HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 15 पादप वृद्धि एवं परिवर्धन

Haryana State Board HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter 15 पादप वृद्धि एवं परिवर्धन Important Questions and Answers.

Haryana Board 11th Class Biology Important Questions Chapter 15 पादप वृद्धि एवं परिवर्धन


(A) वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

1. ऑक्सिन का प्रमुख प्रभाव उद्दीपन करना है-
(A) कोशिका विभाजन
(B) कोशिका दीर्घण
(C) कोशिका स्फीति
(D) कोशिका विभेदन
उत्तर:
(B) कोशिका दीर्घण

2. सायटोकाइनिन उद्दीपित करते हैं-
(A) कोशिका विभाजन
(B) कोशिका दीर्घण
(C) कोशिका स्फीति
(D) कोशिका विभेदन
उत्तर:
(A) कोशिका विभाजन

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3. जीर्णता के समय पौधों में बढ़ोत्तरी होती है-
(A) क्लोरोफिल की
(C) श्वसन की
(B) प्रोटीन की
(D) प्रकाश संश्लेषण की
उत्तर:
(C) श्वसन की

4. निम्न में से कौन-सा एक पुष्पीय हॉर्मोन समझा जाता है ?
(A) ऑक्सिन
(B) जिबरेलिन
(C) सायटोकाइनिन
(D) एब्सिसिक अम्ल
उत्तर:
(B) जिबरेलिन

5. ज्यामितीय वृद्धि वक्रं का आकार है-
(A) क्यूबॉइड
(B) सिग्मॉइड
(C) सरल रेखा
(D) त्रिकोणीय
उत्तर:
(B) सिग्मॉइड

6. निम्न में से किसके प्रयोग द्वारा कच्चे फलों को पकाया जा सकता है ?
(A) IAA
(B) GA 3
(C) ABA
(D) C2H1
उत्तर:
(D) C2H1

7. आलू को भण्डारगृह में अंकुरित होने से रोका जा सकता है ?
(A) मैलिक हाइड्रेनाइड द्वारा
(B) जिएटिन द्वारा
(C) जिबरेलिन द्वारा
(D) एथिलीन द्वारा
उत्तर:
(A) मैलिक हाइड्रेनाइड द्वारा

8. जब कोई पौधा पुष्पन न कर रहा हो तो इसमें साइटोकाइनिन निर्मित होता है-
(A) पत्तियों में
(B) पार्श्व कलिकाओं में
(C) जड़ों में
(D) प्ररोह शीर्ष में
उत्तर:
(C) जड़ों में

9. पौधों में पुष्पन उत्प्रेरित करने वाला हॉर्मोन है-
(A) वनेंलिन
(B) फ्लोरिजन
(C) ऑक्सिन
(D) एथिलीन
उत्तर:
(B) फ्लोरिजन

10. प्रदीप्तिकालिका परिघटना को सर्वप्रथम खोजा-
(A) गार्नर एवं एलार्ड ने
(B) याबुता व सुमिकी ने
(C) स्कूग व वेण्ट ने
(D) होमनर व बोनर ने ।
उत्तर:
(A) गार्नर एवं एलार्ड ने

11. जैवियम एक ………………. प्रदीप्तिकाली पौधा है।
(A) अल्प
(B) दीर्घ
(C) उदासीन
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) अल्प

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12. कम तापमान द्वारा पुष्पन को त्वरित करने की प्रक्रिया को कहते हैं-
(A) प्रदीप्तिकालिता
(B) बसन्तीकरण
(C) विपुंसीकरण
(D) अनुप्रेरण
उत्तर:
(B) बसन्तीकरण

13. प्रदीप्तिकाली प्रेरण के फलस्वरूप प्रेरित रसायन है-
(A) फ्लोरिजन
(B) वनेंलिन
(C) फाइटोक्रोम
(D) साइटोक्रोम
उत्तर:
(A) फ्लोरिजन

14. साइटोकाइनिन प्रेरित करता है- (UPCPMT)
(A) कोशिका दीर्घन
(B) कोशिका वृद्धि
(C) अनिषेक जनन
(D) कोशिका विभाजन
उत्तर:
(D) कोशिका विभाजन

15. संवहनी कैम्बियम में कोशिका विभाजन को प्रेरित करने वाला वृद्धि नियामक है-
(A) IAA
(B) ABA
(C) साइटोकाइनिन
(D) एथिलीन
उत्तर:
(A) IAA

16. फुलिश सीडलिंग रोग का कारण है-
(A) 2, 4-D
(B) GA
(C) ABA
(D) IAA
उत्तर:
(B) GA

17. निम्न में से खरपतवारनाशी है-
(A) ABA
(C) 2, 4-D
(B) IAA
(D) C2H4
उत्तर:
(C) 2, 4-D

18. साइटोकाइनिन नाम दिया- (RPMT)
(A) लीथम (1968) ने
(B) मिलर (1964) ने
(C) मग (1955) ने
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) लीथम (1968) ने

19. कौन-सा दीर्घ दिवस पादप है- (CBSE PMT)
(A) तम्बाकू
(B) सोयाबीन
(C) गुलाबांस
(D) पालक ।
उत्तर:
(D) पालक ।

20. कौन-सा आलू भेद में कलिका प्रसुप्ति तोड़ता है- ( CBSE PMT)
(A) जिब्बरेलिन
(B) V AA
(C) ABA
(D) जिएटिन ।
उत्तर:
(A) जिब्बरेलिन

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21. कोशिका विभाजन प्रेरण तथा जीर्णता में देरी होती है- (UPCPMT)
(A) जिब्बरेलिन द्वारा
(B) ऑक्सिन द्वारा
(C) सायटोकाइनिन द्वारा
(D) इथाइलीन द्वारा।
उत्तर:
(C) सायटोकाइनिन द्वारा

22. शीर्ष प्रमुखता का कारण है- (RPMT, UPCPMT)
(A) IAA
(B) IBA
(C) 2,4-D
(D) 2,4,5-T
उत्तर:
(A) IAA

23. पौधे में जिंक की कमी होने पर किस हार्मोन का जैव संश्लेषण प्रभावित होता है- (CBSE PMT)
(A) एब्सिसिक अम्ल
(B) ऑक्सिन
(C) साइटोकाइनिन
(D) इथाइलीन ।
उत्तर:
(B) ऑक्सिन

24. हरे पौधों में पर्वों पर कोशिका दीर्घीकरण का कारण है- (CBSE PMT)
(A) IAA
(B) साइटोकाइ
(C) जिब्बरेलिन्स
(D) इथाइलीन ।
उत्तर:
(C) जिब्बरेलिन्स

25. बीजों का शीत उपचार कहलाता है- (RPMT)
(A) वनेंलाइजेशन
(B) स्ट्रेटीफिकेशन
(C) डिवनेंलाइजेशन
(D) फोटोफॉस्फोरिलेशन ।
उत्तर:
(A) वनेंलाइजेशन

26. वर्नेलाइजेशन की प्रक्रिया प्रेरित होती है- (UPCPMT)
(A) साइटोकाइनिन द्वारा
(B) ऑक्सिन द्वारा
(C) फोटो-ट्रॉपिस्म द्वारा
(D) GA द्वारा।
उत्तर:
(D) GA द्वारा।

27. पर्ण विलगन का कारण है- (UPCPMT)
(A) ABA
(B) साइटोकाइनिन
(C) ऑक्सिन
(D) जिब्बरेलिन ।
उत्तर:
(A) ABA

28. ऑक्सिन का जैव संश्लेषण है- (UPCPMT)
(A) एवीना वक्रण परीक्षण
(B) कैलस निर्माण
(C) कवक संवर्धन
(D) बीज प्रसुप्ति।
उत्तर:
(A) एवीना वक्रण परीक्षण

29. पुष्पीय पादपों में प्रकाश अवधि का महत्व प्रथम बार देखा गया- (CBSE PMT)
(A) लेम्ना में
(B) तम्बाकू में
(C) कपास में
(D) पिटूनिया में।
उत्तर:
(B) तम्बाकू में

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30. पादपों में बसन्तीकरण की आवश्यकता को प्रतिस्थापित करने वाला हार्मोन है- (RPMT)
(A) इथाइलीन
(B) ऑक्सिन
(C) जिब्बरेलिन
(D) साइटोकाइनिन ।
उत्तर:
(C) जिब्बरेलिन

31. धान का मूठ नवोद्भिद रोग निम्न में से किसकी खोज का कारण बना है ? (RPMT)
(A) GA
(C) 2,4,8
(B) ABA
(D) IAA I
उत्तर:
(A) GA

32. निम्नलिखित में से कौन सा एक संश्लेषित ऑक्सिन है ? (CBSE AIPMT)
(A) NAA
(C) GA
(B) IAA
(D) IBA
उत्तर:
(A) NAA

33. निम्नलिखित में से कौन-सा अम्ल कैरोटीनॉएड्स का व्युत्पन्न है ? (CBSE AIPMT)
(A) इण्डोल ब्यूटारिक अम्ल
(B) इण्डोल-3 एसीटिक अम्ल
(C) जिबरेलिक अम्ल
(D) एब्सिसिक अम्ल ।
उत्तर:
(D) एब्सिसिक अम्ल ।

34. प्रकाशानुक्त झुकाव (phototropic curvature) निम्नलिखित में से किसके असमान वितरण के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है ? (CBSE AIPMT)
(A) जिबरेलिन
(B) फाइटोक्रोम
(C) साइटोकाइनिन
(D) ऑक्सिन ।
उत्तर:
(D) ऑक्सिन ।

35. दीप्तिकालिता को सर्वप्रथम खोजा गया था- (CBSE AIPMT)
(A) तम्बाकू में
(B) आलू में
(C) टमाटर में
(D) कपास में।
उत्तर:
(A) तम्बाकू में

36. चाय के बगानों में सामान्यतया प्रयोग होने वाला पादप वृद्धि हार्मोन है- (RPMT)
(A) ABA
(B) जीएटिन
(C) IAA
(D) इथाइलीन ।
उत्तर:
(B) जीएटिन

