ति। । (चत्वारः / चतस्रः । चत्वारि)
(iii) गृहे —— मूषकौ धावतः । (द्वौ / द्वे)
(iv) त्र्यम्बकस्य ——- लोचनानि सन्ति। (त्रयः / त्रीणि / तिस्रः)

4. कोष्ठकात् शुद्धम् उत्तरं विचित्य रिक्तस्थानानि पूरयत
(i) मम कक्षायाम् —— सुन्दरं चित्रं अस्ति । (एक: / एकम् / एकेन)
(ii) पञ्चाननस्य —— मुखानि सन्ति। (पञ्चानि । पञ्च / पञ्चाः)
(iii) बलरामस्य —— भुजौ पाताम्। (द्वौ / द्वे)
(iv) ——- दण्डिप्रबन्धाः त्रिषु लोकेषु विश्रुताः । (त्रयः / त्रीणि / तिस्रः)

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संख्यावाचक शब्दः

5. कोष्ठकात् शुद्धम् उत्तरं विचित्य रिक्तस्थानानि पूरयत
(i) हस्ते………. अमुल्यः भवन्ति । (पञ्च/पञ्चाः/पञ्चानि)
(ii) वृक्षे ……… शुकौ स्तः। (द्वे। द्वौ)
(iii) पुरुषार्थाः …….. सन्ति। (चतस्रः/चत्वारि/चत्वारः)
(iv) सरोवरे ………. कमलानि विकसन्ति। (तिस्रः/त्रयः/त्रीणि)

6. अधोलिखितवाक्येषु अङ्कानां स्थाने संख्यावाचकविशेषणैः रिक्तस्थानपूर्ति संस्कृतेन कृत्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखत
मम विद्यालये (i) ………….. (12) ………… कक्षाः सन्ति। तेषु प्रायः (ii) …………. (500) ……………. छात्राः पठन्ति। (iii) …………….. (50) …………….. अध्यापकाः परिश्रमेण अस्मान् पाठयन्ति। गतवर्षे परीक्षा परिणामः (iv) …………… (90) ………….. प्रतिशत आसीत्।

7. अधोलिखितवाक्ये अङ्कानां स्थाने संख्यावाचकविशेषणैः रिक्तस्थानपूर्ति संस्कृतेन कृत्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखत
मम विद्यालये (1) ………….. प्रवेशद्वारं (3) ………… सहायकानि द्वाराणि (23) ………….. · अध्यापकाः (8) …………… परिचारकाः च सन्ति।

8. अधोलिखितवाक्ये अङ्कानां स्थाने संख्यावाचकविशेषणैः रिक्तस्थानपूर्ति संस्कृतेन कृत्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखत
(क) अश्वस्य (4) ………………. पादाः सन्ति।
(ख) सप्ताहे (7) ……………… दिवसाः भवन्ति।
(ग) क्रीडाक्षेत्र (18) …………. मित्राणि क्रीडन्ति।
(घ) नरस्य हस्तौ (2) ……….. भवतः।

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HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

Haryana State Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Dhatu Roop Prakaran धातुरुप प्रकरणम् Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Clas s Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम् HBSE Sanskrit 10th Class

1. √भू (होना)

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषभवतिभवतःभवन्ति
मध्यमपुरुषभवसिभवथ:भवथ
उत्तमपुरुषभवामिभवाव:भवाम:

लुट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषभविष्यतिभविष्यत:भविष्यन्ति
मध्यमपुरुषभविष्यसिभविष्यथ:भविष्यथ
उत्तमपुरुषभविष्यामिभविष्यावःभविष्याम:

लोट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषभवतुभवताम्भवन्तु
मध्यमपुरुषभवभवतम्भवत
उत्तमपुरुषभवानिभवावभवाम

लङ्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषअभवत्अभवताम्अभवन्
मध्यमपुरुषअभव:अभवतम्अभवत
उत्तमपुरुषअभवत्अभवावअभवाम

विधिलिङ् लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषभवेत्भवेताम्भवेयु:
मध्यमपुरुषभवे:भवेतम्भवेत
उत्तमपुरुषभवेयम्भवेवभवेम

व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम् 10th Class HBSE Sanskrit

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

2. √पठ् ( पढ़ना)
लट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषपठतिपठतःपठन्ति
मध्यमपुरुषपठसिपठथ:पठथ
उत्तमपुरुषपठामिपठाव:पठामः

लुट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषपठिष्यतिपठिष्यतःपठिष्यन्ति
मध्यमपुरुषपठिष्यतिपठिष्यथ:पठिष्यथ
उत्तमपुरुषपठिष्यामिपठिष्याव:पठिष्याम:

लोट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषपठतुपठताम्पठन्तु
मध्यमपुरुषपठपठतम्पठत
उत्तमपुरुषपठानिपठावपठाम

लड्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषअपठत्अपठताम्अपठन्
मध्यमपुरुषअपठ:अपठलम्अपठत
उत्तमपुरुषअपठम्अपठावअपठाम

विधिलिड् लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषपठेत्पठेताम्पठेयु:
मध्यमपुरुषपठे:पठेतम्पठेत
उत्तमपुरुषपठेयम्पठेवपठेम

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

3. √पा (पिब्) पीना
लट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषपिबतिपिबतःपिबन्ति
मध्यमपुरुषपिबसिपिबथ:पिबथ
उत्तमपुरुषपिबामिपिबाव:पिबाम:

लोट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषपिबतुपिबताम्पिबन्तु
मध्यमपुरुषपिबपिबतम्पिबत
उत्तमपुरुषपिबानिपिबावपिबाम

लड्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषअपिबत्अपिबताम्अपिबन्
मध्यमपुरुषअपिब:अपिबतम्अपिबत
उत्तमपुरुषअपिबम्अपिबावअपिबाम

विधिलिड् लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषपिबेत्पिबताम्पिबयु:
मध्यमपुरुषपिबे:पिबेतम्पिबेत
उत्तमपुरुषपिबेयम्पिबेवपिबेम

लुट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषपास्यतिपास्यतःपास्यन्ति
मध्यमपुरुषपास्यसिपास्यथ:पास्यथ
उत्तमपुरुषपास्यामिपास्याव:पास्याम:

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

4. √गम् ) गच्छ (जाना)
लट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषगच्छतिगच्छत:गच्छान्ति
मध्यमपुरुषगच्छसिगच्छथ:गच्छथ
उत्तमपुरुषगच्छामिगच्छाव:गच्छाम:

लुट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषगमिष्यतिगमिष्यतःगमिष्यन्ति
मध्यमपुरुषगमिष्यसिगमिष्यथ:गमिब्यथ
उत्तमपुरुषगमिष्यामिगमिष्यावःगमिष्याम:

लोट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषगच्छतुगच्छतामगच्छन्तु
मध्यमपुरुषगच्छगच्छतम्गच्छत
उत्तमपुरुषगच्छानिगच्छावगच्छाम

लुट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषगमिष्यतिगमिष्यत:गमिष्यन्ति
मध्यमपुरुषगमिष्यसिगमिष्यथ:गमिष्यथ
उत्तमपुरुषगमिष्यामिगमिष्याव:गमिष्याम:

विधिलिड् (आज्ञा)

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषगच्छेत्गच्छेताम्गच्छेयु:
मध्यमपुरुषगच्छे:गच्छेतम्गच्छेत
उत्तमपुरुषगच्छेयम्गच्छेवगच्छेम

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

5. √खाद (खाना)
लट्लकार (वर्तमान काल)

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषखादतिखादतःखादन्ति
मध्यमपुरुषखादसिखादथ:खादथ
उत्तमपुरुषखादामिखादाव:खादामः

लोट्लकार (आदेश)

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषखादतुखादताम्खादन्तु
मध्यमपुरुषखादखादतम्खादत
उत्तमपुरुषखादानिखादावखादाम

लङ् लकार ( भूतकाल )

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषअखादत्अखादताम्अखादन्
मध्यमपुरुषअखादअखादतम्अखादत
उत्तमपुरुषअखादम्अखादावअखादाम

विधिलिड् (आज्ञा)

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषखादेत्खादेताम्खादेयु
मध्यमपुरुषखादे:खादेतम्खादेत
उत्तमपुरुषखादेमम्खादेवखादेम

लृट्लकार ( भविष्यतकाल )

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषखादिष्यतिखादिष्यतःखादिष्यन्ति
मध्यमपुरुषखादिष्यसिखादिष्यथ:खादिष्यथ
उत्तमपुरुषखादिष्यामिखादिष्याव:खादिष्याम:

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

6. √स्मृ (स्मरण करना)
लट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषस्मरतिस्मरतःस्मरन्ति
मध्यमपुरुषस्मरसिस्मरथ:स्मरथ
उत्तमपुरुषस्मरामिस्मराव:स्मरामः

लोट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषस्मरतुस्मरताम्स्मरन्तु
मध्यमपुरुषस्मरस्मरतम्स्मरत
उत्तमपुरुषस्मराणिस्मरावस्मराम

लङ्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषअस्मरत्अस्मरताम्अस्मरन्
मध्यमपुरुषअस्मर:अस्मरतम्अस्मरत
उत्तमपुरुषअस्मरम्अस्मरावअस्मराम

विधिलिङ्(आज्ञा)

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषस्मरेत्स्मरेताम्स्मरेयु:
मध्यमपुरुषस्मरे:स्मरेतम्स्मरेत
उत्तमपुरुषस्मरेयम्स्मरेवस्मरेम

लुट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषस्मरिष्यतिस्मरिष्यत:स्मरिष्यन्ति
मध्यमपुरुषस्मरिष्यसिस्मरिष्यथ:स्मरिष्यथ
उत्तमपुरुषस्मरिष्यामिस्मरिष्याव:स्मरष्यिाम:

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

7. √पच् (पकाना) परस्मैपद
लट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषपचतिपचत:पचन्ति
मध्यमपुरुषपचसिपचथ:पचथ
उत्तमपुरुषपचामिपचाव:पचाम:

लुट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषपक्ष्यतिपक्ष्यतःपक्ष्यन्ति
मध्यमपुरुषपक्ष्यसिपक्ष्यथ:पक्ष्यथ
उत्तमपुरुषपक्ष्यामिपक्ष्याव:पक्ष्याम:

लोट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषपचतुपचताम्पचन्तु
मध्यमपुरुषपचपचतम्पचत
उत्तमपुरुषपचन्तिपचावपचाम

लड्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषअपचत्अपचताम्अपचन्
मध्यमपुरुषअपचःअपचतम्अपचत
उत्तमपुरुषअपचम्अपचावअपचाम

विधिलिड् लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषपचेत्पचेताम्पचेयु:
मध्यमपुरुषपचे:पचेतम्पचेत
उत्तमपुरुषपचेयम्पच्वेवपचेम

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

8. √अस् (होना)
लट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषअस्तिस्तःसन्ति
मध्यमपुरुषअसिस्थःस्थः
उत्तमपुरुषअस्मिस्वःस्मः

लुट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषभविष्यतिभविष्यतःभविष्यन्ति
मध्यमपुरुषभविष्यसिभविष्यथ:भविष्यथ
उत्तमपुरुषभविष्यामिभविष्याव:भविष्याम:

लोट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषअस्तुस्ताम्सन्तु
मध्यमपुरुषएथिस्तम्स्तः
उत्तमपुरुषअसानिअसावअसाम

लड्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषआसीत्आस्ताम्आसन्
मध्यमपुरुषआसी:आस्तम्आस्त
उत्तमपुरुषआसम्आस्वआस्म

विधिलिड् लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषस्यात्स्याताम्स्यु:
मध्यमपुरुषस्या:स्यातम्स्यात
उत्तमपुरुषस्याम्स्यावस्याम

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

9. √कृ (करना)
लट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषकरोतिकुरुत:कुर्वन्ति
मध्यमपुरुषकरोषिकुरुथ:कुरुथ
उत्तमपुरुषकरोमिकुर्व:कुर्म:

लृट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषकरिष्यतिकरिष्यतःकरष्यिन्ति
मध्यमपुरुषकरिष्यसिकरिष्यथ:करिष्यथ
उत्तमपुरुषकरिष्यामिकरिष्याव:करिष्याम:

लोट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषकरोतुकुरुताम्कुर्वन्तु
मध्यमपुरुषकुरुकुरुतम्कुरुत
उत्तमपुरुषकरवाणिकरवावकरवाम

लड्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषअकरोत्अकुरुताम्अकुर्वन्
मध्यमपुरुषअकरो:अकुरुतम्अकुरुत
उत्तमपुरुषअकरवम्अकुर्वअकुर्म

विधिलिड् लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषकुर्यात्कुर्याताम्कुर्यु:
मध्यमपुरुषकुर्या:कुर्यातम्कुर्यात
उत्तमपुरुषकुर्याम्कुर्यावकुर्याम

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

10. √शकृ-समर्थ होना
लट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषशक्नोतिशक्नुत:शक्नुवन्ति
मध्यमपुरुषशक्नोषिशक्नुथ:शक्तुथ
उत्तमपुरुषशक्नोमिशक्नुवःशक्नुमः

लृट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषशक्ष्यतिशक्ष्यत:शक्ष्यन्ति
मध्यमपुरुषशक्ष्यसिशक्ष्यथ:शक्ष्यथ
उत्तमपुरुषशक्ष्यामिशक्ष्याव:शक्ष्याम:

लोट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषशक्नोतुशक्नुताम्शक्नुवन्तु
मध्यमपुरुषशक्नुहिशक्नुतम्शक्नुत
उत्तमपुरुषशक्नवानिशक्नवावशक्नवाम

लड्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषअशक्नोत्अशक्नुताम्अशक्नुवन्
मध्यमपुरुषअशक्नो:अशक्नुतम्अशक्नुत
उत्तमपुरुषअश्क्नवम्अशक्नुवअशक्नुम

विधिलिड् लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषशक्नुयात्शक्नुयाताम्शक्नुयु:
मध्यमपुरुषशक्नुया:शक्नुयातम्शक्नुयात
उत्तमपुरुषशक्नुयाम्शक्नुयावशक्नुयाम

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

11. √प्रच्छ > पृच्छू (पूछना)
लट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषपृच्छतिपृच्छतःपृच्छन्ति
मध्यमपुरुषपृच्छसिपृच्छथ:पृच्छथ
उत्तमपुरुषपृच्छामिपृच्छाव:पृच्छाम:

लृट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषप्रक्ष्यतिप्रक्ष्यतःप्रक्ष्यन्ति
मध्यमपुरुषप्रक्ष्यसिप्रक्ष्यथ:प्रक्ष्यथ
उत्तमपुरुषप्रक्ष्यामिप्रक्ष्याव:प्रक्ष्याम:

लोट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषपृच्छतुपृच्छताम्पृच्छन्तु
मध्यमपुरुषपृच्छपच्छतम्पृच्छत
उत्तमपुरुषपृच्छानिपृच्छावपृच्छाम

लड्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषअपृच्छत्अपृच्छताम्अपृच्छन्
मध्यमपुरुषअपृच्छ:अपृच्छतम्अपृच्छत
उत्तमपुरुषअपृच्छम्अपृच्छावअपृच्छाम

विधिलिड् लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषपृच्छेत्पृच्छेतामपृच्छेयुः
मध्यमपुरुषपृच्छे:पृच्छेतम्पृच्छेत
उत्तमपुरुषपृच्छेयम्पृच्छेवपृच्छेम्

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

12. √पत् ( गिरना )
लट्लकार (वर्तमानकाल)

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषपततिपततःपतन्ति
मध्यमपुरुषपतसिपतथ:पतथ
उत्तमपुरुषपतामिपताव:पताम:

लड्लकार (भूतकाल)

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषअपतन्अपताम्अपतन्
मध्यमपुरुषअपत:अपततम्अपतत
उत्तमपुरुषअपतम्अपतावअपताम

लृट्लकार (भविष्यतकाल)

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषपतिष्यतिप्तिष्यतःपतिष्यन्ति
मध्यमपुरुषपतिष्यसिपतिष्यथःपतिेष्यथ
उत्तमपुरुषपतिष्यामिपतिष्याम:पतिष्याम:

विधिलिड् (आज्ञा)

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषपतेत्पतेताम्पतेयु:
मध्यमपुरुषपते:पतेतम्पतेत
उत्तमपुरुषपतेयम्पतेवपतेम

लोट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषपततुपतताम्पतन्तु
मध्यमपुरुषपतपततम्पतत
उत्तमपुरुषपतानिपतावपताम

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

दिवादिगण
13. √नश् ( नष्ट होना )
लट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषनश्यतिनश्यतःनश्यन्ति
मध्यमपुरुषनश्यसिनश्यथ:नश्यथ
उत्तमपुरुषनश्यामिनश्याव:नश्याम:

लृट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषनड्क्ष्यतिनड्क्ष्यत:नड्क्ष्यन्ति
मध्यमपुरुषनड्क्ष्यसिनड्क्ष्पथ:नड्क्ष्यथ
उत्तमपुरुषनड्क्ष्यामिनड्क्ष्याव:नड्क्ष्याम:

लोट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषनश्यतुनष्यताम्नश्यन्तु
मध्यमपुरुषनश्यनश्यतम्नश्यत
उत्तमपुरुषनश्यानिनश्यावनश्याम

लड्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषअनश्यत्अनश्यताम्अनश्यन्
मध्यमपुरुषअनश्यःअनश्यतम्अनश्यत
उत्तमपुरुषअनश्यम्अनश्यावअनश्याम

विधिलिड् लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमपुरुषनश्येत्नश्येताम्नश्येयु:
मध्यमपुरुषनश्ये:नश्येतम्नश्येत
उत्तमपुरुषनश्येयम्नश्येवनश्येम

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

14. √कथू (कहना )
1. परस्मैपद
लट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्र० पु०कथयतिकथयत:कथयन्ति
म० पु०कथयसिकथयथःकथयथ
उ० पु०कथयामिकथयाव:कथयाम:

लोट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्र० पु०कथयतुकथयताम्कथयन्तु
म० पु०कथयकथयतम्कथयत
उ० पु०कथयानिकथयावकथयाम

लड्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्र० पु०अकथयत्अकथयताम्अकथयन्
म० पु०अकथयःअकथयतम्अकथयत
उ० पु०अकथयम्अकथयावअकथयाम

विधिलिड्

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्र० पु०कथयेत्कथयेताम्कथयेयु:
म० पु०कथये:कथयेतम्कथयेत
उ० पु०कथयेयम्कथयेवकथयेम

लृट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्र० पु०कथयष्यितिकथयिष्यतःकथयष्यिन्ति
म० पु०कथयष्यिसिकथयिष्यथ:कथयष्यिथ
उ० पु०कथयिष्यामिकथयिष्यावःकथयिष्याम:

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

15. √चुरू ( चोरी करना )
परस्मैपद
लट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्र० पु०चोरयतिचोरयत:चोरयन्ति
म० पु०चोरयसिचोरयथ:चोरयथ
उ० पु०चोरयामिचोरयाव:चोरयाम:

लोट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्र० पु०चोरयतुचोरयताम्चोरयन्तु
म० पु०चोरयचोरयतम्चोरयत
उ० पु०चोरयाणिचोरयावचोरयाम

लड्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्र० पु०अचोरयत्अचोरयताम्अचोरयत्
म० पु०अचोरय:अचोरयतम्अचोरयत
उ० पु०अचोरयम्अचोरयावअचोरयाम

विधिलिड्

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्र० पु०चोरयेत्चोरयेताम्चोरयेयु:
म० पु०चोरये:चोरयेतम्चोरयेत
उ० पु०चोरयेयम्चोरयेवचोरयेम

लृट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्र० पु०चोरयिष्यतिचोरयिष्यतःचोरयिष्यन्ति
म० पु०चोरयिष्यसिचोरयिष्यथ:चोरयिष्यथ:
उ० पु०चोरयिष्यामिचोरयिष्याव:चोरयिष्याम:

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

16. √सेव् (सेवा करना )
भ्वादिगण आत्मनेपद
लट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्र० पु०सेवतेसेवेतेसेवन्ते
म० पु०सेवसेसेवेथेसेवध्वे
उ० पु०सेवेसेवावहेसेवामहे

लृट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्र० पु०सेविष्यतेसेविष्येतेसेविष्यन्ते
म० पु०सेविष्यसेसेविष्येथेसेविष्यध्वे
उ० पु०सेविष्येसेविष्यावहेसेविष्यामहे

लोट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्र० पु०सेवताम्सेवेताम्सेवन्ताम्
म० पु०सेवस्वसेवेथाम्सेवध्वम्
उ० पु०सेवैसेवावहैसेवामहै

लड्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्र० पु०असेवतअसेवेताम्असेव्न्त
म० पु०असेवथा:असेवेथाम्असेवध्वम्
उ० पु०असेवेअसेवावहिअसेवामहि

विधिलिड्

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्र० पु०सेवेतसेवेयाताम्सेवेरन्
म० पु०सेवेथा:सेवेयाथाम्सेवेध्वम्
उ० पु०सेवेयसेवेवहिसेवेमहि

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

17. √लभ् (पाना )
लट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
पुरूषलभतेलभेतेलभन्ते
प्रथमपुरुषलभसेलभेथेलभध्वे
मध्यमपुरुषलभेलभावहेलभामहे

लृट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
पुरूषलप्स्यतेलप्स्येतेलप्स्यन्ते
प्रथमपुरुषलप्स्यसेलप्स्येथेलप्स्यव्व
मध्यमपुरुषलप्स्येलप्यावहेलप्यामहे

लोट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
पुरूषलभताम्लभेताम्लभन्ताम्
प्रथमपुरुषलभस्वलभेथाम्लभध्वम्
मध्यमपुरुषलभैलभावहैलभामहै

लड्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
पुरूषअलभतअलभेताम्अलभन्त
प्रथमपुरुषअलभथा:अलभेथाम्अलभध्वम्
मध्यमपुरुषअलभेअलभावहिअलभामहि

विधिलिड् लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
पुरूषलभेतलभेयाताम्लभेरन्
प्रथमपुरुषलभेथा:लभेयाथाम्लभेध्वम्
मध्यमपुरुषलभेयलभेवहिलभेमहि

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

18. √वृध् बढ़ना
लट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
पुरूषवर्धतेवर्धेतेवर्धन्ते
प्रथमपुरुषवर्धसेवर्धेथेवर्धध्वे
मध्यमपुरुषवर्धेवर्धावहेवर्धामहे

लोट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
पुरूषवर्धताम्वर्धेताम्वर्धन्ताम्
प्रथमपुरुषवर्धस्ववर्धेथाम्वर्धध्वम्
मध्यमपुरुषवर्धवर्धावहैवर्धामहै

लृट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
पुरूषवर्धिष्यतेवर्धिष्येतेवर्धियन्ते
प्रथमपुरुषवर्धिष्यसेवधिष्येथेवर्धिष्यध्वे
मध्यमपुरुषवर्धिष्येवर्धिष्यावहेवर्धिष्यामहे

लड्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
पुरूषअवर्धतअवर्धेताम्अवर्धन्त
प्रथमपुरुषअवर्धथा:अवर्धेथाम्अवर्धध्वम्
मध्यमपुरुषअवर्धेअवर्धावहिअवर्धामहि

विधिलिड् लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
पुरूषवर्धेतवर्धेयाताम्वधेरन्
प्रथमपुरुषवर्धेथा:वर्धेयाथाम्वर्धेध्वम्
मध्यमपुरुषवर्धेयवर्धेवहिवर्धेमहि

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

19. √वृत् (वर्त )-होना
लट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
पुरूषवर्ततेवर्तेतेवर्तन्ते
प्रथमपुरुषवर्तसेवर्तेथेवर्तध्वे
मध्यमपुरुषवर्तेवर्तावहेवर्तामहे

लोट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
पुरूषवर्तताम्वर्तेताम्वर्तन्ताम्
प्रथमपुरुषवर्तस्ववर्तेथाम्वर्तर्वम्
मध्यमपुरुषवर्तेवर्तावहैवर्तामहै

लृट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
पुरूषवर्तिष्यतेवर्तिष्येतेवर्तिष्यन्त्त
प्रथमपुरुषवर्तिष्यसेवर्तिष्येथेवर्तिष्यध्वे
मध्यमपुरुषवर्तिष्येवर्तिष्यावहेवर्तिष्यामहे

लड्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
पुरूषअवर्ततअवर्तेताम्अवर्तन्त
प्रथमपुरुषअवर्तथा:अवर्तेथाम्अवर्तध्वम्
मध्यमपुरुषअवर्तेअवर्तावहिअवर्तामहि

विधिलिड् (आज्ञा)

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
पुरूषवर्तेतवर्तेयाताम्वर्तेरन्
प्रथमपुरुषवर्तेथा:वर्तेयाथाम्वर्तेध्वम्
मध्यमपुरुषवर्तेयवर्तेवहिवर्तेमहि

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

20. √रुच् (चमकना, पसन्द आना)
लट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
पुरूषरोचतेरोचेतेरोचन्ते
प्रथमपुरुषरोचसेरोचेथेरोचध्वे
मध्यमपुरुषरोचेरोचावहेरोचामहे

लृट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
पुरूषरोचिष्यतेरोचिष्येतेरोचिष्यन्ते
प्रथमपुरुषरोचिष्यसेरोचिष्येथेरोचिष्यध्वे
मध्यमपुरुषरोचिष्येरोचिष्यावहेरोचिष्यामहे

लोट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
पुरूषरोचताम्रोचेताम्रोचन्ताम्
प्रथमपुरुषरोचस्वरोचेथाम्रोचध्वम्
मध्यमपुरुषरोचैरोचावहैरोचामहै

लड्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
पुरूषअरोचतअरोचेताम्अरोचन्त
प्रथमपुरुषअरोचथा:अरोचेथाम्अरोचध्वम्
मध्यमपुरुषअरोचेअरोचावहिअरोचामहि

विधिलिड् लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
पुरूषरोचेतरोचेयाताम्रोचेरन्
प्रथमपुरुषरोचेथा:रोचेयाथाम्रोचेध्वम्
मध्यमपुरुषरोचेयरोचेवहिरोचेमहि

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

21. √जन् ( पैदा होना )
लदू ( आत्मनेपद )

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्र० पु०जायतेजायेतेजायन्ते
म० पु०जायसेजायेथेजायध्वे
उ० पु०जायेजायावहेजायामहे

लोट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्र० पु०जायताम्जायेताम्जायन्ताम्
म० पु०जायस्वजायेथाम्जायद्वम्
उ० पु०जायैजायावहैजायामहै

लड्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्र० पु०अजायतअजायेताम्अजायन्त
म० पु०अजायथा:अजायेथाम्अजायद्वम्
उ० पु०अजायेअजायावहिअजायामहि

विधिलिड्

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्र० पु०जायेतजायेयाताम्जायेरन्
म० पु०जायेथा:जायेयाथाम्जायेध्वम्
उ० पु०जायेयजायेवहिजायेमहि

लृट्लकार

पुरूषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्र० पु०जनिष्यतेजनिष्येतेजनिष्यन्ते
म० पु०जनिष्यसेजनिष्येथेजनिष्यध्वे
उ० पु०जनिष्येजनिष्यावहेजनिष्यामहे

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

धातून अधिकृत्य वाक्येषु क्रियाप्रयोगः

I. अधोलिखितेषु वाक्येषु निर्दिष्ट-क्रियापदं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत
1. अद्य रविवासरः अस्ति श्वः सोमवासरः …………….. । (भू, लुट्)
2. तत्र किम् ………………. । (भू, लङ्)
3. छात्राः ……………….. । (पठ्, लोट्)
4. बालिकाः ……………….. बालकाः च लिखन्ति। (पठ्, लट्)
5. भवन्तः मा ……………… । (हस्, विधिलिङ्)
6. बालकाः उच्चैः ……………… । (हस्, लङ्)
7. छात्राः आचार्यम् ………………..। (नम्, लङ्)
8. वयम् ईश्वरं ………………। (गम्, लुट)
9. आवाम् अद्य विद्यालयं न ……………….. । (गम्, विधिलिङ्)
10. भो छात्रा:! तत्र न ……………….. । (गम्, विधिलिङ्)
11. अत्र वयं ………………। (अस्, लट्)
12. तत्र कोऽपि न ………………..। (अस्, लङ्)
13. शत्रून् ………………..। (हन्)
14. शत्रून् ………………. । (हन्, लोट्, मध्यम, पुरुष, एकवचन)
15. ते कथं ……………….. ? (क्रुध्, लट्)
16. अद्य प्रभृति अहं न ……………….. । (क्रुध्, लट्)
17. मा ………………..। (क्रुध्, लोट्, बहुवचनम्)
18. यः न ददाति न भुङ्क्ते, तस्य धनं ………………..। (नश्)।
19. यः अन्येभ्य ज्ञानं न दास्यति तस्य ज्ञानं ……………….. । (नश्)
20. मेघाः गर्जन्ति मयूराः च ……………….. । (नृत्)
21. अहं रजनी च उत्सवे ………………..। (नृत्)
22. धर्मं चरत सुखं च ……………….. । (आप्)
23. अस्य वर्षस्य प्रथमपुरस्कारम् अहम एव……………….। (आप)
24. अतिवृद्धाः कुत्रापि गन्तुं न ………………… | ( शक्)
25. किम् अहम् एतत् कार्यं कर्तुं ……………….. । (शक्, लुट)
26. ह्यः त्वं किं कथयितुम् ……………….. । (इच्छ)
27. सर्वेषां सदा कल्याणम् एव ……………….. । (इच्छ, लोट्, बहुवचनम्)
28: हे पुत्र! मातरं किं ………………..। (पृच्छ्)
29. अध्यापिका छात्रान् प्रश्नान् ………………..। (पृच्छ्, लुट)
30. अधुना अहं किं ………………. ? (कृ, लोट्)
31. सर्वे छात्राः कथाकार्यम् …………………। (कृ, लङ्)
32. अस्य उत्तरं तु सर्वे एव ………………..। (ज्ञा, लट्)
33. यस्मिन् ज्ञाते सर्वं ज्ञातं भवति तत् तत्त्वं ………………. । (ज्ञा, विधिलिङ्)
34. अधुना यूयं किं ……………….. ? (भक्ष, लुट)
35. आवाम् ह्यः फलानि ……………….. । (भक्ष) ।
36. भवन्तः कथं ……………….. अहं तु अत्रैव अस्मि। (चिन्त्)
37. सः ……………… अहं धनी भविष्यामि। (चिन्त्, लङ्) .
38. सः मातापितरौ ………………..। (सेव्) सेवते
39. असहायान् ………………..। (सेव्, लोट्, बहुवचनम्) सेवध्वम्
40. यः परिश्रमं करिष्यमित स एव फलं ….. ……………….. । (लभ) लप्स्यते
41. चिरं जीव सुखं च ………………. । (लभ) लभस्व
42. सुखं कस्मै न ……………….. ? (रुच्) रोचते
43. रात्रौ प्रकाशेन भवनानि ………………. । (रुच्, लङ्) अरोचन्त
44. निर्धनाः धनं ………………. । (याच्) याचन्ते
45. वयम् ईश्वरं बुद्धिम् एव ………………… । (याच्, विधिलिङ्) याचेमहि
46. कृषक: अन्नानि गृहं ……………….. । (नी, आत्मनेपदम् लुट्) नेष्यति
47. युवां पुस्तकानि कुत्र …………….. ? (नी, परस्मैपदम्, लङ्) अनयतम्
48. एतत् उद्यानं मम मनः ………………..। (ह, आत्मनेपदम्) हरते
49. वयं तव वस्तूनि न …………… । (हृ, परस्मैपदम्) हरिष्यामः
50. भक्ताः ईश्वरम् ………………। (भज्, आत्मनेपदम्, लङ्) अभजन्त
51. ……………….. गोबिन्दं मूढमते। (भज्, परस्मैपदम्) भज
52. आवाम् ईश्वरं ………………। (भज्, परस्मैपदम्) भजावः
53. माता प्रतिदिनं भोजनं ………………..। (पच, परस्मैपदम्) पचति
54. भगिनि! शीघ्रं भोजनं ………………। (पच्, आत्मनेपदम्) पचस्व
55. पाचकाः भोजनं ……………….. । (पच्, आत्मनेपदम्, लट्)
उत्तराणि
भविष्यति
अभवत्
पठन्तु
पठन्ति
हसेयुः
अहसन्
अनमन्
नमामः
गमिष्याव:
गच्छेत
स्मः
आसीत्
घ्नन्ति
जहि
क्रध्यन्ति
क्रोत्स्यामि
क्रुध्यत
नश्यति
नक्ष्यति
नृत्यन्ति
नर्तिष्याव:
आप्नुत
आप्स्यामि
शक्नुवन्ति
शक्ष्यामि
ऐच्छः
इच्छत
पृच्छसि
प्रक्ष्यति
करवाणि
अकुर्वन्
जानन्ति
जानीयाः
भक्षयिष्यथ
अभक्षयाव
चिन्तयन्ति
अचिन्तयत्
सेवते
सेवध्वम्
लप्यते
लभस्व
रोचते
अरोचन्त
याचन्ते
याचेमहि
नेष्यति
अनयतम्
हरते
हरिष्याम:
अभजन्त
भज
भजाव:
पधति
पढस्त
पद्ययन्ये

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

2. कोष्ठकात् शुद्धम् उत्तरं विचित्य रिक्तस्थानानि पूरयत
(i) पाण्डवाः —— आसन्। (पञ्चाः । पञ्च / पञ्चानि)
(ii) गजस्य —— पादाः भवन्ति। (चत्वारः / चतस्रः । चत्वारि)
(iii) गृहे —— मूषकौ धावतः। (द्वौ / द्वे)
(iv) त्र्यम्बकस्य —— लोचनानि सन्ति। (त्रयः । त्रीणि / तिस्रः)

3. कोष्ठकात् शद्धम् उत्तरं विचित्य रिक्तस्थानानि पूरयत
(i) मम कक्षायाम् ——- सुन्दरं चित्रं अस्ति। (एकः / एकम् / एकेन)
(ii) पञ्चाननस्य ——- मुखानि सन्ति। (पञ्चानि / पञ्च / पञ्चाः)
(iii) बलरामस्य —— भुजौ पाताम्। (द्वौ / द्वे)
(iv) —— दण्डिप्रबन्धाः त्रिषु लोकेषु विश्रुताः। (त्रयः / त्रीणि / तिस्रः)

4. कोष्ठकात् शुद्धम् उत्तरं विचित्य रिक्तस्थानानि पूरयत
(i) हस्ते……….. अमुल्यः भवन्ति। (पञ्च/पञ्चाः/पञ्चानि)
(ii) वृक्षे ………. शुकौ स्तः । (द्वे। द्वौ)
(iii) पुरुषार्थाः …….. सन्ति। (चतस्रः/चत्वारि/चत्वारः)
(iv) सरोवरे ……….. कमलानि विकसन्ति। (तिस्रः/त्रयः/त्रीणि)

5. अधोलिखितवाक्येषु अङ्कानां स्थाने संख्यावाचकविशेषणैः रिक्तस्थानपूर्ति संस्कृतेन कृत्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखत
मम विद्यालये (i) ……………. (12) ………….. कक्षाः सन्ति। तेषु प्रायः (ii) ………….. (500) …………….. छात्रा: पठन्ति । (iii) …………….. (50) …………….. अध्यापकाः परिश्रमेण अस्मान् पाठयन्ति। गतवर्षे परीक्षा परिणामः (iv) ……………… (90) ……………… प्रतिशत आसीत् ।

6. अधोलिखितवाक्ये अङ्कानां स्थाने संख्यावाचकविशेषणैः रिक्तस्थानपूर्ति संस्कृतेन कृत्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखत
मम विद्यालये (1) …………….. प्रवेशद्वारं (3) …………….. सहायकानि द्वाराणि (23) …………….. अध्यापकाः (8) …………….. परिचारकाः च सन्ति।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् धातुरुप प्रकरणम्

7. अधोलिखितवाक्ये अङ्कानां स्थाने संख्यावाचकविशेषणैः रिक्तस्थानपूर्तिं संस्कृतेन कृत्वा पुनः उत्तरपुस्तिकायां लिखत
(क) अश्वस्य (4) ………………. पादाः सन्ति।
(ख) सप्ताहे (7) ……………… दिवसाः भवन्ति।
(ग) क्रीडाक्षेत्र (18) ………….. मित्राणि क्रीडन्ति।
(घ) नरस्य हस्तौ (2) ………….. भवतः ।

 

 

 

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HBSE 10th Class Sanskrit रचना अनुच्छेदलेखनम्

Haryana State Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions रचना Anuched Lekhanm अनुच्छेदलेखनम् Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Sanskrit रचना अनुच्छेदलेखनम्

रचना अनुच्छेदलेखनम् HBSE Sanskrit 10th Class

1. मम मित्रम्
उत्तरम्:
(i) अभिनवः मम प्रिय मित्रम् अस्ति।
(ii) तस्य पिता प्राध्यापकः अस्ति।
(iii) सः पठने निपुणः अनुशासनप्रियः च अस्ति।
(iv) सः सदा सत्यं प्रियं च वदति।
(v) सर्वे गुरवः तस्मिन् स्निह्यन्ति।

HBSE 10th Class Sanskrit अनुच्छेदलेखनम्

रचना अनुच्छेदलेखनम् 10th Class HBSE Sanskrit

2. दीपावली
उत्तरम्:
(i) दीपावली हिन्दूनां प्रमुखः उत्सवः अस्ति।
(ii) अयं हि कार्तिकमासस्य अमावस्यायां मान्यते।
(iii) रात्रौ सर्वत्र जनाः दीपप्रज्वालनं कुर्वन्ति।
(iv) आस्फोटकानां ध्वनिः कर्णो कम्पयति।
(v) जनाः मिष्टान्नानि वितरन्ति।

HBSE 10th Class Sanskrit रचना अनुच्छेदलेखनम्

3. मम प्रियः अध्यापकः
उत्तरम्:
(i) संस्कृतविषयस्य अध्यापकः मम प्रियः अध्यापकः अस्ति।
(ii) सः उच्चशिक्षालब्धः विद्वान् अस्ति।
(iii) सः संस्कृतसम्भाषणे, अध्यापने च पटुः अस्ति।
(iv) सः अनुशासनप्रियः, आदर्शशिक्षकः च अस्ति।
(v) तस्य आकर्षकं व्यक्तित्वं सर्वान् प्रभावितं करोति ।

HBSE 10th Class Sanskrit अनुच्छेदलेखनम्

4. मम प्रियः नेता/आदर्शमहापुरुषः
उत्तरम्:
(i) महात्मा गान्धी मम प्रियः नेता आदर्शमहापुरुषः च अस्ति।
(ii) सः अहिंसायाः प्रतिमूर्तिः असीत्।
(iii) सः अहिंसामार्गेण एव भारतदेशस्य स्वतन्त्रतायै यत्नम् अकरोत् ।
(iv) सः सत्य-अहिंसा-समभावपाठं सर्वान् अपाठयत्।
(v) गान्धिनः अहिंसामार्गः एव विश्वशान्तिं स्थापयितुम् समर्थः अस्ति।
(vi) कर्मयोगिने गान्धिने नमः।

5. मम विद्यालयः मध्ये, एकं सुन्दरम् उद्यानम्, सप्ततिः, सहस्रद्वयं, योग्याः, ख्यातिः |
उत्तरम्:
(i) मम विद्यालयः नगरस्य एकस्मिन् सुरम्ये स्थले स्थितः अस्ति।
(ii) प्राङ्गणस्य मध्ये एकं सुन्दरम् उद्यानं वर्तते।
(iii) अध्यापकानां संख्या सप्ततिः, छात्राणां च सहस्रद्वयं वर्तते।
(iv) अध्यापकाः अतीव निपुणाः योग्याः स्वविषय-पारङ्गताः च सन्ति।
(v) शिक्षाक्षेत्रे अस्य ख्याति: समग्रदेशे अस्ति।

HBSE 10th Class Sanskrit अनुच्छेदलेखनम्

6. पर्यावरणम्
उत्तरम्:
(i) पर्यावरणस्य मानवजीवने अतिमहत्त्वपूर्ण स्थानं वर्तते।
(ii) यत्र पर्यावरणं शुद्धं भवति तत्र जीवनमपि सुखमयं भवति।
(iii) स्वस्थं पर्यावरणमेव मानवजीवनस्य आधारः अस्ति।
(iv) दूषितपर्यावरणेन अनेके रोगाः उद्भूताः भवन्ति।
(v) औद्योगिकसंस्थानेभ्यः निर्गतेन वायुना पर्यावरणं दूषितं भवति।
(vi) साम्प्रतं तु जलं वायुः आकाशं चापि शुद्धं नास्ति।
(vii) पर्यावरणरक्षणाय वयं सदा प्रयत्नशीलाः भवेम।