(B) अति लघु उत्तरीय प्रश्न ( Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
गन्ने की खेती में कौन-से वृद्धि नियामक के छिड़कने से तनों की लम्बाई बढ़ती है ?
उत्तर:
जिबरेलिन्स (Gibberellins) ।

प्रश्न 2.
वृद्धि की किस अवस्था में वृद्धि वक्र सबसे अधिक होता है ?
उत्तर:
प्रसार अवस्था में ।

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प्रश्न 3.
कौन-सा हॉर्मोन वृद्धि को कम करता है ?
उत्तर:
एब्सिसिक अम्ल (Abscisic acid )।

प्रश्न 4.
अनिषेक फलन के लिए उत्तरदायी हॉर्मोन का नाम लिखिए।
उत्तर:
जिब्बरेलिन्स (Gibberellins)।

प्रश्न 5.
ऑक्सिन का एक कार्य लिखिए।
उत्तर:
कोशिका की लम्बाई में वृद्धि का प्रेरण ।

प्रश्न 6.
कोशिका वृद्धि की तीन अवस्थाएँ कौन-सी हैं ?
उत्तर:

  • विभाजन,
  • विवर्धन तथा
  • विभेदन ।

प्रश्न 7.
एक कार्यिकीय प्रक्रिया का नाम बताइए जिसमें लैक्टुका सैटाइवा प्रयुक्त होता है।
उत्तर:
अंकुरण (Germination)।

प्रश्न 8.
प्रकाश पर आधारित किन्हीं तीन प्रक्रियाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रकाश संश्लेषण, प्रकाशानुवर्तन, दीप्तिकालिता ।

प्रश्न 9.
LDP तथा SDP का एक-एक उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
LDP- चुकन्दर, SDP सूर्यमुखी।

प्रश्न 10.
वेण्ट ने अपने प्रयोग किस पौधे पर किये ?
उत्तर:
जई (Avena sativa) ।

प्रश्न 11.
पौधों में शीर्षस्थ प्रभाविता से सम्बन्धित हॉर्मोन कौन-सा है ?
उत्तर:
ऑक्सिन (Auxin) ।

प्रश्न 12.
अधोकुंचन (Epinesty ) से सम्बन्धित पादप हॉर्मोन का नाम बताइए ।
उत्तर:
एथिलीन (Ethylene)।

प्रश्न 13.
जिबरेलिन की खोज किसमें की गई ?
उत्तर:
धान पर परजीवी ऊतक जिबरेला फ्यूजीकुराई ( Gibberella fujikuroi) में ।

प्रश्न 14.
अधिकांश ऑक्सिन का निर्माण किस भाग में होता है ?
उत्तर:
प्ररोह शीर्ष में (shoot apex ) ।

प्रश्न 15.
साइटोकाइनिन की उपस्थिति जीर्णता में देरी का कारण है, इस प्रभाव को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
रिचमॉड एवं लैंग प्रभाव (Richmond and Lang effect)।

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प्रश्न 16.
सायटोकाइनिन रासायनिक आधार पर क्या है ?
उत्तर:
No फरफ्यूरिल – एमीनो प्यूरीन यौगिक ।

प्रश्न 17.
वृद्धि मापन किस यन्त्र द्वारा किया जाता है ?
उत्तर:
ऑक्सेनोमीटर (Auxanometer) द्वारा।

प्रश्न 18.
आलू के कन्द्र अंकुरण रोकने के लिए प्रयुक्त संश्लेषित हॉर्मोन का नाम बताइए।
उत्तर:
MCPA (2-मेथिल, 4- क्लोरोफीनॉक्सी ऐसीटिक अम्ल) ।

प्रश्न 19.
मानव मूत्र से पृथक् किये गये हॉर्मोन का नाम लिखिए।
उत्तर:
ऑक्सिन ।

(C) लघु उत्तरीयं प्रश्न-I (Short Answer Type Questions-1)

प्रश्न 1.
माली हेज लगाने में पौधों की छँटाई क्यों करता है ?
उत्तर:
ऑक्सिन नामक पादप हॉर्मोन प्ररोह शीर्ष में संश्लेषित होता है जो पार्श्व कलिकाओं की वृद्धि को रोकता है। छँटाई करने से शीर्ष कलिका कट जाती है, जिससे पार्श्व कलिकाएँ वृद्धि करने लगती हैं। ऐसा होने से घनी झाड़ियाँ उत्पन्न होती हैं ।

प्रश्न 2.
जिब्बरेलिन की रासायनिक संरचना बताइए।
उत्तर:
इसकी संरचना में एक गिबेन रिंग पायी जाती है।
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प्रश्न 3.
ऑक्सिन की रासायनिक संरचना बताइए।
उत्तर:
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प्रश्न 4.
सायटोकाइनिन की रासायनिक संरचना लिखिए।
उत्तर:
सायटोकाइनिन 6- परफ्यूरिल अमीनोप्यूरीन है।

प्रश्न 5.
एक्सिसिक अम्ल की रासायनिक संरचना लिखिए।
उत्तर:
ओहकुमा ने एब्सिसिक अम्ल की रासायनिक संरचना दी। इसे 3- मेथिल-5 (1- हाइड्रॉक्सी 4-ऑक्सो 2’6’6′ ट्राइमेथिल 2- साइक्लोहेक्सेन-1 आइल)- सिस ट्रान्स 2′, 4′ पेन्टाडिनोइक अम्ल कहते हैं।
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प्रश्न 6.
एथिलीन की रासायनिक संरचना बताइए ।
उत्तर:
मेथिओनीन एमीनो अम्ल से ऐथिलीन का निर्माण होता है।
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प्रश्न 7.
यदि एक नवोद्भिद पौधे की शीर्षस्थ कलिका को काट दिया जाय तो वृद्धि रुक जाती है, क्यों ?
उत्तर:
तने के शीर्ष पर स्थित विभज्योतक कोशिकाओं से पादप हॉर्मोन संश्लेषित होकर पौधे के विभिन्न भागों में विसरित होते हैं। पादप हॉर्मोन (ऑक्सिन) के कारण कोशिकाओं में विभाजन एवं वृद्धि होती है। अतः शीर्षस्थ कलिका (apical bud) को काटने पर वृद्धि रुक जाती है।

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प्रश्न 8.
जीर्णावस्था पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पादप अंगों की परिपक्वन अवस्था एवं क्रमिक निष्क्रियता आने की अवस्था को जीर्णावस्था कहते हैं। एब्सिसिक अम्ल तथा एथिलीन जीर्णावस्था (senescence) को प्रेरित करते हैं, जबकि सायटोकाइनिन जीर्णता को विलम्बित करता है।

(D) लघु उत्तरीय प्रश्न- II ( Short Answer Type Questions-II)

प्रश्न 1.
पादप हॉर्मोन क्या हैं? इनकी खोज किसने की ? विभिन्न पादप हॉर्मोन के नाम लिखिए।
उत्तर:
पादप हॉर्मोन ऐसे रासायनिक पदार्थ हैं जो पौधों में अल्प मात्रा में संश्लेषित होकर पौधों की वृद्धि का नियन्त्रण करते हैं। सर्वप्रथम जॉन वान सैक (J. V. Sachs) ने पादप हॉर्मोन की खोज की तथा इन्हें वृद्धि कारक कहा । हॉर्मोन्स को पाँच समूहों में बाँटा गया है-

  1. ऑक्सिन जैसे-इण्डोल ऐसीटिक एसिड (IAA), इण्डोल ब्यूटाइरिक एसिड (IBA) 2, 4-डाइक्लोरोफिनोक्सी-ऐसीटिक एसिड (2, 4-D) आदि ।
  2. जिब्बरेलिन्स, जैसे – GA3GA GA4 आदि ।
  3. सायटोकाइनिन, जैसे-काइनेटिन, जिएटिन आदि ।
  4. एब्सिसिक अम्ल, जैसे-ABA ।
  5. एथिलीन – एक गैसीय हॉर्मोन ।

प्रश्न 2.
हॉर्मोन्स तथा एन्जाइम में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
हॉर्मोन्स तथा एन्जाइम में अन्तर

हॉर्मोन्स (Hormones) एन्जाइम्स (Enzymes)
1. हॉर्मोन्स पादप विभज्योतक में संश्लेषित होकर किसी भी भाग को स्थानान्तरित होकर प्रभाव उत्पन्न करते हैं। इनका संश्लेषण कोशिकाओं में आवश्यकतानुसार होता है।
2. इनकी रासायनिक प्रकृति भिन्न-भिन्न होती है। सभी एन्जाइम प्रोटीन प्रकृति के होते हैं।
3. ये सान्द्रता या न्यूनता अलग-अलग प्रभाव डालते हैं। इनकी सान्द्रता व न्यूनता का क्रिया पर कोई प्रभाव नहीं होता है।
4. ये क्रिया में प्रयुक्त हो जाते हैं। ये क्रिया में प्रयुक्त नहीं होते हैं।
5. उदाहरण-ऑक्सिन, जिब्बरेलिन आदि। उदाहरण-एल्डोलेज, हैक्सोकाइनेज आदि।

प्रश्न 3.
विलगन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
विलगन (Abscission) – विभिन्न कारणों जैसे- सूखा, पोषण की कमी, जीर्णावस्था, प्रकाश की कमी आदि से पत्तियों में एथिलीन एवं एक्सिसिक अम्ल का निर्माण बढ़ जाता है जिसके प्रभाव से पत्तियों के वृन्त के आधार पर एक विलगन पर्त बन जाती है। यह पर्त पौधे एवं पत्ती के बीच पदार्थों का स्थानान्तरण रोक देती है। कुछ समय बाद पत्ती पौधे से अलग हो जाती है।

यह क्रिया विलगन कहलाती है। फलों के पकने पर भी इसी प्रक्रिया द्वारा विलगन होता है। IAA पादप हॉर्मोन विलगन एवं जीर्णावस्था में विलम्ब करता है। यदि IAA की उचित सान्द्रता का छिड़काव पर्णवृन्तों पर कर दिया जाय तो विलगन कुछ समय के लिए रुक जाता है।