7. ‘मम जननी’ इति विषयम् अधिकृत्य पंचवाक्येषु एकम् अनुच्छेदं लिखत।
मञ्जूषा
एकाकी, प्रतिवेशिनां, स्निह्यति, महिला, विज्ञानस्य, परिश्रमी, मयि, करोति, अस्मि, अध्यापयति।
उत्तरम्:
(i) मम जननी प्रातः चतुर्वादने उत्तिष्ठति।
(ii) मम जननी मयि अति स्निह्यति।
(iii) सा परिश्रमी महिला अनेकानि कार्याणि प्रतिदिनं करोति।
(iv) मम जननी प्रतिवेशिनां बालकान् विज्ञानस्य विषयं निःशुल्कम् अध्यापयति।
(v) अहं जनन्या आज्ञाकारी पुत्रः अस्मि।

HBSE 10th Class Sanskrit अनुच्छेदलेखनम्

8. ‘मम जीवनस्य उद्देश्यम्’ इति विषयम् अधिकृत्य पंचवाक्येषु एकम् अनुच्छेदं लिखत।
मञ्जूषा
प्रसिद्धसंगीतगायकस्य, अहम्, पञ्चवर्षीयः, रोचते, मह्यम्, इच्छामि, संगीतश्रवणे, आरब्धम्, स्वगुरुं, संगीतशिक्षकरूपे
उत्तरम्:
(i) अहं प्रसिद्धसंगीतगायकस्य पञ्चवर्षीयः पुत्रः अस्मि।
(ii) संगीतश्रवणे मम अतिरुचिः वर्तते।
(iii). अतः संगीतशिक्षकरूपे अहं स्वजीवनस्य उद्देश्यं कर्तुम् इच्छामि।
(iv) भैरवीरागः मह्यं विशेषरूपेण रोचते।
(v) संगीतनिष्णातं स्वगुरुं विधाय मया संगीतशिक्षणम् आरब्धम्।

9. मम परिवारः
उत्तरम्:
(i) मम परिवारे चत्वारः सदस्याः सन्ति ।
(ii) मम पिता आदर्शशिक्षकः सफलश्च जनकः अस्ति।
(iii) मम माता आदर्शा गृहिणी अस्ति ।
(iv) मम भगिनी एम० बी० बी० एस० इति पाठ्यक्रमे पठति।
(v) मम परिवारः एक: आदर्शः परिवारः अस्ति।

HBSE 10th Class Sanskrit अनुच्छेदलेखनम्

10. जलस्य महत्त्वम्
जीवनं, दूषितेन जलेन, स्नानाय क्षालनाय, अस्माभिः, संरक्षणीयम्, भोजनस्य
उत्तरम्:
(i) जलं विना जीवनं न सम्भवम्।
(ii) दूषितेन जलेन रोगाः जायन्ते।
(iii) जीवने पानाय, स्नानाय क्षालनाय च जलम् अति महत्त्वपूर्णमस्ति।
(iv) अस्माभिः क्षेत्राणां कृषि करणाय जलं संरक्षणीयम्।
(v) जलतत्त्वं भोजनस्य आवश्यकम् अङ्गम् अस्ति।

11. प्रातःभ्रमणम्
उत्तरम्:
(i) प्रातः भ्रमणेन रुग्णः अपि स्वस्थः भवति।
(ii) प्रातः भ्रमणम् एकः शोभन: व्यायामः अस्ति।
(iii) एकस्मिन् क्रीडाक्षेत्रे गत्वा मया प्रातः व्यायामः क्रियते।
(iv) अहं चतुर्दशवर्षीयः चत्वारि किलोमीटरमितानि भ्रमणानि करोमि।
(v) प्रातः भ्रमणेन स्वास्थ्यम् आयुः च वर्धते।

HBSE 10th Class Sanskrit अनुच्छेदलेखनम्

12. ‘मम मातृभूमिः’ इति विषयम् अधिकृत्य पंचवाक्येषु एकम् अनुच्छेदं लिखत।
मञ्जूषा
अस्माभिः, पोषणम्, स्वर्गादपि, मातृभूमिः, वन्दनीया, येन-केन-प्रकारेण, सत्यम्, अहम् माता, यच्छति
उत्तरम्:
(i) अस्माभिः मातृभूमिः सदा वन्दनीया।
(ii) मातृभूमिः स्वर्गादपि श्रेष्ठा अस्ति।
(ii) इयं मातृभूमिः अस्माकं माता इव पोषणं करोति ।
(iv) सा येन-केन-प्रकारेण अपि अस्मभ्यं सुखसामग्रीः प्रयच्छति।
(v) अहं मातृभूमिरक्षायै सत्यं वीरः भवामि।

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HBSE 10th Class Sanskrit रचना चित्राधारितम् लेखनम्

Haryana State Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions रचना Chitradharitam Lekhanam चित्राधारितम् लेखनम् Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Sanskrit रचना चित्राधारितम् लेखनम्

रचना चित्राधारितम् लेखनम् HBSE Sanskrit 10th Class

1. चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषातः उचितपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत –
Haryana Board 10th Class Sanskrit Chitradharitam Lekhanam img-1
(i) इदं …………… गजस्य अस्ति।
(ii) गजस्य एकः …………. भवति।
(iii) गजस्य वर्णः …………..
(iv) गजस्य चत्वारः ……………. भवन्ति।
(v) गजः तृणं …………………….
मञ्जूषा
कृष्णः, करः, चित्रं, खादति, पादाः।।
उत्तरम्:
(i) इदं चित्रं गजस्य अस्ति।
(ii) गजस्य एकः करः भवति।
(iii) गजस्य वर्णः कृष्णः भवति।
(iv)गजस्य चत्वारः पादाः भवन्ति।
(v) गजः तृणं खादति।

HBSE 10th Class Sanskrit चित्राधारितम् लेखनम्

रचना चित्राधारितम् लेखनम् 10th Class HBSE Sanskrit

2. चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषातः उचितपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत –
Haryana Board 10th Class Sanskrit Chitradharitam Lekhanam img-2
(i) चित्रे …………… मयूरौ स्तः।
(ii) मयूरः राष्ट्रियः ………… अस्ति।
(iii) मयूराः ………….. दृष्ट्वा हर्षन्ति।
(iv) मयूरौ …………….।
(v) मयूरः सुन्दरः खगः ……………..।
मञ्जूषा
भवति, द्वौ, मेघान्, खगः, नृत्यतः।
उत्तरम्:
(i) चित्रे द्वौ मयूरौ स्तः।
(ii) मयूरः राष्ट्रियः खगः अस्ति।
(iii) मयूराः मेघान् दृष्ट्वा हर्षन्ति।
(iv)मयूरौ नृत्यतः।
(v) मयूरः सुन्दरः खगः भवति ।

HBSE 10th Class Sanskrit रचना चित्राधारितम् लेखनम्

HBSE 10th Class Sanskrit चित्राधारितम् लेखनम्

3. चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषातः उचितपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत –
Haryana Board 10th Class Sanskrit Chitradharitam Lekhanam img-3
(i) इदं चित्रं …………… अस्ति ।
(ii) चित्रे …………. वानराः सन्ति।
(iii) वृक्षे ………….. तिष्ठन्ति।
(iv) वानराः कदलीफलानि …………….।
(v) वानराः ……………..भवन्ति।
मञ्जूषा
चपलाः, वानराणाम्, वानराः, खादन्ति, त्रयः।
उत्तरम्:
(i) इदं चित्रं वानराणाम् अस्ति।
(ii) चित्रे त्रयः वानराः सन्ति।
(iii) वृक्षे वानराः तिष्ठन्ति। ।
(iv) वानराः कदलीफलानि खादन्ति।
(v) वानराः चपलाः भवन्ति।

HBSE 10th Class Sanskrit चित्राधारितम् लेखनम्

4. उपरिदत्तं चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषातः पदानि अवचित्य रिक्तस्थानानि पूरयन्तु।
Haryana Board 10th Class Sanskrit Chitradharitam Lekhanam img-4
(i) चित्रे एकः …………… वृक्षः वर्तते।
(ii) वृक्षे ……………… उपविष्टाः सन्ति ।
(iii) चित्रे …………….. तडागस्य …………… अस्ति।
(iv) जले ………….. स्नानं करोति।
मञ्जूषा
पक्षिणः, विशालः, एक: नरः, समीपे, वृक्षः।।
उत्तरम्:
(i) चित्रे एकः विशालः वृक्षः वर्तते।
(ii) वृक्षे पक्षिणः उपविष्टाः सन्ति।
(iii) चित्रे वृक्षः तडागस्य समीपे अस्ति।
(iv) जले एक: नरः स्नानं करोति।

HBSE 10th Class Sanskrit चित्राधारितम् लेखनम्

5. उपरिदत्तं चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषातः पदानि अवचित्य रिक्तस्थानानि पूरयन्तु।
Haryana Board 10th Class Sanskrit Chitradharitam Lekhanam img-5
(i) एतत् उपवनस्य ………….. अस्ति।
(ii) दोलायाम् एका ……………. तिष्ठति।
(iii) आकाशे …………. उत्पतन्ति।
(iv) ………….. द्वे वर्तिके तरतः।
(v) आकाशे ………….. उदयति।
मञ्जूषा
खगाः, चित्रम्, सरोवरे, सूर्यः, बालिका
उत्तरम्:
(i) एतत् उपवनस्य चित्रम् अस्ति।
(ii) दोलायाम् एका बालिका तिष्ठति।
(iii) आकाशे खगाः उत्पतन्ति।
(iv) सरोवरे द्वे वर्तिके तरतः।
(v) आकाशे सूर्यः उदयति।

HBSE 10th Class Sanskrit चित्राधारितम् लेखनम्

6. उपरिदत्तं चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषात: पदानि अवचित्य रिक्तस्थानानि पूरयन्तु।
Haryana Board 10th Class Sanskrit Chitradharitam Lekhanam img-6
(i) इदं ……………. दृश्यम् अस्ति ।
(ii) गगनम् …………. शोभते।
(iii) द्वौ बालकौ जले ………….. तारयतः।
(iv) एकः बालक: एका बालिका च शिरसि …………… धारयतः।
(v) जले ………………. टरटरायन्ते।
मञ्जूषा
मेघाच्छन्नम्, वर्षाऋतोः, आतपत्रम्, कर्गदनौकाः, दर्दुराः
उत्तरम्:
(i) इदं वर्षाऋतोः दृश्यम् अस्ति।
(ii) गगनम् मेघाच्छन्नम् शोभते।
(iii) द्वौ बालकौ जले कर्गदनौकाः तारयतः।
(iv) एकः बालकः एका बालिका च शिरसि आतपत्रम् धारयतः।
(v) जले दर्दुराः टरटरायन्ते।

HBSE 10th Class Sanskrit चित्राधारितम् लेखनम्

7. चित्रम् आधृत्य मञ्जूषायां प्रदत्तशब्दानां सहायतया संस्कृतेन पञ्चवाक्यानि लिखत
Haryana Board 10th Class Sanskrit Chitradharitam Lekhanam img-7
उपरिदत्तं चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषातः पदानि अवचित्य रिक्तस्थानानि पूरयन्तु।
(i) अत्र एकः बालकः …………. सह आगतः।
(ii) राजमार्गे ………………. क्षिपत् ………………. कारयानम् अपि गच्छति।
(iii) अस्मिन् ………………. एकः ………………. एव अवशिष्टः ।
मञ्जूषा
चित्रे, एकं, द्रुमः, मात्रा, धूम्र
उत्तरम्:
(i) अत्र एकः बालक: मात्रा सह आगतः।
(ii) राजमार्गे एकं क्षिपत् धूनं कारयानम् अपि गच्छति।
(iii) अस्मिन् चित्रे एकः द्रुमः एव अवशिष्टः।

HBSE 10th Class Sanskrit चित्राधारितम् लेखनम्

8. चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषातः पदानि अवचित्य रिक्तस्थानानि पूरयन्तु।
Haryana Board 10th Class Sanskrit Chitradharitam Lekhanam img-8
(i) ………………. बालका: वेगेन
(ii) महिला ………………. धारयति।
(iii) …………… एकं पुष्पभाजनम् अपि अस्ति।
(iv) जलाशये मीनाः
मञ्जूषा
कोणे, तरन्ति, धावन्ति, चत्वारः, शाटिकां
उत्तरम्:
(i) चत्वारः बालकाः वेगेन धावन्ति।
(ii) महिला शाटिकां धारयति।
(iii) कोणे एकं पुष्पभाजनम् अपि अस्ति।
(iv) जलाशये मीनाः तरन्ति।

HBSE 10th Class Sanskrit चित्राधारितम् लेखनम्

9. उपरिदत्तं चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषातः पदानि अवचित्य रिक्तस्थानानि पूरयन्तु।
Haryana Board 10th Class Sanskrit Chitradharitam Lekhanam img-9
(i) इदं ………………. उद्यानस्य अस्ति।
(ii) बालकः मित्रैः ………………. क्रीडति।
(iii) अत्र वृक्षौ ………………. ।
(iv) एका ………………. रज्ज्वा ………………. ।
मञ्जूषा
स्तः, क्रीडति, कन्या, चित्रं, सह
उत्तरम्:
(i) इदं चित्रम् उद्यानस्य अस्ति।
(ii) बालकः मित्रैः सह क्रीडति।
(iii) अत्र वृक्षौ स्तः।
(iv) एका कन्या रज्ज्वा क्रीडति।

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HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

Haryana State Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Sandhi Prakaran संधि प्रकरणम् Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

Sandhi Prakaran In Sanskrit HBSE 10th Class

(सन्धि के आधार पर वर्णनात्मक प्रश्न-परिभाषा, उदाहरण आदि)
सन्धि अथवा संहिता-दो वर्णों चाहे वे स्वर हों या व्यंजन के मेल से जो ध्वनि में विकार उत्पन्न होता है, उसे सन्धि अथवा संहिता कहते हैं ; यथा
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी। वाक् + ईशः = वागीशः।
सन्धि के तीन भेद हैं
(क) अच् सन्धि (स्वर सन्धि)
(ख) हल् सन्धि (व्यंजन सन्धि.)
(ग) विसर्ग सन्धि
(क) अच् सन्धि (स्वर सन्धि)
दो अत्यन्त निकट स्वरों के मिलने से जो ध्वनि में विकार उत्पन्न होता है, उसे अच् सन्धि अथवा स्वर सन्धि कहते हैं। स्वर सन्धि के निम्नलिखित आठ भेद हैं
1. दीर्घ सन्धि-हिम + आलय = हिमालयः
2. गुण सन्धि-नर + ईशः = नरेशः।
3. वृद्धि सन्धि-सदा + एव = सदैव ।
4. यण् सन्धि–यदि + अपि = यद्यपि।
5. अयादि सन्धि–ने + अनम् = नयनम्।
6. पूर्वरूप सन्धि-के + अपि = के ऽपि।
7. पररूप सन्धि-प्र + एजते = प्रेजते।
8. प्रकृतिभाव सन्धि-कवी + इमौ = कवी इमौ।

Sandhi Sanskrit Class 10 HBSE

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

1. दीर्घ सन्धि-ह्रस्व या दीर्घ अ इ उ अथवा ऋसे परे सवर्ण ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ अथवा ऋहोने पर दोनों के स्थानों में दीर्घ वर्ण हो जाता है।
(i) नियम- यदि अ या आ से परे अ या आ हो तो दोनों के स्थान पर आ हो जाता है ; अर्थात्अ/आ + अ/आ = आ।
उदाहरण:
परम + अर्थः = परमार्थः ।
उत्तम + अङ्गम् = उत्तमाङ्गम्।
हिम + आलयः = हिमालयः।
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी।
न + अस्ति = नास्ति।
च + अस्ति = चास्ति।
देव + आलयः = देवालयः।
शिक्षा + अर्थी = शिक्षार्थी।
रत्न + आकरः = रत्नाकरः।
ईश्वर + अधीनः = ईश्वराधीनः

(ii) नियम-यदि इ या ई से परे इ या ई हो तो दोनों को ई हो जाता है ; अर्थात्-इ / ई + इ / ई) = ई।
उदाहरण:
मही + इन्द्रः = महीन्द्रः ।
कवि + इन्द्रः = कवीन्द्रः।
गिरि + ईशः = गिरीशः।
लक्ष्मी + ईश्वरः = लक्ष्मीश्वरः।
कवि + ईशः = कवीशः।
परि + ईक्षा = परीक्षा।
प्रति + ईक्षा = प्रतीक्षा।
सुधी + इन्द्र = सुधीन्द्रः।।

Sandhi In Sanskrit Class 10 HBSE

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

(iii) नियम-यदि उ या ऊ से परे उ या ऊ हो तो दोनों के स्थान पर ऊ हो जाता है, अर्थात्-उ/ऊ + 3/ऊ) = ऊ।
उदाहरण:
सु + उक्तम् = सूक्तम्।
सिन्धु + ऊर्मिः = सिन्धूर्मिः ।
लघु + ऊर्मिः = लघुर्मिः।
वधू + उक्तिः = वधूक्तिः ।
वधू + उरू = वधूरू:।
वधू + उत्सवः = वधूत्सवः ।
भू + ऊर्ध्वम् = भूर्ध्वम्।
भानु + उदयः = भानूदयः।
लघु + उपदेशः = लघूपदेशः ।
साधू + उक्तिः = साधूक्तिः।

(iv) नियम-यदि ऋ से परे ऋ हो तो दोनों को ऋ हो जाता है, अर्थात्-ऋ + ऋ = ऋ।
उदाहरण-पितृ + ऋणम् = पिताणम्।
भ्रातृ + ऋद्धिः = भ्रातद्धिः ।

Sandhi Prakaran HBSE 10th Class

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

2. गुण सन्धि-(2012-A) यदि अ या आ से परे कोई अन्य (भिन्न) ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ, ल हो तो दोनों के स्थान में गुण आदेश होता है। संस्कृत व्याकरण के अनुसार ‘ए’, ‘ओ’, ‘अर्’, ‘अल्’–इनकी गुण संज्ञा होती है।
उदाहरण-गण + ईशः = गणेशः,
सूर्य + उदयः = सूर्योदयः,
महा + ऋषिः = महर्षिः।

(i) नियम-यदि अया आ से परे इ या ई आ जाए तो दोनों के स्थान पर ‘ए’ गुण हो जाता है; अर्थात्-अ/आ + इ/ई = ए।
उदाहरण:
देव + इन्द्रः = देवेन्द्रः।
नर + इन्द्रः = नरेन्द्रः।
नर + ईशः = नरेशः।
गज + इन्द्रः = गजेन्द्रः।
पूर्ण + इन्दुः = पूर्णेन्दुः।
महा + इन्द्रः = महेन्द्रः।
महा + ईशः = महेशः।
गण + ईशः = गणेशः।
तथा + इति = तथेति।
लता + इव = लतेव।
परम + ईश्वरः = परमेश्वरः।

(ii) नियम-यदि अया आ से परे उ या ऊ हो तो दोनों के स्थान पर ओ हो जाता है; अर्थात-अ/आ + उ/ ऊ = ओ।
उदाहरण:
हित + उपदेशः = हितोपदेशः।
गङ्गा + उदकम् = गङ्गोदकम्।
देव + उरू: = देवोरू:।
गङ्गा + ऊर्मिः = गङ्गोर्मिः।
चन्द्र + उदयः = चन्द्रोदयः।
महा + उदयः = महोदयः।
तस्य + उपरि = तस्योपरि।
नर + उत्तमः = नरोत्तमः ।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

(iii) नियम-यदि अया आ से परे ऋहो तो दोनों के स्थान पर ‘अर्’ गुण हो जाता है; अर्थात्-अ/आ + ऋ = अर्।
उदाहरण:
परम + ऋषिः = परमर्षिः ।
महा + ऋषिः =महर्षिः।
देव + ऋषिः = देवर्षिः।
कृष्ण + ऋद्धिः = कृष्णर्द्धिः।

(iv) नियम-यदि अ या आ से परे ल हो तो दोनों के स्थान पर ‘अल्’ गुण हो जाता है; अर्थात्-अ/आ + लु = अल।
उदाहरण-माला + लकारः = मालल्कारः।
तव + लृकारः = तवल्कारः।

Sandhi Prakaranam HBSE 10th Class

3. वृद्धि सन्धि-यदि अया आ से परे कोई गुण या वृद्धि स्वर (ए, ओ, ऐ, या औ) हो तो दोनों के स्थान पर वृद्धि आदेश होता है और ऋके स्थान पर आर हो जाता है। संस्कृत व्याकरण के अनुसार ‘ऐ’, ‘औ’, ‘आर्’, इनकी वृद्धि संज्ञा होती है।

(i) नियम-यदि अया आ से परे ए या ऐ हो तो दोनों के स्थान पर ‘ऐ’ वृद्धि हो जाती है; अर्थात्-अ /आ + ए / ऐ = ऐ।
उदाहरण:
एक + एकम् = एकैकम्।
मम + ऐश्वयम् = ममैश्वर्यम्।
मम + एव = ममैव।
तव + एव = तवैव।
च + एव = चैव।
अथ + एव = अथैव।
तव + ऐश्वर्यम् = तवैश्वर्यम्।
सदा + एव = सदैव।
तथा + एव = तथैव।
महा + ऐरावतः = महैरावतः।
कृष्ण+एकत्वम् = कृष्णैकत्वम्।
देव + ऐश्वर्यम् = देवैश्वर्यम्।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

(ii) नियम-यदि अ या आ से परे ओ या औ हो तो दोनों के स्थान पर औ’ वृद्धि हो जाती है; अर्थात्-अ/ आ + ओ/औ = औ।
उदाहरण
मम + ओष्ठः = ममौष्ठः।
महा + औषधिः = महौषधिः।
तव + औषधिः = तवौषधिः।
मम + औषधिः = ममौषधिः ।
नव + औषधिः = नवौषधिः।
जन + औघः = जनौघः।
महा + औदार्यम् = महौदार्यम्।
चित्त + औदार्यम् = चित्तौदार्यम्।
महा + औत्सुक्यम् = महौत्सुक्यम्।
जल + औधः = जलौघः।
तव + औदार्यम् = तवौदार्यम्।
वन + औषधिः = वनौषधिः ।

(iii) नियम-यदि अ या आ से परे ऋहो तो दोनों के स्थान पर ‘आर’ वृद्धि हो जाती है ; अर्थात्-अ/आ + ऋ = आर्।
उदाहरण
प्र + ऋच्छति = प्रार्च्छति।
सुख + ऋतः = सुखार्तः।
पिपासा + ऋतः = पिपासातः ।
दुख + ऋतः = दुखार्तः।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

Sandhi Class 10 Sanskrit HBSE

4. यण् सन्धि-(2012-A) यदि ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ, लु से परे कोई असवर्ण स्वर हो तो वे क्रमशः य,, र, ल में बदल जाते हैं।
उदाहरण
यदि + अपि = यद्यपि
सु + आगतम् = स्वागतम्
पितृ + आज्ञा – पित्राज्ञा।

(i) नियम-यदि इ, ई से परे इ, ई को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो ‘इ’ या ई को यहो जाता है, अर्थात्-इ/ ई – य् + अन्य स्वर अ, आ, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।
उदाहरण
यदि + अपि = यद्यपि।
इति + आदि = इत्यादि।
नदी + अम्बु = नद्यम्बु।
सखी + उक्तम् =सख्युक्तम्।
गोपी + एषा = गोप्येषा।
पति + औषधम् = पत्यौषधम्।
दधि + अत्र = दध्यत्र।
नदी + अस्ति = नद्यस्ति।
अति + आचारः = अत्याचारः।
पिबति + अत्र = पिबत्यत्र।
सुधी+उपास्यः = सुध्युपास्यः।
देवी + अस्ति = देव्यस्ति।
देवी + आगता = देव्यागता।
अति +उत्तमम् = अत्युत्तमम्।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

(ii) नियम-यदि उ, ऊ, से परे उ, ऊ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो ‘उ’ या ‘ऊ’ को व् हो जाता है; अर्थात् उ/ऊ व् + अन्य स्वर अ, आ, इ, ई, ऋ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।
उदाहरण
सु + आगतम् = स्वागतम्।
मधु + अरिः = मध्वरिः।
गुरु + आदि = गुर्वादि।
साधु + आचरणम् = साध्वाचरणम्।
साधु + इष्टम् = साध्विष्टम्।
मधु + इदम् = मध्विदम्।
मधु + ओदनम् = मध्वोदनम्।
साधु + ईहितम् = साध्वीहितम्।
अनु + एषणम् = अन्वेषणम्।
करोतु + इदम् = करोत्विदम्।
वधू + आशयः = वध्वाशयः।
गुरु + आदेशः = गुर्वादेशः।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

(iii) नियम-यदि ‘ऋ’ के बाद ऋ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो ‘ऋ’ को ‘र’ हो जाता है; अर्थात्-ऋ> र् + अन्य स्वर अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
उदाहरण
मातृ + अनुग्रहः = मात्रनुग्रहः।
पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा।
पितृ + अर्थम् = पित्रर्थम्।
पितृ + अभिलाषः = पित्रभिलाषः।
पितृ + ऐश्वर्यम् = पित्रैश्वर्यम्।
मातृ + आदेशः = मात्रादेशः ।

5. अयादि सन्धि-(2012-B) यदि ए, ओ, ऐ, औ से परे कोई स्वर हो तो वे क्रमशः अय्, अव्, आय और आव् में बदल जाते हैं।
उदाहरण
ने + अनम् = नयनम्
गै + अकः = गायक:
भो + अनम् = भवनम्
भौ + उकः = भावुकः।

(i) नियम-‘ए’ से परे कोई स्वर आने पर “ए’ के स्थान पर ‘अय्’ हो जाता है; अर्थात्-ए – अय् + कोई स्वर।
उदाहरण
कवे + ए = कवये।
हरि + ए = हरये।
ने + अनम् = नयनम्।
मुने + ए = मुनये।
शे + अनम् = शयनम्।
जे + अति = जयति।

(ii) नियम-‘ऐ’ से परे कोई स्वर आने पर ‘ऐ’ का ‘आय’ हो जाता है ; अर्थात्-ऐ – आय् + कोई स्वर।
उदाहरण
नै + अकः = नायकः।
गै + अकः = गायकः।
रै + .ऐ = रायै।
रै + ओ: = रायोः ।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

(iii) नियम-‘ओ’ से परे कोई स्वर आने पर ओ के स्थान पर अव् हो जाता है। अर्थात्-ओ > अव् + कोई स्वर।
उदाहरण
साधो + अः = साधवः ।
भो + अति = भवति।
भानो + ए = भानवे।
पो + अनः = पवनः।
विष्णो + ए = विष्णवे।
भो + अनम् = भवनम्।

(iv) नियम-‘औ’ से परे कोई स्वर आने पर औ के स्थान पर आव् हो जाता है; अर्थात् –औ > आव् + कोई स्वर।
उदाहरण
पौ + अकः = पावकः। भौ + इन् = भाविन्।
भौ + उक: = भावुकः। तौ + अवदताम् = ताववदताम्।
नौ + आ = नावा। गौ + औ = गावौ।
नौ + ए = नावे। तौ + आगतौ = तावागतौ।

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6. पूर्वरूप सन्धि नियम-यदि पदान्त ए या ओ से परे ह्रस्व अहो तो ‘अ’ पूर्व के ‘ए’ या ‘ओ’ में मिलकर एकरूप हो जाता है और उस ‘अ’ के स्थान पर ‘5’ चिह्न लगा देते हैं।
उदाहरण
ते + अपि = तेऽपि।
ते + अत्र = तेऽत्र।
कवे + अवेहि = कवेऽवेहि।
ग्रामे + अपि = ग्रामेऽपि।
साधो + अत्र = साधोऽत्र।
सर्वे + अपि = सर्वेऽपि।

7. पररूप सन्धिनियम-‘अ’ वर्ण से अन्त होने वाले उपसर्ग के बाद अगर कोई ऐसी धातु का रूप हो जिसके आदि में ‘ए’ अथवा ‘ओ’ हो तो उस उपसर्ग के ‘अ’ को पररूप हो जाता है अर्थात् ‘ए’ अथवा ‘ओ’ जैसा रूप हो जाता है।
उदाहरण
प्र + एजते = प्रेजते।
उप + ओषति = उपोषति।

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अभ्यास-पुस्तकम् के अभ्यास प्रश्न

1. अधोलिखिते अनुच्छेदे स्थूलपदानाम् सन्धिः सन्धिच्छेदः वा प्रदत्तकोष्ठके क्रियताम्
(अधोलिखित अनुच्छेद में स्थूलपदों में सन्धि अथवा सन्धिच्छेद दिए गए कोष्ठक में कीजिए-)
उत्तरसहितम्-एकदा पाण्डवाग्रजः (पाण्डव + अग्रजः) युधिष्ठिरः वने पिपासा + आकुलः (पिपासाकुल:) अभवत्। सः नकुलं जलम् आनेतुम् आदिशत् । नकुलः अपि तृषार्तः (तृषा + आर्तः) आसीत्। सः किञ्चिद् दूरं गत्वा + एकं (गत्वैकम्) तडागम् अपश्यत्। तडागस्य स्वामी यक्षः तं जलपानात् निवारयन् अवदत्-भोः ! प्रथमं मम प्रश्नस्य + उत्तरं (प्रश्नस्योत्तरम्) देहि। ततः जलं पिब। परं शक्तिदर्पोन्मत्तः (शक्तिदर्प + उन्मत्तः) नकुलः जलम् अपिबत् । पीत्वा + एव (पीत्वैव) मोहं गतः । पश्चात् अन्ये त्रयः भ्रातरः अपि क्रमशः तत्र + आगतः (तत्रागताः)। यक्षः प्रत्येकं
(प्रति + एकम्) जलपानात् निवारितवान्, किन्तु कोऽपि तद्वचनं न + अमन्यत (नामन्यत)। जलापानेन सर्वे + अमुह्यन् (सर्वेऽमुह्यन्) । अन्ते युधिष्ठिरस्योत्तरः (युधिष्ठिरस्य + उत्तरैः) यक्षः अतुष्यत्।
[उत्तर कोष्ठक में दिए गए हैं।

2. उदाहरणम् अनुसृत्य अधोलिखितेषु सन्धिं कुरुत
(उदाहरण के अनुसार अधोलिखित में सन्धि कीजिए-)
यथा- गुरौ + आगते = गुर् + आ + आगते = गुरावागते
उत्तरम्:
(i) द्वौ + अपि = व् + आ + अपि = द्वावपि
(ii) शिशिरवसन्तौ + इह = शिशिरवसन्त् + आ + इह = शिशिरवसन्ताविह
(iii) ते + आसन् = त् + अय् + आसन् = तयासन्
(iv) के + आगच्छन् = क् + अय् + आगच्छन् = कयागच्छन्
(v) हरे + इह = हर् + अय् + इह = हरयिह

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

3. सन्धिच्छेदं कुरुत- (सन्धिच्छेद कीजिए-) ।
यथा-रात्रावागतायाम् = रात्र् + आव् + आगतायाम् = रात्रौ + आगतायाम्
उत्तरम्:
(i) उभावपि = उभ् + आ + अपि = उभौ + अपि
(ii) तावत्र = त् + आव + अत्र = तौ + अत्र
(iii) द्वावपि = व् + आ + अपि = द्वौ + अपि
(iv) कन्यायासनम् = कन्य् + आय् + आसनम् = कन्यायै + आसनम्
(v) मुनावासीने = मुन् + आव् + आसीने = मुनौ + आसीने ।

4. अधोलिखितेषु सन्धिं कुरुत- (अधोलिखित में सन्धि कीजिए-)
उत्तरम्:
(i) उभौ + अपि = उभ् + औ + अपि
= उभ् + आ + अपि = उभावपि
(ii) तौ + अत्र = त् + औ + अत्र
= त् + आ + अत्र = तावत्र
(iii) के + आगच्छन् = क्+ए+ आगच्छन्
= क् + अय् + आगच्छन् = कयागच्छन्
(iv) हरे + इह = हर् + ए + इह
= हर् + अय् + इह = हरयिह
(v) विष्णो + इह = विष्ण + ओ + इह
= विष्ण् + अ + इह = विष्णविह

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

5. सन्धिच्छेदं कुरुत- (सन्धि कीजिए-)
रात्रावागते/रात्रा आगते = रात्रौ + आगते
द्वावपि/द्वा अपि = द्वौ + अपि
मुनावासीने/मुना आसीने = मुनौ + आसीने
कवयेहि/कव एहि = कवे + एहि
नाववतु/ना अवतु = नौ + अवतु

6. अधोलिखितानां सन्धिं कृत्वा ‘य/व्’ वर्णयोः लोपम् विकल्पेन प्रदर्शयत
(अधोलिखिता में सन्धि करके ‘य/व’ वर्गों का विकल्प से लोप दिखाइए-)
उत्तरम्:
(i) द्वौ + अपि = द्वावपि / द्वा अपि (व लोपः)
(ii) कस्मै + इति = कस्मायिति / कस्मा इति (य् लोपः)
(iii) नौ + इह = नद्यायिह / नद्या इह (य् लोपः)
(iv) कवे + इह = कवयिह / कव इह (य लोपः)
(v) हरे + इह = हरयिह / हर इह (य् लोपः)
(vi) प्रभो + एहि = प्रभवेहि / प्रभ एहि (व लोपः)

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7. उदाहरणानुसारं सन्धिं कुरुत- (उदाहरण के अनुसार सन्धि कीजिए-)

पूर्वपदस्य उत्तरपदस्यअन्तिमस्वरः आदिस्वरःसन्धिपदम्
यथा-वने + अस्मिन्ए+वनेऽस्मिन्
हरे + अत्रए+हरेऽत्र
पुस्तके + अत्रए+पुस्तकेऽत्र
देशे + अभावःए+देशेऽभावः
विष्णो + अत्रओ+विष्णोऽत्र
विभो + अस्मान्ओ+विभोऽस्मान्
सेवते + अधुनाए+सेवतेऽधुना
मोदे + अहम्ए+मोदेऽहम्
लज्जते + अयम्ए+लज्जतेऽयम्

8. उदाहरणम् अनुसृत्य सन्धिच्छेदः क्रियताम्- (उदाहरण के अनुसार सन्धिच्छेद कीजिए-)
यथा- केऽपि = के + अपि
(i) गृहेऽपि = गृहे + अपि
(ii) साधोऽत्र = साधो + अत्र
(iii) प्रभोऽनुग्रहः = प्रभो + अनुग्रहः
(iv) त्यागेऽपि = त्यागे + अपि
(v) परिणामेऽमृतम् = परिणामे + अमृतम्
(vi) सर्वेऽस्मिन् = सर्वे + अस्मिन्।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

(ख) व्यंजन-सन्धि (हल् सन्धि) व्यंजन का व्यंजन के साथ अथवा व्यंजन का स्वर के साथ मिलने पर जो ‘विकार’ होता है उस विकार को व्यंजन सन्धि कहते हैं। जैसे
(i) व्यंजन का व्यंजन के साथ – सत् + जनः = सज्जनः ।
(ii) व्यंजन का स्वर के साथ – सत् + आचारः = सदाचारः।
व्यंजनसन्धि के कुछ मुख्य-मुख्य नियम निम्नलिखित हैं

1.श्चुत्व-सन्धि (स्तोश्चुनाश्चुः)-जब ‘स्तु’ अर्थात् सकार और तवर्ग (त् थ् द् ध् न्) से पहले या बाद में ‘श्चु’ अर्थात् शकार और चवर्ग (च् छ् ज् झ् ञ्) आए तो सकार को शकार और तवर्ग के स्थान पर चवर्ग होता है

(क) स् को श्
हरिस् + शेते = हरिश्शेते।
कस् + चित् = कश्चित्।

(ख) तवर्ग को चवर्ग
सत् + चित् = सच्चित्।
सत् + जनः = सज्जनः ।
शत्रून् + जयति = शत्रूञ्जयति।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

2. ष्टुत्व-सन्धि (ष्टुनाष्टुः)-जब ‘स्तु’ से पहले या बाद में ष्टु अर्थात् सकार या तवर्ग से परे षकार या टवर्ग (ट् ठ् ड् ढ् ण्) आए तो सकार को षकार तथा तवर्ग को टवर्ग हो जाता है। जैसे
(क) स् को छ
रामस् + षष्ठः = रामष्षष्ठः ।

(ख) तवर्ग को टवर्गतत् + टीका = तट्टीका।
उद् + डीयते = उड्डीयते।
कृष् + नः = कृष्णः।
विष् + नुः = विष्णुः।

3. जश्त्व-सन्धि (झलां जशोऽन्ते)-(2012-B) पदान्त में स्थित वर्ग के पहले अक्षर क्, च्, ट्, त् प्, के बाद कोई स्वर या वर्ग के तीसरे, चौथे अक्षर या अन्तःस्थ य, र, ल, व् या ह् बाद में हों तो उनके स्थान पर ‘जश्त्व’ हो जाता है। (संस्कृत में ज्, ब, ग, ड्, द् का नाम जश् है।) जैसे
क् को ग्-वाक् + ईशः = वागीशः।
च् को ड्-षट् + एव = षडेव।
प् को ब्-अप् + जः = अब्जः ।
च् को ज्-अच् + अन्तः = अजन्तः।
त् को द्-जगत् + बन्धुः = जगबन्धुः।

4. अनुस्वार-सन्धि (मोऽनुस्वारः)-पद के अन्त में यदि ‘म्’ हो और उसके बाद कोई व्यंजन हो तो ‘म्’ के स्थान में अनुस्वार हो जाता है (बाद में स्वर हो तो अनुस्वार नहीं होता)। जैसे

हरिम् + वन्दे = हरिं वन्दे।।
पुस्तकम् + पठति = पुस्तकं पठति।
(सम् + आचारः = समाचार:-यहाँ स्वर परे है अतः अनुस्वार नहीं हुआ)।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

5. परसवर्ण-सन्धि-(वा पदान्तस्य) (2012-C) पूर्व अनुस्वार से परे वर्ग का कोई भी अक्षर हो तो अनुस्वार को विकल्प से परसवर्ण हो जाता है। परसवर्ण का अर्थ है-उसी वर्ग का पाँचवाँ अक्षर हो जाता है। जैसे
कवर्ग में-किं + खादति = किङ् खादति।
टवर्ग में किं + ढौकसे = किण्ढौकसे।
पवर्ग में-अन्नं + पचामि = अन्नम्पचामि।
चवर्ग में-किं + च = किञ्च।
तवर्ग में अन्नं + ददाति = अन्नन्ददाति।

(ख) अनुस्वार को परसवर्ण-पदान्तरहित ‘म्’ या अनुस्वार के बाद वर्ग के प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ तथा य् र् ल् व् में से कोई भी वर्ण हो तो ‘म्’ को परसवर्ण हो जाता है। जैसे
अम् + कः = अड्कः (कवर्ग का पाँचवाँ अक्षर)
किम् + चन = किञ्चन (चवर्ग का पाँचवाँ अक्षर)
दम् + डितः = दण्डितः (टवर्ग का पाँचवाँ अक्षर)
शाम् + तः = शान्तः (तवर्ग का पाँचवाँ अक्षर)
सम् + पर्कः = सम्पर्कः (पवर्ग का पाँचवाँ अक्षर)

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

(ग)
(i) त > ल्-यदि ‘त्’ से परे ‘ल’ हो तो ‘त्’ को भी ‘ल’ हो जाता है। जैसे
तत् + लयः = तल्लयः, ।
पत् + लवः = पल्लवः, ।
तत् + लीनः = तल्लीनः,।

(ii) यदि ‘न्’ या ‘म्’ से परे ‘ल’ हो तो ‘ल’ या ‘म्’ के स्थान पर सानुनासिक ‘ल’ हो जाता है। जैसे
विद्वान् + लिखति = विद्वाँल्लिखति।
पुम् + लिङ्गः = पुंल्लिङ्गः।

6. ङ, ण, न, को द्वित्व-यदि ह्रस्व स्वर के बाद ङ, ण, न हों और उनके बाद भी कोई स्वर हो तो अ ण, न् को द्वित्व हो जाता है, जैसे
इ-तिङ् + अन्तः = तिङन्तः ।
इ-प्रत्यङ् + आत्मा = प्रत्यङ्डात्मा।
ण्-सुगण + ईशः = सुगण्णीशः ।
न्-तस्मिन् + एव = तस्मिन्नेव।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

7. ‘च’ का आगम-यदि ह्रस्व स्वर से परे ‘छ’ हो तो दोनों के मध्य ‘च’ का आगम हो जाता है। जैसे
वृक्ष + छाया = वृक्षच्छाया।
स्व + छन्दः = स्वच्छन्दः।।