प्रश्न 4.
ऑक्सिन तथा सायटोकाइनिन किस प्रकार पौधों में ऊतकों के विभेदन को प्रेरित करते हैं ?
उत्तर:
सायटोकाइनिन कोशिका विभाजन के अतिरिक्त ऊतक विभेदन को प्रेरित करता है। यदि किसी पादप ऊतक का संवर्धन शर्करा एवं खनिज लवण युक्त माध्यम पर कराया जाय तो कोशिकाएँ विभाजित होकर समूह कैलस (callus) बना लेती हैं। यदि माध्यम में अधिक सान्द्रता में साइटोकाइनिन तथा ऑक्सिन मिलाया जाय तो कैलस से प्ररोह का विकास हो जाता है।

कम सायटोकाइनिन तथा ऑक्सिन अनुपात में केवल जड़ों का विकास होता है। माध्यमिक सायटोकाइनिन व ऑक्सिन अनुपात में जड़ तथा प्ररोह दोनों विकसित होते हैं। मध्यम सायटोकाइनिन व कम ऑक्सिन अनुपात में केवल कैलस निर्मित होता है।
HBSE 11th Class Biology Important Questions Chapter Chapter 15 पादप वृद्धि एवं परिवर्धन 5

प्रश्न 5
कारण बताइए-
(क) पुष्पों का खिलना ।
(ख) कभी-कभी फल परिपक्वता प्राप्त करने से पहले ही गिर जाते हैं। (ग) ड्यूरेन्टा या मेंहदी की झाड़ियों की बाड़ लगाने के लिए इनकी छँटाई करते हैं।
उत्तर:
(क) पौधे में पुष्पन क्रियां प्रकाश से प्रभावित होती है। पौधों को पुष्पन हेतु प्रतिदिन एक निश्चित अवधि तक प्रकाश की आवश्यकता होती है। इसे दीप्तिकाल या पुष्पन काल (Photoperiod or flowering period) कहते हैं। पौधों को अपने निर्णायक काल तक का प्रकाश मिलने पर ही इनमें पुष्पन प्रेरित होता है। इस प्रक्रिया के लिए एक हॉर्मोन फ्लोरिजन का संश्लेषण होता है।

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(ख) कभी-कभी फलों के वृन्त में एब्सिसिक अम्ल की सान्द्रता बढ़ जाती है, जिससे फलों का विलगन हो जाता है।

(ग) ड्यूरेन्टा एवं मेंहदी की शीर्ष कलिकाओं में ऑक्सिन का संश्लेषण होता है जो पार्श्व कलिकाओं (lateral buds) के विकास को रोक देता है जिसके कारण झाड़ियाँ घनी नहीं हो पाती हैं। शीर्ष कलिकाओं (apical buds) की छँटाई से ऑक्सिन का निर्माण रुक जाता है और पार्श्व कलिकाएँ वृद्धि करने लगती हैं।

प्रश्न 6.
अनाज के अंकुरित दानों में जिबरेलिन की क्या भूमिका है ?
उत्तर:
अंकुरण के समय अनाज के दाने जल अवशोषण करते हैं। इससे भ्रूण में कुछ मात्रा में जिब्बरेलिन का संश्लेषण होने लगता है। जिब्बरेलिन प्रोटिएज तथा एमाइलेज विकरों के संश्लेषण को प्रेरित करता है। यह निष्क्रिय B- एमाइलेज को सक्रिय करता है।

सक्रिय – तथा 8- एमाइलेज मिलकर मण्ड का पाचन करते हैं जिससे ग्लूकोज बनता है। ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से भ्रूण को ऊर्जा उपलब्ध होती है। अब सायटोकाइनिन तथा ऑक्सिन भी संश्लेषित होते हैं, जिससे कोशिका विभाजन, विवर्धन एवं विभेदन प्रारम्भ हो जाता है और एक नवोद्भिद का निर्माण होता है।

प्रश्न 7.
पादप हॉर्मोन्स के निर्माण स्थल एवं परिवहन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:

  1. ऑक्सिन इसका संश्लेषण विभज्योतकों में होता है। इसका संवहन एक कोशिका से दूसरी कोशिका में तथा अन्य ऊतकों तथा पौधे के विभिन्न भागों में विसरण द्वारा होता है। ऑक्सिन का प्रवाह एकदिशीय (unidirectional) होता है।
  2. जिब्बरेलिन इसका संश्लेषण तरुण पत्तियों, कलिकाओं, बीजों और जड़ों में होता है। इनका संवहन जाइलम तथा फ्लोएम द्वारा होता है। ये सम्पूर्ण पौधे को प्रभावित करता है।
  3. सायटोकाइनिन इसका निर्माण मुख्यतः जड़ शीर्ष पर या अंकुरित बीजों में होता है। ये जड़ों से जाइलम द्वारा तनों में पहुँचते हैं।
  4. एक्सिसिक अम्ल इसका संश्लेषण कैरोटिनाइड से होता है। यह जाइलम फ्लोएम तथा मृदूतक कोशिकाओं से पूरे पौधे में संवहन करता है।
  5. एथिलीन इसका निर्माण मेथिओनीन एमीनो अम्ल से होता है। यह जीर्णावस्था वाले पुष्पों, पके फलों, तने के शीर्ष, जड़ों आदि से वायु में मुक्त होता है। इसका स्थानान्तरण वायु द्वारा होता है।

(E) निबन्धात्मक प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वृद्धि का मापन कैसे किया जाता है ? किन्हीं दो वृद्धि मापक यत्रों की क्रियाविधि लिखिए।
उत्तर:
पाद्वप वृद्धि मापन (Plant growth measurement)
वृद्धि मापन (Measurement of Growth)-पौधों में वृद्धि को निम्न प्रकार मापा जाता है-

  • लम्बाई में वृद्धि,
  • मोटाई में वृद्धि,
  • क्षेत्र तथा आयतन में वृद्धि,
  • कोशिका संख्या में वृद्धि।

वैसे तो मापन की कोई भी विधि प्रयोग की जा सकती है, परन्तु सही जानकारी के लिए हमें कई माप लेने चाहिए। जैसे-बीज के अंकुरण के समय अन्धकार की आवश्यकता होती है जिससे इसमें तीत्र वृद्धि होती है। परन्तु उसी समय उसके शुष्क भार में कमी आ जाती है क्योंकि पौधा संचित भोजन का उपयोग करके लम्बाई में वृद्धि करता है।
वृद्धि को विभिन्न विधियों से मापा जा सकता है-
1. प्रत्यक्ष विधि (Direct Method) – इस विधि द्वारा वृद्धिशील अंग (growing organ) पर निशान लगाकर समय के अन्तराल पर पैमाने से माप लिया जाता है और विशिष्ट समय पर हुई वृद्धि का पता लगाया जाता है।

2. आर्क वृद्धिमापी (Arc Auxanometer) – इस यन्न में एक छोटी घिरनी (pulley) से एक लम्बा सूचक लगा होता है जो एक चापाकार पैमाने पर घूमता है। घिरनी के ऊपर एक मजबूत धागा लगा होता है। धागे के एक सिरे को पौधे के शीर्ष से बाँध दिया जाता है तथा दूसरे सिरे पर एक भार लटका दिया जाता है।

ऐसा करने से धागा घिरनी पर तना रहता है। जब पौधा वृद्धि करता है तो भार के कारण धागा ऊपर खिंचता है साथ ही घिरनी और इसमें लगा सूचक (pointer) भी घूमता है। चाप पर सूचक की दूरी के अनुसार पौधे की इकाई समय में वृद्धि ज्ञात कर ली जाती है।

3. क्षैतिज सूक्ष्कदर्शी द्वारा (By Horizontal microscope) – किसी वृद्धिशील पादप (growing plant) के समीप इस सूक्ष्मदर्शी को लगा देते हैं। पौधे के सिरे पर एक निशान बनाकर उसी स्थान पर सूक्ष्मदर्शी फोकस (focus) कर देते हैं। कुछ दिनों के बाद सूक्ष्मदर्शी (microscope) के पेच को घुमाकर ऊपर उठाकर पुनः उसी बिन्दु पर फोकस करते हैं। दोनों गणनाओं का अन्तर ज्ञात कर लेते हैं। जो पौधे की लम्बाई में वृद्धि को प्रदर्शित करता है।
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4. पेकर का ऑक्सेनोमीटर (Ppeffer’s Auxanometer)- इस यन्त में दो छिरनियाँ (pullies) होती हैं। दोनों घिरनियों को एक स्टैण्ड पर एक सीध में कस द्विया जाता है। दोनों घिरनियों के ऊपर से एक धागा लगाया जाता है। धागे का एक सिरा गमले में लगे पौषे के शीर्ष से बाँध दिया जाता है तथा इसके सिरे पर एक भार लटका दिया जाता है।

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भार लटके धागे वाली ओर एक ऊर्ष्वाधर (vertical) बेलन लगा छोता है जिस पर कालिख लगी होती है। यह बेलन अपनी धुरी पर घूम सकता है। इसी ओर के धागे पर एक सूचक (pointer) लगा दिया जाता है। सूचक (pointer) की नोंक बेलन को छूती है। जब पौधा वृद्धि करता है तो धागा खिंचता है जिससे सूचक घूमते दुए बेलन पर नीचे की ओर चलता है। बेलन पर सूचक द्वारा चली दूरी के अनुसार पौधे की वृद्धि की गणना कर ली जाती है।
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प्रश्न 2.
दीप्तिकालिता तथा क्रान्ति दीप्तिकाल का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दीप्तिकालिता (Photoperiodism)
पौधों में विभिन्न क्रियाओं के लिए प्रकाश का बहुत्त महत्व है। पौधों के फलने-फूलने, वृद्धि, पुष्मन आदि पर प्रकाश की अवधि का प्रभाव पड़ता है। पौधों द्वारा प्रकाश की अवधि तथा समय के प्रति अनुक्रिया को दीजिक्कालिता कहते हैं। दीप्तिकालिता शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम गार्नर तथा एलाई (Garner and Allard; 1920) ने किया।

इन्होंने बताया कि तम्बाक् (Tobacce) की एक प्रजाति में गर्मी में बहुत अधिक कायिक वृद्धि (vegetative growth) होती है परन्तु यदि यही जाति (Nicotiana tabacum) सर्दियों में लगाई जाए तो कायिक वृद्धि के साथ-साथ बहुत अच्छा पुष्पन भी होता है। तब उन्होंने यह कहा कि दिन की लम्बाई अर्थात् प्रकाश के समय का पुष्पन पर प्रभाव पड़ता है, क्योंकि सर्दियों में प्रकाश की अवधि कम होती है। अतः इन्हें अल्प प्रदीप्तिकाली पौधा (short day plant = SDP) कहा।

प्रकाश काल के पुष्पन पर प्रभाव के अनुसार पौषे तीन प्रकार के होते हैं-

  1. अल्प प्रदीप्तिकाली पौधे (Short Day Plant or SDP)-वे पौधे जिनमें क्रान्तिक दीप्तिकाल से कम समय तक प्रकाश देने से पुष्पन होता है; जैसे-तम्बाकू।
  2. दीर्घ प्रदीफिकाली पौधे (Long day plant or LDP)-ऐसे पौधे जिनमें क्रान्तिक दीप्तिकाल से अधिक समय तक प्रकाश देने से पुष्पन होता है; जैसे-जई, मूली आदि।
  3. दिवस निरेक्ष पौधे (Day Neutral Plants or DNP) – इन पौर्धों के पुष्पन पर प्रकाश के समय का कोई प्रभाव नहीं होता है, जैसे-टमाटर आदि।

कुछ पौधों में कुछ दिन अल्व प्रदीपित काल के पश्चात् फिर दीर्घ प्रदीधित काल मिलने से ही पुष्पन होता है। इन्हें अल्प-दीर्घ प्रद्दीष्तिकाली पौधे (Short-Long Day Plant) कहते हैं। जसे-कैन्डीटफ्ट। क्रान्ति दीप्तिकाल (Critical Day Length) क्रान्ति दीप्तिकाल वह दीप्ति समय है जो पौधे में पुष्वन क्रिया को आरम्भ करने के लिए आवश्यक है। दीप्तिकाल में प्रकाश से अधिक सतत् अन्धकार की आवश्यकता होती है। क्योंकि प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि इनका अन्धकार के समय पड़ने वाली प्रकाश की कुछ किरणें भी पुष्पन को प्रभावित करती हैं।
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दीप्तकालिका का प्रक्रम (Process of Photoperiodism) -फाइटो वर्णक पुष्पन अनुक्रिया के प्रेरण के लिए प्रकाश का अवशोषण करके पुष्पन उत्पन्न करने वाले हॉर्मोंन फ्लोरिजिन (Florigen) का संश्लेषण करता है। सम्पूर्ण प्रक्रम का संक्षेप में वर्णन निम्नवत् हैं।

(1) प्रकाश का अवशोषण (Absorption of Light) – पादपों में पुष्पन तब होता है जब वे प्रकाश तथा अंधेरे का उपयुक्त चक्र प्रहणण कर लेते हैं। इन चक्रों की संख्या विभिन्न प्रजातियों के लिए भिन्नभभिन्न होती है। जैन्थियम पेन्निसिल्वेनिकम (Xanthium pennsylvanicum) को पुष्पन के लिए केवल एक प्रेरक चक्र (Photoinductive cycle) की आवश्यकता होती है।

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साल्विया ऑक्सीडेन्टालिस (Salvia occidentalis) को सत्रह तथा प्लेंटेगो लेन्शियोलेटा (Plantago lanceolata) को 15 प्रकाश प्रेरक चक्रों की आवश्यकता अपने पुष्पन के लिए होती है। पौधों में पुष्पन की क्रिया केवल तभी सम्भव होती है जब वे प्रकाश प्रेरक चक्रों की वांछित संख्या प्राप्त कर लेते हैं। प्रकाश की समस्त तरंगदैर्घ्य पुष्पन को प्रेरित नहीं करती है। पुष्पन की सर्वाधिक उपयुक्त प्रकाश तरंगदैर्ध्य 560 nm – 640 nm

(2) फाइटोक्रोम (Phytochrome) – प्रकाश की तरंगदैर्ध्यों का अवशोषण पत्तियों द्वारा होता है। यह इस तथ्य से प्रमाणित होता है कि पत्तियों रहित पौधों में कभी भी पुष्पन की क्रिया नहीं होती है। वांछित प्रकाशकाल (photoperiod) को अवशोषित करने के लिए एकल पत्ती भी पर्याप्त होती है। आंशिक रूप से परिपक्व पत्तियाँ प्रकाश के लिए अत्यधिक संवेदनशील होती हैं।

पत्तियों में उपस्थित प्रोटीनयुक्त वर्णक फाइटोक्रोम प्रकाश का अवशोषण करके पुष्पन को प्रेरित करते हैं। फाइटोक्रोम अन्तरापरिवर्तनीय रूपों में पाया जाता है। Pr यह लाल रंग का प्रकाश का 660 nm का अवशोषण करता है तथा Pfr सुदू लाल प्रकाश का अवशोषण शीष्रता से करके या अंधेरे में मंद रूप से Pr में बदल जाता है।

दिन के समय जब श्वेत प्रकाश उपलख्य होता है तो Pfr पौधों में संचित हो जाता है। फाइटोक्रोम का यह रूप SDP में पुष्मन रोधक तथा LDP पुष्पन प्रेरक होता है। सायंकाल में Pfr तापीय रूप से स्वतः Pr में अपषटित हो जाता है। यह वर्णक SDP में पुष्वन प्रेक तथा LDP में पुषन रोधक होता है।
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(3) फ्लोरिजन (Florigen)-प्रकाश प्रेरणिक चक्रों से पुष्पन प्रेक हॉमोंन निर्मित होता है। इस हॉमोंन की उपस्थिति मार्फिंग प्रयोग से प्रमाणित हो जाती है। एक पौधा जिसने पुष्वन के लिए वांछित प्रकाशकाल प्रण नहीं किया हो को ऐसे पौधे के साथ कलम से बाँध दिया जाए जिसने पुष्पन के लिए पर्याप्त प्रकाश काल प्रहण कर लिया हो तो पुष्पन की क्रिया दोनों में होती है क्योंकि दूसरे पौधे में उत्पन्न पुष्वन प्रेरक पदार्थ पहले पौधे में स्थानान्तरित हो जाता है। इस पदार्थ को फ्लोरिजन (Florigen) कछे हैं।

फ्लोरिजन के निर्माण को विभिन्न वैज्ञानिकों ने विभिन्न प्रकार से समझाया है। SDP पौधों में इसका निर्माण जिबरेलिन सदृश्य हॉॉमोंन द्वारा होता है जोकि लाल प्रकाश की पर्याप्त मात्रा अवशोषित करके फ्लोरिजन में परिवर्तित हो जाता है। अन्थकार में यह हॉमोंन पुनः जिबरेलिन सदृश हॉम्मोन में परिवर्तित हो जाता है। जिबोलिन सदृश्य होंमोंन प्रकाश तथा ताप की उचित परिस्थितियों में फ्लोरिजन में परिवर्वित होता है। इसके पश्चात् यह पौधे के उन भागों में स्थानान्तरित हो जाता है जहाँ पष्षन की क्रिया होनी होती है।
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फ्लोरिजन से पौधों में पुष्पन की क्रिया प्रेरित होती है।

प्रश्न 3.
पादप वृद्धि पर प्रभाव डालने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वृद्धि दर एवं वृद्धि वक्क (Growth Rate and Growth curve) समय की प्रति इकाई के दौरान बढ़ी हुई वृद्धि को वृद्धि दर (growth rate) कहा जाता है। वृद्धि दर को विभिन्न रूपों में प्रदर्शित किया जाता है। जैसे-अंकगणिवीय वृद्धि, ज्यामितीय वृद्धि, सिग्माइड वृद्धि तथा सम्पूर्ण एवं सापेक्ष वृद्धि दर।

(अ) अकगणितीय धृन्दि (Arithmetic Growth)
यह वृद्धि का वह प्रकार है जिसमें आरम्भ से ही एक स्थिर दर से वृद्धि होती है। समसूत्री विभाजन (mitosis) के पश्चात् बनने वाली दो संतति कोशिकाओं में से केवल एक कोशिका निर्त्रर विभाजित होती रहती है और दूसरी कोशिका विभेदित एवं परिपक्व होती रहती है। अंकगणितीय वृद्धि को हम निश्चित दर पर वृद्धि करती जड़ में देख सकते हैं। यह एक सरलतम अभिव्यक्ति होती है। यदि इस वृद्धि का प्राफ पर आकलन किया जाए तो हमें एक सीधी रेखा प्राप्त होती है। इस वृद्धि को छम गणितीय रूप से व्यक्त कर सकते हैं-

Lt=Lo+rt
(यहाँ Lt= समय t पर लम्बाई,
L0= समय शून्य पर लम्बाई, r= वृद्धि दर)
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(ब) उसमिबीय शृबि (Geometrical Growth)
किसी एक कोशिका, पौधे के एक अंग अथवा पूर्ण पौधे की वृद्धि सदैव एकसमान नहीं होती है अर्थात् बदलती रहती है।
प्रारम्भिक अवस्था में वृद्धि धीमी होती है जिसे प्रारम्थिक धीमा वृद्धि काल (initial lag phase) कहते हैं। इसके पश्वात् वृद्धि तीव्रतम होकर उच्चतम बिन्दु पर पहुँच जाती है जिसे मध्य तीव्र वृद्धि काल (middle logarithmic phase) कहते हैं।

z`इसके पश्चात् वृद्धि पुन: धीमी होती है और अन्त में स्थिर हो जाती है। इसे अन्तिम घीमा वृद्धि काल (last stationary phase) कठते हैं। इसे सामूह्हिक रूप से ज्यामितीय वृद्धि (geometrical growth) कहते हैं। इसमें सूत्री विभाजन (mitosis) से बनी दोनों संतति कोशिकाओं में पुनः विभाजन होता है और इनसे बनी कोशिकाएँ मातृ कोशिकाओं का अनुसरण करती हैं।