8. रेफ लोप/ विसर्गलोप-यदि रेफ (र्) या विसर्ग (:) के बाद ” पड़ा हो तो पहले ‘र’ या विसर्ग (:) का लोप हो जाता है तथा उससे पूर्व के स्वर को दीर्घ भी हो जाता है; जैसे
निर् + रवः = नीरवः।
गुरुः (गुरुर) + राजते = गुरूराजते।
पुनः (पुनर्) + रमते = पुनारमते।
निर् + रोगः = नीरोगः।
साधुः (साधुर्) + रमते = साधूरमते।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

अभ्यास-पुस्तकम् के अभ्यास प्रश्न

1. स्थूलाक्षरपदानां सन्धिं सन्धिच्छेदं वा कृत्वा कोष्ठकेषु लिखत
(स्थूलाक्षरपदों में सन्धि अथवा सन्धिच्छेद करके कोष्ठकों में लिखिए-)
उत्तरसहितम्-सुभाषितवचनानि नरं सन्मार्ग (सत् + मार्गम्) दर्शयन्ति । यथा सत् + गुरुः (सद्गुरुः) स्वशिष्यं यत् + उपदिशति (यदुपदिशति) शिष्यः तच्चित्ते (तत् + चित्ते) धारयति। सः उपदेश। तत् + जीवनं (तज्जीवनम्)
कल्याणमयम् + कुरुते (कल्याणमयं कुरुते)। एवं सुभाषितानि पठित्वा मानवः प्रेरणां गृह्णाति (प्रेरणाम् + गृह्णाति)। तन्मनसि (तत् + मनसि) उत्साहस्य संचारः भवति। तस्य शरीरं स्वस्थं मनः + च (मनश्च) शिव + सम् + कल्पं (शिवसंकल्पम्)। जायते। ईदृशः मानवः जगदीश्वरे (जगत् + ईश्वरे) विश्वासं कृत्वा स्वकर्तव्येषु तत् + लीन: (तल्लीनः) भवति, जीवनम् + च (जीवनञ्च) सफलम् + करोति (सफलं करोति।) [उत्तर कोष्ठक में दिए गए हैं।]

2. परसवर्णनियमस्य तालिकां पूरयत- (परसवर्ण नियम की तालिका को भरिए-)
उत्तरम्

सन्धिरहितपदानिपूर्वपदस्य अन्तिम पूर्वउत्तरपदस्य पूर्वपूर्वपदस्य स्थाने पज्नम वर्ण:सन्धियुक्तम्विकल्परूपम्
तृणं + चरतिम्→च्ञ्तृणञ्चरतितृणं चरति
धनं + ददातिम्→द्न्धनन्ददातिधनं ददाति
अलं + करोतिम्→क्ङ्अलङ्करोतिअलंकरोति
भोजनं + पचतिम्→प्म्भोजनम्पचतिभोजनं पचति
वृक्षं + परितःम्→प्ण्वृक्षम्परितःवृक्षं परितः
प्रमाणं + टीकतेम्→ट्ण्प्रमाणण्टीकतेप्रमाणं टीकते
सं + जातम्म्→ज्ञ्सञ्जातम्संजातम्

3. सन्धिच्छेदम् कुरुत- (सन्धिच्छेद कीजिए-)
उत्तरम्

उदाहरणानिपायसम्भुङ्क्तेविकल्परूपम्
पायसंभुड्क्तेपायसम् + भुङ्क्तेपायसं भुड्क्ते
भोजनड्करोतिभोजनम् + करोतिभोजनकरोति
सायड्काल:सायम् + कालःसायड्कालः
तृणंज्वलतितृणम् + ज्वलतितृणज्वलति
विद्यान्धारयतिविद्याम् + धारयतिविद्यान्धारयति
धनन्ददातिधनम् + ददातिधनन्ददाति
शत्रुज्जयतिशत्रुम् + जयतिशत्रुञ्जयति

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

4. उदाहरणानुसारं परसवर्णसन्धिं कुरुत- (उदाहरण के अनुसार परसवर्ण सन्धि कीजिए-)
उत्तर:
यथा- राकेशः विद्यालयं गच्छति राकेशः विद्यालयङ्गच्छति।
(i) भारत्याः कोषः संचयात् नश्यति। भारत्याः कोषः सञ्चयात् नश्यति।
(ii) स: एकं भयंकरं दृश्यम् अपश्यत्। सः एकं भयङ्करं दृश्यम् अपश्यत्।
(iii) ये अविद्याम् उपासते, ते अन्धं तमः प्रविशन्ति। ये अविद्याम् उपासते, ते अन्धन्तमः प्रदिशन्ति।
(iv) नृपः रिपुं जयति। नृपः रिपुञ्जयति।
(v) सा नदीं तरति। सा नदीन्तरति।
(vi) संगच्छध्वम्। सङ्गच्छध्वम्।
(vii) अहं वेदं पठामि। अहं वेदम्पठामि।

5. प्रदत्तसूक्तिषु स्थूलाक्षरपदानां सन्धिच्छेदं कुरुत
(प्रदत्त सूक्तियों में स्थूलाक्षर पदों के सन्धिच्छेद कीजिए-)
(1) किड्कुलेन विशालेन विद्याहीनेन जन्तुना।
(2) नैतदस्त्रं मनुष्येषु प्रयोक्तव्यं कथञ्चन।
(3) पापिनाञ्च सदा दुःखम्।
(4) विद्वत्त्वञ्च नृपत्वञ्च नैव तुल्यड्कदाचन।
उत्तरम्:
(1) किम् + कुलेन
(2) कथम् + चन
(3) पापिनाम् + च
(4) नृपत्वम् + च, तुल्यम् + कदाचन।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

6. उदाहरणम् अनुसृत्य अधोलिखिततालिकां पूरयत- (उदाहरण के अनुसार तालिका को भरिए-)
उत्तरसहितम:

पदानिपूर्वपदस्य उत्तरपदस्यअन्तिमवर्णः प्रथमवर्णःशकारात् परवर्णःसन्धिपदम्
तत् + शिवःत्श्तच्छिवः
(i) मत् + शत्रुःत्श्मच्छशत्रुः
(ii) श्रीमत् + शरच्चन्द्रःत्श्श्रीमच्छरच्चन्द्रः
(iii) सत् + शील:त्श्सच्छील:
(iv) उत् + श्रितम्त्श्र्उच्छ्रितम्
(v) त्यागात् + शान्तिःत्श्त्यागाच्छान्ति
(vi) एतत् + शक्यम्त्श्एतच्छक्यम्
(vii) उत् + श्वासःत्श्व्उच्छ्वासः
(viii) हृत् + शान्तिःत्श्हृच्छान्तिः
(ix) तत् + श्रुत्वात्श्र्तच्छ्रुत्वा
(x) सत् + शास्त्रम्त्श्सच्छास्त्रम्

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

7. स्थूलाक्षरपदानां सन्धिच्छेदं कुरुत- (स्थूलाक्षर पदों के सन्धिच्छेद कीजिए-)
(i) पर्वतीयं वातावरणम् स्वच्छम् अस्ति।
(ii) यत्र यत्र तरुच्छाया तत्र तत्र पथिकाः।
(iii) विहगाः गगने स्वच्छन्दम् विहरन्ति।
(iv) एकम् अनुच्छेदं लिखत।
(v) बदरीच्छायायाम् उपविश।
उत्तरम्:
(i) स्व + छम्
(ii) तरु + छाया
(iii) स्व + छन्दम्
(iv) अनु + छेदम्
(v) बदरी + छायायाम्।

8. सन्धिं कुरुत- (सन्धि कीजिए-)
राज + छत्रम् = राजच्छत्रम्
वृक्ष + छाया = वृक्षच्छाया
अनु + छेदः = अनुच्छेदः
वि + छेदः = विच्छेदः
एक + छत्रम् = एकच्छत्रम्
स्व + छः = स्वच्छः
दुष्ट + छलम् = दुष्टच्छलम्
लक्ष्मी + छाया = लक्ष्मीच्छाया/लक्ष्मीछाया
आ + छादनम् = आच्छादनम्

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

9. उदाहरणम् अनुसृत्य सन्धिच्छेदं कुरुत- (उदाहरण के अनुसार सन्धिच्छेद कीजिए-)
यथा-तरुच्छायायाम् तरु + छायायाम्
उत्तरम्:
(i) विच्छेदम् – वि + छेदम्
(ii) परिच्छेदः – परि + छेदः
(iii) अनुच्छेदः – अनु + छेदः
(iv) कुशलच्छात्रः – कुशल + छात्रः
(v) एकच्छत्रम् – एक + छत्रम्

10. सन्धिं कुरुत- (सन्धि कीजिए-)
1. अहं वाक् + मयं पठामि। = अहं वाड्मयं पठामि।
2. वयं जगत् + नाथं प्रणमामः = वयं जगन्नाथं प्रणमामः
3. हे प्रभो ! सत् + मतिं देहि। = हे प्रभो ! मह्यं सन्मतिं देहि।
4. प्रलयकाले सर्वं विश्वम् अप् + मयं भवति। = प्रलयकाले सर्वं विश्वम् अम्मयं भवति।।

11. स्थूलाक्षरपदानां सन्धिं कुरुत- (स्थूलाक्षर पदों में सन्धि कीजिए-)
1. सर्वे व्यवहाराः वाक् + मूलाः सन्ति।
2. एतत् + न रोचते।
3. छात्रः तन्मयः भूत्वा पठति।।
4. सभायां षण्णवतिः नागरिकाः तिष्ठन्ति ।
उत्तरम्:
1. वाक् + मूलाः = वाङ् मूलाः
2. एतत् + न = एतन्न
3. तन्मयः = तत् + मयः
4. षण्णवतिः = षट् + नवतिः ।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

(ग) विसर्ग सन्धि
विसर्ग को स्वर या व्यंजन के योग में जो विकार होता है, उसे विसर्जनीय सन्धि या विसर्ग सन्धि कहते हैं।
1. नियम (षत्व-सन्धि)-यदि विसर्ग से परे (च, छ), (ट्, ठ), (त् , थ्) हों तो विसर्ग को क्रमशः श् ष् स् हो जाते हैं
उदाहरण
रामः + टीकते = रामष्टीकते।
बाल: + थूत्करोति = बालस्थूत्करोति।
रामः + ठक्कुरः = रामष्ठक्कुरः।
पुनः + च = पुनश्च।
पूर्णः + चन्द्रः = पूर्णश्चन्द्रः।
तस्याः + छागः = तस्याश्छागः।
रामः + चलितः = रामश्चलितः।
छावितः + छागः = छावितश्छागः।
नद्याः + तीरम् = नद्यास्तीरम्।
देवः + टीकते = देवष्टीकते।
हंसः + चलति = हंसश्चलति।
रामः + तरति = रामस्तरति।
धार्मिकः + तरति = धार्मिकस्तरति।
रजक: + तेन = रजकस्तेन।
इतः + ततः = इतस्ततः।
वाचः + पतिः = वाचस्पतिः।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

2. नियम (शत्व-सन्धि)-यदि विसर्ग से परे श, ष, स हों तो इसे विकल्प से विसर्ग या क्रमशः श, ष, स् हो जाते हैं।
उदाहरण:
सुप्तः + शिशु = सुप्तः शिशुः या सुप्तश्शिशुः।
रामः + शेते = रामः शेते या रामश्शेते।
कृष्णः + सर्पः = कृष्णः सर्पः या कृष्णस्सर्पः।
प्रथमः + सर्गः = प्रथमः सर्ग या प्रथमस्सर्गः।
रामः + षष्ठः = रामः षष्ठः या रामष्षष्ठः।

3. नियम-प्रत्यय सम्बन्धी ‘क्’ अथवा ‘प्’ से परे होने पर पहले शब्द के विसर्ग को स् हो जाता है।
उदाहरण
यश: + काम्यति = यशस्काम्यति।
यशः + कम् = यशस्कम्।
पयः + पाशम् = पयस्पाशम्।
पयः + कल्पम् = पयस्कल्पम्।
अपवाद-अप्रत्यय सम्बन्धी विसर्ग को इस नियम के अनुसार ‘स्’ नहीं होगा; जैसे–प्रातः कल्पम्।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

4. नियम (रत्वं-सन्धि)-यदि विसर्ग से पूर्व अ, आ को छोड़कर और कोई स्वर हो तथा परे कोई स्वर, वर्ग का तीसरा, या पाँचवाँ वर्ण अथवा य, र, ल, व् ह वर्गों में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग को ‘र’ हो जाता है।
उदाहरण:
कविः + अयम् = कविरयम्।
मातुः + आदेशः = मातुरादेशः ।
हरे: + इदम् = हरेरिदम्।
पितुः + आज्ञा = पितुराज्ञा।
पुनः + अपि = पुनरपि।
मुनिः + अयम् = मुनिरयम्।
गौः + अयम् = गौरयम्।
साधुः + गच्छति = साधुर्गच्छति।
ऋषिः + वदति = ऋषिर्वदति।
कैः + उक्तम् = कैरुक्तम्।
पाशैः + बद्धः = पाशैर्बद्धः।।
निः + धनम् = निर्धनम्।
भानो: + अयम् = भानोरयम्।
भानुः + याति = भानुर्याति।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

5. नियम ( उत्व-सन्धि)-यदि विसर्ग से पूर्व ‘अ’ हो तथा उससे परे भी ‘अ’ हो तो विसर्ग को ‘उ’ हो जाता है और वह ‘उ’ पूर्व वाले ‘अ’ से मिलकर ‘ओ’ हो जाता है। सामने वाले ‘अ’ के स्थान पर ‘इ’ चिह्न लगा दिया जाता है।
उदाहरण:
पुरुषः + अस्ति = पुरुषोऽस्ति।
देवः + अयम् = देवोऽयम्।
नरः + अयम् = नरोऽयम्।
सः + अहम् = सोऽहम्।
वेदः + अधीतः = वेदोऽधीतः ।

6. नियम (विसर्गलोप-सन्धि)-यदि विसर्ग से पूर्व ‘अ’ हो और परे ‘अ’ के अतिरिक्त कोई स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है।
उदाहरण:
नरः + इव = नर इव।
रामः + आयाति = राम आयाति।
चन्द्रः + उदेति = चन्द्र उदेति।
देवः + आगच्छति = देव आगच्छति।
रामः + इच्छति = राम इच्छति।
देवः + एति = देव एति।
कुतः + आगतः = कुत आगताः ।
कः + एषः = क एषः।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

अभ्यास-पुस्तकम् के अभ्यास प्रश्न

1. अधोलिखिते अनुच्छेदे स्थूलपदानाम् सन्धिः सन्धिच्छेदः वा प्रदत्तकोष्ठके क्रियताम्(अधोलिखित अनुच्छेद में स्थूलपदों में सन्धि अथवा सन्धिच्छेद दिए गए कोष्ठक में कीजिए-)
उत्तरसहितम्-क्रीडाणाम् उपयोगितां सर्वे स्वीकुर्वन्ति। एताः + क्रीडाः (एताः क्रीडाः) केवलं शरीरं सबलं न कुर्वन्ति अपि तु मनोऽपि (मनः + अपि)। एताभिः परस्परं (एताभिः परस्परम्) सद्भावस्य वृद्धिर्जायते (वृद्धिः + जायते)। मनः + रजनं (मनोरञ्जनम्) तु भवति एव। बालाः + अपि (बाला अपि), युवानोऽपि (युवानः + अपि) वृद्धा अपि (वृद्धाः + अपि) लाभान्विताः + भवन्ति (लाभान्विता भवन्ति) अतः सर्वैराजीवनम् (सर्वैः + आजीवनं) क्रीडाः क्रीडितुं शक्यन्ते स्वरुचिम् आवश्यकतां च अनुसृत्य क्रीडाः + चयनीयाः (क्रीडाश्चयनीयाः)। [उत्तर कोष्ठक में दिए गए हैं।]

2. अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं कुरुत- (अधोलिखित पदों मे सन्धि कीजिए-)
उत्तरम्:

सः + इच्छतिसः + इ सइच्छति।
एषः + उत्तिष्ठतिएषः + उएष उत्तिष्ठति।
एषः + ईक्षतेएषः + ईएष ईक्षते।
सः + गच्छतिसः + ग्स गच्छति।
एषः + विचरतिएषः + व्एष विचरति।
एषः + नमतिएषः + न्एष नमति।

3. उदाहरणम् अनुसृत्य अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं कुरुत
(उदाहरण के अनुसार अधोलिखित पदों मे सन्धि कीजिए-)
उत्तरम्:

यथा-सः + अपतत्सः + असोऽपतत्।
एषः + अधावत्एषः + अएषोऽधावत्
सः + अत्रसः + असोऽत्र
एषः + अत्रएषः + अएषोऽत्र
सः + अपिसः + असोऽपि
एषः + अपिएषः + अएषोऽपि
सः + अतीवसः + असोऽतीव
एषः + अतीवएषः + अएषोऽतीव

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4. उदाहरणम् अनुसृत्य अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं कुरुत
(उदाहरण के अनुसार अधोलिखित पदों मे सन्धि कीजिए-)
उत्तरम्
यथा-रामः + आगच्छति – अ: + आ = राम आगच्छति।
कृष्णः + एति – अः + ए = कृष्ण एति।
रहीमः + इच्छति – अ: + इ = रहीम इच्छति।
मृग + इति – अ: + इ = मृग इति।
सिंहः + इदानीम् – अ: + इ = सिंह इदानीम्।
गजः + उत्सहते – अः + उ = गज उत्सहते
बालः + उतिष्ठति – अः + उ = बाल उत्तिष्ठति

5. सन्धिं कुरुत- (सन्धि कीजिए-)
उत्तरम
बालः + उपविशति = बाल उपविशति
नृपः + आगच्छति = नृप आगच्छति
राम : + ‘आस्ते = राम आस्ते
सेवकः : इच्छति = सेवक इच्छति
देवः + ईक्षते = देव ईक्षते
मूषक: + आहरति = मूषक आहरति

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6. सन्धिं कुरुत- (सन्धि कीजिए-)
उत्तरम्
(i) बालः + अस्ति = बालोऽस्ति
(ii) नृपः + अतीव = नृपोऽतीव
(iii) मृगः + अपि = मृगोऽपि
(iv) सिंहः + अत्र = सिंहोऽत्र
(v). चन्द्रः + अयम् = चन्द्रोऽयम्
(vi) पुरुषः + अपि = पुरुषोऽपि

7. उदाहरणम् अनुसृत्य अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं कुरुत
(उदाहरण के अनुसार अधोलिखित पदों मे सन्धि कीजिए-)
यथा-
(i) रामः + अयम् – अ: + अ – रामोऽयम् उत्तरम्
(ii) कृष्णः + अस्ति – अः + अ – कृष्णोऽस्ति
(iii) सिंहः + गर्जति – अः + ग् – सिंहो गर्जति
(iv) मयूरः + नृत्यति – अः + ग्- मयूरो नृत्यति
(v) गजः + धावति – अः + ध् – गजो धावति
(vi) तरुणः + नमति – अ: + न् – तरुणो नमति
(vii) वृक्षः + वर्धते – अः + व् – वृक्षो वर्धते
(viii) गोपालः + हसति – अः + ह् – गोपालो हसति
(ix) कः + अपि – अ: + अ – कोऽपि
(x) ‘ वृद्धः + अत्र – अः + अ – वृद्धोऽत्र

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

8. उदाहरणम् अनुसृत्य अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं कुरुत-.
(उदाहरण के अनुसार अधोलिखित पदों मे सन्धि कीजिए-)
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran sandhi prakaranam img-1

9. सन्धिच्छेदं कुरुत- (सन्धि कीजिए-)
उत्तरम्:
(i) मृग इति = मृगः + अस्ति
(ii) रामोऽस्ति = रामः + अस्ति
(iii) सोऽतीव = स: + अतीव
(iv) एषोऽस्मि = एष: + अस्मि
(v) स आगच्छति = सः + आगच्छति
(vi) मेघो गर्जति = मेघः + गर्जति
(vii) एष रहीमः = एषः + रहीमः
(viii) लता वर्धन्ते = लताः + वर्धन्ते
(ix) वृद्धा हसन्ति = वृद्धाः + हसन्ति
(x) बालिका नमन्ति = बालिका: + नमन्ति

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

10. उदाहरणम् अनुसृत्य अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं कुरुत
(उदाहरण के अनुसार अधोलिखित पदों मे सन्धि कीजिए-)
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran sandhi prakaranam img-2

11. उदाहरणम् अनुसृत्य अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं कुरुत
(उदाहरण के अनुसार अधोलिखित पदों मे सन्धि कीजिए-)
यथा- प्रातः + गच्छति = प्रातर्गच्छति।
प्रातः + उदेति = प्रातरुदेति।
पुनः + उपविशति = पुनरुपविशति
पुनः + आस्ते = पुनरास्ते
प्रातः + उत्तिष्ठति = प्रातरुत्तिष्ठति
प्रातः + वन्दनीयः = प्रातर्वन्दनीयः

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

12. उदाहरणम् अनुसृत्य अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं कुरुत
(उदाहरण के अनुसार अधोलिखित पदों मे सन्धि कीजिए-)
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran sandhi prakaranam img-3

मिश्रितप्रश्नाः

1.अधोलिखितपद्येषु स्थूलपदानां सन्धिच्छेदं कुरुत
(अधोलिखित पद्यों में स्थूलपदों के सन्धिच्छेद कीजिए-)
उत्तरम्:
(i) अर्थो हि कन्या परकीय एव।
उत्तरम्:
अर्थः + हि । परकीयः + एव।

(ii) अर्थस्य पुरुषो दासो दासस्त्वर्थी न कस्यचित्। अतोऽर्थाय यतेतैव सर्वदा यत्नमास्थितः ।
उत्तरम्:
पुरुषः + दासः + दासः + तु + अर्थी । अतः + अर्थाय, यतते + एव।

(iii) प्राप्तव्यमर्थं लभते मनुष्यो देवोऽपि तं लङ्ययितुं न शक्तः।
उत्तरम्:
मनुष्यः + देवः + अपि। तस्मात् न शोचामि न विस्मयो मे यदस्मदीयं न हि तत्परेषाम्। उत्तरम्-विस्मयः + मे + यत् + अस्मदीयम्।

(iv) आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
उत्तरम्:
आलस्यम् + हि। शरीरस्थः + महान् ।

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2. सन्धिं कुरुत – (सन्धि कीजिए-)
(i) बालः + हसति = ……………………………….
(ii) · बालाः + हसन्ति = ……………………………….
(iii) मृगः + धावति = ……………………………….
(iv) मृगाः + धावन्ति = ……………………………….
(v) सिंहः + गर्जति = ……………………………….
(vi) सिंहाः + गर्जन्ति = ……………………………….
(vii) वृक्षः + वर्धते = ……………………………….
(viii) वृक्षाः + वर्धन्ते = ……………………………….
(ix) पादपः + फलति = ……………………………….
(x) पादपाः + फलन्ति = ……………………………….
(xi) बालकः + इच्छति = ……………………………….
(xii) बालकाः + इच्छन्ति = ……………………………….
(xiii) मृगः + इति = ……………………………….
(xiv) मृगाः + इति = ……………………………….
उत्तरम्:
(i) बालः + हसति = बालो हसति
(ii) बालाः + हसन्ति = बाला हसन्ति
(iii) मृगः + धावति = मृगो धावति
(iv) मृगाः + धावन्ति = मृगा धावन्ति
(v) सिंहः + गर्जति = सिंहो गर्जति
(vi) सिंहाः + गर्जन्ति = सिंहा गर्जन्ति
(vii) वृक्षः + वर्धते = वृक्षो वर्धते
(viii) वृक्षाः + वर्धन्ते = वृक्षा वर्धन्ते
(ix) पादपः + फलति = पादपः फलति
(x) पादपाः + फलन्ति = पादपाः फलन्ति
(xi) बालकः + इच्छति = बालक इच्छति
(xii) बालकाः + इच्छन्ति = बालका इच्छन्ति
(xiii) मृगः + इति = मृग इति
(xiv) मृगाः + इति = मृगा इति

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परीक्षा में प्रष्टव्य सन्धि-विषयक प्रश्न
I.
(क) स्वरसन्धेः अथवा गुणसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम्:
स्वरसन्धि-दो अत्यन्त निकट स्वरों के मिलने से ध्वनि में जो विकार उत्पन्न होता है उसे अच् सन्धि या स्वर सन्धि कहते हैं। यह दीर्घ सन्धि, गुण सन्धि आदि आठ प्रकार की होती है।
उदाहरण:
विद्या + आलयः = विद्यालयः
नर + ईशः = नरेशः।
सूर्य + उदयः = सूर्योदयः।

अथवा
गुणसन्धि-यदि अ या आ से परे कोई अन्य ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ, लु स्वर हों तो उन दोनों के स्थान पर क्रमश: गुण आदेश अर्थात् अ + इ = ए, अ + उ = ओ, अ + ऋ = अर, अ + ल = अल् हो जाता है। उदाहरण-परम + ईश्वरः = परमेश्वरः, सूर्य + उदयः = सूर्योदयः, महा + ऋषिः = महर्षिः।

(ख) अधोलिखितेषु त्रिषु एव सन्धिं सन्धिविच्छेदं वा कृत्वा सन्धिनाम अपि लिखत
तच्छ्रुत्वा, सरः + तीरम्, प्रोक्तम्, न + अहम्, प्रिय + छात्राः ।
उत्तराणि:
तच्छ्रुत्वा = तत् + श्रुत्वा (श्चुत्व सन्धि)
सरः + तीरम् = सरस्तीरम् (विसर्गसन्धि)
प्रोक्तम् = प्र + उक्तम् (गुण सन्धि)
न + अहम् = नाहम् (दीर्घ सन्धि)
प्रिय + छात्राः = प्रियच्छात्रा (चकार आगम सन्धि)

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II.
(क) व्यञ्जनसन्धेः अथवा अयादिसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम्:
व्यंजनसन्धि-व्यंजन का व्यंजन के साथ अथवा व्यंजन का स्वर के साथ मिलने पर जो ‘विकार’ होता है उस विकार को व्यंजन सन्धि कहते हैं। जैसे
सत् + जनः = सज्जनः।
सत् + आचारः = सदाचारः।
अयादि सन्धि:
यदि ए, ओ, ऐ, औ से परे कोई स्वर हो तो वे क्रमशः अय, अव, आय और आव् में बदल जाते हैं। जैसे-कवे + ए = कवये। शे + अनम् = शयनम्।

(ख) अधोलिखितेषु त्रिषु एव सन्धिं सन्धिविच्छेदं वा कृत्वा सन्धिनाम अपि लिखत
जलागमः, निर् + रोगः, नाववतु, रामः + च, स्वच्छः ।
उत्तरम्:
जलागमः = जल + आगमः (दीर्घसन्धिः )
निर् + रोगः = नीरोगः (विसर्गसन्धिः )
नाववतु = नौ + अवतु (अयादिसन्धिः)
रामः + च = रामश्च (श्चुत्वसन्धिः)
स्वच्छः = सु + अच्छः (यण्सन्धि)

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III.
(क) विसर्गसन्धेः अथवा दीर्घसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तराणि:
विसर्ग सन्धि-विसर्ग को स्वर या व्यंजन के योग में जो विकार होता है, उसे विसर्जनीय सन्धि या विसर्ग सन्धि कहते हैं। जैसे-रामः + टीकते = रामष्टीकते। मनः + रोगः = मनोरोगः। दीर्घ सन्धि-हस्व या दीर्घ अ, इ, उ अथवा ऋ से परे सवर्ण ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ अथवा ऋ होने पर दोनों के स्थानों में दीर्घ वर्ण हो जाता है जैसे
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी। .
च + अस्ति = चास्ति।

(ख) अधोलिखितेषु त्रिषु एव सन्धिं सन्धिविच्छेदं वा कृत्वा सन्धिनाम अपि लिखत
यद्येवम्, सर्वे + अत्र, तच्छत्रुः, द्वौ + अपि, सदाचारः।
उत्तरम्:
यद्येवम् = यदि + एवम् (यण् सन्धिः ) ।
सर्वे + अत्र = सर्वेऽत्र (पूर्वरूपसन्धिः )
द्वौ + अपि = द्वावपि (अयादि सन्धिः )
सदाचारः = सत् + आचारः (जश्त्व सन्धिः )

IV. जश्त्वसन्धेः अथवा उत्वसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम्:
जश्त्व-सन्धि (झलां जशोऽन्ते)-पदान्त में स्थित वर्ग के पहले अक्षर क, च, ट, तु, प् के बाद कोई स्वर या वर्ग के तीसरे, चौथे अक्षर या अन्त:स्थ य, र, ल, व् या ह बाद में हों तो उनके स्थान पर ‘जश्त्व’ हो जाता है। (संस्कृत में ज, ब, ग, ड्, द् का नाम जश् है।) जैसे
क् को ग्-वाक + ईशः = वागीशः ।
च् को ज्-अच् + अन्तः = अजन्तः ।
च को ड्-षट् + ख
त् को द्-जगत् + बंधुः = जगबन्धु ।
प् को ब्-अप् + जः = अब्जः ।

अथवा
उत्व-सन्धियदि विसर्ग से पूर्व ‘अ’ हो तथा उससे परे भी ‘अ’ हो तो विसर्ग को ‘उ’ हो जाता है और वह ‘उ’ पूर्व वाले ‘अ’ से मिलकर ‘ओ’ हो जाता है। सामने वाले ‘अ’ के स्थान पर ‘इ’ चिह्न लगा दिया जाता है।
उदाहरण:
पुरुषः + अस्ति = पुरुषोऽस्ति।
देवः + अयम् = देवोऽयम्।
नरः + अयम् = नरोऽयम्।
स: + अहम् = सोऽहम्।
वेद : + अधीतः = वेदोऽधीतः।

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V. सत्वसन्धेः अथवा जश्त्वसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम्:
सत्वसन्धि–यदि विसर्ग से परे ‘त्’ या ‘थ्’ वर्ण हो तो विसर्ग को ‘स्’ हो जाता है; जैसे
रामः + तरति = रामस्तरति
नद्याः + तीरम् = नद्यास्तीरम् ।
बाल: + थूत्करोति = बालस्थूत्करोति
यदि ‘क्’ या ‘प्’ वर्ण से पूर्व कोई प्रत्यय सम्बन्धी विसर्ग पड़ा हो तो भी विसर्ग को ‘स्’ हो जाता है।
उदाहरण
यशः + काम्यति = यशस्काम्यति।
यशः + कम् = यशस्कम्।
पयः + पाशम् = पयस्पाशम्।
पयः + कल्पम् = पयस्कल्पम्।

VI. रलोपसन्धेः अथवा सत्वसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तर:
म्रलोप सन्धि
यदि रेफ (र) या विसर्ग-(:) के बाद ‘र’ पड़ा हो तो पहले ‘र’ या विसर्ग (:) का लोप हो जाता है तथा उससे पूर्व के स्वर को दीर्घ भी हो जाता है। जैसे
निर् + रवः = नीरवः।
निर् + रोगः = नीरोगः
गुरुः (गुरुर) + राजते = गुरूराजते।
साधुः (साधुर्) + रमते = साधूरमते।
पुनः (पुनर्) + रमते = पुनारमते।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

अभ्यासार्थ सन्धिविषयक बहुविकल्पीय प्रश्न

1. अधोलिखित-प्रश्नानां प्रदत्तोत्तरविकल्पेषु शुद्धं विकल्पं विचित्य लिखत-
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर के लिए दिए गए विकल्पों में से शुद्ध विकल्प चुनकर लिखिए-)
(क) ‘सञ्चयः’ पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति
(i) सम् + चयः
(ii) सम + चयः
(iii) सं + चयः
(iv) सब + चयः।।
उत्तरम्:
(i) सम् + चयः

(ख) ‘शिशवः + तु’ अत्र सन्धियुक्तपदम्
(i) शिशवष्टु
(ii) शिशवष्तु
(iii) शिशवर्तु
(iv) शिशवस्तु।
उत्तरम्:
(iv) शिशवस्तु

(ग) ‘यथेष्टम्’ पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति
(i) यथा+ एष्टम्
(ii) यथा+ इष्टम्
(iii) यथे+ ष्टम्
(iv) यथेस्+ तम्
उत्तरम्:
(i) यथा+ इष्टम्

(घ) ‘प्रति + आवर्तनम्’ अत्र सन्धियुक्तपदम्
(i) प्रतियावर्तनम्
(ii) प्रत्यवर्तनम्
(ii) प्रत्यावर्तनम्
(iv) प्रत्यार्वतनम्।
उत्तरम्:
(iii) प्रत्यावर्तनम्

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

(ङ) ‘कदाचिच्च’ पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति
(i) कदाचित् + च
(ii) कदाचिच् + च
(iii) कदा + चिच्च
(iv) कदाचित + च।
उत्तरम्:
(i) कदाचित् + च।

(च) ‘प्राणेभ्यः + अपि’ अत्र सन्धियुक्तपदम्
(i) प्राणेभ्योरपि
(ii) प्राणेभ्योऽअपि
(iii) प्राणेभ्योष्वपि
(iv) प्राणेभ्योऽपि।
उत्तरम्:
(iv) प्राणेभ्योऽपि।

(छ) ‘अल्पैरपि’ पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति
(i) अल्पै + रपि
(ii) अल्पः + अपि
(iii) अल्पैः + अपि
(iv) अल्प + अपि।
उत्तरम्:
(iii) अल्पैः + अपि।

(ज) ‘तव + उत्तमा’ अत्र सन्धियुक्तपदम्
(i) तवुत्तमा
(ii) तवोत्तमा
(iii) तवौत्तमा
(iv) तवेत्तमा।
उत्तरम्:
(ii) तवोत्तमा।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम्

(झ) ‘अभ्यागतम्’ पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति
(i) अभि + आगतम्
(ii) अभ्या + आगतम्
(iii) अभि + यागतम्
(iv) अभी + आगतम्।
उत्तरम्:
(i) अभि + आगतम्।

(अ) ‘लीलया + एव’ अत्र सन्धियुक्तपदम्
(i) लीलयौव
(ii) लीलयैव
(iii) लीलयाव
(iv) लीलयेव।
उत्तरम्:
(ii) लीलयैव।

(ट) ‘श्रुत्वैव’ पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति
(i) श्रुत्वा + इव
(ii) श्रुत्वा + एव
(iii) श्रुत् + एव
(iv) श्रुत् + वैव
उत्तरम्:
(ii) श्रुत्वा + एव।

(ठ) ‘दोष + उपेतम्।’ अत्र सन्धियुक्तपदम्
(i) दोषेपेतम्
(ii) दोषोपेतम्
(iii) दोषुपेतम्
(iv) दोषोपेतम्।
उत्तरम्:
(iv) दोषोपेतम्।

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HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

Haryana State Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Samas Prakaran समास प्रकरणम् Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

समास प्रकरणम् HBSE 10th Class

1. सन्धि और समास में क्या अन्तर है ?
उत्तरम्:
परस्पर वर्णों के मेल को ‘सन्धि’ कहा जाता है और अर्थ के अनुसार पदों के मेल को ‘समास’ कहा जाता है।
यथा-तस्य अर्थः = तस्यार्थः (सवर्णदीर्घ-सन्धिः)
तस्य अर्थः = तदर्थः (षष्ठी-तत्पुरुषसमासः)

2. समास-शब्द का क्या तात्पर्य है ?
अथवा
‘समास’ किसे कहते है ?
उत्तरम्:
अर्थ के अनुसार दो या दो से अधिक पदों को आपस में जोड़ने को ‘समास’ कहते हैं।
यथा- राज्ञः पुरुषः-राजपुरुषः (षष्ठी तत्पुरुषः)

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

Samas In Sanskrit Class 10 HBSE

3. कितने पदों में समास किया जा सकता है ?
उत्तरम्:
समास दो या दो से अधिक पदों में किया जा सकता है।
यथा- रघोः वंशः – रघुवंशः (षष्ठी-तत्पुरुषः)
रघोः वंशे जातः — रघुवंशजातः (षष्ठी, सप्तमी-तत्पुरुषः)

4. समस्तपदों को अलग-अलग करने को क्या कहा जाता है ?
अथवा
समास में विग्रह से क्या तात्पर्य है ? अर्थ के अनुसार समस्तपदों को अलग करना ‘विग्रह’ कहलाता है। यथा-कार्यकुशलः (समस्तपदम्), कार्येषु कुशलः (विग्रहः)

5. ‘समस्तपदम्’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तरम्-अर्थ के अनुसार जब दो या दो से अधिक पदों में समास हो जाता है, तब उस एक पद को ही ‘समस्तपद’ कहा जाता है।
यथा
विग्रहः – समस्तपदम् – समासनाम
दिनं दिनं – प्रतिदिनम् – अव्ययीभाव-समासः

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

Sanskrit Samas Class 10 HBSE

6. समास में प्रथम और द्वितीय पद को क्या कहा जा सकता है ?
उत्तरम्:
समास में प्रथम पद को पूर्वपद तथा द्वितीय पद को उत्तरपद कहा जाता है। यथा-वृक्षस्य मूलम् – वृक्षस्य (पूर्वपदम्) मूलम् (उत्तरपदम्)

7. प्रमुख समासों के नाम लिखिए।
अथवा
समास के प्रमुख भेदों के नाम लिखिए। उत्तरम्-समासों के प्रमुख भेद चार हैं
(i) अव्ययीभाव-समासः
(ii) तत्पुरुष-समास:
(iii) बहुव्रीहि-समासः
(iv) द्वन्द्व-समासः

Class 10 Sanskrit Samas HBSE

8. तत्पुरुष-समास की सोदाहरण परिभाषा लिखिए।
अथवा
उत्तरपदप्रधान समास कौन-सा है ?
उत्तरम्-दो पदों के समास में जब अर्थ की दृष्टि से उत्तरपद प्रधान होता है, तब वह तत्पुरुष समास कहलाता
यथा– रामस्य सेवकः-रामसेवकः (षष्ठी-तत्पुरुषः) अर्थदृष्ट्या अत्र उत्तरपदस्य ‘सेवकस्य’ प्रधानता अस्ति।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

Samas Sanskrit Class 10 HBSE

9. तत्पुरुष-समास के प्रमुख भेद कौन से हैं ? नाम लिखिए।
उत्तरम्:
तत्पुरुष समास के प्रमुख भेद छः हैं
(i) विभक्ति-तत्पुरुषः
(ii) अलुक्-विभक्तितत्पुरुषः
(iii) उपपद-तत्पुरुषः
(iv) नञ्-तत्पुरुषः
(v) द्विगु-तत्पुरुषः
(vi) कर्मधारय-तत्पुरुषः

10. विभक्ति-तत्पुरुष के कितने भेद हैं ? नाम लिखिए।
उत्तरम्-विभक्ति तत्पुरुष के छः भेद होते हैं
1. द्वितीया-तत्पुरुषः
2. तृतीया-तत्पुरुषः
3. चतुर्थी-तत्पुरुषः
4. पञ्चमी-तत्पुरुषः
5. षष्ठी-तत्पुरुषः
6. सप्तमी-तत्पुरुषः

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

Sanskrit Samas Questions Class 10 HBSE

11. द्वितीया-विभक्ति वाले पद का समास किन-किन शब्दों के साथ होता है ?
उत्तरम्:
द्वितीया विभक्ति वाले पद का समास श्रित, अतीत, पतित, गत, प्राप्त, आपन्न, गमि, बुभुक्ष शब्दों के साथ होता है।) यथा- कृष्णं श्रितः – कृष्णश्रितः, नरकं पतितः-नरकपतितः।

12. तृतीया-विभक्ति वाले पद का समास किन-किन शब्दों के साथ होता है ?
उत्तरम्:
तृतीया विभक्ति वाले पद का समास पूर्व, सदृश, सम, ऊन, कलह, निपुण, मिश्र, श्लक्ष्ण शब्दों तथा क्त (त) प्रत्यय से बने शब्दों के साथ होता है।
यथा-मासेन पूर्वः – मासपूर्वः
मात्रा सदृशः — मातृसदृशः
नखैः भिन्नः – नखभिन्नः
खड्गेन हतः – खड्गहतः

13. चतुर्थी-विभक्ति वाले पद का समास किन-किन शब्दों के साथ होता है ?
उत्तरम्:
चतुर्थी विभक्ति वाले पद का समास अर्थ, बलि, हित, सुख, हित शब्दों के साथ तथा तादर्थ्य (वहीं वस्तु । उसी के लिए) में होता है।
यथा-कुण्डलाय हिरण्यम्-कुण्डलहिरण्यम् (तादर्थ्य)
यूपाय दारु – यूपदारु (तादर्थ्य)
भूतेभ्यः बलिः – भूतबलिः

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

Samas Class 10 Sanskrit HBSE

14. पञ्चमी-विभक्ति वाले पद का समास किन-किन शब्दों के साथ होता है ?
उत्तरम्:
पञ्चमी विभक्ति वाले पद का समास मुक्त, पतित, भय, भीति, भी शब्दों के साथ होता है।
यथा-व्याघ्रात् भीतः – व्याघ्रभीतः
दुःखात् मुक्तः – दुःखमुक्तः
सिंहात् भीतिः – सिंहभीति:

15. षष्ठी-विभक्ति वाले पद का समास किन-किन शब्दों के साथ होता है ?
उत्तरम्:
षष्ठी विभक्ति वाले पद का समास अन्य विभक्ति वाले पदों के साथ होता है।
यथा-राज्ञः पुरुषः -राजपुरुषः
प्रजायाः पालकः -प्रजापालकः
रामस्य सेवकः – रामसेवकः

16. सप्तमी-विभक्ति वाले पद का समास किन-किन शब्दों के साथ होता है ?
उत्तरम्:
कुशल, प्रवीण, निपुण, सिद्ध, शुष्क, पक्व आदि शब्दों के साथ सप्तमी विभक्ति वाले पद का समास होता
यथा-कार्येषु कुशल:-कार्यकुशलः
शास्त्रेषु निपुणः – शास्त्रनिपुणः
आतपे शुष्कः – आतपशुष्कः

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

Sanskrit Class 10 Samas HBSE

17. नञ्-तत्पुरुष के कोई तीन उदाहरण लिखो।
उत्तरम्:
न उचितम् अनुचितम्
न ऋतम् अनृतम् ।
न सत्यम् असत्यम्

18. उपपद-तत्पुरुष के कोई तीन उदाहरण लिखो।
उत्तरम्:
नीरं ददाति इति नीरदः
जलं ददाति इति जलदः
मधु पिबति इति मधुपः

10th Class Samas HBSE

19. द्वन्द्वसमास की परिभाषा सोदाहरण लिखिए।
उत्तरम्:
‘च’ के अर्थ में जब दो या दो अधिक पदों का समास होता है तब उसे द्वन्द्व समास कहते हैं।
यथा-रामः च लक्ष्मणः च रामलक्ष्मणौ
माता च पिता च मातापितरौ।

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20. द्वन्द्व समास के कितने भेद हैं ? नाम लिखिए।
उत्तरम्:
द्वन्द्व समास के तीन भेद होते हैं
(i) इतरेतर-द्वन्द्व-समास:
(ii) एकशेष-द्वन्द्व-समासः
(iii) समाहारद्वन्द्व-समासः

21. इतरेतरद्वन्द्व-समास के कोई तीन उदाहरण लिखो।
उत्तरम्:
धर्मः च अर्थ: च – धर्मार्थों
माता च पिता च-मातापितरौ
युधिष्ठिरः च भीमः च अर्जुनः-युधिष्ठिरभीमार्जुनाः

Samas In Sanskrit HBSE 10th Class

22. समाहारद्वन्द्व-समास के कोई तीन उदाहरण लिखो।
उत्तरम्:
पाणी च पादौ च तेषां समाहारः पाणिपादम्
अहिः च नकुलः च तयोः समाहारः अहिनकुलम्
शीतं च उष्णं च तयोः समाहारः शीतोष्णम्।

23. एकशेषद्वन्द्व-समास के कोई तीन उदाहरण लिखो।
उत्तरम्-माता च पिता च – पितरौ
वृक्षः च वृक्षः च वृक्षः च – वृक्षाः
भ्राता च भगिनी च भ्रातरौ।

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24 द्विगुसमास किसे कहते हैं ?
उत्तरम्:
जब समास में पूर्वपद संख्यावाचक होता है, तब वहाँ द्विगु समास होता है।
यथा-अष्टानाम् अध्यायानाम् समाहारः-अष्टाध्यायी
पञ्चानां तन्त्राणां समाहारः पञ्चतन्त्रम्,
त्रयाणां लोकानां समाहार: त्रिलोकम्।

25. बहुब्रीहिसमास किसे कहते हैं ?
अथवा ‘अन्यपदप्रधानः’ समास कौन-सा है ?
उत्तरम्-बहुव्रीहि समास अन्यपद प्रधान समास होता है। क्योंकि इस समास में समस्तपद दूसरे पदार्थों का विशेषण बन जाता है।
यथा-नीलः कण्ठः यस्य सः -नीलकण्ठः (शिवः)
विद्यां धारयति या सा-विद्याधारिणी (सरस्वती)
पीतानि अम्बराणि यस्य सः -पीताम्बरः (विष्णुः)

26. अव्ययीभावसमास में कौन-सा पद प्रधान होता है ?
उत्तरम्:
अव्ययीभाव समास में पूर्वपद प्रधान होता है और वह पूर्वपद कोई अव्ययपद होता है।
यथा- वृक्षस्य समीपम्-उपवृक्षम्
शक्तिम् अनतिक्रम्य-यथाशक्ति
जलस्य अभाव:- निर्जलम।

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27. किस समास का पूर्वपदअव्ययपद होता है ?
उत्तरम्:
अव्ययीभाव समास का पूर्वपद अव्ययीपद होता है।
यथा- मक्षिकाणाम् अभावः – निर्मक्षिकम्,
रूपस्य योग्यम् – यथायोग्यम्।

28. किस समास का समस्तपदअव्ययपद होता है ?
उत्तरम्:
अव्ययीभाव समास का समस्तपद अव्ययपद होता है।
यथा-रथस्य पश्चात्-अनुरथम्
ग्रामं ग्रामम्-प्रतिग्रामम्।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

29. अव्ययीभाव-समास किन-किन अर्थों में होता है ?
उत्तरम्:
समीप आदि अर्थों में अव्ययीभाव समास होता है। इसका पूर्वपद कोई अव्यय तथा अर्थ की दृष्टि से प्रधान होता है।
यथा-कृष्णस्य समीपम् – उपकृष्णम्
समयम् अनतिक्रम्य – यथासमयम्।

30. कर्मधारय-समास के कोई तीन उदाहरण लिखो।
उत्तरम्:
मधुराणि फलानि.- मधुरफलानि
नीलम् अम्बरम् – नीलाम्बरम्
नीलं कमलम् – नीलकमलम्।

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अभ्यास-पुस्तकम् के अभ्यास प्रश्न

1. निम्नलिखितानि वाक्यानि पठित्वा उदाहरणानुसारं वाक्येषु स्थूलशब्दाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि प्रदत्तरिक्तस्थानेषु लिखत-(निम्नलिखित वाक्यों को पढ़कर उदाहरण के अनुसार वाक्यों में स्थूलशब्द पर आधारित प्रश्नों के उत्तर प्रदत्त रिक्तस्थानों में लिखिए-)
उत्तराणि:
यथा
(क) जनाः देशभक्तं पूजयन्ति।
(1) जनाः किं पूजयन्ति ?
(2) जनाः कस्य भक्तं पूजयन्ति ?
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran samas prakaranm img-1
जनाः देशभक्तं पूजयन्ति।
जनाः देशस्य भक्तं पूजयन्ति।

(ख) वृक्षारूढाः वानराः कूर्दन्ते।
(1) कीदृशाः वानराः कूर्दन्ते ? ।
(2) कम् आरूढाः वानराः कूर्दन्ते ?
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran samas prakaranm img-2
वृक्षारूढा: वानराः कूर्दन्ते।
वृक्षम् आरूढाः वानराः कूर्दन्ते।

(ग) वृक्षपतितानि आम्राणि पक्वानि।
(1) कानि आम्राणि पक्वानि ?
(2) कस्मात् पतितानि आम्राणि पक्वानि ? |
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran samas prakaranm img-3
वृक्षपतितानि आम्राणि पक्वानि।
वृक्षात् पतितानि आम्राणि पक्वानि।

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(घ) बालकाः क्रीडाक्षेत्रे क्रीडन्ति।
(1) बालकाः कुत्र क्रीडन्ति ?
(2) बालकाः कस्याः क्षेत्रे क्रीडन्ति ?
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran samas prakaranm img-4
बालकाः क्रीडाक्षेत्रे क्रीडन्ति।
बालकाः क्रीडायाः क्षेत्रे क्रीडन्ति।

2. उदाहरणम् अनुसृत्य अधोदत्तानां समस्तपदानां विग्रहं लिखत
(उदाहरण के अनुसार नीचे दिए गए समस्तपदों के विग्रह लिखिए-)
उदाहरणम्:
(क) देशभक्तम् । देशस्य भक्तम्
उत्तरम्:
(ख) वृक्षारूढाः – वृक्षम् आरूढाः
(ग) वृक्षपतितानि – वृक्षात् पतितानि
(घ) क्रीडाक्षेत्रे – क्रीडायाः क्षेत्रे
अधोलिखितैः समस्तपदैः सह विग्रहान् मेलयत-(अधोलिखित समस्तपदों के साथ विग्रहों को मिलाइए-)
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran samas prakaranm img-5
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran samas prakaranm img-6

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

3. अधोलिखितानि पदानि योजयित्वा समस्तपदानि रचयत-(अधोलिखित को जोड़कर समस्तपद बनाइए)
उत्तरम्:
(समस्तपदानि)
(क) कर्मणि कुशलः ……………………………… कर्मकुशलः
(ख) प्रजानां पालकः …………………….. प्रजापालकः
(ग) रघोः वंशः ……………………………… रघुवंशः
(घ) कुमारस्य सम्भवः ………………………. कुमारसम्भवः
(ङ) राष्ट्रपतेः भवनम् …………………………… राष्ट्रपतिभवनम्

4. स्थूलाक्षराणि पदानि योजयित्वा अनुच्छेदे रिक्तस्थानेषु समस्तपदानि लिखत
(स्थूलाक्षर पदों को जोड़कर अनुच्छेद में रिक्तस्थानों में समस्तपद लिखिए-)
ग्रामं गतः HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran samas prakaranm img-7 कश्चित् नागरिक: एकं बालकं कूपं पतितम् HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran samas prakaranm img-7 अपश्यत् । उच्चैः विलपन्ती तस्य माता अवदत् – भोः । अहं भवतः शरणम् आगता HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran samas prakaranm img-7 कृपया रक्षतु मम बालकम् इति । नागरिकः सपदि कूपे रज्जं पातयित्वा संकटम् आपन्नं HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran samas prakaranm img-7 बालकं रक्षितवान। दःखम अतीता HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran samas prakaranm img-7 सा जननी अवदत्’भद्रम् अस्तु ते’ इति।
उत्तरम्-ग्रामगतः, कूपपतितम् , शरणागता, संकटापन्नं, दुःखातीता।

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5. अधोलिखिते अनुच्छेदे समस्तपदानि रेखाकितानि कुरुत
(अधोलिखित अनुच्छेद में समस्तपदों को रेखांकित कीजिए-)
उत्तरसहितम्:
कश्चित् वनवासी एकदा ग्रामम् अगच्छत्। ग्रामगतः सः तत्र यन्त्रचालितम् अरघट्टम् दृष्टवान् । अरघट्टस्य घटिकापतत् जलं क्षेत्राणि सिञ्चति स्म। यन्त्रदर्शनेन चकितः सः नगरं प्रति प्रस्थितः। तत्र आपणगतानि वस्तूनि दृष्ट्वा अचिन्तयत्-अरे ! किमेतत् सर्वं मानवनिर्मितम्। अनुपमा मानवशक्तिः। विविधा भोजनसामग्री, यन्त्रनिर्मितानि परिधानवस्त्राणि, आत्मरक्षायै शस्त्राणि, शरीरशोभायै प्रसाधनद्रव्याणि, विस्तृताः सञ्चारमार्गाः,
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran samas prakaranm img-8
विद्युद्व्यजनानि ग्रीष्मतापहरणाय वातानुकूलनयन्त्राणि शीतनिवारणाय उष्णकाणि
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran samas prakaranm img-9
एतत् सर्वं दृष्ट्वा सः आश्चर्यविमूढः जातः । वृक्षमूले उपविश्य सः अवदत्-अहो कथं विज्ञानाधीनः जातः अद्यतनः मानवः।

6. अधोलिखितविग्रहान् पठत, अनुच्छेदात् चित्वा तेषां समक्षं समस्तपदानि लिखत।
(अधोलिखित विग्रहों को पढ़कर, अनुच्छेद से चुनकर उनके सामने समस्तपद लिखिए)
उत्तरसहितम्
यथा
(क) वृक्षस्य मूले – वृक्षमूले
(ख) आत्मनः रक्षायै – आत्मरक्षायै
(ग) ग्रामं गत – ग्रामगतः
(घ) वातानुकूलनाय यन्त्राणि – वातानुकूलनयन्त्राणि
(ङ) मानवस्य शक्तिः – मानवशक्तिः
(च) वनं वसति इति – वनवासी
(छ) मानवेन निर्मितम् – मानवनिर्मितम्
(ज) आपणं गतानि – आपणगतानि
(झ) यन्त्रस्य दर्शनेन – यन्त्रदर्शनेन
(ब) यन्त्रेण चालितम् – यन्त्रचालितम्
(ट) सञ्चाराय मार्गाः – संञ्चारमार्गाः
(ठ) विज्ञानस्य अधीनः – विज्ञानाधीनः
(ढ) यन्त्रेण निर्मितानि – यन्त्रनिर्मितानि
(ण) विद्युतः व्यजनानि – विद्युद्व्यजननानि
(त) शीतस्य निवारणाय – शीतनिवारणाय
(थ) आश्चर्येण विमूढः – आश्चर्यविमूढः
(द) घटिकाभ्यः पतत् – घटिकापतत्
(ध) भोजनाय सामग्री – भोजनसामग्री
(न) परिधानाय वस्त्राणि – परिधानवस्त्राणि
(प) शरीरस्य शोभायै – शरीरशोभायै
(फ) ग्रीष्मस्य तापस्य हरणाय – ग्रीष्मतापहरणाय

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7. उपर्युक्तसमस्तपदानि अधोलिखिततालिकायां विभज्य लिखन्तु।
(उपर्युक्त समस्तपदों को नीचे दी गई तालिका में विभाजन करके लिखिए)
द्वितीयातत्पुरुषः ………………………….. ………………………….. …………………………..
तृतीयातत्पुरुषः ………………………….. ………………………….. …………………………..
चतुर्थीतत्पुरुषः ………………………….. ………………………….. …………………………..
पञ्चमीतत्पुरुषः ………………………….. ………………………….. …………………………..
षष्ठीतत्पुरुषः ………………………….. ………………………….. …………………………..
सप्तमीतत्पुरुषः ………………………….. ………………………….. …………………………..
उत्तरम्:
द्वितीयातत्पुरुषः – ग्रामगतः, आपणगतानि।
तृतीयातत्पुरुषः – मानवनिर्मितम्, यन्त्रचालितम्, यन्त्रनिर्मितानि, आश्चर्यविमूढः।
चतुर्थीतत्पुरुषः – वातानुकूलनयन्त्राणि, सञ्चारमार्गाः, भोजनसामग्री, परिधानवस्त्राणि।
पञ्चमीतत्पुरुषः – घटिकापतत्।
षष्ठीतत्पुरुषः – वृक्षमूले, आत्मरक्षायै, मानवशक्तिः , यन्त्रदर्शनेन, विज्ञानाधीन:,
विद्युद्व्यजनानि, शीतनिवारणाय, शरीरशोभायै, ग्रीष्मतापहरणाय।
सप्तमीतत्पुरुषः – वनवासी।

8. (क) अधोलिखित-तालिकां पूरयत
(अधोलिखित-तालिका को पूरा कीजिए-)
यथा-
(क) जले जायते इत – जलजम्
(ख) ………………. तोयजम्
(ग) ……………… नीरजम्
(घ) अम्बुनि जायते इति ………………
(ङ) अम्भसि जायते इति ………………
(च) वारि ददाति इति – वारिदः
(न) पृथ्वीं पालयति इति ………………
(प) पादैः पिबति इति – पादपः
(ब) अम्भः ददाति इति – अम्भोदः
(ट) वारि अस्मिन् धीयते इति – वारिधिः
(ठ) जलधिः ………………
(ड) ……………….. पयोधिः
(ढ) …………………. अम्भोधिः
(ण) महीं पाति (रक्षति) इति – महीपः
(त) नान् पाति इति ………………
(थ) भुवं पाति इति ………………
(द) भुवं पालयति इति – भूपालः
(ध) महीं पालयति इति ………………
(छ) जलम् ददाति इति ………………
(ज) पयोदः ………………
(झ) अम्बु ददाति इति – अम्बुदः
(फ) मधु पिबति इति ………………
(ब) खे (आकाशे) गच्छति इति – खगः
(भ) विहायसा गच्छति इति
(म) खे चरति इति ………………
(य) अण्डात् जायते इति ………………
(र) महीं धारयति इति – महीधरः
उत्तरम्यथा:
(क) जले जायते इति – जलजम्
(ख) तोये जायते इति – तोयजम्
(ग) नीरे जायते इति – नीरजम्
(घ) अम्बुनि जायते इति – अम्बुजम्
(ङ) अम्भसि जायते इति – अम्भोजम्
(च) वारि ददाति इति – वारिदः
(छ) जलम् ददाति इति – जलदः
(ज) पयः ददाति इति – पयोदः
(झ) अम्बु ददाति इति – अम्बुदः
(ब) अम्भः ददाति इति – अम्भोदः
(ट) वारि अस्मिन् धीयते इति – वारिधिः
(ठ) जलं अस्मिन् धीयते इति – जलधिः
(ड) पयः अस्मिन् धीयते इति – पयोधिः
(ढ) अम्भः अस्मिन् धीयते इति – अम्भोधिः
(ण) महीं पाति (रक्षति) इति – महीपः
(त) नान् पाति इति – नृपः
(थ) भुवं पाति इति – भूपः
(द) भुवं पालयति इति – भूपालः
(ध) महीं पालयति इति – महीपाल:
(न) पृथ्वी पालयति इति – पृथ्वीपाल:
(प) पादैः पिबति इति – पादपः
(फ) मधु पिबति इति – मधुपः
(ब) खे (आकाशे) गच्छति इति – खगः
(भ) विहायसा गच्छति इति – विहगः
(म) खे चरति इति – खेचरः
(य) अण्डात् जायते इति – अण्डजः
(र) महीं धारयति इति – महीधरः

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9. अधोलिखितानि विग्रहपदानि पठित्वा समस्तपदानि रचयत
(अधोलिखित विग्रहपदों को पढ़कर समस्तपद बनाइए-)
यथा
न मतम् ………………………………
न विज्ञातम् ………………………………
न दृष्टम् ………………………………
न परीक्षितम् ………………………………
न श्रुतम् ………………………………
न पठितम् ………………………………
न धार्मिक: ………………………………
न ऋतम् ………………………………
न उपस्थितः ………………………………
न आदरः …………………………..
उत्तरम्-
यथा- न मतम् अमतम्
न विज्ञातम् – अविज्ञातम्
न दृष्टम् – अदृष्टम्
न परीक्षितम् अपरीक्षितम्
न श्रुतम् – अश्रुतम्
न पठितम् – अपठितम्
न धार्मिकः – अधार्मिकः
न ऋतम् – अनृतम्
न उपस्थितः – अनुपस्थितः
न आदरः – अनादरः

10. अधोलिखितसूक्तिषु नञ्-तत्पुरुषस्य उदाहरणानि रेखाकितानि कुरुत
(अधोलिखित सूक्तियों में नञ्-तत्पुरुष के उदाहरण रेखांकित कीजिए-)
(क) न अनृतं ब्रूयात्।
(ख) अविवेकः परमापदां पदम्।
(ग) न अपरीक्षितम् अभिनिविशेत्।
(घ) किं हेयम् ? अकार्यम्।
(ङ) किं जीवितम् ? अनवद्यम्।
उत्तरम्:
(क) न अनृतं ब्रूयात् ।
(ख) अविवेकः परमापदां पदम्।
(ग) न अपरीक्षितम् अभिनिविशेत्।
(घ) किं हेयम् ? अकार्यम्
(ङ) किं जीवितम् ? अनवद्यम्

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11. अधोलिखितेषु वाक्येषु विग्रहपदानि संयोज्य इतरेतरद्वन्द्वसमस्तपदानि रचयत
(अधोलिखित वाक्यों में विग्रहपदों को जोड़कर इतरेतरद्वन्द्व-समस्तपदों की रचना कीजिए-)
(क) रामः च लक्ष्मणः च ………….. विश्वामित्रस्य शिष्यौ आस्ताम् ।
(ख) लक्ष्मणः शत्रुघ्नः च …………… सुमित्रायाः पुत्रौ आस्ताम्।
(ग) नकुलः सहदेवः च …………… माव्याः पुत्रौ आस्ताम्।
(घ) युधिष्ठिरः भीमः अर्जुनः च ……… कुन्त्याः पुत्राः आसन्।
(ङ) वसिष्ठः च विश्वामित्रः च …………. आचार्यो आस्ताम्।
उत्तरम्:
(क) रामलक्ष्मणौ
(ख)लक्ष्मणशत्रुघ्नौ
(ग) नकुलसहदेवौ
(घ) युधिष्ठिरभीमार्जुनाः
(ङ) वसिष्ठविश्वामित्रौ।

12. अधोलिखितेषु कोष्ठेषु समाहारद्वन्द्वसमस्तपदानि पूरयत। सहायतार्थं सूचीप्रदत्ता अस्ति।
(अधोलिखित कोष्ठकों में समाहारद्वन्द्व-समस्तपदों कोपूरा कीजिए। सहायतार्थ सूची दी गई है)
(क) पाणी च पादौ च …………. प्रक्षाल्य भोजनं कुरु।
(ख) तव पुत्राः च पौत्राः च …………… चिरं जीवन्तु।
(ग) शीतं च उष्णं च ………….. योगिनं न बाधते।
(घ) शुकेन कोटरात् शिरः च ग्रीवा च ………….. बहिः प्रसार्यते।
(ङ) धीराय सम्पत् च विपत् च …………. समम्।।
सहायतार्थं
सूची सम्पद्विपदम्, पाणिपादम्, शीतोष्णम्, पुत्रपौत्रम्, शिरोग्रीवम्
उत्तरम्:
(क) पाणिपादम्
(ख) पुत्रपौत्रम्
(ग) शीतोष्णम्
(घ)शिरोग्रीवम्
(ङ)सम्पद्विपदम्।

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13. अधोलिखितान् विग्रहान् पठित्वा प्रदत्तसमस्तपदैः विग्रहान् मेलयत
(अधोलिखित विग्रहों को पढ़कर दिए गए समस्तपदों से विग्रहों को मिलाइए-)
समस्तपदानि विग्रहाः
द्वयोः गवोः समाहारः = द्विगुः
पञ्चानां पात्राणां समाहारः = पञ्चपात्रम्
पञ्चानां गवां समाहारः = पञ्चगवम्
पञ्चानां वटानां समाहारः = पञ्चवटी
त्रयाणां लोकानां समाहारः = त्रिलोकी
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran samas prakaranm img-10
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran samas prakaranm img-11
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran samas prakaranm img-12

14. अधोलिखितेषु समस्तपदेषु द्विगुसमस्तपदानि रेखाड्कितानि कुरुत
(अधोलिखित समस्तपदों में द्विगु-समस्तपदों को रेखांकित कीजिए-)
सप्तबालकाः सप्तपर्णी, अष्टाध्यायी, अष्टवादने, चतुर्युगम्, चतुर्मुखानि,नवरत्नम्, नवरात्रम्, नवदिनानि, चतुर्वेदम्, अष्टाङ्गम्।
उत्तराणि:
सप्तबालकाः, सप्तपर्णी, अष्टाध्यायी, अष्टवादने, चतुर्युगम्, चतुर्मुखानि,नवरत्नम्, नवरात्रम्, नवदिनानि, चतुर्वेदम्, अष्टाङ्गम्

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15. अधोलिखितान् विग्रहान् पठित्वा प्रदत्तसमस्तपदानां विग्रहं कुरुत
(अधोलिखित विग्रहों को पढ़कर दिए गए समस्तपदों के विग्रह कीजिए-)
विग्रहाः – समस्तपदानि
यथा-नीलं गगनम् – नीलगगनम्
निर्मलं जलम् – निर्मलजलम्
शुष्कानि काष्ठानि – शुष्ककाष्ठानि
मधुराणि फलानि – मधुरफलानि
अमृतमयं भोजनम् – अमृतमयभोजनम्
शुद्धम् अन्नम् – शुद्धान्नम्
महान् ज्ञानी – महाज्ञानी
परम: दानी – परमदानी

समस्तपदानि – विग्रहाः
(क) महावीरः ……………………….
(ख) श्रान्तपथिकः ……………………….
(ग) महात्मा ……………………….
(घ) स्वच्छजलम् ……………………….
(ङ) उन्नतप्रासादः ……………………….
(च) शीतलसलिलम् ……………………….
उत्तरम्:
समस्तपदानि – विग्रहाः
(क) महावीरः – महान् वीरः
(ख) श्रान्तपथिकः – श्रान्तः पथिकः
(ग) महात्मा – महान् आत्मा
(घ) स्वच्छजलम् – स्वच्छं जलम्
(ङ) उन्नतप्रासादः – उन्नतः प्रासादः
(च) शीतलसलिलम् – शीतलं सलिलम्

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16. समस्तपदानि स्चयत। (समस्त पद बनाइए)
यथा-
(क) महान् पुरुषः – महापुरुषः
उत्तरसहितम्:
(ख) पवित्रं मन : – पवित्रमनः
(ग) विस्तृता नाटिका – विस्तृतनाटिका
(घ) पुष्पितः वृक्षः – पुष्पितवृक्षः
(ङ) विकसितानि पुष्पाणि – विकसितपुष्पाणि

17. अधोलिखितानां विग्रहाणां स्थाने समस्तपदानि लिखत
(अधोलिखित विग्रहों के स्थान पर समस्तपद लिखिए-)
(क) यथा-
कमलम् इव नयनम् – कमलनयनम्
उत्तरसहितम्:
(क) पर्वतः इव उन्नतः – पर्वतोन्नतः
(ख) उत्पलम् इव कोमलम् – उत्पलकोमलम्
(ग) पुत्रः इव नकुलः – पुत्रनकुलः
(घ) सलिलम् इव शीतलम् – सलिलशीतलम्

(ख) यथा- सुभाषितम् रत्नम् इंव – सुभाषितरत्नम्
उत्तरसहितम्:
(क) मुखं चन्द्रः इव – मुखचन्द्रः
(ख) हिमकणं मौक्तिकम् इव – हिमकणमौक्तिकम्
(ग) गीता अमृतम् इव – गीतामृतम्

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18. अधोलिखितान् उदाहरणानि अनुसृत्य अधः प्रदतरिक्तस्थानेषु समस्तपदानि लिखत
(अधोलिखित उदाहरणों के अनुसार नीचे दिए गए रिक्तस्थानों में समस्त पद लिखिए-)
उदाहरणानि:
विग्रहाः – समस्तपदानि
(क) रामः च कृष्णः च = रामकृष्णौ
(ख) ग्रीष्मः च वसन्तः च शिशिरः च = ग्रीष्मवसन्तशिशिराः
(ग) माता च पिता च = मातापितरौ
(घ) पाणी च पादौ च (अनयोः समाहारः) = पाणिपादम्
विग्रहाः – समस्तपदानि
(क) ग्रीष्मः च वसन्तः च शिशिरः च ………………………
(ख) रामः च सीता च ………………………
(ग) फलानि च पुष्पाणि च ………………………
(घ) पशवः च पक्षिणः च ………………………
(ङ) पिता च पुत्रः च ………………………
उत्तरम्
विग्रहाः – समस्तपदानि
(क) ग्रीष्मः च वसन्तः च शिशिरः च – ग्रीष्मवसन्तशिशिराः
(ख) रामः च सीता च – रामसीते
(ग) फलानि च पुष्पाणि च – फलपुष्पाणि
(घ) पशवः च पक्षिणः च – पशुपक्षिणः
(ङ) पिता च पुत्रः च – पितापुत्री

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19. अधोलिखितान् उदाहरणानि अनुसृत्य अधः प्रदत्तरिक्तस्थानेषु समस्तपदानि लिखत
(अधोलिखित उदाहरणों के अनुसार नीचे दिए गए रिक्तस्थानों में समस्त पद लिखिए-)
विग्रहाः – समस्तपदानि
बहुः ब्रीहिः यस्य सः (कृषकः) = बहुब्रीहिः (कृषक:)
नीलम् उत्पलं यस्मिन् तत् (सरः) = नीलोत्पलम् (सरः)
दत्तं धनं यस्मै सः (जनः) = दत्तधनः (जनः)
पीतम् अम्बरं यस्य सः (विष्णुः) = पीताम्बरः (विष्णुः)
बहूनि फलानि यस्मिन् सः (वृक्षः) = बहुफलः (वृक्षः)
पीतं दुग्धं येन सः (बाल:) = पीतदग्धः (बालः)
पीतं दुग्धं यया सा (बालिका) = पीतदुग्धा (बालिका)
नीलः कण्ठः यस्य सः (शिवः) = नीलकण्ठः (शिवः)
विग्रहाः – समस्तपदानि
(क) कृतं भोजनं येन सः (ज़नः) ………………………
(ख) पतितानि पर्णानि यस्मात् सः (वृक्षः) ……………
(ग) वीराः पुरुषाः यस्मिन् सः (ग्रामः) ………………………
(घ) अधीतं व्याकरणं येन सः (विद्वान्) ……………
(ङ) दश आननानि यस्य सः (रावणः) ………………………
उत्तरम्
विग्रहाः – समस्तपदानि
(क) कृतं भोजनं येन सः (जन:) – कृतभोजनः (जनः)
(ख) पतितानि पर्णानि यस्मात् सः (वृक्षः) पतितपर्णः – (वृक्षः)
(ग) वीराः पुरुषाः यस्मिन् सः (ग्रामः) – वीरपुरुषः (ग्रामः)
(घ) अधीतं व्याकरणं येन सः (विद्वान्) – अधीतव्याकरणः (विद्वान्)
(ङ) दश आननानि यस्य सः (रावणः) – दशाननः (रावणः)

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20. अधोलिखिते अनुच्छेदे स्थूलाक्षरपदानां समस्तपदानि रचयित्वा कोष्ठके लिखत।सहायकसूची अधः प्रदत्ता
(अधोलिखित अनुच्छेद में स्थूलाक्षरपदों के समस्तपद बनाकर कोष्ठक में लिखिए। सहायकसूची नीचे दी गई है-)
एकदा सिद्धः अर्थः यस्य सः (……………..) विहाराय नगरम् अगच्छत् । तत्र सः एकं रुग्णं दुर्बला दृष्टिः यस्य तम् ……………) नरम् अपश्यत् । तस्य नतं पृष्ठं …………… दृष्ट्वा सः अचिन्तयत्-किम् अहम् अपि एवमेव नतं पृष्ठं यस्य सः (……………..) भविष्यामि ? ततः सः उत्क्रान्तं जीवितं यस्य तं (……………..) नरम् अपश्यत्। सः सारथिम् अपृच्छत्-अरे किमर्थं जनाः एनं मनुष्यं बद्ध्वा नयन्ति। सारथिः उवाच-भगवन् अयं तु विगताः प्राणाः यस्य सः (……………) एव। गौतमः पृष्टवान् – भो ! किम् अहम् अपि मरिष्यामि ? सारथिः अवदत् – मरणं शीलं यस्य सः (………….) संसारः । गौतमः तद् दृष्ट्वा विरक्तः जातः ।
सहायकसूची
नतपृष्ठः, मरणशीलः, सिद्धार्थः, दुर्बलदृष्टिम्, नतपृष्ठं, उत्क्रान्तजीवितं, विगतप्राण:
उत्तरम्:
एकदा सिद्धः अर्थः यस्य सः (सिद्धार्थः) विहाराय नगरम् अगच्छत्। तत्र सः एकं रुग्णं दुर्बला दृष्टिः यस्य तम् (दुर्बल- दृष्टिम्) नरम् अपश्यत्। तस्य नतं पृष्ठं (नतपृष्ठम् ) दृष्ट्वा सः अचिन्तयत्-किम् अहम् अपि एवमेव नतं पृष्ठं यस्य सः (नतपृष्ठः) भविष्यामि ? ततः सः उत्क्रान्तं जीवितं यस्य तं (उत्क्रान्तजीवितम्) नरम् अपश्यत्। सः सारथिम् अपृच्छत्-अरे किमर्थं जनाः एनं मनुष्यं बद्ध्वा नयन्ति । सारथिः उवाच-भगवन् अयं तु विगताः प्राणाः यस्य सः (विगतप्राणः) एव। गौतमः पृष्टवान् – भो ! किम् अहम् अपि मरिष्यामि ? सारथिः अवदत् – मरणं शीलं यस्य सः (मरणशीलः) संसारः। गौतमः तद् दृष्ट्वा विरक्तः जातः ।

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21. अधोलिखितविग्रहाणां स्थाने समस्तपदानि लिखत
(अधोलिखित विग्रह-वाक्यों के स्थान पर समस्तपद लिखिए-)
विग्रहवाक्यानि – समस्तपदानि
यथा- चन्द्रः इव मुखम् (1) चन्द्रमुखम्
चन्द्रः इव मुखं यस्याः सा (2) चन्द्रमुखी

विग्रहवाक्यानि – समस्तपदानि
उत्तरसहितम्-:
(क) पतितं पर्णम् (3) पतितपर्णम् (कर्मधारयः)
(ख) पतितानि पर्णानि यस्मात् सः (वृक्षः) (4) पतितपर्णः (बहुब्रीहिः)
(ग) पीतम् अम्बरम् (5) पीताम्बरम् (कर्मधारयः)
(घ) पीतम् अम्बरं यस्य सः (6) पीताम्बरः (बहुब्रीहिः)
(ङ) वृक्षम् आरूढः (7) वृक्षारूढः (तत्पुरुषः)
(च) आरूढः वृक्षः येन सः (8) आरूढवृक्षः (बहुब्रीहिः)
(छ) दश आननानि (9) दशाननम् (कर्मधारयः)
(ज) दश आननानि यस्य सः (10) दशाननः (बहुब्रीहिः)
(झ) कृतः अभिषेकः यस्य सः (11) कृताभिषेकः (बहुब्रीहिः)
(ञ) कृतः अभिषेक: (12) कृताभिषेकः (कर्मधारयः)

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22. अधोलिखितान् उदाहरणानि अनुसृत्य अधः प्रदत्तरिक्तस्थानेषु अव्ययीभावसमासस्य समस्तपदानि लिखत
(अधोलिखित उदाहरणों के अनुसार नीचे दिए गए रिक्तस्थानों में अव्ययीभावसमास के समस्त पद लिखिए-)
विग्रहः
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran samas prakaranm img-13
उत्तरम्:
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran samas prakaranm img-14
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaran samas prakaranm img-15

23. अधोलिखितकथायां स्थूलाक्षरपदानि चित्वा मञ्जूषायां तेषां विग्रहान् लिखत
(अधोलिखित कथा में स्थूलाक्षर पदों को चुनकर मञ्जूषा में उनके विग्रह लिखिए-)
एक: अतिदुष्टः वानरः आसीत्। प्रतिदिनं सः यथाशक्ति वृक्षे स्थितान् पक्षिण: तुदति स्म। उपनीडं गत्वा तेषां श्रमस्य उपहासं करोति स्म। एक: पक्षी अवदत्-भो! किमर्थम् उपहससि ? अनुवृष्टि नीडम् एव अस्मान् रक्षति। वयं परिश्रमं कुर्मः निर्विघ्नं च जीवामः । वानरः साट्टहासम् अवदत्-‘मूर्खा: यूयम् ! अरे योगिनां कुतः गृहम्।’ एवं कथयित्वा तेन दुष्टेन पक्षिणां नीडानि भग्नानि । एक: पक्षी अवदत्-योगिनः प्रतिजीवम् उपकारमेव कुर्वन्ति । किम् इदम् अनुरूपं साधुजनस्य ?
उत्तरम्
मञ्जूषा
समस्तपदम् – विग्रहः
(1) प्रतिदिनम्-दिने दिने
(2) यथाशक्ति-शक्तिम् अनतिक्रम्य
(3) उपनीडम्-नीडस्य समीपम्
(4) अनुवृष्टि-वृष्टेः पश्चात्
(5) निर्विघ्नम्-विजस्य अभावः
(6) साट्टहासम्-अट्टहासेन सहितम्
(7) प्रतिजीवम्-जीवे जीवे

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24. कोष्ठकात् शुद्धम् उत्तरं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
(कोष्ठक से शुद्ध उत्तर चुनकर रिक्तस्थान भरिए-)
(क) अनेन सदृशो महापुरुषः ………….नास्ति। (त्रिलोके/ त्रिलोक्याम्)
(ख) सः ………….फलानि खादति। (यथेच्छया/यथेच्छम्)
(ग) ………….सरः दृष्ट्वा कः नः प्रसीदति ? (विकसितपङ्कजः/ विकसितपङ्कजम्)
(घ) …………वेदान्तस्य प्रचारः कृतः। (स्वामीविवेकानन्देन/ स्वामिविवेकानन्देन)
(ङ) रामः ………….धावति। (अनुमृगम्/अनुमृगः)
(च) सः पण्डितः …………. अस्ति। (विद्याधनः/ विद्याधनम्)
उत्तरम्:
(क) अनेन सदृशो महापुरुषः त्रिलोके नास्ति।
(ख) स: यथेच्छम् फलानि खादति। (यथेच्छया/यथेच्छम्)
(ग) विकसितपङ्कजम् सर: दृष्ट्वा कः नः प्रसीदति ?
(घ) स्वामिविवेकानन्देन वेदान्तस्य प्रचारः कृतः।
(ङ) रामः अनुमृगम् धावति।।
(च) सः पण्डितः विद्याधनः अस्ति। ।

25. अधोलिखितानां विग्रहाणां समस्तपदानि कोष्ठकेषु लिखत
(अधोलिखित विग्रहों के समस्तपद कोष्ठकों में लिखिए-)
(1) जनानाम् अभावः (…………)
(2) निर्गता बाधा यस्याः (…………)
(3) वृक्षस्य समीपम् (…………)
(4) वृक्षस्य मूलम् (…………)
(5) द्वादश अक्षाः यस्मिन् तत् (…………)
(6) अहिं भुङ्क्ते तम् (…………)
(7) विमूढा धीः यस्य (…………)
(8) न कातरः (…………)
(9) शीतलं सलिलम् (…………)
(10) जलं ददाति इति (…………)
(11) पङ्कात् जायते इति (…………)
(12) चित्रेण सहितम् (…………)
(13) . महान् देवः (…………)
(14) देवस्य आलयः (…………)
(15) अहः च रात्रिः च (…………)
(16) फलानि च पुष्पाणि च (……..)
(17) जले मग्नः (…………)
(18) रूपस्य योग्यम् (…………)
(19) पुस्तकानाम् आलयः (…………)
(20) राज्ञः पुत्रः (…………)
(21) सप्तानां पदानां समाहारः (…………)
(22) नखैः भिन्न: (…………)
(23) सप्तानाम् अह्नां समाहारः (…………)
उत्तरम्:
(1) जनानाम् अभाव: (निर्जनम्)
(2) निर्गता बाधा यस्याः (निर्बाधम्)
(3) वृक्षस्य समीपम् ( उपवृक्षम्)
(4) वृक्षस्य मूलम् (वृक्षमूलम्)
(5) द्वादश अक्षाः यस्मिन् तत् (द्वादशाक्षम् )
(6) अहिं भुङ्क्ते तम् ( अतिभुजम्)
(7) विमूढा धीः यस्य (विमूढधीः)
(8) न कातरः (अकातरः)
(9) शीतलं सलिलम् (शीतलसलिलम्)
(10) जलं ददाति इति (जलदः) ।
(11) पङ्कात् जायते इति (पड्कजम्)
(12) चित्रेण सहितम् (सचित्रम्)
(13) महान् देवः (महादेवः)
(14) देवस्य आलयः (देवालयः)
(15) अहः च रात्रिः च (अहोरात्रम्)
(16) फलानि च पुष्पाणि च (फलपुष्पाणि)
(17) जले मग्नः (जलमग्नः)
(18) रूपस्य योग्यम् ( अनुरूपम्)
(19.) पुस्तकानाम् आलयः (पुस्तकालयः)
(20) राज्ञः पुत्रः (राजपुत्रः)
(21) सप्तानां पदानां समाहारः (सप्तपदी)
(22) नखैः भिन्नः (नखभिन्नः)
(23) सप्तानाम् अह्नां समाहारः (सप्ताहः)

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परीक्षा में प्रष्टव्य समास-विषयक प्रश्न