यद्यपि सीमित पोषण आपूर्ति के साथ वृद्धि दर धीमी होकर स्थिर हो जाती है। समय के प्रति वृद्धि दर को म्राफ पर अंकित करने पर एक सिम्यॉड्ड वार (Sigmoid curve) प्राप्त होता है। यह ‘ S ‘ की आकृति का होता है। ज्यामितीय वृद्धि को गणितीय रूप से निम्न प्रकार व्यक्त कर सकते हैं-

w1=woert

जहाँ (w1= अन्तिम आकार, भार, ऊँचाई, संख्या आदि, w0= प्रारम्भिक आकार वृद्धि के प्रारम्भ में, r= वृद्धि दर, t= समय, e= स्वाभाविक लघुगणक का आधार)। r एक सापेक्ष वृद्धि दर है। यह पौधे द्वारा नई पादप साममी भी निर्माण क्षमता को मापने के लिए है, जिसे एक दधाता सूंक्कांक (efficiency index) के रूप में सन्दर्रित किया जाता है, अतः w1 का अन्तिम आकार w0 के प्रारम्भिक आकार पर निर्भर करता है।
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(स) सिभ्मॉइड वृद्धि वंज (Sigmoid Growth Curve) : ज्यामितीय वृद्धि को तीन प्रावस्थाओं में बाँटा जा सकता है-

  • प्रारम्भिक धीमा वृद्धि काल (initial lag phase),
  • मध्य तीत्र वृद्धि काल (middle lag phase),
  • अन्तिम धीमा वृद्धि काल (last stationary phase)।

यदि समय के सापेक्ष वृद्धि दर का प्राफ खींचा जाय तो ‘S’ की आकृति का वंक्र प्राप्त होता है। इसे सिम्मॉइ (sigmoid curve) वक्र कहते हैं। एक सिग्मॉइड वक्र में निम्न चार चरण होते है-

  1. पश्चान्त प्राबस्था (Lag phase)-इस प्रावस्था में कोशिका में आन्तरिक परिवर्तन होते हैं, संचित खाध्य पदार्थ के काम आने से इसके शुष्क भार में कमी आती है और वृद्धि बहुत धीमी गति से होती है। इसे मंद वृद्धि काल कहते हैं।
  2. पश्च प्रांस्था (Log phase)-इस प्रावस्था में वृद्धि दर एक साथ तीव्र होती है। इसे ग्याफ में सीधी रेखा से दर्शाया गया है। इसे समग्र वृद्धि काल भी कहते हैं। इसे अधिकतम वृद्धि काल कहते हैं। भी कहते हैं। इसे अधिकतम वृद्धि काल कहते हैं।
  3. घटती प्राक्या (Decline phase)-इस प्रावस्था में वृद्धि दर क्रमशः कम होने लगती है। इसे न्यून वृद्धि काल कहते हैं।
  4. स्याई प्रावस्था (Steady phase)-इस प्रावस्था में कोशिका के पूर्ण परिपक्व हो जाने से वृद्धि लगभग स्थिर हो जाती है। इसे स्थिर वृद्धि काल कहते हैं।

(द) सम्पूर्ण एवं सापेक्ष वृद्धि दर (Absolute and Relative Growth Rate)

  • प्रति इकाई समय और मापन में कुल वृद्धि को सम्पूर्ण या परमवृद्धि दर (absolute growth rate) कहते हैं।
  • किसी दी गई प्रणाली की प्रति इकाई समय में वृद्धि को सामान्य आधार पर प्रदर्शित करना सापेक्ष वृद्धि दर (relative growth rate) कहलाता है। सम्मुख चित्र में दोनों पत्तियों ने एक निश्चित समय में अपने सम्पूर्ण क्षेत्रफल में समान वृद्धि की है, फिर भी A की सापेक्ष वृद्धि दर अधिक है।

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प्रश्न 4.
वृद्धि से आप क्या समझते हैं ? वृद्धि की विभिन्न प्रावस्थाएँ लिखिए।
उत्तर:
वृद्धि (Growth)
जीवधारियों एवं पादपों-का आकार में बढ़ना वृद्धि (growth) कहलाता है, जिसके फलस्वरूप पौधे के शुष्क भार (dry weight) तथा जीवद्रव्य की मात्रा में भी बढ़ोत्तरी होती है। किसी जीवधारी के आकार में परिवर्तन, रूप में भिन्नता एवं जटिलता का उत्पन्न होना परिवर्धन (development) कहालाता है।

अतः वृद्धि एक मात्रात्मक (quantitative) दशा है जिसमें जीवधारियों के पदार्थों की मात्रा में बढ़ोत्तरी होती है। अतः वृद्धि एवं परिवर्धन को एक-दूसरे से आसानी से पृथक् नहीं किया जा सकता है, क्योंकि ये क्रियाएँ एक-दूसरे के बाद एक ही जीव में सम्पन्न रहती हैं। वृद्धि को किसी तुला से तौलकर तथा परिवर्धन को गुणात्मक गणना के आधार पर एक-दूसरे से पृथक् नहीं किया जा सकता है।

परिभाषा (Definition) ब्लैकमैन (Blackman) के अनुसार वृद्धि (growth) वह परिणाम है जो किसी जीव या अंग की विघटनकारी क्रियाओं की तुलना में निर्माणकारी उपापचयी क्रियाओं (metabolic reactions) के कारण उत्पन्न होता है। मिलर (Miller) के अनुसार, वृद्धि वह घटना है जो पादप के किसी अंग, भार, आयतन, आकार एवं रूप में स्थाई एवं अनुक्क्रमणीय (irreversible) परिवर्तन प्रदर्शित करती हैं।
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पादप वृद्धि स्थल (Plant growth places)
निम्न कोटि के पादपों (जैसे-शैवाल, कवक आदि) में वृद्धि उनके सम्पूर्ण शरीर में होती है जबकि उच्चकोटि के पादपों में वृद्धि कुछ विशेष भागों में होती है। इन स्थानों पर पाए जाने वाले ऊतक विभज्योतक (meristems) कहलाते हैं। इन ऊतकों की कोशिकाओं में विभाजन की अपार क्षमता होती है। पादपों में स्थिति के आधार पर विभज्योतक (meristems) निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं-
(a) शीर्षस्थ विभज्योतक (Apical meristem) – यह तने या मूल (stem and root) के शीर्ष (apex) पर पाया जाता है। इसकी सक्रियता के कारण पौधे की लम्बाई में वृद्धि होती है।

(b) पार्श्व विभज्योतक (Lateral meristem) – जैसा कि नाम से स्पष्ट है, ये ऊतक पौधों के पार्श्व उपांगों जैसे-पर्व एवं पर्वसन्धियों (node & internodes) के पार्श्व में पार्श्व कलिकाओं (lateral buds) के आधार भागों आदि स्थानों पर पाए जाते हैं। इनकी क्रियाशीलता के कारण तने एवं जड़ (root & stem की मोटाई में वृद्धि होती है। संवहन एधा (vascular cambium) तथा कॉर्क एधा (cork cambium) इसके उदाहरण हैं।

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(c) अन्तवेशी विभज्योतक (Intercalary meristem) – इस प्रकार के विभज्योतक सर्वदा पर्वसन्धि (node) के ऊपर पाए जाते हैं। इनकी सक्रियता के फलस्वरूप पौधे के तने के पर्व (internodes) लम्बाई में वृद्धि करते हैं।

प्रश्न 5.
वृद्धि दर एवं वृद्धि वक्र से आप क्या समझते हैं ? समझाइए ।
उत्तर:
वृद्धि दर एवं वृद्धि वक्क (Growth Rate and Growth curve) समय की प्रति इकाई के दौरान बढ़ी हुई वृद्धि को वृद्धि दर (growth rate) कहा जाता है। वृद्धि दर को विभिन्न रूपों में प्रदर्शित किया जाता है। जैसे-अंकगणिवीय वृद्धि, ज्यामितीय वृद्धि, सिग्माइड वृद्धि तथा सम्पूर्ण एवं सापेक्ष वृद्धि दर।

(अ) अकगणितीय धृन्दि (Arithmetic Growth)
यह वृद्धि का वह प्रकार है जिसमें आरम्भ से ही एक स्थिर दर से वृद्धि होती है। समसूत्री विभाजन (mitosis) के पश्चात् बनने वाली दो संतति कोशिकाओं में से केवल एक कोशिका निर्त्रर विभाजित होती रहती है और दूसरी कोशिका विभेदित एवं परिपक्व होती रहती है। अंकगणितीय वृद्धि को हम निश्चित दर पर वृद्धि करती जड़ में देख सकते हैं। यह एक सरलतम अभिव्यक्ति होती है। यदि इस वृद्धि का प्राफ पर आकलन किया जाए तो हमें एक सीधी रेखा प्राप्त होती है। इस वृद्धि को छम गणितीय रूप से व्यक्त कर सकते हैं-

Lt=Lo+rt
(यहाँ Lt= समय t पर लम्बाई,
L0= समय शून्य पर लम्बाई, r= वृद्धि दर)
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(ब) उसमिबीय शृबि (Geometrical Growth)
किसी एक कोशिका, पौधे के एक अंग अथवा पूर्ण पौधे की वृद्धि सदैव एकसमान नहीं होती है अर्थात् बदलती रहती है।
प्रारम्भिक अवस्था में वृद्धि धीमी होती है जिसे प्रारम्थिक धीमा वृद्धि काल (initial lag phase) कहते हैं। इसके पश्वात् वृद्धि तीव्रतम होकर उच्चतम बिन्दु पर पहुँच जाती है जिसे मध्य तीव्र वृद्धि काल (middle logarithmic phase) कहते हैं।

इसके पश्चात् वृद्धि पुन: धीमी होती है और अन्त में स्थिर हो जाती है। इसे अन्तिम घीमा वृद्धि काल (last stationary phase) कठते हैं। इसे सामूह्हिक रूप से ज्यामितीय वृद्धि (geometrical growth) कहते हैं। इसमें सूत्री विभाजन (mitosis) से बनी दोनों संतति कोशिकाओं में पुनः विभाजन होता है और इनसे बनी कोशिकाएँ मातृ कोशिकाओं का अनुसरण करती हैं।