1. (क) अव्ययीभावसमासस्य अथवा तत्पुरुषसमासस्य परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तराणि:
अव्ययीभाव समासः-समीप आदि अर्थों में अव्ययी भाव समास होता है। इसका पूर्वपद कोई अव्यय शब्द होता है और अर्थ की दृष्टि से पूर्वपद ही प्रधान होता है। उदाहरण-कृष्णस्य समीपम् – उपकृष्णम्।
जनानाम् अभावः -निर्जनम्।
तत्पुरुष-समास:-द्वितीया आदि विभक्तियों वाले पदों के साथ जब किसी पद का समास होता है तो वहाँ तत्पुरुष समास होता है। अर्थ की दृष्टि से तत्पुरुष समास का उत्तरपद प्रधान होता है।
उदाहरण:
रामस्य सेवक: – राम सेवकः ।
रामम् आश्रितः . – रामाश्रितः।।

(ख) अधोलिखितेषु त्रिषु एव समासं विग्रहं वा कृत्वा समासस्य नाम अपि लिखत
अकातरः, यथासमयम्, साधूनां वृत्तिम्, पीताम्बरः, ईशः च कृष्णः च।
उत्तराणि:
अकातरः = न कातरः । (नञ् तत्पुरुषसमासः)
यथासमयम् = समयम् अनतिक्रम्य (अव्ययीभावसमासः)
साधूनां वृत्तिम् = साधुवृत्तिम् (षष्ठीतत्पुरुषसमासः)
पीताम्बरः = पीतानि अम्बराणि यस्य सः (बहुब्रीहिसमासः)
ईशः च कृष्णः च = ईशकृष्णौ (इतरेतरद्वन्द्वसमासः)

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II. (क) बहुब्रीहिसमासस्य अथवा द्विगुसमासस्य परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तराणि:
बहुब्रीहिसमासः-जब दो पदों का समास करने पर समस्तपद किसी अन्यपद का विशेषण बन जाता है, तो वह बहुब्रीहि समास कहलाता है।
उदाहरण-नीलः कण्ठः यस्य सः – नीलकण्ठः (शिवः)
विद्यां धारयति या सा – विद्याधारिणी (सरस्वती)
द्विगुसमासः-जब समास में पूर्वपद संख्यावाचक हो तब वहाँ द्विगु समास होता है।
उदाहरण-पञ्चानां तन्त्राणां समाहारः-पञ्चतन्त्रम्।
अष्टानां अध्यायानां समाहारः-अष्टाध्यायी।

(ख) अधोलिखितेषु त्रिषु एव समासं विग्रहं वा कृत्वा समासस्य नाम अपि लिखत
कलशपातेन, अहितम्, व्यासनारदौ, वृक्षस्य समीपम्, दश आननानि यस्य सः।।
(i) कलशपातेन = कलशस्य पातेन (षष्ठीतत्पुरुष समासः)
(ii) अहितम् = न हितम् (नञ्तत्पुरुष समासः)
(iii) व्यासनारदौ = व्यासः च नारदः च (इतरेतरद्वन्द्वः समासः)
(iv) वृक्षस्य समीपम् = उपवृक्षम् । (अव्ययीभावः समासः)
(v) दश आननानि यस्य सः = दशाननः (बहुब्रीहिः समासः)

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III. (क) द्वन्द्वसमासस्य अथवा द्विगुसमासस्य परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम्:
द्वन्द्वसमास-‘च’ के अर्थ में जब दो या दो से अधिक पदों का समास होता है, तब उसे द्वन्द्व समास कहते है यह तीन प्रकार का होता है
1. इतरेतरद्वन्द्व समास-उदाहरण-माता च पिता च-मातापितरौ।
2. समाहारद्वन्द्व समास-उदाहरण-पाणी च पादौ च तेषां समाहारः – पाणिपादम्।
3. एकशेषद्वन्द्व समास-उदाहरण-माता च पिता च-पितरौ।
द्विगुसमास-जब समास में पूर्वपद संख्यावाचक हो तब द्विगु समास होता है।
उदाहरण:
पञ्चानां तन्त्राणां समाहारः . – पञ्चतन्त्रम्।
अष्टानाम् अध्यायानां समाहारः – अष्टाध्यायी।

(ख) अधोलिखितेषु त्रिषु एव समासं विग्रहं वा कृत्वा समासस्य नाम अपि लिखत
प्रत्येकम्, विमूढधीः, परेषां द्रव्ये, त्रिलोकी, अनादरः ।
उत्तरम्:
प्रत्येकम् = एकम् एकं प्रति (अव्ययीभावः समासः)
विम्भूढधीः = विमूढा धीः यस्य सः (बहुब्रीहिसमासः)
परेषां द्रव्ये = परद्रव्ये (पष्ठी तत्पुरुषसमासः)
त्रिलोकी = त्रयाणां लाकानां समाहार: (द्विगुः समासः)
अनादरः = न आदरः (नञ्तत्पुरुषः समासः)

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IV. बहुव्रीहि समास्य अथवा द्वन्द्वसमासस्य परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम्:
बहुब्रीहिसमास-जब दो पदों का समास करने पर समस्तपद किसी अन्यपद का विशेषण बन जाता है, तो वह बहुब्रीहि समास कहलाता है।
उदाहरण:
नीलः कण्ठ: यस्य सः – नीलकण्ठः (शिव:).
विद्यां धारयति या सा – विद्याधारिणी (सरस्वती)
द्वन्द्व समास-‘च’ के अर्थ में जब दो या दो से अधिक पदों का समास होता है, तब उसे द्वन्द्व समास कहते हैं। यह तीन प्रकार का होता है
माता च पिता च – मातापितरौ।
पाणी च पादौ च तेषां समाहारः – पाणिपादम्।
माता च पिता च – पितरौ।

v. द्विगुसमासस्य अथवा कर्मधारयसमासस्य परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम्:
द्विगुसमास-जब समास में पूर्वपद संख्यावाचक हो तब द्विगु समास होता है।
उदाहरण:
पञ्चानां तन्त्राणां समाहारः – पञ्चतन्त्रम्।
अष्टानाम् अध्यायानां समाहारः – अष्टाध्यायी।
कर्मधारय समास-जब पूर्वपद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य होता है, तब कर्मधारय समास होता है।
उदाहरण
नीलम् उत्पलम् – नीलोत्पलम् ।
मूर्खः पुरुषः – मूर्खपुरुषः
घनः इव श्याम : – घनश्यामः
पुरुषः व्याघ्रः इव – पुरुषव्याघ्रः।

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अभ्यासार्थ समास-विषयक बहुविकल्पीय प्रश्न

1. अधोलिखित-प्रश्नानां प्रदत्तोत्तरविकल्पेषु शुद्धं विकल्पं विचित्य लिखत
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर के लिए दिए गए विकल्पों में से शुद्ध विकल्प चुनकर लिखिए-)
(क) ‘धनलवपरिक्रीतः’ अस्मिन् पदे कः समासोऽस्ति ?
(i) कर्मधारयः
(ii) तत्पुरुषः
(iii) अव्ययीभावः
(iv) द्वन्द्वः
उत्तरम्:
(ii) तत्पुरुषः।

(ख) ‘कृतपरिकरः’ इति पदस्य समास-विग्रहः
(i) कृतस्य परिकरः
(ii) कृतः च परिकर: च तयोः समाहार:
(iii) कृतं च परिकरं च तत् ।
(iv) कृतः परिकरः येन सः।
उत्तरम्:
(iv) कृतः परिकरः येन सः।

(ग) ‘निशान्धकारे’ अस्मिन् पदे कः समासोऽस्ति ?
(i) कर्मधारयः
(ii) तत्पुरुषः
(iii) अव्ययीभावः
(iv) द्वन्द्वः ।
उत्तरम्:
(ii) तत्पुरुषः

(घ) ‘दारुणविभीषिका’ इति पदस्य समास-विग्रहः
(i) दारुणस्य विभीषिका
(ii) दारुणायाः विभीषिका
(iii) दारुणा च सा विभीषिका
(iv) दारुण विभीषिका।

(ङ) ‘सुपुष्टदेहः’ इति पदस्य समास-विग्रहः .
(i) शोभनं पुष्टं देहम्
(ii) सुपुष्टः च देहः च तयोः समाहारः
(iii) सुपुष्टस्य देहः
(iv) सुपुष्टः देहः यस्य सः।
उत्तरम्:
(iv) सुपुष्टः देहः यस्य सः।।

(च) ‘राजहंसः’ अस्मिन् पदे कः समासोऽस्ति ?
(i) कर्मधारयः
(ii) तत्पुरुषः
(iii) अव्ययीभावः
(iv) द्वन्द्वः ।
उत्तरम्:
(i) कर्मधारयः

(छ) ‘पर्वतकुलम्’ इति पदस्य समास-विग्रहः
(i) पर्वतस्य कुलम्
(ii) पर्वतं च कुलं च तयोः समाहारः
(iii) पर्वतं च तत् कुलम्
(iv) पर्वतानां कुलम्।
उत्तरम्:
(iv) पर्वतानां कुलम्।

(ज) ‘गृहजनम्’ अस्मिन् पदे कः समासोऽस्ति ?
(i) बहुव्रीहिः
(ii) तत्पुरुषः
(iii) अव्ययीभावः
(iv) द्वन्द्वः।
उत्तरम्:
(ii) तत्पुरुषः

(झ) ‘अपरिक्लेशः’ इति पदस्य समास-विग्रहः
(i) अपरः क्लेशः
(ii) क्लेशम् अनतिक्रम्य
(iii) न परिक्लेशः
(iv) अपरिहार्यः क्लेशः।
उत्तरम्:
(ii) न परिक्लेशः

(अ) ‘शस्त्राहत:’ अस्मिन् पदे कः समासोऽस्ति ?
(i) बहुव्रीहिः
(ii) तत्पुरुषः
(iii) अव्ययीभावः
(iv) द्वन्द्वः ।
उत्तरम्:
(ii) तत्पुरुषः

(ट) ‘राजपुरुषः’ इति पदस्य समास-विग्रहः
(i) राजा च असौ पुरुषः
(ii) राज्ञि पुरुषः
(iii) राज्ञः पुरुषः
(iv) राजा पुरुषः।
उत्तरम्:
(iii) राज्ञः पुरुषः

(ठ) ‘महत्कम्पनम्’ अस्मिन् पदे कः समासोऽस्ति ?
(i) बहुव्रीहिः
(ii) कर्मधारयः
(iii) अव्ययीभावः
(iv) द्वन्द्वः ।
उत्तरम्:
(ii) कर्मधारयः

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HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

Haryana State Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम् Shabd Roop Prakaran शब्दरूप प्रकरणम् Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् HBSE Sanskrit 10th Class

संस्कृतभाषा में शब्द चार प्रकार के होते हैं
1. नाम (संज्ञा) शब्द
2. सर्वनाम शब्द,
3. संख्यावाचक शब्द,
4. विशेषण शब्द
सज्ञाशब्द संज्ञाशब्द दो प्रकार के होते हैं
1. अजन्त (स्वर से अन्त होने वाले) और
2. हलन्त (व्यंजन से अन्त होने वाले)

1. अजन्त-जिन शब्दों के अंत में स्वर होता है, वे अजन्त कहलाते हैं। उन्हें स्वरान्त भी कहा जाता है। जैसे-बालकः, हरिः, गुरुः, वधूः आदि।
2. हलन्त-जिन शब्दों के अंत में व्यंजन हो तो वे हलन्त कहलाते हैं। उन्हें व्यंजनान्त भी कहते हैं। जैसे- राजन्, नामन्, मरुत्, आत्मन् इत्यादि।
स्मरणीय-अजन्त एवं हलन्त शब्द भी तीनों लिंगों में विभाजित होते हैं।
अजन्तशब्द
(क) अजन्तपुंल्लिंग-बालक, हरि, गुरु, पितृ आदि शब्द अजन्त (स्वरान्त) पुंल्लिंग के अन्तर्गत आते हैं।
(ख) अजन्तस्त्रीलिंग-लता, गौरी, मति, वधू, मातृ आदि शब्द अजन्त (स्वरान्त) स्त्रीलिंग शब्दों के अन्तर्गत आते हैं।
(ग) अजन्तनपुंसकलिंग-फल, पुस्तक, वारि, दधि आदि शब्द अजन्त (स्वरान्त) नपुंसकलिंग के अन्तर्गत आते हैं।
हलन्तशब्द
(क) हलन्त पुंल्लिंग-राजन्, आत्मन्, विद्वस् आदि शब्द हलन्त पुंल्लिंग के अन्तर्गत आते हैं।
(ख) हलन्त स्त्रीलिंग-वाच, गिर्, सरित् आदि शब्द हलन्त स्त्रीलिंग के अन्तर्गत आते हैं।
(ग) हलन्त नपुंसकलिंग-जगत्, चक्षुष, नभस् आदि शब्द हलन्त नपुंसकलिंग के अन्तर्गत आते हैं।

ध्यातव्य
जिस शब्द में र, ष, क्ष अथवा ऋ में से कोई भी अक्षर हो तो तृतीया ‘एकवचन’ में न के स्थान पर ण होगा जैसे-(नृपेण नृपाणाम्) बालकेन-नृपेण, कविना-हरिणा तथा षष्ठी बहुवचन में ‘नाम्’ के स्थान पर ‘णाम्’ होगा। जैसे-बालकानाम्नृपाणाम्, कवीनाम्-हरीणाम्।
सर्वनाम शब्द-संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द ‘सर्वनाम’ कहलाते हैं। सर्वनाम शब्दों का प्रयोग सभी व्यक्ति, वस्तु या स्थान के लिए किया जा सकता है। जैसे-अहम् (मैं, त्वम् (तुम), युवाम् (तुम दोनों), यूयम् (तुम सब), सः (वह), तौ (वे दोनों), ते (वे सब), इदम् (यह), भवत् (आप) आदि। सर्वनाम शब्दों का सम्बोधन रूप कभी नहीं होता।

संख्यावाचक शब्द-एक, दो आदि संख्याओं का बोध कराने के लिए संख्यावाची शब्दों का प्रयोग होता है। संख्यावाचक शब्दों का प्रयोग प्रायः विशेषण के रूप में होता है।
संस्कृतभाषा में सर्वनाम शब्दों की संख्या 35 है। यहाँ पाठ्यक्रमानुसार संज्ञा, तथा संख्यावाचक शब्दों के रूप दिए जा रहे है|

व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम् 10th Class HBSE Sanskrit

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

(क) अजन्त पुंल्लिंग
अति आवश्यक एवं पाठ्यक्रम में निर्धारित शब्दरूप
(1) अकारान्त पुंल्लिंग शब्द – ‘बालक’

विभक्तिएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमाबालकःबालकौबालकाः
द्वितीयाबालकम्बालकौबालकान्
तृतीयाबालकेनबालकाभ्याम्बालकै:
चतुर्थीबालकायबालकाभ्याम्बालकेभ्य:
पज्चमीबालकात्बालकभ्याम्बालकेभ्य:
षष्ठीबालकस्यबालकयो:बालकानाम्
सप्तमीबालकेबालकयो:बालकेषु
सम्बोधनहे बालक !हे बालकौ !हे बालका: !

हे बालंकाः ! सूचना-राम, शिष्य, कुठार, दिवाकर, छात्र, नर, देव, कृष्ण, अध्यापक, गज, खग, भ्रमर, अश्व, तुरंग, भुजंग आदि अकारान्त पुँल्लिग शब्दों के रूप भी इसी प्रकार होंगे।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

(2) मुनि (ऋषि) इकारान्त पुंल्लिंग (M.I.)

विभक्तिएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमामुनि:मुनीमुनयः
द्वितीयामुनिम्मुनीमुनीन्
तृतीयामुनिनामुनिभ्याम्मुनिभि:
चतुर्थीमुनयेमुनिभ्याम्मुनिभ्य:
पज्चमीमुने:मुनिभ्याम्मुनिभ्य:
षष्ठीमुने:मुन्यो:मुनीनाम्
सप्तमीमुनौमुन्यो:मुनिषु
सम्बोधनहे मुने!हे मुनी !हे मुनय: !

सूचना-अरि, विधि, हरि, गिरि (पहाड़), रवि (सूर्य), अलि, कवि, विधि, यति, कपि आदि इकारान्त पुंल्लिंग शब्दों के रूप भी इसी प्रकार होंगे।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

(3) उकारान्त पुंल्लिंग-साधु (सज्जन)

विभक्तिएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमासाधु:साधूसाधव:
द्वितीयासाधुम्साधूसाधून्
तृतीयासाधुनासाधुभ्याम्साधुभि:
चतुर्थीसाधवेसाधुभ्याम्साधुभ्य:
पज्चमीसाधो:साधुभ्याम्साधुभ्य:
षष्ठीसाधो:साध्वो:साधूनाम्
सप्तमीसाधौसाध्वो:साधुषु
सम्बोधनहे साधो !हे साधू !हे साधवः !

सूचना-रिपु, बिन्दु (बूंद), हेतु (कारण), शत्रु, सेतु, प्रभु, पशु, गुरु, भानु (सूर्य), वायु, बन्धु, शम्भु, शिशु, विधु, तरु आदि उकारान्त पुंल्लिंग शब्दों के रूप भी इसी प्रकार होंगे।

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(4) ऋकारान्त ‘पितृ’ (पिता)

विभक्तिएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमापितापितरौपितर:
द्वितीयापितरम्पितरौपित्ध्
तृतीयापित्रापितृभ्याम्पितृभि:
चतुर्थीपित्रेपितृभ्याम्पितृभ्य:
पज्चमीपितु:पितृभ्याम्पितृभ्य:
षष्ठीपितु:पित्रो:पित्धणाम्
सप्तमीपितरिपित्रो:पितृषु
सम्बोधनहे पितः !हे पितरौ !हे पितर: !

सूचना- भ्रातृ (भाई), जामातृ (दामाद) देव (देवर) आदि शब्दों के रूप भी ‘पितृ’ शब्दों के समान ही होंगे।

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(5) ऋकारान्त पुंल्लिग-‘भ्रातृ’ (भाई)

विभक्तिएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमाभ्राता ‘भ्रातरौभ्रातर:
द्वितीयाभ्रातरम्भ्रातरौभ्रातः
तृतीयाभ्रात्राभ्रातृभ्याम्भ्रातृभि:
चतुर्थीभ्रात्रेभ्रातृभ्याम्भ्रातृभ्य:
पज्चमीभ्रातु:भ्रातृभ्याम्भ्रातृभ्य:
षष्ठीभ्रातु:भ्रात्रो:भ्रातुणाम्
सप्तमीभ्रातरिभ्रात्रो:भ्रातृषु
सम्बोधनहे भ्रातः !हे भ्रातरौ !हे भ्रातर: !

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(ख) अजन्त स्त्रीलिंग
(6) आकारान्त स्त्रीलिंग शब्द-‘लता’

विभक्तिएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमालतालतेलता:
द्वितीयालताम्लतेलता:
तृतीयालतयालताभ्याम्लताभि:
चतुर्थीलतायैलताभ्याम्लताभ्य:
पज्चमीलताया:लताभ्याम्लताभ्य:
षष्ठीलताया:लतयो:लतानाम्
सप्तमीलतायाम्लतयो:लतासु
सम्बोधनहे लते !हे लते !हे लता: !

इसी प्रकार से अन्य आकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों जैसे-रमा, आशा, छात्रा, बाला, शिक्षिका, पाठशाला, कक्षा, गीता, विशाखा, शोभा, नौका, शाखा, गङ्गा, रमा, माला, ग्रीवा, नासिका,कलिका इत्यादि के रूप बनाए जा सकते हैं।

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(7) इकारान्त स्त्रीलिंग-‘मति’ (बुद्धि)

विभक्तिएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमामति:मतीमतयः
द्वितीयामतिम्मतीमती:
तृतीयामत्यामतिभ्याम्मतिभि:
चतुर्थीमत्यै, (मतये)मतिभ्याम्मतिभ्य:
पज्चमीमत्या:, (मते:)मतिभ्याम्मतिभ्य:
षष्ठीमत्या:, (मते:)मत्यो:मतीनाम्
सप्तमीमत्याम्, (मतौ)मत्यो:मतिषु
सम्बोधनहै मते !हे मती !हे मतय: !

सूचना-युक्ति, सृष्टि, वृष्टि, मुक्ति, सिद्धि, सम्पत्ति, विपत्ति, स्तुति, भक्ति, श्रुति, नीति, गति, बुद्धि, ऊर्मि आदि इकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के रूप भी इसी प्रकार होंगे।

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(8) ईकारान्त स्त्रीलिंग (नदी)

विभक्तिएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमानदीनद्यौनद्य::
द्वितीयानदीम्नद्यौनदी:
तृतीयानद्यानदीभ्याम्नदीभि:
चतुर्थीनहैनदीभ्याम्नदीभ्य:
पज्चमीनद्या:नदीभ्याम्नदीभ्य:
षष्ठीनद्या:नद्यो:नदीनाम्
सप्तमीनद्याम्नद्यो:नदीषु
सम्बोधनहे नदि !हे नद्यौ !हे नह्य: !

समान शब्द-गौरी, पार्वती, देवी, नारी, सुन्दरी इत्यादि शब्दरूप इसी प्रकार बनेंगे।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

(9) उकारान्त स्त्रीलिंग धेनु (गाय)

विभक्तिएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमाधेनु:धेनूधेनवः
द्वितीयाधेनुम्धेनूधेनू:
तृतीयाधेन्वाधेनुभ्याम्धेनुभि:
चतुर्थीधेन्वै, (धेनवे)धेनुभ्याम्धेनुभ्य:
पज्चमीधेन्वा:, (धेनो: )धेनुभ्याम्धेनुभ्य:
षष्ठीधेन्वा:, (धेनोः)धेन्वो:धेनुषु
सप्तमीधेन्वाम् (धेनौ)धेन्वो:धेनुषु
सम्बोधनहे धेनो !हे धेनू !हे धेनवः !

समान शब्द-रेणु, रज्जु, इत्यादि के शब्द रूप इसी प्रकार बनेंगे।

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(10) ऋकारान्त स्त्रीलिंग मातृ (माता)

विभक्तिएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमामातामातरौमातर:
द्वितीयामातरम्मातरौमातृ:
तृतीयामात्रामातृभ्याम्मातृभि:
चतुर्थीमात्रेमातृभ्याम्मातृभ्य:
पज्चमीमातु:मातृभ्याम्मातृभ्य:
षष्ठीमातु:मात्रो:मात्रणाम्
सप्तमीमातरिमात्रो:मातृषु
सम्बोधनहे मात:हे मातरौ !हे मातर:

सूचना-दुहितृ (पुत्री), ननान्दृ (ननद) शब्द के रूप भी इसी प्रकार होंगे।

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(ग) अजन्त नपुंसकलिंग
(11) अकारान्त नपुंसकलिंग शब्द-‘फल’ विभक्ति एकवचन द्विवचन

विभक्तिएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमाफलम्फलेफलानि
द्वितीयाफलम्फलेफलानि
तृतीयाफलेनफलाभ्याम्फलै:
चतुर्थीफलायफलाभ्याम्फलेभ्य:
पज्चमीफलात्फलाभ्याम्फलेभ्य:
षष्ठीफलस्यफलयो:फलानाम्
सप्तमीफलेफलयो:फलेषु
सम्बोधनहे फल !हे फले!हे फलानि !

स्मरणीय-1. इसी प्रकार से वन, नगर, उद्यान, पत्र, पुष्प, मित्र, जल, गृह, उपवन, नयन, धन आदि अकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों के रूप ‘फल’ और ‘पुस्तक’ की तरह चलते हैं। 2. अकारान्त नपुंसकलिंग शब्द की प्रथमा व द्वितीया विभक्ति को छोड़कर तृतीया से सप्तमी विभक्ति तक के रूप अकारान्त पुंल्लिंग की तरह ही चलेंगे।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

( 12 ) इकारान्त नपुंसकलिंग–’वारि’ (पानी)

विभक्तिएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमावारिवारिणीवारीणि
द्वितीयावारिवारिणीवारीणि
तृतीयावारिणावारिभ्याम्वारिभि:
चतुर्थीवारिणेवारिभ्याम्वारिभ्य:
पज्चमीवारिण:वारिभ्याम्वारिभ्य:
षष्ठीवारिण:वारिणो:वारीणाम्
सप्तमीवारिणिवारिणो:वारिष
सम्बोधनहे वारि !हे वारिणी !हे वारीणि !

सूचना-इसी प्रकार दधि, अक्षि (आँख), सक्थि (जंघा), अस्थि (हड्डी) आदि इकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों के रूप चलते

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

(13) उकारान्त नपुंसकलिंग–’मधु’ (शहद)

विभक्तिएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमामधुमधुनीमधूनि
द्वितीयामधुमधुनीमधूनि
तृतीयामधुनामधुभ्याम्मधुभि:
चतुर्थीमधुनेमधुभ्याम्मधुभ्य:
पज्चमीमधुनःमधुभ्याम्मधुभ्य:
षष्ठीमधुनःमधुनो:मधूनाम्
सप्तमीमधुनिमधुनो:मधुषु
सम्बोधनहे मधुहे मधुनीहे मधूनि

सूचना-इसी प्रकार वस्तु, सानु (पर्वत का शिखर), जानु (घुटना), तालु, दारु (लकड़ी) आदि उकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों के रूप चलते हैं।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

(घ) सर्वनाम शब्द
(14) सर्व-(सब) पुंल्लिङ्ग

विभक्तिएकवचनद्विवचनबहुप्चन
प्रथमासर्व:सर्वौसर्वे
द्वितीयासर्वम्सर्वौसर्वान्
तृतीयासर्वेणसर्वाभ्याम्सर्व:
चतुर्थीसर्वस्मैसर्वाभ्याम्सर्वेभ्यः
पज्चमीसर्वस्मात्सर्वाभ्याम्सर्वेभ्य:
षष्ठीसर्वस्यसर्वयो:सर्वेषाम्
सप्तमीसर्वस्मिन्सर्वयो:सर्वेषु

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

सर्व- (सब) स्त्रीलिङ्ग

विभक्तिएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमासर्वासर्वेसर्वाः
द्वितीयासर्वाम्सर्वेसर्वाः
तृतीयासर्वयासर्वाभ्याम्सर्वाभि:
चतुर्थीसर्वस्यैसर्वाभ्याम्सर्वाभ्य:
पज्चमीसर्वस्या:सर्वाभ्याम्सर्वाभ्य:
षष्ठीसर्वस्या:सर्वयो:सर्वासाम्
सप्तमीसर्वस्याम्सर्वयो:सर्वासु

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

सर्व- (सब) नपुंसकलिङ्ग

विभक्तिएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमासर्वम्सर्वेसर्वाणि
द्वितीयासर्वम्सर्वेसर्वाणि
तृतीयासर्वेणसर्वाभ्याम्सर्वै:
चतुर्थीसर्वस्मैसर्वाभ्याम्सर्वेभ्य:
पज्चमीसर्वस्मात्सर्वाभ्याम्सर्वेभ्य:
षष्ठीसर्वस्यसर्वयो:सर्वेषाम्
सप्तमीसर्वस्मिन्सर्वयो:सर्वेषु

सूचना-‘सर्व’ शब्द की भाँति ही विश्व, अन्य, इतर, पूर्व, पर, अपर, अधर, शब्दों के तीनों लिंगों में रूप चलते हैं।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

(15) यद् जो (पुंल्लिग)

विभक्तिएकवचनद्विवचनबहुवच्च
प्रथमाय:यौये
द्वितीयायम्यौयान्
तृतीयायेनयाभ्याम्.यै:
चतुर्थीयस्मैयाभ्याम्येभ्य:
पज्चमीयस्मात्याभ्याम्येभ्य:
षष्ठीयस्यययो:येषाम्
सप्तमीयस्मिन्ययो:येषु

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

यद् = जो (स्त्रीलिंग)

विभक्तिएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमायायेया:
द्वितीयायाम्येया:
तृतीयाययायाभ्याम्याभि:
चतुर्थीयस्येयाभ्याम्याभ्य:
पज्चमीयस्या:याभ्याम्याभ्य:
षष्ठीयस्या:ययो:यासाम् .
सप्तमीयस्याम्ययो:यासु

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

यद् = जो (नपुंसकलिंग)

विभक्तिएकवचनद्विवचन येबहुवचन
प्रथमायत्येयानि
द्वितीयायत्येयानि
तृतीयायेनयाभ्याम्यै:
चतुर्थीयस्मैयाभ्याम्येभ्यः
पज्चमीयस्मात्याभ्याम्येभ्य:
षष्ठीयस्यययो:येषाम्
सप्तमीयस्मिन्ययो:येषु

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

सूचना-इसी प्रकार

‘तद्’ (वह )स:तौ ते पुँल्लिंग)
सातेता: (स्त्रीलिंग)
तद्तेतानि (नपुंसकलिंग)
एतद् ‘ (यह)एष्:एतौ एते (पुँलिलिंग)
एषाएतेएता: (स्त्रीलिंग)
एतद्एतेएतानि (नपुंसकलिंग)
किम् ( कौन )-क:कौके (पुँलिलंग)
काकेका: (स्त्रलिंग)
किम्केकानि (नपुंसकलिंग)

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

(16) अदस् = (पुंल्लिग)

विभक्तिएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमाअसौअमूअमी
द्वितीयाअमुम्अमूअमून्
तृतीयाअमुनाअमूभ्याम्अमीभिः
चतुर्थीअमुष्मैअमूभ्याम्अमीभ्य:
पज्चमीअमुष्मात्अमूभ्याम्अमीभ्य:
षष्ठीअमुष्यअमुयो:अमीषाम्
सप्तमीअमुष्मिन्अमुयो:अमीषु

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

अदस् = वह (स्त्रीलिंग)

विभक्तिएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमाअसौअमूअमू:
द्वितीयाअमुम्अमूअमू:
तृतीयाअमुयाअमूभ्याम्अमूभि:
चतुर्थीअमुष्यैअमू भ्याम्अमूभ्य:
पज्चमीअमुष्या:अमू भ्याम्अमूभ्यः
षष्ठीअमुष्या:अमुयो:अमूषाम्
सप्तमीअमुष्याम्अमुयो:अमूषु

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् शब्दरूप प्रकरणम्

अदस् = वह (नपुंसकलिंग)

विभक्तिएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमाअद:अमूअमूनि
द्वितीयाअदःअमूअमूनि
तृतीयाअमुनाअमूभ्याम्अमीभ्य:
चतुर्थीअमुनेअमूभ्याम्अमीभ्य:
पज्चमीअमुष्मात्अमूभ्याम्अमीभ्य:
षष्ठीअमुष्यअमुयो:अमीषाम्
सप्तमीअमुष्मिन्अमुयो:अमीषु

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(ङ) संख्यावाचक एवं क्रमवाचक शब्दों के रूप

विशेषण-शब्द-ऐसे शब्द जो संज्ञा और सर्वनाम शब्दों की विशेषता बताते हैं, विशेषण शब्द कहलाते हैं। यहाँ संख्यावाचक और क्रमवाचक विशेषण शब्द दिए जा रहे हैं
संख्यावाचकशब्द-ऐसे शब्द जो वस्तुओं की संख्या का ज्ञान कराते हैं, वे संख्यावाची शब्द कहलाते हैं, जैसे-एक: (एक), द्वौ (दो), त्रयः (तीन), चत्वारः (चार) इत्यादि।
स्मरणीय:
1. एक शब्द के रूप तीनों लिंगों में और एकवचन में चलते हैं।
2. द्वि (दो) शब्द के रूप तीनों लिंगों में तथा द्विवचन में चलते हैं।
3. त्रि (तीन) एवं चतुर (चार) के रूप तीनों लिंगों में और बहुवचन में चलते हैं।
4. पञ्चन् (पाँच) से अष्टादशन् (अठारह) तक के संख्यावाची शब्दों के रूप तीनों लिंगों में समान होते हैं और बहुवचन में होते हैं।
5. एकोनविंशतिः (उन्नीस) से लेकर नवनवतिः (निन्यानवे) तक सभी संख्यावाची शब्दों के रूप स्त्रीलिंग एकवचन में होते हैं।

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(17) एक (एक) शब्द के रूप
‘एक’ शब्द सदा एकवचन में रहता है। इसके द्विवचन और बहुवचन में रूप नहीं होते हैं। इसके रूप तीनों लिंगों में भिन्न होते हैं।

विभक्तिपुँल्लिंगस्त्रीलिंगनपुंसकलिंग
प्रथमाएक:एकाएकम्
द्वितीयाएकम्एकाम्एकम्
तृतीयाएकेनएकयाएकेन
चतुर्थीएकस्मैएक्स्यैएकस्मै
पज्चमीएकस्मात्एक्स्या:एकस्मात्
षष्ठीएकस्यएकस्या:एकस्य
सप्तमीएकस्मिन्एकस्याम्एकस्मिन्

विशेष-‘एक’ शब्द के रूप एकवचन में ही चलते हैं।

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(18) द्वि (दो) शब्द के रूप

विभक्तिपुँल्लिंगस्त्रीलिंग द्वेनपुंसकलिंग
प्रथमाद्वौद्वेद्वे
द्वितीयाद्वौद्वेद्वे
तृतीयाद्वाभ्याम्द्वाभ्याम्द्वाभ्याम्
चतुर्थीद्वाभ्याम्द्वाभ्याम्द्वाभ्याम्
पज्चमीद्वाभ्याम्द्वाभ्याम्द्वाभ्याम्
षष्ठीद्वयो:द्वयो:द्वयो:
सप्तमीद्वयो:द्वयो:द्वयो:

विशेष-(1) ‘द्वि’ शब्द के रूप द्विवचन में ही चलते हैं।
(2) ‘द्वि’ शब्द के रूप स्त्रीलिंग व नपुंसकलिंग में एक समान होते हैं।

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(19) त्रि (तीन शब्द के रूप

विभक्तिपुँल्लिंगस्त्रीलिंग तिस्र: तिस्न:नपुंसकलिंग
प्रथमात्रय:तिसृभि:त्रीणि
द्वितीयात्रीन्तिसृभ्य:त्रीणि
तृतीयात्रिभि:तिसृभ्य:त्रिभि:
चतुर्थीत्रिभ्य:तिसृणाम्त्रिभ्य:
पज्चमीत्रिभ्य:तिसृषुत्रिभ्य:
षष्ठीत्रयाणाम्स्त्रीलिंग तिस्र: तिस्न:त्रयाणाम्
सप्तमीत्रिषुतिसृभि:त्रिषु

विशेष-‘त्रि’ शब्द के रूप बहुवचन में ही चलते हैं।

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(20) चतुर् (चार) शब्द के रूप

विभक्तिपुँल्लिंगस्त्रीलिंगनपुंसकलिंग
प्रथमाचत्वार:चतस्ब:चत्वारि
द्वितीयाचतुर:चतस्र:चत्वारि
तृतीयाचतुर्भि:चतसृभि:चतुर्भि:
चतुर्थीचतुर्भ्य:चतसृभि:चतुर्भ्य:
पज्चमीचतुभ्य्य:चतसृभ्य:चतुर्भ्य:
षष्ठीचतुर्णाम्चतसृणाम्चतुर्णाम्
सप्तमीचतुर्षुचतसुष्चतुर्षु

विशेष-त्रि एवं चतुर् शब्द से लेकर अष्टादशन् (अठारह) तक की संख्याओं के रूप केवल बहुवचन में ही चलते हैं।

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(21) पञ्चन् (पाँच), ( 22 ) षष् (छः) (23) सप्तन् (सात) शब्दों के रूप
(तीनों लिंगों में एक समान)

विभक्तिपउ्वन्षष्सप्तन्
प्रथमापज्चषट्, षड्सप्त
द्वितीयापज्चषट्, षड्सप्त
तृतीयापअ्चभि:षड्भि:सप्तभि:
चतुर्थीपर्चभ्य:षड्भ्य:सप्तभ्य:
पज्चमीपख्वभ्य:षड्भ्य:सप्तभ्य:
षष्ठीपख्चानाम्षण्णाम्सप्तानाम्
सप्तमीपञ्चसुषट्सुसप्तसु

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(24) अष्टन् (आठ), (25) नवन् (नौ), (26) दशन् (दस) शब्दों के रूप (तीनों लिंगों में एक समान)

विभक्तिअष्टन्नवन्दशन्
प्रथमाअष्टौ (अष्ट)नवदश
द्वितीयाअष्टौ (अष्ट)नवदश
तृतीयाअष्टाभि: (अष्टभि:)नवभि:दशभि:
चतुर्थीअष्टाभ्यः (अष्टभ्यः)नवभ्य:दशभ्य:
पज्चमीअष्टाभ्यः (अष्टभ्यः)नवभ्य:दशभ्य:
षष्ठीअष्टानाम् (अष्टानाम्)नवानाम्दशानाम्
सप्तमीअष्टासु (अष्टसु)नवसुदशसु

विशेष-इसी प्रकार एकादशन्, द्वादशन्, त्रयोदशन्, चतुर्दशन्,पञ्चदशन्, षोडशन्, सप्तदशन् और अष्टादशन् शब्दों के रूप में चलते हैं।

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क्रमवाचक/पूरण संख्यावाचक शब्द

पुंल्लिंगस्त्रीलिंग प्रथमानपुंसकलिंग
प्रथम:द्वितीयाप्रथमम्
द्वितीय:तृतीयाद्वितीयम्
तृतीय:चतुर्थीतृतीयम्
चतुर्थ:पर्चमीचतुर्थम्
पर्चम:षष्ठीपर्चमम्
पष्ठ:सप्तमीषष्ठम्
अष्टम:अष्टमीसप्तमम्
नवम:नवमीअष्टमम्
दशम:दशमीदशमस्
एकादशःएकादशीएकादशम्
द्वादशःद्वादशीद्वादशम्
त्रयोदशःत्रयोदशीत्रयोदशम्
चतुर्दशःचतुर्दशीचतुर्दशम्
पर्चदशःपर्चदशीपर्चदशम्
षोडश:षोडशीषोडशम्
सप्तदशःसप्तदशीसप्तदशम्
अष्टादशःअष्टादशीअष्टादशम्
एकोन-विंशातितमःएकोन-विंशतितमाएकोन-विंशतितमम्
विंशतितम:विंशतितमाविंशतितमम्

क्रमवाचक/पूरण संख्यावाचक शब्दों का प्रयोग |

(1) प्रथमः पाठः (पहला अध्याय)
(2) द्वितीया कथा (दूसरी कथा)
(3) द्वितीयम् नेत्रम् (दूसरी आँख)
(4) तृतीयः दिवसः (तीसरा दिन)
(5) पञ्चमी तिथि: (पाँचवीं तिथि)
(6) षष्ठमः बालक: (छठवाँ बालक)
(7) सप्तमम् पुष्पम् (सातवाँ फूल)
(8) अष्टमः नृपः (आठवाँ राजा)
(9) नवमी बालिका (नौवीं लड़की)
(10) दशमम् फलम् (दसवाँ फल)