यद्यपि सीमित पोषण आपूर्ति के साथ वृद्धि दर धीमी होकर स्थिर हो जाती है। समय के प्रति वृद्धि दर को म्राफ पर अंकित करने पर एक सिम्यॉड्ड वार (Sigmoid curve) प्राप्त होता है। यह ‘ S ‘ की आकृति का होता है। ज्यामितीय वृद्धि को गणितीय रूप से निम्न प्रकार व्यक्त कर सकते हैं-

w1=woert

जहाँ (w1= अन्तिम आकार, भार, ऊँचाई, संख्या आदि, w0= प्रारम्भिक आकार वृद्धि के प्रारम्भ में, r= वृद्धि दर, t= समय, e= स्वाभाविक लघुगणक का आधार)। r एक सापेक्ष वृद्धि दर है। यह पौधे द्वारा नई पादप साममी भी निर्माण क्षमता को मापने के लिए है, जिसे एक दधाता सूंक्कांक (efficiency index) के रूप में सन्दर्रित किया जाता है, अतः w1 का अन्तिम आकार w0 के प्रारम्भिक आकार पर निर्भर करता है।
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(स) सिभ्मॉइड वृद्धि वंज (Sigmoid Growth Curve) : ज्यामितीय वृद्धि को तीन प्रावस्थाओं में बाँटा जा सकता है-

  • प्रारम्भिक धीमा वृद्धि काल (initial lag phase),
  • मध्य तीत्र वृद्धि काल (middle lag phase),
  • अन्तिम धीमा वृद्धि काल (last stationary phase)।

यदि समय के सापेक्ष वृद्धि दर का प्राफ खींचा जाय तो ‘S’ की आकृति का वंक्र प्राप्त होता है। इसे सिम्मॉइ (sigmoid curve) वक्र कहते हैं। एक सिग्मॉइड वक्र में निम्न चार चरण होते है-
(1) पश्चान्त प्राबस्था (Lag phase)-इस प्रावस्था में कोशिका में आन्तरिक परिवर्तन होते हैं, संचित खाध्य पदार्थ के काम आने से इसके शुष्क भार में कमी आती है और वृद्धि बहुत धीमी गति से होती है। इसे मंद वृद्धि काल कहते हैं।

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(2) पश्च प्रांस्था (Log phase)-इस प्रावस्था में वृद्धि दर एक साथ तीव्र होती है। इसे ग्याफ में सीधी रेखा से दर्शाया गया है। इसे समग्र वृद्धि काल भी कहते हैं। इसे अधिकतम वृद्धि काल कहते हैं। भी कहते हैं। इसे अधिकतम वृद्धि काल कहते हैं।

(3) घटती प्राक्या (Decline phase)-इस प्रावस्था में वृद्धि दर क्रमशः कम होने लगती है। इसे न्यून वृद्धि काल कहते हैं।

(4) स्याई प्रावस्था (Steady phase)-इस प्रावस्था में कोशिका के पूर्ण परिपक्व हो जाने से वृद्धि लगभग स्थिर हो जाती है। इसे स्थिर वृद्धि काल कहते हैं।

(द) सम्पूर्ण एवं सापेक्ष वृद्धि दर (Absolute and Relative Growth Rate)

  • प्रति इकाई समय और मापन में कुल वृद्धि को सम्पूर्ण या परमवृद्धि दर (absolute growth rate) कहते हैं।
  • किसी दी गई प्रणाली की प्रति इकाई समय में वृद्धि को सामान्य आधार पर प्रदर्शित करना सापेक्ष वृद्धि दर (relative growth rate) कहलाता है। सम्मुख चित्र में दोनों पत्तियों ने एक निश्चित समय में अपने सम्पूर्ण क्षेत्रफल में समान वृद्धि की है, फिर भी A की सापेक्ष वृद्धि दर अधिक है।

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प्रश्न 6.
वृद्धि पर प्रभाव डालने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वृद्धि के लिए दशाएँ अधवा वृद्धि पर प्रभाव ज्ञालने वाले कारक (Conditions for Growth or Factors Affecting Plant Growth)
वृद्धि विभिन्न प्रक्रियाओं का परिणाम है। अतः जो भी कारक इन प्रक्रियाओं को प्रभावित करते हैं वृद्धि को भी प्रभावित करते हैं। वृद्धि को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्न प्रकार हैं-
1. जल (Water) – जल पादप वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण कारक है। जल अनेक पदार्थों के संवहन माध्यम का कार्य करता है। कोशिका की विभिन्न उपापचयी क्रियाएँ (metabolic processes) भी जलीय माध्यम में होती हैं। अधिकांश विकर (enzymes) भी जल की उपस्थिति में सक्रिय रहते हैं। अतः जल की कमी का पौधों की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव होता है।

2. ऑक्सी (respiration) द्रारा प्राप्त होती है और श्वसन के लिए ऑक्सीजन आवश्यक होती है। अतः ऑक्सीजन की कमी का उपापचयी क्रियाओं पर प्रतिकूल प्रभाव होता है जिससे वृद्धि प्रभावित होती है।

3. प्रकाश (Light)-पौधे प्रकाश की उपस्थिति में ही प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) द्वारा भोज्य पदाथों का निर्माण करते हैं। क्लोरोफिल (chlorophyll) का निर्माण भी प्रकाश की उपस्थिति में होता है। क्लोरोफिल भी प्रकाश संश्लेषण में प्रमुख भूमिका अदा करता है। प्रकाश की अनुपस्थिति में पादपों में न तो क्लोरोफिल का गिर्माण होगा और न ही भोज्य पदार्थों का। भोज्य पदार्थों के अभाव में पौरों की वृद्धि नहीं हो सकती।

4. खनिज लवण (Mineral salts) – पौर्रों की वृद्धि के लिए विभिन्न खनिज लवर्णों की आवश्यकता होती है। पौधों में लगभग 92 तत्व पाए जाते हैं। इनमें से ऑक्सीजन, हाइड्रोजन, कार्बन, पोटेशियम, सल्फर तथा नाइट्रोजन प्रमुख हैं। इनके अलावा बोरोन, जिंक, मोलीब्डेनम, कॉपर, लौह, मैग्नीशियम आदि तत्व भी आवश्यक होते हैं। इनकी कमी से पौधों में विकार उत्पन्न हो जाते हैं तथा पौधे समुचित वृद्धि नहीं कर पाते हैं।

5. होंमोंस (Hormones) – हॉर्मोन्स पौर्षों में ही अल्प मात्रा में संश्लेषित होते हैं और पौषों की वृद्धि को प्रभावित करते हैं, जैसे-ऑक्सि, जिबरेलिन इत्यादि ।

6. ताप (Temperature) -10°C तापक्रम बढ़ने पर जैविक क्रियाओं की दर दोगुनी से तिगुनी हो जाती है किन्तु अत्यधिक ताप वृद्धि पादपों के लिए हानिकारक होती है।

7. प्रकाश तीब्ता (Intensity of Light) – अधिक तीव्र प्रकाश वृद्धि को कम करता है किन्तु पौधे छष्ट-पुष्ट होते हैं।

8. प्रकाश का प्रकार (Quality of Light)-पराबैंगनी (ultraviolet) तथा अवरक्त लाल किरणें (infra red rays) वृद्धि को रोकती हैं किन्तु लाल किरणें वृद्धि को प्रेरित करती हैं।

9. प्रकाश काल (Duration of Light) – प्रकाश काल का प्रभाव मुख्यतः पुष्पन (flowering) पर होता है।

10. प्रकाश की दिशा (Direction of Light)-प्रकाश की दिशा भी वृद्धि को प्रभावित करती है। तनों का प्रकाश की ओर बढ़ना धनात्मक प्रकाशानुवर्तन (positive phototropism) कहलाता है।

प्रश्न 7.
पादप वृद्धि नियम क्या है ? किन्हीं दो पादप वृद्धि नियामकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पादप वृद्धि नियामक (Plant Growth Regulators)
प्राकृतिक पादप वृद्धि नियामक विशेष प्रकार के कार्बनिक यौगिक छोते हैं, जो मुख्य रूप से जिक्योत्रों (Meristems) तथा विकासशील पीतियों एवं फ्रों में उत्पन्न होते हैं। इ्नकी अतिस्थि माश्र पौधों के विभिन्न भागों में पहुँचकर उनकी विभिन्न उपापचयी क्रियाओं (metabolic processes) को प्रभावित एवं नियन्त्रित करती है।

इन्हें पात्य होंकोस्स (plant hormones or phytohormones) भी कहो हैं। अनेक कृत्रिम कार्बनिक योगिक भी पादप हॉर्मोंस की तरह कार्य करते हैं। वेन्ट (Went; 1928) के अनुसार वृद्धि नियामक पदार्थों के अभाव में वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव होता है।
पादप हॉर्मोन्स को निम्नलिखित पाँच समुों में बाँटा जा सकता है-

  1. ऑक्सिन्स (Auxins),
  2. जिबरेलिन्स (Gibberellins),
  3. साइटोकाइनिन्स (Cytokinins)
  4. ऐब्सिसिक अम्ल (Abscisic acid),
  5. एथिलीन (Ethylene)।

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित के कार्यिकीय प्रभाव लिखिए-
(अ) ऑक्सिन,
(ब) जिब्बरेलिन,
(स) साइटोकाइनिन।
उत्तर:
देखिए –
(अ)  ऑक्सिन्स (Auxins)
डार्विन (Darwin; 1880) ने केनरी घास (Phalaris canariensis) पर अपने प्रयोगों के दौरान देखा कि इस घास के नवोद्धिद (seedlings) के प्रांकर चोल (coleoptile) को एक ओर से प्रकाश दिया जाय तो यह प्रकाश की ओर मु० जाता है। यदि प्रांर चोल (coleoptile) का शीर्ष काटकर प्रकाश दिया जाय दो यह एक तरफा प्रकाश की ओर नहीं मुड़ता।
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बायसन-जेन्सन (Boysen-Jensen, 1910-1913) ने कटे हुए प्राकुर चोल (coleoptile) को अगार (Agar) के घनाकार टुकड़ों पर रखा। कुछ समय पश्चात् अगार के इस टुकड़े को उन्होने कटे हुए प्रांकुर चोल वाले स्थान पर रखकर एकतरफा प्रकाश दिया। ऐसा करने से प्रांकुर चोल (coleoptile) प्रकाश की ओर मुछ़ जाता है।

वेष्ट ने इसी प्रकार के प्रयोग जई (Avena sativa) के नवोद्भिदों पर किये तथा बताया कि प्रांकुर चोल के शीर्ष भाग में एक रासायनिक पदार्थ बनता है जो प्रकाश से उद्दीप्त हो जाता है। यदि प्रांकुर चोल (coleoptile) के टिप को काट दिया जाय तो इस पदार्थ का संश्लेषण नहीं होता और कटे टिप वाले प्रांकुर चोल पर प्रकाश का कोई प्रभाव नहीं होता है।

यदि टिप को अगार इलाक (agar block) पर रख दिया जाता है तो रासायनिक पदार्थ अगार ब्लाक में रिसकर चला जाता है तथा इस अगार ब्लाक को पुन: कटे प्रांकुर चोल पर रखें तो रासायनिक पदार्थ ठीक उसी प्रकार कार्य करता है जिस प्रकार बिना काटे हुए प्रांकुर चोल का।

एक अन्य प्रयोग में एफ. इन्यू. वेष्ट्ट (F. W. Went : 1926-1928) ने प्रांकुर चोल के कटे हुए टिप को दो अगार के ब्लाकों पर रखा जिनके मध्य पतली अंक्षेटेट (माइका) लगी थी। अब इस टिप को एकतरफा प्रकाश दिया गया। उन्होंने देखा कि रासायनिक पदार्थ की 65% मात्रा छाया वाले अगार ब्लाक में तथा 35% मात्रा प्रकाश की ओर वाले अगार ब्लाक में एकत्र थी।

वेण्ट ने इस रासायनिक पदार्थ को अंक्सि (Auxin) नाम दिया। ऑंक्सिन की उपस्थिति तने में वृद्धि को प्रेरित करती है तथा जड़ में वृद्धि का संदमन करती है। ऑक्सिन के असमान वितरण के कारण ही प्रकाशानुकर्तनी तथा गुर्तचानुकार्ती (phototropism and geotropism) गति होती है।

ऑक्सिन की खोज का श्रेय एफ. छष्ल्यू. वेन्ट को ही दिया जाता है। केनेब बीमान (Kenneth Thimann) ने आंक्सि को शुद्ध रूप में प्राप्त करके इसकी आण्विक संरचना ज्ञात की। ऑक्सिन की रासायनिक प्रकृति (Chemical Nature of Auxin) कॉगल तथा हाओेन स्थिध ने मानव मूत्र से ऑंक्सिन समान पदार्थ पृथक् किया। इसे उन्डोंने ऑंक्सिन्-a (ऑक्सिनोट्रायोलिक अम्ल) कहा जिसका सूत्र C18H32O5 होता है।

ऑक्सिन दो प्रकार के होते हैं-
(1) प्राकृतिक ऑक्सिन (Natural auxin)-कॉगन एवं साथियों ने पुन: मानव के मूत्र से ही एक अन्य पदार्थ पृथक् किया जिसे हि्डोओक्सिन (Heteroauxin) नाम दिया। इसे आजकल IAA (इन्डोल-3 ऐसीटिक एसिड) कहते हैं। यह प्रों में पाया जाने वाला प्राकृतिक ऑंक्सिन है। अन्य प्राकृतिक ऑक्सिन IAA के व्युतन्न के रूप में पाये जाते हैं।

प्राकृतिक आंक्सिन शीर्ष विभाज्योतकों (apical meristem) में बनते हैं और इनका संश्लेषण विभज्योतक क्षेत्र में ‘ट्रिप्टोफेन’ (triptophen) अमीनो अम्ल द्वारा छोता है। यह शीर्ष से सिर्फ आधार की ओर गमन करते हैं। इ्नका ‘बसेीपिट्य ट्रान्सपेर्ट’ (basipetal transport) होता है। इनकी मात्रा शीर्ष विभज्योतकों में अधिकतम छोती है। तीव्र प्रकाश में ऑंक्सिन नह हो जाते हैं। ऑंक्सिन संश्लेषण के लिए Zn अनिवार्य होता है।

(2) संश्लेकि ऑक्सिन (Synthetic auxins)- कुछ संश्लेषित रासायनिक यौगिक मी ऑक्सिन की भाँति कार्य करते हैं। इन्हें संख्लेषित ऑक्सिन (Auxin) कहते हैं। जैसे – नैफ्थलिन ऐसीटिक अम्ल (NAA), इ्डोल-3-ब्यूटाइरिक अम्ल (IBA), 2-4 डाइक्लोरोफिनांक्सि ऐसीटिक अम्ल (2-4D)। आँक्सिन सबसे अधिक103 या 0.001 M की सान्द्रता पर प्रभावी होता है।

संश्लेषित ऑक्सिन में ‘अधुवीय स्थनान्तरण’ पाया जाता है। पादप के किसी भी भाग पर डालने पर यह सम्पूर्ण पादप में फैल जाते हैं। एक पादप में एक समय एक ही ऑक्सिन (Auxin) पाया जाता है। ऑंक्सिन की सर्वाधिक सान्द्रता विभज्योतक उत्तक में पाई जाती है। आंक्सिन का स्थानान्तरण संवहन बंडल (vascular bundle) के द्वारा नहीं होता है बल्कि विसरण (diffusion) द्वारा एक कोशिका से दूसरी कोशिका में होता है।
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ऑक्सिन के कार्यिकीय प्रभाव एवं उपयोग (Physlological Effects & Uses of Auxins)
1. शीर्ष प्रमुख्ता (Apical dominance)- तनों की शीर्ष कलिका (apical bud) में संश्लेषित आक्सिन शीर्ष वृद्धि को बढ़ावा देते हैं तथा पार्श्व कलिकाओं (lateral buds) की वृद्धि का संदमन करते हैं। शीर्ष कलिका को काटने पर पार्श्व कलिकाएँ तेजी से वृद्धि करती हैं। इस गुण का प्रयोग चाय बागानों एवं हेज लगाने के लिए किया जाता है।

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2. विलगन (Abscission) – ऑक्सिन की विशिष्ट सान्द्रता का छिड़काव करने से पत्तियों, पुष्पों व फलों का असमय विलगन रोका जा सकता है।

3. प्रसुपता नियन्रण (Control of dormancy)-आँक्सिन के छिड़काव द्वारा आलू आदि भूमिगत कन्दों (tubers) की कलिकाओं को सामान्य ताप पर प्रस्सुटित (proliferate) होने से रोका जा सकता है।

4. कायिक प्रजनन (Vegetative propogation)-IBA का प्रयोग कलम में निचले भाग में शीष्र जड़ें उत्पन्न करा देता है।

5. खरपतवार नियमन्रण (Weed control) – ऑंक्सि, जैसे – 2, 4-D का प्रयोग चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों (weeds) को नृष्ट करने के लिए किया जाता है ।

6. अनिवेकफलन (Parthenocarpy)- बिना निषेचन (fertilization) फलों का निर्माण होना अनिषेकफलन (parthenocarpy) कहलाता है। कुछ पौधों जैसे-अंगूर, केला, सन्तरा आदि में परागण क्रिया को रोककर यदि ऑंक्सिन की उचित सान्द्रता वर्तिकाम्रों (stigmia) पर लगा दी जाय तो इनमें फलों का विकास हो जाता है।

7. कोशिका दीर्घीकरण (Cell elongation) – आँक्सिन का मुख्य कार्य प्रोह (shoot) में कोशिका दीर्घीकरण है। प्रोह में ऑंक्सिन की अधिक सान्द्रता कोशिका दीर्घीकरण भी प्रेरित करती है। इसलिए प्ररोह धनात्मक प्रकाशानुवर्तीं (+ ve phototropic) एवं ऋ्रणात्मक गुर्त्वानुवर्ती (-ve geotropic) होता है।

8. कोशिका विभाजन (Cell division) – ऑक्सिन कैम्बियम के विभाजन के समय, कलम बाँधने (grafting) के समय, घाव (wounds) होने पर तथा ऊतक संवर्धन (tissue culture) में कोशिका विभाजन को बढ़ाता है।

9. wके का समारथन (Root initiation) – ऑंक्सिन जड़ों के निकलने को प्रेरित करता है। कुछ पौधे जैसे-गुलाब, बोगेनविलिया, नींबू, संतरा आदि में तनों या कलमों को लगाकर नया पौधा तैयार किया जाता है। कलमों के कटे हुए भाग को ऑक्सिन (IBA या NAA) के घोल में हुबोकर लगाने से कलमों से जड़ें शीघ्रता से निकलती हैं तथा कलम जल्दी लग जाती है।

10. पुयन पर प्रथाव (Effects on flowering)-ऑक्सिन अनावश्यक पुष्यन की क्रिया को रोकते हैं, जैसे-आम में। इसी प्रकार सलाद के पौधे में पुष्प निर्माण को रोककर पौषे के वाणिज्य मूल्य को बनाये रखा जा सकता है, क्योंकि इस पौधे की केवल पत्तियाँ उपयोगी होती हैं। अनन्नास तथा लीची में ऑंक्सिन के छिड़ाव से पौधों के सभी फूल एक समय पर उत्पन्न होते हैं।