शब्दरूपाणि अधिकृत्य वाक्येषु शब्दप्रयोगः

I. कोष्ठके प्रदत्ते शब्दे समुचित-विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत
1. हिमालयः ………………. पर्वतेषु उच्चतमः अस्ति। (सर्व)
2. ………………… बालिकाभ्यः पुस्तकानि यच्छत। (सर्व)
3. एतानि …………………. पुष्पाणि मनोहराणि सन्ति। (सर्व)
4. अस्माकं …… ……………… पुरुषाः महान्तः आसन्। (पूर्व)
5. अस्मात् ………………….. चित्रं शोभनम् आसीत्। (पूर्व)
6. सूर्यः ………………. दिशः उदयति। (पूर्व)
7. इयं कन्या कक्षायां ………………….. अतिष्ठत् । (प्रथम)
8. एतत् कन्दुकं प्रथमः छात्रः द्वितीयाय द्वितीयः …………… च यच्छतु। (प्रथम)
9. …………….. के आगमिष्यन्ति ? (प्रथम)
10. दशरथस्य …….. पुत्रेण भरतेन राज्यं न स्वीकृतम्। (द्वितीय)
11. ‘राम’-शब्दस्य ………………….. विभक्त्यां बहुवचने ‘रामाणाम्’ इति रूपं भवति। (द्वितीय)
12. मम प्रथमं मित्रं दिनेश: ………………. मित्रं च कृष्णः अस्ति। (द्वितीय)
13. कृष्णः सुदामा च द्वौ ………………….. आस्ताम्। (सखि)
14. शकुन्तलायाः प्रियंवदा-अनसूयानाम्नी द्वे ………………… आस्ताम। (सखि )
15. पत्नी ……………….. कष्टानि सहते। (पति)
16. धनानां ………………….. धनदः कथ्यते। (दातृ)
17. सुखानां ………………….. भगवत्यै नमो नमः । (दातृ)
18. वनानि एव काष्ठादीनां ………………….. भवन्ति। (दातृ)
19. ………………….. पतिः नृपतिः उच्यते। (नृ)
20. गोपाल ………………….. पयः दोग्धि। (गो)
21. मम तिस्रः ………………….. सन्ति। (स्वसृ)
22. सः ………………….. काणः अस्ति । (अक्षि)
23. स्वस्ति ते ………………….. सन्तु। (पथिन्)
24. ………………….. लता: कम्पन्ते। (मरुत्, बहुवचने)
25. यादृक् सङ्गतिः यस्य ………………….. मतिः भवति। (तादृश)
26. ………………….. फलानि न क्रेतव्यानि। (तादृश्)
27. यादृक्षु ………………….. जनेषु विश्वासः न करणीयः। (तादृश्)
28. ………………….. जनः मां न शृणोति। (अदस्)
29. एतत् पुस्तकम् …… ….. कन्यायाः अस्ति। (अदस्)
30. ……………… पुष्पाणि पश्यत। (अदस्)
31. परोपकारिणां यशः सर्वासु ………………. भवति। (दिश्)
32. विदुषां ……………… माधुर्यं सेवेत। (वाच्)
33. सज्जनाः मनसा …………………. कर्मणा च शुभम् एव कुर्वन्ति। (वाच्)
34. दुर्जनानां …………………. न विश्वसेत्। (गिर)
35. मधुरा . ………………… कस्मै न रोचते। (गिर्)
36. सर्वे ………………….. कृपणाः न भवन्ति। (धनिन्)
37. ……………….. मोचयिता मेघः पयोदः इति उच्यते। (पयस्)
38. इयं कन्या ………………….. वृक्षान् सिञ्चति। (पयस्)
39. ………………….. तन्त्राणां समाहारः पञ्चतन्त्रम् उच्यते। (पञ्चन्)
40. अद्य एका छात्रा ………………….. छात्राः च कक्षायाम् न आगच्छन्। (षष्)
41. ………………….. सगतराणां रसम् आनय। (सप्तन्)
42. अष्टाध्यायी ………………….. अध्यायानां समाहारः अस्ति। (अष्टन्)
43. ………………….. छात्रैः रक्तदानं कृतम्। (नवन्)
44. …………….. दिक्षु तव यशः प्रसरतु। (दश)
45. अस्यां पशुशालायाम् ……………. (अष्टन्)
अश्वाः ………………….. (दशन्) गावः ……………………. (पञ्चन्)
अजाः, ………………….. (सप्तन्) वृषभाः, ……….. (षष्) महीष्यः…………. (नवन्)
गर्दभाः च सन्ति।
उत्तरमाला
(1) सर्वेषु
(2) सर्वाभ्यः
(3) सर्वाणि
(4) पूर्वे
(5) पूर्वम्
(6) पूर्वस्मात्
(7) प्रथमा
(8) प्रथमाय
(9) प्रथमम्
(10) द्वितीयेन
(11) द्वितीयायाम्
(12) द्वितीयम्
(13) सखायौ
(14) सख्यौ
(15) पत्ये
(16) दाता
(17) दात्र्यै
(18) दातृणि
(19) नृणाम्
(20) गाम्
(21) स्वसारः
(22) अक्ष्णा
(23) पन्थानः
(24) मरुद्भिः
(25) तादृक्
(26) तादंशि
(27) तादृक्षु
(28) असौ
(29) अमुष्याः
(30) अमूनि
(31) दिक्षु
(32) वाचः
(33) वचसा
(34) गीर्षु
(35) गी:
(36) धनिनः
(37) पयसाम्
(38) पयसा
(39) पञ्चानाम्
(40) षट्
(41) सप्तानाम्
(42) अष्टानाम्
(43) नवभिः
(44) दशसु
(45) अष्ट, दश, पञ्च, सप्त, षट्, नव।

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HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् वाच्यपरिवर्तनम्

Haryana State Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम्  Vachya Parivartan वाच्यपरिवर्तनम् Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Sanskrit व्याकरणम् वाच्यपरिवर्तनम्

Vachya Parivartan In Sanskrit HBSE 10th Class

कर्तृवाच्य के कर्ता में प्रथमा विभक्ति और कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। अगर वाक्य को कर्मवाच्य में बदलना हो तो कर्ता की प्रथमा विभक्ति को तृतीया में और कर्म की द्वितीया विभक्ति को प्रथमा में बदल दिया जाता है। क्रिया में वचन और पुरुष कर्म के अनुसार होते हैं।
उदाहरण:
कर्तृवाच्य – कर्मवाच्य
(i) रामः ग्रामं गच्छति। रामेण ग्रामः गम्यते।
(ii) सीता फलानि खादति। सीतया फलानि खाद्यन्ते।
कर्तृवाच्य – कर्मवाच्य
(iii) अहं राजानं पश्यामि। मया राजा दृश्यते।
(iv) मोहनः गीतं गायति। मोहनेन गीतं गीयते।
(v) स: पुस्तकं पठति। तेन पुस्तकं पठ्यते।
(vi) अहं गां दोग्धि । मया गौः दुह्यते।
कर्मवाच्य के कर्ता में तृतीया विभक्ति तथा कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है। कर्मवाच्य से कर्तृवाच्य में बदलते समय कर्ता की तृतीया विभक्ति को प्रथमा में तथा कर्म की प्रथमा विभक्ति को द्वितीया में बदल देते हैं। क्रिया में वचन और पुरुष कर्ता के अनुसार होते हैं, जैसे
उदाहरणकर्मवाच्य – कर्तृवाच्य
(i) मया ग्रामः गम्यते। अहं ग्रामं गच्छामि।
(ii) निर्धनेन भूम्यां सुप्यते। निर्धनः भूम्यां स्वपिति।
(iii) मया चन्द्राज्ञया ब्रूयते। अहं चन्द्राज्ञया ब्रवीमि।
(iv) अस्माभिः रामायण-शृणुमः। वयं रामायणकथा कथा श्रूयते।
(v) ईश्वरः सर्वैः पूज्यते। सर्वे ईश्वरं पूजयन्ति।
प्रेरणार्थक (णिजन्त) प्रत्यय लगाने पर जब धातु में प्रत्यय करते हैं तो णिजन्तक्रिया के कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है।
णिजन्त कर्मवाच्य
कृष्णः ग्रामं गच्छति। (कर्तृवाच्य) देवः कृष्णं ग्रामं गमयति (णिजन्त कर्तृवाच्य)
देवेन कृष्णः ग्रामं गम्यते। (णिजन्त कर्मवाच्य) रामः कार्यं करोति । (कर्तृवाच्य)
मोहनः रामं कार्यं कारयति। (णिजन्त कर्तृवाच्य) मोहनेन रामः कार्यं कार्यते। (णिजन्त कर्तृवाच्य)
सः पाठमधीते। (कर्तृवाच्य) गुरुः तं पाठमध्यापयति। (णिजन्त कर्तृवाच्य)
गुरुणा सः पाठमध्याप्यते। (णिजन्त कर्मवाच्य)
नीचे कुछ प्रमुख धातुओं में कर्मवाच्य में लट् तथा लृट् लकार के रूप दिए जा रहे हैं

धातुलट् लकारलृट् लकार
√ब्रूउच्यतेवक्ष्यते
√हवेहूयतेहवास्यते
√कृक्रियतेकारयिष्यते
√खन्खनयते, खन्यतेखनिष्यते
√जन्जायते, जन्यतेजनिष्यते।
√तन्तायते, तन्यतेतनिष्यते।
√हन्हन्यतेघनिष्यते, हनिष्यते।
√टृश्दृश्यतेदर्शिष्यते, द्रक्ष्यते।
√गौगीयतेगायिष्यते।
√वस् (निवास)उष्यतेवत्स्यते।

Vachya Parivartan Exercises With Answers HBSE

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् वाच्यपरिवर्तनम्

कर्तृवाच्यकर्मवाच्य
1. अहं पत्रं लिखामि।1. मया पत्रं लिख्यते।
2. छात्रा: प्रार्थनां कुर्वन्ति।2. छात्रै: प्रार्थना क्रियते।
3. सज्जना: उपविशन्ति।3. सज्जनै: उपविश्यते।
4. दिनेशः लेखं लिखति।4. दिनेशेन लेख: लिख्यते।
5. पुत्र: जनकं सेवते।5. पुत्रेण जनक: सेव्यते।
6. अम्बा ओदन पचति।6. अम्बया ओदनं पच्यते।
7. पुत्रः जनकं सेवते।7. पुत्रेण जनक: सेव्यते।
8. त्वं पत्रं लिखसि।8. त्वया पत्रं लिख्यते।
9. अहं कवितां पठामि।9. मया कविता पठ्यते।
10. स: ग्रामं गच्छति।10. तेन ग्राम: गम्यते।
11. त्वं रामं पश्यसि।11. त्वया राम: दृश्यते।
12. भृत्य: भारं वहति।12. भृत्येन भार: उह्यते।
13. राम: पाठं पठति।13. रामेण पाठ: पठ्यते।
14. अशोक: लेखं लिखति।14. अशोकेन लेख: लिख्यते।
15. बालक: सिंह पश्यति।15. बालकेन सिंह: दृश्यते।
16. कृषक: अजाँ नयति।16. कृषकेण अजा नीयते।
17. मालाकार: वृक्षान् सिख्चति।17. मालाकारेण वृक्षा: सिच्यन्ते।
18. बालक: ग्रन्थं पठति।18. बालकेन ग्रन्थ: पठ्यते।
19. सुधा फलानि खादति।19. सुधया फलानि खाद्यन्ते।
20. दिनेशः जनकं प्रणमति।20. दिनेशेन जनक: प्रणम्यते।
21. अहं फलानि खादामि।21. मया फलानि खाद्यन्ते।
22. महिला: जलम् आनयन्ति।22. महिलाभि: जलम् आनीयते।
23. बालका: जलम् आनयन्ति।23. बालकै: जलम् आनीयते।
24. अहं फलानि क्रीणामि।24. मया फलानि क्रीयन्ते।
25. अहं पत्रं लिखामि।25. मया पत्रं लिख्यते।
26. त्वं कथां शृणोषि।26. त्वया कथा श्रूयते।

Sanskrit Vachya Parivartan Class 10 HBSE

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् वाच्यपरिवर्तनम्

कर्तृवाच्यभाववाच्य
1. सः गच्छति।तेन गम्यते।
2. वयम् पठामः।अस्माभिः पठ्यते।
3. सः पठति।तेन पठ्यते।
4. अहम् गच्छामि।मया गम्यते।
5. लता कथ्यति।लतया कथ्यते।
6. रामः भवति।रामेण भूयते।
7. पापाः शोचन्ति।पापैः शुच्यते।
8. वृक्षौ कम्पेते।वृक्षाभ्याम् कम्प्येते।
9. रोहितः हसति।रोहितेन हस्यते।
10. सः तरति।तेन तीर्यते।
11. बालाः हसन्ति।बालैः हस्यते।
12. शिशुः हसति।शिशुना हस्यते।

वाच्यपरिवर्तनम् HBSE 10th Class

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् वाच्यपरिवर्तनम्

1. वाच्य-परिवर्तनं कुरुत
(i) अहं पितरौ वन्दे।
(ii) भक्तः गीतां पठति।
(iii) बालक: क्रीडति।
उत्तरम्
(i) मया पितरौ वन्द्यते।
(ii) भक्तेन गीता पठ्यते।
(iii) बालकेन क्रीड्यते।

2. वाच्य परिवर्तनं कुरुत
(i) त्वं रामं पश्यसि।
(ii) स: ग्रामं गच्छति।
(iii) मोहनः लेखं लिखति।
उत्तरम्
(i) त्वया रामः दृश्यते।
(ii) तेन ग्रामः गम्यते।
(iii) मोहनेन लेखः लिख्यते।

3. वाच्य परिवर्तनं कुरुत
(i) शिशुः हसति।
(ii) अम्बा ओदनं पचति।
(iii) सुधा फलानि खादति।
उत्तरम्
(i) शिशुना हस्यते।
(ii) अम्बया ओदनं पच्यते।
(iii) सुधया फलानि खाद्यन्ते।

Vachya Parivartan HBSE 10th Class

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् वाच्यपरिवर्तनम्

4. वाच्य परिवर्तनं कुरुत
(i) अहं पत्रं लिखामि।
(ii) सः ग्रामं गच्छति।
(iii) मोहन: कथां कथयति।
उत्तरम्
(i) मया पत्रं लिख्यते।
(ii) तेन ग्रामः गम्यते।
(iii) मोहनेन कथा कथ्यते।

5. वाच्य परिवर्तनं कुरुत.
(i) त्वम् गृहं गच्छसि।
(ii) जनाः प्रदर्शनी पश्यन्ति।
(iii) दिनेश: जनकं कथयति।
उत्तरम्
(i) त्वया गृहं गम्यते।
(ii) जनैः प्रर्दशनी दृश्यते।
(iii) दिनेशेन जनक: कथ्यते।

6. वाच्य परिवर्तनं कुरुत
(i) छात्रा प्रार्थनां करोति।
(ii) सर्पाः पवनं पिबन्ति।
(iii) त्वम् मां पश्यति।
उत्तरम्:
(i) छात्रैः प्रार्थना क्रियते।
(ii) सर्पः पवनः पीयते।
(iii) त्वया अहं दृश्ये।

Vachya Parivartan In Sanskrit Class 10 HBSE

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् वाच्यपरिवर्तनम्

अभ्यास-पुस्तकम् के अभ्यास प्रश्न

1. अधोलिखितेषु वाक्येषु कर्तृपदं कर्मवाच्ये परिवर्त्य लिख्यताम्।
(अधोलिखित वाक्यों में कर्तृपद को कर्मवाच्य में परिवर्तित करके लिखिए)
यथा-
भक्तः गीतां पठति। भक्तेन गीता पठ्यते।
उत्तरम्:
(क) शिष्याः गुरून् नमन्ति। शिष्यैः गुरुवः नम्यन्ते।
(ख) पुत्रः जनकं सेवते। पुत्रेण जनकः सेव्यते।
(ग) अहं पत्रं लिखामि। मया पत्रं लिख्यते।
(घ) त्वं कवितां शृणोषि। त्वया कविता श्रूयते।

2. अधोलिखितेषु वाक्येषु कर्मपदं परिवर्त्य रिक्तस्थानपूर्तिः क्रियताम्
(अधोलिखित वाक्यों में कर्मपद को कर्तृवाच्य में परिवर्तित करके रिक्तस्थानपूर्ति भरिए)
यथा- अहं लोभं त्यजामि। मया लोभ: त्यज्यते।
उत्तरम्:
(क) आचार्याः छात्रान् उपदिशन्ति। आचार्यैः छात्राः उपदिश्यन्ते।
(ख) जनाः प्रदर्शनीं पश्यन्ति। जनैः प्रदर्शनी दृश्यते।
(ग) त्वं पुरस्कारं गृह्णासि। त्वया पुरस्कारः गृह्यते
(घ) छायाकारः छायाचित्रं रचयति। छायाकारेण छायाचित्रं रच्यते।

3. कर्मवाच्यस्य वाक्येषु क्रियापदानि लिखित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत।
(कर्मवाच्य के वाक्यों में क्रियापद लिखकर रिक्तस्थानों को भरिए)
यथा
मेघाः जलं वर्षन्ति | मेघैः जलं वृष्यते।
उत्तरम्:
(क) उपकारी मानं न अभिलषति। उपकारिणा मानः न अभिलष्यते।
(ख) राष्ट्रपतिः राष्ट्र सम्बोधयति। राष्ट्रपतिना राष्ट्रं सम्बोध्यते।
(ग) छात्राः शिक्षिकाम् अभिनन्दन्ति | छात्राभिः शिक्षिका अभिनन्द्यते।
(घ) प्रधानमन्त्री वैज्ञानिकान् सम्मानयति। प्रधानमन्त्रिणा वैज्ञानिकाः सम्मान्यन्ते।

4. मञ्जूषायाः क्रियापदानि विचित्य रिक्तस्थानानि पूर्यन्ताम्
(मञ्जूषा से क्रियापद चुनकर रिक्तस्थान भरिए-)
उत्तरम्:
(i) प्रत्यूषे उद्यानं गत्वा व्यायामः …………… । क्रियते
(ii) प्रातः दुग्धं …………… । पीयते
(iii) नित्यं दुग्धेन सह कदलीफले अपि | खाद्योते
(iv) भोजने सन्तुलिताहाराः ……………। गृह्यते
(v) वसुधया गृहवाटिकायां वृक्षाः ……………। आरोप्यन्ते
(vi) स्ववस्त्राणि स्वयं ……………। क्षाल्यन्ते
(vii) नित्यं समये ……………। पठ्यते
(viii) सायमपि ईश्वरः …………… । स्मर्यते
(ix) कदापि असत्यं न …………. उद्यते
क्षाल्यन्ते, आरोप्यन्ते, उद्यते, पीयते, गृह्यते, पठ्यते, खाद्यते, क्रियते, स्मर्यते।

Vachya Parivartan Sanskrit Class 10 HBSE

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् वाच्यपरिवर्तनम्

5. अधोलिखितवाक्यानि कर्मवाच्ये परिवर्त्यन्ताम्
(अधोलिखित वाक्यों को कर्मवाच्य में परिवर्तित कीजिए-)
कर्तृवाच्ये – कर्मवाच्ये
यथा- मालाकारः वृक्षान् सिञ्चति। मालाकारेण वृक्षाः सिच्यन्ते।
उत्तराणि:
(क) आरक्षकाः राष्ट्र रक्षन्ति। आरक्षकैः राष्ट्र रक्ष्यते।
(ख) एक: चन्द्रः तमो हन्ति। एकेन चन्द्रेण तमः हन्यते।
(ग). माता पुत्रं प्रतीक्षते। मात्रा पुत्रः प्रतीक्ष्यते।
(घ) अहं पितरौ वन्दे। मया पितरौ वन्द्यते।

6. भाववाच्ये क्रियापदानि लिखन्तु- (भाववाच्य में क्रियापद लिखिए)
उदाहरणम्
भाववाच्ये – कर्तृवाच्ये
बालकेन सुप्यते – बालकः स्वपिति।
उत्तराणि:
(i) कपोतैः …………………… कपोताः उत्पतन्ति।
(ii) बालिकया ……….. बालिका उपविशति।
(iii) भक्तैः गङ्गायाम् …………………… भक्ताः गङ्गायां स्नान्ति।
(iv) पुष्पैः ……………………. पुष्पाणि विकसिन्त।
(v) मयूरैः …………….. मयूराः नृत्यन्ति।
उत्तराणि:
(i) कपोतैः उत्पत्यते
(ii) बालिकया उपविश्यते
(iii) भक्तैः गङ्गायाम् स्नायते
(iv) पुष्पैः विकस्यते
(v) मयूरैः नृत्यते ।

Vachya Parivartan Sanskrit Exercises With Answers Class 10 HBSE

7. उदाहरणम् अनुसृत्य अधोलिखितानि वाक्यानि भाववाच्ये परिवर्त्यन्ताम्।
(उदाहरण के अनुसार अधोलिखित वाक्यों को भाववाच्य में परिवर्तित कीजिए)
कर्तृवाच्यम्
यथा-बालकाः हसन्ति (हस्)
उत्तराणि:
(i) शिशुः रोदिति (रुद्)
(ii) छात्राः अत्र तिष्ठन्ति (स्था)
(iii) सिंहः वने गर्जति (ग)
(iv) अलसः दिने स्वपिति (स्वप्)
(v) वानराः वृक्षेषु कूर्दन्ति (कू)
(vi) लता वर्धते (वृध्)
भाववाच्यम्
बालकैः हस्यते।
(i) शिशुना रुद्यते।
(ii) छात्रैः अत्र स्थीयते।
(iii) सिंहेन वने गय॑ते।
(iv) अलसेन दिने स्वप्यते।
(v) वानरैः वृक्षेषु कूर्यते।
(vi) लतया वर्थ्यते।

Vachya In Sanskrit HBSE 10th Class

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् वाच्यपरिवर्तनम्

8. कोष्ठकात् उचितपदं चित्वा रिक्तस्थानपूर्तिः क्रियताम्
(कोष्ठक से उचितपद चुनकर रिक्तस्थानपूर्ति कीजिए-)
यथा-कर्तृवाच्यम्-विद्याहीना: न शोभन्ते।
भाववाच्यम्-विद्याहीनैः न शुभ्यते। (शुभ्यते/ शोभ्यते)
(i) विमानम् उड्डयते।
विमानेन …………… । …. (उड्डीयते/ उड्डयते)
(ii) सज्जनाः उपविशन्ति।
सजनैः ………….. (उपविश्यन्ते/ उपविश्यते)
(iii) वृक्षाः
कम्पन्ते। वृक्षैः ……………। (कम्प्यते/ कम्प्यन्ते)।
(iv) विद्यार्थिनः धावन्ति।
विद्यार्थिभिः ……………। (धाव्यते/ धाव्यन्ते)
(v) सः आचार्यः भवति।
तेन आचार्येण……………। (भव्यते/भूयते)
उत्तराणि
विमानेन उड्डीयते।
सज्जनैः उपविश्यते।
वृक्षैः कम्प्यते।
विद्यार्थिभिः धाव्यते।
तेन आचार्येण भूयते।

Vachya Parivartan Sanskrit HBSE 10th Class

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् वाच्यपरिवर्तनम्

9. उदाहरणम् अनुसृत्य हेमायाः उत्तराणि कर्मवाच्ये लिख्यन्ताम्
(उदाहरण के अनुसार हेमा के उत्तर कर्मवाच्य में लिखिए-)
उत्तरसहितम्
यथा
विजयः – हेमे ! किं त्वं प्रातः चतुर्वादने उत्तिष्ठसि ?
हेमा – आम्। मया प्रातः चतुर्वादने उत्थीयते।
विजयः – किं त्वं प्रातः उत्थाय भ्रमसि, क्रीडसि, पठसि च ?
हेमा – आम्। मया प्रातः उत्थाय भ्रम्यते, क्रीड्यते, पठ्यते च।
विजयः – किं तव अग्रजः अभिनयं करोति ?
हेमा – नहि ! मम अग्रजेन अभिनयः न क्रियते।
विजयः – किं तव पितामहः वाटिकां सिञ्चति ?
हेमा – आम्। मम पितामहेन वाटिका सिञ्च्यते।
विजयः – किं ते भगिनी चिकित्साशास्त्रं पठति।
हेमा – नहि। मे भगिन्या चिकित्साशास्त्रं न पठ्यते।

Sanskrit Vachya Parivartan HBSE 10th Class

10. कर्तृपदे तृतीयाविभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत
(कर्ता में तृतीया विभक्ति का प्रयोग करके रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए-)
यथा-
(i) कन्यया चिरं सुप्तम्।
(ii) बालकेन रात्री जागरितम्।
(क) …………उच्चैः हसितम्। (जन)
(ख)………… वृक्षस्य अधः स्थितम्। (पथिक)
(ग) …………औद्योगिकक्षेत्रे विकसितम्। (भारत)
(घ) ………. तत्र उपविष्टम्। (भवत्-पुंल्लिङ्गे)
(ङ) ……….. मयि विश्वसितम्। (तत्-पुंल्लिङ्गे)
उत्तराणि
जनेन
पथिकेन
भारतेन
भवता
त्वया

Vachya Class 10 Sanskrit HBSE

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् वाच्यपरिवर्तनम्

11. मञ्जूषायाः क्रियापदानि विचित्य रिक्तस्थानानि पूर्यन्ताम्
(मञ्जूषा से क्रियापद चुनकर रिक्तस्थान भरिए-)
(i) ममतया सभायां न ………… ।
(ii) सिंहचित्रं दृष्ट्वा शिशुना …………।
(iii) तेन प्रातः पञ्चवादने ……….।
(iv) अधुना तु मया……….. ।
(v) यात्रिभिः वृक्षच्छायायाम् ……….. ।
उत्तराणि:
उपविष्टम्
रुदितम्
उत्थितम्
विसम्तुम्
उपविष्टम्।

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HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् अव्ययाः

Haryana State Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम्  Avyayah अव्ययाः Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Sanskrit व्याकरणम् अव्ययाः

व्याकरणम् अव्ययाः Class 10 HBSE

सदृशं त्रिषु लिङ्गेषु सर्वासु च विभक्तिषु।
वचनेषु च सर्वेषु यन्न व्येति तदव्ययम्॥
जो शब्द तीनों लिड्गों, सभी विभक्तियों तथा तीनों वचनों में सदा एकरूप रहते हैं, वे अव्यय शब्द कहलाते हैं।
(क) यौगिक-अव्यय
(ख) रूढ-अव्यय

(क) यौगिक-अव्यय तीन प्रकार के होते हैं
(i) कृत्-प्रत्ययान्त-धातुओं के साथ जुड़ने वाले ‘क्त्वा,’ ‘ल्यप्’ तथा ‘तुमुन्’ प्रत्ययों से निर्मित सभी शब्द अव्ययी होते हैं;
जैसे-गत्वा, उपगम्य, गन्तुम् आदि।

(i) तद्धित-प्रत्ययान्त-सामान्यतः धातुओं को छोड़कर शेष प्रातिपदिकों से जुड़ने वाला सप्तमी-विभक्ति के अर्थवाला ‘त्रल’ (त्र)-पञ्चमी विभक्ति के अर्थवाला ‘तसिल’ (त:)-अतः, यतः, जैसे-‘त्रल’ (त्र)-अत्र, यत्र, तत्र, कुत्र, सर्वत्र आदि। ततः, कुतः, सर्वतः,आदि।
‘दा’-यदा, तदा, कदा, सर्वथा आदि।
‘थाल्’ (था)-यथा, तथा, सर्वथा आदि।

(iii) अव्ययीभाव समास होने के पश्चात् निर्मित समस्तपद भी अव्ययी शब्द होता है; जैसे-प्रत्येकम्, निर्मक्षिकम्, यथायोग्यम्, अनुरूपम् आदि।

(ख) रूढ़-अव्ययों में प्र, परा, अप, सम्, अनु, अव आदि उपसर्गों ; उच्चैः, नीचैः, शनैः आदि क्रियाविशेषणों ; च, वा, अथवा आदि समुच्यबोधकों तथा अहा, अहो, अहह, हा आदि विस्मयबाधकों की गणना होती है।
वाक्यनिर्माण में इन अव्ययों का प्रयोग सबसे अधिक सरल तथा सुविधाजनक होता है। अव्ययों की संख्या 100 से भी अधिक है। यहाँ पहले पाठ्यक्रम में निर्धारित 20 अव्ययों का वाक्य प्रयोग सहित विवेचन प्रस्तुत किया जा रहा है

1. पुनः (फिर)-कृपया पुनः वदतु। (कृपया फिर से कहिए)
2. उच्चैः (जोर से, ऊँचे स्वर में)-रजनी उच्चैः पठति। (रजनी ऊँचे स्वर में पढ़ती है)
3. नीचैः (नीचे की ओर)-जलं प्रकृत्या नीचैः प्रवहति। (पानी स्वाभवतः नीचे की ओर बहता है)
4. शनैः (धीरे से)-शनैः गच्छ। (जल्दी जाओ)
5. अधः (नीचे)-अधः पश्य। (नीचे देखो)
6. चिरम् (देर से)-भवान् चिरं कथम् आयातः ? (आप देर से क्यों आए ?)
7. नूनम् (अवश्य ही)-सा नूनम् उत्तीर्णा भविष्यति। (वह अवश्य ही पास हो जाएगी।)
8. पुरा (प्राचीनकाल में)-आसीत् पुरा शूद्रको नाम राजा बभूव। (प्राचीनकाल में शूद्रक नामवाले राजा हुए)
9. खलु (निश्चय ही)- स्वामी दयानन्दः खलु मम आदर्शः। (निश्चय ही स्वामी दयानन्द मेरे आदर्श हैं।)
10. मुहुः (बार-बार, फिर से)-कोकिला मुहुः कूजति। (कोयल फिर से कूक रही है।)
11. भूयः (फिर से)-भवान् भूयः आगच्छत्! (आप फिर से आ गए।)
12. ह्यः (बीता हुआ कल)-ह्यः रविवासरः आसीत्, अद्य सोमवासरः अस्ति। (कल रविवार था, आज सोमवार है।)
13. श्वः (आनेवाला कल)-अद्य रविवासरः अस्ति, श्वः सोमवासरः भविष्यति। (आज रविवार है, कल सोमवार होगा।)
14. अद्य (आज)-अद्य सोमवासरः अस्ति । (आज सोमवार है)
15. अधुना (अब)-अधुना कः आगच्छति।
16. तूष्णीम् (चुप)-छात्रा: ! तूष्णीं तिष्ठत, अलं कोलाहलेन। (छात्रो ! चुप बैठो, शोर मत करो।)
17. कुत्र (कहाँ)-भवान् कुत्र गच्छति ? (आप कहाँ जा रहे हैं ?)
18. उपरि (ऊपर)-वृक्षस्य उपरि खगाः उड्डयन्ति । (वृक्ष के ऊपर पक्षी उड़ रहे हैं) ।
19. मा (मत)-बालकं मा ताडय। (बालक को मत पीटो)
20. न (नहीं)-अद्य विद्यालये अवकाशः न अस्ति।
21. च (और)-रामः कृष्णः च विद्यालयं गच्छतः। (राम और कृष्ण विद्यालय जाते हैं।)

व्याकरणम् अव्ययाः HBSE 10th Class

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् अव्ययाः

अव्ययपदों के अन्य उदाहरण

1. सम्प्रति/अधुना (अब)-सम्प्रति/अधुना अहम् कन्दुकेन क्रीडिष्यामि। (अब मैं गेंद से खेलूँगा।)।
2. अपि (भी)-सोमलेखा अपि पाठं पठिष्यति। (सोमलेखा भी पाठ पढ़ेगी)
3. धिक् (धिक्कार)-धिक् दुष्टम्। (दुष्ट को धिक्कार है।)
4. अहो (विस्मयसूचक)-अहो अस्य प्रभावः ! (आह! इसका कैसा प्रभाव है !)
5. खलु (निश्चयार्थक)-अयं खलु भगवान् नारायणः । (यह निश्चय ही भगवान् नारायण हैं।)
6. अति (अधिकता)-जलम् अति शीतलं वर्तते। (जल बहुत ठण्डा है)
7. दिवा (दिन में)-दिवा उलूक: न पश्यति। (दिन में उल्लू नहीं देखता।)
8. अहर्निशम् (दिन-रात)-एषः छात्रः अहर्निशं पठति। (यह विद्यार्थी दिन-रात पढ़ता है।)
9. कदा (कब)-तव पिता कदा आगमिष्यति ? (तुम्हारे पिता जी कब आएँगे ?)
10. यदा (जब)-यदा त्वं गमिष्यसि, तदा अहमपि गमिष्यामि। (जब तू जाएगा, तब मैं भी जाऊँगा।)
11. तदा (तब)-तदा मनोहरः अपि आगच्छत् । (तब मनोहर भी आ गया।)
12. सदा, सर्वदा (सदा, हमेशा)-सदा । (सर्वदा) सत्यं वदत। (सदा सत्य बोलो।)
13. च (और)-राकेश: सुरेन्द्रः च पठतः । (राकेश और सुरेन्द्र पढ़ते हैं।)
14. अद्य (आज)-त्वं अद्य न गच्छ। (तू आज न जा।)
15. तत्र (वहाँ)-अहं तत्र पठामि। (मैं वहाँ पढ़ता हूँ।)
16. अत्र (यहाँ)-अत्र न उपविश। (यहाँ न बैठ।)
17. कुत्र (कहाँ)-ते कुत्र वसन्ति ? (वे कहाँ रहते हैं ?)
18. शनैः (धीरे)-लता शनैः गच्छति। (लता धीरे जाती है।)
19. बहिः (बाहर)-बहिः कोऽस्ति ? (बाहर कौन है ?)
20. शीघ्रम् (जल्दी)-शीघ्रं गृहं गच्छ। (जल्दी घर जा।)
21. परितः (चारों ओर)-विद्यालयं परितः वृक्षाः सन्ति। (विद्यालय के चारों ओर वृक्ष हैं।)
22. कुतः (कहाँ)-त्वं कुतः आयातः असि ? (तुम कहाँ से आए हो ?)
23. प्रातः (सुबह)-त्वं प्रातः कुत्रं गच्छसि ? (तुम सुबह कहाँ जाते हो ?)
24. सर्वतः (सब ओर से)-अधुना सर्वतः भयम् अस्ति। (अब सब ओर से भय है।)
25. सह (साथ)-त्वं विनयेन सह गच्छ। (तू विनय के साथ जा।)
26. अलम् (बस)-अलं विवादेन । (विवाद मत करो।)
27. अभितः (दोनों ओर)-ग्रामम् अभितः नदी वहति।
28. नमः (नमस्कार)-देवाय नमः।
29. विना (बगैर)-रामं विना कः सहायतां करिष्यति।
30. सार्धम् (साथ)-अहं तव्या सार्धम् गमिष्यामि।
31. अलम् (‘बस)-अलं विवादेन।
32. उभयतः (दोनों ओर)-ग्रामम् उभयतः नदी वहति ।
33. सह (साथ)-अहं त्वया सह गमिष्यामि।
34. इदानीम् (अब)-इदानीं ध्यानेन पठ।
35. सर्वत्र (सब जगह)-सर्वत्र धनम् एव बलम् अस्ति।
36. प्रतिदिनम् (हर रोज़)-प्रतिदिनम् ईश्वरं भज।
37. एकदा (एक बार)-एकदा अत्र मोहनः आगतः आसीत्।
38. कुतः (कहाँ से)-सः कुतः आगच्छति ?
39. प्रायः (लगभग)-सः प्रायः प्रतिदिनम् एव मन्दिरं गच्छति। (वह लगभग हर रोज़ ही मन्दिर जाता है।)
40. किल (‘कहते हैं’ के अर्थ में)-बभूव योगी किल कार्तवीर्यः । (कहते हैं कि कोई कार्तवीर्य नामक योगी हुआ।) (नकली कार्य की घोषणा के लिए )-प्रसह्य सिंहः किल गां चकर्ष। (मानो सिंह ने गाय को जबरदस्ती खींच लिया।) (आशा प्रकट करने के लिए)-पार्थः किल विजेष्यति कुरुन्। (आशा है कि अर्जुन कौरवों को अवश्य ही जीत लेगा।)
41. ईषत् (थोड़ा सा)-सा ईषत् विहस्य अवदत्। (वह थोड़ा सा हँसकर बोली।)
42. सायम् (सायंकाल)-सः प्रातः आगच्छति सायं च गच्छति। (वह सवेरे आता है और सायंकाल चला जाता है।)
43. ऋते (विना)-परिश्रमात् ऋते सफलता न लभते। (परिश्रम के बिना सफलता नहीं मिलती)
44. युगपत् (एकसाथ)-युगपत् एव सुख-मोहौ उपस्थितौ।
45. सहसा (अचानक)-सहसा अध्यापिका आगच्छत्। (अचानक अध्यापिका आ गई।)
46. मिथ्या (झूठ)-भवान् मिथ्या कथं वदति। (आप झूठ क्यों बोलते हैं।)

Sanskrit व्याकरणम् अव्ययाः HBSE 10th Class

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् अव्ययाः

अभ्यास-पुस्तकम् के अव्यय-विषयक अभ्यास प्रश्न

1. मञ्जूषातः उचितानि अव्ययपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत(मञ्जूषा से उचित अव्ययपद चुनकर रिक्तस्थान भरिए-)
मञ्जूषा
नूनम्, उच्चैः, अद्य, बहिः, मा, उपरि, अधः, अपि, अतः, विना, इतस्ततः, च सर्वत्र।
अनुच्छेदः
वने (i) ……… पशुमहोत्सवः अस्ति। मञ्चस्य (ii) ………… सिंह: विराजते। आकाशे (iii) ………… मेघाः सन्ति। मेघान् दृष्ट्वा मयूराः वृक्षाणाम्। (iv) ……… नृत्यन्ति। पशवः (v) ………… भ्रमन्ति। सर्पः कोटरात् (vi) ………….. आगच्छति। सर्पात् भीताः पशवः कोलाहलं कुर्वन्ति । कोलाहलं श्रुत्वा सिंहः (vii) ………….. गर्जति आदिशति च-भोः ! कोलाहलं (vii) ……….. कुरुत। शृणुत नूनम् अस्माकं जीवनं वृक्षान् (ix) ………… असम्भवम् । वृक्षाः फलानि छायां (x) …….दत्त्वा अस्मान् उपकुर्वन्ति। (xi) ………….अस्माभिः वने। (xii) …………वृक्षाः रक्षणीयाः। (v) इतस्ततः (x) च
उत्तरम्:
(i) अद्य
(ii) उपरि
(iii) च सर्वत्र
(iv) अधः
(vi) बहिः
(vii) उच्चैः
(viii) मा
(ix) विना
(xi) अतः
(xii) सर्वत्र

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् अव्ययाः

2. अव्ययपदानि रेखाकितानि कुरुत (अव्ययपद रेखाकित कीजिए-)
(i) अलसस्य कुतः विद्या, अविद्यस्य कुत: धनम्।
अधनस्य कुतः मित्रम्, अमित्रस्य कुतः सुखम् ॥
(ii) शनैः कन्था शनैः पन्थाः शनैः पर्वतलवनम्।।
शनैः विद्या शनैः वित्तम् पञ्चैतानि शनैः शनैः ॥
(iii) त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव ।
त्वमेव सर्वं मम देवदेव॥
(iv) वृथा वृष्टिः समुद्रेषु, वृथा तृप्तस्य भोजनम्।
वृथा दानं समर्थस्य, वृथा दीपो दिवाऽपि च ॥
(v) यावत् स्थास्यन्ति गिरयः सरितश्च महितले।
तावद् रामायणी कथा, लोकेषु प्रचरिष्यति॥
उत्तरम्:
(i) अलसस्य कुतः विद्या, अविद्यस्य कुतः धनम्।
अधनस्य कुतः मित्रम्, अमित्रस्य कुतः सुखम् ॥
(ii) शनैः कन्था शनैः पन्थाः शनैः पर्वतलवनम्।
शनैः विद्या शनै: वित्तम् पञ्चैतानि शनैः शनैः ॥
(iii) त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव ।
त्वमेव सर्वं मम देवदेव॥
(iv) वृथा वृष्टिः समुद्रेषु, वृथा तृप्तस्य भोजनम्।
वृथा दानं समर्थस्य, वृथा दीपो दिवाऽपि च॥
(v) यावत् स्थास्यन्ति गिरयः सरितश्च महितले।
तावद् रामायणी कथा, लोकेषु प्रचरिष्यति॥
अव्ययानि
(i) कुतः, कुतः, कुतः, कुतः।
(ii) शनैः, शनैः, शनैः, शनैः, शनैः, शनैः, शनैः।
(iii) एव, च, एव, एव, च, एव, एव, एव, एव ।
(iv) वृथा, वृथा, वृथा, वृथा दिवा, अपि, च।
(v) यावत्, च, तावद्।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् अव्ययाः

परीक्षा में प्रष्टव्य अव्यय-विषयक प्रश्न (अव्यय पदों से रिक्त स्थान पूर्ति)

1. मञ्जूषातः उचित-अव्ययपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
मञ्जूषा
तत्र, परितः, मृषा, यत्र, च
(i) उपवनं …………. वृक्षाः शोभन्ते।
(ii) …………… पुस्तकालयः …………. पाठकाः ।
(iii) त्वमेव माता …………… पिता त्वमेव।
(iv) त्वं …………… वदसि।
उत्तरम्
(i) उपवनं परितः वृक्षाः शोभन्ते।
(ii) यत्र पुस्तकालयः तत्र पाठकाः।
(iii) त्वमेव माता च पिता त्वमेव।
(iv) त्वं मृषा वदसि।

2. मञ्जूषातः उचित-अव्ययपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
मञ्जूषा
यत्र, अधुना, मा, पुरा, तत्र
(i) ……………. वयं पत्रं लिखामः ।
(ii) …. दशरथो नाम राजा बभूव।
(ii) आलस्यं ……………. कुरु।
(iv) ……………. सः पठति।
(v) ………………. एव अहं पठामि।
उत्तरम्
(i) अधुना वयं पत्रं लिखामः ।
(ii) पुरा दशरथो नाम राजा बभूव ।
(ii) आलस्यं मा कुरु।
(iv) यत्र सः पठति।
(v) तत्र एव अहं पठामि।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् अव्ययाः

3. मञ्जूषातः उचित-अव्ययपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
मञ्जूषा
मृषा, तत्र, अपि, ह्यः, बहिः
(i) ………….. रविवारः आसीत् ।
(ii) विद्यालयात् ………….. किम् अस्ति ?
(iii) ……………… एका कन्या ……………. क्रीडति।
(iv) त्वं …………… वदसि।
उत्तरम्
(i) ह्यः रविवारः आसीत्।
(ii) विद्यालयात् बहिः किम् अस्ति ?
(iii) तत्र एका कन्या अपि क्रीडति।
(iv) त्वं मृषा वदसि।

4. निम्नलिखित वाक्यों को मञ्जूषा में दिए गए अव्ययों से पूरा कीजिए
मञ्जूषा
अत्र, पुरा, यदा, तदा, खलु, इति
हिमाचल: देवभूमिः ……….. कथ्यते।
देवानाम् ………….. निवासः अस्ति।
एषः ऋणीणां मुनीनां भूमिः ……..।
………….. ऋषयः अत्र तपः कुर्वन्ति स्म।
……….. ग्रीष्मः भवति अत्र आनन्ददायकं वातावरणं भवति ।
उत्तराणि:
(i) इति,
(ii) अत्र
(iii) खलु
(iv) पुरा
(v) यदा
(vi) तदा।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् अव्ययाः

5. अव्ययपदैः वाक्यनिर्माणं कुरुत
मञ्जूषा
सहसा, अत्र, श्वः, अपि, उच्चैः
उत्तराणि
(i) सहसा (अचानक)-सः सहसा आगच्छत्।
(ii) अत्र (यहाँ)-अत्र अहं पठामि।
(iii) श्वः (आने वाला कल)-अद्य रविवारः अस्ति श्वः सोमवारः भविष्यति।
(iv) अपि (भी)-अहम् अपि संस्कृतं पठामि।
(v) उच्चैः (जोर से)-सः उच्चैः गायति।

6. अव्ययपदैः वाक्यनिर्माणं कुरुत
मञ्जूषा
पुरा, तत्र, कदा, मा, शनैः शनैः
उत्तराणि:
(i) पुरा (प्राचीन)-पुरा दशरथो नाम राजा बभूव।
(ii) तत्र (वहाँ)-तत्र सः पठति।।
(iii) मा (मत)-परधनहरणं मा कुर्यात्।
(iv) शनैः शनैः (धीरे-धीरे)-धनार्जनं शनैः-शनैः करणीयम्।
(v) कदा (कब)-त्वं कदा आगमिष्यसि ?