ऑक्सिन पुर्षों में ‘माद्रप्न प्रभाव’ (feminising effect) डालते हैं। ये मादा पुष्पों के निर्माण को बढ़ाते हैं। नर पुष्यों के निर्माण को रोकते हैं। जैसे-कुकरबिटा (Cucurbita) में दो प्रकार के पुष्प पाये जाते हैं। इसमें ऑक्सिन के छिड़काव द्वारा मादा पुष्प (female flower) अधिक प्राप्त किए जा सकते हैं।.
अन्य प्रभाव (Other effects) : आंक्सिन्स के कुछ अन्य प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  • श्वसन क्रियाधारों की उपलब्धता बढाकर श्वसन को प्रेरित करते हैं।
  • कोशिकाओं में विलेयों के संग्रहण को बढ़ाते हैं।
  • एथिलीन में संश्लेषण को बढ़ाते हैं।

(ब) जिबरेलिन (Gibberellins)
जिबरेलिन की खोज (Discovery of Gibberellin)-जापान के फारमोसा (Formosa) में धान के खेत में कुछ पौधे अत्यधिक लम्बे पाए गए, जिनकी पत्तियाँ लम्बी व पीली हो जाती थीं तथा इन पौधों में दाना कम उत्पन्न होता था। धान का यह रोग एक कवक, जिबरेला फ्यूरीकुराई (Gibberella fujikuroiFusarium moniliforme) द्वारा होता है ।

इस रोग को फूलिश सीडलिग रोग या बकानी (Foolish seedling disease or Bakanae) रोग कठा जाता है। &. कुरोसावा (E. Kurosawa, 1926) ने प्रमाणित किया कि यदि कवक (fungus) द्वारा सावित रस को धान के स्वस्थ पौधों पर स्ते कर दिया जाए तो उनमें भी इस रोग के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।

या और ह्याशी (Yabuta and Hayashi, 1939) ने इस फफूँद में से एक वृद्धि नियन्नक पदार्थ पृथक् किया जिसे जिबरेलिन-A (GA) नाम दिया गया। विभिन्न प्रकार के पौधों में अब तक 110 से अधिक जिबरेलिन पृथक् किए जा चुके हैं। जिबरेलिन्स को अपरिपक्व बीजों, जड़ तथा तने के शीर्ष, तरुण पत्तियों तथा कवकों से पृथक् किया गया है। ये संभवतः शैवाल, मॉस तथा फर्न आदि में भी पाए जाते हैं।

श्वसन क्रिया में भाग लेने वाला प्रमुख योगिक ऐसीटिल कोएन्जाइम-A जिबरेलिन-A के निमाण में पूवेवर्ती (Precurser) योंगक का काम करता है।
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रासायनिक सूत्र एवं प्रकृति (Chemical formula and chemical nature): अधिकांश ज्ञात जिबरेलिन्स को GA1, GA2, GA3 ………….. आदि नाम दिए गए हैं।

जिनके रासायनिक संत्र निम्न प्रकार हैं-
GA1 = C19 H24 O6
GA2 = C19 H26 O6
GA3 = C19 H22 O6
सबसे सामान्य तथा सर्वाधिक महत्व का जिबरेलिन GA3 होता है।
(b) रासायनिक प्रकृति (Chemical Nature)-जिबरेलिन का अग्रक पदार्थ (Precurser) कॉरीन (kaurene) होता है। कॉरीन का अग्रक पदार्थ ऐसीटिल Co- A होता है। जिबरेलिन का स्थानान्तरण अधुवीय (non-polar) होता है तथा इनकी संरचना चक्रीय (cyclic structure) होती है। इनमें जिबेन वलय होती है। रासायनिक दृष्टि से सभी जिबरेलिन टरपीन्स (terpenes) होते हैं। ये सभी पादपों में पाये जाते हैं।

जिबरेलिन का कार्यिकीय प्रभाव एवं महत्व (Physiological Effects and Importance of Gibberellins)
1. लम्बाई बक्नाने की क्षमता (Efficiency of increase the length) – जिबरेलिन की उचित सान्द्रता के छिड़काव से बौने पौधे (dwarf plants) लम्बे हो जाते हैं। किन्तु इसका प्रभाव सीमित पौधों पर ही होता है। GA के प्रयोग से सेब के पौधे लम्बे हो जाते हैं। अंगूर के डण्ठल की लम्बाई बढ़ जाती है, गन्ने के तने की लम्बाई बढ़ जाती है।

2. पुप्यन पर प्रभाव (Effect of flowering)-कुछ पौधों को पुष्पन हेतु कम ताप तथा दीर्ष प्रकाश की आवश्यकता होती है। यदि इन पौधों पर GA3 का छिड़काव किया जाय तो पुष्पन आसानी से हो जाता है। द्विवर्षी पौधे (biennial plants), एकवर्षी पौधों (annual plants) की तरह व्यवहार करने लगते हैं, इसे वोस्टित प्रथा (bolting effect) कहते हैं। GA का पुष्पन की क्रिया पर ऑक्सिन की अपेक्षा उल्टा प्रभाव होता है। GA पादपों में पुंजननता (male ness) को प्रेरित करते हैं। अर्थात् नर पुष्पों के निर्माण को बढ़ाते हैं।

3. वृद्धि दर पर प्रथाव (Effect on growth rate)-जिबरेलिन्स कोशिका दीर्घन (cell elongation) के द्वारा वृद्धि को बढ़ाते हैं। जिबरेलिन्स, ऑक्सिन की तुलना में 500 गुना अधिक सक्रिय होते हैं।

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4. अनिषेक फलन (Parthenocarpy) – कृत्रिम अनिषेक फलन में भी GA का उपयोग किया जाता है। इसके द्वारा टमाटर, सेब, नाशपाती आदि फलों में अनिषेक फलन ऑक्सिन की तुलना में अधिक आसानी से कराया जा सकता है। इसका प्रयोग अति तनु अवस्था में किया जाता है।

5. दीर्घ प्रदीप्तिकाली पौधों में पुष्पन (Early flowering in long day plants) – LDP को पुष्पन के लिए दीर्घ प्रकाश अवधि की आवश्यकता होती है। जिबरेलिन के उपचार द्वारा इन पौधों में लघुप्रकाश अवधि (SDP) में ही पुष्पन कराया जा सकता है।

6. बसन्तीकरण या शीत उष्चार का प्रतिस्थापन (Vernalisation or substitution of cold treatment) – द्विवर्षीय पादपों में पुष्पन दूसरे वर्ष में एक शीतकाल के समाप्त होने के बाद होता है। इनमें पुख्पन के लिए शीतकाल में कम तापमान की आवश्यकता होती है। ज़िबरेलिन उपचार से इनमें वृद्धि के प्रथम वर्ष में ही पुष्पन हो जाता है।

7. प्रसुप्तावस्था भंग करना (Breaking of dormancy) – जिबरेलिन बीजों तथा कन्दों (tubers) की प्रसुप्तावस्था (dormancy) को नष्ट करते हैं तथा इन्हें अंकुरित होने के लिए प्रेरित करते हैं। जिबरेलिन बीजों तथा कन्दों के जटिल भोजन के पाचन को प्रेरित करते हैं, जिससे वे अंकुरण कर सकें।

8. एमाइलेज विकर का निर्माण (Synthesis of α-Amylase)-जिबरेलिन मक्का के अंकुरित बीजों में α एमाइलेज के निर्माण को प्रेरित करते हैं।

9. प्रकाश संवेदी बीजों में अंकुरण (Germination in light Sensitive seeds) – सलाद एवं तम्बाकृ के बीजों को अंकुरण के लिए प्रकाश की आवश्यकता होती है। इन बीजों को जिबरेलिन से उपचारित करने से इन्हें अंधेरे में उगाया जा सकता है।

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(स) साइटोकाइनिन।
सार्तेकामनिन के कायिक्डीय प्रथाव (Physiological Effect of Cytokinin)
1. डोरिता निथलन (Cell division)- साइटोकाइनिन का प्रमुख कार्य ऑक्सिन की उपस्थिति में कोरिका विभाजन (cell division) को प्रेरित करना है। ये पादर्यों में विभज्योतक निर्माण को भी प्रेरित करते है।

2. कोशिका वियेद्न (Cell differentiation) – साइ्टोकाइ़नन (cytokinin) ऑंक्सिन की उपस्थिति में विभिन्न अनुपात में अलग-अलग प्रभाव उत्पन्न करते हैं। ऊसक संवर्धन (tissue culture) प्रक्रिया में पोषक माध्यम (culture media) में अधिक सान्द्रता में साइटोकाइनिन तथा कम सान्द्रता में ऑंक्सि हो तो इससे कैलस (callus) का विकास प्रेरित होता है। साइटोकाइनिन की कम एवं ओंक्सिन की अधिक सान्द्रता जड़ निर्माण एवं विभेदन को प्रेरित करती है। यदि दोनों की मात्रा समान रखी जाए तो जड़ एवं तना दोनों ही समान रूप से विकसित होते हैं।

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3. शीर्ष प्रयाबिता निरोध (Counter action of apical dominance)-साइटोकाइनिन के प्रभाव से शीर्ष प्रमुखता प्रभाव नष्ट हो जाता है तथा पाश्व कलिकाओं (lateral buds) की वृद्धि होने लगती है।

4. प्रकाश संब्दी बीजं बा अंरण (Germination of light sensitive seeds)-साइटोकाइनिन से उपचारित सलाद व तम्बाकू के बीजों को अन्धेरे में उगाया जा सकता है।

5. जर्णता विलम्ब (Delay of Senescence)-पादपों में साइटोकाइनिन जीर्णता को विलंबित करते हैं। पर्णहरिम का विघटन, एन्जाइमों का नष्ट होना जीर्णता (senescence) के लक्षण हैं। साइटोकाइनिन के उपश्रार से जीर्णता (senescence) देरी से होती है। इस प्रभाव को रिचमॉण्ड लैंग प्रथाव (Richmond Lang Effect) कहते हैं।

6. घ्रतुर्जा नाशन (Breaking of dormancy)-साइटोकाइनिन के उपचार से कलिकाओं एवं बीजों की प्रसुप्तता को नष्ट किया जा सकता है।

7. लुदीफिकाली पौरों में पुष्मन (Flowering in SDP)-साइटोकाइनिन के उपचार से लघुदीप्तिकाली पौधों (SDP) में पुष्पन प्रेरित किया जा सकता

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