7. अव्ययपदैः वाक्यनिर्माणं कुरुत
मञ्जूषा
अधुना, ह्यः यत्र, वृथा, सर्वत्र।
उत्तराणि
(i) अधुना (अब)-अधुना वयं पत्रं लिखामः।
(ii) ह्य (बीता हुआ कल)-ह्यः विद्यालये उत्सवः आसीत्।
(iii) यत्र (जहाँ)-यत्र सः गच्छति अहम् अपि तत्र गच्छामि।
(iv) वृथा (बेकार)-अलं वृथा विवादेन।
(v) सर्वत्र (सब जगह)-ईश्वरः सर्वत्र अस्ति।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् अव्ययाः

8. अव्ययपदैः वाक्यनिर्माणं कुरुत
मञ्जूषा
यदा, श्वः, पुरा।
उत्तराणि:
(i) यदा भानुः उदयति ।
(ii) श्वः सोमवारः भविष्यति ।
(iii) पुरा दशरथो नाम राजा बभूव।

9. अव्ययपदैः वाक्यनिर्माणं कुरुत
मञ्जूषा
अधुना, तत्र, मा।
उत्तरम्:
(i) अधुना अहं विद्यालयं गच्छामि।
(ii) तत्र न गच्छ, विडालः अस्ति।
(iii) आलस्यं मा कुरु।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् अव्ययाः

10. मञ्जूषातः उचित अव्ययपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
(i) उपवनं ……………. वृक्षाः शोभन्ते।
(ii) ………….. बालकाः पादकन्दुकेन क्रीडन्ति।
(iii) केचन जनाः ………….. भ्रमन्ति।
(iv) …………….. मालाकारः भूमिं खनति।
(v) वयम् अपि पुष्पाणि ………….. सदा प्रसन्नाः भवेम।
मञ्जूषा
इव, शनैः शनैः, परितः, एकतः, अत्र
उत्तरम्
(i) उपवनं परितः वृक्षाः शोभन्ते।
(ii) एकतः बालकाः पादकन्दुकेन क्रीडन्ति।
(iii) केचन जनाः अत्र भ्रमन्ति।
(iv) शनैः शनैः मालाकारः भूमिं खनति।
(v) वयम् अपि पुष्पाणि इव सदा प्रसन्नाः भवेम।

11. मञ्जूषातः उचित अव्ययपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
(i) उद्यानं …………… पुष्पाणि विकसन्ति।
(ii) वने …………… पशुमहोत्सवः अस्ति।
(iii) मञ्चस्य …………… सिंह: विराजते।
(iv) मेघान् दृष्ट्वा मयूराः वृक्षाणाम् …………. नृत्यन्ति।
(v) पशवः ……… भ्रमन्ति।
मञ्जूषा
अधः, परितः, इतस्ततः, उपरि, अपि
उत्तरम्
(i) उद्यानं परितः पुष्पाणि विकसन्ति।
(ii) वने अपि पशुमहोत्सवः अस्ति।
(iii) मञ्चस्य उपरि सिंहः विराजते।
(iv) मेघान् दृष्ट्वा मयूराः वृक्षाणाम् अधः नृत्यन्ति।
(v) पशवः इतस्ततः भ्रमन्ति।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् अव्ययाः

12. मञ्जूषातः उचित अव्ययपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
(i) गृहं ……………. जलम् अस्ति।
(ii) सर्पः कोटरात् ……………. आगच्छति।
(iii) कोलाहलं …………… कुरुत।
(iv) अस्माकं जीवनं वृक्षान् ………………. असम्भवम्।
(v) कोलाहलं श्रुत्वा सिंहः ……………… गर्जति।
मज्जूषा
विना, उच्चै:, परितः, मा, बहि:
उत्तरम्
(i) गृहं परितः जलम् अस्ति।
(ii) सर्पः कोटरात् बहिः आगच्छति।
(iii) कोलाहलं मा कुरुत।
(iv) अस्माकं जीवनं वृक्षान् विना असम्भवम्।
(v) कोलाहलं श्रुत्वा सिंहः उच्चैः गर्जति।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् अव्ययाः

अभ्यासार्थ अव्यय-विषयक बहुविकल्पीय प्रश्न

1. अधोलिखित-प्रश्नानां प्रदत्तोत्तरविकल्पेषु शुद्धं विकल्पं विचित्य लिखत
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर के लिए दिए गए विकल्पों में से शुद्ध विकल्प चुनकर लिखिए-)
(क) ……….. शीतं मया नीतं जानुभानुकृशानुभिः । (रिक्तस्थानपूर्तिः अव्ययपदेन)
(i) एव
(ii) बत
(iii) प्रति
(iv) इत्थम्।
उत्तरम्:
(iv) इत्थम्।

(ख) तौ न्यायाधीशं …….. प्रस्थितौ। (रिक्तस्थानपूर्तिः अव्ययपदेन)
(i) एवं
(ii) ह्यः
(iii) प्रति
(iv) च।
उत्तरम्:
(iii) प्रति।

(ग) एक …… खगो मानी वने वसति चातकः । (रिक्तस्थानपूर्तिः अव्ययपदेन)
(i) एव
(ii) ह्यः
(iii) न
(iv) च।
उत्तरम्:
(i) एव

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् अव्ययाः

(घ) ………. प्रचीयन्ते संव्यवहारणां वृद्धिलाभाः ? (रिक्तस्थानपूर्तिः अव्ययपदेन)
(i) अपि
(ii) ह्यः
(iii) न
(iv) च।
उत्तरम्:
(i) अपि

(ङ) सेवा ……… श्रेष्ठं कर्म येन हृदयपरिवर्तनमपि जायते। (रिक्तस्थानपूर्तिः अव्ययपदेन)
(i) पुरा
(ii) ह्यः
(iii) न
(iv) एव।
उत्तरम्:
(iv) एव
(च) निहन्यन्ते ………… विवशाः प्राणिनः। (रिक्तस्थानपूर्तिः अव्ययपदेन)
(i) पुरा
(ii) ह्यः
(iii) न
(iv) च।
उत्तरम्:
(iv) च

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HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

Haryana State Board HBSE 10th Class Sanskrit Solutions व्याकरणम्  Pratyaya प्रत्ययाः Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

प्रकृति-प्रत्यय संस्कृत Class 10 HBSE

I. मतुप् प्रत्यय
मतुप् प्रत्यय ‘अस्य अस्ति’ (इसका है), ‘अस्मिन् अस्ति’ (इसमें है) इन दो अर्थों में प्रयोग किया जाता है। इन्हीं अर्थों में कुछ और भी प्रत्यय विशेषण बनाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। मतुप् प्रत्यय का वत् शेष रहता है। अकारान्त शब्दों को छोड़कर शेष शब्दों में वत् का मत् बन जाता है। मतुप् – प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिङ्गों में रहते हैं। इनके शब्द रूप पुंल्लिग में ‘बलवत्’ शब्द की तरह नपुंसकलिङ्ग में ‘जगत्’ शब्द की तरह तथा स्त्रीलिङ्ग में ‘नदी’ शब्द की तरह बनते हैं।
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaranPratyaya img-1

प्रत्ययाः HBSE 10th Class

II. ‘इन्’ प्रत्यय
‘णिनि’ प्रत्यय का ‘इन्’ शेष रहता है। ‘इन्’ प्रत्यय स्वार्थ (वाला अर्थ) में जोड़कर विशेषण शब्द बनाए जाते हैं। णिनि
(इन्) प्रत्यय के कुछ प्रमुख उदाहरण
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaranPratyaya img-2
इनके रूप पुँल्लिग में ‘शशिन्’ की तरह, स्त्रीलिंग में ‘नदी’ की तरह तथा नपुंसकलिंग में ‘वारि’ शब्द की तरह चलते हैं।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

Sanskrit Pratyay HBSE 10th Class

III. तल, त्व प्रत्यय
ये प्रत्यय संज्ञा, विशेषण या अव्यय निर्माण करने के लिए लगाए जाते हैं। त्व प्रत्ययान्त शब्द सदैव नपुंसकलिङ्ग और भाववाचक होता है।
‘तल्’ प्रत्यय भी भाव अर्थ में लगाया जाता है। तल्’ प्रत्यय लगाने से शब्द के साथ ‘ता’ लग जाता है। तल् प्रत्ययान्त शब्द सदैव स्त्रीलिङ्ग होता है।
‘त्व’ तथा ‘तल्’ (ता) प्रत्ययान्त शब्दों के कुछ प्रमुख उदाहरण:
शब्द – प्रत्यय – प्रत्ययान्तरूप
(क) नर + त्व = नरत्वम्
(ख) पशु + त्व = पशुत्वम्
(ग) भ्रातृ + त्व = भ्रातृत्वम्
(घ) गुरु + त्व = गुरुत्वम्
(ङ) महत् + त्व = महत्त्व
(च) वीर + त्व = वीरत्त्वम्
(छ) मूर्ख + त्व = मूर्खत्वम्
(ज) ब्राह्मण + त्व = ब्राह्मणत्वम्
(झ) भीरु + त्व = भीरुत्वम्
(ब) देव + त्व = देवत्वम्
(ट) लघु + त्व = लघुत्वम्
(ठ) पटु + त्व = पटुत्वम्
(ड) कटु + त्व = कटुत्वम्

IV. इक (ठ) प्रत्यय
‘ठक’ तथा ‘ठञ्’ प्रत्यय को ‘इक’ आदेश हो जाता है। ‘इक’ प्रत्यय लगाकर ‘वाला अर्थ’ में निम्न प्रकार से कुछ विशेषण शब्द बनाए जाते हैं-
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaranPratyaya img-3
परिभाषा- याज्ञिकम् कृदन्त प्रत्यय परिभाषा-कृदन्त प्रत्यय धातुओं के अन्त में जुड़ते हैं। इन प्रत्ययों को जोड़ने से नाम और अव्यय बनते हैं।
सूचना-प्रायः सभी धातरूपों के अन्त में उन धातुओं के कृदन्त रूप भी दिए गए हैं, वहाँ देख सकते हैं।

शतृ-शानच् प्रत्ययान्तशब्द
शतृ-प्रत्ययान्त शब्द बनाने के लिए धातुओं से परे ‘अत्’, लगाया जाता है-शत > अत् । ‘शानच्’ प्रत्यय का ‘आन’ या ‘मान’ बन जाता है। परस्मैपदी धातुओं के परे ‘अत्’ लगाया जाता है। आत्मनेपदी धातुओं के परे भ्वादिगण, दिवादिगण, तुदादिगण और चुरादिगण में ‘मान’ तथा शेष गणों में आन’ लगता है।
कुछ धातुओं के शतृ-शानच्-प्रत्ययान्त रूप नीचे दिए जाते हैं
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaranPratyaya img-4

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

क्त तथा क्तवतु प्रत्ययों के नियम

नियम (1) क्त प्रत्यय किसी भी धातु से लगाया जा सकता है। इस प्रत्यय के (क) का लोप हो जाता है और फिर धातु के (इ), (उ) और (ऋ) गुण नहीं होता है, जैसे
जितः, भूतः, कृतः, श्रुतः, स्मृतः आदि।

नियम (2) क्तवतु प्रत्यय कर्तृवाच्य में प्रयुक्त होता है और कर्ता में प्रथमा विभक्ति और कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। क्तवतु प्रत्ययान्त शब्द में वचन तथा विभक्ति आदि कर्ता के अनुसार होंगे, जैसे
रामः ग्रामं गतवान्।

नियम (3) गत्यर्थक, अकर्मक और किसी उपसर्ग से युक्त स्था, जन्, वस्, आस्, सह् तथा जृ धातुओं से कर्ता के अर्थ में क्त प्रत्यय होता है, जैसे
(i) गगां गतः।
(ii) राममनुजातः।

नियम (4) सेट् धातुओं में क्त प्रत्यय करने पर धातु तथा प्रत्यय के बीच में ‘इ’ आ जाता है। जैसेईक्ष् + इ + त = ईक्षितः। पठ् + इ + त = पठितः । सेव् + इ + त = सेवितः । कुप् + इ + त = कुपितः ।

नियम (5) यज्, प्रच्छ्, सृज, इन धातुओं से त प्रत्यय परे होने पर इनके अन्तिम वर्ण को ष् तथा यज् एवं प्रच्छ को सम्प्रसारण हो जाता है, अर्थात् ‘व’ को ‘इ’ तथा ‘र’ को ‘ऋ’ हो जाता है। फिर ‘त् ‘ को ‘ट्’ होता है, जैसे
यज् + तः = इष्ट: ।
प्रच्छ + तः = पृष्टः ।
सृज् + तः = सृष्टः ।

नियम (6) शुष् धातु से परे ‘त’ को ‘क’ हो जाता है, जैसेशुष् + त = शुष्कः ।

नियम (7) पच् धातु से परे क्त = ‘त’ प्रत्यय होने पर ‘त’ का ‘व’ हो जाता है, जैसेपच् + क्त = पक्वः।

नियम (8) दा (देने) धातु को क्त प्रत्यय परे होने पर ‘दत्’ हो जाता है, जैसेदा + त = दत्तः ।

नियम (9) धातु के अन्तिम श् को ‘घ’ हो जाता है और ‘ष्’ से परे (त्) को (ट) हो जाता है, जैसेनश् + त = नष्ट: । दृश् + त = दृष्टः । स्पृश् + त = स्पृष्टः।

नियम (10) जिन अनिट् धातुओं के अन्त में ‘द’ होता है उनसे आगे आने वाले क्त प्रत्यय के ‘त्’ को ‘न्’ तथा धातु के ‘द’ को भी न हो जाता है, जैसे
छिद् = तः = छिन्नः।
खिद् + तः = खिन्नः।
भिद् + तः = भिन्नः।
तुद् + तः = तुन्नः।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

नियम (11) धातु के अन्त के न् को म् तथा धातु के बीच में आने वाले अनुस्वार आदि का लोप हो जाता है, जैसे
गम् + तः = गतः ।
रम् + तः = रतः ।
हन् + तः = हतः।
तन् + तः = ततः ।
मन् + तः = मतः ।
नम् + तः = नतः।
अपवाद-जन् धातु के न्’ को ‘अ’ हो जाता ह-जन् + क्त = जातः । श्रम, भ्रम्, क्षम्, दम्, वम्, शम्, क्रम, कम् धातुओं की उपधा को दीर्घ हो जाता है, जैसे-श्रान्तः, भ्रान्तः, दान्तः, वान्तः, शान्तः, क्रान्तः इत्यादि।

नियम (12) चुरादिगण की धातुओं से आगे (इत) लगाकर क्तान्त रूप बन जाता है, जैसे
चुर् + इत = चोरितः।
कथ् + इत = कथितः।
गण + इत = गणितः।
निन्द् + इत = निन्दितः।

नियम (13) निम्नलिखित धातुओं में सम्प्रसारण अर्थात् ‘य्’ को ‘इ’ तथा ‘र’ को ‘ऋ’ होता है, जैसे
वद् + त = उक्तः।
वस् + त = उषितम्।
वप् + त = उप्तः।
वद् + त = उदितः।
वह् + न = ऊढः।
यज् + त = इष्टः।
हवे + त = हूतः।
प्रच्छ + त = पृष्टः।
व्यध् + त = विद्धः।
ग्रह् + त = गृहीतः।
स्वप् + त = सुप्तः।
ब्रू (वच्) + क्त = उक्तः।
मुख्य-मुख्य धातुओं के क्त तथा क्तवत् प्रत्ययों के रूप
(पुंल्लिङ्ग प्रथमा विभक्ति एकवचन में)
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaranPratyaya img-5
क्त्वा-प्रत्ययान्त वाक्य में दो क्रियाओं के होने पर जो क्रिया पहले समाप्त हो जाती है उसे बताने वाली धातु से क्त्वा प्रत्यय जोड़ा जाता है |
नियम-क्त्वा प्रत्यय के परे होने पर रूपसिद्धि के लिए वही नियम लागू होते हैं, जो क्त प्रत्यय के होने पर होते हैं।
क्त्वा-प्रत्ययान्त शब्द अव्ययी होते हैं, जैसे
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaranPratyaya img-6
विशेष-यदि धातु से पूर्व उपसर्ग हो तो क्त्वा के स्थान पर ‘य’ (ल्यप्) लगता है, जैसेउपसर्ग धातु
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaranPratyaya img-7

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

तुमुन्-प्रत्ययान्त
जब कोई कार्य अन्य (भविष्यत्) अर्थ के लिए किया जाए तो धातु से परे ‘तुमुन्’ प्रत्यय आता है। ‘तुमुन्’ का ‘तुम्’ शेष रह जाता है। जैसे
पठ् + तुमुन् = पठितुम्-पढ़ने के लिए।
ध्यान रहे तुम् प्रत्यय के परे होने पर पूर्व इ, ई, उ, ऊ, ऋ तथा उपधा के इ, उ तथा ऋ को गुण हो जाता है, जैसे
जि + तुम् = जेतुम्,
कृ + तुम् = कर्तुम्
नी + तुम् = नेतुम् ,
वृध् + तुम् = वर्धितुम्,
पठ् + तुमुन् = पठितुम्
भुज् +तुम् = भोक्तुम्
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaranPratyaya img-8

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

तव्यत्, अनीयर् तथा यत्

विधिकृदन्त शब्द धातु से परे तव्यत्, अनीयर् और यत् लगाने से बनते हैं। ‘तव्यत्’ का तव्य, ‘अनीयर्’ का अनीय तथा ‘यत्’ का य शेष रहता है।
नियम (1) तव्यत् तथा अनीयर् प्रत्यय के परे होने पर धातु के अन्तिम स्वर को गुण होता है; अर्थात् इ/ई, को ‘ए’, उ/ ऊ को ‘ओ’ और ‘ऋ’ को ‘अर्’ हो जाता है ; जैसे
जि + तव्यत् = जेतव्यः।
नी + तव्यत् = नेतव्यः।
स्तु + तव्यत् = स्तोतव्यः ।
हु + तव्यत् = होतव्यः ।

नियम (2) तव्यत् तथा अनीयर् प्रत्यय सकर्मक धातुओं से कर्म में होते हैं और वाक्य में अर्थ की उपेक्षा करने पर भाव में भी हो जाते हैं। अकर्मक धातुओं से भाव में ही यह प्रत्यय होता है।

नियम (3) अनीयर (अनीय) प्रत्यय के परे होने पर ‘इ’ का आगम नहीं होता, प्रत्युत इ, उ को गुण करके क्रमशः, ‘अय्’, ‘अव्’ आदेश कर देते हैं ; जैसे
श्रि + अनीयर् = श्रे + अनीयर् = श्रयणीयः।
भू + अनीयर् = भो + अनीयर् = भवनीयः।

नियम (4) कर्म में प्रत्यय करने पर कर्ता में तृतीया और कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है और क्रिया कर्म के अनुसार होती है ; जैसे
तेन ग्रामः गन्तव्यः।

नियम (5) भाव में प्रत्यय करने पर कर्ता में तृतीया विभक्ति होती है और तव्य प्रत्ययान्त शब्द में नपुंसकलिङ्ग, प्रथमा विभक्ति एकवचन होता है ; जैसे
तेन गन्तव्यम्। तेन कर्तव्यम्। तेन स्मरणीयम्।

नियम (6) अजन्त धातुओं से यत् ‘य’ प्रत्यय होता है। यत् प्रत्यय होने पर अजन्त धातुओं के (ई) तथा (उ) को गुण हो जाते हैं। जैसे
चि + यत् = चेयम।
जि + यत् = जेयम्।
नी + यत् = नेयम्।
श्र + यत् = श्रव्यम्।

नियम (7) यत् प्रत्यय के परे होने पर आकारान्त धातु के ‘आ’ को ‘ए’ हो जाता है ; जैसे
पा + य = पेयम्।
स्था + य = स्थेयम्।
चि + य = चेयम्।
जि + य = जेयम्।
मुख्य-मुख्य धातुओं के तव्यत्, अनीयर् और यत् प्रत्ययान्त शब्द नीचे दिए गए हैं
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaranPratyaya img-9

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

स्त्रीप्रत्यय
पुँल्लिग शब्दों के स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए जो प्रत्यय जोड़े जाते हैं, उन प्रत्ययों को ‘स्त्री प्रत्यय’ कहते हैं। संस्कृत व्याकरण के अनुसार इस प्रकार के चार प्रत्यय हैं
(1) आ,
(2) ई,
(3) ऊ,
(4) ति।

नियम 1. अकारान्त पुंल्लिग शब्दों के स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए प्रायः उनके आगे ‘आ’ लगाया जाता है; जैसे

पुँल्लिड्न्गस्त्रीलिड्रपुँल्लिड्गस्त्रीलिड्र
अजअजाअश्वअश्वा
(2003-C,2004-A)(2003-C,2004-A)निपुणनिपुणा
वत्सवत्सामूषकमूषिका
(2003-A)(2003-A)अचलअचला
चटकचटकाक्षत्रियक्षत्रिया
वैश्यवैश्याप्रथमप्रथमा
कनिष्ठकनिष्ठाआचार्यआचार्या
कृपणकृपणामध्यममध्यमा
पूर्वपूर्वासुत्दसुता
कोकिलकौकिलावृद्धा

नियम 2. जिन अकारान्त पुंल्लिङ्ग शब्दों के अन्त में ‘अक’ होता है उनके स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए अन्त में ‘इका’ जोड़ा जाता है। जैसे

पाचकपाचिकापाठकपाठिका
चालकचालिकानायकनायिका
गायकगायिकाधारकधारिका
बालकबालिकासाधकसाधिका
बोधकबोधिकाकारककारिका
शोधकशोधिकायाचकयाचिका
शिक्षकशिक्षिकाअध्यापकअध्यापिका

नियम 3. कई पुँल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए ‘ई’ प्रत्यय लगाया जाता है और शब्द के अन्त में ‘अ’ का लोप हो जाता है; जैसे

गौरगौरीनर्तकनर्तकी
रजकरजकीसुन्दरसुन्दरी
तरुणतरुणीपितामहपितामही
मातामहमातामहीसूरसूरी
गोपगोपीमृगमृगी
कुमारकुमारीदेवदेवी

नियम 4. ऋकारान्त, इन्नन्त तथा ईयस् एवं मत् वत् प्रत्ययान्त पुंल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए उनके आगे ‘ई’ प्रत्यय जोड़ दिया जाता है; जैसे

कर्तूकर्त्रीदातृदात्री
धनवत्धनवतीधातृधात्री
बलवतबलवतीभगवत्भगवती
भवत्भवतीश्रीमत्श्रीमती
धीमत्धीमतीगरीयस्गरीयसी
मानिन्मानिनीबुद्धिमत्बुद्धिमती

नियम 5. शतृ प्रत्ययान्त पुंल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए भ्वादि, दिवादि और चुरादिगण की धातुओं से तथा णिजन्त धातुओं से शतृ प्रत्यय करने पर ‘ई’ प्रत्यय लगाकर ‘त्’ से पहले ‘न्’ जोड़ दिया जाता है ; जैसे

कर्तूकर्त्रीदातृदात्री
धनवत्धनवतीधातृधात्री
बलवतबलवतीभगवत्भगवती
भवत्भवतीश्रीमत्श्रीमती
धीमत्धीमतीगरीयस्गरीयसी
मानिन्मानिनीबुद्धिमत्बुद्धिमती

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

नियम 6. यदि तुदादिगण तथा अदादिगण की धातुओं से शतृप्रत्यय करने पर स्त्रीलिङ्ग बनाना हो तो ‘ई’ प्रत्यय करके ‘त्’ से पहले विकल्प से ‘न्’ लगाया जाता है ; जैसे

पुँल्लिड्गस्त्रीलिड्गपुँल्लिड्गस्त्रीलिड्रा
तुदत्तुदती / तुदन्तीइच्छत्इच्छती / इच्छन्ती
यात्याती / यान्तीस्नात्स्नाती / स्नान्ती

नियम 7. जातिवाचक अकारान्त शब्दों से स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए ‘ई’ प्रत्यय जोड़ा जाता है; जैसे

हंसहंसीकाककाकी
हरिणहरिणीमृगमृगी
विडालविडालीतापसतापसी
वायसवायसीसिंहसिंही
सारससारसीकाककाकी

नियम 8. गुणवाचक उकारान्त शब्दों से स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए उनके अन्त में ‘ई’ प्रत्यय लगाया जाता है; जैसे

गुरु :गुर्वीसाधुसाध्वी
मृदुमृद्वीपटुपट्वी

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

नियम 9. इन्द्र, वरुण, भव, शर्व, रुद्र, हिम, अरण्य, मृड, यव, यवन, मातुल, आचार्य-इन शब्दों से स्त्रीलिङ्ग शब्द बनाने के लिए इनके अन्त में आनी’ प्रत्यय लगाया जाता है। जैसे

इन्द्रइन्द्राणीवरुणवरुणानी
शिवशिवानीभवभवानी
शर्वशर्वाणीरुद्ररुद्राणी
हिमहिमानीअरणयअरण्यानी
मृडमृडानीयवयवानी
आंचार्यआचार्याणीमातुलमातुलानी

सूचना-(क) हिम तथा अरण्य शब्दों से महत्त्व अर्थ में भी ‘आनी’ प्रत्यय जोड़ा जाता है।
(ख) मातुल और उपाध्याय-इन शब्दों से ‘ई’ प्रत्यय करने पर विकल्प से आन् आगम हो जाता है। अत: इन शब्दों के दो-दो रूप बनते हैं। जैसे–मातुल = मातुलानी, मातुली। उपाध्याय = उपाध्यायानी, उपाध्यायी।

नियम 10. ‘युवन्’ शब्द से स्त्रीलिंग बनाने के लिए ‘ति’ प्रत्यय लगाया जाता है ; जैसे
युवन्
युवतिः

नियम 11. उकारान्त मनुष्यवाचक शब्दों में ऊ प्रत्यय लगाया जाता है। जैसे

कुरुःकुरू:पड्गु:पड्गू:
श्वश्रुःश्वश्रूःब्रह्मबन्धुःब्रह्मबन्धूः

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

1. अधोलिखितेषु वाक्येषु कोष्ठकनिर्दिष्टानां प्रकृतिप्रत्ययानां योगेन निर्मितैः उचितपदैः रिक्तस्थानानि पूरयत
उत्तरम्
1. बालिकाभिः राष्ट्रगीतं …………..। (गै + तव्यम्) गातव्यम्
2. …………. बालकः पठति। (लिख् + शत) लिखन्
3. छात्रैः उपदेशाः ………… (पाल + अनीयर्) पालनीयाः
4. ………… बालिका हसति। (धाव + शतृ) धावन्ती
5. सर्वैः …………. रक्षणीयम्। (भ्रातृ + त्व) भ्रातृत्वम्
6. मुनिभिः तपः …………! (कृ + अनीयर) करणीयम्
7. कष्टानि ………….. वीराः यशः लभन्ते। (सह् + शानच्) सहमानाः
8. स्त्री स्वभावतः …………. भवति। (तपस्विन् + डीप्) तपस्विनी
9. …………. नेता एव लोकप्रियः भवति। (नीति + मतुप्)
10. न्यायाधीशेन न्यायः ………… । (कृ + अनीयर) करणीयः
11. दीनान् ………… छात्रः मोदते। (सेव् + शानच्)
12. …………. सर्वत्र पूज्यते। (सदाचार + इन्) सदाचारी
13. भवत्या पाठः ………….। (लिख् + अनीयर्) लेखनीयः
14. ताः …………. बालिका गायन्ति। (मुद् + शानच्) मोदमानाः
15. विद्वद्भिः कविताः ………… । (रच् + अनीयर्) रचनीयाः
16. अस्माभिः देशरक्षायै सर्वस्वं …………..। (त्यज् + तव्यत्) त्यक्तव्यम्
17. …………… वीरः वीरगतिं प्राप्तवान्। (युध् + शानच्) युध्यमानः
18. अस्माभिः लताः ………….. । (आ + रोप् + अनीयर्) आरोपणीयाः
19. पुस्तकालये बहूनि ………… पुस्तकानि सन्ति। (पठ् + अनीयर्) पठनीयानि
20. पत्रवाहकेन पत्राणि …………..। (आ + नी + तव्यत्) आनेतव्यानि
21. ………….. सुखं क्षणिकं भवति । (भूत + ठक्) भौतिकम्
22. राज्ञा प्रजाः…….। (पाल् + अनीयर) पालनीयाः
23. पुरस्कारं ………….. छात्रः प्रसन्नः भवति। (लभ् + शानच्) लभमानः
24. रजनी सम्प्रति ………….. अस्ति। (स्वस्थ + टाप्) स्वस्था
25. पित्रा पुत्राः पुत्र्यः च ………… (पठ् + णिच् + अनीयर) पाठनीयाः
26. …………. राष्ट्रपति-महोदयः अद्य आगमिष्यति। (श्री + मतुप्)
27. दीपावली-उत्सवे …………. लक्ष्मी पूज्यते। (भगवत् + डीप्) भगवती
28. कृषकैः पशवः स्नेहेन …………..। (रक्ष् + अनीयर्) रक्षणीयाः
29. एषः …………. शिविरः आसीत्। (बुद्धि + ठक्) बौद्धिकः
30. ईश्वरं ………… जनाः सुखिनः तिष्ठान्ति। (भज् + शत) भजन्तः
31. ………….. जनः सर्वं रक्षति। (शक्ति + मतुप्) शक्तिमान्
32. ………….. पुरुषः समदर्शी भवति। (ज्ञान + इन्) ज्ञानी
33. ………………… श्रेष्ठः गुणः। (उदार + तल्) उदारता
34. ……………………. नरः विचारशीलः भवति। (बुद्धि + मतुप्) बुद्धिमान्
35. नमन्ति ………….. वृक्षाः। (फल + इन्) फलिनः
36. मनुष्यः ………….. प्राणी अस्ति। (समाज + ठक्) सामाजिकः
37. …………… नारी यश: प्राप्नोति। (गुण + मतुप्) गुणवती
38. कर्मशील: ………….. कथ्यते। (योग + इन्) योगी
39. ‘पर्यावरणरक्षणम्’-अस्माकं …………. कर्तव्यम् । (नीति + ठक्) नैतिकः
40. ………….. नरः दानेन शोभते। (धन + मतुप्) धनवान्
41. ………….. छात्राः विद्यां लभन्ते। (परिश्रम + इन्) परिश्रमिण:
42. …….. छात्रः लभते ज्ञानम्। (श्रद्धा + मतुप्) श्रद्धावान्
43. ………………….. जनाः सदाचारिणः भवन्ति स्म। (वेद + ठक्) वैदिकाः
44. ……………………. राजा सफलः भवति। (नीति + मतुप्) नीतिमान्
45. ……………………………. विकासः पर्याप्तः अभवत्। (उद्योग + ठक्) औद्योगिकः
46. ……………………… जनाः सर्वत्र पूज्यन्ते। (गुण + इन्) गुणिनः
47. अद्य ………… संस्कृतं प्रयुज्यते। (लोक + ठक्) लौकिकम्
48. ……………………… नराः विद्वांसः कथ्यन्ते। (विद्या + मतुप्) विद्यावन्तः
49. विवाहस्य अवसरे ………….. गानं भवति। (मङ्गल + ठक्) माङ्गलिकम्
50. तव ………….. वेतनं कति अस्ति ? (मास + ठक्) मासिकम्

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

अभ्यास-पुस्तकम् के प्रत्यय-विषयक अभ्यास प्रश्न

1. अधोलिखितेषु वाक्येषु कोष्ठकनिर्दिष्टैः उचितपदैः रिक्तस्थानानि पूर्यन्ताम्
(अधोलिखित वाक्यों में कोष्ठक में निर्दिष्ट उचितपदों से रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए-)
(1) बालिकाभि: राष्ट्रगीतं ……………….. (गै + तव्यत्)
(2) छात्रै: ……………….. (उपदेश) पालनीया:।
(3) …………. (युष्मद्) शुद्धं जलं पातव्यम्।
(4) मुनिभि: ……….. (तपस्) करणीयम्।
(5) न्यायाधीशेन न्याय: ………… (कृ + अनीयर) ।
(6) ……………….. (भवती) पाठ: लेखनीय:।
(7) विद्वद्भि: कविता: ………… (रच् + अनीयर्)।
(8) अस्माभि: ………… (लता) आरोपयितव्या: ।
(9) पत्रवाहकेन पत्राणि (आ $+$ नी $+$ तव्यत्)।
(10) ……….(राजन्) प्रजा: पालनीया:।
(11) ……… (पितृ) पुत्रा:, पुत्र्य: च पाठनीया:।
(12) कृषकै: ………. (पशु) स्नेहेन रक्षणीयाः।
उत्तराणि
(1) बालिकाभि: राष्ट्रगीतं गातव्यम्।
(2) छात्रै: उपदेशा: पालनीया:।
(3) युष्माभि: शुद्धं जलं पातव्यम्।
(4) मुनिभि: तपः करणीयम्।
(5) न्यायाधीशेन न्यायः करणीय: ।
(6) भवत्या पाठ: लेखनीय:।
(7) विद्वद्भि: कविता: रचनीया:।
(8) अस्माभि: लता: आरोपयितव्या:।
(9) पत्रवाहकेन पत्राणि आनेतव्यानि ।
(10) राज्ञा प्रजा: पालनीया:।
(11) पित्रा पुत्रा:, पुत्र्य: च पाठनीया:।
(12) कृषकै: पशव: स्नेहेन रक्षणीया:।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

2. उदाहरणम् अनुसृत्य शतृप्रत्ययान्तपदैः वाक्यद्वयं योजयत।
(उदाहरण के अनुसार शतृप्रत्यय वाले पदों से दो वाक्यों को जोड़कर एक बनाइए)
यथा:
(i) बालकः पठति। बालक: लिखति।
उत्तरम्:
पठन् बालकः लिखति।।
(ii) बालिका पठति। बालिका लिखति।
उत्तरम्:
पठन्ती बालिका लिखति।
(iii) शिक्षकः शिक्षयति। शिक्षक: फलं दर्शयति ।
उत्तरम्:
शिक्षयन् शिक्षक: फलं दर्शयति।
(iv) शिक्षिका शिक्षयति। शिक्षिका फलं दर्शयति।
उत्तरम्:
शिक्षयन्ती शिक्षिका फलं दर्शयति।
(v) बालक: धावति। बालकः हसति।
उत्तरम्:
धावन् बालकः हसति।
(vi) बालिका धावति। बालिका हसति ।
उत्तरम्:
धावन्ती बालिका हसति।
(vii) गौरवः गच्छति। गौरवः आचार्यं नमति।
उत्तरम्:
गच्छन् गौरवः आचार्यं नमति।
(viii) राधिका गच्छति। राधिका आचार्यं नमति।
उत्तरम्:
गच्छन्ती राधिका आचार्यं नमति।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

3. अधोलिखितधातूनाम् उदाहरणम् अनुसृत्य त्रिषु लिङ्गेषु “शानच्” प्रत्ययान्तरूपाणि लिखत
(अधोलिखित धातुओं के उदाहरण के अनुसार तीनों लिंगों में “शानच्” प्रत्यय वाले रूप लिखिए-)
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaranPratyaya img-10

4. कोष्ठके दत्तानां धातूनां शानच्-प्रत्ययान्तरूपेण रिक्तस्थानानि पूरयत
(कोष्ठक में दी गई धातुओं के शानच्-प्रत्यय वाले रूप से रिक्तस्थान भरिए-)
यथा-वन्दमानः स आशिषं लभते (वन्द्)
(i) शनैः ………… सा वैभवं प्राप्नोति। (वृध्/वर्ध)
(ii) ……….. नक्षत्रैः आकाश: दीव्यति। (प्र + काश्)
(iii) कष्टानि ……….. वीराः कीर्तिं लभन्ते। (सह्) ।
(iv) ……… वृक्षेभ्यः पुष्पाणि पतन्ति। (कम्प्)
(v) ………. जनाः साफल्यम् आप्नुवन्ति। (प्र + यत्)
उत्तराणि
वर्धमाना
प्रकाशमानैः
सहमानाः
कम्पमानेभ्यः
प्रयतमानाः

5. उदाहरणम् अनुसृत्य शानच्प्रयोगेन वाक्यद्वयस्य स्थाने वाक्यम् एकं रचयत
(उदाहरण के अनुसार शानच् प्रत्यय वाले पदों से दो वाक्यों को जोड़कर एक बनाइए)
यथा-छात्रः दीनान् सेवते। छात्र: मोदते।
उत्तरम्:
दीनान् ………… छात्रः मोदते।
(i) लताः कम्पन्ते। लताभ्यः पुष्पाणि पतन्ति।
………… लताभ्यः पुष्पाणि पतन्ति।
(ii) कमलानि जले जायन्ते। कमलेभ्यः परागः पतति ।
जले …………. कमलेभ्यः परागः पतति।
(iii) ते मोदन्ते। ते गायन्ति।
…………. ते गायन्ति।
(iv) सैनिकाः युध्यन्ते। सैनिकाः देशं रक्षन्ति।
………….. सैनिकाः देशं रक्षन्ति।
(v) दिलीपः गां सेवते। दिलीपः सिंहं पश्यति।
…………… गाम् ………… दिलीप: सिंहं पश्यति।
(vi) बालिका चित्रम् ईक्षते। सा प्रसन्ना भवति।
चित्रं ………… बालिका प्रसन्ना भवति।
(vii) छात्रः पुरस्कारं लभते। छात्रः प्रसन्नः भवति।
पुरस्कारं …………. छात्रः प्रसन्नः भवति ।
(viii) पुत्रः मातापितरौ सेवते। सः स्वकर्तव्यं निर्वहति।
पुत्रः मातापितरौ …………. स्वकर्तव्यं निर्वहति ।
उत्तरम्:
(i) कम्पमानाभ्यः लताभ्यः पुष्पाणि पतन्ति।
(ii) जले जायमानेभ्य: कमलेभ्यः परागः पतति।
(iii) मोदमाना: ते गायन्ति।
(iv) युध्यमानाः सैनिकाः देशं रक्षन्ति।
(v) गाम् सेवमानः दिलीप: सिंहं पश्यति।
(vi) चित्रं ईक्षमाणाः बालिका प्रसन्ना भवति।
(vii) पुरस्कारं लभमानः छात्रः प्रसन्नः भवति।
(viii) पुत्रः मातापितरौ सेवमानः स्वकर्तव्यं निर्वहति ।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

6. अधोलिखितं संवादं पठित्वा मतुप-प्रत्ययान्त-विशेषणैः रिक्तस्थानानि पूरयत
(अधोलिखित संवाद को पढ़ कर मतुप्-प्रत्यय वाले विशेषणों से रिक्तस्थान भरिए-)
अध्यापकः ………….. (बुद्धि + मतुप्) छात्राः । संसारेऽस्मिन् कः श्रेष्ठः ? ।
सुजयः आचार्य ! यः ………… (धन + मतुप्) ……….. (रूप + मतुप्) नरः भवति जनाः, तम् एव श्रेष्ठ मन्यन्ते।
श्रुतिः आचार्य ! अहं वदानि, यः ……… (सदाचार + मतुप्) विवेकी, ……… (नीति + मतुप्), …………. (शक्ति + मतुप्) च भवति सः श्रेष्ठः।
प्रिया आचार्य ! अहं चिन्तयामि, ………… (विद्या + मतुप्), ………… (चरित्र + मतुप्) च जनः एवं सर्वोत्तमः भवति।
श्रेष्ठा आचार्य ! मम पक्षम् अपि शृणोतु। यः सत्यवादी …………. (निष्ठा + मतुप्), ……………. (विनय + मतुप्), …. …… (कीर्ति + मतुप्) देशभक्तः च अस्ति स एव श्रेष्ठः।
अध्यापकः सत्यमेतत्, यः …………. (सदाचार + मतुप्), विपत्सु च ………..(धृति + मतुप्), (यशस् .. मतुप्) च भवति सः देशभक्तः एव समाजे ………… (गुण + मतुप्) श्रेष्ठः च मन्यते। वीराः अभ्युदये …………. (क्षमा + मतुप्) भवन्ति युधि च ……….. (धैर्य + मतुप्) भवन्ति ।
उत्तरम्:
अध्यापकः बुद्धिमन्तः (बुद्धि + मतुप्) छत्राः । संसारेऽस्मिन् कः श्रेष्ठः ?
सुजयः आचार्य ! यः धनवान् (धन + मतुप्) रूपवान् (रूप + मतुप्) नरः भवति जनाः, तम् एव श्रेष्ठ मन्यन्ते।
श्रुतिः आचार्य ! अहं वदानि, यः सदाचारवान् (सदाचार + मतुप्) विवेकी, नीतिमान् (नीति + मतुप्), शक्तिमान् (शक्ति + मतुप्) च भवति संः श्रेष्ठः।
प्रिया आचार्य ! अहं चिन्तयामि, विद्यावान् (विद्या + मतुप), चरित्रवान् (चरित्र + मतुप) च जनः एवं सर्वोत्तमः भवति।
श्रेष्ठा आचार्य ! मम पक्षम् अपि शृणोतु। यः सत्यवादी निष्ठावान् (निष्ठा + मतुप्), विनयवान् (विनय + मतुप्), कीर्तिमान् (कीर्ति + मतुप्) देशभक्तः च अस्ति स एव श्रेष्ठः।
अध्यापकः सत्यमेतत्, यः सदाचारवान् (सदाचार + मतुप्), विपत्सु च धृतिमान् (धृति + मतुप्), यशस्वान् (यशम् + पनुप) च भवति सः देशभक्तः एव समाजे गुणवान् (गुण + मतुप्) श्रेष्ठ: च मन्यते। , वीराः अभ्युः . सावन्तः (क्षमा + मतुप्) भवन्ति युधि च धैर्यवन्तः (धैर्य + मतुप्) भवन्ति।

7. अधः प्रदत्तशब्दैः सह उदाहरणम् अनुसृत्य ‘इन्’ प्रत्ययं योजयित्वा लिखत
(नीचे दिए गए शब्दों के साथ उदाहरण के अनुसार ‘इन्’ प्रत्यय जोड़कर लिखिए-)
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaranPratyaya img-11

8. उदाहरणम् अनुसृत्य अधोलिखितां तालिकां पुरयत
(उदाहरण के अनुसार अधोलिखित तालिका को पूरा कीजिए-)
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaranPratyaya img-12

9. कोष्ठकात् उचितपदम् आदाय रिक्तस्थानपूर्तिः क्रियताम्
(कोष्ठक से उचित पद लेकर रिक्तस्थानपर्ति कीजिए–)
यथा-अभिमानी मानं न लभते। (अभिमानी/अभिमानिनः) ।
उत्तरम्
(क) …………. सदा सम्मान्याः भवन्ति (विज्ञानी/विज्ञानिनः)
(ख) ………… शान्तिम् न प्राप्नोति। (लोभिनः/लोभी)
(ग) ………… धन्याः लोके। (दानी/दानिनः)
(घ) ………. विवेक: नश्यति। (क्रोधी/क्रोधिनः)
(ङ) किं कुलेन विशालेन विद्याहीनस्य ………..। (देही/देहिनः)
(च) ……….. जनः सर्वप्रियः भवति। (विनोदिनः/विनोदी)
(छ) सर्वे भवन्तु ……….. । (सुखी/सुखिन:)
(ज) ……….. इयम् बाला। (व्यवसायी/व्यवसायिनी)
उत्तरम्:
विज्ञानिनः
लोभी
दानिनः
क्रोधिनः
देहिनः
विनोदी
सुखिनः
व्यवसायिनी

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

10. अधोलिखितेषु वाक्येषु स्थूलाक्षरपदेषु प्रकृतिप्रत्ययविभागं कुरुत
(अधोलिखित वाक्यों के स्थूलाक्षर पदों में प्रकृति-प्रत्यय का विभाजन कीजिए-)
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaranPratyaya img-13

11. स्थूलाक्षरपदेषु प्रकृति-प्रत्ययविभागं कुरुत
(स्थूलाक्षर पदों में प्रकृति-प्रत्यय का विभाजन कीजिए-)
1. मनुष्यः सामाजिकः प्राणी अस्ति।
2. ‘पर्यावरणरक्षणम्’ अस्माकं नैतिकम् कर्तव्यम् अस्ति।
3. अद्यत्वे औद्योगिकः विकासः सर्वत्र दृश्यते।
4. विद्यया लौकिकी अलौकिकी च उन्नतिः भवति।
5. मम गृहे माङ्गलिकः कार्यक्रमः सम्पत्स्यते।
उत्तरम् –

पदानिप्रकृति:प्रत्यय:
1. सामाजिक: (पुँ०)समाजठक् (इक)
2. नैतिकम् (नपुँ०)नीतिठक् (इक)
3. औद्योगिक: (पुँ०)उद्योगठक् (इक)
4. लौकिकी (स्त्री०)लोकठक् (इक)
5. माड्गलिक: (पुँ०)मड्गलठक् (इक)

12. उदाहरणम् अनुसृत्य ‘इक’ (ठक्/ठब्) पत्ययान्त-पदानि रचयत
(उदाहरण के अनुसार ‘इक’ (ठक्/ठञ्) प्रत्यय जोड़कर पद रचना कीजिए-)
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaranPratyaya img-14

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

13. निम्नलिखितवाक्येषु कोष्ठ के प्रदत्तशब्देन सह ठक् /ठञ् (इक) प्रत्ययं प्रयोज्य अस्य उचितरूपेण (पदेन) रिक्तस्थानं पूरयत
(निम्नलिखित वाक्यों में कोष्ठक में दिए गए शब्द के साथ ठक्/ठञ् (इक) प्रत्यय जोड़कर इसका उचितरूप रिक्तस्थान में भरिए-)
यथा-अहम् भारतस्य नागरिकः (नगर + ठक्) अस्मि।
उत्तराणि:
(i) अत्र (धर्म + ठक्) ………. उत्सवः भवति।
(ii) अयम् (वेद + ठक्) ………… विद्वान् अस्ति।
(iii) स (पुराण + ठक्) ………… मङ्गलाचरणं करोति ।
(iv) दिल्लायाम् अनेकानि (इतिहास + ठक्) ………… स्थानानि सन्ति।
(v) भारतस्य (भूगोल + ठक्) ………… स्थितिः विचित्रा अस्ति।
(vi) सम्प्रति देशस्य (अर्थ + ठक्) ………… स्थितिः सन्तोषप्रदा।
(vii) (सप्ताह + ठक्) …………. अवकाश: रविवारे भवति।
(viii) अयम् (कल्पना + ठक्) ………… उपन्यासः केन लिखितः ?
(ix) मम पुस्तकालये अनेकाः (साहित्य + ठक्) ………… पत्रिका: आयान्ति।
(x) (उद्योग + ठक्) ………… विकासेन पर्यावरणं प्रदूष्यते।
(xi) (वर्ष + ठञ्) ………… परीक्षायाम् मया ‘पर्यावरणम्’ विषयम् अवलम्ब्य निबन्धः लिखितः।
(xii) (दिन + ठञ् ) ……….. कार्यम् मया सम्पन्नम्।
उत्तरम्:
धार्मिकः
वैदिकः
पौराणिकं
ऐतिहासिकानि
भौगोलिकी
आर्थिकी
साप्ताहिकः
काल्पनिकः
साहित्यिक्यः
औद्योगिकेन
वार्षिक्यां
दैनिक

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

14. अधोलिखितशब्दैः सह ‘त्व’-प्रत्ययं योजयत
(अधोलिखित शब्दों के साथ ‘त्व’-प्रत्यय जोडिए-)
HBSE 10th Class Sanskrit vyakaranPratyaya img-15

15. ‘त्व’ – ‘तल्’ – प्रत्ययान्तानि पदानि मञ्जूषायाः चित्वा यथोचितं रिक्तस्थानानि पूरयत।
(‘त्व’ – ‘तल्’ – प्रत्यय वाले पद मञ्जूषा से चुनकर यथोचित रिक्तस्थान पूर्ति कीजिए)
यथा-पवनस्य शीतलताम् अनुभूय मनः प्रसीदति।
(i) विद्यायाः …………. को न जानाति?
(ii) कृष्णसुदाम्नोः …………. जगति आदर्श स्थापयति।
(iii) दुष्प्रयुक्ता वाणी मनुष्यस्य …………. प्रकटयति।
(iv) मनसः ………… वशीकरणीयम्।
(v) लवस्य …………. अद्भुता आसीत्।
चञ्चलत्वम्, मित्रता, वीरता, महत्त्वम्, पशुत्वम् ।
उत्तरम्
महत्त्वम्
मित्रता
पशुत्वम्
चञ्चलत्वम्
वीरता

16. अधोलिखिताः सूक्ती: पठित्वा तल्-त्व-प्रत्ययान्तानि पदानि रेखाङ्कितानि कुरुत
(अधोलिखित सूक्तियों को पढ़कर तल्/त्व प्रत्यय वाले पदों को रेखांकित कीजिए-)
यथा-(i) ऐश्वर्यस्य विभूषणं सुजनता।
(ii) न कालस्य अस्ति बन्धुत्वम्।
(iii) अविवेकिता तु अनर्थाय एव भवति।
(iv) अहो ! बालकस्य ईदृशी निपुणता।
(v) न अस्ति अमरत्वम् हि कस्यचित् प्राणिनः भुवि।
(vi) क्षणे क्षणे यत् नवताम् उपैति तदेवरूपं रमणीयतायाः।
(vii) विद्वत्त्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन।
उत्तरम्:
(i) सुजनता – सुजन + तल्-प्रत्ययः
(ii) बन्धुत्वम् – बन्धु + त्व-प्रत्ययः
(iii) अविवेकिता- अविवेकिन् + तल्-प्रत्ययः
(iv) निपुणता – निपुण + तल्-प्रत्ययः
(v) अमरत्वम् – अमर + त्व-प्रत्ययः
(vi) नवताम् – नव + तल्-प्रत्ययः
(vii) रमणीयतायाः- रमणीय + तल्-प्रत्ययः
(viii) विद्वत्त्वम्- विद्वस् + त्व-प्रत्ययः
(xi) नृपत्वम् – नृप + त्व-प्रत्ययः

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

17. उदाहरणम् अनुसृत्य स्त्रीलिङ्गशब्दान् रचयत
(उदाहरण के अनुसार स्त्रीलिङ्ग शब्दों की रचना कीजिए-)

शब्दा:प्रत्यय:निर्मितस्त्रीलि ड्ग्गश्दाः
अज +टाप्अजा
(i) एडक +टाप्एडका
(ii) अश्व +टाप्अश्वा
(iii) कोकिल +टाप्कोकिला
(iv) चटक +टाप्चटका
(v) छात्र +टाप्छात्रा
(vi) प्रिय +टाप्प्रिया
(vii) बालक +टाप्बालिका
(viii) स्षेवक +टाप्सेविका
(ix) नायक +टाप्नायिका
(x) मूषक +टाप्मूषिका

18. अधोलिखितेषु वाक्येषु निर्दिष्टशब्दैः सह टाप्-प्रत्ययं योजयित्वा वाक्यानि पूरयत
(अधोलिखित वाक्यों निर्दिष्ट शब्दों के साथ टाप्-प्रत्यय जोड़कर वाक्य पूरा कीजिए-)
यथा-प्रभा पठने प्रवीणा (प्रवीण + टाप्) अस्ति।
प्रश्न:-(i) अस्याः ………….. (अनुज + टाप्) दीपिका अस्ति।
(ii) दीपिका क्रीडायां ………….. (कुशल + टाप्) अस्ति।
(iii) प्रभादीपिकयोः माता ………….. (चिकित्सक + टाप्) अस्ति।
(iv) सा समाजस्य ………….. (सेवक + टाप्) अपि अस्ति।
(v) सा तु स्वभावेन अतीव ………….. (सरल + टाप्) अस्ति।
उत्तरम्:
अनुजा
कुशला
चिकित्सिका
सेविका
सरला

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

19. अधोलिखितेषु वाक्येषु स्थूलाक्षरपदानां मूलशब्दं प्रत्ययं च पृथक्कृत्य लिखत
(अधोलिखित वाक्यों में स्थूलाक्षरपदों के मूलशब्द तथा प्रत्यय अलग-अलग करके लिखिए-)
यथा-आगता पर्वसु प्रिया दीपावलिः।
(i) विपणीनां शोभा अनुपमा भविष्यति।
(ii) रात्रिः दीपानां प्रकाशेन उज्वला भविष्यति।
(iii) पूजनेन प्रसन्ना लक्ष्मी: कृपां करिष्यति।
(iv) ‘भवतु शुभदा दीपावलिः’ इति परस्परम् कामयन्ते जनाः ।
(v) धन्या इयं दीपावलिः प्रकाशपुञ्जा।
उत्तरम्:
मूलशब्दः + प्रत्ययः
प्रिय + टाप्
अनुपम + टाप
उज्ज्वल + टाप
प्रसन्न + टाप
शुभद + टाप्
धन्य + टाप

20. अधोलिखितेषु वाक्येषु ‘टाप्’ प्रत्ययान्तानि पदानि चित्वा समक्षं मञ्जूषायाम् लिखत
वाक्यानि
(i) अमृतजला इयं गङ्गा पवित्रा। .
(ii) कथं नु एतस्याः शोभा विचित्रा!
(iii) सवेगं वहन्ती खलु शोभमाना। ।
(iv) वन्द्या सदा सा भुवि राजमाना।
(v) भक्तैः सदा तु चिरं सेवमाना।
(vi) भागीरथी भवतु मे पूर्णकामा।
मञ्जूषा (उत्तराणि)
(i) अमृतजला
(ii) पवित्रा
(iii) विचित्रा
(iv) शोभमाना
(v) वन्द्या
(vi) राजमाना
(vii) सेवमाना
(viii) पूर्णकामा

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

21. उदाहरणम् अनुसृत्य ईकारान्तस्त्रीलिङ्गशब्दान् रचयत
(उदाहरण के अनुसार ईकारान्त स्त्रीलिङ्ग शब्दों की रचना कीजिए-)
शब्दाः + प्रत्यया – निर्मितस्त्रीलिङ्गशब्दाः
यथा- देव + डीप् – देव
उत्तरम्-
(i) तरुण + डीप् – तरुणी
(ii) कुमार + डीप् – कुमारी
(iii) त्रिलोक + डीप – त्रिलोकी
(iv) किशोर + डीप – किशोरी
(v) कर्तृ + ङीप् – की
(vi) जनयितृ + डीप् – जनयित्री
(vii) मनोहारिन् + डीप् – मनोहारिणी
(viii) मालिन् + डीप् – मालिनी
(ix) तपस्विन् + ङीप् – तपस्विनी
(x) भवत् + डीप – भवती
(xi) श्रीमत् + डीप – श्रीमती
(xii) गच्छत् (गम् + शतृ) + डीप् – गच्छन्ती
(xiii) पचत् (पच् + शतृ) + डीप – पचन्ती
(xiv) नृत्यत् (नृत् + शतृ) + डीप् – नृत्यन्ती
(xv) पश्यत् (दृश् +शतृ) + डीप – पश्यन्ती
(xvi) वदत् (वद् + शतृ) + डीप् – वदन्ती
(vii) पृच्छत् (प्रच्छ् + शतृ) + ङीप् – पृच्छन्ती/ पृच्छती
(xviii) स्पृशत् (स्पृश् + शतृ) + डीप् – स्पृशन्ती/स्पृशती

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

22. अधोलिखितेषु वाक्येषु निर्दिष्टशब्दैः सह ‘डीप’ प्रत्ययं प्रयुज्य वाक्यानि पुरयत
((निम्नलिखित वाक्यों में निर्दिष्ट शब्दों के साथ ङीप् प्रत्यय जोड़कर वाक्य पूरा कीजिए-)
यथा-श्रीमती (श्रीमत् + डीप) रमा नाट्योत्सवे दीप प्रज्वालयति।
उत्तरम्:
(i) (कुमार + ङीप्) ………… वन्दना पुष्पगुच्छै: तस्याः स्वागतं करोति।
(ii) एका (किशोर + डीप) ……….. भरतनाट्यम् प्रस्तौति।
(iii) तया सह (नृत्यत् + डीप्) ………. देविका अस्ति।
(iv) मञ्चे (गायत् + डीप्) ………… सुधा अस्ति।
(v) (मनोहारिन् + डीप्) …………. एषा नाट्यप्रस्तुतिः।
उत्तरम्
कुमारी
किशोरी
नृत्यन्ती
गायन्ती
मनोहारिणी

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

23. अधोलिखितेषु वाक्येषु स्थलाक्षरपदेषु मूलशब्दं स्त्रीप्रत्ययं च पृथक्कृत्य लिखत
(अधोलिखित वाक्यों में स्थलाक्षरपदों में मूलशब्द और स्त्रीप्रत्यय को अलग-अलग करके लिखिए-)
यथा-हसन्ती विभा स्वसखीम् अमिलत्। हसत् + डीप
(i) तदैव एका तरुणी विभाम् अपृच्छत्।
(ii) किम् इयम् तव सखी कुमारी भावना अस्ति?
(iii) अहो ! एतादृशीं सखीं प्राप्य त्वं धन्या असि।
(iv) तया बसयानात् पतन्ती बाला रक्षिता।
उत्तरम्:
तरुण + डीप
कुमार + डीप
एतादृश + डीप
पतत् + डीप्

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

24. अधोलिखितेषु वाक्येषु स्त्रीप्रत्ययान्तं (टाप् -ङीप्च) पदं चित्वा मञ्जूषायां पृथक् पृथक् लिखत
(अधोलिखित वाक्यों में स्त्रीप्रत्यय (टाप/ङीप् )वाले पद को चुनकर मञ्जूषा में अलग-अलग करके लिखिए-)
(i) मधुरा वाणी प्रीणयति मनः।
(ii) सताम् बुद्धिः हितकारिणी भवति।
(iii) सत्सङ्गतिः सर्वत्र दुर्लभा।
(iv) उपकारकी प्रकृतिः धन्या।
(v) कुलाङ्गना सदा सम्मानस्य अधिकारिणी।
(vi) नैतिकी शिक्षा आवश्यकी।
मञ्जूषा
( उत्तराणि)
टाप
(i) मधुरा
(ii) दुर्लभा
(iii) धन्या
(iv) कुलाङ्गना
(v) शिक्षा
ङीप्
(i) हितकारिणी
(ii) वाणी
(iii) उपकारिणी
(iv) अधिकारिणी
(v) नैतिकी
(vi) आवश्यकी

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

25. स्थूलपदानां प्रकृति-प्रत्ययौ विभज्य कोष्ठकेषु लिखत
(स्थूलपदों के प्रकृति-प्रत्यय अलग-अलग करके कोष्ठक में लिखिए-)
उत्तरसहितम्
(i) ग्रीष्मे सूर्यस्य प्रचण्डत्वम् (प्रचण्ड + त्व) असह्यं वर्तते।
(ii) परिश्रमस्य महत्त्वं (महत् + त्व) सर्वे जानन्ति ।
(iii) गुरोः गुरुत्वम् (गुरु + त्व) वर्णयितुं न शक्यते।
(iv) अस्य पिण्डस्य घनत्वं (घन + त्व) मापय।
(v) आचार्यशङ्करस्य विद्वत्त्वं (विद्वस् + त्व) आश्चर्यजनकम् आसीत्।
(vi) वानरस्य चपलत्वं (चपल + त्व) बालकेभ्यः रोचते।
(vii) काव्यस्य मधुरत्वम् (मधुर + त्व) सहृदयाः जानन्ति ।
(viii) सागरस्य गहनत्वं (गहन + त्व) मापनीयं न अस्ति।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

मिश्रितः अभ्यासः

I. प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा अनुच्छेदं पुनः लिखत
(प्रकृति-प्रत्ययों को जोड़कर अनुच्छेद पुनः लिखिए-)
(i) …………. (कृ + शानच्) वृक्षाः केषां न
(ii) …………. (वन्द् + अनीयर्)
(iii) ……….. (छाया + मतुप्) वृक्षाः मार्गे श्रान्तपथिकेभ्यः आश्रयं यच्छन्ति।
(iv) ………… (कोकिल + टाप्) च आम्रवृक्षे मधुरस्वरेण गायन्ति । यथा
(v) ………. (फल + इन्) वृक्षाः नमन्ति तथैव गुणिनः जनाः अपि नमेयुः ।
उत्तराणि:
(i) कुर्वाणाः,
(ii) वन्दनीयाः,
(iii) छायावन्तः,
(iv) कोकिला:,
(v) फलिनः

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

II. प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा अनुच्छेदं पुनः लिखत
(प्रकृति-प्रत्ययों को जोड़कर अनुच्छेद पुनः लिखिए-)
(i) आदर्श: नगर + ठक् ) ………… सदा देशस्य विषये चिन्तयति।
(ii) मम देशः (शक्ति + मतुप्) ………….. भवेत्।
(iii) जगति (विश्वबन्धु + तल्)…………… भवेत् ।
(iv) दीनजनान् (सेव् + शानच्) ………. जनाः पुण्यं लभन्ते।
(v) अस्माभिः परस्परं स्नेहेन (वस् + तव्यम्) ………….. ।
उत्तराणि:
(i) नागरिकः,
(ii) शक्तिमान्,
(ii) विश्वबन्धुता,
(iv) सेवमानाः,
(v) वस्तव्यम्।

III. प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा अनुच्छेदं पुनः लिखत
(प्रकृति-प्रत्ययों को जोड़कर अनुच्छेद पुनः लिखिए-)
(i) मया केवलं (पठ + अनीयर्) ……………. पुस्तकम् एव
(ii) (पठ् + तव्यत्) ………………. । वस्तुतः अनेन मार्गेण एव
(iii) अहं (गुरु + त्व) ……………. प्राप्स्यामि। गुणिनः जना एव धन्याः ।
(iv) अतः अहम् अपि (गुण + इन्) ……………. भविष्यामि।
(v) गुणी एव मूलतः (धन + मतुप्) ……………. जनः मन्यते।
उत्तराणि:
(i) पठनीयम्
(ii) पठितव्यम्
(iii) गुरुत्वम्
(iv) गुणी
(v) धनवान्।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

IV. प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा अनुच्छेदं पुनः लिखत
(प्रकृति-प्रत्ययों को जोड़कर अनुच्छेद पुनः लिखिए-)
(i) कंसस्य (क्रूर + तल्) ………………. निन्दनीया अस्ति।
(ii) तस्य अत्याचारैः प्रजा (दुःख + इन्) ………………. आसीत्।
(iii) कंसः (बुद्धि + मतुप्) ………………. सन् अपि दर्पात् अनश्यत्।
(iv) अतः अस्माभिः दर्पः (त्यज् + तव्यत्) ……………
(v) प्रभुभक्त्यै (प्र + यत् + शानच्) ………………. जनाः सुखिनः भवन्ति।
उत्तराणि:
(i) क्रूरता
(ii) दुःखिनी
(iii) बुद्धिमान्
(iv) त्यक्तव्यः
(v) प्रयतमानाः

IV. प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा अनुच्छेदं पुनः लिखत
(प्रकृति-प्रत्ययों को जोड़कर अनुच्छेद पुनः लिखिए-)
(i) पुस्तकानाम् अध्ययनं करणीयम्
(ii) मन्त्रिणः सदसि भाषन्ते।
(iii) वर्तमाना शिक्षापद्धतिः सुकरा।
(iv) त्वं स्व-अज्ञानतां मा दर्शय।
(v) नर्तकी शोभनं नृत्यति।
उत्तराणि:
(i) Vकृ + अनीयर्
(ii) मन्त्र + इन्
(iii) Vवृत् + शानच्
(iv) अज्ञान + तल्
(v) नर्तक + डीप्।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

V. अधोलिखितेषु वाक्येषु कोष्ठकान्तर्गतानां पदानां प्रकृतिप्रत्ययं विभज्य/योजयित्वा पुनः लिखत।
(अधोलिखित वाक्यों में कोष्ठक में दिए गए पदों के प्रकृति-प्रत्यय का विभाजन/संयोजन करके लिखिए-)
(i) सः नाटकं (वीक्षमाणः) प्रसन्नः भवति।
(ii) केरलप्रदेशे अनेकानि (इतिहास + ठक्) स्थानानि सन्ति।
(iii) नृपः (वृद्धोपसेवी) आसीत्।
(iv) वाक्पटुः (मन्त्र + इन्) परैः न परिभूयते।
(iv) (रमणीया) हि एषा प्रकृतिः ।
उत्तराणि
(i) सः नाटकं (वि + ईक्ष + शानच् ) प्रसन्नः भवति।
(ii) केरलप्रदेशे अनेकानि (ऐतिहासिकानि) स्थानानि सन्ति।
(iii) नृपः (वृद्धोपसेव + इन्) आसीत्।
(iv) वाक्पटुः (मन्त्री) परैः न परिभूयते।
(v) ( रमणीय + टाप्) हि एषा प्रकृतिः ।

VI. अधोलिखितेषु वाक्येषु कोष्ठकान्तर्गतानां पदानां प्रकृतिप्रत्ययं विभज्य/योजयित्वा पुनः लिखत।
(अधोलिखित वाक्यों में कोष्ठक में दिए गए पदों के प्रकृति-प्रत्यय का विभाजन/संयोजन करके लिखिए-)
(i) सेतुनिर्माणम् (सामाजिकं) कार्यम् अस्ति।
(ii) (क्रोध + इन्) विवेकः नश्यति।
(iii) विद्वांसः एव (चक्षुष्मन्तः) प्रकीर्तिताः।
(iv) कृषकैः पशवः स्नेहेन (रक्ष् + अनीयर्)।
(v) अहो! (दृश् + तव्यत् + टाप्) नगरी एषा।
उत्तराणि
(i) सेतुनिर्माणं (समाज + ठक् ) कार्यम् अस्ति।
(ii) (क्रोधिनः) विवेकः नश्यति।
(iii) विद्वांसः एव (चक्षुष् + मतुप्) प्रकीर्तिताः।
(iv) कृषकैः पशवः स्नेहेन (रक्षणीयाः)।
(v) अहो (द्रष्टव्या) नगरी एषा।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

VII. कोष्ठके प्रदत्तौ प्रकृतिप्रत्ययौ योजयित्वा लिखत
(कोष्ठक में दिए गए प्रकृति-प्रत्यय का संयोजन करके लिखिए-)
(i) मम …………………….. (कीदृश + डीप्) इयं क्लेशपरम्परा।
(ii) मारयितुम् ……………….. (इष् + शतृ) स कलशं गृहाभ्यन्तरे क्षिप्तवान्।
(iii) छलेन अधिगृह्य …………………. (क्रूर + तल्) भक्षयसि।
(iv) अधुना …………………. (रमणीय + टाप्) हि सृष्टिरेषा।
(v) अनेकानि अन्यानि …………… (दृश् + अनीयर्) स्थलानि अपि सन्ति।
उत्तरम्
(i) मम कीदृशी इयं क्लेशपरम्परा।।
(ii) मारयितुम् इच्छन् स कलशं गृहाभ्यन्तरे क्षिप्तवान्।
(iii) छलेन अधिगृह्य क्रूरतया भक्षयसि।
(iv) अधुना रमणीया हि सृष्टिरेषा।
(v) अनेकानि अन्यानि दर्शनीयानि स्थलानि अपि सन्ति।

VIII. अधोलिखितेषु वाक्येषु कोष्ठकान्तर्गतानां पदानां प्रकृतिप्रत्ययं विभज्य/योजयित्वा पुनः लिखत।
(अधोलिखित वाक्यों में कोष्ठक में दिए गए पदों के प्रकृति-प्रत्यय का विभाजन/संयोजन करके लिखिए-)
अथ (i) …………………. (व्रज् + शतृ) तौ बालकान् प्रेक्ष्य अवदताम्। मीनान् छलेन अधिगृह्य (ii) …………… (क्रूर + तल्) भक्षयसि। अस्मिन् संसारे त्वया सदृशः (iii) …………………… (पराक्रम + इन्) नास्ति । अत्र अनेकानि (iv) ……………. …… (दृश् + अनीयर्) स्थलानि अपि सन्ति। का सुखदा साधुजन (v)……… (मैत्र + डीप्)।
उत्तरम्:
अथ (i) व्रजन्तौ (व्रज् + शतृ) तौ बालकान् प्रेक्ष्य अवदताम्। मीनान् छलेन अधिगृह्य (ii) क्रूरतया (क्रूर + तल्) भक्षयसि। अस्मिन् संसारे त्वया सदृशः (iii) पराक्रमी (पराक्रम + इन्) नास्ति । अत्र अनेकानि (iv) दर्शनीयानि (दृश् + अनीयर्) स्थलानि अपि सन्ति। का सुखदा साधुजन (v) मैत्री (मैत्र + डीप्)।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

IX. कोष्ठके प्रदत्तान् प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा अनुच्छेदं लिखत
(कोष्ठक में दिए गए प्रकृति-प्रत्यय का संयोजन करके अनुच्छेद लिखिए-)
जीवने शिक्षायाः सर्वाधिकं (i) ………… (महत् + त्व) वर्तते। बालः भवेत् (ii) …………. (बालक + टाप्) वा भवेत्, ज्ञान प्राप्तुं सर्वेः एव प्रयत्नः (iii)………….. (कृ+ तव्यत्) । शिक्षिताः (iv)………….. (प्राण + इन्) परोपकारं (v) ……….(कृ + शानच्) देशस्य सर्वदा हितम् एव चिन्तयन्ति।
उत्तरम्:
(i) महत्त्वम्
(ii) बालिका
(iii) कर्तव्यः
(iv) प्राणिनः
(v) कुर्वाणाः।

x. कोष्ठके प्रदत्तान् प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा अनुच्छेदं लिखत
(कोष्ठक में दिए गए प्रकृति-प्रत्यय का संयोजन करके अनुच्छेद लिखिए-)
तस्य क्षितौ (i) ………… (प्रलुट् + शतृ) वह्नि-ज्वालाः समुत्थिताः। एतदर्थम् अस्माभिः प्रयत्नः (ii) ………….. (कृ + अनीयर्) तत्र (iii) ………….. (अर्थ + इन्) । समूहः सन्तुष्टः अभवत्। शनैः शनैः प्रभूतं धनं (iv)………………… (अर्ज + क्तवतु) । आभया (v)………..(भास् + शानच्) निजगृहम् अपश्यताम् ।
उत्तरम्:
(i) प्रलुठतः
(ii) करणीयः
(iii) अर्थिनाम्
(iv) अर्जितवान्
(v) भासमानम्।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

स्वयं कुरुत (स्वयं कीजिए)

I. अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखाङ्कितपदानां प्रकृति-प्रत्ययौ पृथक्-पृथक् कृत्वा लिखत
(i) अस्माभिः गुरवः सदा पूजनीयाः।
(ii) गच्छन् बालकः गुरुं नमति।
(iii) सः पौराणिकं मङ्गलाचरणं करोति।
(iv) सर्वे भवन्तु सुखिनः।
(v) युष्मासु ज्येष्ठा का अस्ति।

II. अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखाङ्कितपदानां प्रकृति-प्रत्ययौ पृथक्-पृथक् कृत्वा उत्तरपुस्तिकायां लेखनीयौ
(i) बालिकाभिः राष्ट्रगीतं गातव्यम्।
(ii) चित्रं ईक्षमाणा बालिका प्रसन्ना इव भवति।
(iii) मनसः चञ्चलता वानरस्य इव भवति ।
(iv) दुष्प्रयुक्ता वाणी नरस्य पशत्वम् प्रकटयति।
(v) जीवनदात्री प्रकृतिः रक्षणीया सदा।

III. अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखाङ्कितपदानां प्रकृति-प्रत्ययौ पृथक् -पृथक् कृत्वा उत्तरपुस्तिकायां लेखनीयौ
(i) त्वया कुमार्गः त्यजनीयः ।
(ii) पठन्ती बालिका लिखति।
(iii) श्रद्धावान् छात्रः लभते ज्ञानम्।
(iv) काव्यस्य मधुरत्वम् सहृदयाः जानन्ति।
(v) सा समाजस्य सेविका अस्ति।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

IV. अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखाङ्कितपदानां प्रकृति-प्रत्ययौ पृथक्-पृथक् कृत्वा वाक्यानि पुनः लिखत
(i) पत्रवाहकेन पत्राणि नेतव्यानि।
(ii) प्रकाशमानैः नक्षत्रैः आकाशः शोभते ।
(iii) विज्ञानिनः सदा सम्मान्याः भवन्ति।
(iv) प्रकृतेः रमणीयता मनोरमा अस्ति।
(v) तस्य भार्या विदुषी अस्ति।

v. अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखाङ्कितपदानां प्रकृति – प्रत्ययौ पृथक्-पृथक् कृत्वा वाक्यानि पुनः लिखत
(i) बालकैः जन्तुशाला द्रष्टव्या।
(ii) हसन् सः पुरस्कार प्राप्नोति।
(iii) धनवान् नरः दानेन शोभते।
(iv) अहम् भारतस्य नागरिकः अस्मि।
(v) देवि, यशस्विनी भव।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

परीक्षा में प्रष्टव्य प्रत्यय-विषयक प्रश्न

I. कोष्ठके प्रदत्तान् प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा लिखत
(i) …………… विवेक: नश्यति। (क्रोध + इन्)
(ii) …………. मालां करोति। (मालिन् + डीप्)
(iii) एषा …………… घटना अस्ति । (इतिहास + ठक्)
(iv) छात्रैः उपदेशाः ……………। (पाल् + अनीयर)
(v) कर्मशीलः …………… कथ्यते। (योग + इनि)
उत्तरम्:
(i) क्रोधिनः विवेकः नश्यति।
(ii) मालिनी मालां करोति।
(iii) एषा ऐतिहासिकी घटना अस्ति।
(iv) छात्रैः उपदेशाः पालनीयाः
(v) कर्मशील: योगी कथ्यते।

II. कोष्ठके प्रदत्तान् प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा लिखत
(i) …………… बालक: पठति। (लिख + शत)
(ii) एतत् ………… वृत्तम् अस्ति। (इतिहास + ठक्)
(iii) …………. मालाः करोति। (मालिन् + ङीप्)
(vi) …………… राष्ट्र रक्षन्ति। (सेना + ठक्)
(v) क्षत्रियस्य भूषणम् ……………। (वीर + तल्)
उत्तरम्:
(i) लिखन् बालकः पठति।
(ii) एतत् ऐतिहासिकं वृत्तम् अस्ति।
(iii) मालिनी मालाः करोति ।
(iv) सैनिकाः राष्ट्रं रक्षन्ति।
(v) क्षत्रियस्य भूषणम् वीरता

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

III. कोष्ठके प्रदत्तान् प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा लिखत
(i) अयं …………….. विद्वान् अस्ति । (वेद + ठक्)
(ii) …………….. बालिका लिखति। (पठ् + शतृ)
(iii) राज्ञा प्रजाः ……….. | (पाल् + अनीयर)
(iv) …………… जनः सर्वोत्तमः भवति। (विद्या + मतुप्)
(v) व्यवहारे …………….. भवेत। (सज्जन + तल्)
उत्तरम्
(i) अयं वैदिक: विद्वान् अस्ति।
(ii) पठन्ती बालिका लिखति।
(iii) राज्ञा प्रजाः पालनीयाः
(iv) विद्यावान् जनः सर्वोत्तमः भवति।
(v) व्यवहारे सज्जनता भवेत्।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

IV. कोष्ठके प्रदत्तान् प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा लिखत
(i) कोलाहलः न …………….। (√कृ + तव्यत्)
(ii) त्वया धर्मग्रन्थाः …………। (√श्रु + अनीयर)
(iii) ………… बालकः लिखति। (√पठ + शतृ)
(iv) ……….. वृक्षाः नमन्ति । (फल + इनि)
(v) मनुष्यः ………… प्राणी अस्ति। (समाज + ठक्)
उत्तरम्
(i) कोलाहल: न कर्तव्यः ।
(ii) त्वया धर्मग्रन्थाः श्रवणीयाः।
(iii) पठन् बालकः लिखति।
(iv) फलिनः वृक्षाः नमन्ति।
(v) मनुष्य: सामाजिकः प्राणी अस्ति।

V. कोष्ठके प्रदत्तान् प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा लिखत
(i) त्वया असत्यं न ………….। (√वद् + तव्यत्)
(ii) तेन अत्र प्रवेशः …………। (√कृ + अनीयर)
(iii) ………… जनः यशः प्राप्नोति। (गुण + मतुप्)
(iv) कर्मशीलः ……….. योगी कथ्यते। (योग + इनि)
(v) स ………… मंगलाचरणं करोति। (पुराण + ठक्)
उत्तरम्
(i) त्वया असत्यं न वदितव्यम्।
(ii) तेन अत्र प्रवेश: करणीयः।
(iii) गुणवान् जनः यशः प्राप्नोति।
(iv) कर्मशीलः योगी कथ्यते।
(v) स ,पौराणिकं मंगलाचरणं करोति ।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

VI. कोष्ठके प्रदत्तान् प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा लिखत
(i) प्रातः उत्थाय छात्रैः ईशः ……………. | (√स्मृ + अनीयर्)
(ii) ………… बालिका लिखति। (√पठ् + शतृ)
(iii) मेवाड़राज्ये ………….. नृपः प्रतापः आसीत्। (शक्ति + मतुप्)
(iv) अयम् ……………. विद्वान् अस्ति। (वेद + ठक्)
(v) ………….. तु सदैव निन्दनीया एव भवति। (क्रूर + तल्)
उत्तरम्
(i) प्रात: उत्थाय छात्रैः ईशः स्मरणीयः।
(ii) पठन्ती बालिका लिखति।
(iii) मेवाड़राज्ये शक्तिमान् नृपः प्रतापः आसीत्।
(iv) अयम् वैदिकः विद्वान् अस्ति।
(v) क्रूरता तु सदैव निन्दनीया एव भवति।

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

अभ्यासार्थ प्रत्यय-विषयक बहुविकल्पीय प्रश्न

1. अधोलिखित-प्रश्नानां प्रदत्तोत्तरविकल्पेषु शुद्धं विकल्पं विचित्य लिखत
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर के लिए दिए गए विकल्पों में से शुद्ध विकल्प चुनकर लिखिए-)
(क) विभक्ता’ इति पदे कः प्रत्ययः ?
(i) त्व
(ii) तल्
(iii) क्त
(iv) क्ता।
उत्तरम्:
(iii) क्त

(ख) भूत्वा’ इति पदे कः प्रत्ययः ?
(i) त्व
(ii) तल
(iii) क्त्वा
(iv) क्त।
उत्तरम्:
(iii) क्त्वा

HBSE 10th Class Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययाः

(ग) द्रष्टुम्’ इति पदे कः प्रत्ययः ?
(i) त्व
(ii) तल
(iii) तुमुन्
(iv) क्त।
उत्तरम्:
(iii) तुमुन्

(घ) पूरयित्वा’ इति पदे कः प्रत्ययः ?
(i) त्व
(ii) तल्
(iii) क्त्वा
(iv) क्त।
उत्तरम्:
(iii) क्त्वा

(ङ) उक्तवान्’ इति पदे क: प्रत्ययः ?
(i) त्व
(ii) तल्
(iii) क्त्वा
(iv) क्तवतु।
उत्तरम्:
(iv) क्तवतु।

(च) क्षिप्त्वा’ इति पदे कः प्रत्ययः ?
(i) त्व
(ii) तल्
(iii) क्त्वा
(iv) क्तवतु।
उत्तरम्:
(iii) क्त्वा ।

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